वा हिन्दी आवृति चैतन्य लहरी Cका अंक 5 & 6 मई-जून 2000 खण्डे XII 4T-) L. ा ि कु कई बार लोग मुझसे पूछते हैं कि हम क्या करें? ईसा-मसीह की तरह से "हमें भी ध्यान-धारणा करनी होगी। ध्यान-धारणा द्वारा ही हम अपनी चेतनावस्था में, अपने नए व्यक्तित्व में, शक्तिशाली व्यक्तित्व में उन्नत होंगे।" उन्नत होने का एकमात्र मार्ग ध्यान-धारणा (Meditation) है। तब आपको कोई हानि न पहुँचा सकेगा क्योंकि तब आप परमेश्वरी प्रेम की सुरक्षा में होंगे। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी (ईस्टर पूजा - 1999) गा] इस अंक में सम्पादकीय 1. 3. ईस्टर पूजा इस्तम्बूल ट्की (25.4.99) 2. 77वां जन्मदिवस समारोह (विवरण) 3. 15 दिवाली पूजा (डेल्फी यूनान) (ग्रीस) (7.11.99) 4. 18 सत्य साधकों को किस प्रकार जन कार्यक्रम का सन्देश प्राप्त हुआ सर्वेक्षण (25 मार्च 2000) 5. 29 जन कार्यक्रम रामलीला मैदान (विवरण) (25.4.2000) 6. 31 ता श्री गणेश पूजा पुणे 7. 1987 32 : योगी महाजन सम्पादक : विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार नई दिल्ली-110 067 अभिनव प्रिन्ट्स, दिल्ली 34 मुद्रक फोन : 7184340 का चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 ान ा सम्पादकीय गणपति पुले क प् उ पर ले गई जहाँ हम भूल गए कि हम कौन हैं. कहाँ से आए हैं और हमारे शारीरिक कष्ट क्या महान कवि रविन्द्र नाथ टैगोर ने एक दिव्य स्वप्न देखा था कि भारत के तट पर सभी जातियों और रंगों के लोग माँ का अभिषेक करने हैं? के लिए एकत्र होंगे। हर रात्रि को स्वर्गीय दावत थी जिसमें गणपति पुले का अन्तर्राष्ट्रीय सहज सम्मेलन हमने स्वर्गीय संगीत की मधुर मदिरा का जी भर कर पान किया और उसकी गुँजन का आनन्द भर के भिन्न रंगों और जातियों के दस हजार से लेने के लिए अपने स्वप्नों में भी हम जाग उठे। हर सुबह प्रेम के एकनए उपहार का वचन लेकर आई। एक ऐसा प्रेम जो हमने पहले कभी न पाया था। ऐसा प्रेम जिसकी कोई सीमा न थी जो हमारे लिए आनन्दमय आश्चर्य लेकर आया। हम लोग इतने आश्चर्य चकित और इतने आनन्दमग्न थे। इससे पूर्व हम कहाँ खोए रहे? सभी हृदयों में उड़ेला और दस हजार पंखुड़ियाँ परन्तु एक बार जब हमने स्वयं को पा लिया है उनके प्रेम का एकमात्र कमल बन गई। आनन्दमय तो कहीं ऐसा न हो, कि हम उन्हें खा दे। हाँ, उन स्वर्गीय तटों से हम लौट आए हें उनकी भविष्यवाणियों को पूर्ण करता है। विश्व भी अधिक लोग श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देवी के चरण कमलों का अभिषेक करने के लिए नव सहस्राब्दि की पूर्व संध्या को गणपति पुले एकत्र हुए। परमेश्वरी माँ के चरण कमलों में हृदय-पुष्प अर्पण करने के लिए सभी परन्तु हृदय खुल गए। करुणामयी माँ ने अपना प्रेम शान्ति हर व्यक्ति की आन्तरिक गहराइयों पर छा गई और उसे शान्त कर दिया। उस शाश्वत परन्तु माँ आदिशक्ति की सुगन्ध अभी भी हमारे हृदय में बसी हुई हैं। उन्हें हम अपनी पूजा वैदियों पर देखते हैं, अपने स्वप्नों में देखते हैं अपने हृदय में देखते हैं। अबोध मुस्कान में उन्हें शान्ति में माँ आदिशक्ति के चरणों को धोने के लिए उमड़ती हुई समुद्र की लहरों की आवाज़ के सिवाय कुछ भी न बचा। शक्ति साम्राज्ञी के सम्मुख अशान्त मस्तिष्क देखते हैं, एक दूसरे में भी हम उन्हें देखते हैं शान्त हो गए। उनके प्रेम की शक्ति सर्वत्र छा गई, उनमें प्रेम की लहरियाँ हमें उस अदुभुत तट और जिस दिशा में भी हमारी गर्दन घूमें वहाँ हम केवल उन्हों को देख पाएं। चैतन्य लहरी । खड : XII अंक : 5 8 6. 2000 ईस्टर पूजा (25.4.99) इस्तम्बूल टर्की (हमें अपनी ध्यान धारणा को स्थापित करना होगा।) आज यहाँ हम सब टर्की में इस्तम्बुल में ईसामसीह के पुनरुत्थान का उत्सव मनाने के सकते हैं। ये सब चीज़ें हम देखते हैं और लिए एकत्र हुए हैं और उसी के साथ-साथ समझते हैं कि हम पूर्णतः जागृत हैं। परन्तु अपने पुनरुत्थान का उत्सव मनाने के लिए भी। वास्तविकता ये नहीं है। वास्तविक चेतना तो ईसा-मसीह का पुनरुत्थान हमारे लिए एक महान मस्तिष्क की सीमा को पार करने के बाद ही सन्देश था। मृत्यु पर विजय पाकर मृत शरीर से आती है, जब हम मस्तिष्क से ऊपर उठ जीवन्त शरीर धारण करके वे पुनर्जीवित हुए। जाते हैं, और यह ईसा-मसीह के पुनरुत्थान शरीर तो वही था परन्तु एक मृत शरीर था और के कारण ही सम्भव हो पाया । देख सकतें हैं और बाकी सब चीज़ों को देख वे इसलिए पुनर्जीवित हुए क्योंकि वे दिव्य अवतरण थे परन्तु हम इसलिए पुनर्जीवित हुए हैं क्योंकि हमें परमेश्वरी माँ का आशीर्वाद प्राप्त है। हमारा मस्तिष्क जो कि बीच में स्थित है श्री ईसा मसीह द्वारा नियंत्रित है। इसके दोनों भागों को वे दूसरा जीवन्त। यह मात्र प्रतीकात्मक ही नहीं है। उनके साथ वास्तव में ऐसा घटित हुआ। आखिरकार वे दिव्यशिशु थे, वे एक दिव्य व्यक्ति थे। अत: वास्तव में उनके साथ यह घटना घटी। यह केवल प्रतीकात्मक बात नहीं है कि उनकी मृत्यु हुई और दूसरे जीवन्त शरीर को धारण करके आज्ञा चक्र के माध्यम से नियंत्रित करते हैं। आपके अहं या बन्धनों के माध्यम से वे मस्तिष्क उनका पुनरुत्थान हुआ था। आप कह सकते हैं एक जीवन्त व्यक्ति के रूप में उनके लिए मृत्यु का क्या अर्थ है? शाश्वत लोगों के लिए मृत्यु नहीं होती, अमर व्यक्ति की मृत्यु नहीं होती। हो सकता है कि कुछ समय के लिए लगे कि वह मर चुका है परन्तु वास्तव में वह मर नहीं सकता। ईसामसीह भी ऐसे ही थे अत्यन्त विशिष्ट अवतरण जो पृथ्वी पर मृत्योपरांत पुनर्जन्म लेने कार्य करता के लिए आए। हम लोग भी, जब तक हमें दिव्य रोशनी प्राप्त नहीं हुई, हम भी मृत प्राणी जैसे थे क्योंकि हमारी चेतना आप कह सकते हैं अत्यन्त का नियंत्रण करते हैं और आपमें सन्तुलन लाते हैं। आज्ञा चक्र में जब बहुत से विचार घूमने लगते हैं कभी प्रतिक्रिया होने लगती है, कभी यह बन्धन स्वीकार करने लगता है, तब यह दास होता है। यह स्वतन्त्र नहीं है क्योंकि या तो यह अहं या आपके प्रति अहम् के प्रभाव में हैं। यह हमारे ज्ञान की मृत्यु है कि हम यह भी नहीं समझ सकते कि इससे परे जीवन का अस्तित्व है। इससे परे हम देख नहीं र सकते। अब हमने यह बात जान ली हैं कि हम , सब ऐसी स्थिति में है कि किसी के मर जाने पर हमें बुरा लगता है। हम चिन्तित होते हैं झगड़ा मन्द एवं मृत है। हम फूलों को देख सकते हैं. चेहरे देख सकते हैं, इमारतें देख सकते हैं, शहर चैतन्य लहरी । खंड : XII अक : 5 & 6, 2000 करते हैं और सोचते हैं कि हमारे वर्तमान जीवन में कुछ कमी है। निश्चित रूप से कुछ ऐसा है जो हमें दास बनाता है, जिसके कारण से हम दास हैं। नि:सन्देह इस बात को हमने महसूस किया और सत्य की खोज करने लगे। बहुत सी विधियों से हम सत्य की खोज करने लगे और मैं जानती हूँ कि बहुत से साधक भटक गए और प्रकार से बच्चों की हत्या हो रही है, जिस प्रकार से लोग मानव को नष्ट कर रहे हैं, इनके विषय में आप पढ़ते हैं। यह दृष्टिकोण विल्कुल गलत है कि वाद-विवाद से चीजों में सुधार होगा। ये धारणा बिल्कुल गलत है कि किसी को नष्ट करने से कुछ प्राप्त किया जा सकता है। सहजयोग में हमारा कार्य भली-भांति चल रहा है। यह बात में अवश्य कहूंगी परन्तु सहजयोग गर्त में गिर गए। परन्तु आपमें से बहुत से को मानव का विनाशकारी दृष्टिकोण, यह भयानक साधकों की रक्षा कर दी गई। ईसा मसीह के दृष्टिकोण रोकना हांगा। अतः आप पूछ सकते हैं कि श्रीमाताजी आगे क्या करना है। इस विध्वंस बहुत से अपना सन्तुलन खो बैठे और पतन के पुनरुत्थान से उन्हें बचा लिया गया। उन्हें साहस करना पड़ा। यह कार्य उन्हें करना पड़ा और को रोकने के लिए क्या किया जाए? इसका उन्होंने इसे कार्यान्वित किया। उनके बिना हमारी आज्ञा इतनी विनम्र न हो पाती। प्राचीन काल में को पुनर्जीवित करें, उन्हें पुनरुत्थान दें, उन्हें मानव अत्यन्त वातानुकूलित था और आज जब वह आधुनिक हो गया है तो अहं से भर गया है उन्हें लाए जहाँ वे समझ सकें कि ठीक क्या बीच की कोई बात नहीं। हम इन्हीं दो प्रभावों है और गलत क्या है लोगों को आपने की जेल में है। पूरी तरह से मृत लोग हैं। किसी चीज़ के लिए हममें संवेदनशोलता नहीं है। मैंने देखा है और आज भी आप देख सकते हैं कि उत्तर इंसा मसीह की जीवनी में है। आप लोगों आत्मा का प्रकाश दें। एक ऐसी अवस्था तक क करुणा एवं प्रेम का एहसास करने दें। ऐसा जब होने लगता है तो हमारे अन्तर्निहित तीसरी शक्ति कार्यान्वित हो जाती है। हमारा अह भी आस-पास क्या घटित हो रहा है। लोग एक दूसरे की हत्या करने को आतुर हैं। मानव, मानव का कम हो जाता है। हमारे बन्धन भी कम हो जाते हैं। उदाहरण के रूप में यदि हम सोचते हैं हम वध करना चाहता है। ऐसे मूर्खतापूर्ण कार्यों की मुस्लिम हैं दूसरों को मारना हमारा अधिकार है, क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि हम अपने यदि हम सोचते हैं हम यहूदी हैं और दूसरों का संगे-सम्बन्धियों का ही वध करें। माता- पिता भी वध करना हमारा अधिकार है। तो यह सारी हत्या कर रहे हैं और बच्चे भी हत्या कर रहे हैं । भिन्नता, सभी प्रकार के भेदभाव जो हमारे अन्दर सम्बन्ध कुछ रह ही नहीं गया है । यह तो ऐसे हैं ये मूर्खतापूर्ण हैं क्योंकि आप तो मानव हैं और लागों की निशानी है जिनमें बोध पूरी तरह से मर वे भी मानव हैं। आप लोग मानव का वध कर चुका हो। अपने ज्ञान की अवस्था में कम से कम हम में करुणा और प्रेम की भावना तो होनी रहे हैं। इसलिए नहीं कि उन्होंने कोई अपराध किया है या कोई गलत काम किया है। अपनी मूर्खतावश निःसन्देह वे समझते हैं कि वे ये हैं वो वो। बो ऐसे नहीं हैं आप मात्र मानव हैं जैसा कि आप जानते हैं हर मानव में कुण्डलिनी का ही चाहिए। परन्तु ये भावना भी समाप्त हो चुकी हैं। यह हम में विद्यमान नहीं है। पूरा विश्व जल रहा है। जिस प्रकार से युद्ध लड़े जा रहे हैं, जिस चैतन्य लहरी खड :XII अक : ३ 8 6. 2000 निवास है। मानव में कोई अन्तर नहीं। आपमें से कोई नष्ट नहीं कर सकता तो उसका अप्रत्यक्ष हरेक चाहे बो हिन्दू हो, मुस्लिम हो. यहूदी हो, हो, सिक्ख हो, पारसी हो या कुछ और। प्रभाव होगा। बहुत से देश जो किसी समय में शासक थे और जिन्हें बहुत महान माना जाता था उनका पतन हो गया है और बहुत से देश जो इसाई किसी भी नाम से चाहे आप इसे पुकारें। अब आप दंखें कि किस प्रकार हम आअपने लिए एक संज्ञा विशेष स्वीकार करते हैं। आप चाहे इसाई परिवार में उत्पन्न हुए हों या हिन्दू परिवार में, तुरन्त आप अपने धर्म के झण्डे को ऊँचा उठाए रखने के विषय में सोचते हैं। जिस धर्म में आप आज स्वयं को बहुत समृद्ध मानते हैं उनका पतन हो जाएगा। स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ मानने तथा यह सोचने कि उन्हें दूसरों का वध करने का अधिकार हैं के परिणाम स्वरूप इन सबका पतन होगा। तो अहिंसा का मत चलाया गया जो उत्पन्न हुए आपको न तो उसका ज्ञान था, न ही अपने आपमें अत्यन्त बेतुका है क्योंकि इसमें ये उसमें जन्म लेने के लिए आपने कहा, और न ही उसकी समझ आपको थी। तो किस प्रकार लोग मच्छरों और खटमलों की रक्षा करने लगे हैं। मनुष्यों का खून पीने वाले इन कीड़ों की बे रक्षा करते हैं। इससे क्या लाभ है? मनुष्य ऐसी बेतुके मूर्खतापूर्ण कार्य करने लगता है। मैं नहीं जानती कि कारण क्या है? जिस प्रकार वो चीजों आप उस धर्म से सम्बन्धित हैं? आपमें कुण्डलिनी है, अन्य सभी लोगों में भी कुण्डलिनी है। अतः आप केवल मानव धर्म से सम्बन्धित हो सकते हैं। हर मानव में कुण्डलिनी विद्यमान है । इसलिए को स्वीकार करते हैं वो अविश्वसनीय है दासत्व की मानसिकता, मैं सोचती हूँ, उन्हें उचित अनुचित में भेद करने की स्वतन्त्रता नहीं देती। इस कार्य आप मानव के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। ये सब झूठे विचार कि हम हिन्दू हैं, हम मुसलमान हैं, हम इसाई हैं। सब मानव रचित हैं। कहने से मेरा अभिप्राय ये है कि मानव किसी भी चीज़ का और लोगों के पास यह के लिए ईसा मसीह है। ईसा मसीह पूर्णतः स्वतन्त्र थे, सभी प्रकार के पूर्वग्रहों प्रलोभनों तथा मानवीय मूरखताओं से मुक्त। सृजन कर सकता है समझने के लिए बुद्धि नहीं है कि इन सब चीजों परन्तु आप कह सकते हैं कि श्रीमाताजी वे तो दिव्य पुरुष थे। वे दिव्य थे और अब उदाहरण के रूप में अमरीका के लोग आपको भी दिव्य बना दिया गया है। तो अब बड़ी-बड़ी संस्थाए और समाज बनाते हैं और वे किस प्रकार सामूहिक होकर हम लोगों को बता सब पूर्ण असत्य पूर्ण गलत धारणाएं और पूर्णत: सकते हैं "कि आप क्या कर रहे हैं? आप ऐसा की रचना मानव ने की है। ना क्यों कर रहे हैं? ऐसा करने की क्या आवश्यकता भी वे इन्हें बनाते हैं। इनके लिए उनके पास है? एक ओर तो मूर्खता के कारण सामूहिक फार्म हैं, बड़े-बड़े समूह है, आदि आदि। और ये विनाश है और दूसरी ओर आत्मघात। मंदिरा तथा विध्वंसक शक्तियों पर आधारित होती हैं। फिर अन्य विध्वंसकारी चरित्रहीन चीजों को अपनाना। सब पनप रहे है। पर इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव होता हैं। ये नहीं जानते कि यदि आप परमात्मा यह सब दुर्व्यसन सुगमता से उपलब्ध है और उन्हें अच्छा नहीं द्वारा सृजित मानव के विरूद्ध गलत चीजें करना लोगों को बहुत पसन्द है। आरम्भ कर देंगे उस मानव के वरूद्ध जिसे लगता जब आप उन्हें बताते हैं कि यह कार्य चैतन्य लहरी ॥ खड : XII अंक : 5.& 6, 2000 विनाशकारी है। हम या तो अपने को नष्ट करते लोग हैं। वो बताते हैं कि सरकार एंसा कर रही हैं या दूसरों को। ईसा मसोह को अन्य लोगों ने क्रूसारोपित परेशानियाँ है या वे आपको एक पंथ कहते हैं कर दिया परन्तु अपने आप वे पुनर्जीवित हुए। हम सब भी अब उसी स्थिति में हैं। मैं जानती हूँ कि सहजयोग को बहुत बार चुनौती दी गई। कि आप ईसा मसीह के पद चिन्हों पर चल रहे अब स्थिति पहले से बहुत अच्छी है उतनी बुरी हैं। कोई आपको नष्ट नहीं कर सकता। ईसा नहीं। इसे चुनौतियाँ दी गई परन्तु अब चीजें मसीह के जीवन का यही संदेश है कि दिव्य शान्त हो रही हैं क्योंकि यही सत्य है और यही वास्तविकता है। दैवत्व भी यही है। अत: आपको है, सरकार वैसा कर रही है या उन्हें कुछ या कुछ और ठीक है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आपका कर्तव्य यह विश्वास करना है जीवन नष्ट नहीं किया जा सकता। उनका शरीर हो जब नष्ट नहीं किया जा सका तो उनके दिव्य जीवन को किस प्रकार घवराना नहीं चाहिए। सहजयोग के विषय में ये सब वेतुके विचार समाप्त हो जाएंगे। यह न केवल आप सबका परन्तु आपके आदर्शों का भी सहजयोगी हैं जिन्हें सहजयोग में आए बहुत पुनर्जन्म है। आपके सिद्धान्त परिवर्तित होते हैं समय हो गया है । उन्हें बहुत सी समस्याओं और ताकि आपके चेतना ज्योतित हो सकें। हमारा नष्ट किया जा सकता था? यहाँ पर वहुत से कष्टों का सामना करना पड़ा। में मानती हूँ, बाध प्रकाशमय होना चाहिए। अचानक सहजयोग के माध्यम से यह लोगों तक पहुँच गया है कि यदि आपमें प्रकाश नहीं है तो आप सही रास्ते कुछ समय पश्चात्, आप हेरान होंगे, सहजयोग पर कैसे जा सकते हैं? ईसामसीह के जीवन का पूरे विश्व पर छा जाएगा। विश्व भर में लोग वर्णन करना सुगम कार्य नहीं है कि वे किस सहजयोग को अपनाएंगे और सर्वत्र इतने सहजयोगी प्रकार इसमें जीवित रहे। अत्यन्त युवा अवस्था में उनकी मृत्यु हो गई और कितनी क्रूरतापूर्वक उनका वध किया गया। परन्तु इसके बावजूद भी उन्होंने स्वयं को पुनर्जीवित किया। इन सब लोग मुझसे पूछते हैं कि हमें क्या करना है? यातनाओं और अग्नि परीक्षा से वे बच निकले हम लागों को भी जब सहजयोग में समस्याएं मसीह ने प्रार्थना की और वे निरन्तर प्रार्थना परन्तु अब ये सब कष्ट शान्त ही गए हैं और आप लोग पुनरुत्थान की ऐसी अवस्था में हैं कि होंगे कि हमारे सामने से मुर्ख धर्मान्धों की अल्प संख्या लुप्त हो जाएगी| इसके लिए हमें क्या करना है? कई बार आपने अवश्य बाइबल में पढ़ा होगा कि ईसा किया करते थे। इसी प्रकार हम कह सकते हैं होती हैं तो हमें समझना चाहिए कि हम में स्वयं वर कि हमें ध्यान धारणा करनी है। ध्यान धारणा के माध्यम से हम अपने बोध, नव तथा को पुनर्जीवित करने की शक्ति है। कोई हमें नष्ट नहीं कर सकता, कोई हमें समाप्त नहीं कर सकता. क्योंकि हममें पुनर्जीवित होने की शक्ति है। पुनर्जीवित होने की यह जो शक्ति हमारे अन्दर है आप उसे समझे, महसूस करें और इस कोई आपको नष्ट नहीं कर सकेगा क्योंकि सशक्त व्यक्तित्व में उन्नत होंगे। ध्यान-धारणा ही उन्तत होने का एकमात्र उपाय है, तब तब आप परम चैतन्य की सुरक, में होंगे। पर ध्यान-धारणा करें। यहाँ पर सभी देशों के चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 । গ आपको इस बात की चिन्ता नहीं करनी चाहिए सुरक्षा प्राप्त है। अत: मार्ग में आने वाली बाधाओं कि कौन आपको नष्ट करेगा? क्या घटित होगा? नि:सन्देह आरम्भ में थोड़ी सी उत्तेजना होती है। की कोई आवश्यकता नहीं है। दुष्टों को नष्ट इसके विषय में लोगों को थोड़ी सी तकलीफ करने के लिए एक प्रकार की विध्वंसक शक्ति होती है, ये बात ठीक है। परन्तु वास्तव में लोग कार्यरत है। आपको नष्ट नहीं कर सकते, अपने अन्दर ये विश्वास बनाए रखें। ईसा मसीह की काई संस्था नहीं है और न ही उन्हें आश्रय देने के लिएआधुनिक युग में कोई नष्ट नहीं कर सकता, आदिशक्ति विद्यमान थीं, बिल्कुल नहीं। परन्तु अपने दिव्य व्यक्तित्व द्वारा उन्होंने सभी समस्याओं, यंत्रणाओं तथा उन पर किए गए सभी अत्याचारों वध किया गया, उन्हें यातनाएं दी गई। परन्तु से अपनी रक्षा की। अब आप लोगों को उनसे मोम तथा अपने विनाश आदिके विषय में चिन्ता करने ईसा मसोह के जीवन से हमें जान लेना 'चाहिए कि आत्म-साक्षात्कारी व्यक्ति को, इस आज तक किसी सहजयोगी को कोई नष्ट नहीं कर सका। प्राचीन काल में बहुत से सन्तों का आज भी वे कविता के रूप में जीवित हैं । अपने आशीष के रूप में भी वे सर्वत्र विद्यमान हैं। वे बेहतर सुविधाएं प्राप्त हैं क्योंकि आप लोग आत्मसाक्षात्कारी हैं, ज्योतित हैं। पहली बात तो समाप्त नहीं हुए। उनकी मृत्यु भी नहीं हुई। ये हैं कि वे दिव्य पुरुष थे और सभी कष्टों को यद्यपि ऐसा प्रतीत होता है कि अव वो जीवित सह सकते थे। आप लोगों को इन कष्टों में से नहीं हैं परन्तु उनकी नाम लेने और आह्वान करने नहीं गुजरना होगा। आपको कोई सताएगा नहीं, कोई जेल नहीं भजेगा और न ही कोई क्रूसारोपित में वे विद्यामान हैं और आपकी सहायता करते हैं । करेगा। कोई भी कुछ नहीं कहेगा। यह संभव नहीं है परन्तु यदि आप अशान्त है, कभी-कभी पुनर्ुत्थान से हमारा पुनर्जन्म हुआ है हमारा आप अशान्त हो जाते हैं। मैं जानती हूँ। कुछ देशों शरीर भी, निश्चित रूप से, परिवर्तित हो गया है। में लोग यह सांच कर परेशान हो जाते हैं कि पुनर्जन्म लेने के पश्चात्, आप जानते हैं, कि सहजयोग में होने के कारण उन्हें सताया जा रहा है। मैं तुम्हें विश्वास दिलाती हूँ कि कोई भी ऐसा प्रदान करने लगते हैं। हमारा दृष्टिकोण. हमारा नहीं कर सकता। आपको समझ लेना चाहिए मानसिक दृष्टिकोण, परिवर्तित हो जाता है और कि हर समय आप सुरक्षा में होते हैं, आपके बड़े भाई के रूप में ईसा-मसीह आपके साथ हैं मैंने सदैव ये बात कही है। आपके साथ आपकी माँ (श्री माताजी) भी हैं और सभी गण तथा देवदूत आपके इर्द-गिर्द विद्यमान में क्या कमियाँ हैं, मानो गर्दन घुमाकर वे अपने हैं। यह सब जब में देखती हूँ तो सोचती हूँ कि यह सब कितना अद्वितीय है। सभी देशों में गण और देवदूत प्रकट हुए हैं। आपको इतनी पावन मात्र से चीजें कार्यान्वित हो जाती हैं। आत्मा रूप ईसा मसीह के जीवन से विश्वस्त होकर उनके आपके चक्र. रोगों से मुक्ति और आशीर्वाद अहं भी लुप्त हो जाता है। केवल इतना ही नहीं हमारे बन्धन भी समाप्त हो जाते हैं। मैं अत्यन्त प्रसन्न थी कि ये लोग जो एक धर्म विशेष उत्पन्न हुए हैं तुरन्त देख लेते हैं कि उस धर्म समाज का रूप देख लेते हों और समझ जाते हों कि उनमें क्या कमियाँ हैं. और जब वे इन कमियों पर ध्यान करने लगते हैं तो सब ठीक हो चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 जाता है। समाज सुधर रहे हैं। आप देखते हैं कि हमारे हृदय से चला जाता है। परन्तु एक चीज़ तथाकथित धार्मिक विचार अपने ही शिकंजे में फँस रहे हैं और इन सब का पतन हो जाएगा बुराइयों को होते हुए, यन्त्रणा भोगते हुए लोगों क्योंकि ये असत्य हैं। यह सच्चा धर्म नहीं है। को देखते हैं तो आपका मस्तिष्क इसे स्वीकार धर्म तो हमारे अन्तः स्थित है और यही पावन धर्म, विश्व धर्म है। समाधान इस प्रकार आता है कि मान लो युद्ध हो रहे हैं-धर्म के नाम पर परन्तु इसके परिणाम स्वरूप आपकी इच्छाशक्ति युद्ध, परमात्मा और धर्म के नाम पर लोग युद्ध उनके विषय में आपकी सोच, आपके अश्रुओं में करते हैं तो क्या होता है? इस प्रकार लड़े जाने भी शक्ति होती है जो अकारण कष्ट उठा रहे वाले बच जाती है, वह है करुणा। जैव आप सभी नहीं कर पाता। इनके प्रति संवेदन शील होकर उनके दर्द को आप महसूस करते हैं। आश्चर्यजनक! युद्ध सच्चाई को नष्ट नहीं कर सकते, लोगों को सांत्वना देती है। इसे आपको परखना वास्तविकता को नष्ट नहीं कर सकते। ईसा होगा। अपने अन्दर प्रेम और करुणा के भाव चीज़ों में मसीह के पुनरुत्थान का यह एक अन्य सन्देश है। आप ऐसा नहीं कर सकते। आप सोच सकते हैं कि आपने कुछ लोंगों का वध कर दिया वे तो अब भी जीवित हैं। सभी सन्त सभी उत्पन्न करें, सुधार होगा। अब भी आप ध्यान धारणा करते हैं परन्तु इतने प्रेम एवं करुणापूर्वक ध्यान धारणा करें कि आपकी आँखों से बहने वाले ऑसुओं का सुप्रभाव इन मूर्ख तथा क्ूर लोगों पर पड़े जो एक दूसरे का वरध करने में लगे हुए हैं। परन्तु यह जान लेना आपके लिए परन्तु महापुरुष जो जीवन में पुनर्जीवित हुए अमर हैं। उनकी सुरक्षा सदैव विद्यमान है। उनका पथ-प्रदर्शन बना रहता है। एक प्रकार से आप देख सकते हैं कि वे यहाँ विद्यमान हैं। अत्यन्त आवश्यक है। आप व्यक्ति मात्र नहीं हैं, आप सार्वभौमिक व्यक्तित्व बन गए हैं। आप मात्र व्यक्ति नहीं रहे। आप सार्वभौमिक व्यक्तित्व अत: व्यक्ति को किसी प्रकार का भय नहीं होना चाहिए। मृत्यु का भय दूर हो जाना है और अपने स्थान पर बैठ कर पूरे विश्व की चाहिए। उनमें से बहुत से लोगों ने यही बात कही कि आखिरकार मृत्यु है क्या? आप जब पुनर्जीवित होते हैं तो मृत्यु की मृत्यु हो जाती है। आदि के विषय में ही चिन्तित रहता है। आपका अत: व्यक्ति को मृत्यु का भय नहीं होना चाहिए। मस्तिष्क विस्तृत हो पुनर्जन्म लेने से पूर्व आपमें से कितने हीं लोग विस्तृत हो चुका है कि विश्व की सभी समस्याओं मृत्यु से भयभीत होते थे परन्तु अब ऐसा नहीं है। के लिए यह स्वत: कार्य करता है। आपको कोई चिन्ता नहीं है कि मृत्यु कब समस्याओं का समाधान कर रहे हैं। अब आप तुच्छ मानव नहीं जो केवल अपने बच्चों, परिवार चुका है, इस प्रकार से महिलाएं आमतौर पर समाचार पत्र नहीं आएगी? क्या होगा? या किस प्रकार से आपको पढ़तीं। वे सोचती हैं कि समाचार पत्र पढ़ना नष्ट किया जाएगा? आप जानते हैं कि आपको मूर्खता परन्तु महिला होते हुए भी में समाचार पत्र पढ़ती हूँ। विशेष रूप से वे समाचार जिन्हें भली-भाति जानते हैं मैंने देखा है कि है। नष्ट नहीं किया जा सकता। अपने हृदय में आप कि आपको नष्ट नहीं मेरे चित्त की आवश्यकता है। किया जा सकता। नि:सन्देह अपनी मृत्यु का भय यह कार्य करता है। आप सब लोग मिलकर चैतऱ्य लहरी खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 जब समझ जाएंगे कि विध्वंसकारी शक्तियों को सुधारना, उन्हें ठीक करना आपकी जिम्मेदारी है तो बहुत अच्छा होगा। जिन-जिन मामलों में भी बड़ी समस्याएं होंगी उन पर आपने केवल सामूहिक रूप से ध्यान करना कर रहे हो। तो ईसा-मसीह के जीवन का सन्देश ये है कि उन्होंने क्षमा किया। उन सब लोगों को क्षमा किया जिन्होंने उन्हें सताया क्रूसारोपित करने वाले लोगों के लिए भी उन्होंने कहा" हे परमात्मा कृपा करके इन लोगों को क्षमा कर दें क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।" सुली पर चढ़कर भी उन्होंने ये बात कहीं, जब हैं। समस्या मुख्यत: धर्मों के कारण है यदि सभी धर्मों के लोग एक नए धर्म, विश्व धर्म को अपना लें तो वो एक हो जाएंगे। एक ही धर्म होने के कारण तब ये परस्पर लड़ नहीं सकते। उन्होंने कहा इन्हें क्षमा कर दो, इन पर दया सताया जा रहा था, अपमानित किया जा रहा था। परन्तु वे एक धर्म नहीं चाहते क्योंकि वे लड़ना चाहते हैं, लड़ाकू मुरगों की तरह। वे यदि सहज में आ जाएं ज्योतित हो जाएं तभी वे एक दूसरे करो, इनसे सहानुभूति करो क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं। ये परमात्मा के पुत्र का वध कर रहे हैं, इनका क्या होगा? ये कहाँ के प्रम का आनन्द ले सकेंगे। एक दूसरे की जाएंगे? इनका क्या हाल होगा? हमारे लिए हत्या और विध्वंस का नहीं। यही बात हमने ईसा-मसीह के जीवन से सीखनी है। ईसा-मसीह अकेले थे. बिल्कुल अकेले। उनके साथ सामूहिकता न थी. फिर भी वे कितने शक्तिशाली थे कि बहुत बड़ा सन्देश है कि सूली पर भी उन्होंने क्षमा करने के लिए कहा 'हे परमात्मा हे परमपिता इन सबको क्षमा कर दो। इसी प्रकार हमें भी लोगों को क्षमा करना चाहिए। ईसा-मसीह के उन्होंने मृत्यु से युद्ध किया और आज्ञा के स्तर पर इससे साफ बच निकले। उनके बिना हम जीवन से यह बात स्पष्ट होती है कि क्षमा करना बहुत महत्वपूर्ण है। विश्व के लिए क्षमा का ये महत्व समझना महत्वपूर्णतम है। क्षमा तो आपको अपना जौवन बलिदान न किया होता तो कुण्डलिनी करनी ही चाहिए। क्षमा करना यदि हम सीख लें तो आप हैरान होंगे, संसार में लड़े जाने वाले आधे युद्ध समाप्त हो जाएंगे। कोई घटना आज से जीवन को बलिदान करने का कार्य स्वीकार हजारों वर्ष पूर्व हुई थी. परन्तु आज भी लोग करके और फिर स्वयं को पुनर्जीवित किया। उससे भयभीत हैं । अब भी लोग उसको लेकर हैं, सोचते हैं कि बहुत वर्ष पूर्व ऐसा हुआ था इसका परिणाम युद्ध है। यदि हम उन कि "में सबको क्षमा करता हूँ।" क्षमा का गुण लोगों को क्षमा कर सके जो हमारे जन्म से भी पहले हुए तो ऐसे लोगों के समूह क्यों बनाए? सहजयोग कार्यान्वित न कर पाते उन्होंने यदि ऊपर को न जा पाती। परन्तु उन्होंने बिना आना-कानी के आत्म-बलिदान कर दिया। अपने आज्ञा चक्र के संकुचित मार्ग से वे गुजरे ताकि लड़े जा रहे आप लोग केवल इतना कहकर ठीक हो सको जब इतना शक्तिशाली है कि आप इसके माध्यम से मृत्यु से भी लड़ सकते हैं तो क्यों न क्षमा क्यों? क्योंकि मानव में घृणा नाम का भी एक है। लोगों के हृदय में घृणा है। इसके कर दी जाए? बहुत से लोग कहते हैं कि श्रीमाताजी हम क्षमा नहीं कर सकते। मैंने उन्हें लिए घुणा उसके लिए घृणा छोटी-छोटी चीजों सौ बार बताया है कि क्षमा न करके भी तुम क्या के लिए कहते हैं मुझे ये पसन्द नहीं है, ये अवगुण TO चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 बघारी थी? नहीं, कभी नहीं उन्होंने कभी डींग नहीं हाँकी। जब उन्होंने देखा कि पावन स्थलों पर लोग वस्तुएँ बेच रहे हैं तो आप जानते हैं कि उन्होंने क्या किया? उन्होंने कोड़ों से उनकी युवाओं को ऐसा कहने की स्वतन्त्रता है। मुझे वो पिटाई की क्योंकि वे गलत कार्य कर रहे थे स्थल की पावनता को दूषित कर रहे थे। उन्होंनें लगता। आप कौन हैं? दूसरों के मामलों का ऐसा क्यों नहीं कहा कि "मुझे ये पसन्द नहीं है?" मंदिर या पावन स्थल पर ऐसी चीज़ों की समझना नहीं आता। आप ये नहीं जानते कि बिक्री के लिए उन्होंने स्पष्ट रूप से अपनी अस्वीकृति प्रकट की। लोग वहाँ पर पूजा करने जाते हैं। उन्हें धन लोलुपता विहीन मस्तिष्क की पसन्द है। आजकल विशेष रूप से यह आम बात है। जब हम युवा थे तो हमें ऐसी बातें कहने की आज्ञा न थी। मुझे ये पसन्द नहीं है, मुझे ये पसन्द है, हम नहीं कह सकते थे। परन्तु आजकल लोग पसन्द नहीं है। मुझे वो व्यक्ति अच्छा नहीं निर्णय करने वाले आप कौन हैं? आपको महत्व आनन्द किस प्रकार लेना है। आप केवल इतना कहना चाहते हैं कि मुझे पसन्द नही है और यदि आपको पसन्द होता तो आप क्या करते। आपको आवश्यकता होती है। जहाँ आपने ध्यान करना होता है वहाँ पर धन लोलुपता का कोई कारण का प्रदर्शन करनें के लिए आप ऐसा कहते हैं नहीं होना चाहिए। आज यह सबसे बड़ी समस्या क्योंकि आपमें प्रेम का पूर्ण अभाव है। आपमें है। हर चीज का लक्ष्य धन है । आपको महंगी हैं और आप इसे पाना चाहते हैं उठा पाते हमें कभी नहीं कहना चाहिए कि मुझे किसी भी प्रकार से आप कार लाएंगे और इसमें आप यदि वास्तव बैठेंगे चाहे आप चोर हों फिर भी दिखावा करने में ये कहें कि मुझे आनन्द आता है तो आपको के लिए आप महंगी कार खरीदेंगे। संभवत: क्योंकि आप चोर हैं, अपनी असलियत को छियाने के लिए आप एसा करना चाहते हैं। तो पसन्द हो या न हो एक हो बात है। अपने अहं यदि प्रेम होता तो आप सभी चीज़ों का आनन्द कारे पसन्द पसन्द है मुझे पसन्द नहीं है। सभी चीज़ों का आनन्द आएगा। ये कहकर कि मुझे ये पसन्द नहीं आप स्वयं को सीमित कर रहे हैं। आप न तो कोई सत्यमय जीवन का अभाव है। जीवन मात्र दिखावा जज हैं न कमांडर और न कोई महान व्यक्ति कि आप ये कहें। हैरानी की बात है कि पश्चिमी देशां में एसा कहने का बहुत अधिक प्रचलन है नि:सन्देह पूर्व में, भारत में, यदि कोई ऐसा कहे तो लोग उसके मुँह पर कहंगे कि वह बन रहा हैं। परन्तु दिखावा करना भी बुरी बात नहीं मानी जाती। पश्चिम में इसे भी बुरा नहीं समझा जाता। किसी चीज के बारे में संकोच करना वहाँ पर बन गया है और आप लाग अपने को बहुत श्रेष्ठ समझते हैं। परन्तु जब मौत सामने आएगी तो आप क्या करोगे? उस वक्त आप काप उठेंगे अपनी सारी उपलब्धियों, सारे दिखावों के बावजूद भी मृत्यु के सम्मुख लडखड़ा जाएंगे परन्तु एक सहजयोगी ऐसा नहीं कर सकता वह जानता है है तो आना ही है। मृत्यु को कि मृत्यु को आना भयानक मानकर वह कॉपेगा नहीं। मृत्यु को अभद्रता समझी जाती है। परन्तु शेखो बघारने को विश्राम का स्थान मानेगा। उसे नहीं बुरा कुछ भी लगेगा क्योंकि वह तो से ऊपर है, विनाश बुरो नहीं समझा जाता। मृत्यु से परे है । तो जो कुछ भी उसके जीवन में घटित क्या ईसा मसीह ने किसी वात की शखी चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 " টি । होगा उसका बुरा माने विना वह उसे सहज ही में स्वीकार कर लेगा। परन्तु उसके पति ने उसके सम्मुख दम तोड़ दिया। मैंने कहा" आपका क्या अभिप्राय है? यह सब कैसे घटित हुआ। यह श्रद्धा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं।" श्रद्धा अर्थात् समर्पण। समर्पण क्योंकि मैं समर्पित मैंने पूछा कैसे? यह तो मैं नहीं जानती। मैं तो बस समर्पित हूँ। जब मुझे पता चलता है कि समर्पित हूँ तो मुझे बहुत ही सुख बहुत ही जीवन्त होती हूँ. और बहुत ही निडर। अपनी आत्मा के ग्रति मैं पूरी तरह से समर्पित हूँ। ध्यान-धारणा करते हुए हमें यही सब सोखना हमारे सामने कबीर साहब का उदाहरण उसने उत्तर दिया" श्रीमाताजी है। कबीर ने बहुत सी कविताएं लिखीं उनमें से अधिकतर मौत के विषय में हैं उन्होंने कहा कि मौत जब आई तो एक शब्द भी नहीं बोली। मैंने उससे लड़ाई नहीं की, कंवल इतना किया कि अपने ऊपर चादर ओढकर गहरी नींद सो गया। कितनी मधुरतापूर्वक उन्होंने मृत्यु का वर्णन किया है। कबीर कभी-कभी तो मुझे ईसा-मसीह मिलता है। मैं का स्मरण कराते हैं। ईसा मसीह ने भी इन सब चीजों को कितने धैर्यपूर्वक सहन किया और जब है कि हमें समर्पित होना है। उनकी मृत्यु हुई तो सारे पंचभूत डोल गए। वे पंचभूतों के स्वामी थे, पंचभूत डोल गए. भूचाल इस्लाम अर्थात समर्पण। चाहे वे लोग समर्पित आ गए और प्राकृतिक विपदाएं आई। उन्होंने नहीं होते परन्तु उन्होंने कहा कि आपको अपनी उनकी मृत्यु को महसूस किया स्वयं इंसा मसीह सार्वभौमिक प्रकृति, अपनी श्रेष्ठ प्रकृति के प्रति ने नहीं, उन्हें लगा कि इतनी महान शक्ति जो समर्पित होना हैं। आपको समाप्त नहीं हो जाना मोहम्मद साहब ने इसे इस्लाम नाम दिया। और न ही इन सांसारिक तूफानों तथा सांसारिक वस्तुओं में फँस जाना है। ईसा मसीह का मिसाल कि मानव अस्तित्व का सार तत्व थी, इस प्रकार नष्ट कर दी गई। वे नहीं जानते थे कि ईसा-मसीह पुनर्जीवित हो उठेंगे, इसका उन्हें ज्ञान न था परन्तु वे इससे बाहर आए, उस मृत्यु से पुनर्जीवित हुए जिसके विषय में सबको आघात लगा था। अत्यन्त शक्तिप्रदायक है और वे हमारे साथ हैं वे सदैव हमारा पथ-प्रदर्शन करेंगे। सदैव हमारी देखभाल करेंगे। केवल इतना ही नहीं वे हमें शक्ति भी प्रदान करेंगे शाश्वत जीवन के विरुद्ध है। हमारी मृत्यु नहीं है, हम पुनर्जन्म ले चुके जाने वाले लोगों को वे नष्ट भी करेंगे । सभी हैं और पुनर्जीवन हमारे साथ है परन्तु हमें बेहूदी चीजों को वे समाप्त कर देंगे और अब आप देख रहे हैं कि इस कलियुग में धर्म के नाम पर लड़ने वाली सभी संस्थाएं नष्ट हो रही को हमें स्थापित करना है यही महत्वपूर्ण हैं। स्वत:, हमने इसके लिए कुछ भी नहीं किया। अपने आप अपनी कारस्तानियां की वजह उसने मुझे अपने जीवन में घटे बहुत से चमत्कारों से ये सब समाप्त हो रही हैं क्योंकि इनमें के विषय में बताया, किस प्रकार उसकी रक्षा सच्चाई नहीं है। उनमें आत्मा का पूर्ण अभाव है की गई थी। एक दुर्घटना में वह मरने ही वाली और आत्मा के बिना क्या रह जाता है केवल मृत शरीर। सहजयोगियों को ये सारी सूझ-बूझ होनी उनकी मृत्यु हमें शक्ति प्रदान करती इसमें स्थापित होना है अपने सहजयोग को हमें स्थापित करना है, अपनी ध्यान धारणा चीज़ है। उस दिन मेैं एक महिला से मिली। थी। परन्तु किसी प्रकार उसे बचा लिया गया। T2 चैतन्य लहरी खंड : XII अक : 5 & 6. 