११৪ य१8 चैतन्यलहरी खण्ड X अंक 11, 12 ा ा र हमें परस्पर एक होना होगा। सहजयोग में आने और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् यदि आप ये संवेश नहीं समझ पाए कि हमें एक होना है - एक इकाई, एक शरीर आप यदि ऐसा नहीं कर सकते, अन्य चीजों से यदि आपकी एकाकारिता है तो किसी भी प्रकार से न आप उन्नत हुए हैं और न परिपक्व"। परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी र दि बम ार र] र २ ७ ओ देवी हमारी ढृष्टि (चक्षु) केवल आपके चमत्कारों से समस्यामुक्त विश्व को देखे और हमारे कान ( श्रवण) केवल आपकी स्तुति को सुने : होंठ हमारे गाएं केवल स्तुति आपकी, हाथों से करें केवल कार्य आपका, जीवन हमारा हो मात्र आपको रिझाने के लिए। इस अंक में पृष्ठ नं. ब मि सम्पादकीय 1. सहस्रार दिवस पूजा 2. का श्रीमाताजी का 75वां जन्मदिवस समारोह 3. 12 विश्व समाचार 4. 20 कुण्डलिनी शक्ति और श्री येशु क्रिस्त 5. 21 ४ योगी महाजन सम्पादक विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 अभिनव प्रिन्ट्स, दिल्ली 34, फोन मुद्रक : 7184340 म प्रत्छात सम्पादव नामोनिशान दिखाई न दिया। ऐसे बहुत से अनुभव हैं तेज गर्मी थी और श्रीमाताजी न अपने दांई और को नीचे लाकर तापमान पानी के गिलास को देखते हुए एक व्यक्ति कह सकता है कि यह आधा भरा हुआ है या यह भी कि यह आधा खालो है। जीवन के दुर्बल पक्ष को जब हम देखते हैं तो स्वयं को गिरा दिया। इस प्रकार हम भली-भांति जानते हैं कि प्रकृति पराजित करते हैं। उदाहरणार्थ किसी को यदि कहा जाए कि श्री 'क' को फोन करो तो बिना फोन मिलाने का प्रयत्न किए उत्तर मिलता है, "संभवत: वह घर पर न होगा " कार्य करने का प्रयत्न किए बिना यदि लोग उसमें आने वाली कठिनाइयों ज्योतित श्रद्धा बन गई है। हम जानते हैं कि चैतन्य लहरियां की कल्पना करने लगे तो वे अपने सम्मुख एक अजेय पर्वत हमारी शुद्ध इच्छाओं का वास्तविकरण करती हैं। परम चैतन्य खड़ा कर लेते हैं और इस प्रकार स्वयं को पराजित करते हैं। की शक्ति में हमारा विश्वास पूर्ण हो गया है। परम चैतन्य की मानसिक प्रक्रिया में हर चीज के लिए एक बहाना तैयार होता शक्ति को हम न केवल अपनी समस्याओं को समाधान के लिए है। उदाहरण के रूप में एक सहजयोगी ने राय दी. "एक जन कार्यक्रम करें" एकदम उत्तर मिला. हो न मिले।" हमें समझना होगा कि मानसिक प्रक्रिया रेखावत चैतन्य इन समस्याओं का समाधान करने में कभी कभी समय (Linear) हे। जो पुन: झटका देती है। तो इस पर काबू पाकर लेता है। नकारात्मकता दूर करने के लिए इसे समय लग सकता हम यह कहते हुए अपना दृष्टिकोण बदल लें, "निश्चित रूप से हमें सभागार मिलेगा, हम परमात्मा का कार्य कर रहे है।" हमारे पीछे जो शक्ति कार्य कर रही है हम उसे भली-भांति जानते हैं। अपनी मानसिक प्रक्रिया को इस शक्ति पर डालकर इसे सभी कार्य करने दें । अपनी जाते हैं। कल्पनाओं द्वारा हम चैतन्य लहरियों का बहाव रोक लेते हैं और स्वयं को थका लेते हैं। इस प्रकार अपनी ही प्रतिक्रियाओं से हम पराजित हो जाते हैं और थक भी जाते हैं । हमारा चित्त जब ( मध्य ) सहस्रार पर होता है तो कोई प्रतिक्रिया नहीं होती । भावनाओं से अभिभूत हुए बिना हम कार्यशील होकर बहुत से कार्य कर सकते हैं। श्रीमाता जी की कितनी आज्ञाकारी है। इसके अतिरिक्त बहुत से चमत्कारिक फोटो तथा असाध्य रोगों के ठीक होने के हजारो मामले हमारे सम्मुख हैं। इन अनुभवों से हमारी श्रद्धा (विश्वास) बि ि उपयोग करते हैं बल्कि अपने समाज, देश एवं विश्व की समस्याओं के समाधान के लिए इसका उपयोग करते हैं । परम "संभवत: हमें सभागार है। हमें याद रखना चाहिए कि समय (Time) मानवीय धारणा (Human Concept) हे। परम चैतन्य कालातीत है। समय जब हमारे मस्तिष्क पर हावी हो जाता है तो हम समय के बन्धन में पड़ जाते हैं और समयानुसार यदि कार्य न हों तो भयभीत हो परम चैतन्य क्योंकि समय के बन्धनों से परे है यह अपनी स्वतन्त्रता से कार्य करता है। हो सकता है कि जिस कार्य के होने की आशा हम कल कर रहे हैं परम चैतन्य उसे दस वर्षों के बाद करे दस वर्ष पूर्व श्रीमाता जी ने बहुत सी चीजें हमें बताई थी वो अब घटित हो रही हैं। परम चैतन्य जिस कार्य को ले लेता है उसे पूरा करता है। सदैव यह अपने वचन निभाता है। हमारे विश्वास की गहनता कुछ भी कर सकती है। परन्तु यह समय में बंधा हुआ नहीं है। जब भी यह कार्य को बन्धन की शक्ति के सहजयोगियों को असख्य अनुभव हैं। "वर्षा हो रही थी. हमें खुले में जन कार्यक्रम करना था। हमने वन्धन दिया और लो, अचानक सूर्य निकल आया।" "बहुत समय से बारिश नहीं हुई थी, फसलें सूख रही थीं, हमने बन्धन दिया और बारिश हो गई।" विश्व के किसी भी भाग में जब श्रीमाता जी पहुँचती हैं तो वहाँ का मौसम सुहावना हो जाता है। अभी हाल ही में (अगस्त 1998) कबैला में श्रीकृष्ण उनके चरण कमलों में, हम प्रार्थना करते हैं और उनके चमत्कारों पुजा के अवसर पर मौसम बहुत गर्म था। वहाँ एकत्र सहजयोगियों से चमत्कृत होते हैं। की संख्या सदैव से अधिक थी। लोग खुले में भी सो रहे थे। इसलिए खुष्क मौसम आवश्यक था। पूजा सम्पन्न होने तक मौसम ने सहयोग दिया। अगली सुबह तेज वर्षा हुई परन्तु तब तक सभी लोग जा चुके थे। तापमान अत्यन्त सुहावना एवम् स्वर्गीय हो गया। सिंतम्बर में नवरात्रि पूजा के अवसर पर कबैला में संगीत कार्यक्रम के समय वर्षा होती रही परन्तु पूजा के दिन चहुँ ओर सूर्य चमका और आकाश में बादलों का करता है उस घटना के लिए वहीं उपयुक्त समय होता है। इस क्षण हमारा कर्तव्य है कि अपना चित्त विश्व समस्याओं पर रखें और हृदय की गहराइयों से इनके समाधान के लिए श्रीमाता जी से प्रार्थना करें। अपने स्तर पर बन्धन देते रहें और समाधान के लिए परम चैतन्य पर पूर्ण विश्वास करें। हमारी परमेश्वरी माँ सर्वशक्तिमान हैं और दुर्जेय भी । उनके सम्पुख ओं देवी हमारी दृष्टि (चक्षु) केवल आपके चमत्कारों से समस्यामुक्त विश्व को देखें और हमारे कान (अवण) केवल आपकी स्तुति को सुनें : होंठ हमारे गाएं केवल स्तुति आपकी, हाथों से करें केवल कार्य आपका, जीवन हमारा हो मात्र आपको रिझाने के लिए। ी । खंड : X अंक : । 12 1998 बैतन्य लहरी सहस्रार दिवस पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन 10.05.1998 कबैला जब लोग भिन्न राष्ट्र बनाना चाह रहे थे, तो मैंने अपने देश में ही देखा है कि, ऐसा करने वालों ने कोई महान लक्ष्य प्राप्ति के लिए भिन्न राष्ट्र नहीं बनाया अपने ही दंश में स्वयं कुछ उच्च पद प्राप्त करने के लिए उन्होंने भिन्न राष्ट्र की रचना की। किसी ऐसे देश में वे न रहना चाहते थे जहाँ उन्हें यह आज का दिन अत्यन्त महान है क्योंकि आज सहस्रार दिवस है और मातृ दिवस भी। यह अत्यन्त सहज घटना है। मेरे विचार से हमें यह समझना है कि सहस्रार और मातृत्व साथ साथ क्यों चलते हैं। निश्चित रूप से सहस्रार को खोला गया और मां को यह कार्य करना पड़ा। अभी तक जो अवतरण पृथ्वी पर अवतरित हुए उन्होंने मानव को मध्य मार्ग पर लाने के लिए धर्म सिखान का प्रयत्न किया ताकि वे उत्थान प्राप्त उच्च पद न मिल पाता। तो उन्होंने इन देशों को अलग कर दिया और अलग होकर ये देश भयंकर कष्ट उठा रहे हैं । वहाँ विकास नहीं हो पा रहा। आर्थिक तथा अन्य प्रकार की सभी समस्याएं वहाँ हैं। जिस देश से टूटकर वे बने हैं वह देश भी कष्ट उठा रहा है क्योंकि उन दोनों देशों में दुश्मनी हो गई और वे परस्पर विरोधी कार्य कर रहे हैं। अत: अलगाववादी कर लें। हर देश, जाति तथा क्षेत्र के लिए जो भी मार्ग उन्हें उचित लगा वह सिखाने का उन्होंने प्रयत्न किया। उन्होंने इसके विषय में बताया और इस पर बहुत सी पुस्तकें लिखी गई। परन्तु धार्मिक, आध्यात्मिक एवम् समान स्वभाव के लोगों की सृष्टि करने के स्थान पर इन पुस्तकों ने ऐसे लोगों की सृष्टि की जो है। परन्तु ऐसा हुआ। तो मानव ने सत्ता प्राप्त करने के लिए इन पुस्तकों में लिखित ज्ञान का दुरुपयोग किया। इस प्रकार सत्ता एवं धन लोलुपता का खेल चलता रहा। इन ध्रमों का परिणाम यदि हम देखें तो आपको लगेगा कि यह सब सारहीन है। ये प्रेम एवम् है। विचार ही सहज विरोधी हैं। उदाहरण के रूप में पड़ पर लगा हुआ फूल बहुत सुन्दर लगता है, पेड़ पर ही इसका विकास यदि परस्पर विरोधी थे। बेहदा! अत्यन्त बेहूदा बात होता है. यह खिलता है और इसमें बीज पैदा होते हैं। परन्तु आप फूल को तोड़ लें तो क्या होगा? नि:सन्देह पेड़ फूल से वंचित हो जाता है परन्तु प्रायः इसमें फूल की ही हानि होती है उन लोगों ने भी यही सब किया, इसका परिणाम आप देखें। जिन लोगों ने अलग देश, अलग साम्राज्य बनाने का प्रयत्न किया वे मारे गए, कत्ल कर दिये गए, उन्हें गालियां दी गई और उनमें से कुछ तो जेल में पड़े हैं। अतः सहज योग से बाहर का दृष्टिकोण भी यह दर्शाता है कि अलगाववाद का कोई लाभ नहीं। हम लोगों को भी एक होकर रहना सीखना चाहिए। करुणा की बात करते हैं परन्तु इसमें उनका स्वार्थं भरा हुआ कभी-कभी यह राजनीतिक खेल भी होता है क्योंकि अब भी उनमें सत्ता हथियाने की लालसा है। विश्व पर शासन करने के लिए वे लौकिक शक्ति प्राप्त करना चाहते हैं आध्यात्मिक नहीं। सत्ता की यह भावना मानव मस्तिष्क पर इस प्रकार छाई कि असंख्य युद्ध हुए और मारकाट आदि हुई। जब यह खून-खराबा कुछ शान्त हुआ तो मुझे लगा कि संभवत: अब सहस्रार के खुल जाने से लोगों को सत्य को देखने में सहायता मिले। सहजयोग में आकर आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके भी यदि आप इस सन्देश को नहीं समझ पाए कि हम सबको एक होना है, एक इकाई, एक शरीर, और ऐसा न होकर यदि आप अन्य चीजों में उलझे हुए हैं तो आप किसी भी प्रकार से विकसित नहीं हुए और न ही परिपक्व हुए। यह अत्यन्त आवश्यक वात है। सहस्रार दिवस पर आपको यह समझना है कि सभी सातों चक्रों का पीठ सहस्रार में है। सातों चक्र आपके मस्तिष्क के मध्य (Midriff) में भली-भांति स्थापित है और उसी स्थान से आवश्यकता पड़ने पर चक्रों पर वे कार्य करते हैं । ये सातों चक्र एक हो जाते हैं, मैं कहूंगी कि एक ताल हो जाते हैं। इनमें पूर्ण एकाकारिता घटित हो जाती है क्योंकि इन सात मुख्य चक्रों ( पीठ) द्वारा ये प्रशासित होते हैं और अन्य सभी चक्रों को चलाते हैं। ये पूर्णतः एकताल होते हैं इनमें पूर्ण एकाकारिता होती है इसीलिए आपके सभी चक्र सुग्रथित होते हैं। सहस्रार पर आकर आपको सत्य का ज्ञान होता है। सभी प्रकार के भ्रम, गलतफहमियाँ और स्वय ओढी अज्ञानता समाप्त हो जाती है क्योंकि अब आपको सत्य का ज्ञान हो जाता है। सत्य तेज नहीं है, कठोर नहीं है। इसे आत्मसात करना भी कठिन नहीं है। लोगों ने समझा था कि सत्य बहुत ही हानिकारक या कठोर होगा जो मानव में परस्पर बहुत सी समस्याएं खड़ी कर देगा। अभिप्राय ऐसा न होते हुए भी जब जब भी लोगों ने सत्य की बात की तो गलत मतलब के लिए की। मानव की यह विशेषता है कि वे गलत दृष्टिकोण के लिए, गलत संदेश के लिए तथा अपने स्वार्थ के लिए चीजों का उपयोग करने लगते हैं। मानव में यह एक आम बात है कि वह दूसरे लोगों पर हावी होना चाहता है। पार चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 11, 12 1998 खड़ है कि सहस्रार एक विश्व व्यापी क्षेत्र है जिसमें हम प्रवेश करते हैं । इस विश्वव्यापी क्षेत्र में प्रवेश करके जब हम इसमें होते हैं तो हम विश्वव्यापी व्यक्तित्व बन जाते हैं। तब आपकी जाति, देश, धर्म तथा मानव के बीच बनावटी अवरोधों (रुकावटों) जैसी छोटी-छोटी चीजें स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं और आप आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति बन जाते हैं; आपको मानवता का ज्ञान हो जाता है, मानवता को आप समझ जाते हैं। सहजयांगी जब संघटित होंगे तो उनमें यह घटित हो जाएगा। उन्हें समझना चाहिए कि अब हम साधारण मानव नहीं रहे। हम विशेष लोग हैं जिन्हें एक विशेष कार्य को करने के लिए चुना गया है और वही आप का महत्वपूर्णतम कार्य है। आप जानते हैं कि कलियुग में क्या हो रहा है। यह सब आपके सम्मुख वर्णन करने की मुझे कोई आवश्यकता नहीं है। मैं आपको आत्मा के प्रकाश के विषय में बताऊगी जो आपको कुण्डलिनी द्वारा प्रकाशित तथा परमेश्वरी शक्ति द्वारा आशीवादित चक्र अविलम्ब सुग्रथित (Integrated) हो जाते हैं। मानो एक सूत्र में पिरोए हुए मोती हं। यह उससे भी अधिक होता है। आपके अन्त:स्थित ये पीठ इस प्रकार से सुग्रथित होती है मानो इनकी अभिव्यक्ति में कोई अन्तर ही न हो । मान लो कि आपका एक चक्र ठीक नहीं है, इसमें शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक कोई कमी है। अन्य चक्र इस रोगी चक्र की सहायता का प्रयत्न करते हैं और सहजयोगी के रूप में मानव के व्यक्तित्व का इस प्रकार विकास करने का प्रयत्न करते हैं कि वह सुग्रथित हो जाए। व्यक्ति जब तक अन्दर से सुग्रथित न होगा वह बाहर भी सुग्रथित नहीं हो सकता। आपके अन्दर यह संगठन सहजयोग का ऐसा आश्शीवाद है कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व साधारण व्यक्तियों से कहीं ऊँचा हो जाता है। वहुत से र्दुव्यसन जिन्हें छोड़ना वैसे कठिन होता है वह त्याग देता है। तो हमारे अन्त:स्थित सातों चक्रों का पथ प्रदर्शन में एक तालबद्ध पीठ करते हैं। एक तालबद्धता से जो सहायता मिलती है यह सभी चक्रों को सकते हैं स्वयं से आरम्भ करके बड़े आनन्दपूर्वक केवल स्वयं सुग्रथित होने में सहायक होती है। साधारण स्थिति में हम सुग्रथित नहीं होते क्योंकि हमारा मस्तिष्क एक ओर जाता है, मूर्खता थी। आपको वे दर्शाएगा कि किस प्रकार कलियुग की इन व्याधियों को दूर कर को देखें कि आज तक जो भी कुछ आप करते रहे हैं वह कार्य नहीं करने चाहिए थे फिर भी आप शरीर दूसरी आर जाता है तथा हृदय तथा भावनाएं अन्यत्र। हम उन्हें करते रहे। ठोक हैं अब आप उन लोगों को क्षमा कर समझ नहीं पाते कि करने के लिए कौन सा कार्य ठीक है और सकते हैं जो अब भी वे कार्य कर रहे हैं। आप समझ जाएगे कि यह सब करने वाले अज्ञानतावश ऐसा कर रहे हैं। आपका सहस्रार खुल चुका है। खुले हुए सहस्रार में को कोन सा सर्वोत्तम । परन्तु आत्मसाक्षात्कर के पश्चात् आत्मा के प्रकाश में आप सत्य को पा लेते हैं और जान जाते हैं कि क्या करना चाहिए। उदाहरण के रूप में आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् परमात्मा हर समय अपनी कृपा उड़ेलता रहता है। उस कृपा आप लोगों को उनकी चैतन्य लहरियों से जान सकते हैं ऐसा प्राप्त करके. सहस्रार के उस पोषण को प्राप्त करको वास्तव में महान घटना घटित हो जाती है। एक चीज जो घटित होती है वह है आपका स्वयं से निर्लिप्त हो जाना। आप स्वयं देख आप में और अन्य लोगों में क्या कमी है। तो इस प्रकार यहाँ सकते हैं. अपने भूतकाल को देख सकते हैं और समझ सकते दोहरा सुधार होता है। एक तो आप अपने को देखने लगते है, हैं कि आप बहुत से गलतकार्य करते रहे और लोगों को गलत आपमें आत्मज्ञान आ जाता है और दूसरे आप अन्य व्यक्ति को समझते रहे। यह कभी कभी आपको स्वयं से बहुत दूर समझ सकते हैं कि वह किस प्रकार का कार्य कर रहा है। कोई है। परन्तु इस प्रकाश द्वारा सहस्रार का पोषक होने पर आप स्पष्ट देखते हैं कि आप अपने को क्या हानि पहुँचाते रहे। एक व्यक्ति के रूप में तब आप अपने दोषों को देख सकते हैं। जिस समाज में आप रहते हैं उसके दोषों को भी आप देख सकते हैं । अत: अपने अन्दर इस एकाकारिता (Integration) को मेंने देखा है कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होने के बाद लोग मुझे पूर्णत: कार्यान्वित कर लेना ही सर्वोत्तम है। हमें चाहिए कि इसे बताने लगते हैं कि 'श्रीमाताजी मैं इंसाई था परन्तु क्या यही दबाएं नहीं : जो भी दोष हममें हैं, जो भी गलतियां हम करते ईसाई धर्म है? कोई कहेगा कि ' श्रीमाताजी मैं अत्यन्त देशभक्त करने के लिए आपको अपने मस्तिष्क का उपयोग नहीं करना पड़ता। कंवल चैतन्य लहरियों द्वारा आप तुरन्त जान जाते हैं कि ले जाता है यदि सहज नहीं परन्तु सहज होने का दावा करता है तो आप जान सकते हैं कि वह सहज नहीं है, उसका आचरण सहज नहीं है | रहे हैं. जो भी दु्विचार हममें थे, जो भी विनाशकारी वृत्ति हमने था परन्तु अब मुझे समझ आया है कि देशभक्ति क्या होती है। अपना ली थी, यह सब हमें स्वीकार करना ै : ये सब दुर्गुण इसी प्रकार सभी लोग अपनी पृष्टभूमि और अपनी पूर्ण जीवनशेली आपमें से समाप्त हो जाने चाहिए क्योंकि आप सहजयोगी हैं। को देखने लगते हैं तथा इनसे मुक्ति पा लेते हैं। एक बार जब आप इससे बाहर आ जाते हैं तो इसका आपसे कोई सम्बन्ध लोगों की तरह से नहीं है जो केवल धन, सत्ता और प्रभुत्व के नहीं रह जाता। यह स्वत: स्फूर्त घटना है, आपको केवल स्वतः लिए कार्य कर रहे हैं। आप ऐसे नहीं हैं। मानव मात्र के उद्धार स्फूर्त (Spontaneous) होना सीखना होगा। सहज में भी मैं के लिए आप सहजयोग में कार्य कर रहे हैं। तो पूर्ण सत्य यह देखती हूँ कि लोग यद्यपि इस भ्रम सागर से निकल चुके सहजयोगियों के करने के लिए एक विशेष कार्य है। वे अन्य चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 11 12 1998 11, 12 1998 फिर भी उनकी एक टाँग इस सागर में होती है और वे इसे कभी बाहर खींचते हैं और कभी अन्दर ले जाते हैं ऐसा नहीं होना चाहिए। लोगों का ध्यान-धारणा न करना ही इसका कारण हैं। प्रतिदिन ध्यान-धारणा अवश्य कीजिए। इस बात को लोग समझते हैं कि यह भी एक प्रकार का कर्मकाण्ड है या सहजयोग की पद्धति है नहीं! ध्यान-धारणा इसलिए आवश्यक है कि आप-अपनी आन्तरिक गहनता में उतर सकें और जो भी प्रात:काल भी ध्यान-धारणा करेंगे। जिस क्षण भी संभव हो ध्यान में चले जाएं, इस स्थिति में ही आप परमेश्वरी शक्ति से जुड़े होते हैं। तब आपके. आपके समाज के. आपके देश के हित में जो भी कुछ होता है उसे यह परमेश्वरी शक्ति स्वयं करती है। न आपको आज्ञा देनी पड़ती है और न ही माँगना पड़ता है। आप यदि मात्र ध्यान-धारणा करते हैं तो इस सर्वव्यापक शक्ति से जुड़े रहते हैं। यह हमारे लिए एक अन्य आश्शीवाद है। जब तक आपका सहस्रार नहीं खुलता परमात्मा के निर्लिप्सा तथा सूझबूझ की वह ऊँचाई केवल ध्यान-धारणा द्वारा सम्पूर्ण आश्शीवाद आप प्राप्त नहीं कर सकते, नहीं कर सकते। ही प्राप्त को जा सकती है। तो ध्यान-धारणा में आपकी चेतना हो सकता है आपको कुछ धन मिल जाए, नौकरी मिल जाए अगन्य चक्र को पार करके ऊपर जाती हैं और सहस्रार में आदि आदि। परन्तु आपका विकास केवल ध्यान-धारणा द्वारा निर्विचार समाधि में स्थापित हो जाती है। तब सहस्रार की ही सम्भव है, जब आप ध्यान करते हैं तो आपका सहस्रार है। अब सत्य यह है कि यह परमेश्वरी शक्ति प्रेम है, करुणा है। यह कुछ सहस्रार आपको देना चाहता है उसे आप प्राप्त करें। पूर्णत: खुला होता हैं और सत्य के प्रति खुला होता बास्तविकता, सहसरार का सौन्दर्य आपके चरित्र में, आपके स्वभाव में उतरने लगता है। बिना ध्यान-धारणा के यह नहीं हो सकता। केवल रोगमुक्त होने के लिए या यह महसूस करने के लिए कि मैं ध्यान धारणा कर रहा था, ध्यान मत कीजिए। ध्यान-धारणा आप सबके लिए इसलिए आवश्यक है कि आप अपने सहस्रार को इस प्रकार विकसित कर सकें कि अपने सहस्रार के सौन्दर्य को आत्मसात कर पाएं। इस प्रकार यदि आप अपने सहस्रार का उपयोग नहीं करते तो कुछ समय बाद आप पाएंगे कि सहस्र बन्द हो गया है। आपमें न तो चैतन्य लहरियां रहेंगी और न आप स्वयं को समझ पाएंगे। अत: ध्यान-धारणा बहुत ही महत्वपूर्ण है। ध्यान-धारणा न करने वाले और ध्यान-धारणा करने वाले व्यक्ति को मैं तुरन्त पहचान जाती हूँ। ध्यान-धारणा न करने वाला व्यक्ति अब भी सोंचता है कि ठीक है, मैं यह कार्य कर रहा हूँ, मैं वह कार्य सत्य है कहा जाता है कि परमात्मा ही प्रेम है, परमात्मा ही सत्य है। अत: समीकरण बनानी पड़ती है कि सत्य ही प्रेम है और प्रेम ही सत्य है। परन्तु यह प्रेम वैसा नहीं है जैसा आपका अपने बच्चों के प्रति है या परिवार के प्रति है। मोह युक्त प्रेम सत्य नहीं है। किसी व्यक्ति से यदि आपको मोह हैं तो आप उसकी कमियां नहीं देख सकते । किसी से यदि आप नाराज है तो उसकी अच्छाईयां आप कभी नहीं देख पाते। प्रेम जब पूर्णत: निर्लिप्त होगा तो वह पूर्णतः शक्तिशाली होगा। उस प्रेम का प्रक्षेपण जिस पर भी आप करेंगे तो, आप हैरान हो जाएंगे, उस व्यक्ति की सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा. उसका व्यक्तित्व अच्छा हो जाएगा, सभी कुछ बहुत बड़े स्तर पर कार्यान्वित हो जाएगा और उसका जीवन परिवर्तित हो जाएगा। परन्तु यदि आप किसी चीज से लिप्त हैं तो वह लिप्सा ही समस्याओं का कारण बनती है और सहज योग को बढ़ने नहीं देती। यह लिप्सा किसी भी प्रकार की हो सकती है। उदाहरण के रूप में आपको अपने देश से, अपने समाज से, अपने परिवार से मोह हो सकता है। कर रहा हूँ। केवल ध्यान-धारणा द्वारा ही आप स्वयं को सत्य-सौन्दर्य से वैभवशाली बना सकते हैं। इसके अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं। परमात्मा के साम्राज्य तक उन्नत होने का ध्यान- धारणा के अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग मुझे नहीं दिखाई पड़ता। उदाहरण के रूप में मैं कहूँगी कि मैंने आज तक केवल इतना किया कि आप लोगों को, जनता को, सामूहिक रूप से आत्मसाक्षात्कार देने का तरीका खोज पाई। परन्तु इसका अभिप्राय यह नहीं है कि मेरे सामूहिक रूप से आत्मसाक्षात्कार देने से वे सब सहजयोगी बन गए हैं। आपने स्वयं अपने कार्यक्रमों में देखा होगा कि मेरी उपस्थिति में कुछ समय के लिए लोग कार्यक्रम ह में आते हैं, आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करते हैं और फिर गायब हो परन्तु सहसार खुला होने की स्थिति में जो चीज आप सीखते हैं वह है निर्लिप्सा। स्वतः हो आप निरमाह हो जाते हैं । यद्यपि आप भाग नहीं खड़े होते। सहजयोग में हम समाज सं पलायन करके हिमालय में जा बैठने वाले लोगों में विश्वास नहीं करते। मैं इसे पलायनवाद कहती हूँ पलायनवाद ठीक नहीं है। यहीं रहकर आप सबको देखें, सबको जाने, सबके समोप हों और फिर भी निर्लिप्त हों। यह मानसिक स्थिति केवल मर सहस्रार खुला होने पर ही प्राप्त होती है। इस अवस्था में आप लोगों से व्यवहार करते हैं, समस्याओं का समाधान खोजते हैं, परिस्थितियों के हल खोज रहे होते हैं फिर भी आप इनमें लिप्त नहीं होते। बिल्कुल भी मोह नहीं होता। आपमें पहले जो लिप्सा भाव थे वे किसी भी परिस्थिति के विषय में आपको पूर्ण जाते हैं। ध्यान-धारणा न करना इसका कारण है। ध्यान-धारणा करते तो वे अपनी श्रेष्ठता को समझ जाते, यह समझ जाते कि वह क्या है। विना ध्यान धारणा के आप नहीं समझ सकते कि आपके लिए क्या अच्छा है। तो आज के दिन आप सबको मुझे वचन देना होगा कि आप हर रोज रात को, सांय और संभवत: चतन्य लहरी । खड : X अंक : ।। 12 ।998 6. अन्तर्दृष्टि नहीं देतं कि क्या घटित हो रहा है और सत्य क्या है। तो यह निर्लिप्सा सहायक है। इसका महानतम लाभ यह है कि आप प्रभावित नहीं होते। यह कहने का कोई उपयोग न होगा कि, "श्रीमाताजी, बिना प्रभावित हुए हम दूसरे व्यक्ति के विषय में कंसे महसूस करेंगे और किस प्रकार दूसरे लोगों के प्रति करुणामय होंगे।" किसी के प्रति जब आपके हृदय में करुणा होगी तभी आप उसकी समस्या का समाधान कर पाएंगे। परन्तु यह करुणा भी एक प्रकार का मोह है। यह सच्ची भावना नहीं हैं। यह सहायक नहीं होती। कोई व्यक्ति रो रहा है, आप भी उसके साथ रो रहे हैं। कोई परेशानी में है आप भी परेशान हैं। धर्म आदि। सभी के अपने धर्म हैं परन्तु श्रीकृष्ण कहते है कि ये सब मुझ पर छोड़ दो और मैं सब कुछ देखूगा। हमें भी यही चीज सीखनी है कि परमेश्वरी शक्ति ही हमारी समस्याओं का समाधान करेंगी। मनुष्य के लिए यह अवस्था अत्यन्त कठिन है । इसे केवल ध्यान धाआरणा द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। मैं ये नहीं कह रही हूँ कि आपको घंटो घ्यान में वैठे रहना है, ऐसा करना आवश्यक नहीं है। परन्तु अपने तथा परमेश्वरी शक्ति में पूर्ण विश्वास के साथ यदि आप इसे कार्यान्वित करें तो मुझे विश्वास है कि चेतना की उस अवस्था तक उन्नत होना कठिन नहीं है। यही हमने प्राप्त करना है। पुरुष एवम् महिलाओं के लिए यह प्राप्त करना संभव है। उन्हें यह नहीं सोचना कि श्रीमाताजी हम यह कैसे कर सकते हैं? ऐसे सभी लोग सहजयोग के लिए बेकार हैं। आत्मविश्वासविहीन लोग कुछ नहीं कर सकते, परन्तु जो लोग समर्पित हैं तथा साचते हैं कि वे ऐसा कर सकते हैं वे अपनी शक्ति को परमेश्वरी शक्त में बदल सकते हैं। केवल परमेश्वरी शक्ति पर सभी कुछ छाड़ दें। मान लो मेरे पास एक कार है जो मुझे कहीं भी ले जा सकती है। इस कार में मैं बैल नहीं जांड़ती, न ही इसे धक्का लगाती हूँ। मात्र इसमें बैठकर इसका उपयोग करती हूँ। इसी प्रकार जब यह महान शक्ति आपके इर्द-गिर्द होती है, आपका सहस्रार जब इससे पूर्णतः प्लावित होता है तब, आप हैरान होंगे कि, किस प्रकार आपके कार्य होते हैं! मैं एक सहज योगी का उदाहरण दूंगी जो अब जीवित नहीं है। वह एक मछुआरा था, साधारण इस प्रकार न तो उस व्यक्ति का लाभ होता है और न ही आपका। अत: निर्माह होने का यह अर्थ नहीं है कि आपके हृदय में दूसरों के लिए भावना नहीं है। आप उसके प्रति महसूस करते हैं, उसके दुख को महसूस करते हैं, कष्ट को महसूस करते हैं, पूरे समाज और पूरे देश की समस्या को महसूस करते हैं। परन्तु आपकी भावना इतनी नि्लिप्त है कि परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति यह कार्य संभाल लेती है सर्वप्रथम हमें इस सर्वव्यापक शक्ति के क्षेम पर पूर्ण विश्वास करना होगा। ज्योंही आप निलिंप्त होते हैं आप कहते हैं आप इस कार्य को कीजिए । समाप्त। एक बार जब आप कहते हैं कि आप इस कार्य को करने वाले हैं तो आप ही को यह करना पड़ेगा-सभी कुछ पूरी तरह बदल जाता है। अपनी सारी जिम्मेदारियाँ सारी समस्याएं इस परमेश्वरी शक्ति को सौंप दें, यह अत्यन्त शक्तिशाली है, अत्यन्त योग्य है और कुछ भी कर सकती है। तो जब भी आप यह सोचते हैं कि इस समस्या का समाधान आप करेंगे तो आप ही इसका समाधान करेंगे। परमेश्वरी शक्ति कहती है ठीक है - अपना भाग्य आजमाओ। परन्तु यदि आप वास्तव में इस समस्या को परमेश्वरी शक्ति पर छोड़ दंगे तो वह इसका मछुआरा। परन्तु पढ़ा-लिखा था और बैंक में कार्यरत था। एक दिन सहजयोग का कार्य करने के लिए उसे नाव से जाना था। जब वह बाहर आया तो उसने देखा कि घनघोर बादल बने हुए हैं और भयानक बारिश हो सकती हैं। वह बहुत ही व्याकुल हुआ परन्तु उसका सहस्रार इतना खुला हुआ और अच्छा था कि तुरन्त उसने कहा कि में यह सब परमेश्वरी शक्ति पर छोड़ता समाधान करंगी। सहजयोग में सभी प्रकार की समस्याएं हमारे सम्मुख हैं। हूँ। मैं चाहता हूँ कि मेरे वापस आने तक न तो बारिश हो और विशेषतौर पर जब हमें लगता है कि लोग सहजयोग के प्रति समर्पित नहीं हैं, समर्पित लोग वहुत कम हैं, तव आपको बहुत है, कि श्रीमाताजी पूरा समय बादल वैसे ही बने रहे परन्तु न बुरा लगता है। क्या आपने कभी इसके विषय में ध्यान करने बारिश हुई और न ही कोई अन्य समस्या आई। जिस टापू पर का प्रयत्न किया और क्या कभी इस समस्या को परमेश्वरी उसे जाना था वह गया और सहजयोग का कार्यक्रम करके शक्ति पर छोड़ने का प्रयत्न किया? जब परमेश्वरी शक्ति हमें हमारे सहस्रार के माध्यम से उपलब्ध है तो हम क्यों चिंता करें। हम क्यों चिन्ता करें और क्यों इसके विषय में सोचें। यदि संभव हो, यदि आप ऐसा कर सके तो यह सब परमेश्वरी शक्ति पर छोड़ दें । परन्तु ऐसा करना मानव के लिए बहुत कठिन कार्य है क्योंकि वे अपने अहम् और बन्धनों में ही फँसे रहते हैं । इन सभी चीजों से मोह यदि टूट जाए तो आप सभी समस्याओं को छोड़ देते हैं। श्रीकृष्ण ने अपनी गीता में कहा है, 'सर्व धर्माणाम् न कोई समस्या आए और लोगों ने मुझे बताया, हैरानी की बात आया। घर आकर जब वह सो गया तो बारिश पड़ने लगी। अत: प्रकृति, सभी कुछ, हर पत्ता, हर फूल, हर चीज परमेश्वरी शक्ति की इच्छा से चलती है। अत: हममें अहंकार नहीं आना चाहिए कि हम कुछ कार्य कर सकते हैं या कुछ चला सकते हैं यदि आपमें ऐसी भावना है तो अभी आप पूरे विकसित नहीं हुए, अभी तक आप सहजयोग में पूरे उन्नत नहीं हुए। परन्तु क्योंकि आपके पास मार्ग-दर्शन है, आपके लिए सहजयोग में उन्नत होना कठिन कार्य नहीं है जिन लोगों को बहुत कम थे और भारत के कुछ सन्त। मार्गदर्शक के अभाव में, किसी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ वे परित्याज मामकम् शरणं व्रज'। कुछ सृफी थे सभी धर्मों को भुला दें । पत्नी धर्म, पति धर्म, समाज चैतन्य लहरी 7 खड : X अक : 11, 12 1998 । लोगों ने स्वयं को दे दिए हैं। ये सब विचार बाहर से आते हैं अन्दर से नहीं। अपनी अन्त्अंवस्था प्राप्त करने के लिए, सूक्ष्म अवस्था को पाने के लिए आपको कुण्डलिनी को आज्ञा चक्र पार करने देना होगा। आधुनिक युग में अगन्य चक्र से पार होना अत्यन्त महत्वपूर्ण है और उसके लिए आपको ध्यान-धारणा सहायता करने वाले या बताने वाले के अभाव में उन्हें इसके लिए कितना संघर्ष करना पड़ा होगा! इस सबके बावजूद भी वे लोग अत्यन्त सन्तुष्ट एवम् प्रसन्न स्वभाव के थे। उन्होंने बहुत अच्छी तरह से इसे प्राप्त किया और विश्व को एक दूसरें नजरिए से देखा। जैसा आप लोग अब देख सकते हैं। परन्तु उनमें इतना आत्मविश्वास था कि वे घबराए नहीं। ध्यान धारणा करनी होगी। स्वयं पर पूर्ण विश्वास के साथ यदि आप के माध्यम से उन्होंने स्वयं इतना ज्ञान प्राप्त किया कि उनके लिखे गए कुछ ग्रन्थ तो अत्यन्त महान हैं। आश्चर्य की बात है स्वयं को परमात्मा के प्रति समर्पित करना होगा और अगन्य कि किस प्रकार उन्होंने ज्ञान से परिपूर्ण यह महान कविताएं चक्र के खुलने के पश्चात, आप हैरान होंगे आपका सहस्रार लिखी! उन्हें न तो कोई मार्गदर्शन ही था न कोई बताने वाला ध्यान-धारणा कर सकते हैं तो ये अगन्य चक्र खुल सकता है। परम चैतन्य के माध्यम से आपको सारी वांछित सहायता देने की प्रतीक्षा कर रहा है। सहस्रार का परम चैतन्य से जब सम्बन्ध पित हो जाता हैं तो जिस प्रकार से ये सातों चक्र आपक ही था। परन्तु उनमें एक गुण था कि वे सदैव अपने सहस्रार को देखने का प्रयत्न करते थे। अगन्य चक्र की हलचल विचारों के रूप में सहस्रार को अवरोधित करती है। केवल यही चीज सहजयोग में आपके प्रवेश को रोकती है। विचार हर समय चलते रहते हैं क्योंकि जन्म से ही मानव हर चीज के प्रति प्रतिक्रिया करता है। प्रतिक्रिया का सिलसिला चलता रहता स्थ . लिए कार्य करते हैं. जिस प्रकार से आपकी सहायता करते हैं जिस प्रकार से सारा वास्तविक ज्ञान तथा सभी कुछ आपका प्रदान करते हैं यह अत्यन्त आश्चर्यचकित कर देने वाली चीज है। वास्तविक ज्ञान जो आपको मिलता है यह अत्यन्त आनन्ददायी है। हर चीज में यह वास्तविक ज्ञान आप देख सकते हैं। इसके है बहुत बड़ी विचार आते रहते हैं. जाते रहते हैं। विचारों की लिए आपको कोई पुस्तक नहीं पढ़नी शुरु करनी। हर स्थिति में हर व्यक्ति में, हर फूल में, हर प्राकृतिक घटना में आप भीड़ हो जाती है जिसके कारण आपका चित्त अगन्य चक्र को पार नहीं कर सकता और न ही सहस्रार में निवास कर सकता हैं। तो सर्वप्रथम व्यक्ति को देखना चाहिए कि किस प्रकार के विचार आ रहे हैं । कभी-कभी अपनी प्रताड़ना भी करनी चाहिए। कहना चाहिए, 'क्या मूर्खता है, मैं क्या कर रहा हूँ, मेरे परमात्मा का हाथ स्पष्ट देखते हैं। एक बार जब आप परमात्मा का हाथ देखने लगते हैं, एक बार जब आप कहते हैं, कि 'केवल आप', 'आप ही' सभी कुछ करते हैं, तो आपका अहम् भागने लगता है। इसके विषय में कबीर ने एक बहुत सुन्दर बात कही है, उन्होंने कहा है कि बकरी जब जीवित होती है तो मैं मैं करती रहती है परन्तु कटने के बाद इसकी आतों के तार बनाकर जब रुई पीजने के लिए लगा दिए जाते हैं, तो वे कहते साथ क्या समस्या है, मैं ये सबै कसे कर सकता हूँ? एक बार जब आप ऐसा करने लगेंगे तो यह विचार छंटने लगेंगे। दो कोणों से ये विचार आते हैं आपके बन्धनों से । ये दोनों (अहम् और बन्धन) आपमें इतने हैं 'तूही-तूही-तूही'। इस प्रतीकात्मक तरीके को देखें, उन्होंने हैं कि ये आपको आज्ञा से पार नहीं होने देते। इसके लिए हमारे पास दो बीज मन्त्र हैं - 'हं और क्षम्' । पहले का उपयोग परमेश्वरी शक्ति ही यह सभी कार्य करती है। मैं क्या हूँ, बन्धनों की स्थिति में होता है जब आप भय से भरे होते हैं मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था, मुझे वैसा नहीं करना चाहिए हूँ। यही सब कुछ संभाल रही है, सभी कुछ कार्यान्वित कर था इसकी आज्ञा नहीं है, उसकी आज्ञा नहीं है। यह बन्धन है। रही है। यही आपको महान सहजयोगी बनने में अत्यन्त सहायक बन्धन बहुत प्रकार के हो सकते हैं अहम् में व्यक्ति कहता है होगी। मुझे सब पर हावी होना है, यह मुझे मिलना ही चाहिए, मुझे सब पर शासन करने के लिए शक्तिशाली होना ही चाहिए। ये परन्तु अभी भी आप इस पर गर्वित नहीं हैं। आत्मसाक्षात्कार दो चीजें हर समय मस्तिष्क में घूमती रहती हैं। अतः निर्विचार समाधि में जाना महत्वपूर्ण है क्योंकि निर्विचार समाधि की ग्वित नहीं है । बहुत सी सृजनात्मक शक्तियां आपको मिल अवस्था में ही कुण्डलिनी आपके सहस्रार का पोषण करती है। कुण्डलिनी जब अगन्य को पार न कर सके तो, जैसे मैंने वताया, दो बीज मन्त्र हैं - "हं और क्षम् । आप यदि बन्धनों में फसे हुए हैं तो आप भयभीत हैं. एक तो अहम् से और दूसरा इस परमेश्वरी शक्ति में विलीन हो जाने की राय दी है। परमेश्वरी शक्ति के चेतना सागर में गिरी हुई में एक बूँद मात्र आपको रोगमुक्त करने की शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं । प्रदान करने की शक्ति आपको मिल जाती है फिर भी आप जाती हैं परन्तु फिर भी आपको इसका गर्व नहीं हैं। वास्तव में आप बहुत सृजनात्मक, अत्यन्त रचनात्मक हो जाते हैं। परन्तु महानतम चीज जो आपके साथ घटित होती है वह यह है कि आप विश्वव्यापी शक्ति बन जाते हैं। सभी देशों की, सभी राष्ट्ों की समस्याएं आप देखने लगते हैं। इन समस्याओं को आप अन्य लोगों की तरह से नहीं देखते। अन्य लोग इन्हें अपने लाभ के लिए, समाचारपत्रों के लिए या अन्य किसी लाभ के लिए हैं और आपको अपने विषय में विचार आते रहते हैं । इरे हुए आजकल लोग कहते हैं मैं बहिर्मुखी हूँ, मैं अन्तर्मुखी हूँ, कोई कहेगा मैं हिप्पी हूँ, मैं ये हूँ, मैं वो हूँ। सभी प्रकार के नाम ।