चैतन्य लहरी अक ९ वः १० रकंड : ११ १९९९ हं ु ক आपलोे क नहीं करा प। बापके सामते समस्यार आती है तो जससे पाहले के मे आपको सफे परम चीतम्य नका समावान कदेता है। यन्न जापकी स्वयं पर और परम वेतन्य पर पर्ण विसयस करना होगा और विचस्स ोना ोगा कि आप आत्मताकालारी वयक्ति है, कोई आपको सानि नही पहँचा सकता। परम पूज्य मलाजी थी निर्मला केी ाम इस अंक में सम्पादकीय 1 ध्यान घारता किस प्रकार करें सहस्रार पूजा - 9.5.1999, कवैला 8. श्री फातिमा बी पूजा- 14.8.88, सेन्टजार्जण्वेस 18 सार्वजनिक कार्यक्रम, मुम्बई 1998 32 योगी महाजन सम्पादक : वी जे नालगिरकर प्रकाशक १६२, मुनीरका विहार नई दिल्ली-११००६७ रगंड ११ चैतन्य लहरी १ 1999 मफ सम्पादकीय दट पावन भूमि पर गणपति पुले की सुगन्ध को चखा । दुबई के योगी गण महासागर के दूसरे छोर पर एक अन्य गणपति पुले की सृष्टि करने के गीत लिख रहे हैं । स्नेहमयी मां के स्वर्ग प्राप्त करने की इच्छा सभी धर्मों का अन्तिम लक्ष्य रहा है। सभी धर्म कहते हैं. "जैसा करोगे, वैसा भरोगे" (As you sow, so shall you reap)। श्री कृष्ण के कर्म फल के सिद्धान्त का यही आधार है। बाइबल में भी साथ बिताए गए आनन्दमय क्षण हमें स्वर्ग की इस विषय पर ऐसे बहुत से उदाहरण खोजे अनुभूति प्रदान करते हैं। उनके प्रेम में इतनी जा सकते हैं। बौद्ध तथा जैन धर्म का निर्वाण, मोक्ष का सिद्धान्त और जैन का सतोरी (5atori) प्रदान की है। श्री माताजी द्वारा दिए गए प्रेम भी इसी स्वर्गीय अवस्था का वर्णन है के उपहार को यदि हम दूसरे लोगों से बॉटे शक्ति है अपने प्रेम की शक्ति उन्होंने हमें भी 1 आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् नई तो क्या उन पर भी वैसा ही प्रभाव न होगा ? चेतना की स्थिति में हमारी परम पावनी श्री क्या यह प्रेम अन्य लोगों को गणपति पुले के माताजी के चरणकमलों में गणपति पुले में आनन्द से आत्म विभोर नहीं कर देगा क्या इस स्वर्गीय अवस्था का अनुभव हमने किया यह पूरी सामूहिकता को स्वर्ग की अनुभूति है। पैगम्बर मोहम्मद ने ठीक ही कहा था कि नहीं देगा? परमेश्वरी माँ ने जब हमें ये शक्ति "स्वर्ग तो माँ के चरणों में है।" चेतना के प्रदान की है तो क्यों न हम इसका उपयोग स्वर्गीय अनुभव की ये मोहर हमें इस स्वर्गीय करें क्यों हम अपना समय दूसरों की आलोचना अवस्था को बार बार खोजने को विवश करती आदि आनन्द विहीन, व्यर्थ के कार्यों में बर्बाद है। दूसरे शब्दों में अपनी परमेष्वरी माँ के चरण कमलों में निरन्तर ब्रह्माण्डीय सहज लिए उपयोग नहीं करते हैं जिसके लिए ये परिवार का मिलन बनाए रखने की शुद्ध इच्छा हमें दी गई है तो हम इस शक्ति को खो देंगे हममें उभरती है। 1 करें। यदि हम इस शक्ति को इस उद्देश्य के तथा परमेश्वरी प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति से अपना सम्बन्ध भी खो देंगे। सहजयोगी जब गणपति पुले स्वर्ग का प्रतीक बन गया है। कहीं एकत्र होते हैं तो उनमें परमेश्वरी प्रेम कबैला दूसरा गणपति पुले कहलाता है। श्री आदिशक्ति पूजा के अवसर पर अमेरिका के सहजयोगियों ने कन्ना-जोहारी, अपस्टेट न्यूयार्क की इस सर्वव्यापी शक्ति से जुड़ने की सामूहिक शक्ति होती है और वे स्वर्ग को पृथ्वी पर उतार लेते हैं। (Cana Johari, Up State, New York) अंक ९ व चैतन्य तहरी 1999 रागंड ११ १० उमर खुय्याम जैसे कवियों ने स्वर्ग की तस्वीर से अपने सृष्टा को देखते हैं और उनकी (श्री को रोमांचक बनाकर पेश किया है. "स्वर्ग में माता जी की) सृजन लीला का आनन्द लेते परियां नृत्य कर रही होंगी।" अभी तक स्वर्ग है पृथ्वी पर स्वर्ग प्राप्त कर लेने के पश्चात् का वर्णन मानवीय कल्पना पर आधारित था। इससे अधिक हम क्या माँग सकते हैं। अव सहजयोग की कृपा से हम सत्य को देखने में हमारी ज्ञानेन्द्रियां स्वर्ग-बोध करने के लिए सक्षम हैं और अब हम जानते हैं कि स्वर्ग एक स्थिति है जिसका अनुभव सहस्रार पर किया चैतन्य लहरियों के साक्षी हैं । हमारे चक्षु इसके जा सकता है हमारी परमेश्वरी माँ ने हमें सौन्दर्य के प्रति जागरूक हैं. हमारे कर्ण इस सिखाया है कि किस प्रकार इस स्थिति में स्वर्गीय संगीत को सुनने के लिए खुल गए हैं। प्रवेश करें। उस स्थिति में जब हम स्थापित हो तो आइए अपनी ज़िह्वा से परमेश्वरी माँ का जाते हैं तो शाश्वत आनन्द से परिपूर्ण होकर महिमा गान करें और स्वर्ग की तरह से ही प्रकाशमय हो उठी हैं। हमारे हाथ स्वर्गीय जजा अपनी परमेश्वरी माँ के प्रेम की सुखद उष्णता पृथ्वी पर उनके साम्राज्य में आनन्द विभोर हो का आनन्द लेते हैं। पर्वतों, नदियों, समुद्रों, जाएं जंगलों और फूलों की तरह से हम साक्षी भाव जय श्री माता जी खंड ११ अंक १ य १० चैतन्प लहरी 1999 ध्यान धारना किस प्रकार करें परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी (19.1.84) प्रातः काल उठें, स्नान करके बैठ जाएं। चाय 'मैंने क्षमा किया। यह कार्य करता है और यदि लेना चाहें तो ले लें, बातें न करें। प्रातः काल बिल्कुल बातें न करें, बैठ जाएं और आप ध्यान करें इस अवस्था से पहले ध्यान आप निर्विचार समाधि में चले जाते हैं। अब ध्यान करें। इस समय दैवी किरणें आती हैं, नहीं होता। जब विचार आ रहें हों या 'मूझे और उसके पश्चात् सूर्योदय होता है। पक्षी भी चाय पीनी है या मैं क्या करुं अब मुझे कौन इसी प्रकार जागते हैं और पुष्प भी। सभी इन सा कार्य करना है?' 'ये कौन है' और वह दिव्य किरणों से जागते हैं। आप भी यदि कौन है यह सब आएगा। संचेदनशील हैं तो आप महसूस करेंगे कि सुबह उठने से आप अपनी अतः सर्वप्रथम आप निर्विचार चेतना में चले छोटे लगेंगे। प्रातः काल जागना इतनी अच्छी जाए, तभी आध्यात्मिक उत्थान आरम्भ होता चीज़ है, और फिर स्वतः ही रात को आप से दस वर्ष आयु है। निर्विचारिता की अवस्था प्राप्त करने के जल्दी सो जाएंगे। यह जागने के विषय में है पश्चात्, इससे पहले नहीं। आपको यह जान सोने के विषय में बताने की मुझे कोई लेना चाहिए। तार्किकता के स्तर पर आप आवश्यकता नहीं क्योंकि सो तो आप जाएंगे सहजयोग में उन्नत नहीं हो सकते। अतः निर्विचार अवस्था में स्थापित होना पहली आवश्यकता है। अभी भी आपको महसूस होगा ही । प्रातः काल आप केवल ध्यान करें। ध्यान में कि किसी चक्र विशेष में रुकावट बनी हुई है। अपने विचार शांत करने का प्रयत्न करें ऑखें इसे भूल जाएं । भुला दीजिए इसे खोलकर मेरी फोटो को देखें और निश्चित अब आप समर्पण आरम्भ करें। कोई चक्र रूप से अपने विचारों को शांत कर लें । विचारों यदि पकड़ रहा है तो आपको कहना चाहिए- को शान्त करने के पश्चात् ध्यान में जाएं। विचारों को शान्त करने के लिए 'येशू प्रार्थना श्री माताजी मैं आपके प्रति समर्पित हूँ।" (Lord's Prayer) बहुत सहज चीज़ है क्योंकि अन्य विधियाँ अपनाने के स्थान पर आप विचारों की स्थिति आज्ञा स्थिति (Agnya केवल इतना कह दीजिए । परन्तु यह समर्पण State) होती है अतः प्रातः काल येशु प्रार्थना तर्कयुक्त (Rationalised) नहीं होना चाहिए। या श्री गणेश का मन्त्र लेना याद रखें। दोनों तर्कयुक्ति से अब भी यदि आप ये सोचते हैं एक ही बात है। आप ये भी कह सकते हैं कि, कि "मुझे ऐसा क्यों कहना चाहिए" तो कहने कळ चेतन्य तहरी रगंड ११ 666 का कोई लाभ न होगा आपके हृदय में यदि ध्यान धारणा में आने वाली समस्याएं पवित्रता और पवित्र प्रेम है तो यही सर्वोत्तम ध्यान करते हुए यदि आपको विचार आ रहे हैं है। पावन प्रेम ही समर्पण है अपनी सभी चिन्ताएं अपनी माँ (श्री माताजी) पर छोड़ दें। सभी तो सर्वप्रथम मन्त्र लें और फिर अपने अन्दर दृष्टि डालें। अवश्य श्री गणेश का मन्त्र लें, कुछ उन पर छोड़ दें। परन्तु अहम् चालित (Ego-oriented) समाजों में समर्पण करना बहुत कठिन कार्य है इसके विषय में बात इससे बहुत से लोगों को सहायता मिलेगी। तब आप अपने अन्दर झांके और स्वयं देखें करते हुए भी मुझे घबराहट होती है। फिर भी कि सबसे बड़ी बाधा क्या है। सर्वप्रथम विचारों यदि आपको कोई विचार आ रहें हैं या का आना-विचारों को रोकने के लिए आपको निर्विचारा' का मन्त्र लेना होगाः आपका कोई चक्र पकड़ रहा है तो बस समर्पण कर दें। आप देखेंगे कि आपका चक्र ओऽम त्वमेव साक्षात् श्री निर्विचार साक्षात्, साफ हो गया है। प्रातः काल आप इधर-उधर न होते रहें। अपने हाथों को भी बहुत अधिक श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः। न हिलाएं। आप देखेंगे कि ध्यान से ही अब अहम् की बाधा को लें। निसन्देह अब आपके विचार शान्त हो गए हैं परन्तु आपके अपने हृदय को प्रेम से भरने का प्रयत्न करें। सिर पर दबाव अभी भी बना हुआ है। यदि आपके अधिकतर चक्र साफ हो गए है हृदय में इसका प्रयत्न करें और हृदय की अहम की बाधा बनी हुई है तो महत्त अहंकार गहराइयों में अपने को विराजमान करने की कोशिश करें। जब गुरू आपके हृदय में गुरु का मन्त्र लें : "ओऽम त्वमेव साक्षात् श्री महत्त अहंकार साक्षात्, विराजमान हो जाएं तो पूर्ण श्रद्धा और समर्पण से उन्हें प्रणाम करें। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यौ नमो करने के पश्चात् जो कुछ भी आप अपने नमः मस्तिष्क से करते हैं वह मात्र कल्पना नही है नमः" महत्त अर्थात् बड़ा. और अहंकार अर्थात् घमण्ड। क्योंकि आपका मस्तिष्क, आपकी कल्पना सभी कुछ ज्योतिर्मय हो चुका है। अतः स्वय को यदि अहम की बाधा बनी हुई है तो आपको इस प्रकार बना लें कि अपने अपनी बाई ओर उठानी होगी और दाई ओर के श्री चरणों में नममस्तक हो जाएें। अब को नीचे लाना होगा। बायों हाथ फोटोग्राफ इस मन्त्र को आप तीन बार कहें। अब भी अपनी माँ गुरु, ध्यान धारणा के लिए आवश्यक स्वभाव की की तरफ करके दाएं हाथ से अपनी बाई ओर को उठाएं और दाई और में नीचे गिराएं ताकि याचना करें। ध्यान धारणा तभी होती है जब आपकी एकाकारिता परमात्मा से हो। अहम् और प्रति अहम् में सन्तुलन आ जाए। अंक ९ । रखंड ११ चैतन्प लडरी १० 1999 भावनाओं पर रखें। अच्छा! कुण्डलिनी को उठते हुए देखें (महसूस करें)। श्वास लेते हुए आपको लगेगा कि एक श्वास और दूसरे श्वास के बीच में रिक्त स्थान है। श्वास लें. इसे अन्दर ऐसा सात बार करें। अपने अन्दर देखने का प्रयत्न करें कि आपको कैसा लग रहा है। एक बार जब आप सन्तुलन प्राप्त करलें तो भावनाओं पर, मनस श्विति पर चत डालना रोकें। अव श्वास छोड़ें और कुछ क्षण तक सर्वोत्तम होगा। चित्त से अपनी भावनाओं, मनस शक्ति को देखें। अपनी माँ (श्री माताजी) के विषय में सोचने से आप अपनी भावनाओं की कि बास्तव में श्वास प्रक्रिया कम हो जाए । श्वास को निष्कासित करते रहें। फिर से श्वास लें। अब इस प्रकार श्वास लेना आरम्भ करे प्रकाशमय कर सकते हैं। ठीक है? भावनाओं परन्तु इसके लिए किसी प्रकार की जबरदस्ती नहीं होनी चाहिए। आपका चित्त आपके हृदय को प्रकाशरंजित कर लें। इससे सभी समस्यांओं का समाधान हो जाएगा- मन की सभी पर या भावनाओं पर होना चाहिए। श्वास को समस्याओं का। एक वार जब आप उन भावनाओं कुछ देर अन्दर रोकना अच्छा होगा। श्वास रोकें, छोड़े इसे थामें रहें। कुछ क्षण श्वास को से जुड़ जाएंगे और ध्यान में उन्हें देखना आरम्भ कर देंगे तो आप पाएंगे कि आपके अन्दर ये भावनाएं बढ़ने लगी हैं। यदि आप इन भावनाओं को अपनी माँ को समर्पित करने के लिए आपने श्वास लिया ही नहीं । अब का प्रयत्न करेंगे, (या जैसे कहते हैं, इन्हें अपनी माँ के चरण कमलों में डाल देंगे) तो ये आपके प्राण और मन के बीच 'लय' स्थापित भावनाएं विलीन होने लगेंगी, एक प्रकार से होती है। दोनों शक्तियाँ एक हो जाती हैं। देर बाहर ही रहने दें। आपको लगेगा कि कुछ ं आपकी लगेगा आप शान्त हो गए हैं। फैल जाएंगी। ये विस्तार, आप जानते हैं, आप इस प्रकार करते हैं कि आपको लगता है कि सहस्रार पर तीन बार मन्त्र कहना चाहिए। ये आपके वश में हैं भावनाओं को वश में कर "ओऽम त्वमेव साक्षात्, श्री कल्की साक्षात् श्री सहस्रार स्वामिनी मोक्ष प्रदायिनी माताजी. श्री निर्मला देव्यै नमो नमः।" लेने से आपकी भावनाएं विस्तृत, प्रकाशमय और सशक्त होती हैं। अब आपको अपना श्वास देखना होगा। श्वास आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होते ही कुछ लोगों को को कम करने का प्रयत्न करें, इसे कम करें, उस अगाध प्रेम की चेतना अनुभव होने लगती जैसे एक बार आपने श्वास लिया है तो कुछ है। परन्तु कुछ लोगों में अभी तक अहम् शेष क्षण रूकें, फिर श्वास लें कुछ देर श्वास को होता है जिसका समाप्त होना आवश्यक है। अन्दर रोकें, तब श्वास छोड़ें। इस प्रकार एक इसके लिए वो मेरे पास आते हैं। मैं देखती हूैँ मिनट में आपकी श्वासगति सामान्य हो जाएगी। कि बुलबुलों की तरह से वे हवा में होते हैं। ठीक है। ऐसा करने का प्रयास करें, चित्त को मानो पोषणकर्ता माँ ने इन्हें उड़ाया हो चैनन्य लहरी 1999 अक ९ व १० ंड ११ समुद्र की सतह पर उड़ते हुए बुलबुलों की के सम्मुख समर्पित है? तरह से। बहुत से लोग प्रति-अहं के कारण भी परेशान होते हैं। वे हर समय अपनी व्यक्तिगत परेशानियों के बारे में ही रोते रहते हैं। परन्तु ऐसा कहना असंगत है सहजयोग के संदर्भ में शब्द 'समर्पण' का अर्थ केवल हमारे अहं, एक बार जब उत्थान होता है तो उनकी हमारी सीमाओं, हमारे उथलेपन का समर्पण एकाकारिता सागर की आत्मा से हो जाती है तब वे सागर की गहन, आनन्ददायी शक्ति का हो सकता हैं। इन्हें हम अपना मान चुके हैं। महान और शाश्वत उपलब्धि के बदले हमने निरर्थक का समर्पण किया है अज्ञान का ये बोझ छँट जाना चाहिए। अनुभव करते हैं जो हर क्षण उनका पोषण पृथ प्रदर्शन और उत्थान करती है। सागर की सुन्दर गहराइयों में पैंठ कर दिव्य अनुभवों के मैं नहीं सोचती कि मैं कुछ करती हूँ, क्योंकि मोती वे प्राप्त करते हैं और जब उन्हें ये वास्तव में मैं कुछ नहीं कर रही। कभी-कभी सुन्दर मोती प्राप्त हो जाते हैं तो कविताओं, नृत्यों, तो मुझे लगता है कि इस प्रशंसा पर मेरा कोई मुस्कानों, हँसी तथा आनन्द के रूप में वे ये अधिकार नहीं क्योंकि मैं तो वही हूँ जो मेरा मोती भेंट करने के लिए मेरे पास ले आते है। स्वभाव है। मैंने कुछ प्राप्त नहीं किया-अपने ये सब आपके अन्दर हैं परन्तु आपकी चेतना स्वभाव के साथ मैं विद्यमान हूँ क्योंकि इसके से दूर पड़े हुए हैं। यद्यपि आत्म साक्षात्कार से अतिरिक्त में कुछ नहीं कर सकती। जबकि आपकी चेतना ज्योतिर्मय हो गई है परन्तु अभी आप लोगों ने उपलब्धि पाई है। आप लोगों तक आनन्द से यह प्रकाशित नहीं हुई हैं शनैः शनैः यह आप में घटित होता है और, देखने के लिए अपना आनन्ददायी सत्यस्वरूप जैसा मैंने आपको बताया, जितना शीघ्र हो देखने के लिए आपने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त सके, आपमें यह घटित होना चाहिए। । को यह महान श्रेय जाता है कि स्वयं को किया है। वास्तव में मुझे आपकी प्रशंसा में समर्पण के लिए क्या है- यह शक्ति तो आपकी कविताएं लिखनी चाहिएं। अपने तरीकों से यह ओर स्वयं बह रही है और आपका पोषण कर रही है। दर्शाने का मैं भरसक प्रयत्न करती हॅू कि परमात्मा कितने प्रसन्न हैं। आप लोग इस य बात को हर जगह, हर समय, हर क्षण देखते कहते हैं कि कमल अपनी है। क्या हम कभी सुगन्ध के सम्मुख समर्पित है? प्रार्थना तो आज रात हम सबको अपने हृदय क्या हम कभी कहते हैं कि सूर्य अपने प्रकाश में करनी चाहिए कि: के सम्मुख समर्पित है? "मातृत्व का यह उदार स्वभाव हमारी चेतना में आए' क्या हम कभी कहते हैं कि चाँद अपनी शीतलता खंड ११ चैतन्य लहरी अंक 1999 १० जैसा मैंने आपको बताया इसे ऋतम्भरा प्रज्ञा अतः आप प्रेम एवं उदारता के महान सागर से कहते हैं-अर्थात् इस पृथ्वी माँ के स्वभाव से जुड़े हुए हैं। जीवन के इस महान वृक्ष में सभी आपकी चेतना प्रकाशमय हो जाती है, उस कुछ समाहित हैं। बाइबल में इसी जीवन वृक्ष स्वभाव से जो इसे भिन्न ऋतुओं से भरपूर कर का वर्णन है. वे इसे अग्न वृक्ष कहते हैं। अब देता है- यही प्रज्ञा है। आपकी एकाकारिता इससे हो गई है, इसका आशीर्वाद आपको प्राप्त हो गया है, यह आपको प्रेम करता है। अत्यन्त प्रेम से यह आपका पथ मैंने कहा, सभी के साथ यही घटित होता है जो लोग अहम् के घोड़े पर न चढ़कर ै परन्तु मध्य में रहने का प्रयत्न करते हैं उनके साथ प्रदर्शन करता है। यह इतना कोमल है कि इसका पथ प्रदर्शन आपको महसूस तक नहीं होता-एक पत्ते की तरह से, जब वह पृथ्वी पर यह घटना अधिक घटित होती है उस तुच्छ क्षेत्र से कूदकर असीम विशाल क्षेत्र गिरता है। में आने के लिए यही सर्वोत्तम समय है । एक बार जब ऐसा हो जाएगा, तो आपकी आश्चरय यही आपकी वास्तविकता है। इस प्रकार होगा, ये सभी तुच्छ समस्याएं महानता के उस शक्ति से एकाकार होने का प्रयत्न करें। एकाकार हो जाएं जैसे अर्थ शब्द से, चाँदनी चाँद से और धूप सूर्य से होती है सांगर में लुप्त हो जाएंगी। इन समस्याओं में उलझे नहीं। इन्हें स्रोत (परम् चैतन्य) के हाथों में छोड़ दें ताकि आपकी इन सभी यह एकाकारिता, यह संगठन इस प्रकार छोटी-छोटी समस्याओं को यह पोषक-शक्ति आपकी पहचान बन जाए कि आप परमात्मा संभाल सके। आप महान विवेकशील, महान के प्रेम का प्रकाश बन जाएं: आपकी गहनता पोषक, महान धर्म और महान श्रेष्ठता के स्रोत और उपलब्धियों से लोग परमात्मा को समझें। यह हर प्रकार से सर्वाधिक संतोषप्रदायी एवं (वृक्ष) से जुड़े हुए हैं; यह समझना भी आपके लिए कठिन है कि यह वृक्ष कितना महान है। फलदायक कार्य है, सन्तोष, शक्ति एवं प्रगल्भता ( यशस्विता) प्रदायक। आप एक ऐसे वृक्ष से जुड़े हुए हैं जो आपको पूर्ण सुरक्षा प्रदान करता है, एक ऐसे महान इसके लिए आपको कोई त्याग करने की से जुड़े हुए हैं जो इस दिव्य नाटक को आवश्यकता नहीं - आप केवल अपनी आत्मा वृक्ष देखने के लिए आपको पूर्ण साक्षी भाव प्रदान के प्रकाश में स्वयं को संचालित करें। करता है और जो आप को समझ प्रदान करता है कि 'पूर्ण' आप ही का अंग प्रत्यंग है परमात्मा आपको धन्य करें। और आप पूर्ण (विराट) के अंग प्रत्यंग हैं लंड ११ अंक ९ व १० 1999 चैतन्य लहरी सहस्रार पूजा ৩.5.1999, कबैला परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन हम यहाँ सहस्रार पूजा करने के लिए एकत्र मस्तिष्क जब तक खुल नहीं जाता और हुए हैं। संस्कृत के सहस्रार शब्द का अर्थ एक कुण्डलिनी का एकाकार परम चैतन्य से नहीं हज़ार होता है। मस्तिष्क कमल में भी एक हो जाता तब तक आप अपनी वास्तविकता को हजार पंखुड़ियाँ होती हैं जो प्रकाश-रंजित हो नहीं जान सकते। इससे पूर्व अच्छे बुरे के जाती हैं। चिकित्सक लोग इस मामले को विषय में आप पूर्ण अन्धकार में होते हैं। मस्तिष्क लेकर भ्रमित हैं और परस्पर वाद-विवाद में से सोचकर आप सभी कार्य करते हैं और उन्हें फॅसे हुए हैं, परन्तु हैं। जाते वे इस तथ्य को भूल े ठीक मानते हैं। परन्तु वास्तव में जो अच्छा है उसका आपको ज्ञान ही नहीं है क्योंकि आप वास्तविकता को नहीं जानते। ये पंखुड़ियाँ हमें ज्योतित करने के लिए तैयार होती हैं। ये वास्तव में नाड़ियाँ हैं- एक हजार लकी नाड़ियाँ - जो मस्तिष्क को प्रकाशमय करने हमारे अन्दर जो चेतना है उसे हमें समझना है। जीवित होने की चेतना, बहुत सी अन्य बचकी के लिए हैं; जब कुण्डलिनी उठती है तो वह चीज़ों की चेतना और बहुत सारी चीज़ों के इन एक हजार नाड़ियों को प्रकाशमय करती है और ये दीप शिखाओं का रूप धारण कर तथाकीथित ज्ञान की चैतना। यह तन्तुपट लेती हैं, पंखुड़ी की तरह। यही कारण है कि (Diaphragm) आपकी सूचना के लिए इस सारी चेतना को ज़िगर के समीप एकत्रित कर हम इसे सहस्रार कहते हैं सहस्रार चक्र । देती है। परन्तु जब ये चेतना ऊपर की ओर मानव में यह बहुत महत्वपूर्ण चक्र है क्योंकि उठने लगती है तब आप जागरूक हो जाते केवल इसी के द्वारा हम सोचते हैं और अवांछित चीजों को रोकते हैं ।यही केन्द्र प्रतिक्रिया करता है, ऐसी प्रतिक्रिया कि बिना सोचे समझे आप हैं। विकास प्रक्रिया में आप जागरूक हो जाते है, चीज़ों के प्रति जागरूक बिना मस्तिष्क का उपयोग किए आप जागरूक हो जाते हैं; स्वतः ही कुछ चीज़ों के लिए मना कर देते हैं। छोटी-छोटी चीज़ो के लिए भी, जैसे आप परन्तु कैसे? विचारों द्वारा नहीं, सूझ बूझ से कह सकते हैं कि मुझे ये कालीन पसन्द नहीं या देखकर भी नहीं; परन्तु आप इसलिए है, मुझे ये घर अच्छा नहीं लगता, मुझे वह जागरूक हो जाते हैं क्योंकि अब आपके मस्तिष्क अच्छा नहीं लगता। परन्तु आप हैं कौन? पहले ने अत्यन्त संवेदनशील होकर कार्य आरम्भ कर दिया है। अतः किसी प्रकार के भय के इसका पता लगाएं। गनंड ११ चैतन्य लहरी अंक ९ व १० 1999 प्रति या अच्छाई आदि के प्रति आप हत्या का प्रयत्न भी कर सकते हैं, आप कुछ भी कर सकते हैं । तो अब आपका बोध साक्धान हो जाते हैं। (Awareness) उन दिशाओं की ओर बढ़ने यह प्रक्रिया यहीं समाप्त नहीं हो जाती, आगे लगता है जिधर अंधेरा है, जिधर प्रकाश नहीं तक चलती है। चेतना का विकास, जो कि है क्योंकि प्रकाश में आप ऐसे कार्य नहीं कर जागरूक होता है, इससे भी आगे चलता है । रोशनी में आप सभी को देखते हैं कि सकते जहाँ आप किसी व्यक्ति को पसन्द करने लगते सब लोग बैठे हुए हैं, आप जानते हैं कि आप कितनी दूरी पर हैं और कहाँ हैं और किसी को नापसन्द परन्तु अब भी बैठे हुए हैं। कुछ निश्चित नहीं होता हो सकता है कोई व्यक्ति आपको उसकी विशेष मुखाकृति की वजह से पसन्द हो, उसकी ऑँखो की वजह में हैं तो इसका ज्ञान आपको नहीं होता और से पसन्द हो या उसने आपके प्रतिे बहुत आप इस प्रकार आचरण किये चले जाते हैं आपने यदि बाहर जाना हो तो आप जानते हैं कि किधर से जाना है। परन्तु यदि आप अंधेरे अच्छा व्यवहार किया हो। वही विन्ब (Image) जिसे स्पष्ट नहीं किया जा सकता, केवल यही आप दूसरे लोगों में भी देखने लगते हैं। बिम्ब कहा जा सकता है कि आप मानव है। पशु स्थानान्तरण की इस प्रक्रिया से आप किसी ऐसा नहीं करते उनकी सीमाएं हैं। पशुओं को से प्रेम करते हैं या घृणा। तब आप कहते हैं यदि कुछ गलत लगे, उनके लिए कुछ मुझे इससे घृणा है, मुझे उससे घृणा है, परन्तु हानिकारक हो तो वे उस पर या तो आक्रमण इसका कोई महत्वपूर्ण अर्थ नहीं है हो सकता है आप किसी व्यक्ति विशेष से इसलिए घृणा कर देंगे या दौड़ जाएंगे। परन्तु पशु में घृणा उनमें चोट पहुँचने के भाव नहीं आ जाता। करते हों क्योंकि वह किसी अन्य व्यक्त जैसा कारण भय की भावना आ सकती है। लगता है। इससे भी आगे आप कह सकते हैं कि फलां व्यक्ति ने मुझे ये हानि पहुँचाई तब परन्तु मनुष्यों में ऐसा नहीं है। मानव बिना आप को लगता है कि आपको उस व्यक्ति से किसी विशेष कारण के घृणा कर सकता है घृणा करनी चाहिए और आप उससे घृणा क्योंकि इसमें मानव का अहम् कार्यरत होता करने लगते हैं। है। अहंकारी व्यक्ति को लगता है कि इच्छानुसार कुछ भी करने का उसे अधिकार है। किसी की भी वह हत्या कर सकता है, किसी को भी इस घूणा के कारण आपमें नए अवगुण विकासत होते हैं। किस प्रकार इस व्यक्ति की हानि हानि पहुँचा सकता है, जो चाहे वह कर सकता पहुँचाई जाए? तब आप उसे नष्ट करने और उसके जीवन को दयनीय बनाने के विषय में है। परन्तु जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता वह बिल्कुल भिन्न है- वह डरपोक है. उसे किसी का भय है। सोचने लगते हैं। ऐसी स्थिति में उससे मिलकर आप उस पर चिल्ला सकते हैं या उसकी अंक ९ चैतन्य लहरी 10 बगड ११ 1999 १० अवचेतना आगे चलती है। यह चेतना अत्यन्त है आपको भली-भाँति ज्ञान होना चाहिए कि है क्योंकि आपको यदि किसी का भय है उचित क्या है और अनुचित क्या है इसके सूक्ष्म तो आप उसके घर नहीं जाना चाहेंगे, गली में लिए, जैसा मैंने आपको बताया, कुण्डलिनी उससे कन्नी काटेंगे आदि आदि। तो अन्य की महान शक्ति आपके अन्दर विद्यमान है । मनुष्यों के विषय में भी आपके मस्तिष्क में इस यही सभी चक्रों में से गुजरकर सर्वप्रथम इन्हें प्रकाशमय करती है। तो आपकी चेतना ज्योतित प्रकार का सारा ज्ञान एकत्र हो जाता है। तब ये चीज सामूहिक स्तर पर कार्य करने लगती है और जब यह सहस्रार को भेदती है तो है क्योंकि आप सोचते हैं कि यह समूह बहुत आपका सम्बन्ध सर्वव्यापक शक्ति से कराती है, वह समूह खराब है, वे अच्छे है, और है। यही बोध है- जो कि प्रेम है, सत्य है। बुरा इस प्रकार यह कार्य होता रहता है। अपने तत्पश्चात् आप तुरन्त जान जाते हैं. कुछ मस्तिष्क में आप सोचते हैं कि किसी का एक लोग नहीं भी जानते, कि अभी तक जो कुछ परन्तु इसकी अपेक्षा दूसरा समूह कहीं सोचकर हम स्वयं को दूसरों से अलग कर ह समूह है अच्छा है । वह समूह अच्छा है, और तब सामूहिक रहे थे, उन्हें गलत समझ रहे थे, उन्हें बुरा रूप से आप अपने पूर्ण स्वभाव और ज्ञान (चेतना) को कार्यान्वित करने लगते हैं। जैसे एक बार यदि लोग ये निर्णय कर लें कि काले जाते हैं और तब आप महसूस करते हैं कि लोगों को समाप्त करना है तो इस कार्य के आपकी चेतना भी बहुत सी परिस्थितियों से लिए सभी गोरे लोग एकत्र हो सकते हैं। या जिस प्रकार हिटलर के समय में हुआ उसने जन्म स्थान, माता-पिता द्वारा आपको दी गई निर्णय किया कि जर्मन लोगों के अतिरिक्त शिक्षा, आपके अनुभव आदि । तब आपको समझ समझ रहे थे, यह ठीक न था। ये विचार अब समाप्त हो जाते हैं, यह पूर्णतः समाप्त हो प्रभावित है। उदाहरण के रूप में आपका सभी लोग बेकार हैं। अपने सोच-चिचारों के प्रति उसने लोगों को कायल किया और इस वास्तविकता नहीं है। जो भी भावनाएं अन्य प्रकार, मैं नहीं जानती कैसे, यह सामूहिक लोगों या अन्य राष्ट्रों के विषय में आपमें हैं वे आती है कि सब गलत है क्योंकि यह चेतना मनुष्य के मस्तिष्क में प्रवेश कर जाती है। लोग ऐसे विचारों को कभी चुनौती नहीं देते. कभी नहीं पूछते कि यह गलत है या सब ठीक नहीं हैं। क्योंकि अब आपका सहस्रार जागृत हो गया है, यह सर्वव्यापक शक्ति से जुड़ गया है। तो वह चेतना आपमें बहने लगती है। मैं कहना चाहूँगी, यह ज्योतित चेतना आपके रोम-रोम में, आपके मस्तिष्क में, नस-नाड़ियों में बहने लगती है। आप ठीक। और यह बढ़ते ही चले जाते हैं। फिर पूरा देश इन्हें मानने लगता है। कोई न समझता है न जानता है कि ये भावनाएं उचित हैं या अनुचित। इसे महसूस कर सकते हैं। जब भी आप तो वास्तविकता को जानना अत्यन्त महत्वपूर्ण किसी चीज़ के विषय में जानना चाहते हैं के इ ११ अंक व१० चैतन्य तडरी 1999 11 ये ठीक है या गलत. पूर्णतः ठीक या भीड़़ की तरह से ही हैं क्योंकि लोग ऐसा कह गलत-तुलनात्मक ढंग से नहीं पूर्ण रूप से, रहे हैं इसलिए हमें भी ऐसा करना चाहिए। तो आप उस व्यक्ति या चीज़ की तरफ अपने लोग कह रहे हैं इसलिए हमें करना चाहिए। दोनों हाथ कर दें। तुरन्त आप चैतन्य लहरियों आप स्वयं ये नहीं देख सकते कि ऐसा करना उचित है या अनुचित, आपके लिए अच्छा है या बुरा, इससे आपको कोई लाभ होगा या नहीं। पूरे विश्व में इस प्रकार की चीज़ों की द्वारा उसके विषय में जान जाते हैं । ये चैतन्य लहरियाँ क्या हैं? यह परम चितन्य, जिसे हम ब्रह्म-चैतन्य भी कहते हैं, आपकी अंगुलियों के सिरों से बहने लगता है। अब आपको पता लगने लगता है कि किसका कौन भरमार है। सभी प्रकार की समस्याओं का यही कारण है कि लोग सत्य को, वास्तविकता को नहीं पहचानते। सा चक्र पकड़ रहा है और कौन ठीक है कौन गलत आपकी विवेक-शीलता में गहन सुधार एक बार जब आपको वास्तविकता का ज्ञान हो होता है। आपका मस्तिष्क जो आपको भ्रम जाएगा तो अधिकतर समस्याएं समाप्त हो जाएंगी और गलत प्रकार के जीवन में फेंसा रहा था क्योंकि ये मस्तिष्क ही अधिकतर समस्याओं अब तुरन्त आपको ठीक रास्तों पर लाता है। मान लो मैं आँखें बंन्द करके चल रही हूँ और सामने कोई बड़ा गड्ढा है, मैं इसे नहीं देख की सृष्टि करता है। सर्वप्रथम यह सभी प्रकार के अत्याचार, हिंसा आदि करता है फिर यह अपने किए को तर्कसंगत ठहराता है और फिर सकती। मैं बस चलती जा रही हूँ। अचानक इससे भी बुरा करता है। इन्हीं क्भों को पाप यदि ऑँखें खोलकर मैं गड्ढे को देख लूं तो (sin) कहा जाता था। एकदम से जान जाऊँगी कि इस प्रकार चलना गलत है। इस मार्ग को मैं तुरन्त बदल देगी। परन्तु अब सहजयोग में यह सब समाप्त हो इसी प्रकार आपके साथ घटित होता है। गया है। जिन चीजों से आपका मस्तिष्क दूषित था अब इसका शुद्धीकरण हो गया है. इसे जब आपका सहस्रार ज्योतिर्मय हो जाता है. ज्ञान प्राप्त हो गया हैं और इसके माध्यम से तो अभी तक आपने जो भी ज्ञान इसमें एकत्र आप समझ सकते हैं कि गलत क्या है और किया हुआ था, जो भी कुछ अभी तक आप ठीक समझते थे, जो भी आपके स्वप्न थे, जो भी आपकी अभिलाषाएं थीं,ये सब पिघल जाते ठीक क्या है। हमेशा ठीक कार्य करें। इस मामले में आपको स्वयं निर्णय लेना होगा अब आपको केवल ठीक कार्य करना होगा, गलत हैं और आप सत्य