ा हिन्दी आवृत्ति चैतन्य लहरी प् सितम्बर अक्टूबर-2000 अंक १& 10 खण्ड - XII म ३० आप स्वयं ही अपने गुरु हैं। अत: देखिए कि हमारे अन्दर क्या खराबी है। क्या हम अपने हृदय से पूरी तरह से सहजयोग को अपनाते हैं या नहीं। शिवरात्रि पूजा 5.3.2000 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी पा नीचे दिए गये चित्र में ओंकार का बड़ा प्रतिरूप। जे ० ह क ू ह. ूर १ कि र सहजयोगियों द्वारा नासिक ( महाराषष्ट् ) में किए जा रहे यज्ञ की पावन अग्नि से प्रकट होते ओंकार। इस अंक में 3. सहस्रार पूजा-7.5.2000, 1. शिवशक्ति पूजा 5.3.2000 15 2. भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों के सम्मुख प्रवचन दिल्ली- 8.4.2000 21 3. अन्य लोगों को प्रभावित कैसे करें-17.9.86 36 4. योगी महाजन सम्पादक : विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली- 110 067 : अभिनव प्रिन्ट्स, दिल्ली-34 फोन : 7184340 मुद्रक सहसार पूजा कवैला 7.5.2000 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन सहजयोग में आप विनम्र होते हैं और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो सकता है। उनकी जीवन शैली भी ऐसी है कि उनके पास अपने लिए प्रतिक्रिया नहीं करते। तीस वर्ष पूर्व जब सहस्रार समय नहीं खोला गया तो मुझे चहुँ ओर अंधेरा दिखाई है। आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के लिए लोगों को समझाना मुझे बहुत कठिन लगा क्योंकि दिया। लोग अत्यन्त अज्ञानी थे। उन्हें क्या खोजना आत्मसाक्षात्कार को वे कल्पना मात्र मानते थे। वे है इस बात की विल्कुल भी चेतना ने थी। नि:सन्देह मुझे लगा कि वे किसी अज्ञात चीज़़ समझते थे कि यह बहुत दूर की बात है और परन्तु वे नहीं जानते थे कि गुरुओं में विश्वास करते थे जो उनसे सीधे से कहें " इतने कर्मकाण्ड प्रतिदिन करो । को पाना चाहते थे। वह अज्ञात तत्व क्या है जिसे उन्हें खोजना है। " अपने गुरुओं की देख-रेख में वे ये सभी कर्मकाण्ड अपने विषय में, अपने वातावरण के विषय में और जीवन के लक्ष्य के विषय में वे कुछ नहीं जानते थे मेरे समझ में नहीं आता था कि किस कर रहे थे, उन्हें इस बात का भी ज्ञन न था कि सर्वप्रथम आपको स्वयं को जानना होगा जैसा कि सभी महान अवतरणों और सन्तों ने कहा है। यह प्रकार उस विषय को आरम्भ किया जाए। सहस्रार खोलने के बाद मैंने केवल एक महिला पर केवल मेरी ही धारणा न थी कि लोग आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करें, इन सब लोगों का भी यही विचार था। सदियों तक एक के बाद आत्मसाक्षात्कार का प्रयोग करना चाहा। वह एक वृद्ध महिला थी। उनके साथ एक अन्य महिला भी आने लगी। एक सन्त तथा अवतरण ने कहा कि स्वयं को खोजो। ईसा मसीह ने भी कहा कि स्वयं को इस महिला को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो पहचानो, मोहम्मद साहब ने भी वही बात कही और नानक साहब ने भी। परन्तु किसी मनुष्य ने गया और तत्पश्चात् एक अन्य महिला, जो कि छोटी थी, ने मुझे बताया कि उसे आयु में बहुत दौरें पड़ते भी यह जानने का प्रयत्न नहीं किया कि यह हैं और वह भूत बाधित हो जाती है। हैं परमात्मा! मैंने कहा"किस प्रकार में इसकी कर्मकाण्ड जीवन का अन्तिम लक्ष्य नहीं है जागृति करूंगी।" परन्तु वह भी शीघ्र ही ठीक हो गई और उसे भी आत्मसाक्षात्कार मिल गया। इससे कुछ प्राप्त न होगा तथा व्यक्ति को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना ही होगा। तो केवल यह अत्यन्त अज्ञात ज्ञान है। परन्तु मानव अपने उन दोनों महिलाओं ने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त अहंकार में यह स्वीकार करने के लिए नहीं किया। इसके पश्चात् मैंने सोचा कि समुद्र तट पर चलें । तीस लोग मेरे साथ आए और वो भी रुकता कि वह अभी अपूर्ण है और उसे चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 9 & 10. 2000 बड़े ही अटपटे ढंग से बातचीत कर रहे थे कि नहीं करना। तो इस प्रकार शनै: शनै: यह कार्य कार्यान्वित होने लगा और मुझे याद है कि जिन है? वे तो इसके अधिकारी भी नहीं हैं इतने लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ वे मुझसे भले तो वे कभी भी न थ्े सभी प्रकार की बातें कहने लगे" श्रीमाताजी आप हमें दुर्गा पूजा करने कर रहे थे। अपनी भत्त्संना कर रहे थे। परन्तु की आज्ञा दें। दुर्गा पूजा को बहुत कठिन पूजा किस प्रकार उन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो सकता उस समूह में से भी मुझे बारह लोग ऐसे मिल माना जाता था और ब्रह्मण लोग प्रायः इस पूजा गए जिन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ। वो दो को करने के लिए तैयार न होते थे क्योंकि वे आत्मसाक्षात्कारी न थे। दुर्गा पूजा कराने बाले पण्डितों को मूच्च्छा आदि की समस्या हो जाया होती है क्योंकि लोग यही नहीं समझते कि क्यों करती थी तो उन लोगों ने सात ब्राह्मण बुलवाए वे आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करें मुझे अत्यन्त निराशा और उनसे कहा कि तुम्हें किसी प्रकार की चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं। तुम्हें कुछ महिलाएं भी इन्हीं में से थीं। इससे पता चलता है कि स्वयं को पहचानने की गति बहुत कम हुई क्योंकि मेरी बात कोई समझता ही न था। एक दिन ऐसा हुआ कि मेरे कार्यक्रम में एक नहीं होगा क्योंकि आप साकार दुर्गा के सम्मुख महिला आई। वह भूत बाधित थी और उसने बैठे हुए हो। ये कोई मूर्ति नहीं संस्कृत बोलनी शुर कर दी। वह मात्र नौकरानी की पूजा है। वे काफी घबरा गए थे और स्थान है। यह साकार थी। सभी लोग हैरान हो गए, परन्तु वह कहने से उतरना चाह रहे थे। अचानक उनके अन्दर लगी" कि तुम नहीं जानते ये कौन हैं?" और कुछ हुआ और बड़े ही आत्मविश्वास के साथ तब उसने सौन्दर्य लहरी, के अनुरूप मेरा वर्णन उन्होंने मन्त्र आदि का उच्चारण प्रारम्भ कर करना आरम्भ कर दिया। मैं भी हैरान थी कि दिया। चहूँ ओर चैतन्य लहरियाँ फैल गई। हम इस महिला को क्या हुआ! पुरुष की आवाज में लोग समुद्र के बहुत नज़दीक थे और समुद्र भी वह बोल रही थी। लोग इस बात पर विश्वास दहाड़ रहा था। परन्तु इन सात पण्डितों के अतिरिक्त किसी को कुछ समझ नहीं आया। ये कहने लगे हमें कुछ नहीं हुआ, हमने सभी कुछ भली भांति किया है । मेरे विचार से यह घटना करें या न करें परन्तु वह भयानक भूत बाधित थी। तब लोग मेरे पास आए और पूछने लगे कि जो यह महिला कह रही है क्या यह सत्य है?" मैंने कहा आप स्वयं इसका पता लगाओं। उन प्रथम चमत्कार ही थी। मानव मस्तष्क की इस मा। दिनों लोग ऐसे होते थे कि उनसे अगर इस स्तर पर और ऐसे समय में स्थिति देखो। वह स्वयं को बहुत महत्वपूर्ण मान लेते हैं और अपना कोई अन्त उन्हें दिखाई नहीं देता। उन प्रकार की कोई बात कह दी जाए तो वो अपना मुँह मोड़ लेते थे । वे केवल ऐसे कुगुरुओं से ही प्रसन्न रहते थे जो उनसे पैसे ऐंठता रहे। वो पण्डितों ने भी यही समझा कि वे बहुत महान सांचते थे कि गुरु को तो अब हमने खरीद ही न । हैं। स्वयं को समझने के लिए क्या है? हम स्वयं लिया अब किस वात की चिन्ता है। तुम्हें कुछ को पहचानते हैं। चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 9 & 10. 2000 শ विशेषता ये है कि वे धन स्वीकार करते हैं और तो विनमता साधना की प्र थम आप यदि सोचते हैं कि लोगों से कहते हैं कि इतना पैसा लेकर आओ, आवश्यकता है। आप सब कुछ जानते हैं तो आप विनम्र नहीं ऐसा करो, ये फीस है। इस प्रकार लोगों का अहं हो सकते और न ही कुछ प्राप्त कर सकते हैं। साधना करते हुए भी ऐसा व्यक्ति किसी के लेते हैं। इस असत्य का अहसास बाद में उन्हें शान्त होता है और वे असत्य को स्वीकार कर हो जाएगा क्योंकि इसके कारण उन्हें बहुत सी शारीरिक और मानसिक समस्याएं हो जाएंगी बताए हुए मार्ग पर नहीं चल सकता और कहता है कि मैं अपने ही मार्ग पर चलूंगा। हमारा अपना ही एक मार्ग है जिसके अनुसार हम चलेंगे। जो परन्तु तब तक वे पतन के कग़ार पर होंगे । सहस्रार का वर्णन किसी भी धर्म ग्रन्थ में भी हम चाहते हैं करते हैं। भिन्न देशों में भिन्न प्रकार के लागों से मेरा पाला पड़ा जो केवल मेरा नहीं किया गया यद्यपि इसके विषय में भारतीय भाषण सुनने के लिए आते हैं। वस, समाप्त। वो प्राचीन पुस्तकों में बताया गया है। सहस्रार की आत्मसाक्षात्कार भी न लेंगे। उनमें से कुछ ने बातचीत तो की परन्तु किसी ने इसका वर्णन आत्मसाक्षात्कार लिया भी परन्तु पाकर भी इसे नहीं किया। केवल इतना बताया कि इसकी एक हजार पंखुड़ियां होती हैं। यदि उन्होंने इसका थोड़ा सा वर्णन किया होता तो मेरे लिए लोगों को खो दिया। मेरे लिए यह अत्यन्त अजीब कहानी थी कि मैं उन्हें आत्मसाक्षात्कार दे रही हैँ। बेकार ये समझाना सुगम हो गया होता कि इस ग्रन्थ में ही मैं ऐसे लोगों को साथ ले चल रही हूँ। अपने खर्चे से में यात्रा किया करती थी। इसके बावजूद ऐसा लिखा है। लोग इस बात को पसन्द करते हैं कि हर बात किसी ग्रन्थ में लिखी होनी भी क्यों नहीं ये लोग आत्मसाक्षात्कार का मूल्य समझते? तब एक आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति ने चाहिए। तभी वो इसे स्वीकार करते हैं। स्थिति काफी कठिन थी क्योंकि किसी ने भी आज तक मुझे बताया कि आज का समाज उपभोक्ता समाज है। जब तक आप इनसे पैसा नहीं लेंगे, सामूहिक आत्मसाक्षात्कार न दिया था। एक दो इन्हें इसका मूल्य समझ नहीं आएगा। उन्हें लोगों के अतिरिक्त किसी ने भी इसके विषय में नहीं लिखा और इन लेखकों ने कुण्डलिनी के महसूस करवाएं कि उन्होंने अपने आत्मसाक्षात्कार के लिए धन खर्च किया है दरवाजे पर ही विषय में स्पष्ट लिखा। परन्तु मेरे विचार से पद्य किसी व्यक्ति को पैसा लेने के लिए बिठा दें (कविता) में लिखा होने के कारण यह भी स्पष्ट न था। लोग इसके विषय में भजन गाते अन्यथा ये लोग आत्मसाक्षात्कार नहीं लेंगे। मैंने कहा,"परन्तु इसे बेचा नहीं जा सकता, ऐसा परन्तु समझते कुछ भी नहीं। मैं सोचती कि साधना में यहाँ-वहाँ भटके इन लोगों का क्या करना तो अनुचित होगा। लोगों को आत्मसाक्षात्कार वेचा नहीं जा सकता। कहने लगा, तब आप होगा और किस प्रकार में इन्हें आत्मसाक्षात्कार दे सफल नहीं हो सकतीं और न ही अन्य गुरुओं पाऊंगी? मेरे अनुभव बहुत ही कष्टकर थे। ॥ मः से मुकाबला कर सकती हैं। अन्य गुरु चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 9 & 10, 2000 कोई बात नहीं। मैं आगे बढती गई, बढती उं. की परन्तु गई और इसे कार्यान्वित किया। नि:सन्देह बहुत कलियुग में हम ये आशा नहीं कर सकते कि खरवों की संख्या में लोग सहजयोग करें। यद्यपि से क्रूर पड़ा जिन्होंने मुझे भी बहुत कष्ट पहुँचाया और ये मेरी भी कामना है और आप लोगों की भी सहजयोगियों को भी। ये सारी चीजें मेरे उत्साह और आप चाहते हैं कि सभी लोग आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करें जिससे बहुत सी अच्छी चीजें घटित हों। बहुत से लोग रोग मुक्त हुए। ईसा मसीह ने को दुर्बल कर सकती थीं परन्तु इसके विपरीत मैंने सोचना आरम्भ कर दिया कि लोग ऐसे क्यों केवल 21 लोगों को ही स्वस्थ किया था मैं नहीं जानती कि कितने हजारों लोग सहजयोग से ठीक हैं? और तब मुझे महसूस हुआ कि पूरे विश्व को तो हम आत्मसाक्षात्कार नहीं दे सकते। यह हैं? अन्तिम निर्णय है। इस समय लोगों को निर्णय हुए करना होगा कि सबसे महत्वपूर्ण चीज़ क्या है? मनुष्य के साथ एक अन्य समस्या भी है कि वे सभी प्रकार की उल्टी-सीधी पुस्तकें रहे हैं? लम्बी सी 'नहीं' कर देने से बात नहीं पढ़ते हैं। उनके विचार स्पष्ट नहीं हैं कि वे क्या बनेगो। केवल दृढ़ सहजयोगी ही इस कार्य में खोजें। वे नहीं जानते कि उनकी खोज क्या है। उन्हें स्वयं को पहचानना होगा कि वे क्या कर ये बहुत बड़ी समस्या है। और जो भी कहीं कुछ उपलब्ध है वे उसका अनुसरण करने लगते हैं। यें अस्थिर प्रवृत्ति लोग हैं. एक मार्ग से दूसरा मार्ग ये अपनाते रहते हैं और सहजयोग में इनकी सहायता कर सकते हैं। तब मैंने देखा कि लाइलाज रोगों से मुक्त हुए लोग भी गायब हो गए। नशे, शराब और धुम्रपान के आदी लोगों ने ये सब छोड़ दिया। मैंने कभी भी कुछ छोड़ने के लिए नहीं कहा। मैं जानती हूँ कि जब कुण्डलिनी उठती है तो वे स्वतः ही लोग बहुत शुद्ध और सुन्दर बन जाते हैं और अपने जीवन का आनन्द लेने लगते हैं। परन्तु उन पर कोई विश्वास ही उन्नति बहुत कठिन है। क्योंकि एक मार्ग पर चलते-चलते यदि आप दूसरा मार्ग पकड़ लेते हैं तो हो सकता है वहीं पहुँच जाएं जहाँ से चले थे। वे सोचते हैं उन्हें ऐसा करने की स्वतन्त्रता है। नहीं करता था। वो लोग जाकर जब अन्य लोगों वास्तव में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किए विना आपको से बताते तो वे कहते ये पागल हो गए हैं। लोगों कोई भी स्वतन्त्रता नहीं है। स्वतन्त्रता वह होती की समझ में न आता कि किस प्रकार इन्होंने है जिसमें आप जानते हों कि आप क्या हैं और आपमें क्या योग्यता है। स्वतन्त्रता में शराब पीनी छोड़ दी किस प्रकार धूम्रपान त्याग आप ही सारे आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। आशीर्वाद यदि नहीं मिलते तो आप स्वतन्त्र दिया? जब हम पीना चाहते हैं तो ये जागृति क्या है? ऐसे लोगों की पहचान करने पर मैंने जाना कि ये लोंग अत्यन्त घटिया चीजों का आनन्द नहीं हैं। आपके जीवन में कहीं न कहीं कुछ लेने वाले थे। ऐसा आनन्द जिसका आत्मा से कमी है। एक बार आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर कोई लेना देना नहीं। परन्तु शनै: शनै: ये कार्यान्वित होने लगा फिर भी मैं कहूंगी कि इस घोर चैतन्य लहरी लेने के पश्चात् आप पूर्णत: स्वतन्त्र मानव बन जाते हैं। स्वतन्त्र , माने आपकी आत्मा आपका 9. ।खंड : XI अंक : 9 8 10.2000 पथ प्रदर्शन करती है। जैसा आप जानते हैं आत्मा आप चीज़ों को महसूस कर सकें। उदाहरण के रूप में हो सकता है सहजयोग है। सभी लोगों में यदि एक ही सा प्रतिबिम्ब हैं में कुछ असन्तुष्ट लोग हों। परन्तु इसके विषय और यदि सभी लोग जागृत हैं ता चेतना में ये में आप चैतन्य लहरियों क माध्यम से पता लगा सकते हैं। ये कौन लोग हैं ये क्या कर रहे हैं। परमेश्वर का, सर्वशक्तिमान परमात्मा का प्रतिबिम्ब कार्य करता है। मानो ये जानते हों कि ठीक क्या हैं गलत क्या है। सृजनात्मक क्या है और विध्वंसक चैतन्य लहरियों द्वारा आप जान सकते हैं कि क्या हैं? ये कोई झूठा है। बास्तविकता को आप अनुभव करते हैं और पहुँचे हैं। आप समझ सकते हैं कि आपका यही घटित होना होता है। अनुभव सहजयोग में संतोष नहीं है। वास्तविकता उनमें से कोन लोग सत्य की उस अवस्था तक विरोध करने वाले ये लोग आपको क्या बताने पहली चीज़ है। अनुभव जो आप आपने अन्दर करते हैं-स्पन्द, अपनी अंगुलियों के सिरों पर है। अपनी अंगुलियों के सिरों पर आप इसे जान शीतल लहरियों का अनुभव। अनुभव के बिना सकते हैं । यही कयामा है. जिसके विषय में का प्रयत्न कर रहे हैं और इनकी गहनता कितनी आपका इसका विश्वास नहीं करना चाहिए। मोहम्मद साहव ने बताया। मैं आपको अपना उस इसका अर्थ ये है कि अब आपके नाडी तन्त्र पर व्यक्ति आया दिन का अनुभव बताऊगी। एक और स्वयं को दूरदर्शन का अधिकारी बताकर एक नया आयाम आ गया है कि अब आप एक नई प्रणाली को महसूस कर सकते हैं जा अब मुझसे उल्टे सीधे सवाल करने लगा. जिनका कोई सिर पैर ही न था। उसका नाम अब्बास था। तक आप नहीं जानते थे। अनुकम्पी नाड़ी तन्त्र तो पहले से था परन्तु इसको कार्यशैली का ज्ञान मैंने उससे कहा अब्यास मियां आप अपना और आपको न था। आपका आत्मज्ञान अत्यन्त दुर्बल मेरा दोनों का समय बनदि कर रहे हैं। क्या आप सही प्रश्न पूछेंगे? कहने लगा मैं सारी धर्मान्धिता चीज ज्योतिरमय हो उठी। अचानक आपको अपने के विरूद्ध हूँ। मंने कहा में तो धर्मान्ध नहीं हूँ। आप कैसे जानते हैं मैं धर्मान्ध हूँ या नहीं? कहने थी। परेन्तु अत्मिसाक्षात्कार के बाद अचानक हर अन्दर एक नयापन महसूस होने लगता है परन्तु अब भी कभी-कभी आपको अपने अरहं से लगा में ये जानने का प्रयत्न कर रहा हूँ। ठीक है मैने कहा, आप अपने दोनों हाथों को मेरी तरफ करें। मोहम्मद साहब ने कहा है कियामा लड़ना पड़ता है और चीजों के विषय में अपनी अज्ञानता पर नियंत्रण करना पड़ता है क्योंकि आत्मसाक्षात्कार आपको पूर्ण ज्ञान देता है। पूर्ण ज्ञान। इसे चुनौती नहीं दी जा सकती। इसके जाएंगे। तुरन्त उसके दोनों हाथों में शीतल लहरियाँ के वक्त आपके हाथ बालंगे और आप हैरान हो संकेता को जाँचा जा सकता है और पता लगाया महसूस होने लगी। कहने लगा, "कि ये क्या कि ये ठीक है कि गुलत है । ये है?" मैंने कहा "यहीं वास्तविकता है"। वाद जा सकता है विवाद करने का या इसके विषय में बातचीत घटना आप सबके साथ घटित हो चुकी है और आप सब वो चैतन्य लहरियाँ पा चुके हैं जिनसे करने का तथा पुछताछ करने का कोई लाभ 7. चैेतन्य लहरी खड :X1 अक : 9 & 10, 20000 आपको दिखाई दे जाए तो आप वह खाना उस नहीं। स्वयं इसे देखो इसका अनुभव करो। वह न। भूखे व्यक्ति को देना चाहेंगे। इस विश्व में भी आप लोगों को पागलों की तरह से परमात्मा स्तब्ध था और इसके पश्चात् जो भी बातें उसने मुझसे पहले की थी वो उसने नहीं छापीं मेरा की खोज में इधर उधर दौड़ते हुए पाते हैं। आप देखते हैं कि वे सभी प्रकार के कर्मकाण्ड कर रहे हैं और आप उन्हें बताना चाहते हैं कहने का अभिप्राय ये है कि लोग यदि सत्य तो कुछ भी तक पहुंच जाए, सत्य को जान जाएं न विगड़ेगा। महान लोगों के जीवन में, आप देखते हैं, कि केवल पुस्तकों में पढ़कर या कि वे इन सब चीज़ों पर विश्वास करें या न अन्धविश्वास द्वारा वे सत्य को स्वीकार नहीं करें। हो सकता है कि वे इस बात से पूरी तरह इन्कार करें, इसका विरोध करें या अपने मध्य नाडी तन्त्र पर वे सत्य परन्तु करते। का अनुभव करते और तब कोई उन्हें परिवर्तित इसके विषय में कुछ न जान सकें। परन्तु आप निश्चित रूप से जानते हैं कि आप नहीं कर सकता, वैसे ही जैसे एक बीज जब पड़ बन जाता है तो उसे पुन: बीज में परिवर्तित ठीक मार्ग पर हैं और आपकी मनःस्थिति नहीं किया जा सकता। बीज तो बीज है । यह बिल्कुल ठीक अवस्था में है। संस्कृत में इसे जब पड़ बन जाता है तो कोई भी इसे अपनी पूर्व स्थिति में नहीं ला सकता। इसी प्रकार सहजावस्था कहते हैं। सहजावस्था में आप प्रतिक्रिया नहीं करते, केवल देखते हैं और आनन्द उठाते हैं। अब आप देखें कि मैं आई और देखा कि सहस्रार और सभी चक्रों का आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके जब आप परमात्मा से एकरूप हो जाते हैं तो आपके पतन का प्रश्न कितना सुन्दर रूप बनाया गया है। इन्हें इतने ही समाप्त हो जाता है। बड़ी ही प्रशंसनीय बात सुन्दर ढंग से अभिव्यक्त किया गया है कोई अन्य व्यक्ति होता तो कहता ओहो! रंगों का है कि किस प्रकार आपने वो गुण प्राप्त किया? किस प्रकार आपने अपनी योग्यता को पहचाना सम्मिश्रण ठीक नहीं हैं। क्यों? इनको इन्होंने क्यों और फिर भी आप इसका उपयोग नहीं करते? नि:सन्देह इसके लिए आपकी ध्यान धारणा करनी उपयोग किया? इसकी जगह इन्होंने कोई और रंग क्यों नहीं लगाए? इस प्रकार से दूसरों में दोष हागी। जब आप ध्यान धारणा में उतर जाते हैं तो आपका अस्तित्व ज्योतिर्मय होकर इतना सुन्दर ढूंढते हैं। दूसरों में दोष ढूँढना उस मस्तिष्क हो जाता है कि फिर आप उसे बदलना नहीं की देन होता है जो अभी तक ज्योतित नहीं हुआ। प्रतिक्रिया के संस्कार के कारण आप चाहते। उसी स्थिति में रहकर आप सदैव उसका आनन्द लेते हैं। आप ये आनन्द अन्य लोगों में किसी चीज़ का आनन्द नहीं ले सकते। सदैव प्रतिक्रिया करने में लगे रहते हैं। कोई भी बाँटना चाहते हैं क्योंकि आपको लगता है कि यदि अच्छी बात बताए तो भी आप प्रतिक्रिया आप जब ये आनन्द उठा रहे हैं तो क्यों न अन्य करने में लगे रहते हैं। बुरी बात पर तो आप लोग भी इसे पा लें। वैसे ही जैसे आपके पास पर्याप्त भोजन हो और सड़क पर कोई भूखा प्रतिक्रिया करते ही हैं। अतः हमें समझ लेना खंड XII अक : 9 8 ।0. 2000 चैतन्य लहरी कए चाहिए कि हमें प्रतिक्रिया करने की स्वतन्त्रता दूसरे कोण से यदि आप देखें. सहजस्थिति से, नहीं है। हम इतने हल्के नहीं हैं कि प्रतिक्रिया तो आपको कष्ट महसूस ही न होंगे। परन्तु करें। बहुत ऊंचे स्थान पर हम बैठे हुए हैं । इसके लिए आपके अन्दर उच्च मापदण्ड बनने केवल आनन्द उठाना ही हमारा कार्य है। हर आवश्यक है। उस दिन मेरी भंट कुछ सरकारी अधिकारियों से हुई मैने उन्हें बताया कि मैं चीज़ का आनन्द उठाएं क्योंकि वह आनन्द परमात्मा का आशीर्वाद है। जीवन के उथल जानती हूँ कि वेतन बहुत कम है। आप सोच कि अन्य लोगों को बहुत अधिक वतन पुथल और कष्टों का भी आप आनन्द उठा सकते हैं सकते हैं। यदि आप यह बात अच्छी तरह जान लें कि आपकी आत्मा को कुछ भी हानि नहीं हो सकती. क्योंकि यही सच्ची ज्योति है, तो आप मिलता है और बहुत अधिक सुविधाए। परन्तु एक तरह से आपको वास्तव में आनन्द प्राप्त सकता है. अपने कार्य से। अपने देश के लिए हर चीज का आनन्द उठा सकते हैं। जो भी यदि आपमें भक्ति है तो कोई भी बलिदान श हों, चाहे जो भी चीज़ आपको तकलीफे आपको आपके लिए अधिक न होगा। किसी को यदि कष्ट दे रही हो परन्तु आत्मा का मोन प्रकाश आप कुछ देना चाहते हैं तो कोई भी कष्ट, कण्ट आपको वास्तव में पूर्णतया आनन्दमय बनाता है न मानते हुए आप किसी भी स्तर तक जा सकते और अन्य लोगों को भी आनन्द प्रदान करता है। हैं। ऐसा करने से आपकी भावनाएं वहुत गहन हो जाती हैं। मान लो आप यात्रा कर रहे हैं और न तो आप इसकी रूपरेखा बनाते हैं न योजना कि किस प्रकार आनन्द लिया जाए, यह तो अचानक कोई सहयात्री बहुत बीमार हो जाता है। चैतन्य लहरियों द्वारा आप महसूस कर सकते हैं स्वत: ही आनन्द प्रदान करता है। आनन्द देने की यह किया विना किसी प्रयत्न के स्वतः और कि यह व्यक्ति वीमार है। तुरन्त उसके प्रति सहानुभूति और प्रेम उमड़ पड़ता है और आप सहज है क्योंकि आप सहजावस्था में हैं। सहजावस्था में आप चीजों को केवल देखते तुरन्त उसकी सहायता को तत्पर हो उठते हैं। भर है। आपको लगता है कि ये तो मात्र एक और सम्भव हो तो आप उसे ठीक करने ा नाटक है। जिसकी भिन्न शैलियाँ हैं, भिन्न प्रयत्न भी करते हैं. विल्कुल वैसे ही जैसे कि समुद्र सारी नदियों को ओर सभी प्रकार के जल प्रकार है। साक्षी रूप में आप इसे देखते भर को अपने पेट में समोह लेता है। सभी कुछ हैं और इसका आनन्द उठाते हैं। ऐसा कहना आवश्यक नहीं है कि मुझे ये पसन्द है, मुझे अपने में समा लेता है न तो ये किसी को कष्ट वो पसन्द है, बिल्कुल नहीं। यह में जो देता है न दुख। यह प्रम से किसी को वश में पसन्द करता है वह अहं के अतिरिक्त कुछ करने वाली बात है। समुद्र अपनी शक्ति नहीं भी नहीं। यह आपको उस आनन्द से, जो दर्शाता, अपने महत्व की चिन्ता नहीं करता कोई वास्तविकता है, जो सत्य है, दूर रखता है। यदि आपका अपमान करता है तो ठीक है, संसार की हर चीज़ आपकों कष्टकर लगती है अपमान को भी सहन कर लें। ऐसे व्यक्ति जो चैंतन्य लहरी खड : XII अक : 98 10. 