भ चैतन्य लहरी खंड : 12 अंक 1 व 2 2000 १ हैं सर्वप्रथम आपको देखना चाहिए कि क्या आप शान्त है? क्या आपके इदय में शान्ति है? आपके हृदथ में यदि शान्ति नहीं है तो आप सहबयोगी नहीं हैं यदि आप उत्तेजित हो जाते हैं और लोगों पर चिल्लाने लगते हैं तो इसका अर्थ ये है कि आप सहजयोगी नहीं है। आपका स्वभाव अत्यन्त शान्त होना आवश्यक है - अत्यन्त महत्वपूर्ण। परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी www. इस अंक में सम्पादकीय 1 स्वागत समारोह गुरुनानक जन्मदिवस 1999 6. परम पूज्य श्री माताजी और डा0 तलवार के बीच हुई वातलाप का शेष भाग 11 17 एकादश रुद्र पूजा- 1984 आदिशकि्ति पूजा-20.6.99 25 32 -1.8.99 गुरु पूजा श्री कृष्ण पूजा-क्बेला - 5-9-99 42 : योगी महाजन सम्पादक वी जे नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार नई दिल्ली-110067 सम्पादकीय विश्वभर के सहजयागी नव-सहस्राब्दि के शुभ उपयोग करने के योग्य हो जाते है। इसके आरम्भ को बड़े जोश के साथ मना रहे हैं। 'नव के साथ सदैव उत्साह जुड़ा होता है परन्तु भी योग्यता आ जाती है और हम समझते हैं कि इसका महत्व प्रायः आच्छादित हो जाता है किस प्रकार कार्य को करना है। परमेश्वरी माँ क्योंकि अंधेरे में तो केवल परछाईयाँ ही दिखाई की कृपा से हम सभी अशुभ प्रयत्नों को दूर देती है और परछाईयाँ कभी सत्य नहीं होती। करके उन्हें प्रभावहीन कर देते हैं। दिव्य प्रेम की युद्यपि अधिकतर लोग सोचते है कि कुछ महान नवचेतना से हमारी शुद्ध इच्छा व्यक्तिगत और घटना घटित हो रही है, परन्तु वे नहीं जानते सामूहिक समस्याओं का हल खोजने में सक्षम साथ-साथ हममें कुटिल मनसूबों को देखने की कि ये क्या है। हो जाती है क्योंकि हमारा ज्योतित चित्त उनमें नई सहस्राब्दि की विशिष्टता ये है कि श्री प्रवेश कर जाता है। केवल इतना ही नहीं, हमने आदिशक्ति अवतरित हुई हैं और साक्षात् हमारा बार-बार अनुभव किया है कि परम-चैतन्य कदम-कदम पर हमारी सहायता के लिए आता पथ-प्रदर्शन कर रही हैं। मानव चेतना में प्रवेश करके प्रेम की शक्ति ने संकेन्द्रित लहरियों के है और पंचतत्वों को हमारी सहायता के लिए उपलब्ध करता है। इससे यह स्पष्ट हो जाता उदय के साथ विश्व रूप में मानव जीवन के सभी पक्षों का विस्तार किया है। प्रेम की शक्ति की सहायता से है कि नई सहस्प्रब्दि के पुनरुत्थान हुआ है और हमने सामूहिक चेतना स्वतन्त्र, अरकेला या विलग न होकर अपनी का अनुभव किया है इस अनुभव ने हमें सृष्टा की पूर्ण देख-रेख और सुरक्षा में स्थित 'पूर्णसत्य के ज्ञान तक पहुँचाया है। सच्चे ज्ञान के प्रकाश में ये स्पष्ट हो गया है कि हमारे जीवन का लक्ष्य या उद्देश्य श्री आदिशक्ति के हैं। इसमें घटित होने वाली सभी घटनाओं को श्री आदिशकिति देख रही है और हमारी सारी गतिविधियों को वे जानती है। माध्यम बनकर उनके प्रेम को प्रतिबिम्बित करना है। पुरातन ग्रन्थों में वर्णन किया गया है कि 'देवी श्री आदिशक्ति ने हमे संकीर्ण व्यक्तिगत स्वार्थी की दृष्टि मात्र यदि किसी पर पड़ जाए तो वह मानव से असीम सामूहिक मानव में परिवर्तित भी धन्य है, और आज तो विश्व पर उनकी महान कृपा वर्षा हो रही है। उनकी प्रेम की आदर्शों को देखकर सामूहिक हित में उनका शक्ति से हमने बहुत से मरुस्थलों को लहलहाते कर दिया है। अपनी वृहत् दृष्टि से हम सामूहिक tic