चैतन्य लहरी अंक 9, 10 1998 खण्ड X र री ह ० ास "यदि ये यन्त्र (माइक) अपने स्रोत से जुड़ा हुआ न हो तो यह व्यर्थ है। इसी प्रकार हम भी यदि अपने सरोत से जुड़े हुए नहीं हैं तो हमारी कोई पहचान नहीं है।" ३ु ाि ० २ु० कु ा Pा काप ६ि " पारिवारिक मोह हमारे सिर पर सबसे बड़ा बोझ है। परिवार आपकी जिम्मेवारी नहीं । यह सर्वशक्तिमान परमात्मा का दायित्व है। क्या आप परमात्मा से अच्छा कर सकते हैं? जब आप दायित्व लेने लगते हैं तभी समस्याएं शुरू होती हैं। निर्लिप्सा को समझना चाहिए। अपनी चीजों से, बच्चों से आप चिपके रहते हैं। मोहग्रस्त लोगों को संत कैसे कहा जा सकता है। संत केवल अपनों के लिए ही जिम्मेवार नहीं होते वें सबके लिए जिम्मेवार होते हैं" ( प.पू. माता जी श्री निर्मला देवी) इस अंक में पृष्ठ नं. सम्पादकीय 1. 3 ईस्टर पूजा 2. श्रीमाताजी आप शान्ति दूत हैं 3. 6. भविष्य हमारे हाथ में है 4. 10 मात्रेसुर वधमन्त्र 5. 13 सार्वभौमिक प्रेम को समर्पित विश्वपाठशाला 6. 15 एक सहजयोगी की डायरी से 7. 16 श्री गणेश पूजा 8. 16 जन्म दिवस पूजा 9. 22 सहजयोग और कल्की शक्ति 10. 23 योगी महाजन सम्पादक विजय नालगिरकर प्रकाशक १62, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 यात अभिनव प्रिन्टस, दिल्ली 34, फोन : 7184340 मुद्रक पां स मर ३० ..हमारी जितनी भी इन्द्रियां हैं, वे हमारे इर्द-गिर्द क्रीड़ा करती हैं। परन्तु सहज स्थिति में व्यक्ति पर इनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वह लिप्त नहीं है। वह तो मात्र क्रीड़ा करता है। यही स्थिति आपने प्राप्त करनी है, तब आप वास्तव में सहजयोगी होंगे।" दिवाली पूजा पुर्तगाल 10-11-96 ा सम्पादकीय देता है। हमें समझना होगा कि छोटा सा भी अवसर मिलते ही विपक्ष हमसे सत्ता छीनने के लिए तैयार बैठा है । एक इन्च डोलना भी हमारे हित में नहीं। अन्य लोगों को काबू करना आसान है परन्तु स्वयं पर काबू पाना अत्यन्त कठिन, ऐसे ही जैसे शिक्षा देना अभ्यास करने से कहीं आसान है। तो किस तरह से स्वयं को वश में ध्यान में जब हम बैठते हैं तो प्रायः कोई विचार हमें व्याकुल कर देता है और अचानक हम ध्यान भंग कर देते हैं। यह एक आत्मसम्मोहन होता है कि "हम पर्याप्त ध्यान कर चुके हैं तथा करने के लिए और भी कई कार्य हैं।" किए जाने वाले इन कार्यों पर दृष्टि डालना अत्यन्त रुचिकर होगा। "मुझे अपने मित्र से मिलना है". "मुझे टेलीफोन करने हैं ।" इसके ओह. मुझे टी.बी. देखना है। क्या हम पहले से ही यह सभी कार्य नहीं कर रहे? किया जाए? महाभारत में अर्जुन की भी यही समस्या थी। उसने ।" पश्चात क्या? " श्री कृष्ण से पूछा." मन को किस प्रकार वश में किया जाए। ये इनसे हमें क्या प्राप्त हुआ? इन सब कार्यों ने हमें कहा तो अत्यन्त प्रचण्ड एवं जिद्दी है। इसको वश में करना तो आंधी को रोकने जैसा है।" श्रीमाता जी प्रायः हमें अन्तर्दर्शन करने के लिए कहती हैं। कुण्डलिनी उठने पर जब हम ध्यान करते हैं तो कुण्डलिनी हमें पहुंचाया? अब हमें अपना उत्थान चाहिए. बाकी सभी कार्य प्रतीक्षा कर सकते हैं। ध्यान धारणा का प्रथम स्थान होना चाहिए। टेलीफोन हम बाद में भी कर सकते हैं और मित्र से गहन आनन्द एवम् आन्तरिक शान्ति प्रदान करती है। इस नए अनुभव के प्रकाश में हम मिथ्या प्रलोभनों को स्पष्ट देख सकते हैं और इसी विवेक के माध्यम से सभी विचारों तथा मानसिक गतिविधियों पर काबू पा सकते हैं तब हम स्वयं महसूस करते हैं कि मन मिथ्या है। इस स्थिति पर पहुँचने पर आत्मा का शासन दूढ़तापूर्वक स्थापित हो जाता है और कोई विपक्ष अपनी आवाज उठाने का साहस नहीं करता। अगन्य चक्र पर परमात्मा की जो प्रार्थना हम करते हैं यह उसकी पूर्णता होती है कि, भी बाद में मिला जा सकता है। टी.वी. अनावश्यक है। स्पष्ट बातचीत सहायक होती है। अन्तः स्थिति संसद की कार्यशैली की तरह से होती है, यहां शासक दल भी है और विपक्षी दल भी उदाहरणार्थ शासक दल सहज सरकार स्थापित करना चाहता है परन्तु विपक्ष इसका विरोध करता है। शासक दल यदि शक्तिशाली है यदि ये दुर्बल हैं तो विपक्ष इसे तो ये सफल हो जाता है परन्तु हरा देता है। शासक दल की शक्ति श्रीमाता जी के प्रति प्रेम एवम् समर्पण में निहित है। यदि यह हमारी परमेश्वरी मां के चरण कमलां में पूर्णत: समर्पित है तो वे सब कुछ संभालती हैं, काई शक्ति उनका विरोध नहीं कर सकती। परन्तु यदि हम दुर्बल हैं. सन्देह से परिपूर्ण हैं तो विपक्ष आसानी से हमें हरा आपका साम्राज्य फैले, पृथ्वी एवम् स्वर्ग में आपकी आज्ञा का 4a a" (Thy Kingdom come, Thy will be done on earth as it is in Heaven) हम वास्तव में श्रीमाताजी द्वारा बताए गए 'बसन्त ऋतु' (BLOSSOM TIME) का आनन्द लेने लगते हैं। चैतन्य लहरी । खंड : x अंक : 9 10 1998 3 ी ईस्टर पूजा 19.4.98 तुर्की हम ईसा मसीह के जीवन के बारे में बात करेंगे, उनके क्रसारोपित होने के विषय में नहीं। क्रूस पर चढ़ाकर किसी की भी हत्या की जा सकती है परन्तु ईसामसीह का मृत शरीर मृत्यु से निकलकर पुनर्जीवित हो गया| स्वयं मृत्यु की मृत्यु हो गई। उन्होंने मृत्यु पर काबू पा लिया। नि:सन्देह सर्वसाधारण लोगों के लिए यह चमत्कार है परन्तु ईसा के लिए नहीं क्योंकि वे दिव्य व्यक्ति थे। व साक्षात् गणश थे, साक्षेात ऑकार थे। यही कारण है कि वे पानी पर चल सकते थे। गुरुत्वाकर्षण का उन पर कोई प्रभाव नहीं था। वे पुनर्जीवित हो गए क्योंकि काल भी उन्हें प्रभावित न कर पाया। इतने दिव्य व्यक्तित्व की सूष्टि विशेष रूप से इसलिए की गई थी कि मानव उन्हें पहचान लें. परन्तु क्रूरतापूर्वक उन्होने उनका वध कर दिया। आज भी लोग यह समझते हैं कि कुूस बहुत महान चोज है क्योकि ईसा का वध क्रूस पर किया गया था। ईसा मसीह का सम्मान करने का मानव का यह अत्यन्त क्रूर तरीका है। यह क्या प्रकट करता है? यह दर्शाता है कि उन पर किए गए सभी अत्याचार भानव को पसन्द थे। कूस उनकी मृत्यु तथा उन पर किए गए अत्याचारों का प्रतीक है और दर्शांता है कि मेरे पास शब्द नहीं हैं। वास्तव में उन्होंने ही पहल की और लोगों को बताया कि आप परमात्मा को खोजें| परमात्मा को खोजें ओर वे आपको प्राप्त हो जाएंगे (You seek, You Seek & You will find) तब उन्होंने कहा कि आपको आकर जोर से दरवाजा खटखटाना होगा। आपके साथ भी यही घटित हुआ कि आप आज्ञा के स्तर तक उन्नत हुए और फिर आज्ञा को पार कर लिया। आज्ञा को प्रार करने में कोई कठिनाई नहीं आईं। यद्यपि आपके अपने विचारों, बन्धनों और भविष्य की योजनाओं के पति कारण अगन्य चक्र पर विशालकाय अत्यन्त काले बादल मंडरा रहे थे। विचार आपको घेरे हुए थे और इस आच्छादित अगन्य चक्र को आप न भेद पाते। फिर भी आपने अगन्य चक्र की मानव ने उन्हें नहीं पहचाना और अत्यन्त सुगमता से पार किया और आपको यह भी न लंगा कि आपने यह कठिन कार्य किया है। तो सर्वप्रथम हम सबको आपका अगन्य चक्र खालने के लिए ईसा मसीह के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। उनके लिए सारे कष्ट एवम सारी क्रूरता कुछ भी न थी। उनके जीवन का लक्ष्य उनके आगमन का उद्देश्य, उनका अवतरण अगन्य चक्र को भेदने के लिए था। आज यद्यपि आपका अगन्य चक्र खुल चुका है, आप इसे पार कर चुके हैं. फिर भी, आप आश्चर्यचकित होंगे, लोग अब भी अगन्य चक्र में फं्से हुए हैं। सहजयोग में भी लोग अगन्य चक्र में फंसे हुए हैं तो अन्तर्दर्शन द्वारा हम किस प्रकार उन्हें कष्ट दिए गए। अत; वह समय अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण था जब उन्हें क्रूसारोपित किया गया था, परन्तु उनकी पुर्नजन्म का समय अत्यन्त आनन्दमय, मुंगलमय एवम् अत्यन्त सुन्दर था। ईसा मसीह का पुर्नजन्म सहज योग के लिए अत्यन्त प्रतीकात्मक है। ईसा मसीह का यदि पुनरजन्म हो सकता है तो किसी भी मनुष्य का पुनर्नजन्म हो सकता है क्यांकि सभी शक्तियों सहित उन्होंने मानव रूप में अवतरित होकर हमारे पुनर्जन्म के लिए मार्ग बनाया। घुनर्जन्म के इसी मार्ग का अनुसरण हमने सहजयोग में किया है। परन्तु अगन्य चक्र का भेदन कठिनतम कार्य है इसका वर्णत सभी धर्मग्रन्थों में किया गया है कि यह सुनहरी द्वार है, यह एक आवरणसम है और इतना संकीर्ण है कि कोई इसे पार नहीं कर सकता। परन्तु ईसा मसीह ने इसे पार किया। ईसा के इस चक्र के भेदन के पश्चात् हो आपके सहस्रार को खोलता सम्भव हो पया हैं किस प्रकार देखें कि हमारे साथ क्या घटित होता है? उदाहरणार्थ सहजयोग में आकर लोग सोचते हैं कि वे कार्यभारी बन गए हैं। इस चीज के अधिकारी, सहजयोगियों के अधिकारी, आप इस प्रकार से व्यवहार करने लगते हैं जो सहजयागियों को लिए शोभनीय नहीं होता। सहजयोगियों को ऐसा च्यवहार शोधा नहीं देता। किस प्रकार वे स्वयं को थोपने लगत हैं. आडम्बर करने लगते हैं और स्वयं को अधिकारी दर्शाने लगते हैं देखकर मुझे हसी आतो हैं। यह आधुनिक प्रवृत्ति नहीं है । मानव में यह प्रवृत्ति सदा से थी परन्तु यह सहजयोग से पूर्व थी सहजयोग में आने के पश्चात् भी स्वयं को अधिकारी बताकर लोग दूसरे लोगों पर रौब झाड़ते हैं। सहजयोग इतना साधारण नहीं है जितना आप सोचते हैं, इसमें बहुत से प्रलोभन हैं मान लो किसी को अगुआ बना दिया जाए तो वह स्वयं को अधिकारी मान लेता है और उसे अधिकार का नशा चढ़ जाता है। एसा होने पर वह बाकी लोगों पर प्रभुत्व जमाने लगता है और आडम्बर करता है कि वह क्योंकि आज्ञा को खोले बिना सहस्रार तक पहुंचा ही नहीं जा सकता। परन्तु आपका यह चक्र अत्यन्त सुगमता से खुल गया क्योंकि आपके स्थान पर सारे अत्याचार, सारे कष्ट ईसा मसीह ने झेल लिए थे उनके प्रति हमें कितना कृतज्ञ होना चाहिए? उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए चैतन्य लहरी खंड : x अक : 9 10 1998 ho लेता है और आपको भी इसी प्रेम के माध्यम से आप सहजयोग को समझते हैं। मनुष्य को ्रेम एवम् करूणा के अतिरिक्त किसी अन्य चीज की आवश्यकता नहीं है, केवल पवित्र प्रेम एवम् करुणा की आवंश्यकता है। ईसा मसीह को देखें, जिन लोगों ने उन्हें क्रूसारोपित किया उन पर भी उन्हें दया आईं। अपने पिता सर्वशक्तिमान परमात्मा से उन्होंने प्रार्थना की कि 'कृपा करके इन्हें क्षमा कर दीजिए क्योंकि ये नहों जानते कि ये क्या कर रहे हैं। इन लोगों को अज्ञानता को वे समझ कोई महान चीज है और उसे अन्य लोगों पर रौब जमाने का अधिकार है। एकमय पूर्ण वातावरण का वह सृजन करता है। सर्वप्रथम, मैंने देखा है. ऐसे लोग झूठ से कहने लगते हैं कि श्रीमाता जी ने ऐसा कहा है, यह श्रीमाता जी के विचार हैं। ऐसे व्यक्ति से मुझे कुछ नहीं लेना देना। परन्तु वह ऐसा कहे चला जाता है और लोग उससे घबरा जाते हैं। यह कहकर भी वह आपको भयभीत कर सकता है, मैं श्रीमाता जी को बताऊंगा वे मरी बात को सुनेंगी और तुम्हें दण्ड दगी। ऐसे लोगों पर मुझे कभी कभी बहुत आश्चर्य होता है क्योांकि मेंने कभी नहीं कहा कि मैं किसी को दण्ड दूंगी या सहजयोग से निकाल दूंगी। ऐसा कभी नहीं कहा। स्वयं को अगुआ समझ कर इस प्रकार की मुर्खता पूर्ण बातें जो भी व्यक्ति करता है मानों उसे ही बुलन्दियों तक उन्नत होने के लिए विशेष रूप से चुना गया है। ऐसे लोगों के विषय में जब में सुनती हैं तो मुझे बहुत आश्चर्य होता है कि ा। पाए और जान गए कि वे दुष्कार्य कर रहे हैं और परमात्मा, परमपिता जोकि अत्यन्त प्रचण्ड है, नाराज होकर इन्हें नुष्ट कर देंगे बिना सोचे अत्यन्त करुणा की भावना से उन्होंने ऐसा किया। यह भी न सोचा कि ये लोग मेरे साथ अनिष्ट कर रहे हैं। उनके हित की भावना से वे चिन्तित हो उठे। अतः उन्होंने परमात्मा से, परमपिता से प्रार्थना की कृपा करके इन्हें क्षमा कर दीजिए क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं? ये चक्षुविहीन हैं । कृपा करके इन्हें दण्ड मत दीजिए। कितनी किस प्रकार हर समय लोग ऐसा आचरण कर सकते हैं ! विनम्रता सहजयोग में पहली चीज है। कोई व्यक्ति यदि दूसरों को आज्ञा देता है, हिटलर की तरह से बातचीत करता है. चीजों को काबू करके अधिकारी बनने का प्रयल्न करता है तो ये सब आचरण दर्शाते हैं कि सहजयोग में उसने कुछ प्राप्त नहीं किया। विनम्रता का आनन्द लेना प्रथम चौज है। मैंने ऐसे लोगों को देखा है । वे सदैव पहली पक्ति में बैठेंगे, ऐसी जगह पर वे बैठेंगे जहां हर समय मेरी दृष्टि उन भर देती हूँ। मैं जानती हैं कि वे आडम्बर मात्र हैं। वे स्वयं को सर्वोच्च मान लेते हैं और इसी कारण हर समय वहां बने रहते हैं। परन्तु वे अभाव में वे इस प्रकार के कार्य करते हैं और अपना प्रभुत्व जमाने का प्रयत्न करते हैं। जो लोग विनम्र हैं, सहज हैं, े महान करुणा है! कितना महान प्रेम! मेरे कहने का अभिप्राय है कि इसके विषय में सोरचें हमारे जीवन में यदि कोई हमारा अहित करता है, हमें कष्ट देता है तो क्या हम ऐसे चक्षु विहोन लोगों के कुकृत्यों के लिए परमात्मा से क्षमा करने की प्रार्थना करते हैं? सहजयोगी का यही स्तर होना चाहिए। आप यदि परमात्मा से क्षमा प्रार्थना करेंगे तो वह स्वीकार्य होगी परमात्मा उन लोगों की देखभाल करेंगे, उन्हें परिवर्तिंत करेंगे और उन्हें विवेक प्रदान करेंगे। ईसामसीह का सन्देश प्रेम से. शुद्ध परिपूर्ण है । जिस प्रकार उन्होंने मेरीमतालनी नामक वेश्या की पर पड़ती रहे। मैं मुस्करा प्रेम से अपनी हानि कर रहे हैं। आन्तरिक प्रसन्नता के रक्षा करने का प्रयत्न किया वह इसका उदाहरण है। मेरीमतालनी अपराधमय जीवन व्यतीत कर रही थी और एक सन्त का उससे कुछ भी लेना देना न था। परन्तु जब ईसा मसीह ने देखा कि लाग उसे पत्थर मार रहे हैं तो वह ढाल की तरह से उसके आगे इमानदार हैं और वास्तव में सत्य को खोज रहे हैं उन लोगों को ये सताते रहते हैं। ऐसा व्यक्ति साधकों को सताता है। अपने को बहुत बड़ा दर्शाकर अन्य लोगों को अपना गुलाम बनाने का खड़े हो गए, एक पत्थर अपने हाथ में उठाया और कहा,"ठीक है, जिन लोगों ने कभी कोई अपराध नहीं किया, कोई गलत कार्य नहीं किया वे मुझे पत्थर मारें।" और कोई भी आगे न बढ़ा क्योंकि सबको अपने अन्दर झांकना पड़ा। किसी पर जब हम प्रभुत्व जमाते हैं तो हमारे अन्दर एक प्रकार का क्रूर आनन्द भाव होता है, एक ऐसा आनन्द भाव जो मैं नहीं समझ पाती! परन्तु लोगों में यह भाव है । वे आडम्बर करते हैं कि उन्होंने प्रयत्न करता है। मैंने लोगों को उस हृद तक जाते देखा है कि कुछ व्यक्तियों का एक समूह अपने अगुआ टस से मसं न होता था और ऐसे विवेक शून्य व्यक्ति की चापलूसी करते रहने के लिए पूर्ण प्रयत्नशील रहता था। सर्वप्रथम, आप जानते हैं, यह ( सहजयोग) मां का प्रेम है, मां कभी रौब नहीं जमाती। वह प्रभुत्च जमा ही नहीं सकती क्योंकि वह तो प्रेम के अतिरिक्त कुछ है ही नहीं। कहीं भी यदि वह समस्या देखती है तो तुरन्त इसे सोख लेती है। अपनी चिन्ता दर्शाने के लिए कभी कभी उसे नाटक करना पड़ता की आज्ञा के बिना यह आनन्द प्राप्त कर लिया है, उन्होंने ये महान शक्ति पा ली है। सदियों से बड़े-बड़े राजाओं तथा तानाशाह शासकों ने ऐसा ही किया है। परन्तु सहजयोगियों का व्यवहार इसके बिल्कुल विपरीत होना चाहिए। उन्हें चाहिए कि प्रेम एवम् शान्ति से पूरे विश्व पर शासन करें। किसी भी प्रकार से उन्हें आडम्बर नहीं है कि वो नाराज है परन्तु मूलरूप में वो कभी किसी से नाराज नहीं हो सकती। उनसे हर समय केवल प्रेम ही प्रवाहित होता रहता है। वही प्रेम उन्हें भी आच्छादित कर करना चाहिए। इसी प्रकार सहजयोग तीव्र गति से फैलेगा। जरा चैतन्य लहरी । खंड : X अंक : 9, 10 1998 5 वे वर्षा को रोक न पाए। अत: वे बहुत क्रोध में थे। पत्थर पर बैठे हुए क्रोध से वे कांप रहे थे बिना कुछ कहे में उनकी गुफा में चली गई और जो स्थान मेरे लिए उन्होंने बनाया था सोचें कि विश्व को आपकी आवश्यकता क्यों है? क्योंकि इसे प्रेम चाहिए, स्नेह चाहिए। जो लोग जीवन के अन्धकार में खो गए हैं और अब भी अन्य लोगों को कष्ट दे रहे हैं, उन्हें परेशान कर रहे हैं वे सामूहिकता विरोधी कार्य कर रहे हैं। हमें सहजता की ओर वापिस आना होगा यह असहज व्यवहार है, मेरी समझ नहीं में नहीं आता कि लोग क्यों पागलों की तरह से उस पर जाकर बैठ गई। तब उन्हें लाया गया। मेरे सामने वे बैठ गए परन्तु अभी तक भी वे क्रोध में थे। वे समझ ने सके थे कि बारिश को वे क्यों न रोक पाए। उन्होंने मुझसे पूछा, आपने मुझे वर्षा क्यों नहीं रोकने दी। आप मुझे मिलने आ रहीं थीं तो आचरण करते हैं। ऐसे व्यक्ति को यह बताना भी बहुत कठिन वर्षा को सद्व्यवहार करना चाहिए था। मैं भी वर्षा न रोक सका। तो बताइए कि इसका क्या कारण था। मुस्करा कर मैंने कहा कि तुम एक सन्यासी हो, त्यागी हो और मैं तुम्हारी मां हूं। तुम मेरे लिए एक बहुत अच्छी साड़ी खरीदकर लाए थे जिसे मैं अपने सन्यासी बेटे से ले नहीं सकती थी। उस साडी को स्वीकार करने के लिए मुझे बारिश में भीगना पड़ा। प्रेम से यह हे कि वह पागल है और शक्ति से उन्मत उस व्यक्ति के साथ रहना भी कठिन कार्य है। कुछ सहजयोगी जो सोचने लगते हैं कि उनमें बहुत सी शक्तियां हैं, जो चाहें कर सकते हैं, किसी से भी बातचीत कर सकते हैं. वे सबको भ्रमित करते हैं। परन्तु सहजयोग में हमें किसी को भरमित नहीं करना। आपको स्पष्ट रूप से अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करनी है, परन्तु यह किसी विशेष प्रकार की चेष्टा है और न ही कोई विशेष घटना है। यह तो परस्पर आन्तरिक एकाकारिता है। कभी कभी तो मैं सहजयोगियों में अत्याधिक पारस्परिक सूझबूझ, पारस्परिक प्रेम देखती हैं। अत्यन्त सुन्दर रूप से एकदूसरे के प्रेम का आनन्द लेते हैं। ऐसा तक ले लेना चाहते हैं! देखकर मुझे अत्यन्त प्रसन्नता होती है मैं आनन्द से भर जाती हूँ। मैं चाहती हूँ कि आप लोग भी ऐसा ही आनन्द लें। आप हैरान होंगे कि दूसरों को प्रेम करना सबसे अधिक आनन्ददायी कार्य है। चाहे वे आपसे प्रेम न करे परन्तु उन्हें प्रेम करके आपको बहुत आनन्द प्राप्त होगा। आत्माभिव्यक्ति करना और ले लेना चाहते थे। सन्त ज्ञानेश्वर सा महान व्यक्ति, महान दूसरों को प्रसन्न करने का विवेक भी एक कला है। मैं पहले भी एक सन्त की कहानी सुना चुकी हूँ। ये सन्त गगनबाबड़ा अपनी गुफा को बन्द करके वहीं मृत्यु की गोद में सो गया। बात बताने पर वह पिघल गया। कहने लगा कि इतना प्रेम तो केवल मां ही दे सकती है। हम तो इन पापी लोगों की सहायता करने के लिए नहीं रह सकते उनसे बचने के लिए समाधि आज विश्व के साथ यही समस्या है और यही कारण कि विश्व में बहुत कम आध्यात्मिक लोग हैं क्योंकि उन्हें सताया जाता है कष्ट दिए जाते हैं और अपमानित किया जा सकता है। अत: संघर्ष करते हुए सन्त लोग बहुत शीघ्र समाधि लेखक, महान कवि 21 वर्ष की आयु में समाधि में चला गया, अवश्य आसपास के अज्ञानी लोगों से तंग आ गया होंगा। तो सन्त ज्ञानेश्वर सम महान व्यक्ति जो कार्तिकेय का अवतरण थे नामक पहाड़ी पर रहता था । वह चल भी न पाता था क्योंकि अत्याधिक चैतन्य लहरियों के कारण उसकी टांगों की शक्ति वो भी सांसारिक लोगों के अत्याचारों को सहन न कर सके। समाप्त हो गई थी। शेर पर बैठकर वह सब जगह जाता था। शेर कहा गया कि 'तुम एक सन्यासी के पुत्र हो' अत: नाजायज उसे प्रेम करता था और वह शेर को। बम्बई के लोगों को सदैव वह बताया करता था कि आप लोगे क्या कर रहे हो? मां आई हैं जाकर उनके चरण स्पर्श करो। में समझ न पाई कि वह इतना चिन्तित क्यों था। मैंने सहजयोगियों को कहा कि मुझे थे उनके भाई बहनें सभी महान विद्वान महान सन्त और महान जाकर उस सन्त से मिलना चाहिए क्योंकि ये गुरु अपने तकिए को नहीं छोड़ते। तकिए पर रहने का अर्थ यह है कि जहां भी उनसे आज्ञा लेकर वे गुफा में चले गए और समाधि ले ली। सन्तान हो। इस कारण उन्हें इतना सताया गया कि उनके पास जूते तक न थे नंगे पांव वे भारत की तपी हुई पृथ्वी पर चलते अवतरण थे। उन्हें भी घोर यातनाएं दी गई। बड़ी शान्तिपूर्वक ईसा मसीह को भी जब क्रूसारोपित किया गया तो वे ये रहते हैं वहां से चलकर कहीं नहीं जाते। मेरे साथ यह बिल्कुल उलट है। मैं कभी किसी एक स्थान पर जमकर नहीं अति युवा थे वे केवल 33 वर्ष के थे परमात्मा ने उनके रहती। तो जब उन्होंने पूछा कि आप जा सकेंगी मैंने कहा क्यों क्रूसारोपण की योजना अगन्य चक्र को खोलने के लिए बनाई नहीं। जब मैं वहां जाने लगी तो सहजयोगियों ने पूकछा, थ श्रीमाताजी आप किसी के पास नहीं जाती तो यहां क्यों जा रही लाने के लिए था। क्रूसारोपित करने वाले लोगों ने जो दुराचरण हैं? मैंने कहा, ठीक है चैतन्य लहरियां देखो। कितनी तेज चैतन्य उनसे किया उससे स्पष्ट है कि वे असुर थे। यद्यपि ईसाने उन्हें लहरिया हैं! ये सन्त वर्षा पर प्रभुत्व के कारण मशहूर थे। में जब वहां पहुंची तो वे क्रोध से भरे हुए बैठे थे क्योंकि उस दिम ऐसे लोगों को क्षमा कर पाना बहुत ही कठिन है । यही कारण जोर से वर्षा हो रही थी जिससे मैं पूरी तरह भीग गई थी, परन्तु थी। उनका बलिदान, भयानक कष्टों का झेलना सहजयोग को क्षमा करने के लिए कहा परन्तु ऐसा कर पाना संभव नहीं है। है कि उन जैसे व्यक्ति ने भी सोचा कि अगन्य चक्र को खोलने 6. चैतन्य लहरी खंड : x अंक : 9, 10 1998 9. 10 1998 ईसाई बना दिया। ये लोग क्योंकि अनपढ़ थे तो इनसे कोई प्रश्न करने की योग्यता इनमें न थी। अत: ईसाई धर्म प्रचारकों का अनुसरण करने के लिए ये बहुत उपयुक्त थे। इस प्रकार उन्होंने अपनी जाति बनाई और धर्म आरम्भ किया। समझने की बात यह है कि लोगों के रौबीले स्वभाव ने किसी धर्म विशेष को किस प्रकार स्वीकार किया। क्योंकि वह धर्म तो विनम्रता के के अपने कार्य को करके इन मूर्ख लोगों के साथ मुझे रहना नहीं चाहिए। अपने पुनर्जन्म के पश्चात् वे कश्मीर में अज्ञातवास में चले गए। उनके पुनर्जन्म और उत्थान की बहुत सी कहानियां हैं जिन्हें पढ़कर आप आश्चर्यचकित होंगे कि कितने चमत्कारिक ढंग से उन्होंने अपना पुनर्जन्म प्राप्त किया और द्विज होकर कश्मीर में रहे। कश्मीर में अपनी मां के साथ कूछ समय तक वे प्रसन्नतापूर्वक रहे और फिर समाधि ले ली। कहा जाता है कि भगवान ईसा मसीह और उनकी मां की कब्र वहां पर है। अतिरिक्त कुछ भी नहीं। तो ईसाई धर्म के अधिकारी कहलाने वाले लोगों ने किस प्रकार अन्य धर्मों के लोगों को परिवर्तित किया! ये मानव स्वभाव सभी प्रकार की मूर्खता क्रूरता एवम् दमन आदि का आनन्द ले सकता है। अपने प्रभुत्व वाले क्षेत्र को, साम्राज्य को यह छोड़ नहीं सकता। ईसाई राष्ट्र इससे भी आगे चले गए हैं, उन्हें सभी प्रकार की स्वच्छन्दता दे दी गई है। कुछ भी करने के लिए वे स्वच्छन्द हैं। आपको स्वच्छन्द होना है तो ईसाई बन जाइये वे सदा से लोगों पर प्रभुत्व जमाते रहे हैं और उनके दबाव में रहने वाले लोग सर्वत्र हैं। सर्वसाधारण, मूल निवासियों के पास जाकर ईसाइयों ने उनका भी धर्म परिवर्तन कर दिया। धर्म परिवर्तन ही उनकी मुख्य विधि थी। इतने लोगों का धर्म परिवर्तन करने की आवश्यकता इसलिए पड़ी कि प्रजातन्त्र में बहुसंख्यकों का ही प्रभुत्व होता है। अत: अपनी संख्या को बढ़ाने के लिए वे धर्म परिवर्तन करते चलें गए। ईसा मसीह की पूर्ण स्थिति मुझे अधीर करती है। आज आप सब लोग सहजयोगी हैं, अन्य लोगों से बहुत उच्च है और आपमें सभी शक्तियां हैं। मान लो आप भी ईसाइयों की तरह से परन्तु उनकी मृत्यु से किसको लाभ हुआ? वास्तव में वे कौन लोग थे जो उनकी मृत्यु चाहते थे आप जानते हैं कि ईसामसीह की मृत्यु के पश्चात पाल और पीटर जैसे लोग आगे आए और इसका व्यापार बनाने का प्रयत्न किया। अत्यन्त खेद की बात है कि उन्होंने यह लज्जा जनक कार्य किया । यह पाल केवल एक आयोजक था, मात्र एक पदाधिकारी। परन्तु उसे उच्च पद की वहुत लालसा थी। इसलिए उसने झूठ बोला और कहा कि उसने ईसा के विशाल क्रूस को देखा है। सहजयोग के अनुसार यहां सब पराचेतना के चिन्ह हैं. आध्यात्मिकता के नहीं। वापस आकर उसने अपने शोध आदि आरम्भ कर दिए और बहुत कुछ लिखा। परन्तु यदि आप उसे ध्यान से पढ़ें तो आप जान जाएंगे कि वह सहजयोगी नहीं था। वह मात्र एक आयोजक था. एक पदाधिकारी था। जो यह लिख रहा था कि किस प्रकार कार्य किया जाए। भिन्न प्रकार के लोगों को किस प्रकार चलाया जाए। अत: वह ईसाइयों के लिए प्रबंध विभाग था। इस प्रकार ईसाई लोग अत्यन्त सचिवों की तरह से बन गए। हर चीज का व्यवहार करना चाहें तो मैं नहीं जानती कि मैं क्या करूंगी। अब एक समय है। आपको ऐसे आना चाहिए, ऐसे बैठना चाहिए. आप उस स्थिति में हैं जहां भिन्न देशों और लोगों द्वारा इस प्रकार बात करनी चाहिए और सभी ईसाई राष्ट्र इन आदेशों सहजयोग को स्वीकार किया जा रहा है और सहजयोगियों का सम्मान होने लगा है। उन्हें उच्च पद दिए जा रहे हैं । अचानक क्यों हर चीज में वे इतने अधिकारिक हैं! ईसा ने कहा था कि यदि आप भी शक्ति लोलुप हो जाएं और निरंकुश होने का प्रयत्न करें तो यह दिव्यता न होगी। ऐसा करना मानवीय स्वभाव है। पशुओं के साम्राज्य में पशु एक दूसरे के प्रति आक्रामक होते हैं। पशुओं का ऐसा आचरण ठीक हैं, उन्हें इसकी आज्ञा है। परन्तु जिस प्रकार वे दूसरे पशुओं पर प्रभुत्व जमाते हैं उसकी भी एक मर्यादा है। ऐसा नहीं है कि बे किसी का पालन अधिकारिक रूप से कर रहे हैं। समझ नहीं आता अपने आज्ञा चक्र को खोलो परन्तु उनके कथन के विपरीत ईसाई लोग इस पर आघात पहुंचा रहे हैं और विश्व भर में अत्यन्त अहम्बादी तथा आक्रामक हैं। किसी भी भूमि पर कब्जा कर लेना, वहां पर अपना कानून चलाना, अपना शासन जमाना उन्होंने अपना अधिकार माना। भारत में भी उन्होंने ऐसा ही किया। मैं जानती हुै कि आज भी पंजाब जैसे राज्य में आपको मूर्खो की तरह से घोर परिश्रम करते हुए लोग मिल सकते हैं। वे शासकों के दबाव में ऐसा कर रहे हैं और शासक पर भी आक्रमण कर दें। परन्तु सहजयोग में मैंने देखा है कि किसी को यदि अगुआ बना दिया गया तो वह सभी के सिर पर सवार हो जाता है। यदि उनको अगुआ नहीं बनाया गया तो वे एक के बाद एक पत्र मुझे लिखते हैं कि हम अगुआ बनना चाहते हैं। इस प्रकार हर समय वे मुझ पर दबाव डालते रहते हैं। क्यों आप अगुआ बनना चाहते हैं। लोगों पर रौब डालने के लिए। रौब डालना सहजयोग में वर्जित है। आज में यहां पर आपको ईसा मसीह के सुन्दर स्वरूप के विषय में बताने के लिए आई हूँ। वे मृत्यु इन लोगों का पूरा लाभ उठाना चाहते हैं। ईसाइयों का इस प्रकार का व्यवहार अत्यन्त हास्यास्प्रद था। फिर उन्होंने एक और धूर्तता चालू कर दी। धर्म परिवर्तन करके वे लोगों को ईसाई बनाने लगे। धर्मान्धता के चक्कर में फंसाकर उन्हें विश्वस्त कर दिया कि अब उनका हिन्दु या किसी अन्य धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं और इस प्रकार हजारों गरीब और पिछड़े हुए लोगों को से ऊपर उठे इसी चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 9, 10 1998 लिखा गया है। अब जैसा कि हम निर्विचार समाधि में जानते हैं। कि हमें अपने जीवन के माध्यम से इस प्रकाश की अभिव्यक्ति करनी है और विश्व को दर्शाना है कि हम बिल्कुल भिन्न प्रकार के लोग हैं और पूर्णतः अपने अन्तः स्थित हैं। किसी अन्य से हमें कुछ नहीं चाहिए। जो उपलब्धि हमने प्राप्त की है वह हम अन्य लोगों को देना चाहते हैं इसलिए लोग आप सभी सहजयोगियों की ओर देख रहे हैं । प्रकार सभी मूर्खतापूर्ण विचारों, नकारात्मक आदर्शों आदि पर भी काबू पाया जाना चाहिए। आपको स्वयं का स्वामी बनना होगा और उसी स्थिति में सुखी एवम् प्रसन्न रहेना होगा। दूसरों को देना, उनसे लेने की अपेक्षा, आपको सुगम प्रतीत होंगा। आश्चर्य की बात है कि किस प्रकार सहजयोग ने इन सब चीजों पर विजय प्राप्त की है। सहजयोग में लोगों को कहना मा होगा कि बे अत्यन्त अद्भुत, सुन्दर प्रेममय तथा अत्यन्त करुणामय है। उन्हीं के मुँह से मैं सुनना चाहती हूं कि आप सब व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से अत्यन्त महान है। परन्तु यह परमात्मा आपको धन्य करें। ईसा मसीह के विषय में सोचते हुए अगन्य चक्र की बात करना अत्यन्त कठिन कार्य है। अत्यन्त खेदजनक बात है कि लोगों ने इतने महान महानता प्रभुत्व जमाने से या आडम्बर करने से नहीं आई। इसका उद्गम आपके अन्दर से है। लोग आपको देखकर कहें कि ये महान लोग हैं। इस प्रकार सहजयोग फैलेगा। आपके पुरूष, इतने दिव्य व्यक्तित्व को कभी न समझा। इसके बावजूद भी इन सारे कष्टों को झेलने का नाटक उन्होंने किया। जिस प्रकार उन्होंने स्वयं को क्रूसारोपित करवाया और मृत्यु को प्राप्त अन्तः स्थित ईसामसीह को जागृत होना होगा और आपका पथ प्र्दशन करना होगा आपके अन्तः स्थित ईसामसीह आपको शिक्षा देंगे कि किस प्रकार आपने अन्य लोगों से व्यवहार करना हुए यह याद रखना भी अत्यन्त कष्टदायी है। परन्तु मुख्य बात यह है कि उन्होंने आप सब लोगों के लिए यह सब सहन किया और आप उनके ऋणी हैं उनके कार्य से कुण्डलिनी जागृति और सहस्रार भेदन में सहायता मिली। ईसामसीह के बलिदान के बिना यह सब असंभव होता। आप सब लोगों से भी कुछ बलिदान की अपेक्षा की जाती है। इतनी प्रतीकात्मक घटना घटी है। किस प्रकार उनका विश्वास जीतना है और अपने हृदय से प्रवाहित होने वाले प्रेम एवम् शान्ति किस प्रकार आपने उन्हें देनी है, ताकि वे भी अत्यन्त प्रसन्न एवम् आनन्दमय बन सकें। पुनर्उत्थान का यही सन्देश है, सहस्रार भेदन का यही सन्देश है। यह अंडा जिसका वर्णन, आश्चर्य की बात हैं, स्पष्ट रूप से देवी महात्मा में किया गया है किस प्रकार उत्पन्न हुआ और दो भागों में टूटा! अंडे के एक भाग से ईसा मसीह प्रकट हुए और दूसरे से श्रीगणेश। यह सब लिखा हुआ है। परन्तु ईसामसीह का वर्णन महाविष्णु के रूप में किया गया है । तो अवतरित होकर ये महाविष्णु सभी सद्कार्य करते हैं । यह वास्तविक सन्देश है जो ईसा मसीह के जीवन द्वारा सुन्दरतापूर्वक है। मानवता के उत्थान के लिए आप सब लोगों को भी हर संभव बलिदान के लिए तैयार रहना चाहिए। यह बात इस क्षण अतिसूक्ष्म है। अपनी जिज्ञासा और हर चीज कों भूलकर अपको मात्र इतना याद रखना है कि ईसा के बलिदान ने आपकी रक्षा की और उसी के द्वारा आपको आश्शीवाद प्राप्त हो रहे हैं ऐसा करना अति आवश्यक है। परमात्मा आपको धन्य करें। चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 9. 