चैतन्य लहरी अंक 5 & 6 मई-जून 1999 खण्ड XI ी ं री कर अपनी सारी जिम्मेदारियां, सारी समस्याएं इस परमेश्वरी शक्ति ( परम चैतन्य) को सौंप दें। यह अत्यन्त शक्तिशाली है, अत्यन्त योग्य है और कुछ भी कर सकती है। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी। (सहस्रार पूजा, 1998 ) EN इस अंक में पृष्ठ नं क्रम संख्या सम्पादकीय 3. 1. 76वीं जन्म दिवस पूजा (21.3.99) 2. 76वाँ जन्म दिवस अभिनन्दन समारोह (19.3.99) 3. वदे मातरम् पर श्रीमाताजी का प्रवचन (19.3.99) 16 4. देशभक्ति सहजयोग का वर्णन (19.3.99) 17 5. 18 गुडो-पड़वा पूजा (18.3.99) 6. नवरात्रि-पूजा (27.9.1998) 20 7. आदिशक्ति-पूजा संगोष्ठी (1998) 32 8. विश्व सहज समाचार- 9. दक्षिणी अफ्रीका से समाचार। 33 द लि वेस्टइंडीज से समाचार। 34 सृजनात्मक अभिव्यक्तियाँ। सहजयोग से अस्थमा रोग का इलाज़ । डॉक्टर यू.सी. राय की यूरोप यात्रा। 35 35 35 इजराइल दिव्य चमत्कार। 42 वर्ष 1999 के पूजा कार्यक्रम 44 10. योगी महाजन सम्पादक विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 अभिनव प्रिन्टस, दिल्ली 34, मुद्रक फोन : 7184340 चतन्य लहरी । खड : XI अक : 5 8 6, 1999 2. चेतन्य्य लहरी ।खड : X1 अक :5 &6 1999 5 & 6 1999 सम्पादकीय सहजयोगियों के लिए गणपति पुले वार्षिक अतिरिक्त नियमित रूप से प्रात: काल ध्यान- धारणा तीर्थ यात्रा है। तीर्थ यात्रा की प्रथा सभी धरमों में की गर्म जिगर बाले जिन सहजयोगियों के पास प्राचीन काल से है। परन्तु अब इसने आध्यात्मिक भ्रमण का रूप धारण कर लिया हैं क्योंकि फ्रिज किराए पर लिए। गणपति पुले जाकर पवित्र स्थल या तो धनार्जन का स्थान बन गए हैं जितनी गहनता पूर्वक उन्होंने देवी की पूजा की या इन पर रुढ़िवादी लोगों ने कब्जा कर लिया और सामूहिक रूप से जितने प्रेम का आनन्द है। दूसरे, आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किए बना तीर्थ लिया उससे व अभिभूत हो गए। वहाँ पर उन्हें यात्री स्वयंभुओं की चैतन्य लहरियाँ आत्मसात शुद्धिकरण में अपना बहुमूल्य समाय बर्बाद नहीं नहीं कर सकते। संभवत: शास्त्रों में वर्णित धर्म का कोई कार्य कर पाने का अन्धविश्वास उन्हें और दाएं को शुद्ध करने का बोझ न था। अत: कुछ शक्ति एवं सन्तोष प्रदान करता हो। उदाहरणार्थ कुण्डलिनी आदि-कुण्डलिनी के प्रेम सागर में उत्तरी भारत के लोग अपने बच्चों के मुण्डन पूरी तरह डूब सकती थी। यह बास्तविक तीर्थ संस्कार के लिए देवी चिन्तपूर्णी, मन्सा देवी, नैना देवी. चामुण्डा देवी. ज्वालामुखी, काँगड़ा आशीर्वादों की वर्षा होती है। सबसे अधिक मन्दिर और वैष्णोदेवी की तीर्थ यात्रा करते हैं । देवो सती के अंगे विखण्डन होने के पश्चात् उनके शरीर के भिन्न भागों से ये स्थान आशीर्वादित करते हैं. व्यक्ति के स्थान को दंेखकर नहीं। हुए। सहजयोगी तो इन पावन स्थलों की चैतन्य सामूहिकता को यह आशोष स्वतः ही प्राप्त है। लहरियों का आनन्द लेगा परन्तु एक सर्वसाधारण जिज्ञासु या तोर्थयात्री कं लिए यह मात्र आध्यात्मक भ्रमण ही है। पुरानी कहावत है, 'नौ सौ चूहे चेतना का अनुभव करने का आशीष भी उसे खाकर विल्ली हज को चली। सहजयागियों नं तीर्थं यात्रा के वास्तविक अर्थ को अनुभव किया है| वर्ष I998 में हैं। नासिक के तीन सौ सहजयोगियों ने अपने जीवन की महानतम तीर्थ यात्रा की तैयारी दिसम्बर में गणपति पुले जाकर वे श्री आदिशक्ति की पूजा करेंगे और इस पावनतम अवसर के को परमेश्वरी चेतना क कार्यक्रम का एक अंश लिए उन्होंने स्वयं को शुद्ध करने का निर्णय मानने लगता है। उदाहरण के रूप में 20 फरवरी किया। दस महीनों तक सभी ने प्रतिदिन दो बार पानी-पैर क्रिया की, तीन मोमबत्तियों से स्वयं को साफ किया और सामूहिक ध्यान धारणा की। सामूहिकता गतिशील हुई और नासिक में एक श्री माताजी के टेप सुनने और जन-कार्यक्रमों के विशाल जन कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमें घर में बर्फ उपलब्ध न थी उन्होंने चर्फ के लिए करना पड़ा। उनकी कुण्डलिनी पर उनके बाएं यात्रा थी। वास्तविक तीर्थ यात्रा में अनन्त देवी विवाह नासिक के सहजयोगियों के हुए। श्री माताजी चैतन्य लहरियाँ देखकर विवाह निश्चित वास्तविक तीर्थ यात्रा में व्यक्ति केवल भौतिक आशीर्वाद ही नहीं प्राप्त करता, सामूहिके मिलता है। सामूहिक चेतना से पथ-प्रदर्शन प्राप्त करके व्यक्ति के कार्य सामूहिक हितार्थ हो जाते मनुष्य स्वत: ही नि:स्वार्थ होकर सामूहिक रूप से परिपक्व हो जाता है। सामूहिक चेतना की तीर्थ यात्रा कर लेने के पश्चात् व्यक्ति स्वयं शुरु को। 1999 को मुम्बई में श्रीमाताजी का एक बहुत ही शानदार जन कार्यक्रम हुआ। तुरन्त नासिक की चैतन्य लहरी ॥ खंड : X1 अंक : 5 &6 1999 कर सकते हैं कि वे हमारी कितनी रक्षा कर रही श्रीमाताजी का वीडियो टेप दिखाया। एसा प्रतीत हैं। जहाँ तक सम्भव हो हमें स्वयं को सामूहिक चेतना के क्षेत्र में ही बनाए रखना चाहिए। बहुविध हम सामूहिक रोति-रिवाजों का पालन करते हैं। उदाहरणार्थ एक सहजयोगी पुरी सामूहिकता के लिए सामूहिक घटना होती है। सामूहिकता की ओर से श्रीमाताजी का माल्यापण करता है। इसी प्रकार वे भी किसी अवसर विशेष पर आशीष प्रसारण करने के लिए किसी सकते हैं। विद्युत माध्यमों के जरिए श्री माताजी विशेष माध्यम को चुन लेती हैं. तो अन्य लोगों का संदेश तुरन्त प्रसारित किया जा सकता है की इसका युरा नहीं मानना चाहिए कि वह व्यक्ति उनके साक्षात् के वहुत समीप हैं। सत्ये एवं गहनता अनुभव कर सकते हैं । एक सहजयोगी तो य है, कि जो भी उन्हें हृदय में धारण करता से वे जो कहती हैं, वह पुर्ण सामूहिकता के लिएहै वेउसके समीप है वे यदि अगुआ से प्रसन्न संदेश होता है। बहुत से सहजयोगियों ने अनुभव है तो इसका अर्थ ये हुआ कि वे पूर्ण सामूहिकता से प्रसन्न हैं। गणपति पुले में अपने दैदीप्यमान काई चक्र साफ करती है, तो स्वतः ही पूरी सिंहासन पर बैठे हुए उनकी एक मुस्कुराहट सामूहिकता का वह चक्र शुद्ध हो जाता है। दूसरी वहां बेठे हुए हजारों लोगों के हृदय खाल दरती आर एक व्यक्ति की नकारात्मकता पूरी सामूहिकता है उन्हें जो भी प्रसन्न करता है, उसे हजारो आशीष प्राप्त होते हैं। गणपति पुले की चमत्कारिक शामा को, उनकी कृपा से हम आकाश की 30 मि.मी. के यद पर मुम्बई कार्यक्रम का हुआ मानो साक्षात् श्रीमाताजी वहां उपस्थित हो। य सत्य है कि जब भी श्रीमाताजी कहीं पर जन कार्यक्रम या पूजा करती है, तो यह विश्व सामूहिक चंतना के इस स्रात से एकतार होकर सहजयोगी इसकी चैतन्य लहरियों का आनन्द ले और सभी लाग वही आन्तरिक अनुभूति, आनन्द किया है कि जब श्री माताजी किसी व्यक्ति का में प्रवेश कर जाती है परन्तु सामूहिकता यदि दृढ़ है तो सहसार पर बे नकारात्मकता निकल जाती है। हमारा कार्यक्रम व्यक्ति से सामूहिकता के स्तर तक आ जाता है और हम उनके ( श्रीमाताजी के) शाश्वत अस्तित्व का अंग- प्रत्यग स्वयं का बुलदियों को छू लेत हैं । श्री मार्कण्डेय से लेकर श्री आदिशंकरावार्य तक सभी महान सन्ता ने प्रार्थना की कि"हे मानने लगते है। तब उनका शाश्वत अस्तित्व दवी स्वयं को प्रसन करने का ज्ञान हमें प्रदान हमारी रक्षा करने लगता है। पिछले वर्ष नए ज्सी करें।" श्री माताजी किसी भी चीज़ की आशा आश्रम में एक आश्चर्य चकित कर देन वाली नहीं करती और अत्यन्त सुगमता पूर्वक प्रसन्न घटना घटी। तरणताल में एक सहजयोगी लड़का डुब गया उन लोगों ने बताया कि तभी कबैला से श्री माताजी का फान आया और श्री माताजी सकती हैं। इसके विषय में ईष्ष्या करने का कोई न बन्धन दिया। डॉक्टरों के अनुसार कुछ घण्टे मृत अवस्था में रहने के पश्चात् वह लड़का हैं तो सामूहिक कानों सं सुनी प्रशंसा से हम झूम जीवित हो गया। परन्तु श्री माताजी ने बताया कि उन्होंने तो टेलीफोन किया ही नहीं। उन्हें तो नए जसी आश्रम का टेलीफोन नम्बर ही नहीं मालूम। सभी कार्यों में हमारी परमेश्वरी माँ हमारी आत्मा हम सब जानते हैं, कि श्रीमाताजी कभी टेलीफोन को छू लेती हैं और उनके असीम प्रेम का नहीं करती। ये सब चमत्कार नहीं है ये तो उनके अनन्त आशीर्वाद है। अव हम महसूस हो जाती हैं। अपनी अनन्त उदारता में वे किसी की भी प्रशंसा कर सकती हैं, किसी को भेट दे कारण नहीं। जब हम एक ही शरीर के अंग-प्रत्यंग उठते हैं और फैलाए हुए हाथों से जो वरदान हमें मिलता है, उसका आनन्द लेते हैं। प्रेम के इन आनन्द लंते हुए, हम उनकी जय जयकार कर उठते हैं। चतन्य लहरी ॥ खंड : X1 अक : 5 & b, 1999 (PREIS T सहजयोग का वर्णन श्री माताजी द्वारा हमारा सहजयोग भी ऐसा ही है। हम सब इस नृत्य का अन्तिम भाग आप सबने परस्पर प्रेम करते हैं, मात्र प्रेम। इस नृत्य में भी देखा। यह उस समय का दृश्य है जब ऊर्धा श्री कृष्ण के प्रेम में खोई हुई गोपियों से मिलने गए नृत्यांगना ने यही दर्शाया है। अत्यन्त सूक्ष्मता थे। ऊरधा ने गोपियों से कहा कि वे श्री कृष्ण के पूर्वक उसने इस भाव को प्रकट किया है। हमें साक्षात् का विचार छोड़कर योग एवं ज्ञान का मार्ग अपना लें। यह अत्यन्त नीरस मार्ग है, ऐसा मैं सोंचती हूँ। गोपियों ने कहा, "नहीं हम योग भी यहीं जानना है अतिरिक्त कुछ नहीं। हमारे बीच पारस्परिक, पूर्णत: शुद्ध प्रेम। संस्कृत में हम इसे 'निर्वाज्य कहते हैं। प्रेम के बदले में व्यक्ति किसी चीज़ कि सहज योग प्रेम के नहीं करना चाहते। हम तो पहले से ही उनसे एक हैं। हम उनके शरीर में हैं और वे हमारे की आशा नहीं करता, केवल प्रेम करता है और शरीर में हैं। हम तो उनसे पूरी तरह से एक हो यही प्रेम वास्तविक योग है। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। चुके हैं अत: योग की क्या आवश्यकता है?" 76वीं जन्मदिवस पूजा, दिल्ली 21.3.99 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (हिन्दी) आप लोगों का ये प्यार देखकर के मेरा इस प्रकार कि आप ध्यान करें. सुबह-शाम। तो हृदय भर आया है और ये सोचकर कि प्यार कितनी बड़ी शक्ति है. इससे लोग इतने आकर्षित ईष्ष्या करते हैं और क्रोधित होते हैं और छोटी-छोटी होते हैं और आनन्दित होते हैं । ये बड़ी आश्चर्य आपके अन्दर के जो बुरे विचार हैं, जिससे आप बुरा मान जाते हैं, ऐसे सारे विचार खत्म। हो जाएंगे। उसके बाद बच क्या जाता है। निर्मल बात पे की बात है। इस कलियुग में प्यार का महात्मय इतना तो किसी ने नहीं देखा होगा। मैं सोचती हूँ प्रेम। इस प्रेम से आप सारे संसार को एक नया जीवन दे सकते हैं। कि इसको देखकर के आप सभी लोग अपना प्यार बढ़ाना सीखें। वो चीज़ बहुत आसान है। वो परमात्मा आपको आशीर्वादित करें 5n चैतन्य लहरी खंड : XI अक : 5 &6, 1999 76वीं जन्म दिवस पूजा (दिल्ली 21.3.99) परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (अंग्रेजी) प्रकार से अपने प्रेम का प्रदर्शन करना ही हिन्दी प्रवचन में मैंने बताया, एक व्यक्ति के प्रेम की अभिव्यक्ति आप यहाँ बहुत सी सर्वोत्तम है। आँखों में एक उदाहरण दँगी जिसे पहले भी देखकर मेरा हृदय प्रेम से भर गया. महान प्रेम बहुत बार दे चुकी हूँ। एक बार में गरानगिरी महाराज के पास गई वे एक ऊँचे पहाड़ पर में देख सकते हैं। आपक उत्साह को से। तो हम देख सकते हैं कि यह प्रेम कितना ततर महान है! यदि आप सच्चे हृदय से सुबह शाम ध्यान करें तो सभी प्रकार की दुर्भावनाओं, बुराइयों और आत्मघातक तत्वों को भी सहजयोग में पूछने लगे. "श्री माताजी, आखिर आप वहाँ क्यों बड़ी सुगमता से सुधारा जा सकता है और नियंत्रित किया जा सकता है। परन्तु ध्यान करते आपको अपनी घड़ियाँ नहीं देखनी चाहिए, इसीलिए मैं जा रही हूँ।" गागनगिरी ने रहते थे जहाँ कार आदि वाहन न जा सकते थे। अत: मुझे पैदल जाना पड़ा। सभी सहजयोगी जा रही है?" मैंने कहा, "आप चैतन्य लहरियाँ देखें, अच्छी चैतन्य लहरियाँ आ रहो हैं न! से बहुत लोगों को मेरे विषय में बताया था कि आदिशक्ति हुए आनन्द लेना चाहिए, ध्यान का आनन्द लेना चाहिए। यह सोचकर कि आपके आत्मसम्मान मुम्बई में अवतरित हुई हैं, आप लोग मेरे पास को चुनौती दी गई है। छोटी-छोटी चीजों के लिए क्यों आते हैं? उन लोगों ने ये सब हमें बताया। बुरा मानने, चिडचिड़ाने की अपेक्षा ध्यान आपको अन्य लोगों से प्रेम करने उन्हें क्षमा करने की शक्ति देगा। कई बार हम लोगों के विना किसी गई। उसका वर्षा पर नियंत्रण था. वर्षा को वह मने सोचा कि मुझे इस सन्त से मिलना चाहिए और मैं उससे मिलने के लिए उसके स्थान पर दोष के, उनके प्रति आक्रामक हो उठते हैं. बहुत नियंत्रित कर सकता था। जब में वहाँ पहुँची तो एक शिला पर बैठा गुस्से से वह अपना सिर हिला रहा था वर्षा इतने जोर से हो रही थी कि जब मैं उसकी कुटिया पर पहुँची तब तक पूरी आक्रामक। सबसे अच्छा तरीका ये है कि हम दुसरे व्यक्ति की चैतन्य लहरी को देखें। चैतन्य लहरियाँ यदि खराव हैं तो लड़ने का कोई लाभ नहीं। इससे और अधिक भ्रम पैदा हो जाएगा। जिस व्यक्ति की चैतन्य लहरियाँ खराब हैं उससे तरह से नहा चुकी थी। मैं उस गुफा में गई जहाँ वह रहता था और वर्षा पर क्रोध से भरा हुआ। वह अन्दर आया। कहने लगा." माँ आपने मुझे न तो आप झगड़ा कर सकते हैं और न ही उसे नियंत्रित कर सकते हैं। जो व्यक्ति स्वयं को वर्षा रोकने क्यों नहीं दी?" मैने कहा, "मैंन एसा कुछ नहीं किया।" "नहीं आपने एंसा किया बहुत महत्वपूर्ण मानता है उसे शान्त करने की या उससे समझौता करने की या उसके मिथ्या क्योंकि में तो सदैव वर्षा को नियंत्रित करता अभियान को बढ़ावा देने की आपको कोई आवश्यकता नहीं। ऐसा करके आप उसे और अधिक बिगाड़ते हैं। तो अत्यन्त मधुर एवं भिन्न कहा, आज मेरे निरमंत्रण से आप यहां आ रही थीं तो इस वर्षा को मर्यादा में रहना चाहिए था। " मैंने कहा " नहीं, नहीं, उसने कोई अपराध नहीं चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अक : 5 8 6, 1999 होगा? पर आज देखें वही दिल्ली कितनी महान, सुन्दर एवं उत्साह पूर्ण हो गई है। अपने झण्डे उठाए हुए मैंने उन्हें देखा। मैं नहीं जानती थो कि झण्डों का इस प्रकार का जुलूस यहाँ होगा, लाए हो। सन्यासी से तो मैं साड़ी ले नहीं यद्यपि एक दो बार ऐसा जुलूस कबैला में किया" "तो ऐसा क्यों हुआ?" वह अत्यन्त क्रोधित था मैंने कहा तुम शान्त हो जाओ, में बताती हूँ कि क्या हुआ। देखां तुम एक सन्यासी हो और तुम मेर लिए एक साड़ी खरीद कर अवश्य निकाला गया। किस तरह से वे एक दिया है। अब मैं पूरी तरह भीग गई हूँ इसलिए दूसरे का आनन्द उठा रहे थे । यह वास्तव में तुम्हारी साड़ी मुझे लेनी ही पड़ेगी। मेरे प्रति प्रशंसनीय है आप यदि प्रेम का आनन्द लेने उसका प्रेम उमड़ पड़ा और उसकी आँखों से लगेंगे तो कोई अन्य चीज आपको अच्छी नहीं अश्रुधारा बह निकली। मेरे चरणों पर वह गिर लगेगी। परन्तु प्रेम अन्य लोगों के लिए होना चाहिए कंचल अपने लिए नहीं। आप देखेंगे कि आपका शरीर, मस्तिष्क और विचार, सभी शक्तियाँ अन्य लोगों के लिए, अपने लिए नहीं, प्रेम का सृजन करने में लगी रहेंगी जिस प्रकार आप अन्धेरे में देख नहीं पाते और थोड़ा सा भी सकती। तो वर्षा ने मेर इस कार्य को आसान कर गया कहने लगा माँ प्रेम की महानता मुझे अब पता लगी हैं। किस प्रकार यह सांसारिक चीजों तथा शुष्क आचरण से हटाकर एक ऐसे स्थान पर ले जाता है जहाँ आप प्रेम की वर्षा का आनन्द लेते हैं। मैं यह एक कहानी आपको सुना रही हूँ परन्तु इसके पीछे छिपा सार ये है कि आप अपने प्रेम, शुद्ध प्रेम की युक्तियों आजमाएं और देखें कि यह किस प्रकार कार्य ही परिवर्तित हो जाता है। प्रकाश से किसी को करती है। शनै: शनै: आप इनको उपयोग करना सीख जाएंगे। ऐसा करना आप छोड़े नहीं। मैं है। आप सब भी अब साक्षात्कारी हैं, प्रेम के जानती हूँ कि कुछ लोग अत्यंत कठिन होते हैं प्रकाश हो जाए तो वह चारों ओर फैल जाता है। इसी प्रकार सहजयोग में व्यक्ति का पूरा दृष्टिकोण को यह नहीं बताना पड़ता कि तुम्हें चहूँ ओर फैलना प्रकाश से प्रकाशमान। प्रेम का वह प्रकाश स्वत: में इस बात से सहमत हूँ। परन्तु कम से कम चहूँ ओर फैलता है स्वत:, सहज। युवा शक्ति को नाचते और आनन्द लेते देखकर तो मैं भाव-विभोर हो गई। यह अत्यन्त महान आशीष आपको अच्छी संगति, बहुत से मित्र और मित्रता है क्योंकि आजकल हमारे युवा बच्चे. युवा पीढ़ी भटक रही है। अन्य देशीं की तरह से तो वे नहीं भटक रहे हैं परन्तु उन्हें बिगाडने और भ्रष्ट उन लोगों पर तो इस प्रेम को आजमाएं जो बहुत कठोर नहीं हैं। आप हैरान होंगे, इस प्रकार प्राप्त हो जाएगी. जैसे हमें सहजयोग में प्राप्त हुई है। पहली बार जब में दिल्ली आई थी तो इस स्थान से मुझे बहुत घबराहट हुई क्योंकि बहुत ही थोड़े सहजयोगी थे। न जाने क्यों वे मेरी पूजा हैं पाश्चात्य व्यक्तित्व बनाने का प्रयत्न जोरों पर है। परन्तु अब मैंने देखा है कि युवा शक्ति के यं सहज बच्चे अपनी जाति-पाति को भूलाकर एक करने चाहते थे। हो सकता है मुम्बई के लोगों ने दूसरे की संगति का आनन्द ले रहे है। यह इस उन्हें कुछ बताया ही। वे कुमकुम तथा पूजा का अन्य सामान छोटी-छोटी प्लास्टिक की बोतलों देश में तथा सभी देशों में घटित होना आवश्यक में ले आए। उनकी अज्ञानता के कारण मैं तो है। अत्यन्त आवश्यक है क हमं एक होकर सिकुड़ गई। मैने सोचा अब क्या करें? क्या एक दूसरे की एकाकारिता का आनन्द लें। एक X1 अंक : 5&6, 1999 चैतन्य लहरी खड : विशेषताओं में विश्वास नहीं करता। हम सब दूसरें का आनन्द यदि हम नहीं लेते तो हम समुद्र से बाहर पड़ी उस बूँद की तरह से हैं जो किसी भी समय सुख सकती है। परन्तु समुद्र के परस्पर एक हैं और बाह्य भेदभावीं की हमें कोई परवाह नहीं। मैं बहुत अधिक प्रभावित हुई क्यांकि नया वर्ष हमारे लिए बहुत सी चुनौतियाँ लेकर आ रहा है जिन्हें हमें स्वीकार करना होगा। हमें स्वीकार करना होगा कि कलियुग समाप्त हो अंग-प्रत्यंग यदि आप बन जाएं तो उसकी हर लहर का आनन्द आप उठाते हैं। आप उसके अंग-प्रत्यंग हैं क्योंकि अब आपका कोई भिन्न व्यक्तित्व नहीं है। कोई भी चीज़ जा हमें हमारे समाज संस्कृति, आचरण या व्यक्तिगत जीवन लिए आप सबको सभी देशों के सहजयोगियों में भिन्नता-विशिष्टता दे उसे नियन्त्रत कर को सोचना चाहिए। किस प्रकार आप यह कार्य लिया जाना चाहिए। इससे पारिवारिक जीवन से लेकर राष्ट्रीय जीवन और अन्तर्राष्ट्रीय जीवन तक की बहुत सी समस्याओं का समाधान हो दृष्टि डालें, केवल अपने तक ही इसे सीमित न तो भिन्नता प्रदायक ऐसी भावनाएं नियन्त्रित करें, ताकि आप ये न कहते रहें मझे ये चाहिए कर लेनी चाहिए जो हमें अपना घर, अपना मुझे वो चाहिए। हमं समझना चाहिए कि अन्य भा गया है। हमें सत्ययुग स्थापित करना है इसके अपने देश में तथा अन्य देशों में कर अन्य देशों में क्या समस्याएं हैं? बाहर की ओर सकते हैं? जाएगा। राज्य, अपना राष्ट्र प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती हों। शनै: शनै: सभी राष्ट्र एक हो जाएंगे। राष्ट्र और विश्व के लोगों की क्या आवश्यकता मुझे इसका पूर्ण विश्वास है क्योंकि महान समय आ रहा है और अधिकारी वर्ग के बहुत से लोग को लिख लें। ऐसा करना बहतर होगा. यह कार्य सहजयोग को अपना लेंगे। एक बार जब ऐसा हो करेगा। हो सकता है कि इसमें शुद्धिकरण किया जाएगा तो स्थिति बहुत भिन्न हो जाएगी। आज उनमें यह बात नहीं है, वे सहजयोगी नहीं हैं। कि बैठकर लिख ल कि विश्व की क्या हमारे प्रेम के इस महान आन्दोलन का उन्हें लोगों की आवश्यकता क्या है? हमारे समाज, है। अच्छा होगा. कि आप उनकी आवश्यकता जाए परन्तु सहजयोगियों के लिए आवश्यक है आवश्यकता है और क्या किया जाना चाहिए? विल्कुल ज्ञान नहीं है। यही कारण है कि वे सभी कुछ अलग से चाहते हैं। वे नहीं जानते कि उनके आस पास की गर्मी उन्हें झुलस देगी या भयानक बारिश उन्हें बहा कर लें जाएगो या विचार है। आप हैरान होंगे, कि एक दिन हम पृथ्वी माँ उन्हें निगल लेंगी। अत: जितने चाहे भेदभाव हों हमें एक होकर रहना है आखिरकार लोगों का पथ-प्रदर्शन एवं नेतृत्व करेंगे। अत: आप भिन्न परिवारों में जन्मे हैं, सभी एक परिवार में तो जन्म नहीं ले सकते। परन्तु अब आप सहजयोग परिवार के हैं और सहजयोग परिवार एक है। यह भिन्न अस्तित्व या भिन्न आप सबके लिए इस प्रकार के एक रूप जैसा आज यहाँ पर की आकाक्षा है, समाज, करना आपके लिए वास्तव में बहुत अच्छा अपने प्रेम, सम्मान और सेवा से बाकी सभी यह समय बहुत महत्वपूर्ण है. आप सब लोगों को इस दिशा में सोंचना चाहिए। हार्दिक धन्यवाद। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। चैतन्य लहरी खड : XI अक :5 &6 1999 76वां जन्मदिवस अभिनंदन समारोह परम पूज्य माताजी श्री निर्मलादेवी का प्रवचन (19.3.99 ा कलि एक देवता थे जिन्हें कलियुग तथा कलियुग की सभी समस्याओं को विश्व में लाना था। सर्वप्रथम यह भ्रान्ति की सृष्टि करता है। सभी सत्य साधकों को मेरा नमस्कार। मैेरे जन्मदिवस के अवसर पर इतना कुछ कहा जाना मुझे सकोच में डाल रहा है क्योंकि जो कुछ भी यह भ्रान्ति उत्पन्न करता है। लोग ये जहीं समझ पाते कि सच्चा व्यक्ति कौन है, झूठा कौन है? यही कारण है कि आजकल बहुत से झूठे लोग से हुआ वह पहले से नियत था। इसका समय नीयत था और इसी प्रकार घटित हाना था। अब समय आ गया है कि पूरे विश्व को विश्वव्यापी बहुत से झूठा प्रचार करने वाले। बहुत कठिन समय में मानव सत्य को पाने के लिए लोग बड़ी-बड़ी बातें बनाते हैं परन्तु उनके पास कितना लालायित था क्योंकि सर्वत्र फैले असत्य कुछ भी नहीं है। यह भी एक प्रकार की भ्रान्ति के बीच सत्य को चला पाना बहुत कठिन होता है जिसका सृजन कलियुग करता है। एक बार सत्य की बात जब आप करते हैं तो जिस ऐसा हुआ कि यरस्पर अत्यन्त प्रेम पूर्वक रहने वाले पति-पत्नी नल और दमयन्ति कलि के सूझ-वुझ अपनानी होगी। में हैरान थी कि उस हैं और है। प्रकार लोग आपके पीछे पड जाते हैं उनका मुकाबला करना बहुत कठिन कार्य है क्योंकि सदैव क्रुरता असत्य और आक्रामकता की प्रवृत्ति वाले लोगों से मुकाबला करना आसान नहीं। ये कारण विछुड़ गए थे। कलि इस प्रकार के कार्यों में ही लगा रहता था-लोगों के मस्तिष्क में समस्याएं उत्पन्न करना, परिवारों को अशान्त करना, राष्ट्रों की शान्ति भंग करना और मानव के अन्दर की सारी शुभ इच्छाओं और भावनाओं में विघ्न डालना। एक बार कलि नल के हाथ पड़ में तुम्हारा वध सब आत्म घातक तत्व हैं। इसके अतिरिक्त भी हमारे अन्दर बहुत से आत्मघातक दुर्गुण हैं जैसे मद्यपान, धूम्रपान और नशा सेवन की आदतें। परन्तु लोग ये सब करते हैं। ये नहीं कि उन्हें गया। नल ने कहा क क्यों न इनसे होने वाली हानियों का ज्ञान नहीं है फिर भी समय के प्रभाव के कारण वे ये सब करते के लिए भ्रान्ति और समस्याएं खड़ी करते हो, हैं। यही कलियुग है, इसमें हम स्वयं को नष्ट कर दें। तुम अत्यन्त भयानक व्यक्ति हो। लोगों तुम्हारा वध तो हो ही जाना चाहिए। कलि ने उत्तर दिया कि यदि तुम मेरा वध करना चाहते हो तो कर लो परन्तु इससे पहले मेरे महात्मय को सुन लो। तुम्हारा क्या महात्मय है और क्या करते हैं तथा अन्य लोगों को नष्ट करने का प्रवास करते हैं । ऐसा करने के लिए हमारे मन में एक अजोब किस्म का प्रलोभन है। केवल इतना ही नहीं, इस प्रकार के कार्य करने में हमें महत्व है? वह कहने लगा कि मेरा महात्मय ये आनन्द आता है। जब हम कहते हैं कि कलियुग है कि जब मैं इस पृथ्वी पर आऊंगा. जब मैं इस पृथ्वी पर राज्य करूगा तो, मैं जानता हूँ कि यहाँ भ्रान्ति होगी. अव्यवस्था होगी. इतनी समस्याएं समाप्त हो गया है तो आवश्यक है कि कलियुग के विषय में हमें कुछ ज्ञान तो होना ही चाहिए। चैतन्य लहरी ॥ खंड : X1 अक : 5 & 6, 1999 होगी. कि लोग इनसे तंग आकर सत्य की खांज सकते क्योंकि जरा सा भड़काने पर ही व में निकल पड़ंगे। जो लोग सत्य की खोज में क्रोधित होकर दूसरां से मारपीट करने लगते हैं आज पहाड़ों और बादियों में भटक रहे हैं वही या उनसे गाली-गुफ्तार करने लगत है। हर लोग सर्वसाधारण मनुष्यों और गृहस्थां के रूप में सहजयोगी का यह एक अन्य मापदण्ड है कि वह कहाँ तक क्रोध के इस दोष से लंगे। स्वयं कलि ने इस बात की भविष्यवाणी मुक्त हो पाया। क्रोध आने का अभिप्राय ये की थी। तो जैसा आप देख रहे हैं अत्यधिक है कि आपके अन्दर अशान्ति है और दूसरे अव्यवस्था है, अनगिनत समस्याएं हें। लोगों की व्यक्ति पर अनावश्यक आक्रमण करने के तो समझ नहीं पाते कि इतने लिए आप क्रोधित होते हैं। मान रहकर भी आप बहुत प्रभावशाली हो सकते हैं। चीन लागों में यहां होंगे और निश्चित रूप से वे सत्य को पा जब आप देखते हैं पढ़े-लिखें, बुद्धिमान अधिकारी वर्ग के लोगों के भी इतने गलत विचार हो सकते हैं और इतनी लोगों की एक कहानी है। चीन में कुछ रही थी. तो उन्होंने साचा कि इसका समस्या का कारण यही कलियुग है। यहो हमारे निर्णय करने के लिए क्यों न हम अपनी जगह मुर्गें लड़ा लें। तां उन्होंने मुर्गों का दंगल किया। एक व्यक्ति अपना मुग्गा एक जैन सन्त के पास व्यक्ति सोचने लगता है कि वह बहुत असुरक्षित ले गया। वहाँ जाकर उसने पूछा कि इस मुर्गे के साथ में क्या करू जिससे यह दूसरे मुगे को गलत चीज़ों के पीछे भी वे दौड़ सकते हैं। लड़ाई चल जीवन में ऐसी विशद् स्थितियाँ पैदा करता है। सर्वप्रथम यह एंसी स्थिति पैदा करता है कि और उसे स्वयं को सुरक्षित करने के लिए कुछ करना चाहिए। वह ऐसे स्थान पर चला हैं. पछाड़ दे। महात्मा ने कहा कि यह बहुत सरल जाता है जहाँ उसका नाश होना होता है। वह जान है, तुम उसे बिल्कुल शान्त रहने का प्रशिक्षण भी नहीं पाता कि उसका नाश होने वाला है। दो। वह व्यक्ति कहने लगा कि में एसा न कर ने कहा, ठोक है मुर्गा मेरे पास छोड़ दो। महात्मा ने मुर्गे को खाया कि किस प्रकार हर स्थिति में, चाहे कोई आक्रमण कर मनुष्यों में है। ईष्ष्ा की इस भावना को कलियुग बहुत बढ़ा देता है। सभी चीजा के प्रति हम ईष्यालु हो दूसरा दोष भयंकर ईष्ष्या की भावना पाऊगा। महात्मा रहा हो तो भी, शान्त रहना है। जब उस मुर्ग को उठते हैं। इस भावना से हमारी होन भावना (Inferriority Complex) प्रकट होती है। परन्तु अखाड़े में उतारा गया तो बहाँ बहुत से मुरगे उस ईष््या की इस भावना के कारण हम बिना किसी उचित कारण के अन्य लोगों से घृणा करने लगते हैं। चोटी के राजनीतिज्ञ बिना दूसरे व्यक्ति शान्ति से सारी समस्या का समाधान हो गया की उपलब्धियों को समझे उनसे घृणा करने क्योंकि अन्य सभी मुर्गे उससे घबरा कर दौड़ लगते हैं। उसने ये उपलब्धियाँ कैसे प्राप्त कर ली हैं? क्यों न मैं उससे ईष्ष्या करू? इसके कि हिलता भी नहीं! तो आक्रमण और प्रतिक्रिया अतिरिक्त हममें एक अन्य दोष है, जो सबसे बुरा है । जैसा श्री कृष्ण ने कहा यह क्रोध है। क्रोधी प्रवृत्ति के मनुष्य सत्य को नहीं देख दुश्मन है। हम सभी चीजों के प्रति प्रतिक्रिया पर आक्रमण करने लगे। परन्तु साक्षी भाव से वह उनको शान्तिपूर्वक देखता रहा। उसकी इस गए। उन्होंने सोचा कि यह इतना शक्तिशाली है न करने का गुण उसने प्राप्त कर लिया था। वास्तव में प्रतिक्रिया मानव की बहुत बड़ी 10 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 5&6, 1999 करते हैं। हमें प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। परन्तु उन्होंने कहा कि आप विज्ञान से कहां उच्च हैं। सहजयोग को उन्होंने सज्ञानात्मक विज्ञान जब हम शान्त हो जाएंगे तब ये शक्ति, जिसके विषय में मैं आपको बता रही हूँ, कहा उन्होंने उसे 'संज्ञानात्मक विज्ञान' का नाम परम चैतन्य की यह शक्ति कार्य करती है । यदि आप प्रतिक्रिया करते हैं तो ठीक है। ये कहती है कि करो प्रतिक्रिया परन्तु यदि दिया। श्रीमाताजी आपका पूरा ज्ञान संज्ञानात्मक विज्ञान है। बात केवल इतनी है कि मैं यदि आपसे कोई चीज़ बताऊ तो आप इसे प्रमाणित कर सकें, वैज्ञानिक इसे सत्यापित कर सकते हैं आप सभी कुछ इस पर छोड़कर मौन और शान्त हो जाते हैं तो यह गतिशील हो उठती है। इतनी भली-भान्ति यह कार्य कर सकती है, आप यहाँ बैठे हों या अन्यत्र, यह कार्य कर सकती है। यह इतनी प्रबल शक्ति है. इतनी प्रभावशाली शक्ति है इसमें महान ज्ञान हर व्यक्ति पता लगा सकती है कि यह ऐसे है या नहीं। परन्तु इन झूठ-मूठ के गुरुओं की यदि आप इसी प्रकार परीक्षा लें तो आप जान जाएंगे कि उनका कांई वैज्ञानिक आधार नहीं है। उनके पास बताने के लिए कोई कारण नहीं है कि ऐसा क्यों घटित हो रहा है। विश्व भर में मुझे वैज्ञानिकों का सामना करना पड़ा और मैं हैरान थी कि उन्होंने मुझे मान्यता दी, कहने लगे, श्री अस्तित्व में होती है, परन्तु कृत युग में जब ये माताजी यह संज्ञानात्मक विज्ञान है और सभी जगह उन्होंने मुझे उपाधियों तथा अन्य सम्मान दिए। मैं तो जानती भी नहीं थी कि संज्ञानात्मक तथा सूझ बूझ है और सर्वोपरि यह आपसे प्रेम करती है। तो जब ये शक्ति अस्तित्व धारण करती है, वैसे तो एक प्रकार से यह सदेव प्रभावशाली होती है, तो आप हैरान होंगे, कि इसके माध्यम से क्या कुछ घटित होता है। हर व्यक्ति मुझे बताता है कि "श्रीमाताजी यह विज्ञान क्या होता है। परन्तु यह वह ज्ञान है जो आप मस्तिष्क से ऊपर उठकर प्राप्त करते हैं चमत्कार हो गया. वह चमत्कार हो गया। में आपका मस्तिष्क हो सकता है कि पूर्वाग्रहों से पूर्ण हो, या इंष्यां और क्रोंध से भरा हुआ हो। जानती हूँ यह चमत्कार नहीं है, यह परम चैतन्य सभी कार्य, सभी सुन्दर चीजें कर रहा है। यही आपकी सहायता करने का और अपने प्रेम को प्रदर्शित करने का प्रयास कर रहा है। जो चीज़ें हम देख नहीं सकते. जिनके विषय में मस्तिष्क उसे चुनौती नहीं दे सकता। यह "पूर्ण ज्ञान' है। से सोच नहीं सकते, जो मस्तिष्क से परे हैं उन्हें मैं आपको एक उदाहरण दूँगी वैज्ञानिकों से मैंने भी ये करता है। मैं हैरान थी कि रूस में मुझे कहा कि पहला चक्र-मूलाधार कार्बन के अणुओं विशेष रूप से वैज्ञानिकों का सामना करना पड़ा। वैज्ञानिक ज्ञान से भरपूर थे, बहुत गहन थे और चीज़ों को बहुत अच्छी तरह से समझते थे विद्या करता है। कार्बन का यदि आप एक मॉडल के इस महान प्रतिष्ठान, प्राचीनतम विश्व विद्यालयों में से एक सेन्ट पीटर्स बर्ग विश्वविद्यालय में, देखेंगे कि इस मॉडल को जब आप दाएं मेरी समझ में नहीं आता, किसलिए मुझे सर्वाच्चतम बाएं को देखेंगे तो यह स्वास्तिक सम प्रतीत उपाधि दी गईं। किसलिए? मैं नहीं जानती, परन्तु मस्तिष्क से ऊपर उठकर जब आप ज्ञान प्राप्त करते हैं तो यह पूर्ण ज्ञान होता है। काई भी से बना है। कार्बन के अणुओं से मूलाधार चक्र आपको एक विशेष प्रकार की संरचना प्रदान बना लें और इसका फोटो ले सकें तो आप से होगा उन्हें दिखाने के लिए मैंने कार्बन का चैतन्य लहरी 11 ॥ खंड : X1 अंक : 5 8 6. 1999 एक मॉडल बनाया । इसे जब आप बाएं से दाएं को देखेंगे तो इस पर ॐ लिखा हुआ दिखाई देगा, इसे को बताते हैं तो वैज्ञानिक इसके पीछे पड़ जाएगा और इसके तथ्य के सत्य को खोज निकालेगा। नीचे से ऊपर को जब आप ऐसा केवल एक उदाहरण नही है, मैं एसे देखेंगे तो क्रूस दिखाई देगा जिसका सेंकड़ों उदाहरण दे सकती हूँ। जब मैंने उन्हें अर्थ ये हुआ कि मूलाधार के श्री गणेश ईसा रूप में अवतरित हुए। अत: वैज्ञानिकों ने एक सत्यापित करने के लिए कहा तो उन्होंने ऐसा मॉडल बनाया उसके फोटो लिए निकाला कि मेरी कही हुई वात सत्य है। ये वैज्ञानिक विधियाँ उन्होंने खोज निकाली। परन्तु मॉडल दिखाया भी जा सकता है। तो जो भी बे जानते ही नहीं कि उन्हें क्या खोजना है । कभी आप जानते हैं, जो भी कुछ आप कहते हैं कुछ बताया और वैज्ञानिक विधियों से उसे और खोज कर दिखाया। सत्यापित करने की बहुत सी इस चीज़ और कभी उसे चीज़ के पीछे दौडे फिर रहे हैं । कभी चाँद पर जा रहे हैं, कभी कहीं और ये कोई तरीका नहीं है। पहले निश्चित कर लें कि आपने क्या खोजना है ओर फिर देखें कि यह है या नहीं। पश्चिम को यद्यपि हम एक प्रकार से उन्नत कहते हैं। परन्तु, मैं हैरान थी आध्यात्मिकता के मामले में ये कहीं भी नहीं है। कुछ बैज्ञानिकों द्वारा बह भी सत्यापित होना चाहिए। मैं विज्ञान को छोड़ नहीं रही, विज्ञान निनैतिक (न नैतिक न अनैतिक) है। जो भी कुछ आप कहें, सहजयोग में आने के पश्चात् वैज्ञानिक परिवर्तित हो जाते हैं। अन्य देशों के वैज्ञानिक, अपने देश का तो मैं नहीं जानती, ऐसी अवस्था तक पहुँच गए हैं कि वे जानना चाहते हैं कि वज्ञान से परे हमारे मुकाबले में उनमें संज्ञानात्मक विज्ञान का क्या है। सभी लोग भारत आते हैं, क्यों? वे जापान क्यों मही जाते? चीन क्यों नहीं जाते? अमेरिका क्यों नहीं जाते? सत्य को खोजने के में रंग गए हैं । हमारे सभी विचार पश्चिमी हैं लिए वे भारत आते हैं। क्योंकि भारत में यह और सारा ज्ञान हम बाहर से लेते हैं, उन लोगों संज्ञानात्मक विज्ञान यहुत प्राचीन है। परन्तु हम से जो भारतीय संस्कृति के विषय में खोज करना इसके विषय में नहीं जानते। स्वतन्त्रता के पश्चात् चाहते हैं। वे इतने तुच्छ हैं और इतने अयोग्य अचानक भारतीय लोग पाश्चात्य रंग में रंग गए कि इसके विषय में वे कुछ नहीं बता सकते। हैं। गाँधो जी के तथा अन्य भारतीय विचारों को इसे रूढ़िवादी विचारों से कुछ नहीं लेना देना, गुण बहुत कम है। परन्तु यह ज्ञान हममें भी ता शून्य हो गया है क्योंकि हम लोग पाश्चात्य रंग ताक पर रख दिया गया है। हम सब जानते हैं ऐसा कुछ भी नहीं है, परन्तु यह वास्तविकता हैं कि हमारे देश में क्या चीज इतनी महान धी. और सत्य हैं, इस सत्य को बे स्वयं नहीं जानते। भारतीय संस्कृति की मुनादी वे करना चाहते हैं में विद्यमान थी हमारे सन्त ऐसी ऐसी चीज़ों को परन्तु उनमें ऐसा कुछ भी नहीं है. क्योंकि जब तक आप आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं और उस अवस्थी तक नहीं पहुँचे गए तब तक परम चैतन्य के रहस्यों को आप नहीं जान सकते इतनी महान संपदा. इतनी महान शक्ति इस देश जानते थे जिनका विज्ञान को कोई ज्ञान नहीं। उन लोगों की कही हुई बातों को सत्यापित करना वैज्ञानिकों का काम है। मैंने देखा है ये अत्यन्त साधारण कार्य है। आप यदि वास्तव में सत्य के अत: सभी भारतीय लोगों के लिए आवश्यक है कि सहजयोग को अपनाएं, पूरे विश्व के लोगों विषय को जानते हैं और इसके विषय में वैज्ञानिकों 12 चैतन्य लहरी खंड : 81 अंक : 5 & 6. 