; चैतन्य लहरी अंकः7,8 1998 खण्ड: X मां के प्रेम ने रुसी हृदय जीता शू मास्को के समीय आइवरु में लिया गया ईसा मसीह की मां मैरी का एक चमत्कारिक चित्र आत्मा के प्रकाश से उज्जवल आपका सुन्दर अस्तित्व संसार के सम्मुख प्रमाणित कर देगा कि सहजयोग सत्य है (परम पूज्य माताजी श्री निर्मलना देवी नवरात्रि पूजा, कवैला- 5-10-1997 इस अंक में पृथ्ट नं. कीव जन कार्यक्रम आकाश में चमल्कार 2. तालियाती शक्ति पूजा 6 3. जन कार्यक्रम t. संट पीटर्सबर्ग जन कार्यक्रम 10 मास्को जन कार्यक्रम 16 6. रूस-संकीर्णद्वार 18 7. चिकित्सा सम्मेलन 19 8. दिवाली पूजा 23 १. श्रीमाताजी को पीटर अकादमी की सदस्यता 26 10. सहजयोग में विवाह 26 1. बोगी महाजन सम्पादक विजय नालगिरकर प्रकोशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 अभिनव प्रिन्टस, दिल्ली 34, मुद्रक फोन : 7184340 जन कार्यक्रम कीव रा 28-07-1993 रीढ़ के सिरे पर स्थित त्रिकोणाकार अस्थि में आराम करती हुई सभी सत्य साधकों को मेरा प्रणाम । आरम्भ में हमें यह समझना है कि सत्य जो है वही है, हम इसके विषय में सोच नहीं सक्ते, इसे परिवर्तित नहीं कर सकते और मानव चेतना पर इसे जान भी नहीं सकते । हमें समझना होगा कि ं कुण्डलिनी शक्ति छ: चक्रों में से होती हुई जब सहस्रार चक्र को भदती है तो यह आपका सम्बन्धि सारा जीवन्त कार्य करने वाली परमात्मा की सर्वव्यायी शक्ति से कराती है। इस प्रकार आपके शारीरिक रोग दूर हो जाते हैं। निश्चित रूप से सहज योग ने बहुत से असाध्य रोग ठीक किए हैं और बहुत से चिकित्सक सहजयोग का अनुसरण कर रहे हैं। हर वात का वैज्ञानिक उत्तर है। रूस में दो सी चिकित्सक सहजयोग । सत्य क्या है। सत्य यह है कि वास्तव में हम यह शरीर, मस्तिष्क, अहंकार एवं बन्धन नहीं है। हम पवित्र आत्मा हैं! हम कहते हैं-मरा शरीर, मेरे संस्कार, मेरा अहम्; परन्तु यह 'मेरा' क्या है? आप सव ये सुन्दर फूल देखते हैं। परन्तु हम ये नहीं समझते. सांचते तक भी नहीं कि यह महान चमत्कार है। नन्हें से बीज में से इन फूलों का निकल आना एक चमत्कार है और भिन्न बीजों में से भिन्न प्रकार के सुन्दर हैं ये हमारे अत्याधिक सोचने एवं चिन्ता करने के कारण आती फूलों का निकलना ! किसने यह सव आयोजन किया? हमारे हैं और हम तनावग्रस्त हा जाते हैं । बहुत से लोग न करने योग्य हृदय को कीन धड़काता है? चिकित्सक लोग कहँगे कि यह कार्य स्वचालित नाड़ी तन्त्र करता है । यह 'स्व' कौन हैद्र यह सब प्रश्न आपकं मस्तिष्क में आते हैं और भिन्न मा्गों को हैं और या मनोभाजन (SCHIZOPHRENIA) रोगी । कुण्डलिनी अपनाकर हम उत्तर खाजने का प्रयत्न करते हैं । विज्ञान के की जागृति से सभी प्रकार की मानसिक समस्याओं का समाधान लिए सीमाएं हैं। हमें समझ लेना चाहिए कि विज्ञान भी बहुत से प्रश्नों का उत्तर नहीं द सकता। उन प्रश्नों में से एक प्रश्न यह है कि हम पृथ्वी पर क्यों अवतरित हुए हैं? इसका लक्ष्य क्या है? विज्ञान यदि इसे प्रश्न का उत्तर दे सकता तो यह द्वारा कार्य कर रहे हैं। मानव शरीर में अन्य समस्याएं भी हैं जो कि मानसिक कार्यों को कर रहे हैं और परिणाम स्वरूप बहुत सी मानसिक समस्याओं के शिकार हो जाते हैं। लोग या तो पागल हो जाते का] किया जा सकता है। तीसरी समस्या आध्यात्मिक है क्योंकि , हम जानते हों या ना जानते हों. हम अपनी आत्मा को खाज रहे हैं। इसी कारण कुगुरु आ गए हैं जो लोगों को सम्मोहित कर आजकल वहुत से रहे हैं। आज प्रात: एक युवक मेरे कमरे में आया और पागलों की तरह से बोलने लगा। मैं हैरान थी कि किस प्रकार यह 'पूर्ण' सत्य के विषय में भी बता सकता। परन्तु विज्ञान यह उत्तर नहीं द सकता। ता अब हमें अपने अन्दर देखना है. अन्दर झांककर व्यक्ति सम्मोहित है! परन्तु आपसे धन बटोरने के लिए लोग आपको सम्माहनबद्ध करने का प्रयत्न करते हैं इन सुन्दर फूलों देखेना है कि हम मानव के रूप में यहां क्यों आए? उत्तर मिलता है कि विकास प्रक्रिया का अन्त है। इंसा ने कहा था के लिए आपने पृथ्वी मां को कितना धन दिया? इस शरीर को चलाने के लिए कितना धन चाहिए? किसे हम यह पैसा दंगे । ये सब स्वतः होता है। सहज का अर्थ है आपके साथ जन्सी| खिलना फूलों का स्वरभाव है, अंकुरण करना पृथ्वी का स्वभाव कि आपको पुनर्जन्म लेना होगा। सभी धर्मों ने यही बात कही है। परन्तु इसे घटित होना होगा। यह मेरा एक भाषण मात्र नहीं है. एक घटना है जिसे घटित होना होगा। आज आप सब लोग अपने अन्तर्निहित सूक्ष्म चक्रों तथा सुक्ष्म प्रणाली के विषय में जानने के लिए यहां आए हैं। इसके । इसी शक्ति को रचना आपके अन्दर भी है। यह आपकी का शक्ति है। अपनी शारीरिक, मानसिक, एवम् आध्यात्मिक समस्याओं लिए आपका अपना मस्तिष्क वैज्ञानिकों की तरह से खुला को हल करके आत्मा बन जाना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है । रखना होंगा और यदि यह प्रमाणित हो जाए तो इसे स्वीकार । मनुष्य होने के कारण हमे कवल इतना ही नहीं घटित हाता भी करना हांगा। आप यदि ईमानदार हैं ता इसे स्वीकार कर लंगे क्योंकि यह आपके अपने हित के लिए है । इसमें आपके दश का हित है और पूरे संसार का हित है। अन्तःस्थित सूक्ष्म चक्रों की खराबी के कारण ही अधिकतर समस्याएं खड़ी होती हैं और यदि किसी तरह से हम इन चक्रों को सुधार लें तो समस्याओं का समाधान हो जाता है। जागृत होकर सदैव विनाशकारी दुर्व्यस्नों में फंस जाते हैं । ये सब बुरी आदते छूट जाती हैं क्योंकि हमारे अन्दर विवेक जागृत हो जाता है। यह विवेक हमें ठीक करता है, उसी प्रकार जैसे अन्धेर में यदि आप अपने हाथ में सांप पकड़े हों तो किसी और के कहने पर आप इसे छोड़ेंगे नहीं. हा सकता है कि साप के काटने पर भी आप उसे न छोड़े, परन्तु किसी प्रकार यदि वहां प्रकाश हो जाए और चैतन्य लहरो खंड : X अंक : 7. 8 1998 इस डिब्बे में हम कैसे चलचित्र देख सकते हैं?" इसी प्रकार हम भी सोचते हैं कि हम केवल बक्से ही हैं। परन्तु वास्तव में हम ऐसे नहीं हैं। आप हैरान हांगे कि हम किस प्रकार प्रगल्भ हो जाएंगे, किस प्रकार करुणामय वन जाएंगे! तो ये सब आपके लिए है और आज रात आप अपना उत्थान प्राप्त कर सकते हैं। नि:सन्देह आप इसके लिए कोई पैसा नहीं दे सकते और न ही इसके लिए कुछ कर सकते हैं। यह सब विद्यामान आप दख सके कि आपके हाथ में सांप है तो एकदम आप उसे फैक देंगे। ऐसा करने के लिए किसी को बताना नहीं पड़ेगा । आत्मप्रकाश से आप अपने गुरु, अपने पथ-प्रदर्शक बन जाते हैं । यही आत्मसाक्षात्कार है, जिसे हम संस्कृत में बोध कहते हैं अ्थात् आपको यह वास्तविकता महसूस करनी है, इस सर्वव्यापी शक्ति को अपने मध्य नाड़ी-तन्त्र पर अनुभव करना है और इसके विषय में सभी कुछ जानना है। यह रहस्य नहीं है। सहजयोग में कोई रहस्य नहीं हैं। हर व्यक्ति सभी कुछ है। आत्मसाक्षात्कार पाने के पश्चात् आपको सामूहिकता में जानता है। सब जानते हैं कि किस प्रकार कुण्डलिनी उठानी है। कुछ समय देना होगा ताकि इसके विषय में सब कुछ जान चक्रों की बाधाओं अन्य बाधाओं के विषय में सभी को ज्ञान है। यही कारण है कि एक व्यक्ति हजारों लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्रदान कर सकता है। यह प्रकाशरजित होने का समय है. अहंकारी या सम्मोहन में फरसे लोगों के लिए नहीं है मूर्खतापूर्ण अन्तिम निर्णय का समय है। कुरान में इसे 'कयामा' कहा गया है और बताया है कि आपके हाथ बालगे और आपके तथा सकें। इसे कोई भी कर सकता है। चाहे आप शिक्षित हो या अशिक्षित, इससे काई फर्क नहीं पड़ता। परन्तु यह मूख. संस्थाओं में लिप्त लोगों के लिए भी यह नहीं है। इस कार्य पर केवल दस मिनट लगेंगे परन्तु इसे मैं आप पर लाद नहीं सकती। इसको पाने के लिए आपमें शुद्ध इच्छा होनो आवश्यक है। मैं आपकी स्वतन्त्रता का सम्मान करती हूं. अत: जो लोग आत्मसाक्षात्कार नहीं लेना चाहते उन्हें यहां से चले जाना चाहिए। यह इतना बड़ा ज्ञान है कि एक प्रवचन में में आपका सभी कुछ नहीं बता सकती। परन्तु ये बत्तियां जलाने के लिए आपको केवल एक बटन दबाना पड़ता है और सभी बत्तियां जल उठती हैं। यदि मुझे बिजली का पूरा इतिहास बताना पड़े में सभी कुछ बताएंग। बास्तव में यही अन्य लोगों क विषय घटित हो रहा है; अपनी अंगुलियों के सिरों पर आप आपने तथा अन्य लंगों के चक्रों को महसूस कर सकते हैं। इस प्रकार आपमें आत्मज्ञान विकसित हो जाता है तथा आप सामूहिक चेतन भी हो जाते है अथांत् संकुचित विश्व ब्रह्माण्ड का रूप धारण कर लेता है, वूंद सांगर बन जाती तब आपको पता भी नहीं होता कि पूर विश्व में आपके कितने भाई-बहन हैं। 55 राष्ट्रो में सहजयोग कार्यान्वित है तथा पूरे कि किस प्रकार विजली कीव में लाई गई तो यह अत्यन्त विश्व में आपके भाई-बहन हैं। यह उसी प्रकार है जैसे आपकी अंगुली में कुछ चुभ जाए तो पूरे शरीर में सिहरन (प्रतिक्रिया) होती है। यदि यूक्रेन के किसी व्यक्ति को कुछ हो जाए तो होंगी। पहली यह कि आपको मानना होगा कि आप दोषी नहीं अमेरिका, जर्मनी या भारत से लोग दौड़कर आ जाएंगे क्योंकि हैं। आखिरकार आप इन्सान हैं और इन्सान ही गलतियां करते आप पूर्ण सत्य जानते हैं। छोटे-छोटे बच्चे भी बता सकते हैं हैं। आप परमात्मा नहीं हैं। गलतियां यदि आपने की हैं ता कि आपमें क्या दोष है; वे आत्मसाक्षात्कार भी द सकते हैं। मैं सांचती हूं. वे इस कार्य के लिए अधिक उपयुक्त हैं। परन्तु हमें जानना होगा कि हमारी अबाधिता कभी नष्ट नहीं होती। यह शाश्वत है अपनी गलतियों से हो सकता है कि हमने इसे बादलों से ढक दिया हो । एक बार जब आप अपना योग इस दिव्य शक्ति से स्थापित कर लेते हैं तो आप आश्चर्वचकित हो जाते हैं कि आप अबोध व्यक्ति बन गए। अपनी आन्तरिक संवेदनशीलता को आप आन्तरिक शक्ति के रूप में विकसित कर लेते हैं और अत्यन्त शान्त हो जात हैं। आपका यही शान्त स्वभाव ऐसे भविष्य को जन्म दंगा जो सभी प्रकार के युद्धों से मुक्त होगा। परिवार सुधर जाते हैं, बच्चे सुधर जाते हैं और चहूँ ओर हमें फरिश्तों सम लोग दिखाई पड़ते हं। आपका चित्त अति अबोध एवं प्रभावशाली हो जाता है। जहां भी आपका चित्त जाता है, कार्य हो जाता है। आप नहीं जानते कि आपकी शक्तियां महान हैं और आपके अन्तर्निहित ज्ञान, जो कि शुद्ध जञान है अभिव्यक्त होने लगता है। ये सारा कुछ अरजीब लगता है। परन्तु आप भी तो अनोखे हैं। यह उसी प्रकार है जैसे भारत के किसी दूर-दराज गांव में आप टी.वी. ले जाएं और कहें कि इसमें आप सिनमा देख सकते हैं, तो वे कहेंगे, इस डिब्बे में? ऊवाऊ हो जाएगा। वक्तियों को जला लेना ही अच्छा है। यह अन्तर्रचित है। आपको केवल तीन सहज सी शर्ते पुरी करनी इनका सामना करें. इन्हें दाप भाव न बनाएं। ऐसा न करने से आपका विशुद्धि चक्र खराब होता है। यह चक्र बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसकी खराबी से हृदयशुल (ANGINA) हो सकता है। इससे व्यक्ति को स्पोंडिलाइटिस (SPONDYLITIS) और सुस्त-अंग रोग भी हा सकते हैं। तो दोप भाव ग्रम्त होना असत्य हैं। आप मानव हैं, विकास के स्तम्भ हैं। अत: किसी भी प्रकार से अपनी भर्तस्ना न करें, स्वयं को क्षमा करें। यह चक्र यदि ठीक न होगा तो कुण्डलिनी नहीं चढ़ पाएगो। दूसरी शर्त अत्यन्त साधारण हैं, आपको सभी को क्षमा करना होता है। ताकिक दृष्टि से. आप किसी को क्षमा करें या न करें काई फर्क नहीं पड़ता। परन्तु यदि आप क्षमा नहीं करते तो आप गलत हाथा में खेलते रहते हैं आप उन लोगों के हाथों में खेलते हें जो आपको कष्ट देना चाहते हैं जबकि वे स्वयं मजे लेते हैं। व्यर्थ में आप स्वयं को कप्ट देते हैं। क्षमा करके आपको बहुत हल्का महसूस होता है। अत: कृपा करके सभी को क्षमा कर दें। उनके विषय में सोचे ही नहीं। कंवल क्षमा कर दें। मैं लोंगों से कहती हैँ कि पेड़ों से बताएं, फूलों में बताए कि आप सबको क्षमा कर रहे हैं। अब तौसरी शर्त यह है कि आपको स्वयं में पूर्ण चैतन्य लहगी । खंड : X अक : 7. 8. 1998 विश्वास करना होगा। अपनी भर्तस्ना न करें । कृपया स्वयं के प्रति अत्यन्त प्रेममय दृष्टिकोण रखें। उन लोगों पर विश्वास न होना होगा अत: पहली उपलब्धि जो आपको प्राप्त होती है। करें जो कहते हैं कि आप अपराधी हैं। हम प्रमाणित करंगे कि आप अपराधी नहीं हैं। अत: स्वयं पर पूर्ण विश्वास रखें और दूसरे, मैंन आपको बताया है. आप सामूहिक चतन हो जाते बही विश्वास आपका आपका आत्मसाक्षात्कार दिलवाएगा। हैं। अपनी अंगुलियों के सिरों पर आप सवव्यापी सूक्ष्म शक्ति पहले आप हर चीज के प्रति चेतन होंगे परन्तु आपमें विचार न को महसूस कर सकते हैं आदिशक्ति को शीतललहरियों को होंगे । यही वह अवस्था है जब आप वर्तमान में होंगे। प्रायः हम बर्तमान में नहीं रह पाते, या तो हम भूतकाल में होते हैं या भविष्यकाल में। तत्र आप शान्ति की स्थिति में हांगे सत्यापित की जा सकती हैं। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् वर्तमान ही वास्तविकता है। भूतकाल समाप्त हां गया है, सहजयोग में यह सब अनुभवगम्य हैं। भविष्यकाल का कांई अस्तित्व नहीं। अत: आपको वर्तमान में वह है निर्विचार चेतना. आपकी चेतना में एक नया आयाम। आ अपने सिर पर आप महसूस कर सकते हैं या कुण्डलिनी के बाहर आते ही आप महसूस कर सकते हैं। ये सारी बातें चती परमात्मा आपको धन्य करें। 23: में चमत्कार आकाश बा कीव में जन कार्यक्रम से पूर्व कुछ सहजयोगियों को आकाश में चमत्कार देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने चेहरा दिखाई दिया। काई कह उठा, "ये ईसा मसीह हैं।" ये चन्द्र जितना था। इस वृत के अन्दर पुरुष की एक सुन्दर तुरन्त विलय हो गई निराश होकर मैने अपनी दुष्टि हटा ली। अचानक मुझे सुनाई दिया, "यें गुरुड़ हैं!" पक्षी के लहरात हुए पंख सफेद रंग के थे। यह तस्वीर काफी समय तक दिखाई देती रही। पहले तो यह पक्षी पार्र्व में देखा गया तस्वीर इसका वर्णन इस प्रकार किया:- श्रीमाता जी के आगमन की अन्तिम तैयारियां हो गई थीं। संगीतज्ञों ने कुछ भजन गाए, तभी आवाज सुनाई दी : "देखी आकाश में कितनी सुन्दर कुण्डलिनी दिखाई पड़ रही है!" जा दृश्य हमने देखा उसका पुनः दिखाई देना असम्भव है। ऊपर सर्वप्रथम वर्फ को तरह से सफद कुण्डल दिखाई दिया, यह कुण्डलिनी है, और तत्पश्चात् श्रीगणेशजी की प्रतिमा दिखाई दी ( यह विल्कुल वैसो थी जैसी हमने स्लाइडों में देखी दिखाई दिए, जिन्होांन शनै: शनै: एक होकर सहस्रार के ऊपर थी)। श्रीगणेशजी की प्रतिमा के थांड़ा-सा नीचे श्रीहनुमानजो दिखाई दिए। श्री हनुमान लुप्त हो जाते और अविलम्ब कहीं अन्यत्र दिखाई पड़ते। दायीं आर स्पष्ट सफेद क्रूस देखा गया. तत्पश्चात् यह दर्शकां की आर आया तथा अपने गरिमामय पंख स्वागतमुद्रा में लोगों की तरफ फंला दिए। इसके पश्चात् जल वाहिकाएं मेरूरज्जू मार्ग और तीर एक प्रकाश वृत्त की रचना की, तब यह सहस्रार एक श्वेत कमल में परिवर्तित हो गया, एक उज्जवल श्वेत कमल के रूप में जिसमें सूर्य की किरणें झांक रही थीं। मैंने ध्यान के जिसका स्थान शीघ्र ही श्रीगणेशजी ने ले लिया जिनकी सूंड लिए अपना सिर झुकाया परन्तु तभी मुझे सुनाई दिया : "देखी के सिरे पर छोटा-सा कूस बना हुआ था। मध्य में स्वास्तिक श्री लक्ष्मीं जी हैं।" सफेद कमल का स्थान एक महिला बना हुआ था. जिसकी एक छोटी रेखा लुप्त थी । स्वास्तिक आकृति ने ले लिया था जिसके कई हाथ थे और जा मिर पर ताज पहने हुई थी। यह तस्वीर भी शीघ्र ही लुप्त हो गई। अचानक हमें अपने हाथों पर तंज चैतन्य लहरियां अनुभव हवा तेज न चल रही थी फिर भी आकाश में भिन्नक्रम हुई। एक जयघाष सुनाई दिया और सभी लोग खड़े हो गए। परिवर्तन हो रहे थे, मानो धीमी गति से चलने वाली जीवन्त हमारी परमेश्वरी मां सभागार में आ रहीं थी। आकाश में थे, वे सब भूल गए। म आगे तीसरी बार श्रीगणेशजी दिखाई दिए परन्तु इस बार व पाश्श्व दृष्य में न थे। चमत्कारिक परिवर्तन जो हमने दखे कार्टून फिल्म हो। तब बहुत-सी एसी तस्वीरं एक-दूसरे का आकाश में एक भी बादल न था। कंवल नीला रंग था। सभी का चित्त श्रीमाताजी पर था ! स्थान लने लगी जिनकी हमें पहचान न थी। अन्त में हमने स्पष्ट एक वृत्त देखा जिसका आकार बड़े यड चंतन्य लहगी । खंड :X अक : 7, 8 1998 शक्ति पूजा तलियाती 03-08-0993 हो सकता है जिसे सबसे पहले अपनी चिन्ता होती है तत्पश्चात आज एक वार फिर आप लोगों के साथ होने का मुअवसर मुझे प्राप्त हुआ है यह अत्यन्त आनन्दमयी एवम् किसी और की । वह अपने बच्चों. अपने पति या पत्नी के सौरभ पूर्ण है। आज हमने 'शक्ति', दवी की पूजा करने का निर्णय लिया है। आप जानते हैं कि हमारे अन्दर महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती और कुन्डालिनी की अनेक शक्तियाँ दृष्टि अत्यन्त संकीर्ण होती है। कभी-कभी उन्हें पता लगता है हैं। यह सब शक्तियाँ हमारे उत्थान के लिए हैं। इन शक्तियों को यदि उचित ढंग से समझा जाए, उपयोग किया जाए, अहम् को बढ़ावा देने के लिए उन्हें एक प्रकार से बिगाड़ भी सकता है क्योंकि वे बहुत ही आत्मकन्द्रित होत हैं और उनकी कि जिन लोगों के लिए, वे यह सारे गलत कार्य कर रहे है वे वास्तव में उनकी बिल्कुल चिन्ता नहीं करते। आत्मसाक्ष्तकार होने के पश्चात वे देखने लगते हैं कि जो कुछ भी मैं कर रहा हूँ यह न तो मेरे लिए, न मेरे परिवार के लिए और न ही मंरे सम्बधियों के लिए हितकर है। तब आपका उत्थान स्थायी हा सकता है। एक बार उत्थान को प्राप्त करक जब आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर जाते हैं तो यह शक्तियाँ ज्योतिर्मय हो जाती हैं और यह ज्योतित शक्तियाँ पृर्णतः प्रेम से भर जाती हैं। प्रेम के प्रकाश से हम परिपूर्ण हो आत्मसाक्ष्तकार के पश्चाज़ आप सामूहिक रूप से सोचते हैं। आप जब अपनी पत्नी अपने बच्चों तथा अपने जाते हैं। अत: आत्मसाक्ष्ताकर के पश्चात हम केवल एक ही शक्ति का उपयाग करते हैं और वो है-प्रम की शक्ति। श्री राम क दो बंटे थे: लव और कुश। उनमें से लव परिवार के विषय तक साचते हैं तो भी आप वही सोचते हैं जा उनके लिए हितकर है। तुरन्त आपकी चित्त उनकी समस्याओं एवम् विनाशकारी प्रवृत्तियों पर जाता है। तब प्रेम की यह अथांत प्रम सहित। अत: रूस के लागा के हृदय पहले से ही शक्ति सारे वातावरण को परिवर्तित कर देती है। परिवार क लोग यह दखते हैं कि आप कितने समर्पित एवम् श्रेष्ठ हैं। रूस आया। यहाँ कारण है कि आप लोग 'स्लाव' कहलाते हैं प्रम से परिपूर्ण हैं। अब यह आत्मसाक्षतकार से पूर्व का प्रेम नहीं रहा। एक नए रूप में, नए आयाम में यह परिवर्तित हो जीवन की इस श्रेष्ठ सूझ-बुझ से वे अत्यन्त धेर्यवान, परिवार गया है। आत्मसाक्ष्तकार से पहले आपका मोह स्वयं से था: के प्रति मधुर बनने का प्रयास करत हैं और उन्हें उचित मार्ग अपने शरीर से अपने मष्तिष्क से, आपने संस्कारों सें, अपने बुद्धि से और अपने अहम् से । ओर इस प्रकार आप अपने अन्दर बहुत से भयानक अन्धेरे विकसित कर लेते थे अपने शरीर से यदि आपको मोह होगा तो या तो आप बहुत अधिक खाएंगे या बिलकुल नहीं खाएंगे, या बहुत अधिक व्यायाम पर लाने का प्रयत्न करते हैं। ज्योतिर्मय हो जाने के कारण लिप्सा समाप्त हो जाती है और निर्लिप्त प्रेम की शक्ति महानतम है। यह पेड के रस सम है जो पृथ्वी माँ से उठता है, पेड़ के छोटे-छोटे हिस्से में जाता है और तब या तो वाष्मीकृत हो जाता है और या पृथ्वी माँ में लोट जाता है। किसी एक फूल या पत्ते में यह इस कारण नहीं रुकता क्योंकि यह उसे पसन्द है। बिना लिप्त हुए करेंगे या शरीर का सुन्दर आकार बनाने के लिए विशेष रूप से कार्य करंगे। परन्तु जब आप आत्मसाक्ष्तकार प्राप्त कर लेते है और समझ जाते हैं कि शरीर परमात्मा का मन्दिर है तब आवश्यकतानुसार यह पेड़ के हर भाग का पाषण करता है । किसी एक फूल या पत्ते से यदि यह लिप्त हो जाए तो वह पत्ता या फूल मर जाएगा और पेड़ भी समाप्त हो जाएगा। पेड़ को यह पूर्ण वैभव एवम् अच्छाई प्रदान करता है। एक सहजयांगी सन्त भी अपने परिवार अपने मित्रों तथा अन्य सब आप अपने शरोर को स्वच्क्ष रखते हैं और उन सभी वस्तुओं को दूर रखने का प्रयत्न करते हैं जो शरीर के लिए हानिकारक हैं। एक अन्य लिप्सा, मोह. जो हममें है वह अति सीमितहै, क के प्रति इसी प्रकार आचरण करता है। जैस आप का परिवार, आप के बच्चे, आप की पत्नी, आपका अभी तक हमने केवल धृणा की ही शक्ति का उपयोग पति आदि-आदि। इस सब के बावजूद मनुष्य अत्यन्त स्वार्थी चैतन्य लहगी खंड : x अंक : 7. 8 1998 6. sho जिन्हें आपकी सहायता की आवश्यकता है। तो इस ज्योतित चित्त से कहीं भी बैठे हुए आप उनकी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं ऐसे लोगों को न तो युद्ध करने की आवश्यकता है, न शस्त्रों की और न सीमाएं बनाने की। रूस के लोग जब भारत जाते हैं तो भारत उन्हें अपना देश प्रतीत होता है और भारत के लोग जब रूस जाते हैं तो वे रूस को अपना देश मानते हैं। तो युद्ध कौन करेगा? कोई भी एसा व्यक्ति नहीं जिसे आप कह सकें कि बह मेरा शत्रु है। ये समय विशेष है. में इसे बसन्त का समय कहती हूँ जब बहुत से फूल (मनुष्य) किया है। राजनीति में विशेष रूप से। एक देश सोचता है कि उन्हें दूसरे देश से घृणा करनी चाहिए, वे इसी के लिए उत्पन्न हुए हैं। सौ वर्ष पूर्व क्यांकि कोई झगड़ा हुआ था, या कोई युद्ध हुआ था. तो आने वाली पीढ़ियाँ अब भी परस्पर लड़े जा रही हैं। आप आश्चर्यचकित होंगे कि पहली बार जब में रूस आई ता जर्मनी के पच्चीस सहजयोगी यहाँ मेरी सहायता करने के लिए दीड़े चले आए। अपने हृदय में दृर्भावना को स्थान न देकर, कि उनके पूर्वजों ने बहुत से रूसी लागों का वध किया था, रूसी लोगों की सेवा करना उन्होंने अपना महान कर्त्तव्य समझा। तो बृणा का स्थान शक्तिशाली प्रेम ले लेता है। प्रेम की यह शक्ति महानतम है और सहजयोग में आने के पश्चात हमें केवल प्रेम की शक्ति का ही उपयोग करना है। हमारे पास यह सत्य को खोज रहे हैं। उनका प्रेम हो उनकी सुगन्ध है। अब उन सबव को फल वनना होगा। यह समय क्यांकि अत्यन्त महत्वपूर्ण है इसलिए अब यह बटित होंगा। सभी धर्मों में इसका वर्णन है। हम किसी से घृणा नहीं करते क्यांकि किसी न किसी धर्म में तो हमारा विश्वास है। इसके विपरीत हम सभी धर्मो को मानते है। इसी शक्ति के प्रताप से बूँद सागर बनती है और व्यक्ति सामूहिक हो जाता है। तो सर्वव्यापी शक्ति आप के अन्तर्निहित सभी शक्तियाँ अत्यन्त शक्तिशाली एवम् प्रभावकारी शस्त्र है क्योंकि यह दिव्य प्रेम है। परमात्मा के प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति हमारे इस दिव्य प्रेम का ग्रांत हैं। कहते हैं कि परमात्मा सर्वशक्तिमान है तो उनसे अधिक शक्तिशाली कौन हो सकता है? अपने प्रेम में परमात्मा हमारी रक्षा करता है और हमारी सारी आवश्यकताएं पुर्ण करता हमें आनन्द देने का सामर्थ्य देता है। उनकी सरकार अत्यन्त ा है। वह (परमात्मा) हमें आशीर्वादित करता है और प्रकाशमान करती है। यह व्यक्ति में परिवर्तन करती है और इसके तरीके अत्यन्त सुन्दर एवम् कोमल होते हैं। आवश्यकता केवल इस बात की है कि इस शक्ति में विश्वास हो और दूसरों के प्रति प्रेम। यह प्रकाशित प्रेम आपकी सभी इक्ष्ठाओं को पूर्ण करंगा यह ऐसी शक्ति है. सर्वव्यापी शक्तिः इसके विषय में कोई सन्देह नहीं है। खुले हृदय से हमें इसे स्वीकार और अत्यंन्त व्ग से कार्य करती है। कुशल है आज में आ रही थी तो एक सहजयोगी आया और कहने लगा," श्रीमाताजी आज घने बादल बने है। वर्षा हो हुए सकती है!" पाँच मिनट के बाद जब में बाहर आई तो देखा कि आकाश साफ हो चुका था। तो ये पंचतत्व भी परमात्मा के बच्चों के नियंत्रण में होते हैं। कठोर से कठोर व्यक्ति भी पिघल कर इस शक्ति के सन्मुख बिनम्न होकर आपको हानि नहीं पहुँचा सकता। यदि कोई हानि पहुँचाने का करना है, यह हृदय को परिपूर्ण कर देती है और हमें महान बना देती है। कोई प्रतिस्पद्धां है. कोई महत्वाकांक्षा नहीं हैं कोई ईष््या नहीं है. एसा कुछ भी नहीं है। तब कवल एक मात्र इच्छा,शेष रह जाती है कि मैं भी आनन्द ले रहा हूँ. अन्य लोग आनन्द लें। सहजयोग को फैलाने के लििए लोग भरसक प्रयत्न करते है, कठोर परिश्रम करते है । कम प्रयत्न करे तो वो भी नम्र हो जाता है। इतन चमत्कार हुए हैं कि इस छोटे से भाषण में मैं इनके विषय में नहीं बता पैसे होते भी यात्राएं हुए सकती। परन्तु आप अपने ही जीवन में दखेगे कि आपक हृदय में निहित यह प्रेम की शक्ति किस प्रकार आपकी रक्षा करती है। मैने एसे लोग देखे है। जो अत्यन्त क्रोधी एवम् क्रूर है तथा करते हैं और लोगों का विश्वस्त करने का प्रयत्न करते है। और यह सारा कार्य वे धन लाभ के लिए नहीं करते। जब आप किसी दूसरे व्यक्ति की कुंडलिनी को उठाकर उसे आत्मसाक्ष्तकार अन्य लोगों का जीना मुश्किल किए रहते हैं। वे भी अत्यन्त देते हैं तब आपकों महानतम आनन्द प्राप्त होता है। आपके सुन्दर एवम् अच्छे बन जाते हैं। प्रेम के इस प्रकाश में आप स्वय का ठीक प्रकार से दंखेंगे और गलत तथा दुष्चरित्र चीजों मैंने प्रेम को अधिक चहरा का वह तेज मेंन बहुत बार देखा है। इस है और से अधिक बढ़ने दें। को त्याग देंगे। यह प्रेम शाश्वत है अति शक्तिशाली इन्होंने मुझसे पूछा कि, माँ सभी स्थानों को छोड़कर आप तलियाती क्यां आए? बाल्गा कि लिए नहीं और न ही मानव की सामूहिकता के प्रति आपको विश्वस्त करता है । आत्मा ही आपकी शक्ति को प्रकाशित करती है और विश्व के सभी मनुष्यों के प्रति प्रेम तथा सामूहिकता का सोत है। आपका चिन कष्टों तथा दुखों में फँसे उन लोगों की तरफ जाता है आपके इन सुन्दर घरों के लिए, परन्तु यहां रहने वाले मेरे बच्चों के लिए मैं यहा आई हूँ। परमात्मा आपको धन्य करें। २ *** माम म खंड चैतन्य लहगी : X अक : 7, 8 1998 । ुम कस तलियातीं जन कार्यक्रम ॐि 04-08-0993 सभी सत्य साधकों को मेरा नमस्कार। हमें समझना है आत्मा यदि पूर्ण सत्य का स्रात है तो हमें आत्मा की ओर जाना चाहिएं, अज्ञानता में यदि हम फंसे रहे तो हम विश्व के कष्टों का अन्त नहीं कर सकंगे युद्धों से हम बच न सकेंगे दरिद्रता एवम् सभी प्रकार के रोगों से हम छुटकारा न ह कि सत्य जो है वही है-हम इसे परिवर्तित नहीं कर सकते और इसके विषय में सांच भी नहीं सकते। दुर्भाग्य है कि हम इसे जान भी नहीं सकते। कुछ घटित होना होता है जिसके लिए का हमें अन्तर्मुखी हाना पड़ता है। यह घटना सहज है। सहज का अर्थ है स्वत: तथा आपके साथ जन्मी हुई। यह अपके साथ जन्मी हुई है। यह अधिकार है, हर मनुष्य को इसका अधिकार है। तो कुछ ऐसा घटित होना चाहिए जिसके माध्यम से हम पा सकेंगे। जिस शक्ति के विषय में में वात कर रही हूँ वह आपके अंत: स्थित है। उदाहरणार्थ, यह यन्त्र (माइक) यदि अपने स्रात से जुड़ा हुआ न हो तो यह अर्थहीन है। इसी प्रकार हम यदि इस सर्व्यापी सूक्ष्म शक्ति से जुड़े हुए नहीं हैं तो हमारा भी कोई अर्थ नहीं है। यह सर्वव्यापी दिव्य शक्ति क्या है? अपना चित्त अन्दर ले जा सकें। आप सभी को आत्मा बनने का आप देखते हैं कि अधिकार है ताकि हम परमात्मा के साम्राज्य के नागरिक बन असंख्य सुन्दर पुष्प हैं। ये सुन्दर पुष्प सकें। विना आत्मा बने हमारा चित्त बाहर की ओर रहता है। हमें कौन देता है? हमारे हृदय को कौन चलाता है? यह सारा जीवन कार्य कौन करता है? विज्ञान ये नहीं बता सकती कि हम इस पृथ्वी पर क्यों हैं। तो हमें उत्तर खोजने होंगे। यह उत्तर प्राप्त करने के लिए हमें दिव्य प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति से जुड़ना होगा। इस कार्य के लिए हमारे अन्दर एक शक्ति स्थापित कर दी गयी है जिस हम कुण्डलिनी कहते हैं। यह संक्रम (पवित्र अस्थि) नामक त्रिकोणाकार अस्थि में विराजित है। इसका अर्थ यह हुआ कि यूनानी लोगों को इस बात का ज्ञान था कि यह त्रिकोणाकार अस्थि पवित्र हैं, इसलिए उन्होंने इसे पवित्र अस्थि की संज्ञा दी। हम कहते हैं मेरा शरीर, मेरा हाथ, मरा नाक, मेरी भावनाएं, मेरी बुद्धि, मंरा अहम्, मेरे संस्कार, आदि आदि। परन्तु यह 'मेरा' है कौन, इसका सम्वन्ध किससे है? यह आत्मा है। यही इन सब चीजों की स्वामी है। यह सभी कुछ देखती है। जो भी कार्य हम कर रहे हैं आत्मा उसको दर्शक मात्र है। जब तक हमें विवेक प्राप्त नहीं हो जाता, हम ऐसे कार्य करने लगते है । जो हमारे जीवन के लिए विनाशकारी है। इस प्रकार हम स्वयं को हानि पहुँचाते हैं। रोगग्रसत होकर, मानसिक रूप से असुतुलित होकर या पागल होकर हम शारीरिक कष्ट भोगते हैं, गलत स्थानों पर जाकर हम आध्यात्मिक रूप से आप सब लोगों में भी यह शक्ति विद्यामान है और इस शक्ति से एकाकारिता प्राप्त करना आपका पूर्ण अधिकार है यह दिव्य शक्ति ज्ञान का सागर है। जो भी हम जानते हैं यह एक हिमनदी का सिरा मात्र है। परन्तु आत्मा के प्रकाश के माध्यम से योग प्राप्त हो जाने के पश्चात हम हर पूर्ण-ज्ञान के कष्ट उठाते हैं। क्योंकि हम अंधेरे में हैं अत: हमें आत्मा बनना होगा। अज्ञानवश हम नहीं जानते कि उचित क्या है और अनुचित क्या है। उस दिन किसी ने मुझे बताया कि कोई कुगुरु कह रहा है कि विश्व का अन्त होने वाला है। बिना पूछे कि आप कैसे जानते हैं : लांग ऐसी बातों में कूद पड़ते हैं। वे इन्हें स्वीकार कर लेते हैं और भय के कारण पागल तक हो जाते है। हमें पूछना चाहिए." आप यह बात कैसे कहते हैं? सत्य, पूर्ण सत्य का जानने का क्या तरीका है?" उदाहरणर्थं हम कहते हैं कि ईसामसीह परमात्माके युग थे। वे थे। नि:सन्देह| विषय में जान सकते हैं। तब हमे महसूस होता है कि हमारी अगुलिया भी ज्योतित हो गई हैं। जो भी कुछ हम जानना चाहते हैं, यह उसके बारे में सूचना देने लगती है। प्रकाशित अंगुलियों के माध्यम से जो सूचना प्राप्त होती है उसके विषय में लोग तर्क वितर्क नहीं करते। सभी को एक ही जैसी सूचना मिलती है। इस कारण वाद-विवाद नहीं हो सकता। व्यक्ति को परन्तु इसका कोई प्रमाण नहीं है। इसी कारण सभी चर्च दुर्बल हो गए हैं, कोई चर्च नहीं जाता। किस प्रकार प्रमाणित करें कि ईसामसीह परमात्मा के पुत्र थे? बहुत से लोग तो परमात्मा में विश्वास ही नहीं करते क्योंकि यह बात प्रमाणित नहीं हो सकती। हमें यह बात प्रमाणित करनी होगीं हर सच्ची बात को समझना होता है कि आत्मा प्रकाश का स्रोत है। यह हमारे चित्त को प्रकाशित करती है, इसके द्वारा चित्त पूर्णतः पावन हो जाता है। हमारा पवित्र्य कभी समाप्त नहीं होता। यह हमेशा बना रहता है। इस पर कुछ बादल आ सकते हैं परन्तु वे भी दूर हो जाते हैं तथा हमारे चक्षु तथा मस्तिष्क पवित्र हो जाते प्रमाणित करने का समय अब आ गया है। चतन्य लहरी = खंड : X अंक : 7. 8 1998 किस लिए हम कष्ट उठाएं? सर्वशक्तमान परमात्मा आपके पिता हैं, वो करुणा के सागर हैं। कीन सा पिता चाहेगा कि उसके बच्चे कष्ट उठाए? परमात्मा के नाम पर आपको कष्ट नहीं उठाने चाहिए। बस परमात्मा के सम्राज्य में प्रवेश कर जाइए। वहां आप आनन्दित एवं प्रसन्न हो जाएंगे| विश्व भर में आपके भाई बहन हैं। पचपन देशों में सहजयोग फैल रहा है। कहीं भी आप चले जाएयं वे आपको पहचान लेंगे वे तुरन्त जान जाएंगे कि आप सहजयाँगी हैं। सहजयोगी वह जिसने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लिया है और जो दूसरों का आत्मसाक्षात्कार दे सकता है, कुण्डलिनी उठा सकता है। परन्तु हैं। हमारा चित्त लोभ और वासना से मुक्त हो जाता है कुण्डलिनी शक्ति जब छः चक्रों में से गुजरती है तो इनका पोषण करतो है. इनको संघटित करती है। तब आप संघटित महसूस करते हैं। इस पोषण के द्वारा आपकी शारिरीक, मानसिक एवं भावनात्मक समस्याओं का समाधान हो जाता हैं। छः चक्रों को पार करने के पश्चात कुण्डलिनी सातवें चक्र का भेदन करती है. और तब आपकी आत्मसाक्षात्कार (Baptism) का वास्तवीकरण होता है। यह कोई समारोह या भाषण नहीं होता, परन्तु एक बटना घटित हाती है, तब आप स्वयं परम चंतन्य की शीतल लहरियों को अनुभव कर सकते हैं। परम चैतन्य (Holyghost) ही आदि शक्ति माँ है। दुर्भाग्य की ऐसे व्यक्ति को परिपक्व होना चाहिए। उसे सहजयांग का ज्ञान बात है कि बाइबल में इसका वर्णन नही है। उन्होंने तो ईसा होना चाहिए। सहजयोग में कोई रहस्य नहीं है। कोई विवशता नहीं है। यहां विवेकपूर्ण स्वतंत्रता है। विवेकहीन स्वतंत्रता यदि हो तो लोग उन्मत हो जाते हैं, पागल हो जाते हैं पश्चिमी देशों में यही हो रहा है। मैं नहीं जानती कि सहजयोग में आए बिना वे किस तरह अपने आघातों से छूटकारा पा सकते हैं? तलियाती आकार में बहुत प्रसन्न हू क्याकि यहां वहुत सं सहजयोगी हैं। यह अवश्य कुछ विशेष स्थान रहा होगा है। हर समय वे पुरुषों से मुकाबला करनं का प्रयत्न करती हैं जिसके कारण लोग आध्यात्मिकता के प्रति इतने संवेदनशील और घर से वाहर निकलना चाहती हैं। वास्तव में एसा नहीं है। हैं सहजयोग के प्रति इतने संवेदनशील हैं कि इतनी तीव्र गति ्स उन्होंने आध्यात्मिकता अपना ली। मेरे विचार में तलियाती इस कारखाने को चलाने के लिए जय इटली से यहां आया होगा तो सम्भवत: उसने यहां चैतन्य महसूस किया होगा। अब आपको सामूहिकता में सहजयोग में बढ़ना है। मैं उनके पुत्र भी विद्यमान हैं। परन्तु 'माँ' कौन है? माँ भी तो जानती हूँ कि आप में से जिनको भी आत्मसाक्षात्कार नहीं हानी चाहिए? आदि-माँ ही यह माँ है। ता कपोत पक्षी मिला है वे आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेंगे। परन्तु आपको गहनता प्रदान करनी होगी और गहनता तभी सम्भव है जब मसीह की माँ का भी सम्मान पूर्वक वर्णन नहीं किया। इसका कारण यह हो सकता है कि बाइबल के सम्पादक पाल को महिलाएं पसन्द ने थीं। महिलाओं के प्रति सम्मान न दर्शानं के कारण पश्चिमी देशों में महिलाएं अत्यन्त असुरक्षित हो गई हैं। यही कारण है कि वे सब प्रकार के उल्टे सीधे कार्या द्वारा स्वयं का घटिया बना रहे हैं। यह अत्यन्त आश्चर्यजनक वात महिला पृथ्वी माँ की तरह से सक्षम है। वह शक्ति हैं। परन्तु यदि आप महिलाओं का सम्मान नहीं करते तो वे सम्माननीय नहीं बनती। तो वे आदि माँ हैं। सर्वशक्तिमान परमात्मा पिता हैं और दिखाकर आप यह नहीं कह सकते कि यह आदि माँ है। नि:सन्दंह कपोत पवित्र पक्षी है और यह ऊँचाई तक उड़ान भी लेता है। परन्तु इसका अभिप्राय यह नहीं है कि यह आदि माँ आप सामूहिकता में आएंगे। कटा हुआ नाखून कभी भी बढ़ नहीं सकता। सहजयोग जीवन्त संघटन है (Organism ) है। यही कारण है कि सामूहिकता में ही आप बढ़ते हैं। परन्तु अब जो लोग आत्मसाक्षातकरी हैं. जिन्हें सहजयोग का ज्ञान प्राप्त हो | आत्मा सर्वशक्तिमान परमात्मा का प्रतिबिम्ब है। जब उनका मिलन होता है तो आप आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति बन जाते हैं, एक ज्यातिमय व्यक्ति बन जाते हैं। यह घटित होना अत्यन्त गया है वे तलियाती से बाहर जाकर सहजयोग का प्रसार करें। हजारों लोगों को आत्मसाक्षात्कार देने के लिए एक ही व्यक्ति सक्षम है। आपमें शक्ति है। शक्ति अब आपको प्राप्त हो गई है। जिस प्रकार आप इसका आनन्द ले रहे हैं आपको चहिए कि अन्य लोगों को भी यह आनन्द प्राप्त करने में सहायता करं। मुगम है। इसके लिए आपको कुछ करना नहीं पड़ता। विकास की यह जीवन्त प्रक्रिया है जिसके लिए आप धन नहीं दे सकते । परमात्मा पैसे को नहीं समझते, यह तो मनुष्यों की सिरदर्दी है। परमात्मा को पैसे में कोई दिलचस्पी नहीं। तो उन लोगों से सावधान रहे जा विश्व समाप्त होने की भविष्यवाणी करके धन माँगते हैं । जिस प्रकास आपका स्वास्थ्य सुधर गया है उसी प्रकार स्वास्थ्य सुधारने में अन्य लोगों को सहायता करें। यह कार्य अति सुगम है। तलियाती के समीप छ: क्षेत्रों में जहां तक भी आप पहुंच सकें पहुँचे। सहज प्रचार में आप पर छोड़ती हूँ। इसके विषय में वाद विवाद अनावश्यक है। बस लागों का आत्मसाक्षात्कार दे दें इससे माफिया के लोग भी सुधर जाएंगे। मैन आपका वताया, आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना आपको अधिकार है। यह आपकी अपनी शक्ति है, आपकी अपनी आत्मा है। आप का स्रोत है। आपको कष्ट नहीं उठाने पड़ेंगे। यह विचार गलत है कि कप्ट उठाने आवश्यक हैं तथा क्योंकि ईसा ने आपके लिए कष्ट उठाए आपको भी उनसे अधिक कष्ट उठाने होंगे आश्चर्यचकित होंगे कि यही आत्मा आनन्द आप इसे अजमा कर देखें। परमात्मा आपको धन्य करें । चैतऱ्य लहरी ।