चैतन्य लहरी नवम्बर-दिसम्बर 1999 अंक 11 & 12 खण्ड XII का का सि आनन्द सागर में विलय हो जाना कोई अद्वितीय या महान कार्य नहीं है। सागर से वाष्पीकृत होकर बादल बनना और फिर सब पर वर्षा करना अद्वितीय उपलब्धि होगी। मेरा यही लक्ष्य है और यही खेल। ( परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी) में इस अंक Sसे पृष्ठ नं. सम्पादकीय 1. 3. ध्यान-धारणा एवं समाधि 2. 4 सहस्रार पूजा (4.5.86) 3. गुरु पूजा (30.7.99) इंटरनेट सन्देश 4. 16 श्रीमाताजी के साथ साक्षात्कार 5. 18 हनुमान पूजा, पुणे (31.3.99) 22 6. माताजी श्री निर्मला देवी की डॉ. तलवार से बातचीत 7. 32 योगी महाजन सम्पादक विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 अभिनव प्रिन्ट्स, दिल्ली 34, मुद्रक फोन : 7184340 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 १ म ही र ा ा चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11.& 12, 1999 2. ाम লে। सम्पादकीय परमेश्वरी माँ की कृपा से असंभव घटित चेतना का उपयोग हम पर निर्भर है इसका उपयोग हो गया। एक जीवन काल में न हो पाने वाला कार्य एक आपराह्न में हो गया। हमने अगन्य चक्र पार कर लिया अर्थात अहं से ऊपर चले गए। इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि अह समाप्त उठाएं, मानों पानी में रहते हुए भी मछली प्यासी हो गया। इसका अर्थ यह है कि हमारी चेतना अहं है। के चंगुल से निकल गई। इससे पूर्व हमारे सभी कार्य अहंचालित होते थे। कोई और बेहतर मार्ग से पूर्व हमें अपना उपचार करना होगा यह उपचार हम न जानते थे। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् सहम्ार हमारे दृष्टिकोण को परिवर्तित करेगा और भेदन करने के पश्चात कुण्डलिनी हमें एक नई परिणामस्वरूप हमारे व्यक्तित्व सुन्दर हो जाएंगे। चेतना के साथ जोड़ती है और इस नई चेतना के तभी हम एक सच्चे सहजयोगी का ब्यक्तित्व पा माध्यम से हम अपने अह को देख पाते हैं। केवल इसे देख ही नहीं पाते इससे बचने की योग्यता भी हममें आ जाती है। इस नवचेतना का उपयोग हम अपनी विचार विधि हमें नहीं आएगी। इस कार्य-शैली को हम प्रक्रिया को ठीक करने के लिए भी कर सकते हैं आत्मानुभव से ही सीखते हैं। गाँधी जी के पास क्योंकि इसमें कार्य करने की शक्ति है। उदाहरण के रूप में व्यक्ति कुछ भी सोच सकता है; स्वयं महिला गाँधी जी के पास गई और कहा कि मेरा को दूसरों से ऊँचा मान सकता है। अन्य लोगों को बुरा मान सकता है, एक धर्माध व्यक्ति की तरह इसे ब्रत रखने का आदेश दें। गाँधीजी खामोश रहे। सोच सकता है। वह स्वयं को सदैव ठीक समझ सकता है। नवचेतना का प्रकाश हमारे विचारों की ने उसे एक सप्ताह बाद आने को कहा। उसके गलती का अनावरण करता है। विवेकशील व्यक्ति पुत्र को व्रत के लिए कहने से पूर्व गाँधीजी स्वयं यदि टेलिफोन में कोई कमी देखे तो तुरन्त इसे इसका अनुभव करना चाहते थे। स्वयं ब्रत करने ठीक करता है। इसी प्रकार अपनी गलतियों को के पश्चात् गाँधीजी ने उस महिला के पुत्र को सुधारने में भी बुरा मानने की कोई बात नहीं। मान बुलाया और उसे व्रत करने की हिदायत दी। लो आत्मसाक्षात्कार से पूर्व कोई व्यक्त नकारात्मक था। उस समय अपनी कमियाँ देखने की चेतना जमाखर्च से यह अन्य लोगों को प्रभावित नहीं उसमें न थी। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् वह अपनी करती। अपनी कुण्डलिनी के माध्यम से हम अन्य कमियों को देख सकता है और अपनी नवचेतना लोगों को सहजयोग का सन्देश दे सकते हैं। परन्तु से उन्हें दूर कर सकता है। इस प्रकार यह नवचेतना हमारे दृष्टिकोण परिवर्तित करती है और बुराइयों होगा केवल तभी हम अन्य लोगों के हृदय में के दुष्परिणामों से हमें मुक्त करती है। परन्तु इस यदि हम नहीं करते तो बह तो ऐसे होगा जैसे नए वस्त्र होते हुए भी हम उन्हें न पहने। हमारे पास वै भव हो फिर भी हम उसका आनन्द न नई चेतना से अन्य लोगों का उपचार करने सकेंगे। तब हम दूसरे लोगों को भी सुधरने में सहायता कर सकंगे। यदि हम सर्वप्रथम अपने को ठोक नहीं कर करते तो दूसरों को ठीक करने की गई एक महिला की मनोरंजक कहानी है। एक पुत्र पूर्णमासी के दिन च्रत नहीं करता, कृपा करके उनकी खामोशी से महिला को खेद हुआ। गाँधीजी सहजयोग एक जीवंत शक्ति है। जुबानी सर्वप्रथम हमें अपनी कृण्डलिनी की आज्ञा में रहना सहज ज्योति प्रज्जवलित कर सकेंगे। चैतन्य लहरी । खंड : 11& 12, 1999 XI1 अक : 11 .& 12, 1999 ध्यान धारणा एवं समाधि परम पूज्य गाताजी श्री निर्मला देवी ( 19 जनवरी-1984) आज मैं आपको ध्यान-धारणा के विषय अपना चित्त अपने इष्ट पर डालते हैं। यह में कुछ बातें बताऊंगी। विश्व के भिन्न देशों से आए हुए आप सब सहजयोगियों को देखकर मेरा हृदय आनन्द विभोर हो उठा है। हृदये जब विभोर हो तो उसकी गहनता को अभिव्यक्त परन्तु आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के लिए यह सब करने के लिए शब्द बहुत दुर्बल माध्यम होते हैं। नाटक मात्र है। उनके लिए यह एक प्रकार का काश आपके हृदय भी उस गहनता का समझ पाते। मेरे विचार से परमात्मा ने ही प्रकृति की गोद में इतने सुन्दर वातावरण में यहाँ हमारे सर्वप्रथम आपकी 'ध्यान' करना होगा। कुछ ध्यान' कहलाता है, और धारणा वह अवस्था है जिसमें आप पूर्ण प्रयत्न करते हैं, आअपने सारे प्रयत्न को संकेन्द्रित (Concentrate) करते हैं। अभिनय है जिसे वे करते हैं। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के लिए ये अवस्था वास्तविकता है।. तो लोग साकार रूप का ध्यान करते हैं और कुछ निराकार का। यरन्तु आप लोग मिलने का प्रबन्ध किया है ताकि हम सबके साथ कुछ महान घटना घट सके और इस बार इतने हम कुछ वास्तव में महान उपलब्धि प्राप्त कर सौभाग्यशाली हैं कि निराकार ने आपके सके क्योंकि समय बहुत कम है, सर्वप्रथम में आपको ध्यान-धारणा के विषय में कुछ बारतं लिए साकार रूप धारण कर लिया है। निराकार से साकार : ये सब, एक साथ, विद्यमान है। आप देवता (अपने इष्ट देव) का ध्यान करें, उनके विषय में सोचे या साक्षात् बताऊंगी। ध्यान' एक आम शब्द है। ध्यान-धारणा के लिए आवश्यक तीन कदमों का यह वर्णन निराकार का ध्यान करें। जब तक आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं होता। यह सब कुछ आपके लिए मानसिक प्रक्षेपण (दिमाग्री जमाखर्च ) नहीं करता। परन्तु संस्कृत में लिखे शास्त्रों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ध्यान-धारणा में उन्नति के लिए आपको किस प्रकार चलना है। मात्र हाता है। परन्तु आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होने सर्वप्रथम 'ध्यान' हैं, दूसरे 'धारणा' और के पश्चात् आपको मात्र ध्यान के विषय में फिर 'समाधि'। सोभाग्यवश सहजयोग ऐसी प्रणाली है कि आपको ये तीनों स्थितियाँ एक साथ सोचना होता है कि किस पर चित्त संकेन्द्रित करें या किसका ध्यान करें। किसी व्यक्ति का ध्यान जब आप करने लगते हैं तो आपका चित्त भटकने लगता है। आत्मसाक्षात्कार भी ऐसा होना सम्भव है, यद्यपि यह सब (ध्यान, धारणा समाधि) आपको एक साथ मिल गया है। (गठरी में) मिल जाती हैं। शेष सब चीज़ों से आप बचने लगते हैं ओर आप लोगों को समाधि प्राप्त हो गई है। सहजयोग की यही सुन्दरता है। के पश्चात् ध्यान परन्तु कुछ लोगों को यह एक-एक भाग करके मिलता है। ध्यान-धारणा का पहला भाग 'ध्यान है। साधना जब आपमें जागृत होती है तो आप चतन्य लहरी ॥ खंड : XI1 अंक : 11 & 12. 1999 প तो ध्यान करते हुए अभी भी आपका अभिव्यक्ति बन जाता है। अब आपको यह नहीं सोचना पड़ता कि चित्त हर क्षण भटकता है। चित्त की एकाग्रता के अनुसार ऐसा होता है। मैंने देखा है कि कुछ मुझे अवश्य चित्त केन्द्रित करना है, ठीक सहजयोगी खाना बना रहे होते हैं और दूसरे ध्यान कर रहे होते हैं ध्यान करता हुआ सहजयोगी इसके विषय में सोचना है। यह स्वतः ही हो कहेगा अब मैं ये विचार नहीं आने दूंगा, अब मुझे ओह! जलने की गन्ध आ रही है।" जाता है । आप कोई भी पुस्तक पढ़ें उसमें आप इसका अर्थ ये है कि 'धारणा' नहीं है। ध्यान ता तुरन्त खोज लंगे कि सहजयोग के हित में क्या है परन्तु 'धारणा' नहीं है। दूसरा भाग अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि आपने निरन्तर अपना चित्त अपने इष्ट देवता (Deity) पर रखना है। तब अन्दर जागृत हुई है यह मस्तिष्क की एक नई आपमें वह स्थिति विकसित होती है जो धारणा कहलाती है, जिसमें आपके चित्त का एकीकरण इष्ट देवता के साथ हो जाता है। यह स्थिति ऋतम्भरा प्रकृति का नाम है। व्यक्ति को लगता परिपक्व होने के पश्चात् तौसरी अवस्था 'समाधि' है कि पूर्ण प्रकृति ही ज्योतिर्मय हो उठी है। है कोई पुस्तक यदि परमात्मा विरोधी होगी तो आप उसे त्याग दंगे। अब जो अवस्था आपके अवस्था है। संस्कृत भाषा में इसका बहुत सुन्दर नाम है, 'ऋतम्भरा प्रज्ञा', एक अति कठिन नाम। मैं का उदय होता है जो लोग ये में दूध आ जाता है । के विना ही वे 'समाधि' प्राप्त कर सकते हैं तो प्रकृति अपने आप बच्चे के जन्म के लिए कार्य मेरे विचार से वे पूर्णत: भ्रमित हैं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् जब धारणा स्थापित हो सहजयोगियों के लिए कार्य करने लगती है तो जाती है, आपको वह अवस्था प्राप्त करनी होती है जहां आप समाधिस्थ हो जाएं। यह कौन सी कार्य हो गए। अवस्था है? आपके मस्तिष्क में जब वह स्थिति बन जाती है तो जो भी कुछ आप करते हैं जिस "इष्ट' की आप पूजा करते हैं. अपने कार्य में भी वताते हैं कि श्रीमाताजी यह चमत्कार हुआ. वह उसी इष्ट को देखते हैं। आपको लगता है वही 'इष्ट' आपका पथ-प्रदर्शन कर रहा हैं। इस बात को आप इस प्रकार भी कह सकते हैं कि जो दूँगी। कल हम सीमेंट का कोई कार्य करवा रहे भी कुछ आप सुनते हैं आपको लगता है कि आपके 'इष्ट देव' ही आपको सच्चाई बता रहे लिए दो बोरी सीमेन्ट की आवश्यकता होगी। हैं। जो भी कुछ आप पढ़ते हैं आपको लगता है मैंने कहा, "आप काम को चालू रखो, सीमेंट कि आपके इष्ट देव आपको यही बताते। इस अवस्था में अपनी आंखों, नाक तथा शरीर के चालू था और सीमेन्ट समाप्त नहीं हुआ था। अब अन्य अवयवों से जो भी कुछ आप करते हैं वह एक उदाहरण दूंगी। बच्चे के जन्म से सोचते हैं कि आत्मसाक्षात्कार पूर्व स्वत: ही माँ के स्तनों करती है। इसी प्रकार जब ऋतम्भरो प्रज्ञा आप हैरान हो जाते हैं कि अचानक किस प्रकार तो ऋतम्भरा प्रज्ञा ने आपके हित में कार्य करना आरम्भ कर दिया है। आप सभी मुझे घटना हुई। और हम नहीं जानते कि ये सब किस प्रकार घटित हुआ! में आपको एक उदाहरण थे और इटली के उस लड़के ने कहा कि इसके समाप्त नहीं होगा।" मेरे जाने से पूर्व तक काम आप कल्पना करें कि सीमेन्ट जैसी जड चीज़़ भी यह सब जानती है। स्वत: ही एक प्रकार से आपके आराध्य देव की चैतन्य लहरी । खंड : X11 अंक : 11& 12, 1999 तो आपकी अवस्था ही विशिष्ट है-बह कि आप सन्त हैं, परमात्मा द्वारा चुने गए और मैंने -साकार एवं निराकार ने - आपको पुनर्जन्म दिया है। तो ये प्रज्ञा अभिव्यक्ति करेगी, यह हर क्षण अभिव्यक्ति कर रही है। तैयार हो जाएं. अवस्था जिसमें आपकी एकाकारिता प्रकृति से है और प्रकृति की एकाकारिता आप से। तो परमात्मा भिन्न चटनाओं कार्यो, प्रति परमेश्वरी चिन्ता द्वारा स्वयं-प्रकृति के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति कर रहे हैं। और यह तंत प्रेम, सुरक्षा तथा आपके प्रसन्न रहें और इसका स्वागत करें। स्वीकार करें अनन्त है। यह घटित होता है और लोग समझ भी नहीं पाते कि कैसे! परन्तु यही तो समाधि कि आप वहाँ हैं। स्तर भिन्न है। अब समय आ गया है कि सहजयोग अपना स्तर परिवर्तित करें। की अवस्था है। परन्तु कुछ लोग, ऐसे भी हो सकते हैं जिनसे मैं यदि कहूँ कि "क्या आप यह कार्य करेंगे?" "नहीं, श्रीमाताजी, दुकान बन्द हो गई हमें परिवर्तित होना है। हमें ऊँचा उठना है। स्तर को ऊँचा उठाना है। जो लोग परिधि रेखा पर हैं वो निश्चित होगी।" वा मेरा बताया गया कार्य नहीं करेंगे। ऐसा करना ठीक नहीं है। ये लोग ऐसे ही चलते रहते हैं। कुछ ऐसे भी लोग है जो कहते हैं कि जब श्रीमाताजी ने कोई कार्य करने को कहा है रूप से मैरे लिए समस्या है क्योंकि अपनी बाहर नहीं फेंक सकती। यह बताकर कि उन्हें ऊँचा उठना होगा, करुणा के कारण में उन्हं तो हम दुकान को देख तो लें। इस प्रकार के हमें स्थापित होने में उनकी सहायता करनी होगी। हज़ारों उदाहरण है। आज कुछ सहजयोगी पलंग उनके लिए हम कव तक प्रतीक्षा करेंगे? सभी को खिसकाने का प्रयत्न कर रहे थे। मैंने कहा, ठीक है, मैं इसे धकेलती हूँ। उस पर मैने खड़े हुए (आधे-अधूरे) लोग अच्छी तरह से केवल अपनी नाभि से चित्त डाला. किसी चीज सहजयोग में आ जाएं करुणा तो ठीक है, को धकेला नहीं। और वह पलंग खिसक गया। परन्तु करुणा कभी भी सहजयोग को निम्न सहजयोगियों को देखना है कि परिधि रेखा पर स्तर पर बनाए रखने की कीमत पर नहीं ऋतम्भरा प्रज्ञा के कारण।" यह सहायता चमत्कार आदि कुछ नहीं है। परमात्मा में अपना प्रेम होनी चाहिए। जो लोग सहजयोग में भली-भांति अभिव्यक्त करके यह दर्शाने की शक्ति विद्यमान है कि आप सन्त हैं और परमात्मा द्वारा चुने गए है। हैं। परन्तु इसके लिए आपको पहले वह स्थिति स्वीकार करनी होगी परन्तु यदि लोगों की तरह से ही व्यवहार करते रहे-हे जम गए हैं। हमं उनका स्तर ऊंचा उठाना अत: हर व्यक्ति को स्थापित होने का और निम्नतम (Minimum Standard) वाछित आप अन्य स्तर तक उन्नत होने का प्रयत्न अवश्य करना परमात्मी दुकानें बन्द हैं, बह व्यक्ति बड़ा कठिन चाहिए। हैं, मैं नहीं सोचता कि यह कार्य होगा-तो ये कभी नहीं होगा। आपको समझ लेना होगा कर सहजयोग से बाहर हो जाएंगे। अन्यथा, मुझे खेद है वहुत से लोग छन चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 tত जा - 4 .5.1986 सहस्रार पू मेडिशिमो इटली परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रजचन | এ (ये प्रवचन आपकी माँ का अनुराग चीजों के प्रति जागरूक हो जाते है जिनके प्रति (Concern) है। इसमें कही किसी बात कर बुरा पशु चेतन नहीं है। यही कारण है कि मस्तिष्क न मानना। ये बातें मैं दो वर्ष पूर्व या एक वर्ष से वे समझ नहीं पाते कि वे भी पदार्थों का पूर्व भी नहीं कह पाती। अब आप एक ऐसी उपयोग अपने हित मे कर लें । मानव रूप में भी अपने अन्तः स्थित आपको बता सकती हूँ। आप यह सब समझ चक्रों के विषय में आप सब चेतन न थे तो अनजाने में चक्रों की कार्यशीलता और चेतन अवस्था में मस्तिष्क की कार्यशीलता के माध्यम अवस्था तक पहुँच गए हैं जब में यह सब सकते हैं परन्तु इसका आपकी चेतना बन जाना आवश्यक है। समझ पाने की अवस्था तक तो पहुँचा जा चुका है परन्तु इसे आपकी चेतना बना से आपकी चेतना आधा-अधूरा कार्य कर रही जाना चाहिए। यदि आप अपनी स्थिति को बनाए थी। अपने स्वःचालित रखें तो जो भी कुछ हुआ है उसे घटित होना अवयवों को आपने कभी महसूस नहीं किया कि चाहिए। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें ) आज का दिन हम सबके लिए बहुत ये भी महसूस नहीं हुआ नाड़ी तन्त्र या आन्तरिक यह किस प्रकार कार्य कर रहे हैं। आपको कभी कि अन्य चौजों का महान हैं क्योंकि आज सोलहवा सहस्रार है आप पर किस प्रकार प्रभाव पड़ रहा है। मानव अर्थात कविता में अवरोह अवस्था पर पहुँचने के को जो स्वतन्त्रता प्रदान की गई उसके परिणामस्वरुप लिए सोलह ताल या सोलह स्पंदन अर्थात पूर्णता अनजाने में ही उसने अपने मस्तिष्क में, अपने की स्थिति । सोलह कला सम्पूर्ण होने के कारण श्री कृष्ण को पूर्ण अवतार कहा जाता है। तो बहुत सी निष्फल चीजों के लिए मनुष्यों ने अब हम एक अन्य आयाम में प्रवेश करते हैं । अपने मस्तिष्क का, अपने सहस्रार का उपयोग सारी चीजें एकत्र कर ली। सहस्रार में, बहुत किया। मानव श्री कृष्ण द्वारा दी गई चेतावनी से अनभिज्ञ था कि यदि मानवीय चेतना का अपने प्रथम अवस्था में आपने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया। विकास प्रक्रिया में यदि आप देखें तो, उत्थान के अतिरिक्त आप कहीं और उपयोग प्रति मानव चेतन होता है। जैसे पशु भौतिक करेंगे तो आप अधोगति की ओर बढ़ने लगेंगे। पदार्थों को अपने लिए उपयोग नहीं कर सकते । लोगों को इसके विषय में बताया गया था, ऐसा अपने प्रति वे बिल्कुल भी चेतन नहीं होते। नहीं कि उन्हें बताया नहीं गया। वे इसके विषय पशुओं को यदि आप शीशा दिखाएं तो वनमानुष में जानते भी थे पूर्व या पश्चिम सभी लोग के अतिरिक्त वे प्रतिक्रिया नहीं करते। इसका जानते थे कि उन्हें पुनर्जन्म लेना होगा। पश्चिम अर्थ ये हुआ कि आप उनके कुछ करीब हैं। के लोगों ने सोचा कि अपने मस्तिष्क की शक्ति को उपयोग करके वे भौतिक पदार्थों का स्वामित्व पशु उन चीजों के प्रति चेतन नहीं होते जिनके जब हम मनुष्य बन जाते हैं तो बहुत सी उन चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 प्राप्त कर सकते हैं और उसे अपने उद्देश्य के होती है सृष्टि का उद्देश्य ही विकास है। तो लिए उपयोग कर सकते हैं। ऐसा यदि वे आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् करते तो आपने आसानी से स्वीकार कर लिया है. सामने स्थिति बिल्कुल भिन्न होती क्योंकि आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् आप सब चक्रों और लहरियों के प्रति आपकी आदत हो गई है, वह ये हैं कि हर जागरूक हो गए हैं। ये लहरियाँ चैतन्य है। इस नवचेतना को पाकर आप सारी गलत चीजों से किसी न किसी उत्तेजना की आवश्यकता होती अपने मस्तिष्क के कारण जिस दूसरी धारणा को आने वाली हर चीज को स्वीकार करना क्योंकि समय स्वयं को महसूस करने के लिए आपको बचते हैं। परन्तु यह उस लोभी व्यक्ति की तरह है जिसे कहीं से थोड़ा सा धन प्राप्त हो जाए है। इसके कारण आप अस्वाभाविक हो गए हैं । जीवन के हर क्षेत्र में कोई न कोई धारणात्मक और वो उस सारे धन को खर्च कर डाले। इस बनावटी सूझ-बुझ है। उदाहरण क रूप में आप समस्या ने आपके मस्तिष्क जटिल कर दिए है। आपकी कुछ विशेष धारणाएं हैं जो वास्तविकता से बहुत परे हैं। जिस प्रकार हम मशीनों का चीज नहीं। परन्तु इसको भी आपने इतना बनावटी उपयोग कर रहे हैं उससे हम स्वयं मशीन बन गए हैं हमारे अन्दर भावनाएं लुप्त हो रही है और प्राकृतिक ढंग से हम किसी से सम्बन्धित न केवल मूलाधार में श्रीगणेश को मौन कर नहीं रह पाते। मानवीय चेतना में आपको यह दिया है बल्कि मस्तिष्क में महा-गणेश को भी उपलब्धि प्राप्त हुई थी कि स्वयं को किस प्रकार बिगाड़ दिया है। अन्य लोगों से और प्रकृति से जोड़े रखें। परन्तु यह अहम् चालित धारणा हमें प्राकृतिक, सच्चे जीवन से दूर ले गई और हम बनावटी हो गए। सारी चीज का उद्भव बनावटीपन की धारणा से हुआ। लोग कहते हैं कि दम्भी एवं अहंकारी होना फैशन है। काम भावना को ही लें। यह अत्यन्त स्वाभाविक एवं सामान्य चीज है। इसमें कोई इतनी महान बना दिया है कि अब आप काम भाव को मस्तिष्क में लिए घूमते हैं। ऐसा करने से आपने ग कला को ही लें। आजकल एक मूर्ख धारणा है कि कला को वर्णित मापदण्डों के अनुसार होना चाहिए। जैसे किसी को बुलाकर आप उस पर वरस पड़े, उसकी प्रताडना करे, उल्टा-सीधा कहें। सभी की प्रताडना करते रहे और अन्ततोगतवा इस परिणाम पर पहुँचे कि म कला अत्यन्त महत्वहीन है। मानो गर्ने में से सारा रस निचोड़ लेने के पश्चात् एक दिन अवशेष कला बन जाएंगे। जो मस्तिष्क यह आपकी विकास प्रक्रिया तथा उत्थान के बिल्कुल विरुद्ध है क्योंकि मानव होने के नाते दूसरों से जुड़े रहने की शक्ति जो, आपने उसके प्राप्त की थी, उससे आपने कन्नी काट ली है। सामूहिक सूझ-बूझ पर आधारित जो संस्थाएं आपने बनाई हैं वे भी बनावटी है। अब एक रोबोट की तरह हो गए हैं। इसका संचालन कोई आन्दोलन आरंभ हुआ है कि हमें बनावट को भी प्रवीण मस्तिष्क व्यक्ति कर सकता है क्योंकि हृदय का पोषण नहीं करता वह यन्त्र मानव (Robot) की तरह पूर्णत: बनावटी है। तो लोग यदि आपमें हृदय न होगा तो धारणाओं से परिपूर्ण आपसे अधिक शक्तिशाली कोई भी मस्तिष्क आपको वश में कर लेगा। ये सारी त्यागना है। ऐसा करना भी बनावट की ही नकल है। स्वाभाविक होने का अर्थ असभ्य (अपिरष्कृत) व्यक्तित्व होना नहीं है। स्वाभाविकता विकसित ৪ चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक :11 & 12, 1999 धारणाएं विनाशकारी हैं । हिटलर के मस्तिष्क में प्रबल धारणा बन सकते हैं? इस प्रकार तो आप सारी शराब, सारा पागलपन और जीवन के सारे आनन्द को मिला हैं कि उत्थान प्रक्रिया के कारण वे पागल होने की सारी स्वतन्त्रता खो ं देंगे इस स्थिति से, लोगों को प्रतिक्रिया करते हुए यदि आप देखें तो हैरानी होगी। किसा चीज को बाजार में बेचने के लिए आपको कोई न कोई अजीबोगरीब तरीका अपनाना पड़ेगा। उस गई कि वह आर्य है और उच्च जाति का हैं। पूरे देंगे। लोग समझते विश्व को नष्ट करने में उसे कोई संकोच न होता। धर्म के क्षेत्र में भी ऐसा ही है। सभी धर्मों को धारणाओं के तुच्छ पात्र (Cup) में भर दिया गया, उड़ेल दिया गया। अब एक नई निकृष्टतम धारणा जो मानव ने अपना ली है वह ये हैं कि धन हो सभी कुछ दिन मुझे बताया गया कि खाली डिब्बों को लैम्प है। राजनीतिक प्रभुत्व को बहुत महत्वपूर्ण मानते हुए मानव ने सर्वप्रथम राजनीतिक प्रभुत्व प्राप्त करने का प्रयत्न किया। इसका दुष्प्रभाव उनके सौन्दर्य एवं आनन्द के समीप भी नहीं आते नाड़ी तन्त्र पर पड़ा। मैंने जब जीवन आरम्भ फैशनेबल मानकर स्वीकार किए जा रहे हैं । किया तो देखा कि सहस्रार अति जटिल थे। अपनी चेतना के अन्दर जितना अधिक मैंने इन जटिलताओं को सुलझाने का प्रयत्न किया उदना ही अधिक ये जटिल और कठिन होते गए। प आसुरी विद्या फैलती है तो शुद्ध विद्या उसको यदि मेरी आयु को देखें तो आप जान जाएंगें कि गति का मुकाबला नहीं कर सकती । जैसे अमेरिका बनाकर बेचने से कोई ब्यक्ति बहुत धनी हो गया है। सभी प्रकार के मूर्ख कार्य जो, प्राकृतिक इसी का दूसरा पक्ष आसुरी विद्या, काली विद्या है, जो छा गई है। गीता के पन्द्रहवें अध्याय में श्री कृष्ण ने चेतावनी दी है कि जब के सहजयोगियों में बहुत बड़ा वाद-विवाद हुआ कि बैठक कक्ष ( Drawing Room में मेरा इन पंचास वर्षों में मानव में कितनी जटिलता आ गई है। सहस्रार खोलने के पश्चात् आ गई और इन सोलह वर्षों में मुझे लगा कि फोटो लगाया जाना चाहिए कि नहीं। उन्हें यदि उनकी स्थिति अत्यन्त भयानक हो गई है। आपके कहा जाए कि अपने चेहरे काले कर लो, काले लिए एक, अवस्था निश्चित कर दी गई है कि रंग से अपने नाम लिखो, चुड़ैलों की तरह से आपको ऊँचाई पर उन्नत होना है। यही पृष्ठ काले कपड़े पहनो, तो वे यह सब कर लेंगे । भूमि (Back Ground) है, जिसका मैंने वर्णन यरन्तु सहजयोगी होने के पश्चात् भी हमें अपने किया है। आप देख सकते हैं कि जिस दिन दिव्य जीवन पर शर्म आती है। ये लोग जब आप कार्यक्रम करते हैं तो पाँच सौ व्यक्ति होते हिप्पी बन जाते हैं, शैतान बन जाते हैं या इसी हैं और दो सप्ताह में सभी लुप्त हो जाते हैं. क्योंकि उत्थान घटित होते समय कुण्डलिनी अहं को बाहर धकेलती है और व्यक्ति को बास्तविकता के समीप लाती है। परन्तु पुनः ये जीवन, अपनी जीवन शैली और अपना सभी अहम् जो बढ़ी तेज गति से बन रही है, कुण्डलिनी कुछ परिवर्तित करके बाहर चले गए परन्तु की गति को रोक कर पूरे सिर पर छा जाता है । सहजयोग की दिव्यता के विषय में विश्वस्त होने मैं पश्चिम में प्रकार की कोई अन्य मूर्खता करते है तो उसके लिए अपना सारा जीवन, सारा समय और सारा धन भी लगा देते हैं। ये लोग अपने पारिवारिक परन्तु इस प्रकार आप देवी जीवन कैसे पा के बावजूद भी सहजयोगियों को लज्जा आती है। चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 आपमें से सभी को प्रतिदिन सोचना आप जानते हैं कि आपकी माँ आपसे कोई पैसा नहीं लेती। लेना तो दूर वो अपनी जेब से खर्च चाहिए कि आज मैंने सहजयोग के लिए करती हैं। आप सबको इससे लाभ हुआ है। परन्तु जब देने का प्रश्न आता है तो आप क्या किया? परन्तु आप सब तो अपनी नौकरियों में, धन कमाने में अपने संबंधियों सभी को संकोच होता है। इन संस्कारों से के साथ और उन सब लोगों के साथ जिनका आकर आप परमात्मा की कृपा प्रकाश में आ सहजयोग में कोई महत्व नहीं है, व्यस्त हैं। रहे हैं, फिर भी इसे प्राप्त करने की आपको हमें जी जान से उस उच्च अवस्था तक कोई जल्दी नहीं। आप शनैः शनैः ही होने दें, उन्नत होने का प्रयत्न करना चाहिए जहाँ जो परन्तु हो सकता है कि आप ये अवसर खो भी कुछ हम जानते हैं, जिस पर हमें विश्वास दें। तो सहजयोगियों की चेतना में आपको अपने है, उसी के अनुसार कार्य करते हुए, उसी सारे चक्रों का तथा चैतन्य लहरियों का ज्ञान है, ज्ञान से एकाकारिता प्राप्त करें। धारणाओं के साथ तो आप ऐसा कर सकते हैं परन्तु वास्तविकता जुड़े रहना है, फिर भी इस सारे ज्ञान का उपयोग के साथ नहीं। यह एक समस्या है इस बात को आप अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए करते हैं। मैं विस्तारपूर्वक समझाऊंगी। मान लो एक कट्टर यद्यपि आपको नई चेतना प्राप्त हो गई हैं फिर पंथी व्यक्ति को विश्वास है कि अपने धर्म में भी पूर्व संस्कारों की परछाई आप यर बनी हुई वह कोई कार्य कर सकता है तो वह उसे कर देगा। परन्तु धारणा वास्तविकता नहीं है। धारणाओं आप ये भी जानते हैं कि किस प्रकार दूसरों से है। पशु स्वतः तैर सकते हैं, तैरना सीखने की उन्हें कोई आवश्यकता नहीं। परन्तु मानव को से किसी को लाभ नहीं होता और न ही इनके तैराकी सीखनी पड़ती है। तो मानव को वो सारी कोई महत्वपूर्ण परिणाम नजर आए। फिर भी विधियाँ भूल गई हैं जो पशु जानते हैं मानव ने लोग ऐसा करते हैं । अपने देश में मैंने देखा कि जब लोग स्वतन्त्रता संग्राम कर रहे थे तो मेरे इस जीवन में आपको आत्मसाक्षात्कार मिला है पिताजी ने अपनी सारी सम्पत्ति का त्याग कर और इसी जीवन में आपको उन्नत होना है और दिया। अपने कार्य को छोड़ दिया और ग्यारह बच्चों का महलों में रहने वाला परिवार कई वर्षो तक झोपड़ियों में रहा। जब इस स्थूल स्वतन्त्रता मानवीय तकनीकें अपना ली हैं। सहजयोग में उत्थान के शिखर को प्राप्त करना है। समय बहुत कम है और पृष्ठभूमि (पूर्व संस्कार ) बहुत अंधकारमय है। आप ऐसे लोगों से घिरे के लिए हम सभी कुछ करते हैं तो सहजयोगी हुए हैं जो सुबह से शाम तक आपमें विनाशकारी की आध्यात्मिक स्वतन्त्रता के लिए भी हमें हर धारणाएं भरते रहते हैं। आप ही लोग बाकी लोगों सम्भव प्रयत्न करना चाहिए। से कहीं अधिक तेजी से इन परिस्थितियों से बाहर निकल सकते हैं। यद्यपि आप जानते हैं महसूस करें, चेतन हों, मस्तिष्क से हर कि आपकी चेतना अन्य लोगों की चेतना से कहीं भिन्न है, फिर भी एक प्रकार की अकर्मन्यता, जो सहजयेग को बैसे स्वीकार नहीं करती जैसे किया जाना चाहिए, अब भी बनी हुई है। तो पहली आवश्यकता ये है कि हम समय जागरूक हों कि हम सहजयोगी हैं। आप ही लोग पूरी मानवता से बहुत ऊँचे हैं। पूरी मानवता का उद्धार आप पर निर्भर है । सृष्टि का उद्देश्य आप ने ही पूर्ण करना है। 10 चैतन्य लहरी ॥ खंड़ : XII अंक : 11 8 12, 1999 तो सर्वप्रथम अपनी चेतना में आपने चेतन को किस समय विशेष पर आपने क्यों करना है जब तक आप अपने को उन्नत नहीं कर लेते और निर्विकल्प नहीं करते तब तक आप आगे होना है कि आप अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं और इसी कारण आपको आत्मसाक्षात्कार दिया गया। किस प्रकार आप अपने अहम् और नहीं बढ़ सकते। उदाहरण के रूप में, मैं जो भी बन्धनों में फँसे रह सकते हैं? बन्धन ऐसे हैं- कुछ करती हूँ. उसका मुझे ज्ञान है। इच्छानुसार मान लो आप इसाई धर्म से सम्बन्धित हों तो मैं किसी भी शक्ति का संचालन कर सकती हूँ आप उस धर्म की कुछ बातें सहजयोग में लाना चाहते हैं और यदि आप हिन्दू धर्म से थे तो उस हजारों मील दूर हों मैं आप सबके विषय में धर्म की कुछ चीजें सहजयोग में लाना चाहते हैं। जानती हूँ। आपके सांसारिक नाम चाहे मुझे सहजयोग में शक्ति का पूर्ण सार है, सभी पावन तत्व हैं। इसमें हम मूर्खतापूर्ण बातों को स्थान के रूप में मैं आप सबको जानती हूँ। सर्वसाध नहीं दे सकते । ये सारे बन्धन हमारे सहस्रार पर गन्दगी की तरह से है जिसका साफ होना सकती हूँ, विल्कुल आपकी तरह, आप की ही और न चाहूँ तो नहीं करती। आप चाहे मुझसे पता न हो परन्तु अपने अंग-प्रत्यंग ( अंश ) रिण मानव को तरह से भी मैं आचरण कर तरह से वृद्ध होते हुए, चश्मा पहनते हुए और वे आवश्यक है। अब यद्यपि आप अपने चक्रों के विषय में चेतन हैं फिर भी आप इन्हें शुद्ध नहीं सभी कार्य करते हुए जो मुझे पूर्ण मानव के रूप रखते। सर्वसाधारण लोग भी अपने कपड़ों, घरों में दर्शा सकें, और पूर्ण चेतना में मैंने इस आदि को साफ रखने का प्रयत्न करते हैं । गरन्तु परिवर्तन को स्वीकार किया है अनजाने में नहीं। आपके चक्र यदि खराब हैं तो आपकी इस पर मेरे लिए कुछ भी अचेतन नहीं। जो भी कुछ लज्जा नहीं आती और कुछ समय पश्चात् इनके आप करते है यदि उसके विषय में चेतन होना प्रति आपकी जागरूकता समाप्त हो जाती है। चाहते हैं तो आपको चुस्त होना होगा पहली इसका अर्थ यह हुआ कि आप सूक्ष्म तो हो गए उपलब्धि जो आपने प्राप्त की है वह हैं हैं परन्तु अपनी चेतना में अभी तक आप सूक्ष्म शान्ति-शान्ति परन्तु अब भी मैं देखती हूँ कि नहीं हुए। पूर्ण साक्षात्कारी होने के कारण आप उन लोगों से बहुत कुछ अधिक जानते हैं जो चाहिए था वह झगड़ा बनकर रह गई हैं। सत्य साक्षात्कारी नहीं है। परन्तु अभी तक भी हम एक ही है। सत्य के विषय में आप वाद-विवाद चैतन्य लहरियों का उपयोग नहीं करते। इनकी नहीं कर सकते। यह पूर्ण प्रतिभा है। सत्य में आवश्यकता के समय भी हम इनका उपयोग परस्पर कोई झगड़ा नहीं। अपने क्षेत्र के विषय में नहीं करते या फिर मशीन की तरह से बन्धन जिस शान्ति को आनन्द में परिवर्तित हो जाना त हम अचेत हैं परन्तु किसी चीज पर जब हमने अडना होता है तो इसके लिए सभी एकत्र हो जाते हैं। तो मस्तिष्क का वह हिस्सा जो इस देने लगते हैं। अत: अभी तक भी आप अपने चक्रों के प्रति अचेत है। अपना मस्तिष्क जब आप चक्रों की ओर लगाते हैं तब इनके प्रति कार्य को कर रहा है, इस अचेतन हिस्से को चेतन करना होगा। विकास यही है। तो किसी धारणा विशेष को अपना लेना विकास विरोधी है। आपको वास्तविकता का सामना करना, उसे थोड़े से जागरूक होते हैं। अन्यथा अपनी मध्य नाड़ी तन्त्र पर आप अब भी चेतन नहीं है। यही कारण है कि आप नहीं जानते कि किस कार्य 1 11 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 8 12, 1999 स्वीकार करना और बास्तविक रूप से कार्य अपना अधिकार मान लेते हैं। स्वयं को अभिव्यक्त करते हुए हम कुछ। करना सौखना आवश्यक है। कोई भी चीज जब घटित होती हैं तो आप कह सकते हैं कि कहते हैं. हमें देखना चाहिए कि स्वयं को श्रीमाताजी यह चमत्कार है। मानव के लिए, अभिव्यक्त करते हुए क्या हम स्वाभाविक सहजयोगियों के लिए भी यह चमत्कार हो है ? क्या हम हृदय से ऐसा कर रहे हैं? मैं सकता है। परन्तु मेरे लिए नहीं। मैं जानती हूँ कि इस कार्य को अपने हृदय से कर रहा हूँ इस ये क्या है। इस अधकचरी चेतना से ऊपर उठने बात की चेतना आप प्राप्त करें। यह मेरी के लिए व्यक्ति को देखना होगा कि वह इसे इच्छा है। सहजयोग में कुछ लोग बहुत परिश्रम किस प्रकार कार्यान्वित कर रहा है। पारस्परिक करते हैं। परन्तु कुछ इसे अपना अधिकार मान सम्बन्धों की पूर्ण प्रणाली का परिवर्तित होना लेते हैं। वे किसी प्रकार की सहायता नहीं करते आवश्यक है। पश्चिमी लोगों के लिए तो यह उन्हें हर चौज बनी बनाई चाहिए। इससे प्रतीत बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्योंकि कम से कम भारतीय लोगों को तो इस बात का ज्ञान है कि के प्रति वे जागरूक नहीं हैं। यदि अपने हृदय से मानवीय प्रयत्न आपको कहीं भी नहीं पहुँचाते वे कार्य करेंगे तो उन्हें कभी ये न महसूस होगा और व्यक्ति को उत्थान मार्ग अपनाना होगा। कि उन्होंने परिश्रम किया हैं। आशीर्वाद तथा कहने से मेरा अभिप्राय है कि सच्चे भारतीय तो उपलब्धियाँ जो उन्हें प्राप्त हुई हैं उन्हीं को वे इस बात को जानते हैं। कुछ भारतीय लोग भी सहजयोग का अनुचित लाभ उठाते हैं और सभी समस्याओं को, विशेष तौर पर बाई विशुद्धि परिणामस्वरूप खो जाते हैं। कुछ लोग ऐसा की समस्या को दूर कर देगी। करते हैं। परन्तु अधिकतर ये जानते हैं कि जो भी होता है कि आनन्द उठाने की अपनी शक्तियों महसूस करंगे। सन्तोष तथा परिपूर्णता की भावना इससे अगली अवस्था वह होगी जिसमें आप जो भी कुछ करेंगे उसके प्रति चेतन होंगे, कुछ प्राप्त हुआ है उसके प्रति जागरूक होना है। अत: हम कह सकते हैं कि हमें जिसमें कोई गलतियाँ न होंगी। जो भी कुछ आप आत्मज्ञान तो प्राप्त हो गया हैं परन्तु आत्म करेगे चाहे बह गलत प्रतीत हो फिर भी ठीक हो चेतना प्राप्त नहीं हुई। उदाहरण के रूप में जाएगा मैं आपको बता देना चाहूँगी कि अभी आप किसी का नाम लें, किसी महान सन्त का, तो आपको चैतन्य लहरियां आने लगती क्योंकि सराहना की जो भी बात मैं कहती हैँ हैं। इसका कारण आप जानते हैं- क्योंकि उसे सभी लोग अपने लिए ही समझते हैं। वह सन्त है। परन्तु आप सहजयोगियों का नाम यदि लिया जाए तो क्यों नहीं चैतन्य रोकना चाहती थी तो मैंने इसकी चाबी बाहर को लहरियां बहने लगती? आपने इसका लाभ तक आपमें से कोई भी इस स्तर का नहीं है उदाहरण के रूप में आज मैं अपनी घड़ी को खीच दी। साधारण सी बात है। मैंने ये कार्य एक प्रकार से अनजाने में किया, परन्तु भली-भांति जान-बूझकर किया और घड़ी रुक गई। क्योंकि उठाया है क्योंकि आदिशक्ति साक्षात आपके सम्मुख हैं। इन सन्तों को यह सब चीजें बताने वाला कोई न था। आदि शक्ति आपके साथ हैं मैं ये जानती थी कि मुझे यहाँ किस समय परन्तु इसका एक नुकसान ये हे कि आप इसे पहुँचना है इसलिए जान-बूझकर मैंने स्वयं को 12 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 11&12, 1999 स्वयं के विरुद्ध उपयोग किया। घड़ी यदि रुक हूँ, किस प्रकार उनसे बातचीत करता हूँ? कई न गई होती तो मैं पहले आ जाती, परन्तु वह बार मुझे आश्चर्य होता है कि किसी सहजयोगी पर जब कोई बाहरी व्यक्ति आक्रमण करता है तो सहजयोगी लोग बाहर के व्यक्ति का पक्ष लेते हैं। या कई बार सहजयोगियों का चित्त अच्छे लोगों पर न होकर बुरे लोगों यर होता है। बुरे लोगों से उनका सम्बन्ध होता है। अच्छे लोगों के स्थान पर वे बुरे लोगों के मित्र होते हैं और उन्हीं से ही खुले हुए होते हैं। सदैव आपको अच्छाई से जुड़े रहना चाहिए। परन्तु सूक्ष्म अहं के कारण वास्तविकता इससे बिल्कुल विपरीत है। ये सारी सूक्ष्म बातें मैंने आपको बहुत बार बताई हैं परन्तु अपने मशीन या विगड़्े हुए कम्पयूटर की तरह समय मेरे आने का न था। अत: घड़ी को बंद रखने के लिए मुझे उसकी चाबी खींचनी पड़ी। तो जो भी शरारत आप करते हैं उसका ज्ञान आपको होता हैं और अपने विरुद्ध ही आप यह शरारत कर सकते हैं। तत्पश्चात् आप नाटक कर हैं सकते है कि ओह! मेरे से गलती हुई और बिना वजह ऐसा हो गया। परन्तु मेैं आपको बता दूँ कि ऐसी अवस्था अभी बहुत दूर हैं। अभी तो वह स्थिति निर्धारित हुई है, अभी तक हम बहुत सी गलतियाँ कर रहे हैं क्योंकि अभी हम आत्म नहीं हैं। आत्म-चेतना को स्थूल रूप से चेतन जटिल मस्तिष्क के कारण आप मेरी बातों के अर्थ निकालते हैं जो कि बिल्कुल उल्टे होते हैं। हम इस प्रकार समझ सकते हैं कि मान लो एक व्यक्ति ने नौकरी के लिए साक्षात्कार को जाना है। उसे ठीक प्रकार से अपना सूट चुनना होगा, जाने से पूर्व अपने बाल ठीक से कंघी करने होंगे और गला साफ करना होगा। परन्तु उत्थान के प्रश्न पर भी क्या हम इतने सावधान होते जैसे मान लो मैंने आपको भूतकाल की बातें भूल जाने को कहा। इसका अर्थ ये है कि आप भूतकाल की सभी अच्छी बातों को भूल जाएं। मानो आपसे ये कहा हो कि अपने इस प्रकार के हैं? या हम मान लेते हैं कि श्री माताजी भली-भांति नहला-धुलाकर पालने में डाल कर हमें उत्थान तक पहुँचा देगी। सभी लोग हावी न होने दें। जो मस्तिष्क सीधा-सादा है, इसी चीज की कामना कर रहे हैं। अपने उत्थान में भी आपको परिपक्व आचरण को आप न समझे। भूतकाल को भूल जाने का अर्थ ये है कि भूतकाल को अपने पर सहज हैं, प्रेम से परिपूर्ण है। वह एकदम से समझ सकता है कि मैं क्या कर रही हूँ। इस होना होगा आप पूछ सकते हैं कि इसके जटिल मस्तिष्क का ठीक किया जाना लिए हमें क्या करना होगा? प्रतिदिन अपना सामना करें। सच्चाई से देखें कि सांसारिक ये है कि सोचना बंद कर दें, मात्र सोचना कार्यों को आप कितना समय देते हैं और बंद कर दें। आपको केवल इतना ही करना है। अपने उत्थान को कितना? क्या आपने सभी जब आप सोचना बन्द करते हैं तों आपको आवश्यक है और इसका सबसे अच्छा उपाय चिन्ताएं, अपना सभी कुछ परमात्मा पर छोड़ लगता है कि कोई कार्य नहीं किया जा सकता। दिया है? क्या अपने पूर्व बन्धनों से आप पूरी परन्तु सोचने भर से आप कुछ भी नहीं करते। तरह मुक्त हो गए हैं? क्या आपने सभी बेवकूफी उदाहरण के रूप में मुझे आपके सम्मुख एक भरी चीजें छोड़ दी है? क्या आप देखते हैं कि प्रवचन करना है। मैं यदि इसके विषय में सोचना मैं अन्य सह आरम्भ कर दूँ तो आपको क्या सुनाई देगा। मेरे जयोगियों से किस प्रकार सम्बन्धित 13 चैतन्य लहरी खंड : XII अक : 11 & 12. 1999 अन्दर चल रही सोच को क्या आप सुन पाएंगे। नहीं, महिला को संस्था तथा पति का पोषण मान लो आपको ये लैम्प जलाने हैं और आप करना होगा। मैं सोचती हूँ कि महिला के रूप में बस इनके विषय में सोचना आरम्भ कर दें कि मुझे ये हैं, तो क्या ये लैम्प जल जाएंगे? ये समझना होगा कि सोचने भर से आप कार्य को नहीं कर सकते। सोचना तो आलसी जन्म लेना ही अति महान बात है क्योंकि मैं लैंम्प जलाने हुृदय का, भावनाओं का, अपने प्रेम की भावनाओं का, अपने प्रेम की लीला और उसकी कार्यशैली का आनन्द ले सकती हूँ। कोई अवतरण भी इस प्रकार आनन्द नहीं ले सकता जैसे मैं ले सकती हूँ। अत: हृदय की देखभाल यदि महिलाओं को करनी पड़े तो उन्हें अपमानित नहीं महसूस व्यक्ति का काम से भागने का बहाना है। एक बार मैंने अपनी नौकरानी से कहा कि हम बाहर जा रहे हैं क्या तुम हमारे लिए खाना बना दोंगी? जब हम वापिस आए तो देखा कि उसने कुछ नहीं बनाया था। में प्रतिदिन घर में खाना बनाया करना चाहिए। परन्तु वे तो एक प्रकार से स्वयं को बहुत ऊँचा मान बैठती हैं सोच विचार के बिना तो आप कार्य कर सकती हैं परन्तु हृदय के बिना नहीं। अत: महिलाओं को चाहिए कि उनसे बहस न करें। सामान्य जीवन में भी उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि पत्नियाँ यदि हर समय चिक-चिक करने वाली हों तो पति उनके प्रति बहरे हो जाते हैं। वो सुनते ही नहीं कि स्त्रियाँ क्या कह रही हैं? महिलाएँ यदि बहुत आक्रामक हों, तो पुरुष बिल्कुल मुँह बन्द कर लेते हैं। तो पारस्परिक संबंधों में आपको अत्यन्त स्वाभाविक ढंग से व्यवहार करना चाहिए कि करती थी परन्तु उसने कुछ नहीं बनाया। मैंने पूछा कि तुमने खाना क्यों नहीं बनाया तो उसने उत्तर दिया कि मैंने सोचा कि आप लोग बाहर खाना खाएंगे। वह एक पाश्चत्य महिला थी। मेरे पति ने कहा कि ठीक है हम बाहर खाना खाने जा रहे हैं तुम घर में ही रुको। मैंने कहा नहीं ऐसा अच्छा नहीं लगता। वे कहने लगे, "नहीं, उसे समझने दो कि उसने जो सोचा वो उसी के लिए था। तो आपने अभी तक ये पलायन ही सीखा है. ये चतुराई।" आप पुरुष हैं-आप महिला। पुरुष जब पुरुष वत जाएगा और महिला महिला बन जाएगी तब वे अधिक आनन्द उठा सकेंगे। कल्पना करो कि अत: आपको इसके विषय में कोई बहस नहीं करनी चाहिए। सहजयोग के विषय में बहस न करें। अगुआओं से बहस न करें। चाहे आप अगुआ की पत्नी हों फिर भी उससे न उलझें। कुछ अगुआओं की पत्नियों के कारण हमें बहतु परेशानी हो रही हैं चेतना में हमें चेतन होना है। पारस्परिक सम्बन्धों क्योंकि वे अपने पतियों को अपने हिसाब में हमने कितनी चेतना प्राप्त की है यही बिराट से चलाना चाहती हैं। जहाँ तक सहजयोग का सम्बन्ध है उसे इससे कुछ नहीं लेना देना। मान लो एक कार्यालय में आप क्लर्क हैं और आपके पति बहुत बड़े अधिकारी या अफसर है परन्तु इसकी स्वामिनी हैं माताजी श्री निर्मला हैं तो क्या आप अपने पति से बहस करेंगे? तो देवी। इस प्रकार हम देखते हैं कि कितना सुन्दर यहाँ पर भी पूरे प्रेम एवं हृदय से, मस्तिष्क से एकीकरण घटित हुआ है! इस देवता (श्री माताजी) इस संसार में केवल पुरुष हों या केवल महिलाएं, तो क्या होगा? अत: हमें समझना है कि अपनी की, मस्तिष्क की अर्थात सहस्रार की सामूहिक चेतना है। तो सैद्धान्तिक रूप से सहसार बिष्णु तत्व 14 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 के चरण कमलों में समर्पित होकर विष्णु की शक्तियों को देवता की इच्छानुसार कार्य करना करती हूँ कि आप लोग निर्विकल्प में चले पड़ता है। देवता के हाथ में हैं। इस आश्चर्यजनक देवता स्थापित हो पाएंगे, अन्यथा वहाँ से पतन की के विषय में मैं बात नहीं करना चाहती। ऐसा ओर फिसल जाएंगे मैरे इस प्रवचन को बार-बार करना अति होगी क्योंकि इससे आपके हृदय पढ़ें, इसके विषय में ये न सोचे कि यह किसी भय से भर जाएंगे। जो भी कुछ घटित हो रहा है उसे कार्यान्वित होने दें। कहते हैं कि अपने उठना होगा। आज वह दिन है जब मैं आशा अत: श्री विष्णु की चेतना पूर्णतया इस जाएंगे लेकिन पूर्ण प्रयत्न द्वारा ही आप वहाँ । बा अन्य के लिए कहा गया है। यह आपके लिए हैं, आप सबके लिए, आपमें से हर एक के लिए और आपको इस बात का ज्ञान होना आवश्यक है कि सहम्रार को इस देवी के सम्मुख समर्पित कर दो। ऐसा करना आपके लिए अत्यन्त साधारण है प्रतिदिन आप कितना आगे बढ़ रहे हैं। आज क्योंकि आपके पास देवता है। आपके पास सहस्रार का विशेष दिन है। वास्तव में यदि आप आपका सहस्रार है और आप ही सहजयोगों देखें तो सूर्य पांचांग के अनुसार सहस्रार कल होना लोगों ने आज इस आधुनिक समय में इस देवता चाहिए था। सहस्रार सोमवार को है। आप कल्पना करें कि हम इसे एक दिन पूर्व मना रहे हैं। तो कहते हैं कि परमात्मा से साधक को व्यक्ति को समझना चाहिए, कि परमात्मा के पांचाग को मानवीय पांचाग से कुछ नहीं लेना देना। कुछ सानिध्य। सालोक्य का अर्थ हैं परमात्मा के पांचागों के अनुसार मुझे अब से दो हजार वर्ष वाद आना चाहिए था और कुछ कहते हैं कि मुझे इस रूप में दो हजार बर्ष पूर्व अवतरित होना चाहिए का सहचर्य मिलना । परन्तु आपको तो उनसे था। तो कलैण्डर भी ठीक है, समय भी ठीक है, तदात्म्य प्राप्त हो गया है। यह सौभाग्य किसी सभी कुछ ठीक हैं। आप लोग यन्त्र मानव अन्य योगी, सन्त या पैगम्बर को प्राप्त नहीं (Robot ) नहीं हैं। आप यन्त्र नहीं है। विकास हुआ। आप लोगों को यह तदातम्य मेरे शरीर प्रक्रिया के माध्यम से आप विकसित हुए हैं और से बाहर रहते हुए प्राप्त हो गया है जबकि केवल विकास की प्रक्रिया के माध्यम से आपको यह उच्च स्थिति प्राप्त करनी है। अत: जो भी कुछ हम करें और जो भी कुछ ठीक हो आप ही लोगों प्राप्त हुआ। अत: आप लोगों को चाहिए कि ने परिणाम दर्शाने हैं। हम आपके सहस्रार को महान प्रकाशमय स्थिति तक ले जा सकते हैं । परन्तु पुनः यह लड़खड़ा जाएंगे आपको सृष्टि में उत्थान के महानतम कार्य को करने समझना होगा कि जिन ऊँचाइयों तक आपको लाया गया है उस स्थिति को पूरी शक्ति एवं कार्यशीलता के साथ आपको ही बनाए रखना को देखा है। तीन चीजें माँगनी चाहिए- सालोक्य, सामीष्य, दर्शन करना, सामीप्य अर्थात परमात्मा के समीप होना और सानिध्य का अर्थ है परमात्मा उन लोगों को देह त्याग करके; मेरे विराट शरीर में प्रवेश करने के पश्चात् यह तदात्म्य ा समय की सीमा को समझें, अपने महत्व को पहचाने और इस बात के प्रति चेतन हों कि के लिए किस प्रकार आपको चुना गया है। तो अब आलस्य के लिए कोई समय बाकी नहीं है। अब आपको जागना होगा, होगा। 15 चैतन्य लहरी । खंड : X1I अंक : 11 & 12, 1999 गुरु-पूजा-(30 जुलाई इंटरनेट- सन्देश 1999) - अपने प्रवचन के आरम्भ में श्रीमाताजी ने समाधान करने का एकमात्र मार्ग प्रेम है। कहा कि सहजयोगियों को गुरु रूप में उनकी करने के लिए आते हुए दसवाँ वर्ष है। बनने के लिए आवश्यक है कि हम अपनी वंशानुगत तत्पश्चात् श्रीमाताजी ने कहा कि अच्छे गुरु पूजा सहजयोग के माध्यम से हमने पुर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया है। परन्तु अभी वह अवस्था प्राप्त करनी शेष है जिसमें इस पूर्ण ज्ञान को आत्मसात किया जा सके। अभी हमें इस ज्ञान की गहनता में और उतरना होगा। पाशविकता का पूरा ध्यान रखें और शान्ति, प्रेम एवं करुणामय स्वभाव विकसित करें ताकि जब हम अन्य लोगों की सहायता का प्रयास करें तो वे हमारे प्रेम को महसूस कर सकें। सहज गुरुओं के रूप में हमें क्षमा भी इस ज्ञान को पूर्णतः आत्मसात न कर करनी है अर्थात दूसरे लोगों के कुकृत्यों पर पाने का एक मुख्य कारण बताते हुए श्री माताजी चित्त नहीं रखना। ने कहा कि पाशविक प्रवृत्ति जो हमें वंशानुगत प्राप्त हुई है. वह अब भी हममें बनी हुई है। हमारी प्रथम समस्या का स्थान दिया। दूसरी आक्रामकता, चिड़चिड़ापन, भय आदि दुर्गुण समस्या का उद्भव हमारे विचारों तथा अहं से इसी उत्तराधिकार के भाग हैं। सोचने प्रतिक्रिया है । सहजयोग के आगमन के पश्चात् अब किसी करने और तर्कसंगत उहराने की हमारी योग्यता को शारिरिक या भावनात्मक रूप से दण्डित को भी श्रीमाताजी ने उपरोक्त दुर्गुणों में जोड़ते करना आवश्यक नहीं रहा । हमें समझना है कि हुए कहा कि इनसे ईष्ष्या जैसी अन्य समस्याएं ऐसा करने से हम किसी की आध्यात्मिक जन्म लेती हैं। ये ऐसी समस्याएं हैं जो पशुओं में उत्थान में सहायता नहीं कर सकते। भी नहीं पाई जातीं। गहन प्रतिक्रिया की ओर ले जाने बाले वंशानुगत दुर्गुणों को विचारशक्ति और सूझ-बूझ वाला होना चाहिए, इनसे हम सभी के अधिक दुषित करती हैं। श्रीमाताजी ने कहा कि गुरु बन जाने पर साक्षात्कार प्राप्ति के साथ-साथ हमें प्रम एवं करुणा अब हमें न तो प्रतिक्रिया करनी चाहिए और न की शक्ति भी प्राप्त हो गई है। प्रेममय होने के कारण ही अन्य लोगों को दबाने का प्रयत्न करना ही हमें आत्म साक्षात्कार प्राप्त हुआ। चाहिए। क्रोध के स्थान पर हमें प्रेम एवं करुणा का तरीका अपनाना चाहिए। हम यदि क्रोध नहीं निर्लिप्त होना चाहिए। यह स्थिति शब्दों से कहीं करेंगे तो अन्य लोगों को भी क्रोध एवं प्रतिशोध ऊँची है। यह मानसिक अवस्था है जिसे प्राप्त करना वंशानुगत पाशविकता को श्रीमाताजी ने श्रीमाताजी ने कहा कि हमें करुणामय एवं होंगे आत्म आध्यात्मिक उत्थान में सहायक श्रीमाताजी ने बताया कि सभी कार्यों में हमें मुक्त रहने में सहायता देंगे। श्री माताजी ने कहा कि सस्याओं का आवश्यक है। किसी की सहायता का जब प्रश्न आए तो हमें जी जान लगा देनी चाहिए। ब 16 चैतन्य लहरी । खंड : X1l अंक : 11 & 12, 1999 लोगों के विषय में सोचना और चिन्ता हमारे चित्त को पूर्णतः नि्लिप्त होना चाहिए. ताकि निर्लिप्सा पूर्वक हम किसी पर भी चित्त डाल सकें। यह आध्यात्मिक चित्त है जो कि प्रेम का प्रतिरूप है। श्रीमाताजी ने कहा कि वे भौतिक विश्व करना लिप्सा है। जब हम सभी कुछ परमात्मा पर छोड़कर कार्य करते हैं तब यह नि्लिप्सा होती हैं। सहजयोगियों के रूप में हमें अपनी समस्याओं की सीमा को महसूस करना चाहिए : तब धीरे-धीरे ये समस्याएं समाप्त होनी चाहिए। के विषय में बात नहीं कर रहीं, एक अन्य विश्व के बारे में बात कर रही हैं जो बहुत ऊँचा है और जहाँ हमारा चित्त लिप्साओं की सीमा से मुक्त होकर सुन्दरतापूर्वक कार्य करता है। अन्तर्द्शन द्वारा यह सब प्राप्त किया जा है। बाद-विवाद या बहस से ये कार्य नहीं किया जा सकता. केवल प्रेम एवं करुणा के माध्यम से ही ऐसा कर सकते हैं । श्रीमाताजी ने बताया कि किस प्रकार संसार अन्तर्दर्शन द्वारा ही हम अपना सामना के अधिकतर लोग प्रेम को महत्व देते हैं। मानव का यह तीसरा गुण है। पहला हमारी वंशानुगत कर सकते हैं और सभी कुछ परम चैतन्य पर पाशविकता है, दूसरा विचारशीलता और तीसरा प्रेम का सम्मान । केवल सहजयोगी ही इस मानसिक हमारी समस्याओं का समाधान नहीं होता। समस्याओं अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं और निल्लिप्त प्रेम को इस महाशक्ति पर छोड़ दिया जाना चाहिए, करने के योग्य हैं जिसमें व्यक्ति पूर्णतः लिप्त होते हुए भी पूर्णतः नि्लिप्त होता है चैतन्य लहरियों के माध्यम से जब हम देख लेते हैं कि फलां व्यक्ति और सत्य प्रेम। अपने सारे कार-व्यवहार में हमें ठीक है तो उसके विषय में चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं। यदि चैतन्य लहरियाँ बताएं कि और हममें विशुद्ध प्रेम होना चाहिए जो व्यक्तिगत समस्या बनी हुई है तो हमें अपना पूरा चित्त उस व्यक्ति पर डालना चाहिए, पूर्ण निर्लिप्त भाव से, लिप्सा पूर्वक नहीं। श्रीमाताजी ने बताया कि हम यदि किसी कर्तव्यों की सीमा जानना आवश्यकता है। अपनी व्यक्ति विशेष के विषय में चिंतित रहते हैं., दृष्टि को सुधारने के लिए और इसे शुद्ध करने के उन्हीं के विषय में बात करते है, लिप्त होने के सकता छोड़ सकते हैं सोचने एवं चिन्ता करने यह सभो कुछ श्रीमाताजी ने घोषणा की कि प्रेम सत्य है सभाल सकती है। अत्यन्त सच्चा होने का प्रयत्न करना चाहिए लाभ संचालित न हो। श्रीमाताजी ने कहा कि विशुद्ध प्रेम का विषय कभी न खत्म होने वाला है। गुरु रूप में हमें अपने लिए ध्यान गत होना आवश्यक है। कारण अपना चित्त सदैव उन पर बनाए रखते हैं ने ध्यान अवस्था का वर्णन करते हुए श्रीमाताजी तो हमारा चित्त चीजों को कार्यान्वित नहीं कर पाएगा। कुछ थोड़े से लोगों के प्रति लिप्त हो जाने का अर्थ ये है कि हमारा चित्त सीमित होकर व्यर्थ हो गया है और यह लाभकारी नहीं हो सकता। करने के लिए बहुत कुछ है, अनगिनत लोग आत्म साक्षात्कार प्राप्त करना चाहते हैं। अपना प्रवचन समाप्त किया। ध्यान अवस्था ही चैतन्य लहरियाँ प्रवाहित करती है और चैतन्य लहरियाँ हमें कार्य करने की शक्ति प्रदान करती हैं। तब झगड़ने या संघर्ष करने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती। हम एक ऐसी स्थिति प्राप्त कर लेते हैं जहाँ हम प्रेम एवं करुणा से शराबोर होते हैं। 17 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 8 12, 1999 रूसवेल्ट को ही लें, उन्होंने कहा था, 'गरीबी कहीं की भी हो, यह सब देशों की सम्पन्नता के सत्य साधक हैं, महान-महान सत्य साधक हैं कितनी बड़ी बात है? मैं उनसे मिलना चाहती लिए खतरा है। इतना स्पष्ट। अमरीका इतना हूँ, उन्हें दिखना चाहती हूँ कि जिस चीज को वे सभवत:, जन्म-जन्मातरों से खोज रहे थे उसे कैसे पाया जा सकता है-इसी जीवन में-अपने महान है। श्री कृष्ण अपने चक्र से इसकी रक्षा करते है।" श्रीमाताजी ने अपने दाँए हाथ की तर्जनी अंगुली उठाकर घुमाई, और मैं शपथ पूर्वक कहता हूँ कि श्रीमाताजी के ऐसा करने में मुझे आत्मसाक्षात्कार को।" यह आत्म साक्षात्कार वास्तव में है क्या?" अभी तक अपनी सावधानी पूर्वक तैयार की गई सूची से मैं एक भी प्रश्न नहीं पूछ पाया। चाय आ गई थी। मनमोहक दिव्य दृष्टा माताजी श्री निर्मला देवी, श्रीमती सी. पी. श्रीवास्तव अत्यन्त सावधान गृहणी में परिवर्तित हो गई। मैंने आपकी चाय में शक्कर और दूध, ठीक मात्रा में डाले है न? आप एक बिस्किट लें (यह एक चमचमाता बूमता हुआ सुदर्शन चक्र दिखाई दिया। जब तक सुदर्शन चक्र विद्यमान है," उन्होंने कहा, "अमेरिका पर आक्रमण नहीं हो सकता। क्या ये सुरक्षा कभी वापिस भी ली जा सकती है?" अभिव्यक्ति के रूप में श्रीमाताजी ने कुकी थी)। अपने कधे झटके और अपनी भौहें ऊपर को उठाई। "संभवत:." उन्हों ने कहा। व्यवहारकुशलता की भूमि ने यदि कूटनीति छोड़ दी. संचारशक्ति से परिपूर्ण भूमि ने यदि विश्व में बुराई का संचारण किया, माधुर्यमय देश यदि कड़वाहट पूर्ण हो गया, तो हाँ, संभवत: तब भगवान श्री कृष्ण ये सुरक्षा वापिस ले लें।" अचानक वे हँसी। "अपनी अमेरिका यात्रा में मैं आत्म साक्षात्कार की परिभाषा:-" आत्म साक्षात्कार," श्रीमाताजी ने कहा, "योग है, एकीकरण-लघु व्रह्माण्ड का वृहत ब्रह्माण्ड (Micro Cosm to Macro Cosm) से योग। हमारे अन्दर विद्यमान शक्ति कुण्डलिनी का उठना। (कुण्डलिनी का कोई अंग्रेजी पर्याय नहीं है। आप किसी शब्द का अविष्कार करें। आपके लिए बहुत अच्छा कार्य है, 'कुण्डलिनी' का अंग्रेजी में एक अच्छा पर्याय खोज निकालें।) उस शक्ति को परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति से जोड़ना, ही सबको बताऊँगी कि इस घटना को होने से किस प्रकार राका जा सकता है।" मैंने श्रीमाताजी से पूछा कि क्या वे केवल चेतावनी देने के लिए ही उत्तरी अमरीका की आत्मसाक्षात्कार है यह (शक्ति) क्या करतीं हैं?" प्रश्न यात्रा कर रही है? "धन को खोजने वाले लोग हैं, सत्ता खोजने वाले लोग हैं, शारीरिक सुख खोजने वाले भी लोग हैं," उन्होंने उत्तर दिया, "ऐसे भी लोग हैं जो ये सब कुछ करने के पश्चात् अब सत्य को खोज रहे है, अपनी आत्मा को खोज रहे हैं. की सहजता को देखकर मुझे ऐसे लगा मानो में मूर्ख हूँ। यह चेतना में परिवर्तन लाती है। इस शक्ति को आप शीतल लहरियों, शीतल चैतन्य लहरियों के रूप में अपने हाथों और सिर के तालू भाग में महसूस करते हैं। यह वास्तविक घटना है, स्वः प्रमाणीकरण (Self Certification) परमात्मा को खोज रहे है। अमरीका में असंख्य 19 चैतन्य लहरी = खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 नहीं। मात्र कहना भर नहीं कि 'मेरा पुनर्जन्म हो गया है', या 'मैं ऐसा हो गया हूँ. मैं वैंसा हो गया मिल जाता तब तक सत्य साधकों से मिलकर उन्हें ये बताना मेरा कर्तव्य है कि किस प्रकार वे परमात्मा का ये उपहार, अपना अधिकार, परमात्मा वास्तव में आप बनते हैं। आत्म साक्षात्कार से यह एकाकारिता प्राप्त करें। " प्राप्त करने की यदि आप में शुद्ध इच्छा है और "क्या में भी यह उपहार प्राप्त कर सकता आप आत्म साक्षात्कार प्राप्त कर लेते हैं तो आप हूँ मैंने कहा?" श्रीमाताजी की आँखे नाच उठी, "सिर के सामूहिक चेतन, वास्तव में मधुर एवं व्यवहार कुशल बन जाते हैं। आप कह सकते है 'वास्तविक नीली आँखों वाले अमरीकन (Blue American)। और आनन्दमय हँसी पूरी कक्ष में फंल गई। मैंने श्री माताजी से पूछा कि क्या केवल धीमी ठण्डक थी। मैंनें इधर-उधर देखा कि वे ही आत्म साक्षात्कार प्रदान कर सकती है कहीं से हवा तो नहीं आ रही, परन्तु वहाँ न तो "नहीं, नहीं", उत्तर मिला, "एक बार जब ऊपर अपना हाथ ले जाए," उन्होंने कहा। जैसा मुझे कहा गया था मैंने वैसा ही किया। मेरे सिर के ऊपर धीमी सी, अत्यन्त वातानुकूलन था और न ही कोई खिड्की खुली हुई। "आपको महसूस हो रहा है?" अस्थायी रूप से मैंने हाँ करते हुए सिर हिलाया। आपको आत्म साक्षात्कार प्राप्त हो जाता है तो आप अन्य लोगों को आत्म साक्षात्कार दे सकते हैं।" यह आरम्भ है शायद आप चाय पी रहे थे और आपने स्वयं से कहा, 'मैं वह अनुभव लेना चाहूंगा,' और 'श्रीमाताजी ने अपनी अंगुली का इशारा करते हुएकहा, तुम्हें ये अनुभव हो गया है आपकी इच्छा से ही घटित हो सकता है। अपना हाथ मेरी ओर करें।' उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर मेरी हथेली परन्तु ऐसा लगता है कि यह संब आप आप ही ही से आरम्भ होता है।" मैंने कहा. "आप क्यों?" श्रीमाताजी का मुख्य गम्भीर हो गया। "जहाँ तक मैं जानती हूँ " वह कहने लगी केवल मैं ही इस कार्य को सामूहिक रूप से कर सकती हूँ। भारत में एक बार छ: हजार ग्रामीणों को सामूहिक रूप से आत्म साक्षात्कार प्राप्त हुआ। परन्तु यदि कोई अन्य व्यक्ति इस कार्य को कर सके तो निवृत्त होने में मुझे बहुत खुशी कहा। पर क्रास बनाया। आप बहुत अधिक सोचते है," उन्होंने आप हर समय साचने में हो बहुत होगो। अब में साठ वर्ष की हो गई हैं। (देखने में कभी-कभी तो वे अपनी आयु अधिक व्यस्त रहते हैं। उस क्षण से विचार समाप्त हो गया। मेरी ल अन्दर की सोच, सोच न रही। "बहुत अधिक सोचने विचारने से लोगों को शक्कर रोग हो सकता है। शक्कर खाने से से आधी आयु की लगती थी।) "मेरा विवाहित जीवन आनन्दमय है। जैसा आप देख रहे हैं, मेरा एक सुन्दर घर है, हर रोज़ की यात्राओं से मुक्त होकर, शान्त होकर अपने शक्कर रोग नहीं होता, अधिक सोचने से होता घर में बैठ जाना मुझे अच्छा लगेगा। लेकिन जब तक इस कार्य को करने वाला कोई अन्य नहीं है। आत्म साक्षात्कार के पश्चात् हम शक्कर रोग को ठीक कर सकते हैं और यह नई बीमारी-एड्स 20 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 भी आत्म साक्षात्कार के बाद हम ठीक कर हो मुझे पैसे की क्या जरूरत है? मैं एक सकते है। आत्म साक्षात्कार प्राप्त करके आप वैभवशाली परिवार से सम्बन्धित हूँ। मेरे पति अपने गुरु बन जाते है, आप अपनी और अन्य संयुक्त राष्ट्र के अन्तर्राष्ट्रीय समुद्रवर्ती संस्थान लोगों की समस्याओं का निदान कर सकते है (U.N.International Maritime Organisation) और उन्हें ठीक भी कर सकते हैं। आत्म के लन्दन स्थित मुख्य सचिव है। मुझे धन की आवश्यकता नहीं है। मैं धन स्वीकार नहीं करती।" श्रीमाताजी ने मेरा हाथ छोड़ दिया और साक्षात्कारी व्यक्ति, जिसमें आत्म विकास की इच्छा हो, वह ठीक हो सकता है और दूसरों को भी ठीक कर सकता है। मुस्कुराई। अब पहले से बेहतर है न?" उन्होंने पूछा, यहाँ पहुँचकर एक सुखदतम लहर मेरे अन्दर दौड़ गई। न तो यह आत्म विस्मृति थी और न ही सम्मोहन। इन सबको मैं अनुभव कर मैंने सिर हिलाया। " ऐसा इसलिए है कि अब तुम्हारा मस्तिष्क बहुत अधिक गतिशील नहीं है। तुम अधिक अपने अगले प्रश्न पर मुझे खेद हुआ सन्तुलित, अधिक केन्द्रित और अधिक शान्त चुका हूँ। यह तो गहन शान्ति का आनन्द था। क्योंकि इस प्रश्न से श्रीमाताजी के चेहरे पर हो। थोड़ी चाय और लो। मुस्कान धूमिल हो गई। "इस अनुभव के बदले आप अमरीका के लोगों से कितना धन लेंगे?" हाथ ले गया। सिर पर ठंडक अव भी बनी हुई यह तो विकास-प्रक्रिया का एक भाग है, मैं एक बार फिर अपने सिर के ऊपर थी, संभवत: पहले से अधिक। उत्तरी अमरीका में बहुत से सत्य साधक हैं " उन्होंने कहा, चाहती हू"।" उन्होंने उत्तर दिया। "यह परमात्मा के प्रेम का उपहार है, परमात्मा जो प्रेम के सागर हैं, करुणा अतः मैं उनसे मिलना के सागर हैं। इसके लिए किस प्रकार आप धन दें सकते हें? परमात्मा पैसे को नहीं समझते । अपने विकास के बदले में आप किस प्रकार अब, लगभग एक सप्ताह पश्चात् जब में शान्ति पूर्वक बैठा हूँ, शान्ति एवं चैन की वह आनन्दमय अनुभूति मुझ पर लौट आती है। मुझे आशा है कि यह मुझे वंचित न करेगी। धन दे सकते है ? अपनी दोनों टाँगों पर खड़े होने के बदले क्या आपने कोई धन दिया था? जो भी 21 चैतन्य लहरी खंड : XI1 अंक : 11.