हिन्दी आवृत्ति चैतन्य लहरी मार्च-अप्रैल- 2000 अंक 3 & 4 खण्ड - XII निर्विचार चेतना में कोई भी आपको छु नहीं सकता, यह आपका किला है। ध्यान धारणा द्वारा हमें निर्विचार चेतना स्थापित करनी चाहिए। इससे पता चलता है कि हम ऊँचे उठ रहे हैं। ध्यान करते हुए देखना चाहिए कि क्या आपको निर्विचार समाधि की अवस्था प्राप्त हुई? यह अवस्था आरम्भिक (Minimum of minimum ) स्थिति है। परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी एकादश रुद्र पूजा 1984 श्री आदिशक्ति का आह्वान हे परमेश्वरी माँ अपने असीम प्रेम, करुणा एवं हितेच्छा के कारण. दिव्य लोक से अवतरित हुई आप भूलोक में। ब्रह्माण्ड का सृजन करने वाली अपार हैं आपकी महान शक्तियाँ। इतनी पूर्ण है आपकी पूर्णता कि जिसका अस्तित्व है, धा या होगा. या रहंगी सदा जो अस्तित्व में निहित हैं वे सभी आपक वर्णनातीत अस्तित्व में इसके बावजूद भी हे परमेश्वरी माँ, करने के लिए अभिव्यक्ति अपने अगाध प्रेम की पथ-प्रदर्शन हमारा करने के लिए मानव रूप आपने धारण किया सुरक्षा एवं मोक्ष हमें देने के लिए सर्वशक्तिमान पूर्णातिपूर्ण सभी कुछ स्वयं में समाहित किए आप हैं फिर भी हे प्रेममुर्ति माँ अपने बच्चों के हित के लिए श्री चरणों की पूजा करने का अधिकार कृपा कर आपने उनको दिया शुभ अवसर पर आपके 77वें जन्म पर्व के नेतमस्तक हो विश्व भर के सभी सहजी बच्चे आमन्त्रित करते हैं आपको दिल्ली शहर। कृपा करें आशीष वृष्टि करें यहाँ पधार कर नतमस्तक आपके समस्त सहजी बच्चे। he अंक में इस पृष्ठ नं. सम्पादकीय 1. श्री गणेश पूजा कबैला (25.9.99) 2. नवरात्रि पूजा कबैला (17.10.99) 14 3. श्री आदिशक्ति की चौसठ शक्तियाँ 23 4. श्री माताजी की कनाडा यात्रा (1999) 27 5. 32 उद्धारक स्वस्तिक 6. 36 श्री हनुमान पूजा प्रवचन-3। अगस्त 1990 7. सहजयोग विश्व कंन्द्र 42 8. योगी महाजन सम्पादक विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067। अभिनव प्रिन्ट्स, दिल्ली 34, फोन : 7184340 मुद्रक লি. ले. सम्पादव ्र गणपति पुले 1999 महान कवि रविन्द्र नाथ टैगोर ने दिव्य स्वप्न देखा था कि "भारत के तट पर सभी शान्त हो गए थे और उनके प्रेम की शक्ति का जातियों के लोग माँ का अभिषेक करने के लिएसाम्राज्य चरम पर था। उनकी प्रेम लहरियाँ हमें श्रद्धेय साम्राज्ञी के सम्मुख चुलबुले मस्तिष्क On the shores of Bharata, men उस अद्भुत तट पर बहाकर ले गई जहाँ हम भूल जाते हैं कि "हम क्या हैं? कहाँ से आए of all races shall meet to anoint the "Mother" हैं? हमारे शरीर में क्या कष्ट हैं?" गणपति पुले समुद्र तट पर एकत्र होकर हर रात्रि स्वर्गीय दावत थी। जिसमें हमने सहजयोगी इस भविष्यवाणी को सत्य साबित दिव्य संगीत की मदिरा का जी भर के पान करते हैं। नव सहस्राब्दि के उदय की पूर्व संध्या किया और इनकी गुंजन का आनन्द लेने के पर श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देवी के लिए स्वप्नों में भी जागते रहे। हर सुबह. प्रेम के चरण कमलों का अभिषेक करने के लिए विश्वभर की भिन्न जातियों तथा रंगों के दस हजार से भी हमें पहले कभी न मिलা था, ऐसा प्रेम जिसकी अधिक लोग गणपति पुले एकत्र हुए। परमेश्वरी कोई सोमा न थी, परन्तु जो हमारे लिए आनन्ददायी माँ के चरण कमलों पर हृदय-पुष्प-पंखुड़ियाँ आश्चर्य ले कर आया। हम इतने आनन्द मग्न अर्पण करने के लिए सभी हृदय खुल गए। करुणामयीं माँ ने सभी हृदय अपने प्रेम से सराबोर कर दिए और दस हजार पंखुड़ियाँ कहीं पुनः हम स्वयं को खो न दें? नए उपहार का बचन लेकर आई, ऐसा प्रेम जो एवं आश्चर्य चकित थे। इससे पूर्व हम कहां सोए हुए थे? परन्तु एक बार स्वयं को पाकर आदिशक्ति के एकमात्र प्रेम कमल के रूप में खिल उठीं। परमेश्वरी माँ से प्रसारित होने वाली गहन शान्ति सभी हृदयों की गहराई में प्रवेश कर गई और इन्हें शान्त कर दिया। इस दिव्य मौन में समुद्र की लहरों के संगीत के अतिरिक्त कुछ विशेष न रहा। मानो ये लहरें उछल कर श्री नि:सन्देह हम उस अदुभुत तट से लौट आए हैं। परन्तु उनकी ( श्री आदिशक्ति) मधुर सुगन्ध अब भी हमारे हृदयों में बनी हुई है। उन्हें हम अपने पूजा-स्थल पर, अपने स्वप्नों में अपने हृदयों में, अबोध मुस्कान में, एक-दूसरे में देखते हैं। आदिशक्ति के चरण-कमलों को धोने के लिए उनके समीप आना चाह रही हों। हम जिधर भी देखें माँ ही माँ नजर आएं। चैतन्य लहरी 3 खंड : XIl अंक : 3-4, 2000 श्री गणेश पूजा कबैला 25.9.99 परम पूज्य मातार्जी श्री निर्गला देवी का प्रवचन आज हम यहाँ श्री गणेश की पूजा करने के लिए एकत्र हुए हैं। आप सब जानते हैं कि कार्य में आप सब अत्यन्त व्यस्त हैं और वे कितने शक्तिशाली देवता हैं। अबोधिता उनकी सभी शक्तियों का स्रोत है। नन्हें शिशुओं को जब हम देखते हैं तो स्वतः ही उनकी ओर खिंचे कार्य कर रहे हैं । परिणामस्वरूप श्री गणेश चले जाते हैं। उन्हें प्रेम करना चाहते हैं, चूमना उपेक्षित हो जाते हैं और ऐसा व्यक्ति या तो चाहते हैं और उनके साथ रहना चाहते हैं। वे आप सब का जीवन अत्यन्त व्यस्त है। अपने आवश्यकता से अधिक कार्य करते हैं। आप समझते हैं कि आप परमात्मा का बहुत बड़ा पा अत्यन्त शुष्क हो जाता है या अपने में अत्यन्त अत्यन्त अबोध होते हैं, अत्यन्त निष्पाप। श्री आसक्त। दो में से एक चीज अवश्य हो जाती है गणेश की पूजा करते हुए हमें देखना चाहिए कि और व्यक्ति को पता भी नहीं चलता कि वह किस ओर जा रहा है। सहजयोग में आपको मध्य में बनाए रखने के लिए एक ही चीज है-श्री गणेश की पूजा। श्री गणेश की पूजा क्या हम वास्तव में अबोध हैं या नहीं। आजकल लोग अत्यन्त चालाक हो गए हैं, चालाकी की कोई सीमा वो नहीं जानते अर्ोध एवं सहज लोगों के साथ वे सभी प्रकार की चालाकी का से आप सदैव मध्य में रह सकते हैं तथा आपके दाई ओर के सभी रोग भी श्री गणेश खेल खेलते रहते हैं। सदैव स्वयं को न्यायोचित्त ठहरा सकते हैं कि जो भी कुछ वो कर रहे हैं की पूजा इस आधुनिक युग में वह सब ठीक है क्योंकि आज सभी लोग चालाक हैं। यह चालाकी आपको दाई ओर के पतन की खाई तक ले जा सकती है। यह स्थिति अत्यन्त दण्डनीय है क्योंकि, इसके कारण लोगों को भिन्न प्रकार के शारीरिक रोग हो जाते हैं। उनके से ठीक हो सकते हैं। लोग श्री गणेश की पूजा भिन्न विधियों से करते हैं, परन्तु उन्हें स्मरण करने का एक सुगम तरीका ये है कि उनके ( श्री माताजी के) फोटोग्राफ के सम्मुख बैठकर उनसे चैतन्य लहरियाँ प्राप्त करें। स्वयं को सन्तुलित करने की यह सर्वोत्तम विधि है। आपके जीवन में बहुत हाथों या पैरों को लकवा भी मार सकता है, सी चिन्ताएं और संघर्ष हैं। श्री गणेश इन सब उन्हें ज़िगर आदि के रोग भी हो सकते हैं। चिन्ताओं और संघर्षों को निष्प्रभावित कर सकते यह सब हो सकता है। उन्हें दण्डित करने के हैं अबोध होते हुए भी वे अत्यन्त चतुर हैं और जब वे आपके पास आते हैं तो आप आश्चर्यचकित सकता है। ऐसी समस्याएं उत्पन्न होने की हो जाते हैं कि किस प्रकार वे कार्य करते हैं और स्थिति में, जब लोग दाई ओर के विकारों के किस प्रकार आपकी सभी चिन्ताओं तथा बाधाओं कारण कष्ट उठाते हैं तब उन्हें श्री गणेश की को दूर करते हैं । तो सीधे होते हुए भी हमारे लिए लिए एक मनोदैहिक प्रकार का रोग भी आ पूजा करनी चाहिए। उदाहरण के रूप में आजकल ये महत्वपूर्णतम देवता हैं। चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 3-4, 2000 4 न मूलाधार चक्र बहुत ही जटिल है, किसी भी संकट की स्थिति में यह छोटे-छोटे सभी चक्रों में से जटिलतम, क्योंकि मैं रोग प्रतिकारक सूचना देते हैं वे मस्तिष्क को सोचती हूँ, इसमें बहुत से मार्ग हैं और बहुत से कक्ष जो, हम कह सकते हैं, हर समय चैतन्य लहरियाँ छोड़ते हैं और शान्त करते है। तो जब भी कोई समस्या होती है या हम रहते हैं। अत: स्थिर होने के लिए आपको किसी कष्ट में फँस जाते हैं तब उरोस्थि में चाहिए कि पूर्णतः श्री गणेश के प्रति समर्पित प्रदोलन (Viberation ) होने लगता है और गणों हो जाएं। जैसा मैंने बताया श्री गणेश ईसा मसीह के जाती है। चिकित्सा विज्ञान ने इन गणों को रोग रूप में अवतरित हुए। वे अत्यन्त अबोध व्यक्ति प्रतिकारक ( Anti bodies) नाम दिया है। तब ये थे यदि वे अबोध न होते तो उन्हें सूली पर न लटकाया जा पाता। परन्तु दूसरों की चालाकियाँ सकते हैं। ये जानते हैं कि कष्टों पर निशाना देख पाने की चुस्ती उनमें न थी। उनके अपने शिष्यों ने उन्हें धोखा दिया। धोखा देने वालों को जाए। व्यक्ति सोचता है कि ये गण केवल वो जानते थे फिर भी उन्होंने उनका नाम नहीं शारीरिक रोग की स्थिति में ही सहायक होते हैं लिया। आप यदि उनके जीवन पर दृष्टि डालें परन्तु मानसिक रूप से अशान्त तथा मानसिक तो आप जान जाएंगे कि यह पावन सौन्दर्य से रोगियों की भी ये गण सहायता करते हैं। परिपूर्ण है। वे इतने पावन हृदय व्यक्ति थे. उनका व्यक्तित्व इतना सुन्दर था कि जहाँ भी ये गण इतने कुशल हैं कि कभी-कभी तो हमें उन्हें कोई बुराई दिखाई दी वे उससे लड़ने के आश्चर्य होता है कि किस प्रकार चीजें कार्यान्वित लिए खड़े हो गए। श्री गणेश भी ऐसे ही हैं। श्री गणेश के आशीर्वाद हम सब लोगों के घटित होता है। किसी व्यक्ति कों किसी बच्चे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि हमारे चोट खाने को। बच्चे के माता-पिता रोना शुरू कर देते हैं%; की या संकट रोग आदि में फँसने की संभावनाएं माँ को पुकारते हैं; और माँ, जो कि दुर्गा हैं, तब बहुत अधिक हैं। वे संकट-विमोचन कहलाते हैं, चमत्कारिक रूप से बच्चा ठीक हो जाता है। वे अर्थात् जीवन की बाधाओं को दूर करने वाले। कहते हैं कि चमत्कार हो गया। आपके जीवन में आपमें से बहुत से लोगों ने अनुभव किया होगा भी ऐसे बहुत से चमत्कार हुए होंगे, इनका वर्णन कि किस प्रकार भिन्न कष्टों और बाधाओं में संकट की सूचना देते हैं। उरोस्थि (Sternum Bone) के नीचे श्री दुर्गा का निवास या सिंहासन के रूप में इन रोग प्रतिकारकों को सूचना मिल गण आक्रमण करते हैं। ये निशाना भी लगा लगाकर इन पर आक्रमण किस प्रकार किया अपनी समस्याओं का समाधान करने में हो रही हैं। उदाहरण के रूप में, मान लो कुछ प्रा। आप नहीं कर सकते। परन्तु ये सब श्री गणपति के गणों के कारण है। ये गण भी उन्हीं की तरह तथा अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में वे आपके सहायक बने। वे गणपति हैं अर्थात् गणों के से नन्हें हैं परन्तु वो बहुत ही चुस्त एवं गतिशील स्वामी और कार्यों को भली-भांति करना उनकी हैं ये कभी सोते नहीं। जब भी कभी कोई शैली है। जैसा मैंने आपको बताया, ये गण हमारे अन्दर रोग प्रतिकारकों के रूप में स्थापित हैं। हैं। यह बात अविश्वसनीय है कि किस प्रकार संकट आता है तो ये गण जाकर समस्या पर आक्रमण करते हैं और उसका समाधान खोजते चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4, 2000। वे कार्य करते हैं और किस प्रकार सूचना आपके आशीर्वाद से ही यह सब घटित हुआ पहुँचाते हैं। इस प्रकार की घटनाओं के मैं आपको बहुत से उदाहरण दे सकती हँ। उदाहरण के रूप में, हमारे एक आश्रम में, अमरीका में है।" क कुछ सीमा तक मैं कहना चाहुँगी कि ऐसा होता है, परन्तु यह सब श्री गणेश के कारण एक बच्चा तरणताल में डूब गया था, सभी लोग है। तरणताल में कूद रहे थे। मुझे तरणताल का विचार कभी भी अच्छा नहीं लगा क्योंकि तरणताल में बच्चे गिर सकते हैं। तो एक बच्चा इस श्री गणेश का एक अन्य गुण यह है कि वे माँ के प्रति आज्ञाकारी हैं। यहाँ तक कि वे शिव को भी नहीं पहचानते, विष्णु या किसी अन्य को भी नहीं। उनके लिए उनकी माँ ही तक पानी के अन्दर रहा। कोई न जानता था कि सभी कुछ है। माँ के लिए वे अपने पिता शिव वह कहाँ है। तब उन लोगों ने उसे ढूंढने का से भी युद्ध कर सकते हैं, किसी से भी लड़ सकते हैं क्योंकि उनके लिए माँ के प्रति पूर्ण आज्ञाकारिता, पूर्ण चुस्ती ही महत्वपूर्ण है तुरन्त श्रीमाताजी कृपा करके इस बच्चे को बचा लीजिए। वे जान जाते हैं कि माँ की इच्छा क्या है और उसे कार्यान्वित करते हैं । अन्यथा उनकी शैली अत्यन्त निष्कपट है, सहज है और बाल-सुलभ तरणताल में गिर गया और 15 से 20 मिनट प्रयत्न किया और उसे पानी में पड़ा हुआ पाया| व सब घबरा गए और प्रार्थना करने लगे कि हैरानी की बात है, मैं कभी किसी आश्रम में टेलिफोन नहीं करती, वहाँ के पते भी मैं नहीं जानती। परन्तु उस दिन मेंने एक नम्बर पर टेलिफोन करने के लिए कहा। मैं किसी के नम्बर भी नहीं जानती। जब मैंने टेलिफोन किया है। पूरन्तु उनके कार्य बहुत बड़े-बड़े हैं। ये गण भी बहुत महत्वपूर्ण लोग हैं, बहुत ही अबोध हैं फिर भी जब उन्हें किसी कार्य को करने किसी समस्या को सुलझाने, के लिए कहा जाए तो वे बहुत चुस्त हैं। बहुत ही तीव्रता से वे कार्य करते तो एक अगुआ (Leader) आया, मैंने उसे बताया कि में जानती हूँ कि बच्चा पानी में गिर गया है। परन्तु वह बच जाएगा। किसी ने मुझे हैं। उसके विषय में कुछ न बताया था। आप चिन्ता एक अन्य गुण जो श्री गणेश में है वो ये कि वे चरित्रवान लोगों का सम्मान करते हैं-जिनके जीवन में पावित्र्य ही मुख्य चीज़ है। पावित्र्य का वे बहुत सम्मान करते हैं । केवल महिलाओं में लहरियों से उसका इलाज हुआ और आज वह ही नहीं, पुरुषों में भी वे चाहते हैं कि पावित्र्य बच्चा पूरी तरह से ठीक है, जबकि डॉक्टर ने सदैव बना रहे। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् आपको भी पूर्णत: पवित्र हो जाना चाहिए। आपकी आँखें उल्टे सीधे ढंग से युवा महिलाओं (Coma) की स्थिति में। इस बार जब मैं को या युवा पुरुषों को फुसलाने में नहीं लगी रहनी चाहिए ताकि आपका पावित्र्य न विगड़े। आपकी दृष्टि भी पवित्र होनी चाहिए, आपके मुझे बताते हैं, "श्री माताजी ये आपकी कृपा है, विचार भी पवित्र होने चाहिए। इसके लिए न करें, वह बच्चा पूरी तरह से ठीक हो जाएगा। तब वे बच्चे को लेकर आए। बच्चे का इलाज डॉक्टर ने भी किया, परन्तु वास्तव में चेतन्य कहा था कि यह बच्चा बचेगा नहीं और यदि बच भी गया तो वह मृतपाय होगा, सदैव बेहोशी अमरीका गई तो इस बच्चे से मिली। तो इस प्रकार की बहुत सी घटनाएं होती हैं और लोग चैतन्य लहरी 6. खंड : XII अंक : 3-4, 2000 आपको चाहिए कि आप अन्तर्दर्शन करें करते हैं । तो पृथ्वी माँ में भी समझने की शक्ति और स्वयं अपनी गलतियों को देखें कि है। हाल ही में बहुत से भूचाल आए आप आपने क्या गलतियाँ की हैं और किस जानते ही हैं, तुर्की में, ताइवान में। परन्तु एक भी प्रकार का अनैतिक व्यवहार किया है। आपको सहजयोगी इन भूचालों में नहीं मरा। श्री गणेश स्वयं को ठीक करना होगा और श्री गणेश उनकी रक्षा करते हैं । उनमें विवेक बुद्धि से क्षमा माँगनी होगी आप यदि क्षमा मांगेंगे जिससे वे केवल ऐसे लोगों को नष्ट करते हैं जो तो वो किसी भी अपराध के लिए क्षमा दे सकते हैं। वे इतने अबोध हैं इतने सुन्दर हैं कि वे आपको क्षमा कर देते हैं। परन्तु ऐसा है पृथ्वी माँ की तरह से वो भी चुम्बकीय है करना बहुत महत्वपूर्ण है। हमारी सारी नैतिकता और लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं । का आधार पावित्र्य है। हमें अत्यन्त पवित्र होना जिस प्रकार बच्चों के प्रति लोग आकर्षित होते चाहिए। बहुत से धर्म आए और उन्होंने पावित्रय की बात की, परन्तु अब ये ध्र्म बेकार हो गए हैं। उनका कोई आधार नहीं रहा। धर्म के विषय उनके अन्दर मौजूद है। में जो कुछ भी शास्त्रों में लिखा गया है ये उसे कार्यान्वित नहीं करते। सभी प्रकार के उल्टे में भी होता है। कुछ पशुओं में भी होता है, परन्तु सीधे कार्य ये करते हैं और फिर स्वयं को हिन्दू, चरित्रहीन हैं। चरित्रहीन से लोगों को उन्होंने बहुत नष्ट कर दिया है। उनमें पृथ्वी माँ की शक्ति भी हैं उसी प्रकार सुगमता से श्री गणेश की ओर भी आकर्षित हो जाते हैं। तो यह चुम्बकीय शक्ति आप हैरान होंगे कि यह चुम्बक पक्षियों पक्षियों में ये विशेष रूप से विद्यमान है और यही कारण है कि वे वाछित दिशा में जा सकते मुसलमान, इसाई और सभी प्रकार के धर्म कहते हैं। वास्तव में धर्म पूरी तरह से असफल हो गए हैं और यही कारण है कि श्री गणेश उनके पीछे हैं। पक्षी साइबेरिया से उड़कर आस्ट्रेलिया तक चले जाते हैं। किस प्रकार वे ऐसा कर पाते हैं? पड़ गए हैं। एक अन्य खूबी श्री गणेश की यह है कि उनका सृजन पृथ्वी माँ से हुआ है वे पूर्णत: पृथ्वी माँ द्वारा बनाए गए हैं। इसलिए वे किसी भी देश के उन लोगों को पसन्द नहीं करते जो जाते हैं। पुनः वे उसी स्थान पर वापिस आ मछलियों में भी यह गुण होता है। पहाड़ों से आने वाले जल में मछलियां मिलती हैं; कुछ समय के लिए वे मैदानों पर आ जाती हैं फिर परमात्मा जाने किस प्रकार वे अपने स्थान पर काला जादू करते हैं या जो रूढ़िवाद को बढ़ावा वापिस पहुँच जाती हैं। ऐसा तभी सम्भव होता दे रहे हैं, या उन लोगों को जो चरित्रहीन हैं। ऐसे लोगों के लिए वो समस्याएं खड़ी करते हैं। तब क्या होता है? श्री गणेश पृथ्वी माँ को कहते हैं कि भूचाल लाओ। जिन स्थानों पर पावित्र्य का साँप साँप ही रहेगा और कुत्ता, कुत्ता और शेर, सम्मान नहीं होता वहां भूचाल आते हैं तथा ऐसे स्थानों पर भी जहाँ लोग रूढिवादी हैं या जहाँ लोग काले जादू की पूजा करते हैं। माँ के माध्यम से श्री गणेश ऐसे लोगों पर आक्रमण जब दिशा का ज्ञान हो। पक्षियों में दिशा ज्ञान होता है, वे दिश को जानते हैं और अपने गुणों के अनुसार चलते हैं। उदाहरण के रूप में एक शेर ही रहेगा। परन्तु मनुष्य के अन्दर सम्भवत: सारे ही पशु विद्यमान हैं। मनुष्य कोई भी रूप धारण कर सकता हैं, उसके विषय में आप कुछ नहीं कह सकते। वह इतना चालाक हैं कि 7. चैतन्य लहरी ।खंड : XIl अंक : 3-4, 2000 स्वीकार भी नहीं करता कि वह पशु रूप धारण आश्रम को छुआ तक नहीं। एक भी सहजयोगी करता है। परन्तु जब वह इस प्रकार का कोई को हानि नहीं पहुँची। श्री गणेश और उनके गणों रूप धारण करता है तो आप हेरान हो जाते हैं द्वारा इस प्रकार की सुरक्षा प्रदान करना वास्तव में प्रशंसनीय है। अत: हमें उनके गणों का कि मानव होते हुए भी इतने निम्न स्तर पर वह कैसे जा सकता है। इसका कारण ये हैं कि उन्होंने जीवन में श्री गणेश का सम्मान नहीं देखना है कि वे हमारे अन्दर चहूँ ओर विद्यमान किया। इसलिए वे किसी भी निम्न स्तर पर या किसी भी स्थान पर जा सकते हैं। सम्मान करना चाहिए। अत्यन्त महत्वपूर्ण बात ये हैं और गतिशील हैं वे हमें देखते हैं कि हम किस प्रकार के व्यक्ति हैं और यदि अपने एक अन्य उदाहरण में आपको देती हूँ। कदाचरण द्वारा हम श्री गणेश को अपने अन्दर भारत में लातूर में एक भयंकर भूचाल आया। में श्री गणेश उत्सव का यह चौदहवां दिन हमें हमारी सामान्य स्थिति में लाने का प्रयत्न से निष्कासित करने का प्रयत्न करें तो ये गण लातूर था । [श्री गणेश की प्रतिमाओं को ले जाकर उन्हें करते हैं। कई बार ये आपको अवसर प्रदान करते हैं, परन्तु फिर भी यदि आप अपनी के लोगों ने श्री गणेश की बहुत सुन्दर चालाकियों और अहम् में फँसे रहते हैं तब श्री गणेश कठोरतापूर्वक दण्ड देते हैं । आप थे। परन्तु आजकल वे इस प्रतिमा के सम्मुख लोगों के लिए ऐसी स्थिति भयानक विपत्ति बन गन्दे-गन्दे फिल्मी गाने और संगीत बजाने लगे जाती है। अत: सदैव श्री गणेश की पूजा करें। थे ये संगीत और नृत्य इतना गन्दा था कि इसे परन्तु मैं सदा कहती हैं कि इन शिल्पकारों द्वारा बनाई गई सभी श्री गणेश की प्रतिमाओं गणेश रुष्ट हो गए। प्रतिमा को जल में विसर्जित की पूजा न करें क्योंकि परमात्मा जानता है करके जब वे घर वापिस लौटे तो शराब में धुत्त कि वो कैसे शिल्पकार हैं। पैसा कमाने के होकर नाचने लगे और जय गणेश, जय गणेश लिए श्री गणेश की प्रतिमा बना रहे हैं और समुद्र या नदी के जल में विसर्जित करना था। लातूर प्रतिमा बनाई थी जिसके सम्मुख वे नाचते गाते सहन नहीं किया जा सकता। इसके कारण श्री का उच्चारण करने लगे। उस समय पृथ्वी डोल उनमें पावित्र्य भाव का पूर्ण अभाव भी हो गई, भूचाल आया और पृथ्वी माँ ने उन सबको अपने अन्दर निगल लिया। वे सब पृथ्वी में ही बनाते हैं जिसकी आप पूजा करते हैं । ऐसी दफन हो गए। नशे में धुत्त सभी वयस्कों को पूजा से हमें कोई लाभ नहीं होता। मोहम्मद पृथ्वी माँ ने लील (खा) लिया। वहाँ पर हमारा सकता है। ऐसे लोग श्री गणेश की प्रतिमा साहब ने कहा है कि किसी भी मूर्ति की पूजा मत करो क्योंकि ये मूर्तियाँ उन लोगों द्वारा बनाई जाती हैं जो इसके अधिकारी नहीं हैं। ये प्रतिमाएं भूचाल ने आश्रम के आस-पास की काफी दूर स्वयंभू नहीं हैं। पृथ्वी माँ ने इनका सृजन नहीं एक आश्रम भी है, एक प्रकार का ध्यान केन्द्र, जिसके चहूँ ओर अत्यन्त सुन्दर भूमि है। परन्तु किया। इन्हें ऐसे लोगों ने बनाया है तक की भूमि को नहीं छुआ। इस भूमि से आगे एक बहुत बड़ी दरार आई, केन्द्र के इर्द-गिर्द भूमि फट गई परन्तु किसी को कोई हानि न ज़िनका लक्ष्य मात्र धन कमाना है। अत: दुकानों से खरीदी गई किसी भी प्रतिमा की पूजा नहीं की जानी पहुँची। वे सभी ठीक-ठाक थे भूचाल ने हमारे चाहिए, चाहे वो जितनी भी अच्छी हो। जो चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 3-4, 2000 है। उनका शरीर इतना सूक्ष्म और शक्तिशाली है कि वे पर्वतों को चकनाचूर कर सकते हैं| अपनी सहजता, माधुर्य और अबोधिता से वे वास्तव में लोगों को परिवर्तित कर सकते हैं. कठोर से कठोर व्यक्ति भी परिवर्तित हो सकता गया श्री गणेश यदि आप खरीदते हैं तो इससे है। दाई दिशा में चलने वाला स्वस्तिक उनका परन्तु स्वस्तिक यदि उल्टी दिशा का होगा तो यह विनाशकारी हो सकता है। हिटलर लिए नहीं। श्री गणेश का वास्तव में कोई चित्र ने जब आरम्भ में स्वस्तिक का प्रयोग किया था उपलब्ध नहीं है। पृथ्वी माँ में से आठ श्री गणेश तो यह सही दिशा का था और वह विजयी प्रकट हुए हैं मेंने उन्हें देखा है। परन्तु उन हुआ परन्तु बाद में स्वस्तिक के स्टेन्सिल को चीज विद्यमान ही नहीं है उसकी हमें पूजा नहीं करनी चाहिए। ये मूर्तियाँ उन लोगों ने बनाई हैं जिनकी चैतन्य लहरियाँ बहुत खराब हैं, जो धोखेबाज हैं, बहुत चालाक हैं और स्वयं को बहुत कुछ समझते हैं। ऐसे व्यक्ति द्वारा बनाया आपको हानि होगी. लाभ नहीं ऐसी मूर्ति आप घर को सजाने के लिए ले सकते हैं पूजा के हैं। प्रतीक स्थानों के पुजारी अत्यन्त दुष्ट लोग हैं। मैं एक पूजारी से मिली थी बह कहने लगा, "मुझे दमा हो रहा है, पक्षाघात है. ऐसा कैंसे हो सकता है? उलट कर लगा दिया गया और यह बाई दिशा का हो गया। युद्ध के परिणाम भी उलट गए और उसकी सेनाएं नष्ट हो गई। इससे आप अन्दाजा श्री गणेश की पूजा कर रहा हूँ. मैरे पुरखों ने लगा सकते हैं कि श्री गणेश का स्वस्तिक भी श्री गणेश की पूजा की. फिर भी ऐसा क्यों कितना शक्तिशाली है! अब हमने ये भी साबित कर दिया है कि कार्बन को यदि हम बाएं से दाएं को देखें तो ओंकार नजर आता है और दाएं से बाएं को देखने पर स्वस्तिक। नीचे से ऊपर को यदि देखें तो यह क्रॉस जैसा प्रतीत होता है यह पूरा चक्र ही कार्बन के अणुओं से बना है। इससे यह साबित होता है कि श्री गणेश ही ईसा मसीह के रूप में अवतरित हुए हैं। पूरे विश्व में उन्हीं की पूजा होती है। देवी महात्म्य में इसका वर्णन है। आप यदि इसे पढ़ें तो स्पष्ट रूप से इसमें लिखा है कि किस प्रकार उन्होंने अण्ड रूप धारण किया और आधे अण्डे ने ईसा मसीह का रूप धारण किया और आधे अण्डे ने हो रहा है? मैंने कहा आप स्वयं अन्तर्दर्शन करके देखो कि आप कैसा जीवन बिता रहे क्या-क्या कारनामे करते हैं? क्या आप वास्तव में श्री गणेश के पुजारी बनने योग्य हैं? तब उन्हें ये बात महसूस हुई। मैंनें कहा, "अब तो मैं तुम्हें ठोक कर दूंगी परन्तु इसके पश्चात् तुम्हें पवित्र व्यक्ति बनना होगा, पवित्र जीवन बिताने का प्रयत्न करो, छल और चतुराई से दूसरे लोगों पर सवार रहने वाले व्यक्ति का नहीं। जो दण्ड श्री गणेश देते हैं उन्हें मैं गिन नहीं सकती। कितनी बाधाएं वे खड़ी कर सकते हैं में नहीं बता सकती। वे आपको बहुत कष्ट दे सकते हैं, मौत के मुँह तक ले जा सकते हैं। वे इतने शक्तिशाली हैं, इतने अधिक शक्तिशाली हैं क्योंकि उनकी सारी शक्ति उनकी माँ के दिव्य कार्य के लिए है-उनकी सारी शक्ति। वे न तो कुछ करते हैं और न कुछ चाहते हैं साधारण से बने मोदक उन्हें पसन्द हैं, श्री गणेश का। ये सभी चीजें हैं परन्तु भ्रमित होने के कारण हम इन्हें समझ नहीं सकते। हम उचित रूप रो देखना नहीं चाहते कि यह सब पहले से ही लिखा जा चुका पूजा करते हैं वे श्री गणेश की भी पूजा हैं। अत: जो लोग ईसामसीह यही उनका भोजन की चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4, 2000 9. करते हैं और जो भी प्रार्थना आप ईसा मसीह से हैं। हम सब के लिए ये बहुत बड़ा वरदान है करते हैं वह आप श्री गणेश से कह रहे हैं। वे कि हमारा मूलाधार चक्र ठीक प्रकार से स्थापित दो नहीं हैं। वे पूर्णतः अभिन्न हैं और एक हैं। कर दिया गया है। पृथ्वी पर जब हम बैंठते हैं जो भी बातें मैंने आपको ईसा मसीह के विषय तो इससे हमें और भी अधिक लाभ होता है में बताई हैं आप इन्हें खोजने का प्रयत्न करें और आप इन्हें साबित कर देंगे। जैसे ईसा मसीह ने ये पहली दो उंगलियाँ उठाई। इसका अर्थ है कि एक उंगली विशुद्धि की है, श्री कृष्ण की, पृथ्वी माँ का मूल्य समझते हैं भारतीय संस्कृति और दूसरी श्री विष्णु की अर्थात् वे उनके पिता के अनुसार प्रातः काल जब आप उठते हैं तो हैं यानि कि विष्णु या श्रीकृष्ण ईसामसीह के सर्वप्रथम पृथ्वी माँ को नमस्कार करते हैं। क्योंकि यही पृथ्वी श्री गणेश की माँ है इसलिए आपको भी पृथ्वी माँ की देखभाल करनी चाहिए। हम पृथ्वी माँ की देखभाल नहीं करते और न ही पिता थे। यह बात स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। उन्होंने दूसरी उंगलियाँ क्यों नहीं उठाई? यही हूँ. आपको प्रणाम करता हूँ। क्योंकि मैं आपको दो उंगलियां क्यों उठाई? इनके माध्यम से वे अपने पैरों से छुऊंगा। पृथ्वी माँ के प्रति इतना अपने पिता की ओर इशारा कर रहे थे श्री विष्णु सम्मान जब आपमें होगा तो आप इसका दुरुपयोग या श्री कृष्ण को ओर। श्री गणेश की चैतन्य लहरियाँ यदि आप देखें तो मेरी कही हुई बात कहना कि हे पृथ्वी माँ मैं आपके सामने नतमस्तक नहीं करेंगे। आपके सम्मुख आज की पर्यावरण सम्बन्धी तथा अन्य समस्याएं न होंगी। अपनी को समझना अत्यन्त सुगम हो जाएगा। आप यदि उनकी चैतन्य लहरियाँ देखें और उनक विषय में सोचें तो आप हैरान होंगे। आप हैरान होंगे कि अज्ञानता के कारण हम यह नहीं समझ पाते कि पृथ्वी माँ ही श्री गणेश की माँ हैं जिनका चक्र मूलाधार है। इस बात को जब आप समझ जाएंगे तो ये भी जान जाएंगे कि आपको क्या करना है? हमें पृथ्वी माँ की देखभाल करनी है। पृथ्वी माँ को गरिमा देनी है। उसे सुन्दर बनाना है। हम ये सभी प्रकार के कार्य कर सकते हैं परन्तु जिस प्रकार से हम पृथ्वी माँ का दुरुपयोग कर रहे आपको अगन्य चक्र खुल गया है और आप निर्विचार हो गए हैं क्योंकि वे ही ईसा मसीह हैं जो अगन्य चक्र पर विराजमान हैं। तो यह चक्र खुल जाता है और आज्ञा चक्र के पकड़े होने के सभी मूर्खतापूर्ण विचार समाप्त हो जाते हैं। श्री गणेश का नाम लेकर आप स्वयं अपने अगन्य यह अत्यन्त गलत कार्य है। पर्यावरण को चक्र को खोल सकते हैं। अगन्य चक्रसे आने समस्याओं के कारण यह हमें हानि पहुँचा रहा वाली चालाकियाँ पूर्णतः समाप्त हो जाती हैं। है। पृथ्वी माँ पर उपजाए गए पेड़़ों को तथा अन्य अब वे चालाकियाँ नहीं रह जाती, अपने मस्तक पर जब आप इस अबोधिता को देखते हैं तो कमाने के लिए ही इनका उपयोग करना अत्यन्त आप आश्चर्यचकित रह जाते हैं ओर ये सब विचार लुप्त हो जाते हैं। दूसरों को हानि पहुँचाने वाली चालाकी से भरी कोई भी बात अब आप सभी वस्तुओं को काट डालना, केवल पैसा गलत बात है। इसके विषय में व्यक्ति को सोचना चाहिए और जब भी कभी आप एक पेड़ काटे तो इसके स्थान पर एक अन्य पेड़ लगाएं। पेड़ पृथ्वी माँ का सौन्दर्य हैं सारी हरियाली. सारी चीज़ें पृथ्वी माँ का सौन्दर्य है । कुछ लोगों सोंच नहीं सकते। अगन्य चक्र जब पूरी तरह से तो आप पूर्णत: परिवर्तित हो जाते खुल जाता है चैतन्य लहरी ॥ खंड : 10 XI1 अक : 3-4. 2000 ho को बागवानी तथा प्रकृति की अन्य चीज़ों से हो गए हैं मिथ्या-अभिमान के लिए किस प्रकार कोई दिलचस्पी नहीं होती। मैं नहीं समझ पाती अपने पावित्र्य को विगाड़ने का प्रयत्न किया है। कि वे किस प्रकार जीवित रहते हैं। परन्तु किसी का सम्मान यदि आपने करना होता तो बागवानी या प्रकृति के सौन्दर्य में कोई दिलचस्पी रखे बिना भी वे जीवित रहते हैं । प्रकृति इतनी को अपमानित कर रहे हैं और सोचते हैं कि पाप सुन्दर है, प्रकृति को देखें तो सही । इसमें से करके आप अत्यन्त चुस्त और आधुनिक बन कभी दुर्गन्ध नहीं आती. यह कभी गन्दी नहीं रहे हैं । आज, इस आधुनिक समय में, जो कुछ होती। हर पत्ता इतने सुन्दर ढंग से आयोजित है भी पाप के कार्य हो रहे हैं ये पूरी तरह से गलत कि इसे सूर्य की किरणें प्राप्त होती हैं। इस हैं और हमें चाहिए कि हम इसकी निन्दा करें। विषय में कोई झगड़ा नहीं है। पेड़ पत्ते सभी कुछ इतने अच्छे ढंग से आयोजित हैं, सभी कुछ क्योंकि ऐसा करने से श्री गणेश कुपित हो जाते इतना सुन्दर है। पशु भी इन्हें नष्ट नहीं करते। हेैं। अपना महत्वपूर्ण आधार समझने के लिए आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे, पशु भी हरियाली शालीनता बहुत महत्वपूर्ण है और ये आधार को उजाड़ते नहीं, ज्यादा से ज्यादा े कुछ घास खा लेंगे या कुछ और। परन्तु प्रायः पशु पेड़ों को अपने सतीत्व की रक्षा करने के लिए बत्तीस नष्ट नहीं करते। वे किसी भी चीज़ को नष्ट नहीं करते जैसे हम अपने स्वार्थ के लिए पृथ्वी उसी परिवार से संबंधित हूँ। आप कल्पना कर माँ को नष्ट करते हैं । इसके लिए चाहे जो कारण हो, परन्तु हमें समझना है कि हमें पृथ्वी विश्वास होगा और उमें कितना साहस होगा! म आप पवित्रता बनाए रखते। परन्तु आप तो स्वयं आपको इसके समीप भी नहीं जाना चाहिए हमारा पावित्र्य। आप जानते ही हैं कि भारत में हजार महिलाओं ने आत्मदाह कर लिया। मैं भी सकते हैं कि अपने पावित्र्य में उनका कितना माँ का सम्मान करना है। पृथ्वी माँ श्री गणेश की माँ हैं। जिन्हें जीवन का क्या लाभ है? अपने सतीत्व की रक्षा आप कह सकते हैं कि वे हमारे सबसे बड़े के लिए इतना बड़ा बलिदान करके उन्होंने ये सहजयोगी हैं। उन्हें कभी योग अपनाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। वो तो सदैव योग में जो हमारे अन्दर होनी चाहिए। ये पावित्र्य महिलाओं होते हैं। वे हमारे महानतम योगी हैं। हर समय वे सभी अच्छे कार्य करते हैं। वे कोई भी गलत लिए यह और भी अधिक आवश्यक है। पुरुषों कार्य नहीं करते, कभी भी उनमें देवताओं का के लिए श्री गणेश बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि महानतम पद प्राप्त करने की योग्यता है। मैं तो यदि वे श्री गणेश का सम्मान नहीं करते तो उन्हें कहूँगी कि व हमारे महानतम देव हैं और हमें बहुत से रोग हो सकते हैं यदि हम श्री गणेश वास्तव में उनकी पूजा करनी चाहिए। उनके की देखभाल करते हैं तो हमारा स्वास्थ्य बहुत माध्यम से सभी देवताओं की पूजा हो जाती है और वे प्रसन्न होकर आशीर्वाद देने लगते हैं। संभालते हैं, हर समय वे हमारी देखभाल करते आज मैं सोच रहो थी कि, आजकल इस आधुनिक समय में हम किस प्रकार इतने निर्लज्ज में हैं और वही कुण्डलिनी की देखभाल करते हमारा सतीत्व यदि समाप्त हो जाए तो हमारे बताया है कि पाबित्र्य ही महत्वपूर्णतम चीज़ है में ही नहीं, पुरुषों में भी होना चाहिए। पुरुषों के अच्छा होगा क्योंकि वे हर समय हमारे शरीर को हैं, हमारी रक्षा करते हैं। यही श्री गणेश मूलाधार चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 3-4, 2000 11 जगह गए और बहुत से लोगों को प्रताडित कुछ हो जाए तो कुण्डलिनी उठती हैं। परन्तु किया| ये देखकर मैं हैरान थी कि वहाँ पर बहुत से लाल भारतीय हैं जिन्हें भारतीय अमरीकन करने वाले और उन्हें उत्थान की स्थिति में कहा जाता है। उन्हें इतने कष्ट दिए गए कि बनाए रखने वाले श्री गणेश हैं। श्री गणेश ही यह उन्हें भागकर भिन्न स्थानों पर जाना पड़ा। मैं सब कार्य कार्यान्वित करते हैं । वे ही हमारी काना जोहरी गई। मुझे लगा कि चैतन्य लहरियाँ कुण्डलिनी की रक्षा करते हैं और इस प्रकार वे बहुत अच्छी थीं। अर्थात् वहाँ के लोग अत्यन्त अबोध और सहज थे। परन्तु जो अमरीकन उस समय वहाँ पहुँचे उन्होंने इन लोगों को पूरी तरह चाहिए। आपको अपने अन्दर झांककर अन्तर्दर्शन से समाप्त कर देना चाहा। भागकर ये लोग काना द्वारा देखना चाहिए कि वास्तव में हम श्री गणेश जोहरी जैसे स्थानों पर छिप गए। परन्तु काना के प्रति कितने समर्पित हैं । यदि हम समर्पित हैं जोहरी की चैतन्य लहरियाँ बहुत ही सुन्दर , "देखो, कितने वर्ष बीत गए हैं फिर भी जो लोग यहाँ रहते थे या कार्य करते थे वे इस स्थान का आनन्द ले रहे हैं"। यहाँ रक्त-वर्ण भारतीय, जो कभी भारतीय थे, रहते थे। उन्हें से इसे कार्यान्वित करता है। इस मामले में बच्चे हम अमरीकन भारतीय कहते हैं। वे लोग अत्यन्त वे इतने आध्यात्मिक लोग होते हैं, प्रेममय और सुन्दर होते हैं, श्री गणेश थे क्योंकि वे माँ की पूजा किया करते थे। हर की तरह। श्री गणेश वास्तव में अ्बोध हैं समय वे माँ की पूजा किया करते थे। मैंने अन्य अत्यन्त रक्षाकारी। अपनी अबोधिता से वे आपकी देशों में भी देखा है। मुझे प्रसन्नता हुई कि रक्षा करते हैं ? अत: हमें अपनी अबोधिता की आस्ट्रेलिया में लोग अत्यन्त धर्मनिरपेक्ष थे। ये कामना करनी चाहिए और कभी व्यथित नहीं सभी लोग उन्हें उत्साहित कर रहे हैं। ये देखकर आश्चर्य होता है कि उनमें बहुत मेधा है और हैं। कुण्डलिनी की रक्षा करते हैं और यदि हमें उसको सहारा देने वाले, उसे उठाने वाले, जागृत ही हमारे आत्मसाक्षात्कार के आधार हैं। तो श्री गणेश कितने महत्वपूर्ण हैं ये आपको जानना तो हम इसके लिए क्या कर रहे हैं? ऐसा करने से आप सभी गन्दी चीजों से घृणा करने लगेंगे। ये सब आपको अच्छा न लगेगा, ऐसे लोग भी आपको अच्छे नहीं लगेंगे। सहजयोगी इस प्रकार मेंने कहा सर्वोत्तम होते हैं। वे अत्यन्त मधुर और सुहृदय अबोध एवं सहज थे। परन्तु होना चाहिए क्योंकि कभी-कभी ऐसे लोगों को धोखा दिया जाता है, उन पर रौब जमाया जाता अब उन्हें उस अवस्था में लाया जा रहा है ताकि है। सभी कुछ होता है परन्तु कोई बात नहीं। वो जान सकें कि आस्ट्रेलिया में एक सम अबोध लोगों पर रौब जमाने वाले सभी लोग अधिकार है-राजनीतिक अधिकार। यह अत्यन्त कष्टों में फँस जाएंगे। विश्व भर में इस बात का शोर है. लोग इसके विषय में बातें कर रहे हैं कि साहसिक कार्य है। आस्ट्रेलिया में श्री गणेश पुनरू नामक अबोध और सहज लोगों पर किसी प्रकार का स्थान पर प्रकट हुए हैं। पुनरू एक बहुत बड़ा दबाव नहीं होना चाहिए। ये सब चीजें घटित हुई पर्वत है जो गणश के आकार का प्रतीत होता है। हैं परन्तु इन्हें परिवर्तित होना होगा. इन्हें एक नीचे की आर जाती हुई इसकी एक बहुत बड़ी अन्त तक पहुँचना होगा। इसके बिना लोग जीवित सुंड भी है। चैतन्य लहरियों ने साबित कर दिया नहीं रह सकते। जैसे अमरीका में ये लोग सभी है कि यह श्री गणेश हैं जो कि स्वयंभु है। चैतन्य लहरी 12 खंड : XII अंक : 3-4 2000 श्री गणेश ही हैं जो वहाँ पर सहजयोग की रक्षा स्वयंभु गणेश बहुत से स्थानों पर प्रकट हुए हैं। परन्तु यहाँ पर मुझे ऐसे लगा कि जैसे यह स्थान चैतन्य लहरियों का स्रोत हो। आस्ट्रेलिया में भी इसी प्रकार से सब स्थानों पर, जहाँ कहीं भी ऐसा ही है। मैं उनके प्रति धन्यवादी हूँ क्योंकि केवल उनके कारण से ही सहजयोग इतनी और इस प्रकार वे आपकी सहायता करेंगे। आसानी से कार्यान्वित हुआ। सरकार ने भी हमें चमत्कारिक रूप से वे आपकी सहायता करेंगे। कभी परेशान नहीं किया और न ही कभी किसी परन्तु सर्वप्रथम आपको अपने सतीत्व के लिए. अन्य प्रकार से समस्या हुई। मैं नहीं जानती कि अपने पावित्र्य के लिए कुछ करना होगा क्योंकि कर रहे हैं और सहजयोग इतना बढ़ रहा है। आप हों, श्री गणेश की पूजा की जानी चाहिए पावित्र्य ही श्री गणेश हैं। कौन उनकी सहायता कर रहा है? संभवत: यह परमात्मा आपको धन्य करें। 