को अपना लेते हैं तथा हर नहीं। यह बात जब आपके मस्तिष्क में बैठ चीज़ की वास्तविकता को देखने लगते हैं । जाएगी तो आपका दृढ़ निश्चय आरम्भ हो जब तक इस वास्तविकता को आप देखने जाएगा, जिसे हम श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण नहीं लग जाते तब तक आप अन्य लोगों की कहते हैं। इससे आप अपने सभी असत्य विचार: रसंड ११ व १० चैतन्य तहरी 1999 12 व्यर्थ का अहंकार तथा अन्य दोषों को त्याग और इस ज्ञान के लिए अच्छे बुरे को पहचानने देते हैं, जिन्हें आप अभी तक किए चले जा रहे के लिए आपके पास परम चैतन्य रूपी वाहन | एक दम आप भिन्न व्यक्ति बन जाते है, है; यह प्रवृत्ति बढ़ने लगती है और जैसा आप देख रहे हैं आज बहुत से लोगों के सहस्रार एक अत्यन्त सुन्दर व्यक्तित्व। एक अन्य परिवर्तन जो अब आपमें घटित होता खुल चुके है। है, जो अब तक कभी आपमें नहीं हुआ, वह ये सहस्त्रार का खुलना विकास प्रक्रिया का अत्यन्त है कि अब आपको ये लगता कि जब तक मैं महत्वपूर्ण भाग था। विकास की अन्य सभी यही अवस्था अन्य लोगों को नहीं दे दँगा तब प्रक्रियाएं मानव को कहाँ ले गई? लोग युद्धों तक उचित न होगा, उन लोगों से बातचीत में फँस गए, सभी प्रकार की मूर्खताएं की, करना मेरे लिए ठीक न होगा। तब आप अपने जिनके कारण हमने बहुत से लोगों और बहुत भाइयोँ, बहनों, अन्य लोगों से इस ज्ञान के से देशों को नष्ट कर दिया अब आपकी विषय में बताने लगते हैं पूरे राष्ट्र से आप एकाकारिता इस सर्वव्यापक शक्ति से हो गई सहजयोग के विषय में बात कर सकते हैं कि है। यह अन्यन्त शुद्ध है, अत्यन्त निर्मल है मुझे इससे कितना लाभ हुआ है मुझे इतना यह आपको पूर्ण विवेक और सूझ-बूझ प्रदान कुछ प्राप्त हो गया है, आप भी इस लाभ की करती है कि अब आप किस प्रकार चले, क्यों नहीं पा लेते। किस प्रकार जीवन बिताएं और किस प्रकार किम परन्तु अन्य लोगों से बातें करने से, बहस तथा कार्यों को करें। लोग कहते हैं कि यही आत्म विचार-विमर्श से या उन्हें उपदेश देने से वे साक्षात्कार है। इसे कभी स्वीकार न करेंगे क्योंकि उनका मस्तिष्क तो, जैसा मैंने बताया, वैसा ही है, अभी तक अज्ञानता से भरा हुआ। तो हमे आपका मस्तिष्क सम्पन्न हो जाता है, फिर भी मैं कहूँगी कि आत्मसाक्षात्कार इससे परन्तु आगे है। यद्यपि ज्ञान से, सच्चे ज्ञान से बहुत उनकी कुण्डलिनी जागृत करनी होगी एक बार जब उनकी कुण्डलिनी जागृत हो जाएगी, होती है; इनमें महत्वपूर्णत्तम है आपका पूर्णतः उनके मस्तिष्क खुल जाएंगे, तब वे आप चेतन होना। एक बार फिर मैं चेतन शब्द का आपको बहुत सी अन्य चीजों की आवश्यकता ही की तरह ठीक मार्ग पर आ जाएंगे। उन्हें इस बात की चिन्ता न करनी पड़ेगी कि अच्छा क्या योजना में अपने स्थान के प्रति चेतन होना, उपयोंग कर रही हैूँ। विश्व परिवर्तन की महान है, बुरा क्या है, स्वयं वे इस बात को जान अपने स्तर के प्रति चेतन होना आपको जानना जाएंगे। ऐसा करना अत्यन्त महत्वपूर्ण है । होगा आपकी स्थिति क्या है, इस बृह्याण्ड की कायापलट करने के कार्य में आपका क्या विश्व को सुधारने के लिए आवश्यक हैं कि आप लोगों को उचित-अनुचित का ज्ञान हो कर्तव्य है, आपकी क्या स्थिति है आप कहाँ संड ११ अंक ९ व १० 1३ चैतन्य लक्षरी 1999 खड़े हैं, आपके करने के लिए क्या कार्य है। इसलिए कि यदि आप इस विक्षिप्त संसार को विवेकशील बनाना चाहते हैं तो सभी इस कार्य के लिए कुछ करना अब आपकी विवशता हो गई है। यह भयानक नहीं है और लोगों को आत्मसाक्षात्कार देना होगा। न ही कष्टकर। यह अत्यन्त शान्ति एवं आनन्द ये कार्य कितना महान है इसकी कल्पना करें । प्रदायी है और जब यह आपमें प्रबल होती है इसको करने के लिए कितने लोगों की तो सन्देश देती है कि यह ज्ञान मुझे दूसरों आवश्यकता है? परन्तु यह तभी हो सकता है तक भी पहुँचाना है ताकि वो भी स्वयं को जब आपकी इच्छाशक्ति दृढ़ होगी और आप पहचान सके। अतः अन्य लोगों को जानने के अपने अन्दर इस कार्य को करने की विवशता लिए सर्वप्रथम आपको अपने चक्रों का ज्ञान महसूस करेंगे। परन्तु प्रायः हम लोग विवश हो प्राप्त करना होगा मैं जानती हैँं कि बहुत जाते हैं क्योंकि हमने अपने घर चलाने होते हैं धन कमाना होता है तथा और बहुत से सांसारिक लेते हैं परन्तु अपने चक्रों का ज्ञान उन्हें नहीं कार्य करने होते हैं। ये कार्य आप अवश्य करें होता। उन्हें अपने चक्रों को देखना होगा कि परन्तु आपके जीवन का लक्ष्य लोगों को उनके चक्र बाधित क्यों हैं। चक्रों की समस्याओं परिवर्तित करना और विश्व शान्ति के लिए के विषय में ज्ञान हो जाने पर भी लोग इस परिवर्तन को कार्यान्वित करना है मैं नहीं उनकी ओर ध्यान नहीं देते। उनके लिए इन जानती कि यह भविष्यवाणी की गई कि नहीं समस्याओं का दूर होना बहुत महत्वपूर्ण नहीं। कि पूर्ण परिवर्तन घटित होगा परन्तु इस ठीक है, मुझमें ये समस्याएं हैं, कोई बात परिवर्तन के विषय में बताया तो गया है। नहीं। जब तक मैं सहजयोग का कार्य कर इसके विषय में मैं नहीं जानती और जानने का रहा हूँ क्या फर्क पड़ता है। यह केवल दूसरों कष्ट भी नहीं करना चाहती कि कितने लोग के लिए ही नहीं है, सर्वप्रथम आपके लिए है। परिवर्तित हो रहें हैं परन्तु इस परिवर्तन के लोग एकदम से आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर 1 बाद आपको जमना होगा, स्थिर होना होगा। अपने चक्रों को ठीक करवाना आपके लिए कीर बहुत आवश्यक है। यह कार्य आपके लिए सर्वप्रथम आपको देखना चाहिए कि क्या आप महत्वपूर्णतम है. तभी आपको आत्मज्ञान होगा शान्त है? क्या आपके हृदय में शान्ति है? जिससे आप जान पाएंगे कि कमी क्या है. आपके हृदय में यदि शान्ति नहीं है तो आप कहाँ है, मैं क्या गलती कर रहा हूँ तथा मुझे सहजयोगी नहीं हैं। यदि आप उत्तेजित हो क्या करना चाहिए। जब आपके चक्र ठीक हो जाते हैं और लोगों पर चिल्लाने लगते हैं तो जाएंगे तो आपकी चेतना वास्तव में सारे कार्य इसका अर्थ ये है कि आप सहजयोगी नहीं के प्रति पूर्णतः प्रकाशवान हो जाएगी। यह है। आपका स्वभाव अत्यन्त शान्त होना अत्यन्त विस्मयकारी उपलब्धि है। विस्मयकारी आवश्यक है---- अत्यन्त महत्वपूर्ण। चैतन्य लहरी राजड ११ व १० 1999 14 अक इस शान्ति को पाकर किस प्रकार की शुद्ध होगी अन्तर्प्रकाश प्राप्त कर लेने के पश्चात् करुणा आप में आनी चाहिए? जो भी कुछ आप अन्य लोगों के विषय में इस प्रकार सोचेंगे आप कर रहे हैं यह केवल आपके हित के मानो वे आपके अपने हों, आपको उनकी चिन्ता लिए ही नहीं है। इस शक्ति से विवश होकर होगी अब आप केवल अपने विषय में नहीं दूसरों के हित के लिए, उनके परिवर्तन के सोचेंगे। अन्तर्प्रकाश प्राप्त हो जाने पर मस्तिष्क लिए आप यह कार्य कर रहे हैं। अन्य लोगों में किसी प्रकार के हिंसात्मक विचारों का प्रश्न का यही सबसे बड़ा हित आप कर सकते हैं ही नहीं होता परन्तु यहाँ तो धर्म के नाम पर, कि उनके मस्तिष्क ठीक हो जाएं। उन्हें रोगों हर चीज के नाम पर भयंकर हिंसा है! सभी तथा समस्याओं से मुक्ति मिल जाए। यह सब लोग यदि सहजयोगी बन जाएं तो इस हिंसा हो जाता है परन्तु इसके साथ-साथ संबसे बड़ी चीज जो घटित होती है वह है उन्हें अन्य का सुगमता से समाधान हो सकता है। सोचकर देखें कि यदि सभी लोग सहजयोगी बन जाते लोगों को परिवर्तित करने की शक्ति का प्राप्त हैं तो वे परस्पर किस प्रकार झगड़ सकते हैं हो जाना। और कैसे, ये सब धर्म तो यहाँ हैं परन्तु इन सबसे ऊपर सहजयोगी का धर्म है जिसमें आप दूसरों को परिवर्तित करने की शक्ति जब एक हो जाते हैं और तब धर्म के नाम पर सभी आपको प्राप्त हो जाए तो इसे बर्बाद नहीं करना चाहिए। यह शक्ति आपको केवल अपने झगड़े समाप्त हो जाते हैं। लिए उपयोग नहीं करनी चाहिए। इसे यदि मानव के रूप में हमारी केवल यही समस्याएं आप अपने तक सीमित रखते है तो इसका ही नहीं है कुछ अन्य गम्भीर समस्याएं भी है। अर्थ ये है कि उत्थान अभी अधूरा है। उसके हमारी कुछ उत्कण्ठाएं हैं। हम अत्यन्त लालची विषय में अवश्य अन्य लोगों से बात करें ,ै। हालात के साथ हम समझौता नहीं कर इसके विषय में बताऐ और इसे कार्यान्वित सकते । पूरी तरह से आराम- पूर्वक रहना करें। जहाँ भी सम्भव हो इसे काय्यान्वित चाहते हैं। परन्तु साक्षात्कार स्थापित होने के करें विश्वस्तर पर हम इसी-प्रकार ऐसे लोगों को फैला सकते हैं जो पूर्ण परिवर्तन प्राप्त कर पश्चात् आप कहीं भी सो सकते हैं, कहीं भी खा सकते हैं और न खाएं तो भी चल सकता सकें। । आप ऐसे व्यक्ति बन जाते हैं जो इन सभी भारत में या अन्यत्र, हमारी सभी समस्याएं आवश्यकताओं और मांगों से ऊपर उठ जाता मानव स्वभाव के कारण हैं। क्योंकि लोग अभी है तब आपको कोई चिन्ता नहीं रह जाती. तक साक्षात्कारी नहीं हैं जान लें कि यदि आप बिल्कुल चिन्ता नहीं करते । चिन्ता आप आत्मसाक्षात्कारी (अन्तर्प्रकाशित) हैं तो किसलिए? मान लो मैं कहीं खो जाती हूँ, मेरी आपको लड़ाई-झगड़े जैसी कोई समस्या न कार गलत दिशा में चल पड़ती है ठीक है, গ २ अंक म १० 15 चैतन्य लहरी 1999 इন ११ मुझे उधर ही जाना होगा, इसीलिए मैं इस आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति हैं, कोई आपको हानि प्रकार जा रही हूँ । इसके विषय में परेशान नहीं पहुँचा सकता। हो सकता है कुछ समय के लिए कोई आपको परेशान करने का प्रयत्न करे और आपको कुछ कष्ट सहना भी पड़े होने की क्या बात है? जीवन में छोटी-बड़ी बहुत सी घटनाएं होती हैं जिनके लिए हम परेशान हो उठते हैं परन्तु परन्तु आप उस कष्ट से प्रभावित नहीं होते. उसके चंगल से निकल जाते हैं। ऐसी सुरक्षा, अब सहस्रार की कृपा से, आप हैरान होंगे, परम-चैतन्य की सहायता मिलने लगती है और यह चमत्कारिक सहायता है जो पूर ब्रह्माण्ड करते हैं उनसे आपकी रक्षा की जाती है। यह ऐसा पथ प्रदर्शन आपको उपलब्ध है। सभी 1 प्रकार के आक्रमणों तथा जो गलतियाँ आप में, व्यक्ति विशेष पर, समुदायों पर और राष्ट्रं पर कार्य करती है क्योंकि एक दिव्य नाटक बहुत बड़ा कम्पयूटर ज्ञान है वह ( परमचैतन्य) जानता है कि आप क्या कर रहे हैं, आपको क्या नहीं करना चाहिए, आप कहाँ जा रहे हैं, आपको क्या करना चाहिए और आपको कौन से रास्ते नहीं चलना चाहिए। यह सभी कुछ चल रहा है। यह दिव्य नाटक महान सुन्दर कार्य करता है जिनके द्वारा लोग स्वयं को सुधारने लगते हैं। अतः कभी व्याकुल न हों, कभी परेशान न हो, क्योंकि अब आपमें दिव्य जानता है. आपके विषय में सभी कुछ जानता शक्ति आ गई है जो सब कुछ ठीक कर देगी। है। तो इसके विषय में कब आपको चेतन होना यह किसी को भी सुधार सकती है। हाल ही में है? मैं ये कहुँगी कि अब वह समय है जब एक लड़के का मामला हमारे सामने आया था, आपको इस बात के प्रति चेतन हो जाना ट्रक दुर्घटना में जिसके फेफड़े क्षतिग्रस्त हो गए थे। फेफड़े पर यदि गहन चोट आ जाए लोगों से भिन्न हैं और अत्यन्त अद्वितीय हैं। चाहिए कि आप आत्मसाक्षात्कारी हैं, अन्य तो ऐसा व्यक्ति कभी सामान्य नहीं होता। परन्तु वह लड़का सामान्य हो गया और सामान्य आप आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति हैं, सर्वसाधारण व्यक्ति नहीं हैं और परम चैतन्य द्वारा सुरक्षित रूप से श्वास लेने लगा। ये सारा कार्य परम हैं। कोई भी आपको परिवर्तित नहीं कर चैतन्य ने किया है। आपको कुछ नहीं करना सकता, कष्ट नहीं दे सकता, आपको पराजित पड़ता। आपको कुछ नहीं करना पड़ता। आपके सामने समस्याएं आती हैं, तो इससे पहले के विषय में जागरूक नहीं हैं इसीलिए आप कि ये आपको छू सकें परम चैतन्य इनका थोड़े से चिन्तित हो उठते हैं लोग मुझे समाधान कर देता है। परन्तु आपको स्वयं नहीं कर सकता। क्योंकि आप परम चैतन्य लिखते हैं, श्री माताजी मेरी बेटी को यह पर और परम चैतन्य पर पूर्ण विश्वास करना समस्या है आदि-आदि। होगा और विश्वस्त होना होगा कि आप रानंड २१ चैतन्य लहरी अंक । 16 1999 यदि आप समस्याओं को परम-चैतन्य पर अनुभव है कि यदि आप परम-चैतन्य हैं, यदि छोड़ना जानते हैं, यदि आप समझते हैं कि आप यह जानते हैं कि आप परम-चैतन्य हैं किस प्रकार आपकी एकाकारिता परम चैतन्य तो यह आपकी गरिमा, आपके पद को बनाए से है तो परम चैतन्य सभी कुछ ठीक कर सकता है। आप परम चैतन्य के अंग-प्रत्यंग और आपकी देखभाल करता है। जो भी कुछ हैं। वही परम-चैतन्य आपकी देख-रेख कर रखता है आपके सभी वचन पूरे करता है आप कहते हैं, जिस चीज़ की भी आप इच्छा रहा है। आपको कोई विशेष प्रयत्न नहीं करते हैं वह पूर्ण हो जाती करना। विशेष प्रयत्न करने की कोई आपकी इच्छाएं भी परिवर्तित हो जाती है। व्यर्थ की चीजों की इच्छाएं समाप्त हो जाती जीवन जैसा है वैसे ही इसे स्वीकार करें। हैं। आपकी इच्छा अब श्रेष्ठ बन जाती है आप आवश्यकता नहीं। का जिस प्रकार भी आपका जीवन है, इसे स्वीकार लोगों का परिवर्तन करना चाहते हैं, सहजयोग करें। प्रतिकार न करें, गुस्से न हों, परेशान कार्य करने की इच्छा करते हैं । जब आप ये न हो। जीवन को स्वीकार कर लें और जो इच्छाएं करते हैं, इन्हें पसन्द करते हैं और जीवन अभी तक आपको क्षुब्ध करता था इनके विषय में सोचते हैं तो ये पूर्ण हो जाती उसी में आपको आनन्द आने लगेगा उसके हैं। यदि किसी चीज़़ को आप मात्र देख लें आनन्ददायी भाग को आप देखेंगे और यह तो, आपको हैरानी होती है, परम चैतन्य तुरन्त बहुत सुन्दर होगा। जब आप देखेंगे कि किस इस कार्य को सम्भाल लेता है. आपको किसी प्रकार आप अपनी समस्यांओं का समाधान भी प्रकार की समस्या नहीं रह जाती, बिल्कुल करते हैं, किस प्रकार शत्रुओं पर काबू पाते हैं कोई समस्या नहीं रह जाती, क्योंकि अभी तक तो आपको महसूस होगा कि कितना नया और जीवन की जिन कठिनाइओं और बाधाओं के प्रति हम प्रतिक्रिया किया करते थे अब एक न] सुन्दर जीवन आपको प्राप्त हो गया है ! खेल बन जाती है। मात्र खेल। आप आश्चर्य अब आप सभी सहजयोगी अत्यन्त महान स्थिति चकित होते हैं कि आपने एक समस्या की ओर . देखा तो बह समाप्त हो गई, दूसरी समस्या तो आप हैरान होंगे, कि आप इस परम-चैतन्य की ओर देखा तो वह समाप्त हो गई इसी में हैं। इस स्थिति में यदि आप विनम्र हो जाएं से जुड़ गए हैं। केवल इतना ही नहीं आप प्रकार से यह प्रकाश अंधेरे में प्रवेश करके परम चैतन्य बन गएं हैं। इस परम चैतन्य से आप कुछ भी कर सकते हैं। मुझे ये बताने की है और हमारी समस्याएं भी समाप्त हो जाती इसका अन्त कर देता है। अन्धेरा समाप्त होता 1 आवश्यकता नहीं कि आप क्या कर सकते हैं क्योंकि हो सकता है कि आपमें से कुछ लोगों को विश्वास न हो। परन्तु यह मेरा अपना तो हमारी चेतना को यही बनना है- चेतना हैं। গ अंक 17 चैतन्य लहरी ९ व १० 1999 स्मं ११ को परम चैतन्य बनना है। तभी आपको ये सब करती है और आपकी मूल्य प्रणाली (value विचार, यह सारी दिव्यता प्राप्त होती है। केवल system) को भी ये आपको पूर्णतः नष्ट कर ही नहीं परमेश्वरी सहायता या परमेश्वरी देती है तो कैसी अर्थव्यवस्था है यह? यह मात्र समाधान भी समाप्त हो जाता है। यह सब दिखावा है एक गुब्बारे की तरह जो किसी भी आश्चर्यचकित करने वाला है और अत्यन्त शान्त क्षण फट सकता है मैिने लोगों को देखा है एवं दृढ़ है। सभी कुछ शान्त हो जाता है और जो बहुत अमीर थे परन्तु एक दम दिवालिए यह सब देखकर आप हैरान हो जाते हैं कि हो गए और बहुत से दिवालिए लोग धनवान इन सब कार्यों के केन्द्र बिन्दु आप हैं। आपको हो गए। इस प्रकार की उथल-पुथल में वे इतना पता भी नहीं होता कि आप कुछ कर रहे हैं एक तट से कूदकर दूसरे तट पर चले जाते पर आप कुछ कर रहे होते हैं। आपकी क्रियाओं हैं। परन्तु आप लोग ऐसा नहीं करते। आप में से अहम् तत्व गायब हो जाता है आप इस नाटक को देखते हैं। शान्ति पूर्वक, बड़ी देखते हैं कि सभी कुछ आपके ईर्द-गिर्द घटित सबूरी से आप इस सारे नाटक को देखते हैं। होता है, कि यह सब किस प्रकार हो रहा है। इस प्रकार के बहुत से लोग बना लेना आपके जीवन की पूरी शैली ही परिवर्तित हो जाती लिए कठिन कार्य नहीं है। इस संसार को है। पूरी सूझ-बूझ परिवर्तित हो जाती है और परिवर्तित कर देना आपके लिए कठिन नहीं आप दूसरों के लिए प्रसन्नता, आनन्द एवं है अव समय आ गया है। प्रयत्न करें, केवल ज्ञान के स्त्रोत बन जाते हैं इसके लिए आपको प्रयत्न करें। जैसे बसन्त ऋतु में बहुत से फूल कोई अध्ययन नहीं करना पड़ता, कुछ अधिक खिलते हैं इसी प्रकार आप सब लोग भी खिल ज्ञान नहीं प्राप्त करना पड़ता. फिर भी आपको उठे हैं। सभी चीज़ों का ज्ञान हो जाता है, कि ठीक अब सहजयोग फैलाने के लिए बीजों की सृष्टि क्या है और गलत क्या है। केवल तभी आप करना आप पर निर्भर करता है। आप चेतना के स्तर पर हैं जहाँ परम चैतन्य आपके साथ है, आपके अभिन्न अंग के रूप में हर आवश्यक पूर्ण अधिकार के साथ कह सकते हैं कि यह चीज़ ठीक नहीं है। जैसे आज ही हमने आधुनिक काल की आर्थिक स्थिति और अर्थशास्त्र पर चर्चा की। मैंने कहा कि यह सब सहायता, हर वांछित सम्मान एवं व्यक्तित्व प्रदान करने के लिए परम चैतन्य पूर्णतः आपके साथ है। गलत है क्योंकि यह आत्मघाती है, राष्ट्रों के लिए यह दुर्व्यवस्था है; संभवतः आपके राष्ट्र के लिए न हो परन्तु अन्य राष्ट्रों के लिए है। यह आपके पारिवारिक जीवन को भी नष्ट परमात्मा आपको धन्य करें। का अंक १ व १० বंड ११ चैतन्य् तहरी 1999 18 श्री फातिमा बी पूजा, 14.8.88, सेन्टजार्ज श्वेस परम पूज्य माता्जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन श्री फातिमा बी गृहलक्ष्मी का प्रतीक थीं तो अवतरित हुए, वे ब्रहमदेव के अवतरण थे और आज हम अपने हृदय में गृहलक्ष्मी तत्व की उनका दूसरा अवतरण सोपान देव के रूप में पूजा करेंगे। घर में स्त्री जिस प्रकार सभी हुआ पुणे जाकर आप सोपान देव का मन्दिर कार्य समाप्त करके स्नान आदि करती है उसी देख सकते हैं । तो अली और उनकी पत्नी प्रकार आज प्रातः मुझे भी बहुत से कार्य करने फातिमा बाई नाभि तत्व पर अवतरित हुई। वे पड़े और तब मैं पूजा के लिए आ पाई. घर में गृहणीं थीं, अपनी गृहस्थी में व्यस्त रहती थीं, आज गृहणी के करने योग्य बहुत से कार्य थे पर्दा या नकाब पहनती थीं। चेहरे को पर्दे से और एक अच्छी गृहणी की तरह से मुझे वे सब ढकना इस बात का प्रतीक है कि गृहणी को कार्य समाप्त करने थे। अपना चेहरा ढक कर अपनी पावनता की रक्षा करनी होती है फातिमा एक बहुत सुन्दर गृहलक्ष्मी तत्व की सृष्टि तथा विकास परमात्मा ने किया है। यह मानव की रचना नहीं है माहिला थी। उनका जन्म ऐसे देश में हुआ जहाँ लोग बहुत हिंसात्मक थे और यदि वे क्योंकि, जैसे आप जानते हैं गृहलक्ष्मी का स्थान बाई नाभि में है। मोहम्मद साहब की पदो धारण ने करतीं तो निश्चित रूप से पुत्री श्री फातिमा के जीवन में गृहलक्ष्मी का निरूपण हुआ है वे सदैव किसी महान गुरू उनपर आक्रमण हो जाता । ईसामसीह के जीवन से जैसा आपको पता लगता है कि के पावन सम्बन्धी के रूप में अवतरित होती यद्यपि माँ मैरी महालक्ष्मी का अवतरण थी. हैं अत:ः वे पुत्री के रूप में आई मोहम्मद साहब की मृत्यु के पश्चात लोगों ने सोचा कि उनके द्वारा दिए गए धर्म यह बात जान पाए कि मैरी क्या थीं। श्री उन्हें अत्यन्त शक्तिशाली व्यक्तित्व बनना पड़ा। ई। हजरत घर्मान्ध परन्तु ईसामसीह नहीं चाहते थे कि कोई भी 1 को अपने हाथों में लेकर इसे भी कटटर बना फातिमा यद्यपि गृहणी थीं फिर भी कवे शक्ति दिया जाए। व्यक्ति के उत्थान की ओर चित्त थीं। उन्होंने अपने पुत्रों को आज्ञा दी कि नहीं दिया जाता था मोहम्मद साहब ने अपने मोहम्मद साहब के प्रभुत्व को चुनौती देने वाले दामाद का वर्णन बहुत प्रकार से किया है। धर्मान्ध लोगों से युद्ध करें। और आप जानते हैं पृथ्वी पर अवतरित होने वाले वही श्री ब्रह्मदेव कि इस युद्ध में उनके दोनों बेटे हसन और के दूसरे अवतरण थे। अली इस पृथ्वी पर हुसैन शहीद हो गए। सीता जी का महालक्ष्मी रामड ११ अंक चैतन्य लहरी व १० 1999 19 तत्व का सुन्दर गृहलक्ष्मी तत्व को स्थापित एक आत्मसाक्षात्कारी सन्त थे उन्हें भी शिया करने के लिए विष्णुमाया रूप धारण करना लोगों की धर्मान्धता का सामना करना पड़ा। अत्यन्त सुन्दर घटना है निःसन्देह श्री फातिमा अत्यन्त शक्तिशाली थीं और वे जानती थीं कि शिया शब्द का उदगम् सिया से हुआ। उत्तर उनके बच्चे शहीद हो जाएंगे परन्त ये लोग प्रदेश में सीताजी को सिया कहा जाता है। कभी नहीं मरते, ये न कभी मरते हैं और न हीं इन्हें कोई कष्ट होता है। लोगों को उनकी कुछ लोग मुसलिम न होते हुए भी महान सन्त मूर्खता दर्शाने के लिए अवतरणों का यह सब नाटक खेलना होता है। इसके परिणाम स्वरूप एक अन्य प्रथा चालू हुई जिसमें लोगों ने लोग मानते हैं. कुछ मुसलमान भी वहाँ जाते सन्तों का सम्मान करना आरम्भ किया. जैसे भारत में शिया लोग औलियाओं का सम्मान शिया लोगों ने कभी महसूस नहीं किया कि हैं। यही कारण है कि वे अपनी धर्मान्धता से छुटकारा न पा सके। हाज़ीमलंग को हिन्दु हैं। हाजी मलंग शिया लोगों की धर्मान्धता के कारण चिन्तित थे इसलिए उन्होंने अपनी पूजा करते हैं। इस औलियाओं को आत्मसाक्षात्कारी के लिए कुछ हिन्दु लोगों को नियुक्त किया भी कहा जा सकता है. जैसे निजामुद्दीन साहिब, ताकि सन्तुलन बना रहे। इन लोगों ने सभी फिर अजमेर के हज़रत चिश्ती। शिया लोगों प्रकार के काम किए। ऐसे बहुत से सन्त हैं। ने इन सब महान सन्तों का सम्मान किया। में भीपाल गई। वहाँ पर एक महान सन्त की उन्होंने इन महान सन्तों का सम्मान किया समाधि है। परन्तु उनके अनुयायी वहाँ पर फिर भी वे धर्म की सीमाओं से ऊपर न उठ होने वाली कमाई से अपना जीवन चलाते हैं पाए और परिणामस्वरूप अत्यन्त धर्मान्ध बन और उस स्थान की देखभाल अच्छी तरह से गए। किसी दूसरे धर्म के सन्तों का वे सम्मान नहीं करते। न कर सकते थे चाहे वो शिरडी साईनाथ हजरत निजामुद्दीन के अनुयायी भी हिन्दुओं जैसा महान सन्त ही क्यों न हो जो आरम्भ में की तरह से वहाँ पर चढ़ाए गए धन से अपना में मुसलमान था। खर्च चलाते हैं और इस प्रकार ये सब व्यापार कहा जाता है कि श्री फातिमा स्वयं उन बच्चों बन गया है। मैं जब भोपाल गई तो उन लोगों को अपनी गोदी में उठा कर लाई और किसी से पूछा कि तुम्हारा धर्म क्या है? तो उन्होंने कहा कि हम मुसलमान हैं। मैंने पूछा, "ये जिनकी मूत्यु हुई है. इनका महिला को पालने के लिए दे दिया। ऐसा कहा जाता है। जहाँ तक हिन्दु लोगों का प्रश्न है सन्त उन्होंने कभी शिरडी साईनाथ के को धर्म क्या था?" उन्होंने उत्तर दिया, "सन्तों का नहीं नकारा परन्तु मुसलमानों ने उन्हें स्वीकार कोई धर्म नहीं होता" तो मैंने कहा कि आप नहीं किया। ऐसे ही एक अन्य सन्त हैं हाजी साधुत्व लोग क्यों धर्म का अनुसरण करना चाहते हैं? सन्तों का कोई धर्म नहीं होता। संस्कृत में भी मलंग। इनकी दरगाह बम्बई के पास है वे रड ११ अंक ९. १० चैतन्य सहरी 20 1999 कहा गया है कि सन्यासियों का कोई धर्म नहीं उनका कार्य है इस प्रकार वे सब एकत्र हो गए जबकि गृहलक्ष्मी तत्व की सृष्टि विशेष जाते हैं। परन्तु जिस प्रकार सभी धर्मों के रूप से घृणा को वश में करने के लिए और साथ होता है वैसा ही शिया, सुन्नी, हिन्दु. इसे बर्फीली घृणा को शान्त करके लोंगों के मुसलमान तथा सभी लोगों के साथ हुआ। मस्तिष्क से निकाल फेंकने के लिए की गई थी आप यदि गृहणी हैं तो आपको ज्ञान होना चाहिए परिवार में गृहलक्ष्मी तत्व से किस प्रकार बच्चों में परस्पर घृणा को समाप्त करना है, पति और बच्चों में से किस प्रकार घृणा को होता। वे धर्मातीत होते हैं, धर्म से ऊपर उठ 1 सबने कट्टरपंथी समूह बना लिए । धर्मान्धता भी आप में अन्तर्जात धर्म के विरुद्ध है क्योंकि यह ज़हर की सृष्टि करती है। घर्मान्धता विषैली चीज़ है जो दूसरों से घृणा सिखाती है। जब आप दूसरों से घृणा करने शान्त करना है परन्तु यदि गृहलक्ष्मी स्वयं ही इस घृणा का आनन्द लेती है तो किस प्रकार वह इसे शान्त कर सकती है? वह तो घृणा को लगते हैं तो भयानक विष की तरह से ये आपके अन्दर प्रतिक्रिया करती है और आपके अन्तर्निहित सारे सौन्दर्य को खा जाती है। दूर करने वाली शान्ति का स्रोत है भारत में संयुक्त परिवार हैं । आप लोगों के भी सम्बन्धी घृणा मानव का निकृष्टतम अवगुण है फिर हैं जैसे चाचे-चाचियां, मामे-मामियां आदि। भी मनुष्य घृणा कर सकता है, उसके जो जी में आएं कर सकता है। पशु किसी से घृणा गृहलक्ष्मी का कार्य है कि उनके मध्य वैमनस्य उत्पन्न करने वाले मतभेदों को शान्त करे। नहीं करते, उन्हें घृणा करनी आती ही नहीं । स्वभाव वश वे किसी को काट सकते हैं, पुरुषों के लिए आवश्यक है कि गृहणी का उन्हें कोई व्यक्ति सम्मान करें कहा जाता है यत्र नार्या पूज्यन्ते लगता हो परन्तु घृणा तो मानवीय तत्र रमन्ते देवता'- जिस घर में गृहणी का धारणाओं तथा मानवीय लगन की विशेषता है। सम्भान होता है वहीं देवता निवास करते हैं । केवल मनुष्य ही घृणा कर सकता है ये हमारे देश में यह श्रेय गृहणी को जाना चाहिए। काटना उनका स्वभाव है। अच्छा न भयानक घृणा मुसलमानों में भी ज़हर की तरह से फैल गई। यह करबला घृणा के लिए नहीं अर्थशास्त्र, राजनीति और प्रशासन के लिए हमारी महिलाएं बेकार हैं । पुरुष वर्ग घर के बनाया गया था। प्रेम के लिए बनाया गया था। हर चीज़ जो प्रेम के लिए बनाई गई थी उसे काम-काज के लिए बेकार है। घर के काम काज को महिलाओं ने अपने तक ही सीमित सभी धर्मों ने घृणा में परिवर्तित कर दिया| इसमें सबसे बुरी बात ये है कि घणा करने रखा है। परन्तु हमारा समाज बहुत अच्छा है। वाले लोग दूसरों को निकृष्टतम मानते हैं और गृहणियों इसे चला रहीं हैं अतः पुरुषों को दूसरे लोग उन्हें। किस नियम, कानून या तर्क चाहिए कि महिलाओं का सम्मान करें यह के अन्तर्गत वे ऐसा करते हैं, यह देखना अत्यन्त आवश्यक है। पुरुष यदि अपनी पत्नी हे चैतन्य लहरीं अंक ९ व १० रानह १५ 1999 21 का सम्मान नहीं करता तो गृहलक्ष्मी तत्व के होगा वह आज्ञापरायण नहीं है, वह तो अपनी बने रहने की कोई सम्भावना नहीं बनी रहती धर्मपरायणता. अपने चरित्र और अपने गुणों के यह गृहलक्ष्मी तत्व को बनाए रखने जैसा है। प्रति आज्ञाकारी है। पति यदि बच्चे की तरह परन्तु बहुत से पुरुष सोचते हैं कि पत्नियों को से बुद्ध है तो ठीक है, पर पति को भी यह समझना चाहिए कि यदि वह पत्नी का सम्मान सताना, उन पर क्रोध करना और सभी प्रकार की उल्टी-सीधी बातें कहना उनका जन्म सिद्ध नहीं करता तो उसकी दुर्दशा हो जाएगी। अधिकार है। ऐसा व्यवहार केवल भली महिलाओं ऐसा पति बेकार है। सर्वप्रथम उसे देखना के साथ ही होता है परन्तु यदि महिलाएं भूत होगा कि गृहणी का गृहलक्ष्मी रूप में सम्मान हों, परेशान करने वाली हों तो पति उनसे दब करने पर ही आर्शीवाद प्राप्त होंगे उसे किसी जाते हैं। ऐसी पत्नियों के पति सदा किसी न भी प्रकार से न तो पत्नी का अपमान करना किसी प्रकार से उन्हें रिझाने में लगे रहते हैं चाहिए न उसके प्रति क्रूर होना चाहिए और न क्योंकि वो जानते हैं कि ये तो भूत है. इससे ही ऊँची आवाज में उससे बात करनी चाहिए । सावधान रहना ही ठीक है । न जाने किस परन्तु पत्नी को भी सम्माननीय होना होगा। समय ये भूत साप की तरह से आप पर झपट मैंने बहुत बार कहा है यदि आपकी पत्नी व्यर्थ पड़े? यदि ऐसी महिला परेशान करना या में रोब जमाए तो उसके मुँह पर दो चाँटे बहस करना भी जानती हो तो भी पुरुष उनसे रसीद करो। पत्नी को भी व्यर्थ का रोब जमाने डरते हैं। उसके लिए पुरुष के मन में कोई वाला न होकर दूसरों के अन्दर से भी रोब प्रेम और सम्मान नहीं होता पुरुष उससे जमाने के इस दोष को दूर करना है। वह डरते हैं। ऐसी महिलाओं से पुरुष डरते हैं शान्ति एवं आनन्द का सरोत है. शान्ति संस्थापक कुछ महिलाएं सोचती हैं कि नाज़-नखरे की है यदि वह किसी प्रकार समस्या खड़ी करती प्रवृत्ति से पति भली -भांति वश में किए जा है तो आप उसे चाँटा मारकर उचित स्थान पर सकते हैं। परन्तु इस प्रकार वे अपने मूल ला सकते हैं। ये ठीक है। तत्व, मूल शक्ति को ही खो देती हैं और कठिनाई में फँस जाती हैं। गृहलक्ष्मी तत्व पारस्परिक है । यह न तो केवल पति पर निर्भर है न केवल पत्नि पर, दोनों पर अपने पावित्र्य का सम्मान, अन्दर और बाहर निर्भर है। यदि आप अपनी पत्नी को कष्ट देते पवित्रता का सम्मान करना गृहलक्ष्मी तत्व का हैं तो आपकी बाई नाभि कभी ठीक नहीं हो आधार है। यही उनका संबल है। निःसन्देह अधिकतर पुरुष इस बात का लाभ उठाते हैं। आपकी बाई नाभि कभी ठीक नहीं हो सकती। पत्नी यदि आज्ञाकारी एवं विनम्र है तो वे उस पश्चिम की महिलाओं के साथ समस्या ये है पर शासन जमाना चाहते हैं, सभी प्रकार से कि वो अपनी शक्तियों को नहीं पहचानती। उसे दबाते हैं। परन्तु गृहणी को यह समझना अस्सी साल की बूढी औरत भी दुल्हन की सकती, या यदि