खंड : X अक : 7, ৪ 1998 सेंट पीटर्सबर्ग जनकार्यक्रम टसब् मा 31-07-1993 हामर सभी सत्य साधकों को मरा प्रणाम। आरम्भ में हमें यह आत्मसाक्षात्कार का वास्तविक रूप प्रदान करती है। वास्तवीकरण ही महत्वपूर्ण है, बनना ही महत्वपूर्ण है। दूसरे, सत्य का अर्थ है कि परमात्मा के प्रम की सर्वव्यापी शक्ति ही सारा जीवन्त कार्य करती है जैसे फूलों का खिलना । आप इन फूलों को देखें ये सब चमत्कार है, क्या एंसा नहीं है? आपका हृदय कौन चलाता है? चिकित्सक कहंगे स्वचालित नाड़ी तन्त्र: परन्तु यह स्व कौन है? ता विज्ञान भी समझना है कि सत्य जो है वही है। हम इसे परिवर्तित नहीं कर सकते और न हो इस मानवीय चेतना पर इसे अनुभव कर TMeE, सकते हैं। पूर्ण सत्य को जानने का समय आ गया है। बिना पूर्ण सत्य को जाने पृथ्वी पर विद्यमान भिन्न प्रकार की समस्यओं को नहीं समझ सकते। मंरी बात को आप एक वैज्ञानकि के खुले मस्तिष्क से सुनं। मैं जो भी कह रही हूँ उस पर आँखें बन्द करक विश्वास न करें। यदि यह प्रमाणित हो जाए तो इस स्वीकार कर ले क्योंकि यह आपके हित में है। यह आपके देश के और पूरे विश्व के हित में है। बहुत सी चीजों में हम विश्वास करते हैं परन्तं इन्हें सत्य के रूप में अभी तक इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकती। विज्ञान नहीं कह सकता कि आप पृथ्वी पर क्यों है? यह जीवन के लक्ष्य के विषय में हमें नहीं बता सकती। अत: हमें अन्तमुखी होना पड़ता परन्तु है। यदि कहूँ कि अपनी दुष्टि को अन्दर रखें तो आप ऐसा नहीं कर सकते। तो जब जागृत होकर कुण्डलिनी छः चक्रों को भेदती है तब यह घटना घटित होती है। यह आपके सारे चक्रों का पांषण करती है जिसक द्वारा आपकी बहुत सी शारीरिक मैं स्थापित नहीं कर पाए । उदाहरणार्थ इसा मसीह परमात्मा के पुत्र थे, परन्तु यह प्रमाणित न हो पाया। तो कुछ लाग कह सकते है:" आप किस प्रकार कहते हैं कि वे परमात्मा के पुत्र थे? TI मानसिक, भावानांत्मक और आध्यात्मिक समस्याओं का समाधान म अब समय आ गया है कि धर्म ग्रन्थों में लिखी हर बात को प्रमाणित किया जा सके और अमझा जा सके कि महान पैगम्बरों, सन्तां एवम् अवतरणों ने धर्मग्रन्थ लिखे थे उन सबने एक ही बात कही। जब भली भांति समझकर हम जान लेंगे कि सत्य क्या है तो काई भेद न रह जाएगा। तो मानवीय चंतना पर हमने अभी तक पूर्ण सत्य को नहीं पहचाना है परन्तु हमारे सृष्टा, हमारे पिता, सर्वशक्तिमान परमात्मा ने हमारे अन्दर ही इसका प्रबन्ध किया है। हमारी विकास प्रक्रिया में हमारे अन्दर ही सूक्ष्म प्रणाली की सृष्टि की गई है। यही प्रणाली हमें पूर्ण हो जाता है। कीव में मैं वहुत से सहजयोगियों से मिली। उन्होंने मुझे बताया कि वे 25 वर्षो से औषधियां सेवन कर रहे थे परन्तु इस घटना के घटित होने के पश्चात उन्होंने दवाई को छुआ तक नहीं। वे लोग यहां हैं। इस बात से बो वहुत प्रसन्न थे। उनमें से कुछ ने तो अन्य लोगों को भी ठीक किया है । कंवल शारिरिक समस्याएं ही हमें कष्ट नहीं देती, कुछ ऐसे रोग भी होते हैं जिनका इलाज नहीं हैं। वे भी ठीक हो जाते हैं। कुछ मानसिक रोंगी भी होते हैं. पागल भी होते हैं। कुछ मिर्गी रोग से पीड़ित हैं । भारत में ती डॉक्टरों को 'सहजयाग द्वारा इलाज' स ज्ञान प्रदान करती है। सत्य यह है कि आप यह शरीर, मन, अहम् या बन्धन नहीं हैं। आप यावन आत्मा हैं। परन्तु आपको पुनर्जन्म लेना है, पक्षी की तरह से जो पहले अंडा होता है और फिर पक्षी बनता है। आप स्वय को विषय पर एम. डी. की उपाधि प्राप्त हुई है। आप अपनी तथा अन्य लोगों की समस्याओं को जा जाते हैं और आप अपना 'पुनर्जन्मित' या 'महान तथा अन्य लोगों का इलाज करना जान जाते हैं। आप यह भी प्रमाणित नहीं कर सकते क्यांकि हम सब समान हैं। पुनर्जन्म लेने के पश्चात आपमें एक नई चेतना विकसित होती है और अस्तित्व की भिन्न अवस्थाएं विकसित होती हैं जैसे अंडा तो जान जाते हैं कि कोन असली है और कौर नकली। महजयोग में सभी कुछ स्परष्ट है, यह दिव्य विज्ञान है। अपने सारे कार्यकलापों को समझते हुए आप सहजयोग को करने लगते है। कार्यान्वित है परन्तु पक्षी कहीं भी उड़ सकता है। जड़ होता अत: इस घटना का घटित होना आवश्यक है। जब तक उस दिन एक लड़का कहीं से आया और मुझ पर हा यह घटित नहीं हो जाता तो हमारे विश्वास अन्ततः हमें चिल्लाने लगा। बुरी तरह से सम्मोहित था यह भी न जानता विश्वस्त नहीं कर पाएंगे। एक शक्ति है जो जागृत होने पर था कि वह क्या कर रहा है। किसी ने उसं सम्मांहित कर दिया चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 7. 8 1998 10 तुरन्त आपके हाथां में शीतल लहरियां आने लगेंगी। किसी शैतान व्यक्ति के विषय में यदि आप पूछेंगे तो आपको हाथोंपर चुभन होने लगेगी, यह भी हो सकता है कि अंगुलियाँ पर जलन हो या छाले पड़ जाएं। आप अपने तथा अन्य लोगों के और वह मुझपर चिल्ला रहा था। मैं समझ न पा रही थी कि वह क्या कह रहा है? वह अत्यन्त हिंसक था । लोग मंत्र पढ़ते चले जाते हैं। यह पागलपन है। उनमें न तो शक्तियां हैं और न सृझबूझ। वे उन लोगों जैसे हैं जिन्हें तोते की तरह मंत्र रटने के लिए कह दिया गया हो| मानव अस्तित्व की यह कितनी रोगों तथा उनके चक्रों की समस्याओं के विषय में भी जान बर्बादी हैं ! वास्तव में मानव विकास का प्रतीक (Epitome सकते हैं। आत्मा के प्रकाश में आमका चित्त प्रकाशित हो जाता है। किसी व्यक्ति को जब आप देखत हैं तो प्राय:उससे सम्बन्ध of Evolution) है। परमात्मा के बनाए हुए जीवों में वह है। बहुमुल्य परन्तु मानव अपना मुल्य नहीं जानता। यही कारण है कि वह एंसे लोगों के पास जाकर उन्हें धन देता है तथा उनके सम्माहन में फस जाता है। आप नहीं समझ पाते। परन्तु जागृत होकर कुण्डलिनी आपमें अबोधिता की अभिव्यक्ति करती है। हमारे अन्तः स्थित अबाधिता कभी नष्ट नहीं होती। यह शाश्वत है। परन्तु हमारी गलतियां के कुण्डलिनी जब उठती है तो यह व्यक्ति का परमात्मा के प्रम की सर्वव्यापी शक्ति से जोड़ती है। योग का अर्थ यही कारण इस पर कुछ बादल छा जात है। आत्मा की प्रकाश जव चित पर पड़ता ता चित्त पवित्र हो जाता हैं, चिन में वासना सम्बन है। सह अरथांत साथ अऔर 'ज' का अर्थ है जन्मी। अधाव बह आपक साथ जन्मी है और दिव्य शक्ति से और लालच नहीं रहता । आपका कोध कम हो जाता है तथा है व्यर्थ के मोह लुप्त हो जाते हैं । आपक सभी हैं। इसका दुर्व्यसन छूट जात एकाकारिता प्राप्त करने का अधिकार आपको है। ज्यों ही यह उदाहरण इस प्रकार है: मान ला अधरा है। में आत्मा आपक चित्त में आ जाती है। घटित होता है पहला परिवर्तन जो आप में घटित होता है कि आप नर्तमान में खड़े हो जाते हैं। प्राय: या ती आप भूतकाल में हाते या भविष्य में परनं्तु जिद्दी व्यक्ति हूँ और हाथ में सांप पकड़े हुए हूँ। आप याद मुझे कहें कि तुम्हारे हाथ में सांप है तो जब तक वह सांप मुझे काट नहीं लंता, में सम्भवत: आप पर विश्वास ने करू। परन्तु है जय कुण्डलिनी उठती है तो यह विचारों के मध्य रिक्त ममय की सृष्टि करती है जिसमें कोई विचार नहीं होता। आप पूर्णत: चंतन होते हुए भी काई विचार नहीं होता। इसी का हम निविंचार समाधि कहते हैं। निर्विचार चेतना में जब आप चलं जाते हैं ता हृदय की शान्ति आपको थोड़ा सा ग्रकाश हो जाए तो मैं सांप को देख सकंगी और किसी को बताना नहीं पड़ेगा और मैं स्वयं ही सांप का फैंक दूंगी। इसी प्रकार विवेक के माध्यम से हम समझते हैं कि ये चीजें विनाशकारी हैं और हममें इनसे मुक्त हाने की शक्ति है। प्राप्त हो जाती है । पुण्णतः शान्त होकर पूरे विश्व का नाटक इस प्रकार मानव में परिवर्तन होने लगता है। उसकी चेतना सामूहिक चेतना में परिवर्तित हो जाती है. जैसे क्षद्र जगत की तरह साक्षी रूप होकर आप देखत हैं। आप समस्याओं से का त्रिभुवन में परिवर्तित हो जाना बा हम कह सकते है कि बूंद सागर बन जाती हैं हम सब महसूस करते हैं कि हमारा सम्बन्ध एक जीवन्त रचना से है। सुसंगठित जीवन्त शरीर स। एक अंगुली को यदि चाट लगे ता पूरा शरीर प्रभावित होता है। ता आपको महसूस होने लगता कि पूरा विश्व आपका आपना है। पहली बार मै जब यहां आई तां 25 सहजयोगी मेरे माधथ छूट जाते हैं, आप समस्याओं को इख सकते हैं परन्तु उनसे आपको घवराहट नहीं होती हैं और परमात्मा के आशीर्वाद से नम आप अपनी समस्याओं का समाधान कर लत हैं। आप सहजयोगियों से पूछे कि उन्हें कितने आशीरवाद पर त हुए हैं? वे मुझ लिखा करते थे." श्री माताजी, मुझे यह आशीर्वाद मिला, मुझे बह आशीर्वांद मिला" मैने एक सहजयांगी से यह सव छापने के लिए कहा। एक महान के बाद उसन मुझे बताया कि उसके पास इतने पत्र आ गए हैं कि उसे समझ में नहीं आता कि कौन सा छापं! मैने कहा."इन्हें जाओं" आए। मैन उन्हें नहीं बुलाया था। ये स्वयं आए थे। कहने लग श्रीमाता जी हमें यह कार्य करना ही था क्यांकि हमारे पूर्वजो ने रूस के लोगां को बहुत हानि पहुंचाई था।" ना हर न्थन पर आपके प्रिय भाई बहन वन जाते हैं और आपसी सम्बन्ध भी बहुत पवित्र बन जाते हैं। सहजयंग में एंसे लोगों का पूर्ाभाव है जो किसी के पति या पत्नी कं. साथ दौइ जाते हैं। यहां सोग दंवदूत सम बन जाते हैं। महानतम चीज यह है कि आप भृल आत्मा पृर्ण ज्ञान का स्रोत हैं। हमारे हृदय में यह सर्वशक्तिनान परमात्मा का प्रतिविम्ब है। और सभी मनुष्यों में एक हो प्रतिविम्ब है। आत्मा के प्रकाश में सभी लौंग एक ही चीज देखने हैं एक ही चीजे नहयूस करते हैं। अपनी अंगुलियां के सिरा पर व आदिशक्ति की सर्वव्यापी शक्ति को शीतल लहरियां के रूप में महसूस करते हैं अथात महमम कर मकते हैं । मान लो अभी आप ईसा के विषय में आनन्द का स्रोत वन जाते हैं, आत्मसाक्षात्कार के पश्चात सभी आनन्द का स्रोत बन जाते हैं तथा आनंद सागर की सृजन होता है। सभी लोग आनन्द सागर में गाते लगाते हैं। इसके लिए आपका कृष्ट नही उठाने पड़ते, हिमालय पर नहीं जाना पड़ता व पूर्ण ज्ञान की क्या इंसा मसौह परमात्मा के पुत्र थे"? पृछना चाहते हैं, " नेतन्य लहनी खंड : X अक. 7.8 1998 : और न ही सिर के भार खड़ा होना पड़ता है। इसके लिए ( माइक) अपने स्त्रोत से न जुड़ा हुआ होता तो यह व्यर्थ आपको कोई पैसा नहीं खर्चना पड़ता। ये फूल प्रदान करने के है इसी प्रकार हम भी यदि अपने स्रोत से जुड़े हुए नहीं लिए हमने पृथ्वी माँ को कितना धन दिया? कोई एहसान भी हैं तो हमारी कोई पहचान नहीं है। हम इस पृथ्वी पर क्यों अवतरित हुए? परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश करने के लिए, उसके आशर्वाद उसकी सुरक्षा, उसके प्रेम का आनन्द लेने के लिए। मुझे विश्वास है कि आज यह बटित भी आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं। आपको शक्तियां प्राप्त हो हो जाएगा। आप सवको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाएगा। नहीं है। यह आपकी शक्ति है जो आपकं अन्दर स्थित है और जिसके कारण आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करते हैं। एक वार आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात आप अन्य लोगों को जाती हैं। यह सब बड़ा अदभुत लगता है। यदि ये यन्त्र परमात्मा आपकी आशीर्वादित करें । सेंट पीटर्सबर्ग जनकार्यक्रम दूसरा दिन 01-08-1993 और अवबोधित हमारी रक्षा करती है। यह हमारा पृथ प्रदर्शन कल मेने आपको वताया था कि पूर्ण सत्य को किस प्रकार प्राप्त करते हैं। हमारे अन्दर पहले से ही एक अति सूक्ष्म प्रणाली विद्यमान है जो इसे कार्यान्वित करती है और हम करती है और इस प्रकार से हमारी देखभाल करती है कि हम उचित-अनुचित को पहचान जाते हैं। किसी भी प्रकार से एसा करने का प्रयत्न हम नहीं करते जो हमारे लिए अहितकर आत्मचेतना में उतर जाते हैं। मैने आपको यह भी बताया था कुछ हा या विनाशकरी हो। अपने पावित्र्य (कीमार्य) का हम सम्मान करते हैं। हम अत्यन्त शक्तिशाली एवम् आत्मसम्मानित बन जाते हैं। जीवन कं प्रति हमारा दृषप्टिकॉंण अत्यन्त पवित्र हो जाता है और यह कार्य अत्यन्त सुन्दरता पूर्वक होता है। शिशु कि आत्मा पूर्ण सत्य का सोत है। जब यह हमार चित्त में अभिव्यक्त होती है तो हमें पावन कर देती है और हमारा चित्त चुस्ते है और यही हमारे अन्दर आनन्द का म्रात है। यह घटना घटित हाने के पश्चात आपमें एक नई चेतना. निर्विचार चेतना विकसित हो जाती हैं। सामूहिक चेतना आपकी हो जाता सम् आनन्द हेम प्राप्त करते हैं। दूसरे चक्र को स्वाधिष्ठान के नाम से जाना जाता है। चतना का एक नया आयाम है। यह सब आप अपने मध्य नाडी सृजनात्मकता का चक्र हैं। रूस कलाकार, चित्रकार, एवम् मृर्तिकार हैं जो अपनी सृजनात्मकता सं कला की सृष्टि करते हैं। परन्तु हो सकता है कि उनकी कला शाश्वत् न हो । जर्मनी के कलाकर की कलाकृति का हो जहां यह हमारी में अब बहुत में तन्त्र पर महसूस करते हैं। संस्कृत में इस बाध कहते से बुद्ध शब्द का उद्भव हुआ। अत: आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति बुद्ध' हैं। आज में साचती हूँ कि आपको वताऊँ कि किस प्रकार यह आपके चक्रों पर कार्य करती है। जैसा इस चार्ट में दिखाई सकता है कि इटली के कलाकर पसंदि ना करें और इटली के कलाकार द्वारा सृजित कलाकृति को मरूस के कलाकर। परन्तु दे रहा है, हमारा पहला चक्र लाल रंग का है। यह हमारी अबोधिता का चक्र हैं कल मैने आपको बताया था कि हमारी इतने वर्षों के पश्चात भी आज जो कलाकृतियां विद्यमान हैं यह अबांधिता कभी नष्ट नहीं होती और यह हमारे चित्त में प्रवेश कर जाती है। हम अबांध वन जाते हैं और हमारे चित्त में जानते हैं, की सभी लोंग प्रशंसा करते हैं क्योंकि इसमें चंतन्य वासना एवम् रांग नहीं रहता । हम बच्चों सम हो जाते हैं । ईसा है आप यदि सिस्टाईन चर्च ( Sistine Chapel) में जाए तो ने कहा है कि परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश करने के लिएवहां एक सुन्दर कुन्डालिनी के साथ ईसा मसीह खड़े हुए हैं। आपको वच्चों सम् होना पड़ेगा । तो मानसिक गतिविधियों के पूरा दृश्य अत्यन्त अद्भुत फलस्वरूप जो चालाकी हमने अपना ली है वह छूट जाती है (Michaelangelo) ने बनाई थी और वह आत्मसाक्षात्कारी आत्मसाक्षात्कारी लोगों द्वारा बनाई गई हैं। मानलिसा, आप है क्योंकि यह माइकलएनजला खंड : 1 अक बतन्य लहरी । : 7 8 1998 12 सत्य साधक कहते हैं, जैसे आप लोग। तो एक नया मार्ग-जिसे आप मध्य-नाड़ी मार्ग कहते हैं- जागृत हो जाता है और लोग व्यक्ति था। उसने बहुत कष्ट उठाए। लोगों ने उसे नहीं समझा। यहां रेमव्रेन्ट (Rembrant) की छव्बीस (26) तस्वीर हैं जिन्हें देखने के लिए विश्व भर से लोग आते हैं इसी प्रकार महान संगीतज्ञ हैं जैसे माजाट (Mozart) स्ट्रास (Strauss) जिसने अलविदा पीटसंवर्ग' (Goodbye Petersburgg) साधिनों में लग जाते हैं। पूरे विश्व में लोग खोज कर रहे हैं परन्तु रूस में विकसित लोग हैं और वो जानते हैं कि क्या खोजना हैं। उनमें सत्य-संवेदना है। इसी प्रकार युक्रेन, रूमानियां बल्गेरिया, पौलैंड और हंगरी के लोगों में भी सत्य संवेदना है कल किसी ने मुझसे प्रश्न किया. " इन लोगों के विषय में आप क्या सोचती हैं जो हरे रामा-हरे कृष्णा गा रहे हैं?" मैं साचती कि कंवल मख ही एंसे बन सकते हैं। केवल हरे रामा-हरे जैसी सुन्दर कृति लिखी। यह सब संगीतज्ञ आत्मसाक्षात्कारी लोग थे। आपके देश में महान लेखक भी हुए हैं जिन्होंने बहुत सुन्दर पुस्तक्क लिखी हैं जिन्हें आप समझ सकते हैं। रूस में बहुत से लेखकों ने ऐसी आध्यात्मिक पुस्तकं लिखी हैं जहां उन्होंने भिन्न चरित्रों के अन्तर्दर्शन को दश्शाया है। मुझे बताया गया कि आपके देश में जन्मे एक महान् सन्त का वहुत बड़ा कृष्णा' रटत रहने से आप किस प्रकार मानवीय चेतना के नये आयाम को पा सकते हैं? श्री कृष्ण ने गीता में ऐसा कभी नहीं उत्सव मनाया जाता है, और यह भी बताया गया कि वह मरे कहा, कुरान या कुछ अन्य पढ़ कर क्या आप उत्थान पा सकते हैं? मान लो कोई डॉक्टर आपको नुस्खा देता है कि सिर दर्द के लिए एनासिन ला: और आप रटे चले जाते हैं-'एनासिन लो. एनासिन लो ! क्या आपका सिर दर्द ठीक हो जाएगा? आपको दवाई लेनी पड़ेगी कंवल रटने से या स्मरण करने से कोई लाभ नहीं। कोई भी समझदार व्यक्ति इस बात को समझ जैसा लगता था। तो इन सन्तो तथा अन्य लोगों को वास्तव में अपने जोवन काल में ही दिव्य सृजनात्मकता प्राप्त हो गई और व महान पेगम्बर तथा दृष्टी वन गए। बहुत सं दृष्टाओं ने सहजयोग के विषय में लिखा है कि यह घटित हाोगा। इंग्लैंण्ड में विलियम ब्लैक हुए। भारत में भी बहुत से लोगों ने सहजयाग की भविष्यवाणी की हैं। रविन्द्रताथ टैगार ने भी सकता है। श्री कृष्ण ने कभी नहीं कहा कि आप भिखारियां की तरह से रहें। बास्तव में व कुबेर हैं। उनका एक मित्र दरिद्र था. उसके लिए उन्होंने सोने का बर बनवाया । तो श्री कृष्ण का नाम लेने वाला कोई व्यक्ति भिखारियों की तरह से किस सहजयाग के विपय में लिखा। प्राचीन काल में नाही ग्रंथ में स्पष्ट भविष्यवाणी की गई कि कव सहजयोग आरम्भ होगा और कब लोग आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करंगे सोचते हुए हम इस चक्र का बहुत उपयोग करत हैं। जब यह चक्र आत्मा के प्रकाश से प्रकाशित हो जाता है तो विचार बहुत कम हा जाते हैं। यह हमें बहुत से शारीरिक रोग ठीक करने में भी सहायक होता है। यह चक्र यदि ज्योतित हा जाए तो जिगर, रोग, प्रकार आचरण कर सकता है? यह तो श्री कृष्ण के विल्कुल विपरीत है। सं लोग हैं जिन्हें अमेरिका में बहुत इसी प्रकार के बहुत सा धन दिया गया। परन्तु वे कुण्डलिनी तथा चक्रों के विपय में कुछ नहीं जानते; वे नही जानते कि कुण्डालिनी किस प्रकार अग्नाशये ( Pancreas) क कारण हुए मधुमेह (Diabetes) रोग, रक्त कॅन्सर (Leukemia) अति-श्वेत-रक्तता कब्ज ( Constipatition) एवम् गुर्दा (Kidney) रोग आदि सभी उठायी जाती है। नशीले पदार्थ रखने तथा छोटे बच्चों का अपहरण करने के लिए उन्हें पकड़ा गया। वैभव के स्वामी, श्री कृष्ण के नान पर गलियों में भीख माँगते देख मुझे लज्जा आती हैं। समस्याओं का समाधान हो जाता है। हमारे तीसरे चक्र का उद्भव दूसरे (स्वाधिष्ठान) चक्र से होता है । यह नाभि चक्र कहलाता है जा शरीर में सूर्य चक्र पर कार्यान्वित है। नाभि चक्र में यदि खराबी हो तो व्यक्ति को इन लोगों के कारण पश्चिम में यहुत से लोगों का उत्थान रुक गया है, उन्हें धन दे-दे कर जिज्ञास दिवालिया हो गए है, उनकी स्थिति पागलों सी हो गई है। टी एम. सभी प्रकार क पट के राग पट का केन्सर तक, हो सकते हैं। परन्तु यदि यह प्रकाशित हो जाए ता इस चक्र की शारीरिक समस्याओं से मुक्ति मिल सकती हैं इस चक्र का खराब करने तराली बुरी आदते, जैसे मद्यपान, नशा सवन, छूट जाती है। कुछ लोगों को बहुत अधिक खाने का लालच होता है और कुछ पहुँची। शरीर का प्रृथ्वी से तीन ऊँचा उठाने के लिए बें विल्कुल खाना ही नहीं चाहते । यह चक्र जागृत होने पर लोगों से 6000 पीड लेते धे। रूस में ऐसी मूर्खता की कोई व्यक्ति अत्यन्त सन्तुष्ट हो जाता है। तब वह सत्य-साधना की स्वीकार नहीं करेगा। क्या आवश्यकता है? उछलने से उनके आर निकल पड़ता है। धन तथा सांसारिक वस्तुओं की अधिक कृल्हे टूट गए और टी. एम. करवाने वाले लोगों को इसका चिन्ता नही करता। वह सोचने लगता है कि इनसे ऊपर भी तो (Transcendental Mediatation) HE TEF भयानक चीज है। मुझे आशा है कि यह अभी तक यहाँ नहीं फुट खामियाजा देना पड़ा। अतः अवीधिता से ही विवेक विकसित होता है। तब आप विवेक-अविवेक मं अन्तर जान सकते हैं। कुछ होगा। तब एक नया मानव-वर्ग जन्म लेता हे जिन्हें हम चैतन्य लहरी ।खंड : X अंक : 7. 8 1998 13 "he -hट. ho इसके पश्चात मध्य हृदय चक्र हैं इसका बाया और चाहते हैं। आप को लगता है कि हमें इतनी बहुमूल्य निधि दायां भाग भी हैं। मध्य हृदय चक्र में यदि खराबी हो तो मिल गई है, अब इसे संचरित करना चाहिए। छठा चक्र अगन्य (आज्ञा)- महत्वपूर्ण है। मस्तक पर असुरक्षा (भय) की भावना हृदय में आ जाती है, विशेषकर महिलाओं में यदि मध्य हृदय चक्र खराब हो और उनमें जहाँ दुक-तन्त्रिकाएं एक दूसरे को काटती हैं वहाँ दृष्टि विन्दु हैं। दायें पर यह स्थिति है। वाई आज्ञा की समस्या यदि हो तो इसका असुरक्षा की भावना हो तो उन्हें स्तन-कंसर हो सकता चक्र में यदि बाधा हा व्यक्ति को अस्थमा रोग हो सकता है कुप्रभाव ऑँखां पर पड़ता है। हमारी आँखों का आकार बढ़ सकता है तथा दूर-दूष्टि कम हो सकती है। मानसिक रोगियों, है। और यदि बायें हृदय में पकड़ हो तो हृदय रोग हो सकता है तो पागलों में याई आज्ञा की समस्या बहुत अधिक होती है। तो सुरक्षा की भावना आ मध्यहृदय जब प्रकाशित हो जाता जाती है। आपकं शरीर में विद्यमान रोग प्रतिकारक जो कि रोगों बाई आज्ञा की पकड़ सुझाती है कि व्यक्ति को किसी प्रकार की भूत बाधा है। हो सकता है कि कोई ऑँखों से या स्वाधिष्ठान के माध्यम से सम्माहित करके ऐसे व्यक्ति को मुकाबला करते हो जाते हैं। बारह वर्ष की आयु तक उरोस्थी के नीचे रोग प्रतिकारको ( Anti-Bodies) का सृजन होता है। तत्पश्चात इन्हें पूरे शरीर में फैला दिया जाता है। यह उरोस्थी (Sternum) दूरस्थ नियंत्रण (Remote Control) की तरह रोग प्रतिकारकों को आक्रमण का मुकाबला करने की सूचना देती है। जब भी हम भयभीत होते हैं ता हमारा हृदय तेजी से धडकने लगता है और हमारी उरोस्थी गुरुआ तथा पुस्तकों के विषय में बहुत सावधान रहना चाहिए कार्यशील हो जाती है। से हैं, अत्यन्त चुस्त वास्तव में पागल कर दे। उस दिन मेंने मरिया देवी क्रिस्टोज के एक अनुयायी का देखा, वह पूरी तरह भूत बाधित था। वह अत्यन्त आक्रामक था और ऐसा कुछ कह रहा था जिसे कोई न समझ पाया। अन्ततः वह पागल हो गया। अंत: व्यक्ति को क्योंकि इनके कारण बाई आज्ञा तथा स्वाधिष्ठान की समस्या ही सकता है। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात जव यह चक्र प्रकाशित बाई आज्ञा चक्र यदि प्रकाशित हो जाए तो व्यक्ति अपनी लौकिक आंखों से चैतन्य देखने लगता है आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति पर आप प्रकाश को भी देख सकते हैं। इन्होंने आपको फिल्म दिखाई है, मैं सोचती हूँ कि कैमरे की भी बाई आजा प्रकाशित है। भारत में एक व्यक्ति था जो हीरे इत्यादि प्रकट कर देता था। मुर्ख लोगों ने उसे परमात्मा मान लिया। वह लोगों को सम्माहित कर लेता था परन्तु कोई समझ न पाता था। कुछ माह पूर्व सरकारी अफसर वहाँ गए। उन्होंने चार कैमर लगा दिए। इन बड़े अफसरों को भी उसने सम्माहित कर दिया परन्तु कैमरों को सम्मोहित न कर पाया। कमरे ने उसे पकड़ लिया कि किस प्रकार उसने दूसरे व्यक्ति से सोने का हार लिया, किस प्रकार वह व्यक्ति हार लेकर आया, किस प्रकार उसे वह हार दिया। हमारे पास उसका वीडियो भी है। मेरे पास बह टेप होता है तो हमारे अन्दर सुरक्षा को भावना जागृत होती है। अव आप निर्भय हो जाते हैं। किसी के प्रति आप आक्रामक नहीं होते निर्भयता पूर्वक ऊर्जस्वी हो जाते हैं, अत्यन्त करुणामय। आपका सरोकार स्वयं से हट कर अन्य लोगों के प्रति होता है, अन्य लोगों के लिए आप में प्रेम उमडता है। जो लोग कभी आपके शत्रु थे, वे भी अच्छे मित्र बन जाते हैं । अचानक आप पाते हैं कि सभी शत्रु आपके मित्र वन गए हैं। आप यदि न आक्रामक थे तो अत्यन्त भद्र एवम् विनम वन जाते हैं। अगला चक्र 'विशुद्धि' चक्र कहलाता है। रूस और यूक्रेन को लोगों को इसकी बहुत समस्या है, इतनी अधिक कि वहाँ सामूहिकता परिणाम स्वरूप व्यक्ति को हृदयशूल (angina) स्पोंडिलाइटिस (spondylitis) एवं आलसी अंग-रोग हो सकते हैं व्यक्ति अत्यन्त उदास हो जाता है से मुझे भी यह समस्या हो गई। इसके हैं। तो ये कंमरे बहुत ही अद्भुत हैं मैने जो तस्वीरें देखी हैं बह प्राय: सर्वसाधारण लोगों या बच्चों द्वारा ली गई हैं। परन्तु इसका वर्णन नहीं हो सकता। तो बाई आज्ञा ठीक हो जाने पर आप देखने लगते हैं कि व्यक्ति सन्त है या नहीं। आप समझ सकते हैं कि कोई सत्य अत्यन्त गरिमामय तथा शानदार बन जाता है। किसी पागल को तरह आप वर्ताव नहीं करते। सभी कुछ अच्छा हो जाता है। आपका संगीत, आपकी उछल कूद. आपका नृत्य सभी कुछ और फिर धुरतं। दायीं विशुद्धि में यदि पकड़ हा तो हम अत्यन्त आक्रामक हो जाते हैं। बहुत उँचा बोलते हैं और लोगां पर चिल्लाते हैं, अत्यन्त क्रोधी स्वभाव य है या असत्य और आपका आचरण के। कुछ बच्चे भी अति हेकाड़ एवम् अभद्र बन जाते हैं। वे मुझे से प्रश्न पर प्रश्न कर सकते हैं । ये सब दुर्गुण दायीं विशुद्धि की खराबी से होते हैं। दायीं विशुद्धि जब जागत हो शालीन हो जाता है। न कोई चिल्लाहट रहती है और न जाती है तब आप अति मधुर हो जाते हैं अत्यन्त सामूहिक हो जाती है। बाई आज्ञा अत्यन्त अन्तर्वेधी है। छोटे-छोटे बच्चे इसे कलाबाजियाँ, केवल आपके आनन्द की अभिव्यक्ति मात्र रह बहुत अच्छी तरह समझते हैं । मैं एक बच्चे का जानती हूँ जिसने एक लामा के पास जाकर कहा, "तुम आत्मसाक्षात्कारी नहीं हो, यहां बैठकर सवको अपने सामने झुकने को कहने का अधिकार तुम्हें नहीं है"। ता व्यक्ति तुरन्त जान जाता है कि पाखंडी कौन हैं कर आपमे अन्य सहयोगियां के प्राति अपनापन आ जाता है। अपना सर्वस्व आप दृसरों को देना चाहते हैं, सबसे मधुर सम्बन्ध बनाना चाहते हैं । अपने आत्मसाक्षात्कार से ही आप सन्तुष्ट नहीं हो जाते, और लोगों को भी आत्मसाक्षात्कार देना 14 चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 7. 8 1998 । शोलों, की तरह सामने का (दायां) आज्ञा चक्र भी बहुत महत्वपूर्ण है । हम यदि क्षमा नहीं करते बहुत अधिक सोचते हैं तो भी यह समस्याएं खड़ी करता है बहुत अधिक साचने पर यह हमारे चतन मस्तिष्क पर आक्रमण कर देता है और आप पागलों की मस्तिष्क की बहुत अधिक गतिशीलता ऐस लोगों में घृणाभाव आ जाते हैं। अब एक नया रोग आ गया है जिसमें व्यक्ति रेंगने वालं व्यक्ति-सा हो जाता है जैसे मछलियां बड़ी मछलियां। ये लोंग अपने हाथ-पांव नहीं चला सकते, इनका केवल मस्तिष्क चलता है, य चल भी नहीं सकते कवल रंग सकते हैं अमेरिका में ये रोग आम हो गया हैं. तो बहुत अधिक सोचना, अत्याधिक भविष्य वादी दृष्टिकाण व्यक्ति की आज्ञा को खराब करता है आपका स्वभाव बहुत आक्रामक हो जाता है। हिटलर की अत्यन्त खराव दाई आज्ञा थी उसका सारा दाया भाग ही खराब था। कहते उसका गुरु था। ये लामा लोग दाई ओर के होते हैं-अत्यन्त आक्रामक। यदि आपका दाया यह 988 हैं प्रकाशित हो जाती हैं । ये इन्द्रधनुषी रंगों में चमकती हैं। ये अत्यन्त शान्ति प्रदायक एवम् शीतल हाती हैं-शाला से बिल्कुल विपरीत। जब कुण्डलिनी इसमें प्रवेश करती है तो मस्तिष्क तालू भाग से खुल जाता है। तो जो ज्ञान हमें प्राप्त होता है वह परस्पर सम्बन्धित ज्ञान है। यह अत्यन्त सीमित ज्ञान भी है। जब आत्मसाक्षत्कार घटित होता है तो. क्योंकि सहस्रार पर परमात्मा की कृपा वर्षा होती है, आप अत्यन्त ज्ञानशील हो जाते हैं, सूक्ष्म चीजों को आप अविलम्ब देखने लगते हैं। सामान्यत: व्यक्ति -सुक्ष्म चौजं नहीं समझ पाते परन्तु आत्मसाक्षात्कार के पश्चात आप अल्यन्त शान्त एवम् आनन्दमय हो जाते हैं। आपकी नाड़ियों से चैतन्य प्रवाहित होने लगता है और अपनी अंगुलियों के सिरों पर आप पृर्ण सत्य को जान सकते है । सहसार मुख्य समस्या थी। अब यह खुल गया है फलस्वरूप सामूहिक आत्मसाक्षात्कार घटित हो रहा है। सक्षिप्त रूप में मेन आपको बताने का प्रयत्न किया है। सहस्रार चक्र का गुण यह है कि आ को अपनी अंगुलियों के सिरों पर जान जाते हैं। परन्तु वास्तव में ये 1000 हैं) बर दया हो यह खराब हो जाता है और यदि तरह सोचने लगते हैं। । और है कि दलाई लामा भिन्न चक्रों के विषय में , विशेषकर के आज्ञा, तो आप अत्यन्त अभद्र, भाग खराब हा अहंकारी एवं अशिष्ट हो जाते है। आप सभी लोगों की गलतियां देखने लगते हैं और सभी को लगते हैं किसी चीज का आप आनन्द नहीं ले सकते, कोई बात आपके मस्तिष्क में नहीं जाती। किसी भी प्रकार का असन्तुलन अत्यन्त भयानक होता है। अन्तिम चक्र सहस्रार कहलाता है। कहते हैं कि इसमें एक हजार पखुंड़िया होती. है। बाइबल में लिखा है कि मैं आपक सम्मुख शाली की जुबान मे प्रकट हुंगा। जब प्रकाशित होता है तो एक हजार नाड़ियां (डॉक्टरां के अनुसार आप पूर्णसत्य यह वास्तव में, मैं कहना चाहुँगी. आपक जीवन की एक महान घटना है कि आप हैं यह मात्र भाषण या प्रवचन नहीं है। आप वास्तव में इसे पा लंते हैं, इसका अनुभव कर सकते हैं तो परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश करना, बिना विचारों में डूवे उसके आशीर्वादों का आनन्द लना आपके जीवन का लक्ष्य है।0 निवंत्रित करने ह अन्ततः हम देखते हैं कि इन चक्रों में आत्मसाक्षात्कार, पुनर्जन्म प्राप्त कर लेत करते हैं और इस कार्यान्वित सहम्रार परमात्मा आपको धन्य करें। चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 7. 8 1998 15 जन कार्यक्रम मास्को 06-08-1993 बहुत बड़ा खतरा है। किसी व्यक्ति के मस्तिष्क में आता है कि हम नष्ट होने वाले हैं। 