चैतन्य लहरी अक 3 & 4 खण्ड X 1999 का र आत्म-साक्षात्कार प्राप्त होने के बाद भी जो लोग अपनी पुरानी आदतो और प्रचतियों में मग्न रहते हैं, उनकी स्थिति को 'योग-भ्रष्ट' स्थिति कहते हैं । দरम पूज्य माताजी ति इस अंक में पृष्ठ नं. क्रम संख्या 3. सम्पादकीय 1. संगीत-संध्या 16/12/98 दिल्ली 2. 15 श्री रामनवरमी पूजा 5/4/98 3. ईसा मसीह पूजा 16 25/12/98 गणपति पुले 4. 25 16/8/98 - कबैला कृष्ण पूजा - 5. कबैला श्री गणेश पूजा 34 5/9/98 6. विवाह समारोह के पश्चात् प्रवचन श्री गणेश पूजा 43 7. योगी महाजन सम्पादक विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 अभिनव प्रिन्ट्स, दिल्ली 34, मुद्रक फोन : 7184340 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3 & 4 1999 सम्पादकाय परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का 76वां जन्मदिवस स्वर्णिम सहस्राब्दि का उषा काल हैं जिसकी भविष्यवाणी दसवीं शताब्दी ई. में येरुशलम के सेंट जॉन ने की थी। जो भी भविष्यवाणियां उन्होंने की वे सभी सहजयोगियों के जीवन में खरी उतरीं। अब हम उन्हें चमत्कार मारत के अन्य सहजयोगियों से पत्र-व्यवहार करना चाहता हूँ, अत: कृपा करके उन्हें मेरा पता दें और मेरा फोटो उन्हें दिखाएं। आपका पत्र पाकर मुझे बहुत प्रसन्नता होगी। सहजयोग एवं भजनों के विषय में आप मुझे सभी कुछ बताएं। अब मैं आपको बेनिन के एक स्थान घर श्री या संयोग मात्र नहीं मान सकते अपनी चैतन्य गणेश के प्रकट होने की प्रमाणित घटना के लहरियों द्वारा परमपावनी माँ के आश्शीवाद के विषय में बताना चाहूँगा हमारे एक सहजयोगी रूप में इन्हें पहचान सकते हैं, हम सब अपने बागवानी करते हैं, "मैं अपने बाग के लिए अपने स्तर पर अपने जीवन में इसका अनुभव चौकीदार नहीं रखना चाहता। अपने बाग की रक्षा के लिए मैं श्री गणेश को रक्षक मानता हूँ।" और कर सकते हैं। इन अनुभवों से हम ूर्णतया चमत्कृत हैं और महसूस कर सकते हैं कि हमारी परमेश्वरी माँ हमें कितना प्रेम करती है संरक्षण में छोड़ दिया। एक पूजा करके उन्होंने अपना बाग श्री गणेश के और हमारा कितना ध्यान रखती है। केवल व्यक्तिगत रूप से उनका दर्शन प्राप्त करने वाले कुछ सप्ताह पश्चात् उसके बाग में डाक आए। उन्होंने वहां एक भीमकाय व्यक्ति को लोग ही इस बात का अनुभव नहीं करते परन्तु खड़े देखा, जिसने मार-मारकर उन डाकुओं को हजारों सहजयोगी, जिन्होंने कभी श्री माताजी को लहूलुहान कर दिया। कुछ दिनों पश्चात् वे डाकू देखा भी नहीं, भी इसे महसूस करते हैं। उदाहरणार्थ पश्चिमी अफ्रीका के बेनिन नामक देश से 18 एक बार फिर उसी बाग में गए और तब भी उस व्यक्ति ने उनका वही हाल किया। तत्पश्चात् वे बाग के मालिक के पास गए पूछा कि उसने अपने बाग में चौकीदार के रूप में किसे "पश्चिमी अफ्रीका में बेनिन, 12600 नियुक्त किया है? ये न जानते हुए कि वे वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का पचास लाख लोगों की लुटेरे थे, उसने उत्तर दिया, " किसी को भी और जनवरी 1999 को हमें निम्नलिखित पत्र प्राप्त हुआ :- जनसंख्या वाला छोटा सा देश है। वर्ष 1995 में नहीं।' हमने बेनिन में सहजयोग का अभ्यास आरम्भ महाजन साहब मेरे साक्ष्य का यही अंत किया। हम लगभग 4000 योगी हैं और हर है। अगले पत्र में मैं आपको एक और घटना के विषय में लिखुंगा। आपसे और अन्य भारतीय प्राप्त करते हैं। बेनिन में दो सहजयोग ध्यान भाई-बहनों से बहुत से पत्रों की आशा करते हुए सप्ताह तीस से अधिक लोग आत्मसाक्षात्कार केन्द्र हैं। में भजन गायक हू और भारतीय भजन में समाप्त करता हूँ। मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। विचारों तथा भजनों जय श्री माताजी-मिल फोल्लाण्डो का आदान-प्रदान करने के लिए में आपसे तथा चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3& 4 1999 LANDO MILLEFORT C/546, MAISON AHOUANSOU Rue De Ouidah, Cotonou, भय का कोई स्थान नहीं है। जब तक हम स्वयं से परिचित न हुए थे तब तक चेतना के एक निम्न स्तर पर हमारे भूतकाल में इन सभी बाधाओं का शासन था । चेतना के विस्तार के Benin, W.Africa. वर्ष 1980 में स्वर्गीय श्री धुमाल के फार्म में राहूरी में ऐसी ही एक घटना घटित हुई थी। उनके फार्म में भी लुटेरे घुसे थे और उनकी पिटाई जिस व्यक्ति ने की उसे इससे पूर्व किसी ने देखा ही न था। निःसन्देह श्री धुमाल जानते थे कि वह व्यक्ति श्री भैरवनाथ थे, उन्होंने इस समरूप हम उस अवस्था तक विस्तृत हो सकते हैं जहाँ हम शुद्ध चेतना मात्र बन जाएं। स्वर्णिम सहस्राब्दि की कुंजी सामूहिक चेतना की ऐसी अवस्था प्राप्त करने में निहित है। तब सभी सामूहिक एवं व्यक्तिगत समस्याओं का स्वत: समाधान हो जाएगा। संक्षिप्त में येरुशलम के जॉन ने यही कहा था :- "प्रकट होने से पूर्व सभी रोग दूर हो जाएंगे और सभी लोग अपना और अन्य लोगों का इलाज करेंगे। मानव समझ घटना के विषय में बताया भी था। हमारा सौभाग्य है कि सदैव परमेश्वरी माँ की सुरक्षा का आश्शीरवाद हमें प्राप्त है, इसके विषय में कोई सन्देह नहीं और ये बात हमारी चेतना में अंकित है। परन्तु स्वर्णिम सहस्राब्दि लेगा कि सत्य पर डटे रहने के लिए उसे अपनी हमें सन्देश देती है कि आत्मा के रूप में अपने पलि सहायता करनी होगी; और वाक्य-संयम-दिवस (The Day of Reticence) के पश्चात लोभी व्यक्ति अपना हृदय तथा खजाना गरीबों के लिए खोल देगा; वह अपना वर्णन मानव मात्र के परिरक्षक (Curator) के रूप में करेगा और पद के विषय में हम पूर्णत: जागरूक हो जाएं। जब चेतना पूरी तरह से स्थापित हो जाएगी तब हम आत्मा के सच्चे माध्यम बन जाएंगे और परमपूज्य श्री माताजी की गौरवमय नई सहस়्ালदि का आनंद लेंगे उस चेतना में लोभ. ईष्षया और अन्तत: एक नए युग का आरम्भ होगा। ार कर चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3& 4 1999 संगीत संध्या ह दिल्ली (भारतीयम) 16.12.98 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (हिन्दी) इतने ठंड में और तकलीफ में आप सब लोग आए। एक माँ के हृदय के लिए ये बहुत बड़ी चीज़ है। अब और कोई दिन मिल नहीं खड़े हुए हैं इस कलयुग के बारे में अनेक रहा था, इसी दिन आप लोगों को तकलीफ वर्णन शास्त्रों में हैं। पर उसमें ये कहा जाता है उठानी पड़ी। और आप लोग इतने प्रेम से, सब कि नल, जो दम्यंति के पति थे, के हाथ एक लोग, यहाँ आए। सबका कहना था कि हवाई दिन कलि लग गया तो उन्होंने कहा कि अब अड्डे पर माँ हम तो बिल्कुल आपको देख भी मैं तेरा सर्वनाश करता हूँ क्योंकि तुमने मेरी पत्नी नहीं पाए, और मैं भी आपको नहीं देख पाई। से मेरा बिछोह किया है। इस पर कलि ने कहा इसलिए बेहतर है कि आप लोग आज यहाँ आए कि तुम मेरा महात्म्य जानो मेरा जो महात्म्य है हैं, सब लोग। और दिल्ली वालों का जो उत्साह है, वो कमाल का है। ऐसा ही उत्साह सब जगह हो तो ये भारतवर्ष सहजयोग का महाद्वार बन जाएगा। ये एक समय है, ऐसा कहना चाहिए, तो उन्होंने ये कहा कि इसी कलियुग में जब जिसे घोर कलयुग कहते हैं। इस घोर कलयुग लोग कलि की भ्रांति के चक्कर में आ जाएंगे, की एक विशेषता ये है कि मनुष्य बहुत जल्दी उसी वक्त ये बड़ा कार्य होने बाला है भ्राति में आ जाता है। उसको जरा सा भी विवेक इतना भयंकर दावानल जैसे चारों तरफ से लगा हुआ दिखाई देता है। उसके बीच आप सहजयोगी उसे समझ लो। उस महात्म्य में गर तुम समझो कि मुझे मार डालना है तो मार डालो, में खत्म हो जाऊंगा। उसने कहा तुम्हारा क्या महात्म्य है? आत्मसाक्षात्कार' नहीं रह जाता और इस भ्रांति के चक्कर में वो न जाने कहाँ-कहाँ भटकता रहता है। आज कल हैं। भारतवर्ष में तो यही जीवन का लक्ष्य माना आप देख रहे हैं कि लोग कैसे-कैसे गलत लोगों गया है कि आप पहले आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त के पीछे भाग रहे हैं और गलत-गलत धारणाएं हों, उसके अलावा और जीवन का कोई भी अर्थ अपना करके अपना जीवन बरबाद कर रहे हैं। नहीं माना जाता। यही एक लक्ष्य है। यही एक ये समझना चाहिए कि ये घोर कलयुग है। इस कलयुग की विशेषता ये है कि कलयुग में आपने प्राप्त किया है। आपने इसे मनुष्य धर्म का पथ छोड़ करके अधर्म की ओर आसानी से चला जाता है। उसमें उसे कोई बाद अब आपने उसकी महत्ता भी समझी। हिचक नहीं होती। वो परेशान नहीं होता और वो उसकी आप गहराई में भी उतरे और उस गहराई वैसे कर्म करते ही रहता है। उसमें एक तरह की में उतर के आप देख रहे हैं कि इसी से आपको उद्दामता आ जाती है जिसे अपने अंदर लेकर वो शांति की प्राप्ति होगी और आपको आनन्द की समझता है कि वो बड़ा सत्कर्म कर रहा है । प्राप्ति होगी बहुतों को हो भी गई, बहुतों को आत्मसाक्षात्कार पाना ही जीवन का लक्ष्य परम पाने की चीज़ हैं और ये आत्मसाक्षात्कार पाया. ये बहुत बड़ी चीज़ है। इसको पाने के चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 3 &4 1999 है क्योंकि अब आप अपनी मिल भी गयी है, और भी इसमें सूक्ष्मता आने वो कार्यान्वित होती लगी है ये सूक्ष्मता समझने की बात है। इस सूक्ष्मता को आप समझेंगे तो आप जान जाएगे कि आप किधर अग्रसर हो रहे हैं., किधर आप बढ़ रहे हैं, कौन सी आपकी दशा है। अगर अभी भी आप सूक्ष्म नहीं हो रहे हैं तो सोचना सबके अंदर स्थित है। अब ये मैं बता रही हूँ, चाहिए कि आपमें कुछ कमी है और उस कमी को ठीक करना चाहिए। इस सूक्ष्मता की बात हुई हैं कि हमारे अंदर कुण्डलिनी की शक्ति है। करते वक्त शास्त्रीं से ही इसका बड़ा अधार मिलता है । ये देश अपना जो है यह अत्यंति गहन किया हुआ है-जैसे बारहवीं शताब्दी में मैंने विचारों से भरा हुआ और अत्यंत महान् सत्वों से भरा हुआ है। इसमें जो लिखा गया है; वो सोलहवीं शताब्दी में इतने लोग हुए गुरु नानक अद्वितीय है, उसके जैसी चीज़ दूसरी संसार में लिखी नहीं गई। यहाँ से लेकर के तो और लोग कुछ ज्ञान लेकर चले जाएं, लेकिन इसकी गहराई लिखा. तुकाराम ने लिखा, नामदेव ने लिखा। में आप ही लोग उतर सकते हैं। लेकिन हम जानते ही नहीं कि हमारे देश में कितना महान व पवित्र ऐसा वांड्रमय हो गया। कितनी बढ़िया-बढ़़िया चीजें हमारे यहाँ प्राचीन काल में लिखी गई और लिखा? क्योंकि हम जो ये इस देश के देशवासी चरम स्थिति में आ गए। इसके बाद आपका जो भी कार्य है वो उत्थान का कार्य है और उस उत्थान के कार्य में अब आपको आत्म साक्षात्कार प्राप्त करना है । उसके लिए कुण्डलिनी आप लेकिन ये बातें हमारे यहाँ वहुत पुरानी लिखी उसके बाद अनेक लोगों ने इस पर काफी वर्णन ा बताया था कि ज्ञानेश्वर जी ने वर्णन किया और जैसे इंतने महान कहना चाहिए कि विद्वान उन्होंने तक कुण्डलिनी पर बहुत कुछ लिखा। कबीर ने सब लोगों ने लिखा है ये शक्ति हमारे अंदर हैं इसे जागृत करना चाहिए। ये बात समझने की है कि ये हमारे ही देश के लोगों ने इतना क्यों हैं ये कोई तो विशेष लोग हैं । ये धर्म में पले हुए लोग हैं। इनके अंदर धार्मिकता है। सदियों से धर्म हमारे अंदर बसा हुआ है। और धर्म ऐसा चीजें खोल-खाल कर बता दी, है कि हम समझते हैं ये अधर्म है। ये करना उस पर विवरण किया गया, बताया गया कि क्या चीज़ है 'आत्मासाक्षात्कार' और उससे आप क्या-क्या प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि हमने आपको बहुत समझा दी लेकिन उसकी अनुभूति हुए बगैर गलत बात है। और देशों में मैं देखती हूँ कि वो उसको महसूस किए बगैर आप किसी भी तरह से संतुष्ट नहीं हो सकते। उसकी अनुभूति होनी चाहिए । वो अनुभूति क्या है? ये समझने की धर्म, अधर्म के अंदर कोई भी अंतर नहीं पाते। अगर कोई अधर्म करना हो तो सोचते हैं ये तो बड़ी भारी हमारे लिए एक Challenge है एक आह्वान है, उस आह्वान के लिए ये हम यह कर रहे हैं। अगर उनको Drug लेना है तों कहते हैं जरूरत है। सबसे पहले तो समझना चाहिए कि हम पाँच तत्वों से बने हुए हैं ये पाँच तत्व हमारे कि इसमें डरने की कौन सी बात है, ये तो हमारे अंदर सारी क्रियाएं करते हैं। सब उसी से हमारी लिए आह्वान है। कुछ भी गलत काम करना है घटना हुई है। उसी से हम एक मनुष्य जीव बने। उसको हम कहते हैं ये हमारे लिए आह्वान है सारे जानवरों में हर एक में ये होते हैं पर विशेष और गलत काम करना वहाँ समझा जाता है कि रूप से इंसान में इसका प्रार्दुभाव इस तरह से बड़ी भारी उच्चतर स्थिति मनुष्य की है जहाँ वो होता है कि कुण्डलिनी जो है, वो सिर्फ मनुष्य में मानव में ही स्थित होती है और मानव में ही होता है। अब इस चीज़ को समझना चाहिए कि बड़ा भारी, एक कहना चाहिए, कि योद्धा प्रमाणित 6. चैतन्य लहरी ।खंड : XI अंक : 3&4 1999 हमारी बुद्धि में और उनकी बुद्धि में मूलतः ये फर्क है। मूल में ही हममें फर्क है और मूल में चाहिए । कम से कम हर आदमी चाहे तो एक ही हम जानते हैं कि धर्म और अधर्म क्या है? वो कोई माने या न माने। पढ़े हो, लिखे हो या देहात के हो, शहर के हों, सब भारतीय जानते हैं कि धर्म क्या है और अधर्म क्या है। निश्चित रूप से जानते हैं तो भी अधर्म करते हैं तो भी करने की जरुरत है क्योंकि आप भारतीय हैं। अधर्म में फँसते हैं, तो भी ये चीजें करते हैं और उसपे सोचते हैं कि हाँ हमने किया लेकिन गलत किया तो क्या करें? पर जो बाहर के लोग हैं कहा जाता है कि हज्तारों पुण्य करने के बाद उसको गलत नहीं समझते, इतनी उन लॉगों की धारणाएं ही नहीं बनी हुई। मूलत: उनके अंदर ये विचार ही नहीं आया कि कोई चीज़ पाप और पुण्य है। पाप और पुण्य की जो कल्पना है वो की ओर जो हमारा रुझान है, हम अच्छाई को सिर्फ भारतीयों को मिली हुई है और इसलिए पसंद करते हैं, ये जो रुझान हमारे अंदर है वो आप लोग एक विशेष रूप के नागरिक हैं जो रुझान है उसका कारण ये है कि हमारे देश जिनके लिए ये उपलब्ध है, ये मिला हुआ है ये में अनेक-अनेक ऋषि-मुनि हो गए और उन्होंने ज्ञान मिला हुआ है कि धर्म क्या है। छोटी-छोटी बातों में भी हम लोग बहुत कुछ जानते हैं जो ये जीवन में क्या चीज़ करने से पवित्रता रहती है। लोग नहीं जानते। इनको मालूमात नही लेकिन पवित्रता की ओर हमारे अंदर बहुत चिंतन हुआ इनकी खोज में गहराई है। हमारी खोज़ में गहराई कम। हम लोग ये सोचते हैं कि भई हम तो ये नहीं संपूर्ण आपको स्वतंत्रता है। इस स्वतंत्रता में करते ही आए हैं। ऐसा-ऐसा तो हमने किया ही ही हम बहक गए । ये जो स्वतंत्रता हमें मिली है, तो इसमें कौन सी विशेषता है? लेकिन इन लोगों ने क्योंकि अंधेरा देखा है इसलिए प्रकाश का महत्व बहुत जानते हैं। वही बात हमारे अंदर, मैं सोचती हूँ, कुछ कम है और इस वजह से हिन्दुस्तानी सहजयोग में आकर के गहरे हिन्दी भाषा में कहिए आप संस्कृत में हर एक उतरना कठिन समझते हैं । गहरे उतर नहीं पाते, आप सबसे मुझे ये कहना है कि सहजयोग में एक बार आपका बीज मानों जैसे प्रस्फुटित हुआ जैसे क, ख, ग, घ वर्गैरा होते हैं, ये सब व्यंजन पर इसे एक विशाल पेड़ बनना है। इस विशाल पेड़ बनने के लिए ध्यान-धारणा आदि करना है में अर्थ है निरर्थक कोई चीज़ नहीं। एक-एक और सहजयोग को फैलाना है। आप अगर सहजयोग को फैलाएंगे नहीं तो फिर आपका प्रसार नहीं हो व्याकरण हुआ है। अब ये सारी बात बताने का उतर नहीं सकते। इसलिए सहजयोग को फैलाना हजार आदमी को आत्मसाक्षात्कार आसानी से दे सकता है। तो इस मामले में शर्माने की कोई ज़रुरत नहीं है, इस मामले में हिचकने की कोई जुरुरत नहीं। इस मामले में खुले आम बातचीत बार-बार में कहूँगी कि भारतीयता जो है वो एक विशेष अनुपम हमारे पास वस्तु है और इसीलिए आप भारतवर्ष में जन्मे। लेकिन इस धर्म में, जो भी धर्म हम मानते हैं, इसको मैं हिन्दू-मुसलमान या क्रिश्चन नहीं कहूँगी, पर धर्म माने अच्छाई बहुत-कुछ लिख दिया, बहुत-कुछ बताया कि है और इस पवित्रता की ओर कोई जबरदस्ती से उसी से हमने रास्ते दूसरे ले लिए। अब पूरी साँ तरह स्वतंत्र है और ये स्वतंत्रता का मतलब होता है कि स्व का तंत्र। स्व का तंत्र जानना, स्व माने आत्मा उसका तंत्र जानना ये स्वतंत्रता है। तो शब्द का अर्थ है। उसके व्याकरण की विशेषता यह है कि उसके जो कुछ भी वर्ण हैं या दूसरे जिसे कहते हैं, ये सबमें अर्थ है। एक-एक चीज ति अक्षर आप ले लीजिए तो इसमें बड़ा भारी शायद अभी समय न हो पर मुझे ये कहना है सकता। आप बढ़ नहीं सकते। आप अंदर गहरे चैतन्य लहरो ॥ खंड : XI अंक 3B 3 & 4 1999 कि ये पाँच तत्वों को बताने वाले अपने अंदर चाहिए कि ये हम लोगों ने अपने यहाँ ऋषि-मुनियों से बात सुनी। अब अंतर एक कि जो लोग को वो शक्ति कहते हैं। और जब व्यंजन में परदेसी जिनको हम कहते हैं, जो दूसरे देश के शक्ति आ जाती है तो वो ही व्यंजन का अर्थ रहने वाले हैं, उनकी विचारधारा और हम लोगों की विचारधारा बिल्कुल अलग है। सोचने का, लोग समझते हैं कि कुछ भी नाम रख दो लड़के विचारने का भी जो तरीका है वो बिल्कुल अलग है। इतना अलग है कि आश्चर्य होता है। र विदेश में आप गर कोई बात कहें, परदेस में पाँच तरह के व्यंजन बने हुए हैं। इसीलिए व्यंजन निकल आता है। अब छोटी-छोटी बातों में हम का, लड़की का कुछ भी नाम रख दो, नाम में क्या रखा है? तो ये इतनी गलत बात है कि नाम में क्या रखा है? नाम भी, लड़के की नाम जो है, आप कोई गर बात कहे तो उसका पड़ताला लेने वो भी सोचकर रखना चाहिए; क्योंकि एक-एक अक्षर में उसमें निहित है, छिपा हुआ है, एक देखेंगे ये है या नहीं? लेकिन उससे वो कहा बड़ा भारी मर्म। और वो मर्म है उसका अर्थ'। अर्थ और शब्द दोनों एक साथ रहते हैं और अर्थ और वो ये है कि गर कोई बात कही गई है तो जो है, वो शब्द की सेवा करता है। कोई भी आप शब्द कहिए तो उसके अर्थ में और शब्द ये ऋषि मुनि जो बड़े पहुँचे हुए लोग थे, उन्होंने में कोई अंतर, ऐसा हम लोग नहीं जानते हैं, पर कही है। उसको स्वीकार्य करना चाहिए। जो जो अर्थ जो है, वो शब्द की सेवा करता है। हर एक लग जाएंगे। उस पर साइंटिस्ट लगा देंगे उसको तक पहुँच पाते हैं? अपने देश में तरीका और है, उसका पड़ताला बनाने की ज़रुरत नहीं क्योंकि बात उन्होंने बताई वो स्वीकार्य करना चाहिए, चीज़ का अलग-अलग शब्द होता है। हर एक क्योंकि इतने पहुँचे हुए लोगों ने वो बात कही है। वर्णन में, हर एक चीज़ में हमारे यहाँ शब्द अलग-अलग होते हैं। ये भाषा की विशेषता ही चाहिए, क्योंकि उनसे ज्यादा अक्लमंद हम नहीं नहीं है, ये भारतीय संस्कृति की विशेषता है। हैं। लेकिन परदेस में सब सोचते हैं, हम सबसे इसलिए इस संस्कृति से जो लोग उत्पन्न हुए हैं, ज्यादा अक्लमंद हैं। वैसे अपने यहाँ नहीं है। इस संस्कृति में पढ़े हैं, और पढ़ रहे हैं, उनको जानना चाहिए कि हमारी संस्कृति है क्या? हम अपनी संस्कृति को जानते भी नहीं, कुछ समझ में भी नहीं आता कि सचमुच ऐसा क्यों करते आपमें पूर्णता आ जाए, तब आप देख सकते हैं, हैं? पता नहीं हमारे बाप-दादे करते थे इसलिए किसी ने जो भी बात कही उसको मान लेना अब इसका पड़ताला नहीं लेना चाहिए। यर कहा गया है कि गर आपका आत्मसाक्षात्कार हो जाए और आप सम्पूर्ण आत्मसाक्षात्कारी हो जाएं, प्रयोग करके कि जो ऋषि-मुनियों ने बात कही थी वो सच है या नहीं। अब सहजयोग में आप लोग यही करते हैं। हमने एक बात कह दी। हम करते हैं। तो सबसे बड़ी चीज़ है कि अपनी संस्कृति को जाने और पहचाने कि क्या बात आप मान जाते हैं कि माँ ने ये बात कही और उसको आप समझ लेते हैं कि माँ की कही हुई लोग धार्मिक हो जाते हैं। उनको कुछ बताने की ये बात है। इसमें जरुर तथ्य है। उसमें आप ये ज़रुरत नहीं है। कोई उनके ऊपर जबरदस्ती नहीं नहीं सोचते कि माँ ने कहा, इसका पड़ताला है कि तुम ऐसे ही करो कि वैसे ही करो। पर करो। ये करो, वो करो। फिर आत्मसाक्षात्कार के वो धार्मिक हैं। ये मानव की धार्मिकता कहाँ से बाद जब आप सम्पूर्णता में आ जाते हैं, जब आप उस दशा में पहुँच जाते हैं, तब आप खुद है? हम क्यों इस तरह से धार्मिक हैं? अपने आप ही हम आती है? क्यों आती है? उधर हमको ध्यान देना चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3 & 4 1999 ही इसका पड़ताला कर सकते हैं। जैसे हमने के जो चक्कर हैं, यही कम करने हैं जब कहा है वो बातें हैं या नहीं। इसलिए अपने यहाँ हमारे शास्त्रों में ये बात कही है। तो वो सत्य ही गुरु का बड़ा भारी स्थान माना जाता है कि गुरु है। अब नानक साहब ने गुरु ग्रंथ साहब जब ने जो बात कही, उसको कभी भी शंका नहीं बनाया, वो सारे Realize souls पहुँचे हुए लोग करनी चाहिए। पर आजकल के जैसे गुरु निकल की कविताएं ले करके उससे बनाया अब उसको पढ़े ही जा रहे हैं, पढ़े ही जा रहे हैं। ये भी बेकार वात है। उसमें क्या लिखा है वो समझने की कोशिश करो। उससे फिर वो आत्मसात होगा, हमारे अंदर बसेगा और हम उसी के सहारे आए वो देखने के बाद, मुझे समझ में नहीं आता है कि गुरु के लिए क्या कहा जाए! पर उसकी भी पहचान है। गुरुओं की पहचान है कि किसको असली गुरु मानना चाहिए और किसको नकली। जो आपको अनुभव दे वो ही असली गुरु। ये नहीं कि पैसा दे और ये डायमंड निकाल के दें। ये गुरु-वुरु नहीं हो सकते। ये तो तमाश-खोर हैं उठ सकेंगे। तो अब आपसे मैंने दो ही बात बताई सीधी-सीधी बात कि जो कुछ भी ऋषियों ने या कहना चाहिए, ये अपनी दुकानें खोल रखी और गुरुओं ने बताया उसको प्रमाण मान लेना, हैं। गुरु वही है जो आपको अनुभव दे। जब ये क्योंकि आप अभी तक इतने प्रवीण नहीं हैं, अनुभव आपमें प्राप्त होता है तो उसको स्वीकार्य आप इतने पहुँचे नहीं हैं। फिर उसके बाद दूसरी करो। स्वीकार्य करके उसमें बढ़ो। उसमें पूर्णता बात कि आप प्रवीण होने का प्रयत्न करें। उधर अग्रसर हों और प्रवीण हो जाएं। और प्रवीण होने देख लो। उसक उलट वहाँ पर, परदेस में, देखा पर, फिर आप पड़ताला इसका ले कि हैं कि गर कोई बात कही कि ऐसी नहीं। ये तो एक हिन्दुस्तानी के लिए हुआ। हैं तो पहले उसकी सिद्धता दो; पहले उसको लेकिन मैंने ये देखा है कि परदेसी जो आपके साइंटिस्ट को दो। अब वो साइंटिस्ट पार है या भाई हैं ये तो बड़ी जल्दी पार भी होते हैं और नहीं है, उसमें इतनी क्षमता है या नहीं, वो समझ ये गहरे उतर जाते हैं क्योंकि इनके अंदर गहराई आ गई है । हमारे अंदर गहराई नहीं आई। हमारे नहीं, ये नहीं देखा जाता। किसी ने भी कुछ बात गुरु ने ये कहा, हो गया काम खत्म। ये फ़लाने आप लाओ, और फिर उसकी पड़ताला आप मैंने कि किसी ने सकता है या नहीं, इसके लिए वो समर्थ है या कह दी उसके पीछे लग गए। फिर उसको दोहरा कर के दूसरा आदमी कहेगा कि नहीं नहीं ये नहीं इसमें नहीं नहीं ये जो है चीज़ इसमें ये गड़बड़ है। ऐसा है, वैसा है. क्योंकि अभी तक आत्म कह गए, काम खत्म। श्री राम ऐसे थे, काम खत्म। अरे भई उनके नज़दीक तुम कहीं गए कि नहीं, उनको समझा कि नहीं, उनको अपनाया कि नहीं? उसके अंदर से आपको क्या प्रेरणा मिली? बसे भजन गा रहे हैं। चीख रहे हैं. साक्षात्कारी वो लोग नहीं हैं, और उनमें वो चिल्ला रहे हैं । ये बड़े-बड़े संत-साधुओं महाराष्ट्र में खास कर और यहाँ भी, ये कहा कि आप भजन गाते रहें। एक उन्होंने वहाँ वार्करी पंथ निकाला, हर जगह पंथ निकले। बेचारों को ये क्या मालूम था कि इन्सान इतना बेवकूफ है कि उसको कुछ दे दो तो बस बो ही करके बैठे या झूठ है? ये बुद्धि रहेगा । वो तो संत साधु थे। उनको क्या मालूम ऐसे है। तीसरा आदमी कहेगा कि सम्पूर्णता नहीं है। तो इस तरह का जब तक आपमें एक पूरी तरह से जीवंत अनुभव न आए। जब तक आप उस अनुभव से पूरी तरह से प्लावित न हों मतलब Nourish न हो, तो आप अधूरे हैं और अधूरे होने पर आपको कैसे समझ में आएगा कि ये सत्य है 6. चैतन्य लहरी खंड : X1 अंक : 3 & 4 1999 कि ये गहरा नहीं उतरेगा, इस पर विचार नहीं जाने की जगह तुम परमात्मा का ध्यान करो। परमात्मा को याद करो। उनका नाम स्मरण करो। करेगा, इस तरफ अग्रसर नहीं होगा? तो बस उसी की एक चीज़ चल पड़ी। अब जिसने जो क्योंकि उससे तुम्हारा चित्त इधर-उधर नहीं जाएगा। कुछ लिखा वो ही चीज चल पड़ी। अब जैसे देखिए उन्होंने जो बात कही थी, उसको वहीं तक सीमित रखा और इसी तरह से हमारे यहाँ महीना वो लोग जाते हैं पैदल, बदन पर फटे के अनेक पंथ निकल चुके हैं। पर उससे किसी कपड़े पहन कर। पता नहीं क्यों? ऐसा तो कहीं को कोई लाभ नहीं हुआ और पुश्तन-पुश्त वोही-वोही चीजें चल रही हैं। अब आप सहजयोगी हैं। आपने आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त किया, आप लोग पता नहीं उसको, झाँझ, झाँझ बजाते-बजाते विशेष लोग हैं । ये समझ लीजिए। अब इसमें पहुँचते हैं। अब वहाँ पहुंच कर के एक महीना आपको और गहरा उतरना चाहिए। उस गहरे रहते हैं। उसके बाद वो सोचते हैं कि हमने तो उतरने से आपके अंदर जो सूक्ष्मता जागृत होगी वो मैं अभी आपको समझाती हूँ। वो अब अंग्रेजी महाराष्ट्र में मैंने बताया; वाकरी पंथ है। तो एक लिखा नहीं होगा। वहाँ महीना भर जागते हैं और वहाँ रहते हैं। पूरे समय वो क्या कहते हैं आप भगवान को पा लिया। ऐसे थोड़े ही बताया था। उन्होंने तो ये बताया था कि इधर-उधर चित्त में मैं इन लोगों को बताऊंगी। ाी संगीत संध्या व्या कि |ा स्काउट मैदान, दिल्ली 16.12.98 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी ( सहजयोगी पर पंचतत्वों की अभिव्यक्ति) भारतीय सहजयोगियों को मैं बता रही थी लिया जाए तो वे धर्मान्ध हो जाते हैं। परन्तु कि भारतीय ज्ञान की शैली पाश्चात्य ज्ञान से सूझ-बूझ की भारतीय शैली के अनुसार यदि अत्यन्त भिन्न हैं। पश्चिम में आप यदि कुछ किसी महान ऋषि मुनि या सन्त ने कुछ कहा है बताएं तो लोग इसकी परीक्षणात्मक स्वीकृति तो आपको उसकी बात सुननी होगी क्योंकि आप उतने बड़े सन्त नहीं हैं। जो भी कुछ उसने कहा है यह उसका अपना अनुभव है, अपना ज्ञान है। आपको उसे आँकने या असत्य कहने को भी वे आँकते हैं, मोजिज को भी वे आँकते का कोई अधिकार नहीं। आप इसे स्वीकार करें हैं। वे सभी को आँकने का प्रयत्न करते हैं मानो और एक बार जब आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त माँगते हैं। वे वैज्ञानिकों या अन्य ज्ञानशील लोगों के पास जाते हैं और पूछते हैं कि इन पुस्तकों में जो लिखा है वो सत्य है या असत्य। ईसा मसीह है वही सर्वाधिक विवेकशील एवं योग्य व्यक्ति हों। हो जाएगा, तो ये स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है इन लोगों के विरुद्ध वे एक के बाद एक पुस्तक कि, आत्मसाक्षात्कार के बाद आपको उन्नत लिखते चले जाते हैं मानो उन्हों लोगों ने अपने होना होगा पूर्णतः जब आप उन्नत हो जाएंगे तब आप स्वयं देख सकेंगें कि जो भी कुछ उन्होंने स्वीकार नहीं किया जाता और यदि स्वीकार कर कहा है वह सत्य हैं, अत: वह सत्य है। अत: मस्तिष्क से कुछ कहा हो! प्रायः इसे कभी चैंतन्य लहरी रखंड : X1 अंक : 3& 4 1999 10 । मार्ग भिन्न है, एक मार्ग से यदि आप विज्ञान से हो जाती है। यह परमेश्वरी शक्ति तब आपके आदि के माध्यम से समझने का प्रयत्न करते हैं माध्यम से बहने लगती है। तार जुड़ जाता है । जब ये शक्ति आपमें से बहने लगती है तो क्या आपकी उन्नति में बाधा पड़ती है। तो जो कुछ होता है? इसकी सूक्ष्मता हमें समझनी चाहिए। सूक्ष्मता ये है कि जिन पंच तत्वों से हम बने हैं उन्हें ये चैतन्य लहरियां शनैः शनै: उनके सूक्ष्म कुछ ईसा मसीह, हज़रत मोहम्मद, ज्ञानदेव ने तत्वों में जोड़ने लगती हैं। कहा गया है, बाइबल कहा है आपको उस पर विश्वास करना होगा। में भी कहा गया है, कि 'शब्द' ही परमात्मा है। परन्तु ये 'शब्द' है क्या? आप कह सकते हैं कि शब्द' मौन आदेश (Silent Comnandment) है। हम इस प्रकार कह सकते हैं। परन्तु भारतीय करें।' किसी भी चीज़ की छानबीन करते हुए दर्शन के अनुसार शब्द से बिन्दु की उत्पत्ति होती है, या हम कह सकते हैं कि शब्द नाद बन जाता है और फिर बिन्दु और इस बिन्दु से ये पांचों-तत्व एक के बाद एक अभिव्यक्त होने तो आप कहीं भी नहीं पहुँच पाते, इतना ही नहीं, भी इन महान ऋषि मुनियों ने कहा है उस पर विश्वास करते हुए उस ज्ञान को समझें। जो भी अभी तक आपका आध्यात्मिक स्तर उतना उच्च नहीं है। अत: आपको विश्वास करना होगा। इसे स्वीकार कर इसकी छानबीन करने का प्रयास न आप उसमें खो जाते हैं। एक बार जब आप उस स्तर के आत्मसाक्षात्कारी बन जाएंगे तब पूर्णत्व की ऊँचाई तक आप उन्नत होंगे। कवल तभी आप ये समझ पाएंगे कि इन सन्तों की कही लगते हैं। बातें सत्य हैं या असत्य और तभी आप छानबीन प्रथम तत्व जो आता है वह है 'तज '। प्रकाश अभिव्यक्त होने वाला प्रथम तत्व है। तो कर सकेंगे। तब सत्य, असत्य का भेद कर पाना बहुत सुगम हो जाएगा। सहजयोगियों के लिए ये पता लगाना अत्यन्त आसान होता है कि कोई चोज़ वास्तविक है या अवास्तविक, ये सत्य है या असत्य, प्रेम है या घ्रूणा। चैतन्य लहरियों के प्रकाश पहले तत्व का सार है। यह सब संस्कृत में लिखा हुआ है। परन्तु हमें समझना चाहिए कि सहजयोग में प्रकाश किस प्रकार प्रसारित होता है। आप सर्वत्र प्रकाश देखते हैं। तो प्रथम तत्व माध्यम से आप यह भेद जान सकते हैं। इससे आगे जाने के लिए, व्यक्ति के प्रकाश) हो जाना। परन्तु ज्ञानोद्दीप्ति का अन्य लिए जानना आवश्यक है क्या हैं और किससे बनी हैं? इन चैतन्य लहरियों के पीछे कौन सी सूक्ष्म शक्ति है? इस शक्ति के पश्चात् व्यक्ति का मुखमण्डल तेजोमय हो को हम परम-चैतन्य कहते हैं। परन्तु ये परम चैतन्य है क्या? परम चैतन्य प्राप्त करने के बाद आपमें क्या घटित होता है? यह बात. इस मुखमण्डल पर दिखाई देने लगती है। तेजस्वी प्रकाश का सूक्ष्म तत्व्व है, ज्ञानोद्दीप्ति (ज्ञान का कि ये चैतन्य लहरियाँ अर्थ भी है, हम इसे 'तेज' कह सकते हैं । उदाहरण के रूप में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होने उठता है तो हम कह सकते हैं कि प्रकाश का सूक्ष्म तत्व तेजस्विता है, यह तेजस्विता आपके सूक्ष्मता को, समझ लेना आवश्यक है। जैसा मैंने कहा, हम पाँच तत्वों से बने हैं, ऐसे आभावान व्यक्ति को विशेष सम्मान देने ठीक है? तो जब आपको जागृति प्राप्त होती है, लगते हैं। आपने मेरे फोटो देखे हैं, बहुत बार जब कुण्डलिनी आपके सहस्रार पर पहुँचकर आपको उनमें अथाह प्रकाश देखने को मिलता आपके ब्रह्मरन्ध्र का भेदन करती है तो आपकी है। यह कुछ और न होकर मेरे अन्दर का एकाकारिता परमेश्वरी शक्ति (Divine Power) मुखमण्डल से लोग बहुत प्रभावित होते हैं और है। प्रकाश है जो सूक्ष्म होकर दैदीप्यमान हो रहा है 11 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 3 &4 1999 किसी से जब बह बातचीत करता है तो उसकी आवाज में प्रेम होता है या यूँ कहें कि जल की तथा आपके अन्दर यह सूक्ष्म विकास शीतलता होती है। तो आपके अन्दर जिस अन्य घटित होता है। आपके मुखमण्डल भी तेजोमय सूक्ष्मता की अभिव्यक्ति होनी चाहिए-आपके आचरण में, आपकी त्वचा पर, दूसरों के प्रति आपके व्यवहार में-वह यह है कि आपको जल की तरह से होना चाहिए। जल की तरह से बने हैं यह उसका सूक्ष्म तत्व (सार तत्व) है। गतिशील, शीतलता, शांति एवं स्वच्छता प्रदायक तत्पश्चात् प्रकाश तत्व से एक अन्य तत्व होना चाहिए। आत्मसाक्षात्कारी होने के पश्चात् ये गुण आपके व्यक्तित्व का अंग-प्रत्यंग हो जाते पंच तत्वों में से प्रकाश भी एक हैं। मुझमें जब प्रकाश सूक्ष्म हो जाता है तो यह तेजदायी हो जाता है हो उठते हैं उन पर तेज होता हैं और आपकी त्वचा का रंग भी भिन्न हो जाता है। इस तेज को समझा जाना चाहिए। जिस स्थूल प्रकाश से हम का उद्भव होता है, जिसे हम संस्कृत में 'वायु कहते हैं अर्थात् हवा। इस स्थूल वायु का सूक्ष्म है। तत्व, आपको प्राप्त होने वाली, शीतल चैतन्य लहरियां हैं। शीतल चैतन्य लहरियां उसी वायु तत्वों जल तत्व के पश्चात् अग्नि तत्व है। आपमें अग्नि भी है परन्तु यह अत्यन्त शांत अग्नि है। यह किसी अन्य को नहीं जलाती, आपके अन्दर की बुराइयों को जलाती है। न केवल आपके अन्दर की बुराइयों को, आपके माध्यम से अन्य लोगों की बुराइयों को भी आपकी ये अग्नि जला देती है। मान लो कोई अत्यन्त क्रोध से मेरी ओर आता है तो मेरे अन्दर की अग्नि से उसका क्रोध शांत हो जाता I तत्व का सार हैं। हमें बनाने वाले पाँच मूल में से वायु तत्व्व का सार ही शीतल चैतन्य लहरियां कहलाता है। जब आपका आध्यात्मिक विकास होता है तो ये सभी सूक्ष्म तत्व अपनी अभिव्यक्ति करने लगते हैं। आप केवल लहरियां ही नहीं प्राप्त करते, शीतलता का भी अनुभव करते हैं और यही वायु तत्व का सार है। इसके पश्चात् जल तत्व है। जल भी हमें है। इतना ही नहीं गहन आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति बनाने वाले तत्वों में से एक है। इसका सूक्ष्म को अग्नि जला नहीं सकती। अग्नि की जलन तत्व क्या है? (कभी-कभी अंग्रेज़ी भाषा में अभिव्यक्ति के लिए शब्द नहीं होते) जल तत्व उस तक नहीं आ सकती यह बात समझ लेना बहुत आवश्यक है। आप यदि कोई गलत कार्य कर रहे हैं तो अग्नि आपको जला सकती है। सूक्ष्म रूप में जब अभिव्यक्त होता है तो यह कठोर त्वचा को कोमल करता है। त्वचा कोमल परन्तु यदि आप अच्छी सहजयोगी हैं पूर्णत: हो जाती है। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति का एक विकसित सहजयोगी हैं तो अग्नि आपको कभी अन्य चिन्ह ये है कि उन्हें स्निग्धता लाने के जलाएगी नहीं। हमारे सम्मुख सीताजी का उदाहरण लिए चेहरे पर किसी क्रीम का प्रयोग नहीं करना है जो अग्नि में प्रवेश कर गई फिर भी अग्नि ने पड़ता। उनके अन्दर का जल तत्व ही उनके उन्हें नहीं जलाया। तो हमें समझना है कि अग्नि चेहरे की त्वचा को चमक और पोषण प्रदान करता है तथा उसे कोमल बनाता है। चेहरे की ये कोमलता प्रत्यक्ष दिखाई देती है। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के मुख पर ये अभिव्यक्ति अत्यंत दिव्य बन जाते हैं। उदाहरणार्थ जिस जल को तत्व का सार यदि हमें प्राप्त हो जाता है तो अग्नि हमें जला नहीं सकती। मि इस प्रकार अग्नि तथा जल, दोनों ही तत्व आप छूते हैं, जो जल आप पीते हैं, जिस जल में आप अपना हाथ डालते हैं, वह चैतन्यित हो आवश्यक है। इसी के साथ-साथ आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति अत्यन्त विनम्र एवं हो जाता है। मृदु 12 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3&4 1999 जा गिरते। पृथ्वी माँ के अन्य गुणों की अभिव्यक्ति जाता है। इसका क्या अर्थ हैं? जल की सूक्ष्मता इसमें आ जाती है-शीतल तथा रोगमुक्त करने भी हममें होने लगती है। पृथ्वी माँ की तरह की शक्ति उस जल में आ जाती है। तो सूक्ष्म हम भी अत्यन्त सहनशील एवं धैर्यवान बनने होने के पश्चात् सभी शक्तियों की अभिव्यक्ति लगते हैं आप यदि सहनशील नहीं हैं, उग्र होने लगती है और इन्हें आप स्वयं देख सकते हैं। इनके लिए आपको प्रयोग (experiment) नहीं करने पड़ते। अंत में पृथ्वी माँ है। पृथ्वी माँ बहुत महत्वपूर्ण हैं, बहुत महत्वपूर्ण। रुस में (डाचा करते हैं परन्तु वे सभी कुछ सहन करती हैं। में) लिया गया एक फोटोग्राफ है जिसमें कुण्डलिनी पृथ्वी माँ से निकल रही है। स्पष्ट दिखाया गया है कि पृथ्वी माँ ही यह सब दर्शाती है। उदाहरण के रूप में आपने फूल देखे हैं, पुष्प यदि आप सहनशील, धैर्यवान और क्षमाशील बन जाते हैं । मेरे कमरे में रखें तो वे खिल उठते हैं, इतने बड़े सभी सहजयोगी जिनमें चैतन्य लहरियाँ हैं उनमें हो जाते हैं कि लोगों ने कभी इतने बड़े आकार के फूल देखे नहीं होते। मैं उन पर कुछ नहीं आपकी चैतन्य लहरियों में जिन चीज़ों की करती। मैं तो केवल वहाँ बैठी होती हैं। फूलों के साथ क्या घटित होता है? धरा माँ का नियम हैं। ये समझ लेना आवश्यक है कि अब आप कार्य करता है। माँ ही आपको पोषण प्रदान बहुत महान हो गए हैं। अन्य लोगों के साथ ऐसा करती है और आप स्वस्थ हो जाते हैं और इस प्रकार पृथ्वी तत्व की सूक्ष्मता कार्य करती है। घटना नहीं घटी। जो लोग चर्च, मस्जिद या पृथ्वी माँ इन सब पेड़ों और पुष्यों को जन्म देती मन्दिर जाते हैं आप उन्हें देखें। उनके चेहरे देखें। है। यह हमारे अन्दर भी एक बहुत बड़ी भूमिका उनकी ओर देखें वे कैसे दिखाई देते हैं? मन्दिर निभाती है। पृथ्वी माँ के हमसे गहन सम्बन्ध हैं से उन्हें कुछ नहीं मिला, मस्जिद से उन्हें कुछ परन्तु हम पृथ्वी माँ का सम्मान नहीं करते। हमने नहीं मिला, किसी भी पूजा के स्थान से उन्हें पृथ्वी को प्रदूषित किया है। इस पर लगे पेड़ों कुछ नहीं मिला। अत: ये सब बनावटी को काट डाला है तथा सभी प्रकार की मूर्खता क्योंकि सत्य (वास्तविकता) से उनका नाता ही की है। परन्तु वे हमारी माँ हैं। पृथ्वी माँ की नहीं जुड़ा। केवल आत्मसाक्षात्कार के बाद ही बहुत सी सूक्ष्मताएं हममें आ जाती हैं। इनमें से आपका सम्बन्ध वास्तविकता से होता है और एक गुरुत्वाकर्षण है। गुरुत्वाकर्षण की अभिव्यक्ति से व्यक्ति अत्यन्त आकर्षक हो जाता है-शारीरिक की समझ आपको आ सकती है। रूप से नहीं आध्यात्मिक रूप से। ऐसा व्यक्ति अन्य लोगों को आकर्षित करता है। लोग सोचते क्योंकि मैं चाहती हूँ कि आप अपने को समझें, हैं कि उसमें कुछ विशेष है। यह पृथ्वी माँ का एक गुण है पृथ्वी माँ में यदि गुरुत्वाकर्षण न डोता तो हम पृथ्वी की गति की तेजी से ही दूर स्वयं को समझ लेंगे, स्वयं को पहचान लेंगे तो TH स्वभाव हैं तो पृथ्वी तत्व की सूक्ष्मता की अभिव्यक्ति आपमें नहीं हुई है। पृथ्वी माँ की ओर देखें, किस प्रकार वे हमारी मूर्खताओं को सहन करती हैं। कितनी ज्यादतियाँ हम उन पर श्री गणेश जी का ये गुण है कि वे आरम्भ में सहन करते हैं, एक सीमा तक वे सहन करते हैं। इसी प्रकार हम भी अत्यन्त कम से कम ये गुण तो आ ही जाना चाहिए। अभिव्यक्ति होती है वे सभी मैंने आपको बताई नहीं हुआ। जो सहजयोगी नहीं हैं उनके साथ ये आपके माध्यम से कार्य करने वाली सूक्ष्मताओं मैं ये सब आपको क्यों बता रही हूँ? अपने को पहचाने; समझें कि आप क्या हैं और आपको क्या प्राप्त हुआ है। एक बार जब आप 13 वैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3 &4 1999 आप बहुत कुछ कर सकते हैं। सर्वप्रथम आप ये कहें कि मैं एक सहजयोगी हूँ। पूर्ण आत्मविश्वास परन्तु अभी आपको उनकी चिन्ता करने की के साथ ये कहें और आत्मविश्वस्त व्यक्ति की तरह देखें कि सहजयोगी के रूप में मैंने क्या किया है? सहजयोगी के रूप में में क्या कर गण और देवदूत आपकी सहायता कर रहे हैं चीज़ तो ये है कि आवश्यकता नहीं है। मुख्य आप महसूस करे कि आप क्या हैं, आप को क्या प्राप्त हुआ है और आपने इसका कितना सामना किया है तथा इसने किस प्रकार कार्य सकता हूँ? कुछ सहजयोगियों ने अद्भुत कार्य किए हैं। उन्होंने सहजयोग का बहुत सा कार्य किया है। मैंने देखा है कि जब भी मुझे कोई किया है। परन्तु कुछ अन्य सहजयोगी अब भी छोटी-मोटी समस्या होती है तो यह ( परम चैतन्य) मुझे लिखते हैं कि."