2000 । नि:संदेह यह अविश्वसनीय प्रतीत होता है। परन्तु सहजावस्था को प्राप्त हो चुके हैं शाश्वत कला, संगीत तथा महान विचारों के सृष्टा होते हैं। बहुत हैं। आप अब देखें कि ये एहसासे कितना मधुर ाि से लोग लिखते हैं जो कुछ हो दिनां में समाप्त हम सब एक है न कोई झगड़ा है न लड़ाई है न कुविचार। कोई भी घटिया चीजों को पसन्द और हो जाता है। बहुत से लोग सृजन करते हैं परन्तु कोई उनकी चिन्ता नहीं करता। परन्तु नहीं करता. सभी आनन्दकर चीजें चाहते आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति जो भी कुछ सृजन करता सबमें सूझ बूझ का यह गुण है मैने लोगों को कवि वनकर सुन्दर कविताएँ लिखते हुए देखा है वह शाश्वत (Eternal) होता है। क्योंकि अब वो अनन्तता के सागर में है। अब वे पावित्र्य के है। उन्हें सृजन करते हुए देखा है तथा बहुत सागर में है जहाँ किसी को कष्ट पहुँचाने का, किसी को दुख देने का विचार तक नहीं है। उस स्थिति में सभी को ऐसी सुरक्षा प्राप्त है। कोई उन्हें हानि नहीं पहुँचा सकता क्योंकि आखिरकार अच्छे आयोजक बनते हुए भी देखा है। परन्तु सबसे महत्वपूर्ण चीज जो है वह है विनम्रता। आरम्भ में भी मैंने कहा था और अब फिर कहँगी कि लोगों को आपकी विनम्रता ही आकर्षित करेंगी आप लाग अब परमात्मा के साम्राज्य में हैं। कोन । आपको विनम्र व्यक्ति बनना चाहिए। स्वयं को कभी विशेष न समझे और न ही स्वयं है? सहजयोगियों में मैंन ऐसी ही सम्पदा, ऐसी की श्रेष्ठ माने। स्वयं को यदि आप महत्वपूर्ण आपको हानि पहुँचा सकता है या कष्ट दे सकता ही उदारता और ऐसी ही सूझ-बूझ देखी है। मुझे समझते हैं तो आप पूर्ण के अंग-प्रत्यंग नहीं भाषण नहीं देने पड़ते कि ऐसा करो ऐसा मत रहते। मरा एक हाथ यदि स्वयं को महत्वपूर्ण मानने लगे तो ये इसकी मूर्खता होगी अकेला अभी तक सहजयोग में परिपक्व नहीं हुए हैं हाथ किस प्रकार महत्वपूर्ण हो सकता है? सभी करो। न, इसकी कोई आवश्यकता नहीं। जो लोग मा] उन्हें चाहिए कि परिपक्वता को प्राप्त करें और हाथों की आवश्यकता होती है, चीज़ों की अन्य लोगों को चाहिए कि यदि ये लोग कष्टकर आवश्यकता होती है, टॉँगों की आवश्यकता होती है? एक अंग किस प्रकार महत्वपूर्ण हो सकता हैं तो भी इनका बुरा न मानें। इन पर करुणा करें ताकि ये परिपक्व हो सकें। आज बहुत महान हैं। अपनी सहजयोंग यात्रा में कभी भी आप यदि दिन है। पिछले तीस वर्ष मैं एक स्थान से दूसरे इस प्रकार सोचने लगे तो में कहूँगी कि आप स्थान तक दौड़ती रही और इतने सारे सहजयोगी सहजावस्था में नहीं हैं। मरा ये प्रयत्न था कि आप लोगों को सहज के सुन्दर क्षेत्रों में ले जाए एकत्र कर पाई। विश्वभर में अब बहुत से सहजयोगी हैं। यहाँ उपस्थित सहजयोगी तो उनका जहाँ आप आत्मा से पूर्णत: एकरूप होंगे, प्रकृति मात्र एक अंश ही है यह घटित होना ही था। इसका वर्णन किया जा चुका है। इसके विषय में भविष्यवाणियाँ की गई थी कि एसी घटना हांगी, से एकरूप होगे, अपने आसपास के सभी लोगों से, अपने देश तथा अन्य देशों से एकरूप होंगे। सर्वत्र पूर्ण वातावरण में ब्रह्मानन्द आपका अंग-प्रत्यग और असंख्य लोग आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करेंगे। वन जाएगा और आप कभी इससे भिन्न न होंगे । TO चतन्त्र लहरी । खडे :XII अक : 98 10. 2000)- तब आप कह सकते हैं कि गुँजन या निनाद जो लोगों को, राजनीतिज्ञों को भूल जाए। उन्हें भूल कि आपके जीवन का सारतत्व है वह आपकी जाएं। आप उनसे कहीं महान है क्योंकि आप भौतिक उन्नति में या किसी अन्य चीज़़ में न जीवन की सहज शैली के साथ एक हीरे की दिखाई पड़कर आपके आध्यात्मिक क्षेत्र में दिखाई तरह से हैं यह सहज जीवन शैली अत्यन्त पड़ेगा और यही क्षेत्र सर्वोच्च है। सर्वत्र सभी सन्तोष एवं पूर्ण शान्ति प्रदायक है। यह आपको हैं और उन देशों में उच्च गुणों के लोग होते सबको याद किया जाता है। इसी प्रकार आप भी है कि आप इनके वर्णन नहीं कर सकते हैं। अपने जीवन की बास्तविकता तथा सच्चाई के आपके सहस्र दल सहस्रार की तरह से ज्योतिर्मय आनन्द शान्ति क्षेम तथा अन्य इतने बरदान देती महान ज्ञान का प्रतिनिधित्व करेंगे। और यह सब आपके जीवन और आपके कार्यो में छलकेगा। हैं। परमात्मा ही जानता है कि आप इससे क्या-क्या प्राप्त कर सकते हैं। आप इतने महान क्षेत्र में हैं। इस तरह से आप इस कार्य को कर सकते हैं। एक हजार पंखुड़ियाँ जहाँ से लोगों ने विज्ञान का केवल यह निर्णय करना है कि कितने लोगों को कर सारा ज्ञान प्राप्त किया है तथा सभी महान आविष्कार हमने आत्मसाक्षात्कार देना है। आत्मसाक्षात्कार वहीं से प्राप्त हुए हैं। अत: यही चीज़ देने के लिए हम क्या कर सकते हैं? इसके लिए व्यक्ति को महसूस करनी है- आत्मसम्मान। हमें क्या करना चाहिए? अपनी पूर्ण स्वतन्त्रता में आत्मसम्मान स्वमहत्व से भिन्न होता है। आपमें तल आत्मसम्मान होना चाहिए यह आपको विनम्र हैरान होंगे कि यह पहाड़ की चोटी पर चढ़ने वनाता है। प्रेम करने के योग्य होने के कारण आप यदि इस कार्य को करते चलें तो आप जैसा कार्य है। परन्तु जब आप चोटी पर चढ़ आप अत्यन्त प्रेममय बन जाएंगे। कोई इसे आप जाते हैं तो नीचे की सभी चीजों को भली भांति पर थॉपेगा नहीं। मैं मानती हूँ कि सागर में से बादल उठते हैं और वर्षा करते हैं । जीवन चक्र की तरह से ये कार्य हो रहे हैं। इस बात के प्रति देख सकते हैं और आपको सन्तोष होता है कि आप चोटी पर है। लेकिन चोटी की चढ़ाई तो आपको करनी होगी इसमें कोई समस्या नहीं है। वे जागरूक नहीं हैं। वे ये नहीं सोचते कि वे आप सब इस कार्य को कर सकते हैं आपके कुछ महान कार्य कर रहे हैं क्योंकि वे इस चक्र अन्दर अपने प्रति सम्मान, प्रेम एव सूझ-बूझ में हैं। परन्तु आप इस चक्र से मुक्त हैं और फिर होनी चाहिए कि हमें पर्वत की इस चोटी पर पहुँचना है। एक बार जब आप इस शिखर पर पहुँच जाएं तो समझ लें कि आप बहाँ पर हैं हैं क्योंकि आपने ही इसे करना है। और अपने प्रेम, अपने स्नेह की बर्षा करनी शुरू भी बिना किसी स्वमहत्व की भावना के इस कार्य को कर रहे हैं। आप इस कार्य को कर रहे दूसरा चक्र, जो कि स्वाभाविक चक्र नहीं कर दें. और उन सब आशीर्वादों की जो शिखर है यह चेतना का चक्र (cycle) हे। चंतना क चक्र में आप जो भी कार्य करते हैं उसके प्रति चंतन होते हैं। परन्तु सब कुछ करते हुए भी 11 से पहले हैं। यदि यही आपका जीवन है तो यह महानतम है। महान कहलाने वाले वाकी सब चैतन्य लहरों ॥ खड XII अंक : 9 8 ।0.2000 आप विनम्र, प्रेममय एवं सुहृदय होते हैं। अत्यन्त हैं। आन्तरिक शान्ति द्वारा ही आप अत्यन्त ही प्रेममय एवं सुहृदय। न आप किसी पर विवेकशील एवं बुद्धिमान व्यक्ति बनते हैं। अन्य चीखते चिल्लाते हैं न किसी को पीटते हैं। बिना लोगों से कहीं अधिक महान। सामान्य लोगों जैसे किसी को कोई कठोर शब्द कहे आप कठिन से कठिन व्यक्ति को भी संभाल सकते हैं । कोई यदि आपके आड़े आने लगे तो चीज़ में आनन्द का वर्णन शब्दों में नहीं किया आप नहीं होते। तत्पश्चात् आप आनन्द प्राप्त करें। किसी ला आप उसकी कुण्डलिनी उठाकर स्तुष्ट हो जा सकता। आनन्द तो आनन्द होता है, न ये सकते हैं। बिना बताए यदि आप किसी की कुण्डलिनी उठाते हैं तो वह व्यक्ति नियंत्रित हो जाता है और यदि उसकी कुण्डलिनी लें, सबकी संगति का आनन्द लें, हर घटना का, प्रसन्नता है न अप्रसन्नता। ये तो मात्र आनन्द है। आप केवल आनन्द में रहे। हर चीज़ का आनन्द आप नहीं उठा सकते तो उसे भूल जाएं हर दृश्य का, अपने जीवन की हर घटना का आनन्द लेना सीख लें। देखें, कि केवल आनन्द क्योंकि वह व्यक्ति अत्यन्त दुष्कर है। हो में ही महान क्षमता है। मुझे याद है कि एक बार सकता है वह पत्थर सम हो। आप क्या कर सकते हैं? आप उसमें प्रेम और गरिमा आदि गुण में अपनी बेटी और दामाद के साथ एक ऐतिहासिक स्थान देखने गई, जिसके लिए हमें काफी सारी कार्य असम्भव है। उन्हें भूल जाएं। ये आपका चढ़ाई चढ़नी पड़ी। तीन घण्टे तक हम चढ़ाई कार्य नहीं है, ये आपका कार्य बिल्कुल भी नहीं चढ़ते रहे । जब हम सब थक गए तो तभी हैं। मेरी प्रार्थना है कि सर्वप्रथम आप देखें कि संगमरमर से बना हुआ आराम करने का स्थान आप कितने विनम्र हैं। आपको विनम्र होना है, हमें दिखाई दिया। तो हमने सोचा कि यहाँ पर लेटकर विश्राम कर लें। जब हम बहाँ लेटे हुए थे तो ये सब कहने लगे कि हम लोग यहाँ आए नहीं बहा सकते। पत्थर हृदय लोगों के लिए यह यही आपकी सज्जा है और यही आपका गुण। अत: अपने अन्दर प्रेम उत्पन्न करें जो शुद्ध हो, जो वासना और लोभरहित हो। आप अन्य लोगों ही क्यों? और इस प्रकार शिकवा करने लगे। को सिर्फ इसलिए प्रेम करते हैं क्योंकि प्रेम और अचानक वहाँ एक आनन्द बिन्दु दिखाई आपके हृदय से बह रहा है और शांति का पड़ा। मेरी नज़र संगमरमर में खुदे हुए हाथियों पर पड़ी। मैंने कहा,"क्या आप इन हाथियों को वरदान आपको प्राप्त है। अपने अन्दर आप पूर्णतया शान्त हैं और यह जानकर आप हैरान देख सकते हैं? सबकी पूँछ अलग-अलग ढंग से होंगे कि विवेक का उद्भव शान्ति से होता है। बनाई गई है।" कहने लगे," मम्मी, हम इतने थक आपको अत्यन्त विवेकशील पुरुष या महिला हुए हैं आप किस प्रकार इन हाथियों की पूँछ को देख पा रही हैं?" मैंने कहा," आप भी इसे देखो।" केवल आनन्द ही आपके मस्तिष्क समझा जाएगा क्योंकि आपको अन्तरश्शान्ति प्राप्त है। शान्ति की इस स्थिति में ही आप सत्य खोज को व्यर्थ की चीज़ों से हटा सकता है। केवल 12 सकते हैं और सभी वांछित समाधान खोज सकते चैतन्य लहरी ॥ खंड XII अंक : 9.8& 10. 2000 अपना मस्तिष्क वहाँ से हटा लें। ये विधि है। यह अन्तःस्थित है। इसका सम्मान करें इसकी आप आजमा सकते हैं। किसी भी आनन्ददायी चीज़ पर अपना मस्तिष्क ले जाएं। मान लो तुलना दूसरे लोगों से न करें। अन्य लोग आपके स्तर पर नहीं हैं। आप भिन्न स्तर पर हैं। अत: कोई व्यक्ति अत्यन्त उबाऊ है तो इसके पीछे छिपी हुई विनोदशीलता को आप देखें कि कोई भी व्यक्ति उबाता किस प्रकार है। इससे आपको शिक्षा मिलती है कि कभी किसी को आनन्द लेने का प्रयत्न करें। कभी ये न सोचें आप कुछ महान हैं कुछ ऊँचे हैं नहीं, कभी ऐसा न सोचें। केवल आभार मानें कि आप जीवन के इन अटपटे विचार एवं शैलियों से बचे हुए हैं। ऐसी शैली एवं विचारों से जहाँ व्यक्ति सदैव आलोचना ही करता रहता ऊबाना नहीं है। इसी प्रकार आनन्द की भी विशेषता यही है कि यह आपको हर चीज़ का आनन्द, हर चीज़ का सारतत्व सिखाता हैं। यदि कि यह अच्छा नहीं है, मुझे ये पसन्द नहीं कोई व्यक्ति या वस्तु बुरी है तो भी आप इसका है, ये कहने वाले आप कौन होते हैं कि मुझे आनन्द लें, कहें कि यह कितना बुरा है? मान लो कोई अच्छा दोस्त है तो आप हमेशा उसकी पहचानते। जब आप कहते हैं कि मुझे ये अच्छाई को देख सकते हैं। परन्तु कभी किसी की बुराई की आलोचना करने की न सोचें। को नहीं पहचानते। आलोचनात्मक रवैया आपके मस्तिष्क से निकल पसन्द नहीं है? आप तो स्वयं को भी नहीं पसन्द नहीं है तो मतलब ये कि आप स्वयं किस प्रकार आप कहते हैं कि मुझे ये जाता है। इस स्थिति में किसी भी अटपटी चीज़ पसन्द नहीं हैं। बहुत कम ज्ञान वाले लोगों को को आप देखते हैं तो एकदम आपका मस्तिष्क मेंने दूसरों की आलोचना करते हुए देखा है। मेरी में इससे हटकर किसी अच्छी चीज़ पर चला जाता इसका कारण नहीं आता। ऐसा क्यों है? समझ है। अत: न तो आलोचना करें और न ही इसका सम्भवत: वह अपने आपको बहुत कुछ समझते बुरा मानें। कभी-कभी तो लोग हैरान होते हैं कि हैं। यह बात आम है। परन्तु जब आप पूर्ण ज्ञान मैं किस प्रकार लोगों को सहन करती हूँ। मैं को जान जाएंगे तो वास्तव में विनम्र हो जाएंगे| पूर्णतः विनम्र, भद्र या सुहृदय। सहन नहीं करती। कोई व्यक्ति कुछ भी करता रहे मैं उसकी ओर ध्यान ही नहीं देती। आपका आज वैसे भी मेरे लिए बहुत ही महान स्वभाव तथा संस्कार यदि ऐसे हो जाते हैं जहाँ आप पूर्ण तुर्या स्थिति में हों, जिसके विषय में कबीर साहब ने कहा है 'जब मस्त हुए तो फिर दिन है। में नहीं जानती कि इस सुन्दर विश्व को देखने के लिए मैं और कितने वर्ष तक जीवित रहूंगी। मानवीय स्तर पर यदि देखा जाए तो मेरा जीवन बहुत संघर्षमय एवं कठोर रहा। परन्तु क्या बोलें। मस्ती के आलम में बोलने को कुछ रह ही नहीं जाता। आनन्द की स्थिति भी ऐसी ही है। एक ऐसा स्वभाव जिसे आपको सहजयोगियों का सृजन, उनकी बातों को सुनना और उनसे बातचीत करना मेरे लिए आनन्ददायी समझना है और जिसका आपको सम्मान करना चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 9 & 10. 2000 था। वे कितने मधुर, करुणा एवं सम्मानमय है? 13 और ये बात ठीक साबित हुई। मैं वास्तव में आपके इन गुणों ने मेरी बहुत सहायता की और इसके लिए मैं आपके प्रति आभार प्रकट करती बहुत प्रसन्न हूँ। आज के इस शुभ दिवस तक पहुँचने के लिए आप सबकी बहुत धन्यवादी हूँ हूँ। आपके प्रोत्साहन, आपकी सहायता और आपकी और आप सबको हदय से आशीर्वाद देती हूँ कि सुझ-बूझ से मैं ये सब कार्य सम्पन्न कर सकी। आप इसकी जिम्मेदारी सम्भाल लें। आप सहजयोगी मैं स्वयं यदि इस कार्य को कर सकती तो कभी भी आपकी सहायता न माँगती। परन्तु आप लोग हैं तथा अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार देना आपकी जिम्मेदारी है। अन्य लोगों को भी यह तो मेरे चक्षुओं और बाजुओं जैसे हैं मुझे आप सबकी बहुत जरूरत है क्योंकि में आपके बिना दिया जाना आवश्यक है। सहजयोग का वर्णन आप उनके सम्मुख कर सकते हैं। उनसे इनकी बातचीत कर सकते हैं और उन्हें समझ सकते यह कार्य नहीं कर सकती। ये तो माध्यम बनाने जैसा है आपके यदि माध्यम ही नहीं हैं, आपकी यदि धाराएं ही नहीं हैं तो आदि शक्ति होने का हैं अन्य लोगों को समझने का प्रयत्न करें और क्या लाभ है? किस प्रकार से आप शक्ति प्रवाह उनसे बातचीत करें। लोगों को आत्मसाक्षात्कार अन्यशा आप स्वयं को भी अपूर्ण करेंगे? विद्युत शक्ति यदि है तो इसको प्रसारित करने के लिए तार भी होने चाहिए। बिना इनके अवश्य दें महसूस करेंगे। स्वयं को पूर्ण करने के लिए ये तो यह निश्चल है। इसी प्रकार मुझे भी लगा कि कार्य आप करें। मेरे भी अधिक से अधिक माध्यम होने चाहिए परमात्मा आपको धन्य करें। 14 खंड : XII अंक : 9 & 10, 2000 चैतन्य लहरो शिवरात्रि पूजा ८C 5.3.2000 पुणे परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन पहले मैं अंग्रेजी में बोलूंगी क्योंकि यहाँ और माँ (आदिशक्ति) बच्चे का वध नहीं कर विदेशों से और विशेष रूप से मद्रास, हैदराबाद. सकती। देवी ने सोचा कि यदि शिव ने इस राक्षस को देख लिया. पूरा विश्व नष्ट करते हुए केरल और बैंगलोर से लोग आए हुए हैं। ये सभी लोग तो यहाँ आए हुए हैं ही. इनके अतिरिक्त में देख लिया, तो वे भी उनके क्रोध से न बच कौन से लोग सकेंगी। अतः देवी ने राक्षस रूपी उस बालक नहीं जानती कि दक्षिण भारत से है जो अभी तक आए हिन्दी भाषा नहीं समझते। मेरे विचार से इस शिवरात्रि का विशेष महत्व है का वध करने के उस कार्य से स्वयं को हटा लिया और श्री शिव ने बह कार्य अपने हाथ में क्योंकि प्रातः उठकर कोई भी समाचार पत्र यदि ले लिया। बालक रूपी उस राक्षस की पीठ पर आप पढ़े तो सभी प्रकार के हिंसात्मक, भ्रष्ट वे सवार हो गए और उसका वर्ध कर दिया। वह कार्य करने वाले तथा चरित्रहीन लोगों के विषय शिशु क्योंकि राक्षस था इसलिए श्री शिव ने में भयानक खबरें भरी होती हैं। आपको हैरानी उसका वध करके विश्व को विनाश से बचा होती है कि किस प्रकार आज हमारे चहुँ ओर लिया और खुशी से नाचने लगे। इसी का नाम अपराध वृत्ति फैली हुई है! ऐसा प्रतीत होता है दिव्यानंद है। बहुत से लोग इस बात को नहीं कि श्री शिव के ताण्डव नृत्य का यही समय है। जानते कि श्री शिव उस शिशु की पीठ पर इसके बिना कोई सुधार होता हुआ नहीं प्रतीत चढ़कर क्यों खड़े हो गए? इसका बास्तविक होता। उनके क्रोध का प्रकोप यदि इस प्रकार के कारण उसका राक्षस होना था। अतः आजकल चरित्र के लोगों पर होने लगा तो मेरी समझ में लोग चाहे शिशु रूप में अबोध व्यक्त था पावन नहीं आता कि उससे कोई कैसे बच सकेगा। वे गुरुओं का छलावरण धारण कर लें श्री शिव उन्हें समाप्त कर सकते हैं। बहुत सी घटनाओं उनकी दूसरी विशेषता उनकी विनाश के माध्यम से सर्वत्र यह विनाश शुरू हो चुका है। [भयंकर तूफान, भूचाल और दुर्घटनाएं तथा प्राकृतिक प्रकोप इस कार्य को कर रहे हैं और ऐसे देवता हैं जो प्रेम एवं गहन करुणा से परिपूर्ण हैं। परन्तु, शक्ति है। वे पूरे विश्व को नष्ट कर सकते हैं । उन्हें यदि क्रोध आ जाए तो जीव जंगम सभी को समाप्त कर सकते हैं। आप सबने वह कहानी सुनी होगी कि किस प्रकार वे क्रोधातिरेक में बह यह सब कलकी अवतार के परिणाम स्वरूप है। परन्तु यह अवतार एक अन्य कार्य भी कर रहा है वह है, लोगों को आत्मसाक्षात्कार (पुनजन्म) गए। एक राक्षस ने शिशु रूप धारण कर लिया 15 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 9& ।0. 2000 देना। आत्मसाक्षात्कारी लोगों को कभी यह घटनाएं और इसके लिए कोई विशेष परिश्रम आपको कभी हानि नहीं पहुंचाती। इन लोगों को कुछ नहीं करना पड़ता। अपने रोजमर्रा के जीवन में आप यह कार्य कर सकते हैं। लोगों का नहीं हो सकता। सदैव उनकी रक्षा होगी और अन्तर्परिवर्तन करने के लिए केवल इसी चीज़ उनकी हर चीज की रक्षा होगी क्योंकि ये अपनी की आवश्यकता है और आप सब इसको कर माँ की सुरक्षा में हैं। अब समस्या यह है कि इन लोगों से सकते हैं। आप सब। ये उपलब्धि आप प्राप्त सहजयोगी कैसे व्यवहार करें ताकि ये लोग कर सकते हैं। आप सबको यह कार्य अत्यन्त निष्ठा से भली-भांति करना चाहिए। क्रोध में विकास प्रक्रिया के मार्ग में बाधाएं न उत्पन्न कर आकर लोगों पर उछलने की या अभद्र सकें। इसका एक मात्र समाधान कुण्डलिनी की जागृति है। यदि किसी बुरे से बुरे व्यक्ति की कुण्डलिनी भी आप उठा देंगे तो या तो वह नष्ट हो जाएगा या भला व्यक्ति बन जाएगा। चाहिए। ताकि श्री शिव का क्रोध न भड़क कुण्डलिनी जागृति के पश्चात् सभी दुष्कर्मों की उठे और जैसे कहते हैं, उनकी तीसरी आँख योजना जो उनके मस्तिष्क में है वे त्याग देंगे न खुल जाए। ऐसा होना बहुत भयानक है। व्यवहार करने की कोई आवश्यकता नहीं हैं। शान्त रहते हुए इस उपलब्धि को प्राप्त करना और वास्तव में बहुत अच्छे लोग बन जाएंगे। हो हम सब इस कार्य को अत्यन्त रचनात्मक तरीके से कर सकते हैं । अतः सर्वप्रथम हमें अपने शिव तत्व को सकता है कि कुछ मामलों में ऐसा न हो। मैं नहीं कहती कि हर व्यक्ति के साथ सहजयोग सफल हो जाएगा। परन्तु सहजयोगी यदि ध्यान करें, स्थापित करना चाहिए-आनन्द, प्रेम एवं सत्य बहुत सी समस्याएं भी हैं क्योंकि लोग श्री शिव के ब्रह्माण्डीय स्वभाव को पूर्ण शान्ति की अवस्था में पूरी तरह से के तत्व को। इसमें समर्पित होकर बने रहें तो उन्हें कुछ नहीं हो सकता। सदैव उनकी रक्षा की जाती है और आप सब लोगों ने इस सुरक्षा को अनुभव कि लोग शिव तत्व और विष्णु तत्व पर झगड़ते किया है। परन्तु सर्वप्रथम आपको स्वयं पर हैं। शिव तत्व तक उठने के लिए आपके पास नहीं समझते। उदाहरण के रूप में, मैंने सुना है श्री विष्णु भी हैं और उनकी शक्ति भी है। दोनों भिन्न नहीं हैं, एक दूसरे के संपूरक हैं। फिर भी विश्वास करना होगा ओर सहजयोग के प्रति पूर्णतः समर्पित होना होगा। यहाँ पर उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिमी भारत तथा भिन्न देशों यदि आप इसी बात पर झगड़ते रहते हैं तो में से आए बहुत से सहजयोगी बैठे हुए हैं। हर दंश, नहीं समझ सकती। श्री विष्णु के बिना आप श्री हम कह सकते हैं आज इन आसुरी शक्तयों के शिव तक नहीं पहुँच सकते चंगुल में है हमें कुण्डलिनी जागृति के माध्यम से इन लोगों को श्रेष्ठ बनाना है। यह कार्य आप सकते। कुण्डलिनी भी सुषुम्ना मार्ग से उठती है। कर सकते हैं। आप इस कार्य को कर सकते हैं वह (कुण्डलिनी) शिव का तत्व और बिना विष्णु तत्व को समझे आप शिव तत्व पर नहीं बने रह है और विकास T6 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 9 & 10, 2000 सच्चाई को परख लें। सहजयोग को अत्यन्त प्रक्रिया में श्री विष्णु द्वारा बनाए गए मार्ग से बह सुगमता से सत्यापित किया जा सकता है और आप केवल सत्य को जानते हैं, वह सत्य जो उठती है। तो किस प्रकार आप दोनों में से एक मी। के बिना चल सकते हैं? एक मार्ग है तो दूसरा लक्ष्य। अत: मैं आशा करती हैं कि आप लोग पूर्ण है। यह ऐसा तत्व हैं जो इन दोनों शक्तियों की एकाकारिता के पश्चात् प्राप्त होता है। अत्यन्त हैरानी की बात है कि जब ये दोनों शक्तियाँ इस बात को समझते हैं कि आपके चक्रों का शुद्ध होना और उत्थान मार्ग का ठीक होना कितना महत्वपूर्ण है, तथा आपकी सुषुम्ना ना़ी मिलती हैं या जब आप विष्णु तत्व के माध्यम से शिव तत्व में पहुँचते हैं तब आप समझ पाते का स्वच्छ होना कितना आवश्यक है? क्योंकि हम मध्यमार्गी हैं हमें मध्य में मध्य मार्ग से हैं कि ये दोनों शक्तियाँ एक दूसरे के संपूरक चलना होगा तथा बाएं-दाएं न लुढ़ककर हैं और परस्पर सम्बन्धित हैं। एक प्रकार से इन सन्तुलन में रहना होगा। ये सन्तुलन बनाए रखते हुए तब तक हमें कार्य करते रहना होगा, जब तक अपने तालू भाग में नहीं कुण्डलिनी को इस मार्ग से गुजरने दें। इस मार्ग पहुँच जाते जहाँ सदाशिव विराजमान हैं। जो से जब कुण्डलिनी गुजरेगी तो आप आश्चर्यचकित कुछ मैं आपको बता रही हूँ आप इसे स्वयं देख हो जाएंगे कि एक ही कुण्डलिनी विष्णु मार्ग से सकते हैं। इसे भली-भांति जान लें। जब मैं गुजरती हुई श्री शिव के चरण कमलों में पहुँच दोनों शक्तियों में कोई अन्तर नहीं है। अत: अपनी सड़क-मध्य मार्ग को स्वच्छ रखें और आपको ये चीज बता रही हूँ तो आप इसकी रही है। परमात्मा आपको धन्य करें। 17 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 9 & 10. 2000 शिवरात्रि पूजा ा 5.3.2000 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का हिन्दी प्रवचरु शिवजी को आप लोग मानते हैं और उनकी बड़ी पूजा अर्चना होती है। लेकिन शिवजी के गुणधर्म आप जानते नहीं, इसलिए बहुत बार आपसे गलती हो जाती है। शिवजी का विशेष धीरे-2 वो नष्ट होते जाते हैं। धीरे-धीरे बो समाप्त होते जाते हैं। पर शिवजी जो है ये हमारी सांत्वना करने वाले हैं। हमको शांति देने वाले हैं और हमको आनंद देने वाले हैं। और जब स्वरूप जो है वो आनंद स्वरूप है। सुक्ष्म से शिवजी की शक्ति और विष्णु की शक्ति जैसे कि कुण्डलिनी और सुषुम्ना नाड़ी, इन दोनों का सूक्ष्म ये आनंद उनका सब तरफ छाया रहता है। लेकिन उसको आकलन करने की शक्ति जब मेल हो जाता है तब आपको केवल सत्य मिलता तक आपमें नहीं आएगी आप उसे देख नहीं है। केवल सत्य। जैसे की उस सत्य को कोई पाएंगे और समझ नहीं पाएंगे। वो हर चीज़ में आप किसी भी तरह से अस्वीकार्य नहीं कर तं सकते क्योंकि वो पूर्णतया सत्य है। आप अपने कहना चाहिए कि एक आनंदमय सृष्ट तैयार अंगुलियों पर अपने हाथ पर भी उसे जान सकते करते हैं और उस सृष्टि में विचरण करते हुए हैं। अनेक तरह के अनुभव आपको आएंगे आप देखते हैं कि आप भी कुछ और ही हो जिससे आप समझ जाएंगे कि एकदम सत्य जो विराजमान है। हर चीज़ में एक तरह से आनंदमय, गए। दूसरे लोगों को जिस चीज़ में आनंद आता है उसमें असत्य की छटा भी नहीं है। वो आपके है, वहुत से लोगों को अपने को नष्ट करने में ही आनंद आता है। उसको तरह-2 से गलत रास्ते अंदर ज्ञात होता है। उसे आप जान सकते हैं । समझ सकते हैं। यही कुण्डलिनी की देन है। यानि कुण्डलिनी जो की शिव की शक्ति है वो में ले जा कर लोग सोचते हैं कि गर हम आत्मा के विरोध में चलें तो हमें बड़ा सुख मिल जब आपके मध्य मार्ग से उठती है तो सारे ही जाएगा। लेकिन आत्मा जो स्वयं साक्षात् शिवजी चक्रों को आड़ोलित करती है. जागृत करती हैं, उनका आनंद एक और तरह का है और वो और समग्र करती है। उस शक्ति को संभालता ही हमारे हृदय को छू सकता है। जैसे बहुत से कौन है? तो कहें कि विष्णु ही संभालते हैं लोग हैं, दुनिया भर की चीजों में डूबे रहते हैं। क्योंकि वो विष्णु के मार्ग में चलती है और जा कर के ब्रह्मरंध्र में वो अपने दर्शन देती है। वहाँ कोई है शराब पियेगे, कुछ और अनीति का कार्य करेंगे। गलत सलत काम करते रहेंगे। उसी में वो पहुँच कर के ज्ञात होता है कि हाँ, अब इसकी सोचते हैं कि बड़ा सुख है। किन्तु है नहीं। जो यात्रा थी वो खत्म हो गई। सो आपस में T8ं चैतन्य लहरी खंड :XII अक : 9 & 10. 2000 10.2000 कितना सहयोग और कितनी समझदारी है। हम लोगों में आजकल एक बीमारी हो गई कि सब में हम नहीं पड़ेगे तो आपको सारी पूजाओं में लोग जो हैं पैसे के पीछे दौड़ रहे हैं। पैसे के जहाँ तक हो सके आना चाहिए। और आपको पीछे दौड़ने की बड़ी अजीब सी बीमारी हो गई ध्यान करना चाहिए। तब आप पूजा के अधिकारी है और उसके लिए हम कुछ भी कर सकते हैं। हैं सव लोग पूजा के अधिकारी नहीं होते। जो किसी भी चीज़ का अवलंबन करते हैं। सहज देखो पूजा करने निकल जाता है। गर आपका पतन की ओर नहीं जाएँगे, किसी भी गलत चीज़ योग में भी कुछ लोग ऐसे हैं। इसका कारण ये संबंध ही नहीं हुआ हैं तो आप क्या पूजा के है कि हमारे अंदर विकृति आ गई है । हमारे अधिकारी बन सकते हैं? लेकिन बहुत से लोग अंदर बहुत सारी विकृतियाँ आ गई हैं और इस विकृति की सफाई सिर्फ सकती है। पर अगर आप पूरी तरह से इस सोचते हैं इस मंदिर में दौड़, उस मन्दिर में दौड़ कुण्डलिनी ही कर इस गुरु के पास जा, उस के पास,..