40 बर्ष पूर्व भारत में भी एक व्यक्ति था जो ऐसा ही कहा करता था। उसको मृत्यु हो चुकी है । लोग अब भी वह बात कहे जा रहे हैं, परन्तु कुछ भी नष्ट नहीं हुआ। अमेरिका में भी इसी प्रकार की बेपकूफी भरी बाते करने वाला व्यक्ति था जिसके अपने सभी युवा अनुयायिओं को सम्मोहित कर दिया और उन्हें बताया कि अमुक दिन सभी लोग समाप्त हो जाएंगे। परन्तु कोई भी समाप्त नहीं हुआ। तब उसने उस स्थान में आग लगा दी और अपनी तथाकथित भविष्यवाणी को प्रमाणित करने के लिए सभी को मौत के घाट उतारने का प्रयत्न किया। ऐस लोगों का क्या लाभ है यह मरी समझ में नहीं आता। वे या तो धन इकट्ठा करना चाहते हैं या लोगों को मारना चाहते हैं। कहीं हिटलर तो उनके मस्तिष्क में नहीं घुस गया जिसके कारण वे विश्व को नष्ट करना चाहते हैं? मैें आपका विश्वाम दिलाती हूँ कि आपके पिता, सर्वशक्तिमान परमात्मा प्रेन एवं करुणा के सागर हैं। अत्यन्त प्रम से उन्होंने विश्व की सृष्टि की है। आप को भी उन्होंने अत्यन्त सावधानी एवम् सुकोमल प्रेम पूर्वक बनाया है। वह परमात्मा किस प्रकार को नष्ट होने देंगे? किस प्रकार एक समझते कि परमात्मा पैसे को नहीं जानते, वे सोचते हैं कि वे पिता अपने वच्चों के साथ ऐसा कर सकता है? हमें समझना परमात्मा का खरीद सकते हैं। यह बिल्कुल गलत विचार है। मैं चाहिए कि इस प्रकार की बाता के पीछे कुछ पागलपन है या कोई पागल है जो यह भयावह कार्य करता है। अत: आपने है और बैंक क्या है । इन फूलों को आप देखें, ये पृथ्वी माँ वच्चों की रक्षा करने का प्रयत्न करें। इस प्रकार के वहुत से लोग हैं। वर्ष 1970 से मैं इनके विषय में बता रही हूँ कि किस प्रकार ये सच्चे एवं वफादार लोगों का अपने स्वार्थ के लिए यह स्थिति प्राप्त करने का पृर्ण अधिकार आप सबको हैं। दुरूपयोग कर रहे हैं सौभाग्यवश अब इनमें से अधिकतर का पर्दाफाश हो चुका है। फिर भी खुम्बों की तरह से यहां बहा कुछ लोग निकल आते हैं। जो व्यक्ति आपको ऐसी कहानिया ये आपमें अन्तर्निहित है। केवल इसे जागृत करना है। जितने सुनाए उसका विश्वास न करें। परमात्मा के नाम पर जो आपसे पैसा मांगे ता समझ लें कि वह धोखेवाज़ है। इसा मसोह का आपने कितना पैसा दिया? उन्हें तो 30 रुवल में बेच दिया गया। तो इस प्रकार की बेवकूफी की बातें करने वाला का अनुसरण नहीं किया जाना चाहिए। अपने विवेक का उपयोंग सभी सत्य साधकों को मेरा प्रणाम। आरम्भ में ही हमें समझ लेना चहिए कि सत्य जो है वही है- इसे परिवर्तित नहीं किया जा सकता। दुर्भाग्यवश हम सत्य को मानवीय चेतना पर जान भी नहीं सकते। यदि पूर्ण सत्य को हमने जान लिया होता तो हमारे लिए किसी भी प्रकार की समस्याएं न होती। हमने कंवल सुना है कि हमारे अन्दर एक अत्यन्त सूक्ष्म यन्त्र है जो परमात्मा के प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति से हमारा सम्वन्ध जोड़ता है। इसके विना हम सत्य को नहीं जान सकते। वास्तव में यह एक घटना है, स्वतः घटित होने वाली घटना । इसे हम अपने विकास की जोवन्त प्रक्रिया भी कह सकते हैं। तो इस स्थिति तक पहुँचने के लिए हमारे साथ कुछ और भी घटित होना आवश्यक है। यह विशेष समय है और यह आपमें भी घटित हो जाएगा। इसके घटित होने पर सवंप्रथम आपका स्वास्थ्य सुधर जाता है और स्वास्थ्य सम्बन्धी आपकी समस्याओं का समाधान हो जाता है। यहां बहुत से लोग बैठे हैं. सहज यांग में आने के पश्चात जिनकी स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का समाधान हो गया। इसी कारण से रूस में पहली बार सहजयोग आया। आपको और इस विश्व इसके लिए आपको पैसा नहीं देना पड़ता। ये लोग नहीं आप को सत्य बताती हूँ कि परमात्मा नहीं जानते कि पैसा क्या के चमत्कार हैं। इनके लिए हमने पृथ्वी माँ को कितना धन दिया है ? यह एक जीवन्त प्रक्रिया है और मानव होने के नाते सहजयोग से बहुत से मानसिक रोग भी ठीक हो गए हैं। यह आपकी अपनी शक्ति है, अपनी शक्ति, इसे कार्यान्वित कर लें अधिक जागृत आप होंग आप अन्य लोगों को भी जागृति प्रदान कर सकेंगे। अधिकतर धर्मग्रन्थों में इन सभी घटनाओं की भविष्यवाणी को गई है। पूर्ण सत्य का जान न होने के कारण मानव घरस्पर झगड़ रहा है और एक दूसरे के लिए समस्याएं खड़ी कर रहा है। ऐसे लोगों का हम विश्वास करना चाहते हैं जो पागल है और आपको भी पागल बनाना चाहते हैं । मुझे बताया गया है कि कोई महिला कह रही है कि नवम्बर को सभी लोगों की मृत्यु हो जाएगी; पूर्ण विश्व नष्ट हो जाएगा। ऐसी बैंवकूफी ! वास्तव में हँसी आती है। परन्तु आप नहीं जानते कि ऐसे लोग करें। तो सच्चा गुरु आपको क्या बताएगा? वह कहेगा कि तुम्हं सत्य की जानना है और परमात्मा के प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति से एकाकारिता प्राप्त करनी है। वह आपमें पूर्ण विश्वास करंगा और आपको प्रम करेगा ताकि आपकी रक्षा की जा सके और आपकी सभी समस्याओं का समाधान हो सके। पहली चंतन्य लहरीं खंड : x अंक : 7, 8 1998 16 मा चीज़ जा आपका प्राप्त होनी चाहिए वह है आपकी मानसिक शान्ति आपका गुरु यदि आपको बताता है कि अमुक तिथि तक आप समाप्त हा जाएंगे तो किस प्रकार आप मानसिक शान्ति प्राप्त कर सकते हैं? कभी-कभी तो ये लोग अत्यन्त आपके स्वास्थ्य एवम् मानसिक स्थिति के सुधार के अतिरिक्त यह आनन्दमयी अवस्था है। जिसमें आप पूर्णत: चेतन होते हैं, किसी भी प्रकार से सम्माहित नही होत। आप केवल चेतन ही नहीं हाते अपनी शक्तियों का भी पूर्ण ज्ञान आपको होता है जिस शक्ति के विषय में आपने जाना है आपसे पूर्व भी बहुत से लोगों को इसका ज्ञान था। परन्तु इस प्रकार से सामूहिक आत्मसाक्षात्कार कभी नहीं हुआ। यह विशेष समय है, में इसे बसन्त का समय कहती हूँ अब आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाएगा| इसमें कोई धर्माचार नहीं है। मैं नहीं कहती कि ऐसा करो. एसा न करां। ऐसा कुछ नहीं कहती। कोई कर्मकाण्ड नहीं है। आपके अन्दर यह पुर्णतः वैज्ञानिक शक्ति है। इस शक्ति का धड़कते हुए कभी-कभी तो आप अपने लौकिक चक्षुओं से भी देख सकते हैं। इस आप सत्यापित कर सकते हैं क्योंकि आप के सिर के तालू भाग से यह बाहर आती है और अपने सहस्रर पर आप शीतल लहरियों की अनुभव कर सकते हैं। अपनी अगुलियों के सिरों पर भी आप इसे महसूस कर सकते हैं। एक बार जब आप इसका उपयोग करने लगते हैं, तो आप हैरान होंगे. आपको दूसरों के चक्रों का भी ज्ञान हो जाता है क्योंकि हमारी चेतना का एक नया आयाम विकसित हो गया है। आप व्यक्ति के विषय में जान सकते हैं क्योंकि सामूहिक चेतना का नया आयाम आपको मिल गया है। सर्वोपरि आप महसूस करने लगते हैं कि आप एक ही विराट के अंग प्रत्यंग हैं। यह केवल मानसिक या भावनात्मक विचार ही नहीं। वास्तव में लघु ब्रह्माण्ड त्रिभुवन भयावह होते हैं। यदि आप किसी सच्चे सन्त को पढ़े तो वह आपको बताएगा कि परमात्मा से एकाकारिता प्राप्त करना ही उसके जीवन का लक्ष्य है। वे यदि सच्चे एवम् वास्तविक सन्त हैं तो वे आपको आत्मा बनने के लिए कहेंगे। वे कभी नहीं कहंगे कि आप नष्ट होने वाले हैं, वे आपको बताएंगे कि आप द्विज बनने वाले हैं। पुनरुत्थान पाने के लिए हम इस विश्व में हैं। ईसा मसीह के जीवन का सन्देश यही है कि हमने पुनर्उत्थान पाना है। तो ये जो विचार आपमें भरे जा रहे हैं इनसे साधान रहे। वर्ष 1970 से में इन कुगुरुआं के नाम बता रही हूँ, इन सभी के विषय में बता रही हूँ। मैने ये भी बताया कि ये लोग कौन हैं। उनमें से कुछ राक्षस हैं, कुछ शैतान हैं और कुछ को पर-पीड़न में आनन्द मिलता है। परमात्मा से उन्हें कुछ नहीं लेना देना। किसी का मूल्य, उसकी भूमिका. उसकी वास्तविकता समझने के पश्चात ही किसी को गुरु रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। किसी की तस्वीरें लिए हुए पागलों की तरह इधर से उधर दौड़ते हुए अन्य लोगों को भी अपने पीछे दौडाते व्यक्ति गुरु नहीं हो सकते। सड़कों पर आप लोगो को मन्त्र बोलते हुए या अटपटे कपड़े पहनकर गीत गाते हुए देख सकते वस्त्र परिवर्तन से अन्तर्परिवर्तन नहीं होता। अन्तर्परिवर्तन के बिना आप अपनी दुर्वलताओं पर काबू नहीं पा सकते। आपकी समस्यओं का समाधान नहीं हो सकेता। आप कभी नहीं समझे में परिवर्तित हो जाता है। सकते कि आप इस पृथ्वी पर क्यों अवतरित हुए हैं? आपके जीवन का क्या उद्देश्य है? यहां आप किस लिए आए? आप क्योंकि साधक हैं तो जिज्ञासा के कारण कई बार मुर्खताओं में फस सकते हैं। कई वार मुझे चिन्ता होती है क्योंकि मास्को के लोगों के लिए, विशेषकर, यह खतरा है क्योंकि व वहुत सीध हैं। वे अत्यन्त बुद्धिमान है फिर भी सम्मोहित करने वाले लोग उन्हें छल सकते हैं। उदाहरण के रूप में भारत में एक व्यक्ति लोंगों को सम्मोहित करके उन्हें साना, हीरे आदि देता था। कुछ महत्वपूर्ण व्यक्ति उससे मिलने के लिए गए और वहां चार कैमरे लगा दिए गए। हैरानी की बात है कि उसने इन हस्तियों को सम्मोहित कर दिया परन्तु कैमरों को वो सम्माहित न कर पाया। तस्वीरों से पता चला कि किस प्रकार वह यह चालाकियां कर रहा है। अब सब लांग उसके विषय में जानते हैं। तो इस प्रकार की मुर्खता से आपको सावधान रहना होगा क्योंकि अब आपके अन्दर सभी शक्तियां सभी गुण विद्यमान मुख्यत: हमने समझना है कि नष्ट होने के लिए हमारा सृजन नहीं किया गया। आप मानव हैं, विकास स्तम्भ। कई बार लोग सांचते हैं कि पशु मानव से बेहतर है। इसका अर्थ यह हुआ कि मानव पशु से कहीं अधिक विकसित है। आपके अन्तर्निहित ये शक्ति जब अंकुरित होती है तो, आप आश्चर्य चकित होगें. किस प्रकार आपकी पूर्ण जीवन शैली को यह परिवर्तित कर देती हैं! ला। विश्व भर में 55 देश सहजयोग कर रहे हैं। रूस में तलीयाती नामक स्थान पर 22 हजार सहजयोगी हैं। वे कंवल आत्मसाक्षात्कारी ही नहीं हैं परन्तु इस शक्ति को जानते हैं। यह सब अनुभवगम्य (यथार्थ) है। इसे वैज्ञानिक एवम् चिकित्सकीय ढंग से वर्णन किया जा सकता है। यह पराविज्ञान है। परन्तु यह अत्यन्त सहज है क्यांकि हमारे अन्तनिहित मूल-तत्वों के विषय में यह बताती है। मुझे आपको इतना ही बताना है कि यह घटना विना किसी परंशानी के घटित होती है। विशेषत: रूस के लोगों के लिए, मेरे विचार से यह बड़े सम्मान की बात हैं, क्योंकि वे अति विकसित लोग हैं। पश्चिमी देशों के लोंग इस अर्थ में विवेकशील नहीं हैं। अमेरिका में जब मैं बोस्टन गई तो वहां के दूरदर्शन वालों ने मुझसे पूछा कि आपके पास कितनी रोल्मस-रॉयस कारे हैं? इतनी वेवकूफी भरी बातें उन्होंने मुझसे पूछीं कि मैं परंशान हो गई। मैन पूछा," ये क्या रोल्स-रॉयस कारें खोज रहे हैं या अपनी आत्मा?" मुर्ख लोगों को समझाना कठिन कार्य है। यही कारण है कि मेरा हृदय रूस में और यूक्रेन में है। रूस और यूक्रेन में आना और यहां के विवेकशील लोगों से मिलना अत्यन्त आनन्ददायी होता है। ये लोग अभी तक भी उन मुल्यों को अपनाया हुआ परमात्मा का धन्यवाद है कि यहां पर ऐसे लोग हैं जो अपने गौरव को हैं। इतने प्रममय हैं। आपने है। चैतन्य लहरी 17 । खंड : X अंक : 7, 8 1998 he प्रेम की शक्ति, क्योंकि लोग अच्छे नागरिक बन जाते हैं वचन देते हैं। किस प्रकार? अब मैं आपको बताऊँगी कि इसलिए राष्ट्रीय धन की भी बहुत बचत होती है। राजनीतिज्ञ आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेने के पश्चात आपके हाथों से भी भले बन जाते है। वे न कंवल बुद्धिमान हो जाते हैं परन्तु स्वार्थपरता को भी त्याग देते हैं। सर्वत्र परमात्मा का साम्राज्य चैतन्य लहरियों को यदि उपयोग करे और जल को चैतन्यित दिखाई पड़ता है। तर्कों एवम् रूढिवाद के अभाव के कारण साम्यवाद में भी कुछ अच्छाइयां थी प्रजातन्त्र का एक बहुत अच्छा गुण स्वतन्त्रता है। ये तीनां चोज आपके साथ घटित हो जाती है। अपनी जाति एवम् धर्मान्धता से ऊपर उठकर आप एक स्वतन्त्र पक्षी बन जात हैं, पूर्णंतः स्वतन्त्र पक्षी। अपनी स्वतन्त्रता का अपनी भलाई के लिए उपयोग करते हैं विनाश के लिए नहीं। प्राय: स्वतन्त्रता का उपयोग विनाश के लिए किया जाता है। पश्चिमी देशों में यही हो रहा है। अन्धकार एवम् अज्ञानता के कारण सारी समस्याएं खड़ी हुई है। आत्मा के प्रकाश में जब हम आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेते हैं तो आप जान जाते हैं कि आप क्या कर रहे हैं और आपके हित में क्या है। सभी भय धुल जाते हे । असुरक्षा की भावना चली जाती है और आप अत्यन्त प्रग्भ बन जाते हैं। साथ ही साथ आप अत्यन्त करुणामय एव ्रमाशील भी हो जाते हैं। यह सब घटित हो रहा है और प्रकार यह घटित होगा कि ये विश्व परमात्मा के प्रम का अत्यन्त सुन्दर उद्यान बन जाएगा। मुझपर विश्वास करें कि भी नष्ट नहीं होगा और न ही आपको कोई हानि पहुँचेगी। झे विश्वास है कि अगले वर्ष मैं फिर यहां आऊँगी और यह अव में भी अधिक लोग होंगे समझते हैं। ये गुण आपका सुस्वस्थ्य कार्य एवम् वैभव का चैतन्य लहरियां बहने लगती है। अपने हाथों से बहने वाली करके खेती में दें, ता आप हैरान होंगे आपकी खेती दस गुनी फसल देगी। भारतीय गाय आस्ट्रेलिया की पागल गायों के वरावर दूध देने लगती है। मानव सृजित अभिजाति (Highbreed) होने के कारण आस्ट्रेलिया की गाय पागल होती है और मैं सोचती हूँ कि इनका दूध पोने वाल भी पागल बन जाते हैं । ये उपयोगात्मक तथ्य है और अब हमारे पास ु की इसके प्रमाण हैं। दूसरे आपको जो बच्चे प्राप्त होते हैं वे भी आत्मसाक्षात्कारी एवम् प्रतिभावान, विवेकशील एवम् आज्ञाकारी होते हैं। आपके पारिवारिक सम्बन्ध सुधर जाते हैं। पति-पत्नियां के सम्बन्ध सुधर जाते हैं। सहजयोग में हर वर्ष 100 से भी अधिक अन्तर्राष्ट्रीय विवाह होते हैं। परन्तु तलाक का अनुयात एक प्रतिशत है। सहजयोगी अल्यन्त कोमल करुण एवम् भद्र हो जाते हैं और एक-दूसरे की संगति का आन्द लेते शराब, नशा आदि दुर्व्यसन छुट जाने से आपको गसे की बहुत बचत होती है। सरकार जो धन माफिया संचालित लागा की दंखभाल में खर्चती हैं वो भी बच जाता है, क्व के सहजयाग में आने के पश्चात यह स्वत: ठीक हो जाता है। माफिया के लोग भी विनम्र हो जाते हैं। यह एसी शक्ति है. करुणा एवम् जिन्हें आपने आत्म ाक्षात्का देना होगा |D केवल परमा पा आपको आशिर्वादित करें। रूस संकीर्ण द्वार है हार अहंकार का वश में रने के लिए इस शाश्वत संकीर्णद्वार है, का खोलने के लिए इसामसीह ने स्वयं को सुली पर चढ़वा लिया। आज मारको अहम् विन्दु है, तो पृथ्वी और अपने देश के अगन्य चक्र पर रहन वाते मास्को के लोगों की कितनी हमारे पृथ्वी ग्रह पर स्थित हर देश कोई न कोई चक्र है या इसका कोई भाग। उदाहरणार्थ आस्ट्रूलिया मूलाधार अफ्रीका स्वाधिष्ठान, आस्ट्रेलिया नाभि, इंग्लैंण्ड विशुद्धि रूस दाई आज्ञा चीन बाई आज्ञा और नेपाल सहस्रार है। हर दंश के अन्दर भी चक्र विद्यमान हे जेसे रूस में तलियाती, मूलाधार है, बड़ी जिम्मेदारी है। यहां सभी उपक्रम बहुत लम्वा समय लेते सैक्ट (Sankt) पीटर्सबर्ग हृदय है और मास्को अगन्य चक्र है। तलयाती में बॉल्गा मतुस्का (Volga Matuska) (वोल्गा माँ) अपने तदनुरूपी देवता अर्थात श्री गणेश का रूप धारण करती है। यह क्षेत्र, जहां की ध्यान धारणा करने वाले ्लागों की सख्या वहुत अधिक है, दूसरा मक्का बन जाएगा जहा पूर पृथ्वा ग्रह से सहअयोगी तीर्थ-यात्री यात्रा करने के लिए ता नारियाता तथा य बत से क्षेत्रों में सहजयाग रूस के दुदय सुर. पीट सबंग सआया। आज्ञा चक्र को शुद्ध करने के लिए प , पीटसबर्ग में हुई। यह शहर इत्तफाक से नहीं चुना गया था। अहंकार की वश में करके मस्तिष्क की सीमाओं को पार हैं। परन्तु मास्को के सहजयोगियों को प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय दीपावली पूजा और पिछले नवम्बर विवाहात्सव का अवसर प्राप्त होना यह दर्शाता है कि उन्होंने कुछ उन्नति को है। अब सहस्रार का उपयोग करते हुए आदि कुण्डालिनी पृथ्वी ग्रह के भिन्न चक्रों का एकीकरण कर रही है और सहजयोग इसका यन्त्र है। आशा की जाती है कि यह सहजयोग हृदय, मस्तिष्क भावना-कार्यान्वयन, आध्यात्मिकता और भौतिकता में संघटन लाए। अगन्य ग्रह में रहने वाले रूसी सहजयांगी. क्योंकि भूगोलिक रूप में पूर्व एवम् पश्चिम के मध्य में सेतु हैं, आदिशक्ति के इस दिव्य कार्य में वाछित भूमिका निभाएंगे। अत: उन्हें चाहिए कि वे अपनी पथप्रदर्ंक (Councellor) आदि शक्ति (Holy Ghost) से जिनके आगमन के लिए, ईसामसीह ने यह सकीर्णद्वार खोला था, निरन्तर एवम् दृढ़ सम्बन्ध (योग) बनाए रखे। ] जिस की आज्ञा श्रीमती जी नं दी थी सैंक्ट के प्रम से ही संभव है। रूस के महान साक्षात्कारी करना हदय लेखक लिया टालस्टाय कहा करते थे, " जीवन को विवेकमय बनाने के ति आवश्यक है कि मानव मस्तिष्क की सीमाओं से ऊपर ता हो जीत की लक्ष्य होना चहिए।" जय श्री माता जी। चंतन्य लहरी । खड 18 : अक : 7, 8 1998 he क पत चिकित्सा सम्मेलन मास्को 07-08-1993 विद्यमान है। वर्षों तक परिश्रम करके बन्दरों, चृहों और सुअरों पर शोध एवम् अध्ययन आप को नहीं करना पड़ता। राग निदान के भयानक न्क में रोगियां को डालने की भी आपको देर से आने का मुझे खेद है। रास्ता भटक जाने के कारण हम ये स्थान न खाज पाए। विज्ञान के इसे नए आयाम (New Dimension In Science) के विषय में सुनने की दच्छा से आप सव लोगों को यहा बने रहने के लिए मैं धन्यवाद देती हूँ। सहजयांग को मैं पराविज्ञान ( Meta Science) कहती हूै क्योंकि सहजयाग में विज्ञान को विधियां नहीं उपयोग आवश्यकता नहीं। सारा शोंध कार्य हो चुका है। सभी कुछ खोजा जा चुका है और लोग जानते हैं कि यह क्या है। इसमें कोई विशेषज्ञता भी नहीं है। उदाहरणार्थं आजकल एक आंख के लिए एक विशेषज्ञ है और दूसरी के लिए दूसरा। कभी-कभी म की जातीं। उदाहरण के रूप में चिकित्सा विज्ञान में जब हम कोई शोध करना चाहते हैं तो हम एक प्रकार की कल्पना, या मैं कहूँगी परिकल्पना का आश्रय लंतं हैं और सोचते हैं कि किसी रोग या समस्या विशेष का संभवत: यही समाधान होगा। सुक्ष्मदर्शी संरचनाओं एवम् वर्ण्टमूष Guinea Pig) क विषय में जानने के लिए शोध हो रहे हैं। ये सभी नए विज्ञान विकसित हो चुके हैं। ये इतने भिन्न एवम् विशिष्ट हैं कि इन पर शाध करने के लिए व्यक्ति को कम से पुरा खीसा खाली कर लेने के बाद आपको प्रमाणपत्र प्राप्त होता है कि आप सबसे अधिक सुस्वस्थ्य व्यक्ति हैं। हो सकता है इस राग निदान के कार्य में आपक सभी अंग, दांत, आखे. नाक, कान या अन्य कुछ निकाल लं। चिकित्सा विज्ञान में इस प्रकार की अज्ञानता ने मुझे चिकित्सा विज्ञान की ओर भी आकर्षित किया। मैंने सोचा कि डाक्टरों से बात करने के लिए प्रौद्योगिकी (Techonology). कार्यपड्धति एवं समस्याओं दूसरी ओर हर दिशा में मुझे कम 15 वर्ष तक अध्ययन करना होगा। तब भी हमें पूर्ण सूचना न मिलेगी कि विश्व में कव और कहां क्या घटित हो का ज्ञान होना आवश्यक है। कि ये विश्व रांगों से भरा अब हमें महसूस करना है है। रहा है। मान लो आप कहते हैं कि, " मैने कुछ नया खोज निकाला है", आस्ट्रेलिया में वे पहले से ही यह सब खोज चुके हैं इस यहां पर एसे बहुत से लाग है जा अंग्रेजी इलाज हुआ करवाने में अक्षम हैं । पश्चिम मे बहुत से डाक्टर सहजयोग इसलिए नहीं अपनाना चाहते कि कहीं उनको कमाई कम न हो जाए। क्योंकि यदि विना औषधियों कं रांगी ठीक होगा ता उनकी जीविका चली जाएगी। नि:संदेह इस मामले पर मुझे हमददी है परन्तु मैं सांचती हूँ कि चिकित्सा एक श्रेष्ठ पेशा है संभवत: अन्य लाग आपको सृचित करें कि प्रकार आप का सारा परिश्रम व्यर्थ ही जाएगा और आपको मान्यता तो आपके आविष्कारों द्वारा ही प्राप्त होती हैं इन अविष्कारों का प्रयोंग भी एक अन्य शोध है । पहले आप चूहों पर प्रयोग करते हैं फिर बंदर पर फिर सुअरों पर और प्राय: श्रेष्ठ लोगों को ही यह पशा अपनाना चाहिए। बाद और तब मानव पर । जब आप इसका प्रयोग करते हैं तो आपको पता चलता है कि यह घातक है। यह शोध कभी-कभी लेते हैं। परन्तु उन देशों में जहाँ लांग धनाभाव कं कारण बहुत भयानक होते हैं। कुछ औषधियों का असर कुछ लोगों पर में धन के आकर्षण से वे भटक जाते हैं और इसे व्यापार बना चिकित्सा सहायता नहीं प्राप्त कर सकते बहां में आपकी विष सा होता है क्योंकि हर व्यक्ति भिन्न प्रकार से वनाया गया श्रेष्ठता, महानता और मानवीय स्वास्थ्य को चुनौती दूँगी। रूस और युक्रेन के लोगों को मै अत्यन्त मानवीय पाती हैं। चीन कंे लोग भी अत्यन्त मानववादी हैं। इन लोगों को मैं बताना चाहुँगी कि एक वैज्ञानिक के खुले मस्तिष्क से आप समझें कि हैं और उसकी भिन्न समस्याएं होती हैं। अतः अपने तत्व को जाने बिना अपने अन्तस को जाने विना, इन रोगों के कारणों को जाने विना, इनके विषय में हम ठीक से कुछ भी न कर सकगे। अंग्रेजी दवाइयां. विशेषतौर पर, वहुत ज्यादा गर्मी पैदा सहजयोग क्या है? एक परिकल्पना के रूप में आप इस लें। करने वाली होती हैं इस गर्मी को सन्तुलित करने के लिएसमस्याओं से उभरते हुए आप जैसे देश के लिए भारत. पूर्वी आपको कुछ न कुछ लना होता है। यह एक अन्य अन्ध गली (Blind Alley) सहजयाग परा-विज्ञान है। यहां आपका शोध नहीं करना पड़ता । इस पर पहले से शोध हो चुका है और सभी कुछ कम खण्ड (East Block) मिश्र तथा सोमालिया जैसे अफ्रीकन देशां के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है। इन सभी स्थानों पर मानव के साथ दुर्व्यहार हो रहा है। यह अत्याचार है। धन लोलुप लोगों द्वारा की गई तोड़-मरोड़। चैतन्य लहयो 19 खंड : X अंक : 7. 8 1998 । अतः मै इसे (सहजयोग) पराविज्ञान कहती हूँ क्योंकि रह गया। कहने लगा कि यह तो हमारे चिकित्साविजञान में भी नहीं है।" मैने कहा आप यहां तक नहीं पहुँच सकते क्यांकि विज्ञान की भी अपनी सीमाएं हैं। परन्तु अब जो में कह रही हूँ आप उसे सत्यापित करें। और यदि यह सत्य हो तो इसे अवश्य स्वीकार करें।" वह इतना आश्चर्यचकित हुआ। तीन दिनों की अवधि में उसका बच्चा दौड़ता फिर रहा था अब वह बच्ची बड़ी हो गई है, उसका विवाह हो गया है और उसके बच्चे हैं। तो मेरे मस्तिष्क में आया कि, "क्यों न महजयाग का पूर्ण ज्ञान आपक सम्मुख है। हम दावा भी कर सकते हैं सहजयाग द्वारा ठीक किए जा सकते है। खेद के साथ मुझे कि बहुत से मनोदेहिक, शारीरिक, मानसिक रोग कहना पड़ता है कि पिछले चार वर्षों से मैं यहां चिकित्सकों की सम्बोधित कर रही हूँ फिर भी कोई ठोस कार्य नही हुआ। यह बड़ी हैरानी की वात है। स्वभाव से इतने सामूहिक आप लागों का समझना चाहिए कि चिकित्सक होने के नाते आप अपने साथी मनुष्यां के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। इसका अर्थ यह है कि सभी धनी लोग आप के लिए धन खर्चने को हम सहजयोग पर शोध करें?" मैने उसे तीन चार असाध्य रांगी शोध के लिए लेने को कहा और वताया कि किस प्रकार तेयार है। परन्तु असाध्य रोगों के कारण मरने वाले लोगों के लिए आप यदि कुछ कर सकते हैं ता क्या आप सोचते हैं कि यह डॉक्टर का क्तव्य नही है? उनका इलाज किया जाए। तत्पश्चात तीन डाक्टरों ने सहजयोग पर शोध रोग पर. दूसरे ने अस्थमा पर और तीसरे ने शारीरिक तन्दरुस्ती पर, जैसे उच्च रक्तचाप को, हृदय की धड़कनो को और पूरे करके एम. डी. की उपाधिया प्राप्त की। एक ने मिर्गी इसके विपरीत भारत में मेरा भाषण सुनने के लिए दो सौ डॉक्टर थे, क्योंकि सभागार बहुत वड़ा न था। इसके पश्चात उन्होंने इसे अपनाया और अब ये लाग सौख रहे हैं कि सहजयोग क्या है। वे इसे कार्यान्वित कर शरीर को सामान्य करना। इन सारी बीमारियों का सौ रोगियों पर शोध किया गया और तब वे जान पाए कि किस प्रकार रहे हैं क्योंकि भारत भी अत्यन्त गरीब देश है। परन्तु यदि सहजयोग द्वारा रोगी ठीक हो सकते हैं। तब मैने डा. राय को एक पुस्तक लिखने के लिए कहा और उन्होंने एक वहुत अच्छी पुस्तक लिखी। जिसका विमांचन बहुत से डाक्टरों के एक डाक्टर राय हैं जिनकी पोती सहजयोग से ठीक सम्मुख किया गया। अब वह पुस्तक तैयार है। हम सोच रहे हैं कि रूसी भाषा में भी इसका अनुवाद करवाए। परन्तु इस पुस्तक को भी पढ़ने की कोई आवश्यकता नहीं है। मैं जो भी कह रही हूँ उसे जानने के लिए आप सब शोध कर सकते हैं। तो इसे स्वीकार कर लें और आपमे अपन साथी मनुष्यां के लिए करुणा एवम् प्रम की भावना नहीं हैं तो यह कार्यान्वित न होगा। ुर शाम हुई. जबकि उन्हें कहा जा रहा था कि इस बच्चे की मृत्यु हो जाएगी। उसने सोचा कि मेरी पोती की तरह से और भी तो नन्हें बन्चे होंगे जो अंग्रेजी चिकित्सा से ठीक नहीं हो सकते। यदि यह बहुत ही सहज इलाज है वे बहुत पढ़ लिखे है। परमात्मा ही जानता है कि उनके पास कितनी डिग्रियां हैं, कंगारू की लम्बी पूँछ की तरह से। परन्तु विश्वास करके इसे अपना लें। चिकित्सा विज्ञान में भी यदि बताया जाए कि, "इस बीमारी के लिए अमुक औषधि है" तो हमें इस पर विश्वास करना पड़ता है। मेरा कहने का अभिप्राय यह है कि ऐसी कोई समिति नहीं है जो ये कहे कि "यह निश्चित रूप से ठीक है।" कोई भी प्रयोग करकं यह नहीं कह जब वे अपनी पाती का इलाज न कर पाए तो उनकी सभी उपाधियां धरी रह गई और वे सहजयोग में आ गए। अभी तक भी उनमें बहुत अहंकार था और वे विश्वास न कर पा रहे थे कि ये वच्चा ठीक हो सकता है। उन्होने मुझसे कहा, "विज्ञान की दृष्टि से पहले आप मुझे बताए कि आप क्या करने वाली हैं।" मैने कहा, "डाक्टर आपके पास पहले ही विज्ञान की सकता कि यह सर्वोत्तम है।" परन्तु हम विश्वास करते हैं कि ठोक है ये चीज वाजार में आई है और इसे बनाने वाले लोग अच्छे हैं इसलिए हम इसे अपना लेते हैं। इसी तरह औषधि बहुत सी उपाधियां हैं। आप चाहते हैं कि आपकी पोती जीवित व्यापार बहुत बड़ा उद्यम बन गया है। इसे बेचने वाले लोग भी इस पर विश्वास करते हैं और इसे अपनाते हैं मैं किसी चौज को बेचना नहीं चाह रहो और न ही आपसे किसी चीज की आशा है। परन्तु मैं चिकित्सा पेशे की श्रेष्ठता को जागृत करना चाहूँगी क्योंकि इसमें हमें अपने साथी मनुष्यों की सेवा करनी होती है जो कि सदैव पैसे के लिए नहीं होती। करुणा के लिए रहे या आप विज्ञान का ज्ञान चाहते हैं?" मैने कहा, "मैं उस वच्चे को कुछ नहीं करना चाहती. तुम्हें विश्वास दिलाना चाहती हूँ कि बच्चा ठीक हो सकता है। मै बच्चे की कुण्डलिनी जागृत करूँगी और बच्चा ठीक हो जाएगा। इसके लिए आपको कुछ भी न देना होंगा।" तब भी वह विश्वास न मै अपने बच्चे बाबा कर पाया। परन्तु बच्चे की माँ ने कहा, का जीवन चाहती हूँ।" और वह बच्चा ठीक हो गया। तब मैने भी होती है। मेरे पास बहुत से ऐसे लोग आते हैं जिन्ें अब बैठ जाओ, मै आपको बताऊंगी कि बच्चे सहजयोगी ठीक कर सकते हैं। मै एक श्रेष्ठ व्यक्ति डा. बागडान का उदाहरण दूँगी। उन्होंने लन्दन में खुल्लमखुल्ला से इलाज शुरु किया और अंग्रेज डाक्टर सोचते हैं उसे वताया: " के साथ क्या समस्या थी और किस प्रकार वह ठीक हो गया। अब मै आपको वताती हैँ।" जब मैने उस बताया तो वह हैरान सहजयोग पाम 20 चैतन्य लहरी ॥ खंड : X अक : 7, 8 1998 कहा अब आप डाइलिसिस क्यों उपयोग करे जा रहे हैं ? वह कहने लगा इन मशीनों को खरीदने में हमने बहत सा धन खर्च किया है इनसे यदि धनार्जन नही करेंगे तो हमारा क्या होंगा? हम दिवालिया हो जाएंगे। मैंने कहा, "तुम बहुत से लोगों को दिवालिया बना चुके हो।" परन्तु उसने यह कार्य न छोड़ा। तो यह मानसिकता है। गुर्दा रोगी यदि डाइलिसिस पर न गया हो तो उसे ठीक करना आसान है। डाइलिसिस पर जाने के पश्चात बहुत से रोगियों को हमने ठीक होते देखा है मनोवैज्ञानिक भय के कारण भी कुछ लोग डाइलिसिस नहीं छोड़ते। उन्हें स्वयं पर विश्वास नहीं है। परन्तु कोई डाक्टर यदि उन्हें वता दे कि तुम ठोक हो गए हो, तुम्हें कुछ नहीं हो सकता तो वे सहजयोग कां छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे. कभी डाइलिसिस के लिए नहीं जाएंगे। मैं तुम्हें एक अन्य उदाहरण देती हूँ। भारत के एक वहुत अमीर व्यक्ति हैं। मैं स्वयं इलाज नहीं करती। परन्तु उसके कि वे हर क्षेत्र में चोटी पर हैं। एक बहुत बड़ी गली हालँस्ट्रीट, में एक अस्पताल है जहां व्यक्ति का न जाने कितनी नकद राशि जमा करनी होती है। अरब देशों के सभी लोग वहां आते हैं। वहां पर किसी डाक्टर से समय लेना वहुत कठिन कार्य है। अरब देशों से सारा पैसा हा्ली स्ट्रीट में आ रहा है। कुछ डाक्टर पूरा महीना चिकित्सा कार्य करते हैं, सप्ताह में एक बन्टा और कुछ 15 मिनट। आप यदि 15 मिनट देर से जाएं तो कोई अन्य डाक्टर बैठा हुआ मिलेगा। यह इतना सुनियोजित है तो चिकित्सा विज्ञान व्यापार बन गया है यही कारण है कि सस्ते और सुगम तरीके से अपने साथी मानवों कुछ का इलाज करने का तरीका लोग नही निकालना चाहते। आपके शरीर तन्त्र की तस्वीर यहां हैं । यह आपकं अन्त:स्थित मूल यन्त्र है। इस पर तीन नाड़िया और सात चक्र हैं अत: तीन गुणा सात अर्थात समस्याएं हो सकती हैं। ये मिली जुली भी हो सकती है। निदान आपकी अंगुलियों के सिरो पर है। कुरान में मोहम्मद साहब ने पिताजी मेरे भाई सम थे इसलिए मैं सहमत हो गई: "ठीक है, कहा है कि आपके हाथ बोलेंगे और सत्य और सत्य के विषय में तुम्हारा इलाज करूगी।" उन्हें बहुत तीव्र हृदयघात हुआ था। शहादत दंगे परन्तु अरब के लोग सहजयोग में नहीं आएंगे। वे हालीस्ट्रीट अस्पताल में जाएंगे क्योंकि पैसा देकर खरीदी हुई चिकित्सा उन्हें बेहतर लगती है। यह मनोवैज्ञानिक है। परन्तु मैं सांचती हूँ कि रूस के लोग अधिक बुद्धिमान है। मृलत: इक्कोस प्रकार की सभी डाक्टरा ने उसे बताया कि तुममें यह कमी है. वह कमी है। तुम्हे हस्टन जाना होगा। वहां दो डाक्टर हैं। एक डाक्टर हुदय निकालता है दूसरा, डाक्टर कुल्हे हृदय निकालने में तो वहुत कुशल कर सकता है। उस व्यक्ति को ड़ा. कुल्हे के पास जाने के लिए कहा गया। अब वह मेरे पास आया, मैने उसे बताया: में नहीं है परन्तु वह सोचता है कि वह भी इलाज तो मूलत: हमारे अन्दर 21 प्रकार को समस्याएं है और अब आप बिल्कुल ठीक हैं, पूर्णत: ठीक। " वह विश्वास न कर पाया और जिस डाक्टर ने उसे डा. कुल्हे के पास जाने के लिए कहा था वह उसके पास गया। उसके डाक्टर ने कहा: अब आप बिल्कुल ठीक हैं। आपने क्या किया है? आपका हृदय पूर्णतया सामान्य है।" वह कहने लगा "ऐसा कैसे हो सकता है, मैंने दस दिन पूर्व तुम्हारा परिक्षण किया था और इनके छोटे-छोटे रूप पूरक सम्पूरक (Permutations & Combinations) हैं। मूल प्रकार से तीन प्रकृतियां के लोग है। समस्याएं बाएं, दाएं, या मध्य से आती हैं। किसी सहजयोगी से यदि आप समस्या के विषय में पुछे तो वह कहेगा: "बाई ओर की या दाई ओर की। " बस अब केवल एक चीज रह जाती है कि बाई या दाई ओर का पोषण करें| तुम बीमार थे ! अब तुम बिल्कुल ठीक हो" संकोच के कारण उसने मेरा नाम नहीं बताया, इतना बैभवशाली व्यक्ति किस प्रकार कहता कि वह सहजयोग के लिए जाता है। तो बह एक अन्य डाक्टर के पास गया, तीन चार प्रसिद्ध डाक्टरों के पास गया। उन्होंने कहा कि आप पूर्णतः ठीक हैं आपका हृदय बिल्कुल ठीक है। परन्तु उसके पास पेसा था, वह हस्टन गया। मैने यूछा: "अब आप बिल्कुल ठीक है, कोई परेशानी नहीं।" कहने धनाभाव में उनकी इच्छा शक्ति भी बेकार हो जाती है। मैने लगा, " हां मैं टेनिस खेलता हूँ और बिल्कुल ठीक हूँ, परन्तु उस डाक्टर को कहा: " मैं तुम्हें बताती हूँ कि सहजयोग से गुर्दा " मैने कहा, "ठीक है तुम्हारे पास पैसा है, अवश्य जाओ। इस डाक्टर कुल्हे को में जानती हूँ।" वह उसके पास गया। उन्होंने उसे सभी प्रकार से जाँचा। उसके सभी प्रकार के परीक्षण किए। जब रिपोर्ट डा. कूल्हे के पास गई तो डा. कूल्हे उसपर बिगड़ गए और कहने बेहतर होगा कि पागलखाने जाकर तुम अपना परीक्षण उदाहरण के रूप में यदि गुर्दा खराब हो जाए तो रोगी को डाइलिसिस के लिए लें जाते हैं । सभी जानते हैं कि रोगी को बचाया नहीं जा सकता। पूरा जीवन ही वह डाइलिसिस पर रहेगा। दुर्भाग्यवश डाइलिसिस विभाग के एक प्रसिद्ध विभागाध्यक्ष का गुर्दा खराब हो गया। कहने लगा: "मैं डाइलिसिस पर नहीं जाना चाहता क्योंकि पूरा जीवन में इसका खर्च नहीं उठो सकता।" दिवालिए होकर डाइनिसिस के रोगी मर जाते हैं। रास्ते में मुझे मिलने के लिए वह लन्दन आया। डा. कूल्हे को तो मैं अवश्य मिलूंगा। रोग शत प्रतिशत ठीक हो जाएगा। परन्तु आप मुझसे वायदा करें कि लोगो को ठीक करने के लिए आप डाइलिसिस का पुनः उपयोग नहीं करेंगे। केवल सहजयोग से आप लोगों को ठीक करेंगे। उसने मुझे बचन दिया । वह ठीक भो हो गया। लगे लेग," परन्तु अब भी वह डाइलिसिस उपयोग किए जा रहा है। मैने चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 7, 8 1998 21 वास्तविकता के अन्य क्षेत्र में प्रवेश करते हैं. पूर्णत्व में प्रवेश करते हैं। विश्वास करें, आप मानव का बहुत हित कर सकते करवाओ। तुम्हे कोई रोग नहीं है। तुम्हारा हृदय पूर्णत: स्वस्थ्य हैं।" डाक्टर उस पर चिल्लाया, यहा तुम मेरा और हस्पताल का समय बर्बाद करने के लिए आ गए हो। यहां लोग लाइनों में हैं। कल इतिहास में क्या लिखा जाएगा कि रूस के डाक्टरों ने प्रतीक्षा कर रहे हैं और तुम मेरा समय बर्बाद कर रहे हो। कौन अपने साथी मानवों की चिन्ता नहीं की । उन्होंने सहजयोग से मूर्ख डाक्टर ने तुम्हें हमारे पास भेजा है? कौन से हस्पताल ने? पैसे के लालच में सभी स्वस्थ्य लोगों को भेज देते हैं। अब कभी मुझे अपनी शक्ल मत दिखाना।" उसने आकर मुझसे हजारों सहजयोगी हैं जो स्वयं इलाज कर सकते हैं परन्तु सारी कहानी सुनाई और हंस हंसकर लोटपोट हो गया। फिर भी कहने लगा, चाहिए; देखिए मै किस प्रकार आपसे मिल सका। परन्तु मेरे चाचा आपसे न मिल पाए। मेरे भाग्य को देखें।" तो यह उस व्यक्ति की कहानी है जिसका हृदय रोग ठीक हो गया। मेरा कोई हस्पताल नहीं है, कोई सचिव नहीं हैं । मैने चिकित्साविज्ञान से भी अधिक प्रभावशाली है तो क्यों न इसे उसे कहा कि बाबा तुम सहजयोग केन्द्र जाओ वे तुम्हारा इलाज करेंगे। परन्तु उसके मित्र उसी की तरह से धनवान हैं वे कैसे सहजयोग केन्द्र जैसे साधारण स्थान पर जा सकते हैं। कहते हैं कि ये हमारे सम्मान के अनुरूप नहीं। अत: श्री माताजी आप ही हमारा इलाज करें। उनमें से कुछ लन्दन और स्पेन तक मेरा पीछा करते रहे और मुझे बहुत परेशान किया। परन्तु कभी वे मुझसे भी बड़ी हैं। वो पीढ़ी हमने खो दी है जिसमें करुणां मुझे मिल न पाए। मैने कहा, " अच्छा होगा कि आप सहजयोग केन्द्र जाएं।" "परन्तु सहजयोगी डाक्टर नहीं हैं हम उनसे इलाज नहीं कराएंगे इसीलिए मै आप लोगों से अनुरोध इन सभी गुणों को अपने में अभिव्यक्त होता हुआ आप पाएंगे। कर रही हूँ कि आप श्रेष्ठ लोग हैं। आपकी उपाधियों पर उन्हें श्रद्धा है। वे आपको करुणामय और ईमानदार समझते हैं। यही कारण है कि मैं डाक्टरों से बात कर रही हूँ। अब मुझे आशा कि रूस में आपमें से कुछ लोग सहजयोग का ज्ञान प्राप्त करेंगे। कोई हस्पताल हमें सहजयोग के लिए कुछ स्थान देने वाला है। परन्तु पिछले चार वर्षों से कुछ भी नहीं हुआ। इससे लोगों के मुकाबले वे मूढ़ हैं । अन्य लोग अहंकारी हैं । मै पुर्व भी मैं आपको सहजयोग के विषय में बताती रही। आज मैने आपको वताया है कि क्यों चिकित्सक लोग सहजयोग के लोग अत्यन्त बुद्धिमान हैं और उनका हृदय बहुत विशाल है। ज्ञान को अपनाएं। क्योंकि मुझे डाक्टरों से बातचीत करनी थी। इसी लिए मैं एक बार फिर आपके विवेक से अनुरोध करती हूै।