खंड : X अंक : 11, 12 1998 चतन्य लहरी और जिसकी आपसे पूर्ण एकाकारिता है। आप हैरान होंगे मुझे लोगों से असंख्य पत्र मिले जिनमें उन्होंने बताया कि सहजयोग ने किस प्रकार उनकी सहायता की, किस प्रकार अंतिम क्षण में उपयोग कर सकते हैं परन्तु आप चाहते हैं कि इन समस्याओं का समाधान हो जाना चाहिए। आपकी शक्तियां इतनी महान हैं और परमेश्वरी शक्ति द्वारा शासित आपके मस्तिष्क को जो भी चीज परेशान करती है परमेश्वरी शक्ति उसे संभाल लेती है और वह ठीक होने लग जाती है। सहजयोगियों ने बहुत सी समस्याओं का समाधान किया है और यदि आप विश्वव्यापी व्यक्तित्च हैं तो ब्रह्माण्डीय स्तर उन्हें सहायता मिल गई। विनाश के कगार पर जब वे खड़े थे तब किस प्रकार उन्हें बचा लिया गया! बहुत से लोगों ने मुझे लिखा परन्तु मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि यदि आप परमात्मा से जुड़े हुए हैं तो वे आपकी देखभाल करते हैं । उनके पास सभी शक्तियाँ हैं, सभी शक्तियाँ। कंवल एक शक्ति उनके पर समस्याओं का समाधान हो सकता है। आप यदि विश्वव्यापी हैं तो आप परमेश्वरी शक्ति के कार्य के लिए एक प्रकार के पास नहीं है। यदि आप अपना सर्वनाश करना चाहें तो वे आपको रोक नहीं सकते । उन्होंने आपको स्वतन्त्रता प्रदान की वाहन या माध्यम की तरह से बन जाते हैं, क्योंकि आपका व्यक्तित्व विश्वव्यापी है, लिप्सा से पूर्णतः मुक्त एक पावन से है। पूर्ण स्वतन्त्रता। आप यदि अपना सर्वनाशा करना चहें तो कर सकते हैं। परमेश्वरी शक्ति को यदि आप स्वीकार न करना चाहें तो ठीक है मत स्वीकार करें। अपने साथ जो भी आप करना चाहेंगे वो करने की आपको पूर्ण स्वतन्त्रता है। ये स्वतन्त्रता परमात्मा ने आपको दी है। इसे आपने नियन्त्रित करना है और परमेश्वरी शक्ति का सम्मान करना है। आज, मैं कहूँगी, माँ का भी दिन है। मैं सोचती हूँ कि केवल माँ ही इस प्रकार से कार्य कर सकती है, यह कार्य करने के लिए महान धेर्य की आवश्यकता है। मैंने देखा कि जितने भी अवतरण हुए वे बहुत जल्दी चले गए। बहुत थोड़ा समय वे पृथ्वी पर रहे। किसी को 33 वर्ष को आयु में क्रूसारोपित कर दिया गया, किसी ने 23 बर्ष में समाधि ले ली. क्योंकि लोगों की मुर्खता को वे सहन न कर सक। उन्हें लगा कि वे ऐसे। मनुष्यों के लिए कुछ न कर पाएंगे। मेरे विचार से या तो उन्होंने आत्मविश्वास खो दिया या उन्होंने सोचा कि ऐसे बेकार लोगों के लिए कुछ करना व्यर्थ है। अत: उन्होंने चले जाना ही बेहतर समझा । परन्तु माँ की स्थिति भिन्न है। वह तो अपने बच्चे के लिए लड़ती ही रहेगी, संघर्ष करती ही रहेगी। अंतिम क्षण तक वह संघर्ष करेंगी कि उसके बच्चे को सभी आशीवाद मिल सहज व्यक्तित्व जिसका उपयोग परमेश्वरी शक्ति सुगमता कर सकती है। इसके लिए जैसा मैंने दोपहर पश्चात् बताया था, हमें कुछ चीजों के प्रति सावधान होना होगा। सर्वप्रथम क्रोध। क्रोध हमारा सबसे बड़ा दुर्गुण है। क्रोध , 'मुझे बहुत गुस्सा आया हुआ क्रोध मूर्खता का, पूर्ण मूर्खता का चिन्ह है। किसी पर क्रोधित होने की कोई आवश्यकता नहीं। क्रोध से आप किसी समस्या का समाध न नहीं कर सकते क्रोध से आप अपनी हानि करते हैं, अपने स्वभाव को खराब करते हैं और सारी स्थिति को बिगाड़ते हैं। अत: किसी भी बात पर क्रोध करने का कोई लाभ नहीं। यदि क्रोधित करने वाली कोई बात होती है तो शान्त होकर आपको देखना चाहिए कि क्या परेशानी है? यह आपको क्यों परेशान कर रही है? आपके देखने मात्र से ही समस्या का समाधान हो जाएगा सर्वप्रथम आपको महसूस करना है कि आप एक विशेष व्यक्तित्व है तथा इस सर्वव्यापी परमेश्वरी शक्ति के प्रति आपका सहस्रार खोला जा क्यों? कुछ लोग बातें करते हैं। था।' उन्हें अपने क्रोध का गर्व है। चुका है। आप परमात्मा के साम्रान्य में प्रवेश कर चुके हैं। परमात्मा के साम्राज्य, उनके महान दरबार में आप एक महान अतिथि है। आप कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं। अत: जब आप समझ जायेंगे कि आपको सहजयोग तथा आत्मसाक्षात्कार क्यों मिला तो यह भी जान जायेंगे कि आपमें कुछ विशेष हैं. परन्तु इससे आपका अहम् नहीं बढ़ना चाहिए। आपके अहम् को बढ़ाने के लिए यह उपलब्धि आपको नहीं मिली, परमात्मा के कार्य को करने के लिए मिली है इस लीला की व्याख्या मैं इस जाए। यह धैर्य, यह प्रेम और यह क्षमाभाव एक माँ में अन्तर्जात होता है। उसका दृष्टिकोण बिल्कुल भिन्न होता है। किसी उपलब्धि, यश या पुरस्कार के लिए वह कुछ नहीं करती। केवल माँ होने के नाते सभी कुछ करती है। एक माँ का. एक सच्ची माँ की यही पहचान है। अपने बच्चों के लिए वह किसी भी सीमा तक जा सकती है। अपने बच्चों को विनाश से बचाने के लिए वह दिन रात परिश्रम कर सकती है। परन्तु सहजयोग बहुत विशाल परिवार है और इसमें मातृत्व के सिद्धान्त के माध्यम से कार्य किया जाना आवश्यक है। किसी अन्य सिद्धान्त को आप अपना नहीं सकते। यहाँ वहुत महान योद्धा हुए जिन्होंने योद्धाओं की तरह से कार्य किया। यहाँ बहुत से त्यागी भी हुए। सभी प्रकार के लोग यहाँ हुए जिन्होंने लोगों में धर्म स्थापित करने के लिए घोर परिश्रम किया। परन्तु वे ऐसा न कर सके। मैंने सोचा कि धर्म स्थापित करने का कोई लाभ न प्रकार करूंगी में एक ब्रुश है। ब्रुश कभी नहीं सोचता कि वह कुछ कार्य कर रहा है। कलाकार ही सभी कार्य करता है। इसी प्रकार जब - मान लो आप एक चित्रकार हैं, आपके हाथ आपकी एकाकारिता परमेश्वरी शक्ति से होती है तो आप मात्र यही महसूस करते हैं कि मैं कुछ नहीं कर रहा । कलाकार ही सभी कुछ कर, रहा है। वही सब प्रबन्ध कर रहा है। यह है कौन? यह परमेश्वरी शक्ति है जो आपको प्रेम करती है. आपकी चिन्ता करती है, आपकी देखभाल करती है केलाकार चैतन्य लहरी । खंड : X अंक : 11, 12 1998 में सभी प्रकार की सुन्दर चीजों का वर्णन किया गया है परन्तु पाश्चात्य देशों में इसका अभाव है। संभवत: उन्होंने इसका महत्व नहीं देखा। माँ के अनुराग का वर्णन किया जाना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वह किस प्रकार प्रेममयी एवम् करुणामरयी हैं। होगा। सर्वप्रथम इन्हें आत्मसाक्षात्कार दे दिया जाना चाहिए। आत्मा के प्रकाश में जब ये गलतियों को देखेंगे तो स्वत: ही धार्मिक हो जाएंगे उन पर धर्म थोपने की अपेक्षा ऐसा करना कहीं बेहतर है। धर्म यदि आप उन पर थोप दें तो वे इसे सहन नहीं कर पाते, पचा नहीं पाते। तो यही सर्वोत्तम होगा, अपनी । किस प्रकार सारी बेवकूफी को सहन करती हैं और किस प्रकार आत्मा के प्रति उन्हें चेतन कर देना। आत्मा का प्रकाश जब सभी कुछ क्षमा करती हैं! किसी भी बात को बच्चे के विरोध उनमें आ जाएगा तो उस प्रकाश में वे सब कुछ स्पष्ट देख में या उसको कष्ट देने के लिए उपयोग नहीं करतीं। कभी सकंगे और तब कोई समस्या न होगी। इसी कारण मातृत्व का कभी व्यक्ति को बताना भी पड़ता है और गलतियों का सुधार गुण अत्यन्त सहायक है। हर देश में मातृत्व के सिद्धान्त की अभिव्यक्ति हुई सभी देशों में इसके बारे में बताया गया, इसका वर्णन किया गया। परन्तु बाद में ऐसे लोगों ने कार्यभार ले लिया जो माँ के विषय में बात ही न करना चाहते थे। अपने आचरण को वे न्यायसंगत न साबित कर सके। अतः उन्होंने सोचा कि माँ के विषय में बात न करना ही सर्वात्तम है। भी करना पड़ता है। परन्तु उचित समय तथा उचित स्थान पर यदि बताया जाए तो बच्चे भी इसके महत्व को समझ जाते हैं। विश्वस्त करने के लिए माँ का प्रेम तथा स्नेह सर्वप्रथम है। माँ क्षमा करती चलती जाती हैं और विश्वस्त करती हैं कि मेरी एक माँ है। कुछ नहीं हो सकता, और यह विश्वास कार्य करता है। जो लोग आपसे आत्मसाक्षात्कार लेते हैं उन्हें भी आपको यही विश्वास देना होगा। उन्हें लगना चाहिए कि आप अत्यन्त अग्रणी, परिपक्व तथा वास्तविक अवतरणों ने हमशा मातृत्व के विषय में बातें की। परन्तु बातें तो बातें ही थीं। अब इसे बैसे ही कार्यान्वित किया जाना चाहिए जैसे माँ स्वयं करती है। सहजयोग करते हुए आपको माँ सम बनना होगा। पिता के गुणों की अपेक्षा मातृत्व के गुण आपमें अधिक होने चाहिए। महत्वाकांक्षा, प्रतिस्पर्धा, ईर्ष्या आदि नहीं होने चाहिए। माँ के रूप में आपकी केवल यही एक इच्छा होनी चाहिए कि आपके बच्चे आध्यात्मिकता में उन्नत हों। यह दृष्टिकोण जब आपमें होगा, आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे, कि आप इतने सन्तुष्ट हैं क्योंकि लोगों को आध्यात्मिकता में बढ़ते हुए देखना अत्यन्त आनन्ददायी होता है। इसके विषय में केवल बातें करना, इसके विषय में पढ़ना ही नहीं परन्तु वास्तविक रूप में इसे घटित होते हुए देखना और अपने अन्दर इसका वास्तविकीकरण उन पर नाराज नहीं हैं। मैं जानती हैँ कि वे मुर्ख हैं, कभी कभी वे हिसक भी होते हैं। मेरा सभी प्रकार के लोगों से पाला पड़ा है। परन्तु केवल शुद्ध प्रेम ने ही कार्य किया। पावन प्रेम की किसी चीज की अपेक्षा करने का अधिकार नहीं है। आप केवल प्रेम दें और अपने चित्त से उस व्यक्ति को सुधारने का प्रयत्न करें। परन्तु परमेश्वर के कार्य में आपको किसी से भी लिप्त होने की कोई आवश्यकता नहीं है। मान लो कोई व्यक्ति ठीक नहीं है, कष्टकर हे आप पर क्रोधित हो जाता है, आपको गुस्सा दिलाता है और आपका अपमान करता है तो उसे भूल जाएं और एक ही व्यक्ति के पीछे दौड़ने या एक ही व्यक्ति से लिप्त होने की कोई आवश्यकता नहीं है। मेरे विषय में सभी सहजयोगी सदा यही करना। यह गुण वास्तव में अत्यन्त लाभकारी है और वास्तव में सभी सहजयोगियों के लिए सहायक है - धैर्यवान, करुणाशील. विनम्र होना' परन्तु आपको गलतियों का सुधार भी करना होगा। दूसरे व्यक्ति, जो परमेश्वरी संसार से न होकर सामान्य संसार से होते हैं, की गलतियों को सुधारने का एक तरीका है, उन्हें सुधारना कठिन कार्य है। कुछ लोग इतने उग्र स्वभाव के होते हैं कि वे कुछ भी सहन नहीं कर सकते कोई बात नहीं, उन्हें क्षमा कर दें। सहज, प्रेममय, स्नेहमय लोगों पर ध्यान देना अच्छा है। शनै: शनै: ये टेढे स्वभाव के लोग भी आ जाएंगे। महसूस करते हैं कि मैं उनकी अपनी हूँ। यह सत्य है चाहे मैं आपसे बात करू, आपसे मिलू या नहीं। आपको यह जानना होगा कि मैं आपकी माँ हूँ और जो भी समस्या आपको है वह आप सदा मुझे बता सकते हैं। परन्तु जिस प्रकार से लोग अपनी समस्याएं मुझे बताते हैं उससे लगता है कि वे कितने निम्न-स्तर के हैं उनकी मानसिकता कितनी निम्न है। वो मुझे क्या बता रहे हैं। मान लो किसी राजा के पास जाकर आप उससे आधा डालर माँगते हैं तो राजा सोचेगा कि इस व्यक्ति को क्या कष्ट हैं? इसे यह भी समझ नहीं कि क्या माँगू! इसी प्रकार व्यक्ति को सोचना चाहिए कि जब आप अपनी माँ से कुछ माँग रहे अन्य लोगों से आपका व्यवहार मातृत्वमय होना चाहिए। माँ जैसे सम्बन्ध होना आवश्यक है। मैं आश्चर्यचकित थी कि है तो बह कुछ बहुमूल्य होना चाहिए। इसका कोई महान मूल्य होना चाहिए । पूर्ण सन्तोष प्रदान करने वाली कोई चीज। जब पश्चिमी साहित्य में मुझे माँ और शिशु सम्बन्ध जैसा कोई भी चित्रण नहीं मिला। अत्यन्त हैरानी की बात है। ऐसा कोई भी चित्रण नहीं है कि किस प्रकार माँ अपने बच्चे को देखती है। आप कुछ माँगते हैं तो इससे आपको पूर्ण सन्तोष मिलना चाहिए। परन्तु मैंने लोगों को छोटी-छोटी चीजें माँगते हुए देखा है। किसे प्रकार बच्चा चलता है| किस प्रकार बच्चा गिरता है। किस प्रकार खड़ा होता है और किस प्रकार बोलता है साहित्य इस प्रकार लोग इन छोटी छोटी चीजों को माँगते हैं कि मुझे 10 चैतन्य लहरी ॥ खंड : X अंक : ।1 12 1998 ho कर है फिर भी इसका स्तर उत्तरी भारत जैसा नहीं है। हैरानी की बात है कि उत्तर भारतीय लोगों को सहजयोग का बिल्कुल ज्ञान न था और न ही वे बहुत धार्मिक लोग थे। परन्तु जिस प्रकार से उन्होंने सहजयोग को अपनाया है यह आश्चर्य की बात है। अत: कहा नहीं जा सकता कि प्रकाश कहां प्रकट होगा? कुछ लगता है कि हे परमात्मा मैंने क्यों इन छोटी छोटी तुच्छ तथा महत्वहीन चीजें माँगने वाले लोगों को अपने आस-पास रखा हुआ है परन्तु यदि आपकी एकाकारिता सहस्रार से है तो सहस्रार स्वयं कार्य करता है। यह आपको ऐसे लोगों से मिलवा देगा कि आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे कि यह किस प्रकार कार्य करता है। मैं तुर्की गई थी और वहाँ का मेरा अनुभव इस भी नहीं कहा जा सकता। परन्तु जहाँ भी ये प्रकट हो हमें स्वीकार करना चाहिए और यदि प्रकट न हो तो बुरा नहीं मानना चाहिए। आप क्या कर सकते हैं? सहस्रार खोलने के लिए आप उनके सिर तो नहीं तोड़ सकते । माँ जैसे प्रेम तथा सूझबूझ मुझे विश्वास है आप उनके सहस्रार खोल सकते हैं। सभी देशों में यह कार्य समान रूप से नहीं हो सकता । परन्तु मुझे विश्वास है कि इन महान सन्तों के पुण्य फलीभूत होंगे। यद्यपि कई बार मुझे थोड़ी सी निराशा भी हुई। फिर भी मुझे लगता है कि इन सभी स्थानों पर कार्य हो जाएगा और सहजयोग फैलेंगा। बात को निश्चित रूप से प्रमाणित करता है। विश्व के सभी लोंगों में से तुर्की के लोगों ने सहजयोग को अप्रत्याशित रूप से स्वीकार किया है । मैं नहीं समझ सकती किस प्रकार उन्होंने सहजयोग को स्वीकार किया। अनुवर्ती कार्यक्रम में वे कम से कम 2000 लोग थे उन्हें सहजयोग के बारे में बता पाने में सहजयोगियों को कठिनाई हो रही थी। बाद की गोष्ठियों में भी संख्या काफी अधिक थी जो आज भी चल रही है। संभवत: वहाँ रूढिवाद की परेशानी के कारण ऐसा हो रहा हो। सर्वत्र, सभी देशों में समस्याएं हैं और आप कह सकते कि सभी देशों की एक अत्यन्त विनाशकारी तस्वीर है। फिर से परन्तु आपका सहस्रार सर्वप्रथम है। सहस्रार परमात्मा के प्रकाश को प्रतिबिम्बित करता है। अत: सहस्रार अत्यन्त भी कुछ देशों में मैं समझ नहीं पाती, यह किस प्रकार प्रज्जवलित हो उठता है और एक बार वे जब सहजयोगी बन जाते हैं तो कोई समस्या नहीं रहती। यदि वे सहजयोगी हैं तो महत्वपूर्ण है। अपने सहस्रार को सम्पन्न करने के लिए, इसे रोग मुक्त करने के लिए तथा कुण्डलिनी से इसे पोषित करने के लिए ध्यान-धारणा आवश्यक है। ध्यान-धारणा तथा थोड़ा बहुत बन्धन आदि के अतिरिक्त बहुत अधिक कर्मकाण्डों की कोई आवश्यकता नहीं है। बाहर जाते हुए बन्ध कोई समस्या नहीं रहती । उन्हें कुछ बताना नहीं पड़ता । वे स्वयं सभी कुछ करते हैं, वे समझते हैं कि सहजयोंग क्या है | न लेना आवश्यक है क्योंकि अभी तक कलियुग अपनी स्तर ऊँचा नहीं है और जो गहन साधक नहीं है। मुझे लगता है यातनाएं कार्यान्वित कर रहा है और सतयुग आने के लिए प्रयत्नशील है। हम ही लोग सतयुग की सहायता करंगे और इसकी देखभाल करेंगे। इसलिए सहस्रार का खुला होना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह बहुत आवश्यक है। जो लोग उन्नत होना चाहते हैं उन्हें प्रतिदिन ध्यान-धारणा करनी चाहिए। जब भी आप घर आएं, सुबह-शाम, किसी भी समय, आपको ध्यान रखना होगा, जब आप निर्विचार समाधि में जा सकें, तभी ध्यान करें। तब आपकी प्रतिक्रियाएं समाप्त हो जाएंगी। किसी चीज को जब आप देखेंगे तो बस केवल देखेंगे, आपमें कोई प्रतिक्रिया न होगी क्योंकि अब आप निर्विचार हैं। आप प्रतिक्रिया नहीं करेंगे और जब प्रतिक्रिया बन्द हो जाएगी तो, आप हैरान होंगे कि, सभी कुछ दिव्य हो जाएगा क्योंकि प्रतिक्रिया आपके अगन्य चक्र की देन है। पूर्ण निर्विचार समाधि की अवस्था में आप परमात्मा से जुड़ जाते हैं। तब परमात्मा आपके सभी कार्यों को, आपके जीवन के हर क्षण को संभाल लेता है और इसकी देखभाल करता है। और परमात्मा की एकाकारिता में स्वयं को पूर्णतः सुरक्षित महसूस करते हुए संभवत: उनके कर्म ही अच्छे नहीं हैं। आप देख सकते हैं कि आप परमात्मा के आशीर्वाद का आनन्द लेते हैं। जैसे कुछ देश एसे हैं जिनमें समस्याएं हैं. जहाँ के लोगों का कि वहां गहन साधक समाप्त हो गए हैं। जैसे इंग्लैण्ड में । नशा, हिप्पीवाद तथा अन्य मु्खताओं में साधक खो चुके हैं। अमेरिका की सबसे अधिक दुर्दशा है क्योंकि वहाँ लोग गलत प्रकार की साधना में फँस गए हैं और वहाँ सत्य साधक खोजना कठिन कार्य है। शनै: शनै: ये कार्यान्वित हो रहा है | फिर भी मैं कहूगी कि हमें किसी देश विशेष के बारे में नहीं सोचना चाहिए जहाँ सहजयोग बहुत अच्छी तरह से नहीं चल रहा है या जहां सहजयोग बहुत अच्छी तरह चल रहा है । विश्वव्यापी स्तर पर सहजयोग की उन्नति के विषय में हमें सोचना चाहिए क्योंकि हम सहजयोग समाज के अंग प्रत्यंग हैं। यह एक अनुपम समाज है जो पहले कभी न था। यहाँ बहाँ एक दो सूफी या आत्मसाक्षात्कारी लोग होते थे जो सदैव कष्ट उठाते रहे । सारा जीवन उन्होंने कष्ट उठाए। किसी ने उनकी ओर नहीं देखा। महाराष्ट्र से मुझे बहुत आशाएं थीं लेकिन निराशा ही हाथ लगी क्योंकि उन्होंने सदैव महान सन्तों को बुरी तरह से सताया। इसका खामियाज़ा वे अब तक भुगत रहे हैं। उनके लिए मैंने इतना परिश्रम किया फिर भी यह पतित क्षेत्र है। लोगां का आचरण आदि कितना खराव है। यद्यपि वहाँ सहजयोग परमात्मा आपको धन्य करें। चैतन्य लहरी खंड : X अक : । 12 1998 11 75वां जन्मोत्सव पश्चिमी सहजयोगियों की कलम से कष ऐसा प्रतीत हुआ कि भारत यात्राओं में उपस्थित जिन श्रीमाताजी निर्मलादेवी के अवतरण के 75 वर्ष पश्चात विश्व निर्मला धर्म के राष्ट्रों से उनके बच्चे पृथ्वी के दूर दूर के सहजयोगियों से हम अठारह वर्ष पूर्व मिले थे वे सभी वहाँ भागों से उनका जन्मोत्सव मनाने, पूजा करने तथा पृथ्वी पर अवतरित होने के लिए माँ के प्रति हार्दिक कृतज्ञता प्रकट के लिए भिन्न नदियों की धाराओं की तरह निर्मल सागर के तट पर भारत की राजधानी दिल्ली के स्काउट मैदान पर एकत्र हुए। इस वैभवशाली. सारगर्भित अनुभव का वर्णन किस किसी पुराने मित्र से पुन्मिलन होता. पीठ थपथपा कर पुरानी प्रकार आरम्भ किया जाए? श्री माताजी निर्मला देवी के 75वें मित्रता को प्रगाढ़ किया जाता। पिछले पाँच, दस, पन्द्रह या जन्म दिवस के छः दिवसीय (20-26 मार्च 1998) उत्सव की यह दैनिकी तथा सुस्मरणों का मधुर मिश्रण है। भारत पहुंचने से के विषय में बातचीत करते हुए तथा भविष्य के विषय में उपस्थित थे। जो योगी बहुत से वर्षों से भारत न आ पाये थे वे भी श्रीमाताजी के प्रति श्रद्धा अभिव्यक्त करने के लिए वहाँ आए थे। कैम्प के इर्द-गिर्द हो कदम चलने पर किसी न कुछ कभी-कभी बीस वर्षो में सहज के मामलों की मधुर स्मृतियों 1. पूर्व इस प्रकार के संकेत प्राप्त हुए थे कि हम एक ऐसे अपूर्व आशाएं अभिव्यक्त करते हुए समय व्यतीत होता। यह समय उत्सव में भाग लेंगे जैसा हमने पहले कभी नहीं देखा था। श्रीमाताजी के 75वें जन्मदिवस के महत्व को किसी भी प्रकार पूर्व यात्राओं तथा अपने देशों में सहज अनुभवों की बातचीत से नजरअंदाज नहीं किया गया। भेजे गए आमन्त्रण के फलस्वरूप विश्वभर के योगी परमपावनी माँ की जन्मभूमि भारत के लिए बनाते हुए लोग! चल पड़े। अपने आध्यात्मिक जन्मस्थान की तीर्थयात्रा पर, प्राचीन पावन भृमि का स्पर्श पाने के लिए तथा श्रीमाता जी की पूजा के लिए निर्धारित स्थान तक पहुंचाने वाले मार्ग पर योगी निकल पड़े। कहा जाता है कि श्रीमाताजी स्वयं हमें अपनी पूजा करने के लिए भारत आमंत्रित करती है। 'वहाँ उपस्थित होने के लिए वे हमारी छुट्टी, आवश्यक धन तथा अन्य सभी आवश्यक चीजों का प्रबन्ध करती है' उनके बुलावे के उत्तर में हम अपने शिविर जीवन से पूर्णतः परिचित हो गए हैं तथा वहाँ एक दूसरे अतीत दर्शी प्रतीत होता था। भीड़ में इधर-उधर घूमते हुए चेहरे करते हुए पुरानी मित्रता को ज्योतित करते हुए और नई मित्रता धर्मशाला स्कूल के बच्चों की उपस्थिति के कारण निजामुद्दीन शिविर पारिवारिक परिदृश्य (नजारा आरम्भ के दिनों में सहज-याग में बहुत से अविवाहित युवा ) बन गया। हुआ करते थे। परन्तु परिपक्व होकर योगियों ने गृहस्थ जीवन अपना लिए। इस प्रकार सहज-योगियों की अगली पीढी का भारत तीर्थ यात्रा से इतनी छोटी उम्र में परिचय होने लगा जिसकी कल्पना हममें से कोई भी न कर सकता । हमारे बच्चे मे मा की संगत में कठिनाइयों तथा असुविधाओं की चिन्ता किए लिए बनाए गए पथ का अनुसरण करते हें । विश्व भर से भारी संख्या में सहजयोगी दिल्ली के बिना अत्यन्त प्रसन्नता एवम आनन्दपूर्वक रहते हैं। बिना किसी निजामुद्दीन स्काउट कैम्प में एकत्र होने लगे । विदेशों से आए शर्त के एक दूसरे को सामूहिकता का सदस्य स्वीकार करते हुए, एक-दूसरे के व्यक्तित्व के भिन्न आयामां को स्थान देते हुए बच्चे वहाँ कार्य करते हैं । एक-दूसरे के लिए सुन्दर एवं हुए एक हजार और सात हजार भारतीय भाई-बहन सभी श्रीभाताजी के अभिमुख थे ओह! हम आ गए! नमस्कार और अभिवादनों से पुरान मित्रों से मिलने की कल्पना की जा सकती स्वाभाविक प्रेम से वे परिपूर्ण हैं और बच्चों में पाए जाने वाले है! हृदय के पट खुलने के लिए समय न था यह पहले ही खुल गया है। पृथ्वी पर बैठकर जिस शीघ्रता से भारत माँ तनावों तथा उद्वेगों को शान्त करती है, उसकी सराहना करना, दिनचर्या में जो चीजें भुलाई जा चुकी थी उनका अचानक वापिस आ जाना तथा विवेकशील लगना! विश्व परिवर्तित हो रहा है। क्या हम ने एक बार कहा था कि हमारे बच्चे हमें सिखाएंगे कि किस सामान्य विरोधों का उनमें अभाव है। सहज सामूहिकता में बंधे हुए दिन-प्रतिदिन वे प्राकृतिक विश्व-बन्धुत्व में रहते हैं बच्चे हमें सिखाते हैं कि हमें बाँटने वाली चीजें मात्र भ्रम ऊपर हमारा योग श्रीमाताजी से है और परस्पर है। श्रीमाता जी इससे प्रकार सहज योग किया जाता है। नया युग लाने के उपकरण हैं। 12 चैतन्य लहरी । खंड : X अंक : !। 12 1998 अभिनन्दन समारोह 20 मार्च, शुक्रवार उन्होंने अपना दर्द प्रकट करते हुए कहा कि श्रीमाताजी ने जितना कुछ हमारे लिए किया है उसके लिए किस प्रकार हम जन्मोत्सव कार्यक्रम का विधिवत आरम्भ सांयकाल अभिनन्दन कार्यक्रम से हुआ। कार्यक्रम आरम्भ होने से पूर्व का दृश्य आने वाले 7 दिनों की ओर संकेत कर रहा था : बहुत बड़ी संख्या में लोगों का कार्यक्रम के लिए शिविर में आना, पंडाल के दो प्रवेश द्वारों पर लम्बी लाइनों का बनना, पंडाल के काम उनका 'केवल तीन मिनट में धन्यवाद कर सकते हैं। 20वीं शताब्दी में पृथ्वी पर अवतरित होने के लिए आदि शक्ति का धन्यवाद हम किस प्रकार केवल तीन मिनट' में कर सकते हैं? यह कहते हुए उन्होंने समापन किया कि श्रीमाताजी प्रदत्त सम्पूर्ण शक्तियों से भी 'केवल तीन मिनट' में उनका धन्यवाद अन्दर के स्थान का छोटा पड़ना तथा प्रवेश केवल बैज पहने हुए लोगों तक सीमित होना। श्रीमाताजी के पहुँचने तक पंडाल खचाख्च भर चुका कर पाना संभव न होगा। अपनी विनोदमय शैली में उन्होंने था. सैंकड़ों लाग पंडाल की बाह्य परिधि पर खड़े हुए थे और मूलतत्व को अत्यन्त गहनतापूर्वक छुआ। एक काफी बड़ी भीड़ को प्रवेश न मिल पाया था । बहुत से सुप्रसिद्ध भारतीय राजनीतिज्ञ तथा नागरिक और भिन्न दंशों से आए सहजयोगी अगुआओं को भाषण देने के एवम् भय के भाव देख रहे थे आयु. रंग. राष्ट्रीयता, जातिवाद लिए आमन्त्रित किया गया बहुत से लोग जो समारोह में न आ पाए थे उनके संक्षिप्त संदेश पढ़कर सुनाए गए। इनमें भारत के राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के भी संदेश थे जिन्होंने मानव मात्र की निस्वार्थ सेवा के लिए श्रीमाताजी को बधाई भेजी तथा कृतज्ञता व्यक्त की। क्लेस नोबल ने अपने बधाई संदेश उन्होंने कभी न देखा था। में कहा कि 'पृथ्वी के विशाल परिवार' के सभी सदस्य निराकार रूप से इस समारोह में उपस्थित हैं। अयातुल्ला रूहानी संदेश के विषय में बताते हुए कहा कि श्रीमाताजी और और उत्तरप्रदेश मन्त्रिपरिषद के एक मन्त्र के संदेश पढ़ते हुए सहजयोगी के जीवन का यह मूल तत्व है और यहाँ एकत्रित योगी महाजन ने बताया कि पृथ्वी के चारों कनों से श्रीमाताजी लोगों के स्वभाव में झलकता है। उन्होंने कहा कि वे सहजयोग के प्रति मंगलकामना करते हुए उनके जन्मदिवस पर हजारों के लिए नए थे, ये समझना उनके लिए कठिन है कि किस बधाई पत्र, तार, ई-मेल और फैक्स आए हैं। पश्चिमी देशों से आए सहजयोगी अगुआओं ने सर्वप्रथम श्रीमाताजी के प्रति अपना प्रेम व्यक्त किया। एक ने अपने हैं इससे सहजयोग के विश्वव्यापी स्वरूप का पता चलता है । भाषण में कहा कि श्रीमाताजी के सम्मुख वह इस प्रकार है समर्पण की इस गहनता को देखते हुए लगता है कि विश्व का मानो कैलाश पर्वत के सम्मुख रेत का कण हो। श्रीमाताजी ने परिवर्तन अब सभव है। ाम सहजयोगी जब भाषण दे रहे थे तो मंच के समीप बैठे हुए हम लोग राजनीतिज्ञों तथा महानुभावों के चेहरों पर आश्चर्य तथा अन्य बनावटी सीमाओं से मुक्त विश्वभर से आए सगठित लोगों के चमत्कार को देखकर ये महानुभाव गहन रूप से प्रभावित हुए संभवत: एकता तथा संघटन के उन्होंने बहुत से भाषण सुने थे परन्तु इन महान स्वप्नों को साकार होते हुए भारतीय जनता पार्टी के एक मंत्री ने प्रेम के शाश्वत प्रकार इस अवसर के लिए भारत कोे भिन्न क्षेत्रों से लोग यहाँ एकत्र हुए । पंचास से भी अधिक राष्ट्रों के लोग यहाँ उपस्थित अन्य महानुभावों ने अपनी राष्ट्रीय भाषा में न केवल भारत में परन्तु पूरे विश्व में श्रीमाताजी के महत्व की चर्चा की! मां के प्रेम एवं करुणा को सभी बक्ताओं ने सराहा, एक वक्ता . ने तो यहाँ तक कहा कि, "मैं यहाँ पर श्रीमाताजी को धन्यवाद दंने के लिए नहीं आया हूँ क्योंकि एक पुत्र कभी अपनी माँ का हमारे हृदय के अन्दर स्वर्ग का मा्ग दिखाया है। एक अन्य अगुआ ने कहा कि 'श्रीमाताजी ने हमें बन्धनों से मुक्त कर दिया है तथा स्थायी शान्ति प्रदान की है। उनके प्रति अपने प्रेम एवं कृतज्ञता को हम शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते। विनम्र हृदय से हम उन्हें प्रणाम करते हैं। जर्मनी के सहजयोग अगुआ श्री फिलिप का भाषण अत्यन्त हृदय स्पर्शी था। भारत आते हुए वायुयान में अपने है, वह तो यहाँ पर उनका अधिकाधिक प्रेम एवं आर्शीवाद लेन सामने आई हुई दुविधा को उन्होंने व्यक्त किया। समयाभाव धन्यवाद देने के विषय में नहीं सोचता, यह तो उसका अधिकार के लिए आया है। श्री राजेश शाह ने ये कहते हुए समापन किया कि सहजयोग ने वास्तव में विश्व भर के लाखों लोगों के जीवन को तथा बहुसंख्या में वक्ताओं के होने के कारण आयोजकों ने उन्हें मंच पर तीन मिनट से अधिक न बोलने के लिए कहा था। चैतन्य लहरी खंड : X अंक 13 : 11, 21998 परिवर्तित किया है। आज हम उन परिवर्तित लोगों के प्रतिनिधियों के रूप में यहाँ श्री माताजी के प्रति सम्मान एवं कृतज्ञता प्रकट श्रीमाताजी ने कहा कि वे अकले ये सारा कार्य न कर पाती, हमारे हृदयों की विशालता के कारण हमारा प्रेम विश्व के. सभी लोगों तक पहुँचा है. उन सभी लोगां तक जिन्हांन आल्मा करने के लिए आए हैं परन्तु अभी भी दस अरब लोग बाकी हैं। सभी भाषण हृदयस्प्शी थे और हृदय से दिए गए थे। आश्चर्य तो] उस समय हुआ जब श्रीमान सी. पी. श्रीवास्तव भाषण देने के लिए खड़े हुए और अपनी पत्नी को 'श्री निर्मला माता जो' कहकर संबोंधित किया। पहली यार उन्होंने उन्हें को कभी न पहचाना था। आत्मा के प्रकाश में उन्हांने उन सभी दुंव्यसनों को त्याग दिया है जो उनमे निराशा और अकेलेपन के कारण आ गए थे। अब समय आ गया है जब सहजयाग को विश्वस्तर पर कार्यान्वित करना होगा और यह कार्य सामूहिक रूप से आत्मा की ओर प्रेरित विश्वव्यापी दृष्टिकाण विकसित माताजी' कहा था । स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा."मैं सोचता करने से होगा। उनके फचहत्तरव जन्म दिवस के अवसर पर, अब समव आ हु गया है जब, मुझे उनके प्रति पूर्णत: समर्पित हो जाना चाहिए (तालियों की गड़गड़ाहट) उन्होंने श्रीमाता जो को 'परमंेश्वरी' (Divine Lady) कहा तथा सहजयोग स्थापना के लिए उनके की कामना करती हूँ ताकि आपकी आध्यात्मिकता विश्व क निरतर कठोर परिश्रम की प्रशंसा की । उन्होंने श्रीमाताजो के लंदन के दिनों की चर्चा करते हुए कहा कि अपने महान प्रेम करें"। ओर करूणा के गुण से लोगों को मानवता के सुंदर बास्तविक पुष्यों के रूप में परिवर्तित करने की उनकी योग्यता को उन्होंने 'वंदेमातरम्' गाया गया। सभी दर्शक अपने स्थान पर खड़े हो वही पहचान लिया था । अपनी अद्वितीय शैली में आनन्द से गदगदू श्रीताओं को उन्होंने कुछ कहानियाँ सुनाई और विस्मयपूर्वक कहा कि यह 'देवदुतों' की सामूहिकता' है---स्वर्ग का यह एक हिस्सा है जिसकी अध्यक्षता परमात्मा स्वयं कर रहे हैं। उर्दू का एक शेर कहते हुए श्रीमान सी.पी. श्रीवास्तव ने तो यह अत्यन्त हृदयस्पर्शी एवं मर्मस्पर्शी क्षण था. क्योंकि वे ही श्रीमाताजी से हम सबके हृदय की बात इस प्रकार कही- " जिओ हजारों साल, साल के दिन हो पचास हजार"। समापन करते श्री माता जी ने कहा, जव, मुझ हुए आध्यात्मिक जीवन, आपकी आध्यात्मकता में मैं महान उन्नति आपक हर कोने में फैल जाए और भविष्य के सुंदर संसार की सृष्टि कार्यक्रम को समापन करने के लिए हृदय स्पर्शी गए। ऐसा प्रतीत हुआ मानो भारतमाता अपनी लम्बाई शक्ति तथा गरिमा में उन्नत हो रही हो! भयातुर कर देने वाले आयाम में खड़ी हुई श्रीमाताजी इस प्रकार श्रीताओं के साथ जब पूरी आवाज में अपने सम्मुख भारत का आध्यात्मिक गान गा रही थी भारत तथा सभी राष्ट्रों की माँ हैं। ये क्षण उपस्थित श्रोता कभी नहीं भुला पाएंगे। इस स्मरणीय शाम के महत्व के प्रति पूर्ण सम्मान अभिव्यक्त करने के लिए इसे अत्यन्त सावधानी पूर्वक तुम उन्होंने कहा कि मैं इससे भी एक कदम आगे जाते हुए योजनावद्ध किया गया था तथा अत्यन्त प्रम से कार्यान्वित किया कहगा कि आप तब तक जीवित रहे जब तक पचास अरब লलागा में से हर एक आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके सहजयोग में गया। "21 मार्च, शनिवार 'जन्मदिवस पूजा उतर न जाए और इसके पश्चात भी आप ये विश्वस्त करने के लिए जीवित रहें कि हर व्यक्ति उचित मार्ग पर चल रहा है। समापन करते हुए उन्होंने कहा कि अभी तक वे स्वयं को प्रशिक्षित योगी के रूप में मानते रहे परन्तु अब, उन्होंने शिविर आश्चर्यचकित कर देने वाले ढंग अगली सुबह से भरता शुरु हो गया। भारत के सभी भागों से सहजयोगी आ रहे थे जब हम पूजा की तैयारी कर रहे थे ता शिविर में चारों और आशा की एक लहर दौड़ रही थी। अधिकाधिक संख्या में पचहतरवें जन्म दिवस पूजा में लोगों का भाग लेना बहुत ही कहा, "आप संब मुझ एक सहजयोगी के रूप में स्वीकार कर ल"। इस महान संत की प्रशंसा-घोष करने के लिए जब हम लोग खड़े हुए तो बहुत से लोगों की आँखों से अश्रु बह निकले। बहुत-सी पुस्तकों-का विमोचन हुआ. तत्पश्चात् श्रीमाताजी प्रतीत उपयुक्त हुआ। पूजा का समय सात बजे साय का रखा गया था। पाँच बजे ही पंडाल के अंदर जाने के लिए लाइन आधा किलामीटर लम्बी हो गई। ये झलक रहा था कि सभी लोग जानते हैं, कि के प्रवचन का समय आया । यह एक जनकार्यक्रम सा था। अपने प्रवचन में उन्होंने सहजयोगियों तथा उपस्थित सर्वसामान्य लोगों को संबोधित किया, उन्होंने कहा कि विश्व की सभी सभागार में बैठने का स्थान साधकों के लिए पर्याप्त नहीं हैं। छः वजे पंडाल खचाखच भर गया था परन्तु अब भी हजारों समस्याओं का मूल कारण हमारे चित्त का बाहर होना है अत: अंतः लोग प्रवेश के लिए कतारों में खड़े हुए थे। अंदर बैठे हुए लोगों से अनुरोध किया गया कि बिल्कुल खाली स्थान न छोड़ें ताकि बाहर खड़े लोगों को अंदर लाया जा सके। भीड़ के कारण पंडाल में भयंकर गर्मी थी बड़े आकार श्वास-श्वास हमारी एकाकारिता अपनी आत्मा से होनी चाहिए। उपस्थित राजनीतिजञों उन्होंने बताया कि आध्यात्मिक जीवन के महत्व को वे नजरअंदाज को माँ के रूप में दृढ़तापूर्वक न करें। चैतन्य लहरी खंड : x अंक : । 12 1998 14 सीमाओं को हम पार कर लेते हैं. सभी सहजयोगियों से हमारी एकाकारिता हो जाती है। पूजा काफी छोटी थी. पारम्परिक रूप से सात महिलाओं ने श्रीमाताजी के सम्मुख साड़ी भी नहीं थामी। सदैव को तरह अन्त में बहुत देर तक फोटोग्राफ लिए गए फिर भी मंच पर पागलों की तरह से भीड़ न थी क्योंकि मंच तक पहुँचने वाली सीढ़ियों तक फूलों के गमले रखकर मच पर आने का रास्ता रोक दिया गया था। पंडाल में चारों तरफ लगे हुए गुब्बारो का बड़े जांश से फोड़कर सामूहिक रूप से अह का गुव्वारा फॉंड्ने का प्रतीकात्मक प्रयत्न किया गया पूजा समापन होने पर अंतर्राष्ट्रीय तोहफा भेंट किया गया एक बहुत बड़ा 'तैल चित्र (जिससे पूरी दीवार ढंक जाए) जिस पर शिव-पार्वती के चित्र बने हुए थे और चारों ओर शिव कथाओं का वर्णन करते हुए छोटे छाटे दृश्य चित्रित किए गए थे। यह तैल चित्र, जो कि के थैलों आदि का तो बाहर रखना पड़ा पानी की बोतलं, शाल अपनी गोदी में लेकर बुटने सीने से लगाए हुए लोग बैठे थे। हम प्रतीक्षा कर रहे थे कि कॉई चमत्कार हो और पंडाल का विस्तार हो जाए परन्तु ऐसा नहीं हुआ सात बजे पंडाल इस प्रकार भर चुका था जैसा पहले कभी नहीं देखा गया - सात हजार से अधिक लोग अदर बैठे हुए थे और तोन हजार पंडाल से बाहर टेंट में कैमरों द्वारा प्रसारित टी. वी. से पूजा में सम्मिलित हाने के लिए उपस्थित थे। श्रीमाता जी पीने आठ बजे अपने परिवार के साथ पहुंची सभी राष्ट्रों से आए हुए, रंग-बिरगी पारपरिक राष्ट्रीय बेशभृषा में अपने राष्ट्रीय ध्वज उठाए हुए योगियों ने एक जुलूस निकालकर उनका स्वागत किया, पूजा से पूर्व सभी ध्वज 'श्री माताजी' को भेंट कर दिए गए। श्री माता जी ने कहा ये सभी वि ध्वज इस संदर्श के साथ अपने देशों में वापिस ले जाए कि अब हमारे पुनर्उत्थान का समय आ गया है। अपने अस्तित्व क उच्च कई सदियां पुराना था. मूल रूप से तजोर के महल में टंगा हुआ था। वर्णक्रमानुसार (Alphabetically) वहुत से राष्ट्रों के प्रतिनिधि श्री माताजी का उपहार देन के लिए कतार में खड़े हुए थे। परम-पाविनी मां के सम्मुख इतने सहज राष्ट्र अपनी श्रद्धा भंट देने के लिए खड़े थे कि माँ तक पहुँचने के लिए उन्हें दो घंटों से भी अधिक समय लगा । स्तर तक हमें उन्नत होना चाहिए जहां हमारे जीवन की हर चीज परिवर्तित हो जाए और आत्मा के आन्तरिक जीवन के सौन्दर्य को प्रतिबिबित करे । एक वार फिर श्रीमाताजी का प्रवचन जन कार्यक्रमों सा था, इतना सर्वव्यापी कि सभी व्यवहारिक चीजों को लिया गया। उन्होंने एक बार फिर आत्मा को आर चित्त करने को कहा। जब हमारा चित्त आत्मा पर हाता उपहार भजने वाले राष्ट्रों के योगिया ने भी कुछ उपहार दिए जो श्रीमाताजी' को अच्छे लगे। उनमें बच्चों द्वारा बनाई गई चीजें बुने हुए कपड़े और सुदरता से बनाए तथा सजाए फर्नीचर थे। मलेशिया के एक लड़के न एक शानदार पेंटिंग भेट की जिस पर श्री माताजी के अवतरण, उनकी युवावस्था, सर सी.पी. के साथ उनका वैवाहिक जीवन. स्वतंत्रता संघर्ष, सहजयाग है तब हम गुणातीत स्थिति में प्रवश कर जाते हैं, ये स्थिति तीनों गुणों से पर है और तीनों गुणों से उत्पन्न इच्छाओं से ऊपर उठ कर हमारा चित्त, अभी तक हमें वशोभूत किए हुए, अहम् एवं बंधनों से ऊपर उठ जाता है । तब व्यक्ति कालातीत हो जाता है, समय से परे जहाँ भूत और भविष्य उसे बाँध नहीं सकता और वह वर्तमान क्षण के लिए जिम्मेदार हो जाता है। तत्पश्चात् व्यक्ति धर्मातीत हो जाता है अर्थात् धर्मं के बंधनों से पर किसी धर्म विशेष या कर्म कांड में फसा नहीं रहता, चेतना स्थापना के उनके कार्य तथा उनके दिव्य पक्ष चित्रित थे श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला दवीं के जन्मांत्सव समारोह के शुभअवसर का यह उपयुक्त समापन था। 