आप अच्छी पत्नी नहीं हैं तो रनंड ११ ंम चैतम्प लहरी अंक ९ व १० 22 1999 तरह से दिखाई देना चाहती है। वे अपनी ये कहकर कुछ नहीं प्राप्त किया जा सकता। गरिमा को महसूस करके उसका आनन्द नहीं यह कहना कि हमारा अपना एक घर होना लेना चाहती। वै घर की महारानियाँ हैं परन्तु चाहिए जहाँ हम आनन्द से रह सकें, तो ऐसे हल्की, बचकानी, छिछोरी लड़कियों की तरह से व्यवहार करना चाहती हैं। अपने अस्तित्व नहीं घुसेगा। मेरे बच्चे, मेरे पति, मैं यह सब की गरिमा का उन्हें एहसास ही नहीं है। वे कहना सहजयोग में निषेध है । ऐसा कहना घर में कोई नहीं आएगा, चूहा भी ऐसे घर में अधिक बोलती हैं और उनका आचरण नकारात्मकता है। यह सब पूर्णतः निरर्थक बहुत ऐसा है जो किसी गृहणी को शोभा नहीं देता। चीजें हैं जो किसी सहजयोगी और सहजयोगिनि बात करते हुए वे अपने हाथों को मछुआरिनों को शोभा नहीं देतीं। इस प्रकार स्वार्थता, की तरह से नचाती हैं मानो मछुआरिनों ने एकान्तप्रियता सहजयोग के विपरीत है । मछलियाँ बेचनी हो या किसी से झगड़ना हो वे मूर्खतापूर्वक चिल्लाती हैं। मैंने सुना है कि गृहणी को जब खाना बनाना होता है तो वह कभी-कभी तो वे अपने पतियों को पीढ देती सोचती है कि पचास लोग आने वाले हैं. मैं हैं। ये पराकाष्ठा है। ऐसी महिलाएं अपने कितना खाना बनाऊँ? पति कहेगा कि केवल पतियों की अपने अमीर पिता से करने दस लोग आ रहे हैं तुम पचास लोगों के लिए लगती हैं मैं उस सेठ की बेटी हूँ, मैं उस परिवार से सम्बन्धित हैँ, मेरे पति घटिया परिवार वह ज्यादा खाना चाहें। परन्तु तुम पचास प्लेटें तुलना खाना क्यों बनाना चाह रही हो? हो सकता है से हैं। उसके पास धन नहीं है, वो पढा लिखा क्यों रख रही हो? हो सकता है वह अपने नहीं है। इस प्रकार वे पति से दुर्व्यवहार दोस्तों को साथ ले आएं। तो गृहलक्ष्मी अपनी करती हैं, उसका सम्मान नहीं करती। ऐसी उदारता के विषय में सोचती है और उसका महिलाओं की सभी शक्तियाँ नष्ट हो जाएंगी। आनन्द लेती हैं। मैंने ऐसी बहुत सी गृहणियों वे अपने आप में दोष भाव ग्रस्त हो जाएंगी को देखा है यद्यपि वे सहजयोगी भी न थी। क्योंकि सहजयोग में किसी अन्य को घटिया भाभी क्या तुम हमारे यहाँ खाने पर आओगी? समझने का अधिकार किसी को नहीं है, अपने नहीं मैं नहीं आऊंगी, तुम बहुत ज्यादा चीजें बनाती हो, मैं नहीं आऊंगी । नहीं, नहीं मैं बहुत पति को घटिया समझना तो समझ में ही नहीं आता। चाहे वह सहजयोगी न हो, चाहे उस थोड़ी चीज़ें बनाऊंगी. आप आना जरूर। और फिर तुरन्त वह सोचने लगती है कि आजकल बाज़ार में कौन सी सब्जियाँ हैं, मुझे क्या लाना स्तर का न हो। परन्तु अपने आचरण और शक्ति से आप उसकी रक्षा कर सकते हैं, क्यों आप अपनी पावनता को बर्बाद करती हैं? चाहिए? सबसे अच्छा क्या है? कहने से मेरा दूसरों पर रोब जमाने से, उनका गला दबाने अभिप्राय ये है मैं न तो उनकी गुरु हूँ न से, अपने पति को कुएँ का मेंढक बनाकर उसे उनकी मा हूँ। मात्र उनकी सम्बन्धी हूँ। परन्तु चैतन्य तहरी अंक ९ य । स ११ 1999 भोजन के माध्यम से वे अपना प्रेम अभिव्यक्त सूक्ष्म नहीं है। वे इन चीज़ों से ऊपर हैं आप करना चाहती हैं। वे अन्नदा हैं, अन्नपूर्णा हैं उन्हें भलीभांति समझें। परन्तु पुरुष यदि घोड़े किसी गृहणी में उदारता का ये गुण यदि नहीं पर बैठता है तो मैं भी घोड़े पर बैठूंगी है तो वह किसी भी प्रकार से सहजयोगिनी नहीं है। यह मेरा कहना है। पति तो कुछ हद जाता है तो मैं भी जाऊँगी। वह यदि मज़बूत र गिरुंगी वह यदि बर्फ-कूद (skiing) के लिए म तक कंजूस हो तो चल जाता है परन्तु पत्नी मांसपेशियाँ बनाता है तो मैं भी बनाऊंगी। का उदार होना आवश्यक है। कभी कभी तो आजकल ऐसा ही हो रहा है। महिलाएं स्वयं वह अपनी कीमत पर भी न केवल बच्चों को को बड़ा ही अजीबो-गरीब बना रही हैं बिना बल्कि अन्य लोगों को भी धन देती है। सहजयोग मूछों की बड़ी-बड़ी मांस-पेशियों वाली। इस में महिलाओं को इतना ही सुन्दर होना चाहिए प्रकार के सभी बेवकूफी भरे विचार हैं और परन्तु यह देखकर मुझे कई बार चिन्ता होती किसी भी प्रकार की कोई रोक-टोक नहीं। है कि मुझ पर सहजयोगी महिलाएं ही आक्रमण करती हैं पुरुष नहीं, मैं स्वयं भी एक महिला हूँ. मुझे सदमा लगता है जब महिलाएं इस आप अपनी गरिमा, पावनता, सम्मान, विवेक और सर्वोपरि धर्मपरायणता के आधीन हैं क्योंकि आपके ऊपर इनका भार है। कार्यभारी व्यक्ति 1 प्रकार मुझ पर आक्रमण करती हैं। को यह सब देखना होता है। आप कितने सहजयोग में किसी भी प्रकार का प्रभुत्व आदि झगड़े खड़े करती हैं? आपसे तो शांति संस्थापना नहीं है। प्रभुत्व एवं दासत्व के ये सभी असत्य की आशा की जाती है, किस प्रकार आप विचार आपकी सूझ-बूझ एवं अहम् के कारण झगड़ालू हो सकती हैं। मान लो हम दो लोगों हैं। आपने स्वयं को नहीं पहचाना। आप नहीं को शांति स्थापना के लिए किसी देश में जानते की आप तो रानी हैं. कौन आप पर भेजते हैं, और वे यदि एक-दूसरे का गला प्रभुत्व जमा सकता है। गृह-स्वामिनी पर कौन काट दें तो ऐसी चीज़ को हम क्या कहेंगे? प्रभुत्व जमा सकता है? मान लो यदि पति आप ही लोगों ने सभी कुछ शांत करना है। कहता है कि मुझे यह रंग पसन्द नहीं है, तो आपने इतने प्रेम की अभिव्यक्ति करनी है. ठीक है. कुछ समय के लिए वो रंग छोड़ दो। इतना माधुर्य देना है कि परिवार आपकी सुरक्षा में चैन महसूस करे, क्योंकि आप माँ है। परिवार को आपसे सुरक्षा मिलनी चाहिए, ये प्रेम आपकी तभी कोई आकर यह कहेगा कि यह "कितना अच्छा रंग है"? तो आपके पति एकदम से कहेंगे कि यह रंग मत छोड़ो। महिलाओं को चाहिए कि पुरुषों को समझें, उनकी आँखे है और प्रेम देते हुए आपको लगेंगा कि आप बड़ी-बड़ी होती हैं परन्तु सूक्ष्म नहीं होती। स्वयं को समृद्ध कर रही है जो उपहार मुझे मोटे रूप से वे सभी कुछ देखते है। आज वे प्राप्त होते हैं उनके मुकाबले में आप देखें कि कुछ कहेंगे और कल कुछ और उनकी दृष्टि मैं क्या देती हूँ! मुझे लगता है कि इन्हें रखने शक्ति है प्रेम प्रदान कर पाना आपकी शक्ति रमंज ११ चैंतन्य लहरी अंक ९ १० 24 1999 के लिए मुझे एक और घर बनाना पडड़ेगा। मैं काण्ड कर दें।" तब तक मेरे पति आ गए और पुरुष एक मुझे कोई उपहार न दे मैं व्यक्तिगत उपहार जैसे होते हैं कहने लगे इन्होंने तीन लोगों न लूँगी। फिर भी मेरी समझ में नहीं आता; को अपने घर में रख लिया है। परमात्मा जाने प्रेम से दी गई किसी चीज़ का प्रेम स्वयं को वे कौन हैं? उनमें से एक मुसलमान है, एक अभिव्यक्त करता है और कविता की तरह हिन्दु है परमात्मा जाने उस महिला के दो पति हैं? और इस प्रकार की बातें करने लगे। इन सबसे कह रही हूँ कि व्यक्तिगत रूप से वे दोनों मिलकर बरसने लगे सारे उसका असर आप पर होता है । आप आश्चर्यचकित हो जाते हैं। मैं अपने जीवन का अगली सुबह वे सब भूल गए। मैंने उनसे कहा एक उदाहरण आपको दूँगी जो यह दर्शाएगा कि अच्छा एक रात के लिए तो उन्हें यहाँ रहने दो। आज तो मैं उन्हें यहाँ से नहीं निकाल सकती। अगली सुबह वो सब भूल गए कि आरम्भ में, और मैं सोचती हूं अन्त तक, मैं एक कोई वहाँ रह भी रहे हैं। पुरुषों का यही है। कि किस प्रकार प्रेम कार्य करता है। गृहणी थी। मैं दिल्ली में थी, मेरी बेटी का जन्म होने वाला था और घर के बरगीचे में बैठी मने कहा कि अभी अगर जाने को कहूंगी तो स्वभाव है। पहले तो वो चीखे-चिल्लाए पर हुई मैं उस के लिए कुछ बुन रही थी। तभी उन्हें ठेस पहुँचेगी । एक रात उन्हें यहीं रहने तीन व्यक्ति, एक महिला और दो पुरुष घर में दो। बस इतनी सी बात से वो शान्त हो गए। आए। आकर वह महिला कहने लगी कि मैं अगली सबह वे अपने काम पर चले गए। एक गृहणी हूँ और इन दो पुरुषो में से एक उनके पास समय ही कहाँ था। सप्ताहान्त के मेरे पति हैं और एक उनका मित्र है, जो कि दिन ही पुरुष घर के मामलों में चुस्त होते है । मुसलमान है । हम शरणार्थी हैं और आपसे इसके अतिरिक्त घर के मामलों में उनकी शरण लेने के लिए आए हैं मैंने उनकी ओर कोई भूमिका नहीं होती। ये लोग हमारे घर देखा। वे मुझे बहुत अच्छे लोग प्रतीत हुए। पुर एक महीना ठहरे। इस महिला को नौकरी मैंने कहा, ठीक है आप मेरे घर में रुक जाइए। मिल गई और वह अपने पति और उसके मैंने उन्हें बाहर का कमरा दे दिया जिसके मुस्लिम दोस्त के साथ वहां से चली गई । साथ रसोई और स्नानागार जुड़े हुए थे तीसरे व्यक्ति के लिए मैंने उनसे कहा, एक अन्य परन्तु इसी समय में दिल्ली में बहुत बड़ा हिन्दु-मुस्लिम दंगा हुआ। पंजाब में क्योंकि यहुत से हिन्दुओं और सिक्खों को मुसलमानों शाम को जब मेरा भाई वापिस आया तो वह ने मार दिया था। प्रतिक्रिया के रूप में लोगों जोर-जोर से चिल्लाने लगा कहने लगा "ये ने दिल्ली में भी मुसलमानों की हत्याएं करनी क्या है, तुम इन लोगों को नहीं जानती हो शुरू कर दीं कुछ सिक्ख और एक दो हिन्दु सकता है ये चोर हों, हो सकता है ये कोई मेरे घर पर आए और कहने लगे हमें पता कमरा है, वे उसमें रह सकते हैं । खंड ११ 25 औैतन्य सहरी] क १ प १० 1999 चला है कि आपके यहाँ कोई मुसलमान व्यक्ति मोल-तोल करने लगी। अन्ततः उसने ये भूमिका रुके हुए हैं। मैंने कहा "मैं ऐसा कैसे कर स्वीकार कर ली और मुहूर्त पर आई। मुझे सकती हूँ?" कहने लगे, नहीं एक मुसलमान वहाँ देखकर उसे विश्वास न हुआ। बारह वर्ष उसने मुझे देखा था। उसकी आँखों से कहा देखिए, मैंने कितना बड़ा टीका लगाया आँसुओं की झड़ी लग गई. मुँह से एक शब्द न निकला। दौड़ कर वह मेरे गले लग गई । कहने लगी इतने वर्षों तक आप कहाँ थ्थी। मैंने आपके यहाँ है हम उसकी हत्या करेंगे।" मैंने पश्चात् हुआ है, क्या आप विश्वास कर सकते हैं कि मैं किसी मुसलमान को अपने यहाँ स्थान दूंगी? उन्होंने सोचा मैं वास्तव में कोई कट्टर हिन्दू आपको कितना ढूँढा! साहिर लुध्यानवी भी बहाँ हूँ और उन्होंने मुझ पर विश्वास कर लिया। थे, मैंने उनसे कहा कि यदि आपने घर में घुसने उन्हें बताया गया कि यह उन्हीं का कार्य है । का प्रयत्न किया तो आपको मेरी लाश पर से हे परमात्मा! आप लोगों ने पहले क्यों नहीं कहने लगे कि ये महिला यहाँ पर कैसे हैं । बताया। उनके लिए तो हम अपनी जान निछावर जाना होगा। तो घबराकर वे वहाँ से चले गए। कर सकते हैं उनसे हमें कोई पैसा नहीं चाहिए। इस मुसलिम व्यक्ति ने मेरी बातें सुन ली थी । मेरे पास आकर कहने लगा कि मैं हैरान हैं कि किस प्रकार आपने अपने जीवन को खतरे में अब आप देखें कि मैं एक गृहणी हूँ। अपने इस कार्य में सारा धन मैं लगाऊंगी । डाल दिया। मैंने कहा कुछ नहीं है। उसका पति की सम्पति पर मेरा कोई विशेष अधिकार जीवन बच गया था। यह मुसलमान महान नहीं है और मेरा भाई और पति दोनो ही कवि साहिर लुध्यानवी है और ये महिला महान रोबीले व्यक्ति उस रात गुस्से में मेरी जान अभिनेत्री अचला सचदेव हैं। परन्तु बाद में मैंने लेने को तैयार हो गए। मैंने उन्हें शान्त किया। किसी को कुछ नहीं बताया। मैंने सोचा यदि अचला सचदेव और साहिर लुध्यानवी कहने उन्हें मेरे विषय में पता चलेगा कि मैं बम्बई में लगे कि भविष्य में किसी भी अच्छे कार्य के लिए हम 'नहीं-नहीं कहेंगे कहने लगे कि यह गलती हमने आखिरी बार की है । पैसे और कमाई का सारा विचार ही समाप्त हो हूँ तो वे पागलों की तरह से दौड़ पड़ेंगे। बच्चों के लिए कुछ अच्छी फिल्में बनाने के लिए हमने एक फिल्म केन्द्र शुरु किया था । उसमें माँ की भूमिका करने के लिए लोग फिल्मों में निःशुल्क कार्य किया। दान कार्यों गया। अचला सचदेव ने बहुत सी परोपकारी चाहते थे कि अचला सचदेव कार्य करें। मैंने कहा ठीक है मेरे विषय में बिना बताए आप के लिए साहिर लुध्यानवी ने भी बहुत सी कविताएं लिखी । उसके पास जाएँ। ये घटना हुए बारह साल बीत चुके थे। ये लोग उसके पास गए तो वह तो एक महिला पुरुष को दानवीर व्यक्ति बना अभिनेत्रियों की तरह से नाज़ नखरे और सकती है क्योंकि वो स्वयं परोपकारी होती है। के। चैतन्म लहरी लड ११ 26 1999 व १० अक उसमें बहुत सौन्दर्य होता है वह स्वभाव से और होती है। एक दो बत्तियों के प्रकाश का कलाकार है और गृहस्थी, परिवार तथा समाज बहुत ज्यादा महत्व नहीं है। महत्व तो विद्युत में चहुँ ओर सौन्दर्य की सृष्टि कर सकती है। परन्तु अब महिलाएं पुरुषों की तरह से लड़ना महिलाओं को समझना है कि हम संभावित चाहती हैं वे अपनी सस्थाएं बनाना चाहती हैं, शक्तियाँ (potential) हैं और इस शक्ति को संघ बनाना चाहती है और अपने अधिकारों के हमने सुरक्षित रखना है। हममें गरिमा, सम्मान लिए लड़ना चाहती हैं मैं मानती हूँ कि कुछ एवं धर्मपरायणता का विवेक होना चाहिए। पुरुष और कुछ कानून अत्यन्त क्रूर होते हैं। परन्तु ऐसे पुरुषों को सुधारने का यह तरीका पुरुषों को चाहिए कि वे ऐसी महिलाओं का नहीं है। महिलाओं को नष्ट करने वाले परुषों सम्मान करें। परन्तु वो भी अत्यन्त मूर्ख हैं. जो को सुधारने का एक और तरीका है। महिलाओं महिला उनसे प्रेम करती है, जो पावन हैं. में एक महान गुण है कि गण उनके साथ हैं। अच्छी है जो ये चाहती है कि वे सामूहिकता में श्री गणपति उनके साथ हैं। परन्त यदि वे रहें, जो ये चाहती है वो दानवीर बनें. जो ये पावन न होंगी, अपने शरीर का प्रदर्शन करना की संभावित शक्ति (potential ) का है। अतः कास इच्छा करती है कि सहजयोग को आगे बढ़ाया चाहेंगी, सौन्दर्य का दिखावा करेंगी और इससे जाए. जो ये चाहती है कि पति प्रसन्न एवं आनन्दमय हो और सहजयोग में आए, ऐसी महिला से प्रेम करने की अपेक्षा वे अजीबोगरीब लाभ उठाना चाहेंगी तो गणपति कभी उनका साथ न देंगे। मूर्ख औरतों के पीछे दौड़ते रहते हैं। ऐसी अपनी पावनता का सम्मान करने वाली महिलाए भूतबाधित औरतों के प्रति आकर्षित होने में अत्यन्त शक्तिशाली होती हैं और समय पड़ने पर झाँसी की रानी की तरह वे अपना महत्व आकर्षण मेरी समझ में नहीं आता। पुरुषों के दिखा देती हैं। झाँसी की रानी सर्वसाधारण गृहणी थीं। वह बर्तानवी सेना से लड़ी। अंग्रेज की भावना आ जाती है और पुरुष तथा महिलाएं जनरल दंग रह गए। उन्होने कहा कि हमने दोनों कष्ट उठाते हैं। अपनी पत्नी का तिरस्कार झाँसी पर विजय तो प्राप्त कर ली परन्तु करने वाले पुरुष को रक्त कैंसर रोग हो विजय का गौरव झाँसी की रानी को जाता है। ऐसी ही अन्य महिलाएं भी है जैसे नूरजहाँ, प्रकार दर्व्यवहार करती हैं, उनकी उपेक्षा करती अहिल्या बाई, पद्मिनी, चाँद बीबी आदि। ये सब महान महिलाएं गृहणियाँ थीं। तो महिलाओं के गुण पृथ्वी माँ की या किसी भी अन्य शक्ति की अन्तःशक्ति (potential ) की तरह से है. जैसे विद्युत की अन्तःशक्ति (potential ) कहीं क्या रखा है? अवश्य उनमें भूत होंगे ये इस दुर्व्यवहार के कारण महिलाओं में असुरक्षा सकता है। जो महिलाएं अपने पतियों से इस हैं, उन्हें अस्थमा, भयानक आतपाघात, (siriasis), मस्तिष्क घात, पक्षाघात, शरीर का पूर्ण निर्जलीकरण (dehydration) हो सकता है। बाई नाभि बहुत महत्वपूर्ण है । अंक १ व १० चैतग्य लहरी रानंड ११ 27 1999 बाई नाभि को यदि उ्तेजित कर दिया जाए माँ ने आपका स्वागत करने के लिए और जैसे हर समय दौड़ते रहने से, उछल कूद से, आपको आनन्द प्रदान करने के लिए इतना उत्तेजना से- तो उत्तेजित बाई नाभि के कारण कुछ सुन्दर फैलाया हुआ है। रक्त कैंसर हो सकता है। मैंने हमेशा देखा है कि जो महिलाएं पतली हैं उनके पति सदव पति-पत्नी एक दसरे में मस्त हो जाते हैं और 1 सहजयोग में एक अन्य बहुत आम चीज़ है, घबराए से रहते हैं, क्यों? क्याकि पाल्न हर सहजयोग खो देते हैं। तब उन्हें कष्ट उठाना समय उन्हें दौड़ाए रखती हैं. यह करो, वह करो, मेरे लिए फलां चीज ले आओ; मैंने तुम्ह बुन जाते हैं। उन्हें शारीरिक समस्यांएं भी हो कोका-कोला लाने के लिए कहा था. तुम वो नहीं लेकर आए आदि-आदि। मानों पुरुष अपराधी हो। ऐसे पुरुष भगोड़े से बने रहते हैं; दण्डित करता है। अपना हाथ यदि आप पड़ता है. उनके बच्चे जिद्दी और अवज्ञाकारी जाती हैं। यह दण्ड है । ऐसा नहीं है कि मैं कोई दण्ड देती हूं, आपका अपना स्वभाव ही आपको पुरुष को उसके उछल कूद के कारण कोई न कोई रोग हो जाता है आग में डालेंगे तो जलेगा ही मेरा कहने का और महिला को उसकी अभिग्राय ये है कि आप स्वयं ही स्वयं को कष्ट देने की प्रवृत्ति के कारण। प्रेम, आनन्द एवं प्रसन्नता का उनमें अभाव रहता है। यह है। केवल खाने और गृहस्थी के लिए यदि यह दण्डित करते हैं। आपके बच्चे बिगड़ जाते तथाकथित 'शरीर-आकार' का पागलपन अब स्वार्थ आपमें प्रवेश कर जाता है तो परमात्मा कम हो रहा है। परमात्मा का शुक्र है कि अब यह अमेरिका से आ रहा है। शरीर-आकार में इस प्रकार का स्वार्थ कुछ सीमा तक चल ही ऐसे परिवार की रक्षा कर सकता है। स्त्रियों पागलपन मनुष्य को मूर्ख बना देता है। संकता है, परन्तु पुरुष यदि इस प्रकार से में स्थिरता होनी चाहिए। उन्हें गृहणियाँ होना स्वार्थी हो जाए तो परमात्मा ही रक्षक महिलाओं चाहिए अर्थात जो गृहस्थी में स्थिर हो, अपनी हमारा परिवार किसी एक पुरुष या महिला गृहस्थी से सन्तुष्ट हों महिला यदि हर समय दौड़ी रहेगी. घर में रुकेगी ही नहीं तो वह परिवार है। हम अकेले नहीं हैं। आप यदि तक सीमित नहीं हैं, पूरा ब्रह्माण्ड हमारा गृहणी नहीं है। तब वह नौकरानी हैं। एक स्वेच्छाचारी हो जाते हैं और अपने को अलग कहावत है कि एक महिला नौकरानी थी बाद कर लेते हैं तो, आज मैं आपको चेतावनी में वह गृहणी बन गई। परन्तु इधर उधर देती हूैँ कि, ऐसे लोगों को भयानक रोग हो दोड़ने की उसकी आदत न गई गृहस्थी में जाएंगे। तब सहजयोग को दोष न दें। वह स्थिर न हो सकी। गृहस्थी किसके लिए सहजयोग का अपना ही एक बहुत सुन्दर है? उसके पति के लिए नहीं है, केवल बच्चों संसार है जो परमात्मा का साम्राज्य है। इस के लिए नहीं है, गृहस्थी तो अन्य लोगों के स्वागत के लिए है, बिल्कुल वैसे ही जैसे पृथ्वी परन्तु मूर्ख पत्नी समस्याएं खड़ी करती साम्राज्य में आपको सामूहिक होना पड़ेगा। नाट स्ंड ११ 28 अंक 1999 चैतन्य लहरी वह लोगों के, महिलाओं के झुण्ड बनाती है किए जाने के योग्य रह जाते हैं । तो सहजयोग में आपके लिए आनन्द है। परन्तु जब तक और अपने भूत दूसरों को लगाती है हो सकता है उसे अपनी पढ़ाई-लिखाई पद और आप हर चीज़ में से आनन्द का सार नहीं लेते, धन आदि का बहुत गर्व हो। ऐसे में वह अपने यदि आप गन्ने में से मिठास निकाल दें तो पति को सामूहिकता से पृथक करके रेखेगी। शेष क्या रह जाता है। इसी प्रकार इस ऐसे लोगों को अपने किए का दण्ड भुगतना तथाकथित सेवा और तपस्या में कोई मिठास होगा यह दैवी दण्ड होगा। नहीं है। इस सबका सार तो माधुर्य है जिसकी सृष्टि महिलाएं कर सकती हैं। परन्तु महिलाएं अतः सहजयोग में गृहलक्ष्मी तत्व बहुत महत्वपूर्ण तो है। सहजयोग में आने के पश्चात् जिन लोगों कठोर हैं। इसे खराब मत करो उसे बहुत ठीक से रखो। पति घर में ऐसे घुसता है मानो अपराधी हो उसे को समस्याएं आई हैं, उनमें से अधिकतर ने गृहलक्ष्मी तत्व की उपेक्षा की है। क्योंकि यदि गृहलक्ष्मी चली जाए तो मध्य हृदय पकड़ता बहुत सावधान रहना पड़ता है। एक प्रकार से तो यह अच्छी बात है. और यदि पुरुष इन चीजों के बारे में बिल्कुल अनभिज्ञ है तो और भी अच्छा है। परन्तु हर है। जो महिलाएं ऐसा करती हैं उन्हें चाहिए कि तुरन्त इसे छोड़ दें क्योंकि ऐसा करना समय उसे दास बनाए रखना, ऐसा करो, वैसा यह गृहणी का कार्य नहीं है। जिस अत्यन्त अपमान-जनक है। कोई भी ऐसी महिला करो का सम्मान नहीं करता। अगुआओं तथा उनकी प्रकार पृथ्वी माँ करती है वैसे ही गृहणी को पत्नियों के विषय में तो यह बात पूर्णतया सत्य है। अगुआ या उनकी पत्नी होना सहजयोग में करना चाहिए। पृथ्वी माँ कभी शिकायत नहीं तुच्छतम पद है। आपको जो प्राप्त हो गया है करती और हमें हमारी आवश्यकता के लिए वह इससे कहीं ऊँचा है। किसी सन्त को यदि इतना कुछ प्रदान करती हैं। वे इतनी गरिमा आप राजा बनने के लिए कहें तो वह कहेगा कि क्या आप सागर को प्याले में भरना चाहते उन्हें क्या देता है इस बात की उन्हें कोई हैं? तो अगुआ का पद सहजयोग में तुच्छतम है। अपने जीवन को सेवा के लिए समर्पित आज तक अपने पति से कुछ भी नहीं माँगा तो बताने वाले लोग भी मूर्ख हैं मय हैं और उनमें इतनी शक्ति है कि कोई का चिन्ता नहीं। मैं यदि आपको ये बताऊं कि मैने आप हैरान होंगे पहली बार मैंने उनसे एक । उनका जीवन आनन्द है सेवा नहीं क्योंकि वह सेवा अपने कमरा लाकर देने के लिए कहा था। शाम को आप आनन्द है। परन्तु यदि आप स्वयं को ही आपने उसका परिणाम देखा कि उन्होंने सेवक समझते रहे, 'ओह! मैं बलिदान कर रहा क्या कहा। उन्होंने जो कहा उसे सोचा भी न हूँ, यह मेरी तपस्या है, तो बस समाप्त हो जी सकता था। वे हमेशा मुझसे कहते थे कि गया। तब एक तपस्वी के रूप में ही आपका तुम बताओ तुम्हें क्या चाहिए पहली बार मैंने अन्त होता है। ऐसे लोग क्रूस पर उपयोग कुछ कहा और इसका परिणाम आप देखें। 29 अक ९. व १ 1এ99 लंड ११ चैतन्य लहरी समस्या है। सहजयोग में ६० प्रतिशत अगुआओं आपमें संन्तुष्ट क्योंकि उसे तो सदैव देना की पत्नियाँ भयानक हैं और सहजयोग इसी है । वे आश्रमों में नहीं रह महिला को आत्मसन्तुष्ट होना चाहिए, अपने होता है। देने वाला व्यक्ति किस प्रकार मॉँग प्रकार चल रहा सकती, अपना खाना नहीं बना सकतीं। पति सकता है? उसे प्रेम देना होता है क्योंकि वह साक्षात् प्रेम है। उसे सभी सेवाएं देनी होती को देखना पड़ता है के उन्होंने खाना खाया हैं. उसे अपनी सम्पति देनी होती है. उसे कि नहीं। वास्तव में ये पत्नियों का कर्तव्य है शान्ति देनी होती है। कितनी महान जिम्मेदारी कि वे सबको खिलाएं और सबकी देखभाल है। प्रधानमंत्री या किसी भी अन्य व्यक्तिति से अधिक जिम्मेदारी एक गृहणी की है और उसे मिला है कि नहीं सब लोग आराम से हैं या इस बात का गर्व होना चाहिए। सहजयोग के अगुआ से भी कहीं अधिक जिम्मेदारी एक और कहती हैं मेरे लिए ये ले आओ, मेरे लिए गृहणी की है। परन्तु अगुआओं की पत्नियाँ वो ले आओ। उनमें से अधिकतर को तो खाना भयानक हो सकती हैं क्योंकि वे स्वयं को बनाना ही नहीं आता। हर अगुआ की पत्नी करें, तब स्वयं खाएं, देखें कि सबको बिस्तर नहीं। परन्तु वे तो मिनी माताजी बन बैठती हैं को खाना बनाना सीखना होगा। अब यह अगुआ मान बैठती हैं। उनका व्यवहार इतना आवश्यक है। उन्हें हृदय से खाना बनाना हास्यप्रद हो जाता है कि मुझे हैरानी होती है। होगा और प्रेम से लोगों को खिलाना होगा। मेरा विवाह एक ऐसे परिवार में हुआ था जिसमें सौ सदस्य थे सभी मुझे बहुत प्रेम करते हैं। को भी चाहिए कि उनके दोष न निकाले। अन्नपूर्णा के लिए यह कम से कम है। पति मैं कभी यदि लखनऊ चली जाऊं तो वे सब आरम्भ में हो सकता है वें गलतियाँ करें। उनके गुणों और अच्छाई को प्रोत्साहित करें। मुझे मिलने आते हैं, परन्तु मेरे पति यदि वहाँ जाएं तो कोई नहीं आता। मेरे पति को इस बात की बहुत ैं कुछ बहुत अच्छी महिलाएं भी देखी हैं जो परन्तु मुझे मिलने आते हैं, उन्हें नहीं। मैंने यदि उन्हें प्रेम न दिया होता या उनकी ज़रुरतें पूरी न की होतीं तो वे मेरे पास न आते। तो शिकायत है । वे उनके संबंधी हैं सहजयोग में बहुत ही क्रियाशील होती हं परन्तु विवाह के बाद वे खो जाती हैं । उनके पति भी खो जाते हैं। जब मैं साक्षात् में होती । आज मुझे हूँ तभी वो लोग नज़र आ जाते हैं अगुआओं की पत्नियों को दूसरे लोगों के लिए चीजें संभालनी चाहिए, अपने लिए नहीं। बताया जा रहा था कि ऐसे बहुत से लोग हैं। हमारे यहाँ बहुत सी मूर्ख महिलाएं हैं हिन्दी में इसका अर्थ ये हुआ कि पतियों में खराबी है। हम उन्हें बुद्धु कहते हैं क्योंकि उन्हें अपनी विवाह से पूर्व तो वे ठीक ठाक थे। शक्तियों की समझ नहीं है। वे नहीं जानती तो हमारे अन्दर गृहलक्ष्मी तत्व कितना महत्वपूर्ण कि उनकी जिम्मेदारियाँ क्या हैं? मैं उनके है, सामूहिकता के लिए और आन्तरिक सम्मुख उदाहरण हूँ। मेरे लिए एक बहुत बड़ी सामूहिकता का आनन्द लेने के लिए । कल चैतन्य तहरी रनंड ११ 30 1999 मैंने आपको बताया था कि मैं आपको रागों के रह रहे हों और सातवें दिन दौड़कर समुद्र पर विषय में बताऊँगी 'रा' का अर्थ होता है चले जाते हैं और होटलों में रहते हैं। कोई भी शक्ति और 'ग' शब्द का अर्थ है जो हमारे अपने घर में नहीं रहना चाहता । इसका अन्दर प्रवेश कर जाए। यह आकाश तत्व का कारण ये है कि पति-पत्नी में गृहलक्ष्मी तत्व गुण है। आकाश तत्त्व में यदि कोई शब्द आप का अभाव है। परन्तु राग का आनन्द लेने के डाल दें तो इसे ब्रह्माण्ड के किसी कोने में भी लिए लम्बी बैठक की आवश्यकता है। बैठक पकड़ सकते हैं। तो राग बह शक्ति है जो के बिना राग का आनन्द नहीं लिया जा सकता। आकाश तत्व में प्रवेश कर जाती है अर्थात् आपकी आत्मा ही राग है। मैं कहूँगी कि ये राग गृहणी की तरह से हैं । आप यदि सेना के बाजे के पास खड़े हो जाएँ तो बायाँदायाँ करते हुए आप थोड़ी देर में परेशान हो जाएंगे। परन्तु एक मधुर राग स्वतः ही सौन्दर्य की ओर कूदते हुए राग सुनने वाले व्यक्ति की कल्पना आप करें! व्यक्ति को स्थिर होना होगा यही स्थिरता गृहणी का संसार है । पुरुष को गतिशील होते हुए भी स्थिर होना होगा मैंने आपको बहुत बार बताया कि आधुनिक युग में आपकी बाई नाभि बहुत पकड़ी रहती है। ऐसी अशान्त इशारा करता है वैसे ही जिस प्रकार एक महिलाओं के बच्चे भी होते हैं। भारत में प्रायः गृहणी घर को सजाती है। सभी को शान्त पति के जागने से पूर्व जागकर पत्नियां स्नान करती है, उन्हें खुश करती है, सबकी देखभाल आदि से निवृत्त हो जाती थीं पत्नियाँ सदैव करती है । सब जानते हैं कि वह वहाँ उपस्थित पति के साथ नहीं बनी रहती थीं। वे उसके है। लिए खाना बनाती, बच्चों की देखभाल करतीं। हर समय पति के साथ बने रहना भी बहुत ही आधुनिक शैली में मान लो आप किसी को घर पर अपने बच्चे के जन्मदिवस केक काटने के उबाऊ है। पति पत्नी दानों ही उब जाते हैं और तब तलाक ले लेते हैं। गृहणी के और भी शौक होने चाहिए जैसे बच्चों की देखभाल लिए निर्मन्त्रित करते हैं परन्तु उनके आने से पहले ही केक काट लेते हैं. तो कैसा लगेगा? गृहणियाँ भी यदि अपना महत्व दर्शाती रहें तो करना, सहजयोग आदि - आदि। स्नान आदि ऐसा ही लगता है। उन्हें तो सदैव सबसे पीछे करके पति बाहर आता है। भारत में पहले रहना चाहिए क्योंकि उन्होंने सबकी देखभाल लोग खाना खाने के लिए पृथ्वी पर वैठा करते करनी होती है। राग भी यही चीज है, यह थे परन्तु आज कल कुर्सी पर बैठते हैं पति आपको सभी कोणों से प्रसन्न करता है। मान जब आकर बैठे तो उसे ये नहीं कहना चाहिए लो दफ्तर से चिन्तित और परेशान व्यक्ति घर कि तुमने फलों काम नहीं किया या फलाँ आकर राग बजाने लगता है। राग उसे शान्त महिला झगड़ रही थी, या एक महिला मुझे कर देता है, स्थिर कर देता है। छः दिन तक बता रही थी कि तुम ऐसे हो। ऐसा नहीं करना लोग अपने घरों में ऐसे रहते हैं मानो टैंट में चाहिए । उसे शान्ति से खाना खाने दें भारत श्रीक 31 अक । 1999 च १० रनड ११ चैत्तन्य लहरी में यदि पति को गुस्सा आया हुआ हो तो वह ने पुरुषों को पुरुष और मंहिलाओं को महिला बनाया है। उन्हें यदि एक लिंग बनाना होता घर पर खाना नही खोता। खाना न खाकर कह अपने क्रोध का प्रदर्शन करता है क्रोध प्रदर्शन तो एक लिंग बनाते। परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं के लिए पति अपने अंग वस्त्र भी स्वयं धोने किया अतः व्यक्ति को शान्त, सौन्दर्य एवं लगते हैं। भारत में पति जब खाने के लिए गरिमा पूर्वक अपना लिंग स्वीकार करना चाहिए। बैठता है तो पत्नी उसे पंखा झलते हुए बच्चों मेरा विवाह एक पुराने रीति-रिवाज के परिवार की मधुर बातें बताती है, अपनी सास के स्वास्थ्य में हुआ जहाँ घूँघट की प्रथा थी। वहाँ के के विषय में बताती है कहती है कि आपकी कलेक्टर, जो कि मेरे पति के मित्र थे, ने मेरे बहन आ रही है तो उसके लिए एक साड़ी जेठ से कहा कि क्या मेरे मित्र की पत्नी हमें खरीदनी है पत्नी पति को ऐसी अच्छी अच्छी मिलने नहीं आ सकती? उन्होंने कहा क्यों बातें कहती है। शान्ति पूर्वक पति खाना खाता नहीं। मेरे लिए चीज़ों को आसान करने के है और अपने कार्य के लिए चल पड़ता है। लिए मेरे जेठ छुट्टी लेकर शहर से बाहर आजकल क्योंकि जीवन में तेजी आ गई है, चले गए और जाते हुए अपनी पत्नी से कह आपको तेजी से चलना पड़ता है। पहिए की गए कि इन्हें कलेक्टर से मिलने के लिए भेज परिधि पर यद्यपि तेजी होती है परन्त धरा देना। कितनी सुन्दर शैली थी उनकी। मुझे बिल्कुल शान्त होता है। सहजयोगियों को भी कभी नहीं लगा कि मुझे दबाया जा रहा है । सदैव धुरे पर बना रहना होता है। पति उनके परिवार का यही तरीका था। परन्तु पत्नी, रथ के बाएं और दाएं पहियों को भी, इसके लिए भी विवेक की आवश्यकता होती सदैव धुरे पर बने रहना है? बायों, बायाँ है है। पति यदि मूर्ख होगा तो वह पत्नी को तार अपमानित करवा लेगा और पत्नी यदि मूर्ख होगी तो पति अपमानित होगा महिला यदि महिलाएं तैयार होने में पुरुषों से अधिक समय बहुत चुस्त है, तेज तरीर है तो इसका अर्थ यह नहीं हैं कि वह विवेक शील है । मैं उसी कम समय लेती हूँ। तैयारी में देर करना व्यक्ति को विवेकशील मानती हैँ जो हित, महिलाओं की आदत है, इसे स्वीकार करें। उत्थान और अन्तिम लक्ष्य को देखता है। दायाँ दायाँ। लेती हैं: मैं नहीं लेती, मैं सदा अपने पति से महिलाएँ महिलाएं रहेगीं पुरुष पुरुष। पुरुष वही व्यक्ति संवेदनशील और विवेकशील है । दस बार अपनी घड़ी देखेंगे परन्तु महिला शेष सारी बुद्धिमता अविद्या है और व्यर्थ है कभी एक बार देख लेगी तो देख ले। प्रायः उनकी घड़ियाँ या तो बन्द होती है या खो जाती हैं यदि वे सच्ची महिलाएं हैं तो पुरुषों की तरह से उछलू नहीं होंगी वे भिन्न होती हैं । वे महिलाएं हैं और आप पुरुष। परमात्मा इस विषय पर मुझे लगता है कि मैं एक ग्रन्थ लिख सकती हूँ। तो इसे ग्रन्थ के लिए छोड़कर हमें करनी चाहिए। पूजा परमात्मा आपको धन्य करें। গt ব পরट चैतन्म तहरी संड ११ अंक ९ य १०. 