11 के लिए भी आवश्यक है कि सहजयोग को को इतनी तेजी से परिवर्तित कर रहे हैं, कि मैं हैंरान हूँ। टक्की जैसे देश में भी दो हजार अपनाएं। मैंने आपको रूस के विषय में बताया, ये अन्य लोगों को भी सहजयोगी बना रहे हैं। तो पादरियों, मुल्लाओं, पण्डितों आदि द्वारा बनाए गए इन मूर्खतापूर्ण विचारों का पतन हो रहा है; और उभर करके आ रहा है | से पण्डित और शास्त्री आदि वहाँ स्थिति बहुत खराब है। फिर भी, मैं कहुँगी सहजयोगी हैं। कि. वहाँ सहजयोगी बहुत प्रसन्न है। एक बार जब मैं वहाँ थी तो वहाँ क्रान्ति हो गई। सभी लोग बहुत चिन्तित थे. वहुत से टैंक वहाँ से गुजर रहे थे मैंने रूस के सहजयोगियों, जो संख्या में एक लाख से भी ऊपर हैं, से पूछा कि हैं। मैं कहूँगी कि वे कुछ नहीं जानते क्योंकि देश की घटनाओं पर क्या वे चिन्तित नहीं हैं? भारत में भी बहुत जव तक वे परम चैतन्य को महसूस नहीं कर लेते तब तक उनकी बताई हुई बातें निराधार हैं। तो लड़ाई-झगड़े, आक्रामकता, दिखावा आदि द्वारा उत्पन्न समस्याएं सहजयोग से ठीक हो चिन्ता क्यों करें?" स्वभाव परिवर्तित हो जाते हैं सकती है। क्योंकि आपका चित्त मस्तिष्क से उन्होंने उत्तर दिया, श्री माताजी हम बिल्कुल चिन्तित नहीं हैं। मैंने पूछी, "क्यों?" "क्योंकि हम परमात्मा के साम्राज्य में हैं। हम रूस की और व्यक्ति झूठ नहीं बोलता, वास्तव में ऐसा ऊपर जाता है, आप मस्तिष्क से ऊपर जाते हैं. महसूस करता है। इस प्रकार बह इन धर्म, जाति, राष्ट्र आदि के सभी मूर्खतापूर्ण विचारों से मुक्त आज्ञा चक्र खुल जाता है और आप मस्तिष्क से ऊपर जाकर इस परमेश्वरी शक्त से एक हो सकते हैं। एकाकारिता होने के पश्चात् आपकी हो जाता है। यह मानव को मानव से भिन्न कर देता है परन्तु वनावटी रूप से भी आप एक नहीं हा सकते। बहुत से लोग कहते हैं, नहों नहीं, चीज़ों में यह परमेश्वरी शक्ति आपके लिए कार्य हमें ये सब अलग-अलग चीजें नहीं लेनी चाहिए। हमें एक ही चीज़ लेनी चाहिए। आप ऐसा नहीं हैं ये सब बताने की मुझे कोई आवश्यकता नहीं। कर सकते क्योंकि स्वभाव से मनुष्य को ऐसा परन्तु सभी लोगों के पास अनगिनत उदाहरण नहीं बनाया गया है। हमने इटली में दूसरे धर्मों हैं जिनके द्वारा वे जानते हैं कि परम चैतन्य के लोगों से बातचीत की और उन्होंने मुझे ने ही यह कार्य किया है अत: सत्य साधक, बताया हमें एक धर्म नहीं चाहिए, पूरे विश्व के लिए एक ही धर्म हमें नहीं चाहिए।" मैंने समझ में आता है कि किस प्रकार छोटी-छोटी करती है। आप सब सहजयोगी हैं और अनुभवी लाब जो वास्तव में सच्चा है, के लिए आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना सबसे पहला कार्य हैं। चाहे आप बाइबल पढ़े, कुरान पढ़े, या कुछ और पूरे विश्व में यही कहा, "क्यां चाहते हो इसलिए? आप एक ही धर्म क्यों नहीं चाहते। एक मात्र धर्म ये है कि आप मानव है, ?" क्योंकि आप एक दूसरे से लड़ना (आत्मसाक्षात्कार) आध्यात्मिकता का सार है। किसी ने इन शास्त्रों को गहनता से पढ़ा बहुत अच्छे मनुष्य हैं तथा आप परमात्मा से भी नहीं फिर भी वे लज्जाजनक बातें कहते हैं। एकाकारिता प्राप्त कर सकते हैं। यही आपका धर्म है जिसका वचन दिया गया था और इसी को कार्यान्वित होना है। परन्तु वे स्वीकार नहीं हरकतों ने हमें यह दर्शाने में सहायता की है कि करते। अब हम परिवर्तित हो रहे हैं। वे भी स्वयं सभी धर्मों का सार एक ही है और एक दिन ये सब इन ग्रन्थों में लिखा हुआ नहीं है। फिर भी लोग इनके लिए लड़ रहे हैं। उनकी इन 13 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 5 & 6, 1999 सभी लोग आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करेंगे। एक बार जब वे आत्मसाक्षात्कार को अपना लंगे तब वे उन्नत होंगे और जब वे इसकी गहनता में उतर है। कलियुग में यह घटित होना था और ये हो जाएंगे तो सब कुछ देख सकंगे। यहाँ बैठे हुए और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने को शक्ति भी आपकी अपनी है। यह कलियुग का आशोर्वाद रहा है, यही कारण है कि हजारों लोग आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर रहे हैं। प्राचीनकाल में आप सब सहजयोगी यह सब जাानते हैं। आप जानते हैं कि आपको क्या लाभ हुआ है और एक गुरु से कोई एक शिष्य ही आत्मसाक्षात्कार क्या उपलब्धियाँ आपने प्राप्त की हैं? अत: इस सबका श्रेय मुझे देना, मैरे विचार में, सत्य नहीं है। हमारे देश में बड़े-बड़े महान सन्त हुए हैं, सभी देशों में सन्त हुए हैं। बहुत से देशों में सूफी कड़ाई से जाँचते परखते थे। परन्तु सहजयोग में ले पाता था। वे गुरु भी बहुत कठोर होते थे और किसी ऐरे-गैरे को आत्मसाक्षात्कार नहीं द्े थे। आत्मसाक्षात्कार देने से पूर्व वे अपने शिष्यों का हम ऐसा नहीं करते. हम तो लोगों को एक बार सहजयोग में ले आते हैं. बस। मैं हैरान हैँ कि सन्त हुए उन सबने कहा कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लो. स्वयं को पहचानों (Know Thyselves) सभी ने एक ही बात कही है, किस प्रकार बुद्धिजीवी लोग इसके विषय में स्वयं को पहचानों परन्तु कोई भी ऐसा नहीं कर रहा है। ये एक अलग बात है, परन्तु वास्तव में कोशिश करते हैं । उन्हें पहले आत्मसाक्षात्कारी जो आत्मसाक्षात्कारी ब्यक्ति थे, चाहे वे मुस्लिम धर्म के थे या हिन्दु या इसाई या किसी अन्य धर्म के. वे किसी भी देश के हो, सबने एक ही बात कही क्योंकि सत्य एक ही है। सबने एक ही बात कही कि सर्वप्रथम स्वयं को पहचान लो और तब आप सत्य को जान जाएंगे। अत: हमारे मैं देखती रही हूँ किस प्रकार सहजयोग एक जीवन का सार यही है कि हमें स्वयं को व्यक्ति से आरम्भ होकर इतने अधिक लोगों तक पहचानना है। एक बार जब हम स्वयं को और इतने अधिक देशों तक पहुँचा है। यह सब पहचान लेंगे तो हर चीज से ऊपर उठ जाएंगे, बिना कुछ जाने, इसकी गलतियाँ ढूँढने की पता बनना होगा, उसके पश्चात् वे जो भी कुछ करेंगे वह पूरे समाज के लिए निश्चित रूप से रचनात्मक, सहायक, शान्ति एवं तारतम्यता प्रदायक होगा। परन्तु आपको आत्मसाक्षात्कारी होना होगा, बिना प्राप्त किए किसी अन्य को आप क्या दे पाएंगे। यह दर्शाता है कि पूरे विश्व के लिए परिवर्तित क्योंकि तब आप उस बुँद जैसे हो जाते हैं जो होने का समय आ गया है और ये परिवर्तन समुद्र में मिलकर विलीन हो जाती है। किस महत्वपूर्णतम है। यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। प्रकार यह लुप्त हो जाती है! एक ही चीज घटित होगी और एक बार जब ये घटित हो वो सभी कुछ भूलकर परिवर्तन प्राप्त कर लो। जाएगी तो आप हैरान होंगे, कि आप की सबसे एकाकारिता हा गई है। दूसरा कौन है? सभी में आप स्वयं को ही देखते हैं। सहजयोग में हम जो समाज के लिए हितकर हों। यह सब आप देखते हैं कि बहुत से लोग ये कहते हैं कि यह बहुत बड़ा करिश्मा है, वहुत बड़ा चमत्कार है। घटित हुआ यह केवल मेरें प्रयत्नों से ही नहीं ऐसा कुछ नहीं है। आपकी अपनी कुण्डलिनी है हुआ, इसको करने में बहुँत से लोग मेरे साथ थे। हर चीज को भूल जाओ राजनीति, अर्थशास्त्र यं एक बार जब आप परिवर्तित हो जाएंगे तो जान जाएंगे कि ठीक कार्य कैसे करने हैं, ऐसे कार्य अपने जीवन में देख चुके हैं और जो भी कुछ 14 चैतन्य लहरी खड : X1 अंक : 5 & 6, 1999 मेरा योगदान केवल इतना है कि मैन एक विधि यहाँ हुए। ये सब महान सन्त थे। जिन्होंने प्रेम खोज निकाली जिसके माध्यम से सामूहिक आत्मसाक्षात्कार दिया जा सकता है। बहुत से लोग सामूहिक रूप में इसे प्राप्त कर सकते हैं सूझ-बुझ का अभाव है। तो हम लोग उनके क्योंकि किसी भी अन्वेषण - उदाहरणार्थ विद्युत का लाभ यदि सभी लोग न उठा पाएं तो ये सकते हैं। जब हम सहजयोगी हों और बेकार है। अपने पूरं जीवन में मैं केवल इतना ही कर पाई कि सामूहिक आत्मसाक्षात्कार दिया जा सकता है और यह कार्य बहुत अच्छी तरह एवं सूझ-बूझ की बातें कीं। परन्तु बातें ता बातें ही है क्योंकि इन वातों को सुनने वालों में तो आशीर्वाद, उनकी महानता के तभी अधिकारी हो आत्मसाक्षात्कारी हों। मैं अपने पूर्ण हृदय और आत्मा संे आशीर्वाद देती हूँ। मैं इसे जिस प्रकार कार्यान्वित करने का प्रयत्न कर रही थी यह वैसे ही हो रहा है। अमरीका में सहजयोग बहुत तजा से फैल रहा है। नहीं तो सभी कुगुरु अमरीका से हुआ। यह अत्यन्त साधारण है, एक व्यक्ति की जब आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाता है तो पहुँचे परन्तु अब अचानक महान घटनाए घटित हो रही हैं। उनके सन्तुष्टि के लिए मैंन उनसे कहा कि मैं अमरीका आकर कम से कम दो रहे हैं कि हम 80 देशों में कार्य कर रहे हैं। मैने महीने रहूँगी कहीं ठहरना इतना महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण बात तो लोगों का समझना है। वहाँ सहजंयोग फैलाया. दूसरा किसी अन्य देश हो जाएं और इस बात को समझे कि हमें सत्य का जान प्राप्त दे लागा को भी आत्मसाक्षात्कार वह अन्य सकता है। पहले ये लोग मुझे बता रहे थे कि हम 70 देशों में कार्य कर रहे हैं., अब ये कह पृछा. कैसे? कोई व्यक्ति किसी देश में गया और साधकों को चाहिए कि व विनम्र में गया तो वहाँ सहजयोग फैलाया। तो कल्पना कर कि यह कितना सरल हो गया हैं! मेरे लिए करना है। एक बार जब ये विनम्रता आ जाएगी तो यह कार्य करेगी. चाहे व्यक्ति किसी भी ये कितना सरल है! इस उम्र में में 70, 80 देशों में नहीं जा सकती परन्तु सहजयोग वहाँ पहुँच जाति, धर्म और प्रजाति से सम्बन्धित हो यह गया है इसने परमात्मा का आशीर्वाद प्रदान किया है। तो आप लोग यहाँ क्यों आए हैं? आपको मेरा हार्दिक आशीर्वाद है। इस अभिनन्दन के जानना चाहिए कि यहाँ पर निजामुद्दीन औलिया लिए थे यहाँ निजामुद्दीन थे और दमदमा साहिब भी कार्य करेगी । परमात्मा आपको आशीर्वादित करें, यह आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद। 15 चैतन्य लहरोी खड : X1 अंक : 5 8 6, 1999 ॥ परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी द्वारा मातरम् का वर्णन वन्दे आज की संध्या का यह अंतिम गीत है। वास्तव में यह पुराने दिनों का अत्यन्त महान ये कहने का क्या अधिकार है कि यह गीत नहीं गीत है। पिछली बार मैंने अपने पिता की एक गाना चाहिए? कहानी सुनाई थी। वे महान् देशभक्त थे। तिरंगा करने के लिए आपका क्या योगदान है। आपको यह गीत हमारी मातृभूमि के सौन्दर्य और उसकी प्रकृति का वर्णन करता है। इसे सदा राष्र गोत के रूप में गाया गया। यरन्तु अब कुछ नए झण्डा उठाकर वे उच्च न्यायालय पर जा चढे। अंग्रेज सिपाहियों ने उन पर गोली चलाई जो उनके सिर पर लगी। सिर से खून बहने लगा, फिर भी वे रुके नहीं। झण्डा लेकर वे न्यायालय संस्कृत भाषा में है। इस गीत की पुरी भाषा के शिखर पर जा पहुँचे और वहाँ झण्डा फहरा दिया। केवल तभी वे नीचे आए और हमें यह गीत गाने को कहा, नीचे खड़े हुए हम सभी वो दिन याद है जब बर्तानवी बन्दूकं हमारे पर लोग उनकी इस बहादुरी पर नाच रहे थे। उन्होंने तनी हुई होती थी और हम यह गीत गाते हुए कहा, तुम सब 'बन्द मातरम्' गाओ अर्थात् हे माँ बहादुरी से उनका सामना करते थे आज ये हम आपको नमन करते हैं और आज हमारे देश लोग. न जाने कहाँ से उठ खड़े हुए हैं. और ये कुछ लोग एसे खड़े हो गए हैं जो ये कहते हैं कि यह गौत नहीं गाना चाहिए। यह गीत गाते हुए हमने पूरा स्वतंत्रता संग्राम किया और जो घटनाओं को लोग भूल जाते हैं। मुझे आशा है लोग इस गीत का विरोध कर रहे हैं उनसे मैं कि आप सब लोग इस राष्ट् गीत को गाने के पूछती हूँ कि आपमें से कितने लोगों ने स्वतंत्रता लिए खड़े हो जाएंगे। प्राप्ति के लिए कार्य किया? स्वतन्त्रता प्राप्त लाग उठ खड़ हुए हैं जा ये कहत हैं कि यह संस्कृत नहीं है। इन चीजों को देखते हुए ता कई बार फूट-फूट कर रोने को दिल करती है। मुझे कहने का प्रयत्न कर रहे हैं कि हमें ये गोत नहीं गाना चाहिए। कलियुग में यही होता है। पिछली धन्यवाद तर 16 चैतन्य लहरी ॥ खंड : X1 अंक: 5 &6, 1999 देशभक्ति हम सब हिन्दुस्तानी हैं और इस भारतवर्ष और जो आपके अन्दर बेकार की इच्छाएं हैं. सब खत्म हो जाएंगी| लगेगा कि इस देश की हैं और इसी के सहारे हम जी रहे हैं। आगे भी उन्नति हो तो हमारी भी उन्नति हो जाएगी हमने इसी के सहारे जीना है। हमारे बच्चों के लिए, तो अपने जीवन में बहुत ऐसे लोग देखे। हमारा समय और था। हम बड़े भाग्यशाली है कि ऐसे होना चाहिए कि अपनी भारत माता से प्यार ऐसे महान त्याग मूर्ति लोग हमने देखे और उनको देखकर के हमने जाना कि इस देश का में रहते हैं। इसी के अन्न, जल से हम पले हुए का जो आने वालो पीढ़ी है उसके लिए, यही संदेश करो, अपने देश के प्रति बहुत अधिक अपनापन होना चाहिए। हमने देखा है परदेस में, आश्चर्य को बात है कि एक-एक देश में हर एक आदमी अपने देश के बारे में जानता स्वातन्त्र्य उन्होंने कमाया। स्वतंत्रता कमाने के बाद जो हाल हुआ वो आपको सबकी मालूम है! अब आपका कर्तव्य है, जब आए सहजयोग में आ गए हैं, कि पहले अपने भारतवर्ष में क्या खराबी है, क्या बुराइयाँ हैं. उसको हटाना चाहिए और इसके प्रति नितान्त श्रद्धा रखनी चाहिए। और अपने देश के प्रति बड़ा अभिमान रखता है। उनसे पूछने पर कि भई आपके देश में तो इतनी गरीबी है तो भी क्या हुआ? ये हमारा जो देश है इसी ने हमें जन्म दिया, हम तो ये हमारा देश जो है ये हमारे लिए महान चीज़ है। इसी प्रकार हर तभी आपका देश दुरूस्त हो सकता है, नहीं तो आजकल जैसे लोग आए हैं, आप सब जानते हैं। हिन्दुस्तानी, भारतीय को सोचना चाहिए कि ये मुझे बताने की जरूरत नहीं है। सिर्फ ये है कि भारतवर्ष जो है या भारत जिसे कहते हैं, जो हमें वैसा नहीं होना है। हमें अपने देशवासियों के हिन्दुस्तान है, ये हमारा देश है और इसके लिएलिए और हमारें देश के लिए सब कुछ करना हमें देशभक्ति रखनी चाहिए। जैसे ही आपके चाहिए, जो हम कर सकते हैं। आप सबको अन्दर देश भक्ति आ जाएगी, आपको आश्चर्य होगा, अनेक गुण आपके अन्दर आ जाएंगे, अनेक गुण। सबसे बड़ा गुण तो ये आएगा कि आपके अन्दर जो बेकार की महत्वाकांक्षाएं हैं आशीर्वाद। अनन्त आशीर्वाद है, कल फिर से प्रोग्राम होगा। आप जरूर आइए। अपने मित्रों को भी साथ लाइए। सबके लिए यहाँ निमन्त्रण है । अनन्त भ भैभ 17 चैतन्य लहरी ॥ खंड : X1 अंक : 5 & 6, 1999 भ गुडी पड़वा पूजा नोएडा निवास 18,3.99 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज का दिन गुडी पड़वा का है और ये में चले गए। उसके बाद वो मद्रास भी चले गए। महाराष्ट्र में मनाया जाता है ज्यादा। कहते हैं कि इस तरह से ये चीज़ है कि इनका इतिहास ऐसा ये बड़ा शुभ दिन है, इस दिन जो भी कार्य करो है । शालीवाहन का और उसी वंश के हम भी हैं। वो बहुत सफल हो जाता है। वो जो भी हो, बहुत हज़ारों वर्ष पहले थे तो वो गए थे महाराष्र सांसारिक दृष्टि से बात है और दूसरा ये कि में और फिर वहाँ से उसी शालीवाहन के हम शालीवाहन में जो एक बबू वाहन करके थे, लोग वंशज हैं। इसलिए हम लोगों का नाम साल्विया-साल्वे-ऐसा कर दिया गया। तो जो शाल्व थे जिन्होंने युद्ध किया था. भीष्म के साथ. आपने होगा शाल्व भीष्म के साथ शाल्च, उन्होंने विक्रमादित्य को हराया और उसके बाद उन्होंने ये नया पंचाग शुरू किया जिसे शालीवाहन कहते हैं। उसके वर्ष का आज को दिन प्रथम सुना दिन है। तो इसका महात्मय ज्यादा महाराष्ट्र में है उन्होंने मदद की थी पांडवों की बाद में। भीष्म कि उन्होंने ये शालीवाहन का ये द्योतक दिखाने ने चारों तरफ उनके शर पंजर डालें और उस के लिए एक कुम्भ को लेते हैं और उसके शरपंजर की वजह से वे निकल नहीं पाए तो अन्दर एक शाल जो कि शालीवाहन थे. तो उन्होंने शाप दिया तुम्हारे भी ऐसे ही शरपंजर कुम्भ कुण्डलिनी का द्योतक है। तो एक शाल पड़ेंगे वो आखिर में भीष्म के साथ हो गया। तो टाँग देते हैं ऊपर से एक कुम्भ रख देते हैं। उसका मतलब ये है कि कुम्भ जो है आध्यात्म का भी द्योतक है, कि आध्यात्म आपने कुंभ में है। और शालीवाहन इसलिए के वो लोग पहले उनको सपने में दर्शन हुए शिवजी के और अपने को सात वाहन कहते थे। उनका कुण्डलिनी उन्होंने बताया कि बप्पारावल जो है उसको तुम पर बड़ा विश्वास था. बाद में उन्होंने देवी को यहाँ का राजा बना दो। तो फिर से Revival उसी शाल देना शुरू कर दिया। बड़े देवी के भक्त थे। शालीवाहन वंश का हुआ। पर पता नहीं उन्होंने तो उन्होंने अपना नाम शालीवाहन कर लिया । भी इसी वश के हैं लेकिन इस तरह से वो हजारों वर्ष पहले के हैं। उसको (Revival ) हुआ वो बहुत बाद में एक वहाँ पर मुनि थे रम कैसे शाल्व से शालीवाहन बना दिया ? लेकिन इस तरह से वो नाम बदल गया और उन्होंने उन्हीं के वंश में पद्मिनी हो गई और मेरठ के शालीवाहन अब जो थे वो मेवाड़ के वंशज थे। लोगों से हमारे लोग पता करने गए तो वे कहते मेवाड के राजा होते थे। एक सिसोदिया वंश है, उस सिसोदिया वंश के एक बेटे थे, पर किसी कारण से उनका कुछ अनबन हो गया उनके हैं ऐसे लोग ही नहीं थे। तो एक अजीब चाचा के साथ, इसलिए वो भाग करके महाराष्र हैं ऐसे तो बिल्कुल लोग थे, अपने प्रण के पूरे और ईमानदार और देवीभक्त और माने वो कहते अजीबोगरीब लोग थे। उनका सब नष्ट भ्रष्ट हो 18 चैतन्य लहरी खंड : X1 अक : 5 86, 1999 गया क्योंकि उन्होंने Compromise नहीं किया। जमाने में सो अभी भी इसको महाराष्ट्र में लोग जयपुर वालों ने मुसलमानों से बाद में अंग्रेजों से बहुत मानते हैं और इधर विक्रमी संवत है. Compromise कर लिया तो वहाँ बहुत समृद्धि महाराष्ट्र में शालीवाहन संवत है। हम लोग भी, थी। तो समृद्धि से किसी की Judgement नहीं क्योंकि मैं महाराष्ट्र की हूं, शायद इसलिए हम होनी चाहिए Character से होनी चाहिए। तो ये लोग भी शालीवाहन से ही चलते हैं। उसके आज का दिन जो है उन्हीं शालीवाहन लोगों ने हिसाब से आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है और बनाया. उसमें से जो बब्रुवाहन थे उन्हें क्राइस्ट जो कुछ आज आप इच्छा करेंगे वो पूर्ण हो से थोड़े पहले बनाया गया है विक्रमादित्य के जाएगी। सबको अनन्त आशीर्वाद। पा त रा ४ २ ॐ म टम ल े हिदा पति 19 चैंतन्य लहरी खंड : XI अंक : 5 & 6, 1999 नवरात्रि पूजा-कबैला (27.9.98 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन इसका वर्णन आप इस प्रकार कर सकते हैं, आपको अपने विषय में जो ज्ञान परिवारों तथा बच्चों के साथ स्थापित हो चुके हों, है वह प्रत्यक्ष है। इसकी अभिव्यक्ति, आपके तथा अन्य लोगों के बारे में भी आपकी अंगुलियों के सिरों पर होती है। आप अपने विषय में जानते हैं तथा अन्य लोगों के विषय में भी। यही महानतम सूक्ष्म ज्ञान आपक आप कल्पना नहीं कर सकते कि एक माँ. जिसके इतने सारे सुन्दर बच्चे हों जो अपने उन्हें इतनी आनन्द की स्थिति में किस प्रकार में देखती है! आप सबको इतने आनन्द ं परमात्मा से एकलीन देखकर अत्यन्त सन्तोष हो रहा है। हमें एक बात महसूस करनी है कि यद्यपि आप लोगों की संख्या काफी है फिर भी विश्व की जनसंख्या के मुकाबले में सत्य को जानने वाले, जिन्हें वास्तजिक सत्य का ज्ञान है, लोग बहुत कम हैं। नि:सन्देह आप ही लोग ज्ञानमय हैं। पास है। कोई अन्य इस प्रकार नहीं जानता। आपके अतिरिक्त कोई भी दूसरा मनुष्य अपने तथा दूसरों के विषय में नहीं जानता। तो यह ज्ञान जो आपको प्राप्त हुआ है अत्यन्त सूक्ष्म अत्यन्त रहस्यमय और पूर्णत: गुप्त है। आप किसी व्यक्ति के विषय में यदि जानते हैं, तो जानते हैं। परन्तु जो ज्ञान सच्चा नहीं है या सत्य से प्रकाशित नहीं है, वह अर्थहीन हैं । बनावटी होने के कारण ऐसा ज्ञान उड़नछू हो जाता है। अपनी कुण्डलिनी जागृति द्वारा आप सबने वह अवस्था प्राप्त कर ली है जिसमें आप जान गए हैं कि वास्तविक ज्ञान क्या है? परन्तु उन लोगों के नहीं। विषय में सोचे जो ये नहीं जानते कि ज्ञान क्या है। अन्य लोगों को ये पता नहीं होता कि आप उनके विषय में जानते हैं। ये ज्ञान, जो आपने प्राप्त किया है प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी ज्ञान और प्रेम का एकोकरण करना अत्यन्त कठिन है क्योंकि ज्ञान के विषय में हमारा विचार उससे बिल्कुल भिन्न है जो हमने पुस्तकों में पढ़ा है। पुस्तकों में पढ़कर आप प्रेम कैसे कर ा उदाहरण के रूप में हम कहते है कि हमारा ज्ञान प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। परन्तु व्यक्ति को भेद समझना चाहिए। आपके सकते हैं? आम व्यक्ति के लिए प्रेम अर्थ-लिप्सा है। अज्ञानता में आप लोगों, बच्चों, का अन्दर का प्रेम रूपी ज्ञान आपकी आत्मा से परिवार और वस्तुओं से लिप्त हो जाते कोई बल देना पड़ता है. न कुछ सोचना पड़ता लिप्सा अज्ञानता का प्रमाण है। ज्ञान यदि आपके है, न कोई विशेष प्रकार के काव्य पढ़ने पड़ते पास है तो सभी लिप्साएं समाप्त हो जानी चाहिए और आप सार्वभौमिक (Global )व्यक्तित्व बन प्रसारित हो रहा है इसके लिए न तो आपको हैं और न ही किसी रोमांचक स्थिति में जाना पड़ता है। बस शुद्ध प्रेम प्रसारित होता है और जाते हैं। यही प्रेम ज्ञान भी है। सागर में एक बूँद। उदाहरण के रूप में हम बहुत सी वस्तुओं 20 चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 5& 6, 1999 अहं हो सकता है। आप सोच सकते हैं कि "मैं बहुत कुछ जानता हूँ. मैं इसके विषय में जानता हूँ, मैं कालीनों की रंग-रंगत आदि के विषय में सब जानता हूँ।" किसी भी तुच्छ चीज़ के विषय में यदि आप जान जाते हैं तो आप समझते हैं, से चिपके हुए हैं जैसे हमारा परिवार। परिवार में यदि कुछ हो जाए तो हम परेशान हो उठते हैं। हम इसे सहन नहीं कर सकते। हमारे बच्चों को यदि कुछ हो जाए तो हमें लगता है मानो हम पर पहाड़ आ गिरा हो। परिवार से आगे जा कर आप अपने मित्रों, पड़ोसियों और अपने देश से भी लिप्त हो जाते हैं । अपने देश से लिप्त होना समझते हैं कि ये ज्ञान प्राप्त करना बहुत बड़ी आप बहुत महान है। मूर्खता के कारण आप भी ज्ञान नहीं है। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के उपलब्धि है । पश्चात् आप स्पष्ट देखने लगते हैें कि आपका देश क्या है, इसमें क्या कमी है, क्या अज्ञानता सभी प्रकार के ज्ञान प्राप्त करके हमने क्या है? किस अन्धकार में यह खड़ा हुआ है और उपलब्धि पाई है। कुछ नहीं। युद्ध हो रहे हैं, किस प्रकार अपने अधिकारों और चीजों के सभी प्रकार का विध्वंस हो रहा है। मैंने इस अब हम समझ पाए हैं कि विश्व भर के जार्ज को दूरदर्शन में देखा। विश्व भर में एक ऐसी हवा फैली हुई है जो व्यक्ति के कार्यों को लिए लड़-झगड़ रहा है? परन्तु आत्मसाक्षात्कार द्वारा प्राप्त ज्ञान से आप स्पष्ट देखते हैं कि आपके देश की समस्या क्या है? तब अपने प्रेम देखें समझे बिना ही उनकी हत्या कर रही के माध्यम से इस कमी का दूर करने का प्रयास करते हैं। अर्थात् इसका अभिप्राय ये हुआ कि है और वह भली - भाति कार्य कर रहा है । तो प्रेम ही आपके ज्ञान की शक्ति है। आपके अन्दर यदि पूर्ण ज्ञान है और फिर है और लोगों को सुधारने के लिए कुछ न कुछ उन्हें नष्ट कर रही है। परन्तु वह (परम चैतन्य) क्या वह समझता नहीं है? या वह सबव समझता भी यदि आप घर में बैठकर आराम से ध्यान-धारणा कर रहे हैं तो यह अर्थहीन है। आपको बाहर करता रहता है। इसका भी हमें पूरा विचार होना चाहिए। कल जब मैं यहां आई तो जोरों से मैं जब आकर बैठी तो जाकर लोगों से. अपने मित्रों से, परिवार के बारिश हो रही थी। अन्य संबंधियों से मिलना होगा और उन्हें अपने बारिश रुक गई और कार्यक्रम के समाप्त होने तक रुकी रही, जब तक मैंने अपना प्रवचन ज्ञान के विषय में बताना होगा। यदि आप ऐसा समाप्त नहीं किया वर्षा नहीं हुई। परन्तु अचानक जब आप लोगों ने तालियाँ बज़ानी शुरु को तो यह बताने की आपकी इच्छा करती है कि मुझे यह भी तालियाँ बजाने लगी। ये सब इस प्रकार आत्मसाक्षात्कार मिल गया है। आपकी इच्छा ये हुआ। अत: प्रकृति भी जानती है कि आप कीन बताने को करती है कि आप आत्मसाक्षात्कारी हैं हैं? परन्तु प्रकृति को जानना आपक लिए भी आवश्यक है। यह महत्वपूर्ण बात है। प्रकृति आपको अहंकारी न मान बैठे। ठीक है, किसी आपके आध्यात्मिक स्तर के अनुसार ही कार्य अन्य तरीके से आप उन्हें बता सकते हैं कि करेगी। आश्चर्य की बात है, मुझे सदैव यही लगा कि आध्यात्मिकता के स्तर नहीं हो सकते। नहीं कर सकते तो आपका ज्ञान प्रेम नहीं है। ज्ञान ऑर प्रेम में इतना गहन सम्बन्ध है। सबको लेकिन आप ऐसा नहीं कर पाते कि कहीं लोग आपके पास ये ज्ञान है। आपका ज्ञान यदि झूठा है तो आपको मैंने सोचा था कि एक वार आत्मसाक्षात्कार यदि 21 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अक : 5 &6, 1999 यह हुआ कि प्रकाश है। प्रकाश आपको प्रत्यक्ष आप पालें तो बस हो गया। परन्तु बाद में मैंने देखा कि यह बात गलत थी वास्तव में ऐसा ज्ञान देता है। चीजों को देख के लिए दृष्टि देता नहीं है। आत्मसाक्षात्कार पाने के पश्चात् भी, हैं। इसी प्रकार आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के पश्चात् मुझे लगा लोगों को उन्नत होने में बहुत सी चैतन्य लहरियाँ प्रकाश ही की तरह से बहने बाधाएं हैं। बहुत से प्रलोभन उन्हें पतन की ओर खंच रहे हैं। अतः व्यक्ति को भिन्न चक्रों और हैं कि अच्छी चीज क्या है बुरी चीज़ क्या है? भिन्न नाड़ियों पर कार्य करना चाहिए। किसी भी तरह से स्वयं को निपुण कर लें क्योंकि केवल आन्तरिक निपुणता ही आपको यह ज्ञान उपयोग करने का अधिकार देगी। लगती हैं और उनके प्रकाश में आप देख सकते परन्तु कई बार आप साधारण मनुष्यां वाले मापदण्ड अपनाते हैं। जैसे आप किसी घर में गए, वाह! बहुत अच्छा घर है, बहुत ही अच्छा। वहाँ पड़ी सभी चीजों को देखकर आप प्रसन्त जैसा मैने आपको बताया था। यह निपुणता हो उठते हैं, परन्तु उस घर की वास्तविकता क्या प्राप्त करने के दो तरीके हैं पहला यह कि आप है? इसकी चैतन्य लहरियाँ अच्छी हैं या बुरी? यह रहने योग्य है भी कि नहीं? जैसे उस दिन प्रतिक्रिया न करें। प्रतिक्रिया करना मानवीय स्वभाव है; पूर्णतया मानवीय परन्तु यदि आपने अतिमानवीय (Super Human) बनना है तो आपको प्रतिक्रिया नहीं करनी हैं। इन्होंने मुझे कहा कि मिलानों में इन्हें एक बहुत अच्छा स्थान निल सकता है, मिलानों में बहुत सस्ते किराए पर। मैंने पूछा, यह इतना सस्ता क्यों मेन उस स्थान की चैतन्य लहरियाँ चाहिए। प्रतिक्रिया न करने से आप उन्नत होंगे, निश्चित रूप से आप उन्नत परन्तु तुरन्त महसूस की। उनसे पूछा कि क्या उन्होंने जाकर वहाँ की चैतन्य लहरियाँ महसूस की हैं? वे वहाँ होंगे यदि आप प्रतिक्रिया करते हैं तो आप उन्नत नहीं हो सकते क्योंकि आप किसी ऐसी गए और पाया कि वह स्थान गर्म लहरियों से चीज़ के दबाव में कार्य कर रहे होते हैं जो आपकी आत्मा नहीं हो सकती है। मान लो में इस कालीन को देख रहो हैं। इसका रंग तथा अन्य गुणों के बारे में मुझे ज्ञान है। इस विषय प्रतिक्रिया कर उठू ती हो गया जल रहा था। तब उन्हें पता लगा कि वहाँ पर कई वर्षों तक एक मठ था। मैंने कहा, यह स्थान आपके रहने के योग्य नहीं है। आपको कोई अत्यन्त शुद्ध स्थान खांजना पड़ेगा किसी गरीब आदमी का घर इस सुखां से परिपुर्ण स्थान से कहीं अच्छा हो सकता है। तो जो भी कुछ आप पर यदि में साम समाप्त! मेरे प्रतिक्रिया करने का अर्थ ये होगा कि मुझमें न्यायविवेक नहीं है और यदि मैं इसके प्रति प्रतिक्रिया नहीं करती तो मैं यह चैतन्य लहरियों का उपयोग करना चाहिए। समझ पाऊगी कि इस कालीन में चैतन्य लहरियाँ हैं या नहीं। बस इतना ही। क्या इसमें से चैतन्य चैतन्य लहरियाँ महसूस करके कुछ लोग मुझे लहरियाँ निकल रही हैं या नहीं। अब ये चैतन्य बताते हैं. लहरियाँ है क्या? यह प्रेम है। संचारशीलता इस कर रहे हैं । उसको समझने के लिए आपको इसमें भी आप भ्रमित हो सकते हैं " श्रीमाताजी मैंने चैतन्य लहरियों पर महसूस किया है कि मुझे इस व्यक्ति से विवाह कर लेना चाहिए।" मैंने पूछा, "क्या तुमने चैतन्य लहरियाँ महसूस की?" "जी, श्रीमाताजी मैने प्रकार है-यदि प्रकाश हो तो आप चीज़ों को देख सकते हैं आपके चीजों को देख पाने का अर्थ 22 चैतन्य लहरी खंड : XI अॅंक : 5 & 6, 1999 и र] काम पातरड श्री गणेश पूजा, ओo एन0 जी0 सी0 आफिसर क्लब, मेहसाना, 1998 न ० म ERO पब्लिक प्रोग्राम, फरवरी 1999, मुम्बई VA भली-भांति चैतन्य-लहरियाँ महसूस की और जब चैतन्य लहरियाँ नहीं आ रहीं होतीं तब भी मुझे इस पुरुष से विवाह कर लेना चाहिए।" में स्वयं को उचित ठहराने के लिए हम कहते जब उस पुरुष को देखती हूँ तो मुझे उसमें भूत कि हमें चैतन्य लहरियाँ आ रही हैं। हम समझते दिखाई पड़ता है। मैंने कहा, है परमात्मा, इस महिला ने किस प्रकार उसकी चैतन्य लहरियाँ परन्तु बाद में पाते हैं कि वास्तविकता ये नहीं है। महसूस की! तो आपके निर्णय में क्या रखा है? तो अब जबकि हम आत्मसाक्षाकारी हो गए हैं इसमें शुद्ध ज्ञान का पूर्ण अभाव है। आप देखें वे किस प्रकार जुड़े हुए हैं। तो चारों तरफ क्या है आपको चैतन्य लहरियाँ, जो कि प्रेम है तथा हैं कि यह बहुत अच्छा हैं, बहुत शानदार है। नावः हमें इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि हमारे और किस चीज़ से हम थिरे हैं? ऐसी कौन सी चीज़ हैं जो हमें यह हुए मानने पर विवश करती है कि यह ठीक है. अच्छा है और हमें इसे पाना है? एक बार जब आप समझने लगते हैं कि चैतन्य लहरियां शुद्ध ज्ञान हैं. इनकी प्रकृति बिल्कुल भिन्न है तो आप ज्ञान पावन ज्ञान, सच्चा ज्ञान प्राप्त करना हागा। आप कह सकते है कि शुद्ध ज्ञान और सच्चा ज्ञान ऊंर्जा की तरह से है, विद्युत की तरह से है और जिस प्रकार आप इसे महसूस करते हैं, इसे समझते हैं, इसका अस्तित्व है। यह प्रेम है। लोग किसी भी व्यक्ति, परिवार, देश आदि से लिप्त प्रेम को भी नहीं समझते। किसी के पीछे वे नहीं होते। आपको पावन चैतन्य लहरियाँ अपने पागल हो जाते हैं और कहते हैं कि, श्रीमाताजी, अन्दर आती हुई महसूस होती हैं। यह बहुत ही मुझे लगता है कि मुझे उस व्यक्ति से प्यार हो भ्रान्तिमय बात है। ये कहते हुए कि मेरी चैतन्य गया है और पाँच दिन बाद आकर वो कहते हैं. लहरियाँ बहुत अच्छी हैं. मुझे ये चैतन्य लहरियाँ श्रीमाताजी मुझे उस व्यक्ति से कुछ नहीं लेना देना। क्यों? क्योंकि आपमे शुद्ध ज्ञान नहीं है। पड़ते हैं तब! आपने चैतन्य लहरियों के माध्यम से उस व्यक्ति पसन्द हैं, जब आप गुन्दगी के सागर में कूद बहुत से लोगों ने मुझसे पूछा" श्रीमाताजी शुद्ध ज्ञान महसूस नहीं किया। अब आप देखें ऐसा क्यों हैं कि हम कभी-कभी गलतियां करते है?" आप गलतियाँ नहीं करते आपकी अज्ञानता सकता है कि सूर्य और धूप की तरह। दोनों में अन्धेरा है और इसी में फँसने के कारण आप क्या भेद है? सूर्य है. जब सूर्य निकलता है तो कठिनाइयों से घिर जाते हैं। अतः हमें समझना में कि यह किस प्रकार सम्बन्धित है, कहा जा चाहिए कि हमारे ज्ञान को भी पूर्णतः शुद्ध होना धृप होती है। तो अन्तर क्या है? या हम कह लैम्प सकते हैं कि चाँद और चाँदनी। अन्तर क्या है? चाहिए। जिस प्रकार हमारे घर में रखा हुआ इन दोनों में कोई अन्तर नहीं है। एक चाँद है यदि गन्दा है तो उससे प्रकाश नहीं हो सकता। और दूसरा प्रकाश। तो ये सारी चीज़ें अत्यन्त भ्रमित करने वाली हैं, यहाँ तक कि हम नहीं विशेषतौर पर हमारा हदय, यदि ये शुद्ध नहीं है, जानते कि हम इनके विषय में कितने भ्रमित हैं? तो आप ठीक मान कर उल्टे सीधे कार्य करने और ये भी नहीं जानते कि चैतन्य लहरियाँ हमें लगते हैं, जिससे स्वयं को तथा अन्य लोगों को किस प्रकार भ्रमित कर सकती है? क्योंकि चैतन्य लहरियाँ आ रही हैं। परन्तु कभी-कभी इसी प्रकार आपका हृदय यदि शुद्ध नहीं है चोट पहुँचाते हैं। मानव-प्रकृति की यह एक आम गलती है कि मनुष्य स्वयं को महान और 23 चैतन्य लहरी ॥ खड : X1 अक : 5 & 6, 1999 जिस प्रकार मैंने आपको बताया शुद्ध ज्ञान दिव्य दर्शाने के लिए गलत चीजों को भी ठीक वह होता है जो शुद्ध प्रकाश प्रदान करता है। जैसा मैंने आपको बताया था. कुछ लोग शुद्ध प्रकाश का अर्थ है शुद्ध चैतन्य लहरियाँ। अब चैतन्य लहरियाँ, जैसा मैंने आपको बताया, साबित करने का प्रयत्न करता हैं। देश का विभाजन करना चाहते हैं। ये विभाजन भरमित करने वाली भी हो सकती हैं या इनकी मात्रा भी कम या अधिक हो सकती है। एक अन्य तरीका है। आप स्वयं देखें कि किसी कार्य विशेष को आप क्यों करना चाहते हैं? मानसिक वे महत्व प्राप्ति के लिए करना चाहते हैं। अपनी महत्ता चाहने वाले कुछ भडकाते हैं और कहते हैं आइए हम स्वतन्त्र हो लोग अन्य लोगों को भी जाएं। स्वतन्त्र हो जाने से ये देश हमारे लिए होगा तब हम स्वयं को या देश के किसी वैभवशाली भाग को विकसित कर लेंगे। सारा पैसा और तौर पर भी आप मानसिक के मापदण्ड सूझ-वूझ उपयोग कर सकते हैं। मैं ये कार्य क्यों करना सभी कुछ तब हमारे लिए होगा। धर्म, बैभव चाहता हूँ। सब लोगों को इसका क्या लाभ आदि के नाम पर वे देश को विभाजित कर होगा? उस नज़रिए से यदि आप सोचना आरम्भ सकते हैं। परन्तु यदि आप देश को विभाजित करें कि दूसरे लोगों को क्या लाभ होगा, इस कर रहे हैं तो वास्तव में आपके सम्मुख एक कार्य से उन्हें क्या मिलेगा. ये कार्य मुझे क्यों बहुत बड़ी समस्या खड़ी है। आपने देखा है कि जहाँ भी लोगों ने विभाजन किया है, वे एक ऐसी अंधेरी खाई में गिरे हैं जिससे निकल पाना सम्भव नहीं है। थोडे से लोग, अहं के कारण, अलग भूमि चाहते हैं, परन्तु उनकी मृत्यु हो कि मैं ये कार्य क्यों कर रहा हूँ? उद्देश्य क्या है| जाती हैं। उनकी मृत्यु नहीं होती. कुछ की तो हत्या कर दी जाती है और पृथ्वी का आधिपत्य मनोवैज्ञानिक कारण आदि भी हो सकता है। पाने का यह विचार खत्म हो जाता है। छोटी चौजों के लिए भी ऐसा ही है। हम सांचते हैं कि मेरे पास यदि यह चीज हो जाए तो हैरान होंगे कि आपकी चैतन्य लहरियाँ आपकी बहुत अच्छा होगा। जिस प्रकार लोग चीज़ों पर अंगुलियों के सिरों पर आपको बताने लगी हैं। कूद कर आते हैं और कहते हैं, ओह श्रीमाताजी "ये हमारा है, ये हमारा है, इसे हम अपने लिए ही उपयोग करेंगे"। खुलमखुल्ला! मुझे चैतन्य लहरियाँ आ रही हैं, ऐसा है, वैंसा वा ये भी नहीं समझते कि यह बात गलत है। है। क्या कारण है कि मैं ये बात बार-बार कह एक कहता है कि ये मेरा देश है मुझे अपने देश रही हूँ? यद्यपि आप मेरा इतना अच्छा परिवार करना चाहिए? तो आप हैरान होंगे, कि अपने कार्य का सच्चा चित्र आपको मिल जाएगा। तो हर समय स्वयं का ऐसी अवस्था में रखें जहाँ आप साक्षी होकर स्वयं को देखें, आप स्वयं देखें कभी-कभी कोई बन्धन भी हो सकते हैं, कोई काी परन्तु यदि आप सावधानी पूर्वक देखना आरम्भ करें कि मैं क्यों ये कार्य कर रहा हूँ तो आप परन्तु कभी-कभी चैतन्य लहरियाँ भी अत्यन्त सतही रूप में आती हैं। व्यक्ति कहता है आहे! दर चाट हैं, इतने आशीर्वादित हैं और हमारे पास इतना के लिए करना चाहिए, दूसरा कहता है, ये मेरा देश है मुझे अपने देश के लिए करना चाहिए। ज्ञान हे? हमें बहुत विवेक शील बनना चाहिए। बिना विवेक के हम ये नहीं समझ सकंगे, कि जब तक "में और मरा" है तो इसका अर्थ ये है कि ज्ञान नहीं है हम क्या कर रहे हैं? 24 चैतन्य लहरी । खंड :XI अक : 5 & 6. 1999 यह विवेक विकसित करने के लिए हमें दिखाई नहीं देता। किसी व्यक्ति की शक्ल क्या करना होगा? हर बार आकर वे मुझसे पूछते देखकर आप नहीं कह सकते कि वह हैं, श्री माताजी विवेक प्राप्ति का क्या उपाय है? बुद्धिमान है। परन्तु चैतन्य लहरियों द्वारा आपके अन्दर विवेक पहले से ही मौजूद हैं। विवेक के दाता श्री गणेश वहाँ पहले से ही विवेकशील है। वह बोले या न बोले यदि विराजमान हैं। परन्तु आपको श्री गणेश को अपनाना होगा। कुछ लोगों को श्री गणेश का एवं अच्छी चीज़ के विषय में बिना किसी इतना नशा हो जाता है कि वे उनकी पहचान ही दूसरे व्यक्ति को चोट पहुँचाए खो देते हैं। वे अत्यन्त दास प्रवृत्ति के हो जाते है और मानते है कि वे अत्यन्त महान, अत्यन्त आप जान सकते हैं कि व्यक्ति अत्यन्त वह बोलेगा तो किसी अत्यन्त गहन, विवेकमय बोलेगा। ऐसा स्वभाव यदि आप विकसित कर लें तो आप हर प्रश्न के प्रति विवेकशील हो जाएंगे। उदाहरण के रूप में कुछ लोग अपने बच्चों से बहुत लिप्त हैं, इतने अधिक कि वे भूल जाते हैं कि वे इस परमेश्वरी शक्ति के अंग-प्रत्यंग भी हैं, और सभी प्रकार के उल्टे-सीधे कार्य किए चले जाते हैं। उस दिन मैं एक महिला से मिली जिसका आध्यात्मिक हैं। ये सब असत्य विचार बेकार हैं । ब्या आपके गणेश आपको विवेक प्रदान करते हैं? अब आप गिने कि आपने कितने विवेकमय कार्य किए हैं? कहाँ आपने विवेकपूर्ण निर्णय लिया ? किसी कार्य को करने का विवेक आपमें था या आप इसे केवल इसलिए करते रहे कि एक विशेष प्रकार के जीवन या एक विशेष बहुत बोमार था। वह उसे अस्पताल ले गई और चिकित्सकों ने सभी प्रकार की दवाइयाँ दी। बेटा परन्तु उसकी हालत और बिगड़ गई। तब उसने अत: विवेक वो चीज़ है जो सर्वप्रथम आपको मुझे टेलीफोन किया. श्री माताजी मैं नहीं जानती क्या हुआ? में चिकित्सक के पास गई और विकसित हो गया है तो आप शान्त हो जाएंगे उसकी दी दवाइयों से बच्चे की स्थिति और खराब हो गई है। "तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया, पहले तुम चिकित्सालय क्यों गई? विवेक का अभाव। मैं जब यहाँ पर हूँ तो तुम मुझसे प्रकार के उत्तर को आपसे आशा की जाती थी? शान्ति प्रदान करती है। आपमें यदि विवेक क्योंकि जो कुछ भी लोग कहें, जो भी कुछ वे करें, जितनी भी आक्रामकता दिखाए, हर हाल में आप शान्त होते हैं और उस व्यक्ति, उस राष्टर की मूर्खता को देखते हैं और समझ जाते हैं कि किसलिए वे एसा कर रहे हैं? यह विवेक मानव क्यों नही पूछते?" यहाँ कबैला में एक ऐसी ही घटना हुई। के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि पशुओं के पास तो इतना विवेक होता ही नहीं जितना हमारे एक बच्चा गिर गया और उसकी बाजू टूट गई। माँ ने बिल्कुल विवेक का प्रदर्शन नहीं किया। वह बच्चे को अस्पताल ले गई जहाँ डॉक्टर ने कहा कि कल इसका आप्रेशन करके हम बनावटी पास है। कभी- कभी नि:सन्देह हमारे अन्दर पशुओं से भी कम विवेक होता है परन्तु अनुभव से हमें सीखना होगा कि हम गलतियाँ करते चले बाजू लगा दंगे। परन्तु पिता समझदार थे, उसने कहा, ठीक है, आज में बच्चे को घर ले जाता हूँ. कल हम यहाँ आ जाएंगे रात को तीन बजे के करीब बच्चे को लेकर वह मेरे पास आया। जा रहे हैं। अब तक बहुत सी गलतियों कर चुके हैं। क्या अब और भी गलतियाँ करते चले जाएंगे या अब हम विवेकशील हो जाएंगे विवेक बाहर 25 चैतन्य लहरी ॥ खंड : X1 अंक : 5 8.6, 1999 मैंने कहा ठीक है. मैं इसे ठीक कर दूँगी अगले बच्चा ठीक हो गया, पूरी तरह से ठीक हो गया। दिन जब वे बच्चे को अस्पताल ले गए तो मुझे इसके विषय में जानकारी होने के बारे में वे हैरान थे। माँ किस प्रकार जानती हैं कि यहाँ कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि इसकी बाजू कोई बच्चा बीमार है? तो मैं कहूँगी यह शुद्ध ज्ान है। मेरा चित हमेशा आप पर होता है। वह मेरे से पूछे बिना, मेरी राय जाने बिना सदैव आप लोगों को प्रचालित करता हुआ। डॉक्टर के पास भागेगा। वे सहजयोगी हैं फिर मैं आपके विषय में सभी कुछ इसलिए जान भी डॉक्टर के पास दौड़ेंगे। डॉक्टर जब कुछ लेती हूँ कि मेरा चित्त सर्वव्यापी है। आपके साथ कोई भी घटना यदि होती है, कोई भी सहजयोग में वहुत से चमत्कार घटित हुए परेशानी जब आपको होती है, कोई भी हैं और उनमें आपको देखना चाहिए कि विवेक परिवर्तन जब आपमें होता है तो मेरा चित्त सहायक होता है। नि:सन्देह मेरा चित्त सदैव वहां पर होता है। तुरन्त मैें जान जाती हैं कि आप लोगों पर होता है परन्तु आपको इसे कहीं कुछ खराबी है और न जाने किस प्रकार मेरा चित्त उस स्थान विशेष पर पहुँच जाता हैं और वहाँ के हालात को सुधार देता है जरूरतमन्द हुई थी मेरी इच्छा हुई कि मैं न्यूयार्क आश्रम को लोगों की यह सहायता करता है। इस चित्त का फोन करूं। प्रायः वहाँ में कभी टेलीफ़ोन नहीं में कुछ नहीं करती परन्तु यह चित्त विवक है। इस डॉक्टर ने कहा, "अब चीर-फाड करने की ठीक है।" फ़र्क देखें। एक व्यक्ति चिंतित है तो करने लगेगा तो वे मैरे पास आएंगे। अधिकार रूप में नहीं मान लेना चाहिए। आपको याचना करनी चाहिए। एक दिन में यूँ ही वैठी करती. टेलीफोन का नम्बर ढूँढकर फोन करके है ऐसा विवेक जो चहुँ ओर फॅलता "क्या बच्चा ठीक है?" वहाँ का विवेक के द्वारा आप जान जाते हैं कि दूसरे व्यक्ति में या संस्था में क्या खराबी है? सहजयोग मैंने पूछा. अगुआ हैरान हो गया क्योंकि एक बच्चा पानी में गिर गया था और काफी देर तक पानी में रहने के कारण उसके शरीर में पानी भर गया था यहाँ के माध्यम से ही आप ये जान सकते हैं। यदि आप जानना चाहें तो आप सभी कुछ जान जाते हैं। जिस प्रकार आप सर्वत्र प्रसारित हो सकते है, उसी प्रकार आप जान सकते हैं । आपको तो यदि सन्देश भेजना है तो टेलीफोन करना पड़ेगा। तक कि उसके मस्तिष्क में भी पानी भर गया था। सदा की तरह एक चिकित्सक ने कहा कि बच्चा बच नहीं सकता और यदि बच भी गया तो वह सामान्य नहीं हो सकता। मैने कहा, चिन्ता मत करो। मैं नहीं जानती थी, किसी ने मुझे बताया भी न था। आप लोग चिन्ता मत करो परन्तु मरे लिए ऐसा करना आवश्यक नहीं है। मैं तो बस जान जाती हूँ। यह शुद्ध अबोध विवेक की देन है पावन विवेक शिशु सम है। यह सर्वत्र है, सन्देश भेजता है और बताता है बच्चा पूरी तरह से ठीक हो जाएगा| वे हैरान हो गए कि मैंने किस प्रकार ऐसा कहा? सरबंप्रथम तो इसलिए हैरान हुए कि मुझे कैसे सब कि मामला क्या है, समस्या क्या है? सहजयोग से बहुत से लोग रोग मुक्त हो गए हैं। यदि वे पूछे, " श्रीमाताजी हम किस प्रकार ठीक हो गए. आपने क्या किया? क्या आपने हमारे चक्रों को पता चला कि बच्चा गिर गया है और इस प्रकार का कोई बच्चा भी है, तथा मैने ये किस प्रकार कहा कि बह पूरी तरह ठीक हो जाएगा! और देखा, क्या आपने पता लगा लिया कि हममें क्या 26 चैतन्य लहरी । खंड : XI अक : 5 & 6. 1999 सब मूर्खतापूर्ण चीजें, जो हमने अपना ली हैं, कभी कभी हमें शुद्ध ज्ञान से दूर कर देती हैं और शुद्ध ज्ञान के बिना हम नहीं जान सकते कि क्या हो रहा है? छोटी-छोटी- चीजों के लिए आप भयभीत हो जाते हैं, परेशान हो जाते हैं। सहजयोगियों को परेशान होते देखकर बहुत हैरानी कमी है?" नहीं मैंने ऐसा नहीं किया. इसे छोड़ दिया, अपने विवेक में। मैं ये सब चीजें परम चैतन्य पर छोड़ देती हूँ। यही रहस्य है। मुख्य बात ये है कि क्या आप अपने विवेक में परम चैतन्य पर सभी कुछ छोड़ सकते हैं? यदि नहीं तो अभी तक आपने अपने अन्दर वास्तविक ज्ञान का अनुभव नहीं किया। कुछ लांगों का यही स्तर है। और मैं विश्वास नहीं कर पाती कि होती है। साधकों में यदि कोई समस्या है और वे यदि सहजयोगी हैं तो वे साक्षी भाव से समस्या आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् सभी को देखेंगे ऐसा यदि आप नहीं कर सकते तो लोग इस शुद्ध ज्ञान से परिपूर्ण हो जाते हैं कि नहीं। कुछ तो हो जाते हैं, परन्तु सभी नहीं, वे नहीं है। लोग कहते हैं कि भगवान शिव का अनुभव से सीखते हैं । लोगो से मिलने जुलने से सीखते हैं। परन्तु शुद्ध विवेक को पा लेना उनके लिए कठिन है क्योंकि वे परम चैतन्य पर पूरी तरह से निर्भर नहीं करते। सभी कुछ होता है केवल परम चैतन्य इसके विषय में जानता है आप सहजयोगी नहीं है। यह अभ्यास की तरह आशीर्वाद पाने के लिए 108 बार उनका नाम जपना आवश्यक है। ये कोई आवश्यक नहीं है। भगवान शिव इसे पसन्द नहीं करते। इस तरह से नाम लिया जाना किसी को अच्छा नहीं लगता। कोई यदि आपके दरवाजे पर आकर हर समय आपक नाम पुकारता रहे तो आप उस भगा देंगे । करता है। यह ऐसी ऊर्जा है जो सभी कुछ तो ये कोई तरीका नहीं है। ये गलत विचार हैं करती है। परम चैतन्य सभी कार्य करता है। कि किसी देवी-देवता का नाम आप निरंतर किस प्रकार यह सब कुछ चलाता है! किस उच्चारण करते रहें और वह आपकी सहायता करे। सर्वप्रथम आपको इतना विवेकशील होना कल मैंने आपको वर्षा के विषय में होगा कि आप समझ सकें कि आप परम चैतन्य बताया। वर्षा आई और चली गई। यह विवेक , वही समझता है, आयोजन करता है और प्रेम प्रकार सभी संयोगों का आयोजन करता है। के अंग प्रत्यंग है। इसी से सभी कार्य हो जाएंगे परम चैतन्य सभी कुछ सुन्दरता पूर्वक करता है। नि:सन्देह कुछ लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। मैं नहीं कहती कि ऐसा नहीं है जानते कि जब फूल यहाँ आते हैं तो इतने परन्तु कठिनाई इतनी कठोर भी नहीं है क्योंकि आपकी एकाकारिता यदि परम चैतन्य से है और आप जानते हैं कि वह कार्य कर रहा है तो आपको कठोरता या रुग्णता महसूस ही नहीं वे कैसे जानते हैं? क्योंकि वे प्राकृतिक हैं और होगी सभी लोग मुझे अपनी समस्याओं के हम बनावटी। बहुत सी बनावटों को हमने जीवन विषय में लिखते हैं। मेरी समझ में नहीं आता का अंग-प्रत्यंग बना लिया है। सभी प्रकार के कि क्या कहूँ। आप केवल इतना बताएं कि क्या आप परम चैतन्य में विश्वास करते हैं? ठीक है, था। अन्तर्जात रूप से यह जानती है कि मैं यहाँ विराजित हूँ, कार्यक्रम चल रहा है, यह रुक जाती है। फूल भी मुझे जानते हैं। आप नहीं छोटे-छोटे होते हैं। मैं उन्हें कुछ भी नहीं करती। परन्तु वे बढ़ने लगते हैं और बढ़कर बहुत बड़े हो जाते हैं। कोई भी कह सकता है कि श्रीमाताजी की शिष्टाचार आदि, दिखावटी विनम्रता को देखें। ये 27 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 5 & 6. 1999 होती और यदि उनके अनुभव आप सुनेगे ता यह जानता है कि क्या करना है, किस चीज का हैरान हो जाएंगे। किस तरह से परम चैतन्य कार्य सृजन करता है और क्या कहना है। यह कविता, संगीत आदि किसी भी चीज का सृजन कर करताी है। बे यदि जीवित न रहना चाहे तो जा भी सकते हैं। परन्तु यदि वे जोवित रहना चाहे तो परम चैतन्य उनकी इस इच्छा को देखता है और वे लम्बे समय तक जीवित रह सकते हैं । सकता है। परन्तु क्या आप सभी कुछ परम चैतन्य पर छोड़ते हैं? विवेकशीलता का यह दूसरा सूत्र है-क्या आपमें सभी कुछ परम चैतन्य पर छोड़ने का विवेक है। इतने अनुभवों परन्तु चिरायु का यह अभिप्राय नहीं है कि आप के बाद भी? जैसे एक महिला अपनी कार से अपने धन के चक्कर में ही लगे रहें कि आप जा रही थी उसने देखा ये कि कार के ब्ेक नहीं किस प्रकार निर्वाह करेंगे, साधन क्या होगा? लग रहे हैं। उसकी समझ में नहीं आया कि क्या सभी बेवकूफी की बातें और चिन्ताएं आपमें आ किया जाए? ब्रेक बिल्कुल समाप्त हो गए थे। कार को कैसे संभाला जाए? ये किस्सा जर्मनी करते रहो चिन्ता। तुमने यदि चिन्ता करनी है तो का है। सभी गांड़ियाँ तेज रफ्तार से दौड़ रही थों करो। जो घटित होना है हो जाएगा कोई चिन्ता और महिला की समझ में नहीं आ रहा था कि की बात नहीं, जो भी कुछ घटित होना है होना क्या करें? उसने अपना सिर स्टीयरिंग व्हील पर है। परन्तु यदि हम परम चैतन्य पर छोड़ दें तो जाती हैं। तब परम चैतन्य कहता है, ठीक है, यह दखलन्दाजी कर सकता है। बार-बार कहते रख दिया और कहा कि मैं सभी कुछ परम चैतन्य पर छोड़ती हूँ"। कहने लगी. "श्रीमाताजी मैं आप पर छांडती हूँ, ठीक हैं, इतना कहने भर मैं नहीं जानती कि परमात्मा का अर्थ क्या है से जानते हो क्या हुआ? कहने लगी. "श्रीमाताजी मैं नहीं जानती कि क्या हुआ जब मैने सिर जीवन्त परमेश्वरी शक्ति जो सभी कार्य कर रही उठाया तो देखा कि कार सड़क के एक किनारे है। तो विवेकशीलता को देखने का दूसरा तरीका पर खड़ी हुई थी परन्तु वहाँ कोई भी व्यक्ति न था। सभी कारें तेजी से गुजर रही थीं परन्तु किसी शक्ति ने उस कार को बड़ी अच्छी तरह से एक ओर कर दिया था। तो परम चैतन्य की कार्यशैली को समझने में ही विवेकशीलता हैं किस प्रकार यह पथ-प्रदर्शन करता है. किस हिल सकता। यह इस प्रकार जुड़ा हुआ है, सर्वत्र प्रकार सहायता करता है, किस प्रकार आपकी विद्यमान है कि लोग समझते ही नहीं कि वे क्या हैं कि परमात्मा पर, परमात्मा पर छोड़ दो। परन्तु परमात्मा ही परमचैतन्य हैं। परमात्मा का अर्थ हैं ये है कि हम समझे कि इस विश्व का जरा-जरा परमात्मा ने, परमेश्वरी शक्ति ने बनाया है और इस सृष्टि का कण-कण पूरी तरह से परम चैतन्य के पथ- प्रदर्शन और उनकी देख-रेख में है। परम-चैतन्य की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं कर रहे हैं और उन्हें क्या करना चाहिए था। रक्षा करता है और किस प्रकार इस पर निर्भर होकर आप प्रसन्नता पूर्वक जीवन गुजार सकते भिन्न स्तरों पर आप घटनाएं होती देख सकते है| हैं! मेरे विचार से सहजयोग में बहुत कम सहजयोगियों की मृत्यु हुई है। उनकी आयु बहुत लम्बी होती है। उनकी असामयिक मृत्यु नहीं मान लो अब अमेरिका में कुछ घटित हो रहा है तो ये जानने का प्रयत्न करें कि अमेरिका ने अन्य देशों के साथ क्या किया। तुरन्त आपको उत्तर मिल जाएगा। परम चैतन्य पर विश्वास 28 चैतन्य लहरी । खंड : X अंक :5 86, 1999 करने वाले उसके हाथों में सभी कुछ समर्पित दूँगी। विवेक मूर्ति श्री गणेश ने सोचा कि मेरी माँ करने वाले व्यक्ति का यह पूरा ध्यान रखता है। से महान कौन है? वो जानते थे कि वे मोर वाहन वाले अपने भाई कार्तिकेय का मुकाबला नहीं कर सकते, तो उन्होंने सोचा कि मेरी माँ सबसे महान है और अपनी माँ की तीन परिक्रमाए हम पुलिस, डॉक्टरों और इंजीनियरों के हाथ में चीजें दे देते हैं। वे गलतियाँ कर सकते हैं और समस्याएं खड़ी कर सकते हैं। परम चैतन्य पर सब छोड़ दें यह इतनी कुशल शक्ति है कि अपने जीवन में मैंने देखा है कि सदैव यह बहुत लिया। कार्तिकंय जब आए तो उन्हें पता लगा करके कार्तिकय के आने से पहले इनाम जीत अच्छा कार्य करती है। पुणे में मैं एक घर बना रही थी। वहाँ पर मुझे एक बहुत बड़ा शिलाखण्ड (Slab) बनाना था जिसके लिए तीन सौ बोरी सीमेंट. की आवश्यकता थी। हमने सीमेंट मंगाया, कार्य करने वाले लोग भी आ गए, परन्तु उन्होंने कहा, कि वे हार गए है। तो बार-बार में यह बता रही हूँ कि विवेक बहुत सहायक है। परन्तु एक आधुनिक व्यक्ति के लिए सभी कुछ परम चैतन्य पर छोड़ पाना बहुत कठिन है। वह दो जमा दो भी नहीं कर सकता। कम्प्यूटर आदि मशीनां ने मनुष्य को इतना दास बना लिया है कि वह हिसाब-किताब के योग्य नहीं रहा। में कम्प्यूटर या कैलकुलेटर चलाना नहीं जानती परन्तु यदि आप मुझसे पूछे कि यह हिसाब कितना होगा तो मैं तुरन्त बिल्कुल ठीक बता दूंगी। जो मैं कहूंगी वही ठोक होगा। किसी व्यक्ति को भ्रमित करने सुबह जल्दी इसे शुरु करेंगे तब अगली सुबह, 24 घण्टां में यह समाप्त होगा। मैने कहा ठीक पाँच बजे शुरू हुआ है। कार्य सुबह और शाम को पाँच बजे मैने कहा, आओ चलें, कार्य समाप्त हो गया है। सबने पूछा. आपको कैसे पता चला? मैंने कहा, मैं जानती हूँ, आओ चलें। तो आप कल्पना करें कि बारह घण्टे में कार्य समाप्त हो के लिए, निश्चित रूप से, मैं कभी-कभी कुछ गलत चीजें कह देती हूँ। परन्तु प्राय: मैं जानती हूँ कि ठीक क्या है? मेरा जानना आम लोगों सा गया था और मजदूर बाहर आ रहे थे। सबने कहा, 'श्रीमाताजी यह तो चमत्कार है। इतना नहीं होता। मैं तो बस जानती हूँ। इसी प्रकार बड़ा शिलाखण्ड इतने कम समय में किस प्रकार बन पाया?' उन्हें समझाने के लिए मैंने कहा कि हो सकता है श्री हुनुमान जी ने यह कार्य किया आप भी बस जान लें। मैं आपको उस सीमा तक ज्ञान विकसित करने के लिए नहीं कह हो। ये सब लोग, सभी देवी-देवता परम चैतन्य रही। परन्तु विवेक तो आपको विकसित करना ही होगा। विवेक का उपयोग जब आप करने लगेंगे तो यह सदैव आपको उपलब्ध होगा। कोई सभी देवी-दंवता, सभी कोई, उनके बच्चे हैं भी कार्य जो आप करते हैं उसमें विवेक के और उनकी इच्छा और आज्ञा से चलते हैं। श्री विषय में सोचें। आप लोगों को मेरी सलाह कि जिस प्रकार आपकी माँ सारा कार्य करती है. के अंग-प्रत्यग हैं। आप लोग माँ की पूजा कर रहे हैं। माँ की पूजा करना सर्वोत्तम है क्योंकि ये गणेश की एक कथा है, जो शायद आप जानते हैं। माँ ने श्री गणेश और श्री कार्तिकेय जी से आप सबको प्रेम करती है और जो लोग कहा, कि आप दोनों में से जो भी पृथ्वी माँ के तीन चक्कर लगा करपहले आएगा उसे मैं इनाम आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं उनकी भी चिन्ता करती है, उसी प्रकार आप भी सहजयोग में अधिक से 29 चैतन्य लहरी खड : XI अंक : 5 & 6, 1999 चाहे आपको ज्ञान प्राप्त है फिर भी आप उस व्यक्ति से पूछे। वह आपको बहुत बड़ा भाषण दे अधिक लोगों को लाने का प्रयत्न करें। आपका आचरण यदि ऐसा हो कि हर समय आप यही कहते रहें कि तुम्हें ये पकड़ है, भूत-बाधा है, डालेगा। तब आप कहें, नहीं ऐसा नहीं है, तुम ऐसे हो, तुम वैसे हो तो ये ठीक नहीं है। मुस्कुराते रहें, बात ऐसी नहीं है। सत्य ये है कि मैने कभी किसी से इस प्रकार व्यवहार नहीं सच्चा ज्ञान आपके अस्तित्व की अंग-प्रत्यंग है T किया। तुम्हें भी इस प्रकार नहीं कहना चाहिए। ये आपके अन्तर्निहित है । ये कोई ठोस पदार्थ यह प्रेम नहीं है, सुझ-बूझ नहीं है। वास्तविकता नहीं जिसे आपने पढ़ लिया या समझ लिया. यह ये है कि आप भी उसी व्यक्ति जैसे थे और तो आपके अन्दर प्रकाश बन गया है वह प्रकाश विद्यमान है। ये बताने के लिए आपका अब आपको ज्ञान प्राप्त हो गया है। अपना ज्ञान आपको दूसरे व्यक्ति को सुधारने के लिए उपयोंग करना चाहिए न कि उसे नीचा दिखाने के लिए पदाधिकारी होना आवश्यक नहीं है इस प्रकार सुधारने का अर्थ जुबानी जमा खर्च करना नहीं है। कंवल अपनी चैतन्य लहरियों के निवास है। बहुत अधिक पढ़ा-लिखा, बुद्धिमान बा उच्च ह आपकी हृदय शुद्ध हो जाएगा। हदय में इसका से ही आप दूसरों को सुधार सकते कल्पना करें कि अन्य सारा ज्ञान मस्तिष्क माध्यम में निवास करता है जबकि शुद्ध ज्ञान हृदय में विराजमान है। अत्यन्त हैरानी की बात हैं कि हैं। मैंने देखा है कि कभी-कभी सहजयोग का सारा कार्य इसलिए रुक जाता है क्योंकि हम बहुत अधिक व्यवस्थित हैं। तरह से लोगों को कहानियाँ सुनाने लगते हैं जिससे वे तंग हो जाते हैं। अत: लोगों को हम ये नहीं जानते कि वास्तव म हमारा हृदय महान गुरुओं की मस्तिष्क को चलाता है। हृद्य के इदं गिर्द सात परिमल (Auras) हैं जो मस्तिष्क को इस प्रकार नियंत्रित करते हैं कि हम परम चैतन्य के हाथों में कार्य करें। जब सहजयोग के विषय में बताते हुए हमें ज्ञान का तक आपका हृदय शुद्ध नहीं है, जब तक आपके हृदय में व्यक्ति की सुन्दर तस्वीर नहीं हैं जो अत्यन्त शुद्ध है, आप कोई भी कार्य मानसिक रूप से नहीं कर सकते, और अपने हृदय से यदि आप कार्य करना चाहते हैं तो आपके हृदय और विवेकशील होना आवश्यक प्रसार करना है। यह महत्वपूर्ण हैं। ज्ञान हमे अपने तक सीमित नहीं रख सकते। परन्तु ऐसा किसी महत्वाकाँक्षा के लिए, नेतृत्व पाने के लिए या किसी भी प्रकार की मान्यता प्राप्त करने के लिए नहीं करना चाहिए। अपने विवेक और ज्ञान का उपयोग हम प्रेमवश अन्य लोगों की सहायता का अत्यन्त शुद्ध है। यह एक ऐसा सत्य है जिसमें व्यक्ति को कूदना पड़ेगा-कि अपने हृदय को विवेकशील बनाना है। उदाहरण के रूप में कसी से बहुत अधिक लिप्त होना, किसी व्यक्ति विशेष से करने के लिए करते हैं, मान्यता या पद प्राप्ति के लिए नहीं। ऐसा हम प्रेम के कारण करते हैं। मुझे विश्वास है कि यह प्रभावशाली ढंग से कार्यान्वित हो जाएगा और जिन व्यक्तियों की सहायता होगी वे आपसे बँध जाएंगे क्योंकि उन्हें एकाकारिता करना दर्शाता है कि आपका हृदय शुद्ध नहीं है। इसमें बहुत से बन्धन हैं, अपने सच्चा ज्ञान मिल जाएगा। मान लो कोई आकर आपसे कहता है कि मैं सच्चा ज्ञान जानता हूँ। हृदय को पूरी तरह से खोल लें, क्योंकि कहा 30 चैतन्य लहरी ॥ खड : XI अक : 5 &6, 1999 जाता है कि देवी का निवास हदय में मध्य हृदय उन्हें प्राप्त करने के लिए हम स्वयं क्या में वे इसलिए विराजमान हैं क्योंकि वे अत्यन्त संतुलित हैं। शक्ति के रूप में वे मध्य हृदय में है? ऐसा कुछ विशेष करने के लिए भी नहीं विराजित है और आपकी सभी इच्छाओं को पूर्ण है, केवल गहन श्रद्धा और गहन सूझ-बूझ करती है। देवी आपके अन्दर स्थापित हो जाती विकसित करनी होगी और ये गहनता पूरी है और जिस प्रकार श्लोकों में कहा गया है वे तरह से संभव है क्योंकि अब आप उत्थान करने वाले हैं, अभी तक हमने क्या किया ज्ञान, स्मृति, निद्रा तथा भ्रान्ति के रूप में आपके अन्दर स्थापित हैं ब ही हमें भ्रम में डालती हैं क्योंकि अभी तक हम पूर्ण नहीं हैं। हमें परिपक्व होना है। जब तक हम परिपक्व नहीं हुए आप सब परम चैतन्य माँ (देवी) स्वयं आपको भ्रम में डालती हैं और चैतन्य पर निर्भर होना अत्यन्त आवश्यक है पथ पर अंग्रसर हैं। आज कबैला में यह अन्तिम पूजा है और एक माँ के नाते मैं आपको बताना चाहती हूँ कि पर निर्भर रहे परम है यह कुछ लोगों में दूसरों को दोष देने की आदत भी आपके इर्द-गिर्द लीला करती हैं ताकि आप विवेक सीख सकें। तो व्यक्ति को समझना है है जैसे मुझे उस व्यक्ति से पकड़ आ गई. फला कि देवी आपके इर्द-गिर्द लीला कर रही हैं व्यक्ति से पकड़ आ गई। आप अपनी ही इसालिए आपको चाहिए कि अत्यन्त सावधान रहें, उनकी माया में न फँसे। उनकी माया में यदि आप फँस गए तो गोल-गोल घूमते रहेंगे. कहीं पहुँच न पाएंगे। पकड़ में हैं, ये सब बेकार के विचार हैं। अपना सामना करें अपने बारे में जाने और स्वयं को पूर्ण बनाएं। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि इस समय विशेष में लोग सोचते हैं कि कुछ महान घटित होने वाला है। मैं नहीं जानती। वर्ष दो हज़ार, उनके अनुसार, कुछ महान होगा, अत: भ्रान्ति रूपी यह शक्ति अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आप इसे भ्रान्ति कह सकते हैं या वह शक्ति जो एक नाटक का सृजन करती है, में नहीं जानती, क्यांकि यह सब मानव रचित हैं। जिसमें आप एक मूर्ख व्यक्ति हैं जिसे खोजा जा रही है। भ्रान्ति की यह सृजन वे मूर्खता निवारण के लिए करती हैं मानव क्योंकि कोई भी बात जैसा बहुत से महान सन्तों ने भविष्यवाणी भी सीधे से नहीं समझता इसलिए इस भ्रान्ति की की है। सम्भवत: आप लोगों की सूझ-बूझ तथा शक्ति की आवश्यकता पड़ती है। भ्रान्ति में विवेकशीलता के कारण. मुझे विश्वास है. इस फँसकर गोल-गोल घूमते हुए वे उस स्थिति तक पहुँचते हैं जहाँ वे समझ जाते हैं कि श्री माताजी चीजें सूझ बूझ तथा आध्यात्मिकता के उपयुक्त की ये लोला ही उन्हें विवेक के इस तट तक ये दो हज़ार वर्ष और तौन हज़ार वर्ष सब मानव की रचना हैं। मैं स्वयं ये महसूस करती हूँ और विश्व में कोई महान घटना घटित होगी और स्तरपर लाई जा सकेंगी। क्योंकि ये अन्तिम निर्णय है और इसमें आपको अत्यन्त महत्वपूर्ण ले आई है । अतः ये देखना महत्वपूर्ण है कि परम चैतन्य ने हमारे लिए इतना कुछ किया है। भूमिका निभानी है। मेरा विश्वास है कि भविष्य श्री माताजी ने इतना कुछ किया है। हमें पूर्णतः के लिए कुछ प्राप्त करने का निर्णय यदि आप उन्नत एवं प्रकाश रजित होने के लिए कर लें तो आप यह कार्य कर सकते हैं । श्रीमाताजी ने जो शक्तियांँ हमें प्रदान की हैं परमात्मा आपको धन्य करें। 31 चैतन्य लहरी ॥ खंड : X1 अंक : 5 &6, 1999 आदिशक्ति पूजा, सेमीनार-1998 19 से 21 जून 1998 को परम पूज्य को सुना और उनके पश्चात् उनकी प्रसिद्ध माताजी श्री निर्मला देवी की कृपा से साक्षात् सरोद-बादक पत्नी को। उनकी पत्नी ने जन्मोत्सव आदिशक्ति के रूप में उनकी पूजा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। डच, बेल्जियम. स्पेनिश सरोद बजाया था यह कार्यक्रम प्रातः तीन बजे तथा स्केण्डिनेविया के सहजयोगिं ने इस पूजा समारोह में दिल्ली में भी श्रीमाताजी के सम्मुख तक चला। श्रीमाताजी ने सभी सहजयोगियों को इस प्रकार के अद्भुत संगीत को समझने की सूझ-बूझ विकसित करने का अनुरोंध किया। का आयोजन किया। हैंगर को कबैला से उठाकर कासल (किला) के समीप नदी तट पर स्थित अल्बेरा नामक रमणीय स्थान पर लाने में उन्हें उन्होंने कहा कि आधुनिक युग में भारतीय लोगों खासी कठिनाई का सामना करना पड़ा। यह ने अपनी संगीत परम्परा में दिलचस्पी खो दी है स्थान गाँव से तीन किलामीटर दूर स्थित है। और केचल सहजयाोग के माध्यम से ही यह बृहस्पतिवार प्रातः तक वहाँ कुछ भी न था। परन्तु शनिवार साँय श्री माताजी की उपस्थिति में सभी सहजयोगियों ने वहाँ कार्यक्रम का आनन्द लिया। दो चमत्कारिक फोटो लिए गए। एक महान् संगीत चलता रह सकती है। तत्पश्चात् मजबान देशों का कार्यक्रम आरम्भ हुआ। यद्यपि उन्होंने सभी एकल प्रदर्शन रद्द कर दिए फिर भी कार्यक्रम प्रातः साढे चार बजे तक चला। अद्वितीय एवं गहन लय के उपयोग के लिए श्री माताजी ने स्पेन के सहजयांगियों की को मंगलमयता प्रदान करते हुए दिखाई दे रहे बहुत प्रशंसा की। बहुत सुन्दर भजन गाए गए तथा बेल्जियम सहजयोगियों द्वारा सुन्दर भरतनाट्यम का प्रदर्शन किया गया। अब सभी महिलाएं नृत्य सीख रही हैं और उन्होंने सहज भजनों के संगीत हैंगर लगाने से पूर्व और दूसरा हैंगर लगाने के पश्चात्। दूसरे फाटो में श्री गणेश जी उस स्थल हैं। नए स्थान पर कारें खड़ी करने के लिए काफी स्थान है और आराम करने तथा खान-पान को लय पर नृत्य तैयार किए है। श्री माताजी ने बताया कि परस्पर मनोरंजन करना भी देवी गुण है। हमारे सोने के समय मुर्गे बाँग दंकर मुर्गियां को जगा रहे थे। के लिए पेड़ों की पर्याप्त छाया है। नदी केवल सौ मीटर है और योगियों ने अपना अधिकतर दूर समय या तो पानी पैर क्रिया करने में या तो स्नान करने में बिताया गाँव से बाहर स्थित होने के कारण यहाँ आइसक्रीम आदि खाने का लालच नहीं होता। पूरा सप्ताहान्त हमने सहजयोगियों थी. इसीलिए काफी गड़बड़ इस स्थान पर क्यांकि यह पहली पूजा के कुछ क्षणां का भी सामना करना पड़ा। सप्ताहान्त में कई बार के साथ बिताया। हैंगर लगाने का कार्य शनिवार रात को कार्यक्रम में उतार-चढ़ाव आए परन्तु अन्तिम बहुत देर से समाप्त हुआ इसीलिए श्री माताजी के साक्षात् में कार्यक्रम लगभग साढ़े ग्यारह वजे क्षण सभी कुछ चमत्कारिक रूप से सहज एवं सुन्दर हो गया था। पूजा का समय सात बजे सांय घोषित आरम्भ हुआ। सर्वप्रथम हमने एक सितार वादक 32 चैतन्य लहरी खंड : X1 अंक : 5 & 6. 1999 किया गया। परन्तु श्रीमाताजी नौ बजे के थोड़ा कारण रात को सफर करने वाले सहजयोगियों सा बाद में आई। अंकल गविडो ने रूस यात्रा की घटनाओं का अर्णन किया। श्रीमाताजी ने उन्हें चले गए। जिन सहजयोगियों को हैंगर में सोने इसके विषय में बताने के लिए कहा था। रूस में एक प्रसिद्ध भौतिक वैज्ञानिक हैं, जो वैज्ञानिक सराबोर वातावरण ने प्रेम पूर्वक सुला दिया। पूजा रूप से यह प्रमाणित कर सकते हैं कि श्रीमाताजी का शान्त वातावरण पूरी रात और अगली सुबह ही चैतन्य लहरियों का सरोत हैं। अन्त में हर एक दम अपना सामान बांधा और शीघ्रता से का सौभाग्य प्राप्त हुआ उन्हें चैतन्य लहरियों से तक हम पर छाया रहा। सुबह उठकर जब हम चीज़ का उद्भव उन्हीं से है। अपने प्रवचन में अपना सामान बांधने लगे, तब भी सुरक्षा की श्रीमाताजी ने इस वैज्ञानिक के विषय में बताया और पहली बार कहा, कि वे एक दूसरी पुस्तक हम विश्वस्त थे. कि विना किसी प्रयत्न के लिख रही हैं, जो शीघ्र ही पूर्ण हो जाएगी। वह भावना हमारे रोम-रोम में बसी हुई थी और हमारे जीवन की छोटी-छोटी आवश्यकताओं की देखभाल की जा रही हैं। देवी की छत्र-छाया में पूजा अत्यन्त सुखद परन्तु सशक्त धी। डच योगियों द्वारा सजाई तथा रंग-रोगन की गई शान्ति एवं आनन्द का अनुभव करते हुए चलते एक विशाल पवन चक्को इस अवसर का स्मरणीय तोहफा था। लगभग एक बजे प्रातः श्रीमाताजी ने प्रस्थान किया। देर रात होने के जाना कितना अद्वितीय है! -लक्ष्मी वार्ड, जर्मनी और नैन्सी कुमार यू.एस.ए, विश्व सहज समाचार दक्षिणी अफ्रीका से समाचार र दक्षिणी अफ्रीका के ग्रहम टान कला में सहायक हाुए! एक बरतानवी सहजयोगी समारोह में सहज कार्यक्रम आशा से कहीं अच्छे कृपा करके दो महिलाओं का वहाँ आनं का खर्च वहन किया. ताकि वे केवल अफ्रीकी भाषाए हुए। बहुत से लोगों ने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया और उपस्थित सहजयोगियों ने बहुत आनन्द बोलने वाले जिज्ञासुओं को सहजयोग के विषय लिया। परन्तु कुछ अनायोजित घटनाओं ने सप्ताह को चमत्कृत कर दिया। जुलाई में दस दिन पूरा पहुँची तथा तीस अन्य सहजयोंगी दक्षिणी अफ्रीकां शहर इस कला समारोह में जुटा रहता है और के दुरान्त प्रदेशों से आए। एक कमरे में हमने विश्व भर से विशेष कर दक्षिणी अफ्रीका से लोग वहाँ आते हैं। दक्षिणो अफ्रीका के स्तर के अनुसार और नृत्य के दो परिचयात्क कार्यक्रम हमने काफी बड़ी संख्या में सहजयोगी इस कार्यक्रम किए। एक दूरदर्शन साक्षात्कार दिया और कई में बता सकें। एक सहजयोगिनी फ्रांस से वहाँ सहज प्रदर्शनी लगाई और आत्मसाक्षात्कार दिया जा रहा था। भजन , जहाँ भजन चल रहे थे 33 चतन्य लहरी X1 अक : 5 & 6. 