22 मार्च, 1998-रविवार पूजा के पश्चात् पाँच दिनों तक जन्मदिवस समाराह = 22 मार्च से 26 मार्च तक संगीत के कार्यक्रम सभी दिन एक सा कार्यक्रम रहा, दिन भर विश्राम होता. साय को उस स्थिति में प्रवेश कर जाता है जहां सभी समाधान हो जाते हैं। धर्म कभी-कभी कर्मकाण्ड या बंधन बन जाता है। यह स्थिति अत्यन्त मृर्खतापूर्ण होती है। श्रीमाताजी ने बताया कि वही व्यक्ति सहज योगी है जो सबका और सभी स्थितियों का आनन्द लेता है। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति स्वयं को देखता है कि उसमें क्या गलती है और जानता है कि स्वयं को कब सुधारना है। सहजयोग में जब हम आत्मा चलता रहा तथा प्रात: काल के कुछ घटे संगीत चलता। कुछ लोगों ने अपने दिन खरीदारों में विताए कुछ उपस्थित सहजयोगी अपने बच्चों के साथ चिडियाघर गए तथा नगर के कुछ अन्य दर्शनीय स्थान देखे । खरीदारी के मोह से मुक्त जो लोग थे उन्होंने अपना समय शिविर में पेड़ों की ठंडी छाया के नीचे मित्रों से बातचीत में बिताया। पेड़ों के साए बताते थे कि दिन बीत गया है, समय निकल गया है और एक सप्ताह सहज-सामूहिकता के तालाब में नहाते हुए निकल गया है। | अंधेरा होने से पूर्व ही हम पंडाल में इकट्ठे हो जाते बन जाते हैं तब सभी कुछ परिवर्तित हो जाता है। हमारे जीन्स परिवर्तित हो जाते हैं, हम 'आनन्द' को समझ जाते हैं। आनन्द दे सकते हैं और अन्य लोगों की संगति का आनन्द ले सकते हैं। तब हम कहीं भी रही सकते हैं, कहीं भी सो सकते हैं क्योंकि हमारी आत्मा हमें आनन्द प्रदान करने के लिए सदैव हमारे साथ होती है। सत्य को पहचानने में बाधा डालने वाली 15 चैतन्य लहरी ॥ खंड: X अंक : ।। 12 ।998 क शारीरिक सुख के लिए पर्याप्त स्थान न था परन्तु हमने इसकी के सम्मुख ही कर पाते हैं, पश्चिम के कलाकारों से इन कलाकारों की तुलना यदि की जाए तो वे स्वभाव से एक दूसरे था जहां जाने की हमें इच्छा होती। संतों से भरे हुए परमात्मा के के बिल्कुल विपरीत हैं। पश्चिमी कलाकार घमण्ड से भरे हुए श्रोताओं से ऊंचे दिखाई पडते हैं जबकि भारतीय कलाकार अत्यन्त अनिच्छा से प्रशंसा पाने के लिए आगे आते हैं हाथ बनाया जाता था. अत्यंत विशेष थी। सैंकड़ों की तादाद में फूलों जोड़कर हम सबको नमस्कार करते हैं मानो उन्हें सुनने के लिए तथा इस प्रदर्शन में भाग लेने के लिए हमें धन्यवाद दे रहे हो। इतना महान संगीत और इतनी महान नम्रता! संगीत सभा में उनके ऊपर के गोले सभी कुछ थर्मोकोल से बनते थे कभी-कभी तो हम इतने गहन ध्यान में चले जाते कि समझ पाना कठिन होता कि संगीत कहाँ समाप्त हुआ, आत्मा कहाँ आरंभ हुआ। दोनों की एकाकारिता इतनी पूर्ण थी! संभवत: कानों की अपेक्षा यही कुण्डलिनी द्वारा सुनना हो। सर सी.पी. कोई विशेष चिंता भी न की क्योंकि कोई अन्य स्थान ऐसा न दरबार में परमेश्वरी संगीत सुनते हुए शामें व्यतीत होतीं। पंडाल की साज-सज्जा तथा जिस गति से प्रतिदिन इसे की लड़ियां, गुव्बारे, चमकते सितारे, और थर्मोकोल से ये न जाने क्या क्या बना सकते हैं। सुंदर भित्ति चित्र. बार्डर स्तंभ पत छोटे-छोटे पेड तथा चट्टान बाग साज सज्जा का एक भाग थे ओर फूलदार पौधे सोढियों पर पड़े हुए चैतन्य लहरियों के कारण प्रतिदिन कई इंच बढ़ जाते थे। तीन दिन के पश्चात पौधों की ऊपर पंक्ति इतनी बड़ी हो गई कि इसको हटाना पड़ा ताकि दर्शक कलाकारों को देख सकें। न जाने इन साज-सज्जाओं कल्पना दीरदी और साधना दीदी सभी कार्यक्रम का आनन्द लेतं हुए प्रतीत हुए पूरे कार्यक्रमों में ध्यान पूर्वक उनका सुनना तथा देखना ही इस बात को स्पष्ट करता था कि भारतीय शास्त्रीय का क्या हुआ, इन्हें हटा दिया गया और एक सहजयोगिनी ने निजामुद्दीन चौक के पास एक बच्चे को थर्मोकोल का एक संगीत एवं नृत्य का वे कितना सम्मान करते हैं। सर सी.पी. और श्री माताजी को एक साथ बैंठे हुए देखना, कभी कभी एक दूसरे की ओर झुककर संगीत सराहना करना, मुस्कराना या देखा। तबला ले जाते हुए हमने स्वप्न में भी कभी न सोचा था कि अपने क्षेत्र में इतने श्रेष्ठ एवं आश्चर्यचकित कर देने वाले कलाकार भी होंगे। हर रात्रि कम से कम पांच कार्यक्रम हाते थे जो या तो शास्त्रीय, साथ साथ चरन खाना बहुत ही मनमोहक लगा। कई अवसरों पर संगीत की लय के साथ सहजयोगी नृत्य एवं संगीत होते या नागपुर एकडेमी तथा पश्चिमी सहजयोगियों के कार्यक्रम होते। एसा लगता था मानो अत्यंत सुंदर दस्तरखान पर भांति-भांति के पोषक एवं स्वादिष्ट भोजन सजा दिए गए हमारी तालियों की आवाज को कम करने के लिए कहा करते होँ जिनमें से थोड़ा-सा खाकर व्यक्ति संतुष्ट हो जाता हो। कभी थे हर रात्रि के कार्यक्रम के लिए वे समारोह संचालक कभी हमें अधिक आत्मसात करने की इच्छा होती क्योंकि हमें (Master of the ceremony) और उनसे अधिक गरिमा लगता कि हमारा सीमित चित्त इस पोषक भोजन को प्रातः के एवं सूझ से बूझ कार्य करने वाला संभवत: और कोई न होंगा। दो तीन बजे तक लेकर ही तृप्त हो जाता है। हर रात्रि का कार्यक्रम छ: बजे सांय आरम्भ होता और प्रेम उमड़ता। नागपुर संगीत एकडेमी के लिए उनके विज्ञापनों स्वत: ही ताली बजाने लगते। ऐसा लगता है हम उन दिनां से बहुत आगे आ गए हैं जब बाबा मामा तबले की थाप के साथ सहजयोग में संगीत प्रसार करने वाले इस मामा के प्रति अत्यंत का स्वा-त किया जाता। कार्यक्रम में हर रात्रि लोग कहते कि सुबह के तीन चार या पाँच बजे तक रहता। इतना लम्बा समय वैठने के कारण हड्डियां चरमरा उठती और खड़े होकर यदि हम भी एकेडेमी में शिक्षा प्राप्त कर पाते तो कितना अच्छा कलाकारों को तालियों से सम्मान करने के जो अवसर आते होता! वे सभी लोग भी इस बात को कहते जो इससे पूर्व भारतीय संगीत व नृत्य से कभी न जुड़े हुए थे उन्होंने प्रयत्न करते, बैठे हुए जब भी मौका मिलता अपनी टांगों को श्रीमाताजी की इच्छा बताई कि एकेडेमी में कम से कम सौ छात्र होने चाहिएं और कहा कि संभवत: जन्मदिवस संगीत समारोह के पश्चात पांच हजार विद्यार्थी एकडेमी में प्रवेश पाने वेठ उनमें हम आवश्यकता से अधिक समय तक खड़े रहने का फैलाने की प्रयास करते, जब तक बाबा मामा जोर देकर बैठने के लिए नहीं कहते हम खड़े रहते। स्पष्ट देखा जा सकता था कि कलाकार प्रायः जिस के लिए प्रतीक्षा पक्ति में होंगे। एक सभा में बाबा मामा न कहा क उन्होंने एक बार श्री माताजी से समय को रोक देने की प्रार्थना की थी, तब श्री माताजी ने उत्तर दिया था कि यदि मैं समय को रोक दूंगी तो और प्रकार आध्यात्मिक हस्तियों का स्वागत करते हैं उनसे कहीं अधिक गहन सम्मान उनका श्री माताजी के प्रति था। उनमें से कुछ ने अपना प्रदर्शन शुरु करने से पूर्व कुछ शब्द कहे। उन्हें देवी की प्रशंसा करते हुए, अपनी श्रेष्ठ प्रस्तुतिकरण के लिए बो क्षण भी समाप्त हो जाएंगे जिनमें आप आनन्द लेत हैं देवी का धन्यवाद करते हुए सुनना अत्यन्त आनन्ददायी था। वे कहते कि एसा श्रेष्ठ प्रदर्शन वे केवल श्रीमाताजी एवं सहजयोगियों आपका भाग्य परिवर्तन करने के लिए कोई अवसर न रह जाएगा। स्वयं को सुधारने के लिए व अपना भाग्य परिवतन चैतन्य लहरों = खंड : X अंक 16 : T, 12 1998 फ्रांस में रहने वाला एक रोमानियन सहजयोगी था जो आजकल एकेडमी में विद्यार्थी है। रोमानियन कव्वाली समूह को आरंभ करने वाला यही व्यक्ति था। इनकी प्रस्तुति अत्यंत प्रभावशाली करने के लिए हमें समय की आवश्यकता होती पहली संगीत संध्या का आरम्भ उत्तर प्रदेश से आए पं. जगन्नाथ मिश्र एवं साथियों के शहनाई वादन से हुआ। पं. जगन्नाथ मिश्र सुप्रसिद्ध शहनाई वादक श्री बिस्मिल्लाह खान के शिष्य श्री अनन्तलाल के शिष्य हैं। यह राग मधुवंती थी और इस बात का प्रमाण थी कि संगीत एकेडेमी भारतीय और शास्त्रीय संगीत की परंपराओं को किस प्रकार सुरक्षित रख रही है तथा इनका प्रसार कर रही है। उस संध्या को खड़े होकर सराहना प्राप्त करने वालों में से यह समूह सर्वप्रथम था। अगली प्रस्तुति सरोद पर 'दानिश्क खान' की थी. जिनकी संगति तबले पर मंत्र मुग्ध कर देने वाले शफात अहमद राग मारू विहाग का श्रेष्ठ प्रदर्शन था। दोनों ही राग अत्यन्त ध्यान प्रदायक एवं हृदय स्पर्शी है और श्रोताओं ने इनका बहुत आनन्द लिया। तत्पश्चात् उन्होंने एक भजन गाया और ऐसा प्रतीत हुआ कि श्रोताओं की गर्मजोशी से वे अवगत थे। तत्पश्चात् अ्जीत कड़कड़े का गायन हुआ, जिन्होंने एक बार फिर 'धनकनी काल्या' गाकर शास्त्रीय संगीत पर अपनी तार झंकृत कर दिए और हम सबने खड़े होकर करतल ध्वनियों पकड़ का प्रदर्शन दिया इसके पश्चात् उन्होंने भजन गाए। से इनका सम्मान किया। तत्पश्चात् शफात अहमद खा की सभी उपस्थित लोगों ने भारतीय शास्त्रीय परंपरा के प्रति उनकी एकल चमत्कृत कर देने वाली तबला प्रस्तुति हुई। संवेदनशीलता को महसूस किया। श्रीमती वनजा वैद्या ने कुचिपुडी नृत्य प्रस्तुत किया, श्री कृष्ण हुए अपने नृत्य की गरिमा तथा माधुर्य से उन्होंने हमारे हृदय जीत लिए तत्पश्चात् 'हे गिरी नन्दिनी' की धुन पर देवी नृत्य हुआ। देवी के संहारिणी रूपों की अभिव्यक्ति अत्यंत सुन्दर ढंग से हुई । नृत्य. ताल शरीर तथा मुद्राओं के एकीकरण द्वारा विश्व को संभालने किया और अंत में 'हासत आली' भजन गाया। वाली तथा दृष्टि मात्र से प्रलय लाने वाली देवी की मूर्ति की हुई। श्रीमाताजी ने प्रस्तुति की बहुत सराहना की और बाद पेश की । श्रीमाताजी ने बाबा मामा के साथ वर्ष 1960 में इस खां ने की। इन्होंने राग रागेश्वरी बजाया। इन्होंने हमारे हृदय के इसके पश्चात् 'सतीश व्यास' ने मंच संभाला तथा संतूर बजाया। वाद्य यंत्र की जटिलताओं तथा सूक्ष्मताओं के कारण यशोदा लीला को दर्शाते इसके स्वर मिलाने में कुछ समय लगा, परन्तु इस समय की सदुषयोग ही हुआ क्योंकि बाद में कौसी कान्हड़ा की प्रस्तुति के द्वारा उन्होंने श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया। इसके पश्चात श्रीमती मीना पटारपेकर ने मारू विहाग में शास्त्रीय गायन प्रस्तुत रक्षा कारिणी तथा संध्या की अन्तिम प्रस्तुति श्रीमती जरीन दारूवाला ने सृष्टि में कहा कि पहली वार उन्होंने 'हे गिरी नंदिनी' की ताल पर बालकलाकार को पहली बार सुना था। तबसे वे अपने संगीत त नृत्य प्रस्तुति देखी है। संगीत संध्या का समापन पश्चिमी शास्त्रीय वाद्य-वृंद सूक्ष्म एवं संवेदनशील प्रस्तुति से उन्होंने प्रातः बेला का स्वागत प्रस्तुतियों से हुआ, उनकी पहली प्रस्तुति विवाल्डी के चार ऋतुओं में से बसन्त तत्व की थी। तत्पश्चात् स्मार्तिनी मोज़ात और शेकोर्बोत्सके के कुछ भाग प्रस्तुत किए गए। श्री माताजी के कारण बहुत से पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं। राग 'जोग' की किया सभी दर्शकों ने खड़े होकर उनका भी सम्मान किया। मंगलवार, 24 मार्च पूर्व संध्या को देर तक कार्यक्रम चलता रहा था फिर भी बहुत प्रसन्न थी कि इस प्रकार भारतीय सहजयोगियों को भी इन पश्चिमी महान संगीतज्ञों के संगीत का आनन्द लेने का अवसर दिया गया। संगीत संध्या का समापन 'विनती सुनिए' की प्रस्तुति से सामान्य रूप से शिविर में लोग जार्ग-प्रात: का ध्यान, स्नान और नाश्ते के लिए, जो लोग रात का खाना न खा पाए थे, लंबी कतारें। शाम का कार्यक्रम छः बजे आरंभ हुआ पहले दो घंटे निर्मल संगीत सरिता में संगीत प्रस्तुत किया श्री निकोलस वफ जिसे श्रोताओं ने पूरी आवाज के साथ गाया तथा हुआ स्मरणीय संध्या को हृदय स्पर्शी बना दिया। '23 मार्च सोमवार' निर्मल संगीत सरिता के दो घंटे के संगीत से शाम को साढे पाँच बजे कार्यक्रम का आरम्भ हुआ। गैबी' (गोविन्द ( Mr. Necholas Buffi) पहले कलाकार थे जिन्होंने संदेश। पोपटकर के तबले के साथ सेक्सोफोन पर प्रस्तुति पेश की उन्होंने कई वर्षों तक एकेडेमी में प्राप्त शिक्षा द्वारा भारतीय शास्त्रीय संगीत की अपनी संवेदनशीलता, गहन सूझबूझ तथा जसरे) पहले कलाकार थे। उन्होंने राग जोग गाया। तत्पश्चात निपुणता का प्रदर्शन किया। धनंजय धुमाल ने सिंथसाइजर पर राग 'जहा सम्मोहिनी' बजाया और फिर 'ब्रह्म शोधिले' उनके बाद श्रीमती वासु ने गायन प्रस्तुत किया। निर्मल संगीत सरिता तथा एकेडेमी के विद्यार्थियों ने तब मंच को संभाला और 'तू दुनिया में आया' नामक कव्वाली द्वारा हमारा हृदय जीत लिया। इस संगीत समूह में इसके पश्चात स्विस भजन मंडली ने मंच संभाला तथा सितार, तबला, हारमोनियम, बाँसुरी का प्रदर्शन किया। उन्होंने राग यमन अत्यंत हृदयस्पर्शी रूप से बजाया और इसके 'जय दुर्गे दुर्गति परिहारिणी' और 'धरू तुम्हारो ध्यान' नामक भजन प्रस्तुत किए। चैतन्य लहरी खंड : X अक : ।।, 12 1998 17 तब दिल्ली सहज़योगियों ने कालेज के विद्यार्थियों को सहजयोग से परिचित कराते हुए एक नाटक का मंचन किया। कलयुगी सभ्यता से सहजयोग तक उन्हें लाने का प्रयत्न किया गया। तत्पश्चात् श्रीमती शाश्वती सेन ने सुन्दर तथा सूक्ष्म कत्थक नृत्य की प्रस्तुति की नृत्य को प्रकृति संगीत-पेड़ों से वायु के बहने, समुद्र में लहरों के उठने और आकाश में बादलों के घिरने नहीं है। इसके पश्चात् अकादमी के पाँच विद्यार्थियों ने महामन्त्रं पर कत्थक नृत्य किया तथा श्री शिव की महिमा गाते हुए एक नृत्य किया। तब अनिल गुरू जी, सन्देश और अशोक ने 'माँ तेरे निर्मल प्रेम को' और 'सहज ही ऐसी शक्ति' गाया। तबले पर सन्देश पोपटकर की संगति पर तब अविनिन्दा शिवालकर ने सितार पर राग यमन प्रस्तुत किया उनके बाद श्री मे का प्रतिबिम्ब बताते हुए उन्होंने नृत्य के भिन्न तूर साहब मंच पर आए। पुलिस के उपायुक्त के रूप में उनका परिचय कराया गया। जब भी उन्हें समय मिलता वे भक्ति संगीत लिखते। अपने साथियों तथा वाद्य यन्त्रों के साथ वे मच कदमों के महत्व का वर्णन किया। श्रीमाताजी के अनुरोध पर अमेरिका के योगियों द्वारा बनाई गई श्रीमाताजी के जीवन पर एक डॉक्युमेंटरी फिल्म दिखाई गई। इसमें श्रीमाताजी के बचपन तथा युवावस्था के चित्र हैं तथा सहजयोग स्थापना में उनके जीवन की झलकियाँ हैं । श्रीमाताजी ने कहा कि विश्व के सभी सहजयोग केन्द्रों को इस वीडियो फिल्म की प्रतिलिपि अवश्य रखनी चाहिए। पर आए। उनकी मंडली का संगीत पूर्व और पश्चिम का अच्छा सम्मिश्रण था उनकी प्रस्तुति के पश्चात् श्रीमाताजी ने सुन्दर प्रवचन दिया। उन्होंने कहा कि कितनी अच्छी बात है कि बदमाशों और अपराधियों के बीच रहने वाला व्यक्ति इतना आध्यात्मिक है और सहजयोग से इस प्रकार जुड़ा हुआ है। चमत्कार की बात यह है कि सहजयोग जेलों में भी सिखाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हालात के बावजूद भी इस व्यक्ति में संगीत के प्रति इतना प्रेम यह दर्शाता है कि विश्व अत्यन्त इसके पश्चात रोनू मजूमदार ने तबला वादक अभिजीत की संगति में बाँसुरी पर राग आभोगी बजाया। यह राग व्यक्ति को माया (भोग) से ऊपर ले जाता हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि बाँसुरी व्यक्ति को ध्यानगम्य कर देती है। इसका प्रमाण उन्होंने सुष्मना मार्ग से कुण्डलिनी के उत्थान पथ की ओर अग्रसर होते हुए दिखाकर दिया। शाम की अंतिम प्रस्तुति पं. भजन सपोरी की थी जिन्होंने संतुर पर राग कोंसी कान्हेड़ा बजाया। ये प्रस्तुति सतीश व्यास की प्रस्तुति से बिल्कुल भिन्न थी, यह अधिक सुन्दर रूप से परिवर्तित हो रहा है। वायोलिन विशारद डॉ. एन. राजम ने तत्पश्चात् राग जय जयवन्ती और श्रीराम का एक भजन वायालिन पर प्रस्तुत किया। तबले पर उनकी संगति अभिजित बैनर्जी ने की। अपनी मधुर धुनों के सौन्दर्य एवं गहनता से बहुत बार हमें मन्त्र मुग्ध कर चुकी श्रीमती डॉ. राजम हम सबसे सुपरिचित हैं। उनके ना जीवन्त थी तथा वादक की यंत्र पर पूर्ण नैपुण्य का प्रदर्शन कर रही थी। संगीत सृष्टा के सम्मुख प्रस्तुत की गई एक अन्य संध्या पश्चात् अरूण आप्टे ने राग श्याम कल्याण और राग दुर्गा गाए और दो भजन भी सुनाए। का इस प्रकार समापन हुआ। मोहन वीणा। (गिटार) पर विश्वमोहन भट्ट की मन्त्र शाम की सभा का आरम्भ 6.30 बजे हुआ। पहले दो मुग्ध कर देने वाली प्रस्तुति के साथ संगीत सरिता का समापन घण्टे निर्मल संगीत सरिता ने संगीत प्रस्तुत किया। स्टीव डे. हुआ तबले पर उनकी संगति संगीत दास ने की। Meeting by the River, जिसकी रिकार्डिंग Rycooder ने की की प्रस्तुति के कारण विश्व मोहन भट्ट अरकेले भारतीय संगीतज्ञ हैं जिन्हें ग्रामी पुरस्कार (Grammy Award) से सम्मानित किया गया है। उन्होंने राग हेमन्त को अद्वितीय चमत्कारी ढंग से बजाया और भाग्यशाली उपस्थित दर्शको ने 25 मार्च, बुधवार पहले कलाकार थे। उन्होंने पाश्चात्य भजन गाए। ये भजन उन्होंने नागपुर अकादमी के समीप आकाश, बहती हुई नदी और पृथ्वी माँ से प्रेरित होकर लिखे थे तत्पश्चात् निर्मल संगीत सरिता और अकादमी के विद्यार्थियों ने हृदय स्पर्शी कव्वाली वो प्यार देने को मजबूर तू प्यार पाने से मजबूर प्रस्तुत की। जिसका अभिप्राय था : श्रीमाताजी. अपना परमेश्वरी प्रेम बाँटने के लिए विवश हैं, यदि वे चाहें तो भी प्रेम के इस बहाव को वो रोक नहीं पाती। इस प्रेम के माध्यम से वे अपनी शक्ति का प्रसार हममें उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। श्रीमाताजी ने बाद में कहा कि उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत विशारद की प्रस्तुति का आनन्द लिया है । इस संगीत विशारद ने ये सिद्ध किया है कि पाश्चात्य संगीत में गिटार की झंकार में मधुर ध्वनि का एक छोटा-सा यन्त्र मिलाकर किस करती हैं, जबकि इस प्रेम को स्वीकार करने की योग्यता हममें प्रकार हृदय स्पर्शी संगीत बजाया जा सकता है। frs सथु ॐ ॐ ॐ लि चैतन्य लहरी ॥ खंड : x अंक : 11 12 1998 18 वास उत्सव की अंतिम संगीत संध्या 26 मार्च बृहस्पतिवार 26 मार्च की संध्या के अतिरिक्त श्रीमाताजी जी सभी दसरे से अलग कर दिया और परिणामतः झगड़े खड़े हो गए। कार्यक्रमों में साक्षात् पधारीं। 26 मार्च की सध्या को उनके स्थान पर सर सी.पी. पधारे । आरम्भ में ही उन्होंने कहा,"मुझे विश्वास है कि मुझे यहाँ अरकेले देखकर आपको निराशा हुई होगी, परन्तु इतनी रातों को दर से बैठने के कारण आपकी कव्वाली में विश्व के भिन्न भागों से आए हुए हिन्दू, मुसलमान श्रीमाताजी जी को मैंने आज आराम करने के लिए अनुरोध किया है" उन्होंने कहा कि मुझे आशा है कि आप सब लोगों की भी यही इच्छा होगी। (तालियों से उनका स्वागत किया कि अब वे मस्जिद में जाकर प्रार्थना कर सकते हैं क्यों नहीं? गया)। सदैव की तरह उनका एक एक शब्द गरिमा एवम् गौरव से परिपूर्ण था। उन्होंने कहा, "परन्तु एक क्षण के लिए भी ये कुछ संभव है | न सोचे कि वे यहाँ उपस्थित नहीं हैं क्योंकि वे हम सबके सर सी.पी ने कहा कि. "सभी धर्मों को एक करने के लिए एक अन्य अवतरण की आवश्यकता थी और हमारी परम पावनी माँ ही यह अवतरण हैं" उन्होंने कहा इस सध्या हमने तथा ईसाइयों के विषय में सुना जो उनके ( श्रीमाताजी) के गए हैं। ये स्वप्न साकार हो रहा है। उन्होंने कहा सम्मुख एक हो या किसी चर्च या यहूदी उपासना ग्रह में, क्यों नहीं? अब सभी सर सी.पी. ने अभिनंदन समारोह तथा सहजयाग क प्रारंभिक दिनों का उल्लेख किया जब श्रीमाताजी ने एक अनाथ लड़के की सहायता की थी। उन्होंने कहा कि 'श्रीमाताजी' ने उससे उसका धर्म, जाति या पृष्ठ भूमि नहीं पूछी थी। अपनी प्रेम और करूणा में उन्होंने केवल एक बात देखी कि उसे सहायता की आवश्यकता थी। उन्होंने लोगों को परिवर्तित करने वाला यह सर्वव्यापी प्रेम देखा है। आरम्भ में बहुत से लोग श्री माताजी के पास आते थे उनमें से कुछ अत्यंत सुंदर युवा लोग े ा हृदय में रहती हैं। पाश्चात्य भजन मंडली के पाँच भजनों से संगीत संध्या का आरम्भ हुआ। दीपक वर्मा, सिम्पल, संजय तलवार और डॉ. राजेश ने भजन गाए। इसके पश्चात्, अब दिल्ली में रह रही रोमानिया की अन्नपूर्णा ने वायोलिन पर संगीत प्रस्तुत किया। यह संध्या कव्वालियों को समर्पित थी। कई मण्डलियों ने कव्वालियां प्रस्तुत की। सर्वप्रथम 'मैया तेरे चरणों की' गाया गया। तत्पश्चात् प्रतीक चौधरी ने सितार पर राग शुद्ध-बसन्त होते थे जो आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात वहाँ आते। बजाया। तब लोगों के समूह आने लगे और इस प्रकार आत्मसाक्षात्कारी लोग बढ़ते गए और अब अनगिनत लोग उनके बच्चे बन गए हैं। हम सबको देखना चाहिए कि सहजयोग किस प्रकार बढ़ा और घर वापिस जाते हुए सभी के लिए यह संदेश लंकर जाना चाहिए कि आज हम दस लाख सहजयोगी हैं परन्तु अब समय आ गया है जब सहजयोग को पूरा विश्व अपने अंदर समेट लेना है ताकि जब हम श्रीमाताजी का 80वां जन्मदिवस मनाए तो दस करोड़ सहजयोगी हो और जब उनका 100वां जन्मदिवस मनाएं तो पचास अरब सहजयोगी हों। इस समारोह के आयोजकों तथा समारोह समिति के कार्यभारियों का धन्यवाद करने के लिए श्री नलगिरकर को दूसरा कव्वाली, ग्रुप, जिसने मंच संभाला वह लखनऊ से था वे शिया मुस्लिम और सूफी थे। उन्होंने श्रीमाताजी और श्री गणेश की प्रशंसा में गीत गाए। तीसरी मंडली निजामुद्दीन के कव्वाल की थी। जिनका चमत्कारिक मुख्य गायक, अभिनेता और कवि है। श्रीमाताजी की महिमा गाते हुए उसने बहुत ही हृदय स्पर्शी कव्वाली प्रस्तुत की। दिदेशियों के लिए यद्यपि भाषा विदेशी थी फिर भी इससे बहने वाला आनन्द विश्वव्यापी था। शब्दों के अर्थ हमारी भारतीय भाई बहनों के चेहरों पर उभरे भावों से समझे जा सकतें थे कव्वाली के शब्दों की सराहना में वे बार बार खड़े होकर नाचने लगते । तब सर सी.पी. पचहत्तरवें जन्म समारोह का समापन भाषण देने के लिए खड़े हुए श्रीमान सी. पी. श्रीवास्तव , गरिमा, विवेक एवं ज्योतित प्रज्ञा ( बुद्धि) के प्रति-रूपक हैं। उन्होंने ऐसे शब्द छांटे जो समारोह सप्ताह के समापन तथा सम्मान के बुलाया गया। उन्होंने बताया कि इसे अवसर पर सात दिन का उत्सव मनाने के लिए किस प्रकार उन्हें श्रीमाताजी को राजी करना पड़ा। पहले तो उन्होंने आनाकानी की परन्तु कुछ समय लिए उपयुक्त थे। उन्होंने कहा कि, "पच्चतरह वर्ष पूर्व विश्वज्योति के हैं कि उनके 80वें जन्मदिवस समारोह के अवसर पर चौदह अवतरण के स्मरणीय अवसर का समारोह मनाने के लिए हम सब यहां एकत्रित हुए हैं। भूतकाल में भी बहुत से अवतरण तथा महान लोग हुए जिन्होंने अपने जीवन के उदाहरण से महान धर्म आरम्भ किए और मानव को उत्थान पथ दिखाने का प्रयत्न किया। परन्तु ये धर्म पथभ्रष्ट हो गए, लोगों को एक पश्चात् इसके लिए आज्ञा प्रदान कर दी। अब हम आशा करते दिवसीय समारोह की आज्ञा हमें प्रदान कर दी जाएगी। 27 मार्च, शुक्रवार अनुलेख श्रीमाताजी के जन्मदिवस समारोह की समाप्ति के पश्चात् शिविर किसी अंतर्राष्ट्रीय विमानपत्तन के प्रस्थान कक्ष सा 19 चतन्य लहरी ॥ खंड : X अंक : 1, 12 1998 गोद में स्थित घुमावदार वादियों से घिरे स्कूल में अपने बच्चों को अध्यापकों की सुरक्षा के सुपुर्द कर दिया गया। बच्चां के दिखाई पड़ने लगा; जिसमें विदेशी योगियों के विशाल समूह घर वापिसी के लिए विमान पकड़ने की तैयारी में लगे हुए थे। शिविर में एक दिन के स्थान पर कई दिनों का मिल रहने के स्थान पर भारत माँ की कुण्डलिनी, जहाँ कभी शिव जाना, लोगों से शांति से बातचीत करना बहुत अच्छा लगा। दौड़ते हुए किसी से ये न कहना पड़ा कि " आपसे मिलकर स्वयंभू मंगलमय वातावरण की सृष्टि कर रहे हैं, सहस्रार का अच्छा लगा". वातावरण अत्यन्त शान्त था और अलविदा भी कष्टदायी न होकर आनन्ददायी थी। बादल विहीन आकाश से अमृत वर्षा की कुछ बूंदों का पड़ूना तथा तत्पश्चात् शिविर पर पूर्ण इन्द्रधनुष का बनना हम भुला नहीं सकते। समारोह को सफल बनाने के लिए हमारे भारतीय भाई बहनों ने जो अथक प्रयत्न किया वह उनके महान प्रेम और विनम्रता की प्रमाण था। लिम्का बेचने से लेकर टैक्सियों का प्रबन्ध करना, पंडाल में 'विदेशी सहजयोगियों के लिए अग्रिम पॅक्तियों निभाते और पार्वती ने नृत्य किया था और जहाँ शिव और देवी के मिलती है। मंगलमय वातावरण व्यक्ति को परमात्मा से एकाकारिता देता है। इस भव्य वातावरण में बच्चों को छोड़कर हम कृतज्ञता तथा आनन्द भाव लिए श्रीमाताजी के चरण कमलों में मिलने की कामना करते हुए स्वदेश लौटे। अभिनन्दन समारोह में एक सुफी सन्त की पक्ति पढ़ी गई थी जो इस प्रकार हैं : 'स्वर्ग तो माँ के चरणों में ही है।" पुनः विक्टोरिया जायलट, फ्रांस क्रिस क्रियाकाओ, आस्ट्रेलिया संभवत: ये सारी जिम्मेदारियां में स्थान बनवाना अन्तर्राष्ट्रीय सहजस्कूल धर्मशाला समाचार े हुए उन्हें आनन्द लेने का कोई समय मिल पाता हो! हम सबको श्रीमाताजी के साक्षात् में निरन्तर छः दिन बिताने का आश्शीवाद प्राप्त हुआ। पुरानी भारतीय यात्राओं के दौरान भी कभी श्रीमाताजी ने साक्षात् में लगातार इतना समय नहीं प्रदान किया। यह अद्वितीय अवसर था जिसकी कामना हम सदैव करते रहेंगे और जिसके लिए विनम्र भाव से श्रीमाताजी को धन्यवाद देंगे। सप्ताह भर के समारोह के संदेश अपने हृदय में लिए हम लौट रहे हैं। आज ही 300 माता-पिता, बच्चे और कार्यकारी नए वर्ष के लिए तालनू स्कूल जाने के लिए तैयार हैं। श्रीमाताजी ने उन्हें रेल से जाने की राय दी है ताकि बसों को असुविधा से बचा 28 अक्तूबर, 1998 हिमाचल प्रदेश के परिवहन एवं कल्याण मंत्री श्रीकृष्ण कपूर ने अन्तर्राष्ट्रीय सहज स्कूल धर्मशाला को श्रेष्ठ कार्य के लिए पुरस्कार भेंट किया। उन्होंने कहा, "हिमालय पर्वत भारत का ताज है और सहज स्कूल इस मुकुट में जड़ा हुआ बहुमूल्य रत्न है। जिन माता-पिताओं ने अपने बच्चों को सच्ची शिक्षा प्राप्त करने जा सके। 27 मार्च को 150 से भी अधिक बच्चे, माता-पिता तथा कार्यकारी, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन कोे प्लेटफार्म न. एक पर पठानकोट जाने के लिए एकत्र हुए, जहां से वे सौ किलोमीटर आगे धर्मशाला जाएंगे। पठानकोट से आगे की यात्रा बस से होगी। भारत में कोई भी तौर्थयात्रा जब तक पूर्ण न होगी जब कि भाइयों और बहनों के साथ बस में लम्बी यात्रा न की जाए। के लिए यहाँ पर भेजा है मैं उन्हें प्रणाम करता हैँ। यह स्कूल मुझे तक्षशिला तथा नालन्दा जैसे महान विश्वविद्यालयों की याद कराता है। विश्वभर में जो संदेश यह विद्यालय भेज रहा है वह भारत की जगत गुरु भारत' बना देगा। श्रीमाना जी का संदेश विश्व भर में प्रसारित करने के लिए ये बच्चे अगुआ होंगे। इस महान कार्य को करने के लिए श्रीमाताजी निर्मला देवी का मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ।' बस में तालनू, स्कूल जाने वाले शेष माता पिताओं के भाग्य में यह यात्रा थी। यात्रा में भारतीय बस भ्रमण की सभी खुबियां थी तेरह घटे की रात भर की यात्रा, सामान लादना, हिमालय की पहाड़ियों की घुमावदार सड़कें, भयानक गति से चालकों का बसों को चलाना, सड़कों के कोनों पर किसी भी तरह के भारतीय बच्चों के लिए सहज बोर्डिंग स्कूल 23 मार्च 1999 से पूर्व माता-पिता अपने बच्चों के नाम स्कूल में प्रवेश के लिए पंजीकृत करा दें। अन्यथा उनके बच्चों को प्रवेश दे पाना संभव न होगा। मुरक्षात्मक अवरोधकों का न होना। योगी महाजन 28 मार्च, शनिवार धर्मशाला अधिकतर माता-पिता और बच्चे प्रात: काल ही धर्मशाला पता- सहज स्कूल गाँव मामून 145001 पहुँच गए जहाँ उनका स्वागत नीले आकाश और बारिश ने किया। बच्चों को स्कूल गया। हिमालय की धौलादार पर्वत श्रृंखलाओं में परमात्मा की पठानकोट पंजाब से कुछ सौ मीटर दूरी पर उतार दिया पाम फोन - 0186 -20128 चैतन्य लहरी खंड : x अंक : ।, 12 1998 20 श्री कुण्डलिनी शक्ति व श्री येशु ख्रिस्त (निर्मला योग से उद्धृत) हिन्दूजा ऑडिटोरियम मुम्बई 27 सितम्बर, 1979 श्री कुण्डलिनी शक्ति और श्री येशु रिव्रस्त" बहुत ही मनोरंजक तथा आकर्षक विषय है। आम लोगों के लिए ये पूर्णत: नवीन विषय है, क्योंकि आज से पहले किसी ने श्री येशु रिब्रस्त और कुण्डलिनी शक्ति को परस्पर जोड़ने का प्रयास नहीं किया। विराट के धर्मरूपी वृक्ष पर अनेक देशों और अनेक भाषाओं में अनेक प्रकार के साधु संत रूपी पुष्प खिले। उन का अवतरण होगा तब उनमें से चारों ओर आग की ज्वालाएं फैलेंगी इसलिए वह उन्हें देख नहीं सकेंगे। वस्तुतः इसका सही मतलब ये है कि मेरा दर्शन आपको सहस्रार में होगा बाइबल में अनेक जगह इसी तरह श्री कुण्डलिनी शक्ति व सहस्रार का उल्लेख है किन्तु यह सब विल्कुल संक्षिप्त रूप श्री येशु रिव्रस्त जी ने कहा है कि. 'जो मेरे विरोध में नहीं हैं वे मेरे साथ हैं।' इसका मतलब है कि जो लोग मेरे विरोध में नहीं हैं वे मेरे साथ हैं। परन्तु ईसाईयों को इसका ज्ञान नहीं है । श्री येशु रिव्रस्त में दो महान शक्तियों का संयोग है। एक श्री गणेश की शक्ति जो येशु रिव्रस्त की मूल शक्ति मानी गई है, और दूसरी शक्ति श्री कार्तिकेय को। इस कारण श्री येशु रिव्रस्त का स्वरूप सम्पूर्ण ब्रह्म तत्व, ॐकार रूप है। श्री येशु रिव्रस्त के पिता साक्षात श्रीकृष्ण थे। इसलिए उन्होंने उन्हें जन्म से पूर्व ही अनेक वरदान दिये हुए थे। उसमें से एक वरदान हैं कि आप हमेशा मेरे स्थान से ऊपर स्थित होंगे इसका ाना में है। पुष्पों (विभूतियां) का परस्पर सम्बन्ध था। यह केवल उसी विराट-वृक्ष को मालूम वहाँ-वहाँ उन्होंने धर्म की मधुर सुगंध को फैलाया परन्तु इनके निकट (सम्पर्क) वाले लोग सुगन्ध की महत्ता नहीं समझ सके। फिर किसी सन्त का सम्बन्ध आदि-शक्ति से हो सकता है यह े है। जहाँ-जहाँ ये पुष्प (साधु संत) गए बात सर्वसाधारण की समझ से परे है। मैं जिस स्थिति पर से आपको ये कह रही हूँ उस स्थिति को अगर आप प्राप्त कर सकें तभी आप ऊपर कही गयी बात समझ सकते हैं या उसकी अनुभूति पा सकते हैहै क्योंकि मैं जो आपसे कह रही हूँ वह सत्य है कि नहीं इसे जानने का तंत्र इस समय आपके पास नहीं है; या सत्य क्या है यह जानने की सिद्धता आपके पास इस समय नहीं है। जब तक आपको अपने स्पष्टीकरण ये है कि श्रीकृष्ण का स्थान हमारी गर्दन पर जो विशुद्धी चक्र है., उस पर है, और श्री रिव्रस्त का स्थान आज्ञा चक्र में है जो अपने सर के पिछले भाग में जहाँ दोनों आँखों की ज्योति ले जाने वाली नसें परस्पर छेदती हैं वहा स्थित हैं । स्वयं का अर्थ नहीं मालूम तब तक आपका शरीर-यन्त्र उपरोक्त बात को समझने के लिए असमर्थ है। परन्तु जिस दूसरा वरदान श्रीकृष्ण ने ये दिया था कि आप सारे इस बात को अनुभव कर सकते हैं। इसका अर्थ है आपको विश्व के आधार होंगे। तीसरा वरदान है कि, पूजा में मुझे जो सहजयोग में आकर 'पार होना' आवश्यक है। 'पार' होने के भेंट प्राप्त होगा उसका 16वां हिस्सा सर्वप्रथम आपको दिया समय आपका यन्त्र सत्य के साथ जुड़ जाता है उस समय आप बाद आप के हाथ से चैतन्य लहरियां बहने लगती हैं। जो चीज सत्य है उसके लिए आपके हाथ में ठंडी-ठंडी चैतन्य की तरंगे (लहरियां) आएंगी और यदि असत्य होगी तो गरम लहरें आएंगी। इसी तरह कोई भी चीज सत्य है कि नहीं इसे आप जाएगा। इस तरह अनेक वरदान देने के बाद श्रीकृष्ण ने उन्हें अवतार लेने की अनुमति दी। आपने अगर मार्कण्डेय पुराण पढ़ा है तो ये सारी बातें आप समझ सकते हैं क्योंकि श्री मार्कण्डेय जी ने ऐसी अनेक सूक्ष्म बातें स्पष्ट कही हैं। इसी पुराण में श्री महाविष्णु का भी वर्णन किया है। आप जान सकते हैं। ईसाई लोग श्री येशु रिव्रस्त के बारे में जो कुछ जानते हैं अगर ध्यान में जाकर यह बर्णन सुनेंगे तो आप समझ सकते हैं कि वर्णन श्री येशु रिव्रस्त का हैं। वह बाइबल ग्रन्थ के कारण हैं। बाइबल ग्रन्थ बहुत ही गूढ़ है कि अनेक लोग इसका (रहस्यमय) है। यह ग्रन्थ इतना गहन गहन अर्थ समझ नहीं सके। बाइबल में लिखा है कि "मैं तेरे पास ज्वालाओं की लपटों के रूप में आऊंगा।" इजरायली (उसे सूक्ष्मता से देखा) तो ये 'कृष्ण' शब्द के अपभ्रश से (यहूदी) लोगों ने इसका ये मतलब लगाया कि जब परमात्मा अब अगर आपने श्री 'रिव्रस्त' शब्द का अध्ययन किया निर्माण हुआ है। वस्तुत: श्री येशु रिव्रस्त के पिताजी श्रीकृष्ण ही 21 चैतन्य लहरी । खंड :X अक : 11, 12. 1998 11, 12 हैं और इसीलिए उन्हें 'गखिस्त' कहते हैं। उनका नाम 'जीसस' में कुण्डलिनी जागृत होना साधक के आज्ञा चक्र की अवस्था पर निर्भर करता है। आजकल लोगों में अहंकार बहुत ज्यादा है क्योंकि अनेक लोग अहंकारी प्रवृत्ति में खोये हैं। अहकारी वृत्ति जिस प्रकार बना है वह भी मनोरंजक है। श्री यशोदा माता को "यशु' नाम से बुलाया जाता था। उत्तर प्रदेश में अब भी किसी का नाम 'येशु' होता है तो उसे वैसे न कहकर 'जेशू' कहते हैं। इस प्रकार ये स्पष्ट होता है कि, 'यशोदा से 'येशु' व इसके जशु' व उससे 'जीसस क्राईस्ट' नाम बना है। जिस समय श्री खिस्त अपने पिताजी की गाथाए सुनात थे उस समय वे वास्तव में श्रीकृष्ण के बारे में बताते थे. 