चैतन्य लहरी अंक 1& 2 1999 खण्ड XI हीई लं डाल १ नें ...जिस समय भी आप घर पहुंचे-प्रातः, सांय या किसी और समय-यदि आप उन्नत होना चाहते हैं तो प्रतिदिन आपको ध्यान धारणा करनी चाहिए। आपका ध्यान तभी शुरु होता है जब आप निर्विचार समाधि में होते हैं। तब आपकी प्रतिक्रियाएं शून्य हो जाती हैं। किसी भी चौज की ओर जब आप देखते हैं तो मात्र देखते हैं। निर्विचार समाधि में होने के कारण आप प्रतिक्रिया नहीं करते। आप प्रतिक्रिया नहीं करेंगे। जब प्रतिक्रिया समाप्त हो जाएगी तो आप आश्चर्यचकित होंगे कि सभी कुछ दिव्य हो गया है। प्रतिक्रिया तो अगन्य चक्र की समस्या है। एक बार जब आप शुद्ध निर्विचार समाधि में होते हैं तब आप इस प्रकार परमात्मा से एक-तार हो जाते हैं कि परमात्मा आपकी सारी गतिविधियों को, आपके जीवन के हर क्षण को संभाल लेते हैं और उसकी देखभाल करते हैं। परमात्मा से जुड़कर आप स्वयं को पूर्णत: सुरक्षित महसूस करते हैं और परमात्मा के आश्शीवादों का आनन्द लेते हैं ।" परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी इस अंक में क्रम सख्या पृष्ठ नं. सम्पादकीय श्री आदि शक्ति पूजा 21:06.98 2. 12 हैदराबाद पूजा प्रवचन 25.02.1990 3. गुरु पूजा ।998 4. 14 विश्व समाचार 5. 26 श्री चरणों में प्रार्थना 28 6. सद्गुरु तत्व एवं विशुद्धि तत्त्व 30 7. योगी महाजन सम्पादक विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 अभिनव प्रिन्टस, दिल्ली-34, फोन : 7184340 मुद्रक चैतन्य लहरी खंड : X1 अॅक : 182 1999 सम्पादकीय स्वभाव की प्रवृत्ति है। प्रश्नों का चाहे काई संदर्भ न हो, चाहे प्रश्न विवेकशुन्य हा, परन्तु जब अहें इन प्रश्नों से जुड़ जाता है तो वे अत्यन्त क्या सभी प्रश्नों का उत्तर दिया जाना अशान्त मस्तिष्क में आवश्यक है? मस्तिष्क में, हर समय प्रश्नों का तूफान चलता रहता है आरम्भ में ये प्रश्न जिज्ञासा के कारण उठते हैं महत्वपूर्ण बन जाते हैं। प्रतिष्ठा का मामला वन परन्तु रजोगुणी (Right Sided) लोगों में जब बुद्धि की भाप उठने लगती हैं तो यही प्रश्न अह जाता है, "यह मरा प्रश्न है।" एक जन कार्यक्रम के पश्चात् वक्ता न अपने भाषण के संदर्भ में प्रश्न आमन्त्रित किए के तौर पर हमें प्राय: ऐसा सुनने को मिलता है परन्तु दर्शकों ने उनके भाषण में कही कि, "देखां, वह मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दे गई बातां के अतिरिक्त सभी प्रकार के प्रश्न पूछे। यहाँ तक कि श्रोताओं नं वक्ता पर उन दूसरे शब्दों में, "मैं उससे अधिक बुद्धिमान बातों का भी लान्छन लगाया जा उसने अपन भाषण में कही तक न थी। ये हैरानी की बात दने की कारण बन जाते है। उदाहरण का बढ़ाबा प्रश्नोत्मुख पाया। हूँ क्योंकि मैं इस प्रश्न का उत्तर जानता हूँ।" मैंने उससे पूछा, "परमात्मा क्या है? परन्तु नहीं है क्योंकि 'कल्पना 'बुद्धि' की बहन है. दोनों एक साथ उड़ान भरती हैं। बुद्धि जितना अधिक उछलती है उतनी हो तेजी से बेलगाम दे पाया । वह उत्तर न परमात्मा को परिभाषाबद्ध किस प्रकार किया जा सकता है? किसी व्यक्ति स्थान या घोडे की तरह से दौडकर कल्पना राजसिक वस्तु को तो परिभायित किया जा सकता है परन्तु प्रवृत्ति (Right Sided) व्यक्ति का भड़काती हैं। भयकर नृत्य करने वाली बुद्धि की प्यास का कभी शात नहीं किया जा सकता। अश्व की अनन्त को किस प्रकार परिभाषित कर सकते है? असीम को दी गई कोई भी परिभाषा उसे प्यास ता बुझाई जा सकती है परन्तु किसी शराबी की आखों की प्यास किस प्रकार शान्त सीमाबद्ध कर दंती है। प्रश्न इतना असगत है कि उत्तर देने के योग्य हो नहीं, फिर सभी प्रश्नों का संभवतः उत्तर होता भी नहीं है। अहँ जब असम्भव प्रश्न पूछता है तो खाली घड़े की तरह से प्रश्न पूछ-पूछ कर बहुत स्वयं को अतिविलक्षण मानता है। यह किसी शोर करती रहती है। प्रतिद्वन्दी को पछाड़ने की चाल हो सकती है या केवल दिखावा करने का अभ्यास । वास्तव में प्रश्नों की इस प्रकार झड़ी लगा दी कि एक की जाए? बुद्धि अन्दर से खांखली है और क एक अन्य जनकार्यक्रम में एक व्यक्ति ने प्रश्न का उत्तर देने के लिए कोई भी विवश नहीं हैं। बोलने को स्वतन्त्रता नि:संदेह प्रशन पूछने का दता। वास्तव में वह केवल प्रश्न करने को हो। जन्मसिद्ध अधिकार प्रदान करती है। परन्तु इस लालायित था. उनका उत्तर पाने के लिए नहीं। प्रश्न का उत्तर पाने से पूर्व वह दूसपरा प्रश्न छाड़ वह उस पागल व्यक्ति सम था जो अपने निशाने प्रश्न का उत्तर देने के लिए कोई भी बाध्य नहीं रम पर बिना निशाना साथे गोलिया चलाता चला हैं। प्रश्नों की झड़ी लगा देना रजीगुणी (आकरामक) चैतन्य लहरी = खंड : XI अंक : 1 & 2 1999 जाता है। इस प्रकार के आक्रामक लोग सदेव और संदेहो से दूर आत्मा के साम्राज्य को गहनता में अपने ही सम्माहन (Obsession) में तो रहते हैं। व या तो अपने वारे में बात करते रहते पूछने के लिए क्या रह गया ? फसे ले जाती है। जब आन्तरिक आनन्द में खा गए "किसका फान है या प्रश्न पूछते रहते हैं। आया उसने क्या कहा? उसके जूते का नम्बर आत्मा स्वयं हमें आवश्यक चीजों का ज्ञान देती है। हम बास्तव में अपने गुरु बन जाते हैं। हमें समझना चाहिए कि हम अपनी परमेश्वरी क्या था? आदि आदि।" एक अहँकारी व्यक्ति प्रश्न पूछने के माँ के सरक्षण में हैं। व हर चीज का ध्यान रखती हैं। ता क्यां हम व्यर्थ के प्रश्नों से अपने उन्माद में इसे प्रकार बह गया कि वह इस प्रकार अपने प्रश्न दाहराता रहा मानो ग्रामीफात चित्त को परशान कर? हम यह भी याद सखना चाहिए कि उत्थान के विषय में यदि अब भी की सुई अटक गई हो! वक्ता उसके प्रश्ना का उत्तर द रहे थे परन्तु उसका चित अपने प्रश्नों में हमारे मन में कुछ प्रश्न शेष हैं तो हमारों इस प्रकार उलझा हुआ था कि वह वक्ता की परमेश्वरी माँ अपनी चमत्कारिक लोला तथा अद्भुत प्रवचनों से उन सब प्रश्नों का उत्तर हमें श्रीमाताजी की कहीं हुई बातों को बात को समझ हो ने पा रहा था। इसी प्रकार दे देंगी। परन्तु तमागुणी ।Left Sided) लागा को रंखीय गति ( linear movement) उन्हें टंप रिका्डर की तरह से भूतकाल को घटनाओं को दोहरात चले पूर्णचित्त सं अपने सहस्रार पगर हम इन्हें पढ़े या जाने पर बाध्य करती है। वो अत्यत उवाऊ हो भी हमे तभी आत्मसात कर सकते हैं जब सुने। तब हमं आध्यात्मिक उत्थान में सहायक सभी प्रश्नों के उत्तर स्वतः ही मिल जाएगे। तो जाते हैं क्योंकि उनके मित्रों को उनकी सभी कहानियां जुबानी याद होती हैं। आइए श्रीमाताजी के चमत्कारिक प्रवचनो को ध्यान से समझे। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् हे देवी महासरस्वती ज्ञान के सागर की सतुलित हाकर व्यक्ति बुद्धि के चगुल से मुक्त हा जाता है। नि्विचार समाधि में वह आतरिक शान्ति कृपा-दृष्टि, जो आपने हम पर की है, के लिए की अवस्था का आनन्द लता है हम आपके हृदय से अभारी हैं और आपको खटमल नहीं होता। आन्तरिक शान्ति हमें प्रश्नों कोटिशत् प्रणाम करते हैं। जहां प्रश्न रूपी अक : 182 1999 E IX 2E नतन्य लहरो श्री आदि शक्तिपूजा 21-06-1998 कबैला रहा है। तो उसने कहा कि ये ब्रह्माण्डीय शक्ति रूर के लोग, देखा गया है, उदार मनस्क ( COSMIC ENERGY) का सात है। केवल आदि शक्ति ही ऐसी हो सकती है। है। कवल इतना ही नहों, बहा के वैज्ञानिक तो विशष रूप से उदार मनस्क हैं। उन्हं अल्याधिक वे ही हर दबीया गया. जिसके कारण उन्होंने सुक्ष्म चीज़ें चीज का सृजन करती है। पूरा बातावरण, जैसा कि हम जानत हैं अत्यन्त बनावटी हैं। अपनी पुस्तक में मैंन उनके चाहा, अधिक सूक्ष्मता में जाकर शरीर और हाथों कार्यों के विपय में लिखा है। परन्तु में आपका बताना चाहगी कि सर्वप्रथम उनकी ( आदिशक्ति) अभिव्यक्ति बाई और को होती है। यह महाकाली को अभिव्यक्ति है। तो महाकाली के कार्य के लिए बाई ओर को उन्होंने पावनता, अवाधिता खाजन का प्रयत्न किया। उन्होंने केवल रसायनों या प्रकाश के भौतिक गुणों को ही नहीं खोजना के इर्द-गिर्द विद्यमान चैतन्य-प्रकाश को भी उन्होंने खोज निकाला। उन्हांने इतनी अधिक ने और इस खाज को पूरे विश्व खांज की, स्वीकार किया। अब मुझे यह लगता है यह व्यक्ति एक विशेषज्ञ था क्योंकि वह अत्यन्त तथा मंगलमयता के गुणों के कारण श्री गणेश सुप्रसिद्ध है और उच्च पद पर आरूढ भी है। की सृष्टि की। ब्रह्माण्ड का सृजन करने से पूर्व वह बरता हा था कि उसे 150 संस्थाए चलानी पड़ती है। अत्यन्त विनम्र और सज्जन व्यक्ति। अपने शोध के साथ जब वह आया तो मुझे तत्पश्चात् वं विराट के शरीर मे प्रवेश करके प्रसन्नता हुई क्योंकि वैज्ञानिक रूप से यदि यह चैतन्य लहरियां) प्रमाणित हो जाए तो कोई भी इसे चुनौती न दे पाएगा। जो भी कुछ वह यह किया जाना आवश्यक था। सकरप्रथम श्रगणश का सृजत करके वह स्थापितः हो जाती है दाई और को जाती हैं जहां सारे ब्रह्माण्डों-भुवनों का सृजन करती है। भुवन संख्या में चौदह है अथात कई ब्रह्माण्डों को मिलाकर एक भुवन बनता है। दाई और पर वे इन सबका सजन करती हैं। तब प्रमाणित करना चाहता था उसकी बीजगणितीय जाटलताओं के साथ उसने एक पुस्तक लिखी वे ऊपर की ओर जाती हैं और फिर नीचे की है। उसने बताया कि मानवीय चेतना से परे ओर आते हुए इन सभी चक्रा-आदि चक्रां या शून्यता (Vacuum ) हें और उस शून्यता में ही पीठा की सृष्टि करती है। कुण्डलिनी रूप में ब आप वास्तविकता को जान सकते हैं। जब यह स्थापित हो जाती है या हम कह सकते है कि सब (चैतन्य लहरियां) वास्तविकता बन जाएंगी कृण्डलिनी उनका एक भाग है। शेष कार्य इससे तो यह विज्ञान है। इस प्रकार इसे विज्ञान का भी कहीं अधिक है। अतः अवशिष्ट शक्ति रूप दिया गया है। उसने मेरे बहुत सें फोटो दिखाए, विशेष तौर पर बह फोटो जिसमें नाव पर जाते हुए मरे सिर से बहुत चैतन्य निकल के रूप में आती हैं। इस कुण्डलिनी और चका ( Resiedual Energy) का अर्थ यह हुआ कि यह सारी यात्रा करने के पश्चात् वे कुण्डलिनी : 1 & 2 1999 चतन्य लहरी X1 अंक खुई के कारण वे एक क्षेत्र की रचना करती है जिसे हम शरीर में 'चक्र' कहते हैं। सर्वप्रथम वं सिर जहां लोगों को सभी कुछ कार्यान्वित करने वाले में इन चक्रों का सृजन करती है। इन्हें हम चक्रों मातृ-तत्व की पूर्णत: समझ आ गई है। भारत में के पीठ कहते हैं और तब नीचे की ओर आकर वे चक्रों को सृष्टि करती हैं जो कि विराट के शरीर में हैं। एक बार जब यह सब कुछ हो से स्वयंभुः हैं अर्थात् ऐसे देवी देवता जा स्वतः जाता है तब वे विकास प्रक्रिया द्वारा मानव का पृथ्वी से प्रकट हुए हैं। उदाहरणार्थ महाराष्ट्र में सृजन करती है और इस प्रकार विकास प्रक्रिया महाकाली महासरस्वती और महालक्ष्मी के स्थान आरम्भ होती हैं तब जल में सूक्ष्मदर्शी अस्तित्व हैं। वहां पर आदि शक्ति का भी एक स्थान है। से इसका विकास आरम्भ होता है। जब वे जल जो लोग नासिक गए है उन्होंने चतुर्ट्गी अवश्य तथा इन ब्रह्माण्डों का सृजन करती हैं तो अपनी देखा होगा (आपमें सं कितने लोगोंने देखा है? विकास लोला की करने के लिए पृथ्वी मां को बहुत अच्छा) । यह चतुर्श्रगी आदिशक्ति का ही सर्वोत्तम स्थान मानती हैं। वहां पर आदि प्रतीक है. जोकि मानव को उत्थान दन वालो गया और आज उस स्थिति तक लाया गया है के बारं में पूर्णत: विश्वस्त हैं कि लोग मातृतत्व में वहुत कार्य करता है। भारत मातृतत्व हो सारा शक्ति इस सूक्ष्म अस्तित्व को बनाती है। मैं यह सब कुछ लिख चुकी के पश्चात् आप देख सकंगे कि किस प्रकार हाइड्रोजन, कार्बन और आक्सीजन आदि मिश्रित हो गए किस प्रकार नाइट्राजन प्रवेश किया और किस प्रकार यह सारी प्रक्रिया इतन जटिल नहीं थे। यह कार्य करना प्रकृति क आरम्भ हुई। यह सब मैं अपनी दूसरी पुस्तक में लिए सहज था। पृथ्वी मा. पूरा वातावरण, लिख रही हूँ जो कि मैन लगभग समाप्त कर ली है। परन्तु अभी भी कुछ चक्रों के बारे में थो तो इन सभी का सृजन लिखा जाना थाको है। अब, इस घटना के सकी। परन्तु जब मानव की बारी आई तो उस शक्ति का चौथा आयाम है, ओर अन्त में हूँ। मेरो पुस्तक आ जाने महालक्ष्मी मार्ग से आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है। यह सारा प्रक्म है-सारा सृजन आदिशक्ति की शान्ति द्वारा ही किया गया। यह सब बहुत इस लीला में बड़ा कार्य है। यद्यपि इससे पूर्व किए गए कार्य ने पचतत्व, सभी की एकाकारिता आदि शक्ति से से कर व सुगमता मैं लिखूगी. लोग उस पर बैज्ञानिक पश्चात्. जो भी कुछ संशय नहीं करंगे। वे जान जाएगे कि यह स्वतन्त्रता' प्राप्त हो गई। यही एक ऐसी जाति है जिसमें अहम् है तथा जा साच विचार की माया में फसी है। अहम् के कारण माया न उन पर सत्य है और जो मैंन कहा वह सच्चाई है। माँ आदिशक्ति में विश्वास कर पाना कार्य किया और विश्व का सृजन करने वाल कठिन कार्य था. विशेषतौर पर इसाई धर्म संचालकों सिद्धान्त को वे भुला नं. आप हैरान होंगे 'माँ का वर्णन ही नहीं किया। इस्लाम नं भी माँ का वर्णन नहीं किया। के परिश्रम का फल है, और वे इन सभी चीजो 'माँ के प्रति पूर्ण अविश्वसनीयता है। केवल के स्वामी हैं। यह बात उनमें इस हृद तक बैट भारतीय दर्शन में ही "माँ को पूर्ण मान्यता दी गई कि व दूसरे देशों पर आक्रमण करने लगे गई भारतीय वास्तव में शक्ति के पुजारी थे। और बहुत से लोगों को मार गिराया एसा करने बैठे। उन्होंने इसे अपना अधिकार समझ लिया। उन्हें लगा कि यह उन्हों में उन्हें विल्कुल भी संकाच नहीं हुआ । पूरा इस प्रकार मां क प्रति विश्वास का बनाए रखा 1 & 2 1999 चंतन्य लहरी खड़ : XI अक जोवन वे अन्य लोगों को सताने, उन्हेँ वश में परन्तु कुछ समय पश्चात् आप दखगे कि वे करते तथा हानि पहुँचाने के विषय में साचते रहे। उन्होंने कभी न तो सांचा और न ही अन्तर्दर्शन की महान् प्रक्रिया चल रही है। य समझ लेना किया कि व जो कर रहे नहीं किया जाना चाहिए। मानव को प्राप्त स्वतन्त्रता उच्च चतना के क्षेत्र में प्रवेश कर गए हैं जहां के कारण ही पूरे विश्व भर में उथल-पुथल है। आप परमात्मा से जुड़े हुए हैं। यहां भी यदि आप सत्ताधारी लोग अत्यन्त करूर थे और उन्हें अन्य सब दिव्यताविहीन सर्वसाधारण लोगा को तरह लोगों की भावनाओं का विल्कुल सम्मान न था। यृथ्वो पर एसा बहुत बार हुआ है। सहजयाग संसार से गायत हा गए शुद्धिकरण हैं वह गलत है और आपक लिए आवश्यक है कि आप अत्यन्त से व्यवहार करते हैं तो आप कितनी दर चल सकगे? अत: अल्यन्त आवश्यक है कि ध्यानधारणा द्वारा स्वयं को विकसित करक आप वास्तव में अब सहजबाग को आरम्भ हुआ है। इसके आरम्भ होने के पश्चात् सहजयोगी आदिशक्ति बहुत अच्छे सहजयागी बने। कुछ स . से सीधे हो आशीर्वाद प्राप्त कर रह है। परन्तु कुछ दशा में, हम इस मामले में अत्यन्त भाग्यशाली मैं ये भी कहूँगी कि सहजयोगियों में भी ऐसे हैं। परन्तु कुछ देशों में मैं पाती हूँ कि लोग लोग बहुत कम हैं जिन्हें परिपक्व कहा जा गृंगे-बहरे हैं। वे सहजयोंग को नहीं समझ सकते। सके। उनमें से तो मात्र इसलिए सहजयोगी मेरे कार्यक्रम के लिए तो वे जरूर आतं हैं परन्तु हैं क्योंकि ऐसा करना फैशन है। हो सकता है उनके दृष्टिकोण से ये बेहतर हो या स्वार्थ सिद्धि के लिए वे सहज योगी हों। यह थाना पर कुछ बाद में गायब ही जाते हैं। मरे विचार में सहजयागी इसके लिए जिम्मेदार है। जिसे प्रकार से वे घूमते है जिस प्रकार वे सहजकार्य करत है। वह सहज नहीं है। निश्चित रूप से इसमे कुछ दृष्टिकाण बहुत गलत है आप यदि सहजयाग में हैं तो पूर विश्व के लिए उत्तरदायी हैं। आप लोग ही तो आगे आए हैं, केंवल आप लोगों ने ही तो इस बला में आपको इस गलती है जिसके कारण सहजयोग कुछ स्थाना पर वैसे कार्यान्वित नहीं हो रहा जैसे कुछ अन्य स्थानों पर कार्यान्वित हो रहा है। कुछ प्राप्त किया है। प्रकार आचरण करना चाहिए जो महान सन्तों तथा आत्मसाक्षात्कारी लोगो को शोभा दे परन्तु कभी कभी तो सहजयोगी इस प्रकार आचरण मुझे आपको बताना है कि सभी कुछ आदिशक्ति है और सभी कुछ उनके माध्यम से घटित हुआ है। अब शेष कार्य आप लागा से होना है क्याकि आप ही उपकरण है और आप करते हैं जिससे बहुत सदमा पहुँचता है। उन्हें न बे तो अपना सम्मान होता है और न दूसरीं का और ही ने अन्य लोगों को परिवर्तित करना है। हर उनका पूर्ण दृष्टिकोण ही अत्यन्त विचित्र होता सहजयोगी को सोचना चाहिए कि उसने कितन हैं। उनमें से कुछ धन लोलुप है और जो सत्ता लालुप हैं वे तो उनसे भी कहीं भयानक है। व सोचना आवश्यक हैं। हमने सहजयाग के लिए वि लागों को आत्मसाक्षात्कार दिया? इसके विषय में अत्यन्त अपमानजनक, निरंकुश तथा भीषण हैं। सहजयोग में सता हथियाना ही उनका सत्य है रहो थी, मेर साथ वाली सोट पर एक महिला और इसके लिए वे सभी प्रकार की चालें वैठी थी उससे इतनी गर्मी निकल रही थी कि अपनाते हैं। आरम्भ में तो वे ठीक-ठाक लगते हैं मैं समझ नहीं पाई । तब उसने मुझे बताया कि क्या किया? एक बार में वायुयान से यात्रा कर 7. चतन्य लहरी । खंड : XI अक : 1&2 1999 ho स्त्रियां क्या नहीं है। व बहुत से लोगों का परिवर्तित कर सकती है, बहुत से लोगा का हित वह एक गुरु की शिष्या है। गुरु पुर उस बहुत गर्व था। तब उसने मुझे अपने गुरु क विषय में कर सकती है, वहुत प्रम एवं करुणा का प्रसार बताना शुरु किया। में हैरान थी कि इस महिला कर सकती है क्योंकि प्रेम और करुणा तो मां की उस मुरु से कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ था फिर भी ये कह रही है कि उसने इतना धन उसे दिया है, इतना कुछ उसके लिए किया है! उसे महिला का क्या लाभ! हर समय यदि आप का गुण है महिला का गुण है। गुण विहीन बेकार के फैशनी और साज सज्जा में हो व्यस्त कुछ भी प्राप्त तहीं हुआ फिर भी एक अजनबी से वह अपने गुरु के विषय में बात कर रही है! परन्तु सहजयाग में मैंने देखा है कि लोग कुछ शर्माल हैं। व दूसरा से सहजयाग के विषय है। आपके पास हैं तो सारा समय ब्बाद हो जाता बहुत कम समय है। आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ. अब आप सोचे कि आपने अब तक क्या किया. और क्या पाया? सहजयाग में, मैन में खुलकर बात नहीं करना चाहते। ऐसा करके आप बहुत गलत कार्य कर रहे हैं क्योंकि आप हो इसके लिए जिम्मेवार हैं। आपको हैं, जैसे कुछ विशेष कर्मकाण्ड बताए जाते हैं। देखा है, हर प्रकार की अटपटी चीजे बढ़ रही उनके विपय में बातचीत की जाती है तथा एक आत्मसाक्षात्कार दिया गया है। नि:संदेह आप जिज्ञासु थे, फिर भी अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार देने का प्रयत्न आपको अवश्य करनी चाहिए। लोलुप लोग दूसरों को सताना चाहते हैं। उन पर इस मामले में पुरुष कहीं अधिक प्रगल्भ है और काबू पाकर उन्हें धमकाते हैं और इस प्रकार इसे कार्यान्वित कर रहे हैं परन्तु सहजयोगी महिलाएं उस स्तर तक नहीं आ रहीं जहां उन्हें तो ये भी कहने लगते हैं कि, "श्रीमाताजी ने होना चाहिए। इसके विषय में उन्हें अधिक ऐसा कहा" यह श्रीमाताजो का विचार है। संवेदनशील प्रकार की सत्ता भक्ति भी विद्यमान है। सत्ता व्यवहार करते हैं मानो वे बहुत अच्छे है। कुछ अपनी सत्ता लालुपता के कारण वे बाते गढ़ते हैं होना चाहिए और इस कार्य को कार्यान्वित करना चाहिए। वे ये कार्य कर सकती और इस प्रकार से बातचीत करते है; उनसे पूछ हैं। परन्तु मरे विचार में, उनकी छोटी-छोटी समस्याएं है जिनक कारण वे चिन्तित हैं। मुझे सदा पत्र मिलते हैं जिनमें वे लिखतो हैं कि मुझे ये समस्या है. वो समस्या है-सदैव शिकायत भरे की खामियां खोजता है। ये जा बहुत ही छोटी पत्र। उनके पत्रों से मैं इतनी परेशान हूँ कि मुझे चीज घटित हुई है इसे रोका जाना चाहिए। लगता है कि वे बेकार हैं। उनके पत्रों का पढ़ना भी व्यर्थ लगता है। आपको ये बता देना मैं जाएगी। तो पूरा विश्व हमारे कार्य कं विषय में आवश्यक समझती हैँ कि महिलाओं को पुरुषों जान जाएगा? हमें चुनौती नहीं दी जा सकंगी। से अधिक प्रगल्भ होना चाहिए क्योंकि वे शक्ति फिर भी हमें स्वयं देखना होगा कि इस प्रकार हैं और मैं भी एक महिला हूँ। सहजयोग के विषय में पुरुष अधिक चुस्त एवं प्रगल्भ हैं। मुझे समझ नहीं आता कि लड़खड़ाते नहीं रहना चाहिए। आप यदि कि आपने कितने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया है? वह ता अन्य लोगों के विषय में बात करता है. उनकी आलोचना करता है और सहजयाग एक बार जब ये पुस्तक प्रकाशित हो की मान्यती यदि हम प्राप्त कर लते हैं तो हमें उस स्तर तक उन्नत भी होना चाहिए। हमें पीछे 8. चैतन्य लहरी । . खंड : XI अंक : 1& 2 1999 सहजयोगियों विशेषकर सहजयोगिनियों से पूछे प्रकार फलों से लदा हुआ पड़ नीचे झुक जाता । है इसी प्रकार आपको भी विनम्र होना चाहिए। तो उन्हें सहजयोग का अधिक ज्ञान नहीं हैं इन्हें न तो चक्रां का ज्ञान है और न ही परन्तु इस विनम्रता को प्राप्त करना कई बार बहुत कठिन होता है। क्यांकि पाश्चाल्य संस्कृति दवी-देवताओं का। वे कुछ भी नहीं जानती। किस प्रकार वे सहजयोगी हो सकती हैं? आपको ही विनम्र नहीं है। यह आक्रामकता, प्रभुत्व की इसकी पूरा ज्ञान होना चाहिए। आप ये नहीं संस्कृति है। प्रभुत्ववाद की वजह से वे पूर महसूस करते कि आप बाह्य से सहजयागी नहीं विश्व में जा पाए और बहुत कुछ प्राप्त किया। हैं अन्दर से है। अपने अन्दर आपका चक्रों की परन्तु उन्होंन क्या पाया? कुछ नहीं। अपने दशा समझ होनी चाहिए और ये भी ज्ञान होना चाहिए में ही यदि आप देखे तो वहा नश का व्यसन है। कि किस प्रकार सहजयोग कार्य करता है और 7440 लोग नशे के इतने आदो क्यां हो जाते हैं? इतन वर्णन हैं जिनका मं किस प्रकार इससे सहायता मिलती है। मान लो आप भली-भाति अपराधमय कार्य वो करते भी नहीं करना चाहती। वे ऐसे-ऐस जघन्य कार्य में ही उस शक्ति का सोत हूँ; करते हैं जिनके विषय में भारत जस गरीब दश जानते हैं वा स्रीत में हो हूँ, तो आप भी लोगों से व्यवहार करने और उन्हें सहजयाग में लाने को में सुना भी नही जा सकता। अत: खाज निकालिए निपुणता लाना ही वह महत्वपूर्ण कार्य है जो आपने करना है। मैं देखती हूँ कि लोग अभी भी बहुत पिछड़े हुए हैं। जिस देश में वे रहते हैं, उसकी भी उन्हें संस्थाएं आरम्भ करने चाली हूँ जो मानव हित के चिन्ता नहीं है। इन परिस्थितियों में उन्हें दोषी लिए कार्य करेगी। आप सब लोग भी इसमें ठहराया जाएगा कि क्यों नहीं उन्होंने अपने देश सम्मिलित हो सकते हैं। अपने देशी में भी आय वासियों को समझाने का माग ढूंढा? प्राप्त करें। सहजयोग में अन्य लोगों को कि क्या गलती है और किस प्रकार चीजो का ठीक किया जा सकता है? आप यदि लागा की मदद कर सके तो बहुत अच्छा हागा। मैं कुछ एसे कार्य आरंभ कर सकते हैं। परन्तु सर्वप्रथम आपको अपने अह से मुक्ति पानी होगी एक बार जब एसा हो जाएगा तो आपका चित्त स्थिर हो जाएगा। अहं का काब उन्नति के समीप पहुँचकर भी सहजयोग केवल एक या दो देशों से नहीं बढ़ेगा, सभी देशों को लाना होगा, सभी लोगों को सहजयोग में लाना हागी, उन्हें विश्वस्त करने के लिए हमारे करना आपके लिए बहुत सहज है। क्योंकि आप पास पुस्तकें भी हैं, इसके विषय में आपने उनसे ईसामसीह की पूजा करते हैं । ईसामसीह ने बातचीत भी करनी है। परन्तु मैने देखा कि अगन्य चक्र पर स्थान ग्रहण किया। आप इसामसीह उनकी विनम्ता आप में की पूजा करते हैं परन्तु सहजयोगी जब सहजयाग का प्रचार करने लगते है ता उनका अहँ बढ़ जाता है और वे सोचने नहीं है। उसके बिल्कुल विपरीत हैं। हर स्थान पर ऐसा ही हुआ है कि धर्म में जिस बात की हैं। लगते हैं कि व बहुत महान अगुओ है। इस प्रकार के मूर्खतापूर्ण विचार उनके मस्तिष्क में शिक्षा दी गई हैं उसके विपरोत कार्य हुए उदाहरणार्थ हिन्दू धर्म में-हिन्दू दशन में माना जाता है कि सभी प्राणियों में आत्मा है। ता किस घुस जाते हैं। यह गलत है। आपको अत्यन्त विनम्रता से सोचना होगा। जितना अधिक आपके प्रकार भिन्न जातियां हो सकती है और किस पास होगा उतने ही अधिक विनम्र आप होंगे-जिस ५) चैतन्य लहरी । खड : XI अक : 1& 2 1999 ्रम प्रकार कोई ऊँचा हो सकता है और कोई नीचा? आपको दण्ड नहीं देना चाहती, कुछ नहीं दूसरी और. ईसा ने कहा है कि आपको क्षमा करना है. सभी को क्षमा करना है। आपको जाते हैं। अपनी देखभाल करके यदि आप दिनम होता है । रन्तु देखा गया है कि ईसाई स्वयं उन्नत नहीं होते तो आप बेकार हो लाग विनम्रता का नहीं जानते। इसकी उन्हें जाते हैं। समझ ही नहीं। दोनों, स्त्रियां और पुरुष एक से है। परस्पर लड़ते रहते हैं। न कोई विनम्र है और पूर्व परिचित नहीं है। वह बहुत विद्वान है। यहुत करना चाहती-परन्तु आप स्वयं दणिडत हो ये खोजः बहुत महान् है। ये व्यक्ति मंरा विनम है। उसने मुझे बताया कि कि मैं परमात्मा विश्व के सृष्टा को हूँ और फिर भी सामान्य हूँ!" मन पुछा, कि , " न काई शात। उनका स्वयं को जनहितेषी कहना, कल्पना करा बैला मात्र दिखावा हैं। वास्तव में उनके हृदय में न तो प्रेम है न करुणा। वास्तविकता को जानने के लिए हमें समझना होगा कि हम बनावटी चीज़ों आपको क्या होना चाहिए, आप क्या साचत हैं? सं [नहीं चल सकते। अन्य लोगों को बेवकफ उसने कहा, "श्री माताजी, यह महसूस करना बना रहे हैं हमें जनहितैषी बनना होगा। एक बार सम्मुख बहुत बड़ी बात है कि मैं आपके सम्मुख बैठा हूँ और आप यहां है।" मैंने कहा कि यह अच्छी जब आप एसे बन जाएगे तव उस कार्य को कर नग जिसक लिए इस बसन्त काल में आपका बात है कि आप मेरी उपस्थिति को निष्ठर एवं प्रबल नहीं पाते। में बहुत प्रसन्न हूँ। व कहने जन्म होत या कुछ भिन्न होते। परन्तु आप विशेष लगे कि मैं केवल आपका प्रम आपकी करुणा ूप से जन्में हैं। अत: अपने मूल्य को समझे. की महसूस करता हूँ। ऐसा होना चाहिए। हम स्वयं की समझे। आत्मसम्मान में रहें और जान लें कि हममें मात्र प्रेम एवं करुणा ही होनी सहजयोगियों के लिए आवश्यक कार्यो का करे। चाहिए। अपने लिए प्रेम एवं करुणा इस प्रकार नि:सन्देह आप नौकरी भी करते हैं तथा अन्य से होनी चाहिए कि किसी अन्य का हृदय न कार्य भी परन्तु, आप आश्चर्यचकित होंगे. यदि दुखाए। किसी का ठंस पहुंचाना बहुत पापमय है आप सहजयोग का कार्य करेंगे तो सभी कार्यों प में आनन्द आता है। वे स्वयं को बहुत चतुर समझते हैं परन्तु य सत्य नहीं है। लोगों से बात करते हुए आपको अन्यथा आप बहुत पहले अवतराण हुआ है। सरन्तु कुछ लोगो को ऐसा करने के लिए आपको अधिक समय मिलगा। एक बीर जब आप परमात्मा का कार्य करने लगंगे तो परमात्मा आपका कार्य करेंगे। आप हैरान होंगे अच्छी तथा सुखदायी बात कहनी चाहिए। क्रोध एक अन्य दोष है-छोटी सी बात पर लोग क्रोधित हो जाते हैं । अब इस क्रोध को बताना होगा कि "शांत रहा. मुझे तुमसे कुछ नहीो लेना निभर है। स्वयं देखें । आदिशक्ति स्वय अवतरित देना।" एक अन्य दोष है लोगों का सूक्ष्म रूप से सत्ता लोलुपे होना. बहुत सुक्ष्म रूप से उनके पास दूसरे लांगों को वश में करने की विधियां किसी भी बात के लिए लोग मेरी स्वीकृति हैं। इससे आपका क्या लाभ है? एसा करने से क्या होगा? इन सांसारिक चीजों से आपका थांड़ी कि भले कार्य करने के लिए किस प्रकार आपकी इतना समय मिलता है! वापिस जाकर अन्तर्दर्शन करना आप पर मैं देखने में अत्यंत साधारण हूँ हुई है। परन्तु , अपने व्यवहार में मैं बहुत अधिक विनम्र हू । आवश्यक नहीं समझते। मैं कुछ नहीं करती, 10 नतन्य लहरी ॥ स्खड : XI अक : 1 & 2 1999 सी लाकप्रियता मिल सकती है, थोडी सी पदवी प्राप्त हो सकती है परन्तु आखिरकार ये सब है पश्चिमी देशों में रूस ही एक ऐसा देश है जो क्या? इससे आपका भला न होगा। जो चीज़ ( To become) प्राप्त की है। मैं साचती है कि आध्यात्मिकता की महान् बुलदियां प्राप्त करेगा। इसका अर्थ है कि वे अत्यन्त शक्तिशाली लाग आपका भला कर सकती है वह हैं आपका स्वयं की सहजयोग का कुशल माध्यम बनाना। सहजयोग होंगे। अब देखना है कि आप लोग अपने देशों में क्या कर रहे हैं और किस प्रकार इस कार्यान्वित करने वाले है? आप यदि स्वयं को का कुशल माध्यम बनने से आपको बहुत प्रसन्नता होगी। तो पश्चिमी देशों के आप सभी लागो से मरा अनुरोध है कि स्वयं में विनम्रता विकसित परमात्मा का माध्यम माने तो सहजता से आप कर। एसा करना आवश्यक है। में हेरान थी, कि रूस के लोग कंवल विनम्र हो नहीं., अविश्वसनीय प्रकृति, आपका स्वभाव बदल जाएगा। आप रूप से समर्पित भी हैं। वे मेरी तरफ अपनी दृष्टि भी नहीं उठाते। मैं नहीं जानती कि किस लोग सांचेंगे, कि ये सन्त जा रहा है | बहुत से कार्य कर सकते है। तब आपकी अत्यन्त मधुर व प्रिय व्यक्ति बन जाएगे। सभी प्रकार उन्हें यह विचार आया। मुझे समझने के पश्चात् ही नहीं, इससे पहले से ही उनमें ये बात लिए खोज नहीं है। परैन्तु पूर विश्व के लिए यह हैं। वे इतने अच्छे, विनम्र और प्रेममय हैं। बच्चे भी मुझे प्रेम से अर्पित करने के लिए छोटे-छोटे जाएगी, पूरे विश्व के सम्मुख जब ये प्रकट हो तोहफ लाए। आश्चर्य की बात है कि किस जाएगी, तो आपके लिए, और मेरे लिए भी मुझे मात्र इतना ही कहना है। ये खोज मंरे हा एक खोज है। एक वार जब यह सुस्थापित चौज आसान हो जाएगी। प्रकार रूस के इन लोगों ने बनने की योग्यता परमात्मा आपको धन्य करें। चैतन्य लहरी ॥ खड : XI अंक : 1 & 2 1999 हैदराबाद पूजा परम पूज्य माताजी निर्मलादेवी का -प्रवचन आप सबको देखकर मुझे प्रसन्नता हो होता है, उदाहरणार्थ पंड का धीमा विकास, रही है। मैं कल्पना भी न कर सकती थी कि पहले थोड़े से फूल आते हैं और धीरे धीरं हैदराबाद में इतने लोग सहजयोगी हो गए हैं। भिन्न प्रकार के लोगों में परस्पर मंलजील हैदराबाद जीवन्त प्रक्रिया है; इसे हम किसी पर थाप नहीं के लोगों की विशेषता है। अब सहजयोग को सकते। कहने मात्र से किसी का आत्मसाक्षात्कार हमने एक नए तरीक से समझना है। यह जान लेना आवश्यक है कि सहजयोग स्रत्य है और विना हम किसी की इसका प्रमाण पत्र नहीं द हम इसमें दूढ़ता पूर्वक स्थापित हैं। अत: हमें सकते निश्चित रूप से ये असत्य को त्यागना होगा अन्यरथा हम पावनता असंख्य फुल खिलने लगते हैं। सहजयोग भी नहीं मिल जाता। आत्मसाक्षात्कार घटित हुए भी नहीं कहा जा सकता कि सभी लोगो को आत्मसाक्षात्कार मिल का न पा सकेंगे। बास्तव में असत्य एक भम हो जाएगा। कुछ कारणी से बहुत स लागा का है और हमें उस भ्रम से निकल जाने का निर्णय आत्मसाक्षात्कार नहीं मिल पाता। कुछ लाग साचते करना चाहिए। इस लक्ष्य को पान की शुद्ध इच्छा है कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के लिए हिमालय मात्र से ही हमारी जागृत कुण्डलिनी हमें एक एसी स्थिति प्रदात करती है जिसमें हम जान जाते हैं कि सत्य क्या हैं और असत्य क्या हैं: तथा कवल सत्य का प्राप्त करने के लिए हम लालायित हो उठते हैं। अपने सभी मिश्या विचारों पर जाकर तपस्या करनी पड़ती है, औजकल यह इतना आसान कंसे हो सकता है? आत्मविश्वास की कमी के कारण वे इस पर विश्वास नही के कर पाते। उनमें यह दखने की योग्यता नहीं है कि यह बसन्त का समय है और सामृहिक को छोड़कर हमे सत्य को अपनाना है। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया जा सकता है। गीता की पक्ति, कि-"जन्म आपकी जाति का निर्णय करेगा गलत रचयिता श्री व्यास स्वयं एक मछुआरे के पुत्र थे; उनके पिता का भी कुछ पता ने था। इतना महान ग्रन्थ वे किस प्रकार लिख पाए? कहा गया है, अक्मी बन जाते हैं। चिन्ताएं हमें नहीं सताता। "या देवी सर्वभूतेषु ज्योतिरूपेण सस्थिता"। अर्थात् सहजयोंग में आने पर भी अदूरदर्शिता के कारण अन्तजात शक्ति (देवो हो मानव की जाति है। व्यक्ति स्वयं का कर्ता मानता है। धीर-धोर कुछ लोग वेभव प्राप्त करना चाहते हैं, कुछ सहज अनुभव प्राप्त करके वह जान जाता है कि सत्ता चाहते हैं और कुछ स्वंशक्तिमान परमात्मा मनुष्य कुछ नहीं करता परम चैतन्य ही सभी को खाजना चाहते हैं। परम पाने के इच्छुक लोग कुछ करता है। सभी कुछ सरलता से हो जाता सर्वप्रथम सहजयोग में आएंगे। सहजयोग में आने है। कभी यदि हमारी इच्छाओं के विपरीत भी के पश्चात सहज प्रसार की धोमी गति देखकर कुछ हो जाए तो भी हमें यह नहीं साचना चाहिए कई बार दुख होता है. चाहिए कि जीवन्त चीजों का विकास वहुत धीमा में न ता हम परमात्मा से अधिक सांच आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात जब व्यक्ति परम चेतन्य से जुड़ जाता है तव वह समझता है कि परम चैतन्य ही हमारे सभी कार्यो को करते है । हम स्वयं निल्िंप्त हाकर क्योंकि गीता के है कि परमात्मा नं. हमारी सहायता नहीं की। बास्तव सकते परन्तु हमे समझना चतन्र ्लहरी X1 अक : 18 2 1999 कितनी शक्ति हममें है? सभी सहजयोगियों और न कर सकत है। अत: हमें स्वीकार करना चाहिए कि परमचैतन्य ने उपयुक्त कार्य किया को हमें सम्बन्धी मानना है। है, और जो हो रहा है वह अति सुन्दर दो चीज़ों के विषय में सहजयोगियों को अत्यन्त सावधान रहना चाहिए। सर्वप्रथम चाहिए कि हमारे हाथों या पैरों की कौन सी व्यक्तिगत ध्यान धारणा से हमें अपने दोष, उगली कौन से चक्र की बाधा का बताती है। अपने शरीर यन्त्र की स्थिति समझनी किस चक्र की पकड़ से कौन सा रोग होता है चाहिए-हम आक्रामक प्रवृत्ति हैं या आलसी और इसे ठीक केसे किया जा सकता है। दूसरा प्रवृत्ति ( Right Sided or Left Sided ) हैं? को हम किस प्रकार रोगमुक्त करे? तथा हमारे कौन से चक्रों में बाधा है? फोटोग्राफ कुण्डलिनी से संबंधित सभी ज्ञान हमें अवश्य की ओर चित्त देकर हम यह सब जान सकते हैं और ध्यान धारणा में यह सब बाध को ये ज्ञान प्राप्त करना अत्यन्त आवश्यक है। Tएं दूर कर सकते हैं। सहजयोग में ध्यान धारणा करना बहुत आसान है। सुबह-शाम दस पन्द्रह मिनट बैठकर हम ध्यान कर सकते हैं। स्वयं को शुद्ध करने के पश्चात् हमें सामूहिकता में उतरना चाहिए। इसके चीज हैं। जिस प्रकार कमरे में यदि हवा आर है। सहजयोग का दूसरा पक्ष सहजयाग का ज्ञान तथा इसका विस्तार है। हम य ज्ञान होना प्राप्त करना चाहिए। शक्ति' होने के नात महिलाओं इस ज्ञान की सहायता से महिलाए सहज बच्चों तथा उनकी आचरण पद्धति को समझ पाएगी। इस जञान का प्रप्त किया जाना अल्यन्त महत्वपूर्ण है। सहजयोग का प्रचार प्रसार अन्य महत्वपूर्ण लिए हृदय का खुलना आवश्यक है, तंगदिल व्यक्ति कभी सामूहिक नहीं हो सकता। हमें उसी प्रकार आप भी यदि अपने सहज अनुभव दूसरों के दोषों पर चित्त नहीं देना चाहिए। ऐसा करने से दूसरों के दोष हमें घेर लेते हैं करते. उन्हें आत्मसाक्षात्कार नहीं देते. सहजयोग हमें अन्य लोगों के गुणों तथा उनके अन्तर्जात सौन्दर्य पर ध्यान देना चाहिए। इससे दोहरा हो सकता। पेड़ जव बढ़ता है. तो उसकी शाखाएं कार्य होगा-हमारा व्यक्तित्व सुन्दर हो जाएगा भो बढ़नी चाहिए ताकि इन शाखाओं को छाया और दूसरों के दोष दूर हो जाएंगे। हमें याद रखना चाहिए कि अन्य लोग भी अपनी वृक्ष की है और आप लोग तो बरगद के पड़ आत्मा से पृथक नहीं हुए हैं। अतः हमें (Banyan Trees) हें। अत: पुर हुदय से आपका परमेश्वरी प्रेम की शक्ति से उनके दोषों को सहजयोग प्रचार कार्य में सहायता करनी चाहिए। ठीक करना चाहिए। प्रेम सत्य है और सत्य प्रेमा प्रेम की शक्ति का उपयाग करने वाला व्यक्ति बहुत उन्नत होता है। खुले हृदय से अत्यन्त प्रम पूर्वक आपने लोगा को देखना है। इस प्रकार आप व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से विकसित होते हैं। जो व्यक्ति सामूहिक नहीं है बड़ी जिम्मेदारी आ गई है उनसे हमें सावधान रहना है। दूसरों के दोषों पावन हृदय समाज बनाने की जिम्मदारी जिस के विषय में सुनना सहजयोग में अपराध है। हमें ध्यान देना चाहिए कि कितनी मधुरता स्थापित रहें। से हम बोल सकते हैं और क्षमा करने की पार न जा सक ता कमरा हवादार नहीं हो सकती अन्य लोगों को नहीं बताते. उनको सहायता नहीं का प्रचार नहीं करते तो आप स्वय उन्नत नहीं में बहुत से लोग बैळ सक। ये बात तो साधारण कुछ सहजयोगी सदैव यही स्वप्न देखत हैं कि सहज-स्वर्ग पूरे ब्रह्माण्ड पर उतर आएगा आर इसके लिए कार्यरत रहते हैं। एस सहजयागियां के सभी प्रश्न छुट जाते हैं आर वे सदव आनन्द की स्थिति में रहते हैं । हमारे कन्धों पर वहुत पर हम विश्वास कर सक और उस विश्वास में । धन्य करे परमात्मा आपकी 13 चेतन्य लहरी खड : XI अक 1&2 1999 । गुरु पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन कबैला 1998 आज हम गुरु पूजा करने के लिए एकत्र उत्तेजित, न बह बहुत अधिक जोश में आता गुरु शब्द का उद्भव चुम्बकीय आकर्षण और न ही बहुत उदास या खिन्त होता है। अत: हुए हैं। से हैं। वह व्यक्ति जिसमे चुम्बकीय शक्ति हो और जो जिज्ञासुओं के चित्त को आकर्षित कर अपने केन्द्र में । वह मध्य में है परन्तु हम गुरु किस प्रकार बनें? सहजयोगियों के लिए यह समझना अत्यन्त सुस्थिर व्यक्ति भी है जोकि अत्यन्त गहन हो, महत्वपूर्ण हैं। बहुत से लोगों को लगा कि वे गुरु सके, वही गुरु है। इसका अर्थ वजनदार या जिसमें ज्ञान हो और जो पृथ्वी मा की तरह से हैं। बड़े अटपटे ढंग से वे आचरण करने लगे कार्य करें। पृथ्वी मां की आकर्षण शक्ति भी और अपना गुरु पद खो दिया। अन्तर्दर्शन करना चुम्बकोय कहलाती है संस्कृत में इसे गुरुत्वाकर्षण सहजयोगियों के लिए प्रथम तथा सर्वोपरि कहते हैं अर्थात् पृथ्वी मां की वजन को अपनी है स्वयं को देखना उनके लिए आवश्यक है। ओर आकर्षित करने की शक्ति । वास्तव में फैशन के साथ-साथ यदि व्यक्ति परिवर्तित होता पृथ्वी मां की यही शक्ति हमें भयंकर तीव्र गति रहे, लोगों के दबाव में यदि वह फेशन बदलता से घूमती हुई पृथ्वी पर अपनी टांगों पर ठीक से रहे लोगों को प्रसन्न करने के लिए यदि व्यक्ति खड़े होने के यांग्य बनाती है। इसके विना जिस घटिया मूल्यों को अपनाता रहे तो वह गुरु नहीं तोव्रता से पृथ्वी घूम रही है उसी तीव्रता से यह हो सकता। उसे स्वयं को सहज मूल्यां पर ा हर्ें फैक देती। पृथ्वी मां के गुरुत्वाकर्षण के कारण ही हम अभी तक इससे जुड़े हुए हैं और सन्तुलित हैं। गुरु में भी यही गुरुत्वाकर्घण होना चाहिए। गुरुत्वाकर्षण का अर्थ है अपनी और अपनी जिम्मेदारियों की गम्भीर समझ। अत: गुरु भूलोभाति स्थिर करना होगा। अन्तर्दर्शन के विना आप ये नहीं समझ सकते; आपको याद ही नहीं रहेगा कि आपने क्या गलती की है? न ही आप. ये सांचेंगे कि क्या अच्छा कार्य आपने करना है? यह तो तभी संभव है जय आाप स्वय को को अति स्थिर होना आवश्यक है। सुधारते चले जाएंगे| सभी महान सन्तों ने, सर्वोपरि, अपने इस आधुनिक काल में लोग अत्यन्त गुरु की प्रशंसा की है। उदाहरणार्थ भारत में ज्ञानश्वर गुणहीन लोगों से मिलने के कारण वे उद्विग्न हो नाम के महान सन्त हुए। उन्होंने अपने गुरु पर उठते हैं। अशान्त करने वाले ये गुण गुरुत्वाकर्षण एक पूरा अध्याय लिखा है। अंग्रेजी में उसका के अभाव से आते हैं। जिस व्यक्ति में गुरुत्वाकर्षण अनुवाद धर्मोपदेश के रूप में किया गया है गुरु है वह न तो निरुत्साहित होता है और न ही तो आचार्य है और उसने जी किया वह कार्य गतिशील हैं-हर समय उत्तेजित, हर समय अशान्त। चैतन्य लहरी 14 खंड : XI अक : 18 2 1999 महान है। वे कहते हैं कि कभी भी गुरु को ठहरेगी; क्या यह सत्य है सहजयोगिनी ने चुनौती न दें अन्यथा आप कभी गुरु नहीं बन सकते। नाममात्र के लिए चाहे आप गुरु बन जाए हे? मेरे गुरु ने मुझसे कहा है कि जाकर परन्तु वास्तविकता में आप गुरु नहीं हो सकते। कहा, हाँ! वे हमार साथ रुकगी, परन्तु क्या वात आदिशक्ति से प्रार्थना करो कि वे हमारे आश्रम मैं श्री माताजी से आए। सहजयोगिनी ने कहा दूसरे गुरु सकते, कभी अभद्र एवं दम्भी नहीं हो सकते पूछ्गी। यह व्यक्ति एक कार्यक्रम में आया था और न ही अपने गुरू के प्रति क्रूद्ध हो सकते हैं। और मुझे एक गृहणी के रूप में देखकर कहने यदि आप ऐसा करते हैं तो आप गुरु नहीं है, से आप अशिष्ट व्यवहार नहीं कर लगा, "ये तो वे गुरु नहीं हो सकतीं। परन्तु जब मैंने आत्मसाक्षात्कार दिया और सभी की कुण्डलिनी आपके व्यक्तित्व का स्तर अभी तक बहुत निम्न जागृत हो गई तो आश्चर्य चकित हों बो मेरे है। यह स्पष्ट कहा गया है कि यदि आप उच्च सामने साध्टाग लेट गया। स्तर के अन्य सच्चे गुरुओं के विरोध में बोलते हैं तो आप गुरु नहीं हैं। परन्तु में चैतन्य लहरियां प्राप्त हो गई हैं। चैतन्य लहरियों ज्यक्ति अम्बरनाथ नामक स्थान पर रहता है। वह का ज्ञान आपको मिल गया है। चैतन्य लहरियों मुझसे कहना लगा, 'माँ क्या आप मेरे आश्रम उसके गुरु हिमालय पर स्थित भारत के कहँगी कि आय सबको अब प्रसिद्ध तीर्थ, अमरनाथ पर रहते हैं और बह के ज्ञान से आप सभी के विषय में जान सकते आएगी? मैंने कहा क्यां नहीं। प्राचीन काल में हैं। अब आपको किसी व्यक्ति के बारे में अपनी ऐंसे गुरु अपना स्थान "तकिया" सूझ बुझ से बात नहीं करनी चैतन्य लहरियों के करते थे। मैंने कहा कोई बात नहीं, मैं तुम्हारे कभी न छाड़ा माध्यम से आप सीधे उस व्यक्ति का सामना आश्रम आऊगी। में वहाँ गई और वह मर चरणों करने का प्रयत्न करें और उसे बताए कि समस्या क्या है? और उसे परिवर्तित होने को मुझे बताया कि मेरी आज्ञा बहुत खराब है। पर गिर गया तथा मुझे बहुत सम्मान दिया। उसने कहें। सहजयाग में हमारे पास अन्य गुरुओं से श्रीमाताजी क्या आप इस ठोक कर सकती हैं? भी अधिक कुछ है। दूसरे गुरु अत्यन्त कठोर मैंने कहा क्यो नहीं, मैं इसे ठीक कर दूगी। थे। अपने हाथ में वे लम्बी छड़ौं रखते थे जो उसके गुरु के पास जब मैं गई, तो उससे पूछा. 'तुमने उसकी आज्ञा को ठोक क्यां नहीं किया? चलने म उनकी सहायता करती थी तथा जिससे वे अपने शिष्यां का पोट भी सकते थे। शिष्यों वह कहने लगा. क्यों? में क्यों ठोक करू? मरी आज्ञा किसने ठीक की थी? मैंन स्वयं इसक को वे इतनी बुरी तरह से पीटते थे कि शिष्य न लिए परिश्रम किया। अन्तर्दर्शन द्वारा मैन इसका मार्ग खोजा और अपनी 'आज्ञा' को ठीक किया। अपने गुरु के सम्मुख कापते थे। एक गुरु, जिससे मैं मिली, का उदाहरण दुगी। भारत में एक व्यक्ति कुछ सहजयोगियों के उसके आज्ञा चक्र को मैं क्योां ठोक करू? उसे पास आया और कहने लगा कि मरे गुरु ने मुझे मेहनत करने दो अन्यथा वह विगड़ जाएगा। में कहा है कि आदिशक्ति आकर आपके पास हेरान थी वह कहने लगा कि आप तो माँ है 15 अक : 1.82 1999 चैतन्य लहरी = खड : ४I इसलिए सर्व ठीक कर देते हैं। प्रेम के अतिरिक्त एसा न किया जाएगा तो ये कभी उन्नत न होंगे। आप कुछ नहीं, यही कारण है आप सब लोगों का हित कर रही हैं। में ऐसा नही कर सकता। आप इन्हें क्षमा करते चले जाइए. जितना अधिक आप इन्हें क्षमा करते चले जाएंगे उतने अधिक कोई गुरु अपने शिष्यों का आज्ञा चक्र नहीं ये विगड़ेंगे। उन्नत बिल्कुल न होंगे। अतः आपका खालता । मैंने पूछा, 'तो आप गुरु किस बात के इनके साथ कठोर होना आवश्यक है। कृपा हैं? बह कहने लगा हमने उनका मार्गदर्शन करना करके सदा इन्हें विगाड़िए मत। मैं हैरान थी कि वह इस प्रकार बाते कसे है परन्तु फिर भी यदि उनका अगन्य चक्र बुरी तरह से पकड़ी हुआ है, यदि उनका चित्त ठीक कर सकता था! कहने लगा, माँ यदि आप इन्हें नहीं है तो मुझे इसकी कोई चिन्ता नहीं । सभी कुछ मुफ्त दें देंगी. आप इन्हें इतनी आसानी से सभी कुछ दे देंगी तो ये आत्मसाक्षात्कार का मूल्य न समझ सकेंग। मैंने कहा ये बात नहीं । आपको चाहिए कि उन्हें अवसर दें, उन्तत अन्तर्दर्शन करना उनका करतव्य है और जो सीढ़ी मैंने उनके सम्मुख रखी हैं उस पर चढ़ना भी । में तो एक गुरु हूँ, ऊपर चढ़ने के लिएहै उनके सम्मुख कंवल सीढी हो रख सकता हूँ। होने का अवसर दे ताकि वे भी पृथ्वी माँ की कठोर परिश्रम अंतर्दर्शन और साधना तो उन्हें तरह से बन सके। पृथ्वी मां क्या करती हैं? वे करनी होगी। उनका अगन्य चक्र खालन के लिए बीजों का अकुरण करती हैं तब पेड़ बनता है। आप मुझ आज्ञा द। कहने लगा आप माँ है जो तत्पश्चात् वे उसे फल प्रदान करती हैं और इस मैं चाहे करें, कुछ नहीं कहूगा। आज्ञा चक्र चोज़ का ध्यान रखती है कि ये फल पक सके। पृथ्वी माँ ये सारा कार्य करती हैं। परन्तु ये लोग वृक्ष नहीं हैं, मनुष्य हैं और इन्हें शैतान बनने की खोलकर आप उन्हें बिगाड़ देंगी, बिगाड़ू दीजिए उसे स्वयं परिश्रम करने दें नहीं तो वह बिगड़ भी स्वतंत्रता है। मैंने कहा ठीक है, वे यदि जाएगा। मैंने कहा कि तुम किसी का अगन्य चक्र नहीं खोलते, तुम भी तो बिगड़े हुए हो| हाँ. शैतान भी हैं तो भी मैं उन्हें संभाल सकती हूँ। आप देखते जाओ मैं इन्हें किस प्रकार संभालती परन्तु जो स्थान मैंने प्राप्त किया है यह स्थायी है। परन्तु मैने उसके शिष्य का अगन्य चक्र हूँ! कहने लगा वे यदि शंतान हैं तो शैतान ही खोल दिया। ल रहेंगे। आप उन्हें परिवर्तित नहीं कर सकेंगे। वह इस शिष्य ने रास्ते पर मुझे बताया कि मुझसे बहस करता रहा परन्तु जव सहजयोगियां उसके गुरु ने उसे कुएं में लटका दिया था और से मिला तो उनसे पूछने लगा आपमें से कितने ऊपर से रस्सी खोंच कर पानी में दस डुूबकियां लोग श्रीमाताजी के लिए जान दने को तैयार है? लगवाई थीं। मैंने पूछा कि उसने यह निष्ठ्र क्या आप जानते हैं कि उन्होंने आपको क्या हैं। दिया है? सहजयोगियों ने कहा, हाँ हम जानते हैं। कार्य क्यों किया? क्योंकि उसने मुझे सिगरेट देख लिया था मैंने उसके गुरु वे मेरे पास आए और वताया-वह हमें आपके लिए जान न्यौछावर करने को कह रहा था । मैंने कहा यह जरूरी नहीं है। उसने इसलिए आपसे पीते हुए से पूछा कि वह अपने शिष्यों क प्रति इतने भयानक कार्य क्यों करता है। कहने लगा कि इनके साथ क चैतन्य लहरी 16 खंड : XI अंक : 182 1999 पुछा होगा क्योंकि वह अपने शिष्यों से भी ऐसे नींचता भी है-सहजयांग से व पैसा बनाना चाहते हो पूछता होंगा। मैं एसे बहुत से कठोर गुरुओं से मिली य बातें करते रहते हैं। इन हूँ, पूर्ण आज्ञापालन, पूर्ण समर्पण जिनकी दृष्टि सभी चीज़ों है। राजनीतिक कारणों से भी यहाँ लोग आते हैं। यहाँ-वहाँ वे कुछ-कुछ से आप उत्थान नहीं प्राप्त कर सकते। यहाँ आप आध्यात्मिकता का महान् जीवन में आवश्यक है। गुरु के विरूद्ध एक शब्द भी सहन न किया जाता था. पलंटकर उत्तर देना तो प्राप्त करने, गुरु पद पाने के लिए आए हैं। के प्रति क्रोध भी न दश्शाया जा सकता राजनीति भी यहाँ काफी है। लोग अगुआ पद दूर गुरु ्ा। इस प्रकार के कुछ लोगों से मरा भी बास्ता पाना चाहते हैं, अपने पद को वे विशेष रूप बनाए रखने का प्रयत्न करते हैं। यह अनावश्यक पडता है। में उनसे बात करना बन्द कर देती हूँ। है। अच्छा गुरु होने के कारण यदि आप अगुआ वे यदि सुधरना चाहे तो सुधर जाएं और न चाहे तो सुधरने के लिए आप उन्हें मजबूर नहीं कर हैं तो आप बने रहेंगे। कोाई आपका चुनाती नहीं दे सकता और न ही आपको हटा सकता है। ऐसे सकते। परन्तु इन गुरुओं के अनुसार शिष्यों के भय से अगुआ को परेशान नहीं हो जाना चाहिए। सहजयोग एक ऐसा योग है जिसमें भय का कोई मन में गुरु का बहुत भय होना चाहिए. इतना भय कि व ठीक से बर्ताव कर सकें। हम गुरु से इतनी अधिक आशा करते हें स्थान नहीं। आपक लिए कोई भय नहीं है। उत्थान के लिए अन्तर्दर्शन करना ही आवश्यक कि वह आपका पिता, आपकी मां, आपका मित्र सभी कुछ है। वह एक पावन व्यक्ति है जो है। केवल आपका उत्थान चाहता है, आपकी देखभाल यह देखने का प्रयत्न करें कि आप क्या करना चाहता है, पथ-प्रदशन करना चाहता है, करते रहे? क्या आप पूर्णतः विनम्र व्यक्ति हैं। आपकी रक्षा करना चाहता है और आपको जैसा आपको कहा गया है वैसा क्या आप करते हैं? मान लो मैं किसी का कहीं जाने के लिए आध्यात्मिक जीवन की ओर ले जाता हैं। एक गुरु को इस प्रकार कार्य करना चाहिए। परन्तु कहती हूँ. वहाँ न जाकर वह मुझे बताता है शिष्य से तो इससे भी कहीं अधिक आशा की श्रीमाताजी एसा हो गया बैसा हो गया। कोई भी जाती है। शिष्य पूर्णत: पवित्र व्यक्ति होना चाहिए. आध्यात्मिक बनने की शुद्ध इच्छा उसमें होनी बहाना लेकर वह आता है। यह ठीक नहीं है आपको यदि कहीं जाने के लिए कहा गया है तो चाहिए। शुद्ध इच्छा के अतिरिक्त यदि उसमें कुछ और इच्छाएं हैं तो वह बिल्कुल बेकार है। मैंने देखा है कि सहजयोग में आकर लोग इसका कोई अर्थ अवश्य होगा और आपको वहाँ जाना चाहिए। आपको आज्ञापालन करना चाहिए। आप यदि आज्ञाकारी नहीं हैं तो आप गुरु नहीं वन सकते क्यांकि यदि आप आज्ञापालन नहीं नाम कमाना चाहते हैं वे हर चीज़ के मालिक करते तो अन्य लोग किस प्रकार आपकी आज्ञा बन बैठते हैं, हर चीज़ पर वे प्रभुत्च जमाना मानेंगे? यह आज्ञा पालन गुरु के हित के लिए चाहते हैं। सहजयोग में कुछ लोग पैसा भी बनाना है, विल्कुल नहीं। यह आपके लाभ के नहीं चाहते हैं। यह बिल्कुल गलत ही नहीं है. अत्यन्त 17 खड : XI अक :1.8 2 1999 चतन्य लहरी । लिए है, आपकी शिक्षा के लिए हैं, आपके सकते। सदैव समय आपके साथ है । कहीं भी उत्थान के लिए हैं। अत: इस प्रकार का दृष्टिकोण आपने जाना हो ऐसा ही हाता है। इसका आपको एक उदाहरण दुंगी। कबैला में एक छोटी सी लड़की थी और उसका हाथ टूट गया। जब आप अपना लेते हैं तब गुरु के गुण आपको आप्त होने लगते हैं। गुरु किसी भी प्रकार से झमेलिया नहीं हो मैं अमेरिका जाने के लिए तैयार थो। अपने सकता। मुझे यह घर चाहिए, मुझे वह चीज कमरे से में बाहर आ चुकी थी, बच्चे को जब चाहिए. मुझे ये पसन्द नहीं है, मुझे वी पसन्द नहीं है। इस सभी चीजों से निर्लिप्त होना जो मैन देखा तो कहा ठीक है, काई बात नहीं; पहले इस बच्चे को ठीक करूंगी। वे लोग कहने लगे परन्तु श्रीमाता जी आपका वायुयान? व्यक्ति नहीं जानता वह गुरु नहीं हो सकता किस ्ड प्रकार बह उत्थान प्राप्त कर सकता है। नि:संदेह मेंने कहा ठीक है, उस भूल जाओ।। मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि आपको इन मैंने उस बच्चे की उठाया, उसका इलाज किया. वह ठीक हो गई और लगभग आधे घण्ट आदतों से ये बैकार की आदते आपकी दयनीय बना देती है। के पश्चात् में बायुपत्तन के लिए चली। सुनकर किसी और की यह उतना दयनीय नहीं बनाती आप हैरान हांगे कि न्यूयार्क जाने वाला जहाज जितना स्वय आपको। गुरु को किसी भी आदत की पकड़ नहीं होनी चाहिए। सर्वप्रथम तो उसे दूसरे वायुयान द्वारा आप वाशिंगटन जो सकते हैं । कालातीत होना चाहिए । समय की चिन्ता उसे नहीं होनी चाहिए। मैंने बहुत बार देखा है बायुयान द्वारा मैं वाशिंगटन पहुँची। बाशिंगटन कि लोगों को यदि हवाई अड्ड़ा जाना ही तो वायुपत्तन वहुत अच्छा है। वहाँ सीमा कर मुक्त हान का प्रयास करना होगा। खराब था। ता घापणा की गई कि इसी टिकट से , ये तो बहुत अच्छी वात है। उस मैने कहा, ( Custom) को काई समस्या नहीो और वहाँ चाहे मैंन ही जाना हो, वे अचानक गतिशील हो भीड़-भाड़ भी नहीं होती। मंरी समझ में नहीं आता सभी लोग न्यूयार्क क्यां जात हैं? उन्हें वाशिंगटन जाना चाहिए। मैंने देखा कि मैं वास्तव में न्यूयार्क नही जाना चाहती थी इसी प्रकार सभी कुछ कार्यान्वित हाता है और उचित समय उनक शरीर मे मानो कुछ प्रवेश कर जाता है। उठते हैं। जाना तो मैंने होता है और वेगवान वे सब हो जाते हैं! सभी इधर-उधर भागने लगले हैं, क्यों? जाना तो मेने है, आप तो नहीं जा रहे, फिर भी एंसा होता है! इसी प्रकार किसी से यदि कहा जाए कि तुम्हें समारोह में जाना है, या किसी अभिनन्दन समारोह में, तो लोग कुदने लगते हैं। यह आधुनिक रोग है, पहले यह नहीं पर वही होता है जो आपके हित में है। मंरा इस मामले में बहुत अनुभव है। मैं आपको बता सकती हूँ कि समय को चिन्ता हुआ करता था। वे देखने लगते हैं कि उन्हें देर हो रही है और परेशान होने लगते हैं इसी प्रकार करना बहुत बड़ा सिरदर्द है। इसे यदि आप परमेश्वरी शक्ति पर छोड़ दें और उस पर विश्वास करें तो सभी कुछ आपके हित के लिए यदि आप चिन्ता करते रहे तो आप कालातीत नही कर होगा। यदि ऐसा नहीं होता ता यह आपकी परोक्षा नही हो सकते, समय का वश में 18 चैतन्य लहरी खड : XI अक : 1&2 1999 है। आपको स्वीकार करना होगा, सीखना होगा क्योंकि अपने लिए जिस चीज़ का आप महान राय होती है। इसे वह अन्य लोगों पर थोपता है। यदि आप उसके जीवन को देखें तो वह परत्तु अत्यन्त दयनीय हाता है। लोगो के साथ उसकी (आवश्यक) समझते हैं वह वास्तव में वैसी नहीं है। तो कौन सी महानतम चीरीज़ आपने नहीं पटती. उनसे वह बातचीत नहीं कर सकता तथा उसमें, उसकी आत्मा में ओर उसके अस्तित्व प्राप्त करनी है? निर्लिप्सा (साक्षीभाव)। इसके लिए आपको गुणातीत होना होगा। में बहुत बड़ा फासला होता है। दूसरं प्रकार के तमोगुणी व्यक्तियों को भिन्न प्रकार के रोग हो बहुत से रोग ही जाते हैं. परन्तु तमोगुणों लोग मनोदैहिक (Psy- आप जानते हैं कि हममें तीन गुण है सत्व गुण सर्वोत्तम है। परन्तु दो अन्य गुण भी हैं-रजोगुण जाते हैं। रजोंगुणी लोंगों को भी SAA THI T ( Right Sidedness and Left chosomatic) रागों से गस्त ही जाते हैं। Sidedness)। या तो आप रजांगुणी व्यक्ति हैं मनादेहिक राग बहुत भयानक हैं और चिकित्सकों कोई महत्व नहीं। आप यदि रजोगुणी हैं तो के पास इनका कोई इलाज नहीं। इसके लिए आपको सहज योग अपनाना होगा। परन्तु सहजयोग हो उठते हैं। अति गतिशीलता से आपको में आने के पश्चात् भी आप रजोगुणी हो जाते हैं या तमीगुणी मेरे विचार से जीवन के प्रति यह अच्छा दृष्टिकोण नहीं है कि आप किसी गुण विशेष से बंधे रहें या हर समय दोलक (पैंडुलम) की तरह से कभी आक्रामक हो या तमो गुणी। हमारे अन्दर इन दोनों गुणों का आपके साथ क्या होता है? आप अति गतिशील थकान होती है जिससे आप रोगी हो जाते हैं। ये रोग आन्तरिक आक्रामकता को ठीक करने से ही ठीक होते हैं। इस प्रकार का व्यक्ति अत्यन्त वेगवान होता है। दो मिनट के जाए और कभी तमोगुणी। अतः आपको लिए भी बह टिक कर नहीं बैठ सकता। सदैव उछलता रहता है तथा अपने और अपने परिवार सुस्थिर व्यक्ति वनना होगा इसके लिए आप के लिए समस्याएं खड़ी करता है। बाई ओर का व्यक्ति वह होता है जिसे हम तमोगुणी कहते हैं। आक्रामक प्रवृति सबको ध्यान-धारणा करनी होगी। मैं तुरन्त जान जाती हैँ कि कौन सा व्यक्ति ध्यान धारणा करता है और कौन सा नहीं। केवल दस-पन्द्रह मिनट की बात है। परन्तु प्रातः और है और आलसी प्रवृत्ति 'तमोगुण' । 