1999 । खंड़ : लिन्डा विलियम दक्षिणी अफ्रीका। लेख समाचार पत्रों के लिए लिखे। इसी समय श्रीमाताजी का कार्यक्रम लंदन में था और दक्षिणी अरूबा, वैस्टइंडीज समाचार दक्षिणी वैस्ट इन्डीज के छोटे से टापू अफ्रीका के ग्रहम टाउन की नींव भी वहां आए बर्तानवी लोगों ने रखी थी। बाहर से आए सभी सहजयोगी. शहर से तीस किलोमीटर दूर स्थित एक फार्म हाउस पर वादें नामक दम्पति कुछ समय पूर्व अरुबा रहते रुके। इस प्रकार पूरा कार्यक्रम सहज सामूहिकता थे और अपने टापू में सहजयोग प्रचार करने में में परिवर्तित हो गया। हमने वहाँ हवन किया प्रयत्नशील थे गत वर्ष जब श्रीमाताजी तथा काफी नृत्य एवं संगीत हुआ। सोवेटो की लॉस-एन्जल्स में थीं तो उन्होंने श्रीमाताजी के महिलाएं आत्म साक्षात्कार देने में आगे रहीं। जहाँ भी वे गई-चाहे प्रदर्शनी के स्थल अरूबा' से यह समाचार है। निखिल और रानी दक्षिणी अफ्रीका आने का निमन्त्रण इ-मेल द्वारा भेजा। श्रीमाताजी को उनका निमंत्रण दिया गया। तब से रानी और निखिल को उनके कार्यक्रम में पर या कार खराब होने की स्थिति में सडक के किनारे, लोगों ने उनसे आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया और शीतल लहरियों का आनन्द लिया। उनकी गर्मजोशी, समर्पण तथा श्रीमाताजी के कार्यक्रम किया जिसमें 350 से भी अधिक अपार सफलता मिल रही है। इन गर्मियों में उन्होंने एक बहुत बड़ा आदिशक्ति रूप पर पूर्ण श्रद्धा हम सबके लिए लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ कार्यक्रम समाप्त होने के समय तक हाल पूरा भर चुका उदाहरण थी। शहर के पहले कार्यक्रम में, (Xhasa था। समय पर पहुँचना अरूबा के लोगों के लिए प्राप्त हो गया तो उन्होंने अपनी मूल भाषा में हमें बड़ा कठिन कार्य है। चैतन्य लहरियां बहुत तेजी भजन सुनाने का निर्णय लिया। दक्षिणी अफ्रीकन से बह रही थीं और लगभग सभी लोगों राष्ट्रीय-गान गाकर उन्होंने हम सबको आनन्दित चैतन्य महसूस किया। कार्यक्रम में सहायता के किया। दक्षिणी अफ्रीकन राष्ट्र गान में कहा है, लिए आए, कोलम्बिया के सहजयोगियों को इतने अच्छे परिणाम पर बहुत आश्चर्य हुआ। सभी कुछ छोटी से छोटी चीज़ भी स्वत: आरम्भ होती चली गई। दो दिनों के कार्यक्रमों के पश्चात स्थानीय आकाशवाणी में कार्यरत एक महिला आई और उसने आकाशवाणी पर सहजयोग पर एक वार्ता देने के लिए कहा। एक अन्य साधक अनुवर्ती कार्यक्रम के लिए आधे-किराए पर सभागार देने को कहा। जय श्री में) जब नए जिज्ञासुओं को आत्मसाक्षात्कार 'परमात्मा अफ्रीका को आशीर्वादित करें', God bless Africa। इसकी एक पंक्ति में प्रार्थना की गई है कि, "हे आदिशक्ति कृपा करके अफ्रीका IS "I Come Holy Spirit, Please come to Africal समारोह के बहुत से अवसरों पर हमें लगा कि श्रीमाताजी वहां मौजूद हैं और बाएं स्वाधिष्ठान के गुणों-आनन्द, सृजनात्मकता एवं सन्तोष -की अभिव्यक्ति करने वाले नए दक्षिणी अफ्रीका का सृजन करने में हमारी सहायता कर रही है और हमें आशीर्वाद दे रही हैं। श्रीमाताजी ने साप्ताहिक माताजी। रानी एवं निखल वादें अरूबा आपका कोटि-कोटि धन्यवाद। दक्षिणी अफ्रीका के सहजयोगियों की शुभकामनाओं के साथ. ाम 34 चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 5 & 6. 1999 भी शीघ्र ही ये पूरे यूरोप में उपलब्ध हो जाएगा। सृजनात्मक अभिव्यक्तियाँ प्रकाश शिशु (Children of the light ) नया आजकल ये जापान में भी उपलब्ध है। इसके निर्माता कि्वी आधुनिक जाज के अत्यन्त ही होनहार लेखक एवं वादक हैं। सी.डी चिर प्रतीक्षित सी.डी. Audio Tap आडियो 24. Children of the Light or Dancing in the Divine Love, का विमोचन कबैला में डॉक्टर यू.सी. राय की यूरोप यात्रा इंटली, आस्ट्रिया, बंल्जियम और हौलेण्ड का डॉक्टर उमेश चन्द्र राय को अभिवादन। ष्ण पूजा (1998) के अवसर पर हुआ। इस टेप का नामकरण स्वयं हमारी परमेश्वरी माँ ने किया, इसमें बहुत सुन्दर चैतन्य-लहरियाँ हैं। जुलाई 1998 में डॉक्टर यू.सी. राय ने इन देशों का दौरा किया। डॉक्टर राय अन्तर्रा्ट्रीय सहजयोग माना, हमारी परमेश्वरी माँ यहां साक्षात् उपस्थित अन्वेषण केन्द्र, नवी मुम्बई. भारत के निदेशक हैं। इस अन्वेषण केन्द्र की स्थापना वर्ष 1996 इनकी रिकार्डिंग करते हुए हमें ऐसा लगा था होकर इस कार्य को कर रही हों। इस टेप की रचना कनाडा के वैन्कोवर में परम पूज्य माताजी श्री निर्मंलादेवी ने की थी। नामक स्थान पर सहजयोगियों ने किया। इसमें यह अन्वेषण एवं स्वास्थ्य केन्द्र विश्व भर में जागों कुण्डलिनी माँ', 'विश्ववन्दिता' तथा रूसी केवल एक मात्र अस्पताल है जिसमें सहजयोग ध्यान-धारणा से विकसित की गई, चैतन्य लहरियों के माध्यम से रोगों का इलाज होता है। इस यात्रा में उन्होंने न केवल दैवी एवं आधुनिक दवाइयों के बारे में लोगों को अवगत कराया, उनकी सहजता एवं हार्दिक विनम्रता की भी भूरी-भरी भजन 1ssue Hristos तथा विश्व भर के सहजयोगियों द्वारा लिखी गई कविताओं पर आधारित सोलह मिनट का संगीत सम्मिलित है। इसके बारे में अधिक सूचना के लिए या इसे मंगाने के लिए वैन्कोवर के किसी भी सहजयोगी से सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है या कैरीगल प्रशंसा हुई। भारतीय चिकित्सा संसार में प्रोफेसर रॉय ( Carrigal) E- Mail से भी सन्देश भेजा जा का नाम चोटी के लोगों में आता है। दैवी भेषज के क्षेत्र में तो वे अग्रणी हैं। भारतीय शरीर शास्त्री सकता है। तथा भेषज विज्ञान संघ दिल्ली के वे अध्यक्ष थे लेडी हार्डिंग मेंडिकल कॉलेंज दिल्ली विश्वविद्यालय की स्नातकोत्तर अन्वेषण समिति नया सी.डी. 'Point of Balance' (सन्तुलन बिन्दु) अमेरिका के सहजयोगी तथा जाज (Jazz) गिटार वादक स्टीवन किवी (Steven Kirby) के चेयरमैन तथा अन्तर्राष्ट्रीय भेषज विज्ञान अकादमी के अधिसदस्य (fellow)। वे महात्मा गांधी का मूल सी.डी. 'Point of Balance' अब अमेरिका तथा कनाडा की प्रसिद्ध दुकानों जैसे मिशन मैडिकल कॉलेज कलाम्बोली, नवी मुम्बई Tower, H.M.V. और Border पर सुगमता से के सेवामुक्त प्रोफेसर भी हैं। उपलब्ध हैं। इसे आर्डर देकर भी मंगाया जा विश्व स्वास्थ्य संस्थान (W.H.O.) के fellow हाने के कारण वे मस्तिष्क अन्वेषण सकता है। इसका सूची नंबर A.L/73124 है। यद्यपि इसका विमोचन करने में देर हुई. फिर संस्थान 1nstitute of Brain Reasearch Zurich; 35 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 5 &6. 1999 शरीर विज्ञान विभाग ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय: दिल्ली विश्वविद्यालय ने एम.डी. की उपाधि के हॉस्पिटल मैडिकल स्कूल लन्दन; और लिए मान्यता दी और तीसरा शोध प्रबन्ध, जो लीडू स विश्वविद्यालय सेक्स कि मिर्गी रोग के उपचार पर था. को पी.एच.डी. की उपाधि प्रदान की गई। बत्ता निया के कार्डियोवस्कुलर विभाग (Cardiovaseular Department) के अतिथि प्राध्यापक थे इसके अतिरिक्त उन्होंने भारतीय मूल चिकित्सा विज्ञान कार्य के दौरान जो तथ्य एकत्रित किए गए, वे में शोध कार्य के लिए हरिओम् आश्रम अलेम्बिक इतने गहन थे कि मानवीय मनोविज्ञान या मनोरागों पुरस्कार तथा 1997 में सहजयोग अन्वेषण तथा दिव्य चैतन्य लहरियों द्वारा पहले दर्जे के मधुमेह क्रान्ति ला सकते हैं इन शोध-कारियों ने वास्तव रोगियों की कोशिकाओं को पुनर्जीवन प्रदान करने के लिए दिव्य चैतन्य लहरियों का उपयोग और विशेष रूप से पराअनुकम्पी करने के लिए मास्को में बलादिमीर वर्निन्दकी (Parasympathetic) नाड़ी तन्त्र को समझने प्रोफेसर रॉय ने बताया, कि इस शोध तथा चिकित्सा प्रणालियों की हमारी सूझ-बूझ में में चिकित्सा विज्ञान को स्वचालित नाड़ी तन्त्र में बहुत सहायता की है। इनके कुछ अवलोकन पुरस्कार प्राप्त किया। वर्ष 1984 में प्रोफेसर रॉय ने सहजयोग तो मनोरोग विज्ञान अध्ययन के लिए अत्यन्त एर श्रीमाताजी का एक प्रवचन सुना परन्तु हाथों महत्वपूर्ण हैं और पश्चिमी शरीर एवं मस्तिष्क तथा सिर से चैतन्य लहरियों के बहाव से विज्ञान की आधुनिक न्यूटोनियम, कारटेसियन, आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होने के विषय में उन्हें पैराडाइम ( Newtonian, Carterian, विश्वास नहीं आया। अत: उन्होंने परमपूज्य Paradigm) को चुनौती देती हैं। इस न्यूटोनियम ा प्रणाली ने चिकित्सकों को मानव मनस को श्रीमाताजी से सहजयोग पर शोध करने की आज्ञा मांगी, ताकि इसे सत्यापित किया जा सके। एक समझ पाने में बाधा डाली हैं और परिणाम स्वरूप मनोदैहिक होने के कारण बहुत से मानसिक रोगों का आधुनिक चिकित्सा पद्धति इलाज नहीं कर सकती। उच्च रक्तचाप, श्वास रोग, माइग्रेन, उदासीनता, (Depressive psychosis) एक का विषय था. 'सहजयोग द्वारा कुण्डलिनी आकुलता ( Anxity Neurosis), हृदय शूल जागृति का शरीर तन्त्र पर प्रभाव' दूसरा विषय (Angina) अज्ञात कारणिक मिर्गी रोग ( ldiopathic Epilepsy). मधुमें ह रां ग ( Diabetes Mellitus) एव क क रांग नियमित शोध का आयोजन किया गया। लेडी हार्डिग मैडिकल कॉलेज और नई दिल्ली में उनसे जुड़े अस्पतालों के शरीर शास्त्र विभाग में तीन डॉक्टरो ने यह शोध कार्य आरम्भ किया। था, 'सहजयोग का उच्च रक्तचाप तथा दमा रोगियों पर प्रभाव' और तीसरा, ' मिगों रोग मूल (Cancer) इस प्रकार के कुछ आम राग है। इनके लिए व्यक्ति को जोवन-पर्यन्त दवाएं लेनी पड़ती हैं। बहुत संे मनोदैहिक रोगों का इलाज शान्ति कारक दवाइयों (Tranquilizers) से उपचार में सहजयोग की भूमिका' इसके साथ-साथ मिर्गी पर शोध करने के लिए (Defence Institute of Physiology and alive sciences Delhi) दिल्ली के शरीर शास्त्र एवं समवर्ती विज्ञान के सैन्य संस्थान से सहयोग किया गया । पहले दो शोध परियोजनाओं के शोधप्रबन्ध को करने से आदमी न केवल इन पर निर्भर हो किया जाता है, जिनके लम्ब समय तक उपयोग 36 चैतन्य लहरी XI अक : 5 8 6. 1999 खड : बल्कि उसे मानसिक समस्याएं भी हो गु द जाता है तन्त्रिका संचार ( Adernaline सकतीं हैं। प्रोफेसर रॉय को 62 शोध पत्र पढ़ने का श्रेय प्राप्त है और उन्होंने सहज योग के Neurctransmitter)(जैसा कि घटे से प्रत्यक्ष है) रक्त दुग्धाम्ल (Blood Iactic हुए VM.A. Acid) हृदय गति (Heart Rate ), खास गति चिकित्सकीय लाभ पर रूस, इंग्लेण्ड, यूरोप, (Respiratory Rate), रक्त चाप (Blood Pressure) में निश्चित रूप से महत्वपूर्ण कमी थाइलैण्ड एवं मैक्सिको दंशों में भाषण दिए हैं। आती है। रसायनिक चर्म प्रतिरोध (Gavanic उन्होंने बताया कि ऊपर लिखित अधिकतर देशों Skin Resistance) ( G.S. R. ) तथा मस्तिष्क में आधुनिक चिकित्सा विशेषज्ञों का इसके प्रति की अल्फा (उत्तम) गति-विधि (Alfa Activity सकारात्मक रवैया है। वे इस तथ्य को पहचानने of the Brain) में बढ़ोत्तरी हांती हैं। ये सद लगे हैं कि सहजयोग ध्यान-धारणा तथा सूक्ष्म परिणाम इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि सहजयोग गहन शारीरिक एवं मानसिक शान्ति प्रदान करता है तथा अनुकम्पी गतिविधि (Sympathatic Activity ) को घटाता है। दूसरे शब्दां में इसका हुआ कि व्यक्ति दृढ़तर हो जाता है और यू.सी. रॉय से उपचार की इन अद्वितीय विधियों अति व्यस्त जीवन के तनाव एवं दबाव उसके आस्ट्रेलिया, अमेरिका, जापान, हांगकांग, चाइना, चक्रों को शुद्ध करने की तकनीकें, मानसिक तनाव एवं ऊपर लिखित मनोदैहिक रोगों का उपचार करने में अत्यन्त लाभदायक है। इटली के हम सभी सहजयोगियों ने डॉक्टर अर्थ ये की तीव्र इच्छा थी। एक चमत्कार हुआ, एक स्वास्थ्य पर कुप्रभाव नहीं डाल पाते। सहजयोग का दो वर्ष से अधिक समय से अभ्यास करने वाले लोगों से उपरोक्त परिमाण आंकडे इस तथ्य को स्पष्ट करते हैं कि उनके प्रातः जब मैंने समाचार पत्र उठाया तो ये देखकर हैरान हुआ कि डॉक्टर उमेश चन्द्र रॉय 14, 15 जुलाई को मिलान में होंगे 16, 17 वियाना में 20. 21 को ब्रसल्स और 23 को टयूरिन में होगे। मिलान जन चिकित्सा सम्मेलन में, चिकित्सा पद्धति में योग के विषय में बताते हुए प्रोफेसर रॉय ने कहा कि. चिकित्सा पद्धति में योग का दमन मूल्य ( Control Value) उन लोगों से चालीस से पचास प्रतिशत कम है जो सहजयोग का अभ्यास बिल्कुल नहीं करते। ये निम्न दमन मूल्य सहजयोगियों को बेहतर स्थिति प्रदान करते है तथा उनके शरीर पर तनावों के कुप्रभावों से उनकी रक्षा करते हैं तथा सहजयोग का अभ्यास न करने वाले लोगों की तुलना में उन्हें कहीं अधिक स्वस्थ बनाए रखते हैं। पश्चिमी देशों में वैकल्पिक विधियों अपनाने की दिशा में आकस्मिक झुकाव के कारण बताते प्रथम प्रमाण सिन्धु घाटी की सभ्यता से ईसा पूर्व तीसरी सहस्राब्दि में प्राप्त हुआ। आधुनिक युग में सहजयोग अत्यन्त आदर्श है क्योंकि यह मानव स्वास्थ्य के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक पक्षां को छूता है तथा सहजयोग का अनुभव हम अपने मध्य नाड़ी तन्त्र पर कर सकते हैं। हुए डॉक्टर रॉय ने कहा कि, वहाँ के चिकित्सक उच्च रक्तचाप के इलाज के लिए अपनाई जा रही विधियों के विषय में पुन: विचार कर रहे हैं क्योंकि अभी तक इस क्षेत्र में कोई सफलता जब उनसे पुछा गया कि बारह सप्ताह का सहज योग का अभ्यास करने से क्या परिवर्तन आते हैं, तो प्रोफेसर रॉय ने बताया कि 37 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अक : 5& 6, 1999 नहीं मिल सकी है और परिणामतः रोगियों को जीवन-पर्यन्त दवाइयाँ लेनी पडती हैं। अमेरिका व्यक्ति उच्च रक्त चाप से पीड़ित थे. दक्षिणी में 5 करोड़ लोगों का उच्च रक्तचाप से पीड़ित अफ़्रीका के एक व्यक्ति श्वास रोगी थे; एक होने का अनुमान है और इनमें से केवल 3.4 करोड़ लोग इसके विषय में जानते हैं। केवल 2.7 करोड़ लोग इसका इलाज करवाते हैं जिनमें सहजयोग की कार्यशैली के विषय में पूछे जाने से 50% लोगों का रक्तचाप सामान्य हो पाता है। पर प्रोफेसर रॉय ने बताया कि इसका वर्णन कर प्रोफेसर रॉय ने बताया कि लेडी हार्डिंग मैडिकल Psychosis) के रोगी थे। बेल्जियम के एक भारतीय महिला, जो कि अण्डाशय विकृति से पीड़ित थी. उसके बाँझपने का इलाज हुआ । शोध आकड़ों के अनुसार पाना कठिन है परन्तु यह स्राव कण तन्त्रिका प्रसारकों (Secretions कॉलेज नई दिल्ली में उच्च रक्त चाप रोगियों पर शोध करते हुए जो आँकड़े लिए गए उनसे पता चलता है कि तनाव मुक्ति दवाइयों के साथ-साथ सहजयोग का अभ्यास करने वाले रोगी सोलह सप्ताह में सामान्य हो गए। उन्होंने दवाइयां लेनी बन्द कर दी और केवल सहजयोग of Neurotransmitter) को आवश्यकतानुसार घटाता-बढ़ाता है तथा तन्त्रिका प्रतिरोध परिवर्तक (Neuro-Immune Modulators) का कार्य करता है और इस प्रकार असाध्य रोगों को ठीक करने में सहायक होता है। केवल इतना ही नहीं सहज योग द्वारा विकसित की गई चैतन्य लहरियाँ स्वआयोजक, स्वपुनर्जीवन प्रदायक एवं पुनर्योवन प्रदायक हैं और जिन रोगों का उपचार करने में आधुनिक विज्ञान असमर्थ है उन्हें ये ध्यान धारणा से सामान्य रेक्तचाप बनाए रख सके। तनावग्रस्त रोगियों का एक अन्य समूह जो केवल दवाइयों पर निर्भर था, सहज़यांग नहीं चैतन्य-लहरियां ठोक कर देती हैं। करता था सामान्य न हो पाया और उनके रक्तचाप को सामान्य सीमाओं में रखने के लिए उन्हें आवश्यक दवाई लंते रहनी पड़ी। प्रोफेसर राय ने Medical Science परिणामों के आधार पर सुनिश्चित रूप से ये कह पाना संभव है कि नियमित सहजयोग ध्यान-धारणी धरमनीय तनावों ( Arterial Enlightened नामक एक पुस्तक लिखी है जिसमें Hypertension). हृदय शूल (Angina) और हृदय पेशियों (Myo Cardial Coronary) के मनोदैहिक रोगों की रोकथाम तथा इलाज के रोगों का प्रभावशाली उपचार है। एक बार रोगी उन्होंने हृदय रोग, कैंसर और एड्स सहित लिए सहजयोग और चिकित्सा पद्धति का का रक्तचाप जब सामान्य सीमाओं में आ जाता तुलनात्मक वर्णन किया है। हाल ही में अन्तर्राष्ट्रीय सहजयोग अनुसन्धान है तो केवल ध्यान-धारणा से ही इसे सामान्य रखा जा सकता है। प्रोफेसर यू.सी. रॉय ने वर्णन किया कि, "सभी प्रकार के रोगों में, एवं स्वास्थ्य केनद्र (International Sahaja Yoga Research And Health Centre) में रोग मुक्त गम्भीर किस्म के रोगों के इलाज भी, तीन हुए रांगियों का उदाहरण प्रोफेसर रॉय ने दिया। दो अमेरिका के लांग जिनमें से एक विस्तृत अवस्था तक पहुँच चुकी है, आदि शक्ति हृदय (Dilated Cardioma) के रोगी थे और ( Primordial Energy) कितनी जागृत हुई दूसरे गहन उदासीनता (Dipressive है तथा रोगी अपना उपचार करने के लिए : बीमारी किस चीज़ों पर निर्भर करता है 38 चैतन्य लहरी ॥ खंड : X1 अंक : 5 &6. 1999 ट्यूरिन के महत्वपूर्ण अस्पताल La Molinette के मधुमेह विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर Bruna Bruni का भाग लेना विशेष रूप से महत्वपूर्ण था उन्होंने सहजयोग के तरीकों से प्रप्त हुए होता है। सहजयोग के अभ्यास से व्यक्ति के परिणामों की प्रशंसा करते हुए कहा कि भविष्य स्वयं कितना प्रयत्न करता है।" सहजयोग ध्यान-धारणा के लाभकारी प्रभाव केवल शारीरिक ही नहीं होते, ध्यान-धारणा का प्रभाव मानसिक सामाजिक तथा आध्यात्मिक भी स्वास्थ्य में तो सुधार होता ही है, उसका आन्तरिक में उन्हें प्रचलित उपचारों तथा योग साधना द्वारा परिवर्तन भी होता है जो उसे अधिक सहयोगी, रोगियों का इलाज करने में सहयोग की सम्भावनाएं अधिक मिलनसार बनाता है। इससे तनाव से दिखाई देती हैं। सम्मेलन के अन्त में चौदह सम्बन्धित आचरणात्मक दोष भी दूर हो जाते हैं। चिकित्सकों ने सहजयोग तकनीक के ज्ञान की समाचार पत्रों ने प्रोफेसर रॉय के सन्देश में दिलचस्पी दिखाई है। जिन देशों में वे गए इससे ऊर्जा सन्तुलन स्थापित होता है जो स्वस्थ वहां के समाचार पत्रों में भी बहुत से लेख छपे मनोदेहिक अवस्था प्रदान करता है। कुछ हैं और अन्य बहुत से लेख छपने वाले हैं। चिकित्सकों ने तो पृछा कि क्या व अभी इटली और आस्ट्रिया में उन्होंने आकाशवाणी पर साक्षात्कार दिया ( Radio Populare and गहनता प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की क्योंकि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं? और सहजयोगी, जिन्होंने अपने तथा अपने परिवार की छोटी-छोटी समस्याओं के विषय में Danube Radio) मिलान के पत्रकार Tiziana Ricci ने डाक्टर रॉय से आत्मसाक्षात्कार प्राप्त बात करने के लिए प्रोफेसर रॉय को उत्सुकता किया। वियाना के कुछ पत्रकारों, जिन्होंने संयुक्त पूर्वक प्रतीक्षा की थी, वे प्रोफेसर रॉय में एक राष्ट्र में सम्मेलन के समय प्रोफेसर रॉय की डॉक्टर से कहीं अधिक अत्यन्त महान योगी पाकर आश्चर्यचकित थे इस शक्तिशाली व्यक्ति के साथ इतनी शान्ति में सामूहिक रूप से ध्यान करके वे स्वयं को धन्य मान रहे थे। कुछ भाग्यशाली लोग सीधे ही उनसे सलाह ले रहे थे। बेल्जियम में लगभग चालीस सहजयोगियों ने सहायता की थी, ने डॉक्टर रॉय से आत्मसाक्षात्कार लेने की प्रार्थना की तथा उसी स्थआन पर संयुक्त राष्ट्र संघ के कुछ अन्य प्रतिनिधियों को साथ प्रति सोमवार ध्यान-धारणा के लिए एकत्र होने का निर्णय लिया। चिकित्सा शास्त्रियों का सहजयोग में उनसे व्यक्तिगत रूप से भेंट की और उनके दिलचस्पी लेना अत्यन्त दिलचस्प बात थी उनके लिए विशेष रूप से जुलाई की सभाओं के स्तर के प्रति उनकी प्रशंसा प्राप्त की। डॉक्टर का आयोजन किया गया ट्यूरिन चिकित्सा रॉय ने कहा कि ये सामूहिकता, "नि:सन्देह देश सम्मेलन में (Turin Medical Conference) विशाल संख्या में डॉक्टरों की उपस्थिति एक उदाहरण थी। इसका श्रेय स्थानीय सहजयोगियों सहजयोगी के प्रश्नों के उत्तर दिए। को जाता है जिन्होंने वहाँ के अस्पतालों तथा बहुमूल्य मशवरे के अतिरिक्त बेल्जियम सामूहिकता को बचाने में सफल होगी।" ध्यान-धारणा के पश्चात् डॉक्टर रॉय ने कई सामूहिक सभाओं में एक बार फिर प्रोफेसर रॉय की प्रतीक्षा स्वास्थ्य के्द्रों में पोस्टर लगाए। सम्मेलन के यूरोप में की जा रही है ताकि सूक्ष्म चक्रों को अन्त में एक वैज्ञानिक वाद-विवाद हुआ जिसमें ठीक करने की तकनीक उनके अनुभव प्रकाश 39 चैतन्य लहरी खड : X1 अंक : 5 86, 1999 में सोखी जा सके। दूसरी ओर जो लोग बेलापुर दवाओं के प्रभाव को निष्प्रभावित करने के लिए अस्पताल, नवी मुम्बई (जिसे श्रीमाताजी. भारत सृजन किए गए सहज परद पर एक बहुमूल्य चाहिए कि सजीवी (Organic) फल एव सब्जियाँ रत्न मानते हैं) गए हैं, उन्होंने स्वास्थ्य और काफी नहीं है। यदि सम्भव हो तो व्यक्ति को खाए। बहुत लाभ उठाया है प्रोफेसर रॉय के पथ-प्रदर्शन में इस स्वास्थ्य केन्द्र के अल्जाइमर (Alzheimer's ) रोग ये रोग मनुष्य के तान्त्रिक अणुओं (Neurons) शक्ति प्राप्त करके का प्रभावित करता है और इसका अभी तक डॉक्टरों ने सहजयाग तकनीकों का मन, बुद्धि एवं आत्मा की एकाकारिता से पूर्ण चेतना द्वारा उपयोग किया। कोई इलाज नहीं हैं। केंवल चैतन्य लहरियां ही स्थिति को सुधार सकती हैं। मानसिक रोग प्रोफेसर रॉय आपका हार्दिक धन्यवाद, मानसिक रोगों का इलाज नवी मुम्बई के स्वास्थ्य कन्द्र जिसे सहजयोग अस्पताल में होना चाहिए। प्रिय श्री माताजी आपको कोटि शत् प्रणाम।। -Paola Capudi, Italy. ये सुनकर हम आश्चर्यचकित हैं कि लग्जिमवर्ग. प्रोफेसर रॉय से सहजयोगियों द्वारा पूछे ज्युरिक और हालैण्ड में कुछ आयुर्वेद क चिकित्सकों ने पंचकर्म नामक आयुर्वेदिक भेषज से कैन्सर के कुछ रोगियों का इलाज किया है । इन चिकित्सकों का महर्षि नामक एक गुरु है और ये काल्पनिक (Transcendental ) गए कुछ प्रश्न-बेल्जियम, जुलाई 22, 1998 :आलसी जिगर (Cold Liver ) पर क्या प्रश्न ध्यान-धारणा करते हैं। दवाई के रूप में ये अमृत हम अग्नि तत्व का उपयोग कर सकते हैं? नामक बटियों देते हैं। ये अमृत नई दिल्ली की एक कारखाने से आता है। उनका इलाज मूलाधार और स्वाधिष्ठान चक्रों को बुरी तरह से प्रभावित करता है और इन जड़ी-बूटियों को परम पूज्य श्री माताजी के फोटो के सामने रखकर भी चैतन्यित कर पाना असम्भव है। उत्तर बल दते हुए डॉक्टर रॉय ने बताया कि शरीर के दाएं हिस्से पर तथा मध्य नाड़ी तन्त्र (Right Side And Central Channel) 7 अग्नि तत्व का कभी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। अग्नि तत्व का उपयोग केवल शरीर के वाएं हिस्से पर होता है और बाएं हिस्से के शुद्ध इसके विषय में बताते हुए डॉक्टर रॉय ने कहा कैन्सर रोगियों पर सहजयोग के प्रभाव पर हाते ही दाया भाग हल्का हो जाता है। गलग्रन्थि ( Thyroid ) समस्या। दाएं और बाए-विशुद्धि और अगन्य-नाड़ी तन्त्रों किए गए प्रारम्भिक शोध परिणाम अत्यन्त के असन्तुलन के कारण गलग्रन्थि की समस्या उत्पन्न होती है। इन चक्रों तथा नाड़ी तन्त्रों को उत्साहवर्धक हैं। देखा गया है कि सहजयांग के अभ्यास एवं मध्य हृदय चक्र के गतिशील होने पर प्राकृतिक रूप से ऐसी कॉशिकाएं उत्पन्न होती हैं जो हमारे शरीर के अन्दर विद्यमान कैन्सर कोशिकाओं को नष्ट करती हैं। अत: सहजयोग कैन्सर को धटित होने से रोकता है शुद्ध करना इस समस्या के निदान के लिए लाभकारी है। भोजन के विषय में खाने को केवल चैतन्यित कर लेना कीट-नाशक 40 चैतन्य लहरों ॥ खड : XI अक : 5 & 6, 1999 तथा कैन्सर का इलाज भी करता है। किसी भी करके स्वयं को ठीक कर पाना असम्भव हो प्रणाली का व्यक्ति का अन्धाधुन्ध अनुसरण नहीं करना चाहिए। यदि हमें लगे कि मूलाधार और समाधि की उस अवस्था में नहीं हैं। शुद्धीकरण स्वाधिष्ठान चक्रों में रुकावटः आ गई है तो ये सकता है क्यांकि अभी तक आप निर्विचार करने वाले व्यक्ति को चैतन्य लहरिया आना आवश्यक है, रोगी स्वयं इस कार्य को न करे स्पष्ट है कि य प्रणाली आपके लिए उपयुक्त नहीं है। मिलान जुलाई 14, 1998 क्या एक ही व्यक्ति को बाएं और दाए रोगी का रोगमुक्त न होने का मुझ कोई कारण दोनों और की समस्याएं हा सकती हैं? पाएगा। परन्तु यदि चैतन्य लहरियों में रहने वाला व्यक्ति सुबह-शाम उसका इलाज करे तो उस प्रश्न नहीं नजर आता । उत्तर - डॉक्टर रॉय ने कहा कि कोई व्यक्ति वाई ओर की समस्याओं सं पीडित हा तो अचानक उसे दाई ओर की समस्याएं भी हो किस सीमा तक एक तरफ हटा है, परन्तु सकती हैं। प्रातः काल रोगों बाई ओर (आलस्य दुष्टिपटल की समस्या (Retina) प्रश्न हमं दखना पड़ता ह है कि दृष्टि पटल उत्तर सहजयोग द्वारा बहुत से दृष्टिपटल अलगाव के में) होते हैं परन्तु दोपहर वाद वही रोगी दाई रोगियों को लाभ हुआ है जब तक मुझ ठीक सं और को हो जाते हैं। दाई ओर को ठीक करने ये न पता लग जाए कि दृष्टिपटल अलगाव के लिए आपको जल या बर्फ का उपयोाग करना पडता है या ठण्डे पानी में जल पैर क्रिया करनी है, दूष्टि पटल के कौन से भाग में अलगाव है, पड़ती है। आप दोनों ही उपचार कर सकते हैं चक्रों की स्थिति क्या है तथा कौन से चक्र रुकं परन्तु एक ही समय पर नहीं। बाई और की हुए हैं, तब तक कुछ भी कह पाना कठिन है। समस्या अगर अधिक हो तो पहले बाई ओर को ठीक कीजिए और यदि दाई ओर की हो तो पहले उसे ठीक कीजिए। व्यक्ति को देख लेना हल्के से नहीं लेना चाहिए क्योंकि यह काफी चाहिए कि रोग का मूल क्या है?-बाई ओर की गम्भीर बात है और इसके उपचार के लिए समस्या है या दाई और की और उसक अनुसार ( Retinal Detachment) कितना है और कहाँ यह सब जान लेने के पश्चात् ही कहा जा सकता है कि व्यक्ति को कितना लाभ होगा। इसे व्यक्ति को उचित उपाय करना चाहिए आपका चाहिए कि दृष्टिविशेषज्ञ के पास जाएं ताकि रोंग निदान किया जा सके और इसके पश्चात् किसी इसका इलाज होना चाहिए। उदासीनता रोग (Depression), भ्रान्ति (Hallucinations) से पीड़ित लोगों को क्या करना चाहिए, जबकि वे दवाइयाँ भी ले रहे हैं? और इसके पश्चात् इसका इलाज शुरु करें। लम्बे इस तरह के बहुत से रोगी हमारे कनद्र पर आए लगभग सभी रोग मुक्त हो गए उदासीन मनोविकृति को ठीक करने का सहजयोग सर्वोत्तम उपाय है। यहाँ मिलान में यह कार्य कठिन हो सकता है क्योंकि इसके लिए प्रबल प्रकार का जिगर पर बर्फ रखना सामान्य उपचार हैं। यदि इलाज आवश्यक है। आपके लिए चक्रों को शुद्ध आपको इन विधियों से लाभ नहीं हुआ तो प्रश्न न गहन सहजयोगी को दिखाकर उसकी राय लें समय तक इसकी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। उत्तर प्रश्न अस्थमा (Asthma) के दौरों का इलाज। श्वास रोग के दौरे दाएं हृदय की उत्तर समस्या है। दाएं हदय चक्र को साफ करना और 41 चैतन्य लहरी ख : XI अक : 5 & 6, 1999 कंन्द्र पर आए और देखें कि आपको प्रभावित कैंसर सहित अन्य रोगों से व्यक्ति की रक्षा करने वाले अन्य करम-परिवर्तन कौन से हैं? करती है। फिर भी कभी किसी सहजयांगी को और तब आपका उपचार उन पर निर्भर करेगा। कंसर रोगी हो जाने पर कांई आश्चर्य नहीं होना श्वास की समस्या यदि बहुत गम्भीर है तो चाहिए। इसका कारण अत्यन्त साधारण ह डॉक्टर की सलाह के अनुसार कार्य करें। यदि सहजयोगी बहुत करुणा एवं प्रममय लाग हाते हैं यह गम्भीर (Satus Asthamatics) नही है तो सामूहिक चेतना. में होते के कारण यदि वे सहजयोग द्वारा इसे आसानी से ठोक किया जा किसी को असाध्य रांगों से पीड़ित देखते है तो सकता है। लेडी हार्डिग मेडिकल कॉलेज, नई तुरन्त उसकी सहायता की पेशकश करते हैं । दिल्ली के सुचित्रा कृपलानी अस्पताल में अस्थमा सर्वप्रथम वे आत्मसाक्षात्कार देते हैं फिर उपचार राग पर किए गए शाध से यह तथ्य सामने आया है। शुरु करते हैं । ऐसा करते हुए कभी-कभी वे भयंकर वाया स्वाधिष्ठान तथा एकादश रुद्र के भोजन के विषय में पकड़ वाले रागियां को ठीक करने लगते हैं जो प्राफंसर रॉय ने बताया कि रेशेदार अच्छा कैसर रोग का कारण होते हैं। सहजयोगी यदि सहजयोग में गहन नहीं है खाना खाना बहुत आवश्यक है। जो लोग केवल चिकन, हैम साँसेज या अण्डे आदि ही खाते हैं और सब्जियाँ बहुत कम खाते हैं उनमे मलाशय या बड़ी आत के कॅसर की संभावना बहुत होती है। जी लोग बहुत अधिक मटन, तली हुई चीजें और ऐसे रांगो को ठीक करने से पूर्व अपने बचाव के पर्याप्त उपाय नहीं करता ता बह पकड़ जाता है और उसे कैसर हो सकता है। यदि मरी याददाश्त ठीक है तो श्रीमाताजी ने क कहा है कि सामान्य रूप से कैसर और मानस और बहुते से अण्ड खाते हैं उन्हें धमनी जरठता रोग (Schizo Phreania) के रोगया का इलाज (Arterio Soleriosis) जिसके कारण उन लोगों में हदय शृल, उच्च रक्तचाप और हृदयाघात की सहजयागी न करें। अच्छा होंगा कि ऐसे रोगियों संभावना बढ़ जाती है। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी की सहजयोग की परिकल्पना के कन्द्र जाने की सलाह दो जाए। इसका पूरा पता को अन्तर्राष्ट्रीय सहजयोग स्वास्थ्य एवं अनुसंधान अनुसार बाई ओर को झुके (तामसी प्रवृति) रोगों निम्नलिखित है:- को अधिक प्रोटीन तथा दाई ओर को झुके अन्तर्राष्ट्रीय सहजयोग अनुसंधान एवं स्वास्थ्य (राजसी प्रवृति) लोगों का का्बोहाइड्ेट्स अधिक खाने चाहिए। क -1., सैक्टर-8. सी.बी.डी. कन्द्र, प्लाट नम्बर बेलापुर, नवी मुम्बई, भारत-400614 सहजयोगी का बीमार होकर कैसर से मृत्यु हो जाने के विषय में आप क्या कहते हैं? उत्तर सामान्यत: सहजयोगी का स्वास्थ्य बहुत मनौदैहिक रोगों प्रश्न इज़राइल दिव्य चमत्कार इज़राइल की पवित्र भूमि पर आध्यात्मिकता को एक नया आयाम आरम्भ किया गया। परमेश्वरी माँ के मंगलमय चित्त के साए में इजराइल और विश्व के अन्य भागों से आए हुए सहजयोगियों नं महान पैगम्बरों और भगवान ईसा मसीह के से अच्छा रहता है और बहुत तथा [महामारियों को वह दूर रख सकता है। इसकी कारण बहुत साधारण है। सहजयोग करने से शरीर की रक्षा प्रणाली दूढ हो जाती है और 42 चैत्तन्य लहरी खंड : X। अंक : 5 &6 1999 ने हमें दिव्य अवतरण से आशीर्वादित इस भूमि के जिज्ञासओ की आध्यात्मिक पिपासा का शान्त करने में तीन दिन का समय लगाया। के पश्चात् एक व्यक्ति आत्मसाक्षात्कार क बताया कि उसने अपनी रोह में शीतल वायु वेग को सौधे घूमते हुए ऊपर जाता हुआ महसूस किया है । एक अन्य व्यक्ति ने एक सहजयोगी बैकल्पिक जीवन नामक इजराइल का स्या चह उसकी उदासोनता रांग से पुछा कि क सबसे बड़ा मेला इस गतिविधि का स्थान था। ( Depression) ठीक करने में सहायता कर सकता है। आत्मसाक्षात्कार के तुरेन्त पश्चात् तंरह सहजयोगियों के समूह ने आत्मसाक्षात्कार प्रदान करने का कार्य किया। इजराइल के पावन लीग चार लाइना में खड़े अपने अन्दर हुए परिवर्तन से [यह बहुत हैरान हुआ और उस योगी को धन्यवाद करके आपन अन्तर्परिवर्तन को देखने के लिए वह जीव-प्रतिपुष्टि होकर आत्मसाक्षात्कार के लिए शान्ति पूर्वक अपनी बारो की प्रतीक्षा करते रहे। सभी का एक मुक्त हाकर निर्विचारिता प्राप्त करके शान्तिमय हो जाना सम्भव ्थान (Biofeed back stamd) पर गया। परिणा ही प्रश्न था कि क्या तनाव से सामान्य मनुष्य से पाच Positive) श्रा। वहुत से अन्य लागा ने भी विन्दु जमी (Five Ponts है? थोडी ही देर में उन्होंने महसूस किया कि यह कार्य कितना सहज एवं साधारण है आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् स्वयं को तनावमुक्त सहजयोगियों को भी ये लगा कि आत्म साक्षात्कार और शान्त पाया। देना वहुत आसान है, सम्भवत: लोगां की गहन जिज्ञासा और ओी माताजी के उन लोगों पर चित मार्ग पर आत्मसाक्षात्कार दने के और अवसर बाद में देश की एक सुन्दर यात्रा में हमें प्राप्त हुए। गलीली झील (Lake of Galilee) जहा कभी ईसा-मसीह जल पर चल थे दा के कारण ऐसा हो पाया। प्रतिदिन लगभग तीन सी चार सी लोगों ने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया। समय को अभाव के कारण हम केवल दिवसीय संगो्ठी इजराइल यात्रा का महत्वपूर्णतम आत्मसाक्षात्कार दे पाए और अधिक जानकारी विन्दु था। सगोष्ठी के अन्त में हमने हवने किया के लिए लोगों से अनुवर्ती कार्यक्रमों में आने की एवं शुद्ध करने प्रार्थना की। हमारे आर्चर्य की सीमा न रही कि वाला था। जी कि अत्यन्त शक्तिशाली बाद में हमें पता लगा कि संगोष्ठी समाप्त के तुरन्त वाद इजराइली शान्ति समझौते पर नव्बे (90) साधको से भी अधिक तीग अब अनुवर्ती कार्यक्रमों में जा रहे हैं । मेले में हमे बड़े दिलचस्प अनुभव हुए। हस्ताक्षर किए गए। शान्तनु चैटरजी, आस्ट्रिया। 43 चेतन्य लहरो ।खंड : XI अंक : 5 & 6 1999 वर्ष 1999 में होने वाली शेष पूजाओं की सूची तिथि का निर्णय अभी होना है। कवैला। आदिशक्ति-कुण्डलिनी पूजा स्थान बेल्जियम. हालैण्ड स्पेन, स्वीडन डेनमार्क फ़िनलैण्ड नावे । मेजबान देश 30-31 जुलाई और 1 अगस्त| तिथि कबैला। इटली। गुरु पूजा स्थान मेजबान देश तिथि का निर्णय अभी होना है। विराट पूजा कबैला। स्थान उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका। मेजबान देश तिथि का निर्णय अभी हाना है। कबैला। गणेश पूजा एवं विवाह समारोह स्थान आस्ट्रेलिया, सुदूर पूर्वी देश, रूस एव भारत। मेज़बान दंेश तिथि का निर्णय अभी हाना है। कबैला। इंग्लैण्ड, स्विटज़रलैण्ड, पोलैण्ड यूकन। नवरात्रि पूजा स्थान मेजबान देश तिथि का निर्णय अभी होना है । दीवाली पूजा दक्षिणी फ्रांस। स्थान फ्रांस, पुर्तगाल और अफ्रीका। मेज़बान देश 25 दिसम्बर 19991 ईसामसीह पूजा गणपति पुले। अन्तर्राष्ट्रीय। स्थान 44 खंड : XI अंक : 5 &5. 1999 चैतन्य लहरी ---------------------- 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी अंक 5 & 6 मई-जून 1999 खण्ड XI ी ं री कर अपनी सारी जिम्मेदारियां, सारी समस्याएं इस परमेश्वरी शक्ति ( परम चैतन्य) को सौंप दें। यह अत्यन्त शक्तिशाली है, अत्यन्त योग्य है और कुछ भी कर सकती है। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी। (सहस्रार पूजा, 1998 ) 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-1.txt EN 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-2.txt इस अंक में पृष्ठ नं क्रम संख्या सम्पादकीय 3. 1. 76वीं जन्म दिवस पूजा (21.3.99) 2. 76वाँ जन्म दिवस अभिनन्दन समारोह (19.3.99) 3. वदे मातरम् पर श्रीमाताजी का प्रवचन (19.3.99) 16 4. देशभक्ति सहजयोग का वर्णन (19.3.99) 17 5. 18 गुडो-पड़वा पूजा (18.3.99) 6. नवरात्रि-पूजा (27.9.1998) 20 7. आदिशक्ति-पूजा संगोष्ठी (1998) 32 8. विश्व सहज समाचार- 9. दक्षिणी अफ्रीका से समाचार। 33 द लि वेस्टइंडीज से समाचार। 34 सृजनात्मक अभिव्यक्तियाँ। सहजयोग से अस्थमा रोग का इलाज़ । डॉक्टर यू.सी. राय की यूरोप यात्रा। 35 35 35 इजराइल दिव्य चमत्कार। 42 वर्ष 1999 के पूजा कार्यक्रम 44 10. योगी महाजन सम्पादक विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 अभिनव प्रिन्टस, दिल्ली 34, मुद्रक फोन : 7184340 चतन्य लहरी । खड : XI अक : 5 8 6, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-3.txt 2. चेतन्य्य लहरी ।