इससे कुछ नहीं होता। आप स्वयं ही अपने गुरु हैं और आप अपने को देखिए कि हमारे अंदर क्या कुण्डलिनी को आत्मसात नहीं करते हैं, ध्यान खराबी है। क्या हम अपने हृदय से पूरी तरह धारणा से उसका उत्थान पूरा नहीं करते तो आप उस दशा में पहुँच नहीं सकते जहाँ आपके अंदर से सहजयोग को अपनाते हैं या नहीं। मैं से प्रकटित जो शक्ति है वो सत्य, आनंदमय, देखती हूँ, बहुत से लोंग सहजयोग में आते हैं शांतिमय हो। उसमें दोष रह जाता है। जव और एक स्थान पर जा कर गिर जाते हैं, और जितने ऊँचे उठते हैं उतने गहरे गिर जाते हैं। कुंडलिनी उठती है तो बो सब सफाई करती है। शिवजी की शक्ति से पूरी चीज़ साफ होती जाती इसकी वजह ये है कि आपके अंदर जो छिपी है। तो भी कुछ लोग अपनी पुरानी आदतों से प्रवृत्तियाँ हैं वो किसी तरह से कार्यान्वित हो गई या अपनी गलत धारणाओं से पीड़ित होते हैं और आपका अंदाज ही नहीं रहा । इसलिए अपनी और वो लोग जो कुछ गलत, जो भी दुष्ट ओर ध्यान रखना चाहिए कि हम कोई ऐसे गलत बुरी बातें हैं उसके थोड़े से ही प्रलोभन में झंझट में तो नहीं फैस रहे हैं, कहीं हम ऐसा पड़ के फिर से गिर जाते हैं । वो हमारे अंदर एक छोटी सी भी अणु रेणु मात्र भी गर खराबी कोई हमारे अंदर ऐसी गंदी प्रवृत्तियाँ तो नहीं आ अंदर बची हो तो उसमें गिर करके हम वास्तव काम तो नहीं कर रहे हैं कि जो असहज हो। या रहीं कि हम पैसा कमाने के लिए सहज में आएँ में नष्ट हो जाते हैं। जो पूजा में आए और ध्यान करें उन लोगों में हमेशा प्रगति होती है। गर शांति आएँ। या कोई और गंदे काम करने के लिए सहज में इसके ओर अपनी दृष्टि होनी चाहिए। न हो तो कोई पेड़ भी नहीं बच सकता। कोई वो सबसे अच्छा है कि सहज के जो कार्यक्रम हैं है ध्यान, बढ़ नहीं सकता। कोई अंकुर भी नहीं चल और सहज में जिस तरह भी होता सकता। इसीलिए अगर आपके अंदर ये पूरा ध्येय न हो, ये आदर्श न हो कि हम कहीं भी धारणा आदि करके और आप अपने आपको पक्का एक व्यक्तित्व वनाएँ आपके अंदर वो 19 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 9 8 ।0.2000 कु एक विशेष रूप का जिसको कहते हैं कि एक दिल खोल करके और प्रेमपूर्वक सहजयोग का व्यष्टि होती है और एक समष्टि होती है। व्यष्टि वरण करता है, इतना ही नहीं और दूसरों में बनाएँ आप, तो आप समष्टि में भी एक हो जागृति करता है क्योंकि आपको सहजयोगी इसीलिए जाएँगे। जो समष्टि में नहीं आते वो व्यष्टि में बनाया गया है कि आप सारे संसार में परिवर्तन ठीक नहीं हो सकते। ये मैंने देखा है। जो समष्टि लाएँ। सारे संसार में एक हलचल मचा करके एक ऐसा सुन्दर संसार बनाएँ। ऐसा अभिनव और विशेष ऐसा संसार बनना चाहिए। ये एक में आते हैं वहीं ऊँचे उठते हैं। थोड़़े दिन के लिए हो सकता है आपको कुछ फायदा हो जाए, कुछ पैसे मिल जाएँ, थोड़े आप ऊँचे उठ जाएँ, आपकी शुद्ध इच्छा होनी चाहिए। ये शुद्ध इच्छा होते ही आपकी कुण्डलिनी कार्य- प्रबल होने लोगों में ये बात होती है कि कितने लोगों को लगती है। बहुत सर्व साधारण लोग भी जब अपने अनुभव वताते हैं तो बहुत आश्चर्य लगता कुछ नाम हो जाए, सहज योग में खास करके हम control करते हैं । वो भी लेकिन हो जाता है। आपका व्यक्तित्व नहीं बढ़ा। इसमें वो गहनता है कि ये इनके अंदर कैसे बात आ गई, ये नहीं आई। आप वो ऊँचे दर्जे के सहज योगी इन्होंने कैसे जाना। सहजयोग में भी कुछ ऐसे लोग आ जाते हैं जो सता के लिए आते हैं। अहीं है। जब तक आप वो नहीं हैं तब तक कुछ आते हैं वो पैसे के लिए आते हैं। इन सब चीजों अपकी सब बातें बेकार हैं क्योंकि न जाने कब से मनुष्य का व्यक्तित्व बढता नहीं। उसके आप कगार से गिर जाएं, न जाने कब आपका सर्वनाश हो जाए। इसलिए बच के रहना चाहिए व्यक्तित्व में वो चमक नहीं आती क्योंकि जो प्रकाश आपको मिला है वो जब तक लोगों में और अपने को उस उच्चतर व्यक्तित्व में उसकी आप बाँटेगे नहीं और स्वयं अपने में भी आप ओर एक चीज़ आपको करनी चाहिए। गर आज प्रकाशित नहीं रहेंगे तब तक कोई सा भी कार्य तो कल हजारों लोगों को पार आप पार हैं कराईए तो आपकी शक्ति बढ़ेगी। नहीं तो जो संपन्न नहीं हो सकता। मतलब ये है कि कार्य थोड़ा सा पाया भी है वह भी खत्म हो यही है कि संसार को बदलना है, इस दुनिया को बदलना है, इसमें एक विशेष दुनिया बनानी है। और आप लोग एक विशेष लोग हैं जब ये चीज़ आपके ध्यान में आएगी कि कितने आप महत्वपूर्ण हैं तो फिर आप बहुत समझ से अपने जीवन को बनाएंगे। जाएगा। ये बड़ा वितचित्र सा एक नियम है। ऐसे किसी भी और चीज़ से इसकी तुलना नहीं हो सकती जैसे अगर एक दीप जलाइए ओर उससे दूसरे दीप जलाएँ तो भी यह नहीं कह सकते कि इस दीप की दीप्ति बढ़ जाएगी नहीं कह अनन्त आशीर्वाद सकते। पर सहज योग में मैंने देखा है जो जितने 20 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 9 & 10, 2000 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मलादेवी का आान की भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों के सम्मुख प्रूवचन ৪.4.2000 सभी सत्य साधकों को मेरा प्रणाम। जैसा सेवाओं आदि के बारे में न सुना था। तो मैंने पूछा कहा जाता है आजकल घोर कलियुग है और सभी प्रकार के भयानक कृत्य हम देख सकते हैं कि बह विदेश सेवाएं क्या होती हैं? साथ ही साथ मैंने यह भी कहा कि मैं बाहर किसी भी और समाचार पत्रों में पढ़ सकते हैं। यह देश में नहीं जाने वाली। हाल ही में हम स्वतन्त्र हैं और हमें कार्य करना है। इस देश के लिए वास्तविकता है कि हम बहुत भयानक समय में हुए से गुजर रहे हैं। चहूँ ओर बहुत ही घटिया दर्जे हमें बहुत सा कार्य करना है। केवल इतना ही के लोग है जिनकी मूल्य प्रणाली अत्यन्त निकृष्ट नहीं मैंने यह भी महसूस किया कि लोक सेवाएं है। परन्तु बहुत समय पूर्व भविष्यवाणी की गई देश की रीढ़ हैं । इन्हीं को सारा झटका झेलना थी कि यही समय है जब हिमालय की पहाड़ियां पड़ता है. सारे कष्ट उठाने पड़ते हैं और सारें तथा दर्रा-कन्दराओं में साधना रत साधक सत्य बोझ उठाने पड़ते हैं। परन्तु देश का निर्माण करने तकी को प्राप्त कर सकेंगे। इस बात का वर्णन बहुत का महान उत्तरदायित्व इन्हीं का है। इसीलिए से महान ज्योतिषयों और सन्तों ने किया है। अत: मैंने अपना पूरा जोर लगा दिया कि मेरे पति किसी तरह भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में चुने एक प्रकार से हम सोभाग्यशाली वातावरण में रह रहे हैं। मैं कहना चाहूंगी कि भारतीय प्रशासनिक जाएं। इसके लिए हमें बहुत से धन का नुकसान सेवा भारतीय पुलिस सेवा तथा सभी लोक सेवाओं में कार्यरत अधिकारियों से मुझे अत्यन्त किसी भी स्थिति में मैं निर्वाह कर सकती प्रेम है क्योंकि मैं जानती हूैँ कि उन्हें क्या-क्या उठाना पड़ा. आदि आदि। मैंने कहा ठीक है परन्तु विदेश में रहकर वहाँ अपनी शक्ति को नष्ट करना मुझे ठीक नहीं लगा। हमारे यहाँ रहने सहना पड़ता है। उनका जीवन महान उथल-पुथल पूर्ण है तथा उनकी पत्नियों को भी बहुत कुछ के लिए यही समय बहुमूल्य है। इसी देशभक्ति बलिदान करना पड़ता है। परन्तु मुझे सदैव ऐसा की भावना के कारण ही अपनी जिम्मेदारी को प्रतीत हुआ मानो यह जीवन युद्ध में लड़ते हुए समझते हुए और यह समझते हुए कि इस देश एक सिपाही का जीवन हो। हम लोग यहां देश की सरकार के सशक्त आधार हम लोग हैं हम का निर्माण करने के लिए हैं। मेरे पति पहले लोक सेवा में लगे रह सकते हैं। यद्यपि भिन्न विदेश सेवाओं में अधिकारी थे। मैंने कभी इन राजनैतिक दल दंश की सरकार को चलाते हैं 21 चैतन्य लहरी खंड XII अंक : 9 & 10. 2000 পা e है कि हम नहीं जानते फिर भी जनता की भिन्न प्रकार की समस्याओं करती है। मुख्य बात यह कि सोचने तथा भविष्य की योजनाओं आदि के का समाधान लोक सेवा अधिकारियों के माध्यम से ही होता है। मैंने सीखा कि लोक सेवा के लिए आवश्यक ऊर्जा कहां से आती है सहजयोग जीवन में महिलाओं को अत्यन्त सहनशील, के अनुसार शरीर के अन्तः स्थित एक सूक्ष्म त्यागशील तथा प्रसन्नचित्त होना पड़ता है। हम चक़र ही इस ऊर्जा का चक्र है और यही चक्र रत क्यों हैं? यह इस बात को हर समय खर्च होने वाले मस्तिष्क कोषाणुओं दर्शाता है। नि:सन्देह हम लोग विशेष हैं और की सृष्टि करता है । हर समय हम अपने मस्तिष्क पर जोर डाले रखते हैं और हर समय इसकी इस सेवा में हमारे पास विशेष शक्तियां हैं। परन्तु विना इन शक्ति का उपयोग करते हैं परन्तु यह नहीं जानते कि किस प्रकार इस शक्ति की कमी को दूर किया जा सकता है तथा यह कार्य केवल एक शक्तियों का दुरुपयोग किए आप क्या हैं? कुछ नहीं। इन शक्तियों का दुरुपयोग यदि आप करते हैं तो यह अनुचित है और यदि इनका उपरयोग नहीं करते तो आप शक्तिहीन हैं। वास्तव में यही स्थिति हैं। चक्र (दाया स्वाधिष्ठान) करता है। यही चक्र शरीर के बहुत से अन्य अवयवों की देखभाल परन्तु आनन्द, प्रसन्नता तथा सन्तोष का करता है। इस शक्ति का मस्तिष्क की ओर भविष्यवादी जीवन के लिए अनियन्त्रत बहाव ओरोत, तो केवल यह सत्य है कि आप अपने देश के लिए कार्य कर रहे हैं । देश भक्ति की यह बहुत सी समस्याएं खड़ी कर सकता है। न भावना जो मेंने अपने माता पिता और महात्मा केवल तनाव परन्तु बहुत सी अन्य समस्याएं भी ल गांधी से प्राप्त की थी उसके कारण मुझे लगा क्योंकि इस प्रकार के बहाव के कारण यह ऊर्जा कि हम सबका कर्त्तव्य है कि इस प्रकार कार्य समाप्त होने लगती है और जब हम संघर्ष की स्थिति में होते हैं तो यह शक्ति एक प्रकार से करें जो कि यह अत्यन्त रचनात्मक और सहायक हो। कठिन परिस्थितियों के कारण इस प्रकार के समाप्त होने लगती है और इस कारण हमारे कार्य करते हुए हमारे सम्मुख बहुत सी समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। मैं आपसे इन्हीं के बारे में सामने लगे शरीर यन्त्र के नक्शे पर आप स्पष्ट अन्दर भयानक असन्तुलन उत्पन्न हो सकते हैं। देख सकते हैं कि हमारे स्वचालित नाड़ी तन्त्र के बात करने वाली हूँ। किसी भी चीज़ को जब हम देखते हैं तो तीन मार्ग हैं । हम या तो बाई ओर होते हैं या दाई हम प्रतिक्रिया करते हैं। यह प्रतिक्रिया हमारे ओर। प्राय: हम मध्य में नहीं रह पाते। आप यदि अधिक सोचते बहुत अधिक भविष्यवादी है बहुत अन्दर दो प्रकार की समस्याएं उत्पन्न कर सकती है एक बन्धन (conditioning) की और दूसरी हैं, बहुत अधिक कार्य करते हैं तो आक्रामक (Right Sided) हो जाते हैं। और यह समझ अहम् (Ego) की। दोनों ही स्थितियां अत्यन्त लेना अत्यन्त आवश्यक है कि एसी स्थिति में कष्टकर हैं और हमें अत्यन्त अधीर और तनावमय 22 चैतन्य लहरी ॥खंड : XII अंक : 98 10. 2000 जब व्यक्ति बहुत अधिक दाई ओर को रहता है तो उसके मस्तिष्क के बाएं हिस्से में हम अपना सन्तुलन खोने लगते हैं। पहली हानि जो व्यक्ति को होती है वह होने वाले दुष्प्रभाव के कारण इसे पैरिफेरिया रोग है। यही चक्र क्योंकि लिवर की भी देखभाल हो सकता है जिसमें उसके हाथ और टांगे भी यह है कि उसका जिगर (Liver) खराब हो जाता करने वाला है इसलिए उस व्यक्ति का जिगर बिल्कुल मृतसम हो सकती हैं। ऐसे व्यक्ति को गम्भीर पक्षाघात भी हो सकता है जिसके कारण अनियन्त्रित हो जाता है। जिगर में उत्पन्न होने वाली गर्मी ऊपर को जाने लगती है इसलिए उसके शरीर का पूरा दाया हाथ प्रभावित हो आदमी को दमा रोग हो सकता है, बहुत सकता है-मुँह के क्षेत्र से लेकर हाथ, टांगे और भयंकर प्रकार का रोग जिसके लिए कहा सभी अवयव क्षतिग्रस्त हो सकते हैं अपने को जाता है कि वह लाइलाज है। परन्तु इसका सन्तुलित करने की चिन्ता न करने वाले लोग इलाज हो सकता है। प्रभावित व्यक्ति को की यह रोग भी प्रतीक्षा करता है। यह सब शरीर यदि आप सन्तुलित कर लें तो आसानी से के ऊपर के हिस्से के गम्भीर रोग हैं। शरीर के नीचे के हिस्से में, जब यह गर्मी अग्नाश्य की दमा रोग ठीक किया जा सकता है। जिगर की ता। रोग ओर बढ़ती है तो इसे अशक्त करके शक्कर गर्मी यदि ऊपर को जाने से यदि दमा नहीं होता का कारण बनती है। तत्पश्चात् थोड़ी सी और नीचे प्लीहा को प्रभावित करती है और व्यक्ति तो यह गर्मी हृदय को प्रभावित करती है। किसी व्यक्ति का हृदय यदि जन्म से ही खराब हो तो को रक्त कैन्सर भी हो सकता है। सहजयोग द्वारा वह बात तो समझ में आती है परन्तु 21-22 निसन्देह रक्त कैन्सर ठीक हुआ है। रक्त केन्सर वर्ष के मद्यपान करने वाले जवान टेनिस खिलाड़ी जिगर ठीक किया जाता सकता है। इसके पश्चात् को जान लेवा हृदयाघात हो जाना समझ में नहीं से निकली हुई यह गर्मी गुर्दों की समस्या उत्पन्न आता। शनेः शनैः इसी प्रकार से कार्यरत रहना करती हैं। गुर्दे बुरी तरह से प्रभावित हो जाते हैं और व्यक्ति इनके प्रतिरोपण (Transplantation) गहन हृदयाघात की ओर ले जा सकता है। ऐसा किसी भी व्यक्ति के साथ हो सकता है। परन्तु तो यह विशेष की कोशिश करता है, परन्तु इससे भी कोई जब वृद्धावस्था आरम्भ होती है रूप से अपनी शक्ति का प्रदर्शन करता है। तो अधिक लाभ नहीं होता यही गर्मी यदि आपके उदर को प्रभावित कर दें तो आप कब्ज रोग के यह एक आम रोग है। जब हृदय रोग हो जाता शिकार हो जाते हैं और सदैव गुस्से से भरे रहते है तो व्यक्ति गति निर्धारक यन्त्र आदि लगवाने में लगा रहता है। इसकी अपेक्षा यदि आप सहजयोग को अपना लें तो आपको अपने हृदय हैं। दाई और के. आक्रामक व्यक्ति को यह सब रोग हो सकते है और कोई उसकी सहायता भी की चिन्ता नहीं करनी पड़ेगी। हृदय बहुत ही नहीं कर पाता क्योंकि हर समय वह योजनाएं अच्छी स्थिति में रहेगा। वनाने तथा बौद्धिक कार्यों को करने में ही व्यस्त ाी 23 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 9 & 10. 2000 होता है। उसके मस्तिष्क को बिल्कुल आराम अचानक किस प्रकार यह घटित हो गया! बहुत नहीं होता। परिणामस्वरूप वह चिडचिड़ा हो सी असम्भव समस्याओं के समाधान आपको जाता है और अपनी इच्छा के विरूद्ध वह बहुत न प्राप्त हो जाते हैं। आपका स्वभाव बदल जाता है। हैं सी बातें कहता है। इन सारी चीजों से पता चलता जिसका अर्थ यह आप अत्यन्त शान्त हो जाते हैं कि दाई ओर की समस्या बहुत गम्भीर समस्या है कि आपमें साक्षी अवस्था विकसित हो गई है क्योंकि आप मस्तिष्क से ऊपर उठ चुके हैं। है जिसका सामना हम सबको करना है। इसका स्रोत आपकी प्रतिक्रिया है। अत: हमारे मस्तिष्क आप प्रतिक्रिया करना बन्द कर देते हैं। चीजों के कारण ही प्रतिक्रियाएं होती हैं। आपका मस्तिष्क यदि प्रतिक्रियाशील है तो इसे प्रतिक्रिया करने से को मात्र देखते हैं और आपका चित्त आश्चर्यजनक रूप से अत्यन्त शक्तिशाली हो जाता है। यह सब किस प्रकार रोका जा सकता है? आइंस्टाइन बता गए हैं कि सापेक्षता (Relativity) के सिद्धांत की चीजें आपमें हैं। केवल सोचें कि हमें थोडा सा प्रकाश प्राप्त करना है, योग प्राप्त करना है। खोज में कार्य करते हुए थक कर वह बगीचे में यहां बोल रही हूँ। इस यन्त्र ( माइक) का अपने कम चले गए और साबुन के बुलबुलों से खेलने लगे। वे कहते हैं कि अचानक किसी अज्ञात स्थान से बैज्ञानिक वर्णन उनके मस्तिष्क में आ गया । शक्ति स्रोत से जुड़ा होना आवश्यक है। स्रोत से जुड़े बगैर यह बेकार है। इसी प्रकार हमें भी स्रोत से जुड़ा होना चाहिए। हमें निर्णय करना हैं कि हमें परमेश्वरी शक्ति से सम्बन्ध बनाना पूरा इस स्थान को उन्होंने ऐंठन क्षेत्र (Torsion Area) का नाम दिया। हम सबमें यह ऐंउन क्षेत्र है। जो चाहिए। एक बार जब आप उस परमेश्वरी शक्ति सूक्ष्म ऊर्जा हमारे चहूँ और हैं, हमारी देखभाल से जुड़ जाएंगे तो ऐसा परिवर्तन आएगा कि आपके हाथ बोलने लगेंगे। कुरान में लिखा है कि करती है उसे मैं दिव्य प्रेम कहती हूँ। यह हम स्वयं को सन्तुलित करने में सम्पन्न करने में कयामा के समय आपके हाथ बोलेंगे। अत: में और पूर्ण ज्ञान देने में सापेक्ष ज्ञान (Relative कहती हूँ कि मैं केवल मुस्लिम नियमों को Knowledge) में, हमारी हर तरह से सहायता करती है। हम लोग ज्ञान मार्ग की बात कर रहे मानूंगी कि हाथ बोल रहे हैं अर्थात् अपने हाथों पर, पांचों अंगुलियों के सिरों पर और दो अन्य पूर्ण ज्ञान की बात। अब यह एंठन क्षेत्र बिन्दुओं पर आप अपने चक्रों काो महसूस कर ( Torsion Area) अद्भुत चीज है । कुण्डलिनी सकते हैं तत्पश्चात दूसरे के चक्रों को भी आप जब उठती है तो बह न केवल इन सभी छह महसूस कर सकते हैं क्योंकि आप सामूहिक मानव बन चुके हैं। अन्य कौन है। सभी को आप अपनी अंगुलियों के सिरों पर महसूस कर परन्तु यह आपको आइन्सटाइन के ऐंठन क्षेत्र से सकते हैं । कोई व्यक्ति देखने में ठीक ठाक और सामान्य लगेगा, परन्तु आप महसूस करेंगे कि चक्रों का पोषण करती है. यह उन्हें प्रकाश रजित करती है और उनका समन्वयन करती है, जोड़ती भी है। आप हैरान हो जाते हैं कि यह 24 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 9 & I0, 2000 नहीं किया हैं । मैंने केवल उनकी चैंतन्य लहरियों को महसूस किया। अपने पति को मैंने बताया वह ठीक नहीं है। उसे कोई भयानक समस्या है । लोगों की समस्या को आप अपनी अंगुलियों के कि आप लोग इनके साथ अन्याय कर रहे हैं। य सिरों पर महसूस कर सकंगे। किसी तरह से यदि विल्कुल ठीक हैं। वे कहने लगे कि तुम दखलंदाजी आप इस कला में निपुणता प्राप्त कर लें. ज्यादा से ज्यादा एक महीना इस कार्य में लगेगा. तो न करो। मैंने कहा में दखलंदाजी नहीं कर रही आप अन्य लोगों की कुण्डलिनी उठा सकते हैं। हूँ, पर मैं साबित कर दूँगी कि यह लड़कियाँ निर्दोष हैं और अवोध और सीधी-सादी है। आप इसी प्रकार यह लोग कहते हैं कि सहजयोग 86 देशों में फैल चुका है निसन्देहः यह 86 देशों में फैल चुका है, यद्यपि मैं इन सभी देशों में नहीं बेकार ही इन्हें बुरा समझ रहे हैं। मैं उनके साथ गई। इस समय हमारे पास केवल एक ही कार ह होती थी तो में रिक्शे में बैठकर उस स्थान तक गई हूँ। इन सब देशों की यात्रा मेंने नहीं की है। अधिक से अधिक 20 देशों में गई होऊंगी। गई जहाँ एक व्यक्ति ने लिखा था कि वे बुरी औरतें हैं। मैंने वहां जाकर उससे पूछा कि क्या परन्तु इन देशों के जिन लोगों को साक्षात्कार में यही दो लड़कियाँ आपके ऊपर वाले फ्लैट प्राप्त हुआ उन्होंने जगह -2 जाकर अन्य लोगों रहती है? क्या इन्होंने ही यह सब किया है? को साक्षात्कार दिया। अफ्रीका में बैनिन नामक देश है उसमें 7000 सहजयोगी है। आप इसकी कहने लगा विल्कुल ही नहीं, वे तो कोई और कल्पना करें। वे सभी मुसलमान थे और सभी थी। यह नहीं थी। वापस आकर मैंने उन्हें (अपने पति को) बताया कि देखो मेंने इन्हें को साक्षात्कार प्राप्त हो गया है। इसको अर्थ यह नहीं है कि वे हिन्दू या मुसलमान नहीं रहे। चैतन्य लहरियों पर परखा था और यह बुरी आत्मसाक्षात्कार के बाद भी आप वहीं हैं। परन्तु महिलाएं नहीं हो सकती। तो कभी कभी हम उन लोगों को भी दण्डित करते हैं, उन पर क्रोध आप जानते हैं कि आपकों उस धर्म का सार करते हैं जो इस प्रकार के व्यवहार के योग्य नहीं प्राप्त हो गया है। अत: आप सभी धर्मों, अवतरणों होते क्योंकि हम उन्हें समझ नहीं पाते। गलत रास्ते पर भी हम चलते हैं और बहुत सी चीजों का सम्मान करते हैं क्योंकि अब आपको धर्म के विषय में सच्चा ज्ञान प्राप्त है। अपने विषय में में खो जाते हैं क्योंकि हमें ठीक ज्ञान नहीं होता। और पूरे ब्रह्माण्ड के विषय में सच्चा ज्ञान प्राप्त है। इसे आप अंगुलियों के सिरों पर महसूस कर अब कुण्डलिनी के उत्थान की घटना के बाद आप शारीरिक रूप से तो ठीक हो जाते हैं। सकते हैं। उदाहरण के रूप में यदि एक आदमी आता है। मेरे पति जब नगर दण्डाधिकारी थे तो शारीरिक चीजों की आपको चिन्ता नहीं रहती। दो महिलाएं पिछले दरवाजे से मेरे पास आईं वास्तव में लोगों के शारीरिक कष्ट दूर करने में और कहने लगीं कि पुलिस के यह लोग हमें कोई परेशानी नहीं है। हमारा एक सहज अस्पताल कष्ट दे रहे हैं। हम अच्छी औरतें हैं। हमने कुछ है जिसमें कमरों के किराए के अतिरिक्त कुछ 25 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 9 & 10, 2000 है। ऐसा नहीं है कि अन्य लोगों को इसका पता भी नहीं लिपा जाता और कमरे भी कभी-2 बहुत अच्छे होते हैं। वहां डाक्टर भी नि:शुल्क न था। वे भी इसे जानते थे। बोलीविया में, मैं कार्य करते हैं। इतनी अच्छी तरह से चौजों का हैरान थी, जब लोगों ने मुझे चक्रों के विषय में कार्यान्वित करते हैं कि बहुत से लोग रोगमुक्त बताया," हम सभी कुछ जानते हैं परन्तु कुण्डलिनी हो चुके हैं। बहुत से लोग विश्वभर से बहां आ रहे हैं। ही ऊंचे पद के लोग वहां आते हैं भी उन्हें ज्ञान था। मैंने सोचा कि पता तो लगाऊ उठाता हमें नहीं आता"। कुण्डलिनी शब्द का बहुत और रोग से मुक्ति पा लेते हैं। नि:सहाय भावनाओं कि किसने इन्हें इसके विषय में बताया है। उन्होंने बताया कि बहुत समय पूर्व भारत से दो के साथ-साथ यह सब कार्य नहीं करना होता। उनके रोगों को जानने के लिए रोग निदान के लिए उन्हें नहीं भेजा जाता। आम चिकित्सा है कि मछेन्द्रनाथ और गोरखनाथ यहाँ आए हों। सन्त यहाँ पर आए थे। मैंने सोचा कि हो सकता प्रणाली में तो रोग निदान करवाते करवाते रोगी वे यूक्रेन भी गए थे। संभवत: उन्होंने वहां के आधा मर जाता है। सहजयोग में अंगुलियों लोगों को कुण्डलिनी और इसकी जागृति के के सिरों पर आप जान जाते हैं कि व्यक्ति में विषय में बताया होगा। परन्तु उन्होंने बताया कि क्या कमी है। उसे बताने की कोई आवश्यकता कुण्डलिनी जागृति के विषय में कुछ नहीं जानते। नहीं कि उसमें क्या कमी है। इस कार्य को करने और कार्यान्वित करने का ज्ञान आपको है। आज हो जाएगा तो आप किसी की भी कुण्डलिनी एक बार सहजयोग के विषय में यह ज्ञान प्राप्त उठा सकेंगे और उसे रोग मुक्त कर सकेंगे जहां ही मेरे से आयु में बहुत छोटा मित्र हमें मिलने तक शरीर और मस्तिष्क का सम्बन्ध है आप जो को आया। वह बहुत ही वृद्ध और जीर्ण दिखाई दे रहा था। उसने बताया कि उसे पक्षाघात हो चाहे कर सकते हैं। मैंने देखा है कि तनाव मानव का मानसिक विकार है, जिसमें व्यक्ति तनावग्रस्त गया था। मैंने कहा कैसे? वह भी वैसा ही और क्रोधग्रस्त हा जाता है या बिल्कुल चुप हो है। व्यक्ति था जो जरूरत से ज्यादा परिश्रम किया करता था। उसकी कुण्डलिनी उठाने के 20 मिनट पश्चात् उसका चेहरा ठीक हो गया और पूरा ज्ञान है। आपके मस्तिष्क की प्रतिक्रिया ही इस स्थिति को संभालने का आपको जाता इस स्थिति का कारण बनती है। परन्तु आप यदि हाथ ठोक हो गए। कहने लगा कि छड़ी के मस्तिष्क से परे चले जाएं तो, आप हैरान होंगे सहारे के विना में चल नहीं सकता। मैंने कहा आपको आने वाले विचार पूर्ण होंगे और आपको ठीक है अब आप छड़ी के विना चलो, वह चलने लगा। जो लोग पहियों वाली कुर्सियों पर सूझने वाले समाधान भी पूर्ण होंगे तथा आपके आते हैं मैंने उन्हें दौड़ते हुए देखा है। हैरानी की विरोधी लोग भी आपके मित्र बन जाएंगे। जो बात है किस प्रकार यह सब कार्यान्वित होता है। लोग आपको कष्ट दे रहे हैं वे भी आपके प्रति हमें पता होना चाहिए कि यह हमारे देश का ज्ञान मधुर हो जाएंगे। यह मानव का अन्तपरिवर्तन 26 चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 9 8 ।0. 