13 चैतन्य लहरी खंड : XI1 अंक : 3-4, 2000 नवराक्रि पूजा जय२ाक्रि प्रुजा कबैला 17.10.99 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज हम यहाँ देवी की पूजा करने के और विशालकाय असुर का रूप धारण कर लेती लिए एकत्र हुए हैं, अर्थात महाकाली की, जिन्हें हम दुर्गा भी कह सकते हैं। सन्त एवं भद्र लोगों के उत्थान मार्ग में बाधाएं डालने वाली या उन्हें कष्ट देने का प्रयत्न करने वाली आसुरी शक्तियों का वध करने के लिए उन्होंने भिन्न अवतरण लिए। हम जानते हैं कि वे भिन्न रूपों में आई और बहुत देवी का हैं जो कि प्रेम एवं करुणामयी माँ हैं। से राक्षसों का संहार किया। उन्होंने बहुत से बुरे यह अत्यन्त असंगत कार्य है जो देवी को करना लोगों को भी नष्ट किया। हम ये नहीं जानते कि होता है-इन लोगों का वध करना, क्योंकि मानवमात्र हमारे सम्मुख जो विश्व युद्ध हुए उनमें भी भले के हित के लिए इन आसुरी शक्तियों का विनाश लोगों की रक्षा करने के लिए वो मौजूद थीं और इसी कारण से वे अत्याचारी तथा आसुरी लोगों नहीं। जैसे बुरे मनुष्य कुछ समय के लिए जेल द्वारा रचे गए कुचक्रों से बच पाए। राक्षस प्रवृत्ति में चले जाते हैं उसी प्रकार वे भी कुछ समय के लोगों में घृणा करने की तथा सभी सम्भव तरीकों लिए नर्क में चले जाते हैं, बहाँ कष्ट उठा कर से घृणा को अभिव्यक्त करने की शक्ति होती अधिक शक्तिशाली होकर वापिस आ जाते हैं है। इनमें से कुछ तो जन्म से ही दुष्ट होते हैं और पुनः और ं हैं जो मनुष्यों को सताता है, उन्हें कष्ट देता है। वे जो चाहे नाम धारण कर लें परन्तु वे पूर्णतया, शत प्रतिशत, आसुरी शक्तियाँ हैं और सर्वशक्तमान परमात्मा के हृदय में उनके लिए रहम या करुणा का कोई स्थान नहीं। इन आसुरी शक्तियों को नष्ट होना होता है और उन्हें नष्ट करने का कार्य आवश्यक है। परन्तु वे पूरी तरह से नष्ट होते सुन्तों और भले लोगों को सताने का प्रयत्न करते हैं। पूरे विश्व में यह आम रिवाज़ है। भले लोगों के रूप में भी वे आ सकते हैं या कुछ दुष्ट बन जाते हैं। जन्मजात दुष्टों को तो आप पहचान जाते हैं क्योंकि उनकी सारी शैली अत्यन्त आक्रामक और प्रतिरोधात्मक होती किसी ऐसे भद्र पुरुष के रूप में जो परमात्मा के है। परन्तु घृणा की कोई सीमा नहीं होती, विषय में बहुत कुछ जानता है । वे ये भी कह बिल्कुल कोई सीमा नहीं होती। वे यदि किसी सकते हैं कि उनमें आत्मसाक्षात्कार प्रदान करने करते हैं तो अपनी घृणा को न्यायोचित की शक्ति है। सभी प्रकार के झूठ वे बोल से घृणा ठहराने के लिए सभी प्रकार के तर्क करते हैं सकते हैं क्योंकि उनमें वह आसुरी शक्ति होती को न्यायोचित ठहराने के लिए। कभी-कभी है। सभी प्रकार के असत्य को अपनाकर वे घृणा तो वे इस घृणा को तर्कसंगत भी ठहराना नहीं चाहते! उन्हें लगता है कि वे घृणा करते हैं और घृणा करना उनका मौलिक अधिकार है। घृणा की ये शक्तियाँ कभी-कभी संगठित हो जाती हैं दावा करते हैं कि हम ये हैं, हम वो हैं, हम आपको ये दे सकते हैं, वो दे सकते हैं। वास्तव में लोगों को नष्ट करने के लिए वे पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं। हमारे यहाँ ऐसे बहुत से झूठे 14 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 3-4, 2000 अब जैसे आप जानते हैं, कलियुग में ऐसे बहुत से लोग हुए और उनमें से बहुत से अब इस पृथ्वी से लुप्त हो गए हैं और वे अब हमें कष्ट नहीं दे सकते। परन्तु अब भी कुछ लोगों का पर्दाफ़ाश हुआ है। लोगों ने उन्हें इस प्रकार अनावृत किया है कि बिना प्रमाण के ऐसा किया सामूहिकता को या भाईचारे को हानि पहुँचे। नहीं जा सकता। परन्तु इन आसुरी लोगों में इतना उनका भाईचारा इतना दृढ़ है कि, चाहे जहाँ साहस है, इतने आत्मविश्वास से वे परिपूर्ण है कि वे मनचाहा कार्य करने से बिल्कुल नहीं हिचकिचाते और जो भी व्यक्ति उनका प्दाफ़ाश लोग हुए हैं और बहुत से मूर्खो ने उनका अनुसरण भी किया। परस्पर विरोध में वे कभी नहीं बोलते। ईसा मसीह ने कहा है, "राक्षस कभी अपने घर की बुराई नहीं करेगा, " मानो वे एक ही घर में रहते हों और किसी ऐसी चीज़़ के बारे में बात न करना चाहते हों जिससे उनकी रहें, वे जानते हैं कि वे करें, सभी आसूरी लोगों का एकजुट होकर इस एकजुट हैं। आप कल्पना प्रकार से व्यवहार करना, कितना आश्चर्यजनक है! यही कारण है कि वे इतने सामूहिक हैं। मान लो एक ने भूमि के किसी विशेष हिस्से को अपना लिया है। उसका वहीं राज्य है, दूसरा दूसरी प्रकार से कुछ हथियाता है और तीसरा करते हैं जिनका कोई प्रमाण नहीं होता और लोग तीसरी प्रकार से। उनमें परस्पर कोई स्पर्धा नहीं उनसे प्रमाण मांगते भी नहीं। ये भी नहीं पूछते है। उनका लक्ष्य केवल एक है- किसी भी कि किस आधार पर आप ऐसा कह रहे हैं ? प्रकार से परमात्मा की सृष्टि, संसार के सभी भद्र लोगों को नष्ट करना, क्योंकि अन्ततोगत्वा वही लोग आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करेंगे जिन्हें में आपको अनुभव प्राप्त होता है और आपके वास्तविकता का ज्ञान हो जाएगा। कलियुग में इस करने का प्रयत्न करता है उसे वे नष्ट कर देते हैं। ये लोग आपके मस्तिष्क में गलत धारणाएं भर देते हैं। वे कहते हैं कि हम महान व्यक्ति हैं हम ऐसे हैं, हम वैसे हैं। सभी प्रकार की बातें इसका प्रमाण क्या है? अत: सहजयोग ही समाधान है। सहजयोग पास प्रमाण होता है। इसमें आप उन्नत होते हैं, एकदम से आप महान सहजयोगी नहीं बन . सकते, यह सच है। आपको परिपक्व होना अच्छे स्वभाव के हैं फिर भी वे इन आसुरी पड़ता है। कुछ लोगों को परिपक्व होने में कम समय लगता है और कुछ को अधिक। कोई बात लोग भी उनके पदचिन्हों पर चलकर इन आसुरी नहीं, परन्तु आप परिपक्व हो जाते हैं। परन्तु इस समय के दौरान यदि आप इन गलत लोगों के पास जाने का प्रयत्न करते हैं तो कोई संभावना नहीं रह जाती. आपको वापिस लाने का कोई प्रकार का वातावरण बदतर स्थिति पर है। बहुत से मूर्ख लोग हैं. ऐसे मुर्ख जो चाहे सीधे हैं लोगों के प्रति खिंचे चले जाते हैं । कुछ अच्छे शक्तियों का अनुसरण करने का प्रयत्न करते हैं। हैरानी की बात है कि इन भले लोगों को यह बात क्यों नहीं समझ में आती कि अच्छा क्या है, बुरा क्या है। परन्तु बहुत से अच्छे लोगों में रास्ता नहीं रहता। विशेषकर उन लोगों को जो भी इस विवेक बुद्धि की कमी है और यही सहजयोग में ऊँचे उठ जाते हैं उनका जब पतन कारण है कि वे भी गलत चीज़ों को अपनाते हैं होता है और फिर हर समय इन्हें न्यायोचित ठहराने में कि एक सर्वसाधारण सहजयोगी भी कह सकता लगे रहते हैं। जो भी कुछ वे करते हैं वह ठीक है है, सर्वोत्तम है और इसका उनके पास प्रमाण है । तो बो इतनी गहरी खाई में जा पड़ते हैं कि श्री माताजी उसकी ओर देखो, वह कहाँ चला गया है। 15 चैतन्य लहरी खंड : X11 अंक : 3-4, 2000 तो ऐसे समय में, जब ये सब चीजें घटित चाहते हैं? आप चाहते हैं कि वे आपकी रक्षा हो रही हैं, हमारा क्या कार्य है? हमें अपने अन्दर महाकाली की पूजा करनी चाहिए। हमारा क्या कर्तव्य है? वे क्या करती हैं? संभवत: हमें करें। अपनी बुद्धि से कार्य करते हुए आप बहुत सी गलतियाँ करते हैं । आप ऐसे कार्य भी कर सकते हैं जो आपके हित में नहीं हैं और जो आपके लिए बहुत भयानक हो सकते हैं। परन्तु इसका ज्ञान नहीं है। तो इन सब चीज़ों के घटित होते हुए हमें वे ऐसी देवी हैं जो आपका पथ-प्रदर्शन करती हैं क्या करना चाहिए? हमें अपने अन्दर महाकाली की पूजा करनी चाहिए। संभवत: हमें इस बात का ज्ञान नहीं है कि महाकाली क्या करती हैं? पहला कार्य जो वे करती हैं वह है हमारी रक्षा करना । आप जहां भी हों, आप जो भी कर रहे के सभी अवयवों की रक्षा करती हैं । वे ही हों, किसी भी खतरे में आप फँसे हुए हों, आपको जीवन की पूर्ण सुरक्षा प्रदान करती हैं। महाकाली आपकी रक्षा करती है। तो पहली चीज जो है वो ये है कि महाकाली आपकी रक्षा करती है। जो लोग मुझे पत्र लिखकर पूछते हैं लगता। क्योंकि आपने उनका साम्राज्य छोड़ दिया कि उनकी रक्षा किस प्रकार हुई? किस प्रकार है. उस साम्राज्य से आप बाहर आ गए हैं, यही कि आप इस प्रकार के खतरों से किस प्रकार बचें? वे आपके जीवन की रक्षा करती हैं. आपके शरीर की रक्षा करती हैं। आपके शरीर उनके साम्राज्य में आप स्वयं को पूर्णतः सुरक्षित पाते हैं। आपको किसी चीज़ का डर नहीं के. उनके रोग दूर हुए? किस प्रकार उनकी सहायता हुई? उन्हें जान लेना चाहिए कि उनके अन्दर स्थित महाकाली की शक्ति के कारण हुआ। वे छाया में रहें तो आपको कभी डर नहीं सताएगा आपके अन्दर विद्यमान हैं। महाकाली की पूजा करते हुए आप अपने अन्तर्स्थित महाकाली की पूजा कर रहे हैं। पूरे सम्मान के साथ आपको ये तो वे आपका हाथ पकड़ लंगी। वास्तव में वे बात जान लेनी चाहिए कि महाकाली अत्यन्त संवेदनशील देवी हैं। वे अत्यंत संवेदनशील हैं। कारण है कि आप भयभीत हैं। परन्तु यदि आप उनके सुन्दर पथ प्रदर्शन में रहें, उनकी कृपा आप कोई गलत कार्य नहीं करेंगे जब भी कभी आप कोई गलत कार्य करने का प्रयत्न करेंगे पथ-प्रदर्शक शक्ति हैं। वे ही हमें हमारा अस्तित्व प्रदान करती हैं। उनके विना हम जीवित नहीं रह सकते क्योंकि वे ही श्री शिव की शक्ति हैं। वे करते हें तो वह आपका पथप्रदर्शन करती हैं, हमें बहुत कुछ प्रदान करती हैं। उदाहरण के रूप आपको बताती हैं, बहुत से तरीकों से, कि ऐसा में वे हमें आराम, निद्रा और सत्य प्रदान करती हैं। वे आपको बताती हैं कि क्या सत्य है और किसी का अहित जब आप करने का प्रयत्न करना गलत है। आप क्यों किसी अन्य व्यक्ति का अहित कर रहे हैं? फिर भी यदि आप पछताते नहीं और अपनी सामान्य स्थिति पर वापिस नहीं आते तो वे आपको त्याग देती हैं। एक बार जब महाकाली आपको त्याग देती हैं तो को रोशनी में लाती हैं। एक प्रकार के ऐसे भ्रम आपका पर्दाफ़ाश हो जाता है और सभी प्रकार की बुराइयों में आप फँस जाते हैं। मैं पूछती हूँ यह क्या है? इसीलिए उन्हें 'भ्रान्ति' नाम दिया कि जब आप उनकी पूजा करते हैं तो आप क्या क्या असत्य। कभी-कभी अपने अहंकारवश लोग समझ बैठते हैं कि जो मैं सोचता हूँ वही सत्य है। तब माया की सृष्टि करके वे इस बात की सृष्टि करती हैं कि आप सोचने लगते हैं कि है अर्थात् भ्रम। वे आपको भ्रम में भी फँसा गया चैंतन्य लहरी खंड : XII अंक 16 : 3-4, 2000 कर सकते हैं या किसी भी तरह से ध्यान कर सकते हैं और उनकी प्रार्थना कर सकते हैं। बहुत से लोग केवल उनसे प्रार्थना करके वे हमें आराम प्रदान करती हैं क्योंकि रोगमुक्त हो रहे हैं क्योंकि वे ही रोगमुक्त करने आपकी सारी ज़िम्मेदारियाँ वे सम्भाल लेती हैं। वाली हैं। वे ही आपको जटिल रोगों से मुक्त देती हैं। आपकी परीक्षा लेती हैं। भ्रम में आपको फँसाती हैं और अन्त में इस भ्रम से आपको मुक्त भी करती हैं। आपकी सारी समस्याओं को वो ले लेती हैं। वे करती हैं, वे रोगमुक्त कर सकती हैं। । उन्हें क्या पसन्द है? महाकाली को प्रकाश ही सारी समस्याओं का समाधान करती हैं। हम ही लोग उन पर अपनी सारी समस्याओं को पसन्द है। उनकी पूजा रात्रि में होती है क्योंकि छोड़ देना भूल जाते हैं। आप यदि अपनी रात्रि में हम दीप जला सकते हैं। वे व्यक्ति को समस्याओं को उन पर छोड़ दें तो सारी समस्याओं ज्योतिर्मय करना पसन्द करती हैं। उन्हें प्रकाश पसन्द है। सूर्य पसन्द है। हर ऐसी चीज़ पसन्द है जिसमें प्रकाश हो. जो चमकती हो। आपने करते हैं। ये आशीर्वाद केवल शारीरिक ही नहीं ऐसे लोगों के विषय में सुना होगा जिन्हें मैं नहीं होते, मानसिक भी होते हैं। वे आपके मस्तिष्क जानती क्या कहा जाता है? परन्तु विशेष रूप से को चिन्ताओं से पूरी तरह से मुक्त कर देती हैं। पश्चिम में इनका उपयोग होता है। उनके बड़े-बडे न तो वे चिन्ता करती हैं दाँत होते हैं और वे लोग सूर्य के सामने जीवित आप चिन्ता करें। यदि आप चिन्ता करते हैं तो नहीं रह सकते ज्यों ही सूर्य उदय होता है वे अन्दर जाकर सो जाना चाहते हैं। सूर्य को वो हुए आप उनकी उपेक्षा कर रहे हैं उन्हें स्वीकार देख नहीं सकते क्योंकि प्रकाश को सहन कर पाना उनके लिए सम्भव नहीं। अब यहाँ पर क्या लोग चिन्तित रहने में गर्व महसूस करते हैं। हुआ? महालक्ष्मी यहाँ से चली गई। उन लोगों से ओह' मैं चिन्तित था। किस प्रकार आप चिन्तित महाकाली दूर हो गई और जब महाकाली चली हो सकते हैं जब आपकी माँ साक्षात् महाकाली गई तो वे भयभीत हैं और डरने वाले इन लोगों पर अन्य लोग आक्रमण करते हैं। इस महाकाली सबको समाप्त कर सकती हैं। वे जानती हैं कि की शक्ति को कार्यान्वित करने के लिए सूर्य कार्य किस प्रकार करने हैं? जब आप उनके बहुत महत्वपूर्ण है। विशेष तौर पर पश्चिमी देशों के का समाधान हो जाता है। इतना ही नहीं आप स्वयं को वास्तव में आशीर्वादित भी महसूस और न ये चाहती हैं कि वे ये दर्शाने का प्रयत्न करती हैं कि चिन्ता करते नहीं कर रहे। चिन्ता एक आम चीज़ है और हैं। वे सभी राक्षसों का वध कर सकती हैं, उन सम्मुख शिशु सम हैं किसी भी चीज़ के विषय में हम लोग बहुत परिश्रमी हैं और सूर्य में आप किस प्रकार चिन्ता कर सकते हैं? तो अनुरूप चलने वाले हैं और सूर्य की पूजा करते हैं। ये सभी कुछ हम करते हैं। सूर्य की पूजा चिन्ता करती हैं। आपको अपनी चिन्ता की करते हैं और अत्यन्त आक्रामक भी हो जाते हैं । कोई जरूरत नहीं। यही विशेष बात है। उनकी ऐसी स्थिति में महाकाली हमें सन्तुलन प्रदान सुरक्षा इतनी महान है। वे स्वयं इतनी सुरक्षित करती हैं। हमें विश्राम पहुँचाकर, पूरी तरह से हमारी सुरक्षा करके वे ही हमें सन्तुलन प्रदान करती हैं। आप उनके चरण कमलों को थामे करती हैं । कभी-कभी स्पर्धा में हम इस प्रकार रह सकते हैं उनकी साक्षात् मूर्ति का ध्यान फँसे हुए होते हैं कि वास्तव में चिन्तित होते हैं आपकी चिन्ताएं समाप्त हो जाती हैं वे आपकी हैं कि वे आपको सारी वांछित सुरक्षा प्रदान चैतन्य लहरी खंड 17 : XII अंक : 3-4 2000 और कुछ ऐसा कर डालना चाहते हैं जिसकी , सामर्थ्य हममें नहीं होती। तब हम बहुत परेशान मैं ऐसा कर सकता हूँ," अहम् कहता है-मैं इसे हो उठते हैं और समझ नहीं पाते कि क्या करें। कार्यान्वित कर दूंगा यह कार्य हो जाएगा और ऐसी स्थिति में वे ही हमें निद्रा प्रदान करती हैं। इस प्रकार मनुष्य अहम् के सामने घुटने टेक और जब हम सो जाते हैं तो वे हमारी देखभाल देता है। वे बहुत सन्तुष्ट होते हैं कि उनका करती हैं, हमें सहलाती हैं और हमारी सारी समस्याओं को ले लेती हैं। वे इतने सारे कार्य की आवाज भी नहीं सुनना चाहते। बड़ी समस्या है। अहम् का दिखावा" नहीं, नहीं अहम् इतना दृढ़ हैं. वे महाकाली की शक्तियों आपको शिशुसम होना पड़ेगा, बच्चों की तरह से अबोध महाकाली अबोध हैं और अबोध लोगों से प्रेम करती हैं। वे स्वयं अबोध हैं और अबोध लोगों से प्रेम करती हैं। आपकी देखभाल भी वे इसलिए करती हैं क्योंकि आप अबोध हैं. चालाक नहीं हैं, अपने अहम् से दूसरे लोगों के साथ खिलवाड़ करने का प्रयत्न नहीं करते। आप यदि अवोध हैं तो वे आपकी सहायता कर रही हैं परन्तु उनके लिए हम क्या कर रहे हैं? यह चीज़ हमें देखनी चाहिए। मुख्य चीज़ ये है कि क्या हम स्वयं उनकी पूजा कर रहे हैं? उनके बच्चे उनकी पूजा करें यह उन्हें अच्छा लगता है। इसी स्तर पर वे उनसे एक हो सकती हैं और उन्हें अपनी करुणा एवं प्रेम प्रदान कर सकती हैं तथा सभी आसुरी शक्तियों से उनकी रक्षा कर सकती हैं। परन्तु यह बात अच्छी तरह से समझ ली जानी चाहिए कि जो लोग अभी करती हैं। निश्चित रूप से आपकी सहायता तक स्थिर नहीं हुए हैं वे अभी तक महाकाली करती हैं। अहम् का नियंत्रण किया जाना आवश्यक की सुरक्षात्मक भूमि से पूरी तरह जुड़े नहीं हैं है क्योंकि अहम् उनका सबसे बड़ा शत्रु है। और ऐसे लोगों पर आक्रमण हो सकता है। एक आपका अहम् उन्हें अच्छा नहीं लगता। वे चाहती हैं कि आप अहम् विहीन हों. अबोध हों। आप जानते हैं कि सर्वप्रथम उन्होंने श्री गणेश बार जब वह ये क्षेत्र छोड़ देते हैं तो उन्हें बुरी तरह आघात पहुँच सकता है और कुछ भी उनके साथ घटित हो है। सकता है; उनका वध हो ही गणेश की पूजा करते हैं। हमें अबोध बनना है अर्थात् किसी भले या बुरे कार्य की योजना हमें नहीं बनानी हमारीं कोई मंशा नहीं है। हमारे कार्य कालातीत गतिविधियाँ हैं। आप चिन्ता न करें कि आप क्या करने वाले हैं और क्या नहीं करने वाले। इस प्रकार का कुछ भी आप न करें। पूर्ण अबोधिता में आप जीवित हैं और उसका आनन्द ले रहे हैं और दूसरे लोगों को भी का सृजन किया। यही कारण है कि हम श्री सकता इस कलियुग में, इस भयानक समय में हम रह रहे हैं। इसमें कुछ भी घट सकता है। अत: हमें मस्तिष्क को ध्यान से देखना होगा कि ये किस प्रकार कार्य करता है? और हमें क्या शिक्षा देता बहुत सावधान रहना होगा। हमें अपने है? हमें क्या बताता है? समझने का प्रयत्न करें कि इस दुष्ट व्यक्ति की योजना क्या है? क्यों आप इसके हाथ में खेल रहे हैं? किस प्रकार आप इसके हाथों में खेल सकते हैं और किस यह आनन्द लेने में सहायता कर रह हैं। घर में यदि एक बच्चा हो तो वह सौ लोगों को प्रसन्न कर सकता है। ये भी ऐसा ही है क्योंकि बच्चों में अवोधिता की शक्ति होती है और महाकाली इसी का सम्मान करती हैं। आप कई बार सोचते प्रकार उसकी इच्छा के अनुसार आप सभी गलत कार्य कर सकते हैं? दूसरी बात ये है कि अहम् उनके विरूद्ध है। अहम् आज की सबसे चैतन्य लहरी खंड : X11 अक : 3-4. 2000 18 हैं कि लोग धोखेबाज किस प्रकार हो सकते हैं। की जानकारी है, ये सभी जानती हैं| कैसे वे हमें धोखा दे सकते हैं? किस प्रकार इतने आक्रामक हो सकते हैं? कई बार तो वे बच्चे की हर तरह से देखभाल करती हैं। इस भयभीत करने वाले कार्य करते हैं और आपसे बहुत आशा करते हैं। परन्तु यह सब कुछ घटित हे कुछ गड़बड़ नहीं करता। जब आप बहुत छोटे हो रहा है और घटित हुआ है। आपको इन चीजों की चिन्ता नहीं करनी चाहिए और अपनी अबोधि करती है । इसी प्रकार महाकाली भी आपकी ता पर डटे रहना चाहिए। आप हैरान होंगे कि देखभाल करती है। तब महा सरस्वती शक्ति आपकी पूरी तरह से रक्षा की जाएगी। कैसे? क्योंकि महाकाली आपके आस पास रहेंगी और धारणाएं देती है आदि-आदि। परन्तु आपके यदि आप अवोध हैं तो आपकी देखभाल करेंगी। अन्तर्निहित शिशु की देखभाल करना आपकी अबोध व्यक्ति क्रोधित नहीं होता। क्रोधित होने अबोधिता और सौहार्द्रता की देखभाल करना की क्या बात है? अबोधिता की अपनी शक्ति महाकाली की शक्ति का कार्य है। अपने बच्चों होती है, मजबूती होती है। ये अत्यन्त शक्तिशाली के प्रति वे अत्यन्त संवेदन शील हैं। कोई भी है। क्रूर व्यक्ति भी जब किसी बच्चे को देखता उनके बच्चों को छूने का साहस नहीं कर है तो सावधान हो जाता है, अरे एक बच्चा है। कुछ वास्तव में महाकाली पूर्ण माँ हैं जो अपने नन्हें प्रकार वे जानती हैं कि यह बच्चा बहुत अबोध बालक होते हैं तो आपकी माँ आपकी देखभाल आकर आपको शिक्षित करती हैं, ज्ञान की अन्य सकता। उनके लिए सभी लोग शिशु सम है पूरा विश्व जानता है कि बच्चों को किसी प्रकार से न तो परेशान किया जाए न कष्ट दिया जाए क्यों? क्योंकि बच्चे इतने अबोध होते हैं। तो किसी प्रकार से चोट न पहुँचे उनके साथ कोई अबोधिता का गुण वास्तव में आपकी बहुत दुर्घटना न घटे। वे सदैव उनके साथ रहती हैं। सहायता करेगा। क्योंकि महाकाली आपके अबोधिता के गुण का सम्मान करती हैं। आपकी सौहार्द्रता के कारण वे आपको हैं? क्योंकि वे सर्वव्यापी हैं। वे सर्वत्र मोजूद हैं, प्रेम करती हैं। परस्पर सौहार्द्रता, परस्पर प्रेम और अन्य लोगों की देखभाल, ये सब उन्हें पसन्द है सहजयोगियों के तो वे हमेशा साथ होती है, चाहे आप यदि सहजयोगी हैं. आप यदि आत्मसाक्षात्कारी हैं तो वे सदैव आपके साथ हैं। परन्तु वे देखती दुर्घटना होती है वहाँ भी आपकी देखभाल करने हैं कि अपनी करुणा में आप क्या कर रहे हैं? के लिए वे मौजूद होती हैं। देवदूत की तरह से कितने लोगों को आप रोगमुक्त कर रहे हैं. और वे सदैव आपके पीछे होती है। और यदि आप कितने लोगों की आप सहायता कर रहे हैं? जो कुछ आप करते हैं उसकी उन्हें पूरी जानकारी नहीं, उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए, है। मैं कहूँगी कि महाकाली इतनी महान शक्ति हैं कि आपके विषय में वे सब कुछ जानती हैं, नहीं हो सकता। उनके आशीर्वाद बहुत महान हैं। सभी कुछ। ये आपके मस्तिष्क को जानती हैं, इन्होंने मानव को सम्पन्न बना दिया है और आपके हृदय को जानती हैं, इन्हें आपके स्वास्थ्य आत्मसाक्षात्कारी लोगों को वे विशेष रूप से अपना बच्चा मानती हैं और देखती है कि उन्हें प्रश्न पूछा जा सकता है कि यदि वे व्यक्ति है तो किस प्रकार इतने लोगों के साथ यह सकती आपके जीवन में, हर स्थान पर, विशेष रूप से जो भी आप कर रहे हो। आपकी यदि कोई नि:स्वार्थ भाव से, भौतिक उपलब्धियों के लिए भी हृदय से उनकी पूजा करते हैं तो आपको कुछ पृथ्वी को सम्पन्न कर दिया है। महाकाली के चैतन्य लहरी 19 । खंड : XI1 अंक : 3-4, 2000 आशीर्वाद ने सभी कुछ सम्पन्न कर दिया है। से दूर किस प्रकार जा सकते हैं। चेतना बहुत ही महत्वपूर्ण चीज़ है। चेतना के साम्राज्य में आप यदि जाना चाहते हैं तो आपको समझना होगा कि इसके पश्चात् नि:सन्देह, महालक्ष्मी आती हैं। उनकी खूबी ये है कि महालक्ष्मी तत्व में आप निर्लिप्त हो जाते हैं। सोचने लगते है । कि आखिरकार ये संसार क्या है और आप में एक मूल चेतना खोई नहीं जानी चाहिए। नशे और मदिरापान से या अन्य चीज़ों से यदि मूल चेतना खो जाती है तो आपको कुछ प्राप्त न होगा। लोग सोचते हैं कि सत्य साधना के लिए वे ऐसा कर रहे हैं। कई बार तो वे सत्य साधना को गलत कार्य करने का बहाना बना लेते हैं। ये तो स्वयं से प्रतिशोध लेने जैसा है। ये सोचना कि अब प्रकार की नि्लिप्सा की भावना आ जाती है। आप सोचने लगते हैं। कि संसार से भी बेहतर कुछ होगा, इससे परें भी तो कोई सत्य होगा। जिन लोगो को दुष्टों ने सताया होता है ऐसे लोग सदैव ऐसा सोचते हैं कि कोई तो होगा जो हमे इस दुर्दशा से उबारेगा। यहाँ आपके अन्दर महालक्ष्मी तत्व प्रवेश करता है। यह उत्थान की आप सत्य साधना कर रहे है स्वयं से प्रतिशोध लेना है। यह सच्ची साधना नहीं है। सच्ची साध ना में व्यक्ति को केवल ध्यान धारणा करनी होती है और इसके द्वारा उचित मार्ग खोजना है देवी का तत्व है। ये देवी आपके मस्तिष्क में एक विचार उत्पन्न करती है कि इससे क्या है? आपको क्या करना होगा? से आगे होती का यही लक्ष्य है? जीवन का उद्देश्य क्या है? को सुनकर नहीं करना होता हम इस पृथ्वी पर क्यों अवतरित हुए हैं? ऐसी क्या विशेष बात है कि हम पृथ्वी पर जीवित रहें। ऐसे बहुत से मूल प्रश्न उठने लगते हैं और नहीं। कोई भी यह नहीं बताता कि कुण्डलिनी आप निज्ञासु बन जाते हैं। इसमें भी आपको जागृति ही एक मात्र मार्ग है। लोग आपको समझना होगा कि महालक्ष्मी का सिद्धांत उससे बताएंगे कि हम फला स्थान पर जाएंगे, वहां से कहीं भिन्न हैं जैसा लोग समझते हैं। वे सोचते दूसरे स्थान पर चलेंगे ओर उस स्थान से एक हैं कि उनकी जिज्ञासा बोधगम्य होनी चाहिए यह मस्तिष्क के माध्यम से होनी चाहिए या तर्कसंगत होनी चाहिए या वैज्ञानिक। इस प्रकार वे सत्य साधना करते हैं। ऐसा होना संभव नहीं है । महालक्ष्मी का सिद्धान्त ये है कि आपमें सत्य और केवल सत्य को जानने की गहन इच्छा होनी चाहिए। सत्य के सिवाय किसी अन्य चौज को जानने की नहीं। जब आप इस प्रकार से कुण्डलिनी जागृति ही वास्तविकता को जानने का एक मात्र मार्ग हैं, कोई अन्य मार्ग और स्थान तक। ये सब करना होगा और अन्ततोगत्वा आप बहीं पहुँच जाएंगे जहाँ से आप चले थे। यह तो एक स्थान से दूसरे स्थान तक. एक झूठ से दूसरे झूठ तक, एक असत्य से असत्यता तक भटकते रहने जैसा है। भटक-भटक कर बहुत से साधक खो जाते हैं। बहुत से साधक खो गए हैं क्योंकि उन्होंने सोचा कि इस प्रकार की साधना बहुमूल्य है. क्योंकि आप गुरु सोचने लगेंगे तो अन्य चीज़ों के पीछे न दौड़ेगे। को बहुत सा पैसा दें सकते हैं मेरा कहने से बहुत से लोगों ने नशे की आदंत डाल ली। अभिप्राय है कि आप गुरु को खरीद सकते हैं उन्होंने ये सांचा कि नशा करने से वे और इस प्रकार सभी धनी लोग साक्षात्कार को पा सकते हैं । परन्तु मैं नहीं सोचती कि अच्छे है। चेतना को प्राप्त करने के लिए आप चेतना लोगों का बहुत बड़ा प्रतिशत धनी हो। जो लोग आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेगे। ये गलत धारणा चैतन्य लहरी खंड : XI1 अंक : 3-4 2000 20 अच्छे है वो अच्छे हैं चाहे वो अमीर हों या न हों। परन्तु ऐसे लोग व्यक्ति ( श्री माताजी) के मे खोज रहे हैं । यह इतनी अच्छी तरह से कार्य ईद गिर्द एकत्र होने का प्रयत्न करते हैं क्योंकि करती है कि उन लोगों को अत्यन्त सहज तरीके मेरे विचार से उन्हें धन का सूक्ष्म अहँ है और से स्वत: ही आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाता है। सोचते हैं कि हम सभी चीजों को खरीद सकते के लिए बनी है जो सच्चे साधक हैं, जो वास्तव आप सब को भी यह सहज आत्मसाक्षात्कार है। एक बार मैं अमरीका में थी और एक महिला मुझे मिलने को आई। वह न जानती थी कि मैं आध्यात्मिक व्यक्ति हूँ। उसने कहा, कि प्राप्त हो चुका है। आप लोगों को हिमालय नहीं जाना पड़ा और न ही इस प्रकार का कोई तप करना पड़ा। अब ये सारी चीजें समाप्त हो चुकी हैं, आप यह सब कर चुके हैं, सभवत: अपने पूर्व जन्मों में आपने यह सब कार्य कर लिए है। एक बहुत अच्छा गुरु अमरीका में आया है। मैंने कहा,"अच्छा, वह क्या करता है?" उसने कहा कि सेल (Sale) लगी हुई है, मैंने कहा, "वास्तव में, आप उसे आधा पैसा देकर उससे आशीर्वाद ले सकते हैं, ठीक है।" अगले सप्ताह उसने अब आपको कुछ नहीं करना, आप इसे प्राप्त कर सकते है। यहाँ बैठकर आप इसे प्राप्त कर रहे हैं । विश्व के किसी भी कोने में आप हों. आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं। और यह तेजी से प्रसारित हो रहा है, फैल रहा है। अब सहजयोगियों का कर्त्तव्य बनता है कि वे सहजयोग को फैलाएं। कहा कि अब वह सेल चौथाई रकम तक आ गई है, यदि आप उसे एक चौथाई पैसा दें तो वह आपको पूरा ज्ञान दे देगा। मैने कहा, कैसे वह इस प्रकार लेन-देन कर सकता हैं, यह कि धन तो नीयत राशि का बहुत कम हिस्सा है? मैंने कहा, "जब आप उसे नीयत राशि का आधा पैसा दे रही थी तो वह आधा ज्ञान दे रहा था ये बात समझी जानी आवश्यक है कि महालक्ष्मी और महाकाली दोनों साथ-साथ चलती हैं। महाकाली आपको आशीर्वाद देती है और और अब आप एक चौथाई पैसा दे रही हैं तो आपके साथ रहती हैं। आप उनके साम्राज्य में वह पूरा ज्ञान दे रहा है! उसने कहा, "यही बात है, वह अत्यन्त उदार है, उसकी यही खूबी है।" मैने कहा, "ऐसे लोग जो सोचते हैं कि वे समस्याओं को हल करने में आप की सहायता सत्य को खरीद सकते हैं, वे कभी सत्य को करती है। आर्थिक समस्याओं के साथ-साथ वे प्राप्त नहीं कर सकते। आप सत्य को खरीद नहीं आपकी अन्य समस्याओं का समाधान भी करती सकते । होते हैं। महालक्ष्मी आगे आती है और निश्चित रूप से आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने तथा अपनी कुण्डलिनी की जागृति के लिए आप पैसा नहीं दे सकते, नहीं। न ही आपको कुण्डलिनी जागृति के बदले में कोई पैसा लेना चाहिए। हैं। सबसे बड़ी समस्या जिसका वे समाधान करती है वह है आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने की आपकी महानतम इच्छा को पूर्ण करना। अत: उन दोनों में कोई स्पर्धा नहीं है। ये तीनों शक्तियाँ साथ-साथ कार्य करती हैं और जिस चीज की भी आवश्यकता होती है उसे ये कार्यान्वित करती हैं। परन्तु महाकाली पथ-प्रदर्शन करती हैं कि कहाँ, किस सहायता की आवश्यकता है। है। और महालक्ष्मी शक्ति वास्तव में उन्हीं लोगों यही कारण है कि महाकाली शक्ति का बहुत आत्मसाक्षात्कार पूर्णत: परमात्मा की कृपा है और इसके लिए आप धन नहीं ले सकते आप इसे बेच नहीं सकते। ये इतनी सस्ती चीज़ नहीं है कि बेची जा सके। जब आप यह बात समझ जाते हैं तो महालक्ष्मी शक्ति कार्य करती चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4, 2000 21 सम्मान भी जाति हो, कोई भी राष्ट्र हो, जो कुछ भी बहुत से असुरों और राक्षसों का वध किया। हो, परन्तु वे सदैव आपके अन्दर विराजमान परन्तु अभी भी बहुत से राक्षस विद्यमान है, है। उनकी पूजा करना, उन्हें जागृत करना, अभी भी वे जीवित हैं, परन्तु मुझे विश्वास है यही आपका एक मात्र कर्त्तव्य है। यदि व कि वो भी समाप्त हो जाएंगे। उनमें से एक भी आपके अन्दर जागृत हो जाएंगी तो आप विनम्र न बचेगा। परन्तु अभी भी हमें अत्यन्त सावधान व्यक्ति बन जाएगे। आप देखेंगे कि आप कौन और होता है। जैसा हम जानते हैं. महाकाली ने चुस्त रहना चाहिए तथा ये खोजने का सी गलतियाँ करते रहें हैं और इनके बारे में प्रयत्न करना चाहिए कि लोगों में क्या दोष है? सोचेंगे। आप स्वयं को दोषी नहीं मानेंगे, परन्तु वे क्या कर रहे हैं और किस चीज का प्रचार आपको वे गलतियाँ बुरी लगंगी और आप निश्चय करने का प्रयत्न कर रहे है? आपको इस प्रकार करेंगे कि वैसा पुन: कभी न करेंगे। आपको से परिपक्व होना है ताकि इन आसुरी लोगों के लगेगा कि मैंने बहुत बड़ी गलती की है और विषय में आपको पूरी जानकारी हो। खोज-निकालें तब आप स्वयं को सुधारने का प्रयत्न करेंगे। कि वे झूठे लोग क्या कर रहे हैं? ऐसा करना जब आप का हृदय पवित्र होता है तब यह सब अच्छी तरह से कार्यान्वित होना है। हृदय शुद्ध हैं और अपने ज्योतित चित्त से आप जान सकते होना चाहिए। आपका हृदय यदि पवित्र नहीं है, हैं कि किस संस्था में क्या दोष है? ध्यान धारणा दूसरे लोगों से स्पर्धा के लिए या किसी भी करने का यह सर्वोत्तम मार्ग होगा। किसी भी प्रकार के भौतिक लाभ के लिए यदि आप सहज योग कर रहे है तो यह कार्यान्वित न होगा। आपको ऐसे ढंग से सहजयोग करना होगा जो अत्यन्त पवित्र हो, मानो एक नन्हें शिशु की तरह नष्ट कर रहे हैं। हे, महाकाली कृपा करके दुष्ट से आप अपनी माँ की पूजा कर रहे हैं। जैसे लोगों का वध करो। ये उनका कार्य है और ऐसा एक नन्हा शिशु अपनी माँ से प्रेम करता है और करने में उन्हें प्रसन्नता होगी। परन्तु किसी व्यक्ति उसकी पूजा करता है। यह अत्यन्त सहज सम्बन्ध को तो उनसे प्रार्थना करनी होगी, याचना करनी है जिसे हम सब भुला चुके हैं किस प्रकार हम अपनी माँ से प्रेम करे, किस प्रकार उनके पथ तक आप उन्हें इनके विषय में कहेंगे नहीं ऐसे प्रदर्शन में रहें और किस प्रकार उनकी सुरक्षा में सुरक्षित रहें। यह इतनी सीधी बात हैं और आपने है क्योंकि आप लोग आत्मसाक्षात्कारी बहुत सुगम प्रकार से आक्रामक नहीं होना, केवल ध्यान धारणा करनी है और महाकाली से प्रार्थना करनी है कि उन लोगों को नष्ट करें जो विश्व को होगीं। ऐसा करना बहुत अच्छा होगा क्योंकि जब से दुष्ट लागों पर संभवत: उनका चित्त न बहुत जा पाएगा। अत: सर्वोत्तम तरीका ये होगा कि सदैव उनसे व्यक्तिगत रूप से, राष्ट्रीय. सामूहिक बचपन में ही यह बात जान ली थी। आप यदि वास्तव में अपनी माँ की पूजा करना चाहते हैं ता एक बार फिर आपमें उसी बचपन का लौट या विश्व स्तर पर सहायता की याचना करें। वे सर्वव्यापी हैं, पूरे ब्रह्माण्ड में व्यापक हैं। आप कहीं भी हों, आपका कोई भी रंग हो, कोई आना आवश्यक हैं। परमात्मा आपको धन्य करें। चैतन्य लहरी 22 । खंड : XII अंक : 3-4,2000 शक्तियाँ श्री आदिशक्ति की चौसठ ( आदिशक्ति पूजा काना जोहारी न्यूयॉर्क 20 जून 1999) 1. श्री आदिशक्ति जिसने चौदह भुवनों के ब्रह्माण्ड की सृष्टि की। आप हमारी बुद्धि से परे हैं | ॐ आप ही का नाद है। जो आपकी तीनों शक्तियों का गुँजन पूरे ब्रह्माण्ड में करता है। 3. आपके वित्त का आनन्द आदिशक्ति पूजा के अवसर पर अमरीका आप ही वो तत्व है को सामूहिकता ने श्री माताजी की चौवन नामों से स्तुति की। श्री माताजी ने इस सूची का पुनरावलाकन एवं सम्पादन किया तथा उन्होंने 2. जोड़े स्वयं दस नाम इसमें । सभी नामों के पश्चात्," ॐ श्री आदिशक्ति नमों नमः " का उच्चारण करें। चित्त विलास-आपकी पूरी सृष्टि में अभिव्यक्त 23 चैतन्य लहरी खंड : XI1 अक : 3 4 2000 होता है। 4. दिव्य लीला में सर्वशक्तिमान परमात्मा आपकी शक्तियों द्वारा कार्य करता है। योग्य बनाती हैं। वस्तुतः ब्रह्माण्ड में आप ही महानतम शक्ति हैं। 15. कोई यदि आदिशक्ति के विरुद्ध कार्यं करे 5. श्री सदाशिव की इच्छा एवं श्वास की तो सर्वशक्तिमान परमात्मा आरचर्य जनक एकाकारिता आपसे है। 6. श्री सदाशिव की प्रसन्नता के लिए आपकी शक्ति परम-चैतन्य सितारों एवं स्वर्ग लोक को आनन्द से गुँजायमान कर देती है। 7. नि:सन्देह आप ही ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का स्रोत हैं। परमेश्वरी प्रेम के सूक्ष्मतम पारलोकिक तत्व के रूप में यह शक्ति विकीर्णित होती है। 8. भौतिक तत्वों एवं चेतना से परे आदिशक्ति को कृपा वहाँ पर विद्यमान है जहाँ सत्य तेजी से दण्डित करते हैं । 16. आपके सर्वप्रथम सृजित श्री गणेश कार्बन के अणुओं में जीवन के सार गुँजायमान करते हैं। कृपा करो कि वे मानव के अणु रेणू में विवेक एवं अबोधिता को पुनर्जागृत DNE कर दें। ।7. आपने दिव्य संसार तथा जिज्ञासुओं के विश्व का सृजन किया। कृपा करें कि हमारा उत्थान इस दिव्य लीला में विलीन हो जाए। 18. हे आदिशक्ति, उत्थान ऐसी शक्ति है जो मानव जीवन में आपकी दिव्य लीला को का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। 9. आप अनिर्वचनीय है, अपार है। हम आपको उन्नत करती है। 19. हे आदि कुण्डलिनी आपने आदि चक्रों की रचना की तथा जीवन के रहस्य उद्घाटन करने के लिए द्वारा खोले। 