मेरे पति मुझसे झगड़ते हैं, तुरन्त कार्य करता है। ऐसे स्थान पर और ऐसे मेरा बेटा ऐसा है, मेरी माँ ऐसी है।" मुझे पत्र के लोगों में ये कार्य करता है जिसकी मैंने कभी बाद पत्र आते रहते हैं। आप एक सहजयोगी हैं। आपको चाहिए कि अपनी सूक्ष्मताओं को देें और इन्हें कार्यान्वित करें। लोग सोचते हैं कि मैं होता है, आपके विकास के लिए होता है और यहाँ उनकी, उनके परिवार की, उनकी नौकरियों की समस्याओं का समाधान करने के लिए हूँ। इस कार्य के लिए मैं यहाँ नहीं हूँ। मैं यहाँ प्रवेश कर गए हैं। परन्तु यह चीज़ आपको आपको आत्मसाक्षात्कार देने तथा आपको प्राप्त आशा भी न की थी! सभी कुछ कार्यान्वित हो जाता है। परन्तु ये सब आपके हित के लिए आपको ये समझाने के लिए होता है कि आप सहजयोगी हैं। आप परमात्मा के साम्राज्य में विकसित करनी होगी। अन्न्तदर्शन आपको बताएगा कि आप इन हुई उपलब्धियों का ज्ञान देने के लिए हूँ। इसे आप चुनौती के रूप में स्वीकार करें। चुनौती की तरह आप इसे लें तो आप हैरान होंगे कि किस नहीं। अन्तर्दर्शन यदि आप करने लगेंगे तो यह सभी सूक्ष्म गुणों को कार्यान्वित कर रहे हैं कि देखकर आप हैरान हो जाएंगे कि आपमें शक्तियाँ प्रकार आपकी सहायता होती है और किस प्रकार आपको परिणाम प्राप्त होते हैं। सहज का अर्थ केवल यही नहीं है कि हैं और आप चमत्कारिक रूप से कार्य कर सकते हैं । मैं आप सबको आशीर्वाद देती हूँ। कृपया ये संभी सूक्ष्म गुण अपने अन्दर विकसित करें। पहले से ही ये आपमें विद्यमान हैं, आपको कुछ नहीं करना; केवल इन्हें समझें और स्थापित करें। आपको स्वत: आत्मसाक्षात्माकार मिल जाए। इसका अर्थ ये भी है कि आपको सहजता प्राप्त हो जाए। पूर्ण प्रकृति सहजता प्राप्त करती है। ये सभी सूक्ष्म गुण जो मैंने आपको बताएं हैं ये भी सहजता प्राप्त करके कार्यान्वित होते हैं। नि:सन्देह आप सबका हार्दिक धन्यवाद। भूत म ा 14 चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 3 & 4 1999 श्री रामनवमी पूजा म के ( 5 अप्रैल 1998 को रामनवमी के दिन श्रीमाताजी के नोएडा निवास पर हुई संक्षिप्त पूजा अवसर पर परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी द्वारा दिए गए प्रवचन का सारांश।) महाराष्ट्र के मुकाबले में शालीवाहन शक के चैत्र माह में नवरात्रि ( प्रतिपदा से नवमी) उत्तरी भारत में शानो शौकत से मनाई जाती है। उन्हें हितैयी राजा (Benevolent King) श्री राम ने उच्च आदर्शों की स्थापना करनी चाही जिनका अनुसरण मानव करें। सुक्रान्त ने महाराष्ट्र में श्री कृष्ण का जन्म विट्ठल अर्थात का नाम दिया। महाराज के रूप में गोकुल अष्टमी पर धार्मिक उत्साह से मनाया जाता है। श्री विट्ठल भगवान विष्णु के आठवें अवतरण थे। रात्रि को बारह बजे उनका जन्म हुआ। भगवान विष्णु के सातवें की शासन स्थापित करने के लिए थीं। वास्तव में अवतरण श्री राम का जन्म चैत्र माह की नवमी को दोपहर बारह बजे हुआ। यही दिन रामनवमी उनसे धर्म का जन्म होता था, वे 'धर्म स्थित' थे, श्री राम के जीवन में जितनी भी घटनाएं घटीं जैसे अहिल्या का उद्धार, शबरी-मोक्ष, वानर सम्राट बाली-वध और रावण-वध आदि, धर्म श्री राम धर्मातीत थे-धर्म से ऊपर। वास्तव में धर्म के अवतार थे। सिंहासन की मर्यादाओं को बनाए रखने कहलाता है। मध्य प्रदेश के छिन्दवाड़ा नामक स्थान पर श्री राम की तरह माताजी श्री निर्मला देवी के लिए उन्होंने अपनी प्रिय पत्नी श्री सीताजी का जन्म भी 21 मार्च 1923 को दोपहर बारह बजे हुआ। छिन्दवाड़ा, पूर्व-पश्चिम और परीक्षा के पश्चात भी लोग उन पर शक करते उत्तर-दक्षिण दिशाओं में, जहाँ दो रेखाएं मिलती थे अपने पुत्रों का भली-भांति लालन-पालन हैं, स्थित है। यह जन्म तिथि चन्द्र मास पर करने के पश्चात् एक प्रकार से श्री सीताजी ने आधरित पंचांग के अनुसार है। परन्तु सूर्यमास भी श्री राम को त्याग दिया। लव और कुश ने पर आधारित पंचांग के अनुसार श्री राम का को केवल इसलिए त्याग दिया क्योंकि अग्नि सभी विद्याएं प्राप्त कर ली थीं और धनुर्विद्या के तो वे इतने पारंगत हो गए थे कि उन्होंने अपने जन्म प्रथम माह के प्रथम दिन होना चाहिए था, अर्थात् शालीवाहन शक अट्ठारह सौ पैंतालिस चाचा, श्री लक्ष्मण. को युद्ध में पराजित कर (1845) के चैत्र माह के पहले दिन। महाराष्ट्र में चैत्र के पहले दिन को गुडी पडवा कहते हैं। कराने के लिए श्रीराम को अपने पुत्रों से युद्ध यह दिन श्री माताजी का जन्म दिवस भी होता करने के लिए आना पड़ा। परन्तु धर्म स्थित श्री है और शालीवाहन सम्राट का ताजपोशी दिवस सीताजी ने हस्तक्षेप करके पिता और पुत्रों में होने भी शालीवाहन शक 1920 का आरम्भ मार्च वाले युद्ध को टाल दिया। 28, 1998 से चैत्र प्रतिपदा के रूप में (प्रथम माह का प्रथम दिन के रूप में) होता है। श्री राम आदर्श पति थे और श्री सीताजी आदर्श पतली। और उनके पुत्र लव और कुश आदर्श पुत्र थे। दिया। अन्तत: अश्वमेद्य यज्ञ के घोड़े मुक्त अपने जीवन काल में श्री राम ने एक प्रकार से ऐसे कार्य किया मानो किसी नाटक में भूमिका कर रहे हों। उन्होंने भुला दिया कि वे परमात्मा के अवतरण हैं। परन्तु श्री कृष्ण रूप में 15 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 38 4 1999 जब वे अवतरित हुए तो उन्हें अपनी शक्तियों सभी सहजयोगियों को करना चाहिए। उनमें महान का पूर्ण स्मरण था और उनका उपयोग उन्होंने शक्तियाँ थी। उच्चकोटि के पावन व्यक्ति श्री राक्षसों को दण्ड देने के लिए अत्यन्त कूटनीति हनुमान सदा श्री राम का कार्य करने के लिए पूर्वक किया। श्री राम महान देवी भक्त थे वे शक्ति कृष्ण रूप में अवतरित हुए तो श्री हनुमान उनके के पुजारी थे। लंका पर आक्रमण करने से पूर्व रथ की चोटी पर विराजित होते थे वे 'चिरंजीव' उन्होंने देवी पूजा की। जिसमें देवी को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ आदि करवाने के लिए उन्हें किसी ब्राह्मण की आवश्यकता थी। इस कार्य के कार्यों को करके मेरी सहायता करते हैं। सभी लिए उन्होंने श्री लंका के राजा रावण को न्यौता पूजाओं में वे विद्यमान होते हैं। बम्बई की एक दिया, क्योंकि रावण ब्राह्मण था और देवी भक्त भी। बिना आना कानी किए रावण आया और नौ में प्रकट हुए। प्रकार (नव-विध) से देवी पूजा करने में श्री राम की सहायता की। श्री राम यदि चालबाज़ होते तो वे रावण का वध वहीं कर देते। परन्तु वे मर्यादा पुरुषोत्तम मेरी कामना है कि आप सभी ऐसे महान चरित्र थे, धर्मपरायण व्यक्ति थे। उन्होंने यह अधम और गैर-जिम्मेदारी पूर्ण कार्य नहीं किया। थे परन्तु पूजा करते हुए शत्रुता को पूर्णतया भुला और अन्य लोगों पर आप अपने प्रेम और करुणा दिया गया। उद्यत रहते थे। द्वापर युग में जब श्री विष्यु श्री कहलाते हैं, एक अमर व्यक्ति, अमरत्व प्राप्त सात देवों में से एक। वे भी आकर सोंपे गए पूजा में लिए फोटो में वे चैतन्य लहरियों के रूप सहजयोग में उत्थान प्राप्त करने के लिए, सहजयोगियों को चाहिए कि अपने जीवन में इन महान विभूतियों के चरित्र का अनुसंरिण करें। का अनुसरण करके मानव आचरण के उच्च वे शत्रु आदर्श को प्राप्त करने में सफल हों। परस्पर की वर्षा करें तथा आदर्श सहजयोगी भाई-बहन श्री राम के महान आज्ञाकारी सेवक श्री बनें। हनुमान भी आदर्श शिष्य थे। उनका अनुसरण परमात्मा आपको अनन्त आशीष प्रदान करें। ईसा मसीह पूजा ( 25.12.98 ) परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (अंग्रेजी में ) (निर्विचारिता का आशीष) त्ति पहले मैं अंग्रेजी में बोलूंगी फिर हिन्दी कार्य करते हुए वे अन्य लोगों के लिए जिए । में। बहुत समय पूर्व आज के दिन ईंसा मसीह यद्यपि वे दिव्य अवतरण थे, अत्यन्त शक्तिशाली थे, परन्तु ये क्रूर संसार आध्यात्मिकता को नहीं का जन्म हुआ था। उनके जन्म, तथा जो कष्ट उन्होंने सहे, की कथा आप सब लोग जानते हैं। समझता। मानव आध्यात्मिकता की महानता को उन्होंने ही हमें सहजयोग का नमूना प्रदान नहीं समझता किया। किसी भी प्रकार से वो स्वयं के लिए आध्यात्मिकता पर आक्रमण होता है। मनुष्यों ने जीवित नहीं रहे। आज्ञा चक्र को खोलने के लिए सदैव ऐसा किया है सभी सन्तों को बहुत कष्ट । इतना ही नहीं बहुत से तरीकों से 16 चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 3&4 1999 उठाने पड़े; परन्तु, मैं सोचती हूँ, ईसा मसीह ने सर्वाधिक कष्ट झेले। वध कर देंगे। सन्तों की वहाँ हत्या की गई उन्हें पागल कहा गया। आध्यात्मिकता अस्वीकार जैसा कि आप जानते हैं वे श्री गणेश के करने का यह बहुत अच्छा उपाय है! इसके पुनरअंवतरण थे और उनमें श्री गणेश की सभी विपरीत भारत में यदि कोई सन्त कुछ बताए तो शक्तियां विद्यमान थी। इनमें से सर्वप्रथम थी उसे चुनौती नहीं दी जाती, कभी नहीं। सन्त होने अबोधिता। वे अनन्त बालक थे। इस धूर्त संसार के नाते लोग उसका विश्वास करते हैं। सन्त हमसे कहीं ऊँचा व्यक्ति होता है। यद्यपि बहुत से निष्ठुर लोग भी थे जिन्होंने सन्तों को सताया, की क्रूरता और पाखण्ड को वे न समझ पाए। व्यक्ति यदि यह सब समझ भी ले तो क्या कर सकता है? अगम्य साहस के साथ उन्होंने एक ऐसे देश में जन्म लिया जहाँ लोगों को आध्यात्मिकता का बिल्कुल ज्ञान न था। परन्तु जनता ने सामूहिक रूप से सन्तों का सम्मान किया। कुगुरु प्राय: इस देश में नहीं रह सकते क्योंकि वो जानते हैं कि उनकी पोल खुल उनके विषय में मैंने एक पुस्तक पढ़ी जाएगी। धन-लोलुप होने के कारण भी वे अमेरिका या अन्य विदेशों में जाकर धनार्जन के लिए । थी। जिसमें कहा है कि वे कश्मीर आए और वहाँ मेरे पूर्वजों में से एक शालीवाहन से उनकी टिक जाते हैं । ये भी एक प्रकार का विज्ञान है। एक सर्वसाधारण परिवार में ईसा मसीह में लिखा हुआ है और संभवत: लेखक के जन्म लेने का यह भी एक कारण हो सकता को संस्कृत का ज्ञान न था। ये सब कुछ संस्कृत है। बचपन में भी उनके पास सोने के लिए भाषा में लिखा हुआ है और मैं सोचती हूँ कि कायदे का बिस्तर न था। पूरा वर्णन किया हुआ संस्कृत पश्चिमी लोगों के लिए सुगम नहीं है। है कि ईसा मसीह कहाँ सोते थे और गायों के तबेले में किस प्रकार उनकी माँ रहती थी! ये सब यह दर्शाने के लिए था कि आध्यात्मिकता है कि शालीवाहन ने ईसा मसीह से पूछा," आप को सुख-साधनों तथा दिखावें की आवश्यकता नहीं है। यह अन्तर्शक्ति है; अन्तर-ज्योति है जो स्वत: प्रकट हो जाती है। इसे दर्शाने के लिए व्यक्ति को कुछ नहीं करना पड़ता। ऐसे व्यक्ति को धन और सम्पदा का ज्ञान नहीं होता। ईसा मसीह दीन-दुखियों के लिए, रोगियों ही दिलचस्प है क्योंकि शालीवाहन ने उनसे के लिए चिन्तित थे उन्होंने कोढियों को ठीक करने का प्रयास किया। बहुत से शारीरिक रूप लोगों को निर्मल-तत्व सिखाएं। वे वापिस लौट से रोगी व्यक्तियों की सहायता करने का उन्होंने गए और साढ़े तीन वर्ष पश्चात् ही उन्हें सूली प्रयास किया क्योंकि उस समय न तो अस्पताल होते थे न चिकित्सक। अत: शारीरिक रूप से दु:खी लोगों की ओर उनका चित्त आकर्षित हुआ। उन्होंने मानसिक रूप से भी उन लोगों को तैयार करने का प्रयत्न किया। पर्वत पर दिए गए भेंट हुई। बड़ी दिलचस्प बात है कि ये सब संस्कृत परमात्मा का धुन्यवाद है कि वे अग्रेजी न जानते थे नहीं तो बहुत कठिनाई हो जाती। उसमें लिखा भारत क्यों आए हैं?" तो उसने कहा," ये मेरा देश है इसलिए मैं यहाँ पर आया हूँ। यहाँ पर लोग आध्यात्मिकता का सम्मान करते हैं, परन्तु मैं उन लोगों में रहता हूँ जिन्हें आध्यात्मिकता का बिल्कुल ज्ञान नहीं है।" उनकी बातचीत बहुत कहा कि आप अपने देश वापिस जाकर वहाँ के (क्रूस) पर चढ़ा दिया गया। व्यक्तिगत रूप से मैं सोचती हूँ कि भारतीय और पश्चिमी सूली में बहुत बड़ा अन्तर है। पश्चिम में हत्या करना महान व्यवसाय समझा उनके बहुत से सुन्दर उपदेश हैं। उस समय के जाता है। जरा-सा बहाना मिलते ही वे लोगों का 17 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3 & 4 1999 लोग बहुत अधिक भौतिकतावादी न थे। उन्होंने ईसा मसीह की बात सुनी। परन्तु ये नहीं कहा जा सकता कि कितने लोगों ने उनकी बात को से कार्य कर रहा है । ईसा मसीह ने यह बात नहीं कही थी। परन्तु उन्होंने यह अवश्य कहा था कि अन्तिम निर्णय होगा। एक ओर तो ईसा मसीह अत्यन्त दयालु यह समझ लेना अत्यन्त आवश्यक है कि एवं सहृदय थे। परन्तु दूसरी ओर वे वास्तव में श्री गणेश थे। मन्दिर में वस्तुएं बेचने वाले को समझ पाना कठिन है। आध्यात्मिकता के लोगों को उन्होंने कोडे से पीटा। धर्म के नाम पर आप व्यापार नहीं कर सकते। यह बात दोनों का आत्मसाक्षात्कारी होना जरुरी है। उनके समझ लेना कितनी बड़ी बात है। परन्तु इसाईयों सुन्दर जीवन के बारे में जितना मेंने समझा है ने यह बात नहीं समझी। मैं नहीं जानती कि उनकी समझ में क्या आया! महात्मा गाँधी ने नहीं हैं तब तक ईसा मसीह की आत्मा को आध्यात्मिकता के अतिरिक्त कोई बात नहीं की । कष्ट पहुँचाते रहेंगे। ऐसा हो रहा है। ईसा मसीह हर समय आध्यात्म। परन्तु उनके उत्तराधिकारियों ने स्मष्ट कहा है कि 'आप मुझे, ईसा-ईसा ने आध्यात्मिकता समेत उन्हें एक ओर डाल कहकर आवाज़े देते रहोंगे, परन्तु मैं तुम्हें दिया और नए विचार, नई जीवन शैली तथा नए संसार का आरम्भ किया। उनके अनुयायी कहलाने शब्दों में कहा है। मेरी समझ में नहीं आता कि वाले लोगों को अब बहुत से शराबखाने तथा इन लोगों ने ईसा के इस कथन को बाइबल से सभी प्रकार की उल्टी-सीधी चीजें चाहिए। क्या क्यों नहीं निकाला! इस कथन का अर्थ है कि आप इस बात की कल्पना कर सकते हैं? महात्मा गाँधी ने कांग्रेस की स्थापना की और कांग्रेस के लोग ही अब ये सब अधम कार्य कर विशेष वस्त्र धारण करेंगे इंसा मसीह उन्हें रहे हैं। वे देश को कहाँ लें जाएंगे? आध्यात्मिकता नहीं पहचानेंगे। यह बात इतनी स्पष्ट है और ही इस देश का सौन्दर्य एवं सम्पदा है । आज जबकि अन्तिम-निर्णय का समय है। वे आध्यात्मिकता अपनाने की अपेक्षा वे कहाँ जा समझा। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किए बिना आध्यात्मिकता विषय में बात करने वाले और उसे सुनने वाले उसके अनुसार जब तक हम आत्मसाक्षात्कारी पहचानूंगा नहीं।' उन्होंने यह अत्यन्त स्पष्ट ईसा मसीह के नाम पर आध्यात्मिक होने का ढोंग करने के लिए जो लोग उपदेश देंगे या रहे हैं ? पूरे विश्व को आध्यात्मिकता अर्थात् चैतन्य लहरियों आध्यात्मिक लोग यद्यपि इसाई नहीं हैं फिर भी ईसा का सम्मान करते हैें, बाइबल का सम्मान करते हैं । मैं आपको बता दूं ये वास्तविकता है जिसे लोग नहीं जानते। जब हम कहते हैं कि वे इसाई नहीं हैं तो इसका अर्थ ये होता है कि उन्हें किसी पादरी ने दीक्षा नहीं दी। फिर भी वे ईसा का सम्मान करते हैं क्योंकि वो जानते हैं कि ईसा मसीह कितने आध्यात्मिक थे। वे आध्यात्मिकता का अवतरण थे। भारत की ये के आधार पर आँकेंगे। उनका निर्णय आरम्भ हो चुका है। मैंने यह देख लिया है। आप भी देख सकते हैं कि बहुत से देशों में चीजें लुप्त हो रही हैं उनके अहं, आक्रामकता और क्रूरता आदि को चुनौती दी जा रही है। युद्ध में जिन लोगों ने अत्याचार किए थे उन्हें दण्ड मिल रहे हैं । इतिहास में भी जिन लोगों ने किसी जाति या समुदाय पर अत्याचार किए हैं उन्हें दण्ड मिलेगा। आक्रामक होकर लोगों को कष्ट देना उनका कार्य नहीं है। यही श्री गणेश-तत्व है जो सहजयोग के माध्यम खूबी है कि सन्त हिन्दु हो या मुसलमान, उसका सम्मान होता है भारत में बहुत से मुसलमान 18 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3 &4 1999 कर सकते थे? तो शराब पीना वहाँं पर बहुत सूफी सन्त हुए हैं। सभी लोग उनका सम्मान करते हैं। ईसा मसीह के विषय में भी किसी को बड़ा धर्म है। एतराज नहीं है। इसके विपरीत कल आप लोगों ने देखा कि सभी सहजयोगी कितने प्रसन्न थे कोई बात नहीं की फिर भी हम जानते हैं कि क्योंकि वे आत्मसाक्षात्कारी लोग हैं। परन्तु यदि आत्मसाक्षात्कारी न भी हो तो भी इस देश में हैं। सब जानते हैं कि शराब पीने वाले व्यक्ति ईसा मसीह का बहुत सम्मान होता है। पश्चिम की बुद्धि मलिन हो जाती है। धार्मिक मंच पर के लोग इस बात को नहीं समझ सकते। किस इसके बारे में कहने के लिए कुछ नहीं है, फिर प्रकार वे ईसामसीह के जीवन के विषय में भी सब जानते हैं कि शराब पीने का परिणाम छानबीन कर सकते हैं? वे उन्हें किस प्रकार आँक सकते हैं और उनके विषय में भद्दी इस बात को नहीं जानते, वे भी भली-भाति फिल्में बनाने का उन्हें क्या अधिकार है? भारत के लोग ये ब्दाश्त नहीं कर सकते क्योंकि है। अब तो हमारे देश में भी यह छाने लगा हैं। उनके मन में आध्यात्मिकता के प्रति बहुत मेरी समझ में नहीं आता कि स्वतंत्र होने के सम्मान है। बाहर के देशों के लोगों से कहीं पश्चात् लोग शराब क्यों पीने लगे! हर अवसर अधिक। ईसा मसीह के नाम पे लोगों ने कुकृत्य किए हैं। बहुत नरसंहार हुआ है और के जन्म दिवस पर भी वे शराब पीते हैं! उनके सभी प्रकार की गलत चीजों को स्वीकार किया सुन्दर, पवित्र जीवन का यह बहुत बड़ा अपमान गया है। इस प्रकार की सूझ-बूझ वाले लोग है। वे लोग (विदेशी) जब इस पावन भूमि पर किस प्रकार ईसा मसीह का आंकलन कर सकते आए, तो उनकी पावनता की सभी शक्तियाँ नष्ट हैं? उदाहरण के रूप में, जो मैंने इंग्लैंड में सम्मान तो करते हैं। सभी पावन स्थानों का वे देखा उससे मुझे बहुत सदमा पहुँचा, वहाँ किसी की मृत्यु होती है तो वे शराब पीते हैं और यदि पवित्रता को समझते हैं। यद्यपि अब वे भी किसी का जन्म होता है तो वे शराब पीते हैं। अमेरिका की तरह से अत्यन्त आधुनिक बन रहे मद्यपान के माध्यम से ही उनके सम्बन्ध हैं। हैं, परन्तु अब भी वे जानते हैं कि गलत क्या हैं किस प्रकार आप शराब पी सकते हैं? मैंने उनसे और क्या नहीं किया जाना चाहिए। पूछा। कहने लगे, "क्यों? ईसा मसीह ने शराब बनाई थी। " मैंने कहा कब? एक विवाह के भारत में यद्यपि किसी ने भी शराब विरोधी शराब पीना पाप हैं। आप ये बात प्रतिदिन देखते क्या होता है। ऐसा नहीं हैं कि विदेशों में लोग जानते हैं। परन्तु वहाँ पर मद्यपान फैशन बन गया से पर लोग शराब पीते हैं, यहाँ तक कि ईसा मसीह बहुत हो गई। भारतीय कम से कम पावनता का सम्मान करते हैं । ये उनकी खूबी है कि वे ये कहते हुए मुझे प्रसन्नता हो रही है कि अब सहज योग से विदेशी सहजयोगी भी अत्यन्त सुन्दर हो गए हैं। मैं आश्चर्यचकित हैँ क्योंकि उनके संस्कारों में आध्यात्मिकता नहीं है। मैं समझ नहीं पाती कि किस प्रकार उन्होंने यह भाषा में हम इसे द्राक्ष कहते हैं। वह शराब कंसे सब मूर्खता त्याग दी है और आध्यात्मिकता की हो सकती है। शराब बनाने के लिए तो पहले सुन्दर सुगन्ध से परिपूर्ण सुन्दर कमलों सम खिल उठे हैं। यह चमत्कार है। सभी लोग कहते हैं श्री माताजी हमें विश्वास नहीं होता कि ऐसा अवसर पर। मैंने कहा, "विवाह के अवसर पर?" वह शराब नहीं थी, वह तो अंगूरों का रस थी, उन अंगूरों का जिन्हें वे उगाते हैं। हमारी इसे सड़ाना पड़ती है, इसका खमीर उठाना पड़ता है। विवाह के अवसर पर वे ये कार्य कैसे 19 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 3& 4 1999 रूप में ब्राह्मण एक जगह पर बेठगे, कायस्थ किस प्रकार कर पाए? मैं कहूँगी यह ईसा मसीह दूसरी जगह पर बैठेंगे, बनिए अलग बैठेंगे। यदि का आशीर्वाद है। उन्होंने देखा कि ईसा मसीह ऐसा न हुआ तो किसी अन्य प्रकार से वे अलग गुट बना लेंगे। मेरे देश का यह अभिशाप है रहे हैं और उनमें एक प्रकार की चेतना आ गई एक बार जब लोग गुट बनाने लगते हैं तो वे कि ये लोग ईसा मसीह और उनके पावन जीवन दूसरों की अच्छाइयाँ नहीं देख पाते और न ही का चित्रण नहीं कर रहे हैं. यह तो कुछ और ही कभी अपनी बुराइयाँ देख पाते हैं। गुट बनाने की ये प्रकृति इस देश के लिए बहुत सी समस्याएं किस प्रकार घटित हो सकता है। आप यह कार्य के नाम पर कितनी तुच्छता से लोग कार्य कर है। और यही कारण है कि पश्चिम में उत्कट खड़ी कर सकती हैं। इच्छा है और महान उत्थान शक्ति है। कल कोई व्यक्ति मेरे पास आया और कहने लगा श्री माताजी यहाँ सामूहिक ध्यान नहीं होता। सुनकर मुझे प्रसन्नता हुई। सहजयोग में ध्यान-धारणा ही महत्वपूर्णतम है। इसके विषय थे। अब हमारे यहां ऐसे लोग हैं जिनकी रुचि में कोई सन्वेह नहीं। विदेशी लोग भारतीय सहजयोगियों से कहीं अधिक ध्यान-धारणा करते टॉँग ऐसे तालाब में फँसी है जहां सदियों पुरानी हैं। विदेशी पुरुष और स्त्रियों, विशेष तौर पर रुस के लोगों, को आध्यात्मिकता का बहुत ज्ञान है। के पतन का कारण है हम एक जुट नहीं हो मैं हैरान थी कि अमेरिका में उन्होंने (रुसी लोगों सकते, एक दूसरे के मित्र नहीं बन सकते । ने) मुझे बताया कि श्री माताजी ये अमेरिका के निःसंदेह सहजयोग में इस समस्या का भली-भांति लोग सहजयोगी नहीं हैं। मैंने पूछा, "क्यों?" उनके हृदय में आपके लिए सम्मान नहीं है। ये मसीह के समय में भी उन्हें अपने शिष्यों से ध्यान-धारणा नहीं करते। जो ध्यान-धारणा नहीं बहुत परेशानी थी। विशेेष कर पीटर से और करते वो सहजयोगी नहीं हैं। मैंने कहा, "मैं उसमें तो शैतान जाग उठा! ईसा मसीह ने कहा सहमत हूँ।" उन्होंने अमेरिका के सभी सहजयोगियों कि उन्होंने बहुत से लोगों में से शैतानी-भूतों को को ध्यान-धारणा कने के लिए विवश कर दिया। मैं नहीं जानती कि पूर्ववर्त्ती देशों (Eastem Block) के लोग विशेष कर बल्गोरिया, रुस और आध्यात्मिकता की जितनी अधिक सुरक्षा व्यवस्था रोमानिया किस प्रकार सहजयोग को इतना अधिक ईसा मसीह के समय में बहुत ही भिन्न प्रकार के लोग हुआ करते थे। वे या तो आध्यात्मिकता में रुचि रखते थे या नहीं रखते आध्यात्मिकता में है परन्तु अब भी उनकी एक समस्याएं (बन्धन) बनी हुई हैं। यही हमारे देश समाधान हुआ है। परन्तु, यदि आप देखें, ईसा निकालकर सूअरों में डाल दिया। ये सत्य है । शैतानी शक्ति पूरी ताकत से कार्य कर रही है| हम करेंगे वे भी उतने ही अधिक विकसित अपना पाए? नि:संदेह वे साम्यवाद से अभिशप्त होंगे। थे. और उन्हें लगा कि जीवन में उन्होंने कुछ खो दिया है। इसलिए वे अपने अन्तस की देशों में भिन्न रुपों में कार्यरत है। परन्तु मैं उनहें गहराइयों में गए और यह उपलब्धि प्राप्त की । मुझे भारतीय लोगों को भी बताना है कि उन्हें इस शैतानी शक्ति को किस प्रकार खोजा जाए? ये शैतानी शक्ति पूर्व और पश्चिम के सावधान रहने की चेतावनी देती हूैँ। पश्चिम में भी ध्यान-धारणा करनी होगी। भारतीय लोगों में एक दो बहुत बड़े दोष यह आपको प्रभावित न कर पाए। परन्तु आप ही हैं। उनमें से एक हैं गुट बनाना। उदाहरण के को इससे लड़ना होगा। आपको ही इससे युद्ध आप आत्मसाक्षात्कारी हैं और हो सकतां है कि चैतन्य लहरीं 20 खंड : XI अंक 3 & 4 1999 ॥ : करना होगा उदाहरणार्थ प्रजातिवाद से। प्रजातिवाद अब भी वहुत शक्तिशाली है परन्तु ईसा मसीह का सबसे बड़ा शत्रु अत्यन्त शक्तिशाली । भिन्न जातियों के लोगों से चरित्रहीनता विवाह करके आपको जातिवाद से लड़ना होगा। बहुत अधिक मान्यता दे दी गई है। इन देशों में परन्तु अब भी विवाह, किसी गौर वर्ण से कर पाना मेरे लिए कि ये सभी दुष्वरित्र लोग किसी एक दुष्वरित्र बहुत कठिन कार्य है। यह असम्भव स्थिति हैं। व्यक्ति के पक्ष में मतदान करते हैं और बह ऐसा करने का प्रयास यदि मैं करू तो मेरी अमेरिका का राष्ट्रपति बन जाता समझ में नहीं आता कि क्या ही जाएगा। एक वहाँ पर सभी प्रकार की चरित्रहीनता की आज्ञा बार हमने ऐसा विवाह किया-एक फ्रांस की गौर है परन्तु यह ईसामसीह के बिल्कुल विपरी्त है, वर्ण महिला का विवाह एक काले व्यक्ति से पूर्णात: विरोध में लोग नहीं जानते कि चरित्रहीनता कर दिया। श्वेत महिला के अपने पति पर हावी उन्हें एक ऐसे साम्राल्य में धकेल देगी जो पशुओं होने के स्थान पर उसकी काला पति ही उस पर के साम्राज्य से भी बदतर हैं। वे इतने चरित्रहीन रोत् जमाने लगा। मैं बहुत किस प्रकार हो सकता है। मेरे विचार से वह हैं मानो उनमें अपना मस्तिष्क बिल्कुल न हो बदला ले रहा था। सम्भवतः ऐसा करने से उसे ऐसे व्यक्ति की बात को समझने के लिए उनमें सुकून मिल रहा था। तो सर्वप्रथम लोगों में आत्मा नहीं है। सहजयोग में आने के पश्चात् ही अथाह प्रेम और स्नेह विकसित होना आवश्यक हैं रंग तो केवल चमड़ी तक सीमित है. अन्तर्प्रेम से इसका कोई संबंध नहीं। इसकी गहनता केवल त्वचा तक है। परमात्मा का धन्यवाद हैं दें और मुझे कि हमारे देश में पत्नी बहुत श्याम रंग की हो विश्वास है कि यदि आप चरित्रवान जीवन सकती है और पति बहुत डी श्वेत रंग का या व्यतीत करें तो बहुत से और लोग भी सहजयोग इससे दूसरी तरह भी हो सकता है, परन्तु रंग के के झण्डे के नीचे आ जाएंगे| नज़रिए से वे एक-दूसरे को नहीं देखते। परन्तु यहाँ पर एक अन्य प्रकार की समस्या है। अपने लोगों को इसका बहुत गर्व होता है। वे कहेंगे अहं से पुरुष स्त्री को पीड़ित करता है। ईसा मुझे क्रोध आ जाएगा; मैं वहुत गुस्से में है। उन मसीह ने आपके अहं से लड़ने का प्रयत्न किया। वे अत्यन्त गरीब परिवार में जन्में, उनकी उच्च कार्य हो। वे ये भी कहते हैं कि मैं घृणा त्वचा भी श्वेत न थी। आपकी भाषा में वे गेहूए करता हैँ। किसी भारतीय भाषा में यदि ऐसा कह रंग के थे, परन्तु भारतीय भाषा में के काले थे। जब आध्यात्मिकाता की बात आती है तो आप कंवल व्यक्ति के आंतंरिक प्रकाश को ही देखते देन है। किसी को यदि क्रोध करना हो तो स्वयं हैं, त्वचा के रंग को नहीं देखते। त्वचा तो ऊपर की चीज़ जाना चाहिए। भौतिकवाद एक अन्य शत्रु है है पश्चिम में चरित्रहीनता को किसी श्यामवर्ण व्यक्ति का सभी प्रकार का चरित्रहीन व्यवहार हैं। कहते हैं है। ठीक है. हैरान हुई कि ऐसा है कि वे फ़ायड जैसे व्यक्ति की बातों को सुनते आप.ईसा मसीह के जीवन का आदर्श पा सकते हैं। जो बीत गया वह समाप्त हो गया। अब आप आत्मसाक्षात्कारी हैं और सद्चरित्र आपकी शक्ति है। भूतकाल की बातों को भुला क्रोध हमारा एक अन्य घोर शत्रु है। ये कहते हुए लज्जा नहीं आती मानो यह कोई दिया जाए तो इसका अर्थ होगा कि मैं अपराध कर रहा हूँ। यह सारी आक्रामकता क्रोध की ही पर करे क्रोध से मुक्ति होगा। अपने बाल उखाड लें, आपने को दाँतों से पा लेना हो सर्वश्रेषठ है परन्तु पश्चिमात्य जीवन की यह स्वयं को पीट लें. क्रोध से बहुत बड़़ी शत्रु है। इस बात पर ध्यान दिया काट लें, सिरहाने 21 चैतन्य लहरी ॥ खंड :X! अक : 3 & 4 1999 निकालने का यह बहुत अच्छा तरीका है। देखें है, बुद्धिगत हैं। तब आपकी चैतन्य लहरियां भी तो सही कि आप किस कारण क्रोधित हैं। क्षीण होती हैं। अर्धात् आप ये नहीं समझ पाते कभी-कभी तो क्रोध व्यर्थ होता है, इसका कोई कि चैतन्य लहरियां क्या कह रही हैं। आप अर्थ नहीं ही होता और कभी ये अत्यन्त पागलपन अपनी चैतन्य लहरियों को नहीं समझ पाते और मुर्खता होती है। परन्तु जब तक आप ये कहना छोड़ नहीं देंगे कि, "मैं बहुत क्रोध में कहते हैं, " श्रीमाताजी, हमने चैतन्य लहरियों से है" तब तक क्रोध आपका पीछा न छोड़ेगा। पूछा था।" में कहती हूँ " वास्तव में?" आपमें क्रोध जब आता है तब आपको समझ लेना तो चैतन्य लहरियां है ही नहीं,: किस प्रकार चाहिए कि आप पतन की ओर जा रहे हैं । जिन सूक्ष्म बातों के विषय में आपको बता रही हैं, उनके विषय में ईसा ने नहीं बताया लहरि्यों से पूछा था। चैतन्य लहरियों ने हमें था। यह कार्य मेरे लिए छोड़ दिया गया था। आत्मसाक्षात्कार के बिना किस प्रकार इन सूक्ष्म मस्तिष्क के स्तर पर हैं। चीजों की बात की जा सकती है हो ही नहीं क्योंकि ये अभी तक बुद्धि स्तर पर हैं। लोग आप चैतन्य लहरियों से पूछ सकते हैं? यह आम बात है, लोग कहते हैं कि हमने चैतन्य बताया। यह असम्भव है क्योंकि अभी तो आप ईसा मसीह ने आपको मस्तिष्क के स्तर से बाहर उठाया है। यह कठिनतम कार्य है। मै] पिछली वार मैंने आपको चैतन्य लहरियों हैरान हूँ कि इसाई मत का मानने वाले लोगों को के बारे में बताया था। ये क्या हैं, किसकी ओर मानसिक-बाधा सबसे अधिक है। बे दिल्ली को संकेत करती हैं तेज, जल, पृथ्वी, वायु और धुंध की तरह से मस्तिष्क में फसै हुए हैं हम तत्वों से तन्मात्रा नामक सूक्ष्म शाक्ति हम पागलों की तरह से पढ़ते हैं, पागलों की तरह से हम लोगों को सुनते हैं और बुद्धि को बढ़ावा देने विषय में मैंने आपको नहीं बताया था. एक वाले लोग हमें अच्छे लगते हैं। लांग इतने विशेष तत्व के विषय में, जिसे अंग्रेज़ी भाषा में बुद्धिगत हैं इतना वाद-विवाद करते हैं, चीजें सकता। अग्नि किस प्रकार प्राप्त करते हैं? परन्तु एक तत्व के (Ether) आकाश कहते हैं। यह तन्मात्रा आकाश तत्व द्वारा संचालित को जाती है। ईसा मसोह ने, आपको कहना पड़ता है, " आज्ञा चक्र को खोलने के लिए अपना जीवन उनके मानसिक दृष्टिकोण बलिदान कर दिया। उनके बलिदान स्वरूप हम उनके मस्तिष्क में इस प्रकार जाती हैं कि टीक हैं, नमस्कार। से आप लड़ नहीं सकते। यही कारण है कि ये बुद्धिवादी लोग आकाश की स्थिति तक पहुँच पाए। इसके विना ईसामसीह की पूजा करते हैं और उनकी यह यह सम्भव त होता। आमतीर पर हम विचारों का मानसिकता उन्हें अन्य लोगों से श्रेष्ठ होने का भाव प्रदान करती है। जो भी कुछ उनसे कहो वो सकते हैं, अपने विचार बता सकते हैं. अपने कहते हैं. "इसमें क्या गलती है,. इसमें क्या आदान प्रदान कर सकते हैं, परस्पर बातचीत कर हाथों तथा अंगुलियों से स्वयं को अभिव्यक्त कर गलती है?" वे स्वयं को सुधार नहीं सकते सकते हैं। परन्तु चैतन्य लहरियां फैलाने के लिएक्योंकि मस्तिष्क से ऊपर उठे बिना आप स्वयं व्यक्ति के पास चैतन्य लहरियों का होना आवश्यक है। इसके बिना व्यक्ति दूसरों को महसूस नहीं को देख नहीं सकते। अन्तर्दर्शन नहीं कर सकते। स्वयं को देखने के स्थान पर आ अन्य कर सकता। आप यदि आज्ञा चक्र पर हैं. तो हैं. सहजयोग इसका अर्थ ये है कि आप मस्तिष्क के स्तर पर ऐसा है. आदि आदि। परन्तु आप स्वयं को नहीं लोगों को देखते हैं। ये सहजयोगी ऐसे चैतन्त्य लहरी । खंड : XI अंक 3 & 4 1999 22 : देख सकते क्योंकि सभी कुछ बुद्धिगत है। में विचारों की तरंगें दौड़ा देती हैं। यह बात भगवान ईसा मसीह की सहायता लेकर यह बौद्धिक दृष्टिकोण नियंत्रित किया जाना चाहिए; के पश्चात् अब आपको पूर्णतः निर्वचार होना परन्तु ईसा मसीह भी बुद्धिगत हैं, आपके मस्तिष्क में हैं। वे भी बुद्धिगत हैं। तो अब क्या करें? बहुत बड़ी उपलब्धि प्राप्त कर ली है। मस्तिष्क की सीमाओं को तोड़ने वाला ही बुद्धिगत है। पत्थर की मूर्ति सम आपने उन्हें बुद्धिगत बना दिया है। तो सर्वप्रथम हमें स्वयं से कहना होगा, "अब सोचना बन्द करो, सोचना बन्द करो, सोचना बन्द करो, सोचना बन्द करो, कार्य करता है। आप जानते हैं कि यह मुझमें भी चार बार। तब आप ऊपर उठ पाएंगे, यह कार्य करता है। अपने चित्त से मैं बहुत से कार्य अत्यन्त आवश्यक है। ्यान-धारणा में आपको मस्तिष्क से परे पूर्णत: निर्विचार। जहाँ भी यह जाता है, कार्य जाना पड़ेगा। वहां ईसा सम्पन्न करता है, परन्तु यदि विचार करने के को समाप्त करने के लिए विराजित हैं। मैं लिए आप चित्त का उपयोग करेंगे तो यह सोचती हूं कि अच्छा होगा कि लोग पढ़ना भी छोड़ दें। मेरा प्रवचन भी बुद्धिगत हो जाता है। निर्विचारिता में है तो चित्त चमत्कारिक रूप क्या किया जाए? कहने से मेरा अभिप्राय है जो भी चीज़़ उनके सिर में जाती है, वह बुद्धिगत हो को स्वयं से उठकर, दूसरों पर और फिर जाती है। तब वे मुझसे प्रश्न पूछते हैं, "श्री माताजी क्या आपने ऐसा कहा था?" में उत्तर जहाँ आपका सम्यर्क आकाश तत्व से हो देती हूँ कि मैंने तुम्हें निर्विचार करने के लिए, जाता है, जिसे हम 'तन्मात्रा' या आकाश झटका देने के लिए ऐसा कहा था। मेरे कहने कातत्व का सार कहते हैं। आकाश तत्व ये अभिप्राय नहीं था कि आप बैठकर इसकी दूरदर्शन बना सकते हैं, दूरभाष बना सकते हैं समीक्षा करें। नहीं। मेरा कहने का अभिप्राय तुम्हें अन्यथा यह चमत्कार हैं। तन्मात्रा से यहाँ बेठे झटका देकर शांत करना था। अतः निर्विचार हुए आप कार्य कर सकते हैं। यह कार्य करती हो जाना ही आप सब लोगों के लिए सर्वोत्तम है। केवल चित्त कार्य करता है। मैं ये बात है। निर्विचारिता ईसा मसीह का वरदान है। उन्होंने आपके लिए ये कार्य किया और मुझे हैं। चित्त डालने के लिए आपको मुझसे नहीं विश्वास है, यदि आप इसे कार्यान्वित करना चाहते हैं तो अन्य लोगों की ओर चित्त न कार्य हो जाएगा। दे। प्रतिक्रिया न करें, प्रतिक्रिया बिल्कुल न करें, किसी भी चीज को देखकर लोग प्रतिक्रिया करते हैं, क्या आवश्यक्ता है? क्या लाभे है? प्रतिक्रिया करके आप क्या करने वाले हैं? प्रतिक्रिया आपके मस्तिष्क अग्नि. जल तत्व से अभिव्यक्ति होती मैं आपको सैंकड़ों बार बता चुकी हूँ। इस पूजा होगा। ऐसा यदि हो जाए तो, मैं सोचती हूँ, हमने ईसा मसीह ने आपको यह बहुत बड़ा आशीरवाद दिया है आपको चाहिए कि इसका आनन्द उठाएं। तभी आपके अन्दर आकाश-तत्व कार्य करेगा। यह आपके चित्त के माध्यम से करती है। कैसे? मेरा चित्त निर्विचार हो गया है, ससीह इस सारी मूर्खता अपेक्षित कार्य नहीं कर पाता। व्यक्ति यदि से कार्य करता है, अन्यथा नहीं। अत: चित्त मानवता के उच्च स्तर तक जाना होता है, जानती हैँ और आप भी यह भली-भांति जानते कहना पड़ता। आप स्वयं चित्त डालिए और यह अत्यन्त महत्वपूर्ण उपलब्धि आपने पा ली है। में सोचती हूँ, एक बार जब आप इसे पा लेंगे तो कोई समस्या न रह जाएगी| पृथ्वी तत्व से हमारी अभिव्यक्ति होने लगती है फिर चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 3.8 4 1999. 