10 1998 श्रीमाताजी आप शान्तिद्वत हैं। न्तदूत अयातुल्ला रूहानी का भाषण : रायल अलबर्ट हाल ग 03.07.1997 कार ा इस प्रकार स्वत: आत्मसाक्षात्कार का अनुभव, जिसकी अभिव्यक्ति माताजी श्री निर्मला देवी ने की है, और सहजयोग. जिसकी वे शिक्षा देती हैं, दोनों इस्लाम के सिद्धान्तों के पूर्णतः अनुरूप हैं। श्रीमाताजी के इस दैवी सन्देश के कारण ही आज सांय में आपसे बात करने का इच्छुक था। ुता पीर-पैगम्बरों (Homosapiens) द्वारा छोड़े गए प्रमाणों पर यदि हम ध्यान दें तो हम देख सकते हैं कि मानव को सदैव एक पराशक्ति (Supereme being) के अस्तित्व का ज्ञान था। यह शक्ति हर चीज की और सभी प्राणियों की स्वामी है। सभी उपलब्ध साधनों द्वारा हर युग के मानव ने परमात्मा के ये सब कहते हुए मुस्लिम देशों में आज महिलाओं की स्थिति पर बातचीत करते हुए मैं अपनी वार्ता को समाप्त प्रति अपने गहन सम्मान की भावना को प्रकट करने तथा अपने सृष्टा के प्रति सभी वाछित कर्म करने का प्रयत्न किया। यही कारण है कि इस्लाम ने सदैव परमात्मा से सीधे सम्पर्क बनाने की संभावना पर बल दिया। बुतप्रस्तों ने भी परमात्मा के अस्तित्व को कभी नहीं नकारा। परन्तु मूर्तियों तथा प्रतिभाओ को परमात्मा के स्थान पर रख दिया। यह आज भी करूगा। आप जानते हैं कि इस्लाम की परम्परा में महिलाओं के पद की मां के रूप में बहुत स्तुति की गई है। पैगम्बर मोहम्मद ने तो यहां तक कहा,"अपनी मां के चरणों में हम जन्नत अनुभव करते हैं ।" पत्नी रूप में भी, इस्लाम न केवल स्त्री को अपना पति चुनने का अधिकार देता है बल्कि पैगम्बर साहब के विख्यात शब्दों में उसे श्रद्धांजलि अर्पित करता है। पैगम्बर साहब ने कहा"आपमें से सबसे अच्छा व्यक्ति वही है जो अपनी पत्नी से अच्छा व्यवहार करता है।" तथा फिर, "स्त्रियां घटित हो रहा है। इस सब के बीच हम एक सच्चे पैगम्बर और उसके उद्देश्य को किस प्रकार पहचान सकते हैं? पैगम्बरों का उद्देश्य 'परमात्मा की इच्छा' (The will of बाम God) को प्रकट करना तथा धर्म की हमारे जीवन के अनुभव पर आधारित तर्क संगत एवम् अनुभव गम्य व्याख्या करना है। सच्चे एकश्वरवाद सृष्टि की अडोल एकाकारिता अर्थात् परमात्मा और मानव का हमारे पास परमात्मा द्वारा भेजी जाती हैं, और उनकी रक्षा का - परमात्मा में विश्वास का अर्थ है सारी उत्तरदायित्व पुरुषों पर है।" अत: महिलाओं को उनकी जिम्मेदारियों तथा उनके संवैधानिक तथा नागरिक अधिकारों में पुरुष के अटूट सम्बन्ध। इस प्रकार एकेश्वरवाद ( अद्वैतवाद) मानव और परमात्मा के बीच में खड़े हो जाने वाले बुतों और रूपों की सारहीनता प्रमाणित करता है। अत: पैगम्बरों का लक्ष्य मानव को ठीक मार्ग पर लाना है और इसके लिए उन्होंने दो मुस्लिम देशों में भी इसका सम्मान नहीं किया गया। श्रीमाता जी समान माना गया है। आज, दुर्भाग्यवश, हमने देखा है कि कुरान की इस महान अन्तरदृष्टि को लोगों ने नहीं समझा। इसी कारण बहुत से न आपके साहस, सद्भाव, पावित्र्य, पांच महाद्वीपों में अथक यात्राओं के कारण आपको विश्व में शान्तिदूत माना जाना न्यायोचित है। से समानान्तर तथा सम्पूरक मार्ग अपनाएं: 1. धर्म एवम् दर्शन पर आधारित ज्ञान का मार्ग 2. आत्मज्ञान या आत्मसाक्षात्कार का मार्ग आपका अनुकरणीय जीवन मुस्लिम महिलाओओं के लिए आपको उत्कृष्ट प्रतीक तथा आदर्श बनाता है। अल्लाह करे कि उनकी न्याय की खोज गरिमापूर्वक, सच्चे आध्यात्मिक जीवन यही कारण है कि हमें अपने धर्मग्रन्थ कुरान में ज्ञान परिपूर्ण प्रवचन मिलते हैं जो परमात्मा के ज्ञान प्राप्ति के मार्ग की ओर इशारा करते हैं । इस सन्देश को जीवन में उतारने का ठोस मार्ग इस युग में श्रीमाताज़ी निर्मलादेवी ने प्रदान किया है । इस सत्य की पुष्टि करने के लिए, आपकी आज्ञा से, पैगम्बर मोहम्मद के शब्दों को मैं कहना चाहूँगा उन्होंने कहा "परमात्मा मानव की अपनी धरमनियों से भी अधिक उसके समीप है।' पैगम्बर मोहम्मद कहते हैं" आत्मा का ज्ञान प्राप्त होने का आनन्द प्राप्त करने की इच्छा, सच्चे इस्लाम के आध्यात्मिक सिद्धान्तों में पूर्णता प्राप्त करे। धर्म के नाम पर महिलाओं पर जो अन्याय हो रहे हैं, इससे उनका अन्त सम्भव हो सकेगा। श्रीमाताजी ने विश्व भर के मुस्लिम देशों, विशेषकर अफगानिस्तान, ईरान और तुर्की में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के स्वप्न एवम् लक्ष्य को लेकर आपके तथा यहां उपस्थित अन्य सभी लोगों के सम्मुख आज सांय यह संक्षिप्त भाषण दिया है। मेहदी रूहानी पर मानव स्वयं को पहचानने लगेगा और अन्ततः परमात्मा का ज्ञान प्राप्त कर लेगा।" "अपने आन्तरिक शुद्धिकरण से व्यक्ति जान जाता है कि वह आत्मा है। कि चैतन्य लहरी ॥ खंड : X अंक : 9, 10 1998 भविष्य हमारे हाथ में है क क्लेस नोबेल का भाषण रायल अलबट हाल, लन्दन 03-07-1997 नि:सन्देह जीवन आश्चर्यों से परिपूर्ण है। परम पावनी माताजी श्री निर्मला देवी के सन्देश एवम् कार्य से प्रेरित होकर 100 वर्ष पूर्व अलबर्ट नोबेल को नोबेल शान्ति पुरस्कार की स्थापना की। ये पुरस्कार श्रेष्ठता के प्रति रसायन शास्त्र, भौतिक शास्त्र औषध, साहित्य और शान्ति के लिए भी पुरस्कार है। इन सब पुरस्कारों में से शान्ति पुरस्कार को मैं सर्वोत्तम मानता हूँ और आपको बताना चाहता हूँ कि 100 वर्ष पूर्व पैरिस में अल्फेंड नोबेल ने अपनी महिला सचिव की बातें ध्यान से सुनी। उनकी सचिव ने कहा था "डा . नोबेल अपनी विशाल धन सम्पत्ति कों आप संसार की बेहतरी के लिए उपयोग करें। " आज शाम आप एक अन्य महिला को सुन रहे हैं, हम श्रीमाताजी का सन्देश सुन रहे हैं। जो भी हो सर्वप्रथम अपने चाचा से और फिर श्रीमाताजी, जिन्हें आप सुनेंगे मैं बहुत प्रेरित हूँ। अल्फ्रेड नोबेल ने शान्ति के विषय में बहुत कुछ हैं। वे यहां साक्षात् नहीं हैं परन्तु सूक्ष्मरूप हम यहां एकत्र हुए में वे यहां उपस्थित हैं। अभी हमने अयातुल्ला रूहानी का सुन्दर पत्र सुना जिसमें उन्होंने परमपावनी मां के कार्य एवम् सन्देश की भूरि-भूरि प्रशंसा की और विश्व में महिलाओं के महत्व का वर्णन किया। वो भी यहां उपस्थित नहीं हैं और सच बात तो यह है कि 36 घंटे पूर्व में भी न जानता था कि रायल अलबर्ट हाल में मैं श्रोताओं के सम्मुख भाषण दे रहा हूंगा। फिर भी मैं कहता हूं,"प्रिय पावनी माँ, मैं उनके पति सर सी.पी. श्रीवास्तव को भी श्रोताओं के मध्य देख रहा हूँ और महत्वपूर्ण बात तो यह है, प्रिय मित्रों, सत्य साधक साथियों क्या आप यहां है? इस प्रकाश में में केवल बीस लोगों को अपने सम्मुख देख पा रहा हूँ। अत: यदि आप यहां उपस्थित हैं तो ' हाँ' कहें (तालियां)। अब मैं आपको देख पाया और सुन पाया तथा आप मुझे। ये कहने के पश्चात् अब मैं कहना चाहता हूँ कि मेरा एक स्वप्न है इस विश्व के विषय में मेरा एक स्वप्न है, जोकि आज के विश्व से कहीं अच्छा, सुरक्षित एवम् विवेकशील विश्व है। ये एक ऐसा विश्व है जिसमें लोग परस्पर और प्रकृति कहा। वह बहुत भयभीत थे कि उनके द्वारा बनाया गया भयानक विस्फोटक डायनामाइट, जिसका उपयोग बन्दरगाहों और सुरंगों के लिए भूमि साफ करने के लिए किया जाता है. उसका उपयोग युद्ध के लिए भी किया जा सकता है। आज की फौजी प्रणाली में ये डाइनामाइट मात्र एक पटाखे जैसा है। परन्तु उस समय यह अत्यन्त भयानक और विनाशपूर्ण तत्व था । अल्फ्रेड नोबेल ने मूलत: युद्ध न होने को ही शान्ति माना। परन्तु मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि शान्ति इससे कहीं बड़ी चीज है। मैं देखता हूँ कि चार विशेष क्षेत्रों में शान्ति का अस्तित्व है। पहला क्षेत्र है व्यक्त के अन्दर की शान्ति। किस प्रकार हम अपने मस्तिष्क अपनी भावनाओं एवम् मनोवेगों को लेते हैं? किस प्रकार हम अपने शरीर से पेश आते हैं? क्या हम अन्य गुरुओं के दास हैं या स्वयं के स्वामी ? आन्तरिक शान्ति प्राप्त किए बिना हम बाह्य विश्व में कभी शान्ति स्थापित नहीं कर सकते। विश्व शान्ति स्थापित करने के लिए विशाल जनआन्दोलन, अत्यन्त सुरक्षित एवम् सर्वोत्तम मार्ग हैं । इनमें सभी धर्म और दर्शन, सभी उपक्रम (Enterprises), चाहे वह राजनीतिक हो या वैज्ञानिक स्वभाव के, भाग लें ओर महसूस करें कि आन्तरिक शान्ति क्या है। आज सांय हम भी इसी की बात कर रहे हैं। के साथ सुख-शान्ति से रहते हैं। अब ये शब्द बहुत गहन हैं। स्वप्न बहुत बड़ा है। क्या मेरे पास इस स्वप्न से वास्तविकता में जाने का कोई मार्ग है? हां दस छोटे-छोटे शब्दों में मैं आपको बताऊंगा कि किस प्रकार ये शब्द ब्रहमाण्डीय परिवर्तन को इंगित करते हैं । ये शब्द हैं : उचित विचार, उचित शब्द, उचित कार्य, यहां और इसी वक्त! (तालियों की गड़गड़ाहट)। नि:सन्देह 'उचित' शब्द कुंजी है 'उचित' के लिए ये विश्व लड़ रहा है। आपके लिए जो उचित है वह मेरे लिए अनुचित हो सकता है, आदि-आदि। यह अनिश्चित शब्द है। अत: हमें एक संदर्भ बिन्दु की आवश्यकता है ताकि 1. उचित-अनुचित तथा सत्य असत्य में भेद को जान सकें। आज सांय श्रीमाताजी हमें बताएंगी कि उचित क्या है और हमें अपने भाग्य का स्वामी बनने की शक्ति प्रदान करेंगी। आज शाम को सत्य के प्रकाश में प्राप्त आत्मसाक्षात्कार के ज्ञान से हमारा आत्साक्षात्कार। आत्मसाक्षात्कार का अर्थ क्या है? इसका अर्थ है कि हम किसी चीज का अनुभव कर रहे हैं। परन्तु यह आत्म (Selif) क्या है? भाइयों और बहनों हमारे अन्तनिहित पथ-प्रदर्शन होगा और हम सब पूर्ण सत्य एवम् पूर्ण शान्ति को जान जाएंगे। चैतन्य लहरी ॥ खंड : X अंक : 9, 10 1998 10 मां हमें तोड़ देंगी। हम केवल एक जाति (नस्ल) हैं हम नहीं जानते हमारी कितनी नस्लें हैं-पचास लाख, एक करोड़ या एक करोड़ पचास लाख। परन्तु इतना हम अवश्य जानते हैं और हावर्ड विश्वविद्यालय संयुक्त राज्य अमेरिका के चोटी के वैज्ञानिक डा. एडवर्ड ओ विल्सन द्वारा यह प्रमाणित किया जा है कि प्रतिदिन हम दो सौ पचास जातियों को नष्ट कर आत्मा वह दिव्य, ब्रह्माण्डीय शक्ति है जो हम सबमें विद्यमान है। परन्तु विश्व के अधिकतर लोगों में यह सुप्तावस्था में है। प्राचीन काल से आध्यात्मिक लोग इसके विषय में जानते थे और बताते थे। परन्तु यह महान रहस्य जानबूझ कर दबा दिया गया। अत्यन्त कृपा करके इस कठिन समय में श्रीमाताजी पृथ्वी पर अवतरित हुई और अत्यन्त विवेक एवम् साहसपूर्वक इस सुप्त शक्ति, कुण्डलिनी को जागृत करने के लिए सहजयोग स्थापित किया। इस प्रकार जैसा कि बाइबल में कहा गया है 'मैंने तुम्हें अपने रूप में बनाया है ("You are created in my image") (तालियों की गड़गड़ाहट)। हमारे अन्तः स्थित शान्ति की यह पहली श्रेणी थी, पहला वृत्त था। दूसरी शान्ति वह है जो हम लोगों में परस्पर है, समुदाय में, राष्ट्र में, भिन्न जातियों और भिन्न धर्मों में जिससे चुका रहे हैं! यह तो इस प्रकार हुआ मानो हम जानबूझकर जीवन रूपी वस्त्र की एक एक तार को बाहर खींच रहे हैं। प्रकृति मां हमें ऐसा नहीं करते रहने देगीं। वे हमें वैसे ही सुधारेगी जिस प्रकार शरारती बच्चों को सुधारा जाता है। शान्ति का चौथा वृत्त वह शान्ति है जिसे हमें अपने और परमात्मा के मध्य जानना चाहिए। कोई भी धर्म या समूह, यदि सेना बनाकर परमात्मा के नाम पर अपने शत्रुओं को नष्ट करता है तो वह परमात्मा की आज्ञा का पालन नहीं कर रहा। विश्व में हिंसा का नाम भी नहीं होना चाहिए (तालियां) और न ही हम वास्तव में 'चुस्त' श्रोता बन जाते हैं ओर चुस्त श्रोता के रूप में अपने को अन्य लोगों के स्थान पर रख सकते हैं उनके नजरिए से जब हम देखेंगे तो समझ पाएंगे कि वे क्या कहने का प्रयत्न कर रहे हैं हम, तो सदैव बातें ही करते रहते हैं मेरी विश्व को युद्ध का ज्ञान होना चाहिए। शान्ति के इन चारों वृत्तों को, जैसा कि हम सुन चुके हैं, प्रिय पत्नी जो आज रात्रि यहां उपस्थित नहीं है कहती हैं, मैं 'पृथ्वी संहिता' (Earth Ethics) कहता हूँ और आज रात्रि हम परमपूज्य श्री माताजी से सुनेंगे कि किस प्रकार हम सम्पर्क बिन्दु प्राप्त करें। हमारे सम्मुख यदि कोई नीम हकीम या धूर्त तीसरा वृत्त वह है जिसने मुझे मूलतः खींच लिया है। मैं व्यक्ति हो या वास्तविक ईमानदार व्यक्ति हो तो उनमें भेद हम एक यूरोपियन, स्वीडिश व्यापारी हूँ। यहां खड़ा होकर मैं किस प्रकार करें । प्रिय श्रोतागण आप लोग जीवन के भिन्न क्षेत्रों से आए हैं, आप ही की तरह से मैं भी सत्य को खोज रहा हूँ। मुझे सत्य स्पष्ट दिखाई देने लगा है। मैं आपको बता ूँ इसलिए कर रहा हूँ कि मुझमें प्रकृति के प्रति अगाध सम्मान है। कि मैं पृथ्वी पर जीवन को एक स्कूल की तरह से देखता हूँ जिसमें हम पूर्णता और पावनता सीख रहे हैं । पृथ्वी पर सभी कुछ परस्पर निर्भर, परस्पर प्रभावशील एवम् परस्पर सम्बन्धित है तथा पृथ्वी, और मेरे विचार में स्वर्ग में भी हर क्रिया की प्रतिक्रिया है, हर परिणाम का कारण है और हर कारण का कोई प्रभाव। जिस प्रकार मेंने कहा, परम पूज्य श्रीमाताजी महान विकसित आत्मा हैं जिन्होंने इस सब के विषय में जन्म-जन्मान्तरों में ज्ञानार्जन किया है। यह सब नियमों के विषय में है, अदृश्य नियमों, आध्यात्मिक नियमों के विषय में जो सदैव विद्यमान होते हैं और उसी प्रकार बिना किसी त्रुटि के कार्य करते हैं जैसे गुरुत्वाकर्षण का नियम (वे अपनी कलम पृथ्वी की ओर छोड़ देते हैं) । यह नियम सदैव कार्य करता है। सभी अदृश्य नियमों "क्लेस, तुम बहुत अधिक बोलते हो, सुनते नहीं हो।" अब मैंने चुस्ती से सुनना' शुरु कर दिया है। आध्यात्मिकता की भाषा क्यों बोल रहा हूँ और कह रहा हूँ"केवल यही भविष्य की आशा विद्यमान है?" ऐसा में नोबेल शान्ति पुरस्कार विजेता के रूप में जब वे अपने पूरे ज्ञान से सारगर्भित उनके पूरे दर्शन से परिपूर्ण एक मुहावरे का सार तत्व निकालने का प्रयत्न कर रहे थे: उनका मुहावरा था,"जीवन के लिए सम्मान" (Reverence for Life) उन्होंने कहा इस बहुमुखी स्वप्न में प्रकृति जीवन के उदाहरणों के भण्डार के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। प्रिय सत्य साधको, मैं आपको बताता हूँ कि अपनी अज्ञानता, लोभ और सत्ता लोलुपता के कारण हम मानव उस बहुमूल्य चीज को नष्ट करने के लिए चल पड़े हैं जो इस उपग्रह को अद्वितीय बनाती है। वह चीज पृथ्वी पर जीवन (Life on Earth) है। अभी तक इस ब्रह्माण्ड में किसी भी अन्य उपग्रह का के विषय में हमें सीखना है और उन्हें समझना है। पता नहीं चला जिस पर इतने सारे चमत्कार विद्यमान हों। अन्तरिक्ष में पृथ्वी एक नीले रत्न के समान है। केवल एक पृथ्वी है जो कि भंगशील (Fragile) है। अतः हमें इसकी देखभाल करनी होगी और इसका सम्मान करना होगा पृथ्वी को प्रकृति भी कहते हैं। प्रकृति के नियमों को हम तोड़ नहीं सकते। हमें उन नियमों के अनुसार रहना चाहिए नहीं तो पृथ्वी मैं श्रीमाताजी और उनकी शिक्षाओं से अत्यन्त प्रभावित हूँ। बाइबल की बहुत सी अच्छी कहावतों में से एक यह भी है कि"पेड़ को उसके फल से जाचिए|" हाल ही में मैं विश्व के भिन्न भागों में और विश्व के भिन्न भागों से आए हुए सहजी युवा पुरूषों और महिलाओं से मिला। वे सब तेजस्वी चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 9, 10 1998 11 अवलम्बनीय भविष्य' के विषय में बातचीत कर रहे हैं, परन्तु मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि संयुक्त राष्ट्र में अवलम्बनीय बातचीत (Sustainable Dialogue) कहीं अधिक चल रही है। आज रात हम कार्यवाही करेंगे। मानव हैं। आन्तरिक शान्ति और सन्तुलन उनसे फूट पड़ता है। वे अद्वितीय हैं। आपने अनुसरण किया है और कर रहे हैं और, मैं सोचता हूँ, आप उन लोगों में से होंगे जिन्हें स्वयं को पृथ्वी-दूत' कहना चाहिए और आज रात के इस सत्र की समाप्ति के पश्चात् आप सत्य-असत्य में भेद कर पाएंगे तथा महसूस करेंगे कि अन्धविश्वास व्यर्थ है और धर्मान्धता और इसके परिणामवश हिंसा को अपनाना विल्कुल बेकार है। इन कार्यों के परिणामस्वरूप आपको दुख, क्लेश और भयानक युद्ध ति भारत के एक सन्त से मैंने पूछा,"क्या भविष्य के लिए कोई आशा है?" उसने कहा," श्री नोबेल, मैं आपके प्रश्न का उत्तर इस प्रकार दूगा:जब परम पिता परमात्मा ने इस पृथ्वी की सृष्टि की तो वे बहुत प्रसन्न थे। ब्रह्माण्ड उनकी शानदार रचना थी। उन्होंने जश्न मनाने का निर्णय किया तथा सभी देवों और असुरों को निर्मान्त्रित किया। बहुत अच्छी शराब शानदार खाना और अमृत उन्हें पेश किए गए। साथ ही परमात्मा ने कहा,"इस भोज का आनन्द लेते हुए आप लोगों को एक नियम का कड़ाई से पालन करना होगा। वह नियम यह है कि यहां पर आप अपनी कोहनियां नहीं मोड़ेंगे। इस बात से असुर चिल्ला पड़े कि हम ऐसे भोज में सम्मिलित नहीं होंगे। बिना कोहनियां मोड़े हम किस प्रकार आनन्द ले सकते हैं? अत: वे चले गए। भोज का सामना करना होगा। बहनों और भाइयो, मैं जानता हूँ कि भविष्य हमारे हाथ में है, मैं जानता हूँ कि भविष्य आपके हाथ में है। मैं जानता हूँ कि यह मेरे हाथों में है और यह भी जानता हूँ कि इस उपग्रह का भविष्य लोगों के हृदय में विद्यमान है। अब एक भारतीय कथा सुनाकर में अपना भाषण समाप्त करूंगा।1992 के रियो सम्मेलन में भाग लेते हुए मैंने यह कथा सुनी । स्टाकहोम सम्मेलन की यह बीसवीं वर्षगांठ थी जिसमें पहली बार पर्यावरण को विश्व की समस्याओं में रखा गया। वर्ष 1972 में स्टाकहोम सम्मेलन में दो राष्ट्रों के मुखिया भारत के प्रधानमंत्री और स्वीडन के महाराजा । आरम्भ हुआ, देवता लोग बहुत आनन्द ले रहे थे और परमात्मा बहुत प्रसन्न थे। किस प्रकार अपनी कोहनियों को मोडे बिना देवगण भोजन कर सके। मुझे आशा है कि इस कथा के सार को आप जान गए होंगे देवता एक दूसरे को भोजन करवा रहे थे और एक दूसरे को देखभाल कर रहे थे। हमें भी भविष्य में सामूहिक रूप से यही करना है। धन्यवाद। विद्यमान थे बीस वर्ष पश्चात् रियो में 120 राष्ट्रों के मुखिया उपस्थित थे। केवल पिछले सप्ताह न्यूयार्क में 'एजेण्डा 21' नामक एक अत्यन्त सुन्दर घोषणा का मसौदा तैयार किया गया| रियो में 75 राज्यों के मुखिया विद्यमान थे। सर सी. पी. ने जब मुझसे इस सम्मेलन के परिणाम के विषय में पूछा तो मैंने कहा" हम यि चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 9 10 1998 12 ियि क मात्रेसुर वधमन्त्र ति हे श्री भीम देवी कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए । व्यापार के पुनर्गठन प्रयत्न विश्व भर में कार्यरत विशालकाय नियमों को लाभान्वित करने तथा छोटी तथा मध्यम वर्ग के इस विश्व में 'अति' शब्द भी सीमित है। यह विश्व स्विस बैंक नामक राक्षस का पोषण करता है। ा इस विश्व में सन्त लोग भी त्राहिमाम् कर जाते हैं । यहां दुष्टता का बोलबाला है। इस विश्व को यदि ध्यानपूर्वक देखें तो अमेरिका को छोड़कर पूरे विश्व का स्तर मलेशिया जैसा है। यहां 1.3 खरब लाग एक डालर से भी कम प्रतिदिन आय से निर्वाह करते हैं । इस ग्रह पर लोगों के भरण पोषण के प्राकृतिक संसाधनों का 7. उद्यमों को समाप्त करने के लिए हैं। हे श्री चण्डिका, कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए । महावैभवशाली लोगों के हाथ में नकद धन का निरन्तर केन्द्रीकरण, राष्ट्रीय भौमिकता तथा जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों की शक्ति को घटा रहा है तथा धन शक्ति के आसुरी आयाम 1. अभाव है। हे दुर्गा भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली आसुरी शक्तियों को नष्ट करें । थोप रहा है। हे श्री राक्षसअग्नि कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए । 90 प्रतिशत लोगों में लालच का बढ़ जाना विश्व के शेष 10 प्रतिशत मध्यम वर्गीय लोगों के लिए दरिद्रता का कारण इस विश्व में 10 प्रतिशत व्यापार नशीले पदार्थों का 2. होता है, जहां दस खरब अमेरिकी डालर मानव को विषाक्त करने के लिए खर्च होते हैं, स्विटजरलैण्ड तथा अन्य देशों में 9. धन प्रवाह करना वैभव प्राप्ति का सुगम साधन है। हे रक्त बीज विनाशनी; भौतिकवाद रचित सभी आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए । ये वो संसार है जहां वालस्ट्रीट मेहनतकश मध्यमवर्ग का सारा पैसा निगल जाता है और इस धन को धनी लोगों की तिजोरियों में पहुँचा देता है। और वालडिस्ने उन्हें सब कुछ भुला देता है। हे कात्यायनी कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली सभी आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए । इस विश्व में मिस्र के लोग कैरोमे मेक्डोनाल्ड होटल में खाते हैं और बीजिंग में चीन के लोग पीजा हट में खाते हैं । और बन रहा है। हे श्री देत्यन्द्र मर्दिनी सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए । 10. वैकल्पिक आर्थिक समाधानों का योजनाबद्ध रूप से कृपा करके भौतिकवाद की 3. नष्ट किया जाना, व्यापार एवं आर्थिक संसाधनों की असमानता, विश्व की जनसंख्या में धन के समान वितरण को चुनौती दे रही है। हे श्री वज्िणी कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली उन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए । 4. धन बाजारों के अनियमितिकरण ने रोम के विशाल पर 11. धन भक्षी लोगों के लिए खरबों डालर हड़प लेने वाले जुरासिक पार्क के द्वार खोल दिए हैं और कल्पनामात्र से ही सारे धन को हड़प करके वे अपनी हवस को पूरा करने के लिए प्रयत्नशील हैं। हे श्री उग्रप्रभा कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए। 12. वित्तीय सम्पदा के भयंकर रूप से बढ़ जाने के कारण नकद धन वास्तविक अर्थव्यवस्था से निकालकर धन बाजार में इस प्रकार राष्ट्रीय मूल्यों तथा परम्पराओं को नष्ट कर रहे हैं । अत: हे शाकम्भरी, कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए। यहां बहुराष्ट्रीय शक्तियां तानाशाही की एक नई किस्म 5. का प्रयोग कर रहीं हैं, विकासशील विश्व में अपने कारखाने लगाकर वे मजदूर वर्ग को तथा बच्चों को उत्पादिता के लाभ के लिए दास बनाने में जुट गए हैं। हे रक्षाकरी भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए। उत्पादन तथा सेवाओं का भूमण्डलीकरण थोड़े से खिलाड़ियों को अन्य लोगों को मूर्ख बनाने का क्षेम दे देता है जिसके कारण वे सीधे साधे लोगों पर अपने नियम थोपते हैं। डाल दिया गया है तथा पूरे बाजार की एक जुआ घर के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है जो समाजवादी नीतियों वाले देशों पर भयानक आक्रमण है। हे श्री महाकाली कृपा करके भैतिक वाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए। 6. साल चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 9. 10 1998 स्विस वित्तीय केन्द्र विकासशील देशों के कर चोरी करने वाले लोगों के लिए स्वर्ग का कार्य कर रहा है। इस प्रकार यह राष्ट्रीय पूंजी कार्यक्रमों औद्योगिक ढांचे एवं सामाजिक खर्चो से धन निकालकर विकसित देशों के स्टाक-एक्सचेंजों में सल सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए। सूचना सुविधाएं भौतिक विश्व के ऐसे माया जाल में खींच लेती है जहां मानव चित्त बिखर जाता है, इच्छाएं भ्रमित हो जाती हैं, सत्य की धज्जियां उड़ जाती हैं और इस प्रकार 13 19 मूल्य वृद्धि करते हैं । हे श्री उग्रप्रभा, कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कर दीजिए। 14. वैभव एवं शक्ति के मूलभूत केन्द्रीयकरण का लालच आत्मा दास बन जाती है। हे श्री राधा, कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए। 20. कुछ सम्वाददाताओं एवं राय बनाने वालों के लिए एवं मृगतृष्णा आत्म जिज्ञासा का सफाया करना चाह रही है हैं जिससे तथा आसुरी भौतिकवाद का भयानक विजय गर्जन लाखों उनके सत्ता, धन तथा यौन संबंधी विचारों का प्रसार होगा। हे श्री शुक्रात्मिका, कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए । 21. शैतान के मलेच्छों ने विश्व-गाँव के ताने-बाने आधुनिक संचार-साधन आसुरी शस्त्र बन सकते साधकों की आशाओं को नष्ट कर रहा है। हे श्री महामाया, कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कर दीजिए। 15. माफिया, गुप्त बैंकर्स एवं भ्रष्ट प्रबन्धकों ने विश्व की अर्थ व्यवस्था पर आक्रमण कर दिया है तथा हमारी पूरी संस्कृति की मूल्य प्रणाली को नौंव प्रदान करने वाली सामूहिकता के नीति शास्त्र को भयभीत कर रहे हैं। (INTERNET) के पारिवारिक नीड में अश्लीलता की गंदगी उड़ेल दी है ताकि वे नि:सहाय लोगों के मस्तिष्क में नारकीयता की परछाई डाल सके। हे श्री निर्मल कुमारी, कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए। हे महादेवी आपको कोटि-कोटि प्रणाम! हे श्री विराटांगाना, कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए । आज के महाविलय की प्रवृति का लक्ष्य राज्यों को सीमित करना, राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करना, बाजार को अपने हिसाब से चलाने तथा अर्थव्यवस्था को वश में करने के लिए और सभी व्यावहारिक कार्यो के लिए वास्तविक प्रजातंत्र की सामाजिक नींवों को नष्ट करने के लिए हैं। हे श्री खड़गपालिनी, कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए। आर्थिक विद्युत चक्रों के आकाशीय भटकाव ने एक ऐसे कल्पित विश्व की सृष्टि की है जहां तुच्छ धन ही एकमात्र यी ओउम नमः ! सर्वत्र मंगल, आनन्द एवं शाति हो! कृपा करके यूरोप में स्थित पर्वतों से बहने वाले जल में आपकी कृपा प्रवेश करें और सूर्य-युग (Aquarian-Age) में पावन चैतन्य लहरियां फैला दं। हे श्रीमाता जी निर्मला देवी, हे दैदीप्यमान, सर्वशक्तिशाली अवतार आपको कोटि-कोटि प्रणाम| आपके 16 सम्मुख त्रिमुर्तियों ( ब्रह्मा विष्णु. महेश ) ने भी विश्व की रक्षा करने के लिए प्रार्थना की। हे सौंदर्य एवं भय मूर्ति हम आपको प्रणाम करते हैं । आज नवरात्रि के इस पर्व में स्विटजरलैंड में आपके बच्चे नतमस्तक हो आपके प्रार्थना गीत गाते हैं कि हे देवी, आत्मा के शत्रुओं को पराजित करो। आपके चमचमाते दांतों के लिए हम भौतिकवाद रूपी नवीन प्रकार के असुर भेंट करते हैं । 17 वास्तविकता बन गया है। हे श्री विष्णुमाया, कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए। उन्नत होती हुई तकनीक के शिकंजे किसानों, कलाकारों और कुंभकारों आदि हस्त शिल्पियों का रक्त चूस रहे हैं और उन्हें स्थायी रूप से अपंग बना रहे हैं। 18 ओठम त्वमेव साक्षात, श्री रक्त दंतिका साक्षात श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः ओडम हे श्री कार्य समुद्यता, कृपा करके भौतिकवाद की क शांति: । श ट पामड ड शा पा गोल बि य चा क ता लपि पला तेर प दा् क र शि कम चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 9, 10 1998 14 सर्वभौमिक प्रेम के प्रति समर्पित %23 विश्व पाठशाला क कभ शरी कि शूभ अत: इस प्रयत्न का लक्ष्य उनमें विकास का उत्तरदायित्व तथा स्कूल में उनके अन्दर सहज मूल्यों का महत्व भर देना है। माता-पिता, अध्यापकों तथा समाज के प्रति उत्तरदायित्व अत्यन्त वांछित है। यह उनकी आकांक्षाओं, इच्छाओं तथा कौशल्य पर निर्भर है। स्कूल के पेड़-पौधे तथा वातावरण अन्तर्राष्ट्रीय सहज पब्लिक स्कूल हिमालय पर्वत की दौलाधर पर्वत श्रृंखलाओं की गोद में स्थित है तथा दूसरी ओर से सदैव हरे-भरे जंगलों से ढका हुआ है परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी की कृपा रक्षा में विश्व भर के युवा सहज-योगियों के शारीरिक मानसिक तथा आत्मिक पूर्ण संतुलित विकास के लिए यह वातावरण अत्यंत उपयुक्त है। हिम-आच्छादित पर्वतीय चोटियां अवर्णनीय सुख एवं शांति प्रदान करती हैं और ऊंचा उठने के लिए हमें प्रेरणा देती हैं। तशतरी नुमा तीन घुमावदार स्थल अवर तथा उच्च प्राणियों के कक्षों को समेटे हुए हैं तथा विशाल खेल के मैदान प्रदान करते हैं। पाठशाला का परिदृश्य, फूलों की क्यारियां दर्शनीय हैं। प्रकृति के इस वरदार का हम आनन्द लेते हैं और इसे सुन्दर बनाने के लिए हम प्रयत्नशील रहते हैं। हमारा स्कूल राष्ट्र समुदाय (Community of Nation)है। भिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक तथा आर्थिक निम्नलिखित अन्तर्राष्ट्रीय सहज पब्लिक स्कूल की सहज पत्रिका जून 1997 से उद्धृत है। स्कूल हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला के निकट तालनू में स्थित है। यहां प्रथम कक्षा से लेकर कक्षा 10 तक शिक्षा दी जाती है। वर्ष 1998 में पहली बार ग्यारहवीं कक्षा आरम्भ की जाएगी। मुझे विश्वास है कि सहज स्कूल में पले हुए बच्चे जहां भी जाएंगे वे परिवर्तित नहीं होंगे वे अन्य लोगों को परिवर्तित करेंगे। स्वयं परिवर्तित न होंगे उनके व्यक्तित्व के कारण अन्य लोग उनसे प्रभावित होंगे। सहजयोगी परिवर्तित नहीं होते। वे दूसरों को परिवर्तित करते हैं ।" ॐ श्री गणेशायः नमोः नमः परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के असीम प्रेम एवं आर्शीवाद से हम सहज पत्रिका का प्रथम अंक निकालने का साहस कर रहे हैं । अगले अंक हमारे विद्यार्थी स्वयं निकालेंगे। सर्वव्यापी प्रेम एवं शुभकामना के प्रति प्रतिबद्ध प्रजातांत्रिक जीवन शैली का अनुसरण करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय भाई-चारे के वातावरण में रहते हुए हमारा प्रयत्न विद्यार्थियों को सुशिक्षित करने का है, ताकि वे स्वयं को चला सकें तथा भिन्न समितियों के माध्यम से महत्वपूर्ण निर्णय ले सके वे मनमानी करने के लिए स्वछंद नहीं होंगे, पथ-प्रद्दशकों के रूप में अपने अध्यापकों की ओर देखेंगे। -माताजी श्री निर्मला देवी चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 9 10 1998 15 वातावरणों का प्रतिनिधित्व करते हुए हम आस्ट्रेलिया, आस्ट्रिया. यू.एस.ए.. कनाडा, इटली, जर्मनी, इंग्लैंड न्यूजीलैंड, फ्रांस स्विटजरलैंड, भारत, फिनलैंड, इस्राइल, बैल्जियम, ताइवान, हांगकांग, फिलिपाइन देशों से संबंधित है। अतः स्कूल राष्ट्र समुदायों के वास्तविक अन्तर्राष्ट्रीय रंग-बिरंगे रूपों का प्रतिनिधित्व एक सहजयोगी की डायरी से पति के सहजयोग ध्यानधारणा करने पर एक पत्नी नाराज थी। श्रीमाता जी के फोटो की ओर देखने की भी हिम्मत उसमें न थी। एक दिन हिम्मत करके गुस्से और भय से उसने फोटो से कहा" आप कौन हैं? क्या आप मेरे भगवान ईसा मसीह से भी शक्तिशाली हैं?" अचानक श्रीमाताजी की फोटो में उसे ईसामसीह का चेहरा दिखाई देने लगा। घवराकर वह अपने पति को बुलाने के लिए दौड़ी ताकि उसे वह फोटो दिखा सके। पति ने कहा "इससे अधिक तुम्हें समझाने के लिए मेरे करता है। क्या ये आश्चर्यजनक बात नहीं है कि इतने शीघ्र हम सब इतने समीप आ गए! अभी कुछ दिन पूर्व तो हम परस्पर पूर्णतः अजनबी थे। क्या मात्र यही स्वाभाविक नहीं है कि सम्पूर्ण विश्व जगदम्बा मां के चरण-कमलों में समर्पित होने की से हो भावना एकत्र जाए! सर्वम् समर्पयामिः हमारे शिक्षा प्रयत्नों का मूल रूप स्कूल द्वारा दी जाने वाली शिक्षा सामग्री अत्यन्त अद्वितीय सहजयोगी बीमार पड़ गया। ठीक होने के लिए उसने बहुत है। इस अनुसंधानिक पहुंच की एक मुख्य विशेषता यह है कि हम 'सीखना सीखते हैं; हम स्वयं अपने प्रतिद्वन्दी बन जाते हैं अपने लिए प्रार्थना करने के लिए चर्च भेजा। वैरागिनियों ने जब और सदैव अपने ही उपलब्धियों को पीछे छोड़ूने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं । सिद्धांतवाद, पक्षपात एवं कुसंस्कारों पर काबू पाने के लिए हम जिज्ञासु मस्तिष्क विकसित करने का प्रयत्न करते हैं । अपने कमरे में घुसी तो उन्होंने श्रीमाता जी को सोफे पर बैठा छान-बीन प्रशिक्षण एवं अवलोकन के माध्यम से हम सीखते हैं। हम मौलिक तथा सृजनात्मक होना सीखते हैं। नेतृत्व के गुण हम आत्मसात करते हैं। जिम्मेदारी विवेक हम प्राप्त करते हैें, और सर्वोपरि मानव मात्र के लिए प्रेम हम अपने हृदय में विकसित करते हैं । पास कुछ नहीं है।" धीरे-धीरे फोटो फिर अपने वास्तविक रूप में परिवर्तित हो गया। अभी तक सहजयोग में संदेह करने वाला एक नया कोशिश की और अन्त में उसने चार वैरागिनियों (नन) को श्रीमाता जी का फोटो वहां देखा तो क्रोधपूर्वक उससे कहा कि उसकी बीमारी का कारण यही है। अत: वह इसे जला दे और बाहर फेंक दे। वे बहुत आक्रामक थीं। जब वे वापस आई और हुआ पाया । वे घबरा गई। उनमें से एक ने साहस करके श्रीमताजी से कहा,"आप यदि ईसा से अधिक शक्तिशाली हैं तो आसमान तक उठ जाइये।" श्रीमाताजी खडी हुई और धीरे धीरे शान्ति से हवा में उठीं और लुप्त हो गई। तो चारों वैरागिनियां उस योगी के घर गई और क्षमा मांगते हुए श्रीमाताजी के फोटो को प्रणाम किया। मि -वसुधाऐव कुटुम्बकम' ु ा् ता ानद श्री गणेश पूजा ततल 7 सितम्बर 1997 या कबैला, लिगरे ा देती हैं उसे देखें। पृथ्वी मां जो हमें सभी कुछ प्रदान कर रही हैं और सूर्य जो उनकी सहायता करते हैं, उन्हें सहयोग देते हैं उनके साथ मिलकर कार्य करते हैं, इसको हमने कभी महसूस नहीं किया। इससे भी अधिक गहनता में यदि हम जाए तो आपने एक फोटो देखा है जिसमें पृथ्वी मां के गर्भ से कुण्डलिनी निकल रही है और आधी दिखाई पड़ रही है। तो यह पृथ्वी मां हमारे लिए क्या करती है। प्रतिबिम्ब के रूप में कुण्डलिनी पृथ्वी मां से निकलती है । ये हमारी रचना करने के लिए किस प्रकार से हमारे अन्दर क्या करती है? तो पृथ्वी मां के अन्दर से यह आदि शक्ति निकलती है। पृथ्वी मां स्वयं मां की तरह से कार्य करती है। वे आपकी देखभाल करती हैं और आपकी सभी आवश्यकताओं की पूर्त करती हैं । एक आज हम श्री गणेश की यूजा करेंगे। उनके विषय में कहा जाता है कि आदिशक्ति ने पृथ्वी पर सर्वप्रथम उनका सृजन किया। उनके सृजन की कथा आप सब जानते हैं और यह भी जानते हैं कि किस प्रकार एक हाथी का सिर उन्हें लगा दिया गया। आज मैं उनके, कुण्डलिनी एवं पृथ्वी मां के विषय कुछ सूक्ष्म बात बताऊगी। अपनी मां की चैतन्य लहरियों तथा पृथ्वी तत्व से उनका सृजन किया गया। पृथ्वी मां का महत्व हमने कभी नहीं समझा। पृथ्वी मां को देखें । भिन्न सुगन्धियों, स्वभाव, रंग तथा आकार के सुन्दर पुष्पा का सृजन यही करती हैं। पेड़ भिन्न प्रकार के हैं वृक्षों का विकास जब होता है तो वे इस प्रकार विकसित होते हैं कि उनके हर एक पत्ते तक धूप पहुंच सके। पृथ्वी मां जो सामूहिक विवंक हमें में चैतन्य लहरी । खंड : X अंक : 9. 