20. हमारी पृथ्वी माँ की कुण्डलिनी का सृजन करने वाली आप ही हैं। दिव्य श्वास (Pneuma), जीवन्त जल कहकर पुकारते है परन्तु आप तो इससे भी बहुत अधिक है। केवल देवता ही आपकी महान शक्तियों का दर्शन कर सकते है। 10. सर्वशक्तिमान परमात्मा आपके दिव्य नृत्य में श्री अदिशक्ति भी आपकी सभी शक्तियों 21. सामान्यतम पुष्प का भी एक अंश आपके लिए होता है और विशालतम वृक्ष का एक के साथ एकरूप हो जाती हैं। 11. आप ही परम चैतन्य की आद्य शक्ति हैं जिसने ईसा-मसीह की माँ का रूप लिया। भाग भी आपको अपर्ण किए जाने के लिए होता है। 22. पृथ्वी माँ की हरी साड़ी के सौन्दर्य से लेकर शेर एवं चीते की शानोशीकत तक 12. आप ही मूल सृजन कतो (Creatrix Power) है। वह मादा सृजनात्मक शक्त जो सर्वशक्तिमान परमात्मा की शन्ति को बनाए रखती है। 13. आपकी महालक्ष्मी शक्ति के माध्यम से प्रकृति द्वारा बनाए गए सभी जीव-जन्तु आपके हैं। 23. पृथ्वी माँ के गुरुत्वाकर्षण से लेकर आपके सभी स्वर्गीय ग्रह आपकी तेजस्वी शक्ति हम चतुर्थ आयाम की कालातीत शन्ति द्वारा नियंत्रित हैं। 24. आपकी शक्ति, परम-चैतन्य प्रकृति और उसके तत्वों को व्यवस्थित करती है और अनुभव करते हैं । 14. हे श्री आदिशक्ति, आप सर्वशक्तिमान परमात्मा को उनका पावन कार्य करने के चैतन्य लहरी खंड : XII अक : 3-4, 2000 24 इसकी सर्वव्यापक शक्ति हमें आपकी कृपा संगोत एवं नाटक में निपुणता प्रदान करते हैं। 34. आपने महिलाओं को सच्ची शालीनता का का पात्र बनाती है। 25. हे श्री आदिशक्ति, आप ही पृथ्वी माँ की कलात्मक सृष्टा हैं। जो लोग पृथ्वी माँ का सम्मान करते हैं उन्हें आप प्रेम करती हं । 26 . हे आदिरशक्ति, विशुद्धि की भूमि (अमरीका आपके विशाल सृजन का एक पक्ष है। इस गुण प्रदान किया है ताकि वे अपने परिवारों की देखभाल कर सकें तथा समाज को सुरक्षित रख सकें। 35. हे आदिशक्ति आप सती देवी के रूप में प्रकट हुई और राजधर्म की स्थापना हुई। जिसकी हम अभिलाषा करते हैं। भूमि के लोगों का अंतर्परिवर्तन करने के लिए आप यहाँ चैतन्य लहरियाँ बढ़ाइए 27. अमरीका के मूल निवासी दिव्य माँ के रूप में आदिशक्ति की पूजा किया करते थे और भूमि को पावन मानकर सम्मान करते थे । कृपा कीजिए कि अन्य सभी लोग जो इस भूमि पर रहते हैं और इसकी सम्पदा का आनन्द लेते हैं, उनमें भी यह दृष्टिकोण लौट लाए। 36: हे वागेश्वरी, आप ही महान कवियों तथा सन्तों को प्रेरणा देती है। 37. हे श्री आदिशक्ति, आपका वर्णन करना कवियों और सन्तों का कार्य है परन्तु अकुशलता के कारण वे अन्तरिक्ष पर रहस्य की एक शाखा लगाने का प्रयत्न करते हैं । 38. हे आदिशक्ति, आप पराशक्ति हैं, सभी शक्तियों से ऊपर। 28. जीवन्त प्रक्रियाओं का रहस्य केवल आपका है। कोई व्यक्ति इसे दोहरा नहीं सकता। 39. हे आदिशक्ति, कृपा करके हमें और अधिक विनम्रता प्रदान करें ताकि आपकी महिमा कृपा करो कि मानव इस सत्य के प्रति की एक छोटी सी झलक हम भी प्राप्त कर सकें। जागरूक हो जाए। 29. ओ, ऋतम्भरा प्रज्ञा, आप श्री आदिशक्ति की शक्तियों में से एक हैं। आप ही जीवन्त कार्यों की शक्ति है। 30. आप ही सम्पूर्ण जीवन को नियमित एवं आयोजित करती हैं। रात 40. हे देवी, कृपा करके हमें भी सूफियों एवं जिज्ञासुओं सम बना दें जो कि हर क्षण आपके गुण-गान में मग्न रहते हैं। 41. आपकी महालक्ष्मी शक्ति भव सागर में रिक्ती को पूर्ण करती है ताकि उत्थान के लिए साधकों की कुण्डलिनी चढ़ सके। 42. है आदिशक्ति, हमें सहजयोग में लाने वाली जिज्ञासा प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि अब कृपा करके मानवता को अन्तिम निर्णय (Last 31. हे आदि शक्ति, विष्णु लोक से गोकुल में, जहां श्री कृष्ण का बाल्यकाल व्यतीत हुआ, आप सुरभि के ( कामधेनु) के रूप में अवतरित हुई हैं। 32. हे आदिशक्ति, कृपा करें कि ध्यान धारणा के सौन्दर्य, समर्पण एवं आत्मसम्मान के माध्यम से सहजयोगिनियों के नारी सुलभ धेन्युवाद। Judgement) के अन्त तक ले आएं। 43. हे आदिशक्ति, हम याचना करते हैं कि गुण प्रकट हों। 33. शारदा देवी के आपके गुण, सत्य, कला, आपका प्रेम विश्व भर के साधकों और चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 25 3-4, 2000 सन्तों की रक्षा करता रहे। करता है। 44. हे श्री आदिशक्ति आपका कार्य ही महानतम है। आप ही ने पीठों, चक्रों, प्रकृति, मानवता तथा इनके सूक्ष्म कार्यों की सृष्टि की। कृपा करें कि आपके कार्य की जटिलता हमें 54. कृपा करों कि आपकी विकास प्रदायी शक्ति स्वार्णम युग के वांछित अस्तित्व को मानवता प्रदान करें। 55. आपने हमें मिथ्या-अभिमान ईष्यां मोह. लोभ. झूठे तदातम्य और हिंसा के चंगुल से पूर्णत: विनम्र करे दें। 45. आपका प्रेम चैतन्य लहरियाँ फैलाने वाले मुक्त किया है 56 अन्तिम निर्णय के लिए आप पृथ्वी पर अवतरित हुई हैं। 57. आप संज्ञानात्मक विज्ञान एवं संवेदनशील क्षेत्र की स्वामिनी हैं। बन्धन को शक्ति प्रदान करता है। 46. आपकी कुण्डलिनी शक्ति दिव्य स्वतन्त्रता प्रदान करती है। केवल यही वास्तविक स्वतन्त्रता है। 47. हमारे अन्दर से बिना किसी अवरोध के बहुती रहे। जीवन्त चैतन्य लहरियां प्रदायक 58. मानव जिस चीज का संकल्प करते हैं उसका विकल्प करके आप उसके अहम् को नष्ट करती है। अपनी अंगुली के जरा से इशारे से आप हिटलर जैसे तानाशाह को अपने फोटो द्वारा अन्य लोगों को चैतन्य देने में हमारी सहायता करें। 48. आपका महामाया स्वरूप हमें आपका सामीप्य प्रदान करता हैं तथा आपके अन्दर से 59. सूक्ष्म विनोदमय शैली में आप अत्यन्त प्रसारित होने वाली भयावह शक्ति से हमें समाप्त कर देती है। गहन शिक्षा देती हैं। 60. सहजयोगियों को आप कटु शब्दों से नहीं सुधारती, अपने गहन प्रेम तथा मृदुल स्नेह से ये कार्य करती हैं। बचाता है। 49. हे श्री आदिशक्ति, कृपा करके हमें अन्तर्दर्शन की गहन शक्ति प्रदान करें ताकि हम आत्मशोधक तथा आत्मचेतन बन सकें। 61. आप सभी धर्म-ग्रन्थों के सूक्ष्म अर्थ की 50. आप ही वो माँ है जिनकी इच्छा थी कि व्याख्या करती हैं। मानव ही सर्वशक्तिमान परमात्मा के दर्पण बने। 62. प्रत्यक्ष रूप से आप असत्य का अनावरण करती हैं। 63. भय नामकी चीज आपमें नहीं है और सहज 51. मानवता के पुनरुत्थान के लिए आपने सहजयोगियों में आत्मा के सुन्दर दर्पण हैं। योगियों को आप पूर्ण सुरक्षा प्रदान करती हैं। कलात्मक रूप के बनाए 52. आपकी करुणा सर्वशक्तिमान परमात्मा के क्रोध के प्रकाप से हमारी रक्षा करती 64. अपने बच्चों को आप प्रेम करती हैं और है। उनका सम्मान करती हैं ताकि सारी मानवता 53. माया के कारण मानव, जीवन के सिद्धांतो को भूल गया है। अब सहजयोग के माध्यम से मनुष्य श्री आदिशक्ति का स्मरण करता है और उनकी चैतन्य लहरियों को आत्मसात के लिए वे श्रेष्ठ आदर्श बन सकें। आपने सहजयोगियों को निष्पाप विनोदमयता एवं पूर्ण आनन्द का जीवन प्रदान किया है। ॐ त्वमेव साक्षात् श्री आदिशक्ति नमो नमः । चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 3-4, 2000 26 গtc श्री माताजी की कनाडा यात्रा (1999) श्री माताजी का टोरोंटो में आगमन :- भी थी क्योंकि झील का स्तर नीचे जा रहा था यह खबर पाकर कि श्रीमाता जी अमरीका जिसके कारण अधिकारी चिंतित थे। इस प्रकार जाने से पूर्व टोरोंटो आएंगी, कनाडा के सहजयोगी विष्णु माया ने आदिशक्ति के स्वागत के लिए वातावरण को शुद्ध करके तैयार कर दिया और हम लोग उनके आगमन का बड़ी उत्सुकता बम हर्षमय आश्चर्य से भर गऐ थे। ये सुनना आनन्दमय था कि आदिशक्ति अपनी मंगलमय उपस्थिति से कनाडा को आशीर्वादित करेंगी श्रीमाताजी ने पूर्वक इन्तजार कर रहे थे। कृपा करके टोरोंटो की सामूहिकता को सन्देश भेजा कि यद्यपि जन कार्यक्रम के लिए समय बहुत कम है फिर भी हमें परिणाम की चिन्ता योगी उनका स्वागत करने के लिए मौजूद थे नहीं करनी चाहिए, क्योंकि परिणाम अपेक्षा से कहीं बढ़कर होंगे और इस बार हमेशा से हुए श्री माता जी ने सात कस्टम अधिकारियों को अधिक जिज्ञासु इस कार्यक्रम में उपस्थित होंगे। पोस्टर छापे गए और टोरोंटो शहर और उसके आस पास के क्षेत्रों में लगाए गए। सभी मुख्य स्थानों पर पत्रिकाएं बाँटी गई। समाचार पत्रों में हवाई पतन पर देखकर श्री माताजी बहुत प्रसन्न समाचार छापे गए और जाने माने लोगों को, हुए और कहा कि कनाडा में सहज योग कुछ राजनीतिक क्षेत्र के लोगों को भी, निजी रूप से आमंत्रित किया गया। उन्हें निजी रूप से टेलिफोन हवाई पतन पर प्रेम पूर्वक आए जर्मनी के किए गए, फैक्स दिए गए और ई मेल किए सहजयोगियों का भी उन्होंने वर्णन किया टोरोंटो श्री माताजी टोरोंटो में 25 मई 1999 की शाम को पहुँची। हवाई पतन पर लगभग 150 अप्रवासी क्षेत्र में अपने सामान की प्रतोक्षा करते आत्मसाक्षात्कार दिया जो इसके पश्चात् , जब तक श्रीमाताजी ने हवाई पतन छोड़ नहीं दिया, उनके साथ बने रहे । इतने अधिक योगियों को है बढ़ा तथा तेजी से फैल रहा है। फ्रैंकफर्ट गए। कनाडा की संघ सरकार के अधिकतर मंत्रियों को तथा राज्य सरकार के मंत्रियों को आते हुए फ्रेंकफर्ट पर उनका जहाज रुका था। तब उन्होंने स्वागत के लिए आए सभी सहजयोगियों सूचना दी गई तथा टोरोंटो कार्यक्रम तथा आगे से पुष्प स्वीकार किए और उन्हें आशीर्वाद आने वाले वैकूवर कार्यक्रम के लिए आमंत्रित दिया। वहां जब वे अपने सिंहासन पर बैठी हुई किया गया। जिस होटल में हम अपनी परमेश्वरी मुस्कुरा रही थीं तो हमारे हृदय आनन्द से झूम माँ को ठहराना चाहते थे, उसमें हमें कमरे भी रहे थे और हमारी आत्माएं नृत्य कर रही थीं। मिल गए। होटल के मैनेजर ने अपने सम्माननीय अतिथियों को दूरारे कमरों में जाने के लिए कह दिया ताकि वे उस स्थान पर अपने बहुमूल्यतम जैसे स्पष्ट रूप से श्री माताजी ने निर्धारित किया और सम्माननीय अतिथि (श्री माता जी) को रख सकें। श्री माताजी के आने से पूर्व न केवल घटित हुआ। सभागार में लगभग एक हजार टोरोंटो में परन्तु ओन्टारियो राज्य में लगातार तीन उपस्थित लोग उत्सुकता पूर्वत कार्यक्रम आरम्भ दिन तक बारिश हुई। वारिश की बहुत आवश्यकता होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। लगभग साढ़े सात टोरोंटो विश्वविद्यालय के दीक्षांत सभागार में जन कार्यक्रम हुआ। जनकार्यक्रम का घटनाक्रम, था, सभी कुछ वैसे ही एक गीत की तरह से चैतन्य लहरी खंड 27 : XII अंक : 3-4, 2000 बजे कार्यक्रम आरम्भ हुआ। इसका श्रेय युवाशक्ति कौन है? स्वयं को जान लेने के पशचात् आप को है जिन्होंने काफी परिश्रम करके मंच को समय पर तैयार किया। स्टीवन डे ने सरोंद पर राग यमन बजाया और दर्शकों को ध्यान मुद्रा में प्रश्नोत्तर इस लेख के अन्त में दिए गए हैं । समझ जाएँगे कि मैं कौन हूँ?" प्रश्नोत्तर सत्र के पश्चात् (कुछ अन्य श्रीमाताजी ने कहा कि अब समय है कि सभी ले जाकर उनका मन मोह लिया। तब दस मिनट में एक सहजयोगी ने प्रभावशाली ढंगा से सहजयोग लोग आत्मसाक्षात्कार ले लें। इसके पश्चात् जो का परिचय दिया और सूक्ष्म तनत्र तथा चक्रों के विषय में बताया। आश्चर्य की वार्त है कि ज्यों ही उसने अपना भाषण समाप्त किया अपनी शीतल समीर का अनुभव किया और देखा कि उपस्थिति द्वारा श्री माताजी ने हम पर कृपा वर्षा की। उनका स्वागत करने के लिए सभी लोग इस समीर (हवा) से खड़े हो गए। वह संध्या श्री माताजी की थी। वे दिव्य हुआ अधिकतर सहजयोगियों के लिए वह असाधारण अनुभव था। पूरे सभागार में हमने घटित श्रीमाताजी के पीछे लगा हुआ झण्डा (Banner) लहरा रहा था। श्रीमाताजी ने श्रोताओं को बताया कि उन्हें श्रोताओं से आती हुई शीतल वायु महसूस हो रही है। क्या कृपा थी! टोरोंटो वास्तव में 'शीतल' हो गया था। रूप में थीं। अत्यन्त सुगम एवं साधारण तरीके से उन्होंने सहजयोग के लाभ बताए। उनकी शैली इतनी विनोदमय थी कि सभी ने हंसते गाने के लिए कहा और श्रोताओं को इसका अर्थ हंसते इसे स्वीकार किया। पूरा प्रवचन करुणा से आते-प्रोत था और उनकी आवाज से परमेश्वरी तालियाँ बजाकर वे भी साथ दें क्योंकि ऐसा माँ का प्रेम एव सुहृदयता छलक रही थी। करने से चैतन्य लहरियाँ बढ़ती है। सभागार उन्होंने, नि:सन्देह, साक्षात श्री सान्द्रकरुणा के रूप में अपनी अभिव्यक्ति की। बाद में होटल तालियाँ बजाने में साथ दिया। भजन आरोह की के कमरे में उन्होंने कहा कि जिस दिशा में स्थिति में पहुँच गया और उसके माध्यम से अमरीकन समाज जा रहा है वे उसके लिएहमारी चैतन्य लहरियाँ शिखर पर पहुँच गई। एक चिन्तित हैं। उन्होंने कहा कि केवल सहजयोग ही उनकी सभी समस्याओं का समाधान है। श्रीमाताजी ने श्रोताओं से प्रश्न पूछने के लिए कहा क्योंकि उन्हें लगा कि वे बुद्धिमान गए। लोग थे। फिर भी उन्होंने अनुरोध किया कि केवल प्रासंगिक प्रश्न ही पूछे जाएं। एक बार से मिलने की सहमति दी। उन्होंने उनसे डेढ फिर श्री माताजी ने निरस्त कर देने वाली श्री माताजी ने भजन गाने वालों से जोगवा बताया। उन्होंने श्रोताओं से अनुरोध किया कि आनन्द से परिपूर्ण था और श्री माताजी ने भी दो मिनट के लिए पूर्ण स्तव्धता फैल गई। तत्पश्चात् श्री माताजी ने सभी को आशीर्वाद दिया उनके प्रस्थान के समय सभी लोग खड़े हो अगले दिन श्री माताजी ने तमिल दूरदर्शन घण्टे तक बातचीत की। वे श्रीमाताजी पर एक स्वाभाविकता एवं सहजतापूर्वक अपनी विनोदमय वृत्तचित्र बनाना चाहते हैं। एक दिन पूर्व हुए जन शैली में प्रश्नों के उत्तर दिए। यह पूछे जाने पर कि वे कौन है? उन्होंने उत्तर दिया, " मैं कौन हूँ आत्मासाक्षात्कार भी प्राप्त किया था। श्री माताजी इसकी चिन्ता करने के स्थान पर आप यह के प्रति वे अत्यन्त नतमस्तक थे और साक्षात्कार समझने का प्रयत्न क्यों नहीं करते कि आप कार्यक्रम को भी उन्होंने फिल्माया था और (Interview) के समय वे उनके श्री चरणों में चैतन्य लहरी 28 खंड : XII अंक : 3-4, 2000 बैठे रहे। उत्तरी अमरीका तथा दक्षिणी अमरीका के उन क्षेत्रों में, जहाँ दक्षिण भारत के तमिलनाडू वाशिंगटन और न्यूयॉर्क की तरह से श्री माताजी राज्य से आए तमिल जाति के गैर इसाई लोग नगर के साधकों को सम्बोधित किया। टोरोंटो, ने यहाँ भी श्रीताओं से प्रश्न पूछने के लिए कहा रहते हैं. इस साक्षात्कार को प्रसारण किया जाएगा। ताकि आत्मसाक्षात्कार से पूर्व उनकी सारी इसके पश्चात् श्री माताजी हवाई पतन के लिएमानसिक उत्कठाओं को शान्त किया जा सके। रवाना हो गई। उन्होंने थोड़े से शब्द कहे और सच्चे साधक की निष्कपटता से एक व्यक्ति ने अभी के लिए अलविदा कही। अपनी शाश्वत् प्रश्न किया, " जीवन का लक्ष्य क्या है,' अत्यन्त सुन्दर मुस्कान के साथ परमेश्वरी माँ न्यूयॉर्क में प्रतीक्षा करते हुए अपने बच्चों से मिलने के लिएबन जाना' चल पड़ी। लगभग सौ लोगों ने पहले अनुवर्ती कार्यक्रम में भाग लिया। उनकी सच्चाई और दिलचस्पी उनकी ईमानदारी के लिए श्रीमाताजी ने सराहना साधारण है " श्रीमाताजी ने उत्तर दिया "दिव्य अपनी अन्तर्वेदना तथा साधना के दर्द को प्रकट करते हुए एक अन्य साधक ने प्रश्न पूछे। की। पहली पाक्ति में बैठे हुए एक युवा लड़के ने जानना चाहा कि शैतान हमारे अन्दर किस बहुत ही आश्चर्य चकित कर देने बाली थी। चार भाग वाले अनुवर्ती कार्यक्रम को योजना बनाई गई थी जिसमें, साक्षात् परमात्मा के सम्मुख प्रकार आ जाता है। एक अन्य व्यक्ति ने मंच के हाल ही में साक्षात्कार प्राप्त किए, अपने नए पीछे के पर्दे पर बने चित्र के विषय में पूछा? भाई-बहनों को जीवन के गहन अर्थ को खोजने श्रीमाताजी ने कहा कि वह तो केवल सजावट के लिए हमने उनका प्रेम पूर्वक पथ प्रदर्शन के लिए था। श्रीमाताजी ने चेतावनी दी, "आप सभी कुछ देखते हैं। परन्तु वास्तविकता को क्यों नहीं देखते?" जन-कार्यक्रम के पश्चात् श्री -आशीष प्रधान टोरोंटो माताजी ने कार द्वारा नगर का भ्रमण किया स्टेनले पार्क और उत्तरी तट पर्वत ताकि शाम की तेज करना था। बोलो ज़गन्माता श्री निर्मला देवी की जय श्री माताजी वैकूवर में - वैकूवर नगर मे अब 2500 नव साक्षात्कार प्राप्त लोग हैं परम पूज्य चैतन्य लहरियों को फैला सकें। थोड़ी देर सोने माताजी श्री निर्मला देवी के दो जन कार्यक्रमों के पश्चात् रविवार प्रातः दूसरे जन कार्यक्रम के उपनगर, सरे में उनके घर में एक भेंट तथा होटल के कमरे में पत्रकार सम्मेलन के पश्चात् में बोलते हुए उन्होंने यहाँ उपस्थित श्री कृष्ण हमारा नगर उनके सूक्ष्म चित्त दृष्टि पड़ने के भक्तों को बताया कि उनके लिए तो कारण भली भांति चैतन्यित एवं आशीर्वादित हो लिए बर्नबी (Burnby) मन्दिर गई। शुद्ध हिन्दी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना सुगम होना चाहिए। अत्यन्त श्रद्धा तथा सम्मान-पूर्वक श्री माताजी का परिचय करते हुए पुजारी ने कार्यक्रम को आगे गया। अट्ठारह वर्ष पूर्व उनकी पहली यात्रा से लेकर अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ था। 26 जून शनिवार को शिकागो से आकर श्री माताजी बढ़ाने के लिए मार्ग प्रशस्त किया। बर्नवी से श्री ने आन्तरिक बन्दरगाह पर बने शहर के मुख्य सम्मेलन कन्द्र पर जन कार्यक्रम किया। एक्सपो सहजयोग आश्रम ही है। यहाँ उन्होंने सहजयोगियों 86 के लिए कनाडा के मंडप के रूप में बने का स्वागत किया। दोपहर का खाना खाकर इस एतिहासिक मण्डप में श्री माताजी ने हमारे माताजी सरें स्थित अपने घर आई। यह भी एक आराम किया। चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4 2000 29 शाम को होटल वापिस जाकर पाँच समस्या ये है कि वे पशु अवस्था में विकसित संवाददाताओं के लिए एक संवाददाता सम्मेलन हुए हैं। अत: मैं सोचती हूँ कि मानव रूप में ये विकास पूर्ण नहीं हैं। जो भी हो, ये दुर्गुण जो अभी तक हमारे अन्दर, हमारे व्यक्तित्व में बने हुए हैं, ये वशानुगत हैं। हम बहुत अधिक सोचते हैं. बहुत अधिक चीजें इकट्ठी करते है और हमारे अन्तःस्थित ज्ञान भी बदलता रहता है, जैसे भाजन आदि के विषय में और हम एक प्रकार से लोभी व्यक्ति बन जाते हैं। हमारे अत्यन्त धन लोलुप हो जाने के कारण पूर्ण प्रणाली एकदम से बदल जाती है। ये दुर्गुण अभी तक भी हमें बने हुए हैं और उसके साथ-साथ ईष्ष्यां और आक्रामकता का गुण भी हमारे अन्दर विद्यमान है। ये सभी कुछ हममें वंशानुगत है। हुआ। नगर की लोकप्रिय पत्रिका (Common Ground) कॉमन ग्राऊंड के सम्पादक भी इन पांच में से एक थे। राष्ट्रीय धार्मिक केबल चैनल विजन (Vision) के कर्मी दल के सदस्य और वैंकूवर भारतीय प्रजाति के समाचार और दूरदर्शन के सदस्य श्रीमाताजी के सम्मुख फर्श पर जूते उतारकर बैठे हुए थे। अगली सुबह श्रीमाताजी की स्वीकृति लेने तथा उसकी अशुद्धियाँ दूर करने के लिए उन्हें एक लेख पेश किया गया| इस लेख की भाषा ऐसी थी मानों किसी सहजयोगी ने लिखा हो । हमारे नगर पर श्रीमाताजी की कृपा दृष्टि से हम अत्यन्त आशीर्वादित महसूस कर रहे हैं। हवाई पतन पर श्री माताजी के आगमन और ऐसे व्यक्ति बन जाते हैं जो बिना प्रतिक्रिया किए प्रस्थान के समय हर एक सहजयोगी व्यक्तिगत चीजों को देख सकता है रूप से उन्हें पुष्प अर्पण कर सकता था। जब वो सरें आश्रम में गई तो हर एक को उनके चरणों आत्मसाक्षात्कार के परिणामस्वरूप आप एक उनपर दृष्टि रख सकता हैं। मेरे विचार से वह महानतम लाभ है। प्रश्न :क्या आपने गाँधीजी के साथ कार्य में प्रणाम करने का, उन्हें उपहार देने का या किया? अपनी समस्या के विषय में बातचीत करने का श्री माताजी : इस प्रकार मैने उनके साथ कार्य अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने अपने सभी बच्चों नहीं किया। उस समय में सात साल की नन्ही को समय दिया। उन्होंने कहा कि परम चैतन्य बालिका थी. मैं उनके साथ रही और वो मैरे इतना प्रसन्न है कि वे (श्रीमाताजी) घर को विषय में जान पाए। आत्मसाक्षात्कारी होने के चैतन्य लहरियों से भर देना चाहते हैं। इस प्रकार कारण वे मुझे पहंचान गए। परन्तु महात्मा गांधी बहुत अधिक अनुशासन बद्ध थे इसलिए लोग उनके इस गुण को (आत्मसाक्षात्कारी होना) न हम धन्य हुए। प्रश्नोत्तर वैकूवर यात्रा में श्री माता जी ने अपने समझ सके। वे अत्यन्त आध्यामिक व्यक्ति थे होटल के कमरे में एक संवाददाता सम्मेलन किया। चार संवाददाता उपस्थित थे। ये कामन मैंने एक ही कार्य किया, कभी-कभी मैं उनका ग्राऊंड पत्रिका, यू मैगजीन, द लिंक न्यूज पेपर क्रोध शान्त किया करती थी, उनका मनोरजन और वीजन ऑफ फन टेलिविजन के कार्यक्रमों करती थी। वे मुझसे पूछा करते थे कि वे भजन और बच्चों से बहुत प्रेम करते थे। उनके साथ के प्रतिनिधि थे। इसका एक छोटा सा उद्धरण निम्न लिखित है। श्रीमाताजी : आप देखिए मनुष्याों के साथ किस प्रकार लिखें। भजनावली में सारे मन्त्र लिखे हुए थे, वे इसे एक क्रम से लिखना चाहते थे। भिन्न चक्रों के अनुसार मैंने उन्हें बताया कि चैतन्य लहरी खंड : XI1 अंक : 3-4, 2000 30 मानलो आप पिता हैं। आप अपने बच्चे को क्या आपको यह चक्र जागृत करने होंगे। बनाना चाहेंगे। प्रसन्नचित, आनन्दमय और जिम्मेदार प्रश्न : क्या हमारा अस्तित्व एक है।? श्रीमाताजी : सभी लोग जुड़े हुए हैं परन्तु व्यक्ति। जब आप अपने बच्चे को ऐसा बनाना आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति इस सम्बन्ध को महसूस चाहते है तो आपके परमपिता आपसे क्या आशा कर सकते हैं, जो आत्म साक्षात्कारी नहीं हैं वे करते हैं? वे भी चाहते है कि आप प्रसन्न एवं इसे नहीं समझ सकते। वे सब एक ही व्यक्ति हैं, एक ही आध्यात्मिक अस्तित्व के अंग प्रत्यंग। नहीं है। अत: वे अज्ञान को दूर करना चाहते है। इसे हम सर्वशक्ति मान परमात्मा कह सकते हैं। आपके जीवन का यही लक्ष्य है आनन्दमय व्यक्ति बने। अज्ञानवश आप ऐसे प्रश्न : कोई यदि तनाव की स्थिति में है और उसके पास ध्यान धारणा करने का, सामूहिकता में जाने का अवसर भी नहीं है, तो ऐसी कौन सी विधि है जिससे वे तुरन्त अपनी चैतन्य लहरियों को बढ़ा सकें ताकि परमात्मा तथा, समाज के दृष्टिकोण से समस्याओं का समाधान देख सके ? श्रीमाताजी : जैसा मैने आपको पहले बताया है इस बात का ज्ञान हमें होना चाहिए। अपनी चेतना में हम नहीं आ पाए है। अभी तक प्रवेश नहीं कर पाए हैं। एक बार जब ये स्थिति आ जाएगी, तब आप जानते हैं कि आप भिन्न व्यक्तित्व के हो जाएगे। प्रश्न : ये सारी चीजे कब कार्यान्वित होगी? श्रीमाताजी : यह सब लोगों की इच्छा पर निर्भर ये आपका मौलिक अधिकार है। यदि हालात करता है। मेरी इच्छा तो ये है कि यह कल आपके पक्ष में नहीं है फिर भी चीजे कार्यन्वित होती हैं, स्वत: ही कार्यान्वित होती है। आपको घटित हो जाए। मूर्खतापूर्ण चीजों में हम अपना जीवन क्यों बर्बाद करें। हमें होश में आ जाना चाहिए। मैं यही चाहती हूँ। मैं तो यात्राएं करती सारे अवसर प्राप्त हो जाते हैं । मैने ऐसे बहुत से रहती हूँ, भाषण देती हूँ, बातचीत करती रहती लोगों को देखा है जिनको ऐसी समस्याएं थीं। परन्तु इनके समाधान के लिए वे कार्य करते हैं। परमात्मा के प्रेम की शक्ति पर विश्वास करें हूँ। परन्तु सत्ता पर आसीन लोगों को भी यह बात समझनी चाहिए। प्रश्न : आप परमात्मा तक किस प्रकार पहुँचते. और देखें कि कितनी सुन्दरता पूर्वक यह कार्य हैं? दूसरे शब्दों में क्या यह परमात्मा को प्राप्त करने का मार्ग है? श्रीमाताजी : हाँ, नि:सन्देह ऐसा है। यह निर्वाण श्री माताजी को आमंत्रण देता है कि अगले दिन है। 26 जून 1999 शनिवार के दिन परम पूज्य माताजी श्री निर्मलादेवी ने वैकूवर में एक जन कार्यक्रम किया इसमें उन्होंने श्रोताओं के प्रश्न आमंत्रित किए। करती है। ठीक है? परमात्मा आपको धन्य करें। वैंकूवर के हिन्दू मन्दिर में एक व्यक्ति आकर कार्यक्रम करें। उसके उत्तर में श्रीमाताजी कहती है: आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आप देखें कि मन्दिर, गुरुद्वारे, चर्च, ये सभी आध्यात्मिकता सिखाने के लिए हैं। इसका यही अन्त नहीं हो जाता। अन्त क्या है? इसका अन्त प्रश्न : जीवन का लक्ष्य क्या है? है स्वयं को पहचाननां, आध्यात्मिकता सम्पन्न श्रीमाताजी : दिव्य बनना सीधी सी बात है। यह ऐसा प्रश्न है जो हमारे अन्दर महसूस किया होना। मैं आपको बता रही हूँ कि आपको अपने जाना चाहिए। मानव जीवन का लक्ष्य क्या है? बौद्धिक व्यक्तित्व से ऊपर उठना होगा और इसके लिए कुण्डलिनी जागृति प्राप्त करनी होगी। दिव्य बनना और परमात्मा का अंग प्रत्यंग बनना। चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4, 2000 31 ন 5 55555 उद्धारक स्थक त्तक 乐乐乐乐555乐乐5乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐 स्वस्तिक शब्द का अर्थ क्या आपने कभी जिन संस्कृतियों ने स्वस्तिक का सम्मान किया किसी पुस्तकालय में देखा? इस लेख को लिखते और इसका मंगलमयता के प्रतीक के रूप में विस्तृत रूप से उपयोग किया उनकी अधूरी सूची नीचे दी जा रही है। यह इस प्रकार है: भारत, चीन, यूनान के मैसिनियन आयरलैण्ड आप द्वितीय विश्व युद्ध पर खोज कर रहे हैं?' के सेल्फस, प्राचीन बर्तानिया, स्केण्डेनेविया, मध्य पूर्व के प्राचीन इसाई. मूल अमरीकन. हुए न्यूयॉर्क पब्लिक लायब्रेरी के संदर्भ पुस्तका- ध्यक्ष से स्वस्तिक शब्द पर काई पुस्तक देने के लिए जब कहा गया तो उसने उत्तर दिया, क्या जब उसे बताया गया कि स्वस्तिक हिन्दू तथा अन्य धार्मिक परम्पराओं में अत्यन्त सम्माननीय प्रतीक है, तो उसने लेखक को पुस्तकालय के कला विभाग में भेज दिया, वहाँ पर हालात कुछ में, की उपस्थिति चमत्कारिक गुणों को प्रदान रूस जापान और जर्मनी। सच्चे स्वस्तिक, घड़ी की सुई की दिशा है करती है। यह बाधा निवारक का कार्य करता बेहतर थे। पुस्तकाध्यक्ष ने कहा, "ओह! आप श्री और इसीलिए श्री लंका से जाने वाले जहाजों पर गणेश और स्वस्तिक में दिलचस्पी ले रहे हैं वे श्री शिव और पार्वती के पुत्र हैं। उनके विषय में विजय को विश्वस्त कर सकें। चीन में श्री बुद्ध यहाँ पर एक संदर्भ है। स्वस्तिक क्योंकि सहज योग तथा मानव जीवन का महत्वपूर्ण अंग है अतैव इसका इतिहास और अर्थ समझा जाना अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। तृतीय जर्मन साम्राज्य की यह चिन्ह बनाया जाता था ताकि श्री राम की के चरण कमलों पर पत्थरों में स्वस्तिक चिन्ह बनाया जाता था वहाँ पर इसे वांतजूते नाम दिया गया और यह हितैषी समाज, जीवन की पूर्णता और बुद्ध के हृदय का प्रतीक माना जाता है । वास्तव में स्वस्तिक उन सभी स्थानों पर चेतना को प्रभावित किया है फिर भी स्वस्तिक पाया जाता है जहाँ मानव गया। प्राचीन भारतीय गुफाओं की दीवारों पर हजारों स्वस्तक चिन्ह किया जा सकता। यह मानव का प्राचीनतम चित्रित किए गए हैं और आज भी ग्रामीण प्रतीक है और इसका आकार वास्तव में श्री महिलाएं अपने दरवाजों और घर की दीवारों पर गणेश की शक्ति प्रदान करता है। स्वस्तिक की स्वस्तिक चिन्ह बनाती है। प्राचीन यूनानी सिक्कों, शक्तियाँ अत्यन्त शक्तिशाली एवं पवित्र हैं और रोमन चित्रकारी तथा प्राचीन यूरोप की सिलाई पर यह निशान बनाया जाता है। शताब्दियाँ बीच में बीतने के साथ-साथ स्वस्तिक की समझ नकारात्मकता ने स्वस्तिक के विषय में जन के विषय में शुद्ध सत्य को कभी परिवर्तित नहीं उनकी उपस्थिति का आभास कराती हैं। स्वस्तिक शब्द संस्कृत का है, जिसका उद्भव स्वस्ति शब्द से हुआ है अर्थात् सुख, लोगों के जीवन से दूर होती चली गई। पवित्रता शांति। सु अर्थात अच्छा और अस्ति अर्थात् होना। को रोजमर्रा के जीवन की गतिविधियों से पृथक 32 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4, 2000 कर दिया गया फिर भी घरेलू वस्तुओं, कपड़ों, गणेश-गणेश और ईसा-मसीह एक ही सिद्धान्त इमारतो के खम्भों पर मंगलमयता के चिन्ह के के दो पक्ष थे तथा ईसामसीह ही के क्रूस प्रतीक के रूप में स्वस्तिक दिखाई देता था जो जो सत्य न था, जुड़े हुए थे। से. कि भूतकाल की अपेक्षा कम चेतन था। सीधे, घड़ी की सुई की दिशा में ही. बने स्वस्तिक में ही चैतन्य लहरियाँ देने का गुण है उल्टी दिशा में बनाए गए स्वस्तिक मंगलमय नहीं होते। इनका उपयोग आसुरी लक्ष्य प्राप्त करने के लिए तांत्रिकों ने किया। बहुत सी संस्कृतियों ने स्वस्तिक का उपयोग सजावट के प्रतीक के रूप में उल्टा या सीधा किया क्योंकि लोगों को चैतन्य लहरियों को ज्ञान बहुत कम था और उनके चक्र कुण्डलिनी के प्रति संवेदन विहीन थे। यह जानकर हैरानी सहजयोग के माध्यम से हम जान जाते हैं कि श्री गणेश के गुण, अबोधिता एवं विवेक, सूक्ष्म स्तर पर जींवत कोषाणुओं में निवास करते है। जीवन सृजन पिण्ड के सूक्ष्म अणुओं में भी, जिनका आकार कुण्डलित होता है. स्वस्तिक प्रतीक होता है। आणविक स्तर पर स्वस्तिक कार्बन के अणुओं में दिखाई पड़ता है। सहजयोगी बैज्ञानिकों के शोध परिणामों को श्री माताजी ने स्वीकार किया कि स्वस्तिक तथा ओंकार, अल्फा और ओमेगा, आदि और अन्त के प्रतीक हैं और इन्हें कार्बन के अणुओं से बने भाग के होती है कि अन-चाहे स्वस्तिक के उल्टी दिशा में बनाए जाने के कारण और उसके उपयोग से रूप में देखा जा सकता है। पूरे समाज परमात्मा को रुष्ट करने के कारण पतन को प्राप्त हुए प्राचीन इसाईयों ने स्वस्तिक की तुलना है। आत्मासाक्षात्कार से पूर्व साधक सन्देशों और ईसा-मसीह और सूर्य से की। हम बाइबल के प्रतीकों में चैन खोजता है, आत्मसाक्षात्कार के न्यू टेस्टा-मेन्ट में जॉन के रहस्योद्घाटन नामक अध्याय में चार देवदूतों का वर्णन है। क्रूस सम बने प्रचण्ड चक्र पर ये सभी खड़े हैं और चारों दिशाओं में से एक-एक दिशा को ये मुँह किए लोगों ने पृथ्वी तत्व की शक्ति को महसूस हुए हैं। पाश्चात्य चित्रकला के माध्यम से यह श्री गणेश के देवी गुणों की व्याख्या हो सकती लोगों के पूर्वजों ने अंजाजियों में स्वस्तिक के है। स्वस्तिक केवल प्रतिनिधित्व मात्र ही हैं। नहीं है। यह अपने आप में जीवन की उपस्थिति पश्चात् हम प्रतीक की कृपा सीधे अपने चक्रो पर महसूस करते है। विशुद्धि की भूमि पर मूल अमरीकन किया। दक्षिणो, पश्चिमी अमरीका के कोएबलों आकार अपने सुन्दर मिट्टी के बर्तनों पर बनाए। आज भी होपी जो कि उनकी सन्ताने हैं पूरे दक्षिण पश्चिम के दस हजार वर्षों के इतिहास में प्राचीन देशान्तरण की कहानियाँ सुनाते हैं। होपी लोगों का विश्वास है कि मानव रूप में वे पृथ्वी माँ के गर्भ से सीधे अवतरित हुए थे और उन्होंने चारों दिशाओं में देशान्तरण किया। जिस प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व के देशों के दार्शनिकों की स्वस्तिक के विषय में सूझ-बूझ अत्यन्त सकारात्मक थी। उन्होंने इसे ईसा-मसीह के प्रतीक तथा प्रगल्भ विकास का प्रतीक माना। चारों दिशाओं के प्रतीक के रूप में भी उन्होंने स्वस्तिक को लिया तथा पशु अवस्था से मानव अवस्था और मानव अवस्था से दिव्य अवस्था प्रकार सीधे चक्र में स्वस्तिक बनाया जाता है, उनका विश्वास है कि स्वस्तिक का ये आकार तक विकास माना। वे न जानते थे कि श्री 33 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4, 2000 उनकी यात्रा को धार्मिकता प्रदान करता है। यह उभाड़ उनके लिए नए विश्व में प्रवेश तथा एक ऐसे विश्व में वापिसी की इच्छा का सृजन करता है और अपनी चौथी भुजा से वे अपने साधकों को भोजन भेंट कर रहे हैं । अंकुश आध्यात्मिक उत्थान का प्रतीक है, रस्सी कष्टों से बचाव है जहाँ द्वार से सिर के तालू भाग तक खुला हो है । अभयमुद्रा में उठा हाथ आशीर्वाद दे रहा अर्थात माँ में वापिसी, ये उभाड़ इस चीज का है और भोजन लिए चौथी भुजा प्रसाद का आशीर्वाद है। ये सभी मिलकर अबोधिता का प्रतिनिधित्व करते हैं और प्रणव प्रदान उबरू विराजमान हैं जिन्हें अय्यर की चट्टान के करते हैं- "यही बक्त हैं जब विद्युत चुम्बकीय प्रतीक था। श्री गणेश की भूमि आस्ट्रेलिया में महान है। नाम से भी जाना जाता यह लाल रंग की एक शक्तियाँ गणेश तत्व से ऊर्जा प्राप्त करती है। बहुत बड़ी चट्टान है जो कि स्वयंभु श्री गणेश श्री गणेश के ये प्रतीकात्मक पक्ष प्रणव प्रदान है। एक प्राकृतिक भौगोलिक संस्था जिससे चैतन्य करने में और चैंतन्य लहरियों को उत्पन्न करने लहरियाँ निकलती है। अय्यर की चट्टान वहाँ में सहकारी कारण बनकर सहायक होते हैं। (श्री के मूल कबीलों के लिए पावन स्थल था। वो गणेश पूजा कबैला 19 सितंबर 1999) समझते थे कि ये विशाल पत्थर से बनी संरचना जीवित है। वैज्ञानिकों ने इस चट्टान को प्राचीनतम श्री गणेश का स्वस्तिक किस प्रकार विक्रत हो जीवाश्म अमीबा जीवन संभवत: जीवन का ही तो हिटलर की आसुरी इच्छाओं के कारण गया। श्री माताजी बताती है कि हिटलर तिब्बत चिन्ह माना है। इस चट्टान का रंग लाल हैं और इसमें चुम्बकीय तत्व हैं। विकास के मूल चुम्बकीय तथा विद्युत चुम्बकीय गुणों के विषय में श्री माताजी बताती है : इसे विद्युत चुम्बकीय कह सकते हैं परन्तु वास्तव में यह गणेश की शक्ति है जो इस स्तर पर के बीद्धों से बहुत प्रभावित था और ये बौद्ध-लोग तान्त्रिक विद्याओं में फॅसे हुए थे। उसे जब पता में विद्यमान श्री गणेश के चला कि इस प्रतीक में शक्ति है तो उसने इसका उपयोग जर्मन संस्कृति के पुनरुत्थान के भोतिक स्तर पर हम प्रतीक के रूप में किया ताकि वह अपनी आसुरी इच्छाओं को और कार्यों को न्यायोचित ठहरा सके। इतिहास में एक अन्य स्थान पर विद्युत चुम्बकीय है। यहाँ इसका उत्थान और रोमन साम्राज्य में स्वस्तिक चिन्ह का उपयोग उसकी बढातरी होनी आरम्भ हो जाती हैं। इस प्रकार विकास की भिन्न बढोतरी हम देखते हैं मानव में जैसे आप जानते है, यह मंगलमयता, पावनता और विशेष रूप से अयोधिता के रूप में अच्छाई की विजय होती है। जिस प्रकार श्री विद्यमान है।" चतुर्भुज गजानन श्री गणेश आकार माताजी हमें स्मरण करती हैं कि ईसा-मसीह की में स्वस्तिक सम है। श्री गणेश के भजन में मृत्यु के जिम्मेदार रोमन लोग थे इसके पश्चात् उनकी भुजाएं और हाथ प्रतिबिम्बित हैं। श्री विनायक के रूप में उनकी स्तुति की गई है। कि भारत से उनके व्यापार व्यवहार के मध्य वे अपने प्रभुत्व प्रदर्शन के रूप में किया। रोम के ध्वजावाहक इसे उठाया करते थे। परन्तु जिस प्रकार नाज़ियों के साथ हुआ ऐसी गलतियों पर उनका साम्राज्य दुर्बल हो गया| यह सच्चाई है "उनकी चार पावन भुजाएं है। आशीर्वाद देता समाज के प्रतीक के रूप में स्वस्तिक चिन्ह से हुआ हाथ है रस्सी तथा अंकुश उनके हाथ में परिचित हुए। परन्तु रोमन लोगों ने इसका उपयोग चैतन्य लहरी = खंड : XII अंक : 3-4, 2000 34 उल्टी दिशा में किया। स्वस्तिक के अर्थों के विषय में मूल भ्रम उत्पन्न वर्ष 1998 में जर्मनी में हुई श्री हनुमान करते हैं । आज भारत में स्वस्तिक राजनीतिक पूजा में श्री माताजी ने हनुमान जी के विषय में बताया तथा जर्मनी के दाई ओर के देवदूत सम गुणों का भी वर्णन किया। दूसरे विश्व युद्ध में चुनावों और भारतीय समाज का सकारात्मक रूप से प्रतिनिधित्व करता है। हाल ही में 1930 के दशक में अमरीका के आस-पास की सरकारी इमारतों पर जीवन एवं शुभ इच्छा के प्रतीक के श्री हनुमान ने हिटलर के साथ एक चालाकी की। आरम्भ में नाजी पार्टी ने अपने ध्वज पर रूप में स्वस्तिक चिन्ह बनाया जाता था। केवल स्वस्तिक का प्रयोग सीधी दिशा में किया। श्री पिछले पचास वर्षों से ही इससे ध्यान हट गया