23 श्ी तत्पश्चात् हम तेजस तक आते हैं और स्वयं (आत्मा) के साध हैं और ये जीवन विनोद हमारे मुख मण्डल दीप्तोमान हो उठते हैं। अंत में हमें निर्विचार चेतना (समाधि) प्राप्त हो जाती अधिक आनन्द, इतनी अधिक प्रसन्नता इसमें हैं। जिसके माध्यम से हमारा चित्त किसी भी कि आप किसी भी ऐसी चीज़ की चिन्ता नहीं प्रकार के विशेष कार्य को करने के लिए स्वतंत्र करते जिसकी चिन्ता आप लोग करते हैं । से यरिपूर्ण है । इतना अधिक विनोद, इतना सहजयोग अब बहुत से देशों में कार्यान्वित ही जाता है। परन्तु हर समय यदि हम विचारों में फंसे रहते हैं, तो यह बेचारा चित्त बहुत व्यस्त हो है। मुझे आप पर गर्व है, बहुत गर्व है। अब जाता है। यदि आप निर्विचार हैं तो आपको मुझसे नहीं कहना पड़ता कि, " श्री माताजी कृपा मेरे लिए यह महान सन्वोष की बात है आप सब करके अपना चित्त डालिए; आप स्वयं चित्त लोग इस कार्य को कर सकते हैं। आप इसे डाल सकते हैं और इस कार्य को कर सकते हैं। कार्यान्वित कर सकते हैं। केवल निर्विचार सभाधि चित्त की इस स्थिति में आप महसूस नहीं करते में चले जाना होगा। ईसा मसीह के आशीर्वाद के कि आपको क्या प्राप्त हो गया है, आप कहाँ रूप में यदि यह कार्य हो जाएगा तो आप इसका खड़े हैं, कौन सें वस्त्र आपने पहने हैं तथा अन्य लोग क्या कर रहे हैं। नहीं, कुछ नहीं। अब आप सहजयोग अफ्रीका के देशों में भी फैल रहा है। पूर्ण आनन्द उठाएंगे। परमात्मा आपको धन्य करें। भ भ चैतन्य लहरी 24 खंड : XI अंक : 384 1999 कृष्ण पूजा (कबैला 16.3.98) परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन प्रजातिवाद बहुत है। यद्यपि अमरीकन लोग ऐसा नहीं कहते फिर भी आप इसे महसूस कर सकते हैं। इटली से यदि आप अमरीका जाएं तो आप ये बात महसूस करते हैं। भारत से भी यदि आप वहां जाएं तो इसे महसूस कर सकते हैं। यह प्रजातिवाद क्यों है? इसका कारण क्या है? दूसरी जाति या रंग. जो कि सतही है, के प्रति इस प्रकार की भयानक घृणा से हम प्रतिक्रिया सम्भव है। ये दोनों स्थितियाँ एक-दूसरे से जुड़ी क्यों करते हैं? तर्क बुद्धि से संभवत: आप इसकी व्याख्या कर सकें। हे परमात्मा! ये लोग साक्षी अवस्था में व्यक्ति प्रतिक्रिया बिल्कुल बेकार हैं या केवल कष्ट देने के लिए ये हमारे देश में आए हैं। ये सभी बन्धन हो जाती है। ये समझना अत्यन्त सुगम है कि विद्यमान हैं। आप यदि उन्हें आप्रवासियों के बारे अहँ या बन्धनों के कारण ही हम प्रतिक्रिया में बातचीत करते सुनें! अमरीकन लोग, सब के सब आप्रवासी हैं। अमरीका कभी भी उनका देश न था, उन्होंने सभी श्याम भारतीयों (Red कालीन बहुत सुन्दर है। इसको देखते ही, यदि Indians) को वहाँ से निकाल दिया उनकी सारी मैं अपने अहँ का उपयोग करूंगी तो सोचने भूमि छीन ली और शान से अमरीका के स्वामी बन बैठे। परन्तु प्रतिक्रिया केवल उन लोगों के इस पर कितना खर्च किया? यह पहली प्रतिक्रिया लिए है जो श्वेत नहीं है; उनका तिरस्कार होना है। इसके आगे भी आप सकते हैं। इसमें क्रोध चाहिए और उन्हें यातनाएं दी जानी चाहिए। अब भी घुस सकता है। ये लोग इतना अच्छा कालीन यदि वे हिंसक स्वभाव के हैं तो हिंसा उनका बन्धन है। वे एक-दूसरे की हत्या करने लगते हैं। क्रूरता पूर्वक उन्होंने बहुत लोगों का वध नों में ग्रस्त होकर में यदि इन चीज़ों को देखें तो किया है। वे ये सोचते हैं कि किसी भी देश में घुसकर, वहाँ के लोगों को मारकर, उनकी भूमि आज हम श्रीकृष्ण पूजा करेंगे। श्रीकृष्ण की शक्तियों की एक महत्वपूर्ण बात ये है कि यह आपको साक्षी अवस्था प्रदान करती है। यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि कलयुग में मूल्यों के पतन के कारण पूर्ण भ्रम की स्थिति, सभी प्रकार की खलबली, मानव जीवन को बहुत ही जटिल बना रही है। निर्विचार समाधि प्राप्त करके, ध्यान-धारणा द्वारा ही साक्षी अवस्था प्राप्त करना हुई हैं। नहीं करता। प्रतिक्रिया करते ही समस्या आरम्भ करते हैं। प्रतिक्रिया करने का इसके अतिरिक्त कोई कारण नहीं। उदाहरण के रूप में यह लगूगी कि इन्होंने ये कालीन कहाँ से मंगवाया? क्यों लाए? इसे यहाँ बिछाने की क्या आवश्यकता थी? एक के बाद एक बात आएगी। अपने बन्ध मैं कहँगी कि कालीन का ये रंग कृष्ण पूजा लिए उपयुक्त नहीं है। कृष्ण पूजा के लिए उन्हें के पर कब्जा कर लेना उनका अधिकार है। वास्तव कोई अन्य रंग लाना चाहिए था तो एक प्रतिक्रिया में पृथ्वी किसी की नहीं होती। परन्तु किसी को ये भी अधिकार नहीं है कि जाकर भूमि पर कब्जा कर ले और वहाँ के लोगों को बाहर अन्तर्रचित है। बन्धनों के कारण आई हुई समस्याएं निकाल दे। कल भारत का स्वतंत्रता दिवस था । वास्तव में भयावह है। उदाहरणार्थ प्रजातीयता या मुझे भारतीय ध्वज को ऊपर जाते हुए और में बर्तानवी ध्वज को नीचे आते हुए देखने का से दूसरी प्रतिक्रिया की और हम बढ़ते चले जाते हैं। परन्तु इसका अर्थ ये है कि यह बन्धन हमारे प्रजातिवाद (Racialism)। अमेरिका 25 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3&4 1999 अवसर प्राप्त हुआ। लोगों को इसके लिए बहुत तो वहाँ क्या शेष रह जाएगा? बड़ा संघर्ष करना पड़ा. बहुत कष्ट झेलने पडड़े। अंग्रेज लोग वड़डी शान से भरत आए थे, और आपकी बुद्धि आपके मूल्यों और आपकी आत्मा यहाँ के मालिक बन बैठे। तो ये भी एक से कुछ लेना देना नहीं है। हम यहाँ आध्यात्मिक सामूहिक बंधन है कि लोग किसी देश में जाते है वहाँ के लोगों को निकाल कर वहां के स्वामी बन बैठते हैं। ये तो ऐसा हुआ मानो किसी के घर में जाकर आप घर के अन्दर से लोगों को है। प्रतिक्रिया के रूप में अब दूसरी ओर से भी निकाल बाहर करें और बड़ी शान से वहां के वही हो रहा है। हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती स्वामी बन बैठें-क्योंकि आपमें उन लोगों से है। अब काले लोग भी प्रतिक्रिया कर रहे हैं बेहतर बुद्धि है, या सम्भवत: आप उनसे अधि और उनकी प्रतिक्रिया बहुत भयानक हो सकती क चालाक हैं। इस दम्भी स्वभाव से यदि श्वेत लोग ये सोचें कि वे श्याम लोगों पर शासन कर सकते हैं तो इस स्थिति में उनमें साक्षी अवस्था नहीं आ संकती। (क्या आप इस बच्चे को बाहर ले जाएंगे? ये क्यों रो रहा है। हो सकता है प्रवृत्ति का मुकाबला करना चाहिए। परन्तु उनके आपको समझना है कि त्वचा के रंग का उत्थान प्राप्त करने के लिए आए हैं। आत्मा रंग भेद नहीं जानती क्योंकि रंग तो सतही है और रंग के लिए किसी का तिरस्कार करना अत्याचार है। प्रतिदिन में पढ़ती हूँ कि उनकी प्रतिक्रिया उग्र रूप धारण करती चली जा रही है, केवल अमरीका में ही नहीं सर्वत्र। वे अब सोच रहे हैं कि इसके विरूद्ध खड़े होकर. इस प्रभुत्ववादी अपने देशों में, जहाँ भिन्न रंगों के लोग हैं (वे प्यासा हो, ठीक है) इस प्रकार का बन्धन प्लेग की तरह है सभी अश्वेत हैं परन्तु उनमें भी थोड़ी सी और एक देश से दूसरे देश में फैलता है। लोग भिन्नता है) वे जुट बनाकर एक-दूसरे का गला सोचते हैं कि वे अन्य लोगों से श्रेष्ठ हैं और काटने लगते हैं । दूरदर्शन पर मैंने देखा है कि इसीलिए वे उन्हें तुच्छ बना देते हैं और वे लोग भी ऐसे हालात को स्वीकार कर लेते हैं। यद्यपि वे किसी भी प्रकार से उनसे तुच्छ नहीं हैं। अमरीका का ही उदाहरण लें, क्योंकि इस पूजा के मेज़बान अमरीका के लोग हैं और श्रीकृष्ण अमरीका के शासक हैं। श्रीकृष्ण स्वयं श्याम वर्ण के थे। जिस देश के शासक श्रीकृष्ण हों, वहाँ पर लोग ये नहीं महसूस करते कि सभी अश्वेत लोग या एशिया मूल के लोग यदि वहाँ से चले जाएं तो वहाँ पर क्या हाल होगा? बहाँ करने लगते हैं। यहाँ पर यदि कोई घटना होती के सभी खेलों में अश्वेत लोग आगे हैं। अमरीका में 999% खिलाड़ी अश्वेत हैं। फिर आप यदि संगीत को देखें तो अश्वेत लोगों की आवाज़ श्वेत लोगों से कहीं अच्छी है। वे इतना अच्छा गाते हैं कि गोरे उनका मुकाबला नहीं कर सकते। वहाँ से यदि सभी एशिया मूल के प्रवृत्ति अहँ के कारण आती है। क्योंकि आप चिकित्सक, नसे, वास्तुविद्, लेखाकार चले जाएं एक कबीले से सम्बन्धित हैं, इसलिए, आप कितनी क्रूरता से वे हत्या करते हैं मैं नहीं जानती कि रंग-भेद क्या है? परन्तु उन्होंने जुट बना लिए हैं और परस्पर एक-दूसरे को मारने में लगे हैं वे कौरव और पांडवों की तरह से दो तरह के लोग नहीं हैं जो स्वभाव से परस्पर विरोधी हों। वे सभी बुरे लोग है- चाहें श्वेत हो या अश्वेत- एक-दूसरे से झगड़ने लगते हैं। ये हिंसा अब बहुत बढ़ती जा रही है। मेरे विचार से हिंसा के शस्त्र से ही वे अपनी अभिव्यक्ति है तो इसके प्रत्युत्तर में किसी अन्य स्थान पर बम फोड़ कर वे बहुत से निरीह लोगों की हत्या कर देते हैं। ऐसा करना जघन्य पाप है। तनिक सी हिंसा भी पाप है और श्री कृष्ण के दृष्टिकोण से इसके लिए कठोर दण्ड मिलना चाहिए। यह चैतन्य लहरी । 26 खंड : XI अंक : 3& 4 1999 हिंसक खुशी प्राप्त करने की भावना अब भी लोगों के मन में है। मानवता, शांति, आनन्द की बात करने वाले मनुष्यों को इस प्रकार के हिंसक कार्यों का आनन्द लेते देखकर बहुत खेद होता है। वे या तो हिंसक कार्य करे हैं या इन्हें देखते हैं। भयंकर हिंसा पर बनी फिल्मों का सोचते हैं, दूसरे कबीले के लोगों की हत्या करने का आपको अधिकार है। मानव मस्तिष्क में इस प्रकार के मूर्खतापूर्ण विचार उठते हैं और वे दूसरे लोगों की हत्या करना अपना अधिकार मान लेते हैं। कहा जा सकता है कि यह घृणा की देन है। परन्तु घृणा अह की देन है। अहं जब गतिशील होता है तो घृणा अधिकारात्मकता, क्रोध और हिंसा के दुर्गुणों को एकत्र कर लेता है। ये सारे दुर्गुण अहँ से जन्म लेते हैं। अहं व्यक्ति को अन्धा कर देता है। हिंसा, घृणा क लोग आनन्द लेते हैं। इनका आप आनन्द लेंगे तो बार-बार ऐसी फिल्में बनती ही रहेंगी। आप ही साक्षी अवस्था में होंगे, साक्षी बन जाएंगे तो क्या होगा? चित्त से अगर आप इन सब घटनाओं को देखेंगे तो ये कम हो जाएंगी। आप यदि साक्षी अवस्था में हैं, वह स्तर बनाए खून-खराबा अनावश्यक है। इस तथ्य के प्रति आप अपनी आँखें बंद कर लेते हैं। अब आप पूछ सकते हैं कि श्री माताजी व्यक्ति में इस अर्हं हुए हैं, तो आपकी कोई दुर्घटना न होगी यदि का विकास किस प्रकार होता है अधिकतर कोई दुर्घटना हो भी जाएगी तो आप लोगों को है बचा सकंगे। यह तो अति निम्न स्तर पर परन्तु बच्चों को यदि बचपन से ये बताया जाएगा कि बहुत बड़े स्तर पर भी आप यह कार्य कर इन लोगों से घृणा करनी है ये गलत लोग हैं, बुरे सकते हैं, बहुत अद्वितीय कार्य। मुझे याद है, उस समय में बहुत बड़ी न थी, हम सचिवालय बच्चे नागफनी की तरह से घृणा को दर्शाने के समीप ही एक घर में रहते थे। हड़ताल हुई लगते हैं और दूसरे लोगों की हत्या में लग जाते और लोग पृथक महाराष्ट्र की माँग करने लगे। पुलिस वहाँ खड़ी थी और मुख्यमंत्री की आज्ञा मानव के इस प्रकार के आचरण का कोई से उधर आने वाले सभी लोगों पर गोली चला रही थी। उस सड़क पर आने वाले लोगों पर ये गोली चलाते और इस खेल का आनन्द लेते। हो सकता है, जब वे प्रतिक्रिया किए बिना मैंने ये सब देखा और इसे सहन न कर पाई। मैं नीचे गई और जाकर पुलिस वालों से कहा कि, "गोलीबाजी बन्द करो।" आप हैरान होंगे कि उन लोगों ने गोली चलाना बन्द कर दिया। जख्मी लोगों को मैं अपने घर पर लाई, उनके अन्दर से गोलियाँ निकलवाईं, एम्बुलेंस बुलाकर, ही लें, वहाँ पर साँडों से लड़ाई (Buill fighting) उनकी जान बचवाई। उस समय मेैं साक्षी अवस्था की जाती है। हर साल छः बार ये लड़ाई दिखाई में थी जहाँ आप निडर हो जाते हैं। साक्षी जाती है और यहाँ उपस्थित लोगों से दस गुने अवस्था में रहना यदि आप सीख लें, तो भय नहीं रह जाता। जब आप साक्षी नहीं साँडों से लड़ने लगी हैं यदि लड़ाई में साँड होते, तभी परेशान होते हैं, तभी उत्तेजित मारा नहीं जाता तो वे उसे गलियों में लोगों को होते हैं। बुरे लोगों की संगति में भी आप पड़ मारने के लिए छोड़ देते हैं। इस प्रकार की सकते हैं यदि आप साक्षी अवस्था में हैं, तो प्रतिक्रियाएँ और बन्धन ही इसका कारण हैं। हैं, तो बच्चे वैसा ही करने लगेंगे। बड़े होकर वे हैं। औचित्य नहीं है। यदि वे मानव हैं, तो उनमें मानवीय गुण भी होने चाहिए। यह तभी सम्भव केवल साक्षी बन जाए। उदाहरण के रूप में दो मुर्गे लड़ते हैं और लोग आनन्द लेते हैं। एक मुर्गा मर जाता है तो वे लोग प्रसन्न होते हैं मानो मरने बाला मुर्गा उनके माता-पिता का हत्यारा था! अत्यन्त आश्चर्य की बात है! अब स्पेन को लोग उस हॉल में होते हैं। अब तो महिलाएं भी 27 चैतन्य लहरी = खंड : XI अंक : 3 &4 1999 यह अवस्था अपने आप में ही एक शक्ति है या चीज की आलोचना करना आपका अधिकार जो अन्य लोगों की कठिनाइयों को दूर करने नहीं है। परन्तु कुछ लोग सोचते हैं कि यदि में भी आपकी सहायक होती है। किसी सन्त के विषय में चीन की एक र नहीं। वास्तविकता ये कहानी है। एक राजा सन्त के पास मुर्गा लेकर नहीं है। आपका चित्त अब प्रकाशित है। प्रकाशित आया और सन्त से कहा कि इसे इस प्रकार से चित्त से जब आप चीज़ों को देखेंगे तो सभी प्रशिक्षण दें ताकि लड़ाई में यह अवश्य जीते। सन्त ने कहा ठीक है। उसने राजा के मुर्ग को लगता है कि हम बहुत महान चीज़ हैं और हमें एक महीना वहाँ रखा। मुर्गों की लड़ाई जब शुरु ये सब कार्य करने हैं ऐसी स्थिति में आप स्वयं हुई तो भिन्न स्थानों से मुर्गे आए और लड़ने एक समस्या बन जाते हैं, क्योंकि आप क्या कर लगे। ये मुर्गा केवल खड़ा रहा और देखता रहा| दूसरे मुर्गे उससे डर गये। वे ये न समझ सके वेख सकते हैं। साक्षी भाव से चीज़ों को कि ये मुर्गा इतना शांत क्यों है? आराम से खड़ा उनकी वास्तविक स्थिति में देखने भर से है कुछ करता ही नहीं। वे सब अखाड़े से भाग आपमें एक उच्च स्थिति विकसित हो जाती गए और अन्त में उसी मुर्गे को ही विजयी है। घोषित किया गया| अहिंसा लाने का यही सर्वोत्तम तरीका है। हिंसा के स्थान पर जाकर शांति से लोगों में बहुत दिलचस्प परिवर्तन होते हैं। उनकी खड़े हो जाइए और वहाँ घटित होने वाली सभी स्मरण-शक्ति का हास बहुत कम हो जाता है। चौज़ों को शांति से देखिए। साक्षी भाव कार्य क्योंकि जो भी चीज़ वो देखते हैं, उसकी करता है और वहाँ होने वाली हिंसा को रोक तस्वीर, उनके मस्तिष्क में बन जाती है। वे देता है। साक्षी अवस्था मानसिक स्थिति है, यह आध्यात्मिक उत्थान की अवस्था है जिसमें आप साक्षी बन जाते हैं। साक्षी अवस्था में बने रहने का सर्वोत्तम तरीका ये है कि बहुत दुर्बल हो जाती है। प्रतिक्रिया करना लोगों आप किसी की आलोचना न करें, आलोचना की आदत हो जाती है। मैं ऐसे एक व्यक्ति को बिल्कुल न करें। मैंने देखा है कि लोग हर समय दूसरों की आलोचना करते रहते हैं वे अपनी रही थी। वह हर विज्ञापन को, हर दुकान के आलोचना नहीं कर पाते। इसलिए सदा अन्य लोगों की आलोचना में लगे रहते हैं अपने दोष और मुझे उनके विषय में बताता । ये ऐसा है, ये उन्हें दिखाई ही नही पड़ते। यह बात तो वे कह भी नहीं सकते कि उन्होंने अन्य लोगों की कितनी हानि की है। वे सोचते हैं कि लोगों की आलोचना करना उनका अधिकार है और इस आलोबना का वे आनन्द लेते हैं। साक्षी भाव से जाते हैं। इस प्रकार के लोगों की इतनी ही हानि देखते हुए, स्वयं इसका निर्णय करें। आपका अधिकार मात्र इतना ही है। किसी अन्य व्यक्ति आलोचना नहीं करेंगे तो चीजें ऐसे ही चलती रहेंगी, कभी सुधरेंगी बुराइयों में सुधार होगा। परन्तु हमें तो हमेशा यही सकते हैं? आप कुछ नहीं कर सकते मात्र साक्षी अवस्था में रहने वाले ऐसे सब आपको हर देखी हुई चीज़ का रंग और उसकी नहीं बारीकियां बता सकते हैं उनकी स्मरण शक्ति का हरास नहीं होता। परन्तु व्यक्ति यदि हर चीज के प्रति प्रतिक्रिया करता रहे तो स्मरण शक्ति जानती हूँ। एक बार में उसके साथ कार में जा नाम को पढ़ता, हर चीज़, हर व्यक्ति को देखता वैसा है। मैं हैरान अधिक बोल रहा है, इसका क्या होगा? परिणामस्वरूप उनकी स्मरणशक्ति का अचानक धी कि ये व्यक्ति इतना हास हो जाता है और वे अत्यन्त भुलक्कड़ हो नहीं होती, सामूहिकता में आकर भी वे बहुत हानिकर हो सकते हैं क्योंकि इस प्रकार के 28 चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 3&4. 1999 तो सहजयोगी होने के नाते हमें क्या करना चाहिए। हमें बिल्कुल प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। कोई गलत चीज़ भी यवि स्वभाव के कारण वे कोई कार्य नहीं कर सकते, परन्तु उन्हें कुछ न कुछ करना तो जरूर है इसी के लिए वे सामूहिक हुए हैं। इस प्रकार के आचरण में जो लोग बहुत अधिक उतरे हैं, वे आपको विखाई वे तो ठीक है, आप इस पर बहुत से लोगों को अपने इर्द-गिर्द इकट्ठा करके उनकी बहुत हानि कर सकते हैं। मैं, हिटलर का उदाहरण दूंगी नौ वर्षों प्रति यवि क्रूर है, तो उस क्षण प्रतिक्रिया न तक वह देखता रहा कि यहूदी लोग क्या गलतियाँ करें। जब वह व्यक्ति शांत हो जाए, तब करते हैं जर्मन के लोगों की गलतियाँ उसने नहीं देखी। उसने ये नहीं देखा कि जर्मन के लोग क्रोध से भड़क रहा था। ऐसी स्थिति में उसे ध्यान करें। कोई गलत कार्य होता हुआ यदि आप वेखें तो इस पर चित्त दें। कोई आपके आप उसे बताएं, क्योंकि उस समय तो वह बताने पर भी कुछ न होता। शनै: शनैः आप समाज की क्या हानि कर रहे हैं। उस समय का समाज भी बहुत ही पतित था क्योंकि समाज में उन्हें, उनकी गलतियों का एहसास करवा पाएंगे सभी प्रकार के दुराचार थे। अब वह देख रहा था कि यहूदी ऐसे हैं, वे ये करते हैं, पैसा लेते हैं, रहे थे वो करना अनुचित है। किसी भी चीज़ सूद पर पैसा उधार देते हैं, इन सारी बातों से के प्रति प्रतिक्रिया करना मूर्खता है और आत्मघातक उसने अपना मस्तिष्क भर लिया। परिणामस्वरूप उसमें प्रतिक्रिया हुई कि किसी भी तरह से इन लोगों को जर्मनी से भगाना है। इससे भी आगे, उसने सोचा कि जर्मनी से जाकर भी ये लोग में इस प्रकार की प्रतिक्रियाएं समझ नहीं आ बहुत वैभवशाली बन जाएंगे, तो क्यों न इनका वध कर दिया जाए? हिटलर के कारनामों को ही हो। अब वह कठिनाई में है, बहुत लज्जित आप फिल्मों में भी सहन नहीं कर पाएंगे। परन्तु है। प्रतिक्रियाओं का आनन्द लेने के कारण भी उसने और उसके अनुयायियों ने, ये सब कार्य ऐसा हो सकता है। किसी भी स्त्री या पुरुष के बिना किसी हिचकिचाहट के किया। मानो यह अत्यन्त आनन्ददायी हो, या ऐसा करना उनका कर्त्तव्य हो। हजारों यहूदियों को मारना उनका कर्त्तव्य किस प्रकार हो सकता था? यहूदियों ने ओर देखते हैं और महिलाएं पुरुषों की ओर। उनकी क्या हानि की थी? और उन्हें तो सुधारा किसलिए? सम्भवत: वे महिलाओं की ओर ये भी जा सकता था, तो इतनी हिंसा की क्या आवश्यकता थी? उन्होंने तो विश्व के पूरे यहुदियों उनकी ओर देख रही हैं या महिलाएं पुरुषों की को समाप्त करना चाहा। अपनी साक्षी अवस्था यदि आप खो दें, तो स्थिति अत्यन्त भयानक हो पुरुष उन्हें देख रहे हैं। क्यों? ऐसा वहाँ इसलिए सकती है क्योंकि तब आप नकारात्मक सामूहिकता बटित हो रहा है क्योंकि वे हीन भावना के के हत्थे चढ़ सकते हैं ये नकारात्मक सामूहिकता शिकार हैं या वे सब का ध्यान अपनी ओर इतनी बुरी तरह से कार्य करती है कि विश्व भर के सभी झगड़ों और समस्याओं का ठेका ले ये है कि दूसरे लोगों की सहानुभूति पाने के लेती है। और उनका हृदय जीत सकेंगे। जो कार्य व कर भी कुछ लोगों में प्रतिक्रियाएं अन्तर्राचित हैं। आपने श्री क्लिंटन का व्यवहार देखा होगा। मेरा अभिप्राय है कि उस जैसे उच्च पदारुढ़ व्यक्ति सकतीं! सम्भवत: उसमें इनकी रचना बचपन से प्रति क्यों आप प्रतिक्रिया करें? आज की संस्कृति की, विशेषकर विकसित देशों की, यह सबसे बड़ी समस्या है कि हर समय पुरुष स्त्रियों की जानने के लिए देखते हैं कि कितनी महिलाएं ओर ये जानने के लिए देखती हैं कि कितने आकर्षित करना चाहते हैं। कहने से मेरा अभिप्राय लिए, उनका ध्यान आकर्षित करने के लिए चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 29 3 & 4 1999 आजकल सभी प्रकार के उल्टे सीधे कार्य किए की मूल्य प्रणाली की सृष्टि हो गई है। उदाहरण जा रहे हैं। आपका चित्त यदि इनकी ओर जाएगा के रूप में, एक माँ भी इस बात की शेखी तो आप हैरान रह जाएंगे। अभी कोई बता रहा था कि अन्य लोगों की सहानुभूति प्राप्त करने के या वह अपने आप को महान अभिनेत्री समझेगी! लिए एक महिला ने अपने आठ बच्चों की हत्या कर दी। इन भयानक कुकृत्यों की कल्पना आप नहीं आता। जिस प्रकार वे अपने विषय में बातें करें। यदि आप चाहते हैं कि अन्य लोग प्रतिक्रिया करती हैं वह अत्यन्त आश्चर्यजनक है। महिला करें, आपको देखें या अनावश्यक महत्व आपको यदि माँ है तो उसे एक अच्छी माँ होना चाहिए दें तो आप ये सब करें। परन्तु इस खोखले और माँ की तरह से ही दिखाई पडूना चाहिए। महत्व का उपयोग क्या है? परन्तु आधुनिक परन्तु उनके मस्तिष्क में तो केवल एक ही बात जीवन में लोग इसी के पीछे घूम रहे हैं यह आम बीमारी है। आप कैसे लगते हैं? आपको चाहिए या महारानियों की तरह से लगना चाहिए। कैसा दिखाई पड़ना चाहिए? आपकी चाल कैसी होनी चाहिए? ये सब मूर्खता है और शक्ति की बरबादी। परमात्मा ने मानव को एक-दूसरे से गुण है, कोई ऐसा गुण जो उन्हें महान पुरुष बना बिल्कुल भिन्न बनाया है। नि:सन्देह एक व्यक्ति सके? ऐसा गुण यदि होगा तो दिखाई पड़ की शक्ल दूसरे से नहीं मिलती। प्रकृति में भी जाएगा। इसका विज्ञापन आपको नहीं करना पेड़ों के पत्ते इतने अद्वितीय होते हैं कि एक पेंड़ पड़ेगा, इसको बढ़ा-चढ़ा कर दर्शाना नहीं होगा का पत्ता, दूसरे पेड़ जैसा नहीं होता। मानव को भी इसी प्रकार अद्वितीय बनाया गया है। व्यक्ति के विषय में यदि आपको, इतनी उदासीनता हो को स्वीकार करना चाहिए कि जैसे भी आप हैं, तो, मैं सोचती हूँ, आपने बहुत कुछ प्राप्त कर ठीक हैं। आप दूसरे व्यक्ति सम क्यों लगना लिया है। आपकी बहुत सी निराशा समाप्त हो चाहते हैं? इस प्रकार की प्रतिक्रिया बिल्कुल जाएगी। मूर्खतापूर्ण है और इस पर हम अपनी शक्ति और जीवन को बर्बाद कर रहे हैं। सहजयोगी बहुत दिखावा करना चाहते हैं। मैं जानती हूँ कौन होने के नाते आपका मूल्य महान है। आप यहाँ ऐसा करता है, उन्हें जान लेना चाहिए। एक बार लोगों को इन तुच्छ विचारों, कार्यों और आचरणों से मुक्त करने के लिए आए हैं। मैं नहीं जानती कि किसको दोष दिया जाए? परन्तु अचानक प्रतिक्रिया होगी और इससे अन्तर्द्शन आरम्भ आपका चित्त अत्यन्त विचित्र हो गया है। हमारी हो जाएगा। जब आप स्वयं को देखेंगे तो आप प्रतिक्रियाएं अत्यन्त अटपटी हो गई हैं। समझ नहीं आता कि लेग इस प्रकार प्रतिक्रिया क्यों करते हैं तथा लोगों की प्रतिक्रियाओं पर क्यों ध्यान देते हैं? ये सारी चीजें व्यक्तिगत स्तर पर में सोचना बन्द कर देते हैं। मात्र निर्विचार होकर ही नहीं हैं सामूहिकता के स्तर पर भी हैं। परिणामस्वरूप, आप देखते हैं, एक नई प्रकार हैं। जिसकी संगति सभी लोग चाहते हैं। जिसे हाँकेगी कि उसके पीछे कितने पुरुष दौड़ रहे हैं वे स्वयं को क्या समझती हैं? ये मेरी समझ में भरी हुई है कि उन्हें अत्यन्त आकर्षक होना समझ नहीं आता कि वे कौन सा पद प्राप्त करना चाहती हैं। पुरुषों का भी यहीं हाल है। पुरुषों को देखना चाहिए कि उनके अन्दर कोई ि यह अपने आप प्रकट हो जाएगा। लोगों की राय सहजयोग में भी मैंने देखा है कि लोग जब आप बाह्य चीजों के प्रति प्रतिक्रिया करना बन्द कर देंगे तो आप के अन्तस में हैरान हो जाएंगे कि आप कितने प्रशंसनीय है । आप कितने प्रसन्न हैं! इससे भी थोड़ा सा आगे यदि आप जाएं तो आप इन दोनों चीज़ों के बारे सम्माननीय व्यक्ति की तरह से आप खड़े होते 30 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 3&4 1999 सब प्रेम करते हैं और सब जिसकी चिन्ता करते कुछ समय पश्चात् आपकी साक्षी अवस्था हैं। अत: व्यक्ति को ये चिन्ता नहीं करनी उन्नत हो जाएगी और सामूहिक रूप से जब चाहिए कि लोगों की प्रतिक्रिया क्या है? वे उसके विषय में क्या सोचते हैं और क्या कुछ किए, बिना कुछ कहे, बिना गतिशील कहते हैं? अन्तर्वर्शन द्वारा आपको स्वयं ये हुए आप अद्वितीय कार्य कर पाएंगे। आपकी सब देखना चाहिए। कुछ समय पश्चात् ॥1 fLFi ekk 15 d k; 2 gks में ये नहीं आपको अन्तर्दर्शन की भी आवश्यकता न रहेगी मैं उस स्थिति की बात कर रही हूँ जिसमें श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि मैं लोग आपसे प्रभावित होंगे। इस अवस्था में रहने स्वयं युद्ध नहीं करूंगा। तुम्हें मेरे और मेरी सेना में से एक को चुनना होगा। तो कौरवों ने कहा, हम आपकी सेना लेंगे, आपकी सेना से हम अपनी सेना को शक्तिशाली बनाएंगे। परन्तु अर्जुन सुनाऊंगी जो एक टापू पर रहता था। वो सहजयोग ने कहा कि मुझे सेना नहीं चाहिए, मैं तो आपको के कार्य के लिए दूसरे टापू पर जा रहा था। नाव चाहता हूँ। आप युद्ध नहीं करना चाहते तो न करें। यद्यपि वे युद्ध नहीं करेंगे, परन्तु साक्षी अवस्था में वहाँ उपस्थित होंगे और उनकी शक्ति सारा कार्य करेगी। उन्हें युद्ध करने की आवश्यकता नहीं है, परन्तु उनकी शक्ति जो बाह्य रूप से करने जा रहा हूँ|।" वह दूसरे टापू पर गया, मौन है कार्य करेगी और इस प्रकार वे युद्ध में आप सब साक्षी अवस्था में होंगे तो बिना e kk 1sd k; Z gks kA कहती कि इसका प्रभाव सभी लोगों पर होगा; नहीं, ऐसा नहीं कह सकते, परन्तु अधिकतर वाला व्यक्ति, अन्य लोगों को शांति एवं आनन्द प्रदान करता है। मैं आपको एक सहजयोगी की कहानी में जब वह बैठा तो उसने देखा कि घने काले बादल बने हुए हैं और गरज रहे हैं उसने साक्षी भाव से उनकी ओर देखा और कहा"मेरे वापिस आने तक प्रतीक्षा करो। मैं श्री माताजी का कार्य सहज कार्यक्रम किया, सभी कुछ समापन करने के पश्चात् वह वापिस आ गया। जब वह अपने घर में सोने लगा तो गडगड़ाहट के साथ मूसलाधार विजय प्राप्त करेंगे। अत: साक्षित्व की ये शक्ति आपको अपने अन्दर विकसित करनी चाहिए। इसे विकसित वर्षा होने लगी प्रकृति भी समझती है कि करने का प्रयत्न करें। किसी चीज़ के प्रति जब आप प्रतिक्रिया करने लगें तो प्रतिदक्रिया मैंने देखा है कि लोग महत्वाकांक्षी हैं सहजयोग को रोक वें, सभी प्रकार की प्रतिक्रिया में भी लोग महत्वाकांक्षी हैं। वे अगुआ बनना आप सांक्षित्व की महान अवस्था में हैं। परन्तु चाहते हैं, और न जाने क्या-क्या। ये सब आकांक्षाएं समाप्त कर दें। तब, आप हैरान होंगे, आप स्वयं को बहुत शक्तिशाली पाएंगे, क्योंकि मिथ्या हैं। सारी मिथ्या चीजें प्राप्त कर के लोग आपमें न तो आकांक्षाएं होंगी, न इच्छाएं उनमें उलझे रहना चाहते हैं एक बार जब और न ही कोई विशेष लगाव। कुछ भी नहीं, साक्षी रूप से आप नाटक देख रहे इनकी सारहीनता को जान जाएंगे, अर्थहीनता होंगे साक्षी रूप से देखना भी अत्यन्त को जान जाएंगे और माया को समझ जाएंगे। दिलचस्प है। तब आप हर चीज़ के पीछे छिपे विनोद एवं मुर्खता को देख सकेंगे की समस्या का समाधान करने का सर्वोत्तम आप समझ सकेंगे कि लोग किस प्रकार उग्र हैं और उन पर हँसेंगे। बिना परेशान हुए, देखने का अभ्यास करें। कोई भी टिप्पणी बिना उत्तेजित हुए इस नाटक पर हँसेंगे। करने से पहले साक्षी अवस्था का अभ्यास करें। आप साक्षी भाव से देखना सीख लेंगे तो अतः साक्षी अवस्था ही स्वत्व (Personality) उपाय है। साक्षी अवस्था में हर चीज़ को चैतन्य लहरी खंड : XI अक : 3&4 1999 31 सोचते हैं कि सुकत्यों के कारण उन्हें धन यह अत्यन्त संतोषप्रदायक दृष्टिकोण है । श्रीकृष्ण की साक्षी अवस्था ही उनके प्राप्त हो गया है और उस धन से वे सभी जीवन की महानतम शक्ति थी बिना कुछ किए, बिना हाथों में तलवार उठाए, बिना युद्ध की ऐसा नहीं कहा था। श्रीकृष्ण ने कहा था कि बातचीत किए, उन्होंने युद्ध जीतने में पांडवों की परिणाम परमेश्वरी शक्ति पर छोड़ दो क्योंकि सहायता की। केवल इतना ही नहीं, अपनी गीता परमेश्वरी शक्ति ही जानती है कि आपके हित के माध्यम से उन्होंने हमें ये बताने का प्रयत्न किया कि आसुरी शक्तियों पर विजय किस कोई अच्छा कार्य किया है, किसी की सेवा की प्रकार प्राप्त की जा सकती है। पूरी गीता में है, गरीबों की सहायता की है, महिलाओं के उन्होंने साक्षी अवस्था का ही वर्णन किया है। लिए कुछ अच्छा कार्य किया है, तो इन सभी इस नजरिए से अब यदि आप गीता को पढ़ें तो सुकृत्यों के परिणाम परमात्मा के चरण कमलों ये देखकर हैरान होंगे कि साक्षी भाव में सर्वत्र उन्होंने हर चीज़ का वर्णन किया है तथा किस प्रकार इस साक्षी अवस्था ने मनुष्यों को समझने अपने अन्दर अहं को न बढ़ने दें उन्होंने बहत में उनकी सहायता की। श्रीकृष्ण बहुत अधिक व्यवहारिक व्यक्ति न थे। उन्होंने सबसे पहले ये समझने के लिए भी साक्षी अवस्था का होना बताया कि स्थितप्रज्ञ किस प्रकार बनें। साक्षी आवश्यक है। कर्म के बाद उन्होंने ज्ञान के अवस्था में रहने वाला व्यक्ति ही स्थितप्रज्ञ विषय में लिखा है। ज्ञान का अर्थ है आपको होता है। स्थितप्रज्ञ, स्थिति पर लिखे गए श्लोकों को यदि आप देखें तो स्थितप्रज्ञ व्यक्ति वही है ज्ञान नहीं है। ज्ञान का अर्थ है स्व को समझना। जो साक्षी अवस्था में है। वह किस प्रकार रहता है, कितना प्रसन्न है, किस प्रकार से चीजों को देखता है। यह अत्यन्त दिलचस्प है। श्रीकृष्ण लहरियों के माध्यम से समझ सकें। ज्ञान का सर्वप्रथम इस अवस्था का वर्णन करते हैं, किसी अर्थ पुस्तकें पढ़ना नहीं है। पुस्तकें पढ़ने से तो दुकानदार की तरह से घटिया चीज़ से आरम्भ नहीं करते, सर्वप्रथम सर्वात्तम बात करते हैं। ज्ञान का अर्थ है कि आप स्वः (आत्मा) को तत्पश्चात् वे अन्य तीन पक्षों की बात करते हैं। पहचाने । स्वः को आप यवि नहीं जानते तो सर्वप्रथम वे कर्म के विषय में बताते हैं। से लोग कर्म में ही उलझ कर रह जाते कि आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करें और प्रकार के बुरे कर्म करने लगते हैं। उन्होंने में क्या है। अत: यदि आप सोचते हैं कि आपने पर छोड़ दें। इसका अभिप्राय ये हुआ कि जो भी कुछ सुकृत्य आपने किए हैं उनके कारण अच्छा लिखा है परन्तु कर्म के विषय में उन्हें समझे आ जाना, इसका अभिप्राय पुस्तकों का इसका अर्थ ये हुआ कि आपको सहजयोगी बनना होगा ताकि बहुत सी चीजों को चैतन्य आप और अधिक अहंकारी हो जाते हैं। अतः आप कुछ नहीं जानते। अत: सार ये हुआ बहुत हैं। वे कहते हैं कि जो भी कर्म हम कर रहे स्वः को पहचानें । यह दूसरी बात है जो श्री हैं इन्हीं से हमें पुण्य प्राप्त होंगे। परन्तु श्रीकृष्ण कृष्ण ने कही है। अन्त में वे भक्ति की बात ने ऐसा नहीं कहा था । उन्हें यदि आपने समझा है तो आप अवश्य जानते होंगे कि उनका अभिप्राय ये नहीं था। वे कहते हैं कि जो भी अपनाई। लोगों को गलियों में 'हरे-रामा, हरे कर्म करने आवश्यक हों, उन्हें आप कीजिए कृष्णा' गाते हुए आप देखते हैं। उन्होंने भक्ति परन्तु उनका परिणाम परमात्मा पर छोड़ दीजिए। परमेश्वरी शक्ति ही परिणाम देती है। कुछ लोग भक्ति । अनन्य भक्ति जहाँ वूसरा कोई न करते हैं। भक्ति का अर्थ है श्रद्धा। भक्ति का वर्णन करते हुए भी श्रीकृष्ण ने दूसरी युक्ति का एक शब्द में वर्णन कर दिया है-'अनन्य 32 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3 &4 1999 हो यानि आपने स्वयं को परमेश्वर में विलीन कर दिया हो। जब आपकी एकाकारिता उसमें आपका प्रेम ही निहित होता है। उपहार मुझसे हो तभी भक्ति करें अन्यथा मैं इसे की वस्तु पर खर्च हुआ धन महत्वपूर्ण नहीं स्वीकार नहीं करता। वो कहते हैं 'पत्रम् फलम् होता, कितने प्रेम पूर्वक आपने यह उपहार दिया पुष्पम् तोयम्'। तुलसी दुल, फल या पुष्प जो भी यह बात स्पष्ट होनी चाहिए। श्रीकृष्ण के साथ कुछ आप मुझे समर्पित करेंगे मैं उसे स्वीकार करूंगा। परन्तु वास्तविक भक्ति तभी संभव है। गए और दुर्योधन ने उन्हें भोजन के लिए निमंत्रण जब आप परमात्मा से एक तार हो जाते हैं। एक तार हुए बिना तो ये मात्र दिखावा है। तो श्री नहीं आ पाऊंगा। वे एक नौकरानी के पुत्र, कृष्ण की बताई 'भक्ति' भी आत्मसाक्षात्कार के विदुर, के घर गए क्योंकि विदुर आत्मसाक्षात्कारी पश्चात् ही हो सकती है। भक्ति का उन्होंने कोई पुरुष थे और वहाँ बना सर्वसाधारण खाना खाया। मूल्य नहीं बताया। आपने भक्ति के लिए कितना विदुर क्योंकि आत्मसाक्षात्कारी थे इसलिए श्रीकृष्ण धन दिया, ये बात महत्वहीन है। श्री राम इसके को उनके साथ खाना खाने में आनन्द महसूस एक महान उदाहरण हैं। वे जंगलों में गए, वहाँ हुआ। पर अछूत जाति की वृद्ध भीलनी थी। श्री राम जब उसके यहाँ गए तो उसने अपने दाँतों से भी प्रेम पर आधारित होनी चाहिए। जहाँ से चखे हुए बेर अत्यन्त प्रेमपूर्वक उन्हें अर्पण आपको प्रेम मिलता है, जो लोग आत्मसाक्षात्कारी किए। कहने लगी ये सब बेर मैंने चखे हैं इनमें हैं. उनसे आपके सम्बन्ध होने चाहिए। अहं के कोई भी खट्टा नहीं है । भारतीय संस्कृति के अनुसार चख कर झूठी की हुई चीज़ किसी को लोग चाहे जितने महान हों परन्तु सहजयोगी होने भेंट नहीं की जा सकती, परन्तु श्री राम ने इन बेरों को बड़े प्रेम से खाया, कहा कि, "वाह कितने अच्छे बेर हैं।" इतने अच्छे फल तो मैंने आपमें यदि साक्षी अवस्था नहीं है तो आय देखेगे कभी भी नहीं खाए। श्री लक्ष्मण भीलनी पर नाराज़ हो गए कि उसने अपने झूठे बेर श्री राम को क्यों दिये हैं। श्री सीता जी भी वहाँ मौजूद यह सब बातें बनी रहेंगी परन्तु साक्षी अवस्था थी। श्री राम से भीलनी के चखे हुए फल लेकर में आप समझ जाएंगे कि इस व्यक्ति से मुझे उन्होंने भी उन्हें बड़े प्रेम से खाया। तब उन बेरों चैतन्य लहरियां प्राप्त हो सकती हैं, आप समझ का महत्व श्री लक्ष्मण की समझ में आया और जाएंगे कि फ़लां व्यक्ति आध्यात्मिक है और बहुत प्रार्थना करके उन्होंने श्री सीताजी से कुछ फल लेकर खाए। इन फलों में श्री राम ने क्या देखा? जंगल में रहने वाली उस वृद्ध भीलनी जाएंगे। का प्रेम। श्री राम के लिए प्रेम ही महत्वपूर्ण था। आप भी जब किसी को कुछ देना चाहते हैं भी ऐसा ही हुआ। वे कौरवों के नगर हस्तिनापुर दिया, परन्तु उन्होंने क्षमा माँगी और कहा कि मैं त्ट तो आपकी मूल्य प्रणाली (Value system) नशे में चूर सांसारिक लोगों से नहीं। सांसारिक के नाते आपको प्रेम को समझना है, महसूस करना है और उसका सम्मान करना है। परन्तु कि इस व्यक्ति के पास कितना धन है? इसके पास कितनी कारें हैं? इसने कैसे वस्त्र पहने हैं? आप ऐसे व्यक्ति के साथ जुड़ जाएंगे, बनावटी चीजों को छोड़कर सच्चे व्यक्ति के साथ जुड़ परमात्मा आपको धन्य करें, धन्यवाद। ाल 33 चैतन्य लहरी = खंड : XI अंक : 3 & 4 1999 श्री गणेश पूजा कबैला 5,.9%.1998 ) म का तडि परम पूज्य माताजी श्री निर्मला वेवी का प्रवचन कर क ी आज हम श्री गणेश की पूजा करेंगे। मैं सोचती हूँ कि मैंने आपको श्री गणेश और उनके स्वभाव के विषय में बहुत कुछ बताया है। परन्तु अब भी हममें से बहुत से लोग ये नहीं महसूस कर पाए कि उनकी शक्तियां क्या हैं और वे हमसे क्या अपेक्षा करते हैं? श्री गणेश का सम्मान करने के लिए पावित्र्य (Chastity) का जेल की सलाखों के पीछे न डाल दिया जाए. उनकी समझ में नहीं आता। परन्तु सहजयोगी के लिए आवश्यक है कि अपने चरित्र की देखभाल करें। मैंने जैसा कल आपको बताया था, अपने लिए लड़की या लड़का खोजना आवश्यक नहीं है। यह भी चारित्र्य की मर्यादाओं के विरुद्ध है। मैं नहीं कहती कि आप केवल अपने माता-पिता को ही इसका निर्णय करने दें, सहजयोग को यह कार्य करने दें, क्योंकि आप सहजयोगी हैं, गणेश के रूप में जन्मे हैं और गणेश अन्ततः ईसा बन महत्व समझ लेना प्रथम एवं मुख्य आवश्यकता है पावित्र्य केवल महिलाओं के लिए ही नहीं है; पुरुषों के लिए भी पावित्र्य बनाए रखना बहुत जाते हैं। आवश्यक है। आपमें यदि वास्तव में आत्मसम्मान अतः चारित्र्य के प्रति आपका दृष्टिकोण अत्यन्त महत्वपूर्ण है। चारित्र्य के मामले में ही चीज़ों के पीछे दौड़ते रहेंगे। पावित्र्य का सम्मान, यदि हम भटक जाते हैं तो सहजयोग अत्यन्त दुष्कर है। यह आपको वांछित आशीवाद नहीं देता। आपने देखा कि रुमानिया और यूक्रेन के आदत बचपन से ही विकसित होने लगती है, लोग कितना सुन्दर गा रहे थे! इसका एक कारण इस विषय में हमें बहुत सावधान रहना चाहिए। ये है कि मूलत: वे विनम्र लोग हैं, इतने विनम्र हम यदि गणेश अवस्था में हैं तो इस प्रकार की हो गए हैं कि उन्होंने यौन-जीवन जैसे तुच्छ गन्दी चीजें हमें नहीं अपनानी चाहिए। मैं नहीं विचारों को त्याग दिया है। विनम्रतो मनुष्य को समझ पाती कि लोगों को ऐसे विचार कहाँ से सिखाती है कि उसमें आत्मसम्मान का अभाव मिलते हैं? आप देखते हैं कि विश्व में चारित्र्य है। इस्लाम धर्म में सतीत्व के महत्त्व पर इतना का घोर संकट है। विशेष कर पश्चिमी देशों में, बल दिया गया कि मोहम्मद साहब उस सीमा हमें बाल-यौन-शोषण के बहुत से मामले सुनने तक गए जहाँ उन्होंने कहा कि आप चार-पाँच को मिलते हैं। परमात्मा के मन्दिर में व्यक्ति को महिलाओं से विवाह कर सकते हैं ताकि समाज इस गन्दी बीमारी का नाम भी नहीं लेना चाहिए में वेश्याएं न हों। एक बार जब सतीत्व हमें जिसने लोगों को अपने चंगुल में फंसा लिया है। छोडने लगता है तो हमें किसी भी चीज की भारत में हमें ऐसी चीजें सुनने को भी नहीं चिन्ता नहीं रहती। उच्च पदासीन लोगों में हमने मिलती, इनके विषय में हम नहीं जानते। नि:सन्देह इसके परिणाम देखे हैं ये लोग स्वयं को बहुत कुछ लोग अत्यन्त अधम हैं और जब तक उन्हें महान मानते हैं और सोचते हैं कि ईसा मसीह है तो बिना किसी कठिनाई के आप पावित्र्य अपना लेंगे, अन्यथी तुच्छ एवं अपमान जनक इसकी समझ और इसे आत्मसात करना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। पावित्र्य की मर्यादा तोड़ने की 34 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 3 &4 1999 की मर्यादाएं तोडकर वे जो चाहे कर सकते हैं; प्रदायक हैं। विवेक द्वारा ही आप समाधान ढूंढते अपनी सहायक महिलाओं के साथ जैसा चाहे हैं ऐसे समाधान जो शांति संतोष एवं सुखमय दुर्व्यवहार कर सकते हैं चाहे वे ये कुकृत्य गुप्त हो। रूप से करें परन्तु श्री गणेश सब देखते हैं और उन्हें दण्डित करते हैं । इस प्रकार के जोखिम से भरे गन्दे कार्यों का सहजयोग में स्थान नहीं है। कि चक्रवात आया और उसके कारण कई लोगों आपकी गलतियों के लिए श्री गणेश आपकी भत्त्सना भी करते हैं। कल ही मुझे बताया गया सहजयोगी सर्वप्रथम अपनी दृष्टि को सुस्थिर को कष्ट उठाना पड़ा करते हैं क्योंकि दृष्टि का सम्बन्ध ईसामसीह उड़ गए। इस मौसम में तम्बुओं की कोई की शक्ति से है। परन्तु सभी इसाई राष्ट्रों में मैंने देखा है कि लोगों की दृष्टि अस्थिर है। अत्यन्त हैरानी की बात है। जब ईसा मसीह उनके इष्ट हैं, ईसा मसीह की बो पूजा करते हैं, चर्च जाते सो सकती हूँ। अत: व्यर्थ का झमेला बनाने की, हैं, ईसा मसीह का स्तुति गान करते हैं, फिर भी उनकी दृष्टि अस्थिर एवं अपवित्र है। यह कुदृष्टि की कोई आवश्यकता नहीं है असुविधा से ईसा मसीह के पावित्र्य को नहीं दर्शा सकती। अब दूसरी बात ये है कि श्री गणेश की शक्ति की अभिव्यक्ति केवल तभी होती है जब आप विवेकशील हों, क्योंकि श्री गणेश ही प्राचीन काल में लोग हिमालय पर जाकर एक विवेक प्रदायक हैं। परन्तु बहुत बड़ी समस्या ये टाँग पर खड़े होकर तपस्या करते थे, फिर भी है कि लाग नहीं समझते कि विवेक क्या है? उन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं होता था। वे तथाकथित बुद्धि, विवेक नहीं है। यह आपको । चक्रवात से उनके तम्बू आवश्यकता नहीं है। क्या आवश्यकता है? मेरी समझ में नहीं आता, परन्तु ये लोग तम्बू के बिना नहीं रह सकते। मैं बाहर गली में आराम से इन सारी चीजों की, पूरी गृहस्थी का सामान लाने हमें घबराना नहीं चाहिए। आप यदि आराम पसन्द हैं, असुविधाओं को सहन नहीं कर सकते तो सहजयोग के लिए बेकार है। आत्मसाक्षात्कार न प्राप्त कर सकते थे। परन्तु आप सब को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है। अत्यन्त चालाक, आक्रामक और कभी-कभी इतना सूक्ष्म बना सकती है कि आप असत्य एवं व्यक्ति को चाहिए कि वह स्वयं को उल्टे-सीधे कार्यो द्वारा लोगों को धोखा देते रहें सुख-सुविधाओं का दास न बनाए। आराम की बहुत अधिक चिन्ता करना अनावश्यक है। मैं सहजयोगी का मापदण्ड नहीं है। सहजयोग में सुख-सुविधाओं में भी रह सकती हूँ और इस उम्र में भी कहीं भी रह सकती हूँ। आपको त्याग सहजयोग के प्रति समर्पित करना। यह स्थिति का दिखावा नहीं करना, त्यागी बनना है। सन्यास अपनाने का अर्थ है कष्ट उठाना। परन्तु यदि आप अन्दर से सन्यासी हैं तो छोटी-छोटी कमियों का आप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। परन्तु अब भी हमारी शैली बाह्य संसार निर्धारित करता और स्वयं को बहुत सफल समझें। सफलता सफलता का अर्थ है सूक्ष्म रूप से स्वयं को तब तक नहीं पाई जा सकती जब तक आप नियमित रूप से ध्यान धारणा नहीं करते। ध्यान धारणा करना अत्यन्त आवश्यक है। जो लोग ध्यान धारणा नहीं करते, सहजयोग का प्रभाव उन पर समाप्त हो जाता है क्योंकि आन्तरिक प्रेरणा श्री गणेश की शक्ति की अभिव्यक्ति से और फ़ैशन के अनुसार यदि हम चल रहे हैं तो ही प्राप्त की जा सकती है। वे ही विवेक यदि हमारा अपना संसार हमें प्राप्त नहीं हुआ विवेक लुप्त हो जाता है। मैं कभी किसी से चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3 & 4 1999 35 आपको वे गण बनना है, श्री गणेश की सेना। वे गणे हैं, अत्यंत शक्तिशाली हैं तथा विश्व का सारा कार्य करते हैं । वे इसी विश्व में रहते हैं फैशन त्यागने के लिए नहीं कहती। आपका विवेक ही, आपका मार्गदर्शन करेगा। विवेक, आपको मर्यादा सिखाएगा क्योंकि यहाँ आप उत्थान प्राप्त करने के लिए, परन्तु उनकी शक्ति का स्रोत परमात्मा है। आध्यात्मिकता के साम्राज्य में एक विशेष पद प्राप्त करने के लिए आए हैं मैं पुनः विवेक उनकी सृष्टि की क्योंकि वे ही मंगलमय हैं। तो शक्ति पर बल दूंगी। कोई कार्य करने से पहले हमारे हित के लिए सर्वप्रथम मंगलमयता का आपको चाहिए कि विवेकपूर्वक यह देखें कि सृजन किया गया श्री गणेश के कारण ही हम ऐसा करना क्या विवेकपूर्ण है? इस अभ्यास से मंगलमय हैं। कुछ लोग घर में समस्याएँ खड़ी आपका क्रोध, कामुकता. दोषभाव बहुत ही कम करते हैं, बिना बात के वे समस्याएं बनाते हैं । हो जाएंगे।