चैतन्य लहरी अंक 7 & 8 जुलाई-अगस्त 1999 खण्ड XI मे कार श] ै दूसरे सहजयोगियों तथा अन्य छोटी-छोटी तुच्छ चीजों को देखने में यदि आप अपना समय बर्बाद कर रहे हैं तो परमात्मा से आपका एकीकरण (Integration) कम होता चला जाएगा आप और अधिक दूर होते चले जाएगे । ( परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी) रा ा ह म ाम ा ट० ब सहजी शिशु को ध्यानगम्य करने के लिए साक्षात् श्री गणेश। ৪/8/3 ह] श्री. इस अंक में पृष्ठ नं. क्रम संख्या सम्पादकीय 3 1. ध्यान-धारणा पर श्री माताजी के आदेश 2. शिवरात्रि पूजा (14.2.99) (हिन्दी प्रवचन) 3. शिवरात्रि पूजा (अंग्रेजी प्रवचन) 21 4. श्रीमाताजी द्वारा गैर-सरकारी संस्था की स्थापना 23 5. दिवाली पूजा प्रवचन (25.10.98) 24 6. नैतिकता व देशभक्ति सार्वजनिक प्रवचन (18.12.98) 31 7. ान ईसा मसीह पूजा (25.12.98) 45 8. योगी महाजन सम्पादक विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 अभिनव प्रिन्ट्स, दिल्ली- 34, फोन : 7184340 मुद्रक 1 चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 7 8 8, 1999 नम कंपानाशी ह० परम रब् रम हा चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 &8, 1999 सम्पादव मेनद भारत को खोजते हुए कोलम्बस का अमरीका पहुँच जाना मात्र संयोग न था। अमरीका के निवासियों को लाल भारतीय (Red Indians) अपने जीव की सुनो, सभी को सुनो में नन्हा और कमजोर हूँ, ज़रूरत है मुझे शक्ति तुम्हारी, विवेक भी तुम्हारा मुझे चाहिए, गरिमापूर्वक चलने के लिए सूर्योदय की स्वर्णिम लालिमा की छवि प्रफुल्लित करे मेरी दृष्टि, प्रेम पूर्वक सृजित आपकी सभी वस्तुओं को छुएं हाथ मेरे हर चीज़ में कर्ण मेरे सुनें तेरी वाणी। कन्नाजोहारिल की पवित्र भूमि पर विश्व मूल कहा जाना भी मात्र संयोग न था। श्रीकृष्ण की भूमि (अमरीका) का श्री कुवेर द्वारा आशीर्वादित होना भी मात्र संयोग नहीं है। श्रीकृष्ण की भूमि का ब्रह्माण्ड का विशुद्धि चक्र तथा ब्रह्माण्डीय सम्पर्क का यन्त्र होना भी केवल संयोग नहीं है। हमारी परमेश्वरी माँ का कन्नाजोहारिल (Canna Joharil) में मूल अमरीकन लोगों से 140 एकड़ भूमि खरीदना भी संयोग मात्र नहीं है। अमरीका श्रीकृष्ण का स्थान है अत: इसका अपनी मातृभूमि भारत से मूल सम्बन्ध है। श्रीकृष्ण की बहन विष्णुमाया ने क्रिस्टोफर यह भी संयोग नहीं है कि शब्द कन्नाजोहारिल कोलम्बस पर अपनी माया का जाल फैलाया का मूल भारतीय भाषा में अर्ध "स्वतः शुद्ध होने और उसके भ्रम में फँसकर कोलम्बस ने सोचा वाला बर्तन है" आधुनिक काल के साधकों को कि उसने भारत खोज निकाला है तथा वहाँ के आन्तरिक शुद्धिकरण के लिए यहाँ आना पड़ा। मूल निवासियों को लाल भारतीय नाम दिया। श्वेत घोड़ा (White Buffalo) की लाल भारतीय भर से आए सहज योगियों को 20 जून 1999 को आदिशक्ति पूजा करना मात्र संयोग न था। भविष्यवाणी प्रमाणित करती है कि 'एक ব पहीं के थे, आत्मा में उनका आध्यात्मिक विश्वास, सर्वशक्तिशाली महिला, जिसमें प्रकाश दिखाई आदिशक्ति को ब्रह्माण्ड का सृष्टा मानना और पड़ता है, इस रोगी राष्ट्र को रोग मुक्त करने के उनकी प्रकृति की पूजा करना उद्भव भारत में रहने वाले प्राचीन आयों से हुआ। वे पृथ्वी माँ का सम्मान करते थे और विडा (Dagana Widah ) ने भविष्यवाणी की पावन आत्मा के रूप में आदि कुण्डलिनी की पूजा करते थे। उनकी निम्नलिखित प्रार्थना से लिए आएंगी। महान लाल भारतीय शान्ति दूत देगना इन सबका थी कि कन्नाजोहारिल में, "सभी राष्ट्रों की संगोष्ठी अग्नि प्रज्जवलित होगी। सभी लोगों को दैवी नियम का ज्ञान प्राप्त होगा और मानव हित के लिए सभी लोग मिलकर परिश्रम करेंगे। यह स्पष्ट है:- हे महान आत्मा, आवाज़ तेरी बोलती है वायु में और पेड़ों में, पूरे विश्व को उन्नत करता है श्वास तेरा, 20 जून 1999 को विश्व के सभी राष्टों के शान्ति दूत कन्ना-जोहारिल की पवित्र भूमि चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 &8, 1999 भ्रम और प्रलोभनों के गर्त से हमें बचा लो हे माँ। भटके हुए अमरीकी बच्चों की रक्षा करो, हे देवी अमरिकेश्वरी। अपने चरण कमलों से निरन्तर बहते हुए, पर एकत्र हुए और श्री आदिशक्ति के सम्मुख विश्वशान्ति लाने की शपथ ली। अपनी पावन शपथ को निभाने का मार्ग, हमें दिखाओ हे आदि शक्ति। इस पावन पथ पर आने वाली बाधाओं को दूर करने की कृपा कर दो। मधुर अमृत का स्वाद उन्हें प्रदान कर दो। र छम हान चेतन्य लहरी ।खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 ध्यान-धारणा पर श्री माताजी के आदेश र निर्मला निकेतन, प्लाजा-डोरिया, कबेला मनि मुनि इटली 2 अक्तूबर 1991 ध्यान में जाने का प्रयत्न करने के लिए प्रयोग करने वाले लोगों के लिए यह कठिन व्यक्ति को ये सभी पुस्तकें तथा आदेश पढ़ने कार्य है। उनके लिए नि्विचार समाधि की चाहिए। वास्तव में ये सभी प्रयत्न इस दृढ़ विश्वास तक पहुँचने के लिए हैं कि ध्यान अवस्था को सहज समर्पण से प्राप्त करना है । भिन्न मन्त्रोच्चारण करते हुए आज्ञा तक हैं "क्षम, क्षम, क्षम" ये विचार रुक जायेंगे | तो ठीक है परन्तु आपको लगेगा कि आज्ञा पर कुण्डलिनी रुक गयी है या अवरोधित हो गयी है। इसका कारण यह है कि जब आप प्रयत्न करते हैं तो आप अपने आज्ञा (चक्र) कोे माध्यम के प्रति पूर्ण समर्पण करना सहजयोग में महत्वपूर्ण से कार्य कर रहे होते हैं यह कार्य सहज नहीं कार्य है। जिन्होंने यह अवस्था पा ली है वे आज्ञा होता। अतः भक्त लोगों को केवल शांत और हैं। जैसा मैंने कहा इसकी व्याख्या नहीं की जा सहज होना पड़ता है और कुण्डलिनी आज्ञा को सकती। भक्ति के लिए कोई नियम-आचरण पार करके सहस्रार सार्ग से बाहर आ जाती है। नहीं है परन्तु आनन्द की अवस्था में स्थित भक्ति द्वारा ही आप अपनी आज्ञा को प्रभावहीन सहजयोगियों में निश्चय ही इसे देखा जा सकता है। कर सकते हैं। आज्ञा चक्र पर उत्थान की अवस्था अत्यंत कठिन है। क्योंकि यदि आप अवस्था विकसित कर लेना अच्छा है। जब वे किसी वस्तु को देखें तो बिना इसके विषय में सोचे इसे देखने का प्रयत्न करें। आप कह सकते निरन्तर भक्ति द्वारा इस अवस्था को बनाये रखने का प्रयत्न करें। अत: साक्षात्कार के बाद भक्ति के आनन्द के रास्ते यह सहज उत्थान सुगमता से पा लेते आप देख सकते हैं कि उनके अन्दर अपने के प्रति हार्दिक प्रेम तथा श्रद्धामय डर गुरु है। अपने गुरु की किसी बात को वे मना नहीं करते, उस पर प्रश्न नहीं करते और अपने गुरु का वे न तो मार्गदर्शन करते हैं और न ही त्रुटि-सुधार। सदा वे आत्मसात् करने की अवस्था में होते हैं, जैसे कोई महान सागर उनमें आनन्द कुण्डलिनी को आज्ञा से ऊपर धकलने की कोशिश करते हैं तो आप प्रयत्न का उपयोग कर रहे हैं और ऐसा करते ही आप अपनी "आज्ञा में रुकावट खड़ी कर देते हैं। अवरोधित आज्ञा को यदि आप उसी हाल में छोड़ दें तो कुण्डलिनी स्वयं इस पर कार्य करेगी तथा आपकी "आज्ञा " का अवरोध समाप्त हो जायेगा। परन्तु भक्ति भाव से यदि आप पूर्ण हृदय से गा रहे हैं या मेरे नाम ले रहे हैं तो स्वत: ही आज्ञा चक्र खुल तथा सुख उड़ेल रहा हो। गुरु के प्रति रोज-मर्रा के आचरण में उनकी यह अवस्था प्रकट होती हैं। अपने गुरु के साथ उनका आचरण तथा बातचीत अत्यंत महत्वपूर्ण है। उदाहरणतया कुछ लोग मेरे बहुत समीप आ जाते हैं, वे जानते है। कि मेरी जाता है। परन्तु अपनी आज्ञा चक्र का अधिक चैतन्य लहरी 5 खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 फूी पूर समीप होते हैं तो मुझसे तर्क करने लगते हैं। इस देखभाल कैसे करनी है, मेरी चरण सेवा और मेरे भोजन आदि का ज्ञान भी उन्हें है, परन्तु यदि उनमें वो नियमाचरण, अन्तर्जात सम्मान तरह का व्यवहार बेदलना होंगा। जिस प्रकार आप एक दूसरे से बातचीत करते हैं, अपने गुरु से वैसे नहीं कर सकते क्योंकि आपके गुरु बहुत ऊँचे स्थान पर हैं। आपको यह भी समझना होगा भाव और गहन श्रद्धा नहीं है तो अभी तक वे उस अवस्था पर नहीं हैं जहाँ उन्हें होना चाहिए था । और शनै: शनै: ऐसे लोगों का पतन होने लगता है क्योंकि अपने गुरु की महानता के प्रति नतमस्तक करने वाली अपने अस्तित्व की गहनता को वे अभी तक नहीं नाप सके हैं। कि "तुर्यावस्था" को पाने के लिए आपको अपने गुरु को सर्वोच्च स्थान देना होगा। मैंने आपको कभी गुरुगीता पढ़ने को नहीं कहा क्योंकि ऐसा करना सहजयोगियों के प्रति ज्यादती होंगी। मैं समझती हूँ कि अभी तक बहुत से सहजयोगी समपर्ण का अर्थ समझने के योग्य नहीं हैं, इसी कारण मैंने आपको कभी भी महादेव द्वारा पार्वती जी को सुनाई गई गुरुगीता यह बताना कि आप किस प्रकार आचरण करें, मेरे लिए अति संवेदनशील कार्य हैं, और कभी-कभी जब मैं लोगों को पतन की ओर ले जाने वाली आजादी लेते हुए देखती हूँ तो मुझे होता है, परेशानी होती है। मेरे लिए उन्हें पढ़ने को नहीं कहा। दु:ख यह सब बताना असंभव है कि किस प्रकार वे से बातचीत करें और किस प्रकार आचरण समर्पण की यह अवस्था आपके प्रयत्नों व विचारों से नहीं आएगी, इसे सहज में ही आना है। यह अपने ब्यक्तित्व की एक बूँद को मैंने देखा है कि सभी नेता गणों में यह प्रेम सागर में विलीन कर देने के समान है। जिन विवेक तथा सामर्थ्य हे कि प्रेम तथा आनन्द के भी शब्दों का प्रयोग हम करें हमें यह समझना हैं मुझ करें। इस सागर को कैसे आत्मसात कर लें। परन्तु ऐसे बहुत से सहजयोगी हैं जो मेरे समीप होते हुए भी वांछित ऊंचाई पर नहीं हैं। कभी वे तर्क करते हैं, कभी इंकार करते हैं और कभी विरोध। कि इस अवस्था को प्राप्त करना है। किसी भी अप्राप्त अवस्था के वर्णन करने का कोई उपयोग नहीं, फिर भी ऐसा करने से कम से कम लोग उसकी ओर बढ़ने का और उसे प्राप्त करने का आप प्रश्न कर सकते हैं कि इस प्रकार का समर्पण तो हमें गुलाम बना देगा। दासता में आपको दर्द, कष्ट तथा दुख मिलता है परन्तु इस दासता में आपको आनन्द, पूर्ण स्वतन्त्रता, शक्ति और अपने गौरव का सौन्दर्य प्राप्त होता प्रयत्न करेंगे। अब आपकी स्वतन्त्रता क्या है? आप की स्वतन्त्रता यह है कि बिना किसी मानसिक प्रयत्न या नियम बंधनों में स्वयं को बाँधे, अपने अस्तित्व में रचित मर्यादाओं को अन्त्तजात तथा है। तो आप इसे दासता या जो भी कुछ कहें, इस समर्पण के स्वभाव पर कोई अन्तर नहीं पड़ता क्योंकि अपने गौरव को खोज लेने के है कि बिना स्वयं को मानसिक रूप में समझाये लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। वास्तव में आपने अपने अहं और बन्धनों को समर्पित करना है। कुछ लोगों में दूसरों पर छा जाने की आदत होती है, तो जब वे मेरे सहज रूप में आपको समझना चाहिए। पूर्ण स्वतन्त्रता को समझने का यही मार्ग कि यह करो, वह करो, यह स्वतन्त्रता स्वत: ही आपके अन्दर कार्य करे और अपने गुरु के प्रति सहज आचरण करते हुए एक नये जीवन का आरम्भ आप करें। चैंतन्य लहरी खंड : X1 अंक : 7 &8, 1999 6. छा शिवरात्रि पूजा त का च िड सादगी व स्वच्छ हृदय से ही ा न शिव की भक्ति हो सकती है। (दिल्ली-14.2.99) परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का हिन्दी प्रवचन पहले मैं हिन्दी भाषा में बोलूँगी फिर अंग्रेजी में। आज हम श्री महादेव, शिवशंकर की पूजा करने के लिए एकत्र हुए हैं। शंकर जी के नाम से अनेक व्यवस्थाएं दुनिया में हो गईं। ह आदिशंकराचार्य के प्रसार के कारण शिवजी की सोपान मार्ग बना हुआ है, जिसे हम सुषुम्ना नाड़ी कहते हैं, जो मध्य मार्ग है वो विष्णु का मार्ग है और उस मार्ग से ही हम शिव तत्व पे पहुँचते हैं। तो जो मंजिल है वो है शिव तत्व की, शिव की, और जो रास्ता है वो विष्णु का बनाया हुआ है। इस रास्ते को बनाने में विष्णु ने और आदिशक्ति ने मेहनत की है, इसमें शिवजी का कोई हाथ नहीं, वो तो आराम से अपनी जगह बैठे हैं, जिसको आना है आए, नहीं बच पूजा बहुत जोरों में मनाने लग गए और दक्षिण में तो दो तरह के पंथ तैयार हो गए एक जिसको शैव कहते हैं और दूसरे जो वैष्णव कहलाते हैं। अब शैव माने शिव को मानने वाले और वैष्णव जो विष्णु को मानने वाले। अपने देश में, विभाजन करने में हम लोग बहुत होशियार हैं। भगवान के भी विभाजन कर डालते हैं और फिर जब आना है नहीं आए। सो इस शिव तत्व को प्राप्त करने के लिए हमें इसी विष्णु मार्ग से जाना चाहिए और उसके लिए जो अनेक चक्र हैं उनको पहले ठीक करना चाहिए। जब ये चक्र ठीक हो जाते हैं तब हमारा विष्णु मार्ग खुल उसको एकत्रित करना चाहते हैं तो और उसका विद्रप रूप निकल आता है। जैसे कि एक जाता है और उसी के साथ फिर हम धीरे-धीरे अयप्पा' नाम का नया निकल आया है मामला। बहुत गलत चीज़ है और उसमें यह दिखाया है कि विष्णुजी ने जब मोहिनी रूप धारण किया तो उनसे एक बच्चा पैदा हुआ शिवजी से, ऐसा कहीं हो सकता है क्या? ऐसी गलत-सलत बातें हमारे देश में बहुत निकल आती हैं और फिर नहीं है ये सिर्फ एक तरह से हृदय जो है वो ऊपर उठने लग जाते हैं। अब इन चक्रों के बारे में मैंने तो बहुत बताया था पर हृदय में भी एक चक्र है जिसको हम कहते हैं (left heart)। ये हृदय का चक्र प्रतिबिम्ब है, Refiection है महादेव का। शिवजी उसी के अलग-अलग संघ बन जाते हैं। कोई न कोई बहाना झगड़ा करने के लिए मिल जाए तो हिन्दुस्तानी बहुत खुश होते हैं। गर उनके पास झगड़ा करने के लिए कोई चीज़ नहीं हो तो वो कोई न कोई कल्पना से ही चीजें निकालते रहते हैं। सो ये दोनों ही चीज़ एक-दूसरे से इस तरह से जुड़ी हुई हैं कि जैसे सूर्य से सूर्य की किरण, शब्द से अर्थ, चाँद से चाँदनी। माने ये कि जो का स्थान तो सबसे ऊपर है, बुद्धि से ऊपर, विचारों से ऊपर। ऐसे तत्व को प्राप्त करने के लिए सबसे पहले हमें इधर ध्यान देना चाहिए कि हमारा हृदय कितना साफ हैं। हृद्य के अन्दर हम अनेक तरह की गंदगी को पालते हैं जैसे कि हम किसी से ईष्ष्या करते हैं। ईर्ष्या करना .जैसे कि किसी ने आपके साथ दुष्टता भी चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 & ৪, 1999 ्र हालाँकि अब धीरे-धीरे मामले साफ हो रहे हैं की हो, आपको सताया भी हो, परेशान किया हो, लेकिन उससे ईष्ष्या करने से कोई फायदा नहीं पर तो भी, आपको हैरानी होगी कि अब भी है। आपका हृदय ग़र स्वच्छ है तो आपका जो इसकी बडी चर्चा होती है, कौन लीडर है। कौन आईना है, जिसमें परमात्मा का प्रतिबिम्ब पड़ने क्या है? दूसरी बात हमारे लिए., हिन्दुस्तानियों के वाला है, वो साफ रहेगा। लेकिन आपके अन्दर लिए एक वरदान कहो कि ईष्ष्या जो है वो पैसों ग़र ईष्ष्यां हो तो वो साफ नहीं रह सकता और के मामले में हो जाती है। सहजयोग में भी पैसों उसका प्रतिबिम्ब ठीक नहीं हो सकता। किसी से के मामले में बड़ी ईष्ष्या है। किसी के पास भी दुश्मनी मोल लेना, किसी के प्रति भी कुछ किसी तरह का हृदय में किल्मिश रखना या बुरी सहजयोग के कार्य करते वक्त भी लोग देखते भावना रखना ये गलत बात है। इसीलिए ईसा कि कितना पैसा किसको मिलता है और कौन मसीह ने कहा है कि, सबको माफ करो। माफ ज्यादा पैसा है किसी के पास कम पैसा है। कितना पैसा देता है। जिसका हृदय पैसे में उलझ गया वो सहजयोग के काम के आवमी करना अत्यंत आवश्यक है। उससे पहले भी और बाद में भी अनेक साधु सन्तों ने यही बात नहीं क्योंकि उनके हृद य पे जड़वाद ( Materialism) छाया हुआ है। किसी भी तरह के, किसी भी तरह के जड़वाद से ग़र आप ग्रसित हैं तो आपका उद्धार होना बड़ा कठिन है । ये अपने देश की विशेषता है. परदेस में इतना नहीं देखा मैंने, पर यहाँ इसकी विशेषता है। सबसे हम सोचेंगे कि Russia में और कही कि सबको माफ कर दो। जैसे ही आप माफ कर देते हैं वैसे ही महादेव ऐसी चीज़ों को अपने हाथ में ले लेते हैं। सबसे जो सूक्ष्म शक्ति है वो महादेव की शक्ति है। और वो उसको फिर पूरी तरह से दण्डित करते हैं, उसको पूरी करते हैं । ये महादेव जी का कार्य है आपका नहीं और इसलिए आपका ईष्ष्या किसी से करना बहुत बुरी बात है। पर सहजयोग में भी मैं देखती हूँ कि ईष्ष्या बहुत है। सहजयोगियों को एक-दूसरे से ईष्ष्या हो जाएगी अब किसी को trusty बना दिया दूसरे को नहीं बनाया तो इसको ईष्ष्या हो जाएगी। उसमें trusty आदि में कुछ खास नहीं है। ये तो आप लोग जानते हैं, सब झूठी बातें हैं। माँ ने यूँ ही ढकोसला बनाया फैलाया तरह से punish Eastern Block में पैसा कम है। पर उनको बिल्कुल परवाह नहीं है। वो पैसे की बात ही नहीं सोचते। उनका हृदय इतना स्वच्छ है, इतना स्वच्छ हृदय है और बड़े स्वच्छ हृदय से ही भक्ति हो सकती है। हम लोग तो जब प्रार्थना हैं तब भी हाथ-पैर धोते हैं, नहाते हैं पर हुृदय का स्नान कर के ग़र हम प्रभु से ये कहें कि हमारे अन्दर की ये जो गन्दगियाँ हैं इसको करते हुआ है, एक मायाजाल फेलाया हुआ है। पर उसमें भी लोगों का दिमाग़ खराब हो जाता है अच्छा होगा। और दिमाग़ किसी का खराब होता है और दिल किसी का खराब होता है। अब मैं क्या करूँ, षड्रिपु जिसे कहते हैं। क्रोध पर कृष्ण ने बहुत मेरी खुद समझ में नहीं आता है कार्य इतने देशों में चल रहा है तो कोई न कोई से ही सब चीज़ आती है। एक बार आदमी एक आदमी से ही तो संबंधित हो सकता है। क्रोध करता है फिर उसको सम्मोह हो जाता है तुम हटाओ और हमें स्वच्छ करो तो ज्यादा तीसरी बात जो हमारे यहाँ अन्दर है, जोर दिया है। क्रोध सबसे खराब चीज़ है, क्रोध कि इतना बड़ा चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 &8, 1999 और फिर को ये सोचता है मैंने क्यों कहा, मुझे नहीं कहना चाहिए था। ये नहीं वो नहीं। पर वो आपे में नहीं रहता जब उसे क्रोध आता है. में वो आपे में नहीं रहता है और आपे से बाहर सेना तैयार करना या फिर कोई मारने -पीटने बाली चीज़़ तैयार करना; ये बड़ी भयानक है। हालांकि ग़र अपने संरक्षण के लिए कोई आदमी ऐसी चीज़ रखता है तो उसमें इतना हर्ज नहीं है, क्रोध है। पर तो भी ग़र वो परमात्मा का भक्त है तो हो जाता है और जो मुंह में आए सो बकता उसका कोई अर्थ नहीं या इतने दिनों की जो उसको कोई जरूरत नहीं। ऐसा आदमी हमेशा मैल अपने हृदय में समाई हुई है वो उसके मुख संरक्षित है। जिसके अन्दर श्री महादेव का वास से निकलती है। इस क्रोध को बचाना चाहिए। ये है उनको कौन हाथ लगा सकता है? उनको कौन किसलिए क्रोध आता है। इधर ग़र चित्त दिया जाए कि हम क्यों क्रोध करते हैं। फिर कुछ लोग हैं वो व्यक्ति मात्र से करते हैं, कोई एक समाज मात्र से करता है। इस तरह से अनेक हो जाएंगे। जब इस बात का पूर्ण विश्वास तरह से लोग क्रोध करते हैं। ये क्रोध हमें अन्दर क्यों आता है? किसलिए हम क्रोधित होते हैं? ये सोचना चाहिए। बहुत से लोगों ने मुझसे कहा कि माँ ग़र आपके खिलाफ कोई कहता है तो हमें ही ये कार्य हो सकता है क्योंकि शिव का स्थान बड़ा क्रोध आता है। मुझे तो हँसी आती है। गर हमारे अन्दर प्रतिबिम्ब रूप है और जो आईना कोई मेरे विरोध में कहता है तो सच कहती हूँ स्वच्छ होता है उसी में उसका प्रतिबिम्ब पड़ता मुझे हँसी आती है? क्योंकि इसमें कोई अर्थ ही है शिवजी का क्रोध एक ही बार होने बाला है, नहीं, मेरे विरोध में कहने की ऐसी कौन सी बात है। मैं तो प्यार करने जा रही हूँ। मेरे विरोध में मैंने अनेक बार उनको क्रोधित होते देखा। क्योंकि बोल रहे हैं तो करें क्या! पर किसी-किसी की ला। नष्ट कर सकता है? कुछ भी करो. कितना भी उनको सताओ; तो भी वो इन्सान नष्ट नहीं हो सकता। लेकिन जो उनको सताएंगे वो ही नष्ट आपके अंदर हो जाए कि जो आपको सता रहे हैं वो ही नष्ट हो जाएंगे अपना दिल, अपना हृदय आप एकदम स्वच्छ रखें। स्वच्छ हृदय में और होता है एक बार, ऐसा लोग कहते हैं। पर उनका अधिकार है। उनका अधिकार है क्रोध बुद्धि टेढ़ी होती है तो उस पर दया करनी करने का ग़र कोई आदिशक्ति के विरोध में चाहिए। उसको मोचना चाहिए कि इतना महामूर्ख कार्य करता है तो शिवजी का हाथ बड़ा है ये, जो आदमी क्रोध में उतर जाता है, उसकी तरफ दृष्टि जो है वो अत्यंत शालीन होनी चाहिए। इससे उसका भी क्रोध ठण्डा हो सकता है। अपने देश में क्रोध करने वाले अनेक तरह के लोग हैं, उसकी संस्थाएं हैं जो सिर्फ क्रोध से तो सबको माफ कर देंगी। तब उनका हाथ इतना इसको मार, उसको मार, इसको पीट, उसको पीट और फिर सामाजिक तौर पर भी ये चीज़ हाथ चलता है तो फिर कोई नहीं रोक सकता बनती जा रही है। ये बड़ी भयानक चीज़ है लोगों को हैं जिसको आप उठा नहीं सकते, बढ़ा नहीं मारना- पीटना और फिर उसके दम पर एक कोई सकते। लम्बा है। कुछ भी करो वो मानते ही नहीं उन्हें ठिकाने लगा ही देते हैं । क्योंकि वो जानते हैं आदिशक्ति जो है वो तो कुछ नहीं करेंगी। वो तो किसी को दण्डित नहीं करेंगी, वो लम्बा है कि जिसकी कोई हृद नहीं और जब वो उनसे आखिर कौन बोले, उनके आगे भी मर्यादाएं 9. चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 समझते क्या हैं कि आप उसको कहते हैं ये मुझे पसंद है ये मुझे पसंद नहीं। कोई भी चीज़ को इस तरह से आपको समझना चाहिए कि वैयक्तिक जीवन में सहज योग में आपको अपने शिवजी का ही अनुसरण करना है, क्योंकि नहीं पसंद करने न पसंद करने का आपको कोई अधिकार नहीं। किसी बिचारे ने बढ़िया तरीके बीमारी हो जाएगी। यह पहली चीज़ है दिल से, समझ लीजिए, आपके लिए फूल दिया तो आप कहेंगे साहब मुझे ये फूल पसन्द नहीं। उसके पीछे छिपी हुई उसकी भावना को आप इसलिए नहीं समझ पाते कि आपके अन्दर शिव तत्व नहीं। एक छोटी सी भी चीज़ हो, गर किसी एन्जाइना की बीमारी हो जाती है। इस प्रकार ने गरीब ने आपको दी है तो उसको आप दोनों ही चीजें बेकार हैं। पर कहने से क्रोध नहीं उसकी भावना को पीछे समझ नहीं पाते। किस प्रेम से बो चीज़ लाया? इसके लिए हमारे यहाँ करोगे तो पहली चीज़ है दिल (Heart) की (Heart) की बीमारी हो जाएगी।। like it, I don't like it. इसमें दो तरह से खेल होता है। एक तो अति क्रोध से Heart पकड़ जाता है और दूसरा है कि क्रोध के बाद पश्चाताप हो तो आपके जाता। ये तो एक शराब जैसी चीज़ है। आदत हो जाती है क्रोध करने की, उसी में मज़ा आता है। सुदामा का उदाहरण दिखाया गया है कि वो कुरमुरे लेकर पहुँचे थे और उनका कितना मान श्रीकृष्ण ने किया! कोई चीज़ जो प्रेम भाव से बस मुँह फूलने लग जाएगा और गुस्सा आने लग जाएगा। आप उसको कंट्रोल नहीं कर पाएंगे। तो मैंने ये सोचा कि गर शीशे के सामने बैठकर देते हैं, वो ऐसा ही है जैसे कि एक शीशे को आप क्रोध करें, अपने ऊपर, अपको को दो चार सुनाएं और शीशे के सामने बैठकर ये कहें कि मेरे जैसा महामूर्ख कोई नहीं, तब ये क्रोध शायद ठण्डा हो जाए। ये भी में शायद ही कह रही हूँ क्योंकि कभी-कभी ये समस्याएं इतनी उलझी होती हैं कि उसको सुलझाना बहुत मुश्किल है। आप पारस पीछे से लगा दीजिए, चमक जाता है। ऐसी ही चीज़ है, ग़र आपके अन्दर भावना बहुत सुन्दर हो अच्छी हो, पर पैसा नहीं हो तो आप कोई छोटी सी चीज़़ भी उनको लेकर दे दें तो दूसरे को सोचना चाहिए, आहा! क्या बढ़िया चीज है! किन्तु इस भावना से मनुष्य के अन्दर एक सूक्ष्म दृष्टि प्राप्त होती है जिसको कहना चीज़ को ध्यान देते हैं और उस चीज़ के ऊपर, चाहिए कलात्मक, जिसमें कला का प्रादुर्भाव हम जिसको कहते हैं, प्रतिक्रिया ( react) करते होता है। जिसमें कला दिखाई देती है? तो आप हैं। किसी ने कुछ कहा, फ़ौरन reaction हो समझते हैं कितनी कलात्मवक चीज़ है, ये कला गया ये प्रथा ज्यादा विदेश में है। जैसे कि अब है प्रेम की कला। ये प्रेम की कला है। इस कला ये (Carpet) कालीन बिछा हुआ है, फ़ौरन से आप देख सकते हैं कि इस मनुष्य में कितना प्यार है! कितना मोहब्बती है! कितना प्रेम करने वाला है। कितना सज्जन है। कितना अच्छा है! जब आप ये चीज़ देखना शुरु करेंगे, तब आपकी चिकित्सक है जो कहेगा कि मुझे पसन्द है मुझे नज़र अपने ऊपर जाएगी और आप ये सोचेंगे मैं क्या हूँ? मुझमें इतना प्यार है? मुझमें इतनी सज्जनता है? मुझमें ये अच्छाइयाँ हैं कि मैं आगे चलकर देखा गया है कि जितना हम किसी कह देंगे कि । don't like it, I like it? ये कौन होते हैं आप कहने वाले। हरेक चीज़ को आजकल की फ़ैशन है, हरेक आदमी जैसे कोई बड़ा भारी पसंद नहीं। ये कहना ही नहीं चाहिए, ये कहना ही आपके आज्ञा का लक्षण है। आप अपने को 10 चैतन्य लहरी खंड : XI अक : 7 & 8, 1999 ऊपरी जुबानी जमा ख़र्च करता हूँ और लोगों को होती है. कोई परेशानी होती है तो वो सब जगह भुलावे में डालता हूँ। वास्तविकता में हम अपने ही को भूलावे में डालते हैं। जब हम गलत काम कर रहे हैं, गलत तरीके से रह रहे हैं, जब हमारे पहुँच जाता है जहाँ ज़रूरत होती है। बड़े कमाल जीवन में पूरी तरह की गलत-गलत धारणाएं की बात है, पर होता है और हुआ है और इसी बनी हुई हैं, तो हम किसी को भी सुख नहीं दे को लोग चमत्कार कहें पर ऐसी बात नहीं हैं। सकते और अपने को तो बिल्कुल ही नहीं दे सहजयोग में ग़र आप शिव तत्व में जागृत हो सकते। इसलिए स्वार्थ की दृष्टि से भी स्वार्थ जाएं तो आपके अंदर के जितने सूक्ष्म-सूक्ष्म, व्याप्त हैं। हर जगह वो आकाश तत्व जो तत्व में कह रही हूँ, व्याप्त है। फौरन आपका असर वहाँ शब्द बड़ा सुन्दर है। 'स्व' का अर्थ जानना चाहिए। स्व माने आत्मा, उसका आप अर्थ हैं वो जागृत हो जाती है। जानिए। अर्थ जानने के लिए शिवजी की पूजा लोग करते हैं। पर मैंने देखा कि शिवजी की दिल को साफ करें। अब दिल के साफ करने में पूजा करने वाले लोग बड़े गुस्से वाले, बड़े क्रोधी, बड़े कंजूस और न जाने क्या-क्या होते चौथा रिपु जो हमारे अन्दर है। वो है मद। मद हैं। शिवजी जैसे दाता कोई नहीं शिवजी जैसे प्रेम माने घमण्ड। जब औरतों में घमण्ड आ जाता है करने वाले जो ये प्यार का सरोत हैं, जो आज बह रहा है, ये शिवजी के चरणों की लीला है। उन्हीं औरतों जैसे नहीं चल सकती घमण्ड में । हम की वजह से ये कार्य हो रहा है कि मनुष्य प्यार माने बहुत हम कोई विशेष, हमारी कुछ तो भी में डूबा जा रहा है। सहजयोग के बाद जब आपकी स्थिति वो हो जाती है तो, आप जीवात्मा है. या सुशिक्षित है या चाहे जिसकी भी बात है। सूक्ष्मतर कहना चाहिए, जो भाव है और स्थिति इसलिए चाहिए कि हम लोग पहले अपने मैंने आपसे तीन रिपुओं की बात कही। अब तो वो आदमियों की चाल चलती है। फिर वो ज्यादा या तो पैसे वालों की लड़की है या सुन्दर कहना चाहिए या आपके Attention जो हैं, चित्त किसी भी बात से अगर घमण्ड आ जाए तो जो हैं, वो शिवजी के चरणों में लीन हो जाता है औरत जो है वो आदमी जैसे चलने लगती है। और शिवजी के चरणों में लीन होते ही क्या होता है कि आपके अन्दर जो पंचतत्व के गुण जैसे चलने लगता है, माने बनता ठनता है हैं वो भी बिल्कुल सूक्ष्म हो जाते हैं। मैंने आप लोगों से पहले चार तत्वों के ये करता है वो करता है। सब औरतों के धंधे बारे में बताया था पर पाँचवा तत्व जिसे कि और जब आदमी को घमण्ड आता है तो औरतों बहुत शीशे के सामने घण्टों बैठता है, बाल बनाता है, करता है। बनना ठनना औरतों का काम है। Eather कहते हैं अंग्रेजी में उसके बारे में नहीं चलते वक्त भी सीधे नहीं चलता, एक विशेष रूप से चलता है गर पीछे देखो तो लगेगा कोई तत्व का ये है कि जब मनुष्य सूक्ष्म स्थिति में औरत चली जा रही है मर्दाना कपड़े पहन को। जाता है तो उस सूक्ष्म आकाश को भी प्राप्त सो जब आदमी के अन्दर ये चढ़ जाता है मद करता है। वो आकाश जो कि eather को तो कहते हैं न मदमस्त हुए, ता मदमस्त हुए तो बताया। अपने यहाँ आकाश कहते हैं। आकाश चलाता है। उस आकाश को चलायमान भी करने डोलने लग ज़ाते हैं हाथी की जैसे। उनका सारा की जरूरत नहीं। ग़र किसी को कोई तकलीफ ही ढंग अलग अलग हो जाता है। वो बात करेंगे चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 11 গা গc उसके ग-अलग चिन्ह हैं। गर शिव भक्त होगा तो ऐसे ऐसे चन्दन लगाएगा। अगर विष्णु तो, बात नहीं करेंगे तो, बैठेंगे से, हर चीश में ये दिखाई देता है कि इनके कोई न कोई घमण्ड भक्त होगा वो ऐंसे लगाएगा। अरे भई इसका क्या अर्थ है? ऐसे लगाने का अर्थ है हम उध्ध्वांगामी हैं। ठीक है आप ऊपर चढ़ रहे हैं उध्ध्वगामी और पहुँचकर के आप शांत। दोनों ही लगाना चाहिए और नहीं तो लगाओ ही मत। इसका कोई अर्थ होना चाहिए कि जिस चीज़ को प्राप्त करने जा रहे हैं, उसका ये सोपान मार्ग है । जिस रास्ते से आप गुजर रहे हैं इसमें से एक-एक गन्दी चीजों को छोड़ते जाते हैं दूसरों बड़े रईस हैं या हम बड़े ये हैं। अब तो गरीबों को भला-बुरा कहने से पहले अपने को भला-बुरा कहना सीखिए। मैं ऐसी हूँ। मैं बैसी घमण्ड हो गया है, कुछ समझ नहीं आता! वो हूँ। अपने को कहिए, जब आप अपने को कहना शुरु करेंगे तो, आप देखिए सारे भृत भाग करते हैं। आप स्वयं साक्षात क्या हैं? एक ईश्वर जाएंगे। क्योंकि ये सारे भूत हमने इकट्ठे किए हैं खुद ही सोच सोच के. अपनी आज्ञा से। अपनी आज्ञा से भूत इकट्ठे होते गए. दिमागी जमा खर्च हो गया और आदमी बहुत क्लेशदायी जाता है और वो दुखदायी उसको भी दुविधा ही करता है। आप किसी को दुख के लिए शिव की भक्ति करता है। पर मैं देखती देकर सुख नहीं पा सकते। उसका जरूर असर है। अब समझ में नहीं आता कि किस चीज़ का ंनम घमण्ड इनको चढ़ा हुआ है। कौन सी चीज़ से अपने को विशेष समझ रहे हैं। ये सारी ही चीजें तुच्छ हैं। इसका कोई अर्थ ही नहीं है। सहज में इसका कोई अर्थ नहीं है। इसलिए ऐसी चीजज़ों में विश्वास कर लेना कि हम कोई विशेष हैं तो आप शेष ही रह जाते हैं विशेष नहीं रह जाते शेष ही रह जाते हैं। मतलब ये है कि अपने बारे में कोई सी भी ऐसी कल्पना कर लेना कि हम को भी घमण्ड हो गया है, दलितों को भी जो भी हो वो हम हैं। इस तरह से लोग बातें भक्त, परमात्मा को मानने वाले सहजयोगी है। आपको इस तरह से अपने बारे में सोच लेना, आनन्द से परे होन है, क्योंकि शिव-शक्ति जो है आनन्द विभोर दुखदायी हो मनुष्य को करती है। मनुष्य आनन्द में मस्त होने हूँ अधिकतर शिव भक्त जो होते हैं, बड़े सड़ियल लोग होते हैं। उनसे कोई बात भी नहीं कर आना है। चाहे आप पत्थर हों, पर उसका असर आता है। और उसका असर ये-ही आता है कि आदमी बड़ा दुखी हो जाता है। ये तो एक माँ हो, जो नटराज साक्षात सारे कला का प्रादुर्भाव की बात है कि वो आपके सुख की बात करती है। आपको जिससे सुख मिले. जिससे आपको स्वरूप हैं, उनके आगे ये शिवभक्त, इनको संतोष मिले. जिससे आपको शांति मिले, जिससे आपको प्यार मिले और दुनिया में एक आप सज्जन इन्सान हो जाएं। ये एक तो माँ का सकता, फायदा क्या है? शिव की भक्ति करते करने वाले जो अत्यंत आनन्दी और आनन्द के शिवभक्त कैसे कहा जाए? गले में इतना बड़ा बड़ा लिंग लटकाते हैं जिससे दिल का दौरा तरीका है। (heart attack) आता है। उसकी क्या जरूरत है। आप स्वयं साक्षात लिंग स्वरूप वोही हैं। वो न होते हुए वो जो कार्य करते हैं कि हम शिवभक्त हैं। लगे लड़ने शिव भक्ति करके और पर शिव का ये तरीका नहीं। शिव एक हृद तक चलते हैं नहीं तो ऐसा तड़ाकते हैं कि मैं घबराती रहती हूँ कि अब ये आदमी किधर चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 & ৪, 1999 12 जा रहा है। अब इसका होगा क्या? ये कहाँ ये ही हैं रुद्र के जो भावना है वो भी शिवजी पहुँचेंगे? ये क्या कर रहे हैं? उनको ये नहीं, के ही स्वरूप हैं । इसीलिए बहुत संभल के आपको रहना चाहिए। इसके बारे में आप को इसलिए warning चेतावनी देनी है कि सहजयोग करने योग्य हो तो माफ करते हैं। जो उनकी में भी लोग आते हैं, कोई पैसा कमाता है, कोई बहुत तपस्या करता है उनको भी वो वरदान देते बुराई करता है, कोई खराबी करता है, कोई अन्याय करता है, ऐसे लोग तो झटक जाते हैं. नहीं होना चाहता उसको वो ठीक कर देते हैं। ये निकल जाते हैं। पर निकलते ही साथ शिवजी बात सही है इसलिए उनसे डरना भी चाहिए। की कक्षा में आ जाते हैं। फिर मुझे खबर आती कि वो दिवालिए हो गए, वो ऐसा हो गया, वैसा हो गया। मैंने कहा भई अब मुझे मत बताओ। उनका सबसे ज्यादा जो बिगड़ना है वो तब होता जब वो खुद ही छोड़ के भागे अपने संरक्षण से है जब अन्त का, कहते हैं न कि रात्रि ऐसी तो उसे कौन बचा सकता है? इसलिए आपको आएगी कि सब नष्ट हो जाएगा। उस समय वे चाहिए कि आप अपना संरक्षण शिव में खोजें, माँ में तो है ही संरक्षण, लेकिन शिव में खोजना तब आता है क्योंकि मैंने आपसे कहा था कि ये चाहिए। उसके लिए ये जो मैंने अभी आपको आखिरी निर्णय है. last judgment है। इसमें बताया ये पांच चीजें हैं इन पांच तत्वों में जो सूक्ष्म चीज़ है उसको प्राप्त करना है। उसको करते हैं, ये सब पूर्णतया आपके अन्दर लिखा प्राप्त करने के लिए आपको ध्यान करना जरूरी है। जो लोग ध्यान करते हैं वो अलग है और उसी के अनुसार आप चाहे स्वर्ग में जाएं ही दिखाई देते हैं और जो लोग ध्यान नहीं और चाहे आप नरक में जाएं नर्क में भेजने करते वो अलग दिखाई देते हैं। इसमें कोई शक नहीं। अब जो लोग ध्यान करते हैं पर ध्यान में मन नहीं, ध्यान में प्रवृत्ति नहीं, ध्यान की समझ नहीं, ध्यान में सूझ-बूझ नहीं और उसके प्रति एक आलस्य हो तो भी वो ध्यान फलीभूत नहीं होता, उससे कोई फायदा नहीं होता। ऐसा ध्यान हो, जिससे हो जाए। उनके अन्दर ये नहीं है कि चलो भई इनको, ये बहुत खराब हैं बुरे हैं तो माफ कर दें। हाँ माफ हैं। पर जो आदमी मूलत: 'basically' जो ठीक उनको भयंकर भी इसीलिए कहते हैं कि जब विगड़ते हैं तो वो किसी को भी नहीं छोड़ते। पर अपने क्रोध से सब चीज़ नष्ट करते हैं। ये समय आप कौन से रास्ते पे जाते हैं, कहाँ जाते हैं, क्या जाता है। आपका जैसे कच्चा चिट्ठा बन जाता वाले तो शिवजी हैं, मैं नहीं। मुझे कोई मतलब नहीं नर्क से। लेकिन शिवजी को है वो खींच के आपकी टांग आपको नर्क में डाल ेंगे। फिर आप ये न कहें मैं तो माँ का बड़ा भक्त हूँ और मैं माँ को मानता हूँ, तो मुझे क्यों ये ऐसा हो गया? इसका कारण में नहीं हूँ। जिसने एक बार मुझे माँ कह दिया उसके लिए मैं कभी कुछ बुरा नहीं सोचती। पर, शिवजी की मर्यादाएं गर मैं हूँ तो मेरी मर्यादाएं भी वो हैं। पर इस मामले में सबका दोनों का स्वभाव बिल्कुल विपरीत होने के कारण आपको बहुत समझ करके रहना है। ईसा मसीह में भी जो ग्यारह रूद्र हैं, वो भी अंग-अंग आपको जो है वो खुश जिससे आनन्द की वर्षा हो। शिवजी का पहला और महत्वपूर्ण जो हिसाब किताब है वो ये है कि वो आपको आनन्दित करते हैं, पुलकित करते हैं । उनके नाम स्मरण से ही मनुष्य को आनन्द मिलना चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 7 &৪, 1999 13 चाहिए। पर उससे उल्टा होता है। उसके विरोध में ही लोग रहते हैं। जो होना चाहिए वो नहीं होता है। ये मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि जिनको हम शिव के भक्त समझते हैं वो इस कदर करके सूखे कैसे हो सकते हैं? हो ही नहीं से कौन से गलत काम करती हूँ? अपनी भारतीय सकते। इसमें एक कारण और भी है कि जो संस्कृति में जो कुछ बताया गया है, सीधा रास्ता बहुत ज्यादा कार्य में रत रहते हैं, बहुत ज्यादा, वो (right sided) आक्रामक हो जाते हैं। जब वो तो लोग सोचते हैं जैसे भी रहो ठीक है, ऐसी आक्रामक बहुत हो जाते हैं तो शिव से वंचित हो जाते हैं, शिव से हट जाते हैं। और शिव फिर संस्कृति के अनुसार पूर्णतया रहना होगा। आपका अपना असर दिखाते हैं। अब आपको पता है कि शिवजी की बहन सरस्वती हैं। जो सरस्वती की रहे क्योंकि भारतीय संस्कृति में शिव तत्व का पूजा करते हैं। माने जो पढ़ते हैं, लिखते हैं, ये बड़ा महत्व है। सबसे ज्यादा जो है शिव तत्व नहीं। शीशे के सामने बहुत बैठना भी एक बीमारी मानी जाती है। पर ये है कि आप अपनी तरफ नज़र करें और अपनी तरफ नज़र करके देखें कि मैरे अन्दर कौन सी खराबी हैं? मैं कौन उसे लेना है। आजकल नया जमाना आ गया है बात नहीं। हिन्दुस्तान में रहते हुए आपको भारतीय सारा जीवन क्रम भी भारतीय संस्कृति से जुड़ा सब ज्ञान व्यान इकट्ठा करते हैं और इसके अलावा कला में बहुत रुचि रखते हैं, लोग हैं कला की ओर जिनकी रुचि है ऐसे लोग जो हैं जो सरस्वती की पूजा करते हैं उनकी वन्दना करते हैं, उनको सबसे पहले ये जानना गई हैं आज तक ये ऐसे नहीं करते वैसे नहीं चाहिए कि ये शिवजी की बहन है। और आप जानते हैं बहन का रिश्ता बड़ा जबरदस्त होता है। ग आप इनकी बहन की कहीं प्रवंचना करें या उससे कोई बुरे गुण ले लें या बुरी बातें करें, लांघ जाते हैं आप पर उसका असर आता है। जैसे कि बहुत से लोग हैं गन्दी गन्दी किताबें लिख देते हैं, बहुत से लोग हैं जिनके पास ज्ञान है उसको उल्टा सीधा कर देते हैं, ऐसे लोगों पे शिवजी का हाथ बड़े जोर से पड़ता हैं। क्योंकि उनकी बहन जो है वो बड़ी महत्वपूर्ण है। उसकी प्रवंचना करना माने बहुत ही बड़ा गुना है, उनकी दृष्टि में बहुत बड़ा गुनाह है । और ली हैं कि शिवजी के लिए ये चीज़ है । वो आदिशक्ति के लिए भी उनका बहुत कड़क शिवजी ने ग़र पिया तो शिवजी ने तो विष भी नियम है, इसमें कोई शक नहीं। अब जो सहजयोगी हैं उनको सबसे पहले अपनी ओर ध्यान देना है। मेरा मतलब नहीं कि लें, इसलिए वो धतूरे को खाते थे कि धतूरा जो शीशे के सामने घण्टों बैठे रहिए। बिल्कुल भी है इसमें जहर होता है, तो वो खाते थे इसी का है और शिव तत्व ने ही हमारी मर्यादाएं बनाई हैं कि इस मर्यादा को आपने लाँघा कि आप गए। जो मर्यादाएं हमारी संस्कृति में हैं, वो शिव की कृपा से हैं। वो सारी बातें जो हमें बताई ऐसे जो करते, छोटी से लेकर बड़ी तक. ये मय्यादाएं शिव ने बनाई हैं। वो इसका इतना जबरदेस्त ख्याल रखते है कि जैसे ही आप इस मर्यादा को अब शिव तत्व में इतनी-इतनी गलत धारणा लोगों ने बना दी है। जैसे बहुत से सोचते हैं कि भंग पीने से आप शिव तत्व के हो जाते हैं। बहुत से लोग जो शराब पीते हैं वो सोचते हैं कि शराब पीने से आप शिव तत्व में डूब जाते हैं । बहुत सारी ऐसी गलत-गलत चीजें लोगों ने बना पिया था, आप विष पिएंगे? उन्होंने इसलिए पिया था कि संसार का सारा विष जो है वो खा चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 &8, 1999 14 दशा में नहीं जाएंगे तो बेकार है। आपके लिए ये सारे उपत्व्याप्त करने से कोई फायदा नहीं। बहुत सारी चीजें हैं जिसका समर्थन हो सकता है गलत प्रकार आपने सुना होगा कि साईनाथ जो थे वो बहुत तम्बाकू पीते नहीं थे पर वो चिलम में भर कर खींचते थे। वजह ये है कि महाराष्ट्र में लोग बड़ा ही तम्बाकू खाते हैं, हर आदमी मंत्री भी तरीके से, पर हमको ग़र सही तरीके पे रहना है तम्बाकू खाएगा और उसका चपरासी भी खाएगा और मंत्री चपरासी से कहेगा कि भई तेरे पास और सही मार्ग से चलना है तो सर्वप्रथम अपने हृदय को हम स्वच्छ करें। ये जो हमें आदतें लगी हैं। ये आदतें भी तम्बाकू हो तो दे। इस कदर वहाँ पर बिल्कुल तम्बाकू का जोर है हालांकि इतनी तम्बाकू तो सारी हमारे हृदय पे असर करती हैं। इसलिए वहाँ होती नहीं है पर पता नहीं उन लोगों को पहले जमाने में ऐसा होता था कि जो भी विद्यार्थी तम्बाकू की बीमारी है? इतनी तम्बाकू खाते हैं आते थे उनको जंगलों में सोने को कहते थे। वो महाराष्ट्र में लोग। उस तम्बाकू के लिए ही साईंनाथ ने ये सोचा कि मैं ही क्यों न इनकी बकड़ियाँ सब लगे, वहीं रहो। तुम्हारे ऊपर सारी तम्बाकू खा जाऊ। इसलिए वो तम्बाकू ऐशोओराम न चढ़े। ज्यादा से ज्यादा झोंपड़ी में, खींचते थे। तो लोगों ने कहा लो साईंनाथ भी जिसको कि गोवर से लीपा हुआ है उसमें चिलम पीते थे तो हम भी पीएंगे। जहाँ वो वहाँ ऐसे लोग हो गए जो तम्बाकू इसलिए लेते थे कि इन लोगों की तम्बाकू की जो लत है वो खत्म हो जाए । अब वो चाहे उसको कुछ भी कहिए पहनना है, हमें ये जूता खरीदना है हमें ये खाना है तो वो तम्बाकू और तम्बाकू का शिवजी से वैसा सम्बन्ध नहीं है, पर ये जरूर है कि सब वो सारी दुनिया भर की तम्बाकू को खत्म करना चाहते थे। अब समझ लीजिए कि अगर आप देवी हैं, सो देवी का काम है कि सारी दुनिया के हमारे यहाँ जो इन्सान देखो, हिन्दुस्तान का, दुष्टों को भूतों को खा ले। अब आप भी खाएंगे उसको खाने-पीने का बड़ा शौक है । सहजयोगी क्या भूत? देवी का कार्य है कि वो जितने भी भी एक-दूसरे को बुलाएंगे खाने पर आइए, काहे आपके पीछे में लगी हुई बीमारियाँ हैं उनको को? औरतों को खासकर, कि जैसे कहीं जाओ जंगलों में रहे जहाँ साँप, बिच्छू, मकिड़्याँ. सुलाते थे और बहुत सादगी का जीवन, कपड़े भी बहुत कम पहनने जिसमें कि बच्चों को कपड़ों के प्रति लालच न हो। हमें ये कपड़ा खाना है, ये सहजयोगियों को कहना नहीं चाहिए। आपको मालूम है आपकी माँ कहीं भी रह सकती है, कहीं भी सो सकती है, कुछ भी खा सकती है। तो ये जो चीज़ है अपने अन्दर स्वाद. तो कहें माँ आप हमारे घर खाने पर आओ। मैंने आत्मसात कर ले। तो अब आप लोग करेंगे कहा भई खाने का बड़ा गड़बड़ काम है। मैं तो किसी होटल में नहीं खा सकती, मैं कहीं नहीं खा सकती और घर में भी बौर नमक बौर चीनी के रहती हूँ। मेरे अन्दर अस्वाद है, बचपन क्या ? ये आपका कार्य नहीं। इसी प्रकार जो कुछ भी साधु-सन्तों ने किया है वो सब करने के लिए तो अभी आपकी ये शक्ति नहीं और न ही आपका कार्य है। आपका कार्य जो है वो अपनी स्वच्छता करना, अपने को ठीक करना। पहले से अस्वाद है। मैं हर हालत में जो मिले सो खाती हूँ। पर हम लोगों की जो जुबान है, बड़ी चटोरी है। हिन्दुस्तानियों में चाहे बो यू.