& 12, 1999 श्र हनुमान पूजा 1999 आज हम लोग श्री हनुमान जी की जयन्ती मना रहे हैं । हनुमान जी के बारे में क्या कहें कि वो जितने शक्तिवान थे जितने गुणवान थे उतने ही वो श्रद्धामय और भक्तिमय थे। अधिकतर ऐसा मनुष्य जो बहुत शक्तिवान हो जाता है, बहुत बलवान हो जाता है वह right sided हो जाता है। कि वो भी चित्र बनाते हैं तो पहले हनुमान जी का ही चित्र बनाते हैं । फिर दूसरी उनकी विशेष बात ये और है वे अर्ध मनुष्य थे अर्ध बन्दर थे। माने पशु मानव का बड़ा अच्छा मिश्रण था। तो हमारे अन्दर जो कुछ भी हमने अपने उत्क्रान्ति में, अपने है उसमें भी जो ग्रेम और उसमें भी जो आसक्ति थी वो उन्होंने अपने साथ ले ली थी। जैसे कि आप देखते हैं इन गुरुओं का जो मार्ग माना जाता है जिसमें कि गुरु के बहुत से प्राणी होते हैं, सेवक माने जाते हैं सो कुत्ते को मानते हैं कुत्ते में बो विशेषता है कि गुरु के जैसे के Evolution में पीछे छोड़ा वह अपने को इतना ऊँचा समझता है अपने आगे किसी को भी नहीं मानता। पर हनुमान जी एक विशेष देवता हैं, एक विशेष गुणधारी देवता। जितने वे बलवान थे उतनी ही उनकी भक्ति शक्ति के सन्तुलन में थी। इतनी उनके अन्दर जो शक्ति भक्ति थी ये सन्तुलन उन्होंने किस प्रकार पाया और उसमें रहे थे, एक बही समझने की बात है। जिस प्रकार अब हम सहजयोग में पार हो जाते हैं और सहजयोग में हमारे पास अनेक विदु शक्तियां आ जाती हैं उसी के हिसाब से हमें सन्तुलन रखना पड़ता है। हम प्यार करते हैं और प्यार के सहारे, प्यार की शक्ति के सहारे हम अपने कार्य में रत रहते हैं और वो कार्य करते रहते हैं। इसी प्रकार श्री हनुमान जी अत्यन्त शक्तिशाली थे और इनके अन्दर दैवी शक्तियां, नवधा दैवी शक्तियां थीं-जिसे कहते हैं गरिमा, वे चाहे जितना बड़े हो सकते थे, अणिमा एक साधक पूर्णत: समर्पित होता है और गुरु सिवा उसका और कोई मालिक नहीं होता। कोई और उसका विचार नहीं होता। हर समय बो अपनी जान लगा देता है अपने मालिक के लिए । इस प्रकार समझना चाहिए कि एक प्राणी जो कि उत्क्राति में बड़ा हुआ सानिध्य में आता है तो बो क्या सीखता है? परम भक्ति। इसका मतलब है भक्ति हमारे अन्दर जन्मत: बनौ हुई है। पूर्णतया पहले ही से हमारे अन्दर भक्ति का बीज बोया हुआ है। हम लोग है जब वो मनुष्य के इस दशा में नहीं थे, मानव दशा में नहीं थे तब हमारे अन्दर भक्ति का उद्भव बहुत हो गया; भक्ति पूरी तरह से हमारे अन्दर समा गई। आप किसी भी जानवर को ले लें, उसे आप स्नेह दं, जरा सा स्नेह दें, जरा सा आप प्यार दें तो वो इस तरह से आपके निकट हो जाता है, इस तरह आपको मानता है और इस तरह आपसे प्यार करता है। घोड़़े की भी बात आपने सुनी घोड़े से जब सवार गिर जाता है जब वो मरने को है तो वो उसके ऊपर छा जाता है। इसी लघुमा छोटे बिल्कुल-बिल्कुल बारीक हो सकते थे। ये सारी शक्तियाँ जो भी पा लेता था वो पागल हो जाता था। दोनों के बीच में जो मध्य मार्ग है उस चीज को पाना है। जिसे आप शक्ति कहिए चाहे भक्ति कहिए। उनके शरीर का अंग-2 उसी से भरा रहता है। उनकी इसी विशेषता के कारण आज हम बजरंगबली की देश-विदेश में भी अर्चना करते हैं । मुझे आश्चर्य लगता है कि परदेश में जो छोटे लड़के हैं, छोटे बच्चे हैं, वो कोई सा होगी। होता प्रकार अनेक हाथियों के बारे में बताया था कि ये ता राम 22 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 थी। अब ये जो श्री राम के जो विशेष गुण अत्यन्त शक्तिशाली और उनका निशाना कभी चूकता नहीं था। आपने सुना होगा कि सीता-स्वयंवर में उन्होंने क्या किया? लेकिन वही श्री राम जव रावण की बात आई तो उसको उन्होंने छोड़ा नहीं। उसका उन्होंने वध कर दिया। उनके धनुष का वर्णन तुलसीदास ने बहुत सुन्दर किया है श्रीराम बार-बार बाण मार रहे हैं और रावण के दस सिर में से एक एक गिरता जाए. फिर आए जाए, तो लक्ष्मण ने कहा कि कर क्या रहे हैं आप? एक बाण उसके हृदय में मारो। जैसे ही हृदय में बाण मारोगे बैसे ही वो मर जाएगा, नहीं तो वो मरेगा कैसे? वो नहीं मर सकता उसका वो बाण जो है वो उसके हृदय में लगाओ। अब श्री राम का बड़ा सुन्दर वर्णन है वहाँ। संकोची थे न बहुत संकोची श्री राम जो शथे इतने शक्ति के प्रचण्ड महान पुरुष होते हुए भी उन्होंने कहा, देखो, बात ये है कि इस रावण के हृदय में मेरी सीता का वास है। तो मैं हृरदय में नहीं मारूगा। लेकिन ये बार-बार इसका सिर उतरेगा तो इसका ध्यान जरूर मेरे सिर की ओर जाएगा। उस बक्त में इसको बाण से मारूँगा। नहीं तो उनके लिए ये कहा जाता है कि एक वाण में वो वर्ध करते थे। पर अब ये देखिए कि कितनी नज़ाकत की बात है, कितनी सरलता की बात है पति का प्रेम अपनी पत्नी के प्रति । सारी शक्ति के सागर होते हुए भी उनके अन्दर किस कदर प्रेम हाथियों की निष्ठा भी कमाल की है। वो अपने मालिक को कभी कोई तकलीफ नहीं देता। उनके मालिक पर गर कोई शेर या ऐसा जानवर हमला करे तो हाथी उससे लड़ते-2 मर जाएगा पर अपने मालिक को हाथ नहीं लगाने देगा। ये जो रिश्ता एक मालिक का और ऊँचे पहुँचे हुए जानवर का है ये रिश्ता भी हमारे अन्दर स्थित है। पहले उसे बनाओ और इस रिश्ते के साथ जो शक्ति भी हमको मिली है। पहले जैसे मैंने बताया कि हाथो लड़ते-2 मर जाएगा, तो लड़ने की शक्ति हाथी के अन्दर भी इसलिए हैं कि उसके अन्दर प्यार व भक्ति है। हम लोग कहते हैं कि सहजयोग प्यार का, परमेश्वरी प्रेम का कार्य है। बात सही है, पर इसी कार्य को करते वक्त उसमें शक्ति भी निहित है । हम लोग उसको शायद जाने या न जाने हमें उसमें प्रचीती हो या न हो, वो उसी के निहित है और वो शक्ति, दैवी शक्ति मनुष्य का किसी के प्रति नतमस्तक होना, किसी को मान लेना, किसी को बड़ा समझ लेना ये सब उसी के लक्षण हैं। किन्तु वो जब गुरु मान लेता है तो उसके अन्दर गुरु की महिमा तो होती है पर उसके साथ-साथ उसकी शक्ति भी होती है। तो भक्ति और शक्ति दो अलग चीजें नहीं हैं एक ही हैं। हम ये कहेंगे कि गार (Right Hand) में ग्र शक्ति है तो (Left Hand) में भक्ति । ये शक्ति-भक्ति का संगम, ये हनुमानजी में बहुत है। सीता जी ने कहा, तुम तो मेरे बेटे हो। मैं बेटे के बल पर नहीं आऊंगी। मेरे पति को आना होगा और इस आदमी का संहार करना होगा। जब वो इसको नष्ट करेंगे तब में उनके साथ जाऊँगी। तो हनुमान जी पेड़ पर बैठ गए। उन्होंने कहा ठीक है। वो तो उनको ऐसे ही उठाकर ले आते उनकी शक्तियाँ ही ऐसी थीं। लेकिन उन्होंने कहा कि जब माँ ये बात कह रही हैं, ठीक हैं। और उसके साथ थी। हनुमान जी के तो अनेक किस्से हैं कि जिसमें हनुमान जी ने सिद्ध कर दिया कि वो प्रेम का सागर हैं और उसी वक्त जो दुष्ट हो, जो दूसरों को सताता हो, जो दूसरों को नष्ट करता हो उसका वध करने में उनको बिल्कुल किसी तरह का संकोच नहीं होता था। ये जो भक्त की बात बजरंग बली की है वहीं उनकी शक्ति की भी बात देखने लायक है। वो जानते थे कि रावण बाद इतना बड़ा महायुद्ध हुआ। उसकी जरूरत 23 चैतन्य लहरी । खंड : X1l अंक : 11 & 12, 1999 हुई है, उनके संरक्षण में है और जो लोग उनको पीड़ा देते हैं, जो नाश करते हैं, जो सताते हैं और जिन्होंने हर तरह की परेशानी इन लोगों के लिए खड़ी की है ऐसे लोगों को आप को कुछ करने की जरूरत नहीं, सिर्फ बन्धन से ही आप ठिकाने लगा देंगे। ये जो आपके अन्दर शक्तियां आ गई हैं; इसका इस्तेमाल इसीलिए करना चाहिए कि जिससे जो दुष्ट हैं वों खत्म हो जाएं। लेकिन आपकी शक्ति में हाथ में तलवार या गदा नहीं हनुमान जी जैसे, बाह्य में गदा नहीं है पर अन्तर में है। आपके अनुभव आप देख लीजिए सिर्फ अग्नि से डरता है। इसलिए लंका में गए और लंका दहन कर दिया। ये उनकी शक्ति की पर आफ़त आई बात थी कि उन्होंने लंका दहन कर दिया और उस दहन में किसी को मारा नहीं, किसी को जलाया नहीं, रावण भी जला नहीं, कोई नहीं जला पर उसे दहशत हो गई। वे घबरा गए कि रावण ये क्या पाप कर रहा है। रावण जो इस तरह के कार्य कर रहा था, पहले लोगों में सम्मत था। वो कहते थे ये रावण ही है, क्या है, इसकी इच्छा जो है सो है। इसको जो करना है सो करने दो। हम उसको कहने बाले कौन होते हैं. रावण तो रावण ही है। लेकिन जब, कितनी समझदारी की बात है कि है कि जो आदमी परेशान करता है, तंग करता जब लंका जल उठी, जब लंका का दहन हो गया उस पर गदा प्रहार हो जाता है। चाहे आप हाथ में गदा उठाइए या नहीं उठाइए। इस तरह से आप तो स्वयं सुरक्षित हैं ही, आपकी तो सुरक्षा हैं ही । लेकिन उसके साथ ही साथ आपके जो दूसरे सहजयोगी हैं उनकी भी सुरक्षा है । इस तरह से बचत हो जाती है। अब इसमें भी बजरंग बली का तब लोग समझ गए कि ये तो बड़ी खतरनाक बात है, बडी घबराने की बात है। क्योंकि लंका का दहन हो गया और हम लोग ग़र जल गए होते तो अब आग की विशेषता ये है कि ऊपर जाती है, नीचे नहीं आती हैं। सब लोग नीचे से ऊपर देख रहे थे कि जल रही है, जल रही है, जल रही है हाथ बड़ा जबरदस्त है। आपको पता नहीं कि वो आपके आगे पीछे खड़े हुए हैं। है तो उनका स्वभाव बच्चों जैसा बहुत निर्मल और बहुत सरल लेकिन इतनी समझदारी और हर तरह की खूबियाँ वो जानते हैं इसका मतलब है कि उनकी शक्ति है। पूरा लंका दहन हो गया लेकिन कोई जला नहीं। ये डराने के लिए, उनको समझाने के लिए कि रावण महापाप कर रहा है, उन्होंने ये काम किया। कितनी समझदारी और कितना सन्तुलन बजरंग बली में था ये देखना है। यही हम इतिहास में भी इतने लोग शक्तिशाली बहुत थे, उनमें अत्यन्त प्रेम था ग़र आप देख लीजिए तो शिवाजी महाराज का एक उदाहरण है कि वे इतने शक्तिशाली थे और उतने ही तमीजदार, बहुत कायदे के और बहुत ही ज्यादा संयमी आदमी थे। ये सन्तुलन जब आपमें आ गया तब आप सहजयोगी हैं। गर आपके अन्दर शक्ति आ गई, इसका के साथ उनके अन्दर निराक्षर विवेक बहुत बड़े बुद्धिमान थे। आजकल की बुद्धि तो बिल्कुल बेकार है । पर वो बुद्धि जो प्रेम से हरेक चीज़ को जाँचे और समझे उस बुद्धि के एक विशेष स्वरूप श्री गणेश थे और श्री हनुमान हैं। दोनों में विशेषता ऐसी है कि हनुमान जी बहुत बलिष्ठ, बहुत तेज ऐसे देवता हैं और श्री गणेश ठण्डे हैं। लेकिन दोनों जब वक्त पड़ता है तो बहुत बड़े संहारक। सहजयोगियों को संहार करने की जरूरत नहीं। किसी का संहार करने की जरूरत नहीं। देखते हैं । मतलब ये नहीं कि आप अपने प्रेम और व्यवहार किसी तरह से त्याग दें। किन्तु आप शक्तिशाली हैं उसकी शोभा ही ये है कि आप जो लोग दलित हैं, जो गरीब हैं. जो दुखी हैं, जो पीड़ित हैं, जिन बस, आप ये सोच लीजिए कि आपके साथ ये दोनों हर पल, हर क्षण हैं जब भी आपको कोई 24 चैतन्य लहरी । खंड : XII अक : 11 & 12, 1999 कर लिया है। आपने सहज मार्ग से अपना आत्मा चेतित कर लिया है। इस आपके नए परिवर्तन से आप एक महान भक्त और शक्तिपूर्ण ऐसे इन्सान हों गए। अब किसी की मजाल नहीं कि आपको छू लें। ऐसे हज़ारों उदाहरण आपको मैं दे सकती हूँ कि जब आप सहज में पार हो गए, तो आपको कोई भी नहीं छू सकता। पहले भी सन्त साधू थे। सबको सताया गया, सबको छला गया, सब कुछ हुआ। पर जितना भी लोगों ने छला या सताया वो डिगे नहीं। और इतना ही नहीं उनका हमेशा संरक्षण हुआ। और ऐसी-ऐसी बातें वो कहते थे कि जिससे लोग बहुत नाराज हो जाएं। सोचते कि ये क्या बातें कह रहे हैं। राजाओं के खिलाफ, राक्षसों के खिलाफ, सबके खिलाफ, वो ऐसी बातें कहते थे जिनसे लोग घबरा जाएं। पर हनुमान जी की शक्ति से उनको कोई नहीं छू सका, उनको किसी ने नहीं मारा। ख्वाज़ा निजामुद्दीन साहब के बारे में एक बड़ा अच्छा किस्सा है कि उनसे उनके बादशाह ने कहा कि तुम आकर के मेरे सामने झुको, घुटने साफ करो। उन्होंने कहा नहीं, मैं आपके सामने नहीं झुकने वाला। आप कौन परेशान करें, तंग करे तो साक्षात आपके संरक्षक आपके साथ खड़े हैं। बहुत सी बार आप सुनते होंगे कि ये मिनिस्टर लोग जाते हैं। कोई जाता है 1. तो उनके साथ सिक्यूरिटी चलती है। सहजयोगियों की सिक्यूरिटी उनके साथ ही चलती है। और दूसरी तरफ सिक्यूरिटी जो चलती है वो गणों की । अभी उनका तो कार्य बहुत ज्यादा है,, विविध तरह तरह के, छोटे-छोटे काम भी करते हैं। और ही हैं श्री गणेश को, वो गणपति हैं। उनको सब खबर देते हैं आपके बारे में, क्या हो रहा है? कहाँ ा] गड़बड़ हो रही है? कहाँ से आक्रमण हो रहा है? कहाँ से आपको तकलीफ हो रही है? आप जानते भी नहीं होंगे। कोई अज्ञात रूप से भी कुछ आपके ऊपर में हमला करना चाहे। तो भी ये दोनो देवता आपके साश खड़े हुए हैं। और जब गणपति ये बात बता देते हैं तो श्री हनुमान उस पर जुट जाते हैं। तो सहजयोगियों को डरने की कोई जरूरत ही नहीं है। किसी भी चीज़ से डरने की जरूरत नहीं है। अभी एक किस्सा आपको सुनाऊं मैं, बड़ा आश्चर्य का है। आपने सुना होगा कि अमेरिका ने हर जगह बहुत सारे बम गिराए ये सोच के कि ने होते हैं? बहुत नाराज हुए। उसने कहा कि गर तीन दिन के अन्दर आपने मेरे सामने सिर नहीं झुकाया तो में आपकी गर्दन कटवा दुंगा। उन्होंने कहा कटवा दो। में नहीं झुकूंगा क्योंकि आप कोई बड़े साधु-सन्त नहीं जो आपके सामने मैं झुक। तो उन्होंने आकर के बड़ा ही हंगामा मचाया कि तीन दिन बाद जाकर के इस आदमी की गर्दन काटनी है। जिस दिन उस गुरु की गर्दन काटने वाले थे, उसी रात इसी बादशाह की गर्दन कट गई। कैसे पता नहीं? रार ऐसे इतिहास में न होता तो जो बड़े-बड़े साधू-सन्त हो गए, जो बड़े-बड़े धर्मवीर हो गए वो खत्म हो जाते, क्योंकि राष्ट्र की प्रभूतियाँ इतनी ज्यादा बलवती हैं इतनी हिंसक हैं और इस जगह कुछ आक्रामक लोगों कुछ व्यवस्था की हुई है। तो ये किस्सा जो मैं आपको सुना रही हूँ वो ये अफ्रीका में एक जगह, जहाँ पर कुछ सहजयोगी थे और बहाँ बम गिरा, वो बम गिरने से बहाँ के जितने भी लोग थे, सब मर गए पर सहजयोगियों को कुछ भी तहीं वो बड़े हुआ। हैरान, उनक ऊपर धूल भी नहीं आई। कभी वो कबैला नहीं आए थे. कभी उन्होंने सोचा नहीं था कि कबैला आएंगे। पर जब ये हुआ तो कबैला आए और आके बताया, माँ पता नहीं किसने हमें बचा लिया। किसने हमारी रक्षा की। लेकिन हम सारे सहजयोगी बच गए वाकी सब लोग मर गए। अब ये वाक्या है, सही बात है। और इसका इतनी व्यापक हैं कि वो इन लोगों को तो खत्म कारण ये है कि आपने अब परमात्मा को स्वीकार्य 25 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 11 8 12, 1999 कर ही देतीं। किन्तु उनके पीछे परमात्मा है और परमात्मा जो है वो एक तरफ हनुमान और दूसरो तरफ गणेश, ये दो शक्तियां मिलकर के बना है। तो संरक्षण बो संभालते हैं। राणा प्रताप रचयिता हैं मेवाड़ के, वो जब लड़ाई में गए तो उनके सैनिकों ने सोचा कि भई ये तो हारने वाले हैं तो उनसे कहने लगे आप वापिस जाइए क्योंकि हम चाहते हैं आप बच जाएं, मेवाड़ के लिए। उन्होंने कहा नहीं तुम लोग सब वापिस जाओ। मैं तो ऐसे हो डटा रहूंगा क्योंकि गण मेरे साथ खड़े हुए सहजयोगी थे न वो भी। आप को जाना का नाम ले लो और ऐसी-ऐसी संस्थाएं बनाओ। कोई संस्था बनाने की ज़रूरत नहीं आप स्वयं ही एक संस्था हैं। न तो आपको कोई छ सकता और न तो कोई आपको नष्ट कर सकता है। एक अपने को समझने की बात है जो कि सब शास्त्रों में कहा है कि आत्मसाक्षात्कार का मतलब है-अपने को जानना। अपने को जानना माने क्या? जानने का मतलब है कि ये जानिए कि आपके आगे-पीछे कौन-कौन खड़ा है? कौन-कौन हैं। आपका रक्षक है? और जो आपको लोगों से प्यार है और दुलार है और जो लोगों के प्रति जों हर समय ये सोचते हैं कि इनको मैं किस तरह से खुश करूंगा जैसे कि सारे संसार को मैं सुखी करूंगा, सबको मैं आनन्द से भर दूंगा। ये जो भावना आपके अन्दर आती है उसमें सोचना चाहिए आपका कोई भी बिगाड़ने वाला नहीं बैठा हुआ। हिम्मत नहीं है। कोई भी बिगाड़़ेगा और उसके लिए आपको कुछ करना नहीं है। उसके लिए आपको कोई तलवार रखने की जरूरत नहीं, गदा रखने की जरूरत नहीं है। वो तो सब है ही वो पहले से ही बन बुन के आए हुए हैं। और वो आपमें समाए हुए हैं। आपको जरूरत हो नहीं है कि आप अपने को बलिष्ठ बनाएं, आप हैं। एक चाइनीस किस्सा है, बहुत मजेदार। कि उनके यहाँ मुर्गों की लड़ाई होती है। तो अब मुर्गां की लड़ाई होती है तो उसमें ये हो गया कि किसी तरह से है तो आप मैं तो ऐसे ही डट के खड़ा रहूगा लोग जाइए क्योंकि गण मेरे साथ हैं। बस समझ लीजिए कि आपके आगे-पीछे हर तरह के संरक्षण हैं। पर इस संरक्षण के मिलते ही मनुष्य में क्या होना चाहिए? सहजयोगी में क्या होना चाहिए? वो धीर, गम्भीर और किसी से डरने वाला इन्सान नहीं होना चाहिए। वो किसी से भागता नहीं, जम जाता है उस जगह। और जो कुछ दुष्ट आदमी हैं उसके सामने डट जाता है। उसको कुछ करने की जरूरत नहीं। वो ज़माना गया अब। अब तो आप सिर्फ खड़े हो जाएं. वो चलेगा क्या हो रहा है? ऐसे अनेक-अनेक अनुभव सहजयोगी मुझे लिख कर भेजते हैं कि माँ ऐसा वैसा हैं। दूसरा भाग जाएगा, उसको पता नहीं ये बात हुई। नहीं तो इस परदेसी हुआ, हुआ, लोगों के सामने सहजयोग फैलाना कोई आसान चीज़ नहीं है। और मुसलमानों में भी जब अब सहजयोग फैलने लग गया तो इससे आप समझ सकते हैं कि दैवी शक्ति जो प्रेम की शक्ति है उसके अन्दर कितनी ताकत है और उससे कितने कार्य हो सकते हैं। पर इसका मतलब नहीं कि एक राजा को ऐसा लगा कि किसी साधू के पास लें जाएं। तो ये मुर्गे जो हैं साधू से सीख लें कि दुनिया से कैसे लड़ना चाहिए। क्योंकि ये साधू किसी से लड़ता नहीं पर उसको कोई छूता भी नहीं। उससे लोग दूर ही भागते हैं और उसकी तरफ नतमस्तक रहते हैं। तो ऐसी कौन सी इसमें बात है कि ये इस तरह से इस दुष्ट दुनिया में इस तरह से रह रहे हैं। तो साधू ने कहा कि अच्छा नुम मुर्गों को छोड़ जाओ। तो एक मुगा उसके पास आप हनुमान जी के नाम पर कोई बड़ी उत्पीड़न तैयार करें। ये इनका बिल्कुल मतलब नहीं। जैसे आजकल बने हुए हैं- हनुमान जी का नाम ले लो, गणेश जी का नाम ले लो और नहीं तो महादेव जो 26 चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 वो छोड़कर चले गए। एक महीने बाद वो मुग्गे को ले गए और उसको जहाँ लड़ाई हो रही थी, बहुत सारे मुर्गे जिसमें थे, ऐसे प्रांगण में ले जाकर छोड़ दिया। तो अब मुर्गे जो ये महाराज थे ये अपने खड़े गुस्सा आने का पर आया गुस्सा, लगे मारने-पीटने, इसको उसको हंगामा करने। ये कोई न हनुमान की शक्ति है? कोई गुस्सा करने की बात ही नहीं है। किसी से नाराज होने की बात ही नहीं है। है जी रह गए। अब सब मुर्ग आपसे में लड़ रहे हैं, झगड़ रहे हैं, ये कर रहे हैं, वो कर रहे हैं। एक जरुरत ही नहीं गर आप हनुमान जी को मानते है तो। वो किसी पर गुस्सा नहीं करते। लेकिन बाद एक, एक बाद एक, सब निकल गए। बस एक ये महाशय खड़े रहे। सब लोग इनसे डरने लग गए कि इनको तो कुछ हो ही नहीं रहा है। ये कोई विशेष हैं कि क्या? और आखिर में वो ही एक मुर्गा बचा रहा जो अपनी शान में खड़ा हुआ इन्सान हैं हर बाते पर गुस्सा आ सकता है। अहंकार चढ़ता है उसके अन्दरा हनुमान जी में जरा भी अहंकार नहीं था। Right Sided आदमी में बहुत अहंकार होता है। मनुष्य में तो इतना अहंकार है अरे बाप रे! अरे बाप रे! मेरा तो जी घबराने लगता है। जब देखती हैँ उनको किस चीज का अहंकार था। उस अहकारिता का कोई आर्थ ही नहीं है। फिर 'हम' माने क्या? कोई एक था। सो आज हम हनुमान जी की यहाँ पूजा कर रहे हैं। तो सोचना चाहिए कि हनुमान जी साक्षात् हमारे अन्दर बस गए हैं। वो हमारे right side में हैं. माने पिंगला नाड़ी पर काम करते हैं और हमारे अन्दर जोश भरते हैं और उससे उष्णता भी आती है इन्सान में। पर उनका मार्ग ऐसा है कि आपके अन्दर उष्णता भी आए और सर्वसाधारण मनुष्य भी अहंकार करता है और बहुत से राजे-महाराजे भी अहंकार नहीं करते। इसका कारण है- उनके अंदर ही कोई ऐसी स्थिति बनी हैं कि वो हनुमान जी को नहीं मानते। जैसे ही आप हनुमान जी को मानते हैं-वैसे हीं आप श्री राम जी को मानते हैं। अब बताइए कि गुर आप right sided आदमी नहीं हैं तो आपको तो अस्थमा होना नहीं चाहिए क्योंकि वास हमारे सहजयोग के हिसाब से right heart पर हैं। क्योंकि आप हनुमान जी को नहीं मानते हैं। उनके तरह का आपक व्यवहार नहीं है, सन्तुलन नहीं हैं इसलिए आपको अस्थमा भी हो जाता है। हृदय में आपके शिवाजी का स्थान है। वो भी. वोही गड़बड़ हो जाता है और आपको Heart attack आ सकता है या आपको और वीमारियाँ हो सकती हैं। सहजयोग में आने पर आपको समझना चाहिए कि हनुमान जी का आपके सामने एक आदर्श है गणेश जी का है ही वो तो अबोधिता थे बिल्कुल अवतार जैसे छोटे बच्चे होते हैं। वैसे ही भोले भाले लेकिन बुद्धि के बहुत चाणांक्ष और हनुमान जी के अन्दर एक सन्तुलन, अक्ति भी साथ-साथ चले। सो जो वो उष्णता आती है जो जोश आता है वो हमारे अन्दर right side में काम करता है। और जब हम हनुमान जी की सन्तुलन शक्ति को प्राप्त नहीं करते हैं तो हमारे यहाँ अनेक बीमारियाँ आ जाती हैं लीवर की बीमारी है, अस्थमा की बीमारी है और यहाँ तक Heart Attack कहना चाहिए आता है। जब इनकी रार्मी नीचे की तरफ जाती है, हनुमान जी गर्मी को कंट्रोल करते हैं पर जब गर्मी कंट्रोल नहीं होती है तो ऐसी-ऐसी बीमारियाँ होती हैं कि जिनका कोई इलाज नहीं। Blood Cancer हो सकता है इससे और Intestind trouble हो सकता | माने दुनिया भर की बीमारियाँ एक लौवर को खराबी से होती हैं और लीवर की खराबी होती है क्योंकि हम हनुमान जी की बात नहीं मानते । माने कभी ग़र हमें गुस्सा आए कोई जरूरत नहीं है श्री राम का जैसे 27 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 hed है उनके साथ कि नहीं चाहिए, माँ हमको इनको ठीक करना ही नहीं, जाओ यहाँ से। जहाँ रहना है जैसे रहना है| अब दूसरे हनुमान जी के जो बड़े भारी दुश्मन हैं, वो हैं हैं। उनका लंका दहन करते हैं । यानि आप देखते हैं जो आदमी शराब पीते हैं, न कोई उनसे बात करेगा, न कुछ करेगा अच्छा वो दस शराबी इकट्ठे करके और शराब पिलाएंगे। अब सब शराब पी रहे हैं न उनके घर में खाने को है, न पीने को है, न ही कुछ, बस शराब पी रहे हैं पागल जैसे। लोग हनुमान जी को मानते है वो शराब नहीं पी सकते, नहीं पी सकते। क्योंकि इधर से मानो तो उनको और करो उसके उल्टा, तो वो हो नहीं सकता। और आजकल में देखती हूं कि शराब पीना बहुत वढ़ गया है और मुझे आश्चर्य होता है कि एक बड़े अफसर साहब थे एक बार उनके घर मैं गई क्योंकि हमारे पति के वो दोस्त भी थे। और मियाँ-बीवी दोनों शराब पीते थे और बड़ी एक प्यार भरा आनन्द और उसी के साथ-साथ शक्ति दर्शन। ये सब चीजों को समझते हुए एक सहजयोगी का चरित्र या उसका जीवन ऐसा होना चाहिए कि सन्तुलित। आपको जब गुस्सा भी आता है, तो आप चुप होकर देखिए। मुझे मेरे ख्याल से, मुझे तो कभी गुस्सा नहीं आता या आता भी होगा तो मुझे तो पता नही और बगैर गुस्सा किए ही मामला ठीक हो जाता है। मैं कहूँगी जरुर कि भई ये क्या कर रहे हो? बस ज्यादा नहीं, इससे आगे नहीं। और लोग तो गाली- गलोच दुनिया भर की चीजें करते हैं । पर जब ये अति हो जाता है जब ये गुस्सा करने का मादा अति हो जाता है और आदमी वो तो बड़े गुसैल बैठे हुए हैं, वो वहाँ बैठे हैं गुस्से करके बैठे हैं, जो गुस्सा कर रहे हैं। इस तरह से जब आदमी हो जाते हैं तो एक गम्भीर बात होती हैं, एक बड़ी गम्भीर बीमारी उनको लगती है, उनको अल्जाइमर कहते हैं। अल्जाइमर की बीमारी, इस गुस्से से होती है। वो गुस्सा जो हम बेकार में कर रहे हैं। अब समझ लीजिए, आपके लड़के को किसी ने थप्पड़ मार दिया। हो गए आप गुस्से; गुस्सा होने से क्या बात होती हैं? उल्टे सोचना चाहिए कि हमारे लड़के की कोई गलती हैं या हम जबरदस्ती अपने प्यार में उस लड़के को खराब कर रहे हैं। इस तरह का सन्तुलन जीवन में नहीं आएगा, तो ये अल्ज़ाइमर की बीमारी बहुत ही खराब होती है। इसमें आदमी पगला सा जाता है। मरता नहीं है और किसी को मरने भी नहीं देता। गालियाँ देता है. चीखते रहता है, उसका इलाज है सहजयोग में पर बड़ा कठिन है क्योंकि वो तो गालियां देते बैठते है। उसको जो ठीक शराबी। जो लोग शराब पीतें ठण्ड थी। तो मुझे कहने लगे आज रात यहीं ठहर जाओ। तो मैंने कहा अच्छा ठहर जाएंगे। तो पूरे घर में एक कम्बल, मेंने कहा, हे भगवान! इतने बड़े अफसर के घर में एक कम्बल। मेंने कहा मेरे को तो कोई बात नहीं मैं तो सो लूगी। अब वो लोग परेशान हों कि एक कम्बल में इनको कहाँ सुलाएं। मैंने कहा मेरी चिन्ता मत करो, मैं ठीक कर लूगी। इतना उनका हाल खराब। उनकी लड़की खराब गई लेकिन मानने को तैयार नहीं मेरी लड़की खराब गई। बस जैसे ही शराब पी लेंगे तो ये कहना शुरु करेंगे कि साहब मेरी लड़की सबसे अच्छी हैं, आष कुछ मत कहिए। वो लड़की का सत्यानाश हो गया है क्योंकि चढ़ गई शराब चढ़ गई तो होश ही नहीं उनको। उसका बिल्कुल सत्यानाश हो गया उस लड़की का। अन्त में अभी आई थी मेरे पास रोते हुए। बहुत उसको ही गालियां देंगे तो कौन, गर करने जाएगा, कोई डॉक्टर हो तो उसको कोई गाली दे तो कहेगा जा चूल्हे में और मुझे क्या करने का है । यही होता 28 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11.& 12. 1999 उसका सर्वनाश कर दिया। तो ये बात है कि. शराब का एक नशा, और नशे को भी बढ़ा देता है। और उसमें सबसे बड़ा नशा ये हो जाता है कि मनुष्य को प्रेम नहीं रह जाता है, तो किसी से प्यार नहीं करता। इसीलिए सबने, सारे धर्मों ने शराब को मना किया है। लेकिन अब इसाई धर्म जैसे हैं सब लोग उसमें तो कुछ न कुछ हिसाब किताब बना लेते हैं। हिन्दू धर्म में भी है, इसाईयों में भ्ी मुसलमानों में तो उन्होंने कहा कि जब ईसा मसीह किसी शादी में गए थे तो उस शादी में शराब बनाई गई थी. बिल्कुल झुठ, इसलिए हम लोग शराब पीते हैं। माने इग्लैण्ड में तो मैं हैरान ही ही शराबी लिखने वाले और शराबी ही कहने वाले। उनके शरावियों के लेकचरों से न जाने कितने लोग बेवकूफ बनते हैं। पर किसी शराबी का मैंने किसी भी देश में पुतला खड़ा हुआ नहीं देखा! सो ये सब लोग श्री हनुमान के विरोध में नहीं हैं पर उनको attack करते हैं, उनको आक्रमण करते हैं। फिर वो भी दिखा देते हैं ऐसी गर्मी अन्दर कर देते हैं। पेट में कि फिर कैंसर, फलाना- हिकाना। सब बीमारियाँ जब पियो और पियो, पियो। ये शराब पीने पिलाने की ज़ो ये रस्म चल पड़ी हैं इसका मुझे तो डर लगता है कि ये हनुमान जी को संभाले रहो, न जाने क्या कर दे? कहाँ से क्या आफत कर दें? इनका क्या ठिकाना सारे शराबियां को एक दिन पकड़ के समुन्दर में न डाल दें। गईं। कोई मरा तो शराब, कोई मर गया तो भी शराब पीएंगे, कोई पैदा हुआ तो भी शराब पीएगे। तो वो जो आदत हो गई उन लोगों को, और शराब मुझे तो ये ही डर लगता है इनसे। क्योंकि इनमें तो वहाँ बिल्कुल बड़ा भारी एक संस्कृति सी बनी हुई हैं शराब की। किताबें लिखी हुई है। कौन खड़े सी शराब, कब पीना चाहिए, ऐसा नहीं बैसा नहीं, कैसा गिलास इस्तेमाल करता चाहिए। अभी इन शराबी लोगों का जो हाल मैंने देखा वो मैं सोचती पडता है, जिसका चरित्र ठीक नहीं। पर इनकी हूँ ये आधे इन्सान हैं । बात और है ये जब किसी आदमी को देखते हैं पागल हैं। पर वो वहाँ संस्कृति बन गई। सबसे कि बो अपनी चेतना से ही खेल रहा है। शराब ज्यादा तो फ्रांस की तो संस्कृति बन गई। उनसे यीने से चेतना ही नष्ट होती है। तो फिर उसके अपने को सीखने का कुछ नहीं। अब वो जो पीछे पड़ जाते हैं घर में कलह होगा. झगड़े होंगे, शराब की बात करते हैं तो इंसा-मसीह जब वहाँ मारा-मारी होगी। अब देखिए कि रस्ते पर मारा-मारी दया है, भक्ति है, सब है पर जो इनके बिरोध में उनकी नहीं। जैसे श्री गणेश दुष्चरित्र है आदमी गर कोई हो कोई अगर बुरे वतन का आदमी हो तो उसके विरोध मूलाधार चक्र पर आधे बिल्कुल पगले हैं हो रही हैं, गर आप रास्ता रोकने जाए तो दो शराबी आपस में मार रहे हैं। फिर उसकी हवा और फैलती है। तो किंसी शराबी के घर किसी गए तो उस बक्त में वो जगह, हिब्रू में मैने पढ़ा है कि जो है द्वाक्ष का रस पोते थे। माने अंगूर हुआ का रस पीते थे तो उन्होंने पानी में हाथ डाल के उसमें अंगूर का रस बना दिया पानी का। शराब कभी सड़ाए गलाए बगैर बनती है क्या? दो मिनट में सहज में शराब बन सकती है क्या? जब तक सहजयोगियों को जाना नहीं चाहिए क्योंकि वो अपवित्र जगह है और न ही किसी भी शराबी के साथ कोई सम्बन्ध रखना चाहिए। सहजयोगियों के लिए भी बड़ा घातक है क्योंकि इधर तो आप हनुमानजी को मानते हैं और उधर आप शराबियों के यहाँ जाते हैं। खास कर पुना में, न जाने कितने तरह के हनुमान जी यहाँ हैं- मारुति, कोई दुल्या आप शराब को खूब सड़ाइए नहीं और जितनी सड़ेगी उतनी महंगी। पचास साल सड़ी हुई हो तो और भी अच्छी और सौ साल हो तो बस दुर्लभ! ये शराब की ideas बना ली शराबियों ने और 29 चैंतन्य लहरी ॥ खंड : XIl अंक : 11 & 12, 1999 सब पार्टी हो रही और ये होगा और सब पागल लोग वहाँ। फिर शादियों में, बारातियों में सब में मारुति, तो कोई बो मारुति, तो कोई वो मारुति । तो पुणे बालों के लिए तो बहुत बचकर रहना चाहिए। वो एक बार आए थे हनमान जी वाले मेरे पास, के माँ एक लैक्चर दो। मैंने कहा, मैं नहीं आऊंगी। कहने लगे क्यों? मैने कहा आप शराब पीकर के की सोचता है और बहुत विचारक है, सब है, पर वहाँ गन्दे-गन्दे सिनेमा के गाने गाते हो और आपको प्रेम नहीं है। सबके प्रति प्रेम की भावना नहीं है । मालमू है, ये मारुति क्या है? ऐसे गले घोटेंगे उसको भी इसकी तकलीफ होती है। क्यांकि राम सबके फिर पता चल जाएगा| तो उस गणपति के की भक्ति करने वाले इस हनुमान जी का कोई यहाँ आजकल मैंने सुना है कि शराब वराब पीने ठिकाना नहीं है। गुर आप बड़े कार्यकर्ता है नहीं देते। कोई शराबी पीकर आता है तो उसको बढ़िया आदमी हैं, सब कुछ है लेकिन आपको भगा देते हैं । आप सोचो कि हिम्मत देखिए कि सबके प्रति प्रेम नहीं है| चलने नहीं वाला। सबके हनुमान जी के सामने ही जाकर के और ये धंधे प्रति प्रेम रखना और इसलिए ईसा मसीह ने कहा करना हनुमान जी के सामने! क्या हिम्मत है! और है कि सबको माफ करिए। आप कौन होते हैं ये सब कुछ करने से लोग सोचते हैं कि पैसा आता है। इसका जो धंधा करते हैं और जो पीते खोपड़ी खराब हो जाती है और प्यार का मज़़ा टूट हैं, इसके जो ग्राहक है, सब इसी तरह से बिल्कुल बेकार Bankcrupt, एक पैसा नहीं। अब लोग सबको नमस्कार करना चाहिए और समझना चाहिए कहेंगे कि शराब में ऐसा क्या हैं, क्योंकि ये हमारे अन्दर जो भी सहजयोग से शक्तियाँ आई है जी का मामला है भई, इसका क्या कारण उसको सन्तुलन में रखें। प्यार ऐसी चीज है कि चलता है। अब जो इन्सान कार्य करता है बहुत आगे बहुत माफ न करने वाले? जहाँ गर्मी हुई लोगों की जाता है। ऐसे हनुमान भक्त श्री बजरंग बली को हनुमान ३। हनुमान जी के विरोध में तुम जा रहे हो । उनकी शक्ति आपके अन्दर Righ Side से बहती है। उसको इस्तेमाल करो सन्तुलन के साथ बजाय आप बड़े-बड़े लोगों को प्यार के बन्धन में फँसा लो। हम तो यही करते रहते हैं क्यों कि अजीब-अजीब लोगों से पाला पड़ता है। अब उनपर ऐसे प्यार का चक्कर चलाओ की वो करो, फिर ये खराब करो, फिर वो खराब करो तो ठिकाने आ जाएं। एक बार हम गए थे कही, तो वो तो उखड़ेंगे ही। माने सूक्ष्म में यह हनुमान जी वहाँ एक साधू बाबा बड़े मशहूर लेकिन गुस्से के का काम है, बाह्य ताल्लुक नहीं समझते। बाह्ययता तेज, ये लोग सब गुस्से के तेज बहुत होते हैं तो हम चढ़के ऊपर गए तो वों गुस्से में यूं, यूं, यूं, यूं, कुछ कहो तो, तो लोग मारने को दौड़ेंगे आपको गर्दन कर रहे थे क्योंकि उनको ये अहंकार था कि अगर आप नहीं पीते तो कहेंगे क्या बेवकूफ हो? वो बरसात को रोक सकते हैं। और मैं जो ऊपर आप शराब न पीते हो। अरे, बाबा उसके पीछे में गई चढ़तें चढ़ते ऊपर पहुँची तो बिल्कुल भीग गई बरसात में अब ये बहुत गुस्से होकर बैठे थे। तो मैं जाकर उनकी गुफा में बैठी तो वो आकर बैठ गए। बहुत गुस्से हुए तो मैंने कहा ऐसा क्या हो गया, भीग गए तो क्या हो गया| नहीं कहने लगे आपने मेरा अहंकार निकालने के लिए ही बरसते इसके आप शराब पीते हो, अपना लीवर खराब तो ये हालत है कि कहीं गर शराब के विरोध में इतने बड़े हनुमान जी खड़े हुए है। एक बार भी इसका प्रहार किया तो गए आप जिन्दगी से गए। मेरे ख्याल से पहले हो प्रहार करते नहीं तो लोग एसे पागल जैसे कैसे बातें करते। वोही वोही बात करेंगे, वोही वोही बात एकदम और सब पागल। 30 चैतन्य लहरी ॥ खड : XII अंक : 11 & 12, 1999 पानी को रोका नहीं, क्योंकि मैं तो रोक सकता हूँ। है। हाँ हाँ हाँ हाँ सब हुआ। जैसे ही गया- ये ऐसा मेरे ये अहंकार हो गया था। ऐसी कोई बात नहीं। मैंने कहा देखों तुम सन्यासी हो और तुमने मेरे लिए एक साड़ी खरीदी है। मैं सन्यासी से तो कुछ हाँ बड़े अच्छे है, बड़े अच्छे हैं, हाँ जाओ जाओ| ले नहीं सकती, ले नहीं सकती और तुम मुझे कुछ दे नहीं सकते। तब मैंने सोचा, कि भीग से तो नहीं हो सकता न। गुर तुम इस तरह से जाओ तो लेना ही पड़ेगा। उस चीज़ से उनके आँख से आँसू बहने लग गए। मेरे पैर पर गिर नहीं हैं क्या? प्यार अन्दर से करने की शक्ति पड़े। मैंने कहा मुझको क्या करना था मुझको तो आपको प्राप्त है क्योंकि आप सहजयोगी हैं। और सिर्फ थोड़ा सा भीगना ही था। नहीं तो मैं भी नहीं लेने वाली थी। पर मैंने कहा, थोड़ा भीग जाओ तो फिर लेना पड़ेगा-साड़ी। तो कहने लगे कि अच्छा मैंने कहा कि तुमने मेरे लिए भगुवे रंग की साड़ी ली है और नौवार। ये अच्छा किया क्योंकि इसमें तो पेटीकोट भी भीग गया तो नौवार मैं पहन खराब आदमी है। फिर दूसरा आया वो बैठा खास कर औरतों में बहुत होता है। ये तो आके बैठा हाँ हाँ ये ऐसा आदमी है। अरे भई, ऐसे उपरी प्यार ऊपरी प्यार किसी से करोगे, तो वो क्या समझता जब ये चीज़ को आप आत्मसात करोगे। अपने आप, जब प्यार का पेड़ खिलेगा तो आप दूसरों को आतन्द दोगे और उसकी खुशबू आपको भी आएगी। प्यार के सागर के सिवाए और कोई चीज आपको अच्छी नहीं लगेगी। इसलिए बजरंग बली से जो चीज़ सीखने की है वो है, उनकी भक्ति और वो शक्ति जो उन्होंने आपको दी है कि आपको कोई हाथ नहीं लगा सकता गुर आपकी भक्ति सच्ची है। कोई हाथ नहीं लगा दन सकती हूँ। बहुत एकदम उनकी तबियत खुश हो गई। तो ये प्यार ऐसी चीज़ है कि बड़े-बड़े गुस्से वालों को जमोन पर उतार लाती हैं और पहले के अनेक ऐसे उदाहरण हैं। बो जो बताने बैठू तो रात पूरी ऐसे बीत जाएगी। पर अब भी हर दिन हो रहा सकता। ऐसे हजारों उदाहरण सहजयोग में है। चमत्कार उसको लोग कहते हैं। मैं कहती हूँ, नहीं ये तो श्री हनुमानजी की कृपा है। तो आप सबको अब मैं अनन्त आश्शीवाद और प्यार कहती पहले अपने को भी प्यार करो, दूसरों को भी प्यार करो। इसका मतलब नहीं मेरा बेटा, मेरी ये, नहीं नहीं। इसका मतलब है निर्वाज्य प्यार। प्यार जिसका कोई बदला नहीं, जिसका कोई रिश्ता नहीं। जो अगाध है ऐसी प्यार की शक्ति आपके अन्दर आई हैं, उसको आप इस्तेमाल करें। अनन्त आर्शीवाद। है। प्यार से बात करो। उसमें क्या जाता है। गुर आप प्यार करोगे तो दूसरों के सद्गुण आपके अन्दर आएंगे और गर आप किसी से नफरत करोगे उसी से उसके जो दुर्गुण है वो आपके अन्दर आ जाएंगे। लेन देन का मामला है। आपने किसी से ये ऐसा वो ऐसा जो देखो कोई ठीक नहीं ऐसे बहुतो के यहाँ रिवाज है, संस्कृति है कि कोई घर में आया, बैठा खाओ पीयो, ठीक 31 चैतन्य लहरी XII अंक : 11 & 12. 1999 ॥ खंड : पूजा के श्री निर्मला देवी की डॉ. तलवार से बातचीत। 