| एक बार जब आप जान जाएंगे कि ऐसे लोग मंगलमय नहीं हैं। शान्ति एवं प्रेम स्वयं को दोषी मानना विवेक हीनता है तो यह भावना समाप्त हो जाएगी। एक अन्य सबसे बड़ा दुर्गण जो हमें हैं. वह है सभी सांसारिक चीज़ें पा लेने की इच्छा, सभी प्रकार के लालच में फसे रहना।-विवेक से जब आप समझ जाएंगे श्री गणेश ही ओंकार हैं देवी ने सर्वप्रथम बनाने वाले लोगों को ही श्री गणेश आशीर्वादित करते हैं। झगड़ने में क्या विवेक है? पता लगाएं कि लड़ाई में क्या विवेक है? हम क्यों झगड़ रहे हैं? किन चीजों के लिए? छोटी-छोटी चीजों के लिए। ऐसी चीजों के लिए जिन्हें आप स्वयं कि यह अनावश्यक है तो तुरन्त आपका लोभ सुधार सकते हैं। क्यों आप झगड़ा करें? आप शून्य हो जाएगा अन्यथा हर समय आप अपने-अपने यदि झगड़ालू स्वभाव के हैं तो इसका अर्थ हैं स्वास्थ्य, अपने बच्चों, अपने घर या हर उस चीज़ के बारे में जो आपकी है, सोचते रहेंगे। आपके विरूद्ध हैं; आपके गणेश सुप्त हैं, वह कि श्री गणेश आपके विरुद्ध हैं। आपके गणेश ये साबित करती है कि आपका कुछ शक्ति आपके साथ नहीं है। इस प्रकार के व्यवहार में विवेकशीलता नहीं होती। इस विश्व में जिन महान लोगों का सदियों से सम्मान हो परन्तु मृत्यु भी नहीं। आप अकेले आए थे और अकेले जाएंगे। यह विवेक आत्मसात किया जाना चाहिए। आप इसका न तो अभ्यास कर सकते हैं और रहा है वे अत्यन्त विवेकशील थे। वें क्रोधी न ही इसे स्वयं पर धोप सकते हैं। यह तो स्वभाव के झगड़ालू या कामुक प्रवृत्ति के न थे। आध्यात्मिकता के माध्यम से ही आत्मसात किया ऐसे लोगों को आने वाली पीढ़ियां कभी याद न करेंगी। परन्तु यह इतना महत्वपूर्ण नहीं है, गणेश के नृत्य का आनन्द। बाल सम नृत्य करते सहजयोगियों के रूप में आप लोग महत्वपूर्ण हैं। पूरी मानवता को मुक्त करने के लिए है! आपको भी बही आनन्द आता है। वैसे ही, आप इस पृथ्वी पर अवरतरित हुए हैं अत: मानो आपके अन्दर एक शिशु ने जन्म लिया हो आध्यात्मिकता की गहनता में उतरना आपके और आप उस नन्हें शिशु-सम व्यवहार करने जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। आध्यात्मिकता लगें। प्रायैः इसमें कामुकता, लोभ आदि का कोई की गहनता में उतरने के इस लक्ष्य को, मैं सोचती हैं, आप सब जानते हैं फिर भी इसे आप किस तरह से खाना है तो यही स्थिति है, कार्यान्वित नहीं करते। पिछली बार मैंने आपको 36 जा सकता है। तब महानतम आनन्द बहने लगेगा- श्री हुए आप उन्हें देखें! उन्हें कितना आनन्द आता भाव नहीं होता। बच्चा जानता है कि बाँटकर चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3 & 4 1999 बताया था कि आपका चित्त अन्दर होना चाहिए अर्थ है कि वे एक हो गए हैं। एक' का क्या बाहर नहीं। और आपको प्रतिक्रिया नहीं करनी अर्थ है? एक का अभिप्राय है कि वे सब चाहिए। ये सब विधियां आपको विवेक एवं एक-दूसरे के लिए जीवित हैं। एक-दूसरे का हम आनन्द लेते हैं; एक-दूसरे की सुख-सुविधा व्यक्ति अपनी सुख-सुविधाओं, धन-संपत्ति, स्वास्थ्य को देखते हैं? धनी, निर्धन, स्वस्थ, रोगी सभी तथा अन्य सभी प्रकार की चीज़ों के विषय में एक हो जाते हैं। संस्कृत में इसे एकाकारिता कहते हैं वे एक हो जाते हैं यह एकाकारिता संवेदनशील होने में सहायता करती हैं। परन्तु जो संवेदनशील हैं, वह विवेकशील नहीं है वह बुद्धिमान नहीं है। भली-भांति पाले पोसे गए उत्सवों के समय दिखाई पड़ती है। जब यहाँ आकर आप हर समय एक-दूसरे की सहायता रूप से अन्य लोगों की चिन्ता करेगा, खोज करने का प्रयत्न करते हैं । मैंने देखा है कि किसी को भी परस्पर सहायता करने में हिचक है, कैसे उनको खुश किया जा सकता है। उन्हें नहीं होती। परस्पर आनन्द लेते हुए मैंने लोगों प्रसन्न करने के लिए वह छोटी-छोटी विधियां को देखा है। वे किसी का भी हृदय नहीं दुखाना चाहते। इसके विपरीत वे सभी के लिए सहायक किसी शिशु को यदि आप देखें तो वह निश्चित निकालेगा कि उन्हें किस चीज़ की आवश्यकता अपनाएंगा। परन्तु उनकी प्रतिष्ठा प्राप्त करना या उदारता का दिखावा करना उसका लक्ष्य नहीं एवं विवेकशील होना चाहते हैं। मेरे चुने हुए आपके अधिकतर अगुआ गण बहुत ही विवेकशील हैं और समस्याओं तथा उपद्रवों से बचना चाहते आज मैं आपको श्री गणेश के प्रयासों या हैं। अधिकतर अगुआ ऐसे ही हैं। आपमें से कोई उनकी शक्तियों के माध्यम से प्राप्त होने वाले यदि सहजयोग को हानि पहुँचाने का प्रयत्न करता है तो उन्हें इसकी जानकारी होती है। आप किसी ने मुझे बताया था कि आईंस्टाइन ने भी चाहें जापान में हों, अमेरिका में हों या अन्य एक ऐसा ही सिद्धांत बनाया था। यह एक कहीं, एकाकारिता प्राप्त करने के लिए आपको आविष्कार है कि यदि आप सब, श्री गणेश के अपने अन्तस की गहनता में जाकर यह महसूर होगा सामूहिकता उसे सच्चा आनन्द प्रदान करती है। सामूहिक स्वभाव के बारे में कुछ और बताऊंगी। आर्शीवाद से, शीतल हो जाएं तो हम सब एक करना होंगा कि आप सब एक हैं। आप सब हो जाएंगे. यह उनका सिद्धांत है। परन्तु एक ही तरह से सोचते हैं, एक ही लक्ष्य प्राप्ति फ़िलवल्ल्ड (Philworid) ने एक सिद्धांत स्थापित में आप सहायक हैं और एक ही शैली अपनाने का आप प्रयत्न करते हैं। मैंने देखा है लोग जब पूजाओं पर आते हैं तो वे एक-दूसरे की संगति का कितना आनन्द लेते हैं और कितना एक-दूसरे परमाणु एक दूसरे से टकराते हैं, एक-दूसरे को की सहायता करने का प्रयत्न करते हैं । रुस या पीटते हैं और बेतरतीब इधर-उधर दौड़ते हैं। बलगेरिया का कोई व्यक्ति जब अपनी समस्याओं के विषय में मुझे लिखता है तो, मेरे बिना कहे, अमेरिका का कोई सहजयोगी पत्र लिखकर तुरन्त मुझे कहता है कि, "श्री माताजी रूस के अमुक व्यक्ति को, कृपा करके, क्या आप अमेरिका किया कि हेलियम (Helium) गैस को यदि आप ठंडा कर लें तो इसके सभी अणु या परमाणु सामूहिक रूप से चलने लगते हैं, अन्यथा ये इसी प्रकार जब वास्तव में हमें श्री गणेश का आर्शीवाद प्राप्त हो जाता है तो हमारे विवेक के साथ क्या घटित होता है? हम अत्यन्त विकसित सहजयोगी बन जाते हैं। विकसित सहजयोगी का 37 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अक : 3 & 4 1999 भेजेंगी"? प्राय: ऐसा होता है। मैं उन्हें कुछ नहीं चले गए क्योंकि आप जानते हैं, कि ईसामसीह कहती, कुछ तो एकदम बहुत से लोग, बहुत से देश उस कार्य को करने के लिए उद्यत हो जाते हैं। श्री मसीह को ऐसे लोग अच्छे नहीं लगते जो माताजी ये समस्या है, ठीक है। हम जाकर इस कार्य को कर देंगे। इस मामले में, एकाकारिता लोगों पर रौब झाड़ते हैं। ऐसे लोग उन्हें पसन्द के मामले में, मैं कहूँगी. ऑस्ट्रिया के लोग बहुत ही संवेदनशल हैं। लोगों की सहायता करने, उन्हें नहीं बताती और यदि मैं कह दूं, को अहं पसन्द नहीं है। अहंकारी लोग उनहें पसन्द नहीं हैं। ईसा ही श्री गणेश हैं; तो ईसा अहंकारवश अपनी संस्था बनाते हैं, और दूसरे नहीं हैं, दोनों ईसा और श्रीगणेश, एक ही हैं। उनमें पूर्ण एकाकारिता है। उन्हीं की तरह से हमें भी एकाकारिता का ये विशेष गुण अपने में आत्मसाक्षात्कार देने के लिए इतनी दूर चल कर येरुशलम गए। मैं भी येरुशलम जाना चाहती विकसित करना चाहिए। हम इन तथाकथित थी, परन्तु वहाँ पर युद्ध की स्थिति के कारण मैं धरमों के विषय में भूल जाते हैं। आप देखें कि वहाँ न जा पाई। येरुशलम के लोगों को मैंने वे किस प्रकार लड़ रहे हैं? सभी बाह्य धर्म कहीं अधिक सामूहिक पाया. वे लोग मिस्र से आए थे। मैंने कहा कि आप यहाँ क्यों आए के गलत कार्य कर रहे हैं। इस बात को आप हैं?",मिस्र के मुस्लिम लोगों से दोस्ती बनाने।' परस्पर लड़ रहे हैं। वे बेईमान हैं। सभी प्रकार भली-भांति जानते हैं रोज अखबारों में आप इन गलत कार्यों के विषय में पढ़ते हैं। वे थोड़ा-बहुत आप कल्पना करें, मैं हैरान थी कि किस प्रकार वे यहाँ आ पाए! "केवल मित्र बनाने के लिए। सफल हो जाते हैं। परन्तु उनकी ये स्थिति अधि वे मुस्लिम हैं, अत: हम उनके साथ मित्रता क समय तक नहीं चलती क्योंकि उनका पर्दा. बनाना चाहते हैं।" अतः बिना किसी बाह्य उद्देश्य के, है। जिस श्रद्धा के आधार पर वे कार्य कर रहे बिना किसी लाभ की इच्छा से मित्र बनाना हैं वो समाप्त हो जाएगी। इन सबको लुप्त हो आपकी एकाकारिता की निशानी है। केवल इतना ही नहीं कि आप अन्य सहज़योगियों से में यह झुठा विचार है। कोई भी धर्म दूसरे धर्म सन्तुष्ट हैं, अन्य लोगों को भी सहजयोग में से उच्च किस प्रकार हो सकता है, और ऐसे लाना चाहते हैं। बहुत से लोगों ने ये कार्य किया है। यह अत्यन्त पोषक है। ज्यों-ज्यों आपमें से हुआ हो! फाश हो जाएगा। अब भंडाफोड़ होने का समय जाना होगा। किसी भी धर्म की उच्चता के विषय धर्म से जिसका सृजन श्री गणेश की मंगलमयता दूसरे धर्म-सम्प्रदाय से लड़ना या ये कहना कि हम उच्च प्रजाति के लोग हैं और ये नीची व्यक्ति को भी जब आप आत्मसाक्षात्कार देते हैं प्रजाति के. मंगलमय नहीं है यें सब असत्य से लोग मुझे विचार समाप्त हो जाते हैं। ये शेष नहीं बचते क्योंकि इन विचारों ने समस्याओं को जन्म दिया है। जैसे अमेरिका में पहले श्याम वर्ण लोगों से घृणा की गई। अब वे श्वेत लोगों से घृणा कर रहे हैं। बहुत बड़ा तूफान चल रहा है। भारत में भी कुछ लोगों को अछूत कहा जाता था। उन्हें प्रकाश आता है आपको अन्य प्रकाशवान लोग मिल जाते हैं। यह अत्यन्त आनन्ददायी है। एक तो आपको प्रसन्नता होती है। बहुत स लिखते हैं, " श्री माताजी हमें बीस लोग मिल गए हैं: हमें तीस लोग मिल गए हैं।" और वे इस पर बहुत प्रसन्न हैं कि हमें इतने सहजयोगी मिल गए हैं। परन्तु ऐसा करते हुए विकसित हो गया तो आप श्री गणेश के विरुद्ध यदि आपमें अहं 38 वैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 3 & 4 1999 कष्ट दिए जाते थे, सताया जाता था और उनके साथ न किए जाने वाले कुकृत्य किए जाते थे। कि यदि आप अपनी पत्नी की संगति का शास्त्रों में ऐसा करने के लिए नहीं लिखा है। अब यही अछूत लोग, उच्च जाति के लोगों के का आनन्द लेंगे? पारिवारिक जीवन के आशीष विरूद्ध कार्यरत हैं उन्हें उनका स्थान दिखा रहे का आनन्द यदि आप नहीं ले सकते तो किसी हैं। तो इस प्रकार के विचारों से झगड़े खड़े हो भी अन्य चीज का आनन्द आप नहीं ले सकते । जाते हैं। श्री गणेश जब आपको विवेक प्रदान पति-पत्नी का गहन सम्बन्ध केवल श्री गणेश करते हैं तो आप जान जाते हैं कि एक मनुष्य की समस्या के कारण ही टूटता है। गणेश तत्व दूसरे से उच्च नहीं होता। आप सबको परमात्मा ने बनाया है और परमात्मा की बनाई हर चीज सुन्दर एवं मंगलमय है। एक बार जब आप ये बिगाड़ ये बताता है कि श्री गणेश तत्व में बात समझ जाते हैं तो ये एकाकारिता बाहर भी निश्चित रूप से कुछ खराबी है। अपना श्री फैल जाती है। यह अन्य लोगों तक भी फैलती गणेश तत्व ठीक करें, तब दूसरों की ओर हैं केवल सामाजिक सूझबूझ और सामाजिक उन्नति के कारण आप दूसरों के प्रति हितकर करना है। पृथ्वी पर बैठकर ध्यान करें। जब नहीं होते, नहीं। अपने अंदर से, अन्दर से आप इस कार्य को करते हैं । सर्वप्रथम ये एकाकारिता परिवार में श्री गणेश का सम्मान नहीं करते। श्री गणेश की होनी चाहिए। यह बहुत महत्वपूर्ण है। हर सृष्टि पृथ्वी तत्व से की गई। वे पृथ्वी माँ का समय अशांत परिवार ऐसे बच्चों को जन्म संचालन करते हैं । वे पंच तत्व को नियंत्रण नहीं दे सकता जिनमें एकाकारिता कि स्थिति करते हैं । केवल इतना ही नहीं वे आपको भी हो। अतः हर समय उन्हें झगड़े नहीं। परिवार में भी वे हर समय बो मुझे अच्छी लगी। इसमें श्री गणेश को एक झगड़ते रहते हैं। ऐसे लोग सहजयोगी नहीं हो सकते। इस प्रकार के झगड़े यदि हैं, तो बेहतर होगा कि परिवार से बाहर हो जाएं। फिल्म बहुत सुन्दर है क्योंकि इसमें श्री गणेश यही कारण है कि हमने तलाक़ की आज्ञा दी है। सदैव यह बताने के लिए उपस्थित रहते हैं कि अन्य स्त्रियों के पीछे भागने वाले या ग़लत कार्य अमुक कार्य मत करो। फिर भी यदि आप ये करने वाले पुरुषों से हमने कह दिया है कि कार्य किए चले जाते हैं, तो आपको सभी सहजयोग छोड़ दें। कारण ये है कि एक सड़ा हुआ सेब बहुत से सेबों को सड़ा सकता है। मुखाकृति बिगड़ सकती है, और सभी प्रकार अत: ऐसे पुरुष एवं महिला को सहजयोग से के पारिवारिक रोग आपको हो सकते हैं। बिल्कुल बाहर रखा जाना चाहिए ताकि पारिवारिक आपको राष्ट्रीय समस्याएं भी हो सकती हैं। सम्बन्ध बेहतर हों। सहजयोग में यह बात बहुत तो ये समझ लेना अत्यन्त आवश्यक है कि ही महत्वपूर्ण है। आपके पारिवारिक सम्बन्ध एकदम पूर्ण होने चाहिए। मैं नहीं समझ सकती आनन्द नहीं ले सकते, तो विश्व में किस चीज़ यदि ठीक होता तो पूर्ण एकाकारिता और पूर्ण सूझबूझ पति-पत्नी के बीच होती। सम्बन्धों का देखें। श्री गणेश पर आपको निरन्तर ध्यान हम पृथ्वी माँ से दूर भागते हैं, पृथ्वी को छूते नहीं, उसका सम्मान नहीं करते तो एक प्रकार से नियंत्रित करते हैं। कल जो फिल्म इन्होंने दिखाई, बताएं कि परस्पर अन्य व्यक्ति के साथ घूमते हुए दिखाया गया। वे बता रहे थे कि ऐसा करो, वैसा मत करो। ये प्रकार के भयानक रोग हो सकते हैं, आपकी अपवित्र विचारों से बचना चाहिए। मेरी समझ में 39 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3 & 4 1999 सकता क्योंकि श्री गणेश ही शांति के वाता नहीं आता कि लोगों के मन में किस प्रकार से छोटे-छोटे शिशुओं के प्रति इस प्रकार के बिचार हैं। विश्व शांति इसलिए आलोड़ित आते हैं। कोई दो साल का शिशु है कोई पांच ( डांवाडोल) है कि हमने श्री गणेश की साल का। किसी बच्चे को या उसके फोटो को पूजा नहीं की । मैंने ऐसे लोगों को देखा है जो भी जब आप देखते हैं तो उसे प्रेम करने का, उस बच्चे को चूमने का आपका मन करता है। इसके अधिकारी हैं परन्तु स्वयं पर उनका अधि बच्चों का सम्मान यदि आप नहीं करते तो श्री गणेश के मूल्य को किस प्रकार समझ सकते हैं? देखें बच्चे कितने मधुर हैं! कितनी मधुरता हैं और लोग उनका अनुसरण करने का प्रयतन से वे व्यवहार करते हैं । वे मुझे समझते हैं आपको भी समझते हैं। छोटे-छोटे बच्चे, नवजात शिशु भी मुझे समझते हैं। प्रेम को समझने की विषय में जानते हैं क्योंकि आपमें मंगलमयता भावना एक प्रकार से उनमें अन्तर्जात है। अहंवादी यदि कम हो रही है तो किसी न किसी तरह से लोगों के लिए प्रेम को समझ पाना अत्यन्त पूरा विश्व इस बात को जान जाता है। इन सब कठिन होता है। वे तो केवल स्वयं को प्रेम करते हैं, किसी अन्य को नहीं। किसी अन्य को यदि वे प्रेम करते हैं तो केवल लालच, बासना या उच्च पदों पर नियुक्त हैं. सेना के अधिकारी हैं. कार नहीं है। उनके अन्दर श्री गणेश यूर्णतः नष्ट-भ्रष्ट हो चुके हैं ऐसे सभी लोग राष्ट्र नेता करते हैं । चाहे वे कोई कार्य गुप्त रूप से ही क्यों न करें, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। लोग इनके का अब पर्दाफ़ाश हो जाएगा क्योंकि अब सत्ययुग आ गया है। सत्य युग में हमारे अन्दर सत्य का प्रकाश है। सत्य हमारी सभी बेवकूफियों को से। 'प्रेम के लिए प्रेम' तो अनावृत कर सकता है। किसी अन्य कारण । सत्य श्री गणेश का ही गुण है। वे ही हमारे मस्तिष्क को सत्य प्रदान करते हैं । ये सत्य तभी सम्भव है जब आपका श्री गणेश तत्व पूरी तरह से शुद्ध स्थिति में रखा गया हो। हम इतनी दूर आ गए हैं, विश्व भर में ईसामसीह के माध्यम से आता है। ईसामसीह ने हमारे बहुत से सहजयोगी हैं। नि:संदेह मैंने बहुत कार्य किया, बहुत कुछ किया। परन्तु कठोर परिश्रम किया, परन्तु आप लोगों ने भी उनके अनुयायियों की स्थिति को देखिए। देखिए, मुझे बहुत सहारा दिया। में आपकी धन्यवादी हँं। कि वे किस तरह से व्यवहार कर रहे हैं। हमें पश्चिमी देशों में जहाँ गणेश तत्व का कोई कम से कम इतना तो दर्शाना चाहिए कि यदि हम श्री गणेश और ईसा मसीह के अनुयायी हैं, महत्व ही नहीं माना जाता, वहाँ आप लोगों का सहजयोग स्वीकार करना, सहजयोग को जीवन तो हमारा व्यक्तित्व भी उन्हीं की तरह से आध्यात्मिक है। आध्यात्मिक जीवन आनन्द में अपनाना और आपका इतना अच्छा वन जाना दुष्कर कार्य था। सहजयोग में श्री गणेश और उनके गुणों की पूजा अपने अन्तस में करना का दाता है। आध्यात्मिकता के अतिरिक्त आनन्द कहीं अन्यत्र नहीं प्राप्त किया जा सकता। आपको कुछ संतोष, थोड़ा अहं मिल सकता है। आप स्वयं को महान चीज़ समझने यदि ठीक है तो कोई भी आपको छुू नहीं लगते हैं। परन्तु श्री गणेश की अभिव्यक्ति सकता, कोई भी आपको नष्ट नहीं कर सभी चक्रों पर होने से ही आन्तरिक शांति सभी बहुत महत्वपूर्ण है। यह अत्यन्त सुख-शांति एवं सुरक्षा प्रदायक शक्ति है। आपका गणेश तत्व सकता, कोई भी आपको अशांत नहीं कर और आनन्द प्राप्त हो सकता है। वे 40 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 3&4 1999 चक्रों पर प्रकट होते हैं। आपके उन चक्रों दण्ड देने का प्रयत्न करते हैं । क्षमा करने की की स्थिति जब ठीक होती है तब आपको एक सीमा है जिसके पश्चात् वे सोचते हैं कि अब ऐसे व्यक्ति को क्षमा करना उचित न होगा। तो क्षमा करना ईसा मसीह के लिए तो ठीक है परन्तु श्री गणेश पर्दाफ़ाश करते हैं और अपराधी लिख रहे हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो श्री गणेश को दण्ड देते हैं। अत: आपको समझना चाहिए के विवेक तत्व एवं मंगलमयता के विषय में कि ईसा मसीह बहुत महान हैं क्योंकि वे हमें बहुत मधुर चीजें लिख रहे हैं बहुत ही मधुरतापूर्वक क्षमा शक्ति प्रदान करते हैं और श्री गणेश अत्यन्त शक्तिशाली हैं क्योंकि वे हमारी इच्छा बहुत मधुर कहानियाँ लिखी है। ये केवल प्रेम शक्ति को सीमित करते हैं। किसी को भी हम क्षमा कर दें या कहें कि क्षमा करना मुझे अच्छा कुछ सीमा तक ठीक है। अब इसके आगे भी लगेगा, परन्तु हम नहीं जानते कि श्री गणेश हमें कुछ होना चाहिए। और इसके आगे श्री गणेश ऐसा करने भी देंगे या नहीं और उनकी बात को तत्व है जो कि पूर्ण शान्ति पूर्ण आनन्द एवं प्रेम ईसा मसीह भी नहीं टालते। वे दोनों एक हैं। एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अतः हम ईसा है। कोई भी व्यक्ति जो आपको पावन प्रेम मसीह की क्षमा शक्ति पर बहुत अधिक निर्भर नहीं हो सकते क्योंकि सदैव श्री गणेश, आपने देखा होगा, हाथ में फ़र्सा लिए बैठे रहते हैं। वे से नाराज़ हो गए हैं। मैं नहीं जानती क्यों? वे ऐसे मातृ शान्ति हैं, शीतलता हैं और आत्मसाक्षात्कार शीतल आनन्द प्राप्त होता है और ये आनन्द श्री गणेश के माध्यम से ही प्राप्त होता है। आजकल लोग भयानक पुस्तकें तथा भयानक विषयों पर मैंने देखा है कि उनके विषय में कुछ लोगों ने कहानियाँ ही नहीं हैं। प्रेम कहानियों का सृजन की सूझ बूझ है। पावन प्रेम के आदान-प्रदान का मूल्य करता है, उसे ठीक प्रकार से समझा जाना चाहिए। कल मुझे पता चला कि श्री गणेश थोडे नहीं थे। सम्भवत: हममें से कुछ लोग श्री गणेश के पश्चात् आपको शीतलता देते हैं। के सिद्धान्तों का पालन नहीं करते, इन्हीं के चैतन्य लहरियाँ श्री गणेश की दी कृपा से प्राप्त होती हैं। नि:सन्देह ये ब्रह्म चैतन्य है परन्तु श्री गणेश ही इनको प्रसारित करते हैं । वे ही आप श्री गणेश का आशीर्वाद माँगे तो वे आपको शांत करते हैं और अत्यन्त सन्तुष्ट सवा आशीर्वाद वेने के लिए तैयार रहते हैं एवं शान्तिमय बनाते हैं। उस शान्ति में आप सब एक हो जाते हैं। आप किसी भी देश में भी रहते हों, किसी भी देश पर आपको गर्व हो, करते हें तो वे आपको छोड़ेंगे नहीं। छोड़ने उसकी कमियाँ आपको दिखाई देने लगती की बात उन्हें समझ नहीं आती। केवल ईसा और उन्हें सुधारने का प्रयत्न आप करने लगते तथा आपमें परस्पर एकाकारिता स्थापित हो जाती करने की बात सोचते हैं। परन्तु क्षमा का अर्थ है बुराई से आपको नहीं जाना जाता। सतयुग ये भी नहीं कि सभी अपराध क्षमा हो जाते हैं। की ये महान बात है कि यह बुराइयों को कारण ये संब कष्ट हैं। सच्चे हृदय एवं मन-मस्तिष्क से यदि परन्तु यदि आप उनकी बात नहीं सुनते और किसी भी तरह से आप अपनी पावनता नष्ट मसीह के स्तर पर पहुँच कर ही वे क्षमा नहीं। यह तो एक प्रकार की नियंत्रक शक्ति है। ईसा मसीह ने कहा है कि आपको क्षमा कर अनावृत करता है। आक्रामकता पूर्वक और किसी गेलत चीज़ को आप आश्रय नहीं देते। आजकल दिया जाएगा। परन्तु एक सीमा के बाद श्री गणेश चैतन्य लहरी = खंड : XI अंक : 3 &4 1999 ये अपराध जोर-शोर से किए जा रहे हैं परन्तु 41 he आप इनको स्वीकार नहीं करते। एक बार जब आप इन गलतियोँ को स्वीकार करना बन्द कर देते हैं तो अन्य सच्चे लोगों से आपकी एकाकारिता हो जाती है। उनके विचार, सूझबूझ, आनन्द भी एक सम होते हैं और वे एक-दूसरे का आनन्द गई है। ऐसा जब घटित हो जाएगा तो आपकी लेते हैं। उनमें परस्पर एकाकारिता हो जाती है आध्यात्मिकता बढ़ेगी। मुझे आशा है कि आप और सहजयोग में ये एकाकारिता पूर्णतः स्थापित इसे श्री गणेश की तरह से कार्यान्वित करेंगे और होनी चाहिए। कुछ लोग जो केवल पैसा बनाना चाहते हैं या बहुत बड़ी भीड़ इकट्ठा करना चाहते हैं या इस प्रकार की कोई अधम चीज़ लोग मुझे अच्छे नहीं लगते। ये अच्छी बात नहीं चाहते हैं वो अपने इरादों में सफल नहीं होते। है। यदि आप क्षमाशील हैं तथा आपमें एकाकारिता सहजयोग में आकर अपने लिए पति या पत्नी है तो इसकी कोई आवश्यकता नहीं। अधिक से खोजने वाले लोग समाप्त हो गए हैं। विनम्रता से ही ये आध्यात्मिकता रहती है और श्री गणेश के प्रयासों के द्वारा विनम्रता बताई जाती है। एक बार उनकी माँ गौरी ने उनसे कहा कि जो पृथ्वी की तीन परिक्रमाएं करेगा उसे मैं इनाम दूंगी। श्री चीजें बेहतर होंगी। तो ये बहिष्कारवृत्ति भी त्यागी गुणेश ने सोचा कि मेरी माँ से अधिक कौन जानी चाहिए, सम्भवत: यह असुरक्षा की भावना महान है? पृथ्वी तो उनसे महान नहीं हो सकती। के कारण आती है। यदि गलत लोग आ जाएंगे छोटा सा मूषक श्री गणेश का वाहन है। ये वाहन दर्शाता है कि वे कितने विनम्र थे। चूहे पर किसी प्रकार का वज़न नहीं डालते थे। उनके हों। सबके साथ एक हों और लोगों की देखभाल भाई कार्तिकेय का वाहन उड्ने वाला मोर था। श्री गणेश जानते थे कि वे अपने भाई का मुकाबला नहीं कर सकते उन्होंने अपनी माँ की तीन परिक्रमाएं कर ली और इनाम जीता। ये गणेश के गुणों को विकसित करने के लिए आप कहानी दर्शाती है कि तेज गति सफलता का मार्ग नहीं है। आपको अपनी गति कम करनी पावित्र्य, शांति और सुरक्षा की शक्ति को उन्नत होगी। इसके अतिरिक्त आपको समझना होगा करेंगे। कि क्या चीज़ महत्वपूर्णतम है; वैसे ही जैसे श्री गणेश ने समझा कि आपकी मा, माँ का सम्मान करना और उन्हें उच्चतम मानना, महानतम मानना ही सबसे अधिक आवश्यक है। इस प्रकार से हमारे अन्दर उनकी अभिव्यक्ति की एकाकारिता स्थापित करेंगे अपने अगुआओं के तथा अन्य लोगों के विरूद्ध पत्र लिखने वाले अधिक लोगों को सहजयोग में लाने का प्रयत्न करें। किसी को अधम या बेकार कहकर अलग नहीं किया जा सकता। क्षमाशीलता से उन्हें लाने का प्रयास करें। आपके पावित्र्य एवं विवेक से तो श्री गणेश उन्हें बाहर भगा देंगे। अत: उनसे न तो घबराएं और न ही उनके कारण अशांत करते हुए, उनका संचालन करते हुए, उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करें। मुझे आशा है कि इसके पश्चात् अपने अन्दर श्री लोग ध्यान धारणा करेंगे और अपने अन्दर परमात्मा आपको धन्य करें। ४ चैतन्य लहरी 42 खंड : XI अंक : 3&4 1999 श्री पृ गणश पूजा(कबैला 5.9.1998) विवाह समारोह के पश्चात परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन यह अत्यन्त आनन्ददायी एवं शुभअवसर आत्मसाक्षात्कारी अत्यन्त सुन्दर बच्चे हैं और था। इसका हम सबने आनन्द लिया। दूल्ह-दुल्हने बहुत प्रसन्न नज़र आ रहे हैं ये सब देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है और नहीं समझना चाहिए के. विवाह करके पत्नी पर मैं हृदय से आपको आशीवाद देती हूँ। केवल रौत् जमाने का या उसके सिर पर बैठने का इतना कहूंगी कि अपने विवाह को अत्यन्त प्रेममय एवं सफल बनाएँ, यह बहुत आवश्यक है। उदाहरण के रूप में मैंने देखा कि एक देश से छः या सात लड़कियां थीं जिन्होंने दुर्व्यवहार होते हैं। इसके विपरीत पश्चिम की महिलाएं किया और तलाक़ ले लिया। इस प्रकार के पुरुषों से कहीं अधिक आक्रामक हैं। ये बात व्यवहार के कारण हमने उस देश पर रोक लगा दी है। क्योंकि हमें लगा कि इन महिलाओं ने कई बार विवाह टूट जाते हैं। किसी पर भी एक के बाद एक इतने विवाह तोड़ दिए, ऐसा रोब्र जमाने की कोई आवश्यकता नहीं। किसी उनके खोखले अहं के कारण हुआ होगा। यह हमारा अनुभव है। कुछ अन्य देश भी हैं। जिनमें को निभा पाना यदि असंभव है, आपका साथी सहज विवाहों के कुछ बुरे उदाहरण हैं। तो मैंने यदि अशोध्य है, तो सहजयोग में हमने तलाक़ कहा कि यदि आप विवाह नहीं करना चाहते तो की आज्ञा दी है। परन्तु तलाक़ लज्जाजनक है। मत करें। सहजयोग में आप स्वयं के लिए या पत्नी के लिए विवाह नहीं करते, सहजयोग के मुझे बिल्कुल पसन्द नहीं। अत्यन्त सुन्दर, रोमांचक लिए विवाह कर रहे हैं। अत: जब आप झगड़ते मनोभावों के साथ अपने पति-पलियों का आनन्द हैं या इस प्रकार की मुर्खता करते सहजयोग को हानि पहुँचाते हैं। आपको एक-दूसरे झगडूना न शुरू कर दें। तलाक के चक्कर में के प्रेम, भावनाओं और विवाहित जीवन का आनन्द लेना चाहिए। मैंने देखा है कि कुछ लोग इतने मूर्ख हैं कि वे इतना भी नहीं जानते कि वैवाहिक जीवन का आनन्द क्या है? आप यदि आनन्द नहीं लेना चाहते तो ठीक है। यह केक जाती हैं। क्योंकि ऐसे देशों की लड़कियों का के समान है, यदि आप इसे नहीं खाना चाहते तो विवाह करना मुझे अच्छा नहीं लगता। अब एक न खाएं । परन्तु पूर्ण उत्साह के साथ, दैवी नियमों के अनुसार कार्य करते हुए आप डटे रहें सात वर्षों में किसी देश में सहज विवाह किस और विवेकपूर्ण कार्य करें। सहजयोग में अधिकतर विवाह अत्यन्त सफल होते हैं। उन दम्पतियों के के सौन्दर्य एवं मर्यादा को ताक़ पर रख देना चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 3 & 4 1999 सभी उन्हें देखकर अन्य परिवार भी सहजयोग में आ रहे हैं। मुझे आपको बताना है कि पति को यह अधिकार प्राप्त हो गया है। नि:सन्देह पश्चिमी देशों में लोग ऐसा नहीं करते परन्तु भारत में प्राय: ऐसा होता है। भारतीय पुरुष अत्यन्त उग्र मेरी समझ में नहीं आती। इस स्वभाव के कारण को कष्ट देने की कोई आवश्यकता नहीं। विवाह जीवन का आनन्द लेने के स्थान पर तलाक़ लेना लेने के लिए आप तैयार हो जाएं। पहले दिन से हैं तो आप यदि आपने झगड़ना है तो वास्तव में अपने खानदान, अपने देश को बदनाम करवाते हैं और आपके देश से विवाह की इच्छुक अन्य लड़कियाँ भी सहजयोग में विवाह करने से वचित ही रह प्रथा बन गई है कि हम देखते हैं कि पिछले छः, प्रकार चले रहे हैं। तो यदि आप सहज विवाह 43 चाहते हैं तो बेहतर होगा कि आप विवाह करने के लोगों का दूसरे देश के लोगों से विवाह का का निर्णय ही न लें। आपका विवाह करना हमारा कर्त्तव्य नहीं है, अच्छी पत्नी य अच्छा पति प्राप्त करना आपकी आवश्यकता है। इस सब के बावजूद भी यदि आप इसे स्वीकार नहीं विवाहों का आयोजन हमें करने दे। आप स्वयं करना चाहते या ऐसा नहीं करना चाहते तो भी यदि ऐसा करेंगे तो बहुत सी बेकार की समस्याएं एक दम से तलाक के विषय में न सोचें। मैंने खड़ी हो जाएंगी। जैसी कि पश्चिमी समाज में देखा है कि पश्चिमी देशों के लोग विवाह के है। यहाँ आकर वे लड़की छांटना चाहते हैं या समय ही तलाक के विषय में सोचने लगते हैं। अपने केन्द्र से लड़की निश्चित करके वे यहां ऐसा करना बहुत लज्जाजनक हैं और बहुत गलत। यह सहजजीवन को नहीं दशाता। आप यदि सच्चे सहजयोगी हैं तो अपने पति/पल्नी के खोजते रहते हैं। इस प्रकार की बेवकूफी हम साथ प्रेम पूर्वक जीवन निर्वाह करने की योग्यता रोकना चाहते हैं इसलिए यदि आप सहजयोग में आपमें होनी चाहिए। सहज विवाह आप पर श्री विवाह करना चाहते हैं तो आपको अपना वर गणेश का आशीष है, वे आपके वैवाहिक जीवन की रक्षा करेंगे, आपकी सहायता करेंगे और हैं कि आपकी चैतन्य लहरियाँ कितनी मिलती आपको बुराइयों से बचाएंगे। मैं जानती हँ कि सहजयोग में विवाह करना कितना बड़ा वरदान है, परन्तु कुछ मूर्ख पुरुष एवं महिलाएं अपने कि स्वयं तय किए हुए विवाह तो टूट ही जाते वैवाहिक जीवन का आनन्द नहीं लेना चाहते। हैं। ऐसे विवाह सर्वसाधारण विवाहों की तरह से ऐसी स्थिति में हम उन्हें तलाक़ की आज्ञा देंगे, होते हैं। तो सर्वोत्तम वात ये होगी कि स्वयं को परन्तु एक बार तलाक लेने के बाद, सहजयोग वचन दें कि आप मूर्ख नहीं बनेंगे और अपने में पुनः विवाह करने की आज्ञा हम उन्हें नहीं विवाहित जीवन को बर्बाद नहीं करेंगे। आपके देंगे। यह निश्चित है। जिस व्यक्ति ने एक बार तलाक ले लिया है । हम उसका विवाह नहीं करके, बहुत जाँच कर, सूझबूझ से मैंने ये सब करना चाहते। यदि किसी उचित कारण से कार्य किया है। बिना बात के आप मुझे दुखी न तलाक हुआ है, तब तो ठीक है। परन्तु तलाक़ के लिए तलाक़ लेकर विशेष प्रकार के व्यवहार की आज्ञा हम नहीं देंगे। तो मैं ये बताना चाहूंगी आपको आशीर्वाद देती हूँ। मुझे विश्वास है कि सहजयोग में तलाक़ निषिद्ध है । परन्तु यदि आपके विवाह कार्यान्वित होंगे। जल्दबाजी मत आप लड़ना चाहते हैं, कष्ट देना चाहते हैं, अन्य कीजिए। सबूरी रखिए। सर्वप्रथम हर चीज़ को लोगों के जीवन को बर्बाद करना चाहते हैं, तभी सहजता से लिया जाना चाहिए। तब देखें कि तलाक़ लिया जाता है। मैं आपसे अनुरोध करूंगी कितने प्रेमपूर्वक आपके विवाह कार्यान्वित होते कि अपने पति पत्नी का आनन्द लें। एक देश हैं। आरम्भ हमने उनके आनन्द के लिए किया है। कल मैंने आपको बताया था कि स्वयं परस्पर विवाह न करें। इसके हम जिम्मेदार न होंगे। आते हैं। इसका अभिप्राय ये हुआ कि कन्द्र में ध्यान करने के स्थान पर वे लड़के लड़कियाँ स्वयं नहीं खोजना, क्योंकि हम यह देखना चाहते हैं। हमारे यह सब करने के बावजूद भी विवाह जाते हैं। परन्तु यह बात मैंने अवश्य देखी है टूट हित के लिए मैं चिन्तित थी। अत: बहुत परिश्रम करें। बारम्बार मेरी यही प्रार्थना है कि आप प्रसन्न चित्त हो जाएं। मैं बहुत प्रसन्न हैं, हृदय से परमात्मा आपको धन्य करें, धन्यवाद। चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 3&4 1999 44 ४० ते ৩ साक्षी अवस्था में रहना यदि आप सीख ले तो भय नहीं रह जाता। जब आप साक्षी नहीं होते तभी परेशान होते हैं, तभी उत्तेजित होते हैं। बुरे लोगों की संगति में भी आप पड़ ा सकते हैं। यदि आप साक्षी अवस्था में हैं तो यह अवस्था अपने आपमें ही एक शक्ति हैं जो अन्य लोगों की कठिनाइयों को दूर करने में भी आपकी सहायक होती है। .........साक्षी साक्षा अवस्था मानसिक स्थिति नहीं है, यह आध्यात्मिक उत्थान की अवस्था है जिसमें आप साक्षी बन जाते है। साक्षी अवस्था में बने रहने का सर्वोत्तम तरीका ये है कि आप किसी की आलाचना न करें . एक बार जब आप बाह्य चीजों के प्रति प्रतिक्रिया बन्त कर देंगे तो व्यक्ति को आपके अन्तस में प्रतिक्रिया होगी और इससे अन्तर्दशन आरम्म हो जाएगा।.... ाम चिन्ता नहीं करनी चाहिए कि लोगों की प्रतिक्रिया क्या है। वे उसके विषय में क्या सोचते है आर क्या कहते हैं। अन्तर्दशन द्वारा आपको स्वयं ये सब देखना चाहिए। कुछ समय पश्चात् आपको अन्तर्द्शन की भी अआवश्यकता न र हेगी जिस प्रकार साक्षा अवस्था में ..जि रणभूमि में उपस्थित श्रीकृष्ण का बुद्ध करने की आवश्यकता न थी। साक्षी अवस्था में उनको शक्ति ने सारा कार्य किया। उनकी शक्ति, जो बाह्य रूप से मौन थी, ने कार्य किया और मोन थी उन्होंते युद्ध में विजय प्राप्त की। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी) ७ १० २५ ---------------------- 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी अक 3 & 4 खण्ड X 1999 का र आत्म-साक्षात्कार प्राप्त होने के बाद भी जो लोग अपनी पुरानी आदतो और प्रचतियों में मग्न रहते हैं, उनकी स्थिति को 'योग-भ्रष्ट' स्थिति कहते हैं । দरम पूज्य माताजी ति 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-2.txt इस अंक में पृष्ठ नं. क्रम संख्या 3. सम्पादकीय 1. संगीत-संध्या 16/12/98 दिल्ली 2. 15 श्री रामनवरमी पूजा 5/4/98 3. ईसा मसीह पूजा 16 25/12/98 गणपति पुले 4. 