2000 शै चाहिए कि हमें आत्माभिमुख होना चाहिए. ध हमें लोगों को परिवर्तित करना है । हम परिवर्तित हो चुके हैं, एक विन्दु तक पहुँच गए हैं और है। नाभिमुख नहीं, शरीराभिमुख नहीं, भावनाओं का कायल नहीं केवल आत्मा। यह अत्यन्त कह सकते हैं कि हमारा पुनरुत्थान हो चुका आनन्ददायक स्थिति है। इसे पाकर आपको बहुत हमें पूर विश्व का पुनरत्थान करना है। यह हैरानी होगी। आप अत्यन्त प्रसन्न, प्रेममय, सुन्दर व्यक्ति बन जाएंगे। आस-पास के लोग तुरन्त ये आदि समाप्त हो जाएंगे। जान जाएंगे कि इस व्यक्ति में महिला में कोई चमक है. इनमें कुछ विशेष बात हैं। उन्होंने यह सब कार्य हमारे हित के लिए तो अवश्य है कि ये पुरुष या महिला हम सबसे किया। सर्वसाधारण व्यक्ति के रूप में वे अवतरित भिन्न है इसे तुरन्त पहचाना जा सकता है। ईसा हुए। सर्वसाधारण व्यक्ति के रूप में जीवन मसीह के समय में बहुत कम लोग उन्हें पहचान व्यतीत किया। यद्यपि उनमें बहुत सी शक्तियां पाए क्योंकि वो लोग आत्मसाक्षात्कारी न थे। थीं परन्तु उन्होंने इन शक्तियों का उपयोग किसी क्योंकि वे लोग मानव स्तर से बहुत नीचे थे। हमारा कार्य है। ये सब झगड़े, लड़ाईयोाँ झूठ हमारे लिए ईसा-मसीह हमारे पथ-प्रदर्शक कुछ है। इस को नष्ट करने के लिए नहीं किया। इसी प्रकार परन्तु आप लोगों के साथ ऐसा नहीं है आप लोगों को इसका भली भांति ज्ञान है। आपका हम भी प्रेम एवं स्नेह के साथ मृत्यु के साथ छुटकारा पा सकते हैं, अपनी गलतफहमियों से जन्म आधुनिक समय में हुआ है। आज ईसा छूटकारा पा सकते हैं। अपने विनाशकारी स्वभाव से मुक्त हो सकते हैं। यह विध्वंसकारी स्वभाव सहजयोगियों के लिए अत्यन्त भयानक है। हमें व्यक्तित्व कितना शानदार था। कितने कष्टों में केवल यही आशा है कि सहजयोगी पुनरुत्थान को पा लेंगे। मैं केवल इतना जानती हूँ कि यदि बहुत से लोग सहजयोगी बन जाएं तो ये विश्व होता वे इतने शक्तिशाली थे; इतना शक्तिशाली परिवर्तित हो जाएगा इस विश्व को परिवर्तित व्यक्तित्व था उनका। परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं होना होगा परन्तु आपका उत्थान होता रहना चाहिए। अपने उत्थान पथ पर आप बढ़ते चले मसीह के विषय में सोचते हुए हमें समझना चाहिए कि उनका जीवन कैसा था? उनका उन्हें डाला गया? वे इतने शक्तिशाली थे कि उन्होंने उन लोगों को तुरन्त समाप्त कर दिया किया, उन्होंने सबको क्षमा कर दिया और इस जाइए, इससे वापिस मत लौटिए। प्रकार आपको क्षमा का सन्देश दिया महानतम यहाँ-वहां छोटी-छोटी चीज़ों की चिन्ता मत करिए। आपकी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है और यह जिम्मेदारी है मानव मात्र को परिवर्तित शक्ति का जो सभी कुछ कार्यान्वित कर सकती हैं। अब आप भी क्षमा के इस विचार के प्रति समर्पित हो जाएं और वास्तव में क्षमा करने का करने की। ये आपका कर्तव्य है। आपने कितने लोगों को परिवर्तित किया, कितने लोगों को प्रयत्न करें। आप हैरान होंगे कि आप अत्यन्त शान्त हो जाएंगे और प्रसन्नता का अनुभव करेंगे और जिन लोगों ने आपको सताया है उनका बदल दिया। पुरुष और महिलाओं दोनों पर ये बात लागू होती है। आपको अन्य लोगों में है लोगों को परिवर्तित करना यह हमारा कार्य है। परिवर्तन लाना है। ये आपका कार्य है और इसके पतन हो जाएगा। अब हमें जो कार्य करना है वो 13 चैतन्य लहरी । खंड : XII अक : 5 & 6. 2000 लिए शक्ति आपने ईसा मसीह से प्राप्त की है कितने लोगों को हमने परिवर्तित किया। कितने कि आप अन्य लोगों को परिवर्तित करें। आनन्द लोगों को हमने पुनर्जीवन दिया। इस चीज का और प्रसन्नता के नए विश्व में उन्हें परिवर्तित लेखा जोखा रखा जाना चाहिए। इसका नहीं कि करके ले आएं। सहज निर्मल धर्म में उन्हें ले हमने कितनी पूजाओं में भाग लिया। पूजाओं में आएं। वास्तव में यदि ऐसा हो जाए तो विश्व के विषय में सोचें, हमारे लिए ये कितना सुन्दर संसार हो जाएगा! हर सहजयोगी का कर्त्तव्य है ये आपका कार्य नहीं है, आपका कार्य कि इस नए साहसपूर्ण कार्य को करे और ये नहीं है। अपने कार्य के लिए आप पूजाओं से खोजने का प्रयत्न करे कि वह कितने लोगों सारी आवश्यक शक्ति ले सकते हैं परन्तु यदि को परिवर्तित कर सकता है और कितने लोगों को सच्चे मार्ग पर ला सकता है। मुझे इसका क्या लाभ? तो में अब ये बात आप पर आशा है कि अगली बार जब हम यहाँ मिलेंगे तो छोड़ती हूं कि आपको स्मरण रहे कि आप इन आठ मेजबान दंशों के यहाँ उपस्थित लोगों से पुनरुत्थान को पा चुके हैं। और अब आपने अन्य दुगुनी संख्या में सहजयोगी उपस्थित होंगे। आप सबकों मेरा हार्दिक प्रेम। महान दिन हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं अब हमें कंवल अपनी महत्वपूर्णतम कार्य है। जिम्मेवारी को समझना है। मुख्य चीज ये है कि भाग लेना उतना महत्वपूर्ण नहीं है। पूजाएं केवल आपको शक्ति प्रदान करने के लिए होती है पेरन्तु आप इस शक्ति का उपयोग नहीं करते हैं तो त लोगों को पुनरुत्थान प्रदान करना हैं। पूर्ण उथल-पुथल और विध्वंस के इस समय में यही परमात्मा आपको धन्य करें। सा त 14 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 he परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का 77वां जन्मदिवस समारोह निर्मल धाम-दिल्ली 21-3-2000 एक विवरण यमुना नदी के किनारे पर बसी भारतवर्ष की राजधानी दिल्ली लगभग डेढ़ करोड़ की तथा आइवरी कोस्ट के राष्ट्रपति ने श्रीमाताजी को आबादी वाला महानगर है। यहां के लोगों की प्रतिव्यक्ति आय बाकी देशों के लोगों को औसत उन्होंने मानव हृदय परिवर्तन द्वारा समाज परिवर्तन अध्यक्ष, कनाडा के दूस मुख्य नगरों के महापौर भेजे, जिनमें इस शुभ अवसर पर बधाई सन्देश में उनके योगदान की भूरि-भूरि प्रशंसा की । आय से लगभग दुगुनी है। 21 मार्च 2000 को परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के जन्मोत्सव न्यूयार्क राज्य सभा ने शान्ति स्वास्थ्य तथा 80 के शुभ अवसर पर विश्व भर से आए हुए देशों का हित सहजयोग ध्यान धारणा द्वारा करने उनके सहजी बच्चों के आनन्दोल्लास का पूरा के लिए दो बार विश्व शान्ति पुरस्कार के लिए महानगर साक्षी था। यूरोप, उत्तरी अमरिका, लेटिन मनोनीत की गई श्री माताजी के सम्मान में एक अमरीका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, पूर्वी-एशिया और विशेष प्रस्ताव पारित किया। इसमें कहा गया था कि श्रीमाताजी ने नव रूस से आए 725 सहजयोगियों ने दिल्ली और "सभी संस्थाओं को दृढ़ विश्वास है सहस्राब्दि को एक उपयुक्त भारत के अन्य राज्यों से कि संत्ता को भूख हा मानव का पथे वातावरण बनाने के लिए नव आए 2500 सहजयोगियों के प्रदर्शन करता है तथा मनुष्य परस्पर प्रेम दष्टि प्रदान की है और इस वातावरण में भिन्न क्षेत्रों और अपनी सामूहिकता में विशिष्ट लोग हैं जिन्हें जातियों के लोग अपने साथ छावला गाँव स्थित नही कर सकते। परन्तु सहजयोगियों की निर्मल परम-पावनी माँ के जन्म आत्मा का ज्ञान प्राप्त हो गया है और वे भेदभाव त्याग कर शान्ति से धाम दिवस के उत्सव को आन्तरिक रूप से समृद्ध हैं और समर्थ हैं तथा उन्हें पूर्ण सत्य का बोध है। वे रह सकेंगे। उत्सव कार्यक्रम इन्द्रधनुषी रंगों से सजा दिया। ह के संयोजक दिल्ली के श्री संयुक्त राज्य अमरीका के जानते हैं कि समाज में प्रचलित बी.जे. नालगिरकर ने भिन्न उप राष्ट्रपति, भिन्न राज्यों कुसिद्धान्तो को असत्य साबित करके देशों की विधानसभाओं, सफी सन्तों आदि के वधाई सन्देश किस प्रकार अधम प्रवृत्तियों पर काबू संक्षिप्त में पढ़कर सुनाएं। के राज्यपालों, वहां के दस किस प्रकार परस्पर प्रेम बांटना है और नगरों के महापौरों, कनाडा के प्रधानमंत्री तथा कनाडा पाना है।" और आस्ट्रेलिया के सांसदों इस अवसर पर बोलते हुए परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी| पूर्व लों कसभा अध्यक्ष 21 मार्च 2000| बलराम जाखड़ ने कहा कि रूस के चिकित्सक संघ के 15 चैतन्य लहरी । खंड़ : XII अंक : 5 8 6. 2000 विश्व भर में सहजयोग फैल जाने से बास्तविक सार्वभौमिक गाँव (True Global Village) का सृजन होगा और उन्होंने कामना की कि जब तक ये प्रमुख डॉ. शोभा दास ने सहज योग द्वारा 'तनाव प्रबन्धन' विषय पर दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा मान्य एवं स्वीकृत दो शोध प्रबन्ध (Thesis) श्री माताजी को भेंट की। उन्होंने Lipid Peroxidation लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लिया जाता तब तक परम पूज्य श्रीमाताजी इसी प्रकार अपने जन्मोत्सव रोंग पर किए जा रहे सहजयोग के प्रभाव शोध मनाती रहें। कश्मीर में अपने कठिन लक्ष्य में का संक्षिप्त वर्णन किया। सफलता प्राप्त करने के लिए श्री माताजी का आशीर्वाद लेना वे न भूले। गृहमन्त्री श्री लाल कृष्ण आडवाणी ने सहजयोग द्वारा अपने अन्तर्परिवर्तन की तीन अपने भाषण में कहा कि निर्मल धाम आने में अवस्थाओं का वर्णन करते हुए कहा कि पहली उनकी मुख्य इच्छा श्रीमाताजी के दर्शन करने अंतर्राष्ट्रोय सम्मान एवं ख्याति प्रापत सर श्री सी. पी. श्रीवास्तव, श्रीमाताजी के पति, ने अवस्था आश्चर्य (Bewildermet), दूसरी प्रदीप्ति (Splendour), और तीसरी अवस्था समर्पण तथा उनका प्रवचन सुनने की थी। इस अवसर पर वे वातावरण के प्रदूषण, भौतिक प्रदूषण नहीं (Surrender) की थी। आरम्भिक अवस्था में जब परन्तु समाज के ताने- वाने में व्याप्त आन्तरिक उन्होंने लोगों के हृदय परिवर्तन होते देखे तो वे प्रदूषण पर बोले। ये सर्वविदित है कि बढ़ते हुए हर्के-बक्के रह गए। सहजयोगियों की सामूहिंकता वाहनों की संख्या के कारण तथा बाहनों के तेल को परिवर्तित होते देखकर आश्चर्य की ये स्थिति के धुएं के कारण दिल्ली में प्रदूषण समस्या अत्यन्त भयानक रूप धारण कर रही है। विश्व परिवर्तित करने में सहजयोंगियों की भूमिका राष्ट्र संस्था (W.H.O.) की एक टिप्पणी के अनुसार दिल्ली उन बारह महानगरों में से एक है जिनमें समर्पण की अवस्था में पहुँच गए हैं। एक ऐसी भेव्यता में परिवर्तित हो गई। क्योंकि समाज को सकारात्मक होती हैं और अब 80वें वर्ष में वे दिव्य शक्ति के सम्मुख समर्पण जिसने देवदूतों भयानक प्रदृषण है और ऐसा अन्दाजा लगाया जाता है कि पूरे प्रदूषण के 67% भाग के लिए की अद्वितीय सामूहिकता (सहजयोगी/योगिनियों) मोटर-वाहन उत्तरदायी हैं। श्री आडवाणी के आन्तरिक प्रदूषण को दूर करने का नुस्खा सहजयोग प्रेम अभिव्यक्त करके धर्म, जाति के भेद-भावों का सृजन किया है, जिनका उद्देश्य परस्पर पावन ध्यान धारणा द्वारा आध्यात्मिक उत्थान था। मध्य प्रदर्श के पूर्व पराप्त किए बिना से ऊपर उठकर एक हीरा अपना मूल्य नहीं जानता, आत्मज्ञान मात्र सहजयोग परिवार भी अपना मूल्य मनुष्य मुख्यमंत्री तथा वर्तमान केन्द्रीय केबिनेट मन्त्री श्री सुन्दर लाल पटवा ने इस अवसर पर कहा बनाना है। उनके अनुसार नही समझता। आत्म-ज्ञान प्राप्त करके आत्मसाक्षात्कारी लोग कमल सम हो यह सभा संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेम्बली से भी अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह विश्व की नैतिक, चारित्रिक एवं जाते हैं। वे दिव्य सुगन्ध फैलाते हैं और अपनी अन्तर्जात प्रणाली के कारण कि वे परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के चरणों में समर्पित मूल्य अत्यन्त सुन्दर एवं आकर्षक होते हैं। परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी होकर अभिभूत हैं लेडी हार्डिग अस्पताल के शरीर विज्ञान के आध्यात्मिक सभाओं की 21 मार्च 2000 16 चैतन्य लहरी । खड : XII अंक : 5 & 6. 2000 प्रतीक है। विश्व भर में ऐसी ही सभाओं तथा है। यदि परमात्मा एक ही है तो आप धर्म के नाम पर किस प्रकार झगड़ सकते हैं।" उन्होंने रूस में विश्व निर्मला धर्म को अलग से धार्मिक उसके द्वारा नए मानव के सृजन के परम पावनी माँ के दिव्य स्वप्न का वर्णन भी उन्होंने किया। सर सी. पी. श्रीवास्तव के पास उपस्थित सभा के लिए दो प्रस्ताव थे: पहला विश्व भर में सहजयोग प्रचार कार्य के प्रति समर्पित होना और दूसरा यह मान्यता दिए जाने के विषय में बताया क्योंकि ये धर्म पूर्णतः घृणा रहित हैं और केवल सहृदयता (Compassion) में विश्वास करता है। उन्होंने बताया कि 'साकार' का दर्शन तो निराकार को समझने पर ही हो सकता है और यह प्रक्रिया केवल आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् ही सम्भव है। 'सच्चे ज्ञान' से सशस्त्र होकर आत्मसाक्षात्कारी कि जब तक विश्व का हर मानव परिवर्तित न हो जाए परम पावनी माँ अपने दिव्य साक्षात् मानव शरीर को बनाए रखें। सभा के प्रतिनिधि के रूप में श्री योगी महाजन ने दोनों प्रस्तावों को व्यक्ति धर्म-वैमनस्य के झगड़ों को भूल सकता है। उन्होंने योग भूमि भारत की तुलना विश्व की कुण्डलिनी से की और बताया कि पूर्ण ज्ञान चैतन्य लहरियों के बोध द्वारा हो प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि सच्चे ज्ञान पारित किया। अपने प्रवचन में श्री माताजी ने बताया कि देश भक्ति की भावना से परिपूर्ण हृदय लोगों का वे बहुत सम्मान करती हैं। ये लोग यदि आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त कर लें तो अपने चित्र द्वारा सहजयोग की शक्ति को प्रभावशाली रूप से उपयोग करते हुए समाज तथा देश की स्थिति परिवर्तित कर सकते हैं। उदाहरण के रूप को सुधार सकते हैं उन्होंने कहा कि साक्षात्कार को पाकर सहजयोगी पूरे समाज एवं देश को उन्होंने हाल ही में आस्ट्रेलिया के सहजयोगी द्वारा उड़ीसा में नौ सहजयोग केन्द्र स्थापित किए जाने का वर्णन किया। प्राप्त करने के पश्चात् विध्वंसक विचार तथा गतिविधियाँ स्वतः ही इस बजर भूमि में आप लोगों का प्रकाश छुट जाती हैं। उन्होंने कहा कि एव जीवन को ले आना देखकर मैं आत्मा के प्रकाश में व्यक्ति देख अभिभूत हूँ ( निर्मल धाम की भूमि जो सकता है कि समाज तथा देश में क्या दोष है और उन्हें सुधारने की शक्ति भी उसमें होती है। कश्मीरी सम्मानपूर्वक कार्य किया। दिल्ली लोगों का दृष्टिकोण परिवर्तन करने सामूहिकता ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान, के लिए कुछ सहजयोगियों की हरियाणा के योगी, योगिनियों की पेशकश का भी उन्होंने वर्णन किया। सहायता से इतने कम समय में यह कि विश्व बन्धुत्व की इस अवसर पर विश्व जन्मोत्सव से पूर्व बीहड़ थी ) मुझे प्रसन्नता भर से आए सहजयोगी है कि सभी लोगों ने परस्पर प्रेम एवं और योगिनियों में 3३ अन्तर्राष्ट्रीय विवाह सम्पन्न हुए। ये विवाह विश्व निर्मल धर्म, जो साक्षात्कार प्राप्त करने के कार्य सम्पन्न किया, यह जानकर भी मैं धारणा का समर्थक है पश्चात् आप धर्म के सौन्दर्य को अत्यन्त प्रसन्न हैं। देख सकते हैं। धर्म के एकत्व की दृढ़ स्थापना की परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी ओर संकेत करते 21 मार्च 2000 हैं। (One ness) को समझा जा सकता 17 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 8 6, 2000 दिवाली पूजा डेलही यूनान (ग्रीस्) 7.11.99 आपको अत्यन्त ध्यानगम्य होना होगा अत्यन्त सौभाग्यशाली तथा मंगलमय बात महालक्ष्मी तत्व का सृजन किया। यह उनकी है कि हम यूनान, विशेषकर डेल्फी में दिवाली गतिविधि धी, फिर भी कहा जाता है कि नाभि मना रहे हैं। इसका इतिहास अत्यन्त प्राचीन है में इसलिए अवतरित हुई क्योंकि यह सब करने और जैसा आप जानते हैं अर्थेना (Athana) यहाँ के पश्चात् उन्हें ताभि में ही स्थापित होना था। हम ये भी देखते हैं कि श्री गणेश की कुण्डलिनी भी नाभि में है। तो ये कहा जाता है कि वे नाभि वर्णन पुराणों में भी मणिपुर द्वीपे के नास से में इसलिए अवतरित हुई क्योंकि मनुष्य, पशु या किसी भी जीव की शुद्ध इच्छा उसकी भूख है पुराणों की कल्पना करें कि ये कितने प्राचीन हैं? जिसका स्थान नाभि में है। वे इस भूख को निवास करती थीं। वे आदि माँ थी। संस्कृत के अथ' शब्द का अर्थ है आद्य। इन स्थानों का किया गया है लिखा हुआ है 'मणिपुर द्वीपे। इन सन्तुष्ट करना चाहती थीं और संभवत: इसी कारण से वे सर्वप्रथम नाभि में आई । यही कम से कम आठ हजार या इससे भी अधिक वर्ष पुराने हो सकते हैं और उन्होंने मणिपुर द्वीप का वर्णन नाभि स्थान के रूप में किया है जहाँ आदिशक्ति माँ हमें अथेना के रूप में मिलीं। आदि शक्ति (Alhena) का निवास हैं। मेरा कहने इनके हाथ में एक कुण्डलिनी हे और एक से अभिप्राय ये है कि वे लोग इस बात को कैसे त्रिशूल यूनानी पौराणिक कथाओं में ये सारा जानते थे? हो सकता है घुमावदार क्षेत्र (कुण्डलिनी ) इतिहास अत्यन्त स्पष्ट रूप से दश्शाया गया है । के माध्यम से। परन्तु यह अत्यन्त स्पष्ट लिखा परन्तु बाद में लोगों ने इन पौराणिक कथाओं को है और यहाँ भी वही चीज हमें मिलती है। गलत मोड़ दे दिया क्योंकि मनुष्य जानता है कि हर चीज़ को किस तरह से बिगाड़ना है। उन्होंने जो कि नाभि में है। अर्थना अर्थना का स्थान आद्य माँ भी हैं। वे कहते हैं कि ये नाभि के सभी देवताओं को भी मनुष्यों की तरह से बनाना इर्द-गिर्द सुजित भव सागर में प्रकट हुई। वहाँ से शुरु कर दिया। भारत के कुछ देवी देवताओं का उन्होंने सारा कार्य किया। अवतरित होकर जब वे वर्णन यूनानी पुराणों में भी है। भारत में इन देवी नीचे आई तो उन्होंने श्री गणेश का सृजन किया देवताओं को अत्यन्त पावन, दिव्य एवं सन्तवत और जब वे दाई ओर को गई तो माँ सरस्वती की सृष्टि की। हम कह सकते हैं कि पूरी सृष्टि खींच लाया गया और बहाँ दर्शाए गए बहुत से का उन्होंने सृजन किया और तत्पश्चातू नीचे देवी देवता. भारतीय देवी देवताओं से भिन्न आकर वे कुण्डलिनी में स्थापित हो गई परन्तु करके दिखाए गए क्योंकि उन्होंने इन्हें मानव का नीचे आते हुए उन्होंने हमारे उत्थान के लिए रखा गया परन्तु यहाँ पर इन्हें मानव के स्तर तक रूप दे दिया था। हैरानी की बात है कि शनै: 18 चैंतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 & 6, 2000 शनै: वे एक दूसरे से भिन्न कैसे हो गए! भारत में भी ऐसा किया गया परन्तु ये चल न पाया क्योंकि हमारे यहाँ पुराण हैं। जब-जब भी लोग प्राचीन स्थान है जो वर्णनों के अनुसार सत्य है। इन्हें नष्ट करने या बिगाड़ने का प्रयत्न करते हैं. इसमें कोई सन्देह नहीं। परन्तु तत्पश्चात् इस पुराणों के कारण ये अपनी वास्तविक स्थिति में लौट आते हैं। परन्तु यहाँ पुराणों की पूजा बाइबल, पुराण लिखे गए हों। जिस स्थान पर हम बैठे हैं यह अत्यन्त स्थान का पतन हो गया। यहाँ पर कुण्डलिनी और चक्रों के चित्र भी बनाए गए। परन्तु जब इसाई लोग आए तो उन्होंने कहा ये सब असत्य है, इसे भूल जाएं उन्होंने दूसरे पक्ष को नहीं देखना चाहा कि यदि यह सत्य नहीं है तो किस गम्य हैं, इनका वर्णन किया जा सकता है और प्रकार इतिहास बन गया। अर्थना तथा अन्य देवी लोग इनके बारे में जान सकते हैं। परन्तु जिस देवताओं में श्रद्धा कम होती गई और श्रद्धा के लोप होने पर वे लोग प्रसन्न थे। इस यूनान को कुरान या किसी अन्य धर्म ग्रंथ की तरह से नहीं की जाती। पुराण तो मात्र प्राचीन इतिहास के ग्रन्थ हैं और व्यक्ति को देखना है कि ये बोध प्रकार उन्होंने मणिपुर द्वीप का वर्णन किया वह वास्तव में महान है । सिकन्दर के समय में भी यह स्थिति थी। अब एक बार फिर हम लौट आएं हैं। मणिपुर द्वीप, जो कि नाभि है, में हम हैं। इसका वर्णन विस्तार पूर्वक किया है कि चीज़ें लख्मी जी जल से प्रकट हुई. इसमें कोई सन्देह कैसी थीं। उन्होंने लिखा है कि माँ आदिशक्ति नहीं है। परन्तु अरथेना तो लक्ष्मी की माँ हैं। वे का एक मन्दिर था, वहाँ पर श्री गणेश जी सर्वव्याप्त हैं और उन्होंने लक्ष्मी की सृष्टि की यूनान बहुत हो समृद्ध एवं सुन्दर राज्य था। सिकन्दर के साथ आए एक भारतीय राजकवि ने आनन्द से लक्ष्मी पूजा के लिए बैठे हुए विराजमान हैं। यह सब उन्होंने स्पष्ट रूप से और इसी लक्ष्मी का शासन यहाँ पर था। वे यहाँ विस्तार पूर्वक वर्णन किया है। मन्दिर पर पहुँचने स्वयं को अभिव्यक्त करती रहीं और उन्होंने तीन सीढ़ियाँ यहाँ बहुत सुन्दर चीजों का सृजन किया। यूनानी बड़ी हैं और अन्तिम आधी है। इन्हें यदि आप लोग बहुत समृद्ध थे और सभी प्रकार के व्यापारों तथा जहाजरानी किया करते थे जहाजरानी उनका अत्यन्त महत्वपूर्ण व्यापार है। मैं भी यहाँ पर अपने पति के साथ इसलिए आई थी क्योंंकि वे गया है कि डेल्फी के देव पुरुष अमर रहेंगे। भी जहाजरानी के व्यक्ति थे। जब हम हवाई उनका कथन है कि परमात्मा नाभि चक्र में अड्डे पहुँचे तो मैं हैरान थी वहाँ पर एक मन्त्री निवास करते हैं। ये सारी बातें भारत में सिकन्दर की पत्नी, दूसरे मन्त्री की पत्नी और प्रधानमन्त्री के आने से बहुत समय पूर्व वर्णन की हुई हैं। की पत्नी उपस्थित थीं । मुझे हैरानी हुई। आम तौर पर वे वहाँ आने वाली किसी महिला को में बहुत अधिक सौहाद्रपूर्ण सम्बन्ध होंगे। हो लेने हवाई अड्डे नहीं जाती। कहने लगी हमारे पतियों ने हमें कहा कि यदि तुम्हें किसी पूर्ण वाली सीढ़ियाँ भी साढ़े तीन हैं - पुरे विश्व में फैला दें तो ये साढ़े तीन कुण्डल बना सकती है। यह भी स्पष्ट कहा गया है कि ये स्वयंभू हैं श्री गणेश का स्वयंभू। ये भी कहा क इससे हम समझ सकते हैं कि यूनान और भारत सकता है कि यहाँ से बहुत से लोग विदेश जाते निर्मल, अत्यन्त मगलमय, सोम्य महिला को हो या नाभि के घुमावदार क्षेत्र (Torsion Area) से 19 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 देखना हो तो वे श्रीमती श्रीवास्तव हैं. इसलिए वे कार्य के लिए आप उन्हें रोकिए तो वो कहते हैं मुझे मिलने आई. ये देखने के लिए कि कोन सी कि ऐसा करने में क्या दीष है? और इस प्रकार सौम्य महिला आई हैं। उन्होंने बड़े प्रेमपूर्वक मेरी मानव अत्यन्त व्यक्तिवादी बन गया है। एक देखभाल की। इसके पश्चात् वहाँ चुनाव थे। जिस प्रकार उन्होंने सम्मानपूर्वक मुझसे पूछा कि पीछे भागता है एक विशेष शैली के पीछे भागता ये सौम्यता आपने किस प्रकार प्राप्त की, वह में है। मेरा कहने से अभिप्राय ये है कि उनका स्वयं भूल नहीं पाती। मैंने उत्तर दिया ये मेंने विकसित पर नियंत्रण नहीं हैं। लोग दास बन गए हैं फिर नहीं की, ये तो मुझमें जन्मजात है। सौम्य लगने भी सोंचते हैं कि वे स्वतन्त्र हैं। वे स्वतन्त्र लोग के लिए मैंने कुछ भी नहीं किया, इसके लिए हैं और जो चाहे कर सकते हैं कलियुग में इस कोई सौन्दर्य प्रसाधन केन्द्र भी नहीं है। वे कहने स्वच्छंदता के परिणामस्वरूप वे लोग अत्यन्त लगी नहीं, नहीं। सारे पुरुष आपकी प्रशंसा करते घिनौनं हो गए हैं। जिस प्रकार के कुकृत्य वे इस हैं कि इन भयानक दिनों में भी वे अत्यन्त शान्त कलियुग में कर रहे हैं उन पर विश्वास नहीं महिला हैं। दिवाली महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अमावस्या का दिन होता है। इसकी अत्यन्त अंधेरी और अनैतिक हो गए हैं कि विश्वास नहीं होता, लम्बी रात होतो है जिसे समाप्त करने के लिए परमात्मा के नाम पर उनकी छत्रछाया में किस दीप जलाए जाते हैं। पूरे वातावरण में गहन अंध कार है और सूर्य छिप चुका है । इसलिए दीपक है. जलाए जाते हैं। इसी प्रकार यह कलियुग है. करना आवश्यक है। रात्रि के इस अन्धकार को इसमें भी गहन अंधकार है और हमारे जीवन को समाप्त करने के लिए हमें रोशनी करनी होगी। कष्टकर बनाने के लिए इसमें बहुत समस्थाएं हैं। इसी प्रकार लोगो का भी आत्मसाक्षात्कारी होना हम नहीं जानते कि प्रेम पूर्वक किस प्रकार चला जाए। आज स्वयं को आत्मा के प्रकाश से चाहिए। एक बार जब लोगों के हृदय में ज्योति ज्योतित कर लेना अत्यन्त आवश्यक है। कलियुग हो जाएगी तो जिस अज्ञानान्धकार के कारण हम प्रकार से वह खो चुका है क्योंकि वह फैशन के किया जा सकता। चर्च आदि में उन्हें यह सब सिखाया जाता है। वे इतने भयानक रूप से प्रकार ऐसा हो सकता है? परन्तु ऐसा होने लगा यही कलियुग है । इस कलियुग को समाप्त आवश्यक है। लोगों के हृदय में प्रकाश होना अपनी पराकाष्ठा पर है। परमात्मा के नाम पर कष्ट उठा रहे हैं वह समाप्त हो जाएगा और हमें लोग जो कार्य कर रहे हैं ये हिला देने वाले हैं। पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो जाएगा तो जिस नवयुग के परन्तु ये कलियुग है जिसमें मनुष्य ने सारा विवेक खो दिया है। हम नहीं जानते कि हम कार्यान्वित हो जाएगा कि सभी लोग आत्माक्षात्कारी किस दिशा में चल रहे हैं। हम सभी प्रकार के हो जाएंगे और उन्हें इस चीज़ का ज्ञान होगा कि गलत कार्य कर रहे हैं और फिर भी हम सोचते ठीक क्या है? सच्ची विद्या और ज्ञान क्या है? हैं कि हम ठीक हैं। जो भी कुछ उन्हें कहो वे कहते हैं कि इसमें क्या दोष है? अपने सारे कि प्रेम है, करुणा हैं कुकृत्यों के उत्तर में वे यही कहते हैं। किसी कि हम एक अन्य क्षेत्र में प्रवेश कर गए हैं. बार में हम यहाँ बात कर रहे हैं यह इस प्रकार तो हमारा मार्ग ज्ञान का मार्ग है, ज्ञन जो यहीँ बात हमें समझनी है 20 चैतन्य लहरी । खंड XII अक : 5 & 6, 2000 0 एक ऐसे कार्य-क्षेत्र में जहाँ कलयुगी झगड़े और कष्ट प्रवेश नहीं कर सकते। कलियुग का साम्राज्य बाहर है हमारे अन्दर नहीं। यह ऐसा ही है कि हम अब केवल स्वतन्त्र ही नहीं है, परन्तु जो कुछ भी हम कर रहे हैं वह स्वतन्त्रता के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। आज हम किसी भी ऐसी चीज़ से लिप्त नहीं है जो हमें दूृषित कर सके हमारी पकड़ को ढीला कर सके। लोगों में जब है और आप नहीं जानते कि आप कहाँ हैं, क्या कर रहे हैं और आपको क्या करना चाहिए। आपे से बाहर होकर आप एक दूसरे को चोट पहुँचा रहे हैं। यही कलियुग है। इसे पहचानकर जो भी इसके शिकंजे से निकल जाता है वही सहजयोगी है। यदि आप अब भी उसी परिसर में हैं, असन्तुलन की उसी परिधि में तो आप भी अन्य लोगों जैसे हैं। एक अन्य बात या सत्य पर जो कलियुग में है वो यह है कि चाहे आपकों चोट पहुँची हो, चाहे आप नष्ट हो गए हों लोग स्वयं को दोषी नहीं मानते। इस प्रकार एक अन्य भयानक प्रवृत्ति विकसित हो सकती है जिसके कारण आप दूसरों को दोषी ठहराते है स्वयं को इस प्रकार का व्यक्तित्व आ जाता है तब क्या होता है? तब कलियुग की ये सभी धारणाएं लुप्त हो जाती हैं। अन्तिम निर्णय है। जो लोग सत्य को स्वीकार करेंगे, सत्य में रहेंगे और सत्य में उन्नत होंगे कभी दोषो नहीं समझते कि आपने स्वयं अपने वे बच जाएंगे और बाकी सब नष्ट हो को चोट पहुँचाई है। आपने ही गलती की थी जाएंगे। ऐसा पहले भी कहा जा चुका हैं। जैसे किसी बाग में कुछ पेड़ हैं जिनका भली-भांति पोषण होता है, जिन्हें काफी मात्रा में जल और प्रेम मिलता है और जो लोगों को बहुत कुछ प्रदान करते हैं, वे पेड़ बने रहते हैं। बाकी के परन्तु मैं कहूंगी कि यह जिसका ये परिणाम है। यही वह स्थिति है जिसे हम भ्रम कहते हैं इस भ्रम की स्थिति का समाप्त होना आवश्यक है। कलियुग के लिए कहा गया है कि यह भ्रम का युग है और यदि इस भ्रम में आप फैस गए पेड़ जलकर समाप्त हो जाते हैं। इसी प्रकार हमें तो आप समाप्त हो जाएंगे। परन्तु भ्रम को यदि भी सर्वप्रथम प्रम को स्वीकार करना चाहिए, प्रेम लेना चाहिए, प्रेम से अपना पाषण करना चाहिए यही कारण है कि आज जिज्ञासा बहुत बढ़ गई और वही प्रेम अन्य लोगों को देना चाहिए। हे क्योंकि लोग भ्रम को महसूस कर सकते हैं। कलियुग के अभिशाप से बचने की यह अत्यन्त सहज विधि है। कलियुग इतना अंधकारमय हे कि हम एक दूसरे को चोट पहुँचाने लगते हैं। उदाहरण के रूप में आप लोग यहाँ बैठे हुए हैं, और इसे खोजने का वे प्रयत्न करते हैं। इस आप पहचान लेंगे तो सत्य को खोजने लगेंगे। वे जानते हैं कि ये सत्य नहीं है और जब वे ये बात जान जाते हैं तब क्या करते हैं? तब वे जानना चाहते हैं कि सत्य क्या है और कहाँ है? अचानक अंधेरा हो जाता है, आपको समझ नहीं प्रकार कलियुग में सत्य-साधना आरम्भ हुई। दमयन्ती पुराण नामक एक अन्य पुराण किसी को चोट पहुँचा रहे हैं या नहीं, आप कलियुग की कहानी बताई गई है। कलि द्वारा आएगा कि किस प्रकार यहाँ से निकलें, आप में किसके साथ बैठे हुए हैं कुछ भी आपको समझ फेलाए गए भ्रम के कारण नल की पत्नी दमयन्ती अपने पति से बिछुड़ गई। एक दिन ये भयानक नहीं आएगा। यही अंधेरा हृदय में है मस्तिष्क में 21 चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 5 8 6. 