10 1998 16 किसी व्यक्ति को देखकर कई बार मैं हैरान होती हूँ कि इसे क्या परेशानी है। इसका अच्छा घर है, सुन्दर बीबी है, सभी चमत्कारिक बात यह है कि नारियल का पेड़ सब पेड़ों से ऊँचा होता है परन्तु नारियल कभी मनुष्य पर नहीं गिरता। इसका अर्थ यह हुआ कि सारी सोच, सारी सूझबूझ, सारी चेतनता सारी कुछ है फिर भी इसने एक रखैल रखी हुई है। इसकी क्या जागरूकता पृथ्वी मां से ही आती है। परन्तु इस बात को हम संमझते नहीं। हम इसे स्वीकार कर लेते हैं। वे मानव के लिए बहुत कुछ करती हैं। वे मूल शक्ति नहीं हैं। वे हमारे अन्दर मूल-वर्जन उत्पन्न करती हैं। उदाहरणार्थ इस्पात का अपना एक धर्म हैं। यह लकड़ी की तरह से नहीं हो सकता है। लकड़ी का अपना एक धर्म होता है। इसमें चांदी के गुण नहीं आ सकते। इन सभी चीजों का अपना ही धर्म होता है जिसमें यह बंधी होती हैं। प्रकृति की सभी चौजों के अपने धर्म होते हैं। आप यदि किसी चीते शेर, नेवले या सांप को देखें तो उनके अपने ही धर्म हैं. अपनी ही शैली है। उनका अपने धर्म में बंधे रहना अत्यन्त आश्चर्यजनक है। प्रतिष्ठान में एक बार दूसरी ओर से अपने शयन कक्ष में गई और एक छेद में से एक बहुत बड़े सांप को आते हुए देखा। निसन्देहः मैं उससे काफी दूर थी फिर भी इसने मेरी चैतन्य लहरियों को महसूस किया। यह भागने लगा और तरणताल में गिर पड़ा। यह बाहर ही न निकलता था किसी ने आवश्यकता है? मानव का धर्म है कि उसकी एक पतनी या एक पति हो। यह एक वर्जन है। ज्योंही आप इससे पृथ-भ्रष्ट होते हैं आप किसी न किसी विपत्ति में फंस जाते हैं अब कौन सुधारता है या नष्ट करता है? यह कार्य यही मूल (आदि) शक्ति करती है जिसे हम परम चैतन्य कहते हैं। यदि आप समझें कि इस टंगनी की तरह से इसका भी आकार है और इसे आप तोड़ना चाहें तो तोड़ सकते हैं क्योंकि आप दंडित करता है, मानव है। परन्तु यह टूट जाएगा- यह इतनी साधारण बात है। हमें समझना है कि हम मानव हैं और अपने धर्म के विरूद्ध कार्य हम नहीं कर सकते। परन्तु धर्म ही क्यों? क्योंकि हमारे उत्थान के लिए धर्म आवश्यक है। अपनी बुद्धि और विकास शीलता के कारण मानव सोचता है कि मैं जो चाहे करू, इसमें क्या दोष है? पश्चिमी देशों में यह बात आम है। परन्तु आदि वासी (Aboriginal People) लोगों के विषय में मैं कहूंगी कि उन्हें भी अपने मूल वर्जनों (धर्मो) का ज्ञान वैसे ही है जैसे पशुओं को होता है। आज हम आस्ट्रेलिया में हैं यहां बहुत से मूल निवासी हैं। मैं हैरान थी कि उनके अधिकतर शब्द संस्कृत के थे। हो सकता है उन्हें यह भारत से प्राप्त हुए हों या वे भारत से वहां गए हों। उनके बहुत से शब्द संस्कृत थे। मैं उनके विषय में सोचने लगी। भारत में भी आदिवासी हैं। हम उन्हें गून, गुरखु या भील कहते हैं। हमारे यहां एक नौकरानी थी। वह बहुत मैं जाकर इसको मार दिया और इसकी लाश उठाकर लाया। में इसे देखकर हैरान थीं। ये लगभग छह फुट लम्बा था और बड़े ही ढंग से गुथा हुआ था। तब उन्होंने कहा यदि हम इसे सुन्दर छोड़ दें तो पानी में गिरकर पुन: जिन्दा हो जाएगा। तो हम क्या करें? मैंने उनसे पूछा कि सांप को मारकर वे क्या करते हैं? उन्होंने कहा कि जला देते हैं और उन्होंने सांप को जला दिया। अच्छा खाना बनाती थी और उसकी अपनी मर्यादाएं थी। मेरे पिताजी के आते ही वह अपना सिर ढक लेती और उनका सम्मान करने के लिए दूसरे कमरे में जाती। किसी ने उसे ऐसा करने के लिए नहीं कहा। उनकी विवाह शैली भी बहुत ही अच्छी थी। उनके सम्बन्ध अपने बच्चों के साथ बहुत अच्छे थे । जंगल में जाने की अपनी आदत के कारण में बचपन में बहुत से भीलों से मिली। मैं हैरान थी कि वे शराब नहीं पीते थे मैं साठ वर्ष या इससे भी पुरानी बात कर रही हूँ। वे अत्यन्त लज्जाशील थे। सम्मान उनके लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण था । व चोरी बिल्कुल न करते थे। मैं परन्तु दस दिनों के पश्चात् उस साप की मादा बाहर निकली। वह उसे खोज रही थी। उन्होंने उसे भी मार दिया। गुंथ कर उसने भी पहले सांप की तरह से सुन्दर आकार बना लिया। उसके आकार को देखकर मैं बहुत हैरान हुई । बिल्कुल पहले सांप जैसा था। मैं हैरान थी कि यह मादा भी जानती थी कि Kजा किस प्रकार अपने साथी का आकार बनाना है। मुझे लगा कि रेंगने वाले कीडे, सभी प्रकार के जीवों का आचरण एक पशु. ही जैसा होता है। उदाहरणार्थ कुत्ते को यदि आप पानी में फेंके तो वो तैरेगा परन्तु बिल्ली नहीं तैरती। यह उनका अन्तर्रचित धर्म है जिसे मैं मूल वर्जन कहती हूँ। इसी प्रकार हममें भी मूल वर्णन रचित हैं जो कि धर्म है। मानव को वैसा ही होना पड़ता है। यदि वह कुछ अन्य बनने का प्रयत्न करे तो उसके जीवन में कुछ गड़बड़ हो जाती है । हाथ में पकड़े हुए ग्लास को यदि आप पृथ्वी पर गिरा दें तो वह टूट जाएगा। यह धर्म है। इसी प्रकार मानव भी जब धर्म पथ से भटकने लगता है तो कठिनाई में फंस जाता है। परन्तु केवल मानव ही मूल वर्जनों को तोड़कर मैं वास्तव में बहुत प्रभावित थी कि किस प्रकार ये लोग इतने धार्मिक, अच्छे एवं प्रसन्न थे वे झोंपड़़ी में रहते थे। परनतु इसका उन्हें कोई दुख न था। वे अत्यन्त साफ सुथरे थे। अब तो सब कुछ परिवर्तित हो गया है। वही लोग अत्यन्त परिवर्तित हो गए हैं वे पावन, पवित्र लोगों से थे, मां की पूजा करते थे वे पृथ्वी मां की पूजा करते थे किसी अन्य की नहीं । मैंने इस महिला से पूछा कि तुम पृथ्वी मां की पूजा क्यों MVE भयानक रूप धारण कर सकता है। चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 9.10 998 17 कष्ट पहुंचाता है। परन्तु यदि पृथ्वी के सौन्दर्यकरण के लिए आप पेड कारटे तो वो प्रसन्न होती हैं। उनका विवेक इतना करते हो? उसने उत्तर दिया कि पृथ्वी मां हमें सब कुछ प्रदान करती है। वे हमारी मां हैं। हम जंगलों में रहते हैं और पृथ्वी मां हमारी रक्षा करती हैं। ये बहुत चेतन हैं तथा जानती हैं कि हम यहां हैं और इन्हें हमारी देखभाल करनी है। पेड़ों के थोड़े से हैं-भिन्न देशों में भिन्न प्रकार के फूल हैं; मैंने देखा है कि मेरे पत्ते तोडने से पूर्व भी वे इसके विषय में सोचते थे। परन्तु बाद में धर्म परिवर्तक आए और उनका धर्म परिवर्तन कर दिया उन्हें समझती हैं। एक बार मैं आस्ट्रेलिया गई वहां हिबीस्कस स्कर्ट और ब्लाउज़ दे दिए। परन्तु ज्ञानबाई (नौकरानी) ने यह वस्त्र नहीं पहने। कहने लगी कि यह क्या है। मैं ऐसे वस्त्र क्यों पहनू जिनमें सारा शरीर नग्न हो। नहीं मैं तो साड़ी ही पहनूंगी। परन्तु इन आधुनिक लोगों से मिलने के पश्चात उनमें से बहुत से उन्हीं की तरह से रहने लगे। कहने लगे तुम्हें स्वतन्त्रता नहीं है, कुछ चीजों में तुम बंधे हुए हो। वास्वत में वे पवित्रता और दैवी सूझबूझ से बंधे हुए थे। वे भी परिवर्तित होने लगे । ज्ञानवाई और उसके पति नहीं परिवर्तित हुए परन्तु उनका पुत्र महान है। आप देखें कि किस प्रकार वे फूल उत्पन्न करती देश के फूल अत्यन्त सुगन्धमय हैं। पृथ्वी मां इतना कुछ (HIBISCUS) नामक फूल है। आप कल्पना करें कि पहले यह गुलाबी होता है और फिर, धीरे धीरे लाल। सूर्यमुखी-सूर्य की चाल के साथ साथ घूमता है। तो आप कैसे कह सकते हैं कि सूर्यमुखी पुष्प और सूर्य के बीच कोई सम्बन्ध नहीं है। स्वत: यह सूर्य के साथ साथ पलटता रहता है। ये हिबिस्कस नामक पुष्प हम श्रीगणेश की पूजा के लिए उपयोग करते हैं । श्रीगणेश की पूजा का आयोजन किया था। मार्ग पर मुझे बहुत से हिबिस्कस वृक्ष फूले हुए दिखाई दिए। मैंने कहा अच्छा होगा कि तुम ये फूल पूजा के लिए ले लो । जब में सभागार में पहुँची तो मैंने देखा कि सभी सहजयोगी अपने आप ही हिबिस्कस लेकर आए थे। मैंने उनसे नहीं कहा था। वे भी नहीं जानते थे कि यह फूल श्रीगणेश की पूजा में उपयोग होता है। उस समय पृथ्वी माँ ने स्वयं इसकी सृष्टि की थी। जब हिबिस्कस फूल खिलें तो यह श्रीगणेश का समय होता है। प्रकृति का इतना अधिक हमारे अन्दर होना और हमारे शराब पीने लगा। यह अन्त का आरम्भ था। तत्पश्चात् वह जुआ खेलने लगा और सभी प्रकार के दुराचार आरम्भ कर दिए। उसका पोता गणिकाओं के पास जाने लगा। उनका सोचना केवल इतना था कि हम स्वतन्त्र हैं ऐसा करने में क्या दोष है। ये अन्तर्वर्जन (धर्म) आपमें बने हुए हैं, आपमें विद्यमान हैं । हो सकता है सुप्त अवस्था में हों, या आपने इन्हें दबा रखा हो या आपने इन्हें बाहर निकाल दिया हो। परन्तु वे वहां विद्यमान हैं। ये सदैव विद्यमान हैं। हम भी यही कहते हैं कि आप मर्यादाओं अन्दर के गुणों का हमारा पथ प्रदरर्शन करना तथा आशीर्वाद प्राप्त करना बहुत ही प्रशंसनीय है। हमारा अलग से कोई अस्तित्व नहीं है। यह पृथ्वी माँ हमारा घर है। पृथ्वी माँ में को तोड़ रहे हैं या आप श्री गणेश का अपमान कर रहे हैं। जब आदि शक्ति ने इस ब्रह्माण्ड की सृष्टि की तो सर्वप्रथम श्रीगणेश की सृष्टि की गई। मंगलमयता की सृष्टि हमारा घर है और हममें पृथ्वी माँ का घर है। श्री गणेश के की गई। हम तो जानते भी नहीं कि मंगलमयता क्या है। आदि विषय में आज मैंने कहा कि उनका शरीर मिट्टी का था। तो वर्जनों (धर्मों) एवं मर्यादाओं की पूर्ण समझ ही मंगलमयता है। यद्यपि मैं ईसाई परिवार से सम्बन्धित थी फिर भी हम प्रातः बिस्तर से उठने के समय पृथ्वी पर पांव रखने से पूर्व प्रार्थना किसी चीज को आघात पहुँचाने का प्रयत्न करते हैं तो हम किया करते थे कि 'हे पृथ्वी माँ हम आपको अपने पैरों से स्पर्श कर रहे हैं, कृपा करके हमें क्षमा करें ।' अत: पृथ्वी माँ बचपन से देखती आई हूँ। प्रकृति एवं पृथ्वी माँ को समझना और प्रकृति के लिए सम्मान हमारे लिए अन्तर्रचित है। हम इसी ब्रह्माण्ड के अंग प्रत्यंग हैं। परन्तु स्वतन्त्रता (स्वच्छन्दता) के मुर्खतापूर्ण विचार में जब आप फंसते हैं तब आप पृथ्वी मां को ही आप स्पष्ट देख सकते हैं कि ये मूल मर्यादाएं प्रकृति द्वारा छोड़ देते हैं। आपका गुरुत्वाकर्षण कम हो जाता है। जब हम प्राकृतिक रूप से किस प्रकार मानी जाती हैं। हम लोगों के लट खसोट करते हैं तो पृथ्वी मां को हमें पाठ पढ़ाना पड़ता है। अब लोग पर्यावरण-पर्यावरण चिल्ला रहे हैं। बाहर जैसा सर्वसाधारण चीजें जैसे एक स्त्री को अपना शरीर ढक कर पर्यावरण है वैसा ही अन्दर है। आप यदि अपनी माँ का शोषण करना चाहते हैं, उसे कष्ट पहुँचा सकते हैं तो आप पृथ्वी माँ अपनी पावनता का सम्मान करती हैं! हम समझ नहीं पाते आप को भी कष्ट पहुंचा सकते हैं। हमारी सूझबूझ आज इस प्रकार से परिवर्तित हो गई है कि हम धन को बहुत महत्व दे रहे हैं। सदाबहार (EVERGREEN) पेड़-पौधों को देखें तो वे सदा पैसे के लिए यदि आप पेड़ काटते हैं तो यह पृथ्वी मां को पत्तों से ढकें रहते हैं। उनके पत्ते झड़ते नहीं। मैं उन्हें मादा आप कल्पना कर सकते हैं कि पूरे ब्रह्माण्ड ने किस प्रकार हमारी सृष्टि की | ये सभी कुछ हमारे अन्दर है। जब भी हम स्वयं को आघात पहुंचाते हैं। पृथ्वी माँ की विवेकशीलता मैं अत्यन्त सुन्दर है। यही कारण है कि सभी सन्त विशेषकर भारत वर्ष के जंगलों में जाकर रहा करते थे। केवल जंगल में लिए ऐसा कर पाना कठिन है। हम कुछ स्वच्छन्द लोग हैं। रखना चाहिए क्योंकि वह अपने शरीर का सम्मान करती हैं. यह बात किसी से बताएं तो लोग इसे नहीं सुनते। यदि आप |है. हु 18 चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 9, 10 1998 ho लेते हैं। अपनी बहन बेटी और मां तक से उनके सम्बन्ध थे । (FEMALE) कहती हैँ। दूसरे पतझड़ी वृक्षों के पत्ते झड़ जाते हैं। इन्हें में नर (पुरुष) कहती हूँ। यहां बात दूसरी ही है। मैं जब पार्टियों में जाती थी तो लोग सोचते थे कि मैं अत्यन्त शान्त व्यक्ति हूँ। आप किसी व्यक्ति से मिलें तो पुरुष तो एकदम से बटन बन्द कर लेंगे परन्तु स्त्रियां खोल देंगी। इस प्रकार मस्तिष्क ही घूम गया है। कितनी मूर्खता है। श्रीमती थैचर ने कहा है कि स्त्रियों का शरीर प्रदर्शन करना हमारी संस्कृति है। क्या वे वेश्याएं हैं ? शरीर प्रदर्शन की यह सनक इतनी बढ़ गई है कि चाहे सड़कों और घरों में न हो इन विषयों पर बातचीत करना अत्यन्त घिनौना है। मेरी समझ में नहीं आता किस प्रकार मानव इतना गिर सकता है। आज ऐसे समय हमें सहजयोग मिला है जहां आपको अपने मूल बर्जनों (धर्मों) का ज्ञान हुआ है। सुप्तावस्था में यह आपमें विद्यमान है। ज्योर्तिमय होने पर इन धर्मों को अचानक आपने स्वीकार कर लिया है। मैंने इतनी आशा कभी न की थी। परन्तु आपने इसे स्वीकार कर लिया है । इन पर चल रहे हैं और इनका आनन्द ले रहे हैं। सभी महान संतो के जीवन को आप देखें । डायना जैसे किसी व्यक्ति को सन्त नहीं कहा गया। परन्तु सिनेमा में अब भारत में भी स्त्रियों को अंग प्रदर्शन करते देख सकते हैं। भारतीय फिल्मों में जो भी कुछ आप देखते उसमें मर्यादाओं का अभाव था। उसके पति ने उसे सताया । इसके लिए मुझे उससे सहानुभूति है। परन्तु मर्यादाओं का बहुत महत्व है। किस प्रकार वह सन्त हो सकती है। आप केवल एक सर्वसाधारण मानव बन जाएं जो अपने धर्मों पर चले, जिसे अपने धर्मों का ज्ञान हो तो लोग था। वो जन्म से ही ऐसा था। विशेषकर पश्चिमी देशों में ऐस व्यक्ति की प्रशंसा होती है। अब अधिकतर लोग पतित हैं। बहुसंख्या में लोग यदि मूर्ख होंगे तो समझा जाने लगेगा। उनके पास समझने के लिए न बुद्धि है न विवेक। शराब जैसी चीज किस प्रकार सहायक हो सकती है? शराब से किसी का हित नहीं हुआ। यदि आप शराब नहीं पीते तो आपको बेकार समझा जाता है। ऐसे व्यक्ति से कोई बात नहीं हुए हैं वह कभी बाहर घटित नहीं होता। स्त्रियां यदि वैसे वस्त्र पहनने लगें तो लोग उन पर पत्थर फैंकेंगे। फिर और कई प्रकार की चीजों का होना-पुरुष का पुरुष से, स्त्री का स्त्री से और बच्चों से सम्बन्ध होना आदि। भारत में हमने भी न था। यहां पर ऐसा क्यों हुआ? 50 वर्ष पूर्व, मैं इनके विषय कहेंगे - क्या व्यक्ति में सुना नहीं सोचती कि इन देशों में भी ऐसा होता होगा। हमने क्यों अपनी लज्जाशीलता छोड़ दी है और क्यों इस पकार की मूर्खता हमारे अन्दर आ गई है। मेरे विचार से उनमें कोई भूत या बाधा घुस आई है। यह पूर्णतः अस्वाभाविक विवाहित पुरुषों का अविवाहित स्त्रियों पर दृष्टि होना, अविवाहित पुरुषों का अनैतिक सम्बन्ध-सभी प्रकार के कार्य लोग कर रहे हैं। आपको विश्वास नहीं होगा कि भारत में ऐसा नहीं होता। अब वहां भी ये दुराचार फैल गए हैं फिर भी अच्छे परिवारों में ये चीजें नहीं मिलती। किसी ने मुझे बताया कि भारत में मुर्खता को ही महान और मूर्खतापूर्ण है । करता। समाज में इसका इतना प्रचलन है कि जितनी भी पार्टियों में मैं गई मेरे और मेरे पति के अतिरिक्त सभी लोग पी रहे थे। मुफ्त होने के कारण वहा लोग जरूरत से ज्यादा पिया करते थे। ये सब विष हैं जो हमें नष्ट कर रहे हैं । अब सिगरेट मैं रोग है। हां, क्योंकि वे नदी में स्नान करते हैं । वे यदि एड्स नदी में स्नान करना छोड़ दें तो यह समाप्त हो जाएगा चिकित्सा विज्ञान की विद्यार्थी थी। एक निष्कपट परिवार से मैं सम्बन्धित हूँ। मैंने कभी ये चीजें नहीं सुनी। भारत के पागलखानों है। हर जगह उन्होंने लिखकर लगाया हुआ है में भी कभी ये बातें सुनने को नहीं मिली। उस दिन ग्वीडो ने मुझे एक छोटी सी लड़की का तोहफा भेंट किया जो तोहफा देने में शर्मा रही थी। शर्म पर वर्जन है। मेरी समझ में नहीं आता कि चिमनी की तरह से कैसे वे सिगरेट पीते हैं। सिगरेट छोड़ देने का साहस उनमें नहीं । धूम्रपान वे कब लिखने लगेंगे? सभी लोग जानते हैं कि यह भयानक है। मानव चेतना के विरूद्ध है । शराबी लोगों को गिरते हुए. एक-दूसरे को कुचलते हुए, झगड़ा करते हुए देखा जा सकता है। शराब को यदि बन्द कर दिया जाए तो सारी निर्लज्जता समाप्त हो जाएगी। शराब पीने पर व्यक्ति की चेतना पर प्रभाव पड़ता है। एक शराबी ने मुझे निषेध, शराब निषेध (लज्जा) स्त्रियों का गहना है। सभी बच्चे शर्माते हैं। मुझे याद है कि मेरी नातिन एक बार एक पत्रिका देख रही थी उस समय वह बहुत छोटी थी। दो वर्ष की रही होगी। उसने एक स्त्री को बिकनी पहने हुए देखा। कहने लगी कि यह तुम क्या कर रही हो । मेरी नानी तुम्हें आकर दो थधप्पड़ लगाएंगी। तुम अपने कपड़े पहन लो। आपने देखा कि बच्चे भी निर्लज्जता पसन्दु नहीं करते। यहां निर्लज्जता इतनी बढ़ गई है कि नंगा रहना बहुत विकसित होना समझा जाता है। किसी ने मुझे बताया कि वह आदिवासियों को बचाना चाहता था परन्तु श्वेत बताया कि शराब पीने के बाद अपनी बहन मुझे बहन नहीं लगती, प्रेमिका लगती है। आप ऐसा कैसे कर सकते हैं। परन्तु सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए आप पीना आवश्यक मानते हैं। हमें समझ नहीं आता कि समाज में किस प्रकार हमारे मूलधर्मों को चकनाचूर कर दिया है। साधारण सी बात कि स्वयं को देखने के लिए अच्छा होगा कि आप मूर्ख लोगों को देखें । आप हैरान होंगे कि कैसे ना चमड़ी से वे इतने प्रभावित होते हैं कि कुछ भी स्वीकार कर चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 9 10 1998 19 कैसे कार्य वे कर रहे हैं और इन पर परदा डालने के लिएकीजिए, वे कहते हैं बचा लीजिए। विश्वविद्यालय के उपकुलपति उनमें शिष्टाचार है। एक विशेष लहजे में वे बातचीत करते हैं की तरह से वे सभी चक्रों पर बैठे हैं। आपके समीप चाहे विष्णु और अत्यन्त सुशिक्षित व्यक्ति की तरह से व्यवहार करते हैं । या महादेव भी बैठे हों परन्तु यदि श्रीगणेश कह दें कि यह कोई अन्य जो ऐसा नहीं करता वह उनके लिए बहुत निम्न है। वे सोचते हैं कि उनमें व्यवहार कुशलता की कमी है। तो एक अन्य विचार यह है कि हमें व्यवहार कुशल बनना है। श्रीगणेश को देखिए। वे किसी भी प्रकार से व्यवहार कुशल नहीं हैं । पेटू की तरह से वे खाते हैं और आपकी ओर इस प्रकार देखते मानो अपने बेत से आपको पीटने वाले हों। श्रीगणेश के पास उत्थान न होगा तो उत्थान हो ही नहीं सकता । यह बहुत कठिन है। आधुनिक युग में आपके बच्चों के साथ अत्यन्त भयानक चीजें हो रही हैं। मैं सोचती हूँ कि पूर्ण नकारात्मकता पवित्रता का विरोध कर रही है। जहां भी लोगों को बच्चे मिलते हैं वे उनका दुरुपयोग करते हैं। उन्हें बुरी चीजें सिखाते हैं। स्कूलों में भी सभी कुछ अत्यन्त बुरा है। अत: हमें बच्चों के विषय में बहुत सावधान रहना है। भली-भांति उनका पथ प्रदर्शन करना है, उनकी देखभाल करनी हैं ताकि उनके क्षमा नहीं है। ईसामसीह बनने के पश्चात उनमे क्षमा का गुण आया। मैं नहीं समझ पाई कि यह सब किस प्रकार हुआ परन्तु श्रीगणेश के रूप में क्षमा बिल्कुल नहीं है। उनसे क्षमा मांगने मूलधर्मों की रक्षा हो सके। बच्चा यदि कोई अच्छा कार्य करता है तो सराहना कीजिये। बच्चे के थोड़े से शरारती होने की मुझे चिन्ता नहीं होती। परन्तु यदि वह श्रीगणेश विरोधी हो जाए तो सावधान रहिए। सभी प्रकार के रोग हो सकते हैं। बचपन में यदि ये मूल वर्जन नष्ट हो जाएं तो इन्हें पुन: लाना कठिन है। फिर भी मेंने का प्रयत्न भी मत कीजिए। वे कभी क्षमा भी नहीं करेंगे। मां के कहने पर भी वे क्षमा नहीं करेंगे वे कभी क्षमा नहीं करते। बात यहां तक पहुँच जाती है कि माँ को ही कहना पड़ता है कि मैं तुम्हें क्षमा करती हूँ। तब वे कुछ नहीं कर सकते क्योंकि अपनी माँ के प्रति वे बहुत आज्ञाकारी हैं। एक बार यदि माँ ने सदैव यही कहा है कि पावनता कभी नष्ट नहीं होती, केवल कुछ बादल इसे ढकने का प्रयत्न करते हैं और हम अपनी गलतियों के विषय में थोड़े से लापरवाह हो जाते हैं । इसके क्षमा कर दिया तो बस हो गया, अन्यथा वे कभी क्षमा नहीं करेंगे। यही कारण है कि हजारों भयंकर बीमारियां हो जाती हैं । यदि आप उनका सम्मान नहीं करते तो नपुंसकता, एड्स तथा अन्य गुप्त रोग हो जाते हैं। इन गुप्त रोगों से पीड़ित लोगों को ठीक करने में मुझे बहुत तकलीफ उठानी पड़ी। श्रीगणेश मेरी क्षमा को स्वीकार करते हैं परन्तु मौका मिलते ही फिर वार कर देते हैं इन देवताओं के अपने ही धर्म हैं श्रीगणेश आपको बुद्धि, विवेक एवम् सूझबूझ प्रदान करते हैं। परन्तु यदि आप में प्रति जागरूक रहना आपका कर्त्तव्य हैं। आपका समाज भयानक है। अगली पीढ़ी न जाने कहां तक जाएगी। इसके विषय में जब सोचती हूँ तो कांप जाती हूं। इसका समाधान यही है कि अपने बच्चों के विषय में, उनके सोच विचार और श्रीगणेश के प्रति उनके दृष्टिकोण के विषय आप सावधान रहें। बच्चे श्रीगणेश को बहुत प्रिय हैं। मैं कल्पना भी नहीं कर सकती कि किस प्रकार वे बच्चों को प्रेम करते हैं और किस प्रकार सदैव बच्चों कि रक्षा करने के लिए उनके गुणों के दायरे में नहीं रहते तो उन्हें संभालना बहुत कठिन होता है। किसी को यह बताना बहुत कठिन है कि ऐसा मत करो। परन्तु प्रकृति अवसर ले लेती है। आपके मूलाधार पर आपको रोगमुक्त करना बहुत कठिन कार्य है। नि:सन्देह अन्ततः आप ठीक हो जाते हैं। परन्तु मूलाधार से होने वाले रोग दु:साध्यत्म होते हैं। वे अनन्त बालक हैं। साक्षात् अबोधिता हैं। फिर भी यदि आप अपनी पावनता को बिगाडुते हैं तो वे आपको क्षमा नहीं कर पाते। माँ इससे बिल्कुल उलट हैं, किसी भी कीमत पर वे आपको बचाना चाहती हैं। श्री गणेश ऐसा नहीं करना चाहते । उद्यत रहते हैं। आप लोग यदि वास्तव में समझते हैं कि मैं क्या कह रही हूँ. मानव जीवन और आध्यात्मिक जीवन के बीच की दूरी यदि आपने पार करनी है तो श्रीगणेश सर्वप्रथम हैं। कुण्डलिनी जब उठती है तो श्रीगणेश शान्त होते हैं और कुण्डलिनी को ऊपर उठने में सहायता देते हैं। वे ही आपको बताते हैं कि जिस प्रकार आप कार्य कर रहे हैं यह गलत हैं। वे आपकी वे कहते हैं, नर्क में जाओ और यह नर्क देखभाल करते हैं। परन्तु आपको क्षमा नहीं करेंगे। जिस प्रकार लोग अपनी शारीरिक आवश्यकताओं और सारी बेवकूफी की बातें करते हें यह कठिन कार्य नहीं है। पशु भी इस प्रकार की बातें नहीं करते। इस प्रकृति को नष्ट करने के स्थान पर इसे हमारे जीवन में ही है। शराब पीने वाले, धूम्रपान और वेश्यावृत्ति करने वाले लोग नाक्कीय हैं। यह सब नर्क है। और न्क क्या होता है । श्री गणेश आपको इस नर्क से कभी नहीं बचाएंगे। श्रीगणेश को मराठी आरती में कहा जाता है कि जब मैं बनाने का प्रयत्न करें, यह देखने का प्रयत्न करें कि किस साक्षात्कार प्राप्त कर रहा होऊ तो आप मुझे बचा लीजिए। वे केवल यही चीज मांगते हैं कि पुनर्जन्म के समय आप मुझे बचा लीजिए। यह नहीं कहते कि पुनर्जन्म के समय मेरी रक्षा प्रकार आप इसे सुन्दर बगीचे या सुन्दर स्थल का रूप दे सकते हैं। जब जब भी मैं यहां होती हूँ तो सोचती हूँ कि यहां की 20 चैंतन्य लहरी खंड : X अंक : 9. 10 ।998 अपने सम्बन्धों को समझते हैं। इन सबका परस्पर तालमेल है। बंजर भूमि के लिए क्या करूं। किस प्रकार इसे परिवर्तित करूं। सदैव यही विचार आता है कि इसे सुन्दर कैसे बनाऊ। प्रकृति से यदि आप प्रेम करने लगे ता अपनी पावनता को यदि व्यक्ति में पावनता हो, लालच और प्रतिस्पर्धा न हो और बिगाडने के विचार आपमें समाप्त हो जाएंगे। प्रकृति के प्रेम के कारण मैं कविताएं लिखा करती थी तब मैने स्वयं को हैं। अपनी सृष्टि का आनन्द लेता रहे तो बहुत अच्छा है। लोग सीमाओं से परे चले गए हैं सूझ बूझ से परे चले गए उदाहरणार्थ यहां या यूरोप में कहीं भी आपको अधिक फल उपजाने की आज्ञा नहीं है। क्यों? ताकि कीमतें गिर न जाएं। कोई पदवी मैं लेना नहीं चाहती थी। तो मैंने कविता करनी आपके पास यदि अधिक फल होंगे तो क्यों न आप उन्हें वहां छोड़ दी। परन्तु में बहुत अच्छी खिलाड़ी महिला थी। सभी समझाया कि तुझे सहजयोग के लिए कार्य करना है। तुम यदि कविताएं लिखने लगोगी तो लोग तुम्हें कवियीत्री कहेंगे ऐसी प्रकार के खेलों में मैं प्रथम रही। सर्वोत्तम स्थान प्राप्त किए भेजें जहां फल का अभाव है। फलों को वे नष्ट कर देंगे पर किसी और को देंगे नहीं। दूसरों के लिए प्रेम और भावना का वहाँ अभाव है। और यदि पृथ्वी माँ कोई चीज अधिक उपजा दें तो वे उसे नष्ट कर देते हैं ताकि कीमतें ऊंची रहें। वे अत्यन्त क्रूर हैं। केवल पैसे के विषय में ही सोचते रहते हैं । यह सब अब भी हो रहा है। परन्तु मुझे विश्वास है कि एक दिन ऐसा होना रुक जाएगा। गांवों में शराबखाने की इमारतें सबसे अच्छी बनी हैं मद्यपान को वे जितना महत्व देते हैं वो देखते ही बनता है। परन्तु उसे भी छोड़ दिया। क्यों? क्योंकि मैं आदि माँ हूँ और मुझे आदि-प्रकृति को जागृत करने का कार्य करना है-मानव के अन्त: स्थित धर्मों को जागृत करना है मुझे बस यही कार्य मैं करना है कुछ अन्य नहीं। इस कारण में कुछ और नहीं करती। मैं 'निषक्रिया' हूँ। वास्तव में मैं कुछ नहीं करती। प्रकृति. श्रीगणेश, श्रीविष्णु और श्री महेश आदि सभी कुछ कर रहे हैं। तो सम्बन्ध क्या है? सम्बन्ध यह हैं कि वे सब मेरे शरीर में हैं और अपने धर्मों में बंधे हुए हैं वे कार्य करते हैं । में चाहूँगी कि आप शुद्ध इच्छा करें कि धूम्रपान की तरह से मद्यपान भी समाप्त हो जाए। आप यदि ऐसा साचेंगे तो यही सम्बन्ध हैं-स्वतः, स्वचालित-अन्तर्रचित सम्बन्ध की तरह। है। जब भी आप इसका बटन उदाहरणार्थ पखा बनाया हुआ दबाएंगे तो यह चलने लगेगा। यह भी ऐसा ही है। सभी देवता कुछ सीमा तक इस समस्या का समाधान हो जाएगा। व्यक्तिगत रूप से मैं सोचती हूँ कि मद्यपान के कारण ही आपमें यह मुझसे सम्बन्धित हैं और उनमें जबरदस्त मर्यादाएं हैं, जबरदस्त पथभ्रष्ट दृष्टिकोण पनपता है। अन्यथा सर्वसामान्य व्यक्ति सम्मान है कि यदि मैं कुछ कहूँ तो वे तुरन्त इसे अंजाम देंगे। सर्वसामान्य मस्तिष्क के साथ क्यों लड़ाई, हत्या, झगड़ा और मैं आपको यह अत्यन्त गहन बात बता रही हूँ कि आप मानव हिंसा जैसे कुकृत्य प्रकार के कार्य करना समझ से परे है। श्री गणेश आपको यदि आप जाते हैं तो आप समाप्त हो जाएंगे। ये धर्म आपमें सन्तुलन प्रदान करते हैं वे आपको ठीक रास्ते पर रखते हैं। रचित है। सुप्तरूप से ये आपमें हैं। मुझे आशा है कि आप परन्तु यदि आप उनकी बात नहीं सुनते तो आपको उठा कर समझेंगे कि अपने अन्तर्रचित सीमाओं के विषय में जागरूक फैंक दिया जाता है। प्रकृति, श्रीगणेश और कुण्डलिनी से आप हैं और आपके धर्म आपमें रचित हैं इन धर्मों के विरोध में करेगा किसी सर्वसामान्य व्यक्ति का इस होना कितना महत्वपूर्ण है। आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद। परमात्मा आपको धन्य करें। रड 21 चैतन्य लहरी । खंड : X अंक : 9.10 1998 मा कि हिंड नि भा लु ेल पा जन्म दिवस पूजा (1998 ) क का (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का हिन्दी प्रवचन) ा आज इसलिए अंग्रेज़ी में बात की क्योंकि हमेशा मैं हिन्दी में ही बात करती हूँ। लेकिन जो इनसे बात की वो आप लोगों को समझ में आयी होगी। वो यह है कि जब आपके आत्मा का प्रकाश आपके अन्दर फैलता है तो आपमें तीन विशेषतायें आ जाती हैं : आप गुणातीत हो जाते हैं । आप जानते हैं कि आपके अन्दर तमो गुण, रजो गुण और सत्व गुण - तीन गुण हैं। तमो गुण जिसमें होते हैं उनका एक स्टाइल (Style) होता है । रजो गुण जिसमें होता है उनका एक स्टाइल होता है, और फिर जब दोनों चीजों से ऊबकर वे सत्व गुण में उतरते रियलाइजेंशन दे दो। आपके सारे प्रश्न इससे छूट जायेंगे और एक नए तरह का व्यक्तित्व आपके अंदर आ जायेगा। यह एक - बहुत बड़ा मन्वंतर घटित हो रहा है। में कहूँगी कि एक पुनरुत्थान की नई बेला आ गई। इसमें मनुष्य का परिवर्तन होना ही अत्यावश्यक है। नहीं तो मनुष्य की जो समस्या है वो ठीक नहीं हो सकती। उसका परिवर्तन होना चाहिए और जब वो परिवर्तित हो जाता है तो इतना मंगलमय और इतना सुन्दर हो जाता है, उसके सारे ही अंग प्रत्यंग जो भी जीवन के हैं, उसके सारे प्रांगण में ही आके जैसे आनन्द नाचता है। ऐसे सौंदर्यमय और सुन्दर जीवन को प्राप्त करने के लिए आपको कुछ करना नहीं। उसके लिए आपको पेसे नहीं देना। कुछ नहीं करने का। सिर्फ आप अपने अन्दर बसी हुई शक्ति को, जब जागृत हो गयी तो उसे जागृत रखें और उसमें उतरते रहें। इतने गहरे लोग हैं सहज योग में कुछ कि मैं स्वयं देखकर हैरान होती हूँ कि यह सारी गहराई इन्होंने एकदम से कैसे ले ली! उनके अंदर गहराई थी पर वा अंधकार में थे। अब वो जब प्रकाश में आ गये तो प्रकाशमय हो गये, सुंदर हो गये, मंगलमय हो गये| में हें जहां पर आप सोचते हैं अब ये तो सब बैकार की चीजें हैं. अब हमें खोजना है । जब खोज शुरू हो जाती है तब आप सत्व गुणी हो जाते हैं। सत्व गुण में उतरने पर फिर आप खोजते हैं और खोजने पर जब आप पा लेते हैं तो आप इन तीनों गुणों से ऊपर उठ जाते हैं। इसीलिए कहते हैं कि ऐसा इंसान गुणातीत. कालातीत और धर्मातीत हो जाता है। उसका कोई विशेष धर्म नहीं होता। बो जो भी करता है धर्म हो करता है, अधर्म नहीं करता। कर ही नहीं सकता। उसके स्वभाव ही में आप सबके लिए मैं क्या कहूँ? मेरे हृदय बड़ा ही आंदोलन है । मैं चाहती हूं सारे ब्रह्माण्ड में जो भी शक्तियां जो कुछ भी महान ऋषियों, मुनियों ने प्राप्त किया था वो आप प्राप्त करें और संसार स्व' माने आत्मा-आत्मा का भाव स्व में ऐसा हो जाता है कि उसको एक विशेष प्रकार का आनन्द, एक विशेष प्रकार की शान्ति मिल जाती है और उसका एक विशेष व्यक्तित्व हो जाता है जिसके कारण वो सबको शान्ति, सुख एवं आनन्द देने हैं उसे आप प्राप्त करें। वाला हो जाता है। हो सकता है अभी आपका प्यार लोग नहीं समझ पायें, उसका गलत इस्तेमाल करें। हो सकता है । पर उसमें आपको बुरा नहीं लगता। आप यही सोचते हैं कि ये अभी अंजान हैं। समझ नहीं पा रहे हैं। अभी इनकी समझ में कमी है। आप कुछ भी उसके प्रत्युत्तर में बोलते नहीं। आप देखते रहते हैं कि चलो ठीक है कल ठीक हो जाएगा। यह आशा आपके अन्दर से भाग कर नहीं। समाज में रह कर, संसार में रहकर इसे आप प्राप्त करें। आज का शुभ दिवस है और आप लोगों ने इतनी खुशी से मनाया। छोटे बच्चों जैसे सबने कितना प्यार दिया! क्या कहूँ मैं, मेरी तो समझ में नहीं आता क्योंकि यह ती बहुत ज्यादा है, बहुत ज्यादा है। और इसको समझने के लिए भी मैं तो सोचती हूँ कि बड़ा मुश्किल हो जायेगा कि इतना प्यार आपने मुझे क्यों दिया? मैंने आपके लिए क्या किया? कुछ समझ नहीं पाती। मैंने कुछ किया ही नहीं आपके लिए। यह आप ही करते आ रहे हैं, जो बढ़ता-बढ़ता यहां तक पहुँच जाता है । आप के लिए बाद में यही कहती हूँ कि इसी तरह से आप आगे बढ़ते जाइये। औरों को भी अपने समावेश लेते काु बन जाती है कि जैसे हम थे, तो आज हम यहां आकर खड़े हो गये। कल ये भी हमारे साथ आकर के खड़े होंगे। अब आप इतने लोग हैं। ईसा मसीह के सिर्फ बारह शिष्य थे और न जाने उन्होंने कितने ईसाई (Christians) बनाये। किसी को आत्मसाक्षात्कार (Realisation) नहीं दिया और क्रिश्चियन बना दिये । आप तो आत्मसाक्षात्कार (रियलाइज़ेशन) दे सकते हैं । जाइये कि वो भी इस सुख की, इस आनन्द की ओर इस महान व्यक्तित्व की जो घटना है उसे प्राप्त करें। आप सबको यही काम करना है कि अब जिसको देखो अनन्त आशीर्वाद। चैतन्य लहरी ॥ खंड : X अंक : 9, 10 1998 | ं बिं सहजयोग और श्री कल्की शक्ति स्त पत है. निर्मल-योग से उद्धुत) हाद संबन्धित रहना अच्छा नहीं लगता। इस तरह दोनों प्रकार के आज श्री कल्की देवता व कुण्डलिनी शक्ति, इनका लोग आपको समाज में मिलेंगे। लोग या तो बहुत ही तामसी क्या सम्बन्ध है, ये बताने का प्रयास किया है। 