1999 सार्वजनिक कार्यक्रम, मुम्बई 1998 परम् पूज्य मातारजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन सभी सत्य साधकों को मेरा प्रणाम। सत्य जिसे आध्यात्मिक सिद्धान्तों को प्रस्तुत किया है । हम सत्य के रूप में समझते हैं उसे हम अपने उन्होंने पुनर्जन्म के विषय में बात की है । मध्य नाड़ी तन्त्र पर जानते हैं और जो भी कुछ परन्तु आज हम पाते हैं कि आपके उत्थान हम देखते हैं, जो भी कुछ सुनते हैं, जो भी और आत्मसाक्षात्कार के सिद्धांतों को प्रस्तुत कुछ सूँघते हैं हम कहते हैं कि ये सत्य है। करने के लिए स्थापित किए गए हम केवल इतना ही जानते हैं। परन्तु सत्य धर्म क्रूरता, राक्षसी प्रवृत्ति या मूर्खता के बहुत इससे कहीं अधिक है। यह ज्ञानेन्द्रियों से कहीं समीप हैं। यह समझ पाना असम्भव है कि अधिक है आपके मानसिक प्रयोजनों से कहीं पृथ्वी पर प्रकटे महान अवतरणों ने, जिन्होंने अधिक है और आपकी कल्पना से बहुत अधिक इतनी सुन्दर वस्तुओं की सृष्टि की, जीवन के ऊँचा है। मूल सत्य के विषय में बताया और वचन दिया कि आप सबको परमात्मा की इस सर्वव्यापी शक्ति-ब्रह्म चैतन्य को एक दिन महसूस करना हमारे शास्त्रों तथा महान धर्म ग्रन्थों में कहा गया है कि परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति है जो मानव की देखभाल करती है, जिसने मानव होगा- किस प्रकार लोगों को ऐसा बनने के लिए कह सकते थे! सभी धर्मों के अनुयायी ः अति की सीमा तक जा रहे हैं और सभी प्रकार की सृष्टि की है, जिसने इस पूर्ण सुन्दर कब्रह्माण्ड की छोटी-छोटी चीज़ों पर नजर रखी है, के लड़ाई झगड़े और मूर्खता कर रहे हैं । ज़रे-ज़रें की देखभाल की है और उसे ठीक प्रकार से नियोजित किया है कहा गया है कि मानवीय चेतना केवल बाएं या दाएं को जा एक शक्ति विद्यमान है परन्तु इसके विषय में सकती है। सहजयोग में हम कह सकते हैं कि मानव अनभिज्ञ है एक दिन मानव को इसके हमारी चेतना 'ईडा' या पिंगला' की ओर जा विषय में चेतन होना पड़ेगा। सभी अवतरणों सकती है और महान पैगम्बरों ने कहा है कि इस (Sympethetic nervous system ) के ये दो चेतनावस्था को पाने के लिए पुनर्जन्म लेना मार्ग हैं जो बाई तरफ (भूतकाल में) और दायी हो गा, आपको आत्म-साक्षात्कार (self तरफ (भविष्य में) हमारे प्रयत्नों को देखते हैं। realisation) प्राप्त करना होगा। जो भी नाम बाई ओर आसक्ति होगी कुछ धर्म ऐसे भी आप इसे दें परन्तु जिन लोगों ने भी सत्य के जो आपको इच्छानुसार कार्य करने की आज्ञा अनु कम्पीनाड़ी-प्रणाली । अफ ९ व १० संड ११ चैतन्य लहरी 1999 33 देते हैं। उदाहरण के रूप में इसाईधर्म में कोई लेना देना नहीं। परन्तु अब भी ये चीजें कैथोलिक मत चालू किया गया यह आक्रामक हो रही हैं और लोग परमात्मा के कार्य में प्रकार का धर्म था क्योंकि इसमे बहुत अधिक हस्तक्षेप करने में लगे हुए हैं यह तो परमात्मा पाबन्दियाँ थीं। इसमें सन्यासिनियाँ (nuns) विरोधी कार्य है और यही कारण है कि जब और पादरी होते हैं जिनसे आशा की जाती है हम धर्म के नाम पर ये कार्य होते हुए देखते हैं कि वे विवाह न करें, तलाक न करें, तथा अन्य तो, जिस प्रकार हमारे देश में किया जाता है, बहुत प्रकार के नियम बन्धन तथा पावन्दियों महिलाओं से दुर्व्यवहार करते हैं । इसी-प्रकार की आशा इनसे की जाती है। तब मार्टिन भारत में लोगों ने सती प्रथा आरम्भ की। हाल लूथर ने एक आन्दोलन आरम्भ किया। वह ही में मुझे बताया गया कि सती होना महिला है दाई ओर का (आक्रामक प्रवृत्ति) व्यक्ति था। का धर्म है, ऐसा शास्त्रों में लिखा हुआ इन्होंने लोगों को बताया कि परमात्मा ने यह परन्तु महिलाओं को शास्त्र पढ़ने का अधिकार सब करने के लिए नहीं कहा है। हमें बहुत सी नहीं है। ये सब मूर्खता है पूर्ण मूर्खता । स्वतन्त्रता होनी चाहिए और इस प्रकार का आठ हजार वर्ष पूर्व जब श्री राम ने रावण का वध किया तो उन्होंने उसकी पत्नी का विवाह अनुशासन और अन्धानुकरण ठीक नहीं है । हमे इस पोप का अनुसरण नहीं करेंगे जो स्वयं सभी प्रकार के अधार्मिक कार्यों में लिप्त विभीषण से कर दिया। आठ हजार वर्ष पर्व है। उन्होंने एक विधवा का विवाह विभीषण से किया। श्री राम का उदाहरण हमारे सामने है इसी प्रकार भारत में हिन्दू धर्म दो चीज़ों पर कि उन्होंने जाति प्रथा की बिल्कुल चिन्ता नहीं आधारित है। वाम मार्गी लोग कहते हैं कि धर्म की। आज हम लोग श्री राम में दोष सोच रहे में हर चीज़ की आज्ञा है। हम जो चाहे कर हैं क्योंकि हम इतने अहंकारी हो गए हैं कि सकते हैं। मदिरापान करने में कोई बुराई नहीं हमें यह समझ भी नहीं रही कि श्री राम कितने और न ही वेश्यावृति में कोई बुराई। ये लोग महान थे अब तो लोग ये भी कहने लगे हैं यहाँ तक कहते हैं कि समुद्र मन्थन में से ही कि श्री राम ने अपनी पत्नी को दुत्कार दिया वेश्याएँ प्रकट हुई। इसलिए वेश्यावृति उचित और उनसे दुर्व्यवहार किया यह सब तो नाटक है। इन्होंने दूसरे प्रकार के धर्म अपना लिए था उन्हें उस समय यह सारा नाटक करना जो आज भी हमारे मन्दिरों में चल रहे है मैंने पड़ा ताकि लोगों को दर्शा सकें कि सुक्रान्त यह देखा है। ये लोग भूत विद्या, प्रेत विद्या, वर्णित 'हितकारी राजा' क्या होता है । ऐसा श्मशान विद्या को मानने लगे अब भी बम्बई व्यक्तित्व आप श्री राम में देख सकते हैं पश्चिम के मन्दिरों में लोग भूत बाधित औरतों के पास में श्री राम सम श्रेष्ठ व्यक्ति कोई नहीं हुआ । जाते हैं जो उन्हें दौड़ के घोड़ों के नम्बर भारत में अपनी तुच्छ बुद्धि से अब हम श्री राम बताती हैं। परमात्मा का घोड़ों तथा दौड़ों से के दोष खोजने में लगे हैं। हुए গ संड ११ चैतम्य लहरी अंक १ व १०. 1999 34 पृथ्वी पर अवतरित होकर श्री राम ने पहला तो कष्ट दें और न ही पृथ्वी पर जन्म लेने के कार्य जो किया वह था एक शूद्र को रामायण लिए व्यथित हों, उन्हें बहुत से कार्य करने लिखने का अवसर प्रदान किया। वाल्मिकी पड़े। श्री राम ने हमारे लिए बहुत कष्ट उठाए। एक सर्वसाधारण मछुआरे थे उन्होंने रामायण लिखी। इससे प्रमाणित होता है कि श्री राम संसार को ये दिखाना चाहते थे कि जो उन्होंने कभी कष्ट नहीं उठाए। यह सब मात्र अब हमें और कष्ट उठाने की कोई आवश्यकता नहीं। उन्होंने हमारे लिए कष्ट उठाए फिर भी व्यक्ति आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेता है वही वास्तव में विद्वान है, वही सच्चा पंडित अन्तर्दृष्टि विहीन लोग श्री कृष्ण के जीवन के है, सच्चा ब्राह्मण है स्वयं को पण्डित था विषय में कुछ भी कह सकते हैं क्योंकि उनमें नाटक है, वे हमारे लिए नाटक करते हैं। ब्राह्मण कहने वाले लोग ब्राह्मण नहीं हैं। गहनता का पूर्ण अभाव है वे इस प्रकार श्री ं कृष्ण की आलोचना करने लगते हैं मानों श्री कृष्ण उनकी जेब में रखे हुए अवतार की आलोचना, उनके विषय में इतना लोग श्री कृष्ण के बारे में भी उल्टी सीधी बातें करते हैं, मानो उनकी जिह्वा बेकाबू हो गई हों इतने महान हो। मेरी समझ में नहीं आता कि इस प्रकार कुछ कहा जाना वास्तव में आश्चर्यजनक है। चे मानव रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए और आप जानते हैं कि पृथ्वी पर मानव जीवन की मूर्खतापूर्ण बातें करने की हिम्मत और दुस्साहस लोग कैसे करते हैं! महान अवतरणों के विषय में ऐसी बातें करते हुए उन्हें परमात्मा कैसा होता है। मेरे बहुत से सहजयोगी बच्चे का भी भय नहीं होता। श्री कृष्ण के विषय में हैं मैं उन्हें अपने बच्चे कहती हैँं। परन्तु कोई भी आजकल लोगों ने कहना शुरु कर दिया है पुरुष यदि ये कहे कि यह मेरा बच्चा है या यह मेरी बेटी है तो कोई इस बात को स्वीकार कि उनकी बहुत सी पत्नियाँ थीं और वे अत्यन्त स्वेच्छाचारी व्यक्ति थे। श्री कृष्ण के विषय में नहीं करेगा। यह सब कहना बहुत बड़ा दुस्साहस है। श्री राम और श्री कृष्ण महान अवतरण थे धर्म की श्री कृष्ण चाहते थे कि उनकी सभी शक्तियाँ स्थापना के लिए साक्षात् श्री विष्णु उनके रूप पृथ्वी पर अवतरित हों, उनकी सोलह हजार में पृथ्वी पर अवतरित हुए। श्री राम का जीवन शक्तियाँ हैं। उन्हीं की तरह से सहजयोग में महान तपस्विता का था और अत्यन्त गम्भीर आप जान जाएंगे कि आपकी भी सोलह हजार था। उसे देखते हुए लोग भी अत्यन्त तपस्वी शक्तियाँ हैं। विशुद्धि चक्र में जहाँ उनका एवं गम्भीर होने लगे । श्री कृष्ण ने धार्मिक निवास है सोलह पंखुड़ियाँ हैं इन सोलह जीवन को उचित मार्ग तथा उचित विकासशील पंखुड़ियों को मस्तिष्क की एक हजार नाड़ियों अवस्था प्रदान करनी चाही। उन्होंने कहा कि (पंखुड़ियों) से गुणा की जाए तो ये श्री कृष्ण यह सब लीला है। जीवन को सहज तथा की सोलह हजार शीक्त्तयाँ बन जाती हैं। परन्तु जीवन्त बनाने के लिए ताकि लोग स्वयं को न श्री कृष्ण उस समय इन शक्तियों को चैतन्य लहरी বনত ११ अंक ९ व १० 35 1999 सहजयोगियों के रूप में न पा सके थे, इसलिए यह जान कर आश्चर्य चकित हो गए कि उन्हें उन शक्तियों को महिलाओं के रूप में इसाईयों द्वारा चलाए जा रहे सभी नियम ईसा पृथ्वी पर लाना पड़ा। इन सबको एक राजा से विरोधी हैं। सर्वप्रथम सेंट थाम्स ने कहा था विवाह करना पड़ा। तत्पश्चात् उस राजा को कि आपको आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति होना होगा, पराजित करके श्री कृष्ण ने उन सबसे विवाह यह अनुभव आपकों प्राप्त करना होगा। केवल किया। वे सब उनकी शक्तियाँ थीं। इसके इतना ही नहीं, जिस प्रकार से ये ईसाई धर्म की शिक्षा देते हैं, कि आपके लिए कष्ट उठाना अतिरिक्त उनकी पाँच पत्नियाँ थीं, ये पंच तत्व थे, जिन्हें शक्तियों के रूप में उन्हें अपने आवश्यक है तथा ईसामसीह का क्रूस आपको उठाना होगा, यह सब मूर्खता है। ईसामसीह अवतरण को नहीं समझ पाते वे व्यर्थ की ने आप लोगों के लिए क्रूस उठाया अब हमें आलोचना करने लगते हैं यहाँ तक कहा जा कोई अन्य क्रूस उठाने की आवश्यकता नहीं रहा है कि गोकुल और वृन्दावन में क्रीड़ा है। क्या उन्होंने कुछ अधूरा छोड़ा है जिसे करने वाले कोई और थे और गीता लिखने हमने पूरा करना है? ईसा मसीह ने कहा है समीप रखना था। जो लोग श्री कृष्ण के महान वाले श्री कृष्ण कोई और इन बुद्धिवादी लोगों का मस्तिष्क घूम गया है। मैं सोचती हूँ कि कि आपको प्रसन्नचित्त होकर यह समझना है कि आपके पिता सर्वशक्तिमान परमात्मा, आपको उनकी बुद्धि को इन महान अवतरणों की कुछ प्रेम करते हैं और वे नहीं चाहते कि आप अधिक समझ की आवश्यकता है जो आपकी किसी प्रकार का कष्ट उठाएं और गलियों में चिल्लाते हुए चलें कि आप दुखी हैं इसके आपको सही दिशा देने के लिए पृथ्वी पर विपरीत यदि आप इसाई मत का अनुसरण करने वालों को देखें तो आप जान जाएंगे कि इसाईयों के हाथों सभी लोगों को कष्ट उठाने चेतना को सुधारने और विकास-प्रक्रिया में आए। केवल यही दो बातें नहीं हैं जिनके कारण लोगों ने अपराध किए। ईसामसीह को भी नहीं पड़े। अभी तक इसाईयों को कभी कष्टों का बख्शा गया। चर्चों ने उन्हें भी पूरी तरह गलत सामना नहीं करना पड़ा। वे कहते हैं कि हम कष्ट उठा रहे है, परन्तु यह एक बहुत बड़ा ढंग से पेश किया इस बात को अब आसानी नाटक चल रहा है। 'हम कष्ट उठा रहे हैं, हमें से देखा जा सकता है क्योंकि सेंट थाम्स ने कष्ट उठाने चाहिएं। एक पुस्तक लिखी थी। जब वे भारत आ रहे थे तो यह पुस्तक उनसे मिश्र में छूट गई। लोगों ने जब इस पुस्तक को देखा तो वे दंग है मैं उनका नाम नहीं लेना चाहती, आप रह गए। अड़तालीस वर्ष पूर्व ये पुस्तक खोज ली गई और जब इसे अंग्रेजी भाषा में पढ़ने यह समझाने का प्रयास किया कि आप तपस्विता योग्य बनाने का प्रयत्न किया गया तो लोग हिन्दू धर्म में भी ऐसे लोगों का एक अन्य वर्ग उन्हें भली-भाति जानते हैं जिन्होंने आपको का जीवन व्यतीत करें। जैन धर्म में भी यह लंड ११ 36 चैतन्य तहरी 1999 अचा न मूर्खता चल रही है। किसी भी शास्त्र में ये पंजाब को लेने के लिए इतनी मूर्खतापूर्ण बातें नहीं कहा गया कि आप अति में जाएं या व्यर्थ करके किस प्रकार का खालिस्तान वो देना में भूखों मरें। हमारे देश में लोग भूखों मर रहे चाह रहे हैं? क्या गुरु नानक ने यही बताया हैं। भूखों मरने वाले ये लोग क्या स्वर्ग में जा था? गुरुनानक ने कहा था, "कह नानक बिन रहे हैं? भूखे रह कर क्या आप भूखमरी में फॅसे आपा चीन्हें मिटे न भ्रम की काई " कबीर साहब ने भी यही बात कही। मोहम्मद साहब लोगों की सहायता कर सकते हैं। ब्रत करके भूखों मरने की इस क्रिया को इतने गलत ढंग ने कहा कि कुयामा के समय- पुर्न-उत्थान के से लोगों को समझाया गया है कि श्री गणेश समय आपके हाथ बोलेंगे। और ये मुसलमान के जन्म दिवस पर भी वे ब्रत रखते हैं। कहने कहाँ जा रहे हैं? ये क्या कर रहे हैं, एक दूसरे से मेरा अभिप्राय ये है कि आपके परिवार में का गला काट रहे हैं? क्या यही धर्म है? क्या यदि किसी बच्चे का जन्म होता है तो आप यही परमात्मा का मार्ग है? यह परमात्मा का जश्न करते हैं। उस दिन व्रत करके आपको मार्ग नहीं है। परन्तु ऐसा क्यों घटित हुआ? भूखा रहना चाहिए या अपने परिवार में जन्मे क्योंकि मानवीय चेतना बाएं और दाएं की श्री गणेश के स्वागत में लड़्डू बॉटकर खुशियाँ मनानी चाहिए? श्री राम जन्म दिवस है तो धन्यवाद है कि ऐसा हुआ क्योंकि अब इसके आपको व्रत करना होगा, श्री कृष्ण जन्म दिवस कारण इन महान अवतरणों के नाम पर बनाए है तो आपको व्रत करना होगा! हैरानी की बात गए तथाकथित धर्मों की मूर्खता और असंगति है कि किस प्रकार लोगों ने इतने गलत ढंग को अब आप लोग समझ सकते हैं। सीमाओं को लाँघ जाती है। परमात्मा का क से इन महान अवतरणों की व्याख्या की। सहजयोग आपका अपना धर्म है। आपके एक और नई चीज़ मैंने देखी है । इंग्लैंण्ड में अन्तर्निहित कुण्डलिनी आपके अन्दर है। ये यह देखकर मैं हैरान हो गई कि परिवार में शक्ति आपके अन्दर है, इसका जागृत होना यदि किसी की मृत्यु हो जाए तो वे शैम्पेन आवश्यक है। इसकी जागृति के विषय में सेन्ट पिएंगे, ईसामसीह का जन्मदिन है तो वे शैम्पेन थाम्स, मोहम्मद साहब, ज़ोरास्टर, ईसामसीह पिएंगे, कोई अन्य शुभ दिन है तो वे शैम्पेन और श्री कृष्ण ने भी कहा। परन्तु ज्ञानेश्वर जी पीएंगे। मेरी समझ में नहीं आता कि इसाई- ने कुण्डलिनी जागृति के विषय में स्पष्ट बात धर्म कहलाने वाला यह कैसा असभ्य धर्म है! की, नानक साहब ने भी इसके विषय में बताया। यही बात अन्य धर्मों के विषय में भी है। अब सभी ने कुण्डलिनी के विषय में बताया कि यह आप देखें कि सिख लोग खालिस्तान शुरु कर रहे हैं। खालिस अर्थात निर्मल- शुद्ध । हमने होना आवश्यक है ताकि आपको आत्म- यहाँ एक खालिस्तान शुरु किया है वे वहाँ क्या कर रहे हैं? इतनी गन्दगी मस्तिष्क में भर के, महान शक्ति है। इसका आपके अन्दर जागृत साक्षात्कार प्राप्त हो सके। कोई भी उत्थानाकॉक्षी नहीं है सभी लोग किसी न किसी प्रकार से पैतन्य लहरी বনड ११ 1999 37 अक धन एवं सत्ता व्यापार कर रहे हैं और इस दो, उन्हें स्वतन्त्र व्यक्ति बनने दो बाई ओर लोलुपता में धर्म के नाम पर वे एक दूसरे की के आन्दोलन में व्यक्ति महत्वपूर्ण हो जाता है। हत्या कर रहे हैं। धर्म के नाम पर वे दूसरों पर सामूहिकता का महत्व नहीं रह जाता, व्यक्ति शासन करने का प्रयत्न करते हैं । ये धर्म नहीं महत्वपूर्ण होता है। ये कहते हैं कि व्यक्ति की है। अवतरणों का इससे कुछ लेना-देना नहीं उन्नति होनी आवश्यक है और तब वह व्यक्ति है ऐसे लोग परमात्मा विरोधी हैं और परमात्मा दूसरे व्यक्ति से स्पर्धा करने लगता है तब दो के नाम को बदनाम कर रहे हैं। ऐसे बहुत से व्यक्ति परस्पर झगड़ते हैं, संस्थाएं परस्पर गुरु है, ये झूठ-मूठ के गुरु, जो धन एकत्र झगड़़ती हैं. मुकाबला होता है और व्यक्ति के करने के लिए सभी प्रकार का असत्य सिखा महत्व को उन्नत करने में लगे इन लोगों का भयानक दुर्व्यवहार देखने को मिलता है। यह नहीं लूट सकते क्योंकि परमात्मा तो प्रेम है आपका प्रजातन्त्र है जो बड़े-बड़े असुरों की और प्रेम को बाजार में बेचा नहीं जा सकता। सृष्टि करने में लगा हुआ है। जिनका आने दूसरों की कीमत पर कौन से अवतरण ने धन वाले कल हमें सामना करना होगा जब वे एकत्र किया? हमें उनके जीवन, उनके आदर्श इस देश में अपने दोगले (hybrid) उत्पादों को देखना चाहिए और तभी गुरुओं के पास को बेचने के लिए आएंगे और हम सब बिक रहे हैं। परमात्मा के सन्त आपसे कभी धन जाना चाहिए। मराठी की एक कहावत है. जाएंगे। गुरुचेति काले आहे । आज के कलियुग की यह दुर्व्यवस्था निःसन्देह हमारी बाएं या दाएं ओर जाकर असन्तुलित हो जाने के कारण है। क्योंकि हमारा उत्थान नहीं हुआ है। केवल इसी चीज़ का एक और पहलू भी है इसमें भी पूर्ण मूर्खता है अधिकारियों का नियंत्रण है जैसा हमें साम्यवाद में मिलता है। वहाँ व्यक्ति महत्वपूर्ण नहीं है समाज महत्वपूर्ण है । इतना ही नहीं, यह कपटी गुरु सभी प्रकार की गलत चीजें पढ़ा रहे हैं और आप लोग उनके सामूहिकता के हित के लिए व्यक्ति की बलि पीछे दौड़ रहे हैं। आपका अपना कोई व्यक्तित्व पढ़ा दी जाता है, उसे समाप्त कर दिया जाता नहीं है, कोई आधार नहीं है। यही कारण है कि आप इन मूर्खो के पीछे दौड़ रहे हैं जो आपको बेवकूफ बना रहे हैं। है. उसे जेल में डाल दिया जाता है। सामूहिकता को जीवित रखने के लिए सभी कुछ उचित माना जाता है। ये सभी मानव के मानसिक प्रक्षेपण एवं विचार धाराएं हैं जिनका जीवन से बिल्कुल कोई सम्बन्ध नहीं है? व्यक्ति को यदि आप भूखों मारने लगे या ऐसी घुटन में रहने राजनीति में भी ऐसा ही हो रहा है और हम या तो बाएं को चले जाते हैं या दाएं को। बाई ओर के आन्दोलन में नियंत्रण समाप्त हो जाता पर विवश करे दें तो अवसर प्राप्त होते ही वह है। नियंत्रण समाप्त कर दो, अनुशासन समाप्त ऐसे स्थान पर दौड़ेगा जहाँ उसे स्वतन्त्रता कर दो, लोगों को अपने स्वतन्त्र विचार बनाने मिल सके और इसके लिए उपयुक्त अवसर पैतन्य तहरी আनड ११ अंक 38 १० 1999 पाते ही वह दुर्व्यवहार करने लगेगा अरब और समाज के बीच, चरित्र और धर्म के बीच देशों से आने वाले लोगों को मैंने देखा है वे सन्तुलन विकसित हो जाएगा। इस सन्तुलन अपने देश में शराब नहीं पीते परन्तु एक बार को लाया जाना आवश्यक है। यह सन्तुलन जब वे इंग्लैण्ड आ जाते हैं तो आप सोच नहीं सकते कि वे कहाँ-कहाँ जाते हैं। उनके अन्दर आपके अन्तर्निहित है. ये बाहर की चीज़ नहीं है, यह भाषण नहीं है, यह सिर्फ इतना कहना ही नहीं है, ओह मैं बहुत संन्तुलित हूँ । बहुत से लोग स्वयं को प्रमाणित करते हैं कि "मैं बहुत सन्तुलित हैँ, मैं पूर्णतया ठीक हूँ. मुझे इस पर विश्वास नहीं है।" आप विश्वास करने वाले या न करने वाले कौन होते हैं? क्या आपने वास्तविकता देखी है? वास्तविकता क्या बिल्कुल अन्तःपरिवर्तन नहीं है। परन्तु वै अपने ही स्वर्ग में रहे चले जाते हैं और सोचते हैं कि हमने सामूहिकता का हित पा लिया है । व्यक्ति के बिना सामूहिकता नहीं प्राप्त की जा सकती, और सामूहिकता के विना व्यक्ति कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकता, यह महत्वपूर्ण बात है। महसूस है? सबप्रथम यह वास्तविकता आपको तो बाएं और दाएं, दोनों आन्दोलनों को उचित रूप से नियंत्रित तभी किया जा सकता है जब करनी होगी। परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति ही वास्तविकता है। सर्वप्रथम इस वास्तविकता हम ये समझ लें कि हमें मध्य में रहना है। को महसूस करें। इसे महसूस करने के पश्चात् आप वास्तविकता की उस अवस्था तक पहुँच परन्तु मध्य में किसलिए रहना है? अपने उत्थान के लिए, अन्त्तपरिवर्तन के लिए इस कठोरता और मानसिक प्रक्षेपणों से हमें मुक्त होना है जाएंगें जहाँ आप अपनी अंगुलियों के सिरों पर क्योंकि मानसिक प्रक्षेपण रेखीय (linear) है। महसूस करेंगे आपमें क्या दोष है, दूसरों में ये एक ही रेखा में चलते हैं और विज्ञान की क्या दोष है, समाज में क्या दोष हैं, सामूहिकता में क्या दोष है और व्यक्ति विशेष में क्या दोष है। अपने दोषों को देखने के लिए जब तक तरह से पलटकर आपको कष्ट देते हैं। विज्ञान ने एटम बम बना दिया और अब आपकी समझ में नहीं आता कि इसका क्या करें कल आप आपमें पूर्ण ज्ञान न होगा कैसे आप दोषों को सभी प्रकार के कम्पयूटर बना लेंगे तो आप सुधार सकेंगे? एक व्यक्ति ने कोई कार्य किया कम्पयूटर के दास बन जाएंगे और कम्पयूटर है तो मुझे भी वैसा ही करना है, दूसरे व्यक्ति आपको नियंत्रित करेंगे। आपकी समझ में नहीं ने कुछ किया है तो मुझे उसे पछाड़ना है। आएगा कि क्या करें आपने इतनी सारी मशीनें समस्याओं का समाधान करने का यह तरीका बना ली. उनसे भी समस्याएं खड़ी हो रही हैं। नही है। परन्तु आप हिंसा पर हिंसा डाले चले इसके समाधान के लिए आपको उत्थान की जाते हैं, असत्य पर असत्य; अवास्तविकता पर आवश्यकता है जिसके लिए आपको मध्य में अवास्तविकता डाले चले जाते हैं। इसके लिए रहना होगा। एक बार जब आप मध्य में आ आपको आत्मसाक्षात्वकार लेना होगा। यह बहुत जाएंगे तो व्यक्ति और सामूहिता के बीच, मशीनों आवश्यक है। जिन लोगों ने आत्मसाक्षात्कार अंक ९ व १० चैतन्य लहरी रड ११ 1999 39 प्राप्त कर लिया है मैं सोचती हूँ के वे मुखर सन्तुष्ट (स्पष्ट) रूप से कहेंगे कि उन्हें लाभ हुआ है। सहजयोग में हम कभी नहीं कहते कि. 'ऐसा स्वतंत्रता संघर्ष के समय लोगों ने कितना करो, ऐसा मत करो। मैं कभी नहीं कहती कि बलिदान किया। निःसन्देह अब वो लोग नहीं आप यह कार्य मत करो, क्योंकि यदि मैं ऐसा रहे, शासन कार्य में अन्य लोग दिखाई पड़ते कहूँ तो आधे लोग दौड़ जाएंगे। परन्तु जब है, परन्तु उस समय लागो ने बहुत बलिदान आप अपने हृदय में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर किया। सहजयोग में आपको कुछ बलिदान लेंगे और जब आप देखेंगे कि आपने हाथ में करने की आवश्यकता नहीं, कुछ त्यागने की साँप पकडा हुआ है तो स्वयं ही उसे फेंक आवश्यकता नहीं, आपको अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त देंगे मुझे बताना नहीं पड़ेगा । मेरे कहने का हो जाता है, लक्ष्मी तत्व सुधर जाने से आपकी अभिप्राय ये है कि आपको स्वयं का स्वामी बैंक राशी (bank balance) काफी बढ़ जाता बनना पड़ेगा, अपना गुरु बनना पड़ेगा। आप है। जीवन आपको पूर्ण संतोष प्रदान करता की अपनी ही शक्ति जागृत करनी होगी ये है। शान्त होकर आप हर चीज़ के साक्षी बन आपकी अपनी संपत्ति है जिसे आपको प्राप्त जाते हैं। आपका सौन्दर्य बोध बढ़ जाता है करना होगा मुझे इसमें कुछ नहीं करना, मैं और आप पूर्ण संघटित व्यक्ति (integerated तो मात्र उत्प्रेरक (catalyst) हूँ। ही personality) हो जाते हैं। आपमें ऐसी गतिशीलता आ जाती है कि आपको किसी का मैं आप सब लोगों की धन्यवादी हूँ। भिन्न केन्द्रों से चलकर मेरे जन्मदिवस पर मुझे भय नहीं रहता। परन्तु यदि केवल इतना ही कुछ था तो आप कह सकते हैं, "श्री माताजी मुंबारकबाद देने के लिए आप आए और आकर व्यक्ति (individual) किस प्रकार कार्य कर ये कहा कि यहाँ आकर आपको बहुत प्रसन्नता सकता है? आपको सामूहिक चेतना प्राप्त हो हुई। आप सबको देखकर मैं बहुत प्रसन्न हैं । जाती है जिसके द्वारा आप सामूहिकता को आप सभी लोग अपने क्षेत्रों में अथक कार्य कर महसूस कर सकते हैं। केवल इतना ही नहीं, रहे है पूरे विश्व में हमारे बहुत से केन्द्र हैं. सामूहिकता को ठीक करने की शक्ति भी आपको बम्बई में भी बहुत से केन्द्र हैं। जो लोग दिन प्राप्त हो जाती है. जैसे कि सहजयोगियों को और रात कार्य कर रहे हैं वे मुझे याद हैं। प्राप्त है । वे शान्ति की सृष्टि कर सकते हैं सभी प्रकार की मंगलमयता वे ला सकते हैं । हैं, बारह आश्रमों में वे लोग कार्य कर रहे हैं । ऐसा हुआ है. विश्व भर में ऐसा हो रहा है। परन्तु परेशानी ये है कि लोगों के पास लोग व्यक्तिगत रूप से भी कार्य कर रहे हैं। वास्तविकता को देखने के लिए समय नहीं है। हम नहीं कहते कि ऐसे वस्त्र पहनों या किसी । आस्ट्रेलिया में सिडनी के अन्दर बारह केन्द्र सामूहिक रूप से आश्रमों में वे रहते हैं। कुछ नहीं उन्हें जो भी कुछ प्राप्त हो गया है वे उसी से अन्य प्रकार की मूर्खता करो । ऐसा कुछ चैतन्य लहरी ं ११ 40 अक १ मं १० 1999 है। संवेदनशील, विवेकवान, गरिमामय लोग जान सके कि यह कार्यक्रम यहाँ है। बहुत से अत्यन्त सुहृदय, प्रेममय एवं करुणाशील बन लोग शहर से बाहर गए हुए हैं परन्तु कोई गये हैं। केवल इतना ही नहीं नाड़ीग्रन्थः में बात नहीं इतने थोड़े समय में जो कुछ भी वर्णित वे ही लोग कल की नस्ल होंगे। उन्हीं किया गया बहुत ही अच्छी तरह से किया को चुना गया है और वही लोग विश्व के गया आयोजन करने वाले लोगों को मैं बधाई भाग्य का निर्णय करेंगे यह सब नाड़ी ग्रन्थ देती हूँ। उन्होंने इतने थोड़े समय में यह सारा में लिखा है । परन्तु व्यक्ति को समझना कार्य किया है यह सब स्वतंः (spontaneous) हुआ होगा कि जब तक मानव विशाल रूप से हैं। इतने थोड़े समय में यह सब कार्य कर सहजयोग को स्वीकार नहीं कर लेता यह सब पाना असम्भव है। सारे कार्यक्रम का निर्णय कार्यान्वित न होगा सहजयोग किसी व्यक्ति अचानक लिया गया। विशेष के लिए नहीं है। यह सामूहिक आन्दोलन है। गाँवों में मैंने देखा है, आठ हज़ार, दस 1 तो यह सजहयोग की उपलब्धि है कि आप लोग स्वतः सभी कुछ इतनी सुन्दरता पूर्वक आयोजित करते हैं। आप सब लोगों का हार्दिक हजार लोगों को सामू हिक रूप से आत्मसाक्षात्कार हो जाता है क्योंकि वे सहज धन्यवाद कि आप मेरे जन्मदिवस पर मुबारकबाद देने के लिए यहाँ आए । अपने जीवन काल में ही मैं इस पूरे विश्व को एक सुन्दर विश्व में परिवर्तित हुआ देखना चाहूँगी। लोग हैं केवल इतना ही नहीं वे वास्तविकता में अत्यन्त धार्मिक हैं। अब यहाँ नगर में भी हमारे बहुत से केन्द्र हैं। ये कार्यक्रम करने का निर्णय अचानक लिया गया, जिसके कारण हम सभी लोगों को सूचित न कर पाए । लोग ये न परमात्मा आप सबको धन्य करें। ता सा ---------------------- 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी अक ९ वः १० रकंड : ११ १९९९ हं ु ক आपलोे क नहीं करा प। बापके सामते समस्यार आती है तो जससे पाहले के मे आपको सफे परम चीतम्य नका समावान कदेता है। यन्न जापकी स्वयं पर और परम वेतन्य पर पर्ण विसयस करना होगा और विचस्स ोना ोगा कि आप आत्मताकालारी वयक्ति है, कोई आपको सानि नही पहँचा सकता। परम पूज्य मलाजी थी निर्मला केी ाम 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-1.txt इस अंक में सम्पादकीय 1 ध्यान घारता किस प्रकार करें सहस्रार पूजा - 9.5.1999, कवैला 8. श्री फातिमा बी पूजा- 14.8.88, सेन्टजार्जण्वेस 18 सार्वजनिक कार्यक्रम, मुम्बई 1998 32 योगी महाजन सम्पादक : वी जे नालगिरकर प्रकाशक १६२, मुनीरका विहार नई दिल्ली-११००६७ 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-2.txt रगंड ११ चैतन्य लहरी १ 1999 मफ सम्पादकीय दट पावन भूमि पर गणपति पुले की सुगन्ध को चखा । दुबई के योगी गण महासागर के दूसरे छोर पर एक अन्य गणपति पुले की सृष्टि करने के गीत लिख रहे हैं । स्नेहमयी मां के स्वर्ग प्राप्त करने की इच्छा सभी धर्मों का अन्तिम लक्ष्य रहा है। सभी धर्म कहते हैं. "जैसा करोगे, वैसा भरोगे" (As you sow, so shall you reap)। श्री कृष्ण के कर्म फल के सिद्धान्त का यही आधार है। बाइबल में भी साथ बिताए गए आनन्दमय क्षण हमें स्वर्ग की इस विषय पर ऐसे बहुत से उदाहरण खोजे अनुभूति प्रदान करते हैं। उनके प्रेम में इतनी जा सकते हैं। बौद्ध तथा जैन धर्म का निर्वाण, मोक्ष का सिद्धान्त और जैन का सतोरी (5atori) प्रदान की है। श्री माताजी द्वारा दिए गए प्रेम भी इसी स्वर्गीय अवस्था का वर्णन है के उपहार को यदि हम दूसरे लोगों से बॉटे शक्ति है अपने प्रेम की शक्ति उन्होंने हमें भी 1 आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् नई तो क्या उन पर भी वैसा ही प्रभाव न होगा ? चेतना की स्थिति में हमारी परम पावनी श्री क्या यह प्रेम अन्य लोगों को गणपति पुले के माताजी के चरणकमलों में गणपति पुले में आनन्द से आत्म विभोर नहीं कर देगा क्या इस स्वर्गीय अवस्था का अनुभव हमने किया यह पूरी सामूहिकता को स्वर्ग की अनुभूति है। पैगम्बर मोहम्मद ने ठीक ही कहा था कि नहीं देगा? परमेश्वरी माँ ने जब हमें ये शक्ति "स्वर्ग तो माँ के चरणों में है।" चेतना के प्रदान की है तो क्यों न हम इसका उपयोग स्वर्गीय अनुभव की ये मोहर हमें इस स्वर्गीय करें क्यों हम अपना समय दूसरों की आलोचना अवस्था को बार बार खोजने को विवश करती आदि आनन्द विहीन, व्यर्थ के कार्यों में बर्बाद है। दूसरे शब्दों में अपनी परमेष्वरी माँ के चरण कमलों में निरन्तर ब्रह्माण्डीय सहज लिए उपयोग नहीं करते हैं जिसके लिए ये परिवार का मिलन बनाए रखने की शुद्ध इच्छा हमें दी गई है तो हम इस शक्ति को खो देंगे हममें उभरती है। 