2000 दिवाली है। लोग यदि आत्मसाक्षात्कारो हैं यही दीवाली हैं कि वे कलियुग के अंधकार को दूर करके इसके सौन्दर्य और खुशी का आनन्द लें। ऐसा कर सकते हैं परन्तु पहले मेरा महात्मप्य सुन मैं कहूंगी कि ये अत्यन्त प्रतीकात्मक बात है कि लें, कि मेरा महत्व क्या है और मैं यहाँ पर क्यों दिवाली शुरु हो चुकी है। हमारे पास बहुत सो हूँ? नल प्रतीक्षा कर रहा था. उसने कहा कि दीप हैं और बहुत से अन्य दीप हमने जलाने आप यदि मुझे सुनना चाहेंगे तभी मैं आपको इसलिए नहीं कि इन दीपको का प्रकाश कम है। हमें अधिक दीप क्यों चाहिए? इनकी क्यों कलि महाराज नल के हाथ लग गया और नल ने उसे कहा कि तुम्हारा गला दबाकर अब में तुम्हें समाप्त कर दूंगा। कलि ने कहा कि आप बताऊंगा। मैं जब आऊंगा और विश्व पर शासन करूंगा अर्थात् जहाँ पर भी कलियुग होगा. लोग भ्रान्ति में फँस जाएंगे, वे समझ न पाएंगे कि ये आवश्यकता है? ताकि सभी लोगों को बचाया जा सके। हमारा प्रयत्न सभी लोगों को बचाने का सत्य है या असत्य और वे सत्य को खोजने का प्रयत्न करेंगे केवल वही लोग नही जो सब कुछ त्याग कर जंगलों में चले जाएंगे, परन्तु अन्य है। यह कठिन कार्य हे अत्यन्त कठिन। अब आप देख सकते हैं कि कैसे बीज की तरह आत्मसाक्षात्कारी लोग दूर दराज स्थानों पर स्थापित हो जाते हैं और वहाँ वे फलते फूलते हैं और सुन्दर वृक्ष बनकर अन्य लोगों को सुगन्ध तथा छाया प्रदान करते हैं! यही कारण है कि सभी स्थानों के लोगों को जागृत किया जा प्रकार के लोग भी, वो लोग जो अब तपस्यारत हैं. कलियुग में जन्म लेंगे और सर्वसाधारण गृहस्थों की तरह इस भ्रम में फँस जाएंगे। भ्रम में फँसने के पश्चात् वे साधना शुरु करेंगे क्योंकि वे रहा है और आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करके वो महसूस कर लेगे कि ये असत्य है और तत्पश्चात् सत्य को खोजने लगेंगे। केंवल तब उन्हें भी अन्य लोगों को जागृत करते हैं। यही सारी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होगा हजारों वर्ष पूर्वं कलि प्रक्रिया है जो भली-भांति अन्तर्रचित है. यह ने यह सब अत्यन्त स्पष्ट शब्दों में बताया तो ऐसी ही दिखाई पड़ती है और सुन्दर ढंग से कलियुग ही वह समय है जब लोग आत्मसाक्षात्कार कार्यान्वित हो रही है। सन्देहपूर्ण तो केवल ये बात है कि कितने लोग सहजयोग में आएंगे और कितनों को उबारकर हम बचा सकेंगे? केवल यही समस्या है और इसके लिए आपको तैयार रहना है कि आपमें से हर क्योंकि सतयुग की तरह से आप लोग ठीक एक सहजी ये निर्णय ले कि मुझे प्रतिदिन प्राप्त कर सकंगे। वे अपनी आत्मा को जान जाएंगे, सत्य को जान जाएंगे। बहुत समय पूर्व ये बात कही गई थी और अब आप इसे स्वयं देख सकते हैं। इस कार्य के लिए यही समय था स्थिति में होते तो आप खोजते नहीं। तब आप कम से कम एक व्यक्ति को आत्मसाक्षात्कार आज्ञाकारी और अच्छे लोग होते और सत्य को देना है प्रतिदिन एक व्यक्ति को। मान लो स्वीकार कर लेते। परन्तु कलियुग में अब वास्तव हमारे सम्मुख कुछ लोग नदी या समुद्र में डूब रहे हैं, ऐसे में आप क्या करते हैं? आप सब मिलकर उन्हें बचाने के लिए दौड़ पड़ते हैं. लोग आत्मसाक्षात्कारी जीव हैं। मेरे लिए यहीँ उनके जीवन की रक्षा करने के लिए आप में पूर्ण सत्य को खोजने लगते हैं। इस प्रकार यह दीप ज्योतित आत्मा को चित्रित करते हैं। आप 22 चैतन्य लहरी । खंड : XII अक : 5 8 6. 2000 उन्नत होकर पूरी तरह से परिवर्तित हो गए हैं यह देखकर मुझे बहुत हर्ष हो रहा है । मैंने इसके लिए कुछ विशेष नहीं किया, मैं नहीं सोचती मैंने मैं भरसक प्रयत्न करते हैं। इसी प्रकार हमें समझना कि हमें सभी लोगों के जीवन की रक्षा करनी है और इसके लिए हमें बहुत कठिन कार्य करना होगा। तो मात्र आत्म-साक्षात्कार दिया। परन्तु में कुछ भ्रम से सत्य तक उन्नत होने के मार्ग में नहीं करती, मेरे बिना कुछ किए भी यदि आप भी कुछ समस्या है जिनका मुकाबला उचित ढंग ज्योतित हो जाते हैं और ये सब प्राप्त कर लेते हैं तो मुझे विश्वास नहीं होता। यह कैसे हो ं य से हाना चाहिए। भूख इन समस्याओं में से एक है। भूख धन के लिए हो सकती है, भोजन की हो सकती है या किसी अन्य चीज की भी। भूख सकता है? मैंने कुछ नहीं किया. आपने अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया। परन्तु अब जब में यदि धन की है तो यह आपमें स्थायी रूप से देखती हैँ और इस पर दृष्टि डालती हूँ तो मुझे लगता है कि आप लोग कितना सुन्दर गाते हैं कितने सुन्दर, मधुर और परस्पर कितने स्नेही! है और मैं महसूस करती सोचते कि किसी दूसरे के पास भी पैसा है या हूँ कि सहजयोग में स्थापित होने के लिए आपको अधिक समय नहीं लगेगा। ये समझने का बहुत जम जाएगी क्योंकि लोभ की कभी सन्तुष्टि नहीं होती। परन्तु आधुनिक युग में तो लोग धन के पीछे वास्तव में पागल हुए जा रहे हैं। वे नहीं मुझे विश्वास हो गया नहीं, किसी दूसरे के पास ये सुख सुविधा है कि नहीं, उन्हें तो बस अपने धन का प्रदर्शन करना उपयुक्त समय है कि हमें सहजयोग के प्रति पहले से भी अधिक समर्पित होना है। अच्छा लगता है। वे दिखावा करना चाहते हैं कि कुछ अन्य समस्याएं भी हैं जैसे लोग कह रहे हैं श्रीमाताजी कुछ लिखित नियम होने चाहिए। मैने कहा, नहीं। अपने अनुभव से भी आप कार्य कर सकते हैं उदाहरण के रूप में उस दिन मैंने कहा कि लक्ष्मी तत्व है। अब देखें कि किस प्रकार लक्ष्मी तत्व दुर्बल पड़ता है? आप यदि ये जानना चाहें तो ये कार्य अत्यन्त सुगम एवं समृद्ध वहुत अच्छे हैं और अपने अहं से सभी प्रकार के कार्य किए चले जाते हैं । वे सोचतें हैं कि इसमें कोई दोष नहीं है, क्या दोष है, क्या गलती है? सबसे बड़ी बाधा ये है कि आपका मस्तिष्क अहं संचालित है और आप बिना सोचे-समझे इसके आदेशानुसार कार्य करते रहते हैं। मस्तिष्क भ्रान्ति, भ्रम की पकड में हैं। इस हैं बात को समझने की बहुत सी विधियाँ हैं। तो मैंने कहा कि यदि व चाहें तो सहजयोग साधारण है क्योंकि ये लक्ष्मी अत्यन्त चंचल है। में किसी नौकर को आप एक बार सौ रुपये का आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं और नोट देकर देखें, तुरन्त वह मंदिरालय जाकर शराब पीएगा| लक्ष्मी तो हैं परन्तु जैसे ही उसे लक्ष्मी मिलती है वह मदिरालय जाकर शराब आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के पहले दिन ही अपनी समस्याओं के साथ जहां चाहे जा सकते हैं। इसने आश्चर्यजनक परिणाम दिए क्योंकि आत्मसाक्षात्कार पीने का प्रयत्न करता है। अब इस लक्ष्मी की के प्रथम दिन व्यक्ति बहुत दृढ़ मन: स्थिति में स्थिति की आप कल्पना कर सकते हैं। होता है और सारी गलत चीजों से बचता है। आपमें से बहुत से लोग सहजयोग में करती है। तो आपको देखना होगा कि जो भी लक्ष्मी बहुत अच्छी है परन्तु प्रलोभित कम 23 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 8 6. 2000 धन आपके पास है उसे आप बैंक में रखें या जो भी करें, इसे पूरा का पूरा करें। दूसरे यह भी समझ लें कि यदि सारे दरवाजे बन्द कर दिए जाएं और एक ही दरवाजे से लक्ष्मी प्राप्त हो तो यह रुक जाएगी। नि:सन्देह यह रुक जाएगी. यदि आप कंजूस हैं तो यह रुक जाएगी। परन्तु निकास न होने के कारण यह अपने लिए नहीं कह रही. ऐसा सर्वत्र हो रहा है। ऐसा न हमें अपने मस्तिष्क की गतिविधि स्पष्ट देखनो चाहिए। ये कहाँ जा रहा है. क्या सोच रहा है? लक्ष्मी आपको वह सोचने पर विवश करती जो आपको नहीं सोचना चाहिए। जैसे मैंने आपकों बताया लोग शराब पीने लगते हैं और घुड दौड़ जुआ खेलने लगते हैं। कहने से मेरा अभिप्राय है सड़ जाएगी। यदि आप दूसरा दरवाजा खोल दें कि वे सभी बुराइयाँ करने लगते हैं, क्यों? क्योंकि उनके पास पैसा है और इसे उन्होंने कहीं खर्च न करें। तो, आप हैरान होंगे कि न केवल लक्ष्मी बाहर जा सकती है, यह बहुत अधिक स्वच्छ हवा भी खर्च करना है। इस पैसे को वे अच्छी चीजों पर, ले सकती है, बाहर से बहुत सी स्वतन्त्रता भी अच्छी उपलब्धियों के लिए नहीं खर्च करते। प्राप्त कर सकती है क्योंकि आपने दूसरा द्वार यही कारण है कि लोग अब व्यर्थ की चीजों पर बहुत सा पैसा खर्च करते हैं । फिजूलखर्ची से खोल दिया है। आप आजमाएं केवल एक द्वार खुला होने पर कुछ भी अन्दर नहीं आ पाता। केवल एक द्वार खोल कर देखें. हवा भी अन्दर नहीं आएगी. कुछ भी नहीं आएगा। दूसरा द्वार खोलकर देखें कि किस प्रकार हवा के झाँके आप अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकते, क्योंकि आपका लक्ष्य तो पूर्णता को प्राप्त करना, आत्मा बनना है। ये बात समझ लेना अति सूक्ष्म है। आप गलती करते हैं और कहते हैं कि क्या दोष है, इसमें क्या है? में यदि निरन्तर कोई गलत या गम्भीर कार्य करूंगा तो शरीर प्रतिक्रिया करेंगा अन्दर आते हैं! इसी प्रकार जो व्यक्ति धन प्राप्त करना चाहता है उसे चाहिए कि जो भी धन उसके पास है उसे खर्च करना सीखें। इस नहीं, कुछ भी प्रतिक्रिया नहीं करेगा न आपका कलियुग में ये है, क्योंकि मस्तिष्क, न शरीर। आप देखें इन सारे वर्षों का सन्देह, भ्रम उत्पन्न करना कलियुग का कार्य है। मेरा अनुभव ये है कि अब भी कुछ सहजयोगी यह भ्रम उत्पन्न करता ही रहेगा। परन्तु आपको लक्ष्मी तत्व में फँसे हुए हैं। वे मुझे धोखा देना सत्य पर डटे रहना होगा तभी कलियुग कार्यान्वित चाहते हैं, सहजयोग से पैसा बनाना चाहते हैं। न हो पाएगा। केवल उसी स्थिति में यह कार्य न कर पाएगा। तो ये समझ लेना अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। सभी बुरी तरह से असफल हो गए हैं, इतना है कि हर समय हमारी परीक्षा होती है। साक्षी बुरी तरह से कि वे या तो जेल में हैं या रूप से ये सब देखा जाना चाहिए। लक्ष्मी जी की दिवालिए हो गए हैं। अत: कभी सहजयोगियों से कार्यशैली देखना बहुत दिलचस्प है। धोखेबाजी, व्यापार न करें। सहजयोगियों के लिए आवश्यक लूटखसोट, झूठ फरेब करने वाले व्यक्ति के घर से हमें भाग जाना चाहिए। लक्ष्मी ऐसे व्यक्ति के ये सिद्धान्त जब आप समझ जाएंगे तो आपस में पास नहीं रुकती। वह चली जाती है। हमारे व्यापार नहीं करेंगे। मुझसे भी आप व्यापार नहीं ईद-गिर्द ये सब घटित हो रहा है। मैं ये बात भी एक चरदान कुछ अन्य लोग आपस में व्यापार करना चाहते है कि वे अन्य सहजयोगियों से व्यापार न करें। कर सकते। परन्तु ये छोटी-छोटी गलतियाँ लोग 24 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 & 6, 2000 प গ " करने लगते हैं। उदाहरण के रूप में दो सहजयोगी हैं एक जापान से और दूसरा अमरीका से। वे व्यक्ति विशेष के साथ होता है और सामूहिकता कहने लगते हैं, "अरे, आप भी सहजयोगी हैं में भी हो सकता है। मैंने देखा है कि सामूहिकता और मैं भी सहजयोगी हूँ. क्या आप मुझे कुछ में लोग काफी पथभ्रष्ट होते हैं और एक जाली दस्तावेज़ या कुछ सूचनाएं दे सकते हैं?" नकारात्मक व्यक्ति तुरन्त दूसरे नकारात्मक व्यक्ति वे आपसे प्रश्न पूछते चले जाते हैं। पक्का सहजयोगी है या नहीं है। ऐसा किसी परन्तु क्यों? को पहचान लेता है और दोनों मिलकर कार्य हम ऐसा नहीं करना चाहते। जो चीज़ आपके पास हो उसमें उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है जब लोग आपसे व्यापार की बात करने लगे तो ये बात आपको अत्यन्त विवेक शीलता पूर्वक है। सहजयोग में आपको धन भी प्राप्त हो गया समझ लेनी चाहिए। सहजयोग में परस्पर कोई है अब आपको समझ जाना चाहिए कि चोरों व्यापार नहीं होता। केवल आत्मसाक्षात्कार का को घुसने के लिए वह बहुत अच्छा प्रलोभन है। लेन-देन होता है। यह छोटा सा रहस्य जब करना शुरू कर देते हैं। अत: आपको अत्यन्त आपको आत्मसाक्षात्कार सावधान रहना होगा, प्राप्त हो चुका है, आपको सभी कुछ मिल गया अतः आपको बहुत सावधान होना चाहिए और आपको समझ आ जाएगा तो धन, जो कि भ्रामक व्यर्थ की चीजों की ओर आकर्षित नहीं होना है, की भूमिका भी समाप्त हो जाएगी। आप यदि समर्पित हैं तो सभी कुछ अत्यन्त चाहिए। आपकी माँ की ओर से यही सुरक्षा है कि वे इस प्रकार आपकी रक्षा करना चाहती हैं। सुन्दरतापूर्वक कार्यान्वित होता है परन्तु यदि जीवन की ओर हमारा दृष्टिकोण केवल आप समर्पित नहीं हैं तो भी इसे कार्यान्वित एक साक्षी का होना चाहिए। हर चीज़ को किया जा सकता है क्योंकि जब आप परिणाम स्पष्ट देखें। धीरे-धीरे यह दृश्य इतना स्पष्ट हो देखेंगे तो आपको चोट पहुँचेगी, कष्ट होगा जाएगा. इतना सूझ-बूझ से पूर्ण कि आप हैरान और आप यह सब त्याग देंगे। तो जो भी कुछ रह जाएंगे। तब अपनी किसी भी चीज का घटित होता है, चित्त द्वारा स्पष्ट देखकर आप उपयोग करते हुए आपको सोचना नहीं पड़ेगा, जान जाते हैं कि आप कितने कष्ट में चले गए केवल चैतन्य लहरियाँ देखनी होंगी। चैतन्य लहरी हैं और इसे त्याग देते हैं । परन्तु ऐसा करने से कैसी है? चैतन्य लहरियाँ क्या कह रही हैं? क्योंकि वही आपकी पथ प्रदर्शक है । जिन देखने का हमारे पास एक बहुत अच्छा तरीका लोगों की चैतन्य लहरियाँ अच्छी नहीं है उन्हें है। चैतन्य लहरियाँ महसूस करके स्वयं देखें। चाहिए कि स्वयं को स्थापित करें। चैतन्य क्या चैतन्य लहरियाँ अच्छी हैं? चैतन्य लहरियाँ लहरियों का ज्ञान यदि अच्छा नहीं है तो इसका अर्थ है कि आप लोगों को अच्छी तरह से पहचान नहीं सकते और न ही मनुष्य, किसी भी धर्म गुरु, किसी भी करोड़पति आपमें ठीक से यह ज्ञान है। तो सर्वप्रथम या किसी अन्य चीज़ के बारे में जान सकते हैं। अपनी चैतन्य लहरियों को सुधारें और अपने परन्तु सबसे पहले आप ये जान लें कि व्यक्ति चक्रों को भी ठीक करें। तत्पश्चात् आप देख पहले अपनी चैंतन्य लहरियों के माध्यम से अगर अच्छी नहीं हैं तो आपको समझ जाना चाहिए कि कोई समस्या है। आप किसी भी कात 25 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 सकते हैं कि आपके सहयोगी कैसे हैं वे कौन कि ठीक है। जो भी निर्णय लेना होगा उसके हैं? अब आपका मस्तिष्क इतना प्रकाशमय हो लिए आपको पूरी तरह से अपने हाथों का गया है कि आप हर चीज़ को एकदम से देख उपयोग करना होगा। सकते हैं। इस ज्योतित मस्तिष्क का उपयोग यदि आप नहीं करते तो हैरान होंगे कि कुछ नकारात्मक शक्तियाँ विद्यमान हैं जो कार्य कर सकती हैं। चीज़ का गहन प्रभाव आप जान पाएंगे, तथा यह बातों से कुछ न होगा. भाषणबाजी से कोई लाभ न होगा। केवल आपके अनुभव और सूझ-बूझ के माध्यम से ही हर भी कि ये कैसे लोग हैं? किस प्रकार की बातें अब हम एक एसे बिन्दु पर हैं कि नकारात्मक शक्तियाँ हानि नहीं कर पाएंगी। परन्तु जब मैने कर रहे हैं और आपको क्या करना चाहिए? सहजयोग आरम्भ किया था तब स्थिति बहुत खराब थी। स्थिति बहुत खराब थी और हमारे हो परन्तु बाद में यह पूर्णतः मस्तिष्क से ऊपर पास अधपक, चौथाई पके, 1/16 पके लोग थे । आरम्भ में हो सकता है यह थोड़ा सा मानसिक की बात हो जाता है। अब., जैसा कि मैंने कहा कि कलियुग मेरी समझ में नहीं आता था कि उन्हें किस प्रकार बताऊँ। क्योंकि उन्हें यदि में स्पष्ट बता समाप्त हो गया है, समाप्त होने वाला है। परन्तु अब भी ऐसे लोग हॉंगे जो तथाकथित सामान्य देती तो वे दौड़ जाते, वो सहजयोग में आते ही नहीं। अन्य स्थानों पर गुरु लोग क्या करते हैं? वे स्थिति की ओर लौट जाना चाहेंगे। परन्तु इससे केवल पैसा बटोरते हैं। लोग सोचते हैं कि अब बचने का भी एक उपाय है; ये है ध्यान धारणा हमने गुरु को पैसा दे दिया है अब हम उसे कैसे ध्यान धारणा से आप सभी कुछ प्राप्त कर सकते छोड़ सकते हैं। वे पैसा देते रहते हैं और उससे हैं और तब आप हैरान होंगे कि हमें करने के चिपके रहते हैं। परन्तु सहजयोग में पैसे का कोई काम महत्वपूर्णतम कार्य स्वयं के प्रति सावधान रहना नहीं है, इसलिए लोग आते हैं और गायब हो है। मुझे आशा है कि आप लोग लक्ष्मी के जाल जाते हैं। ये आम बात है कि लाग कुछ समय के लिए ही सहजयोंग में आ जाते हैं। परन्तु यदि वे करती है वही हमें बदसूरत भी बना सकती है। वास्तव में विशिष्ट लोग हैं तो वे टिकते हैं और चीजों को उचित कोण से देखने लगते हैं. लक्ष्मी को अपना आदर्श बनाए रखें और यह क्योंकि अब वे साक्षात्कारी हैं, उन्नत हैं और कार्य करती है। हमारा यही लक्ष्य है, यही आदर्श परिपक्व हैं। तो इस प्रकार हमें कलियुग की इस है और यही हमने करना है। तो हम नई सरकार घोर अंधेरी रात में दिवाली के माध्यम से लौटना स्थापित कर सकते हैं । हमारा पूर्ण दृष्टिकांण पड़ा। हमें यही करना है, विनम्र होना है और ऐसा होना चाहिए कि हमें चुस्त रहना है क्योंकि देखना है कि हम ठीक हैं या नहीं, ठीक दिशा लिए बहुत महत्वपूर्ण कार्य दे दिया गया है और तास में नहीं फँस रहे हैं जो लक्ष्मी हमें अलंकृत अत: हमें चाहिए कि इस सुन्दर, सुसज्जित अब आप ध्यान धारणा-गम्य हो गए हैं। किसी चीज़ के विषय में ज्यों ही आप सोचना आरम्भ का निर्णय कर सकते हैं। चैतन्य लहरियों से करते हैं तो ध्यान में चले जाते हैं। आपका आप तुरन्त जान जाएंगे कि आप पकड़े हुए हैं सोचना समाप्त हो जाएगा। आप सोच न पाएंगे में जा रहे हैं या नहीं? केवल आप ही इस बात 26 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 5 8 6. 2000 लोग भी भटक जाएंगे यही मार्ग है जिससे हमने वास्तव में आगे बढ़ना है, सत्य को ओर बढ़ना है और अन्य लोगों के लिए सत्य को लाना है और उनकी रक्षा करनी है। केवल इसी प्रकार और ऐसी स्थिति में यदि आप ध्यानगम्य नहीं हैं तो आप भटक सकते हैं। परन्तु ध्यान धारणा में यदि आप होंगे तो खो नहीं सकते, क्यों? क्योंकि तब आप अपना जीवन सत्य के हाथों सौंप चुके होंगे। अपना हाथ आपने वास्तविकता के हाथ में आप अपना प्रेम, अपना स्नेह उनके प्रति अभिव्यक्त पकड़ा दिया होगा और वास्तविकता आपका पथ-प्रदर्शन करती है आपकी रक्षा करती कर सकते हैं। मैं सोचती हूँ कि इस विषय को संभालना आपको देखती है, आपकी सहायता करती है बहुत कठिन है, इसके विषय में बात करना इसे आत्मसात करने से कहीँं सुगम है। तो अब जब आप मुझे सुन रहे हैं तो इसके पश्चात् ध्यान बात नहीं आपको कुछ नहीं होगा। परन्तु यदि करने का प्रयत्न करें। ध्यान अवस्था में आप आत्मसात करेंगे और विवेकशीलता, चैतन्य पाना असंभव है। आपकी रक्षा असंभव है। प्रदान करना और सहजयोग द्वारा सभी कार्यों आपका परिपक्व होना असम्भव हैं। परिपक्व को करने की शक्ति जो आपके अन्दर होने के लिए आपको अत्यन्त ध्यानमय होना विद्यमान है पूर्णतः और निरन्तर गतिशील हो जाएगी। परन्तु यदि आप ध्यान धारणा नहीं जो सहजयोंगी ये पूजा कर रहे हैं और इसके करते, आपका ध्यान यदि कहीं और है तो यह कार्यान्वित न होगा, कार्यान्वित न होगा। आज खुशियाँ तथा उत्सव मनाने का दिन की स्थिति टूट न जाए। कभी नहीं। आपको है कि सर्वत्र हमारे इतनी बड़ी संख्या में सहजयोगी केवल दंखना भर है कि आप कहाँ तक जा चुके हैं। यह पूरे विश्व के लिए आशा किरण है और हम बीहड़ में खोए सभी लोगों को बचा सकते का समाधान कर लिया है। ज्यों ही इस चीज़ को हैं। नि:सन्देह। परन्तु ये उत्सव आदि मनाने के पश्चात् आसन पर बैठकर हमें देखना चाहिए कि क्या हो रहा है, और आप हैरान होंगे कि ध्यान अवस्था में जो उपलब्धियाँ आपने प्राप्त की हैं वे और आप गलत दिशा में नहीं जा सकते। चाहे आप ध्यानमग्न होंगे फिर भी चिन्ता की कोई आप कभी ध्यान गम्य नहीं होते तो आपको बचा होगा यह बहुत महत्वपूर्ण हैं। मैं कहूंगी कि आज ज बाद उत्थान की एक अन्य पूजा करेंगे उन्हें अत्यन्त सावधान रहना है कि कहीं ध्यानधारणा हैं? किस सीमा तक आपने अपनी समस्याओं आप देखते हैं आप तुरन्त पूर्ण आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति बन जाते हैं। अतः आदेश ये है कि हमें ये समझना चाहिए कि हम आत्म साक्षात्कारी व्यक्ति हैं। सब आपके सम्मुख प्रकट हो जाएगी। सभी महत्वपूर्ण क्या है? हम क्यों आत्मसाक्षात्कारी जो आपने प्राप्त किया है और सारी परेशानियाँ हैं केवल अपनी इच्छाओं के लिए नहीं। केवल और चिन्ताएं दूर हो जाएंगी। आप सब लोगों के अपनी शुद्ध इच्छाओं के लिए भी नहीं, दूसरों के लिए। सामूहिक चेतन होकर आप अन्य लोगों प्रार्थना करती हूँ कि स्वयं को समझने की ये की सहायता करने लगते हैं। आप दृढ़तापूर्वक विशेष शक्ति प्राप्त करें। मेरी आशा पूर्ण हो चुकी खड़े नहीं होंगे तो आप भटक जाएंगे और अन्य ह कुछ साथ यह घटित होना चाहिए और आप सबसे मैं है। आप सब लोगों को यहाँ बैठे देखकर 27 चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 आज में आप सब को इस विशेष शक्ति का आशीर्वाद देती हूँ कि आप लोगों को मुझे अत्यन्त हर्ष हो रहा है। इसी प्रकार जब आप अन्य लोगों की कुण्डलिनी उठाने का प्रयत्न करेंगे तो आपको भी होगा। लोगों को सहजयोग में स्थापित करें। आप आश्चर्य चकित होंगे कि आपके साथ क्या हुआ। अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार दे और उनकी नाभि की देखभाल करें। जो भी हो, यह समझना अत्यन्त आवश्यक है कि आप किसी भी सीमा तक जा सकते हैं । आत्मसाक्षात्कार देना अत्यन्त आनन्दप्रदायी है। हमें पूरे विश्व को परिवर्तित करना है, पूरे इसके लिए आपको कुछ करना नहीं पड़ता। विश्व को बचाना है। यह आपकी जिम्मेदारी आपको कोई धन नहीं खर्चना पड़ता ऐसा कुछ है। आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ है नहीं है। आपमें यह शक्ति है जो कि जागृत हो चुकी है। जहाँ भी आप जाएं लोगों की कुण्डलिनी खोजने का प्रयत्न न करें। अपने विषय में जागृत करके उन्हें आत्मसाक्षात्कार दे दें। कुछ सोचें कि आपको आत्मसाक्षात्कार मिल गया भी नहीं करना है। यह अत्यन्त आनन्ददायी है. है और ये आशा की जाती है कि आप इससे आपको बहुत प्रसन्नता होती है। अन्य लोगों को नहीं। अत: लोगों में दोष सहजयोग को फैलाएं। हार्दिक धन्यवाद| न परमात्मा आपको धन्य करें। पाम म का म त त त 28 चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 सत्य साधकों को किस प्रकार जन कार्यक्रम का सन्देश प्राप्त हुआ रामलीला मैदान, 25 मार्च 2000 ला सर्वेक्षण (Survey) म (यह विवरण श्री आर. वेंकटेशन के नेतृत्व को समाचार पत्रों में छपे विज्ञापनों से सूचना में कार्य कर रहे नितिन जिन्दल, देवेन्द्र कुमार, सौम्या वेंकटेशन, सुजाता श्रीवास्तव तथा पेंतीस से भी अधिक सहजयोगी कार्यकर्त्ताओं द्वारा प्रस्तुत है। प्राप्त हुई। परिणामों से स्पष्ट है कि दिल्ली सहज योग सामूहिकता गतिशील एवं प्रभावशाली किया गया।) जनकार्यक्रम के सूचना स्रात सूचना स्रोत समाचार पत्र विज्ञापन परिचय जिज्ञासुओं का १% इस सर्वेक्षण का उद्देश्य यह जानना था कि दिल्ली तथा आस-पास के क्षेत्रों में सत्य पट्टिका (Hoarding) साधकों को जन कार्यक्रम का सन्देश पहुँचाने का मुख्य स्रोत क्या था। साधकों का आयु वर्ग तथा शैक्षिक योग्यता के विषय में जानना भी इसका 3.6% 11.7% दीवार इश्तहार 13.6% परिवार 20.7% मित्र 45.7% दूरदर्शन विज्ञापन केबल दूरदर्शन उद्देश्य था सर्वक्षण में किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो इस बात का ध्यान रखते हुए उपस्थित साधकों के विशाल समूह में भिन्न-भिन्न लोगों से इसके विषय में पूछताछ की गई। पैतीस कार्यकर्ताओं ने लगभग नौ सौ तीस जिज्ञासुओं से 1.8% 0.6% बस बोर्ड लेख-पत्रिका/समाचार पत्र 0.8% 1% 0.5% अन्य बातचीत की| 2. दिल्ली तथा पड़ोसी राज्यों से आए साधकों की भौगोलिक स्थिति मुख्य परिणाम जन कार्यक्रम के सूचना स्रोत परिवार तथा मित्र जन कार्यक्रम के मुख्य सूचना स्रोत थे। लगभग दो तिहाई साधकों को कार्यक्रम का सन्देश मित्रों तथा परिवार के सदस्यों दिल्ली महानगर में सहजयोग चहुँ ओर फैला हुआ ह पूर्वी दिल्ली की सामूहिकता अधिक गतिशील रही परन्तु मध्य दिल्ली की सामूहिकता इस कार्य में बहुत पीछे रही। रामलीला मैदान आए साधकों का लगभग पैतालीस % पड़ोसी नगरों से है। जनकार्यक्रम का सन्देश फैलाने में 1. से प्राप्त हुआ एक चौथाई को विज्ञापन बोर्डों तथा दीवारों पर लगे पोस्टरों से सूचना मिली। कार्यक्रम में भाग लेने वाले लोगों के केवल 4% आया। कार्यक्रम की देने के लिए सभाओं सूचना 29 चेतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 का आयोजन तथा निशुल्क बस सेवा आदि प्रदान करके गाजियावाद की सामूहिकता सबसे अधिक गतिशील रही. मंरठ और नोएडा इस दिशा में उनसे पीछे रहे और फरीदाबाद और भारत की सांस्कृतिक संपन्नता की ओर संकेत करता है। तालिका 3 साधकों का शैक्षिक स्तर साधकों साधकों का शैक्षिक स्तर गुडगांव फिसड्डी थे। तालिका-2 ट] दि का % हाई स्कूल स्तर की शैक्षिक योग्यता हाई स्कूल स्तर से नीचे परन्तु पढ़े लिखे क्षेत्रानुसार जिज्ञासुओं का वर्गीकरण क्षेत्र दक्षिणी दिल्ली 57% साधकों का % 34% 13 उत्तरी दिल्ली 9% अनपढ़ 13 4. जिज्ञासुओं की आयु के अनुसार वर्गीकरण यह सत्य कि उपस्थित जिज्ञासुओं में से दो तिहाई लोग बीस से चालीस वर्ष की आयु के थे, प्रमाणित करता है कि भारत योंग-भूमि है। सर्वेक्षण उस कहावत को असत्य साबित करता पश्चिमी दिल्ली 15 पूर्वी दिल्ली 19 मध्य दिल्ली गाजियाबाद 7. 20 नोएडा गुडगांव फरीदाबाद 7. है कि सत्य साधना केवल वृद्ध लोगों का ही कार्य है। तालिका-4 मेरठ 3 जिज्ञासुओं का % 3. साधकों का शैक्षिक स्तर सहजयोग में दिलचस्पी शैक्षिक स्तर से ऊपर की चीज है। उपस्थित जिज्ञासुओं में से आयु समूह 15 से 20 साल 21 से 30 साल 32% लगभग 43% की शैक्षिक योग्यता दसवीं कक्षा 31 से 40 साल 28% तक की न थी। इतना बड़ा प्रतिशत योगभूमि 41 से 50 साल 22% 50 से अधिक आयु वाले 12% |र 30 चैतन्य लहरी खंड :XII अंक : 5 & 6, 2000 जन कार्यक्रम रामलीला मैदान 25 मार्च 2000 (विवरण) 'दिल्ली की सभी सड़कें रामलीला मैदान जो कि वहाँ उपस्थित थी ने उन्हें गुलदस्ता भेंट पहुँच रही थीं"। 