2000 है-अन्त्तपरिवर्तन। कहा जाता है कि हमारे षडरिपु (Transformation) है। उस दिन मेरे पास एक संवाददाता आए जिनका नाम श्री अब्बास था। है-काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, मत्सर। परन्तु आजकल तो मुझे लगता है कि इनसे भी अधिक रिपु हैं। मान लेते हैं कि यह छः ही हैं प्रेम की मेरे प्रति वे अत्यन्त आक्रामक थे। मुझसे उन्होंने अत्यन्त अटपटे प्रश्न पूछे। कहने लगे कि" आपने कैसे जाना कि आप दिव्य (Divine) है?" मैंने इस परमेश्वरी शक्ति से जब आपका योग हो जाता है तो यह सब चौजें बेकार लगने लगती है कहा "आपने कैसे जाना कि आप मानव हैं? वह खीझ गए। मैंने कहा देखो मैं दिव्य इसलिए हूँ और छूट जाती हैं। न कोई ईर्ष्या रहती है, न कि मैं प्रतिक्रिया नहीं करती"। मैं चीजों को कोई स्पर्धा। हमारे बहुत से लोग विदेश सेवाओं देखा करती थी और देखते हुए मैंने पाया कि मैं में हैं और वे हमें बताते हैं कि श्रीमाताजी लोग हमसे बहुत प्रसन्न हैं। मैंने पूछा क्यों? क्योंकि हम स्पर्धा नहीं करते। हम सब लोग राजदूत अन्य लोगों से भिन्न हूँ। परन्तु इन बातों का दिखावा करना मुझे अच्छा नहीं लगता था। इस आदि बन रहे हैं पर कोई हमसे नाराज नहीं है बात को कोई भी नहीं समझना चाहता। वास्तविकता कर्योंकि हममें स्पर्धा का अभाव है। व्यक्ति जब करनी पड़ती है। सहजयोग आपको प्रमाणित स्पर्धा के बारे में सोचता है तो गलत मार्ग पर जा बताने का यही स्वोत्तम उपाय है। कहने लगा सकता है-किसी भी प्रकार की अन्धेरी गलियों कि किस प्रकार में यह प्रमाण पा सकता हूँ। मैंने में और बिल्कुल भिन्न रास्तों पर। आत्मसाक्षात्कार कहा कि मुझे किसी प्रकार के रूढ़िवाद पर के पश्चात आप मध्य में होते हैं और आपमें पूर्ण सन्तुलन होता है और सभी प्रकार की लालसाएं विश्वास नहीं है. किसी भी प्रकार की रूढ़िवादिता पर विश्वास न करें। परन्तु स्वयं पर विश्वास अवश्य करें। कहने लगा निसन्देह। और उसी आदि आपको छोड़ देती है। व्यर्थ की चीजों के समय उसकी कुण्डलिनी एकदम से कहने लगा कि मेरी अंगुलियों के सिरों से यह शोहरत के पीछे भागे फिरते हैं । स्वतः ही इतने शीतल लहरियां कैसे निकल रही हैं? यह सबको सन्तुलित हो जाते हैं कि चिन्ता ही नहीं रहती पीछे आप नहीं भटकते फिरते और न ही अपनी चढ़ गयी। दिखाई दे रहा है? मैंने कहा कि इन शीतल कि क्या हो रहा है तथा घटनाओं का भय भी लहरियों को आपने तालू भाग पर भी महसूस नहीं रहता। उदाहरण के रूप में यदि आप जल करो। वह पूर्णतः परिवर्तित हो चुका था। कहने में खड़े हों तो आपको लहरों का डर रहता है। लगा कि जो भी प्रश्न मैंने आपसे पूछे थे मैं परन्तु यदि आप नाव में बैठ जाएं तो आप लहरों उनहें छापूंगा नहीं। यह सब बेवकूफी थी (हम बेवकूफ थे)। अब मैं विवेकशील मानव बन गया हूँ। वास्तव में यह कृण्डलिनी परिवर्तन करती सहजयोग कार्य करता है। जैसा मैंने कहा आप का आनन्द भी ले सकते हैं। किन्तु यदि आप तैरना सीख ले तो जल में कूदकर आप लोगों को बचा भी सकते हैं। इसी प्रकार सहज ढंग से 27 चैतन्य लहरी ॥खंड : XII अंक : 9.8 10. 2000 लोगों का मुझे बहुत ध्यान रहता है, सदेव से हमने मातृप्रेम के सन्देश के कभी नहीं समझा। मैं समझती हूँ कि मातृप्रेम बहुत से कार्य करता है और यही कारण है कि आप भी सुहृदय बन था." परन्तु मेरे पति के कठीर नियमों के कारण कि उनके दफ्तर के लोगों को न छुआ जाए. मैं न तो उनसे मिल सकी और न जाते हैं। में नहीं समझ पाती कि कोई मानव बातचीत कर किस प्रकार किसी दीन दुखी, गरीब के प्रति क्रूर सकी। किसी चपरासी से भी नहीं, आई.ए.एस. हो सकता है! आपके अन्तःस्थित प्रेम समुद्र की की तो बात ही कुछ और थी। मैंने कहा ठीक है तरह से उमड़ूने लगता है और आप अत्यन्त उदार व्यक्ति बन जाते हैं। मैंने देखा है कि सभी में कोई ओर क्षेत्र चुन लूगी। परन्तु सौभाग्य से वे अब सेवानिवृत्त हो गए हैं और आश्चर्यजनक उदार लोगों की परमात्मा देखभाल करता है। मैं रूप से में अब आप लोगों से बातचीत करने को अपनी पिताजी का उदाहरण दूंगी। वो भी अत्यन्त स्वतनत्त्र हूँ। अन्यथा वे मुझे कभी आपसे बातचीत उदार व्यक्ति थे। वे सदैव कहा करते थे कि घर करने की आज्ञा न देते। उनका कहना था कि सदैव दूरी बनाकर रखना आवश्यक है। पार्टियों के दरवाजे, खिड़कियाँ हमेशा खुले रखो। हम यदि उनसे कहते कि चोर घुस आएंगे तो वे आदि में जाकर भी लोगों को चीजों के प्रति वाद विवाद करते देख मैं मुस्कराती थी और चुप रहती थी। इसलिए लोगों ने सोचा कि संभवत: मैं अंग्रेजी भाषा नहीं जानती या अपनी अज्ञनता के एक दिन एक चोर घर में घुस आया और कहते कि उन्हें आने दो। संगीत प्रेमी होने के कारण उन्होंने एक बड़ा ग्रामोफोन रखा हुआ था। कारण कुछ नहीं बोलती। परन्तु वे सभी लोग ग्रामोफोन उठा कर ले गया। अगले दिन पिताजी गम्भीर मुद्रा में बैठे हुए थे मेरी माताजी ने पूछा करने अब ध्यान धारणा कर रहे हैं। ध्यान-धारणा के लिए आपको स्वयं को फॉँसी पर नहीं कि क्या उन्हें ग्रामोफोन जाने का अफसोस हो लटकाना। आपके पास बहुत समय नहीं है। सोने रहा है? कहने लगे नहीं, नहीं, ग्रामोफोन तो दूसरा भी खरीद सकता हूँ। यह व्यक्ति जो से दस मिनट पूर्व आप ध्यान-धारणा कर सकते का हैं, आपको सुखद प्रतीत होगा। आपको लगेगा संगीत का गुण-ग्राही प्रतीत होता है, केवल कि आप अपनी समस्याओं से मुक्त हो गए हैं। ग्रामोफोन ही ले गया है, रिकार्ड तो वो ले ही विचार कुछ भी नहीं हैं। निर्विचार चेतना के नहीं गया। बजाएगा क्या? मेरी माताजी ने कहा कि आप अखवार में विज्ञापन दे दें जो व्यक्ति ग्रामोफोन ले गया है वो रिकार्ड भी ले जाए। कहने का मतलब यह है दुनिया में इतने उदार लोग भी हैं। मैंने बहुत से उदार लोग देखे हैं और विषय में मनोवैज्ञानिक ए.हयूम आपको सब वता चुके हैं। ए.हयूम जो फ्रायड के शिष्य थे और जिन्होंने फ्रायड के मातरति (मातृमनोग्रंथी) के सिद्धांत के विरूद्ध विद्रोह किया। गांधी जी ने जब स्वतन्त्रता संग्राम की घोषणा की आप जानते हैं कि हम भारतीय शक्ति के थी तब वे न केवल जेल गए परन्तु सर्वस्व त्याग पुजारी हैं। आजकल नवरात्रे चल रहे हैं परन्तु 28 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 9& 10, 2000 টি लोगों की देखभाल की और लोगों के लिए इतना दिया। हम लोग बहुत बड़े बड़े घरों में रहते थे । तत्पश्चात् हम झापड़ियों में चले गए। परन्तु उन कार्य किया। आपको यदि लोगों के प्रति प्रेम नहीं झोपड़ियों का भी हमने आनन्द लिया क्योंकि है तो आप अपने विषय में और फिजूल की आनन्द तो हमारी राष्ट्रभक्ति का था और इंस चीजों में चिन्तित रहेंगे। आइ.ए.एस. महिलाओं 'भावना ने उस समय बहुत सहायता की। लोगों को भी मेरा हार्दिक धन्यवाद कि उन्होंने मुझे यहां निरमन्त्रित किया। मैं आप लांगों को बताना की इस भावना के कारण महात्मा गांधी को चाहूंगी कि महिलाओं को अपने पतियों की सहायता करनी ही हांती है। उन्हें ये समझने का की नई नई वस्तुएं आ रही हैं ठीक है इसमें प्रयत्न करना चाहिए कि वे शक्ति हैं और ये कोई बुराई नहीं है। ये आनी ही चाहिए। हमें शक्ति उन्हें पुरुषों का देनी चाहिए ताकि वे सम्पन्न होना है और हमारे देश को सम्पन्न होना बेहतर कार्य कर सकें। कभी-कभी तो मुझे बड़े है और मैं मानती हूँ हमारे देश को अधिक से अजीबोगरीब अनुभव होते हैं। ये मैं आपको अधिक वस्तुएं बनानी हैं। परन्तु इन चौजों के सुनाना चाहुँगी अत्यन्त रोचक बात है कि आरम्भ पीछे पीछे भटकना नहीं है। एक अन्य प्रकार की में मुझे आपकी वरिष्ठता और कनिष्ठता के बारे भी भटकन खड़ी हो जाती है कि मैं इस महिला में बिल्कुल भी ज्ञान न था। इस बात का मुझे बहुत सहायता प्राप्त हुई। आजकल पश्चिमी देशों से भिन्न प्रकार को क्या दूँ? इन महाशय के लिए मैं क्या करू? कहने से अभिप्राय कि चिन्ता एक दूसरा रूप बिल्कुल भी ज्ञान न था। शास्त्री जी के साथ कार्य करने के लिए मेरे पति दिल्ली आए। एक धारण कर लेती है कि क्या किया जाए? ऐसी पार्टी में विश्वविद्यालय की मेरी एक मित्र मुझे क्या चीज दी जाए उन्हें ये न लगे कि रिश्वत दी मिली उसने मुझसे पूछा," अरे! आप कैसी हैं?" जा रही है, क्योंकि कभी कभी सरकारी नौकर मैंने कहा" मेरे पति यहां आ गए हैं", वो क्या करते हैं?" मैंने कहा वह सरकारी नौकर हैं.. उन्हें देते हैं तो उन्हें लगता है कि रिश्वत दी जा यहाँ पर सभी सरकारी नौकर हैं परन्तु वे किस इतने सख्त होते हैं कि कोई भी चीज जब आप रही है। मैंने कहा ये रिश्वत नहीं है। प्रेम के पद पर हैं?" मैंने उत्तर दिया." मैं नहीं जानती, कारण ये चीज आपको दे रही थी। क्या आप परन्तु वे यहीं किसी पद पर हैं।" तुम रहती इसे ले लेंगे? बड़ी कठिनाई से वे लोग किसी कहाँ हो? मैंने बताया कि मे। मीना बाग में रहती चीज़ को स्वीकार करते हैं । परन्तु प्रेम की हूँ। हा! मीना बाग में आपके पति क्या करते हैं ? अभिव्यक्ति का भी तो यही मार्ग है। अपने प्रेम तुम्हें तो कहीं बेहतर पति मिल सकते थे तुमने के कारण आप बहुत लोकप्रिय हो जाएंगे अपने ऐसे आदमी से विवाह क्यों किया जो आपको दफ्तर में, अपने कार्य पर और पूरे देश में लोग मीना बाग में रखते हैं। बाबा। मैं नहीं जानती कि आपको याद करेंगे कि यही व्यक्ति था जिसने मीना बाग इतनी बुरी जगह है। मैंने उसे बताया ा 29 चैतन्य लहरी ॥खंड : XII अक : 9 & 10. 2000 कि शास्त्री जी ने हमें यहाँ आनं को कहा क्योंकि चीज़ों की वात करती थीं। कभी समाज की बात नहीं करती थी। एक अजीबोगरीब वातावरण था। और कहीं जगह न थी तो उन्होंने हमें मीना बाग अंग्रेजों ने अपनी विरासत हमारे सिर पर छोड़ दी थी और हम उसी में मस्त थे। लोगों के मस्तिष्क में जगह दे दी। जिस प्रकार से वो कह रही थीं मुझे लगा मीना बाग बहुत बुरी जगह थी। तब वह कहने लगी ये जो महाशय आ रहे हैं ये में अंग्रेजों से बेहतर कुछ अन्य न आता था। लम्बे व्यक्ति........तुम नहीं जानती ये बहुत महत्वपूर्ण हैं। तुम किसी तरह से इनसे बातचीत कर लो ये तुम्हारे पति को बहुत अच्छी नौकरी नेत्रहीन लोगों की संस्था की में अध्यक्ष थी। इस संस्था का नाम था 'नेत्रहीन समाज के मित्र'। इस संस्था के लिए हमें एक कार्यक्रम किया जिसमें भी दिलवा दंगे और बहुत अच्छा घर भी और नेत्रहीन लोगों ने ही अभिनय किया। गवर्नर जो व्यक्ति आ रहे थे वो मेरे पति थे। कहने साहब ने आना था और जब वे आए तो आयोजकों इन्हें जानती हो? मैंने कहा, हाँ, कंसे? ने जानना चाहा कि उनकी समीप वाली कुर्सी लगी, तुम ये मेरे पति हैं। उसके बाद उसने मुझसे बात नहीं पर कौन बैठेगा संस्था के अध्यक्ष होने के नाते केवल मुझको वहाँ बैठने के लिए कहा जानें की। कभी नहीं कहा कि मीना बाग में रहना इतना बुरा है आदि आदि। तो जो ज्ञान सरकारी घरों के विषयों में, सरकारी सम्पदा अधिकारियों वाला था। परन्तु इस बात को लेकर वे लोग परस्पर लड़ने लगे। मुझे बहुत घवराहट हुई। मैंने सोचा कि इसे मज़ाक में ले लेना चाहिए। इस को भी नहीं था वह उस महिला को था कि फलां जगह आइ.ए.एस. अधिकारियों के लिए हैं समेस्या के समाधान का यही सर्वात्तम तरीका है फलां जगह नहीं। क्या आप इस प्रकार को तो मेंने कहा कि ग्वनर के सिर पर हम एक फट्टा रख लेंगे और चिड़ियों की तरह से उस पर बैठ जाएंगे। तुरन्त उनका क्रोध शान्त हो गया और सभी कुछ ठीक हो गया। मेरा कहने से कल्पना करते हैं? अत: महिलाओं की इस प्रकार की लिप्सा व्यर्थ है। मुझे ये जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि अभिप्राय ये है कि महिलाओं का स्वभाव परिवर्तित आपकी यह संस्था इतना अच्छा और रचनात्मक कार्य कर रही हैं। वास्तव में मुझे बहुत खुशी हो गया है। ये बात आप स्पष्ट देख सकती हैं। हुई। मेरे पति कहते हैं कि तुम समाजवादी हो चाहे महिलाएं आत्मकेन्द्रत प्रतीत हो फिर भी क्योंकि मैं सदा सामाजिक समस्याओं पर ही मुझे प्रतीत होता है कि वे सामाजिक भी हैं। वे सोचती रहती हूँ। जैसे भी हो मैं समाजवादी हूँ पढ़ती लिखती हैं और समझती हैं कि इस देश क्योंकि यह सामूहिक विवेक है। जब मेंने सुना में क्या हो रहा है। में कहूँगी कि आजकल हमारा कि आप लोग इस प्रकार का कार्य कर रहे हैं तो देश अत्यन्त उथल-पुथल की स्थिति में है और ये सारी चीज़ें हमें समस्याओं के समाधान में मैंने कहा आश्चर्यजनक। मैं कल्पना भी नहीं कर सकती। उन दिनों में महिलाएं इधर-उधर की सहायक होगी। बेशुमार समस्याओं में से कुछ 30 चतन्य लहरी । खंड XII अंक : 9& 10, 2000 समस्याओं का समाधान होते ही मुझे विश्वास है जाते हैं, शरीर परिवर्तित हो जाता है और कि हमारा देश महानतम देशों में से एक होगा। अन्तर्परिवर्तन को देखकर हैरानी होती है। ये सब प्रतिभा की यहाँ कोई कमी नहीं है। इसके विषय आपमें अन्तर्जात हैं, आप सबको प्राप्त है, आपमें में कोई सन्देह नहीं। कठोर परिश्रम करने वालों कार्यरत है। केवल आपको अपना आत्मसाक्षात्कार का भी यहाँ अभाव नहीं है। अभाव है तो केवल प्राप्त करना है। यह आपका अन्तज्जञा है, अत्यन्त किसी ऐसे व्यक्ति का जो इन्हें योजनावद्ध कर सूक्ष्म ज्ञान। सके और वह व्यक्ति आत्मसाक्षात्कारी हो तथा सभी महिलाओं को मैं धन्यवाद देती हूँ जिसमें आत्मविश्वास हो, जिसमें आन्तरिक शक्ति कि उन्होंने मुझे यहाँ बुलाया ये अत्यन्त अद्भुत अनुभव है। में आज तक ये न जानती थी कि लोग क्या कर रहे हैं। तब सब कुछ परिवर्तित हो आई.ए.एस अधिकारी भी इस सुक्ष्म ज्ञान को सकता है। और आप लोगों का अन्त्तपरिवर्तन पाने के इच्छुक होंगे। मुम्बई में जब ये कार्य हुआ तो मुझे हैरानी हुई। अब वे लोग एक हो और जो इस बात की चिन्ता न करें कि अन्य सुन्दर मानव के रूप में हो सकता है। आप अपनी सभी विध्वंसकारी आदतें त्याग दें। इन्हें सभागार में सामूहिक रूप से ध्यान धारणा कर पूर्णतः त्याग दें। मैं कभी नहीं कहती कि 'त्याग दो । ऐसा यदि मैं कहूँगी तो आधे लोग तो यहाँ से उठकर ही चले जाएंगे। लन्दन में मैंने देखा रहे हैं। जिस प्रकार उन्होंने मेरा स्वागत किया वह ा। मैं तो हमेशा यही वास्तव में आश्चर्यजनक है। सोचा करती थी कि मुम्बई में आई.ए. एस. अधिकारी अत्यन्त घमण्डी हैं। वे लोग आपकी ओर कभी कि वारह लोग जिन्हें नशे की लत थी. उन्होंने रातोंरात नशे छोड़ दिए। नशा सेवन आदि की देखेंगे भी नहीं। परन्तु वे लोग अत्यन्त विनम्र बन गए हैं। मैं नहीं जानती किस प्रकार उनमें ये समस्याएं हम बिना किसी कठिनाई के हल कर सकते हैं और आप लोगों को इसी कार्य के लिए पदारूढ़ किया गया है आपकी स्थिति बहुत कठिन है क्योंकि आप पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। जिसे समझा जाना आवश्यक है। विना जिम्मेदारी श्रेष्ठता मनोग्रन्थि आ गई? उनके विषय में हमारे सी शिकायते थीं। परन्तु अब पास बहुत वे बहुत परिवर्तित हो गए हैं। इसी प्रकार आप सबको भी परिवर्तित होना चाहिए और सामूहिक बनना चाहिए। यह संयुक्त होना नहीं है सामूहिक होना है। एक को समझे हम कुछ भी प्राप्त न कर सकंगे। परन्तु एक बार यदि आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लें तो स्वतः ही आप जिम्मेदार बन जाएंगे। और जिम्मेदारी का बोझ भी आपको महसूस न दूसरे की सहायता करते हुए इस तरह के जीवन के विषय में आप सोचें। विश्व भर में जहाँ भी आप जाएंगे आपको बहन-भाई मिलेंगे। बो भी यहाँ पर आते हैं। यहाँ आकर वे हमारी मातृभूमि, होगा। आप एकदम शान्त हो जाएंगे। ऐसे व्यक्ति से मिलना भी अत्यन्त सुखद होता है। आप भारतभूमि को चूमते हैं। मैंने जब उनसे पूछा कि हैरान होंगे कि कभी कभी तो चेहरे परिवर्तित हो तुम ऐसा क्यों करते हो तो उत्तर मिला ये 31 चैतन्य लहरी । खड : XII अंक : 9& 10. 2000 योगभूमि है, विशेष देश है। यहाँ पर हमें हमारा आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ। आपको हैरानी होगी कि ये देश योगभूमि है । शिव हैं, यह शिव की चैतन्य लहरियाँ हैं। यह सच्चाई है। मराठी पत्रिका में हाल ही में मैंने एक लेख पढ़ा जिसमें लिखा था कि इस्लाम धर्म एक वार अपने पति के साथ जब में आने से पूर्व शिव को पूजा जाता था। परन्तु वायुयान से यात्रा कर रही थी तो मैंने अपने पति मन्दिरों में लोग बहुत ज्यादा कर्मकाण्डी बन गए को बताया कि हम भारत में प्रवेश कर रहे हैं थे। मोहम्मद साहव ने कहा कि पत्थरों को मत उन्होंने पूछा," तुमने कैसे जाना?" मैंने कहा. पूजो। परन्तु स्वयंभु देवता भी तो हैं। वहाँ जाकर चारों तरफ मुझे चैतन्य दिखाई दे रहा है| वे अपनी सीट से उठकर जहाज के चालक के को जांचेंगे तो जान जायेंगे कि आप लोग अपनी चैतन्य लहरियों से जब आप इस सत्य पास इस बात की सच्चाई को परखने के लिए गए। चालक ने आत्मसाक्षात्कार के योग्य हैं। आपका भूत कुछ भी रहा हो, कोई बात नहीं। अब हमें वर्तमान में कहा "श्रीमन हमने अभी-अभी भारत में प्रवेश किया है। मैंने कहा," देखो ये रहना है। भूतकाल समाप्त हो गया है, भविष्य का कोई अस्तित्व नहीं। आप वर्तमान में रहेंगे हमारी भूमि है जो आध्यात्मिकता से परिपूर्ण है । जो भी कुछ लिखा गया है उसे हमें सत्यापित और यही सच्चाई है। आप सब चैतन्य लहरियाँ करना चाहिए। देखना चाहिए कि क्यों कुछ स्थान महसूस कर सकते हैं। इस देश के बहुत से स्वयंभु है? किस प्रकार आप ये बात जान सकते सन्तों ने कहा कि यह आपके अन्दर विद्यमान हैं? स्थान-स्थान पर मन्दिर बने हुए हैं। स्वयंभु है, अपने अन्दर इसे खोजो। शान्ति आपके मन्दिरों के चैतन्य को आप अपनी अंगुलियों पर महसूस कर सकते हैं। आप हैरान होंगे कि भी जो कुछ उन्होंने लिखा उसे कोई नहीं समझता। मक्का में एक बड़ा काला पत्थर है। मोहम्मद साहब ने कहा था कि पत्थरों को मत पूजो पिंगला, सुखमन क्योंकि मूर्तियां बनाकर लोग धनार्जन करते थे। बाजे रे। उन्होंने बहुत कुछ कहा पर कबीर को परन्तु इस पत्थर की परिक्रमा करने के लिए कोन समझता है। गुरुनानक देव ने भी स्पष्ट अन्तर्निहित है कुण्डलिनी जागृति के विषय में कबीर साहब ने इसके विषय में लिखा,"ईडा. नाडी रे, शुन्य शिखर पर अनहद उन्होंने कहा, और इसकी परिक्रमा करना कहा, मुसलमानों का बहुत बड़ा कार्य है। उनसे पूछें कि वे पत्थर की पूजा क्यों करते हैं ? वे नहीं जानते, परन्तु काहे रे बन खोजन जाई सदा निवासी, सदा अलेपा मैं तोहे संग समाई इस बात को जानती हूँ क्योंकि यह शास्त्रों में लिखा हुआ है कि यह पत्थर मक्केश्वर शिव हैं। यह शिव हैं। मेरा ऐसा कहते गई है। फिर कबीर साहब ने कहा, परन्तु यह सब कहने सुनने की बातें बन पढ़ि पढ़ि पण्डित मूर्ख भए। हो चैतन्य लहरियाँ बहने लगी हैं। उसे पत्थर में 32 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 9& 10, 2000 ।। ख "heé श्री आदिशंकराचार्य ने भी माँ आदिशक्ति से प्रार्थना की कि मुझे शब्दजाल से मुक्त करो। मुझे आशा है कि यदि आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने की इच्छा करेंगे तो यह कार्य हो महाराष्ट्र में एक थैला भरके मूर्तियां लेकर सुबह चार बजे लोग पूजा करनी शुरु कर देते हैं और सहज है और इस पर कोई विशेष समय नहीं जाएगा। जैसा बताया गया है कि यह कार्य बहुत नौ बजे तक पूजा करते हैं। तब स्नान करके कुछ लगता। यह तो घटना मात्र है। सर्वप्रथम आप सबको क्षमा कर दें। अब लोग कहते हैं कि खाकर दफ्तर जाते हैं। वहाँ ये आम प्रथा है । हमें श्रीमाताजी हम क्षमा नहीं कर सकते। विशेष रूप समझना चाहिए कि ये मात्र कर्मकाण्ड है, आपको से पश्चिम के लोग ऐसा कहते हैं वे क्षमा नहीं कर सकते। बिल्कुल भी नहीं। परन्तु आप सोचें चाहिए कि सच्चाई को समझो और यह जान लो कि किसकी पूजा की जानी चाहिए। इन सब बातों पर अपनी शक्ति व्यर्थ नहीं करनी चाहिए। क्षमा न करके भी आपको क्या लाभ होता है। क्षमा न करने से तो आप उनके हाथों में खेलते उस ज्ञान में उतर जाना बहुत आसान है केवल हैं और स्वयं को कष्ट देते हैं अत: बेहतर होगा वही परमेश्वरी प्रेम है। आप वही ज्ञान सत्य है। समझ भी नहीं पाते कि किस प्रकार आप इतने भले, प्रेममय और सम्माननीय बन जाते हैं। आप सबको क्षमा कर दें। में जानती हूँ कि बहुत वा से भयानक लोग हैं जिन्होंने आपको बहुत सताया आपके अन्दर से ये इतनी अद्भुत चीज है। होगा, कष्ट दिया होगा, परन्तु उनको क्षमा कर जिसे बिना कुछ खर्च किए आप पा सकते हैं। दें। आप स्वयं को भी क्षमा कर दें। किसी भी कर्म के लिए स्वयं को दोषी न मानें। जो होना था इसके लिए केवल प्रार्थना करें। आपके विकास की यह जीवन्त प्रक्रिया है। विकसित होने के वह हो चुका, वस समाप्त। उन बातों को याद करके स्वयं को दोषी लिए हमने कितना धन खर्च किया है। कुछ भी मानने का क्या लाभ है? कभी-कभी ये दोष नहीं। हमें कुछ भी नहीं खर्चना पड़ता। यह स्वत: ही हो जाता है। नन्हें से बीज की तरह ये भाव बहुत बढ़ जाता है। एक बार मैंने एक अंकुरित हो जाता है। परन्तु इसे बढ़ाना होता है व्यक्ति से पूछा कि आप क्यों स्वयं को दोषी और इसके लिए आपको प्रतिदिन कुछ देर मान रहे हों? कहने लगा मैंने अध्यक्ष पर कॉफी गिरा दी। मैंने कहा,"तो क्या हुआ? आपने ध्यान-धारणा करना आवश्यक है। यह कोई जान-बूझकर ऐसा नहीं किया, तो आप क्यों ऐसा सोचते हैं। तब कहीं उसने स्वयं को क्षमा किया। लम्बी-चौड़ी क्रिया नहीं है, एक प्रकार से चक्रों को शुद्ध करने का तरीका है। कभी-कभी चक्रों में बाधाएं आ जाती हैं जिनका शुद्ध होना आवश्यक ऐसी भावना किसी को जीवन भर परेशान करती रहे इसकी आप कल्पना करें! तो व्यक्ति को इस है और यह कार्य ध्यान धारणा द्वारा किया जा प्रकार नहीं सोचना चाहिए कि मैंने फलां गलतियाँ सकता है। ध्यान-धारणा शक्ति एवं आनन्द प्रदायी की है कंसे मुझे आत्मसाक्षात्कार मिल सकता है। है। 33 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 9& 10. 