1 करें। यदि हम इस शक्ति को इस उद्देश्य के तथा परमेश्वरी प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति से अपना सम्बन्ध भी खो देंगे। सहजयोगी जब गणपति पुले स्वर्ग का प्रतीक बन गया है। कहीं एकत्र होते हैं तो उनमें परमेश्वरी प्रेम कबैला दूसरा गणपति पुले कहलाता है। श्री आदिशक्ति पूजा के अवसर पर अमेरिका के सहजयोगियों ने कन्ना-जोहारी, अपस्टेट न्यूयार्क की इस सर्वव्यापी शक्ति से जुड़ने की सामूहिक शक्ति होती है और वे स्वर्ग को पृथ्वी पर उतार लेते हैं। (Cana Johari, Up State, New York) 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-3.txt अंक ९ व चैतन्य तहरी 1999 रागंड ११ १० उमर खुय्याम जैसे कवियों ने स्वर्ग की तस्वीर से अपने सृष्टा को देखते हैं और उनकी (श्री को रोमांचक बनाकर पेश किया है. "स्वर्ग में माता जी की) सृजन लीला का आनन्द लेते परियां नृत्य कर रही होंगी।" अभी तक स्वर्ग है पृथ्वी पर स्वर्ग प्राप्त कर लेने के पश्चात् का वर्णन मानवीय कल्पना पर आधारित था। इससे अधिक हम क्या माँग सकते हैं। अव सहजयोग की कृपा से हम सत्य को देखने में हमारी ज्ञानेन्द्रियां स्वर्ग-बोध करने के लिए सक्षम हैं और अब हम जानते हैं कि स्वर्ग एक स्थिति है जिसका अनुभव सहस्रार पर किया चैतन्य लहरियों के साक्षी हैं । हमारे चक्षु इसके जा सकता है हमारी परमेश्वरी माँ ने हमें सौन्दर्य के प्रति जागरूक हैं. हमारे कर्ण इस सिखाया है कि किस प्रकार इस स्थिति में स्वर्गीय संगीत को सुनने के लिए खुल गए हैं। प्रवेश करें। उस स्थिति में जब हम स्थापित हो तो आइए अपनी ज़िह्वा से परमेश्वरी माँ का जाते हैं तो शाश्वत आनन्द से परिपूर्ण होकर महिमा गान करें और स्वर्ग की तरह से ही प्रकाशमय हो उठी हैं। हमारे हाथ स्वर्गीय जजा अपनी परमेश्वरी माँ के प्रेम की सुखद उष्णता पृथ्वी पर उनके साम्राज्य में आनन्द विभोर हो का आनन्द लेते हैं। पर्वतों, नदियों, समुद्रों, जाएं जंगलों और फूलों की तरह से हम साक्षी भाव जय श्री माता जी 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-4.txt खंड ११ अंक १ य १० चैतन्प लहरी 1999 ध्यान धारना किस प्रकार करें परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी (19.1.84) प्रातः काल उठें, स्नान करके बैठ जाएं। चाय 'मैंने क्षमा किया। यह कार्य करता है और यदि लेना चाहें तो ले लें, बातें न करें। प्रातः काल बिल्कुल बातें न करें, बैठ जाएं और आप ध्यान करें इस अवस्था से पहले ध्यान आप निर्विचार समाधि में चले जाते हैं। अब ध्यान करें। इस समय दैवी किरणें आती हैं, नहीं होता। जब विचार आ रहें हों या 'मूझे और उसके पश्चात् सूर्योदय होता है। पक्षी भी चाय पीनी है या मैं क्या करुं अब मुझे कौन इसी प्रकार जागते हैं और पुष्प भी। सभी इन सा कार्य करना है?' 'ये कौन है' और वह दिव्य किरणों से जागते हैं। आप भी यदि कौन है यह सब आएगा। संचेदनशील हैं तो आप महसूस करेंगे कि सुबह उठने से आप अपनी अतः सर्वप्रथम आप निर्विचार चेतना में चले छोटे लगेंगे। प्रातः काल जागना इतनी अच्छी जाए, तभी आध्यात्मिक उत्थान आरम्भ होता चीज़ है, और फिर स्वतः ही रात को आप से दस वर्ष आयु है। निर्विचारिता की अवस्था प्राप्त करने के जल्दी सो जाएंगे। यह जागने के विषय में है पश्चात्, इससे पहले नहीं। आपको यह जान सोने के विषय में बताने की मुझे कोई लेना चाहिए। तार्किकता के स्तर पर आप आवश्यकता नहीं क्योंकि सो तो आप जाएंगे सहजयोग में उन्नत नहीं हो सकते। अतः निर्विचार अवस्था में स्थापित होना पहली आवश्यकता है। अभी भी आपको महसूस होगा ही । प्रातः काल आप केवल ध्यान करें। ध्यान में कि किसी चक्र विशेष में रुकावट बनी हुई है। अपने विचार शांत करने का प्रयत्न करें ऑखें इसे भूल जाएं । भुला दीजिए इसे खोलकर मेरी फोटो को देखें और निश्चित अब आप समर्पण आरम्भ करें। कोई चक्र रूप से अपने विचारों को शांत कर लें । विचारों यदि पकड़ रहा है तो आपको कहना चाहिए- को शान्त करने के पश्चात् ध्यान में जाएं। विचारों को शान्त करने के लिए 'येशू प्रार्थना श्री माताजी मैं आपके प्रति समर्पित हूँ।" (Lord's Prayer) बहुत सहज चीज़ है क्योंकि अन्य विधियाँ अपनाने के स्थान पर आप विचारों की स्थिति आज्ञा स्थिति (Agnya केवल इतना कह दीजिए । परन्तु यह समर्पण State) होती है अतः प्रातः काल येशु प्रार्थना तर्कयुक्त (Rationalised) नहीं होना चाहिए। या श्री गणेश का मन्त्र लेना याद रखें। दोनों तर्कयुक्ति से अब भी यदि आप ये सोचते हैं एक ही बात है। आप ये भी कह सकते हैं कि, कि "मुझे ऐसा क्यों कहना चाहिए" तो कहने कळ 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-5.txt चेतन्य तहरी रगंड ११ 666 का कोई लाभ न होगा आपके हृदय में यदि ध्यान धारणा में आने वाली समस्याएं पवित्रता और पवित्र प्रेम है तो यही सर्वोत्तम ध्यान करते हुए यदि आपको विचार आ रहे हैं है। पावन प्रेम ही समर्पण है अपनी सभी चिन्ताएं अपनी माँ (श्री माताजी) पर छोड़ दें। सभी तो सर्वप्रथम मन्त्र लें और फिर अपने अन्दर दृष्टि डालें। अवश्य श्री गणेश का मन्त्र लें, कुछ उन पर छोड़ दें। परन्तु अहम् चालित (Ego-oriented) समाजों में समर्पण करना बहुत कठिन कार्य है इसके विषय में बात इससे बहुत से लोगों को सहायता मिलेगी। तब आप अपने अन्दर झांके और स्वयं देखें करते हुए भी मुझे घबराहट होती है। फिर भी कि सबसे बड़ी बाधा क्या है। सर्वप्रथम विचारों यदि आपको कोई विचार आ रहें हैं या का आना-विचारों को रोकने के लिए आपको निर्विचारा' का मन्त्र लेना होगाः आपका कोई चक्र पकड़ रहा है तो बस समर्पण कर दें। आप देखेंगे कि आपका चक्र ओऽम त्वमेव साक्षात् श्री निर्विचार साक्षात्, साफ हो गया है। प्रातः काल आप इधर-उधर न होते रहें। अपने हाथों को भी बहुत अधिक श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः। न हिलाएं। आप देखेंगे कि ध्यान से ही अब अहम् की बाधा को लें। निसन्देह अब आपके विचार शान्त हो गए हैं परन्तु आपके अपने हृदय को प्रेम से भरने का प्रयत्न करें। सिर पर दबाव अभी भी बना हुआ है। यदि आपके अधिकतर चक्र साफ हो गए है हृदय में इसका प्रयत्न करें और हृदय की अहम की बाधा बनी हुई है तो महत्त अहंकार गहराइयों में अपने को विराजमान करने की कोशिश करें। जब गुरू आपके हृदय में गुरु का मन्त्र लें : "ओऽम त्वमेव साक्षात् श्री महत्त अहंकार साक्षात्, विराजमान हो जाएं तो पूर्ण श्रद्धा और समर्पण से उन्हें प्रणाम करें। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यौ नमो करने के पश्चात् जो कुछ भी आप अपने नमः मस्तिष्क से करते हैं वह मात्र कल्पना नही है नमः" महत्त अर्थात् बड़ा. और अहंकार अर्थात् घमण्ड। क्योंकि आपका मस्तिष्क, आपकी कल्पना सभी कुछ ज्योतिर्मय हो चुका है। अतः स्वय को यदि अहम की बाधा बनी हुई है तो आपको इस प्रकार बना लें कि अपने अपनी बाई ओर उठानी होगी और दाई ओर के श्री चरणों में नममस्तक हो जाएें। अब को नीचे लाना होगा। बायों हाथ फोटोग्राफ इस मन्त्र को आप तीन बार कहें। अब भी अपनी माँ गुरु, ध्यान धारणा के लिए आवश्यक स्वभाव की की तरफ करके दाएं हाथ से अपनी बाई ओर को उठाएं और दाई और में नीचे गिराएं ताकि याचना करें। ध्यान धारणा तभी होती है जब आपकी एकाकारिता परमात्मा से हो। अहम् और प्रति अहम् में सन्तुलन आ जाए। 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-6.txt अंक ९ । रखंड ११ चैतन्प लडरी १० 1999 भावनाओं पर रखें। अच्छा! कुण्डलिनी को उठते हुए देखें (महसूस करें)। श्वास लेते हुए आपको लगेगा कि एक श्वास और दूसरे श्वास के बीच में रिक्त स्थान है। श्वास लें. इसे अन्दर ऐसा सात बार करें। अपने अन्दर देखने का प्रयत्न करें कि आपको कैसा लग रहा है। एक बार जब आप सन्तुलन प्राप्त करलें तो भावनाओं पर, मनस श्विति पर चत डालना रोकें। अव श्वास छोड़ें और कुछ क्षण तक सर्वोत्तम होगा। चित्त से अपनी भावनाओं, मनस शक्ति को देखें। अपनी माँ (श्री माताजी) के विषय में सोचने से आप अपनी भावनाओं की कि बास्तव में श्वास प्रक्रिया कम हो जाए । श्वास को निष्कासित करते रहें। फिर से श्वास लें। अब इस प्रकार श्वास लेना आरम्भ करे प्रकाशमय कर सकते हैं। ठीक है? भावनाओं परन्तु इसके लिए किसी प्रकार की जबरदस्ती नहीं होनी चाहिए। आपका चित्त आपके हृदय को प्रकाशरंजित कर लें। इससे सभी समस्यांओं का समाधान हो जाएगा- मन की सभी पर या भावनाओं पर होना चाहिए। श्वास को समस्याओं का। एक वार जब आप उन भावनाओं कुछ देर अन्दर रोकना अच्छा होगा। श्वास रोकें, छोड़े इसे थामें रहें। कुछ क्षण श्वास को से जुड़ जाएंगे और ध्यान में उन्हें देखना आरम्भ कर देंगे तो आप पाएंगे कि आपके अन्दर ये भावनाएं बढ़ने लगी हैं। यदि आप इन भावनाओं को अपनी माँ को समर्पित करने के लिए आपने श्वास लिया ही नहीं । अब का प्रयत्न करेंगे, (या जैसे कहते हैं, इन्हें अपनी माँ के चरण कमलों में डाल देंगे) तो ये आपके प्राण और मन के बीच 'लय' स्थापित भावनाएं विलीन होने लगेंगी, एक प्रकार से होती है। दोनों शक्तियाँ एक हो जाती हैं। देर बाहर ही रहने दें। आपको लगेगा कि कुछ ं आपकी लगेगा आप शान्त हो गए हैं। फैल जाएंगी। ये विस्तार, आप जानते हैं, आप इस प्रकार करते हैं कि आपको लगता है कि सहस्रार पर तीन बार मन्त्र कहना चाहिए। ये आपके वश में हैं भावनाओं को वश में कर "ओऽम त्वमेव साक्षात्, श्री कल्की साक्षात् श्री सहस्रार स्वामिनी मोक्ष प्रदायिनी माताजी. श्री निर्मला देव्यै नमो नमः।" लेने से आपकी भावनाएं विस्तृत, प्रकाशमय और सशक्त होती हैं। अब आपको अपना श्वास देखना होगा। श्वास आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होते ही कुछ लोगों को को कम करने का प्रयत्न करें, इसे कम करें, उस अगाध प्रेम की चेतना अनुभव होने लगती जैसे एक बार आपने श्वास लिया है तो कुछ है। परन्तु कुछ लोगों में अभी तक अहम् शेष क्षण रूकें, फिर श्वास लें कुछ देर श्वास को होता है जिसका समाप्त होना आवश्यक है। अन्दर रोकें, तब श्वास छोड़ें। इस प्रकार एक इसके लिए वो मेरे पास आते हैं। मैं देखती हूैँ मिनट में आपकी श्वासगति सामान्य हो जाएगी। कि बुलबुलों की तरह से वे हवा में होते हैं। ठीक है। ऐसा करने का प्रयास करें, चित्त को मानो पोषणकर्ता माँ ने इन्हें उड़ाया हो 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-7.txt चैनन्य लहरी 1999 अक ९ व १० ंड ११ समुद्र की सतह पर उड़ते हुए बुलबुलों की के सम्मुख समर्पित है? तरह से। बहुत से लोग प्रति-अहं के कारण भी परेशान होते हैं। वे हर समय अपनी व्यक्तिगत परेशानियों के बारे में ही रोते रहते हैं। परन्तु ऐसा कहना असंगत है सहजयोग के संदर्भ में शब्द 'समर्पण' का अर्थ केवल हमारे अहं, एक बार जब उत्थान होता है तो उनकी हमारी सीमाओं, हमारे उथलेपन का समर्पण एकाकारिता सागर की आत्मा से हो जाती है तब वे सागर की गहन, आनन्ददायी शक्ति का हो सकता हैं। इन्हें हम अपना मान चुके हैं। महान और शाश्वत उपलब्धि के बदले हमने निरर्थक का समर्पण किया है अज्ञान का ये बोझ छँट जाना चाहिए। अनुभव करते हैं जो हर क्षण उनका पोषण पृथ प्रदर्शन और उत्थान करती है। सागर की सुन्दर गहराइयों में पैंठ कर दिव्य अनुभवों के मैं नहीं सोचती कि मैं कुछ करती हूँ, क्योंकि मोती वे प्राप्त करते हैं और जब उन्हें ये वास्तव में मैं कुछ नहीं कर रही। कभी-कभी सुन्दर मोती प्राप्त हो जाते हैं तो कविताओं, नृत्यों, तो मुझे लगता है कि इस प्रशंसा पर मेरा कोई मुस्कानों, हँसी तथा आनन्द के रूप में वे ये अधिकार नहीं क्योंकि मैं तो वही हूँ जो मेरा मोती भेंट करने के लिए मेरे पास ले आते है। स्वभाव है। मैंने कुछ प्राप्त नहीं किया-अपने ये सब आपके अन्दर हैं परन्तु आपकी चेतना स्वभाव के साथ मैं विद्यमान हूँ क्योंकि इसके से दूर पड़े हुए हैं। यद्यपि आत्म साक्षात्कार से अतिरिक्त में कुछ नहीं कर सकती। जबकि आपकी चेतना ज्योतिर्मय हो गई है परन्तु अभी आप लोगों ने उपलब्धि पाई है। आप लोगों तक आनन्द से यह प्रकाशित नहीं हुई हैं शनैः शनैः यह आप में घटित होता है और, देखने के लिए अपना आनन्ददायी सत्यस्वरूप जैसा मैंने आपको बताया, जितना शीघ्र हो देखने के लिए आपने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त सके, आपमें यह घटित होना चाहिए। । को यह महान श्रेय जाता है कि स्वयं को किया है। वास्तव में मुझे आपकी प्रशंसा में समर्पण के लिए क्या है- यह शक्ति तो आपकी कविताएं लिखनी चाहिएं। अपने तरीकों से यह ओर स्वयं बह रही है और आपका पोषण कर रही है। दर्शाने का मैं भरसक प्रयत्न करती हॅू कि परमात्मा कितने प्रसन्न हैं। आप लोग इस य बात को हर जगह, हर समय, हर क्षण देखते कहते हैं कि कमल अपनी है। क्या हम कभी सुगन्ध के सम्मुख समर्पित है? प्रार्थना तो आज रात हम सबको अपने हृदय क्या हम कभी कहते हैं कि सूर्य अपने प्रकाश में करनी चाहिए कि: के सम्मुख समर्पित है? "मातृत्व का यह उदार स्वभाव हमारी चेतना में आए' क्या हम कभी कहते हैं कि चाँद अपनी शीतलता 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-8.txt खंड ११ चैतन्य लहरी अंक 1999 १० जैसा मैंने आपको बताया इसे ऋतम्भरा प्रज्ञा अतः आप प्रेम एवं उदारता के महान सागर से कहते हैं-अर्थात् इस पृथ्वी माँ के स्वभाव से जुड़े हुए हैं। जीवन के इस महान वृक्ष में सभी आपकी चेतना प्रकाशमय हो जाती है, उस कुछ समाहित हैं। बाइबल में इसी जीवन वृक्ष स्वभाव से जो इसे भिन्न ऋतुओं से भरपूर कर का वर्णन है. वे इसे अग्न वृक्ष कहते हैं। अब देता है- यही प्रज्ञा है। आपकी एकाकारिता इससे हो गई है, इसका आशीर्वाद आपको प्राप्त हो गया है, यह आपको प्रेम करता है। अत्यन्त प्रेम से यह आपका पथ मैंने कहा, सभी के साथ यही घटित होता है जो लोग अहम् के घोड़े पर न चढ़कर ै परन्तु मध्य में रहने का प्रयत्न करते हैं उनके साथ प्रदर्शन करता है। यह इतना कोमल है कि इसका पथ प्रदर्शन आपको महसूस तक नहीं होता-एक पत्ते की तरह से, जब वह पृथ्वी पर यह घटना अधिक घटित होती है उस तुच्छ क्षेत्र से कूदकर असीम विशाल क्षेत्र गिरता है। में आने के लिए यही सर्वोत्तम समय है । एक बार जब ऐसा हो जाएगा, तो आपकी आश्चरय यही आपकी वास्तविकता है। इस प्रकार होगा, ये सभी तुच्छ समस्याएं महानता के उस शक्ति से एकाकार होने का प्रयत्न करें। एकाकार हो जाएं जैसे अर्थ शब्द से, चाँदनी चाँद से और धूप सूर्य से होती है सांगर में लुप्त हो जाएंगी। इन समस्याओं में उलझे नहीं। इन्हें स्रोत (परम् चैतन्य) के हाथों में छोड़ दें ताकि आपकी इन सभी यह एकाकारिता, यह संगठन इस प्रकार छोटी-छोटी समस्याओं को यह पोषक-शक्ति आपकी पहचान बन जाए कि आप परमात्मा संभाल सके। आप महान विवेकशील, महान के प्रेम का प्रकाश बन जाएं: आपकी गहनता पोषक, महान धर्म और महान श्रेष्ठता के स्रोत और उपलब्धियों से लोग परमात्मा को समझें। यह हर प्रकार से सर्वाधिक संतोषप्रदायी एवं (वृक्ष) से जुड़े हुए हैं; यह समझना भी आपके लिए कठिन है कि यह वृक्ष कितना महान है। फलदायक कार्य है, सन्तोष, शक्ति एवं प्रगल्भता ( यशस्विता) प्रदायक। आप एक ऐसे वृक्ष से जुड़े हुए हैं जो आपको पूर्ण सुरक्षा प्रदान करता है, एक ऐसे महान इसके लिए आपको कोई त्याग करने की से जुड़े हुए हैं जो इस दिव्य नाटक को आवश्यकता नहीं - आप केवल अपनी आत्मा वृक्ष देखने के लिए आपको पूर्ण साक्षी भाव प्रदान के प्रकाश में स्वयं को संचालित करें। करता है और जो आप को समझ प्रदान करता है कि 'पूर्ण' आप ही का अंग प्रत्यंग है परमात्मा आपको धन्य करें। और आप पूर्ण (विराट) के अंग प्रत्यंग हैं 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-9.txt लंड ११ अंक ९ व १० 1999 चैतन्य लहरी सहस्रार पूजा ৩.5.1999, कबैला परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन हम यहाँ सहस्रार पूजा करने के लिए एकत्र मस्तिष्क जब तक खुल नहीं जाता और हुए हैं। संस्कृत के सहस्रार शब्द का अर्थ एक कुण्डलिनी का एकाकार परम चैतन्य से नहीं हज़ार होता है। मस्तिष्क कमल में भी एक हो जाता तब तक आप अपनी वास्तविकता को हजार पंखुड़ियाँ होती हैं जो प्रकाश-रंजित हो नहीं जान सकते। इससे पूर्व अच्छे बुरे के जाती हैं। चिकित्सक लोग इस मामले को विषय में आप पूर्ण अन्धकार में होते हैं। मस्तिष्क लेकर भ्रमित हैं और परस्पर वाद-विवाद में से सोचकर आप सभी कार्य करते हैं और उन्हें फॅसे हुए हैं, परन्तु हैं। जाते वे इस तथ्य को भूल े ठीक मानते हैं। परन्तु वास्तव में जो अच्छा है उसका आपको ज्ञान ही नहीं है क्योंकि आप वास्तविकता को नहीं जानते। ये पंखुड़ियाँ हमें ज्योतित करने के लिए तैयार होती हैं। ये वास्तव में नाड़ियाँ हैं- एक हजार लकी नाड़ियाँ - जो मस्तिष्क को प्रकाशमय करने हमारे अन्दर जो चेतना है उसे हमें समझना है। जीवित होने की चेतना, बहुत सी अन्य बचकी के लिए हैं; जब कुण्डलिनी उठती है तो वह चीज़ों की चेतना और बहुत सारी चीज़ों के इन एक हजार नाड़ियों को प्रकाशमय करती है और ये दीप शिखाओं का रूप धारण कर तथाकीथित ज्ञान की चैतना। यह तन्तुपट लेती हैं, पंखुड़ी की तरह। यही कारण है कि (Diaphragm) आपकी सूचना के लिए इस सारी चेतना को ज़िगर के समीप एकत्रित कर हम इसे सहस्रार कहते हैं सहस्रार चक्र । देती है। परन्तु जब ये चेतना ऊपर की ओर मानव में यह बहुत महत्वपूर्ण चक्र है क्योंकि उठने लगती है तब आप जागरूक हो जाते केवल इसी के द्वारा हम सोचते हैं और अवांछित चीजों को रोकते हैं ।यही केन्द्र प्रतिक्रिया करता है, ऐसी प्रतिक्रिया कि बिना सोचे समझे आप हैं। विकास प्रक्रिया में आप जागरूक हो जाते है, चीज़ों के प्रति जागरूक बिना मस्तिष्क का उपयोग किए आप जागरूक हो जाते हैं; स्वतः ही कुछ चीज़ों के लिए मना कर देते हैं। छोटी-छोटी चीज़ो के लिए भी, जैसे आप परन्तु कैसे? विचारों द्वारा नहीं, सूझ बूझ से कह सकते हैं कि मुझे ये कालीन पसन्द नहीं या देखकर भी नहीं; परन्तु आप इसलिए है, मुझे ये घर अच्छा नहीं लगता, मुझे वह जागरूक हो जाते हैं क्योंकि अब आपके मस्तिष्क अच्छा नहीं लगता। परन्तु आप हैं कौन? पहले ने अत्यन्त संवेदनशील होकर कार्य आरम्भ कर दिया है। अतः किसी प्रकार के भय के इसका पता लगाएं। 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-10.txt गनंड ११ चैतन्य लहरी अंक ९ व १० 1999 प्रति या अच्छाई आदि के प्रति आप हत्या का प्रयत्न भी कर सकते हैं, आप कुछ भी कर सकते हैं । तो अब आपका बोध साक्धान हो जाते हैं। (Awareness) उन दिशाओं की ओर बढ़ने यह प्रक्रिया यहीं समाप्त नहीं हो जाती, आगे लगता है जिधर अंधेरा है, जिधर प्रकाश नहीं तक चलती है। चेतना का विकास, जो कि है क्योंकि प्रकाश में आप ऐसे कार्य नहीं कर जागरूक होता है, इससे भी आगे चलता है । रोशनी में आप सभी को देखते हैं कि सकते जहाँ आप किसी व्यक्ति को पसन्द करने लगते सब लोग बैठे हुए हैं, आप जानते हैं कि आप कितनी दूरी पर हैं और कहाँ हैं और किसी को नापसन्द परन्तु अब भी बैठे हुए हैं। कुछ निश्चित नहीं होता हो सकता है कोई व्यक्ति आपको उसकी विशेष मुखाकृति की वजह से पसन्द हो, उसकी ऑँखो की वजह में हैं तो इसका ज्ञान आपको नहीं होता और से पसन्द हो या उसने आपके प्रतिे बहुत आप इस प्रकार आचरण किये चले जाते हैं आपने यदि बाहर जाना हो तो आप जानते हैं कि किधर से जाना है। परन्तु यदि आप अंधेरे अच्छा व्यवहार किया हो। वही विन्ब (Image) जिसे स्पष्ट नहीं किया जा सकता, केवल यही आप दूसरे लोगों में भी देखने लगते हैं। बिम्ब कहा जा सकता है कि आप मानव है। पशु स्थानान्तरण की इस प्रक्रिया से आप किसी ऐसा नहीं करते उनकी सीमाएं हैं। पशुओं को से प्रेम करते हैं या घृणा। तब आप कहते हैं यदि कुछ गलत लगे, उनके लिए कुछ मुझे इससे घृणा है, मुझे उससे घृणा है, परन्तु हानिकारक हो तो वे उस पर या तो आक्रमण इसका कोई महत्वपूर्ण अर्थ नहीं है हो सकता है आप किसी व्यक्ति विशेष से इसलिए घृणा कर देंगे या दौड़ जाएंगे। परन्तु पशु में घृणा उनमें चोट पहुँचने के भाव नहीं आ जाता। करते हों क्योंकि वह किसी अन्य व्यक्त जैसा कारण भय की भावना आ सकती है। लगता है। इससे भी आगे आप कह सकते हैं कि फलां व्यक्ति ने मुझे ये हानि पहुँचाई तब परन्तु मनुष्यों में ऐसा नहीं है। मानव बिना आप को लगता है कि आपको उस व्यक्ति से किसी विशेष कारण के घृणा कर सकता है घृणा करनी चाहिए और आप उससे घृणा क्योंकि इसमें मानव का अहम् कार्यरत होता करने लगते हैं। है। अहंकारी व्यक्ति को लगता है कि इच्छानुसार कुछ भी करने का उसे अधिकार है। किसी की भी वह हत्या कर सकता है, किसी को भी इस घूणा के कारण आपमें नए अवगुण विकासत होते हैं। किस प्रकार इस व्यक्ति की हानि हानि पहुँचा सकता है, जो चाहे वह कर सकता पहुँचाई जाए? तब आप उसे नष्ट करने और उसके जीवन को दयनीय बनाने के विषय में है। परन्तु जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता वह बिल्कुल भिन्न है- वह डरपोक है. उसे किसी का भय है। सोचने लगते हैं। ऐसी स्थिति में उससे मिलकर आप उस पर चिल्ला सकते हैं या उसकी 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-11.txt अंक ९ चैतन्य लहरी 10 बगड ११ 1999 १० अवचेतना आगे चलती है। यह चेतना अत्यन्त है आपको भली-भाँति ज्ञान होना चाहिए कि है क्योंकि आपको यदि किसी का भय है उचित क्या है और अनुचित क्या है इसके सूक्ष्म तो आप उसके घर नहीं जाना चाहेंगे, गली में लिए, जैसा मैंने आपको बताया, कुण्डलिनी उससे कन्नी काटेंगे आदि आदि। तो अन्य की महान शक्ति आपके अन्दर विद्यमान है । मनुष्यों के विषय में भी आपके मस्तिष्क में इस यही सभी चक्रों में से गुजरकर सर्वप्रथम इन्हें प्रकाशमय करती है। तो आपकी चेतना ज्योतित प्रकार का सारा ज्ञान एकत्र हो जाता है। तब ये चीज सामूहिक स्तर पर कार्य करने लगती है और जब यह सहस्रार को भेदती है तो है क्योंकि आप सोचते हैं कि यह समूह बहुत आपका सम्बन्ध सर्वव्यापक शक्ति से कराती है, वह समूह खराब है, वे अच्छे है, और है। यही बोध है- जो कि प्रेम है, सत्य है। बुरा इस प्रकार यह कार्य होता रहता है। अपने तत्पश्चात् आप तुरन्त जान जाते हैं. कुछ मस्तिष्क में आप सोचते हैं कि किसी का एक लोग नहीं भी जानते, कि अभी तक जो कुछ परन्तु इसकी अपेक्षा दूसरा समूह कहीं सोचकर हम स्वयं को दूसरों से अलग कर ह समूह है अच्छा है । वह समूह अच्छा है, और तब सामूहिक रहे थे, उन्हें गलत समझ रहे थे, उन्हें बुरा रूप से आप अपने पूर्ण स्वभाव और ज्ञान (चेतना) को कार्यान्वित करने लगते हैं। जैसे एक बार यदि लोग ये निर्णय कर लें कि काले जाते हैं और तब आप महसूस करते हैं कि लोगों को समाप्त करना है तो इस कार्य के आपकी चेतना भी बहुत सी परिस्थितियों से लिए सभी गोरे लोग एकत्र हो सकते हैं। या जिस प्रकार हिटलर के समय में हुआ उसने जन्म स्थान, माता-पिता द्वारा आपको दी गई निर्णय किया कि जर्मन लोगों के अतिरिक्त शिक्षा, आपके अनुभव आदि । तब आपको समझ समझ रहे थे, यह ठीक न था। ये विचार अब समाप्त हो जाते हैं, यह पूर्णतः समाप्त हो प्रभावित है। उदाहरण के रूप में आपका सभी लोग बेकार हैं। अपने सोच-चिचारों के प्रति उसने लोगों को कायल किया और इस वास्तविकता नहीं है। जो भी भावनाएं अन्य प्रकार, मैं नहीं जानती कैसे, यह सामूहिक लोगों या अन्य राष्ट्रों के विषय में आपमें हैं वे आती है कि सब गलत है क्योंकि यह चेतना मनुष्य के मस्तिष्क में प्रवेश कर जाती है। लोग ऐसे विचारों को कभी चुनौती नहीं देते. कभी नहीं पूछते कि यह गलत है या सब ठीक नहीं हैं। क्योंकि अब आपका सहस्रार जागृत हो गया है, यह सर्वव्यापक शक्ति से जुड़ गया है। तो वह चेतना आपमें बहने लगती है। मैं कहना चाहूँगी, यह ज्योतित चेतना आपके रोम-रोम में, आपके मस्तिष्क में, नस-नाड़ियों में बहने लगती है। आप ठीक। और यह बढ़ते ही चले जाते हैं। फिर पूरा देश इन्हें मानने लगता है। कोई न समझता है न जानता है कि ये भावनाएं उचित हैं या अनुचित। इसे महसूस कर सकते हैं। जब भी आप तो वास्तविकता को जानना अत्यन्त महत्वपूर्ण किसी चीज़ के विषय में जानना चाहते हैं के 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-12.txt इ ११ अंक व१० चैतन्य तडरी 1999 11 ये ठीक है या गलत. पूर्णतः ठीक या भीड़़ की तरह से ही हैं क्योंकि लोग ऐसा कह गलत-तुलनात्मक ढंग से नहीं पूर्ण रूप से, रहे हैं इसलिए हमें भी ऐसा करना चाहिए। तो आप उस व्यक्ति या चीज़ की तरफ अपने लोग कह रहे हैं इसलिए हमें करना चाहिए। दोनों हाथ कर दें। तुरन्त आप चैतन्य लहरियों आप स्वयं ये नहीं देख सकते कि ऐसा करना उचित है या अनुचित, आपके लिए अच्छा है या बुरा, इससे आपको कोई लाभ होगा या नहीं। पूरे विश्व में इस प्रकार की चीज़ों की द्वारा उसके विषय में जान जाते हैं । ये चैतन्य लहरियाँ क्या हैं? यह परम चितन्य, जिसे हम ब्रह्म-चैतन्य भी कहते हैं, आपकी अंगुलियों के सिरों से बहने लगता है। अब आपको पता लगने लगता है कि किसका कौन भरमार है। सभी प्रकार की समस्याओं का यही कारण है कि लोग सत्य को, वास्तविकता को नहीं पहचानते। सा चक्र पकड़ रहा है और कौन ठीक है कौन गलत आपकी विवेक-शीलता में गहन सुधार एक बार जब आपको वास्तविकता का ज्ञान हो होता है। आपका मस्तिष्क जो आपको भ्रम जाएगा तो अधिकतर समस्याएं समाप्त हो जाएंगी और गलत प्रकार के जीवन में फेंसा रहा था क्योंकि ये मस्तिष्क ही अधिकतर समस्याओं अब तुरन्त आपको ठीक रास्तों पर लाता है। मान लो मैं आँखें बंन्द करके चल रही हूँ और सामने कोई बड़ा गड्ढा है, मैं इसे नहीं देख की सृष्टि करता है। सर्वप्रथम यह सभी प्रकार के अत्याचार, हिंसा आदि करता है फिर यह अपने किए को तर्कसंगत ठहराता है और फिर सकती। मैं बस चलती जा रही हूँ। अचानक इससे भी बुरा करता है। इन्हीं क्भों को पाप यदि ऑँखें खोलकर मैं गड्ढे को देख लूं तो (sin) कहा जाता था। एकदम से जान जाऊँगी कि इस प्रकार चलना गलत है। इस मार्ग को मैं तुरन्त बदल देगी। परन्तु अब सहजयोग में यह सब समाप्त हो इसी प्रकार आपके साथ घटित होता है। गया है। जिन चीजों से आपका मस्तिष्क दूषित था अब इसका शुद्धीकरण हो गया है. इसे जब आपका सहस्रार ज्योतिर्मय हो जाता है. ज्ञान प्राप्त हो गया हैं और इसके माध्यम से तो अभी तक आपने जो भी ज्ञान इसमें एकत्र आप समझ सकते हैं कि गलत क्या है और किया हुआ था, जो भी कुछ अभी तक आप ठीक समझते थे, जो भी आपके स्वप्न थे, जो भी आपकी अभिलाषाएं थीं,ये सब पिघल जाते ठीक क्या है। हमेशा ठीक कार्य करें। इस मामले में आपको स्वयं निर्णय लेना होगा अब आपको केवल ठीक कार्य करना होगा, गलत हैं और आप सत्य को अपना लेते हैं तथा हर नहीं। यह बात जब आपके मस्तिष्क में बैठ चीज़ की वास्तविकता को देखने लगते हैं । जाएगी तो आपका दृढ़ निश्चय आरम्भ हो जब तक इस वास्तविकता को आप देखने जाएगा, जिसे हम श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण नहीं लग जाते तब तक आप अन्य लोगों की कहते हैं। इससे आप अपने सभी असत्य विचार: 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-13.txt रसंड ११ व १० चैतन्य तहरी 1999 12 व्यर्थ का अहंकार तथा अन्य दोषों को त्याग और इस ज्ञान के लिए अच्छे बुरे को पहचानने