हनुमान ने उस स्टेनसिल को इस ढंग से बना दिया कि नाजियों ने उसे दूसरी ओर से उपयोग करने का निर्णय किया। इस प्रकार से श्री गणेश एवं शक्ति के विषय हैं। स्वस्तिक के गहन पावन रहस्य के अर्थ में बने हुए भ्रम को और श्री हनुमान ने हिटलर को युद्ध जीतने से रोका और इस प्रकार पूरा विश्व उनके आसुरी स्वस्तिक अखण्ड एवं पवित्र है तथा इतिहास प्रयासों से बच गया। सहज-योग दूर कर रहा है। श्री गणेश का और समय से परे है। सहजयोग के माध्यम से सदियों की नाजी नक़रात्मकता के कारण इसका जनसम्मान पूर्णत: पुनर्स्थीपित हो सभाओं में नए साधकों के मन में स्वस्तिक के विषय में पूर्वविचार हो सकते हैं। द्वितीय विश्व की यादों के कारण पश्चिमी संवाददाता भी जाएगा। ॐ त्वमेव साक्षात् श्री गणेश साक्षात् श्री आदि शक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः बुद्ध ा चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4, 2000 35 গ্ी हनुमान पूजा फ्रेंक फर्ट, 31 अगस्त 1990 (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला हेवी का प्रवचन) मानव अस्तित्व में श्री हनुमान जी की बच्चों पर चिल्लाते रहते हैं, और उनकी समझ महत्वपूर्ण भूमिका है। निरन्तर हमारे स्वाधिष्ठान से मस्तिष्क तक चलते हुये वे हमारी भविष्य करें। कभी कभी तो ये लोग यह सोचते हुये की योजनाओं या मानसिक गतिविधियों के लिये "मुझे तो यह प्रेम प्राप्त नहीं हुआ कम से कम में नहीं आता कि किस प्रकार बच्चों से व्यवहार आवश्यक मार्गदर्शन तथा सुरक्षा प्रदान करते हैं । मैं इसे अपने बच्चों को तो दे दूँ" अपने बच्च के प्रति अत्यन्त आसक्त हो जाते हैं। इन नितांत उग्र स्वभाव के व्यक्तियों में शिशु रूप में श्री बहुत प्रयोग करते हैं और अत्यन्त यान्त्रक भी हनुमान जी विद्यमान रहते हैं । मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। श्री हनुमान जी से देवता का, जो कि श्री राम जी के कार्य करने को हनुमान जी जर्मनी एक ऐसा देश है जहाँ के निवासी अत्यन्त चुस्त तथा उद्यमशील हैं। अपने शरीर का वे बन्दरसम उन्नत शिशु हैं, निरन्तर मानव के दायें अत्यन्त उत्सुक रहते हैं। श्री राम सुकरात वर्णित भाग में दौड़ते रहना अत्यन्त आश्चर्यजनक है। परोपकारी राजा थे, उन्हें अपनी सहायता के मानव के अन्तरस्थित सूर्य तत्व को शान्त तथा लिये किसी सचिव की आवश्यकता थी और इस कार्य के लिये श्री हनुमान जी का सृजन जन्म के समय ही उनसे सूर्य को नियन्त्रत करने हुआ। श्री हनुमान श्री राम के ऐसे सहायक और दास थे और उनके प्रति इतने समर्पित थे कि कोई अन्य दास अपने स्वामी के प्रति नहीं हो सकता। उनके समर्पण के फलस्वरूप ही शारीरिक रूप से विकसित होने से पूर्व ही उन्हें नव-सिद्धियाँ प्राप्त हो गयीं। इन सिद्धियों के फलस्वरूप उनमें कोमल बनाए रखने के लिए उनसे कहा गया। के लिए कहा गया, अत: शिशु सुलभ स्वभाव से उन्होंने सोचा कि सूर्य को खा ही क्यों न लिया जाये? यह सोचते हुये कि पेट के अन्दर सूर्य को अधिक अच्छी तरह से नियंत्रित किया जा सकता है, उन्होंने विराट रूप धारण करके सूर्य को निगल लिया। सूक्ष्म या पर्वतसम विशालकाय शरीर धारण करने की क्षमता प्राप्त हो गयी । अत्यन्त उग्र स्वभाव के व्यक्तियों को श्री हनुमान इन सिद्धियों से नियंत्रित करते हैं । जीवन में तीव्र गति से दौड़ते हुये व्यक्ति को आप किस प्रकार नियंत्रित करेंगे? श्री हनुमान जी ऐसे व्यक्ति का संचालन इस प्रकार करते हैं कि उसे अपनी गति धीमी ऐसे माता-पिता को बच्चे पसन्द नहीं करते। करनी ही पड़ती है। वे ऐसे व्यक्ति के पैर मानव की दायों तरफ को नियन्त्रित रखने के लिए उनके बाल-सुलभ आचरण का उपयोग उनके चरित्र की सुन्दरता है। दाहिनी तरफ के लोगों को प्राय: बच्चे उत्पन्न नहीं होते हैं। अत्यन्त उद्यमी लोगों को यदि बच्चे हो भी जायें तो भी बच्चों के लिए समय अभाव के कारण अत्यन्त कठोर होने के कारण ऐसे लोग सदा हाथ अत्यन्त भारी बना देते हैं जिससे कि वह चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 3-4, 2000 36 व्यक्ति अधिक कार्य न कर सके। दायीं ओर कृपा से है। झुके उग्र व्यक्ति को वे अत्यन्त अधिक अकर्मण्य करने वाली तन्द्रा भी दे सकते हैं । अपनी पूंछ को किसी भी हद तक बढ़ाकर में प्रवेश करने की शक्ति प्रदान करती है। वहुत लोगों को नियंत्रित करना उनकी एक ओर सिद्धि से वैज्ञानिक सोचते हैं कि आधुनिक युग में ही है। आप सब कहते हैं कि सभी बन्दर चालें उन्होंने अणु परमाणुओं की खोज की है परन्तु उनमें हैं। वे हवा में उड़ सकते हैं और इतना श्री हनुमान को अणिमा नामक एक अन्य सिद्धि भी प्राप्त है जो उन्हें अणुओं तथा परमाणुओं अणु परमाणुओं का वर्णन हमारे धर्मग्रन्धों में भी पाया जाता है। विद्युत-चुम्बकीय शक्तियों का शरीर द्वारा स्थानांतरित हवा का भार उनके शरीर कार्यरत होना श्री हनुमान जी की कृपा से ही के भार से कहीं अधिक होता है। यह आर्कीमडीज होता है। श्री गणेश ने उनके अन्दर चुम्बकीय के सिद्धान्त की तरह से है। वे इतने विशालकाय शक्ति भर दी है। वे स्वयं चुम्बक हैं। भौतिक सतह पर विद्युत चुम्बकीय शक्ति हनुमान जो हवा में तैरने लगता है। हवा में उड़ने की सामर्थ्य की शक्ति हैं। परन्तु भौतिकता से वे मस्तिष्क के कारण वे संदेश को एक व्यक्ति से दूसरे तक जाते हैं। स्वाधिष्ठान से उठकर मस्तिष्क विशाल रूप धारण कर सकते हैं कि उनके बन जाते हैं कि उनका शरीर नाव की तरह से व्यक्ति तक पहुँचा सकते हैं। तक जाते हैं। मस्तिष्क के अन्दर वे इसके भिन्न आकाश की सूक्ष्मता श्री हनुमान के नियंत्रण पक्षों के सह सम्बन्धों का सृजन करते हैं । यदि में है। वे इस सूक्ष्मता के स्वामी हैं और इसी के श्री गणेश हमें विवेक प्रदान करते हैं तो श्री दूरदर्शन, हनुमान हमें सोचने की शक्ति देते हैं । वुरे विचारों से बचाने के लिये वे हमारी रक्षा करते हैं। श्री गणेश जी हमें विवेक देते मार्ग से वायवीय (Etheric) सम्बन्ध स्थापित तो श्री हनुमान जी सद्सद् विवेक। बौद्धिकता के करना इस महान अभियन्ता ( श्री हनुमान जी) लिये सद्सद् विवेक आवश्यक नहीं क्योंकि आप बुद्धिमान हैं, आप जानते हैं क्या अच्छा है इसमें कोई त्रुटि नहीं निकाल सकते। आपके और क्या बुरा। परन्तु एक व्यक्तित्व को जब यंत्रों में त्रुटि हो सकती है, श्री हनुमान की नियत्रित करना हो तो सद्सद् विवेक आवश्यक कार्यकुशलता में नहीं। वैज्ञानिक जब इन चीजों है क्योंकि यह नियंत्रण हनुमान जी से आता है। माध्यम से वे संदेश भेजते हैं। आकाशवाणी तथा ध्वनिवर्धन उनकी इसी शक्ति की देन है। बिना किसी संयोजक के आकाश का ही कार्य है। यह कार्य इतना पूर्ण है कि आप की खोज करते हैं तो वे सोचते हैं कि ये प्रकृति मानव के अन्दर सद्सद् विवेक हनुमान जी ही में विद्यमान हैं परन्तु वे यह कभी नहीं सोचते हैं। सदुसद् विवेक उनकी दी हुई सूक्ष्म शक्ति है प्रकार हो सकता है। वे यह और यह हमें सत्य-असत्य विवेक बुद्धि अर्थात सत्य असत्य में भेद जानने का विवेक प्रदान की रचना करके उसके माध्यम से यह कार्य करती है। सहजयोग में हम कहते हैं कि श्री किया है। यहां तक कि हमारे अन्दर की सूक्ष्म गणेश अध्यक्ष हैं या इस विश्वविद्यालय के लहरियों का हमारी नस नाड़ियों पर, हमारे रोम कुलपति हैं। वे हमें उपाधियां देते हे । और हमें रोम पर अनुभव होना भी श्री हनुमान जी की अपनी अवस्था की गहराई जानने में सहायता कि ऐसा किस मानकर चलते हैं कि श्री हनुमान जी ने सारे तन्त्र चैतन्य लहरी । खड : XII अंक : 3-4, 2000 37 करते हैं। वह हमें निर्विचार तथा निर्विकल्प हैं कि सर्वशक्तिमान परमात्मा या श्री राम जैसे समाधि और आनन्द प्रदान करते हैं। परन्तु बौद्धिक सूझबूझ जैसे "यह अच्छा है", "यह नहीं होना। तब आप एक स्वतंत्र पक्षी होते हैं हमारे हित में है", श्री हनुमान जी की देन है और पूरी नौ शक्तियाँ आपके अन्दर जागृत हो और बुद्धिवादी होने के कारण वे पाश्चात्य लोगों जाती हैं। के लिये बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि बौद्धिकता के बिना तो उनकी समझ में ही कुछ न आता। बुराईयों का श्री हनुमान प्रतिकार करते हैं। यह श्री हनुमान के बिना यदि आप सन्त बन भी जायें तो आप इस अवस्था का आनन्द तो प्राप्त में अत्यन्त मधुरता से प्रकट हो जाता है कि कर लेंगे परन्तु यह नहीं समझ सकेंगे कि यह सन्तावस्था ठीक है या गलत, आपका हिमालय हैं। किसी भी अहंकारी का यदि मजाक उड़ाया पर रहना ठीक है या लोगों को साक्षात्कार जाये तो वह ठीक हो जाता है। जब रावण ने श्री देने के लिये जाना। यह सब विवेक, मार्गदर्शन गुरु के अतिरिक्त आपको किसी के प्रति समर्पित आपके अहं के साथ साथ बहुत सी अन्य तथ्य लंका दहन कर रावण की खिल्ली उडाने किस प्रकार वे लोगों का अहं समाप्त कर देते हनुमान से पूछा "तुम केवल एक बन्दर क्यों हो" तो हनुमान जी ने अपनी पूंछ से उसकी नाक को गुदगुदा दिया। यदि कोई अहंकारी हनुमान जी की पूजा द्वारा दायें भाग की सुरक्षा व्यक्ति आपको सताने का प्रयत्न करता है तो श्री हनुमान उसका ऐसा सजाक उड़ायेंगे कि आप इस सारी विवेक बुद्धि के बावजूद भी श्री आश्चर्यचकित उसकी अवस्था को देखकर दंग तथा सुरक्षा हमें श्री हनुमान जी की देन है। जर्मनी, क्योंकि दायें भाग का सार है अत: श्री प्रदान करना यहाँ अत्यन्त आवश्यक हैं। परन्तु हनुमान जी जानते हैं कि वे पूर्णतः श्री राम के आज्ञाकारी सेवक हैं। श्री राम कौन हैं? वे परोपकारी राजा हैं जो परोपकार के लिये कार्य रह जायेंगे। अहंकारी लोगों से आपकी रक्षा करना तथा सद्दाम हुसैन जैसे अहंकारी व्यक्तियों को करते हैं । स्वयं वे एक औपचारिक व्यक्ति हैं। नीचा दिखाकर आपकी रक्षा करना श्री हनुमान का कार्य है। इन मामले में हनुमान से कार्य आगे नहीं बढ़ते। श्री हनुमान सदैव उनका कार्य करने के लिये कहा गया और अब किस तरह करने के लिये उत्सुक रहते हैं। विवेक यह है से उन्होंने सद्दाम को कटठिनाइयों में डाल दिया कि जो कुछ भी श्री राम कहते हैं श्री हनुमान है। उसकी समझ में नहीं आता कि वह क्या को चुनता है तो पूरा इराक समाप्त हो जायेगा। वह स्वयं समाप्त हो जायेगा. कुरवैत समाप्त हो जायेगा और पूरा पैट्रोल समाप्त दायें ओर के व्यक्ति प्रायः अपने स्वामी, नौकर होने के कारण सभी लोग कठिनाई में फँस या अपनी पत्नी के प्रति अत्यन्त समर्पित होते जायेंगे। सद्दाम का क्या होगा? वह बचेगा ही नहीं हैं। परन्तु विवेकहीनता की कमी के कारण वे क्योंकि यदि अमेरिकन लोगों को लड़ना पड़ा गलत लोगों के दास होते हैं। श्री राम की वे इराक के अन्दर जाकर लड़ेंगे। तो अब श्री सहायता जब आप लेते हैं तो वे आपको बताते हुनुमान सद्दाम के मस्तिष्क में घुस कर बता रहे अत्यन्त संतुलित पुरुष, श्री राम, स्वयं बहुत उसे कर देते हैं। गुरु शिष्य के सम्बंधों से भी करे। यदि वह युद्ध बढ़कर यह सम्बंध है। शिष्य पूर्णतया ईश्वर के प्रति समर्पित तथा आज्ञापालन में दास सम है। तो चैतन्य लहरी 38 खंड : X1I अंक : 3-4, 2000 हैं, "देखो तुमने ऐसा किया तो इसका परिणाम एक माँ का है। एक गुरु के नाते मेरी चिन्ता यह यह होगा"। सभी राजनीतिज्ञों तथा अहंकारी है कि आप सहजयोग का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करें। सहजयोग विशेषज्ञ बनकर आप स्वयं के गुरु हैं और यही कारण है कि कभी कभी राजनीतिज्ञ बनें। परन्तु इसके लिये पूर्ण समर्पण की आवश्यकता है। पूर्ण समर्पित होकर ही आप चलाते हैं। श्री हनुमान का एक अन्य गुण यह है सहजयोग को चलाना सीख सकते हैं। श्री व्यक्तियों के मस्तिष्क में श्री हनुमान कार्य करते अपनी नीतियाँ बदल देते हैं और अपना कार्य हनुमान भी यह समर्पण करते हैं । अहंकारी लोग क्योंकि अहंकारी व्यक्तियों को मिलवाकर वे उनसे ऐसे समर्पण नहीं करते, अत: श्री हनुमान जी उन्हें हैं अथवा समर्पण के लिये विवश करते हैं। किसी प्रकार की बाधाओं, हमारे अहं का ध्यान रखने तथा हमें बाल-सुलभ, चमत्कारों या विधियों द्वारा वे शिष्य का गुरु कि वे लोगों को स्वेच्छाचारी बना देते हैं। दो हालात पैदा करवा देते हैं कि दोनों नम्र होकर मित्र बन जाते हैं। हमारे अन्तस का हनुमान तत्व समर्पण सिखाते के मधुर, विनोदशील और प्रसन्न बनाने में कार्यरत प्रति समर्पण करवाते हैं । गुरु के प्रति व्यक्ति का समर्पण करवाने सम्मुख नतमस्तक हो श्री हनुमान सदा उनकी की शक्ति श्री हनुमान जी की ही है। न केवल इच्छा को पूर्ण करना चाहते हैं। यदि श्री गणेश वे स्वयं समर्पित हैं. वे दूसरों को भी समर्पण मेरे पीछे बैठते हैं तो श्री हनुमान मेरे चरणों में। करवाते हैं। अहं के कारण आप समर्पण नहीं यदि श्री हनुमान की तरह जर्मन लोग भी कर सकते। अपनी अभिव्यक्ति में उन्होंने दर्शाया आज्ञाकारी हो जायें तो हमें कितनी गतिशील है कि दायें पक्ष का भी एक अति सुन्दर पहलू वे सदा नृत्य भाव में होते हैं। श्री राम के कार्यवाहिनी प्राप्त हो सकती है! है। इसका पूर्ण आनन्द प्राप्त करने के लिये सीता द्वारा दिये गये हार में क्योंकि श्री अपने गुरु के प्रति आपको दास की भांति समर्पित होना पड़ता है। बिना किसी संकोच के आपको गुरु के लिये सब कुछ करना होता है। श्री हनुमान जी का हर वक्त उनके इर्द गिर्द निसंदेह गुरु का भी कर्त्तव्य है कि आपको आत्म राम न थे अत: श्री हनुमान ने वह हार ने पहना। इसी घटना से उनके समर्पण का पता चलता है। मंडराना सीता जी को अटपटा लगा। सीता जी ने साक्षात्कार दे अन्यथा वह गुरु नहीं है। किस उनसे कहा कि केवल एक कार्य के लिये वे तरह से आप गुरु को प्रसन्न कर सकते हैं और उसका सामीप्य प्राप्त कर सकते हैं? सामीप्य का अर्थ शारीरिक सामीप्य नहीं, इसका अर्थ बजाने के लिये मैं उनके साथ रहँगा। सीता जी है एक प्रकार का तारतम्य, एक प्रकार की वहाँ रुक सकते हैं। तो श्री हनुमान जी ने कहा कि जब जब श्री राम जी जमुहाई लेंगे तो चुटकी ने उनसे छुटकारा पाने के लिये यह बात मान ली। फिर भी उन्हें वहाँ खड़ा देखकर जब सीता हृदय में मेरा अनुभव कर सकते हैं। यह समझ। मुझसे दूर रहकर भी सहजयोगी अपने जी ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने उत्तर शक्ति हमें श्री हनुमान जी से प्राप्त करनी है दिया."मैं श्री राम के जमुहाई लेने की प्रतीक्षा सभी देवताओं की रक्षा श्री हनुमान वैसे ही करते हैं जैसे वे आपकी रक्षा करते हैं । श्री गणेश मैं कर रहा हूँ यहां से कैसे जा सकता हूँ? सहजयोग में मेरा सम्बंध एक गुरु तथा शक्ति प्रदान करते हैं परन्तु रक्षा श्री हनुमान जी चैतन्य लहरी 39 खंड : XII अंक : 3-4, 2000 करते हैं । जब श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी बने तो करते हैं। दायें भाग में होने के कारण वे अहं की श्री हनुमान जी ही रथ की पताका पर आरूढ़ थे, श्री गणेश नहीं। एक प्रकार से श्री राम स्वयं श्री निश्चित रूप से बुद्धिहीन हो जाता कृष्ण बन जाते हैं, अत: श्री हनुमान जी को जी को यह पसन्द नहीं। इस बुद्धिहीनता का उनकी सेवा करनी ही होती है। जैसा कि आप जानते हैं वाहक गैब्रीयल मारिया के संदेश लेकर आये कभी कभी यूपीज रोग की तरह पुनः अवलोकन और उन्होंने "इमैक्यूलेट साल्वे" अर्थात् " निर्मल साल्वे" शब्द का प्रयोग किया जो कि मेरा नाम ओर चले जाते हैं। अहं के कारण एक मानव है । हनुमान विपरीत असर जब उन लोगों पर पड़ता है तो श्री हनुमान देवदूत गैब्रियल थे। संदेश उन्हें अपनी मुर्खता का आभास होता है। परन्तु करना अत्यन्त कठिन कार्य हो सकता है क्योंकि श्री हनुमान ऐसे व्यक्तियों से विद्युत चुम्बकीय शक्ति वापिस ले चुके होते हैं तथा उनके चेतन है। जीवनपर्यन्त मारिया को श्री हनुमान की सेवा स्वीकार करनी पड़ी। मारिया महालक्ष्मी हैं, और सीता और राधा कौन हैं? हनुमान जी को उनकी सेवा के लिये वहाँ विद्यमान रहना पड़ा। कभी मस्तिष्क से उनका संबंध समाप्त हो चुका होता है। फलस्वरूप उनका चेतन मस्तिष्क कार्य करना बन्द कर देता है। पूर्ण श्रद्धा से यदि ऐसे लोग श्री हनुमान जी की पूजा करें तभी संभवत: उन्हें बचाया जा सके। उदाहरणतया जाड़े के कारण यदि आपके शरीर पर चर्म रोग हो जाये तो उस हनुमान का उत्तरदायित्व है। जो भी योजना मेरे पर गेरू मलने से आप ठीक हो सकते हैं। किसी बाधा के कारण हुये चर्म रोग को भी आप ठीक कर सकते हैं । दूसरी ओर श्री गणेश का शरीर सिंदूर से ढका हुआ होता है जिसका प्रभाव अत्यन्त शीतल है। उनके शरीर के अन्दर की आपकी प्रार्थना की" एक व्यक्ति की माँ कैन्सर गर्मी के प्रभाव को संतुलित करने के लिये वे से मर रही थी। जब वह उससे मिलने गया तो ऐसा करते हैं। इसी कारण हम इसे सिन्दूर कहते नतमस्तक हो उसने प्रार्थना की, "श्री माता जी हैं। लोग कहते हैं कि सिन्दर कैन्सर का कारण कभी लोग मुझ से प्रश्न करते हैं कि माँ आपको कैसे पता चला? माँ आपने कैसे संदेश भेजा? माँ आपने किस प्रकार यह कार्य कर दिया? यह श्री मस्तिष्क में बनती है श्री हनुमान उन्हें कर डालते हैं क्योंकि पूरी संस्था भलीभांति संयोजित है। ये सभी संदेश आप लोगों को कहाँ से प्राप्त होते हैं? बहुत से लोग कहते हैं, "माँ मैंने बस कृपया मेरी माँ को बचा लीजिये"। श्री हनुमान उस सहजयोगी की सच्चाई तथा गहनता को शीतलीकरण कर सकता है कि आप बांयी और जानते हैं। उन्हें इस व्यक्ति के वजन का ज्ञान है। को झुक सकते हैं। कैन्सर एक मनोदैहिक रोग इसी कारणवश तीन दिन के अन्दर वह स्त्री है और बहुत कम सम्भावना है कि सिन्दूर के ठीक होकर बम्बई लायी गयी और डाक्टर ने घोषणा की कि उसका कैन्सर ठीक. हो चुका है। बन सकता है परन्तु यह आपके अन्दर इतना अत्यधिक शीतलीकरण से आपका झुकाव बायीं ओर को हो जाये आप ऐसे रोगाणुओं (वायरस) कई घटनायें जिन्हें आप चमत्कार कहते हैं, श्री से ग्रस्त हो जायें कि आप इस रोग से ग्रस्त हो की हुई होती हैं। चमत्कार करने जी सकें। परन्तु अत्यन्त दायीं ओर झुके व्यक्तियों हनुमान वाले वे ही हैं। आप कितने बुद्धिहीन तथा मूर्ख के लिये सिन्दूर लाभदायक है। उन्हें शान्त करने हैं, यह दिखाने के लिये श्री हनुमान चमत्कार के लिये उनकी आज्ञा पर सिन्दूर लगाने से उनका द्वारा चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4, 2000 40 तूफान की तरह जाकर विनाश कर देते हैं । श्री हनुमान अपनी विद्युत चुम्बकीय शक्ति के द्वारा वे ये तथा आक्रमणशीलता को ठीक करते हैं। उन्होंने सारे कार्य करते हैं । भौतिक तत्व उनके नियंत्रण हिटलर के साथ भी एक चालाकी की। हिटलर में है, वे वर्षा, धूप और हवा की रचना आपके लिये करते हैं। पूजा या मिलन के लिये वे अत: स्वस्तिक दक्षिणावर्त (सीधे चक्कर) होना उचित प्रबन्ध करते हैं । बिना किसी के जाने चाहिये था। प्रयोग में आने वाले स्टैन्सिल को सुन्दरता से सारे कार्य वे कर डालते हैं। हमें हर समय उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिये। श्री हनुमान एक तेजस्वी देवदूत हैं। वे सन्यासी या त्यागी की सलाह दी परन्तु चाल उन्होंने चली। स्वस्तिक नहीं हैं। सुन्दरता तथा सज्जा उन्हें बहुत प्रिय है के उल्टा होते ही श्री गणेश तथा श्री हनुमान उनके बहुत से भक्तों का विचार है कि वे दोनों ने हिटलर को विजय प्राप्त करने से रोक ब्रह्मचारी हैं और कम वस्त्र धारण करते हैं। अत: लिया। तो इस तरह की छोटी छोटी युक्तियाँ वे नहीं चाहते कि स्त्रियां उनके दर्शन करें । परन्तु होती रहती हैं एक बार मुझे याद है कि जर्मनी लोग ये नहीं जानते कि वे एक सनातन शिशु हैं में मेरी पूजा रखी गयी जर्मनी के लोगों को और वो भी एक बन्दर-बालक। बन्दरों के लिये क्रोध कम हो जाता है और वे शान्त हो जाते हैं। जी हमारी उतावली जल्दबाजी श्री गणेश को प्रतीक रूप में उपयोग कर रहा था उलट कर श्री हनुमान ने स्वस्तिक को उल्टा करवा दिया। आदि-शक्ति ने उन्हें ऐसा करने वस्त्र पहनना अनिवार्य नहीं। यद्यपि उनका शरीर अत: वहाँ श्री हनुमान जी बहुत चालाकी करते विशालकाय है फिर भी आप उनका सुन्दर आकार ही देख पाते हैं। बड़े-बड़े नाखूनों के दिया गया। प्राय: मैं इन चीजों को देख लेती हूँ होते हुये भी वे मेरी चरण सेवा बड़ी कोमलता से करते हैं और अब मुझे लगता है कि श्री हनुमान की कृपा से जर्मन लोगों की कार्य प्रणाली भी अत्यन्त कोमल होती चली जा रही क्योंकि हुनुमान जी की बहुत आवश्यकता है हैं। पूजा के दिन गलतीवश स्वस्तिक उल्टा लगा परन्तु उस दिन ऐसा नहीं हुआ। मेरी दृष्टि बाद में जब उस उलटे स्वस्तिक पर पड़ी तो मेरे मुंह से निकला, "हे परमात्मा इस गलती का दुष्प्रभाव है। किस देश पर होने वाला है"? श्री हनुमान मूसलाधार बारिश और वेगवान परमात्मा आपको धन्य करें। सहजयोगियों के साथ समस्या ये है कि जो भी लोग सहजयोग के कार्यक्रम में आते हैं वो स्वयं को सहजयोगी समझने लगते हैं। वास्तव में ऐसा नहीं है । (परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4, 2000 41 Sahaja Yoga a World Centres Shri K.Madhusudan Pillai C.C. 85, ALBA Post Box 570 Bahrain Mr. Mohammaed Said Ait-Chaalal 27 Avenue Pasteur Alger Algeria Telephone : (213)64 8122 Work : (213) 64 9523 Telephone : (973) 702 148 Belarus Minsk. UI. ljimskaya Dom 1 kv 56 Mr. Mariano Martinez Cuyo 937, Martinez 1640 Buenos Aires Korotky Oleg Telephoen (70172) 62 68 27 Work : (70172) 6602 13 Argentina Tel/Fax: (541) 798-9378 Mr. Roger Akigbe B.P. 362, Porto-Novo Benin Tel/Fax: (229) 21-25-25 Mr. & Mrs. Nikhil & Raani Varde Palm Apts 11B, Palm Beach 6D (Dutch Caribean) Aruba Telephon : (297) 839 662 Fax: (297) 839 253 E-Mail: nash@setrnet.aw Mr. Bernard Cruvellier Rue Piervenne 58 B 5590 Ciney Belgium Tel/Fax : (32 55) 428 265 E-Mail: cuv@skynet.be Mr. Michael Fogarty 20 Holly Street Castle Cover NSW 2069 Australia Mr Javier valderrama Los Pinos Bloque 7 Apartamento102 San Miguel. LaPaz Bolivia Tel/Fax: (612) 9417 5572 E-Mail: esis@tpgi./com.au (John Dobbie) Telephone : (5912)790 870 Fax: (5912) 391782 Dr. Engelbert Oman Auhofstrabe 231/3/1 1130 Vienna Mr. Edson Almeida Cond. Rural Vivendas da Serra. Modulo C, Casa 4 Rod. DF-150, km 2, 5 (Sobradinho Brasilia) DF 730 70-014 Brazil Austria Telephone : (43-1)877 7411 Dr. Wolfgang Hackl Schobrunner Allee 113 2331 Vosendorf Telephone: (5561)501-0834 Čell telephone : (5561) 983-9821 E-Mail: marino@if.ufrj.br Austria Tel/Fax : (43-1)6091131 Cell telephone: (66-4) 422 5686 E-Mail: wolfganghackl@aon.at 42 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 3-4, 2000 Mrs. Rosa Alexieva Mr. Michel Bikindou Complex Hippodruma Block 122, Entrance A, Floor 5 Sofia 1612 33 rue Owando-Ouenze Brazzaville Congo Mr. Radim Ryska Bulgaria Tel/Fax: (35 92) 599 360 Koziskova 511 250 82 Uvaly Czech Republic Tel/Fax: (420 2) 997 23 10 Work : (420 2) 519 33 94 E-Mail : ryska@msmt.cz Mr. Deniel Oyono B.P. 11771 Yaounde Cameroon Telephone (237) 2273 97 (Joseph Tsala) Mr. Rasmus Heltberg Hammelstrupvej 40, 2 tv 2450 Copenhagen SV Denmark Telephone : (45) 36 45 60 15 Work : (45) 32 32 44 00 E-Mail rasmus.heltberg@econ.ku.dk Mr. Jay Chudasama 390 dixon Road # 612 etobicoke OT Canada M9R 1T4 Telephone : (1-416) 614-7338 Fax : (1-416) 614-9521 (ashram) Alexei & Galina Kotlob Rohu 109-14 Nadjilem Tolasde Moudjingar c/o Ndoubalengar Mdgaou S.A.C. N.P. 185 EE-3600 Pdrnu, Estonia Telephone : (372 44) 36 043 Ndjamena, Chad Mr. Raine Salo Mr. Gerardo Bell Valenzuela Puelma 7511-Casa C. Kuusikallionkuja 3B 27 02210 Espoo Finland Santiago Chile Telephone: (3589) 855 0934 Fax:(3589) 621 4262 E-Mail : tuomas@cute.fi (Tuomas Kantelinen) Telephone : (56-2) 758 5559 E-Mail: gbell@bdachile.cl Mrs. Marie-Laure Cernay Diag 110-Nr 19-15 Bogota, colombia Tel/Fax: (571) 214-3971 E-Mail : norbert-klimt@south america.notes.pw.com Majid Colpour 47 rue de Verneuil 75007 Paris France Telephone L (33-145) 483 373 चैतन्य लहरी ॥ खंड : 43 XI1 अंक : 3-4. 2000। Mr. Guoru Pohl Lillom U. 27/A 111/8 H-1094 Buda Pest Mr. Patrick Desire Akouma Nze B.P. 146 Libreville Gabon Hungary Telephone - (36-1) 21 80 493 Fax (36-1) 2200264 E-Mail-Pohl gyorgy @ emery world.com Georgia 380094 Tbilisi UI. Sabutalo-Kutuzova kor 2, kv 13 Sandro Chubinidze Mr. V.J. Nalgirkar Sahaj Yoga Temple C-17, Qutub Institutional Area Behind Qutub Hotel Telephone : (78832) 389524 Mr. Phillip Zeiss Kastanienstrasse 19 D 14624 Dallgow Germany Telephone : (463322) 20 8870 Work : (4930 315 25 66 Fax: (49 3322 20 24 73 E-Mail: ganeshal1@cs.tu-berlin.de (Karsten Radaiz) N.Delhi-110016 91-011-6966652 Works-91-011-6179420 Res - 91-011-6178156 Fax -91/011-6866801 Prof. Dr. U.C. Rai International Sahaja Yoga Research & Health Centre Mr. Vaibhav Khopade & Thodoreos Proussis-11 104-40 Athens Greece Polt 1, Sector 8, CBD Navi Mumbai, India Telephone: (91 22) 757 6922 Fax : (91 22) 757 6795 Tel/Fax: (30-1) 884 1489 John and Guishan Fisher Kusumaatmaja 58 Menteng, Jakarta, Indonesia Telephone : (62 21) 720 6613 Mobile : 0811993312 Mr. Henno de Graaf Varikstraat 1 1106 CT Amsterdam - Z.O. Holland Telephone : (31 20) 697-2038 Fax: (31 20) 697-5131 E-Mail:degraaf@euronet.nl Mr. Oleg Kotilarsky clo Philippe Schemimann 30 A#3 Avoda St. Mr. Alex Henshaw Flat D, 6/F, Lei Shun Court 116 Leighton Rd. Causeway Bay Hong Kong Telephone: (852 2) 504-5260 Work : (852 2) 504-4779 Fax:(852 2) 504-4965 E-Mail:pohl.gyorgy@emeryworld.com 63821 Tel Aviv, Israel Telephone : (972-3) 507 3911 E-Mail : Philips@well.com (Phillippe Scheimann) 44 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 3-4, 2000 Mr. Guido Lanza Goitchoo Stevkovski Partenie Zografski 77A 91000 Skopje, Macedonia Telephone : (389 91) 226275 Vocabolo Albereto 10 HI 02046 Magliano Sabina, Italy Telephone : (39-744) 919-122 Fax : (39-744)919-904 E-Mail : Nirmala@etr.it Mr. Ivan Tan Mr.Jean-Claude Laine 17, Jalan 14/52 46100 Petalig Jaya Selangor, Malaysia Telephone : (603)7744750 Fax : (603) 718 7128 E-Mail : rbertan@pc.jaring.my 01 BP 2887 Bouake 01, Ivory Coast Tel: Work : (255) 63 25 14 E-Mail : Amon@AfricaOnline.co.com (Amon Ettien) Mr. Philippe Carton Himonya 6 chome 7-8 Megoru-ku Tokyo 152, Japan Tel/Fax: (81-3) 3760 4434 E-Mali: pcarton@softlab.co.jp Garciela Vazquez-Diaz Tejocotes 56-201 Col. del Valle Mexico D.F. 03100, Mexico Tel/Fax: (525) 575 1949 E-Mail: indoamci@rtn.net.mx Kazakhstan 486 008 Chimkent Mr. Peter Koretzki Maracesti Str. 13/1 UI Gagarin 38-45 Bondarenko Dima chisinau, Moldova Telephone: (373-2) 73 0212 Fax: (373-2) 73 86 69 Telephone : (7 3252) 12 13 68 Didier Gauvin Mr. Herbert Wiehart Gourmet Vienna French School of Nairobi (College Diderot P.O. Box 47525, Nairobi, Kenya Telephone : (254 2) 56 62 59 Chha 1-705 Thamel. Kathmandu Nepal Tel/Fax: (977 1) 415488 Ms. Irina Solomenikova Riga, Latvia Telephone : (0132) 25 93 42 Mr. Geoff Platford 24 Pukenui Road Epsom, Auckland New Zealand Gertruda Sargautiene Staneviciaus 66-64 Vilnius 2029, Lithuania Telephone : (37 02) 4781 43 E-Mail: jvkos@pub.osf.it (subj: "to Gertruda") Telephone : (64-9) 624 1788 Fax: (64-9) 625 8888 E-Mail: sahaj-nz@ihug.co.nz चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4, 2000 45 Sidzel Mugford Myrlia 31 1453 Bjornemyr, Norway Tel/Fax: (47) 66 9156 08 E-Mail: mugford@online.no Russia 119146 Moscow UI. 1 Frunzenskaya 6, kv 5 Dr. Valentina Gosteeva Telephone : (7 095) 245 25 50 E-Mail : union@sahaja.msk.su (collec- tive) Melise Rodriguez Calle Louis Pasteur 1271 San Isidro, Lima Peru Telephone: (51-14) 227315 Mr. Aziz Gueye S/c de Serigue M'Baya Gueye Direction CFAO-BP 2631 Dakar Dr. Rajiv Kumar 29 V Madrigal Street, Corrinthian Gardens Senegal Quezon City 1100, Metro Manila Philippines Telephone : (632) 633 5633 Fax: (632) 632 2381 Work: (632) 632 5709 E-Mail : rkumar@mail.asiandevbank.org Mr. Eric Sopholas Belonie, Mahe Seychelles Telephone : (248) 24 400 ext. 545 Mr. Patrick B. Sheriff c/o Sierra Rutile Limited P.O. Box 59 IXALA Mr. Tomaxz Kornacki ul. Baczynskiego 20 m.17 05-092 Lomianki/nr.Warsawl Poland Tel/Fax: (4822) 7513520 Catarina de Castro Freire R. Garcia de Orta, 70-1'C Lisboa-1200, Portugal Telephone : (351-1) 396 3149 Christian Fontaine 58, Grand Fond Exterieur 97414 Entre Deux Reunion Tel/Fax: (262) 39 62 32 E-Mail tgauvin@guetali Freetown Sierra Leone Telephone: (232) 25316 Telex: 3259 Mr. Dave Dunphy 437 Tanjong Katong Road, Apt. 24-02 Kings Mansion Singapore 437147 Telephone (65) 348 0690 Fax : (65) 348 2317 Mr. Jozef Sjuria Znievska 7 Slovakia Mr. Dan Costian Str. Constantin Nacu No. 8 Telephone : (4217) 832 316 or : (421 7) 531 5493 E-Mail L trans-eu@internet.sk 70219 Bucharest Romania Telephone: (40-1) 313-58-82 Fax: (40-1) 211-57-87 E-Mail : dcostian@syrom.sfos.ro चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4, 2000 46 Mr. Wen-Cheng Liu 2F, No 13, Alley 3 Lane 106 Sec 3, Ming Chuan East Rd. Sung-Shan District Taipei Cit. Taiwan (R.O.C.) Tel. : hom : (8862)715 5208 Mr. Dusan Rados Volceva 6 SLO-1360 Vrhnika Slovenia Telephone : (386 ) 61 755369 E-Mail: Bostjan. Troha@fmf.uni-ij-si Mr. Pascal Streshthaputra Dr. Siva Govender P.O. Box 729 Laxmi 3207 84 Sukhumvit Soi 40 Bangkok 10110, Thailand Telephone: (66 2) 712 1418 Fax: (662) 391 2373 or : (662) 382 1109 E-Mail: pascal@loxinfo.co.th Natal. South Africa Telephone : (27-331) 424484 Fax: (27-331) 424484 Fax: (27-331) 425685 E-Mail:/G=Deena/S-Govender/OU- 1751PMFS/03DTMZA.UNI/ @LANGATE.gb.sprint.com Mrs. Clarie Skinner Cumana Postel Agency Cumana Via Toco, Toco Trinidad Mr. Eduardo Marino Rua Aperana, 99 Ap. 201 22450-190 Rio de janeiro RJ Brazil South America Tunisia c/o Mr. Youcef Brahimi Roggegasse 40 1210 Wien, Austria Telephone : (431)2929 956 Telephone (55-21) 274-1753 Fax: (55-21) 239-2705 E-Mail: marino@if.ufrj.br Mr. Jose-Antonio Salgado Santa Virgilia 16 28033 Madrid, Spain Telephone : (34-1) 7643767 Fax: (34-1) 564 4457 Mrs. Nese Algan Atiye Sok Ak Apt. No. 7/7 Tesvikiye-Istanbul, Turkey Telephone : (90) 212 248 3122 Work : (90) 212 241 3487 Fax (90) 212231 3524 E-Mail: Nirmala@doruk.net.tr Mr. Rolt Carlsson Valhallanvagen 18 S-11422 Stockholm, Sweden Telephone: (46-8) 16 77 17 E-Mail: Ukraine 252 190, Kyiv - 190 Vul. Estoska, 5 , kv. 80 Galina Sabirova Telephone : (380 44) 442 6871 Fax : (380 44)412 9806 E-Mail: dobro@ipp.adam.kiev.ua rolf.carlsson@stockholm.mail.telia.com Mr. Arneau de Kabermatten 2 bis, Chemin Sous-Voie 1295 Mies, Switzerland Tele/Fax: (41 22) 779 20 37 चैतन्य लहरी खंड : XI1 अंक : 3-4, 2000 47 Mr. Manoj Kumar 270 Overpeck Avenue Ridgefield Park NJ 07660-1239 USA Pravin Saxena Sharjah United Arab Emirates Telephone : (9716)519012 Fax: (9716) 518894 Work : (97167) 571797 Mobile : 050-631 3504 E-Mail:pharmuae@emirates.net.ae Telephone: (1-201) 384-5034 Fax: (1-201) 384-0820 E-Mail: manoj-kumar@merck.com Adriana Anon Calle pedro Vidal 2217 Montvideo, Uruguay CP11600 Telephone: (59 82) 481 8781 E-Mail: anona@adinet.com.uy Mr. Derek Lee c/o 44 Chelsham Road London, England SW4 6NP United Kingdom Telephone : (44 1223) 420 855 Fax: (44 1223) 423 278 E-Mail: Mrs. Rani Lavu P.O. Box 50180 Lusaka, Zambia Telephone : (260) 1 Cell telephone : (260) 757 550 ealing@dircon.co.uk(attention:Derek Lee) 291378 48 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 3-4, 2000 ुर ुम बे वर्ष 1999 में गणेश पूजा के अवसर पर हरिद्वार केन्द्र में श्री माताजी की फोटोग्राफ से खींची हुई तस्वीर में, परम चैतन्य चार हृदयाकार कुण्डलों में। ---------------------- 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-0.txt हिन्दी आवृत्ति चैतन्य लहरी मार्च-अप्रैल- 2000 अंक 3 & 4 खण्ड - XII निर्विचार चेतना में कोई भी आपको छु नहीं सकता, यह आपका किला है। ध्यान धारणा द्वारा हमें निर्विचार चेतना स्थापित करनी चाहिए। इससे पता चलता है कि हम ऊँचे उठ रहे हैं। ध्यान करते हुए देखना चाहिए कि क्या आपको निर्विचार समाधि की अवस्था प्राप्त हुई? यह अवस्था आरम्भिक (Minimum of minimum ) स्थिति है। परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी एकादश रुद्र पूजा 1984 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-2.txt श्री आदिशक्ति का आह्वान हे परमेश्वरी माँ अपने असीम प्रेम, करुणा एवं हितेच्छा के कारण. दिव्य लोक से अवतरित हुई आप भूलोक में। ब्रह्माण्ड का सृजन करने वाली अपार हैं आपकी महान शक्तियाँ। इतनी पूर्ण है आपकी पूर्णता कि जिसका अस्तित्व है, धा या होगा. या रहंगी सदा जो अस्तित्व में निहित हैं वे सभी आपक वर्णनातीत अस्तित्व में इसके बावजूद भी हे परमेश्वरी माँ, करने के लिए अभिव्यक्ति अपने अगाध प्रेम की पथ-प्रदर्शन हमारा करने के लिए मानव रूप आपने धारण किया सुरक्षा एवं मोक्ष हमें देने के लिए सर्वशक्तिमान पूर्णातिपूर्ण सभी कुछ स्वयं में समाहित किए आप हैं फिर भी हे प्रेममुर्ति माँ अपने बच्चों के हित के लिए श्री चरणों की पूजा करने का अधिकार कृपा कर आपने उनको दिया शुभ अवसर पर आपके 77वें जन्म पर्व के नेतमस्तक हो विश्व भर के सभी सहजी बच्चे आमन्त्रित करते हैं आपको दिल्ली शहर। कृपा करें आशीष वृष्टि करें यहाँ पधार कर नतमस्तक आपके समस्त सहजी बच्चे। he 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-3.txt अंक में इस पृष्ठ नं. सम्पादकीय 1. श्री गणेश पूजा कबैला (25.9.99) 2. नवरात्रि पूजा कबैला (17.10.99) 14 3. श्री आदिशक्ति की चौसठ शक्तियाँ 23 4. श्री माताजी की कनाडा यात्रा (1999) 27 5. 