D0 अपने मस्तिष्क को खोलें। यह पराविज्ञान है, चमत्कार है । आप लोगों तक नहीं पहुँचाया । एक दिन तो सहजयोग निश्चित रूप से लोगों तक पहुँच जाएगा। आज भी रूस ओर यूक्रेन में डाक्टर न होने के कारण कुछ विशेष नहीं हो पा रहा। आप स्वयं शोध करके देख क्यों नहीं लेते कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य है या नहीं। आप डाक्टर लोग यदि आज कोई कदम नहीं उठाते तो कल लोग कहेंगे, " उनमे क्या कमी थी?" जब सारी चीज आप तक स्पष्ट रूप से लाई गई है और वह श्री माताजी व्यक्ति का भाग्य भी अच्छा होना आप अपनाएं? अभी भी में डाक्टरों को समझ नहीं सकी। मैं जब चिकित्सा विद्यालय में पढ़ रही थी तो हम छः लड़कियां थीं। वे सभी बहुत अच्छी थीं और देश के लिए कुछ करने इरोदा था। परन्तु तब तक सामूहिक रूप से सहजयोग का कार्यान्वयन मैं न खोज पाई थी। आज मैं 71 वर्ष की हूँ और एवं आशीर्वाद था. जिसके मानवीय मूल्य बहुत ऊँचे थे। परन्तु यदि आपकी कुण्डलिनी जागृत हो जाए. तो मुझे विश्वास है. आप अत्यन्त प्रग्लभ एवम् करुणामय बन जाएंगे। मुझे खेद है कि मुझे यह सब बातें आपसे कहनी पड़ीं। परन्तु आप लोग रूस और यूक्रेन के लोगों के लिए मैरी भावनाओं को समझें। वे बहुत अच्छे लोग हैं अमेरिका के डाक्टरों से मै यहां मौन की आशा नहीं कर सकती। वैसे तो में भी सोचती हूँ कि आप बहुत समय से रूस आ रही हूँ और जानती हैँ कि रूस के आपका हार्दिक धन्यवाद दय हु ा सा बा 22 चैतन्य लहरी खंड : x अंक : 7. 8 1998 दिवाली पूजा मास्को 12-11-1993 विश्वभर से इतने सारे लोगों को देवी लक्ष्मी की पूजा करने के लिए यहां आया देखकर बहुत आनन्द हो रहा है| बुद्धि से जब आप सभी चीजों का वर्णन नहीं कर पाते तो अपनी अन्तअभिव्यक्ति करने के लिए कला का सहारा लेते हैं। तार्किक रूप से या शब्दों में जिस बात को आप नहीं कह सकते उसे कहने के लिए आप प्रतीकों का सहारा लेते हैं। कलाकार यही करता है, कवि भी यही करता है। वह अपनी कल्पना की इस प्रकार विस्तृत करता है कि उससे प्रतीक का सृजन कर देता है। यह मस्तिष्क सीमित है और एक सीमा तक ही जा सकता है। सत्य और वास्तवकता से यदि इसे प्रमाणित किया जाए तो कुछ समय पश्चात पूर्ण रेखीय गतिशीलता रुक जाती है और पतन हो जाता है। आज सभी क्षेत्रों में हमें यह दिखाई दता है, सभी उत्कृष्ट चीजों का पतन हो गया है। यह पतन घटित होता है और लोग इसे स्वीकार कर लेते हैं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात जब आप आत्मा स्थिति क्या है? अपने धन से वे अपना ही विनाश करने के निए निकल पड़े हैं। क्रोध, वासना और लोभ की अभिव्यक्ति के लिए वे अपने धन का दुरूपयोग कर रहे हैं । स्वयं को उत्कृष्ट दर्शाने के लिए किए गए आडम्बरों पर वे अपना धन बर्बाद कर रहे हैं । । जैसे अमेरिका में मैं एक धनी व्यक्ति से मिली। उसकी कार के करीब जब मै पहुँची तो उसने मुझे बताया कि मेरी कार के हैंडल दूसरी ओर खुलते हैं । मैने पूछा. क्यों? ऐसी चीज का क्या लाभ है, कोई भी आपकी कार में बन्द हो सकता है। उसने कहा, इस अद्वितीय चीज की रचना की है।' मै जब उसके घर पहुँची तो उसने मुझे बताया, 'सावधान रहें. मेरा स्नानागार अति विशेष है। कहने लगा. 'यदि आप ये बटन दबाएंगी तो आप सीधे तरणताल में जा पड़ेंगी।' तब वह मुझे अपने पलंग के पास ले गया और कहने लगा. यह पलंग अति विशेष है, यदि आप यह बटन दबाएंगी तो आपकी टाँगे उपर की ओर हो जाएगी ऑर यदि दूसरा बटन दबाएंगी तो आपका सिर उपर की ओर हो जाएगा।' मैने कहा, 'सारी रात में यह व्यायाम नहीं करना चाहती. मै पृथ्वी पर सो जाऊँगी। पूर्वी खंड (Easterm Block) के लोग यह सोचते हैं कि अमेरिका या यूरोप के वैभवशाली लोग बहुत प्रसन्न है परन्तु वे खुशहाल नहीं हैं क्योंकि उनमें विवेक का अभाव है। व्यर्थ में वे अपना धन बर्वाद किए चले जाते हैं, वे दिवालिए हैं, बेकार हैं । एक दिन तो वे रॉल्स रॉयस गाडी में चल रहे होते हैं और दूसरे दिन सड़क पर भीख माँगते नजर आतं हैं उनके पास केवल पैसा है, लक्ष्मी नहीं है। अत: लक्ष्मी के प्रतीक को समझ लेना हमारे लिए अत्यन्त आवश्यक है। लक्ष्मी आपकी नाभी में निवास करती है और उसके सन्तुष्ट होने पर ही महालक्ष्मी तत्व जागृत होता है, तभी आप आगे देखने लगते हैं। लोगों के पास बहुत पैसा था परन्तु वे ये न जानते थे कि इसका क्या किया जाए। उन्होंने सोचा कि यह पैसा काफी नहीं है, अभी और धनार्जन करना चाहिए। नशे और सभी प्रकार की बुरी आदतों में वे फैस गए। लक्ष्मी तत्व इस प्रकार है- जैसा मैने कहा लक्ष्मी एक माँ है। उनके दो हाथों में गुलाबी कमल है। कमल जल में जन्म लेता है और अपने अन्दर भवरे को भी स्थान देता है अर्थात् धनी व्यक्ति या लक्ष्मीपति के पास गुलाबी कमल की तरह से सुन्दर घर तो हो परन्तु इसमें अतिथियों का स्वागत होना चाहिए। भंवरा कमल के पराग पर बैठ जाता है और रात के समय कमल बंद हो कर ठंड से इसकी रक्षा करता है । यह मेरा व्यक्तित्व है, मेरी प्रतिभा नें नाज: बन जाते हैं तो अपकी कल्पना वास्तविकता को छ लेती है। तब पथभ्रप्ट एवं मिथ्या प्रतीक छूट जाते हैं और आप प्रतीकों की बास्तविकता को छू लेते हैं। सर्वत्र बिल्कुल यही हुआ है। उदाहरणार्थ भारत में धन की देवी को लक्ष्मी रूप में मानते हैं। लक्ष्मी के इस प्रतीक का वर्णन वास्तविकता में सन्तों और पैगम्बरों ने किया। परन्तु बाद में लोग न तो प्रतीक को समझ पाए और न ही इसके पीछे छिपी वास्तविकता को। उन्होंने सोचा कि लक्ष्मी का प्रतीक धन, वैभव, सोना, चाँदी, हीरे तथा धन धान्य हेै। उन्होंने धन की पूजा करनी शुरू कर दी और इस प्रकार वैभव की प्रतीक देवी लक्ष्मी को तोड़ मरोड़ू कर दर्शाया। लोग नहीं समझते कि धन मिल जाने पर वे दुष्कार्य क्यों करने लगते हैं। भारत में भी आजकल लोग इतने पथभ्रष्ट गए हैं कि यदि किसी गरीब व्यक्ति को आप सौ रुपये दें तो वह सीधा शराब के अड्डे पर पहुँच जाएगा। वह अपने लोभ के विषय में सांचेगा, किसी अन्य के विषय में नहीं, हो सुख अपने परिवार, अपने बच्चों, अपने देश के विषय में नहीं सोचिंगा। केवल अपने विषय में ही सोचेगा। परन्तु देबी लक्ष्मी का प्रतीक बिल्कुल भिन्न है। सर्वप्रथम जिसके पस लक्ष्मी है उसे माँ होना पड़ता हैं उसमें एक माँ का प्रेम होना चहिए जो अपने बच्चों को प्रेम करती है। उसका 'स्त्री' होना आवश्यक है। स्त्री श्रेष्ठता की प्रतीक हैं, माँ पूर्ण शक्तियों का स्रोत हैं उसमें धैर्य, प्रेम एवम् करुणा होते हैं। तो व्यक्ति जब तक करुणा में नहीं होता और अपने धन को दूसरे के हित के लिए उपयोग नहीं करता तब तक धन के होते हुए भी वह प्रसन्न नहीं रह सकता। आज के वैभवशाली देशों की बैतन्य लहरी खंड 23 खड : X अंक : 7. 8 1998 अतः धनी व्यक्ति लक्ष्मीपति नहीं होता। उसे लक्ष्मी जी का आशीर्वाद प्राप्त नही होता। केवल विजेकशील वैभवशाली व्यक्ति को लक्ष्मी का अशीर्वाद प्राप्त होता है। ऐसे लोग कमल की तरह से मेहमान-नवाज होते हैं। सदैव अतिथियों का स्वागत करने और देखभाल करने के लिए उद्यत रहते हैं। ध नवान व्यक्ति को सदैव व्यक्तिगत रूप से सत्कारशील होना नहीं है, फिर भी आप सभी अवतरणों, पीरों पैगम्बरों की पूजा चाहिए। परन्तु हैरानी की बात है कि तथाकथित वैभवशाली देश जी का आशीर्वाद प्राप्त था। वे सन्तुष्ट लोग थे। अत: सन्तुष्ट पराश्रित हैं। उन्होंने सभी देशों को लूटा, वहा साम्राज्य बनाए। उदाहरणार्थ भारत में अंग्रेज 300 वरषों तक हमारे अतिथि थे। बिना किसी बीजा ( Visa) या वैध देश परिवर्तन के वे यहां आए। परन्तु आज यदि किसी भारतीय को इंग्लैंड जाना हो तो है। यह शुद्ध इच्छा है जो कि कुन्डलिनी है जब आप पृर्णतः यह असम्भव बात है। कोई यदि वहां चला भी जाए तो भी वे उन्हें अपने स्तर पर नहीं मानते। अमेरिका में भी ऐसा ही है। परमात्मा का धन्यवाद है आपके अन्दर महालक्ष्मी तत्व जागृत होता है। यह महालक्ष्मी कि कोलम्बस भारत नहीं आया, श्री हनुमान जी उसे अमेरिका ले गए अन्यथा सभी भारतीय समाप्त कर दिए जाते और मैं भी यहां न होती। अमेरिका में उन्होंने वहां के सभी मूल निवासियों को समाप्त कर दिया और उनकी भूमि छीन ली और आज उन्हें धनवान माना जा रहा है। उनके किए हुए पाप अवश्य उनके सामने आएँगे । आज कोई अमेरिका आसानी से नहीं जा लक्ष्मी जी सुरक्षा प्रदान करती हैं, उन सभी को जो उनकी पूजा करते हैं और उनके लिए कार्य करते हैं। अत: अपने पास कार्य करने वालों की. आश्रितों की सुरक्षा करना वैभवशाली व्यक्तियों का कार्य है। आज आप उस स्थिति तक उन्नत हो गए हैं कि आपके मस्तिष्क में धर्मान्धता करते हैं। उनमें से अधिकतर के पास धन न था पर उन्हें लक्ष्मी करना लक्ष्मी जी का गुण है। अर्थशास्त्र का पहला सिद्धांत है कि आवश्यकताएं आमतौर पर पृर्ण नहीं होती। तो पूर्ण होने वाली कौन सी इच्छा सन्तुष्ट हो जाते हैं और जान लेते हैं कि धन, सत्ता तथा अन्य बेकार कि चीजों के पीछे मारे-मारें फिरना मुर्खता है तब तत्व आपको सत्य साधना की और ले जाता है। तब आप विशेष श्रेणी के लोग बन जाते हैं, जिन्हें विलियम ब्लैक ने परमात्मा के व्यक्ति (A man of God) कहा है। तब आपमें बचपन, राष्ट्रीयता बाह्य धर्म के बन्धन नहीं रह जाते। आप इनसे उपर उठ जाते हैं. आत्मा बन जाते हैं। इस समय आप अपने अन्दर के लक्ष्मी तत्व को समझते हैं। लक्ष्मी तत्व का अर्थ है दूसरों के लिए हितकार्य करने का आनन्द लना। सामूहिक चेतना में आप दूसरों के लिए कार्य करना चाहते हैं। आप यदि अब भी केवल अपने लिए, अपनी सुख सुविधाओं के लिए. अपनी जीविका के लिए अपनी गरिमा के लिए चिन्तित हैं तो आप असन्तुलित हो जाते हैं। लक्ष्मी जी तो कमल पर पूर्णतः सन्तुलित रूप से खड़ी हैं। वे अपना प्रभुत्व नहीं दिखाती, मात्र कमल पर खड़ी हैं, कभी नहीं दर्शाती कि वे वैभव हैं या धनधान्य की देवी हैं । अपने आप में वे पूर्णतः सन्तुष्ट है। आप यदि स्वयं से सन्तुष्ट नहीं है तो इसका अर्थ यह है कि आप स्वयं को नहीं जान पाए। सहजयोगी वह व्यक्ति होता है जो अपने से पूर्णतः सन्तुष्ट है क्योंकि उसकी आत्मा पूर्ण ज्ञान का स्रोत है, उसके चित्त को ज्योतिर्मय करने का स्रोत है और उसके आनन्द को स्रोत सकता । माना ये उनका अपना देश हो ! वे सब तो उस देश के हैं ही नहीं। स्वयं को उच्च जाति का मानने वाले लोगों को देखें कि वे अपने को उच्च मानते हैं क्योंकि उनके पास अधिक धन है । उन्होंने गैस कक्ष में डालकर बहुत से लोगों की हत्या की, सभी प्रकार के पाप किए। किस प्रकार वे उच्च जाति के हो सकते हैं? मेरी समझ में नहीं आता। क्या यह उच्च होने का चिन्ह है? ईसा मसीह को यदि हम श्रेष्ठ व्यक्तित्व का प्रतीक मानते तो उनके क्या गुण हैं? जहां तक चरित्र का सम्बन्ध है, वे श्रेष्ठतम व्यक्ति थे महानतम व्यक्तित्व| इतनी क्षमाशीलता और गरिमा! वे लक्ष्मी जी से आशीर्वादित थे अत्यन्त सन्तुष्ट व्यक्ति थे धन के लिए वे कोई अनुचित कार्य न कर सकते थे, कोई उन्हें खरीद ने सकता था। अंत: सहजयोग में आने के पश्चात यह जानना आवश्यक है है। आनन्द, प्रसन्नता या अप्रसन्नता नहीं है क्योंकि ये दोनों तो अहम् पर निर्भर हैं। आनन्द पूर्ण है। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात आपको इतना आनन्द आता हैं कि आप न तो धन की चिन्ता करते हैं और न ही किसी और चीज़ की। धन मिल जाए तो भी ठीक, नहीं मिले तो भी ठीक । आप पूर्णतः निर्लिप्त हो जाते हैं । अन्त में मै आपको राजा जनक की कहानी सुनाऊगी। जनक श्रीराम को पत्नी सीता के पिता थे संभवत: वे 6000 कि आप श्री लक्ष्मी से आशीर्वादित हैं। एक हाथ से वे बॉटती रहती है, देना उनका स्वभाव है। एक दरबाजा यदि खुला रहेगा तो हवा नहीं आएगी परन्तु दूसरा दरवाजा यदि आप खाल देंगे तो हवा बहने लगेगी। अत: सन्तोष सहजयोगियों के गुणों में से एक है। कुछ लोग पैसे के मामले में चमत्कार की आशा करते हैं आपका दृष्टिकोण एसा नहीं होना चाहिए। अब आप आत्मा है और आत्मा शारीरिक या मानसिक सुविधाओं की चिन्ता नहीं करती, आत्मा के सुख की चिन्ता करती है। नि:सन्देह आप में से बहुत से लोग आत्मा बन चुकं हैं परन्तु आप में से कुछ अभी तक अपनी स्थिति को नहीं पचचान पाए। यह स्थिति आपको पहचाननी है। दूसरे हाथ से सुख हजार वर्ष पूर्व हुए। व राजा थे। राजाओं के वस्त्राभूषण धारण करने पड़ते थे। परन्तु उस समय के सभी सन्त उनके चरण स्पर्श किया करते थे। तो एक गुरु के शिष्य ने पुछा आप क्यों उनके चरण स्पर्श करते हैं, वे तो राजाओं की तरह उन्हें चैतन्य लहरी खंड : X अक : 7. 3 1998 24 ने सहजयोग में आप लोग उन्तत हो। बीने न बने रहे । पूर्वी खण्ड (Eastern Block) और रूस वहुत तजी से कार्य करता है क्याकि यह सच्चा विश्वास है। से बस्त्राभृषण पहनते हैं और उसी तरह से रहते हैं?" गुरु उत्तर दिया." तुम नहीं जानते कि वे कोन है, यदि उनकी कृपा दृष्टि तुम पर हो जाए तो व तुम्ह आत्मसाक्षात्कार प्रदान कर मकते हैं।" तो शिष्य नचिकेता राजा जनक के पास गए और उनसे कहा, "श्रीमन् में आपके पास आत्मसाक्षात्कार लेने के लिए आया हूँ। राजा नं कहा तुम मुझसे मेरी सारी सम्पत्ति, सभी कुछ ले लो परन्तु में तुम्हें आत्मसाक्षात्कार नहीं दे सकता क्योंकि अभी तक तुम इतने विकसित नही हुए हो।" नचिकेता निराश हो गए. " श्रीमन् जव तक आप मैरी योग्यता की परीक्षा लेने के लिए तैयार नही हो जाते मैं प्रतीक्षा करूँगा। " राजा में तथा इस देश के अन्य क्षेत्रों में सहज सामूहिकता देखकर मैं प्रसन्न हैँ। है। आज आप लक्ष्मी का आशीर्वाद मांग रहे हैं तो सर्वप्रथम आपका संतोष एवं उदारता मांगनी चाहिए। लक्ष्मी से आशीर्वादित कभी कन्जूस नहीं हो सकता। ऐसा वो हो ही नहीं सकता। है जो यहां वहां पैसा बचाने में ही लगा रहता है। विकसित व्यक्ति की तो यह केन्जूस प्रवृत्ति किसी रोगी व्यक्ति की होती प्रवृत्ति हो ही नहीं सकती। मुझे प्रसन्नता है कि मैं रूस आई। इस स्थिति में हम स्नान कर रहे थे तो महल से आकर लोगों ने राजा को बताया. ऐसे बाताबर्ण की सृष्टि कर सकंगे जो आपके देश के हित में होगा। भिन्न देशों से आए हुए लोग भी इस बातावरण को मरत थे। एक बार फिर से लोग आए, " अब वहां से आपके अपने देश म ले जाएंगे। अब आप जानते हैं कि आपके कर्म शेष नहीं रहे। ये सब समाप्त हो चुके है। अब आप सुन्दर नवनिर्मत लोग हैं। बसन्त का समय आज फला के रूप में आया है। आप स्वंय पर, अपने कप्टों पर, अपनी समस्याओं पर ध्यान दे। निश्चित रूप से चीजं सुधरेगी। कोई मुझे कह रहा था कि उन्हें घुटनो में द्र्द है। मैने महमूस किया, वहुत बार मुझे घुटना आदि में दर्द हो जाता है क्योंकि आपसे यह दर्द मैं है और मुझे दखा ! मैं अपनी थोड़ी-सी चीज़ों के लिए चितित खींच लिया करती हूँ। पर मैं इसके विषय में कभी नहीं सोचती। कभी इसकी चिन्ता नहीं करती। मुझे सदैव वे राजा है। अत: नचिकेता न स्वय को उनके सम्मुख समर्पित शरीर विल्कुल ठीक लगता है। मशीन की तरह से यदि यह कर दिया और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया। उन दिनों बिगड़ जाए तो हमें इसका इलाज कर लेना चाहिए । समाप्त। परन्तु आप लोग हर समय सोचते रहते हैं, "यहां दर्द हो रहा है, यह गलत है। मेरे पास धन नहीं है, मुझे यह व्यापार करना जनक न कहा,"ठीक है चलो नदी में स्नान करंगे।" जब वे # श्रीमान आपके महल में आग लग गई है।" परन्तु राजा ध्यान सारे लोग, सग सम्बन्धी और परिवार दौड़ रहे हैं । " परन्तु राजा ध्यान मग्न रहे। नचिकेता उनकी और देखता रहा। तब उन लोगो ने कहा, " मारे कपड़े जल जाएंगे।" राजा फिर भी ध्यान मग्न रहे। परन्तु नचिकंता अपने कपड़े उठाकर दोड़ पड़ा। तब उसने महसूस किया कि यह व्यक्ति धन बैभव परिवार से कितना निलिप्त आग इधर की ओर बढ़ रही है और आपके कार अपना हैं ! उन्हें यह वस्त्राभूषाण इसलिए धारण करने पड़ते हैं क्योंकि आत्मसाक्षात्कार देना और आत्मसाक्षात्कार पाना अत्यन्त कठिन था परन्तु आज विशेष समय है, बसन्त का समय । लोग इसे अंतिम निर्णय ( Last Judgement) कहते हैं। आप इसे पुनर्जन्म का समय कह सकते हैं, या जिस प्रकार कुरान है- वह व्यापार करना है।" सब हो गया। अब हमें पर-चंतना के क्षेत्र में उन्नत होना है। इन श्रेष्ठ एवम् सुन्दर चीजों के बारे में में बालती ही जा सकती हूँ। वहुत से भापण मैने दिए हैं। परन्तु भावण शब्दों के अंतिरिक्त कुछ भी नहीं। ये शब्द-जाल है। अत: आप इन से बाहर आइए। आपको मस्तिष्क से उपर उठना होगा। मेरा यही स्वपन है। वहुत से लोगों ने मंरा यह स्वपन पूरा किया है मैं सदैव आपको हूँ। जब भी आप मुझे चाहे, जहां भी आप मुझे चाह मैं आऊगी। मेरा प्रेम, मरी इच्छा से कहीं अधिक है। परन्तु आपको भी स्वयं को तथा अपने आत्मसाक्षात्कार का प्रम कहा गया है. कार्यमा भी कह सकते हैं। कहा गया है कि करों से निकलकर कुछ लांग पुन्जन्म प्राप्त करेंगे। परन्तु कब्रों से कुछ वचा है? सिवाय कुछ हड्डियों के वहां कुछ नहीं है। नहीं,ये सारे लोग जो मर चुके हैं मानव शरीर धारण करेंगे और इस विशेष समय में आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करेगे। ऐसा कहना उचित होगा ऑर यह घटित भी हो रहा है। अपने पूर्व जन्मों के पुण्य कर्मों के कारण अब आपको आत्मसाक्षात्कार मिल गया है परन्तु आपको चाहिए कि इस महान उपलब्धि को समझे और इसका सम्मान करें । आपका करना होगा। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। एक अन्य चीज हमें जाननी हैं कि लक्ष्मी जी का निवास नाभी में है और आप लोग एक एसी अवस्था में पहुँच गए हैं जहां वे (लक्ष्मी जी) आपकंे अन्दर वास्तविकता हैं। अब वे प्रतीक नहीं हैं। तो आज की पूजा के पश्चात आपके अन्दर यह लक्ष्मी तत्व जागृत हो जाना चाहिए और आपक आप ही लांग करेंगे अत: स्वयं पर विश्वास रखें। विश्वास नाभी चक्र में इसका पुर्ण प्रकाश फैल जाना चाहिए।I परमात्मा आपको धन्य करें। यह भी समझना होगा कि अब आप आत्मा हैं। आप विशेष लोग हैं। आप अपने देश, अपनी जाति, अपने समाज और अपने परिवारों की समस्या का समाधान करेंगे : पूर विश्व की समस्याओं का समाधान करेंगे। आप ही लोग पृथ्वी पर शान्ति स्थापित करेंगे। सुन्दर दिव्य लोंगों के एक नए विश्व की सृष्टि ार ** * चैतन्य लहरनो खंड 25 : X अंक : 7, 8 1998 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी को अवैतनिक सदस्यता 13 नवम्बर का, दिवाली से अगले दिन एक अत्यन्त स्मरणीय घटना हुई। श्रीमाता जी की विज्ञान और कला के सम्बन्धों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। अब विज्ञान और कला की पीटर अकादमी (PASA) की अवैतनिक सदस्या की उपाधि भेट की गई। सदस्यता के अनुसार पासा रूस में कला और विज्ञान कार्यकर्ताओं की सबसे बड़ी संस्था है । अकादमी के दस्तावेज की विषय- वस्तु : गौरवशील सदस्य निम्नलिखित हैं- लेखक वेजिली बेलो, वेलेन्टीन रास्पुटीन, संगीतकार जार्जिए स्विरीडोव, कवि रसूल-गेन्जाती, चित्रकार, इलिया ग्लैज़नी जिनके मुख्य हैं: चिकित्सक एफ. जी. यूग्लोव, बी. जी. राष्ट्रों के हित एवम् मित्रता को बढ़ावा देने के लक्ष्य से महान काजनाचीन: एल. एन. गृमीलजाव और अन्य लोगों की अध्यक्षता कार्य करते हुए हमारी मातृ भूमि को आध्यात्मिकता एवम् में कार्य करने वाले वैज्ञानिक । निर्मला श्रीवास्तव इस अकादमी सच्चरित्र के केन्द्र के रूप में लिया। उन्होंने हमारी मातृभूमि को की अवैतनिक सदस्या चुनी जाने वाली पहली महिला थीं। पूर्व और पश्चिम को समीप लाने उच्च चारित्रिक आदर्शों के डिप्लोमा विद्या विशारद यूरिव वोरोनोव, अकादमी के उपाध्यक्ष नहीं परन्तु दो महान देशों, रूस ओर भारत, के पारस्परिक पीटर अकादमी के सभापति मंडल द्वारा सर्वसम्मति से अपनाए गए इस दस्तावेज को पढ़ना मेरा कर्तव्य है। दर्शनशास्त्र एवम् औषध विज्ञान की डाक्टर श्रीमती निमंला श्रीवास्तव, जो कि धर्म दर्शनशास्त्र एवम् विज्ञान जैसे व्यापक विषयों में भी विशारद हैं ने भारत एवम् रूस , दानों मूल सिद्धांतों, जिसका अध्ययन हमारी मातृ भूमि अपने बहुराष्ट्रीय व्यक्तिगत रूप में रूसी लांगों के पथ प्रदर्शन में किया करती तथा कृषक अकादमी विश्वविद्यालय के प्राक्टर ने भंट किया। विद्या विशारद यूरिव वारोनोव जिन्हें श्रीमाताजी से वर्ष 1991 धी का कन्द्र माना। श्रीमती निमंला श्रीवास्तव, सहजयोग के उच्च चारित्रिक में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ था, ने पाया कि सहजयाग मानवमात्र के प्रति प्रेम एवम् उच्च चारित्रिक मापदंड प्रसारित कर रहा है तथा रूसी प्रकृति के बहुत निकट है । यूरिव वोरोनोव का प्रारम्भिक भाषण: प्रिय साथी नागरिको, देशवासियों, अतिथिगण तथा सम्माननीय श्रीमाता जी. ा मूल्यों की संस्थापिका, पृर्ण ताकिंकता पूर्वक, शारीरिक एवम् मानसिक स्वास्थ्य के जीवन शेली एवम् सच्चरित्र से सम्बन्ध की मनों-देहोय (Physiological ) प्रक्रिया का वर्णन करती हैं। विज्ञान एवम् कला की पीटर अकादमी का सभापति मड़ल महान भारत को प्रतिभावान पुत्री का बताना अपना परम कर्तव्य समझता है कि उन्हें अकादमी की अवैतनिक सदस्यता है। मर पदभार के कारण इस व्याख्यान से आपका परिचय कराने की जिम्मेदारी मुझे पर आई है। यह लेखपत्र कंवल सहजयोग के निजी जीवन के लिए ही महान महत्व की चीज के रूप में चुन लिया गया सहजयोग मे विवाह परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन हा , विवाह करके आप एक बेहतर व्यक्त बन जाते हैं आपका व्यक्तित्व वेहतर हो जाता है। सहजयोग में विवाह क्यों आवश्यक है? विवाह करना पहला सर्वमान्य कार्य है। परन्तु इसका उपयोग यदि आप उसी लक्ष्य से नहीं करते तो यह विकार बन सकता है। निर्लज्जता बन सकती है, जो कि आपके उत्थान के लिए हानिकारक है। अत: व्यक्ति को अपने अन्दर को विवाह की इस इच्छा का समझना चाहिए। "विवाह आपको धार्मिक एवम् सामान्य बनने का कारण प्रदान करता है । यह सिखाता है कि किस प्रकार अपने तथा अन्य लांगों के पवित्रय का सम्मान करें।" बैतन्य लहरी खंड : X अक : 7, 8 1998 26 आत्मा हैं। यदि आप पति हैं तो जान ले कि आपकी पत्नी भी आत्मा है। आप दोनों क्योंकि सुन्त हैं. सहजयोगी हैं अत: पारस्परिक सम्मान होना आवश्यक है।" प्रभुत्व किस लिए जमाना है? ये शब्द 'प्रभुत्व' मेरी समझ में नहीं आता। दो पहिए कभी एक दूसरे पर प्रभुत्व जमाते हैं? क्या वे ऐसा कर सकते हैं? एक यदि प्रभुत्व जमाता है, अर्थात दूसरे से आकार में बड़ा हो जाता है तो यह एक ही जगह पर रहेगा। क्या यह बात ठीक नही है? अत: पति पत्नी में " पवित्रता ( कौमार्य) विश्वास( श्रद्धा)है । यह आपके विश्वास का दृढ़िकरण हैं । स्वच्छता, पावनता (Chastity) की सुगन्ध है। अच्छाई, करुणा आदि सभी गुण यवित्रता की दन हैं। पवित्रता विवेक, मानसिक नहीं है, दिमागी रूप से यदि आप पावन हैं तो आप भयानक हो सकते हैं, जैसे कुछ सन्यासी या तपस्वी लोग होते है। पवित्रता अन्तर्जात हैं ये आपके अन्तर्रचित कुण्डलिनी है । ये इसलिए कार्य करती है क्योंकि ये मुझे पहचानती है। यह मेरा प्रतिबिम्ब है। अत: पवित्र रहकर अपनी कुण्डलिनी को दृढ़ बनाएं। सहजयोग में विवाहित व्यक्ति अन्य सहजयोगियों से घूमता जमाने वाली कोई बात नहीं है। यह तो परस्पर सूझबूझ प्रभुत्व एवम् पृर्ण सहयोग की बात है जिसका प्रभाव पूरे परिवार और समाज पर पड़ना चहिए।" विवाह का अभिप्राय आप कह सकते हैं. आपको प्रसन्नता, उल्लास आदि वो सभी आशीर्वाद देना है जो दो व्यक्तियों के मिलन से पाने की आशा की जा सकती है।" सहजयोगी को जान लेना चाहिए कि उसके अन्दर जिस ..... और सहजयोग समाज से यदि प्रेम बांटते हैं तभी महान आत्माएं जन्म लेंगी। तो सहजयोग विवाह की पहली परीक्षा यह है कि विवाह करने के पश्चात आपने अन्य लोगों को कितना प्रेम बांटा। अब आपका सहजयोग में विवाह हो गया है। अन्य लोगों की तरह से आपका विवाह नहीं हुआ। इसलिए आपको चाहिए कि परस्पर प्रम करें। एक दूसरे को समय दें। मधुर व्यवहार शिशु ने जन्म लिया है वह आत्मा है। आत्मा ने ही उसके करें तथा दूसरों के प्रति विचार-वान हो। ध्यान रखें कि आपका एक पति या पत्नी है फिर भी सामूहिकता सर्वप्रथम है।' एक सामान्य विवाह में पुरुष को परिवार का मुखिया इसे उन्नत करना है। अन्य मुर्खतापूर्ण चीजों माना जाता है। कुछ कारणों वश उसे अब भी मुखिया ही रहना है। पुरुष का मुखिया होना गलत नहीं है, यह ठीक है। परन्तु आप हृदय बनें। सिर की अपेक्षा हृदय अधिक महत्वपुर्ण हैं । लिए समय ही कहां है? चित्त केवल एक ही चीज पर होना संभवत: हम महसूस नहीं कर पाते कि हृदय किस प्रकार महत्वपूर्ण है। मस्तिष्क यदि रुक जाए तो भी हृदय चलता रह सकता है। हृदय के चलते हुए हम जीवित रह सकते हैं, परन्तु हूँ?" हृदय के रुकते ही मस्तिष्क रुक जाता है। अत: एक महिला के रूप में आप हृदय हैं और पुरुष परिवार का मुखिया लिए पति-पत्नी सम्बन्ध अति महत्वपूर्ण हैं। आप एक दूसरे के ( Head)। उसे स्वय को मुखिया समझने दो। यह कवल एक भावना है, केवल एक भावना। मस्तप्क सदैव सोचता है कि वह निर्णय लेता है परन्तु मस्तिष्क यह भी जानता है कि हृदय के अनुसार चलना है और हृदय सर्वव्यापक है और हर चीज का स्रोत। महिला यदि अपने महत्व को समझ लेगी. अपनी है। मैं आप को इसलिए बता रही हूँ कि आप सब आत्मसाक्षात्कारी पदवी को समझ लेगी, यदि वह हृदय है तो वह कभी अपने आप को प्रताडित नहीं मानेगी। सहजयोग में प्रभुत्व जमाने की प्रवृत्ति आनी ही नही यदि हम अहंकारी और दमनकारी हैं तो गौरी ( Virgin ) की चाहिए....। किस प्रकार आप पर प्रभुत्व जमाया जा सकता है। पूजा कर पाना असंभव है।" आप आत्मा हैं। आपके अहम् को तो चोट लग सकती, अन्दर जन्म लिया हैं अब उसे कुण्डलिनो के माध्यम से इसका पोषण करना है, इसे सींचना है और इसकी देखभाल करनी है, के लिए समय कहां है? आपके हाथ में एक बच्चा है। आप सभी माताएं आत्मा रूपी बच्चे की देखभाल कर रही हैं। इन सभी चीजों के चाहिए-इस बच्चे को प्रसन्न रखने के लिए, बड़ा करने के लिए, ताकि यह मेरी अभिव्यक्ति करें, में क्या कर सकती 1 है कि सहजयागियों के अत: हमें यह बात महसूस करनी पूरक हैं। सम्बन्ध यदि ठीक न होंगे तो सहजयोग कार्यान्वित न हो पाएगा। परन्तु ऐसा भी नहीं है कि स्त्री हावी हो जाए। परस्पर सम्मान, प्रेम, सूझवुझ एवम् सौन्दर्य ही महत्वपूर्ण है। महिला की पहचान उसके बलिदानों से है। ये एक चुनौती ।" आत्माओं को विनम्र होना होगा। विनम्रता के विना आप श्रेष्ट न हो पाएगे। हर बात में आप हावी हो जाती हैं। किस लिए? . अपने वच्चे के लिए जिस प्रकार आपके हृदय में प्रेम है या अपने बच्चे के लिए जिस प्रकार आपके मन परन्तु आप तो आत्मा है। आप पर किस प्रकार रौब जमाया जा सकता हैं ? क्या आप महसूस करते हैं कि आप आत्मा हैं? अपनी भावनाएं आती है वैसी ही भावनाएं सभी के लिए आनी आत्मा को यदि आप महसूस करते हैं तो आप पर प्रभुत्व नहीं चाहिएं। सबके लिए आपको मां सम होना है। आपको सभी जमाया जा सकता। कोई आप पर रौब नहीं जमा सकता। हर की मां होना है केवल अपने बच्चों की ही नहीं। अपने प्रेम को समय यदि आप यही सोचते रहेंगे कि आप पर प्रभुत्व जमाया विस्तृत करें। जो स्त्री एऐसी नहीं है उसका कोई सम्मान नहीं जা रहा है तो आप अत्यन्त भयातुर व्यक्ति बन जाएंगे। तब आपका स्वभाव अत्यन्त भयानक हो जाएगा और लोगों का सामना करने की क्षमता आप में न रहेगी। अत: समय है कि उमड़ता करता। आपको बस मां सम बनना है।" मानव में भिन्न भावानात्मक समस्यओं के कारण हृदय चक्र पकड़ जाता है। पति-पत्नी यदि हर समय झगड़ते रहते हो तो घर में झगड़ा बना रहता है, विशेषतौर पर मां यदि दमनकारी आप महसूस करें कि आप आत्मा हैं और आपके पति भी मा चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 7. 8 1998 27 हो तो बच्चों का हृदय चक्र खराब हो जाता है। पिता भी यदि उग्र स्वभाव का हो तो भी बच्चों का यह चक्र पकड़ जाता है अत: आवश्यक है कि पति-पत्नी बच्चों के सामने परस्पर न झगड़ें।" बच्चों की देखभाल आप नहीं करते, परमात्मा उनकी परवरिश करता है। आप तो केवल उसके यन्त्र हैं। जितना अधिक आप परमात्मा से जुड़े रहेंगे आपके बच्चों की उतनी ही अच्छी परवरिश होगी। आप जानते हैं कि उनसे किस प्रकार व्यवहार करें और सहजयोग कार्य में मैं आपकी सहायता करूंगी। दुल्हन: मे अपने लक्ष्मी चक्र को ठीक रखुंगी और आप लक्ष्मी तत्व का सम्मान करेंगे, इससे अपका लक्ष्मी तत्व ठीक रहेगा। जो भी कुछ अर्जन करेंगे उसका पूरा हिसाब मुझे दंगे कुछ भी छिपाएंगे नहीं। दूल्हा: में तुम्हें प्रम एवम् स्नेहपूर्वक शान्ति एवम् प्रसन्नता दूगा परन्तु तुम्हें भी मेरी शान्ति और प्रसन्नता के विषय में सोचना होगा। मेरी आज्ञा के बिना तुम कहीं बाहर नहीं जाओगी और मैं जब कहीं बाहर जाऊंगा तो तुम्हें बताकर जाऊंगा। अतीत के विषय में न हम सोचेंगे और न इसके विषय रम प्रति करना है। आप उनके करुणामय हैं, आप जानते हैं कि उनकी समस्याओं का समाधान कैसे करना है। परमात्मा से यदि आपको प्रेम प्राप्त होता रहता है तो अपने बच्चों की देखभाल बेहतर कर सकते हैं। परमात्मा में आपकी यदि कोई दिलचस्पी नहीं तो वे भी आपमे दिलचस्पी नहीं लेते। यह बात हम नहीं समझते. हम सोचते हैं कि परमात्मा में दिलचस्पी लंकर हम उसपर में बात करेंगें। दूल्हाः तुम्हें मेरी और मेरे बच्चों की देखभाल करनी होगी तथा हमारे घर पर आने वाले सहजयोगी भाई बहना का स्वागत म एवम् सम्मान करना होगा। दृल्हाः सहजयाग का कार्य करते हुए यदि मुझसे कोई गलती हो जाए तो तुम मुझे क्षमा करोगी और मैं तुम्हें। दोनो कहते है; परमपूज्य (परमात्मा) पर अहसान करते हैं।" विवाह की कसंमें:- दुल्हनः में तुम्हे तुम्हारा मूलाधार चक्र ठीक रखने में सहायक हाऊगी। अपनी सारी धन सम्पत्ति तुम मुझे उसकी मैं दखभाल करूंगी। आपको मेरा या अपने भाई बहनों टार स क प माता जी ने इसे महायज्ञ द्वारा हमें विवाह के इस पवित्र बन्धन में बांध दिया है। ये हमारा महान सौभाग्य है और आदि शक्ति सौंप दो । माताजी श्री निर्मला देवी की महान कृपा है। हम अपना सर्वस्व- स्वास्थ्य, वैभव, मस्तिष्क एवम् द्वारा बनाया खाना खाना होगा। यदि कही बाहर आप खाना खाएंगे तो उसे चैतन्यित करेंगे मैं आपके प्रति वफादार रहूंगी हृदय-उनके चरण कमलों में अर्पित कर देंगे । और आप मेरे प्रति वफादार होंगे। हम शपथ लेते हैं कि हम परस्पर वफादार रहेंगे। सहजयोग को बढ़ाने के लिए हम निरन्तर कार्य करते रहंगे । और दुल्हन: अपनी शारीरिक और आध्यात्मक शक्तियों द्वारा कार्य करूंगी। प्रेम एवम् स्नेहपूर्वक मै रहूगी अपने बच्चों का पोषण हम सहजयोग में करेंगे. ये हमारा परम कर्त्तव्य है। गृह आपकी आज्ञा पालन करूंगी। मेरे कार्य में आप मेरी सहायता O f ॐ 3 0 बा खल 00 चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 7, 8 1998 28 7.8 1998 संदेश 24 जुलाई ।