पी. वाले आप उस दशा में पहुँच जाएं तब फिर सब मामला ठीक हो सकता है। पर ग़र आप उस 15 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 साफ है। हमें आप हिन्दुस्तानी दे दो । तो मैंने अदल वदल दिया तो बड़े खुश हिन्दुस्तानी कि attached bath मिल गया। शर्म करनी चाहिए! हों, पंजाबी हो, चाहे दक्षिण के हों, खाने के मामले में हिन्दुस्तानी बहुत कुशल हैं। और आदमियों को बुद्ध बनाते हैं खाना खिलाकर। हमारे पति को ये पसन्द है, हमारे पति को वो सहजयोगियों को ऐसी बातें करते हुए शर्म आनी पसन्द है, करे क्या? उसकी गुलामी करेंगी, पति चाहिए। आपके बाप दादा तो लोटा लेकर के को खुश करेंगी। उनको ये करेंगी। रात-दिन जाते थे और आपको ये क्या शौक? आपको खाने-पीने की बात गर करें तो वो सहजयोगी कोई बीमारी है या कोई तकलीफ है? मुझे एक नहीं। अब बाबा जब मैं वहाँ थी, मिलान में, वहाँ आफ़त में डाल दिया था। पर एक तरह से मेरे जब प्रोग्राम हुआ, गुरु पूजा में, मैंने खुद खाना दिमाग में बात आ गई कि चलो भई तुम ये लो तुम ये लो। इस तरह से बहाने बाजी और ये करना ये हिन्दुस्तानियों का ही काम है। अब बनाया। क्या करें? चार साल तक में वहाँ खाना बनाती रही क्योंकि दूसरे लोग अच्छा खाना नहीं बनाते थे। लोग कहते माँ ये तो प्लास्टिक के आपको और हैरानी होगी कि जो लोग कवैला जैसे बना है। पर हिन्दुस्तानी उसमें विशेष थे, आते हैं, सब लोग सबके साथ रहते हैं। बहुत जितने भी हिन्दुस्तानी वहाँ आएंगे सब मुझे रईस लोग हैं जिनके पास मोटरें हैं सब हैं | मिलना चाहेंगे, उनका विशेष अधिकार है मेरे लेकिन वो सब पंडाल में सोएंगे। पर हिन्दुस्त नी ऊपर। और दूसरा खाने पीने में बड़ा वो, कि अपने लिए एक विशेष जगह होगी, होटल में यहाँ का खाना ठीक नहीं। अब एक और नई रहेंगे, मोटरों में घूमेंगे। कोई भी तरह की जरा सी चीज़ शुरू हो गई हिन्दुस्तानियों में कि साथ जुड़े भी उनमें त्याग नहीं। त्याग करना सीखा ही स्नानागार चाहिए। इनके गुसलखाने घरों में जाकर नहीं। आज कल हम माडर्न क्या हो गए मेरी देखो तो, कैसे इनके माँ बाप रहते थे इनको समझ में नहीं आता। अब इन लोगों को घरों में साथ जुड़े स्नानागार चाहिए. वो भी अंग्रेजी ढंग नौकर नहीं तो ये attached Bath इसलिए नहीं का चाहिए। मैं इसलिए आज कह रही हूँ कि रखते, एक ही रखते हैं कि बाबा सफाई करना इसने बड़ा परेशान कर दिया मुझे। गणपति पुले पड़ता है। आप लोगों के नौकर चाकर हैं तो में उनके लिए अलग से मैंने स्नानागार बना दिए, चलो दस दस Bathroom रख लिए। पर ये बाबा अंग्रेजी बना दिए। पर पहले मैंने हिन्दुस्तानी सब आदतें आपको अपने स्वयं की शक्ति बनाए, मैंने सोचा हिन्दुस्तानी को हिन्दुस्तानी से दूर ले जाएंगी फालतू चीजों में आपका पसन्द आएगा और अंग्रेजों को अंग्रेजी बना दिया तो ये फ़रमाते हैं कि नहीं, हमको अंग्रेजी जाना ही चाहिए। बताओ, मैंने कहा लोटा लेके जंगल सर्वसाधारण मनुष्य बनाते हैं। में जाओ, ये ही तुम्हारा इलाज है। सालों भर ऐसे ही जाते रहे और अब बड़े साहब हो गए हैं Beauty Parlour में जाएंगी। शक्ल तो वही attached bathroom के लिए। तो बेचारे अंग्रेजों रहती है। वहाँ पैसा खर्च करेंगी, वहाँ ये करेंगी। ने जो परदेसी foreigner थे. बिचारों ने कहा, माँ हमारे पूना में ब्राह्मणों की औरतें Sleev less हमें तो हिन्दुस्तानी अच्छे लगते हैं, क्योंकि बड़ा पहनेंगी, काला चश्मा लगाएंगी और वो मोपेड ध्यान जाएगा। फालतू बातों में आपका ध्यान , ये सब आपको एक बहुत ही औरतों के आजकल चला हुआ है कि चैतन्य लहरी 16 खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 पर बैठकर घूमेंगी। मेरे समझ नहीं आया। पूना में करो। पहले बैसगी हो जाओ, हिमालय पे जाओ जो कि पुण्य पटनम है, ये क्या पुण्याई का एक टॉग पर खड़े रहो। फिर कपड़े बिल्कुल कम पहनो । नदी में जाके नहाने का और वैसे ही गीले कपड़ों से ध्यान करो। सारे कष्ट शरीर को इन्तजाम है? इस तरह से हम लोग विदेशी चीज़ को ले रहे हैं, बगैर सोचे कि इसमें शिव का तत्व कितना है ? शिव को देखो नंग-धड़ंग बैठते देते थे, और गुरु लोग अब भी मारते-पीटते हैं। हैं अपने ऐसे! वो अपने बारात में भी नन्दी पर बहुत सताते हैं। ऐसे थोड़े ही बैठे बिठाए पार करा दे। न न, काफी आफत कराते हैं और तब शिष्य है, वो जो बोलेंगे उस पर गर्दन हिलाता है। उसके बाद लोग पार होते हैं। पर उनका जो पार कुछ भी बोले तो इसलिए नन्दी उनका सबसे होना है वो जम जाता है। स्थिति है। और आप प्यारा शिष्य है। अब इस पे बैठ के वो वहाँ लोगों को ऐसे ही पार करा दिया, अब वो बाकी की पीछे की चीजज़ें तो चल ही रही हैं objection नहीं था पर उसके भाई साहब जो सब। वो आफत तो चल ही रही है। अब उसको क्या करें? तो उसको ही छाँटना है। आ रहा है दुल्हा मिया? मेरा ये मतलब नहीं कि इन सब चीज़ों को जो हमने जोड़ लिया है ऐसे दूल्हे आप बनकर जाइए, ये मतलब नहीं। इसको छांटना है, खत्म करना है इसके लिए उपद्रव करने की ज़रूरत नहीं, कोई वैराग्य लेने की ज़रूरत नहीं, घर बार छोड़ने की ज़रूरत नहीं। किसी भी तरह का द्रविड़ी प्रणायाम करने की ज़रूरत नहीं। पर एक चीज़ ज़रूर है कि अपना ये कम करना चाहिए, कम करते जाना है। धोरे धीरे कम करो। अस्वाद अन्दर आना चाहिए, बहुत ज़रूरी है। अस्वाद एक बड़ी भारी चीज़ है, लोग बहुत नाराज़ हो जाते हैं। गर खाना उनकी समझ में नही आया तो थाली फेंकेंगे कहीं मारेंगे पीटैंगे नौकरों को, पता नहीं तो बैठ कर गए। नन्दी क्यों? क्यों नन्दी उनका पहुँचे विवाह करने, तो पार्वती जी को तो कुछ विष्णु थे वो जरा कुछ घबराए कि ये क्या चला पर तो भी उसमें ताम झाम दुनिया भर की चीजें करा कर के और वो खर्चे में डालने से फायदा नहीं। समझदारी, समझदारी आपका अलंकार है हर चीज को मान्य कर लेना, हाँ ठीक है। जो भी है ठीक है, खाना ठीक है। अब वो किसी के यहाँ खाना खाने जाएंगे और उसकी बुराई करते रहेंगे। मुँह पर नहीं करेंगे घर पे आके करेंगे। अरे क्या खाना बनाया था। कसी के यहाँ अच्छा खाना बना हो तो बीबी से कहेंगे वैसे तुम बनाओ। सारी जिसको 'जिह्वा लोलुप्य' संस्कृत में कहते हैं हिन्दुस्तान में बहुत ज्यादा हद ज्यादा है। इसको कुछ कम करना चाहिए। ये लोग आपका खाना खाते हैं मैंने कभी नहीं सुना किसी ने शिकायत की है। हालांकि इन लोगों का है। से क्या। गर आपके अन्दर अस्वाद आ जाए बहुत हलवाइयों की दुकानें भी बन्द हो जाएंगी मेरे ख्याल से। बहरहाल मेरा कहने का मतलब ये है कि शरीर का माध्यम नहीं रखना। शरीर के अंग्रेजी खाना तो कोई खा नहीं सकता आप लोगों में से। लेकिन इस तरह से अपने ऊपर ये जो लेपन करा रखा है इससे आनन्द में विभोर नहीं हो सकते। शिवजी का जो आनन्द है उसको तो बताने के लिए लोगों ने कहा था कि आप बैराग्य लिए comfort है समझ लीजिए ग़र आप पलंग पर सोते हैं तो ज़मीन पे नहीं सो सकते तो दस दिन जमीन पे ही सोइये। कैसे नहीं सो सकते? अपने शरीर को अपना गुलाम बनाए बगैर नहीं हो सकता। अपने comfort की जो बातें हैं वो चैतन्य लहरी । 17 खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 रुपये महंगा हो गया तो औरतें उनकी बड़ी फोटो आई, सब बड़ी सजी-धजी। मैंने कहा ये पन्द्रह रुपये का तो उनके पाउडर ही लगता होगा। ये । खत्म करना चाहिए। बहुत से लोग हैं, वो बस से नहीं चल सकते, क्योंकि वो मोटर से ही जा सकते हैं। फिर इसकी मोटर माँग, उसकी मोटर मांग, इसमें बैठ, उसमें बैठ! पर कोई भी ये नहीं लोग काहे की वो जा रहे हैं कि हम जा रहे हैं अब हड़ताल पे, काहे के लिए? क्योंकि पन्द्रह होता है? और पहले तो बस भी नहीं थी लोग रुपए बढ़ गए, और तनख्वाह आप की इतनी चलते ही थे हम जब स्कूल में पढ़ते थे पाँच बढ़ गई वो किसी को नहीं दिखाई दिया हम मील रोज़ सर्वरे चल के जाते थे हमारे घर में अपने नौकर को पहले समझ लो कुल बीस-पच्चीस रुपए देते थे, आज ढाई हजार रुपए मिले तो भी वो शिकायत करेगा उसको कपड़े भी मिलते हैं। सब मिलता है। कितनी भी सोचेगा कि चलो आज बस से चलकर देखें क्या मोटरें थीं सब कुछ था। ये माँ-बाप थे हमारे। पर हमें खुद बहुत शौक़ था। पैदल चलो और जूते नहीं पहनते थे, चप्पल नहीं, हाथ में लेके चलते थे क्योंकि vibrations की वज़ह से अच्छा था जमीन पे चलना। आप लोग भी थोड़ा सा जूतों के बगैर, चप्पल के बगैर चलना सीखिए बहुत जरूरी है। इससे बड़ा फायदा होगा। ज़मीन को भी vibrations मिलेंगे और आपको भी अच्छा लगेगा। हर तरह की चीजों में हम लोग बहुत तनख्वाह बढ़ जाए तो क्या दाम नहीं बढ़ेंगे। जहाँ तनख्वाह ज्यादा मिलती है वहाँ दाम बढ़ते हैं। वो सोने की बताते हैं कि जब लंका में सोने की ईंट मिलती है। एक साहब गए सोने की ईंट लेने तो देखा क्या है कि एक दिन उन्होंने काम किया तो उनको दो ईटें मिलीं। उसके बाद वो नाई के पास गए उनकी शेव करने के लिए तो उसने कहा कितना दाम कहने लगा कि दो ईंें। जैसे कमाई वैसा खर्चा। एक समझदारी की बात है। वाला। इस सब की गुलामी करते करते सारी तो लग गए उसी के पीछे में कि माँ ये महंगाई जिन्दगी बीत जाएगी। इस गुलामी को कम करना हो गई. ये हो गया| मैरे तक शंका आता है। मैंने कहा तनख्वाह कितनी बढ़ी तुम्हारी? बहुत-बहुत अन्दर धारण करना है। उसके लिए जरूरी है बढ़ गयी फिर तुम्हें महंगाई का रोना कैसा? जब कि कोई भी चीज महत्वपूर्ण नहीं, आज ये तनख्वाह बढ़ेगी तो महंगाई तो होनी है। आपकी तनख्वाह तो बढ़ जाए महंगाई न बढ़े ऐसा कैसे उसके साथ वो मैचिंग करना है तो उसे साथ वो हो सकता है? सर्वसाधारण चीज़ है ग़र हमें आ जाए तो सामाजिकता में भी हम शिव का तत्व आता है उसको पहन लो। कोई हर्ज नहीं है पा लें अब गाँधी जी जैसे थे बड़े ही जबरदस्त। उसमें आप पर कोई आफत नहीं आने वाली। उनके साथ में थी, आश्रम में रहते थे। मुझे कुछ उल्टे आपको समाधान होगा कि मैं समाधानी हूँ। नहीं होता था पर सब लोग रोते थे क्योंकि ज्यादा आराम पसन्द हो गए हैं पहले दो चार नवाब लोग जैसे थे वैसे अब हम लोग हो गए हैं, और क्या मिला? उससे कुछ नहीं मिलने है और सिर्फ परम शिव के तत्व को अपने कपड़ा पहनना है तो कल वो कपड़ा पहने तो चाहिए। जो कुछ मिलता है ले लो, जो कुछ जो भी मुझे मिला वो मैं समाधान से स्वीकार्य उनका कहना था कि सबके बाथरूम साफ करो। करता हूँ। आजकल हमारे वहाँ, पता नहीं यहाँ भी है कि नहीं, वो गैस का सिलेण्डर सोलह थे। अपने कपड़े खुद धोओ, अपनी थाली खुद सब मेहमानों के, सब के. वो जमादार नहीं रखते 18 चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 7 &৪, 1999 धोओ, खाने में सब खाना उबला हुआ। उसके ऊपर सरसों का तेल आप ले सकते हैं। अब जो बिल्कुल मूलत: गलत चीज़ है तो अब क्या मिटने वाला है? शिवजी को था क्या जाति बताइए कितने लोग हिन्दुस्तानी खा सकते हैं वो पाति? वो तो एकाक्ष को, किसी की टांगें टूटी खाना? बस दो तीन दिन रहते थे और भाग जाते हुई है, किसी का हाथ टूटी हुआ है, ऐसे सब थे ये हालत थी अब आप लोगों को भी लूले वूले लेकर के और अपनी बारात में ले गए थे वो ऐसे ही शिव तत्व में आपके लिए बहुत थोड़ा अस्वाद सीखना चाहिए। अब अस्वाद के लिए ऐसा है, मेरे से पता नहीं कैसे छूटता है, ज्यादा ये कटाक्ष रखना कि हम तो भई बहुत पर आप ग़र खाना थोड़े दिन उबला ही खाएं तो विशेष हैं कि खाना जो ऐसा होना चाहिए, फिर कैसे क्या रहेगा? कोई माँ अपने बच्चों को ये कायस्थों का अलग, ब्राह्यणों का अलग और नहीं कहेगी लेकिन मैं क्या करू। इसमें शिव जातियों का अलग, राजपूतों का अलग, सब का तत्व खराब हो रहा है। सब लोग गर खाने - पीने अलग-अलग, अब वो ही खाना खाइए। मुझे में लगे रहें तो आपका शिव तत्व गायब हो कभी भी समझ में नहीं आता, आज तक समझ जाएगा और सारी मेहनत ही बेकार जाएगी। में नहीं आया, कि ऐसे-ऐसे अलग-अलग खाने इसलिए खाने पीने में बहुत ज्यादा रत रहना कोई में ज्यादा आनन्द आता है तो ये लोग क्यों ऐसा अच्छी बात नहीं। पहले जमाने में लोग एक ही खाना मांगते हैं? क्या वजह है? बंगालियों को आध दिन उपवास भी करते थे, कुछ न कुछ बंगाली, मद्रासियों को मद्रासी। तो मैंने एक बार अपना त्याग करते थे। पर आजकल बड़ा मुश्किल कहा कि हमारे हवाई जहाजों में कोई अच्छा है ऐसा कहना । आप ग़र संतुष्ट हो जाएं, समाधानी स्टेण्डर्ड खाना क्यों नहीं है? कहने लगे माँ ये हो जाएं, तो आपको कोई ज़रूरत नहीं है, बताइए कि हिन्दुस्तान का स्टेण्डर्ड खाना कौन बिल्कुल ज़रूरत नहीं है कि आप हर समय खाने पीने की बातें करें और अपने यहाँ खाने पर बुलाएं| सा है? ये तो बात सही है। तुम ग़र कोई खाना बनाओ तो कहेगा ये तो मद्रासी का है, मद्रासी कहेगा ये क्या बिहारी है, फलाने का, ढिकाने फिर हमारे यहाँ एक जाति-पाति बहुत है, का, ढिकाने का इसलिए सब तरह का खाना कि अगर कायस्थ है तो अलग है, या हिन्दू है खाना आना चाहिए। क्योंकि यहाँ से सब चीज़ शुरू हो जाती है ये बेखरी, जुबान में भी एक भी है । अब क्या होगा कि जो कायस्थ सहजयोगी मिठास, मधुरता होनी चाहिए। मुस्कुराहट में भी कभी-कभी ऐसा लगता है कि रावण निकल रहे हो गए। अरे भई अब तुम सहजयोगी हो गए हैं इनके मुँह में से। तो बोलने का क्या कहना, जब बोलते हैं तो लगता है पता नहीं ये कौन वो। फिर कायस्थ कायस्थों को खाने पर बुलाएंगे चण्डिका बोल रही है कि क्या बोल रही है। औरतें बड़ी तमाशा हैं और आदमी भी बहुत तमाशा हैं। अजीब- अजीब चीजें ऐसी बन गई हैं सहजयोग में काहे को आए? सहजयोग में जाति इसमें शिव तत्व कहाँ है? शिव तो प्रेम का एक महासागर है। वो तो राक्षसों को भी उन्होंने नुम क ब्राह्मण है तो अलग हैं, फलाने अलग हैं। अब हैं वो सब एक हो गए, ब्राह्मण सहजयोगी एक अब भी काहे को ये कर रहे हो ब्राह्यण और ये और ब्राह्यण ब्राह्मणों को खाने पर बुलाएंगे। अब ये इस तरह की मूर्खता आर करनी है तो पाति, ये कुछ नहीं। आपकी वो ही नहीं मिटी 19 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 गाँधी जी ने कहा खद्दर पहनो, तो लोग बिल्कुल उन्होंने ऐसा बनाया था, खूब आपको अपने को ठिकाने लगाना है। क्योंकि आप स्वयं वरदान दिया, राक्षसों को भी जिसने वरदान दिए ऐसे शिव तत्व को हमारे अन्दर ग़र खद्दर पहने । लाना है तो हम ऐसी छोटी छोटी बातों में ठिकाने लगाया था सबको। पर अब कैसे सकते हैं? ये हम कसे कर सकते हैं? ये बताइए। जिस तरह से हम एक दूसरे की आलोचना करते हैं, किसी को काई कहता है ये ऊँचा है, कोई कहता है नीचा है, ये शिव की बात नहीं। शिव के अन्दर प्रेम की धाराएं बह रही हैं और इस प्रेम की धारा में बहते हुए आपको ऐसी उल्टी सीधी बातें करनी नहीं चाहिए। और उससे कोई फ़ायदा नहीं होने वाला। आपसी प्रेम, आपसी समझ और आपस उलझ आत्मा के प्रकाश, आप स्वयं श्री शिव के शरण में आए हैं। आप खुद को खुद ही ठीक करें आपको दूसरों को ठीक करने का नहीं है, बस अपने को ठीक करें और धन्य समझे कि आप आत्मसाक्षात्कारी है। कितने थे पहले? अरे दो चार थे बिचारे उनको भी लोग मार डालते थे। आज आप हजारों की तादाद में हैं तो इस चीज़ को शुरु करें। बातचीत में मिठास, ऊपरी तरह से का आनन्द उठाना चाहिए। अब ये बात ज़रूर है नहीं हुदय से, जो भी बात आप हृदय से करें कि सहजयोगी आपस में लड़ते नहीं, ये तो मैंने उसको कोई नहीं बुरा मानता। इसलिए हृदय से बात करें। अपने बच्चों से, बड़ों से, जो मर्यादाएं मिलते हैं, पर तो भी अभी भी ये छोटी-छोटी हैं उसको पालते हुए. आप अपने को सुखी बातें जो कि वैयक्तिक हैं, खाना- पीना, उठना बैठना, बनाने से दूसरों को भी सुखी बनाएंगे। लेकिन आपके अन्दर ग़र ये आशीर्वाद शिव का न हो ठीक कर लें तो बड़ा अच्छा होगा। आपका चित्त कि जिससे आप समाधानी बनें, और कोई चीज़ से हो नहीं सकता। इसलिए अपनी ओर ये भी नजर रखें कि मैं समाधानी हूँ कि नहीं? मुझे देखा है। आपस में मिलते हैं तो बड़े प्रेम से पहनना, ये ज़रा सा ठीक करना चाहिए। ये गर जो है वो हृदय की तरफ जाएगा और इन सब चीज़ों में नहीं रहेगा। इन सब चीज़ों में नहीं रहेगा। परदेस में ये बीमारी ज्यादा है, इसलिए कि वहाँ एक से एक निकले हैं, वो बनाते समाधान है या नहीं? मैं छोटी-छोटी बात को लेकर के और दूसरों पर भी बिगड़ता हूँ या उसके नुक्स निकालता हूँ तो कुछ तो भई मेरे हुए हे अलग-अलग तरह की चीजें। और जिसने वो चीजें पहन लीं वो बड़ा भारी अपने को सोचता है, मैं बड़ा रईस हूँ। ख़ासकर इटली में ऐसा अन्दर बहुत बड़ी खराबी है। उस ख़राबी को देखने से ही आप स्वच्छ हो सकते हैं। जब तक आपको कोई चीज़ दिखाई नहीं देगी आप साफ आपको इसमें नहीं पड़ना चाहिए। आप अपने कैसे करेंगे? इस सफाई की बहुत जरूरत और इस सफ़ाई से ही आप उस परम पिता वाले जो होते हैं, उन्हीं का नाम हुआ है, औरों परमेश्वर के दर्शन कर सकते हैं, अपने अंदर, और लोगों को भी इसके दर्शन हो सकते हैं। बहुत ज्यादा प्रकार है। लेकिन ये सब बातें सादगी से रहो। अपने देश में सादगी से रहने का नाम नहीं हो सकता। पहले जमाने में लोग त शो गरे म अनन्त आशीर्वाद। हा 20 चैतन्य लहरी = खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 शत्रि पूजा शवरा गे क पoE शिव तत्व आपके हृदय में है परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का अंग्रेजी प्रवचन (दिल्ली-14.2.99) अपने अन्दर देखना होगा कि आपमें क्या त्रुटियाँ हिन्दी भाषा में मेंने बहुत लम्बा प्रवचन दिया है क्योंकि विदेशी सहजयोगी यहाँ पर बहुत हैं। मेरा चित्त कहाँ जा रहा है । मैं कहाँ जा रहा कम हैं। मैं उन्हें बता रही थी कि शिव तत्व हूँ। मैं क्या कर रहा हूँ। आपको चाहिए कि आपके हृदय में है और उसका प्रतिबिम्ब किसी एक चक्र पर नहीं की तरह। जो भी कुछ आपका दिखाई देता है वह इस दर्पण में है, शीशे में आपका क्या प्रतिबिम्ब है? क्या आपका प्रतिबिम्ब स्पष्ट और कहते हैं? किसी ने आपके लिए बहुत सुन्दर शुद्ध है? क्या आपने अपने हृदय को शुद्ध किया? प्रतिबिम्ब करने वाले शीशे को क्या आपने साफ किया? यही चीज़ शक्ति को देखनी है। हिन्दी में मैंने विस्तार पूर्वक बताया कि हमारे (पड् रिंपु ) छ: दुश्मन हैं। एक के बाद एक ये हमें भ्रष्ट करने में लगे रहते हैं। इन छः में से पाँच के विषय में मैंने उन्हें बताया। भारत अपने को देखें अन्य लोगों को नहीं। पश्चिम के है, सभी चक्रों पर है - दर्पण लोग समझते हैं कि दूसरों की आलोचना करना उनका अधिकार है। मुझे ये पसन्द है, यह मुझे पसन्द नहीं है। आप कौन हैं? आप ऐसा क्यों प्रवन्ध किया है, उसी के घर में बैठकर उसे कष्ट पहुँचाने के लिए आप कहते हैं कि मुझे ये पसन्द नहीं है। आखिरकार आप हैं कौन और अपने बारे में क्या सोचते हैं? निर्णय करने वाले आप कौन होते हैं? मुझे ये पसन्द है और ये नहीं है, ऐसा कहना सहजयोगियों के लिए मना है। ऐसा करना निषिद्ध है । भगवान शिव को देखें उन्हें सब कुछ पसन्द है, उन्हें साँप भी पसन्द हैं। वे कैसे वस्त्र में छठे दुश्मन-कामुकता-का बहुत अधिक अस्तित्व नहीं है। यहाँ यह बहुत कम है। परन्तु विदेशों में, पहनते हैं? सभी पशु, सभी चीज़ें जो हमें अच्छी पश्चिमी देशों में इसका भयंकर प्रभाव है क्योंकि नहीं लगतीं उन्हें वे सब पसन्द हैं। अपने विवाह वो लोग सोचते हैं कि कामुकतामय जीवन ही के समय अपनी बारात में वे सभी लूले-लंगड़े जीने के योग्य है। इससे परे शिव हैं और इसी कारण हमें किसी की एक आँख थी और किसी का कोई समझना चाहिए कि हमारे हृदय में शिव का पूर्ण प्रतिबिम्ब तभी सम्भव है जब हम अपने हृदय को शुद्ध कर लें। दूसरों के प्रति द्वेष काम भावना, क्रोध, ईष्ष्या-ये सभी प्रतिक्रियाएं हमारे अन्दर कार्य करती हैं और हमारा हृदय पत्थर की तरह हो जाता है। यह प्रतिबिम्बित नहीं हो सकता। तो यदि आपने शिव का ये गुण प्रतिबिम्बित करना है - कलियुग में ऐसा होना बहुत आवश्यक है यद्यपि बहुत कम लोग शिव की छवि अपने है तो यह मलिन हो जाता है-अत्यन्त मलिन चरित्र में प्रतिबिम्बित कर पा रहे हैं-तो आपको लोगों को साथ ले गए। किसी की एक टाँग थी, अंग टूटा हुआ था। ऐसे सभी लोगों को वो अपनी बारात में ले गए उन्हें ये सब लोग बहुत प्रिय थे और इनकी वे देखभाल करते थे क्योंकि शिव ही आनन्द का स्रोत हैं वे ही हमें आनन्द प्रदान करके आनन्दित करते हैं। वास्तविक आनन्द तभी सम्भव है जब उनका प्रतिबिम्ब आपके हृदय में हो परन्तु यदि आपका हृदय इधर-उधर की चीज़ों से भरा हुआ दर्पण। 21 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 &8, 1999 अत्यन्त हैरानी की बात है कि भारतीयों ज्योतित् कर दिया जाए? उस प्रकाश में वे के मुकाबले पश्चिमी सहजयोगी सुख-सुविधाओं का विशेष ध्यान नहीं रखते। यद्यपि वे अत्यन्त भौतिकतावादी वातावरण से आते हैं फिर भी उन्हें सुख-सुविधाओं की बहुत वे कहीं भी रह सकते हैं। कहीं भी वे प्रसन्न रह त्रुटियाँ हैं, कौन सी चीज़ आपको अन्य लोगों से सकते हैं । यह बहुत अच्छी स्थिति है जो उन्होंने भिन्न बना रही है और आपको कौन सी चीज़ प्राप्त कर ली है। भारतीय सहजयोगियों को भी व्यर्थ की चीजों पर चित्त देना छोड़कर यह स्थिति प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए है यह सीमा अब आपको पार करनी होगी। फ़िजूल की चीज़ों पर अपनी शक्ति बर्बाद करने की कोई आवश्यकता नहीं। केवल तभी आपको प्रतिक्रिंया नहीं करेंगे, कोई भी चीज़ जब आपके अपने लिए, अपनी आत्मा के लिए वास्तविक लिए महत्वपूर्ण न रह जाएगी तभी भगवान शिव भक्ति प्राप्त हो पाएगी। आज इसी चीज़ की कार्य करेंगे। तो कुछ चीजें अब भारतीयों ने आवश्यकता है कि आपकी आत्मा आपके चरित्र आचरण और व्यक्तित्व से झलके। यदि ऐसा हो आपने बहुत से कार्य किए हैं, मैं आपको जाता है तो आपने वह उपलब्धि प्राप्त कर ली जो सहजयोग आपके लिए करना चाहता था। आज यह बहुत महत्वपूर्ण है, बहुत महत्वपूर्ण। आप यदि समाचार पत्र पढ़ना चाहें तो नहीं पढ़ सकते क्योंकि परिवर्तित होना आपकी आवश्यकता हैं। मानव का आत्मत्व, आत्मचेतना और आत्मा कार्य किए में परिवर्तन। और अब समय आ गया है जब यह कार्य हो जाना चाहिए। विकास की यह प्रक्रिया आरम्भ हो चुकी है। बहुत से लोग ये प्राप्त कर चुके हैं। पुराने सन्त और गुरु, सच्चे गुरु अपने जाते हैं। ये सब चीज़ें समाप्त हो जानी चाहिए शिष्यों को सिर के बल खड़ा करके और अन्य विधियों से वर्षों तक उनकी परीक्षा लिया करते थे। कभी वे उन्हें जल में खड़ा कर देते थे और कभी किसी अन्य तरीके से परखते थे। गुरु है? यह तो उनके मस्तिष्क में ही नहीं आ शिष्यों को बुरी तरह से पीटते थे तथा उनसे बहुत ही कठोर व्यवहार करते थे और तब किसी एक-आध को आत्मसाक्षात्कार मिला करता था। अब मैंने सोचा कि उन्हें शुद्ध करने में, ही है। आप सबको चाहिए कि शिव तत्व को उल्टे-सीधे वस्त्र पहनाने में, हिमालय पर या गोबी मरुस्थल भेजने में बहुत अधिक समय लगेगा। इसलिए मैंने कहा कि क्यों न उन्हें पहले अपनी त्रुटियों को देख सकेंगे और स्वयं को ठीक कर लेंगे, वे स्वयं अपने गुरु बन जाएंगे। यह बात सफल हुई। अब आप लोग स्वयं देख सकते हैं कि आप क्या कर रहे हैं, आपमें क्या चिन्ता नहीं होती। उन्नत करेगी. क्योंकि सदाशिव का स्थान आपके सिर, विचारों, मस्तिष्क और भावनाओं से ऊपर जब आप किसी भी चीज़ के प्रति सीखनी है और कुछ विदेशी सहजयोगियों ने। 1 धन्यवाद करती हूँ। लोग सोचा करते थे कि मैं कुछ नहीं कर सकती। आप लोगों ने मद्यपान और सभी प्रकार की बुरी आदतें छोड़ दी है। अब आप व्यभिचारी भी नहीं हैं। आपका चित्त अत्यन्त पवित्र है। आपने बहुत से प्रशंसनीय हैं। परन्तु अभी भी बहुत से दोष बने हुए हैं जिन्हें स्वच्छ करना और बिल्कुल समाप्त कर देना आवश्यक है। आपमें राजनीति अधिक नहीं है फिर भी कभी कभी राजनीति होती है। झुण्ड भी बनाए क्योंकि शिव का इनसे क्या लेना-देना। पूरा ब्रह्माण्ड उनके चरणों में है। एक झुण्ड यहाँ, एक वहाँ। इसका शिव की दृष्टि में क्या महत्व सकता। महान व्यक्ति विशाल सागर की तरह बहुत से किनारों को छूकर भी महान सागर सम बना रहता है। शिव तत्व भी ऐसा परड विकसित करें और तब आनन्द को देखें-प्रेम के इस महान सागर के आनन्द को ! न परमात्मा आपको धन्य करें। चैतन्य लहरी ॥ खंड : X1 अंक : 7 &8, 1999 च 22 श्री माताजी द्वारा र गैर-सरकारी संस्था (N.G.0) की स्थापना दीन-हीन महिलाओं और बच्चों के लिए हमने एक गैर-सरकारी संस्था N.G.0. की स्थापना की है। यहाँ हम एक अस्पताल भी बनाएंगे। आप जानते हैं कि बाशी के समीप बेलापुर, नवी मुम्बई में का विचार अच्छा लगेगा। ऐसी दूसरी संस्था हम मुम्बई के समीप वैतरणी में आरम्भ करेंगे इसकी योजना मैंने पन्द्रह वर्ष पहले बनाई थी परन्तु हमें इसकी आज्ञा ही नहीं मिली। अब इसका निर्णय ले लिया गया है, हमें इसकी आज्ञा मिल गई है। तो मैं ऐसी संस्था आरम्भ करना चाहती हूँ जहाँ लड़के-लड़कियों को शिक्षित किया जाए। पहले हम लड़कों के लिए प्रयत्न कर हमारा एक अस्पताल चल रहा हैं। ये अस्पताल नोएडा में भी होगा। आपको ये जानकर प्रसन्नता होगी कि नोएडा में जमीन ले ली है और वहाँ पर कार्य करने वाले हैं आप लोग जो भी कुछ इस शुरु संस्था के लिए देना चाहें दे सकते हैं। हमारे पास इस कार्य को करने के लिए बहुत अच्छे लोगों की एक टीम है। मैंने सोचा कि हमारी एक ऐसी संस्था अवश्य होनी चाहिए ताकि आस-पास के दीन-दुखी लोगों पर हमारा चित्त बना रहे। यह गैर-सरकारी संस्था पतियों तथा परिवार द्वारा त्यागी गई महिलाओं तथा उनके बच्चों के लिए कार्य करेगी, उन सबके लिए जिनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। अभी तक मैंने इसकी कोई योजना नहीं बनाई है परन्तु सहजयोग आरम्भ करने से पूर्व मैं ऐसे बहुत से कार्य किया करती थी अत: इसका मुझे काफी अनुभव है। हमारा चित्त होना आवश्यक है क्योंकि अब हम दिव्य शक्तियों से आशीर्वादित हैं। जिन लोगों को हमारे ध्यान की आवश्यकता है हमें उनकी देखभाल करनी चाहिए। सहजयोगियों द्वारा निस्सहाय महिलाओं की सिफारिश की जाएगी। वे निश्चित रूप से बेहतर होंगी। इस कार्य को भली - भौंति किया जा सकता है। अभी तक आश्रय की इच्छुक किसी भी महिला की अर्जी हमारे पास नहीं आई है। हम उन्हें हैं रहे हैं, जो लड़के आठवीं, नवीं में फेल हो गए उन्हें छोटी-छोटी दस्तकारी सिखाई जाएगी। हमारे यहाँ अच्छे बिजली मिस्त्री नल साज आदि नहीं हैं। इस प्रकार ये बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो जाएंगे. क्योंकि आठवीं नवीं कक्षा में फेल होकर पढ़ाई छोड़ देने पर तो वे कुछ भी नहीं कर सकते, ऐसे बच्चे बहुत कष्ट में हैं। यह कार्य मेंने पन्द्रह साल पहले आरम्भ किया था। श्री अमत्त्य सेन ने इसके बारे में अब लिखा है कि इन बच्चों को इस प्रकार की शिक्षा दी जाए-अब भी उन्होंने यह बात विस्तार पूर्वक नहीं बताई है। परन्तु उन्होंने अब इसे लिखा और इस पुस्तक के लिए उन्हें नोबल पुरस्कार दिया गया-उन विचारों के लिए जो मैंने पन्द्रह वर्ष पूर्व लिखे थे। परन्तु सरकार इतनी खराब थी कि उसने मुझे संस्था बनाने की आज्ञा तक न दी। सौभाग्यवश अब भा.ज. पा. सरकार से मैं इसकी आज्ञा ले पाई हूँ और अब हम इस कार्य को जोर शोर से करने वाले हैं । दीन-दुखियों पर बहुत से लोग इस चुनौतीपूर्ण कार्य में मेरी मदद करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। तो अब सहजयोंग जरूरतमंद लोगों को कला- दस्तकारी आदि सिखाएंगे ताकि दो वर्षों में ही आजीविका और सहायता देने के लिए बाहर वे अपने पैरों पर खड़ी हो सकें और सड़कों पर कोई की ओर फैल रहा है। सहजयोग की यह एक भी भिखारी बाकी न बचे। सर्वप्रथम हम उन्हें नई गतिविधि है और मुझे आशा है कि यह सहजयोगी बनाएंगे और तब आगे का कार्य करेंगे। मुझे विश्वास है कि आप सबको ऐसी संस्था बनाने सफल होगी। धन्यवाद चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 &8, 1999 23 दिपाली पूजा.. पूजा-कबैला - कखैला (25.10.98) छाम ययम दिषाली ा महत्व - परन पूज्य माताजी श्री निर्मला केली का प्रवचन दिवाली पूजा बहुत छोटी सी पूजा सत कहने लगे कि हमने सोचा था कि ये कोई सचिव हैं। मैंने कहा आपसे ऐसा क्यों सोचा? वास्तव में वह महिला अत्याधुनिक रेशमी वस्त्र पहने हुए थी, तो सभी ने सोचा कि ये महिला एक सचिव ही हो सकती है। उन्होंने उसे प्रतीक्षालय में बिठा दिया। तो है परन्तु यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। दिवाली के पहले दिन (धनतेरस) लोग परिवार के लिए कुछ न कुछ खरीदते हैं। चाहे ये खाना बनाने के बर्तन हों, आपकी पत्नी के लिए कोई गहना हो या ऐसा ही कुछ और क्योंकि यह गृहलक्ष्मी का दिन होता है गृहलक्ष्मी के प्रति सम्मान के रूप में मनाया जाता है। और इसे एक गृहलक्ष्मी से आशा की जाती है कि बह गरिमामय, सम्मानजनक वस्त्र पहने, किसी सचिव की तरह या दफ्तर जाने वाली महिला की तरह से वस्त्र ने पहने क्योंकि, आप चाहें या न चाहें, गृहलक्ष्मी को सर्वाच्च समझा जाता है। उस महिला ने बहुत अच्छे बाल बनवाए हुए थे और सजने संवरने के लिए बहुत ही महंगे स्थान पर गई थी। परन्तु वह बेचारी जब वहाँ पहुँची तो उन्होंने स्नानगृह के समीप प्रतीक्षालय में उसे बिठा दिया। तो यह सब इस प्रकार होता है। गृहलक्ष्मी घर की शान है केवल इतना ही नहीं वह पूरी देश की संस्कृति के लिए जिम्मेदार हैं वे संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती हैं। भारत में आजकल फिल्म में अजीबोगरीब वेशभूषाएं दिखाने लगे हैं परन्तु मैंने किसी भी घरेलू स्त्री को ये वस्त्र पहने हुए नहीं देखा। किसी को भी नहीं। वास्तव में ऐसा नहीं होता, केवल फिल्मों में ही होता है क्योंकि समाज बहुत शक्तिशाली है और गृहस्वामिनी से गरिमामय होने की आशा की जाती है। उसे शालीन होना पड़ता है। अत्यन्त गरिमामय होकर बहुत ही गरिमापूर्वक उसे आचरण करना होता है। इसके विपरीत लाल बहादुर शास्त्री नामक हमारे एक प्रधानमंत्री थे। उनकी पत्नी बिल्कुल पढ़ी-लिखी न थी क्योंकि शास्त्रीजी जेल चले गए और वे शिक्षा प्राप्त न कर सकीं। बहुत ही सादी और साधारण महिला-वे एक बार फ्रॉस गई। उस समय परिणाम स्वरूप भारत में अब भी गृहलक्ष्मियों का बहुत सम्मान होता है। वास्तव में सर्वत्र उनका सम्मान किया जाता है। आप हैरान होंगे कि सरकारी समारोहों में भी नियम आचरणों के अन्तर्गत पत्ी बहुत महत्वपूर्ण है; वह कहाँ बैठी है उसकी क्या स्थिति है, यह सब बहुत महत्वपूर्ण है। आज भी, अत्यन्त आधुनिक और विकसित देशों में गृहलक्ष्मी का विशेष सम्मान होता है। गृहलक्ष्मी चाहे शिक्षित न हो, बहुत साधारण महिला हो, बहुत आधुनिक न हो फिर भी उसका सम्मान किया जाता है। मुझे एक अनुभव हुआ। लन्दन के एक कार्यक्रम में हमें निर्मंत्रित किया गया। प्रतिनिधि मण्डल के अध्यक्ष की पत्नी अनुपस्थित थी। उन्होंने मुझसे पूछा कि वो कहाँ हैं क्योंकि उनका स्थान खाली पड़ा है और उन्हें वहाँ बैठना है। मैंने कहा, मैं नहीं जानती; मैंने उन्हें नहीं देखा । वो यहीं कहीं होंगी। कार्यक्रम आरम्भ होने से पहले स्नान गृह जाते हुए देखकर मैं हैरान हुई कि वह प्रतीक्षालय में बैठी हुई थीं मैंने कहा,"आप यहाँ क्या कर रही हैं? बाहर सभी लोग आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं " वह कहने लगी, उन्होंने मुझे यहाँ बैठने के लिए कहा है। बाहर जाकर मैंने उनसे बताया कि वे वहाँ बैठी हैं। उन्हें बुलाकर स्थान ग्रहण करने के लिए आप उनसे क्यों नहीं कहते? पत्नी तो, मेरे विचार में पत्नी ही है। वे चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 24 7 & 8, 1999 बहुत अच्छा समाज है। इसका श्रेय गृहस्वामिनियों, गृहलक्ष्मियों को है जिन्होंने सारा कार्य किया संस्कृति की दृष्टि से यह बहुत महत्वपूर्ण है। इन चीजों का है और इसी कारण आप देखते हैं कि वहाँ लोग गृहस्वामिनियों का सम्मान करते हैं। अत: सहज संस्कृति में गृहलक्ष्मी का सम्मान बहुत महत्वपूर्ण है, परन्तु इसका अभिप्राय ये भी नहीं कि स्त्री पति पर रौब जमाने का या उसे कष्ट देने वहाँ श्री देगोल हुआ करते थे। वे वहाँ के राष्ट्रपति थे और उनकी पत्नी भी अत्यन्त साधारण महिला थी। शास्त्री जी ने अपनी पत्नी को समझाया कि जब हम श्रीमती देगोल से विदा लेने लगें तो तुम रोना मत, भारत में बाहुल्य अब हम बहुत अच्छे मित्र बन गए हैं। परमात्मा जानता है, श्रीमती शास्त्री फ्रेंच न जानती थी और श्रीमती देगोल को हिन्दी नहीं आती थी फिर भी गृहस्वामिनियाँ होने के कारण दोनों बहुत अच्छी मित्र बन गई। शास्त्री जी ने अपनी पत्नी को विदाई के समय रोने के लिए मना किया था परन्तु जब विदाई का समय आया तो दोनों ही महिलाएं रोने लगीं। शास्त्री जी ने कहा, "मैंने तुम्हें रोने के लिए मना किया था। श्रीमत्ती शास्त्री ने उत्तर दिया कि पहले उन्होंने ( श्रीमती देगोल) रोना शुरू किया में क्या करती, मुझे भी रोना पड़ा। तो एक प्रकार से गृहस्वामिनियों की यह महान सामूहिकता है जिसे कार्यान्वित होना है। उनकी एक सी समस्याएं होती हैं-बच्चों को संभालना, घर परिवार की देखभाल करनी आदि-आदि। कहने से मेरा अभिप्राय ये है कि गृहस्वामिनियों की बहुत सी एक जैसी समस्याएं होती हैं और गृहस्वामिनी को छोटी-छोटी चीजों का ज्ञान होता है। का प्रयत्न करे या उससे झगड़ा करें। इसका अर्थ गृहलक्ष्मी का समाज में अत्यन्त महत्वपूर्ण पद पर रहना है उसे देवी सम माना जाता है। परन्तु उसे स्वयं भी तो देवी होना चाहिए। आप यदि उससे पांवदान की तरह से व्यवहार करेंगे तो बच्चे कभी उसका सम्मान नहीं करेंगे। आप यदि पत्नी का उचित सम्मान नहीं करते तो बच्चे भी माँ का सम्मान नहीं करेंगे और उन पर माँ का बिल्कुल भी प्रभाव न होगा। परिणामस्वरूप बच्चे भटक जाएंगे। जिस समाज में या जिस देश में माँ का सम्मान नहीं होता, वहाँ आप देखेंगे, बच्चे बिना बात के रौब देने वाले क्रोधी स्वभाव और भयानक असामूहिक हो जाएंगे। तो इस दिन, जिसे हम धनतेरस कहते हैं आपको अपनी पत्नी के लिए कुछ खरीदना होता है। अवश्य कुछ खरीदना होता है और उसे उपहार देना होता है। कम से कम कोई एक बर्तन, जो रसोई में काम आ सके, सम्मान के रूप में पत्नी को दिया जाना चाहिए। जिन परिवारों में माँ का सम्मान नहीं होता वहाँ बच्चे अत्यन्त कष्टदायी हो जाते हैं और पूरा परिवार कष्ट उठाता है। जहाँ चाहे पुरुषों का विवाह हो, हर हाल में उन्हें महसूस करना है कि ठीक प्रकार से पत्नी का सम्मान न करना उनकी गलती है। बच्चों के सम्मुख यदि आप चिल्लाते हैं, उनके सम्मुख पत्नी का निरादर करते हैं तो बच्चे कभी भी माँ का सम्मान नहीं कर सकते। गृहस्वामिनी के रूप में जो महिला आपकी, आपके परिवार की बिना कुछ आशा किए देखभाल कर रही है. आपके लिए सभी कुछ कर रही है। उसके साथ ऐसा भारत में पुरुषों को तो कोई अधिक जानकारी पति नहीं होती क्योंकि वे अधिकतर हृवा में रहते हैं। तो महिलाओं में छोटी-छोटी चीजों का विवेक बहुत अधिक होता है, वे सब जानती है। बहुत दिलचस्प बात है कि पुरुष कई बार ऐसी गलतियाँ करते हैं कि उन पर हँसी आती है। कारण ये है कि वे जीवन की आम समस्याओं को नहीं देखते। उनके विषय में अनजान हैं। एक ओर तो गृहस्वामिनी को दिनचर्या को देखना होता है और दूसरी ओर अपने परिवार और बच्चों को। बेचारी समाज के प्रति भी जिम्मेदार होती है। उसे समाज को भी बनाए रखना होता है। जिस देश में महिलाएं विवेकशील एवं परिपक्व होंगी, आप हैरान होंगे, उस देश में अत्यंत अच्छे परिवार, अच्छे समाज और अच्छे बच्चे बनेंगे यही कारण है कि मैं कहती हूँ कि भारत बहुत अच्छा देश है, एक व्यवहार अपराध है। 