25 मार्च 2000. दिल्ली के किया। मंत्रमुग्ध अवस्था में जिज्ञासुओं ने श्री रामलीला मैदान में जन कार्यक्रम दिवस को ये माताजी को सुना। श्री माताजी ने बताया कि कहना अतिश्योक्ति न होती। पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और मध्य दिल्ली के भिन्न भागों के इसके लिए न तो तपस्या की जरूरत है न अतिरिक्त पड़ोसी राज्यों के नगरों-मेरठ, गुडगांव फरीदाबाद, गाजियाबाद से आई हुई अनुबंधित इच्छा उसकी एकमात्र शर्त है। अत्यन्त खेदपूर्वक बसों की कतार रामलीला मैदान की ओर बढ़ रही थी। चालीस से साठ हजार के बीच मानव समुद्र, कार्यक्रम आरम्भ होने के नियत समय से कि सहजयोग तुरन्त साधक के अन्तस को छू पूर्व मैदान पर पहुँच चुका था। सैंकड़ों विज्ञापन लेता है। इस कथन को सिद्ध करने के लिए बोर्डों, हजारों खम्भों पर लगे इश्तहारों और दीवारों उन्होंने रूस के तलियाती क्षेत्र के माफिया प्रमुख है। आत्मज्ञान का मार्ग प्राप्त कर लेना सुगम , त्याग की। आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति की शुद्ध श्री माताजी ने कहा कि किस प्रकार कुगुरु सत्यसाधकों को भटका रहे हैं। उन्होंने बताया लगे असंख्य पोस्टरों ने जनता को कार्यक्रम का उदाहरण देते हुए बताया कि आत्मसाक्षात्कार पर प्राप्त करने के पश्चात् उसने दिल्ली प्याज भेजने की आज्ञा मांगी क्योंकि उन दिनों दिल्ली में प्याज बहुत महंगे थे। अर्थशास्त्र की स्वीकृत ध रिणा है कि उद्यमी सदैव समाज में विद्यमान होते का सन्देश दिया था। इसका अन्दाजा अपनी कारें खड़ी करने के प्रयत्न में लगी कारों की कतार से लगाया जा सकता था। लगभग पचास १% साधक मेरठ, नोएडा, गाजियाबाद, गुडगांव. फरीदाबाद, हरिद्वार आदि नगरों से आए थे और हैं। निजी उद्यमों का लक्ष्य शुद्ध लाभ होता है। बाकी के दिल्ली महानगर के क्षेत्रों से (विस्तृत विवरण के लिए सर्वेक्षण विवरण देखें)। सभी को आध्यात्मिक लाभ प्राप्त हो जाता है. स्थितियाँ जातियों तथा समूहों के सत्य साधक श्री माताजी चाहे जो भी रही हों। व्यक्ति का अन्तर्परिवर्तन हो के दर्शन के लिए वहाँ एकत्र हुए और सभी जाता है। आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करने के लिए अत्यन्त आतुर थे। श्री माताजी जब स्थल पर पहुँची तो ने अपने दोनों हाथ परम पूज्य माताजी श्री निर्मला साधकों का विशाल जन समूह उनके स्वागत के देवी की ओर फैला कर पहली बार अद्वितीय सत्य लिए खड़ा हो गया। दिल्ली राज्य की मुख्यमन्त्री (चैतन्य-लहरियाँ) का अनुभव किया। आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति द्वारा भी नि:सन्देह व्यक्ति और तब वह महान क्षण आ पहुँचा! जिज्ञासुओं 31 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 5 & 6, 2000 श्री गणेश पूजन पुण्यनगरी 1987 निराकार में जो ब्रह्म है, वह ही साकार में के चैतन्य को जानना चाहते हैं तब आप जो साक्षात् श्रीगणेश हैं। अभी तक उसकी गहनता पर बहुत कम विचार किया गया और उसके सकते हैं कि इस वस्तु में क्या दोष है, क्या गुण विषय में जो कुछ भी बताया गया वह सबने है या यह वस्तु स्वयंभू है या नहीं, इसका पूर्ण मान्य कर लिया, किन्तु उसका विवरण, विश्लेषण ही नहीं पाया था। उसकी वजह यह है कि उस उसकी ओर हाथ बढ़ाते हैं, तत्क्षण आप जान ज्ञान आपको हो सकता है, अगर आपकी वह स्थिति हो जाये इस ज्ञान को देने वाले इस सूझ -बुझ को देने वाले श्रीगणेश हैं। क्योंकि वह वक्त आपके जैसे सहजयोगी नहीं थे, जो चैतन्य से प्लावित है, जो चैतन्य को जानते हैं और ही चैतन्य बनके हमारे अंदर से बहते हैं और जिनकी सूझ-बूझ सर्व-सामान्य जनता से बहुत ऊँची है। सूझ और बूझ का मतलब कभी-कभी तो उनको जो कुछ भी जानना है वह हम भी लोग यह सोचते हैं कि जो तर्क और बुद्धि से जब वह चैतन्य बनकर हमारे अन्दर से बहते हैं जान सकते हैं। वह हमारे ही नसनसों में जाना जा समझा जाता है या जो संस्कारों से अपने अन्दर अंकित होता है. वह ही सब कुछ सूझ-बूझ होती चैतन्य द्वारा ज्ञात होने वाली जो कुछ भी बातें हैं है, ऐसी बात नहीं है। सूझ-बूझ जो आत्मा की प्रेरणा से, आत्मा के ज्ञान से मनुष्य में एक अद्वितीय ऐसा नया आयाम बना देती है, उसी नहीं, उसमें कोई बड़ी समझदारी रख करके को सूझ-बूझ कहते हैं। वह सूझ-बूझ देने वाला, लोग कहते हैं, श्रीगणेश हैं। सो कैसे? यह सकता है। हम भी पहचान सकते हैं कि यह वह बिल्कुल सही हैं. (Absolute) हैं । उनमें द्वेत नहीं है, उनमें कोई संशोधन करने वाली बात आपस में उसमें बार्तालाप करके किसी समझौत पर पहुँचने की बात नहीं है. जो है सो यही है और इसके अलावा नहीं है। सूझ-बूझ हमें श्रीगणेश किस तरह देते हैं? यह सहजयोगी बहुत आसानी से समझ सकते हैं, क्योंकि जिस वक्त आप "पार" हो जाते हैं, हैं, तब ही हमारे अन्दर से यह शक्ति बहना शुरू आपके अन्दर से चैतन्य की लहरियाँ बहने लग जब यह गणेश हमारे अन्दर जागृत होते हो जाती है । अब आप कहेंगे कि "माँ कुंडलिनी ता जाती हैं, तब आप केवल एक मात्र सत्य को ही जानते हैं। अँब्सल्यूट (Absolute) को जानते हैं। उसकी माँ है और गणेश नीचे बैठे हुए हैं तो यह यह श्रीगणेश की माया है। श्रीगणेश ही चैतन्यमय किस प्रकार घटित होता है?" सात चक्रों में से हो करके आपके अंदर से बहते हैं और वही श्रीगणेश चैतन्य बहाकर अपना अस्तित्व दिखाते साकार हो करके इस चैतन्य को बहाते हैं। जिस हैं कि हम हैं। अब हर जगह जहाँ-जहाँ गणेश वक्त आप किसी भी वस्तु, प्राणीमात्र या मनुष्य हैं-जैसे आपने यहाँ सुना होगा कि तरह-तरह के का 32 चैद्रन्य लहरी खंड :XII अंक : 5 & 6. 2000 गणेश हैं। किसी का नाम है उंब-या गणपति, काम किये हैं उसके लिए कुण्डलिनी जागृत करना ठीक नहीं। तो कुण्डलिनी माँ वहीं बैठी अनुसार, उसके कमों के अनुसार, कार्य के रहती है और अगर किसी तरह से बिचारी को बड़ा प्रेम चढ़ ही आया और वह चढ़ गयी, ऊपर तक आ भी गयीं तो भी फिर उसे घसीट स्थान के उस चक्र के अनुसार कार्यान्वित होते के नीचे, फिर कुण्डलिनी धड़ाक से नीचे गिर हैं। जैसे की समझे लीजिए, नाभि चक्र में जाती हैं। तो श्रीगणेश का कार्य अत्यन्त अचूक और अत्यन्त महत्वपूर्ण है और क्योंकि वह एक किसी का नाम कुछ और गणपति है काम के अनुसार उसके गणपति हैं। उसी प्रकार हरेक चक्रों में जो श्रीगणेश बैठे हुए हैं वह गणेश उस श्रीगणेश का क्या स्थान है? तो नाभि चक्र में श्रीगणेश शेष के मुँह से बहते हैं "शेष-नाग " मात्र सत्य को ही जानते हैं वह असत्य पर चलने जो की हमारे श्री विष्णु की शय्या हैं। उसके नहीं देते। इसीलिए उसके हाथ में एक फर्स भी है। अन्दर से बह उसकी फुत्कार के साथ बहते हैं और इस वक्त उसकी फुत्कार शुरु हो जाती है चैतन्य की तो आप देखते है कि आपके पेट के अब जो लोग गणेश तत्व को पहचानना चाहते हैं, और मन से उतारना चाहते हैं. और हिस्से में एक तरह का स्पंदन सा मालूम होने गणेश तत्व में समा जाते हैं, सिर्फ गणेश की ही लग जाता है और यह जो स्पंदन आपको मालूम भूमिका इस मूलाधार चक्र पर है उसी में जम जाते हैं। माने ऐसे लोग अपने को बड़े सन्यासी. इस परावाणी के आगे चल के दूसरी वाणियों के ब्रह्मचारी आदि-आदि बना करके रहते हैं। उनके अन्दर भी एक ऐसी असंतुलन वाली दशा आ जाती है कि जहाँ गणेश एक तरह स सो जाते हैं। "एकांगी" गणेश को आप जानते हैं कि इसके सात स्वरूप हैं और वह सात स्वरूप में न उतरने हो जाता हैं, इसी को लोग 'परावाणी' कहते हैं नाम हैं। लेकिन परावाणी जो है स्पंदन वही श्रीगणेशजी की कृपा है। सो हम सहजयोगियों के लिए गणेशजी बहुत ही महत्वपूर्ण आराध्य हैं। गणेशजी के कहे बगैर उनकी इजाजत के बगैर कुण्डलिनी उठने वाली नहीं है। इस मामले में के कारण एक ही स्वरूप में बैठ जाते हैं । एक कुण्डलिनी अपने बेटे की बात सुनती है। ऐसे तो ही गणपति अगर पूना में रहें तो यहाँ तो कुछ माँ की बात बेटा हर मामले में सुनता है और आप जानते हैं कि श्रीगणेश तो पूरी तरह से को मजा ही नहीं आयेगा, तो उनके तो सात अपनी माँ को समर्पित हैं। वह तो अपने पिता को भी नहीं जानते. लेकिन यह जो कुण्डलिनी है-यह श्रीगणेशजी की बात सुनती है। जिस वक्त में उसका उत्थान हो, क्योंकि मनुष्य के बारे में जो ज्ञान है वह श्रीगणेश को है। श्रीगणेश जाएंगे। अब जो लोग वहुत ज्यादा गणपति की ही उनको बताते हैं कि वह मनुष्य जागरण के सेवा करते रहे हैं और गणपति को ही मानते रहे योग्य नहीं है। जिनमें वह भोलापन, सादगी नहीं हैं और ब्रह्मचर्य में लीन हैं और विवाह भी नहीं है, उसमें वह प्रेम नहीं है, तथा जिसने बहुत दुष्ट किया और किसी स्त्री की ओर देखा भी नहीं आल्हाद और उल्लास ही नहीं आयेगा। लोगों ा प्रकार हैं उन्हीं सात गणपतियों को आपको जानना चाहिए और जब तक वह आपके अन्दर जागृत नहीं होंगे तो आप एक अजीब तरह की अपने लिए और दूसरों के लिए समस्या बन कता 33 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 & 6, 2000 आदि-आदि प्रकार के हैं-वह सीधे आपके पिंगला तो रियलाईज्ड (realised) सोल ही और उनके सब कपड़े नीले रंग के होते हैं। एकदम शुद्ध गणेश जी एक तरह से छूट जाते हैं। कार्तिकय ऐसा नीला रंग बह पहनते हैं, और उनके साथ में का रूप आ जाता है। पिंगला नाड़ी पर चलने से सफेद रंग। उसकी बाकी चीजें-हाथ. पैर सफेद ऐसे लोग बड़े क्रोधी हो जाते हैं। श्रीगणेश सौम्य रंग के। उसमें बहुत ही खूबी की बात यह है कि सौम्यता ही वह हमेशा सत्कमों में लगे रहते हैं. और शांत उनका मूल धर्म है। कोई चीज ज्यादा भड़क चित्त हैं। अगर श्रीगणेश के गण शांत चित्त नहीं जाती हैं तो उसको ठंडा करने के लिए श्रीगणेश हो तो संसार सारा ही विध्वंस हो जाए। जितनी दा नाड़ी पर चढ़ते हैं। पिंगला नाड़ी पर चढ़ने से स्वरूप हैं। अत्यन्त सोम्य हैं। उनमें का उपयोग करते हैं। उनका टेम्परेचर (templ.) भी अपने यहाँ आजकल विध्वसक शक्तियाँ चल रही हैं उनको रोकने वाले जो हैं वह श्रीगणेश के गण हैं कहीं भी आप देख लीजिए जहाँ युद्ध होता है, उसको खत्म करने का काम जो है वह श्रीगणेश के गण जाकर करते हैं। अब मैं आपसे बात कह रही हूँ, इसका हो तो श्रीगणेश दिखा दीजिए, वह ठंड़ा हो मतलब यह नहीं है कि आप पूरी तरह उसको मान ही लीजिए। लेकिन है बात यही। -2.72" है। कोई चीज ज्यादा गर्म हो जाए वहाँ श्रीगणेश रख लीजिए वह चीज ठंडी हो जाएगी। किसी आदमी की तबियत ज्यादा बिगड़ जाए तो उसे श्रीगणेश के हवाले कर दीजिए तो उसका बुखार उतर जाएगा। कोई अगर बडा क्रोध कर रहा जाएगा. लेकिन राईट साईड से वह चढ़ने लग जाते हैं तो यही नाभि-चक्र में जो शेषनाग हैं अब आप अगर गण स्वरूप है, तो आप में शान्त उनकी फुफकार गर्म हो जाती है और ऐसे लोग गर्म हो जाते हैं और गर्मी के कारण उनके अन्दर जो भी गर्मी की तकलीफ तो होती हैं. पर सबसे चित्त होना बहुत जरूरी है। आप में क्रोध है तो आप गणेश के विरोध में जा रहे हैं सिर्फ गणेश को अधिकार है कि अपना पर्स चलाए, क्योंकि वे स्वयं ज्ञान की मूर्ति हैं और स्वयं इस सूझ-बूझ की सोत हैं, लेकिन मानव को अधिकार नहीं कि वह अपने क्रोध के बल जाए। क्रोंध के लिए हमेशा आदमी जब क्रोध करता है. तो वह अपने ज्यादा यह चीज है कि उनमें बडा क्रोध आता है लेकिन श्रीगणेश के जितने गण हैं वह अत्यन्त ठंडे लोग हैं और वह ठंडे दिमाग से ही काम करते हैं। अमेरिका में पता नहीं कि उसे अपनी ऐसी किसी धारणा से, या किसी कारण हो लिए ही बुरा होता है क्योंकि नुकसान उसको ही होता है। बाद में वह पश्चाताप भी कर सकता सकता है कि मनन से या परमात्मा को कृपा से एक वहाँ चीज बनाई है, जिसे स्मार्क कहते हैं। छोटे-छोटे गण जैसे बनाए हुए हैं, बिल्कुल वह और उनकी सब हरकतें, तरीके. उनका है, अगर उसमें इतना संवेदनशील मानव हो तो। पर न हो संवेदनशील तो बह यह कहता है कि में इसलिए नाराज हुआ, जैसे श्रीगणेश कहते हे कि मैने इस लिए युद्ध किया कि लोग माँ के खिलाफ बोल रहे थे, ये हुआ वो हुआ और मैं गण सब कुछ व्यवहार गणों जैसा है और अब यह जिसने भी सोचकर बनाया हो, या जिसके भी माँ की सेवा में हूँ। माँ को में रक्षण करता हूँ, मैं दिमाग में बात आ गयी होगी, हो सकता है वह माँ को प्रेम करता हूँ। सबसे बड़ा रक्षण माँ का 34 चैंतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 he है, "आपसी प्रेम"। जो गणों ने किया वह करना नहीं खोजते हैं कि हम सब गण है और एक ही चाहिए। गणों में इतना आपसी प्रेम है, इतनी कार्य के लिए उद्धत हैं, और इसका कोई मतलब ही नहीं बनता है कि हम आपस में लड़ रहे है । साल का बच्चा होता है, तब अपने इस सेंटर वैसे गण होने से अच्छा कोई गण ही न हो । लेकिन गण आने से अगर लड़ाई हो जाये तो बहां के अॅन्टीबॉडीज, जो हृदय-चक्र के चारों ऐसे गण का क्या फायदा? और उस पर क्यों उनमें आपस में पहचान है कि जिस वक्त बारह हार्ट का जो चक्र है अनहत, बारह साल तक तरफ फिरती रहती है और अगर बाहरी शक्तियाँ वार करती हैं और यह जितने भी अॅन्टीबॉडीज हैं वह चारों तरफ अपने शरीर में फैलती है, और है। वह कि हमने इसलिये किया, उसलिये किया. इस सब हैं उसका कार्य जो चारों तरफ शरीर में फैल करके अगर कोई भी है वह बड़ा क्षण-विक्षण हो जाता है। अब इसके अनेक तरीके होते हैं कि बम्बई वाले ऐसे है तो पर कोई भी बौछार आ रहा हो. या कोई भी दिल्ली वाले वैसे हैं, तो फलाने ऐंसे हैं, तो परकीय सत्ता आप पर बू बढ़ा रही है. जो कि ढिकाने ऐसे हैं। मैं सुन-सुन करके, मुझे बड़ा परमात्मा से अछूती है उसका वह सामना करती आश्चर्य होता है कि जब सबकी माँग एक ही है तो कौन दिल्ली वाले और कौन बम्बई वाले? परकीय सत्ता को जानने की शक्ति ही उन गणों और इस तरह की जब तक "एकता" आपके उसका भी बोद्धिक उत्तर मिल जाता चीज को, जो भी सहजयोगी आपके शरीर को आघात हो, या आपके शरीर है, उससे झगड़ती है और शांत चित्त है। उस में रहती है, नहीं तो आप आपस में लड़ बैठे तो अन्दर नहीं आयेगी तब तक हम लोग सहजयोगी नहीं हैं। यह एकता आने के लिए पहले अन्दर बैठे तो ऐसा गणों का समुच्चय जिस बॉडी में देखना है क्या हमारे अन्दर किसी के प्रति उसका क्या अर्थ है? अगर गण आपस में लड़ बा होगा उसका क्या हाल होगा? जो गण सब एक जेलसी (jealousy) है? आप दूसरों का मजाक उड़ाना नहीं जानते हैं? जो अपने अन्दर यह बना आपस में लड़ाई करने लग जायें तो इससे ऐसी लिया है, यह विचार या यह अहंकार या जोा इस तरह की चीजें जो कि आपके लिये शोभनीय लीजिए हम लड़ रहे हैं अंग्रेजों के साथ और नहीं हैं, उनके सहारे आप दूसरों पर बिगड़ पड़ते आपस में अंग्रेजों को छोड़ के आपस में हैं जो कि आपके अपने हैं, जो आपही के हाथ मारना-पीटना शुरू कर दें तो अंग्रेज कहेंगे अच्छा हैं। यही हाथ इससे लड़ें तो उसे क्या कहा जाता। ही कार्य के लिये नियुक्त हुए हैं, वह अगर तो कोई लड़ाई हो नहीं सकती। अगर समझ हुआ, मरो। उन्होंने यही किया कि आपस में सूझ-बूझ का मतलब है प्रेम। और यह लड़ो मरो बही हम आज भी कर रहे हैं। अपने प्रेम हमारे अन्दर जागृत करने वाले हैं श्रीगणेश। देश में पूरे समय यही चलता है कि इसको श्रीगणेश प्रेमस्वरूप हैं। उन्होंने हमें प्रेम करना पीटो, उसको पीटो उनको मारो इनको मारो-यह सिखाया। अब छोटी-छोटी बातों के लिये हम सब चीज आती कहाँ से है? आती है उसी क्रोध अपने वारे में बहुत सोचते हैं कि हमें यह चीज से, और यह क्रोध आता है आपसी घर्षण से. अच्छी लगी. उसे वह चीज अच्छी लगी। फिर आपसी घर्षण जब होता है तब आता है। यह आप सहजयोगी नहीं है। अगर आपको हर आदमी 35 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 প जागृत कर लिया होगा और आप गण स्थिति में हैं तो जान लेना चाहिए कि आप सब एक सूत्र में बंधे हुए हैं। जिस वक्त में यह ॅन्टीबॉडिज लड़ती है. शरीर में आने वाली किसी भी पेशियों के साथ लड़ती है। किसी भी परकीय सत्ता से को अलग-अलग चीज अच्छी लगती है तो आप सहजयोगी कैसे? सारे सहजयोगियों को एक ही चौज अच्छी लगती है, और अगर सारे सहजयोगियों को नहीं साहब, मुझे तो यही रंग अच्छा लगा. किसी ने कहा वह रंग अच्छा लगा, किसी ने कहा वह रंग अच्छा लगा, किसी ने कहा वह रंग लड़ती है। समझ लीजिए कि जो आज यह हाथ अच्छा लगा, तो फिर वह सहजयोगी नहीं है, पर रंगों पर वैचित्र्य होना जरूरी है क्योंकि उससे फौरन दूसरी जगह से दौड़ के आ जायेंगे पर सौन्दर्य बनता है। यह तो ठीक हैं कि सौन्दर्य होना चाहिए. लेकिन वह सौन्दर्य जो भी है वह पूरी तरह से एकाग्र होना चाहिए। इन्टिग्रेटेड होना सहजयोग (पूरी तरह से) स्थापित नहीं हुआ है। चाहिए। जिसमें डिसइंटिग्रेशन गर है उसमें एकाग्रता नहीं है, तो उसने समझना चाहिए आप सहजयोगी नहीं हैं। में एण्टीबॉडिज़ है वह अगर कम पड़ गयी तो ऐसा नहीं होता सहजयोगियों में इसीलिए सहजयोग अभी तक एक सूत्र नहीं है। इसलिये अभी तक आज देखते हैं कि श्रीगणेशजी की स्थापना से. ाि इस घट की स्थापना होती है कि नहीं। उसको होना है। अनेक पूजाएं करी हैं। सब कुछ हुआ पर अब भी जो सहजयोग सही माने एकसूत्र एक मकान बनाया है। "शुडिकैम्प" जहाँ सफाई होना है हो नहीं पाया। जब तक वह पूरी तरह से नहीं बनेगा तब तक आप लोग इस गलतफहमी अब जो लंदन में इन लोगों ने हमारे लिये हुई। बहुत बड़ा मकान है, उसको ठीक-ठाक किया. सब सहजयोगियों ने। कोई बाहर से आदमी में न रहें कि आप सहजयोगी हैं । नहीं, क्योंकि वह हमारा कोई प्राईवेट घर नहीं अब जैसे कि हमने कहा कि यह लीडर आपका है, तो सब अपने-अपने लगाते हैं कि हम लीडर हैं, हम लीडर हैं। हमें माता जी ने कहा कि लीडर हो जाओ| अरे भाई, मैंने तो एक सा आ गया है बड़ा भाईचारा, सब समझ गये को कहा, सबके सामने कह दिया कि यह आदमी लीडर है। और उसके कहने के मुतांबिक आपको चलना ही पड़ेगा. नहीं तो एकसूत्रता नहीं इतना प्यार उनके अन्दर आ गया। आपस में आने वाली। अगर आप उसके कहने के मुताबिक नहीं चलेंगे तो कभी भी एकसूत्रता नहीं आयेगी। "एकसूत्रता" कहते हैं। (Collectivity) उनके अंदर फिर क्रोध आयेगा, झगड़ा होगा, आप सहजयोग जागृत हो गयी और पहले वह सब लड़ते रहते से ढल जायेंगे ऐसे बहुत से लोग हैं जो सहजयोग थे आपस में। मैं तंग आ गयी थी और यहाँ से निकाले गये। क्योंकि उनको क्रोध आने लगा, था। मैंन कहा, ठीक है, जिसे बनाना है बनाओ, हमारे नाम से बनायेंगे-क्या आश्चर्य की बात यह है कि उसमें करने से सबमें आपस में बड़ा प्रेम कहाँ क्या करना है, क्योंकि इसमें यह था कि हमेशा मिल करके काम करना, इतनी एकता, इतनी पहचान आ गयी और जिसको हम आपस में झगड़े होने लगे, मारामारी होने लगी। चलों छोड़ो हटा लो इसे। तब जब एक आदमी को लीडर बना दिया है तब आपके जितने भी उल्टी हालत, यहाँ अगर एक काम किसी को बता दें तब उसमें सत्रह फाटे फूटेंगे। श्रीगणेशजी को अगर आपने अपने अन्दर 36 चैंतन्य लहरी खंड :XII अंक : 5 & 6, 2000 सेन्टर बनाएं वही लीडर है, उसी को मानना चाहिए वह जो कहेगा बह मानना हीं पड़ेगा। इस क्रोध की वजह से आदमी दिमागी दुखाने का, उसको हृदय में कोई कठिनाई की डाला। जैसे कोई यह इन्सान को वह खुद ही बनाते हैं किसी को अधिकार नहीं है किसी को सिवाय परमात्मा के। वात कहने का जमा-खर्च कर देता है। वह यह है कि उसको इस क्रोध के बारे में श्रीकृष्ण ने बहुत ही सब चक्र मालूम है, उसको कुण्डलिती मालूम है, वह किताबें लिख सकता है, बोल सकता है, ज्यादा कहा है कि क्रोध को छोड़ो, क्रोध को भाषण दे सकता है. लेकिन हृदय में सहजयोग छोड़ो। आप उनके लिये जान दे दीजिए, प्यार नहीं आया। वही एक सर्वसाधारण आदमी होता नहीं आएगा। कितना भी प्यार कर लीजिए, प्यार है, हृदय से उसने सहजयोग जान लिया बस, मेरे नहीं आयेगा। क्रोध चढ़ जाता है। हो सकता है काम का तो यही आदमी है, बेकार बाकी के उनमें क्रोध माँ-बाप से आया हो, हो सकता सब जाओ। यह तो शब्द जाल का कितने बार वह समाज से आया हो, हो सकता है खाने-पीने वर्णन आदि शंकराचार्य ने किया है कि अरे भाई से आया हो, चाहे जिससे भी आया हो, क्रोध शब्द जाल में मत फंसो, और हीन लो लेव्हल पे लोग उतर आते हैं बुद्धि के कारण। आप देख दुश्मन। इस क्रोध को आपको छोड़ना पड़ेंगा, रहे हैं हिटलर, उसने बुद्धि लड़ाई। बुद्धि के बूते अगर आज श्रीगणेशजी की पूजा करनी है पहले पर यह चीज ठीक समझता हूँ। में इसे करूंगा ही। ऐसी जिसने जिद पकड़ ली वह पता नहीं दूँगा। क्रोध करना, किसी से बैर करना, किसी किस लेवल (level) पर हो। आपका दुश्मन है और सहजयोग का महान बड़ा निश्चय हो कि मैं क्रोध को किसी तरह 'छोड़ के साथ इस तरह दुष्ट शब्द व्यवहार करना बहुत से लोग क्रोधी थे (सहजयोग में) वह भी एकदम ठंडे होकर के बढ़िया हो गये| आज सबसे बड़ी जरूरत अपने देश को, सारे विश्व को है ऐसे लोगों की जो ठंडे दिमाग के हों। चिढ़ने वाले, बिगड़ने वाले, गुस्सा करने वाले ऐसे लोगों को चाहिए कि समुद्र में जाके बैठे रहें सहजयोगियों को बिल्कुल ही उचित नहीं है। श्रीगणेशजी ने भी इसी तरह कार्य किया। उन्होनें जो अपने सेनापति बनाए हैं, उस सेनापति को कोई नहीं कहेगा कि "तुम क्यों सेनापति बने हो।" यह जो अपनी सेना है, यह प्यार की, प्रेम की और शांति की सेना है। शांति से हमें रहना और आपके खुद की सफाई करके फिर आयें शांत चित्त की जरूरत आज अपने संसार है। एक बंधन में आप लोग लोगों को जीत सकते हैं। एक प्रार्थना से आप लोगों को ठिकाने लगा सकते हैं। तो क्रोध की क्या जरूरत है? में है। जिसको देखो बह बंदूक लेके मार रहा है । अमेरिका में अब मैं गयी थी, रास्ते में बता रहे थे कि पिछले हफ्ते में यहाँ पर ग्यारह आदमियों इसका मतलब आपका सहजयोग पर विश्वास ही नहीं, अभी भी अपने पुराने तरीके लेकर यह? कहने लगे कि जो देखो वह बंदूक उठा के चलते हैं । और क्रोधी आदमी जो होता हैं उसे मार देता है, उनके पास बंदूकें हैं । मैंने कहा, भड़कने की इतनी आदत रहती है कि उससे क्यों मारा? "बस रास्ता नहीं दिया गाड़ी ने मार दुनिया डरती है. नैच्युरली आपने कहीं देखा है की मृत्यु हो गयी। मैंने कहा कि केसे हो गया 37 चैतन्य लहरी खड : XII अक : 5 & 6. 2000 है. "यह बड़ा उदाहरण लीजिए कि वह एक चूहे पर वैठे हुए क्रोधी था, इसीलिए इसका स्टैचु बनाया गया हैं अब चूहे महाराज तो हर दफा इधर से उधर भागते रहते हैं। एक पाँव पर इतना बड़ा शरीर अपना उन्होंने कैसे तोल लिया है, और खुद की एक सर्वसाधारण सवारी कर ली। लोग ता पता नहीं क्या-क्या दिखाने के लिये हाथी, घोडे कि किसी का स्टैच बना दिया है।" क्रोध से मनुष्य का सारा सौष्ठव, उसकी जितनी भी महानता, उसका बड्ष्पन सब डूब जाता है। क्या-क्या रखते हैं। (श्रीगणेशजी के) नम्रता की हद है। क्या अपने अलंकार हैं शांति अपने अलंकार हैं नम्रता। नम्रता हो, कोई भी काम में जो आदमी नम्र होता है वही कामयाब होता है, और यह जो चाहिए गणेश को? बस, एक चूहा दे दिया बस अभी तक आपने इतनी आततायी प्रवृत्ति जो देखी है Aggressive कि दूसरों पर आप हावी हो जाओ, सरों पर चढ़ जाओ-ये करिये इससे कितना शुद्ध हृदय, कितना प्रेम से प्लावित है मनुष्य कभी भी आपसे श्रद्धापूर्वक नहीं हो सकता। आज अगर डरपोक लोग आपके नीचे कि सबसे बड़ी चीज, बात है कि अपनी माँ को काफी है। चूहे के साथ ही मैं मेरी माँ के प्रति प्रदक्षणा कर लूँगा और दुनिया को जीत लँगा । यह। अपनी प्रेम की शक्ति से उन्होंने यह जाना आ जाएंगे, एक ग्रुप बन जाएगा यह सहजयोगियों का। बाकी वह भी थोड़े दिन में "भागों रे पूजा में ऐसी चीज है कि बिल्कुल ही जिनके भैय्या" करके भाग जाएंगे। कौन मुफ्त मार खाने को आयेगा? तो किसी से भी दुष्ट व्यवहार प्रदक्षणा करना चाहिए। और दूसरी चीज उनको दाम कम। जिसे हम केवड़ा कहते हैं वह फूल सबसे सस्ता होता है, और दूसरा तृण यहाँ पर उसे "दुर्बा" कहते हैं दुर्वा कहीं भी उगता है. करना बहुत गलत है। दूसरी बात सहजयोग में हमें समझनी गरीब से गरीब आदमी को भी दुर्बा मिल जाएगा चाहिए कि "रिश्तेदारी"। जैसी अपनी बहुएँ हैं और रईस से रईस आदमी को भी दुर्वा मिल अपनी लड़कियाँ हैं, अपनी माँ है. आप सबके प्रति नम्रता रखनी चाहिए। नम्रता मनुष्य का दुर्वा को ढूंढना पड़ेगा और रियासत जो है सबसे बड़ा सुन्दर सौजन्यशील ऐसा अलंकार है। इसी से शोभित होना है। जो मनुष्य नम्रतापूर्वक उन्हें मोदक दे दीजिए, बस और कुछ नहीं। यह होता है, उसे लोग कहते हैं कि वह राजा है, है, एक राजाशाही उनका और नहीं तो भिखारियों जैसी गालियाँ देने वाला, जाएगा। रईस को जमीन पर आना पड़ेगा और तबियत की। श्रीगणेशजी खाते भी क्या हैं? सिर्फ रियासत है, बड़ष्पन मामला है। एक चूहे पर चल दिए तो भी सारी हमेशा चिल्लाने वाला, पिटने वाला उस आदमी दुनिया उनकी वन्दना करती है। को कौन मानेगा? और बहुत से लोगों के मन में प्रेम भी होता है, लेकिन वह भी बात करने में श्रीगणेश छोटे बच्चे जैसे सबको खुब प्यार करते हैं। अब आपको भी रोज सोचना चाहिए कि अगर हम गण हैं तो हमने कितनों को खुश किया? यह जो आपके अन्दर आल्हाद और यह जो आपके अन्दर आनन्द आता है वह उस प्रेम को कभी भी व्यक्त नहीं कर पाते। नम्रता होनी चाहिए, प्रेम होना चाहिए और उसका व्यवहार होना चाहिए। श्रीगणेशजी का ही 38 चैतन्य लहरी । खंड XII अंक : 5 & 6, 2000 तो पता ही नहीं वह सहजयोगी है।"...उसका गर्व नहीं है, जो श्रीगणेशजी में वह गर्व है। वह गर्व है उसके अन्दर इसीलिए वह सोचते हैं कि माँ सब गणों के ही वजह से आता है क्योंकि गण ही तो आपके VIbrations हाथ से बह रहे हैं। आकाश से आप पा रहे हैं, लेकिन आपके हाथों से बह रहे हैं। जहाँ भी जाते हैं आपके व्हायब्रेशन्स खिलते हैं और जो सब चीजों को शुद्ध करते हैं । का पुत्र हूँ। वह गर्व हमारे अन्दर नहीं आया। हम अपने सगे भाई से भी नहीं बताएंगे कि सहजयोग क्या है। मेरी बात तो बाद में बताना, पर "सहजयोग है भाई, आओ सहजयोग में कहाँ जा रहे हैं?" जो आया उसे पहले सहजयोगी बनाओ। शुद्ध करने का मतलब ही है कि आपने बहां श्रीगणेशजी को शुद्ध कर दिया। शुद्धि से सहजयोग जानना कोई काम का नहीं, हृदय से जानना इधर-उधर के बेकार के लोग जो हैं; वह अपने को "हम इसके हाथ का पानी नहीं पियेंगे. चाहिए। जब आप हृदय से जानते हैं तो सारा विश्व अपने हृदय में समाया हुआ नजर आता है। हम फलाने, हम ढिगाने, हम फलाना व्रत करते तो आज़ श्रीगणेशजी की पूजा इस विशेष हैं।" धरती पर इस पुण्यनगरी में हो रही है. तो यह पुण्य लगाने के लिए. जो पुण्यवान लोग मिलते अपने अन्दर जागृत कर लिया। हमारे अन्दर से हैं अत्यन्त नम्र होते हैं। पुण्यवान की पहचान है तो धर्म बह रहा है। हमारे अन्दर से तो चैतन्य "नम्र"। बाहर से नहीं, जैसे बिजनेसवाले होते हैं, या कोई वोट लेने आये तो बहुत नम्रता से आये उनके बारे में तो हम बहुत नम्र हैं कि शरमाते हैं, सामान्यत:, वेसा नहीं होता है। अंदरूनी नम्रता, एक तरह से एक नम्र भाव है, वही चाहिए हमारे अन्दर। और लोगों को कहना चाहिए "कितने इसीलिये आप सबने कहना है कि जहाँ नम्रता नम्र हैं"। और किसी-किसी मामले में जैसे की नहीं चाहिए, जहाँ उस चीज का गर्व चाहिए. बहुत से गुरु घंटाल लोग हैं। उनको कुछ भी जैसे कि मनुष्य है, उसको अभिमान है यह मेरा मालूम नहीं। सहजयोग नहीं मालूम, व्हायब्रेशन्स नहीं मालूम; कुछ भी नहीं मालूम। कुछ भूत भी नहीं हो तो ऐसा मनुष्य किस काम का? उसी कुछ राक्षस भी है। वह अपने को बड़े गुरू समझते हैं और सहजयोग के मामले में तो हमारे उसको मैं ठिकाने लगा दूंगा। वह अपने को क्या सहजयोगी बहुत ही नम्र हैं। जहाँ नहीं होना है। समझता है?" और जिस वक्त सहजयोग की माने अपने बहन से भी नहीं बताएंगे कि सहजयोग क्या चीज है, कि उसमें शरम आती है सहजयोग बताने पे उनको, अपने भाई से भी नहीं बताएंगे। कि "तेरे में यह भूत है"। मतलब वही जो अपने एक साहब मुझे मिले, मैंने कहा-"वह तो बड़े भारी सहजयोगी हैं, आपके भाई।" अच्छा? मुझे ठिकाने लगाना, उस पर कब्जा करना, उसे आते हमने तो ( सहजयोगी ने) सारा धर्म ही बह रहा है । हम स्वयं चैतन्यमय हो गये हैं। सिवाय मेरे। सब लोग शरमाते हैं, मैं लेकिन सबको सुनाती हूँ। किसी को छोड़ा नहीं और घर है, मेरी जमीन है, मेरे बच्चे हैं... और देशाभिमान प्रकार जिसको अभिमान है, हरेक चीज का कि "मेरे से ऐसा किया, उसने ऐसा क्यों किया, बात आती तब तो शरमाने लगे, और जब कोई आ भी जाए; सहजयोग में तो उसे दूषण लगाना अन्दर बात है स्वभाव में कि हर आदमी को 39 चैतन्य लहरी खंड XII अंक : 5 & 6, 2000 ही कह देना कि तेरे में भूत है, तेरे में राक्षस है, तू खराब है. तू एसा है. तू वैसा है। अगर मैं ऐसा कर देती तो यहाँ एक भी इन्सान बैठा होता सौम्य जैसे "बुध", बुध का जो ग्रह है उसको माना जाता है कि वह बहुत ही सौम्य है, और उसको भी "बुध" माना जाता है, बुध माने ऐसे की जाना हुआ। जिसने एक बार जान लिया। चन्द्रमा को हम लोग कहते हैं कि चन्द्रमा आत्मा की राज है क्योंकि वह सोम्य है। क्या? श्रीगणेशजी का कार्य हैं उसके तो जो बराबर हम लोग कार्य कर रहे हैं। इधर नजर करे कि पहले तो जो आता है उससे प्रेम से बात करें, उसे मिठाई दें, उसे प्यार की बात कहें, उससे आपके चरित्र का-आपके नम्रता का असर नम्रता-यह लक्षण है एक सहजयोगी का। जो लोग नम्र नहीं होंगे, और क्रोधी से क्रोधी होते जायेंगे वह फेंके जायेंगे। यह तो आप देखते हैं कि कितनों को फेंक दिया बाहर और मुख्य हो पायेगा। नहीं तो ऐसे भी लोग देखें हैं जिनको किसी सहजयांगी ने पार कर दिया. पार होने के कारण उनका "क्रॉध" है। जितने भी बार बताने पर भी लोग इसको नहीं समझते कि हमारे अन्दर जो "क्रोध", जो हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है मेरे समझ में नहीं आता है, यह सहजयोग है. उसको निकाल करके फेंक देना चाहिए। श्रीगणेशजी के आशीर्वाद से ही यह होगा। उनके बाद वह जो पार हुआ. वह मुझे बताता है कि माँ जिसने मुझे पार किया वह इतना क्रोधी आदमी कैसा है, उसको उसके प्रति से श्रद्धा उतर गयी । अगर यह बात है तो क्यों इस दुष्ट क्रोध को रखना, जिसके कारण कोई भी हमें पसंद नहीं करता। सब हमारे दुश्मन हो जाते हैं, तो ऐसे पूजा में आप सबको शांत स्वरूप हो करके श्रीगणेशजी की पूजा करनी चाहिए कि वह हमारे अन्दर भी शांति दे। इस उथल-पृथल में आज के इस कलियुग में हमें बहुत शांत होना है। जब तक पाना था आपने पा लिया. अब देने का समय आया है, अब देना चाहिए। आप सबको अनन्त आशीर्वाद महा दुश्मन (क्रोध) को घर में रखने से फायदा क्या? श्रीगणेशजी की जो प्रवृत्ति ठंडक पहुँचाती है। ठंडक सबको ठंडा होना है सौम्य, बहुत पाि 40 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 8 6. 2000 ---------------------- 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-0.txt वा हिन्दी आवृति चैतन्य लहरी Cका अंक 5 & 6 मई-जून 2000 खण्डे XII 4T-) L. ा ि कु कई बार लोग मुझसे पूछते हैं कि हम क्या करें? ईसा-मसीह की तरह से "हमें भी ध्यान-धारणा करनी होगी। ध्यान-धारणा द्वारा ही हम अपनी चेतनावस्था में, अपने नए व्यक्तित्व में, शक्तिशाली व्यक्तित्व में उन्नत होंगे।" उन्नत होने का एकमात्र मार्ग ध्यान-धारणा (Meditation) है। तब आपको कोई हानि न पहुँचा सकेगा क्योंकि तब आप परमेश्वरी प्रेम की सुरक्षा में होंगे। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी (ईस्टर पूजा - 1999) गा] 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-2.txt इस अंक में सम्पादकीय 1. 3. ईस्टर पूजा इस्तम्बूल ट्की (25.4.99) 2. 77वां जन्मदिवस समारोह (विवरण) 3. 15 दिवाली पूजा (डेल्फी यूनान) (ग्रीस) (7.11.99) 4. 18 सत्य साधकों को किस प्रकार जन कार्यक्रम का सन्देश प्राप्त हुआ सर्वेक्षण (25 मार्च 2000) 5. 29 जन कार्यक्रम रामलीला मैदान (विवरण) (25.4.2000) 6. 31 ता श्री गणेश पूजा पुणे 7. 