26, 27 फरवरी 1987, शिव मुम्बई में माताजी सुआवसर पर सहजयोग का ज्ञान मुझे सदा से था। इस अद्वितीय ज्ञान के साथ ही मेरा जन्म हुआ। परन्तु रूप में में आई हूँ। निराकार सागर अब एक इसे प्रकट करना आसान कार्य न था। अंतः इसे बड़ा बादल (साकार) बन गया है। इसने रूप ध प्रकट करने की विधि में खोजना चाहती थी। सर्वप्रथम मेंने सोचा कि सातवें चक्र सहस्त्ार) का खोला जाना आवश्यक हैं और 5 अवतार हुआ है। इस बादल में जल है, वर्षा का मई 1970 को मेंने ये चक्र खोल दिया। एक प्रकार से बह रहस्य है। पहले ब्रह्म चैतन्य शनै: शनैः वे उस स्तर पर लाए गए हैं जहाँ 'अव्यक्त' था, इसकी अभिव्यक्ति न हुई थी। उनकी कुण्डलिनी उठ गई है, उन्हें आत्म अब ब्रह्मचैतन्य के विराट अवतरण के रिण कर लिया है। इससे पूर्व जो भी अवतरण आए वे इसके अंग-प्रत्यंग थे। अब पूर्ण (विराट) ये जल लोगों के मस्तिष्क पोषण कर रहा है । साक्षात्कार प्राप्त हो गया है और अब वे अपनी नस-नाड़ियों और अंगुलियों के सिरों पर सभी यह स्वत: स्पष्ट न था। जो लोग किसी प्रकार आत्म साक्षात्कार प्राप्त करके ब्रह्म चैतन्य के समीप पहुँच जाते तो बे कहते कि 'यह निराकार समस्याओं को महसूस कर सकते हैं । यही का गुण हैं। व्यक्ति एक बूँद की तरह से है जो कारण था जिसकी वजह से अब तक किसी ने सागर में विलीन हो जाती है। इससे अधिक कोई भी न तो वर्णन कर बताया । उन्होंने चैतन्य लहरी की बात की पूरन्तु पाता और न ही लोगों को बता पाता। ब्रहा चैतन्य तब तक यह अव्यक्त रूप में थीं। केवल एक के सागर से अवतरित महान अवतरणों ने भी अपने गिने चुने शिष्यों को यह रहस्य समझाना चाहा. उनका परिचय व्रह्म चैतन्य से करवाने का प्रयत्न किया। परन्तु ब्रह्मा चेतन्य के 'व्यक्त' रूप गए। हमारे सम्मुख इसके प्रमाण हैं। वे ऐसा में न होने के कारण ये अवतरण स्वयं इसी में किस प्रकार कर पाए. ब्रह्म चैतन्य क्या था-इसका लुप्त हो गए। ज्ञानेश्वर जी ने समाधि ले ली। कुछ लोगों ने कहा कि वे इसकी बात नहीं कर सकते, यह तो अनुभव की चौज है। अतः बहुत विषय में बताया। कम लोग इसे प्राप्त कर सके। कोई भी अपनी अंगुलियों के सिरों पर. अपनी नाड़ियों पर, अपने मस्तिष्क में इसकी अनुभव करके या अपनी लाई हूँ। अब में आपको इसमें विलीन हो जाने बुद्धि से इसे समझकर आत्म साक्षात्कार के की आज्ञा नहीं देती। इसे मैंने एक बड़े बट अनुभव का वास्तवकिरण न कर सका। इस प्रकार यह बहुत बड़ी समस्या थी सभी ने इसके लोग छोटे घट हैं दूसरे शब्दों में सूक्ष्म कोषाणुओं लिए आधार बनाने का प्रयत्न किया। स्पष्ट रूप से चैतन्य लहरियों के विषय में नहीं अवस्था थी, आनन्द की एक अवस्था जिसकी अभिव्यक्ति स्थूल रूप में न हुई थी। उस अवस्था में वे क्रोध और प्रलोभनों से ऊपुर उठ प्रत्यक्ष रूप वो न दर्शा पाए। केवल उपमाओं और नीति कथाओं के माध्यम से उन्होंने इसके मैंने यही प्राप्त किया है-यह प्रत्यक्ष रूप हैं। ब्रहम चैतन्य का साकार रूप में सागर में से (मटका) के रूप में स्थापित किया है। आप के रूप में अपने शरीर में ले लिया है जहाँ में 32 चतन्य लहरो खड : XII अंक : 11 & 12. 1999 खड़ विस्तार से बता सकती हूँ क्योंकि वे सब एक ही विराट के अंग-प्रत्यंग है। उसी विराट के जो ब्रह्म चैतन्य है । वैज्ञानिकों से मेरे विषय में बात न करें उन्हें केवल यही बताएं कि एक अद्वितीय विधि आपका पोषण करती हूँ, आपकी देखभाल करती हूँ. आपकी अशुद्धियाँ स्वच्छ करती हूँ और यह स मैं 'महामाया' सब कार्यान्वित करती हैँ। परन्तु हूँ। इसलिए मुझे अत्यन्त शनै:-शनै: उचित समय तथा उचित परिस्थिति में काम करना होता है। जब सातवाँ चक्र खोला गया तो सभी विकसित है। यद्यपि इसे समझना कुछ कठिन है चक्र आपके सहस्त्रार में आ गए और में सभी फिर भी ये घटित हुआ है और हमने स्वयं इसे चक्रों का और आपके सभी देवी-देवताओं का संचालन कर पाई। किसी भी देवता से प्रार्थना उनसे यदि आप मेरे विषय में कहेंगे तो उन्हें करने भर, से आपको चैतन्य लहरियाँ आने लगती है यह प्रमाणित करता है कि में ब्रह्म चैतन्य हूँ। ब्रह्म चैतन्य हो आदिशक्ति है और जागृत की जा सकती है। उन्होंने किस प्रकार सदा-शिव भी मेरे हृदय में विराजित हैं। परन्तु मेरे बहुत अधिक मानवीय होने के कारण मुझ नहीं जानते संभवत यह रहस्य है, सारी बात मुझ में सदाशिव को खोज पाना सुगम नहीं है। आधुनिक मानव को आप यदि ये सब बातें बताएं तो उनकी समझ में नहीं आएगा। ये तो केवल सहजयोगियों को बताया जा सकता है होता है? पृथ्वी माँ में बीज को डालने परा तो जिनमें इसे समझने की योग्यता है। इस सत्य को बर्दाश्त कर पाना अत्यन्त कठिन है। आजकल तो अपने धन और पद के गर्व से मुक्त रहना भी हुआ है। यह जीवन्त प्रक्रिया है जिसे हमने स्वयं अत्यन्त कठिन है। लोग हिल जाते हैं उनके देखा है। लिए यह बर्दाश्त करना असंभव होगा कि सभी अवतरण मुझमें निहित है। एक बार मैं औरंगाबाद गई। वहाँ एक लड़के ने मुझे बताया कि ब्रह्म चैतन्य अनुभव लोगों को तपस्या द्वारा ही आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने या न करने से परे है इसके विषय में हुआ। उदाहरणार्थ महात्मा बुद्ध को तपस्या द्वारा उसने किसी पुस्तक में पढ़ा था। मैंने उसे बताया कि ये सच परन्तु इस सत्य को भूलकर वह ब्रह्म-चैतन्य को केवल महसूस करें। इसके पश्चात् लिए प्रार्थना की । इसके लिए शुद्ध इच्छा की मैंने इसके विषय में कुछ लोगों को बताने का निर्णय किया। इसको प्रकट करने से पूर्व, आप देखा है। वैज्ञानिकों को आप इस प्रकार बताएं। आघात लगेगा। अधिक से अधिक आप उन्हें इतना कह सकते हैं कि 'यह ज्ञान माताजी श्री निर्मलादेवी की देन है।' इसके द्वारा कुण्डलिनी इस कार्य को किया इसके विषय में हम कुछ पर डाल दो। आप समझने का प्रयत्न करें। क्या आप बता सकते हैं कि बीज का अंकुरण किस प्रकार आप कह सकते हैं कि सभी कुछ श्रीमाताजी पर छोड़ने से हमारे अन्दर बीज का अंकुरण अब तक कोई भी अन्य लोगों को आत्म साक्षात्कार नहीं दे पाया। ही सकता है एक दो लोगों ने दूसरों को साक्षात्कार दिया हो। अधिकतर आत्म साक्षात्कार प्राप्त हुआ। ब्रह्म चैतन्य ने उनमें इसलिए प्रवेश किया क्योंकि उन्होंने इसके है और तब ब्रह्म चैतन्य ने उनका शुद्धीकरण किया। परन्तु इसे पाने के पश्चात् वे उस अवस्था में स्थापित हो गए। इसके बाद उन्होंने इसके विषय में कुछ नहीं कहा। अब यही चीज़़ सामूहिक रूप से मिल रही है। इसका सामूहिक रूप से प्राप्त होना इस अवस्था के प्रकटीकरण आरंभ ्ि देखे, उपयुक्त समय भी आ गया था। अभी तक सभी धर्म विभाजित थे और असंगठित। अब पूर्ण संगठन आ गया है। अब मैं ईसा मसीह मोहम्मद साहब और अन्य लोगों के विषय में 33 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 लोग इस हाँडी से बाहर रह जाएंगे वे बाहर ही रह जाएंगे। यह सब समय से परे की चीज़ है। होने के कारण हुआ। मान लो आप बिजली का अविष्कार करें और इसे अपने तक ही सीमित रखें? इसके विषय में किसी और से बात न करें हर व्यक्ति की प्राप्त करने की अपनी ही तो अन्य लोग किस प्रकार इसके विषय में जान पाएंगे? ऐसा नहीं हैं कि महान सन्त इसकी साइकिल चलानी सीखने या सी. ए. या डॉक्टर अभिव्यक्ति नहीं करना चाहते थे परन्तु उन दिनों बनने में किसको कितना समय लगेगा। कुछ सम्पर्क के साधन नहीं थे। किसी व्यक्ति के पास यदि आँखें नहीं होगीं तो किस प्रकार आप उन्हें बहुत अधिक। दिखाएंगे या किस प्रकार किसी चीज़ की बात करेंगे? इस अवस्था को समझने वाला और है। वास्तव में शरीर का कोई समय नहीं हैं। आत्मसात करने वाला उन दिनों कोई न था। जिन लोगों ने आत्म साक्षात्कार प्राप्त किया (Time Dimension) उनके सहस्त्रार खुल गए और वे इसी में ही आदतें बनने के साथ-साथ काल या समय- विलीन हो गए। इस प्रकार ये सारा अनुभव व्यक्तिगत रहा, सामूहिक न बना पाया। अब वह स्थिति समाप्त हो गई है। आत्म साक्षात्कार अब सामूहिक बन गया है। एक बिन्दु पर आकर हर चीज को सामूहिक बनना पड़ता है। इस बिन्दु समय लगता है। आदतों से यदि आप मुक्ति तक पहुँचने के लिए भी परीक्षाएँ हुई अन्तो्गवा ईसा मसीह ने अपना बलिदान दिया। इसी प्रकार ठहराने के कारण आदतें बनी रहती है। एक मोहम्मद साहब, गुरुनानक और तुकाराम ने परीक्षाएं जीवन काल में यदि आप आत्म साक्षात्कार प्राप्त दी। आप देखें कि उनसे किस प्रकार व्यवहार किया। वैकुण्ठ से आए इन सन्तों के साथ लोगों प्राप्त करना आपके लिए संभव होगा। इस जीवन ने किस प्रकार व्यवहार किया? चीजें तब कार्याचित में यदि आप अधकचरे रहे तो यह उपलब्धि न हो पाई। बैकुण्ठ से भी आगे की सब चीज़ें मैं जानती हूँ परन्तु इसे मैंने अभी तक प्रकट नहीं कार्य करेगा। यह 'अन्तिम निर्णय' है। सहजयोग किया है। धीरे-धीरे मैं ये सब प्रकट करुंगी क्योंकि अभी तक लोग इसे आत्मसात करने के दिशा में कार्य करते देखती हैँ तो मुझे बहुत बुरा लिए तैयार नहीं हैं। यह खिचड़ी पकने जैसा है लगता है। समय-समय पर मुझे ऐसे बुरे अनुभव जो अभी तक पकी नहीं है। तो अभी इसे तैयार होते रहते है परन्तु ऐसे व्यक्ति सहजयोग से चले होने दो। आप सब लोग इसमें हैं। अब जो लोग जाते हैं। ऐसा घटित होता है। परन्तु आप लोगों तैयार हो रहे हैं उनकी गुणवत्ता भूतकाल के को निरुत्साहित बिल्कुल नहीं होना। परी शक्ति पैगम्बरों के गिने-चुने योग्यता है। वैसे ही जैसे ये कहना कठिन है कि लोग बहुत कम समय लेते है और कुछ लोग समय का बन्धन मानव की अपनी रचना आदतों के कारण मानव ने समय के आयाम की सृष्टि की। बन्धन की सृष्टि हुई। आदत अगर न हो तो समय बन्धन नहीं रह जाता। सहजयोग में आने पर आप बहुत-सी आदतों से मुक्त हो जाते हैं । परन्तु इसमें भी चाहते हैं तो उन्हें उचित न ठहराए। उचित करना चाहते हैं तभी इस जीवन में वह स्थिति पूर्ण करने के लिए आपको पुनः आना पड़ेगा। कुछ समय के लिए अब सहजयोग इसी प्रकार अभिव्यक्तिकरण में जब मैं लोगों को विपरीत हैं शिष्यों की गुणवत्ता के से इसमें बढ़ने के लिए लगे रहे। सदैव मध्य में रहें। सहजयोग में अपनी उन्नति के विषय में चिन्तित न हों । एक बार जब आप मध्य में आ जाएंगे तो उन्नति स्वत: बराबर है। अब यहाँ पर आप सब लोग धीरे- धीरे उन्नत होंगे। जो भी लोग इस दिव्य रसोईये की हाँडी में आ जाएंगे, वे तैयार हो जाएंगे। जो 34 चैतन्य लहरी । खंड : XII अक : 11 & 12, 1999 होने लगेगी। मैं इसका पोषण कर रही हूँ। एकीकरण हमारे बोध से हो जाता है तो यह प्रतिदिन आप बाएं-दाएं होते रहते हैं अपनी चैतन्यित बोध का रूप धारण कर लेती है जी आदतों के कारण आप बाएं को जाते हैं सन्तुलन प्रदारयी होता है। यह सन्तुलन आपको और आकांक्षाओं के कारण दाएं को। मुझे मध्य में बनाए रखता है। ज्याही आपका चित्त अपने हृदय में बिठाना एक भाव है, एक अनुभूति। जिस प्रकार आपमें आदतें विकसित होती है उसी प्रकार भाव के रूप में मुझे अपने हृदय में स्थापित करने का अभ्यास करें। आप यदि इतनी आसानी से आदतें बना लेते हैं तो इस सुन्दर भाव को क्यों नही मस्तिष्क के विकास के विकास को प्रभावित आसानी से प्राप्त कर सकते हैं? ऐसा करना भाव परिवर्तन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। (कुण्डल) के रूप में प्रकट होते हैं। ये कुण्डल मस्तिष्क की अवस्था होने के कारण आदते बना गलत दिशा में जाता है तुरन्त आपको अपनी नस-नाड़ियों पर तपन महसूस होने लगती है। इस प्रकार सर्वव्यापी शक्ति आपक अन्दर कार्य करती है और बढती है। हमारी सभी आदते और संस्कार हमारे करते है और मस्तिष्क में मरोड़ों (Crumples) जब खुलते हैं तो मस्तिष्क में नए अन्तरिक्षों की सृष्टि होती है जिनमें आत्मसात करने की शक्ति लेना सुगम हैं। एक बार जब आप अपने अन्दर मेरा अधिक होती है। कुण्डलीकृत मस्तिष्क बड़े भाव स्थापित कर लेते हैं तो आपके पूरे शरीर में सूक्ष्म रूप से खुलता है इस प्रकार परमात्मा से यह अपना स्थान ले लेता है और शाश्वत बना रहता है। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आप कितना इसे उपयोग करते है । कमरे में यदि प्रहुँचेगा एक चिकित्सा संस्थान में जाकर मैंने बहुत सा धुओँ कर दिया जाए तो सारं मच्छर भाग जाते हैं । तो अन्तः शुद्धीकरण के लिए भी Nervous-Systen) के विषय में बताया। व ये आप पर निर्भर करता है कि अपने हृदय में भौचक्के रह गए। वे गुर्दे (Stiponitan- कहाँ तक आप मुझे बिठाते हैं। अब यह प्रश्न उठता है कि किस प्रकार मेरे भाव को अपने हृदय में स्थापित करें। उत्तर ये है कि चित्त को को यदि आप बाई ओर से देखेंगे तो इसका दायाँ निरन्तर रोकने से स्थिरता आती है सदैव चित्त निरोध करें। आप जब बाहर जाकर किसी बाई ओर से कार्बन देखने पर स्वास्तिक का चीज़ को देखते हैं तो अपने चित्त को जान-बुझकर उसकी ओर जाने से रोकें। ओंकार का। नीचे से ऊपर को देखने पर यह अभ्यास से ऐसा होता है। चित्त को अन्दर की ओर चौंका देने वाली। इसे आपको परिकल्पना स्मरण रहे कि बाह्य की चीज़ों से सम्पर्क केवल (Hypothesis) के रूप में लेना होगा कि मानव चित्त के माध्यम से होता है सदैव इस देखें कि मस्तिष्क से ऊपर भी एक सर्वव्यापी शक्ति यह कहाँ जा रहा है? सदा अपने से प्रश्न करे, विद्यमान है। परिकल्पना केवल यही है। मानव मेरा चित्त कहाँ हैं?" वास्तव में हमारा चित्त भी हमारे अन्दर इसी प्रकार बँटा हुआ है जिस जैसा है। सर्वव्यापी शक्ति या परम-चैतन्य चहूँ प्रकार चेतना और बोध। जब हमारी चेतना का सम्बन्ध बनता है। इस बात को सुनकर वैज्ञानिकों को आघात परा-अनुकम्पी-नाडी-तन्त्र (Pera- Sympathetic Adrenaline) की कार्य शैली का वर्णन नहीं कर सकते हैं। आप कार्बन को ही लें। कार्बन भाग दिखाई देगा और दाएँ से देखेंगे तो बायाँ। आकार दिखाई देगा और दाई ओरसे देखने पर क्रस दिखाई पड़ता है। यह वास्तविकता है परन्तु ले जाएं। इसे निर्लिप्सा कहते है। मस्तिष्क का आकार (Pyramid) सूची स्तम्भ ओर से आकर माँ के गर्भ में भ्रूण के बनने के 35 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11& 12, 1999 तुरन्त बाद से ही इसके मस्तिष्क को प्रभावित और दाएँ दोनों ओर खींचते हुए बाहर आने का करने लगती है वास्तव में इस सूची स्तम्भ आकार के में क्रिया (Action) कहलाता है। बाह्य जगत में मस्तिष्क के तालू से बेरोकटोक प्रवेश करके परम चैतन्य रीढ़ की हड्डी से जाकर इसी रीढ़ (भौतिक विज्ञान का एक अन्य प्रसिद्ध सिद्धान्त)। के मूल में बनी त्रिकोणाकार अस्थि में साढ़े तीन क्रिया और प्रतिक्रिया का एक ही मार्ग होता है। कुण्डलों में स्थापित हो जाता है यह कुण्डलिनी बाई ओर यह प्रतिक्रिया प्रति अहं ( बन्धनों) की शक्ति है। इस प्रक्रिया में यह रीढ़ में िक्त मार्ग सृष्टि करती (Vacuum Channel) बनाता है। अब परम चैतन्य को त्रिकोणाकार अस्थि को चारों ओर से छूते हुए भूरे और सफेद पदार्थ में प्रवेश करना होता है। इनका अपना घनत्व (Density) होता में गया और एक प्रतिक्रिया को साथ लेकर बाई है और शरीर विज्ञान के अपवर्त्तन सिद्धान्त ओर से अपने साथ किसी बन्धन को साथ लेकर (Laws of Refrection) के अनुसार चलते हुए बापिस आ गया और इस प्रकार 'मनस' की परम चैतन्य बाएँ से दाएँ को और दाएँ से बाएँ सुृष्टि की। क्रिया और प्रतिक्रिया, दोनों अगन्य को प्रकाशमय ( । सपार्शवीय विकीर्णींकरण प्रभाव (Prismatic अपना रास्ता बनाता है। दूसरा हिस्सा बाह्य जगत इस क्रिया के परिणाम स्वरुप प्रतिक्रिया होती है है और दाई ओर यह अहं की रचना करती है। संक्षिप्त में, परिणामी ब्रह्म चैतन्य की जीवन्त शक्ति के साथ हमारा चित्त बाह्य जगत इसे और विशुद्धि चक्र में से गुजरते हैं । प्रकृति में बिखरे होने के कारण चित्त में पूरे शरीर के अन्दर प्रसारित होने की शक्ति है बाई ओर की विकीर्णित) करता है। refrection effect) भी कहते है। यह तथ्य केवल मानवीय मस्तिष्क के लिए ही कार्यरत प्रतिक्रिया इच्छा तत्व है जिसकी संभावना शक्ति है। पशुओं में यह इतना प्रभावशाली नहीं है। विकीणीकरण क्रिया में मानवीय चेतना है। इसी प्रकार दाई ओर की प्रक्रिया-क्रिया तत्व को दोनों तरफ से खींच कर बाहर की दिशा में है जिसकी सम्भावना शक्ति पिंगला नाड़ी की धकेला जाता है। चित्त और विकीर्णित चैतन्य रचना करती है। ईडा नाडी का अत्याधिक बहाव दोनों बाहर निकलते हुए दोनों ओर से अगन्य चक्र को पार कर जाते हैं। इस खिंचाव के परिणाम स्वरूप एक अतिरिक्त शक्ति 'परिणामी Ego) कहते हैं। तथा-पिंगला-नाड़ी का अत्याधि शक्ति' (The Resultant Force) की सृष्टि क बहाव आज्ञा चक्र के सामने वाले हिस्से में होती है। यहाँ पर भौतिक विज्ञान का शक्तियों वैसे ही बादल की रचना करता है जो 'अह का समानान्तर चतुर्भुज का सिद्धान्त कार्यरत होता (Ego)' कहलाता है। अगन्य चक्र इन दोनों है। परिणामी शक्ति दो भागों में बँट जाती है, हर गुब्बारों (अहं और प्रतिअहं) के बीच में होता एक भाग बाएँ और दाएँ दोनों ओर एक दूसरे के है। अगन्य चक्र के आगे का हिस्सा- मस्तिष्क के नब्बे अंश के कोण में होता है। परिणामी शक्ति पीयूष ग्रन्थि (Pituitary Gland) द्वारा प्रचालित अपने दोनों पूरकों के मध्य में कार्य करती है। होता है और पीछे का हिस्सा शीर्ष ग्रन्थि (Pineal एक हिस्सा भ्रूण के शरीर में नीचे की ओर Gland) द्वारा । उतरते हुए बाएँ और दाएँ अनुकम्पी मार्ग की सृष्टि करता है। दूसरा हिस्सा नस-नाड़ियों में से इसे ज्योतिर्मय करती है। आपके अन्दर ईसा अपना मार्ग बनाते हुए मानवीय चेतना को बाएँ मसीह जागृत हो जाते हैं । वे अहं और प्रतिअहं बाएं अनुकम्पी मार्ग पर ईडा नाड़ी को जन्म देती अगन्य चक्र के पिछले हिस्से में गुब्बारे जैसा बादल बनाता है जिसे हम प्रतिअहं (Super कयिड अगन्य चक्र में प्रवेश करके कुण्डलिी 36 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक 11 & 12, 1999 के गुब्बारे को अधोगति की ओर ले जाते है और क्या होता है? कपड़ा अंगुली पर कुछ ऊपर जाकर अंगुली को चारों ओर से घेर लेता हैं जाता है कि हमारे पापों के कारण ईसा मसीह इसी प्रकार जब कुण्डलिनी उठती है तो यह बलिदान हो गए। इसी के साथ-साथ सहस्त्रार अंगुली की तरह से चित को उठाकर सहस्त्रार तक ले जाती है जहाँ यह ब्रह्म चेतन्य के प्रकाश से प्रकाशमान हो उठता है। प्रकाशरंजित होकर यह मध्य में सुषुम्ना नाड़ी पर कुण्डलिनी मार्ग की रेखा में आ जाता है। वास्तव में घटित यह पूरा अगन्य चक्र खुल जाता है। इसीलिए कहा खुल जाता है। मैंने विराट के सहस्रार देखा है। ऐसे लगता था जैसे टनों शोले हो। जब मानवीय मस्तिष्क की चीर फाड़ करते हैं, तो इसकी फाडियाँ शोलों की पंखुड़ियों सी लगती को खुलता हैं। इसका मध्य भाग पीले रंग के छेद जैसा हुआ है कि आत्म साक्षात्कार के पश्चात् हमारा चित्त बाह्य भौतिक संसार से अन्दर की ओर खिंचता है। इस प्रकार यह ज्योतिर्मय हो उठता है यह एक प्रकार की अवस्था है। परन्तु हम मानव प्रभाव दूसरी में दर्शाता है। अगन्य और विशुद्धि वास्तव में अपनी आदतों के दास हैं। आदतों के चक्र के खुलने से प्राय: अहं और प्रतिअहं नीचे वशीभूत होकर हम अपने चित्त को उस स्थिति की ओर खिंच जाते हैं। मनस प्रतिअह है और में स्थायी रूप से बने नहीं रहने देते वास्तव में अहंकार अहं (Ego) है। हमारी आत्मा पंचतत्नां चित्त को बाहर नहीं जाना चाहिए। एक सामान्य तथा उनकी कारणात्मक (Causal) अभिव्यक्ति स्थिति ये है कि में स्वयं को आप लोगों समेत अपने अन्दर पाती हूँ। मैं आप लोगों को नाव पर पंचतत्वों में पृथ्वी और जलतत्व मुख्य हैं और बैठाकर तैराना चाह रही हूँ। परन्तु आप निरन्तर अपना एक पैर पानी में डालकर मेरी इस सहायता में बाधा डाल रहे हो। आपका चित्त पैर दिखाई देता है। सहस्त्रार का खुलना अचानक होता है, झटके के साथ ये खुल जाता वर्णन में किस प्रकार करु? यह एक दूरबीन का है। इसका से घिरी हुई है। कृण्डलिनी इसकी परिधि पर है ज्योत-मात्रा उनका कारणात्मक तत्व है। जब आत्म साक्षात्कार घटित होता है तब देवी देवता जागृत हो जाते हैं और पोषण पाकर तुच्छ चीजों पर है, आदतन आप अपना एक सभी चक्र सशक्त होने लगते हैं। चक्र खुलते है बाहर निकाले रखते है यद्यपि आप ये जानते है और शक्ति प्रसार करने लगते है। मस्तिष्क में कि मैं आपको पार लगाने के लिए अन्दर बैठी बने पीठों पर सभी सम्बन्धित चक्रों में गतिविधि हुई हूँ। मैं भी देख सकती हूँ कि आपकी निकली टाँगा को किसी भी समय कोई मगरमच्छ आरंभ हो जाता है और सभी चक्र संगठित हो निगल लेगा, परन्तु अपनी आदतों के कारण आप मगरमच्छ को देख पाने में असमर्थ हैं । अब क्या आप मेरी चिन्ता की कल्पना कर सकते कुछ और करना चाहता है और आपकी बुद्धि है? कल्पना करें कि मुझे कैसा लगता होगा! यही कारण है कि मैं आपको कहती आत्म साक्षात्कार के पश्चात् शरीर, मन और हूँ कि सत्संग करो, अपने चित्त को मध्य में बुद्धि (मनसा, वाचा, कर्मणा) एक हो जाते हैं। रखने के लक्ष्य से अन्य सहजयोगियों के साथ समय व्यतीत करो। चित्त का निरन्तर मध्य में होना बहुत आवश्यक है। आत्म साक्षात्कार के पश्चात् दिव्य शक्ति को प्राप्त कपड़े को अंगुली पर ऊपर की ओर उठाएं करके हमारी बाई और दाई नाड़ियाँ शान्त हो शुरु हो जाती है। दोनों ही स्तरों पर समन्वय जाते है। अपने मस्तिष्क का एक उदाहरण ले-यह कुछ करना चाहता है। आपका शरीर कुछ और उनमें एकीकरण (समन्वय) नहीं है। कपड़े के टुकड़े का एक ओर उदाहरण लें यह चित्त का प्रतीक है। आत्म साक्षात्कार से पूर्व यह चारों तरफ सभी दिशाओं में फैला होता है। इस 37 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 । जाती है। तनाव दूर हो जाने के कारण हमारे चैतन्य का अपना ही प्रकाश होता है यह केवल चक्र और अधिक खुल जाते हैं। यह घटनाचक्र मुझे दिखाई देता है। कुछ लोग जिनका अगन्य है। तब कुण्डलिनी के अधिक तन्तु उठ सकते हैं। इस अवस्था में आकर चित्त मध्य में बने रहने का गुण विकसित कर लेता है। तब आप किसी विशेष कार्य को करने के से दूर होते हैं तो आप इसे देख सकते है परन्तु लिए चित्त को निर्देश देते हैं और इस कार्य यदि आप इसमें समाए हुए हो तो क्या देखेंगे ? को करने के पश्चात् विना किसी प्रतिक्रिया के आपके मध्य में यह अपना स्थान ग्रहण कुण्डलिनी अगन्य चक्र को पार कर लेती है कर लेता है। अब तक इसने निर्लिप्सा का गुण प्राप्त करे लिया होता है। मेरी बात कुछ और है। मेरा चित्त यदि है और आपके पूरे शरीर पर छा जाती है। यह आप पर हो तो में आपकी सभी समस्याओं को अपने में खीच लुंगी। उन्हें साफ करके स्वयं चेतना होती है। आप ब्रह्म चैतन्य बन जाते हैं या कष्ट उठाऊँगी। ऐसा मैं चाहूँगी तभी होगा। सहजयोगियों को मैने बिना सोचे समझे अपने शरीर में डाल लिया है। इसलिए मुझे कष्ट उठानां पड़ता है। इस मामले में सहजयोगी दवाव में प्रवेश करके समाधि में न चले जाएं। मापी यन्त्र (Baro metric) सम है। वे मेरी तरह समाधि की यह स्थिति मैंने आपके लिए से कष्ट नही उठाते। कभी थोड़ा बहुत कष्ट हो सकता है क्योंकि जो भी कुछ नकारात्मकता वे तो आप इसे माँगते क्यों है? आपको पता आत्मसात करते हैं वह विशाल सागर में चली होना चाहिए कि आप वहाँ है, इसके विषय जाती है। अब रूस में भौतिक प्रदार्थ के पाँचवें में कोई सन्देह नहीं है। अब यह अन्तिम खेल आयाम पर शोध हो रहा है, जीव बीज (Bio Plasma) पर शोध। यह पूर्णतया दायीं और की सुगम एवं स्वत: है, परन्तु मैं चाहूँगी कि आप गतिविधि है। हर मनुष्य का अपना ही एक इसके लिए परिश्रम करें और प्रयत्न करें। जब परिमल (Aura) है। व्यक्ति के गुणों के परिवर्तन के साथ-साथ ही उस गुण के प्रतिनिधित्व करने प्राप्त करना चाहते हैं तो में कहंगी यह आपका वाले रंग या परिमल परिवर्तित हो जाते हैं। आप स्वार्थपन है और एक प्रकार से आप पलायन वन्धन किस को देते हैं? अपने परिमल को ताकि यह सुरक्षित रहे। केवल भौतिक पदार्थों में होगा। अन्यथा व्यक्तिगत रूप में तो आप निराकार ही परिमल हो सकता है, अतः यह सब भौतिक में खो जाएंगे और मेरे दर्शन भी नहीं कर सकेगे है। पाँचवा आयाम वास्तव में सूक्ष्मदर्शी क्योंकि आप उस अवस्था में चले जाएंगे- सागर (Microscopic) है या हम कह सकते हैं कि में आप विलीन हो जाएंगे। अत: सागर से यह छाया चित्रण (Photographic) आयाम है। विकसित होना या उसमें विलय हो जाना जब आप मेरे फोटो में कोई प्रकाश देखते हैं तो कोई यह परिमल का ही एक रूप होता है। ब्रह्म चक्र खराब होता है वे भी इस प्रकाश को देख सकते है; वे बाह्य से इसे देख सकते हैं। सिद्धान्त ये है कि जब आप ब्रह्म चैतन्य निर्विचार चेतना तभी आती है जब आपकी जब कोई विचार नहीं होता। यह संयम द्वारा आती है। शनै: शने: यह आपका भाग बन जाती एक अवस्था बन जाती है। तब यह निर्विकल्प ब्रह्म चेतन्य की एक अवस्था। अभी आप सबके लिए आवश्यक है कि मेरे लिए कार्य करें, केवल उस अवस्था प्राप्त कर ली है अभी तक आपको दी नहीं। है। वास्तव में इस अवस्था को पाना अत्यन्त आप इसी क्षण, केवल अपने लिए यह अवस्था कर रहे है । सर्वप्रथम आपको सामूहिक होना अद्वितीय या महान कार्य नहीं हैं। सागर से वाष्पीकृत होकर बादल बनना और फिर 38 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 भावना उत्पन्न हो जाए तब यह रोग घटित होता मेरा यही लक्ष्य है और यही खेल। जिस तरह है या किसी दुर्घटना या अचानक आधात के से हर खेल का कोई लक्ष्य होता है वैसे ही मेरे परिणाम स्वरूप भी यह रोग हो सकता है। उपचार : चित्त को मध्य (सहस्नार) में लाएं। केन्द्र में बने रहने के लिए शरणागत ऐसा करने के लिए गायत्री मन्त्र कहकर चित्त की पहले दाई ओर को लाएं और फिर ब्रह्मदेव कुछ हैं, कृपा करके सभी कार्यों को कीजिए। सरस्वती का मन्त्र उच्चारण करते हुए चित्त को मध्य में ले जा आए। दाई ओर चित्त के आते ही वैज्ञानिक मस्तिष्क के लोगों को आप यह आपको चैतन्य लहरियाँ आने लगेंगी। चैतन्य लहरियों के आते ही मन्त्र बोलना बन्द कर दं अत्यथा आप बहुत अधिक दाए के चले जाएगे (आक्रामक हो जाएंगे) जिससे चैतन्य लहरियाँ कम हो जाएँगी। उदाहरण के रूप में श्री जालान हैं। लोगों को सहजयोग का परिचय देतें हुए के माताजी का ये रोग उीक हो गया। इसके लिए बाएं और दाएं में पूर्ण सन्तुलन करना आवश्यक जब वे आ जाएं तो उन्हें देखें। समय को सदा होता है। चैतन्य लहरियों का आना बहुत आवश्यक याद रखें आप सबके साथ भी ऐसा ही हुआ है। है चैतन्य लहरियाँ बदि नहीं आ रही हैं तो पहले आपने इसको अनुभव किया और फिर बार-बार कुण्डलिनी को उठाएं ताकि चैतन्य सब पर वर्षा करना अद्वितीय उपलब्धि होगी। खेल का भी कोई लक्ष्य है। हो जाइए। कहिए, "श्रीमाताजी आप ही सभी यही पूर्ण समर्पण है। विद्या धोरे-धीरे दें। जितना यड़ा घड़ा हो उसके अनुसार ही उसे भरा जाता है। अतः धेर्य रखें। एकदम पूरी सागर आप उहे नहीं दे संकते। याद रखे कि विज्ञान विराट का एक छोटा सा अंश सर्वप्रथमें उनमें सहजयोग की इच्छा पैदा करें। इसको अधिक से अधिक पाने की आकांक्षा लहरियाँ आने लगें| की। यह प्रक्रिया भी बैज्ञानिक है। एक अन्य अच्छा तरीका ये भी है कि संसार में धनार्जन के लिए जब आप बायाँ हाथ श्रीमाताजी की फोटोग्राफ की तरफ कार्य करते है तो भी आपको माया का सामना करके दायों हाथ जमीन पर रखकर महाकाली का मन्त्र कहें ताकि चैतन्य लहरियाँ बहने लगे। धनार्जन कर रहे हैं। बस। आगे बढे और जितना पीठ के बाई ओर मोमबत्ती (अग्नि ) जलाकर उपचार करें। ऐसा करना काफी सहायक होगा। यह उपचार विधि कैंसर एवं मनोदैहिक आपके माध्यम से जो लोग सहजयोग में रोग में भी लाभकारी है। मास पेंशियों की आते है बह मेरे द्वारा लाए गए सहजयोगियों से समस्याएं भी इससे ठीक हो सकती हैं। श्री कहीं अच्छे बन जाते है। मेरे साथ रहकर वे गणेश तत्व बिगड़े होने के कारण महिलाओं में माया में फँस जाते हैं। नए लोगों के लिए मेरा हिस्ट्रेकटोमी (Hysterectomy) के मामलों में जहाँ गर्भाशय निकाल दिया जाता है वहाँ भी श्री गणेश तत्व की समस्या होती है तथा भय भी इसका कारण होता है। किसी महिला को यदि सन्तान नहीं होती तो बाएँ स्वाधिष्ठान की समस्या इसका कारण हो सकती है। पराअनुकम्पी (Para Sympathetic) में समस्या होने के कारण महिलाओं को बहुत अधिक रक्त स्राव हो सकते करना पड़ेगा। याद रखें कि आप मेरे लिए चाहे धनार्जन करें। आपके भौतिक साम्थ्य के लिए में ये बात कह रही हूँ। मानव रुप कुछ विशेष नहीं है। रोग निदान मिर्गी रोग : कारण :- चित्त का अत्याधिक वाई और को चले जाना। इसके कारण व्यक्ति सामूहिक अवचेतन अवस्था में चला जाता है। दुर्बल या बाई ओर के व्यक्ति होने के कारण जब मस्तिष्क में भय की 39 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 करता। " यह आपके विचारों को संयमित करेगी। ध्यान करने से पूर्व सबके लिए आवश्यक है कि अपने बाएँ, दाएँ को शुद्ध करें। ध्यान से पूर्व है। आन्त्रशोध एवं बहु-मूत्र की समस्या भी हो सकती है। उपचार : अपनी बाई तरफ को विकार मुक्त करें साथ ही आवश्यक दवा भी लें। अजवाइन कुण्डलिनी अवश्य उठाएँ। पूजा में वैठते समय की धुनी भी आप ले सकते है। कटिवेदना (Lumbago) के लिए अजवाइन का पानी दिया जा सकता है। मासपेशियों के दर्द के लिए अजवाइन ली जा सकती है और गैरू का लेप (Right Sided) होते हैं। उन्हें भक्ति-भजनों द्वारा किया जा सकता है। Lumbago में हड्कियाँ मुड़ मुझे अपने हृदय में बिठाना चाहिए अर्थात बाई जाती है। इसके लिए चैतन्यित मिट्टी का तेल किसी अन्य तेल में मिला कर मालिश करें। कुछ ही दिनों में ये ठीक हो जाएंगी| किसी भी शक्ति भी दोनों ओर से मध्य नाड़ी पर ही कार्य तरह के उपचार के लिए सभी कुछ आपकी इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है। अत: ईड़ा है। बाएँ और दाएँ के मन्त्र भी कुण्डलिनी उठाने नाड़ी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आपमें शुद्ध के लक्ष्य से बोले जाते हैं । इच्छा जागृत करती है। गलत इच्छाओं का होना हानिकारक हो सकता है। गलत इच्छा से यदि से तथा गायत्रीमंत्र कहने से भी बाई और के आप कार्य करेंगे तो सभी कुछ मशीनीकृत और पाखंड बन जाएगा। उत्थान की इच्छा ही शुद्ध है। मशीन की तरह से न बने रहें। उन्नत होने की आपकी इच्छा शुद्ध होनी चाहिए। आर्य समाज से आए हुए व्यक्ति मूलतः आक्रामक प्रवृत्ति के और को आना चाहिए। मन्त्र बोलते समय चित्त मध्य चक्रों पर रखें। महाकाली और महासरस्वती करती हैं और इस प्रकार अन्त: सम्बन्धित होती दाई ओर को उठाकर बाई ओर के डालने विकार दूर करने में सहायता मिलती है परन्तु इनका प्रभाव अत्यन्त सीमित है। मैंने जब आपको ठीक करना होता उठाकर में इस कार्य को करती हूँ और इससे पूर्व की आप दूसरी ओर को अधिक झुक जाएं समय पर संभाल कर में इसे नियन्त्रित करती हूं। यह पूरी तरह से नियन्त्रण में है। इसे नियन्त्रित न कर पाने के कारण लोग भटक जाते हैं। कुछ राम- राम- राम कहे जाते हैं और कुछ पाँडू रँगा पाँडुरँगा और इस प्रकार बाएँ या दाएँ में जाकर खो जाते हैं । माँ अब आप सबसे पूछ रही है-"तुम्हारा चित्त कहाँ है?" पहले भक्ति भाव आना चाहिए और भक्ति भाव से श्रद्धा भाव में चला जाना है तो आपकी कुण्डलिनी आपमें यदि पुत्र प्राप्ति आदि की स्थूल इच्छा है तो इच्छा पूर्ण होने के पश्चात् भी कोई और इच्छा इसका स्थान ले लेगी इस प्रकार आप पाखण्ड में फँसते चले जाएंगे। शुद्ध इच्छा में आपको सभी कुछ एकदम प्राप्त हो जाएगा। शुद्ध इच्छा करने से ही आपका उत्थान होता है। इच्छा शक्ति के प्रति आपका दृष्टिकोण ही मुख्य चीज है। आप क्रिया शक्ति को लें। इसके दो पक्ष है- शारीरिक और मानसिक। निर्विचार समाधि प्राप्त करने के लिए शारीरिक रूप से बैठकर आपको ध्यान करना होगा और मानसिक रूप से देखना होगा कि आपका मस्तिष्क सांसारिक स्थूल की ओर न दौड़े। आप प्रार्थना करें कि, "श्रीमाताजी आप ही सभी कुछ करती है, मैं कुछ नहीं इच्छाएं चीजों आवश्यक है। ( श्रीमाताजी से वार्ता का शेष भाग वर्ष 2000 के अंक 1 2 में पढ़ें।) 40 चेतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 JAI SHRI MATAJI ---------------------- 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी नवम्बर-दिसम्बर 1999 अंक 11 & 12 खण्ड XII का का सि आनन्द सागर में विलय हो जाना कोई अद्वितीय या महान कार्य नहीं है। सागर से वाष्पीकृत होकर बादल बनना और फिर सब पर वर्षा करना अद्वितीय उपलब्धि होगी। मेरा यही लक्ष्य है और यही खेल। ( परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी) 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-2.txt में इस अंक Sसे पृष्ठ नं. सम्पादकीय 1. 3. ध्यान-धारणा एवं समाधि 2. 4 सहस्रार पूजा (4.5.86) 3. गुरु पूजा (30.7.99) इंटरनेट सन्देश 4. 16 श्रीमाताजी के साथ साक्षात्कार 5. 18 हनुमान पूजा, पुणे (31.3.99) 22 6. माताजी श्री निर्मला देवी की डॉ. तलवार से बातचीत 7. 32 योगी महाजन सम्पादक विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 अभिनव प्रिन्ट्स, दिल्ली 34, मुद्रक फोन : 7184340 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-3.txt १ म ही र ा ा चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11.