25 चैतन्य लहरी XI अंक : 7 & 8, 1999 खंड : यदि आप ये समझना चाहते हैं कि वे किस प्रकार कष्टकर हो सकते हैं तो उन्हें राजनीति में देखिए । महिलाएं जब राजनीति में जाती हैं तो बे सभी पुरुषों को उलटकर रख देती हैं और एक महिला सभी को अक्ल सिखा सकती है क्योंकि उसका कार्यक्षेत्र तो घर और परिवार है। परिवार में यदि उनका सम्मान नहीं होता तो वे परिवार त्याग कर बाहर आ जाती हैं और इस प्रकार व्यवहार करती हैं जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते। यद्यपि में रावण सीता को उठा ले गया। श्रीराम ने युद्ध करके उसका वध किया और सीता को लौटा लाए जब वे अयोध्या वापिस लौटे तो वहाँ बहुत खुशियाँ मनाई गई। भरत श्री राम के अनन्य भक्त थे। उनकी चरण पादुका को सिंहासनारूढ़ करके उन्होंने चौदह वर्ष तक अयोध्या का राजकार्य किया। इस प्रकार चौदह वर्षों पश्चात् श्रीराम-भरत मिलन हुआ और श्री राम का राज्यभिषेक किया गया। हजारों वर्ष पूर्व यह सब घटित हुआ परन्तु आज भी उस दिन को त्यौहार के रूप में मनाया जाना महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन योग्य राजा को उसका सिंहासन प्राप्त हुआ और उन्होंने सारे अन्याय और अत्याचारों का अन्त किया। इन्हीं कारणों से दिवाली महत्वपूर्ण है। अंतिम दिन देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है क्योंकि उन्हों के आशीर्वाद से ये सब सुन्दर मिलन हुए। कुछ समय पूर्व मैंने आपको बताया था कि लक्ष्मियाँ भी नौ प्रकार की हैं। इस लक्ष्मी पूजा में आप साक्षात् लक्ष्मी की पूजा करते हैं। लक्ष्मी का अर्थ किसी भी प्रकार के धन से नहीं है। धन की उसे बहुत सहन करना पड़ता है और बहुत कष्ट उठाना पड़ता है। परिवार में उसका सम्मान अवश्य होना चाहिए। गृहलक्ष्मी का यही महत्वपूर्ण संदेश है। धनतेरस के अगले दिन भयंकर राक्षस नक्कासुर का वध हुआ था। राक्षसों के वध सदैव दंवी की शक्ति से होते हैं। नक्कासुर ने बहुत से लोगों को सताया था और बहुत लोगों को धूर्तता सिखाई थी। वह अत्यन्त धोखेबाज़ और चालाक व्यक्ति था और विशेष उसका बध करना असंभव सा था, परन्तु एक शक्ति के अवतरण से चौथे दिन नक्कासुर का वध हुआ। कहते हैं कि जब उसका वध हुआ तो नर्क के द्वार बन्द हो गए। तो कहा जाता है कि लोगों इस दिन प्रातः काल जल्दी स्नान कर लेना चाहिए. परन्तु मेरे विचार में उस दिन यदि दरवाजा खुला हो तो अच्छा होगा कि स्नान न करो। जब तक उस राक्षस को पूरी तरह से नर्क में नहीं डाल दिया जाता तब तक अपने बिस्तरों में रहो। उसकी चिन्ता आपको नहीं करनी चाहिए। नर्क से बाहर धकेलकर उसका वध किया गया था। दीवाली का अगला दिन सर्वोत्तम है क्योंकि इस दिन श्री राम-भरत मिलाप हुआ था। पिता की आज्ञा मानकर श्री राम जंगल में गए और चौदह वर्ष तक जंगलों में रहे। महलों में रहने वाले राजकुमार के लिए जंगल जेल सम थे। सौतेली माँ और पिता की आज्ञा को मानकर वे जंगल भी गए थे। उनकी पत्नी और छोटा भाई भी उनके साथ गए और वहाँ बहुत पूजा करना गलत है। इसका अर्थ है कि धन या सम्पत्ति के रूप में जो भी लक्ष्मी हमारे पास है उसे सावधानी पूर्वक खर्च किया जाना चाहिए क्योंकि लक्ष्मी अति चंचल है और यह धीरे से खिसक जाती है। परन्तु किसी भी प्रकार से आपको कंजूस नहीं होना है। कंजूस लोगों से देवी लक्ष्मी कभी प्रसन्न नहीं होती। फिर भी खर्च करते हुए हमें सावधानी पूर्वक देखना है कि धन ठीक प्रकार से खर्च हो। समुद्र मन्थन के समय जब लक्ष्मी जी अवतरित हुई तो उनके चार हाथ थे। एक हाथ देने के लिए था जो उदारता का प्रतीक है। वे एक हाथ से देती हैं और दूसरे से आशीर्वादित करती हैं। एक हाथ देने के लिए है और दूसरा हाथ आशीर्वाद प्रदान करने के लिए। इसका अर्थ ये हुआ कि किसी को यदि आप कुछ दें तो उसे भूल जाएं और उस व्यक्ति को आशीर्वाद दें। केवल धन देना ही काफी नहीं है, उसे आशीर्वाद देना भी आवश्यक है। अन्य दो हाथों में वे गुलाबी रंग के कमल धारण करती हैं। गुलाबी रंग कष्ट उठाए। जिस युवक को राजा बनना हो वह जंगलों में जाकर कष्ट उठाए! परन्तु सीताजी उनके साथ गई और हर कदम पर उनका साथ दिया। जंगल 26 चैंतऱ्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 7 &8, 1999 प्रेम का रंग है और वैभवशाली व्यक्ति का घर फ्रेम से परिपूर्ण होना चाहिए। घर आए अतिथि का सम्मान होना चाहिए। उसे परमात्मा सम माना जाना चाहिए । आपने देखा होगा भारत में विदेशियों से कैसा व्यवहार किया जाता है। भारत में विदेशी का अर्थ परमात्मा है। यश्चिम में विदेशी (Foreigner) नकारात्मक शब्द है, लोगों से उनका धन छौन रहे हैं। आपका सारा धनं बर्बाद हो रहा है इसके अतिरिक्त लोग स्त्री लम्पट, नशों तथा विनाशकारी आदतों में फंस जाते हैं। ये तथाकथित लक्ष्मी पति कोई ऐसा कार्य नहीं करते जो वास्तव में लक्ष्मी जी का आशीर्वाद है। जब भी आप किसी को कोई चीज़ देना चाहें तो पूरे हृदय से दें, इतने पूर्ण हृदय से कि यह लक्ष्मी-प्रसाद बन जाए। ऐसा अगर नहीं होता तो किसी को उपहार देने का क्या लाभ है? संकीर्ण दृष्टिकोण के लोग जो उपहार देते हैं वे बड़े अजीबोगरीब हैं, परन्तु बे उपहार देने का प्रयत्न करते हैं। जैसे यदि आप जापान जाए तो वे आपको बहुत बड़ा उपहार देंगे। आप इसे खोलते चले जाएं, खोलते चले जाएं और अन्त में इसमें से एक माचिस निकलेगी या माचिस की तिलियों से बनी हुई कोई चीज़। इसे देखते रहें कि ये क्या है और इसके लिए परन्तु भारत में ये अत्यन्त सम्मानजनक है। आप यदि विदेशी हैं तो आपसे बात करना भी उचित नहीं समझा जाता। ये मानसिकता मेरी समझ में नहीं आती परन्तु सहजयोग में ऐसा नहीं है सहजयोगी ऐसे नहीं हैं, वे अतिथि का वहुत सम्मान करते हैं। मैंने सुना है कि बे एक दूसरे का सम्मान करते हैं और अत्यन्त सामूहिक हैं। तो कमलों का यही अर्थ है-प्रेम से परिपूर्ण घर। कंटीला भवरा भी यदि आकर कमल में बैठ जाए तो शाम के समय कमल बन्द हो जाता है और भवरा सुख से उसमें विश्राम करता है। भंवरा बिल्कुल परेशान नहीं होता। वैभवशाली व्यक्ति का आचरण भी ऐसा ही होना चाहिए। परन्तु संसार में में देखती हूँ कि वैभवशाली लोग भंवरे सम हो जाते हैं। वे अत्यन्त कंटीले, असम्माननीय हो जाते हैं, अपने सम्मान का भी उन्हें विचार नहीं रहता । कितनी हैरानी की बात है कि लक्ष्मी स्वरूप धन पाकर वे असुरों जैसे हो जाते हैं और लोगों से राक्षसों से भी बुरा ये इतना बड़ा नमूना वयों बनाया गया? हैरानी की बात है! अन्यथा वे लोग बहुत ही सादे हैं जहाँ भी हम गए, एक छोटी सी दुकान में भी, जबकि वर्षा हो रही थी, वहाँ भी उन्होंने हमें उपहार दिया। मैंने पूछा, ये हमें इस तरह से उपहार क्यों दे रहे हैं? तो हमारे साथ जो अनुवादक महिला थी, उसने बताया कि वो आपको शाही परिवार से समझ रहे हैं मैंने पूछा. कि उन्हें ऐसा क्यों लगता है? क्योंकि आप हज्जाम के में व्यवहार करते हैं। तो यह देवी का महत्व है। देवी लक्ष्मी का सर्वोत्तम गुण ये है कि वह कमल पर विराजमान है अर्थात् वे किसी पर बोझ नहीं हैं। अपने आप में वे स्थित हैं किसी पर वे बोझ नहीं बनतीं। अपने आप में अपने पूरे बदन को संभाले हुए पूर्ण संतुलन एवं गरिमा में वे खड़ी हैं। लक्ष्मी को ऐसा ही होना चाहिए और जिन देशों में लोग अब आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, यदि ऐसा हो जाए, तो स्थिति में सुधार होगा, लोग आनन्द लेंगे। आजकल लोग आनन्द नहीं लेते। उन्हें तो बस कोई बहुत ही महंगी, डिजाइनर्स की बनाई हुई चीज लेने की इच्छा बनी रहती है। मेरे विचार में ये रूपांकनकार लक्ष्मीविरोधी हो गए हैं क्योंकि अपने रूपांकन से वे पास नहीं जातीं। मैंने कहा, वास्तव में? हाँ जापान शाही परिवार के लोग हज्जाम के पास नहीं जाते। मैंने कहा मुझे तो इस बात का पता ही न था। कल्पना करें कि लोगों के विचार किस तरह के हैं। परन्तु भारत में महिलाओं के लिए उचित प्रकार से बालों में कंघी करना आवश्यक है। महिला को हिष्पी की से तरह से प्रतीत नहीं होना चाहिए क्योंकि बहुत लोग अपने बालों को हिप्पियों की तरह से भी बनवा लेते हैं। जैसा मैंने आपको बताया, महिलाओं की समाज में बहुत बड़ी भूमिका है। वो क्या पहनती हैं. किस प्रकार उसका आचरण है, बच्चे उनसे भी आगे माता और पिता दोनों से आगे। परन्तु सभी अच्छाइयां वे अपनी माँ से लेते हैं। अत: निकल जाते हैं 27 चैतन्य लहरी खंड : X1 अंक : 7 8 8, 1999. ी कुछ जानता हूँ।" उन्हें कुछ नहीं पता होता फिर भी पुरुष कभी नहीं कहते कि मुझे इसका ज्ञान नहीं है। उसका चरित्र ही ऐसा है। ठीक है आपको समझ लेना चाहिए कि उसका मतलब वास्तव में ये नहीं है क्योंकि उसे इसका ज्ञान है ही नहीं। कला के विषय में भी, मेरे विचार में पुरुष अधिक नहीं जानते, सौन्दर्य संवेदना में भी उनका एक भाग गायब है। बेचारे एक ही प्रकार के वस्त्र बनवाते हैं और सभी जगह उसे पहनते हैं। एक ही प्रकार के वस्त्र सभी जगह पहनते हैं एक ही प्रकार के वस्त्र बनाकर हर जगह उन्हीं को पहने जाना! उनकी कोई माँग नहीं होती। परन्तु महिलाएं कलात्मक होती हैं। यदि भारतीय महिलाएं साड़ियाँ पहनना छोड़ कर जीन्स अपना लें तो ग्रामीण लोग, जो छुट्टियों तथा खाली समय में साड़ियाँ आदि बनाते हैं, कहाँ जाएंगे? तो भारत में ये वेशभूषाएं प्रचलित कर पाना असंभव है। हो सकता है स्कूल या पाठशाला तक ये चल निकलें। इसके पश्चात् लड़कियाँ इन्हें छोड़ देंगी क्योंकि उन्हें साड़ी ही पसन्द है। साड़ी अब भी प्रचलित है और आगे भी रहेगी क्योंकि ये कलात्मक महिलाओं के लिए ये समझना आवश्यक है कि वे किस प्रकार के वस्त्र पहने, किस प्रकार से रहें। लन्दन में मैंने एक भारतीय सहजयोगिनी से पूछा कि आजकल कौन सा फैशन चल रहा है। तो उसने मराठी में कहा झिप्परिया। झिप्परिया अर्थात बालों का एक विशेष फैशन। भारत में यदि आप इस प्रकार से बालों को बनाएंगी तो माँ कहेंगी कि बालों को ठीक करो नहीं तो तुम्हारी आँखें भैंगी हो जाएंगी। परन्तु बालों को इस तरह से बनाना फैशन है और कभी-कभी तो बालों को आँखों पर डाल लेती हैं। तो ये झिप्परिया फैशन है जो आजकल बहुत चल रहा है। मैं देखती हूँ कि श्रीमती थैचर के अतिरिक्त बहुत सी गरिमामय महिलाएं भी ऐसे ही बाल बनाने लगी हैं। न जाने श्रीमती थैचर किस प्रकार बची रह गईं। परन्तु महिलाओं को इस प्रकार की चीज़ों की नकल नहीं करनी चाहिए। ये तो दासत्व है। लेकिन फैशन हैं तो इसलिए वे करेंगी। इस प्रकार करना और फैशन बनाने वालों के हाथों में खेलना मूर्खता है। आप स्वतन्त्र हैं अपने चरित्र में और सूझ-बूझ में बनी रहें। फैशनों द्वारा अपनी शक्ल विगाड़ने के स्थान पर अपनी गरिमा तथा सूझ-बूझ से अपने सौन्दर्य को सुधारने का प्रयत्न करें। स्त्रियों के विषय में ही अधिक कह रही हूँ, मुझे खेद है; परन्तु लक्ष्मी पूजा का सम्बन्ध महिलाओं से ही अधिक है उन्हें ही ये सब समझना है कि उन्हें नया बनना है है और तुन्दर। एक साड़ी दूसरे साड़ी जैसी नहीं लगती। तो सौन्दर्य और कला का विचार महिलाओं को है पुरुषों को नहीं। महिलाओं को देखना चाहिए कि यदि पुरुषों को इसका ज्ञान नहीं है तो कोई बात नहीं, परन्तु उनको अपने घर पूर्णत: कलात्मक बनाने चाहिएं। घर को कमल की तरह से सुखदायी बनाया जाना चाहिए। कुछ महिलाएं अपनी गृहस्थी में हिंटलर की तरह से आदेश देती हैं, ये ऐसे होना चाहिए, ये वैसा होना चाहिए और इस प्रकार पुरुषों का जीवन दयनीय बना देती हैं। में एक ऐसे व्यक्ति को जानती हूँ जो अपने घर में भी समाचार पत्र साथ रखता था। पूछा कि हर समय आप इसे क्यों उठाए रखते हैं तो कहने लगा, "जब भी मैं बैठता हूँ इसे बिछा कर इस पर बैठता हूँ क्योंकि यदि मेरे कपड़े जरा भी खराब हो जाएंगे तो मेरी पत्नी मुझ पर बरसेगी, वो नहीं चाहती कि कोई भी चीज़ खराब हो। वो इतनी तुनकमिज़ाज है । इसलिए मैं हमेशा और किस प्रकार? मैं आपको बता चुकी हूँ कि महिलाओं के लिए गरिमामय होना आवश्यक है, पुरुषों की अपेक्षा कहीं अधिक आवश्यक। पुरुष मूर्ख हो सकतें हैं, कोई बात नहीं परन्तु महिलाओं को गरिमामय एवं विवेकशील होना ही चाहिए। पुरुषों को इतनी समझ नहीं होती जितनी आपको है। पुरुष विश्वविद्यालयों में शिक्षित होते हैं परन्तु उन्हें व्यवहारिकता का बिल्कुल ज्ञान नहीं होता। इसका आपको बुरा नहीं मानना चाहिए। पुरुष जिस प्रकार गलतियाँ करते हैं उन्हें देखने में मज़ा आता है, और फिर वे कहे चले जाएंगे, "नहीं, नहीं नहीं। मैं इसके विषय में सब मैंने उससे 28 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 7 &৪, 1999 का समाचार पत्र अथने साथ सखता हूँ मैंने कहा ये तो अति है। कहने लगा एक दिन आपको भी ऐसा ही करना पड़ेगा। कुछ महिलाएं घर के विषय में इतनी तुनकमिज़ाज होती हैं कि उस घर में रहना असंभव होता है। ऐसे घर अस्पताल से भी बदतर हैं। कुछ महिलाएं ऐसी हो सकती हैं परन्तु सामान्यत: महिलाओं को अत्यन्त प्रेममय और भद्र होना चाहिए और परिवार के सभी सदस्यों तथा अन्य सभी लोगों से वे कुछ बना रहे थे और उनकी टाइलों के नमूने मुझे बहुत अच्छे लगे, मैंने कहा कि क्या मैें इनमेंसे एक टाइल ले जा सकती हूँ। कहने लगे नहीं नहीं कोई बात नहीं है हम आपके जहाज पर भेज देंगे, और जहाज पर बहुत बड़ा बंडल टाइलों का भेज दिया। कप्तान ने आकर मुझसे पूछा कि हम इनका क्या करें? मैंने कहा आपको ये कैसे मिले? कहने लगा ये आपके लिए सभी प्रकार के टाइल ले आए हैं! क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं । एक ओर तो यह अभिव्यक्ति का तरीका है परन्तु दूसरी ओर ये काफी भिन्न है। तो व्यक्ति को उपहार के महत्व को प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए। ऐसा होना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि हमारा परिवार बहुत बड़ा है। बहुत बड़ा परिवार है हमारा, इतने सारे भाई-बहन हैं और एक से एक अच्छे हैं। प्रशंसनीय बात ये है कि सभी में भिन्न सुगन्ध है जिससे उनका व्यक्तित्व झलकता है। इसके बावजूद भी वे अत्यन्त अच्छे हैं, बहुत भद्र हैं और आनन्दपूर्वक मिलकर रहते हैं विशेष तौर पर रूस में मैंने देखा है कि महिलाएं वहुत ही मिलनसार और विनोदप्रिय हैं. वे जीवन का पूरा आनन्द लेती हैं। बहुत हैरानी की बात है, हम उनके लिए उपहार ले गए थे-लगभग समझना चाहिए, उसके लिए बुरा नहीं मानना चाहिए उसका महत्व बहुत अधिक हो सकता बेहतर होगा कि उन्होंने बो चीजें आपको क्यों दी? इसी को हम मंगलमयता कहते हैं। मंगलमयता लक्ष्मी जी का महान गुण है। जो भी कुछ आप दें वह मंगलमय होना चाहिए। कई बार मैंने देखा है कि शरारत के कारण बच्चे मुझे गिलहरी देने की कोशिश करते हैं। ऐसा करना है। ये पूछना दो हजार उपहार, परन्तु वहाँ तो सोलह हज़ार लोग थे। किस प्रकार उन्हें उपहार दिए जाते? तो महिलाओं ने अपने गले से जंजीरें उतारकर कहा कि हम पुरुषों को ये उपहार दे देते हैं। जिन सहजयोगियों को उपहार न मिल पाने के कारण बुरा लग रहा था उन पर मज़ाक करते हुए महिलाओं ने कहा, ठीक हे हम इन्हें अपने कर्णफूल (Ear Tops) दे देते हैं। इतना मजाक, इंतनी समझदारी इसलिए थी कि वे लोग धन लोलुप नहीं हैं। मैरे विचार में वे अत्यन्त आध्यात्मिक लोग हैं। तो एक आध्यात्मिक महिला को इन सब चीज़ों की परवाह नहीं करनी चाहिए और अपनी गरिमा को बनाए रखना चाहिए और अपने हर कार्य से ये दर्शाना चाहिए कि वह आध्यात्मिक है। ये सब अत्यन्त मधुर मैं आपको बता रहो थी कि एक और तो आप कभी-कभी कुछ अलग महसूस करते हैं-जैसे मैंने जापान के विषय में बताया। जापान में जब में गई तो वहाँ के टाइल (Tile) मुझे बहुत पसन्द आए अशुभ है। परन्तु उन्हें इसके बारे में बताया नहीं गया होता कि यह अमंगलमय है, यही कारण है कि वे ऐसे कार्य करते रहते हैं। बच्चों को बताया जाना चाहिए कि यह मंगलमय नहीं है और इससे देवी प्रसन्न नहीं होंगी। तो ये बात भली-भांति समझ ली जानी चाहिए कि अशुभ उपहार देकर लक्ष्मी का अपमान करने का प्रयत्न नहीं किया जाना चाहिए। आप यदि इस बात को नहीं जानते तो इसे समझ लें और भली-भांति इस कार्य को करें। दिवाली का संदेश ये है कि श्रीराम को राज्य दिया गया। श्री राम न्याय एवं ईमानदारी की प्रतिमूर्ति थे इसलिए उन्हें राजगद्दी सौंपी गई। इसी प्रकार हमें भी महसूस करना है कि कृतज्ञता और प्रेम की हमारी अभिव्यक्ति ऐसे व्यक्ति के लिए होनी चाहिए जो श्री राम की तरह से महानता का प्रतीक हो। है। यह अत्यन्त सूक्ष्म बात है जिसे समझने का प्रयत्न किया जाना चाहिए। आप यदि नहीं देना चाहते तो मत दें परन्तु यदि आप देना चाहते हैं चैतन्य लहरी । 29 खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 अच्छा है। वास्तव में दिवाली समाप्त हो चुकी हैं। पर मैं आप सब लोगों को मंगलमय दिवाली तथा सम्पन्नता पूर्ण नव वर्ष की कामना करती हूँ। तो व्यक्ति के योग्य चीज़ उसे दें। श्री राम के स्वभाव से हमें यह शिक्षा मिलती है। जंगल में उन्हें एक छोटी जाति की वृद्ध महिला मिली जिसके दाँत झड़ चुके थे वह श्री राम से कहने लगी कि ये बेर चखकर मेंने आपके लिए रखे हुए हैं ताकि खट्टे बेर मैं आपको न खिलाऊं इसलिए अपने दाँतों से मैंने इनको चखा है। ये बहुत मीठे हैं कृपा करके इन्हें स्वीकार करें। तुरन्त श्री राम ने वे बेर स्वीकार किए। श्री लक्ष्मण इस पर बहुत नाराज़ हुए क्योंकि किसी की झूठी की हुई चीज़ भारत में किसी को खाने के लिए नहीं दी जाती। परन्तु श्री राम ने कहा, "मैंने कभी इतने मधुर फल नहीं खाए ये बेर तो बहुत ही अच्छे हैं। श्री सीताजी ने भी उनसे ये बेर लेकर परमात्मा आपको धन्य करे। यही लक्ष्मी महालक्ष्मी का रूप धारण करती है अर्थात् जब आप धन के मूल्य को समझते हैं, इसका बाहुल्य जब आपके पास हो जाता है तब आप इससे तुंग आ जाते हैं। अन्दर से आप विरक्त हो जाते हैं और लक्ष्मी का एक नया रूप प्रकट होता है - वह महालक्ष्मी है। यह वह शक्ति हैं जो आपको बुलंदियों पर ले जाती है जो कि आध्यात्मिक जागृति है। आपने देखा है कि अत्यधिक कैभवशाली देशों में लोगों में सत्य को प्राप्त करने की इच्छा खाए। तब लक्ष्मन जी ने भी क्षमा माँगकर वे फल जागृत हुई। सत्य को प्राप्त कर लेने की इच्छा के कारण ही आप सब लोग यहाँ उपस्थित हैं । इसका अर्थ ये हुआ कि महालक्ष्मी शक्ति ने आपके अन्दर कार्य करना आरम्भ कर दिया जिसके फलस्वरूप खाए। इससे यह पता चलता है कि श्री राम ने शबरी के प्रेम और उसकी चैतन्य लहरियों को उन फलों में महसूस कर लिया था, इसी कारण उन्होंने ये बेर अपनी पत्नी को भी दिए। अत: जो कुछ भी आप करें पूरे प्रेम से करें। प्रेम से किया गया कार्य मंगलमय हो जाता है। परन्तु यदि उसमें प्रेम का अभाव है या किसी स्वार्थ के कारण यह कार्य किया गया है तो यह बेकार हो जाता है। श्री राम जैसे महान अवतरण को भी फल भेंट करते हुए शबरी के मन में केवल प्रेम था। इसी प्रकार आपको भी स्वच्छ हृदय होना चाहिए तभी आप जञान सकेंगे कि करने के लिए कौन सा कार्य सबसे है। सत्य को खोजते हुए आप सहजयोग में आए। यह महालक्ष्मी आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है कोल्हापुर में स्वयंभू महालक्ष्मी का मन्दिर है परन्तु वहाँ के लोग ये नहीं जानते कि महालक्ष्मी के मन्दिर में जाकर वे जोगवा क्यों गाते हैं। वे प्रार्थना करते हैं कि हे अम्बे, आप जागृत हों। अम्बे, कुण्डलिनी को कहते हैं। तो आप समझ सकते हैं कि महालक्ष्मी के मन्दिर में उन्होंने जोगवा क्यों गाना शुरू किया। जोगवा कुण्डलिनी को जागृत करने के लिए प्रार्थना ंघड प ि नि गिचानी रभ ं ण चा पुर ब तस नाथ ी हिह के है खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 नाच 30 चैतन्ये लहरी ॥ |र म पा ा] नैतिकता व देशभक्ति रक त परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का सार्वजनिक प्रवचन रामलीला मैदान, दिल्ली 18.12.98 कुम की जो ज्ञान की प्रणाली है वो इस तरह है कि सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों की हमारा नमस्कार। हम सत्य को खोज रहे हैं। किन्तु कौन सी जगह खोजना चाहिए? कहाँ फौरन वो देखने लगते हैं, उसका निरीक्षण करते खोजना चाहिए। कहाँ ये सत्य छिपा हुआ है? ये हैं और उसका विश्लेषण करते हैं कि ये बात पहले समझ लेना चाहिए। आप देखिए कि कहाँ तक सही है। ईसा मसीह ने भी, ग्र कोई परदेस से हजारों लाग हर एक देश से यहाँ आते हैं। उनसे पूछा जाए कि तुम यहाँ क्यों आए तो विश्लेषण से जो असलियत है वो पता नहीं वे कहते हैं कि हम यहाँ सत्य खोजने आए हैं। लगती और उससे दूसरे विद्वप रूप सामने आ हमारे देश में तो सत्य नहीं है लेकिन भारतवर्ष जाते हैं। में सत्य है। ये समझकर के हम यहाँ आए। और इस सत्य की खोज में हर साल हजारों लोग इस देश में आते हैं और हज़ारों वर्ष से आते हैं । विशेषता, पवित्रता है कि यहाँ इतने ऋषि मुनि आपने सुना ही होगा, इतिहास में चाइना से और और इतने मनन करने वाले महान लोग हो गए, देशों से लोग यहाँ आते थे, और उनको हजारों वर्षों से, ग़र कोई बात कोई आदमी कहता है तो उसको बात कही. तो उसका विश्लेषण हो जाता है। उस अब ये सोचना है कि अपने देश की प्रणाली कैसी है? एक तो इस देश में कोई तो भी दूर और वो बढ़ते-बढ़ते सोलहबीं पता नहीं कैसे मालूम था कि इस देश में ही शताब्दी तक हम देखते हैं कि यहाँ गुरु नानक सत्य निहित है, छिपा हुआ है खोज में वो गिरी-कन्दराओं में घूमते थे, हिमालय सत्य पे काफी कुछ लिख दिया। काफी कुछ और उसकी जैसे अनेक ऐसे साधु-संत हो गए कि उन्होंने कहा गया, समझाया गया लेकिन हमारी जो तरह से हम सत्य को खोज लें। क्योंकि वो प्रणाली है वो इस तरह की है कि जो ऐसे पहुँचे किसी भी धर्म का पालन करते नहीं थे लेकिन हुए पुरुषों ने लिखा है, उसका हम बहाँ ग़ौर नहीं वो जानते थे कि सिर्फ इस धर्म पालन से हमें करते, उसकी हम चर्चा नहीं करते, उसको हम सत्य नहीं मिलना। ये तो एक मार्ग-दर्शक है । शास्त्रीय दृष्टि से नहीं देखना चाहते क्योंकि वो वो ऊँची स्थिति पे है वहाँ रास्ता है। किन्तु इससे हम पाते नहीं हैं इसलिएसे उन्होंने ग़र कोई बात कह दी तो उसको हम इस अधूरेपन से परेशान होकर के वो अपने मान्य करके उस रस्ते पर चलते हैं। ये हमारे भारतवर्ष में आते थे। अब ये सत्य हमारे देश में देश की विशेष, विशेष तरह की एक प्रणाली है जिसमें हम एक श्रद्धा भाव से, एक विश्वास के अत्यन्त आवश्यक है। अपने यहाँ की प्रणाली साथ, इस चीज़ को मानते हैं कि जो बड़े पहुँचे और परदेस की प्रणाली में बहुत अन्तर है । वहाँ हुए आध्यात्मिक स्तर के ऊँचे मार्ग में रहते हुए पे जाते थे हर तरह के प्रयत्न करते थे कि किसी जैसे रास्ते पर इशारे से लिखा जाता है कि ये पहुँचे हुए लोग हैं। था और है और अब भी है। इस सत्य को पाना 31 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 लोगों ने लिखा है वही बात सही है। उसमें झूठ है कि बाहर है? नहीं। उसको पड़तालने का, उसका विश्लेषण करने का हमें कोई अधिकार नहीं क्योंकि हम कोई ऐसे बुद्धिमान नहीं हैं। ऐसे हम पहुँचे हुए लोग नहीं हैं, हमारे में इतने शास्त्र वगैरा का कोई ज्ञान नहीं है, न ही हम गहराई से कोई चीज अपने देश की जो सम्पत्ति है वो इतनी ज्यादा, इतनी गहरी, इतनी अचल है कि उसको देखना, जानना हम हिन्दुस्तानी अपना कर्त्तव्य ही नहीं समझते। यहाँ की संस्कृति के बारे में तो कुछ बता ही नहीं सकते कितनों ने मुझसे कहा, खासकर हमारे जो परदेसी सहजयोगी हैं, कि माँ आप एक किताब हिन्दुस्तान की जो खासकर गहरी बातें हैं उस पर लिखो। सो मैंने कहा कौन जानते हैं। एक बार इस बात को समझ लेने पर हम श्रद्धा पूर्वक उस महान तत्व को मानते हैं। जो हमारे सामने इन ऋषि मुनियों ने रखा। विदेश में भी मैंने देखा, कि बड़े-बड़े सी गहरी बातें? तो कहने लगे संस्कृति। भारतीय वहाँ पर सूफी लोग हो गए और उन्होंने बिल्कुल संस्कृति पर आप एक किताब लिखो। मैंने कहा सहज की बातें करी हैं विल्कुल सहज की ही ये तो महासागर हैं। इस सागर में से में आपको बात करी है। लेकिन उनको कोई मानता नहीं है सूफियों को, उनकी मान्यता बहुत ही थोड़ी सी लिखने पड़ेंगे। एक छोटी सी बात हम सब है। थोड़े से लोग उनको मानते हैं और सिर्फ हिन्दुस्तानियों के लिए बताती हूँ, मैं मजाक की उनकी कविता पढ़के बड़ा मनोरंजन कर लेते हैं बात, कि एक विदेशी महिला थी। एम्बेसेडर की पर उन्होंने जो कहा उस मार्ग पर नहीं चलते। ऐसे हरेक देश में बड़े-बड़े सूफी हो गए हैं । इंग्लैण्ड जैसे देश में भी विलियम ब्लेक जैसा क्या दें सकती हूँ? उसके लिए तो ग्रन्थ पे ग्रन्थ बीबी थी वो, वो हमारे पास आईं। गले में वो हार पहने हुए थी तो मुझे ये कहने लगी मेरी समझ में ये हिन्दुस्तानी नहीं आते। मैंने कहा क्या हुआ? कहनं लगी मैं एक फूलों की दुकान में गई थी और उस दुकान में बड़ा सुन्दर एक हार एक बड़ा भारी संत हो गया लेकिन उसकी बात कोई नहीं मानते हैं। हमने तो कभी कालेज में भी उसका नाम नहीं सुना था लेकिन हम जानते था, वो खरीद कर मैंने पहन लिया। तो वो जो थे कि वो है। जब लन्दन गए तो पहली मर्तबा लड़की थी जिसने बेचा वो पेट पकड़ पकड़ हमने उनकी किताबें खरीदीं। उसका कारण यह है कि विलियम ब्लैक पागल है, जितने भी सू. फी थे सब पागल हैं। सब अपने ऋषि मुनि भी लिया। मैंने कहा अब इसको कैसे समझाएं? मेंने पागल हैं, इनके हिसाब-किताब से। इस तरह की जो अहंकारिता परदेस में है. वो इस देश में तभी हार पहनाया जाता है। आप अपना ही नहीं है। नहीं थी, ऐसा कहें क्योंकि अब तो हम बिल्कुल परदेसी हो रहे हैं। हमें अपने देश के बारे में कुछ मालूमात ही नहीं। हमारे स्कूलों में हिन्दुस्तानी जो संस्कृति है उसके लिए बड़ी बच्चों को कुछ मालूम ही नहीं । किसी बच्चे से हास्यास्पद चीज़ है, इससे सबको हँसी आएगी। हमने पूछा कि तुम अजन्ता के बारे में कुछ उसने कहा ये हिन्दुस्तानी जो, भारतीय आपकी जानते हो तो कहने लगा, अजन्ता हिन्दुस्तान में जो चीज़ है ये बड़ी गहरी है। मैंने कहा, हाँ ये कर हँसने लग गई और रास्ते में सब लोग मेरे ऊपर हँस रहे थे क्योंकि मैंने गले में हार पहन कहा भई देखो यहाँ कोई ग़र आपका आदर करे आदर तो कर नहीं सकते। तो आप ग़र खुद आदर करें अपना और हार पहन लें तो ये तो 32 चैतन्य लहरी खंड : X1 अंक : 7 & 8, 1999 तो आप कोई भी हिन्दुस्तानी होगा ये बात समझ तो गणेश की स्तुति फिर सरस्वती की स्तुति, जाएगा कि इस तरह से अपने को आगे बढ़ा कर रहना और इस तरह से अपने गले में हार पहन के घूमना, ये चीज़ बड़ी ही निन्दनीय है। क्योंकि इसमें नम्रता नहीं, इसमें ये समझ नहीं कि हम हैं कौन? हम अपने को क्या समझे बैठे हैं? इस बात को लेकर के मैं कहूँगी कि महात्मा गाँधी ने जो आन्दोलन चलाया था वो की भी उसमें कुछ न कुछ श्लोक होते थे। पर बिल्कुल उल्टा पड़ गया। जब हम गाँधी जी के साथ थे, उनके साथ रहे और उन्हीं के बहुत बैठे हुए सारी बातचीत और उनका ढंग जो था वो था, इस तरह से करते-करते उन्होंने हर एक चक्र के जो अधिष्ठित देवता थे, उनके ऊपर अपनी भजनावली में लिखा था और उसी तरह से गाने का। उसके बाद बाइबल से भी Lords Prayer कही जाती थी, उसके बाद कुरान से भी कहा जाता था और भी बुद्ध धर्म का भी और जैन धर्म पहला जो हिस्सा था उसमें एक-एक चक्र पे हरेक देवता को उन्होंने लिया था। इतने आध्यात्मिक दृष्टि से देखते थे। वो कुण्डलिनी हालांकि वो भी परदेस के पढ़े हुए थे, कि के बारे में जानते थे. चक्रों के बारे में जानते थे । अपनी भारतीय संस्कृति को उभारना चाहिए। उसके बौर ये संसार नहीं बच सकता। इस पर संसार को बचाना है तो भारतीय संस्कृति का यहाँ एक बढ़िया उदाहरण होना चाहिए, मसला होना चाहिए जिसको देखकर लोग समझ जाएं तो बहुत छोटी लड़की थी लेकिन तब से वो कि ये भी एक ज़िन्दगी है, इसमें भी एक आनन्द है। उनके यहाँ चार बजे उठने की प्रथा थी। चार बजे उठके नहा-धोकर के और आपको है? अब इस संस्कृति के बारे में कहना बहुत सब कुछ जानते हुए उन्होंने इस चीज़ को लोगों में लाने की कोशिश की, ऐसी भजनावली लिखाई जिसमें इस तरह से सब चीज़ें लिखी गई। अध्यात्म के बारे में बहुत मुझसे भी पूछते थे मैं पूछा करते थे कि तुम बताओ। कौन सी गहनता हमारी संस्कृति की विशेष ज़रूरी है क्योंकि गाँधी जी को तो लोगों ने भुला दिया। गाँधी जी तो बिल्कुल बेकार हो गए प्रार्थना में जाना पड़ता था। प्रार्थना में जाकर आप बैठिए तो, वहाँ साँप भी बहुत एक-आध साँप आपके सामने डोलता हुआ क्योंकि उनका आध्यात्म तो कहीं दिखाई ही दिखाई देता था पर कुछ कभी किसी को काटा नहीं देता। आज राज कारण में अध्यात्म की तो हो बिच्छु ने भी तो पता नहीं। इतना वातावरण थे कभी-कभी कोई बात ही नहीं करता। आध्यात्म में हम उनका शुद्ध था। वहाँ नम्रतापूर्वक सब लोग, हर हिन्दुस्तानी नहीं जाएंगे तो कौन जाएगा उसमें? एक जाति के हर एक धर्म के लोग बैठके कौन उसको समझेगा? आज आप देख रहे हैं, प्रार्थना करते थे और प्रार्थना में संगीत आदि सब यहाँ पचहत्तर देशों के लोग आकर के बैठे हुए कुछ होता था। उन्होंने जो भजनावली भी लिखी हैं। पचहत्तर देशों के लोग आए हुए हैं और है, आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि में इस बात को जानती हूँ कि वो कितने आध्यात्मिक थे कि इन्होंने आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त किया। इन्होंने सारे कुण्डलिनी के ही चक्रों पर उन्होंने एक के बाद एक, एक के बाद एक इस तरह से सारे के नहीं, इंगलिश संस्कृति के नहीं, फ्रैंच संस्कृति श्लोक लिखे। पूरे, सबसे पहले उन्होंने लिखा था के नहीं, उल्टे जिस देश से आए हैं उस देश की पचहत्तर देशों में ये अध्यात्म फैल गया और अपनी संस्कृति को पकड़ा, अमरीकन संस्कृति 33 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 7 8 8, 1999 संस्कृति को कहते हैं कि ये तो बिल्कुल ही उन्होंने जौहार किया था औरतों की इज्ज़त, आबरू (Chestity) ये सबसे बड़ी शक्ति है. का हनन करती है। ये हमें नैतिकता से गिराती ऐसा हम लोग मानते हैं अपनी संस्कृति में जिस जगह औरतों की इज्जत और आवरू हट जाती नहीं समझना चाहिए? हम लोग तो ऐसी-ऐसी है उस जगह में राक्षस और भयंकर राक्षस और हर तरह के भूत आकर रहते हैं। ये बात आप है। पतन की ओर ले जा रही है। ये हमारे आत्मा है। इन लोगों ने समझ लिया अब हम लोगों को चीज़ों का वरण करते हैं, ऐसी-ऐसी चीज़ों के लिए लड़ते हैं जहाँ नैतिकता का विचार है ही साक्षात् देख सकते हैं। अमेरिका में हो रहा अमेरिका में इतनी गंदी चीज़ें हो रही हैं कि मैं है कि हम लोगों को नैतिक होना चाहिए। तो आपके सामने बता नहीं सकती । यहाँ तक नैतिकता के अनेक नियम है । पर अपने देश में, की अपने ही बच्चों को वहाँ लोग मार डालते इस संस्कृति में सबको बिल्कुल पूरी तरह स्वतंत्रता हैं इस कदर गंदगी वहाँ है क्योंकि आप अभी है। पूर्णतया स्वतंत्रता है कि आप स्वतंत्र हैं चाहे वहाँ गए नहीं, बाहर के ढोल सुहाने होते हैं। वहाँ आप नैतिक होना चाहें, चाहे आप कुछ होना के लोगों में जरा सा भी भय नहीं है। परमात्मा नहीं। सबसे बड़ी चीज़ अपनी संस्कृति की देन चाहें हो जाइए क्योंकि अंतिम स्थिति में आपको पूर्णतया स्वतंत्रता मिलती है। अब स्वतंत्र समझना चाहिए। 'स्व' के तंत्र को जानना यही स्वतंत्रता है। और 'स्व' माने का भय नहीं है। परमात्मा की शक्ति का विश्वास तक है कि नहीं, पता नहीं। सब कुछ पैसा सब कुछ पैसा। किसी भी तरह से पैसा लो। हमारे एक वहाँ हैं उनसे किसी अमेरिका के आदमी ने क्या? स्व माने आपकी आत्मा। आत्मा को कहा कि भई तुमको इतना-इतना रुपया देता हूँ तुम फ़लानी औरत को मार डालोगे? उसने कहा भविष्य के बारे में, कि 'स्व' का तंत्र जानो, न न मैं कभी नहीं मार सकता। कहा क्यों? पत जानना ही स्वतंत्रता है। शिवाजी ने कहा था, पहली चीज़। 'स्व' के तंत्र को जानना होगा और कहने लगा नहीं नहीं मैं नहीं मारना चाहता, वही सहजयोंग है, जिससे आप स्व के तंत्र को जानते हैं। और इस 'स्व' के तंत्र को जानने के कहने लगा पैसे के लिए क्या दुनिया के लिए, लिए सबसे सहज मार्ग जो है वो है भारतीय मैं नहीं मार सकता। उसने कहा में तो मार दूंगा। संस्कृति। इसकी गहराई में आप उतर ही नहीं उसने कहा क्यों? क्योंकि इसमें पैसा मिलता है । सकते। क्योंकि आप पता नहीं कहाँ से कहाँ सबसे बड़ी चीज़ है पैसा । फिर आपकी माँ को फैंक दिए गए। एक तो गलती ये हुई कि ऐसे भी मार दो। जब पहले एक साहब यहाँ आए थे, लोग हमारे ऊपर आ गए कि जिनको भारतीय तो मुझसे कहने लगे कि माँ मैंने अपनी माँ को संस्कृति के बारे में कुछ मालूमात ही नहीं। ही मार डाला। मैंने कहा अच्छा! कल तुम जिन्होंने गाँधी जी को लपेट के बिठा दिया एक मुझको भी मार डालोगे। जो अपनी माँ को मार तरफ कि तुम बैठे रहो। उन्होंने जो बातें सिखाना शुरु कर दीं वो सारी भारतीय संस्कृति के विरोध वो हिन्दुस्तानी नहीं हो सकता, वो भारतीय नहीं में हैं। जैसे मैं चित्तौड़ गढ की हूँ। वहाँ आपने हो सकता। माँ के तो बहुत वर्णन हैं और माँ को सुना होगा कि पदमिनी ने जौहार किया था, किसी को क्यों मारू? कहने लगा पैसे के लिए. सकता है और माँ के प्रति जिसमें श्रद्धा नहीं है पा तो हम शक्ति स्वरूप मानते हैं और उसी शक्ति 34 चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 7 &.8. 1999 की पूजा करते हैं। सबसे पहले सारे ग्रन्थों में माँ कौन से मूल्य से आप जगने वाले हैं। कोई का वर्णन है। माँ से ही सब शुरु हुआ और इन लोगों की जो व्यवस्था है परदेसियों की, उसमें माँ का तो कोई स्थान ही नहीं है। बहुत से देशों और बेवकूफ बनिए। अनैतिकता को फैलाना में तो देश का नाम भी बाप के नाम से है। जैसे जिनका काम है वो भारतीय नहीं हो सकते, हम लोग भारत माता कहते हैं, तो वो अपने देश क्योंकि नीति के सिवाय आप उठ नहीं को कहते कि ये तो पुरुष है। उसमें से एक देश सकते। नीति के सहारे ही आप उस परम को है जर्मनी। आप जानते हैं जर्मनों ने क्या किया? अब रो रहे हैं जो कुछ भी किया उसके लिये, बैठी हुई तो आपका उद्धार हो नहीं सकता। पर किया तो सही। ऐसे भारतवर्ष के लोग नहीं कर सकते। अब हमारे यहाँ समझ की कितनी नर्क में जाएगा। जो लोग अनैतिकता को लेते कमी है, एक किताब मैंने देखी जयपुर पे, वो हैं। जैसे देखा है हमने कि उन्होंने वहाँ पे हर जयपुर का कोई होगा उसने लिखी होगी. मुझे हैरानी हुई कि वो कहता है कि जो जौहार पदमिनी ने किया था मेवाड़ में उसकी जगह अच्छा था कि वो खिलजी के चरणों में चली चाहे कुछ करिए, किसी तरह से पैसा कमाना है। जाती। उसकी दासी हो जाती तो ये झगड़ा ही न भी आपको बेवकूफ बना दे, आप बेवकूफ बन जाते हैं । अंग्रेजों ने बेवकूफ बनाया अब पा सकते हैं । ग़र आपके अंदर नैतिकता नहीं आप नर्क में जाएंगे और आपका देश भी तरह की स्वतंत्रता दे दी अमेरिका में, किसी तरह से पैसा कमाना है, फिर औरतें अपनी इज्ज़त बेचें, चाहे शराब के आप बुत्ते खोलिए. पैसा क़मा करके ये नए अमेरिका का देश है क्या? आपको पता है सबपे कर्जा है। उस देश पे कर्ज़ा है । हमारे यहाँ से इतने लड़के वहाँ पर गए इतने पढ़े लिखे मैंने कहा यहाँ आए क्यों? खड़ा होता। बत्तीस हजार औरतों को जला दिया ये कौन सा उन्होंने बड़ा काम किया? देखिए अक्ल कि कहाँ पहुँचती है? उससे अच्छा था सबसे आप समझौता करते। अंग्रेजों से लड़ने की कहने लगे यहाँ पर बड़ी तनख्वाह मिलती थी, क्या जरूरत थी? उनसे समझौता करते। सबसे पैसा मिलता था इसलिए आए। अच्छा! अब पैसा समझौता करके रहते, तो अभी तक इतने लोग नहीं मरते। और जीकर करते क्या? इतने लोग बच्चे पे कर्जा। मैंने कहा ये भई ये हिन्दुस्तानी अगर जीते भी तो करते क्या? क्या उनमें चीज़ होकर तुम्हारे पर कर्जा क्यों हुआ? सोचने की है? आज जी रहे हैं अब हिन्दुस्तानी इतने कर क्या रहे हैं? क्या ये प्राप्त करने वाले हैं? पैसा डॉक्टर हो गए, चार्टर्ड अकाउन्टेंट हो गए और पैसा पैसा इनकी भी खोपड़ी में घुस गया है और यहाँ आकर कर्जे में बैठे हो कि अब तुम वापिस उसके लिए जो हम अपने सारे जो मूल्य हैं नहीं जा सकते? कहने लगे यहाँ पे जो Life उनको बेच डालें? उन सब मूल्यों को हम सत्यानाश कर दें जिनके सहारे हम जी रहे हैं? कर्ज़ा हो ही जाता है। बेवकूफ जैसे वो लोग भी, आपको पता होना चाहिए कि सारी वहाँ आर्डर देकर ये चीज़ मँगा, वो चीज़ मँगा दुनिया आपकी तरफ आँख लगाए बैठी है और वो कार्ड रखते हैं कार्ड। और सब कर्जे में कि आप कौन से मूल्यों पर उठने वाले हैं? हैं। किसी के पास कुछ पैसा नहीं। आप गए वहाँ गया कहाँ? सबपे क्यों इतना कर्ज़ा है । हरेक बात है कि आप बड़े भारी इंजीनियर हो गए, Style है यहाँ के जो रहन-सहन हैं उसमें तो 35 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 और वहाँ जाकर आपने कज्जा कर लिया फायदा क्या? कुछ कमाया नहीं. कुछ नहीं और वहाँ आप कर्जे में बैठे हुए हैं हाँ बड़ा बढ़िया आपके पास आलीशान सॉफ़ा होएगा, Carpet होएगी। ये होगा वो होगा, पर सब कर्जे से। वहाँ कर्ज़ा करना कोई बुरी चीज़ समझी ही नहीं जाती। तो आप कर्जे पे कर्जा करते जाओ। ऐसी संस्कृति जहाँ अनैतिकता इतनी हो वहाँ होना ही है ऐसे उसे अलक्ष्मी ही कहते हैं, अलक्ष्मी का कोप कि दिखने को ऊपर से तो दिखाई देता है पर क्या-क्या किया! में पूछती हूँ जो आज इतना अधिकार लगा रहे हैं इनके बाप दादाओं ने कुछ किया देश के लिए या इन्होंने कुछ किया है देश के लिए? जब संग्राम इस देश में हुआ था, जब लड़े थे लोग जेल में गए, लाठी खाई, मार खाई, घर द्वार मिटा दिये. तब इनमें से कोई लोग थे क्या वहाँ? अब बैठ गए अधिकार जमा के, कि ये नहीं होना चाहिए। वो नहीं होना चाहिए। मैं देख-देख के हैरान हूँ कि अनैतिक चीजें लाने में इतना झगड़ा हो रहा है! नीतिवान लोग जो थे उनको खराब करो, उनसे पैसे ऐंठो, उनको अन्दर कुछ नहीं। अन्दर कर्जा! हम उनसे क्या सीख सकते हैं? वो यहाँ सीखने आते हैं और शराब पिलाओ उनको गन्दी बातें सिखाओ, उनसे हम उनसे क्या सीख सकते हैं? इन लोगों से पैसे ऐँठ करके और सब खा जाओ! एक चीज़ कुछ भी सीखने का नहीं। ये कहने में कोई भी है कि आपको ये सोचना चाहिए कि ग़र आप डर की बात नहीं है कि अपने देश जैसा महान देश कोई नहीं और हमारी भारतीय संस्कृति जैसी संस्कृति को ही अपनाना पड़ेगा। फिर आप कोई कोई भी संसार में संस्कृति नहीं। इसकी जो भी जाति के हों, कोई धर्म के हों, कोई भी गहराई है। उस तक पहुँचना ही मुश्किल हो जाता है क्योंकि हम भी इतने बेकार हो गए हैं। इस भारत वर्ष में लोग इतने बेकार हो गए हैं कि है कि हम लोग श्रद्धापूर्वक किसी चीज़ को प्याज़ के पीछे में वोट देते हैं? अरे सारी दुनिया मानते हैं, लेकिन अभी तक उसको पाया नहीं। हँस रही है। अभी हमारे सहजयोगी बाहर से झूठे लोग बहुत आ गए, गड़बड़ी बहुत हो गई, सहज में आ रहे हैं तो आपको इस भारतीय आपका विचार हो, उसके सिवाए नहीं हो सकता। सहज मार्ग क्या है? वो भी एक समझने की बात हर जगह गड़बड़ी होती है, मारामारी होती है। ये सब है माना। लेकिन इसके लिए बताया गया है आए तो सब एक-एक थैला प्याज़ लेकर आए, बताओ, शर्म करो! शर्म करो इस बात पर! बेवकूफ बनाना तो बहुत आता है लोगों को, कि तुम आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करो आप लेकिन बेवकूफ बनना हिन्दुस्तानियों को आता है। अभी ये लोग सब गठरी भर-भर के अपने आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करो आपके धर्म का कोई अर्थ नहीं आपकी बातचीत का कोई अर्थ नहीं, जब तक आपने आत्मसाक्षात्कार नहीं पाया। बुद्धि से नहीं हो सकता, ये बुद्धि से परे चीज़ है। साथ प्याज़ लाए, मैंने कहा प्याज़ क्यों ले आए? कहने लगे आपके देश में प्याज की इतनी कमी कि सरकार बदलना चाहते हैं। मैंने कहा हाँ है इसे आइंस्टीन ने कहा है, अब लो और कौन ये तो है शर्मिन्दा मत करो हमें वो दिन गए जब कि देश से आगे है। सारे शरीर को, बुद्धि मन को के लिए लोग लड़ते थे। सब कुछ अपना त्याग सबको ग़र तुम मानते भी हो तो ये कोई शाश्वत किया, हमने खुद कितनी बार मार खाई उनकी, चाहिए आपको? ये बुद्धि से परे चीज़ है। बुद्धि एक बात हो गई लेकिन अब तुम चीज नहीं है। शाश्वत चीज जो है वो बुद्धि से 36 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 7& 8, 1999 परे हैं, जिसे परम चैतन्य कहते हैं। उसको उसने आती इस कुण्डलिनी की जागृति लेकिन हमें आती नहीं। बाकी हम सब जानते हैं। हम एक (Torsion area) एंठन क्षेत्र कहा हुआ है, आइंस्टीन ने। वो बेचारा वो भी एक आत्मसाक्षात्कारी था. बार वहाँ गए और एकदम आग लग गई जैसे। हज़ारों लोग बोलिविया के पार हो गए पर हमें विज्ञान हर जगह। उसने कहा Torsion area तो तो वो ज्ञान भी नहीं और हम तो वो जानते भी वो कहाँ है? कैसे मिलेगा? कैसे पाएंगे? मिल ही नहीं हमारे किताबों में इस मामले में कोई नहीं सकता क्योंकि ये जो Torsion area है ये लिखता भी नहीं, और न कोई बताता है मानो आत्मसाक्षात्कार के बाद ही प्राप्त होता है। तो हमको काट दिया उस महान संस्कृति से, उस पहले आत्मसाक्षात्कार करें। अब उसके लिए महान ज्ञान से हमको काट दिया, और काट कर बहुत से झूठे लोग निकल आए अपने देश में, के हम अजीब एक पता नहीं कौन से देश के लोग बन गए। न अंग्रेज हें न हिन्दुस्तानी हैं, पता नहीं क्या बन गए हम लोग। हमें कुछ मालूमात ही नहीं लोगों ने कहा, अच्छा कुण्डलिनी माने आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करना सहज़ कुण्डलिनी माने कुण्डली कि कुण्डलिनी माने क्या? किसी को मालूमात ही नहीं है। सोचिए आसानी से मिल सकता है। इसमें कोई भी ऐसी इसमें जो सागर भरा हुआ है इस देश में सागर भरा है। अभी एक साहब मैक्सिको से आए थे, कि आप घर द्वार छोड़ दो, आप बाल बच्चों को वो यहाँ पर एम्बेसेडर हैं। तो मैंने उनसे कहा कि आपके यहाँ जो है बहुत ज्यादा भूत विद्या है। अंदर ये शक्ति है। ये आपके ही अंदर त्रिकोणाकार कहने लगे अच्छा मैंने कहा हाँ मैं तो गई थी मैं अस्थि में ये शक्ति है। ये मैं कह रही हूँ ऐसी जानती हूँ भूत विद्या बहुत है वहाँ । तो कहने लगे बात नहीं है । अनादिकाल से यहाँ लोगों ने कहा वो साइकोलोजी से चला जाएगा तो मैंने कहा आपकी साइकोलोजी ही साइकाट्री जो है एक हमारे यहाँ से इतने हजारों वर्ष पूर्व मच्छिंदर बच्चे जैसी है। यह Child Science है. उसमें नाथ, गोरखनाथ ये लोग कहाँ पहुँचे तो वोलिविया! कुछ है ही नहीं। आपको जानना है तो मैं वोलिविया में पहुँचे जो कि हम लोग जा नहीं बताऊंगी कि ये भूत विद्या, हमारे यहाँ जो साइकाट्री है वो कितनी गहन, वी कह गया उस पर माल लोगों ने लगा दिया। बहुत से तांत्रिक निकल आए वो कुछ और धंधा कर रहे हैं। कुछ हीरा दे रहे हैं कोई कुछ कर रहे हैं। उसी में फँसे जा रहे हैं। मार्ग से बहुत ही सुलभ हो गया। सबको बहुत बात नहीं कि आप सिर के बल खडे हो जाओ, छोड़ दो, कोई करने की जरूरत नहीं। आपके ही है। सिर्फ जो लोग कहते थे मुझे आश्चर्य है कि सकते, वहाँ बड़ा मुश्किल है। यूक्रेन में गए, साइकोलोजी दा कुछ हिस्से में रूस में भी गए। वहाँ जाकर के उनको बताया कि आपके अंदर ये शक्ति है और हुई हैं। वो मैं समझाऊंगी तुमको। तो वो बिचारे ऐसे-ऐसे चक्र हैं, ये हैं, सब वहाँ बताया। और बहुत ज्ञान पिपासु हैं, ज्ञान जानना चाहते हैं हम उन्हीं के बंशज हैं. उन्हों के हम बेटे हैं, लेकिन मेरे पास जब Time होगा तो बैठकर बेटियाँ हैं और हम क्या जानते हैं? कुछ भी नहीं उनको मैें समझाऊंगी । पर आप सोचिए कि जानते। वो वोलिविया के लोग सब कुछ जानते आपके देश में इतना गहन यहाँ ज्ञान का भंडार हैं। पर बो कहने लगे इसकी जागृति हमें नहीं पड़ा हुआ है और आप कहाँ भाग रहे हैं? क्या एक-एक, एक-एक बातें उसके अंदर लिखी 37 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 &8, 1999 कर रहे हैं आप लोग? जो देश आपके हिसाब से कहें, शर्म की बात है। पद्मिनी ने बत्तीस हजार ऊँचे उठ गए, बड़े अग्रसर हैं, उनको जाकर देखिए न। आप लोगों ने देखा नहीं, मैंने तो देखा की विशेषता क्या है? हमारे मूल्य। हमारे मूल्य। है। वहाँ के लोग सुखी हैं क्या? गर सुखी होते पर वो सहज से जागृत होएंगे