2000 नाध्छ ये बहुत आवश्यक है कि आप स्वयं को दोषी भारतभूमि में, योगभूमि पर बैठे हैं। इस देश में न मानें। आपने गर अपराध किए होते तो आप जागृति बहुत शीघ्र होती है विशेष रूप से आप जेल में बैठे होते यहाँ न होते। स्वयं के विषय में लोगों को क्योंकि आप लोग इस देश को बहुत ब खुद निर्णय न करें। स्वयं को पहचाने। अपने आपको पहचानने के लिए ये आपको करना करते हैं। तो बिना किसी सोच विचार के अपने होगा। अपने प्रति आपकी भावना प्रेम एवं दोनों हाथ मेरी ओर फैला दें। मेरी प्रार्थना है कि प्रेम करते हैं और इसके लिए कठोर परिश्रम भी वमाी आप सबको और स्वयं को भी क्षमा कर दें। सम्मानमय होनी चाहिए। मुझे आशा है कि आज ही आपकी इच्छानुरूप आपको आत्मसाक्षात्कार यदि आप ऐसा नहीं करते तो आपका विशुद्धि प्राप्त हो जाएगा। जो लोग आत्मसाक्षात्कार नहीं चक्र बांधित रहेगा और आज्ञा चक्र भी अवरूद्ध लेना चाहते वो बाहर चले जाएं क्योंकि मैं नहीं रहेगा। अपने हाथों पर सबसे पहले आपको अंगुलियों के सिरों पर गर्म या ठण्डी हवा चाहती कि वे अन्य लोगों के उत्थान में बाधा डालें। आप यदि आत्मसाक्षात्कार नहीं लेना चाहते महसूस होगी और फिर आपकी हथेलियों पर। तो मैं इसे आप पर थोप नहीं सकती। कुछ लोग सोचते हैं कि यह वातानुकूलन (Air आत्मसाक्षात्कार न किसी पर थोपा जा सकता है Condition) के कारण है, परन्तु ऐसा कुछ नहीं है। स्वयं पर भरोसा करें। अब दायाँ हाथ मेरी न इसके लिए धन दिया जा सकता है न इसके लिए धन दिया जा सकता है। कुण्डलिनी यदि नहीं उठती तो बात और है। यहाँ पर हमारे ध्यान ओर करें और अपने बाएं हाथ से, सिर को थोड़ा झुकाकर, तालू भाग में देखें कि यहाँ से भी केन्द्र हैं वहाँ जाकर अपने चक्रों की खराबियों शीतल लहरियाँ निकल रही हैं। अपने हाथ को को आप ठीक करवा सकते हैं। स्वयं पर विश्वास इंधर-उधर चलाकर महसूस करें। लहरियाँ यदि गर्म हैं तो आपको कहना होगा कि मैंने सबको रखें इस कार्य में बहुत अधिक समय नहीं लगेगा। यह तुरन्त कार्यान्वित होगा। विदेशी लोग क्षमा किया। हृदय से आपको क्षमा करना होगा। स्वयं को क्षमा नहीं कर पाते और भारतीय दूसरों अब अपना बायाँ हाथ मेरी ओर करके सिर के को। दोनों के दृष्टिकोण भिन्न भिन्न हैं परन्तु हमें ऊपर दायें हाथ से चैतन्य महसूस करें। अब दोनों को क्षमा करना होगा इस प्रकार छिन्न-भिन्न होने के लिए परमात्मा ने आपको नहीं बनाया, दोनों हाथ मेरी ओर करके बिना कुछ सोचे मेरी ओर देखे। कुछ क्षणों की निर्विचारिता भी महत्वपूर्ण है इसे निर्विचार समाधि कहते हैं जो बहुत अपनी गरिमा को प्राप्त करने के लिए बनाया है। आप अपने दोनों हाथ मेरी ओर फैला दें और यदि जूते पहने हो तो इन्हें उतार दें क्योंकि अन्ततः निर्विकल्प अवस्था बन जाती है। पहले आप निर्विचार चेतना में आते हैं फिर निर्विकल्प पृथ्वी माँ भी हमारे आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने चेतना में। यही स्थिति आपको प्राप्त करनी है। अब जिन लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो में बहुत सहायक होती है। आप दिल्ली में, उ4 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 9 & 10, 2000 गया है वे अपने दोनों हाथ ऊपर उठाएं आपमें और सुन्दर (विकसित) लोगों की नई पीढ़ी में प्रवेश करें। यह अत्यन्त अद्भुत समय है। इसके हैं। आपको बधाई हो जिन लोगों को महसूस नहीं लिए मैंने तो केवल इतना किया है कि सामूहिक से अधिकतर को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया हुआ वे हमारे किसी भी केंद्र पर जाकर चेतना की विधि खोजी है। मैंने केवल यही कार्य आत्मसाक्षात्कार पा लें। कुण्डलिनी आपकी किया है। अन्यथा यह सब पहले से ही विद्यमान व्यक्तिगत माँ है. आपके विषय में सभी कुछ था नाथपंथी इसका प्रयोग करते थे। लोगों को इसका ज्ञान था। मैंने मानवीय समस्याओं के जानती हैं। आपकी शारीरिक समस्याओं का उन्हें सम्मिश्रण और क्रम परिवर्तन (Permutation जानती है। आपकी आकांक्षाओं और भूत को ज्ञान है। वे आपकी माँ हैं और माँ की तरह से and Combinations) की खोज की और देखा आप सबमें ये क्यों है। यह सामूहिक घटना पूरे लेती हैं। कुण्डलिनी भी आपकी माँ हैं और विश्व के लिए आशीर्वाद बन गई है। एक बार बच्चे को जन्म देने के सभी कष्ट स्वयं झेल अपने प्रेम के कारण यह सब कार्य करती हैं। फिर मैं आपका धन्यवाद करती हूँ कि आपने समय आ गया है कि हम सब अन्त्तपरिवर्तित हों मुझे यहाँ निर्मन्त्रित किया। परमात्मा आपको धन्य करें 35 चैतन्य लहरी खड : XII अक : 9 & 10, 2000 अन्य लोगों को प्रभावित त्रत कैसे करें! हेग, हालैण्ड-17.9.86 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन अन्य लोगों को प्रभावित करने के लिए तो बहुत ही नियमित हैं और मैं हमेशा देर से हमें ये पता होना चाहिए कि अपने आप पर पहुँचता हूँ। किसी से आपको यदि एक निश्चित हमारा कितना नियंत्रण है। ये बहुत आवश्यक है। है। समय पर मिलना हो तब भी आपको बिल्कुल उदाहरण के रूप में कुछ लोगों की अपनी समय-निष्ठ होना चाहिए। आपको सदैव समय तस्वीर अच्छी नहीं होती फिर भी वे अन्य लोगों निष्ठ होना है । को प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं । यह तो पश्चिम में विशेष रूप से मैंने देखा है कि मात्र मज़ाक है। जिस व्यक्ति की आअपनी ही लोग प्रातः बहुत देर से उठते हैं, बहुत आलसी तस्वीर खराब है उससे कौन प्रभावित होगा? हैं और मुर्दों की तरह से चलते हैं वास्तविकता ये है कि वो संसार से ऊब चुकें हैं। संसार में बेी अतः बाह्य रूप को निखारने से पूर्व आंतरिक उन्हें भेज दिया गया है और किसी तरह से वे रूप का निखारा जाना आवश्यक है। उदाहरण के रूप में दफ्तर में सदैव देर सब चला रहे हैं। ऐसा व्यक्ति किसी को प्रभावित से आने वाला व्यक्ति, समय का जिसे कोई नहीं कर सकता। लोग आपकी तस्वीर को देखते हैं कि यह व्यक्ति तो खुद ही किसी तरह से अत: यदि आप अन्य लोगों से समय पर आने जीवन की गाड़ी धकेल रहा है क्यों हम इसी की के लिए कहते हैं तो ठीक समय पर आने वाले तरह से चलें? यह हमें क्या बता सकता है? यदि आप स्वयं आलसी जीव हैं तो आप अन्य विवेक नहीं, ऐसे व्यक्ति का सम्मान नहीं होता। लोगों में आपको प्रथम होना चाहिए। समय का लोगों को प्रभावित नहीं कर सकते। अन्य लेगों पाबन्द होने के लिए आपका नाम हो। दस बजे यदि आपने दफ्तर पहुँचना है तो पाँच मिनट को प्रभावित करने के लिए आपको प्रात: जल्दी पहले वहाँ पर पहुँचे और ठीक समय पर अन्दर उठने की आदत होनी चाहिए। प्रात: जल्दी प्रवेश करें। समय की ये पाबन्दी बहुत ही उठकर नहा-धोकर चुस्त हो जाना चाहिए। महत्वपूर्ण है। ये पाबन्दी लोगों की सहायक होती है और इसके कारण लोगों के मन में आपका खौफ बन जाता है। वो सोचते हैं कि यह व्यक्ति कुछ लोगों का विश्वास है कि फैशनेबुल होने से, फैशनेबुल वस्त्र धारण करने से लोग प्रभावित होते हैं ये बात सत्य नहीं है। क्योंकि वो 36 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 9 & 10. 2000 सोचते हैं कि आपमें आत्मविश्वास नहीं है। परन्तु यदि आपमें आत्म-विश्वास की कमी है आपको अपनी एक ऐसी तस्वीर बनानी होगी कि तो आप ये कार्य न कर सकेंगे अतः सर्वप्रथम आप इस प्रकार के गुणवान व्यक्ति है जैसे अपने में आत्मविश्वास स्थापित किया जाना चाहिए। नाटक के चरित्र होते हैं। व्यक्ति उन्हीं विशेषताओं के साथ बातचीत करता है। लोगों को पूरी तरह है कि "मैं आत्मा हूँ, मैं शिशु हँ. आदिशक्ति ने से पता होना चाहिए कि ये आपकी शैली है तथा आपमें ये गुण हैं और इस मामले में आप कभी नहीं झुकते। लोगों से बातचीत करते हुए आपकी शैली में वैठकर कैसे आप खाना खाते हैं कई लोग का उत्तम होना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आपकी चाल-ढाल भी अच्छी होनी चाहिए। ये सब चीज़ें बहुत आवाज करते हैं, अन्य लोग आपकी ये अच्छी तरह से व्यवस्थित कर लेनी चाहिए कि सहजयोगियों के लिए यह कह देना बहुत आसान स्वयं मुझे चुना है।" अत: आपमें अथाह आत्मविश्वास होना चाहिए। आपको देखना चाहिए कि लोगों के बीच अपना मुंह बहुत बड़ा खोलकर खाना खाते हुए सारी बातें देखते हैं। किस प्रकार आप खाते हैं। किस प्रकार आप बातचीत करते हैं। अपना मुँह आप मरे-मरे से न चलें, अपनी टांगे इधर-उधर खुला न रखें, इस प्रकार आप कभी लोगों को न फेके, सीधे होकर चलें और सीधे बैठें। लोग इस बात को देखें कि आपमें आत्मविश्वास है, आत्मविश्वास विहीन आचरण किसी को भी प्रभावित न कर सकेंगे। लेकिन मुँह को भींचकर भी न रखें। इसे सामान्य रूप से बन्द रखें ताकि प्रभावित नहीं कर सकता। अतः आपकी लोग ये न समझें कि आप उन्हें चिढ़ा रहे हैं या चाल-ढाल, बातचीत, उठने-बैठने के तरीके और फिर आप उनसे नाराज हैं। चेहरे के हाव-भाव सामान्य होने चाहिए जो न आक्रामक हों और न कान अभिव्यक्ति के ढंग से आत्मविश्वास छलकना चाहिए। आत्मविश्वास की भावना आपमें होनी दब्बू। आपका मुँह यदि खुला रहता है तो लोग चाहिए लेकिन व्यक्ति में आत्मविश्वास तभी सोचेंगे," ओह! ये अजीब बेवकूफ है " दाँतों से आता है जब उसे लगे कि वह सुरक्षत है। यदि आप अपने होंठ दबाते हैं तो लोग आपको सहजयोग में यदि आपका मध्य हृदय चक्र ठीक आक्रामक समझ लेंगे। अत: व्यक्ति को देखना म.#।८ चाहिए कि अन्य लोगों के सम्मुख वह किस है तो ऐसा हो सकता है। अपने आपसे कहें," श्री माताजी मेरे साथ हैं, श्री माताजी मेरी सहायता प्रकार बैठता है, किस प्रकार बातचीत करता है। अन्य लोगों को प्रभावित करने के लिए आवश्यक है कि आप सर्वप्रथम अपने व्यक्तित्व का सम्मान करें और फिर अपने व्यवहार द्वारा अन्य लोगों कर रही हैं और मैं श्रीमाताजी के साथ हँ। चिन्ता करने के लिए मेरे सम्मुख कुछ भी नहीं है।" तब आपका मध्य हदये चक्र ठीक हो जाएगा। ये बात आप अन्य लोगों से नहीं कह सकते परन्तु के व्यक्तित्व का। कोई यदि आपके पास आता है तो उससे यदि आपका व्यक्तित्व आत्मविश्वास से परिपूर्ण है तो यह बात आप दूसरों में भर सकते हैं। अत्यन्त भद्रता-पूर्वक वातचीत करें। ये समझकर 37 चैतन्य लहरी खंड XII अंक : 9.8 10. 2000 जहाँ तक हो सके किसी से कोई कार्य करने के लिए न कहें। ऐसा करने से लोगों को बह अच्छी तरह से आरामपूर्वक बैठ सकें। चोट पहुँचती है। उदाहरण के रूप में मैं जब हैूँ" ऐसा करो, ये बत्ती कि साक्षात् परमात्मा आपके पास आए हैं। मुझमें यदि आत्मा है तो उसमें भी तो है। ध्यान रखें कि उससे चाय आदि के लिए पूछे। उसे ये महसूस आप लोगों को कहती करवाएं कि उसके आने से आपको कोई परेशानी बुझा दो।" आखिरकार आप मेरे बच्चे हैं इसलिए नहीं हुई। उससे मिलकर आपको प्रसन्ता हुई। मेरा ऐसा कहना ठीक है। यह एक भिन्न प्रकार अत्यन्त प्रेम पूर्वक उसके साथ बैठें। कई बार आत्मविश्वास की कमी के कारण व्यक्ति आगन्तुक के विषय में अधीर हो उठता है। ये अधीरता कि हल्के से उठें, बातचीत करते हुए बत्ती जला का सम्बन्ध है परन्तु जब आपमें अन्य लोगों से कार-व्यवहार करना होता है तब आपको चाहिए असुरक्षा का चिन्ह है। किसी से बातचीत करतें हुए आपको अधीर नहीं होना चाहिए। व्यक्ति की स्थिति ऐसी होनी चाहिए कि दूसरा व्यक्ति पूर्णतः विश्वस्त हो सके और उसे लगे कि ये महाशय मेरे आने से बहुत खुश है। दें। उनसे कहें " मैं यदि बत्ती जला दूँ तो आपको कष्ट तो न होगा?" आचरण सम्बन्धी आक्रामकरता अपनी छाप छोड़ती है। सहजयोग में यह दूसरी तरह से है। सहजयोग में कुण्डलिनी सर्वप्रथम है और उसके बाद सभी कार्य। लोगों को यदि आप प्रभावित करना चाहते लोगों को प्रभावित करने का एक अन्य तरीका ये है कि उन्हें बोलने का अवसर दें। हैं तो उनकी जड़ों को बनाना होगा और ऐसा स्वयं ज्यादा न बोलें, धेर्यपूर्वक उनकी बात को करने के लिए आपको उनमें अपने प्रति विश्वास सुनें। उनकी बात को सुनकर कहें" नि:सन्देह ये कायम करना होगा। उन्हें विश्वास होना चाहिए सत्य हे मैें आपके साथ सहमत हूँ...परन्तु.. कि जो कुछ भी आप कह रहे हैं वह सत्य है। उन्हें लगे कि जो भी कुछ आप कह रहे हैं वह न असत्य है न ऐसी बात जिसमें आपकी अपनी फिर आप शुरू कर सकते हैं। "नहीं! बिल्कुल भी नहीं!" ऐसा करके उन्हें आघात न पहुँचाएं इसके विपरीत आपको देखना चाहिए कि वे क्या श्रद्धा नहीं है। आपकी बात करने की शैली अन्य लोगों को प्रभावित करती है कि यह व्यक्ति कहते हैं। आप मुझे देखें। बहुत बार में ऐसा ही करती हूँ। कोई यदि कुछ कहता है," ओह! ये सत्य कह रहा है। अत: सभी कुछ आपकी व्यवहार शैली से आरम्भ होना चाहिए। और अब वेशभूषा। लोगों को प्रभावित आपने बात का दूसरा पक्ष भी देखा है तथा करने के लिए वेशभूषा भी बहुत महत्वपूर्ण है। मान लो आप किसी से सरकारी रूप से जुड़े हुए मत थोपें। अपनी बात लोगों को कहनी है हैं या व्यापार में उसे प्रभावित करना चाहते हैं। आपको चाहिए कि औपचारिक वस्त्र धारण करें, सत्य है परन्तु यह बात इस प्रकार है..." इस प्रकार उन्हें बुरा नहीं लगता। वो सोचते हैं कि आपमें सन्तुलन है। अपने विचार दूसरों पर परन्तु इस प्रकार कि उन्हें ये न लगे कि आप स्वयं को उन पर थोप रहे हैं। चैतन्य लहरी खंड : XII अक ढीले-ढाले या कभी-कभी पहने जाने वाले वस्र 38 :9& 10. 2000 श्u (Drawing Room) हे अब वैठक तो बैठक है शयनागार नहीं, दोनों को मिलाएं नहीं। इनका न पहने। व्यापार के लिए उपयुक्त वेशभूषा धारण करें जैसे धारियों वाला गहरे नीले रंग का सूट गलत ढंग से उपयोग एक बार यदि आप करने जिसमें जैकिट भी हो, साफ-सुथरे अच्छे जूते अच्छी तरह से संवारे गए बाल जिनमें थोड़ा तेल लगे तो फिर इसका कोई अन्त नहीं। मैंने लोगों भी लगा हुआ हो ठीक रहेगा। चुस्त व्यापारी सम प्रतीत हों। को एसे वस्त्र पहनकर दफ्तर जाते हुए देखा जो तैराकी सुट से लगते हैं ये सारी चीजें सुधरनी दुनिया भर के फ़ैशन यदि आप करेंगे तो ये तो प्रतिदिन परिवर्तित होते रहते हैं। आज बाल आवश्यक हैं और इन्हें आसानी से सुधारा जा सकता है। लोगों को केवल इतना बताना होगा इस तरफ होंगे तो कल उस तरफ। तो अपने कि इस प्रकार उल्टे सीधे वस्त्र पहनकर वो बालों को इस प्रकार बनाए जैसे एक अधिकारी किसी को प्रभावित नहीं कर सकते। बिना अपने को बनाने चाहिए। बालों में भली-भाति कंघी करें। पुराने समय में फिल्मों के अभिनेता भी प्रभावित नहीं किया जा सकता। रूप रंग और व्यवहार को निखारे दूसरों को बालों में तेल लगाया करते थे, कभी उनके बाल अन्य लोगों से कार-व्यवहार करते हुए सुखे न होते थे कहने से मेरा अभिप्राय ये है कि बाल अच्छी तरह से संबरे होने चाहिए। बाजार में आपके बालों को संवारने के लिए अनेक विना आपको सच्चा होना चाहिए. झूठ न बोलें। न कहने वाली यदि कोई बात हो, तो न कहें। ये झूठ बोलना नहीं है। कहने के लायक चीज़ों को कहें। ऐसा न करें कि आज कुछ कहें, कल कुछ तेल की बस्तुएं उपलब्ध हैं। बालों का संवरा कहें और परसों कुछ और इससे लोगों के मस्तिष्क में बहुत बड़ी रिक्ति बन जाती है। कहीं ताकि इस बात का पता चले होना आवश्यक है कि आपने रूप रंग तथा बालों की शैली की और ध्यान दिया। अत: पदानुसार अपनी उपयुक्त अन्दर से वे सोचते हैं कि आप धोखेबाज हैं और तस्वीर बनाएं। यदि कोई रसोईया तैराकी सूट समस्याओं से भागने की कोशिश कर रहे हैं| पहनकर खड़ा हो जाए तो कैसा लगेगा ? बड़ा ही अजीब। रसोइए को रसोइए की तरह से वस्त्र मान लो अभी मैं आपसे बात कर रही हूँ, बात करते करते मैं यदि घड़ी देखने लगेँ तो यह पहनने चाहिए। इसी प्रकार एक व्यापारी को बहुत ही अपमानजनक है। आप यदि किसी व्यापारी की तरह से वेश-भूषा धारण करनी विशेष चीज़ के बारे में बात कर रहे हैं और चाहिए। अपने दफ्तर आप जीन पहनकर नहीं जा अचानक मैं विषय बदल देँं तो यह भी बहुत अपमानजनक है क्योंकि सभी लोग इतने बुद्धिमान तो हैं कि इस बात को देख सकें कि आप उस सकते क्योंकि आप यदि ऐसा करेंगे तो सभी कर्मचारी वैसा ही करने लगेंगे। इस तरह के कार्यों से लापरवाही पनपती हैं। दफ्तर या व्यापार मामले से बचने का प्रयत्न कर रहे हैं। एक सीमा तक आप इसे ले जा सकते हैं परन्तु फिर चीजें कुछ हास्यास्पद मोड़ लेने लगें तो यह 39 के स्थान से बाहर ढीलापन ठीक है परन्तु व्यापार में नहीं। मान लो हमारी एक वैठक चैतन्य लहरी खंड :XII अक : 9 & 10. 2000 दर्शाने के लिए आपको फिर वापिस आना होगा। पर विश्वास नहीं है।" ऐसा कहना नासमझी है। जैसे कल मैंने कहा,"कि आप जानते हैं कि मैंने हमें क्या करना है, हमारा ऐसा विश्वास है, हम कभी सर्पिणी (Serpent) के विषय में नहीं ऐसा सोचते हैं, आपकी क्या राय है।" या उनसे लिखा। किसी अन्य ने यदि इसके विषय में वे सब बातें बताए। अपनी संस्था, अपने उत्पादन लिखा तो मैं क्यों इसका खुलासा करू। इसे मैं आदि के विषय में बताएं। कहें "अब यह उपलब्ध है, ये वस्तु यहाँ है। हमने देखा है कि कभी सर्पिणी की शक्ति नहीं कहती क्योंकि ऐसा कथन लोगों को भ्रमित करता है। परन्तु इससे बहुत लाभ हुआ है और यह इस प्रकार कार्य करती है। इसके विषय में हमारे पास फिर भी किसी ने ऐसा कहा है तो आप क्या कर र सकते हैं?" ऐसी कोई बात यदि आप कह दें तो सूचना है। आप ये विवरण देख सकते हैं और उसे एक ऐसे हास्यास्पद स्तर तक ले आएं कि स्वयं उन्हें उपयोग कर सकते हैं। व्यक्ति स्वयं चुप हो जाए। दूसरे व्यक्ति की जो सेवा आप करते हैं अचानक कभी विषय को न बदलें। इस वह बहुत पसन्द की जाती हैं। यह केवल अहं जक प्रकार विषय बदलने का अर्थ ये होता है कि नहीं आप उस मामले से बचना चाहते हैं तथा इसका है, यह उसे सुख प्रदान करती है। जैसे लोग एयर इंडिया से यात्रा करना पसन्द करते हैं । समाधान करने के योग्यता आपमें नहीं है। कई बहुत से लोग कहते हैं कि हम एयर इंडिया से बार लोग ऐसा ही करते हैं, वो ऐसा ही कहते हैं, "ठीक है, हमें इस विषय पर बात करनी चाहिए। जाना पसन्द करेंगे। जानने का प्रयत्न करें कि क्यों? क्योंकि आजकल अन्य हवाई कम्पनी बम आप ऐसा नहीं कर सकते, इस प्रकार से विषय आदि के डर के कारण बहुत जाच पड़ताल परिवर्तन के कारण बहुत सी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। दूसरों से बात करते हुए ध्यान रहे कि आप अपने विषय में न बोलें, "मैं ऐसा हूँ, मैं वैसा हूँ।" इस बात को कोई पसन्द नहीं करती है और उनकी कीमतें भी बहुत ज्यादा हैं। एयर इंडिया को पसन्द करने का एक कारण ये भी है कि इसमें कार्य करने वाली महिलाएं अत्यन्त विनम्र हैं। यात्रियों की भली-भांति देखभाल करती हैं। वे घटिया औरतें नहीं हैं। खाना आदि करता अपने विषय में बात करना मूर्खता है। परोसते हुए वे यात्रियों का बहुत ध्यान रखती हैं। अपनी डींग मारने के स्थान पर केवल पूछें " आप क्या कर रहे हैं ? आपका पेशा क्या है? आप कैसे हैं?" सामने वाले व्यक्ति से इस प्रकार के उनके खाने में व्यंजन भी बहुत होते हैं। जितना चाहे खाना खाओ, आपका मनपसन्द खाना वे पाँच-छः बार आपको देते हैं इन सब चीजों से आपको खुशी होती है। घण्टी बजाते ही वे प्रश्न पूछे । आपको जब बात करनी हो तो अपनी संस्था के बारे में बात करें। में' कहकर बात न आपके सम्मुख हाजिर हो जाते हैं। मेरा कहने का करें सदैव 'हम' कहें। "मैं ऐसा कार्य कभी नहीं अभिप्राय ये है कि जब आपको विक्रय करना करता । ऐसा करने से मैं घृणा करता हूँ। मुझे इस चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 9 & 10. 2000 होता है तो आपको भी सेवा करनी पड़ती है। 40 बाजार पर पकड़ नहीं बनती. इसको पेश करने के ढंग से बनती है। पेश करना अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। इसकी एक बार जब आपको ये बात समझ आ जाती हैं ता आपका दृष्टिकोण ही परिवर्तित हो जाता है। आपको अन्य लोगों की सेवा करनी होती है। सूचना युस्तिका उपयुक्त अच्छे लोगों से तैयार करवाई जानी चाहिए या आपको स्वयं है। केवल सेवा द्वारा ही चीजें कार्यान्वित होती हैं मैं देखना चाहिए कि यह कार्य सुन्दरता से हुआ आपको बताऊंगी कि कैसे । इस पर कुछ खर्च कर लेने में अच्छाई है। यह खर्चा उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए मूल लागत अंग्रेजों के साथ यह बहुत बड़ी समस्या है। यही कारण है कि उन्हें इतनी हानि हो रही है। आप यदि सोचे कि उत्पाद को कहीं रख है। वे अत्यन्त अक्खड़ हैं। किसी अंग्रेज के पास देना भर ही काफी है तो यह बिक न सकेगा। जाकर यदि आप पूछे,"क्या मैं आपके उत्पाद को देख सकता हूँ?" "आपको क्या चाहिए? में आधुनिक समय में किसी भी वस्तु या उत्पाद आपका उत्पाद देखना चाहूँगा। ठीक है, अभी को बेचने के लिए यह सब आवश्यक हैं हमारे पास देने के लिए कुछ नहीं है लोगों को प्रभावित करने के लिए विज्ञापनों यदि परन्तु से अधिक जरूरत उनसे भली भांति व्यवहार आप अपनी अर्जी छोड़ देंगे तो हम आपको यह चीज भेज देंगे ।" समाप्त। उस व्यक्ति को कोई करने की है। मैं आपको बताती हूँ कि किसी भी चीज को खरीदने से पूर्व मैंने कहां से खरीददारी चिन्ता नहीं। हर समय आपको चाहिए कि अपने ग्राहकों से बातचीत करने के लिए तैयार रहें। किसी की थी और उन लोगों के साथ मुझे क्या अनुभव थे मैं ऐसे लोगों के पास जाना चाहती हूँ जो हुए मेरे प्रति विनम्र, करुणामय तथा भले थे जिनका व्यापारिक उद्यम में यदि आप कुछ बना रहे हैं आचरण मेरे प्रति बहुत अच्छा था और जिन्होंने लिए सूचना पुस्तिका होनी चाहिए जो सदैव मेरा मजाक उड़ाने के स्थान पर उस चीज के प्रति पूरी जानकारी दी थी। लायड में कुछ पूँजी तो आपको इसका पूरा ज्ञान होना चाहिए। इसके उपलब्ध हो। ठीक प्रकार से इसकी कीमतें तय की जानी चाहिए तथा इसे उचित ढंग से रखा लगाने के लिए मैं गई। बैंक में धन जमा करना जाना चाहिए। कोई यदि आपके पास आता है. बहुत बड़ी बात है। उन लोगों को समझना उस व्यक्ति को यदि आप जानते हैं, वह यदि चाहिए कि यह बहुत बड़ी बात है। परन्तु यह उपयुक्त व्यक्ति है और आपके पास यदि व्यापार के लिए आता है तो आप उससे कहें कि" यह चीज आपके सम्मुख है आप इसे ले और स्वयं देखें।" उसे समझाएं कि यह क्या है। "यह इस प्रकार है और इसके लिए हम आपको इतनी ज्योंही मैं अन्दर पहुँची उसने पूछा," आप कौन रियायत देंगे।" यह सारी चीजें मस्तिष्क को हैं?" मैंने उसे बताया," मैं ये हूँ।" "ओह हम लोग चहां पर एक छोटी सी लड़की बिठा देते हैं। आने वाले ग्राहकों से बातचीत करने के लिए अवश्य कोई अच्छे व्यक्तित्व का व्यकि्ति होना चाहिए। एक छोटी सी लड़की वहाँ बैठी थी। काड आपके लिए कुछ नहीं कर सकते " मैंने कहा 41 प्रभावित करती हैं। उत्पाद के गुण के कारण चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 9& 10. 2000 ठीक है और तब मैंने उसे भारत के उच्चायुक्त तीन चीजों का आपने ध्यान रखना है-व्यक्ति का नाम बताया ताकि वो इस तरह से बात न को आराम से बिठाना है और उसे सबकुछ करे। बताना है, विश्वासपूर्वक उसकी बात सुननी तो उसने यह नहीं देखा कि मैं ड्राइवर है। तब वह व्यक्ति आप पर भरोसा करता है। चालित मर्सिडीज कार में आई थी। बहुत महंगी किसी संस्था में यदि आपको कार्य संभालना हो साड़ी पहने हुंई थी। देखने में मैं जनक थी। उसे समझ जाना चाहिए था कि मुझसे एक सर्वसाधारण मजदूर की तरह से व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए। तब उसने कहा कि मुझे अपनी पहचान देनी होगी आदि आदि। मैं इतनी तंग आई कि दूसरे बैंक में चली गई। उस बैंक के अधिकारी ने तुरन्त पहचान लिया कि यह बुद्धिमान व्यक्ति है और अच्छा ग्राहक। उस महिला ने देख लिया कि मैंने हीरे पहने ता तो आपका व्यक्तित्व अत्यन्त विवेकशील होना बहुत सम्मान चाहिए। दूसरे जो आप कहते हैं उसका अनुसरण भी आपको करना चाहिए। मान लो मैं आपको कहूँ कि आपको किसी से पैसा नहीं लेना हैं और मैं स्वयं पैसा लेने लगू तो आप क्या करेंगे? आप मुझ पर बिल्कुल भरोसा न करेंगे। पूजा आदि के लिए जो भी पैसा आप मुझे देते हैं उसे मैं पैकेट बना कर रखती हूँ और आपके लिए चांदी आदि के बर्तन खरीदने के लिए लगाती हूँ। हुए थे आदि आदि। एकदम वह बोली आइये अति महत्वपूर्ण व्यक्ति कक्ष में चलते हैं मैंने कुछ भी न कहा था। वह मुझे बहां ले गई और बड़े प्रेम से बात की। कहने लगी"मैं एक मिनट का समय ले लू?" अन्दर जाकर फोन पर उसने मेरे बारे में सारी जानकारी प्राप्त कर ली। इसकी मुझे कोई जरूरत नहीं होती। मैं इसको इस्तेमाल करने की सोच भी नहीं सकती हूँ। यह पैसा आपने मुझे दिया है और कायदे से यह मेरा है। परन्तु मैं इससे पूजा के बर्तन खरीदती हूँ जिसे आप इस्तेमाल करते हैं। यह तो मजाक की है बात परन्तु सभी लोग जानते हैं कि श्रीमाताजी बिल्कुल शुद्ध हृदय हैं। आपको भी लोगों के इस प्रकार के कार्य व्यक्ति के सामने नहीं साथ बिल्कुल साफ रहना होगा। उन्हें पता होना से कर लिया जाना चाहिए ताकि उसे बुरा न चाहिए कि आप उनसे चालाकी नहीं करते या लगे। उसे पता नहीं लगना चाहिए कि आप उनकी पीठ पीछे उन्हें हानि नहीं पहुँचाते। कुछ लोग आपकी अनुपस्थिति में आपको तो इस प्रकार से कार्य करना हमारी बहुत हानि पहुंचाने की कोशिश करते हैं । ऐसे लोगों सहायता करता है क्योंकि आपको अक्खड़ नहीं को कोई भी पसन्द नहीं करता। सहज ढंग से व्यवहार करते हुए कोई व्यक्ति यदि ठीक नहीं नहीं पड़ता। इस प्रकार की चीज किसी को है तो उसे विनम्रता से बता दें कि समस्या क्या पसन्द नहीं आती कि आप किसी को नीचा है। "हमारे सम्मुख यह समस्या है। आप बताएं होने चाहिए। उसकी जानकारी का सत्यापन चुपके उसके बारे में पूछताछ कर रहे हैं। दा बनना पड़ता। हेकड़ बनकर आपको कुछ कहना दिखाएं या उस पर सन्देह करने का प्रयत्न करें। कि इसका क्या समाधान है?" तब उस व्यक्ति 42 चैतन्य लहरी खंड XII अंक : 9.& 10. 2000 को बुरा नहीं लगेगा। परन्तु किसी व्यक्ति को आप यदि कहें कि आपको ऐसा पसन्द नहीं है तो उसे अच्छा नहीं लगेगा। मैं आपको सभी कुछ बताती हूँ परन्तु ऐसे ढंग से कि आप सब कुछ में हाथ नहीं बटाएंगे, वे कुछ भी नहीं करेंगे। समझ भी लें और आपको भी न लगे। तो अत: लोगों को जिम्मेदार बनाना भी प्रशासन का एक महत्वपूर्ण भाग है। आप स्वय यदि सारा कुछ करना शुरू कर देंगे तो लोग आपके कार्य उनको जिम्मेदार बनाने का सर्वोत्तम उपाय उनकी बुरा र प्रशंसा करना है। किसी ने यदि कोई अच्छा कार्य यह अत्यन्त आवश्यक है कि आपकी शैली ऐसी होनी चाहिए जिसे लोग समझें और आपका किया है तो उसे कहें आपने बहुत अच्छा कार्य किया है. ये बात सीधे से न कहकर इस व्यवहार उचित ढंगे का हो। परन्तु प्रकार से कहें कि उस व्यक्ति को ये लगे कि वास्तव में जब आप लोगों को प्रभावित करने का प्रयत्न नहीं करते तो लोग आपसे उसे सराहा गया है। मधुर शब्दों से और छोटी-छोटी प्रभावित होते हैं। कला को छिपाने में ही कला निहित है। इसके विषय में कोई संकल्प प्रकट चीज़ों से भी आप यह कार्य कर सकते हैं। मैं आपको एक उदाहरण देती हूँ। राजेश बहुत अच्छे हैं और उन्हें किसी चीज़ की जरूरत नहीं होना चाहिए। लोगों की बातचीत में आपको दर्शाना चाहिए कि आप सब सुन रहे हैं और समझ रहे हैं। पाँच -दस लोगों से जब आपको नहीं है। वह इतना धनवान है कि हम उसे क्या दे सकते हैं। एक बार बह मुझे अपनी गाड़ी में बातचीत करनी हो तो उनमें सदूभावना उत्पन्न कहीं ले जा रहा था उसके हाथ में एक स्विस करनी चाहिए। अब जैसे मैं चाहती हूँ कि आप विवाह कर लें तो मैं आपको उस लड़की के विषय में बताऊंगी कि वह कैसी है। इस प्रकार से कि न तो आपको चोट पहुँचे और न उसे, ड्राइवर का धोखा देना उसे सहन न हुआ। वह और आप इसके लिए राजी हो जाएं। क्योंकि उसे थाने ले गया परन्तु वह चाक में यदि कोई आपसे उसके विषय में कुछ मेंने राजेश की नाराज़गी को देखा और कहा कि चाकू था। उसने बह चाकू अपने ड्राइवर को फल आदि काटने के लिए दिया। इसके पश्चात् वह चाकू गुम हो गया। वह बहुत नाराज़ हुआ। उसे न मिला। बाद भूल जाओ कोई बात नहीं है। अगली बार में भारत गई तो उसके लिए एक बहुत सुन्दर सा बताता है तो आप कहेंगे माँ ने यह बात नहीं बताई। अत: बहुत ही प्रेम से आप कहें कि उसमें "ये छोटी-छोटी चीजें हैं, परन्तु ठीक है, वह बहुत ही शालीन बन सकती है। इन सारी कहने लगे" श्रीमाताजी आपको कैसे याद रहा?" चाकू लेकर गई। उसे देखकर वह द्रवित हो उठे, परेशान चीज़ों को वह चला सकती है।" अब ये आप मैंने कहा, "उस समय आप बहुत हुए थे " उसने कहा, "चाकू के लिए नहीं उस व्यक्ति की धोखेबाज़ी के कारण। परन्तु सभी पर निर्भर करेगा कि आप किस प्रकार चीजों को चलाते हैं। तो आपको व्यक्ति के विषय में पूरा ज्ञान होना चाहिए ताकि आप ये जान सकें कि कुछ ठीक-ठाक हो गया। तो किसी व्यक्ति की छोटी-छोटी चीज़ों को आप देखेंगे तो उसे बहुत 43 अब ये मेरी जिम्मेदारी है। चैतन्य लहरी खंड :XII अंक : 9 & 10. 