25 16/8/98 - कबैला कृष्ण पूजा - 5. कबैला श्री गणेश पूजा 34 5/9/98 6. विवाह समारोह के पश्चात् प्रवचन श्री गणेश पूजा 43 7. योगी महाजन सम्पादक विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 अभिनव प्रिन्ट्स, दिल्ली 34, मुद्रक फोन : 7184340 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3 & 4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-4.txt सम्पादकाय परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का 76वां जन्मदिवस स्वर्णिम सहस्राब्दि का उषा काल हैं जिसकी भविष्यवाणी दसवीं शताब्दी ई. में येरुशलम के सेंट जॉन ने की थी। जो भी भविष्यवाणियां उन्होंने की वे सभी सहजयोगियों के जीवन में खरी उतरीं। अब हम उन्हें चमत्कार मारत के अन्य सहजयोगियों से पत्र-व्यवहार करना चाहता हूँ, अत: कृपा करके उन्हें मेरा पता दें और मेरा फोटो उन्हें दिखाएं। आपका पत्र पाकर मुझे बहुत प्रसन्नता होगी। सहजयोग एवं भजनों के विषय में आप मुझे सभी कुछ बताएं। अब मैं आपको बेनिन के एक स्थान घर श्री या संयोग मात्र नहीं मान सकते अपनी चैतन्य गणेश के प्रकट होने की प्रमाणित घटना के लहरियों द्वारा परमपावनी माँ के आश्शीवाद के विषय में बताना चाहूँगा हमारे एक सहजयोगी रूप में इन्हें पहचान सकते हैं, हम सब अपने बागवानी करते हैं, "मैं अपने बाग के लिए अपने स्तर पर अपने जीवन में इसका अनुभव चौकीदार नहीं रखना चाहता। अपने बाग की रक्षा के लिए मैं श्री गणेश को रक्षक मानता हूँ।" और कर सकते हैं। इन अनुभवों से हम ूर्णतया चमत्कृत हैं और महसूस कर सकते हैं कि हमारी परमेश्वरी माँ हमें कितना प्रेम करती है संरक्षण में छोड़ दिया। एक पूजा करके उन्होंने अपना बाग श्री गणेश के और हमारा कितना ध्यान रखती है। केवल व्यक्तिगत रूप से उनका दर्शन प्राप्त करने वाले कुछ सप्ताह पश्चात् उसके बाग में डाक आए। उन्होंने वहां एक भीमकाय व्यक्ति को लोग ही इस बात का अनुभव नहीं करते परन्तु खड़े देखा, जिसने मार-मारकर उन डाकुओं को हजारों सहजयोगी, जिन्होंने कभी श्री माताजी को लहूलुहान कर दिया। कुछ दिनों पश्चात् वे डाकू देखा भी नहीं, भी इसे महसूस करते हैं। उदाहरणार्थ पश्चिमी अफ्रीका के बेनिन नामक देश से 18 एक बार फिर उसी बाग में गए और तब भी उस व्यक्ति ने उनका वही हाल किया। तत्पश्चात् वे बाग के मालिक के पास गए पूछा कि उसने अपने बाग में चौकीदार के रूप में किसे "पश्चिमी अफ्रीका में बेनिन, 12600 नियुक्त किया है? ये न जानते हुए कि वे वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का पचास लाख लोगों की लुटेरे थे, उसने उत्तर दिया, " किसी को भी और जनवरी 1999 को हमें निम्नलिखित पत्र प्राप्त हुआ :- जनसंख्या वाला छोटा सा देश है। वर्ष 1995 में नहीं।' हमने बेनिन में सहजयोग का अभ्यास आरम्भ महाजन साहब मेरे साक्ष्य का यही अंत किया। हम लगभग 4000 योगी हैं और हर है। अगले पत्र में मैं आपको एक और घटना के विषय में लिखुंगा। आपसे और अन्य भारतीय प्राप्त करते हैं। बेनिन में दो सहजयोग ध्यान भाई-बहनों से बहुत से पत्रों की आशा करते हुए सप्ताह तीस से अधिक लोग आत्मसाक्षात्कार केन्द्र हैं। में भजन गायक हू और भारतीय भजन में समाप्त करता हूँ। मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। विचारों तथा भजनों जय श्री माताजी-मिल फोल्लाण्डो का आदान-प्रदान करने के लिए में आपसे तथा चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3& 4 1999 LANDO MILLEFORT 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-5.txt C/546, MAISON AHOUANSOU Rue De Ouidah, Cotonou, भय का कोई स्थान नहीं है। जब तक हम स्वयं से परिचित न हुए थे तब तक चेतना के एक निम्न स्तर पर हमारे भूतकाल में इन सभी बाधाओं का शासन था । चेतना के विस्तार के Benin, W.Africa. वर्ष 1980 में स्वर्गीय श्री धुमाल के फार्म में राहूरी में ऐसी ही एक घटना घटित हुई थी। उनके फार्म में भी लुटेरे घुसे थे और उनकी पिटाई जिस व्यक्ति ने की उसे इससे पूर्व किसी ने देखा ही न था। निःसन्देह श्री धुमाल जानते थे कि वह व्यक्ति श्री भैरवनाथ थे, उन्होंने इस समरूप हम उस अवस्था तक विस्तृत हो सकते हैं जहाँ हम शुद्ध चेतना मात्र बन जाएं। स्वर्णिम सहस्राब्दि की कुंजी सामूहिक चेतना की ऐसी अवस्था प्राप्त करने में निहित है। तब सभी सामूहिक एवं व्यक्तिगत समस्याओं का स्वत: समाधान हो जाएगा। संक्षिप्त में येरुशलम के जॉन ने यही कहा था :- "प्रकट होने से पूर्व सभी रोग दूर हो जाएंगे और सभी लोग अपना और अन्य लोगों का इलाज करेंगे। मानव समझ घटना के विषय में बताया भी था। हमारा सौभाग्य है कि सदैव परमेश्वरी माँ की सुरक्षा का आश्शीरवाद हमें प्राप्त है, इसके विषय में कोई सन्देह नहीं और ये बात हमारी चेतना में अंकित है। परन्तु स्वर्णिम सहस्राब्दि लेगा कि सत्य पर डटे रहने के लिए उसे अपनी हमें सन्देश देती है कि आत्मा के रूप में अपने पलि सहायता करनी होगी; और वाक्य-संयम-दिवस (The Day of Reticence) के पश्चात लोभी व्यक्ति अपना हृदय तथा खजाना गरीबों के लिए खोल देगा; वह अपना वर्णन मानव मात्र के परिरक्षक (Curator) के रूप में करेगा और पद के विषय में हम पूर्णत: जागरूक हो जाएं। जब चेतना पूरी तरह से स्थापित हो जाएगी तब हम आत्मा के सच्चे माध्यम बन जाएंगे और परमपूज्य श्री माताजी की गौरवमय नई सहस়्ালदि का आनंद लेंगे उस चेतना में लोभ. ईष्षया और अन्तत: एक नए युग का आरम्भ होगा। ार कर चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3& 4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-6.txt संगीत संध्या ह दिल्ली (भारतीयम) 16.12.98 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (हिन्दी) इतने ठंड में और तकलीफ में आप सब लोग आए। एक माँ के हृदय के लिए ये बहुत बड़ी चीज़ है। अब और कोई दिन मिल नहीं खड़े हुए हैं इस कलयुग के बारे में अनेक रहा था, इसी दिन आप लोगों को तकलीफ वर्णन शास्त्रों में हैं। पर उसमें ये कहा जाता है उठानी पड़ी। और आप लोग इतने प्रेम से, सब कि नल, जो दम्यंति के पति थे, के हाथ एक लोग, यहाँ आए। सबका कहना था कि हवाई दिन कलि लग गया तो उन्होंने कहा कि अब अड्डे पर माँ हम तो बिल्कुल आपको देख भी मैं तेरा सर्वनाश करता हूँ क्योंकि तुमने मेरी पत्नी नहीं पाए, और मैं भी आपको नहीं देख पाई। से मेरा बिछोह किया है। इस पर कलि ने कहा इसलिए बेहतर है कि आप लोग आज यहाँ आए कि तुम मेरा महात्म्य जानो मेरा जो महात्म्य है हैं, सब लोग। और दिल्ली वालों का जो उत्साह है, वो कमाल का है। ऐसा ही उत्साह सब जगह हो तो ये भारतवर्ष सहजयोग का महाद्वार बन जाएगा। ये एक समय है, ऐसा कहना चाहिए, तो उन्होंने ये कहा कि इसी कलियुग में जब जिसे घोर कलयुग कहते हैं। इस घोर कलयुग लोग कलि की भ्रांति के चक्कर में आ जाएंगे, की एक विशेषता ये है कि मनुष्य बहुत जल्दी उसी वक्त ये बड़ा कार्य होने बाला है भ्राति में आ जाता है। उसको जरा सा भी विवेक इतना भयंकर दावानल जैसे चारों तरफ से लगा हुआ दिखाई देता है। उसके बीच आप सहजयोगी उसे समझ लो। उस महात्म्य में गर तुम समझो कि मुझे मार डालना है तो मार डालो, में खत्म हो जाऊंगा। उसने कहा तुम्हारा क्या महात्म्य है? आत्मसाक्षात्कार' नहीं रह जाता और इस भ्रांति के चक्कर में वो न जाने कहाँ-कहाँ भटकता रहता है। आज कल हैं। भारतवर्ष में तो यही जीवन का लक्ष्य माना आप देख रहे हैं कि लोग कैसे-कैसे गलत लोगों गया है कि आप पहले आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त के पीछे भाग रहे हैं और गलत-गलत धारणाएं हों, उसके अलावा और जीवन का कोई भी अर्थ अपना करके अपना जीवन बरबाद कर रहे हैं। नहीं माना जाता। यही एक लक्ष्य है। यही एक ये समझना चाहिए कि ये घोर कलयुग है। इस कलयुग की विशेषता ये है कि कलयुग में आपने प्राप्त किया है। आपने इसे मनुष्य धर्म का पथ छोड़ करके अधर्म की ओर आसानी से चला जाता है। उसमें उसे कोई बाद अब आपने उसकी महत्ता भी समझी। हिचक नहीं होती। वो परेशान नहीं होता और वो उसकी आप गहराई में भी उतरे और उस गहराई वैसे कर्म करते ही रहता है। उसमें एक तरह की में उतर के आप देख रहे हैं कि इसी से आपको उद्दामता आ जाती है जिसे अपने अंदर लेकर वो शांति की प्राप्ति होगी और आपको आनन्द की समझता है कि वो बड़ा सत्कर्म कर रहा है । प्राप्ति होगी बहुतों को हो भी गई, बहुतों को आत्मसाक्षात्कार पाना ही जीवन का लक्ष्य परम पाने की चीज़ हैं और ये आत्मसाक्षात्कार पाया. ये बहुत बड़ी चीज़ है। इसको पाने के चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 3 &4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-7.txt है क्योंकि अब आप अपनी मिल भी गयी है, और भी इसमें सूक्ष्मता आने वो कार्यान्वित होती लगी है ये सूक्ष्मता समझने की बात है। इस सूक्ष्मता को आप समझेंगे तो आप जान जाएगे कि आप किधर अग्रसर हो रहे हैं., किधर आप बढ़ रहे हैं, कौन सी आपकी दशा है। अगर अभी भी आप सूक्ष्म नहीं हो रहे हैं तो सोचना सबके अंदर स्थित है। अब ये मैं बता रही हूँ, चाहिए कि आपमें कुछ कमी है और उस कमी को ठीक करना चाहिए। इस सूक्ष्मता की बात हुई हैं कि हमारे अंदर कुण्डलिनी की शक्ति है। करते वक्त शास्त्रीं से ही इसका बड़ा अधार मिलता है । ये देश अपना जो है यह अत्यंति गहन किया हुआ है-जैसे बारहवीं शताब्दी में मैंने विचारों से भरा हुआ और अत्यंत महान् सत्वों से भरा हुआ है। इसमें जो लिखा गया है; वो सोलहवीं शताब्दी में इतने लोग हुए गुरु नानक अद्वितीय है, उसके जैसी चीज़ दूसरी संसार में लिखी नहीं गई। यहाँ से लेकर के तो और लोग कुछ ज्ञान लेकर चले जाएं, लेकिन इसकी गहराई लिखा. तुकाराम ने लिखा, नामदेव ने लिखा। में आप ही लोग उतर सकते हैं। लेकिन हम जानते ही नहीं कि हमारे देश में कितना महान व पवित्र ऐसा वांड्रमय हो गया। कितनी बढ़िया-बढ़़िया चीजें हमारे यहाँ प्राचीन काल में लिखी गई और लिखा? क्योंकि हम जो ये इस देश के देशवासी चरम स्थिति में आ गए। इसके बाद आपका जो भी कार्य है वो उत्थान का कार्य है और उस उत्थान के कार्य में अब आपको आत्म साक्षात्कार प्राप्त करना है । उसके लिए कुण्डलिनी आप लेकिन ये बातें हमारे यहाँ वहुत पुरानी लिखी उसके बाद अनेक लोगों ने इस पर काफी वर्णन ा बताया था कि ज्ञानेश्वर जी ने वर्णन किया और जैसे इंतने महान कहना चाहिए कि विद्वान उन्होंने तक कुण्डलिनी पर बहुत कुछ लिखा। कबीर ने सब लोगों ने लिखा है ये शक्ति हमारे अंदर हैं इसे जागृत करना चाहिए। ये बात समझने की है कि ये हमारे ही देश के लोगों ने इतना क्यों हैं ये कोई तो विशेष लोग हैं । ये धर्म में पले हुए लोग हैं। इनके अंदर धार्मिकता है। सदियों से धर्म हमारे अंदर बसा हुआ है। और धर्म ऐसा चीजें खोल-खाल कर बता दी, है कि हम समझते हैं ये अधर्म है। ये करना उस पर विवरण किया गया, बताया गया कि क्या चीज़ है 'आत्मासाक्षात्कार' और उससे आप क्या-क्या प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि हमने आपको बहुत समझा दी लेकिन उसकी अनुभूति हुए बगैर गलत बात है। और देशों में मैं देखती हूँ कि वो उसको महसूस किए बगैर आप किसी भी तरह से संतुष्ट नहीं हो सकते। उसकी अनुभूति होनी चाहिए । वो अनुभूति क्या है? ये समझने की धर्म, अधर्म के अंदर कोई भी अंतर नहीं पाते। अगर कोई अधर्म करना हो तो सोचते हैं ये तो बड़ी भारी हमारे लिए एक Challenge है एक आह्वान है, उस आह्वान के लिए ये हम यह कर रहे हैं। अगर उनको Drug लेना है तों कहते हैं जरूरत है। सबसे पहले तो समझना चाहिए कि हम पाँच तत्वों से बने हुए हैं ये पाँच तत्व हमारे कि इसमें डरने की कौन सी बात है, ये तो हमारे अंदर सारी क्रियाएं करते हैं। सब उसी से हमारी लिए आह्वान है। कुछ भी गलत काम करना है घटना हुई है। उसी से हम एक मनुष्य जीव बने। उसको हम कहते हैं ये हमारे लिए आह्वान है सारे जानवरों में हर एक में ये होते हैं पर विशेष और गलत काम करना वहाँ समझा जाता है कि रूप से इंसान में इसका प्रार्दुभाव इस तरह से बड़ी भारी उच्चतर स्थिति मनुष्य की है जहाँ वो होता है कि कुण्डलिनी जो है, वो सिर्फ मनुष्य में मानव में ही स्थित होती है और मानव में ही होता है। अब इस चीज़ को समझना चाहिए कि बड़ा भारी, एक कहना चाहिए, कि योद्धा प्रमाणित 6. चैतन्य लहरी ।खंड : XI अंक : 3&4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-8.txt हमारी बुद्धि में और उनकी बुद्धि में मूलतः ये फर्क है। मूल में ही हममें फर्क है और मूल में चाहिए । कम से कम हर आदमी चाहे तो एक ही हम जानते हैं कि धर्म और अधर्म क्या है? वो कोई माने या न माने। पढ़े हो, लिखे हो या देहात के हो, शहर के हों, सब भारतीय जानते हैं कि धर्म क्या है और अधर्म क्या है। निश्चित रूप से जानते हैं तो भी अधर्म करते हैं तो भी करने की जरुरत है क्योंकि आप भारतीय हैं। अधर्म में फँसते हैं, तो भी ये चीजें करते हैं और उसपे सोचते हैं कि हाँ हमने किया लेकिन गलत किया तो क्या करें? पर जो बाहर के लोग हैं कहा जाता है कि हज्तारों पुण्य करने के बाद उसको गलत नहीं समझते, इतनी उन लॉगों की धारणाएं ही नहीं बनी हुई। मूलत: उनके अंदर ये विचार ही नहीं आया कि कोई चीज़ पाप और पुण्य है। पाप और पुण्य की जो कल्पना है वो की ओर जो हमारा रुझान है, हम अच्छाई को सिर्फ भारतीयों को मिली हुई है और इसलिए पसंद करते हैं, ये जो रुझान हमारे अंदर है वो आप लोग एक विशेष रूप के नागरिक हैं जो रुझान है उसका कारण ये है कि हमारे देश जिनके लिए ये उपलब्ध है, ये मिला हुआ है ये में अनेक-अनेक ऋषि-मुनि हो गए और उन्होंने ज्ञान मिला हुआ है कि धर्म क्या है। छोटी-छोटी बातों में भी हम लोग बहुत कुछ जानते हैं जो ये जीवन में क्या चीज़ करने से पवित्रता रहती है। लोग नहीं जानते। इनको मालूमात नही लेकिन पवित्रता की ओर हमारे अंदर बहुत चिंतन हुआ इनकी खोज में गहराई है। हमारी खोज़ में गहराई कम। हम लोग ये सोचते हैं कि भई हम तो ये नहीं संपूर्ण आपको स्वतंत्रता है। इस स्वतंत्रता में करते ही आए हैं। ऐसा-ऐसा तो हमने किया ही ही हम बहक गए । ये जो स्वतंत्रता हमें मिली है, तो इसमें कौन सी विशेषता है? लेकिन इन लोगों ने क्योंकि अंधेरा देखा है इसलिए प्रकाश का महत्व बहुत जानते हैं। वही बात हमारे अंदर, मैं सोचती हूँ, कुछ कम है और इस वजह से हिन्दुस्तानी सहजयोग में आकर के गहरे हिन्दी भाषा में कहिए आप संस्कृत में हर एक उतरना कठिन समझते हैं । गहरे उतर नहीं पाते, आप सबसे मुझे ये कहना है कि सहजयोग में एक बार आपका बीज मानों जैसे प्रस्फुटित हुआ जैसे क, ख, ग, घ वर्गैरा होते हैं, ये सब व्यंजन पर इसे एक विशाल पेड़ बनना है। इस विशाल पेड़ बनने के लिए ध्यान-धारणा आदि करना है में अर्थ है निरर्थक कोई चीज़ नहीं। एक-एक और सहजयोग को फैलाना है। आप अगर सहजयोग को फैलाएंगे नहीं तो फिर आपका प्रसार नहीं हो व्याकरण हुआ है। अब ये सारी बात बताने का उतर नहीं सकते। इसलिए सहजयोग को फैलाना हजार आदमी को आत्मसाक्षात्कार आसानी से दे सकता है। तो इस मामले में शर्माने की कोई ज़रुरत नहीं है, इस मामले में हिचकने की कोई जुरुरत नहीं। इस मामले में खुले आम बातचीत बार-बार में कहूँगी कि भारतीयता जो है वो एक विशेष अनुपम हमारे पास वस्तु है और इसीलिए आप भारतवर्ष में जन्मे। लेकिन इस धर्म में, जो भी धर्म हम मानते हैं, इसको मैं हिन्दू-मुसलमान या क्रिश्चन नहीं कहूँगी, पर धर्म माने अच्छाई बहुत-कुछ लिख दिया, बहुत-कुछ बताया कि है और इस पवित्रता की ओर कोई जबरदस्ती से उसी से हमने रास्ते दूसरे ले लिए। अब पूरी साँ तरह स्वतंत्र है और ये स्वतंत्रता का मतलब होता है कि स्व का तंत्र। स्व का तंत्र जानना, स्व माने आत्मा उसका तंत्र जानना ये स्वतंत्रता है। तो शब्द का अर्थ है। उसके व्याकरण की विशेषता यह है कि उसके जो कुछ भी वर्ण हैं या दूसरे जिसे कहते हैं, ये सबमें अर्थ है। एक-एक चीज ति अक्षर आप ले लीजिए तो इसमें बड़ा भारी शायद अभी समय न हो पर मुझे ये कहना है सकता। आप बढ़ नहीं सकते। आप अंदर गहरे चैतन्य लहरो ॥ खंड : XI अंक 3B 3 & 4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-9.txt कि ये पाँच तत्वों को बताने वाले अपने अंदर चाहिए कि ये हम लोगों ने अपने यहाँ ऋषि-मुनियों से बात सुनी। अब अंतर एक कि जो लोग को वो शक्ति कहते हैं। और जब व्यंजन में परदेसी जिनको हम कहते हैं, जो दूसरे देश के शक्ति आ जाती है तो वो ही व्यंजन का अर्थ रहने वाले हैं, उनकी विचारधारा और हम लोगों की विचारधारा बिल्कुल अलग है। सोचने का, लोग समझते हैं कि कुछ भी नाम रख दो लड़के विचारने का भी जो तरीका है वो बिल्कुल अलग है। इतना अलग है कि आश्चर्य होता है। र विदेश में आप गर कोई बात कहें, परदेस में पाँच तरह के व्यंजन बने हुए हैं। इसीलिए व्यंजन निकल आता है। अब छोटी-छोटी बातों में हम का, लड़की का कुछ भी नाम रख दो, नाम में क्या रखा है? तो ये इतनी गलत बात है कि नाम में क्या रखा है? नाम भी, लड़के की नाम जो है, आप कोई गर बात कहे तो उसका पड़ताला लेने वो भी सोचकर रखना चाहिए; क्योंकि एक-एक अक्षर में उसमें निहित है, छिपा हुआ है, एक देखेंगे ये है या नहीं? लेकिन उससे वो कहा बड़ा भारी मर्म। और वो मर्म है उसका अर्थ'। अर्थ और शब्द दोनों एक साथ रहते हैं और अर्थ और वो ये है कि गर कोई बात कही गई है तो जो है, वो शब्द की सेवा करता है। कोई भी आप शब्द कहिए तो उसके अर्थ में और शब्द ये ऋषि मुनि जो बड़े पहुँचे हुए लोग थे, उन्होंने में कोई अंतर, ऐसा हम लोग नहीं जानते हैं, पर कही है। उसको स्वीकार्य करना चाहिए। जो जो अर्थ जो है, वो शब्द की सेवा करता है। हर एक लग जाएंगे। उस पर साइंटिस्ट लगा देंगे उसको तक पहुँच पाते हैं? अपने देश में तरीका और है, उसका पड़ताला बनाने की ज़रुरत नहीं क्योंकि बात उन्होंने बताई वो स्वीकार्य करना चाहिए, चीज़ का अलग-अलग शब्द होता है। हर एक क्योंकि इतने पहुँचे हुए लोगों ने वो बात कही है। वर्णन में, हर एक चीज़ में हमारे यहाँ शब्द अलग-अलग होते हैं। ये भाषा की विशेषता ही चाहिए, क्योंकि उनसे ज्यादा अक्लमंद हम नहीं नहीं है, ये भारतीय संस्कृति की विशेषता है। हैं। लेकिन परदेस में सब सोचते हैं, हम सबसे इसलिए इस संस्कृति से जो लोग उत्पन्न हुए हैं, ज्यादा अक्लमंद हैं। वैसे अपने यहाँ नहीं है। इस संस्कृति में पढ़े हैं, और पढ़ रहे हैं, उनको जानना चाहिए कि हमारी संस्कृति है क्या? हम अपनी संस्कृति को जानते भी नहीं, कुछ समझ में भी नहीं आता कि सचमुच ऐसा क्यों करते आपमें पूर्णता आ जाए, तब आप देख सकते हैं, हैं? पता नहीं हमारे बाप-दादे करते थे इसलिए किसी ने जो भी बात कही उसको मान लेना अब इसका पड़ताला नहीं लेना चाहिए। यर कहा गया है कि गर आपका आत्मसाक्षात्कार हो जाए और आप सम्पूर्ण आत्मसाक्षात्कारी हो जाएं, प्रयोग करके कि जो ऋषि-मुनियों ने बात कही थी वो सच है या नहीं। अब सहजयोग में आप लोग यही करते हैं। हमने एक बात कह दी। हम करते हैं। तो सबसे बड़ी चीज़ है कि अपनी संस्कृति को जाने और पहचाने कि क्या बात आप मान जाते हैं कि माँ ने ये बात कही और उसको आप समझ लेते हैं कि माँ की कही हुई लोग धार्मिक हो जाते हैं। उनको कुछ बताने की ये बात है। इसमें जरुर तथ्य है। उसमें आप ये ज़रुरत नहीं है। कोई उनके ऊपर जबरदस्ती नहीं नहीं सोचते कि माँ ने कहा, इसका पड़ताला है कि तुम ऐसे ही करो कि वैसे ही करो। पर करो। ये करो, वो करो। फिर आत्मसाक्षात्कार के वो धार्मिक हैं। ये मानव की धार्मिकता कहाँ से बाद जब आप सम्पूर्णता में आ जाते हैं, जब आप उस दशा में पहुँच जाते हैं, तब आप खुद है? हम क्यों इस तरह से धार्मिक हैं? अपने आप ही हम आती है? क्यों आती है? उधर हमको ध्यान देना चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3 & 4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-10.txt ही इसका पड़ताला कर सकते हैं। जैसे हमने के जो चक्कर हैं, यही कम करने हैं जब कहा है वो बातें हैं या नहीं। इसलिए अपने यहाँ हमारे शास्त्रों में ये बात कही है। तो वो सत्य ही गुरु का बड़ा भारी स्थान माना जाता है कि गुरु है। अब नानक साहब ने गुरु ग्रंथ साहब जब ने जो बात कही, उसको कभी भी शंका नहीं बनाया, वो सारे Realize souls पहुँचे हुए लोग करनी चाहिए। पर आजकल के जैसे गुरु निकल की कविताएं ले करके उससे बनाया अब उसको पढ़े ही जा रहे हैं, पढ़े ही जा रहे हैं। ये भी बेकार वात है। उसमें क्या लिखा है वो समझने की कोशिश करो। उससे फिर वो आत्मसात होगा, हमारे अंदर बसेगा और हम उसी के सहारे आए वो देखने के बाद, मुझे समझ में नहीं आता है कि गुरु के लिए क्या कहा जाए! पर उसकी भी पहचान है। गुरुओं की पहचान है कि किसको असली गुरु मानना चाहिए और किसको नकली। जो आपको अनुभव दे वो ही असली गुरु। ये नहीं कि पैसा दे और ये डायमंड निकाल के दें। ये गुरु-वुरु नहीं हो सकते। ये तो तमाश-खोर हैं उठ सकेंगे। तो अब आपसे मैंने दो ही बात बताई सीधी-सीधी बात कि जो कुछ भी ऋषियों ने या कहना चाहिए, ये अपनी दुकानें खोल रखी और गुरुओं ने बताया उसको प्रमाण मान लेना, हैं। गुरु वही है जो आपको अनुभव दे। जब ये क्योंकि आप अभी तक इतने प्रवीण नहीं हैं, अनुभव आपमें प्राप्त होता है तो उसको स्वीकार्य आप इतने पहुँचे नहीं हैं। फिर उसके बाद दूसरी करो। स्वीकार्य करके उसमें बढ़ो। उसमें पूर्णता बात कि आप प्रवीण होने का प्रयत्न करें। उधर अग्रसर हों और प्रवीण हो जाएं। और प्रवीण होने देख लो। उसक उलट वहाँ पर, परदेस में, देखा पर, फिर आप पड़ताला इसका ले कि हैं कि गर कोई बात कही कि ऐसी नहीं। ये तो एक हिन्दुस्तानी के लिए हुआ। हैं तो पहले उसकी सिद्धता दो; पहले उसको लेकिन मैंने ये देखा है कि परदेसी जो आपके साइंटिस्ट को दो। अब वो साइंटिस्ट पार है या भाई हैं ये तो बड़ी जल्दी पार भी होते हैं और नहीं है, उसमें इतनी क्षमता है या नहीं, वो समझ ये गहरे उतर जाते हैं क्योंकि इनके अंदर गहराई आ गई है । हमारे अंदर गहराई नहीं आई। हमारे नहीं, ये नहीं देखा जाता। किसी ने भी कुछ बात गुरु ने ये कहा, हो गया काम खत्म। ये फ़लाने आप लाओ, और फिर उसकी पड़ताला आप मैंने कि किसी ने सकता है या नहीं, इसके लिए वो समर्थ है या कह दी उसके पीछे लग गए। फिर उसको दोहरा कर के दूसरा आदमी कहेगा कि नहीं नहीं ये नहीं इसमें नहीं नहीं ये जो है चीज़ इसमें ये गड़बड़ है। ऐसा है, वैसा है. क्योंकि अभी तक आत्म कह गए, काम खत्म। श्री राम ऐसे थे, काम खत्म। अरे भई उनके नज़दीक तुम कहीं गए कि नहीं, उनको समझा कि नहीं, उनको अपनाया कि नहीं? उसके अंदर से आपको क्या प्रेरणा मिली? बसे भजन गा रहे हैं। चीख रहे हैं. साक्षात्कारी वो लोग नहीं हैं, और उनमें वो चिल्ला रहे हैं । ये बड़े-बड़े संत-साधुओं महाराष्ट्र में खास कर और यहाँ भी, ये कहा कि आप भजन गाते रहें। एक उन्होंने वहाँ वार्करी पंथ निकाला, हर जगह पंथ निकले। बेचारों को ये क्या मालूम था कि इन्सान इतना बेवकूफ है कि उसको कुछ दे दो तो बस बो ही करके बैठे या झूठ है? ये बुद्धि रहेगा । वो तो संत साधु थे। उनको क्या मालूम ऐसे है। तीसरा आदमी कहेगा कि सम्पूर्णता नहीं है। तो इस तरह का जब तक आपमें एक पूरी तरह से जीवंत अनुभव न आए। जब तक आप उस अनुभव से पूरी तरह से प्लावित न हों मतलब Nourish न हो, तो आप अधूरे हैं और अधूरे होने पर आपको कैसे समझ में आएगा कि ये सत्य है 6. चैतन्य लहरी खंड : X1 अंक : 3 & 4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-11.txt कि ये गहरा नहीं उतरेगा, इस पर विचार नहीं जाने की जगह तुम परमात्मा का ध्यान करो। परमात्मा को याद करो। उनका नाम स्मरण करो। करेगा, इस तरफ अग्रसर नहीं होगा? तो बस उसी की एक चीज़ चल पड़ी। अब जिसने जो क्योंकि उससे तुम्हारा चित्त इधर-उधर नहीं जाएगा। कुछ लिखा वो ही चीज चल पड़ी। अब जैसे देखिए उन्होंने जो बात कही थी, उसको वहीं तक सीमित रखा और इसी तरह से हमारे यहाँ महीना वो लोग जाते हैं पैदल, बदन पर फटे के अनेक पंथ निकल चुके हैं। पर उससे किसी कपड़े पहन कर। पता नहीं क्यों? ऐसा तो कहीं को कोई लाभ नहीं हुआ और पुश्तन-पुश्त वोही-वोही चीजें चल रही हैं। अब आप सहजयोगी हैं। आपने आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त किया, आप लोग पता नहीं उसको, झाँझ, झाँझ बजाते-बजाते विशेष लोग हैं । ये समझ लीजिए। अब इसमें पहुँचते हैं। अब वहाँ पहुंच कर के एक महीना आपको और गहरा उतरना चाहिए। उस गहरे रहते हैं। उसके बाद वो सोचते हैं कि हमने तो उतरने से आपके अंदर जो सूक्ष्मता जागृत होगी वो मैं अभी आपको समझाती हूँ। वो अब अंग्रेजी महाराष्ट्र में मैंने बताया; वाकरी पंथ है। तो एक लिखा नहीं होगा। वहाँ महीना भर जागते हैं और वहाँ रहते हैं। पूरे समय वो क्या कहते हैं आप भगवान को पा लिया। ऐसे थोड़े ही बताया था। उन्होंने तो ये बताया था कि इधर-उधर चित्त में मैं इन लोगों को बताऊंगी। ाी संगीत संध्या व्या कि |ा स्काउट मैदान, दिल्ली 16.12.98 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी ( सहजयोगी पर पंचतत्वों की अभिव्यक्ति) भारतीय सहजयोगियों को मैं बता रही थी लिया जाए तो वे धर्मान्ध हो जाते हैं। परन्तु कि भारतीय ज्ञान की शैली पाश्चात्य ज्ञान से सूझ-बूझ की भारतीय शैली के अनुसार यदि अत्यन्त भिन्न हैं। पश्चिम में आप यदि कुछ किसी महान ऋषि मुनि या सन्त ने कुछ कहा है बताएं तो लोग इसकी परीक्षणात्मक स्वीकृति तो आपको उसकी बात सुननी होगी क्योंकि आप उतने बड़े सन्त नहीं हैं। जो भी कुछ उसने कहा है यह उसका अपना अनुभव है, अपना ज्ञान है। आपको उसे आँकने या असत्य कहने को भी वे आँकते हैं, मोजिज को भी वे आँकते का कोई अधिकार नहीं। आप इसे स्वीकार करें हैं। वे सभी को आँकने का प्रयत्न करते हैं मानो और एक बार जब आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त माँगते हैं। वे वैज्ञानिकों या अन्य ज्ञानशील लोगों के पास जाते हैं और पूछते हैं कि इन पुस्तकों में जो लिखा है वो सत्य है या असत्य। ईसा मसीह है वही सर्वाधिक विवेकशील एवं योग्य व्यक्ति हों। हो जाएगा, तो ये स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है इन लोगों के विरुद्ध वे एक के बाद एक पुस्तक कि, आत्मसाक्षात्कार के बाद आपको उन्नत लिखते चले जाते हैं मानो उन्हों लोगों ने अपने होना होगा पूर्णतः जब आप उन्नत हो जाएंगे तब आप स्वयं देख सकेंगें कि जो भी कुछ उन्होंने स्वीकार नहीं किया जाता और यदि स्वीकार कर कहा है वह सत्य हैं, अत: वह सत्य है। अत: मस्तिष्क से कुछ कहा हो! प्रायः इसे कभी चैंतन्य लहरी रखंड : X1 अंक : 3& 4 1999 10 । 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-12.txt मार्ग भिन्न है, एक मार्ग से यदि आप विज्ञान से हो जाती है। यह परमेश्वरी शक्ति तब आपके आदि के माध्यम से समझने का प्रयत्न करते हैं माध्यम से बहने लगती है। तार जुड़ जाता है । जब ये शक्ति आपमें से बहने लगती है तो क्या आपकी उन्नति में बाधा पड़ती है। तो जो कुछ होता है? इसकी सूक्ष्मता हमें समझनी चाहिए। सूक्ष्मता ये है कि जिन पंच तत्वों से हम बने हैं उन्हें ये चैतन्य लहरियां शनैः शनै: उनके सूक्ष्म कुछ ईसा मसीह, हज़रत मोहम्मद, ज्ञानदेव ने तत्वों में जोड़ने लगती हैं। कहा गया है, बाइबल कहा है आपको उस पर विश्वास करना होगा। में भी कहा गया है, कि 'शब्द' ही परमात्मा है। परन्तु ये 'शब्द' है क्या? आप कह सकते हैं कि शब्द' मौन आदेश (Silent Comnandment) है। हम इस प्रकार कह सकते हैं। परन्तु भारतीय करें।' किसी भी चीज़ की छानबीन करते हुए दर्शन के अनुसार शब्द से बिन्दु की उत्पत्ति होती है, या हम कह सकते हैं कि शब्द नाद बन जाता है और फिर बिन्दु और इस बिन्दु से ये पांचों-तत्व एक के बाद एक अभिव्यक्त होने तो आप कहीं भी नहीं पहुँच पाते, इतना ही नहीं, भी इन महान ऋषि मुनियों ने कहा है उस पर विश्वास करते हुए उस ज्ञान को समझें। जो भी अभी तक आपका आध्यात्मिक स्तर उतना उच्च नहीं है। अत: आपको विश्वास करना होगा। इसे स्वीकार कर इसकी छानबीन करने का प्रयास न आप उसमें खो जाते हैं। एक बार जब आप उस स्तर के आत्मसाक्षात्कारी बन जाएंगे तब पूर्णत्व की ऊँचाई तक आप उन्नत होंगे। कवल तभी आप ये समझ पाएंगे कि इन सन्तों की कही लगते हैं। बातें सत्य हैं या असत्य और तभी आप छानबीन प्रथम तत्व जो आता है वह है 'तज '। प्रकाश अभिव्यक्त होने वाला प्रथम तत्व है। तो कर सकेंगे। तब सत्य, असत्य का भेद कर पाना बहुत सुगम हो जाएगा। सहजयोगियों के लिए ये पता लगाना अत्यन्त आसान होता है कि कोई चोज़ वास्तविक है या अवास्तविक, ये सत्य है या असत्य, प्रेम है या घ्रूणा। चैतन्य लहरियों के प्रकाश पहले तत्व का सार है। यह सब संस्कृत में लिखा हुआ है। परन्तु हमें समझना चाहिए कि सहजयोग में प्रकाश किस प्रकार प्रसारित होता है। आप सर्वत्र प्रकाश देखते हैं। तो प्रथम तत्व माध्यम से आप यह भेद जान सकते हैं। इससे आगे जाने के लिए, व्यक्ति के प्रकाश) हो जाना। परन्तु ज्ञानोद्दीप्ति का अन्य लिए जानना आवश्यक है क्या हैं और किससे बनी हैं? इन चैतन्य लहरियों के पीछे कौन सी सूक्ष्म शक्ति है? इस शक्ति के पश्चात् व्यक्ति का मुखमण्डल तेजोमय हो को हम परम-चैतन्य कहते हैं। परन्तु ये परम चैतन्य है क्या? परम चैतन्य प्राप्त करने के बाद आपमें क्या घटित होता है? यह बात. इस मुखमण्डल पर दिखाई देने लगती है। तेजस्वी प्रकाश का सूक्ष्म तत्व्व है, ज्ञानोद्दीप्ति (ज्ञान का कि ये चैतन्य लहरियाँ अर्थ भी है, हम इसे 'तेज' कह सकते हैं । उदाहरण के रूप में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होने उठता है तो हम कह सकते हैं कि प्रकाश का सूक्ष्म तत्व तेजस्विता है, यह तेजस्विता आपके सूक्ष्मता को, समझ लेना आवश्यक है। जैसा मैंने कहा, हम पाँच तत्वों से बने हैं, ऐसे आभावान व्यक्ति को विशेष सम्मान देने ठीक है? तो जब आपको जागृति प्राप्त होती है, लगते हैं। आपने मेरे फोटो देखे हैं, बहुत बार जब कुण्डलिनी आपके सहस्रार पर पहुँचकर आपको उनमें अथाह प्रकाश देखने को मिलता आपके ब्रह्मरन्ध्र का भेदन करती है तो आपकी है। यह कुछ और न होकर मेरे अन्दर का एकाकारिता परमेश्वरी शक्ति (Divine Power) मुखमण्डल से लोग बहुत प्रभावित होते हैं और है। प्रकाश है जो सूक्ष्म होकर दैदीप्यमान हो रहा है 11 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 3 &4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-13.txt किसी से जब बह बातचीत करता है तो उसकी आवाज में प्रेम होता है या यूँ कहें कि जल की तथा आपके अन्दर यह सूक्ष्म विकास शीतलता होती है। तो आपके अन्दर जिस अन्य घटित होता है। आपके मुखमण्डल भी तेजोमय सूक्ष्मता की अभिव्यक्ति होनी चाहिए-आपके आचरण में, आपकी त्वचा पर, दूसरों के प्रति आपके व्यवहार में-वह यह है कि आपको जल की तरह से होना चाहिए। जल की तरह से बने हैं यह उसका सूक्ष्म तत्व (सार तत्व) है। गतिशील, शीतलता, शांति एवं स्वच्छता प्रदायक तत्पश्चात् प्रकाश तत्व से एक अन्य तत्व होना चाहिए। आत्मसाक्षात्कारी होने के पश्चात् ये गुण आपके व्यक्तित्व का अंग-प्रत्यंग हो जाते पंच तत्वों में से प्रकाश भी एक हैं। मुझमें जब प्रकाश सूक्ष्म हो जाता है तो यह तेजदायी हो जाता है हो उठते हैं उन पर तेज होता हैं और आपकी त्वचा का रंग भी भिन्न हो जाता है। इस तेज को समझा जाना चाहिए। जिस स्थूल प्रकाश से हम का उद्भव होता है, जिसे हम संस्कृत में 'वायु कहते हैं अर्थात् हवा। इस स्थूल वायु का सूक्ष्म है। तत्व, आपको प्राप्त होने वाली, शीतल चैतन्य लहरियां हैं। शीतल चैतन्य लहरियां उसी वायु तत्वों जल तत्व के पश्चात् अग्नि तत्व है। आपमें अग्नि भी है परन्तु यह अत्यन्त शांत अग्नि है। यह किसी अन्य को नहीं जलाती, आपके अन्दर की बुराइयों को जलाती है। न केवल आपके अन्दर की बुराइयों को, आपके माध्यम से अन्य लोगों की बुराइयों को भी आपकी ये अग्नि जला देती है। मान लो कोई अत्यन्त क्रोध से मेरी ओर आता है तो मेरे अन्दर की अग्नि से उसका क्रोध शांत हो जाता I तत्व का सार हैं। हमें बनाने वाले पाँच मूल में से वायु तत्व्व का सार ही शीतल चैतन्य लहरियां कहलाता है। जब आपका आध्यात्मिक विकास होता है तो ये सभी सूक्ष्म तत्व अपनी अभिव्यक्ति करने लगते हैं। आप केवल लहरियां ही नहीं प्राप्त करते, शीतलता का भी अनुभव करते हैं और यही वायु तत्व का सार है। इसके पश्चात् जल तत्व है। जल भी हमें है। इतना ही नहीं गहन आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति बनाने वाले तत्वों में से एक है। इसका सूक्ष्म को अग्नि जला नहीं सकती। अग्नि की जलन तत्व क्या है? (कभी-कभी अंग्रेज़ी भाषा में अभिव्यक्ति के लिए शब्द नहीं होते) जल तत्व उस तक नहीं आ सकती यह बात समझ लेना बहुत आवश्यक है। आप यदि कोई गलत कार्य कर रहे हैं तो अग्नि आपको जला सकती है। सूक्ष्म रूप में जब अभिव्यक्त होता है तो यह कठोर त्वचा को कोमल करता है। त्वचा कोमल परन्तु यदि आप अच्छी सहजयोगी हैं पूर्णत: हो जाती है। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति का एक विकसित सहजयोगी हैं तो अग्नि आपको कभी अन्य चिन्ह ये है कि उन्हें स्निग्धता लाने के जलाएगी नहीं। हमारे सम्मुख सीताजी का उदाहरण लिए चेहरे पर किसी क्रीम का प्रयोग नहीं करना है जो अग्नि में प्रवेश कर गई फिर भी अग्नि ने पड़ता। उनके अन्दर का जल तत्व ही उनके उन्हें नहीं जलाया। तो हमें समझना है कि अग्नि चेहरे की त्वचा को चमक और पोषण प्रदान करता है तथा उसे कोमल बनाता है। चेहरे की ये कोमलता प्रत्यक्ष दिखाई देती है। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के मुख पर ये अभिव्यक्ति अत्यंत दिव्य बन जाते हैं। उदाहरणार्थ जिस जल को तत्व का सार यदि हमें प्राप्त हो जाता है तो अग्नि हमें जला नहीं सकती। मि इस प्रकार अग्नि तथा जल, दोनों ही तत्व आप छूते हैं, जो जल आप पीते हैं, जिस जल में आप अपना हाथ डालते हैं, वह चैतन्यित हो आवश्यक है। इसी के साथ-साथ आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति अत्यन्त विनम्र एवं हो जाता है। मृदु 12 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3&4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-14.txt जा गिरते। पृथ्वी माँ के अन्य गुणों की अभिव्यक्ति जाता है। इसका क्या अर्थ हैं? जल की सूक्ष्मता इसमें आ जाती है-शीतल तथा रोगमुक्त करने भी हममें होने लगती है। पृथ्वी माँ की तरह की शक्ति उस जल में आ जाती है। तो सूक्ष्म हम भी अत्यन्त सहनशील एवं धैर्यवान बनने होने के पश्चात् सभी शक्तियों की अभिव्यक्ति लगते हैं आप यदि सहनशील नहीं हैं, उग्र होने लगती है और इन्हें आप स्वयं देख सकते हैं। इनके लिए आपको प्रयोग (experiment) नहीं करने पड़ते। अंत में पृथ्वी माँ है। पृथ्वी माँ बहुत महत्वपूर्ण हैं, बहुत महत्वपूर्ण। रुस में (डाचा करते हैं परन्तु वे सभी कुछ सहन करती हैं। में) लिया गया एक फोटोग्राफ है जिसमें कुण्डलिनी पृथ्वी माँ से निकल रही है। स्पष्ट दिखाया गया है कि पृथ्वी माँ ही यह सब दर्शाती है। उदाहरण के रूप में आपने फूल देखे हैं, पुष्प यदि आप सहनशील, धैर्यवान और क्षमाशील बन जाते हैं । मेरे कमरे में रखें तो वे खिल उठते हैं, इतने बड़े सभी सहजयोगी जिनमें चैतन्य लहरियाँ हैं उनमें हो जाते हैं कि लोगों ने कभी इतने बड़े आकार के फूल देखे नहीं होते। मैं उन पर कुछ नहीं आपकी चैतन्य लहरियों में जिन चीज़ों की करती। मैं तो केवल वहाँ बैठी होती हैं। फूलों के साथ क्या घटित होता है? धरा माँ का नियम हैं। ये समझ लेना आवश्यक है कि अब आप कार्य करता है। माँ ही आपको पोषण प्रदान बहुत महान हो गए हैं। अन्य लोगों के साथ ऐसा करती है और आप स्वस्थ हो जाते हैं और इस प्रकार पृथ्वी तत्व की सूक्ष्मता कार्य करती है। घटना नहीं घटी। जो लोग चर्च, मस्जिद या पृथ्वी माँ इन सब पेड़ों और पुष्यों को जन्म देती मन्दिर जाते हैं आप उन्हें देखें। उनके चेहरे देखें। है। यह हमारे अन्दर भी एक बहुत बड़ी भूमिका उनकी ओर देखें वे कैसे दिखाई देते हैं? मन्दिर निभाती है। पृथ्वी माँ के हमसे गहन सम्बन्ध हैं से उन्हें कुछ नहीं मिला, मस्जिद से उन्हें कुछ परन्तु हम पृथ्वी माँ का सम्मान नहीं करते। हमने नहीं मिला, किसी भी पूजा के स्थान से उन्हें पृथ्वी को प्रदूषित किया है। इस पर लगे पेड़ों कुछ नहीं मिला। अत: ये सब बनावटी को काट डाला है तथा सभी प्रकार की मूर्खता क्योंकि सत्य (वास्तविकता) से उनका नाता ही की है। परन्तु वे हमारी माँ हैं। पृथ्वी माँ की नहीं जुड़ा। केवल आत्मसाक्षात्कार के बाद ही बहुत सी सूक्ष्मताएं हममें आ जाती हैं। इनमें से आपका सम्बन्ध वास्तविकता से होता है और एक गुरुत्वाकर्षण है। गुरुत्वाकर्षण की अभिव्यक्ति से व्यक्ति अत्यन्त आकर्षक हो जाता है-शारीरिक की समझ आपको आ सकती है। रूप से नहीं आध्यात्मिक रूप से। ऐसा व्यक्ति अन्य लोगों को आकर्षित करता है। लोग सोचते क्योंकि मैं चाहती हूँ कि आप अपने को समझें, हैं कि उसमें कुछ विशेष है। यह पृथ्वी माँ का एक गुण है पृथ्वी माँ में यदि गुरुत्वाकर्षण न डोता तो हम पृथ्वी की गति की तेजी से ही दूर स्वयं को समझ लेंगे, स्वयं को पहचान लेंगे तो TH स्वभाव हैं तो पृथ्वी तत्व की सूक्ष्मता की अभिव्यक्ति आपमें नहीं हुई है। पृथ्वी माँ की ओर देखें, किस प्रकार वे हमारी मूर्खताओं को सहन करती हैं। कितनी ज्यादतियाँ हम उन पर श्री गणेश जी का ये गुण है कि वे आरम्भ में सहन करते हैं, एक सीमा तक वे सहन करते हैं। इसी प्रकार हम भी अत्यन्त कम से कम ये गुण तो आ ही जाना चाहिए। अभिव्यक्ति होती है वे सभी मैंने आपको बताई नहीं हुआ। जो सहजयोगी नहीं हैं उनके साथ ये आपके माध्यम से कार्य करने वाली सूक्ष्मताओं मैं ये सब आपको क्यों बता रही हूँ? अपने को पहचाने; समझें कि आप क्या हैं और आपको क्या प्राप्त हुआ है। एक बार जब आप 13 वैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3 &4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-15.txt आप बहुत कुछ कर सकते हैं। सर्वप्रथम आप ये कहें कि मैं एक सहजयोगी हूँ। पूर्ण आत्मविश्वास परन्तु अभी आपको उनकी चिन्ता करने की के साथ ये कहें और आत्मविश्वस्त व्यक्ति की तरह देखें कि सहजयोगी के रूप में मैंने क्या किया है? सहजयोगी के रूप में में क्या कर गण और देवदूत आपकी सहायता कर रहे हैं चीज़ तो ये है कि आवश्यकता नहीं है। मुख्य आप महसूस करे कि आप क्या हैं, आप को क्या प्राप्त हुआ है और आपने इसका कितना सामना किया है तथा इसने किस प्रकार कार्य सकता हूँ? कुछ सहजयोगियों ने अद्भुत कार्य किए हैं। उन्होंने सहजयोग का बहुत सा कार्य किया है। मैंने देखा है कि जब भी मुझे कोई किया है। परन्तु कुछ अन्य सहजयोगी अब भी छोटी-मोटी समस्या होती है तो यह ( परम चैतन्य) मुझे लिखते हैं कि."