क्योंकि मैंने देखा तो यहाँ क्यों आते? यहाँ आनन्द को खोजने क्यों परदेश के भी लोगों में वही मूल्य जागृत हो गए। आते? वो तो ऐसी चीज़ है कि आज आपको क्योंकि ये हमारे अंदर बैठे हुए मूल्य हैं जो एक छोटा सा घर चाहिए, फिर मोटर चाहिए, जगमगा रहे हैं अंदर, जो अंदर प्रज्जवलित हैं जो फिर फलाना चाहिए, फिर वो चाहिए। जो मिलता सूर्य के जैसे चमक रहे हैं। ये सब मूल्य हमारे है उससे आप सुखी नहीं, उसके बाद दूसरी अंदर और फिर इस पृथ्वी तत्व का इतना चीज़ चाहिए, उसके बाद तीसरी चीज़ चाहिए। तो उसके पीछे इतने भागने की जरूरत क्या? ही को ग्रहण लगा लिया, तो ये मूल्य आपको कोई समाधान नहीं, कोई संतोष नहीं। लेकिन कैसे दिखाई देंगे? ये आपके समझ में कैसे सहज में ये सब मिल जाता है। सहज में आएंगे? कोई एक तरह का पर्दा हो तो बात करें! आपको पूर्णतया समाधान और संतोष मिल कबीर दास जी ने कहा था, बहुत सुंदर सब कुछ जाता है। पर सहज मार्ग भारतीय संस्कृति पर बसा हुआ है। विदेशी संस्कृति नहीं चलेगी उसमें। जो सहज में आना चाहता है और पिंगला सुखमन नाड़ी रे अब लोगों को क्या आत्मसाक्षात्कार लेना चाहता है उसको पता होना चाहिए। अब ये औरतों को देखिए बाहर से आई है और साड़ियाँ वाड़ियाँ पहन कर बैठी हुई हैं। इसका मतलब नहीं कि अब वो हरे रामा जैसे कूदते फिरिए। उसकी जरूरत नहीं है। असलियत को पाना है, Reality को पाना है तो गहराई से उतर कर के और इसमें समाना पड़ेगा। इसको समझना पड़ेगा। इसमें कोई ऐसी बात नहीं है कि जो आप नहीं कर सकते। क्योंकि आप इस तो वो सैंया को सोचते हैं कि सैंया माने उनका महान देश में पैदा हुए हैं। ऐसा लिखा जाता है कोई तो भी Lover या कोई प्रेमी है वो निकल शास्त्रों में कि भारतवर्ष में पैदा होने के लिए गया बो नहीं रोई। मैंने कहा, कबीर को ये सबसे हज़ारों वर्षों की पुण्य, पुण्याई काम आती है। बताइए हजारों वर्षों की पुण्याई के बाद मैं क्या देख रही हूँ, कैसे लोग पैदा हो रहे हैं? पर साहब अभी हमारी ज़िन्दगी में हमने ऐसे लोग देख लिए जिन्होंने देश के लिए अपनी जान निछावर कर दी और अभी प्याज़ के लिए? क्या औरतों को लेकर जौहार कर दिया। हमारे देश महात्मय है। लेकिन हमने ग़र ढक दिया. अपने लिखा है उन्होंने सहज के बारे में पर लोग समझ नहीं पाते लोग नहीं समझ पाते। जैसे कि ईड़ा. मालूम ईड़ा पिंगला क्या है? ईड़ा. पिंगला चीज़ है। क्या है? उनको Nervous System मालूम है। Autonomous nervous system Hic4 I पर यही ईडा, पिंगला और सुष्मना नाड़ी जो है वो है ये नहीं मालूम। उसके बारे में कुछ जानते ही नहीं । उन्होंने लिखा है, "सैंया निकस गए, मैं न लड़ी थी। " तो हमारे लखनऊ में लोग रहते हैं उनको मैं कहती हूँ तुम दिल फेंक र हो, बहादुर करना क्या है? वो क्या romantic थे क्या? उन्होंने ये कहा कि मेरी जिन्दगी निकल गई, मैं मृतप्राय हो गया। तो भी मैं उससे लडा नहीं. मृत्यु के साथ मैं लड़ा नहीं। तो वो आप सोचिए कि विपर्यास हमने कितना कर दिया, कितना उसको बदल दिया, pervet कर दिया कि जैसे चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 38 चलते रहता है, ख़ास कर के हमारे अखबार वाले जो हैं वो तो एक कमाल के लोग हैं पता नहीं कौन से देश के रहने वाले हैं। मुझे तो भारतीय नहीं लगते। उनमें से किसी को भी भारतीय संस्कृति के बारे में कुछ मालूमात ही नहीं। बहुतों ने कहा कि इम आपका एक Seminar या कुछ भी कहिए करने वाले हैं जिसमें सब हमारे अखबार वाले आएंगे। मैंने 'सुरति चढ़े कमान'। ये कुण्डलिनी को सुरति कहने वाले कबीर को हमने सुरति को, बिहार में सुरति कहते हैं तम्बाकू को, बिहार का जो हाल है सो देख लिया। एक-एक बिहार में महान लोग हो गए। बुद्ध हो गए, महावीर हो गए, एक तरह से और मेरे ख्याल से गुरु गोविन्द साहब का भी वहाँ मैंने वहाँ देखा है। इस तरह से अनेक वहाँ पीर हो गए, कितने लोग हो गए उस बिहार में। जैसे कि एक सरोवर में कमल उग जाएं; अनेक कमल उग गए। अब उन्हीं का उनके बस का नहीं है। उनके बस का नहीं है। नाम लेकर के लोग कहें कि साहब हमारे देश में रात-दिन इससे उसको लड़ाओ, उससे उसको तो ये कमल हुए थे हमारे देश में वो कमल हुए लड़ाओ। इससे झगड़ा करो। उससे झगड़ा करो। थे। आप तो कीड़े हैं अब भी उसी में, आप क्या बात कर रहे हैं? आपको कमल होना है। तो अभी तीस देशों से यहाँ आए थे, पत्रकार आए सहज में उतरिए। सहज में उतरना कठिन नहीं है, सहज है पर सहज में रहना कठिन है। आदमी को जो तीस देश के जितने भी वहाँ से आए हुए थे, सब आदत हो गई इधर से खाना खाने की, वो ऐसे के सब पार हो गए सबको आत्मसाक्षात्कार कहा, न ने न ना। मुझे उनसे बात नहीं करनी । इसके सिवाए और वो कुछ नहीं कर सकते। पर थे। उन्होंने कहा कि माँ हम चाहते हैं आपकी एक सभा हो, और आश्चर्य की बात है कि, मिल गया और सबके हाथ में ठंडक आने लगी। सादा खाना नहीं खा सकता। सहज में आप पार हो जाएंगे, आत्मसाक्षात्कार आप प्राप्त कर लेंगे। लेकिन जिनका दिमाग चालाकी में चलता है, जो इसमें कोई शंका नहीं। विशेषकर के, खास कर के, आप गर भारतीय हैं तो सिर आँखों, पर चाहे बनाते घुमाते हैं, ऐसे चालाक लोगों को सहजयोग आप कोई भी जाति के हैं मुसलमान, हिन्दू कोई नहीं कुछ कर सकता। हो आपको फ़र्क नहीं पड़ता। लेकिन इस आत्मा को प्राप्त करने के बाद उसमें जमना पड़ता है। जैसे बीज है वो प्रस्फुटित हुआ और उसमें से अंकुर निकल भी आया हो, तो भी उस अंकुर वही प्राप्त कर सकता है। फिर उसके बाद को वृक्ष होना पड़ता है। वहीं हम लोग मार खा जाते हैं। क्योंकि चारों तरफ वातावरण ही खराब है। सिर्फ हम लोग वातावरण उसको सोचते हैं कि जो गैसीय है जिससे Gases निकल रही आपको देख रहा है, आपकी हर एक गतिविधि है। नहीं नहीं। विचार से भी वातावरण बहुत को संभाल रहा है। आपके हर एक उठ बैठ को खराब होता है। इसकी भी प्रक्रिया बहुत खराब है। चारों तरफ से विचारों का आन्दोलन जो नहीं तो लोग कहते हैं कि हम तो रोज मन्दिरों लोग चालाकी करते हैं, इधर से उधर झूठी बातें सहजयोग चालाकों के लिए नहीं है, उसी तरह से मूर्खों के लिए भी नहीं है जो आदमी चाहता है हृदय से कि हमें आत्मसाक्षात्कार हो ज़िन्दगी बदल जाती है। उसके बाद मज़ा आने लगता है। उसके बाद अनेक तरह के आशीर्वाद आप पे आते हैं और आप जानते हैं कि परमात्मा है। संभाल रहा है। आपके साथ हर जगह खड़ा 39 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 & ৪, 1999 हैं में जाते थे और इतनी हमने पूजा करी। शिवजी तो सोचते हमपे खुश नहीं हुए ह ढिकाना नहीं हुआ। तुम्हारा तो सम्बन्ध ही नहीं हुआ उनसे। जब तक आपका सम्बन्ध नहीं हुआ, मस्जिदों में गए कहें कि हमारे घुटने फूट गए। शिवजी नहीं मिले गर कोई वहाँ पर हमको परमात्मा नहीं मिले, हमें वहाँ पर आशीर्वाद नहीं मिला, सुकून नहीं मिला। कैसे कोशिश करी कि उनके दिमाग ठीक करें, तो वो मिलेगा? क्योंकि वहाँ तुम्हारा कोई सम्बन्ध नहीं। तो मेरे ही सिर पर चढ़ गए। कहने लगे हमने तो कुरान को भी किसी ने पढ़ा नहीं है मेरे ख्याल एक बलिदान किया हैं। बताइए आप मैंने कहा से, ठीक-ठाक से। गर पढ़े तो समझ में आएगा काहे का बलिदान किया। कहने लगे हम तो एक कि सारा सहजयोग ही वर्णित है उसमें उनका बड़े भारी योद्धा हैं। हम बड़े भारी लड़ाका लोग खुद ही जो, जिसे क़यामा कहते हैं, जिसको हैं, हम फलाना हैं, ढिकाना है । मैंने कहा भई कहते हैं जो जिस तरह से ऊपर चढ़े और किस तरह से सफेद घोड़े पे बैठकर ऊपर चढ़े, कैसे जिन्दगी बरबाद करो। और क्या करें? तुम तो सात स्तरों पे उठे, वो सारा सहजयोग है। जो कुछ आगे जाने वाले नहीं। वो तो स्पष्ट दिखाई सच्चे होंगे वो सच्ची ही बात लिखेंगे न। इधर-उधर दे रहा है। तो इस तरह के वहाँ पर लोगों की की ऊट-पटांग बात क्यों लिखेंगे? ये तो उन्होंने प्रभूति कोई भी गलत काम करना एक challenge बाद में नीति बना दी कि ऐसे नहीं करो, वैसे है, और हिन्दुस्तानियों को सोचते हैं ये डरपोक नहीं करो। लोगों को बचाने के लिए। क्योंकि हैं, अरबिस्तान के लोग, जरा उनको मालूमात नहीं थी नैतिकता की। अपने भारतीयों को मालूम है, मारे ऐसी शर्म लगती है मुझे कि अरे ये क्या इन ये चीज़ गलत है ये चीज सही है। हम लोगों को लोगों ने हमारी दशा कर दी कि बिल्कुल ही हम पता है। एक लड़का अंग्रेजी पढ़ने गया था लोग गए कैम्ब्रिज में, उसने बताया, मुझे बड़ी हैरानी होती दिल्ली शहर में कम से कम कितने ही लोग है, कि ये लोग हरेक चीज़ को सोचते हैं कि सहजयोगी हैं हजारों। हजारों की तादाद में सहजयोगी एक बड़ा भारी आह्वान है, चुनौती है। मैंने कहा कैसे? मुझे कहने लगे कि तुम नशा क्यों नहीं लेते हो? उन्होंने कहा मुझे नहीं लेना है Drugi हमारे नीति में नहीं बैठती। कहने लगे कि ये जाएगी ऐसी मुझे कभी संभावना नहीं थी। मैंने कहाँ की नीति निकाल रहे हो, Drug लो। ये तो सोचा था कि ठीक है अभी थोड़े दिन बाहर तुम्हारे लिए Challenge है । तुम्हारी नीति के लिए चुनौती है। उसने कहा मुझे नहीं ऐसी हालत ही खराब हो गई या तो पता नहीं कैसे चुनौती आदि चाहिए। तो कहने लगे माँ ये लोग लोग पैदा हो गए हैं यहाँ अब ये कह सकते हैं शराब पीना एक चुनौती है। Drug हैं, फलाना नहीं हुआ, लेना एक चुनौती है एड्स होना भी चुनौती है| तो अच्छा है, नरक जाना भी एक चुनौती है, इनके हिसाब से। तो उनकी तो सारी बुद्धि ही भ्रष्ट हो गई है, मति भ्रष्ट है और क्या कहें? कहे कि ये बड़ी अच्छी चौज़ है तो इसे क्या कह सकते हैं? एड्स वाले लोग तो, मैंने सबकी शिकायतें हैं । अरे पर नमस्कार। तुम ऐसे ही लड़ते रहो और अपनी भारतीय लोग, बिल्कुल बेकार हैं। अब तो कमाल जो हो गई हम लोगों की. वो प्याज के बीते बिल्कुल बेकार लोग हो गए! इस हैं और पता नहीं कैसी ऐसी बातें यहाँ हो गई। अक्ल ही मारी गई है न। जैसे पंजाबी कहते हैं मत मारना' वो चीज़। ये चीज़ इतनी जल्दी हो काम करके आऊं फिर देखूगी। तो यहाँ तो चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 7 &8, 1999 40 कुछ नहीं है। इस तरह की चीज है ही नहीं । सिर्फ आपके अन्दर बसी हुई कुण्डलिनी का इस कलियुग में एक भ्रांति नाम की चीज़ जागरण करना है। और जब वो जागृत हो जाती होती है वो दिमाग पे काम करती है; वो जब है तो अपने ही आप वो सहस्रार में समा करके दिमाग पे आ जाए तो कुछ दिखाई नहीं देता कि और इसका भेदन करके और चारों तरफ फैली अच्छा क्या है बुरा क्या है? बुरी बात कौन सी हुई ये सूक्ष्म चेतन शक्ति उसे एकाकारिता देती है, नीति कौन सी है अनीति कौन सी है। इसका है। बहुत सादी बात है। आपका आज तक उस ये घोर कलियुग है, मान लिया नहीं तो इंसान आमे इतना बदल ही नहीं सकता। तारतम्य नहीं रहता, इसका कुछ पता ही नहीं सूक्ष्म शक्ति से कोई सम्बन्ध ही नहीं आया। चलता कि ये लें या वो लें। इसी घोर कलियुग आपने आज तक उस सूक्ष्म शक्ति को महसूस ही नहीं किया। उसको जाना ही नहीं, और जाने दमयन्ति आख्यान में नल ने एक बार कलि को बगैर ही आप भगवान का नाम ले रहे हो। पकड़ा उसकी गर्दन पकड़ी कि मैं तुझे मार मन्दिरों में जा रहे हो, और दुनिया भर के उपद्रव डालूँगा क्योंकि तुमने मुझे बहुत सताया है। मेरी कर रहे हो । मस्जिद में जाने से क्या होगा? वो बीबी से मेरा बिछोह कर दिया। मैं तुमको मार दिखाई दे रहा है। किसके अक्ल आई है? सब आपस में मरे जा रहे हैं। और मन्दिरों में जाकर के क्या हो रहा है? जहाँ पैसे खाए जा रहे हैं, दुनिया भर का भ्रष्टाचार आ रहा है? ये क्या साक्षात नहीं है कि ये गलत है, इससे कुछ लाभ ये है कि कलियुग में लोगों में भ्रांति हो जाएगी। नहीं है? इसके लिए कोई और चीज़ करनी । ये सामने दिखाई दे रहा है। इसका उसी वक्त हजारों लोग जो कि गिरी-कंदराओं में साक्षात है। सामने साफ़ जो चीज़ दिखाई दे रही खोज रहे हैं परमात्मा को, सत्य को, वो आशीर्वादित है उसको पहचानना चाहिए कि ये रास्ते ठीक होंगे, वो लोग अपने आत्मा का अनुभव नहीं, इसमें कोई फायदा नहीं ये बेकार की चीज करेंगे। उनको आत्मसाक्षात्कार होगा। इसलिए है। जो पाना है अपने अन्दर है। अन्दर से अन्तर में ही सहज आना है। ये लिखा हुआ है। नल डालँगा। तो कलि ने कहा कि अच्छा बाबा मेरा महात्मय तो सुन लो फिर मार डालना। उसने कहा तुम्हारा क्या महात्मय है, तुम तो दुष्ट हो। कहने लगे नहीं मेरा एक महात्मय हैं, महात्मय भ्रान्त हो जाएंगे लोग. माने बौखला जाएंगे और चाहिए कलयुग जो है बहुत जरूरी है। उसके बगैर ये होने नहीं वाला और इसके बगैर मनुष्य इसे तक इस अन्धकार में न जाने कहाँ से कहाँ हम प्राप्त नहीं करेगा, बताया गया तो नल ने उसको छोड़ दिया। अच्छा है कि आप इस अन्धकार से उठें और आत्मा आने दे तेरा कलयुग। ये घोर कलयुग आया और के प्रकाश में क्या अच्छा और क्या बुरा, इसको आपको सबको समेट रहा है। इधर ध्यान दीजिए, पहले जानें। पर आत्मा का प्रकाश जब आता है कौन से चक्कर में हम घूम रहे हैं ? इसका तो सिर्फ इतना ही नहीं । ये नहीं सिर्फ होता है विचार करना चाहिए। सहज के मार्ग में आने के लिए आपको कुछ नहीं देना, पैसा नहीं देना, कुछ त्यागना नहीं विवेक बुद्धि है वो बड़ी प्रबल हो जाती है। आप आत्मा को जब तक हम प्राप्त नहीं करते तब इसको नहीं खोजेगा। ये जब लोग भटक जाएंगे? इसलिए पहले जरूरी चीज 1 कि आप नीर-क्षीर विवेक जिसको कहते हैं वो जान लें, किन्तु आपके अन्दर जो सत्य-असत्य नाभ 41 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7& 8, 1999 सिर्फ जो सही होगा वही करते हैं, जो आपको नष्ट करेगा, जिसे अंग्रेज़ी में Seif distructive से जो शान्ति प्राप्त होती है उससे उन्नति होती है। अभी सहजयोग में कितने ही बच्चे हैं जो (आत्मघातक) कहते हैं, वो काम आप करेंगे ही कहाँ से कहाँ पहुँच गए। कभी वो सोचते भी नहीं। सारा ही काम आप अत्यन्त प्रेम से करते नहीं थे कि हम इसे प्राप्त करेंगे, इतना हमें हैं। अत्यन्त दुलार से प्रेम से सारी बात करते हैं। मिलेगा, इतना ज्ञान और इतनी समृद्धि और हर तरह से पूरे-पूरे हो गए। बन गए। तबियत भर शब्द कहें। आज लेकिन मैं तैयारी से आई थी गई। गर मैं किसी को एक छोटी सी भी चीज़ देना चाहूँ तो कहेंगे माँ पहले ही तुमने तो सब दे दिया, अब क्या दे रहे हो हमें? ऐसी स्थिति अब ये जोसहज के मार्ग से आप पाते हैं अन्दर में स्थापित हो जाती है और ये जो समाधानी स्थिति है इससे पूरी तरह से आपसी करते हैं। अपना देश शान्ति प्रिय है। इस देश ने रिश्तेदारी, आपसी प्यार, आपसी सबकुछ होता किसी भी देश पे अगाड़ी नहीं करी, किसी भी है। अब सबसे जो बड़ी चीज़ है कि सहजयोग देश को लुटा नहीं, किसी भी देश की ज़मीन ये प्यार की देन है। परमात्मा का जो प्यार हमारे अन्दर है वो प्यार आपको मिलता है, और प्यार इतने हजारों वर्षों से हमने इतने दुविधा उठाई तो से बढ़कर संसार में कोई चीज़ नहीं। जिसने भी ये चीज़ कहाँ से आई। ये इस धरती की प्यार की महिमा जानी उसके लिए फिर और विशेषता है, जिस धरती पर आप बैठे हैं उसी चीजों की जरूरत नहीं। सारे मूल्य उसके स्थापित धरती की विशेषता है कि हम लोग शान्ति प्रिय हो जाते हैं। प्यार ही वो पानी है जिससे कि मेरे लिए भी बड़ा मुश्किल है कि कोई कठिन कि आप लोगों से कहुँगी कि और बेवकूफी मत करो। बहुत बेवकूफी कर चुके। पहले तो आप अपने अन्दर शान्ति को प्राप्त अपने हाथ नहीं ली। ये शान्ति कहाँ से आई? लोग हैं। गर कोई हमारे ऊपर आक्रमण करता है अपने देश का जो ये बड़ा सुन्दर पेड़ है, ये तो हम जरूर उससे लड़ेंगे। लेकिन किसी के सजीव हो जाए। आपसी प्यार, आपसी दोस्ती, यहाँ जाकर के और हम खुराफात नहीं कर गर हमारे अन्दर आपसी प्यार होता और आपसी सकते। इस तरह की व्यवस्था अभी तक अपने यहाँ नहीं है। और देशों में है अपने यहाँ नहीं। किसी और का राज्य हो सकता था? उसका ये, उसपे झगड़ा लगाएं, वहाँ जाके बम्ब छोड़ें, ये सब हम लोग नहीं करते। ये नियंत्रण आने के लिए सहजयोग चाहिए। इससे हमारे ऊपर अपने आप आया हुआ है। स्वयं आया है। तो अन्दर की शान्ति प्रस्थापित होती है, हैं सामूहक चेतना स्थापित होती है। दूसरा कौन फिर घरों में अपने संसार में, अपना जो छोटा सा है? सब एक जीव हो जाते हैं। अब देखिए इतने संसार है उसमें भी शान्ति आती है। बच्चों में दूसरे-दूसरे देश से लोग आए हैं अनेक धर्मों का शान्ति आती है। शान्ति बहुत जरूरी है। जहाँ पालन करने वाले। इनमें जो एक जीवता है, शान्ति नहीं होती वहाँ पेड़ नहीं उग सकते । वहाँ कुछ भी प्रगति नहीं हो सकती। एक दूसरे कहीं नहीं मिलेगी। आप हैरान हों जाएंगे कि को काट मारने में खत्म हो जाते हैं पर सहजयोग किस तरह से ये लोग एक हो गए। आप और एकता होती तो क्या मज़ाल हैं कि हमारे ऊपर आपसी प्यार, आपसीदोस्ती, आपसी एकता (Collective Consiousness) जिसे हम कहते इनमें जो समाधान हैं, एकात्मकता है, वो आपको चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 &B, 1999 42 किसी गुरु के वहाँ जाकर देखिए ये चीज़ आपको नहीं मिलेगी। वो आपस में लड़ेंगे, गुरु से लड़ेंगे। पूरी समय लड़ते रहेंगे। लेकिन जब आप सहज में अपने को प्राप्त करते हैं तो ये जानते हैं कि हम भी उसी समुद्र के एक विन्दु हैं जिसमें सब एकाकारिता है। समुद्र के आन्दोलन से हम उठते हैं, गिरते हैं, चढ़ते हैं। ऐसी सुन्दर करें। इस पर तो बोलते रहें तो बोलते ही रहेंगे हम और आज आप लोग इतनी दूर-दूर से आए है, ठंडक में आए हैं। एक माँ के लिए बहुत बड़ी चीज़ है, इतने बच्चे सामने हों तो क्या और कह सकती है? मैं सिर्फ आपको ये ही आशीर्वाद देना चाहती हूँ कि आप आज इसी वक्त यहाँ पर आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करें। उसके लिए कुछ आपको करना नहीं, मैंने साफ बता दिया। आप जहाँ बैठे हैं वहीं आपको गंगा पहुँचा देंगे। आप स्वयं अपने हाथ पे देखेंगे कि ठन्डी-ठन्डी हवा बयार जैसी बह रही है। ये बड़ी सूक्ष्म चीज है। ये क्या है? ये बयार कैसी आती है? ये क्या है? अब ये सारी बातें बताने का समय नहीं स्थिति, ऐसी सुन्दर समाज व्यवस्था अपने आप घटित हो रही है और इस हिन्दुस्तान में होगी। जो गलत लोग घुस आए हैं और अपने को बड़े अधिकारी समझते हैं इन्होंने कोई त्याग किए नहीं, इन्होंने देश के लिए कोई संग्राम किया नहीं। मुफ्त में आकर कुर्सी पर बैठ गए। इसलिए अपने देश के प्रति भक्ति होना बहुत आवश्यक है। महज इसलिए नहीं कि ये हमारा देश है किन्तु किसी दिन जरूर आपको बताएंगे कि ये क्या चीज़ है? यही चैतन्य का प्रभाव जो हमारे हमारा जन्म हुआ क्योंकि ये बड़ा महान देश है। इसकी महानता में तो वर्णन नहीं कर सकती। कभी ग़र मेरेपास समय मिला तो मैं थोड़ा बहुत लिखना चाहती हूँ कि ये देश कितना महान है। मानसिक, बौद्धिक तो आप ठीक कर ही सकते इसको जानने के लिए. समझने के लिए आप हैं लोगों में भी सहज की कुछ न कुछ प्रकृति आनी चाहिए। तब आप समझ पाएंगे कि इस देश में तो मैं उसे क्या कर सकती हूँ? कितनी कितनी गहन बातें हमारे लिए हो गईं। हमारा इतिहास हो गया, कैसी-कैसी चीजें हो मिनट के लिए और ज्यादा से ज्यादा आपको इसे गई? देशभक्ति, ये बहुत आवश्यक चीज़ है। गर आपके अन्दर देशभक्ति नहीं है तो आप उसको यही जानना चाहिए कि आपके अन्दर सहज में आ नहीं सकते। इस देश के प्रति आप ही को भक्ति नहीं, इन सब लोगों को है जो थी। उसके बगैर नहीं हो सकता। कायरों का पचहत्तर देशों में सहजयोग कर रहे हैं! आप के देश के प्रति इतनी भक्ति है कि जब ये बाहर से भी काम नहीं है। तो समझदारी से इस चीज़ को आते हैं तो आकर के और इस अपनी ज़मीन को स्वीकार्य करें कि आप स्वयं आत्मा हैं। आत्मा झुककर नमस्कार करते हैं और चूमते हैं। अब यही आपको सिखा सकते हैं कि आप अपने देश की शक्ति को पहचाने और देश का वन्दन अन्दर से बह रहा है और इसी के दम पर कितनी चीजें आप कर सकते हैं। अपना शारीरिक, पर औरों का भी ठीक कर सकते हैं। ऐसे आप महान हैं और आप कीचड़ में ग़र फसे रहें आपसे अब इतनी विनती है कि एक दस प्राप्त करना है। जो कुछ भी मैंने कहा, सुना, शक्ति का जागरण करने से पहले तैयारी हो रही काम नहीं है और मैंने आपसे कहा कि मूरखों का को प्राप्त करना ही, एकमात्र लक्ष्य है जीवन का और कोई लक्ष्य नहीं। अच्छा अब इसके बाद सिर्फ इतना कहना है कि आपने ग़र जूते चैतन्य लहरी 43 खंड : XI अंक : 7 &8, 1999 पूरी तरह से माफ करें अब दोनों हाथ मेरी ओर पहने हों तो उसको हटा कर रख दे। जिससे ये कि ये आपसे मैंने पहले ही कहा, ये भारतमाता करें (Please put both the hands towards me) अब जिन लोगों के दोनों भी हाथ में पता नहीं कितने ऋषि मुनियो ने पवित्र की हुई ठण्डी ठण्डी हवा आ रही है या गरम हवा आ जगह है ये और इस जगह का जो पुण्य प्रताप हैं उससे आप क्या-क्या प्राप्त करेंगे ये देखना है। अब कृपया दोनों हाथ मेरी तरफ करें। अब ये हाथ मेरी ओर करें और ये हाथ, सीधा हाथ रही है वो दोनों हाथ ऊपर करें दोनों हाथ। यहाँ से वहाँ तक। सबको अनन्त आशीर्वाद। सबको अनन्त आशीर्वाद। आपने तो प्राप्त कर लिया। आपका बीज तो प्रस्फुटित हो गया। अब इसके वृक्ष बनाने हैं अब इसके इतने वृक्ष जितने आप लोग बन जाएँ तो फिर क्या कहने। तब फिर ये right hand, आपके तालू के ऊपर जो कि एक पहले स्निग्ध हड्डी थी यहाँ, बचपन में, उसके ऊपर हाथ रखें। अब अपना ये हाथ right hand मेरी ओर करें और left hand सिर के ऊपर कलयुग कितने दिन टिक सकेगा? सत्य युग तो आ ही रहा है लेकिन उसका अभी प्रकाश पूरी तरह से फैला नहीं, आप ही उसके प्रकाश देने वाले हैं आप ही लोग। और फिर से तालू पर, ऊपर, रखे आधान्तर में, माने उसके ऊपर नहीं रखना आधान्तर में, देखिए। मुझे पूर्ण विश्वास अब इसमें से कोई ठण्डी-ठण्डी या गरम हवा आ रही है क्या? व्यार आ रही है क्या? ऐसे है कि आप लोग सहजयोग को फैलाएंगे हर एक देखें। किसी-किसी को बहुत ऊपर तक आती है, किसी को सामने आती है, पीछे आती है। आदमी एक-एक हजार आदमी को पार कर सकता है। हर एक ऑरत एक-एक हजार औरतों को पार कर सकती है। सबको चाहिए कि जरा हाथ ऊपर घुमा के देखें। अब left hand मेरी तरफ करें और right hand फिर सिर पे कोशिश करके और पार करें, लोगों को पार करें करें और देखें कि ठण्डी-ठण्डी हवा आ रही है माने आत्मसाक्षात्कार दें। सबको मेरा अनन्त क्या? हो सकता है गरम आ रही हो क्योंकि आशीर्वाद। सबसे आखिर में हम 'वन्दे मातरम्' आपको सबको माफ करना है। आप सबको गाएंगे। जिसके लिए आप सब खडे हों। जिस माफ कर दीजिए। ग़र आप माफ़ नहीं करते तो गाने को लेकर के हमने स्वातन्त्र का युद्ध किया करते क्या हैं? आप कुछ भी नहीं। अपने को सता रहे हैं इसलिए सबको माफ कर दीजिए तो हैं? आप लोग सब खड़े हो और ये foreign के ठण्डी ठण्डी हवा आएगी। अपने को भी माफ लोग गाएंगे, इससे आपको आश्चर्य होगा कि कर दें। मैंने ये पाप किया मेंने वो पाप किया ये कहाँ तक हमारी भारत माता की महिमा पहुँची मत सोचिए। अपने को भी माफ कर दीजिए, हुई है! था आज उसको आप मना करने वाले कौन होते तय 44 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 &8, 1999 इसा मसीह पूजा हिन्दी प्रदचन, गणपति पुले 25.12.98 अब बात ये है कि अग्रेजी भाषा हमारे संगीत का होता है, कला का होता है, ऐसे ही ऊपर तीन सौ वर्ष से लाद दी गई। मैंने कभी अंग्रेजी सीखी नहीं। कभी भी नहीं। स्कूल में भी बहुत सारी भाषा बोल सकते हैं लेकिन हिन्दी छोटी सी किताब थी और कॉलिज तो मैडिकल लोग कोई और भाषा सीख ही नहीं सकते। कॉलेज में तो कोई सिखाता ही नहीं अंग्रेजी। मेरे उसकी वजह ये है जैसे अंग्रेज कोई और भाषा पिताजी कहते थे इतनी ये आसान भाषा है और इसमें इतने कम शब्द हैं कि कोई जरूरत ही नहीं सीखने की। उन्होंने हमको मराठी स्कूल में कोई और भाषा बोल ही नहीं सकते। मैं तो कभी डाला और हमसे कहते थे कि मराठी सीखों और नहीं कहूँगी कि आप मराठी सीखो क्योंकि संस्कृत सीखो। संस्कृत भी मैंने कभी नहीं सीखी बहुत कठिन। और हिन्दी तो कभी भी नहीं सीखी कोई सवाल ही नहीं उठता, स्कूल में भी नहीं सीखी, कॉलिज में भी नहीं सीखी, कहीं हिन्दी भाषा मैंने सीखी गन्दगी इतनी भी नहीं। पर इतनी भाषा वो ही नहीं। पर एक अच्छाई है मेरे अन्दर वो मैं बता दें आपसे, कि में हिन्दी भाषा में जब बोलती हूँ तो हिन्दी ही बोल सकती हँ और नहीं। क्योंकि मराठी में ही कुण्डलिनी के बारे में मराठी में बोलती हूँ तो मराठी ही बोल सकतीं हूँ और अंग्रेजी में वोलती हूँ तो अंग्रेजी ही बोल सकती हैँ। उसका भाषांतर करना मेरे लिए बड़ा मराठी आ गई तो कोई सी भी भाषा आ सकती कठिन है। इसलिए मैं मिली-जुली भाषा नहीं है, इसमें कोई शक नहीं। पर मराठी लोग और बोल सकती। ये भाषा अलग बोल रहे हैं। वो कोई भाषा नहीं सीख सकते। बड़े कट्टर होते भाषा अलग बोल रहे हैं, वो अलग भाषा| अब कोई विश्वास ही नहीं करेगा कि मैंने हिन्दी किताब पढ़ो। तो थोड़ी पढ़कर के छोड़ दी। मैंने भाषा सीखी ही नहीं। लेकिन पढ़ने का शौक. कहा क्यों? सरीधाणे, सब गन्दगी लिखी हुई है अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ने का शौक, उसी से इसमें, मेरे को नहीं समझ में आती है। क्योंकि हिन्दी भाषा आ गई। पर शुरुआत में मेरी भाषा बहुत संस्कृत से किलिष्ट थी। बहुत। क्योंकि पढ़ने के बाद, आप गीता पढ़ने के बाद कोई महाराष्ट्रियन लोग वैसे ही बोलते हैं, महाराष्ट्रियन रास्ते पर की चीज़ पढ़ो. सड़कछाप, वो समझ में को रोज़मरां की हिन्दी नहीं आती। बो जो हिन्दी नहीं आती। सो आप लोगों से कुछ लोग सीखें भाषा बोलेंगे उसमें आधे से ज्यादा तो संस्कृत मराठी तो अच्छा है। लेकिन बड़ी कठिन भाषा शब्द और बचे-खुचे मराठी शब्द। समझे न। तो है। और इसमें पर्याय बहुत हैं भाषा के। आज ये हालत है। अब हमने जो इसमें समझा है वो इसलिए मैं बता रही हूँ कि महाराष्ट्र में आके भी ये है कि भाषा का भी एक वरदान होता है। जैसे मुझे हिन्दी में ही बोलना पड़ता है। क्योंकि आप हैं और उसी से लोग भाषा का बरदान होता नहीं सीख सकते। और सीखेंगे तो विद्रपणी। वजह ये है सब अंग्रेजी जानते हैं इसलिए वो मराठी भाषा वहुत ही जटिल है। वो मराठी ही समझ सकता है। इतना विनोद और इतना मजाक है उसमें, अश्लीलता जरा भी नहीं, प्रगल्भ है, इतनी गहन है और फिर सहजयोग के लिए मराठी भाषा जैसी कोई और कोई भाषा लिखा गया है। इतने साधु-संतों ने सब लिखा सो मराठी भाषा में । और ग़र एक बार आपको हैं। किसी को मैंने कहा कि एक ये हिन्दी इतनी शुद्ध भाषा और शुद्ध विचार मराठी में है। चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 45 तो मराठी भाषा जानते नहीं। पर पूना में मैं मराठी ईसा मसीह के बाल्यकाल का वर्णन नहीं किया में बोलती हूँ और बम्बई में भी हिन्दी में बोलना पड़ता है। गर कोई सीखना चाहे तो मराठी भाषा सीखें, ये सीखने वाली भाषा है कमाल की है कि हमारे नामदेव जो बड़े भारी अंगुली डालना यहाँ के सन्त हो गए उनको गुरुनानक साहब ने वर्णन अत्यन्त सुन्दरतापूर्वक किया गया है। यही बुलाया और उनसे कहा कि तुम पंजाबी सीखो और पंजाबी में तुम लिखो। इतनी बड़ी किताब लिखी है उन्होंने पंजाबी में। अब मुझे भी पंजाबी हिन्दी और मराठी दोनों भाधाओं में इन अवतरणों भाषा आ गई जब में पंजाब में रही। ग़र आपको मराठी भाषा आ गई तो सिवाय तमिल के आप सब भाषाएं सीख सकते हैं और तमिल के भी ये है कि इनका सारा रोमांस शादी से पहले ही कुछ शब्द सींख सकते हैं। इस प्रकार इस देश है। शादी के बाद कोई रोमांस नहीं है। भारत जबकि चौदह सरकारी भाषाएं हैं, मैं ये कहूँगी रोमांस का आरम्भ शादी के बाद होता है। वहुत कि गर मराठी आप लोग सीख लें तो आपको चौदह में से आठ भाषाएं तो आ ही जाएंगी। अब एक और बात कमाल है कि बाइबल का (translation) भाषांतर हिब्रू भाषा से प्रत्यक्ष में वो मराठी भाषा में हुआ है। यहाँ एक रमादेवी करके बड़ी अच्छी विद्वान स्त्री थी। उसने बाइबल लड़ते हैं. झगड़ते का जो भी भाषांतर था वो मराठी भाषा में किया और उसमें जो शब्द थे जैसे John जान को जोहा, मैथ्यूस का मात्रेया अनुवाद किया। तो मैंने बाइबल जो है वो मराठी में पढ़ा। इसलिए बहुत बार गड़बड़ हो जाती है। स्पष्ट रूप से लिखा हैं जो बातें लिखी हैं वो बडी गहन हैं। अंग्रेजी भाषा उसकी इतना शुद्धता उन्होंने रखी हुईं है। उसी में ने तो बदल ही दिया उसका स्वरूप; में सोचती उन्होंने लिखा कि जब वो शादी में गए थे तो हूँ, और ईसामसीह के बारे में भी जो पबित्र उन्होंने वहाँ पर पानी से द्राक्षासव बनाया बड़ी तत्व की बात है। मराठी में दूसरी विशेषता मैंने देखी कि ईसा मसीह के बचपन के बारे में, वो अंग्रेजी में हैं। तीसरी बात, मराठी आदमी जो उनकी बाल्यावस्था के बारे में उन्हॉंने लिखा। है बड़ा खुद्दार है। राजस्थान में भी जैसे मेवाड़ अंग्रेजी में मैंने ऐसी कोई कविता नहीं पढ़ी। मैं नहीं जानती कि आपने कभी ईसा सीखने नहीं वाले। अंग्रेज गर सिखाए तो कहेगा मसीह की बाल लीलाओं का वर्णन पद्य में (कविता) में सुना होगा मैंने तो कभी नहीं सुना. परन्तु मराठी भाषा में इस तरह की रचनाएं हैं। अभी कल ही उन्होंने गया "बाल बदन तव वधुनी खिस्ता।" नन्हें बालक का मुँह देखकर मेरे सारे भय दूर हो जाते हैं पश्चिमी भाषाओं में गया है जिस प्रकार भारत में श्री राम और श्री कृष्ण के बाल्यकाल का किया गया है। उनका , मुँह में सभी छोटी-छोटी चीजों का और इतनी ठुमक कर चलना, तुतलाकर बोलना कारण है कि भारतीय अपने बच्चों से छल नहीं कर सकते। उनके लिए यह असम्भव कार्य है। के बाल काल के बहुत सुन्दर वर्र्णन हैं। तीसरी आश्चर्यचकित कर देने वाली बात ही मधुर-मधुर चीजे हैं। मैंने किसी से कहा कि कोई एक अंग्रेजी की पुस्तक खोजो जिसमें किसी विवाहित युगल के रोमांस का वर्णन हो। लेकिन विवाह के पश्चात् वहाँ तो सारा रोमांस खत्म हो जाता है। तब आप लोग करते क्या हैं? हैं और कचहरी में जाकर तलाक ले लेते हैं। यही बात है कि हमारे ऊपर बड़ा भारी एहसान हमारी संस्कृति का है बहुत बड़ा। तो हमने मराठी में बाइबल का अनवाद पढ़ा। उसमें अत्यन्त आध्यात्मिक स्वरूप का वर्णन मराठी बाइबल में है वो न तो हिन्दी में है और न ही हैं। वो अंग्रेज से कुछ के लोग हैं बड़े खुद्दार ( राऊदया राऊदया). रहने दो रहने दो। आपके जैसे बहुत देख लिए पर उत्तर में मैंने देखा कि अंग्रेजों का बहुत जोर है, सूट बूट पहनना और टाई लगाना जूते पहनना और सब पर रौब झाड़ना। महाराष्ट्र में नहीं है। मराठी आदमी को सूट पहनाना बहुत कठिन है, वो तो धोती पहनते 46 चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 7 8 8, 1999 हैं। पढ़े-लिखे लोग भी धोती । अब आपने देखा मज़ाक है। मेरी खोपड़ी में नहीं जाता था और अब मैं देखती हूँ श्री राम और श्री कृष्ण का देश के, यहाँ के रानाडे हो गए, आगरकर हो आशीर्वाद, कबीर की वाणी, नानक साहब का आशीर्वाद अरे ये पंजाबी लोग, मैं पंजाव में टाई-बाई नहीं लगाते थे। हाँ सरकारी नौकरी पढ़ती थी तो मैं सोचती थी कि ये पंजाबी इनकी करना भी बड़ी निम्न श्रेणी की बात समझते हैं। तो कभी खोपड़ी में सहजयोग जाएगा ही नहीं बहुत बार लेख आते और मैं हैरान। मैं बड़ी हैरान। इतनी भक्ति और हैं। लिखा जाता है कि आप सरकारी नौकरी क्यों इतना आनन्द इन्होंने कैसे प्राप्त किया? वहाँ न नहीं करते। फिर दो चार लोगों के नाम दिए जाते कोई प्रवचन देता था. कुछ नहीं, कैसे व्या हो हैं कि देखो इन्होंने की सरकारी नौकरी तो गया? अब महाराष्ट्र में मैने बड़ी मेहनत करी, बाप रे बाप एक-एक गाँव देहात हर जगह गए कोई महात्मय नहीं है। कोई भी, और हमारे बड़ी-बड़ी मेहनत करी, लेकिन महाराष्टर बात नहीं है। जो बात उत्तर भारत की है वो महाराष्ट्र में नहीं है। बड़े आश्चर्य की बात है। मैं और उससे ज्यादा सरकारी नौकरी करना तो कहूँ कि इतनी मेहनत की सब बेकार ही जाती मनुष्य का चरित्र हनन हो जाता है। उल्टे मेरे ही पीछे हाथ धोकर लग गए! पता ये हुआ मुझे कि यहाँ गुरुघंटाल बहुत हैं, कोई ।A.S. में आएगा तो बस हो गया, उसका इतने गुरु हर एक आदमी का गुरु, घर-घर में तीस लाख पैतीस गुरु घुसे हुए हैं। इतने गुरु लोग हैं यहाँ, कुछ लाख। कोई 1.A.S. का आदमी हो गया तो उत्तर पूछिए नहीं। वो पंचाग आता है न. उसमें भी हर एक गुरु का नाम, उसके जन्मदिन, ये वो। मैंने लिखा हो विद्वान हो तब मानते हैं और आध्यात्मिक कहा है भगवान! और सब बिल्कुल बेकार लोग, हो, ये बड़ा भारी (diference) अन्तर है। ओर इसमें कुछ कुछ महान भी थे पर बहुत थोड़े और इसलिए शुरु-शुरु में दिल्ली में मैं सोचती थी ऐसे गुरु घंटाल कि जो सिवाय पैसों के और कि ये क्या समझेंगे। पर बड़ी हैरानी की बात है औरतों के सिवाय कुछ नहीं जानते। इतनी बड़ी कि दिल्ली में अब सहजयोग ऐसा फैला है, ये महाराष्ट्र की भूमि, इतनी पवित्र भूमि जहाँ पर लखनऊ में मुझे विश्वास ही नहीं होता। किसके इतने देवियों के स्थान, महालक्ष्मी महासरस्वती. महाकाली और आदिशक्ति सबके स्थान हैं इस कि तिलक यहाँ कितने बड़े लीडर हो गए गए, सब। कोई सूट-बूट नहीं पहनते थे कोई महाराष्ट्र में आपको पता है उनका क्या खराबा हुआ, पर सरकारी नौकरों का पिताजी तो कहते हैं कि पहले नौकरी करना अधम चीज़ है। अपना पेशा (profession) रखी अधमाधम। सो है। सो बहुत उनकी बात मैंने देखी सही है अब भाव चढ़ जाता है वहाँ पे । भारत में बहुत बड़ी चीज़ मानते हैं। यहाँ पढ़ा आशीर्वाद से हुआ? ये तो ऐसे अंग्रेजों के चापलूस नम्बर एक थे। इनको हो क्या गया है? महाराष्ट्र में और अष्टविनायक और ये महाविनायक सब यहाँ बैठे हुए हैं। हाँ ये लोग अश्लील नहीं. गंदगी नहीं, लेकिन धर्म को समझने की इनमें क्षमता नहीं है। क्षमता नहीं है। वही घंटा बजाना, क्योंकि लखनऊ जैसी जगह तो खाओ पियो मन्दिर में जाना गुरुओं के पीछे में भागना, बहुत मौज करो और सब दिल फेंक बहादुर। मैं तो ही ज्यादा कर्मकाण्डी लोग हैं। और बातें नहीं हैं। हैरान होती थी कि लोगों से बात क्या करें! गंदगी नहीं है। पर इतने कर्मकाण्डी हैं कि उसमें सबका रिश्ता वैसा, बात वैसा, मेरे तो समझ नहीं से निकल ही नहीं पा रहे हैं इस तरह से मैंने आता था। अब मैं महाराष्ट्र से गई थी, मेरे की तो आपको विश्लेषण करके बताया कि जो लोग कुछ समझ भी नहीं आता था। भाभी है तो विदेश के हैं, जिनसे मुझे उम्मीद ही नहीं थी, मैं उसका मज़ाक है, सांस ननद है तो उसका सोचती थी कि ये क्या बेकार के लोग. इनको तो ये बदल कैसे गए? मुझे लगता है श्री राम और श्री कृष्ण जहाँ जिस भूमिमण्डल में रहे हैं उनके आशीर्वाद से है। और तो मैं बता नहीं सकती चैतन्य लहरी 47 खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 भी कुछ अन्दाज ही नहीं किसी चीज़ का। वो कहाँ ईसामसीह के जीवन से उनकी सादगी उनकी से कहाँ पहुँच गए! और north के लोग जिनको पवित्रता और उनकी अबोधिता का जो शस्त्र है मैं सोचती थी ये क्या आएंगे सहजयोग में मैं तो वो श्री गणेश के माध्यम से जरूर नष्ट करेगा दिल्ली को बिल्ली कहती थी, मेरी शादी भी इन लोगों को और महाराष्ट्र में भी जागृति हो दिल्ली में हुई। मेरे पिताजी भी दिल्ली में थे। बिल्कुल उम्मीद नहीं थी । पर आश्चर्य की बात है कि आज दिल्ली में उससे उत्तर में पंजाब में जाने कितने सन्तों ने कुण्डलिनी के बारे में ऐसा यू.पी. में सब जगह राजस्थान में सहजयोग फैल कोई सन्त ही नहीं जिसने नहीं कहा, सारे ही गया है। ये महाराष्ट्र की दुर्दशा है और इस वजह से आप लोगों का यहाँ आना जरूरी है क्योंकि आपके चैतन्य से यहाँ बहुत जागृति हो सकती है उन सन्तों को, मैं सोचती हूँ, जिन्होंने इतनी और लोग महसूस कर सकते हैं आप के आने मेहनत करके यहाँ पर जागृति करने की कोशिश से। आपका चित्त यहाँ आना जरूरी है क्योंकि आपके चैतन्य से यहाँ बहुत जागृति हो सकती है और लोग महसूस कर सकते हैं आप के आने आने से इन लोगों में अक्ल आएगी । ये समझेंगे से आपका चित्त यहाँ आ जाता है और उससे कि ये किस गुरु के पीछे भाग रहे हैं। ये सब जो महाराष्ट्र के जो गुरु लोग बैठे हुए हं, अब भी बैठे हैं बहुत सारे मराठी में शब्द है उछल वांगडी कर ले, अब इसका मैं भाषान्तर नहीं बता सकती, तो उनको उठा के फैंकने का कार्य आप लोगों का चैतन्य कर सकता है। विशेषकर आज जबकि आप जीसस क्राईस्ट के पवित्र, पवित्रतम जीवन के प्रति आदर व्यक्त कर रहे हैं। उस वक्त ये मैं ज़रूर कहूँगी कि यहाँ पर जो लोग करते हैं। उनकी बहुत ज़रूरत है। वो तो मैं इतने सारे गुरु घंटाल बैठे हैं, जिनको ईसामसीह आज होते तो एक हंटर से मारते फिरते, ऐसे इन ऐसे ठोकेंगे पर आप लोगों का ये विचार कि गुरुओं का ही यहाँ से उछल वांगडी हो जाएगा। अब ये भाग के पता नहीं कहाँ जाएंगे. बहुत करने आए हैं और उनके शक्ति से महाराष्ट्र की पैसा बना लिया है सबने, काफी बेवकूफ बना लिया है। लेकिन ये एक तरह की सादगी है, बहुत गणेश की पूजा बहुत करेंगे। लेकिन वो बेवकूफी यहाँ पर है। कोई भी गुरु आए उसके चरण छुओ। सब चरण छू महाराज लोग यहाँ इससे कोई मतलब नहीं। कुछ समझ में नहीं बहुत हैं। तो ये एक बात हमारे अन्दर बेवकूफ बनने की क्षमता पता नहीं कहाँ से आ गई थी। उभारने के लिए आप लोगों का यहाँ आना कोई भी आए कुछ भी पढ़ाए बस हमारी परंपरा जरूरी है। हर साल आप लोग आते हैं वो भी है गुरुदेव आ गए। बस इस परंपरा से ही ये ईसा मसीह जन्मदिन बनाने के लिए, ये बडी महाराष्ट्र ग्रस्त हुआ है। और मैं तो कहँगी कि जाएगी। यहाँ भी लोग प्राप्त करेंगे उस परमधन को और परम तत्व को जो यहाँ पर बताया। न सन्तों ने यहाँ कुण्डलिनी की बात कही। एक से एक महान संत इस देश में हो गए। इस देश के की वहाँ मैं भी हार गई। लेकिन आप लोगों का आना बहुत मुबारक हे और आप लोगों के यहाँ भी मैं बता रही हूँ इसलिए कि बहुतों ने मुझसे कहा कि माँ गणपति पुले से अच्छा आप और ही कुछ करिए प्रोग्राम। मैंने कहा नहीं। आप आइए क्योंकि आपका कर्त्तव्य है कि आप सब में जागरण लाएं। महाराष्ट्र में जागरण लाना है और आपको इसीलिए यहाँ आना जरूरी है और वो भी यहाँ पर ईसा मसीह का हम लोग गौरव कहती हैँ न कि हंटर ले के इन सब गुरुओं को हम यहाँ आज उनके पवित्रतम चरित्र को उजागर ये भूमि पवित्र हो जाए। और ये जो गणेश पूजा गणेश क्या है और गणेश का मतलब क्या है, आता ऐसे चक्कर में फँसे हुए लोग हैं। इनको भारी बात है। आप सबको अनन्त आशीर्वाद। 48 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 ा श्री चरणों में समर्पित। हे महान आत्मा, आवाज तेरी बोलती है वायु में और पेड़ों में, पुरे विश्व को उन्नत करता है श्वास तेरा, अपने जीव की सुनो, सभी को सुनो मैं नन्हा और कमजोर हूँ, जरूरत है मुझे शक्ति तुम्हारी, चिवेक भी तुम्हारा मुझे चाहिए गरिमापूर्वक चलने के लिए, सूर्योदय की स्वण्णिम लालिमा की छवि प्रफुल्लित करे मेरी दृष्टि, प्रेम पूर्वक सृजित मेरे आपकी सभी वस्तुओं को छुएं हाथ , हर चीज में कर्ण मेरे सुनें तेरी वाणी । ---------------------- 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी अंक 7 & 8 जुलाई-अगस्त 1999 खण्ड XI मे कार श] ै दूसरे सहजयोगियों तथा अन्य छोटी-छोटी तुच्छ चीजों को देखने में यदि आप अपना समय बर्बाद कर रहे हैं तो परमात्मा से आपका एकीकरण (Integration) कम होता चला जाएगा आप और अधिक दूर होते चले जाएगे । ( परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी) 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-1.txt रा ा ह म ाम ा ट० ब सहजी शिशु को ध्यानगम्य करने के लिए साक्षात् श्री गणेश। ৪/8/3 ह] श्री. 