'रजोगुण ' 'तम' अर्थात् अन्धेरा। ऐसा व्यक्ति अंधेरे से भयभीत होता है परन्तु वह अत्यन्त षडयन्त्रकारी साये ध्यान धारणा करना अत्यंत आवश्यक है। इसी से आपका सन्तुलन विकसित होगा. आपमें एवं कुटिल हो जाता है। कुटिलतापूर्वक, खुलकर दुढ़ता विकसित होंगी। आपका शरीर इस प्रकार विकसित हांगा कि यह बहुत सो नकारात्मकता नहीं, वह लोगों को कष्ट देने का प्रयत्न करता हैं। जबकि रजोगुणी या आक्रामक व्यक्ति खुल्लमखुल्ला हिटलर होता है। तमोगुणी अन्य लोगों को कष्ट पहुँचाने में लगा रहता है। रजोगुणी व्यक्ति की हर चोज के विषय में अपनी ही एक का सामना कर सके। तब आपकी इच्छाएं समाप्त हो जाएंगी। क्या खाना खाना चाहिए? कब खाना चाहिए? किसे प्रसन्न करना चाहिए? आदि आदि। आप स्वयं इतने मधुर व्यक्ति बन जाते हैं कि 19 चैतन्य लहरी : 182 1999 खंड : XI अंक सभी लोग आपसे प्रसन्न होते हैं और सोचते हैं कि हम महान हैं, वे हमें परेशान नहीं करते कि उन्हें भी आप सा बनना है। लोग आपकी परन्तु ये मानव हमें दुःख दंते हैं। ये अत्यन्त ओर देखते हैं और आप उनके लिए आदर्श बन आकांक्षी तथा नकारात्मक है। हम उनके पास हैं नहीं जाना चाहते। मानव में कुछ कमी तो है कि किसी ने भी पूर्णत्व की अवस्था प्राप्त नहीं जाते हैं । लोग आपका अनुसरण करने लगते अर्थात् आप गुरु बन जाते हैं। इस प्रकार आप बाएं और दाए (रजस और तमस) की आदतों की। तो मैं हैरान थी कि किसी प्रकार वे संसार से मुक्त हो जाते हैं। सत्व गुणी लोग वो होते हैं जो धर्मपरायणता में विश्वास करते हैं। परन्तु धर्मपरायण लोगों के लिए तैयार थे। कहने लगे माँ ठीक है। आप मन में अधमी लोगो के लिए तिरस्कार की ाम में वापिस आने के लिए तैयार न थे और न ही हमारा साथ देने और हमारे अंग प्रत्यंग बनने के आई हैं, आप माँ हैं ये सब कष्ट सहन कर सकती हैं और इस कार्य को कर सकती हैं। परन्तु हम ऐसा नहीं कर सकते। हमने ये संसार त्याग दिया है। अब हम इसमें वापिस नहीं आ भावना होती है। ऐसे लागों को वे अपमानजनक बतञ वातें कहते चले जाते हैं और इस प्रकार उनका स्वभाव उन्हें अर्केलेपन की ओर धकेल देता है। वे हिमालय पर जा बैठते हैं, किसी से मिलते सकते। उनमें बहुत सी शक्तियां हैं वे प्रकृति को नहीं। समाज से बाहर होकर, संबंधियों को और वबहुत से कार्य भी कर सकते हैं । परन्तु वे कहने लगे कि मानव की अपेक्षा सर्प को वश में कर लेना आसान है। वश में कर सकते हैं छाड़कर, सब कुछ त्यागकर वे गुरु बन बैठतं हैं। इस प्रकार के लोग बेकार हैं। जब में हरिद्वार में थी तो ऐसे कुछ लोगों से मिली और उनसे पूछा कि तुम हिमालय पर क्या कर रहे हो? आज मानव एक विशेष प्रकार का आचरण कहने लगे कि हम सांसारिक लोगों का सामना करेगा, परन्तु अचानक बह भयानक हो उठगा नहीं करना चाहते, वे बकार लोग हैं, किसी काम इन मनुष्यां के वारे में कुछ नहीं कहा जा के नहीं। उनके हित के लिए जो चाहे करते रहो वे आपको परेशान ही करेंगे। हम उनके साथ सकता। ये कितने अविश्वसनीय हैं? मैंने कहा उनको ठीक करने का एक तरीका है, पहले नहीं रहना चाहते। मैंने कहा, आप लोग गुरु क्यों उन्हें आत्मसाक्षात्कार दे दो। आत्मा के प्रकाश में बने हैं? यदि आप उन्हें संभाल नहीं सकते वे देख सकेंगे कि किस प्रकार वे गलत कार्य उनके दिए कष्टों से बचकर शांत नहीं रह कर रहे हैं। निन्यानवें प्रतिशत लोग समझ जाएगे सकते, तो आपके गुरु होने का क्या लाभ है? कि उनमें व्या गलतियां हैं. और वे कहाँ भटक कहने लगे हमने ये सब काफी कर लिया है। रहे हैं। व स्वयं को देखने लगेंगे । उनमें से कुछ तो सौ वर्ष से भी बड़ी आयु के थे। परन्तु इसका क्या लाभ है? आपका जीवन स्वयं को स्पष्ट देखते हैं और परिवर्तित होने बेकार है, यहाँ जगलों में आप अकले रहते आत्मा वह दर्पण है, जिसमें आप हैं। लगते हैं। आत्मा के जागृत हो जाने के कहने लगे कि सांप, चीते सभी जानवर जानते हैं पश्चात् अन्तर्द्शन की भी आवश्यकता नहीं 20h चैंतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 1& 2 1999 रह जाती। आप स्वयं को देख सकते हैं ज्यों ही आप विकसित सहजयोगी बनते हैं: आप स्वयं को स्पष्ट देख सकते हैं। यही चीज़़ रूसी लोगों की कमियों के विषय में बताने लगते हैं। सभी सहजयोगी एक से हैं। भारतीय सहजयोगी कहेगा श्रीमाताजी, आप जानती है, आखिरकार ये भारतीय है। ये भारतीय लोग हैं. श्रीमाताजी. ये हैरान थो कि स्वयं भारतीय होते हुए भी बे किस प्रकार भारतीयों के मनुष्य को दंखनी चाहिए कि क्या मुझमें यह घटित हो गया है? यदि आप अपनी गलतियों एसे कार्य कर रहे हैं । को देख सकते हैं, यदि आप अपने दोष खोज सकते हैं और उन दोषों से स्वयं को बारे में बता रहे है । मैं तर सहजयोगियों से मुझे इन देशों के विषय में बहुत सी चीजें पता चली हैं। सहजयोगी जब मुझे कुछ बताते हैं, गुझे हैरानी होती है, वे अपने देश से, अपने परिवार से, कसी से भी लिप्त नहीं होते। उन्हें यदि कोई कमी नजर आती हैं तो वे मुझे बताते हैं। श्रीमाताजी मेरे पिता ऐसे हैं. मेरी माँ ऐसी हैं। हटा सकते हैं, यदि आप यह बात समझ सकते हैं कि ये लिप्साएं, दोष और आदतें आपको पतन की ओर घसीट रही हैं, केवल तभी आप उन्हें त्याग सकते हैं। परन्तु ऐसा केवल तभी घटित हो सकता है जब आत्मा रूपी दर्पण आपके अन्दर चमक रहा हो, न यह प्रकाश जब आपमें आ जाता है तो आप स्वयं देखते हैं कि आपमें क्या कमी है और इस प्रकार जब आप देखने लगते हैं और नि्लिप्त होते हैं तो आपको साक्षी भाव प्राप्त हो कौन सा गलत मार्ग आप अपना रहे हैं। आपने जाता है। निर्लिप्त होने पर आप स्वतन्त्र व्यक्ति देखा है कि लोग रातों-रात सभी बुराइयां छोड़ देतें हैं परन्तु अब भी बहुत से सूक्ष्म दोष हैं बन जाते हैं, आपके पास स्वतन्त्रता होती है और जिनमे हम चिपके हुए आपमें आता है वह ये है कि आप अपने लोगों, अपने देश की कमियों को देखने लगते हैं। हैं। पहला परिवर्तन जो पिता, माँ, बहन या किसी अन्य से आपको मोह नहीं रहता, मोह अत्यन्त भयानक है। पारिवारिक मोह के कारण हमने बहुत से सहजयोांगी खो मैं हैरान थी कि जब अंग्रेज़ा को दिए हैं। अजीबोगरीब परिवार के कारण आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ तो वे मुझे अंग्रेजों के गए। परिवार के मोह से व न निकल सके। हम दोष वताने लगे जब इटली के लोगों को ये नहीं कहते कि आप परिवार को छोड़ दें या वे खो से आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ तो वे इटलो के लोगों के दोष बताने लगे। किसी इटली के सहजयोगी उससे बाहर आ जाएं, परन्तु सूक्ष्म रूप आपको समझना चाहिए कि उनका लक्ष्य क्या को यदि आप कहें कि देखों यह गलती इटली ा और वे क्या कर रहे हैं? अन्य लोगों के विषय के व्यक्ति ने की है तो वह कहता है, श्रमाताजी में यह सूक्ष्म सुझ बूझ आपको उनकी आलोचना का अधिकार भी नहीं देती। आपको स्वयं देखना चाहिए कि आपमें क्या गलती है? ये सारी ा इटली का व्यक्ति और कर भी क्या सकता है इटली के लोग ऐसे ही हैं। स्वयं इटली का होते सूक्ष्मताएं आप जानते हैं। अन्य लोगाों की आलोचना भी वह तुरन्त यही कहता है। रूस के लोगों हुए आप करते हैं परन्तु आप में भी तो बही कमियां का भी यही हाल है। आप हैरान होंगे कि वे 21 चैतन्य लहरी खंड : X1 अक : 1& 2 1999 म कर करता है तो उसे नाराज करने कप्ट पहुँचानं या चोट पहुँचाने वाला कोई कार्य नहीं करता। आपके हो सकती है। अत: ये निर्लिप्सा आत्मा के दर्पण के माध्यम से अन्तर्दर्शन द्वारा ही प्राप्त की जा अन्दर जब तक ये विकास नहीं होता तब तक आप सामूहिक नहीं हो सकते। सामूहिकता में आपके मन में अन्य लोगों के प्रति प्रेम सकती है। अत: साधक के लिए आध्यात्मिक जीवन ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। साधक सत्य और वास्तविकता की खोज कर रहा है। एक उमड़ता है, अन्य लोगों को आप समझते हैं। इसका दिखावा चाहे आप न करे परन्तु अपने बार बास्तविकता को जब आप जान जाते हैं तो अवास्तविक चीजों से चिपके नहीों रहना चाहते। अन्तस में आप ये जानते हैं। किसी ने आपको कुछ परंशान भी किया हो तो भी काई बात नहीं। से आप ऊपर उठ जाना चाहते हैं। इन सारे दोषों शनै: शनै, आप देखंगे. वह परिवर्तित होगा। इसी प्रकार इन सब दोषों से ऊपर उठ कर ही क्योंकि वह महसुस करेगा कि वह जो भी कुछ आप अंधकार तथा लिए्सा के मोह में डूबते हुए लागों का बचा सकते हैं। परन्तु प्राय: आप स्वयं ही मोह में फंसे होते हैं। स्वयं को एक रूप कर रहा था। वह ठीक नहीं था। आपने दोष को महसूस करके वह सुधरनं का प्रयत्न करेगा। मैंने यह कार्य केसे कर ऐसा क्यों किया? मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था शनै शनै : वह सुधरेगा । परन्तु इसके लिए मानकर आप सोचते हैं, मैं सकता हूँ? किस प्रकार में अन्य लोगों की रक्षा आपमें महान् क्षमाशीलता और महान सुझ-बृझ कर सकता हूँ? है। हालात में फसकर भी जिन देशों में सहजयोग फैल गया है, जहाँ लोग देश माह में लिप्त नहीं हैं और सोचते हैं का होना आवश्यक लोग दुव्यवहार करते हैं क्योंकि उन्हें ठीक और विनम्र रहने की शिक्षा नहीं मिली। सभवत: वे कि देशवासियों को उत्थान में सहायता करनी है, उन्हें चाहिए कि इस कार्य में योगदान दें। इस इसलिए दुर्व्यवहार करते हैं क्योंकि उनकी संस्कृति कार्य के लिए अत्यन्त धेर्य और प्रेम का होना में क्रोध एवं उद्दण्डता को ही महान समझा जाता है। कई बार वो इसलिए, भी दुव्य्यवहार करते हैं क्योंकि उनके परिवारों में उद्दण्डता ही सिखाई आवश्यक है। जैसा कि आप जानते हैं इस ब्रह्माण्डीय शक्ति (Cosmic Power ) का स्रोत मैं ही हूँ। वास्तव में यह परमेश्वरी प्रेम की शक्ति है, ऐसा प्रेम किसी चीज़ की माँग नहीं करता, कुछ नहीं चाहता यह तो सिर्फ परिवर्तित हो सकेंगे। मेरा यं विश्वास है कि कार्य करता है। उदाहरणार्थ आप यदि किसी सभी मनुष्यों को सुन्दर सुगन्धित पुष्पों में परिवर्तित को प्रेम करते हैं तो उसे नाराज़ करने वाला कोई किया जा सकता भी कार्य आप नहीं करेंगे। नि:संदह कुछ सहजयोगी ये भी जानती हूँ कि कुछ मानव बहुत ही कठिन ऐसे कार्य करते हैं जो मुझे पसन्द नहीं हैं परन्तु हैं। क्यों? क्योंकि वे परिवर्तित नहीं होना चाहते। मैं कभी ये नहीं दर्शाती। मात्र शान्त रहती हूँ। उनकी अपनी इच्छा के बना, उनकी शुद्ध इच्छा गई है। अत: आप सहायता कर सकते हैं। ऐसे लोगों को बार-बार क्षमा करना होगा। तभी क है सभी मनुष्यों को। परन्तु में के बगैर आप सहजयोग उन पर थोप नहीं परन्तु साधारणतया यदि काई किसी से प्रेम 22 चैतन्य लहरी खड : XI अक : 1&2 1999 ॥ जाएंगे। सामूहिकता को सम्पन्न करना जब आप सकते। ऐसे लोगों को भूल जाएं । वे दुष्कर हैं। सीख लेंगे तब, आप हैरान होंगे कि, गुरु हाने उन्हें भूल जाए। परन्तु जो लोग चाहते हैं, की कला में किस प्रकार आप पारंगत हो गए हैं। जिनमें धन, पद आदि की इच्छा नहीं है, केवल आध्यात्मिकता की महान् अवस्था प्राप्त मेरी इच्छा है कि आप में से बहुत से लोग केवल अपनी नौकरियों और प्रतिभा में ही करने की महान शुद्ध इच्छा है, किसी भी नहीं अपने जीवन में भी वास्तविक गुरु बनें. कीमत पर ऐसे लोगों की सहायता की जानी चाहिए। मैं जानती हैं उनमें से कुछ अत्यन्त गलत वास्तविक स्वामी बने। लोग कहें कि अमुक व्यक्ति वास्तविक गुरु है। इसके लिए, जैसा मैंने वति बताया, आपको पूर्ण आज्ञा पालन सीखना होगा। गुरुआं के पास गए और दुख उठाए उनकी अपने आज्ञा खराब है, और बहुत से दोष हैं, परन्तु करने के गुरु से प्रश्न न करें। जो भी कुछ लिए आपकी कहा जाए वो करें। यद्यपि सहजयार में में ऐसा कुछ नही कहती। आज पहली बार में बात कह रही हूँ क्योंकि आपमें से बहुत मैंन कोई बात नहीं। से आप उनकी सहायता करने का प्रयत्न ये करें। वे यदि आयकी बात सुनेंगे और समझ लोगों को मैं निपुणता से दूर पाती हूँ। पाएंगे कि आप उन्हें क्या वता रहे हैं. तो मुझे आपको बताया है कि आपको कुछ बलिदान नहीं करना होगा, कुछ त्यागना नहीं होगा। अपना विश्वास है, यह कार्यान्वित हो जाएगा। आप देख सकते हैं ये किस प्रकार कार्यान्वित हुआ है! परिवार आदि कुछ नहीं छोड़ना होगा और स्वयं विदेशों में को निपुण दिखाने के लिए कोई उल्टे-मीधे कार्य नहीं करने होंगी। ये तो आपकी आन्तरिक जहाँ मैं अकेली भारतीय थी', लोगों ने किस प्रकार इसे अपनाया है!' लोगों ने किस अवस्था है जिसे आपने स्थापित करना है इसमें है! किस प्रकार मुझे समझा प्रकार इस अपनाया है और इतने महान मूल्य एवं स्तर के सहजयोगी बने हैं! प्राचीन काल में कभी भी इतने सन्त न आप अत्यन्त विनम्र, आज्ञाकारी बन जाएंगे और विश्वास है, इस प्रकाश के साथ आप मुझे उन्नत होंगे । होते थे, काई एक सन्त जन्म लेता था और उसे एक वार जब आप इसके महत्व भी लोग सताते थे। एक-दूसरे की सहायता करने को समझ लंगे तो असाधारण व्यक्तित्व पाने के के लिए, एक दूसरे की रक्षा करने के लिए लिए स्वयं को समर्पित कर दंगे। यह सरलतम अधिक सन्त न हुआ करते थे। अत: सामूहिकता कार्य हैं। क्योंकि जीवन यापन का यह सुखदतम मार्ग है लइने, झगड़ने, दिखावा करने आदि का कोई लाभ नहीं । दूसरों की देखभाल, उनके ा अच्छी तरह से सीखी जानी चाहिए। किस प्रकार सामूहिक बना जाए? किस प्रकार परस्पर सुहृदय बना जाए? वाद में जब आप गुरु बनेगे और प्रति प्रेम, लोगों को सन्तोष प्रदान करता है। लोगों का पथ प्रदर्शन करना पड़ेगा तब सामूहिकता यहाँ-वहाँ थोड़ी सी देखभाल, लोंग इसे पसन्द करते हैं। परन्तु इसका उदभव भी छोटी-छोटी चीजों की चिन्ता करने वाले श्रेष्ठ व्यक्ति से की समस्याएं आपको समझ आएगो। तब आप उन समस्याओं का समाधान करना भी जान 23 खंड : XI अंक : 1& 2 1999 र चतन्य लहरी ॥ होता है। यह आपकी उन्नति के लिए नहीं है। देखभाल करती है। आपको विश्वास करना यह आपके उत्थान के लिए है। उच्च जीवन चाहिए कि यह परमेश्वरी शक्ति सोचती है, प्राप्त करने के लिए आप अगुआपन के विचार समझती है और सुव्यवस्थित करती है सर्वोपरि छोड़ दें कुछ सहजयोगी जब अगुआ के रूप में यह आपको प्रेम करती है। इस परमेश्वरी रौब जमाते हैं तो मुझे लगता है कि ये मुर्खता है। शक्ति को समझना आवश्यक है। अब यह आपकी अपनी है, आप इसके साम्नाज्य में एसा करना ठीक नहीं है। THCEC बहुत वार मैने आपको बताया है कि है। जहां आपको किसी भी प्रकार की कोई सहजयाग में आपका अपना विकास, अपना समस्या नहीं हो सकती। इस परमेश्वरी शक्ति पर यदि आप सभी कुछ छोड़ देंगे तो यह कार्य करेगी। जिस वैज्ञानिक ने मेरे विषय में सुधार, अपना पद बताएगा कि आप क्या है? दूसरे जो चाहें कहे, काई फ़र्क नहीं पड़ता। आप जानते हैं। अपने विषय में जो कहते हैं वही ास्तविकता पता लगाया आप उसके विषय में है। इसका आप सामना करे। महिलाओं के लिए उसने मुझसे पूछा कि यहाँ पर इतने हृदय किस मैं विशेष रूप से कहूंगी कि मैं एक महिला हूँ प्रकार बनते हैं? मैंने कहा लोग (Sitting in the और इतने वर्षों तक मैंने कठोर परिश्रम किया है। Heart of the universe) ब्रह्माण्ड के हृदय में बैठे हुए, नामक भजन गा रहे थे इसीलिए इत्तने एक महिला होने के नाते में बताना चाहूँगी कि सभी महिलाओं को इसी प्रकार कार्य करना सारे हृदय उभरे। वह कहने लगा कि क्या यह चाहिए, क्योंकि सदैव कहा जाता हैं कि हमे शक्ति सुनती भी है? मैंने कहा नही कंवल मैं शक्तियां हैं। सहज महिलाओं के जीवन से मुझे सुनती हूँ। मैं भजन को सुन रही थी और यह नहीं लगता कि शक्ति-रूप में उन्होंने कोई कार्य शक्ति सभी कुछ सुव्यवस्थित कर रहो है। यह किया हो। हर समय वे सहजयोग पर निर्भर रुप बात भली-भांति समझी जानी चाहिए कि रहती हैं। अपनी स्वतन्त्रता में उन्हें खड़ होना आपकी अन्तर्शक्ति समझती है। आपको भी हांगा। उन्हें स्वतन्त्र होना होगा और सभी चीजों समझती है। शक्ति का यही तरीका है। ये को ठीक से देखना होगा। मुझे विश्वास है कि आपकी अपनी शक्ति है परन्तु आप इसे महिलाए जब इस प्रकार खड़ी हो जाएगी तो सहजयाग बहुत अधिक फेलेगा। सहजयोग के लिए पुरुष महिलाओं से कहीं अधिक कार्य कर रहे हैं। मैं समझ सकती हैं कि उनके परिवार हैं. अपने वश में नहीं कर सकते। यह आपके विषय में जानती है। जहाँ भी आपमें कमी है. जो भी आपमें गलती है, ये जानती है। यही शक्ति आपको प्रेम करती है और आपकी रक्षा करती है। माँ की तरह यह आपको सुधारेगी और उचित मार्ग पर लाएगी। उनके बच्चे हैं, परन्तु एक बार जब आप सक्रिय रूप से सहजयोग अपना लेंगी तब आपके बच्चे अच्छी तरह से विकसित होंगे और आपके नई सदी का आरम्भ हो रहा है। बहुत सा चीजें घटित होनी है। आप सभी लोगों कोा निणंय परिवारों की भी ठोक से देखभाल होगी। एक परमेश्वरी शक्ति है जो आप सबकी लेना होगा कि सहजयांग का फैलाने के लिए 24 चैतन्य लहरी । खंड : X1 अंक : 1& 2 1999 आप क्या करेंगे। आप सभी लोगों को चाहिए कि जितने भी चमत्कार, घटित हुए हैं उन्हें आप लिख दें। आप सभी लोगों के कुछ अनुभव है भी आपने देखे हैं। तो मैं आपसे कि इस ओर ध्यान दें। महिलाएं यदि वाहर नहीं कुछ लिखें । कुछ चमत्कार जा सकती तो उन्हें चाहिए कि वे व अपने आध्यात्मिक उत्थान, अपने सहज अनुभवों अनुरोध करूंगी कि जितना शीघ्र हो सके के विषय में लिख सकती हैं। जिनके पास अग्रेजी-हिन्दी या मराठी भाषा में भली-भाति चमत्कारिक फोटो है वे यहाँ भेजें। ये भद्र पुरुष लिखकर इन्हें भेजें। अन्य भाषाएं में नहीं जानती। अत: किसी अन्य भाषा में न लिखे। चौदह ( वैज्ञानिक) सितम्बर में यहाँ आने वाले हैं और सभी चमत्कारिक चित्रों का सूक्ष्मता से परीक्षण भाषाओं में अनुवाद करने के लिए हमें किसी करेंगे। तो यदि आप ये फोटोग्राफ भेज सकें तो को नियुक्त करना होगा जो कठिन कार्य है। अत: इन्हें भेजने की मैं आपसे प्रार्थना करूगी। अच्छा होगा। सहजयोग में जो आपको भिन्न भिन्न अनुभव हुए हैं, ये भी आप लिखें ये भी मुझे विश्वास है आज के प्रवचन को आप बार-बार सुनेंगे (पढ़ेंगे). उसे समझेंगे तथा एक अच्छा विचार है। उसने मुझे एक पुस्तक कार्यान्वित करेंगे। छापने के लिए कहा है। अब समय आ गया है परमात्मा आपको धन्य करें। 25 चैतन्य लहरी ॥ खंड : X1 अंक : 1&2 1999 खड़ विश्व सहज समाचार फ्लोरिडा यू.एस.ए. दूरदर्शन की श्रीमाताजी को कबैला में मान कर उनके सुन्दर चरण और सहजयोग के विषय में आधे घण्टे के कमलों पर चित्त डाला तो इतनी तीव्र चैतन्य समक्षकारों की श्रृंखला विकास की ओर अग्रसर है तथा इस कड़ी (शो) के निर्माता हमसे घबरा गए कि कुछ भी कह पाना कठिन होगा साक्षात्कार करते रहने के लिए अत्यत उत्सुक हैं। लहरिया आई कि क्षण भर के लिए तो हम पर सभी कुछ निर्विघ्न हुआ। इस शो का प्रसारण जून के आरम्भ में होगा। पांच लाख दर्शकों तक ये पहुँचेगा साक्षातकर्ता ने प्रभावित होकर बड़े अच्छे प्रश्न पूछे। कुछ ही दिनों में वे आत्साक्षात्कार सामग्री के संक्षिप्त वीडियो टेपों के साथ तैयार लेने के लिए आ रही हैं। श्रीमाताजी आपकी कृपा के लिए कांटिशत् नमस्कार। प्रिय भाइयों और बहनों इस कार्य में आप सब की सहायता दूसरे साक्षात्कार का समय आ गया था और हम लोग श्रीमाताजी के प्रवचनों तथा सहायक थे तभी निर्माता ने हमें बुलाया और पूछा कि क्या ये सम्भव नही है कि दूसरे शो के साथ-साथ ही तीसरे शो की भी रिकार्डिग कर ली जाए, तथा प्रकाशित चित्त डालने के लिए आपका क्योंकि किसी अन्य ने नाटक रिकाररडिंग रद्द कर धन्यवाद्। दी है। आश्चर्यचकित होकर हम सोचने लगे फ्लोरिडा के सहजयोगी कि" तीसरे शो का विपय क्या होगा? कौन सी वीडियो सामग्री को हम कुछ हो घण्टों के अन्दर सम्पादित करें जो प्रसारित करने के योग्य हो?" सिंगापुर में सहज कार्यक्रम 14 अप्रैल (1998) को सिंगापुर के तब हमने स्पष्ट बात सोची-क्यों न इन्हें आत्मसाक्षात्कार दे दिया जाए? आखिरकार कार्यकरम हुआ। हमने एक कमरा निर्धारित किया र हृदय (down town) में हमारा पहला विज्ञापित सहजयोग का मुख्य लक्ष्य तो यही हे हमने श्रीमाताजी का ध्यान करवाते हुए एक प्रसारण जिसमें सत्तर लोग बैठ सकते थे। हम ये ने जानते थे कि कितने लोग इस कार्यक्रम में योग्य वीडियो टेप ढूंढा और निर्माता को कह दिया, 'हम तैयार हैं। दोनों ही प्रसारणों का (रिकार्डिंग) अभिलेखन एक ही झटके में हो गया। इसमें कोई काटा-पीटी न करनी पड़ी। का प्रवाह भी अत्यंत तीव्र था। हमें ज्ञात न था सम्मिलित होंगे। कार्यक्रम साढ़े सात बजे आरंभ होना था परन्तु 7.20 पर 90 लोग पहुंच गए और बैठने के लिए कोई स्थान न था। पूरे स्थान का उपयोग कर लिया गया पर अभी भी लोग चैतन्य लहरियों अए जा रहे थे। सोचा गया कि किसी बड़े कमरे का प्रबन्ध किया जाए और इसी सोच में लगभग आठ बजे कार्यक्रम आरम्भ हुआ और तब तक कि हमारे अगुआ ने एक दिन पूर्व ही श्रीमाताजी को एक फैक्स भेजा था जिसमें उन्होंने आने वाले दूरदर्शन साक्षात्कारों का भी वर्णन किया 120 लोग आ चुके थे। श्रीमाताजी का वीडियो टेप जब दिखाया जा रहा था तब भी लाग आते था। साक्षात्कार के आरम्भ में जब हमने श्रीमाताज़ी रहे। 26 चैतन्य लहरी ॥ खंड : X1 अंक : 18 2 1999 के झुण्ड से घिरी हुई नन्हीं राधिका का देखने के लिए आए। वं सब अत्यन्त ध्यानपूर्वक शीतल लहरियों के सौंदर्य तथा इन्हें प्राप्त करने अमेरिका में कितने वर्षों के पश्चात् यह स्वप्न साकार हुआ था । हम इतने प्रभावित हुए थे कि मन ही मन श्रीमाता जी का धेन्यवाद कर की सहज विधि के विषय में सुन रहे थे। सभी हृदय से सिर हिला रहे थे धर्मशाला में इतने वर्षो तक रहने के फलस्वरूप रहे थे। कार्यक्रम अनुपम था-इतने अच्छे साधक अत्यन्त सहज और विनम्र, और बहुत पढ़े लिखे भी। श्रीमान सी.पी. श्रीवास्तव जी के भतीजे और उनकी पत्नी ने भी कार्यक्रम में भाग लिया। एक राधिका ने सहजयोग के विषय में अत्यन्त सहजता से और भली भांति बोलना सीख लिया था । अमेरिका में उसके सभी सहज अकल और आंटिया उस पर अन्य उपस्थित व्यक्ति श्रीमान सी.पी. श्रीवास्तव के भारतीय जहाजरानी निगम के संवाकाल में गर्व करती। साथी थे। उपस्थित लोगों में से कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने भारत में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया था मानों इतना कुछ काफो न था! अन्तिम दो दिन प्रतिदिन बीस से भी अधिक टेलीफोन सहज विधियों तथा चैतन्य लहरियों की पूछताछ जिसने पथ में श्री माताजी के कार्यक्रम में कुछ के विषय में आते रहे। एक व्यक्ति ने कहा कि वह पूरा दिन और पूरी रात चैतन्य लहरियां परन्तु सिंगापुर आ जाने के कारण ध्यान को आगे बढ़ाने की विधि न जानते थे। एक महिला, वर्ष पूर्व आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया था, ने सिंगापूर में आने के लिए हृदय से हमारा धन्यवाद करते हुए मुझे गले लगा लिया। वह कहने लगी कि मैं श्रीमाताजी से प्रार्थना करती थी कि यहाँ विश्वास दिलाया कि इतनी आसानी से चैतन्य सहज सामूहिकता प्रदान कीजिए। दो लम्बे वर्षो लहरियों को महसूस करना एक बहुत बड़ा की प्रतीक्षा के बाद उसकी प्रार्थना सुनी गई थी। आश्शीरवाद है। आप सभी कल्पना कर सकते हैं कि हमें कैसा लगा होगा! उस आनन्द का वर्णन शब्दों में नहीं डालती हूँ तो हमारी परम-पावनी माँ के शब्द किया जा सकता। यद्यपि कार्यक्रम हुए दो दिन मेरे कानों में गूंजते हैं-अमेरिका के सहजयोगियों हो गए हैं। फिर भी हम आकाश में उड़ रहे हैं। को पूरे विश्व में सहजयोग फैलाना है। अमेरिका माता-पिता के रूप में हमें श्रीमाताजी ने की ये जिम्मेदारी है। पूरा विश्व उत्सुकता से महसूस करता रहा। वह हैरान था कि क्या यह सामान्य स्थिति है... भाग्यशाली व्यक्ति! मैंने उसे यहां होने वाली घटनाओं पर जब मैं दृष्ट एक अन्य बहुमूल्य भेट प्रदान की। हमारी बेटी, प्रतीक्षा कर रहा है कि कब अमेरिका मानव मात्र जो 15 अप्रैल को 13 वर्ष की हुई थी, ने की आध्यात्मिक जागृति की वास्तविक भूमिका उपस्थित साधकों को अत्यन्त सुन्दर रूप से निभाने का बीड़ा उठाये! सहजयोग के विषय में बताया। हम आश्चर्यचकित दवे एवं माधुरी डनफी। सिंगापुर थे। एक बार तो चार चीनी पुरुष और महिलाओं भूर ू 27 चैतन्य लहरी खड : XI अंक : 18 2 1999 । साक्षात श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः श्रीमाताजी के श्री चरणों में विनम्र विनती पहुँचने और आपके सदा-सर्वदा सुन्दर प्रेममय एवं स्नेहमय दर्शन से भटका रही है। आपके परम पूज्य श्री माताजी, विश्व परिवर्तन के आपके दिव्य स्वप्न को साकार करके एक नए युग-सत्य युग- का दर्शन, आपका ध्यान ही अन्तिम शान्ति, आनन्द उद्घोष करने के लिए विश्व भर के हम सभी संतुष्टि और पृथ्वी लोक पर हमारे आध्यात्मिक उत्थान की एक मात्र आशा है। आज विश्व भर के हम सभी सहजयोगी जगत्-माता साक्षात् श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देवी के नाम पर बाधाओं सहजयोगी नकारात्मकता-मुक्त विश्व आन्दोलन छेड़ने के लिए आपकी आज्ञा की याचना करते हैं। हे सर्वशक्तिमान देवी कृपा करके इस काी विश्व व्याप्त सभी नकारात्मकताओं, विश्व की सभी नकारात्मकताओं, बाधाओं और और भूतों को आदेश देते हैं कि इस विश्व को भूतों से रक्षा कीजिए। ये बाधाएं पूरे विश्व पर छा रही हैं और सत्य साधकों को सत्य तक छोड़े दें। विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो शराबबाजी नशाबाजी विश्व का मुक्त करा, मुक्त करा, मुक्त करा तम्बाकू विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो. मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो. मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो दुष्चरित्र एवं कुटिलता वामाचार (Perversions) समलैंगिकता स्त्री समलिंग कामुकता ( Lesbianism ) बाल दुराचार अनैतिकता (immorality ) कुगुरु विश्व के झूठ-मूठ के धर्म विज्ञान में अन्धविश्वास अयोग्य राजनीतिज्ञ रूढ़िवाद धर्मान्धता सन्तों के रहने योग्य प्राकृतिक स्थानों को नष्ट करने वाली नकारात्मकता भौतिकवाद विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो. मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्ति करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो भ्रष्टाचार जातिवाद 28 चैतन्य लहरी । खंड : XI अक : 1& 2 1999 विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करी विश्व को मुक्त करो मुक्त करी, मुक्त करी असाम्यवाद (Fascism) सभी झूठे पथ एवं मत सत्य को असत्य में परिवर्तित करने वाले सभी नकारात्मक समाचार पत्राधिकारी हमारे अंदर अभी तक जीवित नकारात्मकताएं विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो अज्ञानवश इस सूची में वर्णन न की गई सभी नकारात्मकताए 'रूपं देही, जयं देही, यशो देही, सहज योग देही, श्री निर्मला देव्यै नमो नमः ' 29 चैतन्य लहरो । खंड : XI अंक : 1& 2 1999 भी सद्गुरु तत्व और विशुद्धि तत्व ९५ मानव शरीर में अलग-अलग देवताओं के का संचालन करती है। यह शक्ति कार्यशक्ति विशिष्ट स्थान हैं। सद्गुरु का स्थान भी शरीर में कही जाएगी और इस शक्ति का वहन या है। यह स्थान हमारी नाभि के चारों तरफ है । नियमन पिंगला नाड़ी से होता है। इसे महासरस्वती नाभिचक्र पर श्री विष्णुशक्ति का स्थान है। शक्ति कहते हैं। विष्णुशक्ति के कारण ही मानव की अमीवा से उत्क्रांति हुई और इसी विष्णुशक्ति से ही मानव का अतिमानव होने की घटना घटित होगी। कुण्डलिनी शक्ति जागृत होने के बाद व्यक्ति ईडा और पिंगला नाड़ियों का संतुलन जान सकता है। असंतुलन कहा ही सकता है सद्गुरु का स्थान आप में बहुत पहले से सृजित इसका ज्ञान हो सकता है। सहजयोग के कृुछ है। अब गुरुतत्व कैसा है यह समझने की कोशिश करते हैं । आसान तरीकों से आप संतुलन ठीक कर सकते हैं। कहने का उद्देश्य यह है कि मनुष्य की गुरुतत्व अनादि है। हमारे अन्दर अदृश्य ज्यादातर तकलीफे या सभी परेशानियाँ (शारीरिक रूप से तीन मुख्य शक्तियां कार्यान्वित हैं। इसमें मानसिक, बौद्धिक) ऊपर कही गयी दोनों नाड़ियों से पहली शक्ति श्री महाकाली की, दूसरी श्री के असंतुलन से ही होती है। इसलिए इन दोनों महासरस्वती की व तीसरी श्री महालक्ष्मी की नाडियों में संतुलन रहना बहुत आवश्यक है। शक्ति है। महाकाली की शक्ति से ऐसी स्थिति प्राप्त होती है कि जिससे अपना अस्तित्व टिका हुआ बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि आज हम जिस ऊपर कही गयी दोनों शक्तियों के अलावा हममें तीसरी शक्ति भी स्थित है। यह शक्ति भी मानव चेतना को प्राप्त हुए हैं वह इसी शक्ति के है। इस सृष्टि का अस्तित्व है। इस विश्व का अस्तित्व भी श्री महाकाली शक्ति के कारण ही कारण है। इसे श्री महालक्ष्मी की शक्ति कहा टिका है। आप में इस शक्ति का संचालन 'ईडा' नाड़ी से होता है। ये नाड़ी हमारे शरीर के बायीं जाता है। इसी शक्ति के कारण मनुष्य की अमीबा से उत्क्राति हुई है। उन तीनों शक्तियों का समन्वय होने पर तरफ है और हमारे शरीर के बायीं तरफ का संचालन व नियमन करती है। बायीं सिम्पथैटिक नर्व सिस्टम को चालित करती है। इस नाड़ी के कारण हमें इच्छाशक्ति प्राप्त होती है। इच्छा से सभी समस्याओं का अंत होता है। ऐसा व्यक्ति अत्यन्त शुद्ध एवं अहंकार रहित होता है। यही बह सद्गुरु तत्व है। जैसे-जैसे मनुष्य बड़ा होता है वैसे-वैसे उसमें दो ग्रांथियां-दो विशेष संस्थाएं धीरे-धीरे बनती हैं, उसमें से को अहंकार व दूसरी को प्रति-अहंकार कहते ी ही मनुष्य कार्यान्वित होता है। कार्यशक्ति मनुष्य सारे दायें तरफ (दायीं सिम्परथैटिक नर्व सिस्टम) में दायीं तरफ है और एक 30 चैेतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 182 1999 कहते हैं, समाहित है हैं। अग्रेजी भाषा में उन्हें 'ego' व 'super ego' संपूर्ण विराट पुरुष में भी ये शक्ति समाविष्ट कहते हैं । ये दोनों संस्थाए इच्छा व क्रिया शक्ति से बनती हैं। जब मनुष्य बहुत इच्छा करता है या है। ये शक्ति अनेक बार जन्म लेती है। आदिकाल केवल इच्छा से ही भरा होता है तब प्रति से देखा जाय तो श्री आदिनाथ इसी शक्ति के अवतार हैं। जैन संप्रदाय में श्री आदिनाथ जी को अहंकार प्रस्थापित होता है। ये संस्था हमारे सिर सद्गुरु मानकर उनका पूजन करते हैं और लोगों को श्री के बायी तरफ से चल कर सिर के मध्यभाग में स्थापित होती है। दूसरी संस्था माने आहकार की प्रार्थना करते हैं। परन्तु जैन संस्था का क्रियाशक्ति से निर्माण होता है। ये आदिनाथजी की शक्ति के बारे में ज्ञान नही है। संस्था किसी भी मनुष्य में, जो कुछ भी काम करता है, प्रस्थापित हो सकती है। मनुष्य उस शक्ति हैं। इस शक्ति में धर्माधता नहीं है समय सोचता है कि 'मैंने फलाना काम किया' सन्यासी की जाति नहीं होती है, ऐसा हम कहते तीनों शक्तियों से निर्मित होने वाली ये प्रथम हैं। इसका अर्थ यही है कि वह सभी धर्मों को मैने सड़क बनाने का काम किया', 'मैंने बाध मैंने मकान बनाया इससे सनुष्य में बनवाया " मानता है। अगर कोई व्यक्ति कहता हैं कि मैं एक तरह का कत्तापन आता है और उसी से फलानी जाति का गुरु हूँ. तो निश्चित समझ उसकी अहंकार की संस्था बल पकड़ती है। ये लीजिए कि वह व्यक्ति सद्गुरु नहीं है। सद्गुरु संस्था सिर के बायीं ओर से शुरू होकर सिर के बीचोंबीच आती है। जब अहकार व प्रति अहकार, तत्व की पहचान ही ये है कि सारे धर्मों का जो सार है वह इस सद्गुरु तत्व में शामिल है। इस दुनिया में धर्म के नाम पर कितनी संस्थाएं हैं? वैसे ही अनेक व्यक्ति हैं जो अपने आपको धर्मगुरु कहलवाते हैं। उसमें भी कई राजनीतिक संस्थाएं हैं। एक धर्मानुयायी दृसरे ये दोनों संस्थाएं बीचांबीच आकर मिलती हैं तब तालू भर जाता है। इसे अंग्रेजी में 'calcifica- tion' कहते हैं। सामान्यत: बच्चे का तालू 3-4 साल की आयु तक कठोर हो जाता है। इस आयु तक बच्चे बहुत अच्छी तरह से बात करना धर्मानुयायी पर टीका-टिप्पणी करता है। हिन्दू करता है मुसलमानों पर, मुसलमान इसाई पर और इसाई मुसलमानों पर। सच कहें तो ऐसे जो लोग हैं वे सब दांभिक व अज्ञानी हैं क्योंकि ऐसे सीख जाते हैं व अपनी मातृभाषा में बोल सकते हैं। सद्गुरु तत्व, श्री महाकाली. श्री महासरस्वती और श्री महालक्ष्मी इन तोन शक्तियों लोगों को सदुगुरु तत्व का ज्ञान नहीं है। कौन के समन्वय से (मेल से) बना है। यह गुरुतत्व हमारे अन्दर परमेश्वर ने बहुत ही नूतन स्वरूप सद्गुरु है, कोन नहीं हैं, ये वे नहीं जानते। अब सद्गुरु पहचानने का चिन्ह क्या है पहले यह में स्थित किया है। आप सब जानते हैं कि श्री देखते हैं। सद्गुरु आपसे पैसा या धन की माँग हुआ। श्री दत्तात्रेय नहीं करेंगे। उल्टा वह धन को धूल समान सत्गुरु दत्तात्रेय का जन्म कैसे में श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु व श्री महेश, इन तोनों मानेंगे। सद्गुरु को आप सोना या पैसा हीरे-मोती देवताओं की शक्ति समन्वित है। ये शक्ति देकर खरीद नहीं सकते। सद्गुरुओं को इन आपकी नाभि के चारों तरफ, जिसे भवसागर चीजों की जरा भी आसक्ति नहीं रहती है। 