हिन्दी आवृत्ति चैतन्य लहरी जुलाई-अगस्त-2000 अंक 7 & 8 खण्ड - XII ७o TIVE न ा ंर ० 1 आपकी गहराई में ही सारा सुख, समाधान, सारी सम्पत्ति, ऐश्वर्य, श्री सब कुछ...है। उस गहराई में उतरने के लिए बीच की जो कुछ रुकावटें हैं उनको निकाल देना चाहिए। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी 27.11.91 काम माँ कुण्डलिनी के प्रेम कुण्डल पाश में पानी पैर क्रिया करती हुई रोहिणी (दिल्ली) की एक नन्ही बालिका। इस अंक में प्रार्थना जन्मदिवस पूजा-21.3.2000 -2. 77वां जन्मदिवस पूजा हिन्दी प्रवचन 21.3.2000 8. 3. 77वां जन्मोत्सव समारोह (एक रिपोर्ट) 4. 11 जन्मोत्सव समारोह 5. (क) श्री बलराम जाखड़ का भाषण 14 ख) श्री एल. के आडवाणी का भाषण 15 (ग) श्रीमन सी.पी. श्रीवास्तव का भाषण 16 श्रीमाताजी का जन्मोत्सव भाषण (22.3.2000) 18 6. श्रीमाताजी का दूल्हों को परामर्श ( 23.3.2000) 7. 25 श्रीमाताजी की दुल्हनों को सीख (23.3.2000) 8. 26 आत्मसाक्षात्कार में स्थापित किस प्रकार हों। लन्दन ( 15.10.79) 9. 28 ध्यान की आवश्यकता 27.11.91 दिल्ली 10. 35 11. बम्बई जन कार्यक्रम 13.3.2000 40 : योगी महाजन सम्पादक : विजय नालगिरकर प्रकाशक काए 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 : अभिनव प्रिन्ट्स, दिल्ली 34 फोन : 7184340 मुद्रक रा .... .. प्रार्थना हे माँ आदिशक्ति, कृष्णावतार में आपने आत्मा के रहस्य, जीवन के, मृत्यु के, अमरत्व के, एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति तथा कहा था ा परमात्मा से एकाकारिता के रहस्यों को। तब यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानम् धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ विश्व सत्य की ओर चलेगा और मानव सत्य हे अर्जुन, जब जब आसुरी शक्तियाँ धर्म बन जाएगा जब वे सुखदाता आएंगी तो विश्व का पतन करती हैं और अधम का साम्राज्य हो को मेरे बताए गए पाप और सत्य, इंसाफ के निर्णय की विवेकमयता के विषय में विश्वस्त जाता है तब-तब में धर्म के उत्थान और पुनर्स्थापन के लिए पृथ्वी पर साकार रूप में अवतरित होता कर देंगी और तब विषय वासनाओं के स्वामी हूँ। श्रीमाताजी, भगवान श्री ईसा-मसीह ने भी आएंगी तो मुझे आपके लिए उनसे अनुनय न को निकाल फेंका जाएगा जब वे मुखदाता आपके अवतरण के विषय में भविष्यवाणी की: एक बार फिर ईसा मसीह ने ग्यारह शिष्यों को सम्बोधित करते हुए कहा, 'मैं जा रहा करना पड़ेगा क्योंकि तब आपको मान्यता प्राप्त हो चुकी होगी और तब परमात्मा आपको उसी प्रकार जानते होंगे जैसे वे मुझे जानते हैं।" (ईसा मसीह का अक्वेरियन उपदेश, अध्याय 162V.4) हूँ परन्तु इस कारण से आपको शोक नहीं करना चाहिए, मेरे जाने में ही बेहतरी है। मैं यदि नहीं धर्म के उत्थान तथा अपने वचन को पूर्ण करने के लिए, हे परमेश्वरी माँ, अत्यन्त कृपा जाऊगा तो सुखदाता (Comforter) आपके पास नहीं आएंगी। पूर्ण मानव शरीर के साथ मैं आपसे करके इस घोर कलियुग में आपने अवतरण ये बातें कर रहा हूँ परन्तु जब पावन लहरियाँ लिया और विश्व भर के साधकों की कुण्डलिनी जागृत करने के महान कार्य का बीड़ा उठाया । श्री आदिशंकराचार्य के साथ हम सब भी सशक्त होंगी तो, लो! आपको अधिकाधिक सिखाएंगी और जो भी शब्द मैंने आपसे कहे वे आपकी स्मृतियों में आएंगे। अभी भी अनगिनत प्रार्थना करते हैं :- चीज़ों के विषय में बताया जाना बाकी है; उन नित्यानन्द करी वराभय करी सौंदर्य रत्नाकरी सब चीजों के विषय में जिन्हें ये समय स्वीकार निर्धूताखिल घोर पाप निकटी प्रत्यक्ष माहेश्वरी नहीं कर सकता क्योंकि आज के लोग इन्हें प्रालेयाचल वंश पावन करी काशीपुराधीश्वरी समझ नहीं सकते। परन्तु, लो, मैं बताता हूँ परमात्मा के महान दिवस आने से पूर्व पावन लहरियाँ सारे रहस्यों को खोल देंगी। भिक्षांदेही कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी हे माँ अन्नपूर्णेश्वरी! आप ही दैवी आशीर्वाद की दाता हैं, एक हाथ से आप वरदान देती हैं चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & 8. 2000 श्रीo हैं और से निडरता। आप सौन्दर्य का सागर हैं। अटूट श्रद्धा से भर दो हमारे हृदय, आपके और सहज के प्रति दूसरे और सर्वपापविनाशनी हैं। नि:सन्देह आप ही महादेवी हैं। आपने ही हिमालय के कुल को हम सब समर्पित रहें सर्वदा, चरण कमल अपने, कृपा कर पावन किया (पांर्वती हिमालयपुत्री थीं) कृपा करके प्रसन्न होईए और हमें भिक्षा प्रदान कीजिए। हमारे हृदय में विराजित करें, इस योग भूमि पर आपका सतहत्तरवाँ जन्मत्सव मनाते हुए आपके हम सभी सहजयोगी दान दें शुद्ध चित्त और निर्विचार-चेतना बच्चे प्रार्थना करते हैं कि है देवी. अखण्ड ध्यान में हो स्थिर अन्तत:। आपके बच्चे 4. चैतन्य लहरी खंड XII अक : ? & 8, 2000 77वीं जन्म दिवस पूजा निर्मल धाम दिल्ली 21.3.2000 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी जी का प्रवचन मानव परस्पर प्रम नहीं कर सकते। वे सदैव दूसरों पर हावी होने, उनसे घृणा करने या उनकी चीजें हथियाने का ही प्रयत्न करते रहते हैं। हमारे आपका प्रेम देखकर मेरा राम-रोम पुलकित हो उठा हैं और इस सुन्दर स्थान का सृजन करने वाले सभी सहजयोगियों के प्रति कृतज्ञता से मेरा अन्दर यही गलत विचार भरे थे, यही कारण हृदय भर गया है। इतने सुन्दर, इतने शान्त स्थल की सृष्टि करने के लिए उन्हें कितना कठोर हुए है कि इन धारणाओं को रोकने के लिए जा भी परिश्रम करना पड़ा होगा। इसकी तो में कल्पना ही नहीं कर पा रही हूँ। सहजयोग में किस प्रकार संस्थाएं बनाई गई वा भी दृषित हो गई। स्वयं को समझने का एकमात्र उपाय 'स्वयं को पहचानना परस्पर गहन सम्मान एवं प्रेम से लोग कार्य करते है। जब आप स्वयं को पहचान लते हैं तो आप हैं तथा ऐसी चौजों की सृष्टि करते हैं कि हैरान हो जाते हैं कि प्रेम करना और पाना ही विश्वास हो नहीं होता! जिस स्थान पर आपने महानतम कार्य हैं। अपनी अधम प्रवृत्तियों पर पूर्ण नियंत्रण करने के पश्चात् आप सामूहिक जीवन एवं प्रकाश की स्थापना की है यह इससे पूर्व वंजर था आप लोग मेरा जन्मोत्सव मनाना चाहते हैं। मैं नहीं जानती कि जन्मदिन मनाने का प्रेम का आनन्द लेते हैं। सहजयोग में यह सव बहुत सहज है और अत्यन्त ही सहज रूप से परन्तु इसकी गहनता में उतरना बहुत महत्वपूर्ण है। पूरे विश्व है इतना क्या महत्व है। परन्तु जिस प्रकार से आप कार्य करता है। यह बहुत सहज लोगों ने सम्मान एवं सूझ बूझ दर्शाई है उसे देखकर में मन्त्रमुग्ध हो गई हूँ। मैं समझे नहीं से दिल्ली से और पूर्ण भारत से आप सबको पाती कि मैंने आप लोगों के लिए ऐसा क्यां परस्पर प्रेम एवं सूझ-बूझे का आनन्द लेते हुए देखकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ। मैंने कभी आशा नही की थी कि अपने जोवनकाल में ही मैं प्रेम, किया है कि आप सहजयोग का कार्य करें। आज होली का शुभ दिवस है आज के दिन हम लोग होली खेलते हैं तथा एक दूसरे के प्रति प्रेम एवं विश्वास और शान्ति का यह सुन्दर संसार देख पाऊगी। एकता का प्रदर्शन करते हैं। में कहना चाहूंगी, यह सब दर्शाता दूसरों के लिए प्रेम एवं सम्मान के मूल्य को है कि हममें क्या करने की योग्यता है। हेम, समझते हैं। अभी तक तो हमारे सभी सिद्धान्त तथाकथित, मानव अत्यन्त स्वार्थी, अपने तक एवं धारणाएं इस नियम पर आधारित थीं कि सीमित और अपने लिए ही चिन्तित हैं। यही यह एसा समय हैं जब हम वास्तव में आज, चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 7 & 8. 2000 , लोगों के प्रति पूर्णतः अनुगृहीत हूँ कि आपने इस कहा जाता है। परन्तु, आश्चर्य की बात है आत्मज्ञान की अपनाया और इसका आनन्द अन्य आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके, आत्मज्ञान पाकर, लोगों के साथ लिया। स्वयं का ज्ञान होना अत्यन्त स्वयं का जानकर आप समझ जाते हैं कि अन्दर से आप कितने वैभवशाली एवं महान हैं और आप के अन्दर कितनी योग्यता है। आपमें ये को कर सकता है। हीरा बहुमूल्य हो सकता है असाधारण चीज है। केवल मानव हो इस कार्य सूझ-बूझ आ जाती है और अत्यन्त सुन्दर ढंग से इसकी अभिव्यक्ति होती है। परन्तु यह स्वयं अपने मूल्य को नहीं जानता। कोई कुत्ता या अन्य पशु विशेष हो सकता है परन्तु वह नहीं जानता कि वह क्या है। उन्नत होने में सहजयोग को काफी समय आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेने से पूर्व मानव की भी यही स्थिति होती है। आत्म-साक्षात्कार प्राप्त लगा और आप सब लोग धीरे-धीरे परिपक्व हो रहे हैं। परन्तु आज में कहूंगी कि अब यह इतनी बुलन्दी पर पहुँच गया है कि इससे बाहर जाना लोगों के लिए कठिन कार्य है । जब आप स्वयं कि वे क्या हैं । और तब एकदम वे अत्यन्त हा जाने के पश्चात् वह अचानक जान जाते हैं विनम्र हो जाते हैं, अत्यन्त प्रेममय हो जाते हैं। को पहचान लंते हैं, वास्तविकता तथा पूर्ण सत्य मान लो किसी व्यक्ति को यदि पता चले कि को जान लेते हैं तब उस ज्ञान में विलोन हो जाते हैं। नि:सन्देह आपको उतनी जानकारी नहीं है वह सम्राट है, महान संगीतकार है या प्रधानमन्त्री जितनी लोगों को है। आप तो सच्चे शब्दों में है तो वह अन्य लोगों से कट जाता है अपने आप में ही फूला नहीं समाता। परन्तु जो ज्ञान ज्ञानी हैं क्योंकि आप महसूस करते हें कि आपके अन्दर प्रेम की महान शक्ति है। आपमें आपने प्राप्त किया है इसे पाने के पश्चात् आप अन्य सहजयोगियों से एकरूप हो जाते हैं। यह सूझ-बूझ की अथाह शक्ति है, एकरूपता और बम सामूहिकता की अथाह शक्ति है। यह सामूहिकता चमत्कार करती है और आनन्द प्रदान करती है करती है कि आप एक दूसरे का इतना आनन्द बात अत्यन्त असाधारण है। यह इस प्रकार कार्य लेते हैं कि सामूहिक कार्यों को करने के लिए कि हम सब एक हैं, हम दुश्मन नहीं हैं और हमें कोई समस्या नहीं है। आप सब एक हैं। स्वयं को समर्पित कर देते हैं । जिस प्रेम की अभिव्यक्ति आपने की वह लहरों सत्ततर वर्षो का मेरा अनुभव वास्तव में सम है जो तट की ओर जाती हैं. तट को छूती भिन्न प्रकार की घटनाओं भिन्न प्रकार के लोगों से परिपूर्ण है। अपनी आंखों से ये दृश्य देखना जाती हैं और अब मैं यह घटित होते हुए देख कितना आनन्ददायी है कि सारे उतार चढ़ावों के रही हूँ कि ये सुन्दर आकार आपके अपने जीवन बावजूद भी इतने सारे सुन्दर कमल खिल उठे में, आपकी जीवन शैली में और आपके आचरण हैं। वे इतने सुरभित हैं, इतने सुन्दर हैं इतने रंग बिरंगे और आकर्षक हैं। इस सारी उपलब्धि का कारण हमारी अन्तर्जात मूल्य प्रणाली है क्योंकि हैं और सुन्दर आकार बनाती हुई वापिस आ में अभिव्यक्त हो रहे हैं। मेरे सम्मुख एक अत्यन्त विशिष्ट मानव जाति बैठी हुई है। में आप सब 9. चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 7 & 8, 2000 हमारे अन्दर प्रेम एवं करुणा की महान संवेदना उन्हांने इतना सुन्दर इन्तजाम किया, इतना सुन्दर अन्तर्जात हैं। बास्तव में इस करुणा को समझा पण्डाल बनाया और सहजयोगियों के रहने के लिए इतना सुन्दर प्रबन्ध किया। यह वास्तव में प्रशन्सनीय है। मैंन इसके लिए कुछ नहीं किया, जाना चाहिए और इसका आनन्द लिया जाना चाहिए तथा करुणा के इस सागर में कूद पड़ना चाहिए। यह इतना सुन्दर है और यह देखकर कुछ भी नहीं। किस प्रकार इन लोगों ने मिलकर आप हैरान होंगे कि स्वत: ही आप तैरने लगंगे कार्य किया! न कोई लडाई हुई न झगड़ा और न और इसी समुद्र में आपकी भेंट अन्य लोगों सं ही कोई निन्दा चुगली। हैरानी की बात है कि होगी। बिना किसी समस्या के, बिना किसी कष्ट उन्होंने इतने सुन्दर स्थल की रचना की! यह सहजयोग में उनकी परिपक्वता की दशांता है। के सभी प्रेम, करुणा और इस परमेश्वरी प्रेम का आनन्द लेंगे। इतने कम समय में इस महान कार्य की संपन्न दिल्ली के लोगों को मैं बधाई देती हूँ। हूँ। करने के लिए मैं उन्हें बारम्बार बंधाई देती चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 7 & 8. 2000 77वीं जन्मदिवस पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन निर्मल धाम-दिल्ली 21-3-2000 पहले अंग्रेजी में बातचीत की क्योंकि यहाँ हृदय दूसरों के सामने खोल सकें और उन्हें परदेस से बहुत से लोग आए हैं और आप को अपने हृदय में बसा सकें। और मन से हमको यह सोचना चाहिए कि जिस मन में प्यार नहीं है वो संसार में किसी भी चीज़ का अधिकारी नहीं कमाल है और उसी के साथ उत्तर प्रदेश के होता क्यांकि जो भी चीज़ उसे मिलती है व कोई एतराज नहीं कि हम थोड़ी देर अंग्रेजी में बातचीत करें। हालांकि यह तो दिल्लो वाला का लाग, वो भी जुट गए और राजस्थान के लोग भी किसी भी तरह से तृप्त नहीं हो सकता। उसमें जुट गए और हरियाणा के लोगों ने भी मदद की। तृप्ति नहीं आ सकती। लेकिन जब आपकंे मन इन सब ने मिल करके इतने प्यार से बड़ा ही में ही एक तृप्ति का सागर है तो ऐसी कौन सी सुन्दर मन्दिर जैसे बनाया है। मैं तो खुद ही चीज है जिससे आप तृप्त न हां। ये चीज़ें जब देखकर हैरान हो गई। क्या यहाँ पर ऐसे कारीगर लोग हैं? मैं तो नहीं जानती थी! सारी कारीगरी अंदर समा जाता है तो समाधान की परिधि को आपके अदर हा जाती हैं और समाधान आपक कहाँ से आई और कहाँ से उन्होंने सब कुछ बना कोई समझ नहीं सकता। उस समाधान के व्यापार को काई समझ नहीं सकता आार इतना मधुर, कर यहाँ सजाया। यह समझ में नहीं आता। इस कदर इस देश में हुनर वाले लाग हैं ये भी मुझे होता है कि उसे देखते इतना सुन्दर वा सब कुछ नहीं मालूम था. और वो भी प्यार का हुनर! प्यार ही बनता है। समझ में ही नहीं आता कि ये मैं की शक्ति। प्यार की कला। सबसे प्यार करने क्या कर रहा हूँ और दूसरे क्या कर रहे हैं। मैं की कला। ये जिसमें आएगी वही ऐसी कलात्मक क्या कह रहा हूं और दूसरे क्या कह रहे हैं और कृति कर सकता है। इसकी कला सीखनी चाहिए ये किस तरह से अपने प्यार का परिधान मंरे कि हम किस तरह से अपने वाचा से, मन से, ऊपर डाल रहे हैं। किस प्रकार से हम उनके बुद्धि से कलाकार बने। प्रेम के कलाकार बने। ऊपर अपने प्यार की वर्षा कर रहे हैं। बस रात और कैसी बात करने से हम दूसरों को सुख दे दिन यही चिन्ता लगी रहती है कि आज उनसे सकते हैं और आनंद दे सकते हैं। कौन सी मिलना है तो उनसे कौन सी प्यारी बात करी जाए। उनसे कौन से हित की बात करी जाए प्यारी बात ऐसी होती है जो हम कर सकते हैं । क्योंकि बेकार की बातें करने की जो व्यवस्था है एक तो वाचा, से हुआ फिर बुद्धि से हम क्या ऐसे सोच सकते हैं कि कौन सी बात से लोगों उससे सिर्फ नुकसान हुआ और फायदा कोई हुआ नहीं क्राध, जो मनुष्य में होता है उससे से प्यार जताया जाए। किस तरह से हम अपना ह चैतन्य लहरी खंड : XIl अंक : 7 & 8. 2000 और भी ज्यादा हानि हुई। तो आपको कुछ मनुष्य में अनंक तरह के दोष हैं। अनेक दोषों से सिखाते की जरूरत नहीं कि हिंसा सत करो। परिपूर्ण ऐसे मनुष्य को आप बहुत सुन्दरता से किसी के साथ दुष्ट व्यवहार मत करो। किसी का नष्ट नहीं करो। किसी का पैसा मत खाओ। एक अच्छे अपरिचित स्वयं का ज्ञान करा सकते हैं। अपने अंदर जो स्व है, अपने अंदर जो ये सिखाने की जरूरत नहीं। अपने आप ही इतने आत्मा है उससे जब आप परिचित हो जाते हैं तो जान जाते हैं कि औरों को भी ऐसे करना चाहिए सुन्दर हो गए। अपने आप ही, मैन कहा कमल के पुष्प हो गए क्योंकि आप सिर्फ अपना सुगंध देना जानते हैं और कुछ नहीं जानते। और उस और भी अपने की जानें। ये खोए हुए हैं इनकी ो मालूम नहीं कि ये कितना परम धन अपने अंदर देने का जो मजा है उसका आनंद उठाना एक समेटे हुए हैं। तो इनको ये देना ही चाहिए और अजीब सा ही अनुभव है। एक बड़ी अभिनव इनको यह पाना ही चाहिए। इस तरह की बाते प्रकृति के ही लोग इसे कर सकते हैं। आप लोग जब होनी शुरू हो जाएगी तो आप लोग अपने ऊपर जिम्मेदारी ले लेंगे कि हमें भी और लोगों आपके पास धरोहर रखा हुआ जा था उसका पूरा को उनका यह परम धन देना ही चाहिए। उनकी उपयोग आपने कर लिया। वो चीज़ सब खुल कुंजी आपके पास में है और उसे आप किसी गई. उद्धृत हो गई। अब उसका मजा उठाने की तरह से भी यह महान दान दे दीजिए तो देखिए बात है। दुनिया में अनेक लोग अनेक तरह के वो किस कदर आपको मानेंगे और किस कदर आपके प्रति कृतज्ञ होंगे। सबसे बड़ा कार्य आप लोगों के सामने यही है कि जितनों को हो सके इस चीज़ के अब मालिक हो गाए और ये होते हैं लेकिन आपको छू नहीं सकते। आप लोगों को परेशान नहीं कर सकते। गर कुछ हो ही सकता है तो वो भी आप लोगों में समाएँ, सहजावस्था में ले आएँ। उनको यह धन दे दें और जब ये चीज घटित हो जाएगी तो आप खुद आपके साथ हो जाएँ। आपकी ज़िन्दगी देख करके वी खुद भी कुछ बदलने की नहीं तो कम इस कदर उसमें मग्न हो जाएँगे, खुश हो जाएगे से कम प्रवृत्ति रखें कि हम भी बदल जाए। इस और एक तरह का आनंद जिसको वर्णित नहीं सारे संसार को बदलने का ठेका तो मैं नहीं किया जा सकता. आप प्राप्त करेंगे। इस चीज़ कहती, मैने लिया है लेकिन आप लोग इसका को करना है। आज हमारा जन्मदिन आप लोगों ठेका ले सकते हैं। इस संसार को अगर आपने ने मनाया, बहुत इसका धन्यवाद कहना चाहिए और आपने इतनी खुशी से सब किया है। किन्तु बदल दिया, इसमें ऐसे सात्विक प्रवृत्ति वाले लोग आपने अगर निर्माण कर दिए तो फिर आगे मेरे लिए तो ये है कि हर साल हर साल सहज योग इतना बढ़ता रहा और इसकी जो मर्यादाएँ हैं मैं भी नहीं समझ पा रही हूँ। पर आप लोगों को की इससे और कुछ करने की बात ही नहीं रहती। सिर्फ इतना ही जरूरी है कि आप इसमें संलग्न हो जाएं। इसमें कार्यरत हों कि हम कितने लोगों भी निश्चय कर लेना चाहिए कि अआज माँ के जन्मदिन के दिन लोग सब कोशिश करेंगे कि को परिवर्तित कर सकते हैं। माना कि साधारण 6. चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 7 8 8, 2000 दूसरों का परिवर्तन करें और अपना तो हो ही आनंद में आ जाएं। श्रीराम का जो तरीका था गया लेकिन दूसरों का भी करना चाहिए। इससे उससे मनुष्य बहुत ही ज्यादा गंभीर हो गया था। उसका जीवन बहुत ही गंभीर हो गया था। तो उन्होंने ये तरीका निकाला कि मनुष्य खुल जाए। पूर्णतया आपको इसकी पूर्णता मिलेगी। अभी तक जो आनंद है वो सीमित है परन्तु जब आप खुल करके खेले वो बात अब सिर्फ सहजयोगी कायदे से कर सकते हैं और आपस में प्यार से दूसरों में बांटेंगे और दूसरों में इसकी प्रतिध्वनि आएगी, उसके बारे में आप जब परिचित होंगे। उसको जब समझेंगे तो एक बहुत ही अभिनव इस तरह का आनंद आपके अंदर जागृत होगा। मैं देख रही थी कि आपके जवान लड़के, छोटे बच्चे सब नाच रहे थे। मारे खुशी के सब कूद रहे थे। कृष्ण ने होली इसलिए मनवाई कि सब होली खेल सकते हैं उसमें किसी को तकलीफ दु:ख देने के लिए नहीं किन्तु अपना आनंद वर्णन करने के लिए और दूसरों को भी आनंदित करने के लिए। सबको अनन्त आशोर्वाद 10 चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 7 & 8, 2000 परम पूज्य माताजी श्री निर्मलादेवी का ् 77वां जन्मात्सव निर्मल धाम-मा्च 21.3.2000 एक विवरण 21 मार्च, 2000 को यमुना नदी के तट पर बसी भारत की राजधानी दिल्ल, परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के 77वें जन्मोत्सव की जिसके द्वारा ऐसे बातावरण की सृष्टि हो सकती साक्षी थी। विश्व भर से सहजयोगी जन्मोत्सव है जिसमें लोग रंग और जातिभेदों को समाप्त द्वारा प्रदान की गई सहजयोग ध्यान धारणा विधियों ने नव सहस्राब्दि को एक नई दुष्टि प्रदान की हैं स्थल पर आए हुए थे यूरोप उत्तरी अमेरिका: करके शान्तिपूर्वक रह सकें। लैटिन अमेरिका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, पूर्वी एशिया लोक सभा के पूर्व अध्यक्ष ने इस अवसर और रूस से आए लगभग सात सौ पच्चीस पर कहा कि सहजयोग जब विश्वभर में फैल सहजयोगियों ने इस आनन्द के अवसर पर परम जाएगा तो विश्व 'सच्चा सार्वभौमिक गाँव' (True पावनी माँ के जन्मदिवस समारोह में रंग भर Global Village) बन जाएगा। उन्होंने कामना की दिया। कि जब तक यह लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता तब विश्व भर से सहजयोग के ध्यान धारणा तक श्री माताजी अपना जन्मदिवस इसी तरह से द्वारा मानव हृदय परिवर्तन में श्री माताजी की मनाती रहें। अपनी आगामी कश्मीर यात्रा में भूमिका की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करते हुए कश्मीर समस्या का समाधान खोजने के लिए वे वधाई सन्देश आए। बंधाई सन्देश भेजने वालों श्री माताजी से आशीर्वाद लेना न भूलें। में, संयुक्त राज्य अमेरिका के उपराष्ट्रपति, वहाँ के भिन्न राज्यों के गवर्नर तथा दस नगरों के देते गृहमन्त्री श्री लालकृष्ण आडवाणी ने बधाई कहा कि इस अवसर पर यहाँ आने का हुए उनका लक्ष्य श्रीमाताजी के दर्शन करना तथा मेयर, कनाडा तथा आस्ट्रेलिया के प्रधानमन्त्री तथा संसद सदस्य, रूस की चिकित्सा संस्था के उनके प्रवचन को सुनना था। उन्होंने प्रदूषण के विषय में भी बात की-भौतिक प्रदूषण नहीं, अध्यक्ष, कनाडा के मुख्य नगरों के मेयर्स तथा आइवरी कोस्ट के राष्ट्रपति सम्मिलित थे। उत्सव समाज की नस-नस को विषाक्त करते हुए चारित्रिक प्रदूषण की। चारित्रिक प्रदूषण के समाधान 80 देशों से आए इन प्रशंसात्मक बधाई सन्देशों के रूप में उन्होंने कहा कि सहजयोग ध्यान के संयोजक श्री वी.जे. नालगिरकर ने संक्षिप्त में को उपस्थित सहजयोगियों के सम्मुख पढ़कर धारणा द्वारा आध्यात्मिक उत्थान प्राप्त करके इस सुनाया। इन सन्देशों में कहा गया था कि श्रीमाताजी आन्तरिक प्रदूषण को समाप्त किया जा सकता 11 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 7 8 8. 2000 है। मध्य प्रदेश कं पूर्व मुख्यमन्त्री श्री सुन्दर चारित्रिक, नैतिक, आध्यात्मिक सभा की प्रतीक लाल पटवा ने कहा कि परम पावनी माँ के है। विश्वभर में इसी प्रकार को सभाओं का चरण कमलों में समर्पित होकर उनके आनन्द सृजन करके एक नए प्रकार की मानवता का सृजन करने के परम पावनी माँ के स्वप्न का भी के शरीर विज्ञान की अध्यक्ष डॉ. शोभा दास ने उन्होंने वर्णन किया। उपस्थित सभा के सम्मुख का कोई पारावार नहीं रहा। लेडी हार्डिंग अस्पताल श्रीमाताजी को दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा स्वीकार सर सी. पी. श्रीवास्तव ने दो प्रस्ताव रखे-पहला विश्व भर में सहजयोग प्रचार के लिए स्वयं को किए गए 'सहजयाग द्वारा तनाव प्रबन्धन समर्पित करना तथा दूसरा यह कि परमपावनी भाँ विपय पर लिखे गए दो शोध-ग्रन्थ भेंट किए। उन्हों ने लिपिड पराक्सीडेरान ( Lipid तब तक विश्व में अपने दिव्य शरीर की बनाए Peroxidation) नामक रोग पर सहजयोग के रखें जब तक विश्व का हर मानव उत्थान को प्राप्त नहीं कर लेता। सभा के प्रतिनिधि के रूप प्रभाव का भी संक्षिप्त वर्णन किया। भारतीय लोक सेवा तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के अन्तर्राष्ट्रीय पदों पर भिन्न सम्मानों से विभूषित में श्री योगी महाजन ने दोनों प्रस्तावों को पारित किया। सर सी.पी. श्रीवास्तव ने अपने परिवर्तन की तीन यही हीरा अपने मूल्य को नहीं जानता, बात मानव के विषय में भी कही जा अवस्थाओं का वर्णन किया। पहली अवस्था विस्मय, दूसरी गौरव और तीसरी अवस्था समर्पण की थी। आरम्भ में जब उन्होंने लोगों को सामूहिक रूप से परिवर्तित होते सकती है। जब तक वह आत्मज्ञान को प्राप्त नहीं कर लेता...आत्मज्ञान से सशस्त्र देखा तो वे अत्यन्त होकर आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति कमलों सम हो जाते हैं और अपनी अन्तर्जात मूल्य विस्मित हुए जब उन्होंने सहजयोगियों और योगिनियों द्वारा समाज परिवर्तित होते हुए देखा तो प्रणाली के कारण अत्यन्त रंग-बिरंगे और स्वयं को अत्यन्त गौरवान्वित महसूस किया और आकर्षक प्रतीत होते हैं तथा दिव्य सुगन्ध बिखेरते हैं । अब अपने अस्सीवें वर्ष में वे समर्पण की स्थिति में पहुँच गए हैं-परमेश्वरी शक्ति के प्रति समर्पण की स्थिति में, जिसमें सहजयोगियों योगिनियों की अद्वितीय देवदूत सभा का सृजन किया है। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी 21.3.2000 अपने प्रवचन में श्री माताजी ने कहा कि उन देवदूतों का एकमात्र लक्ष्य धर्म और जाति भेदों से ऊपर उठकर एकमात्र सहजयोग परिवार वे गहन देशभक्त लोगों का हृदय से सम्मान का सृजन करने के लिए परस्पर पावन प्रेम की करती हैं। ऐसे लोगों को यदि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाए तो केवल अपने चित्त द्वारा सहजयोग अभिव्यक्ति करना है। उन्होंने कहा कि यह सभा संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेम्बली से भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह विश्व की की शक्ति को प्रभावशाली ढंग से उपयोग करके ये लोग समाज तथा देश की स्थिति को सुधार T2 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & 8, 2000 सकते हैं। उन्होंने कहा कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त का स्वप्न 'निराकार" से ही आरम्भ होता है हो जाने पर विनाशकारी विचार तथा गतिविधियाँ और ऐसा होना केवल आत्मसाक्षात्कार के स्वत: ही छुट जाती है। तलियाती के माफ़िया के पश्चात् ही सम्भव है । 'सच्चे ज्ञान' से सशस्त्र होकर आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति भिन्न धर्मों के वैमनस्य को प्रभावशाली रूप से दूर कर सकता एक मुखिया का उदाहरण दते हुए उन्होंने बताया कि किस प्रकार उस व्यक्ति ने सहजयोग अपनाकर स्थानीय लोगों की संवा में स्वयं को लगा दिया हैं। योगभूमि भारत की तुलना उन्होंने पूरे विश्व की कुण्डलिनी से की और बताया कि पूर्ण ज्ञान है। श्री माताजी ने बताया कि आत्मा के प्रकाश में व्यक्ति देख सकता है कि समाज में तथा देश में कौन सी बुराइयाँ हैं और उसमें उन बुराइयों को सुधारने की शक्ति भी होती है। कुछ विदेशी सहजयांगियों द्वारा कश्मीर जाकर वहाँ के लोगों केवल चैतन्य लहरियों की चेतना प्राप्त करने पर ही किया जा सकता है। उन्होंने ये भी कहा कि सच्चे ज्ञान को पाकर सहजयोगी पूरे समाज-देश को परिवर्तित कर सकते हैं। उदाहरण के रूप में को परिवर्तित करने के प्रस्ताव का भी उन्होंने उन्होंने बताया कि किस प्रकार आस्ट्रेलिया के सहजयोगियों ने उड़ीसा में नौ सहज योग केन्द्ों वर्णन किया। की स्थापना की है। एक बार आत्मसाक्षात्कार जब आप पा लंते हैं तो आप धर्म के सौन्दर्य धर्म की यह अवसर विश्व भर से आए तेतीस सहजयोगी/ योगिनियों को विवाह सूत्र में बंधते एकरूपता को समझ सकते हैं। जब परमात्मा हुए देखने का साक्षी था। सार्वभौमिक भाईचारे लड़ सकते हैं? उन्होंने बताया कि रूस ने विश्व की धारणा को स्थापित करने के लिए विश्व निर्मलाधर्म के विचारों की पक्की स्थापना का ये एक है तो किस प्रकार आप धर्म के नाम पर निर्मल धर्म को विशेष धार्मिक मान्यता प्रदान की है क्योंकि यह धर्म करुणा में विश्वास रखता है एक अन्य उदाहरण था। घृणा में नहीं। श्रीमाताजी ने बताया कि 'साकार' 13 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 8 8, 2000 77वां जन्मदिवस समारोह निर्मल धाम-दिल्ली 22,3.2000 पूर्व पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्री बलराम जाखड़ का भाषण प्रातः स्मरणीय, आदरणीय, स्नेहमयी आदिशक्ति माँ जी. बड़े भाई आडवाणी जी सी. पी. साहब, माननीय उपस्थित बहनों भाइयो और सहजयोगियो। माँ, पिछले वर्ष भी आपका जन्मदिन आत्मा चाहती है कि कोई संदेशा दे प्यार का। पता नहीं कैसी भावना बढ़ती जा रही है कि यहाँ आपकी आवश्यकता है. आपकी वाणी की आवश्यकता है, कि यहाँ मनुष्य अपनी मानवता को समझ सके, अपने आपको समझ सके और वो ये समझ सके कि हमने सिर्फ दूसरों के भलें के लिए सबके साथ, सबका भला सोचते हुए जीना है। आज यह सब विलुप्त होता जा रहा है। मन में एक बड़ी पीड़ा है माँ! आपका संदेश वो संदेश है जो आदि सत्य है। यत्र विश्व भवति मनाया था. इस बार भी मना रहे हैं और लगातार मनाते रहेंगे। यह बहुत कुछ सोचने की बात नहीं है। जन्म मरण तो आत्मा का नहीं शरीर का होता है लेकिन आप अपने में स्वयं आत्मा का जीवित स्वरूप है। आपको नाम-यथा नामा तथा गुण। निर्मल वाणी, निर्मल स्नेह, निर्मल संदेश, प्यार एक नीड़म्। हमारा तो उससे भी आगे था. हजारों साल पहले हमने ये कहा था कि "वसुधैव का संदेश सांत्वना का संदेश, सद्भावना का संदेश, मित्रता का संदेश और एक साथ जीवन में आगे बढ़ने का, अपने आपको समझने का, आत्मा को परमात्मा से मिलाने का ये आपका संदेश है माँ। पतित पावनी गंगा का पवित्र जल कुटुम्बकम्" सारा संसार एक परिवार है। लेकिन आज परिवार बंटा हुआ है। लोगों की आत्माएँ लोगों ने बाँट दी हैं। सारा संसार एक विकृत रूप लेता जा रहा है। माँ जैसा कि आपने सुना है कि मैं कल कश्मीर जा रहा हूँ। क्यों जा रहा हूँ मैं? बढ़ते रहिए। मनुष्य जन्म लेता है ओर उसे कोई भ्रमण करने नहीं जा रहा हूँ। वहाँ आत्माओं का संहार हुआ है। मनुष्य ने बर्बरता का रूप है। आदमी अमानुषिक हो गया है। कैसा कि अपने लिए जिओ। अपने लिए तो सभी जीते निकृष्ठ काम किया है और उसके लिए मैं आपसे झोली भर के प्रेम की, आशीर्वाद की, जैसे भारत भूमि को सिंचित करता है, वैसे ही आप हमारी आत्माओं को सिंचित करते हुए आगे जीवित रहना पड़ता है। जो भी आता है उसे जीना पड़ता है। लेकिन ये तो कोई बात नहीं है लिया हैं। जीना तो वो है जो किसी और के लिए, सब के लिए जिए, और माँ तो संसार के लिए जीती एक शीतलता की, एक स्नेह की ले के जा रहा हैं। माँ आत्मा तरसती है प्यार के लिए और हूँ कि मैं उनको दे सकँ कि तुम भी जीना आज तरसता है संसार, और उसकी तड़पती हुई सीखो। मानवता पुकारती है माँ कोई आत्मा आए 14 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 7 & ৪. 2000 इस संसार में, और संदेश दे। ये ही तो भगवान कृष्ण कह गए थे कि "यदा-यदा हि धर्मस्य है, एक विद्राह की भावना जागती है कि आपकी ग्लार्निभवति भारतः अभ्युत्थानं धर्मस्य तदामान सृजाम्हयम्।" भगवान का ही रूप तो होता है सोच बदल कर प्यार में बदल दूँ। माँ यही आत्मा। क्यों ये सब लोग आए हैं यहाँ? जलसे बहुत होते हैं लेकिन ये जलसे में नहीं आए हैं। ये तो अपनी माँ कं पास आए हैं। वात्सल्य के जन्मदिवस के अवसर पर श्रीमाताजी को पास आए हैं। 