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-2.txt इस अंक में पृष्ठ नं. क्रम संख्या सम्पादकीय 3 1. ध्यान-धारणा पर श्री माताजी के आदेश 2. शिवरात्रि पूजा (14.2.99) (हिन्दी प्रवचन) 3. शिवरात्रि पूजा (अंग्रेजी प्रवचन) 21 4. श्रीमाताजी द्वारा गैर-सरकारी संस्था की स्थापना 23 5. दिवाली पूजा प्रवचन (25.10.98) 24 6. नैतिकता व देशभक्ति सार्वजनिक प्रवचन (18.12.98) 31 7. ान ईसा मसीह पूजा (25.12.98) 45 8. योगी महाजन सम्पादक विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 अभिनव प्रिन्ट्स, दिल्ली- 34, फोन : 7184340 मुद्रक 1 चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 7 8 8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-3.txt नम कंपानाशी ह० परम रब् रम हा चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 &8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-4.txt सम्पादव मेनद भारत को खोजते हुए कोलम्बस का अमरीका पहुँच जाना मात्र संयोग न था। अमरीका के निवासियों को लाल भारतीय (Red Indians) अपने जीव की सुनो, सभी को सुनो में नन्हा और कमजोर हूँ, ज़रूरत है मुझे शक्ति तुम्हारी, विवेक भी तुम्हारा मुझे चाहिए, गरिमापूर्वक चलने के लिए सूर्योदय की स्वर्णिम लालिमा की छवि प्रफुल्लित करे मेरी दृष्टि, प्रेम पूर्वक सृजित आपकी सभी वस्तुओं को छुएं हाथ मेरे हर चीज़ में कर्ण मेरे सुनें तेरी वाणी। कन्नाजोहारिल की पवित्र भूमि पर विश्व मूल कहा जाना भी मात्र संयोग न था। श्रीकृष्ण की भूमि (अमरीका) का श्री कुवेर द्वारा आशीर्वादित होना भी मात्र संयोग नहीं है। श्रीकृष्ण की भूमि का ब्रह्माण्ड का विशुद्धि चक्र तथा ब्रह्माण्डीय सम्पर्क का यन्त्र होना भी केवल संयोग नहीं है। हमारी परमेश्वरी माँ का कन्नाजोहारिल (Canna Joharil) में मूल अमरीकन लोगों से 140 एकड़ भूमि खरीदना भी संयोग मात्र नहीं है। अमरीका श्रीकृष्ण का स्थान है अत: इसका अपनी मातृभूमि भारत से मूल सम्बन्ध है। श्रीकृष्ण की बहन विष्णुमाया ने क्रिस्टोफर यह भी संयोग नहीं है कि शब्द कन्नाजोहारिल कोलम्बस पर अपनी माया का जाल फैलाया का मूल भारतीय भाषा में अर्ध "स्वतः शुद्ध होने और उसके भ्रम में फँसकर कोलम्बस ने सोचा वाला बर्तन है" आधुनिक काल के साधकों को कि उसने भारत खोज निकाला है तथा वहाँ के आन्तरिक शुद्धिकरण के लिए यहाँ आना पड़ा। मूल निवासियों को लाल भारतीय नाम दिया। श्वेत घोड़ा (White Buffalo) की लाल भारतीय भर से आए सहज योगियों को 20 जून 1999 को आदिशक्ति पूजा करना मात्र संयोग न था। भविष्यवाणी प्रमाणित करती है कि 'एक ব पहीं के थे, आत्मा में उनका आध्यात्मिक विश्वास, सर्वशक्तिशाली महिला, जिसमें प्रकाश दिखाई आदिशक्ति को ब्रह्माण्ड का सृष्टा मानना और पड़ता है, इस रोगी राष्ट्र को रोग मुक्त करने के उनकी प्रकृति की पूजा करना उद्भव भारत में रहने वाले प्राचीन आयों से हुआ। वे पृथ्वी माँ का सम्मान करते थे और विडा (Dagana Widah ) ने भविष्यवाणी की पावन आत्मा के रूप में आदि कुण्डलिनी की पूजा करते थे। उनकी निम्नलिखित प्रार्थना से लिए आएंगी। महान लाल भारतीय शान्ति दूत देगना इन सबका थी कि कन्नाजोहारिल में, "सभी राष्ट्रों की संगोष्ठी अग्नि प्रज्जवलित होगी। सभी लोगों को दैवी नियम का ज्ञान प्राप्त होगा और मानव हित के लिए सभी लोग मिलकर परिश्रम करेंगे। यह स्पष्ट है:- हे महान आत्मा, आवाज़ तेरी बोलती है वायु में और पेड़ों में, पूरे विश्व को उन्नत करता है श्वास तेरा, 20 जून 1999 को विश्व के सभी राष्टों के शान्ति दूत कन्ना-जोहारिल की पवित्र भूमि चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 &8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-5.txt भ्रम और प्रलोभनों के गर्त से हमें बचा लो हे माँ। भटके हुए अमरीकी बच्चों की रक्षा करो, हे देवी अमरिकेश्वरी। अपने चरण कमलों से निरन्तर बहते हुए, पर एकत्र हुए और श्री आदिशक्ति के सम्मुख विश्वशान्ति लाने की शपथ ली। अपनी पावन शपथ को निभाने का मार्ग, हमें दिखाओ हे आदि शक्ति। इस पावन पथ पर आने वाली बाधाओं को दूर करने की कृपा कर दो। मधुर अमृत का स्वाद उन्हें प्रदान कर दो। र छम हान चेतन्य लहरी ।खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-6.txt ध्यान-धारणा पर श्री माताजी के आदेश र निर्मला निकेतन, प्लाजा-डोरिया, कबेला मनि मुनि इटली 2 अक्तूबर 1991 ध्यान में जाने का प्रयत्न करने के लिए प्रयोग करने वाले लोगों के लिए यह कठिन व्यक्ति को ये सभी पुस्तकें तथा आदेश पढ़ने कार्य है। उनके लिए नि्विचार समाधि की चाहिए। वास्तव में ये सभी प्रयत्न इस दृढ़ विश्वास तक पहुँचने के लिए हैं कि ध्यान अवस्था को सहज समर्पण से प्राप्त करना है । भिन्न मन्त्रोच्चारण करते हुए आज्ञा तक हैं "क्षम, क्षम, क्षम" ये विचार रुक जायेंगे | तो ठीक है परन्तु आपको लगेगा कि आज्ञा पर कुण्डलिनी रुक गयी है या अवरोधित हो गयी है। इसका कारण यह है कि जब आप प्रयत्न करते हैं तो आप अपने आज्ञा (चक्र) कोे माध्यम के प्रति पूर्ण समर्पण करना सहजयोग में महत्वपूर्ण से कार्य कर रहे होते हैं यह कार्य सहज नहीं कार्य है। जिन्होंने यह अवस्था पा ली है वे आज्ञा होता। अतः भक्त लोगों को केवल शांत और हैं। जैसा मैंने कहा इसकी व्याख्या नहीं की जा सहज होना पड़ता है और कुण्डलिनी आज्ञा को सकती। भक्ति के लिए कोई नियम-आचरण पार करके सहस्रार सार्ग से बाहर आ जाती है। नहीं है परन्तु आनन्द की अवस्था में स्थित भक्ति द्वारा ही आप अपनी आज्ञा को प्रभावहीन सहजयोगियों में निश्चय ही इसे देखा जा सकता है। कर सकते हैं। आज्ञा चक्र पर उत्थान की अवस्था अत्यंत कठिन है। क्योंकि यदि आप अवस्था विकसित कर लेना अच्छा है। जब वे किसी वस्तु को देखें तो बिना इसके विषय में सोचे इसे देखने का प्रयत्न करें। आप कह सकते निरन्तर भक्ति द्वारा इस अवस्था को बनाये रखने का प्रयत्न करें। अत: साक्षात्कार के बाद भक्ति के आनन्द के रास्ते यह सहज उत्थान सुगमता से पा लेते आप देख सकते हैं कि उनके अन्दर अपने के प्रति हार्दिक प्रेम तथा श्रद्धामय डर गुरु है। अपने गुरु की किसी बात को वे मना नहीं करते, उस पर प्रश्न नहीं करते और अपने गुरु का वे न तो मार्गदर्शन करते हैं और न ही त्रुटि-सुधार। सदा वे आत्मसात् करने की अवस्था में होते हैं, जैसे कोई महान सागर उनमें आनन्द कुण्डलिनी को आज्ञा से ऊपर धकलने की कोशिश करते हैं तो आप प्रयत्न का उपयोग कर रहे हैं और ऐसा करते ही आप अपनी "आज्ञा में रुकावट खड़ी कर देते हैं। अवरोधित आज्ञा को यदि आप उसी हाल में छोड़ दें तो कुण्डलिनी स्वयं इस पर कार्य करेगी तथा आपकी "आज्ञा " का अवरोध समाप्त हो जायेगा। परन्तु भक्ति भाव से यदि आप पूर्ण हृदय से गा रहे हैं या मेरे नाम ले रहे हैं तो स्वत: ही आज्ञा चक्र खुल तथा सुख उड़ेल रहा हो। गुरु के प्रति रोज-मर्रा के आचरण में उनकी यह अवस्था प्रकट होती हैं। अपने गुरु के साथ उनका आचरण तथा बातचीत अत्यंत महत्वपूर्ण है। उदाहरणतया कुछ लोग मेरे बहुत समीप आ जाते हैं, वे जानते है। कि मेरी जाता है। परन्तु अपनी आज्ञा चक्र का अधिक चैतन्य लहरी 5 खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 फूी पूर 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-7.txt समीप होते हैं तो मुझसे तर्क करने लगते हैं। इस देखभाल कैसे करनी है, मेरी चरण सेवा और मेरे भोजन आदि का ज्ञान भी उन्हें है, परन्तु यदि उनमें वो नियमाचरण, अन्तर्जात सम्मान तरह का व्यवहार बेदलना होंगा। जिस प्रकार आप एक दूसरे से बातचीत करते हैं, अपने गुरु से वैसे नहीं कर सकते क्योंकि आपके गुरु बहुत ऊँचे स्थान पर हैं। आपको यह भी समझना होगा भाव और गहन श्रद्धा नहीं है तो अभी तक वे उस अवस्था पर नहीं हैं जहाँ उन्हें होना चाहिए था । और शनै: शनै: ऐसे लोगों का पतन होने लगता है क्योंकि अपने गुरु की महानता के प्रति नतमस्तक करने वाली अपने अस्तित्व की गहनता को वे अभी तक नहीं नाप सके हैं। कि "तुर्यावस्था" को पाने के लिए आपको अपने गुरु को सर्वोच्च स्थान देना होगा। मैंने आपको कभी गुरुगीता पढ़ने को नहीं कहा क्योंकि ऐसा करना सहजयोगियों के प्रति ज्यादती होंगी। मैं समझती हूँ कि अभी तक बहुत से सहजयोगी समपर्ण का अर्थ समझने के योग्य नहीं हैं, इसी कारण मैंने आपको कभी भी महादेव द्वारा पार्वती जी को सुनाई गई गुरुगीता यह बताना कि आप किस प्रकार आचरण करें, मेरे लिए अति संवेदनशील कार्य हैं, और कभी-कभी जब मैं लोगों को पतन की ओर ले जाने वाली आजादी लेते हुए देखती हूँ तो मुझे होता है, परेशानी होती है। मेरे लिए उन्हें पढ़ने को नहीं कहा। दु:ख यह सब बताना असंभव है कि किस प्रकार वे से बातचीत करें और किस प्रकार आचरण समर्पण की यह अवस्था आपके प्रयत्नों व विचारों से नहीं आएगी, इसे सहज में ही आना है। यह अपने ब्यक्तित्व की एक बूँद को मैंने देखा है कि सभी नेता गणों में यह प्रेम सागर में विलीन कर देने के समान है। जिन विवेक तथा सामर्थ्य हे कि प्रेम तथा आनन्द के भी शब्दों का प्रयोग हम करें हमें यह समझना हैं मुझ करें। इस सागर को कैसे आत्मसात कर लें। परन्तु ऐसे बहुत से सहजयोगी हैं जो मेरे समीप होते हुए भी वांछित ऊंचाई पर नहीं हैं। कभी वे तर्क करते हैं, कभी इंकार करते हैं और कभी विरोध। कि इस अवस्था को प्राप्त करना है। किसी भी अप्राप्त अवस्था के वर्णन करने का कोई उपयोग नहीं, फिर भी ऐसा करने से कम से कम लोग उसकी ओर बढ़ने का और उसे प्राप्त करने का आप प्रश्न कर सकते हैं कि इस प्रकार का समर्पण तो हमें गुलाम बना देगा। दासता में आपको दर्द, कष्ट तथा दुख मिलता है परन्तु इस दासता में आपको आनन्द, पूर्ण स्वतन्त्रता, शक्ति और अपने गौरव का सौन्दर्य प्राप्त होता प्रयत्न करेंगे। अब आपकी स्वतन्त्रता क्या है? आप की स्वतन्त्रता यह है कि बिना किसी मानसिक प्रयत्न या नियम बंधनों में स्वयं को बाँधे, अपने अस्तित्व में रचित मर्यादाओं को अन्त्तजात तथा है। तो आप इसे दासता या जो भी कुछ कहें, इस समर्पण के स्वभाव पर कोई अन्तर नहीं पड़ता क्योंकि अपने गौरव को खोज लेने के है कि बिना स्वयं को मानसिक रूप में समझाये लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। वास्तव में आपने अपने अहं और बन्धनों को समर्पित करना है। कुछ लोगों में दूसरों पर छा जाने की आदत होती है, तो जब वे मेरे सहज रूप में आपको समझना चाहिए। पूर्ण स्वतन्त्रता को समझने का यही मार्ग कि यह करो, वह करो, यह स्वतन्त्रता स्वत: ही आपके अन्दर कार्य करे और अपने गुरु के प्रति सहज आचरण करते हुए एक नये जीवन का आरम्भ आप करें। चैंतन्य लहरी खंड : X1 अंक : 7 &8, 1999 6. छा 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-8.txt शिवरात्रि पूजा त का च िड सादगी व स्वच्छ हृदय से ही ा न शिव की भक्ति हो सकती है। (दिल्ली-14.2.99) परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का हिन्दी प्रवचन पहले मैं हिन्दी भाषा में बोलूँगी फिर अंग्रेजी में। आज हम श्री महादेव, शिवशंकर की पूजा करने के लिए एकत्र हुए हैं। शंकर जी के नाम से अनेक व्यवस्थाएं दुनिया में हो गईं। ह आदिशंकराचार्य के प्रसार के कारण शिवजी की सोपान मार्ग बना हुआ है, जिसे हम सुषुम्ना नाड़ी कहते हैं, जो मध्य मार्ग है वो विष्णु का मार्ग है और उस मार्ग से ही हम शिव तत्व पे पहुँचते हैं। तो जो मंजिल है वो है शिव तत्व की, शिव की, और जो रास्ता है वो विष्णु का बनाया हुआ है। इस रास्ते को बनाने में विष्णु ने और आदिशक्ति ने मेहनत की है, इसमें शिवजी का कोई हाथ नहीं, वो तो आराम से अपनी जगह बैठे हैं, जिसको आना है आए, नहीं बच पूजा बहुत जोरों में मनाने लग गए और दक्षिण में तो दो तरह के पंथ तैयार हो गए एक जिसको शैव कहते हैं और दूसरे जो वैष्णव कहलाते हैं। अब शैव माने शिव को मानने वाले और वैष्णव जो विष्णु को मानने वाले। अपने देश में, विभाजन करने में हम लोग बहुत होशियार हैं। भगवान के भी विभाजन कर डालते हैं और फिर जब आना है नहीं आए। सो इस शिव तत्व को प्राप्त करने के लिए हमें इसी विष्णु मार्ग से जाना चाहिए और उसके लिए जो अनेक चक्र हैं उनको पहले ठीक करना चाहिए। जब ये चक्र ठीक हो जाते हैं तब हमारा विष्णु मार्ग खुल उसको एकत्रित करना चाहते हैं तो और उसका विद्रप रूप निकल आता है। जैसे कि एक जाता है और उसी के साथ फिर हम धीरे-धीरे अयप्पा' नाम का नया निकल आया है मामला। बहुत गलत चीज़ है और उसमें यह दिखाया है कि विष्णुजी ने जब मोहिनी रूप धारण किया तो उनसे एक बच्चा पैदा हुआ शिवजी से, ऐसा कहीं हो सकता है क्या? ऐसी गलत-सलत बातें हमारे देश में बहुत निकल आती हैं और फिर नहीं है ये सिर्फ एक तरह से हृदय जो है वो ऊपर उठने लग जाते हैं। अब इन चक्रों के बारे में मैंने तो बहुत बताया था पर हृदय में भी एक चक्र है जिसको हम कहते हैं (left heart)। ये हृदय का चक्र प्रतिबिम्ब है, Refiection है महादेव का। शिवजी उसी के अलग-अलग संघ बन जाते हैं। कोई न कोई बहाना झगड़ा करने के लिए मिल जाए तो हिन्दुस्तानी बहुत खुश होते हैं। गर उनके पास झगड़ा करने के लिए कोई चीज़ नहीं हो तो वो कोई न कोई कल्पना से ही चीजें निकालते रहते हैं। सो ये दोनों ही चीज़ एक-दूसरे से इस तरह से जुड़ी हुई हैं कि जैसे सूर्य से सूर्य की किरण, शब्द से अर्थ, चाँद से चाँदनी। माने ये कि जो का स्थान तो सबसे ऊपर है, बुद्धि से ऊपर, विचारों से ऊपर। ऐसे तत्व को प्राप्त करने के लिए सबसे पहले हमें इधर ध्यान देना चाहिए कि हमारा हृदय कितना साफ हैं। हृद्य के अन्दर हम अनेक तरह की गंदगी को पालते हैं जैसे कि हम किसी से ईष्ष्या करते हैं। ईर्ष्या करना .जैसे कि किसी ने आपके साथ दुष्टता भी चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 & ৪, 1999 ्र 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-9.txt हालाँकि अब धीरे-धीरे मामले साफ हो रहे हैं की हो, आपको सताया भी हो, परेशान किया हो, लेकिन उससे ईष्ष्या करने से कोई फायदा नहीं पर तो भी, आपको हैरानी होगी कि अब भी है। आपका हृदय ग़र स्वच्छ है तो आपका जो इसकी बडी चर्चा होती है, कौन लीडर है। कौन आईना है, जिसमें परमात्मा का प्रतिबिम्ब पड़ने क्या है? दूसरी बात हमारे लिए., हिन्दुस्तानियों के वाला है, वो साफ रहेगा। लेकिन आपके अन्दर लिए एक वरदान कहो कि ईष्ष्या जो है वो पैसों ग़र ईष्ष्यां हो तो वो साफ नहीं रह सकता और के मामले में हो जाती है। सहजयोग में भी पैसों उसका प्रतिबिम्ब ठीक नहीं हो सकता। किसी से के मामले में बड़ी ईष्ष्या है। किसी के पास भी दुश्मनी मोल लेना, किसी के प्रति भी कुछ किसी तरह का हृदय में किल्मिश रखना या बुरी सहजयोग के कार्य करते वक्त भी लोग देखते भावना रखना ये गलत बात है। इसीलिए ईसा कि कितना पैसा किसको मिलता है और कौन मसीह ने कहा है कि, सबको माफ करो। माफ ज्यादा पैसा है किसी के पास कम पैसा है। कितना पैसा देता है। जिसका हृदय पैसे में उलझ गया वो सहजयोग के काम के आवमी करना अत्यंत आवश्यक है। उससे पहले भी और बाद में भी अनेक साधु सन्तों ने यही बात नहीं क्योंकि उनके हृद य पे जड़वाद ( Materialism) छाया हुआ है। किसी भी तरह के, किसी भी तरह के जड़वाद से ग़र आप ग्रसित हैं तो आपका उद्धार होना बड़ा कठिन है । ये अपने देश की विशेषता है. परदेस में इतना नहीं देखा मैंने, पर यहाँ इसकी विशेषता है। सबसे हम सोचेंगे कि Russia में और कही कि सबको माफ कर दो। जैसे ही आप माफ कर देते हैं वैसे ही महादेव ऐसी चीज़ों को अपने हाथ में ले लेते हैं। सबसे जो सूक्ष्म शक्ति है वो महादेव की शक्ति है। और वो उसको फिर पूरी तरह से दण्डित करते हैं, उसको पूरी करते हैं । ये महादेव जी का कार्य है आपका नहीं और इसलिए आपका ईष्ष्या किसी से करना बहुत बुरी बात है। पर सहजयोग में भी मैं देखती हूँ कि ईष्ष्या बहुत है। सहजयोगियों को एक-दूसरे से ईष्ष्या हो जाएगी अब किसी को trusty बना दिया दूसरे को नहीं बनाया तो इसको ईष्ष्या हो जाएगी। उसमें trusty आदि में कुछ खास नहीं है। ये तो आप लोग जानते हैं, सब झूठी बातें हैं। माँ ने यूँ ही ढकोसला बनाया फैलाया तरह से punish Eastern Block में पैसा कम है। पर उनको बिल्कुल परवाह नहीं है। वो पैसे की बात ही नहीं सोचते। उनका हृदय इतना स्वच्छ है, इतना स्वच्छ हृदय है और बड़े स्वच्छ हृदय से ही भक्ति हो सकती है। हम लोग तो जब प्रार्थना हैं तब भी हाथ-पैर धोते हैं, नहाते हैं पर हुृदय का स्नान कर के ग़र हम प्रभु से ये कहें कि हमारे अन्दर की ये जो गन्दगियाँ हैं इसको करते हुआ है, एक मायाजाल फेलाया हुआ है। पर उसमें भी लोगों का दिमाग़ खराब हो जाता है अच्छा होगा। और दिमाग़ किसी का खराब होता है और दिल किसी का खराब होता है। अब मैं क्या करूँ, षड्रिपु जिसे कहते हैं। क्रोध पर कृष्ण ने बहुत मेरी खुद समझ में नहीं आता है कार्य इतने देशों में चल रहा है तो कोई न कोई से ही सब चीज़ आती है। एक बार आदमी एक आदमी से ही तो संबंधित हो सकता है। क्रोध करता है फिर उसको सम्मोह हो जाता है तुम हटाओ और हमें स्वच्छ करो तो ज्यादा तीसरी बात जो हमारे यहाँ अन्दर है, जोर दिया है। क्रोध सबसे खराब चीज़ है, क्रोध कि इतना बड़ा चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 &8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-10.txt और फिर को ये सोचता है मैंने क्यों कहा, मुझे नहीं कहना चाहिए था। ये नहीं वो नहीं। पर वो आपे में नहीं रहता जब उसे क्रोध आता है. में वो आपे में नहीं रहता है और आपे से बाहर सेना तैयार करना या फिर कोई मारने -पीटने बाली चीज़़ तैयार करना; ये बड़ी भयानक है। हालांकि ग़र अपने संरक्षण के लिए कोई आदमी ऐसी चीज़ रखता है तो उसमें इतना हर्ज नहीं है, क्रोध है। पर तो भी ग़र वो परमात्मा का भक्त है तो हो जाता है और जो मुंह में आए सो बकता उसका कोई अर्थ नहीं या इतने दिनों की जो उसको कोई जरूरत नहीं। ऐसा आदमी हमेशा मैल अपने हृदय में समाई हुई है वो उसके मुख संरक्षित है। जिसके अन्दर श्री महादेव का वास से निकलती है। इस क्रोध को बचाना चाहिए। ये है उनको कौन हाथ लगा सकता है? उनको कौन किसलिए क्रोध आता है। इधर ग़र चित्त दिया जाए कि हम क्यों क्रोध करते हैं। फिर कुछ लोग हैं वो व्यक्ति मात्र से करते हैं, कोई एक समाज मात्र से करता है। इस तरह से अनेक हो जाएंगे। जब इस बात का पूर्ण विश्वास तरह से लोग क्रोध करते हैं। ये क्रोध हमें अन्दर क्यों आता है? किसलिए हम क्रोधित होते हैं? ये सोचना चाहिए। बहुत से लोगों ने मुझसे कहा कि माँ ग़र आपके खिलाफ कोई कहता है तो हमें ही ये कार्य हो सकता है क्योंकि शिव का स्थान बड़ा क्रोध आता है। मुझे तो हँसी आती है। गर हमारे अन्दर प्रतिबिम्ब रूप है और जो आईना कोई मेरे विरोध में कहता है तो सच कहती हूँ स्वच्छ होता है उसी में उसका प्रतिबिम्ब पड़ता मुझे हँसी आती है? क्योंकि इसमें कोई अर्थ ही है शिवजी का क्रोध एक ही बार होने बाला है, नहीं, मेरे विरोध में कहने की ऐसी कौन सी बात है। मैं तो प्यार करने जा रही हूँ। मेरे विरोध में मैंने अनेक बार उनको क्रोधित होते देखा। क्योंकि बोल रहे हैं तो करें क्या! पर किसी-किसी की ला। नष्ट कर सकता है? कुछ भी करो. कितना भी उनको सताओ; तो भी वो इन्सान नष्ट नहीं हो सकता। लेकिन जो उनको सताएंगे वो ही नष्ट आपके अंदर हो जाए कि जो आपको सता रहे हैं वो ही नष्ट हो जाएंगे अपना दिल, अपना हृदय आप एकदम स्वच्छ रखें। स्वच्छ हृदय में और होता है एक बार, ऐसा लोग कहते हैं। पर उनका अधिकार है। उनका अधिकार है क्रोध बुद्धि टेढ़ी होती है तो उस पर दया करनी करने का ग़र कोई आदिशक्ति के विरोध में चाहिए। उसको मोचना चाहिए कि इतना महामूर्ख कार्य करता है तो शिवजी का हाथ बड़ा है ये, जो आदमी क्रोध में उतर जाता है, उसकी तरफ दृष्टि जो है वो अत्यंत शालीन होनी चाहिए। इससे उसका भी क्रोध ठण्डा हो सकता है। अपने देश में क्रोध करने वाले अनेक तरह के लोग हैं, उसकी संस्थाएं हैं जो सिर्फ क्रोध से तो सबको माफ कर देंगी। तब उनका हाथ इतना इसको मार, उसको मार, इसको पीट, उसको पीट और फिर सामाजिक तौर पर भी ये चीज़ हाथ चलता है तो फिर कोई नहीं रोक सकता बनती जा रही है। ये बड़ी भयानक चीज़ है लोगों को हैं जिसको आप उठा नहीं सकते, बढ़ा नहीं मारना- पीटना और फिर उसके दम पर एक कोई सकते। लम्बा है। कुछ भी करो वो मानते ही नहीं उन्हें ठिकाने लगा ही देते हैं । क्योंकि वो जानते हैं आदिशक्ति जो है वो तो कुछ नहीं करेंगी। वो तो किसी को दण्डित नहीं करेंगी, वो लम्बा है कि जिसकी कोई हृद नहीं और जब वो उनसे आखिर कौन बोले, उनके आगे भी मर्यादाएं 9. चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-11.txt समझते क्या हैं कि आप उसको कहते हैं ये मुझे पसंद है ये मुझे पसंद नहीं। कोई भी चीज़ को इस तरह से आपको समझना चाहिए कि वैयक्तिक जीवन में सहज योग में आपको अपने शिवजी का ही अनुसरण करना है, क्योंकि नहीं पसंद करने न पसंद करने का आपको कोई अधिकार नहीं। किसी बिचारे ने बढ़िया तरीके बीमारी हो जाएगी। यह पहली चीज़ है दिल से, समझ लीजिए, आपके लिए फूल दिया तो आप कहेंगे साहब मुझे ये फूल पसन्द नहीं। उसके पीछे छिपी हुई उसकी भावना को आप इसलिए नहीं समझ पाते कि आपके अन्दर शिव तत्व नहीं। एक छोटी सी भी चीज़ हो, गर किसी एन्जाइना की बीमारी हो जाती है। इस प्रकार ने गरीब ने आपको दी है तो उसको आप दोनों ही चीजें बेकार हैं। पर कहने से क्रोध नहीं उसकी भावना को पीछे समझ नहीं पाते। किस प्रेम से बो चीज़ लाया? इसके लिए हमारे यहाँ करोगे तो पहली चीज़ है दिल (Heart) की (Heart) की बीमारी हो जाएगी।। like it, I don't like it. इसमें दो तरह से खेल होता है। एक तो अति क्रोध से Heart पकड़ जाता है और दूसरा है कि क्रोध के बाद पश्चाताप हो तो आपके जाता। ये तो एक शराब जैसी चीज़ है। आदत हो जाती है क्रोध करने की, उसी में मज़ा आता है। सुदामा का उदाहरण दिखाया गया है कि वो कुरमुरे लेकर पहुँचे थे और उनका कितना मान श्रीकृष्ण ने किया! कोई चीज़ जो प्रेम भाव से बस मुँह फूलने लग जाएगा और गुस्सा आने लग जाएगा। आप उसको कंट्रोल नहीं कर पाएंगे। तो मैंने ये सोचा कि गर शीशे के सामने बैठकर देते हैं, वो ऐसा ही है जैसे कि एक शीशे को आप क्रोध करें, अपने ऊपर, अपको को दो चार सुनाएं और शीशे के सामने बैठकर ये कहें कि मेरे जैसा महामूर्ख कोई नहीं, तब ये क्रोध शायद ठण्डा हो जाए। ये भी में शायद ही कह रही हूँ क्योंकि कभी-कभी ये समस्याएं इतनी उलझी होती हैं कि उसको सुलझाना बहुत मुश्किल है। आप पारस पीछे से लगा दीजिए, चमक जाता है। ऐसी ही चीज़ है, ग़र आपके अन्दर भावना बहुत सुन्दर हो अच्छी हो, पर पैसा नहीं हो तो आप कोई छोटी सी चीज़़ भी उनको लेकर दे दें तो दूसरे को सोचना चाहिए, आहा! क्या बढ़िया चीज है! किन्तु इस भावना से मनुष्य के अन्दर एक सूक्ष्म दृष्टि प्राप्त होती है जिसको कहना चीज़ को ध्यान देते हैं और उस चीज़ के ऊपर, चाहिए कलात्मक, जिसमें कला का प्रादुर्भाव हम जिसको कहते हैं, प्रतिक्रिया ( react) करते होता है। जिसमें कला दिखाई देती है? तो आप हैं। किसी ने कुछ कहा, फ़ौरन reaction हो समझते हैं कितनी कलात्मवक चीज़ है, ये कला गया ये प्रथा ज्यादा विदेश में है। जैसे कि अब है प्रेम की कला। ये प्रेम की कला है। इस कला ये (Carpet) कालीन बिछा हुआ है, फ़ौरन से आप देख सकते हैं कि इस मनुष्य में कितना प्यार है! कितना मोहब्बती है! कितना प्रेम करने वाला है। कितना सज्जन है। कितना अच्छा है! जब आप ये चीज़ देखना शुरु करेंगे, तब आपकी चिकित्सक है जो कहेगा कि मुझे पसन्द है मुझे नज़र अपने ऊपर जाएगी और आप ये सोचेंगे मैं क्या हूँ? मुझमें इतना प्यार है? मुझमें इतनी सज्जनता है? मुझमें ये अच्छाइयाँ हैं कि मैं आगे चलकर देखा गया है कि जितना हम किसी कह देंगे कि । don't like it, I like it? ये कौन होते हैं आप कहने वाले। हरेक चीज़ को आजकल की फ़ैशन है, हरेक आदमी जैसे कोई बड़ा भारी पसंद नहीं। ये कहना ही नहीं चाहिए, ये कहना ही आपके आज्ञा का लक्षण है। आप अपने को 10 चैतन्य लहरी खंड : XI अक : 7 & 8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-12.txt ऊपरी जुबानी जमा ख़र्च करता हूँ और लोगों को होती है. कोई परेशानी होती है तो वो सब जगह भुलावे में डालता हूँ। वास्तविकता में हम अपने ही को भूलावे में डालते हैं। जब हम गलत काम कर रहे हैं, गलत तरीके से रह रहे हैं, जब हमारे पहुँच जाता है जहाँ ज़रूरत होती है। बड़े कमाल जीवन में पूरी तरह की गलत-गलत धारणाएं की बात है, पर होता है और हुआ है और इसी बनी हुई हैं, तो हम किसी को भी सुख नहीं दे को लोग चमत्कार कहें पर ऐसी बात नहीं हैं। सकते और अपने को तो बिल्कुल ही नहीं दे सहजयोग में ग़र आप शिव तत्व में जागृत हो सकते। इसलिए स्वार्थ की दृष्टि से भी स्वार्थ जाएं तो आपके अंदर के जितने सूक्ष्म-सूक्ष्म, व्याप्त हैं। हर जगह वो आकाश तत्व जो तत्व में कह रही हूँ, व्याप्त है। फौरन आपका असर वहाँ शब्द बड़ा सुन्दर है। 'स्व' का अर्थ जानना चाहिए। स्व माने आत्मा, उसका आप अर्थ हैं वो जागृत हो जाती है। जानिए। अर्थ जानने के लिए शिवजी की पूजा लोग करते हैं। पर मैंने देखा कि शिवजी की दिल को साफ करें। अब दिल के साफ करने में पूजा करने वाले लोग बड़े गुस्से वाले, बड़े क्रोधी, बड़े कंजूस और न जाने क्या-क्या होते चौथा रिपु जो हमारे अन्दर है। वो है मद। मद हैं। शिवजी जैसे दाता कोई नहीं शिवजी जैसे प्रेम माने घमण्ड। जब औरतों में घमण्ड आ जाता है करने वाले जो ये प्यार का सरोत हैं, जो आज बह रहा है, ये शिवजी के चरणों की लीला है। उन्हीं औरतों जैसे नहीं चल सकती घमण्ड में । हम की वजह से ये कार्य हो रहा है कि मनुष्य प्यार माने बहुत हम कोई विशेष, हमारी कुछ तो भी में डूबा जा रहा है। सहजयोग के बाद जब आपकी स्थिति वो हो जाती है तो, आप जीवात्मा है. या सुशिक्षित है या चाहे जिसकी भी बात है। सूक्ष्मतर कहना चाहिए, जो भाव है और स्थिति इसलिए चाहिए कि हम लोग पहले अपने मैंने आपसे तीन रिपुओं की बात कही। अब तो वो आदमियों की चाल चलती है। फिर वो ज्यादा या तो पैसे वालों की लड़की है या सुन्दर कहना चाहिए या आपके Attention जो हैं, चित्त किसी भी बात से अगर घमण्ड आ जाए तो जो हैं, वो शिवजी के चरणों में लीन हो जाता है औरत जो है वो आदमी जैसे चलने लगती है। और शिवजी के चरणों में लीन होते ही क्या होता है कि आपके अन्दर जो पंचतत्व के गुण जैसे चलने लगता है, माने बनता ठनता है हैं वो भी बिल्कुल सूक्ष्म हो जाते हैं। मैंने आप लोगों से पहले चार तत्वों के ये करता है वो करता है। सब औरतों के धंधे बारे में बताया था पर पाँचवा तत्व जिसे कि और जब आदमी को घमण्ड आता है तो औरतों बहुत शीशे के सामने घण्टों बैठता है, बाल बनाता है, करता है। बनना ठनना औरतों का काम है। Eather कहते हैं अंग्रेजी में उसके बारे में नहीं चलते वक्त भी सीधे नहीं चलता, एक विशेष रूप से चलता है गर पीछे देखो तो लगेगा कोई तत्व का ये है कि जब मनुष्य सूक्ष्म स्थिति में औरत चली जा रही है मर्दाना कपड़े पहन को। जाता है तो उस सूक्ष्म आकाश को भी प्राप्त सो जब आदमी के अन्दर ये चढ़ जाता है मद करता है। वो आकाश जो कि eather को तो कहते हैं न मदमस्त हुए, ता मदमस्त हुए तो बताया। अपने यहाँ आकाश कहते हैं। आकाश चलाता है। उस आकाश को चलायमान भी करने डोलने लग ज़ाते हैं हाथी की जैसे। उनका सारा की जरूरत नहीं। ग़र किसी को कोई तकलीफ ही ढंग अलग अलग हो जाता है। वो बात करेंगे चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 11 গা গc 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-13.txt उसके ग-अलग चिन्ह हैं। गर शिव भक्त होगा तो ऐसे ऐसे चन्दन लगाएगा। अगर विष्णु तो, बात नहीं करेंगे तो, बैठेंगे से, हर चीश में ये दिखाई देता है कि इनके कोई न कोई घमण्ड भक्त होगा वो ऐंसे लगाएगा। अरे भई इसका क्या अर्थ है? ऐसे लगाने का अर्थ है हम उध्ध्वांगामी हैं। ठीक है आप ऊपर चढ़ रहे हैं उध्ध्वगामी और पहुँचकर के आप शांत। दोनों ही लगाना चाहिए और नहीं तो लगाओ ही मत। इसका कोई अर्थ होना चाहिए कि जिस चीज़ को प्राप्त करने जा रहे हैं, उसका ये सोपान मार्ग है । जिस रास्ते से आप गुजर रहे हैं इसमें से एक-एक गन्दी चीजों को छोड़ते जाते हैं दूसरों बड़े रईस हैं या हम बड़े ये हैं। अब तो गरीबों को भला-बुरा कहने से पहले अपने को भला-बुरा कहना सीखिए। मैं ऐसी हूँ। मैं बैसी घमण्ड हो गया है, कुछ समझ नहीं आता! वो हूँ। अपने को कहिए, जब आप अपने को कहना शुरु करेंगे तो, आप देखिए सारे भृत भाग करते हैं। आप स्वयं साक्षात क्या हैं? एक ईश्वर जाएंगे। क्योंकि ये सारे भूत हमने इकट्ठे किए हैं खुद ही सोच सोच के. अपनी आज्ञा से। अपनी आज्ञा से भूत इकट्ठे होते गए. दिमागी जमा खर्च हो गया और आदमी बहुत क्लेशदायी जाता है और वो दुखदायी उसको भी दुविधा ही करता है। आप किसी को दुख के लिए शिव की भक्ति करता है। पर मैं देखती देकर सुख नहीं पा सकते। उसका जरूर असर है। अब समझ में नहीं आता कि किस चीज़ का ंनम घमण्ड इनको चढ़ा हुआ है। कौन सी चीज़ से अपने को विशेष समझ रहे हैं। ये सारी ही चीजें तुच्छ हैं। इसका कोई अर्थ ही नहीं है। सहज में इसका कोई अर्थ नहीं है। इसलिए ऐसी चीजज़ों में विश्वास कर लेना कि हम कोई विशेष हैं तो आप शेष ही रह जाते हैं विशेष नहीं रह जाते शेष ही रह जाते हैं। मतलब ये है कि अपने बारे में कोई सी भी ऐसी कल्पना कर लेना कि हम को भी घमण्ड हो गया है, दलितों को भी जो भी हो वो हम हैं। इस तरह से लोग बातें भक्त, परमात्मा को मानने वाले सहजयोगी है। आपको इस तरह से अपने बारे में सोच लेना, आनन्द से परे होन है, क्योंकि शिव-शक्ति जो है आनन्द विभोर दुखदायी हो मनुष्य को करती है। मनुष्य आनन्द में मस्त होने हूँ अधिकतर शिव भक्त जो होते हैं, बड़े सड़ियल लोग होते हैं। उनसे कोई बात भी नहीं कर आना है। चाहे आप पत्थर हों, पर उसका असर आता है। और उसका असर ये-ही आता है कि आदमी बड़ा दुखी हो जाता है। ये तो एक माँ हो, जो नटराज साक्षात सारे कला का प्रादुर्भाव की बात है कि वो आपके सुख की बात करती है। आपको जिससे सुख मिले. जिससे आपको स्वरूप हैं, उनके आगे ये शिवभक्त, इनको संतोष मिले. जिससे आपको शांति मिले, जिससे आपको प्यार मिले और दुनिया में एक आप सज्जन इन्सान हो जाएं। ये एक तो माँ का सकता, फायदा क्या है? शिव की भक्ति करते करने वाले जो अत्यंत आनन्दी और आनन्द के शिवभक्त कैसे कहा जाए? गले में इतना बड़ा बड़ा लिंग लटकाते हैं जिससे दिल का दौरा तरीका है। (heart attack) आता है। उसकी क्या जरूरत है। आप स्वयं साक्षात लिंग स्वरूप वोही हैं। वो न होते हुए वो जो कार्य करते हैं कि हम शिवभक्त हैं। लगे लड़ने शिव भक्ति करके और पर शिव का ये तरीका नहीं। शिव एक हृद तक चलते हैं नहीं तो ऐसा तड़ाकते हैं कि मैं घबराती रहती हूँ कि अब ये आदमी किधर चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 & ৪, 1999 12 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-14.txt जा रहा है। अब इसका होगा क्या? ये कहाँ ये ही हैं रुद्र के जो भावना है वो भी शिवजी पहुँचेंगे? ये क्या कर रहे हैं? उनको ये नहीं, के ही स्वरूप हैं । इसीलिए बहुत संभल के आपको रहना चाहिए। इसके बारे में आप को इसलिए warning चेतावनी देनी है कि सहजयोग करने योग्य हो तो माफ करते हैं। जो उनकी में भी लोग आते हैं, कोई पैसा कमाता है, कोई बहुत तपस्या करता है उनको भी वो वरदान देते बुराई करता है, कोई खराबी करता है, कोई अन्याय करता है, ऐसे लोग तो झटक जाते हैं. नहीं होना चाहता उसको वो ठीक कर देते हैं। ये निकल जाते हैं। पर निकलते ही साथ शिवजी बात सही है इसलिए उनसे डरना भी चाहिए। की कक्षा में आ जाते हैं। फिर मुझे खबर आती कि वो दिवालिए हो गए, वो ऐसा हो गया, वैसा हो गया। मैंने कहा भई अब मुझे मत बताओ। उनका सबसे ज्यादा जो बिगड़ना है वो तब होता जब वो खुद ही छोड़ के भागे अपने संरक्षण से है जब अन्त का, कहते हैं न कि रात्रि ऐसी तो उसे कौन बचा सकता है? इसलिए आपको आएगी कि सब नष्ट हो जाएगा। उस समय वे चाहिए कि आप अपना संरक्षण शिव में खोजें, माँ में तो है ही संरक्षण, लेकिन शिव में खोजना तब आता है क्योंकि मैंने आपसे कहा था कि ये चाहिए। उसके लिए ये जो मैंने अभी आपको आखिरी निर्णय है. last judgment है। इसमें बताया ये पांच चीजें हैं इन पांच तत्वों में जो सूक्ष्म चीज़ है उसको प्राप्त करना है। उसको करते हैं, ये सब पूर्णतया आपके अन्दर लिखा प्राप्त करने के लिए आपको ध्यान करना जरूरी है। जो लोग ध्यान करते हैं वो अलग है और उसी के अनुसार आप चाहे स्वर्ग में जाएं ही दिखाई देते हैं और जो लोग ध्यान नहीं और चाहे आप नरक में जाएं नर्क में भेजने करते वो अलग दिखाई देते हैं। इसमें कोई शक नहीं। अब जो लोग ध्यान करते हैं पर ध्यान में मन नहीं, ध्यान में प्रवृत्ति नहीं, ध्यान की समझ नहीं, ध्यान में सूझ-बूझ नहीं और उसके प्रति एक आलस्य हो तो भी वो ध्यान फलीभूत नहीं होता, उससे कोई फायदा नहीं होता। ऐसा ध्यान हो, जिससे हो जाए। उनके अन्दर ये नहीं है कि चलो भई इनको, ये बहुत खराब हैं बुरे हैं तो माफ कर दें। हाँ माफ हैं। पर जो आदमी मूलत: 'basically' जो ठीक उनको भयंकर भी इसीलिए कहते हैं कि जब विगड़ते हैं तो वो किसी को भी नहीं छोड़ते। पर अपने क्रोध से सब चीज़ नष्ट करते हैं। ये समय आप कौन से रास्ते पे जाते हैं, कहाँ जाते हैं, क्या जाता है। आपका जैसे कच्चा चिट्ठा बन जाता वाले तो शिवजी हैं, मैं नहीं। मुझे कोई मतलब नहीं नर्क से। लेकिन शिवजी को है वो खींच के आपकी टांग आपको नर्क में डाल ेंगे। फिर आप ये न कहें मैं तो माँ का बड़ा भक्त हूँ और मैं माँ को मानता हूँ, तो मुझे क्यों ये ऐसा हो गया? इसका कारण में नहीं हूँ। जिसने एक बार मुझे माँ कह दिया उसके लिए मैं कभी कुछ बुरा नहीं सोचती। पर, शिवजी की मर्यादाएं गर मैं हूँ तो मेरी मर्यादाएं भी वो हैं। पर इस मामले में सबका दोनों का स्वभाव बिल्कुल विपरीत होने के कारण आपको बहुत समझ करके रहना है। ईसा मसीह में भी जो ग्यारह रूद्र हैं, वो भी अंग-अंग आपको जो है वो खुश जिससे आनन्द की वर्षा हो। शिवजी का पहला और महत्वपूर्ण जो हिसाब किताब है वो ये है कि वो आपको आनन्दित करते हैं, पुलकित करते हैं । उनके नाम स्मरण से ही मनुष्य को आनन्द मिलना चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 7 &৪, 1999 13 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-15.txt चाहिए। पर उससे उल्टा होता है। उसके विरोध में ही लोग रहते हैं। जो होना चाहिए वो नहीं होता है। ये मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि जिनको हम शिव के भक्त समझते हैं वो इस कदर करके सूखे कैसे हो सकते हैं? हो ही नहीं से कौन से गलत काम करती हूँ? अपनी भारतीय सकते। इसमें एक कारण और भी है कि जो संस्कृति में जो कुछ बताया गया है, सीधा रास्ता बहुत ज्यादा कार्य में रत रहते हैं, बहुत ज्यादा, वो (right sided) आक्रामक हो जाते हैं। जब वो तो लोग सोचते हैं जैसे भी रहो ठीक है, ऐसी आक्रामक बहुत हो जाते हैं तो शिव से वंचित हो जाते हैं, शिव से हट जाते हैं। और शिव फिर संस्कृति के अनुसार पूर्णतया रहना होगा। आपका अपना असर दिखाते हैं। अब आपको पता है कि शिवजी की बहन सरस्वती हैं। जो सरस्वती की रहे क्योंकि भारतीय संस्कृति में शिव तत्व का पूजा करते हैं। माने जो पढ़ते हैं, लिखते हैं, ये बड़ा महत्व है। सबसे ज्यादा जो है शिव तत्व नहीं। शीशे के सामने बहुत बैठना भी एक बीमारी मानी जाती है। पर ये है कि आप अपनी तरफ नज़र करें और अपनी तरफ नज़र करके देखें कि मैरे अन्दर कौन सी खराबी हैं? मैं कौन उसे लेना है। आजकल नया जमाना आ गया है बात नहीं। हिन्दुस्तान में रहते हुए आपको भारतीय सारा जीवन क्रम भी भारतीय संस्कृति से जुड़ा सब ज्ञान व्यान इकट्ठा करते हैं और इसके अलावा कला में बहुत रुचि रखते हैं, लोग हैं कला की ओर जिनकी रुचि है ऐसे लोग जो हैं जो सरस्वती की पूजा करते हैं उनकी वन्दना करते हैं, उनको सबसे पहले ये जानना गई हैं आज तक ये ऐसे नहीं करते वैसे नहीं चाहिए कि ये शिवजी की बहन है। और आप जानते हैं बहन का रिश्ता बड़ा जबरदस्त होता है। ग आप इनकी बहन की कहीं प्रवंचना करें या उससे कोई बुरे गुण ले लें या बुरी बातें करें, लांघ जाते हैं आप पर उसका असर आता है। जैसे कि बहुत से लोग हैं गन्दी गन्दी किताबें लिख देते हैं, बहुत से लोग हैं जिनके पास ज्ञान है उसको उल्टा सीधा कर देते हैं, ऐसे लोगों पे शिवजी का हाथ बड़े जोर से पड़ता हैं। क्योंकि उनकी बहन जो है वो बड़ी महत्वपूर्ण है। उसकी प्रवंचना करना माने बहुत ही बड़ा गुना है, उनकी दृष्टि में बहुत बड़ा गुनाह है । और ली हैं कि शिवजी के लिए ये चीज़ है । वो आदिशक्ति के लिए भी उनका बहुत कड़क शिवजी ने ग़र पिया तो शिवजी ने तो विष भी नियम है, इसमें कोई शक नहीं। अब जो सहजयोगी हैं उनको सबसे पहले अपनी ओर ध्यान देना है। मेरा मतलब नहीं कि लें, इसलिए वो धतूरे को खाते थे कि धतूरा जो शीशे के सामने घण्टों बैठे रहिए। बिल्कुल भी है इसमें जहर होता है, तो वो खाते थे इसी का है और शिव तत्व ने ही हमारी मर्यादाएं बनाई हैं कि इस मर्यादा को आपने लाँघा कि आप गए। जो मर्यादाएं हमारी संस्कृति में हैं, वो शिव की कृपा से हैं। वो सारी बातें जो हमें बताई ऐसे जो करते, छोटी से लेकर बड़ी तक. ये मय्यादाएं शिव ने बनाई हैं। वो इसका इतना जबरदेस्त ख्याल रखते है कि जैसे ही आप इस मर्यादा को अब शिव तत्व में इतनी-इतनी गलत धारणा लोगों ने बना दी है। जैसे बहुत से सोचते हैं कि भंग पीने से आप शिव तत्व के हो जाते हैं। बहुत से लोग जो शराब पीते हैं वो सोचते हैं कि शराब पीने से आप शिव तत्व में डूब जाते हैं । बहुत सारी ऐसी गलत-गलत चीजें लोगों ने बना पिया था, आप विष पिएंगे? उन्होंने इसलिए पिया था कि संसार का सारा विष जो है वो खा चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 &8, 1999 14 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-16.txt दशा में नहीं जाएंगे तो बेकार है। आपके लिए ये सारे उपत्व्याप्त करने से कोई फायदा नहीं। बहुत सारी चीजें हैं जिसका समर्थन हो सकता है गलत प्रकार आपने सुना होगा कि साईनाथ जो थे वो बहुत तम्बाकू पीते नहीं थे पर वो चिलम में भर कर खींचते थे। वजह ये है कि महाराष्ट्र में लोग बड़ा ही तम्बाकू खाते हैं, हर आदमी मंत्री भी तरीके से, पर हमको ग़र सही तरीके पे रहना है तम्बाकू खाएगा और उसका चपरासी भी खाएगा और मंत्री चपरासी से कहेगा कि भई तेरे पास और सही मार्ग से चलना है तो सर्वप्रथम अपने हृदय को हम स्वच्छ करें। ये जो हमें आदतें लगी हैं। ये आदतें भी तम्बाकू हो तो दे। इस कदर वहाँ पर बिल्कुल तम्बाकू का जोर है हालांकि इतनी तम्बाकू तो सारी हमारे हृदय पे असर करती हैं। इसलिए वहाँ होती नहीं है पर पता नहीं उन लोगों को पहले जमाने में ऐसा होता था कि जो भी विद्यार्थी तम्बाकू की बीमारी है? इतनी तम्बाकू खाते हैं आते थे उनको जंगलों में सोने को कहते थे। वो महाराष्ट्र में लोग। उस तम्बाकू के लिए ही साईंनाथ ने ये सोचा कि मैं ही क्यों न इनकी बकड़ियाँ सब लगे, वहीं रहो। तुम्हारे ऊपर सारी तम्बाकू खा जाऊ। इसलिए वो तम्बाकू ऐशोओराम न चढ़े। ज्यादा से ज्यादा झोंपड़ी में, खींचते थे। तो लोगों ने कहा लो साईंनाथ भी जिसको कि गोवर से लीपा हुआ है उसमें चिलम पीते थे तो हम भी पीएंगे। जहाँ वो वहाँ ऐसे लोग हो गए जो तम्बाकू इसलिए लेते थे कि इन लोगों की तम्बाकू की जो लत है वो खत्म हो जाए । अब वो चाहे उसको कुछ भी कहिए पहनना है, हमें ये जूता खरीदना है हमें ये खाना है तो वो तम्बाकू और तम्बाकू का शिवजी से वैसा सम्बन्ध नहीं है, पर ये जरूर है कि सब वो सारी दुनिया भर की तम्बाकू को खत्म करना चाहते थे। अब समझ लीजिए कि अगर आप देवी हैं, सो देवी का काम है कि सारी दुनिया के हमारे यहाँ जो इन्सान देखो, हिन्दुस्तान का, दुष्टों को भूतों को खा ले। अब आप भी खाएंगे उसको खाने-पीने का बड़ा शौक है । सहजयोगी क्या भूत? देवी का कार्य है कि वो जितने भी भी एक-दूसरे को बुलाएंगे खाने पर आइए, काहे आपके पीछे में लगी हुई बीमारियाँ हैं उनको को? औरतों को खासकर, कि जैसे कहीं जाओ जंगलों में रहे जहाँ साँप, बिच्छू, मकिड़्याँ. सुलाते थे और बहुत सादगी का जीवन, कपड़े भी बहुत कम पहनने जिसमें कि बच्चों को कपड़ों के प्रति लालच न हो। हमें ये कपड़ा खाना है, ये सहजयोगियों को कहना नहीं चाहिए। आपको मालूम है आपकी माँ कहीं भी रह सकती है, कहीं भी सो सकती है, कुछ भी खा सकती है। तो ये जो चीज़ है अपने अन्दर स्वाद. तो कहें माँ आप हमारे घर खाने पर आओ। मैंने आत्मसात कर ले। तो अब आप लोग करेंगे कहा भई खाने का बड़ा गड़बड़ काम है। मैं तो किसी होटल में नहीं खा सकती, मैं कहीं नहीं खा सकती और घर में भी बौर नमक बौर चीनी के रहती हूँ। मेरे अन्दर अस्वाद है, बचपन क्या ? ये आपका कार्य नहीं। इसी प्रकार जो कुछ भी साधु-सन्तों ने किया है वो सब करने के लिए तो अभी आपकी ये शक्ति नहीं और न ही आपका कार्य है। आपका कार्य जो है वो अपनी स्वच्छता करना, अपने को ठीक करना। पहले से अस्वाद है। मैं हर हालत में जो मिले सो खाती हूँ। पर हम लोगों की जो जुबान है, बड़ी चटोरी है। हिन्दुस्तानियों में चाहे बो यू.