31 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 18 2 1999 सद्गुरु अपने स्वयं के स्वभाव में सन्तुष्ट रहते हैं। साधक्कों में अनुशासन होना वहुत जरूरी है। हैं। अगर उन्हें अच्छा लगा तो वे औरों से आपको पहले बता चुकी हूँ कि सद्गुरु तत्व बोलेंगे, नहीं तो नहीं। सद्गुरु परमेश्वर प्राप्ति के आपके भवसागर में स्थित है। अब ये सद्पुरु लिए आपकी विनती करके आप के पीछे-पीछे तत्व आपमें नहीं दौडेंगे। ये सब, मैं आपकी माँ हूँ इसलिए थोड़ा-सा आश्चर्य होगा। उदाहरण के तौर पर ं कार्यान्वित कैसे है ये समझकर ही सात्विक विचार के आपसे कह सकती हूँ कि सर्वप्रथम अपने आपका समझ लीजिए आप बहुत सद्गुरु तत्व जानिए। मुझे कितने ही योगसाधना व्यक्ति हैं। आप किसी दुष्ट प्रकृति वाले व्यक्ति किये हुए साधु व योगी मिले हैं। ये सारे लोग के घर खाना खाने गये तो आपको उसके घर बहुत बड़े हैं। उन्हें मैंने कहा, आप अब जंगलों खाने के बाद बहुत तकलीफ हो सकती है। इस तरह की तकलीफ होने के पीछे यदि आप अति सूक्ष्म कारण खोजें तो आपके ध्यान में ये बात आएगी कि दुष्ट प्रकृति वाले व्यक्ति के घर खाना खाने से हमें तकलीफ हो रही है। से बता रही या पहाड़ों पर बैठने के बजाय समाज में आकर लोगों को परमेश्वर प्राप्ति के लिए उद्यत कीजिए, उनका सद्गुरु तत्व जागृत करवा दीजिए। परन्तु इन महायोगी लोगों को समाज में नहीं आना है। बातें विल्कुल स्पष्टता वे कहते हैं कि समाज के लोग अभी इतने कुछ लायक नहीं हैं कि उन्हें इतनी बड़ी शक्ति सहज में दे दो। ऐसे महायोगी लोगों की स्थिति एकदम निराली है। ऐसे महान् लोगों के सामने अति हूँ। इसके लिए किसी भी प्रकार का बुरा मत मानिए क्योंकि मैं 'माँ' हूँ इसलिए सब स्पष्टता से बता रही हूँ। यह सभी लोगों को जान लेना विनम्रता से व्यवहार करके संभल के बातें करनी चाहिए। पड़ती हैं। सद्गुरुओं के आसपास का वातावरण अत्यन्त पवित्र होने से वे स्वभाव से कठोर होते में स्थित होता है। सद्गुरु तत्व से आप में चेतना हैं। वे किसी भी प्रकार का अधर्म नहीं सह सद्गुरु तत्व प्रमुखतः हमारे शरीर में बकृत शक्ति कार्यान्वित होती है। जब तक हमारा सकते। समाज में परमेश्वर प्राप्ति को लिए तथा यकृत अच्छी तरह से कार्य करता है तब तक कुण्डलिनी शक्ति जागृत करने के लिए किसी हमारी चेतना ठीक होती है। जव यकृत खराब है तब चेतना विचलित होती है। आपने सद्गुरु रूपी माँ की कार्य-पद्धति में दो प्रकार होता हैं। देखा होंगा जिस मनुष्य की पित्त प्रवृत्ति होती तली हुई चीजें खाने पर उसे पित्त की तकलीफ होती है व उसकी चेतना विचलित होती है। तब यकृत चेतना को शोषित करता है और इसीलिए । एक सद्गुरु तत्व व दूसरे मातृ-प्रेम। ऐसी माँ का हृदय प्रेमशक्ति से व परमेश्वर की करुणा से पूरा- पूरा भरा हुआ होता है यह प्रेम और परमेश्वर की शक्ति औरों को देने के लिए वह माँ उत्सुक रहती है। परन्तु इसी के साथ सद्गुरु यकृत अच्छी स्थिति में रखना जरूरी है। अब यकृत क्या करता है? यकृत हमारे शरीर में से इसीलिए परमेश्वर शरीर के लिए पोषक न होने वाले द्रव्यों (पदार्थों) प्राप्ति के लिए कौन-सी बातें करनी चाहिएं और का विश्लेषण करके उन्हें अलग करता है और उन विजातीय द्रव्यों का शरीर के बाहर विसर्जन 32 तत्व की सारी बातों का पूरे उत्तरदायित्व के साथ पालन करना पड़ता है और कौन-सी नहीं करनी हैं इस पर प्रतिबन्ध लगाया चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 1&2 1999 करने में यकृत हमें मदद करता है। यकृत में लगता है। उसमें सबसे पहले यकत पर सबसे बिगाड़ होने की क्रिया बहुत मंद होती है और ज्यादा प्रभाव होता है। इसी का परिवर्तन आगे इसीलिए उसमें खराबी होगी तो उसका निदान कैन्सर रोग जैसी बीमारी में होता है। कैन्सर रोग भी हाइड्रोजन व ऑक्सीजन में होने वाले बदल के कारण होता है। किसी कैन्सर रॉोगी व्यक्ति (diagnosis) होने में बहुत दर लगती है और उससे यकृत बहुत जल्दी खराब होता है। सर्वप्रथम आती है शराब। अब तक संसार में जितने को ठीक से यदि दखें तो उसके बदन पर है चाहे वे श्री अलग-अलग निशान पडे हुए और उसके शरीर सदगुरुओं का अवतरण हुआ मोजेज हो, श्री लाओत्से हों या श्री सुक्रान्त हों के कुछ हिस्से जले हुए दिखाई देंगे। परन्तु उस व्यक्ति का तापमान हमेशा की तरह साधारण हो सभी सदुगुरुओं ने एक बात प्रमुखता से बतायी है कि मदिरापान मानव धर्म के विरोध में है रहेगा। एक बात निर्विवाद है, सद्गुरु तत्व क इसका कारण ये है कि अपने पेट में दस ध्मों विराध में कोई भी वात करने से, वह शराब पीता हो या और कोई भी बात हों. मनुष्य की का स्थान है। मदिरापान से अपनी चेतना पर चेतना नष्ट होकर उसमें कैन्सर रोग जैसी बीमारी आक्रमण होता है तो उससे दसों धर्मों पर हो सकती है। शराब पीने से एक और बात मनुष्य के शरीर में होती है कि खुन की नली फूलकर आक्रमण होता है। जब मनुष्य की चेतना ही कम होती है तब वह चेतना के विरोध में होता है। इस मामले में हमारे एक सहजयोगी शिष्य का बहुत गहरा अध्ययन है और उसके लिए एक मोटी होती हैं। इसका कारण खून के पानी की को लंदन विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट डिग्रों दी है। वे मॉरेशियस के निवासी हैं। उनका नाम है, घटना में होने वाला परिवर्तन है जिससे मनुष्य में अनेक प्रकार की बीमारिया हो जाती हैं। सच देखा जाय तो मदिरा माने पाश्चिमात्य देशों में जिसे 'wine' कहते श्री रेजीस। मंदिरापान से मनुष्य की चेतना कम होकर मनुष्य का चेतना के विरोध में कैसे पतन होता है यह उन्होंने सिद्ध करके बताया है। हैं वह पेय है। 'wine' माने ताजे अंगूर का रस। मनुष्य के अतिश्योक्ति (extreme) के कारण उन्होंने अगूर मदिरा से खुन के जहरीले द्रव्यों का के रस को सड़वाकर उसे मदिरा का रूप दिया। वर्गीकरण नहीं हो सकता। अगर कहीं हुआ तो इस तरह की मदिरा अलग-अलग वस्तुओं को उसके यकृत में ढेर बनकर यकृत्त की पशो पर पॉलिश करने के लिए इस्तेमाल करनी चाहिए। उसका प्रभाव आ जाता है। आपने ये देखा होगा कि जिस व्यक्ति ने मदिरापान किया हो उस उदाहरण, अगर हीरे पॉलिश करने हैं तो 'जिन' से करने होते हैं या किसी जगह स्प्रिट इस्तेमाल मनुष्य के शरीर की तापमान नहीं बढ़ता क्योंकि शरीर में निर्माण होने वाली सारी गरमी यकृत में या किसी दूसरे हिस्सों में संग्रहित होती है। पानी करते हैं। ये स्प्रिट पॉलिश की जगह उपयोग में लाने के बजाय अगर शरीर में गया, तो उसे की बुद्धि वजह से बीमारियाँ पकड़ती हैं। मनुष्य के घटकों के बदल से पानी भी शरीर में निर्माण की विपरीतता की कल्पना भी नहीं कर सकते। होने वाली गर्मी शोषण नहीं कर सकता। और जो चीज़ पॉलिश करने के लिए है उसको पीने उसी से शरीर का एक-एक हिस्सा खराब होने 33 चैतन्य लहरी खंड : XI अक : 1&2 1999 है तब उसका नाश होता है और वह से, पता नहीं, उसे कौन-सा आनन्द आता है? गिर जाता मदिरापान से मनुष्य की चेतना जष्ट होती है। इसलिए वह अपनी तरफ अन्तर्मुख होकर नहीं धर्मों का पालन करना आवश्यक हैं। इन दस देख सकता। वह अपने आपको नहीं जान सकता। असन्तुलन में चला जाता है। इसीलिए उन दसो धर्मों के बारे में बाइविल में बिस्तार से बताया इससे वह सत्य से बिल्कुल दूर जाता है। 'सत्य' भयानक नहीं कि जिससे मनुष्य इतना दूर रहता गया है। आपने समाज में शुभकार्य नहीं किये तो आप की क्रियाशक्ति यानी पिंगला नाड़ी कार्यान्वित है। सत्य' बहुत सुन्दर और है, मनमोहक, शान्तिदायक हैं। नहीं रहेगी और इंड़ा नाड़ी पर दबाव आकर प्रतिअहंकार की संस्था मेदू में स्थापित होगी और मनुष्य पूर्णतया उसी के दबाव में आएगा। इससे सुखकारक परन्तु मनुष्य की उसकी कल्पना नहीं है और इसीलिए मनुष्य को समझाने के लिए इस पृथ्वी पर अनेक सद्गुरुओं ने जन्म लिए। एक सादा-सा नुस्खा है कि मनुष्य को उल्टा अगर मनुष्य में अहकार की संस्था ज्यादा अपना जीवन सन्तुलित रखना चाहिए। जौवन में बलवती होगी तो वह हिटलर की तरह बनेगा और उसे ऐसा लगने लगेगा कि मैं बहुत बड़ा (natural) है। आपने देखा होगा कि सर्वसाधारण कार्य कर रहा हूँ और बहुत से लोग मुझे हार पहनाएगे और मेरी आरती उतारेंगे, वरगैरा। परन्तु कभी 20 फुट लम्बा नहीं होता है। वैसे ही इस ऐसे मनुष्य को ये समझ में नहीं आता कि वह सृष्टि की और बातों में भी आपको सन्तुलन पूर्णतः अहंकार के दबाव में आने से असन्तुलन दंखने को मिलेगा। जो मनुष्य बहुत ज्यादा स्पर्धा में धकला जा रहा है । इसका वर्णन बाल्मीकि रामायण में है। नारद मुनि ऐसे अहंकार के कारण किस तरह असन्तुलन में चले गए! एसे अहंकारी लोगों को लगता है कि हम बहुत सन्तुलन आवश्यक है। ये बिल्कुल नैसार्गिक मनुष्य छः फुट क आसपास लम्बा होता है। वह है (competition) में रहता वह अन्ति में पगला जाता है। पश्चिमी देशों में हर बात में race ( भाग-दौड़) है । वहाँ के आंकड़े देखे जाएं तो हर एक बात में स्पर्धा दिखायी देगी। इस वजह से वहाँ के बहुत से लोगों की स्थिति पागलों जैसी हो गयी है। इस स्पर्धा के कारण मनुष्य में नीच और अतिमूर्ख होते हैं। यह सब असन्तुलन कामयाब हैं। इनका व्यक्तिगत जीवन गार से देखा जाय तो ऐसे लाग अत्यन्त तेज़ स्वभाव के से होता है। असन्तुलन सद्गुरु तत्व विरोध के असाधारण निर्माण होता है, जिससे उसका सर्वांगीण (चहुँमुखी) विकास नहीं हो सकता। उल्टे उसका नाश होता है। अपने शरीर में सद्गुरु तत्व को मज़बूत करना जरूरी है। उसके बाद ही उसमें धर्म की कारण आता है। व की रक्षा कंसे करें और अतः सन्तुलित जीवन जीकर सद्गुरु तत् इसके लिए क्या करें? सर्वप्रथम आपके गुरु कौन हैं यह देखना जरुरी है। यह समझना जरूरी बहुत स्थापना ही सकती है। ऐसे सन्तुलित जीवन से है। समाज में अनेक प्रकार के गुरु देखने का मनुष्य अपने स्वयं का धर्म पहचानने में समर्थ मिलते हैं । अगर कोई गुरु हमें नाम लेने (गुरु होता है। अपने स्वयं की स्तुति) के लिए प्रवृत्त करता होगा तो निश्चित समझ लोजिए कि वह सद्गुरु जिस समय मनुष्य स्वयं के दस ध्मों से 34 चैतन्य लहरी खंड : X1 अंक : 1& 2 1999 नहीं है। परमेश्वर का नाम समझकर और जिस सद्गुरु प्रत्यक्ष जिन्दा थे तब उनके साथ बुरा व्यवहार किया और उनकी मृत्यु के बाद उनकी जय जय कर रहे हैं । यह बिल्कुल सद्गुरु तत्व के विरोध में है। प्रकार की तकलीफ होगी उसके देवता का नाम लंते हैं। सबके लिए एक ही देवता का नाम लेकर काम नहीं बनता। उल्टे उससे और परेशानी बढ़ती है। इस बार में यह कह सकते हैं कि हमें बुखार आया तो डॉ. की दी हुई एक दवाई हम ही उन्हें स्वतंत्रता दी है। उसे अद्भुतशक्ति का खाते हैं। पर वही दवाई दूसरी बीमारियों पर कैसे काम आएगी? उल्टे उससे परेशानी ही होंगी। यही बात अलग-अलग देवताओं के नामों के हुए बारे में कही जाएगी। जो व्यक्ति आत्मसाक्षात्कारी नहीं वह सद्गुरु नहीं हो सकतें। माँ के पास जो करुणा होती है का छेदन नहीं करती तब तक योग हुआ केस मनुष्य की बुद्धि स्वतंत्र है। परमेश्वर ने ज्ञान हो यही उस विराट परमेश्वर की इच्छा है। अब तक सहजयोग में बहुत लोग सहज ही पार । अब सहजयाग एक ऊँचाई पर आकर टिका है। उसे आपको 'महायोग' कहना होगा। जब तक कुण्डलिनी शक्ति जागृत हो कर ब्रह्मरन्ध्र वह उन लोगों में नहीं होगी। योगी लोगां ने बहुत कह सकते हैं? अब तक जितने भी याग के हैं वे सारे योग की पूर्व तैयारी हैं। परन्तु महनत की है और उसके बाद उन्हों परमेश्वरी वर्णन शक्ति की अनुभूति मिलती है। इसलिए और लोगों को भी कुण्डलिनी जागृति के लिए महनत करनी चाहिए ऐसा उन्हें लगता है। संसार में अब तक जितने सद्गुरु हुए उन्होंने सहजयोग का ही मार्ग अपनाया था। उदाहरणार्थ श्री ज्ञानेश्वर महाराज, सहजयोग में जिस समय कुण्डलिनी शक्ति का उत्थान होता है उस समय ये सारे योग अपने आप घटित होते हैं। कुण्डलिनी शक्ति सहस्रार तक आती है और जिस समय कुण्डलिनी शक्ति सहस्रार में आकर ब्रह्मरन्ध्र का छेदन करती है श्री तुकाराम महाराज, श्री नामदेव. श्री नानक श्री कबीर आदि अनेक सद्गुरुओं ने समाज में सहजयोग जो अनादि है. वह आपके साथ ही रहकर लोगों की संवा की और उन्हें धर्म जन्म लेता है और आपके साथ ही अनेक जन्मों उस समय 'महायोग घटित होता है। इसीलिए से चलकर आया है। उसे 'महायोग' मानना सिखाने का प्रयास किया और ठीक मार्ग पर लोने की प्रयास किया। परन्तु उस जमाने के चाहिए। आप सभी 'महायोग' पाने की स्थिति में लोगों ने इन सभी गुरुओं की बात न सुनकर उन पहुँच चुकं हो। अब आपके गुरुतत्व को फलित लोगों पर इतने अत्याचार किये, बहुत बार उन्हें होने का समय आया है। पहले सद्गुरु दो-तीन शिष्य रखते थे। परन्तु जब तक यह बात मारा तक, उनको समाज से बाहर कर दिया, उन्हीं खाने को भी नहीं दिया। अब उन्हीं सन्तों सर्वसामान्य मनुष्य तक, सारे जनसमुदाय तक. की लोग पालकी लेकर घूमते हैं, जुलूस निकालते नहीं पहुँचती तब तक उसका क्या अर्थ है? अब हैं, उनके नाम से बड़े-बड़े सम्मेलन करते हैं । यह ज्ञान आम जनता तक पहुँचने का समय उन्हीं के नाम से पैसे कमाते हैं और उनके नाम आया है, क्योंकि आपकी अन्तर्रचना ज्ञान मिलने के लिए परिपक्व है। केवल सरोत से जुड़ना पर भण्डारे भी चलाते हैं। लोगों के इस पाखंडीपन बाकी है। और झूठेपन पर बड़ा आश्चर्य होता है। जब 35 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अक : 1&2 1999 आपके सद्गुरु तत्व को नमस्कार करको सम्पूर्णत: उसमें समरस हो गये। श्रीकृष्ण जी ने आपकी शीकृष्ण शक्ति के बा में मैं अब अनेक लीलाए की। वे पूर्णावतार थे। जब मनुष्य आपको बतलाती हूँ। मनुष्य में शुरु से ही श्रीकृष्ण शक्ति नाटक की तरह देखता है और वह सम्पू स्थित है। जिस समय अमीबा से मनुष्य की साक्षित्व में उतरता है। उस समय वह भ्रमित भी उत्क्रांति हुई उस समय उसकी ( मनुष्य की) नहीं होता और दुःखीं भी नहीं होता. गर्दन ऊंची उठ गयी। ये कार्य मनुष्य की गर्दन होता। वह आनन्द में समरस रहता में विशुद्धि चक्र के कारण हुआ। इस चक्र में श्रीकृष्ण शक्ति से होता है। सोलह पंखुड़ियाँ हैं। ये चक्र जिस जगह आपकी गर्दन में स्थित है. उस जगह से आपकी गर्दन विशुद्धि चक्र के दायीं और बांयी तरफ और एक ऊँची उठी है । यह कार्य विशुद्धि चक्र की कृष्ण बीचोंबीच में इसमें जो शक्ति बीच में है वह में पूर्णतत्व आता है तब वह विश्व की ओर न सुखी । यह श्रीकृष्ण शक्ति के दो भाग हैं। एक शक्ति जागृत होने से हो सका। इससे आपकी विराट को तरफ ले जाती है। बायीं ओर की उत्क्रान्ति में परिपूर्णता आयी। उत्क्रान्ति का इतिहास शक्ति मनुष्य के मन की कोई गलती या झूठे देखा जाय तो सर्वप्रथम एक पेशी अमीवा उसके बाद मछली, कछुआ. ऐसा होते होते मानव उत्क्रान्ति की आज की स्थिति तक पहुँचा है। कि मैने बहुत पाप किया है और गलती की है। श्रीकृष्ण शक्ति सम्पूर्ण शक्ति है। जब आपमें श्रीकृष्ण शक्ति जागृत होती है तब आपका सम्बन्ध विराट से होता है इसमें आपको समष्टि दृष्टि आती है। इसका अर्थ आप मेरी तरफ या मेरी फोटो की तरफ हाथ फैलाकर बैठोगे तो अपने यहाँ एक चीज बहुत ज्यादा लोग इस्तेमाल श्रीकृष्ण शक्ति जागृत होकर आप विराट से करते हैं। वह है सिगरेट, बीड़ी, सुरति (तम्बाकू) । सम्बन्धित होते हैं और आपके हाथ में ये जो श्रीकृष्ण की विराट शक्ति सर्वत्र फैली हुई है. शक्ति के विरोध में है। परन्तु आपको आश्चर्य उससे चैतन्य जा सकता है। (हाथ में जा सकता काम करने के बाद बनने वाली भावनाओं से खराब होती है। जिस समय मनुष्य को लगता हैं तब उसका विशुद्धि चक्र बायों तरफ खराब हो जाता है। मनुष्य की यही पाप की और गलती की धारणा उसे, उससे दूर भगाने क लिए, नशीली वस्तुओं के पास ले जाती है। इसमें सिगरेट या बीड़ी पीना या तम्बाकू खाना श्रीकृष्ण होगा कि जिन लोगों को ऐसी आदतें पहले थीं है) जिस समय आपके हाथ से ये श्रीकृष्ण उनकी ये आदतें सहजयोग में आने के वाद, यार शक्ति बहने लगती है तब आपमें साक्षी भाव होने के बाद, अपने आप छुट गयी। परमेश्वर ने तम्बाकू कीटाणु नाशक क रूप में बनायी। परन्तु मनुष्य को बुद्धि अजीव नाटक ही है। श्रीकृष्ण जी की उस समय की होने के कारण वह उसी तम्बाकू का उपयोग समय जो विपरीत तरीके से करता है। इसी तम्बाक के आता है। इसका मतलब आप सभी बातें किसी नाटक की तरह देखते हैं। असल में यह सब व लीला या प्रभु श्री रामचन्द्र जी ने उस कारण श्रीकृष्ण शक्ति को बाधा आती है और कुछ किया वह सभी नाटक ही था। इतने सुन्दर ढंग से उन्होंने वह नाटक प्रस्तुत किया कि वे सद्गुरु तत्व भी खराब होता है। क्योंकि खायी 36 चैतन्य लहरी । खंड : X1 अंक : 1 & 2 1999 हुई तम्बाकू पेट में जाकर वहाँ से यकुत वगैरा पकड़ आती है। उससे ऐसे लगता है मुझे ये बात शरीर के अंगों को खराब करती है। सद्गुरु तत्व नहीं करनी चाहिए थी। हमारे बचपन में हमारे अपनी नामि के चारों तरफ फैला हुआ होने के कारण सारी की सारी परेशानियाँ एकदम किसी माता-पिता कहते थे नीचे दृष्टि करके जमीन पर नज़र रखकर चलिए। आपको पता होगा कि लक्ष्मणजी ने सीताजी के पाँव ही दंेखे थे उसके विशुद्धि चक्र के बायें में श्री विष्णुमाया ऊपर उन्होंने कभी नजर नहीं उठायी थी इसमें की शक्ति स्थित है। ये शक्ति वहन की है, उनका कोई बुरा उद्देश्य नहीं था। यह एक साम आपत्ति की तरह आकर गिरती हैं। ा श्रीकृष्ण की बहन की। कंस ने जब उसे मारना चाहा तो वो आकाश में उड़ गयी और जिसने ये आँख घुमाने की बीमारी ऐसी चली है कि आकाशवाणी की वही ये विष्णुमाया शक्ति हैं। जिस मनुष्य की बहन बीमार होगी उसके विशुद्धि चक्र पर बायीं ओर बोझ महसूस होगा। अगर किसी मनुष्य की नजर अपनी बहन कायदा था कि नजर जमीन पर रख कर चलना। उससे आँखों की बीमारियाँ फैलती हैं। लोगों की नजर कमजोर होती है। उस समय फिर हरी घास पर चलने को कहते हैं क्योंकि पृथ्वीमाता हमारी माँ है। एक बार माँ क्या है, ये जानने के बाद के प्रति या अन्य महिलाओं के प्रति ठीक या बहन क्या है, ये लोग समझ सकेंगे। कहने का उद्देश्य यह है कि हमें अपनी पवित्र नहीं होगी तो यह चक्र तुरन्त खराब हो नजर नीचे रखकर चलना बहुत जरूरी है और किसी की भी ओर अपवित्र नजरों से नहीं जाता है। आजकल के समाज में, बहुत लोगों का यह चक्र खराब रहता है क्योंकि उनकी नजर पवित्र नहीं होती है अपने पुरातन शास्त्र के देखना चाहिए। यही बात हमारे अनेक सद्गुरुओं अनुसार अपनी पत्नी के सिवाय और सारी ने कहीं है। श्री येशुखिस्त ने कहा है आपकी नजर भी अपवित्र नहीं होनी चाहिए। खास करके ऐसा आप करके देखिए, तुरन्त आपको सन्तोष. हमारे इस मध्यम वर्गीय लोगों को ये बातें समझ लेनी चाहिए, क्यांकि जिन के पास बहुत पैसा है से आपकी कितनी ही परेशानियाँ खत्म होंगी। उनके दिमाग में ये बातें नहीं आएंगी। कारण वे अपने पैसों की मस्ती में चूर होंगे, उन्हें पाप-पुण्य है। आजकल के सिनेमा के की बातों को सोचने के लिए सयम नहीं है। त महिलाओं को बहन की तरह देखना चाहिए। शान्ति व पावित्र्य मिलेगा। इस तरह बर्ताव करने अपवित्र आचरण से विशुद्धि चक्र क बायीं तरफ तकलीफ होती मनुष्य को पाप-पुण्य का विचार विशुद्धि चक्र से कारण लोगों पर बहुत असर होता है। अपवित्र आता है। अगर पाप-पुण्य का विचार नहीं होगा तो आपकी कुण्डलिनी जागृत नहीं होगी। विश्व में पाप व पुण्य दोनों हैं जब आप सहजयोग में कृत्यों का फल भुगतना पड़ेगा। आजकल के लोगों में पवित्रता तेजस्विता, भोलापन नहीं दिखायी देता। कितनों की आँखें इधर-उधर घूमती हैं। ये ऑँखें घुमाना भी श्रीकृष्ण शक्ति के विरोध में है। आँखें घुमाने के कारण हमें आनन्द तो जागृत होकर आप प्रतिष्ठित होते है। आप पहले मिलता नहीं है और अपने बायीं तरफ भूतों का से ही प्रतिष्ठित हैं, पर पार होने से पहले प्रवेश होता है। और उससे बायीं विशुद्धि पर आपको उसकी जानकारी नहीं थी कि परमेश्वर आकर पार होते हो तब आपकी श्रीकृष्ण शक्ति 37 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 1 & 2 1999 देखते हैं। यह श्रीकृष्ण और राधा की शक्ति से ने कितने परिश्रम से आप में एक एक चक्र मनुष्य बनाया है। आप ये पूरा शास्त्र जान लीजिए और बना है। इस शक्ति के विरोध में जब अपनी महत्ता समझ लीजिए और अपनी स्थिति जानिए। आप सारे विश्व के फूल हैं और अब हूँ, मैं राजा हूँ, मैं बहुत बड़ा लीडर हूँ और में जाता है तब वह कहता है मैं बहुत बड़ा आदमी ही सब कुछ हूँ। ऐसी वृत्ति से उस मनुष्य में फल बनने का समय आया है, आप यह समझ लीजिए। आप परमात्मा के अंश हैं। परमेश्वर कंसरूपी अहंकार बढ़ता है। आपको मालूम है आपकी सम्मान दे रहा है और आपके सामने कि कसने अपनी सगी बहन को व बहन के बच्चों को किस तरह मारा। उसे लगता था किसी नतमस्तक होकर आपकी विनती कर रहा है। भी प्रकार से मुझे सभी लोगों पर आपना आधिपत्य आप ये सारा ज्ञान पा लीजिए। अपने 'स्व' का अर्थ पहचानिए। अपने 'स्व' की जानने से ही जमाना चाहिए। उसे दुनिया की और कोई चीज मनुष्य सुबुद्धि पाता है। जब तक मनुष्य में नहीं दिखाई देती थी। ऐसे व्यक्ति का दायीं तरफ दुर्बुद्धि है तब तक उसकी जागृति नहीं होती। सुबुद्धि विशुद्धि चक्र से जागृत होती है। जब की विशुद्धि चक्र की पकड़ होती है। परन्तु सर्वप्रथम आप में सर्दी के कारण दायों तरफ की विशुद्धि पर पकड़ आती है। अब विशुद्धि चक्र के बीचोंबीच जो शक्ति है वह विराट की शक्ति है इस शक्ति से मनुष्य परमेश्वर की खोज में रहता है। अगर मैं विराट मनुष्य अपने विशुद्धि चक्र में जागृत होता है. तब उसे सुबुद्धि आती है व सन्तुलन आता है। एक होती है सुबुद्धि व दूसरी है दुर्बुद्धि। बुद्धि गधे हो सकती है और मुर्ख की तरह भी। बुद्धि से तर्क, ज्ञान और उससे मनुष्य चोरी की तरह भी का एक हिस्सा हूँ तो परमेश्वर को खोजने का भी कर सकता है। वह कहेगा मै क्यों न चोरी मतलब क्या? इसका मतलब जब तक आपमें सामूहिक चेतना नहीं आती तब तक आपको करू? मेरे पास फलानी चीज नहीं है उसके पास है, तो मैं चोरी करूंगा। इसका कारण तर्कबुद्धि है। अब देखिए तकबुद्धि के कारण मनुष्य हर इसका जवाब नहीं मिलेगा। केवल लोगों को भाई-बहन मानकर सामूहिकता नहीं आएगी। परन्तु ये सामूहिक चेतना में अपने आप घटित होता है। प्ट्टा एक चौज की तरफ व्यक्तिगत विचार से देखता है। परन्तु सुबुद्धि से वैसा नहीं होता सुबुद्धि से हमारी व दूसरे की चीज उसी की है ये दिमाग कुण्डलिनी जागृत नहीं होती तब तक आपकी में आएगा। मेरी चीज में जो आनन्द है वह दूसरों सामूहिक चेतना जागृत नहीं होगी। एक वार की चीज में नहीं है। सचमुच कोई भी चीज किसी की नहीं। सभी कुछ हम यहीं छोड़ जाते जब तक आप सहजयोग में आकर आपकी आपकी कुण्डलिनी शक्ति जागृत होकर आप पार हो जाओगे तो आप औरों की भावनाएं, संवेदना अपने आप में जान सकते हैं। ये आपकी हैं। यह तो सब जमा-खर्च है कि यह मेरा वह र सामूहिक चेतना जागृत होने से हो सकता है। आप अपनी तरफ अन्तर्मुख होकर देख सकते हैं मेरा। एक बहुत ही सर्वसाधारण बात है कि जब सब कुछ यहीं छोड़ जाना है तो उसके पीछे इतनी भाग-दौड़ काहे की? अब दायीं ओर की विशुद्धि के बारे में मुड़ती है। और बातों की तरफ हम पूर्णता की व आपकी दृष्टि Absolute (परम) की तरफ ा 38 चैतन्य लहरी । खंड : X1 अंक : 1&2 1999 से देखते हैं। अपनी आतरिक स्थिति क्या अकबर" मंत्र (16 वार) कहने से विशुद्धि चक्र साफ होता है। तब आपको जानना होगा कि तुलना है ये जान सकते हैं। अब सहज में बताए तो अकबर' माने विराट पुरुष, परमेश्वर है। श्री आपके हाथ की पांच उगलियां, उस पर आप गुरुनानक साहब ने भी विराट परमेश्वर के बारे हैं। वैसे ही और दो चक्रों की हालत भी अपने में अर्थात् श्रीकृष्ण के बारे में बहुत सी बातें लोगों को बतायीं। परन्तु ऐसे कितने लाग अपने शरीर के पांच चक्रों की हालत जान सकते हाथ के तलवे से जान सकते है। बांये हाथ पर हैं जिन्होंने उनकी कही हुई बातों का अनुसरण बांयी इडा नाडी के चक्रों की, तो दाहिने हाथ पर दाहिनी पिंगला नाड़ी के चक्रों की स्थिति आप किया? उन्होंने कहा था. दोनों हाथ नमाज की तेरह फैलाकर परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए। जान सकते हैं। इस तरह की जानकारी केवल कुण्डलिनी जागृत होने के बाद पार होने पर ही इस तरह से हाथ फेलाकर प्रार्थना करने होती है। जब मनुष्य पार होता है तब उसकी कुण्डलिनी शक्ति का जागरण होता है। परन्तु रीढ़ पर सात चक्र जागृत होते हैं। उसकी जानकारी बात बहुत से लोगों को मालूम नहीं है। श्री गुरु दोनों हाथों पर होती है। इसी तरह उस स्थिति में नानक साक्षात् दत्तात्रेय उसे सामूहिक चेतना प्राप्त होती है। ऊपर दी गयी बातें आपके विशुद्धि चक्र किया है उतना किसी ने भी नहीं किया। शैतान से सम्बन्धित हैं। हमारे यहाँ सहजयोग में बहुत को कैसे खत्म करना है इसके बारे में उन्होंने से लोग आते हैं और पार होते हैं। परन्तु इनमें बहुत छोटी छोटी व महत्वपूर्ण बातें बनायी हैं बहुतों को चैतन्य लहरियों की संवेदना नहीं होती। इसका कारण उनके विशुद्धि चक्र सिगरेट करते हैं। श्री आदि शंकराचार्य जी ने तो बहुत और बीडी पीने से खराब होता है, ये बताया जा सी सूक्ष्म बातें लिखी हैं। इन सूक्ष्म बातों को के अवतार थे। और कुण्डलिनी जागरण के लिए जितना काम उन्होंने जिनका इस्तेमाल सहजयोग में हम बहुत तरह से आप कायदे से अपने जीवन में अपनाएंगे तो सहजयाग में पूर्णत: उतर जाएगे। देश में अनेक चुका है। शहरों में अपवित्रता ज्यादा होने के कारण ये चक्र सिगरंट या बीड़ी न पीते हुए भी खराब होता है। विशुद्धि चक्र खराव होने से इस साधु-सन्तों ने अवतार लेकर ऐसे ज्ञान को बता चक्र में से मेंदू के दोनों तरफ संबेदना ले जाने कर समाज में जागृति करके हम पर अनेक वाली नाड़ियाँ खराब होती हैं। ऐसे मनुष्य की सवेदन क्षमता कम होती है। परन्तु जैसे-जैसे साधु-सन्तों ने अवतार लेकर इस भूमि को पावन विशुद्धि चक्र जागृत होता है वैसे वैसे संवदनक्षमता किया है। इन संतों की इतनी तपश्चर्या है कि में वृद्धि होती है। विशुद्धि चक्र जागृत करने के इनके इशारे मात्र से लोग पार होते हैं। मैं जब लिए कुछ मंत्र हैं। आपको आश्चर्य होगा, विशुद्धि सहजयोग के प्रचार कार्य के लिए गाँवों में जाती चक्र जागृत करने के लिए अपनी अनामिका हूँ तब हजारों लोग आते हैं। परन्तु शहरी लोगों उंगली दोनों कानों में डालकर गर्दन पीछे की को आने की फुर्सत नहीं होती। गाँव के लोगों उपकार किये हैं। विशेष करके महाराष्ट्र में ओर झुका कर और नजर आकाश की ओर को सत्य की पहचान है और ऐसे ही लोग रखकर जोर से व आदर से " अल्लाह- हो सहजयोग में प्रस्थापित होंगे। यहाँ ऐरों-गैरों का चैतन्य लहरी 39 । खंड : XI अक: 1&2 1999 काम नहीं है। जिन लोगों को अपने स्वयं के में आकर पार होने के बाद कुण्डलिनी का लिए आदर नहीं, श्रद्धा नहीं, सत्य की आसक्ति नहीं, उनके लिए सहजयोग नहीं हैं। सहजयोग मतलब क्या है ये जान सकते हैं। इसका स्मंदन आप अपनी नजर से देख सकते हैं। जब तक प्राप्ति के लिए बहुत बड़े पडित या ज्ञानी होने की जरूरत नहीं है। सहजयोग सर्वसाधारण बारे में अनभिज्ञ (अन्जान) होते हैं। परन्तु पार मध्यमार्गियों के लिए है। उसके लिए शिक्षा की होने के बाद इस ज्ञान का प्रकाश आप में आता आवश्यकता है ऐसा भी नहीं। परन्तु पक्के हृदय है। सर्वव्यापी परमेश्वर के साथ चैतन्य लहरियों के पक्के लोग होने चाहिए या शाही स्वभाव के से आप बात कर सकते हैं क्यांकि ये परमेश्वरी लोग चाहिए। ऐसे लोग सहजयोग में प्रस्थापित शक्ति सारे चराचर में व्याप्त है। होते हैं। श्रीकृष्ण शक्ति के बारे में लिखने के लिए बहुत सारी बातें हैं। परन्तु वहुत ही थोड़े (25 सितम्बर, 1979 में हिंदुजा आडिटोरियम शब्दों में यहां पर रखी गयी हैं। आप सहजयोग आप पार' नहीं होते तब तक आप इस ज्ञान के आप सबको अनन्त आशीवाद! निर्मल योग से उद्धृत) बंबई में श्रीमाताजी के प्रवचन पर आधारित) 40 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 182 1999 अ० भ रप मत सूर्य रथ गणपति पुले सेमिनार 1998 ---------------------- 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी अंक 1& 2 1999 खण्ड XI हीई लं डाल १ नें ...जिस समय भी आप घर पहुंचे-प्रातः, सांय या किसी और समय-यदि आप उन्नत होना चाहते हैं तो प्रतिदिन आपको ध्यान धारणा करनी चाहिए। आपका ध्यान तभी शुरु होता है जब आप निर्विचार समाधि में होते हैं। तब आपकी प्रतिक्रियाएं शून्य हो जाती हैं। किसी भी चौज की ओर जब आप देखते हैं तो मात्र देखते हैं। निर्विचार समाधि में होने के कारण आप प्रतिक्रिया नहीं करते। आप प्रतिक्रिया नहीं करेंगे। जब प्रतिक्रिया समाप्त हो जाएगी तो आप आश्चर्यचकित होंगे कि सभी कुछ दिव्य हो गया है। प्रतिक्रिया तो अगन्य चक्र की समस्या है। एक बार जब आप शुद्ध निर्विचार समाधि में होते हैं तब आप इस प्रकार परमात्मा से एक-तार हो जाते हैं कि परमात्मा आपकी सारी गतिविधियों को, आपके जीवन के हर क्षण को संभाल लेते हैं और उसकी देखभाल करते हैं। परमात्मा से जुड़कर आप स्वयं को पूर्णत: सुरक्षित महसूस करते हैं और परमात्मा के आश्शीवादों का आनन्द लेते हैं ।" परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-2.txt इस अंक में क्रम सख्या पृष्ठ नं. सम्पादकीय श्री आदि शक्ति पूजा 21:06.98 2. 12 हैदराबाद पूजा प्रवचन 25.02.1990 3. गुरु पूजा ।998 4. 14 विश्व समाचार 5. 