'माँ शब्द ही ऐसा है कि जो बधाई देते हुए भारत के माननीय गृहमन्त्री श्री आत्मा को भर देता है। माँ का जो एक रूप है एल.के. आडवाणी ने श्रीमाताजी की दीर्घाय वो सबसे ऊँचा है। माँ शब्द से हृदय भर जाता हमारे पास है। माँ हृदय में एक ज्वाला धधकती इस प्यार की धार से इस जनता जनदांन की आशीर्वाद देते रहो। बहुत धन्यवाद। जयहिन्द की कामना करते हुए कहा :- सम्माननीय श्रीमाताजी, श्रीवास्तव जी, श्री है। माँ बात्सल्य देती है। आत्मा तृप्त हो जाती है। आत्मा को पोषण दती है। आत्मा जीती है उस जो पाते हैं। बलराम जाखड़ तथा देश के अन्य भागों से आए मेरे अन्य साथियो, इस संस्था के सहजयोगियों स्वरूप से उस दिव्य स्वरूप से आप हुए तथा योगिनियों। मेैं श्री राजेश शाह का आभारी हूँ जिन्होंने मुझे श्रीमाताजी तथा आप सबके दर्शन यहाँ। मैं तो ये कहने जा रहा हूँ कि आज आवश्यकता है कि आपका संदेश फेले। आज करने का सुअवसर प्रदान किया। मैं तो यहाँ पर 80 देशों से ऐसे तो बधाई संदेशे नहीं आ गए. श्रीमाताजी का प्रवचन सुनने उनके सानिध्य में कुछ समय बिताने तथा उनसे कुछ दिव्य ज्ञान प्राप्त करने यहाँ आया था। परन्तु आज उनका जन्मदिवस है अत: आप सबके साथ मैं और मेरी पत्नी श्रीमाताजी को प्रणाम करते हैं और कुछ होगा तभी आए हैं ना। यदि कोई आडम्बर होता है तो एक दिन चलता है 2 दिन चलता है 10 दिन चलता है। पर ये तो शाश्वत चल रहा है। शाश्वत इसीलिए चलता है कि इसमें सत्यता है। सार्थकता है। आप प्रतिमूर्ति हैं, प्रतिमूर्ति हैं उन्हें शुभकामनाएं दते हैं तथरा परमात्मा से प्रार्थना सद्भावना की जो आज संसार में कम मिलती करते हैं कि वे दीर्घायु हों। हम ये भी प्रार्थना है। मनुष्य स्वार्थ में रत हो गया हैं, ये नहीं करते हैं कि वे सदैव उसी प्रकार चैतन्य फैलाती सोचता कि उसका जीवन कितना है? क्या समेट रहें जिस प्रकार वे पिछले कई वर्षों से कर रही के ले जाएगा? क्या साथ चला जाएगा ? सब कुछ हैं। नहीं जाएगा माँ। साथ जाएगा तो केवल आपका आशीर्वाद जाएगा. जाएगी तो आपकी प्रेम की रही हैं वातावरण के विषय में बात करते हुए भावना जाएगी जो हमारी आत्मा को उठाएगी हमारे मस्तिष्क में प्रायः भौतिक वातावरण ही और सिखाएगी कि तुम जीओ और जीने दो। होता है। परन्तु मानव समाज में जिस प्रकार का इसी में सार्थकता है। भगवान से प्रार्थना है कि प्रदूषण फैल रहा है वह अत्यन्त भयानक है और आजकल वातावरण की बहुत बाते हो आपको प्रकाश फैलता रहे। सूरज तो रोज निकलता भी है, छुपता भी है परन्तु आप तो रात दिन अत्यन्त विशाल जिस प्रकार हम प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाने 15 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & 8. 2000 के लिए कहते हैं उसी प्रकार समाज में फैले कि और क्या कहा जाए। परन्तु में ये कहना वर्तमान नैतिक प्रदूषण को दूर करने का उत्तरदायित्व चाहूंगा कि आज मैंने अस्सी वर्ष का जीवन पूर्ण श्रीमाताजी जैसे दिव्य व्यक्तियों पर आ गया है। कर लिया है । आपकी पावनी माँ का जन्मदिवस ता। अत: जब व्यक्ति इस प्रकार के उत्सव में भाग मनाने का एक अनुभव जीवन को सम्पूर्ण बना लेता है तो वह स्वयं को उन्नत महसूस करता है, उसे लगता है कि अन्त:स्थित प्रदूषण यदि व्यक्तियों तक और फिर विशाल समूह तक पूरा नहीं तो कुछ सीमा तक घट गया है। मनुष्य सहजयोग के विकास का मैं साक्षी रहा हूँ तथा के हृदय में प्रसन्नता होती है, आनन्द होता है। मैं मैंने चमत्कार होते हुए स्वीकार करता हूँ कि मैं उतना आशीर्वादित नहीं विस्मय हुआ कि यह सब किस प्रकार घटित हो हूँ जितना आप लोग। मुझे तो प्रदूषण में घूमना सकता है। नशा लेने के आदि लोग किस प्रकार पड़ता है, आप लोग इससे ऊँचे हैं, आप लोग बहुत भाग्यशाली हैं। परन्तु ऐसे उत्सवों में भाग लेने के जो भी अवसर मुझे प्राप्त होते हैं, तत्पश्चात् मैंने बहुत से लोगों को उनकी कृपा से उनके लिए मैं स्वयं को धन्य मानता हूँ। यहाँ मेरे परिवर्तित होते हुए देखा और गौरव (Splendour) साथ आए मेरी पत्नी, मेरे सम्बन्धियों की ओर से तथा अपनी ओर से एक बार फिर मैं श्रीमाताजी स्थिति। और अब अपने जीवन के अस्सीवें वर्ष को प्रणाम करता हूँ और सर्वशक्तिमान परमात्मा में मैं समर्पण (Surrender) की स्थिति में पहुँच से प्रार्थना करता हूँ कि आपका आशीर्वाद हम लेने के लिए काफी है। एक व्यक्ति से कुछ देखे हैं। आरम्भ में मुझे रातोंरात नशे छोड़ सकते हैं। तो मेरा पहला बहुत अनुभव विस्मयावस्था का था (Be wilderment) का अनुभव किया। विस्मय अवस्था से गौरव की गया हूँ। इस सभा का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। यह अत्यन्त अद्वितीय सभा है जिसमें परमेश्वरी अवतरण उपस्थित हैं और जो देवदूतों से परिपूर्ण है। श्री आडवाणी जी ने प्रदूषण की बात की। मैं उन्हें विश्वास दिलाना चाहूँगा कि इस सामूहिकता में पूर्ण पावनता है। यहाँ उपस्थित लोग परस्पर पावन एवं विशुद्ध प्रेम से बंधे हुए हैं। इस सामूहिकता में सभी धर्मों, देशों जातियों के लोग बैठे हुए हैं, जिन्होंने अपने सभी भेदभाव पर सदैव बना रहे। धन्यवाद। श्री एल.के. आडवाणी को सम्बोधित करते श्री योगी हुए महाजन ने आश्वस्त किया कि जिस प्रदूषण की वे बात कर रहे थे, सहजयोग के माध्यम से वह पूर्णतः दूर हो जाएगा और नवसहस्राब्दि में, उनके सहयोग से, हम देश इस प्रदूषण से बचा सकेंगे। श्रीमाताजी को जन्मदिवस की बधाई देते हुए सर सी. पी. श्रीवास्तव ने इस प्रकार हृदयाभिव्यक्ति की:- सम्मानीय श्री आडवाणी जी. श्रीमती के किसी कोने में भी आप जाएं आपको अपने को भुला दिए हैं ये सब केवल सहजयोग परिवार के सदस्य हैं। यह कितने गर्व की बात है विश्व बहन-भाई मिलते हैं। ये एक ऐसी सृष्टि है जिस आडवाणी, उपस्थित विशिष्टगण, सम्मानीय अतिथियो तथा प्रिय सहजयोगियों व योगिनियो। पर आमतौर पर विश्वास नहीं होता। परन्तु वास्तव आज हमने इतना कुछ सुना कि समझ नहीं आता में ऐसा घटित हुआ है। इस सभा का सृजन 16 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & 8. 2000 सहमत होंगे। पहला प्रस्ताव ये है कि परम किसने किया है? मेरे विचार से ये सभा संसार की महत्वपूर्णतम सभा है संयुक्त राष्ट्र की से महासभा से भी अधिक महत्वपूर्ण। यह संसार हरेक व्यक्ति स्वयं को सहजयोग विश्वभर में की नैतिक सभा है, चारित्रिक सभा है, आध्यात्मिक फैलाने के लिए पुनः समर्पित करें। पावनी माँ को बधाई देने के अतिरिक्त हमें मेरा दूसरा प्रस्ताव, जिसे आप अधिक उत्साह के साथ पारित करेंगे, ये है कि जब तक सभा है। विश्व भर में पावन मानव समाज की सृष्टि करना आपकी प्रिय माँ का स्वप्न है । इस सभा के सृष्टा, इस नवस्वप्न के सृष्टा के पृथ्वी पर अवतरित हर मानव, हर पुरुष, हर सम्मुख सम्मान से में नतमस्तक हूँ। मेरे पास दो प्रस्ताव, हैं और मुझे पूर्ण लेता तब तक वे अपने साकार रूप को बनाए विश्वास है कि आप लोग पूर्ण हृदय से मेरे साथ महिला, हर बच्चा, आत्मसाक्षात्कार को नहीं पा रखें। आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद। 17 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 7 & 8, 2000 77वां जन्मोत्सव समाराह निर्मल धाम-छावला, दिल्ली 22.3.2000 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का भाषण है कि किस प्रकार इन लोगों ने विश्व के हजारों सम्माननीय अतिथिगण, सम्माननीय गृहमन्त्री श्री आडवाणी जी. जो कि महान देशभक्त रहे हैं और उनके देश प्रेम के कारण जिनकी मैं सदैव प्रशंसक रही हूँ। वें अत्यन्त देशभक्त हैं और तरह से कार्य नहीं कर रही। जिस प्रकार ये आप जानते हैं मेरे माता-पिता भी अत्यन्त देशभक्त वधाई सन्देश हमें आए हैं, आप देख ही रहे हैं. थे। उन्होंने देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान ये सब इनके प्रयासों का पफल है। सहजयोगी लोगों को आत्मसाक्षात्कार की ज्योति प्रदान की! वास्तव में यही लोग कार्य कर रहे हैं। मैं उनकी उनसे मिलते हैं उन्हें सहजयोग के विषय में कर दिया। देशभक्त होने के कारण उस समय सबने मेरी भी बहुत भर्त्संना की। जिस देश में बताते हैं और उन्हें आत्मसाक्षात्कार भी देते हैं। इस प्रकार से इन्होंने इस कार्य को किया है। अतः हमें अपने देश और उसकी हम जन्म लेते हैं उससे हमें अवश्य प्रेम करना चाहिए। आपके देश और आपकी आत्मा का गहन सम्बन्ध है। मैंने देखा है कि सहजयोग में समस्याओं के विषय में चिन्ता करनी चाहिए। ये आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके परिवर्तित होने के समस्याएं क्यों हैं? मैं जानती हूँ कि आपकी पश्चात् लोग जान जाते हैं कि उनके देश में क्या कमी है। सहजयोगी उन कमियों के विषय में देश की स्थिति को सुधारेंगे। हर जगह ये घटित बहुत जागरूक हो जाते हैं। मैं हैरान हूँ कि सभी हो रहा है। भारत में भी ये घटित होना चाहिए। मुझे बताते हैं कि उनके दश में क्या कमी है और उसके विपय में क्या किया जाना चाहिए। महत्वपूर्ण कर्त्तव्य बनता है कि सर्वप्रथम हम उन्होंने कभी अपने देश की गलतियों तथा कामनाएं और प्रयत्न निश्चित रूप से आपके आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् यह हमारा द अपने समाज को देखें, अपने देश को देखें। आप बुराइयों का साथ नहीं दिया। यह बहुत हैरानी की यदि ऐसा नहीं करते तो आत्मसाक्षात्कार प्राप्त बात है इसके विपरीत उन्होंने कहा कि श्रीमाताजी करने का क्या लाभ है? क्योंकि आत्मसाक्षात्कार इन सब देशों को आपकी कृपा की आवश्यकतां है ताकि ये सुधर सकें। वहाँ के राजनीतिज्ञ सुधरने चाहिए; वहाँ के नागरिक सुधरने चाहिए कला। ज्यों ही आप अपने आस-पास के लोगों ताकि वे एक नव-चेतना में उन्नत हो सकें। को, गाँव के लोगों को, आस-पड़ोस के लोगों सभी सहजयोगी इस कार्य में जुटे हैं। यहाँ हमारे को अपने नगर के तथा देश के लोगों को देखने सम्मुख विदेशों से आए बहुत कम सहजयोगी हैं। लगते हैं तुरन्त यह निस्वार्थ प्रेम शुरू हो जाता है। परन्तु मैं आपकी बताऊंगी कि ये हैरानी की बात चैतन्य लहरी । एक शक्ति पर आधारित है प्रेम की शक्ति पर तथा एक कला पर आधारित है-निव्वाज्य प्रेम की तुरन्त आप समझने लगते हैं कि आपके अपने 18 खंड XIl अंक : 7 & ৪. 2000 समाज में क्या समस्याएं हैं। मैने देखा है कि सहजयोग में आने के पश्चात् लोग अपने समाज के बहुत करते हैं। सहजयोग में बहुत से हिन्दू हैं, मुसलमान हैं, इसाई हैं और सभी प्रकार के लोग हैं। परन्तु मैं भो मिलती है आनन्द भी। श्रीमाताजी भूतकाल में मैने जो भी कुछ किया से दोषों को दूर करने की कोशिश उसके लिए कृपा करके मुझे क्षमा कर दें। मैंने कहा, "क्षमा किया। वर्तमान ही महत्वपूर्ण है और अब तो आप सहजयोगी बन गए हैं। जिस प्रकार आपने मेैं एक चीज पर हेरान थी कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् उन्होंने कभी अपने समाज की और धर्म की बुराइयों का साथ नहीं दिया। है वह कहने लगा." अब मेरे अन्दर शान्ति है, इसके विपरीत उन्होंने इन बुराइयों को सुधारना आध्यात्मिक उत्थान प्राप्त किया है वह प्रशंसनीय आनन्द है और इसे बाँटने के लिए मैं अन्य लोगों के पास गया। अपना धन में कभी दूसरों के साथ नहीं बाँट सकता था। मैं तो दूसरों से धन चाहा और इसके लिए कार्य करना चाहा। इस कार्य को करने का बहुत आसान तरीका है। लोगों को परिवर्तित करने के लिए न तो आपको मर्यादाएं तोड़नी पड़ती हैं न कोई स्वीकृतियों की आवश्यकता नहीं है, सब हो बलिदान करने पड़ते हैं ऐसा कुछ भी नहीं करना छीन लिया करता था।" मैंने कहा" मुझे अपराध गया। सहजयोगी होकर अब आप क्या करेंगे? पड़ता। आज हर व्यक्ति किसी न किसी प्रकार की चिन्ता या समस्या से परेशान है। उन्हें और कहने लगा मैं भारत प्याज भेजूंगा। मैंने कहा, आश्चर्य की बात थी कि वह इतना प्रेममय था। भी समस्याएं हैं। आपको उन्हें बताना होगा कि क्यों? उसने उत्तर दिया, क्योंकि वहाँ प्याजों का अभाव है। मैंने सोचा इस व्यक्ति को देखो यह कितना सच्चा और मानवीय बन गया है! मैंने आपका जीवन इस प्रकार से परिवर्तित हो सकता है कि आप इन सब चिन्ताओं से इन सब समस्याओं से ऊपर उठ जाएंगे। आप पूछ सकते हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है। जब आप कहा ऐसी कोई समस्या नहीं है तुम चिन्ता मतः करों। चीजों की ओर देखने का उसका नजरिया आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करते हैं तो आपका चित्त इतना अच्छा था कि जो व्यक्ति माफिए का आत्मा के प्रकाश से ज्योतिर्मय हो उठता है और मुखिया था वह अत्यन्त अच्छा और सम्माननीय स्वत: ही आप अपनी विनाशकारी आदतों, विचारों तथा गतिविधियों को त्यागने लगते हैं। अचानक लड़ने चाहे। मैंने कहा अवश्य लड़ो, आप चुने आप सृजनात्मक हो जाते हैं। रूस में जब मैं जाओगे, और यदि न भी चुने गए तो कोई बात तलियाती में थी तो आश्चर्यचकित करने वाली बन गया था। तब उसने नगर पालिका के चुनाव नहीं। परन्तु वह चुनाव जीत गया। अत: आप देखें कि आत्मा बन जाने की एक खबर मुझे मिली कि वहाँ के माफ़िये का मुखिया सहजयोगी बन गया है। इसने मुझे बहुत इच्छा करने वाले व्यक्ति के कार्य किस प्रकार हो जाते हैं। शिवाजी ने कहा है" स्व धर्म जाग कहने लगा कि मैं ये सब उल्टे सीधे कार्य वावा" भविष्य के लिए उन्होंने केवल यही करता रहा हूँ। इनसे न मुझे कभी सन्तुष्टि मिली सन्देश दिया है स्व धर्म जाग वावा अर्थात न कभी आनन्द। परन्तु सहजयोग से मुझे सन्तुष्टि आत्मा की जागृति। आप आत्मा को जागृत कर द्रवित किया। वह व्यक्ति मेरे पास आया और 19 चैतन्य लहरी खंड XII अंक : 7 & 8. 2000 लेते हैं और यही उपलब्धि हमें प्राप्त करनी है। क्यों? क्योंकि हममें स्पर्धा की भावना नहीं है शिवाजी क्योंकि स्वयं आत्मसाक्षात्कारी थे इसीलिए इसीलिए सभी लोग हमसे प्रसन्न हैं। वास्तविकता उन्होंने कहा कि आपको भी यही करना है यही है कि जब आप ये महसूस कर लेते हैं कि उच्च पद. वैभव, सम्पत्तियाँ पाने के विषय में आपको चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं क्योंकि सन्तोष तो आपके अन्तर्निहित है। आप न अपनी आत्मा को जागृत करना है। आत्मा के उस प्रकाश से क्या होता है? आपके समाज में क्या दोष हैं? आपके देश में कया दोष हैं? आप अपने अन्दर इतने शान्त हैं कि भौतिक चीज़ों के हर चीज़ को बहुत स्पष्टत: देखते हैं और आपमें इसे ठीक करने की शक्ति भी है। अपनी शक्ति पीछे नहीं भागते। आधुनिक अर्थशास्त्र एक साधारण के प्रति यदि आप जागरूक हैं और इस पर तथ्य पर आधारित है कि मानव कभी सन्तुष्ट नहीं होता। आज उन्हें एक चीज़ की आवश्यकता है, सभी कुछ करेंगे और इसे प्राप्त करने के स्वामित्व भी आपने प्राप्त किया है तब आप यह कार्य कर सकते हैं। ऐसा आप न केवल अपने लिए कर सकते हैं, अपितु अपने परिवार, अपने लिए धन खर्चेगे फिर भी सन्तुष्ट न हो पाएंगे| समाज तथा अन्य सभी लोगों के लिए कर सकते किसी और चीज़ की इच्छा भड़क उठेगी अर्थशास्त्र हैं। मेरे पति कहा करते थे कि तुम समाजवादी हो क्योंकि तुम अकेले चैन से नहीं रह सकते। आधुनिक अर्थशास्त्र। परन्तु सहजयोग भिन्न है, दूसरों के साथ बाँटना तुम्हारे लिए आवश्यक है, सहजयोग का अर्थशास्त्र कहता है कि मुझे तुम सामूहिक हो। हमें समझ लेना चाहिए कि हम सामूहिक हैं । कहीं भी हम अकेले जीवित लोगों में इसे बाँटना है। यदि मुझे सन्तोष प्राप्त नहीं रह सकते। हम सभी सामूहिक हैं इस बात का हमें ज्ञान नहीं है। जब आपको इसका ज्ञान हो जाएगा तो आप आश्चर्य चकित होंगे कि आप पूर्ण के अंग-प्रत्यंग हैं अपने समाज में आपको और लोग इस कार्य को बखूबी कर रहे हैं उस साथी नहीं खोजने पड़ेंगे कुछ भी नहीं आप दिन मैंने आपको बताया था कि हमें प्रेम करने केवल सहजयोगियों का साथ ही चाहेंगे। यह बात का यही आधार है, कहने का अभिप्राय है आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है अब मुझे अन्य हुआ है तो अन्य लोगों के साथ भी इसका बाँटा जाना आवश्यक है। सहजयोग में बाँटना अत्यन्त महत्वपूर्ण है की कला सीखनी चाहिए। यदि आप कुछ मधुर बातें कह सकते हैं, प्रेम से लोगों को कुछ दे पूर्णतः प्रमाणित हो चुकी है कि यदि आप आध्यात्मिक रूप से जागृत हैं तो आपका किसी सकते हैं उनके साथ कुछ बांट सकते हैं तो यह के साथ कोई झगड़ा नहीं होता, किसी से कोई कार्य बहुत सहज है। ऐसा करना आपके लिए घृणा नहीं होती, किसी से आपकी कोई स्पर्धा कठिन नहीं है क्योंकि आपके पास आनन्द प्रदान नहीं रहती। सहजयोग में मैंने ऐसा किसी को करने के लिए आपकी आत्मा है। मैं जानती हूँ करते हुए नहीं देखा। यही कारण है कि आप सब लोगों के लिए बाहर की चीज़ें इतनी अच्छी रातोरात लोगों ने नशे छोड़ दिए। अब अमेरिका हो गई हैं। एक महिला राजदूत ने मुझे बताया कि श्रीमाताजी हम बहुत प्रसन्न हैं, मैंने पूछा के लिए कहा गया है और सहजयोगियों ने कहा कि सहजयोग ने बहुत से चमत्कार किए हैं। में हमसे एक नशा उन्मूलन संस्था आरम्भ करने 20 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 7 & ৪, 2000 कि हमारे पास दस लाख डॉलर हैं। क्या इतने ज्योतिर्मय हो उठेगा। अपने धर्म के सौन्दर्य को पैसे से हम ये कार्य कर सकेंगे? उन्होंने कहा वे देखेंगे। अपने धर्म की एकरूपता को वै देखेंगे नहीं, नहीं, हम आपको दो सौ दस लाख डॉलर और इस प्रकार एक सार्वभौमिक धर्म स्वीकार देंगे। मैंने उनसे कहा कि यदि आपको नशा कर लिया जाएगा और उसमें सारे धर्मों को ठोक उन्मूलन का ही कार्य करना हैं तो आप दो सो प्रकार से समझा जाएगा। सभी धर्मों के लोग कुछ दूस लाख डॉलर लेकर क्या करेंगे। आवश्यकता पथभ्रष्ट हुए हैं और समस्याओं का यही कारण तो ये है नशा त्यागने के लिए लोग आपके पास है। जब परमात्मा एक है तो धर्म के नाम पर आए। रातों रात वे नशा त्याग देंगे। मैंने ऐसे होते हुए देखा है और उनमें से कुछ लोग यहाँ बैठे हुए हैं। आपकी आत्मा में इतनी शक्ति है। उसमें इतना सौन्दर्य, इतना प्रेम और इतनी शान्ति है। केवल इसे अपने चित्त में रखना होगा क्योंकि क्या आप युद्ध कर सकते हैं? परन्तु अज्ञानतावश लोग ऐसा करते हैं। मैं उन्हें दोष नहीं देती क्योंकि वे अंधेरे में हैं। एक बार ज्योतित होते ही वे समझ जाएंगे कि सार्वभौमिक धर्म का स्वभाव क्या है? आप हैरान होंगे कि रूस में सहजयोग या विश्वनिर्मला धर्म को धर्म के रूप में मान्यता यह चित्त इंधर-उधर भटकता रहता है। आपका चित्त यदि आत्मा के प्रकाश से ज्योतिर्मय हो दी गई है। परन्तु यह और धर्मों की तरह से धर्म है। यह विल्कुल उन जैसा नहीं है। इस धर्म जाए तो आप अत्यन्त अद्भुते मानव बन सकते नहीं हैं। संस्कृत में जिस प्रकार वर्णित किया गया है में तो हम केवल प्रेम एवं करुणा में विश्वास काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह स्वत: ही छुट जाते हैं। जो क्रोध, मूर्खताएं और आक्रामक कार्य हम करते हैं वे सब छूट जाते हैं। कुछ सहजयोगियों को मैंने कश्मीर जाकर सहजयोग फैलाने के लिए कहा है। कश्मीर के लोगों को यदि आप सहजयोगी बना दें तो कश्मीर समस्या का हल करते हैं तथा अपनी शक्ति में भी कि कोई हमें छू नहीं सकता। कोई आपकी हत्या नहीं कर सकता। आपको हैरानी होगी कि तुर्की में बहुत बड़ा भूकम्प आया परन्तु किसी भी सहजयोगी को हानि न पहुँची। उनके घर भी ज्यों के त्यों रहे जबकि अन्य लोगों के घर धराशायी हो गए। से है। है। लोग वहाँ जाने के लिए तैयार ऐसा बहुत से स्थानों पर घटित हो सकता कुछ भी हैं। कुछ विदेशी सहजयोगियों ने वहाँ जाकर लोगों को परिवर्तित करने के लिए अपनी सेवाएं भेंट की हैं। हमने बहुत से लोगों को परिवर्तित हुआ बहुत स्थानों पर चक्रवात आए परन्तु किसी सहजयोगी को हानि न पहुँची। सभी लोग मुझे बताते हैं कि श्रीमाताजी सब सहजयोगी बच गए। किस प्रकार किया है। बेनिन नामक स्थान पर सात हजार ता वे सब पूरी तरह से ठीक हैं? क्योंकि आपको मुसलमान लोग कि पहले बहुत धर्मान्धि थे अब परमेश्वरी शक्ति की सुरक्षा प्राप्त है। हमें परमेश्वरी सहजयोगी हैं। तुर्की में दो हजार सहजयोगी हैं तो शक्ति में भरोसा करना चाहिए जिस पर सभी हिन्दुओं, मुसलमानों, इसाईयों में जो धर्मान्धता है धर्मों ने भरोसा किया। इसे भी आसानी से दूर किया जा सकता है। तब एक अन्य समस्या आती है कि हमें साकार में विश्वास करना चाहिए या निराकार में। क्योंकि आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् वे लोग आत्मा पत के सौन्दर्य को देखेंगे और उनका अपना धर्म ही आप समझ जाएंगे कि साकार के माध्यम से ही 21 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 & 8. 2000 निराकार को जाना जा सकता है। ये चीज़ देख उनके लिए यह स्वयम्भु कर्मकाण्ड मात्र है। वे लेना अत्यन्त साधारण बात है। परन्तु अत्यन्त वे स्वयम्भु हैं या नहीं। आश्चर्यचकित कर देने वाले उदाहरण के रूप में सहजयोगी होने के नाते आप लोग जाकर स्वयम्भु नहीं समझ पाते कि एक बार मैंने कहा कि मक्का में मक्केश्वर शिव हैं ये बात हमारे धार्मिक ग्रन्थों में लिखी हुई है। देख सकते हैं और इन्हें स्वीकार कर सकते हैं । मैं जानती हूँ कि सन्त तुकाराम के स्थान पर आप लोग नृत्य कर रहे थे और आनन्द ले रहे थे क्योंकि आप वहाँ चैतन्य को महसूस कर रहे थे चैतन्य लहरियों का आनन्द ले रहे थे अत: मोहम्मद साहब ने कभी किसी धर्म के विषय में पहले आपको निराकार का ज्ञान प्राप्त करना बात नहीं की। किसी ने ये बात नहीं पढ़ी कुरान चाहिए। तब आपको साकार का ज्ञान प्राप्त में भी नहीं। कुरान पर हमारे यहाँ एक बहुत हो जाएगा। इसके विषय में कोई विवाद नहीं है। अच्छी पुस्तक लिखी गई है। नि:सन्देह यह मेरे परन्तु आप यदि साक्षात्कारी नहीं हैं तो आप किस प्रकार कह सकते हैं कि कौन स्थान मैंने तो बस यह बात कह दी थी। परन्तु अब मैंने एक लेख पढ़ा है कि वे सब भगवान शिव के पुजारी थे। परन्तु हैरानी की बात है कि पथ-प्रदर्शन में लिखी गई है। इसमें स्पष्ट बताया है कि मोहम्मद साहब ने क्या कहा? इस प्रकार स्वयम्भु है और कौन सा नहीं। तो सारी समस्या का समाधान हो जाता है। परन्तु पहले आपको ज्ञान प्राप्त करना होगा-चैतन्य लहरियों का ज्ञान। अब आप यदि मुझसे कोई गम्भीर प्रश्न पूछें जो हैं जो कभी शास्त्रों में नहीं लिखे गए। धर्माधिकारी हमारे देश में समस्या बना हुआ है और जिसके लोग ही धर्म के प्रतिरूप को बिगाड़ रहे हैं और विषय में बताने का हमें अधिकार है । वह है समस्याएं खड़ी कर रहे हैं। मैं नहीं समझ पाती श्रीराम मन्दिर का प्रश्न ? क्या श्रीराम वहाँ पर कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं? इसका क्या लाभ पैदा हुए या नहीं। वे वहाँ पर जन्मे इस बात को हैं। जहाँ तक साकार और निराकार का प्रश्न है आप अपने हाथों पर महसूस कर सकते हैं। इसे समझ लेना बहुत सुगम है। आत्मसाक्षात्कार उन्होंने वहीं जन्म लिया। इसके विषय में कोई प्राप्त कर लेने के पश्चात् आप स्पन्द को महसूस सन्देह नहीं है। इस बात को लेकर लड़ने की कर सकते हैं या ये कहें कि आपमें चैतन्य कौन सी बात हैं? वहाँ चाहे मस्जिद है या कुछ चेतना आ जाती है और इससे आप जान जाते हैं और श्रीराम ने बहीं जन्म लिया। जो भी हो वहाँ पर चैतन्य लहरियाँ हैं । परन्तु उन्हें गौरवान्वित किसी शराबी द्वारा या धन कमाने की इच्छा से करने के लिए वहाँ मन्दिर अवश्य बनाएं। मन्दिर-मस्जिद एक ही बात है। अगर आप लोगों को अपयश मिलता है। आज इसाई लोग जो बात कह रहे हैं वह ईसा ने कभी नहीं कही । हिन्दू भी ऐसा ही कहते हैं। वे ऐसे कम कर रहे कि सत्य क्या है असत्य क्या है? मैं कहूँगी कि बनाई गई मूर्ति की पूजा करने में कोई सत्य नहीं। परन्तु बाइबल में भी कहा गया है कि मन्दिर बनाना चाहते हैं तो अवश्य बनाएं परन्तु ऐसा केवल आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् अपमान नहीं होना चाहिए। इन्हें हम स्वयम्भु करें उससे पहले नहीं और उस मन्दिर में पूजा कहते हैं परन्तु जो लोग आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं के लिए केवल आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति को ही आकाश या पृथ्वी माँ द्वारा सृजित चीज़ों का 22 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & 8. 2000 रखें। तभी आप श्रीराम की महान आत्मा को कि हमारे इस देश में महानतम ज्ञान विद्यमान सहजयोग पूरी तरह से शास्त्र-सम्मत है यह श्रीराम को कमकाण्ड नहीं है। यह गहन ज्ञान हैं। सभी सन्तों जानते हैं। केवल इतना ही नहीं, वे जानते हैं कि ने चाहे वो कबीर हों, गुरु नानक या मोहम्मद गौरव प्रदान कर सकेंगे। यहाँ पर उपस्थित सभी लोग चाहे जिस भी देश से वो हैं श्रीराम हमारे अन्दर कहाँ विराजमान हैं और यह भी कि किस प्रकार उनकी लोग मोहम्मद साहब और ईसा मसीह के विषय साहब, सभी ने कहा है अपने अन्दर खोजो। उन्होंने एसा क्यों कहा? इसलिए क्योंकि सत्य, पूर्ण सत्य तो अपने अन्दर है और इसी पूर्ण सत्य में भी जानते हैं उनके विषय में सत्य जानते हैं, से छोटी-छोटी मुर्खताएं दूर होंगी और आप विशिष्ट व्यक्तित्व मानव बन जाएंगे। पूरे विश्व जब ये ज्ञान सच्चा ज्ञान प्राप्त हो जाएगा तो के लिए परिवर्तित होने का समय आ गया है। परन्तु इसके लिए आप सबको बहुत सा कार्य करना होगा। मेरी आप सबसे प्रार्थना है कि मेरे किसलिए झगड़ेंगे। मैं यदि कहती हैं कि मेरा लिए कार्य करें। जहाँ तक मुझसे हो सका मैने इस कार्य को किया और निःसन्देह काफी कार्य श करनी है। ये पूजा अपने अन्दर, अपने शरीर के अन्दर। एक बार झगड़ने के लिए क्या रह जायेगा? हर आदमी को एक ही प्रकार का अनुभव होगा। फिर आप देश भारत योगभूमि है तो इसके विषय में आप इन लोगों से पूछे चाहें वो किसी भी देश के हों। हुआ। परन्तु आप सब इस कार्य को कर सकते सभी एक ही बात कहेंगे। यही कारण अब वे हैं और अपने समाज, अपने देश और फिर पूरे विश्व को परिवर्तित कर सकते हैं। आप एक इस देश में आते हैं यहाँ की पृथ्वी को झुककर प्रणाम करते हैं। चाहे आप भारतीय ऐसा न करते दूसरे की सहायता कर सकते हैं। उदाहरण के हों। वो जानते हैं कि यह योगभूमि है और पूरे लिए कुछ लोग विदेशों से भारत आएं और कुछ ब्रह्माण्ड की कुण्डलिनी इस योगभूमि में है। भारतीय विदेशों में जाकर सहायता करें। अब आप लोग इस ज्ञान में दक्ष हो गए हैं आपको लहरियों के माध्यम से समझी जानी चाहिए यह कार्य करना चाहिए। आस्ट्रेलिया से जो लोग हमारे देश की ये सब महान बातें उन चैतन्य जिन्हें आदिशंकराचार्य ने स्पन्द कहा। बास्तव में उड़ीसा गए में उनका धन्यवाद करना चाहूँगी उनकी पूरी कविताएँ भी सामान्य लोगों को यह उन्होंने वहाँ सहजयोग के नौ केन्द्र स्थापित किए नहीं समझा सकतीं कि वास्तविकता क्या है? यह सब घटित हो रहा है और आप सब इस परन्तु यदि आप इन चीजों की गहनता में उतरें कार्य को कर सकते हैं। आत्मसाक्षात्कार देने की और अपने स्पन्द चैतन्य लहरियों के माध्यम से पूर्ण ज्ञान को समझें तो आप जान जाएंगे कि सत्य क्या है? असत्य के लिए झगड़ने का क्या फायदा? यह तो अंधकार से लड़ने जैसा है क्यों न प्रकाश करके स्वयं चीजों को देखा जाए? श्रीमन, आज मैंने यह सब कहने का दुस्साहस किया है क्योंकि मैं आपको बताना चाहती थी अंग्रेजी समझने वाले लोग हैं तो भी आप तो योग्यता आप सबमें है। यह वरदान जो आपको प्राप्त हुआ है, मेरी प्रार्थना है आप इसे आजमाएं और दूसरे लोगों में बांटं। हिन्दी भाषा के महत्व पर बल देते हुए श्री माताजी ने कहा: थोडा अंग्रेजी में बोले क्योंकि यहाँ बहुत र 23 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & ৪. 2000 समझ ही गए होंगे। तो भी मैं कहँगी कि सबको अपनी राष्ट्रभाषा तो आनी ही चाहिए। कहीं से चकित होंगे कि जो सहजयोग में लिखा है वो भी आप आए हों. यहाँ मैं जानती हूँ दक्षिण से उसमें भी लिखा है । फिर गर आप हिन्दी नहीं भी बहुत लोग आए हैं, नेपाल से आए हैं, सब जगह से लोग यहाँ आए हैं. लेकिन राष्ट्र भाषा को जानना बहुत जरूरी है मेरी मातृभाषा मराठी आप पढ़िए, उसे पढ़ कर आप बहुत आश्चर्य जानते और गर आप अंग्रेजी में ही फैसे हुए हैं तो ये ज्ञान अंग्रेजी में खास है नहीं। क्योंकि अंग्रेज़ी भाषा के अपने दोष हैं। अंग्रेज़ी में spirit शब्द है spirit का माने शराब, spirit का मतलब भूत और spirit का मतलब आत्मा। ऐसी भाषा में आप क्या कर सकते हैं। तो आप लोग कम है जो कि बहुत बढ़िया भाषा है आध्यात्म के लिए। लेकिन तो भी हिन्दी भाषा, मेरे पिता जी ने कहा कि गर तुम्हें हिन्दी भाषा नहीं आएगी तो तुम बेकार हो। पहली चीज़ अपनी हिन्दी भाषा। इसलिए हिन्दी भाषा आपको सीखनी चाहिए। हिन्दी भाषा जब आप सीखेंगे तो इससे एक बड़ा भारी लाभ जो आपको होगा वो ये है कि हमारी से कम हिन्दी भाषा सीखिए और इन सहजयोगियों को भी मैं सिखा रही हूँ परदेस में, कि ये एक हिन्दी भाषा सीखने से ये जो ज्ञान का भण्डार अपने देश में है उसको ये सीख लें/चाहे संस्कृत न सीखें लेकिन हिन्दी भाषा सीखना बहुत जरूरी संस्कृति के बारे में, हमारे गहन ज्ञान के बारे में हिन्दी भाषा में बहुत कुछ लिखा गया है, उसे है। 24 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 7 & 8. 