32 उद्धारक स्वस्तिक 6. 36 श्री हनुमान पूजा प्रवचन-3। अगस्त 1990 7. सहजयोग विश्व कंन्द्र 42 8. योगी महाजन सम्पादक विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067। अभिनव प्रिन्ट्स, दिल्ली 34, फोन : 7184340 मुद्रक 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-4.txt লি. ले. सम्पादव ्र गणपति पुले 1999 महान कवि रविन्द्र नाथ टैगोर ने दिव्य स्वप्न देखा था कि "भारत के तट पर सभी शान्त हो गए थे और उनके प्रेम की शक्ति का जातियों के लोग माँ का अभिषेक करने के लिएसाम्राज्य चरम पर था। उनकी प्रेम लहरियाँ हमें श्रद्धेय साम्राज्ञी के सम्मुख चुलबुले मस्तिष्क On the shores of Bharata, men उस अद्भुत तट पर बहाकर ले गई जहाँ हम भूल जाते हैं कि "हम क्या हैं? कहाँ से आए of all races shall meet to anoint the "Mother" हैं? हमारे शरीर में क्या कष्ट हैं?" गणपति पुले समुद्र तट पर एकत्र होकर हर रात्रि स्वर्गीय दावत थी। जिसमें हमने सहजयोगी इस भविष्यवाणी को सत्य साबित दिव्य संगीत की मदिरा का जी भर के पान करते हैं। नव सहस्राब्दि के उदय की पूर्व संध्या किया और इनकी गुंजन का आनन्द लेने के पर श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देवी के लिए स्वप्नों में भी जागते रहे। हर सुबह. प्रेम के चरण कमलों का अभिषेक करने के लिए विश्वभर की भिन्न जातियों तथा रंगों के दस हजार से भी हमें पहले कभी न मिलা था, ऐसा प्रेम जिसकी अधिक लोग गणपति पुले एकत्र हुए। परमेश्वरी कोई सोमा न थी, परन्तु जो हमारे लिए आनन्ददायी माँ के चरण कमलों पर हृदय-पुष्प-पंखुड़ियाँ आश्चर्य ले कर आया। हम इतने आनन्द मग्न अर्पण करने के लिए सभी हृदय खुल गए। करुणामयीं माँ ने सभी हृदय अपने प्रेम से सराबोर कर दिए और दस हजार पंखुड़ियाँ कहीं पुनः हम स्वयं को खो न दें? नए उपहार का बचन लेकर आई, ऐसा प्रेम जो एवं आश्चर्य चकित थे। इससे पूर्व हम कहां सोए हुए थे? परन्तु एक बार स्वयं को पाकर आदिशक्ति के एकमात्र प्रेम कमल के रूप में खिल उठीं। परमेश्वरी माँ से प्रसारित होने वाली गहन शान्ति सभी हृदयों की गहराई में प्रवेश कर गई और इन्हें शान्त कर दिया। इस दिव्य मौन में समुद्र की लहरों के संगीत के अतिरिक्त कुछ विशेष न रहा। मानो ये लहरें उछल कर श्री नि:सन्देह हम उस अदुभुत तट से लौट आए हैं। परन्तु उनकी ( श्री आदिशक्ति) मधुर सुगन्ध अब भी हमारे हृदयों में बनी हुई है। उन्हें हम अपने पूजा-स्थल पर, अपने स्वप्नों में अपने हृदयों में, अबोध मुस्कान में, एक-दूसरे में देखते हैं। आदिशक्ति के चरण-कमलों को धोने के लिए उनके समीप आना चाह रही हों। हम जिधर भी देखें माँ ही माँ नजर आएं। चैतन्य लहरी 3 खंड : XIl अंक : 3-4, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-5.txt श्री गणेश पूजा कबैला 25.9.99 परम पूज्य मातार्जी श्री निर्गला देवी का प्रवचन आज हम यहाँ श्री गणेश की पूजा करने के लिए एकत्र हुए हैं। आप सब जानते हैं कि कार्य में आप सब अत्यन्त व्यस्त हैं और वे कितने शक्तिशाली देवता हैं। अबोधिता उनकी सभी शक्तियों का स्रोत है। नन्हें शिशुओं को जब हम देखते हैं तो स्वतः ही उनकी ओर खिंचे कार्य कर रहे हैं । परिणामस्वरूप श्री गणेश चले जाते हैं। उन्हें प्रेम करना चाहते हैं, चूमना उपेक्षित हो जाते हैं और ऐसा व्यक्ति या तो चाहते हैं और उनके साथ रहना चाहते हैं। वे आप सब का जीवन अत्यन्त व्यस्त है। अपने आवश्यकता से अधिक कार्य करते हैं। आप समझते हैं कि आप परमात्मा का बहुत बड़ा पा अत्यन्त शुष्क हो जाता है या अपने में अत्यन्त अत्यन्त अबोध होते हैं, अत्यन्त निष्पाप। श्री आसक्त। दो में से एक चीज अवश्य हो जाती है गणेश की पूजा करते हुए हमें देखना चाहिए कि और व्यक्ति को पता भी नहीं चलता कि वह किस ओर जा रहा है। सहजयोग में आपको मध्य में बनाए रखने के लिए एक ही चीज है-श्री गणेश की पूजा। श्री गणेश की पूजा क्या हम वास्तव में अबोध हैं या नहीं। आजकल लोग अत्यन्त चालाक हो गए हैं, चालाकी की कोई सीमा वो नहीं जानते अर्ोध एवं सहज लोगों के साथ वे सभी प्रकार की चालाकी का से आप सदैव मध्य में रह सकते हैं तथा आपके दाई ओर के सभी रोग भी श्री गणेश खेल खेलते रहते हैं। सदैव स्वयं को न्यायोचित्त ठहरा सकते हैं कि जो भी कुछ वो कर रहे हैं की पूजा इस आधुनिक युग में वह सब ठीक है क्योंकि आज सभी लोग चालाक हैं। यह चालाकी आपको दाई ओर के पतन की खाई तक ले जा सकती है। यह स्थिति अत्यन्त दण्डनीय है क्योंकि, इसके कारण लोगों को भिन्न प्रकार के शारीरिक रोग हो जाते हैं। उनके से ठीक हो सकते हैं। लोग श्री गणेश की पूजा भिन्न विधियों से करते हैं, परन्तु उन्हें स्मरण करने का एक सुगम तरीका ये है कि उनके ( श्री माताजी के) फोटोग्राफ के सम्मुख बैठकर उनसे चैतन्य लहरियाँ प्राप्त करें। स्वयं को सन्तुलित करने की यह सर्वोत्तम विधि है। आपके जीवन में बहुत हाथों या पैरों को लकवा भी मार सकता है, सी चिन्ताएं और संघर्ष हैं। श्री गणेश इन सब उन्हें ज़िगर आदि के रोग भी हो सकते हैं। चिन्ताओं और संघर्षों को निष्प्रभावित कर सकते यह सब हो सकता है। उन्हें दण्डित करने के हैं अबोध होते हुए भी वे अत्यन्त चतुर हैं और जब वे आपके पास आते हैं तो आप आश्चर्यचकित सकता है। ऐसी समस्याएं उत्पन्न होने की हो जाते हैं कि किस प्रकार वे कार्य करते हैं और स्थिति में, जब लोग दाई ओर के विकारों के किस प्रकार आपकी सभी चिन्ताओं तथा बाधाओं कारण कष्ट उठाते हैं तब उन्हें श्री गणेश की को दूर करते हैं । तो सीधे होते हुए भी हमारे लिए लिए एक मनोदैहिक प्रकार का रोग भी आ पूजा करनी चाहिए। उदाहरण के रूप में आजकल ये महत्वपूर्णतम देवता हैं। चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 3-4, 2000 4 न 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-6.txt मूलाधार चक्र बहुत ही जटिल है, किसी भी संकट की स्थिति में यह छोटे-छोटे सभी चक्रों में से जटिलतम, क्योंकि मैं रोग प्रतिकारक सूचना देते हैं वे मस्तिष्क को सोचती हूँ, इसमें बहुत से मार्ग हैं और बहुत से कक्ष जो, हम कह सकते हैं, हर समय चैतन्य लहरियाँ छोड़ते हैं और शान्त करते है। तो जब भी कोई समस्या होती है या हम रहते हैं। अत: स्थिर होने के लिए आपको किसी कष्ट में फँस जाते हैं तब उरोस्थि में चाहिए कि पूर्णतः श्री गणेश के प्रति समर्पित प्रदोलन (Viberation ) होने लगता है और गणों हो जाएं। जैसा मैंने बताया श्री गणेश ईसा मसीह के जाती है। चिकित्सा विज्ञान ने इन गणों को रोग रूप में अवतरित हुए। वे अत्यन्त अबोध व्यक्ति प्रतिकारक ( Anti bodies) नाम दिया है। तब ये थे यदि वे अबोध न होते तो उन्हें सूली पर न लटकाया जा पाता। परन्तु दूसरों की चालाकियाँ सकते हैं। ये जानते हैं कि कष्टों पर निशाना देख पाने की चुस्ती उनमें न थी। उनके अपने शिष्यों ने उन्हें धोखा दिया। धोखा देने वालों को जाए। व्यक्ति सोचता है कि ये गण केवल वो जानते थे फिर भी उन्होंने उनका नाम नहीं शारीरिक रोग की स्थिति में ही सहायक होते हैं लिया। आप यदि उनके जीवन पर दृष्टि डालें परन्तु मानसिक रूप से अशान्त तथा मानसिक तो आप जान जाएंगे कि यह पावन सौन्दर्य से रोगियों की भी ये गण सहायता करते हैं। परिपूर्ण है। वे इतने पावन हृदय व्यक्ति थे. उनका व्यक्तित्व इतना सुन्दर था कि जहाँ भी ये गण इतने कुशल हैं कि कभी-कभी तो हमें उन्हें कोई बुराई दिखाई दी वे उससे लड़ने के आश्चर्य होता है कि किस प्रकार चीजें कार्यान्वित लिए खड़े हो गए। श्री गणेश भी ऐसे ही हैं। श्री गणेश के आशीर्वाद हम सब लोगों के घटित होता है। किसी व्यक्ति कों किसी बच्चे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि हमारे चोट खाने को। बच्चे के माता-पिता रोना शुरू कर देते हैं%; की या संकट रोग आदि में फँसने की संभावनाएं माँ को पुकारते हैं; और माँ, जो कि दुर्गा हैं, तब बहुत अधिक हैं। वे संकट-विमोचन कहलाते हैं, चमत्कारिक रूप से बच्चा ठीक हो जाता है। वे अर्थात् जीवन की बाधाओं को दूर करने वाले। कहते हैं कि चमत्कार हो गया। आपके जीवन में आपमें से बहुत से लोगों ने अनुभव किया होगा भी ऐसे बहुत से चमत्कार हुए होंगे, इनका वर्णन कि किस प्रकार भिन्न कष्टों और बाधाओं में संकट की सूचना देते हैं। उरोस्थि (Sternum Bone) के नीचे श्री दुर्गा का निवास या सिंहासन के रूप में इन रोग प्रतिकारकों को सूचना मिल गण आक्रमण करते हैं। ये निशाना भी लगा लगाकर इन पर आक्रमण किस प्रकार किया अपनी समस्याओं का समाधान करने में हो रही हैं। उदाहरण के रूप में, मान लो कुछ प्रा। आप नहीं कर सकते। परन्तु ये सब श्री गणपति के गणों के कारण है। ये गण भी उन्हीं की तरह तथा अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में वे आपके सहायक बने। वे गणपति हैं अर्थात् गणों के से नन्हें हैं परन्तु वो बहुत ही चुस्त एवं गतिशील स्वामी और कार्यों को भली-भांति करना उनकी हैं ये कभी सोते नहीं। जब भी कभी कोई शैली है। जैसा मैंने आपको बताया, ये गण हमारे अन्दर रोग प्रतिकारकों के रूप में स्थापित हैं। हैं। यह बात अविश्वसनीय है कि किस प्रकार संकट आता है तो ये गण जाकर समस्या पर आक्रमण करते हैं और उसका समाधान खोजते चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4, 2000। 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-7.txt वे कार्य करते हैं और किस प्रकार सूचना आपके आशीर्वाद से ही यह सब घटित हुआ पहुँचाते हैं। इस प्रकार की घटनाओं के मैं आपको बहुत से उदाहरण दे सकती हँ। उदाहरण के रूप में, हमारे एक आश्रम में, अमरीका में है।" क कुछ सीमा तक मैं कहना चाहुँगी कि ऐसा होता है, परन्तु यह सब श्री गणेश के कारण एक बच्चा तरणताल में डूब गया था, सभी लोग है। तरणताल में कूद रहे थे। मुझे तरणताल का विचार कभी भी अच्छा नहीं लगा क्योंकि तरणताल में बच्चे गिर सकते हैं। तो एक बच्चा इस श्री गणेश का एक अन्य गुण यह है कि वे माँ के प्रति आज्ञाकारी हैं। यहाँ तक कि वे शिव को भी नहीं पहचानते, विष्णु या किसी अन्य को भी नहीं। उनके लिए उनकी माँ ही तक पानी के अन्दर रहा। कोई न जानता था कि सभी कुछ है। माँ के लिए वे अपने पिता शिव वह कहाँ है। तब उन लोगों ने उसे ढूंढने का से भी युद्ध कर सकते हैं, किसी से भी लड़ सकते हैं क्योंकि उनके लिए माँ के प्रति पूर्ण आज्ञाकारिता, पूर्ण चुस्ती ही महत्वपूर्ण है तुरन्त श्रीमाताजी कृपा करके इस बच्चे को बचा लीजिए। वे जान जाते हैं कि माँ की इच्छा क्या है और उसे कार्यान्वित करते हैं । अन्यथा उनकी शैली अत्यन्त निष्कपट है, सहज है और बाल-सुलभ तरणताल में गिर गया और 15 से 20 मिनट प्रयत्न किया और उसे पानी में पड़ा हुआ पाया| व सब घबरा गए और प्रार्थना करने लगे कि हैरानी की बात है, मैं कभी किसी आश्रम में टेलिफोन नहीं करती, वहाँ के पते भी मैं नहीं जानती। परन्तु उस दिन मेंने एक नम्बर पर टेलिफोन करने के लिए कहा। मैं किसी के नम्बर भी नहीं जानती। जब मैंने टेलिफोन किया है। पूरन्तु उनके कार्य बहुत बड़े-बड़े हैं। ये गण भी बहुत महत्वपूर्ण लोग हैं, बहुत ही अबोध हैं फिर भी जब उन्हें किसी कार्य को करने किसी समस्या को सुलझाने, के लिए कहा जाए तो वे बहुत चुस्त हैं। बहुत ही तीव्रता से वे कार्य करते तो एक अगुआ (Leader) आया, मैंने उसे बताया कि में जानती हूँ कि बच्चा पानी में गिर गया है। परन्तु वह बच जाएगा। किसी ने मुझे हैं। उसके विषय में कुछ न बताया था। आप चिन्ता एक अन्य गुण जो श्री गणेश में है वो ये कि वे चरित्रवान लोगों का सम्मान करते हैं-जिनके जीवन में पावित्र्य ही मुख्य चीज़ है। पावित्र्य का वे बहुत सम्मान करते हैं । केवल महिलाओं में लहरियों से उसका इलाज हुआ और आज वह ही नहीं, पुरुषों में भी वे चाहते हैं कि पावित्र्य बच्चा पूरी तरह से ठीक है, जबकि डॉक्टर ने सदैव बना रहे। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् आपको भी पूर्णत: पवित्र हो जाना चाहिए। आपकी आँखें उल्टे सीधे ढंग से युवा महिलाओं (Coma) की स्थिति में। इस बार जब मैं को या युवा पुरुषों को फुसलाने में नहीं लगी रहनी चाहिए ताकि आपका पावित्र्य न विगड़े। आपकी दृष्टि भी पवित्र होनी चाहिए, आपके मुझे बताते हैं, "श्री माताजी ये आपकी कृपा है, विचार भी पवित्र होने चाहिए। इसके लिए न करें, वह बच्चा पूरी तरह से ठीक हो जाएगा। तब वे बच्चे को लेकर आए। बच्चे का इलाज डॉक्टर ने भी किया, परन्तु वास्तव में चेतन्य कहा था कि यह बच्चा बचेगा नहीं और यदि बच भी गया तो वह मृतपाय होगा, सदैव बेहोशी अमरीका गई तो इस बच्चे से मिली। तो इस प्रकार की बहुत सी घटनाएं होती हैं और लोग चैतन्य लहरी 6. खंड : XII अंक : 3-4, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-8.txt आपको चाहिए कि आप अन्तर्दर्शन करें करते हैं । तो पृथ्वी माँ में भी समझने की शक्ति और स्वयं अपनी गलतियों को देखें कि है। हाल ही में बहुत से भूचाल आए आप आपने क्या गलतियाँ की हैं और किस जानते ही हैं, तुर्की में, ताइवान में। परन्तु एक भी प्रकार का अनैतिक व्यवहार किया है। आपको सहजयोगी इन भूचालों में नहीं मरा। श्री गणेश स्वयं को ठीक करना होगा और श्री गणेश उनकी रक्षा करते हैं । उनमें विवेक बुद्धि से क्षमा माँगनी होगी आप यदि क्षमा मांगेंगे जिससे वे केवल ऐसे लोगों को नष्ट करते हैं जो तो वो किसी भी अपराध के लिए क्षमा दे सकते हैं। वे इतने अबोध हैं इतने सुन्दर हैं कि वे आपको क्षमा कर देते हैं। परन्तु ऐसा है पृथ्वी माँ की तरह से वो भी चुम्बकीय है करना बहुत महत्वपूर्ण है। हमारी सारी नैतिकता और लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं । का आधार पावित्र्य है। हमें अत्यन्त पवित्र होना जिस प्रकार बच्चों के प्रति लोग आकर्षित होते चाहिए। बहुत से धर्म आए और उन्होंने पावित्रय की बात की, परन्तु अब ये ध्र्म बेकार हो गए हैं। उनका कोई आधार नहीं रहा। धर्म के विषय उनके अन्दर मौजूद है। में जो कुछ भी शास्त्रों में लिखा गया है ये उसे कार्यान्वित नहीं करते। सभी प्रकार के उल्टे में भी होता है। कुछ पशुओं में भी होता है, परन्तु सीधे कार्य ये करते हैं और फिर स्वयं को हिन्दू, चरित्रहीन हैं। चरित्रहीन से लोगों को उन्होंने बहुत नष्ट कर दिया है। उनमें पृथ्वी माँ की शक्ति भी हैं उसी प्रकार सुगमता से श्री गणेश की ओर भी आकर्षित हो जाते हैं। तो यह चुम्बकीय शक्ति आप हैरान होंगे कि यह चुम्बक पक्षियों पक्षियों में ये विशेष रूप से विद्यमान है और यही कारण है कि वे वाछित दिशा में जा सकते मुसलमान, इसाई और सभी प्रकार के धर्म कहते हैं। वास्तव में धर्म पूरी तरह से असफल हो गए हैं और यही कारण है कि श्री गणेश उनके पीछे हैं। पक्षी साइबेरिया से उड़कर आस्ट्रेलिया तक चले जाते हैं। किस प्रकार वे ऐसा कर पाते हैं? पड़ गए हैं। एक अन्य खूबी श्री गणेश की यह है कि उनका सृजन पृथ्वी माँ से हुआ है वे पूर्णत: पृथ्वी माँ द्वारा बनाए गए हैं। इसलिए वे किसी भी देश के उन लोगों को पसन्द नहीं करते जो जाते हैं। पुनः वे उसी स्थान पर वापिस आ मछलियों में भी यह गुण होता है। पहाड़ों से आने वाले जल में मछलियां मिलती हैं; कुछ समय के लिए वे मैदानों पर आ जाती हैं फिर परमात्मा जाने किस प्रकार वे अपने स्थान पर काला जादू करते हैं या जो रूढ़िवाद को बढ़ावा वापिस पहुँच जाती हैं। ऐसा तभी सम्भव होता दे रहे हैं, या उन लोगों को जो चरित्रहीन हैं। ऐसे लोगों के लिए वो समस्याएं खड़ी करते हैं। तब क्या होता है? श्री गणेश पृथ्वी माँ को कहते हैं कि भूचाल लाओ। जिन स्थानों पर पावित्र्य का साँप साँप ही रहेगा और कुत्ता, कुत्ता और शेर, सम्मान नहीं होता वहां भूचाल आते हैं तथा ऐसे स्थानों पर भी जहाँ लोग रूढिवादी हैं या जहाँ लोग काले जादू की पूजा करते हैं। माँ के माध्यम से श्री गणेश ऐसे लोगों पर आक्रमण जब दिशा का ज्ञान हो। पक्षियों में दिशा ज्ञान होता है, वे दिश को जानते हैं और अपने गुणों के अनुसार चलते हैं। उदाहरण के रूप में एक शेर ही रहेगा। परन्तु मनुष्य के अन्दर सम्भवत: सारे ही पशु विद्यमान हैं। मनुष्य कोई भी रूप धारण कर सकता हैं, उसके विषय में आप कुछ नहीं कह सकते। वह इतना चालाक हैं कि 7. चैतन्य लहरी ।खंड : XIl अंक : 3-4, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-9.txt स्वीकार भी नहीं करता कि वह पशु रूप धारण आश्रम को छुआ तक नहीं। एक भी सहजयोगी करता है। परन्तु जब वह इस प्रकार का कोई को हानि नहीं पहुँची। श्री गणेश और उनके गणों रूप धारण करता है तो आप हेरान हो जाते हैं द्वारा इस प्रकार की सुरक्षा प्रदान करना वास्तव में प्रशंसनीय है। अत: हमें उनके गणों का कि मानव होते हुए भी इतने निम्न स्तर पर वह कैसे जा सकता है। इसका कारण ये हैं कि उन्होंने जीवन में श्री गणेश का सम्मान नहीं देखना है कि वे हमारे अन्दर चहूँ ओर विद्यमान किया। इसलिए वे किसी भी निम्न स्तर पर या किसी भी स्थान पर जा सकते हैं। सम्मान करना चाहिए। अत्यन्त महत्वपूर्ण बात ये हैं और गतिशील हैं वे हमें देखते हैं कि हम किस प्रकार के व्यक्ति हैं और यदि अपने एक अन्य उदाहरण में आपको देती हूँ। कदाचरण द्वारा हम श्री गणेश को अपने अन्दर भारत में लातूर में एक भयंकर भूचाल आया। में श्री गणेश उत्सव का यह चौदहवां दिन हमें हमारी सामान्य स्थिति में लाने का प्रयत्न से निष्कासित करने का प्रयत्न करें तो ये गण लातूर था । [श्री गणेश की प्रतिमाओं को ले जाकर उन्हें करते हैं। कई बार ये आपको अवसर प्रदान करते हैं, परन्तु फिर भी यदि आप अपनी के लोगों ने श्री गणेश की बहुत सुन्दर चालाकियों और अहम् में फँसे रहते हैं तब श्री गणेश कठोरतापूर्वक दण्ड देते हैं । आप थे। परन्तु आजकल वे इस प्रतिमा के सम्मुख लोगों के लिए ऐसी स्थिति भयानक विपत्ति बन गन्दे-गन्दे फिल्मी गाने और संगीत बजाने लगे जाती है। अत: सदैव श्री गणेश की पूजा करें। थे ये संगीत और नृत्य इतना गन्दा था कि इसे परन्तु मैं सदा कहती हैं कि इन शिल्पकारों द्वारा बनाई गई सभी श्री गणेश की प्रतिमाओं गणेश रुष्ट हो गए। प्रतिमा को जल में विसर्जित की पूजा न करें क्योंकि परमात्मा जानता है करके जब वे घर वापिस लौटे तो शराब में धुत्त कि वो कैसे शिल्पकार हैं। पैसा कमाने के होकर नाचने लगे और जय गणेश, जय गणेश लिए श्री गणेश की प्रतिमा बना रहे हैं और समुद्र या नदी के जल में विसर्जित करना था। लातूर प्रतिमा बनाई थी जिसके सम्मुख वे नाचते गाते सहन नहीं किया जा सकता। इसके कारण श्री का उच्चारण करने लगे। उस समय पृथ्वी डोल उनमें पावित्र्य भाव का पूर्ण अभाव भी हो गई, भूचाल आया और पृथ्वी माँ ने उन सबको अपने अन्दर निगल लिया। वे सब पृथ्वी में ही बनाते हैं जिसकी आप पूजा करते हैं । ऐसी दफन हो गए। नशे में धुत्त सभी वयस्कों को पूजा से हमें कोई लाभ नहीं होता। मोहम्मद पृथ्वी माँ ने लील (खा) लिया। वहाँ पर हमारा सकता है। ऐसे लोग श्री गणेश की प्रतिमा साहब ने कहा है कि किसी भी मूर्ति की पूजा मत करो क्योंकि ये मूर्तियाँ उन लोगों द्वारा बनाई जाती हैं जो इसके अधिकारी नहीं हैं। ये प्रतिमाएं भूचाल ने आश्रम के आस-पास की काफी दूर स्वयंभू नहीं हैं। पृथ्वी माँ ने इनका सृजन नहीं एक आश्रम भी है, एक प्रकार का ध्यान केन्द्र, जिसके चहूँ ओर अत्यन्त सुन्दर भूमि है। परन्तु किया। इन्हें ऐसे लोगों ने बनाया है तक की भूमि को नहीं छुआ। इस भूमि से आगे एक बहुत बड़ी दरार आई, केन्द्र के इर्द-गिर्द भूमि फट गई परन्तु किसी को कोई हानि न ज़िनका लक्ष्य मात्र धन कमाना है। अत: दुकानों से खरीदी गई किसी भी प्रतिमा की पूजा नहीं की जानी पहुँची। वे सभी ठीक-ठाक थे भूचाल ने हमारे चाहिए, चाहे वो जितनी भी अच्छी हो। जो चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 3-4, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-10.txt है। उनका शरीर इतना सूक्ष्म और शक्तिशाली है कि वे पर्वतों को चकनाचूर कर सकते हैं| अपनी सहजता, माधुर्य और अबोधिता से वे वास्तव में लोगों को परिवर्तित कर सकते हैं. कठोर से कठोर व्यक्ति भी परिवर्तित हो सकता गया श्री गणेश यदि आप खरीदते हैं तो इससे है। दाई दिशा में चलने वाला स्वस्तिक उनका परन्तु स्वस्तिक यदि उल्टी दिशा का होगा तो यह विनाशकारी हो सकता है। हिटलर लिए नहीं। श्री गणेश का वास्तव में कोई चित्र ने जब आरम्भ में स्वस्तिक का प्रयोग किया था उपलब्ध नहीं है। पृथ्वी माँ में से आठ श्री गणेश तो यह सही दिशा का था और वह विजयी प्रकट हुए हैं मेंने उन्हें देखा है। परन्तु उन हुआ परन्तु बाद में स्वस्तिक के स्टेन्सिल को चीज विद्यमान ही नहीं है उसकी हमें पूजा नहीं करनी चाहिए। ये मूर्तियाँ उन लोगों ने बनाई हैं जिनकी चैतन्य लहरियाँ बहुत खराब हैं, जो धोखेबाज हैं, बहुत चालाक हैं और स्वयं को बहुत कुछ समझते हैं। ऐसे व्यक्ति द्वारा बनाया आपको हानि होगी. लाभ नहीं ऐसी मूर्ति आप घर को सजाने के लिए ले सकते हैं पूजा के हैं। प्रतीक स्थानों के पुजारी अत्यन्त दुष्ट लोग हैं। मैं एक पूजारी से मिली थी बह कहने लगा, "मुझे दमा हो रहा है, पक्षाघात है. ऐसा कैंसे हो सकता है? उलट कर लगा दिया गया और यह बाई दिशा का हो गया। युद्ध के परिणाम भी उलट गए और उसकी सेनाएं नष्ट हो गई। इससे आप अन्दाजा श्री गणेश की पूजा कर रहा हूँ. मैरे पुरखों ने लगा सकते हैं कि श्री गणेश का स्वस्तिक भी श्री गणेश की पूजा की. फिर भी ऐसा क्यों कितना शक्तिशाली है! अब हमने ये भी साबित कर दिया है कि कार्बन को यदि हम बाएं से दाएं को देखें तो ओंकार नजर आता है और दाएं से बाएं को देखने पर स्वस्तिक। नीचे से ऊपर को यदि देखें तो यह क्रॉस जैसा प्रतीत होता है यह पूरा चक्र ही कार्बन के अणुओं से बना है। इससे यह साबित होता है कि श्री गणेश ही ईसा मसीह के रूप में अवतरित हुए हैं। पूरे विश्व में उन्हीं की पूजा होती है। देवी महात्म्य में इसका वर्णन है। आप यदि इसे पढ़ें तो स्पष्ट रूप से इसमें लिखा है कि किस प्रकार उन्होंने अण्ड रूप धारण किया और आधे अण्डे ने ईसा मसीह का रूप धारण किया और आधे अण्डे ने हो रहा है? मैंने कहा आप स्वयं अन्तर्दर्शन करके देखो कि आप कैसा जीवन बिता रहे क्या-क्या कारनामे करते हैं? क्या आप वास्तव में श्री गणेश के पुजारी बनने योग्य हैं? तब उन्हें ये बात महसूस हुई। मैंनें कहा, "अब तो मैं तुम्हें ठोक कर दूंगी परन्तु इसके पश्चात् तुम्हें पवित्र व्यक्ति बनना होगा, पवित्र जीवन बिताने का प्रयत्न करो, छल और चतुराई से दूसरे लोगों पर सवार रहने वाले व्यक्ति का नहीं। जो दण्ड श्री गणेश देते हैं उन्हें मैं गिन नहीं सकती। कितनी बाधाएं वे खड़ी कर सकते हैं में नहीं बता सकती। वे आपको बहुत कष्ट दे सकते हैं, मौत के मुँह तक ले जा सकते हैं। वे इतने शक्तिशाली हैं, इतने अधिक शक्तिशाली हैं क्योंकि उनकी सारी शक्ति उनकी माँ के दिव्य कार्य के लिए है-उनकी सारी शक्ति। वे न तो कुछ करते हैं और न कुछ चाहते हैं साधारण से बने मोदक उन्हें पसन्द हैं, श्री गणेश का। ये सभी चीजें हैं परन्तु भ्रमित होने के कारण हम इन्हें समझ नहीं सकते। हम उचित रूप रो देखना नहीं चाहते कि यह सब पहले से ही लिखा जा चुका पूजा करते हैं वे श्री गणेश की भी पूजा हैं। अत: जो लोग ईसामसीह यही उनका भोजन की चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4, 2000 9. 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-11.txt करते हैं और जो भी प्रार्थना आप ईसा मसीह से हैं। हम सब के लिए ये बहुत बड़ा वरदान है करते हैं वह आप श्री गणेश से कह रहे हैं। वे कि हमारा मूलाधार चक्र ठीक प्रकार से स्थापित दो नहीं हैं। वे पूर्णतः अभिन्न हैं और एक हैं। कर दिया गया है। पृथ्वी पर जब हम बैंठते हैं जो भी बातें मैंने आपको ईसा मसीह के विषय तो इससे हमें और भी अधिक लाभ होता है में बताई हैं आप इन्हें खोजने का प्रयत्न करें और आप इन्हें साबित कर देंगे। जैसे ईसा मसीह ने ये पहली दो उंगलियाँ उठाई। इसका अर्थ है कि एक उंगली विशुद्धि की है, श्री कृष्ण की, पृथ्वी माँ का मूल्य समझते हैं भारतीय संस्कृति और दूसरी श्री विष्णु की अर्थात् वे उनके पिता के अनुसार प्रातः काल जब आप उठते हैं तो हैं यानि कि विष्णु या श्रीकृष्ण ईसामसीह के सर्वप्रथम पृथ्वी माँ को नमस्कार करते हैं। क्योंकि यही पृथ्वी श्री गणेश की माँ है इसलिए आपको भी पृथ्वी माँ की देखभाल करनी चाहिए। हम पृथ्वी माँ की देखभाल नहीं करते और न ही पिता थे। यह बात स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। उन्होंने दूसरी उंगलियाँ क्यों नहीं उठाई? यही हूँ. आपको प्रणाम करता हूँ। क्योंकि मैं आपको दो उंगलियां क्यों उठाई? इनके माध्यम से वे अपने पैरों से छुऊंगा। पृथ्वी माँ के प्रति इतना अपने पिता की ओर इशारा कर रहे थे श्री विष्णु सम्मान जब आपमें होगा तो आप इसका दुरुपयोग या श्री कृष्ण को ओर। श्री गणेश की चैतन्य लहरियाँ यदि आप देखें तो मेरी कही हुई बात कहना कि हे पृथ्वी माँ मैं आपके सामने नतमस्तक नहीं करेंगे। आपके सम्मुख आज की पर्यावरण सम्बन्धी तथा अन्य समस्याएं न होंगी। अपनी को समझना अत्यन्त सुगम हो जाएगा। आप यदि उनकी चैतन्य लहरियाँ देखें और उनक विषय में सोचें तो आप हैरान होंगे। आप हैरान होंगे कि अज्ञानता के कारण हम यह नहीं समझ पाते कि पृथ्वी माँ ही श्री गणेश की माँ हैं जिनका चक्र मूलाधार है। इस बात को जब आप समझ जाएंगे तो ये भी जान जाएंगे कि आपको क्या करना है? हमें पृथ्वी माँ की देखभाल करनी है। पृथ्वी माँ को गरिमा देनी है। उसे सुन्दर बनाना है। हम ये सभी प्रकार के कार्य कर सकते हैं परन्तु जिस प्रकार से हम पृथ्वी माँ का दुरुपयोग कर रहे आपको अगन्य चक्र खुल गया है और आप निर्विचार हो गए हैं क्योंकि वे ही ईसा मसीह हैं जो अगन्य चक्र पर विराजमान हैं। तो यह चक्र खुल जाता है और आज्ञा चक्र के पकड़े होने के सभी मूर्खतापूर्ण विचार समाप्त हो जाते हैं। श्री गणेश का नाम लेकर आप स्वयं अपने अगन्य यह अत्यन्त गलत कार्य है। पर्यावरण को चक्र को खोल सकते हैं। अगन्य चक्रसे आने समस्याओं के कारण यह हमें हानि पहुँचा रहा वाली चालाकियाँ पूर्णतः समाप्त हो जाती हैं। है। पृथ्वी माँ पर उपजाए गए पेड़़ों को तथा अन्य अब वे चालाकियाँ नहीं रह जाती, अपने मस्तक पर जब आप इस अबोधिता को देखते हैं तो कमाने के लिए ही इनका उपयोग करना अत्यन्त आप आश्चर्यचकित रह जाते हैं ओर ये सब विचार लुप्त हो जाते हैं। दूसरों को हानि पहुँचाने वाली चालाकी से भरी कोई भी बात अब आप सभी वस्तुओं को काट डालना, केवल पैसा गलत बात है। इसके विषय में व्यक्ति को सोचना चाहिए और जब भी कभी आप एक पेड़ काटे तो इसके स्थान पर एक अन्य पेड़ लगाएं। पेड़ पृथ्वी माँ का सौन्दर्य हैं सारी हरियाली. सारी चीज़ें पृथ्वी माँ का सौन्दर्य है । कुछ लोगों सोंच नहीं सकते। अगन्य चक्र जब पूरी तरह से तो आप पूर्णत: परिवर्तित हो जाते खुल जाता है चैतन्य लहरी ॥ खंड : 10 XI1 अक : 3-4. 2000 ho 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-12.txt को बागवानी तथा प्रकृति की अन्य चीज़ों से हो गए हैं मिथ्या-अभिमान के लिए किस प्रकार कोई दिलचस्पी नहीं होती। मैं नहीं समझ पाती अपने पावित्र्य को विगाड़ने का प्रयत्न किया है। कि वे किस प्रकार जीवित रहते हैं। परन्तु किसी का सम्मान यदि आपने करना होता तो बागवानी या प्रकृति के सौन्दर्य में कोई दिलचस्पी रखे बिना भी वे जीवित रहते हैं । प्रकृति इतनी को अपमानित कर रहे हैं और सोचते हैं कि पाप सुन्दर है, प्रकृति को देखें तो सही । इसमें से करके आप अत्यन्त चुस्त और आधुनिक बन कभी दुर्गन्ध नहीं आती. यह कभी गन्दी नहीं रहे हैं । आज, इस आधुनिक समय में, जो कुछ होती। हर पत्ता इतने सुन्दर ढंग से आयोजित है भी पाप के कार्य हो रहे हैं ये पूरी तरह से गलत कि इसे सूर्य की किरणें प्राप्त होती हैं। इस हैं और हमें चाहिए कि हम इसकी निन्दा करें। विषय में कोई झगड़ा नहीं है। पेड़ पत्ते सभी कुछ इतने अच्छे ढंग से आयोजित हैं, सभी कुछ क्योंकि ऐसा करने से श्री गणेश कुपित हो जाते इतना सुन्दर है। पशु भी इन्हें नष्ट नहीं करते। हेैं। अपना महत्वपूर्ण आधार समझने के लिए आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे, पशु भी हरियाली शालीनता बहुत महत्वपूर्ण है और ये आधार को उजाड़ते नहीं, ज्यादा से ज्यादा े कुछ घास खा लेंगे या कुछ और। परन्तु प्रायः पशु पेड़ों को अपने सतीत्व की रक्षा करने के लिए बत्तीस नष्ट नहीं करते। वे किसी भी चीज़ को नष्ट नहीं करते जैसे हम अपने स्वार्थ के लिए पृथ्वी उसी परिवार से संबंधित हूँ। आप कल्पना कर माँ को नष्ट करते हैं । इसके लिए चाहे जो कारण हो, परन्तु हमें समझना है कि हमें पृथ्वी विश्वास होगा और उमें कितना साहस होगा! म आप पवित्रता बनाए रखते। परन्तु आप तो स्वयं आपको इसके समीप भी नहीं जाना चाहिए हमारा पावित्र्य। आप जानते ही हैं कि भारत में हजार महिलाओं ने आत्मदाह कर लिया। मैं भी सकते हैं कि अपने पावित्र्य में उनका कितना माँ का सम्मान करना है। पृथ्वी माँ श्री गणेश की माँ हैं। जिन्हें जीवन का क्या लाभ है? अपने सतीत्व की रक्षा आप कह सकते हैं कि वे हमारे सबसे बड़े के लिए इतना बड़ा बलिदान करके उन्होंने ये सहजयोगी हैं। उन्हें कभी योग अपनाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। वो तो सदैव योग में जो हमारे अन्दर होनी चाहिए। ये पावित्र्य महिलाओं होते हैं। वे हमारे महानतम योगी हैं। हर समय वे सभी अच्छे कार्य करते हैं। वे कोई भी गलत लिए यह और भी अधिक आवश्यक है। पुरुषों कार्य नहीं करते, कभी भी उनमें देवताओं का के लिए श्री गणेश बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि महानतम पद प्राप्त करने की योग्यता है। मैं तो यदि वे श्री गणेश का सम्मान नहीं करते तो उन्हें कहूँगी कि व हमारे महानतम देव हैं और हमें बहुत से रोग हो सकते हैं यदि हम श्री गणेश वास्तव में उनकी पूजा करनी चाहिए। उनके की देखभाल करते हैं तो हमारा स्वास्थ्य बहुत माध्यम से सभी देवताओं की पूजा हो जाती है और वे प्रसन्न होकर आशीर्वाद देने लगते हैं। संभालते हैं, हर समय वे हमारी देखभाल करते आज मैं सोच रहो थी कि, आजकल इस आधुनिक समय में हम किस प्रकार इतने निर्लज्ज में हैं और वही कुण्डलिनी की देखभाल करते हमारा सतीत्व यदि समाप्त हो जाए तो हमारे बताया है कि पाबित्र्य ही महत्वपूर्णतम चीज़ है में ही नहीं, पुरुषों में भी होना चाहिए। पुरुषों के अच्छा होगा क्योंकि वे हर समय हमारे शरीर को हैं, हमारी रक्षा करते हैं। यही श्री गणेश मूलाधार चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 3-4, 2000 11 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-13.txt जगह गए और बहुत से लोगों को प्रताडित कुछ हो जाए तो कुण्डलिनी उठती हैं। परन्तु किया| ये देखकर मैं हैरान थी कि वहाँ पर बहुत से लाल भारतीय हैं जिन्हें भारतीय अमरीकन करने वाले और उन्हें उत्थान की स्थिति में कहा जाता है। उन्हें इतने कष्ट दिए गए कि बनाए रखने वाले श्री गणेश हैं। श्री गणेश ही यह उन्हें भागकर भिन्न स्थानों पर जाना पड़ा। मैं सब कार्य कार्यान्वित करते हैं । वे ही हमारी काना जोहरी गई। मुझे लगा कि चैतन्य लहरियाँ कुण्डलिनी की रक्षा करते हैं और इस प्रकार वे बहुत अच्छी थीं। अर्थात् वहाँ के लोग अत्यन्त अबोध और सहज थे। परन्तु जो अमरीकन उस समय वहाँ पहुँचे उन्होंने इन लोगों को पूरी तरह चाहिए। आपको अपने अन्दर झांककर अन्तर्दर्शन से समाप्त कर देना चाहा। भागकर ये लोग काना द्वारा देखना चाहिए कि वास्तव में हम श्री गणेश जोहरी जैसे स्थानों पर छिप गए। परन्तु काना के प्रति कितने समर्पित हैं । यदि हम समर्पित हैं जोहरी की चैतन्य लहरियाँ बहुत ही सुन्दर , "देखो, कितने वर्ष बीत गए हैं फिर भी जो लोग यहाँ रहते थे या कार्य करते थे वे इस स्थान का आनन्द ले रहे हैं"। यहाँ रक्त-वर्ण भारतीय, जो कभी भारतीय थे, रहते थे। उन्हें से इसे कार्यान्वित करता है। इस मामले में बच्चे हम अमरीकन भारतीय कहते हैं। वे लोग अत्यन्त वे इतने आध्यात्मिक लोग होते हैं, प्रेममय और सुन्दर होते हैं, श्री गणेश थे क्योंकि वे माँ की पूजा किया करते थे। हर की तरह। श्री गणेश वास्तव में अ्बोध हैं समय वे माँ की पूजा किया करते थे। मैंने अन्य अत्यन्त रक्षाकारी। अपनी अबोधिता से वे आपकी देशों में भी देखा है। मुझे प्रसन्नता हुई कि रक्षा करते हैं ? अत: हमें अपनी अबोधिता की आस्ट्रेलिया में लोग अत्यन्त धर्मनिरपेक्ष थे। ये कामना करनी चाहिए और कभी व्यथित नहीं सभी लोग उन्हें उत्साहित कर रहे हैं। ये देखकर आश्चर्य होता है कि उनमें बहुत मेधा है और हैं। कुण्डलिनी की रक्षा करते हैं और यदि हमें उसको सहारा देने वाले, उसे उठाने वाले, जागृत ही हमारे आत्मसाक्षात्कार के आधार हैं। तो श्री गणेश कितने महत्वपूर्ण हैं ये आपको जानना तो हम इसके लिए क्या कर रहे हैं? ऐसा करने से आप सभी गन्दी चीजों से घृणा करने लगेंगे। ये सब आपको अच्छा न लगेगा, ऐसे लोग भी आपको अच्छे नहीं लगेंगे। सहजयोगी इस प्रकार मेंने कहा सर्वोत्तम होते हैं। वे अत्यन्त मधुर और सुहृदय अबोध एवं सहज थे। परन्तु होना चाहिए क्योंकि कभी-कभी ऐसे लोगों को धोखा दिया जाता है, उन पर रौब जमाया जाता अब उन्हें उस अवस्था में लाया जा रहा है ताकि है। सभी कुछ होता है परन्तु कोई बात नहीं। वो जान सकें कि आस्ट्रेलिया में एक सम अबोध लोगों पर रौब जमाने वाले सभी लोग अधिकार है-राजनीतिक अधिकार। यह अत्यन्त कष्टों में फँस जाएंगे। विश्व भर में इस बात का शोर है. लोग इसके विषय में बातें कर रहे हैं कि साहसिक कार्य है। आस्ट्रेलिया में श्री गणेश पुनरू नामक अबोध और सहज लोगों पर किसी प्रकार का स्थान पर प्रकट हुए हैं। पुनरू एक बहुत बड़ा दबाव नहीं होना चाहिए। ये सब चीजें घटित हुई पर्वत है जो गणश के आकार का प्रतीत होता है। हैं परन्तु इन्हें परिवर्तित होना होगा. इन्हें एक नीचे की आर जाती हुई इसकी एक बहुत बड़ी अन्त तक पहुँचना होगा। इसके बिना लोग जीवित सुंड भी है। चैतन्य लहरियों ने साबित कर दिया नहीं रह सकते। जैसे अमरीका में ये लोग सभी है कि यह श्री गणेश हैं जो कि स्वयंभु है। चैतन्य लहरी 12 खंड : XII अंक : 3-4 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-14.txt श्री गणेश ही हैं जो वहाँ पर सहजयोग की रक्षा स्वयंभु गणेश बहुत से स्थानों पर प्रकट हुए हैं। परन्तु यहाँ पर मुझे ऐसे लगा कि जैसे यह स्थान चैतन्य लहरियों का स्रोत हो। आस्ट्रेलिया में भी इसी प्रकार से सब स्थानों पर, जहाँ कहीं भी ऐसा ही है। मैं उनके प्रति धन्यवादी हूँ क्योंकि केवल उनके कारण से ही सहजयोग इतनी और इस प्रकार वे आपकी सहायता करेंगे। आसानी से कार्यान्वित हुआ। सरकार ने भी हमें चमत्कारिक रूप से वे आपकी सहायता करेंगे। कभी परेशान नहीं किया और न ही कभी किसी परन्तु सर्वप्रथम आपको अपने सतीत्व के लिए. अन्य प्रकार से समस्या हुई। मैं नहीं जानती कि अपने पावित्र्य के लिए कुछ करना होगा क्योंकि कर रहे हैं और सहजयोग इतना बढ़ रहा है। आप हों, श्री गणेश की पूजा की जानी चाहिए पावित्र्य ही श्री गणेश हैं। कौन उनकी सहायता कर रहा है? संभवत: यह परमात्मा आपको धन्य करें। 