पी. वाले आप उस दशा में पहुँच जाएं तब फिर सब मामला ठीक हो सकता है। पर ग़र आप उस 15 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-17.txt साफ है। हमें आप हिन्दुस्तानी दे दो । तो मैंने अदल वदल दिया तो बड़े खुश हिन्दुस्तानी कि attached bath मिल गया। शर्म करनी चाहिए! हों, पंजाबी हो, चाहे दक्षिण के हों, खाने के मामले में हिन्दुस्तानी बहुत कुशल हैं। और आदमियों को बुद्ध बनाते हैं खाना खिलाकर। हमारे पति को ये पसन्द है, हमारे पति को वो सहजयोगियों को ऐसी बातें करते हुए शर्म आनी पसन्द है, करे क्या? उसकी गुलामी करेंगी, पति चाहिए। आपके बाप दादा तो लोटा लेकर के को खुश करेंगी। उनको ये करेंगी। रात-दिन जाते थे और आपको ये क्या शौक? आपको खाने-पीने की बात गर करें तो वो सहजयोगी कोई बीमारी है या कोई तकलीफ है? मुझे एक नहीं। अब बाबा जब मैं वहाँ थी, मिलान में, वहाँ आफ़त में डाल दिया था। पर एक तरह से मेरे जब प्रोग्राम हुआ, गुरु पूजा में, मैंने खुद खाना दिमाग में बात आ गई कि चलो भई तुम ये लो तुम ये लो। इस तरह से बहाने बाजी और ये करना ये हिन्दुस्तानियों का ही काम है। अब बनाया। क्या करें? चार साल तक में वहाँ खाना बनाती रही क्योंकि दूसरे लोग अच्छा खाना नहीं बनाते थे। लोग कहते माँ ये तो प्लास्टिक के आपको और हैरानी होगी कि जो लोग कवैला जैसे बना है। पर हिन्दुस्तानी उसमें विशेष थे, आते हैं, सब लोग सबके साथ रहते हैं। बहुत जितने भी हिन्दुस्तानी वहाँ आएंगे सब मुझे रईस लोग हैं जिनके पास मोटरें हैं सब हैं | मिलना चाहेंगे, उनका विशेष अधिकार है मेरे लेकिन वो सब पंडाल में सोएंगे। पर हिन्दुस्त नी ऊपर। और दूसरा खाने पीने में बड़ा वो, कि अपने लिए एक विशेष जगह होगी, होटल में यहाँ का खाना ठीक नहीं। अब एक और नई रहेंगे, मोटरों में घूमेंगे। कोई भी तरह की जरा सी चीज़ शुरू हो गई हिन्दुस्तानियों में कि साथ जुड़े भी उनमें त्याग नहीं। त्याग करना सीखा ही स्नानागार चाहिए। इनके गुसलखाने घरों में जाकर नहीं। आज कल हम माडर्न क्या हो गए मेरी देखो तो, कैसे इनके माँ बाप रहते थे इनको समझ में नहीं आता। अब इन लोगों को घरों में साथ जुड़े स्नानागार चाहिए. वो भी अंग्रेजी ढंग नौकर नहीं तो ये attached Bath इसलिए नहीं का चाहिए। मैं इसलिए आज कह रही हूँ कि रखते, एक ही रखते हैं कि बाबा सफाई करना इसने बड़ा परेशान कर दिया मुझे। गणपति पुले पड़ता है। आप लोगों के नौकर चाकर हैं तो में उनके लिए अलग से मैंने स्नानागार बना दिए, चलो दस दस Bathroom रख लिए। पर ये बाबा अंग्रेजी बना दिए। पर पहले मैंने हिन्दुस्तानी सब आदतें आपको अपने स्वयं की शक्ति बनाए, मैंने सोचा हिन्दुस्तानी को हिन्दुस्तानी से दूर ले जाएंगी फालतू चीजों में आपका पसन्द आएगा और अंग्रेजों को अंग्रेजी बना दिया तो ये फ़रमाते हैं कि नहीं, हमको अंग्रेजी जाना ही चाहिए। बताओ, मैंने कहा लोटा लेके जंगल सर्वसाधारण मनुष्य बनाते हैं। में जाओ, ये ही तुम्हारा इलाज है। सालों भर ऐसे ही जाते रहे और अब बड़े साहब हो गए हैं Beauty Parlour में जाएंगी। शक्ल तो वही attached bathroom के लिए। तो बेचारे अंग्रेजों रहती है। वहाँ पैसा खर्च करेंगी, वहाँ ये करेंगी। ने जो परदेसी foreigner थे. बिचारों ने कहा, माँ हमारे पूना में ब्राह्मणों की औरतें Sleev less हमें तो हिन्दुस्तानी अच्छे लगते हैं, क्योंकि बड़ा पहनेंगी, काला चश्मा लगाएंगी और वो मोपेड ध्यान जाएगा। फालतू बातों में आपका ध्यान , ये सब आपको एक बहुत ही औरतों के आजकल चला हुआ है कि चैतन्य लहरी 16 खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-18.txt पर बैठकर घूमेंगी। मेरे समझ नहीं आया। पूना में करो। पहले बैसगी हो जाओ, हिमालय पे जाओ जो कि पुण्य पटनम है, ये क्या पुण्याई का एक टॉग पर खड़े रहो। फिर कपड़े बिल्कुल कम पहनो । नदी में जाके नहाने का और वैसे ही गीले कपड़ों से ध्यान करो। सारे कष्ट शरीर को इन्तजाम है? इस तरह से हम लोग विदेशी चीज़ को ले रहे हैं, बगैर सोचे कि इसमें शिव का तत्व कितना है ? शिव को देखो नंग-धड़ंग बैठते देते थे, और गुरु लोग अब भी मारते-पीटते हैं। हैं अपने ऐसे! वो अपने बारात में भी नन्दी पर बहुत सताते हैं। ऐसे थोड़े ही बैठे बिठाए पार करा दे। न न, काफी आफत कराते हैं और तब शिष्य है, वो जो बोलेंगे उस पर गर्दन हिलाता है। उसके बाद लोग पार होते हैं। पर उनका जो पार कुछ भी बोले तो इसलिए नन्दी उनका सबसे होना है वो जम जाता है। स्थिति है। और आप प्यारा शिष्य है। अब इस पे बैठ के वो वहाँ लोगों को ऐसे ही पार करा दिया, अब वो बाकी की पीछे की चीजज़ें तो चल ही रही हैं objection नहीं था पर उसके भाई साहब जो सब। वो आफत तो चल ही रही है। अब उसको क्या करें? तो उसको ही छाँटना है। आ रहा है दुल्हा मिया? मेरा ये मतलब नहीं कि इन सब चीज़ों को जो हमने जोड़ लिया है ऐसे दूल्हे आप बनकर जाइए, ये मतलब नहीं। इसको छांटना है, खत्म करना है इसके लिए उपद्रव करने की ज़रूरत नहीं, कोई वैराग्य लेने की ज़रूरत नहीं, घर बार छोड़ने की ज़रूरत नहीं। किसी भी तरह का द्रविड़ी प्रणायाम करने की ज़रूरत नहीं। पर एक चीज़ ज़रूर है कि अपना ये कम करना चाहिए, कम करते जाना है। धोरे धीरे कम करो। अस्वाद अन्दर आना चाहिए, बहुत ज़रूरी है। अस्वाद एक बड़ी भारी चीज़ है, लोग बहुत नाराज़ हो जाते हैं। गर खाना उनकी समझ में नही आया तो थाली फेंकेंगे कहीं मारेंगे पीटैंगे नौकरों को, पता नहीं तो बैठ कर गए। नन्दी क्यों? क्यों नन्दी उनका पहुँचे विवाह करने, तो पार्वती जी को तो कुछ विष्णु थे वो जरा कुछ घबराए कि ये क्या चला पर तो भी उसमें ताम झाम दुनिया भर की चीजें करा कर के और वो खर्चे में डालने से फायदा नहीं। समझदारी, समझदारी आपका अलंकार है हर चीज को मान्य कर लेना, हाँ ठीक है। जो भी है ठीक है, खाना ठीक है। अब वो किसी के यहाँ खाना खाने जाएंगे और उसकी बुराई करते रहेंगे। मुँह पर नहीं करेंगे घर पे आके करेंगे। अरे क्या खाना बनाया था। कसी के यहाँ अच्छा खाना बना हो तो बीबी से कहेंगे वैसे तुम बनाओ। सारी जिसको 'जिह्वा लोलुप्य' संस्कृत में कहते हैं हिन्दुस्तान में बहुत ज्यादा हद ज्यादा है। इसको कुछ कम करना चाहिए। ये लोग आपका खाना खाते हैं मैंने कभी नहीं सुना किसी ने शिकायत की है। हालांकि इन लोगों का है। से क्या। गर आपके अन्दर अस्वाद आ जाए बहुत हलवाइयों की दुकानें भी बन्द हो जाएंगी मेरे ख्याल से। बहरहाल मेरा कहने का मतलब ये है कि शरीर का माध्यम नहीं रखना। शरीर के अंग्रेजी खाना तो कोई खा नहीं सकता आप लोगों में से। लेकिन इस तरह से अपने ऊपर ये जो लेपन करा रखा है इससे आनन्द में विभोर नहीं हो सकते। शिवजी का जो आनन्द है उसको तो बताने के लिए लोगों ने कहा था कि आप बैराग्य लिए comfort है समझ लीजिए ग़र आप पलंग पर सोते हैं तो ज़मीन पे नहीं सो सकते तो दस दिन जमीन पे ही सोइये। कैसे नहीं सो सकते? अपने शरीर को अपना गुलाम बनाए बगैर नहीं हो सकता। अपने comfort की जो बातें हैं वो चैतन्य लहरी । 17 खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-19.txt रुपये महंगा हो गया तो औरतें उनकी बड़ी फोटो आई, सब बड़ी सजी-धजी। मैंने कहा ये पन्द्रह रुपये का तो उनके पाउडर ही लगता होगा। ये । खत्म करना चाहिए। बहुत से लोग हैं, वो बस से नहीं चल सकते, क्योंकि वो मोटर से ही जा सकते हैं। फिर इसकी मोटर माँग, उसकी मोटर मांग, इसमें बैठ, उसमें बैठ! पर कोई भी ये नहीं लोग काहे की वो जा रहे हैं कि हम जा रहे हैं अब हड़ताल पे, काहे के लिए? क्योंकि पन्द्रह होता है? और पहले तो बस भी नहीं थी लोग रुपए बढ़ गए, और तनख्वाह आप की इतनी चलते ही थे हम जब स्कूल में पढ़ते थे पाँच बढ़ गई वो किसी को नहीं दिखाई दिया हम मील रोज़ सर्वरे चल के जाते थे हमारे घर में अपने नौकर को पहले समझ लो कुल बीस-पच्चीस रुपए देते थे, आज ढाई हजार रुपए मिले तो भी वो शिकायत करेगा उसको कपड़े भी मिलते हैं। सब मिलता है। कितनी भी सोचेगा कि चलो आज बस से चलकर देखें क्या मोटरें थीं सब कुछ था। ये माँ-बाप थे हमारे। पर हमें खुद बहुत शौक़ था। पैदल चलो और जूते नहीं पहनते थे, चप्पल नहीं, हाथ में लेके चलते थे क्योंकि vibrations की वज़ह से अच्छा था जमीन पे चलना। आप लोग भी थोड़ा सा जूतों के बगैर, चप्पल के बगैर चलना सीखिए बहुत जरूरी है। इससे बड़ा फायदा होगा। ज़मीन को भी vibrations मिलेंगे और आपको भी अच्छा लगेगा। हर तरह की चीजों में हम लोग बहुत तनख्वाह बढ़ जाए तो क्या दाम नहीं बढ़ेंगे। जहाँ तनख्वाह ज्यादा मिलती है वहाँ दाम बढ़ते हैं। वो सोने की बताते हैं कि जब लंका में सोने की ईंट मिलती है। एक साहब गए सोने की ईंट लेने तो देखा क्या है कि एक दिन उन्होंने काम किया तो उनको दो ईटें मिलीं। उसके बाद वो नाई के पास गए उनकी शेव करने के लिए तो उसने कहा कितना दाम कहने लगा कि दो ईंें। जैसे कमाई वैसा खर्चा। एक समझदारी की बात है। वाला। इस सब की गुलामी करते करते सारी तो लग गए उसी के पीछे में कि माँ ये महंगाई जिन्दगी बीत जाएगी। इस गुलामी को कम करना हो गई. ये हो गया| मैरे तक शंका आता है। मैंने कहा तनख्वाह कितनी बढ़ी तुम्हारी? बहुत-बहुत अन्दर धारण करना है। उसके लिए जरूरी है बढ़ गयी फिर तुम्हें महंगाई का रोना कैसा? जब कि कोई भी चीज महत्वपूर्ण नहीं, आज ये तनख्वाह बढ़ेगी तो महंगाई तो होनी है। आपकी तनख्वाह तो बढ़ जाए महंगाई न बढ़े ऐसा कैसे उसके साथ वो मैचिंग करना है तो उसे साथ वो हो सकता है? सर्वसाधारण चीज़ है ग़र हमें आ जाए तो सामाजिकता में भी हम शिव का तत्व आता है उसको पहन लो। कोई हर्ज नहीं है पा लें अब गाँधी जी जैसे थे बड़े ही जबरदस्त। उसमें आप पर कोई आफत नहीं आने वाली। उनके साथ में थी, आश्रम में रहते थे। मुझे कुछ उल्टे आपको समाधान होगा कि मैं समाधानी हूँ। नहीं होता था पर सब लोग रोते थे क्योंकि ज्यादा आराम पसन्द हो गए हैं पहले दो चार नवाब लोग जैसे थे वैसे अब हम लोग हो गए हैं, और क्या मिला? उससे कुछ नहीं मिलने है और सिर्फ परम शिव के तत्व को अपने कपड़ा पहनना है तो कल वो कपड़ा पहने तो चाहिए। जो कुछ मिलता है ले लो, जो कुछ जो भी मुझे मिला वो मैं समाधान से स्वीकार्य उनका कहना था कि सबके बाथरूम साफ करो। करता हूँ। आजकल हमारे वहाँ, पता नहीं यहाँ भी है कि नहीं, वो गैस का सिलेण्डर सोलह थे। अपने कपड़े खुद धोओ, अपनी थाली खुद सब मेहमानों के, सब के. वो जमादार नहीं रखते 18 चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 7 &৪, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-20.txt धोओ, खाने में सब खाना उबला हुआ। उसके ऊपर सरसों का तेल आप ले सकते हैं। अब जो बिल्कुल मूलत: गलत चीज़ है तो अब क्या मिटने वाला है? शिवजी को था क्या जाति बताइए कितने लोग हिन्दुस्तानी खा सकते हैं वो पाति? वो तो एकाक्ष को, किसी की टांगें टूटी खाना? बस दो तीन दिन रहते थे और भाग जाते हुई है, किसी का हाथ टूटी हुआ है, ऐसे सब थे ये हालत थी अब आप लोगों को भी लूले वूले लेकर के और अपनी बारात में ले गए थे वो ऐसे ही शिव तत्व में आपके लिए बहुत थोड़ा अस्वाद सीखना चाहिए। अब अस्वाद के लिए ऐसा है, मेरे से पता नहीं कैसे छूटता है, ज्यादा ये कटाक्ष रखना कि हम तो भई बहुत पर आप ग़र खाना थोड़े दिन उबला ही खाएं तो विशेष हैं कि खाना जो ऐसा होना चाहिए, फिर कैसे क्या रहेगा? कोई माँ अपने बच्चों को ये कायस्थों का अलग, ब्राह्यणों का अलग और नहीं कहेगी लेकिन मैं क्या करू। इसमें शिव जातियों का अलग, राजपूतों का अलग, सब का तत्व खराब हो रहा है। सब लोग गर खाने - पीने अलग-अलग, अब वो ही खाना खाइए। मुझे में लगे रहें तो आपका शिव तत्व गायब हो कभी भी समझ में नहीं आता, आज तक समझ जाएगा और सारी मेहनत ही बेकार जाएगी। में नहीं आया, कि ऐसे-ऐसे अलग-अलग खाने इसलिए खाने पीने में बहुत ज्यादा रत रहना कोई में ज्यादा आनन्द आता है तो ये लोग क्यों ऐसा अच्छी बात नहीं। पहले जमाने में लोग एक ही खाना मांगते हैं? क्या वजह है? बंगालियों को आध दिन उपवास भी करते थे, कुछ न कुछ बंगाली, मद्रासियों को मद्रासी। तो मैंने एक बार अपना त्याग करते थे। पर आजकल बड़ा मुश्किल कहा कि हमारे हवाई जहाजों में कोई अच्छा है ऐसा कहना । आप ग़र संतुष्ट हो जाएं, समाधानी स्टेण्डर्ड खाना क्यों नहीं है? कहने लगे माँ ये हो जाएं, तो आपको कोई ज़रूरत नहीं है, बताइए कि हिन्दुस्तान का स्टेण्डर्ड खाना कौन बिल्कुल ज़रूरत नहीं है कि आप हर समय खाने पीने की बातें करें और अपने यहाँ खाने पर बुलाएं| सा है? ये तो बात सही है। तुम ग़र कोई खाना बनाओ तो कहेगा ये तो मद्रासी का है, मद्रासी कहेगा ये क्या बिहारी है, फलाने का, ढिकाने फिर हमारे यहाँ एक जाति-पाति बहुत है, का, ढिकाने का इसलिए सब तरह का खाना कि अगर कायस्थ है तो अलग है, या हिन्दू है खाना आना चाहिए। क्योंकि यहाँ से सब चीज़ शुरू हो जाती है ये बेखरी, जुबान में भी एक भी है । अब क्या होगा कि जो कायस्थ सहजयोगी मिठास, मधुरता होनी चाहिए। मुस्कुराहट में भी कभी-कभी ऐसा लगता है कि रावण निकल रहे हो गए। अरे भई अब तुम सहजयोगी हो गए हैं इनके मुँह में से। तो बोलने का क्या कहना, जब बोलते हैं तो लगता है पता नहीं ये कौन वो। फिर कायस्थ कायस्थों को खाने पर बुलाएंगे चण्डिका बोल रही है कि क्या बोल रही है। औरतें बड़ी तमाशा हैं और आदमी भी बहुत तमाशा हैं। अजीब- अजीब चीजें ऐसी बन गई हैं सहजयोग में काहे को आए? सहजयोग में जाति इसमें शिव तत्व कहाँ है? शिव तो प्रेम का एक महासागर है। वो तो राक्षसों को भी उन्होंने नुम क ब्राह्मण है तो अलग हैं, फलाने अलग हैं। अब हैं वो सब एक हो गए, ब्राह्मण सहजयोगी एक अब भी काहे को ये कर रहे हो ब्राह्यण और ये और ब्राह्यण ब्राह्मणों को खाने पर बुलाएंगे। अब ये इस तरह की मूर्खता आर करनी है तो पाति, ये कुछ नहीं। आपकी वो ही नहीं मिटी 19 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-21.txt गाँधी जी ने कहा खद्दर पहनो, तो लोग बिल्कुल उन्होंने ऐसा बनाया था, खूब आपको अपने को ठिकाने लगाना है। क्योंकि आप स्वयं वरदान दिया, राक्षसों को भी जिसने वरदान दिए ऐसे शिव तत्व को हमारे अन्दर ग़र खद्दर पहने । लाना है तो हम ऐसी छोटी छोटी बातों में ठिकाने लगाया था सबको। पर अब कैसे सकते हैं? ये हम कसे कर सकते हैं? ये बताइए। जिस तरह से हम एक दूसरे की आलोचना करते हैं, किसी को काई कहता है ये ऊँचा है, कोई कहता है नीचा है, ये शिव की बात नहीं। शिव के अन्दर प्रेम की धाराएं बह रही हैं और इस प्रेम की धारा में बहते हुए आपको ऐसी उल्टी सीधी बातें करनी नहीं चाहिए। और उससे कोई फ़ायदा नहीं होने वाला। आपसी प्रेम, आपसी समझ और आपस उलझ आत्मा के प्रकाश, आप स्वयं श्री शिव के शरण में आए हैं। आप खुद को खुद ही ठीक करें आपको दूसरों को ठीक करने का नहीं है, बस अपने को ठीक करें और धन्य समझे कि आप आत्मसाक्षात्कारी है। कितने थे पहले? अरे दो चार थे बिचारे उनको भी लोग मार डालते थे। आज आप हजारों की तादाद में हैं तो इस चीज़ को शुरु करें। बातचीत में मिठास, ऊपरी तरह से का आनन्द उठाना चाहिए। अब ये बात ज़रूर है नहीं हुदय से, जो भी बात आप हृदय से करें कि सहजयोगी आपस में लड़ते नहीं, ये तो मैंने उसको कोई नहीं बुरा मानता। इसलिए हृदय से बात करें। अपने बच्चों से, बड़ों से, जो मर्यादाएं मिलते हैं, पर तो भी अभी भी ये छोटी-छोटी हैं उसको पालते हुए. आप अपने को सुखी बातें जो कि वैयक्तिक हैं, खाना- पीना, उठना बैठना, बनाने से दूसरों को भी सुखी बनाएंगे। लेकिन आपके अन्दर ग़र ये आशीर्वाद शिव का न हो ठीक कर लें तो बड़ा अच्छा होगा। आपका चित्त कि जिससे आप समाधानी बनें, और कोई चीज़ से हो नहीं सकता। इसलिए अपनी ओर ये भी नजर रखें कि मैं समाधानी हूँ कि नहीं? मुझे देखा है। आपस में मिलते हैं तो बड़े प्रेम से पहनना, ये ज़रा सा ठीक करना चाहिए। ये गर जो है वो हृदय की तरफ जाएगा और इन सब चीज़ों में नहीं रहेगा। इन सब चीज़ों में नहीं रहेगा। परदेस में ये बीमारी ज्यादा है, इसलिए कि वहाँ एक से एक निकले हैं, वो बनाते समाधान है या नहीं? मैं छोटी-छोटी बात को लेकर के और दूसरों पर भी बिगड़ता हूँ या उसके नुक्स निकालता हूँ तो कुछ तो भई मेरे हुए हे अलग-अलग तरह की चीजें। और जिसने वो चीजें पहन लीं वो बड़ा भारी अपने को सोचता है, मैं बड़ा रईस हूँ। ख़ासकर इटली में ऐसा अन्दर बहुत बड़ी खराबी है। उस ख़राबी को देखने से ही आप स्वच्छ हो सकते हैं। जब तक आपको कोई चीज़ दिखाई नहीं देगी आप साफ आपको इसमें नहीं पड़ना चाहिए। आप अपने कैसे करेंगे? इस सफाई की बहुत जरूरत और इस सफ़ाई से ही आप उस परम पिता वाले जो होते हैं, उन्हीं का नाम हुआ है, औरों परमेश्वर के दर्शन कर सकते हैं, अपने अंदर, और लोगों को भी इसके दर्शन हो सकते हैं। बहुत ज्यादा प्रकार है। लेकिन ये सब बातें सादगी से रहो। अपने देश में सादगी से रहने का नाम नहीं हो सकता। पहले जमाने में लोग त शो गरे म अनन्त आशीर्वाद। हा 20 चैतन्य लहरी = खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-22.txt शत्रि पूजा शवरा गे क पoE शिव तत्व आपके हृदय में है परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का अंग्रेजी प्रवचन (दिल्ली-14.2.99) अपने अन्दर देखना होगा कि आपमें क्या त्रुटियाँ हिन्दी भाषा में मेंने बहुत लम्बा प्रवचन दिया है क्योंकि विदेशी सहजयोगी यहाँ पर बहुत हैं। मेरा चित्त कहाँ जा रहा है । मैं कहाँ जा रहा कम हैं। मैं उन्हें बता रही थी कि शिव तत्व हूँ। मैं क्या कर रहा हूँ। आपको चाहिए कि आपके हृदय में है और उसका प्रतिबिम्ब किसी एक चक्र पर नहीं की तरह। जो भी कुछ आपका दिखाई देता है वह इस दर्पण में है, शीशे में आपका क्या प्रतिबिम्ब है? क्या आपका प्रतिबिम्ब स्पष्ट और कहते हैं? किसी ने आपके लिए बहुत सुन्दर शुद्ध है? क्या आपने अपने हृदय को शुद्ध किया? प्रतिबिम्ब करने वाले शीशे को क्या आपने साफ किया? यही चीज़ शक्ति को देखनी है। हिन्दी में मैंने विस्तार पूर्वक बताया कि हमारे (पड् रिंपु ) छ: दुश्मन हैं। एक के बाद एक ये हमें भ्रष्ट करने में लगे रहते हैं। इन छः में से पाँच के विषय में मैंने उन्हें बताया। भारत अपने को देखें अन्य लोगों को नहीं। पश्चिम के है, सभी चक्रों पर है - दर्पण लोग समझते हैं कि दूसरों की आलोचना करना उनका अधिकार है। मुझे ये पसन्द है, यह मुझे पसन्द नहीं है। आप कौन हैं? आप ऐसा क्यों प्रवन्ध किया है, उसी के घर में बैठकर उसे कष्ट पहुँचाने के लिए आप कहते हैं कि मुझे ये पसन्द नहीं है। आखिरकार आप हैं कौन और अपने बारे में क्या सोचते हैं? निर्णय करने वाले आप कौन होते हैं? मुझे ये पसन्द है और ये नहीं है, ऐसा कहना सहजयोगियों के लिए मना है। ऐसा करना निषिद्ध है । भगवान शिव को देखें उन्हें सब कुछ पसन्द है, उन्हें साँप भी पसन्द हैं। वे कैसे वस्त्र में छठे दुश्मन-कामुकता-का बहुत अधिक अस्तित्व नहीं है। यहाँ यह बहुत कम है। परन्तु विदेशों में, पहनते हैं? सभी पशु, सभी चीज़ें जो हमें अच्छी पश्चिमी देशों में इसका भयंकर प्रभाव है क्योंकि नहीं लगतीं उन्हें वे सब पसन्द हैं। अपने विवाह वो लोग सोचते हैं कि कामुकतामय जीवन ही के समय अपनी बारात में वे सभी लूले-लंगड़े जीने के योग्य है। इससे परे शिव हैं और इसी कारण हमें किसी की एक आँख थी और किसी का कोई समझना चाहिए कि हमारे हृदय में शिव का पूर्ण प्रतिबिम्ब तभी सम्भव है जब हम अपने हृदय को शुद्ध कर लें। दूसरों के प्रति द्वेष काम भावना, क्रोध, ईष्ष्या-ये सभी प्रतिक्रियाएं हमारे अन्दर कार्य करती हैं और हमारा हृदय पत्थर की तरह हो जाता है। यह प्रतिबिम्बित नहीं हो सकता। तो यदि आपने शिव का ये गुण प्रतिबिम्बित करना है - कलियुग में ऐसा होना बहुत आवश्यक है यद्यपि बहुत कम लोग शिव की छवि अपने है तो यह मलिन हो जाता है-अत्यन्त मलिन चरित्र में प्रतिबिम्बित कर पा रहे हैं-तो आपको लोगों को साथ ले गए। किसी की एक टाँग थी, अंग टूटा हुआ था। ऐसे सभी लोगों को वो अपनी बारात में ले गए उन्हें ये सब लोग बहुत प्रिय थे और इनकी वे देखभाल करते थे क्योंकि शिव ही आनन्द का स्रोत हैं वे ही हमें आनन्द प्रदान करके आनन्दित करते हैं। वास्तविक आनन्द तभी सम्भव है जब उनका प्रतिबिम्ब आपके हृदय में हो परन्तु यदि आपका हृदय इधर-उधर की चीज़ों से भरा हुआ दर्पण। 21 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 &8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-23.txt अत्यन्त हैरानी की बात है कि भारतीयों ज्योतित् कर दिया जाए? उस प्रकाश में वे के मुकाबले पश्चिमी सहजयोगी सुख-सुविधाओं का विशेष ध्यान नहीं रखते। यद्यपि वे अत्यन्त भौतिकतावादी वातावरण से आते हैं फिर भी उन्हें सुख-सुविधाओं की बहुत वे कहीं भी रह सकते हैं। कहीं भी वे प्रसन्न रह त्रुटियाँ हैं, कौन सी चीज़ आपको अन्य लोगों से सकते हैं । यह बहुत अच्छी स्थिति है जो उन्होंने भिन्न बना रही है और आपको कौन सी चीज़ प्राप्त कर ली है। भारतीय सहजयोगियों को भी व्यर्थ की चीजों पर चित्त देना छोड़कर यह स्थिति प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए है यह सीमा अब आपको पार करनी होगी। फ़िजूल की चीज़ों पर अपनी शक्ति बर्बाद करने की कोई आवश्यकता नहीं। केवल तभी आपको प्रतिक्रिंया नहीं करेंगे, कोई भी चीज़ जब आपके अपने लिए, अपनी आत्मा के लिए वास्तविक लिए महत्वपूर्ण न रह जाएगी तभी भगवान शिव भक्ति प्राप्त हो पाएगी। आज इसी चीज़ की कार्य करेंगे। तो कुछ चीजें अब भारतीयों ने आवश्यकता है कि आपकी आत्मा आपके चरित्र आचरण और व्यक्तित्व से झलके। यदि ऐसा हो आपने बहुत से कार्य किए हैं, मैं आपको जाता है तो आपने वह उपलब्धि प्राप्त कर ली जो सहजयोग आपके लिए करना चाहता था। आज यह बहुत महत्वपूर्ण है, बहुत महत्वपूर्ण। आप यदि समाचार पत्र पढ़ना चाहें तो नहीं पढ़ सकते क्योंकि परिवर्तित होना आपकी आवश्यकता हैं। मानव का आत्मत्व, आत्मचेतना और आत्मा कार्य किए में परिवर्तन। और अब समय आ गया है जब यह कार्य हो जाना चाहिए। विकास की यह प्रक्रिया आरम्भ हो चुकी है। बहुत से लोग ये प्राप्त कर चुके हैं। पुराने सन्त और गुरु, सच्चे गुरु अपने जाते हैं। ये सब चीज़ें समाप्त हो जानी चाहिए शिष्यों को सिर के बल खड़ा करके और अन्य विधियों से वर्षों तक उनकी परीक्षा लिया करते थे। कभी वे उन्हें जल में खड़ा कर देते थे और कभी किसी अन्य तरीके से परखते थे। गुरु है? यह तो उनके मस्तिष्क में ही नहीं आ शिष्यों को बुरी तरह से पीटते थे तथा उनसे बहुत ही कठोर व्यवहार करते थे और तब किसी एक-आध को आत्मसाक्षात्कार मिला करता था। अब मैंने सोचा कि उन्हें शुद्ध करने में, ही है। आप सबको चाहिए कि शिव तत्व को उल्टे-सीधे वस्त्र पहनाने में, हिमालय पर या गोबी मरुस्थल भेजने में बहुत अधिक समय लगेगा। इसलिए मैंने कहा कि क्यों न उन्हें पहले अपनी त्रुटियों को देख सकेंगे और स्वयं को ठीक कर लेंगे, वे स्वयं अपने गुरु बन जाएंगे। यह बात सफल हुई। अब आप लोग स्वयं देख सकते हैं कि आप क्या कर रहे हैं, आपमें क्या चिन्ता नहीं होती। उन्नत करेगी. क्योंकि सदाशिव का स्थान आपके सिर, विचारों, मस्तिष्क और भावनाओं से ऊपर जब आप किसी भी चीज़ के प्रति सीखनी है और कुछ विदेशी सहजयोगियों ने। 1 धन्यवाद करती हूँ। लोग सोचा करते थे कि मैं कुछ नहीं कर सकती। आप लोगों ने मद्यपान और सभी प्रकार की बुरी आदतें छोड़ दी है। अब आप व्यभिचारी भी नहीं हैं। आपका चित्त अत्यन्त पवित्र है। आपने बहुत से प्रशंसनीय हैं। परन्तु अभी भी बहुत से दोष बने हुए हैं जिन्हें स्वच्छ करना और बिल्कुल समाप्त कर देना आवश्यक है। आपमें राजनीति अधिक नहीं है फिर भी कभी कभी राजनीति होती है। झुण्ड भी बनाए क्योंकि शिव का इनसे क्या लेना-देना। पूरा ब्रह्माण्ड उनके चरणों में है। एक झुण्ड यहाँ, एक वहाँ। इसका शिव की दृष्टि में क्या महत्व सकता। महान व्यक्ति विशाल सागर की तरह बहुत से किनारों को छूकर भी महान सागर सम बना रहता है। शिव तत्व भी ऐसा परड विकसित करें और तब आनन्द को देखें-प्रेम के इस महान सागर के आनन्द को ! न परमात्मा आपको धन्य करें। चैतन्य लहरी ॥ खंड : X1 अंक : 7 &8, 1999 च 22 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-24.txt श्री माताजी द्वारा र गैर-सरकारी संस्था (N.G.0) की स्थापना दीन-हीन महिलाओं और बच्चों के लिए हमने एक गैर-सरकारी संस्था N.G.0. की स्थापना की है। यहाँ हम एक अस्पताल भी बनाएंगे। आप जानते हैं कि बाशी के समीप बेलापुर, नवी मुम्बई में का विचार अच्छा लगेगा। ऐसी दूसरी संस्था हम मुम्बई के समीप वैतरणी में आरम्भ करेंगे इसकी योजना मैंने पन्द्रह वर्ष पहले बनाई थी परन्तु हमें इसकी आज्ञा ही नहीं मिली। अब इसका निर्णय ले लिया गया है, हमें इसकी आज्ञा मिल गई है। तो मैं ऐसी संस्था आरम्भ करना चाहती हूँ जहाँ लड़के-लड़कियों को शिक्षित किया जाए। पहले हम लड़कों के लिए प्रयत्न कर हमारा एक अस्पताल चल रहा हैं। ये अस्पताल नोएडा में भी होगा। आपको ये जानकर प्रसन्नता होगी कि नोएडा में जमीन ले ली है और वहाँ पर कार्य करने वाले हैं आप लोग जो भी कुछ इस शुरु संस्था के लिए देना चाहें दे सकते हैं। हमारे पास इस कार्य को करने के लिए बहुत अच्छे लोगों की एक टीम है। मैंने सोचा कि हमारी एक ऐसी संस्था अवश्य होनी चाहिए ताकि आस-पास के दीन-दुखी लोगों पर हमारा चित्त बना रहे। यह गैर-सरकारी संस्था पतियों तथा परिवार द्वारा त्यागी गई महिलाओं तथा उनके बच्चों के लिए कार्य करेगी, उन सबके लिए जिनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। अभी तक मैंने इसकी कोई योजना नहीं बनाई है परन्तु सहजयोग आरम्भ करने से पूर्व मैं ऐसे बहुत से कार्य किया करती थी अत: इसका मुझे काफी अनुभव है। हमारा चित्त होना आवश्यक है क्योंकि अब हम दिव्य शक्तियों से आशीर्वादित हैं। जिन लोगों को हमारे ध्यान की आवश्यकता है हमें उनकी देखभाल करनी चाहिए। सहजयोगियों द्वारा निस्सहाय महिलाओं की सिफारिश की जाएगी। वे निश्चित रूप से बेहतर होंगी। इस कार्य को भली - भौंति किया जा सकता है। अभी तक आश्रय की इच्छुक किसी भी महिला की अर्जी हमारे पास नहीं आई है। हम उन्हें हैं रहे हैं, जो लड़के आठवीं, नवीं में फेल हो गए उन्हें छोटी-छोटी दस्तकारी सिखाई जाएगी। हमारे यहाँ अच्छे बिजली मिस्त्री नल साज आदि नहीं हैं। इस प्रकार ये बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो जाएंगे. क्योंकि आठवीं नवीं कक्षा में फेल होकर पढ़ाई छोड़ देने पर तो वे कुछ भी नहीं कर सकते, ऐसे बच्चे बहुत कष्ट में हैं। यह कार्य मेंने पन्द्रह साल पहले आरम्भ किया था। श्री अमत्त्य सेन ने इसके बारे में अब लिखा है कि इन बच्चों को इस प्रकार की शिक्षा दी जाए-अब भी उन्होंने यह बात विस्तार पूर्वक नहीं बताई है। परन्तु उन्होंने अब इसे लिखा और इस पुस्तक के लिए उन्हें नोबल पुरस्कार दिया गया-उन विचारों के लिए जो मैंने पन्द्रह वर्ष पूर्व लिखे थे। परन्तु सरकार इतनी खराब थी कि उसने मुझे संस्था बनाने की आज्ञा तक न दी। सौभाग्यवश अब भा.ज. पा. सरकार से मैं इसकी आज्ञा ले पाई हूँ और अब हम इस कार्य को जोर शोर से करने वाले हैं । दीन-दुखियों पर बहुत से लोग इस चुनौतीपूर्ण कार्य में मेरी मदद करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। तो अब सहजयोंग जरूरतमंद लोगों को कला- दस्तकारी आदि सिखाएंगे ताकि दो वर्षों में ही आजीविका और सहायता देने के लिए बाहर वे अपने पैरों पर खड़ी हो सकें और सड़कों पर कोई की ओर फैल रहा है। सहजयोग की यह एक भी भिखारी बाकी न बचे। सर्वप्रथम हम उन्हें नई गतिविधि है और मुझे आशा है कि यह सहजयोगी बनाएंगे और तब आगे का कार्य करेंगे। मुझे विश्वास है कि आप सबको ऐसी संस्था बनाने सफल होगी। धन्यवाद चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 &8, 1999 23 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-25.txt दिपाली पूजा.. पूजा-कबैला - कखैला (25.10.98) छाम ययम दिषाली ा महत्व - परन पूज्य माताजी श्री निर्मला केली का प्रवचन दिवाली पूजा बहुत छोटी सी पूजा सत कहने लगे कि हमने सोचा था कि ये कोई सचिव हैं। मैंने कहा आपसे ऐसा क्यों सोचा? वास्तव में वह महिला अत्याधुनिक रेशमी वस्त्र पहने हुए थी, तो सभी ने सोचा कि ये महिला एक सचिव ही हो सकती है। उन्होंने उसे प्रतीक्षालय में बिठा दिया। तो है परन्तु यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। दिवाली के पहले दिन (धनतेरस) लोग परिवार के लिए कुछ न कुछ खरीदते हैं। चाहे ये खाना बनाने के बर्तन हों, आपकी पत्नी के लिए कोई गहना हो या ऐसा ही कुछ और क्योंकि यह गृहलक्ष्मी का दिन होता है गृहलक्ष्मी के प्रति सम्मान के रूप में मनाया जाता है। और इसे एक गृहलक्ष्मी से आशा की जाती है कि बह गरिमामय, सम्मानजनक वस्त्र पहने, किसी सचिव की तरह या दफ्तर जाने वाली महिला की तरह से वस्त्र ने पहने क्योंकि, आप चाहें या न चाहें, गृहलक्ष्मी को सर्वाच्च समझा जाता है। उस महिला ने बहुत अच्छे बाल बनवाए हुए थे और सजने संवरने के लिए बहुत ही महंगे स्थान पर गई थी। परन्तु वह बेचारी जब वहाँ पहुँची तो उन्होंने स्नानगृह के समीप प्रतीक्षालय में उसे बिठा दिया। तो यह सब इस प्रकार होता है। गृहलक्ष्मी घर की शान है केवल इतना ही नहीं वह पूरी देश की संस्कृति के लिए जिम्मेदार हैं वे संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती हैं। भारत में आजकल फिल्म में अजीबोगरीब वेशभूषाएं दिखाने लगे हैं परन्तु मैंने किसी भी घरेलू स्त्री को ये वस्त्र पहने हुए नहीं देखा। किसी को भी नहीं। वास्तव में ऐसा नहीं होता, केवल फिल्मों में ही होता है क्योंकि समाज बहुत शक्तिशाली है और गृहस्वामिनी से गरिमामय होने की आशा की जाती है। उसे शालीन होना पड़ता है। अत्यन्त गरिमामय होकर बहुत ही गरिमापूर्वक उसे आचरण करना होता है। इसके विपरीत लाल बहादुर शास्त्री नामक हमारे एक प्रधानमंत्री थे। उनकी पत्नी बिल्कुल पढ़ी-लिखी न थी क्योंकि शास्त्रीजी जेल चले गए और वे शिक्षा प्राप्त न कर सकीं। बहुत ही सादी और साधारण महिला-वे एक बार फ्रॉस गई। उस समय परिणाम स्वरूप भारत में अब भी गृहलक्ष्मियों का बहुत सम्मान होता है। वास्तव में सर्वत्र उनका सम्मान किया जाता है। आप हैरान होंगे कि सरकारी समारोहों में भी नियम आचरणों के अन्तर्गत पत्ी बहुत महत्वपूर्ण है; वह कहाँ बैठी है उसकी क्या स्थिति है, यह सब बहुत महत्वपूर्ण है। आज भी, अत्यन्त आधुनिक और विकसित देशों में गृहलक्ष्मी का विशेष सम्मान होता है। गृहलक्ष्मी चाहे शिक्षित न हो, बहुत साधारण महिला हो, बहुत आधुनिक न हो फिर भी उसका सम्मान किया जाता है। मुझे एक अनुभव हुआ। लन्दन के एक कार्यक्रम में हमें निर्मंत्रित किया गया। प्रतिनिधि मण्डल के अध्यक्ष की पत्नी अनुपस्थित थी। उन्होंने मुझसे पूछा कि वो कहाँ हैं क्योंकि उनका स्थान खाली पड़ा है और उन्हें वहाँ बैठना है। मैंने कहा, मैं नहीं जानती; मैंने उन्हें नहीं देखा । वो यहीं कहीं होंगी। कार्यक्रम आरम्भ होने से पहले स्नान गृह जाते हुए देखकर मैं हैरान हुई कि वह प्रतीक्षालय में बैठी हुई थीं मैंने कहा,"आप यहाँ क्या कर रही हैं? बाहर सभी लोग आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं " वह कहने लगी, उन्होंने मुझे यहाँ बैठने के लिए कहा है। बाहर जाकर मैंने उनसे बताया कि वे वहाँ बैठी हैं। उन्हें बुलाकर स्थान ग्रहण करने के लिए आप उनसे क्यों नहीं कहते? पत्नी तो, मेरे विचार में पत्नी ही है। वे चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 24 7 & 8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-26.txt बहुत अच्छा समाज है। इसका श्रेय गृहस्वामिनियों, गृहलक्ष्मियों को है जिन्होंने सारा कार्य किया संस्कृति की दृष्टि से यह बहुत महत्वपूर्ण है। इन चीजों का है और इसी कारण आप देखते हैं कि वहाँ लोग गृहस्वामिनियों का सम्मान करते हैं। अत: सहज संस्कृति में गृहलक्ष्मी का सम्मान बहुत महत्वपूर्ण है, परन्तु इसका अभिप्राय ये भी नहीं कि स्त्री पति पर रौब जमाने का या उसे कष्ट देने वहाँ श्री देगोल हुआ करते थे। वे वहाँ के राष्ट्रपति थे और उनकी पत्नी भी अत्यन्त साधारण महिला थी। शास्त्री जी ने अपनी पत्नी को समझाया कि जब हम श्रीमती देगोल से विदा लेने लगें तो तुम रोना मत, भारत में बाहुल्य अब हम बहुत अच्छे मित्र बन गए हैं। परमात्मा जानता है, श्रीमती शास्त्री फ्रेंच न जानती थी और श्रीमती देगोल को हिन्दी नहीं आती थी फिर भी गृहस्वामिनियाँ होने के कारण दोनों बहुत अच्छी मित्र बन गई। शास्त्री जी ने अपनी पत्नी को विदाई के समय रोने के लिए मना किया था परन्तु जब विदाई का समय आया तो दोनों ही महिलाएं रोने लगीं। शास्त्री जी ने कहा, "मैंने तुम्हें रोने के लिए मना किया था। श्रीमत्ती शास्त्री ने उत्तर दिया कि पहले उन्होंने ( श्रीमती देगोल) रोना शुरू किया में क्या करती, मुझे भी रोना पड़ा। तो एक प्रकार से गृहस्वामिनियों की यह महान सामूहिकता है जिसे कार्यान्वित होना है। उनकी एक सी समस्याएं होती हैं-बच्चों को संभालना, घर परिवार की देखभाल करनी आदि-आदि। कहने से मेरा अभिप्राय ये है कि गृहस्वामिनियों की बहुत सी एक जैसी समस्याएं होती हैं और गृहस्वामिनी को छोटी-छोटी चीजों का ज्ञान होता है। का प्रयत्न करे या उससे झगड़ा करें। इसका अर्थ गृहलक्ष्मी का समाज में अत्यन्त महत्वपूर्ण पद पर रहना है उसे देवी सम माना जाता है। परन्तु उसे स्वयं भी तो देवी होना चाहिए। आप यदि उससे पांवदान की तरह से व्यवहार करेंगे तो बच्चे कभी उसका सम्मान नहीं करेंगे। आप यदि पत्नी का उचित सम्मान नहीं करते तो बच्चे भी माँ का सम्मान नहीं करेंगे और उन पर माँ का बिल्कुल भी प्रभाव न होगा। परिणामस्वरूप बच्चे भटक जाएंगे। जिस समाज में या जिस देश में माँ का सम्मान नहीं होता, वहाँ आप देखेंगे, बच्चे बिना बात के रौब देने वाले क्रोधी स्वभाव और भयानक असामूहिक हो जाएंगे। तो इस दिन, जिसे हम धनतेरस कहते हैं आपको अपनी पत्नी के लिए कुछ खरीदना होता है। अवश्य कुछ खरीदना होता है और उसे उपहार देना होता है। कम से कम कोई एक बर्तन, जो रसोई में काम आ सके, सम्मान के रूप में पत्नी को दिया जाना चाहिए। जिन परिवारों में माँ का सम्मान नहीं होता वहाँ बच्चे अत्यन्त कष्टदायी हो जाते हैं और पूरा परिवार कष्ट उठाता है। जहाँ चाहे पुरुषों का विवाह हो, हर हाल में उन्हें महसूस करना है कि ठीक प्रकार से पत्नी का सम्मान न करना उनकी गलती है। बच्चों के सम्मुख यदि आप चिल्लाते हैं, उनके सम्मुख पत्नी का निरादर करते हैं तो बच्चे कभी भी माँ का सम्मान नहीं कर सकते। गृहस्वामिनी के रूप में जो महिला आपकी, आपके परिवार की बिना कुछ आशा किए देखभाल कर रही है. आपके लिए सभी कुछ कर रही है। उसके साथ ऐसा भारत में पुरुषों को तो कोई अधिक जानकारी पति नहीं होती क्योंकि वे अधिकतर हृवा में रहते हैं। तो महिलाओं में छोटी-छोटी चीजों का विवेक बहुत अधिक होता है, वे सब जानती है। बहुत दिलचस्प बात है कि पुरुष कई बार ऐसी गलतियाँ करते हैं कि उन पर हँसी आती है। कारण ये है कि वे जीवन की आम समस्याओं को नहीं देखते। उनके विषय में अनजान हैं। एक ओर तो गृहस्वामिनी को दिनचर्या को देखना होता है और दूसरी ओर अपने परिवार और बच्चों को। बेचारी समाज के प्रति भी जिम्मेदार होती है। उसे समाज को भी बनाए रखना होता है। जिस देश में महिलाएं विवेकशील एवं परिपक्व होंगी, आप हैरान होंगे, उस देश में अत्यंत अच्छे परिवार, अच्छे समाज और अच्छे बच्चे बनेंगे यही कारण है कि मैं कहती हूँ कि भारत बहुत अच्छा देश है, एक व्यवहार अपराध है। 