2000 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देखी की ढूल्हों को शिक्षा छाला दिल्ली 23.3.2000 मैं न ही आप उसके स्वामी। अत: सहजयोगियों में आप सबको यहां देखकर बहुत प्रसन्न हूँ। आप सबको विदित होना चाहिए कि सहजयोग ये दुर्गुण नहीं होने चाहिए। एक दूसरे को समझना में विवाह करने के पश्चात् आपको एक भिन्न सर्वोत्तम है। उसके हृदय को भी समझने का प्रयत्न करें। कभी-कभी महिलाएं भिन्न संस्कृतियों और देशों से होती हैं इसलिए समझने का प्रयत्न करें। इसी प्रकार उसके देश की संस्कृति को आप समझ पाएंगे। पत्नी का सम्मान किया जाना बच्चां प्रकार का जीवन व्यतीत करना होगा। अन्य विवाहों तथा सहजयोग विवाहों में काफी अन्तर हैं। सहज विवाह में हमें समझना होता है कि यह एक प्रकार का पावन सम्बन्ध है जिसमें आपको अपनी पत्नी के साथ अत्यन्त सहज जीवन के लिए भी हितकर है। पत्नी के विषय में गुजारना होता है और उसे समझना होता है। वह भी सहजयोगिनी हैं इसलिए आवश्यक है कि जो भी धारणाएं (बन्धन) अब तक आपने बनाए आप उसका सम्मान करें और उसे प्रेम करें। वह समझ सके कि आप उसके हितचिन्तक, प्रेममय एवं भद्र पति हैं। उसके प्रति आपको अपना पूर्ण कार्य के लिए आप चुने गए हैं। यह बात प्रेम दर्शाना होगा क्योंकि वह सहजयोगिनी है. सर्वसाधारण महिला नहीं। इस सम्मान के साथ मुझे आशा है कि आप लोग अत्यन्त सुखमय करेगी वह सहजयोगिनी है। मैं उन्हें भी बताऊंगी विवाहित जीवन व्यतीत करेंगे। सहजयोग में जैसा होता है, हम परस्पर आलोचना नहीं करते। अत: क्षमा करना या किसी को बर्दाश्त करना उससे कष्ट सहना नहीं होता। परेशान न करें। उसके सहभागी बनें, सहभागी बन आप क्षमा इसलिए करते हैं क्योंकि आप सहजयोगी जाने पर उसे समझने और उसकी सहायता करने हैं, श्रेष्ठ मानव हैं। अत: अपनी पत्नी में दोष में आपको आनन्द मिलेगा। निकालने का प्रयत्न न करें और न ही हर समय उसे आदेश देते रहें-ऐसा करो, वैसा करो, उसका हाथ बटाएं। सहजयोग में हम नहीं मानते कि और जन्मजात आत्मसाक्षात्कारी सन्तानें प्राप्त होंगी। किसी को दूसरे व्यक्ति पर रौब जमाने का अधि मुझे विश्वास है कि आपका आने वाला जीवन कार है। अत: आपको चाहिए उसकी सहायता करें, उसको समझे और समस्याओं में उसके सहभागी बनें। उसके लिए कठिनाइयाँ खड़ी करने के स्थान पर उसकी सहायता करें। वह आपकी जीवन के लिए प्रस्थान करें। साथी है, दास नहीं, न वो आपकी नौकर है और आपकी कुछ विशेष धारणाएं नहीं होनी चाहिए. हुए थे या जो आपने समाज में देखे थ उन्हें भूल जाएं। आप बिल्कुल भिन्न लोग हैं सहजयोग के भली-भाति समझ लें कि जिस लड़को से आपका विवाह होने वाला है और जो आपकी देखभाल कि उन्हें क्या करना है। पत्नी को परेशान करने के लिए पौरुषिक रौब अपने अन्दर न रखें और स्वयं को परिवार का मुखिया मानकर पत्नी को मुझे आशा है आपके विवाह अत्यन्त सफल होंगे और आपको अत्यन्त सुन्दर, मधुर अत्यन्त सुखमय होगा। अत: अपनी पत्नी को प्रसन्न करते हुए सभी लोगों को सुख देते हुए हर चौज़ को सहज ढंग से देखते हुए आनन्दमय परमात्मा आपको धन्य करें। 25 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 7 & 8. 2000 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी की ढूल्हनों को शिक्षा छाखला ढिल्ली 23.3.2000 आप सब लोगों को इतने सुन्दर वस्त्रों में यह आपका निजी घर है और आप बहाँ की सुसज्जित देखकर बहुत अच्छा लगा। मैं आपको साम्राज्ञी हैं। आप माँ हैं. बहन हैं और सहजयोगियों बताना चाहती हूँ आपका विवाह सजयोगियों से की सभी प्रकार से सम्बन्धी हैं। अत: जब भी वे हो रहा है। यह बात आपने सदैव याद रखनी है। आपके घर में आएं उनके प्रति पूर्ण सम्मान आजकल हम देख रहे हैं कि सहजयोग में भी दिखाए। अपने पति से कभी उनकी शिकायत न विवाह टूट रहे हैं तथा ऐसा बहुत कुछ हो रहा है। परन्तु कभी-कभी तो केवल एक प्रतिशत ही विवाह टूटते हैं, सफल नहीं हो पाते। इसका कारण ये है कि वे सहजयोगी होने की अपनी संवारेगा। आप यदि प्रसन्न रहना चाहती हैं तो जिम्मेदारी को समझते हैं। इसीलिए मैं चाहती हूँ आपको जानना होगा कि अन्य लोगों को किस TEM करें, उसे अच्छा नहीं लगेगा। सदैव याद रखें आपका धेर्य, आपका प्रेम, आपका पथ प्रदर्शन बा निश्चित रूप से आपके विवाहित जीवन को प्रकार प्रसन्न रखें। दूसरों को यदि आप प्रसन्न कि आप सब लोग सदैव याद रखें कि आपका विवाह एक सहजयोगी से हुआ है और सदैव नहीं रख सकती तो स्वयं भी कभी प्रसन्न नहीं इस बात को याद रखें। आप उसका सम्मान करें, हो सकतीं। अपनी आवश्यकताओं इच्छाओं और उसकी देखभाल करें और उसे प्रेम करें। हो सकता है कि कभी वह थोड़ा बहुत असन्तुलित चाहिए। सभी कार्य अत्यन्त शालीनता से करने हो जाए। बड़ी ही शान्ति से आपने उसे वापिस सन्तुलन में लाना है। सहजयोगियों के समाज को सुरक्षित रखना आपकी जिम्मेदारी है। लोग आपके किसी पर आपको न तो चिल्लाना चाहिए न ही घर में आएंगे सहजयोगी उनकी पत्नियाँ बच्चे। क्रोधित होना चाहिए और न ही किसी के साथ आपको उनकी देखभाल करनी होगी क्योंकि हूँ आप ही सहजयोगी समाज की कार्यभारी हैं. हो सकता है आप बहुत धन कमाती हो, बहुत ही हैं अच्छी स्थिति में हों। परन्तु सदैव आपको ये बात समझनी चाहिए कि अपने विवाह के माध्यम से सुनना नहीं चाहती। मैं सुनना चाहती हूँ कि आप सहजयोग के कार्य को आपने चालू रखना है। बहुत ही मधुर और अच्छी पत्नी हैं जो अपने यह बहुत बड़ा उत्तरदायित्व है। यह सहजयोग पति और सहजयोग परिवार की देखभाल करती समाज को सुरक्षित रखता है। अतः सभी को प्रेम हैं। आपका यही कार्य है। इसमें अपमानित करें सभी की देखभाल करें। कभी न सोचे कि महसूस करने की कोई बात नहीं। अपने ही विचारों के विषय में नहीं सोचना चाहिए क्योंकि आप भद्र महिला है। आपकी शैली अत्यन्त शालीन होनी चाहिए दुव्व्यवहार करना चाहिए। मैं तुरन्त जान जाती कि कठोर गृहणी कौन सी हैं? लोग भुझे बताते कि श्रीमाताजी वह अजीब औरत है, लोगों से व्यवहार करना भी नहीं जानती। ऐसी बातें मैं 26 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 7 8 8, 2000 /७० सहजयोग में आपको ऐसा ही करना है। इसी कारण से आप इतने महत्वपूर्ण हो गए हैं। आप नहीं जानती कि महिला की भूमिका कितनी प्रसन्नचित्त होकर आपको सदा मुस्कराते रहना महत्वपूर्ण है, इतनी महत्वपूर्ण कि वह पूरे परिवार है। आपका विवाह आपके लिए आपके पति के को एक सुन्दर बगिया में परिवर्तित कर सकती लिए, सभी सहजयोगियों के लिए बहुत सुन्दर है। अपने माधुर्य से अपने प्रेममय सूजनात्मक साबित होगा। मुझे पूरा विश्वास है कि आपके मस्तिष्क से वह ये कार्य कर सकती है। अपनी विवाह यदि सफल होंगे तो आपको अत्यन्त प्रेम की कला को खोज निकाले और इसका गम्भीर नहीं होती कि उसके लिए झगड़ी किया जाए। ये सब बातें तो हँसने के लिए होती है। सुन्दर जन्मजात साक्षात्कारी बच्चे होंगे। अत: आप अपने बच्चों तथा अन्य बच्चों के लिए बहुत अच्छी माताएं साबित होंगी। ये सब भविष्य के गर्भ में आपके लिए निहित है । मैं जानती हूँ कि आप सब अपने आगामी जीवन का बहुत आनन्द लेंगी और इसे इतना सुन्दर बनाएगी कि सभी लोग कहेंगे इन सहयोगिनियों को देखो, ये आवश्यकता है तो आपको चाहिए कि उसे वो दे कितनी महान हैं। इनके जीवन कितने खुशहाल दें। अब आपको अपनी उदारता का आनन्द हैं। हमें अपनी गलतियों पर चित्त देना चाहिए और उन्हें सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए. लोगों को उदार होना है क्षमा बहुत ही महत्वपूर्ण दूसरों पर नहीं। लोगों में स्वयं को सुधारने की है, इससे आपको अपना विवाहित जीवन बोझिल योग्यता है। आप केवल इनके हित की इच्छा करें और उनके प्रति अत्यन्त स्नेहमय एवं विनम्र हों। मुझे विश्वास है कि आप सब इतने अच्छे परिवार बना सकते हैं जो देखने में नहीं आते। अत: परिवार में पति के बारे में या किसी अन्य उपयोग उन पर करें जो परेशान हो या नाराज हों या बिगड़े हुए हों। आप ऐसा कर सकती है। उस व्यक्ति को शान्त करना तथा उसे प्रभावित करना आपको आना चाहिए। चारित्रिक उदारता आपका प्रथम गुण होना चाहिए। किसी को यदि किसी चीज़ज़ की आएगा। दूसरे लोगों को क्षमा करते हुए भी आप नहीं लगेगा। क्षमा करें, स्वयं को भी क्षमा करना। किसी भी चीज़ के लिए स्वयं को दोषी न मानें, क्योंकि आप भी तो सहजयोगी हैं। आपसे भी यदि कोई गलती हो गई है तो कोई बात नहीं। के बारे में पति से कोई शिकायत नहीं होनी परन्तु आपमें माधुर्य होना चाहिए। एक पत्नी का माधुर्य जो दूसरे लोगों को भी प्रेम एवं शान्ति लोग आपका प्रेम एवं पथ प्रदर्शन पाता चाहें और प्रदान कर सके। आपको न तो रौबीला होना है इसके लिए आपके पास आएं। मुझे आशा है और न तो आक्रामक, विल्कुल भी नहीं। इसके विपरीत आप लोग तो बहुत कुछ सहन कर ने मेरा नाम रोशन किया है उन्होंने बहुत अच्छा सकते हो और किसी भी मूर्खता को मज़ाक में कार्य किया है। आपसे भी मैं यही आशा करती परिवर्तित कर सकते हो। कोई भी चीज़ इतनी हूँ। परमात्मा आपको धन्य करें। चाहिए। स्वयं को इतना मधुर बनाएं कि सभी आप ऐसा कर सकते हैं बहुत सी सहजयोगिनियों 27 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & 8.2000 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी जी का प्रवचन लन्दन - 15.10.79 आत्मसाक्षात्कार को किस प्रकार विकसित किया जाए परमात्मा की शक्ति की बात की। दिव्य शक्तियों के बारे में बताया। परन्तु ये सब बातें ही बातें एक बार जब आप इसमें आ जाएं तो इसकी जिन लोगों ने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लिया है, जिन्होंने चैतन्य लहरियाँ महसूस कर हैं। ली हैं उन्हें समझना चाहिए कि उनका विकास दूसरे अस्तित्व में हो रहा है। अंकुरण आरम्भ हो चुका है और आपको चाहिए कि इस अंकुरण को अपने ही प्रकार से कार्य करने दें। गहनता में उतरना होता है। यदि आप इसकी गहनता में नहीं उतरते तो आपको छोड़ दिया जाएगा। विशेष रूप से उन लोगों को जो कुगुरुओं या असत्य चीजों को मानते रहे हैं। वे नहीं जानते कि ये चीजें कितनी भयानक हैं। मानो आप एक परन्तु प्राय: जब हमें आत्मसाक्षात्वकार मिलता है तो भी हम ये नहीं समझ पाते कि हमारे अन्दर यह कितना महान कार्य हो गया है तथा यह मगरमच्छ पर खड़े हों और अचानक आपको असम्भव घटना हमारे अन्दर घटित हो चुकी है और इसे अब शनै:शनै: कार्य करना है। विकसित पता लगे कि यह मगरमच्छ है तो आप उससे त कितनी दूर भागेंगे? परन्तु ये समझ भी कि यह मगरमच्छ है जो आपको खा जाएगा, आसानी से नहीं आती। व्यक्ति वैसे ही इसे महसूस नहीं होकर इसे हमारा उत्थान करना हैपरन्तु अपने आत्मसाक्षात्कार को हम उतनी गम्भीरता से नहीं लेते। जिन लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है वे भी उनसे घिरे रहते हैं जिन्हें चैतन्य आपके साथ कितनी कठिन घटना घटित हो लहरियों का अनुभव नहीं हुआ, वे इस क्षेत्र को चुकी है। ये कठिन है फिर भी आपके साथ यह नहीं जानते, इसे उन्होंने कभी नहीं देखा। जैसे घटित हो चुकी है। समझें कि आपके साथ ही करता जैसे आप लोग ये महसूस नहीं करते कि गुरुनानक ने कहा यह अलख है। उन्होंने इसे नहीं देखा, इसके विषय में वे कुछ नहीं जानते, मान लेते हैं और बुरी चीजों को भी कम से ये नहीं जानते कि परमात्मा की शक्ति विद्यमान यह क्यों घटित हुआ। आप इसे अपना अधिकार कम बुरी चीज़ों को तो अपना अधिकार न मानें। है, यह सब समझती है, समन्वय करती है, जितना जल्दी हो सके उनसे दूर दौड़ जाएं। ध्यान आपके साथ सहयोग करती है, सामूहिक अस्तित्व करें, ध्यान-धारणा द्वारा स्वयं को परमात्मा के में जो कार्य कर रही है। आपको तथा अन्य लोगों प्रेम के साम्राज्य में स्थापित करने का प्रयत्न करें । को सामूहिक अस्तित्व की चेतना प्रदान करती मैं कहती हूँ ये परमेश्वरी प्रेम है। आप नहीं हैं। यह अलख है या कह सकते हैं अपरोक्ष है, जिसे हम देख नहीं सकते. जिसके विषय में किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं समझ सकते जो कोई कुछ नहीं जानता। सन्तों ने इसके विषय में आपसे निर्वाज्य प्रेम करता है-केवल प्रेम की बातचीत की परमात्मा के विषय में कहा। उन्होंने खातिर वह आपसे प्रेम किए चला जाता है समझ सकते कि ये परमेश्वरी प्रेम क्या है। आप 28 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 8 8. 2000 क्योंकि प्रेम करने में उसे आनन्द प्राप्त होता है। और ये नहीं समझते कि आप परमात्मा के संस्कृत में इसे अव्याज कहा गया हैं अर्थात जिसमें कोई ब्याज नहीं है जो निरंतर बहता है यदि ये आपको सुधारता है तो भी केवल हो पाएंगे। आप लोगों को डूबने से बचाएंगे। प्रेम के कारण। परमेश्वरी प्रेम की सुरक्षा ही पहली बार आपको इस प्रकार बनाया गया है जो यन्त्र हैं जिसके द्वारा आपने अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार देना है तो आप स्थापित न उत्थान का एकमात्र मार्ग है यही प्रेम आपको योग्यता आज आपमें है वह इससे पूर्व न तो आवश्यक ऊर्जा शक्ति तथा विश्वास प्रदान करता है। यही परमेश्वरी प्रेम आपको सब कुछ देता है। अत: व्यक्ति को महसूस करना चाहिए कि में परन्तु अब आपको यह योग्यता प्रापत हो गई प्रेम, केवल प्रेम, ही सारी सृष्टि का आधार है। है। फिर भी आप अपना मूल्यांकन नहीं करना परमात्मा ने इस विश्व की, इस ब्रह्माण्ड की चाहते। यह कार्य कितना महत्वपूर्ण है इस बात सृष्टि की है, केवल इसलिए कि वह आपसे प्रेम को आप यदि महसूस करेंगे तो कार्य कर सकेंगे। आपमें थी और न ही अन्य मनुष्यों में, बहुत कम लोगों में ये योग्यता थी बहुत ही कम लोगों बसन्त को आने दें। आज क्योंकि आप सब अपने आशीर्वादों की वर्षा करना चाहता है। सहजयोगी मेरे सम्मुख हैं में आपसे इस प्रकार करता है तथा अपने प्रेम के कारण आप पर बात कर सकती हूँ। इस कार्य को आगे बढाने प्रेम करते हैं, स्वयं को कितना समझते हैं। के स्थान पर मैं देखती हूँ कि आप अपनी परन्तु समस्या ये है कि आप स्वयं से कितना यद्यपि आपकी कुण्डलिनी जागृत हो चुकी कुण्डलिनी के उतार-चढ़ाव पर दृष्टि नहीं है आपका आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो चुका है, रखते। आप यदि यह देखने का प्रयत्न करें चैतन्य लहरियाँ आपसे बह रही हैं फिर भी कि केवल आपकी कुण्डलिनी ही आपको आप अपना मूल्य नहीं आंकते, क्योंकि सबसे अधिक प्रेम करती है क्योंकि वह आपका चित्त बाहर की ओर है और आपकी अपनी माँ है, और उस पर चित्त आत्मसाक्षात्कार के बाद भी चित्त बाहर ही रखें तो आप देखेंगे कि वे बताती हैं कि बना हुआ है। कभी-कभी यह अन्दर जाता है समस्या कहाँ है? समस्या क्या है? आपको और फिर बाहर को आ जाता है। अपनी सुधारना है और आपको क्या करना है? वह पुरानी आदतों को हम नहीं छोड़ते उनसे आपको पूर्ण करना चाहती है और आपकी सहायता चिपके रहते हैं। हमारा जीवन ढरा, हमारी करना चाहती है। अत: यदि आप इसे सावधानीपूर्वक, प्रेम से, सूझ-बूझ से देखने लगे तो यह अत्यन्त मधुर, लीलामय बाल सुलभ सहजयोग आपको आत्मसाक्षात्कार देता सुन्दर लीलाओं से परिपूर्ण है। आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए यह आपको शरीर पर आपको लम्बी रस्सी भी देता है। आप यदि यहाँ-वहाँ गुदगुदाती है। किसी प्रकार का कष्ट नहीं देती। इसके विषय में आपको चुस्त रहना है नहीं देते, स्वयं को यदि आप प्रेम नहीं करते और वास्तव में ये आपको परिपक्व कर देगी। विचारशैली वही बनी रहती है। इसी बीहड़ में हम खोए रहते हैं । है ठीक है। परन्तु फाँसी लगाने के लिए यह अपनी और अपने अस्तित्व की ओर ध्यान 29 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 7 & 8. 2000 आपने देखा है कि किस प्रकार,समय के साथ-साथ चीज़ है। मेरे विचार से हर आदमी समझता लोग परिपक्व हुए हैं। परन्तु आपको अपना है कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना ही अन्तिम चित्त कुण्डलिनी की ओर और अपनी ओर उद्देश्य नहीं है क्योंकि यह मात्र अंकुरण है। रखना होगा अन्यथा बिना ज्योतिर्मय हुए आपको इससे बहुत आगे जाना है। जिन आपका मूल्य क्या है? आत्मसाक्षात्कार के लोगों ने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं किया है, यदि उनके प्रति आपमें करूणा होनी चाहिए। उनके विषय में आपको सोचना चाहिए, को बिना मनुष्य का मूल्य क्या है? मानव आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं है तो उसका क्या लाभ है? इस यन्त्र (Microphone) का क्या उन्हें आत्मसाक्षात्कार देना चाहिए। इस कार्य लाभ है यदि यह अपने स्रोत से जुड़ा हुआ नहीं को कार्यान्वित करना चाहिए और इस पर अपना मस्तिष्क लगाना चाहिए। परन्तु अब भी में देखती हम गैस लैम्प जलाते हैं वैसे ही लोगों को हूँ लोग अन्य चीजों में व्यस्त हैं। वे लौटकर प्रकाशमय करना है। गैस लैम्प जलाने के लिए अपने पुराने साथियों में चले जाते हैं। आपको व्यस्त होना चाहिए, मैं नहीं कहती जीविकार्जन की शक्ति एवं योग्यता है। अत: बह गली में के लिए आपको कुछ नहीं करना चाहिए, आपको गैस लैम्प जलाने के लिए दौड़ पड़ता है। उसी कार्य करना चाहिए। परन्तु ये समझ लेना हम सब लोगों के लिए महत्वपूर्ण है कि हमें सहजयोग को कार्यान्वित करना है और है तो? बाकी सब कुछ व्यर्थ है और जिस प्रकार व्यक्ति दौड़ता है। केवल उसी में यह कार्य करने व्यक्ति ने यह कार्य करना है, इसी के लिए उसकी नियुक्ति की गई हैं। सहजयोगियों को ये समझना अत्यन्त आत्मसाक्षात्कार को अपने अन्दर विकसित आवश्यक है कि उनका मूल्य क्या है। सहजयोग होने देना है। परन्तु यदि आप कहते हैं कि के विषय में आपने क्या समझा है? कितने लोगों श्रीमाताजी आपमें हमारा पूर्ण विश्वास है तो को आपने बचाया है, कितने लोगों की आपने ये कहना काफी नहीं है। मुझ पर आपका सहायता की है? आपकी अपनी ही समस्याएं क्या विश्वास है, विश्वास का आप क्या अर्थ समझते हैं? यह अत्यन्त अस्पष्ट शब्द बहस करके अन्य लोगों के लिए समस्याएं खड़ी है। आखिरकार विश्वास है क्या? क्या आपने कर रहे हैं। सहजयोग के विषय में न तो आप कभी अपने विश्वास का विश्लेषण किया। बहस कर सकते हैं, न तो वाद-विवाद, इसे कुछ लोग सोचते हैं कि यदि हम श्रीमाताजी तो स्वयं कार्यान्वित होना होगा वाद विवाद, के भजन गाते हैं तो उनमें हमारी पूर्ण श्रद्धा बहस, बतंगड़, नाप तोल द्वारा स्वयं को भ्रमित है। इसके लिए हमें आदिशंकराचार्य की तरह करके आप अपनी कुण्डलिनी के कार्यन्वित एक विशेष स्थिति प्राप्त करनी होगी। क्या होने में बाधाएं खड़ी करती हैं। क्या आप आत्मा अपने आपमें आपका विश्वास है? ये बात आवश्यक है। जिसका विश्वास अपने आप लिए चिन्तित नहीं हैं? यदि हैं तो इसकी प्राप्ति में नहीं है वह कैसे मुझमें विश्वास कर के लिए क्या कर रहे हैं यह अत्यन्त महत्वपूर्ण सकता है। आपको स्वयं पर तथा अपने सभी इतनी अधिक हैं फिर भी आप बातचीत, वाद-विद को नहीं खोज रहे हैं? क्या आप मोक्ष प्राप्ति के 30 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 7 & 8, 2000 साथियों, सहजयोगियों पर विश्वास करना होगा मैंने आपको पहले भी बताया है कि व्यक्तिगत स्तर पर सहजयोग कार्यान्वित न होगा। कोई यदि स्वयं को अन्य लोगों से महान मानता है तो उसका पतन अवश्यम्भावी है तो आप इसके एक सिरे को नहीं खींच सकते है। किसी भी व्यक्ति को इस प्रकार केवल अपने लिए सहजयोग का उपयोग नहीं करना चाहिए। सामूहिक रूप से सभी लोगों के लिए आपको कार्य करना चाहिए। आपमें से कोई भी सभी शक्तियाँ हैं. सभी कुछ हैं। मुझे सबसे यदि ये सोचता है कि उसमें अन्य लोगों की करता है। अचानक ऐसे व्यक्ति का पतन हो जाता है और लोगों को आघात पहुँचता है, श्रीमाताजी बह क्या हुआ सकते। आपने यदि कालीन को इस प्रकार बिछाया ।" आप एसा नहीं कर पूरा कालीन ही आपको खींचना होगा पूरे खेल का श्रेय कंवल एक व्यक्ति नहीं ले सकता। आप मेरे को लें। आप जानते हैं कि मेरे अन्दर ऊँचा होना चाहिए आदि आदि। परन्तु आप लोगों अपेक्षा कुछ श्रेष्ठता है तो वह भयानक गलती कर रहा है। यह तो ऐसा ही हुआ कि है। आपके साथ शिखर पर पहुँचने के लिए मुझे मानो एक आँख कह रही हो कि मैं दूसरी से श्रेष्ठ हूँ या नाक ये कह रही हो कि मैं ऑँखों से श्रेष्ठ हूँ। विराट के शरीर में हर चीज़ का हैं। किसी व्यक्ति का कोई चक्र पकड़ रहा के सम्मुख मुझे अपना स्तर नीचा करना पड़ता संघर्ष करना पड़ता है। हाथ में हाथ डालकर हम लोगों को चलना होता है। आप यह सब जानते अपना स्थान है और हर व्यक्ति अत्यन्त होता है तो मैं अपना चक्र कार्य पर लगा महत्वपूर्ण भी है और अनावश्यक भी। आप जानते हैं कि सहजयोग में क्या होता है, भारत में परन्तु आप जानते हैं कि मुझे कितना कठोर ये आम बात है, यहाँ पर इतनी नहीं है। भारतीय परिश्रम करना पड़ता है। यह बहुत बड़ा इसे इसी प्रकार करते हैं, उनमें बहुत से गुण जहाँ भी मैं जाती हैँ मुझे लगता है कि लोग को किसी चीज की आवश्यकता नहीं है। आप पहले से अधिक परिपक्व और विकसित हुए हैं देती हूँ। यह इसी प्रकार कार्यान्वित होता है 1. हैं। काम है-आत्मसाक्षात्कार देना। मेरी कुण्डलिनी कि यह बात जानते हैं। परन्तु मेरी कुण्डलिनो को आपकी भारी कुण्डलिनियों का बोझ उठाना होता क्योंकि वह आप लोगों की तरह विचारशील नहीं है। आप लोग महान विचारशील, दृष्टा, बुद्धिवादी है इन्हें जागृत करना होता है। यह बहुत भारी हैं। मैं सोचती थी कि सभी बुद्धिवादियों के माथे पर सींग निकल आएंगे और उन्हें देखते ही पता लग जाएगा कि वे बुद्धिवादी हैं जो परमात्मा की और उसके मार्गों की निन्दा करते हैं। भारतीय काम है। केवल प्रेममय व्यक्ति ही इसे कर सकता है। यही मापदण्ड है। प्रेमविहीन व्यक्ति इस कार्य को नहीं कर सकता। इस कार्य को करना बहुत कठिन है। मैं यदि सारे शरीर में भी प्रवेश कर जाऊ, हर केन्द्र से चैतन्य प्रवाह कर बुद्धिवादी नहीं हैं। परन्तु कुछ मामलों में आप असफल हैं। उनके मस्तिष्क में सदैव यही बात देँ तो भी यह आसान नहीं है। परन्तु यह तो आप होती है कि 'मैं महान हूँ' ' ऐसा व्यक्ति सदैव यही राग अलापता रहता है और अन्य लोगों को नीचा दिखाने का प्रयत्न मैं ये हूँ' 'मैं वो हूँ। लोगों और मेरे बीच मात्र प्रेम एवं स्नेह है जो मुझे अच्छा लगता है और जो सारे कार्य सारे परिश्रम को संपन्न करता है। कई बार तो मैं ऐसे 31 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & 8, 2000 প लोगों के विषय में सोचती हूँ और परिश्रम करती लोगों पर रोब जमा रहे हें । बहुत से सूक्ष्म तरीकों हूँ जो बिल्कुल बेकार होते हैं। उन पर किया से हम लोगों पर प्रभुत्व जमाते हैं। इस प्रकार गया परिश्रम बिल्कुल व्यर्थ होता है। फिर भी जो प्रेम हमें परस्पर समीप लाया है वह अत्यन्त पड़ें। क्या कभी हम बैठकर यह सोचते हैं कि सन्तोष प्रदायी है और इसके कारण आप प्रसन्नता हम उनसे बातचीत करते हैं कि उन पर रोब हमें किस प्रकार लोगों से बातचीत करनी है का अनुभव करते हैं । हर सुबह आप अपने जिसमें उन्हें हमारे प्रेम का आभास हो? मैं अन्दर एक नई सुगन्धी लेकर उठते हैं और आपको बार बार बताती हैँ कि सहजयोग कुछ भी नहीं है केवल प्रेम है, प्रेम, केवल प्रेम। मुख्य चीज यह है कि आप लोगों को कितना प्रेम करते हैं। तिरस्कार या आलोचना इसके विषय में आपको खुशी होती है। अतः लोगों से व्यवहार करते हुए बहुत सावधान रहें। अत्यन्त प्रेमपूर्वक उनसे व्यवहार करें। किसी भी प्रकार से न तो उनकी आलोचना करें और न ही उन्हें नीचा दिखाने का प्रयत्न करें। आप जब किसी प्रकार किसी से ऊँचे नहीं हैं तो ऐसा करने का कोई कारण नही है। आप यदि ऊँचे हों भी तो सामूहिक अस्तितव की सहायता करने के लिए होते हैं परन्तु ऐसी स्थिति में आपके अन्दर यदि दूसरों से ऊँचा होने करना कोई तरीका नहीं है। कल आप भी वैसे ही थे। आज आप बेहतर हैं, भविष्य में इससे भी अच्छे होंगे। मान लो कुछ लोग बहुत ही कष्टदायी हैं तो आपको चाहिए कि उनसे स्पष्ट बता दें कि श्रीमन क्षमा कीजिए, अभी आपको काफी शुद्धीकरण की आवश्यकता है। कुछ चालाक लोग भी होते हैं जो आकर आपको परेशान करने का प्रयत्न करेंगे। कुछ हद तक उन्हें की भावना आ जाती है तो आपका पतन आरम्भ हो जाता है क्योंकि इस प्रकार आप सहन करें, अन्यथा उनसे क्षमा माँग लें। परन्तु ये जानने के लिए कि क्या व्यक्ति नकारात्मक सामूहिकता को पतन की ओर खींच रहे हैं। आप यदि किसी की निन्दा करते हैं या किसी को है, आप उसके विषय में सोचते हैं, तार्किक नीचा दिखाते हैं तो आप स्वयं को पतन की ओर खींच रहे हैं। दूसरों का दोष सुधार भी आपको देखकर उसे चैतन्य लहरियों के माध्यम से नहीं करना है क्योंकि इस कार्य के लिए तो देखना चाहिए क्योंकि तर्कबुद्धि से वह महिला मैं हूँ। दूसरों को सुधारना आसान काम नहीं है। आप उन्हें चोट पहुँचा सकते हैं। लोगों को अत्यन्त नकारात्मक हो सकता है। अत: आप सुधारने का तरीका भी आप नहीं जानते हैं। जब तक आपके अन्दर से शक्तिशाली चैतन्य लहरियाँ यह है कि आप कितना प्रेम करते हैं। जब बहनी शुरू नहीं हो जाती तब तक आप लोगों को केवल प्रेम करें। अहम् संचालित सामाजिक संस्कारों के कारण लोगों को दुख पहुँचाना और प्रयत्न करें और देखें कि यह कितनी सुन्दर उन पर प्रभुत्व जमाना आप अच्छी तरह से चीज है। यदि प्रेम नहीं है तो घृणा है। यह जानते हैं। आपको पता भी नहीं चलता कि आप झुलसाने वाली गर्मी है जो सारे सौन्दर्य को दृष्टि से उसे देखते हैं। तार्किक दृष्टि से न या पुरुष अच्छा प्रतीत होता हो परनतु वह कितनी ध्यान धारणा करते हैं, इसका अर्थ आप दूसरों के विषय में सोचते हैं तो सोचें कि आप उनसे कितना प्रेम करते हैं । ऐसा करने का 32 चैतन्य लहरी खंड : XI॥ अंक : 7 & 8. 2000 समाप्त कर देगी, आपके हृदय की सारी कोमलता लहरियाँ समाप्त नहीं हो जातीं, यह इस सौमा तक है। हमने यदि किसी अभृतपूर्व चौज में प्रवेश किया है तो हमें अभूतपूर्व विधियां भी अपनानी होंगी। आप पहले की तरह से नहीं चल को नष्ट कर देगी। कवल प्रम द्वारा हो सहजयोग फैलेगा। इन सारे वर्षो में आपने घृणा की शक्ति को देखा है। आपने देखा है लोग किस प्रकार घृणा करते हैं । सकते; आपको अपने तरीके बदलने होंगे और किस प्रकार एक दूसरे से व्यवहार करते हें. उनमें न तो मूदुता है और न करुणा। एक दूसरे के लिए आप कितना बलिदान करते हैं ? दूसरों से वे कितने तीखे हैं। अब आपको यह सब परिवर्तित करना होगा और एक ऐसे विश्व की सृष्टि करनी होगी जहाँ लोग परस्पर प्रेम करते अभिप्राय है सहजयोगियों की। इसमें कोई बलिदान हों, धन, पद, सौन्दर्य और वासना के लिए नहीं नहीं है। आप यदि ध्यान से देखें तो यह बलिदान केवल प्रम के लिए। केवल इसलिए कि आपको प्रेम का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है। अगली बार से उसके लिए गुलाब का फूल ले जाना चाहते हैं हम विज्ञापन देंगे और बहुत से लोग सहजयोग में और कठिनाई से बाज़ार जाकर जब आपको फूल आएंगे परन्तु आप सब भी देखें कि आप अपने मिलता है तो आपको बहुत प्रसन्नता होती है। साथ कितने लोगों को ला सकते हैं। ऐसी चीजों गुलाब का काँटा आपकी उंगली में लग जाता है पर अपना मस्तिष्क लगाएं। हर समय हम नौकरी उंगली से खून निकलता है फिर भी आपको वुरा आदि के विषयं में सोचते रहते हैं। यह बहुमूल्य तहीं लगता। आप उस व्यक्ति से मिलने की समय है हमें इसे खोना नहीं चाहिए। अपने पूर्ण प्रतीक्षा करते रहते हैं और जब वह मिलता है तो जीवन हमने नौकरियाँ करने पैसा कमाने, विवाह करके बच्चे बनाने और फिर मर जाने में लगा प्रेम द्वारा अपने कार्यों को आँकना होगा। दूसरों के लिए क्या न्यौछावर कर सकते हैं? दूसरों की आप क्या सेवा कर सकते हैं। मेरा कहने से नहीं है यह प्रेम है। किसी से आप प्रेम करते हैं आप अपनी सारी तकलीफे भूलकर प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति करने के लिए वह फूल उसे देते हैं। दिए। इस जीवन काल में आइए कुछ विशेष करें कितनी प्रसन्नता आपको होती है कि आप उसे जिसके लिए इस ब्रह्माण्ड का सृजन किया गया है। अन्य लोगों के लिए स्वर्ग के द्वार खोल दें। ऐसा प्रतिदिन करते हैं परन्तु सहजयोग में विना आपको अत्यन्त परिश्रमी होना है आप भली जाने आप यह सब करते हैं ऐसा हो रहा है| भाति जानते हैं कि सहजयोग में कोई मजबूरी नहीं है। इसके लिए कोई समय नहीं है यह किसी पर थोपा नहीं जा सकता क्योंकि यह तो केवल प्रेम है; आप यदि इसे नहीं करना चाहेंगे तो कोई आपको विवश नहीं करेगा, परन्तु मैंने बताया; फाँसी लगाने के लिए सहजयोग बड़ी लम्बी रस्सी देता है। जब तक आप पूर्णतः भ्रम में नहीं फैँस जाते और आपके अन्दर चैतन्यं वह फूल भेंट कर सके। अपने जीवन में हम आप लोग संचारक हैं जहाँ भी आप ध्यान धारणा में बैठते हैं आप चैतन्य लहरियों का संचार करते हैं। क्या आप ये बात जानते हैं। उस समय भी यदि आप नौकरियों तथा अन्य चीज़ों के विषय में सोचते हैं पहले कि तरह तो ये संचार कम हो जाता है। प्रेम के विषय में सोचें। उस समय पूरे देश के पूरे विश्व के विषय में सोचे आप लोग इन प्रेम जैसा 33 चैतन्य लहरों । खंड : XII अंक : 7 & 8. 2000 लहरियों के प्रेषक हैं और आपके अन्दर से प्रेम आपको देता है उसकी अपेक्षा परमात्मा हजारों गुना फल देते हैं। जब वे आपको आशीर्वाद देते हैं तो उन्हें धन्यवाद करने के लिए आपके पास शब्द भी न होंगे। वह तो इस सीमा तक जाते हैं। बहेगा। मैंने आपको एक बार बताया था कि आपको श्रीगणेश की तरह से बनाया गया है और आपको उन्हीं की तरह से कार्य करना है आप जानते हैं कि आपके अन्दर से चैतन्य लहरियाँ निकल रही हैं। इसका अर्थ ये है कि आप किसी देवता की तरह है जो पृथ्वी माँ के गर्भ से क्या हम परमात्मा पर निर्भर कर रहे हैं या अपने पुराने तौर तरीकों पर हमें होना पड़ेगा। नई शैली में अपनी सोच को बहुत परिवर्तित बदलना होगा। यह बात अत्यन्त महत्वपूर्ण है। मुझे आशा है कि आप इसके विषय में सोचेंगे जो बातें आज आपको मैंने कहीं है उनके के लिए हजारों लोग जाते हैं। लोग कहते हैं कि विषय में जिन चीज़ों ने आपको खुशियाँ नहीं दी यह जागृत देवता का मन्दिर है अर्थात् ज्योतिर्मय उन चीजों को अपने जीवन में न अपनाएं। सहजयोगी आपके मित्र हैं। अपने मित्र बदलें, जीवन के तौर तरीके बदलें। आपको कहीं प्रकट हुआ है और उस पर बहुत बड़ा मन्दिर बना दिया गया है जहाँ उस देवता को पूजा करने है और वह तो केवल एक पत्थर होता है। एक पत्थर जो पृथ्वी के गर्भ से निकलता है जिसके ऊपर लोग मन्दिर बना देते हैं और वहाँ पूजा के लिए जाते हैं। और यहाँ तो बहुत सी अधिक आनन्द प्राप्त होगा। आअपने आपको तथा सहजयोग के महत्व को समझना आप पर आत्मसाक्षात्कारी आत्माएं बैठी हुई हैं। ये जीवित हैं चलती-फिरती हैं और सब कुछ समझती हैं। निर्भर करता है । जब तक ये उद्यम नहीं है कोई भी इसे गम्भीरता पूर्वक न लेगा। पाश्चात्य सोच की यही शैली है। यह उद्यम होना चाहिए-सच्चा स्वयंभू प्रतिमाओं से तो केवल चैतन्य लहरियाँ निकलती हैं जो वातावरण को पवित्र करती हैं परन्तु आप लोग तो कुण्डलिनी उठा सकते हैं स्वयंभू प्रतिमाएं कुण्डलिनी नहीं उठा सकती. हैं और उस कार्य को करते हैं परन्तु जब आप उठा सकते हैं। परन्तु आप इस कार्य के सहजयोग की बात आती है तो उनके पास ध्यान लिए क्या कर रहे हैं? आपके पास इतनी बहुमूल्य उद्यम हो या उल्टा-सीधा, कोई बात नहीं। धन का हेर- फेर यदि हो तो सभी लोग खडे हो जाते धारणा के लिए भी समय नहीं है! क्योंकि अभी तक हमने प्रेम करना नहीं सीखा है। अपने चीज़ है आप इसका क्या कर रहे हैं? क्योंकि इसमें व्यापार नहीं है? क्या इसी कारण से हम अन्दर उस प्रेम का अनुभव नहीं किया है मैं कामना करती हूँ कि आप सब अपने अन्दर प्रेम इसकी बात इतनी धीरे से करते हैं। यदि यह उद्यम होता तो हर व्यक्ति इस कार्य को करने के की उस गहतता का अनुभव कर सकें, तब आप अपने लिए तथा अन्य लोगों के लिए इसे कार्यान्वित करने की ख़ातिर जी जान से जुट जायेंगे। लिए उद्यत हो जाता। हमें अपने तौर तरीके और सूझ बूझ बदलनी होगी। कोई भी उद्यम जो फल परमात्मा आपको धन्य करें। 