26 श्री चरणों में प्रार्थना 28 6. सद्गुरु तत्व एवं विशुद्धि तत्त्व 30 7. योगी महाजन सम्पादक विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 अभिनव प्रिन्टस, दिल्ली-34, फोन : 7184340 मुद्रक चैतन्य लहरी खंड : X1 अॅक : 182 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-4.txt सम्पादकीय स्वभाव की प्रवृत्ति है। प्रश्नों का चाहे काई संदर्भ न हो, चाहे प्रश्न विवेकशुन्य हा, परन्तु जब अहें इन प्रश्नों से जुड़ जाता है तो वे अत्यन्त क्या सभी प्रश्नों का उत्तर दिया जाना अशान्त मस्तिष्क में आवश्यक है? मस्तिष्क में, हर समय प्रश्नों का तूफान चलता रहता है आरम्भ में ये प्रश्न जिज्ञासा के कारण उठते हैं महत्वपूर्ण बन जाते हैं। प्रतिष्ठा का मामला वन परन्तु रजोगुणी (Right Sided) लोगों में जब बुद्धि की भाप उठने लगती हैं तो यही प्रश्न अह जाता है, "यह मरा प्रश्न है।" एक जन कार्यक्रम के पश्चात् वक्ता न अपने भाषण के संदर्भ में प्रश्न आमन्त्रित किए के तौर पर हमें प्राय: ऐसा सुनने को मिलता है परन्तु दर्शकों ने उनके भाषण में कही कि, "देखां, वह मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दे गई बातां के अतिरिक्त सभी प्रकार के प्रश्न पूछे। यहाँ तक कि श्रोताओं नं वक्ता पर उन दूसरे शब्दों में, "मैं उससे अधिक बुद्धिमान बातों का भी लान्छन लगाया जा उसने अपन भाषण में कही तक न थी। ये हैरानी की बात दने की कारण बन जाते है। उदाहरण का बढ़ाबा प्रश्नोत्मुख पाया। हूँ क्योंकि मैं इस प्रश्न का उत्तर जानता हूँ।" मैंने उससे पूछा, "परमात्मा क्या है? परन्तु नहीं है क्योंकि 'कल्पना 'बुद्धि' की बहन है. दोनों एक साथ उड़ान भरती हैं। बुद्धि जितना अधिक उछलती है उतनी हो तेजी से बेलगाम दे पाया । वह उत्तर न परमात्मा को परिभाषाबद्ध किस प्रकार किया जा सकता है? किसी व्यक्ति स्थान या घोडे की तरह से दौडकर कल्पना राजसिक वस्तु को तो परिभायित किया जा सकता है परन्तु प्रवृत्ति (Right Sided) व्यक्ति का भड़काती हैं। भयकर नृत्य करने वाली बुद्धि की प्यास का कभी शात नहीं किया जा सकता। अश्व की अनन्त को किस प्रकार परिभाषित कर सकते है? असीम को दी गई कोई भी परिभाषा उसे प्यास ता बुझाई जा सकती है परन्तु किसी शराबी की आखों की प्यास किस प्रकार शान्त सीमाबद्ध कर दंती है। प्रश्न इतना असगत है कि उत्तर देने के योग्य हो नहीं, फिर सभी प्रश्नों का संभवतः उत्तर होता भी नहीं है। अहँ जब असम्भव प्रश्न पूछता है तो खाली घड़े की तरह से प्रश्न पूछ-पूछ कर बहुत स्वयं को अतिविलक्षण मानता है। यह किसी शोर करती रहती है। प्रतिद्वन्दी को पछाड़ने की चाल हो सकती है या केवल दिखावा करने का अभ्यास । वास्तव में प्रश्नों की इस प्रकार झड़ी लगा दी कि एक की जाए? बुद्धि अन्दर से खांखली है और क एक अन्य जनकार्यक्रम में एक व्यक्ति ने प्रश्न का उत्तर देने के लिए कोई भी विवश नहीं हैं। बोलने को स्वतन्त्रता नि:संदेह प्रशन पूछने का दता। वास्तव में वह केवल प्रश्न करने को हो। जन्मसिद्ध अधिकार प्रदान करती है। परन्तु इस लालायित था. उनका उत्तर पाने के लिए नहीं। प्रश्न का उत्तर पाने से पूर्व वह दूसपरा प्रश्न छाड़ वह उस पागल व्यक्ति सम था जो अपने निशाने प्रश्न का उत्तर देने के लिए कोई भी बाध्य नहीं रम पर बिना निशाना साथे गोलिया चलाता चला हैं। प्रश्नों की झड़ी लगा देना रजीगुणी (आकरामक) चैतन्य लहरी = खंड : XI अंक : 1 & 2 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-5.txt जाता है। इस प्रकार के आक्रामक लोग सदेव और संदेहो से दूर आत्मा के साम्राज्य को गहनता में अपने ही सम्माहन (Obsession) में तो रहते हैं। व या तो अपने वारे में बात करते रहते पूछने के लिए क्या रह गया ? फसे ले जाती है। जब आन्तरिक आनन्द में खा गए "किसका फान है या प्रश्न पूछते रहते हैं। आया उसने क्या कहा? उसके जूते का नम्बर आत्मा स्वयं हमें आवश्यक चीजों का ज्ञान देती है। हम बास्तव में अपने गुरु बन जाते हैं। हमें समझना चाहिए कि हम अपनी परमेश्वरी क्या था? आदि आदि।" एक अहँकारी व्यक्ति प्रश्न पूछने के माँ के सरक्षण में हैं। व हर चीज का ध्यान रखती हैं। ता क्यां हम व्यर्थ के प्रश्नों से अपने उन्माद में इसे प्रकार बह गया कि वह इस प्रकार अपने प्रश्न दाहराता रहा मानो ग्रामीफात चित्त को परशान कर? हम यह भी याद सखना चाहिए कि उत्थान के विषय में यदि अब भी की सुई अटक गई हो! वक्ता उसके प्रश्ना का उत्तर द रहे थे परन्तु उसका चित अपने प्रश्नों में हमारे मन में कुछ प्रश्न शेष हैं तो हमारों इस प्रकार उलझा हुआ था कि वह वक्ता की परमेश्वरी माँ अपनी चमत्कारिक लोला तथा अद्भुत प्रवचनों से उन सब प्रश्नों का उत्तर हमें श्रीमाताजी की कहीं हुई बातों को बात को समझ हो ने पा रहा था। इसी प्रकार दे देंगी। परन्तु तमागुणी ।Left Sided) लागा को रंखीय गति ( linear movement) उन्हें टंप रिका्डर की तरह से भूतकाल को घटनाओं को दोहरात चले पूर्णचित्त सं अपने सहस्रार पगर हम इन्हें पढ़े या जाने पर बाध्य करती है। वो अत्यत उवाऊ हो भी हमे तभी आत्मसात कर सकते हैं जब सुने। तब हमं आध्यात्मिक उत्थान में सहायक सभी प्रश्नों के उत्तर स्वतः ही मिल जाएगे। तो जाते हैं क्योंकि उनके मित्रों को उनकी सभी कहानियां जुबानी याद होती हैं। आइए श्रीमाताजी के चमत्कारिक प्रवचनो को ध्यान से समझे। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् हे देवी महासरस्वती ज्ञान के सागर की सतुलित हाकर व्यक्ति बुद्धि के चगुल से मुक्त हा जाता है। नि्विचार समाधि में वह आतरिक शान्ति कृपा-दृष्टि, जो आपने हम पर की है, के लिए की अवस्था का आनन्द लता है हम आपके हृदय से अभारी हैं और आपको खटमल नहीं होता। आन्तरिक शान्ति हमें प्रश्नों कोटिशत् प्रणाम करते हैं। जहां प्रश्न रूपी अक : 182 1999 E IX 2E नतन्य लहरो 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-6.txt श्री आदि शक्तिपूजा 21-06-1998 कबैला रहा है। तो उसने कहा कि ये ब्रह्माण्डीय शक्ति रूर के लोग, देखा गया है, उदार मनस्क ( COSMIC ENERGY) का सात है। केवल आदि शक्ति ही ऐसी हो सकती है। है। कवल इतना ही नहों, बहा के वैज्ञानिक तो विशष रूप से उदार मनस्क हैं। उन्हं अल्याधिक वे ही हर दबीया गया. जिसके कारण उन्होंने सुक्ष्म चीज़ें चीज का सृजन करती है। पूरा बातावरण, जैसा कि हम जानत हैं अत्यन्त बनावटी हैं। अपनी पुस्तक में मैंन उनके चाहा, अधिक सूक्ष्मता में जाकर शरीर और हाथों कार्यों के विपय में लिखा है। परन्तु में आपका बताना चाहगी कि सर्वप्रथम उनकी ( आदिशक्ति) अभिव्यक्ति बाई और को होती है। यह महाकाली को अभिव्यक्ति है। तो महाकाली के कार्य के लिए बाई ओर को उन्होंने पावनता, अवाधिता खाजन का प्रयत्न किया। उन्होंने केवल रसायनों या प्रकाश के भौतिक गुणों को ही नहीं खोजना के इर्द-गिर्द विद्यमान चैतन्य-प्रकाश को भी उन्होंने खोज निकाला। उन्हांने इतनी अधिक ने और इस खाज को पूरे विश्व खांज की, स्वीकार किया। अब मुझे यह लगता है यह व्यक्ति एक विशेषज्ञ था क्योंकि वह अत्यन्त तथा मंगलमयता के गुणों के कारण श्री गणेश सुप्रसिद्ध है और उच्च पद पर आरूढ भी है। की सृष्टि की। ब्रह्माण्ड का सृजन करने से पूर्व वह बरता हा था कि उसे 150 संस्थाए चलानी पड़ती है। अत्यन्त विनम्र और सज्जन व्यक्ति। अपने शोध के साथ जब वह आया तो मुझे तत्पश्चात् वं विराट के शरीर मे प्रवेश करके प्रसन्नता हुई क्योंकि वैज्ञानिक रूप से यदि यह चैतन्य लहरियां) प्रमाणित हो जाए तो कोई भी इसे चुनौती न दे पाएगा। जो भी कुछ वह यह किया जाना आवश्यक था। सकरप्रथम श्रगणश का सृजत करके वह स्थापितः हो जाती है दाई और को जाती हैं जहां सारे ब्रह्माण्डों-भुवनों का सृजन करती है। भुवन संख्या में चौदह है अथात कई ब्रह्माण्डों को मिलाकर एक भुवन बनता है। दाई और पर वे इन सबका सजन करती हैं। तब प्रमाणित करना चाहता था उसकी बीजगणितीय जाटलताओं के साथ उसने एक पुस्तक लिखी वे ऊपर की ओर जाती हैं और फिर नीचे की है। उसने बताया कि मानवीय चेतना से परे ओर आते हुए इन सभी चक्रा-आदि चक्रां या शून्यता (Vacuum ) हें और उस शून्यता में ही पीठा की सृष्टि करती है। कुण्डलिनी रूप में ब आप वास्तविकता को जान सकते हैं। जब यह स्थापित हो जाती है या हम कह सकते है कि सब (चैतन्य लहरियां) वास्तविकता बन जाएंगी कृण्डलिनी उनका एक भाग है। शेष कार्य इससे तो यह विज्ञान है। इस प्रकार इसे विज्ञान का भी कहीं अधिक है। अतः अवशिष्ट शक्ति रूप दिया गया है। उसने मेरे बहुत सें फोटो दिखाए, विशेष तौर पर बह फोटो जिसमें नाव पर जाते हुए मरे सिर से बहुत चैतन्य निकल के रूप में आती हैं। इस कुण्डलिनी और चका ( Resiedual Energy) का अर्थ यह हुआ कि यह सारी यात्रा करने के पश्चात् वे कुण्डलिनी : 1 & 2 1999 चतन्य लहरी X1 अंक खुई 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-7.txt के कारण वे एक क्षेत्र की रचना करती है जिसे हम शरीर में 'चक्र' कहते हैं। सर्वप्रथम वं सिर जहां लोगों को सभी कुछ कार्यान्वित करने वाले में इन चक्रों का सृजन करती है। इन्हें हम चक्रों मातृ-तत्व की पूर्णत: समझ आ गई है। भारत में के पीठ कहते हैं और तब नीचे की ओर आकर वे चक्रों को सृष्टि करती हैं जो कि विराट के शरीर में हैं। एक बार जब यह सब कुछ हो से स्वयंभुः हैं अर्थात् ऐसे देवी देवता जा स्वतः जाता है तब वे विकास प्रक्रिया द्वारा मानव का पृथ्वी से प्रकट हुए हैं। उदाहरणार्थ महाराष्ट्र में सृजन करती है और इस प्रकार विकास प्रक्रिया महाकाली महासरस्वती और महालक्ष्मी के स्थान आरम्भ होती हैं तब जल में सूक्ष्मदर्शी अस्तित्व हैं। वहां पर आदि शक्ति का भी एक स्थान है। से इसका विकास आरम्भ होता है। जब वे जल जो लोग नासिक गए है उन्होंने चतुर्ट्गी अवश्य तथा इन ब्रह्माण्डों का सृजन करती हैं तो अपनी देखा होगा (आपमें सं कितने लोगोंने देखा है? विकास लोला की करने के लिए पृथ्वी मां को बहुत अच्छा) । यह चतुर्श्रगी आदिशक्ति का ही सर्वोत्तम स्थान मानती हैं। वहां पर आदि प्रतीक है. जोकि मानव को उत्थान दन वालो गया और आज उस स्थिति तक लाया गया है के बारं में पूर्णत: विश्वस्त हैं कि लोग मातृतत्व में वहुत कार्य करता है। भारत मातृतत्व हो सारा शक्ति इस सूक्ष्म अस्तित्व को बनाती है। मैं यह सब कुछ लिख चुकी के पश्चात् आप देख सकंगे कि किस प्रकार हाइड्रोजन, कार्बन और आक्सीजन आदि मिश्रित हो गए किस प्रकार नाइट्राजन प्रवेश किया और किस प्रकार यह सारी प्रक्रिया इतन जटिल नहीं थे। यह कार्य करना प्रकृति क आरम्भ हुई। यह सब मैं अपनी दूसरी पुस्तक में लिए सहज था। पृथ्वी मा. पूरा वातावरण, लिख रही हूँ जो कि मैन लगभग समाप्त कर ली है। परन्तु अभी भी कुछ चक्रों के बारे में थो तो इन सभी का सृजन लिखा जाना थाको है। अब, इस घटना के सकी। परन्तु जब मानव की बारी आई तो उस शक्ति का चौथा आयाम है, ओर अन्त में हूँ। मेरो पुस्तक आ जाने महालक्ष्मी मार्ग से आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है। यह सारा प्रक्म है-सारा सृजन आदिशक्ति की शान्ति द्वारा ही किया गया। यह सब बहुत इस लीला में बड़ा कार्य है। यद्यपि इससे पूर्व किए गए कार्य ने पचतत्व, सभी की एकाकारिता आदि शक्ति से से कर व सुगमता मैं लिखूगी. लोग उस पर बैज्ञानिक पश्चात्. जो भी कुछ संशय नहीं करंगे। वे जान जाएगे कि यह स्वतन्त्रता' प्राप्त हो गई। यही एक ऐसी जाति है जिसमें अहम् है तथा जा साच विचार की माया में फसी है। अहम् के कारण माया न उन पर सत्य है और जो मैंन कहा वह सच्चाई है। माँ आदिशक्ति में विश्वास कर पाना कार्य किया और विश्व का सृजन करने वाल कठिन कार्य था. विशेषतौर पर इसाई धर्म संचालकों सिद्धान्त को वे भुला नं. आप हैरान होंगे 'माँ का वर्णन ही नहीं किया। इस्लाम नं भी माँ का वर्णन नहीं किया। के परिश्रम का फल है, और वे इन सभी चीजो 'माँ के प्रति पूर्ण अविश्वसनीयता है। केवल के स्वामी हैं। यह बात उनमें इस हृद तक बैट भारतीय दर्शन में ही "माँ को पूर्ण मान्यता दी गई कि व दूसरे देशों पर आक्रमण करने लगे गई भारतीय वास्तव में शक्ति के पुजारी थे। और बहुत से लोगों को मार गिराया एसा करने बैठे। उन्होंने इसे अपना अधिकार समझ लिया। उन्हें लगा कि यह उन्हों में उन्हें विल्कुल भी संकाच नहीं हुआ । पूरा इस प्रकार मां क प्रति विश्वास का बनाए रखा 1 & 2 1999 चंतन्य लहरी खड़ : XI अक 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-8.txt जोवन वे अन्य लोगों को सताने, उन्हेँ वश में परन्तु कुछ समय पश्चात् आप दखगे कि वे करते तथा हानि पहुँचाने के विषय में साचते रहे। उन्होंने कभी न तो सांचा और न ही अन्तर्दर्शन की महान् प्रक्रिया चल रही है। य समझ लेना किया कि व जो कर रहे नहीं किया जाना चाहिए। मानव को प्राप्त स्वतन्त्रता उच्च चतना के क्षेत्र में प्रवेश कर गए हैं जहां के कारण ही पूरे विश्व भर में उथल-पुथल है। आप परमात्मा से जुड़े हुए हैं। यहां भी यदि आप सत्ताधारी लोग अत्यन्त करूर थे और उन्हें अन्य सब दिव्यताविहीन सर्वसाधारण लोगा को तरह लोगों की भावनाओं का विल्कुल सम्मान न था। यृथ्वो पर एसा बहुत बार हुआ है। सहजयाग संसार से गायत हा गए शुद्धिकरण हैं वह गलत है और आपक लिए आवश्यक है कि आप अत्यन्त से व्यवहार करते हैं तो आप कितनी दर चल सकगे? अत: अल्यन्त आवश्यक है कि ध्यानधारणा द्वारा स्वयं को विकसित करक आप वास्तव में अब सहजबाग को आरम्भ हुआ है। इसके आरम्भ होने के पश्चात् सहजयोगी आदिशक्ति बहुत अच्छे सहजयागी बने। कुछ स . से सीधे हो आशीर्वाद प्राप्त कर रह है। परन्तु कुछ दशा में, हम इस मामले में अत्यन्त भाग्यशाली मैं ये भी कहूँगी कि सहजयोगियों में भी ऐसे हैं। परन्तु कुछ देशों में मैं पाती हूँ कि लोग लोग बहुत कम हैं जिन्हें परिपक्व कहा जा गृंगे-बहरे हैं। वे सहजयोंग को नहीं समझ सकते। सके। उनमें से तो मात्र इसलिए सहजयोगी मेरे कार्यक्रम के लिए तो वे जरूर आतं हैं परन्तु हैं क्योंकि ऐसा करना फैशन है। हो सकता है उनके दृष्टिकोण से ये बेहतर हो या स्वार्थ सिद्धि के लिए वे सहज योगी हों। यह थाना पर कुछ बाद में गायब ही जाते हैं। मरे विचार में सहजयागी इसके लिए जिम्मेदार है। जिसे प्रकार से वे घूमते है जिस प्रकार वे सहजकार्य करत है। वह सहज नहीं है। निश्चित रूप से इसमे कुछ दृष्टिकाण बहुत गलत है आप यदि सहजयाग में हैं तो पूर विश्व के लिए उत्तरदायी हैं। आप लोग ही तो आगे आए हैं, केंवल आप लोगों ने ही तो इस बला में आपको इस गलती है जिसके कारण सहजयोग कुछ स्थाना पर वैसे कार्यान्वित नहीं हो रहा जैसे कुछ अन्य स्थानों पर कार्यान्वित हो रहा है। कुछ प्राप्त किया है। प्रकार आचरण करना चाहिए जो महान सन्तों तथा आत्मसाक्षात्कारी लोगो को शोभा दे परन्तु कभी कभी तो सहजयोगी इस प्रकार आचरण मुझे आपको बताना है कि सभी कुछ आदिशक्ति है और सभी कुछ उनके माध्यम से घटित हुआ है। अब शेष कार्य आप लागा से होना है क्याकि आप ही उपकरण है और आप करते हैं जिससे बहुत सदमा पहुँचता है। उन्हें न बे तो अपना सम्मान होता है और न दूसरीं का और ही ने अन्य लोगों को परिवर्तित करना है। हर उनका पूर्ण दृष्टिकोण ही अत्यन्त विचित्र होता सहजयोगी को सोचना चाहिए कि उसने कितन हैं। उनमें से कुछ धन लोलुप है और जो सत्ता लालुप हैं वे तो उनसे भी कहीं भयानक है। व सोचना आवश्यक हैं। हमने सहजयाग के लिए वि लागों को आत्मसाक्षात्कार दिया? इसके विषय में अत्यन्त अपमानजनक, निरंकुश तथा भीषण हैं। सहजयोग में सता हथियाना ही उनका सत्य है रहो थी, मेर साथ वाली सोट पर एक महिला और इसके लिए वे सभी प्रकार की चालें वैठी थी उससे इतनी गर्मी निकल रही थी कि अपनाते हैं। आरम्भ में तो वे ठीक-ठाक लगते हैं मैं समझ नहीं पाई । तब उसने मुझे बताया कि क्या किया? एक बार में वायुयान से यात्रा कर 7. चतन्य लहरी । खंड : XI अक : 1&2 1999 ho 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-9.txt स्त्रियां क्या नहीं है। व बहुत से लोगों का परिवर्तित कर सकती है, बहुत से लोगा का हित वह एक गुरु की शिष्या है। गुरु पुर उस बहुत गर्व था। तब उसने मुझे अपने गुरु क विषय में कर सकती है, वहुत प्रम एवं करुणा का प्रसार बताना शुरु किया। में हैरान थी कि इस महिला कर सकती है क्योंकि प्रेम और करुणा तो मां की उस मुरु से कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ था फिर भी ये कह रही है कि उसने इतना धन उसे दिया है, इतना कुछ उसके लिए किया है! उसे महिला का क्या लाभ! हर समय यदि आप का गुण है महिला का गुण है। गुण विहीन बेकार के फैशनी और साज सज्जा में हो व्यस्त कुछ भी प्राप्त तहीं हुआ फिर भी एक अजनबी से वह अपने गुरु के विषय में बात कर रही है! परन्तु सहजयाग में मैंने देखा है कि लोग कुछ शर्माल हैं। व दूसरा से सहजयाग के विषय है। आपके पास हैं तो सारा समय ब्बाद हो जाता बहुत कम समय है। आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ. अब आप सोचे कि आपने अब तक क्या किया. और क्या पाया? सहजयाग में, मैन में खुलकर बात नहीं करना चाहते। ऐसा करके आप बहुत गलत कार्य कर रहे हैं क्योंकि आप हो इसके लिए जिम्मेवार हैं। आपको हैं, जैसे कुछ विशेष कर्मकाण्ड बताए जाते हैं। देखा है, हर प्रकार की अटपटी चीजे बढ़ रही उनके विपय में बातचीत की जाती है तथा एक आत्मसाक्षात्कार दिया गया है। नि:संदेह आप जिज्ञासु थे, फिर भी अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार देने का प्रयत्न आपको अवश्य करनी चाहिए। लोलुप लोग दूसरों को सताना चाहते हैं। उन पर इस मामले में पुरुष कहीं अधिक प्रगल्भ है और काबू पाकर उन्हें धमकाते हैं और इस प्रकार इसे कार्यान्वित कर रहे हैं परन्तु सहजयोगी महिलाएं उस स्तर तक नहीं आ रहीं जहां उन्हें तो ये भी कहने लगते हैं कि, "श्रीमाताजी ने होना चाहिए। इसके विषय में उन्हें अधिक ऐसा कहा" यह श्रीमाताजो का विचार है। संवेदनशील प्रकार की सत्ता भक्ति भी विद्यमान है। सत्ता व्यवहार करते हैं मानो वे बहुत अच्छे है। कुछ अपनी सत्ता लालुपता के कारण वे बाते गढ़ते हैं होना चाहिए और इस कार्य को कार्यान्वित करना चाहिए। वे ये कार्य कर सकती और इस प्रकार से बातचीत करते है; उनसे पूछ हैं। परन्तु मरे विचार में, उनकी छोटी-छोटी समस्याएं है जिनक कारण वे चिन्तित हैं। मुझे सदा पत्र मिलते हैं जिनमें वे लिखतो हैं कि मुझे ये समस्या है. वो समस्या है-सदैव शिकायत भरे की खामियां खोजता है। ये जा बहुत ही छोटी पत्र। उनके पत्रों से मैं इतनी परेशान हूँ कि मुझे चीज घटित हुई है इसे रोका जाना चाहिए। लगता है कि वे बेकार हैं। उनके पत्रों का पढ़ना भी व्यर्थ लगता है। आपको ये बता देना मैं जाएगी। तो पूरा विश्व हमारे कार्य कं विषय में आवश्यक समझती हैँ कि महिलाओं को पुरुषों जान जाएगा? हमें चुनौती नहीं दी जा सकंगी। से अधिक प्रगल्भ होना चाहिए क्योंकि वे शक्ति फिर भी हमें स्वयं देखना होगा कि इस प्रकार हैं और मैं भी एक महिला हूँ। सहजयोग के विषय में पुरुष अधिक चुस्त एवं प्रगल्भ हैं। मुझे समझ नहीं आता कि लड़खड़ाते नहीं रहना चाहिए। आप यदि कि आपने कितने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया है? वह ता अन्य लोगों के विषय में बात करता है. उनकी आलोचना करता है और सहजयाग एक बार जब ये पुस्तक प्रकाशित हो की मान्यती यदि हम प्राप्त कर लते हैं तो हमें उस स्तर तक उन्नत भी होना चाहिए। हमें पीछे 8. चैतन्य लहरी । . खंड : XI अंक : 1& 2 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-10.txt सहजयोगियों विशेषकर सहजयोगिनियों से पूछे प्रकार फलों से लदा हुआ पड़ नीचे झुक जाता । है इसी प्रकार आपको भी विनम्र होना चाहिए। तो उन्हें सहजयोग का अधिक ज्ञान नहीं हैं इन्हें न तो चक्रां का ज्ञान है और न ही परन्तु इस विनम्रता को प्राप्त करना कई बार बहुत कठिन होता है। क्यांकि पाश्चाल्य संस्कृति दवी-देवताओं का। वे कुछ भी नहीं जानती। किस प्रकार वे सहजयोगी हो सकती हैं? आपको ही विनम्र नहीं है। यह आक्रामकता, प्रभुत्व की इसकी पूरा ज्ञान होना चाहिए। आप ये नहीं संस्कृति है। प्रभुत्ववाद की वजह से वे पूर महसूस करते कि आप बाह्य से सहजयागी नहीं विश्व में जा पाए और बहुत कुछ प्राप्त किया। हैं अन्दर से है। अपने अन्दर आपका चक्रों की परन्तु उन्होंन क्या पाया? कुछ नहीं। अपने दशा समझ होनी चाहिए और ये भी ज्ञान होना चाहिए में ही यदि आप देखे तो वहा नश का व्यसन है। कि किस प्रकार सहजयोग कार्य करता है और 7440 लोग नशे के इतने आदो क्यां हो जाते हैं? इतन वर्णन हैं जिनका मं किस प्रकार इससे सहायता मिलती है। मान लो आप भली-भाति अपराधमय कार्य वो करते भी नहीं करना चाहती। वे ऐसे-ऐस जघन्य कार्य में ही उस शक्ति का सोत हूँ; करते हैं जिनके विषय में भारत जस गरीब दश जानते हैं वा स्रीत में हो हूँ, तो आप भी लोगों से व्यवहार करने और उन्हें सहजयाग में लाने को में सुना भी नही जा सकता। अत: खाज निकालिए निपुणता लाना ही वह महत्वपूर्ण कार्य है जो आपने करना है। मैं देखती हूँ कि लोग अभी भी बहुत पिछड़े हुए हैं। जिस देश में वे रहते हैं, उसकी भी उन्हें संस्थाएं आरम्भ करने चाली हूँ जो मानव हित के चिन्ता नहीं है। इन परिस्थितियों में उन्हें दोषी लिए कार्य करेगी। आप सब लोग भी इसमें ठहराया जाएगा कि क्यों नहीं उन्होंने अपने देश सम्मिलित हो सकते हैं। अपने देशी में भी आय वासियों को समझाने का माग ढूंढा? प्राप्त करें। सहजयोग में अन्य लोगों को कि क्या गलती है और किस प्रकार चीजो का ठीक किया जा सकता है? आप यदि लागा की मदद कर सके तो बहुत अच्छा हागा। मैं कुछ एसे कार्य आरंभ कर सकते हैं। परन्तु सर्वप्रथम आपको अपने अह से मुक्ति पानी होगी एक बार जब एसा हो जाएगा तो आपका चित्त स्थिर हो जाएगा। अहं का काब उन्नति के समीप पहुँचकर भी सहजयोग केवल एक या दो देशों से नहीं बढ़ेगा, सभी देशों को लाना होगा, सभी लोगों को सहजयोग में लाना हागी, उन्हें विश्वस्त करने के लिए हमारे करना आपके लिए बहुत सहज है। क्योंकि आप पास पुस्तकें भी हैं, इसके विषय में आपने उनसे ईसामसीह की पूजा करते हैं । ईसामसीह ने बातचीत भी करनी है। परन्तु मैने देखा कि अगन्य चक्र पर स्थान ग्रहण किया। आप इसामसीह उनकी विनम्ता आप में की पूजा करते हैं परन्तु सहजयोगी जब सहजयाग का प्रचार करने लगते है ता उनका अहँ बढ़ जाता है और वे सोचने नहीं है। उसके बिल्कुल विपरीत हैं। हर स्थान पर ऐसा ही हुआ है कि धर्म में जिस बात की हैं। लगते हैं कि व बहुत महान अगुओ है। इस प्रकार के मूर्खतापूर्ण विचार उनके मस्तिष्क में शिक्षा दी गई हैं उसके विपरोत कार्य हुए उदाहरणार्थ हिन्दू धर्म में-हिन्दू दशन में माना जाता है कि सभी प्राणियों में आत्मा है। ता किस घुस जाते हैं। यह गलत है। आपको अत्यन्त विनम्रता से सोचना होगा। जितना अधिक आपके प्रकार भिन्न जातियां हो सकती है और किस पास होगा उतने ही अधिक विनम्र आप होंगे-जिस ५) चैतन्य लहरी । खड : XI अक : 1& 2 1999 ्रम 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-11.txt प्रकार कोई ऊँचा हो सकता है और कोई नीचा? आपको दण्ड नहीं देना चाहती, कुछ नहीं दूसरी और. ईसा ने कहा है कि आपको क्षमा करना है. सभी को क्षमा करना है। आपको जाते हैं। अपनी देखभाल करके यदि आप दिनम होता है । रन्तु देखा गया है कि ईसाई स्वयं उन्नत नहीं होते तो आप बेकार हो लाग विनम्रता का नहीं जानते। इसकी उन्हें जाते हैं। समझ ही नहीं। दोनों, स्त्रियां और पुरुष एक से है। परस्पर लड़ते रहते हैं। न कोई विनम्र है और पूर्व परिचित नहीं है। वह बहुत विद्वान है। यहुत करना चाहती-परन्तु आप स्वयं दणिडत हो ये खोजः बहुत महान् है। ये व्यक्ति मंरा विनम है। उसने मुझे बताया कि कि मैं परमात्मा विश्व के सृष्टा को हूँ और फिर भी सामान्य हूँ!" मन पुछा, कि , " न काई शात। उनका स्वयं को जनहितेषी कहना, कल्पना करा बैला मात्र दिखावा हैं। वास्तव में उनके हृदय में न तो प्रेम है न करुणा। वास्तविकता को जानने के लिए हमें समझना होगा कि हम बनावटी चीज़ों आपको क्या होना चाहिए, आप क्या साचत हैं? सं [नहीं चल सकते। अन्य लोगों को बेवकफ उसने कहा, "श्री माताजी, यह महसूस करना बना रहे हैं हमें जनहितैषी बनना होगा। एक बार सम्मुख बहुत बड़ी बात है कि मैं आपके सम्मुख बैठा हूँ और आप यहां है।" मैंने कहा कि यह अच्छी जब आप एसे बन जाएगे तव उस कार्य को कर नग जिसक लिए इस बसन्त काल में आपका बात है कि आप मेरी उपस्थिति को निष्ठर एवं प्रबल नहीं पाते। में बहुत प्रसन्न हूँ। व कहने जन्म होत या कुछ भिन्न होते। परन्तु आप विशेष लगे कि मैं केवल आपका प्रम आपकी करुणा ूप से जन्में हैं। अत: अपने मूल्य को समझे. की महसूस करता हूँ। ऐसा होना चाहिए। हम स्वयं की समझे। आत्मसम्मान में रहें और जान लें कि हममें मात्र प्रेम एवं करुणा ही होनी सहजयोगियों के लिए आवश्यक कार्यो का करे। चाहिए। अपने लिए प्रेम एवं करुणा इस प्रकार नि:सन्देह आप नौकरी भी करते हैं तथा अन्य से होनी चाहिए कि किसी अन्य का हृदय न कार्य भी परन्तु, आप आश्चर्यचकित होंगे. यदि दुखाए। किसी का ठंस पहुंचाना बहुत पापमय है आप सहजयोग का कार्य करेंगे तो सभी कार्यों प में आनन्द आता है। वे स्वयं को बहुत चतुर समझते हैं परन्तु य सत्य नहीं है। लोगों से बात करते हुए आपको अन्यथा आप बहुत पहले अवतराण हुआ है। सरन्तु कुछ लोगो को ऐसा करने के लिए आपको अधिक समय मिलगा। एक बीर जब आप परमात्मा का कार्य करने लगंगे तो परमात्मा आपका कार्य करेंगे। आप हैरान होंगे अच्छी तथा सुखदायी बात कहनी चाहिए। क्रोध एक अन्य दोष है-छोटी सी बात पर लोग क्रोधित हो जाते हैं । अब इस क्रोध को बताना होगा कि "शांत रहा. मुझे तुमसे कुछ नहीो लेना निभर है। स्वयं देखें । आदिशक्ति स्वय अवतरित देना।" एक अन्य दोष है लोगों का सूक्ष्म रूप से सत्ता लोलुपे होना. बहुत सुक्ष्म रूप से उनके पास दूसरे लांगों को वश में करने की विधियां किसी भी बात के लिए लोग मेरी स्वीकृति हैं। इससे आपका क्या लाभ है? एसा करने से क्या होगा? इन सांसारिक चीजों से आपका थांड़ी कि भले कार्य करने के लिए किस प्रकार आपकी इतना समय मिलता है! वापिस जाकर अन्तर्दर्शन करना आप पर मैं देखने में अत्यंत साधारण हूँ हुई है। परन्तु , अपने व्यवहार में मैं बहुत अधिक विनम्र हू । आवश्यक नहीं समझते। मैं कुछ नहीं करती, 10 नतन्य लहरी ॥ स्खड : XI अक : 1 & 2 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-12.txt सी लाकप्रियता मिल सकती है, थोडी सी पदवी प्राप्त हो सकती है परन्तु आखिरकार ये सब है पश्चिमी देशों में रूस ही एक ऐसा देश है जो क्या? इससे आपका भला न होगा। जो चीज़ ( To become) प्राप्त की है। मैं साचती है कि आध्यात्मिकता की महान् बुलदियां प्राप्त करेगा। इसका अर्थ है कि वे अत्यन्त शक्तिशाली लाग आपका भला कर सकती है वह हैं आपका स्वयं की सहजयोग का कुशल माध्यम बनाना। सहजयोग होंगे। अब देखना है कि आप लोग अपने देशों में क्या कर रहे हैं और किस प्रकार इस कार्यान्वित करने वाले है? आप यदि स्वयं को का कुशल माध्यम बनने से आपको बहुत प्रसन्नता होगी। तो पश्चिमी देशों के आप सभी लागो से मरा अनुरोध है कि स्वयं में विनम्रता विकसित परमात्मा का माध्यम माने तो सहजता से आप कर। एसा करना आवश्यक है। में हेरान थी, कि रूस के लोग कंवल विनम्र हो नहीं., अविश्वसनीय प्रकृति, आपका स्वभाव बदल जाएगा। आप रूप से समर्पित भी हैं। वे मेरी तरफ अपनी दृष्टि भी नहीं उठाते। मैं नहीं जानती कि किस लोग सांचेंगे, कि ये सन्त जा रहा है | बहुत से कार्य कर सकते है। तब आपकी अत्यन्त मधुर व प्रिय व्यक्ति बन जाएगे। सभी प्रकार उन्हें यह विचार आया। मुझे समझने के पश्चात् ही नहीं, इससे पहले से ही उनमें ये बात लिए खोज नहीं है। परैन्तु पूर विश्व के लिए यह हैं। वे इतने अच्छे, विनम्र और प्रेममय हैं। बच्चे भी मुझे प्रेम से अर्पित करने के लिए छोटे-छोटे जाएगी, पूरे विश्व के सम्मुख जब ये प्रकट हो तोहफ लाए। आश्चर्य की बात है कि किस जाएगी, तो आपके लिए, और मेरे लिए भी मुझे मात्र इतना ही कहना है। ये खोज मंरे हा एक खोज है। एक वार जब यह सुस्थापित चौज आसान हो जाएगी। प्रकार रूस के इन लोगों ने बनने की योग्यता परमात्मा आपको धन्य करें। चैतन्य लहरी ॥ खड : XI अंक : 1 & 2 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-13.txt हैदराबाद पूजा परम पूज्य माताजी निर्मलादेवी का -प्रवचन आप सबको देखकर मुझे प्रसन्नता हो होता है, उदाहरणार्थ पंड का धीमा विकास, रही है। मैं कल्पना भी न कर सकती थी कि पहले थोड़े से फूल आते हैं और धीरे धीरं हैदराबाद में इतने लोग सहजयोगी हो गए हैं। भिन्न प्रकार के लोगों में परस्पर मंलजील हैदराबाद जीवन्त प्रक्रिया है; इसे हम किसी पर थाप नहीं के लोगों की विशेषता है। अब सहजयोग को सकते। कहने मात्र से किसी का आत्मसाक्षात्कार हमने एक नए तरीक से समझना है। यह जान लेना आवश्यक है कि सहजयोग स्रत्य है और विना हम किसी की इसका प्रमाण पत्र नहीं द हम इसमें दूढ़ता पूर्वक स्थापित हैं। अत: हमें सकते निश्चित रूप से ये असत्य को त्यागना होगा अन्यरथा हम पावनता असंख्य फुल खिलने लगते हैं। सहजयोग भी नहीं मिल जाता। आत्मसाक्षात्कार घटित हुए भी नहीं कहा जा सकता कि सभी लोगो को आत्मसाक्षात्कार मिल का न पा सकेंगे। बास्तव में असत्य एक भम हो जाएगा। कुछ कारणी से बहुत स लागा का है और हमें उस भ्रम से निकल जाने का निर्णय आत्मसाक्षात्कार नहीं मिल पाता। कुछ लाग साचते करना चाहिए। इस लक्ष्य को पान की शुद्ध इच्छा है कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के लिए हिमालय मात्र से ही हमारी जागृत कुण्डलिनी हमें एक एसी स्थिति प्रदात करती है जिसमें हम जान जाते हैं कि सत्य क्या हैं और असत्य क्या हैं: तथा कवल सत्य का प्राप्त करने के लिए हम लालायित हो उठते हैं। अपने सभी मिश्या विचारों पर जाकर तपस्या करनी पड़ती है, औजकल यह इतना आसान कंसे हो सकता है? आत्मविश्वास की कमी के कारण वे इस पर विश्वास नही के कर पाते। उनमें यह दखने की योग्यता नहीं है कि यह बसन्त का समय है और सामृहिक को छोड़कर हमे सत्य को अपनाना है। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया जा सकता है। गीता की पक्ति, कि-"जन्म आपकी जाति का निर्णय करेगा गलत रचयिता श्री व्यास स्वयं एक मछुआरे के पुत्र थे; उनके पिता का भी कुछ पता ने था। इतना महान ग्रन्थ वे किस प्रकार लिख पाए? कहा गया है, अक्मी बन जाते हैं। चिन्ताएं हमें नहीं सताता। "या देवी सर्वभूतेषु ज्योतिरूपेण सस्थिता"। अर्थात् सहजयोंग में आने पर भी अदूरदर्शिता के कारण अन्तजात शक्ति (देवो हो मानव की जाति है। व्यक्ति स्वयं का कर्ता मानता है। धीर-धोर कुछ लोग वेभव प्राप्त करना चाहते हैं, कुछ सहज अनुभव प्राप्त करके वह जान जाता है कि सत्ता चाहते हैं और कुछ स्वंशक्तिमान परमात्मा मनुष्य कुछ नहीं करता परम चैतन्य ही सभी को खाजना चाहते हैं। परम पाने के इच्छुक लोग कुछ करता है। सभी कुछ सरलता से हो जाता सर्वप्रथम सहजयोग में आएंगे। सहजयोग में आने है। कभी यदि हमारी इच्छाओं के विपरीत भी के पश्चात सहज प्रसार की धोमी गति देखकर कुछ हो जाए तो भी हमें यह नहीं साचना चाहिए कई बार दुख होता है. चाहिए कि जीवन्त चीजों का विकास वहुत धीमा में न ता हम परमात्मा से अधिक सांच आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात जब व्यक्ति परम चेतन्य से जुड़ जाता है तव वह समझता है कि परम चैतन्य ही हमारे सभी कार्यो को करते है । हम स्वयं निल्िंप्त हाकर क्योंकि गीता के है कि परमात्मा नं. हमारी सहायता नहीं की। बास्तव सकते परन्तु हमे समझना चतन्र ्लहरी X1 अक : 18 2 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-14.txt कितनी शक्ति हममें है? सभी सहजयोगियों और न कर सकत है। अत: हमें स्वीकार करना चाहिए कि परमचैतन्य ने उपयुक्त कार्य किया को हमें सम्बन्धी मानना है। है, और जो हो रहा है वह अति सुन्दर दो चीज़ों के विषय में सहजयोगियों को अत्यन्त सावधान रहना चाहिए। सर्वप्रथम चाहिए कि हमारे हाथों या पैरों की कौन सी व्यक्तिगत ध्यान धारणा से हमें अपने दोष, उगली कौन से चक्र की बाधा का बताती है। अपने शरीर यन्त्र की स्थिति समझनी किस चक्र की पकड़ से कौन सा रोग होता है चाहिए-हम आक्रामक प्रवृत्ति हैं या आलसी और इसे ठीक केसे किया जा सकता है। दूसरा प्रवृत्ति ( Right Sided or Left Sided ) हैं? को हम किस प्रकार रोगमुक्त करे? तथा हमारे कौन से चक्रों में बाधा है? फोटोग्राफ कुण्डलिनी से संबंधित सभी ज्ञान हमें अवश्य की ओर चित्त देकर हम यह सब जान सकते हैं और ध्यान धारणा में यह सब बाध को ये ज्ञान प्राप्त करना अत्यन्त आवश्यक है। Tएं दूर कर सकते हैं। सहजयोग में ध्यान धारणा करना बहुत आसान है। सुबह-शाम दस पन्द्रह मिनट बैठकर हम ध्यान कर सकते हैं। स्वयं को शुद्ध करने के पश्चात् हमें सामूहिकता में उतरना चाहिए। इसके चीज हैं। जिस प्रकार कमरे में यदि हवा आर है। सहजयोग का दूसरा पक्ष सहजयाग का ज्ञान तथा इसका विस्तार है। हम य ज्ञान होना प्राप्त करना चाहिए। शक्ति' होने के नात महिलाओं इस ज्ञान की सहायता से महिलाए सहज बच्चों तथा उनकी आचरण पद्धति को समझ पाएगी। इस जञान का प्रप्त किया जाना अल्यन्त महत्वपूर्ण है। सहजयोग का प्रचार प्रसार अन्य महत्वपूर्ण लिए हृदय का खुलना आवश्यक है, तंगदिल व्यक्ति कभी सामूहिक नहीं हो सकता। हमें उसी प्रकार आप भी यदि अपने सहज अनुभव दूसरों के दोषों पर चित्त नहीं देना चाहिए। ऐसा करने से दूसरों के दोष हमें घेर लेते हैं करते. उन्हें आत्मसाक्षात्कार नहीं देते. सहजयोग हमें अन्य लोगों के गुणों तथा उनके अन्तर्जात सौन्दर्य पर ध्यान देना चाहिए। इससे दोहरा हो सकता। पेड़ जव बढ़ता है. तो उसकी शाखाएं कार्य होगा-हमारा व्यक्तित्व सुन्दर हो जाएगा भो बढ़नी चाहिए ताकि इन शाखाओं को छाया और दूसरों के दोष दूर हो जाएंगे। हमें याद रखना चाहिए कि अन्य लोग भी अपनी वृक्ष की है और आप लोग तो बरगद के पड़ आत्मा से पृथक नहीं हुए हैं। अतः हमें (Banyan Trees) हें। अत: पुर हुदय से आपका परमेश्वरी प्रेम की शक्ति से उनके दोषों को सहजयोग प्रचार कार्य में सहायता करनी चाहिए। ठीक करना चाहिए। प्रेम सत्य है और सत्य प्रेमा प्रेम की शक्ति का उपयाग करने वाला व्यक्ति बहुत उन्नत होता है। खुले हृदय से अत्यन्त प्रम पूर्वक आपने लोगा को देखना है। इस प्रकार आप व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से विकसित होते हैं। जो व्यक्ति सामूहिक नहीं है बड़ी जिम्मेदारी आ गई है उनसे हमें सावधान रहना है। दूसरों के दोषों पावन हृदय समाज बनाने की जिम्मदारी जिस के विषय में सुनना सहजयोग में अपराध है। हमें ध्यान देना चाहिए कि कितनी मधुरता स्थापित रहें। से हम बोल सकते हैं और क्षमा करने की पार न जा सक ता कमरा हवादार नहीं हो सकती अन्य लोगों को नहीं बताते. उनको सहायता नहीं का प्रचार नहीं करते तो आप स्वय उन्नत नहीं में बहुत से लोग बैळ सक। ये बात तो साधारण कुछ सहजयोगी सदैव यही स्वप्न देखत हैं कि सहज-स्वर्ग पूरे ब्रह्माण्ड पर उतर आएगा आर इसके लिए कार्यरत रहते हैं। एस सहजयागियां के सभी प्रश्न छुट जाते हैं आर वे सदव आनन्द की स्थिति में रहते हैं । हमारे कन्धों पर वहुत पर हम विश्वास कर सक और उस विश्वास में । धन्य करे परमात्मा आपकी 13 चेतन्य लहरी खड : XI अक 1&2 1999 । 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-15.txt गुरु पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन कबैला 1998 आज हम गुरु पूजा करने के लिए एकत्र उत्तेजित, न बह बहुत अधिक जोश में आता गुरु शब्द का उद्भव चुम्बकीय आकर्षण और न ही बहुत उदास या खिन्त होता है। अत: हुए हैं। से हैं। वह व्यक्ति जिसमे चुम्बकीय शक्ति हो और जो जिज्ञासुओं के चित्त को आकर्षित कर अपने केन्द्र में । वह मध्य में है परन्तु हम गुरु किस प्रकार बनें? सहजयोगियों के लिए यह समझना अत्यन्त सुस्थिर व्यक्ति भी है जोकि अत्यन्त गहन हो, महत्वपूर्ण हैं। बहुत से लोगों को लगा कि वे गुरु सके, वही गुरु है। इसका अर्थ वजनदार या जिसमें ज्ञान हो और जो पृथ्वी मा की तरह से हैं। बड़े अटपटे ढंग से वे आचरण करने लगे कार्य करें। पृथ्वी मां की आकर्षण शक्ति भी और अपना गुरु पद खो दिया। अन्तर्दर्शन करना चुम्बकोय कहलाती है संस्कृत में इसे गुरुत्वाकर्षण सहजयोगियों के लिए प्रथम तथा सर्वोपरि कहते हैं अर्थात् पृथ्वी मां की वजन को अपनी है स्वयं को देखना उनके लिए आवश्यक है। ओर आकर्षित करने की शक्ति । वास्तव में फैशन के साथ-साथ यदि व्यक्ति परिवर्तित होता पृथ्वी मां की यही शक्ति हमें भयंकर तीव्र गति रहे, लोगों के दबाव में यदि वह फेशन बदलता से घूमती हुई पृथ्वी पर अपनी टांगों पर ठीक से रहे लोगों को प्रसन्न करने के लिए यदि व्यक्ति खड़े होने के यांग्य बनाती है। इसके विना जिस घटिया मूल्यों को अपनाता रहे तो वह गुरु नहीं तोव्रता से पृथ्वी घूम रही है उसी तीव्रता से यह हो सकता। उसे स्वयं को सहज मूल्यां पर ा हर्ें फैक देती। पृथ्वी मां के गुरुत्वाकर्षण के कारण ही हम अभी तक इससे जुड़े हुए हैं और सन्तुलित हैं। गुरु में भी यही गुरुत्वाकर्घण होना चाहिए। गुरुत्वाकर्षण का अर्थ है अपनी और अपनी जिम्मेदारियों की गम्भीर समझ। अत: गुरु भूलोभाति स्थिर करना होगा। अन्तर्दर्शन के विना आप ये नहीं समझ सकते; आपको याद ही नहीं रहेगा कि आपने क्या गलती की है? न ही आप. ये सांचेंगे कि क्या अच्छा कार्य आपने करना है? यह तो तभी संभव है जय आाप स्वय को को अति स्थिर होना आवश्यक है। सुधारते चले जाएंगे| सभी महान सन्तों ने, सर्वोपरि, अपने इस आधुनिक काल में लोग अत्यन्त गुरु की प्रशंसा की है। उदाहरणार्थ भारत में ज्ञानश्वर गुणहीन लोगों से मिलने के कारण वे उद्विग्न हो नाम के महान सन्त हुए। उन्होंने अपने गुरु पर उठते हैं। अशान्त करने वाले ये गुण गुरुत्वाकर्षण एक पूरा अध्याय लिखा है। अंग्रेजी में उसका के अभाव से आते हैं। जिस व्यक्ति में गुरुत्वाकर्षण अनुवाद धर्मोपदेश के रूप में किया गया है गुरु है वह न तो निरुत्साहित होता है और न ही तो आचार्य है और उसने जी किया वह कार्य गतिशील हैं-हर समय उत्तेजित, हर समय अशान्त। चैतन्य लहरी 14 खंड : XI अक : 18 2 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-16.txt महान है। वे कहते हैं कि कभी भी गुरु को ठहरेगी; क्या यह सत्य है सहजयोगिनी ने चुनौती न दें अन्यथा आप कभी गुरु नहीं बन सकते। नाममात्र के लिए चाहे आप गुरु बन जाए हे? मेरे गुरु ने मुझसे कहा है कि जाकर परन्तु वास्तविकता में आप गुरु नहीं हो सकते। कहा, हाँ! वे हमार साथ रुकगी, परन्तु क्या वात आदिशक्ति से प्रार्थना करो कि वे हमारे आश्रम मैं श्री माताजी से आए। सहजयोगिनी ने कहा दूसरे गुरु सकते, कभी अभद्र एवं दम्भी नहीं हो सकते पूछ्गी। यह व्यक्ति एक कार्यक्रम में आया था और न ही अपने गुरू के प्रति क्रूद्ध हो सकते हैं। और मुझे एक गृहणी के रूप में देखकर कहने यदि आप ऐसा करते हैं तो आप गुरु नहीं है, से आप अशिष्ट व्यवहार नहीं कर लगा, "ये तो वे गुरु नहीं हो सकतीं। परन्तु जब मैंने आत्मसाक्षात्कार दिया और सभी की कुण्डलिनी आपके व्यक्तित्व का स्तर अभी तक बहुत निम्न जागृत हो गई तो आश्चर्य चकित हों बो मेरे है। यह स्पष्ट कहा गया है कि यदि आप उच्च सामने साध्टाग लेट गया। स्तर के अन्य सच्चे गुरुओं के विरोध में बोलते हैं तो आप गुरु नहीं हैं। परन्तु में चैतन्य लहरियां प्राप्त हो गई हैं। चैतन्य लहरियों ज्यक्ति अम्बरनाथ नामक स्थान पर रहता है। वह का ज्ञान आपको मिल गया है। चैतन्य लहरियों मुझसे कहना लगा, 'माँ क्या आप मेरे आश्रम उसके गुरु हिमालय पर स्थित भारत के कहँगी कि आय सबको अब प्रसिद्ध तीर्थ, अमरनाथ पर रहते हैं और बह के ज्ञान से आप सभी के विषय में जान सकते आएगी? मैंने कहा क्यां नहीं। प्राचीन काल में हैं। अब आपको किसी व्यक्ति के बारे में अपनी ऐंसे गुरु अपना स्थान "तकिया" सूझ बुझ से बात नहीं करनी चैतन्य लहरियों के करते थे। मैंने कहा कोई बात नहीं, मैं तुम्हारे कभी न छाड़ा माध्यम से आप सीधे उस व्यक्ति का सामना आश्रम आऊगी। में वहाँ गई और वह मर चरणों करने का प्रयत्न करें और उसे बताए कि समस्या क्या है? और उसे परिवर्तित होने को मुझे बताया कि मेरी आज्ञा बहुत खराब है। पर गिर गया तथा मुझे बहुत सम्मान दिया। उसने कहें। सहजयाग में हमारे पास अन्य गुरुओं से श्रीमाताजी क्या आप इस ठोक कर सकती हैं? भी अधिक कुछ है। दूसरे गुरु अत्यन्त कठोर मैंने कहा क्यो नहीं, मैं इसे ठीक कर दूगी। थे। अपने हाथ में वे लम्बी छड़ौं रखते थे जो उसके गुरु के पास जब मैं गई, तो उससे पूछा. 'तुमने उसकी आज्ञा को ठोक क्यां नहीं किया? चलने म उनकी सहायता करती थी तथा जिससे वे अपने शिष्यां का पोट भी सकते थे। शिष्यों वह कहने लगा. क्यों? में क्यों ठोक करू? मरी आज्ञा किसने ठीक की थी? मैंन स्वयं इसक को वे इतनी बुरी तरह से पीटते थे कि शिष्य न लिए परिश्रम किया। अन्तर्दर्शन द्वारा मैन इसका मार्ग खोजा और अपनी 'आज्ञा' को ठीक किया। अपने गुरु के सम्मुख कापते थे। एक गुरु, जिससे मैं मिली, का उदाहरण दुगी। भारत में एक व्यक्ति कुछ सहजयोगियों के उसके आज्ञा चक्र को मैं क्योां ठोक करू? उसे पास आया और कहने लगा कि मरे गुरु ने मुझे मेहनत करने दो अन्यथा वह विगड़ जाएगा। में कहा है कि आदिशक्ति आकर आपके पास हेरान थी वह कहने लगा कि आप तो माँ है 15 अक : 1.82 1999 चैतन्य लहरी = खड : ४I 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-17.txt इसलिए सर्व ठीक कर देते हैं। प्रेम के अतिरिक्त एसा न किया जाएगा तो ये कभी उन्नत न होंगे। आप कुछ नहीं, यही कारण है आप सब लोगों का हित कर रही हैं। में ऐसा नही कर सकता। आप इन्हें क्षमा करते चले जाइए. जितना अधिक आप इन्हें क्षमा करते चले जाएंगे उतने अधिक कोई गुरु अपने शिष्यों का आज्ञा चक्र नहीं ये विगड़ेंगे। उन्नत बिल्कुल न होंगे। अतः आपका खालता । मैंने पूछा, 'तो आप गुरु किस बात के इनके साथ कठोर होना आवश्यक है। कृपा हैं? बह कहने लगा हमने उनका मार्गदर्शन करना करके सदा इन्हें विगाड़िए मत। मैं हैरान थी कि वह इस प्रकार बाते कसे है परन्तु फिर भी यदि उनका अगन्य चक्र बुरी तरह से पकड़ी हुआ है, यदि उनका चित्त ठीक कर सकता था! कहने लगा, माँ यदि आप इन्हें नहीं है तो मुझे इसकी कोई चिन्ता नहीं । सभी कुछ मुफ्त दें देंगी. आप इन्हें इतनी आसानी से सभी कुछ दे देंगी तो ये आत्मसाक्षात्कार का मूल्य न समझ सकेंग। मैंने कहा ये बात नहीं । आपको चाहिए कि उन्हें अवसर दें, उन्तत अन्तर्दर्शन करना उनका करतव्य है और जो सीढ़ी मैंने उनके सम्मुख रखी हैं उस पर चढ़ना भी । में तो एक गुरु हूँ, ऊपर चढ़ने के लिएहै उनके सम्मुख कंवल सीढी हो रख सकता हूँ। होने का अवसर दे ताकि वे भी पृथ्वी माँ की कठोर परिश्रम अंतर्दर्शन और साधना तो उन्हें तरह से बन सके। पृथ्वी मां क्या करती हैं? वे करनी होगी। उनका अगन्य चक्र खालन के लिए बीजों का अकुरण करती हैं तब पेड़ बनता है। आप मुझ आज्ञा द। कहने लगा आप माँ है जो तत्पश्चात् वे उसे फल प्रदान करती हैं और इस मैं चाहे करें, कुछ नहीं कहूगा। आज्ञा चक्र चोज़ का ध्यान रखती है कि ये फल पक सके। पृथ्वी माँ ये सारा कार्य करती हैं। परन्तु ये लोग वृक्ष नहीं हैं, मनुष्य हैं और इन्हें शैतान बनने की खोलकर आप उन्हें बिगाड़ देंगी, बिगाड़ू दीजिए उसे स्वयं परिश्रम करने दें नहीं तो वह बिगड़ भी स्वतंत्रता है। मैंने कहा ठीक है, वे यदि जाएगा। मैंने कहा कि तुम किसी का अगन्य चक्र नहीं खोलते, तुम भी तो बिगड़े हुए हो| हाँ. शैतान भी हैं तो भी मैं उन्हें संभाल सकती हूँ। आप देखते जाओ मैं इन्हें किस प्रकार संभालती परन्तु जो स्थान मैंने प्राप्त किया है यह स्थायी है। परन्तु मैने उसके शिष्य का अगन्य चक्र हूँ! कहने लगा वे यदि शंतान हैं तो शैतान ही खोल दिया। ल रहेंगे। आप उन्हें परिवर्तित नहीं कर सकेंगे। वह इस शिष्य ने रास्ते पर मुझे बताया कि मुझसे बहस करता रहा परन्तु जव सहजयोगियां उसके गुरु ने उसे कुएं में लटका दिया था और से मिला तो उनसे पूछने लगा आपमें से कितने ऊपर से रस्सी खोंच कर पानी में दस डुूबकियां लोग श्रीमाताजी के लिए जान दने को तैयार है? लगवाई थीं। मैंने पूछा कि उसने यह निष्ठ्र क्या आप जानते हैं कि उन्होंने आपको क्या हैं। दिया है? सहजयोगियों ने कहा, हाँ हम जानते हैं। कार्य क्यों किया? क्योंकि उसने मुझे सिगरेट देख लिया था मैंने उसके गुरु वे मेरे पास आए और वताया-वह हमें आपके लिए जान न्यौछावर करने को कह रहा था । मैंने कहा यह जरूरी नहीं है। उसने इसलिए आपसे पीते हुए से पूछा कि वह अपने शिष्यों क प्रति इतने भयानक कार्य क्यों करता है। कहने लगा कि इनके साथ क चैतन्य लहरी 16 खंड : XI अंक : 182 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-18.txt पुछा होगा क्योंकि वह अपने शिष्यों से भी ऐसे नींचता भी है-सहजयांग से व पैसा बनाना चाहते हो पूछता होंगा। मैं एसे बहुत से कठोर गुरुओं से मिली य बातें करते रहते हैं। इन हूँ, पूर्ण आज्ञापालन, पूर्ण समर्पण जिनकी दृष्टि सभी चीज़ों है। राजनीतिक कारणों से भी यहाँ लोग आते हैं। यहाँ-वहाँ वे कुछ-कुछ से आप उत्थान नहीं प्राप्त कर सकते। यहाँ आप आध्यात्मिकता का महान् जीवन में आवश्यक है। गुरु के विरूद्ध एक शब्द भी सहन न किया जाता था. पलंटकर उत्तर देना तो प्राप्त करने, गुरु पद पाने के लिए आए हैं। के प्रति क्रोध भी न दश्शाया जा सकता राजनीति भी यहाँ काफी है। लोग अगुआ पद दूर गुरु ्ा। इस प्रकार के कुछ लोगों से मरा भी बास्ता पाना चाहते हैं, अपने पद को वे विशेष रूप बनाए रखने का प्रयत्न करते हैं। यह अनावश्यक पडता है। में उनसे बात करना बन्द कर देती हूँ। है। अच्छा गुरु होने के कारण यदि आप अगुआ वे यदि सुधरना चाहे तो सुधर जाएं और न चाहे तो सुधरने के लिए आप उन्हें मजबूर नहीं कर हैं तो आप बने रहेंगे। कोाई आपका चुनाती नहीं दे सकता और न ही आपको हटा सकता है। ऐसे सकते। परन्तु इन गुरुओं के अनुसार शिष्यों के भय से अगुआ को परेशान नहीं हो जाना चाहिए। सहजयोग एक ऐसा योग है जिसमें भय का कोई मन में गुरु का बहुत भय होना चाहिए. इतना भय कि व ठीक से बर्ताव कर सकें। हम गुरु से इतनी अधिक आशा करते हें स्थान नहीं। आपक लिए कोई भय नहीं है। उत्थान के लिए अन्तर्दर्शन करना ही आवश्यक कि वह आपका पिता, आपकी मां, आपका मित्र सभी कुछ है। वह एक पावन व्यक्ति है जो है। केवल आपका उत्थान चाहता है, आपकी देखभाल यह देखने का प्रयत्न करें कि आप क्या करना चाहता है, पथ-प्रदशन करना चाहता है, करते रहे? क्या आप पूर्णतः विनम्र व्यक्ति हैं। आपकी रक्षा करना चाहता है और आपको जैसा आपको कहा गया है वैसा क्या आप करते हैं? मान लो मैं किसी का कहीं जाने के लिए आध्यात्मिक जीवन की ओर ले जाता हैं। एक गुरु को इस प्रकार कार्य करना चाहिए। परन्तु कहती हूँ. वहाँ न जाकर वह मुझे बताता है शिष्य से तो इससे भी कहीं अधिक आशा की श्रीमाताजी एसा हो गया बैसा हो गया। कोई भी जाती है। शिष्य पूर्णत: पवित्र व्यक्ति होना चाहिए. आध्यात्मिक बनने की शुद्ध इच्छा उसमें होनी बहाना लेकर वह आता है। यह ठीक नहीं है आपको यदि कहीं जाने के लिए कहा गया है तो चाहिए। शुद्ध इच्छा के अतिरिक्त यदि उसमें कुछ और इच्छाएं हैं तो वह बिल्कुल बेकार है। मैंने देखा है कि सहजयोग में आकर लोग इसका कोई अर्थ अवश्य होगा और आपको वहाँ जाना चाहिए। आपको आज्ञापालन करना चाहिए। आप यदि आज्ञाकारी नहीं हैं तो आप गुरु नहीं वन सकते क्यांकि यदि आप आज्ञापालन नहीं नाम कमाना चाहते हैं वे हर चीज़ के मालिक करते तो अन्य लोग किस प्रकार आपकी आज्ञा बन बैठते हैं, हर चीज़ पर वे प्रभुत्च जमाना मानेंगे? यह आज्ञा पालन गुरु के हित के लिए चाहते हैं। सहजयोग में कुछ लोग पैसा भी बनाना है, विल्कुल नहीं। यह आपके लाभ के नहीं चाहते हैं। यह बिल्कुल गलत ही नहीं है. अत्यन्त 17 खड : XI अक :1.8 2 1999 चतन्य लहरी । 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-19.txt लिए है, आपकी शिक्षा के लिए हैं, आपके सकते। सदैव समय आपके साथ है । कहीं भी उत्थान के लिए हैं। अत: इस प्रकार का दृष्टिकोण आपने जाना हो ऐसा ही हाता है। इसका आपको एक उदाहरण दुंगी। कबैला में एक छोटी सी लड़की थी और उसका हाथ टूट गया। जब आप अपना लेते हैं तब गुरु के गुण आपको आप्त होने लगते हैं। गुरु किसी भी प्रकार से झमेलिया नहीं हो मैं अमेरिका जाने के लिए तैयार थो। अपने सकता। मुझे यह घर चाहिए, मुझे वह चीज कमरे से में बाहर आ चुकी थी, बच्चे को जब चाहिए. मुझे ये पसन्द नहीं है, मुझे वी पसन्द नहीं है। इस सभी चीजों से निर्लिप्त होना जो मैन देखा तो कहा ठीक है, काई बात नहीं; पहले इस बच्चे को ठीक करूंगी। वे लोग कहने लगे परन्तु श्रीमाता जी आपका वायुयान? व्यक्ति नहीं जानता वह गुरु नहीं हो सकता किस ्ड प्रकार बह उत्थान प्राप्त कर सकता है। नि:संदेह मेंने कहा ठीक है, उस भूल जाओ।। मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि आपको इन मैंने उस बच्चे की उठाया, उसका इलाज किया. वह ठीक हो गई और लगभग आधे घण्ट आदतों से ये बैकार की आदते आपकी दयनीय बना देती है। के पश्चात् में बायुपत्तन के लिए चली। सुनकर किसी और की यह उतना दयनीय नहीं बनाती आप हैरान हांगे कि न्यूयार्क जाने वाला जहाज जितना स्वय आपको। गुरु को किसी भी आदत की पकड़ नहीं होनी चाहिए। सर्वप्रथम तो उसे दूसरे वायुयान द्वारा आप वाशिंगटन जो सकते हैं । कालातीत होना चाहिए । समय की चिन्ता उसे नहीं होनी चाहिए। मैंने बहुत बार देखा है बायुयान द्वारा मैं वाशिंगटन पहुँची। बाशिंगटन कि लोगों को यदि हवाई अड्ड़ा जाना ही तो वायुपत्तन वहुत अच्छा है। वहाँ सीमा कर मुक्त हान का प्रयास करना होगा। खराब था। ता घापणा की गई कि इसी टिकट से , ये तो बहुत अच्छी वात है। उस मैने कहा, ( Custom) को काई समस्या नहीो और वहाँ चाहे मैंन ही जाना हो, वे अचानक गतिशील हो भीड़-भाड़ भी नहीं होती। मंरी समझ में नहीं आता सभी लोग न्यूयार्क क्यां जात हैं? उन्हें वाशिंगटन जाना चाहिए। मैंने देखा कि मैं वास्तव में न्यूयार्क नही जाना चाहती थी इसी प्रकार सभी कुछ कार्यान्वित हाता है और उचित समय उनक शरीर मे मानो कुछ प्रवेश कर जाता है। उठते हैं। जाना तो मैंने होता है और वेगवान वे सब हो जाते हैं! सभी इधर-उधर भागने लगले हैं, क्यों? जाना तो मेने है, आप तो नहीं जा रहे, फिर भी एंसा होता है! इसी प्रकार किसी से यदि कहा जाए कि तुम्हें समारोह में जाना है, या किसी अभिनन्दन समारोह में, तो लोग कुदने लगते हैं। यह आधुनिक रोग है, पहले यह नहीं पर वही होता है जो आपके हित में है। मंरा इस मामले में बहुत अनुभव है। मैं आपको बता सकती हूँ कि समय को चिन्ता हुआ करता था। वे देखने लगते हैं कि उन्हें देर हो रही है और परेशान होने लगते हैं इसी प्रकार करना बहुत बड़ा सिरदर्द है। इसे यदि आप परमेश्वरी शक्ति पर छोड़ दें और उस पर विश्वास करें तो सभी कुछ आपके हित के लिए यदि आप चिन्ता करते रहे तो आप कालातीत नही कर होगा। यदि ऐसा नहीं होता ता यह आपकी परोक्षा नही हो सकते, समय का वश में 18 चैतन्य लहरी खड : XI अक : 1&2 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-20.txt है। आपको स्वीकार करना होगा, सीखना होगा क्योंकि अपने लिए जिस चीज़ का आप महान राय होती है। इसे वह अन्य लोगों पर थोपता है। यदि आप उसके जीवन को देखें तो वह परत्तु अत्यन्त दयनीय हाता है। लोगो के साथ उसकी (आवश्यक) समझते हैं वह वास्तव में वैसी नहीं है। तो कौन सी महानतम चीरीज़ आपने नहीं पटती. उनसे वह बातचीत नहीं कर सकता तथा उसमें, उसकी आत्मा में ओर उसके अस्तित्व प्राप्त करनी है? निर्लिप्सा (साक्षीभाव)। इसके लिए आपको गुणातीत होना होगा। में बहुत बड़ा फासला होता है। दूसरं प्रकार के तमोगुणी व्यक्तियों को भिन्न प्रकार के रोग हो बहुत से रोग ही जाते हैं. परन्तु तमोगुणों लोग मनोदैहिक (Psy- आप जानते हैं कि हममें तीन गुण है सत्व गुण सर्वोत्तम है। परन्तु दो अन्य गुण भी हैं-रजोगुण जाते हैं। रजोंगुणी लोंगों को भी SAA THI T ( Right Sidedness and Left chosomatic) रागों से गस्त ही जाते हैं। Sidedness)। या तो आप रजांगुणी व्यक्ति हैं मनादेहिक राग बहुत भयानक हैं और चिकित्सकों कोई महत्व नहीं। आप यदि रजोगुणी हैं तो के पास इनका कोई इलाज नहीं। इसके लिए आपको सहज योग अपनाना होगा। परन्तु सहजयोग हो उठते हैं। अति गतिशीलता से आपको में आने के पश्चात् भी आप रजोगुणी हो जाते हैं या तमीगुणी मेरे विचार से जीवन के प्रति यह अच्छा दृष्टिकोण नहीं है कि आप किसी गुण विशेष से बंधे रहें या हर समय दोलक (पैंडुलम) की तरह से कभी आक्रामक हो या तमो गुणी। हमारे अन्दर इन दोनों गुणों का आपके साथ क्या होता है? आप अति गतिशील थकान होती है जिससे आप रोगी हो जाते हैं। ये रोग आन्तरिक आक्रामकता को ठीक करने से ही ठीक होते हैं। इस प्रकार का व्यक्ति अत्यन्त वेगवान होता है। दो मिनट के जाए और कभी तमोगुणी। अतः आपको लिए भी बह टिक कर नहीं बैठ सकता। सदैव उछलता रहता है तथा अपने और अपने परिवार सुस्थिर व्यक्ति वनना होगा इसके लिए आप के लिए समस्याएं खड़ी करता है। बाई ओर का व्यक्ति वह होता है जिसे हम तमोगुणी कहते हैं। आक्रामक प्रवृति सबको ध्यान-धारणा करनी होगी। मैं तुरन्त जान जाती हैँ कि कौन सा व्यक्ति ध्यान धारणा करता है और कौन सा नहीं। केवल दस-पन्द्रह मिनट की बात है। परन्तु प्रातः और है और आलसी प्रवृत्ति 'तमोगुण' । 