25 चैतन्य लहरी XI अंक : 7 & 8, 1999 खंड : 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-27.txt यदि आप ये समझना चाहते हैं कि वे किस प्रकार कष्टकर हो सकते हैं तो उन्हें राजनीति में देखिए । महिलाएं जब राजनीति में जाती हैं तो बे सभी पुरुषों को उलटकर रख देती हैं और एक महिला सभी को अक्ल सिखा सकती है क्योंकि उसका कार्यक्षेत्र तो घर और परिवार है। परिवार में यदि उनका सम्मान नहीं होता तो वे परिवार त्याग कर बाहर आ जाती हैं और इस प्रकार व्यवहार करती हैं जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते। यद्यपि में रावण सीता को उठा ले गया। श्रीराम ने युद्ध करके उसका वध किया और सीता को लौटा लाए जब वे अयोध्या वापिस लौटे तो वहाँ बहुत खुशियाँ मनाई गई। भरत श्री राम के अनन्य भक्त थे। उनकी चरण पादुका को सिंहासनारूढ़ करके उन्होंने चौदह वर्ष तक अयोध्या का राजकार्य किया। इस प्रकार चौदह वर्षों पश्चात् श्रीराम-भरत मिलन हुआ और श्री राम का राज्यभिषेक किया गया। हजारों वर्ष पूर्व यह सब घटित हुआ परन्तु आज भी उस दिन को त्यौहार के रूप में मनाया जाना महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन योग्य राजा को उसका सिंहासन प्राप्त हुआ और उन्होंने सारे अन्याय और अत्याचारों का अन्त किया। इन्हीं कारणों से दिवाली महत्वपूर्ण है। अंतिम दिन देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है क्योंकि उन्हों के आशीर्वाद से ये सब सुन्दर मिलन हुए। कुछ समय पूर्व मैंने आपको बताया था कि लक्ष्मियाँ भी नौ प्रकार की हैं। इस लक्ष्मी पूजा में आप साक्षात् लक्ष्मी की पूजा करते हैं। लक्ष्मी का अर्थ किसी भी प्रकार के धन से नहीं है। धन की उसे बहुत सहन करना पड़ता है और बहुत कष्ट उठाना पड़ता है। परिवार में उसका सम्मान अवश्य होना चाहिए। गृहलक्ष्मी का यही महत्वपूर्ण संदेश है। धनतेरस के अगले दिन भयंकर राक्षस नक्कासुर का वध हुआ था। राक्षसों के वध सदैव दंवी की शक्ति से होते हैं। नक्कासुर ने बहुत से लोगों को सताया था और बहुत लोगों को धूर्तता सिखाई थी। वह अत्यन्त धोखेबाज़ और चालाक व्यक्ति था और विशेष उसका बध करना असंभव सा था, परन्तु एक शक्ति के अवतरण से चौथे दिन नक्कासुर का वध हुआ। कहते हैं कि जब उसका वध हुआ तो नर्क के द्वार बन्द हो गए। तो कहा जाता है कि लोगों इस दिन प्रातः काल जल्दी स्नान कर लेना चाहिए. परन्तु मेरे विचार में उस दिन यदि दरवाजा खुला हो तो अच्छा होगा कि स्नान न करो। जब तक उस राक्षस को पूरी तरह से नर्क में नहीं डाल दिया जाता तब तक अपने बिस्तरों में रहो। उसकी चिन्ता आपको नहीं करनी चाहिए। नर्क से बाहर धकेलकर उसका वध किया गया था। दीवाली का अगला दिन सर्वोत्तम है क्योंकि इस दिन श्री राम-भरत मिलाप हुआ था। पिता की आज्ञा मानकर श्री राम जंगल में गए और चौदह वर्ष तक जंगलों में रहे। महलों में रहने वाले राजकुमार के लिए जंगल जेल सम थे। सौतेली माँ और पिता की आज्ञा को मानकर वे जंगल भी गए थे। उनकी पत्नी और छोटा भाई भी उनके साथ गए और वहाँ बहुत पूजा करना गलत है। इसका अर्थ है कि धन या सम्पत्ति के रूप में जो भी लक्ष्मी हमारे पास है उसे सावधानी पूर्वक खर्च किया जाना चाहिए क्योंकि लक्ष्मी अति चंचल है और यह धीरे से खिसक जाती है। परन्तु किसी भी प्रकार से आपको कंजूस नहीं होना है। कंजूस लोगों से देवी लक्ष्मी कभी प्रसन्न नहीं होती। फिर भी खर्च करते हुए हमें सावधानी पूर्वक देखना है कि धन ठीक प्रकार से खर्च हो। समुद्र मन्थन के समय जब लक्ष्मी जी अवतरित हुई तो उनके चार हाथ थे। एक हाथ देने के लिए था जो उदारता का प्रतीक है। वे एक हाथ से देती हैं और दूसरे से आशीर्वादित करती हैं। एक हाथ देने के लिए है और दूसरा हाथ आशीर्वाद प्रदान करने के लिए। इसका अर्थ ये हुआ कि किसी को यदि आप कुछ दें तो उसे भूल जाएं और उस व्यक्ति को आशीर्वाद दें। केवल धन देना ही काफी नहीं है, उसे आशीर्वाद देना भी आवश्यक है। अन्य दो हाथों में वे गुलाबी रंग के कमल धारण करती हैं। गुलाबी रंग कष्ट उठाए। जिस युवक को राजा बनना हो वह जंगलों में जाकर कष्ट उठाए! परन्तु सीताजी उनके साथ गई और हर कदम पर उनका साथ दिया। जंगल 26 चैंतऱ्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 7 &8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-28.txt प्रेम का रंग है और वैभवशाली व्यक्ति का घर फ्रेम से परिपूर्ण होना चाहिए। घर आए अतिथि का सम्मान होना चाहिए। उसे परमात्मा सम माना जाना चाहिए । आपने देखा होगा भारत में विदेशियों से कैसा व्यवहार किया जाता है। भारत में विदेशी का अर्थ परमात्मा है। यश्चिम में विदेशी (Foreigner) नकारात्मक शब्द है, लोगों से उनका धन छौन रहे हैं। आपका सारा धनं बर्बाद हो रहा है इसके अतिरिक्त लोग स्त्री लम्पट, नशों तथा विनाशकारी आदतों में फंस जाते हैं। ये तथाकथित लक्ष्मी पति कोई ऐसा कार्य नहीं करते जो वास्तव में लक्ष्मी जी का आशीर्वाद है। जब भी आप किसी को कोई चीज़ देना चाहें तो पूरे हृदय से दें, इतने पूर्ण हृदय से कि यह लक्ष्मी-प्रसाद बन जाए। ऐसा अगर नहीं होता तो किसी को उपहार देने का क्या लाभ है? संकीर्ण दृष्टिकोण के लोग जो उपहार देते हैं वे बड़े अजीबोगरीब हैं, परन्तु बे उपहार देने का प्रयत्न करते हैं। जैसे यदि आप जापान जाए तो वे आपको बहुत बड़ा उपहार देंगे। आप इसे खोलते चले जाएं, खोलते चले जाएं और अन्त में इसमें से एक माचिस निकलेगी या माचिस की तिलियों से बनी हुई कोई चीज़। इसे देखते रहें कि ये क्या है और इसके लिए परन्तु भारत में ये अत्यन्त सम्मानजनक है। आप यदि विदेशी हैं तो आपसे बात करना भी उचित नहीं समझा जाता। ये मानसिकता मेरी समझ में नहीं आती परन्तु सहजयोग में ऐसा नहीं है सहजयोगी ऐसे नहीं हैं, वे अतिथि का वहुत सम्मान करते हैं। मैंने सुना है कि बे एक दूसरे का सम्मान करते हैं और अत्यन्त सामूहिक हैं। तो कमलों का यही अर्थ है-प्रेम से परिपूर्ण घर। कंटीला भवरा भी यदि आकर कमल में बैठ जाए तो शाम के समय कमल बन्द हो जाता है और भवरा सुख से उसमें विश्राम करता है। भंवरा बिल्कुल परेशान नहीं होता। वैभवशाली व्यक्ति का आचरण भी ऐसा ही होना चाहिए। परन्तु संसार में में देखती हूँ कि वैभवशाली लोग भंवरे सम हो जाते हैं। वे अत्यन्त कंटीले, असम्माननीय हो जाते हैं, अपने सम्मान का भी उन्हें विचार नहीं रहता । कितनी हैरानी की बात है कि लक्ष्मी स्वरूप धन पाकर वे असुरों जैसे हो जाते हैं और लोगों से राक्षसों से भी बुरा ये इतना बड़ा नमूना वयों बनाया गया? हैरानी की बात है! अन्यथा वे लोग बहुत ही सादे हैं जहाँ भी हम गए, एक छोटी सी दुकान में भी, जबकि वर्षा हो रही थी, वहाँ भी उन्होंने हमें उपहार दिया। मैंने पूछा, ये हमें इस तरह से उपहार क्यों दे रहे हैं? तो हमारे साथ जो अनुवादक महिला थी, उसने बताया कि वो आपको शाही परिवार से समझ रहे हैं मैंने पूछा. कि उन्हें ऐसा क्यों लगता है? क्योंकि आप हज्जाम के में व्यवहार करते हैं। तो यह देवी का महत्व है। देवी लक्ष्मी का सर्वोत्तम गुण ये है कि वह कमल पर विराजमान है अर्थात् वे किसी पर बोझ नहीं हैं। अपने आप में वे स्थित हैं किसी पर वे बोझ नहीं बनतीं। अपने आप में अपने पूरे बदन को संभाले हुए पूर्ण संतुलन एवं गरिमा में वे खड़ी हैं। लक्ष्मी को ऐसा ही होना चाहिए और जिन देशों में लोग अब आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, यदि ऐसा हो जाए, तो स्थिति में सुधार होगा, लोग आनन्द लेंगे। आजकल लोग आनन्द नहीं लेते। उन्हें तो बस कोई बहुत ही महंगी, डिजाइनर्स की बनाई हुई चीज लेने की इच्छा बनी रहती है। मेरे विचार में ये रूपांकनकार लक्ष्मीविरोधी हो गए हैं क्योंकि अपने रूपांकन से वे पास नहीं जातीं। मैंने कहा, वास्तव में? हाँ जापान शाही परिवार के लोग हज्जाम के पास नहीं जाते। मैंने कहा मुझे तो इस बात का पता ही न था। कल्पना करें कि लोगों के विचार किस तरह के हैं। परन्तु भारत में महिलाओं के लिए उचित प्रकार से बालों में कंघी करना आवश्यक है। महिला को हिष्पी की से तरह से प्रतीत नहीं होना चाहिए क्योंकि बहुत लोग अपने बालों को हिप्पियों की तरह से भी बनवा लेते हैं। जैसा मैंने आपको बताया, महिलाओं की समाज में बहुत बड़ी भूमिका है। वो क्या पहनती हैं. किस प्रकार उसका आचरण है, बच्चे उनसे भी आगे माता और पिता दोनों से आगे। परन्तु सभी अच्छाइयां वे अपनी माँ से लेते हैं। अत: निकल जाते हैं 27 चैतन्य लहरी खंड : X1 अंक : 7 8 8, 1999. ी 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-29.txt कुछ जानता हूँ।" उन्हें कुछ नहीं पता होता फिर भी पुरुष कभी नहीं कहते कि मुझे इसका ज्ञान नहीं है। उसका चरित्र ही ऐसा है। ठीक है आपको समझ लेना चाहिए कि उसका मतलब वास्तव में ये नहीं है क्योंकि उसे इसका ज्ञान है ही नहीं। कला के विषय में भी, मेरे विचार में पुरुष अधिक नहीं जानते, सौन्दर्य संवेदना में भी उनका एक भाग गायब है। बेचारे एक ही प्रकार के वस्त्र बनवाते हैं और सभी जगह उसे पहनते हैं। एक ही प्रकार के वस्त्र सभी जगह पहनते हैं एक ही प्रकार के वस्त्र बनाकर हर जगह उन्हीं को पहने जाना! उनकी कोई माँग नहीं होती। परन्तु महिलाएं कलात्मक होती हैं। यदि भारतीय महिलाएं साड़ियाँ पहनना छोड़ कर जीन्स अपना लें तो ग्रामीण लोग, जो छुट्टियों तथा खाली समय में साड़ियाँ आदि बनाते हैं, कहाँ जाएंगे? तो भारत में ये वेशभूषाएं प्रचलित कर पाना असंभव है। हो सकता है स्कूल या पाठशाला तक ये चल निकलें। इसके पश्चात् लड़कियाँ इन्हें छोड़ देंगी क्योंकि उन्हें साड़ी ही पसन्द है। साड़ी अब भी प्रचलित है और आगे भी रहेगी क्योंकि ये कलात्मक महिलाओं के लिए ये समझना आवश्यक है कि वे किस प्रकार के वस्त्र पहने, किस प्रकार से रहें। लन्दन में मैंने एक भारतीय सहजयोगिनी से पूछा कि आजकल कौन सा फैशन चल रहा है। तो उसने मराठी में कहा झिप्परिया। झिप्परिया अर्थात बालों का एक विशेष फैशन। भारत में यदि आप इस प्रकार से बालों को बनाएंगी तो माँ कहेंगी कि बालों को ठीक करो नहीं तो तुम्हारी आँखें भैंगी हो जाएंगी। परन्तु बालों को इस तरह से बनाना फैशन है और कभी-कभी तो बालों को आँखों पर डाल लेती हैं। तो ये झिप्परिया फैशन है जो आजकल बहुत चल रहा है। मैं देखती हूँ कि श्रीमती थैचर के अतिरिक्त बहुत सी गरिमामय महिलाएं भी ऐसे ही बाल बनाने लगी हैं। न जाने श्रीमती थैचर किस प्रकार बची रह गईं। परन्तु महिलाओं को इस प्रकार की चीज़ों की नकल नहीं करनी चाहिए। ये तो दासत्व है। लेकिन फैशन हैं तो इसलिए वे करेंगी। इस प्रकार करना और फैशन बनाने वालों के हाथों में खेलना मूर्खता है। आप स्वतन्त्र हैं अपने चरित्र में और सूझ-बूझ में बनी रहें। फैशनों द्वारा अपनी शक्ल विगाड़ने के स्थान पर अपनी गरिमा तथा सूझ-बूझ से अपने सौन्दर्य को सुधारने का प्रयत्न करें। स्त्रियों के विषय में ही अधिक कह रही हूँ, मुझे खेद है; परन्तु लक्ष्मी पूजा का सम्बन्ध महिलाओं से ही अधिक है उन्हें ही ये सब समझना है कि उन्हें नया बनना है है और तुन्दर। एक साड़ी दूसरे साड़ी जैसी नहीं लगती। तो सौन्दर्य और कला का विचार महिलाओं को है पुरुषों को नहीं। महिलाओं को देखना चाहिए कि यदि पुरुषों को इसका ज्ञान नहीं है तो कोई बात नहीं, परन्तु उनको अपने घर पूर्णत: कलात्मक बनाने चाहिएं। घर को कमल की तरह से सुखदायी बनाया जाना चाहिए। कुछ महिलाएं अपनी गृहस्थी में हिंटलर की तरह से आदेश देती हैं, ये ऐसे होना चाहिए, ये वैसा होना चाहिए और इस प्रकार पुरुषों का जीवन दयनीय बना देती हैं। में एक ऐसे व्यक्ति को जानती हूँ जो अपने घर में भी समाचार पत्र साथ रखता था। पूछा कि हर समय आप इसे क्यों उठाए रखते हैं तो कहने लगा, "जब भी मैं बैठता हूँ इसे बिछा कर इस पर बैठता हूँ क्योंकि यदि मेरे कपड़े जरा भी खराब हो जाएंगे तो मेरी पत्नी मुझ पर बरसेगी, वो नहीं चाहती कि कोई भी चीज़ खराब हो। वो इतनी तुनकमिज़ाज है । इसलिए मैं हमेशा और किस प्रकार? मैं आपको बता चुकी हूँ कि महिलाओं के लिए गरिमामय होना आवश्यक है, पुरुषों की अपेक्षा कहीं अधिक आवश्यक। पुरुष मूर्ख हो सकतें हैं, कोई बात नहीं परन्तु महिलाओं को गरिमामय एवं विवेकशील होना ही चाहिए। पुरुषों को इतनी समझ नहीं होती जितनी आपको है। पुरुष विश्वविद्यालयों में शिक्षित होते हैं परन्तु उन्हें व्यवहारिकता का बिल्कुल ज्ञान नहीं होता। इसका आपको बुरा नहीं मानना चाहिए। पुरुष जिस प्रकार गलतियाँ करते हैं उन्हें देखने में मज़ा आता है, और फिर वे कहे चले जाएंगे, "नहीं, नहीं नहीं। मैं इसके विषय में सब मैंने उससे 28 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 7 &৪, 1999 का 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-30.txt समाचार पत्र अथने साथ सखता हूँ मैंने कहा ये तो अति है। कहने लगा एक दिन आपको भी ऐसा ही करना पड़ेगा। कुछ महिलाएं घर के विषय में इतनी तुनकमिज़ाज होती हैं कि उस घर में रहना असंभव होता है। ऐसे घर अस्पताल से भी बदतर हैं। कुछ महिलाएं ऐसी हो सकती हैं परन्तु सामान्यत: महिलाओं को अत्यन्त प्रेममय और भद्र होना चाहिए और परिवार के सभी सदस्यों तथा अन्य सभी लोगों से वे कुछ बना रहे थे और उनकी टाइलों के नमूने मुझे बहुत अच्छे लगे, मैंने कहा कि क्या मैें इनमेंसे एक टाइल ले जा सकती हूँ। कहने लगे नहीं नहीं कोई बात नहीं है हम आपके जहाज पर भेज देंगे, और जहाज पर बहुत बड़ा बंडल टाइलों का भेज दिया। कप्तान ने आकर मुझसे पूछा कि हम इनका क्या करें? मैंने कहा आपको ये कैसे मिले? कहने लगा ये आपके लिए सभी प्रकार के टाइल ले आए हैं! क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं । एक ओर तो यह अभिव्यक्ति का तरीका है परन्तु दूसरी ओर ये काफी भिन्न है। तो व्यक्ति को उपहार के महत्व को प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए। ऐसा होना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि हमारा परिवार बहुत बड़ा है। बहुत बड़ा परिवार है हमारा, इतने सारे भाई-बहन हैं और एक से एक अच्छे हैं। प्रशंसनीय बात ये है कि सभी में भिन्न सुगन्ध है जिससे उनका व्यक्तित्व झलकता है। इसके बावजूद भी वे अत्यन्त अच्छे हैं, बहुत भद्र हैं और आनन्दपूर्वक मिलकर रहते हैं विशेष तौर पर रूस में मैंने देखा है कि महिलाएं वहुत ही मिलनसार और विनोदप्रिय हैं. वे जीवन का पूरा आनन्द लेती हैं। बहुत हैरानी की बात है, हम उनके लिए उपहार ले गए थे-लगभग समझना चाहिए, उसके लिए बुरा नहीं मानना चाहिए उसका महत्व बहुत अधिक हो सकता बेहतर होगा कि उन्होंने बो चीजें आपको क्यों दी? इसी को हम मंगलमयता कहते हैं। मंगलमयता लक्ष्मी जी का महान गुण है। जो भी कुछ आप दें वह मंगलमय होना चाहिए। कई बार मैंने देखा है कि शरारत के कारण बच्चे मुझे गिलहरी देने की कोशिश करते हैं। ऐसा करना है। ये पूछना दो हजार उपहार, परन्तु वहाँ तो सोलह हज़ार लोग थे। किस प्रकार उन्हें उपहार दिए जाते? तो महिलाओं ने अपने गले से जंजीरें उतारकर कहा कि हम पुरुषों को ये उपहार दे देते हैं। जिन सहजयोगियों को उपहार न मिल पाने के कारण बुरा लग रहा था उन पर मज़ाक करते हुए महिलाओं ने कहा, ठीक हे हम इन्हें अपने कर्णफूल (Ear Tops) दे देते हैं। इतना मजाक, इंतनी समझदारी इसलिए थी कि वे लोग धन लोलुप नहीं हैं। मैरे विचार में वे अत्यन्त आध्यात्मिक लोग हैं। तो एक आध्यात्मिक महिला को इन सब चीज़ों की परवाह नहीं करनी चाहिए और अपनी गरिमा को बनाए रखना चाहिए और अपने हर कार्य से ये दर्शाना चाहिए कि वह आध्यात्मिक है। ये सब अत्यन्त मधुर मैं आपको बता रहो थी कि एक और तो आप कभी-कभी कुछ अलग महसूस करते हैं-जैसे मैंने जापान के विषय में बताया। जापान में जब में गई तो वहाँ के टाइल (Tile) मुझे बहुत पसन्द आए अशुभ है। परन्तु उन्हें इसके बारे में बताया नहीं गया होता कि यह अमंगलमय है, यही कारण है कि वे ऐसे कार्य करते रहते हैं। बच्चों को बताया जाना चाहिए कि यह मंगलमय नहीं है और इससे देवी प्रसन्न नहीं होंगी। तो ये बात भली-भांति समझ ली जानी चाहिए कि अशुभ उपहार देकर लक्ष्मी का अपमान करने का प्रयत्न नहीं किया जाना चाहिए। आप यदि इस बात को नहीं जानते तो इसे समझ लें और भली-भांति इस कार्य को करें। दिवाली का संदेश ये है कि श्रीराम को राज्य दिया गया। श्री राम न्याय एवं ईमानदारी की प्रतिमूर्ति थे इसलिए उन्हें राजगद्दी सौंपी गई। इसी प्रकार हमें भी महसूस करना है कि कृतज्ञता और प्रेम की हमारी अभिव्यक्ति ऐसे व्यक्ति के लिए होनी चाहिए जो श्री राम की तरह से महानता का प्रतीक हो। है। यह अत्यन्त सूक्ष्म बात है जिसे समझने का प्रयत्न किया जाना चाहिए। आप यदि नहीं देना चाहते तो मत दें परन्तु यदि आप देना चाहते हैं चैतन्य लहरी । 29 खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-31.txt अच्छा है। वास्तव में दिवाली समाप्त हो चुकी हैं। पर मैं आप सब लोगों को मंगलमय दिवाली तथा सम्पन्नता पूर्ण नव वर्ष की कामना करती हूँ। तो व्यक्ति के योग्य चीज़ उसे दें। श्री राम के स्वभाव से हमें यह शिक्षा मिलती है। जंगल में उन्हें एक छोटी जाति की वृद्ध महिला मिली जिसके दाँत झड़ चुके थे वह श्री राम से कहने लगी कि ये बेर चखकर मेंने आपके लिए रखे हुए हैं ताकि खट्टे बेर मैं आपको न खिलाऊं इसलिए अपने दाँतों से मैंने इनको चखा है। ये बहुत मीठे हैं कृपा करके इन्हें स्वीकार करें। तुरन्त श्री राम ने वे बेर स्वीकार किए। श्री लक्ष्मण इस पर बहुत नाराज़ हुए क्योंकि किसी की झूठी की हुई चीज़ भारत में किसी को खाने के लिए नहीं दी जाती। परन्तु श्री राम ने कहा, "मैंने कभी इतने मधुर फल नहीं खाए ये बेर तो बहुत ही अच्छे हैं। श्री सीताजी ने भी उनसे ये बेर लेकर परमात्मा आपको धन्य करे। यही लक्ष्मी महालक्ष्मी का रूप धारण करती है अर्थात् जब आप धन के मूल्य को समझते हैं, इसका बाहुल्य जब आपके पास हो जाता है तब आप इससे तुंग आ जाते हैं। अन्दर से आप विरक्त हो जाते हैं और लक्ष्मी का एक नया रूप प्रकट होता है - वह महालक्ष्मी है। यह वह शक्ति हैं जो आपको बुलंदियों पर ले जाती है जो कि आध्यात्मिक जागृति है। आपने देखा है कि अत्यधिक कैभवशाली देशों में लोगों में सत्य को प्राप्त करने की इच्छा खाए। तब लक्ष्मन जी ने भी क्षमा माँगकर वे फल जागृत हुई। सत्य को प्राप्त कर लेने की इच्छा के कारण ही आप सब लोग यहाँ उपस्थित हैं । इसका अर्थ ये हुआ कि महालक्ष्मी शक्ति ने आपके अन्दर कार्य करना आरम्भ कर दिया जिसके फलस्वरूप खाए। इससे यह पता चलता है कि श्री राम ने शबरी के प्रेम और उसकी चैतन्य लहरियों को उन फलों में महसूस कर लिया था, इसी कारण उन्होंने ये बेर अपनी पत्नी को भी दिए। अत: जो कुछ भी आप करें पूरे प्रेम से करें। प्रेम से किया गया कार्य मंगलमय हो जाता है। परन्तु यदि उसमें प्रेम का अभाव है या किसी स्वार्थ के कारण यह कार्य किया गया है तो यह बेकार हो जाता है। श्री राम जैसे महान अवतरण को भी फल भेंट करते हुए शबरी के मन में केवल प्रेम था। इसी प्रकार आपको भी स्वच्छ हृदय होना चाहिए तभी आप जञान सकेंगे कि करने के लिए कौन सा कार्य सबसे है। सत्य को खोजते हुए आप सहजयोग में आए। यह महालक्ष्मी आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है कोल्हापुर में स्वयंभू महालक्ष्मी का मन्दिर है परन्तु वहाँ के लोग ये नहीं जानते कि महालक्ष्मी के मन्दिर में जाकर वे जोगवा क्यों गाते हैं। वे प्रार्थना करते हैं कि हे अम्बे, आप जागृत हों। अम्बे, कुण्डलिनी को कहते हैं। तो आप समझ सकते हैं कि महालक्ष्मी के मन्दिर में उन्होंने जोगवा क्यों गाना शुरू किया। जोगवा कुण्डलिनी को जागृत करने के लिए प्रार्थना ंघड प ि नि गिचानी रभ ं ण चा पुर ब तस नाथ ी हिह के है खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 नाच 30 चैतन्ये लहरी ॥ |र म पा ा] 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-32.txt नैतिकता व देशभक्ति रक त परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का सार्वजनिक प्रवचन रामलीला मैदान, दिल्ली 18.12.98 कुम की जो ज्ञान की प्रणाली है वो इस तरह है कि सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों की हमारा नमस्कार। हम सत्य को खोज रहे हैं। किन्तु कौन सी जगह खोजना चाहिए? कहाँ फौरन वो देखने लगते हैं, उसका निरीक्षण करते खोजना चाहिए। कहाँ ये सत्य छिपा हुआ है? ये हैं और उसका विश्लेषण करते हैं कि ये बात पहले समझ लेना चाहिए। आप देखिए कि कहाँ तक सही है। ईसा मसीह ने भी, ग्र कोई परदेस से हजारों लाग हर एक देश से यहाँ आते हैं। उनसे पूछा जाए कि तुम यहाँ क्यों आए तो विश्लेषण से जो असलियत है वो पता नहीं वे कहते हैं कि हम यहाँ सत्य खोजने आए हैं। लगती और उससे दूसरे विद्वप रूप सामने आ हमारे देश में तो सत्य नहीं है लेकिन भारतवर्ष जाते हैं। में सत्य है। ये समझकर के हम यहाँ आए। और इस सत्य की खोज में हर साल हजारों लोग इस देश में आते हैं और हज़ारों वर्ष से आते हैं । विशेषता, पवित्रता है कि यहाँ इतने ऋषि मुनि आपने सुना ही होगा, इतिहास में चाइना से और और इतने मनन करने वाले महान लोग हो गए, देशों से लोग यहाँ आते थे, और उनको हजारों वर्षों से, ग़र कोई बात कोई आदमी कहता है तो उसको बात कही. तो उसका विश्लेषण हो जाता है। उस अब ये सोचना है कि अपने देश की प्रणाली कैसी है? एक तो इस देश में कोई तो भी दूर और वो बढ़ते-बढ़ते सोलहबीं पता नहीं कैसे मालूम था कि इस देश में ही शताब्दी तक हम देखते हैं कि यहाँ गुरु नानक सत्य निहित है, छिपा हुआ है खोज में वो गिरी-कन्दराओं में घूमते थे, हिमालय सत्य पे काफी कुछ लिख दिया। काफी कुछ और उसकी जैसे अनेक ऐसे साधु-संत हो गए कि उन्होंने कहा गया, समझाया गया लेकिन हमारी जो तरह से हम सत्य को खोज लें। क्योंकि वो प्रणाली है वो इस तरह की है कि जो ऐसे पहुँचे किसी भी धर्म का पालन करते नहीं थे लेकिन हुए पुरुषों ने लिखा है, उसका हम बहाँ ग़ौर नहीं वो जानते थे कि सिर्फ इस धर्म पालन से हमें करते, उसकी हम चर्चा नहीं करते, उसको हम सत्य नहीं मिलना। ये तो एक मार्ग-दर्शक है । शास्त्रीय दृष्टि से नहीं देखना चाहते क्योंकि वो वो ऊँची स्थिति पे है वहाँ रास्ता है। किन्तु इससे हम पाते नहीं हैं इसलिएसे उन्होंने ग़र कोई बात कह दी तो उसको हम इस अधूरेपन से परेशान होकर के वो अपने मान्य करके उस रस्ते पर चलते हैं। ये हमारे भारतवर्ष में आते थे। अब ये सत्य हमारे देश में देश की विशेष, विशेष तरह की एक प्रणाली है जिसमें हम एक श्रद्धा भाव से, एक विश्वास के अत्यन्त आवश्यक है। अपने यहाँ की प्रणाली साथ, इस चीज़ को मानते हैं कि जो बड़े पहुँचे और परदेस की प्रणाली में बहुत अन्तर है । वहाँ हुए आध्यात्मिक स्तर के ऊँचे मार्ग में रहते हुए पे जाते थे हर तरह के प्रयत्न करते थे कि किसी जैसे रास्ते पर इशारे से लिखा जाता है कि ये पहुँचे हुए लोग हैं। था और है और अब भी है। इस सत्य को पाना 31 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-33.txt लोगों ने लिखा है वही बात सही है। उसमें झूठ है कि बाहर है? नहीं। उसको पड़तालने का, उसका विश्लेषण करने का हमें कोई अधिकार नहीं क्योंकि हम कोई ऐसे बुद्धिमान नहीं हैं। ऐसे हम पहुँचे हुए लोग नहीं हैं, हमारे में इतने शास्त्र वगैरा का कोई ज्ञान नहीं है, न ही हम गहराई से कोई चीज अपने देश की जो सम्पत्ति है वो इतनी ज्यादा, इतनी गहरी, इतनी अचल है कि उसको देखना, जानना हम हिन्दुस्तानी अपना कर्त्तव्य ही नहीं समझते। यहाँ की संस्कृति के बारे में तो कुछ बता ही नहीं सकते कितनों ने मुझसे कहा, खासकर हमारे जो परदेसी सहजयोगी हैं, कि माँ आप एक किताब हिन्दुस्तान की जो खासकर गहरी बातें हैं उस पर लिखो। सो मैंने कहा कौन जानते हैं। एक बार इस बात को समझ लेने पर हम श्रद्धा पूर्वक उस महान तत्व को मानते हैं। जो हमारे सामने इन ऋषि मुनियों ने रखा। विदेश में भी मैंने देखा, कि बड़े-बड़े सी गहरी बातें? तो कहने लगे संस्कृति। भारतीय वहाँ पर सूफी लोग हो गए और उन्होंने बिल्कुल संस्कृति पर आप एक किताब लिखो। मैंने कहा सहज की बातें करी हैं विल्कुल सहज की ही ये तो महासागर हैं। इस सागर में से में आपको बात करी है। लेकिन उनको कोई मानता नहीं है सूफियों को, उनकी मान्यता बहुत ही थोड़ी सी लिखने पड़ेंगे। एक छोटी सी बात हम सब है। थोड़े से लोग उनको मानते हैं और सिर्फ हिन्दुस्तानियों के लिए बताती हूँ, मैं मजाक की उनकी कविता पढ़के बड़ा मनोरंजन कर लेते हैं बात, कि एक विदेशी महिला थी। एम्बेसेडर की पर उन्होंने जो कहा उस मार्ग पर नहीं चलते। ऐसे हरेक देश में बड़े-बड़े सूफी हो गए हैं । इंग्लैण्ड जैसे देश में भी विलियम ब्लेक जैसा क्या दें सकती हूँ? उसके लिए तो ग्रन्थ पे ग्रन्थ बीबी थी वो, वो हमारे पास आईं। गले में वो हार पहने हुए थी तो मुझे ये कहने लगी मेरी समझ में ये हिन्दुस्तानी नहीं आते। मैंने कहा क्या हुआ? कहनं लगी मैं एक फूलों की दुकान में गई थी और उस दुकान में बड़ा सुन्दर एक हार एक बड़ा भारी संत हो गया लेकिन उसकी बात कोई नहीं मानते हैं। हमने तो कभी कालेज में भी उसका नाम नहीं सुना था लेकिन हम जानते था, वो खरीद कर मैंने पहन लिया। तो वो जो थे कि वो है। जब लन्दन गए तो पहली मर्तबा लड़की थी जिसने बेचा वो पेट पकड़ पकड़ हमने उनकी किताबें खरीदीं। उसका कारण यह है कि विलियम ब्लैक पागल है, जितने भी सू. फी थे सब पागल हैं। सब अपने ऋषि मुनि भी लिया। मैंने कहा अब इसको कैसे समझाएं? मेंने पागल हैं, इनके हिसाब-किताब से। इस तरह की जो अहंकारिता परदेस में है. वो इस देश में तभी हार पहनाया जाता है। आप अपना ही नहीं है। नहीं थी, ऐसा कहें क्योंकि अब तो हम बिल्कुल परदेसी हो रहे हैं। हमें अपने देश के बारे में कुछ मालूमात ही नहीं। हमारे स्कूलों में हिन्दुस्तानी जो संस्कृति है उसके लिए बड़ी बच्चों को कुछ मालूम ही नहीं । किसी बच्चे से हास्यास्पद चीज़ है, इससे सबको हँसी आएगी। हमने पूछा कि तुम अजन्ता के बारे में कुछ उसने कहा ये हिन्दुस्तानी जो, भारतीय आपकी जानते हो तो कहने लगा, अजन्ता हिन्दुस्तान में जो चीज़ है ये बड़ी गहरी है। मैंने कहा, हाँ ये कर हँसने लग गई और रास्ते में सब लोग मेरे ऊपर हँस रहे थे क्योंकि मैंने गले में हार पहन कहा भई देखो यहाँ कोई ग़र आपका आदर करे आदर तो कर नहीं सकते। तो आप ग़र खुद आदर करें अपना और हार पहन लें तो ये तो 32 चैतन्य लहरी खंड : X1 अंक : 7 & 8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-34.txt तो आप कोई भी हिन्दुस्तानी होगा ये बात समझ तो गणेश की स्तुति फिर सरस्वती की स्तुति, जाएगा कि इस तरह से अपने को आगे बढ़ा कर रहना और इस तरह से अपने गले में हार पहन के घूमना, ये चीज़ बड़ी ही निन्दनीय है। क्योंकि इसमें नम्रता नहीं, इसमें ये समझ नहीं कि हम हैं कौन? हम अपने को क्या समझे बैठे हैं? इस बात को लेकर के मैं कहूँगी कि महात्मा गाँधी ने जो आन्दोलन चलाया था वो की भी उसमें कुछ न कुछ श्लोक होते थे। पर बिल्कुल उल्टा पड़ गया। जब हम गाँधी जी के साथ थे, उनके साथ रहे और उन्हीं के बहुत बैठे हुए सारी बातचीत और उनका ढंग जो था वो था, इस तरह से करते-करते उन्होंने हर एक चक्र के जो अधिष्ठित देवता थे, उनके ऊपर अपनी भजनावली में लिखा था और उसी तरह से गाने का। उसके बाद बाइबल से भी Lords Prayer कही जाती थी, उसके बाद कुरान से भी कहा जाता था और भी बुद्ध धर्म का भी और जैन धर्म पहला जो हिस्सा था उसमें एक-एक चक्र पे हरेक देवता को उन्होंने लिया था। इतने आध्यात्मिक दृष्टि से देखते थे। वो कुण्डलिनी हालांकि वो भी परदेस के पढ़े हुए थे, कि के बारे में जानते थे. चक्रों के बारे में जानते थे । अपनी भारतीय संस्कृति को उभारना चाहिए। उसके बौर ये संसार नहीं बच सकता। इस पर संसार को बचाना है तो भारतीय संस्कृति का यहाँ एक बढ़िया उदाहरण होना चाहिए, मसला होना चाहिए जिसको देखकर लोग समझ जाएं तो बहुत छोटी लड़की थी लेकिन तब से वो कि ये भी एक ज़िन्दगी है, इसमें भी एक आनन्द है। उनके यहाँ चार बजे उठने की प्रथा थी। चार बजे उठके नहा-धोकर के और आपको है? अब इस संस्कृति के बारे में कहना बहुत सब कुछ जानते हुए उन्होंने इस चीज़ को लोगों में लाने की कोशिश की, ऐसी भजनावली लिखाई जिसमें इस तरह से सब चीज़ें लिखी गई। अध्यात्म के बारे में बहुत मुझसे भी पूछते थे मैं पूछा करते थे कि तुम बताओ। कौन सी गहनता हमारी संस्कृति की विशेष ज़रूरी है क्योंकि गाँधी जी को तो लोगों ने भुला दिया। गाँधी जी तो बिल्कुल बेकार हो गए प्रार्थना में जाना पड़ता था। प्रार्थना में जाकर आप बैठिए तो, वहाँ साँप भी बहुत एक-आध साँप आपके सामने डोलता हुआ क्योंकि उनका आध्यात्म तो कहीं दिखाई ही दिखाई देता था पर कुछ कभी किसी को काटा नहीं देता। आज राज कारण में अध्यात्म की तो हो बिच्छु ने भी तो पता नहीं। इतना वातावरण थे कभी-कभी कोई बात ही नहीं करता। आध्यात्म में हम उनका शुद्ध था। वहाँ नम्रतापूर्वक सब लोग, हर हिन्दुस्तानी नहीं जाएंगे तो कौन जाएगा उसमें? एक जाति के हर एक धर्म के लोग बैठके कौन उसको समझेगा? आज आप देख रहे हैं, प्रार्थना करते थे और प्रार्थना में संगीत आदि सब यहाँ पचहत्तर देशों के लोग आकर के बैठे हुए कुछ होता था। उन्होंने जो भजनावली भी लिखी हैं। पचहत्तर देशों के लोग आए हुए हैं और है, आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि में इस बात को जानती हूँ कि वो कितने आध्यात्मिक थे कि इन्होंने आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त किया। इन्होंने सारे कुण्डलिनी के ही चक्रों पर उन्होंने एक के बाद एक, एक के बाद एक इस तरह से सारे के नहीं, इंगलिश संस्कृति के नहीं, फ्रैंच संस्कृति श्लोक लिखे। पूरे, सबसे पहले उन्होंने लिखा था के नहीं, उल्टे जिस देश से आए हैं उस देश की पचहत्तर देशों में ये अध्यात्म फैल गया और अपनी संस्कृति को पकड़ा, अमरीकन संस्कृति 33 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 7 8 8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-35.txt संस्कृति को कहते हैं कि ये तो बिल्कुल ही उन्होंने जौहार किया था औरतों की इज्ज़त, आबरू (Chestity) ये सबसे बड़ी शक्ति है. का हनन करती है। ये हमें नैतिकता से गिराती ऐसा हम लोग मानते हैं अपनी संस्कृति में जिस जगह औरतों की इज्जत और आवरू हट जाती नहीं समझना चाहिए? हम लोग तो ऐसी-ऐसी है उस जगह में राक्षस और भयंकर राक्षस और हर तरह के भूत आकर रहते हैं। ये बात आप है। पतन की ओर ले जा रही है। ये हमारे आत्मा है। इन लोगों ने समझ लिया अब हम लोगों को चीज़ों का वरण करते हैं, ऐसी-ऐसी चीज़ों के लिए लड़ते हैं जहाँ नैतिकता का विचार है ही साक्षात् देख सकते हैं। अमेरिका में हो रहा अमेरिका में इतनी गंदी चीज़ें हो रही हैं कि मैं है कि हम लोगों को नैतिक होना चाहिए। तो आपके सामने बता नहीं सकती । यहाँ तक नैतिकता के अनेक नियम है । पर अपने देश में, की अपने ही बच्चों को वहाँ लोग मार डालते इस संस्कृति में सबको बिल्कुल पूरी तरह स्वतंत्रता हैं इस कदर गंदगी वहाँ है क्योंकि आप अभी है। पूर्णतया स्वतंत्रता है कि आप स्वतंत्र हैं चाहे वहाँ गए नहीं, बाहर के ढोल सुहाने होते हैं। वहाँ आप नैतिक होना चाहें, चाहे आप कुछ होना के लोगों में जरा सा भी भय नहीं है। परमात्मा नहीं। सबसे बड़ी चीज़ अपनी संस्कृति की देन चाहें हो जाइए क्योंकि अंतिम स्थिति में आपको पूर्णतया स्वतंत्रता मिलती है। अब स्वतंत्र समझना चाहिए। 'स्व' के तंत्र को जानना यही स्वतंत्रता है। और 'स्व' माने का भय नहीं है। परमात्मा की शक्ति का विश्वास तक है कि नहीं, पता नहीं। सब कुछ पैसा सब कुछ पैसा। किसी भी तरह से पैसा लो। हमारे एक वहाँ हैं उनसे किसी अमेरिका के आदमी ने क्या? स्व माने आपकी आत्मा। आत्मा को कहा कि भई तुमको इतना-इतना रुपया देता हूँ तुम फ़लानी औरत को मार डालोगे? उसने कहा भविष्य के बारे में, कि 'स्व' का तंत्र जानो, न न मैं कभी नहीं मार सकता। कहा क्यों? पत जानना ही स्वतंत्रता है। शिवाजी ने कहा था, पहली चीज़। 'स्व' के तंत्र को जानना होगा और कहने लगा नहीं नहीं मैं नहीं मारना चाहता, वही सहजयोंग है, जिससे आप स्व के तंत्र को जानते हैं। और इस 'स्व' के तंत्र को जानने के कहने लगा पैसे के लिए क्या दुनिया के लिए, लिए सबसे सहज मार्ग जो है वो है भारतीय मैं नहीं मार सकता। उसने कहा में तो मार दूंगा। संस्कृति। इसकी गहराई में आप उतर ही नहीं उसने कहा क्यों? क्योंकि इसमें पैसा मिलता है । सकते। क्योंकि आप पता नहीं कहाँ से कहाँ सबसे बड़ी चीज़ है पैसा । फिर आपकी माँ को फैंक दिए गए। एक तो गलती ये हुई कि ऐसे भी मार दो। जब पहले एक साहब यहाँ आए थे, लोग हमारे ऊपर आ गए कि जिनको भारतीय तो मुझसे कहने लगे कि माँ मैंने अपनी माँ को संस्कृति के बारे में कुछ मालूमात ही नहीं। ही मार डाला। मैंने कहा अच्छा! कल तुम जिन्होंने गाँधी जी को लपेट के बिठा दिया एक मुझको भी मार डालोगे। जो अपनी माँ को मार तरफ कि तुम बैठे रहो। उन्होंने जो बातें सिखाना शुरु कर दीं वो सारी भारतीय संस्कृति के विरोध वो हिन्दुस्तानी नहीं हो सकता, वो भारतीय नहीं में हैं। जैसे मैं चित्तौड़ गढ की हूँ। वहाँ आपने हो सकता। माँ के तो बहुत वर्णन हैं और माँ को सुना होगा कि पदमिनी ने जौहार किया था, किसी को क्यों मारू? कहने लगा पैसे के लिए. सकता है और माँ के प्रति जिसमें श्रद्धा नहीं है पा तो हम शक्ति स्वरूप मानते हैं और उसी शक्ति 34 चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 7 &.8. 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-36.txt की पूजा करते हैं। सबसे पहले सारे ग्रन्थों में माँ कौन से मूल्य से आप जगने वाले हैं। कोई का वर्णन है। माँ से ही सब शुरु हुआ और इन लोगों की जो व्यवस्था है परदेसियों की, उसमें माँ का तो कोई स्थान ही नहीं है। बहुत से देशों और बेवकूफ बनिए। अनैतिकता को फैलाना में तो देश का नाम भी बाप के नाम से है। जैसे जिनका काम है वो भारतीय नहीं हो सकते, हम लोग भारत माता कहते हैं, तो वो अपने देश क्योंकि नीति के सिवाय आप उठ नहीं को कहते कि ये तो पुरुष है। उसमें से एक देश सकते। नीति के सहारे ही आप उस परम को है जर्मनी। आप जानते हैं जर्मनों ने क्या किया? अब रो रहे हैं जो कुछ भी किया उसके लिये, बैठी हुई तो आपका उद्धार हो नहीं सकता। पर किया तो सही। ऐसे भारतवर्ष के लोग नहीं कर सकते। अब हमारे यहाँ समझ की कितनी नर्क में जाएगा। जो लोग अनैतिकता को लेते कमी है, एक किताब मैंने देखी जयपुर पे, वो हैं। जैसे देखा है हमने कि उन्होंने वहाँ पे हर जयपुर का कोई होगा उसने लिखी होगी. मुझे हैरानी हुई कि वो कहता है कि जो जौहार पदमिनी ने किया था मेवाड़ में उसकी जगह अच्छा था कि वो खिलजी के चरणों में चली चाहे कुछ करिए, किसी तरह से पैसा कमाना है। जाती। उसकी दासी हो जाती तो ये झगड़ा ही न भी आपको बेवकूफ बना दे, आप बेवकूफ बन जाते हैं । अंग्रेजों ने बेवकूफ बनाया अब पा सकते हैं । ग़र आपके अंदर नैतिकता नहीं आप नर्क में जाएंगे और आपका देश भी तरह की स्वतंत्रता दे दी अमेरिका में, किसी तरह से पैसा कमाना है, फिर औरतें अपनी इज्ज़त बेचें, चाहे शराब के आप बुत्ते खोलिए. पैसा क़मा करके ये नए अमेरिका का देश है क्या? आपको पता है सबपे कर्जा है। उस देश पे कर्ज़ा है । हमारे यहाँ से इतने लड़के वहाँ पर गए इतने पढ़े लिखे मैंने कहा यहाँ आए क्यों? खड़ा होता। बत्तीस हजार औरतों को जला दिया ये कौन सा उन्होंने बड़ा काम किया? देखिए अक्ल कि कहाँ पहुँचती है? उससे अच्छा था सबसे आप समझौता करते। अंग्रेजों से लड़ने की कहने लगे यहाँ पर बड़ी तनख्वाह मिलती थी, क्या जरूरत थी? उनसे समझौता करते। सबसे पैसा मिलता था इसलिए आए। अच्छा! अब पैसा समझौता करके रहते, तो अभी तक इतने लोग नहीं मरते। और जीकर करते क्या? इतने लोग बच्चे पे कर्जा। मैंने कहा ये भई ये हिन्दुस्तानी अगर जीते भी तो करते क्या? क्या उनमें चीज़ होकर तुम्हारे पर कर्जा क्यों हुआ? सोचने की है? आज जी रहे हैं अब हिन्दुस्तानी इतने कर क्या रहे हैं? क्या ये प्राप्त करने वाले हैं? पैसा डॉक्टर हो गए, चार्टर्ड अकाउन्टेंट हो गए और पैसा पैसा इनकी भी खोपड़ी में घुस गया है और यहाँ आकर कर्जे में बैठे हो कि अब तुम वापिस उसके लिए जो हम अपने सारे जो मूल्य हैं नहीं जा सकते? कहने लगे यहाँ पे जो Life उनको बेच डालें? उन सब मूल्यों को हम सत्यानाश कर दें जिनके सहारे हम जी रहे हैं? कर्ज़ा हो ही जाता है। बेवकूफ जैसे वो लोग भी, आपको पता होना चाहिए कि सारी वहाँ आर्डर देकर ये चीज़ मँगा, वो चीज़ मँगा दुनिया आपकी तरफ आँख लगाए बैठी है और वो कार्ड रखते हैं कार्ड। और सब कर्जे में कि आप कौन से मूल्यों पर उठने वाले हैं? हैं। किसी के पास कुछ पैसा नहीं। आप गए वहाँ गया कहाँ? सबपे क्यों इतना कर्ज़ा है । हरेक बात है कि आप बड़े भारी इंजीनियर हो गए, Style है यहाँ के जो रहन-सहन हैं उसमें तो 35 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-37.txt और वहाँ जाकर आपने कज्जा कर लिया फायदा क्या? कुछ कमाया नहीं. कुछ नहीं और वहाँ आप कर्जे में बैठे हुए हैं हाँ बड़ा बढ़िया आपके पास आलीशान सॉफ़ा होएगा, Carpet होएगी। ये होगा वो होगा, पर सब कर्जे से। वहाँ कर्ज़ा करना कोई बुरी चीज़ समझी ही नहीं जाती। तो आप कर्जे पे कर्जा करते जाओ। ऐसी संस्कृति जहाँ अनैतिकता इतनी हो वहाँ होना ही है ऐसे उसे अलक्ष्मी ही कहते हैं, अलक्ष्मी का कोप कि दिखने को ऊपर से तो दिखाई देता है पर क्या-क्या किया! में पूछती हूँ जो आज इतना अधिकार लगा रहे हैं इनके बाप दादाओं ने कुछ किया देश के लिए या इन्होंने कुछ किया है देश के लिए? जब संग्राम इस देश में हुआ था, जब लड़े थे लोग जेल में गए, लाठी खाई, मार खाई, घर द्वार मिटा दिये. तब इनमें से कोई लोग थे क्या वहाँ? अब बैठ गए अधिकार जमा के, कि ये नहीं होना चाहिए। वो नहीं होना चाहिए। मैं देख-देख के हैरान हूँ कि अनैतिक चीजें लाने में इतना झगड़ा हो रहा है! नीतिवान लोग जो थे उनको खराब करो, उनसे पैसे ऐंठो, उनको अन्दर कुछ नहीं। अन्दर कर्जा! हम उनसे क्या सीख सकते हैं? वो यहाँ सीखने आते हैं और शराब पिलाओ उनको गन्दी बातें सिखाओ, उनसे हम उनसे क्या सीख सकते हैं? इन लोगों से पैसे ऐँठ करके और सब खा जाओ! एक चीज़ कुछ भी सीखने का नहीं। ये कहने में कोई भी है कि आपको ये सोचना चाहिए कि ग़र आप डर की बात नहीं है कि अपने देश जैसा महान देश कोई नहीं और हमारी भारतीय संस्कृति जैसी संस्कृति को ही अपनाना पड़ेगा। फिर आप कोई कोई भी संसार में संस्कृति नहीं। इसकी जो भी जाति के हों, कोई धर्म के हों, कोई भी गहराई है। उस तक पहुँचना ही मुश्किल हो जाता है क्योंकि हम भी इतने बेकार हो गए हैं। इस भारत वर्ष में लोग इतने बेकार हो गए हैं कि है कि हम लोग श्रद्धापूर्वक किसी चीज़ को प्याज़ के पीछे में वोट देते हैं? अरे सारी दुनिया मानते हैं, लेकिन अभी तक उसको पाया नहीं। हँस रही है। अभी हमारे सहजयोगी बाहर से झूठे लोग बहुत आ गए, गड़बड़ी बहुत हो गई, सहज में आ रहे हैं तो आपको इस भारतीय आपका विचार हो, उसके सिवाए नहीं हो सकता। सहज मार्ग क्या है? वो भी एक समझने की बात हर जगह गड़बड़ी होती है, मारामारी होती है। ये सब है माना। लेकिन इसके लिए बताया गया है आए तो सब एक-एक थैला प्याज़ लेकर आए, बताओ, शर्म करो! शर्म करो इस बात पर! बेवकूफ बनाना तो बहुत आता है लोगों को, कि तुम आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करो आप लेकिन बेवकूफ बनना हिन्दुस्तानियों को आता है। अभी ये लोग सब गठरी भर-भर के अपने आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करो आपके धर्म का कोई अर्थ नहीं आपकी बातचीत का कोई अर्थ नहीं, जब तक आपने आत्मसाक्षात्कार नहीं पाया। बुद्धि से नहीं हो सकता, ये बुद्धि से परे चीज़ है। साथ प्याज़ लाए, मैंने कहा प्याज़ क्यों ले आए? कहने लगे आपके देश में प्याज की इतनी कमी कि सरकार बदलना चाहते हैं। मैंने कहा हाँ है इसे आइंस्टीन ने कहा है, अब लो और कौन ये तो है शर्मिन्दा मत करो हमें वो दिन गए जब कि देश से आगे है। सारे शरीर को, बुद्धि मन को के लिए लोग लड़ते थे। सब कुछ अपना त्याग सबको ग़र तुम मानते भी हो तो ये कोई शाश्वत किया, हमने खुद कितनी बार मार खाई उनकी, चाहिए आपको? ये बुद्धि से परे चीज़ है। बुद्धि एक बात हो गई लेकिन अब तुम चीज नहीं है। शाश्वत चीज जो है वो बुद्धि से 36 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XI अंक : 7& 8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-38.txt परे हैं, जिसे परम चैतन्य कहते हैं। उसको उसने आती इस कुण्डलिनी की जागृति लेकिन हमें आती नहीं। बाकी हम सब जानते हैं। हम एक (Torsion area) एंठन क्षेत्र कहा हुआ है, आइंस्टीन ने। वो बेचारा वो भी एक आत्मसाक्षात्कारी था. बार वहाँ गए और एकदम आग लग गई जैसे। हज़ारों लोग बोलिविया के पार हो गए पर हमें विज्ञान हर जगह। उसने कहा Torsion area तो तो वो ज्ञान भी नहीं और हम तो वो जानते भी वो कहाँ है? कैसे मिलेगा? कैसे पाएंगे? मिल ही नहीं हमारे किताबों में इस मामले में कोई नहीं सकता क्योंकि ये जो Torsion area है ये लिखता भी नहीं, और न कोई बताता है मानो आत्मसाक्षात्कार के बाद ही प्राप्त होता है। तो हमको काट दिया उस महान संस्कृति से, उस पहले आत्मसाक्षात्कार करें। अब उसके लिए महान ज्ञान से हमको काट दिया, और काट कर बहुत से झूठे लोग निकल आए अपने देश में, के हम अजीब एक पता नहीं कौन से देश के लोग बन गए। न अंग्रेज हें न हिन्दुस्तानी हैं, पता नहीं क्या बन गए हम लोग। हमें कुछ मालूमात ही नहीं लोगों ने कहा, अच्छा कुण्डलिनी माने आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करना सहज़ कुण्डलिनी माने कुण्डली कि कुण्डलिनी माने क्या? किसी को मालूमात ही नहीं है। सोचिए आसानी से मिल सकता है। इसमें कोई भी ऐसी इसमें जो सागर भरा हुआ है इस देश में सागर भरा है। अभी एक साहब मैक्सिको से आए थे, कि आप घर द्वार छोड़ दो, आप बाल बच्चों को वो यहाँ पर एम्बेसेडर हैं। तो मैंने उनसे कहा कि आपके यहाँ जो है बहुत ज्यादा भूत विद्या है। अंदर ये शक्ति है। ये आपके ही अंदर त्रिकोणाकार कहने लगे अच्छा मैंने कहा हाँ मैं तो गई थी मैं अस्थि में ये शक्ति है। ये मैं कह रही हूँ ऐसी जानती हूँ भूत विद्या बहुत है वहाँ । तो कहने लगे बात नहीं है । अनादिकाल से यहाँ लोगों ने कहा वो साइकोलोजी से चला जाएगा तो मैंने कहा आपकी साइकोलोजी ही साइकाट्री जो है एक हमारे यहाँ से इतने हजारों वर्ष पूर्व मच्छिंदर बच्चे जैसी है। यह Child Science है. उसमें नाथ, गोरखनाथ ये लोग कहाँ पहुँचे तो वोलिविया! कुछ है ही नहीं। आपको जानना है तो मैं वोलिविया में पहुँचे जो कि हम लोग जा नहीं बताऊंगी कि ये भूत विद्या, हमारे यहाँ जो साइकाट्री है वो कितनी गहन, वी कह गया उस पर माल लोगों ने लगा दिया। बहुत से तांत्रिक निकल आए वो कुछ और धंधा कर रहे हैं। कुछ हीरा दे रहे हैं कोई कुछ कर रहे हैं। उसी में फँसे जा रहे हैं। मार्ग से बहुत ही सुलभ हो गया। सबको बहुत बात नहीं कि आप सिर के बल खडे हो जाओ, छोड़ दो, कोई करने की जरूरत नहीं। आपके ही है। सिर्फ जो लोग कहते थे मुझे आश्चर्य है कि सकते, वहाँ बड़ा मुश्किल है। यूक्रेन में गए, साइकोलोजी दा कुछ हिस्से में रूस में भी गए। वहाँ जाकर के उनको बताया कि आपके अंदर ये शक्ति है और हुई हैं। वो मैं समझाऊंगी तुमको। तो वो बिचारे ऐसे-ऐसे चक्र हैं, ये हैं, सब वहाँ बताया। और बहुत ज्ञान पिपासु हैं, ज्ञान जानना चाहते हैं हम उन्हीं के बंशज हैं. उन्हों के हम बेटे हैं, लेकिन मेरे पास जब Time होगा तो बैठकर बेटियाँ हैं और हम क्या जानते हैं? कुछ भी नहीं उनको मैें समझाऊंगी । पर आप सोचिए कि जानते। वो