994 को इटली में गुरु पूजा हुई। श्रीमाताजी ने एक सुन्दर प्रवचन किया । उन्होंने कहा कि वे मां हैं, प्राचीन काल के सन्यासियों तथा कठोर गुरु सम नहीं हैं। पहली वार उन्होंने बताया कि तुम्हें उन्नत होना होगा और परिपक्व होना होगा अर गुरु पूजा के इस अवसर पर गुरु पद प्रप्त करना होगा। प्रवचन के आरन्भ में उन्होंने बताया कि हे रवंय का साक्षी यनना होगा अन्य लोगो का नहीं। हमें अपनी चिन्ता करनी होगी उन पागल लोगों की नहीं जो द्वार खुले होने के कारण सहजयोग में आ गाए है दो शत्रुओं से हमे मुक्ति प्राप्त करनी है क्रोध एवम् भय । क्रोधी व्यक्ति सदैव सहमा हुआ और असुरक्षित होता है क्योंकि वह स्वंय को अन्य लोगों में देखता है। आक्रामक स्वभाव हमें भयातुर करता है। इस र्थिति ति का सामना करने के लिए हमें चैतनता का भाव लाना होगा और देखना होगा कि "मै परमात्मा से जुड़ा हुआ हूँ।" श्रीमाता जी ने कहा कि हमें ज केवल उदार होना है परन्तु अपनी उदारता का आनन्द भी लेना है, क्योंकि उस रिथित में हम अन्य लोगों के लिए अपना प्रेम उड़ेल रहे होते हैं। गुरु को परिपक्वता की रिथिति प्राप्त करनी चाहिए क्योंकि परिपक्वता का उसे आत्मविश्वास मिलता है और श्री माताजी द्वारा प्रदत्त शक्तियों में विश्वास प्राप्त होता है। जन्म-जन्मान्तरों से हम जिस की खोज कर रहे थे. वह सत्य अब हमं मिल गया है अब हमें इससे जुड़ जाना है और आध्यात्मिक रूप से विश्वस्त होना है कि सहजयोंग को वढाने के लिए हम ही वे आध्याहिमिक लोग हैं जिन्हें अपने माध्यम के रूप में परमात्मा ने चुना है। अयथा हम ईसा मसीह द्वारा कहे गाए चट्टान पर पड़े बीज सम हैं। जो शक्तियां हें प्राप्त हुई हँ उखका उपयोग करने का और सहजयोग के प्रति जिन्मेदार वनने का यह उपयुक्त समय है। यह सि्थिति प्राप्त करके हमें अपने आगुवाओं का साथ देना चाहिए उनमे दोष नहीं खोजने चाहिएं, न ही ईष्यविश उनकी शिकायत श्री माताजी से करी चाहिए। निम्नलिखित शब्दों से श्रीमाता जी ने अपना प्रवचन समाप्त किया: तो अब आवश्यकता है कि आप आपनी जागृति को, आध्याल्मिकता को उन्त करें और स्वतः चलने वाले सहजयोग कार्य के प्रति पूर्ण सहयोग एवम् समर्पण के क्षेत्र में प्रवेश करें। जय श्रीमाता जी ---------------------- 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-0.txt ; चैतन्य लहरी अंकः7,8 1998 खण्ड: X मां के प्रेम ने रुसी हृदय जीता शू मास्को के समीय आइवरु में लिया गया ईसा मसीह की मां मैरी का एक चमत्कारिक चित्र आत्मा के प्रकाश से उज्जवल आपका सुन्दर अस्तित्व संसार के सम्मुख प्रमाणित कर देगा कि सहजयोग सत्य है (परम पूज्य माताजी श्री निर्मलना देवी नवरात्रि पूजा, कवैला- 5-10-1997 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-2.txt इस अंक में पृथ्ट नं. कीव जन कार्यक्रम आकाश में चमल्कार 2. तालियाती शक्ति पूजा 6 3. जन कार्यक्रम t. संट पीटर्सबर्ग जन कार्यक्रम 10 मास्को जन कार्यक्रम 16 6. रूस-संकीर्णद्वार 18 7. चिकित्सा सम्मेलन 19 8. दिवाली पूजा 23 १. श्रीमाताजी को पीटर अकादमी की सदस्यता 26 10. सहजयोग में विवाह 26 1. बोगी महाजन सम्पादक विजय नालगिरकर प्रकोशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 अभिनव प्रिन्टस, दिल्ली 34, मुद्रक फोन : 7184340 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-4.txt जन कार्यक्रम कीव रा 28-07-1993 रीढ़ के सिरे पर स्थित त्रिकोणाकार अस्थि में आराम करती हुई सभी सत्य साधकों को मेरा प्रणाम । आरम्भ में हमें यह समझना है कि सत्य जो है वही है, हम इसके विषय में सोच नहीं सक्ते, इसे परिवर्तित नहीं कर सकते और मानव चेतना पर इसे जान भी नहीं सकते । हमें समझना होगा कि ं कुण्डलिनी शक्ति छ: चक्रों में से होती हुई जब सहस्रार चक्र को भदती है तो यह आपका सम्बन्धि सारा जीवन्त कार्य करने वाली परमात्मा की सर्वव्यायी शक्ति से कराती है। इस प्रकार आपके शारीरिक रोग दूर हो जाते हैं। निश्चित रूप से सहज योग ने बहुत से असाध्य रोग ठीक किए हैं और बहुत से चिकित्सक सहजयोग का अनुसरण कर रहे हैं। हर वात का वैज्ञानिक उत्तर है। रूस में दो सी चिकित्सक सहजयोग । सत्य क्या है। सत्य यह है कि वास्तव में हम यह शरीर, मस्तिष्क, अहंकार एवं बन्धन नहीं है। हम पवित्र आत्मा हैं! हम कहते हैं-मरा शरीर, मेरे संस्कार, मेरा अहम्; परन्तु यह 'मेरा' क्या है? आप सव ये सुन्दर फूल देखते हैं। परन्तु हम ये नहीं समझते. सांचते तक भी नहीं कि यह महान चमत्कार है। नन्हें से बीज में से इन फूलों का निकल आना एक चमत्कार है और भिन्न बीजों में से भिन्न प्रकार के सुन्दर हैं ये हमारे अत्याधिक सोचने एवं चिन्ता करने के कारण आती फूलों का निकलना ! किसने यह सव आयोजन किया? हमारे हैं और हम तनावग्रस्त हा जाते हैं । बहुत से लोग न करने योग्य हृदय को कीन धड़काता है? चिकित्सक लोग कहँगे कि यह कार्य स्वचालित नाड़ी तन्त्र करता है । यह 'स्व' कौन हैद्र यह सब प्रश्न आपकं मस्तिष्क में आते हैं और भिन्न मा्गों को हैं और या मनोभाजन (SCHIZOPHRENIA) रोगी । कुण्डलिनी अपनाकर हम उत्तर खाजने का प्रयत्न करते हैं । विज्ञान के की जागृति से सभी प्रकार की मानसिक समस्याओं का समाधान लिए सीमाएं हैं। हमें समझ लेना चाहिए कि विज्ञान भी बहुत से प्रश्नों का उत्तर नहीं द सकता। उन प्रश्नों में से एक प्रश्न यह है कि हम पृथ्वी पर क्यों अवतरित हुए हैं? इसका लक्ष्य क्या है? विज्ञान यदि इसे प्रश्न का उत्तर दे सकता तो यह द्वारा कार्य कर रहे हैं। मानव शरीर में अन्य समस्याएं भी हैं जो कि मानसिक कार्यों को कर रहे हैं और परिणाम स्वरूप बहुत सी मानसिक समस्याओं के शिकार हो जाते हैं। लोग या तो पागल हो जाते का] किया जा सकता है। तीसरी समस्या आध्यात्मिक है क्योंकि , हम जानते हों या ना जानते हों. हम अपनी आत्मा को खाज रहे हैं। इसी कारण कुगुरु आ गए हैं जो लोगों को सम्मोहित कर आजकल वहुत से रहे हैं। आज प्रात: एक युवक मेरे कमरे में आया और पागलों की तरह से बोलने लगा। मैं हैरान थी कि किस प्रकार यह 'पूर्ण' सत्य के विषय में भी बता सकता। परन्तु विज्ञान यह उत्तर नहीं द सकता। ता अब हमें अपने अन्दर देखना है. अन्दर झांककर व्यक्ति सम्मोहित है! परन्तु आपसे धन बटोरने के लिए लोग आपको सम्माहनबद्ध करने का प्रयत्न करते हैं इन सुन्दर फूलों देखेना है कि हम मानव के रूप में यहां क्यों आए? उत्तर मिलता है कि विकास प्रक्रिया का अन्त है। इंसा ने कहा था के लिए आपने पृथ्वी मां को कितना धन दिया? इस शरीर को चलाने के लिए कितना धन चाहिए? किसे हम यह पैसा दंगे । ये सब स्वतः होता है। सहज का अर्थ है आपके साथ जन्सी| खिलना फूलों का स्वरभाव है, अंकुरण करना पृथ्वी का स्वभाव कि आपको पुनर्जन्म लेना होगा। सभी धर्मों ने यही बात कही है। परन्तु इसे घटित होना होगा। यह मेरा एक भाषण मात्र नहीं है. एक घटना है जिसे घटित होना होगा। आज आप सब लोग अपने अन्तर्निहित सूक्ष्म चक्रों तथा सुक्ष्म प्रणाली के विषय में जानने के लिए यहां आए हैं। इसके । इसी शक्ति को रचना आपके अन्दर भी है। यह आपकी का शक्ति है। अपनी शारीरिक, मानसिक, एवम् आध्यात्मिक समस्याओं लिए आपका अपना मस्तिष्क वैज्ञानिकों की तरह से खुला को हल करके आत्मा बन जाना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है । रखना होंगा और यदि यह प्रमाणित हो जाए तो इसे स्वीकार । मनुष्य होने के कारण हमे कवल इतना ही नहीं घटित हाता भी करना हांगा। आप यदि ईमानदार हैं ता इसे स्वीकार कर लंगे क्योंकि यह आपके अपने हित के लिए है । इसमें आपके दश का हित है और पूरे संसार का हित है। अन्तःस्थित सूक्ष्म चक्रों की खराबी के कारण ही अधिकतर समस्याएं खड़ी होती हैं और यदि किसी तरह से हम इन चक्रों को सुधार लें तो समस्याओं का समाधान हो जाता है। जागृत होकर सदैव विनाशकारी दुर्व्यस्नों में फंस जाते हैं । ये सब बुरी आदते छूट जाती हैं क्योंकि हमारे अन्दर विवेक जागृत हो जाता है। यह विवेक हमें ठीक करता है, उसी प्रकार जैसे अन्धेर में यदि आप अपने हाथ में सांप पकड़े हों तो किसी और के कहने पर आप इसे छोड़ेंगे नहीं. हा सकता है कि साप के काटने पर भी आप उसे न छोड़े, परन्तु किसी प्रकार यदि वहां प्रकाश हो जाए और चैतन्य लहरो खंड : X अंक : 7. 8 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-5.txt इस डिब्बे में हम कैसे चलचित्र देख सकते हैं?" इसी प्रकार हम भी सोचते हैं कि हम केवल बक्से ही हैं। परन्तु वास्तव में हम ऐसे नहीं हैं। आप हैरान हांगे कि हम किस प्रकार प्रगल्भ हो जाएंगे, किस प्रकार करुणामय वन जाएंगे! तो ये सब आपके लिए है और आज रात आप अपना उत्थान प्राप्त कर सकते हैं। नि:सन्देह आप इसके लिए कोई पैसा नहीं दे सकते और न ही इसके लिए कुछ कर सकते हैं। यह सब विद्यामान आप दख सके कि आपके हाथ में सांप है तो एकदम आप उसे फैक देंगे। ऐसा करने के लिए किसी को बताना नहीं पड़ेगा । आत्मप्रकाश से आप अपने गुरु, अपने पथ-प्रदर्शक बन जाते हैं । यही आत्मसाक्षात्कार है, जिसे हम संस्कृत में बोध कहते हैं अ्थात् आपको यह वास्तविकता महसूस करनी है, इस सर्वव्यापी शक्ति को अपने मध्य नाड़ी-तन्त्र पर अनुभव करना है और इसके विषय में सभी कुछ जानना है। यह रहस्य नहीं है। सहजयोग में कोई रहस्य नहीं हैं। हर व्यक्ति सभी कुछ है। आत्मसाक्षात्कार पाने के पश्चात् आपको सामूहिकता में जानता है। सब जानते हैं कि किस प्रकार कुण्डलिनी उठानी है। कुछ समय देना होगा ताकि इसके विषय में सब कुछ जान चक्रों की बाधाओं अन्य बाधाओं के विषय में सभी को ज्ञान है। यही कारण है कि एक व्यक्ति हजारों लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्रदान कर सकता है। यह प्रकाशरजित होने का समय है. अहंकारी या सम्मोहन में फरसे लोगों के लिए नहीं है मूर्खतापूर्ण अन्तिम निर्णय का समय है। कुरान में इसे 'कयामा' कहा गया है और बताया है कि आपके हाथ बालगे और आपके तथा सकें। इसे कोई भी कर सकता है। चाहे आप शिक्षित हो या अशिक्षित, इससे काई फर्क नहीं पड़ता। परन्तु यह मूख. संस्थाओं में लिप्त लोगों के लिए भी यह नहीं है। इस कार्य पर केवल दस मिनट लगेंगे परन्तु इसे मैं आप पर लाद नहीं सकती। इसको पाने के लिए आपमें शुद्ध इच्छा होनो आवश्यक है। मैं आपकी स्वतन्त्रता का सम्मान करती हूं. अत: जो लोग आत्मसाक्षात्कार नहीं लेना चाहते उन्हें यहां से चले जाना चाहिए। यह इतना बड़ा ज्ञान है कि एक प्रवचन में में आपका सभी कुछ नहीं बता सकती। परन्तु ये बत्तियां जलाने के लिए आपको केवल एक बटन दबाना पड़ता है और सभी बत्तियां जल उठती हैं। यदि मुझे बिजली का पूरा इतिहास बताना पड़े में सभी कुछ बताएंग। बास्तव में यही अन्य लोगों क विषय घटित हो रहा है; अपनी अंगुलियों के सिरों पर आप आपने तथा अन्य लंगों के चक्रों को महसूस कर सकते हैं। इस प्रकार आपमें आत्मज्ञान विकसित हो जाता है तथा आप सामूहिक चेतन भी हो जाते है अथांत् संकुचित विश्व ब्रह्माण्ड का रूप धारण कर लेता है, वूंद सांगर बन जाती तब आपको पता भी नहीं होता कि पूर विश्व में आपके कितने भाई-बहन हैं। 55 राष्ट्रो में सहजयोग कार्यान्वित है तथा पूरे कि किस प्रकार विजली कीव में लाई गई तो यह अत्यन्त विश्व में आपके भाई-बहन हैं। यह उसी प्रकार है जैसे आपकी अंगुली में कुछ चुभ जाए तो पूरे शरीर में सिहरन (प्रतिक्रिया) होती है। यदि यूक्रेन के किसी व्यक्ति को कुछ हो जाए तो होंगी। पहली यह कि आपको मानना होगा कि आप दोषी नहीं अमेरिका, जर्मनी या भारत से लोग दौड़कर आ जाएंगे क्योंकि हैं। आखिरकार आप इन्सान हैं और इन्सान ही गलतियां करते आप पूर्ण सत्य जानते हैं। छोटे-छोटे बच्चे भी बता सकते हैं हैं। आप परमात्मा नहीं हैं। गलतियां यदि आपने की हैं ता कि आपमें क्या दोष है; वे आत्मसाक्षात्कार भी द सकते हैं। मैं सांचती हूं. वे इस कार्य के लिए अधिक उपयुक्त हैं। परन्तु हमें जानना होगा कि हमारी अबाधिता कभी नष्ट नहीं होती। यह शाश्वत है अपनी गलतियों से हो सकता है कि हमने इसे बादलों से ढक दिया हो । एक बार जब आप अपना योग इस दिव्य शक्ति से स्थापित कर लेते हैं तो आप आश्चर्वचकित हो जाते हैं कि आप अबोध व्यक्ति बन गए। अपनी आन्तरिक संवेदनशीलता को आप आन्तरिक शक्ति के रूप में विकसित कर लेते हैं और अत्यन्त शान्त हो जात हैं। आपका यही शान्त स्वभाव ऐसे भविष्य को जन्म दंगा जो सभी प्रकार के युद्धों से मुक्त होगा। परिवार सुधर जाते हैं, बच्चे सुधर जाते हैं और चहूँ ओर हमें फरिश्तों सम लोग दिखाई पड़ते हं। आपका चित्त अति अबोध एवं प्रभावशाली हो जाता है। जहां भी आपका चित्त जाता है, कार्य हो जाता है। आप नहीं जानते कि आपकी शक्तियां महान हैं और आपके अन्तर्निहित ज्ञान, जो कि शुद्ध जञान है अभिव्यक्त होने लगता है। ये सारा कुछ अरजीब लगता है। परन्तु आप भी तो अनोखे हैं। यह उसी प्रकार है जैसे भारत के किसी दूर-दराज गांव में आप टी.वी. ले जाएं और कहें कि इसमें आप सिनमा देख सकते हैं, तो वे कहेंगे, इस डिब्बे में? ऊवाऊ हो जाएगा। वक्तियों को जला लेना ही अच्छा है। यह अन्तर्रचित है। आपको केवल तीन सहज सी शर्ते पुरी करनी इनका सामना करें. इन्हें दाप भाव न बनाएं। ऐसा न करने से आपका विशुद्धि चक्र खराब होता है। यह चक्र बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसकी खराबी से हृदयशुल (ANGINA) हो सकता है। इससे व्यक्ति को स्पोंडिलाइटिस (SPONDYLITIS) और सुस्त-अंग रोग भी हा सकते हैं। तो दोप भाव ग्रम्त होना असत्य हैं। आप मानव हैं, विकास के स्तम्भ हैं। अत: किसी भी प्रकार से अपनी भर्तस्ना न करें, स्वयं को क्षमा करें। यह चक्र यदि ठीक न होगा तो कुण्डलिनी नहीं चढ़ पाएगो। दूसरी शर्त अत्यन्त साधारण हैं, आपको सभी को क्षमा करना होता है। ताकिक दृष्टि से. आप किसी को क्षमा करें या न करें काई फर्क नहीं पड़ता। परन्तु यदि आप क्षमा नहीं करते तो आप गलत हाथा में खेलते रहते हैं आप उन लोगों के हाथों में खेलते हें जो आपको कष्ट देना चाहते हैं जबकि वे स्वयं मजे लेते हैं। व्यर्थ में आप स्वयं को कप्ट देते हैं। क्षमा करके आपको बहुत हल्का महसूस होता है। अत: कृपा करके सभी को क्षमा कर दें। उनके विषय में सोचे ही नहीं। कंवल क्षमा कर दें। मैं लोंगों से कहती हैँ कि पेड़ों से बताएं, फूलों में बताए कि आप सबको क्षमा कर रहे हैं। अब तौसरी शर्त यह है कि आपको स्वयं में पूर्ण चैतन्य लहगी । खंड : X अक : 7. 8. 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-6.txt विश्वास करना होगा। अपनी भर्तस्ना न करें । कृपया स्वयं के प्रति अत्यन्त प्रेममय दृष्टिकोण रखें। उन लोगों पर विश्वास न होना होगा अत: पहली उपलब्धि जो आपको प्राप्त होती है। करें जो कहते हैं कि आप अपराधी हैं। हम प्रमाणित करंगे कि आप अपराधी नहीं हैं। अत: स्वयं पर पूर्ण विश्वास रखें और दूसरे, मैंन आपको बताया है. आप सामूहिक चतन हो जाते बही विश्वास आपका आपका आत्मसाक्षात्कार दिलवाएगा। हैं। अपनी अंगुलियों के सिरों पर आप सवव्यापी सूक्ष्म शक्ति पहले आप हर चीज के प्रति चेतन होंगे परन्तु आपमें विचार न को महसूस कर सकते हैं आदिशक्ति को शीतललहरियों को होंगे । यही वह अवस्था है जब आप वर्तमान में होंगे। प्रायः हम बर्तमान में नहीं रह पाते, या तो हम भूतकाल में होते हैं या भविष्यकाल में। तत्र आप शान्ति की स्थिति में हांगे सत्यापित की जा सकती हैं। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् वर्तमान ही वास्तविकता है। भूतकाल समाप्त हां गया है, सहजयोग में यह सब अनुभवगम्य हैं। भविष्यकाल का कांई अस्तित्व नहीं। अत: आपको वर्तमान में वह है निर्विचार चेतना. आपकी चेतना में एक नया आयाम। आ अपने सिर पर आप महसूस कर सकते हैं या कुण्डलिनी के बाहर आते ही आप महसूस कर सकते हैं। ये सारी बातें चती परमात्मा आपको धन्य करें। 23: में चमत्कार आकाश बा कीव में जन कार्यक्रम से पूर्व कुछ सहजयोगियों को आकाश में चमत्कार देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने चेहरा दिखाई दिया। काई कह उठा, "ये ईसा मसीह हैं।" ये चन्द्र जितना था। इस वृत के अन्दर पुरुष की एक सुन्दर तुरन्त विलय हो गई निराश होकर मैने अपनी दुष्टि हटा ली। अचानक मुझे सुनाई दिया, "यें गुरुड़ हैं!" पक्षी के लहरात हुए पंख सफेद रंग के थे। यह तस्वीर काफी समय तक दिखाई देती रही। पहले तो यह पक्षी पार्र्व में देखा गया तस्वीर इसका वर्णन इस प्रकार किया:- श्रीमाता जी के आगमन की अन्तिम तैयारियां हो गई थीं। संगीतज्ञों ने कुछ भजन गाए, तभी आवाज सुनाई दी : "देखी आकाश में कितनी सुन्दर कुण्डलिनी दिखाई पड़ रही है!" जा दृश्य हमने देखा उसका पुनः दिखाई देना असम्भव है। ऊपर सर्वप्रथम वर्फ को तरह से सफद कुण्डल दिखाई दिया, यह कुण्डलिनी है, और तत्पश्चात् श्रीगणेशजी की प्रतिमा दिखाई दी ( यह विल्कुल वैसो थी जैसी हमने स्लाइडों में देखी दिखाई दिए, जिन्होांन शनै: शनै: एक होकर सहस्रार के ऊपर थी)। श्रीगणेशजी की प्रतिमा के थांड़ा-सा नीचे श्रीहनुमानजो दिखाई दिए। श्री हनुमान लुप्त हो जाते और अविलम्ब कहीं अन्यत्र दिखाई पड़ते। दायीं आर स्पष्ट सफेद क्रूस देखा गया. तत्पश्चात् यह दर्शकां की आर आया तथा अपने गरिमामय पंख स्वागतमुद्रा में लोगों की तरफ फंला दिए। इसके पश्चात् जल वाहिकाएं मेरूरज्जू मार्ग और तीर एक प्रकाश वृत्त की रचना की, तब यह सहस्रार एक श्वेत कमल में परिवर्तित हो गया, एक उज्जवल श्वेत कमल के रूप में जिसमें सूर्य की किरणें झांक रही थीं। मैंने ध्यान के जिसका स्थान शीघ्र ही श्रीगणेशजी ने ले लिया जिनकी सूंड लिए अपना सिर झुकाया परन्तु तभी मुझे सुनाई दिया : "देखी के सिरे पर छोटा-सा कूस बना हुआ था। मध्य में स्वास्तिक श्री लक्ष्मीं जी हैं।" सफेद कमल का स्थान एक महिला बना हुआ था. जिसकी एक छोटी रेखा लुप्त थी । स्वास्तिक आकृति ने ले लिया था जिसके कई हाथ थे और जा मिर पर ताज पहने हुई थी। यह तस्वीर भी शीघ्र ही लुप्त हो गई। अचानक हमें अपने हाथों पर तंज चैतन्य लहरियां अनुभव हवा तेज न चल रही थी फिर भी आकाश में भिन्नक्रम हुई। एक जयघाष सुनाई दिया और सभी लोग खड़े हो गए। परिवर्तन हो रहे थे, मानो धीमी गति से चलने वाली जीवन्त हमारी परमेश्वरी मां सभागार में आ रहीं थी। आकाश में थे, वे सब भूल गए। म आगे तीसरी बार श्रीगणेशजी दिखाई दिए परन्तु इस बार व पाश्श्व दृष्य में न थे। चमत्कारिक परिवर्तन जो हमने दखे कार्टून फिल्म हो। तब बहुत-सी एसी तस्वीरं एक-दूसरे का आकाश में एक भी बादल न था। कंवल नीला रंग था। सभी का चित्त श्रीमाताजी पर था ! स्थान लने लगी जिनकी हमें पहचान न थी। अन्त में हमने स्पष्ट एक वृत्त देखा जिसका आकार बड़े यड चंतन्य लहगी । खंड :X अक : 7, 8 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-7.txt शक्ति पूजा तलियाती 03-08-0993 हो सकता है जिसे सबसे पहले अपनी चिन्ता होती है तत्पश्चात आज एक वार फिर आप लोगों के साथ होने का मुअवसर मुझे प्राप्त हुआ है यह अत्यन्त आनन्दमयी एवम् किसी और की । वह अपने बच्चों. अपने पति या पत्नी के सौरभ पूर्ण है। आज हमने 'शक्ति', दवी की पूजा करने का निर्णय लिया है। आप जानते हैं कि हमारे अन्दर महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती और कुन्डालिनी की अनेक शक्तियाँ दृष्टि अत्यन्त संकीर्ण होती है। कभी-कभी उन्हें पता लगता है हैं। यह सब शक्तियाँ हमारे उत्थान के लिए हैं। इन शक्तियों को यदि उचित ढंग से समझा जाए, उपयोग किया जाए, अहम् को बढ़ावा देने के लिए उन्हें एक प्रकार से बिगाड़ भी सकता है क्योंकि वे बहुत ही आत्मकन्द्रित होत हैं और उनकी कि जिन लोगों के लिए, वे यह सारे गलत कार्य कर रहे है वे वास्तव में उनकी बिल्कुल चिन्ता नहीं करते। आत्मसाक्ष्तकार होने के पश्चात वे देखने लगते हैं कि जो कुछ भी मैं कर रहा हूँ यह न तो मेरे लिए, न मेरे परिवार के लिए और न ही मंरे सम्बधियों के लिए हितकर है। तब आपका उत्थान स्थायी हा सकता है। एक बार उत्थान को प्राप्त करक जब आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर जाते हैं तो यह शक्तियाँ ज्योतिर्मय हो जाती हैं और यह ज्योतित शक्तियाँ पृर्णतः प्रेम से भर जाती हैं। प्रेम के प्रकाश से हम परिपूर्ण हो आत्मसाक्ष्तकार के पश्चाज़ आप सामूहिक रूप से सोचते हैं। आप जब अपनी पत्नी अपने बच्चों तथा अपने जाते हैं। अत: आत्मसाक्ष्ताकर के पश्चात हम केवल एक ही शक्ति का उपयाग करते हैं और वो है-प्रम की शक्ति। श्री राम क दो बंटे थे: लव और कुश। उनमें से लव परिवार के विषय तक साचते हैं तो भी आप वही सोचते हैं जा उनके लिए हितकर है। तुरन्त आपकी चित्त उनकी समस्याओं एवम् विनाशकारी प्रवृत्तियों पर जाता है। तब प्रेम की यह अथांत प्रम सहित। अत: रूस के लागा के हृदय पहले से ही शक्ति सारे वातावरण को परिवर्तित कर देती है। परिवार क लोग यह दखते हैं कि आप कितने समर्पित एवम् श्रेष्ठ हैं। रूस आया। यहाँ कारण है कि आप लोग 'स्लाव' कहलाते हैं प्रम से परिपूर्ण हैं। अब यह आत्मसाक्षतकार से पूर्व का प्रेम नहीं रहा। एक नए रूप में, नए आयाम में यह परिवर्तित हो जीवन की इस श्रेष्ठ सूझ-बुझ से वे अत्यन्त धेर्यवान, परिवार गया है। आत्मसाक्ष्तकार से पहले आपका मोह स्वयं से था: के प्रति मधुर बनने का प्रयास करत हैं और उन्हें उचित मार्ग अपने शरीर से अपने मष्तिष्क से, आपने संस्कारों सें, अपने बुद्धि से और अपने अहम् से । ओर इस प्रकार आप अपने अन्दर बहुत से भयानक अन्धेरे विकसित कर लेते थे अपने शरीर से यदि आपको मोह होगा तो या तो आप बहुत अधिक खाएंगे या बिलकुल नहीं खाएंगे, या बहुत अधिक व्यायाम पर लाने का प्रयत्न करते हैं। ज्योतिर्मय हो जाने के कारण लिप्सा समाप्त हो जाती है और निर्लिप्त प्रेम की शक्ति महानतम है। यह पेड के रस सम है जो पृथ्वी माँ से उठता है, पेड़ के छोटे-छोटे हिस्से में जाता है और तब या तो वाष्मीकृत हो जाता है और या पृथ्वी माँ में लोट जाता है। किसी एक फूल या पत्ते में यह इस कारण नहीं रुकता क्योंकि यह उसे पसन्द है। बिना लिप्त हुए करेंगे या शरीर का सुन्दर आकार बनाने के लिए विशेष रूप से कार्य करंगे। परन्तु जब आप आत्मसाक्ष्तकार प्राप्त कर लेते है और समझ जाते हैं कि शरीर परमात्मा का मन्दिर है तब आवश्यकतानुसार यह पेड़ के हर भाग का पाषण करता है । किसी एक फूल या पत्ते से यदि यह लिप्त हो जाए तो वह पत्ता या फूल मर जाएगा और पेड़ भी समाप्त हो जाएगा। पेड़ को यह पूर्ण वैभव एवम् अच्छाई प्रदान करता है। एक सहजयांगी सन्त भी अपने परिवार अपने मित्रों तथा अन्य सब आप अपने शरोर को स्वच्क्ष रखते हैं और उन सभी वस्तुओं को दूर रखने का प्रयत्न करते हैं जो शरीर के लिए हानिकारक हैं। एक अन्य लिप्सा, मोह. जो हममें है वह अति सीमितहै, क के प्रति इसी प्रकार आचरण करता है। जैस आप का परिवार, आप के बच्चे, आप की पत्नी, आपका अभी तक हमने केवल धृणा की ही शक्ति का उपयोग पति आदि-आदि। इस सब के बावजूद मनुष्य अत्यन्त स्वार्थी चैतन्य लहगी खंड : x अंक : 7. 8 1998 6. sho 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-8.txt जिन्हें आपकी सहायता की आवश्यकता है। तो इस ज्योतित चित्त से कहीं भी बैठे हुए आप उनकी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं ऐसे लोगों को न तो युद्ध करने की आवश्यकता है, न शस्त्रों की और न सीमाएं बनाने की। रूस के लोग जब भारत जाते हैं तो भारत उन्हें अपना देश प्रतीत होता है और भारत के लोग जब रूस जाते हैं तो वे रूस को अपना देश मानते हैं। तो युद्ध कौन करेगा? कोई भी एसा व्यक्ति नहीं जिसे आप कह सकें कि बह मेरा शत्रु है। ये समय विशेष है. में इसे बसन्त का समय कहती हूँ जब बहुत से फूल (मनुष्य) किया है। राजनीति में विशेष रूप से। एक देश सोचता है कि उन्हें दूसरे देश से घृणा करनी चाहिए, वे इसी के लिए उत्पन्न हुए हैं। सौ वर्ष पूर्व क्यांकि कोई झगड़ा हुआ था, या कोई युद्ध हुआ था. तो आने वाली पीढ़ियाँ अब भी परस्पर लड़े जा रही हैं। आप आश्चर्यचकित होंगे कि पहली बार जब में रूस आई ता जर्मनी के पच्चीस सहजयोगी यहाँ मेरी सहायता करने के लिए दीड़े चले आए। अपने हृदय में दृर्भावना को स्थान न देकर, कि उनके पूर्वजों ने बहुत से रूसी लागों का वध किया था, रूसी लोगों की सेवा करना उन्होंने अपना महान कर्त्तव्य समझा। तो बृणा का स्थान शक्तिशाली प्रेम ले लेता है। प्रेम की यह शक्ति महानतम है और सहजयोग में आने के पश्चात हमें केवल प्रेम की शक्ति का ही उपयोग करना है। हमारे पास यह सत्य को खोज रहे हैं। उनका प्रेम हो उनकी सुगन्ध है। अब उन सबव को फल वनना होगा। यह समय क्यांकि अत्यन्त महत्वपूर्ण है इसलिए अब यह बटित होंगा। सभी धर्मों में इसका वर्णन है। हम किसी से घृणा नहीं करते क्यांकि किसी न किसी धर्म में तो हमारा विश्वास है। इसके विपरीत हम सभी धर्मो को मानते है। इसी शक्ति के प्रताप से बूँद सागर बनती है और व्यक्ति सामूहिक हो जाता है। तो सर्वव्यापी शक्ति आप के अन्तर्निहित सभी शक्तियाँ अत्यन्त शक्तिशाली एवम् प्रभावकारी शस्त्र है क्योंकि यह दिव्य प्रेम है। परमात्मा के प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति हमारे इस दिव्य प्रेम का ग्रांत हैं। कहते हैं कि परमात्मा सर्वशक्तिमान है तो उनसे अधिक शक्तिशाली कौन हो सकता है? अपने प्रेम में परमात्मा हमारी रक्षा करता है और हमारी सारी आवश्यकताएं पुर्ण करता हमें आनन्द देने का सामर्थ्य देता है। उनकी सरकार अत्यन्त ा है। वह (परमात्मा) हमें आशीर्वादित करता है और प्रकाशमान करती है। यह व्यक्ति में परिवर्तन करती है और इसके तरीके अत्यन्त सुन्दर एवम् कोमल होते हैं। आवश्यकता केवल इस बात की है कि इस शक्ति में विश्वास हो और दूसरों के प्रति प्रेम। यह प्रकाशित प्रेम आपकी सभी इक्ष्ठाओं को पूर्ण करंगा यह ऐसी शक्ति है. सर्वव्यापी शक्तिः इसके विषय में कोई सन्देह नहीं है। खुले हृदय से हमें इसे स्वीकार और अत्यंन्त व्ग से कार्य करती है। कुशल है आज में आ रही थी तो एक सहजयोगी आया और कहने लगा," श्रीमाताजी आज घने बादल बने है। वर्षा हो हुए सकती है!" पाँच मिनट के बाद जब में बाहर आई तो देखा कि आकाश साफ हो चुका था। तो ये पंचतत्व भी परमात्मा के बच्चों के नियंत्रण में होते हैं। कठोर से कठोर व्यक्ति भी पिघल कर इस शक्ति के सन्मुख बिनम्न होकर आपको हानि नहीं पहुँचा सकता। यदि कोई हानि पहुँचाने का करना है, यह हृदय को परिपूर्ण कर देती है और हमें महान बना देती है। कोई प्रतिस्पद्धां है. कोई महत्वाकांक्षा नहीं हैं कोई ईष््या नहीं है. एसा कुछ भी नहीं है। तब कवल एक मात्र इच्छा,शेष रह जाती है कि मैं भी आनन्द ले रहा हूँ. अन्य लोग आनन्द लें। सहजयोग को फैलाने के लििए लोग भरसक प्रयत्न करते है, कठोर परिश्रम करते है । कम प्रयत्न करे तो वो भी नम्र हो जाता है। इतन चमत्कार हुए हैं कि इस छोटे से भाषण में मैं इनके विषय में नहीं बता पैसे होते भी यात्राएं हुए सकती। परन्तु आप अपने ही जीवन में दखेगे कि आपक हृदय में निहित यह प्रेम की शक्ति किस प्रकार आपकी रक्षा करती है। मैने एसे लोग देखे है। जो अत्यन्त क्रोधी एवम् क्रूर है तथा करते हैं और लोगों का विश्वस्त करने का प्रयत्न करते है। और यह सारा कार्य वे धन लाभ के लिए नहीं करते। जब आप किसी दूसरे व्यक्ति की कुंडलिनी को उठाकर उसे आत्मसाक्ष्तकार अन्य लोगों का जीना मुश्किल किए रहते हैं। वे भी अत्यन्त देते हैं तब आपकों महानतम आनन्द प्राप्त होता है। आपके सुन्दर एवम् अच्छे बन जाते हैं। प्रेम के इस प्रकाश में आप स्वय का ठीक प्रकार से दंखेंगे और गलत तथा दुष्चरित्र चीजों मैंने प्रेम को अधिक चहरा का वह तेज मेंन बहुत बार देखा है। इस है और से अधिक बढ़ने दें। को त्याग देंगे। यह प्रेम शाश्वत है अति शक्तिशाली इन्होंने मुझसे पूछा कि, माँ सभी स्थानों को छोड़कर आप तलियाती क्यां आए? बाल्गा कि लिए नहीं और न ही मानव की सामूहिकता के प्रति आपको विश्वस्त करता है । आत्मा ही आपकी शक्ति को प्रकाशित करती है और विश्व के सभी मनुष्यों के प्रति प्रेम तथा सामूहिकता का सोत है। आपका चिन कष्टों तथा दुखों में फँसे उन लोगों की तरफ जाता है आपके इन सुन्दर घरों के लिए, परन्तु यहां रहने वाले मेरे बच्चों के लिए मैं यहा आई हूँ। परमात्मा आपको धन्य करें। २ *** माम म खंड चैतन्य लहगी : X अक : 7, 8 1998 । 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-9.txt ुम कस तलियातीं जन कार्यक्रम ॐि 04-08-0993 सभी सत्य साधकों को मेरा नमस्कार। हमें समझना है आत्मा यदि पूर्ण सत्य का स्रात है तो हमें आत्मा की ओर जाना चाहिएं, अज्ञानता में यदि हम फंसे रहे तो हम विश्व के कष्टों का अन्त नहीं कर सकंगे युद्धों से हम बच न सकेंगे दरिद्रता एवम् सभी प्रकार के रोगों से हम छुटकारा न ह कि सत्य जो है वही है-हम इसे परिवर्तित नहीं कर सकते और इसके विषय में सांच भी नहीं सकते। दुर्भाग्य है कि हम इसे जान भी नहीं सकते। कुछ घटित होना होता है जिसके लिए का हमें अन्तर्मुखी हाना पड़ता है। यह घटना सहज है। सहज का अर्थ है स्वत: तथा आपके साथ जन्मी हुई। यह अपके साथ जन्मी हुई है। यह अधिकार है, हर मनुष्य को इसका अधिकार है। तो कुछ ऐसा घटित होना चाहिए जिसके माध्यम से हम पा सकेंगे। जिस शक्ति के विषय में में वात कर रही हूँ वह आपके अंत: स्थित है। उदाहरणार्थ, यह यन्त्र (माइक) यदि अपने स्रात से जुड़ा हुआ न हो तो यह अर्थहीन है। इसी प्रकार हम यदि इस सर्व्यापी सूक्ष्म शक्ति से जुड़े हुए नहीं हैं तो हमारा भी कोई अर्थ नहीं है। यह सर्वव्यापी दिव्य शक्ति क्या है? अपना चित्त अन्दर ले जा सकें। आप सभी को आत्मा बनने का आप देखते हैं कि अधिकार है ताकि हम परमात्मा के साम्राज्य के नागरिक बन असंख्य सुन्दर पुष्प हैं। ये सुन्दर पुष्प सकें। विना आत्मा बने हमारा चित्त बाहर की ओर रहता है। हमें कौन देता है? हमारे हृदय को कौन चलाता है? यह सारा जीवन कार्य कौन करता है? विज्ञान ये नहीं बता सकती कि हम इस पृथ्वी पर क्यों हैं। तो हमें उत्तर खोजने होंगे। यह उत्तर प्राप्त करने के लिए हमें दिव्य प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति से जुड़ना होगा। इस कार्य के लिए हमारे अन्दर एक शक्ति स्थापित कर दी गयी है जिस हम कुण्डलिनी कहते हैं। यह संक्रम (पवित्र अस्थि) नामक त्रिकोणाकार अस्थि में विराजित है। इसका अर्थ यह हुआ कि यूनानी लोगों को इस बात का ज्ञान था कि यह त्रिकोणाकार अस्थि पवित्र हैं, इसलिए उन्होंने इसे पवित्र अस्थि की संज्ञा दी। हम कहते हैं मेरा शरीर, मेरा हाथ, मरा नाक, मेरी भावनाएं, मेरी बुद्धि, मंरा अहम्, मेरे संस्कार, आदि आदि। परन्तु यह 'मेरा' है कौन, इसका सम्वन्ध किससे है? यह आत्मा है। यही इन सब चीजों की स्वामी है। यह सभी कुछ देखती है। जो भी कार्य हम कर रहे हैं आत्मा उसको दर्शक मात्र है। जब तक हमें विवेक प्राप्त नहीं हो जाता, हम ऐसे कार्य करने लगते है । जो हमारे जीवन के लिए विनाशकारी है। इस प्रकार हम स्वयं को हानि पहुँचाते हैं। रोगग्रसत होकर, मानसिक रूप से असुतुलित होकर या पागल होकर हम शारीरिक कष्ट भोगते हैं, गलत स्थानों पर जाकर हम आध्यात्मिक रूप से आप सब लोगों में भी यह शक्ति विद्यामान है और इस शक्ति से एकाकारिता प्राप्त करना आपका पूर्ण अधिकार है यह दिव्य शक्ति ज्ञान का सागर है। जो भी हम जानते हैं यह एक हिमनदी का सिरा मात्र है। परन्तु आत्मा के प्रकाश के माध्यम से योग प्राप्त हो जाने के पश्चात हम हर पूर्ण-ज्ञान के कष्ट उठाते हैं। क्योंकि हम अंधेरे में हैं अत: हमें आत्मा बनना होगा। अज्ञानवश हम नहीं जानते कि उचित क्या है और अनुचित क्या है। उस दिन किसी ने मुझे बताया कि कोई कुगुरु कह रहा है कि विश्व का अन्त होने वाला है। बिना पूछे कि आप कैसे जानते हैं : लांग ऐसी बातों में कूद पड़ते हैं। वे इन्हें स्वीकार कर लेते हैं और भय के कारण पागल तक हो जाते है। हमें पूछना चाहिए." आप यह बात कैसे कहते हैं? सत्य, पूर्ण सत्य का जानने का क्या तरीका है?" उदाहरणर्थं हम कहते हैं कि ईसामसीह परमात्माके युग थे। वे थे। नि:सन्देह| विषय में जान सकते हैं। तब हमे महसूस होता है कि हमारी अगुलिया भी ज्योतित हो गई हैं। जो भी कुछ हम जानना चाहते हैं, यह उसके बारे में सूचना देने लगती है। प्रकाशित अंगुलियों के माध्यम से जो सूचना प्राप्त होती है उसके विषय में लोग तर्क वितर्क नहीं करते। सभी को एक ही जैसी सूचना मिलती है। इस कारण वाद-विवाद नहीं हो सकता। व्यक्ति को परन्तु इसका कोई प्रमाण नहीं है। इसी कारण सभी चर्च दुर्बल हो गए हैं, कोई चर्च नहीं जाता। किस प्रकार प्रमाणित करें कि ईसामसीह परमात्मा के पुत्र थे? बहुत से लोग तो परमात्मा में विश्वास ही नहीं करते क्योंकि यह बात प्रमाणित नहीं हो सकती। हमें यह बात प्रमाणित करनी होगीं हर सच्ची बात को समझना होता है कि आत्मा प्रकाश का स्रोत है। यह हमारे चित्त को प्रकाशित करती है, इसके द्वारा चित्त पूर्णतः पावन हो जाता है। हमारा पवित्र्य कभी समाप्त नहीं होता। यह हमेशा बना रहता है। इस पर कुछ बादल आ सकते हैं परन्तु वे भी दूर हो जाते हैं तथा हमारे चक्षु तथा मस्तिष्क पवित्र हो जाते प्रमाणित करने का समय अब आ गया है। चतन्य लहरी = खंड : X अंक : 7. 8 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-10.txt किस लिए हम कष्ट उठाएं? सर्वशक्तमान परमात्मा आपके पिता हैं, वो करुणा के सागर हैं। कीन सा पिता चाहेगा कि उसके बच्चे कष्ट उठाए? परमात्मा के नाम पर आपको कष्ट नहीं उठाने चाहिए। बस परमात्मा के सम्राज्य में प्रवेश कर जाइए। वहां आप आनन्दित एवं प्रसन्न हो जाएंगे| विश्व भर में आपके भाई बहन हैं। पचपन देशों में सहजयोग फैल रहा है। कहीं भी आप चले जाएयं वे आपको पहचान लेंगे वे तुरन्त जान जाएंगे कि आप सहजयाँगी हैं। सहजयोगी वह जिसने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लिया है और जो दूसरों का आत्मसाक्षात्कार दे सकता है, कुण्डलिनी उठा सकता है। परन्तु हैं। हमारा चित्त लोभ और वासना से मुक्त हो जाता है कुण्डलिनी शक्ति जब छः चक्रों में से गुजरती है तो इनका पोषण करतो है. इनको संघटित करती है। तब आप संघटित महसूस करते हैं। इस पोषण के द्वारा आपकी शारिरीक, मानसिक एवं भावनात्मक समस्याओं का समाधान हो जाता हैं। छः चक्रों को पार करने के पश्चात कुण्डलिनी सातवें चक्र का भेदन करती है. और तब आपकी आत्मसाक्षात्कार (Baptism) का वास्तवीकरण होता है। यह कोई समारोह या भाषण नहीं होता, परन्तु एक बटना घटित हाती है, तब आप स्वयं परम चंतन्य की शीतल लहरियों को अनुभव कर सकते हैं। परम चैतन्य (Holyghost) ही आदि शक्ति माँ है। दुर्भाग्य की ऐसे व्यक्ति को परिपक्व होना चाहिए। उसे सहजयांग का ज्ञान बात है कि बाइबल में इसका वर्णन नही है। उन्होंने तो ईसा होना चाहिए। सहजयोग में कोई रहस्य नहीं है। कोई विवशता नहीं है। यहां विवेकपूर्ण स्वतंत्रता है। विवेकहीन स्वतंत्रता यदि हो तो लोग उन्मत हो जाते हैं, पागल हो जाते हैं पश्चिमी देशों में यही हो रहा है। मैं नहीं जानती कि सहजयोग में आए बिना वे किस तरह अपने आघातों से छूटकारा पा सकते हैं? तलियाती आकार में बहुत प्रसन्न हू क्याकि यहां वहुत सं सहजयोगी हैं। यह अवश्य कुछ विशेष स्थान रहा होगा है। हर समय वे पुरुषों से मुकाबला करनं का प्रयत्न करती हैं जिसके कारण लोग आध्यात्मिकता के प्रति इतने संवेदनशील और घर से वाहर निकलना चाहती हैं। वास्तव में एसा नहीं है। हैं सहजयोग के प्रति इतने संवेदनशील हैं कि इतनी तीव्र गति ्स उन्होंने आध्यात्मिकता अपना ली। मेरे विचार में तलियाती इस कारखाने को चलाने के लिए जय इटली से यहां आया होगा तो सम्भवत: उसने यहां चैतन्य महसूस किया होगा। अब आपको सामूहिकता में सहजयोग में बढ़ना है। मैं उनके पुत्र भी विद्यमान हैं। परन्तु 'माँ' कौन है? माँ भी तो जानती हूँ कि आप में से जिनको भी आत्मसाक्षात्कार नहीं हानी चाहिए? आदि-माँ ही यह माँ है। ता कपोत पक्षी मिला है वे आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेंगे। परन्तु आपको गहनता प्रदान करनी होगी और गहनता तभी सम्भव है जब मसीह की माँ का भी सम्मान पूर्वक वर्णन नहीं किया। इसका कारण यह हो सकता है कि बाइबल के सम्पादक पाल को महिलाएं पसन्द ने थीं। महिलाओं के प्रति सम्मान न दर्शानं के कारण पश्चिमी देशों में महिलाएं अत्यन्त असुरक्षित हो गई हैं। यही कारण है कि वे सब प्रकार के उल्टे सीधे कार्या द्वारा स्वयं का घटिया बना रहे हैं। यह अत्यन्त आश्चर्यजनक वात महिला पृथ्वी माँ की तरह से सक्षम है। वह शक्ति हैं। परन्तु यदि आप महिलाओं का सम्मान नहीं करते तो वे सम्माननीय नहीं बनती। तो वे आदि माँ हैं। सर्वशक्तिमान परमात्मा पिता हैं और दिखाकर आप यह नहीं कह सकते कि यह आदि माँ है। नि:सन्दंह कपोत पवित्र पक्षी है और यह ऊँचाई तक उड़ान भी लेता है। परन्तु इसका अभिप्राय यह नहीं है कि यह आदि माँ आप सामूहिकता में आएंगे। कटा हुआ नाखून कभी भी बढ़ नहीं सकता। सहजयोग जीवन्त संघटन है (Organism ) है। यही कारण है कि सामूहिकता में ही आप बढ़ते हैं। परन्तु अब जो लोग आत्मसाक्षातकरी हैं. जिन्हें सहजयोग का ज्ञान प्राप्त हो | आत्मा सर्वशक्तिमान परमात्मा का प्रतिबिम्ब है। जब उनका मिलन होता है तो आप आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति बन जाते हैं, एक ज्यातिमय व्यक्ति बन जाते हैं। यह घटित होना अत्यन्त गया है वे तलियाती से बाहर जाकर सहजयोग का प्रसार करें। हजारों लोगों को आत्मसाक्षात्कार देने के लिए एक ही व्यक्ति सक्षम है। आपमें शक्ति है। शक्ति अब आपको प्राप्त हो गई है। जिस प्रकार आप इसका आनन्द ले रहे हैं आपको चहिए कि अन्य लोगों को भी यह आनन्द प्राप्त करने में सहायता करं। मुगम है। इसके लिए आपको कुछ करना नहीं पड़ता। विकास की यह जीवन्त प्रक्रिया है जिसके लिए आप धन नहीं दे सकते । परमात्मा पैसे को नहीं समझते, यह तो मनुष्यों की सिरदर्दी है। परमात्मा को पैसे में कोई दिलचस्पी नहीं। तो उन लोगों से सावधान रहे जा विश्व समाप्त होने की भविष्यवाणी करके धन माँगते हैं । जिस प्रकास आपका स्वास्थ्य सुधर गया है उसी प्रकार स्वास्थ्य सुधारने में अन्य लोगों को सहायता करें। यह कार्य अति सुगम है। तलियाती के समीप छ: क्षेत्रों में जहां तक भी आप पहुंच सकें पहुँचे। सहज प्रचार में आप पर छोड़ती हूँ। इसके विषय में वाद विवाद अनावश्यक है। बस लागों का आत्मसाक्षात्कार दे दें इससे माफिया के लोग भी सुधर जाएंगे। मैन आपका वताया, आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना आपको अधिकार है। यह आपकी अपनी शक्ति है, आपकी अपनी आत्मा है। आप का स्रोत है। आपको कष्ट नहीं उठाने पड़ेंगे। यह विचार गलत है कि कप्ट उठाने आवश्यक हैं तथा क्योंकि ईसा ने आपके लिए कष्ट उठाए आपको भी उनसे अधिक कष्ट उठाने होंगे आश्चर्यचकित होंगे कि यही आत्मा आनन्द आप इसे अजमा कर देखें। परमात्मा आपको धन्य करें । चैतऱ्य लहरी ।