खड : X1 अक :5 &6 1999 5 & 6 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-4.txt सम्पादकीय सहजयोगियों के लिए गणपति पुले वार्षिक अतिरिक्त नियमित रूप से प्रात: काल ध्यान- धारणा तीर्थ यात्रा है। तीर्थ यात्रा की प्रथा सभी धरमों में की गर्म जिगर बाले जिन सहजयोगियों के पास प्राचीन काल से है। परन्तु अब इसने आध्यात्मिक भ्रमण का रूप धारण कर लिया हैं क्योंकि फ्रिज किराए पर लिए। गणपति पुले जाकर पवित्र स्थल या तो धनार्जन का स्थान बन गए हैं जितनी गहनता पूर्वक उन्होंने देवी की पूजा की या इन पर रुढ़िवादी लोगों ने कब्जा कर लिया और सामूहिक रूप से जितने प्रेम का आनन्द है। दूसरे, आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किए बना तीर्थ लिया उससे व अभिभूत हो गए। वहाँ पर उन्हें यात्री स्वयंभुओं की चैतन्य लहरियाँ आत्मसात शुद्धिकरण में अपना बहुमूल्य समाय बर्बाद नहीं नहीं कर सकते। संभवत: शास्त्रों में वर्णित धर्म का कोई कार्य कर पाने का अन्धविश्वास उन्हें और दाएं को शुद्ध करने का बोझ न था। अत: कुछ शक्ति एवं सन्तोष प्रदान करता हो। उदाहरणार्थ कुण्डलिनी आदि-कुण्डलिनी के प्रेम सागर में उत्तरी भारत के लोग अपने बच्चों के मुण्डन पूरी तरह डूब सकती थी। यह बास्तविक तीर्थ संस्कार के लिए देवी चिन्तपूर्णी, मन्सा देवी, नैना देवी. चामुण्डा देवी. ज्वालामुखी, काँगड़ा आशीर्वादों की वर्षा होती है। सबसे अधिक मन्दिर और वैष्णोदेवी की तीर्थ यात्रा करते हैं । देवो सती के अंगे विखण्डन होने के पश्चात् उनके शरीर के भिन्न भागों से ये स्थान आशीर्वादित करते हैं. व्यक्ति के स्थान को दंेखकर नहीं। हुए। सहजयोगी तो इन पावन स्थलों की चैतन्य सामूहिकता को यह आशोष स्वतः ही प्राप्त है। लहरियों का आनन्द लेगा परन्तु एक सर्वसाधारण जिज्ञासु या तोर्थयात्री कं लिए यह मात्र आध्यात्मक भ्रमण ही है। पुरानी कहावत है, 'नौ सौ चूहे चेतना का अनुभव करने का आशीष भी उसे खाकर विल्ली हज को चली। सहजयागियों नं तीर्थं यात्रा के वास्तविक अर्थ को अनुभव किया है| वर्ष I998 में हैं। नासिक के तीन सौ सहजयोगियों ने अपने जीवन की महानतम तीर्थ यात्रा की तैयारी दिसम्बर में गणपति पुले जाकर वे श्री आदिशक्ति की पूजा करेंगे और इस पावनतम अवसर के को परमेश्वरी चेतना क कार्यक्रम का एक अंश लिए उन्होंने स्वयं को शुद्ध करने का निर्णय मानने लगता है। उदाहरण के रूप में 20 फरवरी किया। दस महीनों तक सभी ने प्रतिदिन दो बार पानी-पैर क्रिया की, तीन मोमबत्तियों से स्वयं को साफ किया और सामूहिक ध्यान धारणा की। सामूहिकता गतिशील हुई और नासिक में एक श्री माताजी के टेप सुनने और जन-कार्यक्रमों के विशाल जन कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमें घर में बर्फ उपलब्ध न थी उन्होंने चर्फ के लिए करना पड़ा। उनकी कुण्डलिनी पर उनके बाएं यात्रा थी। वास्तविक तीर्थ यात्रा में अनन्त देवी विवाह नासिक के सहजयोगियों के हुए। श्री माताजी चैतन्य लहरियाँ देखकर विवाह निश्चित वास्तविक तीर्थ यात्रा में व्यक्ति केवल भौतिक आशीर्वाद ही नहीं प्राप्त करता, सामूहिके मिलता है। सामूहिक चेतना से पथ-प्रदर्शन प्राप्त करके व्यक्ति के कार्य सामूहिक हितार्थ हो जाते मनुष्य स्वत: ही नि:स्वार्थ होकर सामूहिक रूप से परिपक्व हो जाता है। सामूहिक चेतना की तीर्थ यात्रा कर लेने के पश्चात् व्यक्ति स्वयं शुरु को। 1999 को मुम्बई में श्रीमाताजी का एक बहुत ही शानदार जन कार्यक्रम हुआ। तुरन्त नासिक की चैतन्य लहरी ॥ खंड : X1 अंक : 5 &6 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-5.txt कर सकते हैं कि वे हमारी कितनी रक्षा कर रही श्रीमाताजी का वीडियो टेप दिखाया। एसा प्रतीत हैं। जहाँ तक सम्भव हो हमें स्वयं को सामूहिक चेतना के क्षेत्र में ही बनाए रखना चाहिए। बहुविध हम सामूहिक रोति-रिवाजों का पालन करते हैं। उदाहरणार्थ एक सहजयोगी पुरी सामूहिकता के लिए सामूहिक घटना होती है। सामूहिकता की ओर से श्रीमाताजी का माल्यापण करता है। इसी प्रकार वे भी किसी अवसर विशेष पर आशीष प्रसारण करने के लिए किसी सकते हैं। विद्युत माध्यमों के जरिए श्री माताजी विशेष माध्यम को चुन लेती हैं. तो अन्य लोगों का संदेश तुरन्त प्रसारित किया जा सकता है की इसका युरा नहीं मानना चाहिए कि वह व्यक्ति उनके साक्षात् के वहुत समीप हैं। सत्ये एवं गहनता अनुभव कर सकते हैं । एक सहजयोगी तो य है, कि जो भी उन्हें हृदय में धारण करता से वे जो कहती हैं, वह पुर्ण सामूहिकता के लिएहै वेउसके समीप है वे यदि अगुआ से प्रसन्न संदेश होता है। बहुत से सहजयोगियों ने अनुभव है तो इसका अर्थ ये हुआ कि वे पूर्ण सामूहिकता से प्रसन्न हैं। गणपति पुले में अपने दैदीप्यमान काई चक्र साफ करती है, तो स्वतः ही पूरी सिंहासन पर बैठे हुए उनकी एक मुस्कुराहट सामूहिकता का वह चक्र शुद्ध हो जाता है। दूसरी वहां बेठे हुए हजारों लोगों के हृदय खाल दरती आर एक व्यक्ति की नकारात्मकता पूरी सामूहिकता है उन्हें जो भी प्रसन्न करता है, उसे हजारो आशीष प्राप्त होते हैं। गणपति पुले की चमत्कारिक शामा को, उनकी कृपा से हम आकाश की 30 मि.मी. के यद पर मुम्बई कार्यक्रम का हुआ मानो साक्षात् श्रीमाताजी वहां उपस्थित हो। य सत्य है कि जब भी श्रीमाताजी कहीं पर जन कार्यक्रम या पूजा करती है, तो यह विश्व सामूहिक चंतना के इस स्रात से एकतार होकर सहजयोगी इसकी चैतन्य लहरियों का आनन्द ले और सभी लाग वही आन्तरिक अनुभूति, आनन्द किया है कि जब श्री माताजी किसी व्यक्ति का में प्रवेश कर जाती है परन्तु सामूहिकता यदि दृढ़ है तो सहसार पर बे नकारात्मकता निकल जाती है। हमारा कार्यक्रम व्यक्ति से सामूहिकता के स्तर तक आ जाता है और हम उनके ( श्रीमाताजी के) शाश्वत अस्तित्व का अंग- प्रत्यग स्वयं का बुलदियों को छू लेत हैं । श्री मार्कण्डेय से लेकर श्री आदिशंकरावार्य तक सभी महान सन्ता ने प्रार्थना की कि"हे मानने लगते है। तब उनका शाश्वत अस्तित्व दवी स्वयं को प्रसन करने का ज्ञान हमें प्रदान हमारी रक्षा करने लगता है। पिछले वर्ष नए ज्सी करें।" श्री माताजी किसी भी चीज़ की आशा आश्रम में एक आश्चर्य चकित कर देन वाली नहीं करती और अत्यन्त सुगमता पूर्वक प्रसन्न घटना घटी। तरणताल में एक सहजयोगी लड़का डुब गया उन लोगों ने बताया कि तभी कबैला से श्री माताजी का फान आया और श्री माताजी सकती हैं। इसके विषय में ईष्ष्या करने का कोई न बन्धन दिया। डॉक्टरों के अनुसार कुछ घण्टे मृत अवस्था में रहने के पश्चात् वह लड़का हैं तो सामूहिक कानों सं सुनी प्रशंसा से हम झूम जीवित हो गया। परन्तु श्री माताजी ने बताया कि उन्होंने तो टेलीफोन किया ही नहीं। उन्हें तो नए जसी आश्रम का टेलीफोन नम्बर ही नहीं मालूम। सभी कार्यों में हमारी परमेश्वरी माँ हमारी आत्मा हम सब जानते हैं, कि श्रीमाताजी कभी टेलीफोन को छू लेती हैं और उनके असीम प्रेम का नहीं करती। ये सब चमत्कार नहीं है ये तो उनके अनन्त आशीर्वाद है। अव हम महसूस हो जाती हैं। अपनी अनन्त उदारता में वे किसी की भी प्रशंसा कर सकती हैं, किसी को भेट दे कारण नहीं। जब हम एक ही शरीर के अंग-प्रत्यंग उठते हैं और फैलाए हुए हाथों से जो वरदान हमें मिलता है, उसका आनन्द लेते हैं। प्रेम के इन आनन्द लंते हुए, हम उनकी जय जयकार कर उठते हैं। चतन्य लहरी ॥ खंड : X1 अक : 5 & b, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-6.txt (PREIS T सहजयोग का वर्णन श्री माताजी द्वारा हमारा सहजयोग भी ऐसा ही है। हम सब इस नृत्य का अन्तिम भाग आप सबने परस्पर प्रेम करते हैं, मात्र प्रेम। इस नृत्य में भी देखा। यह उस समय का दृश्य है जब ऊर्धा श्री कृष्ण के प्रेम में खोई हुई गोपियों से मिलने गए नृत्यांगना ने यही दर्शाया है। अत्यन्त सूक्ष्मता थे। ऊरधा ने गोपियों से कहा कि वे श्री कृष्ण के पूर्वक उसने इस भाव को प्रकट किया है। हमें साक्षात् का विचार छोड़कर योग एवं ज्ञान का मार्ग अपना लें। यह अत्यन्त नीरस मार्ग है, ऐसा मैं सोंचती हूँ। गोपियों ने कहा, "नहीं हम योग भी यहीं जानना है अतिरिक्त कुछ नहीं। हमारे बीच पारस्परिक, पूर्णत: शुद्ध प्रेम। संस्कृत में हम इसे 'निर्वाज्य कहते हैं। प्रेम के बदले में व्यक्ति किसी चीज़ कि सहज योग प्रेम के नहीं करना चाहते। हम तो पहले से ही उनसे एक हैं। हम उनके शरीर में हैं और वे हमारे की आशा नहीं करता, केवल प्रेम करता है और शरीर में हैं। हम तो उनसे पूरी तरह से एक हो यही प्रेम वास्तविक योग है। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। चुके हैं अत: योग की क्या आवश्यकता है?" 76वीं जन्मदिवस पूजा, दिल्ली 21.3.99 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (हिन्दी) आप लोगों का ये प्यार देखकर के मेरा इस प्रकार कि आप ध्यान करें. सुबह-शाम। तो हृदय भर आया है और ये सोचकर कि प्यार कितनी बड़ी शक्ति है. इससे लोग इतने आकर्षित ईष्ष्या करते हैं और क्रोधित होते हैं और छोटी-छोटी होते हैं और आनन्दित होते हैं । ये बड़ी आश्चर्य आपके अन्दर के जो बुरे विचार हैं, जिससे आप बुरा मान जाते हैं, ऐसे सारे विचार खत्म। हो जाएंगे। उसके बाद बच क्या जाता है। निर्मल बात पे की बात है। इस कलियुग में प्यार का महात्मय इतना तो किसी ने नहीं देखा होगा। मैं सोचती हूँ प्रेम। इस प्रेम से आप सारे संसार को एक नया जीवन दे सकते हैं। कि इसको देखकर के आप सभी लोग अपना प्यार बढ़ाना सीखें। वो चीज़ बहुत आसान है। वो परमात्मा आपको आशीर्वादित करें 5n चैतन्य लहरी खंड : XI अक : 5 &6, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-7.txt 76वीं जन्म दिवस पूजा (दिल्ली 21.3.99) परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (अंग्रेजी) प्रकार से अपने प्रेम का प्रदर्शन करना ही हिन्दी प्रवचन में मैंने बताया, एक व्यक्ति के प्रेम की अभिव्यक्ति आप यहाँ बहुत सी सर्वोत्तम है। आँखों में एक उदाहरण दँगी जिसे पहले भी देखकर मेरा हृदय प्रेम से भर गया. महान प्रेम बहुत बार दे चुकी हूँ। एक बार में गरानगिरी महाराज के पास गई वे एक ऊँचे पहाड़ पर में देख सकते हैं। आपक उत्साह को से। तो हम देख सकते हैं कि यह प्रेम कितना ततर महान है! यदि आप सच्चे हृदय से सुबह शाम ध्यान करें तो सभी प्रकार की दुर्भावनाओं, बुराइयों और आत्मघातक तत्वों को भी सहजयोग में पूछने लगे. "श्री माताजी, आखिर आप वहाँ क्यों बड़ी सुगमता से सुधारा जा सकता है और नियंत्रित किया जा सकता है। परन्तु ध्यान करते आपको अपनी घड़ियाँ नहीं देखनी चाहिए, इसीलिए मैं जा रही हूँ।" गागनगिरी ने रहते थे जहाँ कार आदि वाहन न जा सकते थे। अत: मुझे पैदल जाना पड़ा। सभी सहजयोगी जा रही है?" मैंने कहा, "आप चैतन्य लहरियाँ देखें, अच्छी चैतन्य लहरियाँ आ रहो हैं न! से बहुत लोगों को मेरे विषय में बताया था कि आदिशक्ति हुए आनन्द लेना चाहिए, ध्यान का आनन्द लेना चाहिए। यह सोचकर कि आपके आत्मसम्मान मुम्बई में अवतरित हुई हैं, आप लोग मेरे पास को चुनौती दी गई है। छोटी-छोटी चीजों के लिए क्यों आते हैं? उन लोगों ने ये सब हमें बताया। बुरा मानने, चिडचिड़ाने की अपेक्षा ध्यान आपको अन्य लोगों से प्रेम करने उन्हें क्षमा करने की शक्ति देगा। कई बार हम लोगों के विना किसी गई। उसका वर्षा पर नियंत्रण था. वर्षा को वह मने सोचा कि मुझे इस सन्त से मिलना चाहिए और मैं उससे मिलने के लिए उसके स्थान पर दोष के, उनके प्रति आक्रामक हो उठते हैं. बहुत नियंत्रित कर सकता था। जब में वहाँ पहुँची तो एक शिला पर बैठा गुस्से से वह अपना सिर हिला रहा था वर्षा इतने जोर से हो रही थी कि जब मैं उसकी कुटिया पर पहुँची तब तक पूरी आक्रामक। सबसे अच्छा तरीका ये है कि हम दुसरे व्यक्ति की चैतन्य लहरी को देखें। चैतन्य लहरियाँ यदि खराव हैं तो लड़ने का कोई लाभ नहीं। इससे और अधिक भ्रम पैदा हो जाएगा। जिस व्यक्ति की चैतन्य लहरियाँ खराब हैं उससे तरह से नहा चुकी थी। मैं उस गुफा में गई जहाँ वह रहता था और वर्षा पर क्रोध से भरा हुआ। वह अन्दर आया। कहने लगा." माँ आपने मुझे न तो आप झगड़ा कर सकते हैं और न ही उसे नियंत्रित कर सकते हैं। जो व्यक्ति स्वयं को वर्षा रोकने क्यों नहीं दी?" मैने कहा, "मैंन एसा कुछ नहीं किया।" "नहीं आपने एंसा किया बहुत महत्वपूर्ण मानता है उसे शान्त करने की या उससे समझौता करने की या उसके मिथ्या क्योंकि में तो सदैव वर्षा को नियंत्रित करता अभियान को बढ़ावा देने की आपको कोई आवश्यकता नहीं। ऐसा करके आप उसे और अधिक बिगाड़ते हैं। तो अत्यन्त मधुर एवं भिन्न कहा, आज मेरे निरमंत्रण से आप यहां आ रही थीं तो इस वर्षा को मर्यादा में रहना चाहिए था। " मैंने कहा " नहीं, नहीं, उसने कोई अपराध नहीं चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अक : 5 8 6, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-8.txt होगा? पर आज देखें वही दिल्ली कितनी महान, सुन्दर एवं उत्साह पूर्ण हो गई है। अपने झण्डे उठाए हुए मैंने उन्हें देखा। मैं नहीं जानती थो कि झण्डों का इस प्रकार का जुलूस यहाँ होगा, लाए हो। सन्यासी से तो मैं साड़ी ले नहीं यद्यपि एक दो बार ऐसा जुलूस कबैला में किया" "तो ऐसा क्यों हुआ?" वह अत्यन्त क्रोधित था मैंने कहा तुम शान्त हो जाओ, में बताती हूँ कि क्या हुआ। देखां तुम एक सन्यासी हो और तुम मेर लिए एक साड़ी खरीद कर अवश्य निकाला गया। किस तरह से वे एक दिया है। अब मैं पूरी तरह भीग गई हूँ इसलिए दूसरे का आनन्द उठा रहे थे । यह वास्तव में तुम्हारी साड़ी मुझे लेनी ही पड़ेगी। मेरे प्रति प्रशंसनीय है आप यदि प्रेम का आनन्द लेने उसका प्रेम उमड़ पड़ा और उसकी आँखों से लगेंगे तो कोई अन्य चीज आपको अच्छी नहीं अश्रुधारा बह निकली। मेरे चरणों पर वह गिर लगेगी। परन्तु प्रेम अन्य लोगों के लिए होना चाहिए कंचल अपने लिए नहीं। आप देखेंगे कि आपका शरीर, मस्तिष्क और विचार, सभी शक्तियाँ अन्य लोगों के लिए, अपने लिए नहीं, प्रेम का सृजन करने में लगी रहेंगी जिस प्रकार आप अन्धेरे में देख नहीं पाते और थोड़ा सा भी सकती। तो वर्षा ने मेर इस कार्य को आसान कर गया कहने लगा माँ प्रेम की महानता मुझे अब पता लगी हैं। किस प्रकार यह सांसारिक चीजों तथा शुष्क आचरण से हटाकर एक ऐसे स्थान पर ले जाता है जहाँ आप प्रेम की वर्षा का आनन्द लेते हैं। मैं यह एक कहानी आपको सुना रही हूँ परन्तु इसके पीछे छिपा सार ये है कि आप अपने प्रेम, शुद्ध प्रेम की युक्तियों आजमाएं और देखें कि यह किस प्रकार कार्य ही परिवर्तित हो जाता है। प्रकाश से किसी को करती है। शनै: शनै: आप इनको उपयोग करना सीख जाएंगे। ऐसा करना आप छोड़े नहीं। मैं है। आप सब भी अब साक्षात्कारी हैं, प्रेम के जानती हूँ कि कुछ लोग अत्यंत कठिन होते हैं प्रकाश हो जाए तो वह चारों ओर फैल जाता है। इसी प्रकार सहजयोग में व्यक्ति का पूरा दृष्टिकोण को यह नहीं बताना पड़ता कि तुम्हें चहूँ ओर फैलना प्रकाश से प्रकाशमान। प्रेम का वह प्रकाश स्वत: में इस बात से सहमत हूँ। परन्तु कम से कम चहूँ ओर फैलता है स्वत:, सहज। युवा शक्ति को नाचते और आनन्द लेते देखकर तो मैं भाव-विभोर हो गई। यह अत्यन्त महान आशीष आपको अच्छी संगति, बहुत से मित्र और मित्रता है क्योंकि आजकल हमारे युवा बच्चे. युवा पीढ़ी भटक रही है। अन्य देशीं की तरह से तो वे नहीं भटक रहे हैं परन्तु उन्हें बिगाडने और भ्रष्ट उन लोगों पर तो इस प्रेम को आजमाएं जो बहुत कठोर नहीं हैं। आप हैरान होंगे, इस प्रकार प्राप्त हो जाएगी. जैसे हमें सहजयोग में प्राप्त हुई है। पहली बार जब में दिल्ली आई थी तो इस स्थान से मुझे बहुत घबराहट हुई क्योंकि बहुत ही थोड़े सहजयोगी थे। न जाने क्यों वे मेरी पूजा हैं पाश्चात्य व्यक्तित्व बनाने का प्रयत्न जोरों पर है। परन्तु अब मैंने देखा है कि युवा शक्ति के यं सहज बच्चे अपनी जाति-पाति को भूलाकर एक करने चाहते थे। हो सकता है मुम्बई के लोगों ने दूसरे की संगति का आनन्द ले रहे है। यह इस उन्हें कुछ बताया ही। वे कुमकुम तथा पूजा का अन्य सामान छोटी-छोटी प्लास्टिक की बोतलों देश में तथा सभी देशों में घटित होना आवश्यक में ले आए। उनकी अज्ञानता के कारण मैं तो है। अत्यन्त आवश्यक है क हमं एक होकर सिकुड़ गई। मैने सोचा अब क्या करें? क्या एक दूसरे की एकाकारिता का आनन्द लें। एक X1 अंक : 5&6, 1999 चैतन्य लहरी खड : 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-9.txt विशेषताओं में विश्वास नहीं करता। हम सब दूसरें का आनन्द यदि हम नहीं लेते तो हम समुद्र से बाहर पड़ी उस बूँद की तरह से हैं जो किसी भी समय सुख सकती है। परन्तु समुद्र के परस्पर एक हैं और बाह्य भेदभावीं की हमें कोई परवाह नहीं। मैं बहुत अधिक प्रभावित हुई क्यांकि नया वर्ष हमारे लिए बहुत सी चुनौतियाँ लेकर आ रहा है जिन्हें हमें स्वीकार करना होगा। हमें स्वीकार करना होगा कि कलियुग समाप्त हो अंग-प्रत्यंग यदि आप बन जाएं तो उसकी हर लहर का आनन्द आप उठाते हैं। आप उसके अंग-प्रत्यंग हैं क्योंकि अब आपका कोई भिन्न व्यक्तित्व नहीं है। कोई भी चीज़ जा हमें हमारे समाज संस्कृति, आचरण या व्यक्तिगत जीवन लिए आप सबको सभी देशों के सहजयोगियों में भिन्नता-विशिष्टता दे उसे नियन्त्रत कर को सोचना चाहिए। किस प्रकार आप यह कार्य लिया जाना चाहिए। इससे पारिवारिक जीवन से लेकर राष्ट्रीय जीवन और अन्तर्राष्ट्रीय जीवन तक की बहुत सी समस्याओं का समाधान हो दृष्टि डालें, केवल अपने तक ही इसे सीमित न तो भिन्नता प्रदायक ऐसी भावनाएं नियन्त्रित करें, ताकि आप ये न कहते रहें मझे ये चाहिए कर लेनी चाहिए जो हमें अपना घर, अपना मुझे वो चाहिए। हमं समझना चाहिए कि अन्य भा गया है। हमें सत्ययुग स्थापित करना है इसके अपने देश में तथा अन्य देशों में कर अन्य देशों में क्या समस्याएं हैं? बाहर की ओर सकते हैं? जाएगा। राज्य, अपना राष्ट्र प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती हों। शनै: शनै: सभी राष्ट्र एक हो जाएंगे। राष्ट्र और विश्व के लोगों की क्या आवश्यकता मुझे इसका पूर्ण विश्वास है क्योंकि महान समय आ रहा है और अधिकारी वर्ग के बहुत से लोग को लिख लें। ऐसा करना बहतर होगा. यह कार्य सहजयोग को अपना लेंगे। एक बार जब ऐसा हो करेगा। हो सकता है कि इसमें शुद्धिकरण किया जाएगा तो स्थिति बहुत भिन्न हो जाएगी। आज उनमें यह बात नहीं है, वे सहजयोगी नहीं हैं। कि बैठकर लिख ल कि विश्व की क्या हमारे प्रेम के इस महान आन्दोलन का उन्हें लोगों की आवश्यकता क्या है? हमारे समाज, है। अच्छा होगा. कि आप उनकी आवश्यकता जाए परन्तु सहजयोगियों के लिए आवश्यक है आवश्यकता है और क्या किया जाना चाहिए? विल्कुल ज्ञान नहीं है। यही कारण है कि वे सभी कुछ अलग से चाहते हैं। वे नहीं जानते कि उनके आस पास की गर्मी उन्हें झुलस देगी या भयानक बारिश उन्हें बहा कर लें जाएगो या विचार है। आप हैरान होंगे, कि एक दिन हम पृथ्वी माँ उन्हें निगल लेंगी। अत: जितने चाहे भेदभाव हों हमें एक होकर रहना है आखिरकार लोगों का पथ-प्रदर्शन एवं नेतृत्व करेंगे। अत: आप भिन्न परिवारों में जन्मे हैं, सभी एक परिवार में तो जन्म नहीं ले सकते। परन्तु अब आप सहजयोग परिवार के हैं और सहजयोग परिवार एक है। यह भिन्न अस्तित्व या भिन्न आप सबके लिए इस प्रकार के एक रूप जैसा आज यहाँ पर की आकाक्षा है, समाज, करना आपके लिए वास्तव में बहुत अच्छा अपने प्रेम, सम्मान और सेवा से बाकी सभी यह समय बहुत महत्वपूर्ण है. आप सब लोगों को इस दिशा में सोंचना चाहिए। हार्दिक धन्यवाद। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। चैतन्य लहरी खड : XI अक :5 &6 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-10.txt 76वां जन्मदिवस अभिनंदन समारोह परम पूज्य माताजी श्री निर्मलादेवी का प्रवचन (19.3.99 ा कलि एक देवता थे जिन्हें कलियुग तथा कलियुग की सभी समस्याओं को विश्व में लाना था। सर्वप्रथम यह भ्रान्ति की सृष्टि करता है। सभी सत्य साधकों को मेरा नमस्कार। मैेरे जन्मदिवस के अवसर पर इतना कुछ कहा जाना मुझे सकोच में डाल रहा है क्योंकि जो कुछ भी यह भ्रान्ति उत्पन्न करता है। लोग ये जहीं समझ पाते कि सच्चा व्यक्ति कौन है, झूठा कौन है? यही कारण है कि आजकल बहुत से झूठे लोग से हुआ वह पहले से नियत था। इसका समय नीयत था और इसी प्रकार घटित हाना था। अब समय आ गया है कि पूरे विश्व को विश्वव्यापी बहुत से झूठा प्रचार करने वाले। बहुत कठिन समय में मानव सत्य को पाने के लिए लोग बड़ी-बड़ी बातें बनाते हैं परन्तु उनके पास कितना लालायित था क्योंकि सर्वत्र फैले असत्य कुछ भी नहीं है। यह भी एक प्रकार की भ्रान्ति के बीच सत्य को चला पाना बहुत कठिन होता है जिसका सृजन कलियुग करता है। एक बार सत्य की बात जब आप करते हैं तो जिस ऐसा हुआ कि यरस्पर अत्यन्त प्रेम पूर्वक रहने वाले पति-पत्नी नल और दमयन्ति कलि के सूझ-वुझ अपनानी होगी। में हैरान थी कि उस हैं और है। प्रकार लोग आपके पीछे पड जाते हैं उनका मुकाबला करना बहुत कठिन कार्य है क्योंकि सदैव क्रुरता असत्य और आक्रामकता की प्रवृत्ति वाले लोगों से मुकाबला करना आसान नहीं। ये कारण विछुड़ गए थे। कलि इस प्रकार के कार्यों में ही लगा रहता था-लोगों के मस्तिष्क में समस्याएं उत्पन्न करना, परिवारों को अशान्त करना, राष्ट्रों की शान्ति भंग करना और मानव के अन्दर की सारी शुभ इच्छाओं और भावनाओं में विघ्न डालना। एक बार कलि नल के हाथ पड़ में तुम्हारा वध सब आत्म घातक तत्व हैं। इसके अतिरिक्त भी हमारे अन्दर बहुत से आत्मघातक दुर्गुण हैं जैसे मद्यपान, धूम्रपान और नशा सेवन की आदतें। परन्तु लोग ये सब करते हैं। ये नहीं कि उन्हें गया। नल ने कहा क क्यों न इनसे होने वाली हानियों का ज्ञान नहीं है फिर भी समय के प्रभाव के कारण वे ये सब करते के लिए भ्रान्ति और समस्याएं खड़ी करते हो, हैं। यही कलियुग है, इसमें हम स्वयं को नष्ट कर दें। तुम अत्यन्त भयानक व्यक्ति हो। लोगों तुम्हारा वध तो हो ही जाना चाहिए। कलि ने उत्तर दिया कि यदि तुम मेरा वध करना चाहते हो तो कर लो परन्तु इससे पहले मेरे महात्मय को सुन लो। तुम्हारा क्या महात्मय है और क्या करते हैं तथा अन्य लोगों को नष्ट करने का प्रवास करते हैं । ऐसा करने के लिए हमारे मन में एक अजोब किस्म का प्रलोभन है। केवल इतना ही नहीं, इस प्रकार के कार्य करने में हमें महत्व है? वह कहने लगा कि मेरा महात्मय ये आनन्द आता है। जब हम कहते हैं कि कलियुग है कि जब मैं इस पृथ्वी पर आऊंगा. जब मैं इस पृथ्वी पर राज्य करूगा तो, मैं जानता हूँ कि यहाँ भ्रान्ति होगी. अव्यवस्था होगी. इतनी समस्याएं समाप्त हो गया है तो आवश्यक है कि कलियुग के विषय में हमें कुछ ज्ञान तो होना ही चाहिए। चैतन्य लहरी ॥ खंड : X1 अक : 5 & 6, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-11.txt होगी. कि लोग इनसे तंग आकर सत्य की खांज सकते क्योंकि जरा सा भड़काने पर ही व में निकल पड़ंगे। जो लोग सत्य की खोज में क्रोधित होकर दूसरां से मारपीट करने लगते हैं आज पहाड़ों और बादियों में भटक रहे हैं वही या उनसे गाली-गुफ्तार करने लगत है। हर लोग सर्वसाधारण मनुष्यों और गृहस्थां के रूप में सहजयोगी का यह एक अन्य मापदण्ड है कि वह कहाँ तक क्रोध के इस दोष से लंगे। स्वयं कलि ने इस बात की भविष्यवाणी मुक्त हो पाया। क्रोध आने का अभिप्राय ये की थी। तो जैसा आप देख रहे हैं अत्यधिक है कि आपके अन्दर अशान्ति है और दूसरे अव्यवस्था है, अनगिनत समस्याएं हें। लोगों की व्यक्ति पर अनावश्यक आक्रमण करने के तो समझ नहीं पाते कि इतने लिए आप क्रोधित होते हैं। मान रहकर भी आप बहुत प्रभावशाली हो सकते हैं। चीन लागों में यहां होंगे और निश्चित रूप से वे सत्य को पा जब आप देखते हैं पढ़े-लिखें, बुद्धिमान अधिकारी वर्ग के लोगों के भी इतने गलत विचार हो सकते हैं और इतनी लोगों की एक कहानी है। चीन में कुछ रही थी. तो उन्होंने साचा कि इसका समस्या का कारण यही कलियुग है। यहो हमारे निर्णय करने के लिए क्यों न हम अपनी जगह मुर्गें लड़ा लें। तां उन्होंने मुर्गों का दंगल किया। एक व्यक्ति अपना मुग्गा एक जैन सन्त के पास व्यक्ति सोचने लगता है कि वह बहुत असुरक्षित ले गया। वहाँ जाकर उसने पूछा कि इस मुर्गे के साथ में क्या करू जिससे यह दूसरे मुगे को गलत चीज़ों के पीछे भी वे दौड़ सकते हैं। लड़ाई चल जीवन में ऐसी विशद् स्थितियाँ पैदा करता है। सर्वप्रथम यह एंसी स्थिति पैदा करता है कि और उसे स्वयं को सुरक्षित करने के लिए कुछ करना चाहिए। वह ऐसे स्थान पर चला हैं. पछाड़ दे। महात्मा ने कहा कि यह बहुत सरल जाता है जहाँ उसका नाश होना होता है। वह जान है, तुम उसे बिल्कुल शान्त रहने का प्रशिक्षण भी नहीं पाता कि उसका नाश होने वाला है। दो। वह व्यक्ति कहने लगा कि में एसा न कर ने कहा, ठोक है मुर्गा मेरे पास छोड़ दो। महात्मा ने मुर्गे को खाया कि किस प्रकार हर स्थिति में, चाहे कोई आक्रमण कर मनुष्यों में है। ईष्ष्ा की इस भावना को कलियुग बहुत बढ़ा देता है। सभी चीजा के प्रति हम ईष्यालु हो दूसरा दोष भयंकर ईष्ष्या की भावना पाऊगा। महात्मा रहा हो तो भी, शान्त रहना है। जब उस मुर्ग को उठते हैं। इस भावना से हमारी होन भावना (Inferriority Complex) प्रकट होती है। परन्तु अखाड़े में उतारा गया तो बहाँ बहुत से मुरगे उस ईष््या की इस भावना के कारण हम बिना किसी उचित कारण के अन्य लोगों से घृणा करने लगते हैं। चोटी के राजनीतिज्ञ बिना दूसरे व्यक्ति शान्ति से सारी समस्या का समाधान हो गया की उपलब्धियों को समझे उनसे घृणा करने क्योंकि अन्य सभी मुर्गे उससे घबरा कर दौड़ लगते हैं। उसने ये उपलब्धियाँ कैसे प्राप्त कर ली हैं? क्यों न मैं उससे ईष्ष्या करू? इसके कि हिलता भी नहीं! तो आक्रमण और प्रतिक्रिया अतिरिक्त हममें एक अन्य दोष है, जो सबसे बुरा है । जैसा श्री कृष्ण ने कहा यह क्रोध है। क्रोधी प्रवृत्ति के मनुष्य सत्य को नहीं देख दुश्मन है। हम सभी चीजों के प्रति प्रतिक्रिया पर आक्रमण करने लगे। परन्तु साक्षी भाव से वह उनको शान्तिपूर्वक देखता रहा। उसकी इस गए। उन्होंने सोचा कि यह इतना शक्तिशाली है न करने का गुण उसने प्राप्त कर लिया था। वास्तव में प्रतिक्रिया मानव की बहुत बड़ी 10 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 5&6, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-12.txt करते हैं। हमें प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। परन्तु उन्होंने कहा कि आप विज्ञान से कहां उच्च हैं। सहजयोग को उन्होंने सज्ञानात्मक विज्ञान जब हम शान्त हो जाएंगे तब ये शक्ति, जिसके विषय में मैं आपको बता रही हूँ, कहा उन्होंने उसे 'संज्ञानात्मक विज्ञान' का नाम परम चैतन्य की यह शक्ति कार्य करती है । यदि आप प्रतिक्रिया करते हैं तो ठीक है। ये कहती है कि करो प्रतिक्रिया परन्तु यदि दिया। श्रीमाताजी आपका पूरा ज्ञान संज्ञानात्मक विज्ञान है। बात केवल इतनी है कि मैं यदि आपसे कोई चीज़ बताऊ तो आप इसे प्रमाणित कर सकें, वैज्ञानिक इसे सत्यापित कर सकते हैं आप सभी कुछ इस पर छोड़कर मौन और शान्त हो जाते हैं तो यह गतिशील हो उठती है। इतनी भली-भान्ति यह कार्य कर सकती है, आप यहाँ बैठे हों या अन्यत्र, यह कार्य कर सकती है। यह इतनी प्रबल शक्ति है. इतनी प्रभावशाली शक्ति है इसमें महान ज्ञान हर व्यक्ति पता लगा सकती है कि यह ऐसे है या नहीं। परन्तु इन झूठ-मूठ के गुरुओं की यदि आप इसी प्रकार परीक्षा लें तो आप जान जाएंगे कि उनका कांई वैज्ञानिक आधार नहीं है। उनके पास बताने के लिए कोई कारण नहीं है कि ऐसा क्यों घटित हो रहा है। विश्व भर में मुझे वैज्ञानिकों का सामना करना पड़ा और मैं हैरान थी कि उन्होंने मुझे मान्यता दी, कहने लगे, श्री अस्तित्व में होती है, परन्तु कृत युग में जब ये माताजी यह संज्ञानात्मक विज्ञान है और सभी जगह उन्होंने मुझे उपाधियों तथा अन्य सम्मान दिए। मैं तो जानती भी नहीं थी कि संज्ञानात्मक तथा सूझ बूझ है और सर्वोपरि यह आपसे प्रेम करती है। तो जब ये शक्ति अस्तित्व धारण करती है, वैसे तो एक प्रकार से यह सदेव प्रभावशाली होती है, तो आप हैरान होंगे, कि इसके माध्यम से क्या कुछ घटित होता है। हर व्यक्ति मुझे बताता है कि "श्रीमाताजी यह विज्ञान क्या होता है। परन्तु यह वह ज्ञान है जो आप मस्तिष्क से ऊपर उठकर प्राप्त करते हैं चमत्कार हो गया. वह चमत्कार हो गया। में आपका मस्तिष्क हो सकता है कि पूर्वाग्रहों से पूर्ण हो, या इंष्यां और क्रोंध से भरा हुआ हो। जानती हूँ यह चमत्कार नहीं है, यह परम चैतन्य सभी कार्य, सभी सुन्दर चीजें कर रहा है। यही आपकी सहायता करने का और अपने प्रेम को प्रदर्शित करने का प्रयास कर रहा है। जो चीज़ें हम देख नहीं सकते. जिनके विषय में मस्तिष्क उसे चुनौती नहीं दे सकता। यह "पूर्ण ज्ञान' है। से सोच नहीं सकते, जो मस्तिष्क से परे हैं उन्हें मैं आपको एक उदाहरण दूँगी वैज्ञानिकों से मैंने भी ये करता है। मैं हैरान थी कि रूस में मुझे कहा कि पहला चक्र-मूलाधार कार्बन के अणुओं विशेष रूप से वैज्ञानिकों का सामना करना पड़ा। वैज्ञानिक ज्ञान से भरपूर थे, बहुत गहन थे और चीज़ों को बहुत अच्छी तरह से समझते थे विद्या करता है। कार्बन का यदि आप एक मॉडल के इस महान प्रतिष्ठान, प्राचीनतम विश्व विद्यालयों में से एक सेन्ट पीटर्स बर्ग विश्वविद्यालय में, देखेंगे कि इस मॉडल को जब आप दाएं मेरी समझ में नहीं आता, किसलिए मुझे सर्वाच्चतम बाएं को देखेंगे तो यह स्वास्तिक सम प्रतीत उपाधि दी गईं। किसलिए? मैं नहीं जानती, परन्तु मस्तिष्क से ऊपर उठकर जब आप ज्ञान प्राप्त करते हैं तो यह पूर्ण ज्ञान होता है। काई भी से बना है। कार्बन के अणुओं से मूलाधार चक्र आपको एक विशेष प्रकार की संरचना प्रदान बना लें और इसका फोटो ले सकें तो आप से होगा उन्हें दिखाने के लिए मैंने कार्बन का चैतन्य लहरी 11 ॥ खंड : X1 अंक : 5 8 6. 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-13.txt एक मॉडल बनाया । इसे जब आप बाएं से दाएं को देखेंगे तो इस पर ॐ लिखा हुआ दिखाई देगा, इसे को बताते हैं तो वैज्ञानिक इसके पीछे पड़ जाएगा और इसके तथ्य के सत्य को खोज निकालेगा। नीचे से ऊपर को जब आप ऐसा केवल एक उदाहरण नही है, मैं एसे देखेंगे तो क्रूस दिखाई देगा जिसका सेंकड़ों उदाहरण दे सकती हूँ। जब मैंने उन्हें अर्थ ये हुआ कि मूलाधार के श्री गणेश ईसा रूप में अवतरित हुए। अत: वैज्ञानिकों ने एक सत्यापित करने के लिए कहा तो उन्होंने ऐसा मॉडल बनाया उसके फोटो लिए निकाला कि मेरी कही हुई वात सत्य है। ये वैज्ञानिक विधियाँ उन्होंने खोज निकाली। परन्तु मॉडल दिखाया भी जा सकता है। तो जो भी बे जानते ही नहीं कि उन्हें क्या खोजना है । कभी आप जानते हैं, जो भी कुछ आप कहते हैं कुछ बताया और वैज्ञानिक विधियों से उसे और खोज कर दिखाया। सत्यापित करने की बहुत सी इस चीज़ और कभी उसे चीज़ के पीछे दौडे फिर रहे हैं । कभी चाँद पर जा रहे हैं, कभी कहीं और ये कोई तरीका नहीं है। पहले निश्चित कर लें कि आपने क्या खोजना है ओर फिर देखें कि यह है या नहीं। पश्चिम को यद्यपि हम एक प्रकार से उन्नत कहते हैं। परन्तु, मैं हैरान थी आध्यात्मिकता के मामले में ये कहीं भी नहीं है। कुछ बैज्ञानिकों द्वारा बह भी सत्यापित होना चाहिए। मैं विज्ञान को छोड़ नहीं रही, विज्ञान निनैतिक (न नैतिक न अनैतिक) है। जो भी कुछ आप कहें, सहजयोग में आने के पश्चात् वैज्ञानिक परिवर्तित हो जाते हैं। अन्य देशों के वैज्ञानिक, अपने देश का तो मैं नहीं जानती, ऐसी अवस्था तक पहुँच गए हैं कि वे जानना चाहते हैं कि वज्ञान से परे हमारे मुकाबले में उनमें संज्ञानात्मक विज्ञान का क्या है। सभी लोग भारत आते हैं, क्यों? वे जापान क्यों मही जाते? चीन क्यों नहीं जाते? अमेरिका क्यों नहीं जाते? सत्य को खोजने के में रंग गए हैं । हमारे सभी विचार पश्चिमी हैं लिए वे भारत आते हैं। क्योंकि भारत में यह और सारा ज्ञान हम बाहर से लेते हैं, उन लोगों संज्ञानात्मक विज्ञान यहुत प्राचीन है। परन्तु हम से जो भारतीय संस्कृति के विषय में खोज करना इसके विषय में नहीं जानते। स्वतन्त्रता के पश्चात् चाहते हैं। वे इतने तुच्छ हैं और इतने अयोग्य अचानक भारतीय लोग पाश्चात्य रंग में रंग गए कि इसके विषय में वे कुछ नहीं बता सकते। हैं। गाँधो जी के तथा अन्य भारतीय विचारों को इसे रूढ़िवादी विचारों से कुछ नहीं लेना देना, गुण बहुत कम है। परन्तु यह ज्ञान हममें भी ता शून्य हो गया है क्योंकि हम लोग पाश्चात्य रंग ताक पर रख दिया गया है। हम सब जानते हैं ऐसा कुछ भी नहीं है, परन्तु यह वास्तविकता हैं कि हमारे देश में क्या चीज इतनी महान धी. और सत्य हैं, इस सत्य को बे स्वयं नहीं जानते। भारतीय संस्कृति की मुनादी वे करना चाहते हैं में विद्यमान थी हमारे सन्त ऐसी ऐसी चीज़ों को परन्तु उनमें ऐसा कुछ भी नहीं है. क्योंकि जब तक आप आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं और उस अवस्थी तक नहीं पहुँचे गए तब तक परम चैतन्य के रहस्यों को आप नहीं जान सकते इतनी महान संपदा. इतनी महान शक्ति इस देश जानते थे जिनका विज्ञान को कोई ज्ञान नहीं। उन लोगों की कही हुई बातों को सत्यापित करना वैज्ञानिकों का काम है। मैंने देखा है ये अत्यन्त साधारण कार्य है। आप यदि वास्तव में सत्य के अत: सभी भारतीय लोगों के लिए आवश्यक है कि सहजयोग को अपनाएं, पूरे विश्व के लोगों विषय को जानते हैं और इसके विषय में वैज्ञानिकों 12 चैतन्य लहरी खंड : 81 अंक : 5 & 6. 