देते हैं, जिन्हें आप अभी तक किए चले जा रहे के लिए आपके पास परम चैतन्य रूपी वाहन | एक दम आप भिन्न व्यक्ति बन जाते है, है; यह प्रवृत्ति बढ़ने लगती है और जैसा आप देख रहे हैं आज बहुत से लोगों के सहस्रार एक अत्यन्त सुन्दर व्यक्तित्व। एक अन्य परिवर्तन जो अब आपमें घटित होता खुल चुके है। है, जो अब तक कभी आपमें नहीं हुआ, वह ये सहस्त्रार का खुलना विकास प्रक्रिया का अत्यन्त है कि अब आपको ये लगता कि जब तक मैं महत्वपूर्ण भाग था। विकास की अन्य सभी यही अवस्था अन्य लोगों को नहीं दे दँगा तब प्रक्रियाएं मानव को कहाँ ले गई? लोग युद्धों तक उचित न होगा, उन लोगों से बातचीत में फँस गए, सभी प्रकार की मूर्खताएं की, करना मेरे लिए ठीक न होगा। तब आप अपने जिनके कारण हमने बहुत से लोगों और बहुत भाइयोँ, बहनों, अन्य लोगों से इस ज्ञान के से देशों को नष्ट कर दिया अब आपकी विषय में बताने लगते हैं पूरे राष्ट्र से आप एकाकारिता इस सर्वव्यापक शक्ति से हो गई सहजयोग के विषय में बात कर सकते हैं कि है। यह अन्यन्त शुद्ध है, अत्यन्त निर्मल है मुझे इससे कितना लाभ हुआ है मुझे इतना यह आपको पूर्ण विवेक और सूझ-बूझ प्रदान कुछ प्राप्त हो गया है, आप भी इस लाभ की करती है कि अब आप किस प्रकार चले, क्यों नहीं पा लेते। किस प्रकार जीवन बिताएं और किस प्रकार किम परन्तु अन्य लोगों से बातें करने से, बहस तथा कार्यों को करें। लोग कहते हैं कि यही आत्म विचार-विमर्श से या उन्हें उपदेश देने से वे साक्षात्कार है। इसे कभी स्वीकार न करेंगे क्योंकि उनका मस्तिष्क तो, जैसा मैंने बताया, वैसा ही है, अभी तक अज्ञानता से भरा हुआ। तो हमे आपका मस्तिष्क सम्पन्न हो जाता है, फिर भी मैं कहूँगी कि आत्मसाक्षात्कार इससे परन्तु आगे है। यद्यपि ज्ञान से, सच्चे ज्ञान से बहुत उनकी कुण्डलिनी जागृत करनी होगी एक बार जब उनकी कुण्डलिनी जागृत हो जाएगी, होती है; इनमें महत्वपूर्णत्तम है आपका पूर्णतः उनके मस्तिष्क खुल जाएंगे, तब वे आप चेतन होना। एक बार फिर मैं चेतन शब्द का आपको बहुत सी अन्य चीजों की आवश्यकता ही की तरह ठीक मार्ग पर आ जाएंगे। उन्हें इस बात की चिन्ता न करनी पड़ेगी कि अच्छा क्या योजना में अपने स्थान के प्रति चेतन होना, उपयोंग कर रही हैूँ। विश्व परिवर्तन की महान है, बुरा क्या है, स्वयं वे इस बात को जान अपने स्तर के प्रति चेतन होना आपको जानना जाएंगे। ऐसा करना अत्यन्त महत्वपूर्ण है । होगा आपकी स्थिति क्या है, इस बृह्याण्ड की कायापलट करने के कार्य में आपका क्या विश्व को सुधारने के लिए आवश्यक हैं कि आप लोगों को उचित-अनुचित का ज्ञान हो कर्तव्य है, आपकी क्या स्थिति है आप कहाँ 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-14.txt संड ११ अंक ९ व १० 1३ चैतन्य लक्षरी 1999 खड़े हैं, आपके करने के लिए क्या कार्य है। इसलिए कि यदि आप इस विक्षिप्त संसार को विवेकशील बनाना चाहते हैं तो सभी इस कार्य के लिए कुछ करना अब आपकी विवशता हो गई है। यह भयानक नहीं है और लोगों को आत्मसाक्षात्कार देना होगा। न ही कष्टकर। यह अत्यन्त शान्ति एवं आनन्द ये कार्य कितना महान है इसकी कल्पना करें । प्रदायी है और जब यह आपमें प्रबल होती है इसको करने के लिए कितने लोगों की तो सन्देश देती है कि यह ज्ञान मुझे दूसरों आवश्यकता है? परन्तु यह तभी हो सकता है तक भी पहुँचाना है ताकि वो भी स्वयं को जब आपकी इच्छाशक्ति दृढ़ होगी और आप पहचान सके। अतः अन्य लोगों को जानने के अपने अन्दर इस कार्य को करने की विवशता लिए सर्वप्रथम आपको अपने चक्रों का ज्ञान महसूस करेंगे। परन्तु प्रायः हम लोग विवश हो प्राप्त करना होगा मैं जानती हैँं कि बहुत जाते हैं क्योंकि हमने अपने घर चलाने होते हैं धन कमाना होता है तथा और बहुत से सांसारिक लेते हैं परन्तु अपने चक्रों का ज्ञान उन्हें नहीं कार्य करने होते हैं। ये कार्य आप अवश्य करें होता। उन्हें अपने चक्रों को देखना होगा कि परन्तु आपके जीवन का लक्ष्य लोगों को उनके चक्र बाधित क्यों हैं। चक्रों की समस्याओं परिवर्तित करना और विश्व शान्ति के लिए के विषय में ज्ञान हो जाने पर भी लोग इस परिवर्तन को कार्यान्वित करना है मैं नहीं उनकी ओर ध्यान नहीं देते। उनके लिए इन जानती कि यह भविष्यवाणी की गई कि नहीं समस्याओं का दूर होना बहुत महत्वपूर्ण नहीं। कि पूर्ण परिवर्तन घटित होगा परन्तु इस ठीक है, मुझमें ये समस्याएं हैं, कोई बात परिवर्तन के विषय में बताया तो गया है। नहीं। जब तक मैं सहजयोग का कार्य कर इसके विषय में मैं नहीं जानती और जानने का रहा हूँ क्या फर्क पड़ता है। यह केवल दूसरों कष्ट भी नहीं करना चाहती कि कितने लोग के लिए ही नहीं है, सर्वप्रथम आपके लिए है। परिवर्तित हो रहें हैं परन्तु इस परिवर्तन के लोग एकदम से आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर 1 बाद आपको जमना होगा, स्थिर होना होगा। अपने चक्रों को ठीक करवाना आपके लिए कीर बहुत आवश्यक है। यह कार्य आपके लिए सर्वप्रथम आपको देखना चाहिए कि क्या आप महत्वपूर्णतम है. तभी आपको आत्मज्ञान होगा शान्त है? क्या आपके हृदय में शान्ति है? जिससे आप जान पाएंगे कि कमी क्या है. आपके हृदय में यदि शान्ति नहीं है तो आप कहाँ है, मैं क्या गलती कर रहा हूँ तथा मुझे सहजयोगी नहीं हैं। यदि आप उत्तेजित हो क्या करना चाहिए। जब आपके चक्र ठीक हो जाते हैं और लोगों पर चिल्लाने लगते हैं तो जाएंगे तो आपकी चेतना वास्तव में सारे कार्य इसका अर्थ ये है कि आप सहजयोगी नहीं के प्रति पूर्णतः प्रकाशवान हो जाएगी। यह है। आपका स्वभाव अत्यन्त शान्त होना अत्यन्त विस्मयकारी उपलब्धि है। विस्मयकारी आवश्यक है---- अत्यन्त महत्वपूर्ण। 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-15.txt चैतन्य लहरी राजड ११ व १० 1999 14 अक इस शान्ति को पाकर किस प्रकार की शुद्ध होगी अन्तर्प्रकाश प्राप्त कर लेने के पश्चात् करुणा आप में आनी चाहिए? जो भी कुछ आप अन्य लोगों के विषय में इस प्रकार सोचेंगे आप कर रहे हैं यह केवल आपके हित के मानो वे आपके अपने हों, आपको उनकी चिन्ता लिए ही नहीं है। इस शक्ति से विवश होकर होगी अब आप केवल अपने विषय में नहीं दूसरों के हित के लिए, उनके परिवर्तन के सोचेंगे। अन्तर्प्रकाश प्राप्त हो जाने पर मस्तिष्क लिए आप यह कार्य कर रहे हैं। अन्य लोगों में किसी प्रकार के हिंसात्मक विचारों का प्रश्न का यही सबसे बड़ा हित आप कर सकते हैं ही नहीं होता परन्तु यहाँ तो धर्म के नाम पर, कि उनके मस्तिष्क ठीक हो जाएं। उन्हें रोगों हर चीज के नाम पर भयंकर हिंसा है! सभी तथा समस्याओं से मुक्ति मिल जाए। यह सब लोग यदि सहजयोगी बन जाएं तो इस हिंसा हो जाता है परन्तु इसके साथ-साथ संबसे बड़ी चीज जो घटित होती है वह है उन्हें अन्य का सुगमता से समाधान हो सकता है। सोचकर देखें कि यदि सभी लोग सहजयोगी बन जाते लोगों को परिवर्तित करने की शक्ति का प्राप्त हैं तो वे परस्पर किस प्रकार झगड़ सकते हैं हो जाना। और कैसे, ये सब धर्म तो यहाँ हैं परन्तु इन सबसे ऊपर सहजयोगी का धर्म है जिसमें आप दूसरों को परिवर्तित करने की शक्ति जब एक हो जाते हैं और तब धर्म के नाम पर सभी आपको प्राप्त हो जाए तो इसे बर्बाद नहीं करना चाहिए। यह शक्ति आपको केवल अपने झगड़े समाप्त हो जाते हैं। लिए उपयोग नहीं करनी चाहिए। इसे यदि मानव के रूप में हमारी केवल यही समस्याएं आप अपने तक सीमित रखते है तो इसका ही नहीं है कुछ अन्य गम्भीर समस्याएं भी है। अर्थ ये है कि उत्थान अभी अधूरा है। उसके हमारी कुछ उत्कण्ठाएं हैं। हम अत्यन्त लालची विषय में अवश्य अन्य लोगों से बात करें ,ै। हालात के साथ हम समझौता नहीं कर इसके विषय में बताऐ और इसे कार्यान्वित सकते । पूरी तरह से आराम- पूर्वक रहना करें। जहाँ भी सम्भव हो इसे काय्यान्वित चाहते हैं। परन्तु साक्षात्कार स्थापित होने के करें विश्वस्तर पर हम इसी-प्रकार ऐसे लोगों को फैला सकते हैं जो पूर्ण परिवर्तन प्राप्त कर पश्चात् आप कहीं भी सो सकते हैं, कहीं भी खा सकते हैं और न खाएं तो भी चल सकता सकें। । आप ऐसे व्यक्ति बन जाते हैं जो इन सभी भारत में या अन्यत्र, हमारी सभी समस्याएं आवश्यकताओं और मांगों से ऊपर उठ जाता मानव स्वभाव के कारण हैं। क्योंकि लोग अभी है तब आपको कोई चिन्ता नहीं रह जाती. तक साक्षात्कारी नहीं हैं जान लें कि यदि आप बिल्कुल चिन्ता नहीं करते । चिन्ता आप आत्मसाक्षात्कारी (अन्तर्प्रकाशित) हैं तो किसलिए? मान लो मैं कहीं खो जाती हूँ, मेरी आपको लड़ाई-झगड़े जैसी कोई समस्या न कार गलत दिशा में चल पड़ती है ठीक है, গ 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-16.txt २ अंक म १० 15 चैतन्य लहरी 1999 इন ११ मुझे उधर ही जाना होगा, इसीलिए मैं इस आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति हैं, कोई आपको हानि प्रकार जा रही हूँ । इसके विषय में परेशान नहीं पहुँचा सकता। हो सकता है कुछ समय के लिए कोई आपको परेशान करने का प्रयत्न करे और आपको कुछ कष्ट सहना भी पड़े होने की क्या बात है? जीवन में छोटी-बड़ी बहुत सी घटनाएं होती हैं जिनके लिए हम परेशान हो उठते हैं परन्तु परन्तु आप उस कष्ट से प्रभावित नहीं होते. उसके चंगल से निकल जाते हैं। ऐसी सुरक्षा, अब सहस्रार की कृपा से, आप हैरान होंगे, परम-चैतन्य की सहायता मिलने लगती है और यह चमत्कारिक सहायता है जो पूर ब्रह्माण्ड करते हैं उनसे आपकी रक्षा की जाती है। यह ऐसा पथ प्रदर्शन आपको उपलब्ध है। सभी 1 प्रकार के आक्रमणों तथा जो गलतियाँ आप में, व्यक्ति विशेष पर, समुदायों पर और राष्ट्रं पर कार्य करती है क्योंकि एक दिव्य नाटक बहुत बड़ा कम्पयूटर ज्ञान है वह ( परमचैतन्य) जानता है कि आप क्या कर रहे हैं, आपको क्या नहीं करना चाहिए, आप कहाँ जा रहे हैं, आपको क्या करना चाहिए और आपको कौन से रास्ते नहीं चलना चाहिए। यह सभी कुछ चल रहा है। यह दिव्य नाटक महान सुन्दर कार्य करता है जिनके द्वारा लोग स्वयं को सुधारने लगते हैं। अतः कभी व्याकुल न हों, कभी परेशान न हो, क्योंकि अब आपमें दिव्य जानता है. आपके विषय में सभी कुछ जानता शक्ति आ गई है जो सब कुछ ठीक कर देगी। है। तो इसके विषय में कब आपको चेतन होना यह किसी को भी सुधार सकती है। हाल ही में है? मैं ये कहुँगी कि अब वह समय है जब एक लड़के का मामला हमारे सामने आया था, आपको इस बात के प्रति चेतन हो जाना ट्रक दुर्घटना में जिसके फेफड़े क्षतिग्रस्त हो गए थे। फेफड़े पर यदि गहन चोट आ जाए लोगों से भिन्न हैं और अत्यन्त अद्वितीय हैं। चाहिए कि आप आत्मसाक्षात्कारी हैं, अन्य तो ऐसा व्यक्ति कभी सामान्य नहीं होता। परन्तु वह लड़का सामान्य हो गया और सामान्य आप आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति हैं, सर्वसाधारण व्यक्ति नहीं हैं और परम चैतन्य द्वारा सुरक्षित रूप से श्वास लेने लगा। ये सारा कार्य परम हैं। कोई भी आपको परिवर्तित नहीं कर चैतन्य ने किया है। आपको कुछ नहीं करना सकता, कष्ट नहीं दे सकता, आपको पराजित पड़ता। आपको कुछ नहीं करना पड़ता। आपके सामने समस्याएं आती हैं, तो इससे पहले के विषय में जागरूक नहीं हैं इसीलिए आप कि ये आपको छू सकें परम चैतन्य इनका थोड़े से चिन्तित हो उठते हैं लोग मुझे समाधान कर देता है। परन्तु आपको स्वयं नहीं कर सकता। क्योंकि आप परम चैतन्य लिखते हैं, श्री माताजी मेरी बेटी को यह पर और परम चैतन्य पर पूर्ण विश्वास करना समस्या है आदि-आदि। होगा और विश्वस्त होना होगा कि आप 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-17.txt रानंड २१ चैतन्य लहरी अंक । 16 1999 यदि आप समस्याओं को परम-चैतन्य पर अनुभव है कि यदि आप परम-चैतन्य हैं, यदि छोड़ना जानते हैं, यदि आप समझते हैं कि आप यह जानते हैं कि आप परम-चैतन्य हैं किस प्रकार आपकी एकाकारिता परम चैतन्य तो यह आपकी गरिमा, आपके पद को बनाए से है तो परम चैतन्य सभी कुछ ठीक कर सकता है। आप परम चैतन्य के अंग-प्रत्यंग और आपकी देखभाल करता है। जो भी कुछ हैं। वही परम-चैतन्य आपकी देख-रेख कर रखता है आपके सभी वचन पूरे करता है आप कहते हैं, जिस चीज़ की भी आप इच्छा रहा है। आपको कोई विशेष प्रयत्न नहीं करते हैं वह पूर्ण हो जाती करना। विशेष प्रयत्न करने की कोई आपकी इच्छाएं भी परिवर्तित हो जाती है। व्यर्थ की चीजों की इच्छाएं समाप्त हो जाती जीवन जैसा है वैसे ही इसे स्वीकार करें। हैं। आपकी इच्छा अब श्रेष्ठ बन जाती है आप आवश्यकता नहीं। का जिस प्रकार भी आपका जीवन है, इसे स्वीकार लोगों का परिवर्तन करना चाहते हैं, सहजयोग करें। प्रतिकार न करें, गुस्से न हों, परेशान कार्य करने की इच्छा करते हैं । जब आप ये न हो। जीवन को स्वीकार कर लें और जो इच्छाएं करते हैं, इन्हें पसन्द करते हैं और जीवन अभी तक आपको क्षुब्ध करता था इनके विषय में सोचते हैं तो ये पूर्ण हो जाती उसी में आपको आनन्द आने लगेगा उसके हैं। यदि किसी चीज़़ को आप मात्र देख लें आनन्ददायी भाग को आप देखेंगे और यह तो, आपको हैरानी होती है, परम चैतन्य तुरन्त बहुत सुन्दर होगा। जब आप देखेंगे कि किस इस कार्य को सम्भाल लेता है. आपको किसी प्रकार आप अपनी समस्यांओं का समाधान भी प्रकार की समस्या नहीं रह जाती, बिल्कुल करते हैं, किस प्रकार शत्रुओं पर काबू पाते हैं कोई समस्या नहीं रह जाती, क्योंकि अभी तक तो आपको महसूस होगा कि कितना नया और जीवन की जिन कठिनाइओं और बाधाओं के प्रति हम प्रतिक्रिया किया करते थे अब एक न] सुन्दर जीवन आपको प्राप्त हो गया है ! खेल बन जाती है। मात्र खेल। आप आश्चर्य अब आप सभी सहजयोगी अत्यन्त महान स्थिति चकित होते हैं कि आपने एक समस्या की ओर . देखा तो बह समाप्त हो गई, दूसरी समस्या तो आप हैरान होंगे, कि आप इस परम-चैतन्य की ओर देखा तो वह समाप्त हो गई इसी में हैं। इस स्थिति में यदि आप विनम्र हो जाएं से जुड़ गए हैं। केवल इतना ही नहीं आप प्रकार से यह प्रकाश अंधेरे में प्रवेश करके परम चैतन्य बन गएं हैं। इस परम चैतन्य से आप कुछ भी कर सकते हैं। मुझे ये बताने की है और हमारी समस्याएं भी समाप्त हो जाती इसका अन्त कर देता है। अन्धेरा समाप्त होता 1 आवश्यकता नहीं कि आप क्या कर सकते हैं क्योंकि हो सकता है कि आपमें से कुछ लोगों को विश्वास न हो। परन्तु यह मेरा अपना तो हमारी चेतना को यही बनना है- चेतना हैं। গ 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-18.txt अंक 17 चैतन्य लहरी ९ व १० 1999 स्मं ११ को परम चैतन्य बनना है। तभी आपको ये सब करती है और आपकी मूल्य प्रणाली (value विचार, यह सारी दिव्यता प्राप्त होती है। केवल system) को भी ये आपको पूर्णतः नष्ट कर ही नहीं परमेश्वरी सहायता या परमेश्वरी देती है तो कैसी अर्थव्यवस्था है यह? यह मात्र समाधान भी समाप्त हो जाता है। यह सब दिखावा है एक गुब्बारे की तरह जो किसी भी आश्चर्यचकित करने वाला है और अत्यन्त शान्त क्षण फट सकता है मैिने लोगों को देखा है एवं दृढ़ है। सभी कुछ शान्त हो जाता है और जो बहुत अमीर थे परन्तु एक दम दिवालिए यह सब देखकर आप हैरान हो जाते हैं कि हो गए और बहुत से दिवालिए लोग धनवान इन सब कार्यों के केन्द्र बिन्दु आप हैं। आपको हो गए। इस प्रकार की उथल-पुथल में वे इतना पता भी नहीं होता कि आप कुछ कर रहे हैं एक तट से कूदकर दूसरे तट पर चले जाते पर आप कुछ कर रहे होते हैं। आपकी क्रियाओं हैं। परन्तु आप लोग ऐसा नहीं करते। आप में से अहम् तत्व गायब हो जाता है आप इस नाटक को देखते हैं। शान्ति पूर्वक, बड़ी देखते हैं कि सभी कुछ आपके ईर्द-गिर्द घटित सबूरी से आप इस सारे नाटक को देखते हैं। होता है, कि यह सब किस प्रकार हो रहा है। इस प्रकार के बहुत से लोग बना लेना आपके जीवन की पूरी शैली ही परिवर्तित हो जाती लिए कठिन कार्य नहीं है। इस संसार को है। पूरी सूझ-बूझ परिवर्तित हो जाती है और परिवर्तित कर देना आपके लिए कठिन नहीं आप दूसरों के लिए प्रसन्नता, आनन्द एवं है अव समय आ गया है। प्रयत्न करें, केवल ज्ञान के स्त्रोत बन जाते हैं इसके लिए आपको प्रयत्न करें। जैसे बसन्त ऋतु में बहुत से फूल कोई अध्ययन नहीं करना पड़ता, कुछ अधिक खिलते हैं इसी प्रकार आप सब लोग भी खिल ज्ञान नहीं प्राप्त करना पड़ता. फिर भी आपको उठे हैं। सभी चीज़ों का ज्ञान हो जाता है, कि ठीक अब सहजयोग फैलाने के लिए बीजों की सृष्टि क्या है और गलत क्या है। केवल तभी आप करना आप पर निर्भर करता है। आप चेतना के स्तर पर हैं जहाँ परम चैतन्य आपके साथ है, आपके अभिन्न अंग के रूप में हर आवश्यक पूर्ण अधिकार के साथ कह सकते हैं कि यह चीज़ ठीक नहीं है। जैसे आज ही हमने आधुनिक काल की आर्थिक स्थिति और अर्थशास्त्र पर चर्चा की। मैंने कहा कि यह सब सहायता, हर वांछित सम्मान एवं व्यक्तित्व प्रदान करने के लिए परम चैतन्य पूर्णतः आपके साथ है। गलत है क्योंकि यह आत्मघाती है, राष्ट्रों के लिए यह दुर्व्यवस्था है; संभवतः आपके राष्ट्र के लिए न हो परन्तु अन्य राष्ट्रों के लिए है। यह आपके पारिवारिक जीवन को भी नष्ट परमात्मा आपको धन्य करें। का 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-19.txt अंक १ व १० বंड ११ चैतन्य् तहरी 1999 18 श्री फातिमा बी पूजा, 14.8.88, सेन्टजार्ज श्वेस परम पूज्य माता्जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन श्री फातिमा बी गृहलक्ष्मी का प्रतीक थीं तो अवतरित हुए, वे ब्रहमदेव के अवतरण थे और आज हम अपने हृदय में गृहलक्ष्मी तत्व की उनका दूसरा अवतरण सोपान देव के रूप में पूजा करेंगे। घर में स्त्री जिस प्रकार सभी हुआ पुणे जाकर आप सोपान देव का मन्दिर कार्य समाप्त करके स्नान आदि करती है उसी देख सकते हैं । तो अली और उनकी पत्नी प्रकार आज प्रातः मुझे भी बहुत से कार्य करने फातिमा बाई नाभि तत्व पर अवतरित हुई। वे पड़े और तब मैं पूजा के लिए आ पाई. घर में गृहणीं थीं, अपनी गृहस्थी में व्यस्त रहती थीं, आज गृहणी के करने योग्य बहुत से कार्य थे पर्दा या नकाब पहनती थीं। चेहरे को पर्दे से और एक अच्छी गृहणी की तरह से मुझे वे सब ढकना इस बात का प्रतीक है कि गृहणी को कार्य समाप्त करने थे। अपना चेहरा ढक कर अपनी पावनता की रक्षा करनी होती है फातिमा एक बहुत सुन्दर गृहलक्ष्मी तत्व की सृष्टि तथा विकास परमात्मा ने किया है। यह मानव की रचना नहीं है माहिला थी। उनका जन्म ऐसे देश में हुआ जहाँ लोग बहुत हिंसात्मक थे और यदि वे क्योंकि, जैसे आप जानते हैं गृहलक्ष्मी का स्थान बाई नाभि में है। मोहम्मद साहब की पदो धारण ने करतीं तो निश्चित रूप से पुत्री श्री फातिमा के जीवन में गृहलक्ष्मी का निरूपण हुआ है वे सदैव किसी महान गुरू उनपर आक्रमण हो जाता । ईसामसीह के जीवन से जैसा आपको पता लगता है कि के पावन सम्बन्धी के रूप में अवतरित होती यद्यपि माँ मैरी महालक्ष्मी का अवतरण थी. हैं अत:ः वे पुत्री के रूप में आई मोहम्मद साहब की मृत्यु के पश्चात लोगों ने सोचा कि उनके द्वारा दिए गए धर्म यह बात जान पाए कि मैरी क्या थीं। श्री उन्हें अत्यन्त शक्तिशाली व्यक्तित्व बनना पड़ा। ई। हजरत घर्मान्ध परन्तु ईसामसीह नहीं चाहते थे कि कोई भी 1 को अपने हाथों में लेकर इसे भी कटटर बना फातिमा यद्यपि गृहणी थीं फिर भी कवे शक्ति दिया जाए। व्यक्ति के उत्थान की ओर चित्त थीं। उन्होंने अपने पुत्रों को आज्ञा दी कि नहीं दिया जाता था मोहम्मद साहब ने अपने मोहम्मद साहब के प्रभुत्व को चुनौती देने वाले दामाद का वर्णन बहुत प्रकार से किया है। धर्मान्ध लोगों से युद्ध करें। और आप जानते हैं पृथ्वी पर अवतरित होने वाले वही श्री ब्रह्मदेव कि इस युद्ध में उनके दोनों बेटे हसन और के दूसरे अवतरण थे। अली इस पृथ्वी पर हुसैन शहीद हो गए। सीता जी का महालक्ष्मी 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-20.txt रामड ११ अंक चैतन्य लहरी व १० 1999 19 तत्व का सुन्दर गृहलक्ष्मी तत्व को स्थापित एक आत्मसाक्षात्कारी सन्त थे उन्हें भी शिया करने के लिए विष्णुमाया रूप धारण करना लोगों की धर्मान्धता का सामना करना पड़ा। अत्यन्त सुन्दर घटना है निःसन्देह श्री फातिमा अत्यन्त शक्तिशाली थीं और वे जानती थीं कि शिया शब्द का उदगम् सिया से हुआ। उत्तर उनके बच्चे शहीद हो जाएंगे परन्त ये लोग प्रदेश में सीताजी को सिया कहा जाता है। कभी नहीं मरते, ये न कभी मरते हैं और न हीं इन्हें कोई कष्ट होता है। लोगों को उनकी कुछ लोग मुसलिम न होते हुए भी महान सन्त मूर्खता दर्शाने के लिए अवतरणों का यह सब नाटक खेलना होता है। इसके परिणाम स्वरूप एक अन्य प्रथा चालू हुई जिसमें लोगों ने लोग मानते हैं. कुछ मुसलमान भी वहाँ जाते सन्तों का सम्मान करना आरम्भ किया. जैसे भारत में शिया लोग औलियाओं का सम्मान शिया लोगों ने कभी महसूस नहीं किया कि हैं। यही कारण है कि वे अपनी धर्मान्धता से छुटकारा न पा सके। हाज़ीमलंग को हिन्दु हैं। हाजी मलंग शिया लोगों की धर्मान्धता के कारण चिन्तित थे इसलिए उन्होंने अपनी पूजा करते हैं। इस औलियाओं को आत्मसाक्षात्कारी के लिए कुछ हिन्दु लोगों को नियुक्त किया भी कहा जा सकता है. जैसे निजामुद्दीन साहिब, ताकि सन्तुलन बना रहे। इन लोगों ने सभी फिर अजमेर के हज़रत चिश्ती। शिया लोगों प्रकार के काम किए। ऐसे बहुत से सन्त हैं। ने इन सब महान सन्तों का सम्मान किया। में भीपाल गई। वहाँ पर एक महान सन्त की उन्होंने इन महान सन्तों का सम्मान किया समाधि है। परन्तु उनके अनुयायी वहाँ पर फिर भी वे धर्म की सीमाओं से ऊपर न उठ होने वाली कमाई से अपना जीवन चलाते हैं पाए और परिणामस्वरूप अत्यन्त धर्मान्ध बन और उस स्थान की देखभाल अच्छी तरह से गए। किसी दूसरे धर्म के सन्तों का वे सम्मान नहीं करते। न कर सकते थे चाहे वो शिरडी साईनाथ हजरत निजामुद्दीन के अनुयायी भी हिन्दुओं जैसा महान सन्त ही क्यों न हो जो आरम्भ में की तरह से वहाँ पर चढ़ाए गए धन से अपना में मुसलमान था। खर्च चलाते हैं और इस प्रकार ये सब व्यापार कहा जाता है कि श्री फातिमा स्वयं उन बच्चों बन गया है। मैं जब भोपाल गई तो उन लोगों को अपनी गोदी में उठा कर लाई और किसी से पूछा कि तुम्हारा धर्म क्या है? तो उन्होंने कहा कि हम मुसलमान हैं। मैंने पूछा, "ये जिनकी मूत्यु हुई है. इनका महिला को पालने के लिए दे दिया। ऐसा कहा जाता है। जहाँ तक हिन्दु लोगों का प्रश्न है सन्त उन्होंने कभी शिरडी साईनाथ के को धर्म क्या था?" उन्होंने उत्तर दिया, "सन्तों का नहीं नकारा परन्तु मुसलमानों ने उन्हें स्वीकार कोई धर्म नहीं होता" तो मैंने कहा कि आप नहीं किया। ऐसे ही एक अन्य सन्त हैं हाजी साधुत्व लोग क्यों धर्म का अनुसरण करना चाहते हैं? सन्तों का कोई धर्म नहीं होता। संस्कृत में भी मलंग। इनकी दरगाह बम्बई के पास है वे 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-21.txt रड ११ अंक ९. १० चैतन्य सहरी 20 1999 कहा गया है कि सन्यासियों का कोई धर्म नहीं उनका कार्य है इस प्रकार वे सब एकत्र हो गए जबकि गृहलक्ष्मी तत्व की सृष्टि विशेष जाते हैं। परन्तु जिस प्रकार सभी धर्मों के रूप से घृणा को वश में करने के लिए और साथ होता है वैसा ही शिया, सुन्नी, हिन्दु. इसे बर्फीली घृणा को शान्त करके लोंगों के मुसलमान तथा सभी लोगों के साथ हुआ। मस्तिष्क से निकाल फेंकने के लिए की गई थी आप यदि गृहणी हैं तो आपको ज्ञान होना चाहिए परिवार में गृहलक्ष्मी तत्व से किस प्रकार बच्चों में परस्पर घृणा को समाप्त करना है, पति और बच्चों में से किस प्रकार घृणा को होता। वे धर्मातीत होते हैं, धर्म से ऊपर उठ 1 सबने कट्टरपंथी समूह बना लिए । धर्मान्धता भी आप में अन्तर्जात धर्म के विरुद्ध है क्योंकि यह ज़हर की सृष्टि करती है। घर्मान्धता विषैली चीज़ है जो दूसरों से घृणा सिखाती है। जब आप दूसरों से घृणा करने शान्त करना है परन्तु यदि गृहलक्ष्मी स्वयं ही इस घृणा का आनन्द लेती है तो किस प्रकार वह इसे शान्त कर सकती है? वह तो घृणा को लगते हैं तो भयानक विष की तरह से ये आपके अन्दर प्रतिक्रिया करती है और आपके अन्तर्निहित सारे सौन्दर्य को खा जाती है। दूर करने वाली शान्ति का स्रोत है भारत में संयुक्त परिवार हैं । आप लोगों के भी सम्बन्धी घृणा मानव का निकृष्टतम अवगुण है फिर हैं जैसे चाचे-चाचियां, मामे-मामियां आदि। भी मनुष्य घृणा कर सकता है, उसके जो जी में आएं कर सकता है। पशु किसी से घृणा गृहलक्ष्मी का कार्य है कि उनके मध्य वैमनस्य उत्पन्न करने वाले मतभेदों को शान्त करे। नहीं करते, उन्हें घृणा करनी आती ही नहीं । स्वभाव वश वे किसी को काट सकते हैं, पुरुषों के लिए आवश्यक है कि गृहणी का उन्हें कोई व्यक्ति सम्मान करें कहा जाता है यत्र नार्या पूज्यन्ते लगता हो परन्तु घृणा तो मानवीय तत्र रमन्ते देवता'- जिस घर में गृहणी का धारणाओं तथा मानवीय लगन की विशेषता है। सम्भान होता है वहीं देवता निवास करते हैं । केवल मनुष्य ही घृणा कर सकता है ये हमारे देश में यह श्रेय गृहणी को जाना चाहिए। काटना उनका स्वभाव है। अच्छा न भयानक घृणा मुसलमानों में भी ज़हर की तरह से फैल गई। यह करबला घृणा के लिए नहीं अर्थशास्त्र, राजनीति और प्रशासन के लिए हमारी महिलाएं बेकार हैं । पुरुष वर्ग घर के बनाया गया था। प्रेम के लिए बनाया गया था। हर चीज़ जो प्रेम के लिए बनाई गई थी उसे काम-काज के लिए बेकार है। घर के काम काज को महिलाओं ने अपने तक ही सीमित सभी धर्मों ने घृणा में परिवर्तित कर दिया| इसमें सबसे बुरी बात ये है कि घणा करने रखा है। परन्तु हमारा समाज बहुत अच्छा है। वाले लोग दूसरों को निकृष्टतम मानते हैं और गृहणियों इसे चला रहीं हैं अतः पुरुषों को दूसरे लोग उन्हें। किस नियम, कानून या तर्क चाहिए कि महिलाओं का सम्मान करें यह के अन्तर्गत वे ऐसा करते हैं, यह देखना अत्यन्त आवश्यक है। पुरुष यदि अपनी पत्नी हे 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-22.txt चैतन्य लहरीं अंक ९ व १० रानह १५ 1999 21 का सम्मान नहीं करता तो गृहलक्ष्मी तत्व के होगा वह आज्ञापरायण नहीं है, वह तो अपनी बने रहने की कोई सम्भावना नहीं बनी रहती धर्मपरायणता. अपने चरित्र और अपने गुणों के यह गृहलक्ष्मी तत्व को बनाए रखने जैसा है। प्रति आज्ञाकारी है। पति यदि बच्चे की तरह परन्तु बहुत से पुरुष सोचते हैं कि पत्नियों को से बुद्ध है तो ठीक है, पर पति को भी यह समझना चाहिए कि यदि वह पत्नी का सम्मान सताना, उन पर क्रोध करना और सभी प्रकार की उल्टी-सीधी बातें कहना उनका जन्म सिद्ध नहीं करता तो उसकी दुर्दशा हो जाएगी। अधिकार है। ऐसा व्यवहार केवल भली महिलाओं ऐसा पति बेकार है। सर्वप्रथम उसे देखना के साथ ही होता है परन्तु यदि महिलाएं भूत होगा कि गृहणी का गृहलक्ष्मी रूप में सम्मान हों, परेशान करने वाली हों तो पति उनसे दब करने पर ही आर्शीवाद प्राप्त होंगे उसे किसी जाते हैं। ऐसी पत्नियों के पति सदा किसी न भी प्रकार से न तो पत्नी का अपमान करना किसी प्रकार से उन्हें रिझाने में लगे रहते हैं चाहिए न उसके प्रति क्रूर होना चाहिए और न क्योंकि वो जानते हैं कि ये तो भूत है. इससे ही ऊँची आवाज में उससे बात करनी चाहिए । सावधान रहना ही ठीक है । न जाने किस परन्तु पत्नी को भी सम्माननीय होना होगा। समय ये भूत साप की तरह से आप पर झपट मैंने बहुत बार कहा है यदि आपकी पत्नी व्यर्थ पड़े? यदि ऐसी महिला परेशान करना या में रोब जमाए तो उसके मुँह पर दो चाँटे बहस करना भी जानती हो तो भी पुरुष उनसे रसीद करो। पत्नी को भी व्यर्थ का रोब जमाने डरते हैं। उसके लिए पुरुष के मन में कोई वाला न होकर दूसरों के अन्दर से भी रोब प्रेम और सम्मान नहीं होता पुरुष उससे जमाने के इस दोष को दूर करना है। वह डरते हैं। ऐसी महिलाओं से पुरुष डरते हैं शान्ति एवं आनन्द का सरोत है. शान्ति संस्थापक कुछ महिलाएं सोचती हैं कि नाज़-नखरे की है यदि वह किसी प्रकार समस्या खड़ी करती प्रवृत्ति से पति भली -भांति वश में किए जा है तो आप उसे चाँटा मारकर उचित स्थान पर सकते हैं। परन्तु इस प्रकार वे अपने मूल ला सकते हैं। ये ठीक है। तत्व, मूल शक्ति को ही खो देती हैं और कठिनाई में फँस जाती हैं। गृहलक्ष्मी तत्व पारस्परिक है । यह न तो केवल पति पर निर्भर है न केवल पत्नि पर, दोनों पर अपने पावित्र्य का सम्मान, अन्दर और बाहर निर्भर है। यदि आप अपनी पत्नी को कष्ट देते पवित्रता का सम्मान करना गृहलक्ष्मी तत्व का हैं तो आपकी बाई नाभि कभी ठीक नहीं हो आधार है। यही उनका संबल है। निःसन्देह अधिकतर पुरुष इस बात का लाभ उठाते हैं। आपकी बाई नाभि कभी ठीक नहीं हो सकती। पत्नी यदि आज्ञाकारी एवं विनम्र है तो वे उस पश्चिम की महिलाओं के साथ समस्या ये है पर शासन जमाना चाहते हैं, सभी प्रकार से कि वो