'विराट' की बातें बताते थे। यद्यपि श्रीकृष्ण ने जीसस रिव्रस्त के कारण मनुष्य अपने सच्चे धर्म से विचलित हो जाते हैं और दिशाहारा (मार्ग से भटक जाना) होने के कारण वे अहंकार को बढ़ावा देने वाले कार्यों में रत रहते हैं। इस अहंकार से मुक्ति पाने के लिए येशु रिव्रस्त बहुत सहायक होते हैं। जिस प्रकार मोहम्मद पैगम्बर ने आसुरी शक्तियों के विनाश के बारे में लिखा है उसी प्रकार, श्री खिस्त जी ने बहुत सरल तरीके से आप में विद्यमान शक्तियों, आयुधों के बारे में के ही जीवन काल में पुनः अवतार नहीं लिया था, तथापि जीसस खिस्त के उपदेशों का सार था कि साधक विराट पुरुष, कहा है। उन आयुधों में सर्वप्रथम क्षमा' करना है। जो तत्व श्री गणेश में 'परीक्ष' रूप में है वही तत्व मनुष्य में क्षमा के रूप में कार्यान्वित है। वस्तुतः क्षमा बहुत वड़ा आयुध है क्योंकि उससे मनुष्य अहकार से बचता है। अगर हमें किसी ने दु:ख सर्वशक्तिमान परमात्मा का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त कर सकते हैं। अर्थात् श्री खिस्त की माता साक्षात् श्री महालक्ष्मी थीं। श्री मेरी माता स्वयं श्री महालक्ष्मी व आदिशक्ति थीं। और अपनी माँ को उन्होंने 'होली घोस्ट' (Holy Ghost) नाम से सम्बोधित किया था श्री खिस्त जी के पास एकादश रुद्र की शक्तियां हैं, अर्थात् ग्यारह सहार शक्तियां हैं। इन शक्तियों का दिया, परंशान किया या हमारा अपमान किया तो हमारा मन बार बार यही बात सोचता रहता है और उद्विग्न रहता है। आप रात दिन उस मनुष्य के बारे में सोचते रहेंगे और बीती घटनाएं याद करके अपने आपको दु:ख सहजयोग में हम ऐसे मनुष्य को क्षमा करने के लिए कहते हैं। दुसरों को क्षमा करना एक बड़ा आयुध, श्री खिस्त के कारण हमें प्राप्त हुआ है जिससे आप दूसरों के कारण होने वाली परेशानियों से छुटकारा पा सकते हैं। स्थान माथे पर हैं। जिस समय शक्ति का अवतरण होता है उस समय ये सारी शक्तियां संहार का काम करती हैं। इन ग्यारह शक्तियों में एक शक्ति श्री हनुमान की है व दूसरी श्री भैरवनाथ की है। इन दोनों शक्तियों को बाइबल में ' सन्ट मायकेल' तथा देते रहेंगे| इससे मुक्ति पाने के लिए सन्ट गैब्रियल' कहा जाता है। सहजयोग में आकर पार होने के वाद आप इन शक्तियों को अंग्रेजी में बोलकर भी जागृत कर सकते हैं या मराठी में या संस्कृत में भी बोलकर जागृत कर सकते हैं। अपने दायें तरफ की (Right) नाड़ी (पिंगला नाड़ी) में भी श्री हनुमान जी की शक्त कार्यान्वित होती है। जिस समय अपनी पिंगला नाड़ी में अवरोध निर्माण होता है उस ' श्री रिक्रस्त जी के पास अनेक शक्तियां थीं और उसी में एकादश रुद्र स्थित है। इतनी सारी शक्तिया पास में होने पर भी उन्होंने अपने आपको क्रास (सूली) पर लटकवा लिया। उन्होंने अपने आपको क्यों नही बचाया? श्री खिस्त जी के पास इतनी शक्तियां थीं कि वे उन्हें परेशान करने वालों का एक क्षण में समय श्री हनुमान जी के मन्त्र से तुरन्त अन्तर पड़ता है। उसी प्रकार 'सेन्ट मायकेल' का मन्त्र बोलने से भी पिंगला नाड़ी में हनन कर सकते थे। उनकी माँ श्री मेरी माता साक्षात् शर अन्तर आएगा। अपने बाँये तैरफ की नाड़ी, (ईड़़ा नाड़ी) 'सेन्ट गैब्रियल' या 'श्री भैरवनाथ' की शक्ति से कार्यान्वित होती है। आदिशक्ति थीं। उस माँ से अपने बटे पर हुए अत्याचार देखें नहीं गए। परन्तु परमेश्वर को एक नाटक करना था। सच बात तो ये है कि श्री रिव्रस्त सुख और दुख उनके मन्त्र से इडा नाड़ी की तकलीफें या अवरोध दूर होती हैं। स परे थे। उन्हें ये नाटक खेलना था। उनके लिए सब कुछ खेल था। वास्तव में जीसस ऊपर कही गयी बातों की सिद्धता सहजयोग में आकर रिव्रस्त सुख दुख से परे थे। उन्हें तो यह नाटक अत्यन्त निपुणता से रचना था जिन लोगों ने उन्हें सूली पर लटकाया वे कितने मुर्ख थे? उस जमाने के लोगों की मूखता को नष्ट पार होने के बाद किसी को भी आ सकती है। कहने का अभिप्राय है कि अपने आपको हिन्दू, मुसलमान या ईसाई अलग-अलग समझ कर आपस में लड़ना मूर्खता है। अगर आप करने के लए श्री रिव्रस्त स्वयं गर्धे पर सवार हुए थे। आपके कभी सिर में दर्द हो तो आप कोई दवाई न लेकर, श्री खिस्त से प्रार्थना करें कि 'इस दुनिया में जिस किसी ने मुझे कष्ट दिया है, परेशान किया है उन सबको माफ कीजिए' तो आपका ने इसमें तत्व की बात जान ली तो आप समझ जाएगे कि ये सब एक ही धर्म-वृक्ष के अनेक फूल हैं व आपस में एक ही शक्ति से सम्बन्धित हैं। आपको ये जानकर कदाचित आश्चर्य होगा कि सहजयोग चैतन्य लहरी खंड : X अंक 22 : 11, 12 1998 सन्त या पवित्र है? तो सहजयोग में लोगों द्वारा एसा सवाल सर दर्द तुरन्त समाप्त हो जायेगा लेकिन इसके लिए आपको सहजयोग में आकर कुण्डलिनी जागृत करवा कर पार होना पूछते ही तुरन्त एक सहजयोगी के हाथ पर ठंडी लहरें आकर आप के प्रश्न का 'हाँ' में उत्तर देंगी। विगत ( भूत काल की) बातों से मनुष्य का अहंकार बढ़ता है। उदाहरणत: किसी विशेष आवश्यक है। उसका कारण है कि आज्ञा चक्र जो आपमें श्री रिक्रस्त तत्व है वह सहजयोग के माध्यम से कुण्डलिनी जागृति के पश्चात ही सक्रिय होता है. उसके बिना नहीं। व्यक्ति का शिष्य होने का दंभ। जो सामने प्रत्यक्ष है उसका मनुष्य को ज्ञान नहीं होता है। बढ़े हुए अहंकार के कारण मनुष्य 'स्व' (आत्मा) के सच्चे अर्थ को भूल जाता है। अर्थ समझ लेना जरूरी है। आज गंगा जिस जगह बह रही है. ये चक्र इतना सूक्ष्म है कि डॉक्टर भी इसे देख नहीं सकते। इस चक्र पर एक अतिसूक्ष्म द्वार है। इसीलिए श्री खिस्त ने कहा है कि "में द्वार हूँ" इस अतिसूक्ष्म द्वार को पार करना आसान करने के लिए श्री खिस्त ने इस पृथ्वी पर अवतार लिया और सर्वप्रथम स्वयं यह द्वार पार किया। अपने अहंभाव के कारण लोगों ने श्री रिव्रस्त को सुली पर चढ़ाया. क्योंकि कोई अब देखिए 'स्वार्थ' माने 'स्व' का अगर आप किसी दूसरी जगह जाकर बैठ जाए और कहने लगे कि गंगा इधर से बह रही हैं और हम गंगा के किनारे वैठे हैं. मनुष्य परमेश्वर का अवतार बनकर आ सकता है ये उनकी तो ये जिस तरह हास्यजनक होगा उसी तरह से ये बात है। मानव बुद्धि को स्वीकार नहीं था। उन्होंने अपने बौद्धिक आपके सामने आज जो साक्षात है उसी को स्वीकार कीजिए। अहंकार के कारण सत्य को ठुकराया। श्री खिस्त ने ऐसा कौन श्री रिव्रस्त के समय भी इसी तरह की स्थिति थी। उस समय श्री रिव्रस्त जी ने कुण्डलिनी जागरण के अनेक यत्न किये| कु सा अपराध किया था जिससे उनको सुली पर लटकाया गया? उन्होंने तो दुनिया के असंख्य लोगों को अपनी शक्ति से ठीक किया, जग में सत्य का प्रचार किया, लोगों को अनेक अच्छी बातें सिखायीं, लोगों को सुव्यवस्थित, सुसंस्कृत जीवन सिखाया। वे हमेशा प्यार की बातें करते थे। लोगों के लिए हमेशा अच्छाई करते हुए भी आपने उन्हें दुख दिया, परेशान किया। जो लोग आपको गन्दी बातें सिखाते हैं या मूर्ख बनाते हैं उनके आप पाँव छूते हैं। मूर्खता की हद है! आजकल कोई भी ऐरे-गैरे गुरु बन बैठते हैं, लोगों को ठगते हैं, लोगों से पैसे लूटते हैं। उनकी लोग खुशामद, परशंसा करते हैं। कोई सत्य बात कहकर लोगों को सच्चा मार्ग दिखाएगा तो उसकी कोई सुनता नहीं. उल्टे उसी पर गुस्सा करेंगे। ऐसे महामूर्ख लोगों को ठीक करने के लिए परमात्मा ने अपने सुपुत्र श्री खिस्त को इस दुनिया में भेजा था पर उन्हें लोगों ने सूली पर चढ़ा दिया। ऐसे ही कारनामे लोग करते रहते हैं । आप यदि इतिहास पढ़े तो देखेंगे कि जब जब परमेश्वर परन्तु बहुत मुश्किल से केवल 21 व्यक्ति पार हुए। सहजयोग में हजारों लोग पार हुए है। श्री खिस्त उस समय बहुतों को पार करा सकते थे परन्तु उनके शिष्यों ने सोचा कि श्री खिस्त केवल बीमार लोगों को ठीक करते हैं । उसके अतिरिक्त उन्हें कोई ज्ञान नहीं था इसलिए उनके सारे शिष्य सभी तरह के बीमार लोगों को उनके पास ले जाते थे। श्री खिस्त ने बहुत बार पानी पर चलकर दिखाया क्योंकि वे स्वयं प्रणव श्े ॐ कार रूपी थे। इतना सब कुछ था तब भी लोगों के दिमाग में नहीं आया कि श्री रिव्रस्त परमेश्वर के सुप्त्र थे मुश्किल से उन्होंने कुछ मछुआरों को इकट्ठा करके ( क्योंकि , और कोई लोग उनके साथ आने के लिए तैयार नहीं थे) बड़ी मुश्किल से उन्होंने उन लोगों को पार किया। पार होने के बाद ये लोग श्री ा खिस्त के पास किसी न किसी बीमार को ठीक कराने ले आते थे हमारे यहाँ सहजयोग में भी बहुत से बीमार लोग पार होकर ठीक हुए हैं लोगों को जान लेना चाहिए कि अहंकार बहुत ही सूक्ष्म है। अब दूसरा प्रकार ये लड़ना भी ठीक नहीं है। अहंकार से लड़ने से वह नष्ट नहीं ने अवतरण लिया या सन्त-महात्माओं ने अवतरण लिया तब-तब लोगों ने उन्हें कष्ट दिया। उनसे कुछ सीखने के बजाय मू्खों की तरह उनसे बर्ताव किया। महाराष्ट्र के सन्त श्रेष्ठ श्री है कि अपने अहकार के साथ तुकाराम या श्री ज्ञानेश्वर महाराज के साथ यही हुआ। वैसे ही होता है। वह अपने आप (' श्री गुरुनानक, श्री मोहम्मद साहब के साथ भी इसी प्रकार स्व ') में समाना चाहिए। जिस समय आपका चित्त कुण्डलिनी पर केन्द्रित होता है व कुण्डलिनी आपके ब्रह्मरन्ध्र को छेदकर विराट में मिलती है उस समय अहंकार का विलय होता है। विराट शक्ति का अहंकार ही हुआ। मनुष्य हमेशा सत्य से चिपका रहता है। भागता हैं और असत्य बातों से दूर सच्चा अहकार है। वास्तव में विराट ही वास्तविक अहंकार है। रल जब कोई साधु-सन्त या परमेश्वर का अवतरण होता है तब अगर ऐसा प्रश्न पूछा जाये कि यह व्यक्ति क्या अवतारी, आपका अहकार छूटता नहीं। आप जो करते हैं वह अहंकार है। अहंकरोति सः अहंकारः । आप अपने आप से पूछकर देखिए चतन्य लहरी 23 खड : X अंक : 11, 12 1998 इस संसार में कैसे आए हैं? ऐसी अनेक बातें हैं। क्या मनुष्य कि आप क्या करते हैं। किसी मृत बस्तु का आकार बदलने के सिवा आप क्या कर सकते हैं? किसी फूल से आप फल बना सकते हैं? ये नाक, ये मुंह, ये सुन्दर मनुष्य शरीर आपको प्राप्त हुआ है ये कैसे हुआ है? आप अमीबा से मनुष्य स्थिति को प्राप्त हुए हैं। ये कैसे हुआ है? परमेश्वर की असीम कृपा से आपको ये सुन्दर मनुष्य देह प्राप्त हुआ है। क्या मानव इसका इन सबका अर्थ समझ सकता है? आप कहते हैं पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण की शक्ति है। लेकिन यह कहाँ से आयी है? आपको ऐसी बहुत सी बातें अभी तक मालूम नहीं हैं। आप भ्रम में हैं और इस भ्रम को हटाना जरूरी है। जब तक आपका भ्रम नहीं नष्ट होगा तब तक आपमें वह बढ़ता ही जाएगा। इस बदला चुका सकता है? आप ऐसा कोई जीवन्त कार्य कर सकते हैं क्या? एक टेस्ट ट्यूब बेबी के निर्माण के बाद मनुष्य में इतने बड़े अहंकार का निर्माण हुआ है उसमें भी वस्तुत: ये कार्य जीवन्त कार्य नहीं है क्योंकि जिस प्रकार आप किसी पेड़ का Cross breeding करते हैं, उसी प्रकार किसी जगह से एक जीवन्त जीव लेकर यह क्रिया की है। परन्तु इस बात का भी मनुष्य को कितना अहंकार है! चाँद पर पहुँच गए तो कितना अहंकार । जिसने चाँद-सूरज की तरह अनेक ग्रह बनाए व ये सुष्टि बनायी उनके सामने क्या आपका अहंकार? वास्तव संसार में मनुष्य की उत्क्रान्ति के लिए उसके भ्रम का नष्ट होना हैं। जिस समय मनुष्य ने या और किसी भी जीव ने उत्क्रान्ति के लिए यत्न किए तब इस संसार में अवतरण हुए हैं। आपको मालूम है कि श्री विष्णु श्री राम अवतार लेकर जंगलो जरूरी में घूमे। जिससे मनुष्य ये जान ले कि एक आदर्श राजा को कैसा होना चाहिए। इसलिए एक सुन्दर नाटक उन्होंने प्रदर्शित किया। इसी प्रकार श्रीकृष्ण का जीवन था और इसी तरह श्री येशु रिव्रस्त का जीवन था। श्री रित्रस्त के जीवन की तरफ ध्यान दिया जाये ता एक बात दिखाई देती है वह है उस समय के लागाों की महामुखता, जिसके कारण इस महान व्यक्ति को सुली पर (फॉरसी पर) में आपका अहकार दाम्भिक है, झूठा है। उस विराट पुरुष का अहंकार सत्य है क्योंकि वही सब कुछ करता है। चढ़ाया गया। इतनी मूर्खता कि "एक चोर को छोड़ दिया जाए या श्री खिस्त को?" ऐसा लोगों से सवाल किया गया ता बहाँ के यहूदी लोगों ने 'श्री खिस्त को फाँसी दी जाये' यह माँग को। आज इन्हीं लोगों की क्या स्थिति है. ये आप जानते हैं उन्होंन विराट पुरुष हो सब कुछ कर रहा है, ये समझ लेना चाहिए। तो श्री विराट पुरुष को ही सब कुछ करने दीजिए। आप एक यत्र की तरह हैं। समझ लीजिए मैं किसी माईक में से बोल रही हूँ व माईक में से मेरा बाला हुआ आप तक बह रहा है। माईक केवल साक्षी (माध्यम) है परन्तु बोलने का कार्य में कर रही हूँ व वह शक्ति माइक से बह रही है। उसी भाति आप परमेश्वर के एक यन्त्र हैं। उस विराट ने आपको बनाया तो उस विराट की शक्ति को आप में से बहने दो। उस 'स्व' जो पाप किया है वह अनेक जन्मों में नहीं धुलने वाला अभी भी ऐसे लोग अहंकार में डूबे हुए हैं। उन्हें लगता है. हमने बहुत बड़ा पुण्य कर्म किया है। अभी भी यदि उन लांगों न परमश्वर से क्षमा माँगी कि "हे परमात्मा, आपके पवित्र तत्व को फाँसी देने के अपराध के कारण हमें आप क्षमा कीजिए हमने का मतलब समझ लीजिए। यह मतलब समझने के लिए आज्ञा चक्र, जो बहुत ही मुश्किल चक्र है और जिस पर अति सूक्ष्म आपका "वित्र तत्व नष्ट किया इसके लिए हमें माफ कोजिए । तो परमात्मा लोगों को तुरन्त माफ कर दग। परन्तु मनुष्य का क्षमा माँगना बड़ी कठिन बात लगती है। वह अनक दृष्टता तत्व ॐकार, प्रणव स्थित है, वही अर्थात् श्री रिव्रस्त इस दुनिया में अवतरित हुए थे। अब कुण्डलिनी और श्री रिव्रस्त का करता है। दुनिया में ऐसे कितने लोग हैं जिन्होंने सन्ता का पूजन किया है। आप श्री कबीर या श्री गुरुनानक की बात लीजिए। सम्बन्ध जैसे सूर्य का सूर्य किरण से जो सम्बन्ध है, उसी तरह है, अथवा चन्द्र का चन्द्रिका से जो सम्बन्ध है उसी प्रकार है । श्री कुण्डलिनी ने, माने श्री गौरी माता ने, अपनी शक्ति से, तपस्या से, मनोबल से व पुण्याई से श्री गणेश का निर्माण किया। जिस समय श्री गणेश स्वयं अवतरण लेने के लिए सिद्ध हर पल लोगों ने उन्हें सताया। इस दुनिया में लोगों ने आज तक हर एक सन्त को दुःख के सिवाय कुछ नहीं दिया। परन्तु अब मैं कहना चाहती हूँ कि अब दुनिया बदल चुकी है। सत्ययुग का आरम्भ हो गया है। आप कोशिश कर सकते हैं, पर अब आप हुए उस समय श्री रिब्रस्त का जन्म हुआ। इस संसार में ऐसी अनेक घटनाएं घटित होती हैं जो मनुष्य को अभी तक मालूम नहीं। क्या आप ये विचार करते हैं कि एक बीज में अंकुर का निर्माण कैसे होता है? आप श्वास कैसे लेते हैं? अपना चलन-वलन (movement, action) कैस होता है? अपने मस्तिष्क में कहाँ से शक्ति आती है? आप किसी भी सन्त-साधु को नहीं सता पाएंगे। इसका कारण श्री खिस्त हैं। श्री खिस्त ने दुनिया में बहुत बड़ी शक्ति संचारित की है, जिससे साधु-सन्त लोगों को परेशान करने वालों को कष्ट भुगतने पड़़ेंगे। उन्हें सजा होगी। श्री खिस्त के एकादश रुद्र आज पूर्णंतया सिद्ध हैं । और इसलिए जो काई साधु-सन्तां को चैतन्य लहरी 24 खंड : X अंक :1I 12 1998 खड़ लीजिए आप साईकिल चला रहे हैं। वह चलाते समय जब आप डगमगाते नहीं हैं, आप का सन्तुलन हो जाता है तो आप जम सताएगा उनका सर्वनाश होगा। किसी भी महात्मा को सताना महापाप है। आप श्री येशु रिव्रस्त के उदाहरण द्वारा समझ लीजिए। इस प्रकार की मुर्खता मत कीजिए। अगर इस तरह की गए। ये जिस प्रकार आपकी समझ में आता हैं उसी प्रकार मुर्खता आपने फिर से की तो आपका हमेशा के लिए सर्वनाश सहजयोग में आकर स्थिर हो गए हैं, ये स्वयं आपकी समझ में आता है। यह निर्णय अपने आप ही करना है। जिस समय सहजयोग में आप स्थिर हॉते हैं उस समय निर्विकल्पता है। वह हैं 'जाहि विधि राखे ताहि विधि रहिए' । उन्होंने अपना प्रस्थापित होती है। जब तक कुण्डलिनी शक्ति आज्ञा चक्र को ध्येय कभी नहीं बदला। उन्होंने अपने आपको सन्यासी समझ पार नहीं कर जाती तब तक निर्विचार स्थिति प्राप्त नहीं होती। कर अपने को समाज से अलग नहीं किया। इसके विपरीत वे साधक में निर्विचारिता प्राप्त होना. साधना की पहली सोढ़ी है । जिस समय कृण्डलिनी शक्ति आज्ञा चक्र को पार करती हैं उस समय निर्विचारिता स्थापित होती हैं। आज्ञा चक्र के ऊपर पानी से अंगूर का रस निर्माण किया। ऐसा वर्णन बाइबल में है। स्थित सूक्ष्म द्वार येशु रिव्रस्त की शक्ति से ही कुण्डलिनी शक्त के लिए खोला जाता है और ये द्वार खोलने के लिए श्री खिस्त पानी से शराब बनायी. अत: वह शराब पिया करते थे। आपने की प्रार्थना 'दी लार्ड्स प्रेअर' बोलनी पड़ती है। ये द्वार पार होगा। श्री खिस्त के जीवन से सीखने की एक बहुत बड़ी बात विवाह आदि में गये। वहाँ उन्होंने स्वयं शादियों की व्यवस्था की। बाइबिल में लिखा है कि एक विवाह में एक बार उन्होंने अब मनुष्य ने केवल यही मतलब निकाला कि श्री खिस्त ने अगर हिब्रू भाषा का अध्ययन किया तो आपको मालूम होगा करने के बाद कुण्डलिनी शक्ति अपने मस्तिष्क में जो तालू कि 'वाइन' माने शुद्ध ताजे अगूर का रस। उसका अर्थ दारू नहीं है। स्थान ( limbic area) है उसमें प्रवेश करती है। उसी को परमात्मा का साम्राज्य कहते हैं। कुण्डलिनी जब इस क्षेत्र में प्रवेश करती है तब ही निर्विचार स्थिति प्राप्त होती है। इस श्री रित्रस्त का कार्य था आपके आज्ञा चक्र को खोलकर मस्तिष्क के limbic area में व चक्र हैं जो शरीर के सात आपके अहकार को नष्ट करना। मेरा कार्य है आपकी कुण्डलिनी शक्ति का जागरण करके आपके सहस्रार का उसके (कुण्डलिनी मुख्य चक्र व और अन्य उपचक्रों का सचालित करते हैं । अब आज्ञा चक्र किस कारण से खराब हाता है वह शक्ति) द्वारा छंदन करना। ये समग्रता का कार्य होने के कारण हर एक के लिए मुझे ये करना है। मुझे समग्रता में श्री खिस्त, गुरुनानक, श्री जनक व ऐसे अनेक अवतरणों के बारे में मनुष्य को अपनी आँखों का बहुत ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि कहना है। उसी प्रकार मुझे श्रीकृष्ण, श्रीराम, इन अवतारों के वारे में भी कहना है। उसी प्रकार श्री शिवजी के बारे में भी क्यांकि इन सभी देवी-देवताओं की शक्ति आप में है। अब देखते हैं। आज्ञा चक्र खराब होने का मुख्य कारण आँखे हैं। श्री उनका बड़ा महत्व है। अनाधिकृत गुरु के सामन झुकन अथवा उनके चरणों में अपना माथा टेकने से भी आज्ञा चक्र खराब हो जाता है। इसी कारण जीसस रिव्रस्त ने अपना माथा ऐर गैर आदमी या स्थान के सामने झुकाने को मना किया हैं। एंसा कलियुग में जो लोग परमेश्वर को खोज रहे हैं उन्हें करने से हमने जो कुछ पाया है वह सब नष्ट हो जाता है। परमेश्वर की प्राप्ति होने वाली है और लाखों की संख्या में केवल परमेश्वरी अवतार के आगे ही अपना माथा टेकना चाहिए। दूसरे किसी भी व्यक्ति के आगे अपने माथे को झुकाना समग्रता (सामूहिक चेतना) घटित होने का समय आया है। लोगों को यह प्राप्ति होगी। इसका सर्वन्याय भी कलियुग में होने वाला है। सहजयोग ही आखिरी न्याय (Last Judgment) है। ठीक नहीं है। किसी गलत स्थान के सम्मुख भी अपना माथा नहीं झुकाना चाहिए। ये बात बहुत ही महत्वपूर्ण है। आपने इसके बारे में बाइबल में वर्णन है। सहजयोग में आने के बाद आपका न्याय (Judgment) होगा। परन्तु आपको सहजयोग में आने के बाद समर्पित होना बहुत जरूरी है। क्योंकि, सब कुछ प्राप्त होने के बाद उसमें टिककर रहना व है। आपना माथा गलत जगह पर या गलत आदमी के सामने झुकाया तो तुरन्त आपका आज्ञा चक्र पकड़ा जाएगा। सहजयोग में हमें दिखाई देता है, आजकल बहुत ही लोगों के आज्ञा चक्र खराब है। इसका कारण है लोग गलत जगह माथा टेकते हैं या गलत गुरु को मानते हैं। आँखों के अनेक रोग इसी कारण से होते हैं। जमकर रहना, उसमें स्थिर होना, ये बहुत महत्वपूर्ण बहुत लोग हमें पूछते हैं, माताजी हम स्थिर कब होंगे? ये सवाल ऐसा है कि, समझ लीजिए आप किसी नाव में वैठकर जा रहे हैं। नाव स्थिर हुई कि नहीं, ये आप जानते हैं। या ऐसा समझ ये चक्र स्वच्छ रखने के लिए मनुष्य को हमेशा अच्छे पवित्र, धर्म ग्रन्थ पढ़ने चाहिए। अपवित्र साहित्य बिल्कुल नहीं चैतन्य लहरी 25 खंड : X अंक : ।। 12 ।998 नहीं होगी। आज्ञा चक्र की पकड़ छुड़वाने के लिए हम कुंकुम लगाते हैं। उससे अहंकार व आपकी अनेक विपत्तियां दूर होती हैं। जब आपके आज्ञा चक्र पर कुकुम लगाया जाता है तब पढ़ना चाहिए। बहुत से लोग कहते हैं "इसमें क्या हुआ? हमारा ता काम ही इस ढंग का है कि हमें ऐसे अनेक काम करने पड़ते हैं जो पुर्णत: सही नहीं है।" परन्त् एसे अपवित्र कार्यो के आपका आज्ञा चक्र खुलता है व कुण्डलिनी शक्ति ऊपर जाती है। इतना गहन सम्बन्ध श्री रिव्रस्त व कृण्डलिनी शक्ति का है। जो श्री गणेश, मूलाधार चक्र पर स्थित रहकर आपकी कुण्डलिनी शक्ति की लज्जा का रक्षण करते हैं वही श्री गणेश आज्ञा चक्र कारण आँख खराब हो जाती हैं। मरी ये समझ में नही आता कि जो बाते खराब हैं वह मनुष्य क्यों करता है? किसी अपवित्र व गन्दे मनुष्य को देखने से भी आज्ञा चक्र खराब हो सकता है। श्री खिस्त ने बहुत ही जोर से कहा था कि आप व्यभिचार मत पर उस कुण्डलिनी शक्ति का द्वार खोलत है । यह चक्र ठीक रखने के लिए आपको क्या करना कोजिए। परन्तु में आपसे कहती हूँ कि आप की नजर भी व्यभिचारी नहीं होनी चाहिए। उन्होंने इतने बलपूर्वक कहा था कि आपको अगर नजर अपवित्र होगी तो आपको आँखों की चाहिए? उसके लिए अनंक मार्ग हैं । किसी भी अतिशयता के कारण समाज दुषित होता है और इसोलिए किसी भी प्रकार की अतिशयता अनुचित है। संतुलितता से अपनी आँखों काो विश्राम मिलता है। सहजयोग में इसके लिए अनेक उपचार हैं। परन्तु इसके लिए पहले पार होना आवश्यक है। उसके बाद आँखों के तकलीफ होंगी। इसका मतलब ये नहीं कि अगर आप चश्मा पहनते हैं तो आप अपवित्र (गलत) व्यक्ति है। किसी एक उम्र के बाद चश्मा लगाना पड़ता है। ये जीवन की आवश्यकता है। फरन्तु आँखें खराब होती हैं अपनी नजर स्थिर न रखने के लिए अनेक प्रकार के व्यायाम है जिससे आपका आज्ञा चक्र कारण। बहुत लागों का चित्त बार बार इधर-उधर दौड़ता रहता ठीक रह सकता है। इसमें एक है अपना अहकार देखते रहना है। ऐसे लोगों को समझ नहीं कि अपनी आँखे इस प्रकार और अपने आपसे कहना "क्यों। क्या बिचार चल रहा है? कहाँ ईधर -उधर घुमाने के कारण ये खराब होती हैं। आज्ञा चक्र जा रहे हो?" जैसे कि आप आइने में अपने आपको देख रह है। उससे अहकार से आँखों पर आने वाला तनाव ( Tension) खराब होने का दूसरा कारण है मनुष्य की कार्य पद्धति । समझ लीजिए आप बहुत काम करते हैं, अति कर्मी हैं, अच्छे काम करते हैं, काई भी बुरा काम नही करते। परन्तु ऐसी अति कार्यशीलता की वजह से फिर वह अति पढना, अति सिलाई हो कम हो जाता है इसका महत्वपूर्ण इलाका ( क्षेत्र, अंचल) सिर के पिछले भाग का वह स्थल है जो माथे (भाल) के ठीक पीछे स्थित हैं। यह उस क्षेत्र में स्थित है जा गदन के आधार (back of the neck) सं आठ उगलियों की मोटाई ( लगभग पांच इंच) की ऊँचाई पर स्थित है। यह 'महागणेश' का अंचल या अति अध्ययन हो या अति विचारशीलता हो जिस समय आप अति कार्य करते हैं उस समय आप परमात्मा को भूल जाते हैं। उस समय ईश्वर से आपको एकाकारिता नहीं हातो। कुण्डलिनी सत्य है। यह पबित्र है। ये कोई ढांगबाजी या दुकान में मिलने वाली चोज नहीं है। ये नितान्त (Absolute) सत्य है। जब तक आप सत्य में नहीं उतरेंगे, तब तक आप ये (क्षेत्र) है। श्री गणेश ने 'महागणेश' क रूप में अव्तार लिया और वही अवतार जीसस रित्रस्त का है। श्री खिस्त का स्थान कपाल (मस्तक) के मध्य में है और इसके चारो आर एकादश जान नहीं सकते। वाम मार्ग (गलत मार्ग) का अवलम्बन करके रुद्र का साम्राज्य है। जीसस खिस्त इस साम्राज्य के स्वामी हैं। आप सत्य को नहीं पहचान सकते। जिस समय आप सत्य से श्री महागणेश और षडानन इन्हीं एकादश रुद्रों में से हैं। कुण्डलिनी जागृत होन के पश्चात यदि आप आँख खोले ता अनुभव करेंगे कि आपकी आँखों की दृष्टि कुछ धुधली हो गई है। इसका कारण यह है कि जब कुण्डलिनी जागृत होती है तब आपकी आँखों की पुतलियां कुछ फैल जाती हैं और शीतल हो जाती हैं। यह para-sympathetic nervous system ( सुषुम्ना नाड़ी) के कार्य के फलस्वरूप होता है। जीसस रिव्रस्त के बारे में केवल सोचने से अथवा चिन्तन. मनन करने से आज्ञा चक्र को चैन प्राप्त होता है। साथ ही यह भी एकाकार हांगे तब ही आप जान सकते हैं कि सत्य क्या है। उसी समय आप समझेंगे कि हम परम पिता परमेश्वर के एक साधन है, जिसमें से परमेश्वरी शक्ति का वहन (प्रवाह) हो रहा है। वो परमंश्वरी शक्ति सारे विश्व में फैली हुई है, बो सारे विश्व का संचालन करती है। उसी परमेश्वरी प्रेम शक्ति के आप साधन है। इसमें श्री खिस्त का कितना बड़ा बलिदान है? क्यांकि उन्हीं के कारण आपका आज्ञा चक्र खुला है। अगर आज्ञा चक्र नहीं खुलता तो कुण्डलिनी का उत्थान नहीं हो सकता, क्योंकि जिस मनुष्य का आज्ञा चक्र पकड़ता है उसका समझ लेना चाहिए कि जीसस रिव्रस्त के जीवन पश्चात निर्मित मिथ्या आचार-विचार या उत्तराधिकारियों की श्रृंखलाओं का मूलाधार चक्र भी पकड़ा जाता है। किसी मनुष्य का आज्ञा चक्र बहुत ही ज्यादा पकड़ा होगा तो उसकी कुण्डलिनी शक्ति जागृत चैतन्य लहरी ॥ खंड : X अक : | 12 1998 26 ख वास्तव में बाप्तिज्म (Baptism) देने का अर्थ है कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करना और उसके बाद उसे अनुसरण जोसस रिव्रस्त का मनन-चिन्तन नहीं है। कुछ सनातन सत्य है वह में आपको बताऊँगी। सर्वप्रथम किसी भी स्त्री की तरफ बुरी दृष्टि से देखना महापाप है। आप ही सोचिए जो लोग रात दिन रास्ते चलते स्त्रियों की तरफ बुरी नजरों से देखते हैं वे कितना महापाप कर रहे हैं? श्री रिव्रस्त ने ये बातें 2000 साल पहले आपको कही थीं। परन्तु उन्होंने ये बातें खुलकर नहीं कही थीं और इसीलिए यही बातें मैं फिर से आपसे कह रही हूँ। श्री खिस्त ने ये बातें आपसे कहीं तो आपने उन्हें फाँसी पर चढ़ाया। श्री खिस्त ने इतना ही कहा था कि ये बातें न करें, क्योंकि ये बातें गन्दी हैं परन्तु ये करने से क्या होता है ये उन्होंने नहीं कहा था। गलत नजर रखने अब जो सहस्रार तक लाना, तदनन्तर सहसार का छंदन कर परमेश्वरी शक्ति और अपनी कुण्डलिनी शक्ति का संयोग घटित करना। यही कुण्डलिनी शक्ति का आखिरी कार्य है। परन्तु इन पादरियों को बाप्तिज्य की जरा भी कल्पना नहीं है। उल्टे वे अनाधिकार चेष्टा करते हैं. या फिर ये पादरी ऐसे कामों में लगे हुए हैं जैसे गरीबों की सेवा करो, बीमारों की सेवा करों, वगैरा आप कहेंगे माताजी ये तो अच्छे हैं हां ये अच्छा है, यरन्तु ये परमात्मा का कार्य नहीं है । परमात्मा का ये कार्य नहीं है कि पैसे देकर गरीबी की सेवा करें। परमेश्वर का कार्य है आपको उनके साम्राज्य में से उसके दुष्परिणाम क्या होते हैं. इसके बारे में उन्होंने कहा है। ले जाना और उनसे भेंट कराना। आपको सुख, शान्ति समृद्धि. शोभा व ऐश्वर्य इन सभी बातों से परिपूर्ण करना, यही परमेश्वर का कार्य है कोई मनुष्य चोरी करता है या झूठ बोलता है या योग शास्त्र में लिखा है अपनी चित्तवृत्ति को संभालकर रखिए गरीब बनकर घुमता है. परमात्मा ऐसे मनुष्य के पांव नहीं पकड़ेंगे। ये सेवा का काम है जो कोई भी मनुष्य कर सकता है। कुछ इसाई लोग धर्मान्तर करने का काम करते हैं जहां कुछ भूमि योग-भूमि है। हम अहंकारवादी नहीं हैं या हमारे में आदिवासी लोग होंगे वहां वे जाएंगे| वहां कुछ संवा का काम अहंकार आने वाला भी नहीं है। हमें अहंकारवादिता नहीं करेंगे। फिर सब को इसाई बनाएंगे। परन्तु एक बात समझना चाहिए कि ये परमात्मा का काम नहौं है। परमात्मा का कार्य मनुष्य किसी पशु समान बर्ताव करता है क्योंकि रात दिन उसके मन में गन्दे विचारों का चक्र चलता रहता हैं। इसी कारण अपने और चित्त को सही मार्ग पर रखिए। अपना चित्त ईश्वर के प्रति नतमस्तक रखना चाहिए। हमें योग से बनाया गया है। हमारी चाहिए। हमें इस भूमि पर योगी की तरह रहना हैं। एक दिन ऐसा आएगा जब हम सभी को योग प्राप्त होगा। उस समय अवाधित है। सहजयोग में लोगों की कुण्डलिनी जागृत करते ही लोग ठीक हो जाते हैं। हम सहजयोग में दिखावटी करुणा नही दर्शाते। परन्तु अगर हम किसी अस्पताल में गए तो 25-30 बीमार को आसानी से स्वस्थ कर सकते हैं। उनकी कुण्डलिनी जागृत करते ही वे अपने आप स्वस्थ हो जाते हैं । श्री खिस्त ने उनमें बह रही उसी प्रेमशक्ति के द्वारा अनेक लोगों को स्वस्थ किया। श्री रित्रस्त ने कभी किसी की भौतिक वस्तुओं से सहायता नहीं की। ये सब बातें आपको सुज्ञता (सूक्ष्मता) से सारी दुनिया इस देश के चरणों में झुकेगी। उस समय लोग जान जाएगे श्री रित्रिस्त कौन थे, कहा से आए थे, और उनका इस भूमि पर यथाचित पूजन होगा। अपनी पवित्र भारत भूमि पर आज भी नारी की लज्जा का रक्षण होता हैं और उन्हें सम्मान दिया जाता है। अपने देश में हम अपनी माँ को मान देते हैं। अन्य देशों के लोग जब भारत में आएंगे तब वे देखेंगे कि श्री रिव्रस्त का सच्चा धर्म वास्तव में भारत में अत्यन्त आदर पूर्वक पालन किया जा रहा है. ईसाई धर्मानुयायी राष्ट्रों में नहीं। श्री खिस्त ने कहा कि अपना दोबारा जन्म होना चाहिए या आपको द्विज होना पड़ेगा। मनुष्य का दूसरा जन्म केवल समझ लना आवश्यक है। पहले की गयी गलतियों की पुनरावृत्ति मत कीजिए। आप स्वयं साक्षात्कार प्राप्त कीजिए। ये आपका कुण्डलिनी जागृति से ही हो सकता है। जब तक किसी की कुण्डलिनी जागृत नहीं होगी तब तक वह दूसरे जन्म को प्राप्त नहीं होगा और जब तक आपका दूसरा जन्म नहीं होगा तब तक आप परमेश्वर को पहचान नहीं सकते। आप लोग पार होने के प्रथम कार्य है। आत्मसाक्षात्कार के बाद आपकी शक्तियां जागृत हो जाती हैं । इन जागृत शक्तियों से सहजयोग में कर्कट रोग (कैन्सर) जैसी असाध्य बीमारियाँ ठीक हुई हैं। आप किसी को भी रोग मुक्त करा सकते हैं । कैन्सर जैसी असाध्य बीमारियाँ केवल सहजयोग से ही ठीक हो सकती हैं परन्तु लोग ठीक ने सहजयोग की महत्ता कही है. उसके अतिरिक्त कुछ भी होने के बाद फिर से अपने पहले मार्ग और आदतों पर चले जाते हैं। ऐसे लोग परमात्मा को नहीं खाजते। उन्हें अपनी बीमारी ठीक कराने के लिए परमेश्वर की याद आती बाद बाइबल पढ़िए। आपको आश्चर्य होगा कि उस में खिस्तजी नहीं। एक एक बात इतनी सूक्ष्मता में बताई है। परन्तु जिन लोगों को वह दृष्टि प्राप्त नहीं है। वे इन सभी बातों को उल्टा स्वरूप दे रहे हैं। (मनमाने ढंग ने उसकी व्याख्या कर रहे हैं।) अन्यथा उन्हें परमात्मा को खोजने की आवश्यकता प्रतीत नहीं चैतन्य लहरी । खंड : X अंक : 11, 12 1998 27 ॥ होती। जो मनुष्य परमात्मा का दीप बनना नहीं चाहते, उन्हें है? कुछ लोग कहते हैं 'माताजी' इससे हमारा 'शुभ हुआ है'। परमात्मा क्यों ठीक करें? ऐसे लोगों को ठोक किया या नहीं शुभ का मतलब है ज्यादा पैसे प्राप्त हुए। इस तरह से धन्धा किया, उन से दुनिया को प्रकाश नहीं मिलने वाला। परमात्मा करने से कष्ट होगा। इससे परमात्मा का अपमान होता श्री खिस्त ने सारी मनुष्य जाति के कल्याणार्थ व उद्धारार्थ जन्म लिया था। वे किसी जाति या समुदाय की निजी परमेश्वर प्रीति की इच्छा नहीं, परमेश्वर का कार्य करने की सम्पदा नहीं थे। वे स्वयं ओंकार रूपी प्रणव थे। सत्य थे। इच्छा नहीं, ऐसे लोगों को परमात्मा क्यों सहायता करें? गरीबी परमेश्वर के अन्य जो अवतरण हुए उनके शरीर पृथ्वी तत्व से दूर करना अथवा अन्य सामाजिक कार्यो को ईश्वरीय कार्य नहीं बनाये गये थे। परन्तु श्री खिस्त का शरीर आत्म तत्व से बना था। और इसीलिए मृत्यु के बाद उनका पुनरुत्थान हुआ। और ऐसे दीप जलाएंगे जिनसे सारी दुनिया प्रकाशमय हो जाएगी। परमात्मा मूर्ख लोगों को क्यों ठीक करेंगे? जिन लोगों में समझना चाहिए। कुछ लोग इतने निम्न स्तर पर परमेश्वर का सम्बन्ध जोड़ते हैं कि एक जगह दुकान पर 'साईनाथ बीड़ी' लिखा हुआ परमेश्वर थे बाद में तो फिर उनके नाम का नगाड़ा बजने लगा. था। यह परमेश्वर का मजाक उड़ाना, परमात्मा का सरासर उनके नाम का जाप होने लगा और उनके बारे में भाषण होने अपमान करना है सभी बातों में मर्यादा होनी चाहिए। हर एक लगे। वे परमात्मा के अवतरण थे, यह मुख्य बात है। यदि लोग बात परमात्मा से जोडकर आप महापाप करते हैं, ये समझ उनके उस स्वरूप को अवतरण को पहचान कर अपनी लीजिए। 'साईंनाथ बीड़ो' या 'लक्ष्मी हींग'. ये परमात्मा का उस पुनरुत्थान के बाद ही उनके शिष्यों ने जाना कि वे साक्षात् आत्मोन्नति करें तो चारों तरफ आनन्द ही आनन्द होगा। आप सब लोग परमश्वर के यांग को प्राप्त हों। अनन्त आशीरवाद। मजाक उड़ाना हुआ। ऐसा करने से लोगों को क्या लाभ होता छ य ल चैतन्य लहरी खंड : 8 अंक : ।।, 12 1998 28 १5 सहजयोग में आने पर मनुष्य में एकाग्र दृष्टि विकसित होती है। बिकसित एकाग्र दृष्टि से यदि गणेश शक्ति जागृत हो जाए तो उसे 'कटाक्ष-निरीक्षण' कहते हैं। जिस पर आप की दृष्टि पड़ेगी उसकी कुण्डलिनी जागृत हो जाएगी| जिसकी तरफ आप देखेंगे उसमें पवित्रता आ जाएगी। इतनी पवित्रता आपकी आँखों में आ जाती है। ये केवल श्रीगणेश का ही काम है। श्री माताजी निर्मलावेवी य जय श्री माताजी' शर "क्या आपका उत्थान ठीक से हो रहा है ११ पूर्ण समर्पित हृदय से आपको इस किले की तीर्थ यात्रा करनी होगी। तप जो आपने करने हैं, ये किला उनकी एक झलक मात्र है। मुझे बताया गया है, कि इस तीर्थ यात्रा के लिए आपमें से कुछ लोगों को कठिनाइयों में से गुजरना पड़ा और मार्ग पर कुछ कष्ट उठाने पड़े, परन्तु जहाँ जाने का साहस असुरों में भी नहीं होता, उस स्थान पर जाने का साहस करना भी आनन्ददायी है। यदि आप इस प्रकार की कठिनाइयों में आनन्द लेना जानते हैं तब आपको समझ लेना चाहिए. कि आप ठीक मार्ग पर हैं। स्वत: ही जब आप विचारशील होने लगे तो आपको समझ लेना चाहिए कि आपका उत्थान ठीक से हो रहा है। ज्यों ज्यों आप शान्त होते चले जाते हैं और किसी को स्वयं पर आक्रमण करते देख जब आपका क्रोध उड़न छू हो जाता है तब आप समझ लें कि आपका उत्थान ठीक से हो रहा है। अपने व्यक्तित्व की अग्नि परीक्षा या आती हुई विपत्ति को देख कर भी जब आप शांत रहते हैं तब समझ लें कि आपका उत्थान ठीक से हो रहा है। किसी भी प्रकार की बनावट जब आपको प्रभावित न कर पाए, अन्य लोगों की भौतिक उन्नति जब आपके हृदय में इष्र्या भाव जागृत न कर पाए, तब आप समझ लें कि आपकी उन्नति ठीक से हो रही है। सहजयोगी बनने के लिए जितना भी परिश्रम किया जाए, जितने भी कष्ट उठाए जाएं कम हैं। व्यक्ति जो चाहे कर ले. वह सहजयोगी नहीं बन सकता। परन्तु आपको तो बिना किसी प्रयत्न के सहजयोग प्राप्त हो गया है। अत: आप कुछ विशेष हैं। तो आपको यह समझ लेना चाहिए कि आप विशेष हैं, यह जानकर आप विनम्र हो जाएंगे. जब आप विनम्र हो जाएंगे, जब आप ये देखेंगे कि आपने कुछ उपलब्धि पा ली है और आपमें शक्तियां आ गई हैं, तथा आप पावनता (Innocence) प्रसारित कर रहे हैं, और विवेकशील है तो परिणाम स्वरूप आप करुणामय, विनम्र व्यक्ति बन जाएंगे। तब आपको विश्वास कर लेना चाहिए कि आपको अपनी माँ (श्रीमाताजी) के हृदय में स्थान प्राप्त हो गया है। नए क्षेत्र में आए नए सहजयोगी, जिसे नई शक्ति के साथ चलना है. जहाँ इतनी तीव्रता से उसे उन्नत होना है कि बिना ध्यान किए भी वह ध्यान में रहे, की यह पहचान है कि 'मेरे 'साक्षात के सम्मुख न होते हुए भी आप स्वयं को मेरे सम्मुख पाएंगे।' बिना मांगे आपके 'पिता' (परमात्मा) आपको आशीर्वाद देंगे। यही उपलब्धि पाने के लिए आप सहज योग में आए हैं। सहस्रार के इस महान दिवस पर इस नए क्षेत्र में एक बार फिर में आपका स्वागत करती हूँ। परमात्मा आपको धन्य करें। परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी फ्रांस - सहस्त्रार दिवस, 5 मई 1984 ---------------------- 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-0.txt ११৪ य१8 चैतन्यलहरी खण्ड X अंक 11, 12 ा ा र हमें परस्पर एक होना होगा। सहजयोग में आने और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् यदि आप ये संवेश नहीं समझ पाए कि हमें एक होना है - एक इकाई, एक शरीर आप यदि ऐसा नहीं कर सकते, अन्य चीजों से यदि आपकी एकाकारिता है तो किसी भी प्रकार से न आप उन्नत हुए हैं और न परिपक्व"। परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी र दि बम 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-1.txt ार र] र २ ७ ओ देवी हमारी ढृष्टि (चक्षु) केवल आपके चमत्कारों से समस्यामुक्त विश्व को देखे और हमारे कान ( श्रवण) केवल आपकी स्तुति को सुने : होंठ हमारे गाएं केवल स्तुति आपकी, हाथों से करें केवल कार्य आपका, जीवन हमारा हो मात्र आपको रिझाने के लिए। 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-2.txt इस अंक में पृष्ठ नं. ब मि सम्पादकीय 1. सहस्रार दिवस पूजा 2. का श्रीमाताजी का 75वां जन्मदिवस समारोह 3. 