1987 32 : योगी महाजन सम्पादक : विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार नई दिल्ली-110 067 अभिनव प्रिन्ट्स, दिल्ली 34 मुद्रक फोन : 7184340 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-3.txt का चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 ान ा 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-4.txt सम्पादकीय गणपति पुले क प् उ पर ले गई जहाँ हम भूल गए कि हम कौन हैं. कहाँ से आए हैं और हमारे शारीरिक कष्ट क्या महान कवि रविन्द्र नाथ टैगोर ने एक दिव्य स्वप्न देखा था कि भारत के तट पर सभी जातियों और रंगों के लोग माँ का अभिषेक करने हैं? के लिए एकत्र होंगे। हर रात्रि को स्वर्गीय दावत थी जिसमें गणपति पुले का अन्तर्राष्ट्रीय सहज सम्मेलन हमने स्वर्गीय संगीत की मधुर मदिरा का जी भर कर पान किया और उसकी गुँजन का आनन्द भर के भिन्न रंगों और जातियों के दस हजार से लेने के लिए अपने स्वप्नों में भी हम जाग उठे। हर सुबह प्रेम के एकनए उपहार का वचन लेकर आई। एक ऐसा प्रेम जो हमने पहले कभी न पाया था। ऐसा प्रेम जिसकी कोई सीमा न थी जो हमारे लिए आनन्दमय आश्चर्य लेकर आया। हम लोग इतने आश्चर्य चकित और इतने आनन्दमग्न थे। इससे पूर्व हम कहाँ खोए रहे? सभी हृदयों में उड़ेला और दस हजार पंखुड़ियाँ परन्तु एक बार जब हमने स्वयं को पा लिया है उनके प्रेम का एकमात्र कमल बन गई। आनन्दमय तो कहीं ऐसा न हो, कि हम उन्हें खा दे। हाँ, उन स्वर्गीय तटों से हम लौट आए हें उनकी भविष्यवाणियों को पूर्ण करता है। विश्व भी अधिक लोग श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देवी के चरण कमलों का अभिषेक करने के लिए नव सहस्राब्दि की पूर्व संध्या को गणपति पुले एकत्र हुए। परमेश्वरी माँ के चरण कमलों में हृदय-पुष्प अर्पण करने के लिए सभी परन्तु हृदय खुल गए। करुणामयी माँ ने अपना प्रेम शान्ति हर व्यक्ति की आन्तरिक गहराइयों पर छा गई और उसे शान्त कर दिया। उस शाश्वत परन्तु माँ आदिशक्ति की सुगन्ध अभी भी हमारे हृदय में बसी हुई हैं। उन्हें हम अपनी पूजा वैदियों पर देखते हैं, अपने स्वप्नों में देखते हैं अपने हृदय में देखते हैं। अबोध मुस्कान में उन्हें शान्ति में माँ आदिशक्ति के चरणों को धोने के लिए उमड़ती हुई समुद्र की लहरों की आवाज़ के सिवाय कुछ भी न बचा। शक्ति साम्राज्ञी के सम्मुख अशान्त मस्तिष्क देखते हैं, एक दूसरे में भी हम उन्हें देखते हैं शान्त हो गए। उनके प्रेम की शक्ति सर्वत्र छा गई, उनमें प्रेम की लहरियाँ हमें उस अदुभुत तट और जिस दिशा में भी हमारी गर्दन घूमें वहाँ हम केवल उन्हों को देख पाएं। चैतन्य लहरी । खड : XII अंक : 5 8 6. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-5.txt ईस्टर पूजा (25.4.99) इस्तम्बूल टर्की (हमें अपनी ध्यान धारणा को स्थापित करना होगा।) आज यहाँ हम सब टर्की में इस्तम्बुल में ईसामसीह के पुनरुत्थान का उत्सव मनाने के सकते हैं। ये सब चीज़ें हम देखते हैं और लिए एकत्र हुए हैं और उसी के साथ-साथ समझते हैं कि हम पूर्णतः जागृत हैं। परन्तु अपने पुनरुत्थान का उत्सव मनाने के लिए भी। वास्तविकता ये नहीं है। वास्तविक चेतना तो ईसा-मसीह का पुनरुत्थान हमारे लिए एक महान मस्तिष्क की सीमा को पार करने के बाद ही सन्देश था। मृत्यु पर विजय पाकर मृत शरीर से आती है, जब हम मस्तिष्क से ऊपर उठ जीवन्त शरीर धारण करके वे पुनर्जीवित हुए। जाते हैं, और यह ईसा-मसीह के पुनरुत्थान शरीर तो वही था परन्तु एक मृत शरीर था और के कारण ही सम्भव हो पाया । देख सकतें हैं और बाकी सब चीज़ों को देख वे इसलिए पुनर्जीवित हुए क्योंकि वे दिव्य अवतरण थे परन्तु हम इसलिए पुनर्जीवित हुए हैं क्योंकि हमें परमेश्वरी माँ का आशीर्वाद प्राप्त है। हमारा मस्तिष्क जो कि बीच में स्थित है श्री ईसा मसीह द्वारा नियंत्रित है। इसके दोनों भागों को वे दूसरा जीवन्त। यह मात्र प्रतीकात्मक ही नहीं है। उनके साथ वास्तव में ऐसा घटित हुआ। आखिरकार वे दिव्यशिशु थे, वे एक दिव्य व्यक्ति थे। अत: वास्तव में उनके साथ यह घटना घटी। यह केवल प्रतीकात्मक बात नहीं है कि उनकी मृत्यु हुई और दूसरे जीवन्त शरीर को धारण करके आज्ञा चक्र के माध्यम से नियंत्रित करते हैं। आपके अहं या बन्धनों के माध्यम से वे मस्तिष्क उनका पुनरुत्थान हुआ था। आप कह सकते हैं एक जीवन्त व्यक्ति के रूप में उनके लिए मृत्यु का क्या अर्थ है? शाश्वत लोगों के लिए मृत्यु नहीं होती, अमर व्यक्ति की मृत्यु नहीं होती। हो सकता है कि कुछ समय के लिए लगे कि वह मर चुका है परन्तु वास्तव में वह मर नहीं सकता। ईसामसीह भी ऐसे ही थे अत्यन्त विशिष्ट अवतरण जो पृथ्वी पर मृत्योपरांत पुनर्जन्म लेने कार्य करता के लिए आए। हम लोग भी, जब तक हमें दिव्य रोशनी प्राप्त नहीं हुई, हम भी मृत प्राणी जैसे थे क्योंकि हमारी चेतना आप कह सकते हैं अत्यन्त का नियंत्रण करते हैं और आपमें सन्तुलन लाते हैं। आज्ञा चक्र में जब बहुत से विचार घूमने लगते हैं कभी प्रतिक्रिया होने लगती है, कभी यह बन्धन स्वीकार करने लगता है, तब यह दास होता है। यह स्वतन्त्र नहीं है क्योंकि या तो यह अहं या आपके प्रति अहम् के प्रभाव में हैं। यह हमारे ज्ञान की मृत्यु है कि हम यह भी नहीं समझ सकते कि इससे परे जीवन का अस्तित्व है। इससे परे हम देख नहीं र सकते। अब हमने यह बात जान ली हैं कि हम , सब ऐसी स्थिति में है कि किसी के मर जाने पर हमें बुरा लगता है। हम चिन्तित होते हैं झगड़ा मन्द एवं मृत है। हम फूलों को देख सकते हैं. चेहरे देख सकते हैं, इमारतें देख सकते हैं, शहर चैतन्य लहरी । खंड : XII अक : 5 & 6, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-6.txt करते हैं और सोचते हैं कि हमारे वर्तमान जीवन में कुछ कमी है। निश्चित रूप से कुछ ऐसा है जो हमें दास बनाता है, जिसके कारण से हम दास हैं। नि:सन्देह इस बात को हमने महसूस किया और सत्य की खोज करने लगे। बहुत सी विधियों से हम सत्य की खोज करने लगे और मैं जानती हूँ कि बहुत से साधक भटक गए और प्रकार से बच्चों की हत्या हो रही है, जिस प्रकार से लोग मानव को नष्ट कर रहे हैं, इनके विषय में आप पढ़ते हैं। यह दृष्टिकोण विल्कुल गलत है कि वाद-विवाद से चीजों में सुधार होगा। ये धारणा बिल्कुल गलत है कि किसी को नष्ट करने से कुछ प्राप्त किया जा सकता है। सहजयोग में हमारा कार्य भली-भांति चल रहा है। यह बात में अवश्य कहूंगी परन्तु सहजयोग गर्त में गिर गए। परन्तु आपमें से बहुत से को मानव का विनाशकारी दृष्टिकोण, यह भयानक साधकों की रक्षा कर दी गई। ईसा मसीह के दृष्टिकोण रोकना हांगा। अतः आप पूछ सकते हैं कि श्रीमाताजी आगे क्या करना है। इस विध्वंस बहुत से अपना सन्तुलन खो बैठे और पतन के पुनरुत्थान से उन्हें बचा लिया गया। उन्हें साहस करना पड़ा। यह कार्य उन्हें करना पड़ा और को रोकने के लिए क्या किया जाए? इसका उन्होंने इसे कार्यान्वित किया। उनके बिना हमारी आज्ञा इतनी विनम्र न हो पाती। प्राचीन काल में को पुनर्जीवित करें, उन्हें पुनरुत्थान दें, उन्हें मानव अत्यन्त वातानुकूलित था और आज जब वह आधुनिक हो गया है तो अहं से भर गया है उन्हें लाए जहाँ वे समझ सकें कि ठीक क्या बीच की कोई बात नहीं। हम इन्हीं दो प्रभावों है और गलत क्या है लोगों को आपने की जेल में है। पूरी तरह से मृत लोग हैं। किसी चीज़ के लिए हममें संवेदनशोलता नहीं है। मैंने देखा है और आज भी आप देख सकते हैं कि उत्तर इंसा मसीह की जीवनी में है। आप लोगों आत्मा का प्रकाश दें। एक ऐसी अवस्था तक क करुणा एवं प्रेम का एहसास करने दें। ऐसा जब होने लगता है तो हमारे अन्तर्निहित तीसरी शक्ति कार्यान्वित हो जाती है। हमारा अह भी आस-पास क्या घटित हो रहा है। लोग एक दूसरे की हत्या करने को आतुर हैं। मानव, मानव का कम हो जाता है। हमारे बन्धन भी कम हो जाते हैं। उदाहरण के रूप में यदि हम सोचते हैं हम वध करना चाहता है। ऐसे मूर्खतापूर्ण कार्यों की मुस्लिम हैं दूसरों को मारना हमारा अधिकार है, क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि हम अपने यदि हम सोचते हैं हम यहूदी हैं और दूसरों का संगे-सम्बन्धियों का ही वध करें। माता- पिता भी वध करना हमारा अधिकार है। तो यह सारी हत्या कर रहे हैं और बच्चे भी हत्या कर रहे हैं । भिन्नता, सभी प्रकार के भेदभाव जो हमारे अन्दर सम्बन्ध कुछ रह ही नहीं गया है । यह तो ऐसे हैं ये मूर्खतापूर्ण हैं क्योंकि आप तो मानव हैं और लागों की निशानी है जिनमें बोध पूरी तरह से मर वे भी मानव हैं। आप लोग मानव का वध कर चुका हो। अपने ज्ञान की अवस्था में कम से कम हम में करुणा और प्रेम की भावना तो होनी रहे हैं। इसलिए नहीं कि उन्होंने कोई अपराध किया है या कोई गलत काम किया है। अपनी मूर्खतावश निःसन्देह वे समझते हैं कि वे ये हैं वो वो। बो ऐसे नहीं हैं आप मात्र मानव हैं जैसा कि आप जानते हैं हर मानव में कुण्डलिनी का ही चाहिए। परन्तु ये भावना भी समाप्त हो चुकी हैं। यह हम में विद्यमान नहीं है। पूरा विश्व जल रहा है। जिस प्रकार से युद्ध लड़े जा रहे हैं, जिस चैतन्य लहरी खड :XII अक : ३ 8 6. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-7.txt निवास है। मानव में कोई अन्तर नहीं। आपमें से कोई नष्ट नहीं कर सकता तो उसका अप्रत्यक्ष हरेक चाहे बो हिन्दू हो, मुस्लिम हो. यहूदी हो, हो, सिक्ख हो, पारसी हो या कुछ और। प्रभाव होगा। बहुत से देश जो किसी समय में शासक थे और जिन्हें बहुत महान माना जाता था उनका पतन हो गया है और बहुत से देश जो इसाई किसी भी नाम से चाहे आप इसे पुकारें। अब आप दंखें कि किस प्रकार हम आअपने लिए एक संज्ञा विशेष स्वीकार करते हैं। आप चाहे इसाई परिवार में उत्पन्न हुए हों या हिन्दू परिवार में, तुरन्त आप अपने धर्म के झण्डे को ऊँचा उठाए रखने के विषय में सोचते हैं। जिस धर्म में आप आज स्वयं को बहुत समृद्ध मानते हैं उनका पतन हो जाएगा। स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ मानने तथा यह सोचने कि उन्हें दूसरों का वध करने का अधिकार हैं के परिणाम स्वरूप इन सबका पतन होगा। तो अहिंसा का मत चलाया गया जो उत्पन्न हुए आपको न तो उसका ज्ञान था, न ही अपने आपमें अत्यन्त बेतुका है क्योंकि इसमें ये उसमें जन्म लेने के लिए आपने कहा, और न ही उसकी समझ आपको थी। तो किस प्रकार लोग मच्छरों और खटमलों की रक्षा करने लगे हैं। मनुष्यों का खून पीने वाले इन कीड़ों की बे रक्षा करते हैं। इससे क्या लाभ है? मनुष्य ऐसी बेतुके मूर्खतापूर्ण कार्य करने लगता है। मैं नहीं जानती कि कारण क्या है? जिस प्रकार वो चीजों आप उस धर्म से सम्बन्धित हैं? आपमें कुण्डलिनी है, अन्य सभी लोगों में भी कुण्डलिनी है। अतः आप केवल मानव धर्म से सम्बन्धित हो सकते हैं। हर मानव में कुण्डलिनी विद्यमान है । इसलिए को स्वीकार करते हैं वो अविश्वसनीय है दासत्व की मानसिकता, मैं सोचती हूँ, उन्हें उचित अनुचित में भेद करने की स्वतन्त्रता नहीं देती। इस कार्य आप मानव के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। ये सब झूठे विचार कि हम हिन्दू हैं, हम मुसलमान हैं, हम इसाई हैं। सब मानव रचित हैं। कहने से मेरा अभिप्राय ये है कि मानव किसी भी चीज़ का और लोगों के पास यह के लिए ईसा मसीह है। ईसा मसीह पूर्णतः स्वतन्त्र थे, सभी प्रकार के पूर्वग्रहों प्रलोभनों तथा मानवीय मूरखताओं से मुक्त। सृजन कर सकता है समझने के लिए बुद्धि नहीं है कि इन सब चीजों परन्तु आप कह सकते हैं कि श्रीमाताजी वे तो दिव्य पुरुष थे। वे दिव्य थे और अब उदाहरण के रूप में अमरीका के लोग आपको भी दिव्य बना दिया गया है। तो अब बड़ी-बड़ी संस्थाए और समाज बनाते हैं और वे किस प्रकार सामूहिक होकर हम लोगों को बता सब पूर्ण असत्य पूर्ण गलत धारणाएं और पूर्णत: सकते हैं "कि आप क्या कर रहे हैं? आप ऐसा की रचना मानव ने की है। ना क्यों कर रहे हैं? ऐसा करने की क्या आवश्यकता भी वे इन्हें बनाते हैं। इनके लिए उनके पास है? एक ओर तो मूर्खता के कारण सामूहिक फार्म हैं, बड़े-बड़े समूह है, आदि आदि। और ये विनाश है और दूसरी ओर आत्मघात। मंदिरा तथा विध्वंसक शक्तियों पर आधारित होती हैं। फिर अन्य विध्वंसकारी चरित्रहीन चीजों को अपनाना। सब पनप रहे है। पर इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव होता हैं। ये नहीं जानते कि यदि आप परमात्मा यह सब दुर्व्यसन सुगमता से उपलब्ध है और उन्हें अच्छा नहीं द्वारा सृजित मानव के विरूद्ध गलत चीजें करना लोगों को बहुत पसन्द है। आरम्भ कर देंगे उस मानव के वरूद्ध जिसे लगता जब आप उन्हें बताते हैं कि यह कार्य चैतन्य लहरी ॥ खड : XII अंक : 5.& 6, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-8.txt विनाशकारी है। हम या तो अपने को नष्ट करते लोग हैं। वो बताते हैं कि सरकार एंसा कर रही हैं या दूसरों को। ईसा मसोह को अन्य लोगों ने क्रूसारोपित परेशानियाँ है या वे आपको एक पंथ कहते हैं कर दिया परन्तु अपने आप वे पुनर्जीवित हुए। हम सब भी अब उसी स्थिति में हैं। मैं जानती हूँ कि सहजयोग को बहुत बार चुनौती दी गई। कि आप ईसा मसीह के पद चिन्हों पर चल रहे अब स्थिति पहले से बहुत अच्छी है उतनी बुरी हैं। कोई आपको नष्ट नहीं कर सकता। ईसा नहीं। इसे चुनौतियाँ दी गई परन्तु अब चीजें मसीह के जीवन का यही संदेश है कि दिव्य शान्त हो रही हैं क्योंकि यही सत्य है और यही वास्तविकता है। दैवत्व भी यही है। अत: आपको है, सरकार वैसा कर रही है या उन्हें कुछ या कुछ और ठीक है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आपका कर्तव्य यह विश्वास करना है जीवन नष्ट नहीं किया जा सकता। उनका शरीर हो जब नष्ट नहीं किया जा सका तो उनके दिव्य जीवन को किस प्रकार घवराना नहीं चाहिए। सहजयोग के विषय में ये सब वेतुके विचार समाप्त हो जाएंगे। यह न केवल आप सबका परन्तु आपके आदर्शों का भी सहजयोगी हैं जिन्हें सहजयोग में आए बहुत पुनर्जन्म है। आपके सिद्धान्त परिवर्तित होते हैं समय हो गया है । उन्हें बहुत सी समस्याओं और ताकि आपके चेतना ज्योतित हो सकें। हमारा नष्ट किया जा सकता था? यहाँ पर वहुत से कष्टों का सामना करना पड़ा। में मानती हूँ, बाध प्रकाशमय होना चाहिए। अचानक सहजयोग के माध्यम से यह लोगों तक पहुँच गया है कि यदि आपमें प्रकाश नहीं है तो आप सही रास्ते कुछ समय पश्चात्, आप हेरान होंगे, सहजयोग पर कैसे जा सकते हैं? ईसामसीह के जीवन का पूरे विश्व पर छा जाएगा। विश्व भर में लोग वर्णन करना सुगम कार्य नहीं है कि वे किस सहजयोग को अपनाएंगे और सर्वत्र इतने सहजयोगी प्रकार इसमें जीवित रहे। अत्यन्त युवा अवस्था में उनकी मृत्यु हो गई और कितनी क्रूरतापूर्वक उनका वध किया गया। परन्तु इसके बावजूद भी उन्होंने स्वयं को पुनर्जीवित किया। इन सब लोग मुझसे पूछते हैं कि हमें क्या करना है? यातनाओं और अग्नि परीक्षा से वे बच निकले हम लागों को भी जब सहजयोग में समस्याएं मसीह ने प्रार्थना की और वे निरन्तर प्रार्थना परन्तु अब ये सब कष्ट शान्त ही गए हैं और आप लोग पुनरुत्थान की ऐसी अवस्था में हैं कि होंगे कि हमारे सामने से मुर्ख धर्मान्धों की अल्प संख्या लुप्त हो जाएगी| इसके लिए हमें क्या करना है? कई बार आपने अवश्य बाइबल में पढ़ा होगा कि ईसा किया करते थे। इसी प्रकार हम कह सकते हैं होती हैं तो हमें समझना चाहिए कि हम में स्वयं वर कि हमें ध्यान धारणा करनी है। ध्यान धारणा के माध्यम से हम अपने बोध, नव तथा को पुनर्जीवित करने की शक्ति है। कोई हमें नष्ट नहीं कर सकता, कोई हमें समाप्त नहीं कर सकता. क्योंकि हममें पुनर्जीवित होने की शक्ति है। पुनर्जीवित होने की यह जो शक्ति हमारे अन्दर है आप उसे समझे, महसूस करें और इस कोई आपको नष्ट नहीं कर सकेगा क्योंकि सशक्त व्यक्तित्व में उन्नत होंगे। ध्यान-धारणा ही उन्तत होने का एकमात्र उपाय है, तब तब आप परम चैतन्य की सुरक, में होंगे। पर ध्यान-धारणा करें। यहाँ पर सभी देशों के चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 । গ 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-9.txt आपको इस बात की चिन्ता नहीं करनी चाहिए सुरक्षा प्राप्त है। अत: मार्ग में आने वाली बाधाओं कि कौन आपको नष्ट करेगा? क्या घटित होगा? नि:सन्देह आरम्भ में थोड़ी सी उत्तेजना होती है। की कोई आवश्यकता नहीं है। दुष्टों को नष्ट इसके विषय में लोगों को थोड़ी सी तकलीफ करने के लिए एक प्रकार की विध्वंसक शक्ति होती है, ये बात ठीक है। परन्तु वास्तव में लोग कार्यरत है। आपको नष्ट नहीं कर सकते, अपने अन्दर ये विश्वास बनाए रखें। ईसा मसीह की काई संस्था नहीं है और न ही उन्हें आश्रय देने के लिएआधुनिक युग में कोई नष्ट नहीं कर सकता, आदिशक्ति विद्यमान थीं, बिल्कुल नहीं। परन्तु अपने दिव्य व्यक्तित्व द्वारा उन्होंने सभी समस्याओं, यंत्रणाओं तथा उन पर किए गए सभी अत्याचारों वध किया गया, उन्हें यातनाएं दी गई। परन्तु से अपनी रक्षा की। अब आप लोगों को उनसे मोम तथा अपने विनाश आदिके विषय में चिन्ता करने ईसा मसोह के जीवन से हमें जान लेना 'चाहिए कि आत्म-साक्षात्कारी व्यक्ति को, इस आज तक किसी सहजयोगी को कोई नष्ट नहीं कर सका। प्राचीन काल में बहुत से सन्तों का आज भी वे कविता के रूप में जीवित हैं । अपने आशीष के रूप में भी वे सर्वत्र विद्यमान हैं। वे बेहतर सुविधाएं प्राप्त हैं क्योंकि आप लोग आत्मसाक्षात्कारी हैं, ज्योतित हैं। पहली बात तो समाप्त नहीं हुए। उनकी मृत्यु भी नहीं हुई। ये हैं कि वे दिव्य पुरुष थे और सभी कष्टों को यद्यपि ऐसा प्रतीत होता है कि अव वो जीवित सह सकते थे। आप लोगों को इन कष्टों में से नहीं हैं परन्तु उनकी नाम लेने और आह्वान करने नहीं गुजरना होगा। आपको कोई सताएगा नहीं, कोई जेल नहीं भजेगा और न ही कोई क्रूसारोपित में वे विद्यामान हैं और आपकी सहायता करते हैं । करेगा। कोई भी कुछ नहीं कहेगा। यह संभव नहीं है परन्तु यदि आप अशान्त है, कभी-कभी पुनर्ुत्थान से हमारा पुनर्जन्म हुआ है हमारा आप अशान्त हो जाते हैं। मैं जानती हूँ। कुछ देशों शरीर भी, निश्चित रूप से, परिवर्तित हो गया है। में लोग यह सांच कर परेशान हो जाते हैं कि पुनर्जन्म लेने के पश्चात्, आप जानते हैं, कि सहजयोग में होने के कारण उन्हें सताया जा रहा है। मैं तुम्हें विश्वास दिलाती हूँ कि कोई भी ऐसा प्रदान करने लगते हैं। हमारा दृष्टिकोण. हमारा नहीं कर सकता। आपको समझ लेना चाहिए मानसिक दृष्टिकोण, परिवर्तित हो जाता है और कि हर समय आप सुरक्षा में होते हैं, आपके बड़े भाई के रूप में ईसा-मसीह आपके साथ हैं मैंने सदैव ये बात कही है। आपके साथ आपकी माँ (श्री माताजी) भी हैं और सभी गण तथा देवदूत आपके इर्द-गिर्द विद्यमान में क्या कमियाँ हैं, मानो गर्दन घुमाकर वे अपने हैं। यह सब जब में देखती हूँ तो सोचती हूँ कि यह सब कितना अद्वितीय है। सभी देशों में गण और देवदूत प्रकट हुए हैं। आपको इतनी पावन मात्र से चीजें कार्यान्वित हो जाती हैं। आत्मा रूप ईसा मसीह के जीवन से विश्वस्त होकर उनके आपके चक्र. रोगों से मुक्ति और आशीर्वाद अहं भी लुप्त हो जाता है। केवल इतना ही नहीं हमारे बन्धन भी समाप्त हो जाते हैं। मैं अत्यन्त प्रसन्न थी कि ये लोग जो एक धर्म विशेष उत्पन्न हुए हैं तुरन्त देख लेते हैं कि उस धर्म समाज का रूप देख लेते हों और समझ जाते हों कि उनमें क्या कमियाँ हैं. और जब वे इन कमियों पर ध्यान करने लगते हैं तो सब ठीक हो चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-10.txt जाता है। समाज सुधर रहे हैं। आप देखते हैं कि हमारे हृदय से चला जाता है। परन्तु एक चीज़ तथाकथित धार्मिक विचार अपने ही शिकंजे में फँस रहे हैं और इन सब का पतन हो जाएगा बुराइयों को होते हुए, यन्त्रणा भोगते हुए लोगों क्योंकि ये असत्य हैं। यह सच्चा धर्म नहीं है। को देखते हैं तो आपका मस्तिष्क इसे स्वीकार धर्म तो हमारे अन्तः स्थित है और यही पावन धर्म, विश्व धर्म है। समाधान इस प्रकार आता है कि मान लो युद्ध हो रहे हैं-धर्म के नाम पर परन्तु इसके परिणाम स्वरूप आपकी इच्छाशक्ति युद्ध, परमात्मा और धर्म के नाम पर लोग युद्ध उनके विषय में आपकी सोच, आपके अश्रुओं में करते हैं तो क्या होता है? इस प्रकार लड़े जाने भी शक्ति होती है जो अकारण कष्ट उठा रहे वाले बच जाती है, वह है करुणा। जैव आप सभी नहीं कर पाता। इनके प्रति संवेदन शील होकर उनके दर्द को आप महसूस करते हैं। आश्चर्यजनक! युद्ध सच्चाई को नष्ट नहीं कर सकते, लोगों को सांत्वना देती है। इसे आपको परखना वास्तविकता को नष्ट नहीं कर सकते। ईसा होगा। अपने अन्दर प्रेम और करुणा के भाव चीज़ों में मसीह के पुनरुत्थान का यह एक अन्य सन्देश है। आप ऐसा नहीं कर सकते। आप सोच सकते हैं कि आपने कुछ लोंगों का वध कर दिया वे तो अब भी जीवित हैं। सभी सन्त सभी उत्पन्न करें, सुधार होगा। अब भी आप ध्यान धारणा करते हैं परन्तु इतने प्रेम एवं करुणापूर्वक ध्यान धारणा करें कि आपकी आँखों से बहने वाले ऑसुओं का सुप्रभाव इन मूर्ख तथा क्ूर लोगों पर पड़े जो एक दूसरे का वरध करने में लगे हुए हैं। परन्तु यह जान लेना आपके लिए परन्तु महापुरुष जो जीवन में पुनर्जीवित हुए अमर हैं। उनकी सुरक्षा सदैव विद्यमान है। उनका पथ-प्रदर्शन बना रहता है। एक प्रकार से आप देख सकते हैं कि वे यहाँ विद्यमान हैं। अत्यन्त आवश्यक है। आप व्यक्ति मात्र नहीं हैं, आप सार्वभौमिक व्यक्तित्व बन गए हैं। आप मात्र व्यक्ति नहीं रहे। आप सार्वभौमिक व्यक्तित्व अत: व्यक्ति को किसी प्रकार का भय नहीं होना चाहिए। मृत्यु का भय दूर हो जाना है और अपने स्थान पर बैठ कर पूरे विश्व की चाहिए। उनमें से बहुत से लोगों ने यही बात कही कि आखिरकार मृत्यु है क्या? आप जब पुनर्जीवित होते हैं तो मृत्यु की मृत्यु हो जाती है। आदि के विषय में ही चिन्तित रहता है। आपका अत: व्यक्ति को मृत्यु का भय नहीं होना चाहिए। मस्तिष्क विस्तृत हो पुनर्जन्म लेने से पूर्व आपमें से कितने हीं लोग विस्तृत हो चुका है कि विश्व की सभी समस्याओं मृत्यु से भयभीत होते थे परन्तु अब ऐसा नहीं है। के लिए यह स्वत: कार्य करता है। आपको कोई चिन्ता नहीं है कि मृत्यु कब समस्याओं का समाधान कर रहे हैं। अब आप तुच्छ मानव नहीं जो केवल अपने बच्चों, परिवार चुका है, इस प्रकार से महिलाएं आमतौर पर समाचार पत्र नहीं आएगी? क्या होगा? या किस प्रकार से आपको पढ़तीं। वे सोचती हैं कि समाचार पत्र पढ़ना नष्ट किया जाएगा? आप जानते हैं कि आपको मूर्खता परन्तु महिला होते हुए भी में समाचार पत्र पढ़ती हूँ। विशेष रूप से वे समाचार जिन्हें भली-भाति जानते हैं मैंने देखा है कि है। नष्ट नहीं किया जा सकता। अपने हृदय में आप कि आपको नष्ट नहीं मेरे चित्त की आवश्यकता है। किया जा सकता। नि:सन्देह अपनी मृत्यु का भय यह कार्य करता है। आप सब लोग मिलकर चैतऱ्य लहरी खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-11.txt जब समझ जाएंगे कि विध्वंसकारी शक्तियों को सुधारना, उन्हें ठीक करना आपकी जिम्मेदारी है तो बहुत अच्छा होगा। जिन-जिन मामलों में भी बड़ी समस्याएं होंगी उन पर आपने केवल सामूहिक रूप से ध्यान करना कर रहे हो। तो ईसा-मसीह के जीवन का सन्देश ये है कि उन्होंने क्षमा किया। उन सब लोगों को क्षमा किया जिन्होंने उन्हें सताया क्रूसारोपित करने वाले लोगों के लिए भी उन्होंने कहा" हे परमात्मा कृपा करके इन लोगों को क्षमा कर दें क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।" सुली पर चढ़कर भी उन्होंने ये बात कहीं, जब हैं। समस्या मुख्यत: धर्मों के कारण है यदि सभी धर्मों के लोग एक नए धर्म, विश्व धर्म को अपना लें तो वो एक हो जाएंगे। एक ही धर्म होने के कारण तब ये परस्पर लड़ नहीं सकते। उन्होंने कहा इन्हें क्षमा कर दो, इन पर दया सताया जा रहा था, अपमानित किया जा रहा था। परन्तु वे एक धर्म नहीं चाहते क्योंकि वे लड़ना चाहते हैं, लड़ाकू मुरगों की तरह। वे यदि सहज में आ जाएं ज्योतित हो जाएं तभी वे एक दूसरे करो, इनसे सहानुभूति करो क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं। ये परमात्मा के पुत्र का वध कर रहे हैं, इनका क्या होगा? ये कहाँ के प्रम का आनन्द ले सकेंगे। एक दूसरे की जाएंगे? इनका क्या हाल होगा? हमारे लिए हत्या और विध्वंस का नहीं। यही बात हमने ईसा-मसीह के जीवन से सीखनी है। ईसा-मसीह अकेले थे. बिल्कुल अकेले। उनके साथ सामूहिकता न थी. फिर भी वे कितने शक्तिशाली थे कि बहुत बड़ा सन्देश है कि सूली पर भी उन्होंने क्षमा करने के लिए कहा 'हे परमात्मा हे परमपिता इन सबको क्षमा कर दो। इसी प्रकार हमें भी लोगों को क्षमा करना चाहिए। ईसा-मसीह के उन्होंने मृत्यु से युद्ध किया और आज्ञा के स्तर पर इससे साफ बच निकले। उनके बिना हम जीवन से यह बात स्पष्ट होती है कि क्षमा करना बहुत महत्वपूर्ण है। विश्व के लिए क्षमा का ये महत्व समझना महत्वपूर्णतम है। क्षमा तो आपको अपना जौवन बलिदान न किया होता तो कुण्डलिनी करनी ही चाहिए। क्षमा करना यदि हम सीख लें तो आप हैरान होंगे, संसार में लड़े जाने वाले आधे युद्ध समाप्त हो जाएंगे। कोई घटना आज से जीवन को बलिदान करने का कार्य स्वीकार हजारों वर्ष पूर्व हुई थी. परन्तु आज भी लोग करके और फिर स्वयं को पुनर्जीवित किया। उससे भयभीत हैं । अब भी लोग उसको लेकर हैं, सोचते हैं कि बहुत वर्ष पूर्व ऐसा हुआ था इसका परिणाम युद्ध है। यदि हम उन कि "में सबको क्षमा करता हूँ।" क्षमा का गुण लोगों को क्षमा कर सके जो हमारे जन्म से भी पहले हुए तो ऐसे लोगों के समूह क्यों बनाए? सहजयोग कार्यान्वित न कर पाते उन्होंने यदि ऊपर को न जा पाती। परन्तु उन्होंने बिना आना-कानी के आत्म-बलिदान कर दिया। अपने आज्ञा चक्र के संकुचित मार्ग से वे गुजरे ताकि लड़े जा रहे आप लोग केवल इतना कहकर ठीक हो सको जब इतना शक्तिशाली है कि आप इसके माध्यम से मृत्यु से भी लड़ सकते हैं तो क्यों न क्षमा क्यों? क्योंकि मानव में घृणा नाम का भी एक है। लोगों के हृदय में घृणा है। इसके कर दी जाए? बहुत से लोग कहते हैं कि श्रीमाताजी हम क्षमा नहीं कर सकते। मैंने उन्हें लिए घुणा उसके लिए घृणा छोटी-छोटी चीजों सौ बार बताया है कि क्षमा न करके भी तुम क्या के लिए कहते हैं मुझे ये पसन्द नहीं है, ये अवगुण TO चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-12.txt बघारी थी? नहीं, कभी नहीं उन्होंने कभी डींग नहीं हाँकी। जब उन्होंने देखा कि पावन स्थलों पर लोग वस्तुएँ बेच रहे हैं तो आप जानते हैं कि उन्होंने क्या किया? उन्होंने कोड़ों से उनकी युवाओं को ऐसा कहने की स्वतन्त्रता है। मुझे वो पिटाई की क्योंकि वे गलत कार्य कर रहे थे स्थल की पावनता को दूषित कर रहे थे। उन्होंनें लगता। आप कौन हैं? दूसरों के मामलों का ऐसा क्यों नहीं कहा कि "मुझे ये पसन्द नहीं है?" मंदिर या पावन स्थल पर ऐसी चीज़ों की समझना नहीं आता। आप ये नहीं जानते कि बिक्री के लिए उन्होंने स्पष्ट रूप से अपनी अस्वीकृति प्रकट की। लोग वहाँ पर पूजा करने जाते हैं। उन्हें धन लोलुपता विहीन मस्तिष्क की पसन्द है। आजकल विशेष रूप से यह आम बात है। जब हम युवा थे तो हमें ऐसी बातें कहने की आज्ञा न थी। मुझे ये पसन्द नहीं है, मुझे ये पसन्द है, हम नहीं कह सकते थे। परन्तु आजकल लोग पसन्द नहीं है। मुझे वो व्यक्ति अच्छा नहीं निर्णय करने वाले आप कौन हैं? आपको महत्व आनन्द किस प्रकार लेना है। आप केवल इतना कहना चाहते हैं कि मुझे पसन्द नही है और यदि आपको पसन्द होता तो आप क्या करते। आपको आवश्यकता होती है। जहाँ आपने ध्यान करना होता है वहाँ पर धन लोलुपता का कोई कारण का प्रदर्शन करनें के लिए आप ऐसा कहते हैं नहीं होना चाहिए। आज यह सबसे बड़ी समस्या क्योंकि आपमें प्रेम का पूर्ण अभाव है। आपमें है। हर चीज का लक्ष्य धन है । आपको महंगी हैं और आप इसे पाना चाहते हैं उठा पाते हमें कभी नहीं कहना चाहिए कि मुझे किसी भी प्रकार से आप कार लाएंगे और इसमें आप यदि वास्तव बैठेंगे चाहे आप चोर हों फिर भी दिखावा करने में ये कहें कि मुझे आनन्द आता है तो आपको के लिए आप महंगी कार खरीदेंगे। संभवत: क्योंकि आप चोर हैं, अपनी असलियत को छियाने के लिए आप एसा करना चाहते हैं। तो पसन्द हो या न हो एक हो बात है। अपने अहं यदि प्रेम होता तो आप सभी चीज़ों का आनन्द कारे पसन्द पसन्द है मुझे पसन्द नहीं है। सभी चीज़ों का आनन्द आएगा। ये कहकर कि मुझे ये पसन्द नहीं आप स्वयं को सीमित कर रहे हैं। आप न तो कोई सत्यमय जीवन का अभाव है। जीवन मात्र दिखावा जज हैं न कमांडर और न कोई महान व्यक्ति कि आप ये कहें। हैरानी की बात है कि पश्चिमी देशां में एसा कहने का बहुत अधिक प्रचलन है नि:सन्देह पूर्व में, भारत में, यदि कोई ऐसा कहे तो लोग उसके मुँह पर कहंगे कि वह बन रहा हैं। परन्तु दिखावा करना भी बुरी बात नहीं मानी जाती। पश्चिम में इसे भी बुरा नहीं समझा जाता। किसी चीज के बारे में संकोच करना वहाँ पर बन गया है और आप लाग अपने को बहुत श्रेष्ठ समझते हैं। परन्तु जब मौत सामने आएगी तो आप क्या करोगे? उस वक्त आप काप उठेंगे अपनी सारी उपलब्धियों, सारे दिखावों के बावजूद भी मृत्यु के सम्मुख लडखड़ा जाएंगे परन्तु एक सहजयोगी ऐसा नहीं कर सकता वह जानता है है तो आना ही है। मृत्यु को कि मृत्यु को आना भयानक मानकर वह कॉपेगा नहीं। मृत्यु को अभद्रता समझी जाती है। परन्तु शेखो बघारने को विश्राम का स्थान मानेगा। उसे नहीं बुरा कुछ भी लगेगा क्योंकि वह तो से ऊपर है, विनाश बुरो नहीं समझा जाता। मृत्यु से परे है । तो जो कुछ भी उसके जीवन में घटित क्या ईसा मसीह ने किसी वात की शखी चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 " টি । 