34 चैतन्य लहरी खंड :XII अंक : 7 & 8. 2000 ho ा ध्यान की आवश्यकता 27-11-91 दिल्ली आश्रम आज आप लोगों से बहुत देर बाद मुलाकात हो रही है और सहज योग के बारे में हम लोगों होना चाहिए और इन नसों को शुद्ध करने की जिम्मेदारी आप लोगों की है। हालांकि आपने मुझे कितनी बार कहा है कि माँ हमें भक्ति दो। माँ हमें निताँत आपके प्रति श्रद्धा दो किन्तु ये को समझ लेना चाहिए। सहज योग, ये सारे संसार की भलाई के लिए इस संसार में उत्पन्न है। *ें हुआ और उसके आप लोग माध्यम हैं। चीज आपको ही समझदारी से जानना है। आपकी जिम्मेदारियाँ बहुत ज़्यादा इसके माध्यम हैं। और कोई नहीं है इसका माध्यम। हम अगर किसी पेड़ को Vibration दें नहीं कि आप कोई कार्य कर रहे हैं। आप कोई या किसी मन्दिर को Vibration दें या कहीं और भी Vibration दें तो वो चलायमान नहीं हो सकता. वो कार्यान्वित नहीं हो सकता। आप ही दुनियाई कार्य हैं। हर तरह की सहलियते आपके खुद पहली तो बात है कि शुद्ध जब नसे हो जाएँगी तो आप आनंद में आ जाएंगे। आपको लगेगा ही हैं क्योंकि आप सा भी कार्य करते जाएगे उसमें आप यश प्राप्त करंगे बहुत सहज में सारे कार्य होते जाएंगे जो को धारणा से और आप ही के कार्य से यह अंदर आएंगी। हर तरह के लोग आपके पास आ करके आपको मदद करेंगे। आपको कभी-2 फैल सकता है। फिर हमें यह सोचना चाहिए कि सहजयोग में एक ही दोष है। वैसे तो सहज है सहज में प्राप्ति हो जाती है। प्राप्ति सहज में होने पर भी उसको संभालना बहुत कठिन है आश्चर्य होगा कि किस तरह से बिगड़ी बन रही है और किस तरह से हम ऊँचे उठते जा रहे हैं। इसमें लक्ष्मी जी की भी कृपा निहित है। कला क्योंकि हम हिमालय पर नहीं रह रहे हैं। हम की भी उन्नति निहित हैं। हर तरह को उन्नति, कहीं ऐसी जगह नहीं रह रहे हैं जहां और कोई वातावरण नहीं है सिर्फ आध्यात्मिक वातावरण प्रगलभता इसमें आ जाती है। पर ये सारे एक तरह के प्रलोभन हैं ये समझ लेना चाहिए क्योंकि कभी-कभी मैं देखती हूँ कि एक के साथ-2 हमारी भी उपाधियाँ बहुत सारी हैं। आदमी ने Business किया सहजयोग में। हैं। हर तरह के वातावरण में हम रहते हैं। उसी जो हमें चिपकी हुई हैं। तो सहजयोग में शुद्ध उसको बहुत रुपया मिल जाता है और वो फिर वो गिर जाता है और इतने बुरी तरह से बनना, शुद्धता अपने अंदर लाना यह कार्य हमें करना पड़ता है जैसे कि कोई भी Channel हो वो गिर जाता है कि उठाना मुश्किल हो और वो अगर शुद्ध न हो, जैसे बिजली का Channel हो उसमें से बिजली नहीं गुज़र सकती। जाता है। तो नसों की स्वच्छता हमें करनी चाहिए। उसमें सवेरे का ध्यान अवश्य करना गर पानी का नल है, उसमें कोई चीज भरी है तो उसमें से पानी नहीं गुज़र सकता, इसी प्रकार ये चैतन्य भी है। जिस नसों में बहता है उनको शुद्ध चाहिए। अगर आपका सवेरे ध्यान नहीं लगता तो कुछ न कुछ खराबी हमारे अंदर आ गई है, कुछ न कुछ गड़बड़ी हमारे अंदर हो गई 35 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & 8. 2000 है। कोई न कोई अशुद्ध विचार हमारे अंदरं कि मेरे लिए दुःखदायी हैं मुझे नष्ट करेंगी। उधर मैं क्यों जाता हूँ। इस तरफ ध्यान से आपको पता चाहिए, समझना चाहिए और सफाई करनी हो जाएगा कि आपके अंदर कौन सी चक्र की चाहिए। जिसे की हम introspection कहते पकड़ है उसकी आपको साफ करना है। उसको हैं हमें अपनी ओर मुड़ कर देखना चाहिए। साफ करके, ठीक-ठाक करके और फिर आप ध्यान में बैठे। जैसे कि इसको प्रत्याहार कहते हैं। माने ये कि सफाई, इसकी सफाई पहले करनी चाहिए। अपने मन की सफाई करनी चाहिए। उस थोड़े से समय में हमको अपने मन की सफाई करनी चाहिए। अपने से अगर की चीज़ों से मनुष्य में ये षड्रिपु बैठे रहते हैं। हमें प्रेम है अगर वाकई में हमारे अंदर स्वार्थ है ये जो हमारे अंदर 6 हमारे दुश्मन हैं छिपे रहते तो स्व का अर्थ हमें जान लेना चाहिए और सोच हैं और बो बार-2 अपना सर उठाते हैं इसलिए लेना चाहिए कि इन खराबियों से हमें क्या फायदा होता है। क्षणिक कोई होता है, आनंद को पापी नहीं कहें, अपने को खराब न कहें, मिला। क्षणिक कोई उससे सुख लाभ हुआ आ गए हैं उनको देखना चाहिए, जानना ये आपके हित के लिए है किसी ओर के हित के लिए नहीं। पहले तो अपना ही हित आप साध्य कर लीजिए। अगर आपके अंदर कोई दोष है, उस वजह से, उपाधियाँ होती हैं. आदतें होती हैं, वातावरण होता है, तौर तरीके होते हैं तरह-2 आवश्यक है कि हम अपने को कोसे नहीं अपने अपने को किसी तरह से लॉछित न करें लेकिन इसमें से निकलने का प्रयत्न करना चाहिए। जैसे कमल है। किसी भी गंदे, बिल्कुल सड़े हुए समझ लीजिए. कोई वात हुई भी तो भी उससे मैंने अपना तो जरूरी है कोई बड़ा भारी नुकसान कर लिया क्योंकि ध्यान नहीं लगा माने ये ही जगह में पैदा होता है और वो सब में से निकल हुआ कि आपकी एकाकारिता अभी साध्य नहीं कर वो फिर जब खिलता है तो सुरभित होकर हुई। अब कोई तो लोग होते हैं वो ये भी कहते के सारा जो कुछ भी वातावरण है उसे सुरभित कर देता है। इसी प्रकार सहजयोग की विशेषता है। आप भी उसी कमल की तरह है, न होते तो हैं कि हमारा तो ध्यान लगता है पर होता नहीं। तो अपने साथ सच्चाई रखना बहुत ज़रूरी बात है। गर हमे अपने साथ सच्चाई नहीं रखेंगे न आप सहज में आते और न ही इसे आप प्राप्त तो फिर हम किसके साथ सच्चाई रख सकते हैं। ये अपने हित के लिए है। हमारे अच्छाई के अवश्य ही कमल हैं। लेकिन इस कमल को लिए हैं। हमारे भलाई के लिए है। अधिकतर लोगों को मैं देखती हैँ सहज योग में आने के बाद बीमारियाँ अधिकतर नहीं होती। अधिकतर लोगों को सहजयोग में आने के बाद कई तरह 1. करते। आप कीड़े मकौड़े तो हैं नहीं। आप सुरक्षित होने के लिए थोड़ी सी मेहनत करनी पड़ती है। अपनी ओर नज़र करने से। सवैरे का जो ध्यान है अपनी ओर का लाभ हो जाता है और अधिकतर लोगों को मैं बहुत आनंद में भी पाती हूँ। उनके घर के जो प्रश्न है वो भी छूट जाते हैं। सब कुछ व्यवस्थित हो जाता है। सब कुछ ठीक हो जाता है। तो भी नजर करने का ध्यान है कि मैं क्या कर रहा हूँ। मेरे अंदर क्या दोष हैं मेरे अंदर क्रोध आता है। इस क्रोध को मैं किस तरह नष्ट करूँ। मुझे और ऐसी कुछ इच्छाएँ होती हैं जो 36 चैंतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & 8, 2000 कभी-2 ऐसा होता है कि कोई न कोई वजह से, उन्होंने वर्णन कैसे किया। तो उनकी गहराई किसी न किसी पुरानी त्रुटि की वजह से सहज पहले थी जैसे आप सबकी है लेकिन वो घुस का ध्यान लगता नहीं। सर्वरे उठ कर ध्यान पड़े उसमें। उसको प्राप्त किया उन्होंने। पहुँच करना बहुत आवश्यक है जो लोग स्वरे उठ कर ध्यान नहीं करेंगे वो सहज में कितने भी व़रियान्वित ही पूरी तरह से उसे प्राप्त कर सकते हैं । तो रहे और सब कुछ करते रहें अपने गहराई वो पा नहीं सकते। क्योंकि आपकी गहराई में ही चाहिए। माने मैन औरां के लिए क्या किया। मैंने सारा सुख, समाधान, सारी संपत्ति, ऐश्वर्य सहजयोग के लिए क्या किया। मैंने माँ के लिए श्री सब कुछ उसी गहराई में है। उस गहराई में उतरने के लिए बीच की जो कुछ रुकावटें हैं उनको आपको निकाल देना चाहिए। अपने इस तरह से कि वो मुझे कितना प्यार करते हैं. को प्रेम करके, अपनी ओर दृष्टि करके, उन्होंने मुझे कितना प्यार दिया। मैंने दिया उन्हें अपने को समझ करके कि मेरे अंदर यह दोष है। इस दोष को मुझे निकाल देना मैं इतना उनकी तरफ Sincere रहा? इस तरह चाहिए। दूसरे के दोषों की ओर बहुत जल्दी की बात सोचने से फिर आपको आनंद आने लग हमारी नजर जाती है। ये काम आपका नहीं है ये मेरा काम है। ये आप काम मेरे ऊपर गए वहाँ। सवके अंदर यह संपदा है। अब सब शाम का ध्यान जो है वी बाहर की ओर होना क्या किया। ये सब विचार आपको रखना चाहिए। जब आप ऐसा बैठ कर सोंचेंगे तो सोचना चाहिए इतना प्यार। वा कितने मरी तरफ Sincere है । जाएगा जब आप साचंगे कि मैन इतना प्यार किया। क्रोध करना, नाराज़ होना, झगड़ा करना, छोड़ दीजिए। आप अपने दोषों की ओर देखिए। दूसरों के दोष देखना। इसमें अपना समय बर्बाद करने से देखना चाहिए कि उन्होंने किस तरह से ध्यान में समर्पण होना चाहिए। तब फिर आगे की मुझे प्यार किया। हमारे सहज योग में प्यार बहुत बात आती है कि आप किस तरह से समर्पित हैं शुद्ध है, इसमें कोई गंदगी नहीं होनी चाहिए। उसके बाद शाम की जो ध्यान है, उस माने उस समय ये सांचना चाहिए कि मैंने सहज जिस प्यार में गंदगी आ जाए वी सहज की प्यार लिए क्या किया। मैंने सहज यांग के नहीं। बिल्कुल निर्वाज्य जिसमें व्याज भी नहीं लिए कौन सा कार्य किया। शरीर से, मन से. माँगा जाता। ऐसा प्यार मैंने किसे दिया? फिर बुद्धि से। एक अंधे गायक हैं बहुत मशहूर हैं। विद्वान हैं बहुत पढ़े-लिखे हैं पता नहीं जाने कैसे अंधी आँख से इतना पढ़ा उन्होंने। वे मुझसे 3-4 बार मिले बस। ऐसी कविता एक दम फूट पड़ी हूँ वो ऐसा है, वो खराब है, ये है. तब आनंद कि मैंने सोचा ये ऐसे कंसे धँस गए एकदम नहीं आएगा। आनंद तभी आता है जब हम ये अपनी गहराई में। ऐसी कविताएँ फूटी कैसे सोचते हैं कि ये प्यार का आंदोलन चल रहा हैं। उनके हृदय से? ऐसी-2 बातें कि जो हजार देवी है फिर। और के नाम में भी नहीं लिखी हुई वो भी उन्होंने ये सुन्दर भावना एक तरह की प्रेरणा होती है वर्णित करीं। और विल्कुल सही मायने में ऐसा तब। उसका वर्णन करना तो मुश्किल ही है योग के जब आप सोचेंगे कि में इतना प्यार करता हूँ. प्यार करती हूँ, बड़ा आनंद आएगा। ताकि तब जब आप कहते हैं कि मैं उससे नफरत करता बड़ी सुन्दर भावना मन में उठती 37 चैतन्य लहरी खंड XII अंक : 7 & 8. 2000 परन्तु उसकी झलक चेहरे पर दिखाई देती है। सामूहिक हो सकते हैं, निर्वाज्य, निर्वाज्य उसकी झलक आपके शरीर में दिखाई देती है। तरीके से जो सामूहिक हो सकते हैं उनकी आपको गृहस्थी में दिखाई देती है। वातावरण में सफाई अपने आप हो जाएगी उनको कोई दिखाई देती है और सारे ही समाज में दिखाई विशेष तपस्या करने की जरूरत नहीं। सामूहिकता को भी एक तपस्या की तरह से नहीं बल्कि एक आनंद की तरह से मानना सबको करना चाहिए। एकाध दिन गर नहीं खाना चाहिए। उसमें अगर ये सोचें कि कैसे इन खाया तो कोई बात नहीं। एकाध दिन गर नहीं लोगों के साथ रहा जाए ये तो ऐसे लोग हैं। बाहर घूमने गए तो कोई बात नहीं। एकाध दिन ये तो वैसे लोग हैं। क्योंकि सहजयोग में आराम नहीं हुआ तो कोई बात नहीं, लेकिन सबके लिए द्वार खुले हैं तो वो आपके लिए ध्यान सहजयोगियों को अवश्य करना चाहिए। कठिन हो जाएगा, गर आप यह सोचते हैं । क्योंकि ध्यान ही में पाया जाता है। तो सवैरे का तपस्या के मामले में जो उसको मजे से उठा सकता है वही सहज की तपस्या है। सब चीज़ देती है। इसलिए दोनों समय का ध्यान अवश्य ध्यान गर हम कहें कि ज्ञान का हैं तो शाम का ध्यान भक्ति का है। इस तरह से अपने को है उसमें करने का क्या है। सब चीज़ जब आप बिठाते जाएंगे तो समझ लेंगे कि कितने आप महत्वपूर्ण हैं। आपका महत्व इतिहास में कितना है । ये इतना बड़ा कार्य जो हो रहा है लेना चाहिए। उससे कम नहीं है जैसे देवता सहज योग में ये सब आप ही के माध्यम से हो लोग हम उनसे कहें या न कहें वे अपने जाएगा। आप अपने को औरों से मत तोलिये। जो कार्य को करते ही रहते हैं उसी प्रकार लोग बड़े यशस्वी होते हैं जो बड़ी-2 जगहों में आपको भी हो जाना चाहिए। उस स्थिति में रहते हैं, बो ये काम करने वाले नहीं। डरपोक लोगों से भी ये काम होने वाला नहीं। लेकिन वैसा बनना होगा। पहले लोग हिमालय पर जाते थे हजारों में से कोई एक को आत्मसाक्षात्कार की अनुभूति होती थी और बाकी तो सब ऐसे ही रह जाते थे। उनकी बड़ी तपस्या करनी पड़ती थी। अब आपको तपस्या करने की जरूरत नहीं। इसमें अगर नहीं हुआ तो ये नहीं कि मैंने बड़ा हिमालय पर जाने की ज़रूरत नहीं। भूखें रहने की ज़रूरत नहीं। कुछ करने की जरूरत नहीं। हुआ तो कोई वात नहीं पर ध्यान करना चाहिए तो आपकी सफाई का फिर कौन सा मार्ग ये जो मैं कह रही हूँ एक order की तरह से सहजयोग में है, जो शायद आपने जाना नहीं। नहीं। एक सूझबूझ की बात। एक विचार कि तो जान लीजिए कि सामूहिकता। सामूहिकता जिससे मुझे फौरन पता चल जाता है कि कौन ही आपकी सफाई का मार्ग है । जो लोग लोग ध्यान करते हैं रोज और कौन लोग नहीं हो ही रहा बन ही रही है उसमें बनाने का क्या है| आपकी स्थिति देवताओं जैसी है ये समझ आप बहुत आसानी से जा सकते हैं। कोई कठिन नहीं है कोई मुश्किल नहीं है लेकिन थोड़ा सा समय हमें अपने को भी देना चाहिए। पूरी समय । हम बेकार की चीजों में समय बिताते हैं तो कुछ समय हमें अपने को भी देना चाहिए। और सर्ेरे व शाम प्रतिदिन ध्यान करना चाहिए, प्रतिदिन। गलत कर दिया। ऐसी बात नहीं ध्यान गर नहीं 38 चैतन्य लहरी ।खंड : XII अक : 7 & 8. 2000 करते। फौरन। क्योंकि जैसे कोई कपड़ा रोज़ धोएँ गौरवशाली हैं और हमारे लिए सबसे कितना तो वह साफ ही रहेगा, उसमें गंदगी कसे आएगी? बड़ा काम, कितना ऊँचा काम हमें आता है। आशा है आप लोग मेरा लैक्चर सुन करके उस दिखाई दे जाती है। बहुत लोगों के 2-4 दिन पर थोड़ा सा विचार करेंगे। मनन करेंगे। ये न हों| ध्यान न करने से बहुत खराबी आ जाती है। तो कि मैंने कह दिया उसके बाद माता जी ने कह दिया। फिर वो दूसरों पर लगाते हैं, अपने लिए कहा है ऐसा नहीं नहीं सोचते। सोचते हैं माता जी अपने सुख के लिए, अपने हित के लिए और ने उनके लिए कहा मेरे लिए नहीं कहा। हरेक सारे संसार के हित के लिए हमें करना चाहिए। को सोचना चाहिए कि ये मरे लिए ही कहा अपने से गर हमें प्रेम है तो हमें चाहिए कि कि मुझको कैसे ऊपर उठना चाहिए, इसमें कैसे हम जाने कि हम कितने महत्वपूर्ण हैं, कितने मुझे कामयाब होना है. कैसे मुझे बढ़ना है। सबको अनन्त आशीर्वाद। और जो नहीं करते हैं उसकी गंदगी फौरन सन ये स्नान है। गर स्नान न करें तो भी चलेगा पर ध्यान जरूर करना चाहिए। अपनी शांति के लिए, 39 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & ৪, 2000 बम्बई जन् कार्यक्रम 13.3.2000 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन सत्य को खोजने वाले आप सभी साधको सारे देश को भी बरबाद करना चाहते हैं। ऐसे जो को हमारा प्रणाम । पहले हिन्दी में बात करेंगे और उसके बाद मराठी में क्योंकि हिन्दी हमारी लोग हैं बम्बई में तो खासकर लोग कहते हैं कि बहुत हो ज्यादा गुण्डे लोग बैठे हुए हैं। सो ये राष्ट्रभाषा है और मैं सोचती हूँ कि सव लोगों को कम से कम हिन्दी जान लेना चाहिए। मराठी जैसी तो कोई भाषा ही नहीं है, ये भी मैं मानती हूँ। लेकिन जा मराठी जानता है उसके लिए समझ में नहीं आता। इस वक्त ऐसी कोन सी बात हो गई है कि ये लोग सव पनप गए? उसका कारण है से घोर कलियुग। घोर कलियुग की ये पहचान है कि इसमें इस कदर ऐसे लोग हिन्दी जानना कोई मुश्किल नहीं। बहुत सरल जो कि अपने दुश्मन हैं, देश के दुश्मन सबके दुश्मन हैं, वो ज़रूर फूलेंगे-फलेंगे। पर भाषा है ये। आपके सामने अनेक बार मैंने कुण्डलिनी के बारे में बताया है और ये भी समझाया है कि कब तक? जब तक उनका जागरण नहीं होता जब आपकी कुण्डलिनी का जागरण हो जाता है कुण्डलिनी जागरण से कैंसे हमारे अन्दर के विध्वसक गुण हैं जो निकल जाते हैं। वो हमारे जाते हैं। आपकी प्रतिक्रिया जो है वो बदल जाती अन्दर पड्रिपु हैं काम क्रोध, मद, लोभ, मोह. मत्सर। ये पडरिपु हमेशा हमें सताते रहते हैं और माँ मैं जब सहजयोग में आया तो मेरी तबियत वो इसलिए आते हैं क्योंकि हमारा जो दिमाग हैं वदल गई। मतलब कहने लगे पहले मेरा जब तो आपको हैरानी होगी कि आप एकदम बदल है। अभी एक साहब हैं वी मुझे बता रहे थे कि वो हर समय कोई भी चीज़ को देखकर उसकी कहीं ट्रांसफर (Transfer) होता तो आफत। हम प्रतिक्रिया करता है। उस प्रतिक्रया के कारण लोग इतने परेशान रहते थे मियाँ-बीबी। ये सहजयोग प हम अन्दर अपने मस्तिष्क में ये सोचते हैं कि ये का कमाल है कि मुझे अब कुछ नहीं लगता। मैं मजे में हूँ. मैं आनन्द में हूँ। होना है वो होगा। ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि जब आप कुण्डलिनी सब करने से हमारा फायदा हो जाएगा. लेकिन ये तो हमारे सारे दुश्मन हैं। तो इनको अपनाने से आपको कैसे फायदा हो सकता है? किन्तु आज के जागरण की कृपा प्राप्त करते हैं और जब आपको ये मिलता है तब आप स्वय ही बदल जो समाज हम देखे रहे हैं, खासकर हमारे भारत-वर्ष में इतनी अराजकता फेली हुई है, इस जाते हैं। कोई उपदेश देने की जरुरत नहीं, कोई क़ंदर दुष्ट लोग आ गए हैं, ऐसे-ऐसे लोग चीज़ समझाने की ज़रूरत नहीं, कुछ नहीं। ये जिन्होंने खुद को भी बरबाद किया हुआ है और अपने आप ही घटित होता है क्योंकि ये शक्ति 40 चैतन्य लहरो खंड XII अक : 7 & 8. 2000 आपके अन्दर स्थित है। परमात्मा ने ये शक्ति कोई भी सिरदर्द नहीं, कोई भी आपको व्यायाम आपके अन्दर दे दी पर अर आपको उधर (Exercise) वरगैरा नहीं करना, सिर के बल नज़र ही नहीं करना, आपको उसके बारे में खड़ा नहीं होना, एक पॉव पर खड़ा नहीं होना, कुछ नहीं। और ये सबके लिए दुनिया में है, सारे समय बर्बाद कर रहे हैं। तो ऐसे लोगों के लिएसंसार के लिए इच्छुक है। सिर्फ आपके लिए उचित है कि वो फिर नहीं आएं सहजयोग में। नहीं, कहीं और लोग के लिए नहीं पर सारे पर जो लोग व्यकित हैं और जो सोचते हैं कि हमें संसार के लिए। सहजयोग 86 देशों में फैला जानना ही नहीं और आप बेकार चीज़ों में अपना कुछ प्राप्त करना है इस जोवन में, अगर हमें आत्मसाक्षात्कार मिल जाए तो कितनी ऊँची बात हुआ है और वहाँ के लोग मग्न हैं वड़े मग्न हैं हैं और उनकी जिन्दगियाँ दुरुस्त हो गई. खुश ठीक हो गई और घर में हर तरह का आराम चेन है? न हिमालय पर जाना है न पैसे देने हैं, न कुछ करना है। सो ये कितनी बढिया वात है और इसको प्राप्त करने के लिए आपको कोई आ गया। हर जगह आपको समझना चाहिए कि तकलीफ करने की जरूरत नहीं है। स्वयं परमात्मा जितने भी बड़े-बड़े धर्म हो गए उन्होंने कहा है ने आपके अन्दर ये शक्ति स्थित कर दी है और कि एक दिन ऐसा आने वाला है जिसमें आपका मनवन्तर होना है, जिसमें आप लोग विशेष चीज नहीं कर रहे, इस वक्त आप चूक गए तो ये को प्राप्त करेंगे। कुरान में तो साफ़ लिखा हुआ इसकी जागृति करना ही चाहिए। ये अगर आप कुछ बनने नहीं वाली बात। अभी सब काम आप करते हैं. सब परेशानियाँ उठाते हैं। कभी बोलेंगे। आ गया है, लेकिन आपके हाथ नहीं हैं कि जब क्रियामा आएगा तो आपके हाथ कि कुछ होता है. पर आपको अभी तक कोई बोल रहे हैं तो फ़ायदा क्या? इसको प्राप्त करना आनन्द नहीं मिला। आनन्द में सुख और दुख दी ही आप सबके जीवन का लक्ष्य है। आप नहीं करना चाहें ये आपकी मर्जी है। पर ये चीज़ दूसरे आपको कोई सत्य नहीं मिला। सत्य माने घटित हो सकती है और हो रही हैं अनेक देशों में और अपने देश में भी होना चाहिए। यहाँ की चीजें नहीं होतीं सिर्फ आनन्द केवल आनन्द। आधा-अधूरा मिला है, लेकिन केवल सत्य (Absolute Truth) नहीं मिला। उसके लिए कशमक्रश को देखते रोज की अशान्ति को आपको कुण्डलिनी का जागरण कराना चाहिए देखते हुए हमें मान लेना चाहिए कि उसे प्राप्त जिससे आपका जो है ये मस्तिष्क हरेक चीज़ों की प्रतिक्रिया करता रहता है वो एकदम रुक है परम स्थान है । उसके लिए आपको कुछ हुए करना चाहिए जिसमें परम शान्ति है, परम सुख जाएगा और उसके रुकने से आपका सम्बन्ध ही करना नहीं है। मैंने कहा घर द्वार छोड़ना नहीं है उस चारों तरफ फेली हुई परमात्मा की शक्ति से कुछ नहीं करना और इसे प्राप्त करना है। हो जाएगा। ये बड़े आश्चर्य की बात है कि ये जो कार्य है इतना सहज और सरल है। इसमें हमारे यहाँ मुश्किल ये है, ख़ासकर महाराष्ट्र में, कि लोग इतना ज्यादा जानते हैं एक बोरा भर 4ा। चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & 8, 2000 foll के उन्होंने देवता लगा रखे हैं। घर पर उनके देख सकते हैं कि उनके बनाए हुए मानव लोग सर्वरे से शाम तक पूजा करना. ये करना वो इतनी बुरी तरह से पीटे जाएं, मारे जाएं, भगाए करना, उसमें चलता है या और तरह की चीजें जाएं. सताए जाएं? कभी नहीं। उसका इलाज चल पड़ी हैं। यही हाल हिन्दुओं का यही हाल ज़रूर उन्होंने हमारे अन्दर में किया है और मुसलमानों का है और यही हाल इसाईयों का। इस सब चक्करबाजी से आपको कुछ फ़ायदा इसके लिए अनेक साधू-सन्तों ने कहा है। कबीर ने कहा साफ-साफ, कोई कबीर हुआ ही नहीं। तो दूसरी तरफ आँख करके देखिए कि वो कौन सी चीज़ हैं जिसे हमें प्राप्त ह को समझ ही नहीं सकता कि वो क्या कह रहे हैं। असल में भाषा उनकी जो है वो बहुत करना है? जिससे हम ख़ुद स्वय को पहचान् काव्यमय होने से लोग कबीर को नहीं समझ लेंगे और हमारे पास वो सत्य आएगा जो सिर्फ सकते। पर कबीर ने कहा है साफ-साफ। सहजयोग सत्य है उसमें कोई खोट नहीं। उसको हम जानेंगे की सारी बातें कबीर ने कही हैं। कितने ही दोहे इस पर आईस्टिन जैसे बड़े भारी शास्त्री ने कहा ऐसे हैं जिसमें उन्होंने बताया है ईडा, पिंगला, ये सब चीजें आपको, एक उसको उन्होंने सुखमन नाड़ी रे। अब कोई कहेगा ये क्या होता टोर्शन एरिया (Torsion Area) कहा है। उस है-ईड़ा, पिंगला सुखमन नाड़ी? सहजयोग पा टोर्शन एरिया से आपको प्राप्त होगी और उससे आइए सब पता चल जाएगा। शून्य शिखर पर आपका सम्बन्ध होना बहुत जरूरी है। जब तक अनहद बाजे रे। अब कौन जाने शून्य शिखर क्या आपका उससे सम्बन्ध ही नहीं है तो आप है और अनहत् क्या है। हिन्दी में इस पर इतना नामस्मरण किसका कर रहे हो भई। कोई आपको कार्य हो चुका विशेषतः गुरुनानक साहब ने इसका बड़ा प्रधान्य रखा और हिन्दुस्तान में इस मामले में इन सब साधू-सन्तों ने बिल्कुल एक 1: पहचानता भी नहीं और आप नामस्मरण कर रहे है वो आपको हो! इन चीजों से जो असलियत मिलने वाली नहीं। असलियत जब होगी जब तान रखी, सब सहमत थे। आप असलियत पर आएं और यथाशक्ति उस जब महाराष्ट्र से नामदेव बड़े भारी कवि थे और बहुत बड़े सन्त थे जब वो पहुँचे पंजाब बहुत बार कहा है ग़र महीना भर आप लोग तो गुरुनानक ने उनका बड़ा मान किया और सहजयोग करें तो आप अपने ही गुरु हो जाते हैं उनसे कहा बेटे, तुम पंजाबी सीख लो और और आप स्वयं ही लोगों की बीमारियाँ ठीक पंजाबी में लिखो। इतनी बड़ी किताब उन्होंने कर सकते हैं । आपको ज़रूरी नहीं कि कहीं पंजाबी में लिखी और उसमें उन्होंनें पूरा कुण्डलिनी पर जम जाएं। कोई कठिन काम नहीं है मैंने और जगह जाएं या कुछ और लोगों से मदद लें। का वर्णन आदि व्गैरा बहुत सुन्दर कर दिया। ये सब कितनी बार कहनेपर भी लोगों के अब नामदेव जो थे वो श्री राम के भक्त थे और दिमाग में उतरता नहीं है ये बड़ा दुर्भाग्य हैं। वो सगुण में विश्वास करते थे। और नानक क्योंकि जिस परमात्मा ने सृष्टि रची है क्या वो साहब ने उनसे ये कहा कि देखा सगुण 42 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 7 & 8, 2000 পাe विश्वास रखना बुरी बात नहीं क्योंकि तुम तो नहीं करो वो नहीं करो तो आधे लोग तो उठकर पार आदमी हो तुम्हारे लिए ठीक है। तुम जानते चले जाएगे लेकिन ग़र कूण्डलिनी का जागरण हो कि कोन सा संगुण ठीक है। तुम जानते हो कि कौन सा सगुण ठीक है कौन सा नहीं। कौन सी मूर्ति जो है स्वयंभू है कौन सी नहीं। पर सब जनता तो जानती नहीं है। तो इनके लिए निगुंण हो गया तो आप ख़ुद ही इस चीज़ को समझ लेंगे कि गलत है, ये हमारे लिए हानिकारक है। क्यों? क्योंकि आपकी आत्मा का प्रकाश आपके हृदय में से उमड़ता हुआ आपके चित्त में आ जाता है और हर एक आदमी समझ जाएगा. जो की बात करो। कबीर ने कहा है कि 'निर्भय निर्गुण गाऊंगा' निर्भय होकर मैं निर्गुण गाऊँगा। उन्होंने कहा कि मुझे किसी से भय नहीं मैं बुरा है और जो उचित है ये खास चीज आपके निर्गुण की बात करूगा और यही बात है। और आत्मसाक्षात्कारी है। जहाँ आप अपना अच्छा नामदेव ने भी, नामदेव ने भी निर्गुण पर ही बहुत बुरा पूरी तरह से समझ सकते हैं और इसके आत्मसाक्षात्कारी है, कि इसमें क्या गलत है क्या कुछ लिखा और जो निर्गुण है उसको आदि शंकराचार्य ने 'स्पन्द' कहा। स्पन्द माने आपके पूरी तरह से मदद है क्योंकि उनकी शक्ति चारों अन्दर जो चैतन्य की भावना है चैतन्य जो अलावा, इसके अलावा आपको परमात्मा की तरफ प्रेम की फैली हुई है। प्रेम' यही एक बड़ा महसूस होता है जिसे Viberations कहते हैं वो भारी सामर्थ्यवान आपके पास एक बड़ा समर्थ ही 'स्पन्द' है। सब लोगों ने यही बात कही है ऐसा एक शक्तिशाली विराजमान है। ये प्रेम, और विदेश में भी बहुत लोगों ने इस पर बात इसको निर्वाज्य प्रेम कहते हैं जिसमें आप किसी करी हुई है। पर किताबों की बातें किताबों में चीज की उम्मीद नहीं करते बस प्यार में डूबे जाते हैं। प्यार की जुबान और होती है. प्यार के और आजकल लोगों के दिमाग़ में पता नहीं क्या फित्र आ गया है कि वो समझना ही नहीं चाहते तौर-तरीके और हाते हैं। उसका ढंग और होता है। कि वो क्या हैं? किसलिए मैं गलत रास्ते पर चल रहा हूँ, किसलिए मैं सबको परेशान कर रहा हूँ, किसलिए मैंने यह सब अवलम्बन किया वशीभूत हैं ख़ासकर सहजयोगी लोगों ने इसको हम लाग सोचते हैं कि ऐसे लोग बहुत बिड़ला हैं बिल्कुल नहीं। ऐसे अनेक लोग हैं जो प्यार में हुआ है इस तरफ विचार ही नहीं आता और उससे क्या हो रहा है कि मनुष्य भटक गया है भटक के गलत रास्ते पर चला जाता है लेकिन उससे उसी की हानि होती है किसी और की अहसास किया कि प्यार कितनी बडी चीज़ हैं। लेकिन दूसरों से अच्छे से बात करना ही आजकल मुश्किल है उसके आगे जाइए तो ये दूसरों की चीजें हड़पना ये बहुत अच्छी बात है और उससे भी आगे जाइए तो आजकल जो चल रहा है रास्ते हैं आप लोग जानते भी हैं और लोगों को अपने देश में हर तरह की यातनाएं हर तरह की प्रक्षुब्ध करने वाली बहुत अत्यन्त ग्लानि लाने नहीं होगा ये मैं जानती हूँ मैं अग़र कहूँ कि ये वाली ऐसी चीजें ये सब आई हैं। मनुष्य इस 43 कुि नहीं उसकी हानि होतो है। अनेक भटकने के भटकते हुए देखते भी हैं। कुछ कहने से ठीक च्वैतन्य लहरी खंड : XII अक : 7 8 8. 2000 चीज़ के लिए नहीं पैदा हुआ है। मनुष्य पैदा अन्दर का दीप जला लेना चाहिए। जब ये दीप हुआ था कि उस परमात्मा की शक्ति को जाने और उस शक्ति का उपभोग करे उससे आनन्द पाएंगे कि हमारे अन्दर क्या शक्ति है और हम उठाए और हमेशा के लिए शान्ति का जीवन व्यतीत करे। शान्ति फैलाने के लिए सबसे अच्छी शक्ति है। बड़ी जबरदस्त है प्रेम की शक्ति। ऐसे जल जाएगा ता आप इस तरह आसानी से समझ इस शक्ति से क्या कर सकते हैं? ये प्रेम की चीज़ ये है कि आदमी का मनवन्तर होना चाहिए छिछोरा प्रेम नहीं ऐसे उथला प्रेम नहीं पर बड़ा Transformation होना चाहिए। जब तक आदमी बदलेगा नहीं जब तक उसके अन्दर ये प्रकाश गहन। ऐसा अन्दर से प्रेम का बिल्कुल प्रवाह जैसे कोई सागर बनाता हुआ दोड़ता है और उस आएगा नहीं। तब तक वो ऐसे ही भटकता रहेगा. प्रेम के सहारे आप आनन्द में बिल्कुल रहते हैं और दूसरों को भी आनन्द देते हैं। ये एक ऐसे ही धन्धे करता रहेगा. ऐसी ही चीजों में उलझता रहेगा जिसमें वो जानता ही नहीं कि परमशक्ति आपके अन्दर है जिसे मैं यही विनती सीधे रस्ते चल रहा है कि नहीं। इसलिए अपने करूंगी कि आप लोग इसे प्राप्त करें। आप सबको अनन्त आशीर्वाद 44 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & 8, 2000 े ाभ तो आपकी सफाई का फिर कौन सा मार्ग सहजयोग में है, जो शायव आपने जाना नहीं। तो जान लीजिए कि सामूहिकता। सामूहिकता ही आपकी सफाई का मार्ग है । जो लोग सामूहिक हो सकते हैं निर्वाच्य, निर्वाज्य तरीके से जो सामूहिक हो सकते हैं उनकी सफाई अपने आप हो जाएगी। उनको कोई विशेष तपस्या करने की ज़रूरत नहीं। सामूहिकता को भी एक तपस्या की तरह से नहीं बल्कि एक आनन्व की तरह से मानना चाहिए। उसमें अगर ये सोचे कि कैसे इन लोगों के साथ रहा जाए, ये तो ऐसे लोग हैं, ये तो वैसे लोग हैं क्योंकि सहजयोग में सबके लिए द्वार खुले हैं तो वो आपके लिए कठिन हो जाएगा गर आप यह सोचते हैं। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला वेवी 27.11.91 ---------------------- 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-0.txt हिन्दी आवृत्ति चैतन्य लहरी जुलाई-अगस्त-2000 अंक 7 & 8 खण्ड - XII ७o TIVE न ा ंर ० 1 आपकी गहराई में ही सारा सुख, समाधान, सारी सम्पत्ति, ऐश्वर्य, श्री सब कुछ...है। उस गहराई में उतरने के लिए बीच की जो कुछ रुकावटें हैं उनको निकाल देना चाहिए। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी 27.11.91 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-1.txt काम माँ कुण्डलिनी के प्रेम कुण्डल पाश में पानी पैर क्रिया करती हुई रोहिणी (दिल्ली) की एक नन्ही बालिका। 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-2.txt इस अंक में प्रार्थना जन्मदिवस पूजा-21.3.2000 -2. 77वां जन्मदिवस पूजा हिन्दी प्रवचन 21.3.2000 8. 3. 77वां जन्मोत्सव समारोह (एक रिपोर्ट) 4. 11 जन्मोत्सव समारोह 5. (क) श्री बलराम जाखड़ का भाषण 14 ख) श्री एल. के आडवाणी का भाषण 15 (ग) श्रीमन सी.पी. श्रीवास्तव का भाषण 16 श्रीमाताजी का जन्मोत्सव भाषण (22.3.2000) 18 6. श्रीमाताजी का दूल्हों को परामर्श ( 23.3.2000) 7. 25 श्रीमाताजी की दुल्हनों को सीख (23.3.2000) 8. 26 आत्मसाक्षात्कार में स्थापित किस प्रकार हों। लन्दन ( 15.10.79) 9. 28 ध्यान की आवश्यकता 27.11.91 दिल्ली 10. 35 11. बम्बई जन कार्यक्रम 13.3.2000 40 : योगी महाजन सम्पादक : विजय नालगिरकर प्रकाशक काए 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 : अभिनव प्रिन्ट्स, दिल्ली 34 फोन : 7184340 मुद्रक रा 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-3.txt .... .. 