& 12, 1999 2. ाम 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-4.txt লে। सम्पादकीय परमेश्वरी माँ की कृपा से असंभव घटित चेतना का उपयोग हम पर निर्भर है इसका उपयोग हो गया। एक जीवन काल में न हो पाने वाला कार्य एक आपराह्न में हो गया। हमने अगन्य चक्र पार कर लिया अर्थात अहं से ऊपर चले गए। इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि अह समाप्त उठाएं, मानों पानी में रहते हुए भी मछली प्यासी हो गया। इसका अर्थ यह है कि हमारी चेतना अहं है। के चंगुल से निकल गई। इससे पूर्व हमारे सभी कार्य अहंचालित होते थे। कोई और बेहतर मार्ग से पूर्व हमें अपना उपचार करना होगा यह उपचार हम न जानते थे। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् सहम्ार हमारे दृष्टिकोण को परिवर्तित करेगा और भेदन करने के पश्चात कुण्डलिनी हमें एक नई परिणामस्वरूप हमारे व्यक्तित्व सुन्दर हो जाएंगे। चेतना के साथ जोड़ती है और इस नई चेतना के तभी हम एक सच्चे सहजयोगी का ब्यक्तित्व पा माध्यम से हम अपने अह को देख पाते हैं। केवल इसे देख ही नहीं पाते इससे बचने की योग्यता भी हममें आ जाती है। इस नवचेतना का उपयोग हम अपनी विचार विधि हमें नहीं आएगी। इस कार्य-शैली को हम प्रक्रिया को ठीक करने के लिए भी कर सकते हैं आत्मानुभव से ही सीखते हैं। गाँधी जी के पास क्योंकि इसमें कार्य करने की शक्ति है। उदाहरण के रूप में व्यक्ति कुछ भी सोच सकता है; स्वयं महिला गाँधी जी के पास गई और कहा कि मेरा को दूसरों से ऊँचा मान सकता है। अन्य लोगों को बुरा मान सकता है, एक धर्माध व्यक्ति की तरह इसे ब्रत रखने का आदेश दें। गाँधीजी खामोश रहे। सोच सकता है। वह स्वयं को सदैव ठीक समझ सकता है। नवचेतना का प्रकाश हमारे विचारों की ने उसे एक सप्ताह बाद आने को कहा। उसके गलती का अनावरण करता है। विवेकशील व्यक्ति पुत्र को व्रत के लिए कहने से पूर्व गाँधीजी स्वयं यदि टेलिफोन में कोई कमी देखे तो तुरन्त इसे इसका अनुभव करना चाहते थे। स्वयं ब्रत करने ठीक करता है। इसी प्रकार अपनी गलतियों को के पश्चात् गाँधीजी ने उस महिला के पुत्र को सुधारने में भी बुरा मानने की कोई बात नहीं। मान बुलाया और उसे व्रत करने की हिदायत दी। लो आत्मसाक्षात्कार से पूर्व कोई व्यक्त नकारात्मक था। उस समय अपनी कमियाँ देखने की चेतना जमाखर्च से यह अन्य लोगों को प्रभावित नहीं उसमें न थी। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् वह अपनी करती। अपनी कुण्डलिनी के माध्यम से हम अन्य कमियों को देख सकता है और अपनी नवचेतना लोगों को सहजयोग का सन्देश दे सकते हैं। परन्तु से उन्हें दूर कर सकता है। इस प्रकार यह नवचेतना हमारे दृष्टिकोण परिवर्तित करती है और बुराइयों होगा केवल तभी हम अन्य लोगों के हृदय में के दुष्परिणामों से हमें मुक्त करती है। परन्तु इस यदि हम नहीं करते तो बह तो ऐसे होगा जैसे नए वस्त्र होते हुए भी हम उन्हें न पहने। हमारे पास वै भव हो फिर भी हम उसका आनन्द न नई चेतना से अन्य लोगों का उपचार करने सकेंगे। तब हम दूसरे लोगों को भी सुधरने में सहायता कर सकंगे। यदि हम सर्वप्रथम अपने को ठोक नहीं कर करते तो दूसरों को ठीक करने की गई एक महिला की मनोरंजक कहानी है। एक पुत्र पूर्णमासी के दिन च्रत नहीं करता, कृपा करके उनकी खामोशी से महिला को खेद हुआ। गाँधीजी सहजयोग एक जीवंत शक्ति है। जुबानी सर्वप्रथम हमें अपनी कृण्डलिनी की आज्ञा में रहना सहज ज्योति प्रज्जवलित कर सकेंगे। चैतन्य लहरी । खंड : 11& 12, 1999 XI1 अक : 11 .& 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-5.txt ध्यान धारणा एवं समाधि परम पूज्य गाताजी श्री निर्मला देवी ( 19 जनवरी-1984) आज मैं आपको ध्यान-धारणा के विषय अपना चित्त अपने इष्ट पर डालते हैं। यह में कुछ बातें बताऊंगी। विश्व के भिन्न देशों से आए हुए आप सब सहजयोगियों को देखकर मेरा हृदय आनन्द विभोर हो उठा है। हृदये जब विभोर हो तो उसकी गहनता को अभिव्यक्त परन्तु आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के लिए यह सब करने के लिए शब्द बहुत दुर्बल माध्यम होते हैं। नाटक मात्र है। उनके लिए यह एक प्रकार का काश आपके हृदय भी उस गहनता का समझ पाते। मेरे विचार से परमात्मा ने ही प्रकृति की गोद में इतने सुन्दर वातावरण में यहाँ हमारे सर्वप्रथम आपकी 'ध्यान' करना होगा। कुछ ध्यान' कहलाता है, और धारणा वह अवस्था है जिसमें आप पूर्ण प्रयत्न करते हैं, आअपने सारे प्रयत्न को संकेन्द्रित (Concentrate) करते हैं। अभिनय है जिसे वे करते हैं। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के लिए ये अवस्था वास्तविकता है।. तो लोग साकार रूप का ध्यान करते हैं और कुछ निराकार का। यरन्तु आप लोग मिलने का प्रबन्ध किया है ताकि हम सबके साथ कुछ महान घटना घट सके और इस बार इतने हम कुछ वास्तव में महान उपलब्धि प्राप्त कर सौभाग्यशाली हैं कि निराकार ने आपके सके क्योंकि समय बहुत कम है, सर्वप्रथम में आपको ध्यान-धारणा के विषय में कुछ बारतं लिए साकार रूप धारण कर लिया है। निराकार से साकार : ये सब, एक साथ, विद्यमान है। आप देवता (अपने इष्ट देव) का ध्यान करें, उनके विषय में सोचे या साक्षात् बताऊंगी। ध्यान' एक आम शब्द है। ध्यान-धारणा के लिए आवश्यक तीन कदमों का यह वर्णन निराकार का ध्यान करें। जब तक आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं होता। यह सब कुछ आपके लिए मानसिक प्रक्षेपण (दिमाग्री जमाखर्च ) नहीं करता। परन्तु संस्कृत में लिखे शास्त्रों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ध्यान-धारणा में उन्नति के लिए आपको किस प्रकार चलना है। मात्र हाता है। परन्तु आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होने सर्वप्रथम 'ध्यान' हैं, दूसरे 'धारणा' और के पश्चात् आपको मात्र ध्यान के विषय में फिर 'समाधि'। सोभाग्यवश सहजयोग ऐसी प्रणाली है कि आपको ये तीनों स्थितियाँ एक साथ सोचना होता है कि किस पर चित्त संकेन्द्रित करें या किसका ध्यान करें। किसी व्यक्ति का ध्यान जब आप करने लगते हैं तो आपका चित्त भटकने लगता है। आत्मसाक्षात्कार भी ऐसा होना सम्भव है, यद्यपि यह सब (ध्यान, धारणा समाधि) आपको एक साथ मिल गया है। (गठरी में) मिल जाती हैं। शेष सब चीज़ों से आप बचने लगते हैं ओर आप लोगों को समाधि प्राप्त हो गई है। सहजयोग की यही सुन्दरता है। के पश्चात् ध्यान परन्तु कुछ लोगों को यह एक-एक भाग करके मिलता है। ध्यान-धारणा का पहला भाग 'ध्यान है। साधना जब आपमें जागृत होती है तो आप चतन्य लहरी ॥ खंड : XI1 अंक : 11 & 12. 1999 প 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-6.txt तो ध्यान करते हुए अभी भी आपका अभिव्यक्ति बन जाता है। अब आपको यह नहीं सोचना पड़ता कि चित्त हर क्षण भटकता है। चित्त की एकाग्रता के अनुसार ऐसा होता है। मैंने देखा है कि कुछ मुझे अवश्य चित्त केन्द्रित करना है, ठीक सहजयोगी खाना बना रहे होते हैं और दूसरे ध्यान कर रहे होते हैं ध्यान करता हुआ सहजयोगी इसके विषय में सोचना है। यह स्वतः ही हो कहेगा अब मैं ये विचार नहीं आने दूंगा, अब मुझे ओह! जलने की गन्ध आ रही है।" जाता है । आप कोई भी पुस्तक पढ़ें उसमें आप इसका अर्थ ये है कि 'धारणा' नहीं है। ध्यान ता तुरन्त खोज लंगे कि सहजयोग के हित में क्या है परन्तु 'धारणा' नहीं है। दूसरा भाग अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि आपने निरन्तर अपना चित्त अपने इष्ट देवता (Deity) पर रखना है। तब अन्दर जागृत हुई है यह मस्तिष्क की एक नई आपमें वह स्थिति विकसित होती है जो धारणा कहलाती है, जिसमें आपके चित्त का एकीकरण इष्ट देवता के साथ हो जाता है। यह स्थिति ऋतम्भरा प्रकृति का नाम है। व्यक्ति को लगता परिपक्व होने के पश्चात् तौसरी अवस्था 'समाधि' है कि पूर्ण प्रकृति ही ज्योतिर्मय हो उठी है। है कोई पुस्तक यदि परमात्मा विरोधी होगी तो आप उसे त्याग दंगे। अब जो अवस्था आपके अवस्था है। संस्कृत भाषा में इसका बहुत सुन्दर नाम है, 'ऋतम्भरा प्रज्ञा', एक अति कठिन नाम। मैं का उदय होता है जो लोग ये में दूध आ जाता है । के विना ही वे 'समाधि' प्राप्त कर सकते हैं तो प्रकृति अपने आप बच्चे के जन्म के लिए कार्य मेरे विचार से वे पूर्णत: भ्रमित हैं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् जब धारणा स्थापित हो सहजयोगियों के लिए कार्य करने लगती है तो जाती है, आपको वह अवस्था प्राप्त करनी होती है जहां आप समाधिस्थ हो जाएं। यह कौन सी कार्य हो गए। अवस्था है? आपके मस्तिष्क में जब वह स्थिति बन जाती है तो जो भी कुछ आप करते हैं जिस "इष्ट' की आप पूजा करते हैं. अपने कार्य में भी वताते हैं कि श्रीमाताजी यह चमत्कार हुआ. वह उसी इष्ट को देखते हैं। आपको लगता है वही 'इष्ट' आपका पथ-प्रदर्शन कर रहा हैं। इस बात को आप इस प्रकार भी कह सकते हैं कि जो दूँगी। कल हम सीमेंट का कोई कार्य करवा रहे भी कुछ आप सुनते हैं आपको लगता है कि आपके 'इष्ट देव' ही आपको सच्चाई बता रहे लिए दो बोरी सीमेन्ट की आवश्यकता होगी। हैं। जो भी कुछ आप पढ़ते हैं आपको लगता है मैंने कहा, "आप काम को चालू रखो, सीमेंट कि आपके इष्ट देव आपको यही बताते। इस अवस्था में अपनी आंखों, नाक तथा शरीर के चालू था और सीमेन्ट समाप्त नहीं हुआ था। अब अन्य अवयवों से जो भी कुछ आप करते हैं वह एक उदाहरण दूंगी। बच्चे के जन्म से सोचते हैं कि आत्मसाक्षात्कार पूर्व स्वत: ही माँ के स्तनों करती है। इसी प्रकार जब ऋतम्भरो प्रज्ञा आप हैरान हो जाते हैं कि अचानक किस प्रकार तो ऋतम्भरा प्रज्ञा ने आपके हित में कार्य करना आरम्भ कर दिया है। आप सभी मुझे घटना हुई। और हम नहीं जानते कि ये सब किस प्रकार घटित हुआ! में आपको एक उदाहरण थे और इटली के उस लड़के ने कहा कि इसके समाप्त नहीं होगा।" मेरे जाने से पूर्व तक काम आप कल्पना करें कि सीमेन्ट जैसी जड चीज़़ भी यह सब जानती है। स्वत: ही एक प्रकार से आपके आराध्य देव की चैतन्य लहरी । खंड : X11 अंक : 11& 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-7.txt तो आपकी अवस्था ही विशिष्ट है-बह कि आप सन्त हैं, परमात्मा द्वारा चुने गए और मैंने -साकार एवं निराकार ने - आपको पुनर्जन्म दिया है। तो ये प्रज्ञा अभिव्यक्ति करेगी, यह हर क्षण अभिव्यक्ति कर रही है। तैयार हो जाएं. अवस्था जिसमें आपकी एकाकारिता प्रकृति से है और प्रकृति की एकाकारिता आप से। तो परमात्मा भिन्न चटनाओं कार्यो, प्रति परमेश्वरी चिन्ता द्वारा स्वयं-प्रकृति के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति कर रहे हैं। और यह तंत प्रेम, सुरक्षा तथा आपके प्रसन्न रहें और इसका स्वागत करें। स्वीकार करें अनन्त है। यह घटित होता है और लोग समझ भी नहीं पाते कि कैसे! परन्तु यही तो समाधि कि आप वहाँ हैं। स्तर भिन्न है। अब समय आ गया है कि सहजयोग अपना स्तर परिवर्तित करें। की अवस्था है। परन्तु कुछ लोग, ऐसे भी हो सकते हैं जिनसे मैं यदि कहूँ कि "क्या आप यह कार्य करेंगे?" "नहीं, श्रीमाताजी, दुकान बन्द हो गई हमें परिवर्तित होना है। हमें ऊँचा उठना है। स्तर को ऊँचा उठाना है। जो लोग परिधि रेखा पर हैं वो निश्चित होगी।" वा मेरा बताया गया कार्य नहीं करेंगे। ऐसा करना ठीक नहीं है। ये लोग ऐसे ही चलते रहते हैं। कुछ ऐसे भी लोग है जो कहते हैं कि जब श्रीमाताजी ने कोई कार्य करने को कहा है रूप से मैरे लिए समस्या है क्योंकि अपनी बाहर नहीं फेंक सकती। यह बताकर कि उन्हें ऊँचा उठना होगा, करुणा के कारण में उन्हं तो हम दुकान को देख तो लें। इस प्रकार के हमें स्थापित होने में उनकी सहायता करनी होगी। हज़ारों उदाहरण है। आज कुछ सहजयोगी पलंग उनके लिए हम कव तक प्रतीक्षा करेंगे? सभी को खिसकाने का प्रयत्न कर रहे थे। मैंने कहा, ठीक है, मैं इसे धकेलती हूँ। उस पर मैने खड़े हुए (आधे-अधूरे) लोग अच्छी तरह से केवल अपनी नाभि से चित्त डाला. किसी चीज सहजयोग में आ जाएं करुणा तो ठीक है, को धकेला नहीं। और वह पलंग खिसक गया। परन्तु करुणा कभी भी सहजयोग को निम्न सहजयोगियों को देखना है कि परिधि रेखा पर स्तर पर बनाए रखने की कीमत पर नहीं ऋतम्भरा प्रज्ञा के कारण।" यह सहायता चमत्कार आदि कुछ नहीं है। परमात्मा में अपना प्रेम होनी चाहिए। जो लोग सहजयोग में भली-भांति अभिव्यक्त करके यह दर्शाने की शक्ति विद्यमान है कि आप सन्त हैं और परमात्मा द्वारा चुने गए है। हैं। परन्तु इसके लिए आपको पहले वह स्थिति स्वीकार करनी होगी परन्तु यदि लोगों की तरह से ही व्यवहार करते रहे-हे जम गए हैं। हमं उनका स्तर ऊंचा उठाना अत: हर व्यक्ति को स्थापित होने का और निम्नतम (Minimum Standard) वाछित आप अन्य स्तर तक उन्नत होने का प्रयत्न अवश्य करना परमात्मी दुकानें बन्द हैं, बह व्यक्ति बड़ा कठिन चाहिए। हैं, मैं नहीं सोचता कि यह कार्य होगा-तो ये कभी नहीं होगा। आपको समझ लेना होगा कर सहजयोग से बाहर हो जाएंगे। अन्यथा, मुझे खेद है वहुत से लोग छन चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 tত 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-8.txt जा - 4 .5.1986 सहस्रार पू मेडिशिमो इटली परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रजचन | এ (ये प्रवचन आपकी माँ का अनुराग चीजों के प्रति जागरूक हो जाते है जिनके प्रति (Concern) है। इसमें कही किसी बात कर बुरा पशु चेतन नहीं है। यही कारण है कि मस्तिष्क न मानना। ये बातें मैं दो वर्ष पूर्व या एक वर्ष से वे समझ नहीं पाते कि वे भी पदार्थों का पूर्व भी नहीं कह पाती। अब आप एक ऐसी उपयोग अपने हित मे कर लें । मानव रूप में भी अपने अन्तः स्थित आपको बता सकती हूँ। आप यह सब समझ चक्रों के विषय में आप सब चेतन न थे तो अनजाने में चक्रों की कार्यशीलता और चेतन अवस्था में मस्तिष्क की कार्यशीलता के माध्यम अवस्था तक पहुँच गए हैं जब में यह सब सकते हैं परन्तु इसका आपकी चेतना बन जाना आवश्यक है। समझ पाने की अवस्था तक तो पहुँचा जा चुका है परन्तु इसे आपकी चेतना बना से आपकी चेतना आधा-अधूरा कार्य कर रही जाना चाहिए। यदि आप अपनी स्थिति को बनाए थी। अपने स्वःचालित रखें तो जो भी कुछ हुआ है उसे घटित होना अवयवों को आपने कभी महसूस नहीं किया कि चाहिए। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें ) आज का दिन हम सबके लिए बहुत ये भी महसूस नहीं हुआ नाड़ी तन्त्र या आन्तरिक यह किस प्रकार कार्य कर रहे हैं। आपको कभी कि अन्य चौजों का महान हैं क्योंकि आज सोलहवा सहस्रार है आप पर किस प्रकार प्रभाव पड़ रहा है। मानव अर्थात कविता में अवरोह अवस्था पर पहुँचने के को जो स्वतन्त्रता प्रदान की गई उसके परिणामस्वरुप लिए सोलह ताल या सोलह स्पंदन अर्थात पूर्णता अनजाने में ही उसने अपने मस्तिष्क में, अपने की स्थिति । सोलह कला सम्पूर्ण होने के कारण श्री कृष्ण को पूर्ण अवतार कहा जाता है। तो बहुत सी निष्फल चीजों के लिए मनुष्यों ने अब हम एक अन्य आयाम में प्रवेश करते हैं । अपने मस्तिष्क का, अपने सहस्रार का उपयोग सारी चीजें एकत्र कर ली। सहस्रार में, बहुत किया। मानव श्री कृष्ण द्वारा दी गई चेतावनी से अनभिज्ञ था कि यदि मानवीय चेतना का अपने प्रथम अवस्था में आपने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया। विकास प्रक्रिया में यदि आप देखें तो, उत्थान के अतिरिक्त आप कहीं और उपयोग प्रति मानव चेतन होता है। जैसे पशु भौतिक करेंगे तो आप अधोगति की ओर बढ़ने लगेंगे। पदार्थों को अपने लिए उपयोग नहीं कर सकते । लोगों को इसके विषय में बताया गया था, ऐसा अपने प्रति वे बिल्कुल भी चेतन नहीं होते। नहीं कि उन्हें बताया नहीं गया। वे इसके विषय पशुओं को यदि आप शीशा दिखाएं तो वनमानुष में जानते भी थे पूर्व या पश्चिम सभी लोग के अतिरिक्त वे प्रतिक्रिया नहीं करते। इसका जानते थे कि उन्हें पुनर्जन्म लेना होगा। पश्चिम अर्थ ये हुआ कि आप उनके कुछ करीब हैं। के लोगों ने सोचा कि अपने मस्तिष्क की शक्ति को उपयोग करके वे भौतिक पदार्थों का स्वामित्व पशु उन चीजों के प्रति चेतन नहीं होते जिनके जब हम मनुष्य बन जाते हैं तो बहुत सी उन चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-9.txt प्राप्त कर सकते हैं और उसे अपने उद्देश्य के होती है सृष्टि का उद्देश्य ही विकास है। तो लिए उपयोग कर सकते हैं। ऐसा यदि वे आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् करते तो आपने आसानी से स्वीकार कर लिया है. सामने स्थिति बिल्कुल भिन्न होती क्योंकि आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् आप सब चक्रों और लहरियों के प्रति आपकी आदत हो गई है, वह ये हैं कि हर जागरूक हो गए हैं। ये लहरियाँ चैतन्य है। इस नवचेतना को पाकर आप सारी गलत चीजों से किसी न किसी उत्तेजना की आवश्यकता होती अपने मस्तिष्क के कारण जिस दूसरी धारणा को आने वाली हर चीज को स्वीकार करना क्योंकि समय स्वयं को महसूस करने के लिए आपको बचते हैं। परन्तु यह उस लोभी व्यक्ति की तरह है जिसे कहीं से थोड़ा सा धन प्राप्त हो जाए है। इसके कारण आप अस्वाभाविक हो गए हैं । जीवन के हर क्षेत्र में कोई न कोई धारणात्मक और वो उस सारे धन को खर्च कर डाले। इस बनावटी सूझ-बुझ है। उदाहरण क रूप में आप समस्या ने आपके मस्तिष्क जटिल कर दिए है। आपकी कुछ विशेष धारणाएं हैं जो वास्तविकता से बहुत परे हैं। जिस प्रकार हम मशीनों का चीज नहीं। परन्तु इसको भी आपने इतना बनावटी उपयोग कर रहे हैं उससे हम स्वयं मशीन बन गए हैं हमारे अन्दर भावनाएं लुप्त हो रही है और प्राकृतिक ढंग से हम किसी से सम्बन्धित न केवल मूलाधार में श्रीगणेश को मौन कर नहीं रह पाते। मानवीय चेतना में आपको यह दिया है बल्कि मस्तिष्क में महा-गणेश को भी उपलब्धि प्राप्त हुई थी कि स्वयं को किस प्रकार बिगाड़ दिया है। अन्य लोगों से और प्रकृति से जोड़े रखें। परन्तु यह अहम् चालित धारणा हमें प्राकृतिक, सच्चे जीवन से दूर ले गई और हम बनावटी हो गए। सारी चीज का उद्भव बनावटीपन की धारणा से हुआ। लोग कहते हैं कि दम्भी एवं अहंकारी होना फैशन है। काम भावना को ही लें। यह अत्यन्त स्वाभाविक एवं सामान्य चीज है। इसमें कोई इतनी महान बना दिया है कि अब आप काम भाव को मस्तिष्क में लिए घूमते हैं। ऐसा करने से आपने ग कला को ही लें। आजकल एक मूर्ख धारणा है कि कला को वर्णित मापदण्डों के अनुसार होना चाहिए। जैसे किसी को बुलाकर आप उस पर वरस पड़े, उसकी प्रताडना करे, उल्टा-सीधा कहें। सभी की प्रताडना करते रहे और अन्ततोगतवा इस परिणाम पर पहुँचे कि म कला अत्यन्त महत्वहीन है। मानो गर्ने में से सारा रस निचोड़ लेने के पश्चात् एक दिन अवशेष कला बन जाएंगे। जो मस्तिष्क यह आपकी विकास प्रक्रिया तथा उत्थान के बिल्कुल विरुद्ध है क्योंकि मानव होने के नाते दूसरों से जुड़े रहने की शक्ति जो, आपने उसके प्राप्त की थी, उससे आपने कन्नी काट ली है। सामूहिक सूझ-बूझ पर आधारित जो संस्थाएं आपने बनाई हैं वे भी बनावटी है। अब एक रोबोट की तरह हो गए हैं। इसका संचालन कोई आन्दोलन आरंभ हुआ है कि हमें बनावट को भी प्रवीण मस्तिष्क व्यक्ति कर सकता है क्योंकि हृदय का पोषण नहीं करता वह यन्त्र मानव (Robot) की तरह पूर्णत: बनावटी है। तो लोग यदि आपमें हृदय न होगा तो धारणाओं से परिपूर्ण आपसे अधिक शक्तिशाली कोई भी मस्तिष्क आपको वश में कर लेगा। ये सारी त्यागना है। ऐसा करना भी बनावट की ही नकल है। स्वाभाविक होने का अर्थ असभ्य (अपिरष्कृत) व्यक्तित्व होना नहीं है। स्वाभाविकता विकसित ৪ चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक :11 & 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-10.txt धारणाएं विनाशकारी हैं । हिटलर के मस्तिष्क में प्रबल धारणा बन सकते हैं? इस प्रकार तो आप सारी शराब, सारा पागलपन और जीवन के सारे आनन्द को मिला हैं कि उत्थान प्रक्रिया के कारण वे पागल होने की सारी स्वतन्त्रता खो ं देंगे इस स्थिति से, लोगों को प्रतिक्रिया करते हुए यदि आप देखें तो हैरानी होगी। किसा चीज को बाजार में बेचने के लिए आपको कोई न कोई अजीबोगरीब तरीका अपनाना पड़ेगा। उस गई कि वह आर्य है और उच्च जाति का हैं। पूरे देंगे। लोग समझते विश्व को नष्ट करने में उसे कोई संकोच न होता। धर्म के क्षेत्र में भी ऐसा ही है। सभी धर्मों को धारणाओं के तुच्छ पात्र (Cup) में भर दिया गया, उड़ेल दिया गया। अब एक नई निकृष्टतम धारणा जो मानव ने अपना ली है वह ये हैं कि धन हो सभी कुछ दिन मुझे बताया गया कि खाली डिब्बों को लैम्प है। राजनीतिक प्रभुत्व को बहुत महत्वपूर्ण मानते हुए मानव ने सर्वप्रथम राजनीतिक प्रभुत्व प्राप्त करने का प्रयत्न किया। इसका दुष्प्रभाव उनके सौन्दर्य एवं आनन्द के समीप भी नहीं आते नाड़ी तन्त्र पर पड़ा। मैंने जब जीवन आरम्भ फैशनेबल मानकर स्वीकार किए जा रहे हैं । किया तो देखा कि सहस्रार अति जटिल थे। अपनी चेतना के अन्दर जितना अधिक मैंने इन जटिलताओं को सुलझाने का प्रयत्न किया उदना ही अधिक ये जटिल और कठिन होते गए। प आसुरी विद्या फैलती है तो शुद्ध विद्या उसको यदि मेरी आयु को देखें तो आप जान जाएंगें कि गति का मुकाबला नहीं कर सकती । जैसे अमेरिका बनाकर बेचने से कोई ब्यक्ति बहुत धनी हो गया है। सभी प्रकार के मूर्ख कार्य जो, प्राकृतिक इसी का दूसरा पक्ष आसुरी विद्या, काली विद्या है, जो छा गई है। गीता के पन्द्रहवें अध्याय में श्री कृष्ण ने चेतावनी दी है कि जब के सहजयोगियों में बहुत बड़ा वाद-विवाद हुआ कि बैठक कक्ष ( Drawing Room में मेरा इन पंचास वर्षों में मानव में कितनी जटिलता आ गई है। सहस्रार खोलने के पश्चात् आ गई और इन सोलह वर्षों में मुझे लगा कि फोटो लगाया जाना चाहिए कि नहीं। उन्हें यदि उनकी स्थिति अत्यन्त भयानक हो गई है। आपके कहा जाए कि अपने चेहरे काले कर लो, काले लिए एक, अवस्था निश्चित कर दी गई है कि रंग से अपने नाम लिखो, चुड़ैलों की तरह से आपको ऊँचाई पर उन्नत होना है। यही पृष्ठ काले कपड़े पहनो, तो वे यह सब कर लेंगे । भूमि (Back Ground) है, जिसका मैंने वर्णन यरन्तु सहजयोगी होने के पश्चात् भी हमें अपने किया है। आप देख सकते हैं कि जिस दिन दिव्य जीवन पर शर्म आती है। ये लोग जब आप कार्यक्रम करते हैं तो पाँच सौ व्यक्ति होते हिप्पी बन जाते हैं, शैतान बन जाते हैं या इसी हैं और दो सप्ताह में सभी लुप्त हो जाते हैं. क्योंकि उत्थान घटित होते समय कुण्डलिनी अहं को बाहर धकेलती है और व्यक्ति को बास्तविकता के समीप लाती है। परन्तु पुनः ये जीवन, अपनी जीवन शैली और अपना सभी अहम् जो बढ़ी तेज गति से बन रही है, कुण्डलिनी कुछ परिवर्तित करके बाहर चले गए परन्तु की गति को रोक कर पूरे सिर पर छा जाता है । सहजयोग की दिव्यता के विषय में विश्वस्त होने मैं पश्चिम में प्रकार की कोई अन्य मूर्खता करते है तो उसके लिए अपना सारा जीवन, सारा समय और सारा धन भी लगा देते हैं। ये लोग अपने पारिवारिक परन्तु इस प्रकार आप देवी जीवन कैसे पा के बावजूद भी सहजयोगियों को लज्जा आती है। चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-11.txt आपमें से सभी को प्रतिदिन सोचना आप जानते हैं कि आपकी माँ आपसे कोई पैसा नहीं लेती। लेना तो दूर वो अपनी जेब से खर्च चाहिए कि आज मैंने सहजयोग के लिए करती हैं। आप सबको इससे लाभ हुआ है। परन्तु जब देने का प्रश्न आता है तो आप क्या किया? परन्तु आप सब तो अपनी नौकरियों में, धन कमाने में अपने संबंधियों सभी को संकोच होता है। इन संस्कारों से के साथ और उन सब लोगों के साथ जिनका आकर आप परमात्मा की कृपा प्रकाश में आ सहजयोग में कोई महत्व नहीं है, व्यस्त हैं। रहे हैं, फिर भी इसे प्राप्त करने की आपको हमें जी जान से उस उच्च अवस्था तक कोई जल्दी नहीं। आप शनैः शनैः ही होने दें, उन्नत होने का प्रयत्न करना चाहिए जहाँ जो परन्तु हो सकता है कि आप ये अवसर खो भी कुछ हम जानते हैं, जिस पर हमें विश्वास दें। तो सहजयोगियों की चेतना में आपको अपने है, उसी के अनुसार कार्य करते हुए, उसी सारे चक्रों का तथा चैतन्य लहरियों का ज्ञान है, ज्ञान से एकाकारिता प्राप्त करें। धारणाओं के साथ तो आप ऐसा कर सकते हैं परन्तु वास्तविकता जुड़े रहना है, फिर भी इस सारे ज्ञान का उपयोग के साथ नहीं। यह एक समस्या है इस बात को आप अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए करते हैं। मैं विस्तारपूर्वक समझाऊंगी। मान लो एक कट्टर यद्यपि आपको नई चेतना प्राप्त हो गई हैं फिर पंथी व्यक्ति को विश्वास है कि अपने धर्म में भी पूर्व संस्कारों की परछाई आप यर बनी हुई वह कोई कार्य कर सकता है तो वह उसे कर देगा। परन्तु धारणा वास्तविकता नहीं है। धारणाओं आप ये भी जानते हैं कि किस प्रकार दूसरों से है। पशु स्वतः तैर सकते हैं, तैरना सीखने की उन्हें कोई आवश्यकता नहीं। परन्तु मानव को से किसी को लाभ नहीं होता और न ही इनके तैराकी सीखनी पड़ती है। तो मानव को वो सारी कोई महत्वपूर्ण परिणाम नजर आए। फिर भी विधियाँ भूल गई हैं जो पशु जानते हैं मानव ने लोग ऐसा करते हैं । अपने देश में मैंने देखा कि जब लोग स्वतन्त्रता संग्राम कर रहे थे तो मेरे इस जीवन में आपको आत्मसाक्षात्कार मिला है पिताजी ने अपनी सारी सम्पत्ति का त्याग कर और इसी जीवन में आपको उन्नत होना है और दिया। अपने कार्य को छोड़ दिया और ग्यारह बच्चों का महलों में रहने वाला परिवार कई वर्षो तक झोपड़ियों में रहा। जब इस स्थूल स्वतन्त्रता मानवीय तकनीकें अपना ली हैं। सहजयोग में उत्थान के शिखर को प्राप्त करना है। समय बहुत कम है और पृष्ठभूमि (पूर्व संस्कार ) बहुत अंधकारमय है। आप ऐसे लोगों से घिरे के लिए हम सभी कुछ करते हैं तो सहजयोगी हुए हैं जो सुबह से शाम तक आपमें विनाशकारी की आध्यात्मिक स्वतन्त्रता के लिए भी हमें हर धारणाएं भरते रहते हैं। आप ही लोग बाकी लोगों सम्भव प्रयत्न करना चाहिए। से कहीं अधिक तेजी से इन परिस्थितियों से बाहर निकल सकते हैं। यद्यपि आप जानते हैं महसूस करें, चेतन हों, मस्तिष्क से हर कि आपकी चेतना अन्य लोगों की चेतना से कहीं भिन्न है, फिर भी एक प्रकार की अकर्मन्यता, जो सहजयेग को बैसे स्वीकार नहीं करती जैसे किया जाना चाहिए, अब भी बनी हुई है। तो पहली आवश्यकता ये है कि हम समय जागरूक हों कि हम सहजयोगी हैं। आप ही लोग पूरी मानवता से बहुत ऊँचे हैं। पूरी मानवता का उद्धार आप पर निर्भर है । सृष्टि का उद्देश्य आप ने ही पूर्ण करना है। 10 चैतन्य लहरी ॥ खंड़ : XII अंक : 11 8 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-12.txt तो सर्वप्रथम अपनी चेतना में आपने चेतन को किस समय विशेष पर आपने क्यों करना है जब तक आप अपने को उन्नत नहीं कर लेते और निर्विकल्प नहीं करते तब तक आप आगे होना है कि आप अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं और इसी कारण आपको आत्मसाक्षात्कार दिया गया। किस प्रकार आप अपने अहम् और नहीं बढ़ सकते। उदाहरण के रूप में, मैं जो भी बन्धनों में फँसे रह सकते हैं? बन्धन ऐसे हैं- कुछ करती हूँ. उसका मुझे ज्ञान है। इच्छानुसार मान लो आप इसाई धर्म से सम्बन्धित हों तो मैं किसी भी शक्ति का संचालन कर सकती हूँ आप उस धर्म की कुछ बातें सहजयोग में लाना चाहते हैं और यदि आप हिन्दू धर्म से थे तो उस हजारों मील दूर हों मैं आप सबके विषय में धर्म की कुछ चीजें सहजयोग में लाना चाहते हैं। जानती हूँ। आपके सांसारिक नाम चाहे मुझे सहजयोग में शक्ति का पूर्ण सार है, सभी पावन तत्व हैं। इसमें हम मूर्खतापूर्ण बातों को स्थान के रूप में मैं आप सबको जानती हूँ। सर्वसाध नहीं दे सकते । ये सारे बन्धन हमारे सहस्रार पर गन्दगी की तरह से है जिसका साफ होना सकती हूँ, विल्कुल आपकी तरह, आप की ही और न चाहूँ तो नहीं करती। आप चाहे मुझसे पता न हो परन्तु अपने अंग-प्रत्यंग ( अंश ) रिण मानव को तरह से भी मैं आचरण कर तरह से वृद्ध होते हुए, चश्मा पहनते हुए और वे आवश्यक है। अब यद्यपि आप अपने चक्रों के विषय में चेतन हैं फिर भी आप इन्हें शुद्ध नहीं सभी कार्य करते हुए जो मुझे पूर्ण मानव के रूप रखते। सर्वसाधारण लोग भी अपने कपड़ों, घरों में दर्शा सकें, और पूर्ण चेतना में मैंने इस आदि को साफ रखने का प्रयत्न करते हैं । गरन्तु परिवर्तन को स्वीकार किया है अनजाने में नहीं। आपके चक्र यदि खराब हैं तो आपकी इस पर मेरे लिए कुछ भी अचेतन नहीं। जो भी कुछ लज्जा नहीं आती और कुछ समय पश्चात् इनके आप करते है यदि उसके विषय में चेतन होना प्रति आपकी जागरूकता समाप्त हो जाती है। चाहते हैं तो आपको चुस्त होना होगा पहली इसका अर्थ यह हुआ कि आप सूक्ष्म तो हो गए उपलब्धि जो आपने प्राप्त की है वह हैं हैं परन्तु अपनी चेतना में अभी तक आप सूक्ष्म शान्ति-शान्ति परन्तु अब भी मैं देखती हूँ कि नहीं हुए। पूर्ण साक्षात्कारी होने के कारण आप उन लोगों से बहुत कुछ अधिक जानते हैं जो चाहिए था वह झगड़ा बनकर रह गई हैं। सत्य साक्षात्कारी नहीं है। परन्तु अभी तक भी हम एक ही है। सत्य के विषय में आप वाद-विवाद चैतन्य लहरियों का उपयोग नहीं करते। इनकी नहीं कर सकते। यह पूर्ण प्रतिभा है। सत्य में आवश्यकता के समय भी हम इनका उपयोग परस्पर कोई झगड़ा नहीं। अपने क्षेत्र के विषय में नहीं करते या फिर मशीन की तरह से बन्धन जिस शान्ति को आनन्द में परिवर्तित हो जाना त हम अचेत हैं परन्तु किसी चीज पर जब हमने अडना होता है तो इसके लिए सभी एकत्र हो जाते हैं। तो मस्तिष्क का वह हिस्सा जो इस देने लगते हैं। अत: अभी तक भी आप अपने चक्रों के प्रति अचेत है। अपना मस्तिष्क जब आप चक्रों की ओर लगाते हैं तब इनके प्रति कार्य को कर रहा है, इस अचेतन हिस्से को चेतन करना होगा। विकास यही है। तो किसी धारणा विशेष को अपना लेना विकास विरोधी है। आपको वास्तविकता का सामना करना, उसे थोड़े से जागरूक होते हैं। अन्यथा अपनी मध्य नाड़ी तन्त्र पर आप अब भी चेतन नहीं है। यही कारण है कि आप नहीं जानते कि किस कार्य 1 11 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 8 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-13.txt स्वीकार करना और बास्तविक रूप से कार्य अपना अधिकार मान लेते हैं। स्वयं को अभिव्यक्त करते हुए हम कुछ। करना सौखना आवश्यक है। कोई भी चीज जब घटित होती हैं तो आप कह सकते हैं कि कहते हैं. हमें देखना चाहिए कि स्वयं को श्रीमाताजी यह चमत्कार है। मानव के लिए, अभिव्यक्त करते हुए क्या हम स्वाभाविक सहजयोगियों के लिए भी यह चमत्कार हो है ? क्या हम हृदय से ऐसा कर रहे हैं? मैं सकता है। परन्तु मेरे लिए नहीं। मैं जानती हूँ कि इस कार्य को अपने हृदय से कर रहा हूँ इस ये क्या है। इस अधकचरी चेतना से ऊपर उठने बात की चेतना आप प्राप्त करें। यह मेरी के लिए व्यक्ति को देखना होगा कि वह इसे इच्छा है। सहजयोग में कुछ लोग बहुत परिश्रम किस प्रकार कार्यान्वित कर रहा है। पारस्परिक करते हैं। परन्तु कुछ इसे अपना अधिकार मान सम्बन्धों की पूर्ण प्रणाली का परिवर्तित होना लेते हैं। वे किसी प्रकार की सहायता नहीं करते आवश्यक है। पश्चिमी लोगों के लिए तो यह उन्हें हर चौज बनी बनाई चाहिए। इससे प्रतीत बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्योंकि कम से कम भारतीय लोगों को तो इस बात का ज्ञान है कि के प्रति वे जागरूक नहीं हैं। यदि अपने हृदय से मानवीय प्रयत्न आपको कहीं भी नहीं पहुँचाते वे कार्य करेंगे तो उन्हें कभी ये न महसूस होगा और व्यक्ति को उत्थान मार्ग अपनाना होगा। कि उन्होंने परिश्रम किया हैं। आशीर्वाद तथा कहने से मेरा अभिप्राय है कि सच्चे भारतीय तो उपलब्धियाँ जो उन्हें प्राप्त हुई हैं उन्हीं को वे इस बात