खंड : X अक : 7, ৪ 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-11.txt सेंट पीटर्सबर्ग जनकार्यक्रम टसब् मा 31-07-1993 हामर सभी सत्य साधकों को मरा प्रणाम। आरम्भ में हमें यह आत्मसाक्षात्कार का वास्तविक रूप प्रदान करती है। वास्तवीकरण ही महत्वपूर्ण है, बनना ही महत्वपूर्ण है। दूसरे, सत्य का अर्थ है कि परमात्मा के प्रम की सर्वव्यापी शक्ति ही सारा जीवन्त कार्य करती है जैसे फूलों का खिलना । आप इन फूलों को देखें ये सब चमत्कार है, क्या एंसा नहीं है? आपका हृदय कौन चलाता है? चिकित्सक कहंगे स्वचालित नाड़ी तन्त्र: परन्तु यह स्व कौन है? ता विज्ञान भी समझना है कि सत्य जो है वही है। हम इसे परिवर्तित नहीं कर सकते और न हो इस मानवीय चेतना पर इसे अनुभव कर TMeE, सकते हैं। पूर्ण सत्य को जानने का समय आ गया है। बिना पूर्ण सत्य को जाने पृथ्वी पर विद्यमान भिन्न प्रकार की समस्यओं को नहीं समझ सकते। मंरी बात को आप एक वैज्ञानकि के खुले मस्तिष्क से सुनं। मैं जो भी कह रही हूँ उस पर आँखें बन्द करक विश्वास न करें। यदि यह प्रमाणित हो जाए तो इस स्वीकार कर ले क्योंकि यह आपके हित में है। यह आपके देश के और पूरे विश्व के हित में है। बहुत सी चीजों में हम विश्वास करते हैं परन्तं इन्हें सत्य के रूप में अभी तक इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकती। विज्ञान नहीं कह सकता कि आप पृथ्वी पर क्यों है? यह जीवन के लक्ष्य के विषय में हमें नहीं बता सकती। अत: हमें अन्तमुखी होना पड़ता परन्तु है। यदि कहूँ कि अपनी दुष्टि को अन्दर रखें तो आप ऐसा नहीं कर सकते। तो जब जागृत होकर कुण्डलिनी छः चक्रों को भेदती है तब यह घटना घटित होती है। यह आपके सारे चक्रों का पांषण करती है जिसक द्वारा आपकी बहुत सी शारीरिक मैं स्थापित नहीं कर पाए । उदाहरणार्थ इसा मसीह परमात्मा के पुत्र थे, परन्तु यह प्रमाणित न हो पाया। तो कुछ लाग कह सकते है:" आप किस प्रकार कहते हैं कि वे परमात्मा के पुत्र थे? TI मानसिक, भावानांत्मक और आध्यात्मिक समस्याओं का समाधान म अब समय आ गया है कि धर्म ग्रन्थों में लिखी हर बात को प्रमाणित किया जा सके और अमझा जा सके कि महान पैगम्बरों, सन्तां एवम् अवतरणों ने धर्मग्रन्थ लिखे थे उन सबने एक ही बात कही। जब भली भांति समझकर हम जान लेंगे कि सत्य क्या है तो काई भेद न रह जाएगा। तो मानवीय चंतना पर हमने अभी तक पूर्ण सत्य को नहीं पहचाना है परन्तु हमारे सृष्टा, हमारे पिता, सर्वशक्तिमान परमात्मा ने हमारे अन्दर ही इसका प्रबन्ध किया है। हमारी विकास प्रक्रिया में हमारे अन्दर ही सूक्ष्म प्रणाली की सृष्टि की गई है। यही प्रणाली हमें पूर्ण हो जाता है। कीव में मैं वहुत से सहजयोगियों से मिली। उन्होंने मुझे बताया कि वे 25 वर्षो से औषधियां सेवन कर रहे थे परन्तु इस घटना के घटित होने के पश्चात उन्होंने दवाई को छुआ तक नहीं। वे लोग यहां हैं। इस बात से बो वहुत प्रसन्न थे। उनमें से कुछ ने तो अन्य लोगों को भी ठीक किया है । कंवल शारिरिक समस्याएं ही हमें कष्ट नहीं देती, कुछ ऐसे रोग भी होते हैं जिनका इलाज नहीं हैं। वे भी ठीक हो जाते हैं। कुछ मानसिक रोंगी भी होते हैं. पागल भी होते हैं। कुछ मिर्गी रोग से पीड़ित हैं । भारत में ती डॉक्टरों को 'सहजयाग द्वारा इलाज' स ज्ञान प्रदान करती है। सत्य यह है कि आप यह शरीर, मन, अहम् या बन्धन नहीं हैं। आप यावन आत्मा हैं। परन्तु आपको पुनर्जन्म लेना है, पक्षी की तरह से जो पहले अंडा होता है और फिर पक्षी बनता है। आप स्वय को विषय पर एम. डी. की उपाधि प्राप्त हुई है। आप अपनी तथा अन्य लोगों की समस्याओं को जा जाते हैं और आप अपना 'पुनर्जन्मित' या 'महान तथा अन्य लोगों का इलाज करना जान जाते हैं। आप यह भी प्रमाणित नहीं कर सकते क्यांकि हम सब समान हैं। पुनर्जन्म लेने के पश्चात आपमें एक नई चेतना विकसित होती है और अस्तित्व की भिन्न अवस्थाएं विकसित होती हैं जैसे अंडा तो जान जाते हैं कि कोन असली है और कौर नकली। महजयोग में सभी कुछ स्परष्ट है, यह दिव्य विज्ञान है। अपने सारे कार्यकलापों को समझते हुए आप सहजयोग को करने लगते है। कार्यान्वित है परन्तु पक्षी कहीं भी उड़ सकता है। जड़ होता अत: इस घटना का घटित होना आवश्यक है। जब तक उस दिन एक लड़का कहीं से आया और मुझ पर हा यह घटित नहीं हो जाता तो हमारे विश्वास अन्ततः हमें चिल्लाने लगा। बुरी तरह से सम्मोहित था यह भी न जानता विश्वस्त नहीं कर पाएंगे। एक शक्ति है जो जागृत होने पर था कि वह क्या कर रहा है। किसी ने उसं सम्मांहित कर दिया चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 7. 8 1998 10 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-12.txt तुरन्त आपके हाथां में शीतल लहरियां आने लगेंगी। किसी शैतान व्यक्ति के विषय में यदि आप पूछेंगे तो आपको हाथोंपर चुभन होने लगेगी, यह भी हो सकता है कि अंगुलियाँ पर जलन हो या छाले पड़ जाएं। आप अपने तथा अन्य लोगों के और वह मुझपर चिल्ला रहा था। मैं समझ न पा रही थी कि वह क्या कह रहा है? वह अत्यन्त हिंसक था । लोग मंत्र पढ़ते चले जाते हैं। यह पागलपन है। उनमें न तो शक्तियां हैं और न सृझबूझ। वे उन लोगों जैसे हैं जिन्हें तोते की तरह मंत्र रटने के लिए कह दिया गया हो| मानव अस्तित्व की यह कितनी रोगों तथा उनके चक्रों की समस्याओं के विषय में भी जान बर्बादी हैं ! वास्तव में मानव विकास का प्रतीक (Epitome सकते हैं। आत्मा के प्रकाश में आमका चित्त प्रकाशित हो जाता है। किसी व्यक्ति को जब आप देखत हैं तो प्राय:उससे सम्बन्ध of Evolution) है। परमात्मा के बनाए हुए जीवों में वह है। बहुमुल्य परन्तु मानव अपना मुल्य नहीं जानता। यही कारण है कि वह एंसे लोगों के पास जाकर उन्हें धन देता है तथा उनके सम्माहन में फस जाता है। आप नहीं समझ पाते। परन्तु जागृत होकर कुण्डलिनी आपमें अबोधिता की अभिव्यक्ति करती है। हमारे अन्तः स्थित अबाधिता कभी नष्ट नहीं होती। यह शाश्वत है। परन्तु हमारी गलतियां के कुण्डलिनी जब उठती है तो यह व्यक्ति का परमात्मा के प्रम की सर्वव्यापी शक्ति से जोड़ती है। योग का अर्थ यही कारण इस पर कुछ बादल छा जात है। आत्मा की प्रकाश जव चित पर पड़ता ता चित्त पवित्र हो जाता हैं, चिन में वासना सम्बन है। सह अरथांत साथ अऔर 'ज' का अर्थ है जन्मी। अधाव बह आपक साथ जन्मी है और दिव्य शक्ति से और लालच नहीं रहता । आपका कोध कम हो जाता है तथा है व्यर्थ के मोह लुप्त हो जाते हैं । आपक सभी हैं। इसका दुर्व्यसन छूट जात एकाकारिता प्राप्त करने का अधिकार आपको है। ज्यों ही यह उदाहरण इस प्रकार है: मान ला अधरा है। में आत्मा आपक चित्त में आ जाती है। घटित होता है पहला परिवर्तन जो आप में घटित होता है कि आप नर्तमान में खड़े हो जाते हैं। प्राय: या ती आप भूतकाल में हाते या भविष्य में परनं्तु जिद्दी व्यक्ति हूँ और हाथ में सांप पकड़े हुए हूँ। आप याद मुझे कहें कि तुम्हारे हाथ में सांप है तो जब तक वह सांप मुझे काट नहीं लंता, में सम्भवत: आप पर विश्वास ने करू। परन्तु है जय कुण्डलिनी उठती है तो यह विचारों के मध्य रिक्त ममय की सृष्टि करती है जिसमें कोई विचार नहीं होता। आप पूर्णत: चंतन होते हुए भी काई विचार नहीं होता। इसी का हम निविंचार समाधि कहते हैं। निर्विचार चेतना में जब आप चलं जाते हैं ता हृदय की शान्ति आपको थोड़ा सा ग्रकाश हो जाए तो मैं सांप को देख सकंगी और किसी को बताना नहीं पड़ेगा और मैं स्वयं ही सांप का फैंक दूंगी। इसी प्रकार विवेक के माध्यम से हम समझते हैं कि ये चीजें विनाशकारी हैं और हममें इनसे मुक्त हाने की शक्ति है। प्राप्त हो जाती है । पुण्णतः शान्त होकर पूरे विश्व का नाटक इस प्रकार मानव में परिवर्तन होने लगता है। उसकी चेतना सामूहिक चेतना में परिवर्तित हो जाती है. जैसे क्षद्र जगत की तरह साक्षी रूप होकर आप देखत हैं। आप समस्याओं से का त्रिभुवन में परिवर्तित हो जाना बा हम कह सकते है कि बूंद सागर बन जाती हैं हम सब महसूस करते हैं कि हमारा सम्बन्ध एक जीवन्त रचना से है। सुसंगठित जीवन्त शरीर स। एक अंगुली को यदि चाट लगे ता पूरा शरीर प्रभावित होता है। ता आपको महसूस होने लगता कि पूरा विश्व आपका आपना है। पहली बार मै जब यहां आई तां 25 सहजयोगी मेरे माधथ छूट जाते हैं, आप समस्याओं को इख सकते हैं परन्तु उनसे आपको घवराहट नहीं होती हैं और परमात्मा के आशीर्वाद से नम आप अपनी समस्याओं का समाधान कर लत हैं। आप सहजयोगियों से पूछे कि उन्हें कितने आशीरवाद पर त हुए हैं? वे मुझ लिखा करते थे." श्री माताजी, मुझे यह आशीर्वाद मिला, मुझे बह आशीर्वांद मिला" मैने एक सहजयांगी से यह सव छापने के लिए कहा। एक महान के बाद उसन मुझे बताया कि उसके पास इतने पत्र आ गए हैं कि उसे समझ में नहीं आता कि कौन सा छापं! मैने कहा."इन्हें जाओं" आए। मैन उन्हें नहीं बुलाया था। ये स्वयं आए थे। कहने लग श्रीमाता जी हमें यह कार्य करना ही था क्यांकि हमारे पूर्वजो ने रूस के लोगां को बहुत हानि पहुंचाई था।" ना हर न्थन पर आपके प्रिय भाई बहन वन जाते हैं और आपसी सम्बन्ध भी बहुत पवित्र बन जाते हैं। सहजयंग में एंसे लोगों का पूर्ाभाव है जो किसी के पति या पत्नी कं. साथ दौइ जाते हैं। यहां सोग दंवदूत सम बन जाते हैं। महानतम चीज यह है कि आप भृल आत्मा पृर्ण ज्ञान का स्रोत हैं। हमारे हृदय में यह सर्वशक्तिनान परमात्मा का प्रतिविम्ब है। और सभी मनुष्यों में एक हो प्रतिविम्ब है। आत्मा के प्रकाश में सभी लौंग एक ही चीज देखने हैं एक ही चीजे नहयूस करते हैं। अपनी अंगुलियां के सिरा पर व आदिशक्ति की सर्वव्यापी शक्ति को शीतल लहरियां के रूप में महसूस करते हैं अथात महमम कर मकते हैं । मान लो अभी आप ईसा के विषय में आनन्द का स्रोत वन जाते हैं, आत्मसाक्षात्कार के पश्चात सभी आनन्द का स्रोत बन जाते हैं तथा आनंद सागर की सृजन होता है। सभी लोग आनन्द सागर में गाते लगाते हैं। इसके लिए आपका कृष्ट नही उठाने पड़ते, हिमालय पर नहीं जाना पड़ता व पूर्ण ज्ञान की क्या इंसा मसौह परमात्मा के पुत्र थे"? पृछना चाहते हैं, " नेतन्य लहनी खंड : X अक. 7.8 1998 : 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-13.txt और न ही सिर के भार खड़ा होना पड़ता है। इसके लिए ( माइक) अपने स्त्रोत से न जुड़ा हुआ होता तो यह व्यर्थ आपको कोई पैसा नहीं खर्चना पड़ता। ये फूल प्रदान करने के है इसी प्रकार हम भी यदि अपने स्रोत से जुड़े हुए नहीं लिए हमने पृथ्वी माँ को कितना धन दिया? कोई एहसान भी हैं तो हमारी कोई पहचान नहीं है। हम इस पृथ्वी पर क्यों अवतरित हुए? परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश करने के लिए, उसके आशर्वाद उसकी सुरक्षा, उसके प्रेम का आनन्द लेने के लिए। मुझे विश्वास है कि आज यह बटित भी आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं। आपको शक्तियां प्राप्त हो हो जाएगा। आप सवको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाएगा। नहीं है। यह आपकी शक्ति है जो आपकं अन्दर स्थित है और जिसके कारण आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करते हैं। एक वार आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात आप अन्य लोगों को जाती हैं। यह सब बड़ा अदभुत लगता है। यदि ये यन्त्र परमात्मा आपकी आशीर्वादित करें । सेंट पीटर्सबर्ग जनकार्यक्रम दूसरा दिन 01-08-1993 और अवबोधित हमारी रक्षा करती है। यह हमारा पृथ प्रदर्शन कल मेने आपको वताया था कि पूर्ण सत्य को किस प्रकार प्राप्त करते हैं। हमारे अन्दर पहले से ही एक अति सूक्ष्म प्रणाली विद्यमान है जो इसे कार्यान्वित करती है और हम करती है और इस प्रकार से हमारी देखभाल करती है कि हम उचित-अनुचित को पहचान जाते हैं। किसी भी प्रकार से एसा करने का प्रयत्न हम नहीं करते जो हमारे लिए अहितकर आत्मचेतना में उतर जाते हैं। मैने आपको यह भी बताया था कुछ हा या विनाशकरी हो। अपने पावित्र्य (कीमार्य) का हम सम्मान करते हैं। हम अत्यन्त शक्तिशाली एवम् आत्मसम्मानित बन जाते हैं। जीवन कं प्रति हमारा दृषप्टिकॉंण अत्यन्त पवित्र हो जाता है और यह कार्य अत्यन्त सुन्दरता पूर्वक होता है। शिशु कि आत्मा पूर्ण सत्य का सोत है। जब यह हमार चित्त में अभिव्यक्त होती है तो हमें पावन कर देती है और हमारा चित्त चुस्ते है और यही हमारे अन्दर आनन्द का म्रात है। यह घटना घटित हाने के पश्चात आपमें एक नई चेतना. निर्विचार चेतना विकसित हो जाती हैं। सामूहिक चेतना आपकी हो जाता सम् आनन्द हेम प्राप्त करते हैं। दूसरे चक्र को स्वाधिष्ठान के नाम से जाना जाता है। चतना का एक नया आयाम है। यह सब आप अपने मध्य नाडी सृजनात्मकता का चक्र हैं। रूस कलाकार, चित्रकार, एवम् मृर्तिकार हैं जो अपनी सृजनात्मकता सं कला की सृष्टि करते हैं। परन्तु हो सकता है कि उनकी कला शाश्वत् न हो । जर्मनी के कलाकर की कलाकृति का हो जहां यह हमारी में अब बहुत में तन्त्र पर महसूस करते हैं। संस्कृत में इस बाध कहते से बुद्ध शब्द का उद्भव हुआ। अत: आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति बुद्ध' हैं। आज में साचती हूँ कि आपको वताऊँ कि किस प्रकार यह आपके चक्रों पर कार्य करती है। जैसा इस चार्ट में दिखाई सकता है कि इटली के कलाकर पसंदि ना करें और इटली के कलाकार द्वारा सृजित कलाकृति को मरूस के कलाकर। परन्तु दे रहा है, हमारा पहला चक्र लाल रंग का है। यह हमारी अबोधिता का चक्र हैं कल मैने आपको बताया था कि हमारी इतने वर्षों के पश्चात भी आज जो कलाकृतियां विद्यमान हैं यह अबांधिता कभी नष्ट नहीं होती और यह हमारे चित्त में प्रवेश कर जाती है। हम अबांध वन जाते हैं और हमारे चित्त में जानते हैं, की सभी लोंग प्रशंसा करते हैं क्योंकि इसमें चंतन्य वासना एवम् रांग नहीं रहता । हम बच्चों सम हो जाते हैं । ईसा है आप यदि सिस्टाईन चर्च ( Sistine Chapel) में जाए तो ने कहा है कि परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश करने के लिएवहां एक सुन्दर कुन्डालिनी के साथ ईसा मसीह खड़े हुए हैं। आपको वच्चों सम् होना पड़ेगा । तो मानसिक गतिविधियों के पूरा दृश्य अत्यन्त अद्भुत फलस्वरूप जो चालाकी हमने अपना ली है वह छूट जाती है (Michaelangelo) ने बनाई थी और वह आत्मसाक्षात्कारी आत्मसाक्षात्कारी लोगों द्वारा बनाई गई हैं। मानलिसा, आप है क्योंकि यह माइकलएनजला खंड : 1 अक बतन्य लहरी । : 7 8 1998 12 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-14.txt सत्य साधक कहते हैं, जैसे आप लोग। तो एक नया मार्ग-जिसे आप मध्य-नाड़ी मार्ग कहते हैं- जागृत हो जाता है और लोग व्यक्ति था। उसने बहुत कष्ट उठाए। लोगों ने उसे नहीं समझा। यहां रेमव्रेन्ट (Rembrant) की छव्बीस (26) तस्वीर हैं जिन्हें देखने के लिए विश्व भर से लोग आते हैं इसी प्रकार महान संगीतज्ञ हैं जैसे माजाट (Mozart) स्ट्रास (Strauss) जिसने अलविदा पीटसंवर्ग' (Goodbye Petersburgg) साधिनों में लग जाते हैं। पूरे विश्व में लोग खोज कर रहे हैं परन्तु रूस में विकसित लोग हैं और वो जानते हैं कि क्या खोजना हैं। उनमें सत्य-संवेदना है। इसी प्रकार युक्रेन, रूमानियां बल्गेरिया, पौलैंड और हंगरी के लोगों में भी सत्य संवेदना है कल किसी ने मुझसे प्रश्न किया. " इन लोगों के विषय में आप क्या सोचती हैं जो हरे रामा-हरे कृष्णा गा रहे हैं?" मैं साचती कि कंवल मख ही एंसे बन सकते हैं। केवल हरे रामा-हरे जैसी सुन्दर कृति लिखी। यह सब संगीतज्ञ आत्मसाक्षात्कारी लोग थे। आपके देश में महान लेखक भी हुए हैं जिन्होंने बहुत सुन्दर पुस्तक्क लिखी हैं जिन्हें आप समझ सकते हैं। रूस में बहुत से लेखकों ने ऐसी आध्यात्मिक पुस्तकं लिखी हैं जहां उन्होंने भिन्न चरित्रों के अन्तर्दर्शन को दश्शाया है। मुझे बताया गया कि आपके देश में जन्मे एक महान् सन्त का वहुत बड़ा कृष्णा' रटत रहने से आप किस प्रकार मानवीय चेतना के नये आयाम को पा सकते हैं? श्री कृष्ण ने गीता में ऐसा कभी नहीं उत्सव मनाया जाता है, और यह भी बताया गया कि वह मरे कहा, कुरान या कुछ अन्य पढ़ कर क्या आप उत्थान पा सकते हैं? मान लो कोई डॉक्टर आपको नुस्खा देता है कि सिर दर्द के लिए एनासिन ला: और आप रटे चले जाते हैं-'एनासिन लो. एनासिन लो ! क्या आपका सिर दर्द ठीक हो जाएगा? आपको दवाई लेनी पड़ेगी कंवल रटने से या स्मरण करने से कोई लाभ नहीं। कोई भी समझदार व्यक्ति इस बात को समझ जैसा लगता था। तो इन सन्तो तथा अन्य लोगों को वास्तव में अपने जोवन काल में ही दिव्य सृजनात्मकता प्राप्त हो गई और व महान पेगम्बर तथा दृष्टी वन गए। बहुत सं दृष्टाओं ने सहजयोग के विषय में लिखा है कि यह घटित हाोगा। इंग्लैंण्ड में विलियम ब्लैक हुए। भारत में भी बहुत से लोगों ने सहजयाग की भविष्यवाणी की हैं। रविन्द्रताथ टैगार ने भी सकता है। श्री कृष्ण ने कभी नहीं कहा कि आप भिखारियां की तरह से रहें। बास्तव में व कुबेर हैं। उनका एक मित्र दरिद्र था. उसके लिए उन्होंने सोने का बर बनवाया । तो श्री कृष्ण का नाम लेने वाला कोई व्यक्ति भिखारियों की तरह से किस सहजयाग के विपय में लिखा। प्राचीन काल में नाही ग्रंथ में स्पष्ट भविष्यवाणी की गई कि कव सहजयोग आरम्भ होगा और कब लोग आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करंगे सोचते हुए हम इस चक्र का बहुत उपयोग करत हैं। जब यह चक्र आत्मा के प्रकाश से प्रकाशित हो जाता है तो विचार बहुत कम हा जाते हैं। यह हमें बहुत से शारीरिक रोग ठीक करने में भी सहायक होता है। यह चक्र यदि ज्योतित हा जाए तो जिगर, रोग, प्रकार आचरण कर सकता है? यह तो श्री कृष्ण के विल्कुल विपरीत है। सं लोग हैं जिन्हें अमेरिका में बहुत इसी प्रकार के बहुत सा धन दिया गया। परन्तु वे कुण्डलिनी तथा चक्रों के विपय में कुछ नहीं जानते; वे नही जानते कि कुण्डालिनी किस प्रकार अग्नाशये ( Pancreas) क कारण हुए मधुमेह (Diabetes) रोग, रक्त कॅन्सर (Leukemia) अति-श्वेत-रक्तता कब्ज ( Constipatition) एवम् गुर्दा (Kidney) रोग आदि सभी उठायी जाती है। नशीले पदार्थ रखने तथा छोटे बच्चों का अपहरण करने के लिए उन्हें पकड़ा गया। वैभव के स्वामी, श्री कृष्ण के नान पर गलियों में भीख माँगते देख मुझे लज्जा आती हैं। समस्याओं का समाधान हो जाता है। हमारे तीसरे चक्र का उद्भव दूसरे (स्वाधिष्ठान) चक्र से होता है । यह नाभि चक्र कहलाता है जा शरीर में सूर्य चक्र पर कार्यान्वित है। नाभि चक्र में यदि खराबी हो तो व्यक्ति को इन लोगों के कारण पश्चिम में यहुत से लोगों का उत्थान रुक गया है, उन्हें धन दे-दे कर जिज्ञास दिवालिया हो गए है, उनकी स्थिति पागलों सी हो गई है। टी एम. सभी प्रकार क पट के राग पट का केन्सर तक, हो सकते हैं। परन्तु यदि यह प्रकाशित हो जाए ता इस चक्र की शारीरिक समस्याओं से मुक्ति मिल सकती हैं इस चक्र का खराब करने तराली बुरी आदते, जैसे मद्यपान, नशा सवन, छूट जाती है। कुछ लोगों को बहुत अधिक खाने का लालच होता है और कुछ पहुँची। शरीर का प्रृथ्वी से तीन ऊँचा उठाने के लिए बें विल्कुल खाना ही नहीं चाहते । यह चक्र जागृत होने पर लोगों से 6000 पीड लेते धे। रूस में ऐसी मूर्खता की कोई व्यक्ति अत्यन्त सन्तुष्ट हो जाता है। तब वह सत्य-साधना की स्वीकार नहीं करेगा। क्या आवश्यकता है? उछलने से उनके आर निकल पड़ता है। धन तथा सांसारिक वस्तुओं की अधिक कृल्हे टूट गए और टी. एम. करवाने वाले लोगों को इसका चिन्ता नही करता। वह सोचने लगता है कि इनसे ऊपर भी तो (Transcendental Mediatation) HE TEF भयानक चीज है। मुझे आशा है कि यह अभी तक यहाँ नहीं फुट खामियाजा देना पड़ा। अतः अवीधिता से ही विवेक विकसित होता है। तब आप विवेक-अविवेक मं अन्तर जान सकते हैं। कुछ होगा। तब एक नया मानव-वर्ग जन्म लेता हे जिन्हें हम चैतन्य लहरी ।खंड : X अंक : 7. 8 1998 13 "he -hट. ho 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-15.txt इसके पश्चात मध्य हृदय चक्र हैं इसका बाया और चाहते हैं। आप को लगता है कि हमें इतनी बहुमूल्य निधि दायां भाग भी हैं। मध्य हृदय चक्र में यदि खराबी हो तो मिल गई है, अब इसे संचरित करना चाहिए। छठा चक्र अगन्य (आज्ञा)- महत्वपूर्ण है। मस्तक पर असुरक्षा (भय) की भावना हृदय में आ जाती है, विशेषकर महिलाओं में यदि मध्य हृदय चक्र खराब हो और उनमें जहाँ दुक-तन्त्रिकाएं एक दूसरे को काटती हैं वहाँ दृष्टि विन्दु हैं। दायें पर यह स्थिति है। वाई आज्ञा की समस्या यदि हो तो इसका असुरक्षा की भावना हो तो उन्हें स्तन-कंसर हो सकता चक्र में यदि बाधा हा व्यक्ति को अस्थमा रोग हो सकता है कुप्रभाव ऑँखां पर पड़ता है। हमारी आँखों का आकार बढ़ सकता है तथा दूर-दूष्टि कम हो सकती है। मानसिक रोगियों, है। और यदि बायें हृदय में पकड़ हो तो हृदय रोग हो सकता है तो पागलों में याई आज्ञा की समस्या बहुत अधिक होती है। तो सुरक्षा की भावना आ मध्यहृदय जब प्रकाशित हो जाता जाती है। आपकं शरीर में विद्यमान रोग प्रतिकारक जो कि रोगों बाई आज्ञा की पकड़ सुझाती है कि व्यक्ति को किसी प्रकार की भूत बाधा है। हो सकता है कि कोई ऑँखों से या स्वाधिष्ठान के माध्यम से सम्माहित करके ऐसे व्यक्ति को मुकाबला करते हो जाते हैं। बारह वर्ष की आयु तक उरोस्थी के नीचे रोग प्रतिकारको ( Anti-Bodies) का सृजन होता है। तत्पश्चात इन्हें पूरे शरीर में फैला दिया जाता है। यह उरोस्थी (Sternum) दूरस्थ नियंत्रण (Remote Control) की तरह रोग प्रतिकारकों को आक्रमण का मुकाबला करने की सूचना देती है। जब भी हम भयभीत होते हैं ता हमारा हृदय तेजी से धडकने लगता है और हमारी उरोस्थी गुरुआ तथा पुस्तकों के विषय में बहुत सावधान रहना चाहिए कार्यशील हो जाती है। से हैं, अत्यन्त चुस्त वास्तव में पागल कर दे। उस दिन मेंने मरिया देवी क्रिस्टोज के एक अनुयायी का देखा, वह पूरी तरह भूत बाधित था। वह अत्यन्त आक्रामक था और ऐसा कुछ कह रहा था जिसे कोई न समझ पाया। अन्ततः वह पागल हो गया। अंत: व्यक्ति को क्योंकि इनके कारण बाई आज्ञा तथा स्वाधिष्ठान की समस्या ही सकता है। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात जव यह चक्र प्रकाशित बाई आज्ञा चक्र यदि प्रकाशित हो जाए तो व्यक्ति अपनी लौकिक आंखों से चैतन्य देखने लगता है आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति पर आप प्रकाश को भी देख सकते हैं। इन्होंने आपको फिल्म दिखाई है, मैं सोचती हूँ कि कैमरे की भी बाई आजा प्रकाशित है। भारत में एक व्यक्ति था जो हीरे इत्यादि प्रकट कर देता था। मुर्ख लोगों ने उसे परमात्मा मान लिया। वह लोगों को सम्माहित कर लेता था परन्तु कोई समझ न पाता था। कुछ माह पूर्व सरकारी अफसर वहाँ गए। उन्होंने चार कैमर लगा दिए। इन बड़े अफसरों को भी उसने सम्माहित कर दिया परन्तु कैमरों को सम्मोहित न कर पाया। कमरे ने उसे पकड़ लिया कि किस प्रकार उसने दूसरे व्यक्ति से सोने का हार लिया, किस प्रकार वह व्यक्ति हार लेकर आया, किस प्रकार उसे वह हार दिया। हमारे पास उसका वीडियो भी है। मेरे पास बह टेप होता है तो हमारे अन्दर सुरक्षा को भावना जागृत होती है। अव आप निर्भय हो जाते हैं। किसी के प्रति आप आक्रामक नहीं होते निर्भयता पूर्वक ऊर्जस्वी हो जाते हैं, अत्यन्त करुणामय। आपका सरोकार स्वयं से हट कर अन्य लोगों के प्रति होता है, अन्य लोगों के लिए आप में प्रेम उमडता है। जो लोग कभी आपके शत्रु थे, वे भी अच्छे मित्र बन जाते हैं । अचानक आप पाते हैं कि सभी शत्रु आपके मित्र वन गए हैं। आप यदि न आक्रामक थे तो अत्यन्त भद्र एवम् विनम वन जाते हैं। अगला चक्र 'विशुद्धि' चक्र कहलाता है। रूस और यूक्रेन को लोगों को इसकी बहुत समस्या है, इतनी अधिक कि वहाँ सामूहिकता परिणाम स्वरूप व्यक्ति को हृदयशूल (angina) स्पोंडिलाइटिस (spondylitis) एवं आलसी अंग-रोग हो सकते हैं व्यक्ति अत्यन्त उदास हो जाता है से मुझे भी यह समस्या हो गई। इसके हैं। तो ये कंमरे बहुत ही अद्भुत हैं मैने जो तस्वीरें देखी हैं बह प्राय: सर्वसाधारण लोगों या बच्चों द्वारा ली गई हैं। परन्तु इसका वर्णन नहीं हो सकता। तो बाई आज्ञा ठीक हो जाने पर आप देखने लगते हैं कि व्यक्ति सन्त है या नहीं। आप समझ सकते हैं कि कोई सत्य अत्यन्त गरिमामय तथा शानदार बन जाता है। किसी पागल को तरह आप वर्ताव नहीं करते। सभी कुछ अच्छा हो जाता है। आपका संगीत, आपकी उछल कूद. आपका नृत्य सभी कुछ और फिर धुरतं। दायीं विशुद्धि में यदि पकड़ हा तो हम अत्यन्त आक्रामक हो जाते हैं। बहुत उँचा बोलते हैं और लोगां पर चिल्लाते हैं, अत्यन्त क्रोधी स्वभाव य है या असत्य और आपका आचरण के। कुछ बच्चे भी अति हेकाड़ एवम् अभद्र बन जाते हैं। वे मुझे से प्रश्न पर प्रश्न कर सकते हैं । ये सब दुर्गुण दायीं विशुद्धि की खराबी से होते हैं। दायीं विशुद्धि जब जागत हो शालीन हो जाता है। न कोई चिल्लाहट रहती है और न जाती है तब आप अति मधुर हो जाते हैं अत्यन्त सामूहिक हो जाती है। बाई आज्ञा अत्यन्त अन्तर्वेधी है। छोटे-छोटे बच्चे इसे कलाबाजियाँ, केवल आपके आनन्द की अभिव्यक्ति मात्र रह बहुत अच्छी तरह समझते हैं । मैं एक बच्चे का जानती हूँ जिसने एक लामा के पास जाकर कहा, "तुम आत्मसाक्षात्कारी नहीं हो, यहां बैठकर सवको अपने सामने झुकने को कहने का अधिकार तुम्हें नहीं है"। ता व्यक्ति तुरन्त जान जाता है कि पाखंडी कौन हैं कर आपमे अन्य सहयोगियां के प्राति अपनापन आ जाता है। अपना सर्वस्व आप दृसरों को देना चाहते हैं, सबसे मधुर सम्बन्ध बनाना चाहते हैं । अपने आत्मसाक्षात्कार से ही आप सन्तुष्ट नहीं हो जाते, और लोगों को भी आत्मसाक्षात्कार देना 14 चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 7. 8 1998 । 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-16.txt शोलों, की तरह सामने का (दायां) आज्ञा चक्र भी बहुत महत्वपूर्ण है । हम यदि क्षमा नहीं करते बहुत अधिक सोचते हैं तो भी यह समस्याएं खड़ी करता है बहुत अधिक साचने पर यह हमारे चतन मस्तिष्क पर आक्रमण कर देता है और आप पागलों की मस्तिष्क की बहुत अधिक गतिशीलता ऐस लोगों में घृणाभाव आ जाते हैं। अब एक नया रोग आ गया है जिसमें व्यक्ति रेंगने वालं व्यक्ति-सा हो जाता है जैसे मछलियां बड़ी मछलियां। ये लोंग अपने हाथ-पांव नहीं चला सकते, इनका केवल मस्तिष्क चलता है, य चल भी नहीं सकते कवल रंग सकते हैं अमेरिका में ये रोग आम हो गया हैं. तो बहुत अधिक सोचना, अत्याधिक भविष्य वादी दृष्टिकाण व्यक्ति की आज्ञा को खराब करता है आपका स्वभाव बहुत आक्रामक हो जाता है। हिटलर की अत्यन्त खराव दाई आज्ञा थी उसका सारा दाया भाग ही खराब था। कहते उसका गुरु था। ये लामा लोग दाई ओर के होते हैं-अत्यन्त आक्रामक। यदि आपका दाया यह 988 हैं प्रकाशित हो जाती हैं । ये इन्द्रधनुषी रंगों में चमकती हैं। ये अत्यन्त शान्ति प्रदायक एवम् शीतल हाती हैं-शाला से बिल्कुल विपरीत। जब कुण्डलिनी इसमें प्रवेश करती है तो मस्तिष्क तालू भाग से खुल जाता है। तो जो ज्ञान हमें प्राप्त होता है वह परस्पर सम्बन्धित ज्ञान है। यह अत्यन्त सीमित ज्ञान भी है। जब आत्मसाक्षत्कार घटित होता है तो. क्योंकि सहस्रार पर परमात्मा की कृपा वर्षा होती है, आप अत्यन्त ज्ञानशील हो जाते हैं, सूक्ष्म चीजों को आप अविलम्ब देखने लगते हैं। सामान्यत: व्यक्ति -सुक्ष्म चौजं नहीं समझ पाते परन्तु आत्मसाक्षात्कार के पश्चात आप अल्यन्त शान्त एवम् आनन्दमय हो जाते हैं। आपकी नाड़ियों से चैतन्य प्रवाहित होने लगता है और अपनी अंगुलियों के सिरों पर आप पृर्ण सत्य को जान सकते है । सहसार मुख्य समस्या थी। अब यह खुल गया है फलस्वरूप सामूहिक आत्मसाक्षात्कार घटित हो रहा है। सक्षिप्त रूप में मेन आपको बताने का प्रयत्न किया है। सहस्रार चक्र का गुण यह है कि आ को अपनी अंगुलियों के सिरों पर जान जाते हैं। परन्तु वास्तव में ये 1000 हैं) बर दया हो यह खराब हो जाता है और यदि तरह सोचने लगते हैं। । और है कि दलाई लामा भिन्न चक्रों के विषय में , विशेषकर के आज्ञा, तो आप अत्यन्त अभद्र, भाग खराब हा अहंकारी एवं अशिष्ट हो जाते है। आप सभी लोगों की गलतियां देखने लगते हैं और सभी को लगते हैं किसी चीज का आप आनन्द नहीं ले सकते, कोई बात आपके मस्तिष्क में नहीं जाती। किसी भी प्रकार का असन्तुलन अत्यन्त भयानक होता है। अन्तिम चक्र सहस्रार कहलाता है। कहते हैं कि इसमें एक हजार पखुंड़िया होती. है। बाइबल में लिखा है कि मैं आपक सम्मुख शाली की जुबान मे प्रकट हुंगा। जब प्रकाशित होता है तो एक हजार नाड़ियां (डॉक्टरां के अनुसार आप पूर्णसत्य यह वास्तव में, मैं कहना चाहुँगी. आपक जीवन की एक महान घटना है कि आप हैं यह मात्र भाषण या प्रवचन नहीं है। आप वास्तव में इसे पा लंते हैं, इसका अनुभव कर सकते हैं तो परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश करना, बिना विचारों में डूवे उसके आशीर्वादों का आनन्द लना आपके जीवन का लक्ष्य है।0 निवंत्रित करने ह अन्ततः हम देखते हैं कि इन चक्रों में आत्मसाक्षात्कार, पुनर्जन्म प्राप्त कर लेत करते हैं और इस कार्यान्वित सहम्रार परमात्मा आपको धन्य करें। चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 7. 8 1998 15 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-17.txt जन कार्यक्रम मास्को 06-08-1993 बहुत बड़ा खतरा है। किसी व्यक्ति के मस्तिष्क में आता है कि हम नष्ट होने वाले हैं। 