11 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-14.txt के लिए भी आवश्यक है कि सहजयोग को को इतनी तेजी से परिवर्तित कर रहे हैं, कि मैं हैंरान हूँ। टक्की जैसे देश में भी दो हजार अपनाएं। मैंने आपको रूस के विषय में बताया, ये अन्य लोगों को भी सहजयोगी बना रहे हैं। तो पादरियों, मुल्लाओं, पण्डितों आदि द्वारा बनाए गए इन मूर्खतापूर्ण विचारों का पतन हो रहा है; और उभर करके आ रहा है | से पण्डित और शास्त्री आदि वहाँ स्थिति बहुत खराब है। फिर भी, मैं कहुँगी सहजयोगी हैं। कि. वहाँ सहजयोगी बहुत प्रसन्न है। एक बार जब मैं वहाँ थी तो वहाँ क्रान्ति हो गई। सभी लोग बहुत चिन्तित थे. वहुत से टैंक वहाँ से गुजर रहे थे मैंने रूस के सहजयोगियों, जो संख्या में एक लाख से भी ऊपर हैं, से पूछा कि हैं। मैं कहूँगी कि वे कुछ नहीं जानते क्योंकि देश की घटनाओं पर क्या वे चिन्तित नहीं हैं? भारत में भी बहुत जव तक वे परम चैतन्य को महसूस नहीं कर लेते तब तक उनकी बताई हुई बातें निराधार हैं। तो लड़ाई-झगड़े, आक्रामकता, दिखावा आदि द्वारा उत्पन्न समस्याएं सहजयोग से ठीक हो चिन्ता क्यों करें?" स्वभाव परिवर्तित हो जाते हैं सकती है। क्योंकि आपका चित्त मस्तिष्क से उन्होंने उत्तर दिया, श्री माताजी हम बिल्कुल चिन्तित नहीं हैं। मैंने पूछी, "क्यों?" "क्योंकि हम परमात्मा के साम्राज्य में हैं। हम रूस की और व्यक्ति झूठ नहीं बोलता, वास्तव में ऐसा ऊपर जाता है, आप मस्तिष्क से ऊपर जाते हैं. महसूस करता है। इस प्रकार बह इन धर्म, जाति, राष्ट्र आदि के सभी मूर्खतापूर्ण विचारों से मुक्त आज्ञा चक्र खुल जाता है और आप मस्तिष्क से ऊपर जाकर इस परमेश्वरी शक्त से एक हो सकते हैं। एकाकारिता होने के पश्चात् आपकी हो जाता है। यह मानव को मानव से भिन्न कर देता है परन्तु वनावटी रूप से भी आप एक नहीं हा सकते। बहुत से लोग कहते हैं, नहों नहीं, चीज़ों में यह परमेश्वरी शक्ति आपके लिए कार्य हमें ये सब अलग-अलग चीजें नहीं लेनी चाहिए। हमें एक ही चीज़ लेनी चाहिए। आप ऐसा नहीं हैं ये सब बताने की मुझे कोई आवश्यकता नहीं। कर सकते क्योंकि स्वभाव से मनुष्य को ऐसा परन्तु सभी लोगों के पास अनगिनत उदाहरण नहीं बनाया गया है। हमने इटली में दूसरे धर्मों हैं जिनके द्वारा वे जानते हैं कि परम चैतन्य के लोगों से बातचीत की और उन्होंने मुझे ने ही यह कार्य किया है अत: सत्य साधक, बताया हमें एक धर्म नहीं चाहिए, पूरे विश्व के लिए एक ही धर्म हमें नहीं चाहिए।" मैंने समझ में आता है कि किस प्रकार छोटी-छोटी करती है। आप सब सहजयोगी हैं और अनुभवी लाब जो वास्तव में सच्चा है, के लिए आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना सबसे पहला कार्य हैं। चाहे आप बाइबल पढ़े, कुरान पढ़े, या कुछ और पूरे विश्व में यही कहा, "क्यां चाहते हो इसलिए? आप एक ही धर्म क्यों नहीं चाहते। एक मात्र धर्म ये है कि आप मानव है, ?" क्योंकि आप एक दूसरे से लड़ना (आत्मसाक्षात्कार) आध्यात्मिकता का सार है। किसी ने इन शास्त्रों को गहनता से पढ़ा बहुत अच्छे मनुष्य हैं तथा आप परमात्मा से भी नहीं फिर भी वे लज्जाजनक बातें कहते हैं। एकाकारिता प्राप्त कर सकते हैं। यही आपका धर्म है जिसका वचन दिया गया था और इसी को कार्यान्वित होना है। परन्तु वे स्वीकार नहीं हरकतों ने हमें यह दर्शाने में सहायता की है कि करते। अब हम परिवर्तित हो रहे हैं। वे भी स्वयं सभी धर्मों का सार एक ही है और एक दिन ये सब इन ग्रन्थों में लिखा हुआ नहीं है। फिर भी लोग इनके लिए लड़ रहे हैं। उनकी इन 13 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 5 & 6, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-15.txt सभी लोग आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करेंगे। एक बार जब वे आत्मसाक्षात्कार को अपना लंगे तब वे उन्नत होंगे और जब वे इसकी गहनता में उतर है। कलियुग में यह घटित होना था और ये हो जाएंगे तो सब कुछ देख सकंगे। यहाँ बैठे हुए और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने को शक्ति भी आपकी अपनी है। यह कलियुग का आशोर्वाद रहा है, यही कारण है कि हजारों लोग आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर रहे हैं। प्राचीनकाल में आप सब सहजयोगी यह सब जাानते हैं। आप जानते हैं कि आपको क्या लाभ हुआ है और एक गुरु से कोई एक शिष्य ही आत्मसाक्षात्कार क्या उपलब्धियाँ आपने प्राप्त की हैं? अत: इस सबका श्रेय मुझे देना, मैरे विचार में, सत्य नहीं है। हमारे देश में बड़े-बड़े महान सन्त हुए हैं, सभी देशों में सन्त हुए हैं। बहुत से देशों में सूफी कड़ाई से जाँचते परखते थे। परन्तु सहजयोग में ले पाता था। वे गुरु भी बहुत कठोर होते थे और किसी ऐरे-गैरे को आत्मसाक्षात्कार नहीं द्े थे। आत्मसाक्षात्कार देने से पूर्व वे अपने शिष्यों का हम ऐसा नहीं करते. हम तो लोगों को एक बार सहजयोग में ले आते हैं. बस। मैं हैरान हैँ कि सन्त हुए उन सबने कहा कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लो. स्वयं को पहचानों (Know Thyselves) सभी ने एक ही बात कही है, किस प्रकार बुद्धिजीवी लोग इसके विषय में स्वयं को पहचानों परन्तु कोई भी ऐसा नहीं कर रहा है। ये एक अलग बात है, परन्तु वास्तव में कोशिश करते हैं । उन्हें पहले आत्मसाक्षात्कारी जो आत्मसाक्षात्कारी ब्यक्ति थे, चाहे वे मुस्लिम धर्म के थे या हिन्दु या इसाई या किसी अन्य धर्म के. वे किसी भी देश के हो, सबने एक ही बात कही क्योंकि सत्य एक ही है। सबने एक ही बात कही कि सर्वप्रथम स्वयं को पहचान लो और तब आप सत्य को जान जाएंगे। अत: हमारे मैं देखती रही हूँ किस प्रकार सहजयोग एक जीवन का सार यही है कि हमें स्वयं को व्यक्ति से आरम्भ होकर इतने अधिक लोगों तक पहचानना है। एक बार जब हम स्वयं को और इतने अधिक देशों तक पहुँचा है। यह सब पहचान लेंगे तो हर चीज से ऊपर उठ जाएंगे, बिना कुछ जाने, इसकी गलतियाँ ढूँढने की पता बनना होगा, उसके पश्चात् वे जो भी कुछ करेंगे वह पूरे समाज के लिए निश्चित रूप से रचनात्मक, सहायक, शान्ति एवं तारतम्यता प्रदायक होगा। परन्तु आपको आत्मसाक्षात्कारी होना होगा, बिना प्राप्त किए किसी अन्य को आप क्या दे पाएंगे। यह दर्शाता है कि पूरे विश्व के लिए परिवर्तित क्योंकि तब आप उस बुँद जैसे हो जाते हैं जो होने का समय आ गया है और ये परिवर्तन समुद्र में मिलकर विलीन हो जाती है। किस महत्वपूर्णतम है। यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। प्रकार यह लुप्त हो जाती है! एक ही चीज घटित होगी और एक बार जब ये घटित हो वो सभी कुछ भूलकर परिवर्तन प्राप्त कर लो। जाएगी तो आप हैरान होंगे, कि आप की सबसे एकाकारिता हा गई है। दूसरा कौन है? सभी में आप स्वयं को ही देखते हैं। सहजयोग में हम जो समाज के लिए हितकर हों। यह सब आप देखते हैं कि बहुत से लोग ये कहते हैं कि यह बहुत बड़ा करिश्मा है, वहुत बड़ा चमत्कार है। घटित हुआ यह केवल मेरें प्रयत्नों से ही नहीं ऐसा कुछ नहीं है। आपकी अपनी कुण्डलिनी है हुआ, इसको करने में बहुँत से लोग मेरे साथ थे। हर चीज को भूल जाओ राजनीति, अर्थशास्त्र यं एक बार जब आप परिवर्तित हो जाएंगे तो जान जाएंगे कि ठीक कार्य कैसे करने हैं, ऐसे कार्य अपने जीवन में देख चुके हैं और जो भी कुछ 14 चैतन्य लहरी खड : X1 अंक : 5 & 6, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-16.txt मेरा योगदान केवल इतना है कि मैन एक विधि यहाँ हुए। ये सब महान सन्त थे। जिन्होंने प्रेम खोज निकाली जिसके माध्यम से सामूहिक आत्मसाक्षात्कार दिया जा सकता है। बहुत से लोग सामूहिक रूप में इसे प्राप्त कर सकते हैं सूझ-बुझ का अभाव है। तो हम लोग उनके क्योंकि किसी भी अन्वेषण - उदाहरणार्थ विद्युत का लाभ यदि सभी लोग न उठा पाएं तो ये सकते हैं। जब हम सहजयोगी हों और बेकार है। अपने पूरं जीवन में मैं केवल इतना ही कर पाई कि सामूहिक आत्मसाक्षात्कार दिया जा सकता है और यह कार्य बहुत अच्छी तरह एवं सूझ-बूझ की बातें कीं। परन्तु बातें ता बातें ही है क्योंकि इन वातों को सुनने वालों में तो आशीर्वाद, उनकी महानता के तभी अधिकारी हो आत्मसाक्षात्कारी हों। मैं अपने पूर्ण हृदय और आत्मा संे आशीर्वाद देती हूँ। मैं इसे जिस प्रकार कार्यान्वित करने का प्रयत्न कर रही थी यह वैसे ही हो रहा है। अमरीका में सहजयोग बहुत तजा से फैल रहा है। नहीं तो सभी कुगुरु अमरीका से हुआ। यह अत्यन्त साधारण है, एक व्यक्ति की जब आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाता है तो पहुँचे परन्तु अब अचानक महान घटनाए घटित हो रही हैं। उनके सन्तुष्टि के लिए मैंन उनसे कहा कि मैं अमरीका आकर कम से कम दो रहे हैं कि हम 80 देशों में कार्य कर रहे हैं। मैने महीने रहूँगी कहीं ठहरना इतना महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण बात तो लोगों का समझना है। वहाँ सहजंयोग फैलाया. दूसरा किसी अन्य देश हो जाएं और इस बात को समझे कि हमें सत्य का जान प्राप्त दे लागा को भी आत्मसाक्षात्कार वह अन्य सकता है। पहले ये लोग मुझे बता रहे थे कि हम 70 देशों में कार्य कर रहे हैं., अब ये कह पृछा. कैसे? कोई व्यक्ति किसी देश में गया और साधकों को चाहिए कि व विनम्र में गया तो वहाँ सहजयोग फैलाया। तो कल्पना कर कि यह कितना सरल हो गया हैं! मेरे लिए करना है। एक बार जब ये विनम्रता आ जाएगी तो यह कार्य करेगी. चाहे व्यक्ति किसी भी ये कितना सरल है! इस उम्र में में 70, 80 देशों में नहीं जा सकती परन्तु सहजयोग वहाँ पहुँच जाति, धर्म और प्रजाति से सम्बन्धित हो यह गया है इसने परमात्मा का आशीर्वाद प्रदान किया है। तो आप लोग यहाँ क्यों आए हैं? आपको मेरा हार्दिक आशीर्वाद है। इस अभिनन्दन के जानना चाहिए कि यहाँ पर निजामुद्दीन औलिया लिए थे यहाँ निजामुद्दीन थे और दमदमा साहिब भी कार्य करेगी । परमात्मा आपको आशीर्वादित करें, यह आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद। 15 चैतन्य लहरोी खड : X1 अंक : 5 8 6, 1999 ॥ 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-17.txt परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी द्वारा मातरम् का वर्णन वन्दे आज की संध्या का यह अंतिम गीत है। वास्तव में यह पुराने दिनों का अत्यन्त महान ये कहने का क्या अधिकार है कि यह गीत नहीं गीत है। पिछली बार मैंने अपने पिता की एक गाना चाहिए? कहानी सुनाई थी। वे महान् देशभक्त थे। तिरंगा करने के लिए आपका क्या योगदान है। आपको यह गीत हमारी मातृभूमि के सौन्दर्य और उसकी प्रकृति का वर्णन करता है। इसे सदा राष्र गोत के रूप में गाया गया। यरन्तु अब कुछ नए झण्डा उठाकर वे उच्च न्यायालय पर जा चढे। अंग्रेज सिपाहियों ने उन पर गोली चलाई जो उनके सिर पर लगी। सिर से खून बहने लगा, फिर भी वे रुके नहीं। झण्डा लेकर वे न्यायालय संस्कृत भाषा में है। इस गीत की पुरी भाषा के शिखर पर जा पहुँचे और वहाँ झण्डा फहरा दिया। केवल तभी वे नीचे आए और हमें यह गीत गाने को कहा, नीचे खड़े हुए हम सभी वो दिन याद है जब बर्तानवी बन्दूकं हमारे पर लोग उनकी इस बहादुरी पर नाच रहे थे। उन्होंने तनी हुई होती थी और हम यह गीत गाते हुए कहा, तुम सब 'बन्द मातरम्' गाओ अर्थात् हे माँ बहादुरी से उनका सामना करते थे आज ये हम आपको नमन करते हैं और आज हमारे देश लोग. न जाने कहाँ से उठ खड़े हुए हैं. और ये कुछ लोग एसे खड़े हो गए हैं जो ये कहते हैं कि यह गौत नहीं गाना चाहिए। यह गीत गाते हुए हमने पूरा स्वतंत्रता संग्राम किया और जो घटनाओं को लोग भूल जाते हैं। मुझे आशा है लोग इस गीत का विरोध कर रहे हैं उनसे मैं कि आप सब लोग इस राष्ट् गीत को गाने के पूछती हूँ कि आपमें से कितने लोगों ने स्वतंत्रता लिए खड़े हो जाएंगे। प्राप्ति के लिए कार्य किया? स्वतन्त्रता प्राप्त लाग उठ खड़ हुए हैं जा ये कहत हैं कि यह संस्कृत नहीं है। इन चीजों को देखते हुए ता कई बार फूट-फूट कर रोने को दिल करती है। मुझे कहने का प्रयत्न कर रहे हैं कि हमें ये गोत नहीं गाना चाहिए। कलियुग में यही होता है। पिछली धन्यवाद तर 16 चैतन्य लहरी ॥ खंड : X1 अंक: 5 &6, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-18.txt देशभक्ति हम सब हिन्दुस्तानी हैं और इस भारतवर्ष और जो आपके अन्दर बेकार की इच्छाएं हैं. सब खत्म हो जाएंगी| लगेगा कि इस देश की हैं और इसी के सहारे हम जी रहे हैं। आगे भी उन्नति हो तो हमारी भी उन्नति हो जाएगी हमने इसी के सहारे जीना है। हमारे बच्चों के लिए, तो अपने जीवन में बहुत ऐसे लोग देखे। हमारा समय और था। हम बड़े भाग्यशाली है कि ऐसे होना चाहिए कि अपनी भारत माता से प्यार ऐसे महान त्याग मूर्ति लोग हमने देखे और उनको देखकर के हमने जाना कि इस देश का में रहते हैं। इसी के अन्न, जल से हम पले हुए का जो आने वालो पीढ़ी है उसके लिए, यही संदेश करो, अपने देश के प्रति बहुत अधिक अपनापन होना चाहिए। हमने देखा है परदेस में, आश्चर्य को बात है कि एक-एक देश में हर एक आदमी अपने देश के बारे में जानता स्वातन्त्र्य उन्होंने कमाया। स्वतंत्रता कमाने के बाद जो हाल हुआ वो आपको सबकी मालूम है! अब आपका कर्तव्य है, जब आए सहजयोग में आ गए हैं, कि पहले अपने भारतवर्ष में क्या खराबी है, क्या बुराइयाँ हैं. उसको हटाना चाहिए और इसके प्रति नितान्त श्रद्धा रखनी चाहिए। और अपने देश के प्रति बड़ा अभिमान रखता है। उनसे पूछने पर कि भई आपके देश में तो इतनी गरीबी है तो भी क्या हुआ? ये हमारा जो देश है इसी ने हमें जन्म दिया, हम तो ये हमारा देश जो है ये हमारे लिए महान चीज़ है। इसी प्रकार हर तभी आपका देश दुरूस्त हो सकता है, नहीं तो आजकल जैसे लोग आए हैं, आप सब जानते हैं। हिन्दुस्तानी, भारतीय को सोचना चाहिए कि ये मुझे बताने की जरूरत नहीं है। सिर्फ ये है कि भारतवर्ष जो है या भारत जिसे कहते हैं, जो हमें वैसा नहीं होना है। हमें अपने देशवासियों के हिन्दुस्तान है, ये हमारा देश है और इसके लिएलिए और हमारें देश के लिए सब कुछ करना हमें देशभक्ति रखनी चाहिए। जैसे ही आपके चाहिए, जो हम कर सकते हैं। आप सबको अन्दर देश भक्ति आ जाएगी, आपको आश्चर्य होगा, अनेक गुण आपके अन्दर आ जाएंगे, अनेक गुण। सबसे बड़ा गुण तो ये आएगा कि आपके अन्दर जो बेकार की महत्वाकांक्षाएं हैं आशीर्वाद। अनन्त आशीर्वाद है, कल फिर से प्रोग्राम होगा। आप जरूर आइए। अपने मित्रों को भी साथ लाइए। सबके लिए यहाँ निमन्त्रण है । अनन्त भ भैभ 17 चैतन्य लहरी ॥ खंड : X1 अंक : 5 & 6, 1999 भ 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-19.txt गुडी पड़वा पूजा नोएडा निवास 18,3.99 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज का दिन गुडी पड़वा का है और ये में चले गए। उसके बाद वो मद्रास भी चले गए। महाराष्ट्र में मनाया जाता है ज्यादा। कहते हैं कि इस तरह से ये चीज़ है कि इनका इतिहास ऐसा ये बड़ा शुभ दिन है, इस दिन जो भी कार्य करो है । शालीवाहन का और उसी वंश के हम भी हैं। वो बहुत सफल हो जाता है। वो जो भी हो, बहुत हज़ारों वर्ष पहले थे तो वो गए थे महाराष्र सांसारिक दृष्टि से बात है और दूसरा ये कि में और फिर वहाँ से उसी शालीवाहन के हम शालीवाहन में जो एक बबू वाहन करके थे, लोग वंशज हैं। इसलिए हम लोगों का नाम साल्विया-साल्वे-ऐसा कर दिया गया। तो जो शाल्व थे जिन्होंने युद्ध किया था. भीष्म के साथ. आपने होगा शाल्व भीष्म के साथ शाल्च, उन्होंने विक्रमादित्य को हराया और उसके बाद उन्होंने ये नया पंचाग शुरू किया जिसे शालीवाहन कहते हैं। उसके वर्ष का आज को दिन प्रथम सुना दिन है। तो इसका महात्मय ज्यादा महाराष्ट्र में है उन्होंने मदद की थी पांडवों की बाद में। भीष्म कि उन्होंने ये शालीवाहन का ये द्योतक दिखाने ने चारों तरफ उनके शर पंजर डालें और उस के लिए एक कुम्भ को लेते हैं और उसके शरपंजर की वजह से वे निकल नहीं पाए तो अन्दर एक शाल जो कि शालीवाहन थे. तो उन्होंने शाप दिया तुम्हारे भी ऐसे ही शरपंजर कुम्भ कुण्डलिनी का द्योतक है। तो एक शाल पड़ेंगे वो आखिर में भीष्म के साथ हो गया। तो टाँग देते हैं ऊपर से एक कुम्भ रख देते हैं। उसका मतलब ये है कि कुम्भ जो है आध्यात्म का भी द्योतक है, कि आध्यात्म आपने कुंभ में है। और शालीवाहन इसलिए के वो लोग पहले उनको सपने में दर्शन हुए शिवजी के और अपने को सात वाहन कहते थे। उनका कुण्डलिनी उन्होंने बताया कि बप्पारावल जो है उसको तुम पर बड़ा विश्वास था. बाद में उन्होंने देवी को यहाँ का राजा बना दो। तो फिर से Revival उसी शाल देना शुरू कर दिया। बड़े देवी के भक्त थे। शालीवाहन वंश का हुआ। पर पता नहीं उन्होंने तो उन्होंने अपना नाम शालीवाहन कर लिया । भी इसी वश के हैं लेकिन इस तरह से वो हजारों वर्ष पहले के हैं। उसको (Revival ) हुआ वो बहुत बाद में एक वहाँ पर मुनि थे रम कैसे शाल्व से शालीवाहन बना दिया ? लेकिन इस तरह से वो नाम बदल गया और उन्होंने उन्हीं के वंश में पद्मिनी हो गई और मेरठ के शालीवाहन अब जो थे वो मेवाड़ के वंशज थे। लोगों से हमारे लोग पता करने गए तो वे कहते मेवाड के राजा होते थे। एक सिसोदिया वंश है, उस सिसोदिया वंश के एक बेटे थे, पर किसी कारण से उनका कुछ अनबन हो गया उनके हैं ऐसे लोग ही नहीं थे। तो एक अजीब चाचा के साथ, इसलिए वो भाग करके महाराष्र हैं ऐसे तो बिल्कुल लोग थे, अपने प्रण के पूरे और ईमानदार और देवीभक्त और माने वो कहते अजीबोगरीब लोग थे। उनका सब नष्ट भ्रष्ट हो 18 चैतन्य लहरी खंड : X1 अक : 5 86, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-20.txt गया क्योंकि उन्होंने Compromise नहीं किया। जमाने में सो अभी भी इसको महाराष्ट्र में लोग जयपुर वालों ने मुसलमानों से बाद में अंग्रेजों से बहुत मानते हैं और इधर विक्रमी संवत है. Compromise कर लिया तो वहाँ बहुत समृद्धि महाराष्ट्र में शालीवाहन संवत है। हम लोग भी, थी। तो समृद्धि से किसी की Judgement नहीं क्योंकि मैं महाराष्ट्र की हूं, शायद इसलिए हम होनी चाहिए Character से होनी चाहिए। तो ये लोग भी शालीवाहन से ही चलते हैं। उसके आज का दिन जो है उन्हीं शालीवाहन लोगों ने हिसाब से आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है और बनाया. उसमें से जो बब्रुवाहन थे उन्हें क्राइस्ट जो कुछ आज आप इच्छा करेंगे वो पूर्ण हो से थोड़े पहले बनाया गया है विक्रमादित्य के जाएगी। सबको अनन्त आशीर्वाद। पा त रा ४ २ ॐ म टम ल े हिदा पति 19 चैंतन्य लहरी खंड : XI अंक : 5 & 6, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-21.txt नवरात्रि पूजा-कबैला (27.9.98 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन इसका वर्णन आप इस प्रकार कर सकते हैं, आपको अपने विषय में जो ज्ञान परिवारों तथा बच्चों के साथ स्थापित हो चुके हों, है वह प्रत्यक्ष है। इसकी अभिव्यक्ति, आपके तथा अन्य लोगों के बारे में भी आपकी अंगुलियों के सिरों पर होती है। आप अपने विषय में जानते हैं तथा अन्य लोगों के विषय में भी। यही महानतम सूक्ष्म ज्ञान आपक आप कल्पना नहीं कर सकते कि एक माँ. जिसके इतने सारे सुन्दर बच्चे हों जो अपने उन्हें इतनी आनन्द की स्थिति में किस प्रकार में देखती है! आप सबको इतने आनन्द ं परमात्मा से एकलीन देखकर अत्यन्त सन्तोष हो रहा है। हमें एक बात महसूस करनी है कि यद्यपि आप लोगों की संख्या काफी है फिर भी विश्व की जनसंख्या के मुकाबले में सत्य को जानने वाले, जिन्हें वास्तजिक सत्य का ज्ञान है, लोग बहुत कम हैं। नि:सन्देह आप ही लोग ज्ञानमय हैं। पास है। कोई अन्य इस प्रकार नहीं जानता। आपके अतिरिक्त कोई भी दूसरा मनुष्य अपने तथा दूसरों के विषय में नहीं जानता। तो यह ज्ञान जो आपको प्राप्त हुआ है अत्यन्त सूक्ष्म अत्यन्त रहस्यमय और पूर्णत: गुप्त है। आप किसी व्यक्ति के विषय में यदि जानते हैं, तो जानते हैं। परन्तु जो ज्ञान सच्चा नहीं है या सत्य से प्रकाशित नहीं है, वह अर्थहीन हैं । बनावटी होने के कारण ऐसा ज्ञान उड़नछू हो जाता है। अपनी कुण्डलिनी जागृति द्वारा आप सबने वह अवस्था प्राप्त कर ली है जिसमें आप जान गए हैं कि वास्तविक ज्ञान क्या है? परन्तु उन लोगों के नहीं। विषय में सोचे जो ये नहीं जानते कि ज्ञान क्या है। अन्य लोगों को ये पता नहीं होता कि आप उनके विषय में जानते हैं। ये ज्ञान, जो आपने प्राप्त किया है प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी ज्ञान और प्रेम का एकोकरण करना अत्यन्त कठिन है क्योंकि ज्ञान के विषय में हमारा विचार उससे बिल्कुल भिन्न है जो हमने पुस्तकों में पढ़ा है। पुस्तकों में पढ़कर आप प्रेम कैसे कर ा उदाहरण के रूप में हम कहते है कि हमारा ज्ञान प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। परन्तु व्यक्ति को भेद समझना चाहिए। आपके सकते हैं? आम व्यक्ति के लिए प्रेम अर्थ-लिप्सा है। अज्ञानता में आप लोगों, बच्चों, का अन्दर का प्रेम रूपी ज्ञान आपकी आत्मा से परिवार और वस्तुओं से लिप्त हो जाते कोई बल देना पड़ता है. न कुछ सोचना पड़ता लिप्सा अज्ञानता का प्रमाण है। ज्ञान यदि आपके है, न कोई विशेष प्रकार के काव्य पढ़ने पड़ते पास है तो सभी लिप्साएं समाप्त हो जानी चाहिए और आप सार्वभौमिक (Global )व्यक्तित्व बन प्रसारित हो रहा है इसके लिए न तो आपको हैं और न ही किसी रोमांचक स्थिति में जाना पड़ता है। बस शुद्ध प्रेम प्रसारित होता है और जाते हैं। यही प्रेम ज्ञान भी है। सागर में एक बूँद। उदाहरण के रूप में हम बहुत सी वस्तुओं 20 चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 5& 6, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-22.txt अहं हो सकता है। आप सोच सकते हैं कि "मैं बहुत कुछ जानता हूँ. मैं इसके विषय में जानता हूँ, मैं कालीनों की रंग-रंगत आदि के विषय में सब जानता हूँ।" किसी भी तुच्छ चीज़ के विषय में यदि आप जान जाते हैं तो आप समझते हैं, से चिपके हुए हैं जैसे हमारा परिवार। परिवार में यदि कुछ हो जाए तो हम परेशान हो उठते हैं। हम इसे सहन नहीं कर सकते। हमारे बच्चों को यदि कुछ हो जाए तो हमें लगता है मानो हम पर पहाड़ आ गिरा हो। परिवार से आगे जा कर आप अपने मित्रों, पड़ोसियों और अपने देश से भी लिप्त हो जाते हैं । अपने देश से लिप्त होना समझते हैं कि ये ज्ञान प्राप्त करना बहुत बड़ी आप बहुत महान है। मूर्खता के कारण आप भी ज्ञान नहीं है। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के उपलब्धि है । पश्चात् आप स्पष्ट देखने लगते हैें कि आपका देश क्या है, इसमें क्या कमी है, क्या अज्ञानता सभी प्रकार के ज्ञान प्राप्त करके हमने क्या है? किस अन्धकार में यह खड़ा हुआ है और उपलब्धि पाई है। कुछ नहीं। युद्ध हो रहे हैं, किस प्रकार अपने अधिकारों और चीजों के सभी प्रकार का विध्वंस हो रहा है। मैंने इस अब हम समझ पाए हैं कि विश्व भर के जार्ज को दूरदर्शन में देखा। विश्व भर में एक ऐसी हवा फैली हुई है जो व्यक्ति के कार्यों को लिए लड़-झगड़ रहा है? परन्तु आत्मसाक्षात्कार द्वारा प्राप्त ज्ञान से आप स्पष्ट देखते हैं कि आपके देश की समस्या क्या है? तब अपने प्रेम देखें समझे बिना ही उनकी हत्या कर रही के माध्यम से इस कमी का दूर करने का प्रयास करते हैं। अर्थात् इसका अभिप्राय ये हुआ कि है और वह भली - भाति कार्य कर रहा है । तो प्रेम ही आपके ज्ञान की शक्ति है। आपके अन्दर यदि पूर्ण ज्ञान है और फिर है और लोगों को सुधारने के लिए कुछ न कुछ उन्हें नष्ट कर रही है। परन्तु वह (परम चैतन्य) क्या वह समझता नहीं है? या वह सबव समझता भी यदि आप घर में बैठकर आराम से ध्यान-धारणा कर रहे हैं तो यह अर्थहीन है। आपको बाहर करता रहता है। इसका भी हमें पूरा विचार होना चाहिए। कल जब मैं यहां आई तो जोरों से मैं जब आकर बैठी तो जाकर लोगों से. अपने मित्रों से, परिवार के बारिश हो रही थी। अन्य संबंधियों से मिलना होगा और उन्हें अपने बारिश रुक गई और कार्यक्रम के समाप्त होने तक रुकी रही, जब तक मैंने अपना प्रवचन ज्ञान के विषय में बताना होगा। यदि आप ऐसा समाप्त नहीं किया वर्षा नहीं हुई। परन्तु अचानक जब आप लोगों ने तालियाँ बज़ानी शुरु को तो यह बताने की आपकी इच्छा करती है कि मुझे यह भी तालियाँ बजाने लगी। ये सब इस प्रकार आत्मसाक्षात्कार मिल गया है। आपकी इच्छा ये हुआ। अत: प्रकृति भी जानती है कि आप कीन बताने को करती है कि आप आत्मसाक्षात्कारी हैं हैं? परन्तु प्रकृति को जानना आपक लिए भी आवश्यक है। यह महत्वपूर्ण बात है। प्रकृति आपको अहंकारी न मान बैठे। ठीक है, किसी आपके आध्यात्मिक स्तर के अनुसार ही कार्य अन्य तरीके से आप उन्हें बता सकते हैं कि करेगी। आश्चर्य की बात है, मुझे सदैव यही लगा कि आध्यात्मिकता के स्तर नहीं हो सकते। नहीं कर सकते तो आपका ज्ञान प्रेम नहीं है। ज्ञान ऑर प्रेम में इतना गहन सम्बन्ध है। सबको लेकिन आप ऐसा नहीं कर पाते कि कहीं लोग आपके पास ये ज्ञान है। आपका ज्ञान यदि झूठा है तो आपको मैंने सोचा था कि एक वार आत्मसाक्षात्कार यदि 21 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अक : 5 &6, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-23.txt यह हुआ कि प्रकाश है। प्रकाश आपको प्रत्यक्ष आप पालें तो बस हो गया। परन्तु बाद में मैंने देखा कि यह बात गलत थी वास्तव में ऐसा ज्ञान देता है। चीजों को देख के लिए दृष्टि देता नहीं है। आत्मसाक्षात्कार पाने के पश्चात् भी, हैं। इसी प्रकार आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के पश्चात् मुझे लगा लोगों को उन्नत होने में बहुत सी चैतन्य लहरियाँ प्रकाश ही की तरह से बहने बाधाएं हैं। बहुत से प्रलोभन उन्हें पतन की ओर खंच रहे हैं। अतः व्यक्ति को भिन्न चक्रों और हैं कि अच्छी चीज क्या है बुरी चीज़ क्या है? भिन्न नाड़ियों पर कार्य करना चाहिए। किसी भी तरह से स्वयं को निपुण कर लें क्योंकि केवल आन्तरिक निपुणता ही आपको यह ज्ञान उपयोग करने का अधिकार देगी। लगती हैं और उनके प्रकाश में आप देख सकते परन्तु कई बार आप साधारण मनुष्यां वाले मापदण्ड अपनाते हैं। जैसे आप किसी घर में गए, वाह! बहुत अच्छा घर है, बहुत ही अच्छा। वहाँ पड़ी सभी चीजों को देखकर आप प्रसन्त जैसा मैने आपको बताया था। यह निपुणता हो उठते हैं, परन्तु उस घर की वास्तविकता क्या प्राप्त करने के दो तरीके हैं पहला यह कि आप है? इसकी चैतन्य लहरियाँ अच्छी हैं या बुरी? यह रहने योग्य है भी कि नहीं? जैसे उस दिन प्रतिक्रिया न करें। प्रतिक्रिया करना मानवीय स्वभाव है; पूर्णतया मानवीय परन्तु यदि आपने अतिमानवीय (Super Human) बनना है तो आपको प्रतिक्रिया नहीं करनी हैं। इन्होंने मुझे कहा कि मिलानों में इन्हें एक बहुत अच्छा स्थान निल सकता है, मिलानों में बहुत सस्ते किराए पर। मैंने पूछा, यह इतना सस्ता क्यों मेन उस स्थान की चैतन्य लहरियाँ चाहिए। प्रतिक्रिया न करने से आप उन्नत होंगे, निश्चित रूप से आप उन्नत परन्तु तुरन्त महसूस की। उनसे पूछा कि क्या उन्होंने जाकर वहाँ की चैतन्य लहरियाँ महसूस की हैं? वे वहाँ होंगे यदि आप प्रतिक्रिया करते हैं तो आप उन्नत नहीं हो सकते क्योंकि आप किसी ऐसी गए और पाया कि वह स्थान गर्म लहरियों से चीज़ के दबाव में कार्य कर रहे होते हैं जो आपकी आत्मा नहीं हो सकती है। मान लो में इस कालीन को देख रहो हैं। इसका रंग तथा अन्य गुणों के बारे में मुझे ज्ञान है। इस विषय प्रतिक्रिया कर उठू ती हो गया जल रहा था। तब उन्हें पता लगा कि वहाँ पर कई वर्षों तक एक मठ था। मैंने कहा, यह स्थान आपके रहने के योग्य नहीं है। आपको कोई अत्यन्त शुद्ध स्थान खांजना पड़ेगा किसी गरीब आदमी का घर इस सुखां से परिपुर्ण स्थान से कहीं अच्छा हो सकता है। तो जो भी कुछ आप पर यदि में साम समाप्त! मेरे प्रतिक्रिया करने का अर्थ ये होगा कि मुझमें न्यायविवेक नहीं है और यदि मैं इसके प्रति प्रतिक्रिया नहीं करती तो मैं यह चैतन्य लहरियों का उपयोग करना चाहिए। समझ पाऊगी कि इस कालीन में चैतन्य लहरियाँ हैं या नहीं। बस इतना ही। क्या इसमें से चैतन्य चैतन्य लहरियाँ महसूस करके कुछ लोग मुझे लहरियाँ निकल रही हैं या नहीं। अब ये चैतन्य बताते हैं. लहरियाँ है क्या? यह प्रेम है। संचारशीलता इस कर रहे हैं । उसको समझने के लिए आपको इसमें भी आप भ्रमित हो सकते हैं " श्रीमाताजी मैंने चैतन्य लहरियों पर महसूस किया है कि मुझे इस व्यक्ति से विवाह कर लेना चाहिए।" मैंने पूछा, "क्या तुमने चैतन्य लहरियाँ महसूस की?" "जी, श्रीमाताजी मैने प्रकार है-यदि प्रकाश हो तो आप चीज़ों को देख सकते हैं आपके चीजों को देख पाने का अर्थ 22 चैतन्य लहरी खंड : XI अॅंक : 5 & 6, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-24.txt и 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-25.txt र] काम पातरड श्री गणेश पूजा, ओo एन0 जी0 सी0 आफिसर क्लब, मेहसाना, 1998 न ० म 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-26.txt ERO पब्लिक प्रोग्राम, फरवरी 1999, मुम्बई 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-27.txt VA 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-28.txt भली-भांति चैतन्य-लहरियाँ महसूस की और जब चैतन्य लहरियाँ नहीं आ रहीं होतीं तब भी मुझे इस पुरुष से विवाह कर लेना चाहिए।" में स्वयं को उचित ठहराने के लिए हम कहते जब उस पुरुष को देखती हूँ तो मुझे उसमें भूत कि हमें चैतन्य लहरियाँ आ रही हैं। हम समझते दिखाई पड़ता है। मैंने कहा, है परमात्मा, इस महिला ने किस प्रकार उसकी चैतन्य लहरियाँ परन्तु बाद में पाते हैं कि वास्तविकता ये नहीं है। महसूस की! तो आपके निर्णय में क्या रखा है? तो अब जबकि हम आत्मसाक्षाकारी हो गए हैं इसमें शुद्ध ज्ञान का पूर्ण अभाव है। आप देखें वे किस प्रकार जुड़े हुए हैं। तो चारों तरफ क्या है आपको चैतन्य लहरियाँ, जो कि प्रेम है तथा हैं कि यह बहुत अच्छा हैं, बहुत शानदार है। नावः हमें इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि हमारे और किस चीज़ से हम थिरे हैं? ऐसी कौन सी चीज़ हैं जो हमें यह हुए मानने पर विवश करती है कि यह ठीक है. अच्छा है और हमें इसे पाना है? एक बार जब आप समझने लगते हैं कि चैतन्य लहरियां शुद्ध ज्ञान हैं. इनकी प्रकृति बिल्कुल भिन्न है तो आप ज्ञान पावन ज्ञान, सच्चा ज्ञान प्राप्त करना हागा। आप कह सकते है कि शुद्ध ज्ञान और सच्चा ज्ञान ऊंर्जा की तरह से है, विद्युत की तरह से है और जिस प्रकार आप इसे महसूस करते हैं, इसे समझते हैं, इसका अस्तित्व है। यह प्रेम है। लोग किसी भी व्यक्ति, परिवार, देश आदि से लिप्त प्रेम को भी नहीं समझते। किसी के पीछे वे नहीं होते। आपको पावन चैतन्य लहरियाँ अपने पागल हो जाते हैं और कहते हैं कि, श्रीमाताजी, अन्दर आती हुई महसूस होती हैं। यह बहुत ही मुझे लगता है कि मुझे उस व्यक्ति से प्यार हो भ्रान्तिमय बात है। ये कहते हुए कि मेरी चैतन्य गया है और पाँच दिन बाद आकर वो कहते हैं. लहरियाँ बहुत अच्छी हैं. मुझे ये चैतन्य लहरियाँ श्रीमाताजी मुझे उस व्यक्ति से कुछ नहीं लेना देना। क्यों? क्योंकि आपमे शुद्ध ज्ञान नहीं है। पड़ते हैं तब! आपने चैतन्य लहरियों के माध्यम से उस व्यक्ति पसन्द हैं, जब आप गुन्दगी के सागर में कूद बहुत से लोगों ने मुझसे पूछा" श्रीमाताजी शुद्ध ज्ञान महसूस नहीं किया। अब आप देखें ऐसा क्यों हैं कि हम कभी-कभी गलतियां करते है?" आप गलतियाँ नहीं करते आपकी अज्ञानता सकता है कि सूर्य और धूप की तरह। दोनों में अन्धेरा है और इसी में फँसने के कारण आप क्या भेद है? सूर्य है. जब सूर्य निकलता है तो कठिनाइयों से घिर जाते हैं। अतः हमें समझना में कि यह किस प्रकार सम्बन्धित है, कहा जा चाहिए कि हमारे ज्ञान को भी पूर्णतः शुद्ध होना धृप होती है। तो अन्तर क्या है? या हम कह लैम्प सकते हैं कि चाँद और चाँदनी। अन्तर क्या है? चाहिए। जिस प्रकार हमारे घर में रखा हुआ इन दोनों में कोई अन्तर नहीं है। एक चाँद है यदि गन्दा है तो उससे प्रकाश नहीं हो सकता। और दूसरा प्रकाश। तो ये सारी चीज़ें अत्यन्त भ्रमित करने वाली हैं, यहाँ तक कि हम नहीं विशेषतौर पर हमारा हदय, यदि ये शुद्ध नहीं है, जानते कि हम इनके विषय में कितने भ्रमित हैं? तो आप ठीक मान कर उल्टे सीधे कार्य करने और ये भी नहीं जानते कि चैतन्य लहरियाँ हमें लगते हैं, जिससे स्वयं को तथा अन्य लोगों को किस प्रकार भ्रमित कर सकती है? क्योंकि चैतन्य लहरियाँ आ रही हैं। परन्तु कभी-कभी इसी प्रकार आपका हृदय यदि शुद्ध नहीं है चोट पहुँचाते हैं। मानव-प्रकृति की यह एक आम गलती है कि मनुष्य स्वयं को महान और 23 चैतन्य लहरी ॥ खड : X1 अक : 5 & 6, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-29.txt जिस प्रकार मैंने आपको बताया शुद्ध ज्ञान दिव्य दर्शाने के लिए गलत चीजों को भी ठीक वह होता है जो शुद्ध प्रकाश प्रदान करता है। जैसा मैंने आपको बताया था. कुछ लोग शुद्ध प्रकाश का अर्थ है शुद्ध चैतन्य लहरियाँ। अब चैतन्य लहरियाँ, जैसा मैंने आपको बताया, साबित करने का प्रयत्न करता हैं। देश का विभाजन करना चाहते हैं। ये विभाजन भरमित करने वाली भी हो सकती हैं या इनकी मात्रा भी कम या अधिक हो सकती है। एक अन्य तरीका है। आप स्वयं देखें कि किसी कार्य विशेष को आप क्यों करना चाहते हैं? मानसिक वे महत्व प्राप्ति के लिए करना चाहते हैं। अपनी महत्ता चाहने वाले कुछ भडकाते हैं और कहते हैं आइए हम स्वतन्त्र हो लोग अन्य लोगों को भी जाएं। स्वतन्त्र हो जाने से ये देश हमारे लिए होगा तब हम स्वयं को या देश के किसी वैभवशाली भाग को विकसित कर लेंगे। सारा पैसा और तौर पर भी आप मानसिक के मापदण्ड सूझ-वूझ उपयोग कर सकते हैं। मैं ये कार्य क्यों करना सभी कुछ तब हमारे लिए होगा। धर्म, बैभव चाहता हूँ। सब लोगों को इसका क्या लाभ आदि के नाम पर वे देश को विभाजित कर होगा? उस नज़रिए से यदि आप सोचना आरम्भ सकते हैं। परन्तु यदि आप देश को विभाजित करें कि दूसरे लोगों को क्या लाभ होगा, इस कर रहे हैं तो वास्तव में आपके सम्मुख एक कार्य से उन्हें क्या मिलेगा. ये कार्य मुझे क्यों बहुत बड़ी समस्या खड़ी है। आपने देखा है कि जहाँ भी लोगों ने विभाजन किया है, वे एक ऐसी अंधेरी खाई में गिरे हैं जिससे निकल पाना सम्भव नहीं है। थोडे से लोग, अहं के कारण, अलग भूमि चाहते हैं, परन्तु उनकी मृत्यु हो कि मैं ये कार्य क्यों कर रहा हूँ? उद्देश्य क्या है| जाती हैं। उनकी मृत्यु नहीं होती. कुछ की तो हत्या कर दी जाती है और पृथ्वी का आधिपत्य मनोवैज्ञानिक कारण आदि भी हो सकता है। पाने का यह विचार खत्म हो जाता है। छोटी चौजों के लिए भी ऐसा ही है। हम सांचते हैं कि मेरे पास यदि यह चीज हो जाए तो हैरान होंगे कि आपकी चैतन्य लहरियाँ आपकी बहुत अच्छा होगा। जिस प्रकार लोग चीज़ों पर अंगुलियों के सिरों पर आपको बताने लगी हैं। कूद कर आते हैं और कहते हैं, ओह श्रीमाताजी "ये हमारा है, ये हमारा है, इसे हम अपने लिए ही उपयोग करेंगे"। खुलमखुल्ला! मुझे चैतन्य लहरियाँ आ रही हैं, ऐसा है, वैंसा वा ये भी नहीं समझते कि यह बात गलत है। है। क्या कारण है कि मैं ये बात बार-बार कह एक कहता है कि ये मेरा देश है मुझे अपने देश रही हूँ? यद्यपि आप मेरा इतना अच्छा परिवार करना चाहिए? तो आप हैरान होंगे, कि अपने कार्य का सच्चा चित्र आपको मिल जाएगा। तो हर समय स्वयं का ऐसी अवस्था में रखें जहाँ आप साक्षी होकर स्वयं को देखें, आप स्वयं देखें कभी-कभी कोई बन्धन भी हो सकते हैं, कोई काी परन्तु यदि आप सावधानी पूर्वक देखना आरम्भ करें कि मैं क्यों ये कार्य कर रहा हूँ तो आप परन्तु कभी-कभी चैतन्य लहरियाँ भी अत्यन्त सतही रूप में आती हैं। व्यक्ति कहता है आहे! दर चाट हैं, इतने आशीर्वादित हैं और हमारे पास इतना के लिए करना चाहिए, दूसरा कहता है, ये मेरा देश है मुझे अपने देश के लिए करना चाहिए। ज्ञान हे? हमें बहुत विवेक शील बनना चाहिए। बिना विवेक के हम ये नहीं समझ सकंगे, कि जब तक "में और मरा" है तो इसका अर्थ ये है कि ज्ञान नहीं है हम क्या कर रहे हैं? 24 चैतन्य लहरी । खंड :XI अक : 5 & 6. 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-30.txt यह विवेक विकसित करने के लिए हमें दिखाई नहीं देता। किसी व्यक्ति की शक्ल क्या करना होगा? हर बार आकर वे मुझसे पूछते देखकर आप नहीं कह सकते कि वह हैं, श्री माताजी विवेक प्राप्ति का क्या उपाय है? बुद्धिमान है। परन्तु चैतन्य लहरियों द्वारा आपके अन्दर विवेक पहले से ही मौजूद हैं। विवेक के दाता श्री गणेश वहाँ पहले से ही विवेकशील है। वह बोले या न बोले यदि विराजमान हैं। परन्तु आपको श्री गणेश को अपनाना होगा। कुछ लोगों को श्री गणेश का एवं अच्छी चीज़ के विषय में बिना किसी इतना नशा हो जाता है कि वे उनकी पहचान ही दूसरे व्यक्ति को चोट पहुँचाए खो देते हैं। वे अत्यन्त दास प्रवृत्ति के हो जाते है और मानते है कि वे अत्यन्त महान, अत्यन्त आप जान सकते हैं कि व्यक्ति अत्यन्त वह बोलेगा तो किसी अत्यन्त गहन, विवेकमय बोलेगा। ऐसा स्वभाव यदि आप विकसित कर लें तो आप हर प्रश्न के प्रति विवेकशील हो जाएंगे। उदाहरण के रूप में कुछ लोग अपने बच्चों से बहुत लिप्त हैं, इतने अधिक कि वे भूल जाते हैं कि वे इस परमेश्वरी शक्ति के अंग-प्रत्यंग भी हैं, और सभी प्रकार के उल्टे-सीधे कार्य किए चले जाते हैं। उस दिन मैं एक महिला से मिली जिसका आध्यात्मिक हैं। ये सब असत्य विचार बेकार हैं । ब्या आपके गणेश आपको विवेक प्रदान करते हैं? अब आप गिने कि आपने कितने विवेकमय कार्य किए हैं? कहाँ आपने विवेकपूर्ण निर्णय लिया ? किसी कार्य को करने का विवेक आपमें था या आप इसे केवल इसलिए करते रहे कि एक विशेष प्रकार के जीवन या एक विशेष बहुत बोमार था। वह उसे अस्पताल ले गई और चिकित्सकों ने सभी प्रकार की दवाइयाँ दी। बेटा परन्तु उसकी हालत और बिगड़ गई। तब उसने अत: विवेक वो चीज़ है जो सर्वप्रथम आपको मुझे टेलीफोन किया. श्री माताजी मैं नहीं जानती क्या हुआ? में चिकित्सक के पास गई और विकसित हो गया है तो आप शान्त हो जाएंगे उसकी दी दवाइयों से बच्चे की स्थिति और खराब हो गई है। "तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया, पहले तुम चिकित्सालय क्यों गई? विवेक का अभाव। मैं जब यहाँ पर हूँ तो तुम मुझसे प्रकार के उत्तर को आपसे आशा की जाती थी? शान्ति प्रदान करती है। आपमें यदि विवेक क्योंकि जो कुछ भी लोग कहें, जो भी कुछ वे करें, जितनी भी आक्रामकता दिखाए, हर हाल में आप शान्त होते हैं और उस व्यक्ति, उस राष्टर की मूर्खता को देखते हैं और समझ जाते हैं कि किसलिए वे एसा कर रहे हैं? यह विवेक मानव क्यों नही पूछते?" यहाँ कबैला में एक ऐसी ही घटना हुई। के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि पशुओं के पास तो इतना विवेक होता ही नहीं जितना हमारे एक बच्चा गिर गया और उसकी बाजू टूट गई। माँ ने बिल्कुल विवेक का प्रदर्शन नहीं किया। वह बच्चे को अस्पताल ले गई जहाँ डॉक्टर ने कहा कि कल इसका आप्रेशन करके हम बनावटी पास है। कभी- कभी नि:सन्देह हमारे अन्दर पशुओं से भी कम विवेक होता है परन्तु अनुभव से हमें सीखना होगा कि हम गलतियाँ करते चले बाजू लगा दंगे। परन्तु पिता समझदार थे, उसने कहा, ठीक है, आज में बच्चे को घर ले जाता हूँ. कल हम यहाँ आ जाएंगे रात को तीन बजे के करीब बच्चे को लेकर वह मेरे पास आया। जा रहे हैं। अब तक बहुत सी गलतियों कर चुके हैं। क्या अब और भी गलतियाँ करते चले जाएंगे या अब हम विवेकशील हो जाएंगे विवेक बाहर 25 चैतन्य लहरी ॥ खंड : X1 अंक : 5 8.6, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-31.txt मैंने कहा ठीक है. मैं इसे ठीक कर दूँगी अगले बच्चा ठीक हो गया, पूरी तरह से ठीक हो गया। दिन जब वे बच्चे को अस्पताल ले गए तो मुझे इसके विषय में जानकारी होने के बारे में वे हैरान थे। माँ किस प्रकार जानती हैं कि यहाँ कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि इसकी बाजू कोई बच्चा बीमार है? तो मैं कहूँगी यह शुद्ध ज्ान है। मेरा चित हमेशा आप पर होता है। वह मेरे से पूछे बिना, मेरी राय जाने बिना सदैव आप लोगों को प्रचालित करता हुआ। डॉक्टर के पास भागेगा। वे सहजयोगी हैं फिर मैं आपके विषय में सभी कुछ इसलिए जान भी डॉक्टर के पास दौड़ेंगे। डॉक्टर जब कुछ लेती हूँ कि मेरा चित्त सर्वव्यापी है। आपके साथ कोई भी घटना यदि होती है, कोई भी सहजयोग में वहुत से चमत्कार घटित हुए परेशानी जब आपको होती है, कोई भी हैं और उनमें आपको देखना चाहिए कि विवेक परिवर्तन जब आपमें होता है तो मेरा चित्त सहायक होता है। नि:सन्देह मेरा चित्त सदैव वहां पर होता है। तुरन्त मैें जान जाती हैं कि आप लोगों पर होता है परन्तु आपको इसे कहीं कुछ खराबी है और न जाने किस प्रकार मेरा चित्त उस स्थान विशेष पर पहुँच जाता हैं और वहाँ के हालात को सुधार देता है जरूरतमन्द हुई थी मेरी इच्छा हुई कि मैं न्यूयार्क आश्रम को लोगों की यह सहायता करता है। इस चित्त का फोन करूं। प्रायः वहाँ में कभी टेलीफ़ोन नहीं में कुछ नहीं करती परन्तु यह चित्त विवक है। इस डॉक्टर ने कहा, "अब चीर-फाड करने की ठीक है।" फ़र्क देखें। एक व्यक्ति चिंतित है तो करने लगेगा तो वे मैरे पास आएंगे। अधिकार रूप में नहीं मान लेना चाहिए। आपको याचना करनी चाहिए। एक दिन में यूँ ही वैठी करती. टेलीफोन का नम्बर ढूँढकर फोन करके है ऐसा विवेक जो चहुँ ओर फॅलता "क्या बच्चा ठीक है?" वहाँ का विवेक के द्वारा आप जान जाते हैं कि दूसरे व्यक्ति में या संस्था में क्या खराबी है? सहजयोग मैंने पूछा. अगुआ हैरान हो गया क्योंकि एक बच्चा पानी में गिर गया था और काफी देर तक पानी में रहने के कारण उसके शरीर में पानी भर गया था यहाँ के माध्यम से ही आप ये जान सकते हैं। यदि आप जानना चाहें तो आप सभी कुछ जान जाते हैं। जिस प्रकार आप सर्वत्र प्रसारित हो सकते है, उसी प्रकार आप जान सकते हैं । आपको तो यदि सन्देश भेजना है तो टेलीफोन करना पड़ेगा। तक कि उसके मस्तिष्क में भी पानी भर गया था। सदा की तरह एक चिकित्सक ने कहा कि बच्चा बच नहीं सकता और यदि बच भी गया तो वह सामान्य नहीं हो सकता। मैने कहा, चिन्ता मत करो। मैं नहीं जानती थी, किसी ने मुझे बताया भी न था। आप लोग चिन्ता मत करो परन्तु मरे लिए ऐसा करना आवश्यक नहीं है। मैं तो बस जान जाती हूँ। यह शुद्ध अबोध विवेक की देन है पावन विवेक शिशु सम है। यह सर्वत्र है, सन्देश भेजता है और बताता है बच्चा पूरी तरह से ठीक हो जाएगा| वे हैरान हो गए कि मैंने किस प्रकार ऐसा कहा? सरबंप्रथम तो इसलिए हैरान हुए कि मुझे कैसे सब कि मामला क्या है, समस्या क्या है? सहजयोग से बहुत से लोग रोग मुक्त हो गए हैं। यदि वे पूछे, " श्रीमाताजी हम किस प्रकार ठीक हो गए. आपने क्या किया? क्या आपने हमारे चक्रों को पता चला कि बच्चा गिर गया है और इस प्रकार का कोई बच्चा भी है, तथा मैने ये किस प्रकार कहा कि बह पूरी तरह ठीक हो जाएगा! और देखा, क्या आपने पता लगा लिया कि हममें क्या 26 चैतन्य लहरी । खंड : XI अक : 5 & 6. 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-32.txt सब मूर्खतापूर्ण चीजें, जो हमने अपना ली हैं, कभी कभी हमें शुद्ध ज्ञान से दूर कर देती हैं और शुद्ध ज्ञान के बिना हम नहीं जान सकते कि क्या हो रहा है? छोटी-छोटी- चीजों के लिए आप भयभीत हो जाते हैं, परेशान हो जाते हैं। सहजयोगियों को परेशान होते देखकर बहुत हैरानी कमी है?" नहीं मैंने ऐसा नहीं किया. इसे छोड़ दिया, अपने विवेक में। मैं ये सब चीजें परम चैतन्य पर छोड़ देती हूँ। यही रहस्य है। मुख्य बात ये है कि क्या आप अपने विवेक में परम चैतन्य पर सभी कुछ छोड़ सकते हैं? यदि नहीं तो अभी तक आपने अपने अन्दर वास्तविक ज्ञान का अनुभव नहीं किया। कुछ लांगों का यही स्तर है। और मैं विश्वास नहीं कर पाती कि होती है। साधकों में यदि कोई समस्या है और वे यदि सहजयोगी हैं तो वे साक्षी भाव से समस्या आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् सभी को देखेंगे ऐसा यदि आप नहीं कर सकते तो लोग इस शुद्ध ज्ञान से परिपूर्ण हो जाते हैं कि नहीं। कुछ तो हो जाते हैं, परन्तु सभी नहीं, वे नहीं है। लोग कहते हैं कि भगवान शिव का अनुभव से सीखते हैं । लोगो से मिलने जुलने से सीखते हैं। परन्तु शुद्ध विवेक को पा लेना उनके लिए कठिन है क्योंकि वे परम चैतन्य पर पूरी तरह से निर्भर नहीं करते। सभी कुछ होता है केवल परम चैतन्य इसके विषय में जानता है आप सहजयोगी नहीं है। यह अभ्यास की तरह आशीर्वाद पाने के लिए 108 बार उनका नाम जपना आवश्यक है। ये कोई आवश्यक नहीं है। भगवान शिव इसे पसन्द नहीं करते। इस तरह से नाम लिया जाना किसी को अच्छा नहीं लगता। कोई यदि आपके दरवाजे पर आकर हर समय आपक नाम पुकारता रहे तो आप उस भगा देंगे । करता है। यह ऐसी ऊर्जा है जो सभी कुछ तो ये कोई तरीका नहीं है। ये गलत विचार हैं करती है। परम चैतन्य सभी कार्य करता है। कि किसी देवी-देवता का नाम आप निरंतर किस प्रकार यह सब कुछ चलाता है! किस उच्चारण करते रहें और वह आपकी सहायता करे। सर्वप्रथम आपको इतना विवेकशील होना कल मैंने आपको वर्षा के विषय में होगा कि आप समझ सकें कि आप परम चैतन्य बताया। वर्षा आई और चली गई। यह विवेक , वही समझता है, आयोजन करता है और प्रेम प्रकार सभी संयोगों का आयोजन करता है। के अंग प्रत्यंग है। इसी से सभी कार्य हो जाएंगे परम चैतन्य सभी कुछ सुन्दरता पूर्वक करता है। नि:सन्देह कुछ लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। मैं नहीं कहती कि ऐसा नहीं है जानते कि जब फूल यहाँ आते हैं तो इतने परन्तु कठिनाई इतनी कठोर भी नहीं है क्योंकि आपकी एकाकारिता यदि परम चैतन्य से है और आप जानते हैं कि वह कार्य कर रहा है तो आपको कठोरता या रुग्णता महसूस ही नहीं वे कैसे जानते हैं? क्योंकि वे प्राकृतिक हैं और होगी सभी लोग मुझे अपनी समस्याओं के हम बनावटी। बहुत सी बनावटों को हमने जीवन विषय में लिखते हैं। मेरी समझ में नहीं आता का अंग-प्रत्यंग बना लिया है। सभी प्रकार के कि क्या कहूँ। आप केवल इतना बताएं कि क्या आप परम चैतन्य में विश्वास करते हैं? ठीक है, था। अन्तर्जात रूप से यह जानती है कि मैं यहाँ विराजित हूँ, कार्यक्रम चल रहा है, यह रुक जाती है। फूल भी मुझे जानते हैं। आप नहीं छोटे-छोटे होते हैं। मैं उन्हें कुछ भी नहीं करती। परन्तु वे बढ़ने लगते हैं और बढ़कर बहुत बड़े हो जाते हैं। कोई भी कह सकता है कि श्रीमाताजी की शिष्टाचार आदि, दिखावटी विनम्रता को देखें। ये 27 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 5 & 6. 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-33.txt होती और यदि उनके अनुभव आप सुनेगे ता यह जानता है कि क्या करना है, किस चीज का हैरान हो जाएंगे। किस तरह से परम चैतन्य कार्य सृजन करता है और क्या कहना है। यह कविता, संगीत आदि किसी भी चीज का सृजन कर करताी है। बे यदि जीवित न रहना चाहे तो जा भी सकते हैं। परन्तु यदि वे जोवित रहना चाहे तो परम चैतन्य उनकी इस इच्छा को देखता है और वे लम्बे समय तक जीवित रह सकते हैं । सकता है। परन्तु क्या आप सभी कुछ परम चैतन्य पर छोड़ते हैं? विवेकशीलता का यह दूसरा सूत्र है-क्या आपमें सभी कुछ परम चैतन्य पर छोड़ने का विवेक है। इतने अनुभवों परन्तु चिरायु का यह अभिप्राय नहीं है कि आप के बाद भी? जैसे एक महिला अपनी कार से अपने धन के चक्कर में ही लगे रहें कि आप जा रही थी उसने देखा ये कि कार के ब्ेक नहीं किस प्रकार निर्वाह करेंगे, साधन क्या होगा? लग रहे हैं। उसकी समझ में नहीं आया कि क्या सभी बेवकूफी की बातें और चिन्ताएं आपमें आ किया जाए? ब्रेक बिल्कुल समाप्त हो गए थे। कार को कैसे संभाला जाए? ये किस्सा जर्मनी करते रहो चिन्ता। तुमने यदि चिन्ता करनी है तो का है। सभी गांड़ियाँ तेज रफ्तार से दौड़ रही थों करो। जो घटित होना है हो जाएगा कोई चिन्ता और महिला की समझ में नहीं आ रहा था कि की बात नहीं, जो भी कुछ घटित होना है होना क्या करें? उसने अपना सिर स्टीयरिंग व्हील पर है। परन्तु यदि हम परम चैतन्य पर छोड़ दें तो जाती हैं। तब परम चैतन्य कहता है, ठीक है, यह दखलन्दाजी कर सकता है। बार-बार कहते रख दिया और कहा कि मैं सभी कुछ परम चैतन्य पर छोड़ती हूँ"। कहने लगी. "श्रीमाताजी मैं आप पर छांडती हूँ, ठीक हैं, इतना कहने भर मैं नहीं जानती कि परमात्मा का अर्थ क्या है से जानते हो क्या हुआ? कहने लगी. "श्रीमाताजी मैं नहीं जानती कि क्या हुआ जब मैने सिर जीवन्त परमेश्वरी शक्ति जो सभी कार्य कर रही उठाया तो देखा कि कार सड़क के एक किनारे है। तो विवेकशीलता को देखने का दूसरा तरीका पर खड़ी हुई थी परन्तु वहाँ कोई भी व्यक्ति न था। सभी कारें तेजी से गुजर रही थीं परन्तु किसी शक्ति ने उस कार को बड़ी अच्छी तरह से एक ओर कर दिया था। तो परम चैतन्य की कार्यशैली को समझने में ही विवेकशीलता हैं किस प्रकार यह पथ-प्रदर्शन करता है. किस हिल सकता। यह इस प्रकार जुड़ा हुआ है, सर्वत्र प्रकार सहायता करता है, किस प्रकार आपकी विद्यमान है कि लोग समझते ही नहीं कि वे क्या हैं कि परमात्मा पर, परमात्मा पर छोड़ दो। परन्तु परमात्मा ही परमचैतन्य हैं। परमात्मा का अर्थ हैं ये है कि हम समझे कि इस विश्व का जरा-जरा परमात्मा ने, परमेश्वरी शक्ति ने बनाया है और इस सृष्टि का कण-कण पूरी तरह से परम चैतन्य के पथ- प्रदर्शन और उनकी देख-रेख में है। परम-चैतन्य की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं कर रहे हैं और उन्हें क्या करना चाहिए था। रक्षा करता है और किस प्रकार इस पर निर्भर होकर आप प्रसन्नता पूर्वक जीवन गुजार सकते भिन्न स्तरों पर आप घटनाएं होती देख सकते है| हैं! मेरे विचार से सहजयोग में बहुत कम सहजयोगियों की मृत्यु हुई है। उनकी आयु बहुत लम्बी होती है। उनकी असामयिक मृत्यु नहीं मान लो अब अमेरिका में कुछ घटित हो रहा है तो ये जानने का प्रयत्न करें कि अमेरिका ने अन्य देशों के साथ क्या किया। तुरन्त आपको उत्तर मिल जाएगा। परम चैतन्य पर विश्वास 28 चैतन्य लहरी । खंड : X अंक :5 86, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-34.txt करने वाले उसके हाथों में सभी कुछ समर्पित दूँगी। विवेक मूर्ति श्री गणेश ने सोचा कि मेरी माँ करने वाले व्यक्ति का यह पूरा ध्यान रखता है। से महान कौन है? वो जानते थे कि वे मोर वाहन वाले अपने भाई कार्तिकेय का मुकाबला नहीं कर सकते, तो उन्होंने सोचा कि मेरी माँ सबसे महान है और अपनी माँ की तीन परिक्रमाए हम पुलिस, डॉक्टरों और इंजीनियरों के हाथ में चीजें दे देते हैं। वे गलतियाँ कर सकते हैं और समस्याएं खड़ी कर सकते हैं। परम चैतन्य पर सब छोड़ दें यह इतनी कुशल शक्ति है कि अपने जीवन में मैंने देखा है कि सदैव यह बहुत लिया। कार्तिकंय जब आए तो उन्हें पता लगा करके कार्तिकय के आने से पहले इनाम जीत अच्छा कार्य करती है। पुणे में मैं एक घर बना रही थी। वहाँ पर मुझे एक बहुत बड़ा शिलाखण्ड (Slab) बनाना था जिसके लिए तीन सौ बोरी सीमेंट. की आवश्यकता थी। हमने सीमेंट मंगाया, कार्य करने वाले लोग भी आ गए, परन्तु उन्होंने कहा, कि वे हार गए है। तो बार-बार में यह बता रही हूँ कि विवेक बहुत सहायक है। परन्तु एक आधुनिक व्यक्ति के लिए सभी कुछ परम चैतन्य पर छोड़ पाना बहुत कठिन है। वह दो जमा दो भी नहीं कर सकता। कम्प्यूटर आदि मशीनां ने मनुष्य को इतना दास बना लिया है कि वह हिसाब-किताब के योग्य नहीं रहा। में कम्प्यूटर या कैलकुलेटर चलाना नहीं जानती परन्तु यदि आप मुझसे पूछे कि यह हिसाब कितना होगा तो मैं तुरन्त बिल्कुल ठीक बता दूंगी। जो मैं कहूंगी वही ठोक होगा। किसी व्यक्ति को भ्रमित करने सुबह जल्दी इसे शुरु करेंगे तब अगली सुबह, 24 घण्टां में यह समाप्त होगा। मैने कहा ठीक पाँच बजे शुरू हुआ है। कार्य सुबह और शाम को पाँच बजे मैने कहा, आओ चलें, कार्य समाप्त हो गया है। सबने पूछा. आपको कैसे पता चला? मैंने कहा, मैं जानती हूँ, आओ चलें। तो आप कल्पना करें कि बारह घण्टे में कार्य समाप्त हो के लिए, निश्चित रूप से, मैं कभी-कभी कुछ गलत चीजें कह देती हूँ। परन्तु प्राय: मैं जानती हूँ कि ठीक क्या है? मेरा जानना आम लोगों सा गया था और मजदूर बाहर आ रहे थे। सबने कहा, 'श्रीमाताजी यह तो चमत्कार है। इतना नहीं होता। मैं तो बस जानती हूँ। इसी प्रकार बड़ा शिलाखण्ड इतने कम समय में किस प्रकार बन पाया?' उन्हें समझाने के लिए मैंने कहा कि हो सकता है श्री हुनुमान जी ने यह कार्य किया आप भी बस जान लें। मैं आपको उस सीमा तक ज्ञान विकसित करने के लिए नहीं कह हो। ये सब लोग, सभी देवी-देवता परम चैतन्य रही। परन्तु विवेक तो आपको विकसित करना ही होगा। विवेक का उपयोग जब आप करने लगेंगे तो यह सदैव आपको उपलब्ध होगा। कोई सभी देवी-दंवता, सभी कोई, उनके बच्चे हैं भी कार्य जो आप करते हैं उसमें विवेक के और उनकी इच्छा और आज्ञा से चलते हैं। श्री विषय में सोचें। आप लोगों को मेरी सलाह कि जिस प्रकार आपकी माँ सारा कार्य करती है. के अंग-प्रत्यग हैं। आप लोग माँ की पूजा कर रहे हैं। माँ की पूजा करना सर्वोत्तम है क्योंकि ये गणेश की एक कथा है, जो शायद आप जानते हैं। माँ ने श्री गणेश और श्री कार्तिकेय जी से आप सबको प्रेम करती है और जो लोग कहा, कि आप दोनों में से जो भी पृथ्वी माँ के तीन चक्कर लगा करपहले आएगा उसे मैं इनाम आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं उनकी भी चिन्ता करती है, उसी प्रकार आप भी सहजयोग में अधिक से 29 चैतन्य लहरी खड : XI अंक : 5 & 6, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-35.txt चाहे आपको ज्ञान प्राप्त है फिर भी आप उस व्यक्ति से पूछे। वह आपको बहुत बड़ा भाषण दे अधिक लोगों को लाने का प्रयत्न करें। आपका आचरण यदि ऐसा हो कि हर समय आप यही कहते रहें कि तुम्हें ये पकड़ है, भूत-बाधा है, डालेगा। तब आप कहें, नहीं ऐसा नहीं है, तुम ऐसे हो, तुम वैसे हो तो ये ठीक नहीं है। मुस्कुराते रहें, बात ऐसी नहीं है। सत्य ये है कि मैने कभी किसी से इस प्रकार व्यवहार नहीं सच्चा ज्ञान आपके अस्तित्व की अंग-प्रत्यंग है T किया। तुम्हें भी इस प्रकार नहीं कहना चाहिए। ये आपके अन्तर्निहित है । ये कोई ठोस पदार्थ यह प्रेम नहीं है, सुझ-बूझ नहीं है। वास्तविकता नहीं जिसे आपने पढ़ लिया या समझ लिया. यह ये है कि आप भी उसी व्यक्ति जैसे थे और तो आपके अन्दर प्रकाश बन गया है वह प्रकाश विद्यमान है। ये बताने के लिए आपका अब आपको ज्ञान प्राप्त हो गया है। अपना ज्ञान आपको दूसरे व्यक्ति को सुधारने के लिए उपयोंग करना चाहिए न कि उसे नीचा दिखाने के लिए पदाधिकारी होना आवश्यक नहीं है इस प्रकार सुधारने का अर्थ जुबानी जमा खर्च करना नहीं है। कंवल अपनी चैतन्य लहरियों के निवास है। बहुत अधिक पढ़ा-लिखा, बुद्धिमान बा उच्च ह आपकी हृदय शुद्ध हो जाएगा। हदय में इसका से ही आप दूसरों को सुधार सकते कल्पना करें कि अन्य सारा ज्ञान मस्तिष्क माध्यम में निवास करता है जबकि शुद्ध ज्ञान हृदय में विराजमान है। अत्यन्त हैरानी की बात हैं कि हैं। मैंने देखा है कि कभी-कभी सहजयोग का सारा कार्य इसलिए रुक जाता है क्योंकि हम बहुत अधिक व्यवस्थित हैं। तरह से लोगों को कहानियाँ सुनाने लगते हैं जिससे वे तंग हो जाते हैं। अत: लोगों को हम ये नहीं जानते कि वास्तव म हमारा हृदय महान गुरुओं की मस्तिष्क को चलाता है। हृद्य के इदं गिर्द सात परिमल (Auras) हैं जो मस्तिष्क को इस प्रकार नियंत्रित करते हैं कि हम परम चैतन्य के हाथों में कार्य करें। जब सहजयोग के विषय में बताते हुए हमें ज्ञान का तक आपका हृदय शुद्ध नहीं है, जब तक आपके हृदय में व्यक्ति की सुन्दर तस्वीर नहीं हैं जो अत्यन्त शुद्ध है, आप कोई भी कार्य मानसिक रूप से नहीं कर सकते, और अपने हृदय से यदि आप कार्य करना चाहते हैं तो आपके हृदय और विवेकशील होना आवश्यक प्रसार करना है। यह महत्वपूर्ण हैं। ज्ञान हमे अपने तक सीमित नहीं रख सकते। परन्तु ऐसा किसी महत्वाकाँक्षा के लिए, नेतृत्व पाने के लिए या किसी भी प्रकार की मान्यता प्राप्त करने के लिए नहीं करना चाहिए। अपने विवेक और ज्ञान का उपयोग हम प्रेमवश अन्य लोगों की सहायता का अत्यन्त शुद्ध है। यह एक ऐसा सत्य है जिसमें व्यक्ति को कूदना पड़ेगा-कि अपने हृदय को विवेकशील बनाना है। उदाहरण के रूप में कसी से बहुत अधिक लिप्त होना, किसी व्यक्ति विशेष से करने के लिए करते हैं, मान्यता या पद प्राप्ति के लिए नहीं। ऐसा हम प्रेम के कारण करते हैं। मुझे विश्वास है कि यह प्रभावशाली ढंग से कार्यान्वित हो जाएगा और जिन व्यक्तियों की सहायता होगी वे आपसे बँध जाएंगे क्योंकि उन्हें एकाकारिता करना दर्शाता है कि आपका हृदय शुद्ध नहीं है। इसमें बहुत से बन्धन हैं, अपने सच्चा ज्ञान मिल जाएगा। मान लो कोई आकर आपसे कहता है कि मैं सच्चा ज्ञान जानता हूँ। हृदय को पूरी तरह से खोल लें, क्योंकि कहा 30 चैतन्य लहरी ॥ खड : XI अक : 5 &6, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-36.txt जाता है कि देवी का निवास हदय में मध्य हृदय उन्हें प्राप्त करने के लिए हम स्वयं क्या में वे इसलिए विराजमान हैं क्योंकि वे अत्यन्त संतुलित हैं। शक्ति के रूप में वे मध्य हृदय में है? ऐसा कुछ विशेष करने के लिए भी नहीं विराजित है और आपकी सभी इच्छाओं को पूर्ण है, केवल गहन श्रद्धा और गहन सूझ-बूझ करती है। देवी आपके अन्दर स्थापित हो जाती विकसित करनी होगी और ये गहनता पूरी है और जिस प्रकार श्लोकों में कहा गया है वे तरह से संभव है क्योंकि अब आप उत्थान करने वाले हैं, अभी तक हमने क्या किया ज्ञान, स्मृति, निद्रा तथा भ्रान्ति के रूप में आपके अन्दर स्थापित हैं ब ही हमें भ्रम में डालती हैं क्योंकि अभी तक हम पूर्ण नहीं हैं। हमें परिपक्व होना है। जब तक हम परिपक्व नहीं हुए आप सब परम चैतन्य माँ (देवी) स्वयं आपको भ्रम में डालती हैं और चैतन्य पर निर्भर होना अत्यन्त आवश्यक है पथ पर अंग्रसर हैं। आज कबैला में यह अन्तिम पूजा है और एक माँ के नाते मैं आपको बताना चाहती हूँ कि पर निर्भर रहे परम है यह कुछ लोगों में दूसरों को दोष देने की आदत भी आपके इर्द-गिर्द लीला करती हैं ताकि आप विवेक सीख सकें। तो व्यक्ति को समझना है है जैसे मुझे उस व्यक्ति से पकड़ आ गई. फला कि देवी आपके इर्द-गिर्द लीला कर रही हैं व्यक्ति से पकड़ आ गई। आप अपनी ही इसालिए आपको चाहिए कि अत्यन्त सावधान रहें, उनकी माया में न फँसे। उनकी माया में यदि आप फँस गए तो गोल-गोल घूमते रहेंगे. कहीं पहुँच न पाएंगे। पकड़ में हैं, ये सब बेकार के विचार हैं। अपना सामना करें अपने बारे में जाने और स्वयं को पूर्ण बनाएं। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि इस समय विशेष में लोग सोचते हैं कि कुछ महान घटित होने वाला है। मैं नहीं जानती। वर्ष दो हज़ार, उनके अनुसार, कुछ महान होगा, अत: भ्रान्ति रूपी यह शक्ति अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आप इसे भ्रान्ति कह सकते हैं या वह शक्ति जो एक नाटक का सृजन करती है, में नहीं जानती, क्यांकि यह सब मानव रचित हैं। जिसमें आप एक मूर्ख व्यक्ति हैं जिसे खोजा जा रही है। भ्रान्ति की यह सृजन वे मूर्खता निवारण के लिए करती हैं मानव क्योंकि कोई भी बात जैसा बहुत से महान सन्तों ने भविष्यवाणी भी सीधे से नहीं समझता इसलिए इस भ्रान्ति की की है। सम्भवत: आप लोगों की सूझ-बूझ तथा शक्ति की आवश्यकता पड़ती है। भ्रान्ति में विवेकशीलता के कारण. मुझे विश्वास है. इस फँसकर गोल-गोल घूमते हुए वे उस स्थिति तक पहुँचते हैं जहाँ वे समझ जाते हैं कि श्री माताजी चीजें सूझ बूझ तथा आध्यात्मिकता के उपयुक्त की ये लोला ही उन्हें विवेक के इस तट तक ये दो हज़ार वर्ष और तौन हज़ार वर्ष सब मानव की रचना हैं। मैं स्वयं ये महसूस करती हूँ और विश्व में कोई महान घटना घटित होगी और स्तरपर लाई जा सकेंगी। क्योंकि ये अन्तिम निर्णय है और इसमें आपको अत्यन्त महत्वपूर्ण ले आई है । अतः ये देखना महत्वपूर्ण है कि परम चैतन्य ने हमारे लिए इतना कुछ किया है। भूमिका निभानी है। मेरा विश्वास है कि भविष्य श्री माताजी ने इतना कुछ किया है। हमें पूर्णतः के लिए कुछ प्राप्त करने का निर्णय यदि आप उन्नत एवं प्रकाश रजित होने के लिए कर लें तो आप यह कार्य कर सकते हैं । श्रीमाताजी ने जो शक्तियांँ हमें प्रदान की हैं परमात्मा आपको धन्य करें। 31 चैतन्य लहरी ॥ खंड : X1 अंक : 5 &6, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-37.txt आदिशक्ति पूजा, सेमीनार-1998 19 से 21 जून 1998 को परम पूज्य को सुना और उनके पश्चात् उनकी प्रसिद्ध माताजी श्री निर्मला देवी की कृपा से साक्षात् सरोद-बादक पत्नी को। उनकी पत्नी ने जन्मोत्सव आदिशक्ति के रूप में उनकी पूजा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। डच, बेल्जियम. स्पेनिश सरोद बजाया था यह कार्यक्रम प्रातः तीन बजे तथा स्केण्डिनेविया के सहजयोगिं ने इस पूजा समारोह में दिल्ली में भी श्रीमाताजी के सम्मुख तक चला। श्रीमाताजी ने सभी सहजयोगियों को इस प्रकार के अद्भुत संगीत को समझने की सूझ-बूझ विकसित करने का अनुरोंध किया। का आयोजन किया। हैंगर को कबैला से उठाकर कासल (किला) के समीप नदी तट पर स्थित अल्बेरा नामक रमणीय स्थान पर लाने में उन्हें उन्होंने कहा कि आधुनिक युग में भारतीय लोगों खासी कठिनाई का सामना करना पड़ा। यह ने अपनी संगीत परम्परा में दिलचस्पी खो दी है स्थान गाँव से तीन किलामीटर दूर स्थित है। और केचल सहजयाोग के माध्यम से ही यह बृहस्पतिवार प्रातः तक वहाँ कुछ भी न था। परन्तु शनिवार साँय श्री माताजी की उपस्थिति में सभी सहजयोगियों ने वहाँ कार्यक्रम का आनन्द लिया। दो चमत्कारिक फोटो लिए गए। एक महान् संगीत चलता रह सकती है। तत्पश्चात् मजबान देशों का कार्यक्रम आरम्भ हुआ। यद्यपि उन्होंने सभी एकल प्रदर्शन रद्द कर दिए फिर भी कार्यक्रम प्रातः साढे चार बजे तक चला। अद्वितीय एवं गहन लय के उपयोग के लिए श्री माताजी ने स्पेन के सहजयांगियों की को मंगलमयता प्रदान करते हुए दिखाई दे रहे बहुत प्रशंसा की। बहुत सुन्दर भजन गाए गए तथा बेल्जियम सहजयोगियों द्वारा सुन्दर भरतनाट्यम का प्रदर्शन किया गया। अब सभी महिलाएं नृत्य सीख रही हैं और उन्होंने सहज भजनों के संगीत हैंगर लगाने से पूर्व और दूसरा हैंगर लगाने के पश्चात्। दूसरे फाटो में श्री गणेश जी उस स्थल हैं। नए स्थान पर कारें खड़ी करने के लिए काफी स्थान है और आराम करने तथा खान-पान को लय पर नृत्य तैयार किए है। श्री माताजी ने बताया कि परस्पर मनोरंजन करना भी देवी गुण है। हमारे सोने के समय मुर्गे बाँग दंकर मुर्गियां को जगा रहे थे। के लिए पेड़ों की पर्याप्त छाया है। नदी केवल सौ मीटर है और योगियों ने अपना अधिकतर दूर समय या तो पानी पैर क्रिया करने में या तो स्नान करने में बिताया गाँव से बाहर स्थित होने के कारण यहाँ आइसक्रीम आदि खाने का लालच नहीं होता। पूरा सप्ताहान्त हमने सहजयोगियों थी. इसीलिए काफी गड़बड़ इस स्थान पर क्यांकि यह पहली पूजा के कुछ क्षणां का भी सामना करना पड़ा। सप्ताहान्त में कई बार के साथ बिताया। हैंगर लगाने का कार्य शनिवार रात को कार्यक्रम में उतार-चढ़ाव आए परन्तु अन्तिम बहुत देर से समाप्त हुआ इसीलिए श्री माताजी के साक्षात् में कार्यक्रम लगभग साढ़े ग्यारह वजे क्षण सभी कुछ चमत्कारिक रूप से सहज एवं सुन्दर हो गया था। पूजा का समय सात बजे सांय घोषित आरम्भ हुआ। सर्वप्रथम हमने एक सितार वादक 32 चैतन्य लहरी खंड : X1 अंक : 5 & 6. 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-38.txt किया गया। परन्तु श्रीमाताजी नौ बजे के थोड़ा कारण रात को सफर करने वाले सहजयोगियों सा बाद में आई। अंकल गविडो ने रूस यात्रा की घटनाओं का अर्णन किया। श्रीमाताजी ने उन्हें चले गए। जिन सहजयोगियों को हैंगर में सोने इसके विषय में बताने के लिए कहा था। रूस में एक प्रसिद्ध भौतिक वैज्ञानिक हैं, जो वैज्ञानिक सराबोर वातावरण ने प्रेम पूर्वक सुला दिया। पूजा रूप से यह प्रमाणित कर सकते हैं कि श्रीमाताजी का शान्त वातावरण पूरी रात और अगली सुबह ही चैतन्य लहरियों का सरोत हैं। अन्त में हर एक दम अपना सामान बांधा और शीघ्रता से का सौभाग्य प्राप्त हुआ उन्हें चैतन्य लहरियों से तक हम पर छाया रहा। सुबह उठकर जब हम चीज़ का उद्भव उन्हीं से है। अपने प्रवचन में अपना सामान बांधने लगे, तब भी सुरक्षा की श्रीमाताजी ने इस वैज्ञानिक के विषय में बताया और पहली बार कहा, कि वे एक दूसरी पुस्तक हम विश्वस्त थे. कि विना किसी प्रयत्न के लिख रही हैं, जो शीघ्र ही पूर्ण हो जाएगी। वह भावना हमारे रोम-रोम में बसी हुई थी और हमारे जीवन की छोटी-छोटी आवश्यकताओं की देखभाल की जा रही हैं। देवी की छत्र-छाया में पूजा अत्यन्त सुखद परन्तु सशक्त धी। डच योगियों द्वारा सजाई तथा रंग-रोगन की गई शान्ति एवं आनन्द का अनुभव करते हुए चलते एक विशाल पवन चक्को इस अवसर का स्मरणीय तोहफा था। लगभग एक बजे प्रातः श्रीमाताजी ने प्रस्थान किया। देर रात होने के जाना कितना अद्वितीय है! -लक्ष्मी वार्ड, जर्मनी और नैन्सी कुमार यू.एस.ए, विश्व सहज समाचार दक्षिणी अफ्रीका से समाचार र दक्षिणी अफ्रीका के ग्रहम टान कला में सहायक हाुए! एक बरतानवी सहजयोगी समारोह में सहज कार्यक्रम आशा से कहीं अच्छे कृपा करके दो महिलाओं का वहाँ आनं का खर्च वहन किया. ताकि वे केवल अफ्रीकी भाषाए हुए। बहुत से लोगों ने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया और उपस्थित सहजयोगियों ने बहुत आनन्द बोलने वाले जिज्ञासुओं को सहजयोग के विषय लिया। परन्तु कुछ अनायोजित घटनाओं ने सप्ताह को चमत्कृत कर दिया। जुलाई में दस दिन पूरा पहुँची तथा तीस अन्य सहजयोंगी दक्षिणी अफ्रीकां शहर इस कला समारोह में जुटा रहता है और के दुरान्त प्रदेशों से आए। एक कमरे में हमने विश्व भर से विशेष कर दक्षिणी अफ्रीका से लोग वहाँ आते हैं। दक्षिणो अफ्रीका के स्तर के अनुसार और नृत्य के दो परिचयात्क कार्यक्रम हमने काफी बड़ी संख्या में सहजयोगी इस कार्यक्रम किए। एक दूरदर्शन साक्षात्कार दिया और कई में बता सकें। एक सहजयोगिनी फ्रांस से वहाँ सहज प्रदर्शनी लगाई और आत्मसाक्षात्कार दिया जा रहा था। भजन , जहाँ भजन चल रहे थे 33 चतन्य लहरी X1 अक : 5 & 6. 