मेरे पति मुझसे झगड़ते हैं, तुरन्त कार्य करता है। ऐसे स्थान पर और ऐसे मेरा बेटा ऐसा है, मेरी माँ ऐसी है।" मुझे पत्र के लोगों में ये कार्य करता है जिसकी मैंने कभी बाद पत्र आते रहते हैं। आप एक सहजयोगी हैं। आपको चाहिए कि अपनी सूक्ष्मताओं को देें और इन्हें कार्यान्वित करें। लोग सोचते हैं कि मैं होता है, आपके विकास के लिए होता है और यहाँ उनकी, उनके परिवार की, उनकी नौकरियों की समस्याओं का समाधान करने के लिए हूँ। इस कार्य के लिए मैं यहाँ नहीं हूँ। मैं यहाँ प्रवेश कर गए हैं। परन्तु यह चीज़ आपको आपको आत्मसाक्षात्कार देने तथा आपको प्राप्त आशा भी न की थी! सभी कुछ कार्यान्वित हो जाता है। परन्तु ये सब आपके हित के लिए आपको ये समझाने के लिए होता है कि आप सहजयोगी हैं। आप परमात्मा के साम्राज्य में विकसित करनी होगी। अन्न्तदर्शन आपको बताएगा कि आप इन हुई उपलब्धियों का ज्ञान देने के लिए हूँ। इसे आप चुनौती के रूप में स्वीकार करें। चुनौती की तरह आप इसे लें तो आप हैरान होंगे कि किस नहीं। अन्तर्दर्शन यदि आप करने लगेंगे तो यह सभी सूक्ष्म गुणों को कार्यान्वित कर रहे हैं कि देखकर आप हैरान हो जाएंगे कि आपमें शक्तियाँ प्रकार आपकी सहायता होती है और किस प्रकार आपको परिणाम प्राप्त होते हैं। सहज का अर्थ केवल यही नहीं है कि हैं और आप चमत्कारिक रूप से कार्य कर सकते हैं । मैं आप सबको आशीर्वाद देती हूँ। कृपया ये संभी सूक्ष्म गुण अपने अन्दर विकसित करें। पहले से ही ये आपमें विद्यमान हैं, आपको कुछ नहीं करना; केवल इन्हें समझें और स्थापित करें। आपको स्वत: आत्मसाक्षात्माकार मिल जाए। इसका अर्थ ये भी है कि आपको सहजता प्राप्त हो जाए। पूर्ण प्रकृति सहजता प्राप्त करती है। ये सभी सूक्ष्म गुण जो मैंने आपको बताएं हैं ये भी सहजता प्राप्त करके कार्यान्वित होते हैं। नि:सन्देह आप सबका हार्दिक धन्यवाद। भूत म ा 14 चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 3 & 4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-16.txt श्री रामनवमी पूजा म के ( 5 अप्रैल 1998 को रामनवमी के दिन श्रीमाताजी के नोएडा निवास पर हुई संक्षिप्त पूजा अवसर पर परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी द्वारा दिए गए प्रवचन का सारांश।) महाराष्ट्र के मुकाबले में शालीवाहन शक के चैत्र माह में नवरात्रि ( प्रतिपदा से नवमी) उत्तरी भारत में शानो शौकत से मनाई जाती है। उन्हें हितैयी राजा (Benevolent King) श्री राम ने उच्च आदर्शों की स्थापना करनी चाही जिनका अनुसरण मानव करें। सुक्रान्त ने महाराष्ट्र में श्री कृष्ण का जन्म विट्ठल अर्थात का नाम दिया। महाराज के रूप में गोकुल अष्टमी पर धार्मिक उत्साह से मनाया जाता है। श्री विट्ठल भगवान विष्णु के आठवें अवतरण थे। रात्रि को बारह बजे उनका जन्म हुआ। भगवान विष्णु के सातवें की शासन स्थापित करने के लिए थीं। वास्तव में अवतरण श्री राम का जन्म चैत्र माह की नवमी को दोपहर बारह बजे हुआ। यही दिन रामनवमी उनसे धर्म का जन्म होता था, वे 'धर्म स्थित' थे, श्री राम के जीवन में जितनी भी घटनाएं घटीं जैसे अहिल्या का उद्धार, शबरी-मोक्ष, वानर सम्राट बाली-वध और रावण-वध आदि, धर्म श्री राम धर्मातीत थे-धर्म से ऊपर। वास्तव में धर्म के अवतार थे। सिंहासन की मर्यादाओं को बनाए रखने कहलाता है। मध्य प्रदेश के छिन्दवाड़ा नामक स्थान पर श्री राम की तरह माताजी श्री निर्मला देवी के लिए उन्होंने अपनी प्रिय पत्नी श्री सीताजी का जन्म भी 21 मार्च 1923 को दोपहर बारह बजे हुआ। छिन्दवाड़ा, पूर्व-पश्चिम और परीक्षा के पश्चात भी लोग उन पर शक करते उत्तर-दक्षिण दिशाओं में, जहाँ दो रेखाएं मिलती थे अपने पुत्रों का भली-भांति लालन-पालन हैं, स्थित है। यह जन्म तिथि चन्द्र मास पर करने के पश्चात् एक प्रकार से श्री सीताजी ने आधरित पंचांग के अनुसार है। परन्तु सूर्यमास भी श्री राम को त्याग दिया। लव और कुश ने पर आधारित पंचांग के अनुसार श्री राम का को केवल इसलिए त्याग दिया क्योंकि अग्नि सभी विद्याएं प्राप्त कर ली थीं और धनुर्विद्या के तो वे इतने पारंगत हो गए थे कि उन्होंने अपने जन्म प्रथम माह के प्रथम दिन होना चाहिए था, अर्थात् शालीवाहन शक अट्ठारह सौ पैंतालिस चाचा, श्री लक्ष्मण. को युद्ध में पराजित कर (1845) के चैत्र माह के पहले दिन। महाराष्ट्र में चैत्र के पहले दिन को गुडी पडवा कहते हैं। कराने के लिए श्रीराम को अपने पुत्रों से युद्ध यह दिन श्री माताजी का जन्म दिवस भी होता करने के लिए आना पड़ा। परन्तु धर्म स्थित श्री है और शालीवाहन सम्राट का ताजपोशी दिवस सीताजी ने हस्तक्षेप करके पिता और पुत्रों में होने भी शालीवाहन शक 1920 का आरम्भ मार्च वाले युद्ध को टाल दिया। 28, 1998 से चैत्र प्रतिपदा के रूप में (प्रथम माह का प्रथम दिन के रूप में) होता है। श्री राम आदर्श पति थे और श्री सीताजी आदर्श पतली। और उनके पुत्र लव और कुश आदर्श पुत्र थे। दिया। अन्तत: अश्वमेद्य यज्ञ के घोड़े मुक्त अपने जीवन काल में श्री राम ने एक प्रकार से ऐसे कार्य किया मानो किसी नाटक में भूमिका कर रहे हों। उन्होंने भुला दिया कि वे परमात्मा के अवतरण हैं। परन्तु श्री कृष्ण रूप में 15 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 38 4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-17.txt जब वे अवतरित हुए तो उन्हें अपनी शक्तियों सभी सहजयोगियों को करना चाहिए। उनमें महान का पूर्ण स्मरण था और उनका उपयोग उन्होंने शक्तियाँ थी। उच्चकोटि के पावन व्यक्ति श्री राक्षसों को दण्ड देने के लिए अत्यन्त कूटनीति हनुमान सदा श्री राम का कार्य करने के लिए पूर्वक किया। श्री राम महान देवी भक्त थे वे शक्ति कृष्ण रूप में अवतरित हुए तो श्री हनुमान उनके के पुजारी थे। लंका पर आक्रमण करने से पूर्व रथ की चोटी पर विराजित होते थे वे 'चिरंजीव' उन्होंने देवी पूजा की। जिसमें देवी को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ आदि करवाने के लिए उन्हें किसी ब्राह्मण की आवश्यकता थी। इस कार्य के कार्यों को करके मेरी सहायता करते हैं। सभी लिए उन्होंने श्री लंका के राजा रावण को न्यौता पूजाओं में वे विद्यमान होते हैं। बम्बई की एक दिया, क्योंकि रावण ब्राह्मण था और देवी भक्त भी। बिना आना कानी किए रावण आया और नौ में प्रकट हुए। प्रकार (नव-विध) से देवी पूजा करने में श्री राम की सहायता की। श्री राम यदि चालबाज़ होते तो वे रावण का वध वहीं कर देते। परन्तु वे मर्यादा पुरुषोत्तम मेरी कामना है कि आप सभी ऐसे महान चरित्र थे, धर्मपरायण व्यक्ति थे। उन्होंने यह अधम और गैर-जिम्मेदारी पूर्ण कार्य नहीं किया। थे परन्तु पूजा करते हुए शत्रुता को पूर्णतया भुला और अन्य लोगों पर आप अपने प्रेम और करुणा दिया गया। उद्यत रहते थे। द्वापर युग में जब श्री विष्यु श्री कहलाते हैं, एक अमर व्यक्ति, अमरत्व प्राप्त सात देवों में से एक। वे भी आकर सोंपे गए पूजा में लिए फोटो में वे चैतन्य लहरियों के रूप सहजयोग में उत्थान प्राप्त करने के लिए, सहजयोगियों को चाहिए कि अपने जीवन में इन महान विभूतियों के चरित्र का अनुसंरिण करें। का अनुसरण करके मानव आचरण के उच्च वे शत्रु आदर्श को प्राप्त करने में सफल हों। परस्पर की वर्षा करें तथा आदर्श सहजयोगी भाई-बहन श्री राम के महान आज्ञाकारी सेवक श्री बनें। हनुमान भी आदर्श शिष्य थे। उनका अनुसरण परमात्मा आपको अनन्त आशीष प्रदान करें। ईसा मसीह पूजा ( 25.12.98 ) परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (अंग्रेजी में ) (निर्विचारिता का आशीष) त्ति पहले मैं अंग्रेजी में बोलूंगी फिर हिन्दी कार्य करते हुए वे अन्य लोगों के लिए जिए । में। बहुत समय पूर्व आज के दिन ईंसा मसीह यद्यपि वे दिव्य अवतरण थे, अत्यन्त शक्तिशाली थे, परन्तु ये क्रूर संसार आध्यात्मिकता को नहीं का जन्म हुआ था। उनके जन्म, तथा जो कष्ट उन्होंने सहे, की कथा आप सब लोग जानते हैं। समझता। मानव आध्यात्मिकता की महानता को उन्होंने ही हमें सहजयोग का नमूना प्रदान नहीं समझता किया। किसी भी प्रकार से वो स्वयं के लिए आध्यात्मिकता पर आक्रमण होता है। मनुष्यों ने जीवित नहीं रहे। आज्ञा चक्र को खोलने के लिए सदैव ऐसा किया है सभी सन्तों को बहुत कष्ट । इतना ही नहीं बहुत से तरीकों से 16 चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 3&4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-18.txt उठाने पड़े; परन्तु, मैं सोचती हूँ, ईसा मसीह ने सर्वाधिक कष्ट झेले। वध कर देंगे। सन्तों की वहाँ हत्या की गई उन्हें पागल कहा गया। आध्यात्मिकता अस्वीकार जैसा कि आप जानते हैं वे श्री गणेश के करने का यह बहुत अच्छा उपाय है! इसके पुनरअंवतरण थे और उनमें श्री गणेश की सभी विपरीत भारत में यदि कोई सन्त कुछ बताए तो शक्तियां विद्यमान थी। इनमें से सर्वप्रथम थी उसे चुनौती नहीं दी जाती, कभी नहीं। सन्त होने अबोधिता। वे अनन्त बालक थे। इस धूर्त संसार के नाते लोग उसका विश्वास करते हैं। सन्त हमसे कहीं ऊँचा व्यक्ति होता है। यद्यपि बहुत से निष्ठुर लोग भी थे जिन्होंने सन्तों को सताया, की क्रूरता और पाखण्ड को वे न समझ पाए। व्यक्ति यदि यह सब समझ भी ले तो क्या कर सकता है? अगम्य साहस के साथ उन्होंने एक ऐसे देश में जन्म लिया जहाँ लोगों को आध्यात्मिकता का बिल्कुल ज्ञान न था। परन्तु जनता ने सामूहिक रूप से सन्तों का सम्मान किया। कुगुरु प्राय: इस देश में नहीं रह सकते क्योंकि वो जानते हैं कि उनकी पोल खुल उनके विषय में मैंने एक पुस्तक पढ़ी जाएगी। धन-लोलुप होने के कारण भी वे अमेरिका या अन्य विदेशों में जाकर धनार्जन के लिए । थी। जिसमें कहा है कि वे कश्मीर आए और वहाँ मेरे पूर्वजों में से एक शालीवाहन से उनकी टिक जाते हैं । ये भी एक प्रकार का विज्ञान है। एक सर्वसाधारण परिवार में ईसा मसीह में लिखा हुआ है और संभवत: लेखक के जन्म लेने का यह भी एक कारण हो सकता को संस्कृत का ज्ञान न था। ये सब कुछ संस्कृत है। बचपन में भी उनके पास सोने के लिए भाषा में लिखा हुआ है और मैं सोचती हूँ कि कायदे का बिस्तर न था। पूरा वर्णन किया हुआ संस्कृत पश्चिमी लोगों के लिए सुगम नहीं है। है कि ईसा मसीह कहाँ सोते थे और गायों के तबेले में किस प्रकार उनकी माँ रहती थी! ये सब यह दर्शाने के लिए था कि आध्यात्मिकता है कि शालीवाहन ने ईसा मसीह से पूछा," आप को सुख-साधनों तथा दिखावें की आवश्यकता नहीं है। यह अन्तर्शक्ति है; अन्तर-ज्योति है जो स्वत: प्रकट हो जाती है। इसे दर्शाने के लिए व्यक्ति को कुछ नहीं करना पड़ता। ऐसे व्यक्ति को धन और सम्पदा का ज्ञान नहीं होता। ईसा मसीह दीन-दुखियों के लिए, रोगियों ही दिलचस्प है क्योंकि शालीवाहन ने उनसे के लिए चिन्तित थे उन्होंने कोढियों को ठीक करने का प्रयास किया। बहुत से शारीरिक रूप लोगों को निर्मल-तत्व सिखाएं। वे वापिस लौट से रोगी व्यक्तियों की सहायता करने का उन्होंने गए और साढ़े तीन वर्ष पश्चात् ही उन्हें सूली प्रयास किया क्योंकि उस समय न तो अस्पताल होते थे न चिकित्सक। अत: शारीरिक रूप से दु:खी लोगों की ओर उनका चित्त आकर्षित हुआ। उन्होंने मानसिक रूप से भी उन लोगों को तैयार करने का प्रयत्न किया। पर्वत पर दिए गए भेंट हुई। बड़ी दिलचस्प बात है कि ये सब संस्कृत परमात्मा का धुन्यवाद है कि वे अग्रेजी न जानते थे नहीं तो बहुत कठिनाई हो जाती। उसमें लिखा भारत क्यों आए हैं?" तो उसने कहा," ये मेरा देश है इसलिए मैं यहाँ पर आया हूँ। यहाँ पर लोग आध्यात्मिकता का सम्मान करते हैं, परन्तु मैं उन लोगों में रहता हूँ जिन्हें आध्यात्मिकता का बिल्कुल ज्ञान नहीं है।" उनकी बातचीत बहुत कहा कि आप अपने देश वापिस जाकर वहाँ के (क्रूस) पर चढ़ा दिया गया। व्यक्तिगत रूप से मैं सोचती हूँ कि भारतीय और पश्चिमी सूली में बहुत बड़ा अन्तर है। पश्चिम में हत्या करना महान व्यवसाय समझा उनके बहुत से सुन्दर उपदेश हैं। उस समय के जाता है। जरा-सा बहाना मिलते ही वे लोगों का 17 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3 & 4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-19.txt लोग बहुत अधिक भौतिकतावादी न थे। उन्होंने ईसा मसीह की बात सुनी। परन्तु ये नहीं कहा जा सकता कि कितने लोगों ने उनकी बात को से कार्य कर रहा है । ईसा मसीह ने यह बात नहीं कही थी। परन्तु उन्होंने यह अवश्य कहा था कि अन्तिम निर्णय होगा। एक ओर तो ईसा मसीह अत्यन्त दयालु यह समझ लेना अत्यन्त आवश्यक है कि एवं सहृदय थे। परन्तु दूसरी ओर वे वास्तव में श्री गणेश थे। मन्दिर में वस्तुएं बेचने वाले को समझ पाना कठिन है। आध्यात्मिकता के लोगों को उन्होंने कोडे से पीटा। धर्म के नाम पर आप व्यापार नहीं कर सकते। यह बात दोनों का आत्मसाक्षात्कारी होना जरुरी है। उनके समझ लेना कितनी बड़ी बात है। परन्तु इसाईयों सुन्दर जीवन के बारे में जितना मेंने समझा है ने यह बात नहीं समझी। मैं नहीं जानती कि उनकी समझ में क्या आया! महात्मा गाँधी ने नहीं हैं तब तक ईसा मसीह की आत्मा को आध्यात्मिकता के अतिरिक्त कोई बात नहीं की । कष्ट पहुँचाते रहेंगे। ऐसा हो रहा है। ईसा मसीह हर समय आध्यात्म। परन्तु उनके उत्तराधिकारियों ने स्मष्ट कहा है कि 'आप मुझे, ईसा-ईसा ने आध्यात्मिकता समेत उन्हें एक ओर डाल कहकर आवाज़े देते रहोंगे, परन्तु मैं तुम्हें दिया और नए विचार, नई जीवन शैली तथा नए संसार का आरम्भ किया। उनके अनुयायी कहलाने शब्दों में कहा है। मेरी समझ में नहीं आता कि वाले लोगों को अब बहुत से शराबखाने तथा इन लोगों ने ईसा के इस कथन को बाइबल से सभी प्रकार की उल्टी-सीधी चीजें चाहिए। क्या क्यों नहीं निकाला! इस कथन का अर्थ है कि आप इस बात की कल्पना कर सकते हैं? महात्मा गाँधी ने कांग्रेस की स्थापना की और कांग्रेस के लोग ही अब ये सब अधम कार्य कर विशेष वस्त्र धारण करेंगे इंसा मसीह उन्हें रहे हैं। वे देश को कहाँ लें जाएंगे? आध्यात्मिकता नहीं पहचानेंगे। यह बात इतनी स्पष्ट है और ही इस देश का सौन्दर्य एवं सम्पदा है । आज जबकि अन्तिम-निर्णय का समय है। वे आध्यात्मिकता अपनाने की अपेक्षा वे कहाँ जा समझा। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किए बिना आध्यात्मिकता विषय में बात करने वाले और उसे सुनने वाले उसके अनुसार जब तक हम आत्मसाक्षात्कारी पहचानूंगा नहीं।' उन्होंने यह अत्यन्त स्पष्ट ईसा मसीह के नाम पर आध्यात्मिक होने का ढोंग करने के लिए जो लोग उपदेश देंगे या रहे हैं ? पूरे विश्व को आध्यात्मिकता अर्थात् चैतन्य लहरियों आध्यात्मिक लोग यद्यपि इसाई नहीं हैं फिर भी ईसा का सम्मान करते हैें, बाइबल का सम्मान करते हैं । मैं आपको बता दूं ये वास्तविकता है जिसे लोग नहीं जानते। जब हम कहते हैं कि वे इसाई नहीं हैं तो इसका अर्थ ये होता है कि उन्हें किसी पादरी ने दीक्षा नहीं दी। फिर भी वे ईसा का सम्मान करते हैं क्योंकि वो जानते हैं कि ईसा मसीह कितने आध्यात्मिक थे। वे आध्यात्मिकता का अवतरण थे। भारत की ये के आधार पर आँकेंगे। उनका निर्णय आरम्भ हो चुका है। मैंने यह देख लिया है। आप भी देख सकते हैं कि बहुत से देशों में चीजें लुप्त हो रही हैं उनके अहं, आक्रामकता और क्रूरता आदि को चुनौती दी जा रही है। युद्ध में जिन लोगों ने अत्याचार किए थे उन्हें दण्ड मिल रहे हैं । इतिहास में भी जिन लोगों ने किसी जाति या समुदाय पर अत्याचार किए हैं उन्हें दण्ड मिलेगा। आक्रामक होकर लोगों को कष्ट देना उनका कार्य नहीं है। यही श्री गणेश-तत्व है जो सहजयोग के माध्यम खूबी है कि सन्त हिन्दु हो या मुसलमान, उसका सम्मान होता है भारत में बहुत से मुसलमान 18 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3 &4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-20.txt कर सकते थे? तो शराब पीना वहाँं पर बहुत सूफी सन्त हुए हैं। सभी लोग उनका सम्मान करते हैं। ईसा मसीह के विषय में भी किसी को बड़ा धर्म है। एतराज नहीं है। इसके विपरीत कल आप लोगों ने देखा कि सभी सहजयोगी कितने प्रसन्न थे कोई बात नहीं की फिर भी हम जानते हैं कि क्योंकि वे आत्मसाक्षात्कारी लोग हैं। परन्तु यदि आत्मसाक्षात्कारी न भी हो तो भी इस देश में हैं। सब जानते हैं कि शराब पीने वाले व्यक्ति ईसा मसीह का बहुत सम्मान होता है। पश्चिम की बुद्धि मलिन हो जाती है। धार्मिक मंच पर के लोग इस बात को नहीं समझ सकते। किस इसके बारे में कहने के लिए कुछ नहीं है, फिर प्रकार वे ईसामसीह के जीवन के विषय में भी सब जानते हैं कि शराब पीने का परिणाम छानबीन कर सकते हैं? वे उन्हें किस प्रकार आँक सकते हैं और उनके विषय में भद्दी इस बात को नहीं जानते, वे भी भली-भाति फिल्में बनाने का उन्हें क्या अधिकार है? भारत के लोग ये ब्दाश्त नहीं कर सकते क्योंकि है। अब तो हमारे देश में भी यह छाने लगा हैं। उनके मन में आध्यात्मिकता के प्रति बहुत मेरी समझ में नहीं आता कि स्वतंत्र होने के सम्मान है। बाहर के देशों के लोगों से कहीं पश्चात् लोग शराब क्यों पीने लगे! हर अवसर अधिक। ईसा मसीह के नाम पे लोगों ने कुकृत्य किए हैं। बहुत नरसंहार हुआ है और के जन्म दिवस पर भी वे शराब पीते हैं! उनके सभी प्रकार की गलत चीजों को स्वीकार किया सुन्दर, पवित्र जीवन का यह बहुत बड़ा अपमान गया है। इस प्रकार की सूझ-बूझ वाले लोग है। वे लोग (विदेशी) जब इस पावन भूमि पर किस प्रकार ईसा मसीह का आंकलन कर सकते आए, तो उनकी पावनता की सभी शक्तियाँ नष्ट हैं? उदाहरण के रूप में, जो मैंने इंग्लैंड में सम्मान तो करते हैं। सभी पावन स्थानों का वे देखा उससे मुझे बहुत सदमा पहुँचा, वहाँ किसी की मृत्यु होती है तो वे शराब पीते हैं और यदि पवित्रता को समझते हैं। यद्यपि अब वे भी किसी का जन्म होता है तो वे शराब पीते हैं। अमेरिका की तरह से अत्यन्त आधुनिक बन रहे मद्यपान के माध्यम से ही उनके सम्बन्ध हैं। हैं, परन्तु अब भी वे जानते हैं कि गलत क्या हैं किस प्रकार आप शराब पी सकते हैं? मैंने उनसे और क्या नहीं किया जाना चाहिए। पूछा। कहने लगे, "क्यों? ईसा मसीह ने शराब बनाई थी। " मैंने कहा कब? एक विवाह के भारत में यद्यपि किसी ने भी शराब विरोधी शराब पीना पाप हैं। आप ये बात प्रतिदिन देखते क्या होता है। ऐसा नहीं हैं कि विदेशों में लोग जानते हैं। परन्तु वहाँ पर मद्यपान फैशन बन गया से पर लोग शराब पीते हैं, यहाँ तक कि ईसा मसीह बहुत हो गई। भारतीय कम से कम पावनता का सम्मान करते हैं । ये उनकी खूबी है कि वे ये कहते हुए मुझे प्रसन्नता हो रही है कि अब सहज योग से विदेशी सहजयोगी भी अत्यन्त सुन्दर हो गए हैं। मैं आश्चर्यचकित हैँ क्योंकि उनके संस्कारों में आध्यात्मिकता नहीं है। मैं समझ नहीं पाती कि किस प्रकार उन्होंने यह भाषा में हम इसे द्राक्ष कहते हैं। वह शराब कंसे सब मूर्खता त्याग दी है और आध्यात्मिकता की हो सकती है। शराब बनाने के लिए तो पहले सुन्दर सुगन्ध से परिपूर्ण सुन्दर कमलों सम खिल उठे हैं। यह चमत्कार है। सभी लोग कहते हैं श्री माताजी हमें विश्वास नहीं होता कि ऐसा अवसर पर। मैंने कहा, "विवाह के अवसर पर?" वह शराब नहीं थी, वह तो अंगूरों का रस थी, उन अंगूरों का जिन्हें वे उगाते हैं। हमारी इसे सड़ाना पड़ती है, इसका खमीर उठाना पड़ता है। विवाह के अवसर पर वे ये कार्य कैसे 19 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 3& 4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-21.txt रूप में ब्राह्मण एक जगह पर बेठगे, कायस्थ किस प्रकार कर पाए? मैं कहूँगी यह ईसा मसीह दूसरी जगह पर बैठेंगे, बनिए अलग बैठेंगे। यदि का आशीर्वाद है। उन्होंने देखा कि ईसा मसीह ऐसा न हुआ तो किसी अन्य प्रकार से वे अलग गुट बना लेंगे। मेरे देश का यह अभिशाप है रहे हैं और उनमें एक प्रकार की चेतना आ गई एक बार जब लोग गुट बनाने लगते हैं तो वे कि ये लोग ईसा मसीह और उनके पावन जीवन दूसरों की अच्छाइयाँ नहीं देख पाते और न ही का चित्रण नहीं कर रहे हैं. यह तो कुछ और ही कभी अपनी बुराइयाँ देख पाते हैं। गुट बनाने की ये प्रकृति इस देश के लिए बहुत सी समस्याएं किस प्रकार घटित हो सकता है। आप यह कार्य के नाम पर कितनी तुच्छता से लोग कार्य कर है। और यही कारण है कि पश्चिम में उत्कट खड़ी कर सकती हैं। इच्छा है और महान उत्थान शक्ति है। कल कोई व्यक्ति मेरे पास आया और कहने लगा श्री माताजी यहाँ सामूहिक ध्यान नहीं होता। सुनकर मुझे प्रसन्नता हुई। सहजयोग में ध्यान-धारणा ही महत्वपूर्णतम है। इसके विषय थे। अब हमारे यहां ऐसे लोग हैं जिनकी रुचि में कोई सन्वेह नहीं। विदेशी लोग भारतीय सहजयोगियों से कहीं अधिक ध्यान-धारणा करते टॉँग ऐसे तालाब में फँसी है जहां सदियों पुरानी हैं। विदेशी पुरुष और स्त्रियों, विशेष तौर पर रुस के लोगों, को आध्यात्मिकता का बहुत ज्ञान है। के पतन का कारण है हम एक जुट नहीं हो मैं हैरान थी कि अमेरिका में उन्होंने (रुसी लोगों सकते, एक दूसरे के मित्र नहीं बन सकते । ने) मुझे बताया कि श्री माताजी ये अमेरिका के निःसंदेह सहजयोग में इस समस्या का भली-भांति लोग सहजयोगी नहीं हैं। मैंने पूछा, "क्यों?" उनके हृदय में आपके लिए सम्मान नहीं है। ये मसीह के समय में भी उन्हें अपने शिष्यों से ध्यान-धारणा नहीं करते। जो ध्यान-धारणा नहीं बहुत परेशानी थी। विशेेष कर पीटर से और करते वो सहजयोगी नहीं हैं। मैंने कहा, "मैं उसमें तो शैतान जाग उठा! ईसा मसीह ने कहा सहमत हूँ।" उन्होंने अमेरिका के सभी सहजयोगियों कि उन्होंने बहुत से लोगों में से शैतानी-भूतों को को ध्यान-धारणा कने के लिए विवश कर दिया। मैं नहीं जानती कि पूर्ववर्त्ती देशों (Eastem Block) के लोग विशेष कर बल्गोरिया, रुस और आध्यात्मिकता की जितनी अधिक सुरक्षा व्यवस्था रोमानिया किस प्रकार सहजयोग को इतना अधिक ईसा मसीह के समय में बहुत ही भिन्न प्रकार के लोग हुआ करते थे। वे या तो आध्यात्मिकता में रुचि रखते थे या नहीं रखते आध्यात्मिकता में है परन्तु अब भी उनकी एक समस्याएं (बन्धन) बनी हुई हैं। यही हमारे देश समाधान हुआ है। परन्तु, यदि आप देखें, ईसा निकालकर सूअरों में डाल दिया। ये सत्य है । शैतानी शक्ति पूरी ताकत से कार्य कर रही है| हम करेंगे वे भी उतने ही अधिक विकसित अपना पाए? नि:संदेह वे साम्यवाद से अभिशप्त होंगे। थे. और उन्हें लगा कि जीवन में उन्होंने कुछ खो दिया है। इसलिए वे अपने अन्तस की देशों में भिन्न रुपों में कार्यरत है। परन्तु मैं उनहें गहराइयों में गए और यह उपलब्धि प्राप्त की । मुझे भारतीय लोगों को भी बताना है कि उन्हें इस शैतानी शक्ति को किस प्रकार खोजा जाए? ये शैतानी शक्ति पूर्व और पश्चिम के सावधान रहने की चेतावनी देती हूैँ। पश्चिम में भी ध्यान-धारणा करनी होगी। भारतीय लोगों में एक दो बहुत बड़े दोष यह आपको प्रभावित न कर पाए। परन्तु आप ही हैं। उनमें से एक हैं गुट बनाना। उदाहरण के को इससे लड़ना होगा। आपको ही इससे युद्ध आप आत्मसाक्षात्कारी हैं और हो सकतां है कि चैतन्य लहरीं 20 खंड : XI अंक 3 & 4 1999 ॥ : 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-22.txt करना होगा उदाहरणार्थ प्रजातिवाद से। प्रजातिवाद अब भी वहुत शक्तिशाली है परन्तु ईसा मसीह का सबसे बड़ा शत्रु अत्यन्त शक्तिशाली । भिन्न जातियों के लोगों से चरित्रहीनता विवाह करके आपको जातिवाद से लड़ना होगा। बहुत अधिक मान्यता दे दी गई है। इन देशों में परन्तु अब भी विवाह, किसी गौर वर्ण से कर पाना मेरे लिए कि ये सभी दुष्वरित्र लोग किसी एक दुष्वरित्र बहुत कठिन कार्य है। यह असम्भव स्थिति हैं। व्यक्ति के पक्ष में मतदान करते हैं और बह ऐसा करने का प्रयास यदि मैं करू तो मेरी अमेरिका का राष्ट्रपति बन जाता समझ में नहीं आता कि क्या ही जाएगा। एक वहाँ पर सभी प्रकार की चरित्रहीनता की आज्ञा बार हमने ऐसा विवाह किया-एक फ्रांस की गौर है परन्तु यह ईसामसीह के बिल्कुल विपरी्त है, वर्ण महिला का विवाह एक काले व्यक्ति से पूर्णात: विरोध में लोग नहीं जानते कि चरित्रहीनता कर दिया। श्वेत महिला के अपने पति पर हावी उन्हें एक ऐसे साम्राल्य में धकेल देगी जो पशुओं होने के स्थान पर उसकी काला पति ही उस पर के साम्राज्य से भी बदतर हैं। वे इतने चरित्रहीन रोत् जमाने लगा। मैं बहुत किस प्रकार हो सकता है। मेरे विचार से वह हैं मानो उनमें अपना मस्तिष्क बिल्कुल न हो बदला ले रहा था। सम्भवतः ऐसा करने से उसे ऐसे व्यक्ति की बात को समझने के लिए उनमें सुकून मिल रहा था। तो सर्वप्रथम लोगों में आत्मा नहीं है। सहजयोग में आने के पश्चात् ही अथाह प्रेम और स्नेह विकसित होना आवश्यक हैं रंग तो केवल चमड़ी तक सीमित है. अन्तर्प्रेम से इसका कोई संबंध नहीं। इसकी गहनता केवल त्वचा तक है। परमात्मा का धन्यवाद हैं दें और मुझे कि हमारे देश में पत्नी बहुत श्याम रंग की हो विश्वास है कि यदि आप चरित्रवान जीवन सकती है और पति बहुत डी श्वेत रंग का या व्यतीत करें तो बहुत से और लोग भी सहजयोग इससे दूसरी तरह भी हो सकता है, परन्तु रंग के के झण्डे के नीचे आ जाएंगे| नज़रिए से वे एक-दूसरे को नहीं देखते। परन्तु यहाँ पर एक अन्य प्रकार की समस्या है। अपने लोगों को इसका बहुत गर्व होता है। वे कहेंगे अहं से पुरुष स्त्री को पीड़ित करता है। ईसा मुझे क्रोध आ जाएगा; मैं वहुत गुस्से में है। उन मसीह ने आपके अहं से लड़ने का प्रयत्न किया। वे अत्यन्त गरीब परिवार में जन्में, उनकी उच्च कार्य हो। वे ये भी कहते हैं कि मैं घृणा त्वचा भी श्वेत न थी। आपकी भाषा में वे गेहूए करता हैँ। किसी भारतीय भाषा में यदि ऐसा कह रंग के थे, परन्तु भारतीय भाषा में के काले थे। जब आध्यात्मिकाता की बात आती है तो आप कंवल व्यक्ति के आंतंरिक प्रकाश को ही देखते देन है। किसी को यदि क्रोध करना हो तो स्वयं हैं, त्वचा के रंग को नहीं देखते। त्वचा तो ऊपर की चीज़ जाना चाहिए। भौतिकवाद एक अन्य शत्रु है है पश्चिम में चरित्रहीनता को किसी श्यामवर्ण व्यक्ति का सभी प्रकार का चरित्रहीन व्यवहार हैं। कहते हैं है। ठीक है. हैरान हुई कि ऐसा है कि वे फ़ायड जैसे व्यक्ति की बातों को सुनते आप.ईसा मसीह के जीवन का आदर्श पा सकते हैं। जो बीत गया वह समाप्त हो गया। अब आप आत्मसाक्षात्कारी हैं और सद्चरित्र आपकी शक्ति है। भूतकाल की बातों को भुला क्रोध हमारा एक अन्य घोर शत्रु है। ये कहते हुए लज्जा नहीं आती मानो यह कोई दिया जाए तो इसका अर्थ होगा कि मैं अपराध कर रहा हूँ। यह सारी आक्रामकता क्रोध की ही पर करे क्रोध से मुक्ति होगा। अपने बाल उखाड लें, आपने को दाँतों से पा लेना हो सर्वश्रेषठ है परन्तु पश्चिमात्य जीवन की यह स्वयं को पीट लें. क्रोध से बहुत बड़़ी शत्रु है। इस बात पर ध्यान दिया काट लें, सिरहाने 21 चैतन्य लहरी ॥ खंड :X! अक : 3 & 4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-23.txt निकालने का यह बहुत अच्छा तरीका है। देखें है, बुद्धिगत हैं। तब आपकी चैतन्य लहरियां भी तो सही कि आप किस कारण क्रोधित हैं। क्षीण होती हैं। अर्धात् आप ये नहीं समझ पाते कभी-कभी तो क्रोध व्यर्थ होता है, इसका कोई कि चैतन्य लहरियां क्या कह रही हैं। आप अर्थ नहीं ही होता और कभी ये अत्यन्त पागलपन अपनी चैतन्य लहरियों को नहीं समझ पाते और मुर्खता होती है। परन्तु जब तक आप ये कहना छोड़ नहीं देंगे कि, "मैं बहुत क्रोध में कहते हैं, " श्रीमाताजी, हमने चैतन्य लहरियों से है" तब तक क्रोध आपका पीछा न छोड़ेगा। पूछा था।" में कहती हूँ " वास्तव में?" आपमें क्रोध जब आता है तब आपको समझ लेना तो चैतन्य लहरियां है ही नहीं,: किस प्रकार चाहिए कि आप पतन की ओर जा रहे हैं । जिन सूक्ष्म बातों के विषय में आपको बता रही हैं, उनके विषय में ईसा ने नहीं बताया लहरि्यों से पूछा था। चैतन्य लहरियों ने हमें था। यह कार्य मेरे लिए छोड़ दिया गया था। आत्मसाक्षात्कार के बिना किस प्रकार इन सूक्ष्म मस्तिष्क के स्तर पर हैं। चीजों की बात की जा सकती है हो ही नहीं क्योंकि ये अभी तक बुद्धि स्तर पर हैं। लोग आप चैतन्य लहरियों से पूछ सकते हैं? यह आम बात है, लोग कहते हैं कि हमने चैतन्य बताया। यह असम्भव है क्योंकि अभी तो आप ईसा मसीह ने आपको मस्तिष्क के स्तर से बाहर उठाया है। यह कठिनतम कार्य है। मै] पिछली वार मैंने आपको चैतन्य लहरियों हैरान हूँ कि इसाई मत का मानने वाले लोगों को के बारे में बताया था। ये क्या हैं, किसकी ओर मानसिक-बाधा सबसे अधिक है। बे दिल्ली को संकेत करती हैं तेज, जल, पृथ्वी, वायु और धुंध की तरह से मस्तिष्क में फसै हुए हैं हम तत्वों से तन्मात्रा नामक सूक्ष्म शाक्ति हम पागलों की तरह से पढ़ते हैं, पागलों की तरह से हम लोगों को सुनते हैं और बुद्धि को बढ़ावा देने विषय में मैंने आपको नहीं बताया था. एक वाले लोग हमें अच्छे लगते हैं। लांग इतने विशेष तत्व के विषय में, जिसे अंग्रेज़ी भाषा में बुद्धिगत हैं इतना वाद-विवाद करते हैं, चीजें सकता। अग्नि किस प्रकार प्राप्त करते हैं? परन्तु एक तत्व के (Ether) आकाश कहते हैं। यह तन्मात्रा आकाश तत्व द्वारा संचालित को जाती है। ईसा मसोह ने, आपको कहना पड़ता है, " आज्ञा चक्र को खोलने के लिए अपना जीवन उनके मानसिक दृष्टिकोण बलिदान कर दिया। उनके बलिदान स्वरूप हम उनके मस्तिष्क में इस प्रकार जाती हैं कि टीक हैं, नमस्कार। से आप लड़ नहीं सकते। यही कारण है कि ये बुद्धिवादी लोग आकाश की स्थिति तक पहुँच पाए। इसके विना ईसामसीह की पूजा करते हैं और उनकी यह यह सम्भव त होता। आमतीर पर हम विचारों का मानसिकता उन्हें अन्य लोगों से श्रेष्ठ होने का भाव प्रदान करती है। जो भी कुछ उनसे कहो वो सकते हैं, अपने विचार बता सकते हैं. अपने कहते हैं. "इसमें क्या गलती है,. इसमें क्या आदान प्रदान कर सकते हैं, परस्पर बातचीत कर हाथों तथा अंगुलियों से स्वयं को अभिव्यक्त कर गलती है?" वे स्वयं को सुधार नहीं सकते सकते हैं। परन्तु चैतन्य लहरियां फैलाने के लिएक्योंकि मस्तिष्क से ऊपर उठे बिना आप स्वयं व्यक्ति के पास चैतन्य लहरियों का होना आवश्यक है। इसके बिना व्यक्ति दूसरों को महसूस नहीं को देख नहीं सकते। अन्तर्दर्शन नहीं कर सकते। स्वयं को देखने के स्थान पर आ अन्य कर सकता। आप यदि आज्ञा चक्र पर हैं. तो हैं. सहजयोग इसका अर्थ ये है कि आप मस्तिष्क के स्तर पर ऐसा है. आदि आदि। परन्तु आप स्वयं को नहीं लोगों को देखते हैं। ये सहजयोगी ऐसे चैतन्त्य लहरी । खंड : XI अंक 3 & 4 1999 22 : 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-24.txt देख सकते क्योंकि सभी कुछ बुद्धिगत है। में विचारों की तरंगें दौड़ा देती हैं। यह बात भगवान ईसा मसीह की सहायता लेकर यह बौद्धिक दृष्टिकोण नियंत्रित किया जाना चाहिए; के पश्चात् अब आपको पूर्णतः निर्वचार होना परन्तु ईसा मसीह भी बुद्धिगत हैं, आपके मस्तिष्क में हैं। वे भी बुद्धिगत हैं। तो अब क्या करें? बहुत बड़ी उपलब्धि प्राप्त कर ली है। मस्तिष्क की सीमाओं को तोड़ने वाला ही बुद्धिगत है। पत्थर की मूर्ति सम आपने उन्हें बुद्धिगत बना दिया है। तो सर्वप्रथम हमें स्वयं से कहना होगा, "अब सोचना बन्द करो, सोचना बन्द करो, सोचना बन्द करो, सोचना बन्द करो, कार्य करता है। आप जानते हैं कि यह मुझमें भी चार बार। तब आप ऊपर उठ पाएंगे, यह कार्य करता है। अपने चित्त से मैं बहुत से कार्य अत्यन्त आवश्यक है। ्यान-धारणा में आपको मस्तिष्क से परे पूर्णत: निर्विचार। जहाँ भी यह जाता है, कार्य जाना पड़ेगा। वहां ईसा सम्पन्न करता है, परन्तु यदि विचार करने के को समाप्त करने के लिए विराजित हैं। मैं लिए आप चित्त का उपयोग करेंगे तो यह सोचती हूं कि अच्छा होगा कि लोग पढ़ना भी छोड़ दें। मेरा प्रवचन भी बुद्धिगत हो जाता है। निर्विचारिता में है तो चित्त चमत्कारिक रूप क्या किया जाए? कहने से मेरा अभिप्राय है जो भी चीज़़ उनके सिर में जाती है, वह बुद्धिगत हो को स्वयं से उठकर, दूसरों पर और फिर जाती है। तब वे मुझसे प्रश्न पूछते हैं, "श्री माताजी क्या आपने ऐसा कहा था?" में उत्तर जहाँ आपका सम्यर्क आकाश तत्व से हो देती हूँ कि मैंने तुम्हें निर्विचार करने के लिए, जाता है, जिसे हम 'तन्मात्रा' या आकाश झटका देने के लिए ऐसा कहा था। मेरे कहने कातत्व का सार कहते हैं। आकाश तत्व ये अभिप्राय नहीं था कि आप बैठकर इसकी दूरदर्शन बना सकते हैं, दूरभाष बना सकते हैं समीक्षा करें। नहीं। मेरा कहने का अभिप्राय तुम्हें अन्यथा यह चमत्कार हैं। तन्मात्रा से यहाँ बेठे झटका देकर शांत करना था। अतः निर्विचार हुए आप कार्य कर सकते हैं। यह कार्य करती हो जाना ही आप सब लोगों के लिए सर्वोत्तम है। केवल चित्त कार्य करता है। मैं ये बात है। निर्विचारिता ईसा मसीह का वरदान है। उन्होंने आपके लिए ये कार्य किया और मुझे हैं। चित्त डालने के लिए आपको मुझसे नहीं विश्वास है, यदि आप इसे कार्यान्वित करना चाहते हैं तो अन्य लोगों की ओर चित्त न कार्य हो जाएगा। दे। प्रतिक्रिया न करें, प्रतिक्रिया बिल्कुल न करें, किसी भी चीज को देखकर लोग प्रतिक्रिया करते हैं, क्या आवश्यक्ता है? क्या लाभे है? प्रतिक्रिया करके आप क्या करने वाले हैं? प्रतिक्रिया आपके मस्तिष्क अग्नि. जल तत्व से अभिव्यक्ति होती मैं आपको सैंकड़ों बार बता चुकी हूँ। इस पूजा होगा। ऐसा यदि हो जाए तो, मैं सोचती हूँ, हमने ईसा मसीह ने आपको यह बहुत बड़ा आशीरवाद दिया है आपको चाहिए कि इसका आनन्द उठाएं। तभी आपके अन्दर आकाश-तत्व कार्य करेगा। यह आपके चित्त के माध्यम से करती है। कैसे? मेरा चित्त निर्विचार हो गया है, ससीह इस सारी मूर्खता अपेक्षित कार्य नहीं कर पाता। व्यक्ति यदि से कार्य करता है, अन्यथा नहीं। अत: चित्त मानवता के उच्च स्तर तक जाना होता है, जानती हैँ और आप भी यह भली-भांति जानते कहना पड़ता। आप स्वयं चित्त डालिए और यह अत्यन्त महत्वपूर्ण उपलब्धि आपने पा ली है। में सोचती हूँ, एक बार जब आप इसे पा लेंगे तो कोई समस्या न रह जाएगी| पृथ्वी तत्व से हमारी अभिव्यक्ति होने लगती है फिर चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 3.8 4 1999. 