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-13.txt होगा उसका बुरा माने विना वह उसे सहज ही में स्वीकार कर लेगा। परन्तु उसके पति ने उसके सम्मुख दम तोड़ दिया। मैंने कहा" आपका क्या अभिप्राय है? यह सब कैसे घटित हुआ। यह श्रद्धा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं।" श्रद्धा अर्थात् समर्पण। समर्पण क्योंकि मैं समर्पित मैंने पूछा कैसे? यह तो मैं नहीं जानती। मैं तो बस समर्पित हूँ। जब मुझे पता चलता है कि समर्पित हूँ तो मुझे बहुत ही सुख बहुत ही जीवन्त होती हूँ. और बहुत ही निडर। अपनी आत्मा के ग्रति मैं पूरी तरह से समर्पित हूँ। ध्यान-धारणा करते हुए हमें यही सब सोखना हमारे सामने कबीर साहब का उदाहरण उसने उत्तर दिया" श्रीमाताजी है। कबीर ने बहुत सी कविताएं लिखीं उनमें से अधिकतर मौत के विषय में हैं उन्होंने कहा कि मौत जब आई तो एक शब्द भी नहीं बोली। मैंने उससे लड़ाई नहीं की, कंवल इतना किया कि अपने ऊपर चादर ओढकर गहरी नींद सो गया। कितनी मधुरतापूर्वक उन्होंने मृत्यु का वर्णन किया है। कबीर कभी-कभी तो मुझे ईसा-मसीह मिलता है। मैं का स्मरण कराते हैं। ईसा मसीह ने भी इन सब चीजों को कितने धैर्यपूर्वक सहन किया और जब है कि हमें समर्पित होना है। उनकी मृत्यु हुई तो सारे पंचभूत डोल गए। वे पंचभूतों के स्वामी थे, पंचभूत डोल गए. भूचाल इस्लाम अर्थात समर्पण। चाहे वे लोग समर्पित आ गए और प्राकृतिक विपदाएं आई। उन्होंने नहीं होते परन्तु उन्होंने कहा कि आपको अपनी उनकी मृत्यु को महसूस किया स्वयं इंसा मसीह सार्वभौमिक प्रकृति, अपनी श्रेष्ठ प्रकृति के प्रति ने नहीं, उन्हें लगा कि इतनी महान शक्ति जो समर्पित होना हैं। आपको समाप्त नहीं हो जाना मोहम्मद साहब ने इसे इस्लाम नाम दिया। और न ही इन सांसारिक तूफानों तथा सांसारिक वस्तुओं में फँस जाना है। ईसा मसीह का मिसाल कि मानव अस्तित्व का सार तत्व थी, इस प्रकार नष्ट कर दी गई। वे नहीं जानते थे कि ईसा-मसीह पुनर्जीवित हो उठेंगे, इसका उन्हें ज्ञान न था परन्तु वे इससे बाहर आए, उस मृत्यु से पुनर्जीवित हुए जिसके विषय में सबको आघात लगा था। अत्यन्त शक्तिप्रदायक है और वे हमारे साथ हैं वे सदैव हमारा पथ-प्रदर्शन करेंगे। सदैव हमारी देखभाल करेंगे। केवल इतना ही नहीं वे हमें शक्ति भी प्रदान करेंगे शाश्वत जीवन के विरुद्ध है। हमारी मृत्यु नहीं है, हम पुनर्जन्म ले चुके जाने वाले लोगों को वे नष्ट भी करेंगे । सभी हैं और पुनर्जीवन हमारे साथ है परन्तु हमें बेहूदी चीजों को वे समाप्त कर देंगे और अब आप देख रहे हैं कि इस कलियुग में धर्म के नाम पर लड़ने वाली सभी संस्थाएं नष्ट हो रही को हमें स्थापित करना है यही महत्वपूर्ण हैं। स्वत:, हमने इसके लिए कुछ भी नहीं किया। अपने आप अपनी कारस्तानियां की वजह उसने मुझे अपने जीवन में घटे बहुत से चमत्कारों से ये सब समाप्त हो रही हैं क्योंकि इनमें के विषय में बताया, किस प्रकार उसकी रक्षा सच्चाई नहीं है। उनमें आत्मा का पूर्ण अभाव है की गई थी। एक दुर्घटना में वह मरने ही वाली और आत्मा के बिना क्या रह जाता है केवल मृत शरीर। सहजयोगियों को ये सारी सूझ-बूझ होनी उनकी मृत्यु हमें शक्ति प्रदान करती इसमें स्थापित होना है अपने सहजयोग को हमें स्थापित करना है, अपनी ध्यान धारणा चीज़ है। उस दिन मेैं एक महिला से मिली। थी। परन्तु किसी प्रकार उसे बचा लिया गया। T2 चैतन्य लहरी खंड : XII अक : 5 & 6. 2000 शै 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-14.txt चाहिए कि हमें आत्माभिमुख होना चाहिए. ध हमें लोगों को परिवर्तित करना है । हम परिवर्तित हो चुके हैं, एक विन्दु तक पहुँच गए हैं और है। नाभिमुख नहीं, शरीराभिमुख नहीं, भावनाओं का कायल नहीं केवल आत्मा। यह अत्यन्त कह सकते हैं कि हमारा पुनरुत्थान हो चुका आनन्ददायक स्थिति है। इसे पाकर आपको बहुत हमें पूर विश्व का पुनरत्थान करना है। यह हैरानी होगी। आप अत्यन्त प्रसन्न, प्रेममय, सुन्दर व्यक्ति बन जाएंगे। आस-पास के लोग तुरन्त ये आदि समाप्त हो जाएंगे। जान जाएंगे कि इस व्यक्ति में महिला में कोई चमक है. इनमें कुछ विशेष बात हैं। उन्होंने यह सब कार्य हमारे हित के लिए तो अवश्य है कि ये पुरुष या महिला हम सबसे किया। सर्वसाधारण व्यक्ति के रूप में वे अवतरित भिन्न है इसे तुरन्त पहचाना जा सकता है। ईसा हुए। सर्वसाधारण व्यक्ति के रूप में जीवन मसीह के समय में बहुत कम लोग उन्हें पहचान व्यतीत किया। यद्यपि उनमें बहुत सी शक्तियां पाए क्योंकि वो लोग आत्मसाक्षात्कारी न थे। थीं परन्तु उन्होंने इन शक्तियों का उपयोग किसी क्योंकि वे लोग मानव स्तर से बहुत नीचे थे। हमारा कार्य है। ये सब झगड़े, लड़ाईयोाँ झूठ हमारे लिए ईसा-मसीह हमारे पथ-प्रदर्शक कुछ है। इस को नष्ट करने के लिए नहीं किया। इसी प्रकार परन्तु आप लोगों के साथ ऐसा नहीं है आप लोगों को इसका भली भांति ज्ञान है। आपका हम भी प्रेम एवं स्नेह के साथ मृत्यु के साथ छुटकारा पा सकते हैं, अपनी गलतफहमियों से जन्म आधुनिक समय में हुआ है। आज ईसा छूटकारा पा सकते हैं। अपने विनाशकारी स्वभाव से मुक्त हो सकते हैं। यह विध्वंसकारी स्वभाव सहजयोगियों के लिए अत्यन्त भयानक है। हमें व्यक्तित्व कितना शानदार था। कितने कष्टों में केवल यही आशा है कि सहजयोगी पुनरुत्थान को पा लेंगे। मैं केवल इतना जानती हूँ कि यदि बहुत से लोग सहजयोगी बन जाएं तो ये विश्व होता वे इतने शक्तिशाली थे; इतना शक्तिशाली परिवर्तित हो जाएगा इस विश्व को परिवर्तित व्यक्तित्व था उनका। परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं होना होगा परन्तु आपका उत्थान होता रहना चाहिए। अपने उत्थान पथ पर आप बढ़ते चले मसीह के विषय में सोचते हुए हमें समझना चाहिए कि उनका जीवन कैसा था? उनका उन्हें डाला गया? वे इतने शक्तिशाली थे कि उन्होंने उन लोगों को तुरन्त समाप्त कर दिया किया, उन्होंने सबको क्षमा कर दिया और इस जाइए, इससे वापिस मत लौटिए। प्रकार आपको क्षमा का सन्देश दिया महानतम यहाँ-वहां छोटी-छोटी चीज़ों की चिन्ता मत करिए। आपकी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है और यह जिम्मेदारी है मानव मात्र को परिवर्तित शक्ति का जो सभी कुछ कार्यान्वित कर सकती हैं। अब आप भी क्षमा के इस विचार के प्रति समर्पित हो जाएं और वास्तव में क्षमा करने का करने की। ये आपका कर्तव्य है। आपने कितने लोगों को परिवर्तित किया, कितने लोगों को प्रयत्न करें। आप हैरान होंगे कि आप अत्यन्त शान्त हो जाएंगे और प्रसन्नता का अनुभव करेंगे और जिन लोगों ने आपको सताया है उनका बदल दिया। पुरुष और महिलाओं दोनों पर ये बात लागू होती है। आपको अन्य लोगों में है लोगों को परिवर्तित करना यह हमारा कार्य है। परिवर्तन लाना है। ये आपका कार्य है और इसके पतन हो जाएगा। अब हमें जो कार्य करना है वो 13 चैतन्य लहरी । खंड : XII अक : 5 & 6. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-15.txt लिए शक्ति आपने ईसा मसीह से प्राप्त की है कितने लोगों को हमने परिवर्तित किया। कितने कि आप अन्य लोगों को परिवर्तित करें। आनन्द लोगों को हमने पुनर्जीवन दिया। इस चीज का और प्रसन्नता के नए विश्व में उन्हें परिवर्तित लेखा जोखा रखा जाना चाहिए। इसका नहीं कि करके ले आएं। सहज निर्मल धर्म में उन्हें ले हमने कितनी पूजाओं में भाग लिया। पूजाओं में आएं। वास्तव में यदि ऐसा हो जाए तो विश्व के विषय में सोचें, हमारे लिए ये कितना सुन्दर संसार हो जाएगा! हर सहजयोगी का कर्त्तव्य है ये आपका कार्य नहीं है, आपका कार्य कि इस नए साहसपूर्ण कार्य को करे और ये नहीं है। अपने कार्य के लिए आप पूजाओं से खोजने का प्रयत्न करे कि वह कितने लोगों सारी आवश्यक शक्ति ले सकते हैं परन्तु यदि को परिवर्तित कर सकता है और कितने लोगों को सच्चे मार्ग पर ला सकता है। मुझे इसका क्या लाभ? तो में अब ये बात आप पर आशा है कि अगली बार जब हम यहाँ मिलेंगे तो छोड़ती हूं कि आपको स्मरण रहे कि आप इन आठ मेजबान दंशों के यहाँ उपस्थित लोगों से पुनरुत्थान को पा चुके हैं। और अब आपने अन्य दुगुनी संख्या में सहजयोगी उपस्थित होंगे। आप सबकों मेरा हार्दिक प्रेम। महान दिन हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं अब हमें कंवल अपनी महत्वपूर्णतम कार्य है। जिम्मेवारी को समझना है। मुख्य चीज ये है कि भाग लेना उतना महत्वपूर्ण नहीं है। पूजाएं केवल आपको शक्ति प्रदान करने के लिए होती है पेरन्तु आप इस शक्ति का उपयोग नहीं करते हैं तो त लोगों को पुनरुत्थान प्रदान करना हैं। पूर्ण उथल-पुथल और विध्वंस के इस समय में यही परमात्मा आपको धन्य करें। सा त 14 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 he 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-16.txt परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का 77वां जन्मदिवस समारोह निर्मल धाम-दिल्ली 21-3-2000 एक विवरण यमुना नदी के किनारे पर बसी भारतवर्ष की राजधानी दिल्ली लगभग डेढ़ करोड़ की तथा आइवरी कोस्ट के राष्ट्रपति ने श्रीमाताजी को आबादी वाला महानगर है। यहां के लोगों की प्रतिव्यक्ति आय बाकी देशों के लोगों को औसत उन्होंने मानव हृदय परिवर्तन द्वारा समाज परिवर्तन अध्यक्ष, कनाडा के दूस मुख्य नगरों के महापौर भेजे, जिनमें इस शुभ अवसर पर बधाई सन्देश में उनके योगदान की भूरि-भूरि प्रशंसा की । आय से लगभग दुगुनी है। 21 मार्च 2000 को परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के जन्मोत्सव न्यूयार्क राज्य सभा ने शान्ति स्वास्थ्य तथा 80 के शुभ अवसर पर विश्व भर से आए हुए देशों का हित सहजयोग ध्यान धारणा द्वारा करने उनके सहजी बच्चों के आनन्दोल्लास का पूरा के लिए दो बार विश्व शान्ति पुरस्कार के लिए महानगर साक्षी था। यूरोप, उत्तरी अमरिका, लेटिन मनोनीत की गई श्री माताजी के सम्मान में एक अमरीका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, पूर्वी-एशिया और विशेष प्रस्ताव पारित किया। इसमें कहा गया था कि श्रीमाताजी ने नव रूस से आए 725 सहजयोगियों ने दिल्ली और "सभी संस्थाओं को दृढ़ विश्वास है सहस्राब्दि को एक उपयुक्त भारत के अन्य राज्यों से कि संत्ता को भूख हा मानव का पथे वातावरण बनाने के लिए नव आए 2500 सहजयोगियों के प्रदर्शन करता है तथा मनुष्य परस्पर प्रेम दष्टि प्रदान की है और इस वातावरण में भिन्न क्षेत्रों और अपनी सामूहिकता में विशिष्ट लोग हैं जिन्हें जातियों के लोग अपने साथ छावला गाँव स्थित नही कर सकते। परन्तु सहजयोगियों की निर्मल परम-पावनी माँ के जन्म आत्मा का ज्ञान प्राप्त हो गया है और वे भेदभाव त्याग कर शान्ति से धाम दिवस के उत्सव को आन्तरिक रूप से समृद्ध हैं और समर्थ हैं तथा उन्हें पूर्ण सत्य का बोध है। वे रह सकेंगे। उत्सव कार्यक्रम इन्द्रधनुषी रंगों से सजा दिया। ह के संयोजक दिल्ली के श्री संयुक्त राज्य अमरीका के जानते हैं कि समाज में प्रचलित बी.जे. नालगिरकर ने भिन्न उप राष्ट्रपति, भिन्न राज्यों कुसिद्धान्तो को असत्य साबित करके देशों की विधानसभाओं, सफी सन्तों आदि के वधाई सन्देश किस प्रकार अधम प्रवृत्तियों पर काबू संक्षिप्त में पढ़कर सुनाएं। के राज्यपालों, वहां के दस किस प्रकार परस्पर प्रेम बांटना है और नगरों के महापौरों, कनाडा के प्रधानमंत्री तथा कनाडा पाना है।" और आस्ट्रेलिया के सांसदों इस अवसर पर बोलते हुए परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी| पूर्व लों कसभा अध्यक्ष 21 मार्च 2000| बलराम जाखड़ ने कहा कि रूस के चिकित्सक संघ के 15 चैतन्य लहरी । खंड़ : XII अंक : 5 8 6. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-17.txt विश्व भर में सहजयोग फैल जाने से बास्तविक सार्वभौमिक गाँव (True Global Village) का सृजन होगा और उन्होंने कामना की कि जब तक ये प्रमुख डॉ. शोभा दास ने सहज योग द्वारा 'तनाव प्रबन्धन' विषय पर दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा मान्य एवं स्वीकृत दो शोध प्रबन्ध (Thesis) श्री माताजी को भेंट की। उन्होंने Lipid Peroxidation लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लिया जाता तब तक परम पूज्य श्रीमाताजी इसी प्रकार अपने जन्मोत्सव रोंग पर किए जा रहे सहजयोग के प्रभाव शोध मनाती रहें। कश्मीर में अपने कठिन लक्ष्य में का संक्षिप्त वर्णन किया। सफलता प्राप्त करने के लिए श्री माताजी का आशीर्वाद लेना वे न भूले। गृहमन्त्री श्री लाल कृष्ण आडवाणी ने सहजयोग द्वारा अपने अन्तर्परिवर्तन की तीन अपने भाषण में कहा कि निर्मल धाम आने में अवस्थाओं का वर्णन करते हुए कहा कि पहली उनकी मुख्य इच्छा श्रीमाताजी के दर्शन करने अंतर्राष्ट्रोय सम्मान एवं ख्याति प्रापत सर श्री सी. पी. श्रीवास्तव, श्रीमाताजी के पति, ने अवस्था आश्चर्य (Bewildermet), दूसरी प्रदीप्ति (Splendour), और तीसरी अवस्था समर्पण तथा उनका प्रवचन सुनने की थी। इस अवसर पर वे वातावरण के प्रदूषण, भौतिक प्रदूषण नहीं (Surrender) की थी। आरम्भिक अवस्था में जब परन्तु समाज के ताने- वाने में व्याप्त आन्तरिक उन्होंने लोगों के हृदय परिवर्तन होते देखे तो वे प्रदूषण पर बोले। ये सर्वविदित है कि बढ़ते हुए हर्के-बक्के रह गए। सहजयोगियों की सामूहिंकता वाहनों की संख्या के कारण तथा बाहनों के तेल को परिवर्तित होते देखकर आश्चर्य की ये स्थिति के धुएं के कारण दिल्ली में प्रदूषण समस्या अत्यन्त भयानक रूप धारण कर रही है। विश्व परिवर्तित करने में सहजयोंगियों की भूमिका राष्ट्र संस्था (W.H.O.) की एक टिप्पणी के अनुसार दिल्ली उन बारह महानगरों में से एक है जिनमें समर्पण की अवस्था में पहुँच गए हैं। एक ऐसी भेव्यता में परिवर्तित हो गई। क्योंकि समाज को सकारात्मक होती हैं और अब 80वें वर्ष में वे दिव्य शक्ति के सम्मुख समर्पण जिसने देवदूतों भयानक प्रदृषण है और ऐसा अन्दाजा लगाया जाता है कि पूरे प्रदूषण के 67% भाग के लिए की अद्वितीय सामूहिकता (सहजयोगी/योगिनियों) मोटर-वाहन उत्तरदायी हैं। श्री आडवाणी के आन्तरिक प्रदूषण को दूर करने का नुस्खा सहजयोग प्रेम अभिव्यक्त करके धर्म, जाति के भेद-भावों का सृजन किया है, जिनका उद्देश्य परस्पर पावन ध्यान धारणा द्वारा आध्यात्मिक उत्थान था। मध्य प्रदर्श के पूर्व पराप्त किए बिना से ऊपर उठकर एक हीरा अपना मूल्य नहीं जानता, आत्मज्ञान मात्र सहजयोग परिवार भी अपना मूल्य मनुष्य मुख्यमंत्री तथा वर्तमान केन्द्रीय केबिनेट मन्त्री श्री सुन्दर लाल पटवा ने इस अवसर पर कहा बनाना है। उनके अनुसार नही समझता। आत्म-ज्ञान प्राप्त करके आत्मसाक्षात्कारी लोग कमल सम हो यह सभा संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेम्बली से भी अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह विश्व की नैतिक, चारित्रिक एवं जाते हैं। वे दिव्य सुगन्ध फैलाते हैं और अपनी अन्तर्जात प्रणाली के कारण कि वे परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के चरणों में समर्पित मूल्य अत्यन्त सुन्दर एवं आकर्षक होते हैं। परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी होकर अभिभूत हैं लेडी हार्डिग अस्पताल के शरीर विज्ञान के आध्यात्मिक सभाओं की 21 मार्च 2000 16 चैतन्य लहरी । खड : XII अंक : 5 & 6. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-18.txt प्रतीक है। विश्व भर में ऐसी ही सभाओं तथा है। यदि परमात्मा एक ही है तो आप धर्म के नाम पर किस प्रकार झगड़ सकते हैं।" उन्होंने रूस में विश्व निर्मला धर्म को अलग से धार्मिक उसके द्वारा नए मानव के सृजन के परम पावनी माँ के दिव्य स्वप्न का वर्णन भी उन्होंने किया। सर सी. पी. श्रीवास्तव के पास उपस्थित सभा के लिए दो प्रस्ताव थे: पहला विश्व भर में सहजयोग प्रचार कार्य के प्रति समर्पित होना और दूसरा यह मान्यता दिए जाने के विषय में बताया क्योंकि ये धर्म पूर्णतः घृणा रहित हैं और केवल सहृदयता (Compassion) में विश्वास करता है। उन्होंने बताया कि 'साकार' का दर्शन तो निराकार को समझने पर ही हो सकता है और यह प्रक्रिया केवल आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् ही सम्भव है। 'सच्चे ज्ञान' से सशस्त्र होकर आत्मसाक्षात्कारी कि जब तक विश्व का हर मानव परिवर्तित न हो जाए परम पावनी माँ अपने दिव्य साक्षात् मानव शरीर को बनाए रखें। सभा के प्रतिनिधि के रूप में श्री योगी महाजन ने दोनों प्रस्तावों को व्यक्ति धर्म-वैमनस्य के झगड़ों को भूल सकता है। उन्होंने योग भूमि भारत की तुलना विश्व की कुण्डलिनी से की और बताया कि पूर्ण ज्ञान चैतन्य लहरियों के बोध द्वारा हो प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि सच्चे ज्ञान पारित किया। अपने प्रवचन में श्री माताजी ने बताया कि देश भक्ति की भावना से परिपूर्ण हृदय लोगों का वे बहुत सम्मान करती हैं। ये लोग यदि आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त कर लें तो अपने चित्र द्वारा सहजयोग की शक्ति को प्रभावशाली रूप से उपयोग करते हुए समाज तथा देश की स्थिति परिवर्तित कर सकते हैं। उदाहरण के रूप को सुधार सकते हैं उन्होंने कहा कि साक्षात्कार को पाकर सहजयोगी पूरे समाज एवं देश को उन्होंने हाल ही में आस्ट्रेलिया के सहजयोगी द्वारा उड़ीसा में नौ सहजयोग केन्द्र स्थापित किए जाने का वर्णन किया। प्राप्त करने के पश्चात् विध्वंसक विचार तथा गतिविधियाँ स्वतः ही इस बजर भूमि में आप लोगों का प्रकाश छुट जाती हैं। उन्होंने कहा कि एव जीवन को ले आना देखकर मैं आत्मा के प्रकाश में व्यक्ति देख अभिभूत हूँ ( निर्मल धाम की भूमि जो सकता है कि समाज तथा देश में क्या दोष है और उन्हें सुधारने की शक्ति भी उसमें होती है। कश्मीरी सम्मानपूर्वक कार्य किया। दिल्ली लोगों का दृष्टिकोण परिवर्तन करने सामूहिकता ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान, के लिए कुछ सहजयोगियों की हरियाणा के योगी, योगिनियों की पेशकश का भी उन्होंने वर्णन किया। सहायता से इतने कम समय में यह कि विश्व बन्धुत्व की इस अवसर पर विश्व जन्मोत्सव से पूर्व बीहड़ थी ) मुझे प्रसन्नता भर से आए सहजयोगी है कि सभी लोगों ने परस्पर प्रेम एवं और योगिनियों में 3३ अन्तर्राष्ट्रीय विवाह सम्पन्न हुए। ये विवाह विश्व निर्मल धर्म, जो साक्षात्कार प्राप्त करने के कार्य सम्पन्न किया, यह जानकर भी मैं धारणा का समर्थक है पश्चात् आप धर्म के सौन्दर्य को अत्यन्त प्रसन्न हैं। देख सकते हैं। धर्म के एकत्व की दृढ़ स्थापना की परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी ओर संकेत करते 21 मार्च 2000 हैं। (One ness) को समझा जा सकता 17 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 8 6, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-19.txt दिवाली पूजा डेलही यूनान (ग्रीस्) 7.11.99 आपको अत्यन्त ध्यानगम्य होना होगा अत्यन्त सौभाग्यशाली तथा मंगलमय बात महालक्ष्मी तत्व का सृजन किया। यह उनकी है कि हम यूनान, विशेषकर डेल्फी में दिवाली गतिविधि धी, फिर भी कहा जाता है कि नाभि मना रहे हैं। इसका इतिहास अत्यन्त प्राचीन है में इसलिए अवतरित हुई क्योंकि यह सब करने और जैसा आप जानते हैं अर्थेना (Athana) यहाँ के पश्चात् उन्हें ताभि में ही स्थापित होना था। हम ये भी देखते हैं कि श्री गणेश की कुण्डलिनी भी नाभि में है। तो ये कहा जाता है कि वे नाभि वर्णन पुराणों में भी मणिपुर द्वीपे के नास से में इसलिए अवतरित हुई क्योंकि मनुष्य, पशु या किसी भी जीव की शुद्ध इच्छा उसकी भूख है पुराणों की कल्पना करें कि ये कितने प्राचीन हैं? जिसका स्थान नाभि में है। वे इस भूख को निवास करती थीं। वे आदि माँ थी। संस्कृत के अथ' शब्द का अर्थ है आद्य। इन स्थानों का किया गया है लिखा हुआ है 'मणिपुर द्वीपे। इन सन्तुष्ट करना चाहती थीं और संभवत: इसी कारण से वे सर्वप्रथम नाभि में आई । यही कम से कम आठ हजार या इससे भी अधिक वर्ष पुराने हो सकते हैं और उन्होंने मणिपुर द्वीप का वर्णन नाभि स्थान के रूप में किया है जहाँ आदिशक्ति माँ हमें अथेना के रूप में मिलीं। आदि शक्ति (Alhena) का निवास हैं। मेरा कहने इनके हाथ में एक कुण्डलिनी हे और एक से अभिप्राय ये है कि वे लोग इस बात को कैसे त्रिशूल यूनानी पौराणिक कथाओं में ये सारा जानते थे? हो सकता है घुमावदार क्षेत्र (कुण्डलिनी ) इतिहास अत्यन्त स्पष्ट रूप से दश्शाया गया है । के माध्यम से। परन्तु यह अत्यन्त स्पष्ट लिखा परन्तु बाद में लोगों ने इन पौराणिक कथाओं को है और यहाँ भी वही चीज हमें मिलती है। गलत मोड़ दे दिया क्योंकि मनुष्य जानता है कि हर चीज़ को किस तरह से बिगाड़ना है। उन्होंने जो कि नाभि में है। अर्थना अर्थना का स्थान आद्य माँ भी हैं। वे कहते हैं कि ये नाभि के सभी देवताओं को भी मनुष्यों की तरह से बनाना इर्द-गिर्द सुजित भव सागर में प्रकट हुई। वहाँ से शुरु कर दिया। भारत के कुछ देवी देवताओं का उन्होंने सारा कार्य किया। अवतरित होकर जब वे वर्णन यूनानी पुराणों में भी है। भारत में इन देवी नीचे आई तो उन्होंने श्री गणेश का सृजन किया देवताओं को अत्यन्त पावन, दिव्य एवं सन्तवत और जब वे दाई ओर को गई तो माँ सरस्वती की सृष्टि की। हम कह सकते हैं कि पूरी सृष्टि खींच लाया गया और बहाँ दर्शाए गए बहुत से का उन्होंने सृजन किया और तत्पश्चातू नीचे देवी देवता. भारतीय देवी देवताओं से भिन्न आकर वे कुण्डलिनी में स्थापित हो गई परन्तु करके दिखाए गए क्योंकि उन्होंने इन्हें मानव का नीचे आते हुए उन्होंने हमारे उत्थान के लिए रखा गया परन्तु यहाँ पर इन्हें मानव के स्तर तक रूप दे दिया था। हैरानी की बात है कि शनै: 18 चैंतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 & 6, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-20.txt शनै: वे एक दूसरे से भिन्न कैसे हो गए! भारत में भी ऐसा किया गया परन्तु ये चल न पाया क्योंकि हमारे यहाँ पुराण हैं। जब-जब भी लोग प्राचीन स्थान है जो वर्णनों के अनुसार सत्य है। इन्हें नष्ट करने या बिगाड़ने का प्रयत्न करते हैं. इसमें कोई सन्देह नहीं। परन्तु तत्पश्चात् इस पुराणों के कारण ये अपनी वास्तविक स्थिति में लौट आते हैं। परन्तु यहाँ पुराणों की पूजा बाइबल, पुराण लिखे गए हों। जिस स्थान पर हम बैठे हैं यह अत्यन्त स्थान का पतन हो गया। यहाँ पर कुण्डलिनी और चक्रों के चित्र भी बनाए गए। परन्तु जब इसाई लोग आए तो उन्होंने कहा ये सब असत्य है, इसे भूल जाएं उन्होंने दूसरे पक्ष को नहीं देखना चाहा कि यदि यह सत्य नहीं है तो किस गम्य हैं, इनका वर्णन किया जा सकता है और प्रकार इतिहास बन गया। अर्थना तथा अन्य देवी लोग इनके बारे में जान सकते हैं। परन्तु जिस देवताओं में श्रद्धा कम होती गई और श्रद्धा के लोप होने पर वे लोग प्रसन्न थे। इस यूनान को कुरान या किसी अन्य धर्म ग्रंथ की तरह से नहीं की जाती। पुराण तो मात्र प्राचीन इतिहास के ग्रन्थ हैं और व्यक्ति को देखना है कि ये बोध प्रकार उन्होंने मणिपुर द्वीप का वर्णन किया वह वास्तव में महान है । सिकन्दर के समय में भी यह स्थिति थी। अब एक बार फिर हम लौट आएं हैं। मणिपुर द्वीप, जो कि नाभि है, में हम हैं। इसका वर्णन विस्तार पूर्वक किया है कि चीज़ें लख्मी जी जल से प्रकट हुई. इसमें कोई सन्देह कैसी थीं। उन्होंने लिखा है कि माँ आदिशक्ति नहीं है। परन्तु अरथेना तो लक्ष्मी की माँ हैं। वे का एक मन्दिर था, वहाँ पर श्री गणेश जी सर्वव्याप्त हैं और उन्होंने लक्ष्मी की सृष्टि की यूनान बहुत हो समृद्ध एवं सुन्दर राज्य था। सिकन्दर के साथ आए एक भारतीय राजकवि ने आनन्द से लक्ष्मी पूजा के लिए बैठे हुए विराजमान हैं। यह सब उन्होंने स्पष्ट रूप से और इसी लक्ष्मी का शासन यहाँ पर था। वे यहाँ विस्तार पूर्वक वर्णन किया है। मन्दिर पर पहुँचने स्वयं को अभिव्यक्त करती रहीं और उन्होंने तीन सीढ़ियाँ यहाँ बहुत सुन्दर चीजों का सृजन किया। यूनानी बड़ी हैं और अन्तिम आधी है। इन्हें यदि आप लोग बहुत समृद्ध थे और सभी प्रकार के व्यापारों तथा जहाजरानी किया करते थे जहाजरानी उनका अत्यन्त महत्वपूर्ण व्यापार है। मैं भी यहाँ पर अपने पति के साथ इसलिए आई थी क्योंंकि वे गया है कि डेल्फी के देव पुरुष अमर रहेंगे। भी जहाजरानी के व्यक्ति थे। जब हम हवाई उनका कथन है कि परमात्मा नाभि चक्र में अड्डे पहुँचे तो मैं हैरान थी वहाँ पर एक मन्त्री निवास करते हैं। ये सारी बातें भारत में सिकन्दर की पत्नी, दूसरे मन्त्री की पत्नी और प्रधानमन्त्री के आने से बहुत समय पूर्व वर्णन की हुई हैं। की पत्नी उपस्थित थीं । मुझे हैरानी हुई। आम तौर पर वे वहाँ आने वाली किसी महिला को में बहुत अधिक सौहाद्रपूर्ण सम्बन्ध होंगे। हो लेने हवाई अड्डे नहीं जाती। कहने लगी हमारे पतियों ने हमें कहा कि यदि तुम्हें किसी पूर्ण वाली सीढ़ियाँ भी साढ़े तीन हैं - पुरे विश्व में फैला दें तो ये साढ़े तीन कुण्डल बना सकती है। यह भी स्पष्ट कहा गया है कि ये स्वयंभू हैं श्री गणेश का स्वयंभू। ये भी कहा क इससे हम समझ सकते हैं कि यूनान और भारत सकता है कि यहाँ से बहुत से लोग विदेश जाते निर्मल, अत्यन्त मगलमय, सोम्य महिला को हो या नाभि के घुमावदार क्षेत्र (Torsion Area) से 19 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-21.txt देखना हो तो वे श्रीमती श्रीवास्तव हैं. इसलिए वे कार्य के लिए आप उन्हें रोकिए तो वो कहते हैं मुझे मिलने आई. ये देखने के लिए कि कोन सी कि ऐसा करने में क्या दीष है? और इस प्रकार सौम्य महिला आई हैं। उन्होंने बड़े प्रेमपूर्वक मेरी मानव अत्यन्त व्यक्तिवादी बन गया है। एक देखभाल की। इसके पश्चात् वहाँ चुनाव थे। जिस प्रकार उन्होंने सम्मानपूर्वक मुझसे पूछा कि पीछे भागता है एक विशेष शैली के पीछे भागता ये सौम्यता आपने किस प्रकार प्राप्त की, वह में है। मेरा कहने से अभिप्राय ये है कि उनका स्वयं भूल नहीं पाती। मैंने उत्तर दिया ये मेंने विकसित पर नियंत्रण नहीं हैं। लोग दास बन गए हैं फिर नहीं की, ये तो मुझमें जन्मजात है। सौम्य लगने भी सोंचते हैं कि वे स्वतन्त्र हैं। वे स्वतन्त्र लोग के लिए मैंने कुछ भी नहीं किया, इसके लिए हैं और जो चाहे कर सकते हैं कलियुग में इस कोई सौन्दर्य प्रसाधन केन्द्र भी नहीं है। वे कहने स्वच्छंदता के परिणामस्वरूप वे लोग अत्यन्त लगी नहीं, नहीं। सारे पुरुष आपकी प्रशंसा करते घिनौनं हो गए हैं। जिस प्रकार के कुकृत्य वे इस हैं कि इन भयानक दिनों में भी वे अत्यन्त शान्त कलियुग में कर रहे हैं उन पर विश्वास नहीं महिला हैं। दिवाली महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अमावस्या का दिन होता है। इसकी अत्यन्त अंधेरी और अनैतिक हो गए हैं कि विश्वास नहीं होता, लम्बी रात होतो है जिसे समाप्त करने के लिए परमात्मा के नाम पर उनकी छत्रछाया में किस दीप जलाए जाते हैं। पूरे वातावरण में गहन अंध कार है और सूर्य छिप चुका है । इसलिए दीपक है. जलाए जाते हैं। इसी प्रकार यह कलियुग है. करना आवश्यक है। रात्रि के इस अन्धकार को इसमें भी गहन अंधकार है और हमारे जीवन को समाप्त करने के लिए हमें रोशनी करनी होगी। कष्टकर बनाने के लिए इसमें बहुत समस्थाएं हैं। इसी प्रकार लोगो का भी आत्मसाक्षात्कारी होना हम नहीं जानते कि प्रेम पूर्वक किस प्रकार चला जाए। आज स्वयं को आत्मा के प्रकाश से चाहिए। एक बार जब लोगों के हृदय में ज्योति ज्योतित कर लेना अत्यन्त आवश्यक है। कलियुग हो जाएगी तो जिस अज्ञानान्धकार के कारण हम प्रकार से वह खो चुका है क्योंकि वह फैशन के किया जा सकता। चर्च आदि में उन्हें यह सब सिखाया जाता है। वे इतने भयानक रूप से प्रकार ऐसा हो सकता है? परन्तु ऐसा होने लगा यही कलियुग है । इस कलियुग को समाप्त आवश्यक है। लोगों के हृदय में प्रकाश होना अपनी पराकाष्ठा पर है। परमात्मा के नाम पर कष्ट उठा रहे हैं वह समाप्त हो जाएगा और हमें लोग जो कार्य कर रहे हैं ये हिला देने वाले हैं। पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो जाएगा तो जिस नवयुग के परन्तु ये कलियुग है जिसमें मनुष्य ने सारा विवेक खो दिया है। हम नहीं जानते कि हम कार्यान्वित हो जाएगा कि सभी लोग आत्माक्षात्कारी किस दिशा में चल रहे हैं। हम सभी प्रकार के हो जाएंगे और उन्हें इस चीज़ का ज्ञान होगा कि गलत कार्य कर रहे हैं और फिर भी हम सोचते ठीक क्या है? सच्ची विद्या और ज्ञान क्या है? हैं कि हम ठीक हैं। जो भी कुछ उन्हें कहो वे कहते हैं कि इसमें क्या दोष है? अपने सारे कि प्रेम है, करुणा हैं कुकृत्यों के उत्तर में वे यही कहते हैं। किसी कि हम एक अन्य क्षेत्र में प्रवेश कर गए हैं. बार में हम यहाँ बात कर रहे हैं यह इस प्रकार तो हमारा मार्ग ज्ञान का मार्ग है, ज्ञन जो यहीँ बात हमें समझनी है 20 चैतन्य लहरी । खंड XII अक : 5 & 6, 2000 0 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-22.txt एक ऐसे कार्य-क्षेत्र में जहाँ कलयुगी झगड़े और कष्ट प्रवेश नहीं कर सकते। कलियुग का साम्राज्य बाहर है हमारे अन्दर नहीं। यह ऐसा ही है कि हम अब केवल स्वतन्त्र ही नहीं है, परन्तु जो कुछ भी हम कर रहे हैं वह स्वतन्त्रता के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। आज हम किसी भी ऐसी चीज़ से लिप्त नहीं है जो हमें दूृषित कर सके हमारी पकड़ को ढीला कर सके। लोगों में जब है और आप नहीं जानते कि आप कहाँ हैं, क्या कर रहे हैं और आपको क्या करना चाहिए। आपे से बाहर होकर आप एक दूसरे को चोट पहुँचा रहे हैं। यही कलियुग है। इसे पहचानकर जो भी इसके शिकंजे से निकल जाता है वही सहजयोगी है। यदि आप अब भी उसी परिसर में हैं, असन्तुलन की उसी परिधि में तो आप भी अन्य लोगों जैसे हैं। एक अन्य बात या सत्य पर जो कलियुग में है वो यह है कि चाहे आपकों चोट पहुँची हो, चाहे आप नष्ट हो गए हों लोग स्वयं को दोषी नहीं मानते। इस प्रकार एक अन्य भयानक प्रवृत्ति विकसित हो सकती है जिसके कारण आप दूसरों को दोषी ठहराते है स्वयं को इस प्रकार का व्यक्तित्व आ जाता है तब क्या होता है? तब कलियुग की ये सभी धारणाएं लुप्त हो जाती हैं। अन्तिम निर्णय है। जो लोग सत्य को स्वीकार करेंगे, सत्य में रहेंगे और सत्य में उन्नत होंगे कभी दोषो नहीं समझते कि आपने स्वयं अपने वे बच जाएंगे और बाकी सब नष्ट हो को चोट पहुँचाई है। आपने ही गलती की थी जाएंगे। ऐसा पहले भी कहा जा चुका हैं। जैसे किसी बाग में कुछ पेड़ हैं जिनका भली-भांति पोषण होता है, जिन्हें काफी मात्रा में जल और प्रेम मिलता है और जो लोगों को बहुत कुछ प्रदान करते हैं, वे पेड़ बने रहते हैं। बाकी के परन्तु मैं कहूंगी कि यह जिसका ये परिणाम है। यही वह स्थिति है जिसे हम भ्रम कहते हैं इस भ्रम की स्थिति का समाप्त होना आवश्यक है। कलियुग के लिए कहा गया है कि यह भ्रम का युग है और यदि इस भ्रम में आप फैस गए पेड़ जलकर समाप्त हो जाते हैं। इसी प्रकार हमें तो आप समाप्त हो जाएंगे। परन्तु भ्रम को यदि भी सर्वप्रथम प्रम को स्वीकार करना चाहिए, प्रेम लेना चाहिए, प्रेम से अपना पाषण करना चाहिए यही कारण है कि आज जिज्ञासा बहुत बढ़ गई और वही प्रेम अन्य लोगों को देना चाहिए। हे क्योंकि लोग भ्रम को महसूस कर सकते हैं। कलियुग के अभिशाप से बचने की यह अत्यन्त सहज विधि है। कलियुग इतना अंधकारमय हे कि हम एक दूसरे को चोट पहुँचाने लगते हैं। उदाहरण के रूप में आप लोग यहाँ बैठे हुए हैं, और इसे खोजने का वे प्रयत्न करते हैं। इस आप पहचान लेंगे तो सत्य को खोजने लगेंगे। वे जानते हैं कि ये सत्य नहीं है और जब वे ये बात जान जाते हैं तब क्या करते हैं? तब वे जानना चाहते हैं कि सत्य क्या है और कहाँ है? अचानक अंधेरा हो जाता है, आपको समझ नहीं प्रकार कलियुग में सत्य-साधना आरम्भ हुई। दमयन्ती पुराण नामक एक अन्य पुराण किसी को चोट पहुँचा रहे हैं या नहीं, आप कलियुग की कहानी बताई गई है। कलि द्वारा आएगा कि किस प्रकार यहाँ से निकलें, आप में किसके साथ बैठे हुए हैं कुछ भी आपको समझ फेलाए गए भ्रम के कारण नल की पत्नी दमयन्ती अपने पति से बिछुड़ गई। एक दिन ये भयानक नहीं आएगा। यही अंधेरा हृदय में है मस्तिष्क में 21 चैतन्य लहरी खंड : X अंक : 5 8 6. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-23.txt दिवाली है। लोग यदि आत्मसाक्षात्कारो हैं यही दीवाली हैं कि वे कलियुग के अंधकार को दूर करके इसके सौन्दर्य और खुशी का आनन्द लें। ऐसा कर सकते हैं परन्तु पहले मेरा महात्मप्य सुन मैं कहूंगी कि ये अत्यन्त प्रतीकात्मक बात है कि लें, कि मेरा महत्व क्या है और मैं यहाँ पर क्यों दिवाली शुरु हो चुकी है। हमारे पास बहुत सो हूँ? नल प्रतीक्षा कर रहा था. उसने कहा कि दीप हैं और बहुत से अन्य दीप हमने जलाने आप यदि मुझे सुनना चाहेंगे तभी मैं आपको इसलिए नहीं कि इन दीपको का प्रकाश कम है। हमें अधिक दीप क्यों चाहिए? इनकी क्यों कलि महाराज नल के हाथ लग गया और नल ने उसे कहा कि तुम्हारा गला दबाकर अब में तुम्हें समाप्त कर दूंगा। कलि ने कहा कि आप बताऊंगा। मैं जब आऊंगा और विश्व पर शासन करूंगा अर्थात् जहाँ पर भी कलियुग होगा. लोग भ्रान्ति में फँस जाएंगे, वे समझ न पाएंगे कि ये आवश्यकता है? ताकि सभी लोगों को बचाया जा सके। हमारा प्रयत्न सभी लोगों को बचाने का सत्य है या असत्य और वे सत्य को खोजने का प्रयत्न करेंगे केवल वही लोग नही जो सब कुछ त्याग कर जंगलों में चले जाएंगे, परन्तु अन्य है। यह कठिन कार्य हे अत्यन्त कठिन। अब आप देख सकते हैं कि कैसे बीज की तरह आत्मसाक्षात्कारी लोग दूर दराज स्थानों पर स्थापित हो जाते हैं और वहाँ वे फलते फूलते हैं और सुन्दर वृक्ष बनकर अन्य लोगों को सुगन्ध तथा छाया प्रदान करते हैं! यही कारण है कि सभी स्थानों के लोगों को जागृत किया जा प्रकार के लोग भी, वो लोग जो अब तपस्यारत हैं. कलियुग में जन्म लेंगे और सर्वसाधारण गृहस्थों की तरह इस भ्रम में फँस जाएंगे। भ्रम में फँसने के पश्चात् वे साधना शुरु करेंगे क्योंकि वे रहा है और आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करके वो महसूस कर लेगे कि ये असत्य है और तत्पश्चात् सत्य को खोजने लगेंगे। केंवल तब उन्हें भी अन्य लोगों को जागृत करते हैं। यही सारी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होगा हजारों वर्ष पूर्वं कलि प्रक्रिया है जो भली-भांति अन्तर्रचित है. यह ने यह सब अत्यन्त स्पष्ट शब्दों में बताया तो ऐसी ही दिखाई पड़ती है और सुन्दर ढंग से कलियुग ही वह समय है जब लोग आत्मसाक्षात्कार कार्यान्वित हो रही है। सन्देहपूर्ण तो केवल ये बात है कि कितने लोग सहजयोग में आएंगे और कितनों को उबारकर हम बचा सकेंगे? केवल यही समस्या है और इसके लिए आपको तैयार रहना है कि आपमें से हर क्योंकि सतयुग की तरह से आप लोग ठीक एक सहजी ये निर्णय ले कि मुझे प्रतिदिन प्राप्त कर सकंगे। वे अपनी आत्मा को जान जाएंगे, सत्य को जान जाएंगे। बहुत समय पूर्व ये बात कही गई थी और अब आप इसे स्वयं देख सकते हैं। इस कार्य के लिए यही समय था स्थिति में होते तो आप खोजते नहीं। तब आप कम से कम एक व्यक्ति को आत्मसाक्षात्कार आज्ञाकारी और अच्छे लोग होते और सत्य को देना है प्रतिदिन एक व्यक्ति को। मान लो स्वीकार कर लेते। परन्तु कलियुग में अब वास्तव हमारे सम्मुख कुछ लोग नदी या समुद्र में डूब रहे हैं, ऐसे में आप क्या करते हैं? आप सब मिलकर उन्हें बचाने के लिए दौड़ पड़ते हैं. लोग आत्मसाक्षात्कारी जीव हैं। मेरे लिए यहीँ उनके जीवन की रक्षा करने के लिए आप में पूर्ण सत्य को खोजने लगते हैं। इस प्रकार यह दीप ज्योतित आत्मा को चित्रित करते हैं। आप 22 चैतन्य लहरी । खंड : XII अक : 5 8 6. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-24.txt उन्नत होकर पूरी तरह से परिवर्तित हो गए हैं यह देखकर मुझे बहुत हर्ष हो रहा है । मैंने इसके लिए कुछ विशेष नहीं किया, मैं नहीं सोचती मैंने मैं भरसक प्रयत्न करते हैं। इसी प्रकार हमें समझना कि हमें सभी लोगों के जीवन की रक्षा करनी है और इसके लिए हमें बहुत कठिन कार्य करना होगा। तो मात्र आत्म-साक्षात्कार दिया। परन्तु में कुछ भ्रम से सत्य तक उन्नत होने के मार्ग में नहीं करती, मेरे बिना कुछ किए भी यदि आप भी कुछ समस्या है जिनका मुकाबला उचित ढंग ज्योतित हो जाते हैं और ये सब प्राप्त कर लेते हैं तो मुझे विश्वास नहीं होता। यह कैसे हो ं य से हाना चाहिए। भूख इन समस्याओं में से एक है। भूख धन के लिए हो सकती है, भोजन की हो सकती है या किसी अन्य चीज की भी। भूख सकता है? मैंने कुछ नहीं किया. आपने अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया। परन्तु अब जब में यदि धन की है तो यह आपमें स्थायी रूप से देखती हैँ और इस पर दृष्टि डालती हूँ तो मुझे लगता है कि आप लोग कितना सुन्दर गाते हैं कितने सुन्दर, मधुर और परस्पर कितने स्नेही! है और मैं महसूस करती सोचते कि किसी दूसरे के पास भी पैसा है या हूँ कि सहजयोग में स्थापित होने के लिए आपको अधिक समय नहीं लगेगा। ये समझने का बहुत जम जाएगी क्योंकि लोभ की कभी सन्तुष्टि नहीं होती। परन्तु आधुनिक युग में तो लोग धन के पीछे वास्तव में पागल हुए जा रहे हैं। वे नहीं मुझे विश्वास हो गया नहीं, किसी दूसरे के पास ये सुख सुविधा है कि नहीं, उन्हें तो बस अपने धन का प्रदर्शन करना उपयुक्त समय है कि हमें सहजयोग के प्रति पहले से भी अधिक समर्पित होना है। अच्छा लगता है। वे दिखावा करना चाहते हैं कि कुछ अन्य समस्याएं भी हैं जैसे लोग कह रहे हैं श्रीमाताजी कुछ लिखित नियम होने चाहिए। मैने कहा, नहीं। अपने अनुभव से भी आप कार्य कर सकते हैं उदाहरण के रूप में उस दिन मैंने कहा कि लक्ष्मी तत्व है। अब देखें कि किस प्रकार लक्ष्मी तत्व दुर्बल पड़ता है? आप यदि ये जानना चाहें तो ये कार्य अत्यन्त सुगम एवं समृद्ध वहुत अच्छे हैं और अपने अहं से सभी प्रकार के कार्य किए चले जाते हैं । वे सोचतें हैं कि इसमें कोई दोष नहीं है, क्या दोष है, क्या गलती है? सबसे बड़ी बाधा ये है कि आपका मस्तिष्क अहं संचालित है और आप बिना सोचे-समझे इसके आदेशानुसार कार्य करते रहते हैं। मस्तिष्क भ्रान्ति, भ्रम की पकड में हैं। इस हैं बात को समझने की बहुत सी विधियाँ हैं। तो मैंने कहा कि यदि व चाहें तो सहजयोग साधारण है क्योंकि ये लक्ष्मी अत्यन्त चंचल है। में किसी नौकर को आप एक बार सौ रुपये का आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं और नोट देकर देखें, तुरन्त वह मंदिरालय जाकर शराब पीएगा| लक्ष्मी तो हैं परन्तु जैसे ही उसे लक्ष्मी मिलती है वह मदिरालय जाकर शराब आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के पहले दिन ही अपनी समस्याओं के साथ जहां चाहे जा सकते हैं। इसने आश्चर्यजनक परिणाम दिए क्योंकि आत्मसाक्षात्कार पीने का प्रयत्न करता है। अब इस लक्ष्मी की के प्रथम दिन व्यक्ति बहुत दृढ़ मन: स्थिति में स्थिति की आप कल्पना कर सकते हैं। होता है और सारी गलत चीजों से बचता है। आपमें से बहुत से लोग सहजयोग में करती है। तो आपको देखना होगा कि जो भी लक्ष्मी बहुत अच्छी है परन्तु प्रलोभित कम 23 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 8 6. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-25.txt धन आपके पास है उसे आप बैंक में रखें या जो भी करें, इसे पूरा का पूरा करें। दूसरे यह भी समझ लें कि यदि सारे दरवाजे बन्द कर दिए जाएं और एक ही दरवाजे से लक्ष्मी प्राप्त हो तो यह रुक जाएगी। नि:सन्देह यह रुक जाएगी. यदि आप कंजूस हैं तो यह रुक जाएगी। परन्तु निकास न होने के कारण यह अपने लिए नहीं कह रही. ऐसा सर्वत्र हो रहा है। ऐसा न हमें अपने मस्तिष्क की गतिविधि स्पष्ट देखनो चाहिए। ये कहाँ जा रहा है. क्या सोच रहा है? लक्ष्मी आपको वह सोचने पर विवश करती जो आपको नहीं सोचना चाहिए। जैसे मैंने आपकों बताया लोग शराब पीने लगते हैं और घुड दौड़ जुआ खेलने लगते हैं। कहने से मेरा अभिप्राय है सड़ जाएगी। यदि आप दूसरा दरवाजा खोल दें कि वे सभी बुराइयाँ करने लगते हैं, क्यों? क्योंकि उनके पास पैसा है और इसे उन्होंने कहीं खर्च न करें। तो, आप हैरान होंगे कि न केवल लक्ष्मी बाहर जा सकती है, यह बहुत अधिक स्वच्छ हवा भी खर्च करना है। इस पैसे को वे अच्छी चीजों पर, ले सकती है, बाहर से बहुत सी स्वतन्त्रता भी अच्छी उपलब्धियों के लिए नहीं खर्च करते। प्राप्त कर सकती है क्योंकि आपने दूसरा द्वार यही कारण है कि लोग अब व्यर्थ की चीजों पर बहुत सा पैसा खर्च करते हैं । फिजूलखर्ची से खोल दिया है। आप आजमाएं केवल एक द्वार खुला होने पर कुछ भी अन्दर नहीं आ पाता। केवल एक द्वार खोल कर देखें. हवा भी अन्दर नहीं आएगी. कुछ भी नहीं आएगा। दूसरा द्वार खोलकर देखें कि किस प्रकार हवा के झाँके आप अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकते, क्योंकि आपका लक्ष्य तो पूर्णता को प्राप्त करना, आत्मा बनना है। ये बात समझ लेना अति सूक्ष्म है। आप गलती करते हैं और कहते हैं कि क्या दोष है, इसमें क्या है? में यदि निरन्तर कोई गलत या गम्भीर कार्य करूंगा तो शरीर प्रतिक्रिया करेंगा अन्दर आते हैं! इसी प्रकार जो व्यक्ति धन प्राप्त करना चाहता है उसे चाहिए कि जो भी धन उसके पास है उसे खर्च करना सीखें। इस नहीं, कुछ भी प्रतिक्रिया नहीं करेगा न आपका कलियुग में ये है, क्योंकि मस्तिष्क, न शरीर। आप देखें इन सारे वर्षों का सन्देह, भ्रम उत्पन्न करना कलियुग का कार्य है। मेरा अनुभव ये है कि अब भी कुछ सहजयोगी यह भ्रम उत्पन्न करता ही रहेगा। परन्तु आपको लक्ष्मी तत्व में फँसे हुए हैं। वे मुझे धोखा देना सत्य पर डटे रहना होगा तभी कलियुग कार्यान्वित चाहते हैं, सहजयोग से पैसा बनाना चाहते हैं। न हो पाएगा। केवल उसी स्थिति में यह कार्य न कर पाएगा। तो ये समझ लेना अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। सभी बुरी तरह से असफल हो गए हैं, इतना है कि हर समय हमारी परीक्षा होती है। साक्षी बुरी तरह से कि वे या तो जेल में हैं या रूप से ये सब देखा जाना चाहिए। लक्ष्मी जी की दिवालिए हो गए हैं। अत: कभी सहजयोगियों से कार्यशैली देखना बहुत दिलचस्प है। धोखेबाजी, व्यापार न करें। सहजयोगियों के लिए आवश्यक लूटखसोट, झूठ फरेब करने वाले व्यक्ति के घर से हमें भाग जाना चाहिए। लक्ष्मी ऐसे व्यक्ति के ये सिद्धान्त जब आप समझ जाएंगे तो आपस में पास नहीं रुकती। वह चली जाती है। हमारे व्यापार नहीं करेंगे। मुझसे भी आप व्यापार नहीं ईद-गिर्द ये सब घटित हो रहा है। मैं ये बात भी एक चरदान कुछ अन्य लोग आपस में व्यापार करना चाहते है कि वे अन्य सहजयोगियों से व्यापार न करें। कर सकते। परन्तु ये छोटी-छोटी गलतियाँ लोग 24 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 & 6, 2000 प গ " 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-26.txt करने लगते हैं। उदाहरण के रूप में दो सहजयोगी हैं एक जापान से और दूसरा अमरीका से। वे व्यक्ति विशेष के साथ होता है और सामूहिकता कहने लगते हैं, "अरे, आप भी सहजयोगी हैं में भी हो सकता है। मैंने देखा है कि सामूहिकता और मैं भी सहजयोगी हूँ. क्या आप मुझे कुछ में लोग काफी पथभ्रष्ट होते हैं और एक जाली दस्तावेज़ या कुछ सूचनाएं दे सकते हैं?" नकारात्मक व्यक्ति तुरन्त दूसरे नकारात्मक व्यक्ति वे आपसे प्रश्न पूछते चले जाते हैं। पक्का सहजयोगी है या नहीं है। ऐसा किसी परन्तु क्यों? को पहचान लेता है और दोनों मिलकर कार्य हम ऐसा नहीं करना चाहते। जो चीज़ आपके पास हो उसमें उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है जब लोग आपसे व्यापार की बात करने लगे तो ये बात आपको अत्यन्त विवेक शीलता पूर्वक है। सहजयोग में आपको धन भी प्राप्त हो गया समझ लेनी चाहिए। सहजयोग में परस्पर कोई है अब आपको समझ जाना चाहिए कि चोरों व्यापार नहीं होता। केवल आत्मसाक्षात्कार का को घुसने के लिए वह बहुत अच्छा प्रलोभन है। लेन-देन होता है। यह छोटा सा रहस्य जब करना शुरू कर देते हैं। अत: आपको अत्यन्त आपको आत्मसाक्षात्कार सावधान रहना होगा, प्राप्त हो चुका है, आपको सभी कुछ मिल गया अतः आपको बहुत सावधान होना चाहिए और आपको समझ आ जाएगा तो धन, जो कि भ्रामक व्यर्थ की चीजों की ओर आकर्षित नहीं होना है, की भूमिका भी समाप्त हो जाएगी। आप यदि समर्पित हैं तो सभी कुछ अत्यन्त चाहिए। आपकी माँ की ओर से यही सुरक्षा है कि वे इस प्रकार आपकी रक्षा करना चाहती हैं। सुन्दरतापूर्वक कार्यान्वित होता है परन्तु यदि जीवन की ओर हमारा दृष्टिकोण केवल आप समर्पित नहीं हैं तो भी इसे कार्यान्वित एक साक्षी का होना चाहिए। हर चीज़ को किया जा सकता है क्योंकि जब आप परिणाम स्पष्ट देखें। धीरे-धीरे यह दृश्य इतना स्पष्ट हो देखेंगे तो आपको चोट पहुँचेगी, कष्ट होगा जाएगा. इतना सूझ-बूझ से पूर्ण कि आप हैरान और आप यह सब त्याग देंगे। तो जो भी कुछ रह जाएंगे। तब अपनी किसी भी चीज का घटित होता है, चित्त द्वारा स्पष्ट देखकर आप उपयोग करते हुए आपको सोचना नहीं पड़ेगा, जान जाते हैं कि आप कितने कष्ट में चले गए केवल चैतन्य लहरियाँ देखनी होंगी। चैतन्य लहरी हैं और इसे त्याग देते हैं । परन्तु ऐसा करने से कैसी है? चैतन्य लहरियाँ क्या कह रही हैं? क्योंकि वही आपकी पथ प्रदर्शक है । जिन देखने का हमारे पास एक बहुत अच्छा तरीका लोगों की चैतन्य लहरियाँ अच्छी नहीं है उन्हें है। चैतन्य लहरियाँ महसूस करके स्वयं देखें। चाहिए कि स्वयं को स्थापित करें। चैतन्य क्या चैतन्य लहरियाँ अच्छी हैं? चैतन्य लहरियाँ लहरियों का ज्ञान यदि अच्छा नहीं है तो इसका अर्थ है कि आप लोगों को अच्छी तरह से पहचान नहीं सकते और न ही मनुष्य, किसी भी धर्म गुरु, किसी भी करोड़पति आपमें ठीक से यह ज्ञान है। तो सर्वप्रथम या किसी अन्य चीज़ के बारे में जान सकते हैं। अपनी चैतन्य लहरियों को सुधारें और अपने परन्तु सबसे पहले आप ये जान लें कि व्यक्ति चक्रों को भी ठीक करें। तत्पश्चात् आप देख पहले अपनी चैंतन्य लहरियों के माध्यम से अगर अच्छी नहीं हैं तो आपको समझ जाना चाहिए कि कोई समस्या है। आप किसी भी कात 25 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-27.txt सकते हैं कि आपके सहयोगी कैसे हैं वे कौन कि ठीक है। जो भी निर्णय लेना होगा उसके हैं? अब आपका मस्तिष्क इतना प्रकाशमय हो लिए आपको पूरी तरह से अपने हाथों का गया है कि आप हर चीज़ को एकदम से देख उपयोग करना होगा। सकते हैं। इस ज्योतित मस्तिष्क का उपयोग यदि आप नहीं करते तो हैरान होंगे कि कुछ नकारात्मक शक्तियाँ विद्यमान हैं जो कार्य कर सकती हैं। चीज़ का गहन प्रभाव आप जान पाएंगे, तथा यह बातों से कुछ न होगा. भाषणबाजी से कोई लाभ न होगा। केवल आपके अनुभव और सूझ-बूझ के माध्यम से ही हर भी कि ये कैसे लोग हैं? किस प्रकार की बातें अब हम एक एसे बिन्दु पर हैं कि नकारात्मक शक्तियाँ हानि नहीं कर पाएंगी। परन्तु जब मैने कर रहे हैं और आपको क्या करना चाहिए? सहजयोग आरम्भ किया था तब स्थिति बहुत खराब थी। स्थिति बहुत खराब थी और हमारे हो परन्तु बाद में यह पूर्णतः मस्तिष्क से ऊपर पास अधपक, चौथाई पके, 1/16 पके लोग थे । आरम्भ में हो सकता है यह थोड़ा सा मानसिक की बात हो जाता है। अब., जैसा कि मैंने कहा कि कलियुग मेरी समझ में नहीं आता था कि उन्हें किस प्रकार बताऊँ। क्योंकि उन्हें यदि में स्पष्ट बता समाप्त हो गया है, समाप्त होने वाला है। परन्तु अब भी ऐसे लोग हॉंगे जो तथाकथित सामान्य देती तो वे दौड़ जाते, वो सहजयोग में आते ही नहीं। अन्य स्थानों पर गुरु लोग क्या करते हैं? वे स्थिति की ओर लौट जाना चाहेंगे। परन्तु इससे केवल पैसा बटोरते हैं। लोग सोचते हैं कि अब बचने का भी एक उपाय है; ये है ध्यान धारणा हमने गुरु को पैसा दे दिया है अब हम उसे कैसे ध्यान धारणा से आप सभी कुछ प्राप्त कर सकते छोड़ सकते हैं। वे पैसा देते रहते हैं और उससे हैं और तब आप हैरान होंगे कि हमें करने के चिपके रहते हैं। परन्तु सहजयोग में पैसे का कोई काम महत्वपूर्णतम कार्य स्वयं के प्रति सावधान रहना नहीं है, इसलिए लोग आते हैं और गायब हो है। मुझे आशा है कि आप लोग लक्ष्मी के जाल जाते हैं। ये आम बात है कि लाग कुछ समय के लिए ही सहजयोंग में आ जाते हैं। परन्तु यदि वे करती है वही हमें बदसूरत भी बना सकती है। वास्तव में विशिष्ट लोग हैं तो वे टिकते हैं और चीजों को उचित कोण से देखने लगते हैं. लक्ष्मी को अपना आदर्श बनाए रखें और यह क्योंकि अब वे साक्षात्कारी हैं, उन्नत हैं और कार्य करती है। हमारा यही लक्ष्य है, यही आदर्श परिपक्व हैं। तो इस प्रकार हमें कलियुग की इस है और यही हमने करना है। तो हम नई सरकार घोर अंधेरी रात में दिवाली के माध्यम से लौटना स्थापित कर सकते हैं । हमारा पूर्ण दृष्टिकांण पड़ा। हमें यही करना है, विनम्र होना है और ऐसा होना चाहिए कि हमें चुस्त रहना है क्योंकि देखना है कि हम ठीक हैं या नहीं, ठीक दिशा लिए बहुत महत्वपूर्ण कार्य दे दिया गया है और तास में नहीं फँस रहे हैं जो लक्ष्मी हमें अलंकृत अत: हमें चाहिए कि इस सुन्दर, सुसज्जित अब आप ध्यान धारणा-गम्य हो गए हैं। किसी चीज़ के विषय में ज्यों ही आप सोचना आरम्भ का निर्णय कर सकते हैं। चैतन्य लहरियों से करते हैं तो ध्यान में चले जाते हैं। आपका आप तुरन्त जान जाएंगे कि आप पकड़े हुए हैं सोचना समाप्त हो जाएगा। आप सोच न पाएंगे में जा रहे हैं या नहीं? केवल आप ही इस बात 26 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 5 8 6. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-28.txt लोग भी भटक जाएंगे यही मार्ग है जिससे हमने वास्तव में आगे बढ़ना है, सत्य को ओर बढ़ना है और अन्य लोगों के लिए सत्य को लाना है और उनकी रक्षा करनी है। केवल इसी प्रकार और ऐसी स्थिति में यदि आप ध्यानगम्य नहीं हैं तो आप भटक सकते हैं। परन्तु ध्यान धारणा में यदि आप होंगे तो खो नहीं सकते, क्यों? क्योंकि तब आप अपना जीवन सत्य के हाथों सौंप चुके होंगे। अपना हाथ आपने वास्तविकता के हाथ में आप अपना प्रेम, अपना स्नेह उनके प्रति अभिव्यक्त पकड़ा दिया होगा और वास्तविकता आपका पथ-प्रदर्शन करती है आपकी रक्षा करती कर सकते हैं। मैं सोचती हूँ कि इस विषय को संभालना आपको देखती है, आपकी सहायता करती है बहुत कठिन है, इसके विषय में बात करना इसे आत्मसात करने से कहीँं सुगम है। तो अब जब आप मुझे सुन रहे हैं तो इसके पश्चात् ध्यान बात नहीं आपको कुछ नहीं होगा। परन्तु यदि करने का प्रयत्न करें। ध्यान अवस्था में आप आत्मसात करेंगे और विवेकशीलता, चैतन्य पाना असंभव है। आपकी रक्षा असंभव है। प्रदान करना और सहजयोग द्वारा सभी कार्यों आपका परिपक्व होना असम्भव हैं। परिपक्व को करने की शक्ति जो आपके अन्दर होने के लिए आपको अत्यन्त ध्यानमय होना विद्यमान है पूर्णतः और निरन्तर गतिशील हो जाएगी। परन्तु यदि आप ध्यान धारणा नहीं जो सहजयोंगी ये पूजा कर रहे हैं और इसके करते, आपका ध्यान यदि कहीं और है तो यह कार्यान्वित न होगा, कार्यान्वित न होगा। आज खुशियाँ तथा उत्सव मनाने का दिन की स्थिति टूट न जाए। कभी नहीं। आपको है कि सर्वत्र हमारे इतनी बड़ी संख्या में सहजयोगी केवल दंखना भर है कि आप कहाँ तक जा चुके हैं। यह पूरे विश्व के लिए आशा किरण है और हम बीहड़ में खोए सभी लोगों को बचा सकते का समाधान कर लिया है। ज्यों ही इस चीज़ को हैं। नि:सन्देह। परन्तु ये उत्सव आदि मनाने के पश्चात् आसन पर बैठकर हमें देखना चाहिए कि क्या हो रहा है, और आप हैरान होंगे कि ध्यान अवस्था में जो उपलब्धियाँ आपने प्राप्त की हैं वे और आप गलत दिशा में नहीं जा सकते। चाहे आप ध्यानमग्न होंगे फिर भी चिन्ता की कोई आप कभी ध्यान गम्य नहीं होते तो आपको बचा होगा यह बहुत महत्वपूर्ण हैं। मैं कहूंगी कि आज ज बाद उत्थान की एक अन्य पूजा करेंगे उन्हें अत्यन्त सावधान रहना है कि कहीं ध्यानधारणा हैं? किस सीमा तक आपने अपनी समस्याओं आप देखते हैं आप तुरन्त पूर्ण आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति बन जाते हैं। अतः आदेश ये है कि हमें ये समझना चाहिए कि हम आत्म साक्षात्कारी व्यक्ति हैं। सब आपके सम्मुख प्रकट हो जाएगी। सभी महत्वपूर्ण क्या है? हम क्यों आत्मसाक्षात्कारी जो आपने प्राप्त किया है और सारी परेशानियाँ हैं केवल अपनी इच्छाओं के लिए नहीं। केवल और चिन्ताएं दूर हो जाएंगी। आप सब लोगों के अपनी शुद्ध इच्छाओं के लिए भी नहीं, दूसरों के लिए। सामूहिक चेतन होकर आप अन्य लोगों प्रार्थना करती हूँ कि स्वयं को समझने की ये की सहायता करने लगते हैं। आप दृढ़तापूर्वक विशेष शक्ति प्राप्त करें। मेरी आशा पूर्ण हो चुकी खड़े नहीं होंगे तो आप भटक जाएंगे और अन्य ह कुछ साथ यह घटित होना चाहिए और आप सबसे मैं है। आप सब लोगों को यहाँ बैठे देखकर 27 चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-29.txt आज में आप सब को इस विशेष शक्ति का आशीर्वाद देती हूँ कि आप लोगों को मुझे अत्यन्त हर्ष हो रहा है। इसी प्रकार जब आप अन्य लोगों की कुण्डलिनी उठाने का प्रयत्न करेंगे तो आपको भी होगा। लोगों को सहजयोग में स्थापित करें। आप आश्चर्य चकित होंगे कि आपके साथ क्या हुआ। अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार दे और उनकी नाभि की देखभाल करें। जो भी हो, यह समझना अत्यन्त आवश्यक है कि आप किसी भी सीमा तक जा सकते हैं । आत्मसाक्षात्कार देना अत्यन्त आनन्दप्रदायी है। हमें पूरे विश्व को परिवर्तित करना है, पूरे इसके लिए आपको कुछ करना नहीं पड़ता। विश्व को बचाना है। यह आपकी जिम्मेदारी आपको कोई धन नहीं खर्चना पड़ता ऐसा कुछ है। आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ है नहीं है। आपमें यह शक्ति है जो कि जागृत हो चुकी है। जहाँ भी आप जाएं लोगों की कुण्डलिनी खोजने का प्रयत्न न करें। अपने विषय में जागृत करके उन्हें आत्मसाक्षात्कार दे दें। कुछ सोचें कि आपको आत्मसाक्षात्कार मिल गया भी नहीं करना है। यह अत्यन्त आनन्ददायी है. है और ये आशा की जाती है कि आप इससे आपको बहुत प्रसन्नता होती है। अन्य लोगों को नहीं। अत: लोगों में दोष सहजयोग को फैलाएं। हार्दिक धन्यवाद| न परमात्मा आपको धन्य करें। पाम म का म त त त 28 चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-30.txt सत्य साधकों को किस प्रकार जन कार्यक्रम का सन्देश प्राप्त हुआ रामलीला मैदान, 25 मार्च 2000 ला सर्वेक्षण (Survey) म (यह विवरण श्री आर. वेंकटेशन के नेतृत्व को समाचार पत्रों में छपे विज्ञापनों से सूचना में कार्य कर रहे नितिन जिन्दल, देवेन्द्र कुमार, सौम्या वेंकटेशन, सुजाता श्रीवास्तव तथा पेंतीस से भी अधिक सहजयोगी कार्यकर्त्ताओं द्वारा प्रस्तुत है। प्राप्त हुई। परिणामों से स्पष्ट है कि दिल्ली सहज योग सामूहिकता गतिशील एवं प्रभावशाली किया गया।) जनकार्यक्रम के सूचना स्रात सूचना स्रोत समाचार पत्र विज्ञापन परिचय जिज्ञासुओं का १% इस सर्वेक्षण का उद्देश्य यह जानना था कि दिल्ली तथा आस-पास के क्षेत्रों में सत्य पट्टिका (Hoarding) साधकों को जन कार्यक्रम का सन्देश पहुँचाने का मुख्य स्रोत क्या था। साधकों का आयु वर्ग तथा शैक्षिक योग्यता के विषय में जानना भी इसका 3.6% 11.7% दीवार इश्तहार 13.6% परिवार 20.7% मित्र 45.7% दूरदर्शन विज्ञापन केबल दूरदर्शन उद्देश्य था सर्वक्षण में किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो इस बात का ध्यान रखते हुए उपस्थित साधकों के विशाल समूह में भिन्न-भिन्न लोगों से इसके विषय में पूछताछ की गई। पैतीस कार्यकर्ताओं ने लगभग नौ सौ तीस जिज्ञासुओं से 1.8% 0.6% बस बोर्ड लेख-पत्रिका/समाचार पत्र 0.8% 1% 0.5% अन्य बातचीत की| 2. दिल्ली तथा पड़ोसी राज्यों से आए साधकों की भौगोलिक स्थिति मुख्य परिणाम जन कार्यक्रम के सूचना स्रोत परिवार तथा मित्र जन कार्यक्रम के मुख्य सूचना स्रोत थे। लगभग दो तिहाई साधकों को कार्यक्रम का सन्देश मित्रों तथा परिवार के सदस्यों दिल्ली महानगर में सहजयोग चहुँ ओर फैला हुआ ह पूर्वी दिल्ली की सामूहिकता अधिक गतिशील रही परन्तु मध्य दिल्ली की सामूहिकता इस कार्य में बहुत पीछे रही। रामलीला मैदान आए साधकों का लगभग पैतालीस % पड़ोसी नगरों से है। जनकार्यक्रम का सन्देश फैलाने में 1. से प्राप्त हुआ एक चौथाई को विज्ञापन बोर्डों तथा दीवारों पर लगे पोस्टरों से सूचना मिली। कार्यक्रम में भाग लेने वाले लोगों के केवल 4% आया। कार्यक्रम की देने के लिए सभाओं सूचना 29 चेतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-31.txt का आयोजन तथा निशुल्क बस सेवा आदि प्रदान करके गाजियावाद की सामूहिकता सबसे अधिक गतिशील रही. मंरठ और नोएडा इस दिशा में उनसे पीछे रहे और फरीदाबाद और भारत की सांस्कृतिक संपन्नता की ओर संकेत करता है। तालिका 3 साधकों का शैक्षिक स्तर साधकों साधकों का शैक्षिक स्तर गुडगांव फिसड्डी थे। तालिका-2 ट] दि का % हाई स्कूल स्तर की शैक्षिक योग्यता हाई स्कूल स्तर से नीचे परन्तु पढ़े लिखे क्षेत्रानुसार जिज्ञासुओं का वर्गीकरण क्षेत्र दक्षिणी दिल्ली 57% साधकों का % 34% 13 उत्तरी दिल्ली 9% अनपढ़ 13 4. जिज्ञासुओं की आयु के अनुसार वर्गीकरण यह सत्य कि उपस्थित जिज्ञासुओं में से दो तिहाई लोग बीस से चालीस वर्ष की आयु के थे, प्रमाणित करता है कि भारत योंग-भूमि है। सर्वेक्षण उस कहावत को असत्य साबित करता पश्चिमी दिल्ली 15 पूर्वी दिल्ली 19 मध्य दिल्ली गाजियाबाद 7. 20 नोएडा गुडगांव फरीदाबाद 7. है कि सत्य साधना केवल वृद्ध लोगों का ही कार्य है। तालिका-4 मेरठ 3 जिज्ञासुओं का % 3. साधकों का शैक्षिक स्तर सहजयोग में दिलचस्पी शैक्षिक स्तर से ऊपर की चीज है। उपस्थित जिज्ञासुओं में से आयु समूह 15 से 20 साल 21 से 30 साल 32% लगभग 43% की शैक्षिक योग्यता दसवीं कक्षा 31 से 40 साल 28% तक की न थी। इतना बड़ा प्रतिशत योगभूमि 41 से 50 साल 22% 50 से अधिक आयु वाले 12% |र 30 चैतन्य लहरी खंड :XII अंक : 5 & 6, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-32.txt जन कार्यक्रम रामलीला मैदान 25 मार्च 2000 (विवरण) 'दिल्ली की सभी सड़कें रामलीला मैदान जो कि वहाँ उपस्थित थी ने उन्हें गुलदस्ता भेंट पहुँच रही थीं"। 