को जानते हैं। कुछ भारतीय लोग भी सहजयोग का अनुचित लाभ उठाते हैं और सभी समस्याओं को, विशेष तौर पर बाई विशुद्धि परिणामस्वरूप खो जाते हैं। कुछ लोग ऐसा की समस्या को दूर कर देगी। करते हैं। परन्तु अधिकतर ये जानते हैं कि जो भी होता है कि आनन्द उठाने की अपनी शक्तियों महसूस करंगे। सन्तोष तथा परिपूर्णता की भावना इससे अगली अवस्था वह होगी जिसमें आप जो भी कुछ करेंगे उसके प्रति चेतन होंगे, कुछ प्राप्त हुआ है उसके प्रति जागरूक होना है। अत: हम कह सकते हैं कि हमें जिसमें कोई गलतियाँ न होंगी। जो भी कुछ आप आत्मज्ञान तो प्राप्त हो गया हैं परन्तु आत्म करेगे चाहे बह गलत प्रतीत हो फिर भी ठीक हो चेतना प्राप्त नहीं हुई। उदाहरण के रूप में जाएगा मैं आपको बता देना चाहूँगी कि अभी आप किसी का नाम लें, किसी महान सन्त का, तो आपको चैतन्य लहरियां आने लगती क्योंकि सराहना की जो भी बात मैं कहती हैँ हैं। इसका कारण आप जानते हैं- क्योंकि उसे सभी लोग अपने लिए ही समझते हैं। वह सन्त है। परन्तु आप सहजयोगियों का नाम यदि लिया जाए तो क्यों नहीं चैतन्य रोकना चाहती थी तो मैंने इसकी चाबी बाहर को लहरियां बहने लगती? आपने इसका लाभ तक आपमें से कोई भी इस स्तर का नहीं है उदाहरण के रूप में आज मैं अपनी घड़ी को खीच दी। साधारण सी बात है। मैंने ये कार्य एक प्रकार से अनजाने में किया, परन्तु भली-भांति जान-बूझकर किया और घड़ी रुक गई। क्योंकि उठाया है क्योंकि आदिशक्ति साक्षात आपके सम्मुख हैं। इन सन्तों को यह सब चीजें बताने वाला कोई न था। आदि शक्ति आपके साथ हैं मैं ये जानती थी कि मुझे यहाँ किस समय परन्तु इसका एक नुकसान ये हे कि आप इसे पहुँचना है इसलिए जान-बूझकर मैंने स्वयं को 12 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 11&12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-14.txt स्वयं के विरुद्ध उपयोग किया। घड़ी यदि रुक हूँ, किस प्रकार उनसे बातचीत करता हूँ? कई न गई होती तो मैं पहले आ जाती, परन्तु वह बार मुझे आश्चर्य होता है कि किसी सहजयोगी पर जब कोई बाहरी व्यक्ति आक्रमण करता है तो सहजयोगी लोग बाहर के व्यक्ति का पक्ष लेते हैं। या कई बार सहजयोगियों का चित्त अच्छे लोगों पर न होकर बुरे लोगों यर होता है। बुरे लोगों से उनका सम्बन्ध होता है। अच्छे लोगों के स्थान पर वे बुरे लोगों के मित्र होते हैं और उन्हीं से ही खुले हुए होते हैं। सदैव आपको अच्छाई से जुड़े रहना चाहिए। परन्तु सूक्ष्म अहं के कारण वास्तविकता इससे बिल्कुल विपरीत है। ये सारी सूक्ष्म बातें मैंने आपको बहुत बार बताई हैं परन्तु अपने मशीन या विगड़्े हुए कम्पयूटर की तरह समय मेरे आने का न था। अत: घड़ी को बंद रखने के लिए मुझे उसकी चाबी खींचनी पड़ी। तो जो भी शरारत आप करते हैं उसका ज्ञान आपको होता हैं और अपने विरुद्ध ही आप यह शरारत कर सकते हैं। तत्पश्चात् आप नाटक कर हैं सकते है कि ओह! मेरे से गलती हुई और बिना वजह ऐसा हो गया। परन्तु मेैं आपको बता दूँ कि ऐसी अवस्था अभी बहुत दूर हैं। अभी तो वह स्थिति निर्धारित हुई है, अभी तक हम बहुत सी गलतियाँ कर रहे हैं क्योंकि अभी हम आत्म नहीं हैं। आत्म-चेतना को स्थूल रूप से चेतन जटिल मस्तिष्क के कारण आप मेरी बातों के अर्थ निकालते हैं जो कि बिल्कुल उल्टे होते हैं। हम इस प्रकार समझ सकते हैं कि मान लो एक व्यक्ति ने नौकरी के लिए साक्षात्कार को जाना है। उसे ठीक प्रकार से अपना सूट चुनना होगा, जाने से पूर्व अपने बाल ठीक से कंघी करने होंगे और गला साफ करना होगा। परन्तु उत्थान के प्रश्न पर भी क्या हम इतने सावधान होते जैसे मान लो मैंने आपको भूतकाल की बातें भूल जाने को कहा। इसका अर्थ ये है कि आप भूतकाल की सभी अच्छी बातों को भूल जाएं। मानो आपसे ये कहा हो कि अपने इस प्रकार के हैं? या हम मान लेते हैं कि श्री माताजी भली-भांति नहला-धुलाकर पालने में डाल कर हमें उत्थान तक पहुँचा देगी। सभी लोग हावी न होने दें। जो मस्तिष्क सीधा-सादा है, इसी चीज की कामना कर रहे हैं। अपने उत्थान में भी आपको परिपक्व आचरण को आप न समझे। भूतकाल को भूल जाने का अर्थ ये है कि भूतकाल को अपने पर सहज हैं, प्रेम से परिपूर्ण है। वह एकदम से समझ सकता है कि मैं क्या कर रही हूँ। इस होना होगा आप पूछ सकते हैं कि इसके जटिल मस्तिष्क का ठीक किया जाना लिए हमें क्या करना होगा? प्रतिदिन अपना सामना करें। सच्चाई से देखें कि सांसारिक ये है कि सोचना बंद कर दें, मात्र सोचना कार्यों को आप कितना समय देते हैं और बंद कर दें। आपको केवल इतना ही करना है। अपने उत्थान को कितना? क्या आपने सभी जब आप सोचना बन्द करते हैं तों आपको आवश्यक है और इसका सबसे अच्छा उपाय चिन्ताएं, अपना सभी कुछ परमात्मा पर छोड़ लगता है कि कोई कार्य नहीं किया जा सकता। दिया है? क्या अपने पूर्व बन्धनों से आप पूरी परन्तु सोचने भर से आप कुछ भी नहीं करते। तरह मुक्त हो गए हैं? क्या आपने सभी बेवकूफी उदाहरण के रूप में मुझे आपके सम्मुख एक भरी चीजें छोड़ दी है? क्या आप देखते हैं कि प्रवचन करना है। मैं यदि इसके विषय में सोचना मैं अन्य सह आरम्भ कर दूँ तो आपको क्या सुनाई देगा। मेरे जयोगियों से किस प्रकार सम्बन्धित 13 चैतन्य लहरी खंड : XII अक : 11 & 12. 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-15.txt अन्दर चल रही सोच को क्या आप सुन पाएंगे। नहीं, महिला को संस्था तथा पति का पोषण मान लो आपको ये लैम्प जलाने हैं और आप करना होगा। मैं सोचती हूँ कि महिला के रूप में बस इनके विषय में सोचना आरम्भ कर दें कि मुझे ये हैं, तो क्या ये लैम्प जल जाएंगे? ये समझना होगा कि सोचने भर से आप कार्य को नहीं कर सकते। सोचना तो आलसी जन्म लेना ही अति महान बात है क्योंकि मैं लैंम्प जलाने हुृदय का, भावनाओं का, अपने प्रेम की भावनाओं का, अपने प्रेम की लीला और उसकी कार्यशैली का आनन्द ले सकती हूँ। कोई अवतरण भी इस प्रकार आनन्द नहीं ले सकता जैसे मैं ले सकती हूँ। अत: हृदय की देखभाल यदि महिलाओं को करनी पड़े तो उन्हें अपमानित नहीं महसूस व्यक्ति का काम से भागने का बहाना है। एक बार मैंने अपनी नौकरानी से कहा कि हम बाहर जा रहे हैं क्या तुम हमारे लिए खाना बना दोंगी? जब हम वापिस आए तो देखा कि उसने कुछ नहीं बनाया था। में प्रतिदिन घर में खाना बनाया करना चाहिए। परन्तु वे तो एक प्रकार से स्वयं को बहुत ऊँचा मान बैठती हैं सोच विचार के बिना तो आप कार्य कर सकती हैं परन्तु हृदय के बिना नहीं। अत: महिलाओं को चाहिए कि उनसे बहस न करें। सामान्य जीवन में भी उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि पत्नियाँ यदि हर समय चिक-चिक करने वाली हों तो पति उनके प्रति बहरे हो जाते हैं। वो सुनते ही नहीं कि स्त्रियाँ क्या कह रही हैं? महिलाएँ यदि बहुत आक्रामक हों, तो पुरुष बिल्कुल मुँह बन्द कर लेते हैं। तो पारस्परिक संबंधों में आपको अत्यन्त स्वाभाविक ढंग से व्यवहार करना चाहिए कि करती थी परन्तु उसने कुछ नहीं बनाया। मैंने पूछा कि तुमने खाना क्यों नहीं बनाया तो उसने उत्तर दिया कि मैंने सोचा कि आप लोग बाहर खाना खाएंगे। वह एक पाश्चत्य महिला थी। मेरे पति ने कहा कि ठीक है हम बाहर खाना खाने जा रहे हैं तुम घर में ही रुको। मैंने कहा नहीं ऐसा अच्छा नहीं लगता। वे कहने लगे, "नहीं, उसे समझने दो कि उसने जो सोचा वो उसी के लिए था। तो आपने अभी तक ये पलायन ही सीखा है. ये चतुराई।" आप पुरुष हैं-आप महिला। पुरुष जब पुरुष वत जाएगा और महिला महिला बन जाएगी तब वे अधिक आनन्द उठा सकेंगे। कल्पना करो कि अत: आपको इसके विषय में कोई बहस नहीं करनी चाहिए। सहजयोग के विषय में बहस न करें। अगुआओं से बहस न करें। चाहे आप अगुआ की पत्नी हों फिर भी उससे न उलझें। कुछ अगुआओं की पत्नियों के कारण हमें बहतु परेशानी हो रही हैं चेतना में हमें चेतन होना है। पारस्परिक सम्बन्धों क्योंकि वे अपने पतियों को अपने हिसाब में हमने कितनी चेतना प्राप्त की है यही बिराट से चलाना चाहती हैं। जहाँ तक सहजयोग का सम्बन्ध है उसे इससे कुछ नहीं लेना देना। मान लो एक कार्यालय में आप क्लर्क हैं और आपके पति बहुत बड़े अधिकारी या अफसर है परन्तु इसकी स्वामिनी हैं माताजी श्री निर्मला हैं तो क्या आप अपने पति से बहस करेंगे? तो देवी। इस प्रकार हम देखते हैं कि कितना सुन्दर यहाँ पर भी पूरे प्रेम एवं हृदय से, मस्तिष्क से एकीकरण घटित हुआ है! इस देवता (श्री माताजी) इस संसार में केवल पुरुष हों या केवल महिलाएं, तो क्या होगा? अत: हमें समझना है कि अपनी की, मस्तिष्क की अर्थात सहस्रार की सामूहिक चेतना है। तो सैद्धान्तिक रूप से सहसार बिष्णु तत्व 14 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-16.txt के चरण कमलों में समर्पित होकर विष्णु की शक्तियों को देवता की इच्छानुसार कार्य करना करती हूँ कि आप लोग निर्विकल्प में चले पड़ता है। देवता के हाथ में हैं। इस आश्चर्यजनक देवता स्थापित हो पाएंगे, अन्यथा वहाँ से पतन की के विषय में मैं बात नहीं करना चाहती। ऐसा ओर फिसल जाएंगे मैरे इस प्रवचन को बार-बार करना अति होगी क्योंकि इससे आपके हृदय पढ़ें, इसके विषय में ये न सोचे कि यह किसी भय से भर जाएंगे। जो भी कुछ घटित हो रहा है उसे कार्यान्वित होने दें। कहते हैं कि अपने उठना होगा। आज वह दिन है जब मैं आशा अत: श्री विष्णु की चेतना पूर्णतया इस जाएंगे लेकिन पूर्ण प्रयत्न द्वारा ही आप वहाँ । बा अन्य के लिए कहा गया है। यह आपके लिए हैं, आप सबके लिए, आपमें से हर एक के लिए और आपको इस बात का ज्ञान होना आवश्यक है कि सहम्रार को इस देवी के सम्मुख समर्पित कर दो। ऐसा करना आपके लिए अत्यन्त साधारण है प्रतिदिन आप कितना आगे बढ़ रहे हैं। आज क्योंकि आपके पास देवता है। आपके पास सहस्रार का विशेष दिन है। वास्तव में यदि आप आपका सहस्रार है और आप ही सहजयोगों देखें तो सूर्य पांचांग के अनुसार सहस्रार कल होना लोगों ने आज इस आधुनिक समय में इस देवता चाहिए था। सहस्रार सोमवार को है। आप कल्पना करें कि हम इसे एक दिन पूर्व मना रहे हैं। तो कहते हैं कि परमात्मा से साधक को व्यक्ति को समझना चाहिए, कि परमात्मा के पांचाग को मानवीय पांचाग से कुछ नहीं लेना देना। कुछ सानिध्य। सालोक्य का अर्थ हैं परमात्मा के पांचागों के अनुसार मुझे अब से दो हजार वर्ष वाद आना चाहिए था और कुछ कहते हैं कि मुझे इस रूप में दो हजार बर्ष पूर्व अवतरित होना चाहिए का सहचर्य मिलना । परन्तु आपको तो उनसे था। तो कलैण्डर भी ठीक है, समय भी ठीक है, तदात्म्य प्राप्त हो गया है। यह सौभाग्य किसी सभी कुछ ठीक हैं। आप लोग यन्त्र मानव अन्य योगी, सन्त या पैगम्बर को प्राप्त नहीं (Robot ) नहीं हैं। आप यन्त्र नहीं है। विकास हुआ। आप लोगों को यह तदातम्य मेरे शरीर प्रक्रिया के माध्यम से आप विकसित हुए हैं और से बाहर रहते हुए प्राप्त हो गया है जबकि केवल विकास की प्रक्रिया के माध्यम से आपको यह उच्च स्थिति प्राप्त करनी है। अत: जो भी कुछ हम करें और जो भी कुछ ठीक हो आप ही लोगों प्राप्त हुआ। अत: आप लोगों को चाहिए कि ने परिणाम दर्शाने हैं। हम आपके सहस्रार को महान प्रकाशमय स्थिति तक ले जा सकते हैं । परन्तु पुनः यह लड़खड़ा जाएंगे आपको सृष्टि में उत्थान के महानतम कार्य को करने समझना होगा कि जिन ऊँचाइयों तक आपको लाया गया है उस स्थिति को पूरी शक्ति एवं कार्यशीलता के साथ आपको ही बनाए रखना को देखा है। तीन चीजें माँगनी चाहिए- सालोक्य, सामीष्य, दर्शन करना, सामीप्य अर्थात परमात्मा के समीप होना और सानिध्य का अर्थ है परमात्मा उन लोगों को देह त्याग करके; मेरे विराट शरीर में प्रवेश करने के पश्चात् यह तदात्म्य ा समय की सीमा को समझें, अपने महत्व को पहचाने और इस बात के प्रति चेतन हों कि के लिए किस प्रकार आपको चुना गया है। तो अब आलस्य के लिए कोई समय बाकी नहीं है। अब आपको जागना होगा, होगा। 15 चैतन्य लहरी । खंड : X1I अंक : 11 & 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-17.txt गुरु-पूजा-(30 जुलाई इंटरनेट- सन्देश 1999) - अपने प्रवचन के आरम्भ में श्रीमाताजी ने समाधान करने का एकमात्र मार्ग प्रेम है। कहा कि सहजयोगियों को गुरु रूप में उनकी करने के लिए आते हुए दसवाँ वर्ष है। बनने के लिए आवश्यक है कि हम अपनी वंशानुगत तत्पश्चात् श्रीमाताजी ने कहा कि अच्छे गुरु पूजा सहजयोग के माध्यम से हमने पुर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया है। परन्तु अभी वह अवस्था प्राप्त करनी शेष है जिसमें इस पूर्ण ज्ञान को आत्मसात किया जा सके। अभी हमें इस ज्ञान की गहनता में और उतरना होगा। पाशविकता का पूरा ध्यान रखें और शान्ति, प्रेम एवं करुणामय स्वभाव विकसित करें ताकि जब हम अन्य लोगों की सहायता का प्रयास करें तो वे हमारे प्रेम को महसूस कर सकें। सहज गुरुओं के रूप में हमें क्षमा भी इस ज्ञान को पूर्णतः आत्मसात न कर करनी है अर्थात दूसरे लोगों के कुकृत्यों पर पाने का एक मुख्य कारण बताते हुए श्री माताजी चित्त नहीं रखना। ने कहा कि पाशविक प्रवृत्ति जो हमें वंशानुगत प्राप्त हुई है. वह अब भी हममें बनी हुई है। हमारी प्रथम समस्या का स्थान दिया। दूसरी आक्रामकता, चिड़चिड़ापन, भय आदि दुर्गुण समस्या का उद्भव हमारे विचारों तथा अहं से इसी उत्तराधिकार के भाग हैं। सोचने प्रतिक्रिया है । सहजयोग के आगमन के पश्चात् अब किसी करने और तर्कसंगत उहराने की हमारी योग्यता को शारिरिक या भावनात्मक रूप से दण्डित को भी श्रीमाताजी ने उपरोक्त दुर्गुणों में जोड़ते करना आवश्यक नहीं रहा । हमें समझना है कि हुए कहा कि इनसे ईष्ष्या जैसी अन्य समस्याएं ऐसा करने से हम किसी की आध्यात्मिक जन्म लेती हैं। ये ऐसी समस्याएं हैं जो पशुओं में उत्थान में सहायता नहीं कर सकते। भी नहीं पाई जातीं। गहन प्रतिक्रिया की ओर ले जाने बाले वंशानुगत दुर्गुणों को विचारशक्ति और सूझ-बूझ वाला होना चाहिए, इनसे हम सभी के अधिक दुषित करती हैं। श्रीमाताजी ने कहा कि गुरु बन जाने पर साक्षात्कार प्राप्ति के साथ-साथ हमें प्रम एवं करुणा अब हमें न तो प्रतिक्रिया करनी चाहिए और न की शक्ति भी प्राप्त हो गई है। प्रेममय होने के कारण ही अन्य लोगों को दबाने का प्रयत्न करना ही हमें आत्म साक्षात्कार प्राप्त हुआ। चाहिए। क्रोध के स्थान पर हमें प्रेम एवं करुणा का तरीका अपनाना चाहिए। हम यदि क्रोध नहीं निर्लिप्त होना चाहिए। यह स्थिति शब्दों से कहीं करेंगे तो अन्य लोगों को भी क्रोध एवं प्रतिशोध ऊँची है। यह मानसिक अवस्था है जिसे प्राप्त करना वंशानुगत पाशविकता को श्रीमाताजी ने श्रीमाताजी ने कहा कि हमें करुणामय एवं होंगे आत्म आध्यात्मिक उत्थान में सहायक श्रीमाताजी ने बताया कि सभी कार्यों में हमें मुक्त रहने में सहायता देंगे। श्री माताजी ने कहा कि सस्याओं का आवश्यक है। किसी की सहायता का जब प्रश्न आए तो हमें जी जान लगा देनी चाहिए। ब 16 चैतन्य लहरी । खंड : X1l अंक : 11 & 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-18.txt लोगों के विषय में सोचना और चिन्ता हमारे चित्त को पूर्णतः नि्लिप्त होना चाहिए. ताकि निर्लिप्सा पूर्वक हम किसी पर भी चित्त डाल सकें। यह आध्यात्मिक चित्त है जो कि प्रेम का प्रतिरूप है। श्रीमाताजी ने कहा कि वे भौतिक विश्व करना लिप्सा है। जब हम सभी कुछ परमात्मा पर छोड़कर कार्य करते हैं तब यह नि्लिप्सा होती हैं। सहजयोगियों के रूप में हमें अपनी समस्याओं की सीमा को महसूस करना चाहिए : तब धीरे-धीरे ये समस्याएं समाप्त होनी चाहिए। के विषय में बात नहीं कर रहीं, एक अन्य विश्व के बारे में बात कर रही हैं जो बहुत ऊँचा है और जहाँ हमारा चित्त लिप्साओं की सीमा से मुक्त होकर सुन्दरतापूर्वक कार्य करता है। अन्तर्द्शन द्वारा यह सब प्राप्त किया जा है। बाद-विवाद या बहस से ये कार्य नहीं किया जा सकता. केवल प्रेम एवं करुणा के माध्यम से ही ऐसा कर सकते हैं । श्रीमाताजी ने बताया कि किस प्रकार संसार अन्तर्दर्शन द्वारा ही हम अपना सामना के अधिकतर लोग प्रेम को महत्व देते हैं। मानव का यह तीसरा गुण है। पहला हमारी वंशानुगत कर सकते हैं और सभी कुछ परम चैतन्य पर पाशविकता है, दूसरा विचारशीलता और तीसरा प्रेम का सम्मान । केवल सहजयोगी ही इस मानसिक हमारी समस्याओं का समाधान नहीं होता। समस्याओं अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं और निल्लिप्त प्रेम को इस महाशक्ति पर छोड़ दिया जाना चाहिए, करने के योग्य हैं जिसमें व्यक्ति पूर्णतः लिप्त होते हुए भी पूर्णतः नि्लिप्त होता है चैतन्य लहरियों के माध्यम से जब हम देख लेते हैं कि फलां व्यक्ति और सत्य प्रेम। अपने सारे कार-व्यवहार में हमें ठीक है तो उसके विषय में चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं। यदि चैतन्य लहरियाँ बताएं कि और हममें विशुद्ध प्रेम होना चाहिए जो व्यक्तिगत समस्या बनी हुई है तो हमें अपना पूरा चित्त उस व्यक्ति पर डालना चाहिए, पूर्ण निर्लिप्त भाव से, लिप्सा पूर्वक नहीं। श्रीमाताजी ने बताया कि हम यदि किसी कर्तव्यों की सीमा जानना आवश्यकता है। अपनी व्यक्ति विशेष के विषय में चिंतित रहते हैं., दृष्टि को सुधारने के लिए और इसे शुद्ध करने के उन्हीं के विषय में बात करते है, लिप्त होने के सकता छोड़ सकते हैं सोचने एवं चिन्ता करने यह सभो कुछ श्रीमाताजी ने घोषणा की कि प्रेम सत्य है सभाल सकती है। अत्यन्त सच्चा होने का प्रयत्न करना चाहिए लाभ संचालित न हो। श्रीमाताजी ने कहा कि विशुद्ध प्रेम का विषय कभी न खत्म होने वाला है। गुरु रूप में हमें अपने लिए ध्यान गत होना आवश्यक है। कारण अपना चित्त सदैव उन पर बनाए रखते हैं ने ध्यान अवस्था का वर्णन करते हुए श्रीमाताजी तो हमारा चित्त चीजों को कार्यान्वित नहीं कर पाएगा। कुछ थोड़े से लोगों के प्रति लिप्त हो जाने का अर्थ ये है कि हमारा चित्त सीमित होकर व्यर्थ हो गया है और यह लाभकारी नहीं हो सकता। करने के लिए बहुत कुछ है, अनगिनत लोग आत्म साक्षात्कार प्राप्त करना चाहते हैं। अपना प्रवचन समाप्त किया। ध्यान अवस्था ही चैतन्य लहरियाँ प्रवाहित करती है और चैतन्य लहरियाँ हमें कार्य करने की शक्ति प्रदान करती हैं। तब झगड़ने या संघर्ष करने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती। हम एक ऐसी स्थिति प्राप्त कर लेते हैं जहाँ हम प्रेम एवं करुणा से शराबोर होते हैं। 17 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 8 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-19.txt रूसवेल्ट को ही लें, उन्होंने कहा था, 'गरीबी कहीं की भी हो, यह सब देशों की सम्पन्नता के सत्य साधक हैं, महान-महान सत्य साधक हैं कितनी बड़ी बात है? मैं उनसे मिलना चाहती लिए खतरा है। इतना स्पष्ट। अमरीका इतना हूँ, उन्हें दिखना चाहती हूँ कि जिस चीज को वे सभवत:, जन्म-जन्मातरों से खोज रहे थे उसे कैसे पाया जा सकता है-इसी जीवन में-अपने महान है। श्री कृष्ण अपने चक्र से इसकी रक्षा करते है।" श्रीमाताजी ने अपने दाँए हाथ की तर्जनी अंगुली उठाकर घुमाई, और मैं शपथ पूर्वक कहता हूँ कि श्रीमाताजी के ऐसा करने में मुझे आत्मसाक्षात्कार को।" यह आत्म साक्षात्कार वास्तव में है क्या?" अभी तक अपनी सावधानी पूर्वक तैयार की गई सूची से मैं एक भी प्रश्न नहीं पूछ पाया। चाय आ गई थी। मनमोहक दिव्य दृष्टा माताजी श्री निर्मला देवी, श्रीमती सी. पी. श्रीवास्तव अत्यन्त सावधान गृहणी में परिवर्तित हो गई। मैंने आपकी चाय में शक्कर और दूध, ठीक मात्रा में डाले है न? आप एक बिस्किट लें (यह एक चमचमाता बूमता हुआ सुदर्शन चक्र दिखाई दिया। जब तक सुदर्शन चक्र विद्यमान है," उन्होंने कहा, "अमेरिका पर आक्रमण नहीं हो सकता। क्या ये सुरक्षा कभी वापिस भी ली जा सकती है?" अभिव्यक्ति के रूप में श्रीमाताजी ने कुकी थी)। अपने कधे झटके और अपनी भौहें ऊपर को उठाई। "संभवत:." उन्हों ने कहा। व्यवहारकुशलता की भूमि ने यदि कूटनीति छोड़ दी. संचारशक्ति से परिपूर्ण भूमि ने यदि विश्व में बुराई का संचारण किया, माधुर्यमय देश यदि कड़वाहट पूर्ण हो गया, तो हाँ, संभवत: तब भगवान श्री कृष्ण ये सुरक्षा वापिस ले लें।" अचानक वे हँसी। "अपनी अमेरिका यात्रा में मैं आत्म साक्षात्कार की परिभाषा:-" आत्म साक्षात्कार," श्रीमाताजी ने कहा, "योग है, एकीकरण-लघु व्रह्माण्ड का वृहत ब्रह्माण्ड (Micro Cosm to Macro Cosm) से योग। हमारे अन्दर विद्यमान शक्ति कुण्डलिनी का उठना। (कुण्डलिनी का कोई अंग्रेजी पर्याय नहीं है। आप किसी शब्द का अविष्कार करें। आपके लिए बहुत अच्छा कार्य है, 'कुण्डलिनी' का अंग्रेजी में एक अच्छा पर्याय खोज निकालें।) उस शक्ति को परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति से जोड़ना, ही सबको बताऊँगी कि इस घटना को होने से किस प्रकार राका जा सकता है।" मैंने श्रीमाताजी से पूछा कि क्या वे केवल चेतावनी देने के लिए ही उत्तरी अमरीका की आत्मसाक्षात्कार है यह (शक्ति) क्या करतीं हैं?" प्रश्न यात्रा कर रही है? "धन को खोजने वाले लोग हैं, सत्ता खोजने वाले लोग हैं, शारीरिक सुख खोजने वाले भी लोग हैं," उन्होंने उत्तर दिया, "ऐसे भी लोग हैं जो ये सब कुछ करने के पश्चात् अब सत्य को खोज रहे है, अपनी आत्मा को खोज रहे हैं. की सहजता को देखकर मुझे ऐसे लगा मानो में मूर्ख हूँ। यह चेतना में परिवर्तन लाती है। इस शक्ति को आप शीतल लहरियों, शीतल चैतन्य लहरियों के रूप में अपने हाथों और सिर के तालू भाग में महसूस करते हैं। यह वास्तविक घटना है, स्वः प्रमाणीकरण (Self Certification) परमात्मा को खोज रहे है। अमरीका में असंख्य 19 चैतन्य लहरी = खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-20.txt नहीं। मात्र कहना भर नहीं कि 'मेरा पुनर्जन्म हो गया है', या 'मैं ऐसा हो गया हूँ. मैं वैंसा हो गया मिल जाता तब तक सत्य साधकों से मिलकर उन्हें ये बताना मेरा कर्तव्य है कि किस प्रकार वे परमात्मा का ये उपहार, अपना अधिकार, परमात्मा वास्तव में आप बनते हैं। आत्म साक्षात्कार से यह एकाकारिता प्राप्त करें। " प्राप्त करने की यदि आप में शुद्ध इच्छा है और "क्या में भी यह उपहार प्राप्त कर सकता आप आत्म साक्षात्कार प्राप्त कर लेते हैं तो आप हूँ मैंने कहा?" श्रीमाताजी की आँखे नाच उठी, "सिर के सामूहिक चेतन, वास्तव में मधुर एवं व्यवहार कुशल बन जाते हैं। आप कह सकते है 'वास्तविक नीली आँखों वाले अमरीकन (Blue American)। और आनन्दमय हँसी पूरी कक्ष में फंल गई। मैंने श्री माताजी से पूछा कि क्या केवल धीमी ठण्डक थी। मैंनें इधर-उधर देखा कि वे ही आत्म साक्षात्कार प्रदान कर सकती है कहीं से हवा तो नहीं आ रही, परन्तु वहाँ न तो "नहीं, नहीं", उत्तर मिला, "एक बार जब ऊपर अपना हाथ ले जाए," उन्होंने कहा। जैसा मुझे कहा गया था मैंने वैसा ही किया। मेरे सिर के ऊपर धीमी सी, अत्यन्त वातानुकूलन था और न ही कोई खिड्की खुली हुई। "आपको महसूस हो रहा है?" अस्थायी रूप से मैंने हाँ करते हुए सिर हिलाया। आपको आत्म साक्षात्कार प्राप्त हो जाता है तो आप अन्य लोगों को आत्म साक्षात्कार दे सकते हैं।" यह आरम्भ है शायद आप चाय पी रहे थे और आपने स्वयं से कहा, 'मैं वह अनुभव लेना चाहूंगा,' और 'श्रीमाताजी ने अपनी अंगुली का इशारा करते हुएकहा, तुम्हें ये अनुभव हो गया है आपकी इच्छा से ही घटित हो सकता है। अपना हाथ मेरी ओर करें।' उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर मेरी हथेली परन्तु ऐसा लगता है कि यह संब आप आप ही ही से आरम्भ होता है।" मैंने कहा. "आप क्यों?" श्रीमाताजी का मुख्य गम्भीर हो गया। "जहाँ तक मैं जानती हूँ " वह कहने लगी केवल मैं ही इस कार्य को सामूहिक रूप से कर सकती हूँ। भारत में एक बार छ: हजार ग्रामीणों को सामूहिक रूप से आत्म साक्षात्कार प्राप्त हुआ। परन्तु यदि कोई अन्य व्यक्ति इस कार्य को कर सके तो निवृत्त होने में मुझे बहुत खुशी कहा। पर क्रास बनाया। आप बहुत अधिक सोचते है," उन्होंने आप हर समय साचने में हो बहुत होगो। अब में साठ वर्ष की हो गई हैं। (देखने में कभी-कभी तो वे अपनी आयु अधिक व्यस्त रहते हैं। उस क्षण से विचार समाप्त हो गया। मेरी ल अन्दर की सोच, सोच न रही। "बहुत अधिक सोचने विचारने से लोगों को शक्कर रोग हो सकता है। शक्कर खाने से से आधी आयु की लगती थी।) "मेरा विवाहित जीवन आनन्दमय है। जैसा आप देख रहे हैं, मेरा एक सुन्दर घर है, हर रोज़ की यात्राओं से मुक्त होकर, शान्त होकर अपने शक्कर रोग नहीं होता, अधिक सोचने से होता घर में बैठ जाना मुझे अच्छा लगेगा। लेकिन जब तक इस कार्य को करने वाला कोई अन्य नहीं है। आत्म साक्षात्कार के पश्चात् हम शक्कर रोग को ठीक कर सकते हैं और यह नई बीमारी-एड्स 20 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-21.txt भी आत्म साक्षात्कार के बाद हम ठीक कर हो मुझे पैसे की क्या जरूरत है? मैं एक सकते है। आत्म साक्षात्कार प्राप्त करके आप वैभवशाली परिवार से सम्बन्धित हूँ। मेरे पति अपने गुरु बन जाते है, आप अपनी और अन्य संयुक्त राष्ट्र के अन्तर्राष्ट्रीय समुद्रवर्ती संस्थान लोगों की समस्याओं का निदान कर सकते है (U.N.International Maritime Organisation) और उन्हें ठीक भी कर सकते हैं। आत्म के लन्दन स्थित मुख्य सचिव है। मुझे धन की आवश्यकता नहीं है। मैं धन स्वीकार नहीं करती।" श्रीमाताजी ने मेरा हाथ छोड़ दिया और साक्षात्कारी व्यक्ति, जिसमें आत्म विकास की इच्छा हो, वह ठीक हो सकता है और दूसरों को भी ठीक कर सकता है। मुस्कुराई। अब पहले से बेहतर है न?" उन्होंने पूछा, यहाँ पहुँचकर एक सुखदतम लहर मेरे अन्दर दौड़ गई। न तो यह आत्म विस्मृति थी और न ही सम्मोहन। इन सबको मैं अनुभव कर मैंने सिर हिलाया। " ऐसा इसलिए है कि अब तुम्हारा मस्तिष्क बहुत अधिक गतिशील नहीं है। तुम अधिक अपने अगले प्रश्न पर मुझे खेद हुआ सन्तुलित, अधिक केन्द्रित और अधिक शान्त चुका हूँ। यह तो गहन शान्ति का आनन्द था। क्योंकि इस प्रश्न से श्रीमाताजी के चेहरे पर हो। थोड़ी चाय और लो। मुस्कान धूमिल हो गई। "इस अनुभव के बदले आप अमरीका के लोगों से कितना धन लेंगे?" हाथ ले गया। सिर पर ठंडक अव भी बनी हुई यह तो विकास-प्रक्रिया का एक भाग है, मैं एक बार फिर अपने सिर के ऊपर थी, संभवत: पहले से अधिक। उत्तरी अमरीका में बहुत से सत्य साधक हैं " उन्होंने कहा, चाहती हू"।" उन्होंने उत्तर दिया। "यह परमात्मा के प्रेम का उपहार है, परमात्मा जो प्रेम के सागर हैं, करुणा अतः मैं उनसे मिलना के सागर हैं। इसके लिए किस प्रकार आप धन दें सकते हें? परमात्मा पैसे को नहीं समझते । अपने विकास के बदले में आप किस प्रकार अब, लगभग एक सप्ताह पश्चात् जब में शान्ति पूर्वक बैठा हूँ, शान्ति एवं चैन की वह आनन्दमय अनुभूति मुझ पर लौट आती है। मुझे आशा है कि यह मुझे वंचित न करेगी। धन दे सकते है ? अपनी दोनों टाँगों पर खड़े होने के बदले क्या आपने कोई धन दिया था? जो भी 21 चैतन्य लहरी खंड : XI1 अंक : 11.