23 श्ी 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-25.txt तत्पश्चात् हम तेजस तक आते हैं और स्वयं (आत्मा) के साध हैं और ये जीवन विनोद हमारे मुख मण्डल दीप्तोमान हो उठते हैं। अंत में हमें निर्विचार चेतना (समाधि) प्राप्त हो जाती अधिक आनन्द, इतनी अधिक प्रसन्नता इसमें हैं। जिसके माध्यम से हमारा चित्त किसी भी कि आप किसी भी ऐसी चीज़ की चिन्ता नहीं प्रकार के विशेष कार्य को करने के लिए स्वतंत्र करते जिसकी चिन्ता आप लोग करते हैं । से यरिपूर्ण है । इतना अधिक विनोद, इतना सहजयोग अब बहुत से देशों में कार्यान्वित ही जाता है। परन्तु हर समय यदि हम विचारों में फंसे रहते हैं, तो यह बेचारा चित्त बहुत व्यस्त हो है। मुझे आप पर गर्व है, बहुत गर्व है। अब जाता है। यदि आप निर्विचार हैं तो आपको मुझसे नहीं कहना पड़ता कि, " श्री माताजी कृपा मेरे लिए यह महान सन्वोष की बात है आप सब करके अपना चित्त डालिए; आप स्वयं चित्त लोग इस कार्य को कर सकते हैं। आप इसे डाल सकते हैं और इस कार्य को कर सकते हैं। कार्यान्वित कर सकते हैं। केवल निर्विचार सभाधि चित्त की इस स्थिति में आप महसूस नहीं करते में चले जाना होगा। ईसा मसीह के आशीर्वाद के कि आपको क्या प्राप्त हो गया है, आप कहाँ रूप में यदि यह कार्य हो जाएगा तो आप इसका खड़े हैं, कौन सें वस्त्र आपने पहने हैं तथा अन्य लोग क्या कर रहे हैं। नहीं, कुछ नहीं। अब आप सहजयोग अफ्रीका के देशों में भी फैल रहा है। पूर्ण आनन्द उठाएंगे। परमात्मा आपको धन्य करें। भ भ चैतन्य लहरी 24 खंड : XI अंक : 384 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-26.txt कृष्ण पूजा (कबैला 16.3.98) परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन प्रजातिवाद बहुत है। यद्यपि अमरीकन लोग ऐसा नहीं कहते फिर भी आप इसे महसूस कर सकते हैं। इटली से यदि आप अमरीका जाएं तो आप ये बात महसूस करते हैं। भारत से भी यदि आप वहां जाएं तो इसे महसूस कर सकते हैं। यह प्रजातिवाद क्यों है? इसका कारण क्या है? दूसरी जाति या रंग. जो कि सतही है, के प्रति इस प्रकार की भयानक घृणा से हम प्रतिक्रिया सम्भव है। ये दोनों स्थितियाँ एक-दूसरे से जुड़ी क्यों करते हैं? तर्क बुद्धि से संभवत: आप इसकी व्याख्या कर सकें। हे परमात्मा! ये लोग साक्षी अवस्था में व्यक्ति प्रतिक्रिया बिल्कुल बेकार हैं या केवल कष्ट देने के लिए ये हमारे देश में आए हैं। ये सभी बन्धन हो जाती है। ये समझना अत्यन्त सुगम है कि विद्यमान हैं। आप यदि उन्हें आप्रवासियों के बारे अहँ या बन्धनों के कारण ही हम प्रतिक्रिया में बातचीत करते सुनें! अमरीकन लोग, सब के सब आप्रवासी हैं। अमरीका कभी भी उनका देश न था, उन्होंने सभी श्याम भारतीयों (Red कालीन बहुत सुन्दर है। इसको देखते ही, यदि Indians) को वहाँ से निकाल दिया उनकी सारी मैं अपने अहँ का उपयोग करूंगी तो सोचने भूमि छीन ली और शान से अमरीका के स्वामी बन बैठे। परन्तु प्रतिक्रिया केवल उन लोगों के इस पर कितना खर्च किया? यह पहली प्रतिक्रिया लिए है जो श्वेत नहीं है; उनका तिरस्कार होना है। इसके आगे भी आप सकते हैं। इसमें क्रोध चाहिए और उन्हें यातनाएं दी जानी चाहिए। अब भी घुस सकता है। ये लोग इतना अच्छा कालीन यदि वे हिंसक स्वभाव के हैं तो हिंसा उनका बन्धन है। वे एक-दूसरे की हत्या करने लगते हैं। क्रूरता पूर्वक उन्होंने बहुत लोगों का वध नों में ग्रस्त होकर में यदि इन चीज़ों को देखें तो किया है। वे ये सोचते हैं कि किसी भी देश में घुसकर, वहाँ के लोगों को मारकर, उनकी भूमि आज हम श्रीकृष्ण पूजा करेंगे। श्रीकृष्ण की शक्तियों की एक महत्वपूर्ण बात ये है कि यह आपको साक्षी अवस्था प्रदान करती है। यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि कलयुग में मूल्यों के पतन के कारण पूर्ण भ्रम की स्थिति, सभी प्रकार की खलबली, मानव जीवन को बहुत ही जटिल बना रही है। निर्विचार समाधि प्राप्त करके, ध्यान-धारणा द्वारा ही साक्षी अवस्था प्राप्त करना हुई हैं। नहीं करता। प्रतिक्रिया करते ही समस्या आरम्भ करते हैं। प्रतिक्रिया करने का इसके अतिरिक्त कोई कारण नहीं। उदाहरण के रूप में यह लगूगी कि इन्होंने ये कालीन कहाँ से मंगवाया? क्यों लाए? इसे यहाँ बिछाने की क्या आवश्यकता थी? एक के बाद एक बात आएगी। अपने बन्ध मैं कहँगी कि कालीन का ये रंग कृष्ण पूजा लिए उपयुक्त नहीं है। कृष्ण पूजा के लिए उन्हें के पर कब्जा कर लेना उनका अधिकार है। वास्तव कोई अन्य रंग लाना चाहिए था तो एक प्रतिक्रिया में पृथ्वी किसी की नहीं होती। परन्तु किसी को ये भी अधिकार नहीं है कि जाकर भूमि पर कब्जा कर ले और वहाँ के लोगों को बाहर अन्तर्रचित है। बन्धनों के कारण आई हुई समस्याएं निकाल दे। कल भारत का स्वतंत्रता दिवस था । वास्तव में भयावह है। उदाहरणार्थ प्रजातीयता या मुझे भारतीय ध्वज को ऊपर जाते हुए और में बर्तानवी ध्वज को नीचे आते हुए देखने का से दूसरी प्रतिक्रिया की और हम बढ़ते चले जाते हैं। परन्तु इसका अर्थ ये है कि यह बन्धन हमारे प्रजातिवाद (Racialism)। अमेरिका 25 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3&4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-27.txt अवसर प्राप्त हुआ। लोगों को इसके लिए बहुत तो वहाँ क्या शेष रह जाएगा? बड़ा संघर्ष करना पड़ा. बहुत कष्ट झेलने पडड़े। अंग्रेज लोग वड़डी शान से भरत आए थे, और आपकी बुद्धि आपके मूल्यों और आपकी आत्मा यहाँ के मालिक बन बैठे। तो ये भी एक से कुछ लेना देना नहीं है। हम यहाँ आध्यात्मिक सामूहिक बंधन है कि लोग किसी देश में जाते है वहाँ के लोगों को निकाल कर वहां के स्वामी बन बैठते हैं। ये तो ऐसा हुआ मानो किसी के घर में जाकर आप घर के अन्दर से लोगों को है। प्रतिक्रिया के रूप में अब दूसरी ओर से भी निकाल बाहर करें और बड़ी शान से वहां के वही हो रहा है। हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती स्वामी बन बैठें-क्योंकि आपमें उन लोगों से है। अब काले लोग भी प्रतिक्रिया कर रहे हैं बेहतर बुद्धि है, या सम्भवत: आप उनसे अधि और उनकी प्रतिक्रिया बहुत भयानक हो सकती क चालाक हैं। इस दम्भी स्वभाव से यदि श्वेत लोग ये सोचें कि वे श्याम लोगों पर शासन कर सकते हैं तो इस स्थिति में उनमें साक्षी अवस्था नहीं आ संकती। (क्या आप इस बच्चे को बाहर ले जाएंगे? ये क्यों रो रहा है। हो सकता है प्रवृत्ति का मुकाबला करना चाहिए। परन्तु उनके आपको समझना है कि त्वचा के रंग का उत्थान प्राप्त करने के लिए आए हैं। आत्मा रंग भेद नहीं जानती क्योंकि रंग तो सतही है और रंग के लिए किसी का तिरस्कार करना अत्याचार है। प्रतिदिन में पढ़ती हूँ कि उनकी प्रतिक्रिया उग्र रूप धारण करती चली जा रही है, केवल अमरीका में ही नहीं सर्वत्र। वे अब सोच रहे हैं कि इसके विरूद्ध खड़े होकर. इस प्रभुत्ववादी अपने देशों में, जहाँ भिन्न रंगों के लोग हैं (वे प्यासा हो, ठीक है) इस प्रकार का बन्धन प्लेग की तरह है सभी अश्वेत हैं परन्तु उनमें भी थोड़ी सी और एक देश से दूसरे देश में फैलता है। लोग भिन्नता है) वे जुट बनाकर एक-दूसरे का गला सोचते हैं कि वे अन्य लोगों से श्रेष्ठ हैं और काटने लगते हैं । दूरदर्शन पर मैंने देखा है कि इसीलिए वे उन्हें तुच्छ बना देते हैं और वे लोग भी ऐसे हालात को स्वीकार कर लेते हैं। यद्यपि वे किसी भी प्रकार से उनसे तुच्छ नहीं हैं। अमरीका का ही उदाहरण लें, क्योंकि इस पूजा के मेज़बान अमरीका के लोग हैं और श्रीकृष्ण अमरीका के शासक हैं। श्रीकृष्ण स्वयं श्याम वर्ण के थे। जिस देश के शासक श्रीकृष्ण हों, वहाँ पर लोग ये नहीं महसूस करते कि सभी अश्वेत लोग या एशिया मूल के लोग यदि वहाँ से चले जाएं तो वहाँ पर क्या हाल होगा? बहाँ करने लगते हैं। यहाँ पर यदि कोई घटना होती के सभी खेलों में अश्वेत लोग आगे हैं। अमरीका में 999% खिलाड़ी अश्वेत हैं। फिर आप यदि संगीत को देखें तो अश्वेत लोगों की आवाज़ श्वेत लोगों से कहीं अच्छी है। वे इतना अच्छा गाते हैं कि गोरे उनका मुकाबला नहीं कर सकते। वहाँ से यदि सभी एशिया मूल के प्रवृत्ति अहँ के कारण आती है। क्योंकि आप चिकित्सक, नसे, वास्तुविद्, लेखाकार चले जाएं एक कबीले से सम्बन्धित हैं, इसलिए, आप कितनी क्रूरता से वे हत्या करते हैं मैं नहीं जानती कि रंग-भेद क्या है? परन्तु उन्होंने जुट बना लिए हैं और परस्पर एक-दूसरे को मारने में लगे हैं वे कौरव और पांडवों की तरह से दो तरह के लोग नहीं हैं जो स्वभाव से परस्पर विरोधी हों। वे सभी बुरे लोग है- चाहें श्वेत हो या अश्वेत- एक-दूसरे से झगड़ने लगते हैं। ये हिंसा अब बहुत बढ़ती जा रही है। मेरे विचार से हिंसा के शस्त्र से ही वे अपनी अभिव्यक्ति है तो इसके प्रत्युत्तर में किसी अन्य स्थान पर बम फोड़ कर वे बहुत से निरीह लोगों की हत्या कर देते हैं। ऐसा करना जघन्य पाप है। तनिक सी हिंसा भी पाप है और श्री कृष्ण के दृष्टिकोण से इसके लिए कठोर दण्ड मिलना चाहिए। यह चैतन्य लहरी । 26 खंड : XI अंक : 3& 4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-28.txt हिंसक खुशी प्राप्त करने की भावना अब भी लोगों के मन में है। मानवता, शांति, आनन्द की बात करने वाले मनुष्यों को इस प्रकार के हिंसक कार्यों का आनन्द लेते देखकर बहुत खेद होता है। वे या तो हिंसक कार्य करे हैं या इन्हें देखते हैं। भयंकर हिंसा पर बनी फिल्मों का सोचते हैं, दूसरे कबीले के लोगों की हत्या करने का आपको अधिकार है। मानव मस्तिष्क में इस प्रकार के मूर्खतापूर्ण विचार उठते हैं और वे दूसरे लोगों की हत्या करना अपना अधिकार मान लेते हैं। कहा जा सकता है कि यह घृणा की देन है। परन्तु घृणा अह की देन है। अहं जब गतिशील होता है तो घृणा अधिकारात्मकता, क्रोध और हिंसा के दुर्गुणों को एकत्र कर लेता है। ये सारे दुर्गुण अहँ से जन्म लेते हैं। अहं व्यक्ति को अन्धा कर देता है। हिंसा, घृणा क लोग आनन्द लेते हैं। इनका आप आनन्द लेंगे तो बार-बार ऐसी फिल्में बनती ही रहेंगी। आप ही साक्षी अवस्था में होंगे, साक्षी बन जाएंगे तो क्या होगा? चित्त से अगर आप इन सब घटनाओं को देखेंगे तो ये कम हो जाएंगी। आप यदि साक्षी अवस्था में हैं, वह स्तर बनाए खून-खराबा अनावश्यक है। इस तथ्य के प्रति आप अपनी आँखें बंद कर लेते हैं। अब आप पूछ सकते हैं कि श्री माताजी व्यक्ति में इस अर्हं हुए हैं, तो आपकी कोई दुर्घटना न होगी यदि का विकास किस प्रकार होता है अधिकतर कोई दुर्घटना हो भी जाएगी तो आप लोगों को है बचा सकंगे। यह तो अति निम्न स्तर पर परन्तु बच्चों को यदि बचपन से ये बताया जाएगा कि बहुत बड़े स्तर पर भी आप यह कार्य कर इन लोगों से घृणा करनी है ये गलत लोग हैं, बुरे सकते हैं, बहुत अद्वितीय कार्य। मुझे याद है, उस समय में बहुत बड़ी न थी, हम सचिवालय बच्चे नागफनी की तरह से घृणा को दर्शाने के समीप ही एक घर में रहते थे। हड़ताल हुई लगते हैं और दूसरे लोगों की हत्या में लग जाते और लोग पृथक महाराष्ट्र की माँग करने लगे। पुलिस वहाँ खड़ी थी और मुख्यमंत्री की आज्ञा मानव के इस प्रकार के आचरण का कोई से उधर आने वाले सभी लोगों पर गोली चला रही थी। उस सड़क पर आने वाले लोगों पर ये गोली चलाते और इस खेल का आनन्द लेते। हो सकता है, जब वे प्रतिक्रिया किए बिना मैंने ये सब देखा और इसे सहन न कर पाई। मैं नीचे गई और जाकर पुलिस वालों से कहा कि, "गोलीबाजी बन्द करो।" आप हैरान होंगे कि उन लोगों ने गोली चलाना बन्द कर दिया। जख्मी लोगों को मैं अपने घर पर लाई, उनके अन्दर से गोलियाँ निकलवाईं, एम्बुलेंस बुलाकर, ही लें, वहाँ पर साँडों से लड़ाई (Buill fighting) उनकी जान बचवाई। उस समय मेैं साक्षी अवस्था की जाती है। हर साल छः बार ये लड़ाई दिखाई में थी जहाँ आप निडर हो जाते हैं। साक्षी जाती है और यहाँ उपस्थित लोगों से दस गुने अवस्था में रहना यदि आप सीख लें, तो भय नहीं रह जाता। जब आप साक्षी नहीं साँडों से लड़ने लगी हैं यदि लड़ाई में साँड होते, तभी परेशान होते हैं, तभी उत्तेजित मारा नहीं जाता तो वे उसे गलियों में लोगों को होते हैं। बुरे लोगों की संगति में भी आप पड़ मारने के लिए छोड़ देते हैं। इस प्रकार की सकते हैं यदि आप साक्षी अवस्था में हैं, तो प्रतिक्रियाएँ और बन्धन ही इसका कारण हैं। हैं, तो बच्चे वैसा ही करने लगेंगे। बड़े होकर वे हैं। औचित्य नहीं है। यदि वे मानव हैं, तो उनमें मानवीय गुण भी होने चाहिए। यह तभी सम्भव केवल साक्षी बन जाए। उदाहरण के रूप में दो मुर्गे लड़ते हैं और लोग आनन्द लेते हैं। एक मुर्गा मर जाता है तो वे लोग प्रसन्न होते हैं मानो मरने बाला मुर्गा उनके माता-पिता का हत्यारा था! अत्यन्त आश्चर्य की बात है! अब स्पेन को लोग उस हॉल में होते हैं। अब तो महिलाएं भी 27 चैतन्य लहरी = खंड : XI अंक : 3 &4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-29.txt यह अवस्था अपने आप में ही एक शक्ति है या चीज की आलोचना करना आपका अधिकार जो अन्य लोगों की कठिनाइयों को दूर करने नहीं है। परन्तु कुछ लोग सोचते हैं कि यदि में भी आपकी सहायक होती है। किसी सन्त के विषय में चीन की एक र नहीं। वास्तविकता ये कहानी है। एक राजा सन्त के पास मुर्गा लेकर नहीं है। आपका चित्त अब प्रकाशित है। प्रकाशित आया और सन्त से कहा कि इसे इस प्रकार से चित्त से जब आप चीज़ों को देखेंगे तो सभी प्रशिक्षण दें ताकि लड़ाई में यह अवश्य जीते। सन्त ने कहा ठीक है। उसने राजा के मुर्ग को लगता है कि हम बहुत महान चीज़ हैं और हमें एक महीना वहाँ रखा। मुर्गों की लड़ाई जब शुरु ये सब कार्य करने हैं ऐसी स्थिति में आप स्वयं हुई तो भिन्न स्थानों से मुर्गे आए और लड़ने एक समस्या बन जाते हैं, क्योंकि आप क्या कर लगे। ये मुर्गा केवल खड़ा रहा और देखता रहा| दूसरे मुर्गे उससे डर गये। वे ये न समझ सके वेख सकते हैं। साक्षी भाव से चीज़ों को कि ये मुर्गा इतना शांत क्यों है? आराम से खड़ा उनकी वास्तविक स्थिति में देखने भर से है कुछ करता ही नहीं। वे सब अखाड़े से भाग आपमें एक उच्च स्थिति विकसित हो जाती गए और अन्त में उसी मुर्गे को ही विजयी है। घोषित किया गया| अहिंसा लाने का यही सर्वोत्तम तरीका है। हिंसा के स्थान पर जाकर शांति से लोगों में बहुत दिलचस्प परिवर्तन होते हैं। उनकी खड़े हो जाइए और वहाँ घटित होने वाली सभी स्मरण-शक्ति का हास बहुत कम हो जाता है। चौज़ों को शांति से देखिए। साक्षी भाव कार्य क्योंकि जो भी चीज़ वो देखते हैं, उसकी करता है और वहाँ होने वाली हिंसा को रोक तस्वीर, उनके मस्तिष्क में बन जाती है। वे देता है। साक्षी अवस्था मानसिक स्थिति है, यह आध्यात्मिक उत्थान की अवस्था है जिसमें आप साक्षी बन जाते हैं। साक्षी अवस्था में बने रहने का सर्वोत्तम तरीका ये है कि बहुत दुर्बल हो जाती है। प्रतिक्रिया करना लोगों आप किसी की आलोचना न करें, आलोचना की आदत हो जाती है। मैं ऐसे एक व्यक्ति को बिल्कुल न करें। मैंने देखा है कि लोग हर समय दूसरों की आलोचना करते रहते हैं वे अपनी रही थी। वह हर विज्ञापन को, हर दुकान के आलोचना नहीं कर पाते। इसलिए सदा अन्य लोगों की आलोचना में लगे रहते हैं अपने दोष और मुझे उनके विषय में बताता । ये ऐसा है, ये उन्हें दिखाई ही नही पड़ते। यह बात तो वे कह भी नहीं सकते कि उन्होंने अन्य लोगों की कितनी हानि की है। वे सोचते हैं कि लोगों की आलोचना करना उनका अधिकार है और इस आलोबना का वे आनन्द लेते हैं। साक्षी भाव से जाते हैं। इस प्रकार के लोगों की इतनी ही हानि देखते हुए, स्वयं इसका निर्णय करें। आपका अधिकार मात्र इतना ही है। किसी अन्य व्यक्ति आलोचना नहीं करेंगे तो चीजें ऐसे ही चलती रहेंगी, कभी सुधरेंगी बुराइयों में सुधार होगा। परन्तु हमें तो हमेशा यही सकते हैं? आप कुछ नहीं कर सकते मात्र साक्षी अवस्था में रहने वाले ऐसे सब आपको हर देखी हुई चीज़ का रंग और उसकी नहीं बारीकियां बता सकते हैं उनकी स्मरण शक्ति का हरास नहीं होता। परन्तु व्यक्ति यदि हर चीज के प्रति प्रतिक्रिया करता रहे तो स्मरण शक्ति जानती हूँ। एक बार में उसके साथ कार में जा नाम को पढ़ता, हर चीज़, हर व्यक्ति को देखता वैसा है। मैं हैरान अधिक बोल रहा है, इसका क्या होगा? परिणामस्वरूप उनकी स्मरणशक्ति का अचानक धी कि ये व्यक्ति इतना हास हो जाता है और वे अत्यन्त भुलक्कड़ हो नहीं होती, सामूहिकता में आकर भी वे बहुत हानिकर हो सकते हैं क्योंकि इस प्रकार के 28 चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 3&4. 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-30.txt तो सहजयोगी होने के नाते हमें क्या करना चाहिए। हमें बिल्कुल प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। कोई गलत चीज़ भी यवि स्वभाव के कारण वे कोई कार्य नहीं कर सकते, परन्तु उन्हें कुछ न कुछ करना तो जरूर है इसी के लिए वे सामूहिक हुए हैं। इस प्रकार के आचरण में जो लोग बहुत अधिक उतरे हैं, वे आपको विखाई वे तो ठीक है, आप इस पर बहुत से लोगों को अपने इर्द-गिर्द इकट्ठा करके उनकी बहुत हानि कर सकते हैं। मैं, हिटलर का उदाहरण दूंगी नौ वर्षों प्रति यवि क्रूर है, तो उस क्षण प्रतिक्रिया न तक वह देखता रहा कि यहूदी लोग क्या गलतियाँ करें। जब वह व्यक्ति शांत हो जाए, तब करते हैं जर्मन के लोगों की गलतियाँ उसने नहीं देखी। उसने ये नहीं देखा कि जर्मन के लोग क्रोध से भड़क रहा था। ऐसी स्थिति में उसे ध्यान करें। कोई गलत कार्य होता हुआ यदि आप वेखें तो इस पर चित्त दें। कोई आपके आप उसे बताएं, क्योंकि उस समय तो वह बताने पर भी कुछ न होता। शनै: शनैः आप समाज की क्या हानि कर रहे हैं। उस समय का समाज भी बहुत ही पतित था क्योंकि समाज में उन्हें, उनकी गलतियों का एहसास करवा पाएंगे सभी प्रकार के दुराचार थे। अब वह देख रहा था कि यहूदी ऐसे हैं, वे ये करते हैं, पैसा लेते हैं, रहे थे वो करना अनुचित है। किसी भी चीज़ सूद पर पैसा उधार देते हैं, इन सारी बातों से के प्रति प्रतिक्रिया करना मूर्खता है और आत्मघातक उसने अपना मस्तिष्क भर लिया। परिणामस्वरूप उसमें प्रतिक्रिया हुई कि किसी भी तरह से इन लोगों को जर्मनी से भगाना है। इससे भी आगे, उसने सोचा कि जर्मनी से जाकर भी ये लोग में इस प्रकार की प्रतिक्रियाएं समझ नहीं आ बहुत वैभवशाली बन जाएंगे, तो क्यों न इनका वध कर दिया जाए? हिटलर के कारनामों को ही हो। अब वह कठिनाई में है, बहुत लज्जित आप फिल्मों में भी सहन नहीं कर पाएंगे। परन्तु है। प्रतिक्रियाओं का आनन्द लेने के कारण भी उसने और उसके अनुयायियों ने, ये सब कार्य ऐसा हो सकता है। किसी भी स्त्री या पुरुष के बिना किसी हिचकिचाहट के किया। मानो यह अत्यन्त आनन्ददायी हो, या ऐसा करना उनका कर्त्तव्य हो। हजारों यहूदियों को मारना उनका कर्त्तव्य किस प्रकार हो सकता था? यहूदियों ने ओर देखते हैं और महिलाएं पुरुषों की ओर। उनकी क्या हानि की थी? और उन्हें तो सुधारा किसलिए? सम्भवत: वे महिलाओं की ओर ये भी जा सकता था, तो इतनी हिंसा की क्या आवश्यकता थी? उन्होंने तो विश्व के पूरे यहुदियों उनकी ओर देख रही हैं या महिलाएं पुरुषों की को समाप्त करना चाहा। अपनी साक्षी अवस्था यदि आप खो दें, तो स्थिति अत्यन्त भयानक हो पुरुष उन्हें देख रहे हैं। क्यों? ऐसा वहाँ इसलिए सकती है क्योंकि तब आप नकारात्मक सामूहिकता बटित हो रहा है क्योंकि वे हीन भावना के के हत्थे चढ़ सकते हैं ये नकारात्मक सामूहिकता शिकार हैं या वे सब का ध्यान अपनी ओर इतनी बुरी तरह से कार्य करती है कि विश्व भर के सभी झगड़ों और समस्याओं का ठेका ले ये है कि दूसरे लोगों की सहानुभूति पाने के लेती है। और उनका हृदय जीत सकेंगे। जो कार्य व कर भी कुछ लोगों में प्रतिक्रियाएं अन्तर्राचित हैं। आपने श्री क्लिंटन का व्यवहार देखा होगा। मेरा अभिप्राय है कि उस जैसे उच्च पदारुढ़ व्यक्ति सकतीं! सम्भवत: उसमें इनकी रचना बचपन से प्रति क्यों आप प्रतिक्रिया करें? आज की संस्कृति की, विशेषकर विकसित देशों की, यह सबसे बड़ी समस्या है कि हर समय पुरुष स्त्रियों की जानने के लिए देखते हैं कि कितनी महिलाएं ओर ये जानने के लिए देखती हैं कि कितने आकर्षित करना चाहते हैं। कहने से मेरा अभिप्राय लिए, उनका ध्यान आकर्षित करने के लिए चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 29 3 & 4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-31.txt आजकल सभी प्रकार के उल्टे सीधे कार्य किए की मूल्य प्रणाली की सृष्टि हो गई है। उदाहरण जा रहे हैं। आपका चित्त यदि इनकी ओर जाएगा के रूप में, एक माँ भी इस बात की शेखी तो आप हैरान रह जाएंगे। अभी कोई बता रहा था कि अन्य लोगों की सहानुभूति प्राप्त करने के या वह अपने आप को महान अभिनेत्री समझेगी! लिए एक महिला ने अपने आठ बच्चों की हत्या कर दी। इन भयानक कुकृत्यों की कल्पना आप नहीं आता। जिस प्रकार वे अपने विषय में बातें करें। यदि आप चाहते हैं कि अन्य लोग प्रतिक्रिया करती हैं वह अत्यन्त आश्चर्यजनक है। महिला करें, आपको देखें या अनावश्यक महत्व आपको यदि माँ है तो उसे एक अच्छी माँ होना चाहिए दें तो आप ये सब करें। परन्तु इस खोखले और माँ की तरह से ही दिखाई पडूना चाहिए। महत्व का उपयोग क्या है? परन्तु आधुनिक परन्तु उनके मस्तिष्क में तो केवल एक ही बात जीवन में लोग इसी के पीछे घूम रहे हैं यह आम बीमारी है। आप कैसे लगते हैं? आपको चाहिए या महारानियों की तरह से लगना चाहिए। कैसा दिखाई पड़ना चाहिए? आपकी चाल कैसी होनी चाहिए? ये सब मूर्खता है और शक्ति की बरबादी। परमात्मा ने मानव को एक-दूसरे से गुण है, कोई ऐसा गुण जो उन्हें महान पुरुष बना बिल्कुल भिन्न बनाया है। नि:सन्देह एक व्यक्ति सके? ऐसा गुण यदि होगा तो दिखाई पड़ की शक्ल दूसरे से नहीं मिलती। प्रकृति में भी जाएगा। इसका विज्ञापन आपको नहीं करना पेड़ों के पत्ते इतने अद्वितीय होते हैं कि एक पेंड़ पड़ेगा, इसको बढ़ा-चढ़ा कर दर्शाना नहीं होगा का पत्ता, दूसरे पेड़ जैसा नहीं होता। मानव को भी इसी प्रकार अद्वितीय बनाया गया है। व्यक्ति के विषय में यदि आपको, इतनी उदासीनता हो को स्वीकार करना चाहिए कि जैसे भी आप हैं, तो, मैं सोचती हूँ, आपने बहुत कुछ प्राप्त कर ठीक हैं। आप दूसरे व्यक्ति सम क्यों लगना लिया है। आपकी बहुत सी निराशा समाप्त हो चाहते हैं? इस प्रकार की प्रतिक्रिया बिल्कुल जाएगी। मूर्खतापूर्ण है और इस पर हम अपनी शक्ति और जीवन को बर्बाद कर रहे हैं। सहजयोगी बहुत दिखावा करना चाहते हैं। मैं जानती हूँ कौन होने के नाते आपका मूल्य महान है। आप यहाँ ऐसा करता है, उन्हें जान लेना चाहिए। एक बार लोगों को इन तुच्छ विचारों, कार्यों और आचरणों से मुक्त करने के लिए आए हैं। मैं नहीं जानती कि किसको दोष दिया जाए? परन्तु अचानक प्रतिक्रिया होगी और इससे अन्तर्द्शन आरम्भ आपका चित्त अत्यन्त विचित्र हो गया है। हमारी हो जाएगा। जब आप स्वयं को देखेंगे तो आप प्रतिक्रियाएं अत्यन्त अटपटी हो गई हैं। समझ नहीं आता कि लेग इस प्रकार प्रतिक्रिया क्यों करते हैं तथा लोगों की प्रतिक्रियाओं पर क्यों ध्यान देते हैं? ये सारी चीजें व्यक्तिगत स्तर पर में सोचना बन्द कर देते हैं। मात्र निर्विचार होकर ही नहीं हैं सामूहिकता के स्तर पर भी हैं। परिणामस्वरूप, आप देखते हैं, एक नई प्रकार हैं। जिसकी संगति सभी लोग चाहते हैं। जिसे हाँकेगी कि उसके पीछे कितने पुरुष दौड़ रहे हैं वे स्वयं को क्या समझती हैं? ये मेरी समझ में भरी हुई है कि उन्हें अत्यन्त आकर्षक होना समझ नहीं आता कि वे कौन सा पद प्राप्त करना चाहती हैं। पुरुषों का भी यहीं हाल है। पुरुषों को देखना चाहिए कि उनके अन्दर कोई ि यह अपने आप प्रकट हो जाएगा। लोगों की राय सहजयोग में भी मैंने देखा है कि लोग जब आप बाह्य चीजों के प्रति प्रतिक्रिया करना बन्द कर देंगे तो आप के अन्तस में हैरान हो जाएंगे कि आप कितने प्रशंसनीय है । आप कितने प्रसन्न हैं! इससे भी थोड़ा सा आगे यदि आप जाएं तो आप इन दोनों चीज़ों के बारे सम्माननीय व्यक्ति की तरह से आप खड़े होते 30 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 3&4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-32.txt सब प्रेम करते हैं और सब जिसकी चिन्ता करते कुछ समय पश्चात् आपकी साक्षी अवस्था हैं। अत: व्यक्ति को ये चिन्ता नहीं करनी उन्नत हो जाएगी और सामूहिक रूप से जब चाहिए कि लोगों की प्रतिक्रिया क्या है? वे उसके विषय में क्या सोचते हैं और क्या कुछ किए, बिना कुछ कहे, बिना गतिशील कहते हैं? अन्तर्वर्शन द्वारा आपको स्वयं ये हुए आप अद्वितीय कार्य कर पाएंगे। आपकी सब देखना चाहिए। कुछ समय पश्चात् ॥1 fLFi ekk 15 d k; 2 gks में ये नहीं आपको अन्तर्दर्शन की भी आवश्यकता न रहेगी मैं उस स्थिति की बात कर रही हूँ जिसमें श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि मैं लोग आपसे प्रभावित होंगे। इस अवस्था में रहने स्वयं युद्ध नहीं करूंगा। तुम्हें मेरे और मेरी सेना में से एक को चुनना होगा। तो कौरवों ने कहा, हम आपकी सेना लेंगे, आपकी सेना से हम अपनी सेना को शक्तिशाली बनाएंगे। परन्तु अर्जुन सुनाऊंगी जो एक टापू पर रहता था। वो सहजयोग ने कहा कि मुझे सेना नहीं चाहिए, मैं तो आपको के कार्य के लिए दूसरे टापू पर जा रहा था। नाव चाहता हूँ। आप युद्ध नहीं करना चाहते तो न करें। यद्यपि वे युद्ध नहीं करेंगे, परन्तु साक्षी अवस्था में वहाँ उपस्थित होंगे और उनकी शक्ति सारा कार्य करेगी। उन्हें युद्ध करने की आवश्यकता नहीं है, परन्तु उनकी शक्ति जो बाह्य रूप से करने जा रहा हूँ|।" वह दूसरे टापू पर गया, मौन है कार्य करेगी और इस प्रकार वे युद्ध में आप सब साक्षी अवस्था में होंगे तो बिना e kk 1sd k; Z gks kA कहती कि इसका प्रभाव सभी लोगों पर होगा; नहीं, ऐसा नहीं कह सकते, परन्तु अधिकतर वाला व्यक्ति, अन्य लोगों को शांति एवं आनन्द प्रदान करता है। मैं आपको एक सहजयोगी की कहानी में जब वह बैठा तो उसने देखा कि घने काले बादल बने हुए हैं और गरज रहे हैं उसने साक्षी भाव से उनकी ओर देखा और कहा"मेरे वापिस आने तक प्रतीक्षा करो। मैं श्री माताजी का कार्य सहज कार्यक्रम किया, सभी कुछ समापन करने के पश्चात् वह वापिस आ गया। जब वह अपने घर में सोने लगा तो गडगड़ाहट के साथ मूसलाधार विजय प्राप्त करेंगे। अत: साक्षित्व की ये शक्ति आपको अपने अन्दर विकसित करनी चाहिए। इसे विकसित वर्षा होने लगी प्रकृति भी समझती है कि करने का प्रयत्न करें। किसी चीज़ के प्रति जब आप प्रतिक्रिया करने लगें तो प्रतिदक्रिया मैंने देखा है कि लोग महत्वाकांक्षी हैं सहजयोग को रोक वें, सभी प्रकार की प्रतिक्रिया में भी लोग महत्वाकांक्षी हैं। वे अगुआ बनना आप सांक्षित्व की महान अवस्था में हैं। परन्तु चाहते हैं, और न जाने क्या-क्या। ये सब आकांक्षाएं समाप्त कर दें। तब, आप हैरान होंगे, आप स्वयं को बहुत शक्तिशाली पाएंगे, क्योंकि मिथ्या हैं। सारी मिथ्या चीजें प्राप्त कर के लोग आपमें न तो आकांक्षाएं होंगी, न इच्छाएं उनमें उलझे रहना चाहते हैं एक बार जब और न ही कोई विशेष लगाव। कुछ भी नहीं, साक्षी रूप से आप नाटक देख रहे इनकी सारहीनता को जान जाएंगे, अर्थहीनता होंगे साक्षी रूप से देखना भी अत्यन्त को जान जाएंगे और माया को समझ जाएंगे। दिलचस्प है। तब आप हर चीज़ के पीछे छिपे विनोद एवं मुर्खता को देख सकेंगे की समस्या का समाधान करने का सर्वोत्तम आप समझ सकेंगे कि लोग किस प्रकार उग्र हैं और उन पर हँसेंगे। बिना परेशान हुए, देखने का अभ्यास करें। कोई भी टिप्पणी बिना उत्तेजित हुए इस नाटक पर हँसेंगे। करने से पहले साक्षी अवस्था का अभ्यास करें। आप साक्षी भाव से देखना सीख लेंगे तो अतः साक्षी अवस्था ही स्वत्व (Personality) उपाय है। साक्षी अवस्था में हर चीज़ को चैतन्य लहरी खंड : XI अक : 3&4 1999 31 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-33.txt सोचते हैं कि सुकत्यों के कारण उन्हें धन यह अत्यन्त संतोषप्रदायक दृष्टिकोण है । श्रीकृष्ण की साक्षी अवस्था ही उनके प्राप्त हो गया है और उस धन से वे सभी जीवन की महानतम शक्ति थी बिना कुछ किए, बिना हाथों में तलवार उठाए, बिना युद्ध की ऐसा नहीं कहा था। श्रीकृष्ण ने कहा था कि बातचीत किए, उन्होंने युद्ध जीतने में पांडवों की परिणाम परमेश्वरी शक्ति पर छोड़ दो क्योंकि सहायता की। केवल इतना ही नहीं, अपनी गीता परमेश्वरी शक्ति ही जानती है कि आपके हित के माध्यम से उन्होंने हमें ये बताने का प्रयत्न किया कि आसुरी शक्तियों पर विजय किस कोई अच्छा कार्य किया है, किसी की सेवा की प्रकार प्राप्त की जा सकती है। पूरी गीता में है, गरीबों की सहायता की है, महिलाओं के उन्होंने साक्षी अवस्था का ही वर्णन किया है। लिए कुछ अच्छा कार्य किया है, तो इन सभी इस नजरिए से अब यदि आप गीता को पढ़ें तो सुकृत्यों के परिणाम परमात्मा के चरण कमलों ये देखकर हैरान होंगे कि साक्षी भाव में सर्वत्र उन्होंने हर चीज़ का वर्णन किया है तथा किस प्रकार इस साक्षी अवस्था ने मनुष्यों को समझने अपने अन्दर अहं को न बढ़ने दें उन्होंने बहत में उनकी सहायता की। श्रीकृष्ण बहुत अधिक व्यवहारिक व्यक्ति न थे। उन्होंने सबसे पहले ये समझने के लिए भी साक्षी अवस्था का होना बताया कि स्थितप्रज्ञ किस प्रकार बनें। साक्षी आवश्यक है। कर्म के बाद उन्होंने ज्ञान के अवस्था में रहने वाला व्यक्ति ही स्थितप्रज्ञ विषय में लिखा है। ज्ञान का अर्थ है आपको होता है। स्थितप्रज्ञ, स्थिति पर लिखे गए श्लोकों को यदि आप देखें तो स्थितप्रज्ञ व्यक्ति वही है ज्ञान नहीं है। ज्ञान का अर्थ है स्व को समझना। जो साक्षी अवस्था में है। वह किस प्रकार रहता है, कितना प्रसन्न है, किस प्रकार से चीजों को देखता है। यह अत्यन्त दिलचस्प है। श्रीकृष्ण लहरियों के माध्यम से समझ सकें। ज्ञान का सर्वप्रथम इस अवस्था का वर्णन करते हैं, किसी अर्थ पुस्तकें पढ़ना नहीं है। पुस्तकें पढ़ने से तो दुकानदार की तरह से घटिया चीज़ से आरम्भ नहीं करते, सर्वप्रथम सर्वात्तम बात करते हैं। ज्ञान का अर्थ है कि आप स्वः (आत्मा) को तत्पश्चात् वे अन्य तीन पक्षों की बात करते हैं। पहचाने । स्वः को आप यवि नहीं जानते तो सर्वप्रथम वे कर्म के विषय में बताते हैं। से लोग कर्म में ही उलझ कर रह जाते कि आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करें और प्रकार के बुरे कर्म करने लगते हैं। उन्होंने में क्या है। अत: यदि आप सोचते हैं कि आपने पर छोड़ दें। इसका अभिप्राय ये हुआ कि जो भी कुछ सुकृत्य आपने किए हैं उनके कारण अच्छा लिखा है परन्तु कर्म के विषय में उन्हें समझे आ जाना, इसका अभिप्राय पुस्तकों का इसका अर्थ ये हुआ कि आपको सहजयोगी बनना होगा ताकि बहुत सी चीजों को चैतन्य आप और अधिक अहंकारी हो जाते हैं। अतः आप कुछ नहीं जानते। अत: सार ये हुआ बहुत हैं। वे कहते हैं कि जो भी कर्म हम कर रहे स्वः को पहचानें । यह दूसरी बात है जो श्री हैं इन्हीं से हमें पुण्य प्राप्त होंगे। परन्तु श्रीकृष्ण कृष्ण ने कही है। अन्त में वे भक्ति की बात ने ऐसा नहीं कहा था । उन्हें यदि आपने समझा है तो आप अवश्य जानते होंगे कि उनका अभिप्राय ये नहीं था। वे कहते हैं कि जो भी अपनाई। लोगों को गलियों में 'हरे-रामा, हरे कर्म करने आवश्यक हों, उन्हें आप कीजिए कृष्णा' गाते हुए आप देखते हैं। उन्होंने भक्ति परन्तु उनका परिणाम परमात्मा पर छोड़ दीजिए। परमेश्वरी शक्ति ही परिणाम देती है। कुछ लोग भक्ति । अनन्य भक्ति जहाँ वूसरा कोई न करते हैं। भक्ति का अर्थ है श्रद्धा। भक्ति का वर्णन करते हुए भी श्रीकृष्ण ने दूसरी युक्ति का एक शब्द में वर्णन कर दिया है-'अनन्य 32 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3 &4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-34.txt हो यानि आपने स्वयं को परमेश्वर में विलीन कर दिया हो। जब आपकी एकाकारिता उसमें आपका प्रेम ही निहित होता है। उपहार मुझसे हो तभी भक्ति करें अन्यथा मैं इसे की वस्तु पर खर्च हुआ धन महत्वपूर्ण नहीं स्वीकार नहीं करता। वो कहते हैं 'पत्रम् फलम् होता, कितने प्रेम पूर्वक आपने यह उपहार दिया पुष्पम् तोयम्'। तुलसी दुल, फल या पुष्प जो भी यह बात स्पष्ट होनी चाहिए। श्रीकृष्ण के साथ कुछ आप मुझे समर्पित करेंगे मैं उसे स्वीकार करूंगा। परन्तु वास्तविक भक्ति तभी संभव है। गए और दुर्योधन ने उन्हें भोजन के लिए निमंत्रण जब आप परमात्मा से एक तार हो जाते हैं। एक तार हुए बिना तो ये मात्र दिखावा है। तो श्री नहीं आ पाऊंगा। वे एक नौकरानी के पुत्र, कृष्ण की बताई 'भक्ति' भी आत्मसाक्षात्कार के विदुर, के घर गए क्योंकि विदुर आत्मसाक्षात्कारी पश्चात् ही हो सकती है। भक्ति का उन्होंने कोई पुरुष थे और वहाँ बना सर्वसाधारण खाना खाया। मूल्य नहीं बताया। आपने भक्ति के लिए कितना विदुर क्योंकि आत्मसाक्षात्कारी थे इसलिए श्रीकृष्ण धन दिया, ये बात महत्वहीन है। श्री राम इसके को उनके साथ खाना खाने में आनन्द महसूस एक महान उदाहरण हैं। वे जंगलों में गए, वहाँ हुआ। पर अछूत जाति की वृद्ध भीलनी थी। श्री राम जब उसके यहाँ गए तो उसने अपने दाँतों से भी प्रेम पर आधारित होनी चाहिए। जहाँ से चखे हुए बेर अत्यन्त प्रेमपूर्वक उन्हें अर्पण आपको प्रेम मिलता है, जो लोग आत्मसाक्षात्कारी किए। कहने लगी ये सब बेर मैंने चखे हैं इनमें हैं. उनसे आपके सम्बन्ध होने चाहिए। अहं के कोई भी खट्टा नहीं है । भारतीय संस्कृति के अनुसार चख कर झूठी की हुई चीज़ किसी को लोग चाहे जितने महान हों परन्तु सहजयोगी होने भेंट नहीं की जा सकती, परन्तु श्री राम ने इन बेरों को बड़े प्रेम से खाया, कहा कि, "वाह कितने अच्छे बेर हैं।" इतने अच्छे फल तो मैंने आपमें यदि साक्षी अवस्था नहीं है तो आय देखेगे कभी भी नहीं खाए। श्री लक्ष्मण भीलनी पर नाराज़ हो गए कि उसने अपने झूठे बेर श्री राम को क्यों दिये हैं। श्री सीता जी भी वहाँ मौजूद यह सब बातें बनी रहेंगी परन्तु साक्षी अवस्था थी। श्री राम से भीलनी के चखे हुए फल लेकर में आप समझ जाएंगे कि इस व्यक्ति से मुझे उन्होंने भी उन्हें बड़े प्रेम से खाया। तब उन बेरों चैतन्य लहरियां प्राप्त हो सकती हैं, आप समझ का महत्व श्री लक्ष्मण की समझ में आया और जाएंगे कि फ़लां व्यक्ति आध्यात्मिक है और बहुत प्रार्थना करके उन्होंने श्री सीताजी से कुछ फल लेकर खाए। इन फलों में श्री राम ने क्या देखा? जंगल में रहने वाली उस वृद्ध भीलनी जाएंगे। का प्रेम। श्री राम के लिए प्रेम ही महत्वपूर्ण था। आप भी जब किसी को कुछ देना चाहते हैं भी ऐसा ही हुआ। वे कौरवों के नगर हस्तिनापुर दिया, परन्तु उन्होंने क्षमा माँगी और कहा कि मैं त्ट तो आपकी मूल्य प्रणाली (Value system) नशे में चूर सांसारिक लोगों से नहीं। सांसारिक के नाते आपको प्रेम को समझना है, महसूस करना है और उसका सम्मान करना है। परन्तु कि इस व्यक्ति के पास कितना धन है? इसके पास कितनी कारें हैं? इसने कैसे वस्त्र पहने हैं? आप ऐसे व्यक्ति के साथ जुड़ जाएंगे, बनावटी चीजों को छोड़कर सच्चे व्यक्ति के साथ जुड़ परमात्मा आपको धन्य करें, धन्यवाद। ाल 33 चैतन्य लहरी = खंड : XI अंक : 3 & 4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-35.txt श्री गणेश पूजा कबैला 5,.9%.1998 ) म का तडि परम पूज्य माताजी श्री निर्मला वेवी का प्रवचन कर क ी आज हम श्री गणेश की पूजा करेंगे। मैं सोचती हूँ कि मैंने आपको श्री गणेश और उनके स्वभाव के विषय में बहुत कुछ बताया है। परन्तु अब भी हममें से बहुत से लोग ये नहीं महसूस कर पाए कि उनकी शक्तियां क्या हैं और वे हमसे क्या अपेक्षा करते हैं? श्री गणेश का सम्मान करने के लिए पावित्र्य (Chastity) का जेल की सलाखों के पीछे न डाल दिया जाए. उनकी समझ में नहीं आता। परन्तु सहजयोगी के लिए आवश्यक है कि अपने चरित्र की देखभाल करें। मैंने जैसा कल आपको बताया था, अपने लिए लड़की या लड़का खोजना आवश्यक नहीं है। यह भी चारित्र्य की मर्यादाओं के विरुद्ध है। मैं नहीं कहती कि आप केवल अपने माता-पिता को ही इसका निर्णय करने दें, सहजयोग को यह कार्य करने दें, क्योंकि आप सहजयोगी हैं, गणेश के रूप में जन्मे हैं और गणेश अन्ततः ईसा बन महत्व समझ लेना प्रथम एवं मुख्य आवश्यकता है पावित्र्य केवल महिलाओं के लिए ही नहीं है; पुरुषों के लिए भी पावित्र्य बनाए रखना बहुत जाते हैं। आवश्यक है। आपमें यदि वास्तव में आत्मसम्मान अतः चारित्र्य के प्रति आपका दृष्टिकोण अत्यन्त महत्वपूर्ण है। चारित्र्य के मामले में ही चीज़ों के पीछे दौड़ते रहेंगे। पावित्र्य का सम्मान, यदि हम भटक जाते हैं तो सहजयोग अत्यन्त दुष्कर है। यह आपको वांछित आशीवाद नहीं देता। आपने देखा कि रुमानिया और यूक्रेन के आदत बचपन से ही विकसित होने लगती है, लोग कितना सुन्दर गा रहे थे! इसका एक कारण इस विषय में हमें बहुत सावधान रहना चाहिए। ये है कि मूलत: वे विनम्र लोग हैं, इतने विनम्र हम यदि गणेश अवस्था में हैं तो इस प्रकार की हो गए हैं कि उन्होंने यौन-जीवन जैसे तुच्छ गन्दी चीजें हमें नहीं अपनानी चाहिए। मैं नहीं विचारों को त्याग दिया है। विनम्रतो मनुष्य को समझ पाती कि लोगों को ऐसे विचार कहाँ से सिखाती है कि उसमें आत्मसम्मान का अभाव मिलते हैं? आप देखते हैं कि विश्व में चारित्र्य है। इस्लाम धर्म में सतीत्व के महत्त्व पर इतना का घोर संकट है। विशेष कर पश्चिमी देशों में, बल दिया गया कि मोहम्मद साहब उस सीमा हमें बाल-यौन-शोषण के बहुत से मामले सुनने तक गए जहाँ उन्होंने कहा कि आप चार-पाँच को मिलते हैं। परमात्मा के मन्दिर में व्यक्ति को महिलाओं से विवाह कर सकते हैं ताकि समाज इस गन्दी बीमारी का नाम भी नहीं लेना चाहिए में वेश्याएं न हों। एक बार जब सतीत्व हमें जिसने लोगों को अपने चंगुल में फंसा लिया है। छोडने लगता है तो हमें किसी भी चीज की भारत में हमें ऐसी चीजें सुनने को भी नहीं चिन्ता नहीं रहती। उच्च पदासीन लोगों में हमने मिलती, इनके विषय में हम नहीं जानते। नि:सन्देह इसके परिणाम देखे हैं ये लोग स्वयं को बहुत कुछ लोग अत्यन्त अधम हैं और जब तक उन्हें महान मानते हैं और सोचते हैं कि ईसा मसीह है तो बिना किसी कठिनाई के आप पावित्र्य अपना लेंगे, अन्यथी तुच्छ एवं अपमान जनक इसकी समझ और इसे आत्मसात करना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। पावित्र्य की मर्यादा तोड़ने की 34 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 3 &4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-36.txt की मर्यादाएं तोडकर वे जो चाहे कर सकते हैं; प्रदायक हैं। विवेक द्वारा ही आप समाधान ढूंढते अपनी सहायक महिलाओं के साथ जैसा चाहे हैं ऐसे समाधान जो शांति संतोष एवं सुखमय दुर्व्यवहार कर सकते हैं चाहे वे ये कुकृत्य गुप्त हो। रूप से करें परन्तु श्री गणेश सब देखते हैं और उन्हें दण्डित करते हैं । इस प्रकार के जोखिम से भरे गन्दे कार्यों का सहजयोग में स्थान नहीं है। कि चक्रवात आया और उसके कारण कई लोगों आपकी गलतियों के लिए श्री गणेश आपकी भत्त्सना भी करते हैं। कल ही मुझे बताया गया सहजयोगी सर्वप्रथम अपनी दृष्टि को सुस्थिर को कष्ट उठाना पड़ा करते हैं क्योंकि दृष्टि का सम्बन्ध ईसामसीह उड़ गए। इस मौसम में तम्बुओं की कोई की शक्ति से है। परन्तु सभी इसाई राष्ट्रों में मैंने देखा है कि लोगों की दृष्टि अस्थिर है। अत्यन्त हैरानी की बात है। जब ईसा मसीह उनके इष्ट हैं, ईसा मसीह की बो पूजा करते हैं, चर्च जाते सो सकती हूँ। अत: व्यर्थ का झमेला बनाने की, हैं, ईसा मसीह का स्तुति गान करते हैं, फिर भी उनकी दृष्टि अस्थिर एवं अपवित्र है। यह कुदृष्टि की कोई आवश्यकता नहीं है असुविधा से ईसा मसीह के पावित्र्य को नहीं दर्शा सकती। अब दूसरी बात ये है कि श्री गणेश की शक्ति की अभिव्यक्ति केवल तभी होती है जब आप विवेकशील हों, क्योंकि श्री गणेश ही प्राचीन काल में लोग हिमालय पर जाकर एक विवेक प्रदायक हैं। परन्तु बहुत बड़ी समस्या ये टाँग पर खड़े होकर तपस्या करते थे, फिर भी है कि लाग नहीं समझते कि विवेक क्या है? उन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं होता था। वे तथाकथित बुद्धि, विवेक नहीं है। यह आपको । चक्रवात से उनके तम्बू आवश्यकता नहीं है। क्या आवश्यकता है? मेरी समझ में नहीं आता, परन्तु ये लोग तम्बू के बिना नहीं रह सकते। मैं बाहर गली में आराम से इन सारी चीजों की, पूरी गृहस्थी का सामान लाने हमें घबराना नहीं चाहिए। आप यदि आराम पसन्द हैं, असुविधाओं को सहन नहीं कर सकते तो सहजयोग के लिए बेकार है। आत्मसाक्षात्कार न प्राप्त कर सकते थे। परन्तु आप सब को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है। अत्यन्त चालाक, आक्रामक और कभी-कभी इतना सूक्ष्म बना सकती है कि आप असत्य एवं व्यक्ति को चाहिए कि वह स्वयं को उल्टे-सीधे कार्यो द्वारा लोगों को धोखा देते रहें सुख-सुविधाओं का दास न बनाए। आराम की बहुत अधिक चिन्ता करना अनावश्यक है। मैं सहजयोगी का मापदण्ड नहीं है। सहजयोग में सुख-सुविधाओं में भी रह सकती हूँ और इस उम्र में भी कहीं भी रह सकती हूँ। आपको त्याग सहजयोग के प्रति समर्पित करना। यह स्थिति का दिखावा नहीं करना, त्यागी बनना है। सन्यास अपनाने का अर्थ है कष्ट उठाना। परन्तु यदि आप अन्दर से सन्यासी हैं तो छोटी-छोटी कमियों का आप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। परन्तु अब भी हमारी शैली बाह्य संसार निर्धारित करता और स्वयं को बहुत सफल समझें। सफलता सफलता का अर्थ है सूक्ष्म रूप से स्वयं को तब तक नहीं पाई जा सकती जब तक आप नियमित रूप से ध्यान धारणा नहीं करते। ध्यान धारणा करना अत्यन्त आवश्यक है। जो लोग ध्यान धारणा नहीं करते, सहजयोग का प्रभाव उन पर समाप्त हो जाता है क्योंकि आन्तरिक प्रेरणा श्री गणेश की शक्ति की अभिव्यक्ति से और फ़ैशन के अनुसार यदि हम चल रहे हैं तो ही प्राप्त की जा सकती है। वे ही विवेक यदि हमारा अपना संसार हमें प्राप्त नहीं हुआ विवेक लुप्त हो जाता है। मैं कभी किसी से चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3 & 4 1999 35 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-37.txt आपको वे गण बनना है, श्री गणेश की सेना। वे गणे हैं, अत्यंत शक्तिशाली हैं तथा विश्व का सारा कार्य करते हैं । वे इसी विश्व में रहते हैं फैशन त्यागने के लिए नहीं कहती। आपका विवेक ही, आपका मार्गदर्शन करेगा। विवेक, आपको मर्यादा सिखाएगा क्योंकि यहाँ आप उत्थान प्राप्त करने के लिए, परन्तु उनकी शक्ति का स्रोत परमात्मा है। आध्यात्मिकता के साम्राज्य में एक विशेष पद प्राप्त करने के लिए आए हैं मैं पुनः विवेक उनकी सृष्टि की क्योंकि वे ही मंगलमय हैं। तो शक्ति पर बल दूंगी। कोई कार्य करने से पहले हमारे हित के लिए सर्वप्रथम मंगलमयता का आपको चाहिए कि विवेकपूर्वक यह देखें कि सृजन किया गया श्री गणेश के कारण ही हम ऐसा करना क्या विवेकपूर्ण है? इस अभ्यास से मंगलमय हैं। कुछ लोग घर में समस्याएँ खड़ी आपका क्रोध, कामुकता. दोषभाव बहुत ही कम करते हैं, बिना बात के वे समस्याएं बनाते हैं । हो जाएंगे।