'रजोगुण ' 'तम' अर्थात् अन्धेरा। ऐसा व्यक्ति अंधेरे से भयभीत होता है परन्तु वह अत्यन्त षडयन्त्रकारी साये ध्यान धारणा करना अत्यंत आवश्यक है। इसी से आपका सन्तुलन विकसित होगा. आपमें एवं कुटिल हो जाता है। कुटिलतापूर्वक, खुलकर दुढ़ता विकसित होंगी। आपका शरीर इस प्रकार विकसित हांगा कि यह बहुत सो नकारात्मकता नहीं, वह लोगों को कष्ट देने का प्रयत्न करता हैं। जबकि रजोगुणी या आक्रामक व्यक्ति खुल्लमखुल्ला हिटलर होता है। तमोगुणी अन्य लोगों को कष्ट पहुँचाने में लगा रहता है। रजोगुणी व्यक्ति की हर चोज के विषय में अपनी ही एक का सामना कर सके। तब आपकी इच्छाएं समाप्त हो जाएंगी। क्या खाना खाना चाहिए? कब खाना चाहिए? किसे प्रसन्न करना चाहिए? आदि आदि। आप स्वयं इतने मधुर व्यक्ति बन जाते हैं कि 19 चैतन्य लहरी : 182 1999 खंड : XI अंक 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-21.txt सभी लोग आपसे प्रसन्न होते हैं और सोचते हैं कि हम महान हैं, वे हमें परेशान नहीं करते कि उन्हें भी आप सा बनना है। लोग आपकी परन्तु ये मानव हमें दुःख दंते हैं। ये अत्यन्त ओर देखते हैं और आप उनके लिए आदर्श बन आकांक्षी तथा नकारात्मक है। हम उनके पास हैं नहीं जाना चाहते। मानव में कुछ कमी तो है कि किसी ने भी पूर्णत्व की अवस्था प्राप्त नहीं जाते हैं । लोग आपका अनुसरण करने लगते अर्थात् आप गुरु बन जाते हैं। इस प्रकार आप बाएं और दाए (रजस और तमस) की आदतों की। तो मैं हैरान थी कि किसी प्रकार वे संसार से मुक्त हो जाते हैं। सत्व गुणी लोग वो होते हैं जो धर्मपरायणता में विश्वास करते हैं। परन्तु धर्मपरायण लोगों के लिए तैयार थे। कहने लगे माँ ठीक है। आप मन में अधमी लोगो के लिए तिरस्कार की ाम में वापिस आने के लिए तैयार न थे और न ही हमारा साथ देने और हमारे अंग प्रत्यंग बनने के आई हैं, आप माँ हैं ये सब कष्ट सहन कर सकती हैं और इस कार्य को कर सकती हैं। परन्तु हम ऐसा नहीं कर सकते। हमने ये संसार त्याग दिया है। अब हम इसमें वापिस नहीं आ भावना होती है। ऐसे लागों को वे अपमानजनक बतञ वातें कहते चले जाते हैं और इस प्रकार उनका स्वभाव उन्हें अर्केलेपन की ओर धकेल देता है। वे हिमालय पर जा बैठते हैं, किसी से मिलते सकते। उनमें बहुत सी शक्तियां हैं वे प्रकृति को नहीं। समाज से बाहर होकर, संबंधियों को और वबहुत से कार्य भी कर सकते हैं । परन्तु वे कहने लगे कि मानव की अपेक्षा सर्प को वश में कर लेना आसान है। वश में कर सकते हैं छाड़कर, सब कुछ त्यागकर वे गुरु बन बैठतं हैं। इस प्रकार के लोग बेकार हैं। जब में हरिद्वार में थी तो ऐसे कुछ लोगों से मिली और उनसे पूछा कि तुम हिमालय पर क्या कर रहे हो? आज मानव एक विशेष प्रकार का आचरण कहने लगे कि हम सांसारिक लोगों का सामना करेगा, परन्तु अचानक बह भयानक हो उठगा नहीं करना चाहते, वे बकार लोग हैं, किसी काम इन मनुष्यां के वारे में कुछ नहीं कहा जा के नहीं। उनके हित के लिए जो चाहे करते रहो वे आपको परेशान ही करेंगे। हम उनके साथ सकता। ये कितने अविश्वसनीय हैं? मैंने कहा उनको ठीक करने का एक तरीका है, पहले नहीं रहना चाहते। मैंने कहा, आप लोग गुरु क्यों उन्हें आत्मसाक्षात्कार दे दो। आत्मा के प्रकाश में बने हैं? यदि आप उन्हें संभाल नहीं सकते वे देख सकेंगे कि किस प्रकार वे गलत कार्य उनके दिए कष्टों से बचकर शांत नहीं रह कर रहे हैं। निन्यानवें प्रतिशत लोग समझ जाएगे सकते, तो आपके गुरु होने का क्या लाभ है? कि उनमें व्या गलतियां हैं. और वे कहाँ भटक कहने लगे हमने ये सब काफी कर लिया है। रहे हैं। व स्वयं को देखने लगेंगे । उनमें से कुछ तो सौ वर्ष से भी बड़ी आयु के थे। परन्तु इसका क्या लाभ है? आपका जीवन स्वयं को स्पष्ट देखते हैं और परिवर्तित होने बेकार है, यहाँ जगलों में आप अकले रहते आत्मा वह दर्पण है, जिसमें आप हैं। लगते हैं। आत्मा के जागृत हो जाने के कहने लगे कि सांप, चीते सभी जानवर जानते हैं पश्चात् अन्तर्द्शन की भी आवश्यकता नहीं 20h चैंतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 1& 2 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-22.txt रह जाती। आप स्वयं को देख सकते हैं ज्यों ही आप विकसित सहजयोगी बनते हैं: आप स्वयं को स्पष्ट देख सकते हैं। यही चीज़़ रूसी लोगों की कमियों के विषय में बताने लगते हैं। सभी सहजयोगी एक से हैं। भारतीय सहजयोगी कहेगा श्रीमाताजी, आप जानती है, आखिरकार ये भारतीय है। ये भारतीय लोग हैं. श्रीमाताजी. ये हैरान थो कि स्वयं भारतीय होते हुए भी बे किस प्रकार भारतीयों के मनुष्य को दंखनी चाहिए कि क्या मुझमें यह घटित हो गया है? यदि आप अपनी गलतियों एसे कार्य कर रहे हैं । को देख सकते हैं, यदि आप अपने दोष खोज सकते हैं और उन दोषों से स्वयं को बारे में बता रहे है । मैं तर सहजयोगियों से मुझे इन देशों के विषय में बहुत सी चीजें पता चली हैं। सहजयोगी जब मुझे कुछ बताते हैं, गुझे हैरानी होती है, वे अपने देश से, अपने परिवार से, कसी से भी लिप्त नहीं होते। उन्हें यदि कोई कमी नजर आती हैं तो वे मुझे बताते हैं। श्रीमाताजी मेरे पिता ऐसे हैं. मेरी माँ ऐसी हैं। हटा सकते हैं, यदि आप यह बात समझ सकते हैं कि ये लिप्साएं, दोष और आदतें आपको पतन की ओर घसीट रही हैं, केवल तभी आप उन्हें त्याग सकते हैं। परन्तु ऐसा केवल तभी घटित हो सकता है जब आत्मा रूपी दर्पण आपके अन्दर चमक रहा हो, न यह प्रकाश जब आपमें आ जाता है तो आप स्वयं देखते हैं कि आपमें क्या कमी है और इस प्रकार जब आप देखने लगते हैं और नि्लिप्त होते हैं तो आपको साक्षी भाव प्राप्त हो कौन सा गलत मार्ग आप अपना रहे हैं। आपने जाता है। निर्लिप्त होने पर आप स्वतन्त्र व्यक्ति देखा है कि लोग रातों-रात सभी बुराइयां छोड़ देतें हैं परन्तु अब भी बहुत से सूक्ष्म दोष हैं बन जाते हैं, आपके पास स्वतन्त्रता होती है और जिनमे हम चिपके हुए आपमें आता है वह ये है कि आप अपने लोगों, अपने देश की कमियों को देखने लगते हैं। हैं। पहला परिवर्तन जो पिता, माँ, बहन या किसी अन्य से आपको मोह नहीं रहता, मोह अत्यन्त भयानक है। पारिवारिक मोह के कारण हमने बहुत से सहजयोांगी खो मैं हैरान थी कि जब अंग्रेज़ा को दिए हैं। अजीबोगरीब परिवार के कारण आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ तो वे मुझे अंग्रेजों के गए। परिवार के मोह से व न निकल सके। हम दोष वताने लगे जब इटली के लोगों को ये नहीं कहते कि आप परिवार को छोड़ दें या वे खो से आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ तो वे इटलो के लोगों के दोष बताने लगे। किसी इटली के सहजयोगी उससे बाहर आ जाएं, परन्तु सूक्ष्म रूप आपको समझना चाहिए कि उनका लक्ष्य क्या को यदि आप कहें कि देखों यह गलती इटली ा और वे क्या कर रहे हैं? अन्य लोगों के विषय के व्यक्ति ने की है तो वह कहता है, श्रमाताजी में यह सूक्ष्म सुझ बूझ आपको उनकी आलोचना का अधिकार भी नहीं देती। आपको स्वयं देखना चाहिए कि आपमें क्या गलती है? ये सारी ा इटली का व्यक्ति और कर भी क्या सकता है इटली के लोग ऐसे ही हैं। स्वयं इटली का होते सूक्ष्मताएं आप जानते हैं। अन्य लोगाों की आलोचना भी वह तुरन्त यही कहता है। रूस के लोगों हुए आप करते हैं परन्तु आप में भी तो बही कमियां का भी यही हाल है। आप हैरान होंगे कि वे 21 चैतन्य लहरी खंड : X1 अक : 1& 2 1999 म कर 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-23.txt करता है तो उसे नाराज करने कप्ट पहुँचानं या चोट पहुँचाने वाला कोई कार्य नहीं करता। आपके हो सकती है। अत: ये निर्लिप्सा आत्मा के दर्पण के माध्यम से अन्तर्दर्शन द्वारा ही प्राप्त की जा अन्दर जब तक ये विकास नहीं होता तब तक आप सामूहिक नहीं हो सकते। सामूहिकता में आपके मन में अन्य लोगों के प्रति प्रेम सकती है। अत: साधक के लिए आध्यात्मिक जीवन ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। साधक सत्य और वास्तविकता की खोज कर रहा है। एक उमड़ता है, अन्य लोगों को आप समझते हैं। इसका दिखावा चाहे आप न करे परन्तु अपने बार बास्तविकता को जब आप जान जाते हैं तो अवास्तविक चीजों से चिपके नहीों रहना चाहते। अन्तस में आप ये जानते हैं। किसी ने आपको कुछ परंशान भी किया हो तो भी काई बात नहीं। से आप ऊपर उठ जाना चाहते हैं। इन सारे दोषों शनै: शनै, आप देखंगे. वह परिवर्तित होगा। इसी प्रकार इन सब दोषों से ऊपर उठ कर ही क्योंकि वह महसुस करेगा कि वह जो भी कुछ आप अंधकार तथा लिए्सा के मोह में डूबते हुए लागों का बचा सकते हैं। परन्तु प्राय: आप स्वयं ही मोह में फंसे होते हैं। स्वयं को एक रूप कर रहा था। वह ठीक नहीं था। आपने दोष को महसूस करके वह सुधरनं का प्रयत्न करेगा। मैंने यह कार्य केसे कर ऐसा क्यों किया? मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था शनै शनै : वह सुधरेगा । परन्तु इसके लिए मानकर आप सोचते हैं, मैं सकता हूँ? किस प्रकार में अन्य लोगों की रक्षा आपमें महान् क्षमाशीलता और महान सुझ-बृझ कर सकता हूँ? है। हालात में फसकर भी जिन देशों में सहजयोग फैल गया है, जहाँ लोग देश माह में लिप्त नहीं हैं और सोचते हैं का होना आवश्यक लोग दुव्यवहार करते हैं क्योंकि उन्हें ठीक और विनम्र रहने की शिक्षा नहीं मिली। सभवत: वे कि देशवासियों को उत्थान में सहायता करनी है, उन्हें चाहिए कि इस कार्य में योगदान दें। इस इसलिए दुर्व्यवहार करते हैं क्योंकि उनकी संस्कृति कार्य के लिए अत्यन्त धेर्य और प्रेम का होना में क्रोध एवं उद्दण्डता को ही महान समझा जाता है। कई बार वो इसलिए, भी दुव्य्यवहार करते हैं क्योंकि उनके परिवारों में उद्दण्डता ही सिखाई आवश्यक है। जैसा कि आप जानते हैं इस ब्रह्माण्डीय शक्ति (Cosmic Power ) का स्रोत मैं ही हूँ। वास्तव में यह परमेश्वरी प्रेम की शक्ति है, ऐसा प्रेम किसी चीज़ की माँग नहीं करता, कुछ नहीं चाहता यह तो सिर्फ परिवर्तित हो सकेंगे। मेरा यं विश्वास है कि कार्य करता है। उदाहरणार्थ आप यदि किसी सभी मनुष्यों को सुन्दर सुगन्धित पुष्पों में परिवर्तित को प्रेम करते हैं तो उसे नाराज़ करने वाला कोई किया जा सकता भी कार्य आप नहीं करेंगे। नि:संदह कुछ सहजयोगी ये भी जानती हूँ कि कुछ मानव बहुत ही कठिन ऐसे कार्य करते हैं जो मुझे पसन्द नहीं हैं परन्तु हैं। क्यों? क्योंकि वे परिवर्तित नहीं होना चाहते। मैं कभी ये नहीं दर्शाती। मात्र शान्त रहती हूँ। उनकी अपनी इच्छा के बना, उनकी शुद्ध इच्छा गई है। अत: आप सहायता कर सकते हैं। ऐसे लोगों को बार-बार क्षमा करना होगा। तभी क है सभी मनुष्यों को। परन्तु में के बगैर आप सहजयोग उन पर थोप नहीं परन्तु साधारणतया यदि काई किसी से प्रेम 22 चैतन्य लहरी खड : XI अक : 1&2 1999 ॥ 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-24.txt जाएंगे। सामूहिकता को सम्पन्न करना जब आप सकते। ऐसे लोगों को भूल जाएं । वे दुष्कर हैं। सीख लेंगे तब, आप हैरान होंगे कि, गुरु हाने उन्हें भूल जाए। परन्तु जो लोग चाहते हैं, की कला में किस प्रकार आप पारंगत हो गए हैं। जिनमें धन, पद आदि की इच्छा नहीं है, केवल आध्यात्मिकता की महान् अवस्था प्राप्त मेरी इच्छा है कि आप में से बहुत से लोग केवल अपनी नौकरियों और प्रतिभा में ही करने की महान शुद्ध इच्छा है, किसी भी नहीं अपने जीवन में भी वास्तविक गुरु बनें. कीमत पर ऐसे लोगों की सहायता की जानी चाहिए। मैं जानती हैं उनमें से कुछ अत्यन्त गलत वास्तविक स्वामी बने। लोग कहें कि अमुक व्यक्ति वास्तविक गुरु है। इसके लिए, जैसा मैंने वति बताया, आपको पूर्ण आज्ञा पालन सीखना होगा। गुरुआं के पास गए और दुख उठाए उनकी अपने आज्ञा खराब है, और बहुत से दोष हैं, परन्तु करने के गुरु से प्रश्न न करें। जो भी कुछ लिए आपकी कहा जाए वो करें। यद्यपि सहजयार में में ऐसा कुछ नही कहती। आज पहली बार में बात कह रही हूँ क्योंकि आपमें से बहुत मैंन कोई बात नहीं। से आप उनकी सहायता करने का प्रयत्न ये करें। वे यदि आयकी बात सुनेंगे और समझ लोगों को मैं निपुणता से दूर पाती हूँ। पाएंगे कि आप उन्हें क्या वता रहे हैं. तो मुझे आपको बताया है कि आपको कुछ बलिदान नहीं करना होगा, कुछ त्यागना नहीं होगा। अपना विश्वास है, यह कार्यान्वित हो जाएगा। आप देख सकते हैं ये किस प्रकार कार्यान्वित हुआ है! परिवार आदि कुछ नहीं छोड़ना होगा और स्वयं विदेशों में को निपुण दिखाने के लिए कोई उल्टे-मीधे कार्य नहीं करने होंगी। ये तो आपकी आन्तरिक जहाँ मैं अकेली भारतीय थी', लोगों ने किस प्रकार इसे अपनाया है!' लोगों ने किस अवस्था है जिसे आपने स्थापित करना है इसमें है! किस प्रकार मुझे समझा प्रकार इस अपनाया है और इतने महान मूल्य एवं स्तर के सहजयोगी बने हैं! प्राचीन काल में कभी भी इतने सन्त न आप अत्यन्त विनम्र, आज्ञाकारी बन जाएंगे और विश्वास है, इस प्रकाश के साथ आप मुझे उन्नत होंगे । होते थे, काई एक सन्त जन्म लेता था और उसे एक वार जब आप इसके महत्व भी लोग सताते थे। एक-दूसरे की सहायता करने को समझ लंगे तो असाधारण व्यक्तित्व पाने के के लिए, एक दूसरे की रक्षा करने के लिए लिए स्वयं को समर्पित कर दंगे। यह सरलतम अधिक सन्त न हुआ करते थे। अत: सामूहिकता कार्य हैं। क्योंकि जीवन यापन का यह सुखदतम मार्ग है लइने, झगड़ने, दिखावा करने आदि का कोई लाभ नहीं । दूसरों की देखभाल, उनके ा अच्छी तरह से सीखी जानी चाहिए। किस प्रकार सामूहिक बना जाए? किस प्रकार परस्पर सुहृदय बना जाए? वाद में जब आप गुरु बनेगे और प्रति प्रेम, लोगों को सन्तोष प्रदान करता है। लोगों का पथ प्रदर्शन करना पड़ेगा तब सामूहिकता यहाँ-वहाँ थोड़ी सी देखभाल, लोंग इसे पसन्द करते हैं। परन्तु इसका उदभव भी छोटी-छोटी चीजों की चिन्ता करने वाले श्रेष्ठ व्यक्ति से की समस्याएं आपको समझ आएगो। तब आप उन समस्याओं का समाधान करना भी जान 23 खंड : XI अंक : 1& 2 1999 र चतन्य लहरी ॥ 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-25.txt होता है। यह आपकी उन्नति के लिए नहीं है। देखभाल करती है। आपको विश्वास करना यह आपके उत्थान के लिए है। उच्च जीवन चाहिए कि यह परमेश्वरी शक्ति सोचती है, प्राप्त करने के लिए आप अगुआपन के विचार समझती है और सुव्यवस्थित करती है सर्वोपरि छोड़ दें कुछ सहजयोगी जब अगुआ के रूप में यह आपको प्रेम करती है। इस परमेश्वरी रौब जमाते हैं तो मुझे लगता है कि ये मुर्खता है। शक्ति को समझना आवश्यक है। अब यह आपकी अपनी है, आप इसके साम्नाज्य में एसा करना ठीक नहीं है। THCEC बहुत वार मैने आपको बताया है कि है। जहां आपको किसी भी प्रकार की कोई सहजयाग में आपका अपना विकास, अपना समस्या नहीं हो सकती। इस परमेश्वरी शक्ति पर यदि आप सभी कुछ छोड़ देंगे तो यह कार्य करेगी। जिस वैज्ञानिक ने मेरे विषय में सुधार, अपना पद बताएगा कि आप क्या है? दूसरे जो चाहें कहे, काई फ़र्क नहीं पड़ता। आप जानते हैं। अपने विषय में जो कहते हैं वही ास्तविकता पता लगाया आप उसके विषय में है। इसका आप सामना करे। महिलाओं के लिए उसने मुझसे पूछा कि यहाँ पर इतने हृदय किस मैं विशेष रूप से कहूंगी कि मैं एक महिला हूँ प्रकार बनते हैं? मैंने कहा लोग (Sitting in the और इतने वर्षों तक मैंने कठोर परिश्रम किया है। Heart of the universe) ब्रह्माण्ड के हृदय में बैठे हुए, नामक भजन गा रहे थे इसीलिए इत्तने एक महिला होने के नाते में बताना चाहूँगी कि सभी महिलाओं को इसी प्रकार कार्य करना सारे हृदय उभरे। वह कहने लगा कि क्या यह चाहिए, क्योंकि सदैव कहा जाता हैं कि हमे शक्ति सुनती भी है? मैंने कहा नही कंवल मैं शक्तियां हैं। सहज महिलाओं के जीवन से मुझे सुनती हूँ। मैं भजन को सुन रही थी और यह नहीं लगता कि शक्ति-रूप में उन्होंने कोई कार्य शक्ति सभी कुछ सुव्यवस्थित कर रहो है। यह किया हो। हर समय वे सहजयोग पर निर्भर रुप बात भली-भांति समझी जानी चाहिए कि रहती हैं। अपनी स्वतन्त्रता में उन्हें खड़ होना आपकी अन्तर्शक्ति समझती है। आपको भी हांगा। उन्हें स्वतन्त्र होना होगा और सभी चीजों समझती है। शक्ति का यही तरीका है। ये को ठीक से देखना होगा। मुझे विश्वास है कि आपकी अपनी शक्ति है परन्तु आप इसे महिलाए जब इस प्रकार खड़ी हो जाएगी तो सहजयाग बहुत अधिक फेलेगा। सहजयोग के लिए पुरुष महिलाओं से कहीं अधिक कार्य कर रहे हैं। मैं समझ सकती हैं कि उनके परिवार हैं. अपने वश में नहीं कर सकते। यह आपके विषय में जानती है। जहाँ भी आपमें कमी है. जो भी आपमें गलती है, ये जानती है। यही शक्ति आपको प्रेम करती है और आपकी रक्षा करती है। माँ की तरह यह आपको सुधारेगी और उचित मार्ग पर लाएगी। उनके बच्चे हैं, परन्तु एक बार जब आप सक्रिय रूप से सहजयोग अपना लेंगी तब आपके बच्चे अच्छी तरह से विकसित होंगे और आपके नई सदी का आरम्भ हो रहा है। बहुत सा चीजें घटित होनी है। आप सभी लोगों कोा निणंय परिवारों की भी ठोक से देखभाल होगी। एक परमेश्वरी शक्ति है जो आप सबकी लेना होगा कि सहजयांग का फैलाने के लिए 24 चैतन्य लहरी । खंड : X1 अंक : 1& 2 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-26.txt आप क्या करेंगे। आप सभी लोगों को चाहिए कि जितने भी चमत्कार, घटित हुए हैं उन्हें आप लिख दें। आप सभी लोगों के कुछ अनुभव है भी आपने देखे हैं। तो मैं आपसे कि इस ओर ध्यान दें। महिलाएं यदि वाहर नहीं कुछ लिखें । कुछ चमत्कार जा सकती तो उन्हें चाहिए कि वे व अपने आध्यात्मिक उत्थान, अपने सहज अनुभवों अनुरोध करूंगी कि जितना शीघ्र हो सके के विषय में लिख सकती हैं। जिनके पास अग्रेजी-हिन्दी या मराठी भाषा में भली-भाति चमत्कारिक फोटो है वे यहाँ भेजें। ये भद्र पुरुष लिखकर इन्हें भेजें। अन्य भाषाएं में नहीं जानती। अत: किसी अन्य भाषा में न लिखे। चौदह ( वैज्ञानिक) सितम्बर में यहाँ आने वाले हैं और सभी चमत्कारिक चित्रों का सूक्ष्मता से परीक्षण भाषाओं में अनुवाद करने के लिए हमें किसी करेंगे। तो यदि आप ये फोटोग्राफ भेज सकें तो को नियुक्त करना होगा जो कठिन कार्य है। अत: इन्हें भेजने की मैं आपसे प्रार्थना करूगी। अच्छा होगा। सहजयोग में जो आपको भिन्न भिन्न अनुभव हुए हैं, ये भी आप लिखें ये भी मुझे विश्वास है आज के प्रवचन को आप बार-बार सुनेंगे (पढ़ेंगे). उसे समझेंगे तथा एक अच्छा विचार है। उसने मुझे एक पुस्तक कार्यान्वित करेंगे। छापने के लिए कहा है। अब समय आ गया है परमात्मा आपको धन्य करें। 25 चैतन्य लहरी ॥ खंड : X1 अंक : 1&2 1999 खड़ 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-27.txt विश्व सहज समाचार फ्लोरिडा यू.एस.ए. दूरदर्शन की श्रीमाताजी को कबैला में मान कर उनके सुन्दर चरण और सहजयोग के विषय में आधे घण्टे के कमलों पर चित्त डाला तो इतनी तीव्र चैतन्य समक्षकारों की श्रृंखला विकास की ओर अग्रसर है तथा इस कड़ी (शो) के निर्माता हमसे घबरा गए कि कुछ भी कह पाना कठिन होगा साक्षात्कार करते रहने के लिए अत्यत उत्सुक हैं। लहरिया आई कि क्षण भर के लिए तो हम पर सभी कुछ निर्विघ्न हुआ। इस शो का प्रसारण जून के आरम्भ में होगा। पांच लाख दर्शकों तक ये पहुँचेगा साक्षातकर्ता ने प्रभावित होकर बड़े अच्छे प्रश्न पूछे। कुछ ही दिनों में वे आत्साक्षात्कार सामग्री के संक्षिप्त वीडियो टेपों के साथ तैयार लेने के लिए आ रही हैं। श्रीमाताजी आपकी कृपा के लिए कांटिशत् नमस्कार। प्रिय भाइयों और बहनों इस कार्य में आप सब की सहायता दूसरे साक्षात्कार का समय आ गया था और हम लोग श्रीमाताजी के प्रवचनों तथा सहायक थे तभी निर्माता ने हमें बुलाया और पूछा कि क्या ये सम्भव नही है कि दूसरे शो के साथ-साथ ही तीसरे शो की भी रिकार्डिग कर ली जाए, तथा प्रकाशित चित्त डालने के लिए आपका क्योंकि किसी अन्य ने नाटक रिकाररडिंग रद्द कर धन्यवाद्। दी है। आश्चर्यचकित होकर हम सोचने लगे फ्लोरिडा के सहजयोगी कि" तीसरे शो का विपय क्या होगा? कौन सी वीडियो सामग्री को हम कुछ हो घण्टों के अन्दर सम्पादित करें जो प्रसारित करने के योग्य हो?" सिंगापुर में सहज कार्यक्रम 14 अप्रैल (1998) को सिंगापुर के तब हमने स्पष्ट बात सोची-क्यों न इन्हें आत्मसाक्षात्कार दे दिया जाए? आखिरकार कार्यकरम हुआ। हमने एक कमरा निर्धारित किया र हृदय (down town) में हमारा पहला विज्ञापित सहजयोग का मुख्य लक्ष्य तो यही हे हमने श्रीमाताजी का ध्यान करवाते हुए एक प्रसारण जिसमें सत्तर लोग बैठ सकते थे। हम ये ने जानते थे कि कितने लोग इस कार्यक्रम में योग्य वीडियो टेप ढूंढा और निर्माता को कह दिया, 'हम तैयार हैं। दोनों ही प्रसारणों का (रिकार्डिंग) अभिलेखन एक ही झटके में हो गया। इसमें कोई काटा-पीटी न करनी पड़ी। का प्रवाह भी अत्यंत तीव्र था। हमें ज्ञात न था सम्मिलित होंगे। कार्यक्रम साढ़े सात बजे आरंभ होना था परन्तु 7.20 पर 90 लोग पहुंच गए और बैठने के लिए कोई स्थान न था। पूरे स्थान का उपयोग कर लिया गया पर अभी भी लोग चैतन्य लहरियों अए जा रहे थे। सोचा गया कि किसी बड़े कमरे का प्रबन्ध किया जाए और इसी सोच में लगभग आठ बजे कार्यक्रम आरम्भ हुआ और तब तक कि हमारे अगुआ ने एक दिन पूर्व ही श्रीमाताजी को एक फैक्स भेजा था जिसमें उन्होंने आने वाले दूरदर्शन साक्षात्कारों का भी वर्णन किया 120 लोग आ चुके थे। श्रीमाताजी का वीडियो टेप जब दिखाया जा रहा था तब भी लाग आते था। साक्षात्कार के आरम्भ में जब हमने श्रीमाताज़ी रहे। 26 चैतन्य लहरी ॥ खंड : X1 अंक : 18 2 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-28.txt के झुण्ड से घिरी हुई नन्हीं राधिका का देखने के लिए आए। वं सब अत्यन्त ध्यानपूर्वक शीतल लहरियों के सौंदर्य तथा इन्हें प्राप्त करने अमेरिका में कितने वर्षों के पश्चात् यह स्वप्न साकार हुआ था । हम इतने प्रभावित हुए थे कि मन ही मन श्रीमाता जी का धेन्यवाद कर की सहज विधि के विषय में सुन रहे थे। सभी हृदय से सिर हिला रहे थे धर्मशाला में इतने वर्षो तक रहने के फलस्वरूप रहे थे। कार्यक्रम अनुपम था-इतने अच्छे साधक अत्यन्त सहज और विनम्र, और बहुत पढ़े लिखे भी। श्रीमान सी.पी. श्रीवास्तव जी के भतीजे और उनकी पत्नी ने भी कार्यक्रम में भाग लिया। एक राधिका ने सहजयोग के विषय में अत्यन्त सहजता से और भली भांति बोलना सीख लिया था । अमेरिका में उसके सभी सहज अकल और आंटिया उस पर अन्य उपस्थित व्यक्ति श्रीमान सी.पी. श्रीवास्तव के भारतीय जहाजरानी निगम के संवाकाल में गर्व करती। साथी थे। उपस्थित लोगों में से कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने भारत में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया था मानों इतना कुछ काफो न था! अन्तिम दो दिन प्रतिदिन बीस से भी अधिक टेलीफोन सहज विधियों तथा चैतन्य लहरियों की पूछताछ जिसने पथ में श्री माताजी के कार्यक्रम में कुछ के विषय में आते रहे। एक व्यक्ति ने कहा कि वह पूरा दिन और पूरी रात चैतन्य लहरियां परन्तु सिंगापुर आ जाने के कारण ध्यान को आगे बढ़ाने की विधि न जानते थे। एक महिला, वर्ष पूर्व आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया था, ने सिंगापूर में आने के लिए हृदय से हमारा धन्यवाद करते हुए मुझे गले लगा लिया। वह कहने लगी कि मैं श्रीमाताजी से प्रार्थना करती थी कि यहाँ विश्वास दिलाया कि इतनी आसानी से चैतन्य सहज सामूहिकता प्रदान कीजिए। दो लम्बे वर्षो लहरियों को महसूस करना एक बहुत बड़ा की प्रतीक्षा के बाद उसकी प्रार्थना सुनी गई थी। आश्शीरवाद है। आप सभी कल्पना कर सकते हैं कि हमें कैसा लगा होगा! उस आनन्द का वर्णन शब्दों में नहीं डालती हूँ तो हमारी परम-पावनी माँ के शब्द किया जा सकता। यद्यपि कार्यक्रम हुए दो दिन मेरे कानों में गूंजते हैं-अमेरिका के सहजयोगियों हो गए हैं। फिर भी हम आकाश में उड़ रहे हैं। को पूरे विश्व में सहजयोग फैलाना है। अमेरिका माता-पिता के रूप में हमें श्रीमाताजी ने की ये जिम्मेदारी है। पूरा विश्व उत्सुकता से महसूस करता रहा। वह हैरान था कि क्या यह सामान्य स्थिति है... भाग्यशाली व्यक्ति! मैंने उसे यहां होने वाली घटनाओं पर जब मैं दृष्ट एक अन्य बहुमूल्य भेट प्रदान की। हमारी बेटी, प्रतीक्षा कर रहा है कि कब अमेरिका मानव मात्र जो 15 अप्रैल को 13 वर्ष की हुई थी, ने की आध्यात्मिक जागृति की वास्तविक भूमिका उपस्थित साधकों को अत्यन्त सुन्दर रूप से निभाने का बीड़ा उठाये! सहजयोग के विषय में बताया। हम आश्चर्यचकित दवे एवं माधुरी डनफी। सिंगापुर थे। एक बार तो चार चीनी पुरुष और महिलाओं भूर ू 27 चैतन्य लहरी खड : XI अंक : 18 2 1999 । 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-29.txt साक्षात श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः श्रीमाताजी के श्री चरणों में विनम्र विनती पहुँचने और आपके सदा-सर्वदा सुन्दर प्रेममय एवं स्नेहमय दर्शन से भटका रही है। आपके परम पूज्य श्री माताजी, विश्व परिवर्तन के आपके दिव्य स्वप्न को साकार करके एक नए युग-सत्य युग- का दर्शन, आपका ध्यान ही अन्तिम शान्ति, आनन्द उद्घोष करने के लिए विश्व भर के हम सभी संतुष्टि और पृथ्वी लोक पर हमारे आध्यात्मिक उत्थान की एक मात्र आशा है। आज विश्व भर के हम सभी सहजयोगी जगत्-माता साक्षात् श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देवी के नाम पर बाधाओं सहजयोगी नकारात्मकता-मुक्त विश्व आन्दोलन छेड़ने के लिए आपकी आज्ञा की याचना करते हैं। हे सर्वशक्तिमान देवी कृपा करके इस काी विश्व व्याप्त सभी नकारात्मकताओं, विश्व की सभी नकारात्मकताओं, बाधाओं और और भूतों को आदेश देते हैं कि इस विश्व को भूतों से रक्षा कीजिए। ये बाधाएं पूरे विश्व पर छा रही हैं और सत्य साधकों को सत्य तक छोड़े दें। विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो शराबबाजी नशाबाजी विश्व का मुक्त करा, मुक्त करा, मुक्त करा तम्बाकू विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो. मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो. मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो दुष्चरित्र एवं कुटिलता वामाचार (Perversions) समलैंगिकता स्त्री समलिंग कामुकता ( Lesbianism ) बाल दुराचार अनैतिकता (immorality ) कुगुरु विश्व के झूठ-मूठ के धर्म विज्ञान में अन्धविश्वास अयोग्य राजनीतिज्ञ रूढ़िवाद धर्मान्धता सन्तों के रहने योग्य प्राकृतिक स्थानों को नष्ट करने वाली नकारात्मकता भौतिकवाद विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो. मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्ति करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो भ्रष्टाचार जातिवाद 28 चैतन्य लहरी । खंड : XI अक : 1& 2 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-30.txt विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करी विश्व को मुक्त करो मुक्त करी, मुक्त करी असाम्यवाद (Fascism) सभी झूठे पथ एवं मत सत्य को असत्य में परिवर्तित करने वाले सभी नकारात्मक समाचार पत्राधिकारी हमारे अंदर अभी तक जीवित नकारात्मकताएं विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो विश्व को मुक्त करो, मुक्त करो, मुक्त करो अज्ञानवश इस सूची में वर्णन न की गई सभी नकारात्मकताए 'रूपं देही, जयं देही, यशो देही, सहज योग देही, श्री निर्मला देव्यै नमो नमः ' 29 चैतन्य लहरो । खंड : XI अंक : 1& 2 1999 भी 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-31.txt सद्गुरु तत्व और विशुद्धि तत्व ९५ मानव शरीर में अलग-अलग देवताओं के का संचालन करती है। यह शक्ति कार्यशक्ति विशिष्ट स्थान हैं। सद्गुरु का स्थान भी शरीर में कही जाएगी और इस शक्ति का वहन या है। यह स्थान हमारी नाभि के चारों तरफ है । नियमन पिंगला नाड़ी से होता है। इसे महासरस्वती नाभिचक्र पर श्री विष्णुशक्ति का स्थान है। शक्ति कहते हैं। विष्णुशक्ति के कारण ही मानव की अमीवा से उत्क्रांति हुई और इसी विष्णुशक्ति से ही मानव का अतिमानव होने की घटना घटित होगी। कुण्डलिनी शक्ति जागृत होने के बाद व्यक्ति ईडा और पिंगला नाड़ियों का संतुलन जान सकता है। असंतुलन कहा ही सकता है सद्गुरु का स्थान आप में बहुत पहले से सृजित इसका ज्ञान हो सकता है। सहजयोग के कृुछ है। अब गुरुतत्व कैसा है यह समझने की कोशिश करते हैं । आसान तरीकों से आप संतुलन ठीक कर सकते हैं। कहने का उद्देश्य यह है कि मनुष्य की गुरुतत्व अनादि है। हमारे अन्दर अदृश्य ज्यादातर तकलीफे या सभी परेशानियाँ (शारीरिक रूप से तीन मुख्य शक्तियां कार्यान्वित हैं। इसमें मानसिक, बौद्धिक) ऊपर कही गयी दोनों नाड़ियों से पहली शक्ति श्री महाकाली की, दूसरी श्री के असंतुलन से ही होती है। इसलिए इन दोनों महासरस्वती की व तीसरी श्री महालक्ष्मी की नाडियों में संतुलन रहना बहुत आवश्यक है। शक्ति है। महाकाली की शक्ति से ऐसी स्थिति प्राप्त होती है कि जिससे अपना अस्तित्व टिका हुआ बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि आज हम जिस ऊपर कही गयी दोनों शक्तियों के अलावा हममें तीसरी शक्ति भी स्थित है। यह शक्ति भी मानव चेतना को प्राप्त हुए हैं वह इसी शक्ति के है। इस सृष्टि का अस्तित्व है। इस विश्व का अस्तित्व भी श्री महाकाली शक्ति के कारण ही कारण है। इसे श्री महालक्ष्मी की शक्ति कहा टिका है। आप में इस शक्ति का संचालन 'ईडा' नाड़ी से होता है। ये नाड़ी हमारे शरीर के बायीं जाता है। इसी शक्ति के कारण मनुष्य की अमीबा से उत्क्राति हुई है। उन तीनों शक्तियों का समन्वय होने पर तरफ है और हमारे शरीर के बायीं तरफ का संचालन व नियमन करती है। बायीं सिम्पथैटिक नर्व सिस्टम को चालित करती है। इस नाड़ी के कारण हमें इच्छाशक्ति प्राप्त होती है। इच्छा से सभी समस्याओं का अंत होता है। ऐसा व्यक्ति अत्यन्त शुद्ध एवं अहंकार रहित होता है। यही बह सद्गुरु तत्व है। जैसे-जैसे मनुष्य बड़ा होता है वैसे-वैसे उसमें दो ग्रांथियां-दो विशेष संस्थाएं धीरे-धीरे बनती हैं, उसमें से को अहंकार व दूसरी को प्रति-अहंकार कहते ी ही मनुष्य कार्यान्वित होता है। कार्यशक्ति मनुष्य सारे दायें तरफ (दायीं सिम्परथैटिक नर्व सिस्टम) में दायीं तरफ है और एक 30 चैेतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 182 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-32.txt कहते हैं, समाहित है हैं। अग्रेजी भाषा में उन्हें 'ego' व 'super ego' संपूर्ण विराट पुरुष में भी ये शक्ति समाविष्ट कहते हैं । ये दोनों संस्थाए इच्छा व क्रिया शक्ति से बनती हैं। जब मनुष्य बहुत इच्छा करता है या है। ये शक्ति अनेक बार जन्म लेती है। आदिकाल केवल इच्छा से ही भरा होता है तब प्रति से देखा जाय तो श्री आदिनाथ इसी शक्ति के अवतार हैं। जैन संप्रदाय में श्री आदिनाथ जी को अहंकार प्रस्थापित होता है। ये संस्था हमारे सिर सद्गुरु मानकर उनका पूजन करते हैं और लोगों को श्री के बायी तरफ से चल कर सिर के मध्यभाग में स्थापित होती है। दूसरी संस्था माने आहकार की प्रार्थना करते हैं। परन्तु जैन संस्था का क्रियाशक्ति से निर्माण होता है। ये आदिनाथजी की शक्ति के बारे में ज्ञान नही है। संस्था किसी भी मनुष्य में, जो कुछ भी काम करता है, प्रस्थापित हो सकती है। मनुष्य उस शक्ति हैं। इस शक्ति में धर्माधता नहीं है समय सोचता है कि 'मैंने फलाना काम किया' सन्यासी की जाति नहीं होती है, ऐसा हम कहते तीनों शक्तियों से निर्मित होने वाली ये प्रथम हैं। इसका अर्थ यही है कि वह सभी धर्मों को मैने सड़क बनाने का काम किया', 'मैंने बाध मैंने मकान बनाया इससे सनुष्य में बनवाया " मानता है। अगर कोई व्यक्ति कहता हैं कि मैं एक तरह का कत्तापन आता है और उसी से फलानी जाति का गुरु हूँ. तो निश्चित समझ उसकी अहंकार की संस्था बल पकड़ती है। ये लीजिए कि वह व्यक्ति सद्गुरु नहीं है। सद्गुरु संस्था सिर के बायीं ओर से शुरू होकर सिर के बीचोंबीच आती है। जब अहकार व प्रति अहकार, तत्व की पहचान ही ये है कि सारे धर्मों का जो सार है वह इस सद्गुरु तत्व में शामिल है। इस दुनिया में धर्म के नाम पर कितनी संस्थाएं हैं? वैसे ही अनेक व्यक्ति हैं जो अपने आपको धर्मगुरु कहलवाते हैं। उसमें भी कई राजनीतिक संस्थाएं हैं। एक धर्मानुयायी दृसरे ये दोनों संस्थाएं बीचांबीच आकर मिलती हैं तब तालू भर जाता है। इसे अंग्रेजी में 'calcifica- tion' कहते हैं। सामान्यत: बच्चे का तालू 3-4 साल की आयु तक कठोर हो जाता है। इस आयु तक बच्चे बहुत अच्छी तरह से बात करना धर्मानुयायी पर टीका-टिप्पणी करता है। हिन्दू करता है मुसलमानों पर, मुसलमान इसाई पर और इसाई मुसलमानों पर। सच कहें तो ऐसे जो लोग हैं वे सब दांभिक व अज्ञानी हैं क्योंकि ऐसे सीख जाते हैं व अपनी मातृभाषा में बोल सकते हैं। सद्गुरु तत्व, श्री महाकाली. श्री महासरस्वती और श्री महालक्ष्मी इन तोन शक्तियों लोगों को सदुगुरु तत्व का ज्ञान नहीं है। कौन के समन्वय से (मेल से) बना है। यह गुरुतत्व हमारे अन्दर परमेश्वर ने बहुत ही नूतन स्वरूप सद्गुरु है, कोन नहीं हैं, ये वे नहीं जानते। अब सद्गुरु पहचानने का चिन्ह क्या है पहले यह में स्थित किया है। आप सब जानते हैं कि श्री देखते हैं। सद्गुरु आपसे पैसा या धन की माँग हुआ। श्री दत्तात्रेय नहीं करेंगे। उल्टा वह धन को धूल समान सत्गुरु दत्तात्रेय का जन्म कैसे में श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु व श्री महेश, इन तोनों मानेंगे। सद्गुरु को आप सोना या पैसा हीरे-मोती देवताओं की शक्ति समन्वित है। ये शक्ति देकर खरीद नहीं सकते। सद्गुरुओं को इन आपकी नाभि के चारों तरफ, जिसे भवसागर चीजों की जरा भी आसक्ति नहीं रहती है। 