अपनी शक्तियों को नहीं पहचानती। उसे दबाते हैं। परन्तु गृहणी को यह समझना अस्सी साल की बूढी औरत भी दुल्हन की सकती, या यदि आप अच्छी पत्नी नहीं हैं तो 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-23.txt रनंड ११ ंम चैतम्प लहरी अंक ९ व १० 22 1999 तरह से दिखाई देना चाहती है। वे अपनी ये कहकर कुछ नहीं प्राप्त किया जा सकता। गरिमा को महसूस करके उसका आनन्द नहीं यह कहना कि हमारा अपना एक घर होना लेना चाहती। वै घर की महारानियाँ हैं परन्तु चाहिए जहाँ हम आनन्द से रह सकें, तो ऐसे हल्की, बचकानी, छिछोरी लड़कियों की तरह से व्यवहार करना चाहती हैं। अपने अस्तित्व नहीं घुसेगा। मेरे बच्चे, मेरे पति, मैं यह सब की गरिमा का उन्हें एहसास ही नहीं है। वे कहना सहजयोग में निषेध है । ऐसा कहना घर में कोई नहीं आएगा, चूहा भी ऐसे घर में अधिक बोलती हैं और उनका आचरण नकारात्मकता है। यह सब पूर्णतः निरर्थक बहुत ऐसा है जो किसी गृहणी को शोभा नहीं देता। चीजें हैं जो किसी सहजयोगी और सहजयोगिनि बात करते हुए वे अपने हाथों को मछुआरिनों को शोभा नहीं देतीं। इस प्रकार स्वार्थता, की तरह से नचाती हैं मानो मछुआरिनों ने एकान्तप्रियता सहजयोग के विपरीत है । मछलियाँ बेचनी हो या किसी से झगड़ना हो वे मूर्खतापूर्वक चिल्लाती हैं। मैंने सुना है कि गृहणी को जब खाना बनाना होता है तो वह कभी-कभी तो वे अपने पतियों को पीढ देती सोचती है कि पचास लोग आने वाले हैं. मैं हैं। ये पराकाष्ठा है। ऐसी महिलाएं अपने कितना खाना बनाऊँ? पति कहेगा कि केवल पतियों की अपने अमीर पिता से करने दस लोग आ रहे हैं तुम पचास लोगों के लिए लगती हैं मैं उस सेठ की बेटी हूँ, मैं उस परिवार से सम्बन्धित हैँ, मेरे पति घटिया परिवार वह ज्यादा खाना चाहें। परन्तु तुम पचास प्लेटें तुलना खाना क्यों बनाना चाह रही हो? हो सकता है से हैं। उसके पास धन नहीं है, वो पढा लिखा क्यों रख रही हो? हो सकता है वह अपने नहीं है। इस प्रकार वे पति से दुर्व्यवहार दोस्तों को साथ ले आएं। तो गृहलक्ष्मी अपनी करती हैं, उसका सम्मान नहीं करती। ऐसी उदारता के विषय में सोचती है और उसका महिलाओं की सभी शक्तियाँ नष्ट हो जाएंगी। आनन्द लेती हैं। मैंने ऐसी बहुत सी गृहणियों वे अपने आप में दोष भाव ग्रस्त हो जाएंगी को देखा है यद्यपि वे सहजयोगी भी न थी। क्योंकि सहजयोग में किसी अन्य को घटिया भाभी क्या तुम हमारे यहाँ खाने पर आओगी? समझने का अधिकार किसी को नहीं है, अपने नहीं मैं नहीं आऊंगी, तुम बहुत ज्यादा चीजें बनाती हो, मैं नहीं आऊंगी । नहीं, नहीं मैं बहुत पति को घटिया समझना तो समझ में ही नहीं आता। चाहे वह सहजयोगी न हो, चाहे उस थोड़ी चीज़ें बनाऊंगी. आप आना जरूर। और फिर तुरन्त वह सोचने लगती है कि आजकल बाज़ार में कौन सी सब्जियाँ हैं, मुझे क्या लाना स्तर का न हो। परन्तु अपने आचरण और शक्ति से आप उसकी रक्षा कर सकते हैं, क्यों आप अपनी पावनता को बर्बाद करती हैं? चाहिए? सबसे अच्छा क्या है? कहने से मेरा दूसरों पर रोब जमाने से, उनका गला दबाने अभिप्राय ये है मैं न तो उनकी गुरु हूँ न से, अपने पति को कुएँ का मेंढक बनाकर उसे उनकी मा हूँ। मात्र उनकी सम्बन्धी हूँ। परन्तु 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-24.txt चैतन्य तहरी अंक ९ य । स ११ 1999 भोजन के माध्यम से वे अपना प्रेम अभिव्यक्त सूक्ष्म नहीं है। वे इन चीज़ों से ऊपर हैं आप करना चाहती हैं। वे अन्नदा हैं, अन्नपूर्णा हैं उन्हें भलीभांति समझें। परन्तु पुरुष यदि घोड़े किसी गृहणी में उदारता का ये गुण यदि नहीं पर बैठता है तो मैं भी घोड़े पर बैठूंगी है तो वह किसी भी प्रकार से सहजयोगिनी नहीं है। यह मेरा कहना है। पति तो कुछ हद जाता है तो मैं भी जाऊँगी। वह यदि मज़बूत र गिरुंगी वह यदि बर्फ-कूद (skiing) के लिए म तक कंजूस हो तो चल जाता है परन्तु पत्नी मांसपेशियाँ बनाता है तो मैं भी बनाऊंगी। का उदार होना आवश्यक है। कभी कभी तो आजकल ऐसा ही हो रहा है। महिलाएं स्वयं वह अपनी कीमत पर भी न केवल बच्चों को को बड़ा ही अजीबो-गरीब बना रही हैं बिना बल्कि अन्य लोगों को भी धन देती है। सहजयोग मूछों की बड़ी-बड़ी मांस-पेशियों वाली। इस में महिलाओं को इतना ही सुन्दर होना चाहिए प्रकार के सभी बेवकूफी भरे विचार हैं और परन्तु यह देखकर मुझे कई बार चिन्ता होती किसी भी प्रकार की कोई रोक-टोक नहीं। है कि मुझ पर सहजयोगी महिलाएं ही आक्रमण करती हैं पुरुष नहीं, मैं स्वयं भी एक महिला हूँ. मुझे सदमा लगता है जब महिलाएं इस आप अपनी गरिमा, पावनता, सम्मान, विवेक और सर्वोपरि धर्मपरायणता के आधीन हैं क्योंकि आपके ऊपर इनका भार है। कार्यभारी व्यक्ति 1 प्रकार मुझ पर आक्रमण करती हैं। को यह सब देखना होता है। आप कितने सहजयोग में किसी भी प्रकार का प्रभुत्व आदि झगड़े खड़े करती हैं? आपसे तो शांति संस्थापना नहीं है। प्रभुत्व एवं दासत्व के ये सभी असत्य की आशा की जाती है, किस प्रकार आप विचार आपकी सूझ-बूझ एवं अहम् के कारण झगड़ालू हो सकती हैं। मान लो हम दो लोगों हैं। आपने स्वयं को नहीं पहचाना। आप नहीं को शांति स्थापना के लिए किसी देश में जानते की आप तो रानी हैं. कौन आप पर भेजते हैं, और वे यदि एक-दूसरे का गला प्रभुत्व जमा सकता है। गृह-स्वामिनी पर कौन काट दें तो ऐसी चीज़ को हम क्या कहेंगे? प्रभुत्व जमा सकता है? मान लो यदि पति आप ही लोगों ने सभी कुछ शांत करना है। कहता है कि मुझे यह रंग पसन्द नहीं है, तो आपने इतने प्रेम की अभिव्यक्ति करनी है. ठीक है. कुछ समय के लिए वो रंग छोड़ दो। इतना माधुर्य देना है कि परिवार आपकी सुरक्षा में चैन महसूस करे, क्योंकि आप माँ है। परिवार को आपसे सुरक्षा मिलनी चाहिए, ये प्रेम आपकी तभी कोई आकर यह कहेगा कि यह "कितना अच्छा रंग है"? तो आपके पति एकदम से कहेंगे कि यह रंग मत छोड़ो। महिलाओं को चाहिए कि पुरुषों को समझें, उनकी आँखे है और प्रेम देते हुए आपको लगेंगा कि आप बड़ी-बड़ी होती हैं परन्तु सूक्ष्म नहीं होती। स्वयं को समृद्ध कर रही है जो उपहार मुझे मोटे रूप से वे सभी कुछ देखते है। आज वे प्राप्त होते हैं उनके मुकाबले में आप देखें कि कुछ कहेंगे और कल कुछ और उनकी दृष्टि मैं क्या देती हूँ! मुझे लगता है कि इन्हें रखने शक्ति है प्रेम प्रदान कर पाना आपकी शक्ति 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-25.txt रमंज ११ चैंतन्य लहरी अंक ९ १० 24 1999 के लिए मुझे एक और घर बनाना पडड़ेगा। मैं काण्ड कर दें।" तब तक मेरे पति आ गए और पुरुष एक मुझे कोई उपहार न दे मैं व्यक्तिगत उपहार जैसे होते हैं कहने लगे इन्होंने तीन लोगों न लूँगी। फिर भी मेरी समझ में नहीं आता; को अपने घर में रख लिया है। परमात्मा जाने प्रेम से दी गई किसी चीज़ का प्रेम स्वयं को वे कौन हैं? उनमें से एक मुसलमान है, एक अभिव्यक्त करता है और कविता की तरह हिन्दु है परमात्मा जाने उस महिला के दो पति हैं? और इस प्रकार की बातें करने लगे। इन सबसे कह रही हूँ कि व्यक्तिगत रूप से वे दोनों मिलकर बरसने लगे सारे उसका असर आप पर होता है । आप आश्चर्यचकित हो जाते हैं। मैं अपने जीवन का अगली सुबह वे सब भूल गए। मैंने उनसे कहा एक उदाहरण आपको दूँगी जो यह दर्शाएगा कि अच्छा एक रात के लिए तो उन्हें यहाँ रहने दो। आज तो मैं उन्हें यहाँ से नहीं निकाल सकती। अगली सुबह वो सब भूल गए कि आरम्भ में, और मैं सोचती हूं अन्त तक, मैं एक कोई वहाँ रह भी रहे हैं। पुरुषों का यही है। कि किस प्रकार प्रेम कार्य करता है। गृहणी थी। मैं दिल्ली में थी, मेरी बेटी का जन्म होने वाला था और घर के बरगीचे में बैठी मने कहा कि अभी अगर जाने को कहूंगी तो स्वभाव है। पहले तो वो चीखे-चिल्लाए पर हुई मैं उस के लिए कुछ बुन रही थी। तभी उन्हें ठेस पहुँचेगी । एक रात उन्हें यहीं रहने तीन व्यक्ति, एक महिला और दो पुरुष घर में दो। बस इतनी सी बात से वो शान्त हो गए। आए। आकर वह महिला कहने लगी कि मैं अगली सबह वे अपने काम पर चले गए। एक गृहणी हूँ और इन दो पुरुषो में से एक उनके पास समय ही कहाँ था। सप्ताहान्त के मेरे पति हैं और एक उनका मित्र है, जो कि दिन ही पुरुष घर के मामलों में चुस्त होते है । मुसलमान है । हम शरणार्थी हैं और आपसे इसके अतिरिक्त घर के मामलों में उनकी शरण लेने के लिए आए हैं मैंने उनकी ओर कोई भूमिका नहीं होती। ये लोग हमारे घर देखा। वे मुझे बहुत अच्छे लोग प्रतीत हुए। पुर एक महीना ठहरे। इस महिला को नौकरी मैंने कहा, ठीक है आप मेरे घर में रुक जाइए। मिल गई और वह अपने पति और उसके मैंने उन्हें बाहर का कमरा दे दिया जिसके मुस्लिम दोस्त के साथ वहां से चली गई । साथ रसोई और स्नानागार जुड़े हुए थे तीसरे व्यक्ति के लिए मैंने उनसे कहा, एक अन्य परन्तु इसी समय में दिल्ली में बहुत बड़ा हिन्दु-मुस्लिम दंगा हुआ। पंजाब में क्योंकि यहुत से हिन्दुओं और सिक्खों को मुसलमानों शाम को जब मेरा भाई वापिस आया तो वह ने मार दिया था। प्रतिक्रिया के रूप में लोगों जोर-जोर से चिल्लाने लगा कहने लगा "ये ने दिल्ली में भी मुसलमानों की हत्याएं करनी क्या है, तुम इन लोगों को नहीं जानती हो शुरू कर दीं कुछ सिक्ख और एक दो हिन्दु सकता है ये चोर हों, हो सकता है ये कोई मेरे घर पर आए और कहने लगे हमें पता कमरा है, वे उसमें रह सकते हैं । 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-26.txt खंड ११ 25 औैतन्य सहरी] क १ प १० 1999 चला है कि आपके यहाँ कोई मुसलमान व्यक्ति मोल-तोल करने लगी। अन्ततः उसने ये भूमिका रुके हुए हैं। मैंने कहा "मैं ऐसा कैसे कर स्वीकार कर ली और मुहूर्त पर आई। मुझे सकती हूँ?" कहने लगे, नहीं एक मुसलमान वहाँ देखकर उसे विश्वास न हुआ। बारह वर्ष उसने मुझे देखा था। उसकी आँखों से कहा देखिए, मैंने कितना बड़ा टीका लगाया आँसुओं की झड़ी लग गई. मुँह से एक शब्द न निकला। दौड़ कर वह मेरे गले लग गई । कहने लगी इतने वर्षों तक आप कहाँ थ्थी। मैंने आपके यहाँ है हम उसकी हत्या करेंगे।" मैंने पश्चात् हुआ है, क्या आप विश्वास कर सकते हैं कि मैं किसी मुसलमान को अपने यहाँ स्थान दूंगी? उन्होंने सोचा मैं वास्तव में कोई कट्टर हिन्दू आपको कितना ढूँढा! साहिर लुध्यानवी भी बहाँ हूँ और उन्होंने मुझ पर विश्वास कर लिया। थे, मैंने उनसे कहा कि यदि आपने घर में घुसने उन्हें बताया गया कि यह उन्हीं का कार्य है । का प्रयत्न किया तो आपको मेरी लाश पर से हे परमात्मा! आप लोगों ने पहले क्यों नहीं कहने लगे कि ये महिला यहाँ पर कैसे हैं । बताया। उनके लिए तो हम अपनी जान निछावर जाना होगा। तो घबराकर वे वहाँ से चले गए। कर सकते हैं उनसे हमें कोई पैसा नहीं चाहिए। इस मुसलिम व्यक्ति ने मेरी बातें सुन ली थी । मेरे पास आकर कहने लगा कि मैं हैरान हैं कि किस प्रकार आपने अपने जीवन को खतरे में अब आप देखें कि मैं एक गृहणी हूँ। अपने इस कार्य में सारा धन मैं लगाऊंगी । डाल दिया। मैंने कहा कुछ नहीं है। उसका पति की सम्पति पर मेरा कोई विशेष अधिकार जीवन बच गया था। यह मुसलमान महान नहीं है और मेरा भाई और पति दोनो ही कवि साहिर लुध्यानवी है और ये महिला महान रोबीले व्यक्ति उस रात गुस्से में मेरी जान अभिनेत्री अचला सचदेव हैं। परन्तु बाद में मैंने लेने को तैयार हो गए। मैंने उन्हें शान्त किया। किसी को कुछ नहीं बताया। मैंने सोचा यदि अचला सचदेव और साहिर लुध्यानवी कहने उन्हें मेरे विषय में पता चलेगा कि मैं बम्बई में लगे कि भविष्य में किसी भी अच्छे कार्य के लिए हम 'नहीं-नहीं कहेंगे कहने लगे कि यह गलती हमने आखिरी बार की है । पैसे और कमाई का सारा विचार ही समाप्त हो हूँ तो वे पागलों की तरह से दौड़ पड़ेंगे। बच्चों के लिए कुछ अच्छी फिल्में बनाने के लिए हमने एक फिल्म केन्द्र शुरु किया था । उसमें माँ की भूमिका करने के लिए लोग फिल्मों में निःशुल्क कार्य किया। दान कार्यों गया। अचला सचदेव ने बहुत सी परोपकारी चाहते थे कि अचला सचदेव कार्य करें। मैंने कहा ठीक है मेरे विषय में बिना बताए आप के लिए साहिर लुध्यानवी ने भी बहुत सी कविताएं लिखी । उसके पास जाएँ। ये घटना हुए बारह साल बीत चुके थे। ये लोग उसके पास गए तो वह तो एक महिला पुरुष को दानवीर व्यक्ति बना अभिनेत्रियों की तरह से नाज़ नखरे और सकती है क्योंकि वो स्वयं परोपकारी होती है। के। 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-27.txt चैतन्म लहरी लड ११ 26 1999 व १० अक उसमें बहुत सौन्दर्य होता है वह स्वभाव से और होती है। एक दो बत्तियों के प्रकाश का कलाकार है और गृहस्थी, परिवार तथा समाज बहुत ज्यादा महत्व नहीं है। महत्व तो विद्युत में चहुँ ओर सौन्दर्य की सृष्टि कर सकती है। परन्तु अब महिलाएं पुरुषों की तरह से लड़ना महिलाओं को समझना है कि हम संभावित चाहती हैं वे अपनी सस्थाएं बनाना चाहती हैं, शक्तियाँ (potential) हैं और इस शक्ति को संघ बनाना चाहती है और अपने अधिकारों के हमने सुरक्षित रखना है। हममें गरिमा, सम्मान लिए लड़ना चाहती हैं मैं मानती हूँ कि कुछ एवं धर्मपरायणता का विवेक होना चाहिए। पुरुष और कुछ कानून अत्यन्त क्रूर होते हैं। परन्तु ऐसे पुरुषों को सुधारने का यह तरीका पुरुषों को चाहिए कि वे ऐसी महिलाओं का नहीं है। महिलाओं को नष्ट करने वाले परुषों सम्मान करें। परन्तु वो भी अत्यन्त मूर्ख हैं. जो को सुधारने का एक और तरीका है। महिलाओं महिला उनसे प्रेम करती है, जो पावन हैं. में एक महान गुण है कि गण उनके साथ हैं। अच्छी है जो ये चाहती है कि वे सामूहिकता में श्री गणपति उनके साथ हैं। परन्त यदि वे रहें, जो ये चाहती है वो दानवीर बनें. जो ये पावन न होंगी, अपने शरीर का प्रदर्शन करना की संभावित शक्ति (potential ) का है। अतः कास इच्छा करती है कि सहजयोग को आगे बढ़ाया चाहेंगी, सौन्दर्य का दिखावा करेंगी और इससे जाए. जो ये चाहती है कि पति प्रसन्न एवं आनन्दमय हो और सहजयोग में आए, ऐसी महिला से प्रेम करने की अपेक्षा वे अजीबोगरीब लाभ उठाना चाहेंगी तो गणपति कभी उनका साथ न देंगे। मूर्ख औरतों के पीछे दौड़ते रहते हैं। ऐसी अपनी पावनता का सम्मान करने वाली महिलाए भूतबाधित औरतों के प्रति आकर्षित होने में अत्यन्त शक्तिशाली होती हैं और समय पड़ने पर झाँसी की रानी की तरह वे अपना महत्व आकर्षण मेरी समझ में नहीं आता। पुरुषों के दिखा देती हैं। झाँसी की रानी सर्वसाधारण गृहणी थीं। वह बर्तानवी सेना से लड़ी। अंग्रेज की भावना आ जाती है और पुरुष तथा महिलाएं जनरल दंग रह गए। उन्होने कहा कि हमने दोनों कष्ट उठाते हैं। अपनी पत्नी का तिरस्कार झाँसी पर विजय तो प्राप्त कर ली परन्तु करने वाले पुरुष को रक्त कैंसर रोग हो विजय का गौरव झाँसी की रानी को जाता है। ऐसी ही अन्य महिलाएं भी है जैसे नूरजहाँ, प्रकार दर्व्यवहार करती हैं, उनकी उपेक्षा करती अहिल्या बाई, पद्मिनी, चाँद बीबी आदि। ये सब महान महिलाएं गृहणियाँ थीं। तो महिलाओं के गुण पृथ्वी माँ की या किसी भी अन्य शक्ति की अन्तःशक्ति (potential ) की तरह से है. जैसे विद्युत की अन्तःशक्ति (potential ) कहीं क्या रखा है? अवश्य उनमें भूत होंगे ये इस दुर्व्यवहार के कारण महिलाओं में असुरक्षा सकता है। जो महिलाएं अपने पतियों से इस हैं, उन्हें अस्थमा, भयानक आतपाघात, (siriasis), मस्तिष्क घात, पक्षाघात, शरीर का पूर्ण निर्जलीकरण (dehydration) हो सकता है। बाई नाभि बहुत महत्वपूर्ण है । 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-28.txt अंक १ व १० चैतग्य लहरी रानंड ११ 27 1999 बाई नाभि को यदि उ्तेजित कर दिया जाए माँ ने आपका स्वागत करने के लिए और जैसे हर समय दौड़ते रहने से, उछल कूद से, आपको आनन्द प्रदान करने के लिए इतना उत्तेजना से- तो उत्तेजित बाई नाभि के कारण कुछ सुन्दर फैलाया हुआ है। रक्त कैंसर हो सकता है। मैंने हमेशा देखा है कि जो महिलाएं पतली हैं उनके पति सदव पति-पत्नी एक दसरे में मस्त हो जाते हैं और 1 सहजयोग में एक अन्य बहुत आम चीज़ है, घबराए से रहते हैं, क्यों? क्याकि पाल्न हर सहजयोग खो देते हैं। तब उन्हें कष्ट उठाना समय उन्हें दौड़ाए रखती हैं. यह करो, वह करो, मेरे लिए फलां चीज ले आओ; मैंने तुम्ह बुन जाते हैं। उन्हें शारीरिक समस्यांएं भी हो कोका-कोला लाने के लिए कहा था. तुम वो नहीं लेकर आए आदि-आदि। मानों पुरुष अपराधी हो। ऐसे पुरुष भगोड़े से बने रहते हैं; दण्डित करता है। अपना हाथ यदि आप पड़ता है. उनके बच्चे जिद्दी और अवज्ञाकारी जाती हैं। यह दण्ड है । ऐसा नहीं है कि मैं कोई दण्ड देती हूं, आपका अपना स्वभाव ही आपको पुरुष को उसके उछल कूद के कारण कोई न कोई रोग हो जाता है आग में डालेंगे तो जलेगा ही मेरा कहने का और महिला को उसकी अभिग्राय ये है कि आप स्वयं ही स्वयं को कष्ट देने की प्रवृत्ति के कारण। प्रेम, आनन्द एवं प्रसन्नता का उनमें अभाव रहता है। यह है। केवल खाने और गृहस्थी के लिए यदि यह दण्डित करते हैं। आपके बच्चे बिगड़ जाते तथाकथित 'शरीर-आकार' का पागलपन अब स्वार्थ आपमें प्रवेश कर जाता है तो परमात्मा कम हो रहा है। परमात्मा का शुक्र है कि अब यह अमेरिका से आ रहा है। शरीर-आकार में इस प्रकार का स्वार्थ कुछ सीमा तक चल ही ऐसे परिवार की रक्षा कर सकता है। स्त्रियों पागलपन मनुष्य को मूर्ख बना देता है। संकता है, परन्तु पुरुष यदि इस प्रकार से में स्थिरता होनी चाहिए। उन्हें गृहणियाँ होना स्वार्थी हो जाए तो परमात्मा ही रक्षक महिलाओं चाहिए अर्थात जो गृहस्थी में स्थिर हो, अपनी हमारा परिवार किसी एक पुरुष या महिला गृहस्थी से सन्तुष्ट हों महिला यदि हर समय दौड़ी रहेगी. घर में रुकेगी ही नहीं तो वह परिवार है। हम अकेले नहीं हैं। आप यदि तक सीमित नहीं हैं, पूरा ब्रह्माण्ड हमारा गृहणी नहीं है। तब वह नौकरानी हैं। एक स्वेच्छाचारी हो जाते हैं और अपने को अलग कहावत है कि एक महिला नौकरानी थी बाद कर लेते हैं तो, आज मैं आपको चेतावनी में वह गृहणी बन गई। परन्तु इधर उधर देती हूैँ कि, ऐसे लोगों को भयानक रोग हो दोड़ने की उसकी आदत न गई गृहस्थी में जाएंगे। तब सहजयोग को दोष न दें। वह स्थिर न हो सकी। गृहस्थी किसके लिए सहजयोग का अपना ही एक बहुत सुन्दर है? उसके पति के लिए नहीं है, केवल बच्चों संसार है जो परमात्मा का साम्राज्य है। इस के लिए नहीं है, गृहस्थी तो अन्य लोगों के स्वागत के लिए है, बिल्कुल वैसे ही जैसे पृथ्वी परन्तु मूर्ख पत्नी समस्याएं खड़ी करती साम्राज्य में आपको सामूहिक होना पड़ेगा। नाट 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-29.txt स्ंड ११ 28 अंक 1999 चैतन्य लहरी वह लोगों के, महिलाओं के झुण्ड बनाती है किए जाने के योग्य रह जाते हैं । तो सहजयोग में आपके लिए आनन्द है। परन्तु जब तक और अपने भूत दूसरों को लगाती है हो सकता है उसे अपनी पढ़ाई-लिखाई पद और आप हर चीज़ में से आनन्द का सार नहीं लेते, धन आदि का बहुत गर्व हो। ऐसे में वह अपने यदि आप गन्ने में से मिठास निकाल दें तो पति को सामूहिकता से पृथक करके रेखेगी। शेष क्या रह जाता है। इसी प्रकार इस ऐसे लोगों को अपने किए का दण्ड भुगतना तथाकथित सेवा और तपस्या में कोई मिठास होगा यह दैवी दण्ड होगा। नहीं है। इस सबका सार तो माधुर्य है जिसकी सृष्टि महिलाएं कर सकती हैं। परन्तु महिलाएं अतः सहजयोग में गृहलक्ष्मी तत्व बहुत महत्वपूर्ण तो है। सहजयोग में आने के पश्चात् जिन लोगों कठोर हैं। इसे खराब मत करो उसे बहुत ठीक से रखो। पति घर में ऐसे घुसता है मानो अपराधी हो उसे को समस्याएं आई हैं, उनमें से अधिकतर ने गृहलक्ष्मी तत्व की उपेक्षा की है। क्योंकि यदि गृहलक्ष्मी चली जाए तो मध्य हृदय पकड़ता बहुत सावधान रहना पड़ता है। एक प्रकार से तो यह अच्छी बात है. और यदि पुरुष इन चीजों के बारे में बिल्कुल अनभिज्ञ है तो और भी अच्छा है। परन्तु हर है। जो महिलाएं ऐसा करती हैं उन्हें चाहिए कि तुरन्त इसे छोड़ दें क्योंकि ऐसा करना समय उसे दास बनाए रखना, ऐसा करो, वैसा यह गृहणी का कार्य नहीं है। जिस अत्यन्त अपमान-जनक है। कोई भी ऐसी महिला करो का सम्मान नहीं करता। अगुआओं तथा उनकी प्रकार पृथ्वी माँ करती है वैसे ही गृहणी को पत्नियों के विषय में तो यह बात पूर्णतया सत्य है। अगुआ या उनकी पत्नी होना सहजयोग में करना चाहिए। पृथ्वी माँ कभी शिकायत नहीं तुच्छतम पद है। आपको जो प्राप्त हो गया है करती और हमें हमारी आवश्यकता के लिए वह इससे कहीं ऊँचा है। किसी सन्त को यदि इतना कुछ प्रदान करती हैं। वे इतनी गरिमा आप राजा बनने के लिए कहें तो वह कहेगा कि क्या आप सागर को प्याले में भरना चाहते उन्हें क्या देता है इस बात की उन्हें कोई हैं? तो अगुआ का पद सहजयोग में तुच्छतम है। अपने जीवन को सेवा के लिए समर्पित आज तक अपने पति से कुछ भी नहीं माँगा तो बताने वाले लोग भी मूर्ख हैं मय हैं और उनमें इतनी शक्ति है कि कोई का चिन्ता नहीं। मैं यदि आपको ये बताऊं कि मैने आप हैरान होंगे पहली बार मैंने उनसे एक । उनका जीवन आनन्द है सेवा नहीं क्योंकि वह सेवा अपने कमरा लाकर देने के लिए कहा था। शाम को आप आनन्द है। परन्तु यदि आप स्वयं को ही आपने उसका परिणाम देखा कि उन्होंने सेवक समझते रहे, 'ओह! मैं बलिदान कर रहा क्या कहा। उन्होंने जो कहा उसे सोचा भी न हूँ, यह मेरी तपस्या है, तो बस समाप्त हो जी सकता था। वे हमेशा मुझसे कहते थे कि गया। तब एक तपस्वी के रूप में ही आपका तुम बताओ तुम्हें क्या चाहिए पहली बार मैंने अन्त होता है। ऐसे लोग क्रूस पर उपयोग कुछ कहा और इसका परिणाम आप देखें। 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-30.txt 29 अक ९. व १ 1এ99 लंड ११ चैतन्य लहरी समस्या है। सहजयोग में ६० प्रतिशत अगुआओं आपमें संन्तुष्ट क्योंकि उसे तो सदैव देना की पत्नियाँ भयानक हैं और सहजयोग इसी है । वे आश्रमों में नहीं रह महिला को आत्मसन्तुष्ट होना चाहिए, अपने होता है। देने वाला व्यक्ति किस प्रकार मॉँग प्रकार चल रहा सकती, अपना खाना नहीं बना सकतीं। पति सकता है? उसे प्रेम देना होता है क्योंकि वह साक्षात् प्रेम है। उसे सभी सेवाएं देनी होती को देखना पड़ता है के उन्होंने खाना खाया हैं. उसे अपनी सम्पति देनी होती है. उसे कि नहीं। वास्तव में ये पत्नियों का कर्तव्य है शान्ति देनी होती है। कितनी महान जिम्मेदारी कि वे सबको खिलाएं और सबकी देखभाल है। प्रधानमंत्री या किसी भी अन्य व्यक्तिति से अधिक जिम्मेदारी एक गृहणी की है और उसे मिला है कि नहीं सब लोग आराम से हैं या इस बात का गर्व होना चाहिए। सहजयोग के अगुआ से भी कहीं अधिक जिम्मेदारी एक और कहती हैं मेरे लिए ये ले आओ, मेरे लिए गृहणी की है। परन्तु अगुआओं की पत्नियाँ वो ले आओ। उनमें से अधिकतर को तो खाना भयानक हो सकती हैं क्योंकि वे स्वयं को बनाना ही नहीं आता। हर अगुआ की पत्नी करें, तब स्वयं खाएं, देखें कि सबको बिस्तर नहीं। परन्तु वे तो मिनी माताजी बन बैठती हैं को खाना बनाना सीखना होगा। अब यह अगुआ मान बैठती हैं। उनका व्यवहार इतना आवश्यक है। उन्हें हृदय से खाना बनाना हास्यप्रद हो जाता है कि मुझे हैरानी होती है। होगा और प्रेम से लोगों को खिलाना होगा। मेरा विवाह एक ऐसे परिवार में हुआ था जिसमें सौ सदस्य थे सभी मुझे बहुत प्रेम करते हैं। को भी चाहिए कि उनके दोष न निकाले। अन्नपूर्णा के लिए यह कम से कम है। पति मैं कभी यदि लखनऊ चली जाऊं तो वे सब आरम्भ में हो सकता है वें गलतियाँ करें। उनके गुणों और अच्छाई को प्रोत्साहित करें। मुझे मिलने आते हैं, परन्तु मेरे पति यदि वहाँ जाएं तो कोई नहीं आता। मेरे पति को इस बात की बहुत ैं कुछ बहुत अच्छी महिलाएं भी देखी हैं जो परन्तु मुझे मिलने आते हैं, उन्हें नहीं। मैंने यदि उन्हें प्रेम न दिया होता या उनकी ज़रुरतें पूरी न की होतीं तो वे मेरे पास न आते। तो शिकायत है । वे उनके संबंधी हैं सहजयोग में बहुत ही क्रियाशील होती हं परन्तु विवाह के बाद वे खो जाती हैं । उनके पति भी खो जाते हैं। जब मैं साक्षात् में होती । आज मुझे हूँ तभी वो लोग नज़र आ जाते हैं अगुआओं की पत्नियों को दूसरे लोगों के लिए चीजें संभालनी चाहिए, अपने लिए नहीं। बताया जा रहा था कि ऐसे बहुत से लोग हैं। हमारे यहाँ बहुत सी मूर्ख महिलाएं हैं हिन्दी में इसका अर्थ ये हुआ कि पतियों में खराबी है। हम उन्हें बुद्धु कहते हैं क्योंकि उन्हें अपनी विवाह से पूर्व तो वे ठीक ठाक थे। शक्तियों की समझ नहीं है। वे नहीं जानती तो हमारे अन्दर गृहलक्ष्मी तत्व कितना महत्वपूर्ण कि उनकी जिम्मेदारियाँ क्या हैं? मैं उनके है, सामूहिकता के लिए और आन्तरिक सम्मुख उदाहरण हूँ। मेरे लिए एक बहुत बड़ी सामूहिकता का आनन्द लेने के लिए । कल 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-31.txt चैतन्य तहरी रनंड ११ 30 1999 मैंने आपको बताया था कि मैं आपको रागों के रह रहे हों और सातवें दिन दौड़कर समुद्र पर विषय में बताऊँगी 'रा' का अर्थ होता है चले जाते हैं और होटलों में रहते हैं। कोई भी शक्ति और 'ग' शब्द का अर्थ है जो हमारे अपने घर में नहीं रहना चाहता । इसका अन्दर प्रवेश कर जाए। यह आकाश तत्व का कारण ये है कि पति-पत्नी में गृहलक्ष्मी तत्व गुण है। आकाश तत्त्व में यदि कोई शब्द आप का अभाव है। परन्तु राग का आनन्द लेने के डाल दें तो इसे ब्रह्माण्ड के किसी कोने में भी लिए लम्बी बैठक की आवश्यकता है। बैठक पकड़ सकते हैं। तो राग बह शक्ति है जो के बिना राग का आनन्द नहीं लिया जा सकता। आकाश तत्व में प्रवेश कर जाती है अर्थात् आपकी आत्मा ही राग है। मैं कहूँगी कि ये राग गृहणी की तरह से हैं । आप यदि सेना के बाजे के पास खड़े हो जाएँ तो बायाँदायाँ करते हुए आप थोड़ी देर में परेशान हो जाएंगे। परन्तु एक मधुर राग स्वतः ही सौन्दर्य की ओर कूदते हुए राग सुनने वाले व्यक्ति की कल्पना आप करें! व्यक्ति को स्थिर होना होगा यही स्थिरता गृहणी का संसार है । पुरुष को गतिशील होते हुए भी स्थिर होना होगा मैंने आपको बहुत बार बताया कि आधुनिक युग में आपकी बाई नाभि बहुत पकड़ी रहती है। ऐसी अशान्त इशारा करता है वैसे ही जिस प्रकार एक महिलाओं के बच्चे भी होते हैं। भारत में प्रायः गृहणी घर को सजाती है। सभी को शान्त पति के जागने से पूर्व जागकर पत्नियां स्नान करती है, उन्हें खुश करती है, सबकी देखभाल आदि से निवृत्त हो जाती थीं पत्नियाँ सदैव करती है । सब जानते हैं कि वह वहाँ उपस्थित पति के साथ नहीं बनी रहती थीं। वे उसके है। लिए खाना बनाती, बच्चों की देखभाल करतीं। हर समय पति के साथ बने रहना भी बहुत ही आधुनिक शैली में मान लो आप किसी को घर पर अपने बच्चे के जन्मदिवस केक काटने के उबाऊ है। पति पत्नी दानों ही उब जाते हैं और तब तलाक ले लेते हैं। गृहणी के और भी शौक होने चाहिए जैसे बच्चों की देखभाल लिए निर्मन्त्रित करते हैं परन्तु उनके आने से पहले ही केक काट लेते हैं. तो कैसा लगेगा? गृहणियाँ भी यदि अपना महत्व दर्शाती रहें तो करना, सहजयोग आदि - आदि। स्नान आदि ऐसा ही लगता है। उन्हें तो सदैव सबसे पीछे करके पति बाहर आता है। भारत में पहले रहना चाहिए क्योंकि उन्होंने सबकी देखभाल लोग खाना खाने के लिए पृथ्वी पर वैठा करते करनी होती है। राग भी यही चीज है, यह थे परन्तु आज कल कुर्सी पर बैठते हैं पति आपको सभी कोणों से प्रसन्न करता है। मान जब आकर बैठे तो उसे ये नहीं कहना चाहिए लो दफ्तर से चिन्तित और परेशान व्यक्ति घर कि तुमने फलों काम नहीं किया या फलाँ आकर राग बजाने लगता है। राग उसे शान्त महिला झगड़ रही थी, या एक महिला मुझे कर देता है, स्थिर कर देता है। छः दिन तक बता रही थी कि तुम ऐसे हो। ऐसा नहीं करना लोग अपने घरों में ऐसे रहते हैं मानो टैंट में चाहिए । उसे शान्ति से खाना खाने दें भारत श्रीक 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-32.txt 31 अक । 