1999 । खंड़ : 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-39.txt लिन्डा विलियम दक्षिणी अफ्रीका। लेख समाचार पत्रों के लिए लिखे। इसी समय श्रीमाताजी का कार्यक्रम लंदन में था और दक्षिणी अरूबा, वैस्टइंडीज समाचार दक्षिणी वैस्ट इन्डीज के छोटे से टापू अफ्रीका के ग्रहम टाउन की नींव भी वहां आए बर्तानवी लोगों ने रखी थी। बाहर से आए सभी सहजयोगी. शहर से तीस किलोमीटर दूर स्थित एक फार्म हाउस पर वादें नामक दम्पति कुछ समय पूर्व अरुबा रहते रुके। इस प्रकार पूरा कार्यक्रम सहज सामूहिकता थे और अपने टापू में सहजयोग प्रचार करने में में परिवर्तित हो गया। हमने वहाँ हवन किया प्रयत्नशील थे गत वर्ष जब श्रीमाताजी तथा काफी नृत्य एवं संगीत हुआ। सोवेटो की लॉस-एन्जल्स में थीं तो उन्होंने श्रीमाताजी के महिलाएं आत्म साक्षात्कार देने में आगे रहीं। जहाँ भी वे गई-चाहे प्रदर्शनी के स्थल अरूबा' से यह समाचार है। निखिल और रानी दक्षिणी अफ्रीका आने का निमन्त्रण इ-मेल द्वारा भेजा। श्रीमाताजी को उनका निमंत्रण दिया गया। तब से रानी और निखिल को उनके कार्यक्रम में पर या कार खराब होने की स्थिति में सडक के किनारे, लोगों ने उनसे आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया और शीतल लहरियों का आनन्द लिया। उनकी गर्मजोशी, समर्पण तथा श्रीमाताजी के कार्यक्रम किया जिसमें 350 से भी अधिक अपार सफलता मिल रही है। इन गर्मियों में उन्होंने एक बहुत बड़ा आदिशक्ति रूप पर पूर्ण श्रद्धा हम सबके लिए लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ कार्यक्रम समाप्त होने के समय तक हाल पूरा भर चुका उदाहरण थी। शहर के पहले कार्यक्रम में, (Xhasa था। समय पर पहुँचना अरूबा के लोगों के लिए प्राप्त हो गया तो उन्होंने अपनी मूल भाषा में हमें बड़ा कठिन कार्य है। चैतन्य लहरियां बहुत तेजी भजन सुनाने का निर्णय लिया। दक्षिणी अफ्रीकन से बह रही थीं और लगभग सभी लोगों राष्ट्रीय-गान गाकर उन्होंने हम सबको आनन्दित चैतन्य महसूस किया। कार्यक्रम में सहायता के किया। दक्षिणी अफ्रीकन राष्ट्र गान में कहा है, लिए आए, कोलम्बिया के सहजयोगियों को इतने अच्छे परिणाम पर बहुत आश्चर्य हुआ। सभी कुछ छोटी से छोटी चीज़ भी स्वत: आरम्भ होती चली गई। दो दिनों के कार्यक्रमों के पश्चात स्थानीय आकाशवाणी में कार्यरत एक महिला आई और उसने आकाशवाणी पर सहजयोग पर एक वार्ता देने के लिए कहा। एक अन्य साधक अनुवर्ती कार्यक्रम के लिए आधे-किराए पर सभागार देने को कहा। जय श्री में) जब नए जिज्ञासुओं को आत्मसाक्षात्कार 'परमात्मा अफ्रीका को आशीर्वादित करें', God bless Africa। इसकी एक पंक्ति में प्रार्थना की गई है कि, "हे आदिशक्ति कृपा करके अफ्रीका IS "I Come Holy Spirit, Please come to Africal समारोह के बहुत से अवसरों पर हमें लगा कि श्रीमाताजी वहां मौजूद हैं और बाएं स्वाधिष्ठान के गुणों-आनन्द, सृजनात्मकता एवं सन्तोष -की अभिव्यक्ति करने वाले नए दक्षिणी अफ्रीका का सृजन करने में हमारी सहायता कर रही है और हमें आशीर्वाद दे रही हैं। श्रीमाताजी ने साप्ताहिक माताजी। रानी एवं निखल वादें अरूबा आपका कोटि-कोटि धन्यवाद। दक्षिणी अफ्रीका के सहजयोगियों की शुभकामनाओं के साथ. ाम 34 चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 5 & 6. 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-40.txt भी शीघ्र ही ये पूरे यूरोप में उपलब्ध हो जाएगा। सृजनात्मक अभिव्यक्तियाँ प्रकाश शिशु (Children of the light ) नया आजकल ये जापान में भी उपलब्ध है। इसके निर्माता कि्वी आधुनिक जाज के अत्यन्त ही होनहार लेखक एवं वादक हैं। सी.डी चिर प्रतीक्षित सी.डी. Audio Tap आडियो 24. Children of the Light or Dancing in the Divine Love, का विमोचन कबैला में डॉक्टर यू.सी. राय की यूरोप यात्रा इंटली, आस्ट्रिया, बंल्जियम और हौलेण्ड का डॉक्टर उमेश चन्द्र राय को अभिवादन। ष्ण पूजा (1998) के अवसर पर हुआ। इस टेप का नामकरण स्वयं हमारी परमेश्वरी माँ ने किया, इसमें बहुत सुन्दर चैतन्य-लहरियाँ हैं। जुलाई 1998 में डॉक्टर यू.सी. राय ने इन देशों का दौरा किया। डॉक्टर राय अन्तर्रा्ट्रीय सहजयोग माना, हमारी परमेश्वरी माँ यहां साक्षात् उपस्थित अन्वेषण केन्द्र, नवी मुम्बई. भारत के निदेशक हैं। इस अन्वेषण केन्द्र की स्थापना वर्ष 1996 इनकी रिकार्डिंग करते हुए हमें ऐसा लगा था होकर इस कार्य को कर रही हों। इस टेप की रचना कनाडा के वैन्कोवर में परम पूज्य माताजी श्री निर्मंलादेवी ने की थी। नामक स्थान पर सहजयोगियों ने किया। इसमें यह अन्वेषण एवं स्वास्थ्य केन्द्र विश्व भर में जागों कुण्डलिनी माँ', 'विश्ववन्दिता' तथा रूसी केवल एक मात्र अस्पताल है जिसमें सहजयोग ध्यान-धारणा से विकसित की गई, चैतन्य लहरियों के माध्यम से रोगों का इलाज होता है। इस यात्रा में उन्होंने न केवल दैवी एवं आधुनिक दवाइयों के बारे में लोगों को अवगत कराया, उनकी सहजता एवं हार्दिक विनम्रता की भी भूरी-भरी भजन 1ssue Hristos तथा विश्व भर के सहजयोगियों द्वारा लिखी गई कविताओं पर आधारित सोलह मिनट का संगीत सम्मिलित है। इसके बारे में अधिक सूचना के लिए या इसे मंगाने के लिए वैन्कोवर के किसी भी सहजयोगी से सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है या कैरीगल प्रशंसा हुई। भारतीय चिकित्सा संसार में प्रोफेसर रॉय ( Carrigal) E- Mail से भी सन्देश भेजा जा का नाम चोटी के लोगों में आता है। दैवी भेषज के क्षेत्र में तो वे अग्रणी हैं। भारतीय शरीर शास्त्री सकता है। तथा भेषज विज्ञान संघ दिल्ली के वे अध्यक्ष थे लेडी हार्डिंग मेंडिकल कॉलेंज दिल्ली विश्वविद्यालय की स्नातकोत्तर अन्वेषण समिति नया सी.डी. 'Point of Balance' (सन्तुलन बिन्दु) अमेरिका के सहजयोगी तथा जाज (Jazz) गिटार वादक स्टीवन किवी (Steven Kirby) के चेयरमैन तथा अन्तर्राष्ट्रीय भेषज विज्ञान अकादमी के अधिसदस्य (fellow)। वे महात्मा गांधी का मूल सी.डी. 'Point of Balance' अब अमेरिका तथा कनाडा की प्रसिद्ध दुकानों जैसे मिशन मैडिकल कॉलेज कलाम्बोली, नवी मुम्बई Tower, H.M.V. और Border पर सुगमता से के सेवामुक्त प्रोफेसर भी हैं। उपलब्ध हैं। इसे आर्डर देकर भी मंगाया जा विश्व स्वास्थ्य संस्थान (W.H.O.) के fellow हाने के कारण वे मस्तिष्क अन्वेषण सकता है। इसका सूची नंबर A.L/73124 है। यद्यपि इसका विमोचन करने में देर हुई. फिर संस्थान 1nstitute of Brain Reasearch Zurich; 35 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 5 &6. 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-41.txt शरीर विज्ञान विभाग ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय: दिल्ली विश्वविद्यालय ने एम.डी. की उपाधि के हॉस्पिटल मैडिकल स्कूल लन्दन; और लिए मान्यता दी और तीसरा शोध प्रबन्ध, जो लीडू स विश्वविद्यालय सेक्स कि मिर्गी रोग के उपचार पर था. को पी.एच.डी. की उपाधि प्रदान की गई। बत्ता निया के कार्डियोवस्कुलर विभाग (Cardiovaseular Department) के अतिथि प्राध्यापक थे इसके अतिरिक्त उन्होंने भारतीय मूल चिकित्सा विज्ञान कार्य के दौरान जो तथ्य एकत्रित किए गए, वे में शोध कार्य के लिए हरिओम् आश्रम अलेम्बिक इतने गहन थे कि मानवीय मनोविज्ञान या मनोरागों पुरस्कार तथा 1997 में सहजयोग अन्वेषण तथा दिव्य चैतन्य लहरियों द्वारा पहले दर्जे के मधुमेह क्रान्ति ला सकते हैं इन शोध-कारियों ने वास्तव रोगियों की कोशिकाओं को पुनर्जीवन प्रदान करने के लिए दिव्य चैतन्य लहरियों का उपयोग और विशेष रूप से पराअनुकम्पी करने के लिए मास्को में बलादिमीर वर्निन्दकी (Parasympathetic) नाड़ी तन्त्र को समझने प्रोफेसर रॉय ने बताया, कि इस शोध तथा चिकित्सा प्रणालियों की हमारी सूझ-बूझ में में चिकित्सा विज्ञान को स्वचालित नाड़ी तन्त्र में बहुत सहायता की है। इनके कुछ अवलोकन पुरस्कार प्राप्त किया। वर्ष 1984 में प्रोफेसर रॉय ने सहजयोग तो मनोरोग विज्ञान अध्ययन के लिए अत्यन्त एर श्रीमाताजी का एक प्रवचन सुना परन्तु हाथों महत्वपूर्ण हैं और पश्चिमी शरीर एवं मस्तिष्क तथा सिर से चैतन्य लहरियों के बहाव से विज्ञान की आधुनिक न्यूटोनियम, कारटेसियन, आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होने के विषय में उन्हें पैराडाइम ( Newtonian, Carterian, विश्वास नहीं आया। अत: उन्होंने परमपूज्य Paradigm) को चुनौती देती हैं। इस न्यूटोनियम ा प्रणाली ने चिकित्सकों को मानव मनस को श्रीमाताजी से सहजयोग पर शोध करने की आज्ञा मांगी, ताकि इसे सत्यापित किया जा सके। एक समझ पाने में बाधा डाली हैं और परिणाम स्वरूप मनोदैहिक होने के कारण बहुत से मानसिक रोगों का आधुनिक चिकित्सा पद्धति इलाज नहीं कर सकती। उच्च रक्तचाप, श्वास रोग, माइग्रेन, उदासीनता, (Depressive psychosis) एक का विषय था. 'सहजयोग द्वारा कुण्डलिनी आकुलता ( Anxity Neurosis), हृदय शूल जागृति का शरीर तन्त्र पर प्रभाव' दूसरा विषय (Angina) अज्ञात कारणिक मिर्गी रोग ( ldiopathic Epilepsy). मधुमें ह रां ग ( Diabetes Mellitus) एव क क रांग नियमित शोध का आयोजन किया गया। लेडी हार्डिग मैडिकल कॉलेज और नई दिल्ली में उनसे जुड़े अस्पतालों के शरीर शास्त्र विभाग में तीन डॉक्टरो ने यह शोध कार्य आरम्भ किया। था, 'सहजयोग का उच्च रक्तचाप तथा दमा रोगियों पर प्रभाव' और तीसरा, ' मिगों रोग मूल (Cancer) इस प्रकार के कुछ आम राग है। इनके लिए व्यक्ति को जोवन-पर्यन्त दवाएं लेनी पड़ती हैं। बहुत संे मनोदैहिक रोगों का इलाज शान्ति कारक दवाइयों (Tranquilizers) से उपचार में सहजयोग की भूमिका' इसके साथ-साथ मिर्गी पर शोध करने के लिए (Defence Institute of Physiology and alive sciences Delhi) दिल्ली के शरीर शास्त्र एवं समवर्ती विज्ञान के सैन्य संस्थान से सहयोग किया गया । पहले दो शोध परियोजनाओं के शोधप्रबन्ध को करने से आदमी न केवल इन पर निर्भर हो किया जाता है, जिनके लम्ब समय तक उपयोग 36 चैतन्य लहरी XI अक : 5 8 6. 1999 खड : 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-42.txt बल्कि उसे मानसिक समस्याएं भी हो गु द जाता है तन्त्रिका संचार ( Adernaline सकतीं हैं। प्रोफेसर रॉय को 62 शोध पत्र पढ़ने का श्रेय प्राप्त है और उन्होंने सहज योग के Neurctransmitter)(जैसा कि घटे से प्रत्यक्ष है) रक्त दुग्धाम्ल (Blood Iactic हुए VM.A. Acid) हृदय गति (Heart Rate ), खास गति चिकित्सकीय लाभ पर रूस, इंग्लेण्ड, यूरोप, (Respiratory Rate), रक्त चाप (Blood Pressure) में निश्चित रूप से महत्वपूर्ण कमी थाइलैण्ड एवं मैक्सिको दंशों में भाषण दिए हैं। आती है। रसायनिक चर्म प्रतिरोध (Gavanic उन्होंने बताया कि ऊपर लिखित अधिकतर देशों Skin Resistance) ( G.S. R. ) तथा मस्तिष्क में आधुनिक चिकित्सा विशेषज्ञों का इसके प्रति की अल्फा (उत्तम) गति-विधि (Alfa Activity सकारात्मक रवैया है। वे इस तथ्य को पहचानने of the Brain) में बढ़ोत्तरी हांती हैं। ये सद लगे हैं कि सहजयोग ध्यान-धारणा तथा सूक्ष्म परिणाम इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि सहजयोग गहन शारीरिक एवं मानसिक शान्ति प्रदान करता है तथा अनुकम्पी गतिविधि (Sympathatic Activity ) को घटाता है। दूसरे शब्दां में इसका हुआ कि व्यक्ति दृढ़तर हो जाता है और यू.सी. रॉय से उपचार की इन अद्वितीय विधियों अति व्यस्त जीवन के तनाव एवं दबाव उसके आस्ट्रेलिया, अमेरिका, जापान, हांगकांग, चाइना, चक्रों को शुद्ध करने की तकनीकें, मानसिक तनाव एवं ऊपर लिखित मनोदैहिक रोगों का उपचार करने में अत्यन्त लाभदायक है। इटली के हम सभी सहजयोगियों ने डॉक्टर अर्थ ये की तीव्र इच्छा थी। एक चमत्कार हुआ, एक स्वास्थ्य पर कुप्रभाव नहीं डाल पाते। सहजयोग का दो वर्ष से अधिक समय से अभ्यास करने वाले लोगों से उपरोक्त परिमाण आंकडे इस तथ्य को स्पष्ट करते हैं कि उनके प्रातः जब मैंने समाचार पत्र उठाया तो ये देखकर हैरान हुआ कि डॉक्टर उमेश चन्द्र रॉय 14, 15 जुलाई को मिलान में होंगे 16, 17 वियाना में 20. 21 को ब्रसल्स और 23 को टयूरिन में होगे। मिलान जन चिकित्सा सम्मेलन में, चिकित्सा पद्धति में योग के विषय में बताते हुए प्रोफेसर रॉय ने कहा कि. चिकित्सा पद्धति में योग का दमन मूल्य ( Control Value) उन लोगों से चालीस से पचास प्रतिशत कम है जो सहजयोग का अभ्यास बिल्कुल नहीं करते। ये निम्न दमन मूल्य सहजयोगियों को बेहतर स्थिति प्रदान करते है तथा उनके शरीर पर तनावों के कुप्रभावों से उनकी रक्षा करते हैं तथा सहजयोग का अभ्यास न करने वाले लोगों की तुलना में उन्हें कहीं अधिक स्वस्थ बनाए रखते हैं। पश्चिमी देशों में वैकल्पिक विधियों अपनाने की दिशा में आकस्मिक झुकाव के कारण बताते प्रथम प्रमाण सिन्धु घाटी की सभ्यता से ईसा पूर्व तीसरी सहस्राब्दि में प्राप्त हुआ। आधुनिक युग में सहजयोग अत्यन्त आदर्श है क्योंकि यह मानव स्वास्थ्य के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक पक्षां को छूता है तथा सहजयोग का अनुभव हम अपने मध्य नाड़ी तन्त्र पर कर सकते हैं। हुए डॉक्टर रॉय ने कहा कि, वहाँ के चिकित्सक उच्च रक्तचाप के इलाज के लिए अपनाई जा रही विधियों के विषय में पुन: विचार कर रहे हैं क्योंकि अभी तक इस क्षेत्र में कोई सफलता जब उनसे पुछा गया कि बारह सप्ताह का सहज योग का अभ्यास करने से क्या परिवर्तन आते हैं, तो प्रोफेसर रॉय ने बताया कि 37 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अक : 5& 6, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-43.txt नहीं मिल सकी है और परिणामतः रोगियों को जीवन-पर्यन्त दवाइयाँ लेनी पडती हैं। अमेरिका व्यक्ति उच्च रक्त चाप से पीड़ित थे. दक्षिणी में 5 करोड़ लोगों का उच्च रक्तचाप से पीड़ित अफ़्रीका के एक व्यक्ति श्वास रोगी थे; एक होने का अनुमान है और इनमें से केवल 3.4 करोड़ लोग इसके विषय में जानते हैं। केवल 2.7 करोड़ लोग इसका इलाज करवाते हैं जिनमें सहजयोग की कार्यशैली के विषय में पूछे जाने से 50% लोगों का रक्तचाप सामान्य हो पाता है। पर प्रोफेसर रॉय ने बताया कि इसका वर्णन कर प्रोफेसर रॉय ने बताया कि लेडी हार्डिंग मैडिकल Psychosis) के रोगी थे। बेल्जियम के एक भारतीय महिला, जो कि अण्डाशय विकृति से पीड़ित थी. उसके बाँझपने का इलाज हुआ । शोध आकड़ों के अनुसार पाना कठिन है परन्तु यह स्राव कण तन्त्रिका प्रसारकों (Secretions कॉलेज नई दिल्ली में उच्च रक्त चाप रोगियों पर शोध करते हुए जो आँकड़े लिए गए उनसे पता चलता है कि तनाव मुक्ति दवाइयों के साथ-साथ सहजयोग का अभ्यास करने वाले रोगी सोलह सप्ताह में सामान्य हो गए। उन्होंने दवाइयां लेनी बन्द कर दी और केवल सहजयोग of Neurotransmitter) को आवश्यकतानुसार घटाता-बढ़ाता है तथा तन्त्रिका प्रतिरोध परिवर्तक (Neuro-Immune Modulators) का कार्य करता है और इस प्रकार असाध्य रोगों को ठीक करने में सहायक होता है। केवल इतना ही नहीं सहज योग द्वारा विकसित की गई चैतन्य लहरियाँ स्वआयोजक, स्वपुनर्जीवन प्रदायक एवं पुनर्योवन प्रदायक हैं और जिन रोगों का उपचार करने में आधुनिक विज्ञान असमर्थ है उन्हें ये ध्यान धारणा से सामान्य रेक्तचाप बनाए रख सके। तनावग्रस्त रोगियों का एक अन्य समूह जो केवल दवाइयों पर निर्भर था, सहज़यांग नहीं चैतन्य-लहरियां ठोक कर देती हैं। करता था सामान्य न हो पाया और उनके रक्तचाप को सामान्य सीमाओं में रखने के लिए उन्हें आवश्यक दवाई लंते रहनी पड़ी। प्रोफेसर राय ने Medical Science परिणामों के आधार पर सुनिश्चित रूप से ये कह पाना संभव है कि नियमित सहजयोग ध्यान-धारणी धरमनीय तनावों ( Arterial Enlightened नामक एक पुस्तक लिखी है जिसमें Hypertension). हृदय शूल (Angina) और हृदय पेशियों (Myo Cardial Coronary) के मनोदैहिक रोगों की रोकथाम तथा इलाज के रोगों का प्रभावशाली उपचार है। एक बार रोगी उन्होंने हृदय रोग, कैंसर और एड्स सहित लिए सहजयोग और चिकित्सा पद्धति का का रक्तचाप जब सामान्य सीमाओं में आ जाता तुलनात्मक वर्णन किया है। हाल ही में अन्तर्राष्ट्रीय सहजयोग अनुसन्धान है तो केवल ध्यान-धारणा से ही इसे सामान्य रखा जा सकता है। प्रोफेसर यू.सी. रॉय ने वर्णन किया कि, "सभी प्रकार के रोगों में, एवं स्वास्थ्य केनद्र (International Sahaja Yoga Research And Health Centre) में रोग मुक्त गम्भीर किस्म के रोगों के इलाज भी, तीन हुए रांगियों का उदाहरण प्रोफेसर रॉय ने दिया। दो अमेरिका के लांग जिनमें से एक विस्तृत अवस्था तक पहुँच चुकी है, आदि शक्ति हृदय (Dilated Cardioma) के रोगी थे और ( Primordial Energy) कितनी जागृत हुई दूसरे गहन उदासीनता (Dipressive है तथा रोगी अपना उपचार करने के लिए : बीमारी किस चीज़ों पर निर्भर करता है 38 चैतन्य लहरी ॥ खंड : X1 अंक : 5 &6. 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-44.txt ट्यूरिन के महत्वपूर्ण अस्पताल La Molinette के मधुमेह विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर Bruna Bruni का भाग लेना विशेष रूप से महत्वपूर्ण था उन्होंने सहजयोग के तरीकों से प्रप्त हुए होता है। सहजयोग के अभ्यास से व्यक्ति के परिणामों की प्रशंसा करते हुए कहा कि भविष्य स्वयं कितना प्रयत्न करता है।" सहजयोग ध्यान-धारणा के लाभकारी प्रभाव केवल शारीरिक ही नहीं होते, ध्यान-धारणा का प्रभाव मानसिक सामाजिक तथा आध्यात्मिक भी स्वास्थ्य में तो सुधार होता ही है, उसका आन्तरिक में उन्हें प्रचलित उपचारों तथा योग साधना द्वारा परिवर्तन भी होता है जो उसे अधिक सहयोगी, रोगियों का इलाज करने में सहयोग की सम्भावनाएं अधिक मिलनसार बनाता है। इससे तनाव से दिखाई देती हैं। सम्मेलन के अन्त में चौदह सम्बन्धित आचरणात्मक दोष भी दूर हो जाते हैं। चिकित्सकों ने सहजयोग तकनीक के ज्ञान की समाचार पत्रों ने प्रोफेसर रॉय के सन्देश में दिलचस्पी दिखाई है। जिन देशों में वे गए इससे ऊर्जा सन्तुलन स्थापित होता है जो स्वस्थ वहां के समाचार पत्रों में भी बहुत से लेख छपे मनोदेहिक अवस्था प्रदान करता है। कुछ हैं और अन्य बहुत से लेख छपने वाले हैं। चिकित्सकों ने तो पृछा कि क्या व अभी इटली और आस्ट्रिया में उन्होंने आकाशवाणी पर साक्षात्कार दिया ( Radio Populare and गहनता प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की क्योंकि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं? और सहजयोगी, जिन्होंने अपने तथा अपने परिवार की छोटी-छोटी समस्याओं के विषय में Danube Radio) मिलान के पत्रकार Tiziana Ricci ने डाक्टर रॉय से आत्मसाक्षात्कार प्राप्त बात करने के लिए प्रोफेसर रॉय को उत्सुकता किया। वियाना के कुछ पत्रकारों, जिन्होंने संयुक्त पूर्वक प्रतीक्षा की थी, वे प्रोफेसर रॉय में एक राष्ट्र में सम्मेलन के समय प्रोफेसर रॉय की डॉक्टर से कहीं अधिक अत्यन्त महान योगी पाकर आश्चर्यचकित थे इस शक्तिशाली व्यक्ति के साथ इतनी शान्ति में सामूहिक रूप से ध्यान करके वे स्वयं को धन्य मान रहे थे। कुछ भाग्यशाली लोग सीधे ही उनसे सलाह ले रहे थे। बेल्जियम में लगभग चालीस सहजयोगियों ने सहायता की थी, ने डॉक्टर रॉय से आत्मसाक्षात्कार लेने की प्रार्थना की तथा उसी स्थआन पर संयुक्त राष्ट्र संघ के कुछ अन्य प्रतिनिधियों को साथ प्रति सोमवार ध्यान-धारणा के लिए एकत्र होने का निर्णय लिया। चिकित्सा शास्त्रियों का सहजयोग में उनसे व्यक्तिगत रूप से भेंट की और उनके दिलचस्पी लेना अत्यन्त दिलचस्प बात थी उनके लिए विशेष रूप से जुलाई की सभाओं के स्तर के प्रति उनकी प्रशंसा प्राप्त की। डॉक्टर का आयोजन किया गया ट्यूरिन चिकित्सा रॉय ने कहा कि ये सामूहिकता, "नि:सन्देह देश सम्मेलन में (Turin Medical Conference) विशाल संख्या में डॉक्टरों की उपस्थिति एक उदाहरण थी। इसका श्रेय स्थानीय सहजयोगियों सहजयोगी के प्रश्नों के उत्तर दिए। को जाता है जिन्होंने वहाँ के अस्पतालों तथा बहुमूल्य मशवरे के अतिरिक्त बेल्जियम सामूहिकता को बचाने में सफल होगी।" ध्यान-धारणा के पश्चात् डॉक्टर रॉय ने कई सामूहिक सभाओं में एक बार फिर प्रोफेसर रॉय की प्रतीक्षा स्वास्थ्य के्द्रों में पोस्टर लगाए। सम्मेलन के यूरोप में की जा रही है ताकि सूक्ष्म चक्रों को अन्त में एक वैज्ञानिक वाद-विवाद हुआ जिसमें ठीक करने की तकनीक उनके अनुभव प्रकाश 39 चैतन्य लहरी खड : X1 अंक : 5 86, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-45.txt में सोखी जा सके। दूसरी ओर जो लोग बेलापुर दवाओं के प्रभाव को निष्प्रभावित करने के लिए अस्पताल, नवी मुम्बई (जिसे श्रीमाताजी. भारत सृजन किए गए सहज परद पर एक बहुमूल्य चाहिए कि सजीवी (Organic) फल एव सब्जियाँ रत्न मानते हैं) गए हैं, उन्होंने स्वास्थ्य और काफी नहीं है। यदि सम्भव हो तो व्यक्ति को खाए। बहुत लाभ उठाया है प्रोफेसर रॉय के पथ-प्रदर्शन में इस स्वास्थ्य केन्द्र के अल्जाइमर (Alzheimer's ) रोग ये रोग मनुष्य के तान्त्रिक अणुओं (Neurons) शक्ति प्राप्त करके का प्रभावित करता है और इसका अभी तक डॉक्टरों ने सहजयाग तकनीकों का मन, बुद्धि एवं आत्मा की एकाकारिता से पूर्ण चेतना द्वारा उपयोग किया। कोई इलाज नहीं हैं। केंवल चैतन्य लहरियां ही स्थिति को सुधार सकती हैं। मानसिक रोग प्रोफेसर रॉय आपका हार्दिक धन्यवाद, मानसिक रोगों का इलाज नवी मुम्बई के स्वास्थ्य कन्द्र जिसे सहजयोग अस्पताल में होना चाहिए। प्रिय श्री माताजी आपको कोटि शत् प्रणाम।। -Paola Capudi, Italy. ये सुनकर हम आश्चर्यचकित हैं कि लग्जिमवर्ग. प्रोफेसर रॉय से सहजयोगियों द्वारा पूछे ज्युरिक और हालैण्ड में कुछ आयुर्वेद क चिकित्सकों ने पंचकर्म नामक आयुर्वेदिक भेषज से कैन्सर के कुछ रोगियों का इलाज किया है । इन चिकित्सकों का महर्षि नामक एक गुरु है और ये काल्पनिक (Transcendental ) गए कुछ प्रश्न-बेल्जियम, जुलाई 22, 1998 :आलसी जिगर (Cold Liver ) पर क्या प्रश्न ध्यान-धारणा करते हैं। दवाई के रूप में ये अमृत हम अग्नि तत्व का उपयोग कर सकते हैं? नामक बटियों देते हैं। ये अमृत नई दिल्ली की एक कारखाने से आता है। उनका इलाज मूलाधार और स्वाधिष्ठान चक्रों को बुरी तरह से प्रभावित करता है और इन जड़ी-बूटियों को परम पूज्य श्री माताजी के फोटो के सामने रखकर भी चैतन्यित कर पाना असम्भव है। उत्तर बल दते हुए डॉक्टर रॉय ने बताया कि शरीर के दाएं हिस्से पर तथा मध्य नाड़ी तन्त्र (Right Side And Central Channel) 7 अग्नि तत्व का कभी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। अग्नि तत्व का उपयोग केवल शरीर के वाएं हिस्से पर होता है और बाएं हिस्से के शुद्ध इसके विषय में बताते हुए डॉक्टर रॉय ने कहा कैन्सर रोगियों पर सहजयोग के प्रभाव पर हाते ही दाया भाग हल्का हो जाता है। गलग्रन्थि ( Thyroid ) समस्या। दाएं और बाए-विशुद्धि और अगन्य-नाड़ी तन्त्रों किए गए प्रारम्भिक शोध परिणाम अत्यन्त के असन्तुलन के कारण गलग्रन्थि की समस्या उत्पन्न होती है। इन चक्रों तथा नाड़ी तन्त्रों को उत्साहवर्धक हैं। देखा गया है कि सहजयांग के अभ्यास एवं मध्य हृदय चक्र के गतिशील होने पर प्राकृतिक रूप से ऐसी कॉशिकाएं उत्पन्न होती हैं जो हमारे शरीर के अन्दर विद्यमान कैन्सर कोशिकाओं को नष्ट करती हैं। अत: सहजयोग कैन्सर को धटित होने से रोकता है शुद्ध करना इस समस्या के निदान के लिए लाभकारी है। भोजन के विषय में खाने को केवल चैतन्यित कर लेना कीट-नाशक 40 चैतन्य लहरों ॥ खड : XI अक : 5 & 6, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-46.txt तथा कैन्सर का इलाज भी करता है। किसी भी करके स्वयं को ठीक कर पाना असम्भव हो प्रणाली का व्यक्ति का अन्धाधुन्ध अनुसरण नहीं करना चाहिए। यदि हमें लगे कि मूलाधार और समाधि की उस अवस्था में नहीं हैं। शुद्धीकरण स्वाधिष्ठान चक्रों में रुकावटः आ गई है तो ये सकता है क्यांकि अभी तक आप निर्विचार करने वाले व्यक्ति को चैतन्य लहरिया आना आवश्यक है, रोगी स्वयं इस कार्य को न करे स्पष्ट है कि य प्रणाली आपके लिए उपयुक्त नहीं है। मिलान जुलाई 14, 1998 क्या एक ही व्यक्ति को बाएं और दाए रोगी का रोगमुक्त न होने का मुझ कोई कारण दोनों और की समस्याएं हा सकती हैं? पाएगा। परन्तु यदि चैतन्य लहरियों में रहने वाला व्यक्ति सुबह-शाम उसका इलाज करे तो उस प्रश्न नहीं नजर आता । उत्तर - डॉक्टर रॉय ने कहा कि कोई व्यक्ति वाई ओर की समस्याओं सं पीडित हा तो अचानक उसे दाई ओर की समस्याएं भी हो किस सीमा तक एक तरफ हटा है, परन्तु सकती हैं। प्रातः काल रोगों बाई ओर (आलस्य दुष्टिपटल की समस्या (Retina) प्रश्न हमं दखना पड़ता ह है कि दृष्टि पटल उत्तर सहजयोग द्वारा बहुत से दृष्टिपटल अलगाव के में) होते हैं परन्तु दोपहर वाद वही रोगी दाई रोगियों को लाभ हुआ है जब तक मुझ ठीक सं और को हो जाते हैं। दाई ओर को ठीक करने ये न पता लग जाए कि दृष्टिपटल अलगाव के लिए आपको जल या बर्फ का उपयोाग करना पडता है या ठण्डे पानी में जल पैर क्रिया करनी है, दूष्टि पटल के कौन से भाग में अलगाव है, पड़ती है। आप दोनों ही उपचार कर सकते हैं चक्रों की स्थिति क्या है तथा कौन से चक्र रुकं परन्तु एक ही समय पर नहीं। बाई और की हुए हैं, तब तक कुछ भी कह पाना कठिन है। समस्या अगर अधिक हो तो पहले बाई ओर को ठीक कीजिए और यदि दाई ओर की हो तो पहले उसे ठीक कीजिए। व्यक्ति को देख लेना हल्के से नहीं लेना चाहिए क्योंकि यह काफी चाहिए कि रोग का मूल क्या है?-बाई ओर की गम्भीर बात है और इसके उपचार के लिए समस्या है या दाई और की और उसक अनुसार ( Retinal Detachment) कितना है और कहाँ यह सब जान लेने के पश्चात् ही कहा जा सकता है कि व्यक्ति को कितना लाभ होगा। इसे व्यक्ति को उचित उपाय करना चाहिए आपका चाहिए कि दृष्टिविशेषज्ञ के पास जाएं ताकि रोंग निदान किया जा सके और इसके पश्चात् किसी इसका इलाज होना चाहिए। उदासीनता रोग (Depression), भ्रान्ति (Hallucinations) से पीड़ित लोगों को क्या करना चाहिए, जबकि वे दवाइयाँ भी ले रहे हैं? और इसके पश्चात् इसका इलाज शुरु करें। लम्बे इस तरह के बहुत से रोगी हमारे कनद्र पर आए लगभग सभी रोग मुक्त हो गए उदासीन मनोविकृति को ठीक करने का सहजयोग सर्वोत्तम उपाय है। यहाँ मिलान में यह कार्य कठिन हो सकता है क्योंकि इसके लिए प्रबल प्रकार का जिगर पर बर्फ रखना सामान्य उपचार हैं। यदि इलाज आवश्यक है। आपके लिए चक्रों को शुद्ध आपको इन विधियों से लाभ नहीं हुआ तो प्रश्न न गहन सहजयोगी को दिखाकर उसकी राय लें समय तक इसकी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। उत्तर प्रश्न अस्थमा (Asthma) के दौरों का इलाज। श्वास रोग के दौरे दाएं हृदय की उत्तर समस्या है। दाएं हदय चक्र को साफ करना और 41 चैतन्य लहरी ख : XI अक : 5 & 6, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-47.txt कंन्द्र पर आए और देखें कि आपको प्रभावित कैंसर सहित अन्य रोगों से व्यक्ति की रक्षा करने वाले अन्य करम-परिवर्तन कौन से हैं? करती है। फिर भी कभी किसी सहजयांगी को और तब आपका उपचार उन पर निर्भर करेगा। कंसर रोगी हो जाने पर कांई आश्चर्य नहीं होना श्वास की समस्या यदि बहुत गम्भीर है तो चाहिए। इसका कारण अत्यन्त साधारण ह डॉक्टर की सलाह के अनुसार कार्य करें। यदि सहजयोगी बहुत करुणा एवं प्रममय लाग हाते हैं यह गम्भीर (Satus Asthamatics) नही है तो सामूहिक चेतना. में होते के कारण यदि वे सहजयोग द्वारा इसे आसानी से ठोक किया जा किसी को असाध्य रांगों से पीड़ित देखते है तो सकता है। लेडी हार्डिग मेडिकल कॉलेज, नई तुरन्त उसकी सहायता की पेशकश करते हैं । दिल्ली के सुचित्रा कृपलानी अस्पताल में अस्थमा सर्वप्रथम वे आत्मसाक्षात्कार देते हैं फिर उपचार राग पर किए गए शाध से यह तथ्य सामने आया है। शुरु करते हैं । ऐसा करते हुए कभी-कभी वे भयंकर वाया स्वाधिष्ठान तथा एकादश रुद्र के भोजन के विषय में पकड़ वाले रागियां को ठीक करने लगते हैं जो प्राफंसर रॉय ने बताया कि रेशेदार अच्छा कैसर रोग का कारण होते हैं। सहजयोगी यदि सहजयोग में गहन नहीं है खाना खाना बहुत आवश्यक है। जो लोग केवल चिकन, हैम साँसेज या अण्डे आदि ही खाते हैं और सब्जियाँ बहुत कम खाते हैं उनमे मलाशय या बड़ी आत के कॅसर की संभावना बहुत होती है। जी लोग बहुत अधिक मटन, तली हुई चीजें और ऐसे रांगो को ठीक करने से पूर्व अपने बचाव के पर्याप्त उपाय नहीं करता ता बह पकड़ जाता है और उसे कैसर हो सकता है। यदि मरी याददाश्त ठीक है तो श्रीमाताजी ने क कहा है कि सामान्य रूप से कैसर और मानस और बहुते से अण्ड खाते हैं उन्हें धमनी जरठता रोग (Schizo Phreania) के रोगया का इलाज (Arterio Soleriosis) जिसके कारण उन लोगों में हदय शृल, उच्च रक्तचाप और हृदयाघात की सहजयागी न करें। अच्छा होंगा कि ऐसे रोगियों संभावना बढ़ जाती है। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी की सहजयोग की परिकल्पना के कन्द्र जाने की सलाह दो जाए। इसका पूरा पता को अन्तर्राष्ट्रीय सहजयोग स्वास्थ्य एवं अनुसंधान अनुसार बाई ओर को झुके (तामसी प्रवृति) रोगों निम्नलिखित है:- को अधिक प्रोटीन तथा दाई ओर को झुके अन्तर्राष्ट्रीय सहजयोग अनुसंधान एवं स्वास्थ्य (राजसी प्रवृति) लोगों का का्बोहाइड्ेट्स अधिक खाने चाहिए। क -1., सैक्टर-8. सी.बी.डी. कन्द्र, प्लाट नम्बर बेलापुर, नवी मुम्बई, भारत-400614 सहजयोगी का बीमार होकर कैसर से मृत्यु हो जाने के विषय में आप क्या कहते हैं? उत्तर सामान्यत: सहजयोगी का स्वास्थ्य बहुत मनौदैहिक रोगों प्रश्न इज़राइल दिव्य चमत्कार इज़राइल की पवित्र भूमि पर आध्यात्मिकता को एक नया आयाम आरम्भ किया गया। परमेश्वरी माँ के मंगलमय चित्त के साए में इजराइल और विश्व के अन्य भागों से आए हुए सहजयोगियों नं महान पैगम्बरों और भगवान ईसा मसीह के से अच्छा रहता है और बहुत तथा [महामारियों को वह दूर रख सकता है। इसकी कारण बहुत साधारण है। सहजयोग करने से शरीर की रक्षा प्रणाली दूढ हो जाती है और 42 चैत्तन्य लहरी खंड : X। अंक : 5 &6 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-48.txt ने हमें दिव्य अवतरण से आशीर्वादित इस भूमि के जिज्ञासओ की आध्यात्मिक पिपासा का शान्त करने में तीन दिन का समय लगाया। के पश्चात् एक व्यक्ति आत्मसाक्षात्कार क बताया कि उसने अपनी रोह में शीतल वायु वेग को सौधे घूमते हुए ऊपर जाता हुआ महसूस किया है । एक अन्य व्यक्ति ने एक सहजयोगी बैकल्पिक जीवन नामक इजराइल का स्या चह उसकी उदासोनता रांग से पुछा कि क सबसे बड़ा मेला इस गतिविधि का स्थान था। ( Depression) ठीक करने में सहायता कर सकता है। आत्मसाक्षात्कार के तुरेन्त पश्चात् तंरह सहजयोगियों के समूह ने आत्मसाक्षात्कार प्रदान करने का कार्य किया। इजराइल के पावन लीग चार लाइना में खड़े अपने अन्दर हुए परिवर्तन से [यह बहुत हैरान हुआ और उस योगी को धन्यवाद करके आपन अन्तर्परिवर्तन को देखने के लिए वह जीव-प्रतिपुष्टि होकर आत्मसाक्षात्कार के लिए शान्ति पूर्वक अपनी बारो की प्रतीक्षा करते रहे। सभी का एक मुक्त हाकर निर्विचारिता प्राप्त करके शान्तिमय हो जाना सम्भव ्थान (Biofeed back stamd) पर गया। परिणा ही प्रश्न था कि क्या तनाव से सामान्य मनुष्य से पाच Positive) श्रा। वहुत से अन्य लागा ने भी विन्दु जमी (Five Ponts है? थोडी ही देर में उन्होंने महसूस किया कि यह कार्य कितना सहज एवं साधारण है आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् स्वयं को तनावमुक्त सहजयोगियों को भी ये लगा कि आत्म साक्षात्कार और शान्त पाया। देना वहुत आसान है, सम्भवत: लोगां की गहन जिज्ञासा और ओी माताजी के उन लोगों पर चित मार्ग पर आत्मसाक्षात्कार दने के और अवसर बाद में देश की एक सुन्दर यात्रा में हमें प्राप्त हुए। गलीली झील (Lake of Galilee) जहा कभी ईसा-मसीह जल पर चल थे दा के कारण ऐसा हो पाया। प्रतिदिन लगभग तीन सी चार सी लोगों ने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया। समय को अभाव के कारण हम केवल दिवसीय संगो्ठी इजराइल यात्रा का महत्वपूर्णतम आत्मसाक्षात्कार दे पाए और अधिक जानकारी विन्दु था। सगोष्ठी के अन्त में हमने हवने किया के लिए लोगों से अनुवर्ती कार्यक्रमों में आने की एवं शुद्ध करने प्रार्थना की। हमारे आर्चर्य की सीमा न रही कि वाला था। जी कि अत्यन्त शक्तिशाली बाद में हमें पता लगा कि संगोष्ठी समाप्त के तुरन्त वाद इजराइली शान्ति समझौते पर नव्बे (90) साधको से भी अधिक तीग अब अनुवर्ती कार्यक्रमों में जा रहे हैं । मेले में हमे बड़े दिलचस्प अनुभव हुए। हस्ताक्षर किए गए। शान्तनु चैटरजी, आस्ट्रिया। 43 चेतन्य लहरो ।खंड : XI अंक : 5 & 6 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-49.txt वर्ष 1999 में होने वाली शेष पूजाओं की सूची तिथि का निर्णय अभी होना है। कवैला। आदिशक्ति-कुण्डलिनी पूजा स्थान बेल्जियम. हालैण्ड स्पेन, स्वीडन डेनमार्क फ़िनलैण्ड नावे । मेजबान देश 30-31 जुलाई और 1 अगस्त| तिथि कबैला। इटली। गुरु पूजा स्थान मेजबान देश तिथि का निर्णय अभी होना है। विराट पूजा कबैला। स्थान उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका। मेजबान देश तिथि का निर्णय अभी हाना है। कबैला। गणेश पूजा एवं विवाह समारोह स्थान आस्ट्रेलिया, सुदूर पूर्वी देश, रूस एव भारत। मेज़बान दंेश तिथि का निर्णय अभी हाना है। कबैला। इंग्लैण्ड, स्विटज़रलैण्ड, पोलैण्ड यूकन। नवरात्रि पूजा स्थान मेजबान देश तिथि का निर्णय अभी होना है । दीवाली पूजा दक्षिणी फ्रांस। स्थान फ्रांस, पुर्तगाल और अफ्रीका। मेज़बान देश 25 दिसम्बर 19991 ईसामसीह पूजा गणपति पुले। अन्तर्राष्ट्रीय। स्थान 44 खंड : XI अंक : 5 &5. 1999 चैतन्य लहरी