| एक बार जब आप जान जाएंगे कि ऐसे लोग मंगलमय नहीं हैं। शान्ति एवं प्रेम स्वयं को दोषी मानना विवेक हीनता है तो यह भावना समाप्त हो जाएगी। एक अन्य सबसे बड़ा दुर्गण जो हमें हैं. वह है सभी सांसारिक चीज़ें पा लेने की इच्छा, सभी प्रकार के लालच में फसे रहना।-विवेक से जब आप समझ जाएंगे श्री गणेश ही ओंकार हैं देवी ने सर्वप्रथम बनाने वाले लोगों को ही श्री गणेश आशीर्वादित करते हैं। झगड़ने में क्या विवेक है? पता लगाएं कि लड़ाई में क्या विवेक है? हम क्यों झगड़ रहे हैं? किन चीजों के लिए? छोटी-छोटी चीजों के लिए। ऐसी चीजों के लिए जिन्हें आप स्वयं कि यह अनावश्यक है तो तुरन्त आपका लोभ सुधार सकते हैं। क्यों आप झगड़ा करें? आप शून्य हो जाएगा अन्यथा हर समय आप अपने-अपने यदि झगड़ालू स्वभाव के हैं तो इसका अर्थ हैं स्वास्थ्य, अपने बच्चों, अपने घर या हर उस चीज़ के बारे में जो आपकी है, सोचते रहेंगे। आपके विरूद्ध हैं; आपके गणेश सुप्त हैं, वह कि श्री गणेश आपके विरुद्ध हैं। आपके गणेश ये साबित करती है कि आपका कुछ शक्ति आपके साथ नहीं है। इस प्रकार के व्यवहार में विवेकशीलता नहीं होती। इस विश्व में जिन महान लोगों का सदियों से सम्मान हो परन्तु मृत्यु भी नहीं। आप अकेले आए थे और अकेले जाएंगे। यह विवेक आत्मसात किया जाना चाहिए। आप इसका न तो अभ्यास कर सकते हैं और रहा है वे अत्यन्त विवेकशील थे। वें क्रोधी न ही इसे स्वयं पर धोप सकते हैं। यह तो स्वभाव के झगड़ालू या कामुक प्रवृत्ति के न थे। आध्यात्मिकता के माध्यम से ही आत्मसात किया ऐसे लोगों को आने वाली पीढ़ियां कभी याद न करेंगी। परन्तु यह इतना महत्वपूर्ण नहीं है, गणेश के नृत्य का आनन्द। बाल सम नृत्य करते सहजयोगियों के रूप में आप लोग महत्वपूर्ण हैं। पूरी मानवता को मुक्त करने के लिए है! आपको भी बही आनन्द आता है। वैसे ही, आप इस पृथ्वी पर अवरतरित हुए हैं अत: मानो आपके अन्दर एक शिशु ने जन्म लिया हो आध्यात्मिकता की गहनता में उतरना आपके और आप उस नन्हें शिशु-सम व्यवहार करने जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। आध्यात्मिकता लगें। प्रायैः इसमें कामुकता, लोभ आदि का कोई की गहनता में उतरने के इस लक्ष्य को, मैं सोचती हैं, आप सब जानते हैं फिर भी इसे आप किस तरह से खाना है तो यही स्थिति है, कार्यान्वित नहीं करते। पिछली बार मैंने आपको 36 जा सकता है। तब महानतम आनन्द बहने लगेगा- श्री हुए आप उन्हें देखें! उन्हें कितना आनन्द आता भाव नहीं होता। बच्चा जानता है कि बाँटकर चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3 & 4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-38.txt बताया था कि आपका चित्त अन्दर होना चाहिए अर्थ है कि वे एक हो गए हैं। एक' का क्या बाहर नहीं। और आपको प्रतिक्रिया नहीं करनी अर्थ है? एक का अभिप्राय है कि वे सब चाहिए। ये सब विधियां आपको विवेक एवं एक-दूसरे के लिए जीवित हैं। एक-दूसरे का हम आनन्द लेते हैं; एक-दूसरे की सुख-सुविधा व्यक्ति अपनी सुख-सुविधाओं, धन-संपत्ति, स्वास्थ्य को देखते हैं? धनी, निर्धन, स्वस्थ, रोगी सभी तथा अन्य सभी प्रकार की चीज़ों के विषय में एक हो जाते हैं। संस्कृत में इसे एकाकारिता कहते हैं वे एक हो जाते हैं यह एकाकारिता संवेदनशील होने में सहायता करती हैं। परन्तु जो संवेदनशील हैं, वह विवेकशील नहीं है वह बुद्धिमान नहीं है। भली-भांति पाले पोसे गए उत्सवों के समय दिखाई पड़ती है। जब यहाँ आकर आप हर समय एक-दूसरे की सहायता रूप से अन्य लोगों की चिन्ता करेगा, खोज करने का प्रयत्न करते हैं । मैंने देखा है कि किसी को भी परस्पर सहायता करने में हिचक है, कैसे उनको खुश किया जा सकता है। उन्हें नहीं होती। परस्पर आनन्द लेते हुए मैंने लोगों प्रसन्न करने के लिए वह छोटी-छोटी विधियां को देखा है। वे किसी का भी हृदय नहीं दुखाना चाहते। इसके विपरीत वे सभी के लिए सहायक किसी शिशु को यदि आप देखें तो वह निश्चित निकालेगा कि उन्हें किस चीज़ की आवश्यकता अपनाएंगा। परन्तु उनकी प्रतिष्ठा प्राप्त करना या उदारता का दिखावा करना उसका लक्ष्य नहीं एवं विवेकशील होना चाहते हैं। मेरे चुने हुए आपके अधिकतर अगुआ गण बहुत ही विवेकशील हैं और समस्याओं तथा उपद्रवों से बचना चाहते आज मैं आपको श्री गणेश के प्रयासों या हैं। अधिकतर अगुआ ऐसे ही हैं। आपमें से कोई उनकी शक्तियों के माध्यम से प्राप्त होने वाले यदि सहजयोग को हानि पहुँचाने का प्रयत्न करता है तो उन्हें इसकी जानकारी होती है। आप किसी ने मुझे बताया था कि आईंस्टाइन ने भी चाहें जापान में हों, अमेरिका में हों या अन्य एक ऐसा ही सिद्धांत बनाया था। यह एक कहीं, एकाकारिता प्राप्त करने के लिए आपको आविष्कार है कि यदि आप सब, श्री गणेश के अपने अन्तस की गहनता में जाकर यह महसूर होगा सामूहिकता उसे सच्चा आनन्द प्रदान करती है। सामूहिक स्वभाव के बारे में कुछ और बताऊंगी। आर्शीवाद से, शीतल हो जाएं तो हम सब एक करना होंगा कि आप सब एक हैं। आप सब हो जाएंगे. यह उनका सिद्धांत है। परन्तु एक ही तरह से सोचते हैं, एक ही लक्ष्य प्राप्ति फ़िलवल्ल्ड (Philworid) ने एक सिद्धांत स्थापित में आप सहायक हैं और एक ही शैली अपनाने का आप प्रयत्न करते हैं। मैंने देखा है लोग जब पूजाओं पर आते हैं तो वे एक-दूसरे की संगति का कितना आनन्द लेते हैं और कितना एक-दूसरे परमाणु एक दूसरे से टकराते हैं, एक-दूसरे को की सहायता करने का प्रयत्न करते हैं । रुस या पीटते हैं और बेतरतीब इधर-उधर दौड़ते हैं। बलगेरिया का कोई व्यक्ति जब अपनी समस्याओं के विषय में मुझे लिखता है तो, मेरे बिना कहे, अमेरिका का कोई सहजयोगी पत्र लिखकर तुरन्त मुझे कहता है कि, "श्री माताजी रूस के अमुक व्यक्ति को, कृपा करके, क्या आप अमेरिका किया कि हेलियम (Helium) गैस को यदि आप ठंडा कर लें तो इसके सभी अणु या परमाणु सामूहिक रूप से चलने लगते हैं, अन्यथा ये इसी प्रकार जब वास्तव में हमें श्री गणेश का आर्शीवाद प्राप्त हो जाता है तो हमारे विवेक के साथ क्या घटित होता है? हम अत्यन्त विकसित सहजयोगी बन जाते हैं। विकसित सहजयोगी का 37 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अक : 3 & 4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-39.txt भेजेंगी"? प्राय: ऐसा होता है। मैं उन्हें कुछ नहीं चले गए क्योंकि आप जानते हैं, कि ईसामसीह कहती, कुछ तो एकदम बहुत से लोग, बहुत से देश उस कार्य को करने के लिए उद्यत हो जाते हैं। श्री मसीह को ऐसे लोग अच्छे नहीं लगते जो माताजी ये समस्या है, ठीक है। हम जाकर इस कार्य को कर देंगे। इस मामले में, एकाकारिता लोगों पर रौब झाड़ते हैं। ऐसे लोग उन्हें पसन्द के मामले में, मैं कहूँगी. ऑस्ट्रिया के लोग बहुत ही संवेदनशल हैं। लोगों की सहायता करने, उन्हें नहीं बताती और यदि मैं कह दूं, को अहं पसन्द नहीं है। अहंकारी लोग उनहें पसन्द नहीं हैं। ईसा ही श्री गणेश हैं; तो ईसा अहंकारवश अपनी संस्था बनाते हैं, और दूसरे नहीं हैं, दोनों ईसा और श्रीगणेश, एक ही हैं। उनमें पूर्ण एकाकारिता है। उन्हीं की तरह से हमें भी एकाकारिता का ये विशेष गुण अपने में आत्मसाक्षात्कार देने के लिए इतनी दूर चल कर येरुशलम गए। मैं भी येरुशलम जाना चाहती विकसित करना चाहिए। हम इन तथाकथित थी, परन्तु वहाँ पर युद्ध की स्थिति के कारण मैं धरमों के विषय में भूल जाते हैं। आप देखें कि वहाँ न जा पाई। येरुशलम के लोगों को मैंने वे किस प्रकार लड़ रहे हैं? सभी बाह्य धर्म कहीं अधिक सामूहिक पाया. वे लोग मिस्र से आए थे। मैंने कहा कि आप यहाँ क्यों आए के गलत कार्य कर रहे हैं। इस बात को आप हैं?",मिस्र के मुस्लिम लोगों से दोस्ती बनाने।' परस्पर लड़ रहे हैं। वे बेईमान हैं। सभी प्रकार भली-भांति जानते हैं रोज अखबारों में आप इन गलत कार्यों के विषय में पढ़ते हैं। वे थोड़ा-बहुत आप कल्पना करें, मैं हैरान थी कि किस प्रकार वे यहाँ आ पाए! "केवल मित्र बनाने के लिए। सफल हो जाते हैं। परन्तु उनकी ये स्थिति अधि वे मुस्लिम हैं, अत: हम उनके साथ मित्रता क समय तक नहीं चलती क्योंकि उनका पर्दा. बनाना चाहते हैं।" अतः बिना किसी बाह्य उद्देश्य के, है। जिस श्रद्धा के आधार पर वे कार्य कर रहे बिना किसी लाभ की इच्छा से मित्र बनाना हैं वो समाप्त हो जाएगी। इन सबको लुप्त हो आपकी एकाकारिता की निशानी है। केवल इतना ही नहीं कि आप अन्य सहज़योगियों से में यह झुठा विचार है। कोई भी धर्म दूसरे धर्म सन्तुष्ट हैं, अन्य लोगों को भी सहजयोग में से उच्च किस प्रकार हो सकता है, और ऐसे लाना चाहते हैं। बहुत से लोगों ने ये कार्य किया है। यह अत्यन्त पोषक है। ज्यों-ज्यों आपमें से हुआ हो! फाश हो जाएगा। अब भंडाफोड़ होने का समय जाना होगा। किसी भी धर्म की उच्चता के विषय धर्म से जिसका सृजन श्री गणेश की मंगलमयता दूसरे धर्म-सम्प्रदाय से लड़ना या ये कहना कि हम उच्च प्रजाति के लोग हैं और ये नीची व्यक्ति को भी जब आप आत्मसाक्षात्कार देते हैं प्रजाति के. मंगलमय नहीं है यें सब असत्य से लोग मुझे विचार समाप्त हो जाते हैं। ये शेष नहीं बचते क्योंकि इन विचारों ने समस्याओं को जन्म दिया है। जैसे अमेरिका में पहले श्याम वर्ण लोगों से घृणा की गई। अब वे श्वेत लोगों से घृणा कर रहे हैं। बहुत बड़ा तूफान चल रहा है। भारत में भी कुछ लोगों को अछूत कहा जाता था। उन्हें प्रकाश आता है आपको अन्य प्रकाशवान लोग मिल जाते हैं। यह अत्यन्त आनन्ददायी है। एक तो आपको प्रसन्नता होती है। बहुत स लिखते हैं, " श्री माताजी हमें बीस लोग मिल गए हैं: हमें तीस लोग मिल गए हैं।" और वे इस पर बहुत प्रसन्न हैं कि हमें इतने सहजयोगी मिल गए हैं। परन्तु ऐसा करते हुए विकसित हो गया तो आप श्री गणेश के विरुद्ध यदि आपमें अहं 38 वैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 3 & 4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-40.txt कष्ट दिए जाते थे, सताया जाता था और उनके साथ न किए जाने वाले कुकृत्य किए जाते थे। कि यदि आप अपनी पत्नी की संगति का शास्त्रों में ऐसा करने के लिए नहीं लिखा है। अब यही अछूत लोग, उच्च जाति के लोगों के का आनन्द लेंगे? पारिवारिक जीवन के आशीष विरूद्ध कार्यरत हैं उन्हें उनका स्थान दिखा रहे का आनन्द यदि आप नहीं ले सकते तो किसी हैं। तो इस प्रकार के विचारों से झगड़े खड़े हो भी अन्य चीज का आनन्द आप नहीं ले सकते । जाते हैं। श्री गणेश जब आपको विवेक प्रदान पति-पत्नी का गहन सम्बन्ध केवल श्री गणेश करते हैं तो आप जान जाते हैं कि एक मनुष्य की समस्या के कारण ही टूटता है। गणेश तत्व दूसरे से उच्च नहीं होता। आप सबको परमात्मा ने बनाया है और परमात्मा की बनाई हर चीज सुन्दर एवं मंगलमय है। एक बार जब आप ये बिगाड़ ये बताता है कि श्री गणेश तत्व में बात समझ जाते हैं तो ये एकाकारिता बाहर भी निश्चित रूप से कुछ खराबी है। अपना श्री फैल जाती है। यह अन्य लोगों तक भी फैलती गणेश तत्व ठीक करें, तब दूसरों की ओर हैं केवल सामाजिक सूझबूझ और सामाजिक उन्नति के कारण आप दूसरों के प्रति हितकर करना है। पृथ्वी पर बैठकर ध्यान करें। जब नहीं होते, नहीं। अपने अंदर से, अन्दर से आप इस कार्य को करते हैं । सर्वप्रथम ये एकाकारिता परिवार में श्री गणेश का सम्मान नहीं करते। श्री गणेश की होनी चाहिए। यह बहुत महत्वपूर्ण है। हर सृष्टि पृथ्वी तत्व से की गई। वे पृथ्वी माँ का समय अशांत परिवार ऐसे बच्चों को जन्म संचालन करते हैं । वे पंच तत्व को नियंत्रण नहीं दे सकता जिनमें एकाकारिता कि स्थिति करते हैं । केवल इतना ही नहीं वे आपको भी हो। अतः हर समय उन्हें झगड़े नहीं। परिवार में भी वे हर समय बो मुझे अच्छी लगी। इसमें श्री गणेश को एक झगड़ते रहते हैं। ऐसे लोग सहजयोगी नहीं हो सकते। इस प्रकार के झगड़े यदि हैं, तो बेहतर होगा कि परिवार से बाहर हो जाएं। फिल्म बहुत सुन्दर है क्योंकि इसमें श्री गणेश यही कारण है कि हमने तलाक़ की आज्ञा दी है। सदैव यह बताने के लिए उपस्थित रहते हैं कि अन्य स्त्रियों के पीछे भागने वाले या ग़लत कार्य अमुक कार्य मत करो। फिर भी यदि आप ये करने वाले पुरुषों से हमने कह दिया है कि कार्य किए चले जाते हैं, तो आपको सभी सहजयोग छोड़ दें। कारण ये है कि एक सड़ा हुआ सेब बहुत से सेबों को सड़ा सकता है। मुखाकृति बिगड़ सकती है, और सभी प्रकार अत: ऐसे पुरुष एवं महिला को सहजयोग से के पारिवारिक रोग आपको हो सकते हैं। बिल्कुल बाहर रखा जाना चाहिए ताकि पारिवारिक आपको राष्ट्रीय समस्याएं भी हो सकती हैं। सम्बन्ध बेहतर हों। सहजयोग में यह बात बहुत तो ये समझ लेना अत्यन्त आवश्यक है कि ही महत्वपूर्ण है। आपके पारिवारिक सम्बन्ध एकदम पूर्ण होने चाहिए। मैं नहीं समझ सकती आनन्द नहीं ले सकते, तो विश्व में किस चीज़ यदि ठीक होता तो पूर्ण एकाकारिता और पूर्ण सूझबूझ पति-पत्नी के बीच होती। सम्बन्धों का देखें। श्री गणेश पर आपको निरन्तर ध्यान हम पृथ्वी माँ से दूर भागते हैं, पृथ्वी को छूते नहीं, उसका सम्मान नहीं करते तो एक प्रकार से नियंत्रित करते हैं। कल जो फिल्म इन्होंने दिखाई, बताएं कि परस्पर अन्य व्यक्ति के साथ घूमते हुए दिखाया गया। वे बता रहे थे कि ऐसा करो, वैसा मत करो। ये प्रकार के भयानक रोग हो सकते हैं, आपकी अपवित्र विचारों से बचना चाहिए। मेरी समझ में 39 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 3 & 4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-41.txt सकता क्योंकि श्री गणेश ही शांति के वाता नहीं आता कि लोगों के मन में किस प्रकार से छोटे-छोटे शिशुओं के प्रति इस प्रकार के बिचार हैं। विश्व शांति इसलिए आलोड़ित आते हैं। कोई दो साल का शिशु है कोई पांच ( डांवाडोल) है कि हमने श्री गणेश की साल का। किसी बच्चे को या उसके फोटो को पूजा नहीं की । मैंने ऐसे लोगों को देखा है जो भी जब आप देखते हैं तो उसे प्रेम करने का, उस बच्चे को चूमने का आपका मन करता है। इसके अधिकारी हैं परन्तु स्वयं पर उनका अधि बच्चों का सम्मान यदि आप नहीं करते तो श्री गणेश के मूल्य को किस प्रकार समझ सकते हैं? देखें बच्चे कितने मधुर हैं! कितनी मधुरता हैं और लोग उनका अनुसरण करने का प्रयतन से वे व्यवहार करते हैं । वे मुझे समझते हैं आपको भी समझते हैं। छोटे-छोटे बच्चे, नवजात शिशु भी मुझे समझते हैं। प्रेम को समझने की विषय में जानते हैं क्योंकि आपमें मंगलमयता भावना एक प्रकार से उनमें अन्तर्जात है। अहंवादी यदि कम हो रही है तो किसी न किसी तरह से लोगों के लिए प्रेम को समझ पाना अत्यन्त पूरा विश्व इस बात को जान जाता है। इन सब कठिन होता है। वे तो केवल स्वयं को प्रेम करते हैं, किसी अन्य को नहीं। किसी अन्य को यदि वे प्रेम करते हैं तो केवल लालच, बासना या उच्च पदों पर नियुक्त हैं. सेना के अधिकारी हैं. कार नहीं है। उनके अन्दर श्री गणेश यूर्णतः नष्ट-भ्रष्ट हो चुके हैं ऐसे सभी लोग राष्ट्र नेता करते हैं । चाहे वे कोई कार्य गुप्त रूप से ही क्यों न करें, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। लोग इनके का अब पर्दाफ़ाश हो जाएगा क्योंकि अब सत्ययुग आ गया है। सत्य युग में हमारे अन्दर सत्य का प्रकाश है। सत्य हमारी सभी बेवकूफियों को से। 'प्रेम के लिए प्रेम' तो अनावृत कर सकता है। किसी अन्य कारण । सत्य श्री गणेश का ही गुण है। वे ही हमारे मस्तिष्क को सत्य प्रदान करते हैं । ये सत्य तभी सम्भव है जब आपका श्री गणेश तत्व पूरी तरह से शुद्ध स्थिति में रखा गया हो। हम इतनी दूर आ गए हैं, विश्व भर में ईसामसीह के माध्यम से आता है। ईसामसीह ने हमारे बहुत से सहजयोगी हैं। नि:संदेह मैंने बहुत कार्य किया, बहुत कुछ किया। परन्तु कठोर परिश्रम किया, परन्तु आप लोगों ने भी उनके अनुयायियों की स्थिति को देखिए। देखिए, मुझे बहुत सहारा दिया। में आपकी धन्यवादी हँं। कि वे किस तरह से व्यवहार कर रहे हैं। हमें पश्चिमी देशों में जहाँ गणेश तत्व का कोई कम से कम इतना तो दर्शाना चाहिए कि यदि हम श्री गणेश और ईसा मसीह के अनुयायी हैं, महत्व ही नहीं माना जाता, वहाँ आप लोगों का सहजयोग स्वीकार करना, सहजयोग को जीवन तो हमारा व्यक्तित्व भी उन्हीं की तरह से आध्यात्मिक है। आध्यात्मिक जीवन आनन्द में अपनाना और आपका इतना अच्छा वन जाना दुष्कर कार्य था। सहजयोग में श्री गणेश और उनके गुणों की पूजा अपने अन्तस में करना का दाता है। आध्यात्मिकता के अतिरिक्त आनन्द कहीं अन्यत्र नहीं प्राप्त किया जा सकता। आपको कुछ संतोष, थोड़ा अहं मिल सकता है। आप स्वयं को महान चीज़ समझने यदि ठीक है तो कोई भी आपको छुू नहीं लगते हैं। परन्तु श्री गणेश की अभिव्यक्ति सकता, कोई भी आपको नष्ट नहीं कर सभी चक्रों पर होने से ही आन्तरिक शांति सभी बहुत महत्वपूर्ण है। यह अत्यन्त सुख-शांति एवं सुरक्षा प्रदायक शक्ति है। आपका गणेश तत्व सकता, कोई भी आपको अशांत नहीं कर और आनन्द प्राप्त हो सकता है। वे 40 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 3&4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-42.txt चक्रों पर प्रकट होते हैं। आपके उन चक्रों दण्ड देने का प्रयत्न करते हैं । क्षमा करने की की स्थिति जब ठीक होती है तब आपको एक सीमा है जिसके पश्चात् वे सोचते हैं कि अब ऐसे व्यक्ति को क्षमा करना उचित न होगा। तो क्षमा करना ईसा मसीह के लिए तो ठीक है परन्तु श्री गणेश पर्दाफ़ाश करते हैं और अपराधी लिख रहे हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो श्री गणेश को दण्ड देते हैं। अत: आपको समझना चाहिए के विवेक तत्व एवं मंगलमयता के विषय में कि ईसा मसीह बहुत महान हैं क्योंकि वे हमें बहुत मधुर चीजें लिख रहे हैं बहुत ही मधुरतापूर्वक क्षमा शक्ति प्रदान करते हैं और श्री गणेश अत्यन्त शक्तिशाली हैं क्योंकि वे हमारी इच्छा बहुत मधुर कहानियाँ लिखी है। ये केवल प्रेम शक्ति को सीमित करते हैं। किसी को भी हम क्षमा कर दें या कहें कि क्षमा करना मुझे अच्छा कुछ सीमा तक ठीक है। अब इसके आगे भी लगेगा, परन्तु हम नहीं जानते कि श्री गणेश हमें कुछ होना चाहिए। और इसके आगे श्री गणेश ऐसा करने भी देंगे या नहीं और उनकी बात को तत्व है जो कि पूर्ण शान्ति पूर्ण आनन्द एवं प्रेम ईसा मसीह भी नहीं टालते। वे दोनों एक हैं। एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अतः हम ईसा है। कोई भी व्यक्ति जो आपको पावन प्रेम मसीह की क्षमा शक्ति पर बहुत अधिक निर्भर नहीं हो सकते क्योंकि सदैव श्री गणेश, आपने देखा होगा, हाथ में फ़र्सा लिए बैठे रहते हैं। वे से नाराज़ हो गए हैं। मैं नहीं जानती क्यों? वे ऐसे मातृ शान्ति हैं, शीतलता हैं और आत्मसाक्षात्कार शीतल आनन्द प्राप्त होता है और ये आनन्द श्री गणेश के माध्यम से ही प्राप्त होता है। आजकल लोग भयानक पुस्तकें तथा भयानक विषयों पर मैंने देखा है कि उनके विषय में कुछ लोगों ने कहानियाँ ही नहीं हैं। प्रेम कहानियों का सृजन की सूझ बूझ है। पावन प्रेम के आदान-प्रदान का मूल्य करता है, उसे ठीक प्रकार से समझा जाना चाहिए। कल मुझे पता चला कि श्री गणेश थोडे नहीं थे। सम्भवत: हममें से कुछ लोग श्री गणेश के पश्चात् आपको शीतलता देते हैं। के सिद्धान्तों का पालन नहीं करते, इन्हीं के चैतन्य लहरियाँ श्री गणेश की दी कृपा से प्राप्त होती हैं। नि:सन्देह ये ब्रह्म चैतन्य है परन्तु श्री गणेश ही इनको प्रसारित करते हैं । वे ही आप श्री गणेश का आशीर्वाद माँगे तो वे आपको शांत करते हैं और अत्यन्त सन्तुष्ट सवा आशीर्वाद वेने के लिए तैयार रहते हैं एवं शान्तिमय बनाते हैं। उस शान्ति में आप सब एक हो जाते हैं। आप किसी भी देश में भी रहते हों, किसी भी देश पर आपको गर्व हो, करते हें तो वे आपको छोड़ेंगे नहीं। छोड़ने उसकी कमियाँ आपको दिखाई देने लगती की बात उन्हें समझ नहीं आती। केवल ईसा और उन्हें सुधारने का प्रयत्न आप करने लगते तथा आपमें परस्पर एकाकारिता स्थापित हो जाती करने की बात सोचते हैं। परन्तु क्षमा का अर्थ है बुराई से आपको नहीं जाना जाता। सतयुग ये भी नहीं कि सभी अपराध क्षमा हो जाते हैं। की ये महान बात है कि यह बुराइयों को कारण ये संब कष्ट हैं। सच्चे हृदय एवं मन-मस्तिष्क से यदि परन्तु यदि आप उनकी बात नहीं सुनते और किसी भी तरह से आप अपनी पावनता नष्ट मसीह के स्तर पर पहुँच कर ही वे क्षमा नहीं। यह तो एक प्रकार की नियंत्रक शक्ति है। ईसा मसीह ने कहा है कि आपको क्षमा कर अनावृत करता है। आक्रामकता पूर्वक और किसी गेलत चीज़ को आप आश्रय नहीं देते। आजकल दिया जाएगा। परन्तु एक सीमा के बाद श्री गणेश चैतन्य लहरी = खंड : XI अंक : 3 &4 1999 ये अपराध जोर-शोर से किए जा रहे हैं परन्तु 41 he 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-43.txt आप इनको स्वीकार नहीं करते। एक बार जब आप इन गलतियोँ को स्वीकार करना बन्द कर देते हैं तो अन्य सच्चे लोगों से आपकी एकाकारिता हो जाती है। उनके विचार, सूझबूझ, आनन्द भी एक सम होते हैं और वे एक-दूसरे का आनन्द गई है। ऐसा जब घटित हो जाएगा तो आपकी लेते हैं। उनमें परस्पर एकाकारिता हो जाती है आध्यात्मिकता बढ़ेगी। मुझे आशा है कि आप और सहजयोग में ये एकाकारिता पूर्णतः स्थापित इसे श्री गणेश की तरह से कार्यान्वित करेंगे और होनी चाहिए। कुछ लोग जो केवल पैसा बनाना चाहते हैं या बहुत बड़ी भीड़ इकट्ठा करना चाहते हैं या इस प्रकार की कोई अधम चीज़ लोग मुझे अच्छे नहीं लगते। ये अच्छी बात नहीं चाहते हैं वो अपने इरादों में सफल नहीं होते। है। यदि आप क्षमाशील हैं तथा आपमें एकाकारिता सहजयोग में आकर अपने लिए पति या पत्नी है तो इसकी कोई आवश्यकता नहीं। अधिक से खोजने वाले लोग समाप्त हो गए हैं। विनम्रता से ही ये आध्यात्मिकता रहती है और श्री गणेश के प्रयासों के द्वारा विनम्रता बताई जाती है। एक बार उनकी माँ गौरी ने उनसे कहा कि जो पृथ्वी की तीन परिक्रमाएं करेगा उसे मैं इनाम दूंगी। श्री चीजें बेहतर होंगी। तो ये बहिष्कारवृत्ति भी त्यागी गुणेश ने सोचा कि मेरी माँ से अधिक कौन जानी चाहिए, सम्भवत: यह असुरक्षा की भावना महान है? पृथ्वी तो उनसे महान नहीं हो सकती। के कारण आती है। यदि गलत लोग आ जाएंगे छोटा सा मूषक श्री गणेश का वाहन है। ये वाहन दर्शाता है कि वे कितने विनम्र थे। चूहे पर किसी प्रकार का वज़न नहीं डालते थे। उनके हों। सबके साथ एक हों और लोगों की देखभाल भाई कार्तिकेय का वाहन उड्ने वाला मोर था। श्री गणेश जानते थे कि वे अपने भाई का मुकाबला नहीं कर सकते उन्होंने अपनी माँ की तीन परिक्रमाएं कर ली और इनाम जीता। ये गणेश के गुणों को विकसित करने के लिए आप कहानी दर्शाती है कि तेज गति सफलता का मार्ग नहीं है। आपको अपनी गति कम करनी पावित्र्य, शांति और सुरक्षा की शक्ति को उन्नत होगी। इसके अतिरिक्त आपको समझना होगा करेंगे। कि क्या चीज़ महत्वपूर्णतम है; वैसे ही जैसे श्री गणेश ने समझा कि आपकी मा, माँ का सम्मान करना और उन्हें उच्चतम मानना, महानतम मानना ही सबसे अधिक आवश्यक है। इस प्रकार से हमारे अन्दर उनकी अभिव्यक्ति की एकाकारिता स्थापित करेंगे अपने अगुआओं के तथा अन्य लोगों के विरूद्ध पत्र लिखने वाले अधिक लोगों को सहजयोग में लाने का प्रयत्न करें। किसी को अधम या बेकार कहकर अलग नहीं किया जा सकता। क्षमाशीलता से उन्हें लाने का प्रयास करें। आपके पावित्र्य एवं विवेक से तो श्री गणेश उन्हें बाहर भगा देंगे। अत: उनसे न तो घबराएं और न ही उनके कारण अशांत करते हुए, उनका संचालन करते हुए, उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करें। मुझे आशा है कि इसके पश्चात् अपने अन्दर श्री लोग ध्यान धारणा करेंगे और अपने अन्दर परमात्मा आपको धन्य करें। ४ चैतन्य लहरी 42 खंड : XI अंक : 3&4 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-44.txt श्री पृ गणश पूजा(कबैला 5.9.1998) विवाह समारोह के पश्चात परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन यह अत्यन्त आनन्ददायी एवं शुभअवसर आत्मसाक्षात्कारी अत्यन्त सुन्दर बच्चे हैं और था। इसका हम सबने आनन्द लिया। दूल्ह-दुल्हने बहुत प्रसन्न नज़र आ रहे हैं ये सब देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है और नहीं समझना चाहिए के. विवाह करके पत्नी पर मैं हृदय से आपको आशीवाद देती हूँ। केवल रौत् जमाने का या उसके सिर पर बैठने का इतना कहूंगी कि अपने विवाह को अत्यन्त प्रेममय एवं सफल बनाएँ, यह बहुत आवश्यक है। उदाहरण के रूप में मैंने देखा कि एक देश से छः या सात लड़कियां थीं जिन्होंने दुर्व्यवहार होते हैं। इसके विपरीत पश्चिम की महिलाएं किया और तलाक़ ले लिया। इस प्रकार के पुरुषों से कहीं अधिक आक्रामक हैं। ये बात व्यवहार के कारण हमने उस देश पर रोक लगा दी है। क्योंकि हमें लगा कि इन महिलाओं ने कई बार विवाह टूट जाते हैं। किसी पर भी एक के बाद एक इतने विवाह तोड़ दिए, ऐसा रोब्र जमाने की कोई आवश्यकता नहीं। किसी उनके खोखले अहं के कारण हुआ होगा। यह हमारा अनुभव है। कुछ अन्य देश भी हैं। जिनमें को निभा पाना यदि असंभव है, आपका साथी सहज विवाहों के कुछ बुरे उदाहरण हैं। तो मैंने यदि अशोध्य है, तो सहजयोग में हमने तलाक़ कहा कि यदि आप विवाह नहीं करना चाहते तो की आज्ञा दी है। परन्तु तलाक़ लज्जाजनक है। मत करें। सहजयोग में आप स्वयं के लिए या पत्नी के लिए विवाह नहीं करते, सहजयोग के मुझे बिल्कुल पसन्द नहीं। अत्यन्त सुन्दर, रोमांचक लिए विवाह कर रहे हैं। अत: जब आप झगड़ते मनोभावों के साथ अपने पति-पलियों का आनन्द हैं या इस प्रकार की मुर्खता करते सहजयोग को हानि पहुँचाते हैं। आपको एक-दूसरे झगडूना न शुरू कर दें। तलाक के चक्कर में के प्रेम, भावनाओं और विवाहित जीवन का आनन्द लेना चाहिए। मैंने देखा है कि कुछ लोग इतने मूर्ख हैं कि वे इतना भी नहीं जानते कि वैवाहिक जीवन का आनन्द क्या है? आप यदि आनन्द नहीं लेना चाहते तो ठीक है। यह केक जाती हैं। क्योंकि ऐसे देशों की लड़कियों का के समान है, यदि आप इसे नहीं खाना चाहते तो विवाह करना मुझे अच्छा नहीं लगता। अब एक न खाएं । परन्तु पूर्ण उत्साह के साथ, दैवी नियमों के अनुसार कार्य करते हुए आप डटे रहें सात वर्षों में किसी देश में सहज विवाह किस और विवेकपूर्ण कार्य करें। सहजयोग में अधिकतर विवाह अत्यन्त सफल होते हैं। उन दम्पतियों के के सौन्दर्य एवं मर्यादा को ताक़ पर रख देना चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 3 & 4 1999 सभी उन्हें देखकर अन्य परिवार भी सहजयोग में आ रहे हैं। मुझे आपको बताना है कि पति को यह अधिकार प्राप्त हो गया है। नि:सन्देह पश्चिमी देशों में लोग ऐसा नहीं करते परन्तु भारत में प्राय: ऐसा होता है। भारतीय पुरुष अत्यन्त उग्र मेरी समझ में नहीं आती। इस स्वभाव के कारण को कष्ट देने की कोई आवश्यकता नहीं। विवाह जीवन का आनन्द लेने के स्थान पर तलाक़ लेना लेने के लिए आप तैयार हो जाएं। पहले दिन से हैं तो आप यदि आपने झगड़ना है तो वास्तव में अपने खानदान, अपने देश को बदनाम करवाते हैं और आपके देश से विवाह की इच्छुक अन्य लड़कियाँ भी सहजयोग में विवाह करने से वचित ही रह प्रथा बन गई है कि हम देखते हैं कि पिछले छः, प्रकार चले रहे हैं। तो यदि आप सहज विवाह 43 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-45.txt चाहते हैं तो बेहतर होगा कि आप विवाह करने के लोगों का दूसरे देश के लोगों से विवाह का का निर्णय ही न लें। आपका विवाह करना हमारा कर्त्तव्य नहीं है, अच्छी पत्नी य अच्छा पति प्राप्त करना आपकी आवश्यकता है। इस सब के बावजूद भी यदि आप इसे स्वीकार नहीं विवाहों का आयोजन हमें करने दे। आप स्वयं करना चाहते या ऐसा नहीं करना चाहते तो भी यदि ऐसा करेंगे तो बहुत सी बेकार की समस्याएं एक दम से तलाक के विषय में न सोचें। मैंने खड़ी हो जाएंगी। जैसी कि पश्चिमी समाज में देखा है कि पश्चिमी देशों के लोग विवाह के है। यहाँ आकर वे लड़की छांटना चाहते हैं या समय ही तलाक के विषय में सोचने लगते हैं। अपने केन्द्र से लड़की निश्चित करके वे यहां ऐसा करना बहुत लज्जाजनक हैं और बहुत गलत। यह सहजजीवन को नहीं दशाता। आप यदि सच्चे सहजयोगी हैं तो अपने पति/पल्नी के खोजते रहते हैं। इस प्रकार की बेवकूफी हम साथ प्रेम पूर्वक जीवन निर्वाह करने की योग्यता रोकना चाहते हैं इसलिए यदि आप सहजयोग में आपमें होनी चाहिए। सहज विवाह आप पर श्री विवाह करना चाहते हैं तो आपको अपना वर गणेश का आशीष है, वे आपके वैवाहिक जीवन की रक्षा करेंगे, आपकी सहायता करेंगे और हैं कि आपकी चैतन्य लहरियाँ कितनी मिलती आपको बुराइयों से बचाएंगे। मैं जानती हँ कि सहजयोग में विवाह करना कितना बड़ा वरदान है, परन्तु कुछ मूर्ख पुरुष एवं महिलाएं अपने कि स्वयं तय किए हुए विवाह तो टूट ही जाते वैवाहिक जीवन का आनन्द नहीं लेना चाहते। हैं। ऐसे विवाह सर्वसाधारण विवाहों की तरह से ऐसी स्थिति में हम उन्हें तलाक़ की आज्ञा देंगे, होते हैं। तो सर्वोत्तम वात ये होगी कि स्वयं को परन्तु एक बार तलाक लेने के बाद, सहजयोग वचन दें कि आप मूर्ख नहीं बनेंगे और अपने में पुनः विवाह करने की आज्ञा हम उन्हें नहीं विवाहित जीवन को बर्बाद नहीं करेंगे। आपके देंगे। यह निश्चित है। जिस व्यक्ति ने एक बार तलाक ले लिया है । हम उसका विवाह नहीं करके, बहुत जाँच कर, सूझबूझ से मैंने ये सब करना चाहते। यदि किसी उचित कारण से कार्य किया है। बिना बात के आप मुझे दुखी न तलाक हुआ है, तब तो ठीक है। परन्तु तलाक़ के लिए तलाक़ लेकर विशेष प्रकार के व्यवहार की आज्ञा हम नहीं देंगे। तो मैं ये बताना चाहूंगी आपको आशीर्वाद देती हूँ। मुझे विश्वास है कि सहजयोग में तलाक़ निषिद्ध है । परन्तु यदि आपके विवाह कार्यान्वित होंगे। जल्दबाजी मत आप लड़ना चाहते हैं, कष्ट देना चाहते हैं, अन्य कीजिए। सबूरी रखिए। सर्वप्रथम हर चीज़ को लोगों के जीवन को बर्बाद करना चाहते हैं, तभी सहजता से लिया जाना चाहिए। तब देखें कि तलाक़ लिया जाता है। मैं आपसे अनुरोध करूंगी कितने प्रेमपूर्वक आपके विवाह कार्यान्वित होते कि अपने पति पत्नी का आनन्द लें। एक देश हैं। आरम्भ हमने उनके आनन्द के लिए किया है। कल मैंने आपको बताया था कि स्वयं परस्पर विवाह न करें। इसके हम जिम्मेदार न होंगे। आते हैं। इसका अभिप्राय ये हुआ कि कन्द्र में ध्यान करने के स्थान पर वे लड़के लड़कियाँ स्वयं नहीं खोजना, क्योंकि हम यह देखना चाहते हैं। हमारे यह सब करने के बावजूद भी विवाह जाते हैं। परन्तु यह बात मैंने अवश्य देखी है टूट हित के लिए मैं चिन्तित थी। अत: बहुत परिश्रम करें। बारम्बार मेरी यही प्रार्थना है कि आप प्रसन्न चित्त हो जाएं। मैं बहुत प्रसन्न हैं, हृदय से परमात्मा आपको धन्य करें, धन्यवाद। चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 3&4 1999 44 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-47.txt ४० ते ৩ साक्षी अवस्था में रहना यदि आप सीख ले तो भय नहीं रह जाता। जब आप साक्षी नहीं होते तभी परेशान होते हैं, तभी उत्तेजित होते हैं। बुरे लोगों की संगति में भी आप पड़ ा सकते हैं। यदि आप साक्षी अवस्था में हैं तो यह अवस्था अपने आपमें ही एक शक्ति हैं जो अन्य लोगों की कठिनाइयों को दूर करने में भी आपकी सहायक होती है। .........साक्षी साक्षा अवस्था मानसिक स्थिति नहीं है, यह आध्यात्मिक उत्थान की अवस्था है जिसमें आप साक्षी बन जाते है। साक्षी अवस्था में बने रहने का सर्वोत्तम तरीका ये है कि आप किसी की आलाचना न करें . एक बार जब आप बाह्य चीजों के प्रति प्रतिक्रिया बन्त कर देंगे तो व्यक्ति को आपके अन्तस में प्रतिक्रिया होगी और इससे अन्तर्दशन आरम्म हो जाएगा।.... ाम चिन्ता नहीं करनी चाहिए कि लोगों की प्रतिक्रिया क्या है। वे उसके विषय में क्या सोचते है आर क्या कहते हैं। अन्तर्दशन द्वारा आपको स्वयं ये सब देखना चाहिए। कुछ समय पश्चात् आपको अन्तर्द्शन की भी अआवश्यकता न र हेगी जिस प्रकार साक्षा अवस्था में ..जि रणभूमि में उपस्थित श्रीकृष्ण का बुद्ध करने की आवश्यकता न थी। साक्षी अवस्था में उनको शक्ति ने सारा कार्य किया। उनकी शक्ति, जो बाह्य रूप से मौन थी, ने कार्य किया और मोन थी उन्होंते युद्ध में विजय प्राप्त की। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी) ७ १० २५