40 बर्ष पूर्व भारत में भी एक व्यक्ति था जो ऐसा ही कहा करता था। उसको मृत्यु हो चुकी है । लोग अब भी वह बात कहे जा रहे हैं, परन्तु कुछ भी नष्ट नहीं हुआ। अमेरिका में भी इसी प्रकार की बेपकूफी भरी बाते करने वाला व्यक्ति था जिसके अपने सभी युवा अनुयायिओं को सम्मोहित कर दिया और उन्हें बताया कि अमुक दिन सभी लोग समाप्त हो जाएंगे। परन्तु कोई भी समाप्त नहीं हुआ। तब उसने उस स्थान में आग लगा दी और अपनी तथाकथित भविष्यवाणी को प्रमाणित करने के लिए सभी को मौत के घाट उतारने का प्रयत्न किया। ऐस लोगों का क्या लाभ है यह मरी समझ में नहीं आता। वे या तो धन इकट्ठा करना चाहते हैं या लोगों को मारना चाहते हैं। कहीं हिटलर तो उनके मस्तिष्क में नहीं घुस गया जिसके कारण वे विश्व को नष्ट करना चाहते हैं? मैें आपका विश्वाम दिलाती हूँ कि आपके पिता, सर्वशक्तिमान परमात्मा प्रेन एवं करुणा के सागर हैं। अत्यन्त प्रम से उन्होंने विश्व की सृष्टि की है। आप को भी उन्होंने अत्यन्त सावधानी एवम् सुकोमल प्रेम पूर्वक बनाया है। वह परमात्मा किस प्रकार को नष्ट होने देंगे? किस प्रकार एक समझते कि परमात्मा पैसे को नहीं जानते, वे सोचते हैं कि वे पिता अपने वच्चों के साथ ऐसा कर सकता है? हमें समझना परमात्मा का खरीद सकते हैं। यह बिल्कुल गलत विचार है। मैं चाहिए कि इस प्रकार की बाता के पीछे कुछ पागलपन है या कोई पागल है जो यह भयावह कार्य करता है। अत: आपने है और बैंक क्या है । इन फूलों को आप देखें, ये पृथ्वी माँ वच्चों की रक्षा करने का प्रयत्न करें। इस प्रकार के वहुत से लोग हैं। वर्ष 1970 से मैं इनके विषय में बता रही हूँ कि किस प्रकार ये सच्चे एवं वफादार लोगों का अपने स्वार्थ के लिए यह स्थिति प्राप्त करने का पृर्ण अधिकार आप सबको हैं। दुरूपयोग कर रहे हैं सौभाग्यवश अब इनमें से अधिकतर का पर्दाफाश हो चुका है। फिर भी खुम्बों की तरह से यहां बहा कुछ लोग निकल आते हैं। जो व्यक्ति आपको ऐसी कहानिया ये आपमें अन्तर्निहित है। केवल इसे जागृत करना है। जितने सुनाए उसका विश्वास न करें। परमात्मा के नाम पर जो आपसे पैसा मांगे ता समझ लें कि वह धोखेवाज़ है। इसा मसोह का आपने कितना पैसा दिया? उन्हें तो 30 रुवल में बेच दिया गया। तो इस प्रकार की बेवकूफी की बातें करने वाला का अनुसरण नहीं किया जाना चाहिए। अपने विवेक का उपयोंग सभी सत्य साधकों को मेरा प्रणाम। आरम्भ में ही हमें समझ लेना चहिए कि सत्य जो है वही है- इसे परिवर्तित नहीं किया जा सकता। दुर्भाग्यवश हम सत्य को मानवीय चेतना पर जान भी नहीं सकते। यदि पूर्ण सत्य को हमने जान लिया होता तो हमारे लिए किसी भी प्रकार की समस्याएं न होती। हमने कंवल सुना है कि हमारे अन्दर एक अत्यन्त सूक्ष्म यन्त्र है जो परमात्मा के प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति से हमारा सम्वन्ध जोड़ता है। इसके विना हम सत्य को नहीं जान सकते। वास्तव में यह एक घटना है, स्वतः घटित होने वाली घटना । इसे हम अपने विकास की जोवन्त प्रक्रिया भी कह सकते हैं। तो इस स्थिति तक पहुँचने के लिए हमारे साथ कुछ और भी घटित होना आवश्यक है। यह विशेष समय है और यह आपमें भी घटित हो जाएगा। इसके घटित होने पर सवंप्रथम आपका स्वास्थ्य सुधर जाता है और स्वास्थ्य सम्बन्धी आपकी समस्याओं का समाधान हो जाता है। यहां बहुत से लोग बैठे हैं. सहज यांग में आने के पश्चात जिनकी स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का समाधान हो गया। इसी कारण से रूस में पहली बार सहजयोग आया। आपको और इस विश्व इसके लिए आपको पैसा नहीं देना पड़ता। ये लोग नहीं आप को सत्य बताती हूँ कि परमात्मा नहीं जानते कि पैसा क्या के चमत्कार हैं। इनके लिए हमने पृथ्वी माँ को कितना धन दिया है ? यह एक जीवन्त प्रक्रिया है और मानव होने के नाते सहजयोग से बहुत से मानसिक रोग भी ठीक हो गए हैं। यह आपकी अपनी शक्ति है, अपनी शक्ति, इसे कार्यान्वित कर लें अधिक जागृत आप होंग आप अन्य लोगों को भी जागृति प्रदान कर सकेंगे। अधिकतर धर्मग्रन्थों में इन सभी घटनाओं की भविष्यवाणी को गई है। पूर्ण सत्य का जान न होने के कारण मानव घरस्पर झगड़ रहा है और एक दूसरे के लिए समस्याएं खड़ी कर रहा है। ऐसे लोगों का हम विश्वास करना चाहते हैं जो पागल है और आपको भी पागल बनाना चाहते हैं । मुझे बताया गया है कि कोई महिला कह रही है कि नवम्बर को सभी लोगों की मृत्यु हो जाएगी; पूर्ण विश्व नष्ट हो जाएगा। ऐसी बैंवकूफी ! वास्तव में हँसी आती है। परन्तु आप नहीं जानते कि ऐसे लोग करें। तो सच्चा गुरु आपको क्या बताएगा? वह कहेगा कि तुम्हं सत्य की जानना है और परमात्मा के प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति से एकाकारिता प्राप्त करनी है। वह आपमें पूर्ण विश्वास करंगा और आपको प्रम करेगा ताकि आपकी रक्षा की जा सके और आपकी सभी समस्याओं का समाधान हो सके। पहली चंतन्य लहरीं खंड : x अंक : 7, 8 1998 16 मा 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-18.txt चीज़ जा आपका प्राप्त होनी चाहिए वह है आपकी मानसिक शान्ति आपका गुरु यदि आपको बताता है कि अमुक तिथि तक आप समाप्त हा जाएंगे तो किस प्रकार आप मानसिक शान्ति प्राप्त कर सकते हैं? कभी-कभी तो ये लोग अत्यन्त आपके स्वास्थ्य एवम् मानसिक स्थिति के सुधार के अतिरिक्त यह आनन्दमयी अवस्था है। जिसमें आप पूर्णत: चेतन होते हैं, किसी भी प्रकार से सम्माहित नही होत। आप केवल चेतन ही नहीं हाते अपनी शक्तियों का भी पूर्ण ज्ञान आपको होता है जिस शक्ति के विषय में आपने जाना है आपसे पूर्व भी बहुत से लोगों को इसका ज्ञान था। परन्तु इस प्रकार से सामूहिक आत्मसाक्षात्कार कभी नहीं हुआ। यह विशेष समय है, में इसे बसन्त का समय कहती हूँ अब आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाएगा| इसमें कोई धर्माचार नहीं है। मैं नहीं कहती कि ऐसा करो. एसा न करां। ऐसा कुछ नहीं कहती। कोई कर्मकाण्ड नहीं है। आपके अन्दर यह पुर्णतः वैज्ञानिक शक्ति है। इस शक्ति का धड़कते हुए कभी-कभी तो आप अपने लौकिक चक्षुओं से भी देख सकते हैं। इस आप सत्यापित कर सकते हैं क्योंकि आप के सिर के तालू भाग से यह बाहर आती है और अपने सहस्रर पर आप शीतल लहरियों की अनुभव कर सकते हैं। अपनी अगुलियों के सिरों पर भी आप इसे महसूस कर सकते हैं। एक बार जब आप इसका उपयोग करने लगते हैं, तो आप हैरान होंगे. आपको दूसरों के चक्रों का भी ज्ञान हो जाता है क्योंकि हमारी चेतना का एक नया आयाम विकसित हो गया है। आप व्यक्ति के विषय में जान सकते हैं क्योंकि सामूहिक चेतना का नया आयाम आपको मिल गया है। सर्वोपरि आप महसूस करने लगते हैं कि आप एक ही विराट के अंग प्रत्यंग हैं। यह केवल मानसिक या भावनात्मक विचार ही नहीं। वास्तव में लघु ब्रह्माण्ड त्रिभुवन भयावह होते हैं। यदि आप किसी सच्चे सन्त को पढ़े तो वह आपको बताएगा कि परमात्मा से एकाकारिता प्राप्त करना ही उसके जीवन का लक्ष्य है। वे यदि सच्चे एवम् वास्तविक सन्त हैं तो वे आपको आत्मा बनने के लिए कहेंगे। वे कभी नहीं कहंगे कि आप नष्ट होने वाले हैं, वे आपको बताएंगे कि आप द्विज बनने वाले हैं। पुनरुत्थान पाने के लिए हम इस विश्व में हैं। ईसा मसीह के जीवन का सन्देश यही है कि हमने पुनर्उत्थान पाना है। तो ये जो विचार आपमें भरे जा रहे हैं इनसे साधान रहे। वर्ष 1970 से में इन कुगुरुआं के नाम बता रही हूँ, इन सभी के विषय में बता रही हूँ। मैने ये भी बताया कि ये लोग कौन हैं। उनमें से कुछ राक्षस हैं, कुछ शैतान हैं और कुछ को पर-पीड़न में आनन्द मिलता है। परमात्मा से उन्हें कुछ नहीं लेना देना। किसी का मूल्य, उसकी भूमिका. उसकी वास्तविकता समझने के पश्चात ही किसी को गुरु रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। किसी की तस्वीरें लिए हुए पागलों की तरह इधर से उधर दौड़ते हुए अन्य लोगों को भी अपने पीछे दौडाते व्यक्ति गुरु नहीं हो सकते। सड़कों पर आप लोगो को मन्त्र बोलते हुए या अटपटे कपड़े पहनकर गीत गाते हुए देख सकते वस्त्र परिवर्तन से अन्तर्परिवर्तन नहीं होता। अन्तर्परिवर्तन के बिना आप अपनी दुर्वलताओं पर काबू नहीं पा सकते। आपकी समस्यओं का समाधान नहीं हो सकेता। आप कभी नहीं समझे में परिवर्तित हो जाता है। सकते कि आप इस पृथ्वी पर क्यों अवतरित हुए हैं? आपके जीवन का क्या उद्देश्य है? यहां आप किस लिए आए? आप क्योंकि साधक हैं तो जिज्ञासा के कारण कई बार मुर्खताओं में फस सकते हैं। कई वार मुझे चिन्ता होती है क्योंकि मास्को के लोगों के लिए, विशेषकर, यह खतरा है क्योंकि व वहुत सीध हैं। वे अत्यन्त बुद्धिमान है फिर भी सम्मोहित करने वाले लोग उन्हें छल सकते हैं। उदाहरण के रूप में भारत में एक व्यक्ति लोंगों को सम्मोहित करके उन्हें साना, हीरे आदि देता था। कुछ महत्वपूर्ण व्यक्ति उससे मिलने के लिए गए और वहां चार कैमरे लगा दिए गए। हैरानी की बात है कि उसने इन हस्तियों को सम्मोहित कर दिया परन्तु कैमरों को वो सम्माहित न कर पाया। तस्वीरों से पता चला कि किस प्रकार वह यह चालाकियां कर रहा है। अब सब लांग उसके विषय में जानते हैं। तो इस प्रकार की मुर्खता से आपको सावधान रहना होगा क्योंकि अब आपके अन्दर सभी शक्तियां सभी गुण विद्यमान मुख्यत: हमने समझना है कि नष्ट होने के लिए हमारा सृजन नहीं किया गया। आप मानव हैं, विकास स्तम्भ। कई बार लोग सांचते हैं कि पशु मानव से बेहतर है। इसका अर्थ यह हुआ कि मानव पशु से कहीं अधिक विकसित है। आपके अन्तर्निहित ये शक्ति जब अंकुरित होती है तो, आप आश्चर्य चकित होगें. किस प्रकार आपकी पूर्ण जीवन शैली को यह परिवर्तित कर देती हैं! ला। विश्व भर में 55 देश सहजयोग कर रहे हैं। रूस में तलीयाती नामक स्थान पर 22 हजार सहजयोगी हैं। वे कंवल आत्मसाक्षात्कारी ही नहीं हैं परन्तु इस शक्ति को जानते हैं। यह सब अनुभवगम्य (यथार्थ) है। इसे वैज्ञानिक एवम् चिकित्सकीय ढंग से वर्णन किया जा सकता है। यह पराविज्ञान है। परन्तु यह अत्यन्त सहज है क्यांकि हमारे अन्तनिहित मूल-तत्वों के विषय में यह बताती है। मुझे आपको इतना ही बताना है कि यह घटना विना किसी परंशानी के घटित होती है। विशेषत: रूस के लोगों के लिए, मेरे विचार से यह बड़े सम्मान की बात हैं, क्योंकि वे अति विकसित लोग हैं। पश्चिमी देशों के लोंग इस अर्थ में विवेकशील नहीं हैं। अमेरिका में जब मैं बोस्टन गई तो वहां के दूरदर्शन वालों ने मुझसे पूछा कि आपके पास कितनी रोल्मस-रॉयस कारे हैं? इतनी वेवकूफी भरी बातें उन्होंने मुझसे पूछीं कि मैं परंशान हो गई। मैन पूछा," ये क्या रोल्स-रॉयस कारें खोज रहे हैं या अपनी आत्मा?" मुर्ख लोगों को समझाना कठिन कार्य है। यही कारण है कि मेरा हृदय रूस में और यूक्रेन में है। रूस और यूक्रेन में आना और यहां के विवेकशील लोगों से मिलना अत्यन्त आनन्ददायी होता है। ये लोग अभी तक भी उन मुल्यों को अपनाया हुआ परमात्मा का धन्यवाद है कि यहां पर ऐसे लोग हैं जो अपने गौरव को हैं। इतने प्रममय हैं। आपने है। चैतन्य लहरी 17 । खंड : X अंक : 7, 8 1998 he 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-19.txt प्रेम की शक्ति, क्योंकि लोग अच्छे नागरिक बन जाते हैं वचन देते हैं। किस प्रकार? अब मैं आपको बताऊँगी कि इसलिए राष्ट्रीय धन की भी बहुत बचत होती है। राजनीतिज्ञ आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेने के पश्चात आपके हाथों से भी भले बन जाते है। वे न कंवल बुद्धिमान हो जाते हैं परन्तु स्वार्थपरता को भी त्याग देते हैं। सर्वत्र परमात्मा का साम्राज्य चैतन्य लहरियों को यदि उपयोग करे और जल को चैतन्यित दिखाई पड़ता है। तर्कों एवम् रूढिवाद के अभाव के कारण साम्यवाद में भी कुछ अच्छाइयां थी प्रजातन्त्र का एक बहुत अच्छा गुण स्वतन्त्रता है। ये तीनां चोज आपके साथ घटित हो जाती है। अपनी जाति एवम् धर्मान्धता से ऊपर उठकर आप एक स्वतन्त्र पक्षी बन जात हैं, पूर्णंतः स्वतन्त्र पक्षी। अपनी स्वतन्त्रता का अपनी भलाई के लिए उपयोग करते हैं विनाश के लिए नहीं। प्राय: स्वतन्त्रता का उपयोग विनाश के लिए किया जाता है। पश्चिमी देशों में यही हो रहा है। अन्धकार एवम् अज्ञानता के कारण सारी समस्याएं खड़ी हुई है। आत्मा के प्रकाश में जब हम आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेते हैं तो आप जान जाते हैं कि आप क्या कर रहे हैं और आपके हित में क्या है। सभी भय धुल जाते हे । असुरक्षा की भावना चली जाती है और आप अत्यन्त प्रग्भ बन जाते हैं। साथ ही साथ आप अत्यन्त करुणामय एव ्रमाशील भी हो जाते हैं। यह सब घटित हो रहा है और प्रकार यह घटित होगा कि ये विश्व परमात्मा के प्रम का अत्यन्त सुन्दर उद्यान बन जाएगा। मुझपर विश्वास करें कि भी नष्ट नहीं होगा और न ही आपको कोई हानि पहुँचेगी। झे विश्वास है कि अगले वर्ष मैं फिर यहां आऊँगी और यह अव में भी अधिक लोग होंगे समझते हैं। ये गुण आपका सुस्वस्थ्य कार्य एवम् वैभव का चैतन्य लहरियां बहने लगती है। अपने हाथों से बहने वाली करके खेती में दें, ता आप हैरान होंगे आपकी खेती दस गुनी फसल देगी। भारतीय गाय आस्ट्रेलिया की पागल गायों के वरावर दूध देने लगती है। मानव सृजित अभिजाति (Highbreed) होने के कारण आस्ट्रेलिया की गाय पागल होती है और मैं सोचती हूँ कि इनका दूध पोने वाल भी पागल बन जाते हैं । ये उपयोगात्मक तथ्य है और अब हमारे पास ु की इसके प्रमाण हैं। दूसरे आपको जो बच्चे प्राप्त होते हैं वे भी आत्मसाक्षात्कारी एवम् प्रतिभावान, विवेकशील एवम् आज्ञाकारी होते हैं। आपके पारिवारिक सम्बन्ध सुधर जाते हैं। पति-पत्नियां के सम्बन्ध सुधर जाते हैं। सहजयोग में हर वर्ष 100 से भी अधिक अन्तर्राष्ट्रीय विवाह होते हैं। परन्तु तलाक का अनुयात एक प्रतिशत है। सहजयोगी अल्यन्त कोमल करुण एवम् भद्र हो जाते हैं और एक-दूसरे की संगति का आन्द लेते शराब, नशा आदि दुर्व्यसन छुट जाने से आपको गसे की बहुत बचत होती है। सरकार जो धन माफिया संचालित लागा की दंखभाल में खर्चती हैं वो भी बच जाता है, क्व के सहजयाग में आने के पश्चात यह स्वत: ठीक हो जाता है। माफिया के लोग भी विनम्र हो जाते हैं। यह एसी शक्ति है. करुणा एवम् जिन्हें आपने आत्म ाक्षात्का देना होगा |D केवल परमा पा आपको आशिर्वादित करें। रूस संकीर्ण द्वार है हार अहंकार का वश में रने के लिए इस शाश्वत संकीर्णद्वार है, का खोलने के लिए इसामसीह ने स्वयं को सुली पर चढ़वा लिया। आज मारको अहम् विन्दु है, तो पृथ्वी और अपने देश के अगन्य चक्र पर रहन वाते मास्को के लोगों की कितनी हमारे पृथ्वी ग्रह पर स्थित हर देश कोई न कोई चक्र है या इसका कोई भाग। उदाहरणार्थ आस्ट्रूलिया मूलाधार अफ्रीका स्वाधिष्ठान, आस्ट्रेलिया नाभि, इंग्लैंण्ड विशुद्धि रूस दाई आज्ञा चीन बाई आज्ञा और नेपाल सहस्रार है। हर दंश के अन्दर भी चक्र विद्यमान हे जेसे रूस में तलियाती, मूलाधार है, बड़ी जिम्मेदारी है। यहां सभी उपक्रम बहुत लम्वा समय लेते सैक्ट (Sankt) पीटर्सबर्ग हृदय है और मास्को अगन्य चक्र है। तलयाती में बॉल्गा मतुस्का (Volga Matuska) (वोल्गा माँ) अपने तदनुरूपी देवता अर्थात श्री गणेश का रूप धारण करती है। यह क्षेत्र, जहां की ध्यान धारणा करने वाले ्लागों की सख्या वहुत अधिक है, दूसरा मक्का बन जाएगा जहा पूर पृथ्वा ग्रह से सहअयोगी तीर्थ-यात्री यात्रा करने के लिए ता नारियाता तथा य बत से क्षेत्रों में सहजयाग रूस के दुदय सुर. पीट सबंग सआया। आज्ञा चक्र को शुद्ध करने के लिए प , पीटसबर्ग में हुई। यह शहर इत्तफाक से नहीं चुना गया था। अहंकार की वश में करके मस्तिष्क की सीमाओं को पार हैं। परन्तु मास्को के सहजयोगियों को प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय दीपावली पूजा और पिछले नवम्बर विवाहात्सव का अवसर प्राप्त होना यह दर्शाता है कि उन्होंने कुछ उन्नति को है। अब सहस्रार का उपयोग करते हुए आदि कुण्डालिनी पृथ्वी ग्रह के भिन्न चक्रों का एकीकरण कर रही है और सहजयोग इसका यन्त्र है। आशा की जाती है कि यह सहजयोग हृदय, मस्तिष्क भावना-कार्यान्वयन, आध्यात्मिकता और भौतिकता में संघटन लाए। अगन्य ग्रह में रहने वाले रूसी सहजयांगी. क्योंकि भूगोलिक रूप में पूर्व एवम् पश्चिम के मध्य में सेतु हैं, आदिशक्ति के इस दिव्य कार्य में वाछित भूमिका निभाएंगे। अत: उन्हें चाहिए कि वे अपनी पथप्रदर्ंक (Councellor) आदि शक्ति (Holy Ghost) से जिनके आगमन के लिए, ईसामसीह ने यह सकीर्णद्वार खोला था, निरन्तर एवम् दृढ़ सम्बन्ध (योग) बनाए रखे। ] जिस की आज्ञा श्रीमती जी नं दी थी सैंक्ट के प्रम से ही संभव है। रूस के महान साक्षात्कारी करना हदय लेखक लिया टालस्टाय कहा करते थे, " जीवन को विवेकमय बनाने के ति आवश्यक है कि मानव मस्तिष्क की सीमाओं से ऊपर ता हो जीत की लक्ष्य होना चहिए।" जय श्री माता जी। चंतन्य लहरी । खड 18 : अक : 7, 8 1998 he 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-20.txt क पत चिकित्सा सम्मेलन मास्को 07-08-1993 विद्यमान है। वर्षों तक परिश्रम करके बन्दरों, चृहों और सुअरों पर शोध एवम् अध्ययन आप को नहीं करना पड़ता। राग निदान के भयानक न्क में रोगियां को डालने की भी आपको देर से आने का मुझे खेद है। रास्ता भटक जाने के कारण हम ये स्थान न खाज पाए। विज्ञान के इसे नए आयाम (New Dimension In Science) के विषय में सुनने की दच्छा से आप सव लोगों को यहा बने रहने के लिए मैं धन्यवाद देती हूँ। सहजयांग को मैं पराविज्ञान ( Meta Science) कहती हूै क्योंकि सहजयाग में विज्ञान को विधियां नहीं उपयोग आवश्यकता नहीं। सारा शोंध कार्य हो चुका है। सभी कुछ खोजा जा चुका है और लोग जानते हैं कि यह क्या है। इसमें कोई विशेषज्ञता भी नहीं है। उदाहरणार्थं आजकल एक आंख के लिए एक विशेषज्ञ है और दूसरी के लिए दूसरा। कभी-कभी म की जातीं। उदाहरण के रूप में चिकित्सा विज्ञान में जब हम कोई शोध करना चाहते हैं तो हम एक प्रकार की कल्पना, या मैं कहूँगी परिकल्पना का आश्रय लंतं हैं और सोचते हैं कि किसी रोग या समस्या विशेष का संभवत: यही समाधान होगा। सुक्ष्मदर्शी संरचनाओं एवम् वर्ण्टमूष Guinea Pig) क विषय में जानने के लिए शोध हो रहे हैं। ये सभी नए विज्ञान विकसित हो चुके हैं। ये इतने भिन्न एवम् विशिष्ट हैं कि इन पर शाध करने के लिए व्यक्ति को कम से पुरा खीसा खाली कर लेने के बाद आपको प्रमाणपत्र प्राप्त होता है कि आप सबसे अधिक सुस्वस्थ्य व्यक्ति हैं। हो सकता है इस राग निदान के कार्य में आपक सभी अंग, दांत, आखे. नाक, कान या अन्य कुछ निकाल लं। चिकित्सा विज्ञान में इस प्रकार की अज्ञानता ने मुझे चिकित्सा विज्ञान की ओर भी आकर्षित किया। मैंने सोचा कि डाक्टरों से बात करने के लिए प्रौद्योगिकी (Techonology). कार्यपड्धति एवं समस्याओं दूसरी ओर हर दिशा में मुझे कम 15 वर्ष तक अध्ययन करना होगा। तब भी हमें पूर्ण सूचना न मिलेगी कि विश्व में कव और कहां क्या घटित हो का ज्ञान होना आवश्यक है। कि ये विश्व रांगों से भरा अब हमें महसूस करना है है। रहा है। मान लो आप कहते हैं कि, " मैने कुछ नया खोज निकाला है", आस्ट्रेलिया में वे पहले से ही यह सब खोज चुके हैं इस यहां पर एसे बहुत से लाग है जा अंग्रेजी इलाज हुआ करवाने में अक्षम हैं । पश्चिम मे बहुत से डाक्टर सहजयोग इसलिए नहीं अपनाना चाहते कि कहीं उनको कमाई कम न हो जाए। क्योंकि यदि विना औषधियों कं रांगी ठीक होगा ता उनकी जीविका चली जाएगी। नि:संदेह इस मामले पर मुझे हमददी है परन्तु मैं सांचती हूँ कि चिकित्सा एक श्रेष्ठ पेशा है संभवत: अन्य लाग आपको सृचित करें कि प्रकार आप का सारा परिश्रम व्यर्थ ही जाएगा और आपको मान्यता तो आपके आविष्कारों द्वारा ही प्राप्त होती हैं इन अविष्कारों का प्रयोंग भी एक अन्य शोध है । पहले आप चूहों पर प्रयोग करते हैं फिर बंदर पर फिर सुअरों पर और प्राय: श्रेष्ठ लोगों को ही यह पशा अपनाना चाहिए। बाद और तब मानव पर । जब आप इसका प्रयोग करते हैं तो आपको पता चलता है कि यह घातक है। यह शोध कभी-कभी लेते हैं। परन्तु उन देशों में जहाँ लांग धनाभाव कं कारण बहुत भयानक होते हैं। कुछ औषधियों का असर कुछ लोगों पर में धन के आकर्षण से वे भटक जाते हैं और इसे व्यापार बना चिकित्सा सहायता नहीं प्राप्त कर सकते बहां में आपकी विष सा होता है क्योंकि हर व्यक्ति भिन्न प्रकार से वनाया गया श्रेष्ठता, महानता और मानवीय स्वास्थ्य को चुनौती दूँगी। रूस और युक्रेन के लोगों को मै अत्यन्त मानवीय पाती हैं। चीन कंे लोग भी अत्यन्त मानववादी हैं। इन लोगों को मैं बताना चाहुँगी कि एक वैज्ञानिक के खुले मस्तिष्क से आप समझें कि हैं और उसकी भिन्न समस्याएं होती हैं। अतः अपने तत्व को जाने बिना अपने अन्तस को जाने विना, इन रोगों के कारणों को जाने विना, इनके विषय में हम ठीक से कुछ भी न कर सकगे। अंग्रेजी दवाइयां. विशेषतौर पर, वहुत ज्यादा गर्मी पैदा सहजयोग क्या है? एक परिकल्पना के रूप में आप इस लें। करने वाली होती हैं इस गर्मी को सन्तुलित करने के लिएसमस्याओं से उभरते हुए आप जैसे देश के लिए भारत. पूर्वी आपको कुछ न कुछ लना होता है। यह एक अन्य अन्ध गली (Blind Alley) सहजयाग परा-विज्ञान है। यहां आपका शोध नहीं करना पड़ता । इस पर पहले से शोध हो चुका है और सभी कुछ कम खण्ड (East Block) मिश्र तथा सोमालिया जैसे अफ्रीकन देशां के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है। इन सभी स्थानों पर मानव के साथ दुर्व्यहार हो रहा है। यह अत्याचार है। धन लोलुप लोगों द्वारा की गई तोड़-मरोड़। चैतन्य लहयो 19 खंड : X अंक : 7. 8 1998 । 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-21.txt अतः मै इसे (सहजयोग) पराविज्ञान कहती हूँ क्योंकि रह गया। कहने लगा कि यह तो हमारे चिकित्साविजञान में भी नहीं है।" मैने कहा आप यहां तक नहीं पहुँच सकते क्यांकि विज्ञान की भी अपनी सीमाएं हैं। परन्तु अब जो में कह रही हूँ आप उसे सत्यापित करें। और यदि यह सत्य हो तो इसे अवश्य स्वीकार करें।" वह इतना आश्चर्यचकित हुआ। तीन दिनों की अवधि में उसका बच्चा दौड़ता फिर रहा था अब वह बच्ची बड़ी हो गई है, उसका विवाह हो गया है और उसके बच्चे हैं। तो मेरे मस्तिष्क में आया कि, "क्यों न महजयाग का पूर्ण ज्ञान आपक सम्मुख है। हम दावा भी कर सकते हैं सहजयाग द्वारा ठीक किए जा सकते है। खेद के साथ मुझे कि बहुत से मनोदेहिक, शारीरिक, मानसिक रोग कहना पड़ता है कि पिछले चार वर्षों से मैं यहां चिकित्सकों की सम्बोधित कर रही हूँ फिर भी कोई ठोस कार्य नही हुआ। यह बड़ी हैरानी की वात है। स्वभाव से इतने सामूहिक आप लागों का समझना चाहिए कि चिकित्सक होने के नाते आप अपने साथी मनुष्यां के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। इसका अर्थ यह है कि सभी धनी लोग आप के लिए धन खर्चने को हम सहजयोग पर शोध करें?" मैने उसे तीन चार असाध्य रांगी शोध के लिए लेने को कहा और वताया कि किस प्रकार तेयार है। परन्तु असाध्य रोगों के कारण मरने वाले लोगों के लिए आप यदि कुछ कर सकते हैं ता क्या आप सोचते हैं कि यह डॉक्टर का क्तव्य नही है? उनका इलाज किया जाए। तत्पश्चात तीन डाक्टरों ने सहजयोग पर शोध रोग पर. दूसरे ने अस्थमा पर और तीसरे ने शारीरिक तन्दरुस्ती पर, जैसे उच्च रक्तचाप को, हृदय की धड़कनो को और पूरे करके एम. डी. की उपाधिया प्राप्त की। एक ने मिर्गी इसके विपरीत भारत में मेरा भाषण सुनने के लिए दो सौ डॉक्टर थे, क्योंकि सभागार बहुत वड़ा न था। इसके पश्चात उन्होंने इसे अपनाया और अब ये लाग सौख रहे हैं कि सहजयोग क्या है। वे इसे कार्यान्वित कर शरीर को सामान्य करना। इन सारी बीमारियों का सौ रोगियों पर शोध किया गया और तब वे जान पाए कि किस प्रकार रहे हैं क्योंकि भारत भी अत्यन्त गरीब देश है। परन्तु यदि सहजयोग द्वारा रोगी ठीक हो सकते हैं। तब मैने डा. राय को एक पुस्तक लिखने के लिए कहा और उन्होंने एक वहुत अच्छी पुस्तक लिखी। जिसका विमांचन बहुत से डाक्टरों के एक डाक्टर राय हैं जिनकी पोती सहजयोग से ठीक सम्मुख किया गया। अब वह पुस्तक तैयार है। हम सोच रहे हैं कि रूसी भाषा में भी इसका अनुवाद करवाए। परन्तु इस पुस्तक को भी पढ़ने की कोई आवश्यकता नहीं है। मैं जो भी कह रही हूँ उसे जानने के लिए आप सब शोध कर सकते हैं। तो इसे स्वीकार कर लें और आपमे अपन साथी मनुष्यां के लिए करुणा एवम् प्रम की भावना नहीं हैं तो यह कार्यान्वित न होगा। ुर शाम हुई. जबकि उन्हें कहा जा रहा था कि इस बच्चे की मृत्यु हो जाएगी। उसने सोचा कि मेरी पोती की तरह से और भी तो नन्हें बन्चे होंगे जो अंग्रेजी चिकित्सा से ठीक नहीं हो सकते। यदि यह बहुत ही सहज इलाज है वे बहुत पढ़ लिखे है। परमात्मा ही जानता है कि उनके पास कितनी डिग्रियां हैं, कंगारू की लम्बी पूँछ की तरह से। परन्तु विश्वास करके इसे अपना लें। चिकित्सा विज्ञान में भी यदि बताया जाए कि, "इस बीमारी के लिए अमुक औषधि है" तो हमें इस पर विश्वास करना पड़ता है। मेरा कहने का अभिप्राय यह है कि ऐसी कोई समिति नहीं है जो ये कहे कि "यह निश्चित रूप से ठीक है।" कोई भी प्रयोग करकं यह नहीं कह जब वे अपनी पाती का इलाज न कर पाए तो उनकी सभी उपाधियां धरी रह गई और वे सहजयोग में आ गए। अभी तक भी उनमें बहुत अहंकार था और वे विश्वास न कर पा रहे थे कि ये वच्चा ठीक हो सकता है। उन्होने मुझसे कहा, "विज्ञान की दृष्टि से पहले आप मुझे बताए कि आप क्या करने वाली हैं।" मैने कहा, "डाक्टर आपके पास पहले ही विज्ञान की सकता कि यह सर्वोत्तम है।" परन्तु हम विश्वास करते हैं कि ठोक है ये चीज वाजार में आई है और इसे बनाने वाले लोग अच्छे हैं इसलिए हम इसे अपना लेते हैं। इसी तरह औषधि बहुत सी उपाधियां हैं। आप चाहते हैं कि आपकी पोती जीवित व्यापार बहुत बड़ा उद्यम बन गया है। इसे बेचने वाले लोग भी इस पर विश्वास करते हैं और इसे अपनाते हैं मैं किसी चौज को बेचना नहीं चाह रहो और न ही आपसे किसी चीज की आशा है। परन्तु मैं चिकित्सा पेशे की श्रेष्ठता को जागृत करना चाहूँगी क्योंकि इसमें हमें अपने साथी मनुष्यों की सेवा करनी होती है जो कि सदैव पैसे के लिए नहीं होती। करुणा के लिए रहे या आप विज्ञान का ज्ञान चाहते हैं?" मैने कहा, "मैं उस वच्चे को कुछ नहीं करना चाहती. तुम्हें विश्वास दिलाना चाहती हूँ कि बच्चा ठीक हो सकता है। मै बच्चे की कुण्डलिनी जागृत करूँगी और बच्चा ठीक हो जाएगा। इसके लिए आपको कुछ भी न देना होंगा।" तब भी वह विश्वास न मै अपने बच्चे बाबा कर पाया। परन्तु बच्चे की माँ ने कहा, का जीवन चाहती हूँ।" और वह बच्चा ठीक हो गया। तब मैने भी होती है। मेरे पास बहुत से ऐसे लोग आते हैं जिन्ें अब बैठ जाओ, मै आपको बताऊंगी कि बच्चे सहजयोगी ठीक कर सकते हैं। मै एक श्रेष्ठ व्यक्ति डा. बागडान का उदाहरण दूँगी। उन्होंने लन्दन में खुल्लमखुल्ला से इलाज शुरु किया और अंग्रेज डाक्टर सोचते हैं उसे वताया: " के साथ क्या समस्या थी और किस प्रकार वह ठीक हो गया। अब मै आपको वताती हैँ।" जब मैने उस बताया तो वह हैरान सहजयोग पाम 20 चैतन्य लहरी ॥ खंड : X अक : 7, 8 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-22.txt कहा अब आप डाइलिसिस क्यों उपयोग करे जा रहे हैं ? वह कहने लगा इन मशीनों को खरीदने में हमने बहत सा धन खर्च किया है इनसे यदि धनार्जन नही करेंगे तो हमारा क्या होंगा? हम दिवालिया हो जाएंगे। मैंने कहा, "तुम बहुत से लोगों को दिवालिया बना चुके हो।" परन्तु उसने यह कार्य न छोड़ा। तो यह मानसिकता है। गुर्दा रोगी यदि डाइलिसिस पर न गया हो तो उसे ठीक करना आसान है। डाइलिसिस पर जाने के पश्चात बहुत से रोगियों को हमने ठीक होते देखा है मनोवैज्ञानिक भय के कारण भी कुछ लोग डाइलिसिस नहीं छोड़ते। उन्हें स्वयं पर विश्वास नहीं है। परन्तु कोई डाक्टर यदि उन्हें वता दे कि तुम ठोक हो गए हो, तुम्हें कुछ नहीं हो सकता तो वे सहजयोग कां छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे. कभी डाइलिसिस के लिए नहीं जाएंगे। मैं तुम्हें एक अन्य उदाहरण देती हूँ। भारत के एक वहुत अमीर व्यक्ति हैं। मैं स्वयं इलाज नहीं करती। परन्तु उसके कि वे हर क्षेत्र में चोटी पर हैं। एक बहुत बड़ी गली हालँस्ट्रीट, में एक अस्पताल है जहां व्यक्ति का न जाने कितनी नकद राशि जमा करनी होती है। अरब देशों के सभी लोग वहां आते हैं। वहां पर किसी डाक्टर से समय लेना वहुत कठिन कार्य है। अरब देशों से सारा पैसा हा्ली स्ट्रीट में आ रहा है। कुछ डाक्टर पूरा महीना चिकित्सा कार्य करते हैं, सप्ताह में एक बन्टा और कुछ 15 मिनट। आप यदि 15 मिनट देर से जाएं तो कोई अन्य डाक्टर बैठा हुआ मिलेगा। यह इतना सुनियोजित है तो चिकित्सा विज्ञान व्यापार बन गया है यही कारण है कि सस्ते और सुगम तरीके से अपने साथी मानवों कुछ का इलाज करने का तरीका लोग नही निकालना चाहते। आपके शरीर तन्त्र की तस्वीर यहां हैं । यह आपकं अन्त:स्थित मूल यन्त्र है। इस पर तीन नाड़िया और सात चक्र हैं अत: तीन गुणा सात अर्थात समस्याएं हो सकती हैं। ये मिली जुली भी हो सकती है। निदान आपकी अंगुलियों के सिरो पर है। कुरान में मोहम्मद साहब ने पिताजी मेरे भाई सम थे इसलिए मैं सहमत हो गई: "ठीक है, कहा है कि आपके हाथ बोलेंगे और सत्य और सत्य के विषय में तुम्हारा इलाज करूगी।" उन्हें बहुत तीव्र हृदयघात हुआ था। शहादत दंगे परन्तु अरब के लोग सहजयोग में नहीं आएंगे। वे हालीस्ट्रीट अस्पताल में जाएंगे क्योंकि पैसा देकर खरीदी हुई चिकित्सा उन्हें बेहतर लगती है। यह मनोवैज्ञानिक है। परन्तु मैं सांचती हूँ कि रूस के लोग अधिक बुद्धिमान है। मृलत: इक्कोस प्रकार की सभी डाक्टरा ने उसे बताया कि तुममें यह कमी है. वह कमी है। तुम्हे हस्टन जाना होगा। वहां दो डाक्टर हैं। एक डाक्टर हुदय निकालता है दूसरा, डाक्टर कुल्हे हृदय निकालने में तो वहुत कुशल कर सकता है। उस व्यक्ति को ड़ा. कुल्हे के पास जाने के लिए कहा गया। अब वह मेरे पास आया, मैने उसे बताया: में नहीं है परन्तु वह सोचता है कि वह भी इलाज तो मूलत: हमारे अन्दर 21 प्रकार को समस्याएं है और अब आप बिल्कुल ठीक हैं, पूर्णत: ठीक। " वह विश्वास न कर पाया और जिस डाक्टर ने उसे डा. कुल्हे के पास जाने के लिए कहा था वह उसके पास गया। उसके डाक्टर ने कहा: अब आप बिल्कुल ठीक हैं। आपने क्या किया है? आपका हृदय पूर्णतया सामान्य है।" वह कहने लगा "ऐसा कैसे हो सकता है, मैंने दस दिन पूर्व तुम्हारा परिक्षण किया था और इनके छोटे-छोटे रूप पूरक सम्पूरक (Permutations & Combinations) हैं। मूल प्रकार से तीन प्रकृतियां के लोग है। समस्याएं बाएं, दाएं, या मध्य से आती हैं। किसी सहजयोगी से यदि आप समस्या के विषय में पुछे तो वह कहेगा: "बाई ओर की या दाई ओर की। " बस अब केवल एक चीज रह जाती है कि बाई या दाई ओर का पोषण करें| तुम बीमार थे ! अब तुम बिल्कुल ठीक हो" संकोच के कारण उसने मेरा नाम नहीं बताया, इतना बैभवशाली व्यक्ति किस प्रकार कहता कि वह सहजयोग के लिए जाता है। तो बह एक अन्य डाक्टर के पास गया, तीन चार प्रसिद्ध डाक्टरों के पास गया। उन्होंने कहा कि आप पूर्णतः ठीक हैं आपका हृदय बिल्कुल ठीक है। परन्तु उसके पास पेसा था, वह हस्टन गया। मैने यूछा: "अब आप बिल्कुल ठीक है, कोई परेशानी नहीं।" कहने धनाभाव में उनकी इच्छा शक्ति भी बेकार हो जाती है। मैने लगा, " हां मैं टेनिस खेलता हूँ और बिल्कुल ठीक हूँ, परन्तु उस डाक्टर को कहा: " मैं तुम्हें बताती हूँ कि सहजयोग से गुर्दा " मैने कहा, "ठीक है तुम्हारे पास पैसा है, अवश्य जाओ। इस डाक्टर कुल्हे को में जानती हूँ।" वह उसके पास गया। उन्होंने उसे सभी प्रकार से जाँचा। उसके सभी प्रकार के परीक्षण किए। जब रिपोर्ट डा. कूल्हे के पास गई तो डा. कूल्हे उसपर बिगड़ गए और कहने बेहतर होगा कि पागलखाने जाकर तुम अपना परीक्षण उदाहरण के रूप में यदि गुर्दा खराब हो जाए तो रोगी को डाइलिसिस के लिए लें जाते हैं । सभी जानते हैं कि रोगी को बचाया नहीं जा सकता। पूरा जीवन ही वह डाइलिसिस पर रहेगा। दुर्भाग्यवश डाइलिसिस विभाग के एक प्रसिद्ध विभागाध्यक्ष का गुर्दा खराब हो गया। कहने लगा: "मैं डाइलिसिस पर नहीं जाना चाहता क्योंकि पूरा जीवन में इसका खर्च नहीं उठो सकता।" दिवालिए होकर डाइनिसिस के रोगी मर जाते हैं। रास्ते में मुझे मिलने के लिए वह लन्दन आया। डा. कूल्हे को तो मैं अवश्य मिलूंगा। रोग शत प्रतिशत ठीक हो जाएगा। परन्तु आप मुझसे वायदा करें कि लोगो को ठीक करने के लिए आप डाइलिसिस का पुनः उपयोग नहीं करेंगे। केवल सहजयोग से आप लोगों को ठीक करेंगे। उसने मुझे बचन दिया । वह ठीक भो हो गया। लगे लेग," परन्तु अब भी वह डाइलिसिस उपयोग किए जा रहा है। मैने चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 7, 8 1998 21 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-23.txt वास्तविकता के अन्य क्षेत्र में प्रवेश करते हैं. पूर्णत्व में प्रवेश करते हैं। विश्वास करें, आप मानव का बहुत हित कर सकते करवाओ। तुम्हे कोई रोग नहीं है। तुम्हारा हृदय पूर्णत: स्वस्थ्य हैं।" डाक्टर उस पर चिल्लाया, यहा तुम मेरा और हस्पताल का समय बर्बाद करने के लिए आ गए हो। यहां लोग लाइनों में हैं। कल इतिहास में क्या लिखा जाएगा कि रूस के डाक्टरों ने प्रतीक्षा कर रहे हैं और तुम मेरा समय बर्बाद कर रहे हो। कौन अपने साथी मानवों की चिन्ता नहीं की । उन्होंने सहजयोग से मूर्ख डाक्टर ने तुम्हें हमारे पास भेजा है? कौन से हस्पताल ने? पैसे के लालच में सभी स्वस्थ्य लोगों को भेज देते हैं। अब कभी मुझे अपनी शक्ल मत दिखाना।" उसने आकर मुझसे हजारों सहजयोगी हैं जो स्वयं इलाज कर सकते हैं परन्तु सारी कहानी सुनाई और हंस हंसकर लोटपोट हो गया। फिर भी कहने लगा, चाहिए; देखिए मै किस प्रकार आपसे मिल सका। परन्तु मेरे चाचा आपसे न मिल पाए। मेरे भाग्य को देखें।" तो यह उस व्यक्ति की कहानी है जिसका हृदय रोग ठीक हो गया। मेरा कोई हस्पताल नहीं है, कोई सचिव नहीं हैं । मैने चिकित्साविज्ञान से भी अधिक प्रभावशाली है तो क्यों न इसे उसे कहा कि बाबा तुम सहजयोग केन्द्र जाओ वे तुम्हारा इलाज करेंगे। परन्तु उसके मित्र उसी की तरह से धनवान हैं वे कैसे सहजयोग केन्द्र जैसे साधारण स्थान पर जा सकते हैं। कहते हैं कि ये हमारे सम्मान के अनुरूप नहीं। अत: श्री माताजी आप ही हमारा इलाज करें। उनमें से कुछ लन्दन और स्पेन तक मेरा पीछा करते रहे और मुझे बहुत परेशान किया। परन्तु कभी वे मुझसे भी बड़ी हैं। वो पीढ़ी हमने खो दी है जिसमें करुणां मुझे मिल न पाए। मैने कहा, " अच्छा होगा कि आप सहजयोग केन्द्र जाएं।" "परन्तु सहजयोगी डाक्टर नहीं हैं हम उनसे इलाज नहीं कराएंगे इसीलिए मै आप लोगों से अनुरोध इन सभी गुणों को अपने में अभिव्यक्त होता हुआ आप पाएंगे। कर रही हूँ कि आप श्रेष्ठ लोग हैं। आपकी उपाधियों पर उन्हें श्रद्धा है। वे आपको करुणामय और ईमानदार समझते हैं। यही कारण है कि मैं डाक्टरों से बात कर रही हूँ। अब मुझे आशा कि रूस में आपमें से कुछ लोग सहजयोग का ज्ञान प्राप्त करेंगे। कोई हस्पताल हमें सहजयोग के लिए कुछ स्थान देने वाला है। परन्तु पिछले चार वर्षों से कुछ भी नहीं हुआ। इससे लोगों के मुकाबले वे मूढ़ हैं । अन्य लोग अहंकारी हैं । मै पुर्व भी मैं आपको सहजयोग के विषय में बताती रही। आज मैने आपको वताया है कि क्यों चिकित्सक लोग सहजयोग के लोग अत्यन्त बुद्धिमान हैं और उनका हृदय बहुत विशाल है। ज्ञान को अपनाएं। क्योंकि मुझे डाक्टरों से बातचीत करनी थी। इसी लिए मैं एक बार फिर आपके विवेक से अनुरोध करती हूै।