वोलिविया के लोग सब कुछ जानते आपके देश में इतना गहन यहाँ ज्ञान का भंडार हैं। पर बो कहने लगे इसकी जागृति हमें नहीं पड़ा हुआ है और आप कहाँ भाग रहे हैं? क्या एक-एक, एक-एक बातें उसके अंदर लिखी 37 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 &8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-39.txt कर रहे हैं आप लोग? जो देश आपके हिसाब से कहें, शर्म की बात है। पद्मिनी ने बत्तीस हजार ऊँचे उठ गए, बड़े अग्रसर हैं, उनको जाकर देखिए न। आप लोगों ने देखा नहीं, मैंने तो देखा की विशेषता क्या है? हमारे मूल्य। हमारे मूल्य। है। वहाँ के लोग सुखी हैं क्या? गर सुखी होते पर वो सहज से जागृत होएंगे क्योंकि मैंने देखा तो यहाँ क्यों आते? यहाँ आनन्द को खोजने क्यों परदेश के भी लोगों में वही मूल्य जागृत हो गए। आते? वो तो ऐसी चीज़ है कि आज आपको क्योंकि ये हमारे अंदर बैठे हुए मूल्य हैं जो एक छोटा सा घर चाहिए, फिर मोटर चाहिए, जगमगा रहे हैं अंदर, जो अंदर प्रज्जवलित हैं जो फिर फलाना चाहिए, फिर वो चाहिए। जो मिलता सूर्य के जैसे चमक रहे हैं। ये सब मूल्य हमारे है उससे आप सुखी नहीं, उसके बाद दूसरी अंदर और फिर इस पृथ्वी तत्व का इतना चीज़ चाहिए, उसके बाद तीसरी चीज़ चाहिए। तो उसके पीछे इतने भागने की जरूरत क्या? ही को ग्रहण लगा लिया, तो ये मूल्य आपको कोई समाधान नहीं, कोई संतोष नहीं। लेकिन कैसे दिखाई देंगे? ये आपके समझ में कैसे सहज में ये सब मिल जाता है। सहज में आएंगे? कोई एक तरह का पर्दा हो तो बात करें! आपको पूर्णतया समाधान और संतोष मिल कबीर दास जी ने कहा था, बहुत सुंदर सब कुछ जाता है। पर सहज मार्ग भारतीय संस्कृति पर बसा हुआ है। विदेशी संस्कृति नहीं चलेगी उसमें। जो सहज में आना चाहता है और पिंगला सुखमन नाड़ी रे अब लोगों को क्या आत्मसाक्षात्कार लेना चाहता है उसको पता होना चाहिए। अब ये औरतों को देखिए बाहर से आई है और साड़ियाँ वाड़ियाँ पहन कर बैठी हुई हैं। इसका मतलब नहीं कि अब वो हरे रामा जैसे कूदते फिरिए। उसकी जरूरत नहीं है। असलियत को पाना है, Reality को पाना है तो गहराई से उतर कर के और इसमें समाना पड़ेगा। इसको समझना पड़ेगा। इसमें कोई ऐसी बात नहीं है कि जो आप नहीं कर सकते। क्योंकि आप इस तो वो सैंया को सोचते हैं कि सैंया माने उनका महान देश में पैदा हुए हैं। ऐसा लिखा जाता है कोई तो भी Lover या कोई प्रेमी है वो निकल शास्त्रों में कि भारतवर्ष में पैदा होने के लिए गया बो नहीं रोई। मैंने कहा, कबीर को ये सबसे हज़ारों वर्षों की पुण्य, पुण्याई काम आती है। बताइए हजारों वर्षों की पुण्याई के बाद मैं क्या देख रही हूँ, कैसे लोग पैदा हो रहे हैं? पर साहब अभी हमारी ज़िन्दगी में हमने ऐसे लोग देख लिए जिन्होंने देश के लिए अपनी जान निछावर कर दी और अभी प्याज़ के लिए? क्या औरतों को लेकर जौहार कर दिया। हमारे देश महात्मय है। लेकिन हमने ग़र ढक दिया. अपने लिखा है उन्होंने सहज के बारे में पर लोग समझ नहीं पाते लोग नहीं समझ पाते। जैसे कि ईड़ा. मालूम ईड़ा पिंगला क्या है? ईड़ा. पिंगला चीज़ है। क्या है? उनको Nervous System मालूम है। Autonomous nervous system Hic4 I पर यही ईडा, पिंगला और सुष्मना नाड़ी जो है वो है ये नहीं मालूम। उसके बारे में कुछ जानते ही नहीं । उन्होंने लिखा है, "सैंया निकस गए, मैं न लड़ी थी। " तो हमारे लखनऊ में लोग रहते हैं उनको मैं कहती हूँ तुम दिल फेंक र हो, बहादुर करना क्या है? वो क्या romantic थे क्या? उन्होंने ये कहा कि मेरी जिन्दगी निकल गई, मैं मृतप्राय हो गया। तो भी मैं उससे लडा नहीं. मृत्यु के साथ मैं लड़ा नहीं। तो वो आप सोचिए कि विपर्यास हमने कितना कर दिया, कितना उसको बदल दिया, pervet कर दिया कि जैसे चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 38 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-40.txt चलते रहता है, ख़ास कर के हमारे अखबार वाले जो हैं वो तो एक कमाल के लोग हैं पता नहीं कौन से देश के रहने वाले हैं। मुझे तो भारतीय नहीं लगते। उनमें से किसी को भी भारतीय संस्कृति के बारे में कुछ मालूमात ही नहीं। बहुतों ने कहा कि इम आपका एक Seminar या कुछ भी कहिए करने वाले हैं जिसमें सब हमारे अखबार वाले आएंगे। मैंने 'सुरति चढ़े कमान'। ये कुण्डलिनी को सुरति कहने वाले कबीर को हमने सुरति को, बिहार में सुरति कहते हैं तम्बाकू को, बिहार का जो हाल है सो देख लिया। एक-एक बिहार में महान लोग हो गए। बुद्ध हो गए, महावीर हो गए, एक तरह से और मेरे ख्याल से गुरु गोविन्द साहब का भी वहाँ मैंने वहाँ देखा है। इस तरह से अनेक वहाँ पीर हो गए, कितने लोग हो गए उस बिहार में। जैसे कि एक सरोवर में कमल उग जाएं; अनेक कमल उग गए। अब उन्हीं का उनके बस का नहीं है। उनके बस का नहीं है। नाम लेकर के लोग कहें कि साहब हमारे देश में रात-दिन इससे उसको लड़ाओ, उससे उसको तो ये कमल हुए थे हमारे देश में वो कमल हुए लड़ाओ। इससे झगड़ा करो। उससे झगड़ा करो। थे। आप तो कीड़े हैं अब भी उसी में, आप क्या बात कर रहे हैं? आपको कमल होना है। तो अभी तीस देशों से यहाँ आए थे, पत्रकार आए सहज में उतरिए। सहज में उतरना कठिन नहीं है, सहज है पर सहज में रहना कठिन है। आदमी को जो तीस देश के जितने भी वहाँ से आए हुए थे, सब आदत हो गई इधर से खाना खाने की, वो ऐसे के सब पार हो गए सबको आत्मसाक्षात्कार कहा, न ने न ना। मुझे उनसे बात नहीं करनी । इसके सिवाए और वो कुछ नहीं कर सकते। पर थे। उन्होंने कहा कि माँ हम चाहते हैं आपकी एक सभा हो, और आश्चर्य की बात है कि, मिल गया और सबके हाथ में ठंडक आने लगी। सादा खाना नहीं खा सकता। सहज में आप पार हो जाएंगे, आत्मसाक्षात्कार आप प्राप्त कर लेंगे। लेकिन जिनका दिमाग चालाकी में चलता है, जो इसमें कोई शंका नहीं। विशेषकर के, खास कर के, आप गर भारतीय हैं तो सिर आँखों, पर चाहे बनाते घुमाते हैं, ऐसे चालाक लोगों को सहजयोग आप कोई भी जाति के हैं मुसलमान, हिन्दू कोई नहीं कुछ कर सकता। हो आपको फ़र्क नहीं पड़ता। लेकिन इस आत्मा को प्राप्त करने के बाद उसमें जमना पड़ता है। जैसे बीज है वो प्रस्फुटित हुआ और उसमें से अंकुर निकल भी आया हो, तो भी उस अंकुर वही प्राप्त कर सकता है। फिर उसके बाद को वृक्ष होना पड़ता है। वहीं हम लोग मार खा जाते हैं। क्योंकि चारों तरफ वातावरण ही खराब है। सिर्फ हम लोग वातावरण उसको सोचते हैं कि जो गैसीय है जिससे Gases निकल रही आपको देख रहा है, आपकी हर एक गतिविधि है। नहीं नहीं। विचार से भी वातावरण बहुत को संभाल रहा है। आपके हर एक उठ बैठ को खराब होता है। इसकी भी प्रक्रिया बहुत खराब है। चारों तरफ से विचारों का आन्दोलन जो नहीं तो लोग कहते हैं कि हम तो रोज मन्दिरों लोग चालाकी करते हैं, इधर से उधर झूठी बातें सहजयोग चालाकों के लिए नहीं है, उसी तरह से मूर्खों के लिए भी नहीं है जो आदमी चाहता है हृदय से कि हमें आत्मसाक्षात्कार हो ज़िन्दगी बदल जाती है। उसके बाद मज़ा आने लगता है। उसके बाद अनेक तरह के आशीर्वाद आप पे आते हैं और आप जानते हैं कि परमात्मा है। संभाल रहा है। आपके साथ हर जगह खड़ा 39 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 & ৪, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-41.txt हैं में जाते थे और इतनी हमने पूजा करी। शिवजी तो सोचते हमपे खुश नहीं हुए ह ढिकाना नहीं हुआ। तुम्हारा तो सम्बन्ध ही नहीं हुआ उनसे। जब तक आपका सम्बन्ध नहीं हुआ, मस्जिदों में गए कहें कि हमारे घुटने फूट गए। शिवजी नहीं मिले गर कोई वहाँ पर हमको परमात्मा नहीं मिले, हमें वहाँ पर आशीर्वाद नहीं मिला, सुकून नहीं मिला। कैसे कोशिश करी कि उनके दिमाग ठीक करें, तो वो मिलेगा? क्योंकि वहाँ तुम्हारा कोई सम्बन्ध नहीं। तो मेरे ही सिर पर चढ़ गए। कहने लगे हमने तो कुरान को भी किसी ने पढ़ा नहीं है मेरे ख्याल एक बलिदान किया हैं। बताइए आप मैंने कहा से, ठीक-ठाक से। गर पढ़े तो समझ में आएगा काहे का बलिदान किया। कहने लगे हम तो एक कि सारा सहजयोग ही वर्णित है उसमें उनका बड़े भारी योद्धा हैं। हम बड़े भारी लड़ाका लोग खुद ही जो, जिसे क़यामा कहते हैं, जिसको हैं, हम फलाना हैं, ढिकाना है । मैंने कहा भई कहते हैं जो जिस तरह से ऊपर चढ़े और किस तरह से सफेद घोड़े पे बैठकर ऊपर चढ़े, कैसे जिन्दगी बरबाद करो। और क्या करें? तुम तो सात स्तरों पे उठे, वो सारा सहजयोग है। जो कुछ आगे जाने वाले नहीं। वो तो स्पष्ट दिखाई सच्चे होंगे वो सच्ची ही बात लिखेंगे न। इधर-उधर दे रहा है। तो इस तरह के वहाँ पर लोगों की की ऊट-पटांग बात क्यों लिखेंगे? ये तो उन्होंने प्रभूति कोई भी गलत काम करना एक challenge बाद में नीति बना दी कि ऐसे नहीं करो, वैसे है, और हिन्दुस्तानियों को सोचते हैं ये डरपोक नहीं करो। लोगों को बचाने के लिए। क्योंकि हैं, अरबिस्तान के लोग, जरा उनको मालूमात नहीं थी नैतिकता की। अपने भारतीयों को मालूम है, मारे ऐसी शर्म लगती है मुझे कि अरे ये क्या इन ये चीज़ गलत है ये चीज सही है। हम लोगों को लोगों ने हमारी दशा कर दी कि बिल्कुल ही हम पता है। एक लड़का अंग्रेजी पढ़ने गया था लोग गए कैम्ब्रिज में, उसने बताया, मुझे बड़ी हैरानी होती दिल्ली शहर में कम से कम कितने ही लोग है, कि ये लोग हरेक चीज़ को सोचते हैं कि सहजयोगी हैं हजारों। हजारों की तादाद में सहजयोगी एक बड़ा भारी आह्वान है, चुनौती है। मैंने कहा कैसे? मुझे कहने लगे कि तुम नशा क्यों नहीं लेते हो? उन्होंने कहा मुझे नहीं लेना है Drugi हमारे नीति में नहीं बैठती। कहने लगे कि ये जाएगी ऐसी मुझे कभी संभावना नहीं थी। मैंने कहाँ की नीति निकाल रहे हो, Drug लो। ये तो सोचा था कि ठीक है अभी थोड़े दिन बाहर तुम्हारे लिए Challenge है । तुम्हारी नीति के लिए चुनौती है। उसने कहा मुझे नहीं ऐसी हालत ही खराब हो गई या तो पता नहीं कैसे चुनौती आदि चाहिए। तो कहने लगे माँ ये लोग लोग पैदा हो गए हैं यहाँ अब ये कह सकते हैं शराब पीना एक चुनौती है। Drug हैं, फलाना नहीं हुआ, लेना एक चुनौती है एड्स होना भी चुनौती है| तो अच्छा है, नरक जाना भी एक चुनौती है, इनके हिसाब से। तो उनकी तो सारी बुद्धि ही भ्रष्ट हो गई है, मति भ्रष्ट है और क्या कहें? कहे कि ये बड़ी अच्छी चौज़ है तो इसे क्या कह सकते हैं? एड्स वाले लोग तो, मैंने सबकी शिकायतें हैं । अरे पर नमस्कार। तुम ऐसे ही लड़ते रहो और अपनी भारतीय लोग, बिल्कुल बेकार हैं। अब तो कमाल जो हो गई हम लोगों की. वो प्याज के बीते बिल्कुल बेकार लोग हो गए! इस हैं और पता नहीं कैसी ऐसी बातें यहाँ हो गई। अक्ल ही मारी गई है न। जैसे पंजाबी कहते हैं मत मारना' वो चीज़। ये चीज़ इतनी जल्दी हो काम करके आऊं फिर देखूगी। तो यहाँ तो चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 7 &8, 1999 40 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-42.txt कुछ नहीं है। इस तरह की चीज है ही नहीं । सिर्फ आपके अन्दर बसी हुई कुण्डलिनी का इस कलियुग में एक भ्रांति नाम की चीज़ जागरण करना है। और जब वो जागृत हो जाती होती है वो दिमाग पे काम करती है; वो जब है तो अपने ही आप वो सहस्रार में समा करके दिमाग पे आ जाए तो कुछ दिखाई नहीं देता कि और इसका भेदन करके और चारों तरफ फैली अच्छा क्या है बुरा क्या है? बुरी बात कौन सी हुई ये सूक्ष्म चेतन शक्ति उसे एकाकारिता देती है, नीति कौन सी है अनीति कौन सी है। इसका है। बहुत सादी बात है। आपका आज तक उस ये घोर कलियुग है, मान लिया नहीं तो इंसान आमे इतना बदल ही नहीं सकता। तारतम्य नहीं रहता, इसका कुछ पता ही नहीं सूक्ष्म शक्ति से कोई सम्बन्ध ही नहीं आया। चलता कि ये लें या वो लें। इसी घोर कलियुग आपने आज तक उस सूक्ष्म शक्ति को महसूस ही नहीं किया। उसको जाना ही नहीं, और जाने दमयन्ति आख्यान में नल ने एक बार कलि को बगैर ही आप भगवान का नाम ले रहे हो। पकड़ा उसकी गर्दन पकड़ी कि मैं तुझे मार मन्दिरों में जा रहे हो, और दुनिया भर के उपद्रव डालूँगा क्योंकि तुमने मुझे बहुत सताया है। मेरी कर रहे हो । मस्जिद में जाने से क्या होगा? वो बीबी से मेरा बिछोह कर दिया। मैं तुमको मार दिखाई दे रहा है। किसके अक्ल आई है? सब आपस में मरे जा रहे हैं। और मन्दिरों में जाकर के क्या हो रहा है? जहाँ पैसे खाए जा रहे हैं, दुनिया भर का भ्रष्टाचार आ रहा है? ये क्या साक्षात नहीं है कि ये गलत है, इससे कुछ लाभ ये है कि कलियुग में लोगों में भ्रांति हो जाएगी। नहीं है? इसके लिए कोई और चीज़ करनी । ये सामने दिखाई दे रहा है। इसका उसी वक्त हजारों लोग जो कि गिरी-कंदराओं में साक्षात है। सामने साफ़ जो चीज़ दिखाई दे रही खोज रहे हैं परमात्मा को, सत्य को, वो आशीर्वादित है उसको पहचानना चाहिए कि ये रास्ते ठीक होंगे, वो लोग अपने आत्मा का अनुभव नहीं, इसमें कोई फायदा नहीं ये बेकार की चीज करेंगे। उनको आत्मसाक्षात्कार होगा। इसलिए है। जो पाना है अपने अन्दर है। अन्दर से अन्तर में ही सहज आना है। ये लिखा हुआ है। नल डालँगा। तो कलि ने कहा कि अच्छा बाबा मेरा महात्मय तो सुन लो फिर मार डालना। उसने कहा तुम्हारा क्या महात्मय है, तुम तो दुष्ट हो। कहने लगे नहीं मेरा एक महात्मय हैं, महात्मय भ्रान्त हो जाएंगे लोग. माने बौखला जाएंगे और चाहिए कलयुग जो है बहुत जरूरी है। उसके बगैर ये होने नहीं वाला और इसके बगैर मनुष्य इसे तक इस अन्धकार में न जाने कहाँ से कहाँ हम प्राप्त नहीं करेगा, बताया गया तो नल ने उसको छोड़ दिया। अच्छा है कि आप इस अन्धकार से उठें और आत्मा आने दे तेरा कलयुग। ये घोर कलयुग आया और के प्रकाश में क्या अच्छा और क्या बुरा, इसको आपको सबको समेट रहा है। इधर ध्यान दीजिए, पहले जानें। पर आत्मा का प्रकाश जब आता है कौन से चक्कर में हम घूम रहे हैं ? इसका तो सिर्फ इतना ही नहीं । ये नहीं सिर्फ होता है विचार करना चाहिए। सहज के मार्ग में आने के लिए आपको कुछ नहीं देना, पैसा नहीं देना, कुछ त्यागना नहीं विवेक बुद्धि है वो बड़ी प्रबल हो जाती है। आप आत्मा को जब तक हम प्राप्त नहीं करते तब इसको नहीं खोजेगा। ये जब लोग भटक जाएंगे? इसलिए पहले जरूरी चीज 1 कि आप नीर-क्षीर विवेक जिसको कहते हैं वो जान लें, किन्तु आपके अन्दर जो सत्य-असत्य नाभ 41 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7& 8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-43.txt सिर्फ जो सही होगा वही करते हैं, जो आपको नष्ट करेगा, जिसे अंग्रेज़ी में Seif distructive से जो शान्ति प्राप्त होती है उससे उन्नति होती है। अभी सहजयोग में कितने ही बच्चे हैं जो (आत्मघातक) कहते हैं, वो काम आप करेंगे ही कहाँ से कहाँ पहुँच गए। कभी वो सोचते भी नहीं। सारा ही काम आप अत्यन्त प्रेम से करते नहीं थे कि हम इसे प्राप्त करेंगे, इतना हमें हैं। अत्यन्त दुलार से प्रेम से सारी बात करते हैं। मिलेगा, इतना ज्ञान और इतनी समृद्धि और हर तरह से पूरे-पूरे हो गए। बन गए। तबियत भर शब्द कहें। आज लेकिन मैं तैयारी से आई थी गई। गर मैं किसी को एक छोटी सी भी चीज़ देना चाहूँ तो कहेंगे माँ पहले ही तुमने तो सब दे दिया, अब क्या दे रहे हो हमें? ऐसी स्थिति अब ये जोसहज के मार्ग से आप पाते हैं अन्दर में स्थापित हो जाती है और ये जो समाधानी स्थिति है इससे पूरी तरह से आपसी करते हैं। अपना देश शान्ति प्रिय है। इस देश ने रिश्तेदारी, आपसी प्यार, आपसी सबकुछ होता किसी भी देश पे अगाड़ी नहीं करी, किसी भी है। अब सबसे जो बड़ी चीज़ है कि सहजयोग देश को लुटा नहीं, किसी भी देश की ज़मीन ये प्यार की देन है। परमात्मा का जो प्यार हमारे अन्दर है वो प्यार आपको मिलता है, और प्यार इतने हजारों वर्षों से हमने इतने दुविधा उठाई तो से बढ़कर संसार में कोई चीज़ नहीं। जिसने भी ये चीज़ कहाँ से आई। ये इस धरती की प्यार की महिमा जानी उसके लिए फिर और विशेषता है, जिस धरती पर आप बैठे हैं उसी चीजों की जरूरत नहीं। सारे मूल्य उसके स्थापित धरती की विशेषता है कि हम लोग शान्ति प्रिय हो जाते हैं। प्यार ही वो पानी है जिससे कि मेरे लिए भी बड़ा मुश्किल है कि कोई कठिन कि आप लोगों से कहुँगी कि और बेवकूफी मत करो। बहुत बेवकूफी कर चुके। पहले तो आप अपने अन्दर शान्ति को प्राप्त अपने हाथ नहीं ली। ये शान्ति कहाँ से आई? लोग हैं। गर कोई हमारे ऊपर आक्रमण करता है अपने देश का जो ये बड़ा सुन्दर पेड़ है, ये तो हम जरूर उससे लड़ेंगे। लेकिन किसी के सजीव हो जाए। आपसी प्यार, आपसी दोस्ती, यहाँ जाकर के और हम खुराफात नहीं कर गर हमारे अन्दर आपसी प्यार होता और आपसी सकते। इस तरह की व्यवस्था अभी तक अपने यहाँ नहीं है। और देशों में है अपने यहाँ नहीं। किसी और का राज्य हो सकता था? उसका ये, उसपे झगड़ा लगाएं, वहाँ जाके बम्ब छोड़ें, ये सब हम लोग नहीं करते। ये नियंत्रण आने के लिए सहजयोग चाहिए। इससे हमारे ऊपर अपने आप आया हुआ है। स्वयं आया है। तो अन्दर की शान्ति प्रस्थापित होती है, हैं सामूहक चेतना स्थापित होती है। दूसरा कौन फिर घरों में अपने संसार में, अपना जो छोटा सा है? सब एक जीव हो जाते हैं। अब देखिए इतने संसार है उसमें भी शान्ति आती है। बच्चों में दूसरे-दूसरे देश से लोग आए हैं अनेक धर्मों का शान्ति आती है। शान्ति बहुत जरूरी है। जहाँ पालन करने वाले। इनमें जो एक जीवता है, शान्ति नहीं होती वहाँ पेड़ नहीं उग सकते । वहाँ कुछ भी प्रगति नहीं हो सकती। एक दूसरे कहीं नहीं मिलेगी। आप हैरान हों जाएंगे कि को काट मारने में खत्म हो जाते हैं पर सहजयोग किस तरह से ये लोग एक हो गए। आप और एकता होती तो क्या मज़ाल हैं कि हमारे ऊपर आपसी प्यार, आपसीदोस्ती, आपसी एकता (Collective Consiousness) जिसे हम कहते इनमें जो समाधान हैं, एकात्मकता है, वो आपको चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 &B, 1999 42 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-44.txt किसी गुरु के वहाँ जाकर देखिए ये चीज़ आपको नहीं मिलेगी। वो आपस में लड़ेंगे, गुरु से लड़ेंगे। पूरी समय लड़ते रहेंगे। लेकिन जब आप सहज में अपने को प्राप्त करते हैं तो ये जानते हैं कि हम भी उसी समुद्र के एक विन्दु हैं जिसमें सब एकाकारिता है। समुद्र के आन्दोलन से हम उठते हैं, गिरते हैं, चढ़ते हैं। ऐसी सुन्दर करें। इस पर तो बोलते रहें तो बोलते ही रहेंगे हम और आज आप लोग इतनी दूर-दूर से आए है, ठंडक में आए हैं। एक माँ के लिए बहुत बड़ी चीज़ है, इतने बच्चे सामने हों तो क्या और कह सकती है? मैं सिर्फ आपको ये ही आशीर्वाद देना चाहती हूँ कि आप आज इसी वक्त यहाँ पर आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करें। उसके लिए कुछ आपको करना नहीं, मैंने साफ बता दिया। आप जहाँ बैठे हैं वहीं आपको गंगा पहुँचा देंगे। आप स्वयं अपने हाथ पे देखेंगे कि ठन्डी-ठन्डी हवा बयार जैसी बह रही है। ये बड़ी सूक्ष्म चीज है। ये क्या है? ये बयार कैसी आती है? ये क्या है? अब ये सारी बातें बताने का समय नहीं स्थिति, ऐसी सुन्दर समाज व्यवस्था अपने आप घटित हो रही है और इस हिन्दुस्तान में होगी। जो गलत लोग घुस आए हैं और अपने को बड़े अधिकारी समझते हैं इन्होंने कोई त्याग किए नहीं, इन्होंने देश के लिए कोई संग्राम किया नहीं। मुफ्त में आकर कुर्सी पर बैठ गए। इसलिए अपने देश के प्रति भक्ति होना बहुत आवश्यक है। महज इसलिए नहीं कि ये हमारा देश है किन्तु किसी दिन जरूर आपको बताएंगे कि ये क्या चीज़ है? यही चैतन्य का प्रभाव जो हमारे हमारा जन्म हुआ क्योंकि ये बड़ा महान देश है। इसकी महानता में तो वर्णन नहीं कर सकती। कभी ग़र मेरेपास समय मिला तो मैं थोड़ा बहुत लिखना चाहती हूँ कि ये देश कितना महान है। मानसिक, बौद्धिक तो आप ठीक कर ही सकते इसको जानने के लिए. समझने के लिए आप हैं लोगों में भी सहज की कुछ न कुछ प्रकृति आनी चाहिए। तब आप समझ पाएंगे कि इस देश में तो मैं उसे क्या कर सकती हूँ? कितनी कितनी गहन बातें हमारे लिए हो गईं। हमारा इतिहास हो गया, कैसी-कैसी चीजें हो मिनट के लिए और ज्यादा से ज्यादा आपको इसे गई? देशभक्ति, ये बहुत आवश्यक चीज़ है। गर आपके अन्दर देशभक्ति नहीं है तो आप उसको यही जानना चाहिए कि आपके अन्दर सहज में आ नहीं सकते। इस देश के प्रति आप ही को भक्ति नहीं, इन सब लोगों को है जो थी। उसके बगैर नहीं हो सकता। कायरों का पचहत्तर देशों में सहजयोग कर रहे हैं! आप के देश के प्रति इतनी भक्ति है कि जब ये बाहर से भी काम नहीं है। तो समझदारी से इस चीज़ को आते हैं तो आकर के और इस अपनी ज़मीन को स्वीकार्य करें कि आप स्वयं आत्मा हैं। आत्मा झुककर नमस्कार करते हैं और चूमते हैं। अब यही आपको सिखा सकते हैं कि आप अपने देश की शक्ति को पहचाने और देश का वन्दन अन्दर से बह रहा है और इसी के दम पर कितनी चीजें आप कर सकते हैं। अपना शारीरिक, पर औरों का भी ठीक कर सकते हैं। ऐसे आप महान हैं और आप कीचड़ में ग़र फसे रहें आपसे अब इतनी विनती है कि एक दस प्राप्त करना है। जो कुछ भी मैंने कहा, सुना, शक्ति का जागरण करने से पहले तैयारी हो रही काम नहीं है और मैंने आपसे कहा कि मूरखों का को प्राप्त करना ही, एकमात्र लक्ष्य है जीवन का और कोई लक्ष्य नहीं। अच्छा अब इसके बाद सिर्फ इतना कहना है कि आपने ग़र जूते चैतन्य लहरी 43 खंड : XI अंक : 7 &8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-45.txt पूरी तरह से माफ करें अब दोनों हाथ मेरी ओर पहने हों तो उसको हटा कर रख दे। जिससे ये कि ये आपसे मैंने पहले ही कहा, ये भारतमाता करें (Please put both the hands towards me) अब जिन लोगों के दोनों भी हाथ में पता नहीं कितने ऋषि मुनियो ने पवित्र की हुई ठण्डी ठण्डी हवा आ रही है या गरम हवा आ जगह है ये और इस जगह का जो पुण्य प्रताप हैं उससे आप क्या-क्या प्राप्त करेंगे ये देखना है। अब कृपया दोनों हाथ मेरी तरफ करें। अब ये हाथ मेरी ओर करें और ये हाथ, सीधा हाथ रही है वो दोनों हाथ ऊपर करें दोनों हाथ। यहाँ से वहाँ तक। सबको अनन्त आशीर्वाद। सबको अनन्त आशीर्वाद। आपने तो प्राप्त कर लिया। आपका बीज तो प्रस्फुटित हो गया। अब इसके वृक्ष बनाने हैं अब इसके इतने वृक्ष जितने आप लोग बन जाएँ तो फिर क्या कहने। तब फिर ये right hand, आपके तालू के ऊपर जो कि एक पहले स्निग्ध हड्डी थी यहाँ, बचपन में, उसके ऊपर हाथ रखें। अब अपना ये हाथ right hand मेरी ओर करें और left hand सिर के ऊपर कलयुग कितने दिन टिक सकेगा? सत्य युग तो आ ही रहा है लेकिन उसका अभी प्रकाश पूरी तरह से फैला नहीं, आप ही उसके प्रकाश देने वाले हैं आप ही लोग। और फिर से तालू पर, ऊपर, रखे आधान्तर में, माने उसके ऊपर नहीं रखना आधान्तर में, देखिए। मुझे पूर्ण विश्वास अब इसमें से कोई ठण्डी-ठण्डी या गरम हवा आ रही है क्या? व्यार आ रही है क्या? ऐसे है कि आप लोग सहजयोग को फैलाएंगे हर एक देखें। किसी-किसी को बहुत ऊपर तक आती है, किसी को सामने आती है, पीछे आती है। आदमी एक-एक हजार आदमी को पार कर सकता है। हर एक ऑरत एक-एक हजार औरतों को पार कर सकती है। सबको चाहिए कि जरा हाथ ऊपर घुमा के देखें। अब left hand मेरी तरफ करें और right hand फिर सिर पे कोशिश करके और पार करें, लोगों को पार करें करें और देखें कि ठण्डी-ठण्डी हवा आ रही है माने आत्मसाक्षात्कार दें। सबको मेरा अनन्त क्या? हो सकता है गरम आ रही हो क्योंकि आशीर्वाद। सबसे आखिर में हम 'वन्दे मातरम्' आपको सबको माफ करना है। आप सबको गाएंगे। जिसके लिए आप सब खडे हों। जिस माफ कर दीजिए। ग़र आप माफ़ नहीं करते तो गाने को लेकर के हमने स्वातन्त्र का युद्ध किया करते क्या हैं? आप कुछ भी नहीं। अपने को सता रहे हैं इसलिए सबको माफ कर दीजिए तो हैं? आप लोग सब खड़े हो और ये foreign के ठण्डी ठण्डी हवा आएगी। अपने को भी माफ लोग गाएंगे, इससे आपको आश्चर्य होगा कि कर दें। मैंने ये पाप किया मेंने वो पाप किया ये कहाँ तक हमारी भारत माता की महिमा पहुँची मत सोचिए। अपने को भी माफ कर दीजिए, हुई है! था आज उसको आप मना करने वाले कौन होते तय 44 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 &8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-46.txt इसा मसीह पूजा हिन्दी प्रदचन, गणपति पुले 25.12.98 अब बात ये है कि अग्रेजी भाषा हमारे संगीत का होता है, कला का होता है, ऐसे ही ऊपर तीन सौ वर्ष से लाद दी गई। मैंने कभी अंग्रेजी सीखी नहीं। कभी भी नहीं। स्कूल में भी बहुत सारी भाषा बोल सकते हैं लेकिन हिन्दी छोटी सी किताब थी और कॉलिज तो मैडिकल लोग कोई और भाषा सीख ही नहीं सकते। कॉलेज में तो कोई सिखाता ही नहीं अंग्रेजी। मेरे उसकी वजह ये है जैसे अंग्रेज कोई और भाषा पिताजी कहते थे इतनी ये आसान भाषा है और इसमें इतने कम शब्द हैं कि कोई जरूरत ही नहीं सीखने की। उन्होंने हमको मराठी स्कूल में कोई और भाषा बोल ही नहीं सकते। मैं तो कभी डाला और हमसे कहते थे कि मराठी सीखों और नहीं कहूँगी कि आप मराठी सीखो क्योंकि संस्कृत सीखो। संस्कृत भी मैंने कभी नहीं सीखी बहुत कठिन। और हिन्दी तो कभी भी नहीं सीखी कोई सवाल ही नहीं उठता, स्कूल में भी नहीं सीखी, कॉलिज में भी नहीं सीखी, कहीं हिन्दी भाषा मैंने सीखी गन्दगी इतनी भी नहीं। पर इतनी भाषा वो ही नहीं। पर एक अच्छाई है मेरे अन्दर वो मैं बता दें आपसे, कि में हिन्दी भाषा में जब बोलती हूँ तो हिन्दी ही बोल सकती हँ और नहीं। क्योंकि मराठी में ही कुण्डलिनी के बारे में मराठी में बोलती हूँ तो मराठी ही बोल सकतीं हूँ और अंग्रेजी में वोलती हूँ तो अंग्रेजी ही बोल सकती हैँ। उसका भाषांतर करना मेरे लिए बड़ा मराठी आ गई तो कोई सी भी भाषा आ सकती कठिन है। इसलिए मैं मिली-जुली भाषा नहीं है, इसमें कोई शक नहीं। पर मराठी लोग और बोल सकती। ये भाषा अलग बोल रहे हैं। वो कोई भाषा नहीं सीख सकते। बड़े कट्टर होते भाषा अलग बोल रहे हैं, वो अलग भाषा| अब कोई विश्वास ही नहीं करेगा कि मैंने हिन्दी किताब पढ़ो। तो थोड़ी पढ़कर के छोड़ दी। मैंने भाषा सीखी ही नहीं। लेकिन पढ़ने का शौक. कहा क्यों? सरीधाणे, सब गन्दगी लिखी हुई है अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ने का शौक, उसी से इसमें, मेरे को नहीं समझ में आती है। क्योंकि हिन्दी भाषा आ गई। पर शुरुआत में मेरी भाषा बहुत संस्कृत से किलिष्ट थी। बहुत। क्योंकि पढ़ने के बाद, आप गीता पढ़ने के बाद कोई महाराष्ट्रियन लोग वैसे ही बोलते हैं, महाराष्ट्रियन रास्ते पर की चीज़ पढ़ो. सड़कछाप, वो समझ में को रोज़मरां की हिन्दी नहीं आती। बो जो हिन्दी नहीं आती। सो आप लोगों से कुछ लोग सीखें भाषा बोलेंगे उसमें आधे से ज्यादा तो संस्कृत मराठी तो अच्छा है। लेकिन बड़ी कठिन भाषा शब्द और बचे-खुचे मराठी शब्द। समझे न। तो है। और इसमें पर्याय बहुत हैं भाषा के। आज ये हालत है। अब हमने जो इसमें समझा है वो इसलिए मैं बता रही हूँ कि महाराष्ट्र में आके भी ये है कि भाषा का भी एक वरदान होता है। जैसे मुझे हिन्दी में ही बोलना पड़ता है। क्योंकि आप हैं और उसी से लोग भाषा का बरदान होता नहीं सीख सकते। और सीखेंगे तो विद्रपणी। वजह ये है सब अंग्रेजी जानते हैं इसलिए वो मराठी भाषा वहुत ही जटिल है। वो मराठी ही समझ सकता है। इतना विनोद और इतना मजाक है उसमें, अश्लीलता जरा भी नहीं, प्रगल्भ है, इतनी गहन है और फिर सहजयोग के लिए मराठी भाषा जैसी कोई और कोई भाषा लिखा गया है। इतने साधु-संतों ने सब लिखा सो मराठी भाषा में । और ग़र एक बार आपको हैं। किसी को मैंने कहा कि एक ये हिन्दी इतनी शुद्ध भाषा और शुद्ध विचार मराठी में है। चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 45 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-47.txt तो मराठी भाषा जानते नहीं। पर पूना में मैं मराठी ईसा मसीह के बाल्यकाल का वर्णन नहीं किया में बोलती हूँ और बम्बई में भी हिन्दी में बोलना पड़ता है। गर कोई सीखना चाहे तो मराठी भाषा सीखें, ये सीखने वाली भाषा है कमाल की है कि हमारे नामदेव जो बड़े भारी अंगुली डालना यहाँ के सन्त हो गए उनको गुरुनानक साहब ने वर्णन अत्यन्त सुन्दरतापूर्वक किया गया है। यही बुलाया और उनसे कहा कि तुम पंजाबी सीखो और पंजाबी में तुम लिखो। इतनी बड़ी किताब लिखी है उन्होंने पंजाबी में। अब मुझे भी पंजाबी हिन्दी और मराठी दोनों भाधाओं में इन अवतरणों भाषा आ गई जब में पंजाब में रही। ग़र आपको मराठी भाषा आ गई तो सिवाय तमिल के आप सब भाषाएं सीख सकते हैं और तमिल के भी ये है कि इनका सारा रोमांस शादी से पहले ही कुछ शब्द सींख सकते हैं। इस प्रकार इस देश है। शादी के बाद कोई रोमांस नहीं है। भारत जबकि चौदह सरकारी भाषाएं हैं, मैं ये कहूँगी रोमांस का आरम्भ शादी के बाद होता है। वहुत कि गर मराठी आप लोग सीख लें तो आपको चौदह में से आठ भाषाएं तो आ ही जाएंगी। अब एक और बात कमाल है कि बाइबल का (translation) भाषांतर हिब्रू भाषा से प्रत्यक्ष में वो मराठी भाषा में हुआ है। यहाँ एक रमादेवी करके बड़ी अच्छी विद्वान स्त्री थी। उसने बाइबल लड़ते हैं. झगड़ते का जो भी भाषांतर था वो मराठी भाषा में किया और उसमें जो शब्द थे जैसे John जान को जोहा, मैथ्यूस का मात्रेया अनुवाद किया। तो मैंने बाइबल जो है वो मराठी में पढ़ा। इसलिए बहुत बार गड़बड़ हो जाती है। स्पष्ट रूप से लिखा हैं जो बातें लिखी हैं वो बडी गहन हैं। अंग्रेजी भाषा उसकी इतना शुद्धता उन्होंने रखी हुईं है। उसी में ने तो बदल ही दिया उसका स्वरूप; में सोचती उन्होंने लिखा कि जब वो शादी में गए थे तो हूँ, और ईसामसीह के बारे में भी जो पबित्र उन्होंने वहाँ पर पानी से द्राक्षासव बनाया बड़ी तत्व की बात है। मराठी में दूसरी विशेषता मैंने देखी कि ईसा मसीह के बचपन के बारे में, वो अंग्रेजी में हैं। तीसरी बात, मराठी आदमी जो उनकी बाल्यावस्था के बारे में उन्हॉंने लिखा। है बड़ा खुद्दार है। राजस्थान में भी जैसे मेवाड़ अंग्रेजी में मैंने ऐसी कोई कविता नहीं पढ़ी। मैं नहीं जानती कि आपने कभी ईसा सीखने नहीं वाले। अंग्रेज गर सिखाए तो कहेगा मसीह की बाल लीलाओं का वर्णन पद्य में (कविता) में सुना होगा मैंने तो कभी नहीं सुना. परन्तु मराठी भाषा में इस तरह की रचनाएं हैं। अभी कल ही उन्होंने गया "बाल बदन तव वधुनी खिस्ता।" नन्हें बालक का मुँह देखकर मेरे सारे भय दूर हो जाते हैं पश्चिमी भाषाओं में गया है जिस प्रकार भारत में श्री राम और श्री कृष्ण के बाल्यकाल का किया गया है। उनका , मुँह में सभी छोटी-छोटी चीजों का और इतनी ठुमक कर चलना, तुतलाकर बोलना कारण है कि भारतीय अपने बच्चों से छल नहीं कर सकते। उनके लिए यह असम्भव कार्य है। के बाल काल के बहुत सुन्दर वर्र्णन हैं। तीसरी आश्चर्यचकित कर देने वाली बात ही मधुर-मधुर चीजे हैं। मैंने किसी से कहा कि कोई एक अंग्रेजी की पुस्तक खोजो जिसमें किसी विवाहित युगल के रोमांस का वर्णन हो। लेकिन विवाह के पश्चात् वहाँ तो सारा रोमांस खत्म हो जाता है। तब आप लोग करते क्या हैं? हैं और कचहरी में जाकर तलाक ले लेते हैं। यही बात है कि हमारे ऊपर बड़ा भारी एहसान हमारी संस्कृति का है बहुत बड़ा। तो हमने मराठी में बाइबल का अनवाद पढ़ा। उसमें अत्यन्त आध्यात्मिक स्वरूप का वर्णन मराठी बाइबल में है वो न तो हिन्दी में है और न ही हैं। वो अंग्रेज से कुछ के लोग हैं बड़े खुद्दार ( राऊदया राऊदया). रहने दो रहने दो। आपके जैसे बहुत देख लिए पर उत्तर में मैंने देखा कि अंग्रेजों का बहुत जोर है, सूट बूट पहनना और टाई लगाना जूते पहनना और सब पर रौब झाड़ना। महाराष्ट्र में नहीं है। मराठी आदमी को सूट पहनाना बहुत कठिन है, वो तो धोती पहनते 46 चैतन्य लहरी । खंड : XI अंक : 7 8 8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-48.txt हैं। पढ़े-लिखे लोग भी धोती । अब आपने देखा मज़ाक है। मेरी खोपड़ी में नहीं जाता था और अब मैं देखती हूँ श्री राम और श्री कृष्ण का देश के, यहाँ के रानाडे हो गए, आगरकर हो आशीर्वाद, कबीर की वाणी, नानक साहब का आशीर्वाद अरे ये पंजाबी लोग, मैं पंजाव में टाई-बाई नहीं लगाते थे। हाँ सरकारी नौकरी पढ़ती थी तो मैं सोचती थी कि ये पंजाबी इनकी करना भी बड़ी निम्न श्रेणी की बात समझते हैं। तो कभी खोपड़ी में सहजयोग जाएगा ही नहीं बहुत बार लेख आते और मैं हैरान। मैं बड़ी हैरान। इतनी भक्ति और हैं। लिखा जाता है कि आप सरकारी नौकरी क्यों इतना आनन्द इन्होंने कैसे प्राप्त किया? वहाँ न नहीं करते। फिर दो चार लोगों के नाम दिए जाते कोई प्रवचन देता था. कुछ नहीं, कैसे व्या हो हैं कि देखो इन्होंने की सरकारी नौकरी तो गया? अब महाराष्ट्र में मैने बड़ी मेहनत करी, बाप रे बाप एक-एक गाँव देहात हर जगह गए कोई महात्मय नहीं है। कोई भी, और हमारे बड़ी-बड़ी मेहनत करी, लेकिन महाराष्टर बात नहीं है। जो बात उत्तर भारत की है वो महाराष्ट्र में नहीं है। बड़े आश्चर्य की बात है। मैं और उससे ज्यादा सरकारी नौकरी करना तो कहूँ कि इतनी मेहनत की सब बेकार ही जाती मनुष्य का चरित्र हनन हो जाता है। उल्टे मेरे ही पीछे हाथ धोकर लग गए! पता ये हुआ मुझे कि यहाँ गुरुघंटाल बहुत हैं, कोई ।A.S. में आएगा तो बस हो गया, उसका इतने गुरु हर एक आदमी का गुरु, घर-घर में तीस लाख पैतीस गुरु घुसे हुए हैं। इतने गुरु लोग हैं यहाँ, कुछ लाख। कोई 1.A.S. का आदमी हो गया तो उत्तर पूछिए नहीं। वो पंचाग आता है न. उसमें भी हर एक गुरु का नाम, उसके जन्मदिन, ये वो। मैंने लिखा हो विद्वान हो तब मानते हैं और आध्यात्मिक कहा है भगवान! और सब बिल्कुल बेकार लोग, हो, ये बड़ा भारी (diference) अन्तर है। ओर इसमें कुछ कुछ महान भी थे पर बहुत थोड़े और इसलिए शुरु-शुरु में दिल्ली में मैं सोचती थी ऐसे गुरु घंटाल कि जो सिवाय पैसों के और कि ये क्या समझेंगे। पर बड़ी हैरानी की बात है औरतों के सिवाय कुछ नहीं जानते। इतनी बड़ी कि दिल्ली में अब सहजयोग ऐसा फैला है, ये महाराष्ट्र की भूमि, इतनी पवित्र भूमि जहाँ पर लखनऊ में मुझे विश्वास ही नहीं होता। किसके इतने देवियों के स्थान, महालक्ष्मी महासरस्वती. महाकाली और आदिशक्ति सबके स्थान हैं इस कि तिलक यहाँ कितने बड़े लीडर हो गए गए, सब। कोई सूट-बूट नहीं पहनते थे कोई महाराष्ट्र में आपको पता है उनका क्या खराबा हुआ, पर सरकारी नौकरों का पिताजी तो कहते हैं कि पहले नौकरी करना अधम चीज़ है। अपना पेशा (profession) रखी अधमाधम। सो है। सो बहुत उनकी बात मैंने देखी सही है अब भाव चढ़ जाता है वहाँ पे । भारत में बहुत बड़ी चीज़ मानते हैं। यहाँ पढ़ा आशीर्वाद से हुआ? ये तो ऐसे अंग्रेजों के चापलूस नम्बर एक थे। इनको हो क्या गया है? महाराष्ट्र में और अष्टविनायक और ये महाविनायक सब यहाँ बैठे हुए हैं। हाँ ये लोग अश्लील नहीं. गंदगी नहीं, लेकिन धर्म को समझने की इनमें क्षमता नहीं है। क्षमता नहीं है। वही घंटा बजाना, क्योंकि लखनऊ जैसी जगह तो खाओ पियो मन्दिर में जाना गुरुओं के पीछे में भागना, बहुत मौज करो और सब दिल फेंक बहादुर। मैं तो ही ज्यादा कर्मकाण्डी लोग हैं। और बातें नहीं हैं। हैरान होती थी कि लोगों से बात क्या करें! गंदगी नहीं है। पर इतने कर्मकाण्डी हैं कि उसमें सबका रिश्ता वैसा, बात वैसा, मेरे तो समझ नहीं से निकल ही नहीं पा रहे हैं इस तरह से मैंने आता था। अब मैं महाराष्ट्र से गई थी, मेरे की तो आपको विश्लेषण करके बताया कि जो लोग कुछ समझ भी नहीं आता था। भाभी है तो विदेश के हैं, जिनसे मुझे उम्मीद ही नहीं थी, मैं उसका मज़ाक है, सांस ननद है तो उसका सोचती थी कि ये क्या बेकार के लोग. इनको तो ये बदल कैसे गए? मुझे लगता है श्री राम और श्री कृष्ण जहाँ जिस भूमिमण्डल में रहे हैं उनके आशीर्वाद से है। और तो मैं बता नहीं सकती चैतन्य लहरी 47 खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 भी 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-49.txt कुछ अन्दाज ही नहीं किसी चीज़ का। वो कहाँ ईसामसीह के जीवन से उनकी सादगी उनकी से कहाँ पहुँच गए! और north के लोग जिनको पवित्रता और उनकी अबोधिता का जो शस्त्र है मैं सोचती थी ये क्या आएंगे सहजयोग में मैं तो वो श्री गणेश के माध्यम से जरूर नष्ट करेगा दिल्ली को बिल्ली कहती थी, मेरी शादी भी इन लोगों को और महाराष्ट्र में भी जागृति हो दिल्ली में हुई। मेरे पिताजी भी दिल्ली में थे। बिल्कुल उम्मीद नहीं थी । पर आश्चर्य की बात है कि आज दिल्ली में उससे उत्तर में पंजाब में जाने कितने सन्तों ने कुण्डलिनी के बारे में ऐसा यू.पी. में सब जगह राजस्थान में सहजयोग फैल कोई सन्त ही नहीं जिसने नहीं कहा, सारे ही गया है। ये महाराष्ट्र की दुर्दशा है और इस वजह से आप लोगों का यहाँ आना जरूरी है क्योंकि आपके चैतन्य से यहाँ बहुत जागृति हो सकती है उन सन्तों को, मैं सोचती हूँ, जिन्होंने इतनी और लोग महसूस कर सकते हैं आप के आने मेहनत करके यहाँ पर जागृति करने की कोशिश से। आपका चित्त यहाँ आना जरूरी है क्योंकि आपके चैतन्य से यहाँ बहुत जागृति हो सकती है और लोग महसूस कर सकते हैं आप के आने आने से इन लोगों में अक्ल आएगी । ये समझेंगे से आपका चित्त यहाँ आ जाता है और उससे कि ये किस गुरु के पीछे भाग रहे हैं। ये सब जो महाराष्ट्र के जो गुरु लोग बैठे हुए हं, अब भी बैठे हैं बहुत सारे मराठी में शब्द है उछल वांगडी कर ले, अब इसका मैं भाषान्तर नहीं बता सकती, तो उनको उठा के फैंकने का कार्य आप लोगों का चैतन्य कर सकता है। विशेषकर आज जबकि आप जीसस क्राईस्ट के पवित्र, पवित्रतम जीवन के प्रति आदर व्यक्त कर रहे हैं। उस वक्त ये मैं ज़रूर कहूँगी कि यहाँ पर जो लोग करते हैं। उनकी बहुत ज़रूरत है। वो तो मैं इतने सारे गुरु घंटाल बैठे हैं, जिनको ईसामसीह आज होते तो एक हंटर से मारते फिरते, ऐसे इन ऐसे ठोकेंगे पर आप लोगों का ये विचार कि गुरुओं का ही यहाँ से उछल वांगडी हो जाएगा। अब ये भाग के पता नहीं कहाँ जाएंगे. बहुत करने आए हैं और उनके शक्ति से महाराष्ट्र की पैसा बना लिया है सबने, काफी बेवकूफ बना लिया है। लेकिन ये एक तरह की सादगी है, बहुत गणेश की पूजा बहुत करेंगे। लेकिन वो बेवकूफी यहाँ पर है। कोई भी गुरु आए उसके चरण छुओ। सब चरण छू महाराज लोग यहाँ इससे कोई मतलब नहीं। कुछ समझ में नहीं बहुत हैं। तो ये एक बात हमारे अन्दर बेवकूफ बनने की क्षमता पता नहीं कहाँ से आ गई थी। उभारने के लिए आप लोगों का यहाँ आना कोई भी आए कुछ भी पढ़ाए बस हमारी परंपरा जरूरी है। हर साल आप लोग आते हैं वो भी है गुरुदेव आ गए। बस इस परंपरा से ही ये ईसा मसीह जन्मदिन बनाने के लिए, ये बडी महाराष्ट्र ग्रस्त हुआ है। और मैं तो कहँगी कि जाएगी। यहाँ भी लोग प्राप्त करेंगे उस परमधन को और परम तत्व को जो यहाँ पर बताया। न सन्तों ने यहाँ कुण्डलिनी की बात कही। एक से एक महान संत इस देश में हो गए। इस देश के की वहाँ मैं भी हार गई। लेकिन आप लोगों का आना बहुत मुबारक हे और आप लोगों के यहाँ भी मैं बता रही हूँ इसलिए कि बहुतों ने मुझसे कहा कि माँ गणपति पुले से अच्छा आप और ही कुछ करिए प्रोग्राम। मैंने कहा नहीं। आप आइए क्योंकि आपका कर्त्तव्य है कि आप सब में जागरण लाएं। महाराष्ट्र में जागरण लाना है और आपको इसीलिए यहाँ आना जरूरी है और वो भी यहाँ पर ईसा मसीह का हम लोग गौरव कहती हैँ न कि हंटर ले के इन सब गुरुओं को हम यहाँ आज उनके पवित्रतम चरित्र को उजागर ये भूमि पवित्र हो जाए। और ये जो गणेश पूजा गणेश क्या है और गणेश का मतलब क्या है, आता ऐसे चक्कर में फँसे हुए लोग हैं। इनको भारी बात है। आप सबको अनन्त आशीर्वाद। 48 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 & 8, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-51.txt ा श्री चरणों में समर्पित। हे महान आत्मा, आवाज तेरी बोलती है वायु में और पेड़ों में, पुरे विश्व को उन्नत करता है श्वास तेरा, अपने जीव की सुनो, सभी को सुनो मैं नन्हा और कमजोर हूँ, जरूरत है मुझे शक्ति तुम्हारी, चिवेक भी तुम्हारा मुझे चाहिए गरिमापूर्वक चलने के लिए, सूर्योदय की स्वण्णिम लालिमा की छवि प्रफुल्लित करे मेरी दृष्टि, प्रेम पूर्वक सृजित मेरे आपकी सभी वस्तुओं को छुएं हाथ , हर चीज में कर्ण मेरे सुनें तेरी वाणी ।