12 विश्व समाचार 4. 20 कुण्डलिनी शक्ति और श्री येशु क्रिस्त 5. 21 ४ योगी महाजन सम्पादक विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 अभिनव प्रिन्ट्स, दिल्ली 34, फोन मुद्रक : 7184340 म 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-3.txt प्रत्छात सम्पादव नामोनिशान दिखाई न दिया। ऐसे बहुत से अनुभव हैं तेज गर्मी थी और श्रीमाताजी न अपने दांई और को नीचे लाकर तापमान पानी के गिलास को देखते हुए एक व्यक्ति कह सकता है कि यह आधा भरा हुआ है या यह भी कि यह आधा खालो है। जीवन के दुर्बल पक्ष को जब हम देखते हैं तो स्वयं को गिरा दिया। इस प्रकार हम भली-भांति जानते हैं कि प्रकृति पराजित करते हैं। उदाहरणार्थ किसी को यदि कहा जाए कि श्री 'क' को फोन करो तो बिना फोन मिलाने का प्रयत्न किए उत्तर मिलता है, "संभवत: वह घर पर न होगा " कार्य करने का प्रयत्न किए बिना यदि लोग उसमें आने वाली कठिनाइयों ज्योतित श्रद्धा बन गई है। हम जानते हैं कि चैतन्य लहरियां की कल्पना करने लगे तो वे अपने सम्मुख एक अजेय पर्वत हमारी शुद्ध इच्छाओं का वास्तविकरण करती हैं। परम चैतन्य खड़ा कर लेते हैं और इस प्रकार स्वयं को पराजित करते हैं। की शक्ति में हमारा विश्वास पूर्ण हो गया है। परम चैतन्य की मानसिक प्रक्रिया में हर चीज के लिए एक बहाना तैयार होता शक्ति को हम न केवल अपनी समस्याओं को समाधान के लिए है। उदाहरण के रूप में एक सहजयोगी ने राय दी. "एक जन कार्यक्रम करें" एकदम उत्तर मिला. हो न मिले।" हमें समझना होगा कि मानसिक प्रक्रिया रेखावत चैतन्य इन समस्याओं का समाधान करने में कभी कभी समय (Linear) हे। जो पुन: झटका देती है। तो इस पर काबू पाकर लेता है। नकारात्मकता दूर करने के लिए इसे समय लग सकता हम यह कहते हुए अपना दृष्टिकोण बदल लें, "निश्चित रूप से हमें सभागार मिलेगा, हम परमात्मा का कार्य कर रहे है।" हमारे पीछे जो शक्ति कार्य कर रही है हम उसे भली-भांति जानते हैं। अपनी मानसिक प्रक्रिया को इस शक्ति पर डालकर इसे सभी कार्य करने दें । अपनी जाते हैं। कल्पनाओं द्वारा हम चैतन्य लहरियों का बहाव रोक लेते हैं और स्वयं को थका लेते हैं। इस प्रकार अपनी ही प्रतिक्रियाओं से हम पराजित हो जाते हैं और थक भी जाते हैं । हमारा चित्त जब ( मध्य ) सहस्रार पर होता है तो कोई प्रतिक्रिया नहीं होती । भावनाओं से अभिभूत हुए बिना हम कार्यशील होकर बहुत से कार्य कर सकते हैं। श्रीमाता जी की कितनी आज्ञाकारी है। इसके अतिरिक्त बहुत से चमत्कारिक फोटो तथा असाध्य रोगों के ठीक होने के हजारो मामले हमारे सम्मुख हैं। इन अनुभवों से हमारी श्रद्धा (विश्वास) बि ि उपयोग करते हैं बल्कि अपने समाज, देश एवं विश्व की समस्याओं के समाधान के लिए इसका उपयोग करते हैं । परम "संभवत: हमें सभागार है। हमें याद रखना चाहिए कि समय (Time) मानवीय धारणा (Human Concept) हे। परम चैतन्य कालातीत है। समय जब हमारे मस्तिष्क पर हावी हो जाता है तो हम समय के बन्धन में पड़ जाते हैं और समयानुसार यदि कार्य न हों तो भयभीत हो परम चैतन्य क्योंकि समय के बन्धनों से परे है यह अपनी स्वतन्त्रता से कार्य करता है। हो सकता है कि जिस कार्य के होने की आशा हम कल कर रहे हैं परम चैतन्य उसे दस वर्षों के बाद करे दस वर्ष पूर्व श्रीमाता जी ने बहुत सी चीजें हमें बताई थी वो अब घटित हो रही हैं। परम चैतन्य जिस कार्य को ले लेता है उसे पूरा करता है। सदैव यह अपने वचन निभाता है। हमारे विश्वास की गहनता कुछ भी कर सकती है। परन्तु यह समय में बंधा हुआ नहीं है। जब भी यह कार्य को बन्धन की शक्ति के सहजयोगियों को असख्य अनुभव हैं। "वर्षा हो रही थी. हमें खुले में जन कार्यक्रम करना था। हमने वन्धन दिया और लो, अचानक सूर्य निकल आया।" "बहुत समय से बारिश नहीं हुई थी, फसलें सूख रही थीं, हमने बन्धन दिया और बारिश हो गई।" विश्व के किसी भी भाग में जब श्रीमाता जी पहुँचती हैं तो वहाँ का मौसम सुहावना हो जाता है। अभी हाल ही में (अगस्त 1998) कबैला में श्रीकृष्ण उनके चरण कमलों में, हम प्रार्थना करते हैं और उनके चमत्कारों पुजा के अवसर पर मौसम बहुत गर्म था। वहाँ एकत्र सहजयोगियों से चमत्कृत होते हैं। की संख्या सदैव से अधिक थी। लोग खुले में भी सो रहे थे। इसलिए खुष्क मौसम आवश्यक था। पूजा सम्पन्न होने तक मौसम ने सहयोग दिया। अगली सुबह तेज वर्षा हुई परन्तु तब तक सभी लोग जा चुके थे। तापमान अत्यन्त सुहावना एवम् स्वर्गीय हो गया। सिंतम्बर में नवरात्रि पूजा के अवसर पर कबैला में संगीत कार्यक्रम के समय वर्षा होती रही परन्तु पूजा के दिन चहुँ ओर सूर्य चमका और आकाश में बादलों का करता है उस घटना के लिए वहीं उपयुक्त समय होता है। इस क्षण हमारा कर्तव्य है कि अपना चित्त विश्व समस्याओं पर रखें और हृदय की गहराइयों से इनके समाधान के लिए श्रीमाता जी से प्रार्थना करें। अपने स्तर पर बन्धन देते रहें और समाधान के लिए परम चैतन्य पर पूर्ण विश्वास करें। हमारी परमेश्वरी माँ सर्वशक्तिमान हैं और दुर्जेय भी । उनके सम्पुख ओं देवी हमारी दृष्टि (चक्षु) केवल आपके चमत्कारों से समस्यामुक्त विश्व को देखें और हमारे कान (अवण) केवल आपकी स्तुति को सुनें : होंठ हमारे गाएं केवल स्तुति आपकी, हाथों से करें केवल कार्य आपका, जीवन हमारा हो मात्र आपको रिझाने के लिए। ी । खंड : X अंक : । 12 1998 बैतन्य लहरी 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-4.txt सहस्रार दिवस पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन 10.05.1998 कबैला जब लोग भिन्न राष्ट्र बनाना चाह रहे थे, तो मैंने अपने देश में ही देखा है कि, ऐसा करने वालों ने कोई महान लक्ष्य प्राप्ति के लिए भिन्न राष्ट्र नहीं बनाया अपने ही दंश में स्वयं कुछ उच्च पद प्राप्त करने के लिए उन्होंने भिन्न राष्ट्र की रचना की। किसी ऐसे देश में वे न रहना चाहते थे जहाँ उन्हें यह आज का दिन अत्यन्त महान है क्योंकि आज सहस्रार दिवस है और मातृ दिवस भी। यह अत्यन्त सहज घटना है। मेरे विचार से हमें यह समझना है कि सहस्रार और मातृत्व साथ साथ क्यों चलते हैं। निश्चित रूप से सहस्रार को खोला गया और मां को यह कार्य करना पड़ा। अभी तक जो अवतरण पृथ्वी पर अवतरित हुए उन्होंने मानव को मध्य मार्ग पर लाने के लिए धर्म सिखान का प्रयत्न किया ताकि वे उत्थान प्राप्त उच्च पद न मिल पाता। तो उन्होंने इन देशों को अलग कर दिया और अलग होकर ये देश भयंकर कष्ट उठा रहे हैं । वहाँ विकास नहीं हो पा रहा। आर्थिक तथा अन्य प्रकार की सभी समस्याएं वहाँ हैं। जिस देश से टूटकर वे बने हैं वह देश भी कष्ट उठा रहा है क्योंकि उन दोनों देशों में दुश्मनी हो गई और वे परस्पर विरोधी कार्य कर रहे हैं। अत: अलगाववादी कर लें। हर देश, जाति तथा क्षेत्र के लिए जो भी मार्ग उन्हें उचित लगा वह सिखाने का उन्होंने प्रयत्न किया। उन्होंने इसके विषय में बताया और इस पर बहुत सी पुस्तकें लिखी गई। परन्तु धार्मिक, आध्यात्मिक एवम् समान स्वभाव के लोगों की सृष्टि करने के स्थान पर इन पुस्तकों ने ऐसे लोगों की सृष्टि की जो है। परन्तु ऐसा हुआ। तो मानव ने सत्ता प्राप्त करने के लिए इन पुस्तकों में लिखित ज्ञान का दुरुपयोग किया। इस प्रकार सत्ता एवं धन लोलुपता का खेल चलता रहा। इन ध्रमों का परिणाम यदि हम देखें तो आपको लगेगा कि यह सब सारहीन है। ये प्रेम एवम् है। विचार ही सहज विरोधी हैं। उदाहरण के रूप में पड़ पर लगा हुआ फूल बहुत सुन्दर लगता है, पेड़ पर ही इसका विकास यदि परस्पर विरोधी थे। बेहदा! अत्यन्त बेहूदा बात होता है. यह खिलता है और इसमें बीज पैदा होते हैं। परन्तु आप फूल को तोड़ लें तो क्या होगा? नि:सन्देह पेड़ फूल से वंचित हो जाता है परन्तु प्रायः इसमें फूल की ही हानि होती है उन लोगों ने भी यही सब किया, इसका परिणाम आप देखें। जिन लोगों ने अलग देश, अलग साम्राज्य बनाने का प्रयत्न किया वे मारे गए, कत्ल कर दिये गए, उन्हें गालियां दी गई और उनमें से कुछ तो जेल में पड़े हैं। अतः सहज योग से बाहर का दृष्टिकोण भी यह दर्शाता है कि अलगाववाद का कोई लाभ नहीं। हम लोगों को भी एक होकर रहना सीखना चाहिए। करुणा की बात करते हैं परन्तु इसमें उनका स्वार्थं भरा हुआ कभी-कभी यह राजनीतिक खेल भी होता है क्योंकि अब भी उनमें सत्ता हथियाने की लालसा है। विश्व पर शासन करने के लिए वे लौकिक शक्ति प्राप्त करना चाहते हैं आध्यात्मिक नहीं। सत्ता की यह भावना मानव मस्तिष्क पर इस प्रकार छाई कि असंख्य युद्ध हुए और मारकाट आदि हुई। जब यह खून-खराबा कुछ शान्त हुआ तो मुझे लगा कि संभवत: अब सहस्रार के खुल जाने से लोगों को सत्य को देखने में सहायता मिले। सहजयोग में आकर आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके भी यदि आप इस सन्देश को नहीं समझ पाए कि हम सबको एक होना है, एक इकाई, एक शरीर, और ऐसा न होकर यदि आप अन्य चीजों में उलझे हुए हैं तो आप किसी भी प्रकार से विकसित नहीं हुए और न ही परिपक्व हुए। यह अत्यन्त आवश्यक वात है। सहस्रार दिवस पर आपको यह समझना है कि सभी सातों चक्रों का पीठ सहस्रार में है। सातों चक्र आपके मस्तिष्क के मध्य (Midriff) में भली-भांति स्थापित है और उसी स्थान से आवश्यकता पड़ने पर चक्रों पर वे कार्य करते हैं । ये सातों चक्र एक हो जाते हैं, मैं कहूंगी कि एक ताल हो जाते हैं। इनमें पूर्ण एकाकारिता घटित हो जाती है क्योंकि इन सात मुख्य चक्रों ( पीठ) द्वारा ये प्रशासित होते हैं और अन्य सभी चक्रों को चलाते हैं। ये पूर्णतः एकताल होते हैं इनमें पूर्ण एकाकारिता होती है इसीलिए आपके सभी चक्र सुग्रथित होते हैं। सहस्रार पर आकर आपको सत्य का ज्ञान होता है। सभी प्रकार के भ्रम, गलतफहमियाँ और स्वय ओढी अज्ञानता समाप्त हो जाती है क्योंकि अब आपको सत्य का ज्ञान हो जाता है। सत्य तेज नहीं है, कठोर नहीं है। इसे आत्मसात करना भी कठिन नहीं है। लोगों ने समझा था कि सत्य बहुत ही हानिकारक या कठोर होगा जो मानव में परस्पर बहुत सी समस्याएं खड़ी कर देगा। अभिप्राय ऐसा न होते हुए भी जब जब भी लोगों ने सत्य की बात की तो गलत मतलब के लिए की। मानव की यह विशेषता है कि वे गलत दृष्टिकोण के लिए, गलत संदेश के लिए तथा अपने स्वार्थ के लिए चीजों का उपयोग करने लगते हैं। मानव में यह एक आम बात है कि वह दूसरे लोगों पर हावी होना चाहता है। पार चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 11, 12 1998 खड़ 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-5.txt है कि सहस्रार एक विश्व व्यापी क्षेत्र है जिसमें हम प्रवेश करते हैं । इस विश्वव्यापी क्षेत्र में प्रवेश करके जब हम इसमें होते हैं तो हम विश्वव्यापी व्यक्तित्व बन जाते हैं। तब आपकी जाति, देश, धर्म तथा मानव के बीच बनावटी अवरोधों (रुकावटों) जैसी छोटी-छोटी चीजें स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं और आप आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति बन जाते हैं; आपको मानवता का ज्ञान हो जाता है, मानवता को आप समझ जाते हैं। सहजयांगी जब संघटित होंगे तो उनमें यह घटित हो जाएगा। उन्हें समझना चाहिए कि अब हम साधारण मानव नहीं रहे। हम विशेष लोग हैं जिन्हें एक विशेष कार्य को करने के लिए चुना गया है और वही आप का महत्वपूर्णतम कार्य है। आप जानते हैं कि कलियुग में क्या हो रहा है। यह सब आपके सम्मुख वर्णन करने की मुझे कोई आवश्यकता नहीं है। मैं आपको आत्मा के प्रकाश के विषय में बताऊगी जो आपको कुण्डलिनी द्वारा प्रकाशित तथा परमेश्वरी शक्ति द्वारा आशीवादित चक्र अविलम्ब सुग्रथित (Integrated) हो जाते हैं। मानो एक सूत्र में पिरोए हुए मोती हं। यह उससे भी अधिक होता है। आपके अन्त:स्थित ये पीठ इस प्रकार से सुग्रथित होती है मानो इनकी अभिव्यक्ति में कोई अन्तर ही न हो । मान लो कि आपका एक चक्र ठीक नहीं है, इसमें शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक कोई कमी है। अन्य चक्र इस रोगी चक्र की सहायता का प्रयत्न करते हैं और सहजयोगी के रूप में मानव के व्यक्तित्व का इस प्रकार विकास करने का प्रयत्न करते हैं कि वह सुग्रथित हो जाए। व्यक्ति जब तक अन्दर से सुग्रथित न होगा वह बाहर भी सुग्रथित नहीं हो सकता। आपके अन्दर यह संगठन सहजयोग का ऐसा आश्शीवाद है कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व साधारण व्यक्तियों से कहीं ऊँचा हो जाता है। वहुत से र्दुव्यसन जिन्हें छोड़ना वैसे कठिन होता है वह त्याग देता है। तो हमारे अन्त:स्थित सातों चक्रों का पथ प्रदर्शन में एक तालबद्ध पीठ करते हैं। एक तालबद्धता से जो सहायता मिलती है यह सभी चक्रों को सकते हैं स्वयं से आरम्भ करके बड़े आनन्दपूर्वक केवल स्वयं सुग्रथित होने में सहायक होती है। साधारण स्थिति में हम सुग्रथित नहीं होते क्योंकि हमारा मस्तिष्क एक ओर जाता है, मूर्खता थी। आपको वे दर्शाएगा कि किस प्रकार कलियुग की इन व्याधियों को दूर कर को देखें कि आज तक जो भी कुछ आप करते रहे हैं वह कार्य नहीं करने चाहिए थे फिर भी आप शरीर दूसरी आर जाता है तथा हृदय तथा भावनाएं अन्यत्र। हम उन्हें करते रहे। ठोक हैं अब आप उन लोगों को क्षमा कर समझ नहीं पाते कि करने के लिए कौन सा कार्य ठीक है और सकते हैं जो अब भी वे कार्य कर रहे हैं। आप समझ जाएगे कि यह सब करने वाले अज्ञानतावश ऐसा कर रहे हैं। आपका सहस्रार खुल चुका है। खुले हुए सहस्रार में को कोन सा सर्वोत्तम । परन्तु आत्मसाक्षात्कर के पश्चात् आत्मा के प्रकाश में आप सत्य को पा लेते हैं और जान जाते हैं कि क्या करना चाहिए। उदाहरण के रूप में आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् परमात्मा हर समय अपनी कृपा उड़ेलता रहता है। उस कृपा आप लोगों को उनकी चैतन्य लहरियों से जान सकते हैं ऐसा प्राप्त करके. सहस्रार के उस पोषण को प्राप्त करको वास्तव में महान घटना घटित हो जाती है। एक चीज जो घटित होती है वह है आपका स्वयं से निर्लिप्त हो जाना। आप स्वयं देख आप में और अन्य लोगों में क्या कमी है। तो इस प्रकार यहाँ सकते हैं. अपने भूतकाल को देख सकते हैं और समझ सकते दोहरा सुधार होता है। एक तो आप अपने को देखने लगते है, हैं कि आप बहुत से गलतकार्य करते रहे और लोगों को गलत आपमें आत्मज्ञान आ जाता है और दूसरे आप अन्य व्यक्ति को समझते रहे। यह कभी कभी आपको स्वयं से बहुत दूर समझ सकते हैं कि वह किस प्रकार का कार्य कर रहा है। कोई है। परन्तु इस प्रकाश द्वारा सहस्रार का पोषक होने पर आप स्पष्ट देखते हैं कि आप अपने को क्या हानि पहुँचाते रहे। एक व्यक्ति के रूप में तब आप अपने दोषों को देख सकते हैं। जिस समाज में आप रहते हैं उसके दोषों को भी आप देख सकते हैं । अत: अपने अन्दर इस एकाकारिता (Integration) को मेंने देखा है कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होने के बाद लोग मुझे पूर्णत: कार्यान्वित कर लेना ही सर्वोत्तम है। हमें चाहिए कि इसे बताने लगते हैं कि 'श्रीमाताजी मैं इंसाई था परन्तु क्या यही दबाएं नहीं : जो भी दोष हममें हैं, जो भी गलतियां हम करते ईसाई धर्म है? कोई कहेगा कि ' श्रीमाताजी मैं अत्यन्त देशभक्त करने के लिए आपको अपने मस्तिष्क का उपयोग नहीं करना पड़ता। कंवल चैतन्य लहरियों द्वारा आप तुरन्त जान जाते हैं कि ले जाता है यदि सहज नहीं परन्तु सहज होने का दावा करता है तो आप जान सकते हैं कि वह सहज नहीं है, उसका आचरण सहज नहीं है | रहे हैं. जो भी दु्विचार हममें थे, जो भी विनाशकारी वृत्ति हमने था परन्तु अब मुझे समझ आया है कि देशभक्ति क्या होती है। अपना ली थी, यह सब हमें स्वीकार करना ै : ये सब दुर्गुण इसी प्रकार सभी लोग अपनी पृष्टभूमि और अपनी पूर्ण जीवनशेली आपमें से समाप्त हो जाने चाहिए क्योंकि आप सहजयोगी हैं। को देखने लगते हैं तथा इनसे मुक्ति पा लेते हैं। एक बार जब आप इससे बाहर आ जाते हैं तो इसका आपसे कोई सम्बन्ध लोगों की तरह से नहीं है जो केवल धन, सत्ता और प्रभुत्व के नहीं रह जाता। यह स्वत: स्फूर्त घटना है, आपको केवल स्वतः लिए कार्य कर रहे हैं। आप ऐसे नहीं हैं। मानव मात्र के उद्धार स्फूर्त (Spontaneous) होना सीखना होगा। सहज में भी मैं के लिए आप सहजयोग में कार्य कर रहे हैं। तो पूर्ण सत्य यह देखती हूँ कि लोग यद्यपि इस भ्रम सागर से निकल चुके सहजयोगियों के करने के लिए एक विशेष कार्य है। वे अन्य चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 11 12 1998 11, 12 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-6.txt फिर भी उनकी एक टाँग इस सागर में होती है और वे इसे कभी बाहर खींचते हैं और कभी अन्दर ले जाते हैं ऐसा नहीं होना चाहिए। लोगों का ध्यान-धारणा न करना ही इसका कारण हैं। प्रतिदिन ध्यान-धारणा अवश्य कीजिए। इस बात को लोग समझते हैं कि यह भी एक प्रकार का कर्मकाण्ड है या सहजयोग की पद्धति है नहीं! ध्यान-धारणा इसलिए आवश्यक है कि आप-अपनी आन्तरिक गहनता में उतर सकें और जो भी प्रात:काल भी ध्यान-धारणा करेंगे। जिस क्षण भी संभव हो ध्यान में चले जाएं, इस स्थिति में ही आप परमेश्वरी शक्ति से जुड़े होते हैं। तब आपके. आपके समाज के. आपके देश के हित में जो भी कुछ होता है उसे यह परमेश्वरी शक्ति स्वयं करती है। न आपको आज्ञा देनी पड़ती है और न ही माँगना पड़ता है। आप यदि मात्र ध्यान-धारणा करते हैं तो इस सर्वव्यापक शक्ति से जुड़े रहते हैं। यह हमारे लिए एक अन्य आश्शीवाद है। जब तक आपका सहस्रार नहीं खुलता परमात्मा के निर्लिप्सा तथा सूझबूझ की वह ऊँचाई केवल ध्यान-धारणा द्वारा सम्पूर्ण आश्शीवाद आप प्राप्त नहीं कर सकते, नहीं कर सकते। ही प्राप्त को जा सकती है। तो ध्यान-धारणा में आपकी चेतना हो सकता है आपको कुछ धन मिल जाए, नौकरी मिल जाए अगन्य चक्र को पार करके ऊपर जाती हैं और सहस्रार में आदि आदि। परन्तु आपका विकास केवल ध्यान-धारणा द्वारा निर्विचार समाधि में स्थापित हो जाती है। तब सहस्रार की ही सम्भव है, जब आप ध्यान करते हैं तो आपका सहस्रार है। अब सत्य यह है कि यह परमेश्वरी शक्ति प्रेम है, करुणा है। यह कुछ सहस्रार आपको देना चाहता है उसे आप प्राप्त करें। पूर्णत: खुला होता हैं और सत्य के प्रति खुला होता बास्तविकता, सहसरार का सौन्दर्य आपके चरित्र में, आपके स्वभाव में उतरने लगता है। बिना ध्यान-धारणा के यह नहीं हो सकता। केवल रोगमुक्त होने के लिए या यह महसूस करने के लिए कि मैं ध्यान धारणा कर रहा था, ध्यान मत कीजिए। ध्यान-धारणा आप सबके लिए इसलिए आवश्यक है कि आप अपने सहस्रार को इस प्रकार विकसित कर सकें कि अपने सहस्रार के सौन्दर्य को आत्मसात कर पाएं। इस प्रकार यदि आप अपने सहस्रार का उपयोग नहीं करते तो कुछ समय बाद आप पाएंगे कि सहस्र बन्द हो गया है। आपमें न तो चैतन्य लहरियां रहेंगी और न आप स्वयं को समझ पाएंगे। अत: ध्यान-धारणा बहुत ही महत्वपूर्ण है। ध्यान-धारणा न करने वाले और ध्यान-धारणा करने वाले व्यक्ति को मैं तुरन्त पहचान जाती हूँ। ध्यान-धारणा न करने वाला व्यक्ति अब भी सोंचता है कि ठीक है, मैं यह कार्य कर रहा हूँ, मैं वह कार्य सत्य है कहा जाता है कि परमात्मा ही प्रेम है, परमात्मा ही सत्य है। अत: समीकरण बनानी पड़ती है कि सत्य ही प्रेम है और प्रेम ही सत्य है। परन्तु यह प्रेम वैसा नहीं है जैसा आपका अपने बच्चों के प्रति है या परिवार के प्रति है। मोह युक्त प्रेम सत्य नहीं है। किसी व्यक्ति से यदि आपको मोह हैं तो आप उसकी कमियां नहीं देख सकते । किसी से यदि आप नाराज है तो उसकी अच्छाईयां आप कभी नहीं देख पाते। प्रेम जब पूर्णत: निर्लिप्त होगा तो वह पूर्णतः शक्तिशाली होगा। उस प्रेम का प्रक्षेपण जिस पर भी आप करेंगे तो, आप हैरान हो जाएंगे, उस व्यक्ति की सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा. उसका व्यक्तित्व अच्छा हो जाएगा, सभी कुछ बहुत बड़े स्तर पर कार्यान्वित हो जाएगा और उसका जीवन परिवर्तित हो जाएगा। परन्तु यदि आप किसी चीज से लिप्त हैं तो वह लिप्सा ही समस्याओं का कारण बनती है और सहज योग को बढ़ने नहीं देती। यह लिप्सा किसी भी प्रकार की हो सकती है। उदाहरण के रूप में आपको अपने देश से, अपने समाज से, अपने परिवार से मोह हो सकता है। कर रहा हूँ। केवल ध्यान-धारणा द्वारा ही आप स्वयं को सत्य-सौन्दर्य से वैभवशाली बना सकते हैं। इसके अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं। परमात्मा के साम्राज्य तक उन्नत होने का ध्यान- धारणा के अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग मुझे नहीं दिखाई पड़ता। उदाहरण के रूप में मैं कहूँगी कि मैंने आज तक केवल इतना किया कि आप लोगों को, जनता को, सामूहिक रूप से आत्मसाक्षात्कार देने का तरीका खोज पाई। परन्तु इसका अभिप्राय यह नहीं है कि मेरे सामूहिक रूप से आत्मसाक्षात्कार देने से वे सब सहजयोगी बन गए हैं। आपने स्वयं अपने कार्यक्रमों में देखा होगा कि मेरी उपस्थिति में कुछ समय के लिए लोग कार्यक्रम ह में आते हैं, आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करते हैं और फिर गायब हो परन्तु सहसार खुला होने की स्थिति में जो चीज आप सीखते हैं वह है निर्लिप्सा। स्वतः हो आप निरमाह हो जाते हैं । यद्यपि आप भाग नहीं खड़े होते। सहजयोग में हम समाज सं पलायन करके हिमालय में जा बैठने वाले लोगों में विश्वास नहीं करते। मैं इसे पलायनवाद कहती हूँ पलायनवाद ठीक नहीं है। यहीं रहकर आप सबको देखें, सबको जाने, सबके समोप हों और फिर भी निर्लिप्त हों। यह मानसिक स्थिति केवल मर सहस्रार खुला होने पर ही प्राप्त होती है। इस अवस्था में आप लोगों से व्यवहार करते हैं, समस्याओं का समाधान खोजते हैं, परिस्थितियों के हल खोज रहे होते हैं फिर भी आप इनमें लिप्त नहीं होते। बिल्कुल भी मोह नहीं होता। आपमें पहले जो लिप्सा भाव थे वे किसी भी परिस्थिति के विषय में आपको पूर्ण जाते हैं। ध्यान-धारणा न करना इसका कारण है। ध्यान-धारणा करते तो वे अपनी श्रेष्ठता को समझ जाते, यह समझ जाते कि वह क्या है। विना ध्यान धारणा के आप नहीं समझ सकते कि आपके लिए क्या अच्छा है। तो आज के दिन आप सबको मुझे वचन देना होगा कि आप हर रोज रात को, सांय और संभवत: चतन्य लहरी । खड : X अंक : ।। 12 ।998 6. 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-7.txt अन्तर्दृष्टि नहीं देतं कि क्या घटित हो रहा है और सत्य क्या है। तो यह निर्लिप्सा सहायक है। इसका महानतम लाभ यह है कि आप प्रभावित नहीं होते। यह कहने का कोई उपयोग न होगा कि, "श्रीमाताजी, बिना प्रभावित हुए हम दूसरे व्यक्ति के विषय में कंसे महसूस करेंगे और किस प्रकार दूसरे लोगों के प्रति करुणामय होंगे।" किसी के प्रति जब आपके हृदय में करुणा होगी तभी आप उसकी समस्या का समाधान कर पाएंगे। परन्तु यह करुणा भी एक प्रकार का मोह है। यह सच्ची भावना नहीं हैं। यह सहायक नहीं होती। कोई व्यक्ति रो रहा है, आप भी उसके साथ रो रहे हैं। कोई परेशानी में है आप भी परेशान हैं। धर्म आदि। सभी के अपने धर्म हैं परन्तु श्रीकृष्ण कहते है कि ये सब मुझ पर छोड़ दो और मैं सब कुछ देखूगा। हमें भी यही चीज सीखनी है कि परमेश्वरी शक्ति ही हमारी समस्याओं का समाधान करेंगी। मनुष्य के लिए यह अवस्था अत्यन्त कठिन है । इसे केवल ध्यान धाआरणा द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। मैं ये नहीं कह रही हूँ कि आपको घंटो घ्यान में वैठे रहना है, ऐसा करना आवश्यक नहीं है। परन्तु अपने तथा परमेश्वरी शक्ति में पूर्ण विश्वास के साथ यदि आप इसे कार्यान्वित करें तो मुझे विश्वास है कि चेतना की उस अवस्था तक उन्नत होना कठिन नहीं है। यही हमने प्राप्त करना है। पुरुष एवम् महिलाओं के लिए यह प्राप्त करना संभव है। उन्हें यह नहीं सोचना कि श्रीमाताजी हम यह कैसे कर सकते हैं? ऐसे सभी लोग सहजयोग के लिए बेकार हैं। आत्मविश्वासविहीन लोग कुछ नहीं कर सकते, परन्तु जो लोग समर्पित हैं तथा साचते हैं कि वे ऐसा कर सकते हैं वे अपनी शक्ति को परमेश्वरी शक्त में बदल सकते हैं। केवल परमेश्वरी शक्ति पर सभी कुछ छाड़ दें। मान लो मेरे पास एक कार है जो मुझे कहीं भी ले जा सकती है। इस कार में मैं बैल नहीं जांड़ती, न ही इसे धक्का लगाती हूँ। मात्र इसमें बैठकर इसका उपयोग करती हूँ। इसी प्रकार जब यह महान शक्ति आपके इर्द-गिर्द होती है, आपका सहस्रार जब इससे पूर्णतः प्लावित होता है तब, आप हैरान होंगे कि, किस प्रकार आपके कार्य होते हैं! मैं एक सहज योगी का उदाहरण दूंगी जो अब जीवित नहीं है। वह एक मछुआरा था, साधारण इस प्रकार न तो उस व्यक्ति का लाभ होता है और न ही आपका। अत: निर्माह होने का यह अर्थ नहीं है कि आपके हृदय में दूसरों के लिए भावना नहीं है। आप उसके प्रति महसूस करते हैं, उसके दुख को महसूस करते हैं, कष्ट को महसूस करते हैं, पूरे समाज और पूरे देश की समस्या को महसूस करते हैं। परन्तु आपकी भावना इतनी नि्लिप्त है कि परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति यह कार्य संभाल लेती है सर्वप्रथम हमें इस सर्वव्यापक शक्ति के क्षेम पर पूर्ण विश्वास करना होगा। ज्योंही आप निलिंप्त होते हैं आप कहते हैं आप इस कार्य को कीजिए । समाप्त। एक बार जब आप कहते हैं कि आप इस कार्य को करने वाले हैं तो आप ही को यह करना पड़ेगा-सभी कुछ पूरी तरह बदल जाता है। अपनी सारी जिम्मेदारियाँ सारी समस्याएं इस परमेश्वरी शक्ति को सौंप दें, यह अत्यन्त शक्तिशाली है, अत्यन्त योग्य है और कुछ भी कर सकती है। तो जब भी आप यह सोचते हैं कि इस समस्या का समाधान आप करेंगे तो आप ही इसका समाधान करेंगे। परमेश्वरी शक्ति कहती है ठीक है - अपना भाग्य आजमाओ। परन्तु यदि आप वास्तव में इस समस्या को परमेश्वरी शक्ति पर छोड़ दंगे तो वह इसका मछुआरा। परन्तु पढ़ा-लिखा था और बैंक में कार्यरत था। एक दिन सहजयोग का कार्य करने के लिए उसे नाव से जाना था। जब वह बाहर आया तो उसने देखा कि घनघोर बादल बने हुए हैं और भयानक बारिश हो सकती हैं। वह बहुत ही व्याकुल हुआ परन्तु उसका सहस्रार इतना खुला हुआ और अच्छा था कि तुरन्त उसने कहा कि में यह सब परमेश्वरी शक्ति पर छोड़ता समाधान करंगी। सहजयोग में सभी प्रकार की समस्याएं हमारे सम्मुख हैं। हूँ। मैं चाहता हूँ कि मेरे वापस आने तक न तो बारिश हो और विशेषतौर पर जब हमें लगता है कि लोग सहजयोग के प्रति समर्पित नहीं हैं, समर्पित लोग वहुत कम हैं, तव आपको बहुत है, कि श्रीमाताजी पूरा समय बादल वैसे ही बने रहे परन्तु न बुरा लगता है। क्या आपने कभी इसके विषय में ध्यान करने बारिश हुई और न ही कोई अन्य समस्या आई। जिस टापू पर का प्रयत्न किया और क्या कभी इस समस्या को परमेश्वरी उसे जाना था वह गया और सहजयोग का कार्यक्रम करके शक्ति पर छोड़ने का प्रयत्न किया? जब परमेश्वरी शक्ति हमें हमारे सहस्रार के माध्यम से उपलब्ध है तो हम क्यों चिंता करें। हम क्यों चिन्ता करें और क्यों इसके विषय में सोचें। यदि संभव हो, यदि आप ऐसा कर सके तो यह सब परमेश्वरी शक्ति पर छोड़ दें । परन्तु ऐसा करना मानव के लिए बहुत कठिन कार्य है क्योंकि वे अपने अहम् और बन्धनों में ही फँसे रहते हैं । इन सभी चीजों से मोह यदि टूट जाए तो आप सभी समस्याओं को छोड़ देते हैं। श्रीकृष्ण ने अपनी गीता में कहा है, 'सर्व धर्माणाम् न कोई समस्या आए और लोगों ने मुझे बताया, हैरानी की बात आया। घर आकर जब वह सो गया तो बारिश पड़ने लगी। अत: प्रकृति, सभी कुछ, हर पत्ता, हर फूल, हर चीज परमेश्वरी शक्ति की इच्छा से चलती है। अत: हममें अहंकार नहीं आना चाहिए कि हम कुछ कार्य कर सकते हैं या कुछ चला सकते हैं यदि आपमें ऐसी भावना है तो अभी आप पूरे विकसित नहीं हुए, अभी तक आप सहजयोग में पूरे उन्नत नहीं हुए। परन्तु क्योंकि आपके पास मार्ग-दर्शन है, आपके लिए सहजयोग में उन्नत होना कठिन कार्य नहीं है जिन लोगों को बहुत कम थे और भारत के कुछ सन्त। मार्गदर्शक के अभाव में, किसी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ वे परित्याज मामकम् शरणं व्रज'। कुछ सृफी थे सभी धर्मों को भुला दें । पत्नी धर्म, पति धर्म, समाज चैतन्य लहरी 7 खड : X अक : 11, 12 1998 । 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-8.txt लोगों ने स्वयं को दे दिए हैं। ये सब विचार बाहर से आते हैं अन्दर से नहीं। अपनी अन्त्अंवस्था प्राप्त करने के लिए, सूक्ष्म अवस्था को पाने के लिए आपको कुण्डलिनी को आज्ञा चक्र पार करने देना होगा। आधुनिक युग में अगन्य चक्र से पार होना अत्यन्त महत्वपूर्ण है और उसके लिए आपको ध्यान-धारणा सहायता करने वाले या बताने वाले के अभाव में उन्हें इसके लिए कितना संघर्ष करना पड़ा होगा! इस सबके बावजूद भी वे लोग अत्यन्त सन्तुष्ट एवम् प्रसन्न स्वभाव के थे। उन्होंने बहुत अच्छी तरह से इसे प्राप्त किया और विश्व को एक दूसरें नजरिए से देखा। जैसा आप लोग अब देख सकते हैं। परन्तु उनमें इतना आत्मविश्वास था कि वे घबराए नहीं। ध्यान धारणा करनी होगी। स्वयं पर पूर्ण विश्वास के साथ यदि आप के माध्यम से उन्होंने स्वयं इतना ज्ञान प्राप्त किया कि उनके लिखे गए कुछ ग्रन्थ तो अत्यन्त महान हैं। आश्चर्य की बात है स्वयं को परमात्मा के प्रति समर्पित करना होगा और अगन्य कि किस प्रकार उन्होंने ज्ञान से परिपूर्ण यह महान कविताएं चक्र के खुलने के पश्चात, आप हैरान होंगे आपका सहस्रार लिखी! उन्हें न तो कोई मार्गदर्शन ही था न कोई बताने वाला ध्यान-धारणा कर सकते हैं तो ये अगन्य चक्र खुल सकता है। परम चैतन्य के माध्यम से आपको सारी वांछित सहायता देने की प्रतीक्षा कर रहा है। सहस्रार का परम चैतन्य से जब सम्बन्ध पित हो जाता हैं तो जिस प्रकार से ये सातों चक्र आपक ही था। परन्तु उनमें एक गुण था कि वे सदैव अपने सहस्रार को देखने का प्रयत्न करते थे। अगन्य चक्र की हलचल विचारों के रूप में सहस्रार को अवरोधित करती है। केवल यही चीज सहजयोग में आपके प्रवेश को रोकती है। विचार हर समय चलते रहते हैं क्योंकि जन्म से ही मानव हर चीज के प्रति प्रतिक्रिया करता है। प्रतिक्रिया का सिलसिला चलता रहता स्थ . लिए कार्य करते हैं. जिस प्रकार से आपकी सहायता करते हैं जिस प्रकार से सारा वास्तविक ज्ञान तथा सभी कुछ आपका प्रदान करते हैं यह अत्यन्त आश्चर्यचकित कर देने वाली चीज है। वास्तविक ज्ञान जो आपको मिलता है यह अत्यन्त आनन्ददायी है। हर चीज में यह वास्तविक ज्ञान आप देख सकते हैं। इसके है बहुत बड़ी विचार आते रहते हैं. जाते रहते हैं। विचारों की लिए आपको कोई पुस्तक नहीं पढ़नी शुरु करनी। हर स्थिति में हर व्यक्ति में, हर फूल में, हर प्राकृतिक घटना में आप भीड़ हो जाती है जिसके कारण आपका चित्त अगन्य चक्र को पार नहीं कर सकता और न ही सहस्रार में निवास कर सकता हैं। तो सर्वप्रथम व्यक्ति को देखना चाहिए कि किस प्रकार के विचार आ रहे हैं । कभी-कभी अपनी प्रताड़ना भी करनी चाहिए। कहना चाहिए, 'क्या मूर्खता है, मैं क्या कर रहा हूँ, मेरे परमात्मा का हाथ स्पष्ट देखते हैं। एक बार जब आप परमात्मा का हाथ देखने लगते हैं, एक बार जब आप कहते हैं, कि 'केवल आप', 'आप ही' सभी कुछ करते हैं, तो आपका अहम् भागने लगता है। इसके विषय में कबीर ने एक बहुत सुन्दर बात कही है, उन्होंने कहा है कि बकरी जब जीवित होती है तो मैं मैं करती रहती है परन्तु कटने के बाद इसकी आतों के तार बनाकर जब रुई पीजने के लिए लगा दिए जाते हैं, तो वे कहते साथ क्या समस्या है, मैं ये सबै कसे कर सकता हूँ? एक बार जब आप ऐसा करने लगेंगे तो यह विचार छंटने लगेंगे। दो कोणों से ये विचार आते हैं आपके बन्धनों से । ये दोनों (अहम् और बन्धन) आपमें इतने हैं 'तूही-तूही-तूही'। इस प्रतीकात्मक तरीके को देखें, उन्होंने हैं कि ये आपको आज्ञा से पार नहीं होने देते। इसके लिए हमारे पास दो बीज मन्त्र हैं - 'हं और क्षम्' । पहले का उपयोग परमेश्वरी शक्ति ही यह सभी कार्य करती है। मैं क्या हूँ, बन्धनों की स्थिति में होता है जब आप भय से भरे होते हैं मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था, मुझे वैसा नहीं करना चाहिए हूँ। यही सब कुछ संभाल रही है, सभी कुछ कार्यान्वित कर था इसकी आज्ञा नहीं है, उसकी आज्ञा नहीं है। यह बन्धन है। रही है। यही आपको महान सहजयोगी बनने में अत्यन्त सहायक बन्धन बहुत प्रकार के हो सकते हैं अहम् में व्यक्ति कहता है होगी। मुझे सब पर हावी होना है, यह मुझे मिलना ही चाहिए, मुझे सब पर शासन करने के लिए शक्तिशाली होना ही चाहिए। ये परन्तु अभी भी आप इस पर गर्वित नहीं हैं। आत्मसाक्षात्कार दो चीजें हर समय मस्तिष्क में घूमती रहती हैं। अतः निर्विचार समाधि में जाना महत्वपूर्ण है क्योंकि निर्विचार समाधि की ग्वित नहीं है । बहुत सी सृजनात्मक शक्तियां आपको मिल अवस्था में ही कुण्डलिनी आपके सहस्रार का पोषण करती है। कुण्डलिनी जब अगन्य को पार न कर सके तो, जैसे मैंने वताया, दो बीज मन्त्र हैं - "हं और क्षम् । आप यदि बन्धनों में फसे हुए हैं तो आप भयभीत हैं. एक तो अहम् से और दूसरा इस परमेश्वरी शक्ति में विलीन हो जाने की राय दी है। परमेश्वरी शक्ति के चेतना सागर में गिरी हुई में एक बूँद मात्र आपको रोगमुक्त करने की शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं । प्रदान करने की शक्ति आपको मिल जाती है फिर भी आप जाती हैं परन्तु फिर भी आपको इसका गर्व नहीं हैं। वास्तव में आप बहुत सृजनात्मक, अत्यन्त रचनात्मक हो जाते हैं। परन्तु महानतम चीज जो आपके साथ घटित होती है वह यह है कि आप विश्वव्यापी शक्ति बन जाते हैं। सभी देशों की, सभी राष्ट्ों की समस्याएं आप देखने लगते हैं। इन समस्याओं को आप अन्य लोगों की तरह से नहीं देखते। अन्य लोग इन्हें अपने लाभ के लिए, समाचारपत्रों के लिए या अन्य किसी लाभ के लिए हैं और आपको अपने विषय में विचार आते रहते हैं । इरे हुए आजकल लोग कहते हैं मैं बहिर्मुखी हूँ, मैं अन्तर्मुखी हूँ, कोई कहेगा मैं हिप्पी हूँ, मैं ये हूँ, मैं वो हूँ। सभी प्रकार के नाम ।