31 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 18 2 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-33.txt सद्गुरु अपने स्वयं के स्वभाव में सन्तुष्ट रहते हैं। साधक्कों में अनुशासन होना वहुत जरूरी है। हैं। अगर उन्हें अच्छा लगा तो वे औरों से आपको पहले बता चुकी हूँ कि सद्गुरु तत्व बोलेंगे, नहीं तो नहीं। सद्गुरु परमेश्वर प्राप्ति के आपके भवसागर में स्थित है। अब ये सद्पुरु लिए आपकी विनती करके आप के पीछे-पीछे तत्व आपमें नहीं दौडेंगे। ये सब, मैं आपकी माँ हूँ इसलिए थोड़ा-सा आश्चर्य होगा। उदाहरण के तौर पर ं कार्यान्वित कैसे है ये समझकर ही सात्विक विचार के आपसे कह सकती हूँ कि सर्वप्रथम अपने आपका समझ लीजिए आप बहुत सद्गुरु तत्व जानिए। मुझे कितने ही योगसाधना व्यक्ति हैं। आप किसी दुष्ट प्रकृति वाले व्यक्ति किये हुए साधु व योगी मिले हैं। ये सारे लोग के घर खाना खाने गये तो आपको उसके घर बहुत बड़े हैं। उन्हें मैंने कहा, आप अब जंगलों खाने के बाद बहुत तकलीफ हो सकती है। इस तरह की तकलीफ होने के पीछे यदि आप अति सूक्ष्म कारण खोजें तो आपके ध्यान में ये बात आएगी कि दुष्ट प्रकृति वाले व्यक्ति के घर खाना खाने से हमें तकलीफ हो रही है। से बता रही या पहाड़ों पर बैठने के बजाय समाज में आकर लोगों को परमेश्वर प्राप्ति के लिए उद्यत कीजिए, उनका सद्गुरु तत्व जागृत करवा दीजिए। परन्तु इन महायोगी लोगों को समाज में नहीं आना है। बातें विल्कुल स्पष्टता वे कहते हैं कि समाज के लोग अभी इतने कुछ लायक नहीं हैं कि उन्हें इतनी बड़ी शक्ति सहज में दे दो। ऐसे महायोगी लोगों की स्थिति एकदम निराली है। ऐसे महान् लोगों के सामने अति हूँ। इसके लिए किसी भी प्रकार का बुरा मत मानिए क्योंकि मैं 'माँ' हूँ इसलिए सब स्पष्टता से बता रही हूँ। यह सभी लोगों को जान लेना विनम्रता से व्यवहार करके संभल के बातें करनी चाहिए। पड़ती हैं। सद्गुरुओं के आसपास का वातावरण अत्यन्त पवित्र होने से वे स्वभाव से कठोर होते में स्थित होता है। सद्गुरु तत्व से आप में चेतना हैं। वे किसी भी प्रकार का अधर्म नहीं सह सद्गुरु तत्व प्रमुखतः हमारे शरीर में बकृत शक्ति कार्यान्वित होती है। जब तक हमारा सकते। समाज में परमेश्वर प्राप्ति को लिए तथा यकृत अच्छी तरह से कार्य करता है तब तक कुण्डलिनी शक्ति जागृत करने के लिए किसी हमारी चेतना ठीक होती है। जव यकृत खराब है तब चेतना विचलित होती है। आपने सद्गुरु रूपी माँ की कार्य-पद्धति में दो प्रकार होता हैं। देखा होंगा जिस मनुष्य की पित्त प्रवृत्ति होती तली हुई चीजें खाने पर उसे पित्त की तकलीफ होती है व उसकी चेतना विचलित होती है। तब यकृत चेतना को शोषित करता है और इसीलिए । एक सद्गुरु तत्व व दूसरे मातृ-प्रेम। ऐसी माँ का हृदय प्रेमशक्ति से व परमेश्वर की करुणा से पूरा- पूरा भरा हुआ होता है यह प्रेम और परमेश्वर की शक्ति औरों को देने के लिए वह माँ उत्सुक रहती है। परन्तु इसी के साथ सद्गुरु यकृत अच्छी स्थिति में रखना जरूरी है। अब यकृत क्या करता है? यकृत हमारे शरीर में से इसीलिए परमेश्वर शरीर के लिए पोषक न होने वाले द्रव्यों (पदार्थों) प्राप्ति के लिए कौन-सी बातें करनी चाहिएं और का विश्लेषण करके उन्हें अलग करता है और उन विजातीय द्रव्यों का शरीर के बाहर विसर्जन 32 तत्व की सारी बातों का पूरे उत्तरदायित्व के साथ पालन करना पड़ता है और कौन-सी नहीं करनी हैं इस पर प्रतिबन्ध लगाया चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 1&2 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-34.txt करने में यकृत हमें मदद करता है। यकृत में लगता है। उसमें सबसे पहले यकत पर सबसे बिगाड़ होने की क्रिया बहुत मंद होती है और ज्यादा प्रभाव होता है। इसी का परिवर्तन आगे इसीलिए उसमें खराबी होगी तो उसका निदान कैन्सर रोग जैसी बीमारी में होता है। कैन्सर रोग भी हाइड्रोजन व ऑक्सीजन में होने वाले बदल के कारण होता है। किसी कैन्सर रॉोगी व्यक्ति (diagnosis) होने में बहुत दर लगती है और उससे यकृत बहुत जल्दी खराब होता है। सर्वप्रथम आती है शराब। अब तक संसार में जितने को ठीक से यदि दखें तो उसके बदन पर है चाहे वे श्री अलग-अलग निशान पडे हुए और उसके शरीर सदगुरुओं का अवतरण हुआ मोजेज हो, श्री लाओत्से हों या श्री सुक्रान्त हों के कुछ हिस्से जले हुए दिखाई देंगे। परन्तु उस व्यक्ति का तापमान हमेशा की तरह साधारण हो सभी सदुगुरुओं ने एक बात प्रमुखता से बतायी है कि मदिरापान मानव धर्म के विरोध में है रहेगा। एक बात निर्विवाद है, सद्गुरु तत्व क इसका कारण ये है कि अपने पेट में दस ध्मों विराध में कोई भी वात करने से, वह शराब पीता हो या और कोई भी बात हों. मनुष्य की का स्थान है। मदिरापान से अपनी चेतना पर चेतना नष्ट होकर उसमें कैन्सर रोग जैसी बीमारी आक्रमण होता है तो उससे दसों धर्मों पर हो सकती है। शराब पीने से एक और बात मनुष्य के शरीर में होती है कि खुन की नली फूलकर आक्रमण होता है। जब मनुष्य की चेतना ही कम होती है तब वह चेतना के विरोध में होता है। इस मामले में हमारे एक सहजयोगी शिष्य का बहुत गहरा अध्ययन है और उसके लिए एक मोटी होती हैं। इसका कारण खून के पानी की को लंदन विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट डिग्रों दी है। वे मॉरेशियस के निवासी हैं। उनका नाम है, घटना में होने वाला परिवर्तन है जिससे मनुष्य में अनेक प्रकार की बीमारिया हो जाती हैं। सच देखा जाय तो मदिरा माने पाश्चिमात्य देशों में जिसे 'wine' कहते श्री रेजीस। मंदिरापान से मनुष्य की चेतना कम होकर मनुष्य का चेतना के विरोध में कैसे पतन होता है यह उन्होंने सिद्ध करके बताया है। हैं वह पेय है। 'wine' माने ताजे अंगूर का रस। मनुष्य के अतिश्योक्ति (extreme) के कारण उन्होंने अगूर मदिरा से खुन के जहरीले द्रव्यों का के रस को सड़वाकर उसे मदिरा का रूप दिया। वर्गीकरण नहीं हो सकता। अगर कहीं हुआ तो इस तरह की मदिरा अलग-अलग वस्तुओं को उसके यकृत में ढेर बनकर यकृत्त की पशो पर पॉलिश करने के लिए इस्तेमाल करनी चाहिए। उसका प्रभाव आ जाता है। आपने ये देखा होगा कि जिस व्यक्ति ने मदिरापान किया हो उस उदाहरण, अगर हीरे पॉलिश करने हैं तो 'जिन' से करने होते हैं या किसी जगह स्प्रिट इस्तेमाल मनुष्य के शरीर की तापमान नहीं बढ़ता क्योंकि शरीर में निर्माण होने वाली सारी गरमी यकृत में या किसी दूसरे हिस्सों में संग्रहित होती है। पानी करते हैं। ये स्प्रिट पॉलिश की जगह उपयोग में लाने के बजाय अगर शरीर में गया, तो उसे की बुद्धि वजह से बीमारियाँ पकड़ती हैं। मनुष्य के घटकों के बदल से पानी भी शरीर में निर्माण की विपरीतता की कल्पना भी नहीं कर सकते। होने वाली गर्मी शोषण नहीं कर सकता। और जो चीज़ पॉलिश करने के लिए है उसको पीने उसी से शरीर का एक-एक हिस्सा खराब होने 33 चैतन्य लहरी खंड : XI अक : 1&2 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-35.txt है तब उसका नाश होता है और वह से, पता नहीं, उसे कौन-सा आनन्द आता है? गिर जाता मदिरापान से मनुष्य की चेतना जष्ट होती है। इसलिए वह अपनी तरफ अन्तर्मुख होकर नहीं धर्मों का पालन करना आवश्यक हैं। इन दस देख सकता। वह अपने आपको नहीं जान सकता। असन्तुलन में चला जाता है। इसीलिए उन दसो धर्मों के बारे में बाइविल में बिस्तार से बताया इससे वह सत्य से बिल्कुल दूर जाता है। 'सत्य' भयानक नहीं कि जिससे मनुष्य इतना दूर रहता गया है। आपने समाज में शुभकार्य नहीं किये तो आप की क्रियाशक्ति यानी पिंगला नाड़ी कार्यान्वित है। सत्य' बहुत सुन्दर और है, मनमोहक, शान्तिदायक हैं। नहीं रहेगी और इंड़ा नाड़ी पर दबाव आकर प्रतिअहंकार की संस्था मेदू में स्थापित होगी और मनुष्य पूर्णतया उसी के दबाव में आएगा। इससे सुखकारक परन्तु मनुष्य की उसकी कल्पना नहीं है और इसीलिए मनुष्य को समझाने के लिए इस पृथ्वी पर अनेक सद्गुरुओं ने जन्म लिए। एक सादा-सा नुस्खा है कि मनुष्य को उल्टा अगर मनुष्य में अहकार की संस्था ज्यादा अपना जीवन सन्तुलित रखना चाहिए। जौवन में बलवती होगी तो वह हिटलर की तरह बनेगा और उसे ऐसा लगने लगेगा कि मैं बहुत बड़ा (natural) है। आपने देखा होगा कि सर्वसाधारण कार्य कर रहा हूँ और बहुत से लोग मुझे हार पहनाएगे और मेरी आरती उतारेंगे, वरगैरा। परन्तु कभी 20 फुट लम्बा नहीं होता है। वैसे ही इस ऐसे मनुष्य को ये समझ में नहीं आता कि वह सृष्टि की और बातों में भी आपको सन्तुलन पूर्णतः अहंकार के दबाव में आने से असन्तुलन दंखने को मिलेगा। जो मनुष्य बहुत ज्यादा स्पर्धा में धकला जा रहा है । इसका वर्णन बाल्मीकि रामायण में है। नारद मुनि ऐसे अहंकार के कारण किस तरह असन्तुलन में चले गए! एसे अहंकारी लोगों को लगता है कि हम बहुत सन्तुलन आवश्यक है। ये बिल्कुल नैसार्गिक मनुष्य छः फुट क आसपास लम्बा होता है। वह है (competition) में रहता वह अन्ति में पगला जाता है। पश्चिमी देशों में हर बात में race ( भाग-दौड़) है । वहाँ के आंकड़े देखे जाएं तो हर एक बात में स्पर्धा दिखायी देगी। इस वजह से वहाँ के बहुत से लोगों की स्थिति पागलों जैसी हो गयी है। इस स्पर्धा के कारण मनुष्य में नीच और अतिमूर्ख होते हैं। यह सब असन्तुलन कामयाब हैं। इनका व्यक्तिगत जीवन गार से देखा जाय तो ऐसे लाग अत्यन्त तेज़ स्वभाव के से होता है। असन्तुलन सद्गुरु तत्व विरोध के असाधारण निर्माण होता है, जिससे उसका सर्वांगीण (चहुँमुखी) विकास नहीं हो सकता। उल्टे उसका नाश होता है। अपने शरीर में सद्गुरु तत्व को मज़बूत करना जरूरी है। उसके बाद ही उसमें धर्म की कारण आता है। व की रक्षा कंसे करें और अतः सन्तुलित जीवन जीकर सद्गुरु तत् इसके लिए क्या करें? सर्वप्रथम आपके गुरु कौन हैं यह देखना जरुरी है। यह समझना जरूरी बहुत स्थापना ही सकती है। ऐसे सन्तुलित जीवन से है। समाज में अनेक प्रकार के गुरु देखने का मनुष्य अपने स्वयं का धर्म पहचानने में समर्थ मिलते हैं । अगर कोई गुरु हमें नाम लेने (गुरु होता है। अपने स्वयं की स्तुति) के लिए प्रवृत्त करता होगा तो निश्चित समझ लोजिए कि वह सद्गुरु जिस समय मनुष्य स्वयं के दस ध्मों से 34 चैतन्य लहरी खंड : X1 अंक : 1& 2 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-36.txt नहीं है। परमेश्वर का नाम समझकर और जिस सद्गुरु प्रत्यक्ष जिन्दा थे तब उनके साथ बुरा व्यवहार किया और उनकी मृत्यु के बाद उनकी जय जय कर रहे हैं । यह बिल्कुल सद्गुरु तत्व के विरोध में है। प्रकार की तकलीफ होगी उसके देवता का नाम लंते हैं। सबके लिए एक ही देवता का नाम लेकर काम नहीं बनता। उल्टे उससे और परेशानी बढ़ती है। इस बार में यह कह सकते हैं कि हमें बुखार आया तो डॉ. की दी हुई एक दवाई हम ही उन्हें स्वतंत्रता दी है। उसे अद्भुतशक्ति का खाते हैं। पर वही दवाई दूसरी बीमारियों पर कैसे काम आएगी? उल्टे उससे परेशानी ही होंगी। यही बात अलग-अलग देवताओं के नामों के हुए बारे में कही जाएगी। जो व्यक्ति आत्मसाक्षात्कारी नहीं वह सद्गुरु नहीं हो सकतें। माँ के पास जो करुणा होती है का छेदन नहीं करती तब तक योग हुआ केस मनुष्य की बुद्धि स्वतंत्र है। परमेश्वर ने ज्ञान हो यही उस विराट परमेश्वर की इच्छा है। अब तक सहजयोग में बहुत लोग सहज ही पार । अब सहजयाग एक ऊँचाई पर आकर टिका है। उसे आपको 'महायोग' कहना होगा। जब तक कुण्डलिनी शक्ति जागृत हो कर ब्रह्मरन्ध्र वह उन लोगों में नहीं होगी। योगी लोगां ने बहुत कह सकते हैं? अब तक जितने भी याग के हैं वे सारे योग की पूर्व तैयारी हैं। परन्तु महनत की है और उसके बाद उन्हों परमेश्वरी वर्णन शक्ति की अनुभूति मिलती है। इसलिए और लोगों को भी कुण्डलिनी जागृति के लिए महनत करनी चाहिए ऐसा उन्हें लगता है। संसार में अब तक जितने सद्गुरु हुए उन्होंने सहजयोग का ही मार्ग अपनाया था। उदाहरणार्थ श्री ज्ञानेश्वर महाराज, सहजयोग में जिस समय कुण्डलिनी शक्ति का उत्थान होता है उस समय ये सारे योग अपने आप घटित होते हैं। कुण्डलिनी शक्ति सहस्रार तक आती है और जिस समय कुण्डलिनी शक्ति सहस्रार में आकर ब्रह्मरन्ध्र का छेदन करती है श्री तुकाराम महाराज, श्री नामदेव. श्री नानक श्री कबीर आदि अनेक सद्गुरुओं ने समाज में सहजयोग जो अनादि है. वह आपके साथ ही रहकर लोगों की संवा की और उन्हें धर्म जन्म लेता है और आपके साथ ही अनेक जन्मों उस समय 'महायोग घटित होता है। इसीलिए से चलकर आया है। उसे 'महायोग' मानना सिखाने का प्रयास किया और ठीक मार्ग पर लोने की प्रयास किया। परन्तु उस जमाने के चाहिए। आप सभी 'महायोग' पाने की स्थिति में लोगों ने इन सभी गुरुओं की बात न सुनकर उन पहुँच चुकं हो। अब आपके गुरुतत्व को फलित लोगों पर इतने अत्याचार किये, बहुत बार उन्हें होने का समय आया है। पहले सद्गुरु दो-तीन शिष्य रखते थे। परन्तु जब तक यह बात मारा तक, उनको समाज से बाहर कर दिया, उन्हीं खाने को भी नहीं दिया। अब उन्हीं सन्तों सर्वसामान्य मनुष्य तक, सारे जनसमुदाय तक. की लोग पालकी लेकर घूमते हैं, जुलूस निकालते नहीं पहुँचती तब तक उसका क्या अर्थ है? अब हैं, उनके नाम से बड़े-बड़े सम्मेलन करते हैं । यह ज्ञान आम जनता तक पहुँचने का समय उन्हीं के नाम से पैसे कमाते हैं और उनके नाम आया है, क्योंकि आपकी अन्तर्रचना ज्ञान मिलने के लिए परिपक्व है। केवल सरोत से जुड़ना पर भण्डारे भी चलाते हैं। लोगों के इस पाखंडीपन बाकी है। और झूठेपन पर बड़ा आश्चर्य होता है। जब 35 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अक : 1&2 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-37.txt आपके सद्गुरु तत्व को नमस्कार करको सम्पूर्णत: उसमें समरस हो गये। श्रीकृष्ण जी ने आपकी शीकृष्ण शक्ति के बा में मैं अब अनेक लीलाए की। वे पूर्णावतार थे। जब मनुष्य आपको बतलाती हूँ। मनुष्य में शुरु से ही श्रीकृष्ण शक्ति नाटक की तरह देखता है और वह सम्पू स्थित है। जिस समय अमीबा से मनुष्य की साक्षित्व में उतरता है। उस समय वह भ्रमित भी उत्क्रांति हुई उस समय उसकी ( मनुष्य की) नहीं होता और दुःखीं भी नहीं होता. गर्दन ऊंची उठ गयी। ये कार्य मनुष्य की गर्दन होता। वह आनन्द में समरस रहता में विशुद्धि चक्र के कारण हुआ। इस चक्र में श्रीकृष्ण शक्ति से होता है। सोलह पंखुड़ियाँ हैं। ये चक्र जिस जगह आपकी गर्दन में स्थित है. उस जगह से आपकी गर्दन विशुद्धि चक्र के दायीं और बांयी तरफ और एक ऊँची उठी है । यह कार्य विशुद्धि चक्र की कृष्ण बीचोंबीच में इसमें जो शक्ति बीच में है वह में पूर्णतत्व आता है तब वह विश्व की ओर न सुखी । यह श्रीकृष्ण शक्ति के दो भाग हैं। एक शक्ति जागृत होने से हो सका। इससे आपकी विराट को तरफ ले जाती है। बायीं ओर की उत्क्रान्ति में परिपूर्णता आयी। उत्क्रान्ति का इतिहास शक्ति मनुष्य के मन की कोई गलती या झूठे देखा जाय तो सर्वप्रथम एक पेशी अमीवा उसके बाद मछली, कछुआ. ऐसा होते होते मानव उत्क्रान्ति की आज की स्थिति तक पहुँचा है। कि मैने बहुत पाप किया है और गलती की है। श्रीकृष्ण शक्ति सम्पूर्ण शक्ति है। जब आपमें श्रीकृष्ण शक्ति जागृत होती है तब आपका सम्बन्ध विराट से होता है इसमें आपको समष्टि दृष्टि आती है। इसका अर्थ आप मेरी तरफ या मेरी फोटो की तरफ हाथ फैलाकर बैठोगे तो अपने यहाँ एक चीज बहुत ज्यादा लोग इस्तेमाल श्रीकृष्ण शक्ति जागृत होकर आप विराट से करते हैं। वह है सिगरेट, बीड़ी, सुरति (तम्बाकू) । सम्बन्धित होते हैं और आपके हाथ में ये जो श्रीकृष्ण की विराट शक्ति सर्वत्र फैली हुई है. शक्ति के विरोध में है। परन्तु आपको आश्चर्य उससे चैतन्य जा सकता है। (हाथ में जा सकता काम करने के बाद बनने वाली भावनाओं से खराब होती है। जिस समय मनुष्य को लगता हैं तब उसका विशुद्धि चक्र बायों तरफ खराब हो जाता है। मनुष्य की यही पाप की और गलती की धारणा उसे, उससे दूर भगाने क लिए, नशीली वस्तुओं के पास ले जाती है। इसमें सिगरेट या बीड़ी पीना या तम्बाकू खाना श्रीकृष्ण होगा कि जिन लोगों को ऐसी आदतें पहले थीं है) जिस समय आपके हाथ से ये श्रीकृष्ण उनकी ये आदतें सहजयोग में आने के वाद, यार शक्ति बहने लगती है तब आपमें साक्षी भाव होने के बाद, अपने आप छुट गयी। परमेश्वर ने तम्बाकू कीटाणु नाशक क रूप में बनायी। परन्तु मनुष्य को बुद्धि अजीव नाटक ही है। श्रीकृष्ण जी की उस समय की होने के कारण वह उसी तम्बाकू का उपयोग समय जो विपरीत तरीके से करता है। इसी तम्बाक के आता है। इसका मतलब आप सभी बातें किसी नाटक की तरह देखते हैं। असल में यह सब व लीला या प्रभु श्री रामचन्द्र जी ने उस कारण श्रीकृष्ण शक्ति को बाधा आती है और कुछ किया वह सभी नाटक ही था। इतने सुन्दर ढंग से उन्होंने वह नाटक प्रस्तुत किया कि वे सद्गुरु तत्व भी खराब होता है। क्योंकि खायी 36 चैतन्य लहरी । खंड : X1 अंक : 1 & 2 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-38.txt हुई तम्बाकू पेट में जाकर वहाँ से यकुत वगैरा पकड़ आती है। उससे ऐसे लगता है मुझे ये बात शरीर के अंगों को खराब करती है। सद्गुरु तत्व नहीं करनी चाहिए थी। हमारे बचपन में हमारे अपनी नामि के चारों तरफ फैला हुआ होने के कारण सारी की सारी परेशानियाँ एकदम किसी माता-पिता कहते थे नीचे दृष्टि करके जमीन पर नज़र रखकर चलिए। आपको पता होगा कि लक्ष्मणजी ने सीताजी के पाँव ही दंेखे थे उसके विशुद्धि चक्र के बायें में श्री विष्णुमाया ऊपर उन्होंने कभी नजर नहीं उठायी थी इसमें की शक्ति स्थित है। ये शक्ति वहन की है, उनका कोई बुरा उद्देश्य नहीं था। यह एक साम आपत्ति की तरह आकर गिरती हैं। ा श्रीकृष्ण की बहन की। कंस ने जब उसे मारना चाहा तो वो आकाश में उड़ गयी और जिसने ये आँख घुमाने की बीमारी ऐसी चली है कि आकाशवाणी की वही ये विष्णुमाया शक्ति हैं। जिस मनुष्य की बहन बीमार होगी उसके विशुद्धि चक्र पर बायीं ओर बोझ महसूस होगा। अगर किसी मनुष्य की नजर अपनी बहन कायदा था कि नजर जमीन पर रख कर चलना। उससे आँखों की बीमारियाँ फैलती हैं। लोगों की नजर कमजोर होती है। उस समय फिर हरी घास पर चलने को कहते हैं क्योंकि पृथ्वीमाता हमारी माँ है। एक बार माँ क्या है, ये जानने के बाद के प्रति या अन्य महिलाओं के प्रति ठीक या बहन क्या है, ये लोग समझ सकेंगे। कहने का उद्देश्य यह है कि हमें अपनी पवित्र नहीं होगी तो यह चक्र तुरन्त खराब हो नजर नीचे रखकर चलना बहुत जरूरी है और किसी की भी ओर अपवित्र नजरों से नहीं जाता है। आजकल के समाज में, बहुत लोगों का यह चक्र खराब रहता है क्योंकि उनकी नजर पवित्र नहीं होती है अपने पुरातन शास्त्र के देखना चाहिए। यही बात हमारे अनेक सद्गुरुओं अनुसार अपनी पत्नी के सिवाय और सारी ने कहीं है। श्री येशुखिस्त ने कहा है आपकी नजर भी अपवित्र नहीं होनी चाहिए। खास करके ऐसा आप करके देखिए, तुरन्त आपको सन्तोष. हमारे इस मध्यम वर्गीय लोगों को ये बातें समझ लेनी चाहिए, क्यांकि जिन के पास बहुत पैसा है से आपकी कितनी ही परेशानियाँ खत्म होंगी। उनके दिमाग में ये बातें नहीं आएंगी। कारण वे अपने पैसों की मस्ती में चूर होंगे, उन्हें पाप-पुण्य है। आजकल के सिनेमा के की बातों को सोचने के लिए सयम नहीं है। त महिलाओं को बहन की तरह देखना चाहिए। शान्ति व पावित्र्य मिलेगा। इस तरह बर्ताव करने अपवित्र आचरण से विशुद्धि चक्र क बायीं तरफ तकलीफ होती मनुष्य को पाप-पुण्य का विचार विशुद्धि चक्र से कारण लोगों पर बहुत असर होता है। अपवित्र आता है। अगर पाप-पुण्य का विचार नहीं होगा तो आपकी कुण्डलिनी जागृत नहीं होगी। विश्व में पाप व पुण्य दोनों हैं जब आप सहजयोग में कृत्यों का फल भुगतना पड़ेगा। आजकल के लोगों में पवित्रता तेजस्विता, भोलापन नहीं दिखायी देता। कितनों की आँखें इधर-उधर घूमती हैं। ये ऑँखें घुमाना भी श्रीकृष्ण शक्ति के विरोध में है। आँखें घुमाने के कारण हमें आनन्द तो जागृत होकर आप प्रतिष्ठित होते है। आप पहले मिलता नहीं है और अपने बायीं तरफ भूतों का से ही प्रतिष्ठित हैं, पर पार होने से पहले प्रवेश होता है। और उससे बायीं विशुद्धि पर आपको उसकी जानकारी नहीं थी कि परमेश्वर आकर पार होते हो तब आपकी श्रीकृष्ण शक्ति 37 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 1 & 2 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-39.txt देखते हैं। यह श्रीकृष्ण और राधा की शक्ति से ने कितने परिश्रम से आप में एक एक चक्र मनुष्य बनाया है। आप ये पूरा शास्त्र जान लीजिए और बना है। इस शक्ति के विरोध में जब अपनी महत्ता समझ लीजिए और अपनी स्थिति जानिए। आप सारे विश्व के फूल हैं और अब हूँ, मैं राजा हूँ, मैं बहुत बड़ा लीडर हूँ और में जाता है तब वह कहता है मैं बहुत बड़ा आदमी ही सब कुछ हूँ। ऐसी वृत्ति से उस मनुष्य में फल बनने का समय आया है, आप यह समझ लीजिए। आप परमात्मा के अंश हैं। परमेश्वर कंसरूपी अहंकार बढ़ता है। आपको मालूम है आपकी सम्मान दे रहा है और आपके सामने कि कसने अपनी सगी बहन को व बहन के बच्चों को किस तरह मारा। उसे लगता था किसी नतमस्तक होकर आपकी विनती कर रहा है। भी प्रकार से मुझे सभी लोगों पर आपना आधिपत्य आप ये सारा ज्ञान पा लीजिए। अपने 'स्व' का अर्थ पहचानिए। अपने 'स्व' की जानने से ही जमाना चाहिए। उसे दुनिया की और कोई चीज मनुष्य सुबुद्धि पाता है। जब तक मनुष्य में नहीं दिखाई देती थी। ऐसे व्यक्ति का दायीं तरफ दुर्बुद्धि है तब तक उसकी जागृति नहीं होती। सुबुद्धि विशुद्धि चक्र से जागृत होती है। जब की विशुद्धि चक्र की पकड़ होती है। परन्तु सर्वप्रथम आप में सर्दी के कारण दायों तरफ की विशुद्धि पर पकड़ आती है। अब विशुद्धि चक्र के बीचोंबीच जो शक्ति है वह विराट की शक्ति है इस शक्ति से मनुष्य परमेश्वर की खोज में रहता है। अगर मैं विराट मनुष्य अपने विशुद्धि चक्र में जागृत होता है. तब उसे सुबुद्धि आती है व सन्तुलन आता है। एक होती है सुबुद्धि व दूसरी है दुर्बुद्धि। बुद्धि गधे हो सकती है और मुर्ख की तरह भी। बुद्धि से तर्क, ज्ञान और उससे मनुष्य चोरी की तरह भी का एक हिस्सा हूँ तो परमेश्वर को खोजने का भी कर सकता है। वह कहेगा मै क्यों न चोरी मतलब क्या? इसका मतलब जब तक आपमें सामूहिक चेतना नहीं आती तब तक आपको करू? मेरे पास फलानी चीज नहीं है उसके पास है, तो मैं चोरी करूंगा। इसका कारण तर्कबुद्धि है। अब देखिए तकबुद्धि के कारण मनुष्य हर इसका जवाब नहीं मिलेगा। केवल लोगों को भाई-बहन मानकर सामूहिकता नहीं आएगी। परन्तु ये सामूहिक चेतना में अपने आप घटित होता है। प्ट्टा एक चौज की तरफ व्यक्तिगत विचार से देखता है। परन्तु सुबुद्धि से वैसा नहीं होता सुबुद्धि से हमारी व दूसरे की चीज उसी की है ये दिमाग कुण्डलिनी जागृत नहीं होती तब तक आपकी में आएगा। मेरी चीज में जो आनन्द है वह दूसरों सामूहिक चेतना जागृत नहीं होगी। एक वार की चीज में नहीं है। सचमुच कोई भी चीज किसी की नहीं। सभी कुछ हम यहीं छोड़ जाते जब तक आप सहजयोग में आकर आपकी आपकी कुण्डलिनी शक्ति जागृत होकर आप पार हो जाओगे तो आप औरों की भावनाएं, संवेदना अपने आप में जान सकते हैं। ये आपकी हैं। यह तो सब जमा-खर्च है कि यह मेरा वह र सामूहिक चेतना जागृत होने से हो सकता है। आप अपनी तरफ अन्तर्मुख होकर देख सकते हैं मेरा। एक बहुत ही सर्वसाधारण बात है कि जब सब कुछ यहीं छोड़ जाना है तो उसके पीछे इतनी भाग-दौड़ काहे की? अब दायीं ओर की विशुद्धि के बारे में मुड़ती है। और बातों की तरफ हम पूर्णता की व आपकी दृष्टि Absolute (परम) की तरफ ा 38 चैतन्य लहरी । खंड : X1 अंक : 1&2 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-40.txt से देखते हैं। अपनी आतरिक स्थिति क्या अकबर" मंत्र (16 वार) कहने से विशुद्धि चक्र साफ होता है। तब आपको जानना होगा कि तुलना है ये जान सकते हैं। अब सहज में बताए तो अकबर' माने विराट पुरुष, परमेश्वर है। श्री आपके हाथ की पांच उगलियां, उस पर आप गुरुनानक साहब ने भी विराट परमेश्वर के बारे हैं। वैसे ही और दो चक्रों की हालत भी अपने में अर्थात् श्रीकृष्ण के बारे में बहुत सी बातें लोगों को बतायीं। परन्तु ऐसे कितने लाग अपने शरीर के पांच चक्रों की हालत जान सकते हाथ के तलवे से जान सकते है। बांये हाथ पर हैं जिन्होंने उनकी कही हुई बातों का अनुसरण बांयी इडा नाडी के चक्रों की, तो दाहिने हाथ पर दाहिनी पिंगला नाड़ी के चक्रों की स्थिति आप किया? उन्होंने कहा था. दोनों हाथ नमाज की तेरह फैलाकर परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए। जान सकते हैं। इस तरह की जानकारी केवल कुण्डलिनी जागृत होने के बाद पार होने पर ही इस तरह से हाथ फेलाकर प्रार्थना करने होती है। जब मनुष्य पार होता है तब उसकी कुण्डलिनी शक्ति का जागरण होता है। परन्तु रीढ़ पर सात चक्र जागृत होते हैं। उसकी जानकारी बात बहुत से लोगों को मालूम नहीं है। श्री गुरु दोनों हाथों पर होती है। इसी तरह उस स्थिति में नानक साक्षात् दत्तात्रेय उसे सामूहिक चेतना प्राप्त होती है। ऊपर दी गयी बातें आपके विशुद्धि चक्र किया है उतना किसी ने भी नहीं किया। शैतान से सम्बन्धित हैं। हमारे यहाँ सहजयोग में बहुत को कैसे खत्म करना है इसके बारे में उन्होंने से लोग आते हैं और पार होते हैं। परन्तु इनमें बहुत छोटी छोटी व महत्वपूर्ण बातें बनायी हैं बहुतों को चैतन्य लहरियों की संवेदना नहीं होती। इसका कारण उनके विशुद्धि चक्र सिगरेट करते हैं। श्री आदि शंकराचार्य जी ने तो बहुत और बीडी पीने से खराब होता है, ये बताया जा सी सूक्ष्म बातें लिखी हैं। इन सूक्ष्म बातों को के अवतार थे। और कुण्डलिनी जागरण के लिए जितना काम उन्होंने जिनका इस्तेमाल सहजयोग में हम बहुत तरह से आप कायदे से अपने जीवन में अपनाएंगे तो सहजयाग में पूर्णत: उतर जाएगे। देश में अनेक चुका है। शहरों में अपवित्रता ज्यादा होने के कारण ये चक्र सिगरंट या बीड़ी न पीते हुए भी खराब होता है। विशुद्धि चक्र खराव होने से इस साधु-सन्तों ने अवतार लेकर ऐसे ज्ञान को बता चक्र में से मेंदू के दोनों तरफ संबेदना ले जाने कर समाज में जागृति करके हम पर अनेक वाली नाड़ियाँ खराब होती हैं। ऐसे मनुष्य की सवेदन क्षमता कम होती है। परन्तु जैसे-जैसे साधु-सन्तों ने अवतार लेकर इस भूमि को पावन विशुद्धि चक्र जागृत होता है वैसे वैसे संवदनक्षमता किया है। इन संतों की इतनी तपश्चर्या है कि में वृद्धि होती है। विशुद्धि चक्र जागृत करने के इनके इशारे मात्र से लोग पार होते हैं। मैं जब लिए कुछ मंत्र हैं। आपको आश्चर्य होगा, विशुद्धि सहजयोग के प्रचार कार्य के लिए गाँवों में जाती चक्र जागृत करने के लिए अपनी अनामिका हूँ तब हजारों लोग आते हैं। परन्तु शहरी लोगों उंगली दोनों कानों में डालकर गर्दन पीछे की को आने की फुर्सत नहीं होती। गाँव के लोगों उपकार किये हैं। विशेष करके महाराष्ट्र में ओर झुका कर और नजर आकाश की ओर को सत्य की पहचान है और ऐसे ही लोग रखकर जोर से व आदर से " अल्लाह- हो सहजयोग में प्रस्थापित होंगे। यहाँ ऐरों-गैरों का चैतन्य लहरी 39 । खंड : XI अक: 1&2 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-41.txt काम नहीं है। जिन लोगों को अपने स्वयं के में आकर पार होने के बाद कुण्डलिनी का लिए आदर नहीं, श्रद्धा नहीं, सत्य की आसक्ति नहीं, उनके लिए सहजयोग नहीं हैं। सहजयोग मतलब क्या है ये जान सकते हैं। इसका स्मंदन आप अपनी नजर से देख सकते हैं। जब तक प्राप्ति के लिए बहुत बड़े पडित या ज्ञानी होने की जरूरत नहीं है। सहजयोग सर्वसाधारण बारे में अनभिज्ञ (अन्जान) होते हैं। परन्तु पार मध्यमार्गियों के लिए है। उसके लिए शिक्षा की होने के बाद इस ज्ञान का प्रकाश आप में आता आवश्यकता है ऐसा भी नहीं। परन्तु पक्के हृदय है। सर्वव्यापी परमेश्वर के साथ चैतन्य लहरियों के पक्के लोग होने चाहिए या शाही स्वभाव के से आप बात कर सकते हैं क्यांकि ये परमेश्वरी लोग चाहिए। ऐसे लोग सहजयोग में प्रस्थापित शक्ति सारे चराचर में व्याप्त है। होते हैं। श्रीकृष्ण शक्ति के बारे में लिखने के लिए बहुत सारी बातें हैं। परन्तु वहुत ही थोड़े (25 सितम्बर, 1979 में हिंदुजा आडिटोरियम शब्दों में यहां पर रखी गयी हैं। आप सहजयोग आप पार' नहीं होते तब तक आप इस ज्ञान के आप सबको अनन्त आशीवाद! निर्मल योग से उद्धृत) बंबई में श्रीमाताजी के प्रवचन पर आधारित) 40 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 182 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-43.txt अ० भ रप मत सूर्य रथ गणपति पुले सेमिनार 1998