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-4.txt प्रार्थना हे माँ आदिशक्ति, कृष्णावतार में आपने आत्मा के रहस्य, जीवन के, मृत्यु के, अमरत्व के, एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति तथा कहा था ा परमात्मा से एकाकारिता के रहस्यों को। तब यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानम् धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ विश्व सत्य की ओर चलेगा और मानव सत्य हे अर्जुन, जब जब आसुरी शक्तियाँ धर्म बन जाएगा जब वे सुखदाता आएंगी तो विश्व का पतन करती हैं और अधम का साम्राज्य हो को मेरे बताए गए पाप और सत्य, इंसाफ के निर्णय की विवेकमयता के विषय में विश्वस्त जाता है तब-तब में धर्म के उत्थान और पुनर्स्थापन के लिए पृथ्वी पर साकार रूप में अवतरित होता कर देंगी और तब विषय वासनाओं के स्वामी हूँ। श्रीमाताजी, भगवान श्री ईसा-मसीह ने भी आएंगी तो मुझे आपके लिए उनसे अनुनय न को निकाल फेंका जाएगा जब वे मुखदाता आपके अवतरण के विषय में भविष्यवाणी की: एक बार फिर ईसा मसीह ने ग्यारह शिष्यों को सम्बोधित करते हुए कहा, 'मैं जा रहा करना पड़ेगा क्योंकि तब आपको मान्यता प्राप्त हो चुकी होगी और तब परमात्मा आपको उसी प्रकार जानते होंगे जैसे वे मुझे जानते हैं।" (ईसा मसीह का अक्वेरियन उपदेश, अध्याय 162V.4) हूँ परन्तु इस कारण से आपको शोक नहीं करना चाहिए, मेरे जाने में ही बेहतरी है। मैं यदि नहीं धर्म के उत्थान तथा अपने वचन को पूर्ण करने के लिए, हे परमेश्वरी माँ, अत्यन्त कृपा जाऊगा तो सुखदाता (Comforter) आपके पास नहीं आएंगी। पूर्ण मानव शरीर के साथ मैं आपसे करके इस घोर कलियुग में आपने अवतरण ये बातें कर रहा हूँ परन्तु जब पावन लहरियाँ लिया और विश्व भर के साधकों की कुण्डलिनी जागृत करने के महान कार्य का बीड़ा उठाया । श्री आदिशंकराचार्य के साथ हम सब भी सशक्त होंगी तो, लो! आपको अधिकाधिक सिखाएंगी और जो भी शब्द मैंने आपसे कहे वे आपकी स्मृतियों में आएंगे। अभी भी अनगिनत प्रार्थना करते हैं :- चीज़ों के विषय में बताया जाना बाकी है; उन नित्यानन्द करी वराभय करी सौंदर्य रत्नाकरी सब चीजों के विषय में जिन्हें ये समय स्वीकार निर्धूताखिल घोर पाप निकटी प्रत्यक्ष माहेश्वरी नहीं कर सकता क्योंकि आज के लोग इन्हें प्रालेयाचल वंश पावन करी काशीपुराधीश्वरी समझ नहीं सकते। परन्तु, लो, मैं बताता हूँ परमात्मा के महान दिवस आने से पूर्व पावन लहरियाँ सारे रहस्यों को खोल देंगी। भिक्षांदेही कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी हे माँ अन्नपूर्णेश्वरी! आप ही दैवी आशीर्वाद की दाता हैं, एक हाथ से आप वरदान देती हैं चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & 8. 2000 श्रीo 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-5.txt हैं और से निडरता। आप सौन्दर्य का सागर हैं। अटूट श्रद्धा से भर दो हमारे हृदय, आपके और सहज के प्रति दूसरे और सर्वपापविनाशनी हैं। नि:सन्देह आप ही महादेवी हैं। आपने ही हिमालय के कुल को हम सब समर्पित रहें सर्वदा, चरण कमल अपने, कृपा कर पावन किया (पांर्वती हिमालयपुत्री थीं) कृपा करके प्रसन्न होईए और हमें भिक्षा प्रदान कीजिए। हमारे हृदय में विराजित करें, इस योग भूमि पर आपका सतहत्तरवाँ जन्मत्सव मनाते हुए आपके हम सभी सहजयोगी दान दें शुद्ध चित्त और निर्विचार-चेतना बच्चे प्रार्थना करते हैं कि है देवी. अखण्ड ध्यान में हो स्थिर अन्तत:। आपके बच्चे 4. चैतन्य लहरी खंड XII अक : ? & 8, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-6.txt 77वीं जन्म दिवस पूजा निर्मल धाम दिल्ली 21.3.2000 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी जी का प्रवचन मानव परस्पर प्रम नहीं कर सकते। वे सदैव दूसरों पर हावी होने, उनसे घृणा करने या उनकी चीजें हथियाने का ही प्रयत्न करते रहते हैं। हमारे आपका प्रेम देखकर मेरा राम-रोम पुलकित हो उठा हैं और इस सुन्दर स्थान का सृजन करने वाले सभी सहजयोगियों के प्रति कृतज्ञता से मेरा अन्दर यही गलत विचार भरे थे, यही कारण हृदय भर गया है। इतने सुन्दर, इतने शान्त स्थल की सृष्टि करने के लिए उन्हें कितना कठोर हुए है कि इन धारणाओं को रोकने के लिए जा भी परिश्रम करना पड़ा होगा। इसकी तो में कल्पना ही नहीं कर पा रही हूँ। सहजयोग में किस प्रकार संस्थाएं बनाई गई वा भी दृषित हो गई। स्वयं को समझने का एकमात्र उपाय 'स्वयं को पहचानना परस्पर गहन सम्मान एवं प्रेम से लोग कार्य करते है। जब आप स्वयं को पहचान लते हैं तो आप हैं तथा ऐसी चौजों की सृष्टि करते हैं कि हैरान हो जाते हैं कि प्रेम करना और पाना ही विश्वास हो नहीं होता! जिस स्थान पर आपने महानतम कार्य हैं। अपनी अधम प्रवृत्तियों पर पूर्ण नियंत्रण करने के पश्चात् आप सामूहिक जीवन एवं प्रकाश की स्थापना की है यह इससे पूर्व वंजर था आप लोग मेरा जन्मोत्सव मनाना चाहते हैं। मैं नहीं जानती कि जन्मदिन मनाने का प्रेम का आनन्द लेते हैं। सहजयोग में यह सव बहुत सहज है और अत्यन्त ही सहज रूप से परन्तु इसकी गहनता में उतरना बहुत महत्वपूर्ण है। पूरे विश्व है इतना क्या महत्व है। परन्तु जिस प्रकार से आप कार्य करता है। यह बहुत सहज लोगों ने सम्मान एवं सूझ बूझ दर्शाई है उसे देखकर में मन्त्रमुग्ध हो गई हूँ। मैं समझे नहीं से दिल्ली से और पूर्ण भारत से आप सबको पाती कि मैंने आप लोगों के लिए ऐसा क्यां परस्पर प्रेम एवं सूझ-बूझे का आनन्द लेते हुए देखकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ। मैंने कभी आशा नही की थी कि अपने जोवनकाल में ही मैं प्रेम, किया है कि आप सहजयोग का कार्य करें। आज होली का शुभ दिवस है आज के दिन हम लोग होली खेलते हैं तथा एक दूसरे के प्रति प्रेम एवं विश्वास और शान्ति का यह सुन्दर संसार देख पाऊगी। एकता का प्रदर्शन करते हैं। में कहना चाहूंगी, यह सब दर्शाता दूसरों के लिए प्रेम एवं सम्मान के मूल्य को है कि हममें क्या करने की योग्यता है। हेम, समझते हैं। अभी तक तो हमारे सभी सिद्धान्त तथाकथित, मानव अत्यन्त स्वार्थी, अपने तक एवं धारणाएं इस नियम पर आधारित थीं कि सीमित और अपने लिए ही चिन्तित हैं। यही यह एसा समय हैं जब हम वास्तव में आज, चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 7 & 8. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-7.txt , लोगों के प्रति पूर्णतः अनुगृहीत हूँ कि आपने इस कहा जाता है। परन्तु, आश्चर्य की बात है आत्मज्ञान की अपनाया और इसका आनन्द अन्य आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके, आत्मज्ञान पाकर, लोगों के साथ लिया। स्वयं का ज्ञान होना अत्यन्त स्वयं का जानकर आप समझ जाते हैं कि अन्दर से आप कितने वैभवशाली एवं महान हैं और आप के अन्दर कितनी योग्यता है। आपमें ये को कर सकता है। हीरा बहुमूल्य हो सकता है असाधारण चीज है। केवल मानव हो इस कार्य सूझ-बूझ आ जाती है और अत्यन्त सुन्दर ढंग से इसकी अभिव्यक्ति होती है। परन्तु यह स्वयं अपने मूल्य को नहीं जानता। कोई कुत्ता या अन्य पशु विशेष हो सकता है परन्तु वह नहीं जानता कि वह क्या है। उन्नत होने में सहजयोग को काफी समय आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेने से पूर्व मानव की भी यही स्थिति होती है। आत्म-साक्षात्कार प्राप्त लगा और आप सब लोग धीरे-धीरे परिपक्व हो रहे हैं। परन्तु आज में कहूंगी कि अब यह इतनी बुलन्दी पर पहुँच गया है कि इससे बाहर जाना लोगों के लिए कठिन कार्य है । जब आप स्वयं कि वे क्या हैं । और तब एकदम वे अत्यन्त हा जाने के पश्चात् वह अचानक जान जाते हैं विनम्र हो जाते हैं, अत्यन्त प्रेममय हो जाते हैं। को पहचान लंते हैं, वास्तविकता तथा पूर्ण सत्य मान लो किसी व्यक्ति को यदि पता चले कि को जान लेते हैं तब उस ज्ञान में विलोन हो जाते हैं। नि:सन्देह आपको उतनी जानकारी नहीं है वह सम्राट है, महान संगीतकार है या प्रधानमन्त्री जितनी लोगों को है। आप तो सच्चे शब्दों में है तो वह अन्य लोगों से कट जाता है अपने आप में ही फूला नहीं समाता। परन्तु जो ज्ञान ज्ञानी हैं क्योंकि आप महसूस करते हें कि आपके अन्दर प्रेम की महान शक्ति है। आपमें आपने प्राप्त किया है इसे पाने के पश्चात् आप अन्य सहजयोगियों से एकरूप हो जाते हैं। यह सूझ-बूझ की अथाह शक्ति है, एकरूपता और बम सामूहिकता की अथाह शक्ति है। यह सामूहिकता चमत्कार करती है और आनन्द प्रदान करती है करती है कि आप एक दूसरे का इतना आनन्द बात अत्यन्त असाधारण है। यह इस प्रकार कार्य लेते हैं कि सामूहिक कार्यों को करने के लिए कि हम सब एक हैं, हम दुश्मन नहीं हैं और हमें कोई समस्या नहीं है। आप सब एक हैं। स्वयं को समर्पित कर देते हैं । जिस प्रेम की अभिव्यक्ति आपने की वह लहरों सत्ततर वर्षो का मेरा अनुभव वास्तव में सम है जो तट की ओर जाती हैं. तट को छूती भिन्न प्रकार की घटनाओं भिन्न प्रकार के लोगों से परिपूर्ण है। अपनी आंखों से ये दृश्य देखना जाती हैं और अब मैं यह घटित होते हुए देख कितना आनन्ददायी है कि सारे उतार चढ़ावों के रही हूँ कि ये सुन्दर आकार आपके अपने जीवन बावजूद भी इतने सारे सुन्दर कमल खिल उठे में, आपकी जीवन शैली में और आपके आचरण हैं। वे इतने सुरभित हैं, इतने सुन्दर हैं इतने रंग बिरंगे और आकर्षक हैं। इस सारी उपलब्धि का कारण हमारी अन्तर्जात मूल्य प्रणाली है क्योंकि हैं और सुन्दर आकार बनाती हुई वापिस आ में अभिव्यक्त हो रहे हैं। मेरे सम्मुख एक अत्यन्त विशिष्ट मानव जाति बैठी हुई है। में आप सब 9. चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 7 & 8, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-8.txt हमारे अन्दर प्रेम एवं करुणा की महान संवेदना उन्हांने इतना सुन्दर इन्तजाम किया, इतना सुन्दर अन्तर्जात हैं। बास्तव में इस करुणा को समझा पण्डाल बनाया और सहजयोगियों के रहने के लिए इतना सुन्दर प्रबन्ध किया। यह वास्तव में प्रशन्सनीय है। मैंन इसके लिए कुछ नहीं किया, जाना चाहिए और इसका आनन्द लिया जाना चाहिए तथा करुणा के इस सागर में कूद पड़ना चाहिए। यह इतना सुन्दर है और यह देखकर कुछ भी नहीं। किस प्रकार इन लोगों ने मिलकर आप हैरान होंगे कि स्वत: ही आप तैरने लगंगे कार्य किया! न कोई लडाई हुई न झगड़ा और न और इसी समुद्र में आपकी भेंट अन्य लोगों सं ही कोई निन्दा चुगली। हैरानी की बात है कि होगी। बिना किसी समस्या के, बिना किसी कष्ट उन्होंने इतने सुन्दर स्थल की रचना की! यह सहजयोग में उनकी परिपक्वता की दशांता है। के सभी प्रेम, करुणा और इस परमेश्वरी प्रेम का आनन्द लेंगे। इतने कम समय में इस महान कार्य की संपन्न दिल्ली के लोगों को मैं बधाई देती हूँ। हूँ। करने के लिए मैं उन्हें बारम्बार बंधाई देती चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 7 & 8. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-9.txt 77वीं जन्मदिवस पूजा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन निर्मल धाम-दिल्ली 21-3-2000 पहले अंग्रेजी में बातचीत की क्योंकि यहाँ हृदय दूसरों के सामने खोल सकें और उन्हें परदेस से बहुत से लोग आए हैं और आप को अपने हृदय में बसा सकें। और मन से हमको यह सोचना चाहिए कि जिस मन में प्यार नहीं है वो संसार में किसी भी चीज़ का अधिकारी नहीं कमाल है और उसी के साथ उत्तर प्रदेश के होता क्यांकि जो भी चीज़ उसे मिलती है व कोई एतराज नहीं कि हम थोड़ी देर अंग्रेजी में बातचीत करें। हालांकि यह तो दिल्लो वाला का लाग, वो भी जुट गए और राजस्थान के लोग भी किसी भी तरह से तृप्त नहीं हो सकता। उसमें जुट गए और हरियाणा के लोगों ने भी मदद की। तृप्ति नहीं आ सकती। लेकिन जब आपकंे मन इन सब ने मिल करके इतने प्यार से बड़ा ही में ही एक तृप्ति का सागर है तो ऐसी कौन सी सुन्दर मन्दिर जैसे बनाया है। मैं तो खुद ही चीज है जिससे आप तृप्त न हां। ये चीज़ें जब देखकर हैरान हो गई। क्या यहाँ पर ऐसे कारीगर लोग हैं? मैं तो नहीं जानती थी! सारी कारीगरी अंदर समा जाता है तो समाधान की परिधि को आपके अदर हा जाती हैं और समाधान आपक कहाँ से आई और कहाँ से उन्होंने सब कुछ बना कोई समझ नहीं सकता। उस समाधान के व्यापार को काई समझ नहीं सकता आार इतना मधुर, कर यहाँ सजाया। यह समझ में नहीं आता। इस कदर इस देश में हुनर वाले लाग हैं ये भी मुझे होता है कि उसे देखते इतना सुन्दर वा सब कुछ नहीं मालूम था. और वो भी प्यार का हुनर! प्यार ही बनता है। समझ में ही नहीं आता कि ये मैं की शक्ति। प्यार की कला। सबसे प्यार करने क्या कर रहा हूँ और दूसरे क्या कर रहे हैं। मैं की कला। ये जिसमें आएगी वही ऐसी कलात्मक क्या कह रहा हूं और दूसरे क्या कह रहे हैं और कृति कर सकता है। इसकी कला सीखनी चाहिए ये किस तरह से अपने प्यार का परिधान मंरे कि हम किस तरह से अपने वाचा से, मन से, ऊपर डाल रहे हैं। किस प्रकार से हम उनके बुद्धि से कलाकार बने। प्रेम के कलाकार बने। ऊपर अपने प्यार की वर्षा कर रहे हैं। बस रात और कैसी बात करने से हम दूसरों को सुख दे दिन यही चिन्ता लगी रहती है कि आज उनसे सकते हैं और आनंद दे सकते हैं। कौन सी मिलना है तो उनसे कौन सी प्यारी बात करी जाए। उनसे कौन से हित की बात करी जाए प्यारी बात ऐसी होती है जो हम कर सकते हैं । क्योंकि बेकार की बातें करने की जो व्यवस्था है एक तो वाचा, से हुआ फिर बुद्धि से हम क्या ऐसे सोच सकते हैं कि कौन सी बात से लोगों उससे सिर्फ नुकसान हुआ और फायदा कोई हुआ नहीं क्राध, जो मनुष्य में होता है उससे से प्यार जताया जाए। किस तरह से हम अपना ह चैतन्य लहरी खंड : XIl अंक : 7 & 8. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-10.txt और भी ज्यादा हानि हुई। तो आपको कुछ मनुष्य में अनंक तरह के दोष हैं। अनेक दोषों से सिखाते की जरूरत नहीं कि हिंसा सत करो। परिपूर्ण ऐसे मनुष्य को आप बहुत सुन्दरता से किसी के साथ दुष्ट व्यवहार मत करो। किसी का नष्ट नहीं करो। किसी का पैसा मत खाओ। एक अच्छे अपरिचित स्वयं का ज्ञान करा सकते हैं। अपने अंदर जो स्व है, अपने अंदर जो ये सिखाने की जरूरत नहीं। अपने आप ही इतने आत्मा है उससे जब आप परिचित हो जाते हैं तो जान जाते हैं कि औरों को भी ऐसे करना चाहिए सुन्दर हो गए। अपने आप ही, मैन कहा कमल के पुष्प हो गए क्योंकि आप सिर्फ अपना सुगंध देना जानते हैं और कुछ नहीं जानते। और उस और भी अपने की जानें। ये खोए हुए हैं इनकी ो मालूम नहीं कि ये कितना परम धन अपने अंदर देने का जो मजा है उसका आनंद उठाना एक समेटे हुए हैं। तो इनको ये देना ही चाहिए और अजीब सा ही अनुभव है। एक बड़ी अभिनव इनको यह पाना ही चाहिए। इस तरह की बाते प्रकृति के ही लोग इसे कर सकते हैं। आप लोग जब होनी शुरू हो जाएगी तो आप लोग अपने ऊपर जिम्मेदारी ले लेंगे कि हमें भी और लोगों आपके पास धरोहर रखा हुआ जा था उसका पूरा को उनका यह परम धन देना ही चाहिए। उनकी उपयोग आपने कर लिया। वो चीज़ सब खुल कुंजी आपके पास में है और उसे आप किसी गई. उद्धृत हो गई। अब उसका मजा उठाने की तरह से भी यह महान दान दे दीजिए तो देखिए बात है। दुनिया में अनेक लोग अनेक तरह के वो किस कदर आपको मानेंगे और किस कदर आपके प्रति कृतज्ञ होंगे। सबसे बड़ा कार्य आप लोगों के सामने यही है कि जितनों को हो सके इस चीज़ के अब मालिक हो गाए और ये होते हैं लेकिन आपको छू नहीं सकते। आप लोगों को परेशान नहीं कर सकते। गर कुछ हो ही सकता है तो वो भी आप लोगों में समाएँ, सहजावस्था में ले आएँ। उनको यह धन दे दें और जब ये चीज घटित हो जाएगी तो आप खुद आपके साथ हो जाएँ। आपकी ज़िन्दगी देख करके वी खुद भी कुछ बदलने की नहीं तो कम इस कदर उसमें मग्न हो जाएँगे, खुश हो जाएगे से कम प्रवृत्ति रखें कि हम भी बदल जाए। इस और एक तरह का आनंद जिसको वर्णित नहीं सारे संसार को बदलने का ठेका तो मैं नहीं किया जा सकता. आप प्राप्त करेंगे। इस चीज़ कहती, मैने लिया है लेकिन आप लोग इसका को करना है। आज हमारा जन्मदिन आप लोगों ठेका ले सकते हैं। इस संसार को अगर आपने ने मनाया, बहुत इसका धन्यवाद कहना चाहिए और आपने इतनी खुशी से सब किया है। किन्तु बदल दिया, इसमें ऐसे सात्विक प्रवृत्ति वाले लोग आपने अगर निर्माण कर दिए तो फिर आगे मेरे लिए तो ये है कि हर साल हर साल सहज योग इतना बढ़ता रहा और इसकी जो मर्यादाएँ हैं मैं भी नहीं समझ पा रही हूँ। पर आप लोगों को की इससे और कुछ करने की बात ही नहीं रहती। सिर्फ इतना ही जरूरी है कि आप इसमें संलग्न हो जाएं। इसमें कार्यरत हों कि हम कितने लोगों भी निश्चय कर लेना चाहिए कि अआज माँ के जन्मदिन के दिन लोग सब कोशिश करेंगे कि को परिवर्तित कर सकते हैं। माना कि साधारण 6. चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 7 8 8, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-11.txt दूसरों का परिवर्तन करें और अपना तो हो ही आनंद में आ जाएं। श्रीराम का जो तरीका था गया लेकिन दूसरों का भी करना चाहिए। इससे उससे मनुष्य बहुत ही ज्यादा गंभीर हो गया था। उसका जीवन बहुत ही गंभीर हो गया था। तो उन्होंने ये तरीका निकाला कि मनुष्य खुल जाए। पूर्णतया आपको इसकी पूर्णता मिलेगी। अभी तक जो आनंद है वो सीमित है परन्तु जब आप खुल करके खेले वो बात अब सिर्फ सहजयोगी कायदे से कर सकते हैं और आपस में प्यार से दूसरों में बांटेंगे और दूसरों में इसकी प्रतिध्वनि आएगी, उसके बारे में आप जब परिचित होंगे। उसको जब समझेंगे तो एक बहुत ही अभिनव इस तरह का आनंद आपके अंदर जागृत होगा। मैं देख रही थी कि आपके जवान लड़के, छोटे बच्चे सब नाच रहे थे। मारे खुशी के सब कूद रहे थे। कृष्ण ने होली इसलिए मनवाई कि सब होली खेल सकते हैं उसमें किसी को तकलीफ दु:ख देने के लिए नहीं किन्तु अपना आनंद वर्णन करने के लिए और दूसरों को भी आनंदित करने के लिए। सबको अनन्त आशोर्वाद 10 चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 7 & 8, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-12.txt परम पूज्य माताजी श्री निर्मलादेवी का ् 77वां जन्मात्सव निर्मल धाम-मा्च 21.3.2000 एक विवरण 21 मार्च, 2000 को यमुना नदी के तट पर बसी भारत की राजधानी दिल्ल, परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के 77वें जन्मोत्सव की जिसके द्वारा ऐसे बातावरण की सृष्टि हो सकती साक्षी थी। विश्व भर से सहजयोगी जन्मोत्सव है जिसमें लोग रंग और जातिभेदों को समाप्त द्वारा प्रदान की गई सहजयोग ध्यान धारणा विधियों ने नव सहस्राब्दि को एक नई दुष्टि प्रदान की हैं स्थल पर आए हुए थे यूरोप उत्तरी अमेरिका: करके शान्तिपूर्वक रह सकें। लैटिन अमेरिका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, पूर्वी एशिया लोक सभा के पूर्व अध्यक्ष ने इस अवसर और रूस से आए लगभग सात सौ पच्चीस पर कहा कि सहजयोग जब विश्वभर में फैल सहजयोगियों ने इस आनन्द के अवसर पर परम जाएगा तो विश्व 'सच्चा सार्वभौमिक गाँव' (True पावनी माँ के जन्मदिवस समारोह में रंग भर Global Village) बन जाएगा। उन्होंने कामना की दिया। कि जब तक यह लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता तब विश्व भर से सहजयोग के ध्यान धारणा तक श्री माताजी अपना जन्मदिवस इसी तरह से द्वारा मानव हृदय परिवर्तन में श्री माताजी की मनाती रहें। अपनी आगामी कश्मीर यात्रा में भूमिका की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करते हुए कश्मीर समस्या का समाधान खोजने के लिए वे वधाई सन्देश आए। बंधाई सन्देश भेजने वालों श्री माताजी से आशीर्वाद लेना न भूलें। में, संयुक्त राज्य अमेरिका के उपराष्ट्रपति, वहाँ के भिन्न राज्यों के गवर्नर तथा दस नगरों के देते गृहमन्त्री श्री लालकृष्ण आडवाणी ने बधाई कहा कि इस अवसर पर यहाँ आने का हुए उनका लक्ष्य श्रीमाताजी के दर्शन करना तथा मेयर, कनाडा तथा आस्ट्रेलिया के प्रधानमन्त्री तथा संसद सदस्य, रूस की चिकित्सा संस्था के उनके प्रवचन को सुनना था। उन्होंने प्रदूषण के विषय में भी बात की-भौतिक प्रदूषण नहीं, अध्यक्ष, कनाडा के मुख्य नगरों के मेयर्स तथा आइवरी कोस्ट के राष्ट्रपति सम्मिलित थे। उत्सव समाज की नस-नस को विषाक्त करते हुए चारित्रिक प्रदूषण की। चारित्रिक प्रदूषण के समाधान 80 देशों से आए इन प्रशंसात्मक बधाई सन्देशों के रूप में उन्होंने कहा कि सहजयोग ध्यान के संयोजक श्री वी.जे. नालगिरकर ने संक्षिप्त में को उपस्थित सहजयोगियों के सम्मुख पढ़कर धारणा द्वारा आध्यात्मिक उत्थान प्राप्त करके इस सुनाया। इन सन्देशों में कहा गया था कि श्रीमाताजी आन्तरिक प्रदूषण को समाप्त किया जा सकता 11 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 7 8 8. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-13.txt है। मध्य प्रदेश कं पूर्व मुख्यमन्त्री श्री सुन्दर चारित्रिक, नैतिक, आध्यात्मिक सभा की प्रतीक लाल पटवा ने कहा कि परम पावनी माँ के है। विश्वभर में इसी प्रकार को सभाओं का चरण कमलों में समर्पित होकर उनके आनन्द सृजन करके एक नए प्रकार की मानवता का सृजन करने के परम पावनी माँ के स्वप्न का भी के शरीर विज्ञान की अध्यक्ष डॉ. शोभा दास ने उन्होंने वर्णन किया। उपस्थित सभा के सम्मुख का कोई पारावार नहीं रहा। लेडी हार्डिंग अस्पताल श्रीमाताजी को दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा स्वीकार सर सी. पी. श्रीवास्तव ने दो प्रस्ताव रखे-पहला विश्व भर में सहजयोग प्रचार के लिए स्वयं को किए गए 'सहजयाग द्वारा तनाव प्रबन्धन समर्पित करना तथा दूसरा यह कि परमपावनी भाँ विपय पर लिखे गए दो शोध-ग्रन्थ भेंट किए। उन्हों ने लिपिड पराक्सीडेरान ( Lipid तब तक विश्व में अपने दिव्य शरीर की बनाए Peroxidation) नामक रोग पर सहजयोग के रखें जब तक विश्व का हर मानव उत्थान को प्राप्त नहीं कर लेता। सभा के प्रतिनिधि के रूप प्रभाव का भी संक्षिप्त वर्णन किया। भारतीय लोक सेवा तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के अन्तर्राष्ट्रीय पदों पर भिन्न सम्मानों से विभूषित में श्री योगी महाजन ने दोनों प्रस्तावों को पारित किया। सर सी.पी. श्रीवास्तव ने अपने परिवर्तन की तीन यही हीरा अपने मूल्य को नहीं जानता, बात मानव के विषय में भी कही जा अवस्थाओं का वर्णन किया। पहली अवस्था विस्मय, दूसरी गौरव और तीसरी अवस्था समर्पण की थी। आरम्भ में जब उन्होंने लोगों को सामूहिक रूप से परिवर्तित होते सकती है। जब तक वह आत्मज्ञान को प्राप्त नहीं कर लेता...आत्मज्ञान से सशस्त्र देखा तो वे अत्यन्त होकर आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति कमलों सम हो जाते हैं और अपनी अन्तर्जात मूल्य विस्मित हुए जब उन्होंने सहजयोगियों और योगिनियों द्वारा समाज परिवर्तित होते हुए देखा तो प्रणाली के कारण अत्यन्त रंग-बिरंगे और स्वयं को अत्यन्त गौरवान्वित महसूस किया और आकर्षक प्रतीत होते हैं तथा दिव्य सुगन्ध बिखेरते हैं । अब अपने अस्सीवें वर्ष में वे समर्पण की स्थिति में पहुँच गए हैं-परमेश्वरी शक्ति के प्रति समर्पण की स्थिति में, जिसमें सहजयोगियों योगिनियों की अद्वितीय देवदूत सभा का सृजन किया है। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी 21.3.2000 अपने प्रवचन में श्री माताजी ने कहा कि उन देवदूतों का एकमात्र लक्ष्य धर्म और जाति भेदों से ऊपर उठकर एकमात्र सहजयोग परिवार वे गहन देशभक्त लोगों का हृदय से सम्मान का सृजन करने के लिए परस्पर पावन प्रेम की करती हैं। ऐसे लोगों को यदि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाए तो केवल अपने चित्त द्वारा सहजयोग अभिव्यक्ति करना है। उन्होंने कहा कि यह सभा संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेम्बली से भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह विश्व की की शक्ति को प्रभावशाली ढंग से उपयोग करके ये लोग समाज तथा देश की स्थिति को सुधार T2 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & 8, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-14.txt सकते हैं। उन्होंने कहा कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त का स्वप्न 'निराकार" से ही आरम्भ होता है हो जाने पर विनाशकारी विचार तथा गतिविधियाँ और ऐसा होना केवल आत्मसाक्षात्कार के स्वत: ही छुट जाती है। तलियाती के माफ़िया के पश्चात् ही सम्भव है । 'सच्चे ज्ञान' से सशस्त्र होकर आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति भिन्न धर्मों के वैमनस्य को प्रभावशाली रूप से दूर कर सकता एक मुखिया का उदाहरण दते हुए उन्होंने बताया कि किस प्रकार उस व्यक्ति ने सहजयोग अपनाकर स्थानीय लोगों की संवा में स्वयं को लगा दिया हैं। योगभूमि भारत की तुलना उन्होंने पूरे विश्व की कुण्डलिनी से की और बताया कि पूर्ण ज्ञान है। श्री माताजी ने बताया कि आत्मा के प्रकाश में व्यक्ति देख सकता है कि समाज में तथा देश में कौन सी बुराइयाँ हैं और उसमें उन बुराइयों को सुधारने की शक्ति भी होती है। कुछ विदेशी सहजयांगियों द्वारा कश्मीर जाकर वहाँ के लोगों केवल चैतन्य लहरियों की चेतना प्राप्त करने पर ही किया जा सकता है। उन्होंने ये भी कहा कि सच्चे ज्ञान को पाकर सहजयोगी पूरे समाज-देश को परिवर्तित कर सकते हैं। उदाहरण के रूप में को परिवर्तित करने के प्रस्ताव का भी उन्होंने उन्होंने बताया कि किस प्रकार आस्ट्रेलिया के सहजयोगियों ने उड़ीसा में नौ सहज योग केन्द्ों वर्णन किया। की स्थापना की है। एक बार आत्मसाक्षात्कार जब आप पा लंते हैं तो आप धर्म के सौन्दर्य धर्म की यह अवसर विश्व भर से आए तेतीस सहजयोगी/ योगिनियों को विवाह सूत्र में बंधते एकरूपता को समझ सकते हैं। जब परमात्मा हुए देखने का साक्षी था। सार्वभौमिक भाईचारे लड़ सकते हैं? उन्होंने बताया कि रूस ने विश्व की धारणा को स्थापित करने के लिए विश्व निर्मलाधर्म के विचारों की पक्की स्थापना का ये एक है तो किस प्रकार आप धर्म के नाम पर निर्मल धर्म को विशेष धार्मिक मान्यता प्रदान की है क्योंकि यह धर्म करुणा में विश्वास रखता है एक अन्य उदाहरण था। घृणा में नहीं। श्रीमाताजी ने बताया कि 'साकार' 13 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 8 8, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-15.txt 77वां जन्मदिवस समारोह निर्मल धाम-दिल्ली 22,3.2000 पूर्व पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्री बलराम जाखड़ का भाषण प्रातः स्मरणीय, आदरणीय, स्नेहमयी आदिशक्ति माँ जी. बड़े भाई आडवाणी जी सी. पी. साहब, माननीय उपस्थित बहनों भाइयो और सहजयोगियो। माँ, पिछले वर्ष भी आपका जन्मदिन आत्मा चाहती है कि कोई संदेशा दे प्यार का। पता नहीं कैसी भावना बढ़ती जा रही है कि यहाँ आपकी आवश्यकता है. आपकी वाणी की आवश्यकता है, कि यहाँ मनुष्य अपनी मानवता को समझ सके, अपने आपको समझ सके और वो ये समझ सके कि हमने सिर्फ दूसरों के भलें के लिए सबके साथ, सबका भला सोचते हुए जीना है। आज यह सब विलुप्त होता जा रहा है। मन में एक बड़ी पीड़ा है माँ! आपका संदेश वो संदेश है जो आदि सत्य है। यत्र विश्व भवति मनाया था. इस बार भी मना रहे हैं और लगातार मनाते रहेंगे। यह बहुत कुछ सोचने की बात नहीं है। जन्म मरण तो आत्मा का नहीं शरीर का होता है लेकिन आप अपने में स्वयं आत्मा का जीवित स्वरूप है। आपको नाम-यथा नामा तथा गुण। निर्मल वाणी, निर्मल स्नेह, निर्मल संदेश, प्यार एक नीड़म्। हमारा तो उससे भी आगे था. हजारों साल पहले हमने ये कहा था कि "वसुधैव का संदेश सांत्वना का संदेश, सद्भावना का संदेश, मित्रता का संदेश और एक साथ जीवन में आगे बढ़ने का, अपने आपको समझने का, आत्मा को परमात्मा से मिलाने का ये आपका संदेश है माँ। पतित पावनी गंगा का पवित्र जल कुटुम्बकम्" सारा संसार एक परिवार है। लेकिन आज परिवार बंटा हुआ है। लोगों की आत्माएँ लोगों ने बाँट दी हैं। सारा संसार एक विकृत रूप लेता जा रहा है। माँ जैसा कि आपने सुना है कि मैं कल कश्मीर जा रहा हूँ। क्यों जा रहा हूँ मैं? बढ़ते रहिए। मनुष्य जन्म लेता है ओर उसे कोई भ्रमण करने नहीं जा रहा हूँ। वहाँ आत्माओं का संहार हुआ है। मनुष्य ने बर्बरता का रूप है। आदमी अमानुषिक हो गया है। कैसा कि अपने लिए जिओ। अपने लिए तो सभी जीते निकृष्ठ काम किया है और उसके लिए मैं आपसे झोली भर के प्रेम की, आशीर्वाद की, जैसे भारत भूमि को सिंचित करता है, वैसे ही आप हमारी आत्माओं को सिंचित करते हुए आगे जीवित रहना पड़ता है। जो भी आता है उसे जीना पड़ता है। लेकिन ये तो कोई बात नहीं है लिया हैं। जीना तो वो है जो किसी और के लिए, सब के लिए जिए, और माँ तो संसार के लिए जीती एक शीतलता की, एक स्नेह की ले के जा रहा हैं। माँ आत्मा तरसती है प्यार के लिए और हूँ कि मैं उनको दे सकँ कि तुम भी जीना आज तरसता है संसार, और उसकी तड़पती हुई सीखो। मानवता पुकारती है माँ कोई आत्मा आए 14 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 7 & ৪. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-16.txt इस संसार में, और संदेश दे। ये ही तो भगवान कृष्ण कह गए थे कि "यदा-यदा हि धर्मस्य है, एक विद्राह की भावना जागती है कि आपकी ग्लार्निभवति भारतः अभ्युत्थानं धर्मस्य तदामान सृजाम्हयम्।" भगवान का ही रूप तो होता है सोच बदल कर प्यार में बदल दूँ। माँ यही आत्मा। क्यों ये सब लोग आए हैं यहाँ? जलसे बहुत होते हैं लेकिन ये जलसे में नहीं आए हैं। ये तो अपनी माँ कं पास आए हैं। वात्सल्य के जन्मदिवस के अवसर पर श्रीमाताजी को पास आए हैं। 'माँ शब्द ही ऐसा है कि जो बधाई देते हुए भारत के माननीय गृहमन्त्री श्री आत्मा को भर देता है। माँ का जो एक रूप है एल.