13 चैतन्य लहरी खंड : XI1 अंक : 3-4, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-15.txt नवराक्रि पूजा जय२ाक्रि प्रुजा कबैला 17.10.99 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज हम यहाँ देवी की पूजा करने के और विशालकाय असुर का रूप धारण कर लेती लिए एकत्र हुए हैं, अर्थात महाकाली की, जिन्हें हम दुर्गा भी कह सकते हैं। सन्त एवं भद्र लोगों के उत्थान मार्ग में बाधाएं डालने वाली या उन्हें कष्ट देने का प्रयत्न करने वाली आसुरी शक्तियों का वध करने के लिए उन्होंने भिन्न अवतरण लिए। हम जानते हैं कि वे भिन्न रूपों में आई और बहुत देवी का हैं जो कि प्रेम एवं करुणामयी माँ हैं। से राक्षसों का संहार किया। उन्होंने बहुत से बुरे यह अत्यन्त असंगत कार्य है जो देवी को करना लोगों को भी नष्ट किया। हम ये नहीं जानते कि होता है-इन लोगों का वध करना, क्योंकि मानवमात्र हमारे सम्मुख जो विश्व युद्ध हुए उनमें भी भले के हित के लिए इन आसुरी शक्तियों का विनाश लोगों की रक्षा करने के लिए वो मौजूद थीं और इसी कारण से वे अत्याचारी तथा आसुरी लोगों नहीं। जैसे बुरे मनुष्य कुछ समय के लिए जेल द्वारा रचे गए कुचक्रों से बच पाए। राक्षस प्रवृत्ति में चले जाते हैं उसी प्रकार वे भी कुछ समय के लोगों में घृणा करने की तथा सभी सम्भव तरीकों लिए नर्क में चले जाते हैं, बहाँ कष्ट उठा कर से घृणा को अभिव्यक्त करने की शक्ति होती अधिक शक्तिशाली होकर वापिस आ जाते हैं है। इनमें से कुछ तो जन्म से ही दुष्ट होते हैं और पुनः और ं हैं जो मनुष्यों को सताता है, उन्हें कष्ट देता है। वे जो चाहे नाम धारण कर लें परन्तु वे पूर्णतया, शत प्रतिशत, आसुरी शक्तियाँ हैं और सर्वशक्तमान परमात्मा के हृदय में उनके लिए रहम या करुणा का कोई स्थान नहीं। इन आसुरी शक्तियों को नष्ट होना होता है और उन्हें नष्ट करने का कार्य आवश्यक है। परन्तु वे पूरी तरह से नष्ट होते सुन्तों और भले लोगों को सताने का प्रयत्न करते हैं। पूरे विश्व में यह आम रिवाज़ है। भले लोगों के रूप में भी वे आ सकते हैं या कुछ दुष्ट बन जाते हैं। जन्मजात दुष्टों को तो आप पहचान जाते हैं क्योंकि उनकी सारी शैली अत्यन्त आक्रामक और प्रतिरोधात्मक होती किसी ऐसे भद्र पुरुष के रूप में जो परमात्मा के है। परन्तु घृणा की कोई सीमा नहीं होती, विषय में बहुत कुछ जानता है । वे ये भी कह बिल्कुल कोई सीमा नहीं होती। वे यदि किसी सकते हैं कि उनमें आत्मसाक्षात्कार प्रदान करने करते हैं तो अपनी घृणा को न्यायोचित की शक्ति है। सभी प्रकार के झूठ वे बोल से घृणा ठहराने के लिए सभी प्रकार के तर्क करते हैं सकते हैं क्योंकि उनमें वह आसुरी शक्ति होती को न्यायोचित ठहराने के लिए। कभी-कभी है। सभी प्रकार के असत्य को अपनाकर वे घृणा तो वे इस घृणा को तर्कसंगत भी ठहराना नहीं चाहते! उन्हें लगता है कि वे घृणा करते हैं और घृणा करना उनका मौलिक अधिकार है। घृणा की ये शक्तियाँ कभी-कभी संगठित हो जाती हैं दावा करते हैं कि हम ये हैं, हम वो हैं, हम आपको ये दे सकते हैं, वो दे सकते हैं। वास्तव में लोगों को नष्ट करने के लिए वे पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं। हमारे यहाँ ऐसे बहुत से झूठे 14 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 3-4, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-16.txt अब जैसे आप जानते हैं, कलियुग में ऐसे बहुत से लोग हुए और उनमें से बहुत से अब इस पृथ्वी से लुप्त हो गए हैं और वे अब हमें कष्ट नहीं दे सकते। परन्तु अब भी कुछ लोगों का पर्दाफ़ाश हुआ है। लोगों ने उन्हें इस प्रकार अनावृत किया है कि बिना प्रमाण के ऐसा किया सामूहिकता को या भाईचारे को हानि पहुँचे। नहीं जा सकता। परन्तु इन आसुरी लोगों में इतना उनका भाईचारा इतना दृढ़ है कि, चाहे जहाँ साहस है, इतने आत्मविश्वास से वे परिपूर्ण है कि वे मनचाहा कार्य करने से बिल्कुल नहीं हिचकिचाते और जो भी व्यक्ति उनका प्दाफ़ाश लोग हुए हैं और बहुत से मूर्खो ने उनका अनुसरण भी किया। परस्पर विरोध में वे कभी नहीं बोलते। ईसा मसीह ने कहा है, "राक्षस कभी अपने घर की बुराई नहीं करेगा, " मानो वे एक ही घर में रहते हों और किसी ऐसी चीज़़ के बारे में बात न करना चाहते हों जिससे उनकी रहें, वे जानते हैं कि वे करें, सभी आसूरी लोगों का एकजुट होकर इस एकजुट हैं। आप कल्पना प्रकार से व्यवहार करना, कितना आश्चर्यजनक है! यही कारण है कि वे इतने सामूहिक हैं। मान लो एक ने भूमि के किसी विशेष हिस्से को अपना लिया है। उसका वहीं राज्य है, दूसरा दूसरी प्रकार से कुछ हथियाता है और तीसरा करते हैं जिनका कोई प्रमाण नहीं होता और लोग तीसरी प्रकार से। उनमें परस्पर कोई स्पर्धा नहीं उनसे प्रमाण मांगते भी नहीं। ये भी नहीं पूछते है। उनका लक्ष्य केवल एक है- किसी भी कि किस आधार पर आप ऐसा कह रहे हैं ? प्रकार से परमात्मा की सृष्टि, संसार के सभी भद्र लोगों को नष्ट करना, क्योंकि अन्ततोगत्वा वही लोग आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करेंगे जिन्हें में आपको अनुभव प्राप्त होता है और आपके वास्तविकता का ज्ञान हो जाएगा। कलियुग में इस करने का प्रयत्न करता है उसे वे नष्ट कर देते हैं। ये लोग आपके मस्तिष्क में गलत धारणाएं भर देते हैं। वे कहते हैं कि हम महान व्यक्ति हैं हम ऐसे हैं, हम वैसे हैं। सभी प्रकार की बातें इसका प्रमाण क्या है? अत: सहजयोग ही समाधान है। सहजयोग पास प्रमाण होता है। इसमें आप उन्नत होते हैं, एकदम से आप महान सहजयोगी नहीं बन . सकते, यह सच है। आपको परिपक्व होना अच्छे स्वभाव के हैं फिर भी वे इन आसुरी पड़ता है। कुछ लोगों को परिपक्व होने में कम समय लगता है और कुछ को अधिक। कोई बात लोग भी उनके पदचिन्हों पर चलकर इन आसुरी नहीं, परन्तु आप परिपक्व हो जाते हैं। परन्तु इस समय के दौरान यदि आप इन गलत लोगों के पास जाने का प्रयत्न करते हैं तो कोई संभावना नहीं रह जाती. आपको वापिस लाने का कोई प्रकार का वातावरण बदतर स्थिति पर है। बहुत से मूर्ख लोग हैं. ऐसे मुर्ख जो चाहे सीधे हैं लोगों के प्रति खिंचे चले जाते हैं । कुछ अच्छे शक्तियों का अनुसरण करने का प्रयत्न करते हैं। हैरानी की बात है कि इन भले लोगों को यह बात क्यों नहीं समझ में आती कि अच्छा क्या है, बुरा क्या है। परन्तु बहुत से अच्छे लोगों में रास्ता नहीं रहता। विशेषकर उन लोगों को जो भी इस विवेक बुद्धि की कमी है और यही सहजयोग में ऊँचे उठ जाते हैं उनका जब पतन कारण है कि वे भी गलत चीज़ों को अपनाते हैं होता है और फिर हर समय इन्हें न्यायोचित ठहराने में कि एक सर्वसाधारण सहजयोगी भी कह सकता लगे रहते हैं। जो भी कुछ वे करते हैं वह ठीक है है, सर्वोत्तम है और इसका उनके पास प्रमाण है । तो बो इतनी गहरी खाई में जा पड़ते हैं कि श्री माताजी उसकी ओर देखो, वह कहाँ चला गया है। 15 चैतन्य लहरी खंड : X11 अंक : 3-4, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-17.txt तो ऐसे समय में, जब ये सब चीजें घटित चाहते हैं? आप चाहते हैं कि वे आपकी रक्षा हो रही हैं, हमारा क्या कार्य है? हमें अपने अन्दर महाकाली की पूजा करनी चाहिए। हमारा क्या कर्तव्य है? वे क्या करती हैं? संभवत: हमें करें। अपनी बुद्धि से कार्य करते हुए आप बहुत सी गलतियाँ करते हैं । आप ऐसे कार्य भी कर सकते हैं जो आपके हित में नहीं हैं और जो आपके लिए बहुत भयानक हो सकते हैं। परन्तु इसका ज्ञान नहीं है। तो इन सब चीज़ों के घटित होते हुए हमें वे ऐसी देवी हैं जो आपका पथ-प्रदर्शन करती हैं क्या करना चाहिए? हमें अपने अन्दर महाकाली की पूजा करनी चाहिए। संभवत: हमें इस बात का ज्ञान नहीं है कि महाकाली क्या करती हैं? पहला कार्य जो वे करती हैं वह है हमारी रक्षा करना । आप जहां भी हों, आप जो भी कर रहे के सभी अवयवों की रक्षा करती हैं । वे ही हों, किसी भी खतरे में आप फँसे हुए हों, आपको जीवन की पूर्ण सुरक्षा प्रदान करती हैं। महाकाली आपकी रक्षा करती है। तो पहली चीज जो है वो ये है कि महाकाली आपकी रक्षा करती है। जो लोग मुझे पत्र लिखकर पूछते हैं लगता। क्योंकि आपने उनका साम्राज्य छोड़ दिया कि उनकी रक्षा किस प्रकार हुई? किस प्रकार है. उस साम्राज्य से आप बाहर आ गए हैं, यही कि आप इस प्रकार के खतरों से किस प्रकार बचें? वे आपके जीवन की रक्षा करती हैं. आपके शरीर की रक्षा करती हैं। आपके शरीर उनके साम्राज्य में आप स्वयं को पूर्णतः सुरक्षित पाते हैं। आपको किसी चीज़ का डर नहीं के. उनके रोग दूर हुए? किस प्रकार उनकी सहायता हुई? उन्हें जान लेना चाहिए कि उनके अन्दर स्थित महाकाली की शक्ति के कारण हुआ। वे छाया में रहें तो आपको कभी डर नहीं सताएगा आपके अन्दर विद्यमान हैं। महाकाली की पूजा करते हुए आप अपने अन्तर्स्थित महाकाली की पूजा कर रहे हैं। पूरे सम्मान के साथ आपको ये तो वे आपका हाथ पकड़ लंगी। वास्तव में वे बात जान लेनी चाहिए कि महाकाली अत्यन्त संवेदनशील देवी हैं। वे अत्यंत संवेदनशील हैं। कारण है कि आप भयभीत हैं। परन्तु यदि आप उनके सुन्दर पथ प्रदर्शन में रहें, उनकी कृपा आप कोई गलत कार्य नहीं करेंगे जब भी कभी आप कोई गलत कार्य करने का प्रयत्न करेंगे पथ-प्रदर्शक शक्ति हैं। वे ही हमें हमारा अस्तित्व प्रदान करती हैं। उनके विना हम जीवित नहीं रह सकते क्योंकि वे ही श्री शिव की शक्ति हैं। वे करते हें तो वह आपका पथप्रदर्शन करती हैं, हमें बहुत कुछ प्रदान करती हैं। उदाहरण के रूप आपको बताती हैं, बहुत से तरीकों से, कि ऐसा में वे हमें आराम, निद्रा और सत्य प्रदान करती हैं। वे आपको बताती हैं कि क्या सत्य है और किसी का अहित जब आप करने का प्रयत्न करना गलत है। आप क्यों किसी अन्य व्यक्ति का अहित कर रहे हैं? फिर भी यदि आप पछताते नहीं और अपनी सामान्य स्थिति पर वापिस नहीं आते तो वे आपको त्याग देती हैं। एक बार जब महाकाली आपको त्याग देती हैं तो को रोशनी में लाती हैं। एक प्रकार के ऐसे भ्रम आपका पर्दाफ़ाश हो जाता है और सभी प्रकार की बुराइयों में आप फँस जाते हैं। मैं पूछती हूँ यह क्या है? इसीलिए उन्हें 'भ्रान्ति' नाम दिया कि जब आप उनकी पूजा करते हैं तो आप क्या क्या असत्य। कभी-कभी अपने अहंकारवश लोग समझ बैठते हैं कि जो मैं सोचता हूँ वही सत्य है। तब माया की सृष्टि करके वे इस बात की सृष्टि करती हैं कि आप सोचने लगते हैं कि है अर्थात् भ्रम। वे आपको भ्रम में भी फँसा गया चैंतन्य लहरी खंड : XII अंक 16 : 3-4, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-18.txt कर सकते हैं या किसी भी तरह से ध्यान कर सकते हैं और उनकी प्रार्थना कर सकते हैं। बहुत से लोग केवल उनसे प्रार्थना करके वे हमें आराम प्रदान करती हैं क्योंकि रोगमुक्त हो रहे हैं क्योंकि वे ही रोगमुक्त करने आपकी सारी ज़िम्मेदारियाँ वे सम्भाल लेती हैं। वाली हैं। वे ही आपको जटिल रोगों से मुक्त देती हैं। आपकी परीक्षा लेती हैं। भ्रम में आपको फँसाती हैं और अन्त में इस भ्रम से आपको मुक्त भी करती हैं। आपकी सारी समस्याओं को वो ले लेती हैं। वे करती हैं, वे रोगमुक्त कर सकती हैं। । उन्हें क्या पसन्द है? महाकाली को प्रकाश ही सारी समस्याओं का समाधान करती हैं। हम ही लोग उन पर अपनी सारी समस्याओं को पसन्द है। उनकी पूजा रात्रि में होती है क्योंकि छोड़ देना भूल जाते हैं। आप यदि अपनी रात्रि में हम दीप जला सकते हैं। वे व्यक्ति को समस्याओं को उन पर छोड़ दें तो सारी समस्याओं ज्योतिर्मय करना पसन्द करती हैं। उन्हें प्रकाश पसन्द है। सूर्य पसन्द है। हर ऐसी चीज़ पसन्द है जिसमें प्रकाश हो. जो चमकती हो। आपने करते हैं। ये आशीर्वाद केवल शारीरिक ही नहीं ऐसे लोगों के विषय में सुना होगा जिन्हें मैं नहीं होते, मानसिक भी होते हैं। वे आपके मस्तिष्क जानती क्या कहा जाता है? परन्तु विशेष रूप से को चिन्ताओं से पूरी तरह से मुक्त कर देती हैं। पश्चिम में इनका उपयोग होता है। उनके बड़े-बडे न तो वे चिन्ता करती हैं दाँत होते हैं और वे लोग सूर्य के सामने जीवित आप चिन्ता करें। यदि आप चिन्ता करते हैं तो नहीं रह सकते ज्यों ही सूर्य उदय होता है वे अन्दर जाकर सो जाना चाहते हैं। सूर्य को वो हुए आप उनकी उपेक्षा कर रहे हैं उन्हें स्वीकार देख नहीं सकते क्योंकि प्रकाश को सहन कर पाना उनके लिए सम्भव नहीं। अब यहाँ पर क्या लोग चिन्तित रहने में गर्व महसूस करते हैं। हुआ? महालक्ष्मी यहाँ से चली गई। उन लोगों से ओह' मैं चिन्तित था। किस प्रकार आप चिन्तित महाकाली दूर हो गई और जब महाकाली चली हो सकते हैं जब आपकी माँ साक्षात् महाकाली गई तो वे भयभीत हैं और डरने वाले इन लोगों पर अन्य लोग आक्रमण करते हैं। इस महाकाली सबको समाप्त कर सकती हैं। वे जानती हैं कि की शक्ति को कार्यान्वित करने के लिए सूर्य कार्य किस प्रकार करने हैं? जब आप उनके बहुत महत्वपूर्ण है। विशेष तौर पर पश्चिमी देशों के का समाधान हो जाता है। इतना ही नहीं आप स्वयं को वास्तव में आशीर्वादित भी महसूस और न ये चाहती हैं कि वे ये दर्शाने का प्रयत्न करती हैं कि चिन्ता करते नहीं कर रहे। चिन्ता एक आम चीज़ है और हैं। वे सभी राक्षसों का वध कर सकती हैं, उन सम्मुख शिशु सम हैं किसी भी चीज़ के विषय में हम लोग बहुत परिश्रमी हैं और सूर्य में आप किस प्रकार चिन्ता कर सकते हैं? तो अनुरूप चलने वाले हैं और सूर्य की पूजा करते हैं। ये सभी कुछ हम करते हैं। सूर्य की पूजा चिन्ता करती हैं। आपको अपनी चिन्ता की करते हैं और अत्यन्त आक्रामक भी हो जाते हैं । कोई जरूरत नहीं। यही विशेष बात है। उनकी ऐसी स्थिति में महाकाली हमें सन्तुलन प्रदान सुरक्षा इतनी महान है। वे स्वयं इतनी सुरक्षित करती हैं। हमें विश्राम पहुँचाकर, पूरी तरह से हमारी सुरक्षा करके वे ही हमें सन्तुलन प्रदान करती हैं। आप उनके चरण कमलों को थामे करती हैं । कभी-कभी स्पर्धा में हम इस प्रकार रह सकते हैं उनकी साक्षात् मूर्ति का ध्यान फँसे हुए होते हैं कि वास्तव में चिन्तित होते हैं आपकी चिन्ताएं समाप्त हो जाती हैं वे आपकी हैं कि वे आपको सारी वांछित सुरक्षा प्रदान चैतन्य लहरी खंड 17 : XII अंक : 3-4 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-19.txt और कुछ ऐसा कर डालना चाहते हैं जिसकी , सामर्थ्य हममें नहीं होती। तब हम बहुत परेशान मैं ऐसा कर सकता हूँ," अहम् कहता है-मैं इसे हो उठते हैं और समझ नहीं पाते कि क्या करें। कार्यान्वित कर दूंगा यह कार्य हो जाएगा और ऐसी स्थिति में वे ही हमें निद्रा प्रदान करती हैं। इस प्रकार मनुष्य अहम् के सामने घुटने टेक और जब हम सो जाते हैं तो वे हमारी देखभाल देता है। वे बहुत सन्तुष्ट होते हैं कि उनका करती हैं, हमें सहलाती हैं और हमारी सारी समस्याओं को ले लेती हैं। वे इतने सारे कार्य की आवाज भी नहीं सुनना चाहते। बड़ी समस्या है। अहम् का दिखावा" नहीं, नहीं अहम् इतना दृढ़ हैं. वे महाकाली की शक्तियों आपको शिशुसम होना पड़ेगा, बच्चों की तरह से अबोध महाकाली अबोध हैं और अबोध लोगों से प्रेम करती हैं। वे स्वयं अबोध हैं और अबोध लोगों से प्रेम करती हैं। आपकी देखभाल भी वे इसलिए करती हैं क्योंकि आप अबोध हैं. चालाक नहीं हैं, अपने अहम् से दूसरे लोगों के साथ खिलवाड़ करने का प्रयत्न नहीं करते। आप यदि अवोध हैं तो वे आपकी सहायता कर रही हैं परन्तु उनके लिए हम क्या कर रहे हैं? यह चीज़ हमें देखनी चाहिए। मुख्य चीज़ ये है कि क्या हम स्वयं उनकी पूजा कर रहे हैं? उनके बच्चे उनकी पूजा करें यह उन्हें अच्छा लगता है। इसी स्तर पर वे उनसे एक हो सकती हैं और उन्हें अपनी करुणा एवं प्रेम प्रदान कर सकती हैं तथा सभी आसुरी शक्तियों से उनकी रक्षा कर सकती हैं। परन्तु यह बात अच्छी तरह से समझ ली जानी चाहिए कि जो लोग अभी करती हैं। निश्चित रूप से आपकी सहायता तक स्थिर नहीं हुए हैं वे अभी तक महाकाली करती हैं। अहम् का नियंत्रण किया जाना आवश्यक की सुरक्षात्मक भूमि से पूरी तरह जुड़े नहीं हैं है क्योंकि अहम् उनका सबसे बड़ा शत्रु है। और ऐसे लोगों पर आक्रमण हो सकता है। एक आपका अहम् उन्हें अच्छा नहीं लगता। वे चाहती हैं कि आप अहम् विहीन हों. अबोध हों। आप जानते हैं कि सर्वप्रथम उन्होंने श्री गणेश बार जब वह ये क्षेत्र छोड़ देते हैं तो उन्हें बुरी तरह आघात पहुँच सकता है और कुछ भी उनके साथ घटित हो है। सकता है; उनका वध हो ही गणेश की पूजा करते हैं। हमें अबोध बनना है अर्थात् किसी भले या बुरे कार्य की योजना हमें नहीं बनानी हमारीं कोई मंशा नहीं है। हमारे कार्य कालातीत गतिविधियाँ हैं। आप चिन्ता न करें कि आप क्या करने वाले हैं और क्या नहीं करने वाले। इस प्रकार का कुछ भी आप न करें। पूर्ण अबोधिता में आप जीवित हैं और उसका आनन्द ले रहे हैं और दूसरे लोगों को भी का सृजन किया। यही कारण है कि हम श्री सकता इस कलियुग में, इस भयानक समय में हम रह रहे हैं। इसमें कुछ भी घट सकता है। अत: हमें मस्तिष्क को ध्यान से देखना होगा कि ये किस प्रकार कार्य करता है? और हमें क्या शिक्षा देता बहुत सावधान रहना होगा। हमें अपने है? हमें क्या बताता है? समझने का प्रयत्न करें कि इस दुष्ट व्यक्ति की योजना क्या है? क्यों आप इसके हाथ में खेल रहे हैं? किस प्रकार आप इसके हाथों में खेल सकते हैं और किस यह आनन्द लेने में सहायता कर रह हैं। घर में यदि एक बच्चा हो तो वह सौ लोगों को प्रसन्न कर सकता है। ये भी ऐसा ही है क्योंकि बच्चों में अवोधिता की शक्ति होती है और महाकाली इसी का सम्मान करती हैं। आप कई बार सोचते प्रकार उसकी इच्छा के अनुसार आप सभी गलत कार्य कर सकते हैं? दूसरी बात ये है कि अहम् उनके विरूद्ध है। अहम् आज की सबसे चैतन्य लहरी खंड : X11 अक : 3-4. 2000 18 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-20.txt हैं कि लोग धोखेबाज किस प्रकार हो सकते हैं। की जानकारी है, ये सभी जानती हैं| कैसे वे हमें धोखा दे सकते हैं? किस प्रकार इतने आक्रामक हो सकते हैं? कई बार तो वे बच्चे की हर तरह से देखभाल करती हैं। इस भयभीत करने वाले कार्य करते हैं और आपसे बहुत आशा करते हैं। परन्तु यह सब कुछ घटित हे कुछ गड़बड़ नहीं करता। जब आप बहुत छोटे हो रहा है और घटित हुआ है। आपको इन चीजों की चिन्ता नहीं करनी चाहिए और अपनी अबोधि करती है । इसी प्रकार महाकाली भी आपकी ता पर डटे रहना चाहिए। आप हैरान होंगे कि देखभाल करती है। तब महा सरस्वती शक्ति आपकी पूरी तरह से रक्षा की जाएगी। कैसे? क्योंकि महाकाली आपके आस पास रहेंगी और धारणाएं देती है आदि-आदि। परन्तु आपके यदि आप अवोध हैं तो आपकी देखभाल करेंगी। अन्तर्निहित शिशु की देखभाल करना आपकी अबोध व्यक्ति क्रोधित नहीं होता। क्रोधित होने अबोधिता और सौहार्द्रता की देखभाल करना की क्या बात है? अबोधिता की अपनी शक्ति महाकाली की शक्ति का कार्य है। अपने बच्चों होती है, मजबूती होती है। ये अत्यन्त शक्तिशाली के प्रति वे अत्यन्त संवेदन शील हैं। कोई भी है। क्रूर व्यक्ति भी जब किसी बच्चे को देखता उनके बच्चों को छूने का साहस नहीं कर है तो सावधान हो जाता है, अरे एक बच्चा है। कुछ वास्तव में महाकाली पूर्ण माँ हैं जो अपने नन्हें प्रकार वे जानती हैं कि यह बच्चा बहुत अबोध बालक होते हैं तो आपकी माँ आपकी देखभाल आकर आपको शिक्षित करती हैं, ज्ञान की अन्य सकता। उनके लिए सभी लोग शिशु सम है पूरा विश्व जानता है कि बच्चों को किसी प्रकार से न तो परेशान किया जाए न कष्ट दिया जाए क्यों? क्योंकि बच्चे इतने अबोध होते हैं। तो किसी प्रकार से चोट न पहुँचे उनके साथ कोई अबोधिता का गुण वास्तव में आपकी बहुत दुर्घटना न घटे। वे सदैव उनके साथ रहती हैं। सहायता करेगा। क्योंकि महाकाली आपके अबोधिता के गुण का सम्मान करती हैं। आपकी सौहार्द्रता के कारण वे आपको हैं? क्योंकि वे सर्वव्यापी हैं। वे सर्वत्र मोजूद हैं, प्रेम करती हैं। परस्पर सौहार्द्रता, परस्पर प्रेम और अन्य लोगों की देखभाल, ये सब उन्हें पसन्द है सहजयोगियों के तो वे हमेशा साथ होती है, चाहे आप यदि सहजयोगी हैं. आप यदि आत्मसाक्षात्कारी हैं तो वे सदैव आपके साथ हैं। परन्तु वे देखती दुर्घटना होती है वहाँ भी आपकी देखभाल करने हैं कि अपनी करुणा में आप क्या कर रहे हैं? के लिए वे मौजूद होती हैं। देवदूत की तरह से कितने लोगों को आप रोगमुक्त कर रहे हैं. और वे सदैव आपके पीछे होती है। और यदि आप कितने लोगों की आप सहायता कर रहे हैं? जो कुछ आप करते हैं उसकी उन्हें पूरी जानकारी नहीं, उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए, है। मैं कहूँगी कि महाकाली इतनी महान शक्ति हैं कि आपके विषय में वे सब कुछ जानती हैं, नहीं हो सकता। उनके आशीर्वाद बहुत महान हैं। सभी कुछ। ये आपके मस्तिष्क को जानती हैं, इन्होंने मानव को सम्पन्न बना दिया है और आपके हृदय को जानती हैं, इन्हें आपके स्वास्थ्य आत्मसाक्षात्कारी लोगों को वे विशेष रूप से अपना बच्चा मानती हैं और देखती है कि उन्हें प्रश्न पूछा जा सकता है कि यदि वे व्यक्ति है तो किस प्रकार इतने लोगों के साथ यह सकती आपके जीवन में, हर स्थान पर, विशेष रूप से जो भी आप कर रहे हो। आपकी यदि कोई नि:स्वार्थ भाव से, भौतिक उपलब्धियों के लिए भी हृदय से उनकी पूजा करते हैं तो आपको कुछ पृथ्वी को सम्पन्न कर दिया है। महाकाली के चैतन्य लहरी 19 । खंड : XI1 अंक : 3-4, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-21.txt आशीर्वाद ने सभी कुछ सम्पन्न कर दिया है। से दूर किस प्रकार जा सकते हैं। चेतना बहुत ही महत्वपूर्ण चीज़ है। चेतना के साम्राज्य में आप यदि जाना चाहते हैं तो आपको समझना होगा कि इसके पश्चात् नि:सन्देह, महालक्ष्मी आती हैं। उनकी खूबी ये है कि महालक्ष्मी तत्व में आप निर्लिप्त हो जाते हैं। सोचने लगते है । कि आखिरकार ये संसार क्या है और आप में एक मूल चेतना खोई नहीं जानी चाहिए। नशे और मदिरापान से या अन्य चीज़ों से यदि मूल चेतना खो जाती है तो आपको कुछ प्राप्त न होगा। लोग सोचते हैं कि सत्य साधना के लिए वे ऐसा कर रहे हैं। कई बार तो वे सत्य साधना को गलत कार्य करने का बहाना बना लेते हैं। ये तो स्वयं से प्रतिशोध लेने जैसा है। ये सोचना कि अब प्रकार की नि्लिप्सा की भावना आ जाती है। आप सोचने लगते हैं। कि संसार से भी बेहतर कुछ होगा, इससे परें भी तो कोई सत्य होगा। जिन लोगो को दुष्टों ने सताया होता है ऐसे लोग सदैव ऐसा सोचते हैं कि कोई तो होगा जो हमे इस दुर्दशा से उबारेगा। यहाँ आपके अन्दर महालक्ष्मी तत्व प्रवेश करता है। यह उत्थान की आप सत्य साधना कर रहे है स्वयं से प्रतिशोध लेना है। यह सच्ची साधना नहीं है। सच्ची साध ना में व्यक्ति को केवल ध्यान धारणा करनी होती है और इसके द्वारा उचित मार्ग खोजना है देवी का तत्व है। ये देवी आपके मस्तिष्क में एक विचार उत्पन्न करती है कि इससे क्या है? आपको क्या करना होगा? से आगे होती का यही लक्ष्य है? जीवन का उद्देश्य क्या है? को सुनकर नहीं करना होता हम इस पृथ्वी पर क्यों अवतरित हुए हैं? ऐसी क्या विशेष बात है कि हम पृथ्वी पर जीवित रहें। ऐसे बहुत से मूल प्रश्न उठने लगते हैं और नहीं। कोई भी यह नहीं बताता कि कुण्डलिनी आप निज्ञासु बन जाते हैं। इसमें भी आपको जागृति ही एक मात्र मार्ग है। लोग आपको समझना होगा कि महालक्ष्मी का सिद्धांत उससे बताएंगे कि हम फला स्थान पर जाएंगे, वहां से कहीं भिन्न हैं जैसा लोग समझते हैं। वे सोचते दूसरे स्थान पर चलेंगे ओर उस स्थान से एक हैं कि उनकी जिज्ञासा बोधगम्य होनी चाहिए यह मस्तिष्क के माध्यम से होनी चाहिए या तर्कसंगत होनी चाहिए या वैज्ञानिक। इस प्रकार वे सत्य साधना करते हैं। ऐसा होना संभव नहीं है । महालक्ष्मी का सिद्धान्त ये है कि आपमें सत्य और केवल सत्य को जानने की गहन इच्छा होनी चाहिए। सत्य के सिवाय किसी अन्य चौज को जानने की नहीं। जब आप इस प्रकार से कुण्डलिनी जागृति ही वास्तविकता को जानने का एक मात्र मार्ग हैं, कोई अन्य मार्ग और स्थान तक। ये सब करना होगा और अन्ततोगत्वा आप बहीं पहुँच जाएंगे जहाँ से आप चले थे। यह तो एक स्थान से दूसरे स्थान तक. एक झूठ से दूसरे झूठ तक, एक असत्य से असत्यता तक भटकते रहने जैसा है। भटक-भटक कर बहुत से साधक खो जाते हैं। बहुत से साधक खो गए हैं क्योंकि उन्होंने सोचा कि इस प्रकार की साधना बहुमूल्य है. क्योंकि आप गुरु सोचने लगेंगे तो अन्य चीज़ों के पीछे न दौड़ेगे। को बहुत सा पैसा दें सकते हैं मेरा कहने से बहुत से लोगों ने नशे की आदंत डाल ली। अभिप्राय है कि आप गुरु को खरीद सकते हैं उन्होंने ये सांचा कि नशा करने से वे और इस प्रकार सभी धनी लोग साक्षात्कार को पा सकते हैं । परन्तु मैं नहीं सोचती कि अच्छे है। चेतना को प्राप्त करने के लिए आप चेतना लोगों का बहुत बड़ा प्रतिशत धनी हो। जो लोग आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेगे। ये गलत धारणा चैतन्य लहरी खंड : XI1 अंक : 3-4 2000 20 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-22.txt अच्छे है वो अच्छे हैं चाहे वो अमीर हों या न हों। परन्तु ऐसे लोग व्यक्ति ( श्री माताजी) के मे खोज रहे हैं । यह इतनी अच्छी तरह से कार्य ईद गिर्द एकत्र होने का प्रयत्न करते हैं क्योंकि करती है कि उन लोगों को अत्यन्त सहज तरीके मेरे विचार से उन्हें धन का सूक्ष्म अहँ है और से स्वत: ही आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाता है। सोचते हैं कि हम सभी चीजों को खरीद सकते के लिए बनी है जो सच्चे साधक हैं, जो वास्तव आप सब को भी यह सहज आत्मसाक्षात्कार है। एक बार मैं अमरीका में थी और एक महिला मुझे मिलने को आई। वह न जानती थी कि मैं आध्यात्मिक व्यक्ति हूँ। उसने कहा, कि प्राप्त हो चुका है। आप लोगों को हिमालय नहीं जाना पड़ा और न ही इस प्रकार का कोई तप करना पड़ा। अब ये सारी चीजें समाप्त हो चुकी हैं, आप यह सब कर चुके हैं, सभवत: अपने पूर्व जन्मों में आपने यह सब कार्य कर लिए है। एक बहुत अच्छा गुरु अमरीका में आया है। मैंने कहा,"अच्छा, वह क्या करता है?" उसने कहा कि सेल (Sale) लगी हुई है, मैंने कहा, "वास्तव में, आप उसे आधा पैसा देकर उससे आशीर्वाद ले सकते हैं, ठीक है।" अगले सप्ताह उसने अब आपको कुछ नहीं करना, आप इसे प्राप्त कर सकते है। यहाँ बैठकर आप इसे प्राप्त कर रहे हैं । विश्व के किसी भी कोने में आप हों. आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं। और यह तेजी से प्रसारित हो रहा है, फैल रहा है। अब सहजयोगियों का कर्त्तव्य बनता है कि वे सहजयोग को फैलाएं। कहा कि अब वह सेल चौथाई रकम तक आ गई है, यदि आप उसे एक चौथाई पैसा दें तो वह आपको पूरा ज्ञान दे देगा। मैने कहा, कैसे वह इस प्रकार लेन-देन कर सकता हैं, यह कि धन तो नीयत राशि का बहुत कम हिस्सा है? मैंने कहा, "जब आप उसे नीयत राशि का आधा पैसा दे रही थी तो वह आधा ज्ञान दे रहा था ये बात समझी जानी आवश्यक है कि महालक्ष्मी और महाकाली दोनों साथ-साथ चलती हैं। महाकाली आपको आशीर्वाद देती है और और अब आप एक चौथाई पैसा दे रही हैं तो आपके साथ रहती हैं। आप उनके साम्राज्य में वह पूरा ज्ञान दे रहा है! उसने कहा, "यही बात है, वह अत्यन्त उदार है, उसकी यही खूबी है।" मैने कहा, "ऐसे लोग जो सोचते हैं कि वे समस्याओं को हल करने में आप की सहायता सत्य को खरीद सकते हैं, वे कभी सत्य को करती है। आर्थिक समस्याओं के साथ-साथ वे प्राप्त नहीं कर सकते। आप सत्य को खरीद नहीं आपकी अन्य समस्याओं का समाधान भी करती सकते । होते हैं। महालक्ष्मी आगे आती है और निश्चित रूप से आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने तथा अपनी कुण्डलिनी की जागृति के लिए आप पैसा नहीं दे सकते, नहीं। न ही आपको कुण्डलिनी जागृति के बदले में कोई पैसा लेना चाहिए। हैं। सबसे बड़ी समस्या जिसका वे समाधान करती है वह है आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने की आपकी महानतम इच्छा को पूर्ण करना। अत: उन दोनों में कोई स्पर्धा नहीं है। ये तीनों शक्तियाँ साथ-साथ कार्य करती हैं और जिस चीज की भी आवश्यकता होती है उसे ये कार्यान्वित करती हैं। परन्तु महाकाली पथ-प्रदर्शन करती हैं कि कहाँ, किस सहायता की आवश्यकता है। है। और महालक्ष्मी शक्ति वास्तव में उन्हीं लोगों यही कारण है कि महाकाली शक्ति का बहुत आत्मसाक्षात्कार पूर्णत: परमात्मा की कृपा है और इसके लिए आप धन नहीं ले सकते आप इसे बेच नहीं सकते। ये इतनी सस्ती चीज़ नहीं है कि बेची जा सके। जब आप यह बात समझ जाते हैं तो महालक्ष्मी शक्ति कार्य करती चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4, 2000 21 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-23.txt सम्मान भी जाति हो, कोई भी राष्ट्र हो, जो कुछ भी बहुत से असुरों और राक्षसों का वध किया। हो, परन्तु वे सदैव आपके अन्दर विराजमान परन्तु अभी भी बहुत से राक्षस विद्यमान है, है। उनकी पूजा करना, उन्हें जागृत करना, अभी भी वे जीवित हैं, परन्तु मुझे विश्वास है यही आपका एक मात्र कर्त्तव्य है। यदि व कि वो भी समाप्त हो जाएंगे। उनमें से एक भी आपके अन्दर जागृत हो जाएंगी तो आप विनम्र न बचेगा। परन्तु अभी भी हमें अत्यन्त सावधान व्यक्ति बन जाएगे। आप देखेंगे कि आप कौन और होता है। जैसा हम जानते हैं. महाकाली ने चुस्त रहना चाहिए तथा ये खोजने का सी गलतियाँ करते रहें हैं और इनके बारे में प्रयत्न करना चाहिए कि लोगों में क्या दोष है? सोचेंगे। आप स्वयं को दोषी नहीं मानेंगे, परन्तु वे क्या कर रहे हैं और किस चीज का प्रचार आपको वे गलतियाँ बुरी लगंगी और आप निश्चय करने का प्रयत्न कर रहे है? आपको इस प्रकार करेंगे कि वैसा पुन: कभी न करेंगे। आपको से परिपक्व होना है ताकि इन आसुरी लोगों के लगेगा कि मैंने बहुत बड़ी गलती की है और विषय में आपको पूरी जानकारी हो। खोज-निकालें तब आप स्वयं को सुधारने का प्रयत्न करेंगे। कि वे झूठे लोग क्या कर रहे हैं? ऐसा करना जब आप का हृदय पवित्र होता है तब यह सब अच्छी तरह से कार्यान्वित होना है। हृदय शुद्ध हैं और अपने ज्योतित चित्त से आप जान सकते होना चाहिए। आपका हृदय यदि पवित्र नहीं है, हैं कि किस संस्था में क्या दोष है? ध्यान धारणा दूसरे लोगों से स्पर्धा के लिए या किसी भी करने का यह सर्वोत्तम मार्ग होगा। किसी भी प्रकार के भौतिक लाभ के लिए यदि आप सहज योग कर रहे है तो यह कार्यान्वित न होगा। आपको ऐसे ढंग से सहजयोग करना होगा जो अत्यन्त पवित्र हो, मानो एक नन्हें शिशु की तरह नष्ट कर रहे हैं। हे, महाकाली कृपा करके दुष्ट से आप अपनी माँ की पूजा कर रहे हैं। जैसे लोगों का वध करो। ये उनका कार्य है और ऐसा एक नन्हा शिशु अपनी माँ से प्रेम करता है और करने में उन्हें प्रसन्नता होगी। परन्तु किसी व्यक्ति उसकी पूजा करता है। यह अत्यन्त सहज सम्बन्ध को तो उनसे प्रार्थना करनी होगी, याचना करनी है जिसे हम सब भुला चुके हैं किस प्रकार हम अपनी माँ से प्रेम करे, किस प्रकार उनके पथ तक आप उन्हें इनके विषय में कहेंगे नहीं ऐसे प्रदर्शन में रहें और किस प्रकार उनकी सुरक्षा में सुरक्षित रहें। यह इतनी सीधी बात हैं और आपने है क्योंकि आप लोग आत्मसाक्षात्कारी बहुत सुगम प्रकार से आक्रामक नहीं होना, केवल ध्यान धारणा करनी है और महाकाली से प्रार्थना करनी है कि उन लोगों को नष्ट करें जो विश्व को होगीं। ऐसा करना बहुत अच्छा होगा क्योंकि जब से दुष्ट लागों पर संभवत: उनका चित्त न बहुत जा पाएगा। अत: सर्वोत्तम तरीका ये होगा कि सदैव उनसे व्यक्तिगत रूप से, राष्ट्रीय. सामूहिक बचपन में ही यह बात जान ली थी। आप यदि वास्तव में अपनी माँ की पूजा करना चाहते हैं ता एक बार फिर आपमें उसी बचपन का लौट या विश्व स्तर पर सहायता की याचना करें। वे सर्वव्यापी हैं, पूरे ब्रह्माण्ड में व्यापक हैं। आप कहीं भी हों, आपका कोई भी रंग हो, कोई आना आवश्यक हैं। परमात्मा आपको धन्य करें। चैतन्य लहरी 22 । खंड : XII अंक : 3-4,2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-24.txt शक्तियाँ श्री आदिशक्ति की चौसठ ( आदिशक्ति पूजा काना जोहारी न्यूयॉर्क 20 जून 1999) 1. श्री आदिशक्ति जिसने चौदह भुवनों के ब्रह्माण्ड की सृष्टि की। आप हमारी बुद्धि से परे हैं | ॐ आप ही का नाद है। जो आपकी तीनों शक्तियों का गुँजन पूरे ब्रह्माण्ड में करता है। 3. आपके वित्त का आनन्द आदिशक्ति पूजा के अवसर पर अमरीका आप ही वो तत्व है को सामूहिकता ने श्री माताजी की चौवन नामों से स्तुति की। श्री माताजी ने इस सूची का पुनरावलाकन एवं सम्पादन किया तथा उन्होंने 2. जोड़े स्वयं दस नाम इसमें । सभी नामों के पश्चात्," ॐ श्री आदिशक्ति नमों नमः " का उच्चारण करें। चित्त विलास-आपकी पूरी सृष्टि में अभिव्यक्त 23 चैतन्य लहरी खंड : XI1 अक : 3 4 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-25.txt होता है। 4. दिव्य लीला में सर्वशक्तिमान परमात्मा आपकी शक्तियों द्वारा कार्य करता है। योग्य बनाती हैं। वस्तुतः ब्रह्माण्ड में आप ही महानतम शक्ति हैं। 15. कोई यदि आदिशक्ति के विरुद्ध कार्यं करे 5. श्री सदाशिव की इच्छा एवं श्वास की तो सर्वशक्तिमान परमात्मा आरचर्य जनक एकाकारिता आपसे है। 6. श्री सदाशिव की प्रसन्नता के लिए आपकी शक्ति परम-चैतन्य सितारों एवं स्वर्ग लोक को आनन्द से गुँजायमान कर देती है। 7. नि:सन्देह आप ही ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का स्रोत हैं। परमेश्वरी प्रेम के सूक्ष्मतम पारलोकिक तत्व के रूप में यह शक्ति विकीर्णित होती है। 8. भौतिक तत्वों एवं चेतना से परे आदिशक्ति को कृपा वहाँ पर विद्यमान है जहाँ सत्य तेजी से दण्डित करते हैं । 16. आपके सर्वप्रथम सृजित श्री गणेश कार्बन के अणुओं में जीवन के सार गुँजायमान करते हैं। कृपा करो कि वे मानव के अणु रेणू में विवेक एवं अबोधिता को पुनर्जागृत DNE कर दें। ।7. आपने दिव्य संसार तथा जिज्ञासुओं के विश्व का सृजन किया। कृपा करें कि हमारा उत्थान इस दिव्य लीला में विलीन हो जाए। 18. हे आदिशक्ति, उत्थान ऐसी शक्ति है जो मानव जीवन में आपकी दिव्य लीला को का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। 9. आप अनिर्वचनीय है, अपार है। हम आपको उन्नत करती है। 19. हे आदि कुण्डलिनी आपने आदि चक्रों की रचना की तथा जीवन के रहस्य उद्घाटन करने के लिए द्वारा खोले। 