& 12, 1999 श्र 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-22.txt हनुमान पूजा 1999 आज हम लोग श्री हनुमान जी की जयन्ती मना रहे हैं । हनुमान जी के बारे में क्या कहें कि वो जितने शक्तिवान थे जितने गुणवान थे उतने ही वो श्रद्धामय और भक्तिमय थे। अधिकतर ऐसा मनुष्य जो बहुत शक्तिवान हो जाता है, बहुत बलवान हो जाता है वह right sided हो जाता है। कि वो भी चित्र बनाते हैं तो पहले हनुमान जी का ही चित्र बनाते हैं । फिर दूसरी उनकी विशेष बात ये और है वे अर्ध मनुष्य थे अर्ध बन्दर थे। माने पशु मानव का बड़ा अच्छा मिश्रण था। तो हमारे अन्दर जो कुछ भी हमने अपने उत्क्रान्ति में, अपने है उसमें भी जो ग्रेम और उसमें भी जो आसक्ति थी वो उन्होंने अपने साथ ले ली थी। जैसे कि आप देखते हैं इन गुरुओं का जो मार्ग माना जाता है जिसमें कि गुरु के बहुत से प्राणी होते हैं, सेवक माने जाते हैं सो कुत्ते को मानते हैं कुत्ते में बो विशेषता है कि गुरु के जैसे के Evolution में पीछे छोड़ा वह अपने को इतना ऊँचा समझता है अपने आगे किसी को भी नहीं मानता। पर हनुमान जी एक विशेष देवता हैं, एक विशेष गुणधारी देवता। जितने वे बलवान थे उतनी ही उनकी भक्ति शक्ति के सन्तुलन में थी। इतनी उनके अन्दर जो शक्ति भक्ति थी ये सन्तुलन उन्होंने किस प्रकार पाया और उसमें रहे थे, एक बही समझने की बात है। जिस प्रकार अब हम सहजयोग में पार हो जाते हैं और सहजयोग में हमारे पास अनेक विदु शक्तियां आ जाती हैं उसी के हिसाब से हमें सन्तुलन रखना पड़ता है। हम प्यार करते हैं और प्यार के सहारे, प्यार की शक्ति के सहारे हम अपने कार्य में रत रहते हैं और वो कार्य करते रहते हैं। इसी प्रकार श्री हनुमान जी अत्यन्त शक्तिशाली थे और इनके अन्दर दैवी शक्तियां, नवधा दैवी शक्तियां थीं-जिसे कहते हैं गरिमा, वे चाहे जितना बड़े हो सकते थे, अणिमा एक साधक पूर्णत: समर्पित होता है और गुरु सिवा उसका और कोई मालिक नहीं होता। कोई और उसका विचार नहीं होता। हर समय बो अपनी जान लगा देता है अपने मालिक के लिए । इस प्रकार समझना चाहिए कि एक प्राणी जो कि उत्क्राति में बड़ा हुआ सानिध्य में आता है तो बो क्या सीखता है? परम भक्ति। इसका मतलब है भक्ति हमारे अन्दर जन्मत: बनौ हुई है। पूर्णतया पहले ही से हमारे अन्दर भक्ति का बीज बोया हुआ है। हम लोग है जब वो मनुष्य के इस दशा में नहीं थे, मानव दशा में नहीं थे तब हमारे अन्दर भक्ति का उद्भव बहुत हो गया; भक्ति पूरी तरह से हमारे अन्दर समा गई। आप किसी भी जानवर को ले लें, उसे आप स्नेह दं, जरा सा स्नेह दें, जरा सा आप प्यार दें तो वो इस तरह से आपके निकट हो जाता है, इस तरह आपको मानता है और इस तरह आपसे प्यार करता है। घोड़़े की भी बात आपने सुनी घोड़े से जब सवार गिर जाता है जब वो मरने को है तो वो उसके ऊपर छा जाता है। इसी लघुमा छोटे बिल्कुल-बिल्कुल बारीक हो सकते थे। ये सारी शक्तियाँ जो भी पा लेता था वो पागल हो जाता था। दोनों के बीच में जो मध्य मार्ग है उस चीज को पाना है। जिसे आप शक्ति कहिए चाहे भक्ति कहिए। उनके शरीर का अंग-2 उसी से भरा रहता है। उनकी इसी विशेषता के कारण आज हम बजरंगबली की देश-विदेश में भी अर्चना करते हैं । मुझे आश्चर्य लगता है कि परदेश में जो छोटे लड़के हैं, छोटे बच्चे हैं, वो कोई सा होगी। होता प्रकार अनेक हाथियों के बारे में बताया था कि ये ता राम 22 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-23.txt थी। अब ये जो श्री राम के जो विशेष गुण अत्यन्त शक्तिशाली और उनका निशाना कभी चूकता नहीं था। आपने सुना होगा कि सीता-स्वयंवर में उन्होंने क्या किया? लेकिन वही श्री राम जव रावण की बात आई तो उसको उन्होंने छोड़ा नहीं। उसका उन्होंने वध कर दिया। उनके धनुष का वर्णन तुलसीदास ने बहुत सुन्दर किया है श्रीराम बार-बार बाण मार रहे हैं और रावण के दस सिर में से एक एक गिरता जाए. फिर आए जाए, तो लक्ष्मण ने कहा कि कर क्या रहे हैं आप? एक बाण उसके हृदय में मारो। जैसे ही हृदय में बाण मारोगे बैसे ही वो मर जाएगा, नहीं तो वो मरेगा कैसे? वो नहीं मर सकता उसका वो बाण जो है वो उसके हृदय में लगाओ। अब श्री राम का बड़ा सुन्दर वर्णन है वहाँ। संकोची थे न बहुत संकोची श्री राम जो शथे इतने शक्ति के प्रचण्ड महान पुरुष होते हुए भी उन्होंने कहा, देखो, बात ये है कि इस रावण के हृदय में मेरी सीता का वास है। तो मैं हृरदय में नहीं मारूगा। लेकिन ये बार-बार इसका सिर उतरेगा तो इसका ध्यान जरूर मेरे सिर की ओर जाएगा। उस बक्त में इसको बाण से मारूँगा। नहीं तो उनके लिए ये कहा जाता है कि एक वाण में वो वर्ध करते थे। पर अब ये देखिए कि कितनी नज़ाकत की बात है, कितनी सरलता की बात है पति का प्रेम अपनी पत्नी के प्रति । सारी शक्ति के सागर होते हुए भी उनके अन्दर किस कदर प्रेम हाथियों की निष्ठा भी कमाल की है। वो अपने मालिक को कभी कोई तकलीफ नहीं देता। उनके मालिक पर गर कोई शेर या ऐसा जानवर हमला करे तो हाथी उससे लड़ते-2 मर जाएगा पर अपने मालिक को हाथ नहीं लगाने देगा। ये जो रिश्ता एक मालिक का और ऊँचे पहुँचे हुए जानवर का है ये रिश्ता भी हमारे अन्दर स्थित है। पहले उसे बनाओ और इस रिश्ते के साथ जो शक्ति भी हमको मिली है। पहले जैसे मैंने बताया कि हाथो लड़ते-2 मर जाएगा, तो लड़ने की शक्ति हाथी के अन्दर भी इसलिए हैं कि उसके अन्दर प्यार व भक्ति है। हम लोग कहते हैं कि सहजयोग प्यार का, परमेश्वरी प्रेम का कार्य है। बात सही है, पर इसी कार्य को करते वक्त उसमें शक्ति भी निहित है । हम लोग उसको शायद जाने या न जाने हमें उसमें प्रचीती हो या न हो, वो उसी के निहित है और वो शक्ति, दैवी शक्ति मनुष्य का किसी के प्रति नतमस्तक होना, किसी को मान लेना, किसी को बड़ा समझ लेना ये सब उसी के लक्षण हैं। किन्तु वो जब गुरु मान लेता है तो उसके अन्दर गुरु की महिमा तो होती है पर उसके साथ-साथ उसकी शक्ति भी होती है। तो भक्ति और शक्ति दो अलग चीजें नहीं हैं एक ही हैं। हम ये कहेंगे कि गार (Right Hand) में ग्र शक्ति है तो (Left Hand) में भक्ति । ये शक्ति-भक्ति का संगम, ये हनुमानजी में बहुत है। सीता जी ने कहा, तुम तो मेरे बेटे हो। मैं बेटे के बल पर नहीं आऊंगी। मेरे पति को आना होगा और इस आदमी का संहार करना होगा। जब वो इसको नष्ट करेंगे तब में उनके साथ जाऊँगी। तो हनुमान जी पेड़ पर बैठ गए। उन्होंने कहा ठीक है। वो तो उनको ऐसे ही उठाकर ले आते उनकी शक्तियाँ ही ऐसी थीं। लेकिन उन्होंने कहा कि जब माँ ये बात कह रही हैं, ठीक हैं। और उसके साथ थी। हनुमान जी के तो अनेक किस्से हैं कि जिसमें हनुमान जी ने सिद्ध कर दिया कि वो प्रेम का सागर हैं और उसी वक्त जो दुष्ट हो, जो दूसरों को सताता हो, जो दूसरों को नष्ट करता हो उसका वध करने में उनको बिल्कुल किसी तरह का संकोच नहीं होता था। ये जो भक्त की बात बजरंग बली की है वहीं उनकी शक्ति की भी बात देखने लायक है। वो जानते थे कि रावण बाद इतना बड़ा महायुद्ध हुआ। उसकी जरूरत 23 चैतन्य लहरी । खंड : X1l अंक : 11 & 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-24.txt हुई है, उनके संरक्षण में है और जो लोग उनको पीड़ा देते हैं, जो नाश करते हैं, जो सताते हैं और जिन्होंने हर तरह की परेशानी इन लोगों के लिए खड़ी की है ऐसे लोगों को आप को कुछ करने की जरूरत नहीं, सिर्फ बन्धन से ही आप ठिकाने लगा देंगे। ये जो आपके अन्दर शक्तियां आ गई हैं; इसका इस्तेमाल इसीलिए करना चाहिए कि जिससे जो दुष्ट हैं वों खत्म हो जाएं। लेकिन आपकी शक्ति में हाथ में तलवार या गदा नहीं हनुमान जी जैसे, बाह्य में गदा नहीं है पर अन्तर में है। आपके अनुभव आप देख लीजिए सिर्फ अग्नि से डरता है। इसलिए लंका में गए और लंका दहन कर दिया। ये उनकी शक्ति की पर आफ़त आई बात थी कि उन्होंने लंका दहन कर दिया और उस दहन में किसी को मारा नहीं, किसी को जलाया नहीं, रावण भी जला नहीं, कोई नहीं जला पर उसे दहशत हो गई। वे घबरा गए कि रावण ये क्या पाप कर रहा है। रावण जो इस तरह के कार्य कर रहा था, पहले लोगों में सम्मत था। वो कहते थे ये रावण ही है, क्या है, इसकी इच्छा जो है सो है। इसको जो करना है सो करने दो। हम उसको कहने बाले कौन होते हैं. रावण तो रावण ही है। लेकिन जब, कितनी समझदारी की बात है कि है कि जो आदमी परेशान करता है, तंग करता जब लंका जल उठी, जब लंका का दहन हो गया उस पर गदा प्रहार हो जाता है। चाहे आप हाथ में गदा उठाइए या नहीं उठाइए। इस तरह से आप तो स्वयं सुरक्षित हैं ही, आपकी तो सुरक्षा हैं ही । लेकिन उसके साथ ही साथ आपके जो दूसरे सहजयोगी हैं उनकी भी सुरक्षा है । इस तरह से बचत हो जाती है। अब इसमें भी बजरंग बली का तब लोग समझ गए कि ये तो बड़ी खतरनाक बात है, बडी घबराने की बात है। क्योंकि लंका का दहन हो गया और हम लोग ग़र जल गए होते तो अब आग की विशेषता ये है कि ऊपर जाती है, नीचे नहीं आती हैं। सब लोग नीचे से ऊपर देख रहे थे कि जल रही है, जल रही है, जल रही है हाथ बड़ा जबरदस्त है। आपको पता नहीं कि वो आपके आगे पीछे खड़े हुए हैं। है तो उनका स्वभाव बच्चों जैसा बहुत निर्मल और बहुत सरल लेकिन इतनी समझदारी और हर तरह की खूबियाँ वो जानते हैं इसका मतलब है कि उनकी शक्ति है। पूरा लंका दहन हो गया लेकिन कोई जला नहीं। ये डराने के लिए, उनको समझाने के लिए कि रावण महापाप कर रहा है, उन्होंने ये काम किया। कितनी समझदारी और कितना सन्तुलन बजरंग बली में था ये देखना है। यही हम इतिहास में भी इतने लोग शक्तिशाली बहुत थे, उनमें अत्यन्त प्रेम था ग़र आप देख लीजिए तो शिवाजी महाराज का एक उदाहरण है कि वे इतने शक्तिशाली थे और उतने ही तमीजदार, बहुत कायदे के और बहुत ही ज्यादा संयमी आदमी थे। ये सन्तुलन जब आपमें आ गया तब आप सहजयोगी हैं। गर आपके अन्दर शक्ति आ गई, इसका के साथ उनके अन्दर निराक्षर विवेक बहुत बड़े बुद्धिमान थे। आजकल की बुद्धि तो बिल्कुल बेकार है । पर वो बुद्धि जो प्रेम से हरेक चीज़ को जाँचे और समझे उस बुद्धि के एक विशेष स्वरूप श्री गणेश थे और श्री हनुमान हैं। दोनों में विशेषता ऐसी है कि हनुमान जी बहुत बलिष्ठ, बहुत तेज ऐसे देवता हैं और श्री गणेश ठण्डे हैं। लेकिन दोनों जब वक्त पड़ता है तो बहुत बड़े संहारक। सहजयोगियों को संहार करने की जरूरत नहीं। किसी का संहार करने की जरूरत नहीं। देखते हैं । मतलब ये नहीं कि आप अपने प्रेम और व्यवहार किसी तरह से त्याग दें। किन्तु आप शक्तिशाली हैं उसकी शोभा ही ये है कि आप जो लोग दलित हैं, जो गरीब हैं. जो दुखी हैं, जो पीड़ित हैं, जिन बस, आप ये सोच लीजिए कि आपके साथ ये दोनों हर पल, हर क्षण हैं जब भी आपको कोई 24 चैतन्य लहरी । खंड : XII अक : 11 & 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-25.txt कर लिया है। आपने सहज मार्ग से अपना आत्मा चेतित कर लिया है। इस आपके नए परिवर्तन से आप एक महान भक्त और शक्तिपूर्ण ऐसे इन्सान हों गए। अब किसी की मजाल नहीं कि आपको छू लें। ऐसे हज़ारों उदाहरण आपको मैं दे सकती हूँ कि जब आप सहज में पार हो गए, तो आपको कोई भी नहीं छू सकता। पहले भी सन्त साधू थे। सबको सताया गया, सबको छला गया, सब कुछ हुआ। पर जितना भी लोगों ने छला या सताया वो डिगे नहीं। और इतना ही नहीं उनका हमेशा संरक्षण हुआ। और ऐसी-ऐसी बातें वो कहते थे कि जिससे लोग बहुत नाराज हो जाएं। सोचते कि ये क्या बातें कह रहे हैं। राजाओं के खिलाफ, राक्षसों के खिलाफ, सबके खिलाफ, वो ऐसी बातें कहते थे जिनसे लोग घबरा जाएं। पर हनुमान जी की शक्ति से उनको कोई नहीं छू सका, उनको किसी ने नहीं मारा। ख्वाज़ा निजामुद्दीन साहब के बारे में एक बड़ा अच्छा किस्सा है कि उनसे उनके बादशाह ने कहा कि तुम आकर के मेरे सामने झुको, घुटने साफ करो। उन्होंने कहा नहीं, मैं आपके सामने नहीं झुकने वाला। आप कौन परेशान करें, तंग करे तो साक्षात आपके संरक्षक आपके साथ खड़े हैं। बहुत सी बार आप सुनते होंगे कि ये मिनिस्टर लोग जाते हैं। कोई जाता है 1. तो उनके साथ सिक्यूरिटी चलती है। सहजयोगियों की सिक्यूरिटी उनके साथ ही चलती है। और दूसरी तरफ सिक्यूरिटी जो चलती है वो गणों की । अभी उनका तो कार्य बहुत ज्यादा है,, विविध तरह तरह के, छोटे-छोटे काम भी करते हैं। और ही हैं श्री गणेश को, वो गणपति हैं। उनको सब खबर देते हैं आपके बारे में, क्या हो रहा है? कहाँ ा] गड़बड़ हो रही है? कहाँ से आक्रमण हो रहा है? कहाँ से आपको तकलीफ हो रही है? आप जानते भी नहीं होंगे। कोई अज्ञात रूप से भी कुछ आपके ऊपर में हमला करना चाहे। तो भी ये दोनो देवता आपके साश खड़े हुए हैं। और जब गणपति ये बात बता देते हैं तो श्री हनुमान उस पर जुट जाते हैं। तो सहजयोगियों को डरने की कोई जरूरत ही नहीं है। किसी भी चीज़ से डरने की जरूरत नहीं है। अभी एक किस्सा आपको सुनाऊं मैं, बड़ा आश्चर्य का है। आपने सुना होगा कि अमेरिका ने हर जगह बहुत सारे बम गिराए ये सोच के कि ने होते हैं? बहुत नाराज हुए। उसने कहा कि गर तीन दिन के अन्दर आपने मेरे सामने सिर नहीं झुकाया तो में आपकी गर्दन कटवा दुंगा। उन्होंने कहा कटवा दो। में नहीं झुकूंगा क्योंकि आप कोई बड़े साधु-सन्त नहीं जो आपके सामने मैं झुक। तो उन्होंने आकर के बड़ा ही हंगामा मचाया कि तीन दिन बाद जाकर के इस आदमी की गर्दन काटनी है। जिस दिन उस गुरु की गर्दन काटने वाले थे, उसी रात इसी बादशाह की गर्दन कट गई। कैसे पता नहीं? रार ऐसे इतिहास में न होता तो जो बड़े-बड़े साधू-सन्त हो गए, जो बड़े-बड़े धर्मवीर हो गए वो खत्म हो जाते, क्योंकि राष्ट्र की प्रभूतियाँ इतनी ज्यादा बलवती हैं इतनी हिंसक हैं और इस जगह कुछ आक्रामक लोगों कुछ व्यवस्था की हुई है। तो ये किस्सा जो मैं आपको सुना रही हूँ वो ये अफ्रीका में एक जगह, जहाँ पर कुछ सहजयोगी थे और बहाँ बम गिरा, वो बम गिरने से बहाँ के जितने भी लोग थे, सब मर गए पर सहजयोगियों को कुछ भी तहीं वो बड़े हुआ। हैरान, उनक ऊपर धूल भी नहीं आई। कभी वो कबैला नहीं आए थे. कभी उन्होंने सोचा नहीं था कि कबैला आएंगे। पर जब ये हुआ तो कबैला आए और आके बताया, माँ पता नहीं किसने हमें बचा लिया। किसने हमारी रक्षा की। लेकिन हम सारे सहजयोगी बच गए वाकी सब लोग मर गए। अब ये वाक्या है, सही बात है। और इसका इतनी व्यापक हैं कि वो इन लोगों को तो खत्म कारण ये है कि आपने अब परमात्मा को स्वीकार्य 25 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 11 8 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-26.txt कर ही देतीं। किन्तु उनके पीछे परमात्मा है और परमात्मा जो है वो एक तरफ हनुमान और दूसरो तरफ गणेश, ये दो शक्तियां मिलकर के बना है। तो संरक्षण बो संभालते हैं। राणा प्रताप रचयिता हैं मेवाड़ के, वो जब लड़ाई में गए तो उनके सैनिकों ने सोचा कि भई ये तो हारने वाले हैं तो उनसे कहने लगे आप वापिस जाइए क्योंकि हम चाहते हैं आप बच जाएं, मेवाड़ के लिए। उन्होंने कहा नहीं तुम लोग सब वापिस जाओ। मैं तो ऐसे हो डटा रहूंगा क्योंकि गण मेरे साथ खड़े हुए सहजयोगी थे न वो भी। आप को जाना का नाम ले लो और ऐसी-ऐसी संस्थाएं बनाओ। कोई संस्था बनाने की ज़रूरत नहीं आप स्वयं ही एक संस्था हैं। न तो आपको कोई छ सकता और न तो कोई आपको नष्ट कर सकता है। एक अपने को समझने की बात है जो कि सब शास्त्रों में कहा है कि आत्मसाक्षात्कार का मतलब है-अपने को जानना। अपने को जानना माने क्या? जानने का मतलब है कि ये जानिए कि आपके आगे-पीछे कौन-कौन खड़ा है? कौन-कौन हैं। आपका रक्षक है? और जो आपको लोगों से प्यार है और दुलार है और जो लोगों के प्रति जों हर समय ये सोचते हैं कि इनको मैं किस तरह से खुश करूंगा जैसे कि सारे संसार को मैं सुखी करूंगा, सबको मैं आनन्द से भर दूंगा। ये जो भावना आपके अन्दर आती है उसमें सोचना चाहिए आपका कोई भी बिगाड़ने वाला नहीं बैठा हुआ। हिम्मत नहीं है। कोई भी बिगाड़़ेगा और उसके लिए आपको कुछ करना नहीं है। उसके लिए आपको कोई तलवार रखने की जरूरत नहीं, गदा रखने की जरूरत नहीं है। वो तो सब है ही वो पहले से ही बन बुन के आए हुए हैं। और वो आपमें समाए हुए हैं। आपको जरूरत हो नहीं है कि आप अपने को बलिष्ठ बनाएं, आप हैं। एक चाइनीस किस्सा है, बहुत मजेदार। कि उनके यहाँ मुर्गों की लड़ाई होती है। तो अब मुर्गां की लड़ाई होती है तो उसमें ये हो गया कि किसी तरह से है तो आप मैं तो ऐसे ही डट के खड़ा रहूगा लोग जाइए क्योंकि गण मेरे साथ हैं। बस समझ लीजिए कि आपके आगे-पीछे हर तरह के संरक्षण हैं। पर इस संरक्षण के मिलते ही मनुष्य में क्या होना चाहिए? सहजयोगी में क्या होना चाहिए? वो धीर, गम्भीर और किसी से डरने वाला इन्सान नहीं होना चाहिए। वो किसी से भागता नहीं, जम जाता है उस जगह। और जो कुछ दुष्ट आदमी हैं उसके सामने डट जाता है। उसको कुछ करने की जरूरत नहीं। वो ज़माना गया अब। अब तो आप सिर्फ खड़े हो जाएं. वो चलेगा क्या हो रहा है? ऐसे अनेक-अनेक अनुभव सहजयोगी मुझे लिख कर भेजते हैं कि माँ ऐसा वैसा हैं। दूसरा भाग जाएगा, उसको पता नहीं ये बात हुई। नहीं तो इस परदेसी हुआ, हुआ, लोगों के सामने सहजयोग फैलाना कोई आसान चीज़ नहीं है। और मुसलमानों में भी जब अब सहजयोग फैलने लग गया तो इससे आप समझ सकते हैं कि दैवी शक्ति जो प्रेम की शक्ति है उसके अन्दर कितनी ताकत है और उससे कितने कार्य हो सकते हैं। पर इसका मतलब नहीं कि एक राजा को ऐसा लगा कि किसी साधू के पास लें जाएं। तो ये मुर्गे जो हैं साधू से सीख लें कि दुनिया से कैसे लड़ना चाहिए। क्योंकि ये साधू किसी से लड़ता नहीं पर उसको कोई छूता भी नहीं। उससे लोग दूर ही भागते हैं और उसकी तरफ नतमस्तक रहते हैं। तो ऐसी कौन सी इसमें बात है कि ये इस तरह से इस दुष्ट दुनिया में इस तरह से रह रहे हैं। तो साधू ने कहा कि अच्छा नुम मुर्गों को छोड़ जाओ। तो एक मुगा उसके पास आप हनुमान जी के नाम पर कोई बड़ी उत्पीड़न तैयार करें। ये इनका बिल्कुल मतलब नहीं। जैसे आजकल बने हुए हैं- हनुमान जी का नाम ले लो, गणेश जी का नाम ले लो और नहीं तो महादेव जो 26 चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-27.txt वो छोड़कर चले गए। एक महीने बाद वो मुग्गे को ले गए और उसको जहाँ लड़ाई हो रही थी, बहुत सारे मुर्गे जिसमें थे, ऐसे प्रांगण में ले जाकर छोड़ दिया। तो अब मुर्गे जो ये महाराज थे ये अपने खड़े गुस्सा आने का पर आया गुस्सा, लगे मारने-पीटने, इसको उसको हंगामा करने। ये कोई न हनुमान की शक्ति है? कोई गुस्सा करने की बात ही नहीं है। किसी से नाराज होने की बात ही नहीं है। है जी रह गए। अब सब मुर्ग आपसे में लड़ रहे हैं, झगड़ रहे हैं, ये कर रहे हैं, वो कर रहे हैं। एक जरुरत ही नहीं गर आप हनुमान जी को मानते है तो। वो किसी पर गुस्सा नहीं करते। लेकिन बाद एक, एक बाद एक, सब निकल गए। बस एक ये महाशय खड़े रहे। सब लोग इनसे डरने लग गए कि इनको तो कुछ हो ही नहीं रहा है। ये कोई विशेष हैं कि क्या? और आखिर में वो ही एक मुर्गा बचा रहा जो अपनी शान में खड़ा हुआ इन्सान हैं हर बाते पर गुस्सा आ सकता है। अहंकार चढ़ता है उसके अन्दरा हनुमान जी में जरा भी अहंकार नहीं था। Right Sided आदमी में बहुत अहंकार होता है। मनुष्य में तो इतना अहंकार है अरे बाप रे! अरे बाप रे! मेरा तो जी घबराने लगता है। जब देखती हैँ उनको किस चीज का अहंकार था। उस अहकारिता का कोई आर्थ ही नहीं है। फिर 'हम' माने क्या? कोई एक था। सो आज हम हनुमान जी की यहाँ पूजा कर रहे हैं। तो सोचना चाहिए कि हनुमान जी साक्षात् हमारे अन्दर बस गए हैं। वो हमारे right side में हैं. माने पिंगला नाड़ी पर काम करते हैं और हमारे अन्दर जोश भरते हैं और उससे उष्णता भी आती है इन्सान में। पर उनका मार्ग ऐसा है कि आपके अन्दर उष्णता भी आए और सर्वसाधारण मनुष्य भी अहंकार करता है और बहुत से राजे-महाराजे भी अहंकार नहीं करते। इसका कारण है- उनके अंदर ही कोई ऐसी स्थिति बनी हैं कि वो हनुमान जी को नहीं मानते। जैसे ही आप हनुमान जी को मानते हैं-वैसे हीं आप श्री राम जी को मानते हैं। अब बताइए कि गुर आप right sided आदमी नहीं हैं तो आपको तो अस्थमा होना नहीं चाहिए क्योंकि वास हमारे सहजयोग के हिसाब से right heart पर हैं। क्योंकि आप हनुमान जी को नहीं मानते हैं। उनके तरह का आपक व्यवहार नहीं है, सन्तुलन नहीं हैं इसलिए आपको अस्थमा भी हो जाता है। हृदय में आपके शिवाजी का स्थान है। वो भी. वोही गड़बड़ हो जाता है और आपको Heart attack आ सकता है या आपको और वीमारियाँ हो सकती हैं। सहजयोग में आने पर आपको समझना चाहिए कि हनुमान जी का आपके सामने एक आदर्श है गणेश जी का है ही वो तो अबोधिता थे बिल्कुल अवतार जैसे छोटे बच्चे होते हैं। वैसे ही भोले भाले लेकिन बुद्धि के बहुत चाणांक्ष और हनुमान जी के अन्दर एक सन्तुलन, अक्ति भी साथ-साथ चले। सो जो वो उष्णता आती है जो जोश आता है वो हमारे अन्दर right side में काम करता है। और जब हम हनुमान जी की सन्तुलन शक्ति को प्राप्त नहीं करते हैं तो हमारे यहाँ अनेक बीमारियाँ आ जाती हैं लीवर की बीमारी है, अस्थमा की बीमारी है और यहाँ तक Heart Attack कहना चाहिए आता है। जब इनकी रार्मी नीचे की तरफ जाती है, हनुमान जी गर्मी को कंट्रोल करते हैं पर जब गर्मी कंट्रोल नहीं होती है तो ऐसी-ऐसी बीमारियाँ होती हैं कि जिनका कोई इलाज नहीं। Blood Cancer हो सकता है इससे और Intestind trouble हो सकता | माने दुनिया भर की बीमारियाँ एक लौवर को खराबी से होती हैं और लीवर की खराबी होती है क्योंकि हम हनुमान जी की बात नहीं मानते । माने कभी ग़र हमें गुस्सा आए कोई जरूरत नहीं है श्री राम का जैसे 27 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 hed 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-28.txt है उनके साथ कि नहीं चाहिए, माँ हमको इनको ठीक करना ही नहीं, जाओ यहाँ से। जहाँ रहना है जैसे रहना है| अब दूसरे हनुमान जी के जो बड़े भारी दुश्मन हैं, वो हैं हैं। उनका लंका दहन करते हैं । यानि आप देखते हैं जो आदमी शराब पीते हैं, न कोई उनसे बात करेगा, न कुछ करेगा अच्छा वो दस शराबी इकट्ठे करके और शराब पिलाएंगे। अब सब शराब पी रहे हैं न उनके घर में खाने को है, न पीने को है, न ही कुछ, बस शराब पी रहे हैं पागल जैसे। लोग हनुमान जी को मानते है वो शराब नहीं पी सकते, नहीं पी सकते। क्योंकि इधर से मानो तो उनको और करो उसके उल्टा, तो वो हो नहीं सकता। और आजकल में देखती हूं कि शराब पीना बहुत वढ़ गया है और मुझे आश्चर्य होता है कि एक बड़े अफसर साहब थे एक बार उनके घर मैं गई क्योंकि हमारे पति के वो दोस्त भी थे। और मियाँ-बीवी दोनों शराब पीते थे और बड़ी एक प्यार भरा आनन्द और उसी के साथ-साथ शक्ति दर्शन। ये सब चीजों को समझते हुए एक सहजयोगी का चरित्र या उसका जीवन ऐसा होना चाहिए कि सन्तुलित। आपको जब गुस्सा भी आता है, तो आप चुप होकर देखिए। मुझे मेरे ख्याल से, मुझे तो कभी गुस्सा नहीं आता या आता भी होगा तो मुझे तो पता नही और बगैर गुस्सा किए ही मामला ठीक हो जाता है। मैं कहूँगी जरुर कि भई ये क्या कर रहे हो? बस ज्यादा नहीं, इससे आगे नहीं। और लोग तो गाली- गलोच दुनिया भर की चीजें करते हैं । पर जब ये अति हो जाता है जब ये गुस्सा करने का मादा अति हो जाता है और आदमी वो तो बड़े गुसैल बैठे हुए हैं, वो वहाँ बैठे हैं गुस्से करके बैठे हैं, जो गुस्सा कर रहे हैं। इस तरह से जब आदमी हो जाते हैं तो एक गम्भीर बात होती हैं, एक बड़ी गम्भीर बीमारी उनको लगती है, उनको अल्जाइमर कहते हैं। अल्जाइमर की बीमारी, इस गुस्से से होती है। वो गुस्सा जो हम बेकार में कर रहे हैं। अब समझ लीजिए, आपके लड़के को किसी ने थप्पड़ मार दिया। हो गए आप गुस्से; गुस्सा होने से क्या बात होती हैं? उल्टे सोचना चाहिए कि हमारे लड़के की कोई गलती हैं या हम जबरदस्ती अपने प्यार में उस लड़के को खराब कर रहे हैं। इस तरह का सन्तुलन जीवन में नहीं आएगा, तो ये अल्ज़ाइमर की बीमारी बहुत ही खराब होती है। इसमें आदमी पगला सा जाता है। मरता नहीं है और किसी को मरने भी नहीं देता। गालियाँ देता है. चीखते रहता है, उसका इलाज है सहजयोग में पर बड़ा कठिन है क्योंकि वो तो गालियां देते बैठते है। उसको जो ठीक शराबी। जो लोग शराब पीतें ठण्ड थी। तो मुझे कहने लगे आज रात यहीं ठहर जाओ। तो मैंने कहा अच्छा ठहर जाएंगे। तो पूरे घर में एक कम्बल, मेंने कहा, हे भगवान! इतने बड़े अफसर के घर में एक कम्बल। मेंने कहा मेरे को तो कोई बात नहीं मैं तो सो लूगी। अब वो लोग परेशान हों कि एक कम्बल में इनको कहाँ सुलाएं। मैंने कहा मेरी चिन्ता मत करो, मैं ठीक कर लूगी। इतना उनका हाल खराब। उनकी लड़की खराब गई लेकिन मानने को तैयार नहीं मेरी लड़की खराब गई। बस जैसे ही शराब पी लेंगे तो ये कहना शुरु करेंगे कि साहब मेरी लड़की सबसे अच्छी हैं, आष कुछ मत कहिए। वो लड़की का सत्यानाश हो गया है क्योंकि चढ़ गई शराब चढ़ गई तो होश ही नहीं उनको। उसका बिल्कुल सत्यानाश हो गया उस लड़की का। अन्त में अभी आई थी मेरे पास रोते हुए। बहुत उसको ही गालियां देंगे तो कौन, गर करने जाएगा, कोई डॉक्टर हो तो उसको कोई गाली दे तो कहेगा जा चूल्हे में और मुझे क्या करने का है । यही होता 28 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11.& 12. 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-29.txt उसका सर्वनाश कर दिया। तो ये बात है कि. शराब का एक नशा, और नशे को भी बढ़ा देता है। और उसमें सबसे बड़ा नशा ये हो जाता है कि मनुष्य को प्रेम नहीं रह जाता है, तो किसी से प्यार नहीं करता। इसीलिए सबने, सारे धर्मों ने शराब को मना किया है। लेकिन अब इसाई धर्म जैसे हैं सब लोग उसमें तो कुछ न कुछ हिसाब किताब बना लेते हैं। हिन्दू धर्म में भी है, इसाईयों में भ्ी मुसलमानों में तो उन्होंने कहा कि जब ईसा मसीह किसी शादी में गए थे तो उस शादी में शराब बनाई गई थी. बिल्कुल झुठ, इसलिए हम लोग शराब पीते हैं। माने इग्लैण्ड में तो मैं हैरान ही ही शराबी लिखने वाले और शराबी ही कहने वाले। उनके शरावियों के लेकचरों से न जाने कितने लोग बेवकूफ बनते हैं। पर किसी शराबी का मैंने किसी भी देश में पुतला खड़ा हुआ नहीं देखा! सो ये सब लोग श्री हनुमान के विरोध में नहीं हैं पर उनको attack करते हैं, उनको आक्रमण करते हैं। फिर वो भी दिखा देते हैं ऐसी गर्मी अन्दर कर देते हैं। पेट में कि फिर कैंसर, फलाना- हिकाना। सब बीमारियाँ जब पियो और पियो, पियो। ये शराब पीने पिलाने की ज़ो ये रस्म चल पड़ी हैं इसका मुझे तो डर लगता है कि ये हनुमान जी को संभाले रहो, न जाने क्या कर दे? कहाँ से क्या आफत कर दें? इनका क्या ठिकाना सारे शराबियां को एक दिन पकड़ के समुन्दर में न डाल दें। गईं। कोई मरा तो शराब, कोई मर गया तो भी शराब पीएंगे, कोई पैदा हुआ तो भी शराब पीएगे। तो वो जो आदत हो गई उन लोगों को, और शराब मुझे तो ये ही डर लगता है इनसे। क्योंकि इनमें तो वहाँ बिल्कुल बड़ा भारी एक संस्कृति सी बनी हुई हैं शराब की। किताबें लिखी हुई है। कौन खड़े सी शराब, कब पीना चाहिए, ऐसा नहीं बैसा नहीं, कैसा गिलास इस्तेमाल करता चाहिए। अभी इन शराबी लोगों का जो हाल मैंने देखा वो मैं सोचती पडता है, जिसका चरित्र ठीक नहीं। पर इनकी हूँ ये आधे इन्सान हैं । बात और है ये जब किसी आदमी को देखते हैं पागल हैं। पर वो वहाँ संस्कृति बन गई। सबसे कि बो अपनी चेतना से ही खेल रहा है। शराब ज्यादा तो फ्रांस की तो संस्कृति बन गई। उनसे यीने से चेतना ही नष्ट होती है। तो फिर उसके अपने को सीखने का कुछ नहीं। अब वो जो पीछे पड़ जाते हैं घर में कलह होगा. झगड़े होंगे, शराब की बात करते हैं तो इंसा-मसीह जब वहाँ मारा-मारी होगी। अब देखिए कि रस्ते पर मारा-मारी दया है, भक्ति है, सब है पर जो इनके बिरोध में उनकी नहीं। जैसे श्री गणेश दुष्चरित्र है आदमी गर कोई हो कोई अगर बुरे वतन का आदमी हो तो उसके विरोध मूलाधार चक्र पर आधे बिल्कुल पगले हैं हो रही हैं, गर आप रास्ता रोकने जाए तो दो शराबी आपस में मार रहे हैं। फिर उसकी हवा और फैलती है। तो किंसी शराबी के घर किसी गए तो उस बक्त में वो जगह, हिब्रू में मैने पढ़ा है कि जो है द्वाक्ष का रस पोते थे। माने अंगूर हुआ का रस पीते थे तो उन्होंने पानी में हाथ डाल के उसमें अंगूर का रस बना दिया पानी का। शराब कभी सड़ाए गलाए बगैर बनती है क्या? दो मिनट में सहज में शराब बन सकती है क्या? जब तक सहजयोगियों को जाना नहीं चाहिए क्योंकि वो अपवित्र जगह है और न ही किसी भी शराबी के साथ कोई सम्बन्ध रखना चाहिए। सहजयोगियों के लिए भी बड़ा घातक है क्योंकि इधर तो आप हनुमानजी को मानते हैं और उधर आप शराबियों के यहाँ जाते हैं। खास कर पुना में, न जाने कितने तरह के हनुमान जी यहाँ हैं- मारुति, कोई दुल्या आप शराब को खूब सड़ाइए नहीं और जितनी सड़ेगी उतनी महंगी। पचास साल सड़ी हुई हो तो और भी अच्छी और सौ साल हो तो बस दुर्लभ! ये शराब की ideas बना ली शराबियों ने और 29 चैंतन्य लहरी ॥ खंड : XIl अंक : 11 & 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-30.txt सब पार्टी हो रही और ये होगा और सब पागल लोग वहाँ। फिर शादियों में, बारातियों में सब में मारुति, तो कोई बो मारुति, तो कोई वो मारुति । तो पुणे बालों के लिए तो बहुत बचकर रहना चाहिए। वो एक बार आए थे हनमान जी वाले मेरे पास, के माँ एक लैक्चर दो। मैंने कहा, मैं नहीं आऊंगी। कहने लगे क्यों? मैने कहा आप शराब पीकर के की सोचता है और बहुत विचारक है, सब है, पर वहाँ गन्दे-गन्दे सिनेमा के गाने गाते हो और आपको प्रेम नहीं है। सबके प्रति प्रेम की भावना नहीं है । मालमू है, ये मारुति क्या है? ऐसे गले घोटेंगे उसको भी इसकी तकलीफ होती है। क्यांकि राम सबके फिर पता चल जाएगा| तो उस गणपति के की भक्ति करने वाले इस हनुमान जी का कोई यहाँ आजकल मैंने सुना है कि शराब वराब पीने ठिकाना नहीं है। गुर आप बड़े कार्यकर्ता है नहीं देते। कोई शराबी पीकर आता है तो उसको बढ़िया आदमी हैं, सब कुछ है लेकिन आपको भगा देते हैं । आप सोचो कि हिम्मत देखिए कि सबके प्रति प्रेम नहीं है| चलने नहीं वाला। सबके हनुमान जी के सामने ही जाकर के और ये धंधे प्रति प्रेम रखना और इसलिए ईसा मसीह ने कहा करना हनुमान जी के सामने! क्या हिम्मत है! और है कि सबको माफ करिए। आप कौन होते हैं ये सब कुछ करने से लोग सोचते हैं कि पैसा आता है। इसका जो धंधा करते हैं और जो पीते खोपड़ी खराब हो जाती है और प्यार का मज़़ा टूट हैं, इसके जो ग्राहक है, सब इसी तरह से बिल्कुल बेकार Bankcrupt, एक पैसा नहीं। अब लोग सबको नमस्कार करना चाहिए और समझना चाहिए कहेंगे कि शराब में ऐसा क्या हैं, क्योंकि ये हमारे अन्दर जो भी सहजयोग से शक्तियाँ आई है जी का मामला है भई, इसका क्या कारण उसको सन्तुलन में रखें। प्यार ऐसी चीज है कि चलता है। अब जो इन्सान कार्य करता है बहुत आगे बहुत माफ न करने वाले? जहाँ गर्मी हुई लोगों की जाता है। ऐसे हनुमान भक्त श्री बजरंग बली को हनुमान ३। हनुमान जी के विरोध में तुम जा रहे हो । उनकी शक्ति आपके अन्दर Righ Side से बहती है। उसको इस्तेमाल करो सन्तुलन के साथ बजाय आप बड़े-बड़े लोगों को प्यार के बन्धन में फँसा लो। हम तो यही करते रहते हैं क्यों कि अजीब-अजीब लोगों से पाला पड़ता है। अब उनपर ऐसे प्यार का चक्कर चलाओ की वो करो, फिर ये खराब करो, फिर वो खराब करो तो ठिकाने आ जाएं। एक बार हम गए थे कही, तो वो तो उखड़ेंगे ही। माने सूक्ष्म में यह हनुमान जी वहाँ एक साधू बाबा बड़े मशहूर लेकिन गुस्से के का काम है, बाह्य ताल्लुक नहीं समझते। बाह्ययता तेज, ये लोग सब गुस्से के तेज बहुत होते हैं तो हम चढ़के ऊपर गए तो वों गुस्से में यूं, यूं, यूं, यूं, कुछ कहो तो, तो लोग मारने को दौड़ेंगे आपको गर्दन कर रहे थे क्योंकि उनको ये अहंकार था कि अगर आप नहीं पीते तो कहेंगे क्या बेवकूफ हो? वो बरसात को रोक सकते हैं। और मैं जो ऊपर आप शराब न पीते हो। अरे, बाबा उसके पीछे में गई चढ़तें चढ़ते ऊपर पहुँची तो बिल्कुल भीग गई बरसात में अब ये बहुत गुस्से होकर बैठे थे। तो मैं जाकर उनकी गुफा में बैठी तो वो आकर बैठ गए। बहुत गुस्से हुए तो मैंने कहा ऐसा क्या हो गया, भीग गए तो क्या हो गया| नहीं कहने लगे आपने मेरा अहंकार निकालने के लिए ही बरसते इसके आप शराब पीते हो, अपना लीवर खराब तो ये हालत है कि कहीं गर शराब के विरोध में इतने बड़े हनुमान जी खड़े हुए है। एक बार भी इसका प्रहार किया तो गए आप जिन्दगी से गए। मेरे ख्याल से पहले हो प्रहार करते नहीं तो लोग एसे पागल जैसे कैसे बातें करते। वोही वोही बात करेंगे, वोही वोही बात एकदम और सब पागल। 30 चैतन्य लहरी ॥ खड : XII अंक : 11 & 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-31.txt पानी को रोका नहीं, क्योंकि मैं तो रोक सकता हूँ। है। हाँ हाँ हाँ हाँ सब हुआ। जैसे ही गया- ये ऐसा मेरे ये अहंकार हो गया था। ऐसी कोई बात नहीं। मैंने कहा देखों तुम सन्यासी हो और तुमने मेरे लिए एक साड़ी खरीदी है। मैं सन्यासी से तो कुछ हाँ बड़े अच्छे है, बड़े अच्छे हैं, हाँ जाओ जाओ| ले नहीं सकती, ले नहीं सकती और तुम मुझे कुछ दे नहीं सकते। तब मैंने सोचा, कि भीग से तो नहीं हो सकता न। गुर तुम इस तरह से जाओ तो लेना ही पड़ेगा। उस चीज़ से उनके आँख से आँसू बहने लग गए। मेरे पैर पर गिर नहीं हैं क्या? प्यार अन्दर से करने की शक्ति पड़े। मैंने कहा मुझको क्या करना था मुझको तो आपको प्राप्त है क्योंकि आप सहजयोगी हैं। और सिर्फ थोड़ा सा भीगना ही था। नहीं तो मैं भी नहीं लेने वाली थी। पर मैंने कहा, थोड़ा भीग जाओ तो फिर लेना पड़ेगा-साड़ी। तो कहने लगे कि अच्छा मैंने कहा कि तुमने मेरे लिए भगुवे रंग की साड़ी ली है और नौवार। ये अच्छा किया क्योंकि इसमें तो पेटीकोट भी भीग गया तो नौवार मैं पहन खराब आदमी है। फिर दूसरा आया वो बैठा खास कर औरतों में बहुत होता है। ये तो आके बैठा हाँ हाँ ये ऐसा आदमी है। अरे भई, ऐसे उपरी प्यार ऊपरी प्यार किसी से करोगे, तो वो क्या समझता जब ये चीज़ को आप आत्मसात करोगे। अपने आप, जब प्यार का पेड़ खिलेगा तो आप दूसरों को आतन्द दोगे और उसकी खुशबू आपको भी आएगी। प्यार के सागर के सिवाए और कोई चीज आपको अच्छी नहीं लगेगी। इसलिए बजरंग बली से जो चीज़ सीखने की है वो है, उनकी भक्ति और वो शक्ति जो उन्होंने आपको दी है कि आपको कोई हाथ नहीं लगा सकता गुर आपकी भक्ति सच्ची है। कोई हाथ नहीं लगा दन सकती हूँ। बहुत एकदम उनकी तबियत खुश हो गई। तो ये प्यार ऐसी चीज़ है कि बड़े-बड़े गुस्से वालों को जमोन पर उतार लाती हैं और पहले के अनेक ऐसे उदाहरण हैं। बो जो बताने बैठू तो रात पूरी ऐसे बीत जाएगी। पर अब भी हर दिन हो रहा सकता। ऐसे हजारों उदाहरण सहजयोग में है। चमत्कार उसको लोग कहते हैं। मैं कहती हूँ, नहीं ये तो श्री हनुमानजी की कृपा है। तो आप सबको अब मैं अनन्त आश्शीवाद और प्यार कहती पहले अपने को भी प्यार करो, दूसरों को भी प्यार करो। इसका मतलब नहीं मेरा बेटा, मेरी ये, नहीं नहीं। इसका मतलब है निर्वाज्य प्यार। प्यार जिसका कोई बदला नहीं, जिसका कोई रिश्ता नहीं। जो अगाध है ऐसी प्यार की शक्ति आपके अन्दर आई हैं, उसको आप इस्तेमाल करें। अनन्त आर्शीवाद। है। प्यार से बात करो। उसमें क्या जाता है। गुर आप प्यार करोगे तो दूसरों के सद्गुण आपके अन्दर आएंगे और गर आप किसी से नफरत करोगे उसी से उसके जो दुर्गुण है वो आपके अन्दर आ जाएंगे। लेन देन का मामला है। आपने किसी से ये ऐसा वो ऐसा जो देखो कोई ठीक नहीं ऐसे बहुतो के यहाँ रिवाज है, संस्कृति है कि कोई घर में आया, बैठा खाओ पीयो, ठीक 31 चैतन्य लहरी XII अंक : 11 & 12. 1999 ॥ खंड : 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-32.txt पूजा के श्री निर्मला देवी की डॉ. तलवार से बातचीत। 