के. आडवाणी ने श्रीमाताजी की दीर्घाय वो सबसे ऊँचा है। माँ शब्द से हृदय भर जाता हमारे पास है। माँ हृदय में एक ज्वाला धधकती इस प्यार की धार से इस जनता जनदांन की आशीर्वाद देते रहो। बहुत धन्यवाद। जयहिन्द की कामना करते हुए कहा :- सम्माननीय श्रीमाताजी, श्रीवास्तव जी, श्री है। माँ बात्सल्य देती है। आत्मा तृप्त हो जाती है। आत्मा को पोषण दती है। आत्मा जीती है उस जो पाते हैं। बलराम जाखड़ तथा देश के अन्य भागों से आए मेरे अन्य साथियो, इस संस्था के सहजयोगियों स्वरूप से उस दिव्य स्वरूप से आप हुए तथा योगिनियों। मेैं श्री राजेश शाह का आभारी हूँ जिन्होंने मुझे श्रीमाताजी तथा आप सबके दर्शन यहाँ। मैं तो ये कहने जा रहा हूँ कि आज आवश्यकता है कि आपका संदेश फेले। आज करने का सुअवसर प्रदान किया। मैं तो यहाँ पर 80 देशों से ऐसे तो बधाई संदेशे नहीं आ गए. श्रीमाताजी का प्रवचन सुनने उनके सानिध्य में कुछ समय बिताने तथा उनसे कुछ दिव्य ज्ञान प्राप्त करने यहाँ आया था। परन्तु आज उनका जन्मदिवस है अत: आप सबके साथ मैं और मेरी पत्नी श्रीमाताजी को प्रणाम करते हैं और कुछ होगा तभी आए हैं ना। यदि कोई आडम्बर होता है तो एक दिन चलता है 2 दिन चलता है 10 दिन चलता है। पर ये तो शाश्वत चल रहा है। शाश्वत इसीलिए चलता है कि इसमें सत्यता है। सार्थकता है। आप प्रतिमूर्ति हैं, प्रतिमूर्ति हैं उन्हें शुभकामनाएं दते हैं तथरा परमात्मा से प्रार्थना सद्भावना की जो आज संसार में कम मिलती करते हैं कि वे दीर्घायु हों। हम ये भी प्रार्थना है। मनुष्य स्वार्थ में रत हो गया हैं, ये नहीं करते हैं कि वे सदैव उसी प्रकार चैतन्य फैलाती सोचता कि उसका जीवन कितना है? क्या समेट रहें जिस प्रकार वे पिछले कई वर्षों से कर रही के ले जाएगा? क्या साथ चला जाएगा ? सब कुछ हैं। नहीं जाएगा माँ। साथ जाएगा तो केवल आपका आशीर्वाद जाएगा. जाएगी तो आपकी प्रेम की रही हैं वातावरण के विषय में बात करते हुए भावना जाएगी जो हमारी आत्मा को उठाएगी हमारे मस्तिष्क में प्रायः भौतिक वातावरण ही और सिखाएगी कि तुम जीओ और जीने दो। होता है। परन्तु मानव समाज में जिस प्रकार का इसी में सार्थकता है। भगवान से प्रार्थना है कि प्रदूषण फैल रहा है वह अत्यन्त भयानक है और आजकल वातावरण की बहुत बाते हो आपको प्रकाश फैलता रहे। सूरज तो रोज निकलता भी है, छुपता भी है परन्तु आप तो रात दिन अत्यन्त विशाल जिस प्रकार हम प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाने 15 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & 8. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-17.txt के लिए कहते हैं उसी प्रकार समाज में फैले कि और क्या कहा जाए। परन्तु में ये कहना वर्तमान नैतिक प्रदूषण को दूर करने का उत्तरदायित्व चाहूंगा कि आज मैंने अस्सी वर्ष का जीवन पूर्ण श्रीमाताजी जैसे दिव्य व्यक्तियों पर आ गया है। कर लिया है । आपकी पावनी माँ का जन्मदिवस ता। अत: जब व्यक्ति इस प्रकार के उत्सव में भाग मनाने का एक अनुभव जीवन को सम्पूर्ण बना लेता है तो वह स्वयं को उन्नत महसूस करता है, उसे लगता है कि अन्त:स्थित प्रदूषण यदि व्यक्तियों तक और फिर विशाल समूह तक पूरा नहीं तो कुछ सीमा तक घट गया है। मनुष्य सहजयोग के विकास का मैं साक्षी रहा हूँ तथा के हृदय में प्रसन्नता होती है, आनन्द होता है। मैं मैंने चमत्कार होते हुए स्वीकार करता हूँ कि मैं उतना आशीर्वादित नहीं विस्मय हुआ कि यह सब किस प्रकार घटित हो हूँ जितना आप लोग। मुझे तो प्रदूषण में घूमना सकता है। नशा लेने के आदि लोग किस प्रकार पड़ता है, आप लोग इससे ऊँचे हैं, आप लोग बहुत भाग्यशाली हैं। परन्तु ऐसे उत्सवों में भाग लेने के जो भी अवसर मुझे प्राप्त होते हैं, तत्पश्चात् मैंने बहुत से लोगों को उनकी कृपा से उनके लिए मैं स्वयं को धन्य मानता हूँ। यहाँ मेरे परिवर्तित होते हुए देखा और गौरव (Splendour) साथ आए मेरी पत्नी, मेरे सम्बन्धियों की ओर से तथा अपनी ओर से एक बार फिर मैं श्रीमाताजी स्थिति। और अब अपने जीवन के अस्सीवें वर्ष को प्रणाम करता हूँ और सर्वशक्तिमान परमात्मा में मैं समर्पण (Surrender) की स्थिति में पहुँच से प्रार्थना करता हूँ कि आपका आशीर्वाद हम लेने के लिए काफी है। एक व्यक्ति से कुछ देखे हैं। आरम्भ में मुझे रातोंरात नशे छोड़ सकते हैं। तो मेरा पहला बहुत अनुभव विस्मयावस्था का था (Be wilderment) का अनुभव किया। विस्मय अवस्था से गौरव की गया हूँ। इस सभा का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। यह अत्यन्त अद्वितीय सभा है जिसमें परमेश्वरी अवतरण उपस्थित हैं और जो देवदूतों से परिपूर्ण है। श्री आडवाणी जी ने प्रदूषण की बात की। मैं उन्हें विश्वास दिलाना चाहूँगा कि इस सामूहिकता में पूर्ण पावनता है। यहाँ उपस्थित लोग परस्पर पावन एवं विशुद्ध प्रेम से बंधे हुए हैं। इस सामूहिकता में सभी धर्मों, देशों जातियों के लोग बैठे हुए हैं, जिन्होंने अपने सभी भेदभाव पर सदैव बना रहे। धन्यवाद। श्री एल.के. आडवाणी को सम्बोधित करते श्री योगी हुए महाजन ने आश्वस्त किया कि जिस प्रदूषण की वे बात कर रहे थे, सहजयोग के माध्यम से वह पूर्णतः दूर हो जाएगा और नवसहस्राब्दि में, उनके सहयोग से, हम देश इस प्रदूषण से बचा सकेंगे। श्रीमाताजी को जन्मदिवस की बधाई देते हुए सर सी. पी. श्रीवास्तव ने इस प्रकार हृदयाभिव्यक्ति की:- सम्मानीय श्री आडवाणी जी. श्रीमती के किसी कोने में भी आप जाएं आपको अपने को भुला दिए हैं ये सब केवल सहजयोग परिवार के सदस्य हैं। यह कितने गर्व की बात है विश्व बहन-भाई मिलते हैं। ये एक ऐसी सृष्टि है जिस आडवाणी, उपस्थित विशिष्टगण, सम्मानीय अतिथियो तथा प्रिय सहजयोगियों व योगिनियो। पर आमतौर पर विश्वास नहीं होता। परन्तु वास्तव आज हमने इतना कुछ सुना कि समझ नहीं आता में ऐसा घटित हुआ है। इस सभा का सृजन 16 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & 8. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-18.txt सहमत होंगे। पहला प्रस्ताव ये है कि परम किसने किया है? मेरे विचार से ये सभा संसार की महत्वपूर्णतम सभा है संयुक्त राष्ट्र की से महासभा से भी अधिक महत्वपूर्ण। यह संसार हरेक व्यक्ति स्वयं को सहजयोग विश्वभर में की नैतिक सभा है, चारित्रिक सभा है, आध्यात्मिक फैलाने के लिए पुनः समर्पित करें। पावनी माँ को बधाई देने के अतिरिक्त हमें मेरा दूसरा प्रस्ताव, जिसे आप अधिक उत्साह के साथ पारित करेंगे, ये है कि जब तक सभा है। विश्व भर में पावन मानव समाज की सृष्टि करना आपकी प्रिय माँ का स्वप्न है । इस सभा के सृष्टा, इस नवस्वप्न के सृष्टा के पृथ्वी पर अवतरित हर मानव, हर पुरुष, हर सम्मुख सम्मान से में नतमस्तक हूँ। मेरे पास दो प्रस्ताव, हैं और मुझे पूर्ण लेता तब तक वे अपने साकार रूप को बनाए विश्वास है कि आप लोग पूर्ण हृदय से मेरे साथ महिला, हर बच्चा, आत्मसाक्षात्कार को नहीं पा रखें। आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद। 17 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 7 & 8, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-19.txt 77वां जन्मोत्सव समाराह निर्मल धाम-छावला, दिल्ली 22.3.2000 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का भाषण है कि किस प्रकार इन लोगों ने विश्व के हजारों सम्माननीय अतिथिगण, सम्माननीय गृहमन्त्री श्री आडवाणी जी. जो कि महान देशभक्त रहे हैं और उनके देश प्रेम के कारण जिनकी मैं सदैव प्रशंसक रही हूँ। वें अत्यन्त देशभक्त हैं और तरह से कार्य नहीं कर रही। जिस प्रकार ये आप जानते हैं मेरे माता-पिता भी अत्यन्त देशभक्त वधाई सन्देश हमें आए हैं, आप देख ही रहे हैं. थे। उन्होंने देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान ये सब इनके प्रयासों का पफल है। सहजयोगी लोगों को आत्मसाक्षात्कार की ज्योति प्रदान की! वास्तव में यही लोग कार्य कर रहे हैं। मैं उनकी उनसे मिलते हैं उन्हें सहजयोग के विषय में कर दिया। देशभक्त होने के कारण उस समय सबने मेरी भी बहुत भर्त्संना की। जिस देश में बताते हैं और उन्हें आत्मसाक्षात्कार भी देते हैं। इस प्रकार से इन्होंने इस कार्य को किया है। अतः हमें अपने देश और उसकी हम जन्म लेते हैं उससे हमें अवश्य प्रेम करना चाहिए। आपके देश और आपकी आत्मा का गहन सम्बन्ध है। मैंने देखा है कि सहजयोग में समस्याओं के विषय में चिन्ता करनी चाहिए। ये आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके परिवर्तित होने के समस्याएं क्यों हैं? मैं जानती हूँ कि आपकी पश्चात् लोग जान जाते हैं कि उनके देश में क्या कमी है। सहजयोगी उन कमियों के विषय में देश की स्थिति को सुधारेंगे। हर जगह ये घटित बहुत जागरूक हो जाते हैं। मैं हैरान हूँ कि सभी हो रहा है। भारत में भी ये घटित होना चाहिए। मुझे बताते हैं कि उनके दश में क्या कमी है और उसके विपय में क्या किया जाना चाहिए। महत्वपूर्ण कर्त्तव्य बनता है कि सर्वप्रथम हम उन्होंने कभी अपने देश की गलतियों तथा कामनाएं और प्रयत्न निश्चित रूप से आपके आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् यह हमारा द अपने समाज को देखें, अपने देश को देखें। आप बुराइयों का साथ नहीं दिया। यह बहुत हैरानी की यदि ऐसा नहीं करते तो आत्मसाक्षात्कार प्राप्त बात है इसके विपरीत उन्होंने कहा कि श्रीमाताजी करने का क्या लाभ है? क्योंकि आत्मसाक्षात्कार इन सब देशों को आपकी कृपा की आवश्यकतां है ताकि ये सुधर सकें। वहाँ के राजनीतिज्ञ सुधरने चाहिए; वहाँ के नागरिक सुधरने चाहिए कला। ज्यों ही आप अपने आस-पास के लोगों ताकि वे एक नव-चेतना में उन्नत हो सकें। को, गाँव के लोगों को, आस-पड़ोस के लोगों सभी सहजयोगी इस कार्य में जुटे हैं। यहाँ हमारे को अपने नगर के तथा देश के लोगों को देखने सम्मुख विदेशों से आए बहुत कम सहजयोगी हैं। लगते हैं तुरन्त यह निस्वार्थ प्रेम शुरू हो जाता है। परन्तु मैं आपकी बताऊंगी कि ये हैरानी की बात चैतन्य लहरी । एक शक्ति पर आधारित है प्रेम की शक्ति पर तथा एक कला पर आधारित है-निव्वाज्य प्रेम की तुरन्त आप समझने लगते हैं कि आपके अपने 18 खंड XIl अंक : 7 & ৪. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-20.txt समाज में क्या समस्याएं हैं। मैने देखा है कि सहजयोग में आने के पश्चात् लोग अपने समाज के बहुत करते हैं। सहजयोग में बहुत से हिन्दू हैं, मुसलमान हैं, इसाई हैं और सभी प्रकार के लोग हैं। परन्तु मैं भो मिलती है आनन्द भी। श्रीमाताजी भूतकाल में मैने जो भी कुछ किया से दोषों को दूर करने की कोशिश उसके लिए कृपा करके मुझे क्षमा कर दें। मैंने कहा, "क्षमा किया। वर्तमान ही महत्वपूर्ण है और अब तो आप सहजयोगी बन गए हैं। जिस प्रकार आपने मेैं एक चीज पर हेरान थी कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् उन्होंने कभी अपने समाज की और धर्म की बुराइयों का साथ नहीं दिया। है वह कहने लगा." अब मेरे अन्दर शान्ति है, इसके विपरीत उन्होंने इन बुराइयों को सुधारना आध्यात्मिक उत्थान प्राप्त किया है वह प्रशंसनीय आनन्द है और इसे बाँटने के लिए मैं अन्य लोगों के पास गया। अपना धन में कभी दूसरों के साथ नहीं बाँट सकता था। मैं तो दूसरों से धन चाहा और इसके लिए कार्य करना चाहा। इस कार्य को करने का बहुत आसान तरीका है। लोगों को परिवर्तित करने के लिए न तो आपको मर्यादाएं तोड़नी पड़ती हैं न कोई स्वीकृतियों की आवश्यकता नहीं है, सब हो बलिदान करने पड़ते हैं ऐसा कुछ भी नहीं करना छीन लिया करता था।" मैंने कहा" मुझे अपराध गया। सहजयोगी होकर अब आप क्या करेंगे? पड़ता। आज हर व्यक्ति किसी न किसी प्रकार की चिन्ता या समस्या से परेशान है। उन्हें और कहने लगा मैं भारत प्याज भेजूंगा। मैंने कहा, आश्चर्य की बात थी कि वह इतना प्रेममय था। भी समस्याएं हैं। आपको उन्हें बताना होगा कि क्यों? उसने उत्तर दिया, क्योंकि वहाँ प्याजों का अभाव है। मैंने सोचा इस व्यक्ति को देखो यह कितना सच्चा और मानवीय बन गया है! मैंने आपका जीवन इस प्रकार से परिवर्तित हो सकता है कि आप इन सब चिन्ताओं से इन सब समस्याओं से ऊपर उठ जाएंगे। आप पूछ सकते हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है। जब आप कहा ऐसी कोई समस्या नहीं है तुम चिन्ता मतः करों। चीजों की ओर देखने का उसका नजरिया आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करते हैं तो आपका चित्त इतना अच्छा था कि जो व्यक्ति माफिए का आत्मा के प्रकाश से ज्योतिर्मय हो उठता है और मुखिया था वह अत्यन्त अच्छा और सम्माननीय स्वत: ही आप अपनी विनाशकारी आदतों, विचारों तथा गतिविधियों को त्यागने लगते हैं। अचानक लड़ने चाहे। मैंने कहा अवश्य लड़ो, आप चुने आप सृजनात्मक हो जाते हैं। रूस में जब मैं जाओगे, और यदि न भी चुने गए तो कोई बात तलियाती में थी तो आश्चर्यचकित करने वाली बन गया था। तब उसने नगर पालिका के चुनाव नहीं। परन्तु वह चुनाव जीत गया। अत: आप देखें कि आत्मा बन जाने की एक खबर मुझे मिली कि वहाँ के माफ़िये का मुखिया सहजयोगी बन गया है। इसने मुझे बहुत इच्छा करने वाले व्यक्ति के कार्य किस प्रकार हो जाते हैं। शिवाजी ने कहा है" स्व धर्म जाग कहने लगा कि मैं ये सब उल्टे सीधे कार्य वावा" भविष्य के लिए उन्होंने केवल यही करता रहा हूँ। इनसे न मुझे कभी सन्तुष्टि मिली सन्देश दिया है स्व धर्म जाग वावा अर्थात न कभी आनन्द। परन्तु सहजयोग से मुझे सन्तुष्टि आत्मा की जागृति। आप आत्मा को जागृत कर द्रवित किया। वह व्यक्ति मेरे पास आया और 19 चैतन्य लहरी खंड XII अंक : 7 & 8. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-21.txt लेते हैं और यही उपलब्धि हमें प्राप्त करनी है। क्यों? क्योंकि हममें स्पर्धा की भावना नहीं है शिवाजी क्योंकि स्वयं आत्मसाक्षात्कारी थे इसीलिए इसीलिए सभी लोग हमसे प्रसन्न हैं। वास्तविकता उन्होंने कहा कि आपको भी यही करना है यही है कि जब आप ये महसूस कर लेते हैं कि उच्च पद. वैभव, सम्पत्तियाँ पाने के विषय में आपको चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं क्योंकि सन्तोष तो आपके अन्तर्निहित है। आप न अपनी आत्मा को जागृत करना है। आत्मा के उस प्रकाश से क्या होता है? आपके समाज में क्या दोष हैं? आपके देश में कया दोष हैं? आप अपने अन्दर इतने शान्त हैं कि भौतिक चीज़ों के हर चीज़ को बहुत स्पष्टत: देखते हैं और आपमें इसे ठीक करने की शक्ति भी है। अपनी शक्ति पीछे नहीं भागते। आधुनिक अर्थशास्त्र एक साधारण के प्रति यदि आप जागरूक हैं और इस पर तथ्य पर आधारित है कि मानव कभी सन्तुष्ट नहीं होता। आज उन्हें एक चीज़ की आवश्यकता है, सभी कुछ करेंगे और इसे प्राप्त करने के स्वामित्व भी आपने प्राप्त किया है तब आप यह कार्य कर सकते हैं। ऐसा आप न केवल अपने लिए कर सकते हैं, अपितु अपने परिवार, अपने लिए धन खर्चेगे फिर भी सन्तुष्ट न हो पाएंगे| समाज तथा अन्य सभी लोगों के लिए कर सकते किसी और चीज़ की इच्छा भड़क उठेगी अर्थशास्त्र हैं। मेरे पति कहा करते थे कि तुम समाजवादी हो क्योंकि तुम अकेले चैन से नहीं रह सकते। आधुनिक अर्थशास्त्र। परन्तु सहजयोग भिन्न है, दूसरों के साथ बाँटना तुम्हारे लिए आवश्यक है, सहजयोग का अर्थशास्त्र कहता है कि मुझे तुम सामूहिक हो। हमें समझ लेना चाहिए कि हम सामूहिक हैं । कहीं भी हम अकेले जीवित लोगों में इसे बाँटना है। यदि मुझे सन्तोष प्राप्त नहीं रह सकते। हम सभी सामूहिक हैं इस बात का हमें ज्ञान नहीं है। जब आपको इसका ज्ञान हो जाएगा तो आप आश्चर्य चकित होंगे कि आप पूर्ण के अंग-प्रत्यंग हैं अपने समाज में आपको और लोग इस कार्य को बखूबी कर रहे हैं उस साथी नहीं खोजने पड़ेंगे कुछ भी नहीं आप दिन मैंने आपको बताया था कि हमें प्रेम करने केवल सहजयोगियों का साथ ही चाहेंगे। यह बात का यही आधार है, कहने का अभिप्राय है आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है अब मुझे अन्य हुआ है तो अन्य लोगों के साथ भी इसका बाँटा जाना आवश्यक है। सहजयोग में बाँटना अत्यन्त महत्वपूर्ण है की कला सीखनी चाहिए। यदि आप कुछ मधुर बातें कह सकते हैं, प्रेम से लोगों को कुछ दे पूर्णतः प्रमाणित हो चुकी है कि यदि आप आध्यात्मिक रूप से जागृत हैं तो आपका किसी सकते हैं उनके साथ कुछ बांट सकते हैं तो यह के साथ कोई झगड़ा नहीं होता, किसी से कोई कार्य बहुत सहज है। ऐसा करना आपके लिए घृणा नहीं होती, किसी से आपकी कोई स्पर्धा कठिन नहीं है क्योंकि आपके पास आनन्द प्रदान नहीं रहती। सहजयोग में मैंने ऐसा किसी को करने के लिए आपकी आत्मा है। मैं जानती हूँ करते हुए नहीं देखा। यही कारण है कि आप सब लोगों के लिए बाहर की चीज़ें इतनी अच्छी रातोरात लोगों ने नशे छोड़ दिए। अब अमेरिका हो गई हैं। एक महिला राजदूत ने मुझे बताया कि श्रीमाताजी हम बहुत प्रसन्न हैं, मैंने पूछा के लिए कहा गया है और सहजयोगियों ने कहा कि सहजयोग ने बहुत से चमत्कार किए हैं। में हमसे एक नशा उन्मूलन संस्था आरम्भ करने 20 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 7 & ৪, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-22.txt कि हमारे पास दस लाख डॉलर हैं। क्या इतने ज्योतिर्मय हो उठेगा। अपने धर्म के सौन्दर्य को पैसे से हम ये कार्य कर सकेंगे? उन्होंने कहा वे देखेंगे। अपने धर्म की एकरूपता को वै देखेंगे नहीं, नहीं, हम आपको दो सौ दस लाख डॉलर और इस प्रकार एक सार्वभौमिक धर्म स्वीकार देंगे। मैंने उनसे कहा कि यदि आपको नशा कर लिया जाएगा और उसमें सारे धर्मों को ठोक उन्मूलन का ही कार्य करना हैं तो आप दो सो प्रकार से समझा जाएगा। सभी धर्मों के लोग कुछ दूस लाख डॉलर लेकर क्या करेंगे। आवश्यकता पथभ्रष्ट हुए हैं और समस्याओं का यही कारण तो ये है नशा त्यागने के लिए लोग आपके पास है। जब परमात्मा एक है तो धर्म के नाम पर आए। रातों रात वे नशा त्याग देंगे। मैंने ऐसे होते हुए देखा है और उनमें से कुछ लोग यहाँ बैठे हुए हैं। आपकी आत्मा में इतनी शक्ति है। उसमें इतना सौन्दर्य, इतना प्रेम और इतनी शान्ति है। केवल इसे अपने चित्त में रखना होगा क्योंकि क्या आप युद्ध कर सकते हैं? परन्तु अज्ञानतावश लोग ऐसा करते हैं। मैं उन्हें दोष नहीं देती क्योंकि वे अंधेरे में हैं। एक बार ज्योतित होते ही वे समझ जाएंगे कि सार्वभौमिक धर्म का स्वभाव क्या है? आप हैरान होंगे कि रूस में सहजयोग या विश्वनिर्मला धर्म को धर्म के रूप में मान्यता यह चित्त इंधर-उधर भटकता रहता है। आपका चित्त यदि आत्मा के प्रकाश से ज्योतिर्मय हो दी गई है। परन्तु यह और धर्मों की तरह से धर्म है। यह विल्कुल उन जैसा नहीं है। इस धर्म जाए तो आप अत्यन्त अद्भुते मानव बन सकते नहीं हैं। संस्कृत में जिस प्रकार वर्णित किया गया है में तो हम केवल प्रेम एवं करुणा में विश्वास काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह स्वत: ही छुट जाते हैं। जो क्रोध, मूर्खताएं और आक्रामक कार्य हम करते हैं वे सब छूट जाते हैं। कुछ सहजयोगियों को मैंने कश्मीर जाकर सहजयोग फैलाने के लिए कहा है। कश्मीर के लोगों को यदि आप सहजयोगी बना दें तो कश्मीर समस्या का हल करते हैं तथा अपनी शक्ति में भी कि कोई हमें छू नहीं सकता। कोई आपकी हत्या नहीं कर सकता। आपको हैरानी होगी कि तुर्की में बहुत बड़ा भूकम्प आया परन्तु किसी भी सहजयोगी को हानि न पहुँची। उनके घर भी ज्यों के त्यों रहे जबकि अन्य लोगों के घर धराशायी हो गए। से है। है। लोग वहाँ जाने के लिए तैयार ऐसा बहुत से स्थानों पर घटित हो सकता कुछ भी हैं। कुछ विदेशी सहजयोगियों ने वहाँ जाकर लोगों को परिवर्तित करने के लिए अपनी सेवाएं भेंट की हैं। हमने बहुत से लोगों को परिवर्तित हुआ बहुत स्थानों पर चक्रवात आए परन्तु किसी सहजयोगी को हानि न पहुँची। सभी लोग मुझे बताते हैं कि श्रीमाताजी सब सहजयोगी बच गए। किस प्रकार किया है। बेनिन नामक स्थान पर सात हजार ता वे सब पूरी तरह से ठीक हैं? क्योंकि आपको मुसलमान लोग कि पहले बहुत धर्मान्धि थे अब परमेश्वरी शक्ति की सुरक्षा प्राप्त है। हमें परमेश्वरी सहजयोगी हैं। तुर्की में दो हजार सहजयोगी हैं तो शक्ति में भरोसा करना चाहिए जिस पर सभी हिन्दुओं, मुसलमानों, इसाईयों में जो धर्मान्धता है धर्मों ने भरोसा किया। इसे भी आसानी से दूर किया जा सकता है। तब एक अन्य समस्या आती है कि हमें साकार में विश्वास करना चाहिए या निराकार में। क्योंकि आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् वे लोग आत्मा पत के सौन्दर्य को देखेंगे और उनका अपना धर्म ही आप समझ जाएंगे कि साकार के माध्यम से ही 21 चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 7 & 8. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-23.txt निराकार को जाना जा सकता है। ये चीज़ देख उनके लिए यह स्वयम्भु कर्मकाण्ड मात्र है। वे लेना अत्यन्त साधारण बात है। परन्तु अत्यन्त वे स्वयम्भु हैं या नहीं। आश्चर्यचकित कर देने वाले उदाहरण के रूप में सहजयोगी होने के नाते आप लोग जाकर स्वयम्भु नहीं समझ पाते कि एक बार मैंने कहा कि मक्का में मक्केश्वर शिव हैं ये बात हमारे धार्मिक ग्रन्थों में लिखी हुई है। देख सकते हैं और इन्हें स्वीकार कर सकते हैं । मैं जानती हूँ कि सन्त तुकाराम के स्थान पर आप लोग नृत्य कर रहे थे और आनन्द ले रहे थे क्योंकि आप वहाँ चैतन्य को महसूस कर रहे थे चैतन्य लहरियों का आनन्द ले रहे थे अत: मोहम्मद साहब ने कभी किसी धर्म के विषय में पहले आपको निराकार का ज्ञान प्राप्त करना बात नहीं की। किसी ने ये बात नहीं पढ़ी कुरान चाहिए। तब आपको साकार का ज्ञान प्राप्त में भी नहीं। कुरान पर हमारे यहाँ एक बहुत हो जाएगा। इसके विषय में कोई विवाद नहीं है। अच्छी पुस्तक लिखी गई है। नि:सन्देह यह मेरे परन्तु आप यदि साक्षात्कारी नहीं हैं तो आप किस प्रकार कह सकते हैं कि कौन स्थान मैंने तो बस यह बात कह दी थी। परन्तु अब मैंने एक लेख पढ़ा है कि वे सब भगवान शिव के पुजारी थे। परन्तु हैरानी की बात है कि पथ-प्रदर्शन में लिखी गई है। इसमें स्पष्ट बताया है कि मोहम्मद साहब ने क्या कहा? इस प्रकार स्वयम्भु है और कौन सा नहीं। तो सारी समस्या का समाधान हो जाता है। परन्तु पहले आपको ज्ञान प्राप्त करना होगा-चैतन्य लहरियों का ज्ञान। अब आप यदि मुझसे कोई गम्भीर प्रश्न पूछें जो हैं जो कभी शास्त्रों में नहीं लिखे गए। धर्माधिकारी हमारे देश में समस्या बना हुआ है और जिसके लोग ही धर्म के प्रतिरूप को बिगाड़ रहे हैं और विषय में बताने का हमें अधिकार है । वह है समस्याएं खड़ी कर रहे हैं। मैं नहीं समझ पाती श्रीराम मन्दिर का प्रश्न ? क्या श्रीराम वहाँ पर कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं? इसका क्या लाभ पैदा हुए या नहीं। वे वहाँ पर जन्मे इस बात को हैं। जहाँ तक साकार और निराकार का प्रश्न है आप अपने हाथों पर महसूस कर सकते हैं। इसे समझ लेना बहुत सुगम है। आत्मसाक्षात्कार उन्होंने वहीं जन्म लिया। इसके विषय में कोई प्राप्त कर लेने के पश्चात् आप स्पन्द को महसूस सन्देह नहीं है। इस बात को लेकर लड़ने की कर सकते हैं या ये कहें कि आपमें चैतन्य कौन सी बात हैं? वहाँ चाहे मस्जिद है या कुछ चेतना आ जाती है और इससे आप जान जाते हैं और श्रीराम ने बहीं जन्म लिया। जो भी हो वहाँ पर चैतन्य लहरियाँ हैं । परन्तु उन्हें गौरवान्वित किसी शराबी द्वारा या धन कमाने की इच्छा से करने के लिए वहाँ मन्दिर अवश्य बनाएं। मन्दिर-मस्जिद एक ही बात है। अगर आप लोगों को अपयश मिलता है। आज इसाई लोग जो बात कह रहे हैं वह ईसा ने कभी नहीं कही । हिन्दू भी ऐसा ही कहते हैं। वे ऐसे कम कर रहे कि सत्य क्या है असत्य क्या है? मैं कहूँगी कि बनाई गई मूर्ति की पूजा करने में कोई सत्य नहीं। परन्तु बाइबल में भी कहा गया है कि मन्दिर बनाना चाहते हैं तो अवश्य बनाएं परन्तु ऐसा केवल आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् अपमान नहीं होना चाहिए। इन्हें हम स्वयम्भु करें उससे पहले नहीं और उस मन्दिर में पूजा कहते हैं परन्तु जो लोग आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं के लिए केवल आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति को ही आकाश या पृथ्वी माँ द्वारा सृजित चीज़ों का 22 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & 8. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-24.txt रखें। तभी आप श्रीराम की महान आत्मा को कि हमारे इस देश में महानतम ज्ञान विद्यमान सहजयोग पूरी तरह से शास्त्र-सम्मत है यह श्रीराम को कमकाण्ड नहीं है। यह गहन ज्ञान हैं। सभी सन्तों जानते हैं। केवल इतना ही नहीं, वे जानते हैं कि ने चाहे वो कबीर हों, गुरु नानक या मोहम्मद गौरव प्रदान कर सकेंगे। यहाँ पर उपस्थित सभी लोग चाहे जिस भी देश से वो हैं श्रीराम हमारे अन्दर कहाँ विराजमान हैं और यह भी कि किस प्रकार उनकी लोग मोहम्मद साहब और ईसा मसीह के विषय साहब, सभी ने कहा है अपने अन्दर खोजो। उन्होंने एसा क्यों कहा? इसलिए क्योंकि सत्य, पूर्ण सत्य तो अपने अन्दर है और इसी पूर्ण सत्य में भी जानते हैं उनके विषय में सत्य जानते हैं, से छोटी-छोटी मुर्खताएं दूर होंगी और आप विशिष्ट व्यक्तित्व मानव बन जाएंगे। पूरे विश्व जब ये ज्ञान सच्चा ज्ञान प्राप्त हो जाएगा तो के लिए परिवर्तित होने का समय आ गया है। परन्तु इसके लिए आप सबको बहुत सा कार्य करना होगा। मेरी आप सबसे प्रार्थना है कि मेरे किसलिए झगड़ेंगे। मैं यदि कहती हैं कि मेरा लिए कार्य करें। जहाँ तक मुझसे हो सका मैने इस कार्य को किया और निःसन्देह काफी कार्य श करनी है। ये पूजा अपने अन्दर, अपने शरीर के अन्दर। एक बार झगड़ने के लिए क्या रह जायेगा? हर आदमी को एक ही प्रकार का अनुभव होगा। फिर आप देश भारत योगभूमि है तो इसके विषय में आप इन लोगों से पूछे चाहें वो किसी भी देश के हों। हुआ। परन्तु आप सब इस कार्य को कर सकते सभी एक ही बात कहेंगे। यही कारण अब वे हैं और अपने समाज, अपने देश और फिर पूरे विश्व को परिवर्तित कर सकते हैं। आप एक इस देश में आते हैं यहाँ की पृथ्वी को झुककर प्रणाम करते हैं। चाहे आप भारतीय ऐसा न करते दूसरे की सहायता कर सकते हैं। उदाहरण के हों। वो जानते हैं कि यह योगभूमि है और पूरे लिए कुछ लोग विदेशों से भारत आएं और कुछ ब्रह्माण्ड की कुण्डलिनी इस योगभूमि में है। भारतीय विदेशों में जाकर सहायता करें। अब आप लोग इस ज्ञान में दक्ष हो गए हैं आपको लहरियों के माध्यम से समझी जानी चाहिए यह कार्य करना चाहिए। आस्ट्रेलिया से जो लोग हमारे देश की ये सब महान बातें उन चैतन्य जिन्हें आदिशंकराचार्य ने स्पन्द कहा। बास्तव में उड़ीसा गए में उनका धन्यवाद करना चाहूँगी उनकी पूरी कविताएँ भी सामान्य लोगों को यह उन्होंने वहाँ सहजयोग के नौ केन्द्र स्थापित किए नहीं समझा सकतीं कि वास्तविकता क्या है? यह सब घटित हो रहा है और आप सब इस परन्तु यदि आप इन चीजों की गहनता में उतरें कार्य को कर सकते हैं। आत्मसाक्षात्कार देने की और अपने स्पन्द चैतन्य लहरियों के माध्यम से पूर्ण ज्ञान को समझें तो आप जान जाएंगे कि सत्य क्या है? असत्य के लिए झगड़ने का क्या फायदा? यह तो अंधकार से लड़ने जैसा है क्यों न प्रकाश करके स्वयं चीजों को देखा जाए? श्रीमन, आज मैंने यह सब कहने का दुस्साहस किया है क्योंकि मैं आपको बताना चाहती थी अंग्रेजी समझने वाले लोग हैं तो भी आप तो योग्यता आप सबमें है। यह वरदान जो आपको प्राप्त हुआ है, मेरी प्रार्थना है आप इसे आजमाएं और दूसरे लोगों में बांटं। हिन्दी भाषा के महत्व पर बल देते हुए श्री माताजी ने कहा: थोडा अंग्रेजी में बोले क्योंकि यहाँ बहुत र 23 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & ৪. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-25.txt समझ ही गए होंगे। तो भी मैं कहँगी कि सबको अपनी राष्ट्रभाषा तो आनी ही चाहिए। कहीं से चकित होंगे कि जो सहजयोग में लिखा है वो भी आप आए हों. यहाँ मैं जानती हूँ दक्षिण से उसमें भी लिखा है । फिर गर आप हिन्दी नहीं भी बहुत लोग आए हैं, नेपाल से आए हैं, सब जगह से लोग यहाँ आए हैं. लेकिन राष्ट्र भाषा को जानना बहुत जरूरी है मेरी मातृभाषा मराठी आप पढ़िए, उसे पढ़ कर आप बहुत आश्चर्य जानते और गर आप अंग्रेजी में ही फैसे हुए हैं तो ये ज्ञान अंग्रेजी में खास है नहीं। क्योंकि अंग्रेज़ी भाषा के अपने दोष हैं। अंग्रेज़ी में spirit शब्द है spirit का माने शराब, spirit का मतलब भूत और spirit का मतलब आत्मा। ऐसी भाषा में आप क्या कर सकते हैं। तो आप लोग कम है जो कि बहुत बढ़िया भाषा है आध्यात्म के लिए। लेकिन तो भी हिन्दी भाषा, मेरे पिता जी ने कहा कि गर तुम्हें हिन्दी भाषा नहीं आएगी तो तुम बेकार हो। पहली चीज़ अपनी हिन्दी भाषा। इसलिए हिन्दी भाषा आपको सीखनी चाहिए। हिन्दी भाषा जब आप सीखेंगे तो इससे एक बड़ा भारी लाभ जो आपको होगा वो ये है कि हमारी से कम हिन्दी भाषा सीखिए और इन सहजयोगियों को भी मैं सिखा रही हूँ परदेस में, कि ये एक हिन्दी भाषा सीखने से ये जो ज्ञान का भण्डार अपने देश में है उसको ये सीख लें/चाहे संस्कृत न सीखें लेकिन हिन्दी भाषा सीखना बहुत जरूरी संस्कृति के बारे में, हमारे गहन ज्ञान के बारे में हिन्दी भाषा में बहुत कुछ लिखा गया है, उसे है। 24 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 7 & 8. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-26.txt परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देखी की ढूल्हों को शिक्षा छाला दिल्ली 23.3.2000 मैं न ही आप उसके स्वामी। अत: सहजयोगियों में आप सबको यहां देखकर बहुत प्रसन्न हूँ। आप सबको विदित होना चाहिए कि सहजयोग ये दुर्गुण नहीं होने चाहिए। एक दूसरे को समझना में विवाह करने के पश्चात् आपको एक भिन्न सर्वोत्तम है। उसके हृदय को भी समझने का प्रयत्न करें। कभी-कभी महिलाएं भिन्न संस्कृतियों और देशों से होती हैं इसलिए समझने का प्रयत्न करें। इसी प्रकार उसके देश की संस्कृति को आप समझ पाएंगे। पत्नी का सम्मान किया जाना बच्चां प्रकार का जीवन व्यतीत करना होगा। अन्य विवाहों तथा सहजयोग विवाहों में काफी अन्तर हैं। सहज विवाह में हमें समझना होता है कि यह एक प्रकार का पावन सम्बन्ध है जिसमें आपको अपनी पत्नी के साथ अत्यन्त सहज जीवन के लिए भी हितकर है। पत्नी के विषय में गुजारना होता है और उसे समझना होता है। वह भी सहजयोगिनी हैं इसलिए आवश्यक है कि जो भी धारणाएं (बन्धन) अब तक आपने बनाए आप उसका सम्मान करें और उसे प्रेम करें। वह समझ सके कि आप उसके हितचिन्तक, प्रेममय एवं भद्र पति हैं। उसके प्रति आपको अपना पूर्ण कार्य के लिए आप चुने गए हैं। यह बात प्रेम दर्शाना होगा क्योंकि वह सहजयोगिनी है. सर्वसाधारण महिला नहीं। इस सम्मान के साथ मुझे आशा है कि आप लोग अत्यन्त सुखमय करेगी वह सहजयोगिनी है। मैं उन्हें भी बताऊंगी विवाहित जीवन व्यतीत करेंगे। सहजयोग में जैसा होता है, हम परस्पर आलोचना नहीं करते। अत: क्षमा करना या किसी को बर्दाश्त करना उससे कष्ट सहना नहीं होता। परेशान न करें। उसके सहभागी बनें, सहभागी बन आप क्षमा इसलिए करते हैं क्योंकि आप सहजयोगी जाने पर उसे समझने और उसकी सहायता करने हैं, श्रेष्ठ मानव हैं। अत: अपनी पत्नी में दोष में आपको आनन्द मिलेगा। निकालने का प्रयत्न न करें और न ही हर समय उसे आदेश देते रहें-ऐसा करो, वैसा करो, उसका हाथ बटाएं। सहजयोग में हम नहीं मानते कि और जन्मजात आत्मसाक्षात्कारी सन्तानें प्राप्त होंगी। किसी को दूसरे व्यक्ति पर रौब जमाने का अधि मुझे विश्वास है कि आपका आने वाला जीवन कार है। अत: आपको चाहिए उसकी सहायता करें, उसको समझे और समस्याओं में उसके सहभागी बनें। उसके लिए कठिनाइयाँ खड़ी करने के स्थान पर उसकी सहायता करें। वह आपकी जीवन के लिए प्रस्थान करें। साथी है, दास नहीं, न वो आपकी नौकर है और आपकी कुछ विशेष धारणाएं नहीं होनी चाहिए. हुए थे या जो आपने समाज में देखे थ उन्हें भूल जाएं। आप बिल्कुल भिन्न लोग हैं सहजयोग के भली-भाति समझ लें कि जिस लड़को से आपका विवाह होने वाला है और जो आपकी देखभाल कि उन्हें क्या करना है। पत्नी को परेशान करने के लिए पौरुषिक रौब अपने अन्दर न रखें और स्वयं को परिवार का मुखिया मानकर पत्नी को मुझे आशा है आपके विवाह अत्यन्त सफल होंगे और आपको अत्यन्त सुन्दर, मधुर अत्यन्त सुखमय होगा। अत: अपनी पत्नी को प्रसन्न करते हुए सभी लोगों को सुख देते हुए हर चौज़ को सहज ढंग से देखते हुए आनन्दमय परमात्मा आपको धन्य करें। 25 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 7 & 8. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-27.txt परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी की ढूल्हनों को शिक्षा छाखला ढिल्ली 23.3.2000 आप सब लोगों को इतने सुन्दर वस्त्रों में यह आपका निजी घर है और आप बहाँ की सुसज्जित देखकर बहुत अच्छा लगा। मैं आपको साम्राज्ञी हैं। आप माँ हैं. बहन हैं और सहजयोगियों बताना चाहती हूँ आपका विवाह सजयोगियों से की सभी प्रकार से सम्बन्धी हैं। अत: जब भी वे हो रहा है। यह बात आपने सदैव याद रखनी है। आपके घर में आएं उनके प्रति पूर्ण सम्मान आजकल हम देख रहे हैं कि सहजयोग में भी दिखाए। अपने पति से कभी उनकी शिकायत न विवाह टूट रहे हैं तथा ऐसा बहुत कुछ हो रहा है। परन्तु कभी-कभी तो केवल एक प्रतिशत ही विवाह टूटते हैं, सफल नहीं हो पाते। इसका कारण ये है कि वे सहजयोगी होने की अपनी संवारेगा। आप यदि प्रसन्न रहना चाहती हैं तो जिम्मेदारी को समझते हैं। इसीलिए मैं चाहती हूँ आपको जानना होगा कि अन्य लोगों को किस TEM करें, उसे अच्छा नहीं लगेगा। सदैव याद रखें आपका धेर्य, आपका प्रेम, आपका पथ प्रदर्शन बा निश्चित रूप से आपके विवाहित जीवन को प्रकार प्रसन्न रखें। दूसरों को यदि आप प्रसन्न कि आप सब लोग सदैव याद रखें कि आपका विवाह एक सहजयोगी से हुआ है और सदैव नहीं रख सकती तो स्वयं भी कभी प्रसन्न नहीं इस बात को याद रखें। आप उसका सम्मान करें, हो सकतीं। अपनी आवश्यकताओं इच्छाओं और उसकी देखभाल करें और उसे प्रेम करें। हो सकता है कि कभी वह थोड़ा बहुत असन्तुलित चाहिए। सभी कार्य अत्यन्त शालीनता से करने हो जाए। बड़ी ही शान्ति से आपने उसे वापिस सन्तुलन में लाना है। सहजयोगियों के समाज को सुरक्षित रखना आपकी जिम्मेदारी है। लोग आपके किसी पर आपको न तो चिल्लाना चाहिए न ही घर में आएंगे सहजयोगी उनकी पत्नियाँ बच्चे। क्रोधित होना चाहिए और न ही किसी के साथ आपको उनकी देखभाल करनी होगी क्योंकि हूँ आप ही सहजयोगी समाज की कार्यभारी हैं. हो सकता है आप बहुत धन कमाती हो, बहुत ही हैं अच्छी स्थिति में हों। परन्तु सदैव आपको ये बात समझनी चाहिए कि अपने विवाह के माध्यम से सुनना नहीं चाहती। मैं सुनना चाहती हूँ कि आप सहजयोग के कार्य को आपने चालू रखना है। बहुत ही मधुर और अच्छी पत्नी हैं जो अपने यह बहुत बड़ा उत्तरदायित्व है। यह सहजयोग पति और सहजयोग परिवार की देखभाल करती समाज को सुरक्षित रखता है। अतः सभी को प्रेम हैं। आपका यही कार्य है। इसमें अपमानित करें सभी की देखभाल करें। कभी न सोचे कि महसूस करने की कोई बात नहीं। अपने ही विचारों के विषय में नहीं सोचना चाहिए क्योंकि आप भद्र महिला है। आपकी शैली अत्यन्त शालीन होनी चाहिए दुव्व्यवहार करना चाहिए। मैं तुरन्त जान जाती कि कठोर गृहणी कौन सी हैं? लोग भुझे बताते कि श्रीमाताजी वह अजीब औरत है, लोगों से व्यवहार करना भी नहीं जानती। ऐसी बातें मैं 26 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 7 8 8, 2000 /७० 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-28.txt सहजयोग में आपको ऐसा ही करना है। इसी कारण से आप इतने महत्वपूर्ण हो गए हैं। आप नहीं जानती कि महिला की भूमिका कितनी प्रसन्नचित्त होकर आपको सदा मुस्कराते रहना महत्वपूर्ण है, इतनी महत्वपूर्ण कि वह पूरे परिवार है। आपका विवाह आपके लिए आपके पति के को एक सुन्दर बगिया में परिवर्तित कर सकती लिए, सभी सहजयोगियों के लिए बहुत सुन्दर है। अपने माधुर्य से अपने प्रेममय सूजनात्मक साबित होगा। मुझे पूरा विश्वास है कि आपके मस्तिष्क से वह ये कार्य कर सकती है। अपनी विवाह यदि सफल होंगे तो आपको अत्यन्त प्रेम की कला को खोज निकाले और इसका गम्भीर नहीं होती कि उसके लिए झगड़ी किया जाए। ये सब बातें तो हँसने के लिए होती है। सुन्दर जन्मजात साक्षात्कारी बच्चे होंगे। अत: आप अपने बच्चों तथा अन्य बच्चों के लिए बहुत अच्छी माताएं साबित होंगी। ये सब भविष्य के गर्भ में आपके लिए निहित है । मैं जानती हूँ कि आप सब अपने आगामी जीवन का बहुत आनन्द लेंगी और इसे इतना सुन्दर बनाएगी कि सभी लोग कहेंगे इन सहयोगिनियों को देखो, ये आवश्यकता है तो आपको चाहिए कि उसे वो दे कितनी महान हैं। इनके जीवन कितने खुशहाल दें। अब आपको अपनी उदारता का आनन्द हैं। हमें अपनी गलतियों पर चित्त देना चाहिए और उन्हें सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए. लोगों को उदार होना है क्षमा बहुत ही महत्वपूर्ण दूसरों पर नहीं। लोगों में स्वयं को सुधारने की है, इससे आपको अपना विवाहित जीवन बोझिल योग्यता है। आप केवल इनके हित की इच्छा करें और उनके प्रति अत्यन्त स्नेहमय एवं विनम्र हों। मुझे विश्वास है कि आप सब इतने अच्छे परिवार बना सकते हैं जो देखने में नहीं आते। अत: परिवार में पति के बारे में या किसी अन्य उपयोग उन पर करें जो परेशान हो या नाराज हों या बिगड़े हुए हों। आप ऐसा कर सकती है। उस व्यक्ति को शान्त करना तथा उसे प्रभावित करना आपको आना चाहिए। चारित्रिक उदारता आपका प्रथम गुण होना चाहिए। किसी को यदि किसी चीज़ज़ की आएगा। दूसरे लोगों को क्षमा करते हुए भी आप नहीं लगेगा। क्षमा करें, स्वयं को भी क्षमा करना। किसी भी चीज़ के लिए स्वयं को दोषी न मानें, क्योंकि आप भी तो सहजयोगी हैं। आपसे भी यदि कोई गलती हो गई है तो कोई बात नहीं। के बारे में पति से कोई शिकायत नहीं होनी परन्तु आपमें माधुर्य होना चाहिए। एक पत्नी का माधुर्य जो दूसरे लोगों को भी प्रेम एवं शान्ति लोग आपका प्रेम एवं पथ प्रदर्शन पाता चाहें और प्रदान कर सके। आपको न तो रौबीला होना है इसके लिए आपके पास आएं। मुझे आशा है और न तो आक्रामक, विल्कुल भी नहीं। इसके विपरीत आप लोग तो बहुत कुछ सहन कर ने मेरा नाम रोशन किया है उन्होंने बहुत अच्छा सकते हो और किसी भी मूर्खता को मज़ाक में कार्य किया है। आपसे भी मैं यही आशा करती परिवर्तित कर सकते हो। कोई भी चीज़ इतनी हूँ। परमात्मा आपको धन्य करें। चाहिए। स्वयं को इतना मधुर बनाएं कि सभी आप ऐसा कर सकते हैं बहुत सी सहजयोगिनियों 27 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & 8.2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-29.txt परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी जी का प्रवचन लन्दन - 15.10.79 आत्मसाक्षात्कार को किस प्रकार विकसित किया जाए परमात्मा की शक्ति की बात की। दिव्य शक्तियों के बारे में बताया। परन्तु ये सब बातें ही बातें एक बार जब आप इसमें आ जाएं तो इसकी जिन लोगों ने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लिया है, जिन्होंने चैतन्य लहरियाँ महसूस कर हैं। ली हैं उन्हें समझना चाहिए कि उनका विकास दूसरे अस्तित्व में हो रहा है। अंकुरण आरम्भ हो चुका है और आपको चाहिए कि इस अंकुरण को अपने ही प्रकार से कार्य करने दें। गहनता में उतरना होता है। यदि आप इसकी गहनता में नहीं उतरते तो आपको छोड़ दिया जाएगा। विशेष रूप से उन लोगों को जो कुगुरुओं या असत्य चीजों को मानते रहे हैं। वे नहीं जानते कि ये चीजें कितनी भयानक हैं। मानो आप एक परन्तु प्राय: जब हमें आत्मसाक्षात्वकार मिलता है तो भी हम ये नहीं समझ पाते कि हमारे अन्दर यह कितना महान कार्य हो गया है तथा यह मगरमच्छ पर खड़े हों और अचानक आपको असम्भव घटना हमारे अन्दर घटित हो चुकी है और इसे अब शनै:शनै: कार्य करना है। विकसित पता लगे कि यह मगरमच्छ है तो आप उससे त कितनी दूर भागेंगे? परन्तु ये समझ भी कि यह मगरमच्छ है जो आपको खा जाएगा, आसानी से नहीं आती। व्यक्ति वैसे ही इसे महसूस नहीं होकर इसे हमारा उत्थान करना हैपरन्तु अपने आत्मसाक्षात्कार को हम उतनी गम्भीरता से नहीं लेते। जिन लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है वे भी उनसे घिरे रहते हैं जिन्हें चैतन्य आपके साथ कितनी कठिन घटना घटित हो लहरियों का अनुभव नहीं हुआ, वे इस क्षेत्र को चुकी है। ये कठिन है फिर भी आपके साथ यह नहीं जानते, इसे उन्होंने कभी नहीं देखा। जैसे घटित हो चुकी है। समझें कि आपके साथ ही करता जैसे आप लोग ये महसूस नहीं करते कि गुरुनानक ने कहा यह अलख है। उन्होंने इसे नहीं देखा, इसके विषय में वे कुछ नहीं जानते, मान लेते हैं और बुरी चीजों को भी कम से ये नहीं जानते कि परमात्मा की शक्ति विद्यमान यह क्यों घटित हुआ। आप इसे अपना अधिकार कम बुरी चीज़ों को तो अपना अधिकार न मानें। है, यह सब समझती है, समन्वय करती है, जितना जल्दी हो सके उनसे दूर दौड़ जाएं। ध्यान आपके साथ सहयोग करती है, सामूहिक अस्तित्व करें, ध्यान-धारणा द्वारा स्वयं को परमात्मा के में जो कार्य कर रही है। आपको तथा अन्य लोगों प्रेम के साम्राज्य में स्थापित करने का प्रयत्न करें । को सामूहिक अस्तित्व की चेतना प्रदान करती मैं कहती हूँ ये परमेश्वरी प्रेम है। आप नहीं हैं। यह अलख है या कह सकते हैं अपरोक्ष है, जिसे हम देख नहीं सकते. जिसके विषय में किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं समझ सकते जो कोई कुछ नहीं जानता। सन्तों ने इसके विषय में आपसे निर्वाज्य प्रेम करता है-केवल प्रेम की बातचीत की परमात्मा के विषय में कहा। उन्होंने खातिर वह आपसे प्रेम किए चला जाता है समझ सकते कि ये परमेश्वरी प्रेम क्या है। आप 28 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 8 8. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-30.txt क्योंकि प्रेम करने में उसे आनन्द प्राप्त होता है। और ये नहीं समझते कि आप परमात्मा के संस्कृत में इसे अव्याज कहा गया हैं अर्थात जिसमें कोई ब्याज नहीं है जो निरंतर बहता है यदि ये आपको सुधारता है तो भी केवल हो पाएंगे। आप लोगों को डूबने से बचाएंगे। प्रेम के कारण। परमेश्वरी प्रेम की सुरक्षा ही पहली बार आपको इस प्रकार बनाया गया है जो यन्त्र हैं जिसके द्वारा आपने अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार देना है तो आप स्थापित न उत्थान का एकमात्र मार्ग है यही प्रेम आपको योग्यता आज आपमें है वह इससे पूर्व न तो आवश्यक ऊर्जा शक्ति तथा विश्वास प्रदान करता है। यही परमेश्वरी प्रेम आपको सब कुछ देता है। अत: व्यक्ति को महसूस करना चाहिए कि में परन्तु अब आपको यह योग्यता प्रापत हो गई प्रेम, केवल प्रेम, ही सारी सृष्टि का आधार है। है। फिर भी आप अपना मूल्यांकन नहीं करना परमात्मा ने इस विश्व की, इस ब्रह्माण्ड की चाहते। यह कार्य कितना महत्वपूर्ण है इस बात सृष्टि की है, केवल इसलिए कि वह आपसे प्रेम को आप यदि महसूस करेंगे तो कार्य कर सकेंगे। आपमें थी और न ही अन्य मनुष्यों में, बहुत कम लोगों में ये योग्यता थी बहुत ही कम लोगों बसन्त को आने दें। आज क्योंकि आप सब अपने आशीर्वादों की वर्षा करना चाहता है। सहजयोगी मेरे सम्मुख हैं में आपसे इस प्रकार करता है तथा अपने प्रेम के कारण आप पर बात कर सकती हूँ। इस कार्य को आगे बढाने प्रेम करते हैं, स्वयं को कितना समझते हैं। के स्थान पर मैं देखती हूँ कि आप अपनी परन्तु समस्या ये है कि आप स्वयं से कितना यद्यपि आपकी कुण्डलिनी जागृत हो चुकी कुण्डलिनी के उतार-चढ़ाव पर दृष्टि नहीं है आपका आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो चुका है, रखते। आप यदि यह देखने का प्रयत्न करें चैतन्य लहरियाँ आपसे बह रही हैं फिर भी कि केवल आपकी कुण्डलिनी ही आपको आप अपना मूल्य नहीं आंकते, क्योंकि सबसे अधिक प्रेम करती है क्योंकि वह आपका चित्त बाहर की ओर है और आपकी अपनी माँ है, और उस पर चित्त आत्मसाक्षात्कार के बाद भी चित्त बाहर ही रखें तो आप देखेंगे कि वे बताती हैं कि बना हुआ है। कभी-कभी यह अन्दर जाता है समस्या कहाँ है? समस्या क्या है? आपको और फिर बाहर को आ जाता है। अपनी सुधारना है और आपको क्या करना है? वह पुरानी आदतों को हम नहीं छोड़ते उनसे आपको पूर्ण करना चाहती है और आपकी सहायता चिपके रहते हैं। हमारा जीवन ढरा, हमारी करना चाहती है। अत: यदि आप इसे सावधानीपूर्वक, प्रेम से, सूझ-बूझ से देखने लगे तो यह अत्यन्त मधुर, लीलामय बाल सुलभ सहजयोग आपको आत्मसाक्षात्कार देता सुन्दर लीलाओं से परिपूर्ण है। आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए यह आपको शरीर पर आपको लम्बी रस्सी भी देता है। आप यदि यहाँ-वहाँ गुदगुदाती है। किसी प्रकार का कष्ट नहीं देती। इसके विषय में आपको चुस्त रहना है नहीं देते, स्वयं को यदि आप प्रेम नहीं करते और वास्तव में ये आपको परिपक्व कर देगी। विचारशैली वही बनी रहती है। इसी बीहड़ में हम खोए रहते हैं । है ठीक है। परन्तु फाँसी लगाने के लिए यह अपनी और अपने अस्तित्व की ओर ध्यान 29 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 7 & 8. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-31.txt आपने देखा है कि किस प्रकार,समय के साथ-साथ चीज़ है। मेरे विचार से हर आदमी समझता लोग परिपक्व हुए हैं। परन्तु आपको अपना है कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना ही अन्तिम चित्त कुण्डलिनी की ओर और अपनी ओर उद्देश्य नहीं है क्योंकि यह मात्र अंकुरण है। रखना होगा अन्यथा बिना ज्योतिर्मय हुए आपको इससे बहुत आगे जाना है। जिन आपका मूल्य क्या है? आत्मसाक्षात्कार के लोगों ने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं किया है, यदि उनके प्रति आपमें करूणा होनी चाहिए। उनके विषय में आपको सोचना चाहिए, को बिना मनुष्य का मूल्य क्या है? मानव आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं है तो उसका क्या लाभ है? इस यन्त्र (Microphone) का क्या उन्हें आत्मसाक्षात्कार देना चाहिए। इस कार्य लाभ है यदि यह अपने स्रोत से जुड़ा हुआ नहीं को कार्यान्वित करना चाहिए और इस पर अपना मस्तिष्क लगाना चाहिए। परन्तु अब भी में देखती हम गैस लैम्प जलाते हैं वैसे ही लोगों को हूँ लोग अन्य चीजों में व्यस्त हैं। वे लौटकर प्रकाशमय करना है। गैस लैम्प जलाने के लिए अपने पुराने साथियों में चले जाते हैं। आपको व्यस्त होना चाहिए, मैं नहीं कहती जीविकार्जन की शक्ति एवं योग्यता है। अत: बह गली में के लिए आपको कुछ नहीं करना चाहिए, आपको गैस लैम्प जलाने के लिए दौड़ पड़ता है। उसी कार्य करना चाहिए। परन्तु ये समझ लेना हम सब लोगों के लिए महत्वपूर्ण है कि हमें सहजयोग को कार्यान्वित करना है और है तो? बाकी सब कुछ व्यर्थ है और जिस प्रकार व्यक्ति दौड़ता है। केवल उसी में यह कार्य करने व्यक्ति ने यह कार्य करना है, इसी के लिए उसकी नियुक्ति की गई हैं। सहजयोगियों को ये समझना अत्यन्त आत्मसाक्षात्कार को अपने अन्दर विकसित आवश्यक है कि उनका मूल्य क्या है। सहजयोग होने देना है। परन्तु यदि आप कहते हैं कि के विषय में आपने क्या समझा है? कितने लोगों श्रीमाताजी आपमें हमारा पूर्ण विश्वास है तो को आपने बचाया है, कितने लोगों की आपने ये कहना काफी नहीं है। मुझ पर आपका सहायता की है? आपकी अपनी ही समस्याएं क्या विश्वास है, विश्वास का आप क्या अर्थ समझते हैं? यह अत्यन्त अस्पष्ट शब्द बहस करके अन्य लोगों के लिए समस्याएं खड़ी है। आखिरकार विश्वास है क्या? क्या आपने कर रहे हैं। सहजयोग के विषय में न तो आप कभी अपने विश्वास का विश्लेषण किया। बहस कर सकते हैं, न तो वाद-विवाद, इसे कुछ लोग सोचते हैं कि यदि हम श्रीमाताजी तो स्वयं कार्यान्वित होना होगा वाद विवाद, के भजन गाते हैं तो उनमें हमारी पूर्ण श्रद्धा बहस, बतंगड़, नाप तोल द्वारा स्वयं को भ्रमित है। इसके लिए हमें आदिशंकराचार्य की तरह करके आप अपनी कुण्डलिनी के कार्यन्वित एक विशेष स्थिति प्राप्त करनी होगी। क्या होने में बाधाएं खड़ी करती हैं। क्या आप आत्मा अपने आपमें आपका विश्वास है? ये बात आवश्यक है। जिसका विश्वास अपने आप लिए चिन्तित नहीं हैं? यदि हैं तो इसकी प्राप्ति में नहीं है वह कैसे मुझमें विश्वास कर के लिए क्या कर रहे हैं यह अत्यन्त महत्वपूर्ण सकता है। आपको स्वयं पर तथा अपने सभी इतनी अधिक हैं फिर भी आप बातचीत, वाद-विद को नहीं खोज रहे हैं? क्या आप मोक्ष प्राप्ति के 30 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 7 & 8, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-32.txt साथियों, सहजयोगियों पर विश्वास करना होगा मैंने आपको पहले भी बताया है कि व्यक्तिगत स्तर पर सहजयोग कार्यान्वित न होगा। कोई यदि स्वयं को अन्य लोगों से महान मानता है तो उसका पतन अवश्यम्भावी है तो आप इसके एक सिरे को नहीं खींच सकते है। किसी भी व्यक्ति को इस प्रकार केवल अपने लिए सहजयोग का उपयोग नहीं करना चाहिए। सामूहिक रूप से सभी लोगों के लिए आपको कार्य करना चाहिए। आपमें से कोई भी सभी शक्तियाँ हैं. सभी कुछ हैं। मुझे सबसे यदि ये सोचता है कि उसमें अन्य लोगों की करता है। अचानक ऐसे व्यक्ति का पतन हो जाता है और लोगों को आघात पहुँचता है, श्रीमाताजी बह क्या हुआ सकते। आपने यदि कालीन को इस प्रकार बिछाया ।" आप एसा नहीं कर पूरा कालीन ही आपको खींचना होगा पूरे खेल का श्रेय कंवल एक व्यक्ति नहीं ले सकता। आप मेरे को लें। आप जानते हैं कि मेरे अन्दर ऊँचा होना चाहिए आदि आदि। परन्तु आप लोगों अपेक्षा कुछ श्रेष्ठता है तो वह भयानक गलती कर रहा है। यह तो ऐसा ही हुआ कि है। आपके साथ शिखर पर पहुँचने के लिए मुझे मानो एक आँख कह रही हो कि मैं दूसरी से श्रेष्ठ हूँ या नाक ये कह रही हो कि मैं ऑँखों से श्रेष्ठ हूँ। विराट के शरीर में हर चीज़ का हैं। किसी व्यक्ति का कोई चक्र पकड़ रहा के सम्मुख मुझे अपना स्तर नीचा करना पड़ता संघर्ष करना पड़ता है। हाथ में हाथ डालकर हम लोगों को चलना होता है। आप यह सब जानते अपना स्थान है और हर व्यक्ति अत्यन्त होता है तो मैं अपना चक्र कार्य पर लगा महत्वपूर्ण भी है और अनावश्यक भी। आप जानते हैं कि सहजयोग में क्या होता है, भारत में परन्तु आप जानते हैं कि मुझे कितना कठोर ये आम बात है, यहाँ पर इतनी नहीं है। भारतीय परिश्रम करना पड़ता है। यह बहुत बड़ा इसे इसी प्रकार करते हैं, उनमें बहुत से गुण जहाँ भी मैं जाती हैँ मुझे लगता है कि लोग को किसी चीज की आवश्यकता नहीं है। आप पहले से अधिक परिपक्व और विकसित हुए हैं देती हूँ। यह इसी प्रकार कार्यान्वित होता है 1. हैं। काम है-आत्मसाक्षात्कार देना। मेरी कुण्डलिनी कि यह बात जानते हैं। परन्तु मेरी कुण्डलिनो को आपकी भारी कुण्डलिनियों का बोझ उठाना होता क्योंकि वह आप लोगों की तरह विचारशील नहीं है। आप लोग महान विचारशील, दृष्टा, बुद्धिवादी है इन्हें जागृत करना होता है। यह बहुत भारी हैं। मैं सोचती थी कि सभी बुद्धिवादियों के माथे पर सींग निकल आएंगे और उन्हें देखते ही पता लग जाएगा कि वे बुद्धिवादी हैं जो परमात्मा की और उसके मार्गों की निन्दा करते हैं। भारतीय काम है। केवल प्रेममय व्यक्ति ही इसे कर सकता है। यही मापदण्ड है। प्रेमविहीन व्यक्ति इस कार्य को नहीं कर सकता। इस कार्य को करना बहुत कठिन है। मैं यदि सारे शरीर में भी प्रवेश कर जाऊ, हर केन्द्र से चैतन्य प्रवाह कर बुद्धिवादी नहीं हैं। परन्तु कुछ मामलों में आप असफल हैं। उनके मस्तिष्क में सदैव यही बात देँ तो भी यह आसान नहीं है। परन्तु यह तो आप होती है कि 'मैं महान हूँ' ' ऐसा व्यक्ति सदैव यही राग अलापता रहता है और अन्य लोगों को नीचा दिखाने का प्रयत्न मैं ये हूँ' 'मैं वो हूँ। लोगों और मेरे बीच मात्र प्रेम एवं स्नेह है जो मुझे अच्छा लगता है और जो सारे कार्य सारे परिश्रम को संपन्न करता है। कई बार तो मैं ऐसे 31 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & 8, 2000 প 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-33.txt लोगों के विषय में सोचती हूँ और परिश्रम करती लोगों पर रोब जमा रहे हें । बहुत से सूक्ष्म तरीकों हूँ जो बिल्कुल बेकार होते हैं। उन पर किया से हम लोगों पर प्रभुत्व जमाते हैं। इस प्रकार गया परिश्रम बिल्कुल व्यर्थ होता है। फिर भी जो प्रेम हमें परस्पर समीप लाया है वह अत्यन्त पड़ें। क्या कभी हम बैठकर यह सोचते हैं कि सन्तोष प्रदायी है और इसके कारण आप प्रसन्नता हम उनसे बातचीत करते हैं कि उन पर रोब हमें किस प्रकार लोगों से बातचीत करनी है का अनुभव करते हैं । हर सुबह आप अपने जिसमें उन्हें हमारे प्रेम का आभास हो? मैं अन्दर एक नई सुगन्धी लेकर उठते हैं और आपको बार बार बताती हैँ कि सहजयोग कुछ भी नहीं है केवल प्रेम है, प्रेम, केवल प्रेम। मुख्य चीज यह है कि आप लोगों को कितना प्रेम करते हैं। तिरस्कार या आलोचना इसके विषय में आपको खुशी होती है। अतः लोगों से व्यवहार करते हुए बहुत सावधान रहें। अत्यन्त प्रेमपूर्वक उनसे व्यवहार करें। किसी भी प्रकार से न तो उनकी आलोचना करें और न ही उन्हें नीचा दिखाने का प्रयत्न करें। आप जब किसी प्रकार किसी से ऊँचे नहीं हैं तो ऐसा करने का कोई कारण नही है। आप यदि ऊँचे हों भी तो सामूहिक अस्तितव की सहायता करने के लिए होते हैं परन्तु ऐसी स्थिति में आपके अन्दर यदि दूसरों से ऊँचा होने करना कोई तरीका नहीं है। कल आप भी वैसे ही थे। आज आप बेहतर हैं, भविष्य में इससे भी अच्छे होंगे। मान लो कुछ लोग बहुत ही कष्टदायी हैं तो आपको चाहिए कि उनसे स्पष्ट बता दें कि श्रीमन क्षमा कीजिए, अभी आपको काफी शुद्धीकरण की आवश्यकता है। कुछ चालाक लोग भी होते हैं जो आकर आपको परेशान करने का प्रयत्न करेंगे। कुछ हद तक उन्हें की भावना आ जाती है तो आपका पतन आरम्भ हो जाता है क्योंकि इस प्रकार आप सहन करें, अन्यथा उनसे क्षमा माँग लें। परन्तु ये जानने के लिए कि क्या व्यक्ति नकारात्मक सामूहिकता को पतन की ओर खींच रहे हैं। आप यदि किसी की निन्दा करते हैं या किसी को है, आप उसके विषय में सोचते हैं, तार्किक नीचा दिखाते हैं तो आप स्वयं को पतन की ओर खींच रहे हैं। दूसरों का दोष सुधार भी आपको देखकर उसे चैतन्य लहरियों के माध्यम से नहीं करना है क्योंकि इस कार्य के लिए तो देखना चाहिए क्योंकि तर्कबुद्धि से वह महिला मैं हूँ। दूसरों को सुधारना आसान काम नहीं है। आप उन्हें चोट पहुँचा सकते हैं। लोगों को अत्यन्त नकारात्मक हो सकता है। अत: आप सुधारने का तरीका भी आप नहीं जानते हैं। जब तक आपके अन्दर से शक्तिशाली चैतन्य लहरियाँ यह है कि आप कितना प्रेम करते हैं। जब बहनी शुरू नहीं हो जाती तब तक आप लोगों को केवल प्रेम करें। अहम् संचालित सामाजिक संस्कारों के कारण लोगों को दुख पहुँचाना और प्रयत्न करें और देखें कि यह कितनी सुन्दर उन पर प्रभुत्व जमाना आप अच्छी तरह से चीज है। यदि प्रेम नहीं है तो घृणा है। यह जानते हैं। आपको पता भी नहीं चलता कि आप झुलसाने वाली गर्मी है जो सारे सौन्दर्य को दृष्टि से उसे देखते हैं। तार्किक दृष्टि से न या पुरुष अच्छा प्रतीत होता हो परनतु वह कितनी ध्यान धारणा करते हैं, इसका अर्थ आप दूसरों के विषय में सोचते हैं तो सोचें कि आप उनसे कितना प्रेम करते हैं । ऐसा करने का 32 चैतन्य लहरी खंड : XI॥ अंक : 7 & 8. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-34.txt समाप्त कर देगी, आपके हृदय की सारी कोमलता लहरियाँ समाप्त नहीं हो जातीं, यह इस सौमा तक है। हमने यदि किसी अभृतपूर्व चौज में प्रवेश किया है तो हमें अभूतपूर्व विधियां भी अपनानी होंगी। आप पहले की तरह से नहीं चल को नष्ट कर देगी। कवल प्रम द्वारा हो सहजयोग फैलेगा। इन सारे वर्षो में आपने घृणा की शक्ति को देखा है। आपने देखा है लोग किस प्रकार घृणा करते हैं । सकते; आपको अपने तरीके बदलने होंगे और किस प्रकार एक दूसरे से व्यवहार करते हें. उनमें न तो मूदुता है और न करुणा। एक दूसरे के लिए आप कितना बलिदान करते हैं ? दूसरों से वे कितने तीखे हैं। अब आपको यह सब परिवर्तित करना होगा और एक ऐसे विश्व की सृष्टि करनी होगी जहाँ लोग परस्पर प्रेम करते अभिप्राय है सहजयोगियों की। इसमें कोई बलिदान हों, धन, पद, सौन्दर्य और वासना के लिए नहीं नहीं है। आप यदि ध्यान से देखें तो यह बलिदान केवल प्रम के लिए। केवल इसलिए कि आपको प्रेम का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है। अगली बार से उसके लिए गुलाब का फूल ले जाना चाहते हैं हम विज्ञापन देंगे और बहुत से लोग सहजयोग में और कठिनाई से बाज़ार जाकर जब आपको फूल आएंगे परन्तु आप सब भी देखें कि आप अपने मिलता है तो आपको बहुत प्रसन्नता होती है। साथ कितने लोगों को ला सकते हैं। ऐसी चीजों गुलाब का काँटा आपकी उंगली में लग जाता है पर अपना मस्तिष्क लगाएं। हर समय हम नौकरी उंगली से खून निकलता है फिर भी आपको वुरा आदि के विषयं में सोचते रहते हैं। यह बहुमूल्य तहीं लगता। आप उस व्यक्ति से मिलने की समय है हमें इसे खोना नहीं चाहिए। अपने पूर्ण प्रतीक्षा करते रहते हैं और जब वह मिलता है तो जीवन हमने नौकरियाँ करने पैसा कमाने, विवाह करके बच्चे बनाने और फिर मर जाने में लगा प्रेम द्वारा अपने कार्यों को आँकना होगा। दूसरों के लिए क्या न्यौछावर कर सकते हैं? दूसरों की आप क्या सेवा कर सकते हैं। मेरा कहने से नहीं है यह प्रेम है। किसी से आप प्रेम करते हैं आप अपनी सारी तकलीफे भूलकर प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति करने के लिए वह फूल उसे देते हैं। दिए। इस जीवन काल में आइए कुछ विशेष करें कितनी प्रसन्नता आपको होती है कि आप उसे जिसके लिए इस ब्रह्माण्ड का सृजन किया गया है। अन्य लोगों के लिए स्वर्ग के द्वार खोल दें। ऐसा प्रतिदिन करते हैं परन्तु सहजयोग में विना आपको अत्यन्त परिश्रमी होना है आप भली जाने आप यह सब करते हैं ऐसा हो रहा है| भाति जानते हैं कि सहजयोग में कोई मजबूरी नहीं है। इसके लिए कोई समय नहीं है यह किसी पर थोपा नहीं जा सकता क्योंकि यह तो केवल प्रेम है; आप यदि इसे नहीं करना चाहेंगे तो कोई आपको विवश नहीं करेगा, परन्तु मैंने बताया; फाँसी लगाने के लिए सहजयोग बड़ी लम्बी रस्सी देता है। जब तक आप पूर्णतः भ्रम में नहीं फैँस जाते और आपके अन्दर चैतन्यं वह फूल भेंट कर सके। अपने जीवन में हम आप लोग संचारक हैं जहाँ भी आप ध्यान धारणा में बैठते हैं आप चैतन्य लहरियों का संचार करते हैं। क्या आप ये बात जानते हैं। उस समय भी यदि आप नौकरियों तथा अन्य चीज़ों के विषय में सोचते हैं पहले कि तरह तो ये संचार कम हो जाता है। प्रेम के विषय में सोचें। उस समय पूरे देश के पूरे विश्व के विषय में सोचे आप लोग इन प्रेम जैसा 33 चैतन्य लहरों । खंड : XII अंक : 7 & 8. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-35.txt लहरियों के प्रेषक हैं और आपके अन्दर से प्रेम आपको देता है उसकी अपेक्षा परमात्मा हजारों गुना फल देते हैं। जब वे आपको आशीर्वाद देते हैं तो उन्हें धन्यवाद करने के लिए आपके पास शब्द भी न होंगे। वह तो इस सीमा तक जाते हैं। बहेगा। मैंने आपको एक बार बताया था कि आपको श्रीगणेश की तरह से बनाया गया है और आपको उन्हीं की तरह से कार्य करना है आप जानते हैं कि आपके अन्दर से चैतन्य लहरियाँ निकल रही हैं। इसका अर्थ ये है कि आप किसी देवता की तरह है जो पृथ्वी माँ के गर्भ से क्या हम परमात्मा पर निर्भर कर रहे हैं या अपने पुराने तौर तरीकों पर हमें होना पड़ेगा। नई शैली में अपनी सोच को बहुत परिवर्तित बदलना होगा। यह बात अत्यन्त महत्वपूर्ण है। मुझे आशा है कि आप इसके विषय में सोचेंगे जो बातें आज आपको मैंने कहीं है उनके के लिए हजारों लोग जाते हैं। लोग कहते हैं कि विषय में जिन चीज़ों ने आपको खुशियाँ नहीं दी यह जागृत देवता का मन्दिर है अर्थात् ज्योतिर्मय उन चीजों को अपने जीवन में न अपनाएं। सहजयोगी आपके मित्र हैं। अपने मित्र बदलें, जीवन के तौर तरीके बदलें। आपको कहीं प्रकट हुआ है और उस पर बहुत बड़ा मन्दिर बना दिया गया है जहाँ उस देवता को पूजा करने है और वह तो केवल एक पत्थर होता है। एक पत्थर जो पृथ्वी के गर्भ से निकलता है जिसके ऊपर लोग मन्दिर बना देते हैं और वहाँ पूजा के लिए जाते हैं। और यहाँ तो बहुत सी अधिक आनन्द प्राप्त होगा। आअपने आपको तथा सहजयोग के महत्व को समझना आप पर आत्मसाक्षात्कारी आत्माएं बैठी हुई हैं। ये जीवित हैं चलती-फिरती हैं और सब कुछ समझती हैं। निर्भर करता है । जब तक ये उद्यम नहीं है कोई भी इसे गम्भीरता पूर्वक न लेगा। पाश्चात्य सोच की यही शैली है। यह उद्यम होना चाहिए-सच्चा स्वयंभू प्रतिमाओं से तो केवल चैतन्य लहरियाँ निकलती हैं जो वातावरण को पवित्र करती हैं परन्तु आप लोग तो कुण्डलिनी उठा सकते हैं स्वयंभू प्रतिमाएं कुण्डलिनी नहीं उठा सकती. हैं और उस कार्य को करते हैं परन्तु जब आप उठा सकते हैं। परन्तु आप इस कार्य के सहजयोग की बात आती है तो उनके पास ध्यान लिए क्या कर रहे हैं? आपके पास इतनी बहुमूल्य उद्यम हो या उल्टा-सीधा, कोई बात नहीं। धन का हेर- फेर यदि हो तो सभी लोग खडे हो जाते धारणा के लिए भी समय नहीं है! क्योंकि अभी तक हमने प्रेम करना नहीं सीखा है। अपने चीज़ है आप इसका क्या कर रहे हैं? क्योंकि इसमें व्यापार नहीं है? क्या इसी कारण से हम अन्दर उस प्रेम का अनुभव नहीं किया है मैं कामना करती हूँ कि आप सब अपने अन्दर प्रेम इसकी बात इतनी धीरे से करते हैं। यदि यह उद्यम होता तो हर व्यक्ति इस कार्य को करने के की उस गहतता का अनुभव कर सकें, तब आप अपने लिए तथा अन्य लोगों के लिए इसे कार्यान्वित करने की ख़ातिर जी जान से जुट जायेंगे। लिए उद्यत हो जाता। हमें अपने तौर तरीके और सूझ बूझ बदलनी होगी। कोई भी उद्यम जो फल परमात्मा आपको धन्य करें। 