'कल्की शब्द निष्कलंक शब्द से निर्मित हुआ है। निष्कलंक-माने जिस पर वृत्ति में रहेंगे, नहीं तो बहुत ही राजसी वृत्ति में इसमें तामसी वृत्ति में लोग शराब ही पिएंगे मतलब स्वयं को जागृत स्थिति से. सच्चाई से परे हटकर रखेंगे दूसरे प्रकार के लोग जो कुछ श्री कल्की पुराण में श्री कल्की अवतरण के बारे में सच्चाई है, सुन्दर है उसे नकारते रहते हैं। ऐसे लोग अहंकार से भरे हुए होते हैं। उसी प्रकार प्रति अहंकार से भरे हुए सुस्त, जड़ व लड़ाकू प्रवृत्ति के लोग दिखाई देते हैं। जो लोग बहुत होगा। संभाल शब्द का मतलब-भाल माने 'कपाल' और हो महत्वाकांक्षी होते हैं, वे आपस की होड़ में स्वयं को मजाक बना लेते हैं। ऊपर कहे गये दोनों तरह के लोग. एक तो बहुत स्थान हमारे कपाल पर है। इस शक्ति को श्री महाविष्णु की महत्वाकांक्षी, माने अहंकार से भरे हुए व दूसरे प्रति अहंकार से भरे हुए सहजयोग में बड़ी कठिनाई से आ सकते हैं परन्तु जो श्री येंश व श्री कल्की शक्ति के अवतरण के बीच लोग सात्विक वृत्ति के हैं या मध्यम (सन्तुलित) वृत्ति के हैं कालावधि में मनुष्य को स्वयं का परिवर्तन करके परमेश्वर के ऐसे लोग सहजयोग में जल्दी आ सकते हैं इस तरह जो लोग राज्य में प्रवेश करने का मौका है। इसी को बाइबल में 'अन्तिम बहुत ही सीधे हैं वे भी सहजयोग को बिना मेहनत के प्राप्त होते हैं। वे पार भी सहज में होते है। आपने देखा होगा कि गिने-चुने लोग आएगे, परन्तु के राज्य में प्रवेश के लिए ठीक है और कौन नहीं, इसकी गाँवों में हम जाते हैं तो पांच से छः हजार लोग आते हैं। और विशेषता ये है कि सभी के सभी लोगों को आत्म-साक्षात्कार कलक या दाग नही हो। इसका मतलब अत्यन्त शुद्ध एवं निर्मल है। बहुत कुछ लिखा है। उसमें ये कहा है कि श्री कल्की का अवतरण इस भृतल पर संभालपुर गाँव में एक सफेद घोड़े पर संभाल माने भाल प्रदेश पर स्थित अर्थयात् श्री कलकी देवता का हननशक्ति भी कहते हैं। मा निर्णय' या (The last judgement) कहा है। इस भूतल के हर एक मनुष्य का ये अन्तिम निर्णय होने वाला है। कौन परमेश्वर सहजयोग के लिए शहर के कुछ छंटनी होने का समय अब आया है। सहजयोग से सभी का अन्तिम निर्णय होने वाला है। हो सकता है बहुत से लोगों को ये बात अद्भुत लगे परन्तु ये अजीब होकर भी सत्य है। मां के प्यार से कोई व्यक्ति सहज में पार (आत्मा-साक्षात्कारी) होता है और इसलिए ऊपर कही गई अन्तिम निर्णय' की बात इतनी सुन्दर, नाजुक व सूक्ष्म बनायी गई है उसमें किसी को भी विचलित नहीं होना है। मैं आपको बताना चाहती हूँ कि सहजयोग से ही आपका अन्तिम निर्णय होने वाला है। आप परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लायक हैं कि नहीं इसका निर्णय सहजयोग द्वारा ही होने वाला है। की अनुभूति प्राप्त होती है। इसका कारण यह है कि शहरी मनुष्य जरूरत से ज्यादा की कार्यमग्न होता है। उन्हें लगता है परमेश्वर की खोज के लिए शहरी लोगो को समय नहीं है। उन्हे लगता है ये बातें फिजूल की हैं, इसलिए अपना समय क्यों नष्ट करें? इस संदर्भ में मुझे ये बात कहना जरूरी है कि सहजयोग ही आपको सही रास्ते पर ले जा सकता है व परमेश्वरी ज्ञान मूलत: खोलकर बता सकता है। सारे परमेश्वर के खोजने वालों को सहज ही परमेश्वरी ज्ञान खुलकर बताया जा रहा है। ये सारा सहज में होता है। आपको अपना आत्म-साक्षात्कार बिना कष्ट उठाये मिलता है। इसलिए आपको कुछ भी देने की जरूरत नहीं है। और कोई भी कष्टप्रद आसन भी करने की जरूरत नहीं है। बहुत से लोग अलग अलग कारणों से सहजयोग की तरफ बढ़ते हैं। समाज में कई लोग बहुत ही साहसी वृत्ति के, जड़-वृत्ति के, या सुस्त होते हैं। ये लोग पिंगला या ईडा नाडी पर कार्यान्वित होते हैं। इसमें कुछ लोग मदिरापान अथवा इसी तरह का कुछ पीते हैं व इससे ऐसे लोग सत्य' से भागते हैं। दूसरे तरह के कुछ लोग पिंगला नाड़ी पर कार्यान्वित होते हैं और बहुत भी महत्वाकांक्षी होते हैं, स्वतंत्रता चाहते हैं और उनकी अपेक्षाएं इतनी विशेष होती हैं कि उससे उनकी दूसरी नाड़ी (इड़ानाड़ी) पूर्णत: खराब हो जाती है. उससे परमेश्वर से करक ह परन्तु एक बात पक्की ध्यान में रखनी चाहिए। आत्म-साक्षात्कार के बाद परमेश्वर के राज्य में प्रस्थापित होने दूर तक बहुत बाधाएं हैं, और श्री कल्की शक्ति का सम्बन्ध इसी से जुड़ा है। आत्म साक्षात्कार प्राप्त होने के बाद भी जो लोग अपनी पुरानी आदतों और प्रवृत्तियों में मग्न होते हैं, उनकी स्थिति को 'योगभ्रष्ट' स्थिति कहते हैं । उदाहरण के चैतन्य लहरी खंड 23 : X अंक : 9, 10 1998 रूप में कोई व्यक्ति पार होने के बाद भी अहंकार वृत्ति में व्यर्थ हो गया। श्री कल्की देवता की शक्ति सहजयोगियों के फंसा है या पैसे कमाने में ही मग्न है, या अपनी तानाशाही साथ गुरुता से प्रत्येक क्षण कार्यान्वित रहती है। श्री कल्की देवता सहजयोगी की पवित्रता की रक्षा स्वयं के एकादश सकता है और ऐसे ग्रुप पर वह व्यक्ति अपना बड़प्पन स्थापित शक्ति के साथ करते हैं। जो कोई सहजयोग के विरोध में काम कर सकता है। परन्तु इसमें थोड़े दिनों बाद ऐसा मालूम करेगा उन सभी को बहुत परेशानी होगी इतिहास को देखा होगा कि वह जाए तो लोगों ने अनेक संत पुरुषों को वहत परेशान किया। परन्तु अब वे आप संतो को, साधु लोगों को परेशान नहीं कर सकते, क्योंकि श्री कल्की देवता की शक्ति पूर्णरूप से से दूर हो जाते हैं और उनका भी सर्वनाश हो सकता है। कार्यान्वित है। जो मनुष्य सीधा-सादा है, संत है, उसे परेशान ऐसा सहजयोग में आकर भी घटित हो सकता है। इस बंबई में किया तो कल्की शक्ति आपको कहीं का नहीं रखेगी और उस समय आपको भागने के लिए ये पृथ्वी भी कम पड़ेगी। ऊपर दी गई बातें केवल सहजयोगियों को ही नहीं, सहजयोग में मनुष्य को संपूर्ण स्वतन्त्रता होती है। किसी व्यक्ति अपितु दुनिया के सारे लोगों के लिए है और इसलिए आप सभी को सावधानी से रहना पड़ेगा। औरों को मत सताओ, निर्भर है। कुछ सच्चे व महान गुरुओं के पास अलग तरह की उनकी अच्छाइयों का दुरुपयोग मत करो, और अपना रुतवा, बडप्पन जेताकर व्यर्थ बातें मत बनाओ। क्योंकि कल्की देवता ने आपके जीवन में संहार कार्य की शुरूआत की तो आप हतप्रभ 'क्या करें और क्या न करें" की स्थिति आ सकती है। प्रस्थापित करने में अति मग्न है, तो वह व्यक्ति कोई ग्रुप बना व्यक्ति परमेश्वर से, सच्चाई से. वंचित हो गया, और अन्त में उसका सर्वनाश हो गया। उसके बाद उस व्यक्ति से सम्बन्धित लोग भी सच्चाई से यानी परमेश्वर ऐसी अनेक घटनाएं बार-बार हुई हैं। इसे 'योगभ्रष्ट' कहना चाहिए। इसमें कोई व्यक्ति अपने योग से च्युत होता हैं क्योंकि की योग में बढोतरी या अधोगति उस व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर योग-साधना सिखाई जाती है। उससे साधक का अन्तःकरण द होता है और जीवन बचपन से ही शिष्ट बनाया जाता है। शुद्ध और उस साधक में शारीरिक एवं व्यक्तित्व निर्माण किया जाता इसी प्रकार जब आप अज्ञानता से या अनजाने में किसी दुष्ट व्यक्ति को भजते हैं या उसके संपर्क में होते हैं, तब आपको भी इससे परेशानी उठानी पड़ती है। ऐसे समय किसी निष्पापी (मासूम) मनुष्य को भी तकलीफ होती है । तो किसी गैर व्यक्ति के कारण आप पागल मत बनिए। अगर ऐसा किया है। उसका स्वभाव व उसका पूरा व्यक्तित्व ही बदल दिया जाता है। लेकिन सहजयोग में सभी बातें आपकी स्वतन्त्रता पर निर्भर होती हैं। ये सारी बातें समझने के लिए आपको हमेशा उस परमेश्वरी शक्ति के साथ सामूहिक चेतना में जुड़ा हुआ रहना अत्यन्त आवश्यक है। हर-एक चीज़ का इस संसार में बिलकुल सही ढंग से तो उसकी कीमत आपको चुकानी पड़ेगी। नियमन रहता है। उसी प्रकार सहजयोग में भी है। सहजयोग में आकर आप दिखावा नहीं कर सकते । किसी विशेष होते हैं उस समय आप कहीं पर एडजस्टमैन्ट (मन को मारते बात के लिए ग्रुपवाजी नहीं कर सकते। सहजयोग में आने हैं) करते हैं । फिर आप सोचते हैं कि. उसमें क्या हुआ? के बाद इस प्रकार के लोगों का बहुत जल्दी भंडा फूटता फलाने-ढिकाने हमारे पुरखों के समय से पंडित हैं, तो उन्हें है। क्योंकि ऐसे कृत्य करने वाले लोगों के सारे चक्रों पर जोरों कुछ देना ठीक रहेगा। आप जरा सोचिए कि, पवित्र प्यार की की पकड़ आती है और उसकी जानकारी उन व्यक्तियों को गंगा एक जगह से बहती है और उन्हीं के किनारों पर बैठकर नहीं रहती है। ज्यादा से ज्यादा उन्हें चैतन्य लहरियों की संवेदना परमेश्वर के नाम पर आपसे कोई पैसे ऐंठता है। कितना रह सकती है, परन्तु थोड़े समय में ही ऐसे लोगों का नाश होता है। जिस समय आप किसी गैर व्यक्ति के कारण प्रभावित पागलपन और अधूरापन है? उसमें आपको लगता है कि हमने उन पुजारियों को पैसे देकर कितना पुण्य कमाया है? इस प्रकार की 'योगभ्रष्ट' स्थिति किसी सहजयोगी को आना बड़ी बुरी घटना है। एक तो योग घटित होना ही वड़ा कठिन काम है। उसमें भी योग घटित होने के बाद अगर इस प्रकार की 'योगभ्रष्ट' स्थिति पैदा हो रही है, तो वह व्यक्ति श्री कृष्णजी के अनुसार राक्षस-योनि में जाता है। जो लोग सहजयोग में आते हैं उन्हें इसमें जमकर करते रहते हैं। पाप क्षालन ( धोना) करने के बदले पापों में टिकना पड़ेगा. नहीं तो वे योग को प्राप्त न होकर किसी न किसी योनि में जा गिरेंगे। उसके बाद कदाचित् उन लोगों का फिर से मनुष्य जन्म हो सकता है. परन्तु उन का ये पूरा जीवन के' कहना चाहिए। ऐसे लोग किसी भी व्यक्ति की ओर इसे तरह सत्य क्या है, ये न समझकर हम अंधविश्वास से जिन्दगी जीते हैं। ये भारत में ही नहीं इस दुनिया में सभी जगह देखने को मिलता है। कितनी बातें हम आंखें से देखते हैं. फिर भी मंदिरों में जाकर अंधविश्वास से अनेक बातें करते हैं। परमेश्वर के नाम पर, एक के पीछे एक ऐसे अनेक पाप हम वृद्धि करते हैं। ऐसे लोगों को मै 'तामसी' कहती हैँ। ऐसे लोग अपना दिमाग जरा भी नहीं लगाते। इसलिए उन्हें 'मूढ़ बुद्धि चैतन्य लहरी । खंड : X अंक : 9 10 1998 24 विरोध में है वह सब गलत है। फिर वह कल हो या आज हो आकर्षित होते हैं। वह कोई भी चमत्कार की घटनाएं सुनने के बाद तुरन्त उस पर विश्वास करते हैं। चमत्कार करने वालों ने परदेश में जाकर बहुत से लोगों से पैसे ठगे हैं। उस पैसों के बदले में उन्हें पक्षाघात या पागलपन इस तरह की बीमारियां भी साथ दे दीं। इतना होने पर भी कितने ही लोग ऐसे चमत्कार करने वालों के पीछे पागलों की तरह भागते हैं और अपने पापों या 1000 साल पहले हो, कभी भी हो बह गलत ही आजकल एक नयी बात देखने की मिलती है "उससे क्या हुआ? क्या गलत बात है?" इस तरह के सारे प्रश्नों के उत्तर कल्की शक्ति देगी। मैं केवल फिर से एक बार आपको इशारा दे रही हूँ कि गलत मार्ग का अवलंबन मत करिए। जो आपकी उत्क्रान्ति के विरोध में है वह मत करिए। ऐसा करोगे तो एक समय ऐसा आएगा जब आप क पास किये हुए कृत्यों का पछतावा करने के लिए भी समय नहीं रहेंगा। उस समय उसमें क्या हुआ? ऐसे सवाल पूछने का भी समय नहीं रहेगा। एक क्षण में श्री कल्की आपका सहार करेगी। ऐसा कहते हैं में वृद्धि करवाते है। आपको जो कुछ समय मिला है, वह सब आपातकाल (emergency) की तरह और महत्वपूर्ण है और इसीलिए आपको 12 स्वयं आत्म साक्षात्कार के लिए सावधान रहना चाहिए। इसमें किसी को भी दूसरा पर निर्भर नहीं रहना है। अपने आप स्वयं साधना करके परमेश्वर के हृदय में ऊंचा स्थान प्राप्त करना चाहिए, अर्थात इसके लिए सहजयोग में आकर स्वयं पार होना जरूरी है, क्योंकि पार होने के बाद ही साधना की जा सकती है। जिस समय कल्की शक्ति का अवतरण होगा उस समय जिन लोगों के हृदय में परमेश्वर के प्रति अनुकम्पा (अद्धा) व प्रेम नहीं होगा या जिन्हें आत्मसाक्षात्कार नहीं चाहिए होगा. ऐसे सभी लोगों का हनन (नाश) होगा। उस समय श्री कल्की किसी पर भी दया नहीं करेंगे। वे ग्यारह रुद्र शक्ति से सिद्ध हैं। उनके पास ग्यारह अति बलशाली विनाश शक्तियां है। इसलिए व्यर्थ की बातों में अपना समय नष्ट मत करिए। चमत्कार दिखाने वाले अगुरुओं के पीछे 'भगवान भगवान' करके मत दौड़िए। जो सही है उसी को अपनाइए। नहीं तो श्री कल्की शक्ति का अपनी सारी शक्तियों के साथ कि उस समय सारा काम प्रचंड होगा। हर एक व्यक्ति अलग अलग छांटा जाएगा उस समय कोई भी कुछ नहीं कह सकेगा। देखिए सब का विज्ञापन है। सब कुछ छपा हुआ है। एक माइक्रोफोन जो विज्ञान के कारण बनाया गया है वह भी सहजयोग के प्रचार कार्य के लिए इस्तेमाल होता है। अगर मैंने माइक्रोफोन अपने चक्रों पर रखा तो उस माइक्रोफोन में से भी चैतन्य लहरियां बहती हैं। उसका प्रत्यक्ष अनुभव लोगों ने किया है और कर सकते हैं। उन चैतन्य लहरियों से आपको आत्म-साक्षात्कार प्राप्त हो सकता है। पूरा विज्ञान सहजयोग के काम आने वाला है। कुछ दिन पहले दूरदर्शन के कुछ लोग मेरे पास आये। कहने लगे "माताजी दूरदर्शन पर हमें आपका कार्यक्रम रखना है।" उस समय मैंने उन लोगों से कहा, 'कोई भी कार्यक्रम रखने से पहले आप संभल के रहिए। मुझे विज्ञापन की जरूरत नहीं है। जो कुछ भी करोगे सही ढंग से करिए। दूरदर्शन के माध्यम से सहजयोग फेल सकता है। जिस समय दूरदर्शन पर मेरा कार्यक्रम होगा उस समय लोग अपने टी.वी. सैट के सामने हाथ फैलाकर बैठेंगे तो बहुत से संहार करने के लिए अवतार लेकर आने का समय बहुत নजदीक गया है। ति कुछ दूसरे तरह के लोग होते हैं । वे हमेशा अपनी चालाकी और बृद्धिमानी पर विचार करते हैं। उन्होंने हमेशा परमेश्वर को नकारा है । ऐसे लोग कहते हैं "परमेश्वर कहाँ हैं? परमेश्वर वगैरा है। Science (विज्ञान) यही सब कुछ है। मैं कहती हैं आज लोगों को आत्मसाक्षात्कार की अनुभूति मिल सकती है। ये वास्तविकता है मेरे इस शरीर से चैतन्य लहरियां बहती हैं, ये कुछ भी नहीं है, ये सब कुछ Iraid (धाखा) वास्तविकता है। इसके कारण किसी को भी क्रोधित होने का कारण नहीं । अगर मैं इस तरह की बनायी गयी हूँ तो इसमें आपको बुरा मानने का नहीं। म तक साइन्स से क्या हुआ। आप देख तो समझ में आएगा। साइन्स ने अभी तक बेजान चित्रों के सिवाय कुछ नहीं बनाया। विज्ञान की वजह से आप केवल अहंकारी बने हैं। यश्चिमी दूसरा प्रकार अहंकारी और महत्वाकांक्षी लोगों के साथ दिखायी देता है। किसी के पास बहुत धन-संपत्ति है ऐसे मनुष्य के पास जाकर पूछिए क्या वह सुखी और खुश है? उसके जीवन को जरा गौर से देखिए। जो कहलवाते हैं उनकी पास जाकर देखिए उन्होंने कौन-सी कामयाबी हासिल की है? उन्हें कितने लोग सम्मान देते हैं ? उनकी पीठ फिरते ही लोग कहते हैं, 'हे भगवान इनसे छुटकारा दिलवा दो। आप मंगलकारी हो क्या? आपके दर्शन से औरों को सुख होता है क्या? आप मंगलमय हो क्या। यह देखिए। देशों में हर एक मनुष्य अहंकारी है। पाप वृद्धि कैसे करनी है, उसके संबंध में वे अनेक जानकारियां खोज निकालते हैं । गन्दे अपने आपकी कामयाव से गन्दा पाप कंसे करना है, इसी में वे व्यस्त हैं। उसी में भारत से कुछ लोग जो अपने आप को बहुत बड़े अगुरु समझते हैं और कहलवाते हैं, वे गये हैं। वे उन्हें ऐसे पाप बृद्धि में मदद करते हैं । उससे ये सब लोग जल्दी ही नर्क में जाने वाले हैं जो कुछ गलत है वह गलत ही है। जो कुछ हमारे धर्म के खंड : X अंक : 9. 10 1998 बेतन्य लहरी 25 कृष्णस्थित गुणधर्म है। परन्तु उस परमेश्वर की करुणा समझने के लिए अगर हम असमर्थ साबित हुए तो इस कल्की शक्ति का विस्फोट होगा और पूरी क्षमाशीलता आप पर संकटों की आपका व्यक्तित्व किस तरह का है स्वयं का निर्णय स्वयं करना है ये सब सहजयोग में ही घटित हो सकता है। आप गलत रास्ते से गये तो आप में से बहुत गन्दी-लहरियां (bad vibrations) आएंगी। अनजाने में आप अनेक पाप करते तरह आएगी। श्री कृष्ण ने स्पष्ट कहा है कि अपने विरोध में रहोगे और फिर भी मुझसे कहते रहोगे "माताजी में बहुत अच्छा हूँ, मुझे चैतन्य लहरें आ रही हैं" ऐसे लोग अपने आपको और दूसरों को ठगते हैं। आपका निर्णय कौन करेगा? आपका ही कर्म। आपने दूसरों पर कितने उपकार किये? किसी मोहिनी विद्या वाले (अविद्या या काली विद्या) आदमी पर भरोसा करके आप अपने घर के सदस्यों का नाश करना चाहते हैं क्या? कम से कम घर के और सदस्यों के अवतारी पुरुष लिए सोचिए। समाज में अनेक तरह के गलत लोग हैं ऐसे लोगों से पूर्णतया दूर होना, सहजयोग में आकर सहज हो होंगी श्री बुद्ध की क्षमाशीलता व श्री महावीर की अहिंसा सकता है। लंदन में भी ऐसे गन्दे लोगों को लुभाने वाले अनेक शक्ति भी उलटकर गिरेगी, ऐसी ग्यारह शक्तियुक्त श्री कल्की लोग हैं, मुझे मालूम है। मैंने उन्हें बहुत बार बताया है कि आप देवता का अवतरण होने वाला है। उस समय सर्वत्र हाहाकार ये गलत रास्ता छोड़ दीजिए। आपको तुरन्त समझना चाहिए कि मचेगा और उसी समय सबका चयन होने वाला है। उस समय माँ ये सारी बातें समझती हैं। अगर आपकी माँ ने कोई बात आपसे कही तो वह माननी चाहिए। इसमें वाद-विवाद नहीं करना चाहिए। क्या आप को वाद-विवाद से चैतन्य लहरें प्राप्त होने वाली हैं? ऐसा सोचिए जरा। फिर भी आप सहजयोग में आकर गलतियां करते हैं। लेकिन ये बहुत गलत और बुरी बात है, ये समझ लीजिए, क्योंकि ऐसे योग-भ्रष्ट लोगों को मुक्ति देवी के अनेक अवतारों ने अनेक राक्षसों का नाश किया, पर नहीं मिलेगी। मुझे सारे सहजयोगियों को भी इशारा देना है क्योंकि तो वे कुछ चला लेंगे। लेकिन आदिशक्ति के विरोध में एक भी शब्द नहीं चलेगा। ऊपर निर्दिष्ट किया हुआ एक बहुत वड़ा अवतरण होने वाला है। ये पक्की बात है । ऐसे अवतारी व्यक्ति के पास श्री कृष्ण की सारी शक्तियां, जो केवल हनन (सर्वनाश) शक्ति, श्री शिव की हननशक्ति अर्थात् ताण्डव का एक हिस्सा, ऐसे सर्व -प्रकार की हनन शक्तियां होंगी उस के पास श्री भैरव का खड्ग होंगा श्री गणेश का फरसा होगा. श्री हनुमान की गदा और विनाश की सिद्धियां सहजयोग भी किसी को नहीं बचा सकता क्योंकि उस समय सहजयोग भी समाप्त हुआ होगा। आप सहजयोग से भी अलग किये जाओंगे और प्रत्येक मनुष्य परमेश्वर को सही लगने वाला निकाला जाएगा। बाकी के लोगों को मारा जाएगा और ये हनन ऐसा वैसा न होकर संपूर्ण जड़ का ही नाश होगा। पहले राक्षसों ने फिर से जन्म लिया। परन्तु अब संपूर्णत: नाश होने वाला है जिससे पुनः जन्म की भी आशा नहीं रह सकती। अभी जो स्थिति है वह भिन्न है और उसे समझने की आप कोशिश करिए। श्री कृष्णजी ने कहा है कि " यदा यदा सहजयोग ही आखिरी न्याय है। आप परमेश्वर के राज्य के लिए सही हैं या नहीं. इसकी जांच-पड़ताल ही सहजयोग है। आप सहजयोग में आकर पार होकर परमेश्वर के राज्य के ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भरत, परित्राणाय साधूनां विनाशायच नागरिक बन सकते हैं। उसके पहले आपको परमेश्वरी प्रेम व परमेश्वरी ज्ञान समझने की पात्रता भी नहीं होती है। समझ लीजिए आप भारतीय गणराज्य के नागरिक हैं और आपने कोई लोगों का, बुरी प्रवृत्तियों का नाश करने के लिए. और आगे गुनाह किया. तो आप सजा के पात्र हैं। उसी प्रकार परमेश्वर वे कहते हैं कि साधु और संतों को बचाने के लिए मैं पुन: के राज्य के बार में भी है और इसलिए परमेश्वरी राज्य की जन्म लूगा । कलियुग मे सीधा सादा, भोला साधू संत मनुष्य नागरिकता मिलने के बाद आप सभी को बहुत ही सावधानी मिलना मुश्किल है क्योंकि अनेक राक्षसों ने मनुष्य की खोपड़ी बर्तनी पड़ेगी। दूसरी बात जो मुझे आपसे कहनी है वह है श्री कल्की देवता की विनाश-शक्ति के बारे में । श्री कल्की अवतरण के बदले बुरे मनुष्य पर विश्वास करते हैं । जो बुरे काम करता बहुत ही बहुत ही कठोर है। पहले श्री कृष्ण जी का अवतरण है उसकी जय जय करते हैं। एक बार जब हमने बुरे मनुष्य हुआ। उनके पास हनन शक्ति थी। उन्होंने कंस और राक्षसों को मारा। बहुत छोटे-से थे वे तभी उन्होंने पूतना राक्षसी को कैसे की तरफ बढ़ने लगती है ओर ये सब आपकी बुद्धि में इस ये आपको मालूम है। परन्तु श्री कृष्ण 'लीला' भी करते थे वे करुणामय थे । उन्होंने लोगों को बहुत बार छोड़ दिया, क्षमा किया। श्रीकृष्ण क्षमाशक्ति से परिपूर्ण थे क्षमा करना श्री दुष्कृतां संभवामि युगे युगे " अब इस श्लोक के आखरी लाइन में श्री कृष्ण कहते हैं कि "विनाशायच दुष्कृता" मतलब दुष्ट Ime में प्रवेश किया है। इसलिए धर्म के नाम पर राजनीति में शास्त्रों में, शैक्षणिक क्षेत्र में हर एक क्षेत्र में हम अच्छे मनुष्य का साथ दिया कि अपनी प्रवृत्ति भी अनजाने में गलत बातों तरह जड़ होकर बैठता है कि आप अपने आपको उस जड़ता की तरफ से हटा नहीं सकते फिर उन दुष्कृत्यों से आप कैसे मारा, मुक्त होंगे? या उन दुष्कृत्यों को कैसे नष्ट करोगे? आप एक चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 9, 10 1998 26 लिए, और प्राप्त होने के बाद आत्मसात करने के लिए, आप बहुत अच्छे स्वभाव के और बड़े इंसान हो, परन्तु आपकी खोपड़ी में दुष्कृत्य भी जड़स्वरूप में बैठे हैं, तब आपका भी विनाश होगा। इससे कोई मनुष्य सचमुच परमेश्वर प्राप्ति के लिए पोषक या विरोधक है ये कहने के लिए ठोस नियम नहीं कहा जाएगा। केवल सहजयोग से ही मनुष्य की सफाई होगी और उससे वह व्यक्ति परमेश्वर प्राप्ति के लिए पोषक बनाया जा सकता है। ये एक ही बात ऐसी है कि जिससे आपकी अंकुर शक्ति प्रस्फुटित होकर आपको आत्म साक्षात्कार प्राप्त करा सकती है। आप स्वयं को माने अपने 'स्व' को, जान सकते हैं और उसी का आनन्द लूट सकते हैं। जिस समय ऐसा अपना समय उसे दीजिए। अब तक जो सहजयोग में कहा गया है वह सभी TI जीवन्त प्रक्रिया है। जिस समय नये लोगों का सजहयोग की तरफ बढ़ना बिल्कुल खत्म हो जाएगा उस समय कल्की शक्ति का अवतरण होगा, तो देखते हैं सहजयोग की तरफ कितने लोग बढ़ते हैं। अर्थात् कितने लोग आएंगे, उसकी भी मर्यादा है। इसलिए मैं फिर एक बार आपसे विनती करती हूँ। आपके जितने भी मित्र परिवार हैं, रिश्तेदार हैं, अड़ौसी-पड़ौसी हैं उन सबको लेकर आप सहजयोग में आइए। जब इस बबई में बहुत से लोग अपार श्रद्धा से. गंभीरता अलग हो जाती हैं। आपमें जो भ्रम है वह नहीं रहेगा। और से सहजयोग में प्रस्थापित होंगे, सहजयोग में आकर प्यार से इसलिए आप अपना समय नष्ट नहीं करके तुरन्त पूर्ण श्रद्धा से मिल-जुलकर रहेंगे उसी समय मुझे बहुत खुशी होगी। इस 'सहजयोग' को स्वीकार करिए। यह अत्यन्त आवश्यक है। बम्बई में सारे भारत देश के हजारों बुद्धिमान और सात्विक इससे भूतकाल में हुई गलतियां, पाप इन सबसे आपको मुक्ति लोग हैं जो इस भारत भूमि के भूषण हैं पर वे अभी भी हृदय मिलेगी। ये एक ही बात ऐसी है कि जो आप अपने मित्रों को, से छोटे हैं उन्हें मुझे ये ऊपर बतायी गई बातें जरूर कहनी हैं। क्योंकि अब थोड़े ही समय में बहुत-सी मुश्किलें आने वाली कुछ लोग, लोगों को खाना खाने को आमंत्रित करते हैं हैं मैं प्रार्थना करती हूं कि ऐसे संकटों की शुरुआत बंबई से ना हो। वम्बई तो एक-दो बार मुश्किलों से बची है। तो अब आनन्द मिलता है उस समय और मिथ्या बातें अपने आप ही रिश्तेदारों को और सभी को दे सकते हैं । ज्यादा से ज्यादा किसी के जन्म दिवस पर उसे केक देंगे या कुछ उपहार दंगे। क्रिसमस के समय लंदन में शुभेच्छा कार्ड भेजने की प्रथा है। तब पोस्ट ऑफिस में ऐसे का्डो का ढंर लगता है। तब और चिट्ठियां लोगों को 10-10 दिन नहीं सावधान रहिए। दूसरी बात ये कि, अभी तक बंबई के लोगों को पता नहीं उनके ऊपर कौन-सी वड़ी मुश्किल आकर गिरने वाली मिलतीं। इन सबमें यीशू के जन्मोत्सव पर वहां के लोग श्री है उन्हें ये भी पता नहीं कि परमेश्वर समस्त मानव को यीशू को पूर्णत: भूले हैं। उल्टे श्री यीशू के जन्म दिन पर वहां अमीबा से मनुष्य की स्थिति तक कैसे लाया है। परमेश्वर के लोग शेंपेन नाम की शराब पीते हैं। इतने महामूर्ख लोग हैं, प्राप्ति के मार्ग में एक दुर्देवी ये है कि इस देश के सभी लोग कोई मरेगा तब वे शेपेन पिएंगे । इतनी गंदगी है कि शेंपेन पीना बंबई के लोगों का अनुकरण करते हैं। बहुत से लोग परमेश्वर तटीयों प्राप्ति के लिए यत्न करने के बजाय सिने. नट या तो उनका धर्म हो गया है। उनको परमेश्वर की समझ नहीं। और समझेंगे भी कैसे? परमेश्वर के बारे में उनके मन में कपोल कल्पित मिथ्या Film actors or actresses) का अनुकरण करने में मग्न है। ये ( सब स्वभाव की उथलता है। श्री कल्की शक्ति का स्थान आपके कपाल के भाल विचार है। आप बहुत सावधान और सजग रहिए। अपने आप से ही मत खेलिए। 'स्वयं का नाश मत करिए। तुरन्त उठिए, प्रदेश पर है। जिस समय कल्की चक्र पकड़ा जाता है उस समय ऐसे लोगों का पूरा सिर भारी होता है। कुण्डलिनी को में जागृत हो जाइए। मेरे पास आइए। में आपकी मदद करूंगी। मैं आपके लिए रात-दिन मेहनत करने के लिए तैयार हूँ। मैं आपके लिए पूरी तरह कोशिश करूंगी, आपको अच्छा बनाने कुण्डलिनी ज्यादा से ज्यादा आज्ञा चक्र तक आ सकती है। के लिए । आपको परमेश्वर प्राप्ति के मार्ग पर लाने के लिए परन्तु फिर से कुण्डलिनी नीचे जा गिरती है। अगर आपने मैं सारी कोशिशें करूंगी। परमेश्वर प्राप्ति के लिए अन्तिम परीक्षा पास करने के आपकी भी स्थिति एसी हो सकती है। इसलिए श्री कल्की लिए मैं आपके लिए मेहनत करूंगी। परन्तु इसमें आपको मुझे शक्ति का एक हिस्सा खराब हो सकता है और इससे एक सहयोग देना होगा। ये सब प्राप्त करने के लिए आपको भी सर्वोपरि कोशिश करनी होगी और आअपने जीवन का ज्यादा से ज्यादा समय सहजयोग में व्यतीत करना चाहिए। सहजयोग जो ही कीमती है, जो बहुत महान है। वह प्राप्त करने के अपने उस चक्र के आगे नहीं ले जा सकते। ऐसे मनुष्य अपना सिर गलत लोगों या अगुरुओं के पांव पर रखा होगा तो तरफ का असंतुलन निर्माण हो सकता है। पूरे कपाल पर अगर एक-दो फोड़े होंगे तो समझना चाहिए कि आपका कल्की चक्र खराब है। अगर कल्की चक्र खराब होगा तो ऐसे व्यक्ति पर निश्चित ही बहुत बड़ी मुश्किल (आपत्ति) आने वाली है। बहुत चैतऱ्य लहरी खंड : X अंक : 9, 10 1998 27 की वर्षा करते हैं । परमेश्वर बहुत करुणामय है, कितने करुणामव है इसकी आप कल्पना नहीं कर सकते। वे करुणा के सागर पर साधारण से ज्यादा गर्मी लगती है। किसी व्यक्ति के श्री हैं परन्तु वे जितने करुणामय है उतने ही वे क्रुद्ध भी हैं। अगर उनका कोप हो गया तो बचना बड़ा मुश्किल है। फिर उन्हें (कैंसर) या महारोग इस तरह की बीमारियों से पीड़ित होगा या कोई नहीं रोक सकता। मेरे प्यार की आवाज भी उस समय ऐसे व्यक्ति पर महाआपत्ति आने की सूचना है। इसलिए श्री नहीं सुनी जाएगी। क्योंकि वे उस समय कह सकते हैं कि "माँ. आपने बच्चों को छूट दे दी और बच्चे बिगड़ गये।" इसलिए मैं आपसे कहना चाहती हूँ कि कोई भी गलत या बुरे कृत्य मत करो। उससे मेरे नाम पर बुराई मत लाओ। आपकी जिस समय अपने कल्की चक्र पर पकड़ होगी उस समय अपने हाथों, सभी उंगलियों पर और हथेली पर और पूरे बदन कल्की शक्ति के चक्र में पकड़ होगी तो ऐसा व्यक्ति कर्करोग कल्की चक्र को बहुत साफ रखना पड़ेगा। इस चक्र में ग्यारह और चक्र हैं। ये चक्र साफ रखने के लिए इस चक्र के ग्यारह म चक्रों में ज्यादा से ज्यादा चक्र साफ रखना बहुत जरूरी है। उनकी वजह से और छोटे छोटे चक्र चालित कर पाते हैं। अगर है कि ये सारी मा का हृदय इतना प्रम से भरा, इतना नाजुक बातें आपको बताते हुए भी मुझे मुश्किल लगता है। मैं फिर से आपको विनती करके बताती हूँ कि अब व्यर्थ समय मत ब्याद कीजिए क्योंकि पितामह परमेश्वर बहुत कुपित हैं आपने अगर कोई बुरा कृत्य किया तो वे आपको सजा देंगे। परन्तु अगर आपने उनके लिए या अपने स्वयं के आत्म-साक्षात्कार के लिए कुछ किया तब आप को परमेश्वर के राज्य में अति उच्च पूरे के पूरे ग्यारह चक्रों पर पकड़ होगी तो ऐसे व्यक्तियों को आत्मसाक्षात्कार देना बहुत ही कठिन होता है। अव श्री कल्की का चक्र साफ रखने के लिए क्या करना है वह देखते हैं। सर्वप्रथम हमें परमेश्वर के प्रति अत्यन्त आदर, प्रेम और उनके प्रति आदरयुक्त भय (awe) दोनों ही चाहिए। अगर आपको परमेश्वर के प्रति प्यार नहीं होगा, आदर नहीं होगा या कोई गलती या पाप करते समय परमेश्वर का पद मिलेगा। आज आप करोड़पति होंगे, आप बहुत अमीर होंगे या बहुत बड़े पुजारी या वैसे ही कुछ होंगे परन्तु जो परमेश्वर को प्रिय है, जो मान्य है, उन्हीं को परमेश्वर के राज्य में उच्चतम पद पर विराजमान किया जाएगा। आपके रईस या लखपति बनने पर भी आप का परमेश्वर के राज्य में प्रवेश होगा, ये भय नहीं लग रहा है, उस समय श्री कल्की शक्ति अपने अति क्षोभ से (क्रोध से) सिद्ध है, सज्ज है । अगर आप गलती कर रहे हो और उसके प्रति आपके मन में परमेश्वर का जरा भी डर या भय नहीं है तो समझ लीजिए आपके लिए ये देवत्व (divinity) बहुत ही जहाल है। आप अगर पाप कर रहे हैं या गलती करते हैं तो उसमें मुझसे या और किसी से छिपाने की जरूरत नहीं है। अब अपने आपको ये मालूम है कि आप ये अगर आपका विचार है तो वह बहुत गलत है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि 'परमेश्वर' प्राप्ति के लिए हम कहा हैं ये देखकर गलत काम कर रहे हैं। अगर आप पाप कर रहे हों और आपके हृदय में आपको महसूस हो रहा है कि हम पाप कर रहे हैं तो कृपा करके ऐसा कुछ मत करिए। जिस समय आपको परमेश्वर के प्रति आदर, भय और प्रथम अपना परमेश्वर से संबंध घटित होना आवश्यक है। स्वयं की आत्मा कहां है? परमेश्वर से हम किस तरह सबंधित हो सकते हैं, इन सारी बातों का रहस्य सहजयोग प्राप्त होने के बाद ही समझा जा सकता है। साधकों को सहजयोग में आकर प्रेम रहता है उस समय आप जानते हैं कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, वही हमारी देखभाल कर रहा है, और वही हमारा उद्धार कर रहा है। शक्ति के कारण वे हमारे ऊपर कृपा-आर्शीवाद उत्थान प्राप्त कर अपना कल्याण कर लेना चाहिए। सभी को अनन्त आशीर्वाद (परमपूज्य श्री माताजी के मराठी भाषण का हिन्दी रूपान्तरण) ाड ा हुर च बा शपत तलि कम किट चैतन्य लहरी । खंड : X अंक : 9 10 1998 28 की को भा का ी कम का म आप जिस चीज का आनन्द लेते हैं, वह है सामूहिकता। स्वरचित अर्थहीन सीमाओं से मुक्त होकर सामूहिकता का आनन्द लें।" ज,दि.पूजा 21.3.97 ा २४ ध्यान-पथ रख चित्त सदा समर्पित श्री मा निर्ल के श्री चरणन में करो प्रार्थना शुद्ध हृदय से, ध्यान स्वतः हो जाएगा।। न कर्म काण्ड, न योग तप, न तीर्थ यज्ञ कुछ काम आएगा। जो पूजे नित्य हृदय में श्री निर्मल मां के श्री चरणन को परमपद स्वतः पास आ जाएगा, ध्यान स्वतः हो जाएगा। बेव, असुर, मानव, त्रिपुर और त्रिलोक, हैं सब श्री आदि मां की रचना। छोड़ सब, तू थाम ले, श्री निर्मल मां के प्रेमांचल को सर्व-त्रिताप नाश हों. पार स्वतः लग जायेगा | ध्यान स्वत: हो जायेगा। मांग शुद्ध ज्ञान श्री मां से, जो रखे चित्त सदा समर्पित श्री मां चरणन में करे विस्तरित प्रकाश आत्मा का, अन्दर और बाहर में अहंकार कर सम्पूर्ण समर्पित, श्री मां की महिमा गाने में जो ध्याये श्री मां को सदा हदय में अनन्य भक्ति-रस में स्वतः डूब जाएगा| ध्यान स्वतः हो जायेगा विचारों के बादल छंटने से बायु का वायुपन स्वतः समाप्त हो जायेगा चिदाकाश आत्म स्वरूप में मग्न हो, ओंकार (ॐ) की अर्धमात्रा में स्वत: विलीन हो जायेगा तोड़कर चित्त के भटकने की आदत, हो निश्चल हृदय के शून्य महल में स्वयं त्रिगुणातीत हो, निर्मलानन्द बीच समायेगा। ध्यान स्वतः हो जायेगा निर्विचारिता की माटी से, घड़ो श्री निर्मला मां की मूरत भक्ति-अद्धा से करो स्थापित, बीच हुदय के प्रांगण में कर प्रार्थना श्री गणेश की, निर्विचारिता में आ जाओ। कर भरोसा दृढ़ हृदय में, ठहर जरा, ध्यान बीज स्वतः अंकरित हो जायेगा। ध्यान स्वतः हो जायेगा। त ा घ्यान बीज धारित होने पर ही, ध्यान सही कहलाता है। घारित ध्यान ही घ्लावित हो कर, साक्षी भाव में आता है। साक्षी भाव जब धारित हो, शिवतत्व प्राप्त कराता है धारित साक्षी भाव में जो ध्याये सवा श्री निर्मल मां श्री चरणन को वह स्वयं ही शिव-तुल्य हो जायेगा।॥ ध्यान स्वतः हो जायेगा श्री चरणों में समर्पित ---------------------- 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी अंक 9, 10 1998 खण्ड X र री ह ० ास "यदि ये यन्त्र (माइक) अपने स्रोत से जुड़ा हुआ न हो तो यह व्यर्थ है। इसी प्रकार हम भी यदि अपने सरोत से जुड़े हुए नहीं हैं तो हमारी कोई पहचान नहीं है।" 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-1.txt ३ु ाि ० २ु० कु ा Pा काप ६ि " पारिवारिक मोह हमारे सिर पर सबसे बड़ा बोझ है। परिवार आपकी जिम्मेवारी नहीं । यह सर्वशक्तिमान परमात्मा का दायित्व है। क्या आप परमात्मा से अच्छा कर सकते हैं? जब आप दायित्व लेने लगते हैं तभी समस्याएं शुरू होती हैं। निर्लिप्सा को समझना चाहिए। अपनी चीजों से, बच्चों से आप चिपके रहते हैं। मोहग्रस्त लोगों को संत कैसे कहा जा सकता है। संत केवल अपनों के लिए ही जिम्मेवार नहीं होते वें सबके लिए जिम्मेवार होते हैं" ( प.पू. माता जी श्री निर्मला देवी) 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-2.txt इस अंक में पृष्ठ नं. सम्पादकीय 1. 3 ईस्टर पूजा 2. श्रीमाताजी आप शान्ति दूत हैं 3. 6. भविष्य हमारे हाथ में है 4. 