26, 27 फरवरी 1987, शिव मुम्बई में माताजी सुआवसर पर सहजयोग का ज्ञान मुझे सदा से था। इस अद्वितीय ज्ञान के साथ ही मेरा जन्म हुआ। परन्तु रूप में में आई हूँ। निराकार सागर अब एक इसे प्रकट करना आसान कार्य न था। अंतः इसे बड़ा बादल (साकार) बन गया है। इसने रूप ध प्रकट करने की विधि में खोजना चाहती थी। सर्वप्रथम मेंने सोचा कि सातवें चक्र सहस्त्ार) का खोला जाना आवश्यक हैं और 5 अवतार हुआ है। इस बादल में जल है, वर्षा का मई 1970 को मेंने ये चक्र खोल दिया। एक प्रकार से बह रहस्य है। पहले ब्रह्म चैतन्य शनै: शनैः वे उस स्तर पर लाए गए हैं जहाँ 'अव्यक्त' था, इसकी अभिव्यक्ति न हुई थी। उनकी कुण्डलिनी उठ गई है, उन्हें आत्म अब ब्रह्मचैतन्य के विराट अवतरण के रिण कर लिया है। इससे पूर्व जो भी अवतरण आए वे इसके अंग-प्रत्यंग थे। अब पूर्ण (विराट) ये जल लोगों के मस्तिष्क पोषण कर रहा है । साक्षात्कार प्राप्त हो गया है और अब वे अपनी नस-नाड़ियों और अंगुलियों के सिरों पर सभी यह स्वत: स्पष्ट न था। जो लोग किसी प्रकार आत्म साक्षात्कार प्राप्त करके ब्रह्म चैतन्य के समीप पहुँच जाते तो बे कहते कि 'यह निराकार समस्याओं को महसूस कर सकते हैं । यही का गुण हैं। व्यक्ति एक बूँद की तरह से है जो कारण था जिसकी वजह से अब तक किसी ने सागर में विलीन हो जाती है। इससे अधिक कोई भी न तो वर्णन कर बताया । उन्होंने चैतन्य लहरी की बात की पूरन्तु पाता और न ही लोगों को बता पाता। ब्रहा चैतन्य तब तक यह अव्यक्त रूप में थीं। केवल एक के सागर से अवतरित महान अवतरणों ने भी अपने गिने चुने शिष्यों को यह रहस्य समझाना चाहा. उनका परिचय व्रह्म चैतन्य से करवाने का प्रयत्न किया। परन्तु ब्रह्मा चेतन्य के 'व्यक्त' रूप गए। हमारे सम्मुख इसके प्रमाण हैं। वे ऐसा में न होने के कारण ये अवतरण स्वयं इसी में किस प्रकार कर पाए. ब्रह्म चैतन्य क्या था-इसका लुप्त हो गए। ज्ञानेश्वर जी ने समाधि ले ली। कुछ लोगों ने कहा कि वे इसकी बात नहीं कर सकते, यह तो अनुभव की चौज है। अतः बहुत विषय में बताया। कम लोग इसे प्राप्त कर सके। कोई भी अपनी अंगुलियों के सिरों पर. अपनी नाड़ियों पर, अपने मस्तिष्क में इसकी अनुभव करके या अपनी लाई हूँ। अब में आपको इसमें विलीन हो जाने बुद्धि से इसे समझकर आत्म साक्षात्कार के की आज्ञा नहीं देती। इसे मैंने एक बड़े बट अनुभव का वास्तवकिरण न कर सका। इस प्रकार यह बहुत बड़ी समस्या थी सभी ने इसके लोग छोटे घट हैं दूसरे शब्दों में सूक्ष्म कोषाणुओं लिए आधार बनाने का प्रयत्न किया। स्पष्ट रूप से चैतन्य लहरियों के विषय में नहीं अवस्था थी, आनन्द की एक अवस्था जिसकी अभिव्यक्ति स्थूल रूप में न हुई थी। उस अवस्था में वे क्रोध और प्रलोभनों से ऊपुर उठ प्रत्यक्ष रूप वो न दर्शा पाए। केवल उपमाओं और नीति कथाओं के माध्यम से उन्होंने इसके मैंने यही प्राप्त किया है-यह प्रत्यक्ष रूप हैं। ब्रहम चैतन्य का साकार रूप में सागर में से (मटका) के रूप में स्थापित किया है। आप के रूप में अपने शरीर में ले लिया है जहाँ में 32 चतन्य लहरो खड : XII अंक : 11 & 12. 1999 खड़ 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-33.txt विस्तार से बता सकती हूँ क्योंकि वे सब एक ही विराट के अंग-प्रत्यंग है। उसी विराट के जो ब्रह्म चैतन्य है । वैज्ञानिकों से मेरे विषय में बात न करें उन्हें केवल यही बताएं कि एक अद्वितीय विधि आपका पोषण करती हूँ, आपकी देखभाल करती हूँ. आपकी अशुद्धियाँ स्वच्छ करती हूँ और यह स मैं 'महामाया' सब कार्यान्वित करती हैँ। परन्तु हूँ। इसलिए मुझे अत्यन्त शनै:-शनै: उचित समय तथा उचित परिस्थिति में काम करना होता है। जब सातवाँ चक्र खोला गया तो सभी विकसित है। यद्यपि इसे समझना कुछ कठिन है चक्र आपके सहस्त्रार में आ गए और में सभी फिर भी ये घटित हुआ है और हमने स्वयं इसे चक्रों का और आपके सभी देवी-देवताओं का संचालन कर पाई। किसी भी देवता से प्रार्थना उनसे यदि आप मेरे विषय में कहेंगे तो उन्हें करने भर, से आपको चैतन्य लहरियाँ आने लगती है यह प्रमाणित करता है कि में ब्रह्म चैतन्य हूँ। ब्रह्म चैतन्य हो आदिशक्ति है और जागृत की जा सकती है। उन्होंने किस प्रकार सदा-शिव भी मेरे हृदय में विराजित हैं। परन्तु मेरे बहुत अधिक मानवीय होने के कारण मुझ नहीं जानते संभवत यह रहस्य है, सारी बात मुझ में सदाशिव को खोज पाना सुगम नहीं है। आधुनिक मानव को आप यदि ये सब बातें बताएं तो उनकी समझ में नहीं आएगा। ये तो केवल सहजयोगियों को बताया जा सकता है होता है? पृथ्वी माँ में बीज को डालने परा तो जिनमें इसे समझने की योग्यता है। इस सत्य को बर्दाश्त कर पाना अत्यन्त कठिन है। आजकल तो अपने धन और पद के गर्व से मुक्त रहना भी हुआ है। यह जीवन्त प्रक्रिया है जिसे हमने स्वयं अत्यन्त कठिन है। लोग हिल जाते हैं उनके देखा है। लिए यह बर्दाश्त करना असंभव होगा कि सभी अवतरण मुझमें निहित है। एक बार मैं औरंगाबाद गई। वहाँ एक लड़के ने मुझे बताया कि ब्रह्म चैतन्य अनुभव लोगों को तपस्या द्वारा ही आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने या न करने से परे है इसके विषय में हुआ। उदाहरणार्थ महात्मा बुद्ध को तपस्या द्वारा उसने किसी पुस्तक में पढ़ा था। मैंने उसे बताया कि ये सच परन्तु इस सत्य को भूलकर वह ब्रह्म-चैतन्य को केवल महसूस करें। इसके पश्चात् लिए प्रार्थना की । इसके लिए शुद्ध इच्छा की मैंने इसके विषय में कुछ लोगों को बताने का निर्णय किया। इसको प्रकट करने से पूर्व, आप देखा है। वैज्ञानिकों को आप इस प्रकार बताएं। आघात लगेगा। अधिक से अधिक आप उन्हें इतना कह सकते हैं कि 'यह ज्ञान माताजी श्री निर्मलादेवी की देन है।' इसके द्वारा कुण्डलिनी इस कार्य को किया इसके विषय में हम कुछ पर डाल दो। आप समझने का प्रयत्न करें। क्या आप बता सकते हैं कि बीज का अंकुरण किस प्रकार आप कह सकते हैं कि सभी कुछ श्रीमाताजी पर छोड़ने से हमारे अन्दर बीज का अंकुरण अब तक कोई भी अन्य लोगों को आत्म साक्षात्कार नहीं दे पाया। ही सकता है एक दो लोगों ने दूसरों को साक्षात्कार दिया हो। अधिकतर आत्म साक्षात्कार प्राप्त हुआ। ब्रह्म चैतन्य ने उनमें इसलिए प्रवेश किया क्योंकि उन्होंने इसके है और तब ब्रह्म चैतन्य ने उनका शुद्धीकरण किया। परन्तु इसे पाने के पश्चात् वे उस अवस्था में स्थापित हो गए। इसके बाद उन्होंने इसके विषय में कुछ नहीं कहा। अब यही चीज़़ सामूहिक रूप से मिल रही है। इसका सामूहिक रूप से प्राप्त होना इस अवस्था के प्रकटीकरण आरंभ ्ि देखे, उपयुक्त समय भी आ गया था। अभी तक सभी धर्म विभाजित थे और असंगठित। अब पूर्ण संगठन आ गया है। अब मैं ईसा मसीह मोहम्मद साहब और अन्य लोगों के विषय में 33 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-34.txt लोग इस हाँडी से बाहर रह जाएंगे वे बाहर ही रह जाएंगे। यह सब समय से परे की चीज़ है। होने के कारण हुआ। मान लो आप बिजली का अविष्कार करें और इसे अपने तक ही सीमित रखें? इसके विषय में किसी और से बात न करें हर व्यक्ति की प्राप्त करने की अपनी ही तो अन्य लोग किस प्रकार इसके विषय में जान पाएंगे? ऐसा नहीं हैं कि महान सन्त इसकी साइकिल चलानी सीखने या सी. ए. या डॉक्टर अभिव्यक्ति नहीं करना चाहते थे परन्तु उन दिनों बनने में किसको कितना समय लगेगा। कुछ सम्पर्क के साधन नहीं थे। किसी व्यक्ति के पास यदि आँखें नहीं होगीं तो किस प्रकार आप उन्हें बहुत अधिक। दिखाएंगे या किस प्रकार किसी चीज़ की बात करेंगे? इस अवस्था को समझने वाला और है। वास्तव में शरीर का कोई समय नहीं हैं। आत्मसात करने वाला उन दिनों कोई न था। जिन लोगों ने आत्म साक्षात्कार प्राप्त किया (Time Dimension) उनके सहस्त्रार खुल गए और वे इसी में ही आदतें बनने के साथ-साथ काल या समय- विलीन हो गए। इस प्रकार ये सारा अनुभव व्यक्तिगत रहा, सामूहिक न बना पाया। अब वह स्थिति समाप्त हो गई है। आत्म साक्षात्कार अब सामूहिक बन गया है। एक बिन्दु पर आकर हर चीज को सामूहिक बनना पड़ता है। इस बिन्दु समय लगता है। आदतों से यदि आप मुक्ति तक पहुँचने के लिए भी परीक्षाएँ हुई अन्तो्गवा ईसा मसीह ने अपना बलिदान दिया। इसी प्रकार ठहराने के कारण आदतें बनी रहती है। एक मोहम्मद साहब, गुरुनानक और तुकाराम ने परीक्षाएं जीवन काल में यदि आप आत्म साक्षात्कार प्राप्त दी। आप देखें कि उनसे किस प्रकार व्यवहार किया। वैकुण्ठ से आए इन सन्तों के साथ लोगों प्राप्त करना आपके लिए संभव होगा। इस जीवन ने किस प्रकार व्यवहार किया? चीजें तब कार्याचित में यदि आप अधकचरे रहे तो यह उपलब्धि न हो पाई। बैकुण्ठ से भी आगे की सब चीज़ें मैं जानती हूँ परन्तु इसे मैंने अभी तक प्रकट नहीं कार्य करेगा। यह 'अन्तिम निर्णय' है। सहजयोग किया है। धीरे-धीरे मैं ये सब प्रकट करुंगी क्योंकि अभी तक लोग इसे आत्मसात करने के दिशा में कार्य करते देखती हैँ तो मुझे बहुत बुरा लिए तैयार नहीं हैं। यह खिचड़ी पकने जैसा है लगता है। समय-समय पर मुझे ऐसे बुरे अनुभव जो अभी तक पकी नहीं है। तो अभी इसे तैयार होते रहते है परन्तु ऐसे व्यक्ति सहजयोग से चले होने दो। आप सब लोग इसमें हैं। अब जो लोग जाते हैं। ऐसा घटित होता है। परन्तु आप लोगों तैयार हो रहे हैं उनकी गुणवत्ता भूतकाल के को निरुत्साहित बिल्कुल नहीं होना। परी शक्ति पैगम्बरों के गिने-चुने योग्यता है। वैसे ही जैसे ये कहना कठिन है कि लोग बहुत कम समय लेते है और कुछ लोग समय का बन्धन मानव की अपनी रचना आदतों के कारण मानव ने समय के आयाम की सृष्टि की। बन्धन की सृष्टि हुई। आदत अगर न हो तो समय बन्धन नहीं रह जाता। सहजयोग में आने पर आप बहुत-सी आदतों से मुक्त हो जाते हैं । परन्तु इसमें भी चाहते हैं तो उन्हें उचित न ठहराए। उचित करना चाहते हैं तभी इस जीवन में वह स्थिति पूर्ण करने के लिए आपको पुनः आना पड़ेगा। कुछ समय के लिए अब सहजयोग इसी प्रकार अभिव्यक्तिकरण में जब मैं लोगों को विपरीत हैं शिष्यों की गुणवत्ता के से इसमें बढ़ने के लिए लगे रहे। सदैव मध्य में रहें। सहजयोग में अपनी उन्नति के विषय में चिन्तित न हों । एक बार जब आप मध्य में आ जाएंगे तो उन्नति स्वत: बराबर है। अब यहाँ पर आप सब लोग धीरे- धीरे उन्नत होंगे। जो भी लोग इस दिव्य रसोईये की हाँडी में आ जाएंगे, वे तैयार हो जाएंगे। जो 34 चैतन्य लहरी । खंड : XII अक : 11 & 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-35.txt होने लगेगी। मैं इसका पोषण कर रही हूँ। एकीकरण हमारे बोध से हो जाता है तो यह प्रतिदिन आप बाएं-दाएं होते रहते हैं अपनी चैतन्यित बोध का रूप धारण कर लेती है जी आदतों के कारण आप बाएं को जाते हैं सन्तुलन प्रदारयी होता है। यह सन्तुलन आपको और आकांक्षाओं के कारण दाएं को। मुझे मध्य में बनाए रखता है। ज्याही आपका चित्त अपने हृदय में बिठाना एक भाव है, एक अनुभूति। जिस प्रकार आपमें आदतें विकसित होती है उसी प्रकार भाव के रूप में मुझे अपने हृदय में स्थापित करने का अभ्यास करें। आप यदि इतनी आसानी से आदतें बना लेते हैं तो इस सुन्दर भाव को क्यों नही मस्तिष्क के विकास के विकास को प्रभावित आसानी से प्राप्त कर सकते हैं? ऐसा करना भाव परिवर्तन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। (कुण्डल) के रूप में प्रकट होते हैं। ये कुण्डल मस्तिष्क की अवस्था होने के कारण आदते बना गलत दिशा में जाता है तुरन्त आपको अपनी नस-नाड़ियों पर तपन महसूस होने लगती है। इस प्रकार सर्वव्यापी शक्ति आपक अन्दर कार्य करती है और बढती है। हमारी सभी आदते और संस्कार हमारे करते है और मस्तिष्क में मरोड़ों (Crumples) जब खुलते हैं तो मस्तिष्क में नए अन्तरिक्षों की सृष्टि होती है जिनमें आत्मसात करने की शक्ति लेना सुगम हैं। एक बार जब आप अपने अन्दर मेरा अधिक होती है। कुण्डलीकृत मस्तिष्क बड़े भाव स्थापित कर लेते हैं तो आपके पूरे शरीर में सूक्ष्म रूप से खुलता है इस प्रकार परमात्मा से यह अपना स्थान ले लेता है और शाश्वत बना रहता है। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आप कितना इसे उपयोग करते है । कमरे में यदि प्रहुँचेगा एक चिकित्सा संस्थान में जाकर मैंने बहुत सा धुओँ कर दिया जाए तो सारं मच्छर भाग जाते हैं । तो अन्तः शुद्धीकरण के लिए भी Nervous-Systen) के विषय में बताया। व ये आप पर निर्भर करता है कि अपने हृदय में भौचक्के रह गए। वे गुर्दे (Stiponitan- कहाँ तक आप मुझे बिठाते हैं। अब यह प्रश्न उठता है कि किस प्रकार मेरे भाव को अपने हृदय में स्थापित करें। उत्तर ये है कि चित्त को को यदि आप बाई ओर से देखेंगे तो इसका दायाँ निरन्तर रोकने से स्थिरता आती है सदैव चित्त निरोध करें। आप जब बाहर जाकर किसी बाई ओर से कार्बन देखने पर स्वास्तिक का चीज़ को देखते हैं तो अपने चित्त को जान-बुझकर उसकी ओर जाने से रोकें। ओंकार का। नीचे से ऊपर को देखने पर यह अभ्यास से ऐसा होता है। चित्त को अन्दर की ओर चौंका देने वाली। इसे आपको परिकल्पना स्मरण रहे कि बाह्य की चीज़ों से सम्पर्क केवल (Hypothesis) के रूप में लेना होगा कि मानव चित्त के माध्यम से होता है सदैव इस देखें कि मस्तिष्क से ऊपर भी एक सर्वव्यापी शक्ति यह कहाँ जा रहा है? सदा अपने से प्रश्न करे, विद्यमान है। परिकल्पना केवल यही है। मानव मेरा चित्त कहाँ हैं?" वास्तव में हमारा चित्त भी हमारे अन्दर इसी प्रकार बँटा हुआ है जिस जैसा है। सर्वव्यापी शक्ति या परम-चैतन्य चहूँ प्रकार चेतना और बोध। जब हमारी चेतना का सम्बन्ध बनता है। इस बात को सुनकर वैज्ञानिकों को आघात परा-अनुकम्पी-नाडी-तन्त्र (Pera- Sympathetic Adrenaline) की कार्य शैली का वर्णन नहीं कर सकते हैं। आप कार्बन को ही लें। कार्बन भाग दिखाई देगा और दाएँ से देखेंगे तो बायाँ। आकार दिखाई देगा और दाई ओरसे देखने पर क्रस दिखाई पड़ता है। यह वास्तविकता है परन्तु ले जाएं। इसे निर्लिप्सा कहते है। मस्तिष्क का आकार (Pyramid) सूची स्तम्भ ओर से आकर माँ के गर्भ में भ्रूण के बनने के 35 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11& 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-36.txt तुरन्त बाद से ही इसके मस्तिष्क को प्रभावित और दाएँ दोनों ओर खींचते हुए बाहर आने का करने लगती है वास्तव में इस सूची स्तम्भ आकार के में क्रिया (Action) कहलाता है। बाह्य जगत में मस्तिष्क के तालू से बेरोकटोक प्रवेश करके परम चैतन्य रीढ़ की हड्डी से जाकर इसी रीढ़ (भौतिक विज्ञान का एक अन्य प्रसिद्ध सिद्धान्त)। के मूल में बनी त्रिकोणाकार अस्थि में साढ़े तीन क्रिया और प्रतिक्रिया का एक ही मार्ग होता है। कुण्डलों में स्थापित हो जाता है यह कुण्डलिनी बाई ओर यह प्रतिक्रिया प्रति अहं ( बन्धनों) की शक्ति है। इस प्रक्रिया में यह रीढ़ में िक्त मार्ग सृष्टि करती (Vacuum Channel) बनाता है। अब परम चैतन्य को त्रिकोणाकार अस्थि को चारों ओर से छूते हुए भूरे और सफेद पदार्थ में प्रवेश करना होता है। इनका अपना घनत्व (Density) होता में गया और एक प्रतिक्रिया को साथ लेकर बाई है और शरीर विज्ञान के अपवर्त्तन सिद्धान्त ओर से अपने साथ किसी बन्धन को साथ लेकर (Laws of Refrection) के अनुसार चलते हुए बापिस आ गया और इस प्रकार 'मनस' की परम चैतन्य बाएँ से दाएँ को और दाएँ से बाएँ सुृष्टि की। क्रिया और प्रतिक्रिया, दोनों अगन्य को प्रकाशमय ( । सपार्शवीय विकीर्णींकरण प्रभाव (Prismatic अपना रास्ता बनाता है। दूसरा हिस्सा बाह्य जगत इस क्रिया के परिणाम स्वरुप प्रतिक्रिया होती है है और दाई ओर यह अहं की रचना करती है। संक्षिप्त में, परिणामी ब्रह्म चैतन्य की जीवन्त शक्ति के साथ हमारा चित्त बाह्य जगत इसे और विशुद्धि चक्र में से गुजरते हैं । प्रकृति में बिखरे होने के कारण चित्त में पूरे शरीर के अन्दर प्रसारित होने की शक्ति है बाई ओर की विकीर्णित) करता है। refrection effect) भी कहते है। यह तथ्य केवल मानवीय मस्तिष्क के लिए ही कार्यरत प्रतिक्रिया इच्छा तत्व है जिसकी संभावना शक्ति है। पशुओं में यह इतना प्रभावशाली नहीं है। विकीणीकरण क्रिया में मानवीय चेतना है। इसी प्रकार दाई ओर की प्रक्रिया-क्रिया तत्व को दोनों तरफ से खींच कर बाहर की दिशा में है जिसकी सम्भावना शक्ति पिंगला नाड़ी की धकेला जाता है। चित्त और विकीर्णित चैतन्य रचना करती है। ईडा नाडी का अत्याधिक बहाव दोनों बाहर निकलते हुए दोनों ओर से अगन्य चक्र को पार कर जाते हैं। इस खिंचाव के परिणाम स्वरूप एक अतिरिक्त शक्ति 'परिणामी Ego) कहते हैं। तथा-पिंगला-नाड़ी का अत्याधि शक्ति' (The Resultant Force) की सृष्टि क बहाव आज्ञा चक्र के सामने वाले हिस्से में होती है। यहाँ पर भौतिक विज्ञान का शक्तियों वैसे ही बादल की रचना करता है जो 'अह का समानान्तर चतुर्भुज का सिद्धान्त कार्यरत होता (Ego)' कहलाता है। अगन्य चक्र इन दोनों है। परिणामी शक्ति दो भागों में बँट जाती है, हर गुब्बारों (अहं और प्रतिअहं) के बीच में होता एक भाग बाएँ और दाएँ दोनों ओर एक दूसरे के है। अगन्य चक्र के आगे का हिस्सा- मस्तिष्क के नब्बे अंश के कोण में होता है। परिणामी शक्ति पीयूष ग्रन्थि (Pituitary Gland) द्वारा प्रचालित अपने दोनों पूरकों के मध्य में कार्य करती है। होता है और पीछे का हिस्सा शीर्ष ग्रन्थि (Pineal एक हिस्सा भ्रूण के शरीर में नीचे की ओर Gland) द्वारा । उतरते हुए बाएँ और दाएँ अनुकम्पी मार्ग की सृष्टि करता है। दूसरा हिस्सा नस-नाड़ियों में से इसे ज्योतिर्मय करती है। आपके अन्दर ईसा अपना मार्ग बनाते हुए मानवीय चेतना को बाएँ मसीह जागृत हो जाते हैं । वे अहं और प्रतिअहं बाएं अनुकम्पी मार्ग पर ईडा नाड़ी को जन्म देती अगन्य चक्र के पिछले हिस्से में गुब्बारे जैसा बादल बनाता है जिसे हम प्रतिअहं (Super कयिड अगन्य चक्र में प्रवेश करके कुण्डलिी 36 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक 11 & 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-37.txt के गुब्बारे को अधोगति की ओर ले जाते है और क्या होता है? कपड़ा अंगुली पर कुछ ऊपर जाकर अंगुली को चारों ओर से घेर लेता हैं जाता है कि हमारे पापों के कारण ईसा मसीह इसी प्रकार जब कुण्डलिनी उठती है तो यह बलिदान हो गए। इसी के साथ-साथ सहस्त्रार अंगुली की तरह से चित को उठाकर सहस्त्रार तक ले जाती है जहाँ यह ब्रह्म चेतन्य के प्रकाश से प्रकाशमान हो उठता है। प्रकाशरंजित होकर यह मध्य में सुषुम्ना नाड़ी पर कुण्डलिनी मार्ग की रेखा में आ जाता है। वास्तव में घटित यह पूरा अगन्य चक्र खुल जाता है। इसीलिए कहा खुल जाता है। मैंने विराट के सहस्रार देखा है। ऐसे लगता था जैसे टनों शोले हो। जब मानवीय मस्तिष्क की चीर फाड़ करते हैं, तो इसकी फाडियाँ शोलों की पंखुड़ियों सी लगती को खुलता हैं। इसका मध्य भाग पीले रंग के छेद जैसा हुआ है कि आत्म साक्षात्कार के पश्चात् हमारा चित्त बाह्य भौतिक संसार से अन्दर की ओर खिंचता है। इस प्रकार यह ज्योतिर्मय हो उठता है यह एक प्रकार की अवस्था है। परन्तु हम मानव प्रभाव दूसरी में दर्शाता है। अगन्य और विशुद्धि वास्तव में अपनी आदतों के दास हैं। आदतों के चक्र के खुलने से प्राय: अहं और प्रतिअहं नीचे वशीभूत होकर हम अपने चित्त को उस स्थिति की ओर खिंच जाते हैं। मनस प्रतिअह है और में स्थायी रूप से बने नहीं रहने देते वास्तव में अहंकार अहं (Ego) है। हमारी आत्मा पंचतत्नां चित्त को बाहर नहीं जाना चाहिए। एक सामान्य तथा उनकी कारणात्मक (Causal) अभिव्यक्ति स्थिति ये है कि में स्वयं को आप लोगों समेत अपने अन्दर पाती हूँ। मैं आप लोगों को नाव पर पंचतत्वों में पृथ्वी और जलतत्व मुख्य हैं और बैठाकर तैराना चाह रही हूँ। परन्तु आप निरन्तर अपना एक पैर पानी में डालकर मेरी इस सहायता में बाधा डाल रहे हो। आपका चित्त पैर दिखाई देता है। सहस्त्रार का खुलना अचानक होता है, झटके के साथ ये खुल जाता वर्णन में किस प्रकार करु? यह एक दूरबीन का है। इसका से घिरी हुई है। कृण्डलिनी इसकी परिधि पर है ज्योत-मात्रा उनका कारणात्मक तत्व है। जब आत्म साक्षात्कार घटित होता है तब देवी देवता जागृत हो जाते हैं और पोषण पाकर तुच्छ चीजों पर है, आदतन आप अपना एक सभी चक्र सशक्त होने लगते हैं। चक्र खुलते है बाहर निकाले रखते है यद्यपि आप ये जानते है और शक्ति प्रसार करने लगते है। मस्तिष्क में कि मैं आपको पार लगाने के लिए अन्दर बैठी बने पीठों पर सभी सम्बन्धित चक्रों में गतिविधि हुई हूँ। मैं भी देख सकती हूँ कि आपकी निकली टाँगा को किसी भी समय कोई मगरमच्छ आरंभ हो जाता है और सभी चक्र संगठित हो निगल लेगा, परन्तु अपनी आदतों के कारण आप मगरमच्छ को देख पाने में असमर्थ हैं । अब क्या आप मेरी चिन्ता की कल्पना कर सकते कुछ और करना चाहता है और आपकी बुद्धि है? कल्पना करें कि मुझे कैसा लगता होगा! यही कारण है कि मैं आपको कहती आत्म साक्षात्कार के पश्चात् शरीर, मन और हूँ कि सत्संग करो, अपने चित्त को मध्य में बुद्धि (मनसा, वाचा, कर्मणा) एक हो जाते हैं। रखने के लक्ष्य से अन्य सहजयोगियों के साथ समय व्यतीत करो। चित्त का निरन्तर मध्य में होना बहुत आवश्यक है। आत्म साक्षात्कार के पश्चात् दिव्य शक्ति को प्राप्त कपड़े को अंगुली पर ऊपर की ओर उठाएं करके हमारी बाई और दाई नाड़ियाँ शान्त हो शुरु हो जाती है। दोनों ही स्तरों पर समन्वय जाते है। अपने मस्तिष्क का एक उदाहरण ले-यह कुछ करना चाहता है। आपका शरीर कुछ और उनमें एकीकरण (समन्वय) नहीं है। कपड़े के टुकड़े का एक ओर उदाहरण लें यह चित्त का प्रतीक है। आत्म साक्षात्कार से पूर्व यह चारों तरफ सभी दिशाओं में फैला होता है। इस 37 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 । 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-38.txt जाती है। तनाव दूर हो जाने के कारण हमारे चैतन्य का अपना ही प्रकाश होता है यह केवल चक्र और अधिक खुल जाते हैं। यह घटनाचक्र मुझे दिखाई देता है। कुछ लोग जिनका अगन्य है। तब कुण्डलिनी के अधिक तन्तु उठ सकते हैं। इस अवस्था में आकर चित्त मध्य में बने रहने का गुण विकसित कर लेता है। तब आप किसी विशेष कार्य को करने के से दूर होते हैं तो आप इसे देख सकते है परन्तु लिए चित्त को निर्देश देते हैं और इस कार्य यदि आप इसमें समाए हुए हो तो क्या देखेंगे ? को करने के पश्चात् विना किसी प्रतिक्रिया के आपके मध्य में यह अपना स्थान ग्रहण कुण्डलिनी अगन्य चक्र को पार कर लेती है कर लेता है। अब तक इसने निर्लिप्सा का गुण प्राप्त करे लिया होता है। मेरी बात कुछ और है। मेरा चित्त यदि है और आपके पूरे शरीर पर छा जाती है। यह आप पर हो तो में आपकी सभी समस्याओं को अपने में खीच लुंगी। उन्हें साफ करके स्वयं चेतना होती है। आप ब्रह्म चैतन्य बन जाते हैं या कष्ट उठाऊँगी। ऐसा मैं चाहूँगी तभी होगा। सहजयोगियों को मैने बिना सोचे समझे अपने शरीर में डाल लिया है। इसलिए मुझे कष्ट उठानां पड़ता है। इस मामले में सहजयोगी दवाव में प्रवेश करके समाधि में न चले जाएं। मापी यन्त्र (Baro metric) सम है। वे मेरी तरह समाधि की यह स्थिति मैंने आपके लिए से कष्ट नही उठाते। कभी थोड़ा बहुत कष्ट हो सकता है क्योंकि जो भी कुछ नकारात्मकता वे तो आप इसे माँगते क्यों है? आपको पता आत्मसात करते हैं वह विशाल सागर में चली होना चाहिए कि आप वहाँ है, इसके विषय जाती है। अब रूस में भौतिक प्रदार्थ के पाँचवें में कोई सन्देह नहीं है। अब यह अन्तिम खेल आयाम पर शोध हो रहा है, जीव बीज (Bio Plasma) पर शोध। यह पूर्णतया दायीं और की सुगम एवं स्वत: है, परन्तु मैं चाहूँगी कि आप गतिविधि है। हर मनुष्य का अपना ही एक इसके लिए परिश्रम करें और प्रयत्न करें। जब परिमल (Aura) है। व्यक्ति के गुणों के परिवर्तन के साथ-साथ ही उस गुण के प्रतिनिधित्व करने प्राप्त करना चाहते हैं तो में कहंगी यह आपका वाले रंग या परिमल परिवर्तित हो जाते हैं। आप स्वार्थपन है और एक प्रकार से आप पलायन वन्धन किस को देते हैं? अपने परिमल को ताकि यह सुरक्षित रहे। केवल भौतिक पदार्थों में होगा। अन्यथा व्यक्तिगत रूप में तो आप निराकार ही परिमल हो सकता है, अतः यह सब भौतिक में खो जाएंगे और मेरे दर्शन भी नहीं कर सकेगे है। पाँचवा आयाम वास्तव में सूक्ष्मदर्शी क्योंकि आप उस अवस्था में चले जाएंगे- सागर (Microscopic) है या हम कह सकते हैं कि में आप विलीन हो जाएंगे। अत: सागर से यह छाया चित्रण (Photographic) आयाम है। विकसित होना या उसमें विलय हो जाना जब आप मेरे फोटो में कोई प्रकाश देखते हैं तो कोई यह परिमल का ही एक रूप होता है। ब्रह्म चक्र खराब होता है वे भी इस प्रकाश को देख सकते है; वे बाह्य से इसे देख सकते हैं। सिद्धान्त ये है कि जब आप ब्रह्म चैतन्य निर्विचार चेतना तभी आती है जब आपकी जब कोई विचार नहीं होता। यह संयम द्वारा आती है। शनै: शने: यह आपका भाग बन जाती एक अवस्था बन जाती है। तब यह निर्विकल्प ब्रह्म चेतन्य की एक अवस्था। अभी आप सबके लिए आवश्यक है कि मेरे लिए कार्य करें, केवल उस अवस्था प्राप्त कर ली है अभी तक आपको दी नहीं। है। वास्तव में इस अवस्था को पाना अत्यन्त आप इसी क्षण, केवल अपने लिए यह अवस्था कर रहे है । सर्वप्रथम आपको सामूहिक होना अद्वितीय या महान कार्य नहीं हैं। सागर से वाष्पीकृत होकर बादल बनना और फिर 38 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-39.txt भावना उत्पन्न हो जाए तब यह रोग घटित होता मेरा यही लक्ष्य है और यही खेल। जिस तरह है या किसी दुर्घटना या अचानक आधात के से हर खेल का कोई लक्ष्य होता है वैसे ही मेरे परिणाम स्वरूप भी यह रोग हो सकता है। उपचार : चित्त को मध्य (सहस्नार) में लाएं। केन्द्र में बने रहने के लिए शरणागत ऐसा करने के लिए गायत्री मन्त्र कहकर चित्त की पहले दाई ओर को लाएं और फिर ब्रह्मदेव कुछ हैं, कृपा करके सभी कार्यों को कीजिए। सरस्वती का मन्त्र उच्चारण करते हुए चित्त को मध्य में ले जा आए। दाई ओर चित्त के आते ही वैज्ञानिक मस्तिष्क के लोगों को आप यह आपको चैतन्य लहरियाँ आने लगेंगी। चैतन्य लहरियों के आते ही मन्त्र बोलना बन्द कर दं अत्यथा आप बहुत अधिक दाए के चले जाएगे (आक्रामक हो जाएंगे) जिससे चैतन्य लहरियाँ कम हो जाएँगी। उदाहरण के रूप में श्री जालान हैं। लोगों को सहजयोग का परिचय देतें हुए के माताजी का ये रोग उीक हो गया। इसके लिए बाएं और दाएं में पूर्ण सन्तुलन करना आवश्यक जब वे आ जाएं तो उन्हें देखें। समय को सदा होता है। चैतन्य लहरियों का आना बहुत आवश्यक याद रखें आप सबके साथ भी ऐसा ही हुआ है। है चैतन्य लहरियाँ बदि नहीं आ रही हैं तो पहले आपने इसको अनुभव किया और फिर बार-बार कुण्डलिनी को उठाएं ताकि चैतन्य सब पर वर्षा करना अद्वितीय उपलब्धि होगी। खेल का भी कोई लक्ष्य है। हो जाइए। कहिए, "श्रीमाताजी आप ही सभी यही पूर्ण समर्पण है। विद्या धोरे-धीरे दें। जितना यड़ा घड़ा हो उसके अनुसार ही उसे भरा जाता है। अतः धेर्य रखें। एकदम पूरी सागर आप उहे नहीं दे संकते। याद रखे कि विज्ञान विराट का एक छोटा सा अंश सर्वप्रथमें उनमें सहजयोग की इच्छा पैदा करें। इसको अधिक से अधिक पाने की आकांक्षा लहरियाँ आने लगें| की। यह प्रक्रिया भी बैज्ञानिक है। एक अन्य अच्छा तरीका ये भी है कि संसार में धनार्जन के लिए जब आप बायाँ हाथ श्रीमाताजी की फोटोग्राफ की तरफ कार्य करते है तो भी आपको माया का सामना करके दायों हाथ जमीन पर रखकर महाकाली का मन्त्र कहें ताकि चैतन्य लहरियाँ बहने लगे। धनार्जन कर रहे हैं। बस। आगे बढे और जितना पीठ के बाई ओर मोमबत्ती (अग्नि ) जलाकर उपचार करें। ऐसा करना काफी सहायक होगा। यह उपचार विधि कैंसर एवं मनोदैहिक आपके माध्यम से जो लोग सहजयोग में रोग में भी लाभकारी है। मास पेंशियों की आते है बह मेरे द्वारा लाए गए सहजयोगियों से समस्याएं भी इससे ठीक हो सकती हैं। श्री कहीं अच्छे बन जाते है। मेरे साथ रहकर वे गणेश तत्व बिगड़े होने के कारण महिलाओं में माया में फँस जाते हैं। नए लोगों के लिए मेरा हिस्ट्रेकटोमी (Hysterectomy) के मामलों में जहाँ गर्भाशय निकाल दिया जाता है वहाँ भी श्री गणेश तत्व की समस्या होती है तथा भय भी इसका कारण होता है। किसी महिला को यदि सन्तान नहीं होती तो बाएँ स्वाधिष्ठान की समस्या इसका कारण हो सकती है। पराअनुकम्पी (Para Sympathetic) में समस्या होने के कारण महिलाओं को बहुत अधिक रक्त स्राव हो सकते करना पड़ेगा। याद रखें कि आप मेरे लिए चाहे धनार्जन करें। आपके भौतिक साम्थ्य के लिए में ये बात कह रही हूँ। मानव रुप कुछ विशेष नहीं है। रोग निदान मिर्गी रोग : कारण :- चित्त का अत्याधिक वाई और को चले जाना। इसके कारण व्यक्ति सामूहिक अवचेतन अवस्था में चला जाता है। दुर्बल या बाई ओर के व्यक्ति होने के कारण जब मस्तिष्क में भय की 39 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-40.txt करता। " यह आपके विचारों को संयमित करेगी। ध्यान करने से पूर्व सबके लिए आवश्यक है कि अपने बाएँ, दाएँ को शुद्ध करें। ध्यान से पूर्व है। आन्त्रशोध एवं बहु-मूत्र की समस्या भी हो सकती है। उपचार : अपनी बाई तरफ को विकार मुक्त करें साथ ही आवश्यक दवा भी लें। अजवाइन कुण्डलिनी अवश्य उठाएँ। पूजा में वैठते समय की धुनी भी आप ले सकते है। कटिवेदना (Lumbago) के लिए अजवाइन का पानी दिया जा सकता है। मासपेशियों के दर्द के लिए अजवाइन ली जा सकती है और गैरू का लेप (Right Sided) होते हैं। उन्हें भक्ति-भजनों द्वारा किया जा सकता है। Lumbago में हड्कियाँ मुड़ मुझे अपने हृदय में बिठाना चाहिए अर्थात बाई जाती है। इसके लिए चैतन्यित मिट्टी का तेल किसी अन्य तेल में मिला कर मालिश करें। कुछ ही दिनों में ये ठीक हो जाएंगी| किसी भी शक्ति भी दोनों ओर से मध्य नाड़ी पर ही कार्य तरह के उपचार के लिए सभी कुछ आपकी इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है। अत: ईड़ा है। बाएँ और दाएँ के मन्त्र भी कुण्डलिनी उठाने नाड़ी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आपमें शुद्ध के लक्ष्य से बोले जाते हैं । इच्छा जागृत करती है। गलत इच्छाओं का होना हानिकारक हो सकता है। गलत इच्छा से यदि से तथा गायत्रीमंत्र कहने से भी बाई और के आप कार्य करेंगे तो सभी कुछ मशीनीकृत और पाखंड बन जाएगा। उत्थान की इच्छा ही शुद्ध है। मशीन की तरह से न बने रहें। उन्नत होने की आपकी इच्छा शुद्ध होनी चाहिए। आर्य समाज से आए हुए व्यक्ति मूलतः आक्रामक प्रवृत्ति के और को आना चाहिए। मन्त्र बोलते समय चित्त मध्य चक्रों पर रखें। महाकाली और महासरस्वती करती हैं और इस प्रकार अन्त: सम्बन्धित होती दाई ओर को उठाकर बाई ओर के डालने विकार दूर करने में सहायता मिलती है परन्तु इनका प्रभाव अत्यन्त सीमित है। मैंने जब आपको ठीक करना होता उठाकर में इस कार्य को करती हूँ और इससे पूर्व की आप दूसरी ओर को अधिक झुक जाएं समय पर संभाल कर में इसे नियन्त्रित करती हूं। यह पूरी तरह से नियन्त्रण में है। इसे नियन्त्रित न कर पाने के कारण लोग भटक जाते हैं। कुछ राम- राम- राम कहे जाते हैं और कुछ पाँडू रँगा पाँडुरँगा और इस प्रकार बाएँ या दाएँ में जाकर खो जाते हैं । माँ अब आप सबसे पूछ रही है-"तुम्हारा चित्त कहाँ है?" पहले भक्ति भाव आना चाहिए और भक्ति भाव से श्रद्धा भाव में चला जाना है तो आपकी कुण्डलिनी आपमें यदि पुत्र प्राप्ति आदि की स्थूल इच्छा है तो इच्छा पूर्ण होने के पश्चात् भी कोई और इच्छा इसका स्थान ले लेगी इस प्रकार आप पाखण्ड में फँसते चले जाएंगे। शुद्ध इच्छा में आपको सभी कुछ एकदम प्राप्त हो जाएगा। शुद्ध इच्छा करने से ही आपका उत्थान होता है। इच्छा शक्ति के प्रति आपका दृष्टिकोण ही मुख्य चीज है। आप क्रिया शक्ति को लें। इसके दो पक्ष है- शारीरिक और मानसिक। निर्विचार समाधि प्राप्त करने के लिए शारीरिक रूप से बैठकर आपको ध्यान करना होगा और मानसिक रूप से देखना होगा कि आपका मस्तिष्क सांसारिक स्थूल की ओर न दौड़े। आप प्रार्थना करें कि, "श्रीमाताजी आप ही सभी कुछ करती है, मैं कुछ नहीं इच्छाएं चीजों आवश्यक है। ( श्रीमाताजी से वार्ता का शेष भाग वर्ष 2000 के अंक 1 2 में पढ़ें।) 40 चेतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 11 & 12, 1999 1999_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-42.txt JAI SHRI MATAJI