20. हमारी पृथ्वी माँ की कुण्डलिनी का सृजन करने वाली आप ही हैं। दिव्य श्वास (Pneuma), जीवन्त जल कहकर पुकारते है परन्तु आप तो इससे भी बहुत अधिक है। केवल देवता ही आपकी महान शक्तियों का दर्शन कर सकते है। 10. सर्वशक्तिमान परमात्मा आपके दिव्य नृत्य में श्री अदिशक्ति भी आपकी सभी शक्तियों 21. सामान्यतम पुष्प का भी एक अंश आपके लिए होता है और विशालतम वृक्ष का एक के साथ एकरूप हो जाती हैं। 11. आप ही परम चैतन्य की आद्य शक्ति हैं जिसने ईसा-मसीह की माँ का रूप लिया। भाग भी आपको अपर्ण किए जाने के लिए होता है। 22. पृथ्वी माँ की हरी साड़ी के सौन्दर्य से लेकर शेर एवं चीते की शानोशीकत तक 12. आप ही मूल सृजन कतो (Creatrix Power) है। वह मादा सृजनात्मक शक्त जो सर्वशक्तिमान परमात्मा की शन्ति को बनाए रखती है। 13. आपकी महालक्ष्मी शक्ति के माध्यम से प्रकृति द्वारा बनाए गए सभी जीव-जन्तु आपके हैं। 23. पृथ्वी माँ के गुरुत्वाकर्षण से लेकर आपके सभी स्वर्गीय ग्रह आपकी तेजस्वी शक्ति हम चतुर्थ आयाम की कालातीत शन्ति द्वारा नियंत्रित हैं। 24. आपकी शक्ति, परम-चैतन्य प्रकृति और उसके तत्वों को व्यवस्थित करती है और अनुभव करते हैं । 14. हे श्री आदिशक्ति, आप सर्वशक्तिमान परमात्मा को उनका पावन कार्य करने के चैतन्य लहरी खंड : XII अक : 3-4, 2000 24 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-26.txt इसकी सर्वव्यापक शक्ति हमें आपकी कृपा संगोत एवं नाटक में निपुणता प्रदान करते हैं। 34. आपने महिलाओं को सच्ची शालीनता का का पात्र बनाती है। 25. हे श्री आदिशक्ति, आप ही पृथ्वी माँ की कलात्मक सृष्टा हैं। जो लोग पृथ्वी माँ का सम्मान करते हैं उन्हें आप प्रेम करती हं । 26 . हे आदिरशक्ति, विशुद्धि की भूमि (अमरीका आपके विशाल सृजन का एक पक्ष है। इस गुण प्रदान किया है ताकि वे अपने परिवारों की देखभाल कर सकें तथा समाज को सुरक्षित रख सकें। 35. हे आदिशक्ति आप सती देवी के रूप में प्रकट हुई और राजधर्म की स्थापना हुई। जिसकी हम अभिलाषा करते हैं। भूमि के लोगों का अंतर्परिवर्तन करने के लिए आप यहाँ चैतन्य लहरियाँ बढ़ाइए 27. अमरीका के मूल निवासी दिव्य माँ के रूप में आदिशक्ति की पूजा किया करते थे और भूमि को पावन मानकर सम्मान करते थे । कृपा कीजिए कि अन्य सभी लोग जो इस भूमि पर रहते हैं और इसकी सम्पदा का आनन्द लेते हैं, उनमें भी यह दृष्टिकोण लौट लाए। 36: हे वागेश्वरी, आप ही महान कवियों तथा सन्तों को प्रेरणा देती है। 37. हे श्री आदिशक्ति, आपका वर्णन करना कवियों और सन्तों का कार्य है परन्तु अकुशलता के कारण वे अन्तरिक्ष पर रहस्य की एक शाखा लगाने का प्रयत्न करते हैं । 38. हे आदिशक्ति, आप पराशक्ति हैं, सभी शक्तियों से ऊपर। 28. जीवन्त प्रक्रियाओं का रहस्य केवल आपका है। कोई व्यक्ति इसे दोहरा नहीं सकता। 39. हे आदिशक्ति, कृपा करके हमें और अधिक विनम्रता प्रदान करें ताकि आपकी महिमा कृपा करो कि मानव इस सत्य के प्रति की एक छोटी सी झलक हम भी प्राप्त कर सकें। जागरूक हो जाए। 29. ओ, ऋतम्भरा प्रज्ञा, आप श्री आदिशक्ति की शक्तियों में से एक हैं। आप ही जीवन्त कार्यों की शक्ति है। 30. आप ही सम्पूर्ण जीवन को नियमित एवं आयोजित करती हैं। रात 40. हे देवी, कृपा करके हमें भी सूफियों एवं जिज्ञासुओं सम बना दें जो कि हर क्षण आपके गुण-गान में मग्न रहते हैं। 41. आपकी महालक्ष्मी शक्ति भव सागर में रिक्ती को पूर्ण करती है ताकि उत्थान के लिए साधकों की कुण्डलिनी चढ़ सके। 42. है आदिशक्ति, हमें सहजयोग में लाने वाली जिज्ञासा प्रदान करने के लिए आपका कोटि-कोटि अब कृपा करके मानवता को अन्तिम निर्णय (Last 31. हे आदि शक्ति, विष्णु लोक से गोकुल में, जहां श्री कृष्ण का बाल्यकाल व्यतीत हुआ, आप सुरभि के ( कामधेनु) के रूप में अवतरित हुई हैं। 32. हे आदिशक्ति, कृपा करें कि ध्यान धारणा के सौन्दर्य, समर्पण एवं आत्मसम्मान के माध्यम से सहजयोगिनियों के नारी सुलभ धेन्युवाद। Judgement) के अन्त तक ले आएं। 43. हे आदिशक्ति, हम याचना करते हैं कि गुण प्रकट हों। 33. शारदा देवी के आपके गुण, सत्य, कला, आपका प्रेम विश्व भर के साधकों और चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 25 3-4, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-27.txt सन्तों की रक्षा करता रहे। करता है। 44. हे श्री आदिशक्ति आपका कार्य ही महानतम है। आप ही ने पीठों, चक्रों, प्रकृति, मानवता तथा इनके सूक्ष्म कार्यों की सृष्टि की। कृपा करें कि आपके कार्य की जटिलता हमें 54. कृपा करों कि आपकी विकास प्रदायी शक्ति स्वार्णम युग के वांछित अस्तित्व को मानवता प्रदान करें। 55. आपने हमें मिथ्या-अभिमान ईष्यां मोह. लोभ. झूठे तदातम्य और हिंसा के चंगुल से पूर्णत: विनम्र करे दें। 45. आपका प्रेम चैतन्य लहरियाँ फैलाने वाले मुक्त किया है 56 अन्तिम निर्णय के लिए आप पृथ्वी पर अवतरित हुई हैं। 57. आप संज्ञानात्मक विज्ञान एवं संवेदनशील क्षेत्र की स्वामिनी हैं। बन्धन को शक्ति प्रदान करता है। 46. आपकी कुण्डलिनी शक्ति दिव्य स्वतन्त्रता प्रदान करती है। केवल यही वास्तविक स्वतन्त्रता है। 47. हमारे अन्दर से बिना किसी अवरोध के बहुती रहे। जीवन्त चैतन्य लहरियां प्रदायक 58. मानव जिस चीज का संकल्प करते हैं उसका विकल्प करके आप उसके अहम् को नष्ट करती है। अपनी अंगुली के जरा से इशारे से आप हिटलर जैसे तानाशाह को अपने फोटो द्वारा अन्य लोगों को चैतन्य देने में हमारी सहायता करें। 48. आपका महामाया स्वरूप हमें आपका सामीप्य प्रदान करता हैं तथा आपके अन्दर से 59. सूक्ष्म विनोदमय शैली में आप अत्यन्त प्रसारित होने वाली भयावह शक्ति से हमें समाप्त कर देती है। गहन शिक्षा देती हैं। 60. सहजयोगियों को आप कटु शब्दों से नहीं सुधारती, अपने गहन प्रेम तथा मृदुल स्नेह से ये कार्य करती हैं। बचाता है। 49. हे श्री आदिशक्ति, कृपा करके हमें अन्तर्दर्शन की गहन शक्ति प्रदान करें ताकि हम आत्मशोधक तथा आत्मचेतन बन सकें। 61. आप सभी धर्म-ग्रन्थों के सूक्ष्म अर्थ की 50. आप ही वो माँ है जिनकी इच्छा थी कि व्याख्या करती हैं। मानव ही सर्वशक्तिमान परमात्मा के दर्पण बने। 62. प्रत्यक्ष रूप से आप असत्य का अनावरण करती हैं। 63. भय नामकी चीज आपमें नहीं है और सहज 51. मानवता के पुनरुत्थान के लिए आपने सहजयोगियों में आत्मा के सुन्दर दर्पण हैं। योगियों को आप पूर्ण सुरक्षा प्रदान करती हैं। कलात्मक रूप के बनाए 52. आपकी करुणा सर्वशक्तिमान परमात्मा के क्रोध के प्रकाप से हमारी रक्षा करती 64. अपने बच्चों को आप प्रेम करती हैं और है। उनका सम्मान करती हैं ताकि सारी मानवता 53. माया के कारण मानव, जीवन के सिद्धांतो को भूल गया है। अब सहजयोग के माध्यम से मनुष्य श्री आदिशक्ति का स्मरण करता है और उनकी चैतन्य लहरियों को आत्मसात के लिए वे श्रेष्ठ आदर्श बन सकें। आपने सहजयोगियों को निष्पाप विनोदमयता एवं पूर्ण आनन्द का जीवन प्रदान किया है। ॐ त्वमेव साक्षात् श्री आदिशक्ति नमो नमः । चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 3-4, 2000 26 গtc 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-28.txt श्री माताजी की कनाडा यात्रा (1999) श्री माताजी का टोरोंटो में आगमन :- भी थी क्योंकि झील का स्तर नीचे जा रहा था यह खबर पाकर कि श्रीमाता जी अमरीका जिसके कारण अधिकारी चिंतित थे। इस प्रकार जाने से पूर्व टोरोंटो आएंगी, कनाडा के सहजयोगी विष्णु माया ने आदिशक्ति के स्वागत के लिए वातावरण को शुद्ध करके तैयार कर दिया और हम लोग उनके आगमन का बड़ी उत्सुकता बम हर्षमय आश्चर्य से भर गऐ थे। ये सुनना आनन्दमय था कि आदिशक्ति अपनी मंगलमय उपस्थिति से कनाडा को आशीर्वादित करेंगी श्रीमाताजी ने पूर्वक इन्तजार कर रहे थे। कृपा करके टोरोंटो की सामूहिकता को सन्देश भेजा कि यद्यपि जन कार्यक्रम के लिए समय बहुत कम है फिर भी हमें परिणाम की चिन्ता योगी उनका स्वागत करने के लिए मौजूद थे नहीं करनी चाहिए, क्योंकि परिणाम अपेक्षा से कहीं बढ़कर होंगे और इस बार हमेशा से हुए श्री माता जी ने सात कस्टम अधिकारियों को अधिक जिज्ञासु इस कार्यक्रम में उपस्थित होंगे। पोस्टर छापे गए और टोरोंटो शहर और उसके आस पास के क्षेत्रों में लगाए गए। सभी मुख्य स्थानों पर पत्रिकाएं बाँटी गई। समाचार पत्रों में हवाई पतन पर देखकर श्री माताजी बहुत प्रसन्न समाचार छापे गए और जाने माने लोगों को, हुए और कहा कि कनाडा में सहज योग कुछ राजनीतिक क्षेत्र के लोगों को भी, निजी रूप से आमंत्रित किया गया। उन्हें निजी रूप से टेलिफोन हवाई पतन पर प्रेम पूर्वक आए जर्मनी के किए गए, फैक्स दिए गए और ई मेल किए सहजयोगियों का भी उन्होंने वर्णन किया टोरोंटो श्री माताजी टोरोंटो में 25 मई 1999 की शाम को पहुँची। हवाई पतन पर लगभग 150 अप्रवासी क्षेत्र में अपने सामान की प्रतोक्षा करते आत्मसाक्षात्कार दिया जो इसके पश्चात् , जब तक श्रीमाताजी ने हवाई पतन छोड़ नहीं दिया, उनके साथ बने रहे । इतने अधिक योगियों को है बढ़ा तथा तेजी से फैल रहा है। फ्रैंकफर्ट गए। कनाडा की संघ सरकार के अधिकतर मंत्रियों को तथा राज्य सरकार के मंत्रियों को आते हुए फ्रेंकफर्ट पर उनका जहाज रुका था। तब उन्होंने स्वागत के लिए आए सभी सहजयोगियों सूचना दी गई तथा टोरोंटो कार्यक्रम तथा आगे से पुष्प स्वीकार किए और उन्हें आशीर्वाद आने वाले वैकूवर कार्यक्रम के लिए आमंत्रित दिया। वहां जब वे अपने सिंहासन पर बैठी हुई किया गया। जिस होटल में हम अपनी परमेश्वरी मुस्कुरा रही थीं तो हमारे हृदय आनन्द से झूम माँ को ठहराना चाहते थे, उसमें हमें कमरे भी रहे थे और हमारी आत्माएं नृत्य कर रही थीं। मिल गए। होटल के मैनेजर ने अपने सम्माननीय अतिथियों को दूरारे कमरों में जाने के लिए कह दिया ताकि वे उस स्थान पर अपने बहुमूल्यतम जैसे स्पष्ट रूप से श्री माताजी ने निर्धारित किया और सम्माननीय अतिथि (श्री माता जी) को रख सकें। श्री माताजी के आने से पूर्व न केवल घटित हुआ। सभागार में लगभग एक हजार टोरोंटो में परन्तु ओन्टारियो राज्य में लगातार तीन उपस्थित लोग उत्सुकता पूर्वत कार्यक्रम आरम्भ दिन तक बारिश हुई। वारिश की बहुत आवश्यकता होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। लगभग साढ़े सात टोरोंटो विश्वविद्यालय के दीक्षांत सभागार में जन कार्यक्रम हुआ। जनकार्यक्रम का घटनाक्रम, था, सभी कुछ वैसे ही एक गीत की तरह से चैतन्य लहरी खंड 27 : XII अंक : 3-4, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-29.txt बजे कार्यक्रम आरम्भ हुआ। इसका श्रेय युवाशक्ति कौन है? स्वयं को जान लेने के पशचात् आप को है जिन्होंने काफी परिश्रम करके मंच को समय पर तैयार किया। स्टीवन डे ने सरोंद पर राग यमन बजाया और दर्शकों को ध्यान मुद्रा में प्रश्नोत्तर इस लेख के अन्त में दिए गए हैं । समझ जाएँगे कि मैं कौन हूँ?" प्रश्नोत्तर सत्र के पश्चात् (कुछ अन्य श्रीमाताजी ने कहा कि अब समय है कि सभी ले जाकर उनका मन मोह लिया। तब दस मिनट में एक सहजयोगी ने प्रभावशाली ढंगा से सहजयोग लोग आत्मसाक्षात्कार ले लें। इसके पश्चात् जो का परिचय दिया और सूक्ष्म तनत्र तथा चक्रों के विषय में बताया। आश्चर्य की वार्त है कि ज्यों ही उसने अपना भाषण समाप्त किया अपनी शीतल समीर का अनुभव किया और देखा कि उपस्थिति द्वारा श्री माताजी ने हम पर कृपा वर्षा की। उनका स्वागत करने के लिए सभी लोग इस समीर (हवा) से खड़े हो गए। वह संध्या श्री माताजी की थी। वे दिव्य हुआ अधिकतर सहजयोगियों के लिए वह असाधारण अनुभव था। पूरे सभागार में हमने घटित श्रीमाताजी के पीछे लगा हुआ झण्डा (Banner) लहरा रहा था। श्रीमाताजी ने श्रोताओं को बताया कि उन्हें श्रोताओं से आती हुई शीतल वायु महसूस हो रही है। क्या कृपा थी! टोरोंटो वास्तव में 'शीतल' हो गया था। रूप में थीं। अत्यन्त सुगम एवं साधारण तरीके से उन्होंने सहजयोग के लाभ बताए। उनकी शैली इतनी विनोदमय थी कि सभी ने हंसते गाने के लिए कहा और श्रोताओं को इसका अर्थ हंसते इसे स्वीकार किया। पूरा प्रवचन करुणा से आते-प्रोत था और उनकी आवाज से परमेश्वरी तालियाँ बजाकर वे भी साथ दें क्योंकि ऐसा माँ का प्रेम एव सुहृदयता छलक रही थी। करने से चैतन्य लहरियाँ बढ़ती है। सभागार उन्होंने, नि:सन्देह, साक्षात श्री सान्द्रकरुणा के रूप में अपनी अभिव्यक्ति की। बाद में होटल तालियाँ बजाने में साथ दिया। भजन आरोह की के कमरे में उन्होंने कहा कि जिस दिशा में स्थिति में पहुँच गया और उसके माध्यम से अमरीकन समाज जा रहा है वे उसके लिएहमारी चैतन्य लहरियाँ शिखर पर पहुँच गई। एक चिन्तित हैं। उन्होंने कहा कि केवल सहजयोग ही उनकी सभी समस्याओं का समाधान है। श्रीमाताजी ने श्रोताओं से प्रश्न पूछने के लिए कहा क्योंकि उन्हें लगा कि वे बुद्धिमान गए। लोग थे। फिर भी उन्होंने अनुरोध किया कि केवल प्रासंगिक प्रश्न ही पूछे जाएं। एक बार से मिलने की सहमति दी। उन्होंने उनसे डेढ फिर श्री माताजी ने निरस्त कर देने वाली श्री माताजी ने भजन गाने वालों से जोगवा बताया। उन्होंने श्रोताओं से अनुरोध किया कि आनन्द से परिपूर्ण था और श्री माताजी ने भी दो मिनट के लिए पूर्ण स्तव्धता फैल गई। तत्पश्चात् श्री माताजी ने सभी को आशीर्वाद दिया उनके प्रस्थान के समय सभी लोग खड़े हो अगले दिन श्री माताजी ने तमिल दूरदर्शन घण्टे तक बातचीत की। वे श्रीमाताजी पर एक स्वाभाविकता एवं सहजतापूर्वक अपनी विनोदमय वृत्तचित्र बनाना चाहते हैं। एक दिन पूर्व हुए जन शैली में प्रश्नों के उत्तर दिए। यह पूछे जाने पर कि वे कौन है? उन्होंने उत्तर दिया, " मैं कौन हूँ आत्मासाक्षात्कार भी प्राप्त किया था। श्री माताजी इसकी चिन्ता करने के स्थान पर आप यह के प्रति वे अत्यन्त नतमस्तक थे और साक्षात्कार समझने का प्रयत्न क्यों नहीं करते कि आप कार्यक्रम को भी उन्होंने फिल्माया था और (Interview) के समय वे उनके श्री चरणों में चैतन्य लहरी 28 खंड : XII अंक : 3-4, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-30.txt बैठे रहे। उत्तरी अमरीका तथा दक्षिणी अमरीका के उन क्षेत्रों में, जहाँ दक्षिण भारत के तमिलनाडू वाशिंगटन और न्यूयॉर्क की तरह से श्री माताजी राज्य से आए तमिल जाति के गैर इसाई लोग नगर के साधकों को सम्बोधित किया। टोरोंटो, ने यहाँ भी श्रीताओं से प्रश्न पूछने के लिए कहा रहते हैं. इस साक्षात्कार को प्रसारण किया जाएगा। ताकि आत्मसाक्षात्कार से पूर्व उनकी सारी इसके पश्चात् श्री माताजी हवाई पतन के लिएमानसिक उत्कठाओं को शान्त किया जा सके। रवाना हो गई। उन्होंने थोड़े से शब्द कहे और सच्चे साधक की निष्कपटता से एक व्यक्ति ने अभी के लिए अलविदा कही। अपनी शाश्वत् प्रश्न किया, " जीवन का लक्ष्य क्या है,' अत्यन्त सुन्दर मुस्कान के साथ परमेश्वरी माँ न्यूयॉर्क में प्रतीक्षा करते हुए अपने बच्चों से मिलने के लिएबन जाना' चल पड़ी। लगभग सौ लोगों ने पहले अनुवर्ती कार्यक्रम में भाग लिया। उनकी सच्चाई और दिलचस्पी उनकी ईमानदारी के लिए श्रीमाताजी ने सराहना साधारण है " श्रीमाताजी ने उत्तर दिया "दिव्य अपनी अन्तर्वेदना तथा साधना के दर्द को प्रकट करते हुए एक अन्य साधक ने प्रश्न पूछे। की। पहली पाक्ति में बैठे हुए एक युवा लड़के ने जानना चाहा कि शैतान हमारे अन्दर किस बहुत ही आश्चर्य चकित कर देने बाली थी। चार भाग वाले अनुवर्ती कार्यक्रम को योजना बनाई गई थी जिसमें, साक्षात् परमात्मा के सम्मुख प्रकार आ जाता है। एक अन्य व्यक्ति ने मंच के हाल ही में साक्षात्कार प्राप्त किए, अपने नए पीछे के पर्दे पर बने चित्र के विषय में पूछा? भाई-बहनों को जीवन के गहन अर्थ को खोजने श्रीमाताजी ने कहा कि वह तो केवल सजावट के लिए हमने उनका प्रेम पूर्वक पथ प्रदर्शन के लिए था। श्रीमाताजी ने चेतावनी दी, "आप सभी कुछ देखते हैं। परन्तु वास्तविकता को क्यों नहीं देखते?" जन-कार्यक्रम के पश्चात् श्री -आशीष प्रधान टोरोंटो माताजी ने कार द्वारा नगर का भ्रमण किया स्टेनले पार्क और उत्तरी तट पर्वत ताकि शाम की तेज करना था। बोलो ज़गन्माता श्री निर्मला देवी की जय श्री माताजी वैकूवर में - वैकूवर नगर मे अब 2500 नव साक्षात्कार प्राप्त लोग हैं परम पूज्य चैतन्य लहरियों को फैला सकें। थोड़ी देर सोने माताजी श्री निर्मला देवी के दो जन कार्यक्रमों के पश्चात् रविवार प्रातः दूसरे जन कार्यक्रम के उपनगर, सरे में उनके घर में एक भेंट तथा होटल के कमरे में पत्रकार सम्मेलन के पश्चात् में बोलते हुए उन्होंने यहाँ उपस्थित श्री कृष्ण हमारा नगर उनके सूक्ष्म चित्त दृष्टि पड़ने के भक्तों को बताया कि उनके लिए तो कारण भली भांति चैतन्यित एवं आशीर्वादित हो लिए बर्नबी (Burnby) मन्दिर गई। शुद्ध हिन्दी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना सुगम होना चाहिए। अत्यन्त श्रद्धा तथा सम्मान-पूर्वक श्री माताजी का परिचय करते हुए पुजारी ने कार्यक्रम को आगे गया। अट्ठारह वर्ष पूर्व उनकी पहली यात्रा से लेकर अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ था। 26 जून शनिवार को शिकागो से आकर श्री माताजी बढ़ाने के लिए मार्ग प्रशस्त किया। बर्नवी से श्री ने आन्तरिक बन्दरगाह पर बने शहर के मुख्य सम्मेलन कन्द्र पर जन कार्यक्रम किया। एक्सपो सहजयोग आश्रम ही है। यहाँ उन्होंने सहजयोगियों 86 के लिए कनाडा के मंडप के रूप में बने का स्वागत किया। दोपहर का खाना खाकर इस एतिहासिक मण्डप में श्री माताजी ने हमारे माताजी सरें स्थित अपने घर आई। यह भी एक आराम किया। चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4 2000 29 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-31.txt शाम को होटल वापिस जाकर पाँच समस्या ये है कि वे पशु अवस्था में विकसित संवाददाताओं के लिए एक संवाददाता सम्मेलन हुए हैं। अत: मैं सोचती हूँ कि मानव रूप में ये विकास पूर्ण नहीं हैं। जो भी हो, ये दुर्गुण जो अभी तक हमारे अन्दर, हमारे व्यक्तित्व में बने हुए हैं, ये वशानुगत हैं। हम बहुत अधिक सोचते हैं. बहुत अधिक चीजें इकट्ठी करते है और हमारे अन्तःस्थित ज्ञान भी बदलता रहता है, जैसे भाजन आदि के विषय में और हम एक प्रकार से लोभी व्यक्ति बन जाते हैं। हमारे अत्यन्त धन लोलुप हो जाने के कारण पूर्ण प्रणाली एकदम से बदल जाती है। ये दुर्गुण अभी तक भी हमें बने हुए हैं और उसके साथ-साथ ईष्ष्यां और आक्रामकता का गुण भी हमारे अन्दर विद्यमान है। ये सभी कुछ हममें वंशानुगत है। हुआ। नगर की लोकप्रिय पत्रिका (Common Ground) कॉमन ग्राऊंड के सम्पादक भी इन पांच में से एक थे। राष्ट्रीय धार्मिक केबल चैनल विजन (Vision) के कर्मी दल के सदस्य और वैंकूवर भारतीय प्रजाति के समाचार और दूरदर्शन के सदस्य श्रीमाताजी के सम्मुख फर्श पर जूते उतारकर बैठे हुए थे। अगली सुबह श्रीमाताजी की स्वीकृति लेने तथा उसकी अशुद्धियाँ दूर करने के लिए उन्हें एक लेख पेश किया गया| इस लेख की भाषा ऐसी थी मानों किसी सहजयोगी ने लिखा हो । हमारे नगर पर श्रीमाताजी की कृपा दृष्टि से हम अत्यन्त आशीर्वादित महसूस कर रहे हैं। हवाई पतन पर श्री माताजी के आगमन और ऐसे व्यक्ति बन जाते हैं जो बिना प्रतिक्रिया किए प्रस्थान के समय हर एक सहजयोगी व्यक्तिगत चीजों को देख सकता है रूप से उन्हें पुष्प अर्पण कर सकता था। जब वो सरें आश्रम में गई तो हर एक को उनके चरणों आत्मसाक्षात्कार के परिणामस्वरूप आप एक उनपर दृष्टि रख सकता हैं। मेरे विचार से वह महानतम लाभ है। प्रश्न :क्या आपने गाँधीजी के साथ कार्य में प्रणाम करने का, उन्हें उपहार देने का या किया? अपनी समस्या के विषय में बातचीत करने का श्री माताजी : इस प्रकार मैने उनके साथ कार्य अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने अपने सभी बच्चों नहीं किया। उस समय में सात साल की नन्ही को समय दिया। उन्होंने कहा कि परम चैतन्य बालिका थी. मैं उनके साथ रही और वो मैरे इतना प्रसन्न है कि वे (श्रीमाताजी) घर को विषय में जान पाए। आत्मसाक्षात्कारी होने के चैतन्य लहरियों से भर देना चाहते हैं। इस प्रकार कारण वे मुझे पहंचान गए। परन्तु महात्मा गांधी बहुत अधिक अनुशासन बद्ध थे इसलिए लोग उनके इस गुण को (आत्मसाक्षात्कारी होना) न हम धन्य हुए। प्रश्नोत्तर वैकूवर यात्रा में श्री माता जी ने अपने समझ सके। वे अत्यन्त आध्यामिक व्यक्ति थे होटल के कमरे में एक संवाददाता सम्मेलन किया। चार संवाददाता उपस्थित थे। ये कामन मैंने एक ही कार्य किया, कभी-कभी मैं उनका ग्राऊंड पत्रिका, यू मैगजीन, द लिंक न्यूज पेपर क्रोध शान्त किया करती थी, उनका मनोरजन और वीजन ऑफ फन टेलिविजन के कार्यक्रमों करती थी। वे मुझसे पूछा करते थे कि वे भजन और बच्चों से बहुत प्रेम करते थे। उनके साथ के प्रतिनिधि थे। इसका एक छोटा सा उद्धरण निम्न लिखित है। श्रीमाताजी : आप देखिए मनुष्याों के साथ किस प्रकार लिखें। भजनावली में सारे मन्त्र लिखे हुए थे, वे इसे एक क्रम से लिखना चाहते थे। भिन्न चक्रों के अनुसार मैंने उन्हें बताया कि चैतन्य लहरी खंड : XI1 अंक : 3-4, 2000 30 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-32.txt मानलो आप पिता हैं। आप अपने बच्चे को क्या आपको यह चक्र जागृत करने होंगे। बनाना चाहेंगे। प्रसन्नचित, आनन्दमय और जिम्मेदार प्रश्न : क्या हमारा अस्तित्व एक है।? श्रीमाताजी : सभी लोग जुड़े हुए हैं परन्तु व्यक्ति। जब आप अपने बच्चे को ऐसा बनाना आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति इस सम्बन्ध को महसूस चाहते है तो आपके परमपिता आपसे क्या आशा कर सकते हैं, जो आत्म साक्षात्कारी नहीं हैं वे करते हैं? वे भी चाहते है कि आप प्रसन्न एवं इसे नहीं समझ सकते। वे सब एक ही व्यक्ति हैं, एक ही आध्यात्मिक अस्तित्व के अंग प्रत्यंग। नहीं है। अत: वे अज्ञान को दूर करना चाहते है। इसे हम सर्वशक्ति मान परमात्मा कह सकते हैं। आपके जीवन का यही लक्ष्य है आनन्दमय व्यक्ति बने। अज्ञानवश आप ऐसे प्रश्न : कोई यदि तनाव की स्थिति में है और उसके पास ध्यान धारणा करने का, सामूहिकता में जाने का अवसर भी नहीं है, तो ऐसी कौन सी विधि है जिससे वे तुरन्त अपनी चैतन्य लहरियों को बढ़ा सकें ताकि परमात्मा तथा, समाज के दृष्टिकोण से समस्याओं का समाधान देख सके ? श्रीमाताजी : जैसा मैने आपको पहले बताया है इस बात का ज्ञान हमें होना चाहिए। अपनी चेतना में हम नहीं आ पाए है। अभी तक प्रवेश नहीं कर पाए हैं। एक बार जब ये स्थिति आ जाएगी, तब आप जानते हैं कि आप भिन्न व्यक्तित्व के हो जाएगे। प्रश्न : ये सारी चीजे कब कार्यान्वित होगी? श्रीमाताजी : यह सब लोगों की इच्छा पर निर्भर ये आपका मौलिक अधिकार है। यदि हालात करता है। मेरी इच्छा तो ये है कि यह कल आपके पक्ष में नहीं है फिर भी चीजे कार्यन्वित होती हैं, स्वत: ही कार्यान्वित होती है। आपको घटित हो जाए। मूर्खतापूर्ण चीजों में हम अपना जीवन क्यों बर्बाद करें। हमें होश में आ जाना चाहिए। मैं यही चाहती हूँ। मैं तो यात्राएं करती सारे अवसर प्राप्त हो जाते हैं । मैने ऐसे बहुत से रहती हूँ, भाषण देती हूँ, बातचीत करती रहती लोगों को देखा है जिनको ऐसी समस्याएं थीं। परन्तु इनके समाधान के लिए वे कार्य करते हैं। परमात्मा के प्रेम की शक्ति पर विश्वास करें हूँ। परन्तु सत्ता पर आसीन लोगों को भी यह बात समझनी चाहिए। प्रश्न : आप परमात्मा तक किस प्रकार पहुँचते. और देखें कि कितनी सुन्दरता पूर्वक यह कार्य हैं? दूसरे शब्दों में क्या यह परमात्मा को प्राप्त करने का मार्ग है? श्रीमाताजी : हाँ, नि:सन्देह ऐसा है। यह निर्वाण श्री माताजी को आमंत्रण देता है कि अगले दिन है। 26 जून 1999 शनिवार के दिन परम पूज्य माताजी श्री निर्मलादेवी ने वैकूवर में एक जन कार्यक्रम किया इसमें उन्होंने श्रोताओं के प्रश्न आमंत्रित किए। करती है। ठीक है? परमात्मा आपको धन्य करें। वैंकूवर के हिन्दू मन्दिर में एक व्यक्ति आकर कार्यक्रम करें। उसके उत्तर में श्रीमाताजी कहती है: आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आप देखें कि मन्दिर, गुरुद्वारे, चर्च, ये सभी आध्यात्मिकता सिखाने के लिए हैं। इसका यही अन्त नहीं हो जाता। अन्त क्या है? इसका अन्त प्रश्न : जीवन का लक्ष्य क्या है? है स्वयं को पहचाननां, आध्यात्मिकता सम्पन्न श्रीमाताजी : दिव्य बनना सीधी सी बात है। यह ऐसा प्रश्न है जो हमारे अन्दर महसूस किया होना। मैं आपको बता रही हूँ कि आपको अपने जाना चाहिए। मानव जीवन का लक्ष्य क्या है? बौद्धिक व्यक्तित्व से ऊपर उठना होगा और इसके लिए कुण्डलिनी जागृति प्राप्त करनी होगी। दिव्य बनना और परमात्मा का अंग प्रत्यंग बनना। चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4, 2000 31 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-33.txt ন 5 55555 उद्धारक स्थक त्तक 乐乐乐乐555乐乐5乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐 स्वस्तिक शब्द का अर्थ क्या आपने कभी जिन संस्कृतियों ने स्वस्तिक का सम्मान किया किसी पुस्तकालय में देखा? इस लेख को लिखते और इसका मंगलमयता के प्रतीक के रूप में विस्तृत रूप से उपयोग किया उनकी अधूरी सूची नीचे दी जा रही है। यह इस प्रकार है: भारत, चीन, यूनान के मैसिनियन आयरलैण्ड आप द्वितीय विश्व युद्ध पर खोज कर रहे हैं?' के सेल्फस, प्राचीन बर्तानिया, स्केण्डेनेविया, मध्य पूर्व के प्राचीन इसाई. मूल अमरीकन. हुए न्यूयॉर्क पब्लिक लायब्रेरी के संदर्भ पुस्तका- ध्यक्ष से स्वस्तिक शब्द पर काई पुस्तक देने के लिए जब कहा गया तो उसने उत्तर दिया, क्या जब उसे बताया गया कि स्वस्तिक हिन्दू तथा अन्य धार्मिक परम्पराओं में अत्यन्त सम्माननीय प्रतीक है, तो उसने लेखक को पुस्तकालय के कला विभाग में भेज दिया, वहाँ पर हालात कुछ में, की उपस्थिति चमत्कारिक गुणों को प्रदान रूस जापान और जर्मनी। सच्चे स्वस्तिक, घड़ी की सुई की दिशा है करती है। यह बाधा निवारक का कार्य करता बेहतर थे। पुस्तकाध्यक्ष ने कहा, "ओह! आप श्री और इसीलिए श्री लंका से जाने वाले जहाजों पर गणेश और स्वस्तिक में दिलचस्पी ले रहे हैं वे श्री शिव और पार्वती के पुत्र हैं। उनके विषय में विजय को विश्वस्त कर सकें। चीन में श्री बुद्ध यहाँ पर एक संदर्भ है। स्वस्तिक क्योंकि सहज योग तथा मानव जीवन का महत्वपूर्ण अंग है अतैव इसका इतिहास और अर्थ समझा जाना अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। तृतीय जर्मन साम्राज्य की यह चिन्ह बनाया जाता था ताकि श्री राम की के चरण कमलों पर पत्थरों में स्वस्तिक चिन्ह बनाया जाता था वहाँ पर इसे वांतजूते नाम दिया गया और यह हितैषी समाज, जीवन की पूर्णता और बुद्ध के हृदय का प्रतीक माना जाता है । वास्तव में स्वस्तिक उन सभी स्थानों पर चेतना को प्रभावित किया है फिर भी स्वस्तिक पाया जाता है जहाँ मानव गया। प्राचीन भारतीय गुफाओं की दीवारों पर हजारों स्वस्तक चिन्ह किया जा सकता। यह मानव का प्राचीनतम चित्रित किए गए हैं और आज भी ग्रामीण प्रतीक है और इसका आकार वास्तव में श्री महिलाएं अपने दरवाजों और घर की दीवारों पर गणेश की शक्ति प्रदान करता है। स्वस्तिक की स्वस्तिक चिन्ह बनाती है। प्राचीन यूनानी सिक्कों, शक्तियाँ अत्यन्त शक्तिशाली एवं पवित्र हैं और रोमन चित्रकारी तथा प्राचीन यूरोप की सिलाई पर यह निशान बनाया जाता है। शताब्दियाँ बीच में बीतने के साथ-साथ स्वस्तिक की समझ नकारात्मकता ने स्वस्तिक के विषय में जन के विषय में शुद्ध सत्य को कभी परिवर्तित नहीं उनकी उपस्थिति का आभास कराती हैं। स्वस्तिक शब्द संस्कृत का है, जिसका उद्भव स्वस्ति शब्द से हुआ है अर्थात् सुख, लोगों के जीवन से दूर होती चली गई। पवित्रता शांति। सु अर्थात अच्छा और अस्ति अर्थात् होना। को रोजमर्रा के जीवन की गतिविधियों से पृथक 32 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-34.txt कर दिया गया फिर भी घरेलू वस्तुओं, कपड़ों, गणेश-गणेश और ईसा-मसीह एक ही सिद्धान्त इमारतो के खम्भों पर मंगलमयता के चिन्ह के के दो पक्ष थे तथा ईसामसीह ही के क्रूस प्रतीक के रूप में स्वस्तिक दिखाई देता था जो जो सत्य न था, जुड़े हुए थे। से. कि भूतकाल की अपेक्षा कम चेतन था। सीधे, घड़ी की सुई की दिशा में ही. बने स्वस्तिक में ही चैतन्य लहरियाँ देने का गुण है उल्टी दिशा में बनाए गए स्वस्तिक मंगलमय नहीं होते। इनका उपयोग आसुरी लक्ष्य प्राप्त करने के लिए तांत्रिकों ने किया। बहुत सी संस्कृतियों ने स्वस्तिक का उपयोग सजावट के प्रतीक के रूप में उल्टा या सीधा किया क्योंकि लोगों को चैतन्य लहरियों को ज्ञान बहुत कम था और उनके चक्र कुण्डलिनी के प्रति संवेदन विहीन थे। यह जानकर हैरानी सहजयोग के माध्यम से हम जान जाते हैं कि श्री गणेश के गुण, अबोधिता एवं विवेक, सूक्ष्म स्तर पर जींवत कोषाणुओं में निवास करते है। जीवन सृजन पिण्ड के सूक्ष्म अणुओं में भी, जिनका आकार कुण्डलित होता है. स्वस्तिक प्रतीक होता है। आणविक स्तर पर स्वस्तिक कार्बन के अणुओं में दिखाई पड़ता है। सहजयोगी बैज्ञानिकों के शोध परिणामों को श्री माताजी ने स्वीकार किया कि स्वस्तिक तथा ओंकार, अल्फा और ओमेगा, आदि और अन्त के प्रतीक हैं और इन्हें कार्बन के अणुओं से बने भाग के होती है कि अन-चाहे स्वस्तिक के उल्टी दिशा में बनाए जाने के कारण और उसके उपयोग से रूप में देखा जा सकता है। पूरे समाज परमात्मा को रुष्ट करने के कारण पतन को प्राप्त हुए प्राचीन इसाईयों ने स्वस्तिक की तुलना है। आत्मासाक्षात्कार से पूर्व साधक सन्देशों और ईसा-मसीह और सूर्य से की। हम बाइबल के प्रतीकों में चैन खोजता है, आत्मसाक्षात्कार के न्यू टेस्टा-मेन्ट में जॉन के रहस्योद्घाटन नामक अध्याय में चार देवदूतों का वर्णन है। क्रूस सम बने प्रचण्ड चक्र पर ये सभी खड़े हैं और चारों दिशाओं में से एक-एक दिशा को ये मुँह किए लोगों ने पृथ्वी तत्व की शक्ति को महसूस हुए हैं। पाश्चात्य चित्रकला के माध्यम से यह श्री गणेश के देवी गुणों की व्याख्या हो सकती लोगों के पूर्वजों ने अंजाजियों में स्वस्तिक के है। स्वस्तिक केवल प्रतिनिधित्व मात्र ही हैं। नहीं है। यह अपने आप में जीवन की उपस्थिति पश्चात् हम प्रतीक की कृपा सीधे अपने चक्रो पर महसूस करते है। विशुद्धि की भूमि पर मूल अमरीकन किया। दक्षिणो, पश्चिमी अमरीका के कोएबलों आकार अपने सुन्दर मिट्टी के बर्तनों पर बनाए। आज भी होपी जो कि उनकी सन्ताने हैं पूरे दक्षिण पश्चिम के दस हजार वर्षों के इतिहास में प्राचीन देशान्तरण की कहानियाँ सुनाते हैं। होपी लोगों का विश्वास है कि मानव रूप में वे पृथ्वी माँ के गर्भ से सीधे अवतरित हुए थे और उन्होंने चारों दिशाओं में देशान्तरण किया। जिस प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व के देशों के दार्शनिकों की स्वस्तिक के विषय में सूझ-बूझ अत्यन्त सकारात्मक थी। उन्होंने इसे ईसा-मसीह के प्रतीक तथा प्रगल्भ विकास का प्रतीक माना। चारों दिशाओं के प्रतीक के रूप में भी उन्होंने स्वस्तिक को लिया तथा पशु अवस्था से मानव अवस्था और मानव अवस्था से दिव्य अवस्था प्रकार सीधे चक्र में स्वस्तिक बनाया जाता है, उनका विश्वास है कि स्वस्तिक का ये आकार तक विकास माना। वे न जानते थे कि श्री 33 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-35.txt उनकी यात्रा को धार्मिकता प्रदान करता है। यह उभाड़ उनके लिए नए विश्व में प्रवेश तथा एक ऐसे विश्व में वापिसी की इच्छा का सृजन करता है और अपनी चौथी भुजा से वे अपने साधकों को भोजन भेंट कर रहे हैं । अंकुश आध्यात्मिक उत्थान का प्रतीक है, रस्सी कष्टों से बचाव है जहाँ द्वार से सिर के तालू भाग तक खुला हो है । अभयमुद्रा में उठा हाथ आशीर्वाद दे रहा अर्थात माँ में वापिसी, ये उभाड़ इस चीज का है और भोजन लिए चौथी भुजा प्रसाद का आशीर्वाद है। ये सभी मिलकर अबोधिता का प्रतिनिधित्व करते हैं और प्रणव प्रदान उबरू विराजमान हैं जिन्हें अय्यर की चट्टान के करते हैं- "यही बक्त हैं जब विद्युत चुम्बकीय प्रतीक था। श्री गणेश की भूमि आस्ट्रेलिया में महान है। नाम से भी जाना जाता यह लाल रंग की एक शक्तियाँ गणेश तत्व से ऊर्जा प्राप्त करती है। बहुत बड़ी चट्टान है जो कि स्वयंभु श्री गणेश श्री गणेश के ये प्रतीकात्मक पक्ष प्रणव प्रदान है। एक प्राकृतिक भौगोलिक संस्था जिससे चैतन्य करने में और चैंतन्य लहरियों को उत्पन्न करने लहरियाँ निकलती है। अय्यर की चट्टान वहाँ में सहकारी कारण बनकर सहायक होते हैं। (श्री के मूल कबीलों के लिए पावन स्थल था। वो गणेश पूजा कबैला 19 सितंबर 1999) समझते थे कि ये विशाल पत्थर से बनी संरचना जीवित है। वैज्ञानिकों ने इस चट्टान को प्राचीनतम श्री गणेश का स्वस्तिक किस प्रकार विक्रत हो जीवाश्म अमीबा जीवन संभवत: जीवन का ही तो हिटलर की आसुरी इच्छाओं के कारण गया। श्री माताजी बताती है कि हिटलर तिब्बत चिन्ह माना है। इस चट्टान का रंग लाल हैं और इसमें चुम्बकीय तत्व हैं। विकास के मूल चुम्बकीय तथा विद्युत चुम्बकीय गुणों के विषय में श्री माताजी बताती है : इसे विद्युत चुम्बकीय कह सकते हैं परन्तु वास्तव में यह गणेश की शक्ति है जो इस स्तर पर के बीद्धों से बहुत प्रभावित था और ये बौद्ध-लोग तान्त्रिक विद्याओं में फॅसे हुए थे। उसे जब पता में विद्यमान श्री गणेश के चला कि इस प्रतीक में शक्ति है तो उसने इसका उपयोग जर्मन संस्कृति के पुनरुत्थान के भोतिक स्तर पर हम प्रतीक के रूप में किया ताकि वह अपनी आसुरी इच्छाओं को और कार्यों को न्यायोचित ठहरा सके। इतिहास में एक अन्य स्थान पर विद्युत चुम्बकीय है। यहाँ इसका उत्थान और रोमन साम्राज्य में स्वस्तिक चिन्ह का उपयोग उसकी बढातरी होनी आरम्भ हो जाती हैं। इस प्रकार विकास की भिन्न बढोतरी हम देखते हैं मानव में जैसे आप जानते है, यह मंगलमयता, पावनता और विशेष रूप से अयोधिता के रूप में अच्छाई की विजय होती है। जिस प्रकार श्री विद्यमान है।" चतुर्भुज गजानन श्री गणेश आकार माताजी हमें स्मरण करती हैं कि ईसा-मसीह की में स्वस्तिक सम है। श्री गणेश के भजन में मृत्यु के जिम्मेदार रोमन लोग थे इसके पश्चात् उनकी भुजाएं और हाथ प्रतिबिम्बित हैं। श्री विनायक के रूप में उनकी स्तुति की गई है। कि भारत से उनके व्यापार व्यवहार के मध्य वे अपने प्रभुत्व प्रदर्शन के रूप में किया। रोम के ध्वजावाहक इसे उठाया करते थे। परन्तु जिस प्रकार नाज़ियों के साथ हुआ ऐसी गलतियों पर उनका साम्राज्य दुर्बल हो गया| यह सच्चाई है "उनकी चार पावन भुजाएं है। आशीर्वाद देता समाज के प्रतीक के रूप में स्वस्तिक चिन्ह से हुआ हाथ है रस्सी तथा अंकुश उनके हाथ में परिचित हुए। परन्तु रोमन लोगों ने इसका उपयोग चैतन्य लहरी = खंड : XII अंक : 3-4, 2000 34 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-36.txt उल्टी दिशा में किया। स्वस्तिक के अर्थों के विषय में मूल भ्रम उत्पन्न वर्ष 1998 