10 मात्रेसुर वधमन्त्र 5. 13 सार्वभौमिक प्रेम को समर्पित विश्वपाठशाला 6. 15 एक सहजयोगी की डायरी से 7. 16 श्री गणेश पूजा 8. 16 जन्म दिवस पूजा 9. 22 सहजयोग और कल्की शक्ति 10. 23 योगी महाजन सम्पादक विजय नालगिरकर प्रकाशक १62, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 यात अभिनव प्रिन्टस, दिल्ली 34, फोन : 7184340 मुद्रक पां 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-3.txt स मर ३० ..हमारी जितनी भी इन्द्रियां हैं, वे हमारे इर्द-गिर्द क्रीड़ा करती हैं। परन्तु सहज स्थिति में व्यक्ति पर इनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वह लिप्त नहीं है। वह तो मात्र क्रीड़ा करता है। यही स्थिति आपने प्राप्त करनी है, तब आप वास्तव में सहजयोगी होंगे।" दिवाली पूजा पुर्तगाल 10-11-96 ा 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-4.txt सम्पादकीय देता है। हमें समझना होगा कि छोटा सा भी अवसर मिलते ही विपक्ष हमसे सत्ता छीनने के लिए तैयार बैठा है । एक इन्च डोलना भी हमारे हित में नहीं। अन्य लोगों को काबू करना आसान है परन्तु स्वयं पर काबू पाना अत्यन्त कठिन, ऐसे ही जैसे शिक्षा देना अभ्यास करने से कहीं आसान है। तो किस तरह से स्वयं को वश में ध्यान में जब हम बैठते हैं तो प्रायः कोई विचार हमें व्याकुल कर देता है और अचानक हम ध्यान भंग कर देते हैं। यह एक आत्मसम्मोहन होता है कि "हम पर्याप्त ध्यान कर चुके हैं तथा करने के लिए और भी कई कार्य हैं।" किए जाने वाले इन कार्यों पर दृष्टि डालना अत्यन्त रुचिकर होगा। "मुझे अपने मित्र से मिलना है". "मुझे टेलीफोन करने हैं ।" इसके ओह. मुझे टी.बी. देखना है। क्या हम पहले से ही यह सभी कार्य नहीं कर रहे? किया जाए? महाभारत में अर्जुन की भी यही समस्या थी। उसने ।" पश्चात क्या? " श्री कृष्ण से पूछा." मन को किस प्रकार वश में किया जाए। ये इनसे हमें क्या प्राप्त हुआ? इन सब कार्यों ने हमें कहा तो अत्यन्त प्रचण्ड एवं जिद्दी है। इसको वश में करना तो आंधी को रोकने जैसा है।" श्रीमाता जी प्रायः हमें अन्तर्दर्शन करने के लिए कहती हैं। कुण्डलिनी उठने पर जब हम ध्यान करते हैं तो कुण्डलिनी हमें पहुंचाया? अब हमें अपना उत्थान चाहिए. बाकी सभी कार्य प्रतीक्षा कर सकते हैं। ध्यान धारणा का प्रथम स्थान होना चाहिए। टेलीफोन हम बाद में भी कर सकते हैं और मित्र से गहन आनन्द एवम् आन्तरिक शान्ति प्रदान करती है। इस नए अनुभव के प्रकाश में हम मिथ्या प्रलोभनों को स्पष्ट देख सकते हैं और इसी विवेक के माध्यम से सभी विचारों तथा मानसिक गतिविधियों पर काबू पा सकते हैं तब हम स्वयं महसूस करते हैं कि मन मिथ्या है। इस स्थिति पर पहुँचने पर आत्मा का शासन दूढ़तापूर्वक स्थापित हो जाता है और कोई विपक्ष अपनी आवाज उठाने का साहस नहीं करता। अगन्य चक्र पर परमात्मा की जो प्रार्थना हम करते हैं यह उसकी पूर्णता होती है कि, भी बाद में मिला जा सकता है। टी.वी. अनावश्यक है। स्पष्ट बातचीत सहायक होती है। अन्तः स्थिति संसद की कार्यशैली की तरह से होती है, यहां शासक दल भी है और विपक्षी दल भी उदाहरणार्थ शासक दल सहज सरकार स्थापित करना चाहता है परन्तु विपक्ष इसका विरोध करता है। शासक दल यदि शक्तिशाली है यदि ये दुर्बल हैं तो विपक्ष इसे तो ये सफल हो जाता है परन्तु हरा देता है। शासक दल की शक्ति श्रीमाता जी के प्रति प्रेम एवम् समर्पण में निहित है। यदि यह हमारी परमेश्वरी मां के चरण कमलां में पूर्णत: समर्पित है तो वे सब कुछ संभालती हैं, काई शक्ति उनका विरोध नहीं कर सकती। परन्तु यदि हम दुर्बल हैं. सन्देह से परिपूर्ण हैं तो विपक्ष आसानी से हमें हरा आपका साम्राज्य फैले, पृथ्वी एवम् स्वर्ग में आपकी आज्ञा का 4a a" (Thy Kingdom come, Thy will be done on earth as it is in Heaven) हम वास्तव में श्रीमाताजी द्वारा बताए गए 'बसन्त ऋतु' (BLOSSOM TIME) का आनन्द लेने लगते हैं। चैतन्य लहरी । खंड : x अंक : 9 10 1998 3 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-5.txt ी ईस्टर पूजा 19.4.98 तुर्की हम ईसा मसीह के जीवन के बारे में बात करेंगे, उनके क्रसारोपित होने के विषय में नहीं। क्रूस पर चढ़ाकर किसी की भी हत्या की जा सकती है परन्तु ईसामसीह का मृत शरीर मृत्यु से निकलकर पुनर्जीवित हो गया| स्वयं मृत्यु की मृत्यु हो गई। उन्होंने मृत्यु पर काबू पा लिया। नि:सन्देह सर्वसाधारण लोगों के लिए यह चमत्कार है परन्तु ईसा के लिए नहीं क्योंकि वे दिव्य व्यक्ति थे। व साक्षात् गणश थे, साक्षेात ऑकार थे। यही कारण है कि वे पानी पर चल सकते थे। गुरुत्वाकर्षण का उन पर कोई प्रभाव नहीं था। वे पुनर्जीवित हो गए क्योंकि काल भी उन्हें प्रभावित न कर पाया। इतने दिव्य व्यक्तित्व की सूष्टि विशेष रूप से इसलिए की गई थी कि मानव उन्हें पहचान लें. परन्तु क्रूरतापूर्वक उन्होने उनका वध कर दिया। आज भी लोग यह समझते हैं कि कुूस बहुत महान चोज है क्योकि ईसा का वध क्रूस पर किया गया था। ईसा मसीह का सम्मान करने का मानव का यह अत्यन्त क्रूर तरीका है। यह क्या प्रकट करता है? यह दर्शाता है कि उन पर किए गए सभी अत्याचार भानव को पसन्द थे। कूस उनकी मृत्यु तथा उन पर किए गए अत्याचारों का प्रतीक है और दर्शांता है कि मेरे पास शब्द नहीं हैं। वास्तव में उन्होंने ही पहल की और लोगों को बताया कि आप परमात्मा को खोजें| परमात्मा को खोजें ओर वे आपको प्राप्त हो जाएंगे (You seek, You Seek & You will find) तब उन्होंने कहा कि आपको आकर जोर से दरवाजा खटखटाना होगा। आपके साथ भी यही घटित हुआ कि आप आज्ञा के स्तर तक उन्नत हुए और फिर आज्ञा को पार कर लिया। आज्ञा को प्रार करने में कोई कठिनाई नहीं आईं। यद्यपि आपके अपने विचारों, बन्धनों और भविष्य की योजनाओं के पति कारण अगन्य चक्र पर विशालकाय अत्यन्त काले बादल मंडरा रहे थे। विचार आपको घेरे हुए थे और इस आच्छादित अगन्य चक्र को आप न भेद पाते। फिर भी आपने अगन्य चक्र की मानव ने उन्हें नहीं पहचाना और अत्यन्त सुगमता से पार किया और आपको यह भी न लंगा कि आपने यह कठिन कार्य किया है। तो सर्वप्रथम हम सबको आपका अगन्य चक्र खालने के लिए ईसा मसीह के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। उनके लिए सारे कष्ट एवम सारी क्रूरता कुछ भी न थी। उनके जीवन का लक्ष्य उनके आगमन का उद्देश्य, उनका अवतरण अगन्य चक्र को भेदने के लिए था। आज यद्यपि आपका अगन्य चक्र खुल चुका है, आप इसे पार कर चुके हैं. फिर भी, आप आश्चर्यचकित होंगे, लोग अब भी अगन्य चक्र में फं्से हुए हैं। सहजयोग में भी लोग अगन्य चक्र में फंसे हुए हैं तो अन्तर्दर्शन द्वारा हम किस प्रकार उन्हें कष्ट दिए गए। अत; वह समय अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण था जब उन्हें क्रूसारोपित किया गया था, परन्तु उनकी पुर्नजन्म का समय अत्यन्त आनन्दमय, मुंगलमय एवम् अत्यन्त सुन्दर था। ईसा मसीह का पुर्नजन्म सहज योग के लिए अत्यन्त प्रतीकात्मक है। ईसा मसीह का यदि पुनरजन्म हो सकता है तो किसी भी मनुष्य का पुनर्नजन्म हो सकता है क्यांकि सभी शक्तियों सहित उन्होंने मानव रूप में अवतरित होकर हमारे पुनर्जन्म के लिए मार्ग बनाया। घुनर्जन्म के इसी मार्ग का अनुसरण हमने सहजयोग में किया है। परन्तु अगन्य चक्र का भेदन कठिनतम कार्य है इसका वर्णत सभी धर्मग्रन्थों में किया गया है कि यह सुनहरी द्वार है, यह एक आवरणसम है और इतना संकीर्ण है कि कोई इसे पार नहीं कर सकता। परन्तु ईसा मसीह ने इसे पार किया। ईसा के इस चक्र के भेदन के पश्चात् हो आपके सहस्रार को खोलता सम्भव हो पया हैं किस प्रकार देखें कि हमारे साथ क्या घटित होता है? उदाहरणार्थ सहजयोग में आकर लोग सोचते हैं कि वे कार्यभारी बन गए हैं। इस चीज के अधिकारी, सहजयोगियों के अधिकारी, आप इस प्रकार से व्यवहार करने लगते हैं जो सहजयागियों को लिए शोभनीय नहीं होता। सहजयोगियों को ऐसा च्यवहार शोधा नहीं देता। किस प्रकार वे स्वयं को थोपने लगत हैं. आडम्बर करने लगते हैं और स्वयं को अधिकारी दर्शाने लगते हैं देखकर मुझे हसी आतो हैं। यह आधुनिक प्रवृत्ति नहीं है । मानव में यह प्रवृत्ति सदा से थी परन्तु यह सहजयोग से पूर्व थी सहजयोग में आने के पश्चात् भी स्वयं को अधिकारी बताकर लोग दूसरे लोगों पर रौब झाड़ते हैं। सहजयोग इतना साधारण नहीं है जितना आप सोचते हैं, इसमें बहुत से प्रलोभन हैं मान लो किसी को अगुआ बना दिया जाए तो वह स्वयं को अधिकारी मान लेता है और उसे अधिकार का नशा चढ़ जाता है। एसा होने पर वह बाकी लोगों पर प्रभुत्व जमाने लगता है और आडम्बर करता है कि वह क्योंकि आज्ञा को खोले बिना सहस्रार तक पहुंचा ही नहीं जा सकता। परन्तु आपका यह चक्र अत्यन्त सुगमता से खुल गया क्योंकि आपके स्थान पर सारे अत्याचार, सारे कष्ट ईसा मसीह ने झेल लिए थे उनके प्रति हमें कितना कृतज्ञ होना चाहिए? उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए चैतन्य लहरी खंड : x अक : 9 10 1998 ho 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-6.txt लेता है और आपको भी इसी प्रेम के माध्यम से आप सहजयोग को समझते हैं। मनुष्य को ्रेम एवम् करूणा के अतिरिक्त किसी अन्य चीज की आवश्यकता नहीं है, केवल पवित्र प्रेम एवम् करुणा की आवंश्यकता है। ईसा मसीह को देखें, जिन लोगों ने उन्हें क्रूसारोपित किया उन पर भी उन्हें दया आईं। अपने पिता सर्वशक्तिमान परमात्मा से उन्होंने प्रार्थना की कि 'कृपा करके इन्हें क्षमा कर दीजिए क्योंकि ये नहों जानते कि ये क्या कर रहे हैं। इन लोगों को अज्ञानता को वे समझ कोई महान चीज है और उसे अन्य लोगों पर रौब जमाने का अधिकार है। एकमय पूर्ण वातावरण का वह सृजन करता है। सर्वप्रथम, मैंने देखा है. ऐसे लोग झूठ से कहने लगते हैं कि श्रीमाता जी ने ऐसा कहा है, यह श्रीमाता जी के विचार हैं। ऐसे व्यक्ति से मुझे कुछ नहीं लेना देना। परन्तु वह ऐसा कहे चला जाता है और लोग उससे घबरा जाते हैं। यह कहकर भी वह आपको भयभीत कर सकता है, मैं श्रीमाता जी को बताऊंगा वे मरी बात को सुनेंगी और तुम्हें दण्ड दगी। ऐसे लोगों पर मुझे कभी कभी बहुत आश्चर्य होता है क्योांकि मेंने कभी नहीं कहा कि मैं किसी को दण्ड दूंगी या सहजयोग से निकाल दूंगी। ऐसा कभी नहीं कहा। स्वयं को अगुआ समझ कर इस प्रकार की मुर्खता पूर्ण बातें जो भी व्यक्ति करता है मानों उसे ही बुलन्दियों तक उन्नत होने के लिए विशेष रूप से चुना गया है। ऐसे लोगों के विषय में जब में सुनती हैं तो मुझे बहुत आश्चर्य होता है कि ा। पाए और जान गए कि वे दुष्कार्य कर रहे हैं और परमात्मा, परमपिता जोकि अत्यन्त प्रचण्ड है, नाराज होकर इन्हें नुष्ट कर देंगे बिना सोचे अत्यन्त करुणा की भावना से उन्होंने ऐसा किया। यह भी न सोचा कि ये लोग मेरे साथ अनिष्ट कर रहे हैं। उनके हित की भावना से वे चिन्तित हो उठे। अतः उन्होंने परमात्मा से, परमपिता से प्रार्थना की कृपा करके इन्हें क्षमा कर दीजिए क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं? ये चक्षुविहीन हैं । कृपा करके इन्हें दण्ड मत दीजिए। कितनी किस प्रकार हर समय लोग ऐसा आचरण कर सकते हैं ! विनम्रता सहजयोग में पहली चीज है। कोई व्यक्ति यदि दूसरों को आज्ञा देता है, हिटलर की तरह से बातचीत करता है. चीजों को काबू करके अधिकारी बनने का प्रयल्न करता है तो ये सब आचरण दर्शाते हैं कि सहजयोग में उसने कुछ प्राप्त नहीं किया। विनम्रता का आनन्द लेना प्रथम चौज है। मैंने ऐसे लोगों को देखा है । वे सदैव पहली पक्ति में बैठेंगे, ऐसी जगह पर वे बैठेंगे जहां हर समय मेरी दृष्टि उन भर देती हूँ। मैं जानती हैं कि वे आडम्बर मात्र हैं। वे स्वयं को सर्वोच्च मान लेते हैं और इसी कारण हर समय वहां बने रहते हैं। परन्तु वे अभाव में वे इस प्रकार के कार्य करते हैं और अपना प्रभुत्व जमाने का प्रयत्न करते हैं। जो लोग विनम्र हैं, सहज हैं, े महान करुणा है! कितना महान प्रेम! मेरे कहने का अभिप्राय है कि इसके विषय में सोरचें हमारे जीवन में यदि कोई हमारा अहित करता है, हमें कष्ट देता है तो क्या हम ऐसे चक्षु विहोन लोगों के कुकृत्यों के लिए परमात्मा से क्षमा करने की प्रार्थना करते हैं? सहजयोगी का यही स्तर होना चाहिए। आप यदि परमात्मा से क्षमा प्रार्थना करेंगे तो वह स्वीकार्य होगी परमात्मा उन लोगों की देखभाल करेंगे, उन्हें परिवर्तिंत करेंगे और उन्हें विवेक प्रदान करेंगे। ईसामसीह का सन्देश प्रेम से. शुद्ध परिपूर्ण है । जिस प्रकार उन्होंने मेरीमतालनी नामक वेश्या की पर पड़ती रहे। मैं मुस्करा प्रेम से अपनी हानि कर रहे हैं। आन्तरिक प्रसन्नता के रक्षा करने का प्रयत्न किया वह इसका उदाहरण है। मेरीमतालनी अपराधमय जीवन व्यतीत कर रही थी और एक सन्त का उससे कुछ भी लेना देना न था। परन्तु जब ईसा मसीह ने देखा कि लाग उसे पत्थर मार रहे हैं तो वह ढाल की तरह से उसके आगे इमानदार हैं और वास्तव में सत्य को खोज रहे हैं उन लोगों को ये सताते रहते हैं। ऐसा व्यक्ति साधकों को सताता है। अपने को बहुत बड़ा दर्शाकर अन्य लोगों को अपना गुलाम बनाने का खड़े हो गए, एक पत्थर अपने हाथ में उठाया और कहा,"ठीक है, जिन लोगों ने कभी कोई अपराध नहीं किया, कोई गलत कार्य नहीं किया वे मुझे पत्थर मारें।" और कोई भी आगे न बढ़ा क्योंकि सबको अपने अन्दर झांकना पड़ा। किसी पर जब हम प्रभुत्व जमाते हैं तो हमारे अन्दर एक प्रकार का क्रूर आनन्द भाव होता है, एक ऐसा आनन्द भाव जो मैं नहीं समझ पाती! परन्तु लोगों में यह भाव है । वे आडम्बर करते हैं कि उन्होंने प्रयत्न करता है। मैंने लोगों को उस हृद तक जाते देखा है कि कुछ व्यक्तियों का एक समूह अपने अगुआ टस से मसं न होता था और ऐसे विवेक शून्य व्यक्ति की चापलूसी करते रहने के लिए पूर्ण प्रयत्नशील रहता था। सर्वप्रथम, आप जानते हैं, यह ( सहजयोग) मां का प्रेम है, मां कभी रौब नहीं जमाती। वह प्रभुत्च जमा ही नहीं सकती क्योंकि वह तो प्रेम के अतिरिक्त कुछ है ही नहीं। कहीं भी यदि वह समस्या देखती है तो तुरन्त इसे सोख लेती है। अपनी चिन्ता दर्शाने के लिए कभी कभी उसे नाटक करना पड़ता की आज्ञा के बिना यह आनन्द प्राप्त कर लिया है, उन्होंने ये महान शक्ति पा ली है। सदियों से बड़े-बड़े राजाओं तथा तानाशाह शासकों ने ऐसा ही किया है। परन्तु सहजयोगियों का व्यवहार इसके बिल्कुल विपरीत होना चाहिए। उन्हें चाहिए कि प्रेम एवम् शान्ति से पूरे विश्व पर शासन करें। किसी भी प्रकार से उन्हें आडम्बर नहीं है कि वो नाराज है परन्तु मूलरूप में वो कभी किसी से नाराज नहीं हो सकती। उनसे हर समय केवल प्रेम ही प्रवाहित होता रहता है। वही प्रेम उन्हें भी आच्छादित कर करना चाहिए। इसी प्रकार सहजयोग तीव्र गति से फैलेगा। जरा चैतन्य लहरी । खंड : X अंक : 9, 10 1998 5 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-7.txt वे वर्षा को रोक न पाए। अत: वे बहुत क्रोध में थे। पत्थर पर बैठे हुए क्रोध से वे कांप रहे थे बिना कुछ कहे में उनकी गुफा में चली गई और जो स्थान मेरे लिए उन्होंने बनाया था सोचें कि विश्व को आपकी आवश्यकता क्यों है? क्योंकि इसे प्रेम चाहिए, स्नेह चाहिए। जो लोग जीवन के अन्धकार में खो गए हैं और अब भी अन्य लोगों को कष्ट दे रहे हैं, उन्हें परेशान कर रहे हैं वे सामूहिकता विरोधी कार्य कर रहे हैं। हमें सहजता की ओर वापिस आना होगा यह असहज व्यवहार है, मेरी समझ नहीं में नहीं आता कि लोग क्यों पागलों की तरह से उस पर जाकर बैठ गई। तब उन्हें लाया गया। मेरे सामने वे बैठ गए परन्तु अभी तक भी वे क्रोध में थे। वे समझ ने सके थे कि बारिश को वे क्यों न रोक पाए। उन्होंने मुझसे पूछा, आपने मुझे वर्षा क्यों नहीं रोकने दी। आप मुझे मिलने आ रहीं थीं तो आचरण करते हैं। ऐसे व्यक्ति को यह बताना भी बहुत कठिन वर्षा को सद्व्यवहार करना चाहिए था। मैं भी वर्षा न रोक सका। तो बताइए कि इसका क्या कारण था। मुस्करा कर मैंने कहा कि तुम एक सन्यासी हो, त्यागी हो और मैं तुम्हारी मां हूं। तुम मेरे लिए एक बहुत अच्छी साड़ी खरीदकर लाए थे जिसे मैं अपने सन्यासी बेटे से ले नहीं सकती थी। उस साडी को स्वीकार करने के लिए मुझे बारिश में भीगना पड़ा। प्रेम से यह हे कि वह पागल है और शक्ति से उन्मत उस व्यक्ति के साथ रहना भी कठिन कार्य है। कुछ सहजयोगी जो सोचने लगते हैं कि उनमें बहुत सी शक्तियां हैं, जो चाहें कर सकते हैं, किसी से भी बातचीत कर सकते हैं. वे सबको भ्रमित करते हैं। परन्तु सहजयोग में हमें किसी को भरमित नहीं करना। आपको स्पष्ट रूप से अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करनी है, परन्तु यह किसी विशेष प्रकार की चेष्टा है और न ही कोई विशेष घटना है। यह तो परस्पर आन्तरिक एकाकारिता है। कभी कभी तो मैं सहजयोगियों में अत्याधिक पारस्परिक सूझबूझ, पारस्परिक प्रेम देखती हैं। अत्यन्त सुन्दर रूप से एकदूसरे के प्रेम का आनन्द लेते हैं। ऐसा तक ले लेना चाहते हैं! देखकर मुझे अत्यन्त प्रसन्नता होती है मैं आनन्द से भर जाती हूँ। मैं चाहती हूँ कि आप लोग भी ऐसा ही आनन्द लें। आप हैरान होंगे कि दूसरों को प्रेम करना सबसे अधिक आनन्ददायी कार्य है। चाहे वे आपसे प्रेम न करे परन्तु उन्हें प्रेम करके आपको बहुत आनन्द प्राप्त होगा। आत्माभिव्यक्ति करना और ले लेना चाहते थे। सन्त ज्ञानेश्वर सा महान व्यक्ति, महान दूसरों को प्रसन्न करने का विवेक भी एक कला है। मैं पहले भी एक सन्त की कहानी सुना चुकी हूँ। ये सन्त गगनबाबड़ा अपनी गुफा को बन्द करके वहीं मृत्यु की गोद में सो गया। बात बताने पर वह पिघल गया। कहने लगा कि इतना प्रेम तो केवल मां ही दे सकती है। हम तो इन पापी लोगों की सहायता करने के लिए नहीं रह सकते उनसे बचने के लिए समाधि आज विश्व के साथ यही समस्या है और यही कारण कि विश्व में बहुत कम आध्यात्मिक लोग हैं क्योंकि उन्हें सताया जाता है कष्ट दिए जाते हैं और अपमानित किया जा सकता है। अत: संघर्ष करते हुए सन्त लोग बहुत शीघ्र समाधि लेखक, महान कवि 21 वर्ष की आयु में समाधि में चला गया, अवश्य आसपास के अज्ञानी लोगों से तंग आ गया होंगा। तो सन्त ज्ञानेश्वर सम महान व्यक्ति जो कार्तिकेय का अवतरण थे नामक पहाड़ी पर रहता था । वह चल भी न पाता था क्योंकि अत्याधिक चैतन्य लहरियों के कारण उसकी टांगों की शक्ति वो भी सांसारिक लोगों के अत्याचारों को सहन न कर सके। समाप्त हो गई थी। शेर पर बैठकर वह सब जगह जाता था। शेर कहा गया कि 'तुम एक सन्यासी के पुत्र हो' अत: नाजायज उसे प्रेम करता था और वह शेर को। बम्बई के लोगों को सदैव वह बताया करता था कि आप लोगे क्या कर रहे हो? मां आई हैं जाकर उनके चरण स्पर्श करो। में समझ न पाई कि वह इतना चिन्तित क्यों था। मैंने सहजयोगियों को कहा कि मुझे थे उनके भाई बहनें सभी महान विद्वान महान सन्त और महान जाकर उस सन्त से मिलना चाहिए क्योंकि ये गुरु अपने तकिए को नहीं छोड़ते। तकिए पर रहने का अर्थ यह है कि जहां भी उनसे आज्ञा लेकर वे गुफा में चले गए और समाधि ले ली। सन्तान हो। इस कारण उन्हें इतना सताया गया कि उनके पास जूते तक न थे नंगे पांव वे भारत की तपी हुई पृथ्वी पर चलते अवतरण थे। उन्हें भी घोर यातनाएं दी गई। बड़ी शान्तिपूर्वक ईसा मसीह को भी जब क्रूसारोपित किया गया तो वे ये रहते हैं वहां से चलकर कहीं नहीं जाते। मेरे साथ यह बिल्कुल उलट है। मैं कभी किसी एक स्थान पर जमकर नहीं अति युवा थे वे केवल 33 वर्ष के थे परमात्मा ने उनके रहती। तो जब उन्होंने पूछा कि आप जा सकेंगी मैंने कहा क्यों क्रूसारोपण की योजना अगन्य चक्र को खोलने के लिए बनाई नहीं। जब मैं वहां जाने लगी तो सहजयोगियों ने पूकछा, थ श्रीमाताजी आप किसी के पास नहीं जाती तो यहां क्यों जा रही लाने के लिए था। क्रूसारोपित करने वाले लोगों ने जो दुराचरण हैं? मैंने कहा, ठीक है चैतन्य लहरियां देखो। कितनी तेज चैतन्य उनसे किया उससे स्पष्ट है कि वे असुर थे। यद्यपि ईसाने उन्हें लहरिया हैं! ये सन्त वर्षा पर प्रभुत्व के कारण मशहूर थे। में जब वहां पहुंची तो वे क्रोध से भरे हुए बैठे थे क्योंकि उस दिम ऐसे लोगों को क्षमा कर पाना बहुत ही कठिन है । यही कारण जोर से वर्षा हो रही थी जिससे मैं पूरी तरह भीग गई थी, परन्तु थी। उनका बलिदान, भयानक कष्टों का झेलना सहजयोग को क्षमा करने के लिए कहा परन्तु ऐसा कर पाना संभव नहीं है। है कि उन जैसे व्यक्ति ने भी सोचा कि अगन्य चक्र को खोलने 6. चैतन्य लहरी खंड : x अंक : 9, 10 1998 9. 10 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-8.txt ईसाई बना दिया। ये लोग क्योंकि अनपढ़ थे तो इनसे कोई प्रश्न करने की योग्यता इनमें न थी। अत: ईसाई धर्म प्रचारकों का अनुसरण करने के लिए ये बहुत उपयुक्त थे। इस प्रकार उन्होंने अपनी जाति बनाई और धर्म आरम्भ किया। समझने की बात यह है कि लोगों के रौबीले स्वभाव ने किसी धर्म विशेष को किस प्रकार स्वीकार किया। क्योंकि वह धर्म तो विनम्रता के के अपने कार्य को करके इन मूर्ख लोगों के साथ मुझे रहना नहीं चाहिए। अपने पुनर्जन्म के पश्चात् वे कश्मीर में अज्ञातवास में चले गए। उनके पुनर्जन्म और उत्थान की बहुत सी कहानियां हैं जिन्हें पढ़कर आप आश्चर्यचकित होंगे कि कितने चमत्कारिक ढंग से उन्होंने अपना पुनर्जन्म प्राप्त किया और द्विज होकर कश्मीर में रहे। कश्मीर में अपनी मां के साथ कूछ समय तक वे प्रसन्नतापूर्वक रहे और फिर समाधि ले ली। कहा जाता है कि भगवान ईसा मसीह और उनकी मां की कब्र वहां पर है। अतिरिक्त कुछ भी नहीं। तो ईसाई धर्म के अधिकारी कहलाने वाले लोगों ने किस प्रकार अन्य धर्मों के लोगों को परिवर्तित किया! ये मानव स्वभाव सभी प्रकार की मूर्खता क्रूरता एवम् दमन आदि का आनन्द ले सकता है। अपने प्रभुत्व वाले क्षेत्र को, साम्राज्य को यह छोड़ नहीं सकता। ईसाई राष्ट्र इससे भी आगे चले गए हैं, उन्हें सभी प्रकार की स्वच्छन्दता दे दी गई है। कुछ भी करने के लिए वे स्वच्छन्द हैं। आपको स्वच्छन्द होना है तो ईसाई बन जाइये वे सदा से लोगों पर प्रभुत्व जमाते रहे हैं और उनके दबाव में रहने वाले लोग सर्वत्र हैं। सर्वसाधारण, मूल निवासियों के पास जाकर ईसाइयों ने उनका भी धर्म परिवर्तन कर दिया। धर्म परिवर्तन ही उनकी मुख्य विधि थी। इतने लोगों का धर्म परिवर्तन करने की आवश्यकता इसलिए पड़ी कि प्रजातन्त्र में बहुसंख्यकों का ही प्रभुत्व होता है। अत: अपनी संख्या को बढ़ाने के लिए वे धर्म परिवर्तन करते चलें गए। ईसा मसीह की पूर्ण स्थिति मुझे अधीर करती है। आज आप सब लोग सहजयोगी हैं, अन्य लोगों से बहुत उच्च है और आपमें सभी शक्तियां हैं। मान लो आप भी ईसाइयों की तरह से परन्तु उनकी मृत्यु से किसको लाभ हुआ? वास्तव में वे कौन लोग थे जो उनकी मृत्यु चाहते थे आप जानते हैं कि ईसामसीह की मृत्यु के पश्चात पाल और पीटर जैसे लोग आगे आए और इसका व्यापार बनाने का प्रयत्न किया। अत्यन्त खेद की बात है कि उन्होंने यह लज्जा जनक कार्य किया । यह पाल केवल एक आयोजक था, मात्र एक पदाधिकारी। परन्तु उसे उच्च पद की वहुत लालसा थी। इसलिए उसने झूठ बोला और कहा कि उसने ईसा के विशाल क्रूस को देखा है। सहजयोग के अनुसार यहां सब पराचेतना के चिन्ह हैं. आध्यात्मिकता के नहीं। वापस आकर उसने अपने शोध आदि आरम्भ कर दिए और बहुत कुछ लिखा। परन्तु यदि आप उसे ध्यान से पढ़ें तो आप जान जाएंगे कि वह सहजयोगी नहीं था। वह मात्र एक आयोजक था. एक पदाधिकारी था। जो यह लिख रहा था कि किस प्रकार कार्य किया जाए। भिन्न प्रकार के लोगों को किस प्रकार चलाया जाए। अत: वह ईसाइयों के लिए प्रबंध विभाग था। इस प्रकार ईसाई लोग अत्यन्त सचिवों की तरह से बन गए। हर चीज का व्यवहार करना चाहें तो मैं नहीं जानती कि मैं क्या करूंगी। अब एक समय है। आपको ऐसे आना चाहिए, ऐसे बैठना चाहिए. आप उस स्थिति में हैं जहां भिन्न देशों और लोगों द्वारा इस प्रकार बात करनी चाहिए और सभी ईसाई राष्ट्र इन आदेशों सहजयोग को स्वीकार किया जा रहा है और सहजयोगियों का सम्मान होने लगा है। उन्हें उच्च पद दिए जा रहे हैं । अचानक क्यों हर चीज में वे इतने अधिकारिक हैं! ईसा ने कहा था कि यदि आप भी शक्ति लोलुप हो जाएं और निरंकुश होने का प्रयत्न करें तो यह दिव्यता न होगी। ऐसा करना मानवीय स्वभाव है। पशुओं के साम्राज्य में पशु एक दूसरे के प्रति आक्रामक होते हैं। पशुओं का ऐसा आचरण ठीक हैं, उन्हें इसकी आज्ञा है। परन्तु जिस प्रकार वे दूसरे पशुओं पर प्रभुत्व जमाते हैं उसकी भी एक मर्यादा है। ऐसा नहीं है कि बे किसी का पालन अधिकारिक रूप से कर रहे हैं। समझ नहीं आता अपने आज्ञा चक्र को खोलो परन्तु उनके कथन के विपरीत ईसाई लोग इस पर आघात पहुंचा रहे हैं और विश्व भर में अत्यन्त अहम्बादी तथा आक्रामक हैं। किसी भी भूमि पर कब्जा कर लेना, वहां पर अपना कानून चलाना, अपना शासन जमाना उन्होंने अपना अधिकार माना। भारत में भी उन्होंने ऐसा ही किया। मैं जानती हुै कि आज भी पंजाब जैसे राज्य में आपको मूर्खो की तरह से घोर परिश्रम करते हुए लोग मिल सकते हैं। वे शासकों के दबाव में ऐसा कर रहे हैं और शासक पर भी आक्रमण कर दें। परन्तु सहजयोग में मैंने देखा है कि किसी को यदि अगुआ बना दिया गया तो वह सभी के सिर पर सवार हो जाता है। यदि उनको अगुआ नहीं बनाया गया तो वे एक के बाद एक पत्र मुझे लिखते हैं कि हम अगुआ बनना चाहते हैं। इस प्रकार हर समय वे मुझ पर दबाव डालते रहते हैं। क्यों आप अगुआ बनना चाहते हैं। लोगों पर रौब डालने के लिए। रौब डालना सहजयोग में वर्जित है। आज में यहां पर आपको ईसा मसीह के सुन्दर स्वरूप के विषय में बताने के लिए आई हूँ। वे मृत्यु इन लोगों का पूरा लाभ उठाना चाहते हैं। ईसाइयों का इस प्रकार का व्यवहार अत्यन्त हास्यास्प्रद था। फिर उन्होंने एक और धूर्तता चालू कर दी। धर्म परिवर्तन करके वे लोगों को ईसाई बनाने लगे। धर्मान्धता के चक्कर में फंसाकर उन्हें विश्वस्त कर दिया कि अब उनका हिन्दु या किसी अन्य धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं और इस प्रकार हजारों गरीब और पिछड़े हुए लोगों को से ऊपर उठे इसी चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 9, 10 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-9.txt लिखा गया है। अब जैसा कि हम निर्विचार समाधि में जानते हैं। कि हमें अपने जीवन के माध्यम से इस प्रकाश की अभिव्यक्ति करनी है और विश्व को दर्शाना है कि हम बिल्कुल भिन्न प्रकार के लोग हैं और पूर्णतः अपने अन्तः स्थित हैं। किसी अन्य से हमें कुछ नहीं चाहिए। जो उपलब्धि हमने प्राप्त की है वह हम अन्य लोगों को देना चाहते हैं इसलिए लोग आप सभी सहजयोगियों की ओर देख रहे हैं । प्रकार सभी मूर्खतापूर्ण विचारों, नकारात्मक आदर्शों आदि पर भी काबू पाया जाना चाहिए। आपको स्वयं का स्वामी बनना होगा और उसी स्थिति में सुखी एवम् प्रसन्न रहेना होगा। दूसरों को देना, उनसे लेने की अपेक्षा, आपको सुगम प्रतीत होंगा। आश्चर्य की बात है कि किस प्रकार सहजयोग ने इन सब चीजों पर विजय प्राप्त की है। सहजयोग में लोगों को कहना मा होगा कि बे अत्यन्त अद्भुत, सुन्दर प्रेममय तथा अत्यन्त करुणामय है। उन्हीं के मुँह से मैं सुनना चाहती हूं कि आप सब व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से अत्यन्त महान है। परन्तु यह परमात्मा आपको धन्य करें। ईसा मसीह के विषय में सोचते हुए अगन्य चक्र की बात करना अत्यन्त कठिन कार्य है। अत्यन्त खेदजनक बात है कि लोगों ने इतने महान महानता प्रभुत्व जमाने से या आडम्बर करने से नहीं आई। इसका उद्गम आपके अन्दर से है। लोग आपको देखकर कहें कि ये महान लोग हैं। इस प्रकार सहजयोग फैलेगा। आपके पुरूष, इतने दिव्य व्यक्तित्व को कभी न समझा। इसके बावजूद भी इन सारे कष्टों को झेलने का नाटक उन्होंने किया। जिस प्रकार उन्होंने स्वयं को क्रूसारोपित करवाया और मृत्यु को प्राप्त अन्तः स्थित ईसामसीह को जागृत होना होगा और आपका पथ प्र्दशन करना होगा आपके अन्तः स्थित ईसामसीह आपको शिक्षा देंगे कि किस प्रकार आपने अन्य लोगों से व्यवहार करना हुए यह याद रखना भी अत्यन्त कष्टदायी है। परन्तु मुख्य बात यह है कि उन्होंने आप सब लोगों के लिए यह सब सहन किया और आप उनके ऋणी हैं उनके कार्य से कुण्डलिनी जागृति और सहस्रार भेदन में सहायता मिली। ईसामसीह के बलिदान के बिना यह सब असंभव होता। आप सब लोगों से भी कुछ बलिदान की अपेक्षा की जाती है। इतनी प्रतीकात्मक घटना घटी है। किस प्रकार उनका विश्वास जीतना है और अपने हृदय से प्रवाहित होने वाले प्रेम एवम् शान्ति किस प्रकार आपने उन्हें देनी है, ताकि वे भी अत्यन्त प्रसन्न एवम् आनन्दमय बन सकें। पुनर्उत्थान का यही सन्देश है, सहस्रार भेदन का यही सन्देश है। यह अंडा जिसका वर्णन, आश्चर्य की बात हैं, स्पष्ट रूप से देवी महात्मा में किया गया है किस प्रकार उत्पन्न हुआ और दो भागों में टूटा! अंडे के एक भाग से ईसा मसीह प्रकट हुए और दूसरे से श्रीगणेश। यह सब लिखा हुआ है। परन्तु ईसामसीह का वर्णन महाविष्णु के रूप में किया गया है । तो अवतरित होकर ये महाविष्णु सभी सद्कार्य करते हैं । यह वास्तविक सन्देश है जो ईसा मसीह के जीवन द्वारा सुन्दरतापूर्वक है। मानवता के उत्थान के लिए आप सब लोगों को भी हर संभव बलिदान के लिए तैयार रहना चाहिए। यह बात इस क्षण अतिसूक्ष्म है। अपनी जिज्ञासा और हर चीज कों भूलकर अपको मात्र इतना याद रखना है कि ईसा के बलिदान ने आपकी रक्षा की और उसी के द्वारा आपको आश्शीवाद प्राप्त हो रहे हैं ऐसा करना अति आवश्यक है। परमात्मा आपको धन्य करें। चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 9. 10 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-10.txt श्रीमाताजी आप शान्तिद्वत हैं। न्तदूत अयातुल्ला रूहानी का भाषण : रायल अलबर्ट हाल ग 03.07.1997 कार ा इस प्रकार स्वत: आत्मसाक्षात्कार का अनुभव, जिसकी अभिव्यक्ति माताजी श्री निर्मला देवी ने की है, और सहजयोग. जिसकी वे शिक्षा देती हैं, दोनों इस्लाम के सिद्धान्तों के पूर्णतः अनुरूप हैं। श्रीमाताजी के इस दैवी सन्देश के कारण ही आज सांय में आपसे बात करने का इच्छुक था। ुता पीर-पैगम्बरों (Homosapiens) द्वारा छोड़े गए प्रमाणों पर यदि हम ध्यान दें तो हम देख सकते हैं कि मानव को सदैव एक पराशक्ति (Supereme being) के अस्तित्व का ज्ञान था। यह शक्ति हर चीज की और सभी प्राणियों की स्वामी है। सभी उपलब्ध साधनों द्वारा हर युग के मानव ने परमात्मा के ये सब कहते हुए मुस्लिम देशों में आज महिलाओं की स्थिति पर बातचीत करते हुए मैं अपनी वार्ता को समाप्त प्रति अपने गहन सम्मान की भावना को प्रकट करने तथा अपने सृष्टा के प्रति सभी वाछित कर्म करने का प्रयत्न किया। यही कारण है कि इस्लाम ने सदैव परमात्मा से सीधे सम्पर्क बनाने की संभावना पर बल दिया। बुतप्रस्तों ने भी परमात्मा के अस्तित्व को कभी नहीं नकारा। परन्तु मूर्तियों तथा प्रतिभाओ को परमात्मा के स्थान पर रख दिया। यह आज भी करूगा। आप जानते हैं कि इस्लाम की परम्परा में महिलाओं के पद की मां के रूप में बहुत स्तुति की गई है। पैगम्बर मोहम्मद ने तो यहां तक कहा,"अपनी मां के चरणों में हम जन्नत अनुभव करते हैं ।" पत्नी रूप में भी, इस्लाम न केवल स्त्री को अपना पति चुनने का अधिकार देता है बल्कि पैगम्बर साहब के विख्यात शब्दों में उसे श्रद्धांजलि अर्पित करता है। पैगम्बर साहब ने कहा"आपमें से सबसे अच्छा व्यक्ति वही है जो अपनी पत्नी से अच्छा व्यवहार करता है।" तथा फिर, "स्त्रियां घटित हो रहा है। इस सब के बीच हम एक सच्चे पैगम्बर और उसके उद्देश्य को किस प्रकार पहचान सकते हैं? पैगम्बरों का उद्देश्य 'परमात्मा की इच्छा' (The will of बाम God) को प्रकट करना तथा धर्म की हमारे जीवन के अनुभव पर आधारित तर्क संगत एवम् अनुभव गम्य व्याख्या करना है। सच्चे एकश्वरवाद सृष्टि की अडोल एकाकारिता अर्थात् परमात्मा और मानव का हमारे पास परमात्मा द्वारा भेजी जाती हैं, और उनकी रक्षा का - परमात्मा में विश्वास का अर्थ है सारी उत्तरदायित्व पुरुषों पर है।" अत: महिलाओं को उनकी जिम्मेदारियों तथा उनके संवैधानिक तथा नागरिक अधिकारों में पुरुष के अटूट सम्बन्ध। इस प्रकार एकेश्वरवाद ( अद्वैतवाद) मानव और परमात्मा के बीच में खड़े हो जाने वाले बुतों और रूपों की सारहीनता प्रमाणित करता है। अत: पैगम्बरों का लक्ष्य मानव को ठीक मार्ग पर लाना है और इसके लिए उन्होंने दो मुस्लिम देशों में भी इसका सम्मान नहीं किया गया। श्रीमाता जी समान माना गया है। आज, दुर्भाग्यवश, हमने देखा है कि कुरान की इस महान अन्तरदृष्टि को लोगों ने नहीं समझा। इसी कारण बहुत से न आपके साहस, सद्भाव, पावित्र्य, पांच महाद्वीपों में अथक यात्राओं के कारण आपको विश्व में शान्तिदूत माना जाना न्यायोचित है। से समानान्तर तथा सम्पूरक मार्ग अपनाएं: 1. धर्म एवम् दर्शन पर आधारित ज्ञान का मार्ग 2. आत्मज्ञान या आत्मसाक्षात्कार का मार्ग आपका अनुकरणीय जीवन मुस्लिम महिलाओओं के लिए आपको उत्कृष्ट प्रतीक तथा आदर्श बनाता है। अल्लाह करे कि उनकी न्याय की खोज गरिमापूर्वक, सच्चे आध्यात्मिक जीवन यही कारण है कि हमें अपने धर्मग्रन्थ कुरान में ज्ञान परिपूर्ण प्रवचन मिलते हैं जो परमात्मा के ज्ञान प्राप्ति के मार्ग की ओर इशारा करते हैं । इस सन्देश को जीवन में उतारने का ठोस मार्ग इस युग में श्रीमाताज़ी निर्मलादेवी ने प्रदान किया है । इस सत्य की पुष्टि करने के लिए, आपकी आज्ञा से, पैगम्बर मोहम्मद के शब्दों को मैं कहना चाहूँगा उन्होंने कहा "परमात्मा मानव की अपनी धरमनियों से भी अधिक उसके समीप है।' पैगम्बर मोहम्मद कहते हैं" आत्मा का ज्ञान प्राप्त होने का आनन्द प्राप्त करने की इच्छा, सच्चे इस्लाम के आध्यात्मिक सिद्धान्तों में पूर्णता प्राप्त करे। धर्म के नाम पर महिलाओं पर जो अन्याय हो रहे हैं, इससे उनका अन्त सम्भव हो सकेगा। श्रीमाताजी ने विश्व भर के मुस्लिम देशों, विशेषकर अफगानिस्तान, ईरान और तुर्की में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के स्वप्न एवम् लक्ष्य को लेकर आपके तथा यहां उपस्थित अन्य सभी लोगों के सम्मुख आज सांय यह संक्षिप्त भाषण दिया है। मेहदी रूहानी पर मानव स्वयं को पहचानने लगेगा और अन्ततः परमात्मा का ज्ञान प्राप्त कर लेगा।" "अपने आन्तरिक शुद्धिकरण से व्यक्ति जान जाता है कि वह आत्मा है। कि चैतन्य लहरी ॥ खंड : X अंक : 9, 10 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-11.txt भविष्य हमारे हाथ में है क क्लेस नोबेल का भाषण रायल अलबट हाल, लन्दन 03-07-1997 नि:सन्देह जीवन आश्चर्यों से परिपूर्ण है। परम पावनी माताजी श्री निर्मला देवी के सन्देश एवम् कार्य से प्रेरित होकर 100 वर्ष पूर्व अलबर्ट नोबेल को नोबेल शान्ति पुरस्कार की स्थापना की। ये पुरस्कार श्रेष्ठता के प्रति रसायन शास्त्र, भौतिक शास्त्र औषध, साहित्य और शान्ति के लिए भी पुरस्कार है। इन सब पुरस्कारों में से शान्ति पुरस्कार को मैं सर्वोत्तम मानता हूँ और आपको बताना चाहता हूँ कि 100 वर्ष पूर्व पैरिस में अल्फेंड नोबेल ने अपनी महिला सचिव की बातें ध्यान से सुनी। उनकी सचिव ने कहा था "डा . नोबेल अपनी विशाल धन सम्पत्ति कों आप संसार की बेहतरी के लिए उपयोग करें। " आज शाम आप एक अन्य महिला को सुन रहे हैं, हम श्रीमाताजी का सन्देश सुन रहे हैं। जो भी हो सर्वप्रथम अपने चाचा से और फिर श्रीमाताजी, जिन्हें आप सुनेंगे मैं बहुत प्रेरित हूँ। अल्फ्रेड नोबेल ने शान्ति के विषय में बहुत कुछ हैं। वे यहां साक्षात् नहीं हैं परन्तु सूक्ष्मरूप हम यहां एकत्र हुए में वे यहां उपस्थित हैं। अभी हमने अयातुल्ला रूहानी का सुन्दर पत्र सुना जिसमें उन्होंने परमपावनी मां के कार्य एवम् सन्देश की भूरि-भूरि प्रशंसा की और विश्व में महिलाओं के महत्व का वर्णन किया। वो भी यहां उपस्थित नहीं हैं और सच बात तो यह है कि 36 घंटे पूर्व में भी न जानता था कि रायल अलबर्ट हाल में मैं श्रोताओं के सम्मुख भाषण दे रहा हूंगा। फिर भी मैं कहता हूं,"प्रिय पावनी माँ, मैं उनके पति सर सी.पी. श्रीवास्तव को भी श्रोताओं के मध्य देख रहा हूँ और महत्वपूर्ण बात तो यह है, प्रिय मित्रों, सत्य साधक साथियों क्या आप यहां है? इस प्रकाश में में केवल बीस लोगों को अपने सम्मुख देख पा रहा हूँ। अत: यदि आप यहां उपस्थित हैं तो ' हाँ' कहें (तालियां)। अब मैं आपको देख पाया और सुन पाया तथा आप मुझे। ये कहने के पश्चात् अब मैं कहना चाहता हूँ कि मेरा एक स्वप्न है इस विश्व के विषय में मेरा एक स्वप्न है, जोकि आज के विश्व से कहीं अच्छा, सुरक्षित एवम् विवेकशील विश्व है। ये एक ऐसा विश्व है जिसमें लोग परस्पर और प्रकृति कहा। वह बहुत भयभीत थे कि उनके द्वारा बनाया गया भयानक विस्फोटक डायनामाइट, जिसका उपयोग बन्दरगाहों और सुरंगों के लिए भूमि साफ करने के लिए किया जाता है. उसका उपयोग युद्ध के लिए भी किया जा सकता है। आज की फौजी प्रणाली में ये डाइनामाइट मात्र एक पटाखे जैसा है। परन्तु उस समय यह अत्यन्त भयानक और विनाशपूर्ण तत्व था । अल्फ्रेड नोबेल ने मूलत: युद्ध न होने को ही शान्ति माना। परन्तु मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि शान्ति इससे कहीं बड़ी चीज है। मैं देखता हूँ कि चार विशेष क्षेत्रों में शान्ति का अस्तित्व है। पहला क्षेत्र है व्यक्त के अन्दर की शान्ति। किस प्रकार हम अपने मस्तिष्क अपनी भावनाओं एवम् मनोवेगों को लेते हैं? किस प्रकार हम अपने शरीर से पेश आते हैं? क्या हम अन्य गुरुओं के दास हैं या स्वयं के स्वामी ? आन्तरिक शान्ति प्राप्त किए बिना हम बाह्य विश्व में कभी शान्ति स्थापित नहीं कर सकते। विश्व शान्ति स्थापित करने के लिए विशाल जनआन्दोलन, अत्यन्त सुरक्षित एवम् सर्वोत्तम मार्ग हैं । इनमें सभी धर्म और दर्शन, सभी उपक्रम (Enterprises), चाहे वह राजनीतिक हो या वैज्ञानिक स्वभाव के, भाग लें ओर महसूस करें कि आन्तरिक शान्ति क्या है। आज सांय हम भी इसी की बात कर रहे हैं। के साथ सुख-शान्ति से रहते हैं। अब ये शब्द बहुत गहन हैं। स्वप्न बहुत बड़ा है। क्या मेरे पास इस स्वप्न से वास्तविकता में जाने का कोई मार्ग है? हां दस छोटे-छोटे शब्दों में मैं आपको बताऊंगा कि किस प्रकार ये शब्द ब्रहमाण्डीय परिवर्तन को इंगित करते हैं । ये शब्द हैं : उचित विचार, उचित शब्द, उचित कार्य, यहां और इसी वक्त! (तालियों की गड़गड़ाहट)। नि:सन्देह 'उचित' शब्द कुंजी है 'उचित' के लिए ये विश्व लड़ रहा है। आपके लिए जो उचित है वह मेरे लिए अनुचित हो सकता है, आदि-आदि। यह अनिश्चित शब्द है। अत: हमें एक संदर्भ बिन्दु की आवश्यकता है ताकि 1. उचित-अनुचित तथा सत्य असत्य में भेद को जान सकें। आज सांय श्रीमाताजी हमें बताएंगी कि उचित क्या है और हमें अपने भाग्य का स्वामी बनने की शक्ति प्रदान करेंगी। आज शाम को सत्य के प्रकाश में प्राप्त आत्मसाक्षात्कार के ज्ञान से हमारा आत्साक्षात्कार। आत्मसाक्षात्कार का अर्थ क्या है? इसका अर्थ है कि हम किसी चीज का अनुभव कर रहे हैं। परन्तु यह आत्म (Selif) क्या है? भाइयों और बहनों हमारे अन्तनिहित पथ-प्रदर्शन होगा और हम सब पूर्ण सत्य एवम् पूर्ण शान्ति को जान जाएंगे। चैतन्य लहरी ॥ खंड : X अंक : 9, 10 1998 10 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-12.txt मां हमें तोड़ देंगी। हम केवल एक जाति (नस्ल) हैं हम नहीं जानते हमारी कितनी नस्लें हैं-पचास लाख, एक करोड़ या एक करोड़ पचास लाख। परन्तु इतना हम अवश्य जानते हैं और हावर्ड विश्वविद्यालय संयुक्त राज्य अमेरिका के चोटी के वैज्ञानिक डा. एडवर्ड ओ विल्सन द्वारा यह प्रमाणित किया जा है कि प्रतिदिन हम दो सौ पचास जातियों को नष्ट कर आत्मा वह दिव्य, ब्रह्माण्डीय शक्ति है जो हम सबमें विद्यमान है। परन्तु विश्व के अधिकतर लोगों में यह सुप्तावस्था में है। प्राचीन काल से आध्यात्मिक लोग इसके विषय में जानते थे और बताते थे। परन्तु यह महान रहस्य जानबूझ कर दबा दिया गया। अत्यन्त कृपा करके इस कठिन समय में श्रीमाताजी पृथ्वी पर अवतरित हुई और अत्यन्त विवेक एवम् साहसपूर्वक इस सुप्त शक्ति, कुण्डलिनी को जागृत करने के लिए सहजयोग स्थापित किया। इस प्रकार जैसा कि बाइबल में कहा गया है 'मैंने तुम्हें अपने रूप में बनाया है ("You are created in my image") (तालियों की गड़गड़ाहट)। हमारे अन्तः स्थित शान्ति की यह पहली श्रेणी थी, पहला वृत्त था। दूसरी शान्ति वह है जो हम लोगों में परस्पर है, समुदाय में, राष्ट्र में, भिन्न जातियों और भिन्न धर्मों में जिससे चुका रहे हैं! यह तो इस प्रकार हुआ मानो हम जानबूझकर जीवन रूपी वस्त्र की एक एक तार को बाहर खींच रहे हैं। प्रकृति मां हमें ऐसा नहीं करते रहने देगीं। वे हमें वैसे ही सुधारेगी जिस प्रकार शरारती बच्चों को सुधारा जाता है। शान्ति का चौथा वृत्त वह शान्ति है जिसे हमें अपने और परमात्मा के मध्य जानना चाहिए। कोई भी धर्म या समूह, यदि सेना बनाकर परमात्मा के नाम पर अपने शत्रुओं को नष्ट करता है तो वह परमात्मा की आज्ञा का पालन नहीं कर रहा। विश्व में हिंसा का नाम भी नहीं होना चाहिए (तालियां) और न ही हम वास्तव में 'चुस्त' श्रोता बन जाते हैं ओर चुस्त श्रोता के रूप में अपने को अन्य लोगों के स्थान पर रख सकते हैं उनके नजरिए से जब हम देखेंगे तो समझ पाएंगे कि वे क्या कहने का प्रयत्न कर रहे हैं हम, तो सदैव बातें ही करते रहते हैं मेरी विश्व को युद्ध का ज्ञान होना चाहिए। शान्ति के इन चारों वृत्तों को, जैसा कि हम सुन चुके हैं, प्रिय पत्नी जो आज रात्रि यहां उपस्थित नहीं है कहती हैं, मैं 'पृथ्वी संहिता' (Earth Ethics) कहता हूँ और आज रात्रि हम परमपूज्य श्री माताजी से सुनेंगे कि किस प्रकार हम सम्पर्क बिन्दु प्राप्त करें। हमारे सम्मुख यदि कोई नीम हकीम या धूर्त तीसरा वृत्त वह है जिसने मुझे मूलतः खींच लिया है। मैं व्यक्ति हो या वास्तविक ईमानदार व्यक्ति हो तो उनमें भेद हम एक यूरोपियन, स्वीडिश व्यापारी हूँ। यहां खड़ा होकर मैं किस प्रकार करें । प्रिय श्रोतागण आप लोग जीवन के भिन्न क्षेत्रों से आए हैं, आप ही की तरह से मैं भी सत्य को खोज रहा हूँ। मुझे सत्य स्पष्ट दिखाई देने लगा है। मैं आपको बता ूँ इसलिए कर रहा हूँ कि मुझमें प्रकृति के प्रति अगाध सम्मान है। कि मैं पृथ्वी पर जीवन को एक स्कूल की तरह से देखता हूँ जिसमें हम पूर्णता और पावनता सीख रहे हैं । पृथ्वी पर सभी कुछ परस्पर निर्भर, परस्पर प्रभावशील एवम् परस्पर सम्बन्धित है तथा पृथ्वी, और मेरे विचार में स्वर्ग में भी हर क्रिया की प्रतिक्रिया है, हर परिणाम का कारण है और हर कारण का कोई प्रभाव। जिस प्रकार मेंने कहा, परम पूज्य श्रीमाताजी महान विकसित आत्मा हैं जिन्होंने इस सब के विषय में जन्म-जन्मान्तरों में ज्ञानार्जन किया है। यह सब नियमों के विषय में है, अदृश्य नियमों, आध्यात्मिक नियमों के विषय में जो सदैव विद्यमान होते हैं और उसी प्रकार बिना किसी त्रुटि के कार्य करते हैं जैसे गुरुत्वाकर्षण का नियम (वे अपनी कलम पृथ्वी की ओर छोड़ देते हैं) । यह नियम सदैव कार्य करता है। सभी अदृश्य नियमों "क्लेस, तुम बहुत अधिक बोलते हो, सुनते नहीं हो।" अब मैंने चुस्ती से सुनना' शुरु कर दिया है। आध्यात्मिकता की भाषा क्यों बोल रहा हूँ और कह रहा हूँ"केवल यही भविष्य की आशा विद्यमान है?" ऐसा में नोबेल शान्ति पुरस्कार विजेता के रूप में जब वे अपने पूरे ज्ञान से सारगर्भित उनके पूरे दर्शन से परिपूर्ण एक मुहावरे का सार तत्व निकालने का प्रयत्न कर रहे थे: उनका मुहावरा था,"जीवन के लिए सम्मान" (Reverence for Life) उन्होंने कहा इस बहुमुखी स्वप्न में प्रकृति जीवन के उदाहरणों के भण्डार के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। प्रिय सत्य साधको, मैं आपको बताता हूँ कि अपनी अज्ञानता, लोभ और सत्ता लोलुपता के कारण हम मानव उस बहुमूल्य चीज को नष्ट करने के लिए चल पड़े हैं जो इस उपग्रह को अद्वितीय बनाती है। वह चीज पृथ्वी पर जीवन (Life on Earth) है। अभी तक इस ब्रह्माण्ड में किसी भी अन्य उपग्रह का के विषय में हमें सीखना है और उन्हें समझना है। पता नहीं चला जिस पर इतने सारे चमत्कार विद्यमान हों। अन्तरिक्ष में पृथ्वी एक नीले रत्न के समान है। केवल एक पृथ्वी है जो कि भंगशील (Fragile) है। अतः हमें इसकी देखभाल करनी होगी और इसका सम्मान करना होगा पृथ्वी को प्रकृति भी कहते हैं। प्रकृति के नियमों को हम तोड़ नहीं सकते। हमें उन नियमों के अनुसार रहना चाहिए नहीं तो पृथ्वी मैं श्रीमाताजी और उनकी शिक्षाओं से अत्यन्त प्रभावित हूँ। बाइबल की बहुत सी अच्छी कहावतों में से एक यह भी है कि"पेड़ को उसके फल से जाचिए|" हाल ही में मैं विश्व के भिन्न भागों में और विश्व के भिन्न भागों से आए हुए सहजी युवा पुरूषों और महिलाओं से मिला। वे सब तेजस्वी चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 9, 10 1998 11 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-13.txt अवलम्बनीय भविष्य' के विषय में बातचीत कर रहे हैं, परन्तु मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि संयुक्त राष्ट्र में अवलम्बनीय बातचीत (Sustainable Dialogue) कहीं अधिक चल रही है। आज रात हम कार्यवाही करेंगे। मानव हैं। आन्तरिक शान्ति और सन्तुलन उनसे फूट पड़ता है। वे अद्वितीय हैं। आपने अनुसरण किया है और कर रहे हैं और, मैं सोचता हूँ, आप उन लोगों में से होंगे जिन्हें स्वयं को पृथ्वी-दूत' कहना चाहिए और आज रात के इस सत्र की समाप्ति के पश्चात् आप सत्य-असत्य में भेद कर पाएंगे तथा महसूस करेंगे कि अन्धविश्वास व्यर्थ है और धर्मान्धता और इसके परिणामवश हिंसा को अपनाना विल्कुल बेकार है। इन कार्यों के परिणामस्वरूप आपको दुख, क्लेश और भयानक युद्ध ति भारत के एक सन्त से मैंने पूछा,"क्या भविष्य के लिए कोई आशा है?" उसने कहा," श्री नोबेल, मैं आपके प्रश्न का उत्तर इस प्रकार दूगा:जब परम पिता परमात्मा ने इस पृथ्वी की सृष्टि की तो वे बहुत प्रसन्न थे। ब्रह्माण्ड उनकी शानदार रचना थी। उन्होंने जश्न मनाने का निर्णय किया तथा सभी देवों और असुरों को निर्मान्त्रित किया। बहुत अच्छी शराब शानदार खाना और अमृत उन्हें पेश किए गए। साथ ही परमात्मा ने कहा,"इस भोज का आनन्द लेते हुए आप लोगों को एक नियम का कड़ाई से पालन करना होगा। वह नियम यह है कि यहां पर आप अपनी कोहनियां नहीं मोड़ेंगे। इस बात से असुर चिल्ला पड़े कि हम ऐसे भोज में सम्मिलित नहीं होंगे। बिना कोहनियां मोड़े हम किस प्रकार आनन्द ले सकते हैं? अत: वे चले गए। भोज का सामना करना होगा। बहनों और भाइयो, मैं जानता हूँ कि भविष्य हमारे हाथ में है, मैं जानता हूँ कि भविष्य आपके हाथ में है। मैं जानता हूँ कि यह मेरे हाथों में है और यह भी जानता हूँ कि इस उपग्रह का भविष्य लोगों के हृदय में विद्यमान है। अब एक भारतीय कथा सुनाकर में अपना भाषण समाप्त करूंगा।1992 के रियो सम्मेलन में भाग लेते हुए मैंने यह कथा सुनी । स्टाकहोम सम्मेलन की यह बीसवीं वर्षगांठ थी जिसमें पहली बार पर्यावरण को विश्व की समस्याओं में रखा गया। वर्ष 1972 में स्टाकहोम सम्मेलन में दो राष्ट्रों के मुखिया भारत के प्रधानमंत्री और स्वीडन के महाराजा । आरम्भ हुआ, देवता लोग बहुत आनन्द ले रहे थे और परमात्मा बहुत प्रसन्न थे। किस प्रकार अपनी कोहनियों को मोडे बिना देवगण भोजन कर सके। मुझे आशा है कि इस कथा के सार को आप जान गए होंगे देवता एक दूसरे को भोजन करवा रहे थे और एक दूसरे को देखभाल कर रहे थे। हमें भी भविष्य में सामूहिक रूप से यही करना है। धन्यवाद। विद्यमान थे बीस वर्ष पश्चात् रियो में 120 राष्ट्रों के मुखिया उपस्थित थे। केवल पिछले सप्ताह न्यूयार्क में 'एजेण्डा 21' नामक एक अत्यन्त सुन्दर घोषणा का मसौदा तैयार किया गया| रियो में 75 राज्यों के मुखिया विद्यमान थे। सर सी. पी. ने जब मुझसे इस सम्मेलन के परिणाम के विषय में पूछा तो मैंने कहा" हम यि चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 9 10 1998 12 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-14.txt ियि क मात्रेसुर वधमन्त्र ति हे श्री भीम देवी कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए । व्यापार के पुनर्गठन प्रयत्न विश्व भर में कार्यरत विशालकाय नियमों को लाभान्वित करने तथा छोटी तथा मध्यम वर्ग के इस विश्व में 'अति' शब्द भी सीमित है। यह विश्व स्विस बैंक नामक राक्षस का पोषण करता है। ा इस विश्व में सन्त लोग भी त्राहिमाम् कर जाते हैं । यहां दुष्टता का बोलबाला है। इस विश्व को यदि ध्यानपूर्वक देखें तो अमेरिका को छोड़कर पूरे विश्व का स्तर मलेशिया जैसा है। यहां 1.3 खरब लाग एक डालर से भी कम प्रतिदिन आय से निर्वाह करते हैं । इस ग्रह पर लोगों के भरण पोषण के प्राकृतिक संसाधनों का 7. उद्यमों को समाप्त करने के लिए हैं। हे श्री चण्डिका, कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए । महावैभवशाली लोगों के हाथ में नकद धन का निरन्तर केन्द्रीकरण, राष्ट्रीय भौमिकता तथा जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों की शक्ति को घटा रहा है तथा धन शक्ति के आसुरी आयाम 1. अभाव है। हे दुर्गा भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली आसुरी शक्तियों को नष्ट करें । थोप रहा है। हे श्री राक्षसअग्नि कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए । 90 प्रतिशत लोगों में लालच का बढ़ जाना विश्व के शेष 10 प्रतिशत मध्यम वर्गीय लोगों के लिए दरिद्रता का कारण इस विश्व में 10 प्रतिशत व्यापार नशीले पदार्थों का 2. होता है, जहां दस खरब अमेरिकी डालर मानव को विषाक्त करने के लिए खर्च होते हैं, स्विटजरलैण्ड तथा अन्य देशों में 9. धन प्रवाह करना वैभव प्राप्ति का सुगम साधन है। हे रक्त बीज विनाशनी; भौतिकवाद रचित सभी आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए । ये वो संसार है जहां वालस्ट्रीट मेहनतकश मध्यमवर्ग का सारा पैसा निगल जाता है और इस धन को धनी लोगों की तिजोरियों में पहुँचा देता है। और वालडिस्ने उन्हें सब कुछ भुला देता है। हे कात्यायनी कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली सभी आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए । इस विश्व में मिस्र के लोग कैरोमे मेक्डोनाल्ड होटल में खाते हैं और बीजिंग में चीन के लोग पीजा हट में खाते हैं । और बन रहा है। हे श्री देत्यन्द्र मर्दिनी सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए । 10. वैकल्पिक आर्थिक समाधानों का योजनाबद्ध रूप से कृपा करके भौतिकवाद की 3. नष्ट किया जाना, व्यापार एवं आर्थिक संसाधनों की असमानता, विश्व की जनसंख्या में धन के समान वितरण को चुनौती दे रही है। हे श्री वज्िणी कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली उन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए । 4. धन बाजारों के अनियमितिकरण ने रोम के विशाल पर 11. धन भक्षी लोगों के लिए खरबों डालर हड़प लेने वाले जुरासिक पार्क के द्वार खोल दिए हैं और कल्पनामात्र से ही सारे धन को हड़प करके वे अपनी हवस को पूरा करने के लिए प्रयत्नशील हैं। हे श्री उग्रप्रभा कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए। 12. वित्तीय सम्पदा के भयंकर रूप से बढ़ जाने के कारण नकद धन वास्तविक अर्थव्यवस्था से निकालकर धन बाजार में इस प्रकार राष्ट्रीय मूल्यों तथा परम्पराओं को नष्ट कर रहे हैं । अत: हे शाकम्भरी, कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए। यहां बहुराष्ट्रीय शक्तियां तानाशाही की एक नई किस्म 5. का प्रयोग कर रहीं हैं, विकासशील विश्व में अपने कारखाने लगाकर वे मजदूर वर्ग को तथा बच्चों को उत्पादिता के लाभ के लिए दास बनाने में जुट गए हैं। हे रक्षाकरी भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए। उत्पादन तथा सेवाओं का भूमण्डलीकरण थोड़े से खिलाड़ियों को अन्य लोगों को मूर्ख बनाने का क्षेम दे देता है जिसके कारण वे सीधे साधे लोगों पर अपने नियम थोपते हैं। डाल दिया गया है तथा पूरे बाजार की एक जुआ घर के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है जो समाजवादी नीतियों वाले देशों पर भयानक आक्रमण है। हे श्री महाकाली कृपा करके भैतिक वाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए। 6. साल चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 9. 10 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-15.txt स्विस वित्तीय केन्द्र विकासशील देशों के कर चोरी करने वाले लोगों के लिए स्वर्ग का कार्य कर रहा है। इस प्रकार यह राष्ट्रीय पूंजी कार्यक्रमों औद्योगिक ढांचे एवं सामाजिक खर्चो से धन निकालकर विकसित देशों के स्टाक-एक्सचेंजों में सल सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए। सूचना सुविधाएं भौतिक विश्व के ऐसे माया जाल में खींच लेती है जहां मानव चित्त बिखर जाता है, इच्छाएं भ्रमित हो जाती हैं, सत्य की धज्जियां उड़ जाती हैं और इस प्रकार 13 19 मूल्य वृद्धि करते हैं । हे श्री उग्रप्रभा, कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कर दीजिए। 14. वैभव एवं शक्ति के मूलभूत केन्द्रीयकरण का लालच आत्मा दास बन जाती है। हे श्री राधा, कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए। 20. कुछ सम्वाददाताओं एवं राय बनाने वालों के लिए एवं मृगतृष्णा आत्म जिज्ञासा का सफाया करना चाह रही है हैं जिससे तथा आसुरी भौतिकवाद का भयानक विजय गर्जन लाखों उनके सत्ता, धन तथा यौन संबंधी विचारों का प्रसार होगा। हे श्री शुक्रात्मिका, कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए । 21. शैतान के मलेच्छों ने विश्व-गाँव के ताने-बाने आधुनिक संचार-साधन आसुरी शस्त्र बन सकते साधकों की आशाओं को नष्ट कर रहा है। हे श्री महामाया, कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कर दीजिए। 15. माफिया, गुप्त बैंकर्स एवं भ्रष्ट प्रबन्धकों ने विश्व की अर्थ व्यवस्था पर आक्रमण कर दिया है तथा हमारी पूरी संस्कृति की मूल्य प्रणाली को नौंव प्रदान करने वाली सामूहिकता के नीति शास्त्र को भयभीत कर रहे हैं। (INTERNET) के पारिवारिक नीड में अश्लीलता की गंदगी उड़ेल दी है ताकि वे नि:सहाय लोगों के मस्तिष्क में नारकीयता की परछाई डाल सके। हे श्री निर्मल कुमारी, कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए। हे महादेवी आपको कोटि-कोटि प्रणाम! हे श्री विराटांगाना, कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए । आज के महाविलय की प्रवृति का लक्ष्य राज्यों को सीमित करना, राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करना, बाजार को अपने हिसाब से चलाने तथा अर्थव्यवस्था को वश में करने के लिए और सभी व्यावहारिक कार्यो के लिए वास्तविक प्रजातंत्र की सामाजिक नींवों को नष्ट करने के लिए हैं। हे श्री खड़गपालिनी, कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए। आर्थिक विद्युत चक्रों के आकाशीय भटकाव ने एक ऐसे कल्पित विश्व की सृष्टि की है जहां तुच्छ धन ही एकमात्र यी ओउम नमः ! सर्वत्र मंगल, आनन्द एवं शाति हो! कृपा करके यूरोप में स्थित पर्वतों से बहने वाले जल में आपकी कृपा प्रवेश करें और सूर्य-युग (Aquarian-Age) में पावन चैतन्य लहरियां फैला दं। हे श्रीमाता जी निर्मला देवी, हे दैदीप्यमान, सर्वशक्तिशाली अवतार आपको कोटि-कोटि प्रणाम| आपके 16 सम्मुख त्रिमुर्तियों ( ब्रह्मा विष्णु. महेश ) ने भी विश्व की रक्षा करने के लिए प्रार्थना की। हे सौंदर्य एवं भय मूर्ति हम आपको प्रणाम करते हैं । आज नवरात्रि के इस पर्व में स्विटजरलैंड में आपके बच्चे नतमस्तक हो आपके प्रार्थना गीत गाते हैं कि हे देवी, आत्मा के शत्रुओं को पराजित करो। आपके चमचमाते दांतों के लिए हम भौतिकवाद रूपी नवीन प्रकार के असुर भेंट करते हैं । 17 वास्तविकता बन गया है। हे श्री विष्णुमाया, कृपा करके भौतिकवाद की सृष्टि करने वाली इन आसुरी शक्तियों को नष्ट कीजिए। उन्नत होती हुई तकनीक के शिकंजे किसानों, कलाकारों और कुंभकारों आदि हस्त शिल्पियों का रक्त चूस रहे हैं और उन्हें स्थायी रूप से अपंग बना रहे हैं। 18 ओठम त्वमेव साक्षात, श्री रक्त दंतिका साक्षात श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः ओडम हे श्री कार्य समुद्यता, कृपा करके भौतिकवाद की क शांति: । श ट पामड ड शा पा गोल बि य चा क ता लपि पला तेर प दा् क र शि कम चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 9, 10 1998 14 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-16.txt सर्वभौमिक प्रेम के प्रति समर्पित %23 विश्व पाठशाला क कभ शरी कि शूभ अत: इस प्रयत्न का लक्ष्य उनमें विकास का उत्तरदायित्व तथा स्कूल में उनके अन्दर सहज मूल्यों का महत्व भर देना है। माता-पिता, अध्यापकों तथा समाज के प्रति उत्तरदायित्व अत्यन्त वांछित है। यह उनकी आकांक्षाओं, इच्छाओं तथा कौशल्य पर निर्भर है। स्कूल के पेड़-पौधे तथा वातावरण अन्तर्राष्ट्रीय सहज पब्लिक स्कूल हिमालय पर्वत की दौलाधर पर्वत श्रृंखलाओं की गोद में स्थित है तथा दूसरी ओर से सदैव हरे-भरे जंगलों से ढका हुआ है परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी की कृपा रक्षा में विश्व भर के युवा सहज-योगियों के शारीरिक मानसिक तथा आत्मिक पूर्ण संतुलित विकास के लिए यह वातावरण अत्यंत उपयुक्त है। हिम-आच्छादित पर्वतीय चोटियां अवर्णनीय सुख एवं शांति प्रदान करती हैं और ऊंचा उठने के लिए हमें प्रेरणा देती हैं। तशतरी नुमा तीन घुमावदार स्थल अवर तथा उच्च प्राणियों के कक्षों को समेटे हुए हैं तथा विशाल खेल के मैदान प्रदान करते हैं। पाठशाला का परिदृश्य, फूलों की क्यारियां दर्शनीय हैं। प्रकृति के इस वरदार का हम आनन्द लेते हैं और इसे सुन्दर बनाने के लिए हम प्रयत्नशील रहते हैं। हमारा स्कूल राष्ट्र समुदाय (Community of Nation)है। भिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक तथा आर्थिक निम्नलिखित अन्तर्राष्ट्रीय सहज पब्लिक स्कूल की सहज पत्रिका जून 1997 से उद्धृत है। स्कूल हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला के निकट तालनू में स्थित है। यहां प्रथम कक्षा से लेकर कक्षा 10 तक शिक्षा दी जाती है। वर्ष 1998 में पहली बार ग्यारहवीं कक्षा आरम्भ की जाएगी। मुझे विश्वास है कि सहज स्कूल में पले हुए बच्चे जहां भी जाएंगे वे परिवर्तित नहीं होंगे वे अन्य लोगों को परिवर्तित करेंगे। स्वयं परिवर्तित न होंगे उनके व्यक्तित्व के कारण अन्य लोग उनसे प्रभावित होंगे। सहजयोगी परिवर्तित नहीं होते। वे दूसरों को परिवर्तित करते हैं ।" ॐ श्री गणेशायः नमोः नमः परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के असीम प्रेम एवं आर्शीवाद से हम सहज पत्रिका का प्रथम अंक निकालने का साहस कर रहे हैं । अगले अंक हमारे विद्यार्थी स्वयं निकालेंगे। सर्वव्यापी प्रेम एवं शुभकामना के प्रति प्रतिबद्ध प्रजातांत्रिक जीवन शैली का अनुसरण करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय भाई-चारे के वातावरण में रहते हुए हमारा प्रयत्न विद्यार्थियों को सुशिक्षित करने का है, ताकि वे स्वयं को चला सकें तथा भिन्न समितियों के माध्यम से महत्वपूर्ण निर्णय ले सके वे मनमानी करने के लिए स्वछंद नहीं होंगे, पथ-प्रद्दशकों के रूप में अपने अध्यापकों की ओर देखेंगे। -माताजी श्री निर्मला देवी चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 9 10 1998 15 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-17.txt वातावरणों का प्रतिनिधित्व करते हुए हम आस्ट्रेलिया, आस्ट्रिया. यू.एस.ए.. कनाडा, इटली, जर्मनी, इंग्लैंड न्यूजीलैंड, फ्रांस स्विटजरलैंड, भारत, फिनलैंड, इस्राइल, बैल्जियम, ताइवान, हांगकांग, फिलिपाइन देशों से संबंधित है। अतः स्कूल राष्ट्र समुदायों के वास्तविक अन्तर्राष्ट्रीय रंग-बिरंगे रूपों का प्रतिनिधित्व एक सहजयोगी की डायरी से पति के सहजयोग ध्यानधारणा करने पर एक पत्नी नाराज थी। श्रीमाता जी के फोटो की ओर देखने की भी हिम्मत उसमें न थी। एक दिन हिम्मत करके गुस्से और भय से उसने फोटो से कहा" आप कौन हैं? क्या आप मेरे भगवान ईसा मसीह से भी शक्तिशाली हैं?" अचानक श्रीमाताजी की फोटो में उसे ईसामसीह का चेहरा दिखाई देने लगा। घवराकर वह अपने पति को बुलाने के लिए दौड़ी ताकि उसे वह फोटो दिखा सके। पति ने कहा "इससे अधिक तुम्हें समझाने के लिए मेरे करता है। क्या ये आश्चर्यजनक बात नहीं है कि इतने शीघ्र हम सब इतने समीप आ गए! अभी कुछ दिन पूर्व तो हम परस्पर पूर्णतः अजनबी थे। क्या मात्र यही स्वाभाविक नहीं है कि सम्पूर्ण विश्व जगदम्बा मां के चरण-कमलों में समर्पित होने की से हो भावना एकत्र जाए! सर्वम् समर्पयामिः हमारे शिक्षा प्रयत्नों का मूल रूप स्कूल द्वारा दी जाने वाली शिक्षा सामग्री अत्यन्त अद्वितीय सहजयोगी बीमार पड़ गया। ठीक होने के लिए उसने बहुत है। इस अनुसंधानिक पहुंच की एक मुख्य विशेषता यह है कि हम 'सीखना सीखते हैं; हम स्वयं अपने प्रतिद्वन्दी बन जाते हैं अपने लिए प्रार्थना करने के लिए चर्च भेजा। वैरागिनियों ने जब और सदैव अपने ही उपलब्धियों को पीछे छोड़ूने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं । सिद्धांतवाद, पक्षपात एवं कुसंस्कारों पर काबू पाने के लिए हम जिज्ञासु मस्तिष्क विकसित करने का प्रयत्न करते हैं । अपने कमरे में घुसी तो उन्होंने श्रीमाता जी को सोफे पर बैठा छान-बीन प्रशिक्षण एवं अवलोकन के माध्यम से हम सीखते हैं। हम मौलिक तथा सृजनात्मक होना सीखते हैं। नेतृत्व के गुण हम आत्मसात करते हैं। जिम्मेदारी विवेक हम प्राप्त करते हैें, और सर्वोपरि मानव मात्र के लिए प्रेम हम अपने हृदय में विकसित करते हैं । पास कुछ नहीं है।" धीरे-धीरे फोटो फिर अपने वास्तविक रूप में परिवर्तित हो गया। अभी तक सहजयोग में संदेह करने वाला एक नया कोशिश की और अन्त में उसने चार वैरागिनियों (नन) को श्रीमाता जी का फोटो वहां देखा तो क्रोधपूर्वक उससे कहा कि उसकी बीमारी का कारण यही है। अत: वह इसे जला दे और बाहर फेंक दे। वे बहुत आक्रामक थीं। जब वे वापस आई और हुआ पाया । वे घबरा गई। उनमें से एक ने साहस करके श्रीमताजी से कहा,"आप यदि ईसा से अधिक शक्तिशाली हैं तो आसमान तक उठ जाइये।" श्रीमाताजी खडी हुई और धीरे धीरे शान्ति से हवा में उठीं और लुप्त हो गई। तो चारों वैरागिनियां उस योगी के घर गई और क्षमा मांगते हुए श्रीमाताजी के फोटो को प्रणाम किया। मि -वसुधाऐव कुटुम्बकम' ु ा् ता ानद श्री गणेश पूजा ततल 7 सितम्बर 1997 या कबैला, लिगरे ा देती हैं उसे देखें। पृथ्वी मां जो हमें सभी कुछ प्रदान कर रही हैं और सूर्य जो उनकी सहायता करते हैं, उन्हें सहयोग देते हैं उनके साथ मिलकर कार्य करते हैं, इसको हमने कभी महसूस नहीं किया। इससे भी अधिक गहनता में यदि हम जाए तो आपने एक फोटो देखा है जिसमें पृथ्वी मां के गर्भ से कुण्डलिनी निकल रही है और आधी दिखाई पड़ रही है। तो यह पृथ्वी मां हमारे लिए क्या करती है। प्रतिबिम्ब के रूप में कुण्डलिनी पृथ्वी मां से निकलती है । ये हमारी रचना करने के लिए किस प्रकार से हमारे अन्दर क्या करती है? तो पृथ्वी मां के अन्दर से यह आदि शक्ति निकलती है। पृथ्वी मां स्वयं मां की तरह से कार्य करती है। वे आपकी देखभाल करती हैं और आपकी सभी आवश्यकताओं की पूर्त करती हैं । एक आज हम श्री गणेश की यूजा करेंगे। उनके विषय में कहा जाता है कि आदिशक्ति ने पृथ्वी पर सर्वप्रथम उनका सृजन किया। उनके सृजन की कथा आप सब जानते हैं और यह भी जानते हैं कि किस प्रकार एक हाथी का सिर उन्हें लगा दिया गया। आज मैं उनके, कुण्डलिनी एवं पृथ्वी मां के विषय कुछ सूक्ष्म बात बताऊगी। अपनी मां की चैतन्य लहरियों तथा पृथ्वी तत्व से उनका सृजन किया गया। पृथ्वी मां का महत्व हमने कभी नहीं समझा। पृथ्वी मां को देखें । भिन्न सुगन्धियों, स्वभाव, रंग तथा आकार के सुन्दर पुष्पा का सृजन यही करती हैं। पेड़ भिन्न प्रकार के हैं वृक्षों का विकास जब होता है तो वे इस प्रकार विकसित होते हैं कि उनके हर एक पत्ते तक धूप पहुंच सके। पृथ्वी मां जो सामूहिक विवंक हमें में चैतन्य लहरी । खंड : X अंक : 9. 