34 चैतन्य लहरी खंड :XII अंक : 7 & 8. 2000 ho 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-36.txt ा ध्यान की आवश्यकता 27-11-91 दिल्ली आश्रम आज आप लोगों से बहुत देर बाद मुलाकात हो रही है और सहज योग के बारे में हम लोगों होना चाहिए और इन नसों को शुद्ध करने की जिम्मेदारी आप लोगों की है। हालांकि आपने मुझे कितनी बार कहा है कि माँ हमें भक्ति दो। माँ हमें निताँत आपके प्रति श्रद्धा दो किन्तु ये को समझ लेना चाहिए। सहज योग, ये सारे संसार की भलाई के लिए इस संसार में उत्पन्न है। *ें हुआ और उसके आप लोग माध्यम हैं। चीज आपको ही समझदारी से जानना है। आपकी जिम्मेदारियाँ बहुत ज़्यादा इसके माध्यम हैं। और कोई नहीं है इसका माध्यम। हम अगर किसी पेड़ को Vibration दें नहीं कि आप कोई कार्य कर रहे हैं। आप कोई या किसी मन्दिर को Vibration दें या कहीं और भी Vibration दें तो वो चलायमान नहीं हो सकता. वो कार्यान्वित नहीं हो सकता। आप ही दुनियाई कार्य हैं। हर तरह की सहलियते आपके खुद पहली तो बात है कि शुद्ध जब नसे हो जाएँगी तो आप आनंद में आ जाएंगे। आपको लगेगा ही हैं क्योंकि आप सा भी कार्य करते जाएगे उसमें आप यश प्राप्त करंगे बहुत सहज में सारे कार्य होते जाएंगे जो को धारणा से और आप ही के कार्य से यह अंदर आएंगी। हर तरह के लोग आपके पास आ करके आपको मदद करेंगे। आपको कभी-2 फैल सकता है। फिर हमें यह सोचना चाहिए कि सहजयोग में एक ही दोष है। वैसे तो सहज है सहज में प्राप्ति हो जाती है। प्राप्ति सहज में होने पर भी उसको संभालना बहुत कठिन है आश्चर्य होगा कि किस तरह से बिगड़ी बन रही है और किस तरह से हम ऊँचे उठते जा रहे हैं। इसमें लक्ष्मी जी की भी कृपा निहित है। कला क्योंकि हम हिमालय पर नहीं रह रहे हैं। हम की भी उन्नति निहित हैं। हर तरह को उन्नति, कहीं ऐसी जगह नहीं रह रहे हैं जहां और कोई वातावरण नहीं है सिर्फ आध्यात्मिक वातावरण प्रगलभता इसमें आ जाती है। पर ये सारे एक तरह के प्रलोभन हैं ये समझ लेना चाहिए क्योंकि कभी-कभी मैं देखती हूँ कि एक के साथ-2 हमारी भी उपाधियाँ बहुत सारी हैं। आदमी ने Business किया सहजयोग में। हैं। हर तरह के वातावरण में हम रहते हैं। उसी जो हमें चिपकी हुई हैं। तो सहजयोग में शुद्ध उसको बहुत रुपया मिल जाता है और वो फिर वो गिर जाता है और इतने बुरी तरह से बनना, शुद्धता अपने अंदर लाना यह कार्य हमें करना पड़ता है जैसे कि कोई भी Channel हो वो गिर जाता है कि उठाना मुश्किल हो और वो अगर शुद्ध न हो, जैसे बिजली का Channel हो उसमें से बिजली नहीं गुज़र सकती। जाता है। तो नसों की स्वच्छता हमें करनी चाहिए। उसमें सवेरे का ध्यान अवश्य करना गर पानी का नल है, उसमें कोई चीज भरी है तो उसमें से पानी नहीं गुज़र सकता, इसी प्रकार ये चैतन्य भी है। जिस नसों में बहता है उनको शुद्ध चाहिए। अगर आपका सवेरे ध्यान नहीं लगता तो कुछ न कुछ खराबी हमारे अंदर आ गई है, कुछ न कुछ गड़बड़ी हमारे अंदर हो गई 35 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & 8. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-37.txt है। कोई न कोई अशुद्ध विचार हमारे अंदरं कि मेरे लिए दुःखदायी हैं मुझे नष्ट करेंगी। उधर मैं क्यों जाता हूँ। इस तरफ ध्यान से आपको पता चाहिए, समझना चाहिए और सफाई करनी हो जाएगा कि आपके अंदर कौन सी चक्र की चाहिए। जिसे की हम introspection कहते पकड़ है उसकी आपको साफ करना है। उसको हैं हमें अपनी ओर मुड़ कर देखना चाहिए। साफ करके, ठीक-ठाक करके और फिर आप ध्यान में बैठे। जैसे कि इसको प्रत्याहार कहते हैं। माने ये कि सफाई, इसकी सफाई पहले करनी चाहिए। अपने मन की सफाई करनी चाहिए। उस थोड़े से समय में हमको अपने मन की सफाई करनी चाहिए। अपने से अगर की चीज़ों से मनुष्य में ये षड्रिपु बैठे रहते हैं। हमें प्रेम है अगर वाकई में हमारे अंदर स्वार्थ है ये जो हमारे अंदर 6 हमारे दुश्मन हैं छिपे रहते तो स्व का अर्थ हमें जान लेना चाहिए और सोच हैं और बो बार-2 अपना सर उठाते हैं इसलिए लेना चाहिए कि इन खराबियों से हमें क्या फायदा होता है। क्षणिक कोई होता है, आनंद को पापी नहीं कहें, अपने को खराब न कहें, मिला। क्षणिक कोई उससे सुख लाभ हुआ आ गए हैं उनको देखना चाहिए, जानना ये आपके हित के लिए है किसी ओर के हित के लिए नहीं। पहले तो अपना ही हित आप साध्य कर लीजिए। अगर आपके अंदर कोई दोष है, उस वजह से, उपाधियाँ होती हैं. आदतें होती हैं, वातावरण होता है, तौर तरीके होते हैं तरह-2 आवश्यक है कि हम अपने को कोसे नहीं अपने अपने को किसी तरह से लॉछित न करें लेकिन इसमें से निकलने का प्रयत्न करना चाहिए। जैसे कमल है। किसी भी गंदे, बिल्कुल सड़े हुए समझ लीजिए. कोई वात हुई भी तो भी उससे मैंने अपना तो जरूरी है कोई बड़ा भारी नुकसान कर लिया क्योंकि ध्यान नहीं लगा माने ये ही जगह में पैदा होता है और वो सब में से निकल हुआ कि आपकी एकाकारिता अभी साध्य नहीं कर वो फिर जब खिलता है तो सुरभित होकर हुई। अब कोई तो लोग होते हैं वो ये भी कहते के सारा जो कुछ भी वातावरण है उसे सुरभित कर देता है। इसी प्रकार सहजयोग की विशेषता है। आप भी उसी कमल की तरह है, न होते तो हैं कि हमारा तो ध्यान लगता है पर होता नहीं। तो अपने साथ सच्चाई रखना बहुत ज़रूरी बात है। गर हमे अपने साथ सच्चाई नहीं रखेंगे न आप सहज में आते और न ही इसे आप प्राप्त तो फिर हम किसके साथ सच्चाई रख सकते हैं। ये अपने हित के लिए है। हमारे अच्छाई के अवश्य ही कमल हैं। लेकिन इस कमल को लिए हैं। हमारे भलाई के लिए है। अधिकतर लोगों को मैं देखती हैँ सहज योग में आने के बाद बीमारियाँ अधिकतर नहीं होती। अधिकतर लोगों को सहजयोग में आने के बाद कई तरह 1. करते। आप कीड़े मकौड़े तो हैं नहीं। आप सुरक्षित होने के लिए थोड़ी सी मेहनत करनी पड़ती है। अपनी ओर नज़र करने से। सवैरे का जो ध्यान है अपनी ओर का लाभ हो जाता है और अधिकतर लोगों को मैं बहुत आनंद में भी पाती हूँ। उनके घर के जो प्रश्न है वो भी छूट जाते हैं। सब कुछ व्यवस्थित हो जाता है। सब कुछ ठीक हो जाता है। तो भी नजर करने का ध्यान है कि मैं क्या कर रहा हूँ। मेरे अंदर क्या दोष हैं मेरे अंदर क्रोध आता है। इस क्रोध को मैं किस तरह नष्ट करूँ। मुझे और ऐसी कुछ इच्छाएँ होती हैं जो 36 चैंतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & 8, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-38.txt कभी-2 ऐसा होता है कि कोई न कोई वजह से, उन्होंने वर्णन कैसे किया। तो उनकी गहराई किसी न किसी पुरानी त्रुटि की वजह से सहज पहले थी जैसे आप सबकी है लेकिन वो घुस का ध्यान लगता नहीं। सर्वरे उठ कर ध्यान पड़े उसमें। उसको प्राप्त किया उन्होंने। पहुँच करना बहुत आवश्यक है जो लोग स्वरे उठ कर ध्यान नहीं करेंगे वो सहज में कितने भी व़रियान्वित ही पूरी तरह से उसे प्राप्त कर सकते हैं । तो रहे और सब कुछ करते रहें अपने गहराई वो पा नहीं सकते। क्योंकि आपकी गहराई में ही चाहिए। माने मैन औरां के लिए क्या किया। मैंने सारा सुख, समाधान, सारी संपत्ति, ऐश्वर्य सहजयोग के लिए क्या किया। मैंने माँ के लिए श्री सब कुछ उसी गहराई में है। उस गहराई में उतरने के लिए बीच की जो कुछ रुकावटें हैं उनको आपको निकाल देना चाहिए। अपने इस तरह से कि वो मुझे कितना प्यार करते हैं. को प्रेम करके, अपनी ओर दृष्टि करके, उन्होंने मुझे कितना प्यार दिया। मैंने दिया उन्हें अपने को समझ करके कि मेरे अंदर यह दोष है। इस दोष को मुझे निकाल देना मैं इतना उनकी तरफ Sincere रहा? इस तरह चाहिए। दूसरे के दोषों की ओर बहुत जल्दी की बात सोचने से फिर आपको आनंद आने लग हमारी नजर जाती है। ये काम आपका नहीं है ये मेरा काम है। ये आप काम मेरे ऊपर गए वहाँ। सवके अंदर यह संपदा है। अब सब शाम का ध्यान जो है वी बाहर की ओर होना क्या किया। ये सब विचार आपको रखना चाहिए। जब आप ऐसा बैठ कर सोंचेंगे तो सोचना चाहिए इतना प्यार। वा कितने मरी तरफ Sincere है । जाएगा जब आप साचंगे कि मैन इतना प्यार किया। क्रोध करना, नाराज़ होना, झगड़ा करना, छोड़ दीजिए। आप अपने दोषों की ओर देखिए। दूसरों के दोष देखना। इसमें अपना समय बर्बाद करने से देखना चाहिए कि उन्होंने किस तरह से ध्यान में समर्पण होना चाहिए। तब फिर आगे की मुझे प्यार किया। हमारे सहज योग में प्यार बहुत बात आती है कि आप किस तरह से समर्पित हैं शुद्ध है, इसमें कोई गंदगी नहीं होनी चाहिए। उसके बाद शाम की जो ध्यान है, उस माने उस समय ये सांचना चाहिए कि मैंने सहज जिस प्यार में गंदगी आ जाए वी सहज की प्यार लिए क्या किया। मैंने सहज यांग के नहीं। बिल्कुल निर्वाज्य जिसमें व्याज भी नहीं लिए कौन सा कार्य किया। शरीर से, मन से. माँगा जाता। ऐसा प्यार मैंने किसे दिया? फिर बुद्धि से। एक अंधे गायक हैं बहुत मशहूर हैं। विद्वान हैं बहुत पढ़े-लिखे हैं पता नहीं जाने कैसे अंधी आँख से इतना पढ़ा उन्होंने। वे मुझसे 3-4 बार मिले बस। ऐसी कविता एक दम फूट पड़ी हूँ वो ऐसा है, वो खराब है, ये है. तब आनंद कि मैंने सोचा ये ऐसे कंसे धँस गए एकदम नहीं आएगा। आनंद तभी आता है जब हम ये अपनी गहराई में। ऐसी कविताएँ फूटी कैसे सोचते हैं कि ये प्यार का आंदोलन चल रहा हैं। उनके हृदय से? ऐसी-2 बातें कि जो हजार देवी है फिर। और के नाम में भी नहीं लिखी हुई वो भी उन्होंने ये सुन्दर भावना एक तरह की प्रेरणा होती है वर्णित करीं। और विल्कुल सही मायने में ऐसा तब। उसका वर्णन करना तो मुश्किल ही है योग के जब आप सोचेंगे कि में इतना प्यार करता हूँ. प्यार करती हूँ, बड़ा आनंद आएगा। ताकि तब जब आप कहते हैं कि मैं उससे नफरत करता बड़ी सुन्दर भावना मन में उठती 37 चैतन्य लहरी खंड XII अंक : 7 & 8. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-39.txt परन्तु उसकी झलक चेहरे पर दिखाई देती है। सामूहिक हो सकते हैं, निर्वाज्य, निर्वाज्य उसकी झलक आपके शरीर में दिखाई देती है। तरीके से जो सामूहिक हो सकते हैं उनकी आपको गृहस्थी में दिखाई देती है। वातावरण में सफाई अपने आप हो जाएगी उनको कोई दिखाई देती है और सारे ही समाज में दिखाई विशेष तपस्या करने की जरूरत नहीं। सामूहिकता को भी एक तपस्या की तरह से नहीं बल्कि एक आनंद की तरह से मानना सबको करना चाहिए। एकाध दिन गर नहीं खाना चाहिए। उसमें अगर ये सोचें कि कैसे इन खाया तो कोई बात नहीं। एकाध दिन गर नहीं लोगों के साथ रहा जाए ये तो ऐसे लोग हैं। बाहर घूमने गए तो कोई बात नहीं। एकाध दिन ये तो वैसे लोग हैं। क्योंकि सहजयोग में आराम नहीं हुआ तो कोई बात नहीं, लेकिन सबके लिए द्वार खुले हैं तो वो आपके लिए ध्यान सहजयोगियों को अवश्य करना चाहिए। कठिन हो जाएगा, गर आप यह सोचते हैं । क्योंकि ध्यान ही में पाया जाता है। तो सवैरे का तपस्या के मामले में जो उसको मजे से उठा सकता है वही सहज की तपस्या है। सब चीज़ देती है। इसलिए दोनों समय का ध्यान अवश्य ध्यान गर हम कहें कि ज्ञान का हैं तो शाम का ध्यान भक्ति का है। इस तरह से अपने को है उसमें करने का क्या है। सब चीज़ जब आप बिठाते जाएंगे तो समझ लेंगे कि कितने आप महत्वपूर्ण हैं। आपका महत्व इतिहास में कितना है । ये इतना बड़ा कार्य जो हो रहा है लेना चाहिए। उससे कम नहीं है जैसे देवता सहज योग में ये सब आप ही के माध्यम से हो लोग हम उनसे कहें या न कहें वे अपने जाएगा। आप अपने को औरों से मत तोलिये। जो कार्य को करते ही रहते हैं उसी प्रकार लोग बड़े यशस्वी होते हैं जो बड़ी-2 जगहों में आपको भी हो जाना चाहिए। उस स्थिति में रहते हैं, बो ये काम करने वाले नहीं। डरपोक लोगों से भी ये काम होने वाला नहीं। लेकिन वैसा बनना होगा। पहले लोग हिमालय पर जाते थे हजारों में से कोई एक को आत्मसाक्षात्कार की अनुभूति होती थी और बाकी तो सब ऐसे ही रह जाते थे। उनकी बड़ी तपस्या करनी पड़ती थी। अब आपको तपस्या करने की जरूरत नहीं। इसमें अगर नहीं हुआ तो ये नहीं कि मैंने बड़ा हिमालय पर जाने की ज़रूरत नहीं। भूखें रहने की ज़रूरत नहीं। कुछ करने की जरूरत नहीं। हुआ तो कोई वात नहीं पर ध्यान करना चाहिए तो आपकी सफाई का फिर कौन सा मार्ग ये जो मैं कह रही हूँ एक order की तरह से सहजयोग में है, जो शायद आपने जाना नहीं। नहीं। एक सूझबूझ की बात। एक विचार कि तो जान लीजिए कि सामूहिकता। सामूहिकता जिससे मुझे फौरन पता चल जाता है कि कौन ही आपकी सफाई का मार्ग है । जो लोग लोग ध्यान करते हैं रोज और कौन लोग नहीं हो ही रहा बन ही रही है उसमें बनाने का क्या है| आपकी स्थिति देवताओं जैसी है ये समझ आप बहुत आसानी से जा सकते हैं। कोई कठिन नहीं है कोई मुश्किल नहीं है लेकिन थोड़ा सा समय हमें अपने को भी देना चाहिए। पूरी समय । हम बेकार की चीजों में समय बिताते हैं तो कुछ समय हमें अपने को भी देना चाहिए। और सर्ेरे व शाम प्रतिदिन ध्यान करना चाहिए, प्रतिदिन। गलत कर दिया। ऐसी बात नहीं ध्यान गर नहीं 38 चैतन्य लहरी ।खंड : XII अक : 7 & 8. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-40.txt करते। फौरन। क्योंकि जैसे कोई कपड़ा रोज़ धोएँ गौरवशाली हैं और हमारे लिए सबसे कितना तो वह साफ ही रहेगा, उसमें गंदगी कसे आएगी? बड़ा काम, कितना ऊँचा काम हमें आता है। आशा है आप लोग मेरा लैक्चर सुन करके उस दिखाई दे जाती है। बहुत लोगों के 2-4 दिन पर थोड़ा सा विचार करेंगे। मनन करेंगे। ये न हों| ध्यान न करने से बहुत खराबी आ जाती है। तो कि मैंने कह दिया उसके बाद माता जी ने कह दिया। फिर वो दूसरों पर लगाते हैं, अपने लिए कहा है ऐसा नहीं नहीं सोचते। सोचते हैं माता जी अपने सुख के लिए, अपने हित के लिए और ने उनके लिए कहा मेरे लिए नहीं कहा। हरेक सारे संसार के हित के लिए हमें करना चाहिए। को सोचना चाहिए कि ये मरे लिए ही कहा अपने से गर हमें प्रेम है तो हमें चाहिए कि कि मुझको कैसे ऊपर उठना चाहिए, इसमें कैसे हम जाने कि हम कितने महत्वपूर्ण हैं, कितने मुझे कामयाब होना है. कैसे मुझे बढ़ना है। सबको अनन्त आशीर्वाद। और जो नहीं करते हैं उसकी गंदगी फौरन सन ये स्नान है। गर स्नान न करें तो भी चलेगा पर ध्यान जरूर करना चाहिए। अपनी शांति के लिए, 39 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & ৪, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-41.txt बम्बई जन् कार्यक्रम 13.3.2000 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन सत्य को खोजने वाले आप सभी साधको सारे देश को भी बरबाद करना चाहते हैं। ऐसे जो को हमारा प्रणाम । पहले हिन्दी में बात करेंगे और उसके बाद मराठी में क्योंकि हिन्दी हमारी लोग हैं बम्बई में तो खासकर लोग कहते हैं कि बहुत हो ज्यादा गुण्डे लोग बैठे हुए हैं। सो ये राष्ट्रभाषा है और मैं सोचती हूँ कि सव लोगों को कम से कम हिन्दी जान लेना चाहिए। मराठी जैसी तो कोई भाषा ही नहीं है, ये भी मैं मानती हूँ। लेकिन जा मराठी जानता है उसके लिए समझ में नहीं आता। इस वक्त ऐसी कोन सी बात हो गई है कि ये लोग सव पनप गए? उसका कारण है से घोर कलियुग। घोर कलियुग की ये पहचान है कि इसमें इस कदर ऐसे लोग हिन्दी जानना कोई मुश्किल नहीं। बहुत सरल जो कि अपने दुश्मन हैं, देश के दुश्मन सबके दुश्मन हैं, वो ज़रूर फूलेंगे-फलेंगे। पर भाषा है ये। आपके सामने अनेक बार मैंने कुण्डलिनी के बारे में बताया है और ये भी समझाया है कि कब तक? जब तक उनका जागरण नहीं होता जब आपकी कुण्डलिनी का जागरण हो जाता है कुण्डलिनी जागरण से कैंसे हमारे अन्दर के विध्वसक गुण हैं जो निकल जाते हैं। वो हमारे जाते हैं। आपकी प्रतिक्रिया जो है वो बदल जाती अन्दर पड्रिपु हैं काम क्रोध, मद, लोभ, मोह. मत्सर। ये पडरिपु हमेशा हमें सताते रहते हैं और माँ मैं जब सहजयोग में आया तो मेरी तबियत वो इसलिए आते हैं क्योंकि हमारा जो दिमाग हैं वदल गई। मतलब कहने लगे पहले मेरा जब तो आपको हैरानी होगी कि आप एकदम बदल है। अभी एक साहब हैं वी मुझे बता रहे थे कि वो हर समय कोई भी चीज़ को देखकर उसकी कहीं ट्रांसफर (Transfer) होता तो आफत। हम प्रतिक्रिया करता है। उस प्रतिक्रया के कारण लोग इतने परेशान रहते थे मियाँ-बीबी। ये सहजयोग प हम अन्दर अपने मस्तिष्क में ये सोचते हैं कि ये का कमाल है कि मुझे अब कुछ नहीं लगता। मैं मजे में हूँ. मैं आनन्द में हूँ। होना है वो होगा। ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि जब आप कुण्डलिनी सब करने से हमारा फायदा हो जाएगा. लेकिन ये तो हमारे सारे दुश्मन हैं। तो इनको अपनाने से आपको कैसे फायदा हो सकता है? किन्तु आज के जागरण की कृपा प्राप्त करते हैं और जब आपको ये मिलता है तब आप स्वय ही बदल जो समाज हम देखे रहे हैं, खासकर हमारे भारत-वर्ष में इतनी अराजकता फेली हुई है, इस जाते हैं। कोई उपदेश देने की जरुरत नहीं, कोई क़ंदर दुष्ट लोग आ गए हैं, ऐसे-ऐसे लोग चीज़ समझाने की ज़रूरत नहीं, कुछ नहीं। ये जिन्होंने खुद को भी बरबाद किया हुआ है और अपने आप ही घटित होता है क्योंकि ये शक्ति 40 चैतन्य लहरो खंड XII अक : 7 & 8. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-42.txt आपके अन्दर स्थित है। परमात्मा ने ये शक्ति कोई भी सिरदर्द नहीं, कोई भी आपको व्यायाम आपके अन्दर दे दी पर अर आपको उधर (Exercise) वरगैरा नहीं करना, सिर के बल नज़र ही नहीं करना, आपको उसके बारे में खड़ा नहीं होना, एक पॉव पर खड़ा नहीं होना, कुछ नहीं। और ये सबके लिए दुनिया में है, सारे समय बर्बाद कर रहे हैं। तो ऐसे लोगों के लिएसंसार के लिए इच्छुक है। सिर्फ आपके लिए उचित है कि वो फिर नहीं आएं सहजयोग में। नहीं, कहीं और लोग के लिए नहीं पर सारे पर जो लोग व्यकित हैं और जो सोचते हैं कि हमें संसार के लिए। सहजयोग 86 देशों में फैला जानना ही नहीं और आप बेकार चीज़ों में अपना कुछ प्राप्त करना है इस जोवन में, अगर हमें आत्मसाक्षात्कार मिल जाए तो कितनी ऊँची बात हुआ है और वहाँ के लोग मग्न हैं वड़े मग्न हैं हैं और उनकी जिन्दगियाँ दुरुस्त हो गई. खुश ठीक हो गई और घर में हर तरह का आराम चेन है? न हिमालय पर जाना है न पैसे देने हैं, न कुछ करना है। सो ये कितनी बढिया वात है और इसको प्राप्त करने के लिए आपको कोई आ गया। हर जगह आपको समझना चाहिए कि तकलीफ करने की जरूरत नहीं है। स्वयं परमात्मा जितने भी बड़े-बड़े धर्म हो गए उन्होंने कहा है ने आपके अन्दर ये शक्ति स्थित कर दी है और कि एक दिन ऐसा आने वाला है जिसमें आपका मनवन्तर होना है, जिसमें आप लोग विशेष चीज नहीं कर रहे, इस वक्त आप चूक गए तो ये को प्राप्त करेंगे। कुरान में तो साफ़ लिखा हुआ इसकी जागृति करना ही चाहिए। ये अगर आप कुछ बनने नहीं वाली बात। अभी सब काम आप करते हैं. सब परेशानियाँ उठाते हैं। कभी बोलेंगे। आ गया है, लेकिन आपके हाथ नहीं हैं कि जब क्रियामा आएगा तो आपके हाथ कि कुछ होता है. पर आपको अभी तक कोई बोल रहे हैं तो फ़ायदा क्या? इसको प्राप्त करना आनन्द नहीं मिला। आनन्द में सुख और दुख दी ही आप सबके जीवन का लक्ष्य है। आप नहीं करना चाहें ये आपकी मर्जी है। पर ये चीज़ दूसरे आपको कोई सत्य नहीं मिला। सत्य माने घटित हो सकती है और हो रही हैं अनेक देशों में और अपने देश में भी होना चाहिए। यहाँ की चीजें नहीं होतीं सिर्फ आनन्द केवल आनन्द। आधा-अधूरा मिला है, लेकिन केवल सत्य (Absolute Truth) नहीं मिला। उसके लिए कशमक्रश को देखते रोज की अशान्ति को आपको कुण्डलिनी का जागरण कराना चाहिए देखते हुए हमें मान लेना चाहिए कि उसे प्राप्त जिससे आपका जो है ये मस्तिष्क हरेक चीज़ों की प्रतिक्रिया करता रहता है वो एकदम रुक है परम स्थान है । उसके लिए आपको कुछ हुए करना चाहिए जिसमें परम शान्ति है, परम सुख जाएगा और उसके रुकने से आपका सम्बन्ध ही करना नहीं है। मैंने कहा घर द्वार छोड़ना नहीं है उस चारों तरफ फेली हुई परमात्मा की शक्ति से कुछ नहीं करना और इसे प्राप्त करना है। हो जाएगा। ये बड़े आश्चर्य की बात है कि ये जो कार्य है इतना सहज और सरल है। इसमें हमारे यहाँ मुश्किल ये है, ख़ासकर महाराष्ट्र में, कि लोग इतना ज्यादा जानते हैं एक बोरा भर 4ा। चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & 8, 2000 foll 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-43.txt के उन्होंने देवता लगा रखे हैं। घर पर उनके देख सकते हैं कि उनके बनाए हुए मानव लोग सर्वरे से शाम तक पूजा करना. ये करना वो इतनी बुरी तरह से पीटे जाएं, मारे जाएं, भगाए करना, उसमें चलता है या और तरह की चीजें जाएं. सताए जाएं? कभी नहीं। उसका इलाज चल पड़ी हैं। यही हाल हिन्दुओं का यही हाल ज़रूर उन्होंने हमारे अन्दर में किया है और मुसलमानों का है और यही हाल इसाईयों का। इस सब चक्करबाजी से आपको कुछ फ़ायदा इसके लिए अनेक साधू-सन्तों ने कहा है। कबीर ने कहा साफ-साफ, कोई कबीर हुआ ही नहीं। तो दूसरी तरफ आँख करके देखिए कि वो कौन सी चीज़ हैं जिसे हमें प्राप्त ह को समझ ही नहीं सकता कि वो क्या कह रहे हैं। असल में भाषा उनकी जो है वो बहुत करना है? जिससे हम ख़ुद स्वय को पहचान् काव्यमय होने से लोग कबीर को नहीं समझ लेंगे और हमारे पास वो सत्य आएगा जो सिर्फ सकते। पर कबीर ने कहा है साफ-साफ। सहजयोग सत्य है उसमें कोई खोट नहीं। उसको हम जानेंगे की सारी बातें कबीर ने कही हैं। कितने ही दोहे इस पर आईस्टिन जैसे बड़े भारी शास्त्री ने कहा ऐसे हैं जिसमें उन्होंने बताया है ईडा, पिंगला, ये सब चीजें आपको, एक उसको उन्होंने सुखमन नाड़ी रे। अब कोई कहेगा ये क्या होता टोर्शन एरिया (Torsion Area) कहा है। उस है-ईड़ा, पिंगला सुखमन नाड़ी? सहजयोग पा टोर्शन एरिया से आपको प्राप्त होगी और उससे आइए सब पता चल जाएगा। शून्य शिखर पर आपका सम्बन्ध होना बहुत जरूरी है। जब तक अनहद बाजे रे। अब कौन जाने शून्य शिखर क्या आपका उससे सम्बन्ध ही नहीं है तो आप है और अनहत् क्या है। हिन्दी में इस पर इतना नामस्मरण किसका कर रहे हो भई। कोई आपको कार्य हो चुका विशेषतः गुरुनानक साहब ने इसका बड़ा प्रधान्य रखा और हिन्दुस्तान में इस मामले में इन सब साधू-सन्तों ने बिल्कुल एक 1: पहचानता भी नहीं और आप नामस्मरण कर रहे है वो आपको हो! इन चीजों से जो असलियत मिलने वाली नहीं। असलियत जब होगी जब तान रखी, सब सहमत थे। आप असलियत पर आएं और यथाशक्ति उस जब महाराष्ट्र से नामदेव बड़े भारी कवि थे और बहुत बड़े सन्त थे जब वो पहुँचे पंजाब बहुत बार कहा है ग़र महीना भर आप लोग तो गुरुनानक ने उनका बड़ा मान किया और सहजयोग करें तो आप अपने ही गुरु हो जाते हैं उनसे कहा बेटे, तुम पंजाबी सीख लो और और आप स्वयं ही लोगों की बीमारियाँ ठीक पंजाबी में लिखो। इतनी बड़ी किताब उन्होंने कर सकते हैं । आपको ज़रूरी नहीं कि कहीं पंजाबी में लिखी और उसमें उन्होंनें पूरा कुण्डलिनी पर जम जाएं। कोई कठिन काम नहीं है मैंने और जगह जाएं या कुछ और लोगों से मदद लें। का वर्णन आदि व्गैरा बहुत सुन्दर कर दिया। ये सब कितनी बार कहनेपर भी लोगों के अब नामदेव जो थे वो श्री राम के भक्त थे और दिमाग में उतरता नहीं है ये बड़ा दुर्भाग्य हैं। वो सगुण में विश्वास करते थे। और नानक क्योंकि जिस परमात्मा ने सृष्टि रची है क्या वो साहब ने उनसे ये कहा कि देखा सगुण 42 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 7 & 8, 2000 পাe 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-44.txt विश्वास रखना बुरी बात नहीं क्योंकि तुम तो नहीं करो वो नहीं करो तो आधे लोग तो उठकर पार आदमी हो तुम्हारे लिए ठीक है। तुम जानते चले जाएगे लेकिन ग़र कूण्डलिनी का जागरण हो कि कोन सा संगुण ठीक है। तुम जानते हो कि कौन सा सगुण ठीक है कौन सा नहीं। कौन सी मूर्ति जो है स्वयंभू है कौन सी नहीं। पर सब जनता तो जानती नहीं है। तो इनके लिए निगुंण हो गया तो आप ख़ुद ही इस चीज़ को समझ लेंगे कि गलत है, ये हमारे लिए हानिकारक है। क्यों? क्योंकि आपकी आत्मा का प्रकाश आपके हृदय में से उमड़ता हुआ आपके चित्त में आ जाता है और हर एक आदमी समझ जाएगा. जो की बात करो। कबीर ने कहा है कि 'निर्भय निर्गुण गाऊंगा' निर्भय होकर मैं निर्गुण गाऊँगा। उन्होंने कहा कि मुझे किसी से भय नहीं मैं बुरा है और जो उचित है ये खास चीज आपके निर्गुण की बात करूगा और यही बात है। और आत्मसाक्षात्कारी है। जहाँ आप अपना अच्छा नामदेव ने भी, नामदेव ने भी निर्गुण पर ही बहुत बुरा पूरी तरह से समझ सकते हैं और इसके आत्मसाक्षात्कारी है, कि इसमें क्या गलत है क्या कुछ लिखा और जो निर्गुण है उसको आदि शंकराचार्य ने 'स्पन्द' कहा। स्पन्द माने आपके पूरी तरह से मदद है क्योंकि उनकी शक्ति चारों अन्दर जो चैतन्य की भावना है चैतन्य जो अलावा, इसके अलावा आपको परमात्मा की तरफ प्रेम की फैली हुई है। प्रेम' यही एक बड़ा महसूस होता है जिसे Viberations कहते हैं वो भारी सामर्थ्यवान आपके पास एक बड़ा समर्थ ही 'स्पन्द' है। सब लोगों ने यही बात कही है ऐसा एक शक्तिशाली विराजमान है। ये प्रेम, और विदेश में भी बहुत लोगों ने इस पर बात इसको निर्वाज्य प्रेम कहते हैं जिसमें आप किसी करी हुई है। पर किताबों की बातें किताबों में चीज की उम्मीद नहीं करते बस प्यार में डूबे जाते हैं। प्यार की जुबान और होती है. प्यार के और आजकल लोगों के दिमाग़ में पता नहीं क्या फित्र आ गया है कि वो समझना ही नहीं चाहते तौर-तरीके और हाते हैं। उसका ढंग और होता है। कि वो क्या हैं? किसलिए मैं गलत रास्ते पर चल रहा हूँ, किसलिए मैं सबको परेशान कर रहा हूँ, किसलिए मैंने यह सब अवलम्बन किया वशीभूत हैं ख़ासकर सहजयोगी लोगों ने इसको हम लाग सोचते हैं कि ऐसे लोग बहुत बिड़ला हैं बिल्कुल नहीं। ऐसे अनेक लोग हैं जो प्यार में हुआ है इस तरफ विचार ही नहीं आता और उससे क्या हो रहा है कि मनुष्य भटक गया है भटक के गलत रास्ते पर चला जाता है लेकिन उससे उसी की हानि होती है किसी और की अहसास किया कि प्यार कितनी बडी चीज़ हैं। लेकिन दूसरों से अच्छे से बात करना ही आजकल मुश्किल है उसके आगे जाइए तो ये दूसरों की चीजें हड़पना ये बहुत अच्छी बात है और उससे भी आगे जाइए तो आजकल जो चल रहा है रास्ते हैं आप लोग जानते भी हैं और लोगों को अपने देश में हर तरह की यातनाएं हर तरह की प्रक्षुब्ध करने वाली बहुत अत्यन्त ग्लानि लाने नहीं होगा ये मैं जानती हूँ मैं अग़र कहूँ कि ये वाली ऐसी चीजें ये सब आई हैं। मनुष्य इस 43 कुि नहीं उसकी हानि होतो है। अनेक भटकने के भटकते हुए देखते भी हैं। कुछ कहने से ठीक च्वैतन्य लहरी खंड : XII अक : 7 8 8. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-45.txt चीज़ के लिए नहीं पैदा हुआ है। मनुष्य पैदा अन्दर का दीप जला लेना चाहिए। जब ये दीप हुआ था कि उस परमात्मा की शक्ति को जाने और उस शक्ति का उपभोग करे उससे आनन्द पाएंगे कि हमारे अन्दर क्या शक्ति है और हम उठाए और हमेशा के लिए शान्ति का जीवन व्यतीत करे। शान्ति फैलाने के लिए सबसे अच्छी शक्ति है। बड़ी जबरदस्त है प्रेम की शक्ति। ऐसे जल जाएगा ता आप इस तरह आसानी से समझ इस शक्ति से क्या कर सकते हैं? ये प्रेम की चीज़ ये है कि आदमी का मनवन्तर होना चाहिए छिछोरा प्रेम नहीं ऐसे उथला प्रेम नहीं पर बड़ा Transformation होना चाहिए। जब तक आदमी बदलेगा नहीं जब तक उसके अन्दर ये प्रकाश गहन। ऐसा अन्दर से प्रेम का बिल्कुल प्रवाह जैसे कोई सागर बनाता हुआ दोड़ता है और उस आएगा नहीं। तब तक वो ऐसे ही भटकता रहेगा. प्रेम के सहारे आप आनन्द में बिल्कुल रहते हैं और दूसरों को भी आनन्द देते हैं। ये एक ऐसे ही धन्धे करता रहेगा. ऐसी ही चीजों में उलझता रहेगा जिसमें वो जानता ही नहीं कि परमशक्ति आपके अन्दर है जिसे मैं यही विनती सीधे रस्ते चल रहा है कि नहीं। इसलिए अपने करूंगी कि आप लोग इसे प्राप्त करें। आप सबको अनन्त आशीर्वाद 44 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 7 & 8, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-47.txt े ाभ तो आपकी सफाई का फिर कौन सा मार्ग सहजयोग में है, जो शायव आपने जाना नहीं। तो जान लीजिए कि सामूहिकता। सामूहिकता ही आपकी सफाई का मार्ग है । जो लोग सामूहिक हो सकते हैं निर्वाच्य, निर्वाज्य तरीके से जो सामूहिक हो सकते हैं उनकी सफाई अपने आप हो जाएगी। उनको कोई विशेष तपस्या करने की ज़रूरत नहीं। सामूहिकता को भी एक तपस्या की तरह से नहीं बल्कि एक आनन्व की तरह से मानना चाहिए। उसमें अगर ये सोचे कि कैसे इन लोगों के साथ रहा जाए, ये तो ऐसे लोग हैं, ये तो वैसे लोग हैं क्योंकि सहजयोग में सबके लिए द्वार खुले हैं तो वो आपके लिए कठिन हो जाएगा गर आप यह सोचते हैं। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला वेवी 27.11.91