में जर्मनी में हुई श्री हनुमान करते हैं । आज भारत में स्वस्तिक राजनीतिक पूजा में श्री माताजी ने हनुमान जी के विषय में बताया तथा जर्मनी के दाई ओर के देवदूत सम गुणों का भी वर्णन किया। दूसरे विश्व युद्ध में चुनावों और भारतीय समाज का सकारात्मक रूप से प्रतिनिधित्व करता है। हाल ही में 1930 के दशक में अमरीका के आस-पास की सरकारी इमारतों पर जीवन एवं शुभ इच्छा के प्रतीक के श्री हनुमान ने हिटलर के साथ एक चालाकी की। आरम्भ में नाजी पार्टी ने अपने ध्वज पर रूप में स्वस्तिक चिन्ह बनाया जाता था। केवल स्वस्तिक का प्रयोग सीधी दिशा में किया। श्री पिछले पचास वर्षों से ही इससे ध्यान हट गया हनुमान ने उस स्टेनसिल को इस ढंग से बना दिया कि नाजियों ने उसे दूसरी ओर से उपयोग करने का निर्णय किया। इस प्रकार से श्री गणेश एवं शक्ति के विषय हैं। स्वस्तिक के गहन पावन रहस्य के अर्थ में बने हुए भ्रम को और श्री हनुमान ने हिटलर को युद्ध जीतने से रोका और इस प्रकार पूरा विश्व उनके आसुरी स्वस्तिक अखण्ड एवं पवित्र है तथा इतिहास प्रयासों से बच गया। सहज-योग दूर कर रहा है। श्री गणेश का और समय से परे है। सहजयोग के माध्यम से सदियों की नाजी नक़रात्मकता के कारण इसका जनसम्मान पूर्णत: पुनर्स्थीपित हो सभाओं में नए साधकों के मन में स्वस्तिक के विषय में पूर्वविचार हो सकते हैं। द्वितीय विश्व की यादों के कारण पश्चिमी संवाददाता भी जाएगा। ॐ त्वमेव साक्षात् श्री गणेश साक्षात् श्री आदि शक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नमः बुद्ध ा चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4, 2000 35 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-37.txt গ্ी हनुमान पूजा फ्रेंक फर्ट, 31 अगस्त 1990 (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला हेवी का प्रवचन) मानव अस्तित्व में श्री हनुमान जी की बच्चों पर चिल्लाते रहते हैं, और उनकी समझ महत्वपूर्ण भूमिका है। निरन्तर हमारे स्वाधिष्ठान से मस्तिष्क तक चलते हुये वे हमारी भविष्य करें। कभी कभी तो ये लोग यह सोचते हुये की योजनाओं या मानसिक गतिविधियों के लिये "मुझे तो यह प्रेम प्राप्त नहीं हुआ कम से कम में नहीं आता कि किस प्रकार बच्चों से व्यवहार आवश्यक मार्गदर्शन तथा सुरक्षा प्रदान करते हैं । मैं इसे अपने बच्चों को तो दे दूँ" अपने बच्च के प्रति अत्यन्त आसक्त हो जाते हैं। इन नितांत उग्र स्वभाव के व्यक्तियों में शिशु रूप में श्री बहुत प्रयोग करते हैं और अत्यन्त यान्त्रक भी हनुमान जी विद्यमान रहते हैं । मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। श्री हनुमान जी से देवता का, जो कि श्री राम जी के कार्य करने को हनुमान जी जर्मनी एक ऐसा देश है जहाँ के निवासी अत्यन्त चुस्त तथा उद्यमशील हैं। अपने शरीर का वे बन्दरसम उन्नत शिशु हैं, निरन्तर मानव के दायें अत्यन्त उत्सुक रहते हैं। श्री राम सुकरात वर्णित भाग में दौड़ते रहना अत्यन्त आश्चर्यजनक है। परोपकारी राजा थे, उन्हें अपनी सहायता के मानव के अन्तरस्थित सूर्य तत्व को शान्त तथा लिये किसी सचिव की आवश्यकता थी और इस कार्य के लिये श्री हनुमान जी का सृजन जन्म के समय ही उनसे सूर्य को नियन्त्रत करने हुआ। श्री हनुमान श्री राम के ऐसे सहायक और दास थे और उनके प्रति इतने समर्पित थे कि कोई अन्य दास अपने स्वामी के प्रति नहीं हो सकता। उनके समर्पण के फलस्वरूप ही शारीरिक रूप से विकसित होने से पूर्व ही उन्हें नव-सिद्धियाँ प्राप्त हो गयीं। इन सिद्धियों के फलस्वरूप उनमें कोमल बनाए रखने के लिए उनसे कहा गया। के लिए कहा गया, अत: शिशु सुलभ स्वभाव से उन्होंने सोचा कि सूर्य को खा ही क्यों न लिया जाये? यह सोचते हुये कि पेट के अन्दर सूर्य को अधिक अच्छी तरह से नियंत्रित किया जा सकता है, उन्होंने विराट रूप धारण करके सूर्य को निगल लिया। सूक्ष्म या पर्वतसम विशालकाय शरीर धारण करने की क्षमता प्राप्त हो गयी । अत्यन्त उग्र स्वभाव के व्यक्तियों को श्री हनुमान इन सिद्धियों से नियंत्रित करते हैं । जीवन में तीव्र गति से दौड़ते हुये व्यक्ति को आप किस प्रकार नियंत्रित करेंगे? श्री हनुमान जी ऐसे व्यक्ति का संचालन इस प्रकार करते हैं कि उसे अपनी गति धीमी ऐसे माता-पिता को बच्चे पसन्द नहीं करते। करनी ही पड़ती है। वे ऐसे व्यक्ति के पैर मानव की दायों तरफ को नियन्त्रित रखने के लिए उनके बाल-सुलभ आचरण का उपयोग उनके चरित्र की सुन्दरता है। दाहिनी तरफ के लोगों को प्राय: बच्चे उत्पन्न नहीं होते हैं। अत्यन्त उद्यमी लोगों को यदि बच्चे हो भी जायें तो भी बच्चों के लिए समय अभाव के कारण अत्यन्त कठोर होने के कारण ऐसे लोग सदा हाथ अत्यन्त भारी बना देते हैं जिससे कि वह चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 3-4, 2000 36 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-38.txt व्यक्ति अधिक कार्य न कर सके। दायीं ओर कृपा से है। झुके उग्र व्यक्ति को वे अत्यन्त अधिक अकर्मण्य करने वाली तन्द्रा भी दे सकते हैं । अपनी पूंछ को किसी भी हद तक बढ़ाकर में प्रवेश करने की शक्ति प्रदान करती है। वहुत लोगों को नियंत्रित करना उनकी एक ओर सिद्धि से वैज्ञानिक सोचते हैं कि आधुनिक युग में ही है। आप सब कहते हैं कि सभी बन्दर चालें उन्होंने अणु परमाणुओं की खोज की है परन्तु उनमें हैं। वे हवा में उड़ सकते हैं और इतना श्री हनुमान को अणिमा नामक एक अन्य सिद्धि भी प्राप्त है जो उन्हें अणुओं तथा परमाणुओं अणु परमाणुओं का वर्णन हमारे धर्मग्रन्धों में भी पाया जाता है। विद्युत-चुम्बकीय शक्तियों का शरीर द्वारा स्थानांतरित हवा का भार उनके शरीर कार्यरत होना श्री हनुमान जी की कृपा से ही के भार से कहीं अधिक होता है। यह आर्कीमडीज होता है। श्री गणेश ने उनके अन्दर चुम्बकीय के सिद्धान्त की तरह से है। वे इतने विशालकाय शक्ति भर दी है। वे स्वयं चुम्बक हैं। भौतिक सतह पर विद्युत चुम्बकीय शक्ति हनुमान जो हवा में तैरने लगता है। हवा में उड़ने की सामर्थ्य की शक्ति हैं। परन्तु भौतिकता से वे मस्तिष्क के कारण वे संदेश को एक व्यक्ति से दूसरे तक जाते हैं। स्वाधिष्ठान से उठकर मस्तिष्क विशाल रूप धारण कर सकते हैं कि उनके बन जाते हैं कि उनका शरीर नाव की तरह से व्यक्ति तक पहुँचा सकते हैं। तक जाते हैं। मस्तिष्क के अन्दर वे इसके भिन्न आकाश की सूक्ष्मता श्री हनुमान के नियंत्रण पक्षों के सह सम्बन्धों का सृजन करते हैं । यदि में है। वे इस सूक्ष्मता के स्वामी हैं और इसी के श्री गणेश हमें विवेक प्रदान करते हैं तो श्री दूरदर्शन, हनुमान हमें सोचने की शक्ति देते हैं । वुरे विचारों से बचाने के लिये वे हमारी रक्षा करते हैं। श्री गणेश जी हमें विवेक देते मार्ग से वायवीय (Etheric) सम्बन्ध स्थापित तो श्री हनुमान जी सद्सद् विवेक। बौद्धिकता के करना इस महान अभियन्ता ( श्री हनुमान जी) लिये सद्सद् विवेक आवश्यक नहीं क्योंकि आप बुद्धिमान हैं, आप जानते हैं क्या अच्छा है इसमें कोई त्रुटि नहीं निकाल सकते। आपके और क्या बुरा। परन्तु एक व्यक्तित्व को जब यंत्रों में त्रुटि हो सकती है, श्री हनुमान की नियत्रित करना हो तो सद्सद् विवेक आवश्यक कार्यकुशलता में नहीं। वैज्ञानिक जब इन चीजों है क्योंकि यह नियंत्रण हनुमान जी से आता है। माध्यम से वे संदेश भेजते हैं। आकाशवाणी तथा ध्वनिवर्धन उनकी इसी शक्ति की देन है। बिना किसी संयोजक के आकाश का ही कार्य है। यह कार्य इतना पूर्ण है कि आप की खोज करते हैं तो वे सोचते हैं कि ये प्रकृति मानव के अन्दर सद्सद् विवेक हनुमान जी ही में विद्यमान हैं परन्तु वे यह कभी नहीं सोचते हैं। सदुसद् विवेक उनकी दी हुई सूक्ष्म शक्ति है प्रकार हो सकता है। वे यह और यह हमें सत्य-असत्य विवेक बुद्धि अर्थात सत्य असत्य में भेद जानने का विवेक प्रदान की रचना करके उसके माध्यम से यह कार्य करती है। सहजयोग में हम कहते हैं कि श्री किया है। यहां तक कि हमारे अन्दर की सूक्ष्म गणेश अध्यक्ष हैं या इस विश्वविद्यालय के लहरियों का हमारी नस नाड़ियों पर, हमारे रोम कुलपति हैं। वे हमें उपाधियां देते हे । और हमें रोम पर अनुभव होना भी श्री हनुमान जी की अपनी अवस्था की गहराई जानने में सहायता कि ऐसा किस मानकर चलते हैं कि श्री हनुमान जी ने सारे तन्त्र चैतन्य लहरी । खड : XII अंक : 3-4, 2000 37 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-39.txt करते हैं। वह हमें निर्विचार तथा निर्विकल्प हैं कि सर्वशक्तिमान परमात्मा या श्री राम जैसे समाधि और आनन्द प्रदान करते हैं। परन्तु बौद्धिक सूझबूझ जैसे "यह अच्छा है", "यह नहीं होना। तब आप एक स्वतंत्र पक्षी होते हैं हमारे हित में है", श्री हनुमान जी की देन है और पूरी नौ शक्तियाँ आपके अन्दर जागृत हो और बुद्धिवादी होने के कारण वे पाश्चात्य लोगों जाती हैं। के लिये बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि बौद्धिकता के बिना तो उनकी समझ में ही कुछ न आता। बुराईयों का श्री हनुमान प्रतिकार करते हैं। यह श्री हनुमान के बिना यदि आप सन्त बन भी जायें तो आप इस अवस्था का आनन्द तो प्राप्त में अत्यन्त मधुरता से प्रकट हो जाता है कि कर लेंगे परन्तु यह नहीं समझ सकेंगे कि यह सन्तावस्था ठीक है या गलत, आपका हिमालय हैं। किसी भी अहंकारी का यदि मजाक उड़ाया पर रहना ठीक है या लोगों को साक्षात्कार जाये तो वह ठीक हो जाता है। जब रावण ने श्री देने के लिये जाना। यह सब विवेक, मार्गदर्शन गुरु के अतिरिक्त आपको किसी के प्रति समर्पित आपके अहं के साथ साथ बहुत सी अन्य तथ्य लंका दहन कर रावण की खिल्ली उडाने किस प्रकार वे लोगों का अहं समाप्त कर देते हनुमान से पूछा "तुम केवल एक बन्दर क्यों हो" तो हनुमान जी ने अपनी पूंछ से उसकी नाक को गुदगुदा दिया। यदि कोई अहंकारी हनुमान जी की पूजा द्वारा दायें भाग की सुरक्षा व्यक्ति आपको सताने का प्रयत्न करता है तो श्री हनुमान उसका ऐसा सजाक उड़ायेंगे कि आप इस सारी विवेक बुद्धि के बावजूद भी श्री आश्चर्यचकित उसकी अवस्था को देखकर दंग तथा सुरक्षा हमें श्री हनुमान जी की देन है। जर्मनी, क्योंकि दायें भाग का सार है अत: श्री प्रदान करना यहाँ अत्यन्त आवश्यक हैं। परन्तु हनुमान जी जानते हैं कि वे पूर्णतः श्री राम के आज्ञाकारी सेवक हैं। श्री राम कौन हैं? वे परोपकारी राजा हैं जो परोपकार के लिये कार्य रह जायेंगे। अहंकारी लोगों से आपकी रक्षा करना तथा सद्दाम हुसैन जैसे अहंकारी व्यक्तियों को करते हैं । स्वयं वे एक औपचारिक व्यक्ति हैं। नीचा दिखाकर आपकी रक्षा करना श्री हनुमान का कार्य है। इन मामले में हनुमान से कार्य आगे नहीं बढ़ते। श्री हनुमान सदैव उनका कार्य करने के लिये कहा गया और अब किस तरह करने के लिये उत्सुक रहते हैं। विवेक यह है से उन्होंने सद्दाम को कटठिनाइयों में डाल दिया कि जो कुछ भी श्री राम कहते हैं श्री हनुमान है। उसकी समझ में नहीं आता कि वह क्या को चुनता है तो पूरा इराक समाप्त हो जायेगा। वह स्वयं समाप्त हो जायेगा. कुरवैत समाप्त हो जायेगा और पूरा पैट्रोल समाप्त दायें ओर के व्यक्ति प्रायः अपने स्वामी, नौकर होने के कारण सभी लोग कठिनाई में फँस या अपनी पत्नी के प्रति अत्यन्त समर्पित होते जायेंगे। सद्दाम का क्या होगा? वह बचेगा ही नहीं हैं। परन्तु विवेकहीनता की कमी के कारण वे क्योंकि यदि अमेरिकन लोगों को लड़ना पड़ा गलत लोगों के दास होते हैं। श्री राम की वे इराक के अन्दर जाकर लड़ेंगे। तो अब श्री सहायता जब आप लेते हैं तो वे आपको बताते हुनुमान सद्दाम के मस्तिष्क में घुस कर बता रहे अत्यन्त संतुलित पुरुष, श्री राम, स्वयं बहुत उसे कर देते हैं। गुरु शिष्य के सम्बंधों से भी करे। यदि वह युद्ध बढ़कर यह सम्बंध है। शिष्य पूर्णतया ईश्वर के प्रति समर्पित तथा आज्ञापालन में दास सम है। तो चैतन्य लहरी 38 खंड : X1I अंक : 3-4, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-40.txt हैं, "देखो तुमने ऐसा किया तो इसका परिणाम एक माँ का है। एक गुरु के नाते मेरी चिन्ता यह यह होगा"। सभी राजनीतिज्ञों तथा अहंकारी है कि आप सहजयोग का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करें। सहजयोग विशेषज्ञ बनकर आप स्वयं के गुरु हैं और यही कारण है कि कभी कभी राजनीतिज्ञ बनें। परन्तु इसके लिये पूर्ण समर्पण की आवश्यकता है। पूर्ण समर्पित होकर ही आप चलाते हैं। श्री हनुमान का एक अन्य गुण यह है सहजयोग को चलाना सीख सकते हैं। श्री व्यक्तियों के मस्तिष्क में श्री हनुमान कार्य करते अपनी नीतियाँ बदल देते हैं और अपना कार्य हनुमान भी यह समर्पण करते हैं । अहंकारी लोग क्योंकि अहंकारी व्यक्तियों को मिलवाकर वे उनसे ऐसे समर्पण नहीं करते, अत: श्री हनुमान जी उन्हें हैं अथवा समर्पण के लिये विवश करते हैं। किसी प्रकार की बाधाओं, हमारे अहं का ध्यान रखने तथा हमें बाल-सुलभ, चमत्कारों या विधियों द्वारा वे शिष्य का गुरु कि वे लोगों को स्वेच्छाचारी बना देते हैं। दो हालात पैदा करवा देते हैं कि दोनों नम्र होकर मित्र बन जाते हैं। हमारे अन्तस का हनुमान तत्व समर्पण सिखाते के मधुर, विनोदशील और प्रसन्न बनाने में कार्यरत प्रति समर्पण करवाते हैं । गुरु के प्रति व्यक्ति का समर्पण करवाने सम्मुख नतमस्तक हो श्री हनुमान सदा उनकी की शक्ति श्री हनुमान जी की ही है। न केवल इच्छा को पूर्ण करना चाहते हैं। यदि श्री गणेश वे स्वयं समर्पित हैं. वे दूसरों को भी समर्पण मेरे पीछे बैठते हैं तो श्री हनुमान मेरे चरणों में। करवाते हैं। अहं के कारण आप समर्पण नहीं यदि श्री हनुमान की तरह जर्मन लोग भी कर सकते। अपनी अभिव्यक्ति में उन्होंने दर्शाया आज्ञाकारी हो जायें तो हमें कितनी गतिशील है कि दायें पक्ष का भी एक अति सुन्दर पहलू वे सदा नृत्य भाव में होते हैं। श्री राम के कार्यवाहिनी प्राप्त हो सकती है! है। इसका पूर्ण आनन्द प्राप्त करने के लिये सीता द्वारा दिये गये हार में क्योंकि श्री अपने गुरु के प्रति आपको दास की भांति समर्पित होना पड़ता है। बिना किसी संकोच के आपको गुरु के लिये सब कुछ करना होता है। श्री हनुमान जी का हर वक्त उनके इर्द गिर्द निसंदेह गुरु का भी कर्त्तव्य है कि आपको आत्म राम न थे अत: श्री हनुमान ने वह हार ने पहना। इसी घटना से उनके समर्पण का पता चलता है। मंडराना सीता जी को अटपटा लगा। सीता जी ने साक्षात्कार दे अन्यथा वह गुरु नहीं है। किस उनसे कहा कि केवल एक कार्य के लिये वे तरह से आप गुरु को प्रसन्न कर सकते हैं और उसका सामीप्य प्राप्त कर सकते हैं? सामीप्य का अर्थ शारीरिक सामीप्य नहीं, इसका अर्थ बजाने के लिये मैं उनके साथ रहँगा। सीता जी है एक प्रकार का तारतम्य, एक प्रकार की वहाँ रुक सकते हैं। तो श्री हनुमान जी ने कहा कि जब जब श्री राम जी जमुहाई लेंगे तो चुटकी ने उनसे छुटकारा पाने के लिये यह बात मान ली। फिर भी उन्हें वहाँ खड़ा देखकर जब सीता हृदय में मेरा अनुभव कर सकते हैं। यह समझ। मुझसे दूर रहकर भी सहजयोगी अपने जी ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने उत्तर शक्ति हमें श्री हनुमान जी से प्राप्त करनी है दिया."मैं श्री राम के जमुहाई लेने की प्रतीक्षा सभी देवताओं की रक्षा श्री हनुमान वैसे ही करते हैं जैसे वे आपकी रक्षा करते हैं । श्री गणेश मैं कर रहा हूँ यहां से कैसे जा सकता हूँ? सहजयोग में मेरा सम्बंध एक गुरु तथा शक्ति प्रदान करते हैं परन्तु रक्षा श्री हनुमान जी चैतन्य लहरी 39 खंड : XII अंक : 3-4, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-41.txt करते हैं । जब श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी बने तो करते हैं। दायें भाग में होने के कारण वे अहं की श्री हनुमान जी ही रथ की पताका पर आरूढ़ थे, श्री गणेश नहीं। एक प्रकार से श्री राम स्वयं श्री निश्चित रूप से बुद्धिहीन हो जाता कृष्ण बन जाते हैं, अत: श्री हनुमान जी को जी को यह पसन्द नहीं। इस बुद्धिहीनता का उनकी सेवा करनी ही होती है। जैसा कि आप जानते हैं वाहक गैब्रीयल मारिया के संदेश लेकर आये कभी कभी यूपीज रोग की तरह पुनः अवलोकन और उन्होंने "इमैक्यूलेट साल्वे" अर्थात् " निर्मल साल्वे" शब्द का प्रयोग किया जो कि मेरा नाम ओर चले जाते हैं। अहं के कारण एक मानव है । हनुमान विपरीत असर जब उन लोगों पर पड़ता है तो श्री हनुमान देवदूत गैब्रियल थे। संदेश उन्हें अपनी मुर्खता का आभास होता है। परन्तु करना अत्यन्त कठिन कार्य हो सकता है क्योंकि श्री हनुमान ऐसे व्यक्तियों से विद्युत चुम्बकीय शक्ति वापिस ले चुके होते हैं तथा उनके चेतन है। जीवनपर्यन्त मारिया को श्री हनुमान की सेवा स्वीकार करनी पड़ी। मारिया महालक्ष्मी हैं, और सीता और राधा कौन हैं? हनुमान जी को उनकी सेवा के लिये वहाँ विद्यमान रहना पड़ा। कभी मस्तिष्क से उनका संबंध समाप्त हो चुका होता है। फलस्वरूप उनका चेतन मस्तिष्क कार्य करना बन्द कर देता है। पूर्ण श्रद्धा से यदि ऐसे लोग श्री हनुमान जी की पूजा करें तभी संभवत: उन्हें बचाया जा सके। उदाहरणतया जाड़े के कारण यदि आपके शरीर पर चर्म रोग हो जाये तो उस हनुमान का उत्तरदायित्व है। जो भी योजना मेरे पर गेरू मलने से आप ठीक हो सकते हैं। किसी बाधा के कारण हुये चर्म रोग को भी आप ठीक कर सकते हैं । दूसरी ओर श्री गणेश का शरीर सिंदूर से ढका हुआ होता है जिसका प्रभाव अत्यन्त शीतल है। उनके शरीर के अन्दर की आपकी प्रार्थना की" एक व्यक्ति की माँ कैन्सर गर्मी के प्रभाव को संतुलित करने के लिये वे से मर रही थी। जब वह उससे मिलने गया तो ऐसा करते हैं। इसी कारण हम इसे सिन्दूर कहते नतमस्तक हो उसने प्रार्थना की, "श्री माता जी हैं। लोग कहते हैं कि सिन्दर कैन्सर का कारण कभी लोग मुझ से प्रश्न करते हैं कि माँ आपको कैसे पता चला? माँ आपने कैसे संदेश भेजा? माँ आपने किस प्रकार यह कार्य कर दिया? यह श्री मस्तिष्क में बनती है श्री हनुमान उन्हें कर डालते हैं क्योंकि पूरी संस्था भलीभांति संयोजित है। ये सभी संदेश आप लोगों को कहाँ से प्राप्त होते हैं? बहुत से लोग कहते हैं, "माँ मैंने बस कृपया मेरी माँ को बचा लीजिये"। श्री हनुमान उस सहजयोगी की सच्चाई तथा गहनता को शीतलीकरण कर सकता है कि आप बांयी और जानते हैं। उन्हें इस व्यक्ति के वजन का ज्ञान है। को झुक सकते हैं। कैन्सर एक मनोदैहिक रोग इसी कारणवश तीन दिन के अन्दर वह स्त्री है और बहुत कम सम्भावना है कि सिन्दूर के ठीक होकर बम्बई लायी गयी और डाक्टर ने घोषणा की कि उसका कैन्सर ठीक. हो चुका है। बन सकता है परन्तु यह आपके अन्दर इतना अत्यधिक शीतलीकरण से आपका झुकाव बायीं ओर को हो जाये आप ऐसे रोगाणुओं (वायरस) कई घटनायें जिन्हें आप चमत्कार कहते हैं, श्री से ग्रस्त हो जायें कि आप इस रोग से ग्रस्त हो की हुई होती हैं। चमत्कार करने जी सकें। परन्तु अत्यन्त दायीं ओर झुके व्यक्तियों हनुमान वाले वे ही हैं। आप कितने बुद्धिहीन तथा मूर्ख के लिये सिन्दूर लाभदायक है। उन्हें शान्त करने हैं, यह दिखाने के लिये श्री हनुमान चमत्कार के लिये उनकी आज्ञा पर सिन्दूर लगाने से उनका द्वारा चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4, 2000 40 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-42.txt तूफान की तरह जाकर विनाश कर देते हैं । श्री हनुमान अपनी विद्युत चुम्बकीय शक्ति के द्वारा वे ये तथा आक्रमणशीलता को ठीक करते हैं। उन्होंने सारे कार्य करते हैं । भौतिक तत्व उनके नियंत्रण हिटलर के साथ भी एक चालाकी की। हिटलर में है, वे वर्षा, धूप और हवा की रचना आपके लिये करते हैं। पूजा या मिलन के लिये वे अत: स्वस्तिक दक्षिणावर्त (सीधे चक्कर) होना उचित प्रबन्ध करते हैं । बिना किसी के जाने चाहिये था। प्रयोग में आने वाले स्टैन्सिल को सुन्दरता से सारे कार्य वे कर डालते हैं। हमें हर समय उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिये। श्री हनुमान एक तेजस्वी देवदूत हैं। वे सन्यासी या त्यागी की सलाह दी परन्तु चाल उन्होंने चली। स्वस्तिक नहीं हैं। सुन्दरता तथा सज्जा उन्हें बहुत प्रिय है के उल्टा होते ही श्री गणेश तथा श्री हनुमान उनके बहुत से भक्तों का विचार है कि वे दोनों ने हिटलर को विजय प्राप्त करने से रोक ब्रह्मचारी हैं और कम वस्त्र धारण करते हैं। अत: लिया। तो इस तरह की छोटी छोटी युक्तियाँ वे नहीं चाहते कि स्त्रियां उनके दर्शन करें । परन्तु होती रहती हैं एक बार मुझे याद है कि जर्मनी लोग ये नहीं जानते कि वे एक सनातन शिशु हैं में मेरी पूजा रखी गयी जर्मनी के लोगों को और वो भी एक बन्दर-बालक। बन्दरों के लिये क्रोध कम हो जाता है और वे शान्त हो जाते हैं। जी हमारी उतावली जल्दबाजी श्री गणेश को प्रतीक रूप में उपयोग कर रहा था उलट कर श्री हनुमान ने स्वस्तिक को उल्टा करवा दिया। आदि-शक्ति ने उन्हें ऐसा करने वस्त्र पहनना अनिवार्य नहीं। यद्यपि उनका शरीर अत: वहाँ श्री हनुमान जी बहुत चालाकी करते विशालकाय है फिर भी आप उनका सुन्दर आकार ही देख पाते हैं। बड़े-बड़े नाखूनों के दिया गया। प्राय: मैं इन चीजों को देख लेती हूँ होते हुये भी वे मेरी चरण सेवा बड़ी कोमलता से करते हैं और अब मुझे लगता है कि श्री हनुमान की कृपा से जर्मन लोगों की कार्य प्रणाली भी अत्यन्त कोमल होती चली जा रही क्योंकि हुनुमान जी की बहुत आवश्यकता है हैं। पूजा के दिन गलतीवश स्वस्तिक उल्टा लगा परन्तु उस दिन ऐसा नहीं हुआ। मेरी दृष्टि बाद में जब उस उलटे स्वस्तिक पर पड़ी तो मेरे मुंह से निकला, "हे परमात्मा इस गलती का दुष्प्रभाव है। किस देश पर होने वाला है"? श्री हनुमान मूसलाधार बारिश और वेगवान परमात्मा आपको धन्य करें। सहजयोगियों के साथ समस्या ये है कि जो भी लोग सहजयोग के कार्यक्रम में आते हैं वो स्वयं को सहजयोगी समझने लगते हैं। वास्तव में ऐसा नहीं है । (परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4, 2000 41 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-43.txt Sahaja Yoga a World Centres Shri K.Madhusudan Pillai C.C. 85, ALBA Post Box 570 Bahrain Mr. Mohammaed Said Ait-Chaalal 27 Avenue Pasteur Alger Algeria Telephone : (213)64 8122 Work : (213) 64 9523 Telephone : (973) 702 148 Belarus Minsk. UI. ljimskaya Dom 1 kv 56 Mr. Mariano Martinez Cuyo 937, Martinez 1640 Buenos Aires Korotky Oleg Telephoen (70172) 62 68 27 Work : (70172) 6602 13 Argentina Tel/Fax: (541) 798-9378 Mr. Roger Akigbe B.P. 362, Porto-Novo Benin Tel/Fax: (229) 21-25-25 Mr. & Mrs. Nikhil & Raani Varde Palm Apts 11B, Palm Beach 6D (Dutch Caribean) Aruba Telephon : (297) 839 662 Fax: (297) 839 253 E-Mail: nash@setrnet.aw Mr. Bernard Cruvellier Rue Piervenne 58 B 5590 Ciney Belgium Tel/Fax : (32 55) 428 265 E-Mail: cuv@skynet.be Mr. Michael Fogarty 20 Holly Street Castle Cover NSW 2069 Australia Mr Javier valderrama Los Pinos Bloque 7 Apartamento102 San Miguel. LaPaz Bolivia Tel/Fax: (612) 9417 5572 E-Mail: esis@tpgi./com.au (John Dobbie) Telephone : (5912)790 870 Fax: (5912) 391782 Dr. Engelbert Oman Auhofstrabe 231/3/1 1130 Vienna Mr. Edson Almeida Cond. Rural Vivendas da Serra. Modulo C, Casa 4 Rod. DF-150, km 2, 5 (Sobradinho Brasilia) DF 730 70-014 Brazil Austria Telephone : (43-1)877 7411 Dr. Wolfgang Hackl Schobrunner Allee 113 2331 Vosendorf Telephone: (5561)501-0834 Čell telephone : (5561) 983-9821 E-Mail: marino@if.ufrj.br Austria Tel/Fax : (43-1)6091131 Cell telephone: (66-4) 422 5686 E-Mail: wolfganghackl@aon.at 42 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 3-4, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-44.txt Mrs. Rosa Alexieva Mr. Michel Bikindou Complex Hippodruma Block 122, Entrance A, Floor 5 Sofia 1612 33 rue Owando-Ouenze Brazzaville Congo Mr. Radim Ryska Bulgaria Tel/Fax: (35 92) 599 360 Koziskova 511 250 82 Uvaly Czech Republic Tel/Fax: (420 2) 997 23 10 Work : (420 2) 519 33 94 E-Mail : ryska@msmt.cz Mr. Deniel Oyono B.P. 11771 Yaounde Cameroon Telephone (237) 2273 97 (Joseph Tsala) Mr. Rasmus Heltberg Hammelstrupvej 40, 2 tv 2450 Copenhagen SV Denmark Telephone : (45) 36 45 60 15 Work : (45) 32 32 44 00 E-Mail rasmus.heltberg@econ.ku.dk Mr. Jay Chudasama 390 dixon Road # 612 etobicoke OT Canada M9R 1T4 Telephone : (1-416) 614-7338 Fax : (1-416) 614-9521 (ashram) Alexei & Galina Kotlob Rohu 109-14 Nadjilem Tolasde Moudjingar c/o Ndoubalengar Mdgaou S.A.C. N.P. 185 EE-3600 Pdrnu, Estonia Telephone : (372 44) 36 043 Ndjamena, Chad Mr. Raine Salo Mr. Gerardo Bell Valenzuela Puelma 7511-Casa C. Kuusikallionkuja 3B 27 02210 Espoo Finland Santiago Chile Telephone: (3589) 855 0934 Fax:(3589) 621 4262 E-Mail : tuomas@cute.fi (Tuomas Kantelinen) Telephone : (56-2) 758 5559 E-Mail: gbell@bdachile.cl Mrs. Marie-Laure Cernay Diag 110-Nr 19-15 Bogota, colombia Tel/Fax: (571) 214-3971 E-Mail : norbert-klimt@south america.notes.pw.com Majid Colpour 47 rue de Verneuil 75007 Paris France Telephone L (33-145) 483 373 चैतन्य लहरी ॥ खंड : 43 XI1 अंक : 3-4. 2000। 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-45.txt Mr. Guoru Pohl Lillom U. 27/A 111/8 H-1094 Buda Pest Mr. Patrick Desire Akouma Nze B.P. 146 Libreville Gabon Hungary Telephone - (36-1) 21 80 493 Fax (36-1) 2200264 E-Mail-Pohl gyorgy @ emery world.com Georgia 380094 Tbilisi UI. Sabutalo-Kutuzova kor 2, kv 13 Sandro Chubinidze Mr. V.J. Nalgirkar Sahaj Yoga Temple C-17, Qutub Institutional Area Behind Qutub Hotel Telephone : (78832) 389524 Mr. Phillip Zeiss Kastanienstrasse 19 D 14624 Dallgow Germany Telephone : (463322) 20 8870 Work : (4930 315 25 66 Fax: (49 3322 20 24 73 E-Mail: ganeshal1@cs.tu-berlin.de (Karsten Radaiz) N.Delhi-110016 91-011-6966652 Works-91-011-6179420 Res - 91-011-6178156 Fax -91/011-6866801 Prof. Dr. U.C. Rai International Sahaja Yoga Research & Health Centre Mr. Vaibhav Khopade & Thodoreos Proussis-11 104-40 Athens Greece Polt 1, Sector 8, CBD Navi Mumbai, India Telephone: (91 22) 757 6922 Fax : (91 22) 757 6795 Tel/Fax: (30-1) 884 1489 John and Guishan Fisher Kusumaatmaja 58 Menteng, Jakarta, Indonesia Telephone : (62 21) 720 6613 Mobile : 0811993312 Mr. Henno de Graaf Varikstraat 1 1106 CT Amsterdam - Z.O. Holland Telephone : (31 20) 697-2038 Fax: (31 20) 697-5131 E-Mail:degraaf@euronet.nl Mr. Oleg Kotilarsky clo Philippe Schemimann 30 A#3 Avoda St. Mr. Alex Henshaw Flat D, 6/F, Lei Shun Court 116 Leighton Rd. Causeway Bay Hong Kong Telephone: (852 2) 504-5260 Work : (852 2) 504-4779 Fax:(852 2) 504-4965 E-Mail:pohl.gyorgy@emeryworld.com 63821 Tel Aviv, Israel Telephone : (972-3) 507 3911 E-Mail : Philips@well.com (Phillippe Scheimann) 44 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 3-4, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-46.txt Mr. Guido Lanza Goitchoo Stevkovski Partenie Zografski 77A 91000 Skopje, Macedonia Telephone : (389 91) 226275 Vocabolo Albereto 10 HI 02046 Magliano Sabina, Italy Telephone : (39-744) 919-122 Fax : (39-744)919-904 E-Mail : Nirmala@etr.it Mr. Ivan Tan Mr.Jean-Claude Laine 17, Jalan 14/52 46100 Petalig Jaya Selangor, Malaysia Telephone : (603)7744750 Fax : (603) 718 7128 E-Mail : rbertan@pc.jaring.my 01 BP 2887 Bouake 01, Ivory Coast Tel: Work : (255) 63 25 14 E-Mail : Amon@AfricaOnline.co.com (Amon Ettien) Mr. Philippe Carton Himonya 6 chome 7-8 Megoru-ku Tokyo 152, Japan Tel/Fax: (81-3) 3760 4434 E-Mali: pcarton@softlab.co.jp Garciela Vazquez-Diaz Tejocotes 56-201 Col. del Valle Mexico D.F. 03100, Mexico Tel/Fax: (525) 575 1949 E-Mail: indoamci@rtn.net.mx Kazakhstan 486 008 Chimkent Mr. Peter Koretzki Maracesti Str. 13/1 UI Gagarin 38-45 Bondarenko Dima chisinau, Moldova Telephone: (373-2) 73 0212 Fax: (373-2) 73 86 69 Telephone : (7 3252) 12 13 68 Didier Gauvin Mr. Herbert Wiehart Gourmet Vienna French School of Nairobi (College Diderot P.O. Box 47525, Nairobi, Kenya Telephone : (254 2) 56 62 59 Chha 1-705 Thamel. Kathmandu Nepal Tel/Fax: (977 1) 415488 Ms. Irina Solomenikova Riga, Latvia Telephone : (0132) 25 93 42 Mr. Geoff Platford 24 Pukenui Road Epsom, Auckland New Zealand Gertruda Sargautiene Staneviciaus 66-64 Vilnius 2029, Lithuania Telephone : (37 02) 4781 43 E-Mail: jvkos@pub.osf.it (subj: "to Gertruda") Telephone : (64-9) 624 1788 Fax: (64-9) 625 8888 E-Mail: sahaj-nz@ihug.co.nz चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4, 2000 45 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-47.txt Sidzel Mugford Myrlia 31 1453 Bjornemyr, Norway Tel/Fax: (47) 66 9156 08 E-Mail: mugford@online.no Russia 119146 Moscow UI. 1 Frunzenskaya 6, kv 5 Dr. Valentina Gosteeva Telephone : (7 095) 245 25 50 E-Mail : union@sahaja.msk.su (collec- tive) Melise Rodriguez Calle Louis Pasteur 1271 San Isidro, Lima Peru Telephone: (51-14) 227315 Mr. Aziz Gueye S/c de Serigue M'Baya Gueye Direction CFAO-BP 2631 Dakar Dr. Rajiv Kumar 29 V Madrigal Street, Corrinthian Gardens Senegal Quezon City 1100, Metro Manila Philippines Telephone : (632) 633 5633 Fax: (632) 632 2381 Work: (632) 632 5709 E-Mail : rkumar@mail.asiandevbank.org Mr. Eric Sopholas Belonie, Mahe Seychelles Telephone : (248) 24 400 ext. 545 Mr. Patrick B. Sheriff c/o Sierra Rutile Limited P.O. Box 59 IXALA Mr. Tomaxz Kornacki ul. Baczynskiego 20 m.17 05-092 Lomianki/nr.Warsawl Poland Tel/Fax: (4822) 7513520 Catarina de Castro Freire R. Garcia de Orta, 70-1'C Lisboa-1200, Portugal Telephone : (351-1) 396 3149 Christian Fontaine 58, Grand Fond Exterieur 97414 Entre Deux Reunion Tel/Fax: (262) 39 62 32 E-Mail tgauvin@guetali Freetown Sierra Leone Telephone: (232) 25316 Telex: 3259 Mr. Dave Dunphy 437 Tanjong Katong Road, Apt. 24-02 Kings Mansion Singapore 437147 Telephone (65) 348 0690 Fax : (65) 348 2317 Mr. Jozef Sjuria Znievska 7 Slovakia Mr. Dan Costian Str. Constantin Nacu No. 8 Telephone : (4217) 832 316 or : (421 7) 531 5493 E-Mail L trans-eu@internet.sk 70219 Bucharest Romania Telephone: (40-1) 313-58-82 Fax: (40-1) 211-57-87 E-Mail : dcostian@syrom.sfos.ro चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 3-4, 2000 46 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-48.txt Mr. Wen-Cheng Liu 2F, No 13, Alley 3 Lane 106 Sec 3, Ming Chuan East Rd. Sung-Shan District Taipei Cit. Taiwan (R.O.C.) Tel. : hom : (8862)715 5208 Mr. Dusan Rados Volceva 6 SLO-1360 Vrhnika Slovenia Telephone : (386 ) 61 755369 E-Mail: Bostjan. Troha@fmf.uni-ij-si Mr. Pascal Streshthaputra Dr. Siva Govender P.O. Box 729 Laxmi 3207 84 Sukhumvit Soi 40 Bangkok 10110, Thailand Telephone: (66 2) 712 1418 Fax: (662) 391 2373 or : (662) 382 1109 E-Mail: pascal@loxinfo.co.th Natal. South Africa Telephone : (27-331) 424484 Fax: (27-331) 424484 Fax: (27-331) 425685 E-Mail:/G=Deena/S-Govender/OU- 1751PMFS/03DTMZA.UNI/ @LANGATE.gb.sprint.com Mrs. Clarie Skinner Cumana Postel Agency Cumana Via Toco, Toco Trinidad Mr. Eduardo Marino Rua Aperana, 99 Ap. 201 22450-190 Rio de janeiro RJ Brazil South America Tunisia c/o Mr. Youcef Brahimi Roggegasse 40 1210 Wien, Austria Telephone : (431)2929 956 Telephone (55-21) 274-1753 Fax: (55-21) 239-2705 E-Mail: marino@if.ufrj.br Mr. Jose-Antonio Salgado Santa Virgilia 16 28033 Madrid, Spain Telephone : (34-1) 7643767 Fax: (34-1) 564 4457 Mrs. Nese Algan Atiye Sok Ak Apt. No. 7/7 Tesvikiye-Istanbul, Turkey Telephone : (90) 212 248 3122 Work : (90) 212 241 3487 Fax (90) 212231 3524 E-Mail: Nirmala@doruk.net.tr Mr. Rolt Carlsson Valhallanvagen 18 S-11422 Stockholm, Sweden Telephone: (46-8) 16 77 17 E-Mail: Ukraine 252 190, Kyiv - 190 Vul. Estoska, 5 , kv. 80 Galina Sabirova Telephone : (380 44) 442 6871 Fax : (380 44)412 9806 E-Mail: dobro@ipp.adam.kiev.ua rolf.carlsson@stockholm.mail.telia.com Mr. Arneau de Kabermatten 2 bis, Chemin Sous-Voie 1295 Mies, Switzerland Tele/Fax: (41 22) 779 20 37 चैतन्य लहरी खंड : XI1 अंक : 3-4, 2000 47 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-49.txt Mr. Manoj Kumar 270 Overpeck Avenue Ridgefield Park NJ 07660-1239 USA Pravin Saxena Sharjah United Arab Emirates Telephone : (9716)519012 Fax: (9716) 518894 Work : (97167) 571797 Mobile : 050-631 3504 E-Mail:pharmuae@emirates.net.ae Telephone: (1-201) 384-5034 Fax: (1-201) 384-0820 E-Mail: manoj-kumar@merck.com Adriana Anon Calle pedro Vidal 2217 Montvideo, Uruguay CP11600 Telephone: (59 82) 481 8781 E-Mail: anona@adinet.com.uy Mr. Derek Lee c/o 44 Chelsham Road London, England SW4 6NP United Kingdom Telephone : (44 1223) 420 855 Fax: (44 1223) 423 278 E-Mail: Mrs. Rani Lavu P.O. Box 50180 Lusaka, Zambia Telephone : (260) 1 Cell telephone : (260) 757 550 ealing@dircon.co.uk(attention:Derek Lee) 291378 48 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 3-4, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-50.txt ुर ुम बे वर्ष 1999 में गणेश पूजा के अवसर पर हरिद्वार केन्द्र में श्री माताजी की फोटोग्राफ से खींची हुई तस्वीर में, परम चैतन्य चार हृदयाकार कुण्डलों में।