10 1998 16 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-18.txt किसी व्यक्ति को देखकर कई बार मैं हैरान होती हूँ कि इसे क्या परेशानी है। इसका अच्छा घर है, सुन्दर बीबी है, सभी चमत्कारिक बात यह है कि नारियल का पेड़ सब पेड़ों से ऊँचा होता है परन्तु नारियल कभी मनुष्य पर नहीं गिरता। इसका अर्थ यह हुआ कि सारी सोच, सारी सूझबूझ, सारी चेतनता सारी कुछ है फिर भी इसने एक रखैल रखी हुई है। इसकी क्या जागरूकता पृथ्वी मां से ही आती है। परन्तु इस बात को हम संमझते नहीं। हम इसे स्वीकार कर लेते हैं। वे मानव के लिए बहुत कुछ करती हैं। वे मूल शक्ति नहीं हैं। वे हमारे अन्दर मूल-वर्जन उत्पन्न करती हैं। उदाहरणार्थ इस्पात का अपना एक धर्म हैं। यह लकड़ी की तरह से नहीं हो सकता है। लकड़ी का अपना एक धर्म होता है। इसमें चांदी के गुण नहीं आ सकते। इन सभी चीजों का अपना ही धर्म होता है जिसमें यह बंधी होती हैं। प्रकृति की सभी चौजों के अपने धर्म होते हैं। आप यदि किसी चीते शेर, नेवले या सांप को देखें तो उनके अपने ही धर्म हैं. अपनी ही शैली है। उनका अपने धर्म में बंधे रहना अत्यन्त आश्चर्यजनक है। प्रतिष्ठान में एक बार दूसरी ओर से अपने शयन कक्ष में गई और एक छेद में से एक बहुत बड़े सांप को आते हुए देखा। निसन्देहः मैं उससे काफी दूर थी फिर भी इसने मेरी चैतन्य लहरियों को महसूस किया। यह भागने लगा और तरणताल में गिर पड़ा। यह बाहर ही न निकलता था किसी ने आवश्यकता है? मानव का धर्म है कि उसकी एक पतनी या एक पति हो। यह एक वर्जन है। ज्योंही आप इससे पृथ-भ्रष्ट होते हैं आप किसी न किसी विपत्ति में फंस जाते हैं अब कौन सुधारता है या नष्ट करता है? यह कार्य यही मूल (आदि) शक्ति करती है जिसे हम परम चैतन्य कहते हैं। यदि आप समझें कि इस टंगनी की तरह से इसका भी आकार है और इसे आप तोड़ना चाहें तो तोड़ सकते हैं क्योंकि आप दंडित करता है, मानव है। परन्तु यह टूट जाएगा- यह इतनी साधारण बात है। हमें समझना है कि हम मानव हैं और अपने धर्म के विरूद्ध कार्य हम नहीं कर सकते। परन्तु धर्म ही क्यों? क्योंकि हमारे उत्थान के लिए धर्म आवश्यक है। अपनी बुद्धि और विकास शीलता के कारण मानव सोचता है कि मैं जो चाहे करू, इसमें क्या दोष है? पश्चिमी देशों में यह बात आम है। परन्तु आदि वासी (Aboriginal People) लोगों के विषय में मैं कहूंगी कि उन्हें भी अपने मूल वर्जनों (धर्मो) का ज्ञान वैसे ही है जैसे पशुओं को होता है। आज हम आस्ट्रेलिया में हैं यहां बहुत से मूल निवासी हैं। मैं हैरान थी कि उनके अधिकतर शब्द संस्कृत के थे। हो सकता है उन्हें यह भारत से प्राप्त हुए हों या वे भारत से वहां गए हों। उनके बहुत से शब्द संस्कृत थे। मैं उनके विषय में सोचने लगी। भारत में भी आदिवासी हैं। हम उन्हें गून, गुरखु या भील कहते हैं। हमारे यहां एक नौकरानी थी। वह बहुत मैं जाकर इसको मार दिया और इसकी लाश उठाकर लाया। में इसे देखकर हैरान थीं। ये लगभग छह फुट लम्बा था और बड़े ही ढंग से गुथा हुआ था। तब उन्होंने कहा यदि हम इसे सुन्दर छोड़ दें तो पानी में गिरकर पुन: जिन्दा हो जाएगा। तो हम क्या करें? मैंने उनसे पूछा कि सांप को मारकर वे क्या करते हैं? उन्होंने कहा कि जला देते हैं और उन्होंने सांप को जला दिया। अच्छा खाना बनाती थी और उसकी अपनी मर्यादाएं थी। मेरे पिताजी के आते ही वह अपना सिर ढक लेती और उनका सम्मान करने के लिए दूसरे कमरे में जाती। किसी ने उसे ऐसा करने के लिए नहीं कहा। उनकी विवाह शैली भी बहुत ही अच्छी थी। उनके सम्बन्ध अपने बच्चों के साथ बहुत अच्छे थे । जंगल में जाने की अपनी आदत के कारण में बचपन में बहुत से भीलों से मिली। मैं हैरान थी कि वे शराब नहीं पीते थे मैं साठ वर्ष या इससे भी पुरानी बात कर रही हूँ। वे अत्यन्त लज्जाशील थे। सम्मान उनके लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण था । व चोरी बिल्कुल न करते थे। मैं परन्तु दस दिनों के पश्चात् उस साप की मादा बाहर निकली। वह उसे खोज रही थी। उन्होंने उसे भी मार दिया। गुंथ कर उसने भी पहले सांप की तरह से सुन्दर आकार बना लिया। उसके आकार को देखकर मैं बहुत हैरान हुई । बिल्कुल पहले सांप जैसा था। मैं हैरान थी कि यह मादा भी जानती थी कि Kजा किस प्रकार अपने साथी का आकार बनाना है। मुझे लगा कि रेंगने वाले कीडे, सभी प्रकार के जीवों का आचरण एक पशु. ही जैसा होता है। उदाहरणार्थ कुत्ते को यदि आप पानी में फेंके तो वो तैरेगा परन्तु बिल्ली नहीं तैरती। यह उनका अन्तर्रचित धर्म है जिसे मैं मूल वर्जन कहती हूँ। इसी प्रकार हममें भी मूल वर्णन रचित हैं जो कि धर्म है। मानव को वैसा ही होना पड़ता है। यदि वह कुछ अन्य बनने का प्रयत्न करे तो उसके जीवन में कुछ गड़बड़ हो जाती है । हाथ में पकड़े हुए ग्लास को यदि आप पृथ्वी पर गिरा दें तो वह टूट जाएगा। यह धर्म है। इसी प्रकार मानव भी जब धर्म पथ से भटकने लगता है तो कठिनाई में फंस जाता है। परन्तु केवल मानव ही मूल वर्जनों को तोड़कर मैं वास्तव में बहुत प्रभावित थी कि किस प्रकार ये लोग इतने धार्मिक, अच्छे एवं प्रसन्न थे वे झोंपड़़ी में रहते थे। परनतु इसका उन्हें कोई दुख न था। वे अत्यन्त साफ सुथरे थे। अब तो सब कुछ परिवर्तित हो गया है। वही लोग अत्यन्त परिवर्तित हो गए हैं वे पावन, पवित्र लोगों से थे, मां की पूजा करते थे वे पृथ्वी मां की पूजा करते थे किसी अन्य की नहीं । मैंने इस महिला से पूछा कि तुम पृथ्वी मां की पूजा क्यों MVE भयानक रूप धारण कर सकता है। चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 9.10 998 17 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-19.txt कष्ट पहुंचाता है। परन्तु यदि पृथ्वी के सौन्दर्यकरण के लिए आप पेड कारटे तो वो प्रसन्न होती हैं। उनका विवेक इतना करते हो? उसने उत्तर दिया कि पृथ्वी मां हमें सब कुछ प्रदान करती है। वे हमारी मां हैं। हम जंगलों में रहते हैं और पृथ्वी मां हमारी रक्षा करती हैं। ये बहुत चेतन हैं तथा जानती हैं कि हम यहां हैं और इन्हें हमारी देखभाल करनी है। पेड़ों के थोड़े से हैं-भिन्न देशों में भिन्न प्रकार के फूल हैं; मैंने देखा है कि मेरे पत्ते तोडने से पूर्व भी वे इसके विषय में सोचते थे। परन्तु बाद में धर्म परिवर्तक आए और उनका धर्म परिवर्तन कर दिया उन्हें समझती हैं। एक बार मैं आस्ट्रेलिया गई वहां हिबीस्कस स्कर्ट और ब्लाउज़ दे दिए। परन्तु ज्ञानबाई (नौकरानी) ने यह वस्त्र नहीं पहने। कहने लगी कि यह क्या है। मैं ऐसे वस्त्र क्यों पहनू जिनमें सारा शरीर नग्न हो। नहीं मैं तो साड़ी ही पहनूंगी। परन्तु इन आधुनिक लोगों से मिलने के पश्चात उनमें से बहुत से उन्हीं की तरह से रहने लगे। कहने लगे तुम्हें स्वतन्त्रता नहीं है, कुछ चीजों में तुम बंधे हुए हो। वास्वत में वे पवित्रता और दैवी सूझबूझ से बंधे हुए थे। वे भी परिवर्तित होने लगे । ज्ञानवाई और उसके पति नहीं परिवर्तित हुए परन्तु उनका पुत्र महान है। आप देखें कि किस प्रकार वे फूल उत्पन्न करती देश के फूल अत्यन्त सुगन्धमय हैं। पृथ्वी मां इतना कुछ (HIBISCUS) नामक फूल है। आप कल्पना करें कि पहले यह गुलाबी होता है और फिर, धीरे धीरे लाल। सूर्यमुखी-सूर्य की चाल के साथ साथ घूमता है। तो आप कैसे कह सकते हैं कि सूर्यमुखी पुष्प और सूर्य के बीच कोई सम्बन्ध नहीं है। स्वत: यह सूर्य के साथ साथ पलटता रहता है। ये हिबिस्कस नामक पुष्प हम श्रीगणेश की पूजा के लिए उपयोग करते हैं । श्रीगणेश की पूजा का आयोजन किया था। मार्ग पर मुझे बहुत से हिबिस्कस वृक्ष फूले हुए दिखाई दिए। मैंने कहा अच्छा होगा कि तुम ये फूल पूजा के लिए ले लो । जब में सभागार में पहुँची तो मैंने देखा कि सभी सहजयोगी अपने आप ही हिबिस्कस लेकर आए थे। मैंने उनसे नहीं कहा था। वे भी नहीं जानते थे कि यह फूल श्रीगणेश की पूजा में उपयोग होता है। उस समय पृथ्वी माँ ने स्वयं इसकी सृष्टि की थी। जब हिबिस्कस फूल खिलें तो यह श्रीगणेश का समय होता है। प्रकृति का इतना अधिक हमारे अन्दर होना और हमारे शराब पीने लगा। यह अन्त का आरम्भ था। तत्पश्चात् वह जुआ खेलने लगा और सभी प्रकार के दुराचार आरम्भ कर दिए। उसका पोता गणिकाओं के पास जाने लगा। उनका सोचना केवल इतना था कि हम स्वतन्त्र हैं ऐसा करने में क्या दोष है। ये अन्तर्वर्जन (धर्म) आपमें बने हुए हैं, आपमें विद्यमान हैं । हो सकता है सुप्त अवस्था में हों, या आपने इन्हें दबा रखा हो या आपने इन्हें बाहर निकाल दिया हो। परन्तु वे वहां विद्यमान हैं। ये सदैव विद्यमान हैं। हम भी यही कहते हैं कि आप मर्यादाओं अन्दर के गुणों का हमारा पथ प्रदरर्शन करना तथा आशीर्वाद प्राप्त करना बहुत ही प्रशंसनीय है। हमारा अलग से कोई अस्तित्व नहीं है। यह पृथ्वी माँ हमारा घर है। पृथ्वी माँ में को तोड़ रहे हैं या आप श्री गणेश का अपमान कर रहे हैं। जब आदि शक्ति ने इस ब्रह्माण्ड की सृष्टि की तो सर्वप्रथम श्रीगणेश की सृष्टि की गई। मंगलमयता की सृष्टि हमारा घर है और हममें पृथ्वी माँ का घर है। श्री गणेश के की गई। हम तो जानते भी नहीं कि मंगलमयता क्या है। आदि विषय में आज मैंने कहा कि उनका शरीर मिट्टी का था। तो वर्जनों (धर्मों) एवं मर्यादाओं की पूर्ण समझ ही मंगलमयता है। यद्यपि मैं ईसाई परिवार से सम्बन्धित थी फिर भी हम प्रातः बिस्तर से उठने के समय पृथ्वी पर पांव रखने से पूर्व प्रार्थना किसी चीज को आघात पहुँचाने का प्रयत्न करते हैं तो हम किया करते थे कि 'हे पृथ्वी माँ हम आपको अपने पैरों से स्पर्श कर रहे हैं, कृपा करके हमें क्षमा करें ।' अत: पृथ्वी माँ बचपन से देखती आई हूँ। प्रकृति एवं पृथ्वी माँ को समझना और प्रकृति के लिए सम्मान हमारे लिए अन्तर्रचित है। हम इसी ब्रह्माण्ड के अंग प्रत्यंग हैं। परन्तु स्वतन्त्रता (स्वच्छन्दता) के मुर्खतापूर्ण विचार में जब आप फंसते हैं तब आप पृथ्वी मां को ही आप स्पष्ट देख सकते हैं कि ये मूल मर्यादाएं प्रकृति द्वारा छोड़ देते हैं। आपका गुरुत्वाकर्षण कम हो जाता है। जब हम प्राकृतिक रूप से किस प्रकार मानी जाती हैं। हम लोगों के लट खसोट करते हैं तो पृथ्वी मां को हमें पाठ पढ़ाना पड़ता है। अब लोग पर्यावरण-पर्यावरण चिल्ला रहे हैं। बाहर जैसा सर्वसाधारण चीजें जैसे एक स्त्री को अपना शरीर ढक कर पर्यावरण है वैसा ही अन्दर है। आप यदि अपनी माँ का शोषण करना चाहते हैं, उसे कष्ट पहुँचा सकते हैं तो आप पृथ्वी माँ अपनी पावनता का सम्मान करती हैं! हम समझ नहीं पाते आप को भी कष्ट पहुंचा सकते हैं। हमारी सूझबूझ आज इस प्रकार से परिवर्तित हो गई है कि हम धन को बहुत महत्व दे रहे हैं। सदाबहार (EVERGREEN) पेड़-पौधों को देखें तो वे सदा पैसे के लिए यदि आप पेड़ काटते हैं तो यह पृथ्वी मां को पत्तों से ढकें रहते हैं। उनके पत्ते झड़ते नहीं। मैं उन्हें मादा आप कल्पना कर सकते हैं कि पूरे ब्रह्माण्ड ने किस प्रकार हमारी सृष्टि की | ये सभी कुछ हमारे अन्दर है। जब भी हम स्वयं को आघात पहुंचाते हैं। पृथ्वी माँ की विवेकशीलता मैं अत्यन्त सुन्दर है। यही कारण है कि सभी सन्त विशेषकर भारत वर्ष के जंगलों में जाकर रहा करते थे। केवल जंगल में लिए ऐसा कर पाना कठिन है। हम कुछ स्वच्छन्द लोग हैं। रखना चाहिए क्योंकि वह अपने शरीर का सम्मान करती हैं. यह बात किसी से बताएं तो लोग इसे नहीं सुनते। यदि आप |है. हु 18 चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 9, 10 1998 ho 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-20.txt लेते हैं। अपनी बहन बेटी और मां तक से उनके सम्बन्ध थे । (FEMALE) कहती हैँ। दूसरे पतझड़ी वृक्षों के पत्ते झड़ जाते हैं। इन्हें में नर (पुरुष) कहती हूँ। यहां बात दूसरी ही है। मैं जब पार्टियों में जाती थी तो लोग सोचते थे कि मैं अत्यन्त शान्त व्यक्ति हूँ। आप किसी व्यक्ति से मिलें तो पुरुष तो एकदम से बटन बन्द कर लेंगे परन्तु स्त्रियां खोल देंगी। इस प्रकार मस्तिष्क ही घूम गया है। कितनी मूर्खता है। श्रीमती थैचर ने कहा है कि स्त्रियों का शरीर प्रदर्शन करना हमारी संस्कृति है। क्या वे वेश्याएं हैं ? शरीर प्रदर्शन की यह सनक इतनी बढ़ गई है कि चाहे सड़कों और घरों में न हो इन विषयों पर बातचीत करना अत्यन्त घिनौना है। मेरी समझ में नहीं आता किस प्रकार मानव इतना गिर सकता है। आज ऐसे समय हमें सहजयोग मिला है जहां आपको अपने मूल बर्जनों (धर्मों) का ज्ञान हुआ है। सुप्तावस्था में यह आपमें विद्यमान है। ज्योर्तिमय होने पर इन धर्मों को अचानक आपने स्वीकार कर लिया है। मैंने इतनी आशा कभी न की थी। परन्तु आपने इसे स्वीकार कर लिया है । इन पर चल रहे हैं और इनका आनन्द ले रहे हैं। सभी महान संतो के जीवन को आप देखें । डायना जैसे किसी व्यक्ति को सन्त नहीं कहा गया। परन्तु सिनेमा में अब भारत में भी स्त्रियों को अंग प्रदर्शन करते देख सकते हैं। भारतीय फिल्मों में जो भी कुछ आप देखते उसमें मर्यादाओं का अभाव था। उसके पति ने उसे सताया । इसके लिए मुझे उससे सहानुभूति है। परन्तु मर्यादाओं का बहुत महत्व है। किस प्रकार वह सन्त हो सकती है। आप केवल एक सर्वसाधारण मानव बन जाएं जो अपने धर्मों पर चले, जिसे अपने धर्मों का ज्ञान हो तो लोग था। वो जन्म से ही ऐसा था। विशेषकर पश्चिमी देशों में ऐस व्यक्ति की प्रशंसा होती है। अब अधिकतर लोग पतित हैं। बहुसंख्या में लोग यदि मूर्ख होंगे तो समझा जाने लगेगा। उनके पास समझने के लिए न बुद्धि है न विवेक। शराब जैसी चीज किस प्रकार सहायक हो सकती है? शराब से किसी का हित नहीं हुआ। यदि आप शराब नहीं पीते तो आपको बेकार समझा जाता है। ऐसे व्यक्ति से कोई बात नहीं हुए हैं वह कभी बाहर घटित नहीं होता। स्त्रियां यदि वैसे वस्त्र पहनने लगें तो लोग उन पर पत्थर फैंकेंगे। फिर और कई प्रकार की चीजों का होना-पुरुष का पुरुष से, स्त्री का स्त्री से और बच्चों से सम्बन्ध होना आदि। भारत में हमने भी न था। यहां पर ऐसा क्यों हुआ? 50 वर्ष पूर्व, मैं इनके विषय कहेंगे - क्या व्यक्ति में सुना नहीं सोचती कि इन देशों में भी ऐसा होता होगा। हमने क्यों अपनी लज्जाशीलता छोड़ दी है और क्यों इस पकार की मूर्खता हमारे अन्दर आ गई है। मेरे विचार से उनमें कोई भूत या बाधा घुस आई है। यह पूर्णतः अस्वाभाविक विवाहित पुरुषों का अविवाहित स्त्रियों पर दृष्टि होना, अविवाहित पुरुषों का अनैतिक सम्बन्ध-सभी प्रकार के कार्य लोग कर रहे हैं। आपको विश्वास नहीं होगा कि भारत में ऐसा नहीं होता। अब वहां भी ये दुराचार फैल गए हैं फिर भी अच्छे परिवारों में ये चीजें नहीं मिलती। किसी ने मुझे बताया कि भारत में मुर्खता को ही महान और मूर्खतापूर्ण है । करता। समाज में इसका इतना प्रचलन है कि जितनी भी पार्टियों में मैं गई मेरे और मेरे पति के अतिरिक्त सभी लोग पी रहे थे। मुफ्त होने के कारण वहा लोग जरूरत से ज्यादा पिया करते थे। ये सब विष हैं जो हमें नष्ट कर रहे हैं । अब सिगरेट मैं रोग है। हां, क्योंकि वे नदी में स्नान करते हैं । वे यदि एड्स नदी में स्नान करना छोड़ दें तो यह समाप्त हो जाएगा चिकित्सा विज्ञान की विद्यार्थी थी। एक निष्कपट परिवार से मैं सम्बन्धित हूँ। मैंने कभी ये चीजें नहीं सुनी। भारत के पागलखानों है। हर जगह उन्होंने लिखकर लगाया हुआ है में भी कभी ये बातें सुनने को नहीं मिली। उस दिन ग्वीडो ने मुझे एक छोटी सी लड़की का तोहफा भेंट किया जो तोहफा देने में शर्मा रही थी। शर्म पर वर्जन है। मेरी समझ में नहीं आता कि चिमनी की तरह से कैसे वे सिगरेट पीते हैं। सिगरेट छोड़ देने का साहस उनमें नहीं । धूम्रपान वे कब लिखने लगेंगे? सभी लोग जानते हैं कि यह भयानक है। मानव चेतना के विरूद्ध है । शराबी लोगों को गिरते हुए. एक-दूसरे को कुचलते हुए, झगड़ा करते हुए देखा जा सकता है। शराब को यदि बन्द कर दिया जाए तो सारी निर्लज्जता समाप्त हो जाएगी। शराब पीने पर व्यक्ति की चेतना पर प्रभाव पड़ता है। एक शराबी ने मुझे निषेध, शराब निषेध (लज्जा) स्त्रियों का गहना है। सभी बच्चे शर्माते हैं। मुझे याद है कि मेरी नातिन एक बार एक पत्रिका देख रही थी उस समय वह बहुत छोटी थी। दो वर्ष की रही होगी। उसने एक स्त्री को बिकनी पहने हुए देखा। कहने लगी कि यह तुम क्या कर रही हो । मेरी नानी तुम्हें आकर दो थधप्पड़ लगाएंगी। तुम अपने कपड़े पहन लो। आपने देखा कि बच्चे भी निर्लज्जता पसन्दु नहीं करते। यहां निर्लज्जता इतनी बढ़ गई है कि नंगा रहना बहुत विकसित होना समझा जाता है। किसी ने मुझे बताया कि वह आदिवासियों को बचाना चाहता था परन्तु श्वेत बताया कि शराब पीने के बाद अपनी बहन मुझे बहन नहीं लगती, प्रेमिका लगती है। आप ऐसा कैसे कर सकते हैं। परन्तु सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए आप पीना आवश्यक मानते हैं। हमें समझ नहीं आता कि समाज में किस प्रकार हमारे मूलधर्मों को चकनाचूर कर दिया है। साधारण सी बात कि स्वयं को देखने के लिए अच्छा होगा कि आप मूर्ख लोगों को देखें । आप हैरान होंगे कि कैसे ना चमड़ी से वे इतने प्रभावित होते हैं कि कुछ भी स्वीकार कर चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 9 10 1998 19 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-21.txt कैसे कार्य वे कर रहे हैं और इन पर परदा डालने के लिएकीजिए, वे कहते हैं बचा लीजिए। विश्वविद्यालय के उपकुलपति उनमें शिष्टाचार है। एक विशेष लहजे में वे बातचीत करते हैं की तरह से वे सभी चक्रों पर बैठे हैं। आपके समीप चाहे विष्णु और अत्यन्त सुशिक्षित व्यक्ति की तरह से व्यवहार करते हैं । या महादेव भी बैठे हों परन्तु यदि श्रीगणेश कह दें कि यह कोई अन्य जो ऐसा नहीं करता वह उनके लिए बहुत निम्न है। वे सोचते हैं कि उनमें व्यवहार कुशलता की कमी है। तो एक अन्य विचार यह है कि हमें व्यवहार कुशल बनना है। श्रीगणेश को देखिए। वे किसी भी प्रकार से व्यवहार कुशल नहीं हैं । पेटू की तरह से वे खाते हैं और आपकी ओर इस प्रकार देखते मानो अपने बेत से आपको पीटने वाले हों। श्रीगणेश के पास उत्थान न होगा तो उत्थान हो ही नहीं सकता । यह बहुत कठिन है। आधुनिक युग में आपके बच्चों के साथ अत्यन्त भयानक चीजें हो रही हैं। मैं सोचती हूँ कि पूर्ण नकारात्मकता पवित्रता का विरोध कर रही है। जहां भी लोगों को बच्चे मिलते हैं वे उनका दुरुपयोग करते हैं। उन्हें बुरी चीजें सिखाते हैं। स्कूलों में भी सभी कुछ अत्यन्त बुरा है। अत: हमें बच्चों के विषय में बहुत सावधान रहना है। भली-भांति उनका पथ प्रदर्शन करना है, उनकी देखभाल करनी हैं ताकि उनके क्षमा नहीं है। ईसामसीह बनने के पश्चात उनमे क्षमा का गुण आया। मैं नहीं समझ पाई कि यह सब किस प्रकार हुआ परन्तु श्रीगणेश के रूप में क्षमा बिल्कुल नहीं है। उनसे क्षमा मांगने मूलधर्मों की रक्षा हो सके। बच्चा यदि कोई अच्छा कार्य करता है तो सराहना कीजिये। बच्चे के थोड़े से शरारती होने की मुझे चिन्ता नहीं होती। परन्तु यदि वह श्रीगणेश विरोधी हो जाए तो सावधान रहिए। सभी प्रकार के रोग हो सकते हैं। बचपन में यदि ये मूल वर्जन नष्ट हो जाएं तो इन्हें पुन: लाना कठिन है। फिर भी मेंने का प्रयत्न भी मत कीजिए। वे कभी क्षमा भी नहीं करेंगे। मां के कहने पर भी वे क्षमा नहीं करेंगे वे कभी क्षमा नहीं करते। बात यहां तक पहुँच जाती है कि माँ को ही कहना पड़ता है कि मैं तुम्हें क्षमा करती हूँ। तब वे कुछ नहीं कर सकते क्योंकि अपनी माँ के प्रति वे बहुत आज्ञाकारी हैं। एक बार यदि माँ ने सदैव यही कहा है कि पावनता कभी नष्ट नहीं होती, केवल कुछ बादल इसे ढकने का प्रयत्न करते हैं और हम अपनी गलतियों के विषय में थोड़े से लापरवाह हो जाते हैं । इसके क्षमा कर दिया तो बस हो गया, अन्यथा वे कभी क्षमा नहीं करेंगे। यही कारण है कि हजारों भयंकर बीमारियां हो जाती हैं । यदि आप उनका सम्मान नहीं करते तो नपुंसकता, एड्स तथा अन्य गुप्त रोग हो जाते हैं। इन गुप्त रोगों से पीड़ित लोगों को ठीक करने में मुझे बहुत तकलीफ उठानी पड़ी। श्रीगणेश मेरी क्षमा को स्वीकार करते हैं परन्तु मौका मिलते ही फिर वार कर देते हैं इन देवताओं के अपने ही धर्म हैं श्रीगणेश आपको बुद्धि, विवेक एवम् सूझबूझ प्रदान करते हैं। परन्तु यदि आप में प्रति जागरूक रहना आपका कर्त्तव्य हैं। आपका समाज भयानक है। अगली पीढ़ी न जाने कहां तक जाएगी। इसके विषय में जब सोचती हूँ तो कांप जाती हूं। इसका समाधान यही है कि अपने बच्चों के विषय में, उनके सोच विचार और श्रीगणेश के प्रति उनके दृष्टिकोण के विषय आप सावधान रहें। बच्चे श्रीगणेश को बहुत प्रिय हैं। मैं कल्पना भी नहीं कर सकती कि किस प्रकार वे बच्चों को प्रेम करते हैं और किस प्रकार सदैव बच्चों कि रक्षा करने के लिए उनके गुणों के दायरे में नहीं रहते तो उन्हें संभालना बहुत कठिन होता है। किसी को यह बताना बहुत कठिन है कि ऐसा मत करो। परन्तु प्रकृति अवसर ले लेती है। आपके मूलाधार पर आपको रोगमुक्त करना बहुत कठिन कार्य है। नि:सन्देह अन्ततः आप ठीक हो जाते हैं। परन्तु मूलाधार से होने वाले रोग दु:साध्यत्म होते हैं। वे अनन्त बालक हैं। साक्षात् अबोधिता हैं। फिर भी यदि आप अपनी पावनता को बिगाडुते हैं तो वे आपको क्षमा नहीं कर पाते। माँ इससे बिल्कुल उलट हैं, किसी भी कीमत पर वे आपको बचाना चाहती हैं। श्री गणेश ऐसा नहीं करना चाहते । उद्यत रहते हैं। आप लोग यदि वास्तव में समझते हैं कि मैं क्या कह रही हूँ. मानव जीवन और आध्यात्मिक जीवन के बीच की दूरी यदि आपने पार करनी है तो श्रीगणेश सर्वप्रथम हैं। कुण्डलिनी जब उठती है तो श्रीगणेश शान्त होते हैं और कुण्डलिनी को ऊपर उठने में सहायता देते हैं। वे ही आपको बताते हैं कि जिस प्रकार आप कार्य कर रहे हैं यह गलत हैं। वे आपकी वे कहते हैं, नर्क में जाओ और यह नर्क देखभाल करते हैं। परन्तु आपको क्षमा नहीं करेंगे। जिस प्रकार लोग अपनी शारीरिक आवश्यकताओं और सारी बेवकूफी की बातें करते हें यह कठिन कार्य नहीं है। पशु भी इस प्रकार की बातें नहीं करते। इस प्रकृति को नष्ट करने के स्थान पर इसे हमारे जीवन में ही है। शराब पीने वाले, धूम्रपान और वेश्यावृत्ति करने वाले लोग नाक्कीय हैं। यह सब नर्क है। और न्क क्या होता है । श्री गणेश आपको इस नर्क से कभी नहीं बचाएंगे। श्रीगणेश को मराठी आरती में कहा जाता है कि जब मैं बनाने का प्रयत्न करें, यह देखने का प्रयत्न करें कि किस साक्षात्कार प्राप्त कर रहा होऊ तो आप मुझे बचा लीजिए। वे केवल यही चीज मांगते हैं कि पुनर्जन्म के समय आप मुझे बचा लीजिए। यह नहीं कहते कि पुनर्जन्म के समय मेरी रक्षा प्रकार आप इसे सुन्दर बगीचे या सुन्दर स्थल का रूप दे सकते हैं। जब जब भी मैं यहां होती हूँ तो सोचती हूँ कि यहां की 20 चैंतन्य लहरी खंड : X अंक : 9. 10 ।998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-22.txt अपने सम्बन्धों को समझते हैं। इन सबका परस्पर तालमेल है। बंजर भूमि के लिए क्या करूं। किस प्रकार इसे परिवर्तित करूं। सदैव यही विचार आता है कि इसे सुन्दर कैसे बनाऊ। प्रकृति से यदि आप प्रेम करने लगे ता अपनी पावनता को यदि व्यक्ति में पावनता हो, लालच और प्रतिस्पर्धा न हो और बिगाडने के विचार आपमें समाप्त हो जाएंगे। प्रकृति के प्रेम के कारण मैं कविताएं लिखा करती थी तब मैने स्वयं को हैं। अपनी सृष्टि का आनन्द लेता रहे तो बहुत अच्छा है। लोग सीमाओं से परे चले गए हैं सूझ बूझ से परे चले गए उदाहरणार्थ यहां या यूरोप में कहीं भी आपको अधिक फल उपजाने की आज्ञा नहीं है। क्यों? ताकि कीमतें गिर न जाएं। कोई पदवी मैं लेना नहीं चाहती थी। तो मैंने कविता करनी आपके पास यदि अधिक फल होंगे तो क्यों न आप उन्हें वहां छोड़ दी। परन्तु में बहुत अच्छी खिलाड़ी महिला थी। सभी समझाया कि तुझे सहजयोग के लिए कार्य करना है। तुम यदि कविताएं लिखने लगोगी तो लोग तुम्हें कवियीत्री कहेंगे ऐसी प्रकार के खेलों में मैं प्रथम रही। सर्वोत्तम स्थान प्राप्त किए भेजें जहां फल का अभाव है। फलों को वे नष्ट कर देंगे पर किसी और को देंगे नहीं। दूसरों के लिए प्रेम और भावना का वहाँ अभाव है। और यदि पृथ्वी माँ कोई चीज अधिक उपजा दें तो वे उसे नष्ट कर देते हैं ताकि कीमतें ऊंची रहें। वे अत्यन्त क्रूर हैं। केवल पैसे के विषय में ही सोचते रहते हैं । यह सब अब भी हो रहा है। परन्तु मुझे विश्वास है कि एक दिन ऐसा होना रुक जाएगा। गांवों में शराबखाने की इमारतें सबसे अच्छी बनी हैं मद्यपान को वे जितना महत्व देते हैं वो देखते ही बनता है। परन्तु उसे भी छोड़ दिया। क्यों? क्योंकि मैं आदि माँ हूँ और मुझे आदि-प्रकृति को जागृत करने का कार्य करना है-मानव के अन्त: स्थित धर्मों को जागृत करना है मुझे बस यही कार्य मैं करना है कुछ अन्य नहीं। इस कारण में कुछ और नहीं करती। मैं 'निषक्रिया' हूँ। वास्तव में मैं कुछ नहीं करती। प्रकृति. श्रीगणेश, श्रीविष्णु और श्री महेश आदि सभी कुछ कर रहे हैं। तो सम्बन्ध क्या है? सम्बन्ध यह हैं कि वे सब मेरे शरीर में हैं और अपने धर्मों में बंधे हुए हैं वे कार्य करते हैं । में चाहूँगी कि आप शुद्ध इच्छा करें कि धूम्रपान की तरह से मद्यपान भी समाप्त हो जाए। आप यदि ऐसा साचेंगे तो यही सम्बन्ध हैं-स्वतः, स्वचालित-अन्तर्रचित सम्बन्ध की तरह। है। जब भी आप इसका बटन उदाहरणार्थ पखा बनाया हुआ दबाएंगे तो यह चलने लगेगा। यह भी ऐसा ही है। सभी देवता कुछ सीमा तक इस समस्या का समाधान हो जाएगा। व्यक्तिगत रूप से मैं सोचती हूँ कि मद्यपान के कारण ही आपमें यह मुझसे सम्बन्धित हैं और उनमें जबरदस्त मर्यादाएं हैं, जबरदस्त पथभ्रष्ट दृष्टिकोण पनपता है। अन्यथा सर्वसामान्य व्यक्ति सम्मान है कि यदि मैं कुछ कहूँ तो वे तुरन्त इसे अंजाम देंगे। सर्वसामान्य मस्तिष्क के साथ क्यों लड़ाई, हत्या, झगड़ा और मैं आपको यह अत्यन्त गहन बात बता रही हूँ कि आप मानव हिंसा जैसे कुकृत्य प्रकार के कार्य करना समझ से परे है। श्री गणेश आपको यदि आप जाते हैं तो आप समाप्त हो जाएंगे। ये धर्म आपमें सन्तुलन प्रदान करते हैं वे आपको ठीक रास्ते पर रखते हैं। रचित है। सुप्तरूप से ये आपमें हैं। मुझे आशा है कि आप परन्तु यदि आप उनकी बात नहीं सुनते तो आपको उठा कर समझेंगे कि अपने अन्तर्रचित सीमाओं के विषय में जागरूक फैंक दिया जाता है। प्रकृति, श्रीगणेश और कुण्डलिनी से आप हैं और आपके धर्म आपमें रचित हैं इन धर्मों के विरोध में करेगा किसी सर्वसामान्य व्यक्ति का इस होना कितना महत्वपूर्ण है। आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद। परमात्मा आपको धन्य करें। रड 21 चैतन्य लहरी । खंड : X अंक : 9.10 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-23.txt मा कि हिंड नि भा लु ेल पा जन्म दिवस पूजा (1998 ) क का (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का हिन्दी प्रवचन) ा आज इसलिए अंग्रेज़ी में बात की क्योंकि हमेशा मैं हिन्दी में ही बात करती हूँ। लेकिन जो इनसे बात की वो आप लोगों को समझ में आयी होगी। वो यह है कि जब आपके आत्मा का प्रकाश आपके अन्दर फैलता है तो आपमें तीन विशेषतायें आ जाती हैं : आप गुणातीत हो जाते हैं । आप जानते हैं कि आपके अन्दर तमो गुण, रजो गुण और सत्व गुण - तीन गुण हैं। तमो गुण जिसमें होते हैं उनका एक स्टाइल (Style) होता है । रजो गुण जिसमें होता है उनका एक स्टाइल होता है, और फिर जब दोनों चीजों से ऊबकर वे सत्व गुण में उतरते रियलाइजेंशन दे दो। आपके सारे प्रश्न इससे छूट जायेंगे और एक नए तरह का व्यक्तित्व आपके अंदर आ जायेगा। यह एक - बहुत बड़ा मन्वंतर घटित हो रहा है। में कहूँगी कि एक पुनरुत्थान की नई बेला आ गई। इसमें मनुष्य का परिवर्तन होना ही अत्यावश्यक है। नहीं तो मनुष्य की जो समस्या है वो ठीक नहीं हो सकती। उसका परिवर्तन होना चाहिए और जब वो परिवर्तित हो जाता है तो इतना मंगलमय और इतना सुन्दर हो जाता है, उसके सारे ही अंग प्रत्यंग जो भी जीवन के हैं, उसके सारे प्रांगण में ही आके जैसे आनन्द नाचता है। ऐसे सौंदर्यमय और सुन्दर जीवन को प्राप्त करने के लिए आपको कुछ करना नहीं। उसके लिए आपको पेसे नहीं देना। कुछ नहीं करने का। सिर्फ आप अपने अन्दर बसी हुई शक्ति को, जब जागृत हो गयी तो उसे जागृत रखें और उसमें उतरते रहें। इतने गहरे लोग हैं सहज योग में कुछ कि मैं स्वयं देखकर हैरान होती हूँ कि यह सारी गहराई इन्होंने एकदम से कैसे ले ली! उनके अंदर गहराई थी पर वा अंधकार में थे। अब वो जब प्रकाश में आ गये तो प्रकाशमय हो गये, सुंदर हो गये, मंगलमय हो गये| में हें जहां पर आप सोचते हैं अब ये तो सब बैकार की चीजें हैं. अब हमें खोजना है । जब खोज शुरू हो जाती है तब आप सत्व गुणी हो जाते हैं। सत्व गुण में उतरने पर फिर आप खोजते हैं और खोजने पर जब आप पा लेते हैं तो आप इन तीनों गुणों से ऊपर उठ जाते हैं। इसीलिए कहते हैं कि ऐसा इंसान गुणातीत. कालातीत और धर्मातीत हो जाता है। उसका कोई विशेष धर्म नहीं होता। बो जो भी करता है धर्म हो करता है, अधर्म नहीं करता। कर ही नहीं सकता। उसके स्वभाव ही में आप सबके लिए मैं क्या कहूँ? मेरे हृदय बड़ा ही आंदोलन है । मैं चाहती हूं सारे ब्रह्माण्ड में जो भी शक्तियां जो कुछ भी महान ऋषियों, मुनियों ने प्राप्त किया था वो आप प्राप्त करें और संसार स्व' माने आत्मा-आत्मा का भाव स्व में ऐसा हो जाता है कि उसको एक विशेष प्रकार का आनन्द, एक विशेष प्रकार की शान्ति मिल जाती है और उसका एक विशेष व्यक्तित्व हो जाता है जिसके कारण वो सबको शान्ति, सुख एवं आनन्द देने हैं उसे आप प्राप्त करें। वाला हो जाता है। हो सकता है अभी आपका प्यार लोग नहीं समझ पायें, उसका गलत इस्तेमाल करें। हो सकता है । पर उसमें आपको बुरा नहीं लगता। आप यही सोचते हैं कि ये अभी अंजान हैं। समझ नहीं पा रहे हैं। अभी इनकी समझ में कमी है। आप कुछ भी उसके प्रत्युत्तर में बोलते नहीं। आप देखते रहते हैं कि चलो ठीक है कल ठीक हो जाएगा। यह आशा आपके अन्दर से भाग कर नहीं। समाज में रह कर, संसार में रहकर इसे आप प्राप्त करें। आज का शुभ दिवस है और आप लोगों ने इतनी खुशी से मनाया। छोटे बच्चों जैसे सबने कितना प्यार दिया! क्या कहूँ मैं, मेरी तो समझ में नहीं आता क्योंकि यह ती बहुत ज्यादा है, बहुत ज्यादा है। और इसको समझने के लिए भी मैं तो सोचती हूँ कि बड़ा मुश्किल हो जायेगा कि इतना प्यार आपने मुझे क्यों दिया? मैंने आपके लिए क्या किया? कुछ समझ नहीं पाती। मैंने कुछ किया ही नहीं आपके लिए। यह आप ही करते आ रहे हैं, जो बढ़ता-बढ़ता यहां तक पहुँच जाता है । आप के लिए बाद में यही कहती हूँ कि इसी तरह से आप आगे बढ़ते जाइये। औरों को भी अपने समावेश लेते काु बन जाती है कि जैसे हम थे, तो आज हम यहां आकर खड़े हो गये। कल ये भी हमारे साथ आकर के खड़े होंगे। अब आप इतने लोग हैं। ईसा मसीह के सिर्फ बारह शिष्य थे और न जाने उन्होंने कितने ईसाई (Christians) बनाये। किसी को आत्मसाक्षात्कार (Realisation) नहीं दिया और क्रिश्चियन बना दिये । आप तो आत्मसाक्षात्कार (रियलाइज़ेशन) दे सकते हैं । जाइये कि वो भी इस सुख की, इस आनन्द की ओर इस महान व्यक्तित्व की जो घटना है उसे प्राप्त करें। आप सबको यही काम करना है कि अब जिसको देखो अनन्त आशीर्वाद। चैतन्य लहरी ॥ खंड : X अंक : 9, 10 1998 | ं 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-24.txt बिं सहजयोग और श्री कल्की शक्ति स्त पत है. निर्मल-योग से उद्धुत) हाद संबन्धित रहना अच्छा नहीं लगता। इस तरह दोनों प्रकार के आज श्री कल्की देवता व कुण्डलिनी शक्ति, इनका लोग आपको समाज में मिलेंगे। लोग या तो बहुत ही तामसी क्या सम्बन्ध है, ये बताने का प्रयास किया है। 