खंड : X अंक : 11, 12 1998 चतन्य लहरी 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-9.txt और जिसकी आपसे पूर्ण एकाकारिता है। आप हैरान होंगे मुझे लोगों से असंख्य पत्र मिले जिनमें उन्होंने बताया कि सहजयोग ने किस प्रकार उनकी सहायता की, किस प्रकार अंतिम क्षण में उपयोग कर सकते हैं परन्तु आप चाहते हैं कि इन समस्याओं का समाधान हो जाना चाहिए। आपकी शक्तियां इतनी महान हैं और परमेश्वरी शक्ति द्वारा शासित आपके मस्तिष्क को जो भी चीज परेशान करती है परमेश्वरी शक्ति उसे संभाल लेती है और वह ठीक होने लग जाती है। सहजयोगियों ने बहुत सी समस्याओं का समाधान किया है और यदि आप विश्वव्यापी व्यक्तित्च हैं तो ब्रह्माण्डीय स्तर उन्हें सहायता मिल गई। विनाश के कगार पर जब वे खड़े थे तब किस प्रकार उन्हें बचा लिया गया! बहुत से लोगों ने मुझे लिखा परन्तु मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि यदि आप परमात्मा से जुड़े हुए हैं तो वे आपकी देखभाल करते हैं । उनके पास सभी शक्तियाँ हैं, सभी शक्तियाँ। कंवल एक शक्ति उनके पर समस्याओं का समाधान हो सकता है। आप यदि विश्वव्यापी हैं तो आप परमेश्वरी शक्ति के कार्य के लिए एक प्रकार के पास नहीं है। यदि आप अपना सर्वनाश करना चाहें तो वे आपको रोक नहीं सकते । उन्होंने आपको स्वतन्त्रता प्रदान की वाहन या माध्यम की तरह से बन जाते हैं, क्योंकि आपका व्यक्तित्व विश्वव्यापी है, लिप्सा से पूर्णतः मुक्त एक पावन से है। पूर्ण स्वतन्त्रता। आप यदि अपना सर्वनाशा करना चहें तो कर सकते हैं। परमेश्वरी शक्ति को यदि आप स्वीकार न करना चाहें तो ठीक है मत स्वीकार करें। अपने साथ जो भी आप करना चाहेंगे वो करने की आपको पूर्ण स्वतन्त्रता है। ये स्वतन्त्रता परमात्मा ने आपको दी है। इसे आपने नियन्त्रित करना है और परमेश्वरी शक्ति का सम्मान करना है। आज, मैं कहूँगी, माँ का भी दिन है। मैं सोचती हूँ कि केवल माँ ही इस प्रकार से कार्य कर सकती है, यह कार्य करने के लिए महान धेर्य की आवश्यकता है। मैंने देखा कि जितने भी अवतरण हुए वे बहुत जल्दी चले गए। बहुत थोड़ा समय वे पृथ्वी पर रहे। किसी को 33 वर्ष को आयु में क्रूसारोपित कर दिया गया, किसी ने 23 बर्ष में समाधि ले ली. क्योंकि लोगों की मुर्खता को वे सहन न कर सक। उन्हें लगा कि वे ऐसे। मनुष्यों के लिए कुछ न कर पाएंगे। मेरे विचार से या तो उन्होंने आत्मविश्वास खो दिया या उन्होंने सोचा कि ऐसे बेकार लोगों के लिए कुछ करना व्यर्थ है। अत: उन्होंने चले जाना ही बेहतर समझा । परन्तु माँ की स्थिति भिन्न है। वह तो अपने बच्चे के लिए लड़ती ही रहेगी, संघर्ष करती ही रहेगी। अंतिम क्षण तक वह संघर्ष करेंगी कि उसके बच्चे को सभी आशीवाद मिल सहज व्यक्तित्व जिसका उपयोग परमेश्वरी शक्ति सुगमता कर सकती है। इसके लिए जैसा मैंने दोपहर पश्चात् बताया था, हमें कुछ चीजों के प्रति सावधान होना होगा। सर्वप्रथम क्रोध। क्रोध हमारा सबसे बड़ा दुर्गुण है। क्रोध , 'मुझे बहुत गुस्सा आया हुआ क्रोध मूर्खता का, पूर्ण मूर्खता का चिन्ह है। किसी पर क्रोधित होने की कोई आवश्यकता नहीं। क्रोध से आप किसी समस्या का समाध न नहीं कर सकते क्रोध से आप अपनी हानि करते हैं, अपने स्वभाव को खराब करते हैं और सारी स्थिति को बिगाड़ते हैं। अत: किसी भी बात पर क्रोध करने का कोई लाभ नहीं। यदि क्रोधित करने वाली कोई बात होती है तो शान्त होकर आपको देखना चाहिए कि क्या परेशानी है? यह आपको क्यों परेशान कर रही है? आपके देखने मात्र से ही समस्या का समाधान हो जाएगा सर्वप्रथम आपको महसूस करना है कि आप एक विशेष व्यक्तित्व है तथा इस सर्वव्यापी परमेश्वरी शक्ति के प्रति आपका सहस्रार खोला जा क्यों? कुछ लोग बातें करते हैं। था।' उन्हें अपने क्रोध का गर्व है। चुका है। आप परमात्मा के साम्रान्य में प्रवेश कर चुके हैं। परमात्मा के साम्राज्य, उनके महान दरबार में आप एक महान अतिथि है। आप कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं। अत: जब आप समझ जायेंगे कि आपको सहजयोग तथा आत्मसाक्षात्कार क्यों मिला तो यह भी जान जायेंगे कि आपमें कुछ विशेष हैं. परन्तु इससे आपका अहम् नहीं बढ़ना चाहिए। आपके अहम् को बढ़ाने के लिए यह उपलब्धि आपको नहीं मिली, परमात्मा के कार्य को करने के लिए मिली है इस लीला की व्याख्या मैं इस जाए। यह धैर्य, यह प्रेम और यह क्षमाभाव एक माँ में अन्तर्जात होता है। उसका दृष्टिकोण बिल्कुल भिन्न होता है। किसी उपलब्धि, यश या पुरस्कार के लिए वह कुछ नहीं करती। केवल माँ होने के नाते सभी कुछ करती है। एक माँ का. एक सच्ची माँ की यही पहचान है। अपने बच्चों के लिए वह किसी भी सीमा तक जा सकती है। अपने बच्चों को विनाश से बचाने के लिए वह दिन रात परिश्रम कर सकती है। परन्तु सहजयोग बहुत विशाल परिवार है और इसमें मातृत्व के सिद्धान्त के माध्यम से कार्य किया जाना आवश्यक है। किसी अन्य सिद्धान्त को आप अपना नहीं सकते। यहाँ वहुत महान योद्धा हुए जिन्होंने योद्धाओं की तरह से कार्य किया। यहाँ बहुत से त्यागी भी हुए। सभी प्रकार के लोग यहाँ हुए जिन्होंने लोगों में धर्म स्थापित करने के लिए घोर परिश्रम किया। परन्तु वे ऐसा न कर सके। मैंने सोचा कि धर्म स्थापित करने का कोई लाभ न प्रकार करूंगी में एक ब्रुश है। ब्रुश कभी नहीं सोचता कि वह कुछ कार्य कर रहा है। कलाकार ही सभी कार्य करता है। इसी प्रकार जब - मान लो आप एक चित्रकार हैं, आपके हाथ आपकी एकाकारिता परमेश्वरी शक्ति से होती है तो आप मात्र यही महसूस करते हैं कि मैं कुछ नहीं कर रहा । कलाकार ही सभी कुछ कर, रहा है। वही सब प्रबन्ध कर रहा है। यह है कौन? यह परमेश्वरी शक्ति है जो आपको प्रेम करती है. आपकी चिन्ता करती है, आपकी देखभाल करती है केलाकार चैतन्य लहरी । खंड : X अंक : 11, 12 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-10.txt में सभी प्रकार की सुन्दर चीजों का वर्णन किया गया है परन्तु पाश्चात्य देशों में इसका अभाव है। संभवत: उन्होंने इसका महत्व नहीं देखा। माँ के अनुराग का वर्णन किया जाना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वह किस प्रकार प्रेममयी एवम् करुणामरयी हैं। होगा। सर्वप्रथम इन्हें आत्मसाक्षात्कार दे दिया जाना चाहिए। आत्मा के प्रकाश में जब ये गलतियों को देखेंगे तो स्वत: ही धार्मिक हो जाएंगे उन पर धर्म थोपने की अपेक्षा ऐसा करना कहीं बेहतर है। धर्म यदि आप उन पर थोप दें तो वे इसे सहन नहीं कर पाते, पचा नहीं पाते। तो यही सर्वोत्तम होगा, अपनी । किस प्रकार सारी बेवकूफी को सहन करती हैं और किस प्रकार आत्मा के प्रति उन्हें चेतन कर देना। आत्मा का प्रकाश जब सभी कुछ क्षमा करती हैं! किसी भी बात को बच्चे के विरोध उनमें आ जाएगा तो उस प्रकाश में वे सब कुछ स्पष्ट देख में या उसको कष्ट देने के लिए उपयोग नहीं करतीं। कभी सकंगे और तब कोई समस्या न होगी। इसी कारण मातृत्व का कभी व्यक्ति को बताना भी पड़ता है और गलतियों का सुधार गुण अत्यन्त सहायक है। हर देश में मातृत्व के सिद्धान्त की अभिव्यक्ति हुई सभी देशों में इसके बारे में बताया गया, इसका वर्णन किया गया। परन्तु बाद में ऐसे लोगों ने कार्यभार ले लिया जो माँ के विषय में बात ही न करना चाहते थे। अपने आचरण को वे न्यायसंगत न साबित कर सके। अतः उन्होंने सोचा कि माँ के विषय में बात न करना ही सर्वात्तम है। भी करना पड़ता है। परन्तु उचित समय तथा उचित स्थान पर यदि बताया जाए तो बच्चे भी इसके महत्व को समझ जाते हैं। विश्वस्त करने के लिए माँ का प्रेम तथा स्नेह सर्वप्रथम है। माँ क्षमा करती चलती जाती हैं और विश्वस्त करती हैं कि मेरी एक माँ है। कुछ नहीं हो सकता, और यह विश्वास कार्य करता है। जो लोग आपसे आत्मसाक्षात्कार लेते हैं उन्हें भी आपको यही विश्वास देना होगा। उन्हें लगना चाहिए कि आप अत्यन्त अग्रणी, परिपक्व तथा वास्तविक अवतरणों ने हमशा मातृत्व के विषय में बातें की। परन्तु बातें तो बातें ही थीं। अब इसे बैसे ही कार्यान्वित किया जाना चाहिए जैसे माँ स्वयं करती है। सहजयोग करते हुए आपको माँ सम बनना होगा। पिता के गुणों की अपेक्षा मातृत्व के गुण आपमें अधिक होने चाहिए। महत्वाकांक्षा, प्रतिस्पर्धा, ईर्ष्या आदि नहीं होने चाहिए। माँ के रूप में आपकी केवल यही एक इच्छा होनी चाहिए कि आपके बच्चे आध्यात्मिकता में उन्नत हों। यह दृष्टिकोण जब आपमें होगा, आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे, कि आप इतने सन्तुष्ट हैं क्योंकि लोगों को आध्यात्मिकता में बढ़ते हुए देखना अत्यन्त आनन्ददायी होता है। इसके विषय में केवल बातें करना, इसके विषय में पढ़ना ही नहीं परन्तु वास्तविक रूप में इसे घटित होते हुए देखना और अपने अन्दर इसका वास्तविकीकरण उन पर नाराज नहीं हैं। मैं जानती हैँ कि वे मुर्ख हैं, कभी कभी वे हिसक भी होते हैं। मेरा सभी प्रकार के लोगों से पाला पड़ा है। परन्तु केवल शुद्ध प्रेम ने ही कार्य किया। पावन प्रेम की किसी चीज की अपेक्षा करने का अधिकार नहीं है। आप केवल प्रेम दें और अपने चित्त से उस व्यक्ति को सुधारने का प्रयत्न करें। परन्तु परमेश्वर के कार्य में आपको किसी से भी लिप्त होने की कोई आवश्यकता नहीं है। मान लो कोई व्यक्ति ठीक नहीं है, कष्टकर हे आप पर क्रोधित हो जाता है, आपको गुस्सा दिलाता है और आपका अपमान करता है तो उसे भूल जाएं और एक ही व्यक्ति के पीछे दौड़ने या एक ही व्यक्ति से लिप्त होने की कोई आवश्यकता नहीं है। मेरे विषय में सभी सहजयोगी सदा यही करना। यह गुण वास्तव में अत्यन्त लाभकारी है और वास्तव में सभी सहजयोगियों के लिए सहायक है - धैर्यवान, करुणाशील. विनम्र होना' परन्तु आपको गलतियों का सुधार भी करना होगा। दूसरे व्यक्ति, जो परमेश्वरी संसार से न होकर सामान्य संसार से होते हैं, की गलतियों को सुधारने का एक तरीका है, उन्हें सुधारना कठिन कार्य है। कुछ लोग इतने उग्र स्वभाव के होते हैं कि वे कुछ भी सहन नहीं कर सकते कोई बात नहीं, उन्हें क्षमा कर दें। सहज, प्रेममय, स्नेहमय लोगों पर ध्यान देना अच्छा है। शनै: शनै: ये टेढे स्वभाव के लोग भी आ जाएंगे। महसूस करते हैं कि मैं उनकी अपनी हूँ। यह सत्य है चाहे मैं आपसे बात करू, आपसे मिलू या नहीं। आपको यह जानना होगा कि मैं आपकी माँ हूँ और जो भी समस्या आपको है वह आप सदा मुझे बता सकते हैं। परन्तु जिस प्रकार से लोग अपनी समस्याएं मुझे बताते हैं उससे लगता है कि वे कितने निम्न-स्तर के हैं उनकी मानसिकता कितनी निम्न है। वो मुझे क्या बता रहे हैं। मान लो किसी राजा के पास जाकर आप उससे आधा डालर माँगते हैं तो राजा सोचेगा कि इस व्यक्ति को क्या कष्ट हैं? इसे यह भी समझ नहीं कि क्या माँगू! इसी प्रकार व्यक्ति को सोचना चाहिए कि जब आप अपनी माँ से कुछ माँग रहे अन्य लोगों से आपका व्यवहार मातृत्वमय होना चाहिए। माँ जैसे सम्बन्ध होना आवश्यक है। मैं आश्चर्यचकित थी कि है तो बह कुछ बहुमूल्य होना चाहिए। इसका कोई महान मूल्य होना चाहिए । पूर्ण सन्तोष प्रदान करने वाली कोई चीज। जब पश्चिमी साहित्य में मुझे माँ और शिशु सम्बन्ध जैसा कोई भी चित्रण नहीं मिला। अत्यन्त हैरानी की बात है। ऐसा कोई भी चित्रण नहीं है कि किस प्रकार माँ अपने बच्चे को देखती है। आप कुछ माँगते हैं तो इससे आपको पूर्ण सन्तोष मिलना चाहिए। परन्तु मैंने लोगों को छोटी-छोटी चीजें माँगते हुए देखा है। किसे प्रकार बच्चा चलता है| किस प्रकार बच्चा गिरता है। किस प्रकार खड़ा होता है और किस प्रकार बोलता है साहित्य इस प्रकार लोग इन छोटी छोटी चीजों को माँगते हैं कि मुझे 10 चैतन्य लहरी ॥ खंड : X अंक : ।1 12 1998 ho 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-11.txt कर है फिर भी इसका स्तर उत्तरी भारत जैसा नहीं है। हैरानी की बात है कि उत्तर भारतीय लोगों को सहजयोग का बिल्कुल ज्ञान न था और न ही वे बहुत धार्मिक लोग थे। परन्तु जिस प्रकार से उन्होंने सहजयोग को अपनाया है यह आश्चर्य की बात है। अत: कहा नहीं जा सकता कि प्रकाश कहां प्रकट होगा? कुछ लगता है कि हे परमात्मा मैंने क्यों इन छोटी छोटी तुच्छ तथा महत्वहीन चीजें माँगने वाले लोगों को अपने आस-पास रखा हुआ है परन्तु यदि आपकी एकाकारिता सहस्रार से है तो सहस्रार स्वयं कार्य करता है। यह आपको ऐसे लोगों से मिलवा देगा कि आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे कि यह किस प्रकार कार्य करता है। मैं तुर्की गई थी और वहाँ का मेरा अनुभव इस भी नहीं कहा जा सकता। परन्तु जहाँ भी ये प्रकट हो हमें स्वीकार करना चाहिए और यदि प्रकट न हो तो बुरा नहीं मानना चाहिए। आप क्या कर सकते हैं? सहस्रार खोलने के लिए आप उनके सिर तो नहीं तोड़ सकते । माँ जैसे प्रेम तथा सूझबूझ मुझे विश्वास है आप उनके सहस्रार खोल सकते हैं। सभी देशों में यह कार्य समान रूप से नहीं हो सकता । परन्तु मुझे विश्वास है कि इन महान सन्तों के पुण्य फलीभूत होंगे। यद्यपि कई बार मुझे थोड़ी सी निराशा भी हुई। फिर भी मुझे लगता है कि इन सभी स्थानों पर कार्य हो जाएगा और सहजयोग फैलेंगा। बात को निश्चित रूप से प्रमाणित करता है। विश्व के सभी लोंगों में से तुर्की के लोगों ने सहजयोग को अप्रत्याशित रूप से स्वीकार किया है । मैं नहीं समझ सकती किस प्रकार उन्होंने सहजयोग को स्वीकार किया। अनुवर्ती कार्यक्रम में वे कम से कम 2000 लोग थे उन्हें सहजयोग के बारे में बता पाने में सहजयोगियों को कठिनाई हो रही थी। बाद की गोष्ठियों में भी संख्या काफी अधिक थी जो आज भी चल रही है। संभवत: वहाँ रूढिवाद की परेशानी के कारण ऐसा हो रहा हो। सर्वत्र, सभी देशों में समस्याएं हैं और आप कह सकते कि सभी देशों की एक अत्यन्त विनाशकारी तस्वीर है। फिर से परन्तु आपका सहस्रार सर्वप्रथम है। सहस्रार परमात्मा के प्रकाश को प्रतिबिम्बित करता है। अत: सहस्रार अत्यन्त भी कुछ देशों में मैं समझ नहीं पाती, यह किस प्रकार प्रज्जवलित हो उठता है और एक बार वे जब सहजयोगी बन जाते हैं तो कोई समस्या नहीं रहती। यदि वे सहजयोगी हैं तो महत्वपूर्ण है। अपने सहस्रार को सम्पन्न करने के लिए, इसे रोग मुक्त करने के लिए तथा कुण्डलिनी से इसे पोषित करने के लिए ध्यान-धारणा आवश्यक है। ध्यान-धारणा तथा थोड़ा बहुत बन्धन आदि के अतिरिक्त बहुत अधिक कर्मकाण्डों की कोई आवश्यकता नहीं है। बाहर जाते हुए बन्ध कोई समस्या नहीं रहती । उन्हें कुछ बताना नहीं पड़ता । वे स्वयं सभी कुछ करते हैं, वे समझते हैं कि सहजयोंग क्या है | न लेना आवश्यक है क्योंकि अभी तक कलियुग अपनी स्तर ऊँचा नहीं है और जो गहन साधक नहीं है। मुझे लगता है यातनाएं कार्यान्वित कर रहा है और सतयुग आने के लिए प्रयत्नशील है। हम ही लोग सतयुग की सहायता करंगे और इसकी देखभाल करेंगे। इसलिए सहस्रार का खुला होना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह बहुत आवश्यक है। जो लोग उन्नत होना चाहते हैं उन्हें प्रतिदिन ध्यान-धारणा करनी चाहिए। जब भी आप घर आएं, सुबह-शाम, किसी भी समय, आपको ध्यान रखना होगा, जब आप निर्विचार समाधि में जा सकें, तभी ध्यान करें। तब आपकी प्रतिक्रियाएं समाप्त हो जाएंगी। किसी चीज को जब आप देखेंगे तो बस केवल देखेंगे, आपमें कोई प्रतिक्रिया न होगी क्योंकि अब आप निर्विचार हैं। आप प्रतिक्रिया नहीं करेंगे और जब प्रतिक्रिया बन्द हो जाएगी तो, आप हैरान होंगे कि, सभी कुछ दिव्य हो जाएगा क्योंकि प्रतिक्रिया आपके अगन्य चक्र की देन है। पूर्ण निर्विचार समाधि की अवस्था में आप परमात्मा से जुड़ जाते हैं। तब परमात्मा आपके सभी कार्यों को, आपके जीवन के हर क्षण को संभाल लेता है और इसकी देखभाल करता है। और परमात्मा की एकाकारिता में स्वयं को पूर्णतः सुरक्षित महसूस करते हुए संभवत: उनके कर्म ही अच्छे नहीं हैं। आप देख सकते हैं कि आप परमात्मा के आशीर्वाद का आनन्द लेते हैं। जैसे कुछ देश एसे हैं जिनमें समस्याएं हैं. जहाँ के लोगों का कि वहां गहन साधक समाप्त हो गए हैं। जैसे इंग्लैण्ड में । नशा, हिप्पीवाद तथा अन्य मु्खताओं में साधक खो चुके हैं। अमेरिका की सबसे अधिक दुर्दशा है क्योंकि वहाँ लोग गलत प्रकार की साधना में फँस गए हैं और वहाँ सत्य साधक खोजना कठिन कार्य है। शनै: शनै: ये कार्यान्वित हो रहा है | फिर भी मैं कहूगी कि हमें किसी देश विशेष के बारे में नहीं सोचना चाहिए जहाँ सहजयोग बहुत अच्छी तरह से नहीं चल रहा है या जहां सहजयोग बहुत अच्छी तरह चल रहा है । विश्वव्यापी स्तर पर सहजयोग की उन्नति के विषय में हमें सोचना चाहिए क्योंकि हम सहजयोग समाज के अंग प्रत्यंग हैं। यह एक अनुपम समाज है जो पहले कभी न था। यहाँ बहाँ एक दो सूफी या आत्मसाक्षात्कारी लोग होते थे जो सदैव कष्ट उठाते रहे । सारा जीवन उन्होंने कष्ट उठाए। किसी ने उनकी ओर नहीं देखा। महाराष्ट्र से मुझे बहुत आशाएं थीं लेकिन निराशा ही हाथ लगी क्योंकि उन्होंने सदैव महान सन्तों को बुरी तरह से सताया। इसका खामियाज़ा वे अब तक भुगत रहे हैं। उनके लिए मैंने इतना परिश्रम किया फिर भी यह पतित क्षेत्र है। लोगां का आचरण आदि कितना खराव है। यद्यपि वहाँ सहजयोग परमात्मा आपको धन्य करें। चैतन्य लहरी खंड : X अक : । 12 1998 11 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-12.txt 75वां जन्मोत्सव पश्चिमी सहजयोगियों की कलम से कष ऐसा प्रतीत हुआ कि भारत यात्राओं में उपस्थित जिन श्रीमाताजी निर्मलादेवी के अवतरण के 75 वर्ष पश्चात विश्व निर्मला धर्म के राष्ट्रों से उनके बच्चे पृथ्वी के दूर दूर के सहजयोगियों से हम अठारह वर्ष पूर्व मिले थे वे सभी वहाँ भागों से उनका जन्मोत्सव मनाने, पूजा करने तथा पृथ्वी पर अवतरित होने के लिए माँ के प्रति हार्दिक कृतज्ञता प्रकट के लिए भिन्न नदियों की धाराओं की तरह निर्मल सागर के तट पर भारत की राजधानी दिल्ली के स्काउट मैदान पर एकत्र हुए। इस वैभवशाली. सारगर्भित अनुभव का वर्णन किस किसी पुराने मित्र से पुन्मिलन होता. पीठ थपथपा कर पुरानी प्रकार आरम्भ किया जाए? श्री माताजी निर्मला देवी के 75वें मित्रता को प्रगाढ़ किया जाता। पिछले पाँच, दस, पन्द्रह या जन्म दिवस के छः दिवसीय (20-26 मार्च 1998) उत्सव की यह दैनिकी तथा सुस्मरणों का मधुर मिश्रण है। भारत पहुंचने से के विषय में बातचीत करते हुए तथा भविष्य के विषय में उपस्थित थे। जो योगी बहुत से वर्षों से भारत न आ पाये थे वे भी श्रीमाताजी के प्रति श्रद्धा अभिव्यक्त करने के लिए वहाँ आए थे। कैम्प के इर्द-गिर्द हो कदम चलने पर किसी न कुछ कभी-कभी बीस वर्षो में सहज के मामलों की मधुर स्मृतियों 1. पूर्व इस प्रकार के संकेत प्राप्त हुए थे कि हम एक ऐसे अपूर्व आशाएं अभिव्यक्त करते हुए समय व्यतीत होता। यह समय उत्सव में भाग लेंगे जैसा हमने पहले कभी नहीं देखा था। श्रीमाताजी के 75वें जन्मदिवस के महत्व को किसी भी प्रकार पूर्व यात्राओं तथा अपने देशों में सहज अनुभवों की बातचीत से नजरअंदाज नहीं किया गया। भेजे गए आमन्त्रण के फलस्वरूप विश्वभर के योगी परमपावनी माँ की जन्मभूमि भारत के लिए बनाते हुए लोग! चल पड़े। अपने आध्यात्मिक जन्मस्थान की तीर्थयात्रा पर, प्राचीन पावन भृमि का स्पर्श पाने के लिए तथा श्रीमाता जी की पूजा के लिए निर्धारित स्थान तक पहुंचाने वाले मार्ग पर योगी निकल पड़े। कहा जाता है कि श्रीमाताजी स्वयं हमें अपनी पूजा करने के लिए भारत आमंत्रित करती है। 'वहाँ उपस्थित होने के लिए वे हमारी छुट्टी, आवश्यक धन तथा अन्य सभी आवश्यक चीजों का प्रबन्ध करती है' उनके बुलावे के उत्तर में हम अपने शिविर जीवन से पूर्णतः परिचित हो गए हैं तथा वहाँ एक दूसरे अतीत दर्शी प्रतीत होता था। भीड़ में इधर-उधर घूमते हुए चेहरे करते हुए पुरानी मित्रता को ज्योतित करते हुए और नई मित्रता धर्मशाला स्कूल के बच्चों की उपस्थिति के कारण निजामुद्दीन शिविर पारिवारिक परिदृश्य (नजारा आरम्भ के दिनों में सहज-याग में बहुत से अविवाहित युवा ) बन गया। हुआ करते थे। परन्तु परिपक्व होकर योगियों ने गृहस्थ जीवन अपना लिए। इस प्रकार सहज-योगियों की अगली पीढी का भारत तीर्थ यात्रा से इतनी छोटी उम्र में परिचय होने लगा जिसकी कल्पना हममें से कोई भी न कर सकता । हमारे बच्चे मे मा की संगत में कठिनाइयों तथा असुविधाओं की चिन्ता किए लिए बनाए गए पथ का अनुसरण करते हें । विश्व भर से भारी संख्या में सहजयोगी दिल्ली के बिना अत्यन्त प्रसन्नता एवम आनन्दपूर्वक रहते हैं। बिना किसी निजामुद्दीन स्काउट कैम्प में एकत्र होने लगे । विदेशों से आए शर्त के एक दूसरे को सामूहिकता का सदस्य स्वीकार करते हुए, एक-दूसरे के व्यक्तित्व के भिन्न आयामां को स्थान देते हुए बच्चे वहाँ कार्य करते हैं । एक-दूसरे के लिए सुन्दर एवं हुए एक हजार और सात हजार भारतीय भाई-बहन सभी श्रीभाताजी के अभिमुख थे ओह! हम आ गए! नमस्कार और अभिवादनों से पुरान मित्रों से मिलने की कल्पना की जा सकती स्वाभाविक प्रेम से वे परिपूर्ण हैं और बच्चों में पाए जाने वाले है! हृदय के पट खुलने के लिए समय न था यह पहले ही खुल गया है। पृथ्वी पर बैठकर जिस शीघ्रता से भारत माँ तनावों तथा उद्वेगों को शान्त करती है, उसकी सराहना करना, दिनचर्या में जो चीजें भुलाई जा चुकी थी उनका अचानक वापिस आ जाना तथा विवेकशील लगना! विश्व परिवर्तित हो रहा है। क्या हम ने एक बार कहा था कि हमारे बच्चे हमें सिखाएंगे कि किस सामान्य विरोधों का उनमें अभाव है। सहज सामूहिकता में बंधे हुए दिन-प्रतिदिन वे प्राकृतिक विश्व-बन्धुत्व में रहते हैं बच्चे हमें सिखाते हैं कि हमें बाँटने वाली चीजें मात्र भ्रम ऊपर हमारा योग श्रीमाताजी से है और परस्पर है। श्रीमाता जी इससे प्रकार सहज योग किया जाता है। नया युग लाने के उपकरण हैं। 12 चैतन्य लहरी । खंड : X अंक : !। 12 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-13.txt अभिनन्दन समारोह 20 मार्च, शुक्रवार उन्होंने अपना दर्द प्रकट करते हुए कहा कि श्रीमाताजी ने जितना कुछ हमारे लिए किया है उसके लिए किस प्रकार हम जन्मोत्सव कार्यक्रम का विधिवत आरम्भ सांयकाल अभिनन्दन कार्यक्रम से हुआ। कार्यक्रम आरम्भ होने से पूर्व का दृश्य आने वाले 7 दिनों की ओर संकेत कर रहा था : बहुत बड़ी संख्या में लोगों का कार्यक्रम के लिए शिविर में आना, पंडाल के दो प्रवेश द्वारों पर लम्बी लाइनों का बनना, पंडाल के काम उनका 'केवल तीन मिनट में धन्यवाद कर सकते हैं। 20वीं शताब्दी में पृथ्वी पर अवतरित होने के लिए आदि शक्ति का धन्यवाद हम किस प्रकार केवल तीन मिनट' में कर सकते हैं? यह कहते हुए उन्होंने समापन किया कि श्रीमाताजी प्रदत्त सम्पूर्ण शक्तियों से भी 'केवल तीन मिनट' में उनका धन्यवाद अन्दर के स्थान का छोटा पड़ना तथा प्रवेश केवल बैज पहने हुए लोगों तक सीमित होना। श्रीमाताजी के पहुँचने तक पंडाल खचाख्च भर चुका कर पाना संभव न होगा। अपनी विनोदमय शैली में उन्होंने था. सैंकड़ों लाग पंडाल की बाह्य परिधि पर खड़े हुए थे और मूलतत्व को अत्यन्त गहनतापूर्वक छुआ। एक काफी बड़ी भीड़ को प्रवेश न मिल पाया था । बहुत से सुप्रसिद्ध भारतीय राजनीतिज्ञ तथा नागरिक और भिन्न दंशों से आए सहजयोगी अगुआओं को भाषण देने के एवम् भय के भाव देख रहे थे आयु. रंग. राष्ट्रीयता, जातिवाद लिए आमन्त्रित किया गया बहुत से लोग जो समारोह में न आ पाए थे उनके संक्षिप्त संदेश पढ़कर सुनाए गए। इनमें भारत के राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के भी संदेश थे जिन्होंने मानव मात्र की निस्वार्थ सेवा के लिए श्रीमाताजी को बधाई भेजी तथा कृतज्ञता व्यक्त की। क्लेस नोबल ने अपने बधाई संदेश उन्होंने कभी न देखा था। में कहा कि 'पृथ्वी के विशाल परिवार' के सभी सदस्य निराकार रूप से इस समारोह में उपस्थित हैं। अयातुल्ला रूहानी संदेश के विषय में बताते हुए कहा कि श्रीमाताजी और और उत्तरप्रदेश मन्त्रिपरिषद के एक मन्त्र के संदेश पढ़ते हुए सहजयोगी के जीवन का यह मूल तत्व है और यहाँ एकत्रित योगी महाजन ने बताया कि पृथ्वी के चारों कनों से श्रीमाताजी लोगों के स्वभाव में झलकता है। उन्होंने कहा कि वे सहजयोग के प्रति मंगलकामना करते हुए उनके जन्मदिवस पर हजारों के लिए नए थे, ये समझना उनके लिए कठिन है कि किस बधाई पत्र, तार, ई-मेल और फैक्स आए हैं। पश्चिमी देशों से आए सहजयोगी अगुआओं ने सर्वप्रथम श्रीमाताजी के प्रति अपना प्रेम व्यक्त किया। एक ने अपने हैं इससे सहजयोग के विश्वव्यापी स्वरूप का पता चलता है । भाषण में कहा कि श्रीमाताजी के सम्मुख वह इस प्रकार है समर्पण की इस गहनता को देखते हुए लगता है कि विश्व का मानो कैलाश पर्वत के सम्मुख रेत का कण हो। श्रीमाताजी ने परिवर्तन अब सभव है। ाम सहजयोगी जब भाषण दे रहे थे तो मंच के समीप बैठे हुए हम लोग राजनीतिज्ञों तथा महानुभावों के चेहरों पर आश्चर्य तथा अन्य बनावटी सीमाओं से मुक्त विश्वभर से आए सगठित लोगों के चमत्कार को देखकर ये महानुभाव गहन रूप से प्रभावित हुए संभवत: एकता तथा संघटन के उन्होंने बहुत से भाषण सुने थे परन्तु इन महान स्वप्नों को साकार होते हुए भारतीय जनता पार्टी के एक मंत्री ने प्रेम के शाश्वत प्रकार इस अवसर के लिए भारत कोे भिन्न क्षेत्रों से लोग यहाँ एकत्र हुए । पंचास से भी अधिक राष्ट्रों के लोग यहाँ उपस्थित अन्य महानुभावों ने अपनी राष्ट्रीय भाषा में न केवल भारत में परन्तु पूरे विश्व में श्रीमाताजी के महत्व की चर्चा की! मां के प्रेम एवं करुणा को सभी बक्ताओं ने सराहा, एक वक्ता . ने तो यहाँ तक कहा कि, "मैं यहाँ पर श्रीमाताजी को धन्यवाद दंने के लिए नहीं आया हूँ क्योंकि एक पुत्र कभी अपनी माँ का हमारे हृदय के अन्दर स्वर्ग का मा्ग दिखाया है। एक अन्य अगुआ ने कहा कि 'श्रीमाताजी ने हमें बन्धनों से मुक्त कर दिया है तथा स्थायी शान्ति प्रदान की है। उनके प्रति अपने प्रेम एवं कृतज्ञता को हम शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते। विनम्र हृदय से हम उन्हें प्रणाम करते हैं। जर्मनी के सहजयोग अगुआ श्री फिलिप का भाषण अत्यन्त हृदय स्पर्शी था। भारत आते हुए वायुयान में अपने है, वह तो यहाँ पर उनका अधिकाधिक प्रेम एवं आर्शीवाद लेन सामने आई हुई दुविधा को उन्होंने व्यक्त किया। समयाभाव धन्यवाद देने के विषय में नहीं सोचता, यह तो उसका अधिकार के लिए आया है। श्री राजेश शाह ने ये कहते हुए समापन किया कि सहजयोग ने वास्तव में विश्व भर के लाखों लोगों के जीवन को तथा बहुसंख्या में वक्ताओं के होने के कारण आयोजकों ने उन्हें मंच पर तीन मिनट से अधिक न बोलने के लिए कहा था। चैतन्य लहरी खंड : X अंक 13 : 11, 21998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-14.txt परिवर्तित किया है। आज हम उन परिवर्तित लोगों के प्रतिनिधियों के रूप में यहाँ श्री माताजी के प्रति सम्मान एवं कृतज्ञता प्रकट श्रीमाताजी ने कहा कि वे अकले ये सारा कार्य न कर पाती, हमारे हृदयों की विशालता के कारण हमारा प्रेम विश्व के. सभी लोगों तक पहुँचा है. उन सभी लोगां तक जिन्हांन आल्मा करने के लिए आए हैं परन्तु अभी भी दस अरब लोग बाकी हैं। सभी भाषण हृदयस्प्शी थे और हृदय से दिए गए थे। आश्चर्य तो] उस समय हुआ जब श्रीमान सी. पी. श्रीवास्तव भाषण देने के लिए खड़े हुए और अपनी पत्नी को 'श्री निर्मला माता जो' कहकर संबोंधित किया। पहली यार उन्होंने उन्हें को कभी न पहचाना था। आत्मा के प्रकाश में उन्हांने उन सभी दुंव्यसनों को त्याग दिया है जो उनमे निराशा और अकेलेपन के कारण आ गए थे। अब समय आ गया है जब सहजयाग को विश्वस्तर पर कार्यान्वित करना होगा और यह कार्य सामूहिक रूप से आत्मा की ओर प्रेरित विश्वव्यापी दृष्टिकाण विकसित माताजी' कहा था । स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा."मैं सोचता करने से होगा। उनके फचहत्तरव जन्म दिवस के अवसर पर, अब समव आ हु गया है जब, मुझे उनके प्रति पूर्णत: समर्पित हो जाना चाहिए (तालियों की गड़गड़ाहट) उन्होंने श्रीमाता जो को 'परमंेश्वरी' (Divine Lady) कहा तथा सहजयोग स्थापना के लिए उनके की कामना करती हूँ ताकि आपकी आध्यात्मिकता विश्व क निरतर कठोर परिश्रम की प्रशंसा की । उन्होंने श्रीमाताजो के लंदन के दिनों की चर्चा करते हुए कहा कि अपने महान प्रेम करें"। ओर करूणा के गुण से लोगों को मानवता के सुंदर बास्तविक पुष्यों के रूप में परिवर्तित करने की उनकी योग्यता को उन्होंने 'वंदेमातरम्' गाया गया। सभी दर्शक अपने स्थान पर खड़े हो वही पहचान लिया था । अपनी अद्वितीय शैली में आनन्द से गदगदू श्रीताओं को उन्होंने कुछ कहानियाँ सुनाई और विस्मयपूर्वक कहा कि यह 'देवदुतों' की सामूहिकता' है---स्वर्ग का यह एक हिस्सा है जिसकी अध्यक्षता परमात्मा स्वयं कर रहे हैं। उर्दू का एक शेर कहते हुए श्रीमान सी.पी. श्रीवास्तव ने तो यह अत्यन्त हृदयस्पर्शी एवं मर्मस्पर्शी क्षण था. क्योंकि वे ही श्रीमाताजी से हम सबके हृदय की बात इस प्रकार कही- " जिओ हजारों साल, साल के दिन हो पचास हजार"। समापन करते श्री माता जी ने कहा, जव, मुझ हुए आध्यात्मिक जीवन, आपकी आध्यात्मकता में मैं महान उन्नति आपक हर कोने में फैल जाए और भविष्य के सुंदर संसार की सृष्टि कार्यक्रम को समापन करने के लिए हृदय स्पर्शी गए। ऐसा प्रतीत हुआ मानो भारतमाता अपनी लम्बाई शक्ति तथा गरिमा में उन्नत हो रही हो! भयातुर कर देने वाले आयाम में खड़ी हुई श्रीमाताजी इस प्रकार श्रीताओं के साथ जब पूरी आवाज में अपने सम्मुख भारत का आध्यात्मिक गान गा रही थी भारत तथा सभी राष्ट्रों की माँ हैं। ये क्षण उपस्थित श्रोता कभी नहीं भुला पाएंगे। इस स्मरणीय शाम के महत्व के प्रति पूर्ण सम्मान अभिव्यक्त करने के लिए इसे अत्यन्त सावधानी पूर्वक तुम उन्होंने कहा कि मैं इससे भी एक कदम आगे जाते हुए योजनावद्ध किया गया था तथा अत्यन्त प्रम से कार्यान्वित किया कहगा कि आप तब तक जीवित रहे जब तक पचास अरब লलागा में से हर एक आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके सहजयोग में गया। "21 मार्च, शनिवार 'जन्मदिवस पूजा उतर न जाए और इसके पश्चात भी आप ये विश्वस्त करने के लिए जीवित रहें कि हर व्यक्ति उचित मार्ग पर चल रहा है। समापन करते हुए उन्होंने कहा कि अभी तक वे स्वयं को प्रशिक्षित योगी के रूप में मानते रहे परन्तु अब, उन्होंने शिविर आश्चर्यचकित कर देने वाले ढंग अगली सुबह से भरता शुरु हो गया। भारत के सभी भागों से सहजयोगी आ रहे थे जब हम पूजा की तैयारी कर रहे थे ता शिविर में चारों और आशा की एक लहर दौड़ रही थी। अधिकाधिक संख्या में पचहतरवें जन्म दिवस पूजा में लोगों का भाग लेना बहुत ही कहा, "आप संब मुझ एक सहजयोगी के रूप में स्वीकार कर ल"। इस महान संत की प्रशंसा-घोष करने के लिए जब हम लोग खड़े हुए तो बहुत से लोगों की आँखों से अश्रु बह निकले। बहुत-सी पुस्तकों-का विमोचन हुआ. तत्पश्चात् श्रीमाताजी प्रतीत उपयुक्त हुआ। पूजा का समय सात बजे साय का रखा गया था। पाँच बजे ही पंडाल के अंदर जाने के लिए लाइन आधा किलामीटर लम्बी हो गई। ये झलक रहा था कि सभी लोग जानते हैं, कि के प्रवचन का समय आया । यह एक जनकार्यक्रम सा था। अपने प्रवचन में उन्होंने सहजयोगियों तथा उपस्थित सर्वसामान्य लोगों को संबोधित किया, उन्होंने कहा कि विश्व की सभी सभागार में बैठने का स्थान साधकों के लिए पर्याप्त नहीं हैं। छः वजे पंडाल खचाखच भर गया था परन्तु अब भी हजारों समस्याओं का मूल कारण हमारे चित्त का बाहर होना है अत: अंतः लोग प्रवेश के लिए कतारों में खड़े हुए थे। अंदर बैठे हुए लोगों से अनुरोध किया गया कि बिल्कुल खाली स्थान न छोड़ें ताकि बाहर खड़े लोगों को अंदर लाया जा सके। भीड़ के कारण पंडाल में भयंकर गर्मी थी बड़े आकार श्वास-श्वास हमारी एकाकारिता अपनी आत्मा से होनी चाहिए। उपस्थित राजनीतिजञों उन्होंने बताया कि आध्यात्मिक जीवन के महत्व को वे नजरअंदाज को माँ के रूप में दृढ़तापूर्वक न करें। चैतन्य लहरी खंड : x अंक : । 12 1998 14 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-15.txt सीमाओं को हम पार कर लेते हैं. सभी सहजयोगियों से हमारी एकाकारिता हो जाती है। पूजा काफी छोटी थी. पारम्परिक रूप से सात महिलाओं ने श्रीमाताजी के सम्मुख साड़ी भी नहीं थामी। सदैव को तरह अन्त में बहुत देर तक फोटोग्राफ लिए गए फिर भी मंच पर पागलों की तरह से भीड़ न थी क्योंकि मंच तक पहुँचने वाली सीढ़ियों तक फूलों के गमले रखकर मच पर आने का रास्ता रोक दिया गया था। पंडाल में चारों तरफ लगे हुए गुब्बारो का बड़े जांश से फोड़कर सामूहिक रूप से अह का गुव्वारा फॉंड्ने का प्रतीकात्मक प्रयत्न किया गया पूजा समापन होने पर अंतर्राष्ट्रीय तोहफा भेंट किया गया एक बहुत बड़ा 'तैल चित्र (जिससे पूरी दीवार ढंक जाए) जिस पर शिव-पार्वती के चित्र बने हुए थे और चारों ओर शिव कथाओं का वर्णन करते हुए छोटे छाटे दृश्य चित्रित किए गए थे। यह तैल चित्र, जो कि के थैलों आदि का तो बाहर रखना पड़ा पानी की बोतलं, शाल अपनी गोदी में लेकर बुटने सीने से लगाए हुए लोग बैठे थे। हम प्रतीक्षा कर रहे थे कि कॉई चमत्कार हो और पंडाल का विस्तार हो जाए परन्तु ऐसा नहीं हुआ सात बजे पंडाल इस प्रकार भर चुका था जैसा पहले कभी नहीं देखा गया - सात हजार से अधिक लोग अदर बैठे हुए थे और तोन हजार पंडाल से बाहर टेंट में कैमरों द्वारा प्रसारित टी. वी. से पूजा में सम्मिलित हाने के लिए उपस्थित थे। श्रीमाता जी पीने आठ बजे अपने परिवार के साथ पहुंची सभी राष्ट्रों से आए हुए, रंग-बिरगी पारपरिक राष्ट्रीय बेशभृषा में अपने राष्ट्रीय ध्वज उठाए हुए योगियों ने एक जुलूस निकालकर उनका स्वागत किया, पूजा से पूर्व सभी ध्वज 'श्री माताजी' को भेंट कर दिए गए। श्री माता जी ने कहा ये सभी वि ध्वज इस संदर्श के साथ अपने देशों में वापिस ले जाए कि अब हमारे पुनर्उत्थान का समय आ गया है। अपने अस्तित्व क उच्च कई सदियां पुराना था. मूल रूप से तजोर के महल में टंगा हुआ था। वर्णक्रमानुसार (Alphabetically) वहुत से राष्ट्रों के प्रतिनिधि श्री माताजी का उपहार देन के लिए कतार में खड़े हुए थे। परम-पाविनी मां के सम्मुख इतने सहज राष्ट्र अपनी श्रद्धा भंट देने के लिए खड़े थे कि माँ तक पहुँचने के लिए उन्हें दो घंटों से भी अधिक समय लगा । स्तर तक हमें उन्नत होना चाहिए जहां हमारे जीवन की हर चीज परिवर्तित हो जाए और आत्मा के आन्तरिक जीवन के सौन्दर्य को प्रतिबिबित करे । एक वार फिर श्रीमाताजी का प्रवचन जन कार्यक्रमों सा था, इतना सर्वव्यापी कि सभी व्यवहारिक चीजों को लिया गया। उन्होंने एक बार फिर आत्मा को आर चित्त करने को कहा। जब हमारा चित्त आत्मा पर हाता उपहार भजने वाले राष्ट्रों के योगिया ने भी कुछ उपहार दिए जो श्रीमाताजी' को अच्छे लगे। उनमें बच्चों द्वारा बनाई गई चीजें बुने हुए कपड़े और सुदरता से बनाए तथा सजाए फर्नीचर थे। मलेशिया के एक लड़के न एक शानदार पेंटिंग भेट की जिस पर श्री माताजी के अवतरण, उनकी युवावस्था, सर सी.पी. के साथ उनका वैवाहिक जीवन. स्वतंत्रता संघर्ष, सहजयाग है तब हम गुणातीत स्थिति में प्रवश कर जाते हैं, ये स्थिति तीनों गुणों से पर है और तीनों गुणों से उत्पन्न इच्छाओं से ऊपर उठ कर हमारा चित्त, अभी तक हमें वशोभूत किए हुए, अहम् एवं बंधनों से ऊपर उठ जाता है । तब व्यक्ति कालातीत हो जाता है, समय से परे जहाँ भूत और भविष्य उसे बाँध नहीं सकता और वह वर्तमान क्षण के लिए जिम्मेदार हो जाता है। तत्पश्चात् व्यक्ति धर्मातीत हो जाता है अर्थात् धर्मं के बंधनों से पर किसी धर्म विशेष या कर्म कांड में फसा नहीं रहता, चेतना स्थापना के उनके कार्य तथा उनके दिव्य पक्ष चित्रित थे श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला दवीं के जन्मांत्सव समारोह के शुभअवसर का यह उपयुक्त समापन था। 