25 मार्च 2000. दिल्ली के किया। मंत्रमुग्ध अवस्था में जिज्ञासुओं ने श्री रामलीला मैदान में जन कार्यक्रम दिवस को ये माताजी को सुना। श्री माताजी ने बताया कि कहना अतिश्योक्ति न होती। पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और मध्य दिल्ली के भिन्न भागों के इसके लिए न तो तपस्या की जरूरत है न अतिरिक्त पड़ोसी राज्यों के नगरों-मेरठ, गुडगांव फरीदाबाद, गाजियाबाद से आई हुई अनुबंधित इच्छा उसकी एकमात्र शर्त है। अत्यन्त खेदपूर्वक बसों की कतार रामलीला मैदान की ओर बढ़ रही थी। चालीस से साठ हजार के बीच मानव समुद्र, कार्यक्रम आरम्भ होने के नियत समय से कि सहजयोग तुरन्त साधक के अन्तस को छू पूर्व मैदान पर पहुँच चुका था। सैंकड़ों विज्ञापन लेता है। इस कथन को सिद्ध करने के लिए बोर्डों, हजारों खम्भों पर लगे इश्तहारों और दीवारों उन्होंने रूस के तलियाती क्षेत्र के माफिया प्रमुख है। आत्मज्ञान का मार्ग प्राप्त कर लेना सुगम , त्याग की। आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति की शुद्ध श्री माताजी ने कहा कि किस प्रकार कुगुरु सत्यसाधकों को भटका रहे हैं। उन्होंने बताया लगे असंख्य पोस्टरों ने जनता को कार्यक्रम का उदाहरण देते हुए बताया कि आत्मसाक्षात्कार पर प्राप्त करने के पश्चात् उसने दिल्ली प्याज भेजने की आज्ञा मांगी क्योंकि उन दिनों दिल्ली में प्याज बहुत महंगे थे। अर्थशास्त्र की स्वीकृत ध रिणा है कि उद्यमी सदैव समाज में विद्यमान होते का सन्देश दिया था। इसका अन्दाजा अपनी कारें खड़ी करने के प्रयत्न में लगी कारों की कतार से लगाया जा सकता था। लगभग पचास १% साधक मेरठ, नोएडा, गाजियाबाद, गुडगांव. फरीदाबाद, हरिद्वार आदि नगरों से आए थे और हैं। निजी उद्यमों का लक्ष्य शुद्ध लाभ होता है। बाकी के दिल्ली महानगर के क्षेत्रों से (विस्तृत विवरण के लिए सर्वेक्षण विवरण देखें)। सभी को आध्यात्मिक लाभ प्राप्त हो जाता है. स्थितियाँ जातियों तथा समूहों के सत्य साधक श्री माताजी चाहे जो भी रही हों। व्यक्ति का अन्तर्परिवर्तन हो के दर्शन के लिए वहाँ एकत्र हुए और सभी जाता है। आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करने के लिए अत्यन्त आतुर थे। श्री माताजी जब स्थल पर पहुँची तो ने अपने दोनों हाथ परम पूज्य माताजी श्री निर्मला साधकों का विशाल जन समूह उनके स्वागत के देवी की ओर फैला कर पहली बार अद्वितीय सत्य लिए खड़ा हो गया। दिल्ली राज्य की मुख्यमन्त्री (चैतन्य-लहरियाँ) का अनुभव किया। आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति द्वारा भी नि:सन्देह व्यक्ति और तब वह महान क्षण आ पहुँचा! जिज्ञासुओं 31 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 5 & 6, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-33.txt श्री गणेश पूजन पुण्यनगरी 1987 निराकार में जो ब्रह्म है, वह ही साकार में के चैतन्य को जानना चाहते हैं तब आप जो साक्षात् श्रीगणेश हैं। अभी तक उसकी गहनता पर बहुत कम विचार किया गया और उसके सकते हैं कि इस वस्तु में क्या दोष है, क्या गुण विषय में जो कुछ भी बताया गया वह सबने है या यह वस्तु स्वयंभू है या नहीं, इसका पूर्ण मान्य कर लिया, किन्तु उसका विवरण, विश्लेषण ही नहीं पाया था। उसकी वजह यह है कि उस उसकी ओर हाथ बढ़ाते हैं, तत्क्षण आप जान ज्ञान आपको हो सकता है, अगर आपकी वह स्थिति हो जाये इस ज्ञान को देने वाले इस सूझ -बुझ को देने वाले श्रीगणेश हैं। क्योंकि वह वक्त आपके जैसे सहजयोगी नहीं थे, जो चैतन्य से प्लावित है, जो चैतन्य को जानते हैं और ही चैतन्य बनके हमारे अंदर से बहते हैं और जिनकी सूझ-बूझ सर्व-सामान्य जनता से बहुत ऊँची है। सूझ और बूझ का मतलब कभी-कभी तो उनको जो कुछ भी जानना है वह हम भी लोग यह सोचते हैं कि जो तर्क और बुद्धि से जब वह चैतन्य बनकर हमारे अन्दर से बहते हैं जान सकते हैं। वह हमारे ही नसनसों में जाना जा समझा जाता है या जो संस्कारों से अपने अन्दर अंकित होता है. वह ही सब कुछ सूझ-बूझ होती चैतन्य द्वारा ज्ञात होने वाली जो कुछ भी बातें हैं है, ऐसी बात नहीं है। सूझ-बूझ जो आत्मा की प्रेरणा से, आत्मा के ज्ञान से मनुष्य में एक अद्वितीय ऐसा नया आयाम बना देती है, उसी नहीं, उसमें कोई बड़ी समझदारी रख करके को सूझ-बूझ कहते हैं। वह सूझ-बूझ देने वाला, लोग कहते हैं, श्रीगणेश हैं। सो कैसे? यह सकता है। हम भी पहचान सकते हैं कि यह वह बिल्कुल सही हैं. (Absolute) हैं । उनमें द्वेत नहीं है, उनमें कोई संशोधन करने वाली बात आपस में उसमें बार्तालाप करके किसी समझौत पर पहुँचने की बात नहीं है. जो है सो यही है और इसके अलावा नहीं है। सूझ-बूझ हमें श्रीगणेश किस तरह देते हैं? यह सहजयोगी बहुत आसानी से समझ सकते हैं, क्योंकि जिस वक्त आप "पार" हो जाते हैं, हैं, तब ही हमारे अन्दर से यह शक्ति बहना शुरू आपके अन्दर से चैतन्य की लहरियाँ बहने लग जब यह गणेश हमारे अन्दर जागृत होते हो जाती है । अब आप कहेंगे कि "माँ कुंडलिनी ता जाती हैं, तब आप केवल एक मात्र सत्य को ही जानते हैं। अँब्सल्यूट (Absolute) को जानते हैं। उसकी माँ है और गणेश नीचे बैठे हुए हैं तो यह यह श्रीगणेश की माया है। श्रीगणेश ही चैतन्यमय किस प्रकार घटित होता है?" सात चक्रों में से हो करके आपके अंदर से बहते हैं और वही श्रीगणेश चैतन्य बहाकर अपना अस्तित्व दिखाते साकार हो करके इस चैतन्य को बहाते हैं। जिस हैं कि हम हैं। अब हर जगह जहाँ-जहाँ गणेश वक्त आप किसी भी वस्तु, प्राणीमात्र या मनुष्य हैं-जैसे आपने यहाँ सुना होगा कि तरह-तरह के का 32 चैद्रन्य लहरी खंड :XII अंक : 5 & 6. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-34.txt गणेश हैं। किसी का नाम है उंब-या गणपति, काम किये हैं उसके लिए कुण्डलिनी जागृत करना ठीक नहीं। तो कुण्डलिनी माँ वहीं बैठी अनुसार, उसके कमों के अनुसार, कार्य के रहती है और अगर किसी तरह से बिचारी को बड़ा प्रेम चढ़ ही आया और वह चढ़ गयी, ऊपर तक आ भी गयीं तो भी फिर उसे घसीट स्थान के उस चक्र के अनुसार कार्यान्वित होते के नीचे, फिर कुण्डलिनी धड़ाक से नीचे गिर हैं। जैसे की समझे लीजिए, नाभि चक्र में जाती हैं। तो श्रीगणेश का कार्य अत्यन्त अचूक और अत्यन्त महत्वपूर्ण है और क्योंकि वह एक किसी का नाम कुछ और गणपति है काम के अनुसार उसके गणपति हैं। उसी प्रकार हरेक चक्रों में जो श्रीगणेश बैठे हुए हैं वह गणेश उस श्रीगणेश का क्या स्थान है? तो नाभि चक्र में श्रीगणेश शेष के मुँह से बहते हैं "शेष-नाग " मात्र सत्य को ही जानते हैं वह असत्य पर चलने जो की हमारे श्री विष्णु की शय्या हैं। उसके नहीं देते। इसीलिए उसके हाथ में एक फर्स भी है। अन्दर से बह उसकी फुत्कार के साथ बहते हैं और इस वक्त उसकी फुत्कार शुरु हो जाती है चैतन्य की तो आप देखते है कि आपके पेट के अब जो लोग गणेश तत्व को पहचानना चाहते हैं, और मन से उतारना चाहते हैं. और हिस्से में एक तरह का स्पंदन सा मालूम होने गणेश तत्व में समा जाते हैं, सिर्फ गणेश की ही लग जाता है और यह जो स्पंदन आपको मालूम भूमिका इस मूलाधार चक्र पर है उसी में जम जाते हैं। माने ऐसे लोग अपने को बड़े सन्यासी. इस परावाणी के आगे चल के दूसरी वाणियों के ब्रह्मचारी आदि-आदि बना करके रहते हैं। उनके अन्दर भी एक ऐसी असंतुलन वाली दशा आ जाती है कि जहाँ गणेश एक तरह स सो जाते हैं। "एकांगी" गणेश को आप जानते हैं कि इसके सात स्वरूप हैं और वह सात स्वरूप में न उतरने हो जाता हैं, इसी को लोग 'परावाणी' कहते हैं नाम हैं। लेकिन परावाणी जो है स्पंदन वही श्रीगणेशजी की कृपा है। सो हम सहजयोगियों के लिए गणेशजी बहुत ही महत्वपूर्ण आराध्य हैं। गणेशजी के कहे बगैर उनकी इजाजत के बगैर कुण्डलिनी उठने वाली नहीं है। इस मामले में के कारण एक ही स्वरूप में बैठ जाते हैं । एक कुण्डलिनी अपने बेटे की बात सुनती है। ऐसे तो ही गणपति अगर पूना में रहें तो यहाँ तो कुछ माँ की बात बेटा हर मामले में सुनता है और आप जानते हैं कि श्रीगणेश तो पूरी तरह से को मजा ही नहीं आयेगा, तो उनके तो सात अपनी माँ को समर्पित हैं। वह तो अपने पिता को भी नहीं जानते. लेकिन यह जो कुण्डलिनी है-यह श्रीगणेशजी की बात सुनती है। जिस वक्त में उसका उत्थान हो, क्योंकि मनुष्य के बारे में जो ज्ञान है वह श्रीगणेश को है। श्रीगणेश जाएंगे। अब जो लोग वहुत ज्यादा गणपति की ही उनको बताते हैं कि वह मनुष्य जागरण के सेवा करते रहे हैं और गणपति को ही मानते रहे योग्य नहीं है। जिनमें वह भोलापन, सादगी नहीं हैं और ब्रह्मचर्य में लीन हैं और विवाह भी नहीं है, उसमें वह प्रेम नहीं है, तथा जिसने बहुत दुष्ट किया और किसी स्त्री की ओर देखा भी नहीं आल्हाद और उल्लास ही नहीं आयेगा। लोगों ा प्रकार हैं उन्हीं सात गणपतियों को आपको जानना चाहिए और जब तक वह आपके अन्दर जागृत नहीं होंगे तो आप एक अजीब तरह की अपने लिए और दूसरों के लिए समस्या बन कता 33 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 & 6, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-35.txt आदि-आदि प्रकार के हैं-वह सीधे आपके पिंगला तो रियलाईज्ड (realised) सोल ही और उनके सब कपड़े नीले रंग के होते हैं। एकदम शुद्ध गणेश जी एक तरह से छूट जाते हैं। कार्तिकय ऐसा नीला रंग बह पहनते हैं, और उनके साथ में का रूप आ जाता है। पिंगला नाड़ी पर चलने से सफेद रंग। उसकी बाकी चीजें-हाथ. पैर सफेद ऐसे लोग बड़े क्रोधी हो जाते हैं। श्रीगणेश सौम्य रंग के। उसमें बहुत ही खूबी की बात यह है कि सौम्यता ही वह हमेशा सत्कमों में लगे रहते हैं. और शांत उनका मूल धर्म है। कोई चीज ज्यादा भड़क चित्त हैं। अगर श्रीगणेश के गण शांत चित्त नहीं जाती हैं तो उसको ठंडा करने के लिए श्रीगणेश हो तो संसार सारा ही विध्वंस हो जाए। जितनी दा नाड़ी पर चढ़ते हैं। पिंगला नाड़ी पर चढ़ने से स्वरूप हैं। अत्यन्त सोम्य हैं। उनमें का उपयोग करते हैं। उनका टेम्परेचर (templ.) भी अपने यहाँ आजकल विध्वसक शक्तियाँ चल रही हैं उनको रोकने वाले जो हैं वह श्रीगणेश के गण हैं कहीं भी आप देख लीजिए जहाँ युद्ध होता है, उसको खत्म करने का काम जो है वह श्रीगणेश के गण जाकर करते हैं। अब मैं आपसे बात कह रही हूँ, इसका हो तो श्रीगणेश दिखा दीजिए, वह ठंड़ा हो मतलब यह नहीं है कि आप पूरी तरह उसको मान ही लीजिए। लेकिन है बात यही। -2.72" है। कोई चीज ज्यादा गर्म हो जाए वहाँ श्रीगणेश रख लीजिए वह चीज ठंडी हो जाएगी। किसी आदमी की तबियत ज्यादा बिगड़ जाए तो उसे श्रीगणेश के हवाले कर दीजिए तो उसका बुखार उतर जाएगा। कोई अगर बडा क्रोध कर रहा जाएगा. लेकिन राईट साईड से वह चढ़ने लग जाते हैं तो यही नाभि-चक्र में जो शेषनाग हैं अब आप अगर गण स्वरूप है, तो आप में शान्त उनकी फुफकार गर्म हो जाती है और ऐसे लोग गर्म हो जाते हैं और गर्मी के कारण उनके अन्दर जो भी गर्मी की तकलीफ तो होती हैं. पर सबसे चित्त होना बहुत जरूरी है। आप में क्रोध है तो आप गणेश के विरोध में जा रहे हैं सिर्फ गणेश को अधिकार है कि अपना पर्स चलाए, क्योंकि वे स्वयं ज्ञान की मूर्ति हैं और स्वयं इस सूझ-बूझ की सोत हैं, लेकिन मानव को अधिकार नहीं कि वह अपने क्रोध के बल जाए। क्रोंध के लिए हमेशा आदमी जब क्रोध करता है. तो वह अपने ज्यादा यह चीज है कि उनमें बडा क्रोध आता है लेकिन श्रीगणेश के जितने गण हैं वह अत्यन्त ठंडे लोग हैं और वह ठंडे दिमाग से ही काम करते हैं। अमेरिका में पता नहीं कि उसे अपनी ऐसी किसी धारणा से, या किसी कारण हो लिए ही बुरा होता है क्योंकि नुकसान उसको ही होता है। बाद में वह पश्चाताप भी कर सकता सकता है कि मनन से या परमात्मा को कृपा से एक वहाँ चीज बनाई है, जिसे स्मार्क कहते हैं। छोटे-छोटे गण जैसे बनाए हुए हैं, बिल्कुल वह और उनकी सब हरकतें, तरीके. उनका है, अगर उसमें इतना संवेदनशील मानव हो तो। पर न हो संवेदनशील तो बह यह कहता है कि में इसलिए नाराज हुआ, जैसे श्रीगणेश कहते हे कि मैने इस लिए युद्ध किया कि लोग माँ के खिलाफ बोल रहे थे, ये हुआ वो हुआ और मैं गण सब कुछ व्यवहार गणों जैसा है और अब यह जिसने भी सोचकर बनाया हो, या जिसके भी माँ की सेवा में हूँ। माँ को में रक्षण करता हूँ, मैं दिमाग में बात आ गयी होगी, हो सकता है वह माँ को प्रेम करता हूँ। सबसे बड़ा रक्षण माँ का 34 चैंतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 he 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-36.txt है, "आपसी प्रेम"। जो गणों ने किया वह करना नहीं खोजते हैं कि हम सब गण है और एक ही चाहिए। गणों में इतना आपसी प्रेम है, इतनी कार्य के लिए उद्धत हैं, और इसका कोई मतलब ही नहीं बनता है कि हम आपस में लड़ रहे है । साल का बच्चा होता है, तब अपने इस सेंटर वैसे गण होने से अच्छा कोई गण ही न हो । लेकिन गण आने से अगर लड़ाई हो जाये तो बहां के अॅन्टीबॉडीज, जो हृदय-चक्र के चारों ऐसे गण का क्या फायदा? और उस पर क्यों उनमें आपस में पहचान है कि जिस वक्त बारह हार्ट का जो चक्र है अनहत, बारह साल तक तरफ फिरती रहती है और अगर बाहरी शक्तियाँ वार करती हैं और यह जितने भी अॅन्टीबॉडीज हैं वह चारों तरफ अपने शरीर में फैलती है, और है। वह कि हमने इसलिये किया, उसलिये किया. इस सब हैं उसका कार्य जो चारों तरफ शरीर में फैल करके अगर कोई भी है वह बड़ा क्षण-विक्षण हो जाता है। अब इसके अनेक तरीके होते हैं कि बम्बई वाले ऐसे है तो पर कोई भी बौछार आ रहा हो. या कोई भी दिल्ली वाले वैसे हैं, तो फलाने ऐंसे हैं, तो परकीय सत्ता आप पर बू बढ़ा रही है. जो कि ढिकाने ऐसे हैं। मैं सुन-सुन करके, मुझे बड़ा परमात्मा से अछूती है उसका वह सामना करती आश्चर्य होता है कि जब सबकी माँग एक ही है तो कौन दिल्ली वाले और कौन बम्बई वाले? परकीय सत्ता को जानने की शक्ति ही उन गणों और इस तरह की जब तक "एकता" आपके उसका भी बोद्धिक उत्तर मिल जाता चीज को, जो भी सहजयोगी आपके शरीर को आघात हो, या आपके शरीर है, उससे झगड़ती है और शांत चित्त है। उस में रहती है, नहीं तो आप आपस में लड़ बैठे तो अन्दर नहीं आयेगी तब तक हम लोग सहजयोगी नहीं हैं। यह एकता आने के लिए पहले अन्दर बैठे तो ऐसा गणों का समुच्चय जिस बॉडी में देखना है क्या हमारे अन्दर किसी के प्रति उसका क्या अर्थ है? अगर गण आपस में लड़ बा होगा उसका क्या हाल होगा? जो गण सब एक जेलसी (jealousy) है? आप दूसरों का मजाक उड़ाना नहीं जानते हैं? जो अपने अन्दर यह बना आपस में लड़ाई करने लग जायें तो इससे ऐसी लिया है, यह विचार या यह अहंकार या जोा इस तरह की चीजें जो कि आपके लिये शोभनीय लीजिए हम लड़ रहे हैं अंग्रेजों के साथ और नहीं हैं, उनके सहारे आप दूसरों पर बिगड़ पड़ते आपस में अंग्रेजों को छोड़ के आपस में हैं जो कि आपके अपने हैं, जो आपही के हाथ मारना-पीटना शुरू कर दें तो अंग्रेज कहेंगे अच्छा हैं। यही हाथ इससे लड़ें तो उसे क्या कहा जाता। ही कार्य के लिये नियुक्त हुए हैं, वह अगर तो कोई लड़ाई हो नहीं सकती। अगर समझ हुआ, मरो। उन्होंने यही किया कि आपस में सूझ-बूझ का मतलब है प्रेम। और यह लड़ो मरो बही हम आज भी कर रहे हैं। अपने प्रेम हमारे अन्दर जागृत करने वाले हैं श्रीगणेश। देश में पूरे समय यही चलता है कि इसको श्रीगणेश प्रेमस्वरूप हैं। उन्होंने हमें प्रेम करना पीटो, उसको पीटो उनको मारो इनको मारो-यह सिखाया। अब छोटी-छोटी बातों के लिये हम सब चीज आती कहाँ से है? आती है उसी क्रोध अपने वारे में बहुत सोचते हैं कि हमें यह चीज से, और यह क्रोध आता है आपसी घर्षण से. अच्छी लगी. उसे वह चीज अच्छी लगी। फिर आपसी घर्षण जब होता है तब आता है। यह आप सहजयोगी नहीं है। अगर आपको हर आदमी 35 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 & 6. 2000 প 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-37.txt जागृत कर लिया होगा और आप गण स्थिति में हैं तो जान लेना चाहिए कि आप सब एक सूत्र में बंधे हुए हैं। जिस वक्त में यह ॅन्टीबॉडिज लड़ती है. शरीर में आने वाली किसी भी पेशियों के साथ लड़ती है। किसी भी परकीय सत्ता से को अलग-अलग चीज अच्छी लगती है तो आप सहजयोगी कैसे? सारे सहजयोगियों को एक ही चौज अच्छी लगती है, और अगर सारे सहजयोगियों को नहीं साहब, मुझे तो यही रंग अच्छा लगा. किसी ने कहा वह रंग अच्छा लगा, किसी ने कहा वह रंग अच्छा लगा, किसी ने कहा वह रंग लड़ती है। समझ लीजिए कि जो आज यह हाथ अच्छा लगा, तो फिर वह सहजयोगी नहीं है, पर रंगों पर वैचित्र्य होना जरूरी है क्योंकि उससे फौरन दूसरी जगह से दौड़ के आ जायेंगे पर सौन्दर्य बनता है। यह तो ठीक हैं कि सौन्दर्य होना चाहिए. लेकिन वह सौन्दर्य जो भी है वह पूरी तरह से एकाग्र होना चाहिए। इन्टिग्रेटेड होना सहजयोग (पूरी तरह से) स्थापित नहीं हुआ है। चाहिए। जिसमें डिसइंटिग्रेशन गर है उसमें एकाग्रता नहीं है, तो उसने समझना चाहिए आप सहजयोगी नहीं हैं। में एण्टीबॉडिज़ है वह अगर कम पड़ गयी तो ऐसा नहीं होता सहजयोगियों में इसीलिए सहजयोग अभी तक एक सूत्र नहीं है। इसलिये अभी तक आज देखते हैं कि श्रीगणेशजी की स्थापना से. ाि इस घट की स्थापना होती है कि नहीं। उसको होना है। अनेक पूजाएं करी हैं। सब कुछ हुआ पर अब भी जो सहजयोग सही माने एकसूत्र एक मकान बनाया है। "शुडिकैम्प" जहाँ सफाई होना है हो नहीं पाया। जब तक वह पूरी तरह से नहीं बनेगा तब तक आप लोग इस गलतफहमी अब जो लंदन में इन लोगों ने हमारे लिये हुई। बहुत बड़ा मकान है, उसको ठीक-ठाक किया. सब सहजयोगियों ने। कोई बाहर से आदमी में न रहें कि आप सहजयोगी हैं । नहीं, क्योंकि वह हमारा कोई प्राईवेट घर नहीं अब जैसे कि हमने कहा कि यह लीडर आपका है, तो सब अपने-अपने लगाते हैं कि हम लीडर हैं, हम लीडर हैं। हमें माता जी ने कहा कि लीडर हो जाओ| अरे भाई, मैंने तो एक सा आ गया है बड़ा भाईचारा, सब समझ गये को कहा, सबके सामने कह दिया कि यह आदमी लीडर है। और उसके कहने के मुतांबिक आपको चलना ही पड़ेगा. नहीं तो एकसूत्रता नहीं इतना प्यार उनके अन्दर आ गया। आपस में आने वाली। अगर आप उसके कहने के मुताबिक नहीं चलेंगे तो कभी भी एकसूत्रता नहीं आयेगी। "एकसूत्रता" कहते हैं। (Collectivity) उनके अंदर फिर क्रोध आयेगा, झगड़ा होगा, आप सहजयोग जागृत हो गयी और पहले वह सब लड़ते रहते से ढल जायेंगे ऐसे बहुत से लोग हैं जो सहजयोग थे आपस में। मैं तंग आ गयी थी और यहाँ से निकाले गये। क्योंकि उनको क्रोध आने लगा, था। मैंन कहा, ठीक है, जिसे बनाना है बनाओ, हमारे नाम से बनायेंगे-क्या आश्चर्य की बात यह है कि उसमें करने से सबमें आपस में बड़ा प्रेम कहाँ क्या करना है, क्योंकि इसमें यह था कि हमेशा मिल करके काम करना, इतनी एकता, इतनी पहचान आ गयी और जिसको हम आपस में झगड़े होने लगे, मारामारी होने लगी। चलों छोड़ो हटा लो इसे। तब जब एक आदमी को लीडर बना दिया है तब आपके जितने भी उल्टी हालत, यहाँ अगर एक काम किसी को बता दें तब उसमें सत्रह फाटे फूटेंगे। श्रीगणेशजी को अगर आपने अपने अन्दर 36 चैंतन्य लहरी खंड :XII अंक : 5 & 6, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-38.txt सेन्टर बनाएं वही लीडर है, उसी को मानना चाहिए वह जो कहेगा बह मानना हीं पड़ेगा। इस क्रोध की वजह से आदमी दिमागी दुखाने का, उसको हृदय में कोई कठिनाई की डाला। जैसे कोई यह इन्सान को वह खुद ही बनाते हैं किसी को अधिकार नहीं है किसी को सिवाय परमात्मा के। वात कहने का जमा-खर्च कर देता है। वह यह है कि उसको इस क्रोध के बारे में श्रीकृष्ण ने बहुत ही सब चक्र मालूम है, उसको कुण्डलिती मालूम है, वह किताबें लिख सकता है, बोल सकता है, ज्यादा कहा है कि क्रोध को छोड़ो, क्रोध को भाषण दे सकता है. लेकिन हृदय में सहजयोग छोड़ो। आप उनके लिये जान दे दीजिए, प्यार नहीं आया। वही एक सर्वसाधारण आदमी होता नहीं आएगा। कितना भी प्यार कर लीजिए, प्यार है, हृदय से उसने सहजयोग जान लिया बस, मेरे नहीं आयेगा। क्रोध चढ़ जाता है। हो सकता है काम का तो यही आदमी है, बेकार बाकी के उनमें क्रोध माँ-बाप से आया हो, हो सकता सब जाओ। यह तो शब्द जाल का कितने बार वह समाज से आया हो, हो सकता है खाने-पीने वर्णन आदि शंकराचार्य ने किया है कि अरे भाई से आया हो, चाहे जिससे भी आया हो, क्रोध शब्द जाल में मत फंसो, और हीन लो लेव्हल पे लोग उतर आते हैं बुद्धि के कारण। आप देख दुश्मन। इस क्रोध को आपको छोड़ना पड़ेंगा, रहे हैं हिटलर, उसने बुद्धि लड़ाई। बुद्धि के बूते अगर आज श्रीगणेशजी की पूजा करनी है पहले पर यह चीज ठीक समझता हूँ। में इसे करूंगा ही। ऐसी जिसने जिद पकड़ ली वह पता नहीं दूँगा। क्रोध करना, किसी से बैर करना, किसी किस लेवल (level) पर हो। आपका दुश्मन है और सहजयोग का महान बड़ा निश्चय हो कि मैं क्रोध को किसी तरह 'छोड़ के साथ इस तरह दुष्ट शब्द व्यवहार करना बहुत से लोग क्रोधी थे (सहजयोग में) वह भी एकदम ठंडे होकर के बढ़िया हो गये| आज सबसे बड़ी जरूरत अपने देश को, सारे विश्व को है ऐसे लोगों की जो ठंडे दिमाग के हों। चिढ़ने वाले, बिगड़ने वाले, गुस्सा करने वाले ऐसे लोगों को चाहिए कि समुद्र में जाके बैठे रहें सहजयोगियों को बिल्कुल ही उचित नहीं है। श्रीगणेशजी ने भी इसी तरह कार्य किया। उन्होनें जो अपने सेनापति बनाए हैं, उस सेनापति को कोई नहीं कहेगा कि "तुम क्यों सेनापति बने हो।" यह जो अपनी सेना है, यह प्यार की, प्रेम की और शांति की सेना है। शांति से हमें रहना और आपके खुद की सफाई करके फिर आयें शांत चित्त की जरूरत आज अपने संसार है। एक बंधन में आप लोग लोगों को जीत सकते हैं। एक प्रार्थना से आप लोगों को ठिकाने लगा सकते हैं। तो क्रोध की क्या जरूरत है? में है। जिसको देखो बह बंदूक लेके मार रहा है । अमेरिका में अब मैं गयी थी, रास्ते में बता रहे थे कि पिछले हफ्ते में यहाँ पर ग्यारह आदमियों इसका मतलब आपका सहजयोग पर विश्वास ही नहीं, अभी भी अपने पुराने तरीके लेकर यह? कहने लगे कि जो देखो वह बंदूक उठा के चलते हैं । और क्रोधी आदमी जो होता हैं उसे मार देता है, उनके पास बंदूकें हैं । मैंने कहा, भड़कने की इतनी आदत रहती है कि उससे क्यों मारा? "बस रास्ता नहीं दिया गाड़ी ने मार दुनिया डरती है. नैच्युरली आपने कहीं देखा है की मृत्यु हो गयी। मैंने कहा कि केसे हो गया 37 चैतन्य लहरी खड : XII अक : 5 & 6. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-39.txt है. "यह बड़ा उदाहरण लीजिए कि वह एक चूहे पर वैठे हुए क्रोधी था, इसीलिए इसका स्टैचु बनाया गया हैं अब चूहे महाराज तो हर दफा इधर से उधर भागते रहते हैं। एक पाँव पर इतना बड़ा शरीर अपना उन्होंने कैसे तोल लिया है, और खुद की एक सर्वसाधारण सवारी कर ली। लोग ता पता नहीं क्या-क्या दिखाने के लिये हाथी, घोडे कि किसी का स्टैच बना दिया है।" क्रोध से मनुष्य का सारा सौष्ठव, उसकी जितनी भी महानता, उसका बड्ष्पन सब डूब जाता है। क्या-क्या रखते हैं। (श्रीगणेशजी के) नम्रता की हद है। क्या अपने अलंकार हैं शांति अपने अलंकार हैं नम्रता। नम्रता हो, कोई भी काम में जो आदमी नम्र होता है वही कामयाब होता है, और यह जो चाहिए गणेश को? बस, एक चूहा दे दिया बस अभी तक आपने इतनी आततायी प्रवृत्ति जो देखी है Aggressive कि दूसरों पर आप हावी हो जाओ, सरों पर चढ़ जाओ-ये करिये इससे कितना शुद्ध हृदय, कितना प्रेम से प्लावित है मनुष्य कभी भी आपसे श्रद्धापूर्वक नहीं हो सकता। आज अगर डरपोक लोग आपके नीचे कि सबसे बड़ी चीज, बात है कि अपनी माँ को काफी है। चूहे के साथ ही मैं मेरी माँ के प्रति प्रदक्षणा कर लूँगा और दुनिया को जीत लँगा । यह। अपनी प्रेम की शक्ति से उन्होंने यह जाना आ जाएंगे, एक ग्रुप बन जाएगा यह सहजयोगियों का। बाकी वह भी थोड़े दिन में "भागों रे पूजा में ऐसी चीज है कि बिल्कुल ही जिनके भैय्या" करके भाग जाएंगे। कौन मुफ्त मार खाने को आयेगा? तो किसी से भी दुष्ट व्यवहार प्रदक्षणा करना चाहिए। और दूसरी चीज उनको दाम कम। जिसे हम केवड़ा कहते हैं वह फूल सबसे सस्ता होता है, और दूसरा तृण यहाँ पर उसे "दुर्बा" कहते हैं दुर्वा कहीं भी उगता है. करना बहुत गलत है। दूसरी बात सहजयोग में हमें समझनी गरीब से गरीब आदमी को भी दुर्बा मिल जाएगा चाहिए कि "रिश्तेदारी"। जैसी अपनी बहुएँ हैं और रईस से रईस आदमी को भी दुर्वा मिल अपनी लड़कियाँ हैं, अपनी माँ है. आप सबके प्रति नम्रता रखनी चाहिए। नम्रता मनुष्य का दुर्वा को ढूंढना पड़ेगा और रियासत जो है सबसे बड़ा सुन्दर सौजन्यशील ऐसा अलंकार है। इसी से शोभित होना है। जो मनुष्य नम्रतापूर्वक उन्हें मोदक दे दीजिए, बस और कुछ नहीं। यह होता है, उसे लोग कहते हैं कि वह राजा है, है, एक राजाशाही उनका और नहीं तो भिखारियों जैसी गालियाँ देने वाला, जाएगा। रईस को जमीन पर आना पड़ेगा और तबियत की। श्रीगणेशजी खाते भी क्या हैं? सिर्फ रियासत है, बड़ष्पन मामला है। एक चूहे पर चल दिए तो भी सारी हमेशा चिल्लाने वाला, पिटने वाला उस आदमी दुनिया उनकी वन्दना करती है। को कौन मानेगा? और बहुत से लोगों के मन में प्रेम भी होता है, लेकिन वह भी बात करने में श्रीगणेश छोटे बच्चे जैसे सबको खुब प्यार करते हैं। अब आपको भी रोज सोचना चाहिए कि अगर हम गण हैं तो हमने कितनों को खुश किया? यह जो आपके अन्दर आल्हाद और यह जो आपके अन्दर आनन्द आता है वह उस प्रेम को कभी भी व्यक्त नहीं कर पाते। नम्रता होनी चाहिए, प्रेम होना चाहिए और उसका व्यवहार होना चाहिए। श्रीगणेशजी का ही 38 चैतन्य लहरी । खंड XII अंक : 5 & 6, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-40.txt तो पता ही नहीं वह सहजयोगी है।"...उसका गर्व नहीं है, जो श्रीगणेशजी में वह गर्व है। वह गर्व है उसके अन्दर इसीलिए वह सोचते हैं कि माँ सब गणों के ही वजह से आता है क्योंकि गण ही तो आपके VIbrations हाथ से बह रहे हैं। आकाश से आप पा रहे हैं, लेकिन आपके हाथों से बह रहे हैं। जहाँ भी जाते हैं आपके व्हायब्रेशन्स खिलते हैं और जो सब चीजों को शुद्ध करते हैं । का पुत्र हूँ। वह गर्व हमारे अन्दर नहीं आया। हम अपने सगे भाई से भी नहीं बताएंगे कि सहजयोग क्या है। मेरी बात तो बाद में बताना, पर "सहजयोग है भाई, आओ सहजयोग में कहाँ जा रहे हैं?" जो आया उसे पहले सहजयोगी बनाओ। शुद्ध करने का मतलब ही है कि आपने बहां श्रीगणेशजी को शुद्ध कर दिया। शुद्धि से सहजयोग जानना कोई काम का नहीं, हृदय से जानना इधर-उधर के बेकार के लोग जो हैं; वह अपने को "हम इसके हाथ का पानी नहीं पियेंगे. चाहिए। जब आप हृदय से जानते हैं तो सारा विश्व अपने हृदय में समाया हुआ नजर आता है। हम फलाने, हम ढिगाने, हम फलाना व्रत करते तो आज़ श्रीगणेशजी की पूजा इस विशेष हैं।" धरती पर इस पुण्यनगरी में हो रही है. तो यह पुण्य लगाने के लिए. जो पुण्यवान लोग मिलते अपने अन्दर जागृत कर लिया। हमारे अन्दर से हैं अत्यन्त नम्र होते हैं। पुण्यवान की पहचान है तो धर्म बह रहा है। हमारे अन्दर से तो चैतन्य "नम्र"। बाहर से नहीं, जैसे बिजनेसवाले होते हैं, या कोई वोट लेने आये तो बहुत नम्रता से आये उनके बारे में तो हम बहुत नम्र हैं कि शरमाते हैं, सामान्यत:, वेसा नहीं होता है। अंदरूनी नम्रता, एक तरह से एक नम्र भाव है, वही चाहिए हमारे अन्दर। और लोगों को कहना चाहिए "कितने इसीलिये आप सबने कहना है कि जहाँ नम्रता नम्र हैं"। और किसी-किसी मामले में जैसे की नहीं चाहिए, जहाँ उस चीज का गर्व चाहिए. बहुत से गुरु घंटाल लोग हैं। उनको कुछ भी जैसे कि मनुष्य है, उसको अभिमान है यह मेरा मालूम नहीं। सहजयोग नहीं मालूम, व्हायब्रेशन्स नहीं मालूम; कुछ भी नहीं मालूम। कुछ भूत भी नहीं हो तो ऐसा मनुष्य किस काम का? उसी कुछ राक्षस भी है। वह अपने को बड़े गुरू समझते हैं और सहजयोग के मामले में तो हमारे उसको मैं ठिकाने लगा दूंगा। वह अपने को क्या सहजयोगी बहुत ही नम्र हैं। जहाँ नहीं होना है। समझता है?" और जिस वक्त सहजयोग की माने अपने बहन से भी नहीं बताएंगे कि सहजयोग क्या चीज है, कि उसमें शरम आती है सहजयोग बताने पे उनको, अपने भाई से भी नहीं बताएंगे। कि "तेरे में यह भूत है"। मतलब वही जो अपने एक साहब मुझे मिले, मैंने कहा-"वह तो बड़े भारी सहजयोगी हैं, आपके भाई।" अच्छा? मुझे ठिकाने लगाना, उस पर कब्जा करना, उसे आते हमने तो ( सहजयोगी ने) सारा धर्म ही बह रहा है । हम स्वयं चैतन्यमय हो गये हैं। सिवाय मेरे। सब लोग शरमाते हैं, मैं लेकिन सबको सुनाती हूँ। किसी को छोड़ा नहीं और घर है, मेरी जमीन है, मेरे बच्चे हैं... और देशाभिमान प्रकार जिसको अभिमान है, हरेक चीज का कि "मेरे से ऐसा किया, उसने ऐसा क्यों किया, बात आती तब तो शरमाने लगे, और जब कोई आ भी जाए; सहजयोग में तो उसे दूषण लगाना अन्दर बात है स्वभाव में कि हर आदमी को 39 चैतन्य लहरी खंड XII अंक : 5 & 6, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-41.txt ही कह देना कि तेरे में भूत है, तेरे में राक्षस है, तू खराब है. तू एसा है. तू वैसा है। अगर मैं ऐसा कर देती तो यहाँ एक भी इन्सान बैठा होता सौम्य जैसे "बुध", बुध का जो ग्रह है उसको माना जाता है कि वह बहुत ही सौम्य है, और उसको भी "बुध" माना जाता है, बुध माने ऐसे की जाना हुआ। जिसने एक बार जान लिया। चन्द्रमा को हम लोग कहते हैं कि चन्द्रमा आत्मा की राज है क्योंकि वह सोम्य है। क्या? श्रीगणेशजी का कार्य हैं उसके तो जो बराबर हम लोग कार्य कर रहे हैं। इधर नजर करे कि पहले तो जो आता है उससे प्रेम से बात करें, उसे मिठाई दें, उसे प्यार की बात कहें, उससे आपके चरित्र का-आपके नम्रता का असर नम्रता-यह लक्षण है एक सहजयोगी का। जो लोग नम्र नहीं होंगे, और क्रोधी से क्रोधी होते जायेंगे वह फेंके जायेंगे। यह तो आप देखते हैं कि कितनों को फेंक दिया बाहर और मुख्य हो पायेगा। नहीं तो ऐसे भी लोग देखें हैं जिनको किसी सहजयांगी ने पार कर दिया. पार होने के कारण उनका "क्रॉध" है। जितने भी बार बताने पर भी लोग इसको नहीं समझते कि हमारे अन्दर जो "क्रोध", जो हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है मेरे समझ में नहीं आता है, यह सहजयोग है. उसको निकाल करके फेंक देना चाहिए। श्रीगणेशजी के आशीर्वाद से ही यह होगा। उनके बाद वह जो पार हुआ. वह मुझे बताता है कि माँ जिसने मुझे पार किया वह इतना क्रोधी आदमी कैसा है, उसको उसके प्रति से श्रद्धा उतर गयी । अगर यह बात है तो क्यों इस दुष्ट क्रोध को रखना, जिसके कारण कोई भी हमें पसंद नहीं करता। सब हमारे दुश्मन हो जाते हैं, तो ऐसे पूजा में आप सबको शांत स्वरूप हो करके श्रीगणेशजी की पूजा करनी चाहिए कि वह हमारे अन्दर भी शांति दे। इस उथल-पृथल में आज के इस कलियुग में हमें बहुत शांत होना है। जब तक पाना था आपने पा लिया. अब देने का समय आया है, अब देना चाहिए। आप सबको अनन्त आशीर्वाद महा दुश्मन (क्रोध) को घर में रखने से फायदा क्या? श्रीगणेशजी की जो प्रवृत्ति ठंडक पहुँचाती है। ठंडक सबको ठंडा होना है सौम्य, बहुत पाि 40 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 5 8 6. 2000