'कल्की शब्द निष्कलंक शब्द से निर्मित हुआ है। निष्कलंक-माने जिस पर वृत्ति में रहेंगे, नहीं तो बहुत ही राजसी वृत्ति में इसमें तामसी वृत्ति में लोग शराब ही पिएंगे मतलब स्वयं को जागृत स्थिति से. सच्चाई से परे हटकर रखेंगे दूसरे प्रकार के लोग जो कुछ श्री कल्की पुराण में श्री कल्की अवतरण के बारे में सच्चाई है, सुन्दर है उसे नकारते रहते हैं। ऐसे लोग अहंकार से भरे हुए होते हैं। उसी प्रकार प्रति अहंकार से भरे हुए सुस्त, जड़ व लड़ाकू प्रवृत्ति के लोग दिखाई देते हैं। जो लोग बहुत होगा। संभाल शब्द का मतलब-भाल माने 'कपाल' और हो महत्वाकांक्षी होते हैं, वे आपस की होड़ में स्वयं को मजाक बना लेते हैं। ऊपर कहे गये दोनों तरह के लोग. एक तो बहुत स्थान हमारे कपाल पर है। इस शक्ति को श्री महाविष्णु की महत्वाकांक्षी, माने अहंकार से भरे हुए व दूसरे प्रति अहंकार से भरे हुए सहजयोग में बड़ी कठिनाई से आ सकते हैं परन्तु जो श्री येंश व श्री कल्की शक्ति के अवतरण के बीच लोग सात्विक वृत्ति के हैं या मध्यम (सन्तुलित) वृत्ति के हैं कालावधि में मनुष्य को स्वयं का परिवर्तन करके परमेश्वर के ऐसे लोग सहजयोग में जल्दी आ सकते हैं इस तरह जो लोग राज्य में प्रवेश करने का मौका है। इसी को बाइबल में 'अन्तिम बहुत ही सीधे हैं वे भी सहजयोग को बिना मेहनत के प्राप्त होते हैं। वे पार भी सहज में होते है। आपने देखा होगा कि गिने-चुने लोग आएगे, परन्तु के राज्य में प्रवेश के लिए ठीक है और कौन नहीं, इसकी गाँवों में हम जाते हैं तो पांच से छः हजार लोग आते हैं। और विशेषता ये है कि सभी के सभी लोगों को आत्म-साक्षात्कार कलक या दाग नही हो। इसका मतलब अत्यन्त शुद्ध एवं निर्मल है। बहुत कुछ लिखा है। उसमें ये कहा है कि श्री कल्की का अवतरण इस भृतल पर संभालपुर गाँव में एक सफेद घोड़े पर संभाल माने भाल प्रदेश पर स्थित अर्थयात् श्री कलकी देवता का हननशक्ति भी कहते हैं। मा निर्णय' या (The last judgement) कहा है। इस भूतल के हर एक मनुष्य का ये अन्तिम निर्णय होने वाला है। कौन परमेश्वर सहजयोग के लिए शहर के कुछ छंटनी होने का समय अब आया है। सहजयोग से सभी का अन्तिम निर्णय होने वाला है। हो सकता है बहुत से लोगों को ये बात अद्भुत लगे परन्तु ये अजीब होकर भी सत्य है। मां के प्यार से कोई व्यक्ति सहज में पार (आत्मा-साक्षात्कारी) होता है और इसलिए ऊपर कही गई अन्तिम निर्णय' की बात इतनी सुन्दर, नाजुक व सूक्ष्म बनायी गई है उसमें किसी को भी विचलित नहीं होना है। मैं आपको बताना चाहती हूँ कि सहजयोग से ही आपका अन्तिम निर्णय होने वाला है। आप परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लायक हैं कि नहीं इसका निर्णय सहजयोग द्वारा ही होने वाला है। की अनुभूति प्राप्त होती है। इसका कारण यह है कि शहरी मनुष्य जरूरत से ज्यादा की कार्यमग्न होता है। उन्हें लगता है परमेश्वर की खोज के लिए शहरी लोगो को समय नहीं है। उन्हे लगता है ये बातें फिजूल की हैं, इसलिए अपना समय क्यों नष्ट करें? इस संदर्भ में मुझे ये बात कहना जरूरी है कि सहजयोग ही आपको सही रास्ते पर ले जा सकता है व परमेश्वरी ज्ञान मूलत: खोलकर बता सकता है। सारे परमेश्वर के खोजने वालों को सहज ही परमेश्वरी ज्ञान खुलकर बताया जा रहा है। ये सारा सहज में होता है। आपको अपना आत्म-साक्षात्कार बिना कष्ट उठाये मिलता है। इसलिए आपको कुछ भी देने की जरूरत नहीं है। और कोई भी कष्टप्रद आसन भी करने की जरूरत नहीं है। बहुत से लोग अलग अलग कारणों से सहजयोग की तरफ बढ़ते हैं। समाज में कई लोग बहुत ही साहसी वृत्ति के, जड़-वृत्ति के, या सुस्त होते हैं। ये लोग पिंगला या ईडा नाडी पर कार्यान्वित होते हैं। इसमें कुछ लोग मदिरापान अथवा इसी तरह का कुछ पीते हैं व इससे ऐसे लोग सत्य' से भागते हैं। दूसरे तरह के कुछ लोग पिंगला नाड़ी पर कार्यान्वित होते हैं और बहुत भी महत्वाकांक्षी होते हैं, स्वतंत्रता चाहते हैं और उनकी अपेक्षाएं इतनी विशेष होती हैं कि उससे उनकी दूसरी नाड़ी (इड़ानाड़ी) पूर्णत: खराब हो जाती है. उससे परमेश्वर से करक ह परन्तु एक बात पक्की ध्यान में रखनी चाहिए। आत्म-साक्षात्कार के बाद परमेश्वर के राज्य में प्रस्थापित होने दूर तक बहुत बाधाएं हैं, और श्री कल्की शक्ति का सम्बन्ध इसी से जुड़ा है। आत्म साक्षात्कार प्राप्त होने के बाद भी जो लोग अपनी पुरानी आदतों और प्रवृत्तियों में मग्न होते हैं, उनकी स्थिति को 'योगभ्रष्ट' स्थिति कहते हैं । उदाहरण के चैतन्य लहरी खंड 23 : X अंक : 9, 10 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-25.txt रूप में कोई व्यक्ति पार होने के बाद भी अहंकार वृत्ति में व्यर्थ हो गया। श्री कल्की देवता की शक्ति सहजयोगियों के फंसा है या पैसे कमाने में ही मग्न है, या अपनी तानाशाही साथ गुरुता से प्रत्येक क्षण कार्यान्वित रहती है। श्री कल्की देवता सहजयोगी की पवित्रता की रक्षा स्वयं के एकादश सकता है और ऐसे ग्रुप पर वह व्यक्ति अपना बड़प्पन स्थापित शक्ति के साथ करते हैं। जो कोई सहजयोग के विरोध में काम कर सकता है। परन्तु इसमें थोड़े दिनों बाद ऐसा मालूम करेगा उन सभी को बहुत परेशानी होगी इतिहास को देखा होगा कि वह जाए तो लोगों ने अनेक संत पुरुषों को वहत परेशान किया। परन्तु अब वे आप संतो को, साधु लोगों को परेशान नहीं कर सकते, क्योंकि श्री कल्की देवता की शक्ति पूर्णरूप से से दूर हो जाते हैं और उनका भी सर्वनाश हो सकता है। कार्यान्वित है। जो मनुष्य सीधा-सादा है, संत है, उसे परेशान ऐसा सहजयोग में आकर भी घटित हो सकता है। इस बंबई में किया तो कल्की शक्ति आपको कहीं का नहीं रखेगी और उस समय आपको भागने के लिए ये पृथ्वी भी कम पड़ेगी। ऊपर दी गई बातें केवल सहजयोगियों को ही नहीं, सहजयोग में मनुष्य को संपूर्ण स्वतन्त्रता होती है। किसी व्यक्ति अपितु दुनिया के सारे लोगों के लिए है और इसलिए आप सभी को सावधानी से रहना पड़ेगा। औरों को मत सताओ, निर्भर है। कुछ सच्चे व महान गुरुओं के पास अलग तरह की उनकी अच्छाइयों का दुरुपयोग मत करो, और अपना रुतवा, बडप्पन जेताकर व्यर्थ बातें मत बनाओ। क्योंकि कल्की देवता ने आपके जीवन में संहार कार्य की शुरूआत की तो आप हतप्रभ 'क्या करें और क्या न करें" की स्थिति आ सकती है। प्रस्थापित करने में अति मग्न है, तो वह व्यक्ति कोई ग्रुप बना व्यक्ति परमेश्वर से, सच्चाई से. वंचित हो गया, और अन्त में उसका सर्वनाश हो गया। उसके बाद उस व्यक्ति से सम्बन्धित लोग भी सच्चाई से यानी परमेश्वर ऐसी अनेक घटनाएं बार-बार हुई हैं। इसे 'योगभ्रष्ट' कहना चाहिए। इसमें कोई व्यक्ति अपने योग से च्युत होता हैं क्योंकि की योग में बढोतरी या अधोगति उस व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर योग-साधना सिखाई जाती है। उससे साधक का अन्तःकरण द होता है और जीवन बचपन से ही शिष्ट बनाया जाता है। शुद्ध और उस साधक में शारीरिक एवं व्यक्तित्व निर्माण किया जाता इसी प्रकार जब आप अज्ञानता से या अनजाने में किसी दुष्ट व्यक्ति को भजते हैं या उसके संपर्क में होते हैं, तब आपको भी इससे परेशानी उठानी पड़ती है। ऐसे समय किसी निष्पापी (मासूम) मनुष्य को भी तकलीफ होती है । तो किसी गैर व्यक्ति के कारण आप पागल मत बनिए। अगर ऐसा किया है। उसका स्वभाव व उसका पूरा व्यक्तित्व ही बदल दिया जाता है। लेकिन सहजयोग में सभी बातें आपकी स्वतन्त्रता पर निर्भर होती हैं। ये सारी बातें समझने के लिए आपको हमेशा उस परमेश्वरी शक्ति के साथ सामूहिक चेतना में जुड़ा हुआ रहना अत्यन्त आवश्यक है। हर-एक चीज़ का इस संसार में बिलकुल सही ढंग से तो उसकी कीमत आपको चुकानी पड़ेगी। नियमन रहता है। उसी प्रकार सहजयोग में भी है। सहजयोग में आकर आप दिखावा नहीं कर सकते । किसी विशेष होते हैं उस समय आप कहीं पर एडजस्टमैन्ट (मन को मारते बात के लिए ग्रुपवाजी नहीं कर सकते। सहजयोग में आने हैं) करते हैं । फिर आप सोचते हैं कि. उसमें क्या हुआ? के बाद इस प्रकार के लोगों का बहुत जल्दी भंडा फूटता फलाने-ढिकाने हमारे पुरखों के समय से पंडित हैं, तो उन्हें है। क्योंकि ऐसे कृत्य करने वाले लोगों के सारे चक्रों पर जोरों कुछ देना ठीक रहेगा। आप जरा सोचिए कि, पवित्र प्यार की की पकड़ आती है और उसकी जानकारी उन व्यक्तियों को गंगा एक जगह से बहती है और उन्हीं के किनारों पर बैठकर नहीं रहती है। ज्यादा से ज्यादा उन्हें चैतन्य लहरियों की संवेदना परमेश्वर के नाम पर आपसे कोई पैसे ऐंठता है। कितना रह सकती है, परन्तु थोड़े समय में ही ऐसे लोगों का नाश होता है। जिस समय आप किसी गैर व्यक्ति के कारण प्रभावित पागलपन और अधूरापन है? उसमें आपको लगता है कि हमने उन पुजारियों को पैसे देकर कितना पुण्य कमाया है? इस प्रकार की 'योगभ्रष्ट' स्थिति किसी सहजयोगी को आना बड़ी बुरी घटना है। एक तो योग घटित होना ही वड़ा कठिन काम है। उसमें भी योग घटित होने के बाद अगर इस प्रकार की 'योगभ्रष्ट' स्थिति पैदा हो रही है, तो वह व्यक्ति श्री कृष्णजी के अनुसार राक्षस-योनि में जाता है। जो लोग सहजयोग में आते हैं उन्हें इसमें जमकर करते रहते हैं। पाप क्षालन ( धोना) करने के बदले पापों में टिकना पड़ेगा. नहीं तो वे योग को प्राप्त न होकर किसी न किसी योनि में जा गिरेंगे। उसके बाद कदाचित् उन लोगों का फिर से मनुष्य जन्म हो सकता है. परन्तु उन का ये पूरा जीवन के' कहना चाहिए। ऐसे लोग किसी भी व्यक्ति की ओर इसे तरह सत्य क्या है, ये न समझकर हम अंधविश्वास से जिन्दगी जीते हैं। ये भारत में ही नहीं इस दुनिया में सभी जगह देखने को मिलता है। कितनी बातें हम आंखें से देखते हैं. फिर भी मंदिरों में जाकर अंधविश्वास से अनेक बातें करते हैं। परमेश्वर के नाम पर, एक के पीछे एक ऐसे अनेक पाप हम वृद्धि करते हैं। ऐसे लोगों को मै 'तामसी' कहती हैँ। ऐसे लोग अपना दिमाग जरा भी नहीं लगाते। इसलिए उन्हें 'मूढ़ बुद्धि चैतन्य लहरी । खंड : X अंक : 9 10 1998 24 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-26.txt विरोध में है वह सब गलत है। फिर वह कल हो या आज हो आकर्षित होते हैं। वह कोई भी चमत्कार की घटनाएं सुनने के बाद तुरन्त उस पर विश्वास करते हैं। चमत्कार करने वालों ने परदेश में जाकर बहुत से लोगों से पैसे ठगे हैं। उस पैसों के बदले में उन्हें पक्षाघात या पागलपन इस तरह की बीमारियां भी साथ दे दीं। इतना होने पर भी कितने ही लोग ऐसे चमत्कार करने वालों के पीछे पागलों की तरह भागते हैं और अपने पापों या 1000 साल पहले हो, कभी भी हो बह गलत ही आजकल एक नयी बात देखने की मिलती है "उससे क्या हुआ? क्या गलत बात है?" इस तरह के सारे प्रश्नों के उत्तर कल्की शक्ति देगी। मैं केवल फिर से एक बार आपको इशारा दे रही हूँ कि गलत मार्ग का अवलंबन मत करिए। जो आपकी उत्क्रान्ति के विरोध में है वह मत करिए। ऐसा करोगे तो एक समय ऐसा आएगा जब आप क पास किये हुए कृत्यों का पछतावा करने के लिए भी समय नहीं रहेंगा। उस समय उसमें क्या हुआ? ऐसे सवाल पूछने का भी समय नहीं रहेगा। एक क्षण में श्री कल्की आपका सहार करेगी। ऐसा कहते हैं में वृद्धि करवाते है। आपको जो कुछ समय मिला है, वह सब आपातकाल (emergency) की तरह और महत्वपूर्ण है और इसीलिए आपको 12 स्वयं आत्म साक्षात्कार के लिए सावधान रहना चाहिए। इसमें किसी को भी दूसरा पर निर्भर नहीं रहना है। अपने आप स्वयं साधना करके परमेश्वर के हृदय में ऊंचा स्थान प्राप्त करना चाहिए, अर्थात इसके लिए सहजयोग में आकर स्वयं पार होना जरूरी है, क्योंकि पार होने के बाद ही साधना की जा सकती है। जिस समय कल्की शक्ति का अवतरण होगा उस समय जिन लोगों के हृदय में परमेश्वर के प्रति अनुकम्पा (अद्धा) व प्रेम नहीं होगा या जिन्हें आत्मसाक्षात्कार नहीं चाहिए होगा. ऐसे सभी लोगों का हनन (नाश) होगा। उस समय श्री कल्की किसी पर भी दया नहीं करेंगे। वे ग्यारह रुद्र शक्ति से सिद्ध हैं। उनके पास ग्यारह अति बलशाली विनाश शक्तियां है। इसलिए व्यर्थ की बातों में अपना समय नष्ट मत करिए। चमत्कार दिखाने वाले अगुरुओं के पीछे 'भगवान भगवान' करके मत दौड़िए। जो सही है उसी को अपनाइए। नहीं तो श्री कल्की शक्ति का अपनी सारी शक्तियों के साथ कि उस समय सारा काम प्रचंड होगा। हर एक व्यक्ति अलग अलग छांटा जाएगा उस समय कोई भी कुछ नहीं कह सकेगा। देखिए सब का विज्ञापन है। सब कुछ छपा हुआ है। एक माइक्रोफोन जो विज्ञान के कारण बनाया गया है वह भी सहजयोग के प्रचार कार्य के लिए इस्तेमाल होता है। अगर मैंने माइक्रोफोन अपने चक्रों पर रखा तो उस माइक्रोफोन में से भी चैतन्य लहरियां बहती हैं। उसका प्रत्यक्ष अनुभव लोगों ने किया है और कर सकते हैं। उन चैतन्य लहरियों से आपको आत्म-साक्षात्कार प्राप्त हो सकता है। पूरा विज्ञान सहजयोग के काम आने वाला है। कुछ दिन पहले दूरदर्शन के कुछ लोग मेरे पास आये। कहने लगे "माताजी दूरदर्शन पर हमें आपका कार्यक्रम रखना है।" उस समय मैंने उन लोगों से कहा, 'कोई भी कार्यक्रम रखने से पहले आप संभल के रहिए। मुझे विज्ञापन की जरूरत नहीं है। जो कुछ भी करोगे सही ढंग से करिए। दूरदर्शन के माध्यम से सहजयोग फेल सकता है। जिस समय दूरदर्शन पर मेरा कार्यक्रम होगा उस समय लोग अपने टी.वी. सैट के सामने हाथ फैलाकर बैठेंगे तो बहुत से संहार करने के लिए अवतार लेकर आने का समय बहुत নजदीक गया है। ति कुछ दूसरे तरह के लोग होते हैं । वे हमेशा अपनी चालाकी और बृद्धिमानी पर विचार करते हैं। उन्होंने हमेशा परमेश्वर को नकारा है । ऐसे लोग कहते हैं "परमेश्वर कहाँ हैं? परमेश्वर वगैरा है। Science (विज्ञान) यही सब कुछ है। मैं कहती हैं आज लोगों को आत्मसाक्षात्कार की अनुभूति मिल सकती है। ये वास्तविकता है मेरे इस शरीर से चैतन्य लहरियां बहती हैं, ये कुछ भी नहीं है, ये सब कुछ Iraid (धाखा) वास्तविकता है। इसके कारण किसी को भी क्रोधित होने का कारण नहीं । अगर मैं इस तरह की बनायी गयी हूँ तो इसमें आपको बुरा मानने का नहीं। म तक साइन्स से क्या हुआ। आप देख तो समझ में आएगा। साइन्स ने अभी तक बेजान चित्रों के सिवाय कुछ नहीं बनाया। विज्ञान की वजह से आप केवल अहंकारी बने हैं। यश्चिमी दूसरा प्रकार अहंकारी और महत्वाकांक्षी लोगों के साथ दिखायी देता है। किसी के पास बहुत धन-संपत्ति है ऐसे मनुष्य के पास जाकर पूछिए क्या वह सुखी और खुश है? उसके जीवन को जरा गौर से देखिए। जो कहलवाते हैं उनकी पास जाकर देखिए उन्होंने कौन-सी कामयाबी हासिल की है? उन्हें कितने लोग सम्मान देते हैं ? उनकी पीठ फिरते ही लोग कहते हैं, 'हे भगवान इनसे छुटकारा दिलवा दो। आप मंगलकारी हो क्या? आपके दर्शन से औरों को सुख होता है क्या? आप मंगलमय हो क्या। यह देखिए। देशों में हर एक मनुष्य अहंकारी है। पाप वृद्धि कैसे करनी है, उसके संबंध में वे अनेक जानकारियां खोज निकालते हैं । गन्दे अपने आपकी कामयाव से गन्दा पाप कंसे करना है, इसी में वे व्यस्त हैं। उसी में भारत से कुछ लोग जो अपने आप को बहुत बड़े अगुरु समझते हैं और कहलवाते हैं, वे गये हैं। वे उन्हें ऐसे पाप बृद्धि में मदद करते हैं । उससे ये सब लोग जल्दी ही नर्क में जाने वाले हैं जो कुछ गलत है वह गलत ही है। जो कुछ हमारे धर्म के खंड : X अंक : 9. 10 1998 बेतन्य लहरी 25 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-27.txt कृष्णस्थित गुणधर्म है। परन्तु उस परमेश्वर की करुणा समझने के लिए अगर हम असमर्थ साबित हुए तो इस कल्की शक्ति का विस्फोट होगा और पूरी क्षमाशीलता आप पर संकटों की आपका व्यक्तित्व किस तरह का है स्वयं का निर्णय स्वयं करना है ये सब सहजयोग में ही घटित हो सकता है। आप गलत रास्ते से गये तो आप में से बहुत गन्दी-लहरियां (bad vibrations) आएंगी। अनजाने में आप अनेक पाप करते तरह आएगी। श्री कृष्ण ने स्पष्ट कहा है कि अपने विरोध में रहोगे और फिर भी मुझसे कहते रहोगे "माताजी में बहुत अच्छा हूँ, मुझे चैतन्य लहरें आ रही हैं" ऐसे लोग अपने आपको और दूसरों को ठगते हैं। आपका निर्णय कौन करेगा? आपका ही कर्म। आपने दूसरों पर कितने उपकार किये? किसी मोहिनी विद्या वाले (अविद्या या काली विद्या) आदमी पर भरोसा करके आप अपने घर के सदस्यों का नाश करना चाहते हैं क्या? कम से कम घर के और सदस्यों के अवतारी पुरुष लिए सोचिए। समाज में अनेक तरह के गलत लोग हैं ऐसे लोगों से पूर्णतया दूर होना, सहजयोग में आकर सहज हो होंगी श्री बुद्ध की क्षमाशीलता व श्री महावीर की अहिंसा सकता है। लंदन में भी ऐसे गन्दे लोगों को लुभाने वाले अनेक शक्ति भी उलटकर गिरेगी, ऐसी ग्यारह शक्तियुक्त श्री कल्की लोग हैं, मुझे मालूम है। मैंने उन्हें बहुत बार बताया है कि आप देवता का अवतरण होने वाला है। उस समय सर्वत्र हाहाकार ये गलत रास्ता छोड़ दीजिए। आपको तुरन्त समझना चाहिए कि मचेगा और उसी समय सबका चयन होने वाला है। उस समय माँ ये सारी बातें समझती हैं। अगर आपकी माँ ने कोई बात आपसे कही तो वह माननी चाहिए। इसमें वाद-विवाद नहीं करना चाहिए। क्या आप को वाद-विवाद से चैतन्य लहरें प्राप्त होने वाली हैं? ऐसा सोचिए जरा। फिर भी आप सहजयोग में आकर गलतियां करते हैं। लेकिन ये बहुत गलत और बुरी बात है, ये समझ लीजिए, क्योंकि ऐसे योग-भ्रष्ट लोगों को मुक्ति देवी के अनेक अवतारों ने अनेक राक्षसों का नाश किया, पर नहीं मिलेगी। मुझे सारे सहजयोगियों को भी इशारा देना है क्योंकि तो वे कुछ चला लेंगे। लेकिन आदिशक्ति के विरोध में एक भी शब्द नहीं चलेगा। ऊपर निर्दिष्ट किया हुआ एक बहुत वड़ा अवतरण होने वाला है। ये पक्की बात है । ऐसे अवतारी व्यक्ति के पास श्री कृष्ण की सारी शक्तियां, जो केवल हनन (सर्वनाश) शक्ति, श्री शिव की हननशक्ति अर्थात् ताण्डव का एक हिस्सा, ऐसे सर्व -प्रकार की हनन शक्तियां होंगी उस के पास श्री भैरव का खड्ग होंगा श्री गणेश का फरसा होगा. श्री हनुमान की गदा और विनाश की सिद्धियां सहजयोग भी किसी को नहीं बचा सकता क्योंकि उस समय सहजयोग भी समाप्त हुआ होगा। आप सहजयोग से भी अलग किये जाओंगे और प्रत्येक मनुष्य परमेश्वर को सही लगने वाला निकाला जाएगा। बाकी के लोगों को मारा जाएगा और ये हनन ऐसा वैसा न होकर संपूर्ण जड़ का ही नाश होगा। पहले राक्षसों ने फिर से जन्म लिया। परन्तु अब संपूर्णत: नाश होने वाला है जिससे पुनः जन्म की भी आशा नहीं रह सकती। अभी जो स्थिति है वह भिन्न है और उसे समझने की आप कोशिश करिए। श्री कृष्णजी ने कहा है कि " यदा यदा सहजयोग ही आखिरी न्याय है। आप परमेश्वर के राज्य के लिए सही हैं या नहीं. इसकी जांच-पड़ताल ही सहजयोग है। आप सहजयोग में आकर पार होकर परमेश्वर के राज्य के ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भरत, परित्राणाय साधूनां विनाशायच नागरिक बन सकते हैं। उसके पहले आपको परमेश्वरी प्रेम व परमेश्वरी ज्ञान समझने की पात्रता भी नहीं होती है। समझ लीजिए आप भारतीय गणराज्य के नागरिक हैं और आपने कोई लोगों का, बुरी प्रवृत्तियों का नाश करने के लिए. और आगे गुनाह किया. तो आप सजा के पात्र हैं। उसी प्रकार परमेश्वर वे कहते हैं कि साधु और संतों को बचाने के लिए मैं पुन: के राज्य के बार में भी है और इसलिए परमेश्वरी राज्य की जन्म लूगा । कलियुग मे सीधा सादा, भोला साधू संत मनुष्य नागरिकता मिलने के बाद आप सभी को बहुत ही सावधानी मिलना मुश्किल है क्योंकि अनेक राक्षसों ने मनुष्य की खोपड़ी बर्तनी पड़ेगी। दूसरी बात जो मुझे आपसे कहनी है वह है श्री कल्की देवता की विनाश-शक्ति के बारे में । श्री कल्की अवतरण के बदले बुरे मनुष्य पर विश्वास करते हैं । जो बुरे काम करता बहुत ही बहुत ही कठोर है। पहले श्री कृष्ण जी का अवतरण है उसकी जय जय करते हैं। एक बार जब हमने बुरे मनुष्य हुआ। उनके पास हनन शक्ति थी। उन्होंने कंस और राक्षसों को मारा। बहुत छोटे-से थे वे तभी उन्होंने पूतना राक्षसी को कैसे की तरफ बढ़ने लगती है ओर ये सब आपकी बुद्धि में इस ये आपको मालूम है। परन्तु श्री कृष्ण 'लीला' भी करते थे वे करुणामय थे । उन्होंने लोगों को बहुत बार छोड़ दिया, क्षमा किया। श्रीकृष्ण क्षमाशक्ति से परिपूर्ण थे क्षमा करना श्री दुष्कृतां संभवामि युगे युगे " अब इस श्लोक के आखरी लाइन में श्री कृष्ण कहते हैं कि "विनाशायच दुष्कृता" मतलब दुष्ट Ime में प्रवेश किया है। इसलिए धर्म के नाम पर राजनीति में शास्त्रों में, शैक्षणिक क्षेत्र में हर एक क्षेत्र में हम अच्छे मनुष्य का साथ दिया कि अपनी प्रवृत्ति भी अनजाने में गलत बातों तरह जड़ होकर बैठता है कि आप अपने आपको उस जड़ता की तरफ से हटा नहीं सकते फिर उन दुष्कृत्यों से आप कैसे मारा, मुक्त होंगे? या उन दुष्कृत्यों को कैसे नष्ट करोगे? आप एक चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 9, 10 1998 26 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-28.txt लिए, और प्राप्त होने के बाद आत्मसात करने के लिए, आप बहुत अच्छे स्वभाव के और बड़े इंसान हो, परन्तु आपकी खोपड़ी में दुष्कृत्य भी जड़स्वरूप में बैठे हैं, तब आपका भी विनाश होगा। इससे कोई मनुष्य सचमुच परमेश्वर प्राप्ति के लिए पोषक या विरोधक है ये कहने के लिए ठोस नियम नहीं कहा जाएगा। केवल सहजयोग से ही मनुष्य की सफाई होगी और उससे वह व्यक्ति परमेश्वर प्राप्ति के लिए पोषक बनाया जा सकता है। ये एक ही बात ऐसी है कि जिससे आपकी अंकुर शक्ति प्रस्फुटित होकर आपको आत्म साक्षात्कार प्राप्त करा सकती है। आप स्वयं को माने अपने 'स्व' को, जान सकते हैं और उसी का आनन्द लूट सकते हैं। जिस समय ऐसा अपना समय उसे दीजिए। अब तक जो सहजयोग में कहा गया है वह सभी TI जीवन्त प्रक्रिया है। जिस समय नये लोगों का सजहयोग की तरफ बढ़ना बिल्कुल खत्म हो जाएगा उस समय कल्की शक्ति का अवतरण होगा, तो देखते हैं सहजयोग की तरफ कितने लोग बढ़ते हैं। अर्थात् कितने लोग आएंगे, उसकी भी मर्यादा है। इसलिए मैं फिर एक बार आपसे विनती करती हूँ। आपके जितने भी मित्र परिवार हैं, रिश्तेदार हैं, अड़ौसी-पड़ौसी हैं उन सबको लेकर आप सहजयोग में आइए। जब इस बबई में बहुत से लोग अपार श्रद्धा से. गंभीरता अलग हो जाती हैं। आपमें जो भ्रम है वह नहीं रहेगा। और से सहजयोग में प्रस्थापित होंगे, सहजयोग में आकर प्यार से इसलिए आप अपना समय नष्ट नहीं करके तुरन्त पूर्ण श्रद्धा से मिल-जुलकर रहेंगे उसी समय मुझे बहुत खुशी होगी। इस 'सहजयोग' को स्वीकार करिए। यह अत्यन्त आवश्यक है। बम्बई में सारे भारत देश के हजारों बुद्धिमान और सात्विक इससे भूतकाल में हुई गलतियां, पाप इन सबसे आपको मुक्ति लोग हैं जो इस भारत भूमि के भूषण हैं पर वे अभी भी हृदय मिलेगी। ये एक ही बात ऐसी है कि जो आप अपने मित्रों को, से छोटे हैं उन्हें मुझे ये ऊपर बतायी गई बातें जरूर कहनी हैं। क्योंकि अब थोड़े ही समय में बहुत-सी मुश्किलें आने वाली कुछ लोग, लोगों को खाना खाने को आमंत्रित करते हैं हैं मैं प्रार्थना करती हूं कि ऐसे संकटों की शुरुआत बंबई से ना हो। वम्बई तो एक-दो बार मुश्किलों से बची है। तो अब आनन्द मिलता है उस समय और मिथ्या बातें अपने आप ही रिश्तेदारों को और सभी को दे सकते हैं । ज्यादा से ज्यादा किसी के जन्म दिवस पर उसे केक देंगे या कुछ उपहार दंगे। क्रिसमस के समय लंदन में शुभेच्छा कार्ड भेजने की प्रथा है। तब पोस्ट ऑफिस में ऐसे का्डो का ढंर लगता है। तब और चिट्ठियां लोगों को 10-10 दिन नहीं सावधान रहिए। दूसरी बात ये कि, अभी तक बंबई के लोगों को पता नहीं उनके ऊपर कौन-सी वड़ी मुश्किल आकर गिरने वाली मिलतीं। इन सबमें यीशू के जन्मोत्सव पर वहां के लोग श्री है उन्हें ये भी पता नहीं कि परमेश्वर समस्त मानव को यीशू को पूर्णत: भूले हैं। उल्टे श्री यीशू के जन्म दिन पर वहां अमीबा से मनुष्य की स्थिति तक कैसे लाया है। परमेश्वर के लोग शेंपेन नाम की शराब पीते हैं। इतने महामूर्ख लोग हैं, प्राप्ति के मार्ग में एक दुर्देवी ये है कि इस देश के सभी लोग कोई मरेगा तब वे शेपेन पिएंगे । इतनी गंदगी है कि शेंपेन पीना बंबई के लोगों का अनुकरण करते हैं। बहुत से लोग परमेश्वर तटीयों प्राप्ति के लिए यत्न करने के बजाय सिने. नट या तो उनका धर्म हो गया है। उनको परमेश्वर की समझ नहीं। और समझेंगे भी कैसे? परमेश्वर के बारे में उनके मन में कपोल कल्पित मिथ्या Film actors or actresses) का अनुकरण करने में मग्न है। ये ( सब स्वभाव की उथलता है। श्री कल्की शक्ति का स्थान आपके कपाल के भाल विचार है। आप बहुत सावधान और सजग रहिए। अपने आप से ही मत खेलिए। 'स्वयं का नाश मत करिए। तुरन्त उठिए, प्रदेश पर है। जिस समय कल्की चक्र पकड़ा जाता है उस समय ऐसे लोगों का पूरा सिर भारी होता है। कुण्डलिनी को में जागृत हो जाइए। मेरे पास आइए। में आपकी मदद करूंगी। मैं आपके लिए रात-दिन मेहनत करने के लिए तैयार हूँ। मैं आपके लिए पूरी तरह कोशिश करूंगी, आपको अच्छा बनाने कुण्डलिनी ज्यादा से ज्यादा आज्ञा चक्र तक आ सकती है। के लिए । आपको परमेश्वर प्राप्ति के मार्ग पर लाने के लिए परन्तु फिर से कुण्डलिनी नीचे जा गिरती है। अगर आपने मैं सारी कोशिशें करूंगी। परमेश्वर प्राप्ति के लिए अन्तिम परीक्षा पास करने के आपकी भी स्थिति एसी हो सकती है। इसलिए श्री कल्की लिए मैं आपके लिए मेहनत करूंगी। परन्तु इसमें आपको मुझे शक्ति का एक हिस्सा खराब हो सकता है और इससे एक सहयोग देना होगा। ये सब प्राप्त करने के लिए आपको भी सर्वोपरि कोशिश करनी होगी और आअपने जीवन का ज्यादा से ज्यादा समय सहजयोग में व्यतीत करना चाहिए। सहजयोग जो ही कीमती है, जो बहुत महान है। वह प्राप्त करने के अपने उस चक्र के आगे नहीं ले जा सकते। ऐसे मनुष्य अपना सिर गलत लोगों या अगुरुओं के पांव पर रखा होगा तो तरफ का असंतुलन निर्माण हो सकता है। पूरे कपाल पर अगर एक-दो फोड़े होंगे तो समझना चाहिए कि आपका कल्की चक्र खराब है। अगर कल्की चक्र खराब होगा तो ऐसे व्यक्ति पर निश्चित ही बहुत बड़ी मुश्किल (आपत्ति) आने वाली है। बहुत चैतऱ्य लहरी खंड : X अंक : 9, 10 1998 27 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-29.txt की वर्षा करते हैं । परमेश्वर बहुत करुणामय है, कितने करुणामव है इसकी आप कल्पना नहीं कर सकते। वे करुणा के सागर पर साधारण से ज्यादा गर्मी लगती है। किसी व्यक्ति के श्री हैं परन्तु वे जितने करुणामय है उतने ही वे क्रुद्ध भी हैं। अगर उनका कोप हो गया तो बचना बड़ा मुश्किल है। फिर उन्हें (कैंसर) या महारोग इस तरह की बीमारियों से पीड़ित होगा या कोई नहीं रोक सकता। मेरे प्यार की आवाज भी उस समय ऐसे व्यक्ति पर महाआपत्ति आने की सूचना है। इसलिए श्री नहीं सुनी जाएगी। क्योंकि वे उस समय कह सकते हैं कि "माँ. आपने बच्चों को छूट दे दी और बच्चे बिगड़ गये।" इसलिए मैं आपसे कहना चाहती हूँ कि कोई भी गलत या बुरे कृत्य मत करो। उससे मेरे नाम पर बुराई मत लाओ। आपकी जिस समय अपने कल्की चक्र पर पकड़ होगी उस समय अपने हाथों, सभी उंगलियों पर और हथेली पर और पूरे बदन कल्की शक्ति के चक्र में पकड़ होगी तो ऐसा व्यक्ति कर्करोग कल्की चक्र को बहुत साफ रखना पड़ेगा। इस चक्र में ग्यारह और चक्र हैं। ये चक्र साफ रखने के लिए इस चक्र के ग्यारह म चक्रों में ज्यादा से ज्यादा चक्र साफ रखना बहुत जरूरी है। उनकी वजह से और छोटे छोटे चक्र चालित कर पाते हैं। अगर है कि ये सारी मा का हृदय इतना प्रम से भरा, इतना नाजुक बातें आपको बताते हुए भी मुझे मुश्किल लगता है। मैं फिर से आपको विनती करके बताती हूँ कि अब व्यर्थ समय मत ब्याद कीजिए क्योंकि पितामह परमेश्वर बहुत कुपित हैं आपने अगर कोई बुरा कृत्य किया तो वे आपको सजा देंगे। परन्तु अगर आपने उनके लिए या अपने स्वयं के आत्म-साक्षात्कार के लिए कुछ किया तब आप को परमेश्वर के राज्य में अति उच्च पूरे के पूरे ग्यारह चक्रों पर पकड़ होगी तो ऐसे व्यक्तियों को आत्मसाक्षात्कार देना बहुत ही कठिन होता है। अव श्री कल्की का चक्र साफ रखने के लिए क्या करना है वह देखते हैं। सर्वप्रथम हमें परमेश्वर के प्रति अत्यन्त आदर, प्रेम और उनके प्रति आदरयुक्त भय (awe) दोनों ही चाहिए। अगर आपको परमेश्वर के प्रति प्यार नहीं होगा, आदर नहीं होगा या कोई गलती या पाप करते समय परमेश्वर का पद मिलेगा। आज आप करोड़पति होंगे, आप बहुत अमीर होंगे या बहुत बड़े पुजारी या वैसे ही कुछ होंगे परन्तु जो परमेश्वर को प्रिय है, जो मान्य है, उन्हीं को परमेश्वर के राज्य में उच्चतम पद पर विराजमान किया जाएगा। आपके रईस या लखपति बनने पर भी आप का परमेश्वर के राज्य में प्रवेश होगा, ये भय नहीं लग रहा है, उस समय श्री कल्की शक्ति अपने अति क्षोभ से (क्रोध से) सिद्ध है, सज्ज है । अगर आप गलती कर रहे हो और उसके प्रति आपके मन में परमेश्वर का जरा भी डर या भय नहीं है तो समझ लीजिए आपके लिए ये देवत्व (divinity) बहुत ही जहाल है। आप अगर पाप कर रहे हैं या गलती करते हैं तो उसमें मुझसे या और किसी से छिपाने की जरूरत नहीं है। अब अपने आपको ये मालूम है कि आप ये अगर आपका विचार है तो वह बहुत गलत है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि 'परमेश्वर' प्राप्ति के लिए हम कहा हैं ये देखकर गलत काम कर रहे हैं। अगर आप पाप कर रहे हों और आपके हृदय में आपको महसूस हो रहा है कि हम पाप कर रहे हैं तो कृपा करके ऐसा कुछ मत करिए। जिस समय आपको परमेश्वर के प्रति आदर, भय और प्रथम अपना परमेश्वर से संबंध घटित होना आवश्यक है। स्वयं की आत्मा कहां है? परमेश्वर से हम किस तरह सबंधित हो सकते हैं, इन सारी बातों का रहस्य सहजयोग प्राप्त होने के बाद ही समझा जा सकता है। साधकों को सहजयोग में आकर प्रेम रहता है उस समय आप जानते हैं कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, वही हमारी देखभाल कर रहा है, और वही हमारा उद्धार कर रहा है। शक्ति के कारण वे हमारे ऊपर कृपा-आर्शीवाद उत्थान प्राप्त कर अपना कल्याण कर लेना चाहिए। सभी को अनन्त आशीर्वाद (परमपूज्य श्री माताजी के मराठी भाषण का हिन्दी रूपान्तरण) ाड ा हुर च बा शपत तलि कम किट चैतन्य लहरी । खंड : X अंक : 9 10 1998 28 की 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-30.txt को भा का ी कम का म आप जिस चीज का आनन्द लेते हैं, वह है सामूहिकता। स्वरचित अर्थहीन सीमाओं से मुक्त होकर सामूहिकता का आनन्द लें।" ज,दि.पूजा 21.3.97 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_9,10.pdf-page-31.txt ा २४ ध्यान-पथ रख चित्त सदा समर्पित श्री मा निर्ल के श्री चरणन में करो प्रार्थना शुद्ध हृदय से, ध्यान स्वतः हो जाएगा।। न कर्म काण्ड, न योग तप, न तीर्थ यज्ञ कुछ काम आएगा। जो पूजे नित्य हृदय में श्री निर्मल मां के श्री चरणन को परमपद स्वतः पास आ जाएगा, ध्यान स्वतः हो जाएगा। बेव, असुर, मानव, त्रिपुर और त्रिलोक, हैं सब श्री आदि मां की रचना। छोड़ सब, तू थाम ले, श्री निर्मल मां के प्रेमांचल को सर्व-त्रिताप नाश हों. पार स्वतः लग जायेगा | ध्यान स्वत: हो जायेगा। मांग शुद्ध ज्ञान श्री मां से, जो रखे चित्त सदा समर्पित श्री मां चरणन में करे विस्तरित प्रकाश आत्मा का, अन्दर और बाहर में अहंकार कर सम्पूर्ण समर्पित, श्री मां की महिमा गाने में जो ध्याये श्री मां को सदा हदय में अनन्य भक्ति-रस में स्वतः डूब जाएगा| ध्यान स्वतः हो जायेगा विचारों के बादल छंटने से बायु का वायुपन स्वतः समाप्त हो जायेगा चिदाकाश आत्म स्वरूप में मग्न हो, ओंकार (ॐ) की अर्धमात्रा में स्वत: विलीन हो जायेगा तोड़कर चित्त के भटकने की आदत, हो निश्चल हृदय के शून्य महल में स्वयं त्रिगुणातीत हो, निर्मलानन्द बीच समायेगा। ध्यान स्वतः हो जायेगा निर्विचारिता की माटी से, घड़ो श्री निर्मला मां की मूरत भक्ति-अद्धा से करो स्थापित, बीच हुदय के प्रांगण में कर प्रार्थना श्री गणेश की, निर्विचारिता में आ जाओ। कर भरोसा दृढ़ हृदय में, ठहर जरा, ध्यान बीज स्वतः अंकरित हो जायेगा। ध्यान स्वतः हो जायेगा। त ा घ्यान बीज धारित होने पर ही, ध्यान सही कहलाता है। घारित ध्यान ही घ्लावित हो कर, साक्षी भाव में आता है। साक्षी भाव जब धारित हो, शिवतत्व प्राप्त कराता है धारित साक्षी भाव में जो ध्याये सवा श्री निर्मल मां श्री चरणन को वह स्वयं ही शिव-तुल्य हो जायेगा।॥ ध्यान स्वतः हो जायेगा श्री चरणों में समर्पित