22 मार्च, 1998-रविवार पूजा के पश्चात् पाँच दिनों तक जन्मदिवस समाराह = 22 मार्च से 26 मार्च तक संगीत के कार्यक्रम सभी दिन एक सा कार्यक्रम रहा, दिन भर विश्राम होता. साय को उस स्थिति में प्रवेश कर जाता है जहां सभी समाधान हो जाते हैं। धर्म कभी-कभी कर्मकाण्ड या बंधन बन जाता है। यह स्थिति अत्यन्त मृर्खतापूर्ण होती है। श्रीमाताजी ने बताया कि वही व्यक्ति सहज योगी है जो सबका और सभी स्थितियों का आनन्द लेता है। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति स्वयं को देखता है कि उसमें क्या गलती है और जानता है कि स्वयं को कब सुधारना है। सहजयोग में जब हम आत्मा चलता रहा तथा प्रात: काल के कुछ घटे संगीत चलता। कुछ लोगों ने अपने दिन खरीदारों में विताए कुछ उपस्थित सहजयोगी अपने बच्चों के साथ चिडियाघर गए तथा नगर के कुछ अन्य दर्शनीय स्थान देखे । खरीदारी के मोह से मुक्त जो लोग थे उन्होंने अपना समय शिविर में पेड़ों की ठंडी छाया के नीचे मित्रों से बातचीत में बिताया। पेड़ों के साए बताते थे कि दिन बीत गया है, समय निकल गया है और एक सप्ताह सहज-सामूहिकता के तालाब में नहाते हुए निकल गया है। | अंधेरा होने से पूर्व ही हम पंडाल में इकट्ठे हो जाते बन जाते हैं तब सभी कुछ परिवर्तित हो जाता है। हमारे जीन्स परिवर्तित हो जाते हैं, हम 'आनन्द' को समझ जाते हैं। आनन्द दे सकते हैं और अन्य लोगों की संगति का आनन्द ले सकते हैं। तब हम कहीं भी रही सकते हैं, कहीं भी सो सकते हैं क्योंकि हमारी आत्मा हमें आनन्द प्रदान करने के लिए सदैव हमारे साथ होती है। सत्य को पहचानने में बाधा डालने वाली 15 चैतन्य लहरी ॥ खंड: X अंक : ।। 12 ।998 क 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-16.txt शारीरिक सुख के लिए पर्याप्त स्थान न था परन्तु हमने इसकी के सम्मुख ही कर पाते हैं, पश्चिम के कलाकारों से इन कलाकारों की तुलना यदि की जाए तो वे स्वभाव से एक दूसरे था जहां जाने की हमें इच्छा होती। संतों से भरे हुए परमात्मा के के बिल्कुल विपरीत हैं। पश्चिमी कलाकार घमण्ड से भरे हुए श्रोताओं से ऊंचे दिखाई पडते हैं जबकि भारतीय कलाकार अत्यन्त अनिच्छा से प्रशंसा पाने के लिए आगे आते हैं हाथ बनाया जाता था. अत्यंत विशेष थी। सैंकड़ों की तादाद में फूलों जोड़कर हम सबको नमस्कार करते हैं मानो उन्हें सुनने के लिए तथा इस प्रदर्शन में भाग लेने के लिए हमें धन्यवाद दे रहे हो। इतना महान संगीत और इतनी महान नम्रता! संगीत सभा में उनके ऊपर के गोले सभी कुछ थर्मोकोल से बनते थे कभी-कभी तो हम इतने गहन ध्यान में चले जाते कि समझ पाना कठिन होता कि संगीत कहाँ समाप्त हुआ, आत्मा कहाँ आरंभ हुआ। दोनों की एकाकारिता इतनी पूर्ण थी! संभवत: कानों की अपेक्षा यही कुण्डलिनी द्वारा सुनना हो। सर सी.पी. कोई विशेष चिंता भी न की क्योंकि कोई अन्य स्थान ऐसा न दरबार में परमेश्वरी संगीत सुनते हुए शामें व्यतीत होतीं। पंडाल की साज-सज्जा तथा जिस गति से प्रतिदिन इसे की लड़ियां, गुव्बारे, चमकते सितारे, और थर्मोकोल से ये न जाने क्या क्या बना सकते हैं। सुंदर भित्ति चित्र. बार्डर स्तंभ पत छोटे-छोटे पेड तथा चट्टान बाग साज सज्जा का एक भाग थे ओर फूलदार पौधे सोढियों पर पड़े हुए चैतन्य लहरियों के कारण प्रतिदिन कई इंच बढ़ जाते थे। तीन दिन के पश्चात पौधों की ऊपर पंक्ति इतनी बड़ी हो गई कि इसको हटाना पड़ा ताकि दर्शक कलाकारों को देख सकें। न जाने इन साज-सज्जाओं कल्पना दीरदी और साधना दीदी सभी कार्यक्रम का आनन्द लेतं हुए प्रतीत हुए पूरे कार्यक्रमों में ध्यान पूर्वक उनका सुनना तथा देखना ही इस बात को स्पष्ट करता था कि भारतीय शास्त्रीय का क्या हुआ, इन्हें हटा दिया गया और एक सहजयोगिनी ने निजामुद्दीन चौक के पास एक बच्चे को थर्मोकोल का एक संगीत एवं नृत्य का वे कितना सम्मान करते हैं। सर सी.पी. और श्री माताजी को एक साथ बैंठे हुए देखना, कभी कभी एक दूसरे की ओर झुककर संगीत सराहना करना, मुस्कराना या देखा। तबला ले जाते हुए हमने स्वप्न में भी कभी न सोचा था कि अपने क्षेत्र में इतने श्रेष्ठ एवं आश्चर्यचकित कर देने वाले कलाकार भी होंगे। हर रात्रि कम से कम पांच कार्यक्रम हाते थे जो या तो शास्त्रीय, साथ साथ चरन खाना बहुत ही मनमोहक लगा। कई अवसरों पर संगीत की लय के साथ सहजयोगी नृत्य एवं संगीत होते या नागपुर एकडेमी तथा पश्चिमी सहजयोगियों के कार्यक्रम होते। एसा लगता था मानो अत्यंत सुंदर दस्तरखान पर भांति-भांति के पोषक एवं स्वादिष्ट भोजन सजा दिए गए हमारी तालियों की आवाज को कम करने के लिए कहा करते होँ जिनमें से थोड़ा-सा खाकर व्यक्ति संतुष्ट हो जाता हो। कभी थे हर रात्रि के कार्यक्रम के लिए वे समारोह संचालक कभी हमें अधिक आत्मसात करने की इच्छा होती क्योंकि हमें (Master of the ceremony) और उनसे अधिक गरिमा लगता कि हमारा सीमित चित्त इस पोषक भोजन को प्रातः के एवं सूझ से बूझ कार्य करने वाला संभवत: और कोई न होंगा। दो तीन बजे तक लेकर ही तृप्त हो जाता है। हर रात्रि का कार्यक्रम छ: बजे सांय आरम्भ होता और प्रेम उमड़ता। नागपुर संगीत एकडेमी के लिए उनके विज्ञापनों स्वत: ही ताली बजाने लगते। ऐसा लगता है हम उन दिनां से बहुत आगे आ गए हैं जब बाबा मामा तबले की थाप के साथ सहजयोग में संगीत प्रसार करने वाले इस मामा के प्रति अत्यंत का स्वा-त किया जाता। कार्यक्रम में हर रात्रि लोग कहते कि सुबह के तीन चार या पाँच बजे तक रहता। इतना लम्बा समय वैठने के कारण हड्डियां चरमरा उठती और खड़े होकर यदि हम भी एकेडेमी में शिक्षा प्राप्त कर पाते तो कितना अच्छा कलाकारों को तालियों से सम्मान करने के जो अवसर आते होता! वे सभी लोग भी इस बात को कहते जो इससे पूर्व भारतीय संगीत व नृत्य से कभी न जुड़े हुए थे उन्होंने प्रयत्न करते, बैठे हुए जब भी मौका मिलता अपनी टांगों को श्रीमाताजी की इच्छा बताई कि एकेडेमी में कम से कम सौ छात्र होने चाहिएं और कहा कि संभवत: जन्मदिवस संगीत समारोह के पश्चात पांच हजार विद्यार्थी एकडेमी में प्रवेश पाने वेठ उनमें हम आवश्यकता से अधिक समय तक खड़े रहने का फैलाने की प्रयास करते, जब तक बाबा मामा जोर देकर बैठने के लिए नहीं कहते हम खड़े रहते। स्पष्ट देखा जा सकता था कि कलाकार प्रायः जिस के लिए प्रतीक्षा पक्ति में होंगे। एक सभा में बाबा मामा न कहा क उन्होंने एक बार श्री माताजी से समय को रोक देने की प्रार्थना की थी, तब श्री माताजी ने उत्तर दिया था कि यदि मैं समय को रोक दूंगी तो और प्रकार आध्यात्मिक हस्तियों का स्वागत करते हैं उनसे कहीं अधिक गहन सम्मान उनका श्री माताजी के प्रति था। उनमें से कुछ ने अपना प्रदर्शन शुरु करने से पूर्व कुछ शब्द कहे। उन्हें देवी की प्रशंसा करते हुए, अपनी श्रेष्ठ प्रस्तुतिकरण के लिए बो क्षण भी समाप्त हो जाएंगे जिनमें आप आनन्द लेत हैं देवी का धन्यवाद करते हुए सुनना अत्यन्त आनन्ददायी था। वे कहते कि एसा श्रेष्ठ प्रदर्शन वे केवल श्रीमाताजी एवं सहजयोगियों आपका भाग्य परिवर्तन करने के लिए कोई अवसर न रह जाएगा। स्वयं को सुधारने के लिए व अपना भाग्य परिवतन चैतन्य लहरों = खंड : X अंक 16 : T, 12 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-17.txt फ्रांस में रहने वाला एक रोमानियन सहजयोगी था जो आजकल एकेडमी में विद्यार्थी है। रोमानियन कव्वाली समूह को आरंभ करने वाला यही व्यक्ति था। इनकी प्रस्तुति अत्यंत प्रभावशाली करने के लिए हमें समय की आवश्यकता होती पहली संगीत संध्या का आरम्भ उत्तर प्रदेश से आए पं. जगन्नाथ मिश्र एवं साथियों के शहनाई वादन से हुआ। पं. जगन्नाथ मिश्र सुप्रसिद्ध शहनाई वादक श्री बिस्मिल्लाह खान के शिष्य श्री अनन्तलाल के शिष्य हैं। यह राग मधुवंती थी और इस बात का प्रमाण थी कि संगीत एकेडेमी भारतीय और शास्त्रीय संगीत की परंपराओं को किस प्रकार सुरक्षित रख रही है तथा इनका प्रसार कर रही है। उस संध्या को खड़े होकर सराहना प्राप्त करने वालों में से यह समूह सर्वप्रथम था। अगली प्रस्तुति सरोद पर 'दानिश्क खान' की थी. जिनकी संगति तबले पर मंत्र मुग्ध कर देने वाले शफात अहमद राग मारू विहाग का श्रेष्ठ प्रदर्शन था। दोनों ही राग अत्यन्त ध्यान प्रदायक एवं हृदय स्पर्शी है और श्रोताओं ने इनका बहुत आनन्द लिया। तत्पश्चात् उन्होंने एक भजन गाया और ऐसा प्रतीत हुआ कि श्रोताओं की गर्मजोशी से वे अवगत थे। तत्पश्चात् अ्जीत कड़कड़े का गायन हुआ, जिन्होंने एक बार फिर 'धनकनी काल्या' गाकर शास्त्रीय संगीत पर अपनी तार झंकृत कर दिए और हम सबने खड़े होकर करतल ध्वनियों पकड़ का प्रदर्शन दिया इसके पश्चात् उन्होंने भजन गाए। से इनका सम्मान किया। तत्पश्चात् शफात अहमद खा की सभी उपस्थित लोगों ने भारतीय शास्त्रीय परंपरा के प्रति उनकी एकल चमत्कृत कर देने वाली तबला प्रस्तुति हुई। संवेदनशीलता को महसूस किया। श्रीमती वनजा वैद्या ने कुचिपुडी नृत्य प्रस्तुत किया, श्री कृष्ण हुए अपने नृत्य की गरिमा तथा माधुर्य से उन्होंने हमारे हृदय जीत लिए तत्पश्चात् 'हे गिरी नन्दिनी' की धुन पर देवी नृत्य हुआ। देवी के संहारिणी रूपों की अभिव्यक्ति अत्यंत सुन्दर ढंग से हुई । नृत्य. ताल शरीर तथा मुद्राओं के एकीकरण द्वारा विश्व को संभालने किया और अंत में 'हासत आली' भजन गाया। वाली तथा दृष्टि मात्र से प्रलय लाने वाली देवी की मूर्ति की हुई। श्रीमाताजी ने प्रस्तुति की बहुत सराहना की और बाद पेश की । श्रीमाताजी ने बाबा मामा के साथ वर्ष 1960 में इस खां ने की। इन्होंने राग रागेश्वरी बजाया। इन्होंने हमारे हृदय के इसके पश्चात् 'सतीश व्यास' ने मंच संभाला तथा संतूर बजाया। वाद्य यंत्र की जटिलताओं तथा सूक्ष्मताओं के कारण यशोदा लीला को दर्शाते इसके स्वर मिलाने में कुछ समय लगा, परन्तु इस समय की सदुषयोग ही हुआ क्योंकि बाद में कौसी कान्हड़ा की प्रस्तुति के द्वारा उन्होंने श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया। इसके पश्चात श्रीमती मीना पटारपेकर ने मारू विहाग में शास्त्रीय गायन प्रस्तुत रक्षा कारिणी तथा संध्या की अन्तिम प्रस्तुति श्रीमती जरीन दारूवाला ने सृष्टि में कहा कि पहली वार उन्होंने 'हे गिरी नंदिनी' की ताल पर बालकलाकार को पहली बार सुना था। तबसे वे अपने संगीत त नृत्य प्रस्तुति देखी है। संगीत संध्या का समापन पश्चिमी शास्त्रीय वाद्य-वृंद सूक्ष्म एवं संवेदनशील प्रस्तुति से उन्होंने प्रातः बेला का स्वागत प्रस्तुतियों से हुआ, उनकी पहली प्रस्तुति विवाल्डी के चार ऋतुओं में से बसन्त तत्व की थी। तत्पश्चात् स्मार्तिनी मोज़ात और शेकोर्बोत्सके के कुछ भाग प्रस्तुत किए गए। श्री माताजी के कारण बहुत से पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं। राग 'जोग' की किया सभी दर्शकों ने खड़े होकर उनका भी सम्मान किया। मंगलवार, 24 मार्च पूर्व संध्या को देर तक कार्यक्रम चलता रहा था फिर भी बहुत प्रसन्न थी कि इस प्रकार भारतीय सहजयोगियों को भी इन पश्चिमी महान संगीतज्ञों के संगीत का आनन्द लेने का अवसर दिया गया। संगीत संध्या का समापन 'विनती सुनिए' की प्रस्तुति से सामान्य रूप से शिविर में लोग जार्ग-प्रात: का ध्यान, स्नान और नाश्ते के लिए, जो लोग रात का खाना न खा पाए थे, लंबी कतारें। शाम का कार्यक्रम छः बजे आरंभ हुआ पहले दो घंटे निर्मल संगीत सरिता में संगीत प्रस्तुत किया श्री निकोलस वफ जिसे श्रोताओं ने पूरी आवाज के साथ गाया तथा हुआ स्मरणीय संध्या को हृदय स्पर्शी बना दिया। '23 मार्च सोमवार' निर्मल संगीत सरिता के दो घंटे के संगीत से शाम को साढे पाँच बजे कार्यक्रम का आरम्भ हुआ। गैबी' (गोविन्द ( Mr. Necholas Buffi) पहले कलाकार थे जिन्होंने संदेश। पोपटकर के तबले के साथ सेक्सोफोन पर प्रस्तुति पेश की उन्होंने कई वर्षों तक एकेडेमी में प्राप्त शिक्षा द्वारा भारतीय शास्त्रीय संगीत की अपनी संवेदनशीलता, गहन सूझबूझ तथा जसरे) पहले कलाकार थे। उन्होंने राग जोग गाया। तत्पश्चात निपुणता का प्रदर्शन किया। धनंजय धुमाल ने सिंथसाइजर पर राग 'जहा सम्मोहिनी' बजाया और फिर 'ब्रह्म शोधिले' उनके बाद श्रीमती वासु ने गायन प्रस्तुत किया। निर्मल संगीत सरिता तथा एकेडेमी के विद्यार्थियों ने तब मंच को संभाला और 'तू दुनिया में आया' नामक कव्वाली द्वारा हमारा हृदय जीत लिया। इस संगीत समूह में इसके पश्चात स्विस भजन मंडली ने मंच संभाला तथा सितार, तबला, हारमोनियम, बाँसुरी का प्रदर्शन किया। उन्होंने राग यमन अत्यंत हृदयस्पर्शी रूप से बजाया और इसके 'जय दुर्गे दुर्गति परिहारिणी' और 'धरू तुम्हारो ध्यान' नामक भजन प्रस्तुत किए। चैतन्य लहरी खंड : X अक : ।।, 12 1998 17 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-18.txt तब दिल्ली सहज़योगियों ने कालेज के विद्यार्थियों को सहजयोग से परिचित कराते हुए एक नाटक का मंचन किया। कलयुगी सभ्यता से सहजयोग तक उन्हें लाने का प्रयत्न किया गया। तत्पश्चात् श्रीमती शाश्वती सेन ने सुन्दर तथा सूक्ष्म कत्थक नृत्य की प्रस्तुति की नृत्य को प्रकृति संगीत-पेड़ों से वायु के बहने, समुद्र में लहरों के उठने और आकाश में बादलों के घिरने नहीं है। इसके पश्चात् अकादमी के पाँच विद्यार्थियों ने महामन्त्रं पर कत्थक नृत्य किया तथा श्री शिव की महिमा गाते हुए एक नृत्य किया। तब अनिल गुरू जी, सन्देश और अशोक ने 'माँ तेरे निर्मल प्रेम को' और 'सहज ही ऐसी शक्ति' गाया। तबले पर सन्देश पोपटकर की संगति पर तब अविनिन्दा शिवालकर ने सितार पर राग यमन प्रस्तुत किया उनके बाद श्री मे का प्रतिबिम्ब बताते हुए उन्होंने नृत्य के भिन्न तूर साहब मंच पर आए। पुलिस के उपायुक्त के रूप में उनका परिचय कराया गया। जब भी उन्हें समय मिलता वे भक्ति संगीत लिखते। अपने साथियों तथा वाद्य यन्त्रों के साथ वे मच कदमों के महत्व का वर्णन किया। श्रीमाताजी के अनुरोध पर अमेरिका के योगियों द्वारा बनाई गई श्रीमाताजी के जीवन पर एक डॉक्युमेंटरी फिल्म दिखाई गई। इसमें श्रीमाताजी के बचपन तथा युवावस्था के चित्र हैं तथा सहजयोग स्थापना में उनके जीवन की झलकियाँ हैं । श्रीमाताजी ने कहा कि विश्व के सभी सहजयोग केन्द्रों को इस वीडियो फिल्म की प्रतिलिपि अवश्य रखनी चाहिए। पर आए। उनकी मंडली का संगीत पूर्व और पश्चिम का अच्छा सम्मिश्रण था उनकी प्रस्तुति के पश्चात् श्रीमाताजी ने सुन्दर प्रवचन दिया। उन्होंने कहा कि कितनी अच्छी बात है कि बदमाशों और अपराधियों के बीच रहने वाला व्यक्ति इतना आध्यात्मिक है और सहजयोग से इस प्रकार जुड़ा हुआ है। चमत्कार की बात यह है कि सहजयोग जेलों में भी सिखाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हालात के बावजूद भी इस व्यक्ति में संगीत के प्रति इतना प्रेम यह दर्शाता है कि विश्व अत्यन्त इसके पश्चात रोनू मजूमदार ने तबला वादक अभिजीत की संगति में बाँसुरी पर राग आभोगी बजाया। यह राग व्यक्ति को माया (भोग) से ऊपर ले जाता हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि बाँसुरी व्यक्ति को ध्यानगम्य कर देती है। इसका प्रमाण उन्होंने सुष्मना मार्ग से कुण्डलिनी के उत्थान पथ की ओर अग्रसर होते हुए दिखाकर दिया। शाम की अंतिम प्रस्तुति पं. भजन सपोरी की थी जिन्होंने संतुर पर राग कोंसी कान्हेड़ा बजाया। ये प्रस्तुति सतीश व्यास की प्रस्तुति से बिल्कुल भिन्न थी, यह अधिक सुन्दर रूप से परिवर्तित हो रहा है। वायोलिन विशारद डॉ. एन. राजम ने तत्पश्चात् राग जय जयवन्ती और श्रीराम का एक भजन वायालिन पर प्रस्तुत किया। तबले पर उनकी संगति अभिजित बैनर्जी ने की। अपनी मधुर धुनों के सौन्दर्य एवं गहनता से बहुत बार हमें मन्त्र मुग्ध कर चुकी श्रीमती डॉ. राजम हम सबसे सुपरिचित हैं। उनके ना जीवन्त थी तथा वादक की यंत्र पर पूर्ण नैपुण्य का प्रदर्शन कर रही थी। संगीत सृष्टा के सम्मुख प्रस्तुत की गई एक अन्य संध्या पश्चात् अरूण आप्टे ने राग श्याम कल्याण और राग दुर्गा गाए और दो भजन भी सुनाए। का इस प्रकार समापन हुआ। मोहन वीणा। (गिटार) पर विश्वमोहन भट्ट की मन्त्र शाम की सभा का आरम्भ 6.30 बजे हुआ। पहले दो मुग्ध कर देने वाली प्रस्तुति के साथ संगीत सरिता का समापन घण्टे निर्मल संगीत सरिता ने संगीत प्रस्तुत किया। स्टीव डे. हुआ तबले पर उनकी संगति संगीत दास ने की। Meeting by the River, जिसकी रिकार्डिंग Rycooder ने की की प्रस्तुति के कारण विश्व मोहन भट्ट अरकेले भारतीय संगीतज्ञ हैं जिन्हें ग्रामी पुरस्कार (Grammy Award) से सम्मानित किया गया है। उन्होंने राग हेमन्त को अद्वितीय चमत्कारी ढंग से बजाया और भाग्यशाली उपस्थित दर्शको ने 25 मार्च, बुधवार पहले कलाकार थे। उन्होंने पाश्चात्य भजन गाए। ये भजन उन्होंने नागपुर अकादमी के समीप आकाश, बहती हुई नदी और पृथ्वी माँ से प्रेरित होकर लिखे थे तत्पश्चात् निर्मल संगीत सरिता और अकादमी के विद्यार्थियों ने हृदय स्पर्शी कव्वाली वो प्यार देने को मजबूर तू प्यार पाने से मजबूर प्रस्तुत की। जिसका अभिप्राय था : श्रीमाताजी. अपना परमेश्वरी प्रेम बाँटने के लिए विवश हैं, यदि वे चाहें तो भी प्रेम के इस बहाव को वो रोक नहीं पाती। इस प्रेम के माध्यम से वे अपनी शक्ति का प्रसार हममें उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। श्रीमाताजी ने बाद में कहा कि उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत विशारद की प्रस्तुति का आनन्द लिया है । इस संगीत विशारद ने ये सिद्ध किया है कि पाश्चात्य संगीत में गिटार की झंकार में मधुर ध्वनि का एक छोटा-सा यन्त्र मिलाकर किस करती हैं, जबकि इस प्रेम को स्वीकार करने की योग्यता हममें प्रकार हृदय स्पर्शी संगीत बजाया जा सकता है। frs सथु ॐ ॐ ॐ लि चैतन्य लहरी ॥ खंड : x अंक : 11 12 1998 18 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-19.txt वास उत्सव की अंतिम संगीत संध्या 26 मार्च बृहस्पतिवार 26 मार्च की संध्या के अतिरिक्त श्रीमाताजी जी सभी दसरे से अलग कर दिया और परिणामतः झगड़े खड़े हो गए। कार्यक्रमों में साक्षात् पधारीं। 26 मार्च की सध्या को उनके स्थान पर सर सी.पी. पधारे । आरम्भ में ही उन्होंने कहा,"मुझे विश्वास है कि मुझे यहाँ अरकेले देखकर आपको निराशा हुई होगी, परन्तु इतनी रातों को दर से बैठने के कारण आपकी कव्वाली में विश्व के भिन्न भागों से आए हुए हिन्दू, मुसलमान श्रीमाताजी जी को मैंने आज आराम करने के लिए अनुरोध किया है" उन्होंने कहा कि मुझे आशा है कि आप सब लोगों की भी यही इच्छा होगी। (तालियों से उनका स्वागत किया कि अब वे मस्जिद में जाकर प्रार्थना कर सकते हैं क्यों नहीं? गया)। सदैव की तरह उनका एक एक शब्द गरिमा एवम् गौरव से परिपूर्ण था। उन्होंने कहा, "परन्तु एक क्षण के लिए भी ये कुछ संभव है | न सोचे कि वे यहाँ उपस्थित नहीं हैं क्योंकि वे हम सबके सर सी.पी ने कहा कि. "सभी धर्मों को एक करने के लिए एक अन्य अवतरण की आवश्यकता थी और हमारी परम पावनी माँ ही यह अवतरण हैं" उन्होंने कहा इस सध्या हमने तथा ईसाइयों के विषय में सुना जो उनके ( श्रीमाताजी) के गए हैं। ये स्वप्न साकार हो रहा है। उन्होंने कहा सम्मुख एक हो या किसी चर्च या यहूदी उपासना ग्रह में, क्यों नहीं? अब सभी सर सी.पी. ने अभिनंदन समारोह तथा सहजयाग क प्रारंभिक दिनों का उल्लेख किया जब श्रीमाताजी ने एक अनाथ लड़के की सहायता की थी। उन्होंने कहा कि 'श्रीमाताजी' ने उससे उसका धर्म, जाति या पृष्ठ भूमि नहीं पूछी थी। अपनी प्रेम और करूणा में उन्होंने केवल एक बात देखी कि उसे सहायता की आवश्यकता थी। उन्होंने लोगों को परिवर्तित करने वाला यह सर्वव्यापी प्रेम देखा है। आरम्भ में बहुत से लोग श्री माताजी के पास आते थे उनमें से कुछ अत्यंत सुंदर युवा लोग े ा हृदय में रहती हैं। पाश्चात्य भजन मंडली के पाँच भजनों से संगीत संध्या का आरम्भ हुआ। दीपक वर्मा, सिम्पल, संजय तलवार और डॉ. राजेश ने भजन गाए। इसके पश्चात्, अब दिल्ली में रह रही रोमानिया की अन्नपूर्णा ने वायोलिन पर संगीत प्रस्तुत किया। यह संध्या कव्वालियों को समर्पित थी। कई मण्डलियों ने कव्वालियां प्रस्तुत की। सर्वप्रथम 'मैया तेरे चरणों की' गाया गया। तत्पश्चात् प्रतीक चौधरी ने सितार पर राग शुद्ध-बसन्त होते थे जो आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात वहाँ आते। बजाया। तब लोगों के समूह आने लगे और इस प्रकार आत्मसाक्षात्कारी लोग बढ़ते गए और अब अनगिनत लोग उनके बच्चे बन गए हैं। हम सबको देखना चाहिए कि सहजयोग किस प्रकार बढ़ा और घर वापिस जाते हुए सभी के लिए यह संदेश लंकर जाना चाहिए कि आज हम दस लाख सहजयोगी हैं परन्तु अब समय आ गया है जब सहजयोग को पूरा विश्व अपने अंदर समेट लेना है ताकि जब हम श्रीमाताजी का 80वां जन्मदिवस मनाए तो दस करोड़ सहजयोगी हो और जब उनका 100वां जन्मदिवस मनाएं तो पचास अरब सहजयोगी हों। इस समारोह के आयोजकों तथा समारोह समिति के कार्यभारियों का धन्यवाद करने के लिए श्री नलगिरकर को दूसरा कव्वाली, ग्रुप, जिसने मंच संभाला वह लखनऊ से था वे शिया मुस्लिम और सूफी थे। उन्होंने श्रीमाताजी और श्री गणेश की प्रशंसा में गीत गाए। तीसरी मंडली निजामुद्दीन के कव्वाल की थी। जिनका चमत्कारिक मुख्य गायक, अभिनेता और कवि है। श्रीमाताजी की महिमा गाते हुए उसने बहुत ही हृदय स्पर्शी कव्वाली प्रस्तुत की। दिदेशियों के लिए यद्यपि भाषा विदेशी थी फिर भी इससे बहने वाला आनन्द विश्वव्यापी था। शब्दों के अर्थ हमारी भारतीय भाई बहनों के चेहरों पर उभरे भावों से समझे जा सकतें थे कव्वाली के शब्दों की सराहना में वे बार बार खड़े होकर नाचने लगते । तब सर सी.पी. पचहत्तरवें जन्म समारोह का समापन भाषण देने के लिए खड़े हुए श्रीमान सी. पी. श्रीवास्तव , गरिमा, विवेक एवं ज्योतित प्रज्ञा ( बुद्धि) के प्रति-रूपक हैं। उन्होंने ऐसे शब्द छांटे जो समारोह सप्ताह के समापन तथा सम्मान के बुलाया गया। उन्होंने बताया कि इसे अवसर पर सात दिन का उत्सव मनाने के लिए किस प्रकार उन्हें श्रीमाताजी को राजी करना पड़ा। पहले तो उन्होंने आनाकानी की परन्तु कुछ समय लिए उपयुक्त थे। उन्होंने कहा कि, "पच्चतरह वर्ष पूर्व विश्वज्योति के हैं कि उनके 80वें जन्मदिवस समारोह के अवसर पर चौदह अवतरण के स्मरणीय अवसर का समारोह मनाने के लिए हम सब यहां एकत्रित हुए हैं। भूतकाल में भी बहुत से अवतरण तथा महान लोग हुए जिन्होंने अपने जीवन के उदाहरण से महान धर्म आरम्भ किए और मानव को उत्थान पथ दिखाने का प्रयत्न किया। परन्तु ये धर्म पथभ्रष्ट हो गए, लोगों को एक पश्चात् इसके लिए आज्ञा प्रदान कर दी। अब हम आशा करते दिवसीय समारोह की आज्ञा हमें प्रदान कर दी जाएगी। 27 मार्च, शुक्रवार अनुलेख श्रीमाताजी के जन्मदिवस समारोह की समाप्ति के पश्चात् शिविर किसी अंतर्राष्ट्रीय विमानपत्तन के प्रस्थान कक्ष सा 19 चतन्य लहरी ॥ खंड : X अंक : 1, 12 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-20.txt गोद में स्थित घुमावदार वादियों से घिरे स्कूल में अपने बच्चों को अध्यापकों की सुरक्षा के सुपुर्द कर दिया गया। बच्चां के दिखाई पड़ने लगा; जिसमें विदेशी योगियों के विशाल समूह घर वापिसी के लिए विमान पकड़ने की तैयारी में लगे हुए थे। शिविर में एक दिन के स्थान पर कई दिनों का मिल रहने के स्थान पर भारत माँ की कुण्डलिनी, जहाँ कभी शिव जाना, लोगों से शांति से बातचीत करना बहुत अच्छा लगा। दौड़ते हुए किसी से ये न कहना पड़ा कि " आपसे मिलकर स्वयंभू मंगलमय वातावरण की सृष्टि कर रहे हैं, सहस्रार का अच्छा लगा". वातावरण अत्यन्त शान्त था और अलविदा भी कष्टदायी न होकर आनन्ददायी थी। बादल विहीन आकाश से अमृत वर्षा की कुछ बूंदों का पड़ूना तथा तत्पश्चात् शिविर पर पूर्ण इन्द्रधनुष का बनना हम भुला नहीं सकते। समारोह को सफल बनाने के लिए हमारे भारतीय भाई बहनों ने जो अथक प्रयत्न किया वह उनके महान प्रेम और विनम्रता की प्रमाण था। लिम्का बेचने से लेकर टैक्सियों का प्रबन्ध करना, पंडाल में 'विदेशी सहजयोगियों के लिए अग्रिम पॅक्तियों निभाते और पार्वती ने नृत्य किया था और जहाँ शिव और देवी के मिलती है। मंगलमय वातावरण व्यक्ति को परमात्मा से एकाकारिता देता है। इस भव्य वातावरण में बच्चों को छोड़कर हम कृतज्ञता तथा आनन्द भाव लिए श्रीमाताजी के चरण कमलों में मिलने की कामना करते हुए स्वदेश लौटे। अभिनन्दन समारोह में एक सुफी सन्त की पक्ति पढ़ी गई थी जो इस प्रकार हैं : 'स्वर्ग तो माँ के चरणों में ही है।" पुनः विक्टोरिया जायलट, फ्रांस क्रिस क्रियाकाओ, आस्ट्रेलिया संभवत: ये सारी जिम्मेदारियां में स्थान बनवाना अन्तर्राष्ट्रीय सहजस्कूल धर्मशाला समाचार े हुए उन्हें आनन्द लेने का कोई समय मिल पाता हो! हम सबको श्रीमाताजी के साक्षात् में निरन्तर छः दिन बिताने का आश्शीवाद प्राप्त हुआ। पुरानी भारतीय यात्राओं के दौरान भी कभी श्रीमाताजी ने साक्षात् में लगातार इतना समय नहीं प्रदान किया। यह अद्वितीय अवसर था जिसकी कामना हम सदैव करते रहेंगे और जिसके लिए विनम्र भाव से श्रीमाताजी को धन्यवाद देंगे। सप्ताह भर के समारोह के संदेश अपने हृदय में लिए हम लौट रहे हैं। आज ही 300 माता-पिता, बच्चे और कार्यकारी नए वर्ष के लिए तालनू स्कूल जाने के लिए तैयार हैं। श्रीमाताजी ने उन्हें रेल से जाने की राय दी है ताकि बसों को असुविधा से बचा 28 अक्तूबर, 1998 हिमाचल प्रदेश के परिवहन एवं कल्याण मंत्री श्रीकृष्ण कपूर ने अन्तर्राष्ट्रीय सहज स्कूल धर्मशाला को श्रेष्ठ कार्य के लिए पुरस्कार भेंट किया। उन्होंने कहा, "हिमालय पर्वत भारत का ताज है और सहज स्कूल इस मुकुट में जड़ा हुआ बहुमूल्य रत्न है। जिन माता-पिताओं ने अपने बच्चों को सच्ची शिक्षा प्राप्त करने जा सके। 27 मार्च को 150 से भी अधिक बच्चे, माता-पिता तथा कार्यकारी, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन कोे प्लेटफार्म न. एक पर पठानकोट जाने के लिए एकत्र हुए, जहां से वे सौ किलोमीटर आगे धर्मशाला जाएंगे। पठानकोट से आगे की यात्रा बस से होगी। भारत में कोई भी तौर्थयात्रा जब तक पूर्ण न होगी जब कि भाइयों और बहनों के साथ बस में लम्बी यात्रा न की जाए। के लिए यहाँ पर भेजा है मैं उन्हें प्रणाम करता हैँ। यह स्कूल मुझे तक्षशिला तथा नालन्दा जैसे महान विश्वविद्यालयों की याद कराता है। विश्वभर में जो संदेश यह विद्यालय भेज रहा है वह भारत की जगत गुरु भारत' बना देगा। श्रीमाना जी का संदेश विश्व भर में प्रसारित करने के लिए ये बच्चे अगुआ होंगे। इस महान कार्य को करने के लिए श्रीमाताजी निर्मला देवी का मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ।' बस में तालनू, स्कूल जाने वाले शेष माता पिताओं के भाग्य में यह यात्रा थी। यात्रा में भारतीय बस भ्रमण की सभी खुबियां थी तेरह घटे की रात भर की यात्रा, सामान लादना, हिमालय की पहाड़ियों की घुमावदार सड़कें, भयानक गति से चालकों का बसों को चलाना, सड़कों के कोनों पर किसी भी तरह के भारतीय बच्चों के लिए सहज बोर्डिंग स्कूल 23 मार्च 1999 से पूर्व माता-पिता अपने बच्चों के नाम स्कूल में प्रवेश के लिए पंजीकृत करा दें। अन्यथा उनके बच्चों को प्रवेश दे पाना संभव न होगा। मुरक्षात्मक अवरोधकों का न होना। योगी महाजन 28 मार्च, शनिवार धर्मशाला अधिकतर माता-पिता और बच्चे प्रात: काल ही धर्मशाला पता- सहज स्कूल गाँव मामून 145001 पहुँच गए जहाँ उनका स्वागत नीले आकाश और बारिश ने किया। बच्चों को स्कूल गया। हिमालय की धौलादार पर्वत श्रृंखलाओं में परमात्मा की पठानकोट पंजाब से कुछ सौ मीटर दूरी पर उतार दिया पाम फोन - 0186 -20128 चैतन्य लहरी खंड : x अंक : ।, 12 1998 20 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-21.txt श्री कुण्डलिनी शक्ति व श्री येशु ख्रिस्त (निर्मला योग से उद्धृत) हिन्दूजा ऑडिटोरियम मुम्बई 27 सितम्बर, 1979 श्री कुण्डलिनी शक्ति और श्री येशु रिव्रस्त" बहुत ही मनोरंजक तथा आकर्षक विषय है। आम लोगों के लिए ये पूर्णत: नवीन विषय है, क्योंकि आज से पहले किसी ने श्री येशु रिब्रस्त और कुण्डलिनी शक्ति को परस्पर जोड़ने का प्रयास नहीं किया। विराट के धर्मरूपी वृक्ष पर अनेक देशों और अनेक भाषाओं में अनेक प्रकार के साधु संत रूपी पुष्प खिले। उन का अवतरण होगा तब उनमें से चारों ओर आग की ज्वालाएं फैलेंगी इसलिए वह उन्हें देख नहीं सकेंगे। वस्तुतः इसका सही मतलब ये है कि मेरा दर्शन आपको सहस्रार में होगा बाइबल में अनेक जगह इसी तरह श्री कुण्डलिनी शक्ति व सहस्रार का उल्लेख है किन्तु यह सब विल्कुल संक्षिप्त रूप श्री येशु रिव्रस्त जी ने कहा है कि. 'जो मेरे विरोध में नहीं हैं वे मेरे साथ हैं।' इसका मतलब है कि जो लोग मेरे विरोध में नहीं हैं वे मेरे साथ हैं। परन्तु ईसाईयों को इसका ज्ञान नहीं है । श्री येशु रिव्रस्त में दो महान शक्तियों का संयोग है। एक श्री गणेश की शक्ति जो येशु रिव्रस्त की मूल शक्ति मानी गई है, और दूसरी शक्ति श्री कार्तिकेय को। इस कारण श्री येशु रिव्रस्त का स्वरूप सम्पूर्ण ब्रह्म तत्व, ॐकार रूप है। श्री येशु रिव्रस्त के पिता साक्षात श्रीकृष्ण थे। इसलिए उन्होंने उन्हें जन्म से पूर्व ही अनेक वरदान दिये हुए थे। उसमें से एक वरदान हैं कि आप हमेशा मेरे स्थान से ऊपर स्थित होंगे इसका ाना में है। पुष्पों (विभूतियां) का परस्पर सम्बन्ध था। यह केवल उसी विराट-वृक्ष को मालूम वहाँ-वहाँ उन्होंने धर्म की मधुर सुगंध को फैलाया परन्तु इनके निकट (सम्पर्क) वाले लोग सुगन्ध की महत्ता नहीं समझ सके। फिर किसी सन्त का सम्बन्ध आदि-शक्ति से हो सकता है यह े है। जहाँ-जहाँ ये पुष्प (साधु संत) गए बात सर्वसाधारण की समझ से परे है। मैं जिस स्थिति पर से आपको ये कह रही हूँ उस स्थिति को अगर आप प्राप्त कर सकें तभी आप ऊपर कही गयी बात समझ सकते हैं या उसकी अनुभूति पा सकते हैहै क्योंकि मैं जो आपसे कह रही हूँ वह सत्य है कि नहीं इसे जानने का तंत्र इस समय आपके पास नहीं है; या सत्य क्या है यह जानने की सिद्धता आपके पास इस समय नहीं है। जब तक आपको अपने स्पष्टीकरण ये है कि श्रीकृष्ण का स्थान हमारी गर्दन पर जो विशुद्धी चक्र है., उस पर है, और श्री रिव्रस्त का स्थान आज्ञा चक्र में है जो अपने सर के पिछले भाग में जहाँ दोनों आँखों की ज्योति ले जाने वाली नसें परस्पर छेदती हैं वहा स्थित हैं । स्वयं का अर्थ नहीं मालूम तब तक आपका शरीर-यन्त्र उपरोक्त बात को समझने के लिए असमर्थ है। परन्तु जिस दूसरा वरदान श्रीकृष्ण ने ये दिया था कि आप सारे इस बात को अनुभव कर सकते हैं। इसका अर्थ है आपको विश्व के आधार होंगे। तीसरा वरदान है कि, पूजा में मुझे जो सहजयोग में आकर 'पार होना' आवश्यक है। 'पार' होने के भेंट प्राप्त होगा उसका 16वां हिस्सा सर्वप्रथम आपको दिया समय आपका यन्त्र सत्य के साथ जुड़ जाता है उस समय आप बाद आप के हाथ से चैतन्य लहरियां बहने लगती हैं। जो चीज सत्य है उसके लिए आपके हाथ में ठंडी-ठंडी चैतन्य की तरंगे (लहरियां) आएंगी और यदि असत्य होगी तो गरम लहरें आएंगी। इसी तरह कोई भी चीज सत्य है कि नहीं इसे आप जाएगा। इस तरह अनेक वरदान देने के बाद श्रीकृष्ण ने उन्हें अवतार लेने की अनुमति दी। आपने अगर मार्कण्डेय पुराण पढ़ा है तो ये सारी बातें आप समझ सकते हैं क्योंकि श्री मार्कण्डेय जी ने ऐसी अनेक सूक्ष्म बातें स्पष्ट कही हैं। इसी पुराण में श्री महाविष्णु का भी वर्णन किया है। आप जान सकते हैं। ईसाई लोग श्री येशु रिव्रस्त के बारे में जो कुछ जानते हैं अगर ध्यान में जाकर यह बर्णन सुनेंगे तो आप समझ सकते हैं कि वर्णन श्री येशु रिव्रस्त का हैं। वह बाइबल ग्रन्थ के कारण हैं। बाइबल ग्रन्थ बहुत ही गूढ़ है कि अनेक लोग इसका (रहस्यमय) है। यह ग्रन्थ इतना गहन गहन अर्थ समझ नहीं सके। बाइबल में लिखा है कि "मैं तेरे पास ज्वालाओं की लपटों के रूप में आऊंगा।" इजरायली (उसे सूक्ष्मता से देखा) तो ये 'कृष्ण' शब्द के अपभ्रश से (यहूदी) लोगों ने इसका ये मतलब लगाया कि जब परमात्मा अब अगर आपने श्री 'रिव्रस्त' शब्द का अध्ययन किया निर्माण हुआ है। वस्तुत: श्री येशु रिव्रस्त के पिताजी श्रीकृष्ण ही 21 चैतन्य लहरी । खंड :X अक : 11, 12. 1998 11, 12 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-22.txt हैं और इसीलिए उन्हें 'गखिस्त' कहते हैं। उनका नाम 'जीसस' में कुण्डलिनी जागृत होना साधक के आज्ञा चक्र की अवस्था पर निर्भर करता है। आजकल लोगों में अहंकार बहुत ज्यादा है क्योंकि अनेक लोग अहंकारी प्रवृत्ति में खोये हैं। अहकारी वृत्ति जिस प्रकार बना है वह भी मनोरंजक है। श्री यशोदा माता को "यशु' नाम से बुलाया जाता था। उत्तर प्रदेश में अब भी किसी का नाम 'येशु' होता है तो उसे वैसे न कहकर 'जेशू' कहते हैं। इस प्रकार ये स्पष्ट होता है कि, 'यशोदा से 'येशु' व इसके जशु' व उससे 'जीसस क्राईस्ट' नाम बना है। जिस समय श्री खिस्त अपने पिताजी की गाथाए सुनात थे उस समय वे वास्तव में श्रीकृष्ण के बारे में बताते थे. 