1999 च १० रनड ११ चैत्तन्य लहरी में यदि पति को गुस्सा आया हुआ हो तो वह ने पुरुषों को पुरुष और मंहिलाओं को महिला बनाया है। उन्हें यदि एक लिंग बनाना होता घर पर खाना नही खोता। खाना न खाकर कह अपने क्रोध का प्रदर्शन करता है क्रोध प्रदर्शन तो एक लिंग बनाते। परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं के लिए पति अपने अंग वस्त्र भी स्वयं धोने किया अतः व्यक्ति को शान्त, सौन्दर्य एवं लगते हैं। भारत में पति जब खाने के लिए गरिमा पूर्वक अपना लिंग स्वीकार करना चाहिए। बैठता है तो पत्नी उसे पंखा झलते हुए बच्चों मेरा विवाह एक पुराने रीति-रिवाज के परिवार की मधुर बातें बताती है, अपनी सास के स्वास्थ्य में हुआ जहाँ घूँघट की प्रथा थी। वहाँ के के विषय में बताती है कहती है कि आपकी कलेक्टर, जो कि मेरे पति के मित्र थे, ने मेरे बहन आ रही है तो उसके लिए एक साड़ी जेठ से कहा कि क्या मेरे मित्र की पत्नी हमें खरीदनी है पत्नी पति को ऐसी अच्छी अच्छी मिलने नहीं आ सकती? उन्होंने कहा क्यों बातें कहती है। शान्ति पूर्वक पति खाना खाता नहीं। मेरे लिए चीज़ों को आसान करने के है और अपने कार्य के लिए चल पड़ता है। लिए मेरे जेठ छुट्टी लेकर शहर से बाहर आजकल क्योंकि जीवन में तेजी आ गई है, चले गए और जाते हुए अपनी पत्नी से कह आपको तेजी से चलना पड़ता है। पहिए की गए कि इन्हें कलेक्टर से मिलने के लिए भेज परिधि पर यद्यपि तेजी होती है परन्त धरा देना। कितनी सुन्दर शैली थी उनकी। मुझे बिल्कुल शान्त होता है। सहजयोगियों को भी कभी नहीं लगा कि मुझे दबाया जा रहा है । सदैव धुरे पर बना रहना होता है। पति उनके परिवार का यही तरीका था। परन्तु पत्नी, रथ के बाएं और दाएं पहियों को भी, इसके लिए भी विवेक की आवश्यकता होती सदैव धुरे पर बने रहना है? बायों, बायाँ है है। पति यदि मूर्ख होगा तो वह पत्नी को तार अपमानित करवा लेगा और पत्नी यदि मूर्ख होगी तो पति अपमानित होगा महिला यदि महिलाएं तैयार होने में पुरुषों से अधिक समय बहुत चुस्त है, तेज तरीर है तो इसका अर्थ यह नहीं हैं कि वह विवेक शील है । मैं उसी कम समय लेती हूँ। तैयारी में देर करना व्यक्ति को विवेकशील मानती हैँ जो हित, महिलाओं की आदत है, इसे स्वीकार करें। उत्थान और अन्तिम लक्ष्य को देखता है। दायाँ दायाँ। लेती हैं: मैं नहीं लेती, मैं सदा अपने पति से महिलाएँ महिलाएं रहेगीं पुरुष पुरुष। पुरुष वही व्यक्ति संवेदनशील और विवेकशील है । दस बार अपनी घड़ी देखेंगे परन्तु महिला शेष सारी बुद्धिमता अविद्या है और व्यर्थ है कभी एक बार देख लेगी तो देख ले। प्रायः उनकी घड़ियाँ या तो बन्द होती है या खो जाती हैं यदि वे सच्ची महिलाएं हैं तो पुरुषों की तरह से उछलू नहीं होंगी वे भिन्न होती हैं । वे महिलाएं हैं और आप पुरुष। परमात्मा इस विषय पर मुझे लगता है कि मैं एक ग्रन्थ लिख सकती हूँ। तो इसे ग्रन्थ के लिए छोड़कर हमें करनी चाहिए। पूजा परमात्मा आपको धन्य करें। গt ব পরट 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-33.txt चैतन्म तहरी संड ११ अंक ९ य १०. 1999 सार्वजनिक कार्यक्रम, मुम्बई 1998 परम् पूज्य मातारजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन सभी सत्य साधकों को मेरा प्रणाम। सत्य जिसे आध्यात्मिक सिद्धान्तों को प्रस्तुत किया है । हम सत्य के रूप में समझते हैं उसे हम अपने उन्होंने पुनर्जन्म के विषय में बात की है । मध्य नाड़ी तन्त्र पर जानते हैं और जो भी कुछ परन्तु आज हम पाते हैं कि आपके उत्थान हम देखते हैं, जो भी कुछ सुनते हैं, जो भी और आत्मसाक्षात्कार के सिद्धांतों को प्रस्तुत कुछ सूँघते हैं हम कहते हैं कि ये सत्य है। करने के लिए स्थापित किए गए हम केवल इतना ही जानते हैं। परन्तु सत्य धर्म क्रूरता, राक्षसी प्रवृत्ति या मूर्खता के बहुत इससे कहीं अधिक है। यह ज्ञानेन्द्रियों से कहीं समीप हैं। यह समझ पाना असम्भव है कि अधिक है आपके मानसिक प्रयोजनों से कहीं पृथ्वी पर प्रकटे महान अवतरणों ने, जिन्होंने अधिक है और आपकी कल्पना से बहुत अधिक इतनी सुन्दर वस्तुओं की सृष्टि की, जीवन के ऊँचा है। मूल सत्य के विषय में बताया और वचन दिया कि आप सबको परमात्मा की इस सर्वव्यापी शक्ति-ब्रह्म चैतन्य को एक दिन महसूस करना हमारे शास्त्रों तथा महान धर्म ग्रन्थों में कहा गया है कि परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति है जो मानव की देखभाल करती है, जिसने मानव होगा- किस प्रकार लोगों को ऐसा बनने के लिए कह सकते थे! सभी धर्मों के अनुयायी ः अति की सीमा तक जा रहे हैं और सभी प्रकार की सृष्टि की है, जिसने इस पूर्ण सुन्दर कब्रह्माण्ड की छोटी-छोटी चीज़ों पर नजर रखी है, के लड़ाई झगड़े और मूर्खता कर रहे हैं । ज़रे-ज़रें की देखभाल की है और उसे ठीक प्रकार से नियोजित किया है कहा गया है कि मानवीय चेतना केवल बाएं या दाएं को जा एक शक्ति विद्यमान है परन्तु इसके विषय में सकती है। सहजयोग में हम कह सकते हैं कि मानव अनभिज्ञ है एक दिन मानव को इसके हमारी चेतना 'ईडा' या पिंगला' की ओर जा विषय में चेतन होना पड़ेगा। सभी अवतरणों सकती है और महान पैगम्बरों ने कहा है कि इस (Sympethetic nervous system ) के ये दो चेतनावस्था को पाने के लिए पुनर्जन्म लेना मार्ग हैं जो बाई तरफ (भूतकाल में) और दायी हो गा, आपको आत्म-साक्षात्कार (self तरफ (भविष्य में) हमारे प्रयत्नों को देखते हैं। realisation) प्राप्त करना होगा। जो भी नाम बाई ओर आसक्ति होगी कुछ धर्म ऐसे भी आप इसे दें परन्तु जिन लोगों ने भी सत्य के जो आपको इच्छानुसार कार्य करने की आज्ञा अनु कम्पीनाड़ी-प्रणाली । 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-34.txt अफ ९ व १० संड ११ चैतन्य लहरी 1999 33 देते हैं। उदाहरण के रूप में इसाईधर्म में कोई लेना देना नहीं। परन्तु अब भी ये चीजें कैथोलिक मत चालू किया गया यह आक्रामक हो रही हैं और लोग परमात्मा के कार्य में प्रकार का धर्म था क्योंकि इसमे बहुत अधिक हस्तक्षेप करने में लगे हुए हैं यह तो परमात्मा पाबन्दियाँ थीं। इसमें सन्यासिनियाँ (nuns) विरोधी कार्य है और यही कारण है कि जब और पादरी होते हैं जिनसे आशा की जाती है हम धर्म के नाम पर ये कार्य होते हुए देखते हैं कि वे विवाह न करें, तलाक न करें, तथा अन्य तो, जिस प्रकार हमारे देश में किया जाता है, बहुत प्रकार के नियम बन्धन तथा पावन्दियों महिलाओं से दुर्व्यवहार करते हैं । इसी-प्रकार की आशा इनसे की जाती है। तब मार्टिन भारत में लोगों ने सती प्रथा आरम्भ की। हाल लूथर ने एक आन्दोलन आरम्भ किया। वह ही में मुझे बताया गया कि सती होना महिला है दाई ओर का (आक्रामक प्रवृत्ति) व्यक्ति था। का धर्म है, ऐसा शास्त्रों में लिखा हुआ इन्होंने लोगों को बताया कि परमात्मा ने यह परन्तु महिलाओं को शास्त्र पढ़ने का अधिकार सब करने के लिए नहीं कहा है। हमें बहुत सी नहीं है। ये सब मूर्खता है पूर्ण मूर्खता । स्वतन्त्रता होनी चाहिए और इस प्रकार का आठ हजार वर्ष पूर्व जब श्री राम ने रावण का वध किया तो उन्होंने उसकी पत्नी का विवाह अनुशासन और अन्धानुकरण ठीक नहीं है । हमे इस पोप का अनुसरण नहीं करेंगे जो स्वयं सभी प्रकार के अधार्मिक कार्यों में लिप्त विभीषण से कर दिया। आठ हजार वर्ष पर्व है। उन्होंने एक विधवा का विवाह विभीषण से किया। श्री राम का उदाहरण हमारे सामने है इसी प्रकार भारत में हिन्दू धर्म दो चीज़ों पर कि उन्होंने जाति प्रथा की बिल्कुल चिन्ता नहीं आधारित है। वाम मार्गी लोग कहते हैं कि धर्म की। आज हम लोग श्री राम में दोष सोच रहे में हर चीज़ की आज्ञा है। हम जो चाहे कर हैं क्योंकि हम इतने अहंकारी हो गए हैं कि सकते हैं। मदिरापान करने में कोई बुराई नहीं हमें यह समझ भी नहीं रही कि श्री राम कितने और न ही वेश्यावृति में कोई बुराई। ये लोग महान थे अब तो लोग ये भी कहने लगे हैं यहाँ तक कहते हैं कि समुद्र मन्थन में से ही कि श्री राम ने अपनी पत्नी को दुत्कार दिया वेश्याएँ प्रकट हुई। इसलिए वेश्यावृति उचित और उनसे दुर्व्यवहार किया यह सब तो नाटक है। इन्होंने दूसरे प्रकार के धर्म अपना लिए था उन्हें उस समय यह सारा नाटक करना जो आज भी हमारे मन्दिरों में चल रहे है मैंने पड़ा ताकि लोगों को दर्शा सकें कि सुक्रान्त यह देखा है। ये लोग भूत विद्या, प्रेत विद्या, वर्णित 'हितकारी राजा' क्या होता है । ऐसा श्मशान विद्या को मानने लगे अब भी बम्बई व्यक्तित्व आप श्री राम में देख सकते हैं पश्चिम के मन्दिरों में लोग भूत बाधित औरतों के पास में श्री राम सम श्रेष्ठ व्यक्ति कोई नहीं हुआ । जाते हैं जो उन्हें दौड़ के घोड़ों के नम्बर भारत में अपनी तुच्छ बुद्धि से अब हम श्री राम बताती हैं। परमात्मा का घोड़ों तथा दौड़ों से के दोष खोजने में लगे हैं। हुए গ 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-35.txt संड ११ चैतम्य लहरी अंक १ व १०. 1999 34 पृथ्वी पर अवतरित होकर श्री राम ने पहला तो कष्ट दें और न ही पृथ्वी पर जन्म लेने के कार्य जो किया वह था एक शूद्र को रामायण लिए व्यथित हों, उन्हें बहुत से कार्य करने लिखने का अवसर प्रदान किया। वाल्मिकी पड़े। श्री राम ने हमारे लिए बहुत कष्ट उठाए। एक सर्वसाधारण मछुआरे थे उन्होंने रामायण लिखी। इससे प्रमाणित होता है कि श्री राम संसार को ये दिखाना चाहते थे कि जो उन्होंने कभी कष्ट नहीं उठाए। यह सब मात्र अब हमें और कष्ट उठाने की कोई आवश्यकता नहीं। उन्होंने हमारे लिए कष्ट उठाए फिर भी व्यक्ति आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेता है वही वास्तव में विद्वान है, वही सच्चा पंडित अन्तर्दृष्टि विहीन लोग श्री कृष्ण के जीवन के है, सच्चा ब्राह्मण है स्वयं को पण्डित था विषय में कुछ भी कह सकते हैं क्योंकि उनमें नाटक है, वे हमारे लिए नाटक करते हैं। ब्राह्मण कहने वाले लोग ब्राह्मण नहीं हैं। गहनता का पूर्ण अभाव है वे इस प्रकार श्री ं कृष्ण की आलोचना करने लगते हैं मानों श्री कृष्ण उनकी जेब में रखे हुए अवतार की आलोचना, उनके विषय में इतना लोग श्री कृष्ण के बारे में भी उल्टी सीधी बातें करते हैं, मानो उनकी जिह्वा बेकाबू हो गई हों इतने महान हो। मेरी समझ में नहीं आता कि इस प्रकार कुछ कहा जाना वास्तव में आश्चर्यजनक है। चे मानव रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए और आप जानते हैं कि पृथ्वी पर मानव जीवन की मूर्खतापूर्ण बातें करने की हिम्मत और दुस्साहस लोग कैसे करते हैं! महान अवतरणों के विषय में ऐसी बातें करते हुए उन्हें परमात्मा कैसा होता है। मेरे बहुत से सहजयोगी बच्चे का भी भय नहीं होता। श्री कृष्ण के विषय में हैं मैं उन्हें अपने बच्चे कहती हैँं। परन्तु कोई भी आजकल लोगों ने कहना शुरु कर दिया है पुरुष यदि ये कहे कि यह मेरा बच्चा है या यह मेरी बेटी है तो कोई इस बात को स्वीकार कि उनकी बहुत सी पत्नियाँ थीं और वे अत्यन्त स्वेच्छाचारी व्यक्ति थे। श्री कृष्ण के विषय में नहीं करेगा। यह सब कहना बहुत बड़ा दुस्साहस है। श्री राम और श्री कृष्ण महान अवतरण थे धर्म की श्री कृष्ण चाहते थे कि उनकी सभी शक्तियाँ स्थापना के लिए साक्षात् श्री विष्णु उनके रूप पृथ्वी पर अवतरित हों, उनकी सोलह हजार में पृथ्वी पर अवतरित हुए। श्री राम का जीवन शक्तियाँ हैं। उन्हीं की तरह से सहजयोग में महान तपस्विता का था और अत्यन्त गम्भीर आप जान जाएंगे कि आपकी भी सोलह हजार था। उसे देखते हुए लोग भी अत्यन्त तपस्वी शक्तियाँ हैं। विशुद्धि चक्र में जहाँ उनका एवं गम्भीर होने लगे । श्री कृष्ण ने धार्मिक निवास है सोलह पंखुड़ियाँ हैं इन सोलह जीवन को उचित मार्ग तथा उचित विकासशील पंखुड़ियों को मस्तिष्क की एक हजार नाड़ियों अवस्था प्रदान करनी चाही। उन्होंने कहा कि (पंखुड़ियों) से गुणा की जाए तो ये श्री कृष्ण यह सब लीला है। जीवन को सहज तथा की सोलह हजार शीक्त्तयाँ बन जाती हैं। परन्तु जीवन्त बनाने के लिए ताकि लोग स्वयं को न श्री कृष्ण उस समय इन शक्तियों को 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-36.txt चैतन्य लहरी বনত ११ अंक ९ व १० 35 1999 सहजयोगियों के रूप में न पा सके थे, इसलिए यह जान कर आश्चर्य चकित हो गए कि उन्हें उन शक्तियों को महिलाओं के रूप में इसाईयों द्वारा चलाए जा रहे सभी नियम ईसा पृथ्वी पर लाना पड़ा। इन सबको एक राजा से विरोधी हैं। सर्वप्रथम सेंट थाम्स ने कहा था विवाह करना पड़ा। तत्पश्चात् उस राजा को कि आपको आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति होना होगा, पराजित करके श्री कृष्ण ने उन सबसे विवाह यह अनुभव आपकों प्राप्त करना होगा। केवल किया। वे सब उनकी शक्तियाँ थीं। इसके इतना ही नहीं, जिस प्रकार से ये ईसाई धर्म की शिक्षा देते हैं, कि आपके लिए कष्ट उठाना अतिरिक्त उनकी पाँच पत्नियाँ थीं, ये पंच तत्व थे, जिन्हें शक्तियों के रूप में उन्हें अपने आवश्यक है तथा ईसामसीह का क्रूस आपको उठाना होगा, यह सब मूर्खता है। ईसामसीह अवतरण को नहीं समझ पाते वे व्यर्थ की ने आप लोगों के लिए क्रूस उठाया अब हमें आलोचना करने लगते हैं यहाँ तक कहा जा कोई अन्य क्रूस उठाने की आवश्यकता नहीं रहा है कि गोकुल और वृन्दावन में क्रीड़ा है। क्या उन्होंने कुछ अधूरा छोड़ा है जिसे करने वाले कोई और थे और गीता लिखने हमने पूरा करना है? ईसा मसीह ने कहा है समीप रखना था। जो लोग श्री कृष्ण के महान वाले श्री कृष्ण कोई और इन बुद्धिवादी लोगों का मस्तिष्क घूम गया है। मैं सोचती हूँ कि कि आपको प्रसन्नचित्त होकर यह समझना है कि आपके पिता सर्वशक्तिमान परमात्मा, आपको उनकी बुद्धि को इन महान अवतरणों की कुछ प्रेम करते हैं और वे नहीं चाहते कि आप अधिक समझ की आवश्यकता है जो आपकी किसी प्रकार का कष्ट उठाएं और गलियों में चिल्लाते हुए चलें कि आप दुखी हैं इसके आपको सही दिशा देने के लिए पृथ्वी पर विपरीत यदि आप इसाई मत का अनुसरण करने वालों को देखें तो आप जान जाएंगे कि इसाईयों के हाथों सभी लोगों को कष्ट उठाने चेतना को सुधारने और विकास-प्रक्रिया में आए। केवल यही दो बातें नहीं हैं जिनके कारण लोगों ने अपराध किए। ईसामसीह को भी नहीं पड़े। अभी तक इसाईयों को कभी कष्टों का बख्शा गया। चर्चों ने उन्हें भी पूरी तरह गलत सामना नहीं करना पड़ा। वे कहते हैं कि हम कष्ट उठा रहे है, परन्तु यह एक बहुत बड़ा ढंग से पेश किया इस बात को अब आसानी नाटक चल रहा है। 'हम कष्ट उठा रहे हैं, हमें से देखा जा सकता है क्योंकि सेंट थाम्स ने कष्ट उठाने चाहिएं। एक पुस्तक लिखी थी। जब वे भारत आ रहे थे तो यह पुस्तक उनसे मिश्र में छूट गई। लोगों ने जब इस पुस्तक को देखा तो वे दंग है मैं उनका नाम नहीं लेना चाहती, आप रह गए। अड़तालीस वर्ष पूर्व ये पुस्तक खोज ली गई और जब इसे अंग्रेजी भाषा में पढ़ने यह समझाने का प्रयास किया कि आप तपस्विता योग्य बनाने का प्रयत्न किया गया तो लोग हिन्दू धर्म में भी ऐसे लोगों का एक अन्य वर्ग उन्हें भली-भाति जानते हैं जिन्होंने आपको का जीवन व्यतीत करें। जैन धर्म में भी यह 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-37.txt लंड ११ 36 चैतन्य तहरी 1999 अचा न मूर्खता चल रही है। किसी भी शास्त्र में ये पंजाब को लेने के लिए इतनी मूर्खतापूर्ण बातें नहीं कहा गया कि आप अति में जाएं या व्यर्थ करके किस प्रकार का खालिस्तान वो देना में भूखों मरें। हमारे देश में लोग भूखों मर रहे चाह रहे हैं? क्या गुरु नानक ने यही बताया हैं। भूखों मरने वाले ये लोग क्या स्वर्ग में जा था? गुरुनानक ने कहा था, "कह नानक बिन रहे हैं? भूखे रह कर क्या आप भूखमरी में फॅसे आपा चीन्हें मिटे न भ्रम की काई " कबीर साहब ने भी यही बात कही। मोहम्मद साहब लोगों की सहायता कर सकते हैं। ब्रत करके भूखों मरने की इस क्रिया को इतने गलत ढंग ने कहा कि कुयामा के समय- पुर्न-उत्थान के से लोगों को समझाया गया है कि श्री गणेश समय आपके हाथ बोलेंगे। और ये मुसलमान के जन्म दिवस पर भी वे ब्रत रखते हैं। कहने कहाँ जा रहे हैं? ये क्या कर रहे हैं, एक दूसरे से मेरा अभिप्राय ये है कि आपके परिवार में का गला काट रहे हैं? क्या यही धर्म है? क्या यदि किसी बच्चे का जन्म होता है तो आप यही परमात्मा का मार्ग है? यह परमात्मा का जश्न करते हैं। उस दिन व्रत करके आपको मार्ग नहीं है। परन्तु ऐसा क्यों घटित हुआ? भूखा रहना चाहिए या अपने परिवार में जन्मे क्योंकि मानवीय चेतना बाएं और दाएं की श्री गणेश के स्वागत में लड़्डू बॉटकर खुशियाँ मनानी चाहिए? श्री राम जन्म दिवस है तो धन्यवाद है कि ऐसा हुआ क्योंकि अब इसके आपको व्रत करना होगा, श्री कृष्ण जन्म दिवस कारण इन महान अवतरणों के नाम पर बनाए है तो आपको व्रत करना होगा! हैरानी की बात गए तथाकथित धर्मों की मूर्खता और असंगति है कि किस प्रकार लोगों ने इतने गलत ढंग को अब आप लोग समझ सकते हैं। सीमाओं को लाँघ जाती है। परमात्मा का क से इन महान अवतरणों की व्याख्या की। सहजयोग आपका अपना धर्म है। आपके एक और नई चीज़ मैंने देखी है । इंग्लैंण्ड में अन्तर्निहित कुण्डलिनी आपके अन्दर है। ये यह देखकर मैं हैरान हो गई कि परिवार में शक्ति आपके अन्दर है, इसका जागृत होना यदि किसी की मृत्यु हो जाए तो वे शैम्पेन आवश्यक है। इसकी जागृति के विषय में सेन्ट पिएंगे, ईसामसीह का जन्मदिन है तो वे शैम्पेन थाम्स, मोहम्मद साहब, ज़ोरास्टर, ईसामसीह पिएंगे, कोई अन्य शुभ दिन है तो वे शैम्पेन और श्री कृष्ण ने भी कहा। परन्तु ज्ञानेश्वर जी पीएंगे। मेरी समझ में नहीं आता कि इसाई- ने कुण्डलिनी जागृति के विषय में स्पष्ट बात धर्म कहलाने वाला यह कैसा असभ्य धर्म है! की, नानक साहब ने भी इसके विषय में बताया। यही बात अन्य धर्मों के विषय में भी है। अब सभी ने कुण्डलिनी के विषय में बताया कि यह आप देखें कि सिख लोग खालिस्तान शुरु कर रहे हैं। खालिस अर्थात निर्मल- शुद्ध । हमने होना आवश्यक है ताकि आपको आत्म- यहाँ एक खालिस्तान शुरु किया है वे वहाँ क्या कर रहे हैं? इतनी गन्दगी मस्तिष्क में भर के, महान शक्ति है। इसका आपके अन्दर जागृत साक्षात्कार प्राप्त हो सके। कोई भी उत्थानाकॉक्षी नहीं है सभी लोग किसी न किसी प्रकार से 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-38.txt पैतन्य लहरी বনड ११ 1999 37 अक धन एवं सत्ता व्यापार कर रहे हैं और इस दो, उन्हें स्वतन्त्र व्यक्ति बनने दो बाई ओर लोलुपता में धर्म के नाम पर वे एक दूसरे की के आन्दोलन में व्यक्ति महत्वपूर्ण हो जाता है। हत्या कर रहे हैं। धर्म के नाम पर वे दूसरों पर सामूहिकता का महत्व नहीं रह जाता, व्यक्ति शासन करने का प्रयत्न करते हैं । ये धर्म नहीं महत्वपूर्ण होता है। ये कहते हैं कि व्यक्ति की है। अवतरणों का इससे कुछ लेना-देना नहीं उन्नति होनी आवश्यक है और तब वह व्यक्ति है ऐसे लोग परमात्मा विरोधी हैं और परमात्मा दूसरे व्यक्ति से स्पर्धा करने लगता है तब दो के नाम को बदनाम कर रहे हैं। ऐसे बहुत से व्यक्ति परस्पर झगड़ते हैं, संस्थाएं परस्पर गुरु है, ये झूठ-मूठ के गुरु, जो धन एकत्र झगड़़ती हैं. मुकाबला होता है और व्यक्ति के करने के लिए सभी प्रकार का असत्य सिखा महत्व को उन्नत करने में लगे इन लोगों का भयानक दुर्व्यवहार देखने को मिलता है। यह नहीं लूट सकते क्योंकि परमात्मा तो प्रेम है आपका प्रजातन्त्र है जो बड़े-बड़े असुरों की और प्रेम को बाजार में बेचा नहीं जा सकता। सृष्टि करने में लगा हुआ है। जिनका आने दूसरों की कीमत पर कौन से अवतरण ने धन वाले कल हमें सामना करना होगा जब वे एकत्र किया? हमें उनके जीवन, उनके आदर्श इस देश में अपने दोगले (hybrid) उत्पादों को देखना चाहिए और तभी गुरुओं के पास को बेचने के लिए आएंगे और हम सब बिक रहे हैं। परमात्मा के सन्त आपसे कभी धन जाना चाहिए। मराठी की एक कहावत है. जाएंगे। गुरुचेति काले आहे । आज के कलियुग की यह दुर्व्यवस्था निःसन्देह हमारी बाएं या दाएं ओर जाकर असन्तुलित हो जाने के कारण है। क्योंकि हमारा उत्थान नहीं हुआ है। केवल इसी चीज़ का एक और पहलू भी है इसमें भी पूर्ण मूर्खता है अधिकारियों का नियंत्रण है जैसा हमें साम्यवाद में मिलता है। वहाँ व्यक्ति महत्वपूर्ण नहीं है समाज महत्वपूर्ण है । इतना ही नहीं, यह कपटी गुरु सभी प्रकार की गलत चीजें पढ़ा रहे हैं और आप लोग उनके सामूहिकता के हित के लिए व्यक्ति की बलि पीछे दौड़ रहे हैं। आपका अपना कोई व्यक्तित्व पढ़ा दी जाता है, उसे समाप्त कर दिया जाता नहीं है, कोई आधार नहीं है। यही कारण है कि आप इन मूर्खो के पीछे दौड़ रहे हैं जो आपको बेवकूफ बना रहे हैं। है. उसे जेल में डाल दिया जाता है। सामूहिकता को जीवित रखने के लिए सभी कुछ उचित माना जाता है। ये सभी मानव के मानसिक प्रक्षेपण एवं विचार धाराएं हैं जिनका जीवन से बिल्कुल कोई सम्बन्ध नहीं है? व्यक्ति को यदि आप भूखों मारने लगे या ऐसी घुटन में रहने राजनीति में भी ऐसा ही हो रहा है और हम या तो बाएं को चले जाते हैं या दाएं को। बाई ओर के आन्दोलन में नियंत्रण समाप्त हो जाता पर विवश करे दें तो अवसर प्राप्त होते ही वह है। नियंत्रण समाप्त कर दो, अनुशासन समाप्त ऐसे स्थान पर दौड़ेगा जहाँ उसे स्वतन्त्रता कर दो, लोगों को अपने स्वतन्त्र विचार बनाने मिल सके और इसके लिए उपयुक्त अवसर 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-39.txt पैतन्य तहरी আनड ११ अंक 38 १० 1999 पाते ही वह दुर्व्यवहार करने लगेगा अरब और समाज के बीच, चरित्र और धर्म के बीच देशों से आने वाले लोगों को मैंने देखा है वे सन्तुलन विकसित हो जाएगा। इस सन्तुलन अपने देश में शराब नहीं पीते परन्तु एक बार को लाया जाना आवश्यक है। यह सन्तुलन जब वे इंग्लैण्ड आ जाते हैं तो आप सोच नहीं सकते कि वे कहाँ-कहाँ जाते हैं। उनके अन्दर आपके अन्तर्निहित है. ये बाहर की चीज़ नहीं है, यह भाषण नहीं है, यह सिर्फ इतना कहना ही नहीं है, ओह मैं बहुत संन्तुलित हूँ । बहुत से लोग स्वयं को प्रमाणित करते हैं कि "मैं बहुत सन्तुलित हैँ, मैं पूर्णतया ठीक हूँ. मुझे इस पर विश्वास नहीं है।" आप विश्वास करने वाले या न करने वाले कौन होते हैं? क्या आपने वास्तविकता देखी है? वास्तविकता क्या बिल्कुल अन्तःपरिवर्तन नहीं है। परन्तु वै अपने ही स्वर्ग में रहे चले जाते हैं और सोचते हैं कि हमने सामूहिकता का हित पा लिया है । व्यक्ति के बिना सामूहिकता नहीं प्राप्त की जा सकती, और सामूहिकता के विना व्यक्ति कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकता, यह महत्वपूर्ण बात है। महसूस है? सबप्रथम यह वास्तविकता आपको तो बाएं और दाएं, दोनों आन्दोलनों को उचित रूप से नियंत्रित तभी किया जा सकता है जब करनी होगी। परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति ही वास्तविकता है। सर्वप्रथम इस वास्तविकता हम ये समझ लें कि हमें मध्य में रहना है। को महसूस करें। इसे महसूस करने के पश्चात् आप वास्तविकता की उस अवस्था तक पहुँच परन्तु मध्य में किसलिए रहना है? अपने उत्थान के लिए, अन्त्तपरिवर्तन के लिए इस कठोरता और मानसिक प्रक्षेपणों से हमें मुक्त होना है जाएंगें जहाँ आप अपनी अंगुलियों के सिरों पर क्योंकि मानसिक प्रक्षेपण रेखीय (linear) है। महसूस करेंगे आपमें क्या दोष है, दूसरों में ये एक ही रेखा में चलते हैं और विज्ञान की क्या दोष है, समाज में क्या दोष हैं, सामूहिकता में क्या दोष है और व्यक्ति विशेष में क्या दोष है। अपने दोषों को देखने के लिए जब तक तरह से पलटकर आपको कष्ट देते हैं। विज्ञान ने एटम बम बना दिया और अब आपकी समझ में नहीं आता कि इसका क्या करें कल आप आपमें पूर्ण ज्ञान न होगा कैसे आप दोषों को सभी प्रकार के कम्पयूटर बना लेंगे तो आप सुधार सकेंगे? एक व्यक्ति ने कोई कार्य किया कम्पयूटर के दास बन जाएंगे और कम्पयूटर है तो मुझे भी वैसा ही करना है, दूसरे व्यक्ति आपको नियंत्रित करेंगे। आपकी समझ में नहीं ने कुछ किया है तो मुझे उसे पछाड़ना है। आएगा कि क्या करें आपने इतनी सारी मशीनें समस्याओं का समाधान करने का यह तरीका बना ली. उनसे भी समस्याएं खड़ी हो रही हैं। नही है। परन्तु आप हिंसा पर हिंसा डाले चले इसके समाधान के लिए आपको उत्थान की जाते हैं, असत्य पर असत्य; अवास्तविकता पर आवश्यकता है जिसके लिए आपको मध्य में अवास्तविकता डाले चले जाते हैं। इसके लिए रहना होगा। एक बार जब आप मध्य में आ आपको आत्मसाक्षात्वकार लेना होगा। यह बहुत जाएंगे तो व्यक्ति और सामूहिता के बीच, मशीनों आवश्यक है। जिन लोगों ने आत्मसाक्षात्कार 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-40.txt अंक ९ व १० चैतन्य लहरी रड ११ 1999 39 प्राप्त कर लिया है मैं सोचती हूँ के वे मुखर सन्तुष्ट (स्पष्ट) रूप से कहेंगे कि उन्हें लाभ हुआ है। सहजयोग में हम कभी नहीं कहते कि. 'ऐसा स्वतंत्रता संघर्ष के समय लोगों ने कितना करो, ऐसा मत करो। मैं कभी नहीं कहती कि बलिदान किया। निःसन्देह अब वो लोग नहीं आप यह कार्य मत करो, क्योंकि यदि मैं ऐसा रहे, शासन कार्य में अन्य लोग दिखाई पड़ते कहूँ तो आधे लोग दौड़ जाएंगे। परन्तु जब है, परन्तु उस समय लागो ने बहुत बलिदान आप अपने हृदय में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर किया। सहजयोग में आपको कुछ बलिदान लेंगे और जब आप देखेंगे कि आपने हाथ में करने की आवश्यकता नहीं, कुछ त्यागने की साँप पकडा हुआ है तो स्वयं ही उसे फेंक आवश्यकता नहीं, आपको अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त देंगे मुझे बताना नहीं पड़ेगा । मेरे कहने का हो जाता है, लक्ष्मी तत्व सुधर जाने से आपकी अभिप्राय ये है कि आपको स्वयं का स्वामी बैंक राशी (bank balance) काफी बढ़ जाता बनना पड़ेगा, अपना गुरु बनना पड़ेगा। आप है। जीवन आपको पूर्ण संतोष प्रदान करता की अपनी ही शक्ति जागृत करनी होगी ये है। शान्त होकर आप हर चीज़ के साक्षी बन आपकी अपनी संपत्ति है जिसे आपको प्राप्त जाते हैं। आपका सौन्दर्य बोध बढ़ जाता है करना होगा मुझे इसमें कुछ नहीं करना, मैं और आप पूर्ण संघटित व्यक्ति (integerated तो मात्र उत्प्रेरक (catalyst) हूँ। ही personality) हो जाते हैं। आपमें ऐसी गतिशीलता आ जाती है कि आपको किसी का मैं आप सब लोगों की धन्यवादी हूँ। भिन्न केन्द्रों से चलकर मेरे जन्मदिवस पर मुझे भय नहीं रहता। परन्तु यदि केवल इतना ही कुछ था तो आप कह सकते हैं, "श्री माताजी मुंबारकबाद देने के लिए आप आए और आकर व्यक्ति (individual) किस प्रकार कार्य कर ये कहा कि यहाँ आकर आपको बहुत प्रसन्नता सकता है? आपको सामूहिक चेतना प्राप्त हो हुई। आप सबको देखकर मैं बहुत प्रसन्न हैं । जाती है जिसके द्वारा आप सामूहिकता को आप सभी लोग अपने क्षेत्रों में अथक कार्य कर महसूस कर सकते हैं। केवल इतना ही नहीं, रहे है पूरे विश्व में हमारे बहुत से केन्द्र हैं. सामूहिकता को ठीक करने की शक्ति भी आपको बम्बई में भी बहुत से केन्द्र हैं। जो लोग दिन प्राप्त हो जाती है. जैसे कि सहजयोगियों को और रात कार्य कर रहे हैं वे मुझे याद हैं। प्राप्त है । वे शान्ति की सृष्टि कर सकते हैं सभी प्रकार की मंगलमयता वे ला सकते हैं । हैं, बारह आश्रमों में वे लोग कार्य कर रहे हैं । ऐसा हुआ है. विश्व भर में ऐसा हो रहा है। परन्तु परेशानी ये है कि लोगों के पास लोग व्यक्तिगत रूप से भी कार्य कर रहे हैं। वास्तविकता को देखने के लिए समय नहीं है। हम नहीं कहते कि ऐसे वस्त्र पहनों या किसी । आस्ट्रेलिया में सिडनी के अन्दर बारह केन्द्र सामूहिक रूप से आश्रमों में वे रहते हैं। कुछ नहीं उन्हें जो भी कुछ प्राप्त हो गया है वे उसी से अन्य प्रकार की मूर्खता करो । ऐसा कुछ 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-41.txt चैतन्य लहरी ं ११ 40 अक १ मं १० 1999 है। संवेदनशील, विवेकवान, गरिमामय लोग जान सके कि यह कार्यक्रम यहाँ है। बहुत से अत्यन्त सुहृदय, प्रेममय एवं करुणाशील बन लोग शहर से बाहर गए हुए हैं परन्तु कोई गये हैं। केवल इतना ही नहीं नाड़ीग्रन्थः में बात नहीं इतने थोड़े समय में जो कुछ भी वर्णित वे ही लोग कल की नस्ल होंगे। उन्हीं किया गया बहुत ही अच्छी तरह से किया को चुना गया है और वही लोग विश्व के गया आयोजन करने वाले लोगों को मैं बधाई भाग्य का निर्णय करेंगे यह सब नाड़ी ग्रन्थ देती हूँ। उन्होंने इतने थोड़े समय में यह सारा में लिखा है । परन्तु व्यक्ति को समझना कार्य किया है यह सब स्वतंः (spontaneous) हुआ होगा कि जब तक मानव विशाल रूप से हैं। इतने थोड़े समय में यह सब कार्य कर सहजयोग को स्वीकार नहीं कर लेता यह सब पाना असम्भव है। सारे कार्यक्रम का निर्णय कार्यान्वित न होगा सहजयोग किसी व्यक्ति अचानक लिया गया। विशेष के लिए नहीं है। यह सामूहिक आन्दोलन है। गाँवों में मैंने देखा है, आठ हज़ार, दस 1 तो यह सजहयोग की उपलब्धि है कि आप लोग स्वतः सभी कुछ इतनी सुन्दरता पूर्वक आयोजित करते हैं। आप सब लोगों का हार्दिक हजार लोगों को सामू हिक रूप से आत्मसाक्षात्कार हो जाता है क्योंकि वे सहज धन्यवाद कि आप मेरे जन्मदिवस पर मुबारकबाद देने के लिए यहाँ आए । अपने जीवन काल में ही मैं इस पूरे विश्व को एक सुन्दर विश्व में परिवर्तित हुआ देखना चाहूँगी। लोग हैं केवल इतना ही नहीं वे वास्तविकता में अत्यन्त धार्मिक हैं। अब यहाँ नगर में भी हमारे बहुत से केन्द्र हैं। ये कार्यक्रम करने का निर्णय अचानक लिया गया, जिसके कारण हम सभी लोगों को सूचित न कर पाए । लोग ये न परमात्मा आप सबको धन्य करें। ता सा