D0 अपने मस्तिष्क को खोलें। यह पराविज्ञान है, चमत्कार है । आप लोगों तक नहीं पहुँचाया । एक दिन तो सहजयोग निश्चित रूप से लोगों तक पहुँच जाएगा। आज भी रूस ओर यूक्रेन में डाक्टर न होने के कारण कुछ विशेष नहीं हो पा रहा। आप स्वयं शोध करके देख क्यों नहीं लेते कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य है या नहीं। आप डाक्टर लोग यदि आज कोई कदम नहीं उठाते तो कल लोग कहेंगे, " उनमे क्या कमी थी?" जब सारी चीज आप तक स्पष्ट रूप से लाई गई है और वह श्री माताजी व्यक्ति का भाग्य भी अच्छा होना आप अपनाएं? अभी भी में डाक्टरों को समझ नहीं सकी। मैं जब चिकित्सा विद्यालय में पढ़ रही थी तो हम छः लड़कियां थीं। वे सभी बहुत अच्छी थीं और देश के लिए कुछ करने इरोदा था। परन्तु तब तक सामूहिक रूप से सहजयोग का कार्यान्वयन मैं न खोज पाई थी। आज मैं 71 वर्ष की हूँ और एवं आशीर्वाद था. जिसके मानवीय मूल्य बहुत ऊँचे थे। परन्तु यदि आपकी कुण्डलिनी जागृत हो जाए. तो मुझे विश्वास है. आप अत्यन्त प्रग्लभ एवम् करुणामय बन जाएंगे। मुझे खेद है कि मुझे यह सब बातें आपसे कहनी पड़ीं। परन्तु आप लोग रूस और यूक्रेन के लोगों के लिए मैरी भावनाओं को समझें। वे बहुत अच्छे लोग हैं अमेरिका के डाक्टरों से मै यहां मौन की आशा नहीं कर सकती। वैसे तो में भी सोचती हूँ कि आप बहुत समय से रूस आ रही हूँ और जानती हैँ कि रूस के आपका हार्दिक धन्यवाद दय हु ा सा बा 22 चैतन्य लहरी खंड : x अंक : 7. 8 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-24.txt दिवाली पूजा मास्को 12-11-1993 विश्वभर से इतने सारे लोगों को देवी लक्ष्मी की पूजा करने के लिए यहां आया देखकर बहुत आनन्द हो रहा है| बुद्धि से जब आप सभी चीजों का वर्णन नहीं कर पाते तो अपनी अन्तअभिव्यक्ति करने के लिए कला का सहारा लेते हैं। तार्किक रूप से या शब्दों में जिस बात को आप नहीं कह सकते उसे कहने के लिए आप प्रतीकों का सहारा लेते हैं। कलाकार यही करता है, कवि भी यही करता है। वह अपनी कल्पना की इस प्रकार विस्तृत करता है कि उससे प्रतीक का सृजन कर देता है। यह मस्तिष्क सीमित है और एक सीमा तक ही जा सकता है। सत्य और वास्तवकता से यदि इसे प्रमाणित किया जाए तो कुछ समय पश्चात पूर्ण रेखीय गतिशीलता रुक जाती है और पतन हो जाता है। आज सभी क्षेत्रों में हमें यह दिखाई दता है, सभी उत्कृष्ट चीजों का पतन हो गया है। यह पतन घटित होता है और लोग इसे स्वीकार कर लेते हैं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात जब आप आत्मा स्थिति क्या है? अपने धन से वे अपना ही विनाश करने के निए निकल पड़े हैं। क्रोध, वासना और लोभ की अभिव्यक्ति के लिए वे अपने धन का दुरूपयोग कर रहे हैं । स्वयं को उत्कृष्ट दर्शाने के लिए किए गए आडम्बरों पर वे अपना धन बर्बाद कर रहे हैं । । जैसे अमेरिका में मैं एक धनी व्यक्ति से मिली। उसकी कार के करीब जब मै पहुँची तो उसने मुझे बताया कि मेरी कार के हैंडल दूसरी ओर खुलते हैं । मैने पूछा. क्यों? ऐसी चीज का क्या लाभ है, कोई भी आपकी कार में बन्द हो सकता है। उसने कहा, इस अद्वितीय चीज की रचना की है।' मै जब उसके घर पहुँची तो उसने मुझे बताया, 'सावधान रहें. मेरा स्नानागार अति विशेष है। कहने लगा. 'यदि आप ये बटन दबाएंगी तो आप सीधे तरणताल में जा पड़ेंगी।' तब वह मुझे अपने पलंग के पास ले गया और कहने लगा. यह पलंग अति विशेष है, यदि आप यह बटन दबाएंगी तो आपकी टाँगे उपर की ओर हो जाएगी ऑर यदि दूसरा बटन दबाएंगी तो आपका सिर उपर की ओर हो जाएगा।' मैने कहा, 'सारी रात में यह व्यायाम नहीं करना चाहती. मै पृथ्वी पर सो जाऊँगी। पूर्वी खंड (Easterm Block) के लोग यह सोचते हैं कि अमेरिका या यूरोप के वैभवशाली लोग बहुत प्रसन्न है परन्तु वे खुशहाल नहीं हैं क्योंकि उनमें विवेक का अभाव है। व्यर्थ में वे अपना धन बर्वाद किए चले जाते हैं, वे दिवालिए हैं, बेकार हैं । एक दिन तो वे रॉल्स रॉयस गाडी में चल रहे होते हैं और दूसरे दिन सड़क पर भीख माँगते नजर आतं हैं उनके पास केवल पैसा है, लक्ष्मी नहीं है। अत: लक्ष्मी के प्रतीक को समझ लेना हमारे लिए अत्यन्त आवश्यक है। लक्ष्मी आपकी नाभी में निवास करती है और उसके सन्तुष्ट होने पर ही महालक्ष्मी तत्व जागृत होता है, तभी आप आगे देखने लगते हैं। लोगों के पास बहुत पैसा था परन्तु वे ये न जानते थे कि इसका क्या किया जाए। उन्होंने सोचा कि यह पैसा काफी नहीं है, अभी और धनार्जन करना चाहिए। नशे और सभी प्रकार की बुरी आदतों में वे फैस गए। लक्ष्मी तत्व इस प्रकार है- जैसा मैने कहा लक्ष्मी एक माँ है। उनके दो हाथों में गुलाबी कमल है। कमल जल में जन्म लेता है और अपने अन्दर भवरे को भी स्थान देता है अर्थात् धनी व्यक्ति या लक्ष्मीपति के पास गुलाबी कमल की तरह से सुन्दर घर तो हो परन्तु इसमें अतिथियों का स्वागत होना चाहिए। भंवरा कमल के पराग पर बैठ जाता है और रात के समय कमल बंद हो कर ठंड से इसकी रक्षा करता है । यह मेरा व्यक्तित्व है, मेरी प्रतिभा नें नाज: बन जाते हैं तो अपकी कल्पना वास्तविकता को छ लेती है। तब पथभ्रप्ट एवं मिथ्या प्रतीक छूट जाते हैं और आप प्रतीकों की बास्तविकता को छू लेते हैं। सर्वत्र बिल्कुल यही हुआ है। उदाहरणार्थ भारत में धन की देवी को लक्ष्मी रूप में मानते हैं। लक्ष्मी के इस प्रतीक का वर्णन वास्तविकता में सन्तों और पैगम्बरों ने किया। परन्तु बाद में लोग न तो प्रतीक को समझ पाए और न ही इसके पीछे छिपी वास्तविकता को। उन्होंने सोचा कि लक्ष्मी का प्रतीक धन, वैभव, सोना, चाँदी, हीरे तथा धन धान्य हेै। उन्होंने धन की पूजा करनी शुरू कर दी और इस प्रकार वैभव की प्रतीक देवी लक्ष्मी को तोड़ मरोड़ू कर दर्शाया। लोग नहीं समझते कि धन मिल जाने पर वे दुष्कार्य क्यों करने लगते हैं। भारत में भी आजकल लोग इतने पथभ्रष्ट गए हैं कि यदि किसी गरीब व्यक्ति को आप सौ रुपये दें तो वह सीधा शराब के अड्डे पर पहुँच जाएगा। वह अपने लोभ के विषय में सांचेगा, किसी अन्य के विषय में नहीं, हो सुख अपने परिवार, अपने बच्चों, अपने देश के विषय में नहीं सोचिंगा। केवल अपने विषय में ही सोचेगा। परन्तु देबी लक्ष्मी का प्रतीक बिल्कुल भिन्न है। सर्वप्रथम जिसके पस लक्ष्मी है उसे माँ होना पड़ता हैं उसमें एक माँ का प्रेम होना चहिए जो अपने बच्चों को प्रेम करती है। उसका 'स्त्री' होना आवश्यक है। स्त्री श्रेष्ठता की प्रतीक हैं, माँ पूर्ण शक्तियों का स्रोत हैं उसमें धैर्य, प्रेम एवम् करुणा होते हैं। तो व्यक्ति जब तक करुणा में नहीं होता और अपने धन को दूसरे के हित के लिए उपयोग नहीं करता तब तक धन के होते हुए भी वह प्रसन्न नहीं रह सकता। आज के वैभवशाली देशों की बैतन्य लहरी खंड 23 खड : X अंक : 7. 8 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-25.txt अतः धनी व्यक्ति लक्ष्मीपति नहीं होता। उसे लक्ष्मी जी का आशीर्वाद प्राप्त नही होता। केवल विजेकशील वैभवशाली व्यक्ति को लक्ष्मी का अशीर्वाद प्राप्त होता है। ऐसे लोग कमल की तरह से मेहमान-नवाज होते हैं। सदैव अतिथियों का स्वागत करने और देखभाल करने के लिए उद्यत रहते हैं। ध नवान व्यक्ति को सदैव व्यक्तिगत रूप से सत्कारशील होना नहीं है, फिर भी आप सभी अवतरणों, पीरों पैगम्बरों की पूजा चाहिए। परन्तु हैरानी की बात है कि तथाकथित वैभवशाली देश जी का आशीर्वाद प्राप्त था। वे सन्तुष्ट लोग थे। अत: सन्तुष्ट पराश्रित हैं। उन्होंने सभी देशों को लूटा, वहा साम्राज्य बनाए। उदाहरणार्थ भारत में अंग्रेज 300 वरषों तक हमारे अतिथि थे। बिना किसी बीजा ( Visa) या वैध देश परिवर्तन के वे यहां आए। परन्तु आज यदि किसी भारतीय को इंग्लैंड जाना हो तो है। यह शुद्ध इच्छा है जो कि कुन्डलिनी है जब आप पृर्णतः यह असम्भव बात है। कोई यदि वहां चला भी जाए तो भी वे उन्हें अपने स्तर पर नहीं मानते। अमेरिका में भी ऐसा ही है। परमात्मा का धन्यवाद है आपके अन्दर महालक्ष्मी तत्व जागृत होता है। यह महालक्ष्मी कि कोलम्बस भारत नहीं आया, श्री हनुमान जी उसे अमेरिका ले गए अन्यथा सभी भारतीय समाप्त कर दिए जाते और मैं भी यहां न होती। अमेरिका में उन्होंने वहां के सभी मूल निवासियों को समाप्त कर दिया और उनकी भूमि छीन ली और आज उन्हें धनवान माना जा रहा है। उनके किए हुए पाप अवश्य उनके सामने आएँगे । आज कोई अमेरिका आसानी से नहीं जा लक्ष्मी जी सुरक्षा प्रदान करती हैं, उन सभी को जो उनकी पूजा करते हैं और उनके लिए कार्य करते हैं। अत: अपने पास कार्य करने वालों की. आश्रितों की सुरक्षा करना वैभवशाली व्यक्तियों का कार्य है। आज आप उस स्थिति तक उन्नत हो गए हैं कि आपके मस्तिष्क में धर्मान्धता करते हैं। उनमें से अधिकतर के पास धन न था पर उन्हें लक्ष्मी करना लक्ष्मी जी का गुण है। अर्थशास्त्र का पहला सिद्धांत है कि आवश्यकताएं आमतौर पर पृर्ण नहीं होती। तो पूर्ण होने वाली कौन सी इच्छा सन्तुष्ट हो जाते हैं और जान लेते हैं कि धन, सत्ता तथा अन्य बेकार कि चीजों के पीछे मारे-मारें फिरना मुर्खता है तब तत्व आपको सत्य साधना की और ले जाता है। तब आप विशेष श्रेणी के लोग बन जाते हैं, जिन्हें विलियम ब्लैक ने परमात्मा के व्यक्ति (A man of God) कहा है। तब आपमें बचपन, राष्ट्रीयता बाह्य धर्म के बन्धन नहीं रह जाते। आप इनसे उपर उठ जाते हैं. आत्मा बन जाते हैं। इस समय आप अपने अन्दर के लक्ष्मी तत्व को समझते हैं। लक्ष्मी तत्व का अर्थ है दूसरों के लिए हितकार्य करने का आनन्द लना। सामूहिक चेतना में आप दूसरों के लिए कार्य करना चाहते हैं। आप यदि अब भी केवल अपने लिए, अपनी सुख सुविधाओं के लिए. अपनी जीविका के लिए अपनी गरिमा के लिए चिन्तित हैं तो आप असन्तुलित हो जाते हैं। लक्ष्मी जी तो कमल पर पूर्णतः सन्तुलित रूप से खड़ी हैं। वे अपना प्रभुत्व नहीं दिखाती, मात्र कमल पर खड़ी हैं, कभी नहीं दर्शाती कि वे वैभव हैं या धनधान्य की देवी हैं । अपने आप में वे पूर्णतः सन्तुष्ट है। आप यदि स्वयं से सन्तुष्ट नहीं है तो इसका अर्थ यह है कि आप स्वयं को नहीं जान पाए। सहजयोगी वह व्यक्ति होता है जो अपने से पूर्णतः सन्तुष्ट है क्योंकि उसकी आत्मा पूर्ण ज्ञान का स्रोत है, उसके चित्त को ज्योतिर्मय करने का स्रोत है और उसके आनन्द को स्रोत सकता । माना ये उनका अपना देश हो ! वे सब तो उस देश के हैं ही नहीं। स्वयं को उच्च जाति का मानने वाले लोगों को देखें कि वे अपने को उच्च मानते हैं क्योंकि उनके पास अधिक धन है । उन्होंने गैस कक्ष में डालकर बहुत से लोगों की हत्या की, सभी प्रकार के पाप किए। किस प्रकार वे उच्च जाति के हो सकते हैं? मेरी समझ में नहीं आता। क्या यह उच्च होने का चिन्ह है? ईसा मसीह को यदि हम श्रेष्ठ व्यक्तित्व का प्रतीक मानते तो उनके क्या गुण हैं? जहां तक चरित्र का सम्बन्ध है, वे श्रेष्ठतम व्यक्ति थे महानतम व्यक्तित्व| इतनी क्षमाशीलता और गरिमा! वे लक्ष्मी जी से आशीर्वादित थे अत्यन्त सन्तुष्ट व्यक्ति थे धन के लिए वे कोई अनुचित कार्य न कर सकते थे, कोई उन्हें खरीद ने सकता था। अंत: सहजयोग में आने के पश्चात यह जानना आवश्यक है है। आनन्द, प्रसन्नता या अप्रसन्नता नहीं है क्योंकि ये दोनों तो अहम् पर निर्भर हैं। आनन्द पूर्ण है। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात आपको इतना आनन्द आता हैं कि आप न तो धन की चिन्ता करते हैं और न ही किसी और चीज़ की। धन मिल जाए तो भी ठीक, नहीं मिले तो भी ठीक । आप पूर्णतः निर्लिप्त हो जाते हैं । अन्त में मै आपको राजा जनक की कहानी सुनाऊगी। जनक श्रीराम को पत्नी सीता के पिता थे संभवत: वे 6000 कि आप श्री लक्ष्मी से आशीर्वादित हैं। एक हाथ से वे बॉटती रहती है, देना उनका स्वभाव है। एक दरबाजा यदि खुला रहेगा तो हवा नहीं आएगी परन्तु दूसरा दरवाजा यदि आप खाल देंगे तो हवा बहने लगेगी। अत: सन्तोष सहजयोगियों के गुणों में से एक है। कुछ लोग पैसे के मामले में चमत्कार की आशा करते हैं आपका दृष्टिकोण एसा नहीं होना चाहिए। अब आप आत्मा है और आत्मा शारीरिक या मानसिक सुविधाओं की चिन्ता नहीं करती, आत्मा के सुख की चिन्ता करती है। नि:सन्देह आप में से बहुत से लोग आत्मा बन चुकं हैं परन्तु आप में से कुछ अभी तक अपनी स्थिति को नहीं पचचान पाए। यह स्थिति आपको पहचाननी है। दूसरे हाथ से सुख हजार वर्ष पूर्व हुए। व राजा थे। राजाओं के वस्त्राभूषण धारण करने पड़ते थे। परन्तु उस समय के सभी सन्त उनके चरण स्पर्श किया करते थे। तो एक गुरु के शिष्य ने पुछा आप क्यों उनके चरण स्पर्श करते हैं, वे तो राजाओं की तरह उन्हें चैतन्य लहरी खंड : X अक : 7. 3 1998 24 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-26.txt ने सहजयोग में आप लोग उन्तत हो। बीने न बने रहे । पूर्वी खण्ड (Eastern Block) और रूस वहुत तजी से कार्य करता है क्याकि यह सच्चा विश्वास है। से बस्त्राभृषण पहनते हैं और उसी तरह से रहते हैं?" गुरु उत्तर दिया." तुम नहीं जानते कि वे कोन है, यदि उनकी कृपा दृष्टि तुम पर हो जाए तो व तुम्ह आत्मसाक्षात्कार प्रदान कर मकते हैं।" तो शिष्य नचिकेता राजा जनक के पास गए और उनसे कहा, "श्रीमन् में आपके पास आत्मसाक्षात्कार लेने के लिए आया हूँ। राजा नं कहा तुम मुझसे मेरी सारी सम्पत्ति, सभी कुछ ले लो परन्तु में तुम्हें आत्मसाक्षात्कार नहीं दे सकता क्योंकि अभी तक तुम इतने विकसित नही हुए हो।" नचिकेता निराश हो गए. " श्रीमन् जव तक आप मैरी योग्यता की परीक्षा लेने के लिए तैयार नही हो जाते मैं प्रतीक्षा करूँगा। " राजा में तथा इस देश के अन्य क्षेत्रों में सहज सामूहिकता देखकर मैं प्रसन्न हैँ। है। आज आप लक्ष्मी का आशीर्वाद मांग रहे हैं तो सर्वप्रथम आपका संतोष एवं उदारता मांगनी चाहिए। लक्ष्मी से आशीर्वादित कभी कन्जूस नहीं हो सकता। ऐसा वो हो ही नहीं सकता। है जो यहां वहां पैसा बचाने में ही लगा रहता है। विकसित व्यक्ति की तो यह केन्जूस प्रवृत्ति किसी रोगी व्यक्ति की होती प्रवृत्ति हो ही नहीं सकती। मुझे प्रसन्नता है कि मैं रूस आई। इस स्थिति में हम स्नान कर रहे थे तो महल से आकर लोगों ने राजा को बताया. ऐसे बाताबर्ण की सृष्टि कर सकंगे जो आपके देश के हित में होगा। भिन्न देशों से आए हुए लोग भी इस बातावरण को मरत थे। एक बार फिर से लोग आए, " अब वहां से आपके अपने देश म ले जाएंगे। अब आप जानते हैं कि आपके कर्म शेष नहीं रहे। ये सब समाप्त हो चुके है। अब आप सुन्दर नवनिर्मत लोग हैं। बसन्त का समय आज फला के रूप में आया है। आप स्वंय पर, अपने कप्टों पर, अपनी समस्याओं पर ध्यान दे। निश्चित रूप से चीजं सुधरेगी। कोई मुझे कह रहा था कि उन्हें घुटनो में द्र्द है। मैने महमूस किया, वहुत बार मुझे घुटना आदि में दर्द हो जाता है क्योंकि आपसे यह दर्द मैं है और मुझे दखा ! मैं अपनी थोड़ी-सी चीज़ों के लिए चितित खींच लिया करती हूँ। पर मैं इसके विषय में कभी नहीं सोचती। कभी इसकी चिन्ता नहीं करती। मुझे सदैव वे राजा है। अत: नचिकेता न स्वय को उनके सम्मुख समर्पित शरीर विल्कुल ठीक लगता है। मशीन की तरह से यदि यह कर दिया और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया। उन दिनों बिगड़ जाए तो हमें इसका इलाज कर लेना चाहिए । समाप्त। परन्तु आप लोग हर समय सोचते रहते हैं, "यहां दर्द हो रहा है, यह गलत है। मेरे पास धन नहीं है, मुझे यह व्यापार करना जनक न कहा,"ठीक है चलो नदी में स्नान करंगे।" जब वे # श्रीमान आपके महल में आग लग गई है।" परन्तु राजा ध्यान सारे लोग, सग सम्बन्धी और परिवार दौड़ रहे हैं । " परन्तु राजा ध्यान मग्न रहे। नचिकेता उनकी और देखता रहा। तब उन लोगो ने कहा, " मारे कपड़े जल जाएंगे।" राजा फिर भी ध्यान मग्न रहे। परन्तु नचिकंता अपने कपड़े उठाकर दोड़ पड़ा। तब उसने महसूस किया कि यह व्यक्ति धन बैभव परिवार से कितना निलिप्त आग इधर की ओर बढ़ रही है और आपके कार अपना हैं ! उन्हें यह वस्त्राभूषाण इसलिए धारण करने पड़ते हैं क्योंकि आत्मसाक्षात्कार देना और आत्मसाक्षात्कार पाना अत्यन्त कठिन था परन्तु आज विशेष समय है, बसन्त का समय । लोग इसे अंतिम निर्णय ( Last Judgement) कहते हैं। आप इसे पुनर्जन्म का समय कह सकते हैं, या जिस प्रकार कुरान है- वह व्यापार करना है।" सब हो गया। अब हमें पर-चंतना के क्षेत्र में उन्नत होना है। इन श्रेष्ठ एवम् सुन्दर चीजों के बारे में में बालती ही जा सकती हूँ। वहुत से भापण मैने दिए हैं। परन्तु भावण शब्दों के अंतिरिक्त कुछ भी नहीं। ये शब्द-जाल है। अत: आप इन से बाहर आइए। आपको मस्तिष्क से उपर उठना होगा। मेरा यही स्वपन है। वहुत से लोगों ने मंरा यह स्वपन पूरा किया है मैं सदैव आपको हूँ। जब भी आप मुझे चाहे, जहां भी आप मुझे चाह मैं आऊगी। मेरा प्रेम, मरी इच्छा से कहीं अधिक है। परन्तु आपको भी स्वयं को तथा अपने आत्मसाक्षात्कार का प्रम कहा गया है. कार्यमा भी कह सकते हैं। कहा गया है कि करों से निकलकर कुछ लांग पुन्जन्म प्राप्त करेंगे। परन्तु कब्रों से कुछ वचा है? सिवाय कुछ हड्डियों के वहां कुछ नहीं है। नहीं,ये सारे लोग जो मर चुके हैं मानव शरीर धारण करेंगे और इस विशेष समय में आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करेगे। ऐसा कहना उचित होगा ऑर यह घटित भी हो रहा है। अपने पूर्व जन्मों के पुण्य कर्मों के कारण अब आपको आत्मसाक्षात्कार मिल गया है परन्तु आपको चाहिए कि इस महान उपलब्धि को समझे और इसका सम्मान करें । आपका करना होगा। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। एक अन्य चीज हमें जाननी हैं कि लक्ष्मी जी का निवास नाभी में है और आप लोग एक एसी अवस्था में पहुँच गए हैं जहां वे (लक्ष्मी जी) आपकंे अन्दर वास्तविकता हैं। अब वे प्रतीक नहीं हैं। तो आज की पूजा के पश्चात आपके अन्दर यह लक्ष्मी तत्व जागृत हो जाना चाहिए और आपक आप ही लांग करेंगे अत: स्वयं पर विश्वास रखें। विश्वास नाभी चक्र में इसका पुर्ण प्रकाश फैल जाना चाहिए।I परमात्मा आपको धन्य करें। यह भी समझना होगा कि अब आप आत्मा हैं। आप विशेष लोग हैं। आप अपने देश, अपनी जाति, अपने समाज और अपने परिवारों की समस्या का समाधान करेंगे : पूर विश्व की समस्याओं का समाधान करेंगे। आप ही लोग पृथ्वी पर शान्ति स्थापित करेंगे। सुन्दर दिव्य लोंगों के एक नए विश्व की सृष्टि ार ** * चैतन्य लहरनो खंड 25 : X अंक : 7, 8 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-27.txt परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी को अवैतनिक सदस्यता 13 नवम्बर का, दिवाली से अगले दिन एक अत्यन्त स्मरणीय घटना हुई। श्रीमाता जी की विज्ञान और कला के सम्बन्धों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। अब विज्ञान और कला की पीटर अकादमी (PASA) की अवैतनिक सदस्या की उपाधि भेट की गई। सदस्यता के अनुसार पासा रूस में कला और विज्ञान कार्यकर्ताओं की सबसे बड़ी संस्था है । अकादमी के दस्तावेज की विषय- वस्तु : गौरवशील सदस्य निम्नलिखित हैं- लेखक वेजिली बेलो, वेलेन्टीन रास्पुटीन, संगीतकार जार्जिए स्विरीडोव, कवि रसूल-गेन्जाती, चित्रकार, इलिया ग्लैज़नी जिनके मुख्य हैं: चिकित्सक एफ. जी. यूग्लोव, बी. जी. राष्ट्रों के हित एवम् मित्रता को बढ़ावा देने के लक्ष्य से महान काजनाचीन: एल. एन. गृमीलजाव और अन्य लोगों की अध्यक्षता कार्य करते हुए हमारी मातृ भूमि को आध्यात्मिकता एवम् में कार्य करने वाले वैज्ञानिक । निर्मला श्रीवास्तव इस अकादमी सच्चरित्र के केन्द्र के रूप में लिया। उन्होंने हमारी मातृभूमि को की अवैतनिक सदस्या चुनी जाने वाली पहली महिला थीं। पूर्व और पश्चिम को समीप लाने उच्च चारित्रिक आदर्शों के डिप्लोमा विद्या विशारद यूरिव वोरोनोव, अकादमी के उपाध्यक्ष नहीं परन्तु दो महान देशों, रूस ओर भारत, के पारस्परिक पीटर अकादमी के सभापति मंडल द्वारा सर्वसम्मति से अपनाए गए इस दस्तावेज को पढ़ना मेरा कर्तव्य है। दर्शनशास्त्र एवम् औषध विज्ञान की डाक्टर श्रीमती निमंला श्रीवास्तव, जो कि धर्म दर्शनशास्त्र एवम् विज्ञान जैसे व्यापक विषयों में भी विशारद हैं ने भारत एवम् रूस , दानों मूल सिद्धांतों, जिसका अध्ययन हमारी मातृ भूमि अपने बहुराष्ट्रीय व्यक्तिगत रूप में रूसी लांगों के पथ प्रदर्शन में किया करती तथा कृषक अकादमी विश्वविद्यालय के प्राक्टर ने भंट किया। विद्या विशारद यूरिव वारोनोव जिन्हें श्रीमाताजी से वर्ष 1991 धी का कन्द्र माना। श्रीमती निमंला श्रीवास्तव, सहजयोग के उच्च चारित्रिक में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ था, ने पाया कि सहजयाग मानवमात्र के प्रति प्रेम एवम् उच्च चारित्रिक मापदंड प्रसारित कर रहा है तथा रूसी प्रकृति के बहुत निकट है । यूरिव वोरोनोव का प्रारम्भिक भाषण: प्रिय साथी नागरिको, देशवासियों, अतिथिगण तथा सम्माननीय श्रीमाता जी. ा मूल्यों की संस्थापिका, पृर्ण ताकिंकता पूर्वक, शारीरिक एवम् मानसिक स्वास्थ्य के जीवन शेली एवम् सच्चरित्र से सम्बन्ध की मनों-देहोय (Physiological ) प्रक्रिया का वर्णन करती हैं। विज्ञान एवम् कला की पीटर अकादमी का सभापति मड़ल महान भारत को प्रतिभावान पुत्री का बताना अपना परम कर्तव्य समझता है कि उन्हें अकादमी की अवैतनिक सदस्यता है। मर पदभार के कारण इस व्याख्यान से आपका परिचय कराने की जिम्मेदारी मुझे पर आई है। यह लेखपत्र कंवल सहजयोग के निजी जीवन के लिए ही महान महत्व की चीज के रूप में चुन लिया गया सहजयोग मे विवाह परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन हा , विवाह करके आप एक बेहतर व्यक्त बन जाते हैं आपका व्यक्तित्व वेहतर हो जाता है। सहजयोग में विवाह क्यों आवश्यक है? विवाह करना पहला सर्वमान्य कार्य है। परन्तु इसका उपयोग यदि आप उसी लक्ष्य से नहीं करते तो यह विकार बन सकता है। निर्लज्जता बन सकती है, जो कि आपके उत्थान के लिए हानिकारक है। अत: व्यक्ति को अपने अन्दर को विवाह की इस इच्छा का समझना चाहिए। "विवाह आपको धार्मिक एवम् सामान्य बनने का कारण प्रदान करता है । यह सिखाता है कि किस प्रकार अपने तथा अन्य लांगों के पवित्रय का सम्मान करें।" बैतन्य लहरी खंड : X अक : 7, 8 1998 26 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-28.txt आत्मा हैं। यदि आप पति हैं तो जान ले कि आपकी पत्नी भी आत्मा है। आप दोनों क्योंकि सुन्त हैं. सहजयोगी हैं अत: पारस्परिक सम्मान होना आवश्यक है।" प्रभुत्व किस लिए जमाना है? ये शब्द 'प्रभुत्व' मेरी समझ में नहीं आता। दो पहिए कभी एक दूसरे पर प्रभुत्व जमाते हैं? क्या वे ऐसा कर सकते हैं? एक यदि प्रभुत्व जमाता है, अर्थात दूसरे से आकार में बड़ा हो जाता है तो यह एक ही जगह पर रहेगा। क्या यह बात ठीक नही है? अत: पति पत्नी में " पवित्रता ( कौमार्य) विश्वास( श्रद्धा)है । यह आपके विश्वास का दृढ़िकरण हैं । स्वच्छता, पावनता (Chastity) की सुगन्ध है। अच्छाई, करुणा आदि सभी गुण यवित्रता की दन हैं। पवित्रता विवेक, मानसिक नहीं है, दिमागी रूप से यदि आप पावन हैं तो आप भयानक हो सकते हैं, जैसे कुछ सन्यासी या तपस्वी लोग होते है। पवित्रता अन्तर्जात हैं ये आपके अन्तर्रचित कुण्डलिनी है । ये इसलिए कार्य करती है क्योंकि ये मुझे पहचानती है। यह मेरा प्रतिबिम्ब है। अत: पवित्र रहकर अपनी कुण्डलिनी को दृढ़ बनाएं। सहजयोग में विवाहित व्यक्ति अन्य सहजयोगियों से घूमता जमाने वाली कोई बात नहीं है। यह तो परस्पर सूझबूझ प्रभुत्व एवम् पृर्ण सहयोग की बात है जिसका प्रभाव पूरे परिवार और समाज पर पड़ना चहिए।" विवाह का अभिप्राय आप कह सकते हैं. आपको प्रसन्नता, उल्लास आदि वो सभी आशीर्वाद देना है जो दो व्यक्तियों के मिलन से पाने की आशा की जा सकती है।" सहजयोगी को जान लेना चाहिए कि उसके अन्दर जिस ..... और सहजयोग समाज से यदि प्रेम बांटते हैं तभी महान आत्माएं जन्म लेंगी। तो सहजयोग विवाह की पहली परीक्षा यह है कि विवाह करने के पश्चात आपने अन्य लोगों को कितना प्रेम बांटा। अब आपका सहजयोग में विवाह हो गया है। अन्य लोगों की तरह से आपका विवाह नहीं हुआ। इसलिए आपको चाहिए कि परस्पर प्रम करें। एक दूसरे को समय दें। मधुर व्यवहार शिशु ने जन्म लिया है वह आत्मा है। आत्मा ने ही उसके करें तथा दूसरों के प्रति विचार-वान हो। ध्यान रखें कि आपका एक पति या पत्नी है फिर भी सामूहिकता सर्वप्रथम है।' एक सामान्य विवाह में पुरुष को परिवार का मुखिया इसे उन्नत करना है। अन्य मुर्खतापूर्ण चीजों माना जाता है। कुछ कारणों वश उसे अब भी मुखिया ही रहना है। पुरुष का मुखिया होना गलत नहीं है, यह ठीक है। परन्तु आप हृदय बनें। सिर की अपेक्षा हृदय अधिक महत्वपुर्ण हैं । लिए समय ही कहां है? चित्त केवल एक ही चीज पर होना संभवत: हम महसूस नहीं कर पाते कि हृदय किस प्रकार महत्वपूर्ण है। मस्तिष्क यदि रुक जाए तो भी हृदय चलता रह सकता है। हृदय के चलते हुए हम जीवित रह सकते हैं, परन्तु हूँ?" हृदय के रुकते ही मस्तिष्क रुक जाता है। अत: एक महिला के रूप में आप हृदय हैं और पुरुष परिवार का मुखिया लिए पति-पत्नी सम्बन्ध अति महत्वपूर्ण हैं। आप एक दूसरे के ( Head)। उसे स्वय को मुखिया समझने दो। यह कवल एक भावना है, केवल एक भावना। मस्तप्क सदैव सोचता है कि वह निर्णय लेता है परन्तु मस्तिष्क यह भी जानता है कि हृदय के अनुसार चलना है और हृदय सर्वव्यापक है और हर चीज का स्रोत। महिला यदि अपने महत्व को समझ लेगी. अपनी है। मैं आप को इसलिए बता रही हूँ कि आप सब आत्मसाक्षात्कारी पदवी को समझ लेगी, यदि वह हृदय है तो वह कभी अपने आप को प्रताडित नहीं मानेगी। सहजयोग में प्रभुत्व जमाने की प्रवृत्ति आनी ही नही यदि हम अहंकारी और दमनकारी हैं तो गौरी ( Virgin ) की चाहिए....। किस प्रकार आप पर प्रभुत्व जमाया जा सकता है। पूजा कर पाना असंभव है।" आप आत्मा हैं। आपके अहम् को तो चोट लग सकती, अन्दर जन्म लिया हैं अब उसे कुण्डलिनो के माध्यम से इसका पोषण करना है, इसे सींचना है और इसकी देखभाल करनी है, के लिए समय कहां है? आपके हाथ में एक बच्चा है। आप सभी माताएं आत्मा रूपी बच्चे की देखभाल कर रही हैं। इन सभी चीजों के चाहिए-इस बच्चे को प्रसन्न रखने के लिए, बड़ा करने के लिए, ताकि यह मेरी अभिव्यक्ति करें, में क्या कर सकती 1 है कि सहजयागियों के अत: हमें यह बात महसूस करनी पूरक हैं। सम्बन्ध यदि ठीक न होंगे तो सहजयोग कार्यान्वित न हो पाएगा। परन्तु ऐसा भी नहीं है कि स्त्री हावी हो जाए। परस्पर सम्मान, प्रेम, सूझवुझ एवम् सौन्दर्य ही महत्वपूर्ण है। महिला की पहचान उसके बलिदानों से है। ये एक चुनौती ।" आत्माओं को विनम्र होना होगा। विनम्रता के विना आप श्रेष्ट न हो पाएगे। हर बात में आप हावी हो जाती हैं। किस लिए? . अपने वच्चे के लिए जिस प्रकार आपके हृदय में प्रेम है या अपने बच्चे के लिए जिस प्रकार आपके मन परन्तु आप तो आत्मा है। आप पर किस प्रकार रौब जमाया जा सकता हैं ? क्या आप महसूस करते हैं कि आप आत्मा हैं? अपनी भावनाएं आती है वैसी ही भावनाएं सभी के लिए आनी आत्मा को यदि आप महसूस करते हैं तो आप पर प्रभुत्व नहीं चाहिएं। सबके लिए आपको मां सम होना है। आपको सभी जमाया जा सकता। कोई आप पर रौब नहीं जमा सकता। हर की मां होना है केवल अपने बच्चों की ही नहीं। अपने प्रेम को समय यदि आप यही सोचते रहेंगे कि आप पर प्रभुत्व जमाया विस्तृत करें। जो स्त्री एऐसी नहीं है उसका कोई सम्मान नहीं जা रहा है तो आप अत्यन्त भयातुर व्यक्ति बन जाएंगे। तब आपका स्वभाव अत्यन्त भयानक हो जाएगा और लोगों का सामना करने की क्षमता आप में न रहेगी। अत: समय है कि उमड़ता करता। आपको बस मां सम बनना है।" मानव में भिन्न भावानात्मक समस्यओं के कारण हृदय चक्र पकड़ जाता है। पति-पत्नी यदि हर समय झगड़ते रहते हो तो घर में झगड़ा बना रहता है, विशेषतौर पर मां यदि दमनकारी आप महसूस करें कि आप आत्मा हैं और आपके पति भी मा चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 7. 8 1998 27 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-29.txt हो तो बच्चों का हृदय चक्र खराब हो जाता है। पिता भी यदि उग्र स्वभाव का हो तो भी बच्चों का यह चक्र पकड़ जाता है अत: आवश्यक है कि पति-पत्नी बच्चों के सामने परस्पर न झगड़ें।" बच्चों की देखभाल आप नहीं करते, परमात्मा उनकी परवरिश करता है। आप तो केवल उसके यन्त्र हैं। जितना अधिक आप परमात्मा से जुड़े रहेंगे आपके बच्चों की उतनी ही अच्छी परवरिश होगी। आप जानते हैं कि उनसे किस प्रकार व्यवहार करें और सहजयोग कार्य में मैं आपकी सहायता करूंगी। दुल्हन: मे अपने लक्ष्मी चक्र को ठीक रखुंगी और आप लक्ष्मी तत्व का सम्मान करेंगे, इससे अपका लक्ष्मी तत्व ठीक रहेगा। जो भी कुछ अर्जन करेंगे उसका पूरा हिसाब मुझे दंगे कुछ भी छिपाएंगे नहीं। दूल्हा: में तुम्हें प्रम एवम् स्नेहपूर्वक शान्ति एवम् प्रसन्नता दूगा परन्तु तुम्हें भी मेरी शान्ति और प्रसन्नता के विषय में सोचना होगा। मेरी आज्ञा के बिना तुम कहीं बाहर नहीं जाओगी और मैं जब कहीं बाहर जाऊंगा तो तुम्हें बताकर जाऊंगा। अतीत के विषय में न हम सोचेंगे और न इसके विषय रम प्रति करना है। आप उनके करुणामय हैं, आप जानते हैं कि उनकी समस्याओं का समाधान कैसे करना है। परमात्मा से यदि आपको प्रेम प्राप्त होता रहता है तो अपने बच्चों की देखभाल बेहतर कर सकते हैं। परमात्मा में आपकी यदि कोई दिलचस्पी नहीं तो वे भी आपमे दिलचस्पी नहीं लेते। यह बात हम नहीं समझते. हम सोचते हैं कि परमात्मा में दिलचस्पी लंकर हम उसपर में बात करेंगें। दूल्हाः तुम्हें मेरी और मेरे बच्चों की देखभाल करनी होगी तथा हमारे घर पर आने वाले सहजयोगी भाई बहना का स्वागत म एवम् सम्मान करना होगा। दृल्हाः सहजयाग का कार्य करते हुए यदि मुझसे कोई गलती हो जाए तो तुम मुझे क्षमा करोगी और मैं तुम्हें। दोनो कहते है; परमपूज्य (परमात्मा) पर अहसान करते हैं।" विवाह की कसंमें:- दुल्हनः में तुम्हे तुम्हारा मूलाधार चक्र ठीक रखने में सहायक हाऊगी। अपनी सारी धन सम्पत्ति तुम मुझे उसकी मैं दखभाल करूंगी। आपको मेरा या अपने भाई बहनों टार स क प माता जी ने इसे महायज्ञ द्वारा हमें विवाह के इस पवित्र बन्धन में बांध दिया है। ये हमारा महान सौभाग्य है और आदि शक्ति सौंप दो । माताजी श्री निर्मला देवी की महान कृपा है। हम अपना सर्वस्व- स्वास्थ्य, वैभव, मस्तिष्क एवम् द्वारा बनाया खाना खाना होगा। यदि कही बाहर आप खाना खाएंगे तो उसे चैतन्यित करेंगे मैं आपके प्रति वफादार रहूंगी हृदय-उनके चरण कमलों में अर्पित कर देंगे । और आप मेरे प्रति वफादार होंगे। हम शपथ लेते हैं कि हम परस्पर वफादार रहेंगे। सहजयोग को बढ़ाने के लिए हम निरन्तर कार्य करते रहंगे । और दुल्हन: अपनी शारीरिक और आध्यात्मक शक्तियों द्वारा कार्य करूंगी। प्रेम एवम् स्नेहपूर्वक मै रहूगी अपने बच्चों का पोषण हम सहजयोग में करेंगे. ये हमारा परम कर्त्तव्य है। गृह आपकी आज्ञा पालन करूंगी। मेरे कार्य में आप मेरी सहायता O f ॐ 3 0 बा खल 00 चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 7, 8 1998 28 7.8 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_7,8.pdf-page-31.txt संदेश 24 जुलाई ।994 को इटली में गुरु पूजा हुई। श्रीमाताजी ने एक सुन्दर प्रवचन किया । उन्होंने कहा कि वे मां हैं, प्राचीन काल के सन्यासियों तथा कठोर गुरु सम नहीं हैं। पहली वार उन्होंने बताया कि तुम्हें उन्नत होना होगा और परिपक्व होना होगा अर गुरु पूजा के इस अवसर पर गुरु पद प्रप्त करना होगा। प्रवचन के आरन्भ में उन्होंने बताया कि हे रवंय का साक्षी यनना होगा अन्य लोगो का नहीं। हमें अपनी चिन्ता करनी होगी उन पागल लोगों की नहीं जो द्वार खुले होने के कारण सहजयोग में आ गाए है दो शत्रुओं से हमे मुक्ति प्राप्त करनी है क्रोध एवम् भय । क्रोधी व्यक्ति सदैव सहमा हुआ और असुरक्षित होता है क्योंकि वह स्वंय को अन्य लोगों में देखता है। आक्रामक स्वभाव हमें भयातुर करता है। इस र्थिति ति का सामना करने के लिए हमें चैतनता का भाव लाना होगा और देखना होगा कि "मै परमात्मा से जुड़ा हुआ हूँ।" श्रीमाता जी ने कहा कि हमें ज केवल उदार होना है परन्तु अपनी उदारता का आनन्द भी लेना है, क्योंकि उस रिथित में हम अन्य लोगों के लिए अपना प्रेम उड़ेल रहे होते हैं। गुरु को परिपक्वता की रिथिति प्राप्त करनी चाहिए क्योंकि परिपक्वता का उसे आत्मविश्वास मिलता है और श्री माताजी द्वारा प्रदत्त शक्तियों में विश्वास प्राप्त होता है। जन्म-जन्मान्तरों से हम जिस की खोज कर रहे थे. वह सत्य अब हमं मिल गया है अब हमें इससे जुड़ जाना है और आध्यात्मिक रूप से विश्वस्त होना है कि सहजयोंग को वढाने के लिए हम ही वे आध्याहिमिक लोग हैं जिन्हें अपने माध्यम के रूप में परमात्मा ने चुना है। अयथा हम ईसा मसीह द्वारा कहे गाए चट्टान पर पड़े बीज सम हैं। जो शक्तियां हें प्राप्त हुई हँ उखका उपयोग करने का और सहजयोग के प्रति जिन्मेदार वनने का यह उपयुक्त समय है। यह सि्थिति प्राप्त करके हमें अपने आगुवाओं का साथ देना चाहिए उनमे दोष नहीं खोजने चाहिएं, न ही ईष्यविश उनकी शिकायत श्री माताजी से करी चाहिए। निम्नलिखित शब्दों से श्रीमाता जी ने अपना प्रवचन समाप्त किया: तो अब आवश्यकता है कि आप आपनी जागृति को, आध्याल्मिकता को उन्त करें और स्वतः चलने वाले सहजयोग कार्य के प्रति पूर्ण सहयोग एवम् समर्पण के क्षेत्र में प्रवेश करें। जय श्रीमाता जी