'विराट' की बातें बताते थे। यद्यपि श्रीकृष्ण ने जीसस रिव्रस्त के कारण मनुष्य अपने सच्चे धर्म से विचलित हो जाते हैं और दिशाहारा (मार्ग से भटक जाना) होने के कारण वे अहंकार को बढ़ावा देने वाले कार्यों में रत रहते हैं। इस अहंकार से मुक्ति पाने के लिए येशु रिव्रस्त बहुत सहायक होते हैं। जिस प्रकार मोहम्मद पैगम्बर ने आसुरी शक्तियों के विनाश के बारे में लिखा है उसी प्रकार, श्री खिस्त जी ने बहुत सरल तरीके से आप में विद्यमान शक्तियों, आयुधों के बारे में के ही जीवन काल में पुनः अवतार नहीं लिया था, तथापि जीसस खिस्त के उपदेशों का सार था कि साधक विराट पुरुष, कहा है। उन आयुधों में सर्वप्रथम क्षमा' करना है। जो तत्व श्री गणेश में 'परीक्ष' रूप में है वही तत्व मनुष्य में क्षमा के रूप में कार्यान्वित है। वस्तुतः क्षमा बहुत वड़ा आयुध है क्योंकि उससे मनुष्य अहकार से बचता है। अगर हमें किसी ने दु:ख सर्वशक्तिमान परमात्मा का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त कर सकते हैं। अर्थात् श्री खिस्त की माता साक्षात् श्री महालक्ष्मी थीं। श्री मेरी माता स्वयं श्री महालक्ष्मी व आदिशक्ति थीं। और अपनी माँ को उन्होंने 'होली घोस्ट' (Holy Ghost) नाम से सम्बोधित किया था श्री खिस्त जी के पास एकादश रुद्र की शक्तियां हैं, अर्थात् ग्यारह सहार शक्तियां हैं। इन शक्तियों का दिया, परंशान किया या हमारा अपमान किया तो हमारा मन बार बार यही बात सोचता रहता है और उद्विग्न रहता है। आप रात दिन उस मनुष्य के बारे में सोचते रहेंगे और बीती घटनाएं याद करके अपने आपको दु:ख सहजयोग में हम ऐसे मनुष्य को क्षमा करने के लिए कहते हैं। दुसरों को क्षमा करना एक बड़ा आयुध, श्री खिस्त के कारण हमें प्राप्त हुआ है जिससे आप दूसरों के कारण होने वाली परेशानियों से छुटकारा पा सकते हैं। स्थान माथे पर हैं। जिस समय शक्ति का अवतरण होता है उस समय ये सारी शक्तियां संहार का काम करती हैं। इन ग्यारह शक्तियों में एक शक्ति श्री हनुमान की है व दूसरी श्री भैरवनाथ की है। इन दोनों शक्तियों को बाइबल में ' सन्ट मायकेल' तथा देते रहेंगे| इससे मुक्ति पाने के लिए सन्ट गैब्रियल' कहा जाता है। सहजयोग में आकर पार होने के वाद आप इन शक्तियों को अंग्रेजी में बोलकर भी जागृत कर सकते हैं या मराठी में या संस्कृत में भी बोलकर जागृत कर सकते हैं। अपने दायें तरफ की (Right) नाड़ी (पिंगला नाड़ी) में भी श्री हनुमान जी की शक्त कार्यान्वित होती है। जिस समय अपनी पिंगला नाड़ी में अवरोध निर्माण होता है उस ' श्री रिक्रस्त जी के पास अनेक शक्तियां थीं और उसी में एकादश रुद्र स्थित है। इतनी सारी शक्तिया पास में होने पर भी उन्होंने अपने आपको क्रास (सूली) पर लटकवा लिया। उन्होंने अपने आपको क्यों नही बचाया? श्री खिस्त जी के पास इतनी शक्तियां थीं कि वे उन्हें परेशान करने वालों का एक क्षण में समय श्री हनुमान जी के मन्त्र से तुरन्त अन्तर पड़ता है। उसी प्रकार 'सेन्ट मायकेल' का मन्त्र बोलने से भी पिंगला नाड़ी में हनन कर सकते थे। उनकी माँ श्री मेरी माता साक्षात् शर अन्तर आएगा। अपने बाँये तैरफ की नाड़ी, (ईड़़ा नाड़ी) 'सेन्ट गैब्रियल' या 'श्री भैरवनाथ' की शक्ति से कार्यान्वित होती है। आदिशक्ति थीं। उस माँ से अपने बटे पर हुए अत्याचार देखें नहीं गए। परन्तु परमेश्वर को एक नाटक करना था। सच बात तो ये है कि श्री रिव्रस्त सुख और दुख उनके मन्त्र से इडा नाड़ी की तकलीफें या अवरोध दूर होती हैं। स परे थे। उन्हें ये नाटक खेलना था। उनके लिए सब कुछ खेल था। वास्तव में जीसस ऊपर कही गयी बातों की सिद्धता सहजयोग में आकर रिव्रस्त सुख दुख से परे थे। उन्हें तो यह नाटक अत्यन्त निपुणता से रचना था जिन लोगों ने उन्हें सूली पर लटकाया वे कितने मुर्ख थे? उस जमाने के लोगों की मूखता को नष्ट पार होने के बाद किसी को भी आ सकती है। कहने का अभिप्राय है कि अपने आपको हिन्दू, मुसलमान या ईसाई अलग-अलग समझ कर आपस में लड़ना मूर्खता है। अगर आप करने के लए श्री रिव्रस्त स्वयं गर्धे पर सवार हुए थे। आपके कभी सिर में दर्द हो तो आप कोई दवाई न लेकर, श्री खिस्त से प्रार्थना करें कि 'इस दुनिया में जिस किसी ने मुझे कष्ट दिया है, परेशान किया है उन सबको माफ कीजिए' तो आपका ने इसमें तत्व की बात जान ली तो आप समझ जाएगे कि ये सब एक ही धर्म-वृक्ष के अनेक फूल हैं व आपस में एक ही शक्ति से सम्बन्धित हैं। आपको ये जानकर कदाचित आश्चर्य होगा कि सहजयोग चैतन्य लहरी खंड : X अंक 22 : 11, 12 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-23.txt सन्त या पवित्र है? तो सहजयोग में लोगों द्वारा एसा सवाल सर दर्द तुरन्त समाप्त हो जायेगा लेकिन इसके लिए आपको सहजयोग में आकर कुण्डलिनी जागृत करवा कर पार होना पूछते ही तुरन्त एक सहजयोगी के हाथ पर ठंडी लहरें आकर आप के प्रश्न का 'हाँ' में उत्तर देंगी। विगत ( भूत काल की) बातों से मनुष्य का अहंकार बढ़ता है। उदाहरणत: किसी विशेष आवश्यक है। उसका कारण है कि आज्ञा चक्र जो आपमें श्री रिक्रस्त तत्व है वह सहजयोग के माध्यम से कुण्डलिनी जागृति के पश्चात ही सक्रिय होता है. उसके बिना नहीं। व्यक्ति का शिष्य होने का दंभ। जो सामने प्रत्यक्ष है उसका मनुष्य को ज्ञान नहीं होता है। बढ़े हुए अहंकार के कारण मनुष्य 'स्व' (आत्मा) के सच्चे अर्थ को भूल जाता है। अर्थ समझ लेना जरूरी है। आज गंगा जिस जगह बह रही है. ये चक्र इतना सूक्ष्म है कि डॉक्टर भी इसे देख नहीं सकते। इस चक्र पर एक अतिसूक्ष्म द्वार है। इसीलिए श्री खिस्त ने कहा है कि "में द्वार हूँ" इस अतिसूक्ष्म द्वार को पार करना आसान करने के लिए श्री खिस्त ने इस पृथ्वी पर अवतार लिया और सर्वप्रथम स्वयं यह द्वार पार किया। अपने अहंभाव के कारण लोगों ने श्री रिव्रस्त को सुली पर चढ़ाया. क्योंकि कोई अब देखिए 'स्वार्थ' माने 'स्व' का अगर आप किसी दूसरी जगह जाकर बैठ जाए और कहने लगे कि गंगा इधर से बह रही हैं और हम गंगा के किनारे वैठे हैं. मनुष्य परमेश्वर का अवतार बनकर आ सकता है ये उनकी तो ये जिस तरह हास्यजनक होगा उसी तरह से ये बात है। मानव बुद्धि को स्वीकार नहीं था। उन्होंने अपने बौद्धिक आपके सामने आज जो साक्षात है उसी को स्वीकार कीजिए। अहंकार के कारण सत्य को ठुकराया। श्री खिस्त ने ऐसा कौन श्री रिव्रस्त के समय भी इसी तरह की स्थिति थी। उस समय श्री रिव्रस्त जी ने कुण्डलिनी जागरण के अनेक यत्न किये| कु सा अपराध किया था जिससे उनको सुली पर लटकाया गया? उन्होंने तो दुनिया के असंख्य लोगों को अपनी शक्ति से ठीक किया, जग में सत्य का प्रचार किया, लोगों को अनेक अच्छी बातें सिखायीं, लोगों को सुव्यवस्थित, सुसंस्कृत जीवन सिखाया। वे हमेशा प्यार की बातें करते थे। लोगों के लिए हमेशा अच्छाई करते हुए भी आपने उन्हें दुख दिया, परेशान किया। जो लोग आपको गन्दी बातें सिखाते हैं या मूर्ख बनाते हैं उनके आप पाँव छूते हैं। मूर्खता की हद है! आजकल कोई भी ऐरे-गैरे गुरु बन बैठते हैं, लोगों को ठगते हैं, लोगों से पैसे लूटते हैं। उनकी लोग खुशामद, परशंसा करते हैं। कोई सत्य बात कहकर लोगों को सच्चा मार्ग दिखाएगा तो उसकी कोई सुनता नहीं. उल्टे उसी पर गुस्सा करेंगे। ऐसे महामूर्ख लोगों को ठीक करने के लिए परमात्मा ने अपने सुपुत्र श्री खिस्त को इस दुनिया में भेजा था पर उन्हें लोगों ने सूली पर चढ़ा दिया। ऐसे ही कारनामे लोग करते रहते हैं । आप यदि इतिहास पढ़े तो देखेंगे कि जब जब परमेश्वर परन्तु बहुत मुश्किल से केवल 21 व्यक्ति पार हुए। सहजयोग में हजारों लोग पार हुए है। श्री खिस्त उस समय बहुतों को पार करा सकते थे परन्तु उनके शिष्यों ने सोचा कि श्री खिस्त केवल बीमार लोगों को ठीक करते हैं । उसके अतिरिक्त उन्हें कोई ज्ञान नहीं था इसलिए उनके सारे शिष्य सभी तरह के बीमार लोगों को उनके पास ले जाते थे। श्री खिस्त ने बहुत बार पानी पर चलकर दिखाया क्योंकि वे स्वयं प्रणव श्े ॐ कार रूपी थे। इतना सब कुछ था तब भी लोगों के दिमाग में नहीं आया कि श्री रिव्रस्त परमेश्वर के सुप्त्र थे मुश्किल से उन्होंने कुछ मछुआरों को इकट्ठा करके ( क्योंकि , और कोई लोग उनके साथ आने के लिए तैयार नहीं थे) बड़ी मुश्किल से उन्होंने उन लोगों को पार किया। पार होने के बाद ये लोग श्री ा खिस्त के पास किसी न किसी बीमार को ठीक कराने ले आते थे हमारे यहाँ सहजयोग में भी बहुत से बीमार लोग पार होकर ठीक हुए हैं लोगों को जान लेना चाहिए कि अहंकार बहुत ही सूक्ष्म है। अब दूसरा प्रकार ये लड़ना भी ठीक नहीं है। अहंकार से लड़ने से वह नष्ट नहीं ने अवतरण लिया या सन्त-महात्माओं ने अवतरण लिया तब-तब लोगों ने उन्हें कष्ट दिया। उनसे कुछ सीखने के बजाय मू्खों की तरह उनसे बर्ताव किया। महाराष्ट्र के सन्त श्रेष्ठ श्री है कि अपने अहकार के साथ तुकाराम या श्री ज्ञानेश्वर महाराज के साथ यही हुआ। वैसे ही होता है। वह अपने आप (' श्री गुरुनानक, श्री मोहम्मद साहब के साथ भी इसी प्रकार स्व ') में समाना चाहिए। जिस समय आपका चित्त कुण्डलिनी पर केन्द्रित होता है व कुण्डलिनी आपके ब्रह्मरन्ध्र को छेदकर विराट में मिलती है उस समय अहंकार का विलय होता है। विराट शक्ति का अहंकार ही हुआ। मनुष्य हमेशा सत्य से चिपका रहता है। भागता हैं और असत्य बातों से दूर सच्चा अहकार है। वास्तव में विराट ही वास्तविक अहंकार है। रल जब कोई साधु-सन्त या परमेश्वर का अवतरण होता है तब अगर ऐसा प्रश्न पूछा जाये कि यह व्यक्ति क्या अवतारी, आपका अहकार छूटता नहीं। आप जो करते हैं वह अहंकार है। अहंकरोति सः अहंकारः । आप अपने आप से पूछकर देखिए चतन्य लहरी 23 खड : X अंक : 11, 12 1998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-24.txt इस संसार में कैसे आए हैं? ऐसी अनेक बातें हैं। क्या मनुष्य कि आप क्या करते हैं। किसी मृत बस्तु का आकार बदलने के सिवा आप क्या कर सकते हैं? किसी फूल से आप फल बना सकते हैं? ये नाक, ये मुंह, ये सुन्दर मनुष्य शरीर आपको प्राप्त हुआ है ये कैसे हुआ है? आप अमीबा से मनुष्य स्थिति को प्राप्त हुए हैं। ये कैसे हुआ है? परमेश्वर की असीम कृपा से आपको ये सुन्दर मनुष्य देह प्राप्त हुआ है। क्या मानव इसका इन सबका अर्थ समझ सकता है? आप कहते हैं पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण की शक्ति है। लेकिन यह कहाँ से आयी है? आपको ऐसी बहुत सी बातें अभी तक मालूम नहीं हैं। आप भ्रम में हैं और इस भ्रम को हटाना जरूरी है। जब तक आपका भ्रम नहीं नष्ट होगा तब तक आपमें वह बढ़ता ही जाएगा। इस बदला चुका सकता है? आप ऐसा कोई जीवन्त कार्य कर सकते हैं क्या? एक टेस्ट ट्यूब बेबी के निर्माण के बाद मनुष्य में इतने बड़े अहंकार का निर्माण हुआ है उसमें भी वस्तुत: ये कार्य जीवन्त कार्य नहीं है क्योंकि जिस प्रकार आप किसी पेड़ का Cross breeding करते हैं, उसी प्रकार किसी जगह से एक जीवन्त जीव लेकर यह क्रिया की है। परन्तु इस बात का भी मनुष्य को कितना अहंकार है! चाँद पर पहुँच गए तो कितना अहंकार । जिसने चाँद-सूरज की तरह अनेक ग्रह बनाए व ये सुष्टि बनायी उनके सामने क्या आपका अहंकार? वास्तव संसार में मनुष्य की उत्क्रान्ति के लिए उसके भ्रम का नष्ट होना हैं। जिस समय मनुष्य ने या और किसी भी जीव ने उत्क्रान्ति के लिए यत्न किए तब इस संसार में अवतरण हुए हैं। आपको मालूम है कि श्री विष्णु श्री राम अवतार लेकर जंगलो जरूरी में घूमे। जिससे मनुष्य ये जान ले कि एक आदर्श राजा को कैसा होना चाहिए। इसलिए एक सुन्दर नाटक उन्होंने प्रदर्शित किया। इसी प्रकार श्रीकृष्ण का जीवन था और इसी तरह श्री येशु रिव्रस्त का जीवन था। श्री रित्रस्त के जीवन की तरफ ध्यान दिया जाये ता एक बात दिखाई देती है वह है उस समय के लागाों की महामुखता, जिसके कारण इस महान व्यक्ति को सुली पर (फॉरसी पर) में आपका अहकार दाम्भिक है, झूठा है। उस विराट पुरुष का अहंकार सत्य है क्योंकि वही सब कुछ करता है। चढ़ाया गया। इतनी मूर्खता कि "एक चोर को छोड़ दिया जाए या श्री खिस्त को?" ऐसा लोगों से सवाल किया गया ता बहाँ के यहूदी लोगों ने 'श्री खिस्त को फाँसी दी जाये' यह माँग को। आज इन्हीं लोगों की क्या स्थिति है. ये आप जानते हैं उन्होंन विराट पुरुष हो सब कुछ कर रहा है, ये समझ लेना चाहिए। तो श्री विराट पुरुष को ही सब कुछ करने दीजिए। आप एक यत्र की तरह हैं। समझ लीजिए मैं किसी माईक में से बोल रही हूँ व माईक में से मेरा बाला हुआ आप तक बह रहा है। माईक केवल साक्षी (माध्यम) है परन्तु बोलने का कार्य में कर रही हूँ व वह शक्ति माइक से बह रही है। उसी भाति आप परमेश्वर के एक यन्त्र हैं। उस विराट ने आपको बनाया तो उस विराट की शक्ति को आप में से बहने दो। उस 'स्व' जो पाप किया है वह अनेक जन्मों में नहीं धुलने वाला अभी भी ऐसे लोग अहंकार में डूबे हुए हैं। उन्हें लगता है. हमने बहुत बड़ा पुण्य कर्म किया है। अभी भी यदि उन लांगों न परमश्वर से क्षमा माँगी कि "हे परमात्मा, आपके पवित्र तत्व को फाँसी देने के अपराध के कारण हमें आप क्षमा कीजिए हमने का मतलब समझ लीजिए। यह मतलब समझने के लिए आज्ञा चक्र, जो बहुत ही मुश्किल चक्र है और जिस पर अति सूक्ष्म आपका "वित्र तत्व नष्ट किया इसके लिए हमें माफ कोजिए । तो परमात्मा लोगों को तुरन्त माफ कर दग। परन्तु मनुष्य का क्षमा माँगना बड़ी कठिन बात लगती है। वह अनक दृष्टता तत्व ॐकार, प्रणव स्थित है, वही अर्थात् श्री रिव्रस्त इस दुनिया में अवतरित हुए थे। अब कुण्डलिनी और श्री रिव्रस्त का करता है। दुनिया में ऐसे कितने लोग हैं जिन्होंने सन्ता का पूजन किया है। आप श्री कबीर या श्री गुरुनानक की बात लीजिए। सम्बन्ध जैसे सूर्य का सूर्य किरण से जो सम्बन्ध है, उसी तरह है, अथवा चन्द्र का चन्द्रिका से जो सम्बन्ध है उसी प्रकार है । श्री कुण्डलिनी ने, माने श्री गौरी माता ने, अपनी शक्ति से, तपस्या से, मनोबल से व पुण्याई से श्री गणेश का निर्माण किया। जिस समय श्री गणेश स्वयं अवतरण लेने के लिए सिद्ध हर पल लोगों ने उन्हें सताया। इस दुनिया में लोगों ने आज तक हर एक सन्त को दुःख के सिवाय कुछ नहीं दिया। परन्तु अब मैं कहना चाहती हूँ कि अब दुनिया बदल चुकी है। सत्ययुग का आरम्भ हो गया है। आप कोशिश कर सकते हैं, पर अब आप हुए उस समय श्री रिब्रस्त का जन्म हुआ। इस संसार में ऐसी अनेक घटनाएं घटित होती हैं जो मनुष्य को अभी तक मालूम नहीं। क्या आप ये विचार करते हैं कि एक बीज में अंकुर का निर्माण कैसे होता है? आप श्वास कैसे लेते हैं? अपना चलन-वलन (movement, action) कैस होता है? अपने मस्तिष्क में कहाँ से शक्ति आती है? आप किसी भी सन्त-साधु को नहीं सता पाएंगे। इसका कारण श्री खिस्त हैं। श्री खिस्त ने दुनिया में बहुत बड़ी शक्ति संचारित की है, जिससे साधु-सन्त लोगों को परेशान करने वालों को कष्ट भुगतने पड़़ेंगे। उन्हें सजा होगी। श्री खिस्त के एकादश रुद्र आज पूर्णंतया सिद्ध हैं । और इसलिए जो काई साधु-सन्तां को चैतन्य लहरी 24 खंड : X अंक :1I 12 1998 खड़ 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-25.txt लीजिए आप साईकिल चला रहे हैं। वह चलाते समय जब आप डगमगाते नहीं हैं, आप का सन्तुलन हो जाता है तो आप जम सताएगा उनका सर्वनाश होगा। किसी भी महात्मा को सताना महापाप है। आप श्री येशु रिव्रस्त के उदाहरण द्वारा समझ लीजिए। इस प्रकार की मुर्खता मत कीजिए। अगर इस तरह की गए। ये जिस प्रकार आपकी समझ में आता हैं उसी प्रकार मुर्खता आपने फिर से की तो आपका हमेशा के लिए सर्वनाश सहजयोग में आकर स्थिर हो गए हैं, ये स्वयं आपकी समझ में आता है। यह निर्णय अपने आप ही करना है। जिस समय सहजयोग में आप स्थिर हॉते हैं उस समय निर्विकल्पता है। वह हैं 'जाहि विधि राखे ताहि विधि रहिए' । उन्होंने अपना प्रस्थापित होती है। जब तक कुण्डलिनी शक्ति आज्ञा चक्र को ध्येय कभी नहीं बदला। उन्होंने अपने आपको सन्यासी समझ पार नहीं कर जाती तब तक निर्विचार स्थिति प्राप्त नहीं होती। कर अपने को समाज से अलग नहीं किया। इसके विपरीत वे साधक में निर्विचारिता प्राप्त होना. साधना की पहली सोढ़ी है । जिस समय कृण्डलिनी शक्ति आज्ञा चक्र को पार करती हैं उस समय निर्विचारिता स्थापित होती हैं। आज्ञा चक्र के ऊपर पानी से अंगूर का रस निर्माण किया। ऐसा वर्णन बाइबल में है। स्थित सूक्ष्म द्वार येशु रिव्रस्त की शक्ति से ही कुण्डलिनी शक्त के लिए खोला जाता है और ये द्वार खोलने के लिए श्री खिस्त पानी से शराब बनायी. अत: वह शराब पिया करते थे। आपने की प्रार्थना 'दी लार्ड्स प्रेअर' बोलनी पड़ती है। ये द्वार पार होगा। श्री खिस्त के जीवन से सीखने की एक बहुत बड़ी बात विवाह आदि में गये। वहाँ उन्होंने स्वयं शादियों की व्यवस्था की। बाइबिल में लिखा है कि एक विवाह में एक बार उन्होंने अब मनुष्य ने केवल यही मतलब निकाला कि श्री खिस्त ने अगर हिब्रू भाषा का अध्ययन किया तो आपको मालूम होगा करने के बाद कुण्डलिनी शक्ति अपने मस्तिष्क में जो तालू कि 'वाइन' माने शुद्ध ताजे अगूर का रस। उसका अर्थ दारू नहीं है। स्थान ( limbic area) है उसमें प्रवेश करती है। उसी को परमात्मा का साम्राज्य कहते हैं। कुण्डलिनी जब इस क्षेत्र में प्रवेश करती है तब ही निर्विचार स्थिति प्राप्त होती है। इस श्री रित्रस्त का कार्य था आपके आज्ञा चक्र को खोलकर मस्तिष्क के limbic area में व चक्र हैं जो शरीर के सात आपके अहकार को नष्ट करना। मेरा कार्य है आपकी कुण्डलिनी शक्ति का जागरण करके आपके सहस्रार का उसके (कुण्डलिनी मुख्य चक्र व और अन्य उपचक्रों का सचालित करते हैं । अब आज्ञा चक्र किस कारण से खराब हाता है वह शक्ति) द्वारा छंदन करना। ये समग्रता का कार्य होने के कारण हर एक के लिए मुझे ये करना है। मुझे समग्रता में श्री खिस्त, गुरुनानक, श्री जनक व ऐसे अनेक अवतरणों के बारे में मनुष्य को अपनी आँखों का बहुत ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि कहना है। उसी प्रकार मुझे श्रीकृष्ण, श्रीराम, इन अवतारों के वारे में भी कहना है। उसी प्रकार श्री शिवजी के बारे में भी क्यांकि इन सभी देवी-देवताओं की शक्ति आप में है। अब देखते हैं। आज्ञा चक्र खराब होने का मुख्य कारण आँखे हैं। श्री उनका बड़ा महत्व है। अनाधिकृत गुरु के सामन झुकन अथवा उनके चरणों में अपना माथा टेकने से भी आज्ञा चक्र खराब हो जाता है। इसी कारण जीसस रिव्रस्त ने अपना माथा ऐर गैर आदमी या स्थान के सामने झुकाने को मना किया हैं। एंसा कलियुग में जो लोग परमेश्वर को खोज रहे हैं उन्हें करने से हमने जो कुछ पाया है वह सब नष्ट हो जाता है। परमेश्वर की प्राप्ति होने वाली है और लाखों की संख्या में केवल परमेश्वरी अवतार के आगे ही अपना माथा टेकना चाहिए। दूसरे किसी भी व्यक्ति के आगे अपने माथे को झुकाना समग्रता (सामूहिक चेतना) घटित होने का समय आया है। लोगों को यह प्राप्ति होगी। इसका सर्वन्याय भी कलियुग में होने वाला है। सहजयोग ही आखिरी न्याय (Last Judgment) है। ठीक नहीं है। किसी गलत स्थान के सम्मुख भी अपना माथा नहीं झुकाना चाहिए। ये बात बहुत ही महत्वपूर्ण है। आपने इसके बारे में बाइबल में वर्णन है। सहजयोग में आने के बाद आपका न्याय (Judgment) होगा। परन्तु आपको सहजयोग में आने के बाद समर्पित होना बहुत जरूरी है। क्योंकि, सब कुछ प्राप्त होने के बाद उसमें टिककर रहना व है। आपना माथा गलत जगह पर या गलत आदमी के सामने झुकाया तो तुरन्त आपका आज्ञा चक्र पकड़ा जाएगा। सहजयोग में हमें दिखाई देता है, आजकल बहुत ही लोगों के आज्ञा चक्र खराब है। इसका कारण है लोग गलत जगह माथा टेकते हैं या गलत गुरु को मानते हैं। आँखों के अनेक रोग इसी कारण से होते हैं। जमकर रहना, उसमें स्थिर होना, ये बहुत महत्वपूर्ण बहुत लोग हमें पूछते हैं, माताजी हम स्थिर कब होंगे? ये सवाल ऐसा है कि, समझ लीजिए आप किसी नाव में वैठकर जा रहे हैं। नाव स्थिर हुई कि नहीं, ये आप जानते हैं। या ऐसा समझ ये चक्र स्वच्छ रखने के लिए मनुष्य को हमेशा अच्छे पवित्र, धर्म ग्रन्थ पढ़ने चाहिए। अपवित्र साहित्य बिल्कुल नहीं चैतन्य लहरी 25 खंड : X अंक : ।। 12 ।998 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-26.txt नहीं होगी। आज्ञा चक्र की पकड़ छुड़वाने के लिए हम कुंकुम लगाते हैं। उससे अहंकार व आपकी अनेक विपत्तियां दूर होती हैं। जब आपके आज्ञा चक्र पर कुकुम लगाया जाता है तब पढ़ना चाहिए। बहुत से लोग कहते हैं "इसमें क्या हुआ? हमारा ता काम ही इस ढंग का है कि हमें ऐसे अनेक काम करने पड़ते हैं जो पुर्णत: सही नहीं है।" परन्त् एसे अपवित्र कार्यो के आपका आज्ञा चक्र खुलता है व कुण्डलिनी शक्ति ऊपर जाती है। इतना गहन सम्बन्ध श्री रिव्रस्त व कृण्डलिनी शक्ति का है। जो श्री गणेश, मूलाधार चक्र पर स्थित रहकर आपकी कुण्डलिनी शक्ति की लज्जा का रक्षण करते हैं वही श्री गणेश आज्ञा चक्र कारण आँख खराब हो जाती हैं। मरी ये समझ में नही आता कि जो बाते खराब हैं वह मनुष्य क्यों करता है? किसी अपवित्र व गन्दे मनुष्य को देखने से भी आज्ञा चक्र खराब हो सकता है। श्री खिस्त ने बहुत ही जोर से कहा था कि आप व्यभिचार मत पर उस कुण्डलिनी शक्ति का द्वार खोलत है । यह चक्र ठीक रखने के लिए आपको क्या करना कोजिए। परन्तु में आपसे कहती हूँ कि आप की नजर भी व्यभिचारी नहीं होनी चाहिए। उन्होंने इतने बलपूर्वक कहा था कि आपको अगर नजर अपवित्र होगी तो आपको आँखों की चाहिए? उसके लिए अनंक मार्ग हैं । किसी भी अतिशयता के कारण समाज दुषित होता है और इसोलिए किसी भी प्रकार की अतिशयता अनुचित है। संतुलितता से अपनी आँखों काो विश्राम मिलता है। सहजयोग में इसके लिए अनेक उपचार हैं। परन्तु इसके लिए पहले पार होना आवश्यक है। उसके बाद आँखों के तकलीफ होंगी। इसका मतलब ये नहीं कि अगर आप चश्मा पहनते हैं तो आप अपवित्र (गलत) व्यक्ति है। किसी एक उम्र के बाद चश्मा लगाना पड़ता है। ये जीवन की आवश्यकता है। फरन्तु आँखें खराब होती हैं अपनी नजर स्थिर न रखने के लिए अनेक प्रकार के व्यायाम है जिससे आपका आज्ञा चक्र कारण। बहुत लागों का चित्त बार बार इधर-उधर दौड़ता रहता ठीक रह सकता है। इसमें एक है अपना अहकार देखते रहना है। ऐसे लोगों को समझ नहीं कि अपनी आँखे इस प्रकार और अपने आपसे कहना "क्यों। क्या बिचार चल रहा है? कहाँ ईधर -उधर घुमाने के कारण ये खराब होती हैं। आज्ञा चक्र जा रहे हो?" जैसे कि आप आइने में अपने आपको देख रह है। उससे अहकार से आँखों पर आने वाला तनाव ( Tension) खराब होने का दूसरा कारण है मनुष्य की कार्य पद्धति । समझ लीजिए आप बहुत काम करते हैं, अति कर्मी हैं, अच्छे काम करते हैं, काई भी बुरा काम नही करते। परन्तु ऐसी अति कार्यशीलता की वजह से फिर वह अति पढना, अति सिलाई हो कम हो जाता है इसका महत्वपूर्ण इलाका ( क्षेत्र, अंचल) सिर के पिछले भाग का वह स्थल है जो माथे (भाल) के ठीक पीछे स्थित हैं। यह उस क्षेत्र में स्थित है जा गदन के आधार (back of the neck) सं आठ उगलियों की मोटाई ( लगभग पांच इंच) की ऊँचाई पर स्थित है। यह 'महागणेश' का अंचल या अति अध्ययन हो या अति विचारशीलता हो जिस समय आप अति कार्य करते हैं उस समय आप परमात्मा को भूल जाते हैं। उस समय ईश्वर से आपको एकाकारिता नहीं हातो। कुण्डलिनी सत्य है। यह पबित्र है। ये कोई ढांगबाजी या दुकान में मिलने वाली चोज नहीं है। ये नितान्त (Absolute) सत्य है। जब तक आप सत्य में नहीं उतरेंगे, तब तक आप ये (क्षेत्र) है। श्री गणेश ने 'महागणेश' क रूप में अव्तार लिया और वही अवतार जीसस रित्रस्त का है। श्री खिस्त का स्थान कपाल (मस्तक) के मध्य में है और इसके चारो आर एकादश जान नहीं सकते। वाम मार्ग (गलत मार्ग) का अवलम्बन करके रुद्र का साम्राज्य है। जीसस खिस्त इस साम्राज्य के स्वामी हैं। आप सत्य को नहीं पहचान सकते। जिस समय आप सत्य से श्री महागणेश और षडानन इन्हीं एकादश रुद्रों में से हैं। कुण्डलिनी जागृत होन के पश्चात यदि आप आँख खोले ता अनुभव करेंगे कि आपकी आँखों की दृष्टि कुछ धुधली हो गई है। इसका कारण यह है कि जब कुण्डलिनी जागृत होती है तब आपकी आँखों की पुतलियां कुछ फैल जाती हैं और शीतल हो जाती हैं। यह para-sympathetic nervous system ( सुषुम्ना नाड़ी) के कार्य के फलस्वरूप होता है। जीसस रिव्रस्त के बारे में केवल सोचने से अथवा चिन्तन. मनन करने से आज्ञा चक्र को चैन प्राप्त होता है। साथ ही यह भी एकाकार हांगे तब ही आप जान सकते हैं कि सत्य क्या है। उसी समय आप समझेंगे कि हम परम पिता परमेश्वर के एक साधन है, जिसमें से परमेश्वरी शक्ति का वहन (प्रवाह) हो रहा है। वो परमंश्वरी शक्ति सारे विश्व में फैली हुई है, बो सारे विश्व का संचालन करती है। उसी परमेश्वरी प्रेम शक्ति के आप साधन है। इसमें श्री खिस्त का कितना बड़ा बलिदान है? क्यांकि उन्हीं के कारण आपका आज्ञा चक्र खुला है। अगर आज्ञा चक्र नहीं खुलता तो कुण्डलिनी का उत्थान नहीं हो सकता, क्योंकि जिस मनुष्य का आज्ञा चक्र पकड़ता है उसका समझ लेना चाहिए कि जीसस रिव्रस्त के जीवन पश्चात निर्मित मिथ्या आचार-विचार या उत्तराधिकारियों की श्रृंखलाओं का मूलाधार चक्र भी पकड़ा जाता है। किसी मनुष्य का आज्ञा चक्र बहुत ही ज्यादा पकड़ा होगा तो उसकी कुण्डलिनी शक्ति जागृत चैतन्य लहरी ॥ खंड : X अक : | 12 1998 26 ख 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-27.txt वास्तव में बाप्तिज्म (Baptism) देने का अर्थ है कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करना और उसके बाद उसे अनुसरण जोसस रिव्रस्त का मनन-चिन्तन नहीं है। कुछ सनातन सत्य है वह में आपको बताऊँगी। सर्वप्रथम किसी भी स्त्री की तरफ बुरी दृष्टि से देखना महापाप है। आप ही सोचिए जो लोग रात दिन रास्ते चलते स्त्रियों की तरफ बुरी नजरों से देखते हैं वे कितना महापाप कर रहे हैं? श्री रिव्रस्त ने ये बातें 2000 साल पहले आपको कही थीं। परन्तु उन्होंने ये बातें खुलकर नहीं कही थीं और इसीलिए यही बातें मैं फिर से आपसे कह रही हूँ। श्री खिस्त ने ये बातें आपसे कहीं तो आपने उन्हें फाँसी पर चढ़ाया। श्री खिस्त ने इतना ही कहा था कि ये बातें न करें, क्योंकि ये बातें गन्दी हैं परन्तु ये करने से क्या होता है ये उन्होंने नहीं कहा था। गलत नजर रखने अब जो सहस्रार तक लाना, तदनन्तर सहसार का छंदन कर परमेश्वरी शक्ति और अपनी कुण्डलिनी शक्ति का संयोग घटित करना। यही कुण्डलिनी शक्ति का आखिरी कार्य है। परन्तु इन पादरियों को बाप्तिज्य की जरा भी कल्पना नहीं है। उल्टे वे अनाधिकार चेष्टा करते हैं. या फिर ये पादरी ऐसे कामों में लगे हुए हैं जैसे गरीबों की सेवा करो, बीमारों की सेवा करों, वगैरा आप कहेंगे माताजी ये तो अच्छे हैं हां ये अच्छा है, यरन्तु ये परमात्मा का कार्य नहीं है । परमात्मा का ये कार्य नहीं है कि पैसे देकर गरीबी की सेवा करें। परमेश्वर का कार्य है आपको उनके साम्राज्य में से उसके दुष्परिणाम क्या होते हैं. इसके बारे में उन्होंने कहा है। ले जाना और उनसे भेंट कराना। आपको सुख, शान्ति समृद्धि. शोभा व ऐश्वर्य इन सभी बातों से परिपूर्ण करना, यही परमेश्वर का कार्य है कोई मनुष्य चोरी करता है या झूठ बोलता है या योग शास्त्र में लिखा है अपनी चित्तवृत्ति को संभालकर रखिए गरीब बनकर घुमता है. परमात्मा ऐसे मनुष्य के पांव नहीं पकड़ेंगे। ये सेवा का काम है जो कोई भी मनुष्य कर सकता है। कुछ इसाई लोग धर्मान्तर करने का काम करते हैं जहां कुछ भूमि योग-भूमि है। हम अहंकारवादी नहीं हैं या हमारे में आदिवासी लोग होंगे वहां वे जाएंगे| वहां कुछ संवा का काम अहंकार आने वाला भी नहीं है। हमें अहंकारवादिता नहीं करेंगे। फिर सब को इसाई बनाएंगे। परन्तु एक बात समझना चाहिए कि ये परमात्मा का काम नहौं है। परमात्मा का कार्य मनुष्य किसी पशु समान बर्ताव करता है क्योंकि रात दिन उसके मन में गन्दे विचारों का चक्र चलता रहता हैं। इसी कारण अपने और चित्त को सही मार्ग पर रखिए। अपना चित्त ईश्वर के प्रति नतमस्तक रखना चाहिए। हमें योग से बनाया गया है। हमारी चाहिए। हमें इस भूमि पर योगी की तरह रहना हैं। एक दिन ऐसा आएगा जब हम सभी को योग प्राप्त होगा। उस समय अवाधित है। सहजयोग में लोगों की कुण्डलिनी जागृत करते ही लोग ठीक हो जाते हैं। हम सहजयोग में दिखावटी करुणा नही दर्शाते। परन्तु अगर हम किसी अस्पताल में गए तो 25-30 बीमार को आसानी से स्वस्थ कर सकते हैं। उनकी कुण्डलिनी जागृत करते ही वे अपने आप स्वस्थ हो जाते हैं । श्री खिस्त ने उनमें बह रही उसी प्रेमशक्ति के द्वारा अनेक लोगों को स्वस्थ किया। श्री रित्रस्त ने कभी किसी की भौतिक वस्तुओं से सहायता नहीं की। ये सब बातें आपको सुज्ञता (सूक्ष्मता) से सारी दुनिया इस देश के चरणों में झुकेगी। उस समय लोग जान जाएगे श्री रित्रिस्त कौन थे, कहा से आए थे, और उनका इस भूमि पर यथाचित पूजन होगा। अपनी पवित्र भारत भूमि पर आज भी नारी की लज्जा का रक्षण होता हैं और उन्हें सम्मान दिया जाता है। अपने देश में हम अपनी माँ को मान देते हैं। अन्य देशों के लोग जब भारत में आएंगे तब वे देखेंगे कि श्री रिव्रस्त का सच्चा धर्म वास्तव में भारत में अत्यन्त आदर पूर्वक पालन किया जा रहा है. ईसाई धर्मानुयायी राष्ट्रों में नहीं। श्री खिस्त ने कहा कि अपना दोबारा जन्म होना चाहिए या आपको द्विज होना पड़ेगा। मनुष्य का दूसरा जन्म केवल समझ लना आवश्यक है। पहले की गयी गलतियों की पुनरावृत्ति मत कीजिए। आप स्वयं साक्षात्कार प्राप्त कीजिए। ये आपका कुण्डलिनी जागृति से ही हो सकता है। जब तक किसी की कुण्डलिनी जागृत नहीं होगी तब तक वह दूसरे जन्म को प्राप्त नहीं होगा और जब तक आपका दूसरा जन्म नहीं होगा तब तक आप परमेश्वर को पहचान नहीं सकते। आप लोग पार होने के प्रथम कार्य है। आत्मसाक्षात्कार के बाद आपकी शक्तियां जागृत हो जाती हैं । इन जागृत शक्तियों से सहजयोग में कर्कट रोग (कैन्सर) जैसी असाध्य बीमारियाँ ठीक हुई हैं। आप किसी को भी रोग मुक्त करा सकते हैं । कैन्सर जैसी असाध्य बीमारियाँ केवल सहजयोग से ही ठीक हो सकती हैं परन्तु लोग ठीक ने सहजयोग की महत्ता कही है. उसके अतिरिक्त कुछ भी होने के बाद फिर से अपने पहले मार्ग और आदतों पर चले जाते हैं। ऐसे लोग परमात्मा को नहीं खाजते। उन्हें अपनी बीमारी ठीक कराने के लिए परमेश्वर की याद आती बाद बाइबल पढ़िए। आपको आश्चर्य होगा कि उस में खिस्तजी नहीं। एक एक बात इतनी सूक्ष्मता में बताई है। परन्तु जिन लोगों को वह दृष्टि प्राप्त नहीं है। वे इन सभी बातों को उल्टा स्वरूप दे रहे हैं। (मनमाने ढंग ने उसकी व्याख्या कर रहे हैं।) अन्यथा उन्हें परमात्मा को खोजने की आवश्यकता प्रतीत नहीं चैतन्य लहरी । खंड : X अंक : 11, 12 1998 27 ॥ 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-28.txt होती। जो मनुष्य परमात्मा का दीप बनना नहीं चाहते, उन्हें है? कुछ लोग कहते हैं 'माताजी' इससे हमारा 'शुभ हुआ है'। परमात्मा क्यों ठीक करें? ऐसे लोगों को ठोक किया या नहीं शुभ का मतलब है ज्यादा पैसे प्राप्त हुए। इस तरह से धन्धा किया, उन से दुनिया को प्रकाश नहीं मिलने वाला। परमात्मा करने से कष्ट होगा। इससे परमात्मा का अपमान होता श्री खिस्त ने सारी मनुष्य जाति के कल्याणार्थ व उद्धारार्थ जन्म लिया था। वे किसी जाति या समुदाय की निजी परमेश्वर प्रीति की इच्छा नहीं, परमेश्वर का कार्य करने की सम्पदा नहीं थे। वे स्वयं ओंकार रूपी प्रणव थे। सत्य थे। इच्छा नहीं, ऐसे लोगों को परमात्मा क्यों सहायता करें? गरीबी परमेश्वर के अन्य जो अवतरण हुए उनके शरीर पृथ्वी तत्व से दूर करना अथवा अन्य सामाजिक कार्यो को ईश्वरीय कार्य नहीं बनाये गये थे। परन्तु श्री खिस्त का शरीर आत्म तत्व से बना था। और इसीलिए मृत्यु के बाद उनका पुनरुत्थान हुआ। और ऐसे दीप जलाएंगे जिनसे सारी दुनिया प्रकाशमय हो जाएगी। परमात्मा मूर्ख लोगों को क्यों ठीक करेंगे? जिन लोगों में समझना चाहिए। कुछ लोग इतने निम्न स्तर पर परमेश्वर का सम्बन्ध जोड़ते हैं कि एक जगह दुकान पर 'साईनाथ बीड़ी' लिखा हुआ परमेश्वर थे बाद में तो फिर उनके नाम का नगाड़ा बजने लगा. था। यह परमेश्वर का मजाक उड़ाना, परमात्मा का सरासर उनके नाम का जाप होने लगा और उनके बारे में भाषण होने अपमान करना है सभी बातों में मर्यादा होनी चाहिए। हर एक लगे। वे परमात्मा के अवतरण थे, यह मुख्य बात है। यदि लोग बात परमात्मा से जोडकर आप महापाप करते हैं, ये समझ उनके उस स्वरूप को अवतरण को पहचान कर अपनी लीजिए। 'साईंनाथ बीड़ो' या 'लक्ष्मी हींग'. ये परमात्मा का उस पुनरुत्थान के बाद ही उनके शिष्यों ने जाना कि वे साक्षात् आत्मोन्नति करें तो चारों तरफ आनन्द ही आनन्द होगा। आप सब लोग परमश्वर के यांग को प्राप्त हों। अनन्त आशीरवाद। मजाक उड़ाना हुआ। ऐसा करने से लोगों को क्या लाभ होता छ य ल चैतन्य लहरी खंड : 8 अंक : ।।, 12 1998 28 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-29.txt १5 सहजयोग में आने पर मनुष्य में एकाग्र दृष्टि विकसित होती है। बिकसित एकाग्र दृष्टि से यदि गणेश शक्ति जागृत हो जाए तो उसे 'कटाक्ष-निरीक्षण' कहते हैं। जिस पर आप की दृष्टि पड़ेगी उसकी कुण्डलिनी जागृत हो जाएगी| जिसकी तरफ आप देखेंगे उसमें पवित्रता आ जाएगी। इतनी पवित्रता आपकी आँखों में आ जाती है। ये केवल श्रीगणेश का ही काम है। श्री माताजी निर्मलावेवी य 1998_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-30.txt जय श्री माताजी' शर "क्या आपका उत्थान ठीक से हो रहा है ११ पूर्ण समर्पित हृदय से आपको इस किले की तीर्थ यात्रा करनी होगी। तप जो आपने करने हैं, ये किला उनकी एक झलक मात्र है। मुझे बताया गया है, कि इस तीर्थ यात्रा के लिए आपमें से कुछ लोगों को कठिनाइयों में से गुजरना पड़ा और मार्ग पर कुछ कष्ट उठाने पड़े, परन्तु जहाँ जाने का साहस असुरों में भी नहीं होता, उस स्थान पर जाने का साहस करना भी आनन्ददायी है। यदि आप इस प्रकार की कठिनाइयों में आनन्द लेना जानते हैं तब आपको समझ लेना चाहिए. कि आप ठीक मार्ग पर हैं। स्वत: ही जब आप विचारशील होने लगे तो आपको समझ लेना चाहिए कि आपका उत्थान ठीक से हो रहा है। ज्यों ज्यों आप शान्त होते चले जाते हैं और किसी को स्वयं पर आक्रमण करते देख जब आपका क्रोध उड़न छू हो जाता है तब आप समझ लें कि आपका उत्थान ठीक से हो रहा है। अपने व्यक्तित्व की अग्नि परीक्षा या आती हुई विपत्ति को देख कर भी जब आप शांत रहते हैं तब समझ लें कि आपका उत्थान ठीक से हो रहा है। किसी भी प्रकार की बनावट जब आपको प्रभावित न कर पाए, अन्य लोगों की भौतिक उन्नति जब आपके हृदय में इष्र्या भाव जागृत न कर पाए, तब आप समझ लें कि आपकी उन्नति ठीक से हो रही है। सहजयोगी बनने के लिए जितना भी परिश्रम किया जाए, जितने भी कष्ट उठाए जाएं कम हैं। व्यक्ति जो चाहे कर ले. वह सहजयोगी नहीं बन सकता। परन्तु आपको तो बिना किसी प्रयत्न के सहजयोग प्राप्त हो गया है। अत: आप कुछ विशेष हैं। तो आपको यह समझ लेना चाहिए कि आप विशेष हैं, यह जानकर आप विनम्र हो जाएंगे. जब आप विनम्र हो जाएंगे, जब आप ये देखेंगे कि आपने कुछ उपलब्धि पा ली है और आपमें शक्तियां आ गई हैं, तथा आप पावनता (Innocence) प्रसारित कर रहे हैं, और विवेकशील है तो परिणाम स्वरूप आप करुणामय, विनम्र व्यक्ति बन जाएंगे। तब आपको विश्वास कर लेना चाहिए कि आपको अपनी माँ (श्रीमाताजी) के हृदय में स्थान प्राप्त हो गया है। नए क्षेत्र में आए नए सहजयोगी, जिसे नई शक्ति के साथ चलना है. जहाँ इतनी तीव्रता से उसे उन्नत होना है कि बिना ध्यान किए भी वह ध्यान में रहे, की यह पहचान है कि 'मेरे 'साक्षात के सम्मुख न होते हुए भी आप स्वयं को मेरे सम्मुख पाएंगे।' बिना मांगे आपके 'पिता' (परमात्मा) आपको आशीर्वाद देंगे। यही उपलब्धि पाने के लिए आप सहज योग में आए हैं। सहस्रार के इस महान दिवस पर इस नए क्षेत्र में एक बार फिर में आपका स्वागत करती हूँ। परमात्मा आपको धन्य करें। परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी फ्रांस - सहस्त्रार दिवस, 5 मई 1984