2000 "कहने लगे वह तुम्हारे पास क्यों आया? मैंने कहा,"सम्भवत: उसने ये सोचा होगा कि मैं आपसे ज्यादा क्षमाशील हूँ। कहने लगे."कि मैं अच्छा लगेगा। मैं आपको ग्रेगोर की एक बात बताती हैूँ। किसी दुकान पर हम साड़ियाँ देखने गए। एक साड़ी मुझे अच्छी लगी परन्तु उसे मैंन नहीं भी क्षमाशील हो सकता हूँ।" तो उसे क्षमा कर खरीदा। मुझे लगा कि इतना सारा पैसा बेकार दें, मुझमें ये युक्तियाँ स्वाभाविक रूप से हैं आप करना ठीक न था। मैंने वह साड़ी छोड़ दी। अगले दिन मुझे भेंट करने के लिए ग्रेगोर वही प्रभावित करना कठिन नहीं है। छोटी-छोटी चीज़ों साड़ी लाया। उस साड़ी को मैंने खजाने की तरह से बहुत अन्तर पड़ता है। आपके कर्मचारी यदि से संभाल कर रखा। छोटी-छोटी चीजों को बहुत बीमार हों तो उनकी देखभाल करें, पता लगाएं भी इन्हें आत्मसात कर सकते हैं। दूसरे लोगों को पतंत कि उनकी पत्नियाँ और बच्चे तो बीमार नहीं हैं. महत्व दिया जा सकता है। उनका ध्यान रखें। संस्था को परिवार की तरह से एक बार मेरे पति के दफ्तर के एक लिया जाना चाहिए। किसी के पति-पत्नी यदि व्यक्ति ने अधिक तनख्वाह की लालच में दूसरी बीमार हैं तो उन्हें फूल भेज दें। संस्था में नौकरी कर ली। जब वह वहाँ गया तो क्रिसमस आदि पर लोग प्रायः एक कार्ड उसे पता चला कि वहाँ की स्थिति बहुत ही भेज देते हैं लेकिन संस्था की अपनी ही कार्ड भेजने की शैली होनी चाहिए। कार्ड पर आप खराब हैं। वहाँ जाकर वह बहुत दुखी हुआ और वापिस अपने पुराने कार्यालय आना चाहा। जब वापिस आया तो मेरे पति बहुत नाराज़ हुए और स्वयं हस्ताक्षर करें और उस पर थोड़ा सा अपने कहने लगे" कि मैंने तुम्हें जाने से रोका था परन्तु तुमने मेरी बात नहीं मानी। अब मैं तुम्हें वापिस पत्नी ठीक होगी, मुझे आशा है आपके बच्चे हाथ से अवश्य लिखें। मुझे आशा है आपकी ठीक होंगे। यदि आप उनकी पत्नी को जानते हैं नहीं ले सकता।" वह व्यक्ति मेरे पास आया। न तो लिखें" उन्हें मेरा नमस्कार कहना। " उन्हें जाने उसने क्या सोचा? उसने मुझे सारी घटना बताई और कहा कि वह जहाजरानी निगम में शराब आदि पिलाने की ज़रूरत नहीं है, केवल है। वापिस आना चाहता कहने लगा," मुझसे कुछ यह महसूस करवाना आवश्यक है कि उन्हें प्रेम गलती हुई और अब श्री श्रीवास्तव मुझसे नाराज़ किया जाना है तथा वे संस्था से जुड़े हुए हें और हैं और अब मुझे बापिस नहीं लेना चाहते। मेरे वे महत्वपूर्ण हैं। किसी के पद परिवर्तन के विषय में भी पति जब घर आए तो मैंने उनसे कहा, कि वह मुझसे मिलने आया था." ओह! तो वह तुम्हारे सावधानी बरतें। मान लो मैं चाहती हूँ कि क्रिस्टिन अमरीका की लीडर बने और ग्रेगोर भी पास आया था जैसे तुम मेरी अफ़सर हो!" और वहाँ हो परन्तु क्रिस्टिन के मामलों में दखलन्दाजी न करें तो मैंने कहा, "ग्रेगोर देखो वह वहाँ पर वे बहुत गुस्से हो गए। मैंने कहा बह आपके निगम में आना चाहता है मेरे विचार से आपको है और वह बहुत अच्छे ढंग से लोगों से बर्ताव 44 उसका ध्यान रखना चाहिए। चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 9 & 10, 2000 कर रही है। वहाँ के लोगों को वह जानती है कि उनमें क्या कमी है। परन्तु कृपा करके इन सब चीजों का ध्यान रखो, इस तरह से कार्य हो जाएगा। लोग आपको गम्भीरता से लेंगे क्योंकि वे जानते हैं कि आप स्वयं जिम्मेदार हैं और उन तथा लोग भी उसे प्रेम करते हैं तथा सम्मान करते हैं। आप एक नए व्यक्ति हो जो वहाँ जा रहे हो और क्रिस्टिन के पति भी हो। आप विश्व लीडर हैं इसलिए आपको वहाँ के स्थानीय मामलों में दखलन्दाजी नहीं करनी।" और उसने पर ज़िम्मेदारी डाल रहे हैं। ये सब इस प्रकार होना चाहिए। लखनऊ में मिठाइयों की एक बहुत प्रसिद्ध दुकान है। उसके पिता की मृत्यु हो गई है परन्तु इस बात को समझ लिया। यदि मैंने कहा होता" वहाँ जाकर कुछ नहीं वोलना, अब तुम चुप रहना, तो बेटा वहाँ पर है। उसका बहुत बड़ा सा पेट है, सम्भवत: ये बात कार्यान्वित न होती। वह यह सब जानता है। राजेश को भी मैं यही बात कहूंगी फिर भी वह वहाँ बैठा रहता है। कार लेकर आप वहाँ जा सकते हैं क्योंकि दुकान अच्छी खासी दूरी पर है। उसकी युक्ति पर मैंने ध्यान कि विश्व में कहीं भी जाकर सहज का कार्य करो। दिया। सबसे पहले वह मिठाई के लिए आपका बिना पूरा प्रबन्ध किए लोगों को अचानक दूसरी जगह मत भेजो। इस बात का ध्यान रखो आदेश लेता है। आपको बिठाकर वह अपने कि जिस व्यक्ति को भेजा गया है उसके लिए नौकरों से कहेगा."तुम लोग क्या कर रहे हो? इनका सामान क्यों नहीं देते. इतने समय से ये ठीक से प्रबन्ध है। देखें कि वास्तव में आप उस यहाँ बैठे हैं, इन लोगों की ओर देखो। लोगों का व्यक्ति को दूसरे स्थान पर भेजना चाहते हैं। पूरी तरह से आप यदि विश्वस्त नहीं हैं तो मामले इतना समय बर्बाद करते हैं। फिर उसने मुझसे को लटकने दें। समय के अनुसार ये सब चीजें पूछा आपने अभी तो हवाई जहाज से नहीं जाना मैंने कहा,"नहीं, मैं ठीक हूँ।" तो सदैव उसके भली-भांति घटित हो जाती हैं । थोडा सा समय गुजर जाने दें। व्यक्ति को इसके विषय में संकेत दें,"लोग शिकायत कर रहे हैं. क्या करें? मैं पास यही बहाना होता है। तब वह कहने लगा"मैंने ये मिठाई बहुत विशेष रूप से बनाई है आप इसे चाहूंगी कि तुम मेरी सहायता करो।" ताकि उसे लगे कि आपने सुधरने के लिए उसे काफी चखकर देखें। आप उस चीज़ का स्वाद देखेंगे और कहेंगे, ठीक है. ये चीज भी मुझे दे दो। इस प्रकार से वह चलता रहता है। समय लगाता है समय दिया। बिना समय दिए यदि आप किसी और कुछ समय के पश्चात कहता है."इन लोगों की ओर देखो ये कितने खराब हैं। अपना काम को कहें"कि अब आप यहाँ से चले जाओ।" तो वह आपका शत्रु बन जाएगा। इसके विपरीत आपको कहना चाहिए."मुझे समाप्त करना भी इन्हें नहीं आता। अरे, वहाँ क्या कर रहे हो, इन श्रीमतीजी को मिठाईयाँ क्यों नहीं देते? इन्होंने अभी जाना है। इतना समय खेद है, परन्तु ये लोग ऐसे ही हैं, ये हमें कष्ट देने का प्रयत्न कर रहे हैं और मुझे हर समय क्यों लगा रहे हो? मुझे खेद है, आप ये मिठाईयाँ 45 परेशान कर रहे हैं। मेरी भी समझ में नहीं आता चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 9& 10. 2000 चखेंगी? और वे ये सब आपके चखने के लिएचाहिए। दफ्तर में फैशनेबुल वस्त्र पहनने वाले ले आएंगे। आप कुछ भी खाइए। आप कहते अच्छे प्रशासक नहीं हो सकते क्योंकि वे ढीले हैं,"ठीक है, इन सब चीज़ों को खाते-खाते जब पड़ जाते हैं और ढीले व्यक्तित्व के लोगों का आप दुकान से बाहर निकलने लगते हैं तो नाजायज़ लाभ उठाया जाता है। एक तरह से आपकी जेब के सारे पैसे समाप्त हो चुके होते हैं आपको सख्त होना चाहिए। सदैव दफ्तर के क्योंकि दुकान की हर मिठाई आप खरीद लेते हैं। उसकी यही युक्ति उपयुक्त वस्त्र पहने तो लोगों को इससे घवराहट है। होगी। कुछ समय बाद आप यह सब समझ जाते हैं और उससे कहते हैं कि मैं ये सब चालाकियाँ जानता हूँ. आप मुझे बो भी अपने अफ़सर को कहता है" हे टॉम, आप सब दे दें जिसकी मुझे जरूरत है। मैं ये कहते का प्रयत्न कर रही हूँ कि जब आप उसे अपनी चीजें बेचते हुए देखते हैं हैं. तो कोई अदना सा कर्मचारी भी जब उसके तो मधुरता का एक रिश्ता बिकसित हो जाता है। इसके विपरीत यदि कोई कहे कि"ये मेरी बनाई है तुम्हारे पास थोड़ा सा तम्बाकू है? और वह इसी प्रकार आजकल दफ्तर में एक ड्राइवर कैसे हो?" कोई सम्मान नहीं है या यदि अफ़सर कोई नशा लेता है, जैसे भारत में तम्बाकू खाते पास जाता है तो अफ़सर उससे भी यही पूछता अपनी जेब से निकालकर उसे तम्बाकू देता है। हुई चीज़ है आपको यदि चाहिए तो ले लो नहीं तो बाहर हो जाओ। तो आप एकदम बहाँ से बस हो गई सारी मर्यादा समाप्त। तो इस तरह की सारी आदतें हानिकारक हैं। इनसे मुक्त होने बाहर ही हो जाएंगे। बेचने का पूरा दृष्टिकोण इस प्रकार क्रेता और विक्रेता के सम्बन्धों पर आ जाता है। तो भी अपने मातहत कर्मचारियों से उम्मीद का प्रयत्न करें। आप ऐसा अगर नहीं कर सके सम्बन्ध कार्य करते हैं उत्पाद नहीं। उत्पाद को करें कि वे आपकी इस आदत को ठीक बताएं। घटिया मज़ाक और चीजें कोई पसन्द नहीं करता भाड़ में जाने दो उसकी कोई चिन्ता नहीं करता। पाँच तरह के उत्पाद यदि एक ही तरह के हों तो आप उस संस्था के पास जाएंगे जो विवेकशील हो और सम्मानपूर्वक लोगों से व्यवहार करती हो और समय पर अच्छी चीजें उन्हें पहुँचाती हो। परन्तु पहले पता लगाएं कि अन्य संस्थाओं में परन्तु ये छोटे कर्मचारी ऐसे मज़ाक करते हैं और समझते हैं कि वे लोकप्रिय हैं। वे लोकप्रिय नहीं हैं क्योंकि लोकप्रियता तो अपनी विशेषताओं से पाई जा सकती है उन जैसा बनके नहीं। मैं आपको एक अन्य घटना बताती हूँ श्री सी.पी. के दफ्तर में एक महिला थी जो जीन्स श्री सी.पी. ने उसे बुलाया क्या गुण हैं? उनके पास क्या चीज़ है? वे क्या बेच रहे हैं? परन्तु अधिकतर मैंने देखा है कि ग्राहक के साथ आपके सम्बन्ध कार्य करते हैं । और कहा श्रीमती जी मैं नहीं चाहूँगा कि आप दफतर में भी आपके सम्बन्ध अच्छे होने ऐसे वस्त्र पहनें। आप पैन्ट या कोई भी विवेकशील चाहिए। सर्वोपरि आपका व्यक्तित्व अच्छा होना बेशभूषा पहन सकती हैं परन्तु ये जीन मत पहनकर आती थी। 46 चैतन्य लहरी । खड : XII अंक : 98 10. 2000 ve क पहनिए। वह कहने लगी"ठीक है. गलियों में. घर में या अन्यत्र ये पहनी जा सकती है तो यहाँ हम अपने बच्चों के साथ भी ऐसा ही करते हैं। भारतीयों को जब किसी के घर जाना होता है तो वे पहले ही बच्चों को सिखाते हैं कि वहाँ जाकर तुम्हें कुछ माँगना नहीं है। उनकी किसी चीज़ को हाथ नहीं लगाना बहुत अधिक क्यों नहीं? ऐसा नहीं हो सकता। " श्री सी. पी. ने कहा,"ठीक है, तो कृपा करके आप त्याग-पत्र दे दें, मैं तुम्हें नहीं रखूंगा। तत्पश्चात् उसने ठीक प्रकार के कपड़े पहनने शुरु कर दिए। अच्छी वेषभूषा से काफी फ़र्क पड़ता है। नहीं खाना। खाना भी हो तो बहुत कम खाना है| जब आपको कुछ दिया जाए तो धन्यवाद कहना कल मेरे पास कोई सफेद साड़ी न थी। है। वहाँ पहुंचने पर सबको नमस्कार करना है। अपने कार्यक्रमों में मैं सदैव सफेद साड़ी पहनती हूँ। लाल बार्डर वाली सफेद साड़ी कल मुझे हैं और कहा जाता है यदि तुम ऐसा नहीं करोगे पहननी पड़ी। इससे बहुत फर्क पड़ता है । मान तो अगली बार तुम्हें साथ नहीं ले जाएंगे। लो मैं आपसे मिलने आ रही हूँ तो मेरी वेशभूषा घर पर ही ये सब चीजें बच्चों को सिखाई जाती तो इस प्रकार उन्हें पहले से ही सावधान का आप पर बहुत असर पड़ेगा," ओह! श्री कर दिया जाता है। वास्तव में उन्हें इस चीज़ का माताजी ने हमसे मिलने के लिए फला साड़ी ज्ञान होता है कि क्या करना है। मान लो बिना पहनी थी। यह आपक अन्दर प्रकाश की तरह से तैयारी के अपनी संस्था के पाँच लोगों को आप है। आपकी वेशभूषा और आपका आचरण आपके अन्तस को दर्शाता है। किसी प्रकार की ढील आपके प्रशासन को खराब करती है। अतः सदैव मीटिंग में ले जाते हैं तो वे वहाँ पर बहस करने लगते हैं। आरम्भ में सहजयोगी ऐसा ही किया करते थे। अन्य लोगों के सामने वे मुझसे बहस किया करते थे जिसके कारण समस्या होती थी। अपने पद का ध्यान रखें। मैंने देखा है कि दफ्तरों में लोग उलट अत: मुझे उनसे कहना पड़ा कि अन्य लोगों के कर जवाब देते हैं। आपके अपने लोग सामने सामने बहस न करें। आपने यदि मुझे कुछ बोलते हैं। परन्तु यदि जापान की कम्पनियों को देखें तो वहाँ केवल एक व्यक्ति बोलता है सब चुप्पी साधे बैठे रहते हैं। जब वह उनसे बताना ही है तो अलग से बताएं। परस्पर भी बाकी ईष्ष्यांभाव नहीं होने चाहिए। अपने लोगों के बीच ईष्ष्या बहुत देखने को मिलती है। आपको कोई प्रश्न पूछता है तभी वह बोलते हैं। उनमें वताना होगा, "हर आदमी का अपना कार्य है एक प्रकार की निष्ठा बनी हुई है। किसी भी सभी कुछ करना है और अच्छी तरह से करना कार्यक्रम पर जाने से पहले वह पाँच लोगों को है। हम सब साथ हैं और एक हैं। आप सब इन बुलाएगा और उनसे कहेगा हमें ऐसा करना है। तुम्हें ये बात कहनी है और तुम्हें ये। सभी कुछ दायां| तो परस्पर इंष्ष्यां केैसी? इस प्रकार सभी पूर्वनिश्चित होता है। अन्य लोगों की उपस्थिति कुछ ठीक हो जाएगा। संस्था सशक्त हो जाएगी में किसी को भी बोलने की स्वतन्त्रता नहीं होती। जिसका लाभ हम सबको होगा अत: संस्था के दो हाथों की तरह से हैं एक बायां है और एक 47 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 9& 10. 2000 प्रति उन्हें निष्ठावान बनाएं। हमारे शुद्ध लाभ कहने का क्या लाभ? वह यदि कारण बताने के अगर अधिक हैं तो अच्छे बोनस भी दिए जाने लिए आपके पास आए तो आपको ये कहने के लिए तैयार होना होगा कि उसे ये बात क्यों तो अन्दर से मैं समझती हूँ कि आपकी करनी पड़ी और मैंने यह बात क्यों नहीं कही। कुण्डलिनी बहुत अच्छी है और जानती हूँ कि मैंने स्वयं ये बात इसलिए नहीं कही ताकि कार्यों को किस प्रकार करना है। मान लो मुझे मूर्खता करने वाला वह व्यक्ति अपना स्थान चाहिए। किसी से आपके विषय में कहना है तो में पहचान ले और आपके सम्बन्ध भी ठीक ठीक कहँगी कि "उसकी देखभाल करते हुए ये कार्य बने रहें। अत: आपके पारस्परिक सम्बन्ध आपकी करो?" हो सकता है वह लापरवाह हो, वह मेरी गरिमा, आत्मसम्मान और अन्य लोगों के सम्मान बात को नहीं समझेगा। वह कहेगा,"श्रीमाताजी बनाए रखते हुए पनपने चाहिए। जिस प्रकार ऐसा कह रही थी।" अत: मुझे उसको चेतावनी देनी होगी." आप स्वयं ये सब कहो, उसके आप अपने प्रति व्यवहार करते हैं वैसे ही अन्य लोगों से करें। आपमें यदि अपने प्रति ही बोलने से पहले ये सब कुछ समझाया जाना सम्मान नहीं है तो किस प्रकार आप अन्य लोगों आवश्यक है क्योंकि कार्य हो जाने के पश्चात् का सम्मान करेंगे। 48 चैंतन्य लहरी खंड : XII अंक : 9 & 10. 2000 ২২৯, ---------------------- 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-0.txt ा हिन्दी आवृत्ति चैतन्य लहरी प् सितम्बर अक्टूबर-2000 अंक १& 10 खण्ड - XII म ३० आप स्वयं ही अपने गुरु हैं। अत: देखिए कि हमारे अन्दर क्या खराबी है। क्या हम अपने हृदय से पूरी तरह से सहजयोग को अपनाते हैं या नहीं। शिवरात्रि पूजा 5.3.2000 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी पा 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-1.txt नीचे दिए गये चित्र में ओंकार का बड़ा प्रतिरूप। जे ० ह क ू ह. ूर १ कि र सहजयोगियों द्वारा नासिक ( महाराषष्ट् ) में किए जा रहे यज्ञ की पावन अग्नि से प्रकट होते ओंकार। 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-2.txt इस अंक में 3. सहस्रार पूजा-7.5.2000, 1. शिवशक्ति पूजा 5.3.2000 15 2. भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों के सम्मुख प्रवचन दिल्ली- 8.4.2000 21 3. अन्य लोगों को प्रभावित कैसे करें-17.9.86 36 4. योगी महाजन सम्पादक : विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली- 110 067 : अभिनव प्रिन्ट्स, दिल्ली-34 फोन : 7184340 मुद्रक 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-4.txt सहसार पूजा कवैला 7.5.2000 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन सहजयोग में आप विनम्र होते हैं और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो सकता है। उनकी जीवन शैली भी ऐसी है कि उनके पास अपने लिए प्रतिक्रिया नहीं करते। तीस वर्ष पूर्व जब सहस्रार समय नहीं खोला गया तो मुझे चहुँ ओर अंधेरा दिखाई है। आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के लिए लोगों को समझाना मुझे बहुत कठिन लगा क्योंकि दिया। लोग अत्यन्त अज्ञानी थे। उन्हें क्या खोजना आत्मसाक्षात्कार को वे कल्पना मात्र मानते थे। वे है इस बात की विल्कुल भी चेतना ने थी। नि:सन्देह मुझे लगा कि वे किसी अज्ञात चीज़़ समझते थे कि यह बहुत दूर की बात है और परन्तु वे नहीं जानते थे कि गुरुओं में विश्वास करते थे जो उनसे सीधे से कहें " इतने कर्मकाण्ड प्रतिदिन करो । को पाना चाहते थे। वह अज्ञात तत्व क्या है जिसे उन्हें खोजना है। " अपने गुरुओं की देख-रेख में वे ये सभी कर्मकाण्ड अपने विषय में, अपने वातावरण के विषय में और जीवन के लक्ष्य के विषय में वे कुछ नहीं जानते थे मेरे समझ में नहीं आता था कि किस कर रहे थे, उन्हें इस बात का भी ज्ञन न था कि सर्वप्रथम आपको स्वयं को जानना होगा जैसा कि सभी महान अवतरणों और सन्तों ने कहा है। यह प्रकार उस विषय को आरम्भ किया जाए। सहस्रार खोलने के बाद मैंने केवल एक महिला पर केवल मेरी ही धारणा न थी कि लोग आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करें, इन सब लोगों का भी यही विचार था। सदियों तक एक के बाद आत्मसाक्षात्कार का प्रयोग करना चाहा। वह एक वृद्ध महिला थी। उनके साथ एक अन्य महिला भी आने लगी। एक सन्त तथा अवतरण ने कहा कि स्वयं को खोजो। ईसा मसीह ने भी कहा कि स्वयं को इस महिला को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो पहचानो, मोहम्मद साहब ने भी वही बात कही और नानक साहब ने भी। परन्तु किसी मनुष्य ने गया और तत्पश्चात् एक अन्य महिला, जो कि छोटी थी, ने मुझे बताया कि उसे आयु में बहुत दौरें पड़ते भी यह जानने का प्रयत्न नहीं किया कि यह हैं और वह भूत बाधित हो जाती है। हैं परमात्मा! मैंने कहा"किस प्रकार में इसकी कर्मकाण्ड जीवन का अन्तिम लक्ष्य नहीं है जागृति करूंगी।" परन्तु वह भी शीघ्र ही ठीक हो गई और उसे भी आत्मसाक्षात्कार मिल गया। इससे कुछ प्राप्त न होगा तथा व्यक्ति को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना ही होगा। तो केवल यह अत्यन्त अज्ञात ज्ञान है। परन्तु मानव अपने उन दोनों महिलाओं ने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त अहंकार में यह स्वीकार करने के लिए नहीं किया। इसके पश्चात् मैंने सोचा कि समुद्र तट पर चलें । तीस लोग मेरे साथ आए और वो भी रुकता कि वह अभी अपूर्ण है और उसे चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 9 & 10. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-5.txt बड़े ही अटपटे ढंग से बातचीत कर रहे थे कि नहीं करना। तो इस प्रकार शनै: शनै: यह कार्य कार्यान्वित होने लगा और मुझे याद है कि जिन है? वे तो इसके अधिकारी भी नहीं हैं इतने लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ वे मुझसे भले तो वे कभी भी न थ्े सभी प्रकार की बातें कहने लगे" श्रीमाताजी आप हमें दुर्गा पूजा करने कर रहे थे। अपनी भत्त्संना कर रहे थे। परन्तु की आज्ञा दें। दुर्गा पूजा को बहुत कठिन पूजा किस प्रकार उन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो सकता उस समूह में से भी मुझे बारह लोग ऐसे मिल माना जाता था और ब्रह्मण लोग प्रायः इस पूजा गए जिन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ। वो दो को करने के लिए तैयार न होते थे क्योंकि वे आत्मसाक्षात्कारी न थे। दुर्गा पूजा कराने बाले पण्डितों को मूच्च्छा आदि की समस्या हो जाया होती है क्योंकि लोग यही नहीं समझते कि क्यों करती थी तो उन लोगों ने सात ब्राह्मण बुलवाए वे आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करें मुझे अत्यन्त निराशा और उनसे कहा कि तुम्हें किसी प्रकार की चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं। तुम्हें कुछ महिलाएं भी इन्हीं में से थीं। इससे पता चलता है कि स्वयं को पहचानने की गति बहुत कम हुई क्योंकि मेरी बात कोई समझता ही न था। एक दिन ऐसा हुआ कि मेरे कार्यक्रम में एक नहीं होगा क्योंकि आप साकार दुर्गा के सम्मुख महिला आई। वह भूत बाधित थी और उसने बैठे हुए हो। ये कोई मूर्ति नहीं संस्कृत बोलनी शुर कर दी। वह मात्र नौकरानी की पूजा है। वे काफी घबरा गए थे और स्थान है। यह साकार थी। सभी लोग हैरान हो गए, परन्तु वह कहने से उतरना चाह रहे थे। अचानक उनके अन्दर लगी" कि तुम नहीं जानते ये कौन हैं?" और कुछ हुआ और बड़े ही आत्मविश्वास के साथ तब उसने सौन्दर्य लहरी, के अनुरूप मेरा वर्णन उन्होंने मन्त्र आदि का उच्चारण प्रारम्भ कर करना आरम्भ कर दिया। मैं भी हैरान थी कि दिया। चहूँ ओर चैतन्य लहरियाँ फैल गई। हम इस महिला को क्या हुआ! पुरुष की आवाज में लोग समुद्र के बहुत नज़दीक थे और समुद्र भी वह बोल रही थी। लोग इस बात पर विश्वास दहाड़ रहा था। परन्तु इन सात पण्डितों के अतिरिक्त किसी को कुछ समझ नहीं आया। ये कहने लगे हमें कुछ नहीं हुआ, हमने सभी कुछ भली भांति किया है । मेरे विचार से यह घटना करें या न करें परन्तु वह भयानक भूत बाधित थी। तब लोग मेरे पास आए और पूछने लगे कि जो यह महिला कह रही है क्या यह सत्य है?" मैंने कहा आप स्वयं इसका पता लगाओं। उन प्रथम चमत्कार ही थी। मानव मस्तष्क की इस मा। दिनों लोग ऐसे होते थे कि उनसे अगर इस स्तर पर और ऐसे समय में स्थिति देखो। वह स्वयं को बहुत महत्वपूर्ण मान लेते हैं और अपना कोई अन्त उन्हें दिखाई नहीं देता। उन प्रकार की कोई बात कह दी जाए तो वो अपना मुँह मोड़ लेते थे । वे केवल ऐसे कुगुरुओं से ही प्रसन्न रहते थे जो उनसे पैसे ऐंठता रहे। वो पण्डितों ने भी यही समझा कि वे बहुत महान सांचते थे कि गुरु को तो अब हमने खरीद ही न । हैं। स्वयं को समझने के लिए क्या है? हम स्वयं लिया अब किस वात की चिन्ता है। तुम्हें कुछ को पहचानते हैं। चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 9 & 10. 2000 শ 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-6.txt विशेषता ये है कि वे धन स्वीकार करते हैं और तो विनमता साधना की प्र थम आप यदि सोचते हैं कि लोगों से कहते हैं कि इतना पैसा लेकर आओ, आवश्यकता है। आप सब कुछ जानते हैं तो आप विनम्र नहीं ऐसा करो, ये फीस है। इस प्रकार लोगों का अहं हो सकते और न ही कुछ प्राप्त कर सकते हैं। साधना करते हुए भी ऐसा व्यक्ति किसी के लेते हैं। इस असत्य का अहसास बाद में उन्हें शान्त होता है और वे असत्य को स्वीकार कर हो जाएगा क्योंकि इसके कारण उन्हें बहुत सी शारीरिक और मानसिक समस्याएं हो जाएंगी बताए हुए मार्ग पर नहीं चल सकता और कहता है कि मैं अपने ही मार्ग पर चलूंगा। हमारा अपना ही एक मार्ग है जिसके अनुसार हम चलेंगे। जो परन्तु तब तक वे पतन के कग़ार पर होंगे । सहस्रार का वर्णन किसी भी धर्म ग्रन्थ में भी हम चाहते हैं करते हैं। भिन्न देशों में भिन्न प्रकार के लागों से मेरा पाला पड़ा जो केवल मेरा नहीं किया गया यद्यपि इसके विषय में भारतीय भाषण सुनने के लिए आते हैं। वस, समाप्त। वो प्राचीन पुस्तकों में बताया गया है। सहस्रार की आत्मसाक्षात्कार भी न लेंगे। उनमें से कुछ ने बातचीत तो की परन्तु किसी ने इसका वर्णन आत्मसाक्षात्कार लिया भी परन्तु पाकर भी इसे नहीं किया। केवल इतना बताया कि इसकी एक हजार पंखुड़ियां होती हैं। यदि उन्होंने इसका थोड़ा सा वर्णन किया होता तो मेरे लिए लोगों को खो दिया। मेरे लिए यह अत्यन्त अजीब कहानी थी कि मैं उन्हें आत्मसाक्षात्कार दे रही हैँ। बेकार ये समझाना सुगम हो गया होता कि इस ग्रन्थ में ही मैं ऐसे लोगों को साथ ले चल रही हूँ। अपने खर्चे से में यात्रा किया करती थी। इसके बावजूद ऐसा लिखा है। लोग इस बात को पसन्द करते हैं कि हर बात किसी ग्रन्थ में लिखी होनी भी क्यों नहीं ये लोग आत्मसाक्षात्कार का मूल्य समझते? तब एक आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति ने चाहिए। तभी वो इसे स्वीकार करते हैं। स्थिति काफी कठिन थी क्योंकि किसी ने भी आज तक मुझे बताया कि आज का समाज उपभोक्ता समाज है। जब तक आप इनसे पैसा नहीं लेंगे, सामूहिक आत्मसाक्षात्कार न दिया था। एक दो इन्हें इसका मूल्य समझ नहीं आएगा। उन्हें लोगों के अतिरिक्त किसी ने भी इसके विषय में नहीं लिखा और इन लेखकों ने कुण्डलिनी के महसूस करवाएं कि उन्होंने अपने आत्मसाक्षात्कार के लिए धन खर्च किया है दरवाजे पर ही विषय में स्पष्ट लिखा। परन्तु मेरे विचार से पद्य किसी व्यक्ति को पैसा लेने के लिए बिठा दें (कविता) में लिखा होने के कारण यह भी स्पष्ट न था। लोग इसके विषय में भजन गाते अन्यथा ये लोग आत्मसाक्षात्कार नहीं लेंगे। मैंने कहा,"परन्तु इसे बेचा नहीं जा सकता, ऐसा परन्तु समझते कुछ भी नहीं। मैं सोचती कि साधना में यहाँ-वहाँ भटके इन लोगों का क्या करना तो अनुचित होगा। लोगों को आत्मसाक्षात्कार वेचा नहीं जा सकता। कहने लगा, तब आप होगा और किस प्रकार में इन्हें आत्मसाक्षात्कार दे सफल नहीं हो सकतीं और न ही अन्य गुरुओं पाऊंगी? मेरे अनुभव बहुत ही कष्टकर थे। ॥ मः से मुकाबला कर सकती हैं। अन्य गुरु चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 9 & 10, 2000 कोई बात नहीं। मैं आगे बढती गई, बढती उं. की परन्तु 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-7.txt गई और इसे कार्यान्वित किया। नि:सन्देह बहुत कलियुग में हम ये आशा नहीं कर सकते कि खरवों की संख्या में लोग सहजयोग करें। यद्यपि से क्रूर पड़ा जिन्होंने मुझे भी बहुत कष्ट पहुँचाया और ये मेरी भी कामना है और आप लोगों की भी सहजयोगियों को भी। ये सारी चीजें मेरे उत्साह और आप चाहते हैं कि सभी लोग आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करें जिससे बहुत सी अच्छी चीजें घटित हों। बहुत से लोग रोग मुक्त हुए। ईसा मसीह ने को दुर्बल कर सकती थीं परन्तु इसके विपरीत मैंने सोचना आरम्भ कर दिया कि लोग ऐसे क्यों केवल 21 लोगों को ही स्वस्थ किया था मैं नहीं जानती कि कितने हजारों लोग सहजयोग से ठीक हैं? और तब मुझे महसूस हुआ कि पूरे विश्व को तो हम आत्मसाक्षात्कार नहीं दे सकते। यह हैं? अन्तिम निर्णय है। इस समय लोगों को निर्णय हुए करना होगा कि सबसे महत्वपूर्ण चीज़ क्या है? मनुष्य के साथ एक अन्य समस्या भी है कि वे सभी प्रकार की उल्टी-सीधी पुस्तकें रहे हैं? लम्बी सी 'नहीं' कर देने से बात नहीं पढ़ते हैं। उनके विचार स्पष्ट नहीं हैं कि वे क्या बनेगो। केवल दृढ़ सहजयोगी ही इस कार्य में खोजें। वे नहीं जानते कि उनकी खोज क्या है। उन्हें स्वयं को पहचानना होगा कि वे क्या कर ये बहुत बड़ी समस्या है। और जो भी कहीं कुछ उपलब्ध है वे उसका अनुसरण करने लगते हैं। यें अस्थिर प्रवृत्ति लोग हैं. एक मार्ग से दूसरा मार्ग ये अपनाते रहते हैं और सहजयोग में इनकी सहायता कर सकते हैं। तब मैंने देखा कि लाइलाज रोगों से मुक्त हुए लोग भी गायब हो गए। नशे, शराब और धुम्रपान के आदी लोगों ने ये सब छोड़ दिया। मैंने कभी भी कुछ छोड़ने के लिए नहीं कहा। मैं जानती हूँ कि जब कुण्डलिनी उठती है तो वे स्वतः ही लोग बहुत शुद्ध और सुन्दर बन जाते हैं और अपने जीवन का आनन्द लेने लगते हैं। परन्तु उन पर कोई विश्वास ही उन्नति बहुत कठिन है। क्योंकि एक मार्ग पर चलते-चलते यदि आप दूसरा मार्ग पकड़ लेते हैं तो हो सकता है वहीं पहुँच जाएं जहाँ से चले थे। वे सोचते हैं उन्हें ऐसा करने की स्वतन्त्रता है। नहीं करता था। वो लोग जाकर जब अन्य लोगों वास्तव में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किए विना आपको से बताते तो वे कहते ये पागल हो गए हैं। लोगों कोई भी स्वतन्त्रता नहीं है। स्वतन्त्रता वह होती की समझ में न आता कि किस प्रकार इन्होंने है जिसमें आप जानते हों कि आप क्या हैं और आपमें क्या योग्यता है। स्वतन्त्रता में शराब पीनी छोड़ दी किस प्रकार धूम्रपान त्याग आप ही सारे आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। आशीर्वाद यदि नहीं मिलते तो आप स्वतन्त्र दिया? जब हम पीना चाहते हैं तो ये जागृति क्या है? ऐसे लोगों की पहचान करने पर मैंने जाना कि ये लोंग अत्यन्त घटिया चीजों का आनन्द नहीं हैं। आपके जीवन में कहीं न कहीं कुछ लेने वाले थे। ऐसा आनन्द जिसका आत्मा से कमी है। एक बार आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर कोई लेना देना नहीं। परन्तु शनै: शनै: ये कार्यान्वित होने लगा फिर भी मैं कहूंगी कि इस घोर चैतन्य लहरी लेने के पश्चात् आप पूर्णत: स्वतन्त्र मानव बन जाते हैं। स्वतन्त्र , माने आपकी आत्मा आपका 9. ।खंड : XI अंक : 9 8 10.2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-8.txt पथ प्रदर्शन करती है। जैसा आप जानते हैं आत्मा आप चीज़ों को महसूस कर सकें। उदाहरण के रूप में हो सकता है सहजयोग है। सभी लोगों में यदि एक ही सा प्रतिबिम्ब हैं में कुछ असन्तुष्ट लोग हों। परन्तु इसके विषय और यदि सभी लोग जागृत हैं ता चेतना में ये में आप चैतन्य लहरियों क माध्यम से पता लगा सकते हैं। ये कौन लोग हैं ये क्या कर रहे हैं। परमेश्वर का, सर्वशक्तिमान परमात्मा का प्रतिबिम्ब कार्य करता है। मानो ये जानते हों कि ठीक क्या हैं गलत क्या है। सृजनात्मक क्या है और विध्वंसक चैतन्य लहरियों द्वारा आप जान सकते हैं कि क्या हैं? ये कोई झूठा है। बास्तविकता को आप अनुभव करते हैं और पहुँचे हैं। आप समझ सकते हैं कि आपका यही घटित होना होता है। अनुभव सहजयोग में संतोष नहीं है। वास्तविकता उनमें से कोन लोग सत्य की उस अवस्था तक विरोध करने वाले ये लोग आपको क्या बताने पहली चीज़ है। अनुभव जो आप आपने अन्दर करते हैं-स्पन्द, अपनी अंगुलियों के सिरों पर है। अपनी अंगुलियों के सिरों पर आप इसे जान शीतल लहरियों का अनुभव। अनुभव के बिना सकते हैं । यही कयामा है. जिसके विषय में का प्रयत्न कर रहे हैं और इनकी गहनता कितनी आपका इसका विश्वास नहीं करना चाहिए। मोहम्मद साहव ने बताया। मैं आपको अपना उस इसका अर्थ ये है कि अब आपके नाडी तन्त्र पर व्यक्ति आया दिन का अनुभव बताऊगी। एक और स्वयं को दूरदर्शन का अधिकारी बताकर एक नया आयाम आ गया है कि अब आप एक नई प्रणाली को महसूस कर सकते हैं जा अब मुझसे उल्टे सीधे सवाल करने लगा. जिनका कोई सिर पैर ही न था। उसका नाम अब्बास था। तक आप नहीं जानते थे। अनुकम्पी नाड़ी तन्त्र तो पहले से था परन्तु इसको कार्यशैली का ज्ञान मैंने उससे कहा अब्यास मियां आप अपना और आपको न था। आपका आत्मज्ञान अत्यन्त दुर्बल मेरा दोनों का समय बनदि कर रहे हैं। क्या आप सही प्रश्न पूछेंगे? कहने लगा मैं सारी धर्मान्धिता चीज ज्योतिरमय हो उठी। अचानक आपको अपने के विरूद्ध हूँ। मंने कहा में तो धर्मान्ध नहीं हूँ। आप कैसे जानते हैं मैं धर्मान्ध हूँ या नहीं? कहने थी। परेन्तु अत्मिसाक्षात्कार के बाद अचानक हर अन्दर एक नयापन महसूस होने लगता है परन्तु अब भी कभी-कभी आपको अपने अरहं से लगा में ये जानने का प्रयत्न कर रहा हूँ। ठीक है मैने कहा, आप अपने दोनों हाथों को मेरी तरफ करें। मोहम्मद साहब ने कहा है कियामा लड़ना पड़ता है और चीजों के विषय में अपनी अज्ञानता पर नियंत्रण करना पड़ता है क्योंकि आत्मसाक्षात्कार आपको पूर्ण ज्ञान देता है। पूर्ण ज्ञान। इसे चुनौती नहीं दी जा सकती। इसके जाएंगे। तुरन्त उसके दोनों हाथों में शीतल लहरियाँ के वक्त आपके हाथ बालंगे और आप हैरान हो संकेता को जाँचा जा सकता है और पता लगाया महसूस होने लगी। कहने लगा, "कि ये क्या कि ये ठीक है कि गुलत है । ये है?" मैंने कहा "यहीं वास्तविकता है"। वाद जा सकता है विवाद करने का या इसके विषय में बातचीत घटना आप सबके साथ घटित हो चुकी है और आप सब वो चैतन्य लहरियाँ पा चुके हैं जिनसे करने का तथा पुछताछ करने का कोई लाभ 7. चैेतन्य लहरी खड :X1 अक : 9 & 10, 20000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-9.txt आपको दिखाई दे जाए तो आप वह खाना उस नहीं। स्वयं इसे देखो इसका अनुभव करो। वह न। भूखे व्यक्ति को देना चाहेंगे। इस विश्व में भी आप लोगों को पागलों की तरह से परमात्मा स्तब्ध था और इसके पश्चात् जो भी बातें उसने मुझसे पहले की थी वो उसने नहीं छापीं मेरा की खोज में इधर उधर दौड़ते हुए पाते हैं। आप देखते हैं कि वे सभी प्रकार के कर्मकाण्ड कर रहे हैं और आप उन्हें बताना चाहते हैं कहने का अभिप्राय ये है कि लोग यदि सत्य तो कुछ भी तक पहुंच जाए, सत्य को जान जाएं न विगड़ेगा। महान लोगों के जीवन में, आप देखते हैं, कि केवल पुस्तकों में पढ़कर या कि वे इन सब चीज़ों पर विश्वास करें या न अन्धविश्वास द्वारा वे सत्य को स्वीकार नहीं करें। हो सकता है कि वे इस बात से पूरी तरह इन्कार करें, इसका विरोध करें या अपने मध्य नाडी तन्त्र पर वे सत्य परन्तु करते। का अनुभव करते और तब कोई उन्हें परिवर्तित इसके विषय में कुछ न जान सकें। परन्तु आप निश्चित रूप से जानते हैं कि आप नहीं कर सकता, वैसे ही जैसे एक बीज जब पड़ बन जाता है तो उसे पुन: बीज में परिवर्तित ठीक मार्ग पर हैं और आपकी मनःस्थिति नहीं किया जा सकता। बीज तो बीज है । यह बिल्कुल ठीक अवस्था में है। संस्कृत में इसे जब पड़ बन जाता है तो कोई भी इसे अपनी पूर्व स्थिति में नहीं ला सकता। इसी प्रकार सहजावस्था कहते हैं। सहजावस्था में आप प्रतिक्रिया नहीं करते, केवल देखते हैं और आनन्द उठाते हैं। अब आप देखें कि मैं आई और देखा कि सहस्रार और सभी चक्रों का आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके जब आप परमात्मा से एकरूप हो जाते हैं तो आपके पतन का प्रश्न कितना सुन्दर रूप बनाया गया है। इन्हें इतने ही समाप्त हो जाता है। बड़ी ही प्रशंसनीय बात सुन्दर ढंग से अभिव्यक्त किया गया है कोई अन्य व्यक्ति होता तो कहता ओहो! रंगों का है कि किस प्रकार आपने वो गुण प्राप्त किया? किस प्रकार आपने अपनी योग्यता को पहचाना सम्मिश्रण ठीक नहीं हैं। क्यों? इनको इन्होंने क्यों और फिर भी आप इसका उपयोग नहीं करते? नि:सन्देह इसके लिए आपकी ध्यान धारणा करनी उपयोग किया? इसकी जगह इन्होंने कोई और रंग क्यों नहीं लगाए? इस प्रकार से दूसरों में दोष हागी। जब आप ध्यान धारणा में उतर जाते हैं तो आपका अस्तित्व ज्योतिर्मय होकर इतना सुन्दर ढूंढते हैं। दूसरों में दोष ढूँढना उस मस्तिष्क हो जाता है कि फिर आप उसे बदलना नहीं की देन होता है जो अभी तक ज्योतित नहीं हुआ। प्रतिक्रिया के संस्कार के कारण आप चाहते। उसी स्थिति में रहकर आप सदैव उसका आनन्द लेते हैं। आप ये आनन्द अन्य लोगों में किसी चीज़ का आनन्द नहीं ले सकते। सदैव प्रतिक्रिया करने में लगे रहते हैं। कोई भी बाँटना चाहते हैं क्योंकि आपको लगता है कि यदि अच्छी बात बताए तो भी आप प्रतिक्रिया आप जब ये आनन्द उठा रहे हैं तो क्यों न अन्य करने में लगे रहते हैं। बुरी बात पर तो आप लोग भी इसे पा लें। वैसे ही जैसे आपके पास पर्याप्त भोजन हो और सड़क पर कोई भूखा प्रतिक्रिया करते ही हैं। अतः हमें समझ लेना खंड XII अक : 9 8 ।0. 2000 चैतन्य लहरी कए 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-10.txt चाहिए कि हमें प्रतिक्रिया करने की स्वतन्त्रता दूसरे कोण से यदि आप देखें. सहजस्थिति से, नहीं है। हम इतने हल्के नहीं हैं कि प्रतिक्रिया तो आपको कष्ट महसूस ही न होंगे। परन्तु करें। बहुत ऊंचे स्थान पर हम बैठे हुए हैं । इसके लिए आपके अन्दर उच्च मापदण्ड बनने केवल आनन्द उठाना ही हमारा कार्य है। हर आवश्यक है। उस दिन मेरी भंट कुछ सरकारी अधिकारियों से हुई मैने उन्हें बताया कि मैं चीज़ का आनन्द उठाएं क्योंकि वह आनन्द परमात्मा का आशीर्वाद है। जीवन के उथल जानती हूँ कि वेतन बहुत कम है। आप सोच कि अन्य लोगों को बहुत अधिक वतन पुथल और कष्टों का भी आप आनन्द उठा सकते हैं सकते हैं। यदि आप यह बात अच्छी तरह जान लें कि आपकी आत्मा को कुछ भी हानि नहीं हो सकती. क्योंकि यही सच्ची ज्योति है, तो आप मिलता है और बहुत अधिक सुविधाए। परन्तु एक तरह से आपको वास्तव में आनन्द प्राप्त सकता है. अपने कार्य से। अपने देश के लिए हर चीज का आनन्द उठा सकते हैं। जो भी यदि आपमें भक्ति है तो कोई भी बलिदान श हों, चाहे जो भी चीज़ आपको तकलीफे आपको आपके लिए अधिक न होगा। किसी को यदि कष्ट दे रही हो परन्तु आत्मा का मोन प्रकाश आप कुछ देना चाहते हैं तो कोई भी कष्ट, कण्ट आपको वास्तव में पूर्णतया आनन्दमय बनाता है न मानते हुए आप किसी भी स्तर तक जा सकते और अन्य लोगों को भी आनन्द प्रदान करता है। हैं। ऐसा करने से आपकी भावनाएं वहुत गहन हो जाती हैं। मान लो आप यात्रा कर रहे हैं और न तो आप इसकी रूपरेखा बनाते हैं न योजना कि किस प्रकार आनन्द लिया जाए, यह तो अचानक कोई सहयात्री बहुत बीमार हो जाता है। चैतन्य लहरियों द्वारा आप महसूस कर सकते हैं स्वत: ही आनन्द प्रदान करता है। आनन्द देने की यह किया विना किसी प्रयत्न के स्वतः और कि यह व्यक्ति वीमार है। तुरन्त उसके प्रति सहानुभूति और प्रेम उमड़ पड़ता है और आप सहज है क्योंकि आप सहजावस्था में हैं। सहजावस्था में आप चीजों को केवल देखते तुरन्त उसकी सहायता को तत्पर हो उठते हैं। भर है। आपको लगता है कि ये तो मात्र एक और सम्भव हो तो आप उसे ठीक करने ा नाटक है। जिसकी भिन्न शैलियाँ हैं, भिन्न प्रयत्न भी करते हैं. विल्कुल वैसे ही जैसे कि समुद्र सारी नदियों को ओर सभी प्रकार के जल प्रकार है। साक्षी रूप में आप इसे देखते भर को अपने पेट में समोह लेता है। सभी कुछ हैं और इसका आनन्द उठाते हैं। ऐसा कहना आवश्यक नहीं है कि मुझे ये पसन्द है, मुझे अपने में समा लेता है न तो ये किसी को कष्ट वो पसन्द है, बिल्कुल नहीं। यह में जो देता है न दुख। यह प्रम से किसी को वश में पसन्द करता है वह अहं के अतिरिक्त कुछ करने वाली बात है। समुद्र अपनी शक्ति नहीं भी नहीं। यह आपको उस आनन्द से, जो दर्शाता, अपने महत्व की चिन्ता नहीं करता कोई वास्तविकता है, जो सत्य है, दूर रखता है। यदि आपका अपमान करता है तो ठीक है, संसार की हर चीज़ आपकों कष्टकर लगती है अपमान को भी सहन कर लें। ऐसे व्यक्ति जो चैंतन्य लहरी खड : XII अक : 98 10. 2000 । 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-11.txt नि:संदेह यह अविश्वसनीय प्रतीत होता है। परन्तु सहजावस्था को प्राप्त हो चुके हैं शाश्वत कला, संगीत तथा महान विचारों के सृष्टा होते हैं। बहुत हैं। आप अब देखें कि ये एहसासे कितना मधुर ाि से लोग लिखते हैं जो कुछ हो दिनां में समाप्त हम सब एक है न कोई झगड़ा है न लड़ाई है न कुविचार। कोई भी घटिया चीजों को पसन्द और हो जाता है। बहुत से लोग सृजन करते हैं परन्तु कोई उनकी चिन्ता नहीं करता। परन्तु नहीं करता. सभी आनन्दकर चीजें चाहते आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति जो भी कुछ सृजन करता सबमें सूझ बूझ का यह गुण है मैने लोगों को कवि वनकर सुन्दर कविताएँ लिखते हुए देखा है वह शाश्वत (Eternal) होता है। क्योंकि अब वो अनन्तता के सागर में है। अब वे पावित्र्य के है। उन्हें सृजन करते हुए देखा है तथा बहुत सागर में है जहाँ किसी को कष्ट पहुँचाने का, किसी को दुख देने का विचार तक नहीं है। उस स्थिति में सभी को ऐसी सुरक्षा प्राप्त है। कोई उन्हें हानि नहीं पहुँचा सकता क्योंकि आखिरकार अच्छे आयोजक बनते हुए भी देखा है। परन्तु सबसे महत्वपूर्ण चीज जो है वह है विनम्रता। आरम्भ में भी मैंने कहा था और अब फिर कहँगी कि लोगों को आपकी विनम्रता ही आकर्षित करेंगी आप लाग अब परमात्मा के साम्राज्य में हैं। कोन । आपको विनम्र व्यक्ति बनना चाहिए। स्वयं को कभी विशेष न समझे और न ही स्वयं है? सहजयोगियों में मैंन ऐसी ही सम्पदा, ऐसी की श्रेष्ठ माने। स्वयं को यदि आप महत्वपूर्ण आपको हानि पहुँचा सकता है या कष्ट दे सकता ही उदारता और ऐसी ही सूझ-बूझ देखी है। मुझे समझते हैं तो आप पूर्ण के अंग-प्रत्यंग नहीं भाषण नहीं देने पड़ते कि ऐसा करो ऐसा मत रहते। मरा एक हाथ यदि स्वयं को महत्वपूर्ण मानने लगे तो ये इसकी मूर्खता होगी अकेला अभी तक सहजयोग में परिपक्व नहीं हुए हैं हाथ किस प्रकार महत्वपूर्ण हो सकता है? सभी करो। न, इसकी कोई आवश्यकता नहीं। जो लोग मा] उन्हें चाहिए कि परिपक्वता को प्राप्त करें और हाथों की आवश्यकता होती है, चीज़ों की अन्य लोगों को चाहिए कि यदि ये लोग कष्टकर आवश्यकता होती है, टॉँगों की आवश्यकता होती है? एक अंग किस प्रकार महत्वपूर्ण हो सकता हैं तो भी इनका बुरा न मानें। इन पर करुणा करें ताकि ये परिपक्व हो सकें। आज बहुत महान हैं। अपनी सहजयोंग यात्रा में कभी भी आप यदि दिन है। पिछले तीस वर्ष मैं एक स्थान से दूसरे इस प्रकार सोचने लगे तो में कहूँगी कि आप स्थान तक दौड़ती रही और इतने सारे सहजयोगी सहजावस्था में नहीं हैं। मरा ये प्रयत्न था कि आप लोगों को सहज के सुन्दर क्षेत्रों में ले जाए एकत्र कर पाई। विश्वभर में अब बहुत से सहजयोगी हैं। यहाँ उपस्थित सहजयोगी तो उनका जहाँ आप आत्मा से पूर्णत: एकरूप होंगे, प्रकृति मात्र एक अंश ही है यह घटित होना ही था। इसका वर्णन किया जा चुका है। इसके विषय में भविष्यवाणियाँ की गई थी कि एसी घटना हांगी, से एकरूप होगे, अपने आसपास के सभी लोगों से, अपने देश तथा अन्य देशों से एकरूप होंगे। सर्वत्र पूर्ण वातावरण में ब्रह्मानन्द आपका अंग-प्रत्यग और असंख्य लोग आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करेंगे। वन जाएगा और आप कभी इससे भिन्न न होंगे । TO चतन्त्र लहरी । खडे :XII अक : 98 10. 2000)- 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-12.txt तब आप कह सकते हैं कि गुँजन या निनाद जो लोगों को, राजनीतिज्ञों को भूल जाए। उन्हें भूल कि आपके जीवन का सारतत्व है वह आपकी जाएं। आप उनसे कहीं महान है क्योंकि आप भौतिक उन्नति में या किसी अन्य चीज़़ में न जीवन की सहज शैली के साथ एक हीरे की दिखाई पड़कर आपके आध्यात्मिक क्षेत्र में दिखाई तरह से हैं यह सहज जीवन शैली अत्यन्त पड़ेगा और यही क्षेत्र सर्वोच्च है। सर्वत्र सभी सन्तोष एवं पूर्ण शान्ति प्रदायक है। यह आपको हैं और उन देशों में उच्च गुणों के लोग होते सबको याद किया जाता है। इसी प्रकार आप भी है कि आप इनके वर्णन नहीं कर सकते हैं। अपने जीवन की बास्तविकता तथा सच्चाई के आपके सहस्र दल सहस्रार की तरह से ज्योतिर्मय आनन्द शान्ति क्षेम तथा अन्य इतने बरदान देती महान ज्ञान का प्रतिनिधित्व करेंगे। और यह सब आपके जीवन और आपके कार्यो में छलकेगा। हैं। परमात्मा ही जानता है कि आप इससे क्या-क्या प्राप्त कर सकते हैं। आप इतने महान क्षेत्र में हैं। इस तरह से आप इस कार्य को कर सकते हैं। एक हजार पंखुड़ियाँ जहाँ से लोगों ने विज्ञान का केवल यह निर्णय करना है कि कितने लोगों को कर सारा ज्ञान प्राप्त किया है तथा सभी महान आविष्कार हमने आत्मसाक्षात्कार देना है। आत्मसाक्षात्कार वहीं से प्राप्त हुए हैं। अत: यही चीज़ देने के लिए हम क्या कर सकते हैं? इसके लिए व्यक्ति को महसूस करनी है- आत्मसम्मान। हमें क्या करना चाहिए? अपनी पूर्ण स्वतन्त्रता में आत्मसम्मान स्वमहत्व से भिन्न होता है। आपमें तल आत्मसम्मान होना चाहिए यह आपको विनम्र हैरान होंगे कि यह पहाड़ की चोटी पर चढ़ने वनाता है। प्रेम करने के योग्य होने के कारण आप यदि इस कार्य को करते चलें तो आप जैसा कार्य है। परन्तु जब आप चोटी पर चढ़ आप अत्यन्त प्रेममय बन जाएंगे। कोई इसे आप जाते हैं तो नीचे की सभी चीजों को भली भांति पर थॉपेगा नहीं। मैं मानती हूँ कि सागर में से बादल उठते हैं और वर्षा करते हैं । जीवन चक्र की तरह से ये कार्य हो रहे हैं। इस बात के प्रति देख सकते हैं और आपको सन्तोष होता है कि आप चोटी पर है। लेकिन चोटी की चढ़ाई तो आपको करनी होगी इसमें कोई समस्या नहीं है। वे जागरूक नहीं हैं। वे ये नहीं सोचते कि वे आप सब इस कार्य को कर सकते हैं आपके कुछ महान कार्य कर रहे हैं क्योंकि वे इस चक्र अन्दर अपने प्रति सम्मान, प्रेम एव सूझ-बूझ में हैं। परन्तु आप इस चक्र से मुक्त हैं और फिर होनी चाहिए कि हमें पर्वत की इस चोटी पर पहुँचना है। एक बार जब आप इस शिखर पर पहुँच जाएं तो समझ लें कि आप बहाँ पर हैं हैं क्योंकि आपने ही इसे करना है। और अपने प्रेम, अपने स्नेह की बर्षा करनी शुरू भी बिना किसी स्वमहत्व की भावना के इस कार्य को कर रहे हैं। आप इस कार्य को कर रहे दूसरा चक्र, जो कि स्वाभाविक चक्र नहीं कर दें. और उन सब आशीर्वादों की जो शिखर है यह चेतना का चक्र (cycle) हे। चंतना क चक्र में आप जो भी कार्य करते हैं उसके प्रति चंतन होते हैं। परन्तु सब कुछ करते हुए भी 11 से पहले हैं। यदि यही आपका जीवन है तो यह महानतम है। महान कहलाने वाले वाकी सब चैतन्य लहरों ॥ खड XII अंक : 9 8 ।0.2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-13.txt आप विनम्र, प्रेममय एवं सुहृदय होते हैं। अत्यन्त हैं। आन्तरिक शान्ति द्वारा ही आप अत्यन्त ही प्रेममय एवं सुहृदय। न आप किसी पर विवेकशील एवं बुद्धिमान व्यक्ति बनते हैं। अन्य चीखते चिल्लाते हैं न किसी को पीटते हैं। बिना लोगों से कहीं अधिक महान। सामान्य लोगों जैसे किसी को कोई कठोर शब्द कहे आप कठिन से कठिन व्यक्ति को भी संभाल सकते हैं । कोई यदि आपके आड़े आने लगे तो चीज़ में आनन्द का वर्णन शब्दों में नहीं किया आप नहीं होते। तत्पश्चात् आप आनन्द प्राप्त करें। किसी ला आप उसकी कुण्डलिनी उठाकर स्तुष्ट हो जा सकता। आनन्द तो आनन्द होता है, न ये सकते हैं। बिना बताए यदि आप किसी की कुण्डलिनी उठाते हैं तो वह व्यक्ति नियंत्रित हो जाता है और यदि उसकी कुण्डलिनी लें, सबकी संगति का आनन्द लें, हर घटना का, प्रसन्नता है न अप्रसन्नता। ये तो मात्र आनन्द है। आप केवल आनन्द में रहे। हर चीज़ का आनन्द आप नहीं उठा सकते तो उसे भूल जाएं हर दृश्य का, अपने जीवन की हर घटना का आनन्द लेना सीख लें। देखें, कि केवल आनन्द क्योंकि वह व्यक्ति अत्यन्त दुष्कर है। हो में ही महान क्षमता है। मुझे याद है कि एक बार सकता है वह पत्थर सम हो। आप क्या कर सकते हैं? आप उसमें प्रेम और गरिमा आदि गुण में अपनी बेटी और दामाद के साथ एक ऐतिहासिक स्थान देखने गई, जिसके लिए हमें काफी सारी कार्य असम्भव है। उन्हें भूल जाएं। ये आपका चढ़ाई चढ़नी पड़ी। तीन घण्टे तक हम चढ़ाई कार्य नहीं है, ये आपका कार्य बिल्कुल भी नहीं चढ़ते रहे । जब हम सब थक गए तो तभी हैं। मेरी प्रार्थना है कि सर्वप्रथम आप देखें कि संगमरमर से बना हुआ आराम करने का स्थान आप कितने विनम्र हैं। आपको विनम्र होना है, हमें दिखाई दिया। तो हमने सोचा कि यहाँ पर लेटकर विश्राम कर लें। जब हम बहाँ लेटे हुए थे तो ये सब कहने लगे कि हम लोग यहाँ आए नहीं बहा सकते। पत्थर हृदय लोगों के लिए यह यही आपकी सज्जा है और यही आपका गुण। अत: अपने अन्दर प्रेम उत्पन्न करें जो शुद्ध हो, जो वासना और लोभरहित हो। आप अन्य लोगों ही क्यों? और इस प्रकार शिकवा करने लगे। को सिर्फ इसलिए प्रेम करते हैं क्योंकि प्रेम और अचानक वहाँ एक आनन्द बिन्दु दिखाई आपके हृदय से बह रहा है और शांति का पड़ा। मेरी नज़र संगमरमर में खुदे हुए हाथियों पर पड़ी। मैंने कहा,"क्या आप इन हाथियों को वरदान आपको प्राप्त है। अपने अन्दर आप पूर्णतया शान्त हैं और यह जानकर आप हैरान देख सकते हैं? सबकी पूँछ अलग-अलग ढंग से होंगे कि विवेक का उद्भव शान्ति से होता है। बनाई गई है।" कहने लगे," मम्मी, हम इतने थक आपको अत्यन्त विवेकशील पुरुष या महिला हुए हैं आप किस प्रकार इन हाथियों की पूँछ को देख पा रही हैं?" मैंने कहा," आप भी इसे देखो।" केवल आनन्द ही आपके मस्तिष्क समझा जाएगा क्योंकि आपको अन्तरश्शान्ति प्राप्त है। शान्ति की इस स्थिति में ही आप सत्य खोज को व्यर्थ की चीज़ों से हटा सकता है। केवल 12 सकते हैं और सभी वांछित समाधान खोज सकते चैतन्य लहरी ॥ खंड XII अंक : 9.8& 10. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-14.txt अपना मस्तिष्क वहाँ से हटा लें। ये विधि है। यह अन्तःस्थित है। इसका सम्मान करें इसकी आप आजमा सकते हैं। किसी भी आनन्ददायी चीज़ पर अपना मस्तिष्क ले जाएं। मान लो तुलना दूसरे लोगों से न करें। अन्य लोग आपके स्तर पर नहीं हैं। आप भिन्न स्तर पर हैं। अत: कोई व्यक्ति अत्यन्त उबाऊ है तो इसके पीछे छिपी हुई विनोदशीलता को आप देखें कि कोई भी व्यक्ति उबाता किस प्रकार है। इससे आपको शिक्षा मिलती है कि कभी किसी को आनन्द लेने का प्रयत्न करें। कभी ये न सोचें आप कुछ महान हैं कुछ ऊँचे हैं नहीं, कभी ऐसा न सोचें। केवल आभार मानें कि आप जीवन के इन अटपटे विचार एवं शैलियों से बचे हुए हैं। ऐसी शैली एवं विचारों से जहाँ व्यक्ति सदैव आलोचना ही करता रहता ऊबाना नहीं है। इसी प्रकार आनन्द की भी विशेषता यही है कि यह आपको हर चीज़ का आनन्द, हर चीज़ का सारतत्व सिखाता हैं। यदि कि यह अच्छा नहीं है, मुझे ये पसन्द नहीं कोई व्यक्ति या वस्तु बुरी है तो भी आप इसका है, ये कहने वाले आप कौन होते हैं कि मुझे आनन्द लें, कहें कि यह कितना बुरा है? मान लो कोई अच्छा दोस्त है तो आप हमेशा उसकी पहचानते। जब आप कहते हैं कि मुझे ये अच्छाई को देख सकते हैं। परन्तु कभी किसी की बुराई की आलोचना करने की न सोचें। को नहीं पहचानते। आलोचनात्मक रवैया आपके मस्तिष्क से निकल पसन्द नहीं है? आप तो स्वयं को भी नहीं पसन्द नहीं है तो मतलब ये कि आप स्वयं किस प्रकार आप कहते हैं कि मुझे ये जाता है। इस स्थिति में किसी भी अटपटी चीज़ पसन्द नहीं हैं। बहुत कम ज्ञान वाले लोगों को को आप देखते हैं तो एकदम आपका मस्तिष्क मेंने दूसरों की आलोचना करते हुए देखा है। मेरी में इससे हटकर किसी अच्छी चीज़ पर चला जाता इसका कारण नहीं आता। ऐसा क्यों है? समझ है। अत: न तो आलोचना करें और न ही इसका सम्भवत: वह अपने आपको बहुत कुछ समझते बुरा मानें। कभी-कभी तो लोग हैरान होते हैं कि हैं। यह बात आम है। परन्तु जब आप पूर्ण ज्ञान मैं किस प्रकार लोगों को सहन करती हूँ। मैं को जान जाएंगे तो वास्तव में विनम्र हो जाएंगे| पूर्णतः विनम्र, भद्र या सुहृदय। सहन नहीं करती। कोई व्यक्ति कुछ भी करता रहे मैं उसकी ओर ध्यान ही नहीं देती। आपका आज वैसे भी मेरे लिए बहुत ही महान स्वभाव तथा संस्कार यदि ऐसे हो जाते हैं जहाँ आप पूर्ण तुर्या स्थिति में हों, जिसके विषय में कबीर साहब ने कहा है 'जब मस्त हुए तो फिर दिन है। में नहीं जानती कि इस सुन्दर विश्व को देखने के लिए मैं और कितने वर्ष तक जीवित रहूंगी। मानवीय स्तर पर यदि देखा जाए तो मेरा जीवन बहुत संघर्षमय एवं कठोर रहा। परन्तु क्या बोलें। मस्ती के आलम में बोलने को कुछ रह ही नहीं जाता। आनन्द की स्थिति भी ऐसी ही है। एक ऐसा स्वभाव जिसे आपको सहजयोगियों का सृजन, उनकी बातों को सुनना और उनसे बातचीत करना मेरे लिए आनन्ददायी समझना है और जिसका आपको सम्मान करना चैतन्य लहरी खंड : XI अंक : 9 & 10. 2000 था। वे कितने मधुर, करुणा एवं सम्मानमय है? 13 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-15.txt और ये बात ठीक साबित हुई। मैं वास्तव में आपके इन गुणों ने मेरी बहुत सहायता की और इसके लिए मैं आपके प्रति आभार प्रकट करती बहुत प्रसन्न हूँ। आज के इस शुभ दिवस तक पहुँचने के लिए आप सबकी बहुत धन्यवादी हूँ हूँ। आपके प्रोत्साहन, आपकी सहायता और आपकी और आप सबको हदय से आशीर्वाद देती हूँ कि सुझ-बूझ से मैं ये सब कार्य सम्पन्न कर सकी। आप इसकी जिम्मेदारी सम्भाल लें। आप सहजयोगी मैं स्वयं यदि इस कार्य को कर सकती तो कभी भी आपकी सहायता न माँगती। परन्तु आप लोग हैं तथा अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार देना आपकी जिम्मेदारी है। अन्य लोगों को भी यह तो मेरे चक्षुओं और बाजुओं जैसे हैं मुझे आप सबकी बहुत जरूरत है क्योंकि में आपके बिना दिया जाना आवश्यक है। सहजयोग का वर्णन आप उनके सम्मुख कर सकते हैं। उनसे इनकी बातचीत कर सकते हैं और उन्हें समझ सकते यह कार्य नहीं कर सकती। ये तो माध्यम बनाने जैसा है आपके यदि माध्यम ही नहीं हैं, आपकी यदि धाराएं ही नहीं हैं तो आदि शक्ति होने का हैं अन्य लोगों को समझने का प्रयत्न करें और क्या लाभ है? किस प्रकार से आप शक्ति प्रवाह उनसे बातचीत करें। लोगों को आत्मसाक्षात्कार अन्यशा आप स्वयं को भी अपूर्ण करेंगे? विद्युत शक्ति यदि है तो इसको प्रसारित करने के लिए तार भी होने चाहिए। बिना इनके अवश्य दें महसूस करेंगे। स्वयं को पूर्ण करने के लिए ये तो यह निश्चल है। इसी प्रकार मुझे भी लगा कि कार्य आप करें। मेरे भी अधिक से अधिक माध्यम होने चाहिए परमात्मा आपको धन्य करें। 14 खंड : XII अंक : 9 & 10, 2000 चैतन्य लहरो 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-16.txt शिवरात्रि पूजा ८C 5.3.2000 पुणे परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन पहले मैं अंग्रेजी में बोलूंगी क्योंकि यहाँ और माँ (आदिशक्ति) बच्चे का वध नहीं कर विदेशों से और विशेष रूप से मद्रास, हैदराबाद. सकती। देवी ने सोचा कि यदि शिव ने इस राक्षस को देख लिया. पूरा विश्व नष्ट करते हुए केरल और बैंगलोर से लोग आए हुए हैं। ये सभी लोग तो यहाँ आए हुए हैं ही. इनके अतिरिक्त में देख लिया, तो वे भी उनके क्रोध से न बच कौन से लोग सकेंगी। अतः देवी ने राक्षस रूपी उस बालक नहीं जानती कि दक्षिण भारत से है जो अभी तक आए हिन्दी भाषा नहीं समझते। मेरे विचार से इस शिवरात्रि का विशेष महत्व है का वध करने के उस कार्य से स्वयं को हटा लिया और श्री शिव ने बह कार्य अपने हाथ में क्योंकि प्रातः उठकर कोई भी समाचार पत्र यदि ले लिया। बालक रूपी उस राक्षस की पीठ पर आप पढ़े तो सभी प्रकार के हिंसात्मक, भ्रष्ट वे सवार हो गए और उसका वर्ध कर दिया। वह कार्य करने वाले तथा चरित्रहीन लोगों के विषय शिशु क्योंकि राक्षस था इसलिए श्री शिव ने में भयानक खबरें भरी होती हैं। आपको हैरानी उसका वध करके विश्व को विनाश से बचा होती है कि किस प्रकार आज हमारे चहुँ ओर लिया और खुशी से नाचने लगे। इसी का नाम अपराध वृत्ति फैली हुई है! ऐसा प्रतीत होता है दिव्यानंद है। बहुत से लोग इस बात को नहीं कि श्री शिव के ताण्डव नृत्य का यही समय है। जानते कि श्री शिव उस शिशु की पीठ पर इसके बिना कोई सुधार होता हुआ नहीं प्रतीत चढ़कर क्यों खड़े हो गए? इसका बास्तविक होता। उनके क्रोध का प्रकोप यदि इस प्रकार के कारण उसका राक्षस होना था। अतः आजकल चरित्र के लोगों पर होने लगा तो मेरी समझ में लोग चाहे शिशु रूप में अबोध व्यक्त था पावन नहीं आता कि उससे कोई कैसे बच सकेगा। वे गुरुओं का छलावरण धारण कर लें श्री शिव उन्हें समाप्त कर सकते हैं। बहुत सी घटनाओं उनकी दूसरी विशेषता उनकी विनाश के माध्यम से सर्वत्र यह विनाश शुरू हो चुका है। [भयंकर तूफान, भूचाल और दुर्घटनाएं तथा प्राकृतिक प्रकोप इस कार्य को कर रहे हैं और ऐसे देवता हैं जो प्रेम एवं गहन करुणा से परिपूर्ण हैं। परन्तु, शक्ति है। वे पूरे विश्व को नष्ट कर सकते हैं । उन्हें यदि क्रोध आ जाए तो जीव जंगम सभी को समाप्त कर सकते हैं। आप सबने वह कहानी सुनी होगी कि किस प्रकार वे क्रोधातिरेक में बह यह सब कलकी अवतार के परिणाम स्वरूप है। परन्तु यह अवतार एक अन्य कार्य भी कर रहा है वह है, लोगों को आत्मसाक्षात्कार (पुनजन्म) गए। एक राक्षस ने शिशु रूप धारण कर लिया 15 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 9& ।0. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-17.txt देना। आत्मसाक्षात्कारी लोगों को कभी यह घटनाएं और इसके लिए कोई विशेष परिश्रम आपको कभी हानि नहीं पहुंचाती। इन लोगों को कुछ नहीं करना पड़ता। अपने रोजमर्रा के जीवन में आप यह कार्य कर सकते हैं। लोगों का नहीं हो सकता। सदैव उनकी रक्षा होगी और अन्तर्परिवर्तन करने के लिए केवल इसी चीज़ उनकी हर चीज की रक्षा होगी क्योंकि ये अपनी की आवश्यकता है और आप सब इसको कर माँ की सुरक्षा में हैं। अब समस्या यह है कि इन लोगों से सकते हैं। आप सब। ये उपलब्धि आप प्राप्त सहजयोगी कैसे व्यवहार करें ताकि ये लोग कर सकते हैं। आप सबको यह कार्य अत्यन्त निष्ठा से भली-भांति करना चाहिए। क्रोध में विकास प्रक्रिया के मार्ग में बाधाएं न उत्पन्न कर आकर लोगों पर उछलने की या अभद्र सकें। इसका एक मात्र समाधान कुण्डलिनी की जागृति है। यदि किसी बुरे से बुरे व्यक्ति की कुण्डलिनी भी आप उठा देंगे तो या तो वह नष्ट हो जाएगा या भला व्यक्ति बन जाएगा। चाहिए। ताकि श्री शिव का क्रोध न भड़क कुण्डलिनी जागृति के पश्चात् सभी दुष्कर्मों की उठे और जैसे कहते हैं, उनकी तीसरी आँख योजना जो उनके मस्तिष्क में है वे त्याग देंगे न खुल जाए। ऐसा होना बहुत भयानक है। व्यवहार करने की कोई आवश्यकता नहीं हैं। शान्त रहते हुए इस उपलब्धि को प्राप्त करना और वास्तव में बहुत अच्छे लोग बन जाएंगे। हो हम सब इस कार्य को अत्यन्त रचनात्मक तरीके से कर सकते हैं । अतः सर्वप्रथम हमें अपने शिव तत्व को सकता है कि कुछ मामलों में ऐसा न हो। मैं नहीं कहती कि हर व्यक्ति के साथ सहजयोग सफल हो जाएगा। परन्तु सहजयोगी यदि ध्यान करें, स्थापित करना चाहिए-आनन्द, प्रेम एवं सत्य बहुत सी समस्याएं भी हैं क्योंकि लोग श्री शिव के ब्रह्माण्डीय स्वभाव को पूर्ण शान्ति की अवस्था में पूरी तरह से के तत्व को। इसमें समर्पित होकर बने रहें तो उन्हें कुछ नहीं हो सकता। सदैव उनकी रक्षा की जाती है और आप सब लोगों ने इस सुरक्षा को अनुभव कि लोग शिव तत्व और विष्णु तत्व पर झगड़ते किया है। परन्तु सर्वप्रथम आपको स्वयं पर हैं। शिव तत्व तक उठने के लिए आपके पास नहीं समझते। उदाहरण के रूप में, मैंने सुना है श्री विष्णु भी हैं और उनकी शक्ति भी है। दोनों भिन्न नहीं हैं, एक दूसरे के संपूरक हैं। फिर भी विश्वास करना होगा ओर सहजयोग के प्रति पूर्णतः समर्पित होना होगा। यहाँ पर उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिमी भारत तथा भिन्न देशों यदि आप इसी बात पर झगड़ते रहते हैं तो में से आए बहुत से सहजयोगी बैठे हुए हैं। हर दंश, नहीं समझ सकती। श्री विष्णु के बिना आप श्री हम कह सकते हैं आज इन आसुरी शक्तयों के शिव तक नहीं पहुँच सकते चंगुल में है हमें कुण्डलिनी जागृति के माध्यम से इन लोगों को श्रेष्ठ बनाना है। यह कार्य आप सकते। कुण्डलिनी भी सुषुम्ना मार्ग से उठती है। कर सकते हैं। आप इस कार्य को कर सकते हैं वह (कुण्डलिनी) शिव का तत्व और बिना विष्णु तत्व को समझे आप शिव तत्व पर नहीं बने रह है और विकास T6 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 9 & 10, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-18.txt सच्चाई को परख लें। सहजयोग को अत्यन्त प्रक्रिया में श्री विष्णु द्वारा बनाए गए मार्ग से बह सुगमता से सत्यापित किया जा सकता है और आप केवल सत्य को जानते हैं, वह सत्य जो उठती है। तो किस प्रकार आप दोनों में से एक मी। के बिना चल सकते हैं? एक मार्ग है तो दूसरा लक्ष्य। अत: मैं आशा करती हैं कि आप लोग पूर्ण है। यह ऐसा तत्व हैं जो इन दोनों शक्तियों की एकाकारिता के पश्चात् प्राप्त होता है। अत्यन्त हैरानी की बात है कि जब ये दोनों शक्तियाँ इस बात को समझते हैं कि आपके चक्रों का शुद्ध होना और उत्थान मार्ग का ठीक होना कितना महत्वपूर्ण है, तथा आपकी सुषुम्ना ना़ी मिलती हैं या जब आप विष्णु तत्व के माध्यम से शिव तत्व में पहुँचते हैं तब आप समझ पाते का स्वच्छ होना कितना आवश्यक है? क्योंकि हम मध्यमार्गी हैं हमें मध्य में मध्य मार्ग से हैं कि ये दोनों शक्तियाँ एक दूसरे के संपूरक चलना होगा तथा बाएं-दाएं न लुढ़ककर हैं और परस्पर सम्बन्धित हैं। एक प्रकार से इन सन्तुलन में रहना होगा। ये सन्तुलन बनाए रखते हुए तब तक हमें कार्य करते रहना होगा, जब तक अपने तालू भाग में नहीं कुण्डलिनी को इस मार्ग से गुजरने दें। इस मार्ग पहुँच जाते जहाँ सदाशिव विराजमान हैं। जो से जब कुण्डलिनी गुजरेगी तो आप आश्चर्यचकित कुछ मैं आपको बता रही हूँ आप इसे स्वयं देख हो जाएंगे कि एक ही कुण्डलिनी विष्णु मार्ग से सकते हैं। इसे भली-भांति जान लें। जब मैं गुजरती हुई श्री शिव के चरण कमलों में पहुँच दोनों शक्तियों में कोई अन्तर नहीं है। अत: अपनी सड़क-मध्य मार्ग को स्वच्छ रखें और आपको ये चीज बता रही हूँ तो आप इसकी रही है। परमात्मा आपको धन्य करें। 17 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 9 & 10. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-19.txt शिवरात्रि पूजा ा 5.3.2000 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का हिन्दी प्रवचरु शिवजी को आप लोग मानते हैं और उनकी बड़ी पूजा अर्चना होती है। लेकिन शिवजी के गुणधर्म आप जानते नहीं, इसलिए बहुत बार आपसे गलती हो जाती है। शिवजी का विशेष धीरे-2 वो नष्ट होते जाते हैं। धीरे-धीरे बो समाप्त होते जाते हैं। पर शिवजी जो है ये हमारी सांत्वना करने वाले हैं। हमको शांति देने वाले हैं और हमको आनंद देने वाले हैं। और जब स्वरूप जो है वो आनंद स्वरूप है। सुक्ष्म से शिवजी की शक्ति और विष्णु की शक्ति जैसे कि कुण्डलिनी और सुषुम्ना नाड़ी, इन दोनों का सूक्ष्म ये आनंद उनका सब तरफ छाया रहता है। लेकिन उसको आकलन करने की शक्ति जब मेल हो जाता है तब आपको केवल सत्य मिलता तक आपमें नहीं आएगी आप उसे देख नहीं है। केवल सत्य। जैसे की उस सत्य को कोई पाएंगे और समझ नहीं पाएंगे। वो हर चीज़ में आप किसी भी तरह से अस्वीकार्य नहीं कर तं सकते क्योंकि वो पूर्णतया सत्य है। आप अपने कहना चाहिए कि एक आनंदमय सृष्ट तैयार अंगुलियों पर अपने हाथ पर भी उसे जान सकते करते हैं और उस सृष्टि में विचरण करते हुए हैं। अनेक तरह के अनुभव आपको आएंगे आप देखते हैं कि आप भी कुछ और ही हो जिससे आप समझ जाएंगे कि एकदम सत्य जो विराजमान है। हर चीज़ में एक तरह से आनंदमय, गए। दूसरे लोगों को जिस चीज़ में आनंद आता है उसमें असत्य की छटा भी नहीं है। वो आपके है, वहुत से लोगों को अपने को नष्ट करने में ही आनंद आता है। उसको तरह-2 से गलत रास्ते अंदर ज्ञात होता है। उसे आप जान सकते हैं । समझ सकते हैं। यही कुण्डलिनी की देन है। यानि कुण्डलिनी जो की शिव की शक्ति है वो में ले जा कर लोग सोचते हैं कि गर हम आत्मा के विरोध में चलें तो हमें बड़ा सुख मिल जब आपके मध्य मार्ग से उठती है तो सारे ही जाएगा। लेकिन आत्मा जो स्वयं साक्षात् शिवजी चक्रों को आड़ोलित करती है. जागृत करती हैं, उनका आनंद एक और तरह का है और वो और समग्र करती है। उस शक्ति को संभालता ही हमारे हृदय को छू सकता है। जैसे बहुत से कौन है? तो कहें कि विष्णु ही संभालते हैं लोग हैं, दुनिया भर की चीजों में डूबे रहते हैं। क्योंकि वो विष्णु के मार्ग में चलती है और जा कर के ब्रह्मरंध्र में वो अपने दर्शन देती है। वहाँ कोई है शराब पियेगे, कुछ और अनीति का कार्य करेंगे। गलत सलत काम करते रहेंगे। उसी में वो पहुँच कर के ज्ञात होता है कि हाँ, अब इसकी सोचते हैं कि बड़ा सुख है। किन्तु है नहीं। जो यात्रा थी वो खत्म हो गई। सो आपस में T8ं चैतन्य लहरी खंड :XII अक : 9 & 10. 2000 10.2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-20.txt कितना सहयोग और कितनी समझदारी है। हम लोगों में आजकल एक बीमारी हो गई कि सब में हम नहीं पड़ेगे तो आपको सारी पूजाओं में लोग जो हैं पैसे के पीछे दौड़ रहे हैं। पैसे के जहाँ तक हो सके आना चाहिए। और आपको पीछे दौड़ने की बड़ी अजीब सी बीमारी हो गई ध्यान करना चाहिए। तब आप पूजा के अधिकारी है और उसके लिए हम कुछ भी कर सकते हैं। हैं सव लोग पूजा के अधिकारी नहीं होते। जो किसी भी चीज़ का अवलंबन करते हैं। सहज देखो पूजा करने निकल जाता है। गर आपका पतन की ओर नहीं जाएँगे, किसी भी गलत चीज़ योग में भी कुछ लोग ऐसे हैं। इसका कारण ये संबंध ही नहीं हुआ हैं तो आप क्या पूजा के है कि हमारे अंदर विकृति आ गई है । हमारे अधिकारी बन सकते हैं? लेकिन बहुत से लोग अंदर बहुत सारी विकृतियाँ आ गई हैं और इस विकृति की सफाई सिर्फ सकती है। पर अगर आप पूरी तरह से इस सोचते हैं इस मंदिर में दौड़, उस मन्दिर में दौड़ कुण्डलिनी ही कर इस गुरु के पास जा, उस के पास,..इससे कुछ नहीं होता। आप स्वयं ही अपने गुरु हैं और आप अपने को देखिए कि हमारे अंदर क्या कुण्डलिनी को आत्मसात नहीं करते हैं, ध्यान खराबी है। क्या हम अपने हृदय से पूरी तरह धारणा से उसका उत्थान पूरा नहीं करते तो आप उस दशा में पहुँच नहीं सकते जहाँ आपके अंदर से सहजयोग को अपनाते हैं या नहीं। मैं से प्रकटित जो शक्ति है वो सत्य, आनंदमय, देखती हूँ, बहुत से लोंग सहजयोग में आते हैं शांतिमय हो। उसमें दोष रह जाता है। जव और एक स्थान पर जा कर गिर जाते हैं, और जितने ऊँचे उठते हैं उतने गहरे गिर जाते हैं। कुंडलिनी उठती है तो बो सब सफाई करती है। शिवजी की शक्ति से पूरी चीज़ साफ होती जाती इसकी वजह ये है कि आपके अंदर जो छिपी है। तो भी कुछ लोग अपनी पुरानी आदतों से प्रवृत्तियाँ हैं वो किसी तरह से कार्यान्वित हो गई या अपनी गलत धारणाओं से पीड़ित होते हैं और आपका अंदाज ही नहीं रहा । इसलिए अपनी और वो लोग जो कुछ गलत, जो भी दुष्ट ओर ध्यान रखना चाहिए कि हम कोई ऐसे गलत बुरी बातें हैं उसके थोड़े से ही प्रलोभन में झंझट में तो नहीं फैस रहे हैं, कहीं हम ऐसा पड़ के फिर से गिर जाते हैं । वो हमारे अंदर एक छोटी सी भी अणु रेणु मात्र भी गर खराबी कोई हमारे अंदर ऐसी गंदी प्रवृत्तियाँ तो नहीं आ अंदर बची हो तो उसमें गिर करके हम वास्तव काम तो नहीं कर रहे हैं कि जो असहज हो। या रहीं कि हम पैसा कमाने के लिए सहज में आएँ में नष्ट हो जाते हैं। जो पूजा में आए और ध्यान करें उन लोगों में हमेशा प्रगति होती है। गर शांति आएँ। या कोई और गंदे काम करने के लिए सहज में इसके ओर अपनी दृष्टि होनी चाहिए। न हो तो कोई पेड़ भी नहीं बच सकता। कोई वो सबसे अच्छा है कि सहज के जो कार्यक्रम हैं है ध्यान, बढ़ नहीं सकता। कोई अंकुर भी नहीं चल और सहज में जिस तरह भी होता सकता। इसीलिए अगर आपके अंदर ये पूरा ध्येय न हो, ये आदर्श न हो कि हम कहीं भी धारणा आदि करके और आप अपने आपको पक्का एक व्यक्तित्व वनाएँ आपके अंदर वो 19 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 9 8 ।0.2000 कु 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-21.txt एक विशेष रूप का जिसको कहते हैं कि एक दिल खोल करके और प्रेमपूर्वक सहजयोग का व्यष्टि होती है और एक समष्टि होती है। व्यष्टि वरण करता है, इतना ही नहीं और दूसरों में बनाएँ आप, तो आप समष्टि में भी एक हो जागृति करता है क्योंकि आपको सहजयोगी इसीलिए जाएँगे। जो समष्टि में नहीं आते वो व्यष्टि में बनाया गया है कि आप सारे संसार में परिवर्तन ठीक नहीं हो सकते। ये मैंने देखा है। जो समष्टि लाएँ। सारे संसार में एक हलचल मचा करके एक ऐसा सुन्दर संसार बनाएँ। ऐसा अभिनव और विशेष ऐसा संसार बनना चाहिए। ये एक में आते हैं वहीं ऊँचे उठते हैं। थोड़़े दिन के लिए हो सकता है आपको कुछ फायदा हो जाए, कुछ पैसे मिल जाएँ, थोड़े आप ऊँचे उठ जाएँ, आपकी शुद्ध इच्छा होनी चाहिए। ये शुद्ध इच्छा होते ही आपकी कुण्डलिनी कार्य- प्रबल होने लोगों में ये बात होती है कि कितने लोगों को लगती है। बहुत सर्व साधारण लोग भी जब अपने अनुभव वताते हैं तो बहुत आश्चर्य लगता कुछ नाम हो जाए, सहज योग में खास करके हम control करते हैं । वो भी लेकिन हो जाता है। आपका व्यक्तित्व नहीं बढ़ा। इसमें वो गहनता है कि ये इनके अंदर कैसे बात आ गई, ये नहीं आई। आप वो ऊँचे दर्जे के सहज योगी इन्होंने कैसे जाना। सहजयोग में भी कुछ ऐसे लोग आ जाते हैं जो सता के लिए आते हैं। अहीं है। जब तक आप वो नहीं हैं तब तक कुछ आते हैं वो पैसे के लिए आते हैं। इन सब चीजों अपकी सब बातें बेकार हैं क्योंकि न जाने कब से मनुष्य का व्यक्तित्व बढता नहीं। उसके आप कगार से गिर जाएं, न जाने कब आपका सर्वनाश हो जाए। इसलिए बच के रहना चाहिए व्यक्तित्व में वो चमक नहीं आती क्योंकि जो प्रकाश आपको मिला है वो जब तक लोगों में और अपने को उस उच्चतर व्यक्तित्व में उसकी आप बाँटेगे नहीं और स्वयं अपने में भी आप ओर एक चीज़ आपको करनी चाहिए। गर आज प्रकाशित नहीं रहेंगे तब तक कोई सा भी कार्य तो कल हजारों लोगों को पार आप पार हैं कराईए तो आपकी शक्ति बढ़ेगी। नहीं तो जो संपन्न नहीं हो सकता। मतलब ये है कि कार्य थोड़ा सा पाया भी है वह भी खत्म हो यही है कि संसार को बदलना है, इस दुनिया को बदलना है, इसमें एक विशेष दुनिया बनानी है। और आप लोग एक विशेष लोग हैं जब ये चीज़ आपके ध्यान में आएगी कि कितने आप महत्वपूर्ण हैं तो फिर आप बहुत समझ से अपने जीवन को बनाएंगे। जाएगा। ये बड़ा वितचित्र सा एक नियम है। ऐसे किसी भी और चीज़ से इसकी तुलना नहीं हो सकती जैसे अगर एक दीप जलाइए ओर उससे दूसरे दीप जलाएँ तो भी यह नहीं कह सकते कि इस दीप की दीप्ति बढ़ जाएगी नहीं कह अनन्त आशीर्वाद सकते। पर सहज योग में मैंने देखा है जो जितने 20 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 9 & 10, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-22.txt परम् पूज्य माताजी श्री निर्मलादेवी का आान की भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों के सम्मुख प्रूवचन ৪.4.2000 सभी सत्य साधकों को मेरा प्रणाम। जैसा सेवाओं आदि के बारे में न सुना था। तो मैंने पूछा कहा जाता है आजकल घोर कलियुग है और सभी प्रकार के भयानक कृत्य हम देख सकते हैं कि बह विदेश सेवाएं क्या होती हैं? साथ ही साथ मैंने यह भी कहा कि मैं बाहर किसी भी और समाचार पत्रों में पढ़ सकते हैं। यह देश में नहीं जाने वाली। हाल ही में हम स्वतन्त्र हैं और हमें कार्य करना है। इस देश के लिए वास्तविकता है कि हम बहुत भयानक समय में हुए से गुजर रहे हैं। चहूँ ओर बहुत ही घटिया दर्जे हमें बहुत सा कार्य करना है। केवल इतना ही के लोग है जिनकी मूल्य प्रणाली अत्यन्त निकृष्ट नहीं मैंने यह भी महसूस किया कि लोक सेवाएं है। परन्तु बहुत समय पूर्व भविष्यवाणी की गई देश की रीढ़ हैं । इन्हीं को सारा झटका झेलना थी कि यही समय है जब हिमालय की पहाड़ियां पड़ता है. सारे कष्ट उठाने पड़ते हैं और सारें तथा दर्रा-कन्दराओं में साधना रत साधक सत्य बोझ उठाने पड़ते हैं। परन्तु देश का निर्माण करने तकी को प्राप्त कर सकेंगे। इस बात का वर्णन बहुत का महान उत्तरदायित्व इन्हीं का है। इसीलिए से महान ज्योतिषयों और सन्तों ने किया है। अत: मैंने अपना पूरा जोर लगा दिया कि मेरे पति किसी तरह भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में चुने एक प्रकार से हम सोभाग्यशाली वातावरण में रह रहे हैं। मैं कहना चाहूंगी कि भारतीय प्रशासनिक जाएं। इसके लिए हमें बहुत से धन का नुकसान सेवा भारतीय पुलिस सेवा तथा सभी लोक सेवाओं में कार्यरत अधिकारियों से मुझे अत्यन्त किसी भी स्थिति में मैं निर्वाह कर सकती प्रेम है क्योंकि मैं जानती हूैँ कि उन्हें क्या-क्या उठाना पड़ा. आदि आदि। मैंने कहा ठीक है परन्तु विदेश में रहकर वहाँ अपनी शक्ति को नष्ट करना मुझे ठीक नहीं लगा। हमारे यहाँ रहने सहना पड़ता है। उनका जीवन महान उथल-पुथल पूर्ण है तथा उनकी पत्नियों को भी बहुत कुछ के लिए यही समय बहुमूल्य है। इसी देशभक्ति बलिदान करना पड़ता है। परन्तु मुझे सदैव ऐसा की भावना के कारण ही अपनी जिम्मेदारी को प्रतीत हुआ मानो यह जीवन युद्ध में लड़ते हुए समझते हुए और यह समझते हुए कि इस देश एक सिपाही का जीवन हो। हम लोग यहां देश की सरकार के सशक्त आधार हम लोग हैं हम का निर्माण करने के लिए हैं। मेरे पति पहले लोक सेवा में लगे रह सकते हैं। यद्यपि भिन्न विदेश सेवाओं में अधिकारी थे। मैंने कभी इन राजनैतिक दल दंश की सरकार को चलाते हैं 21 चैतन्य लहरी खंड XII अंक : 9 & 10. 2000 পা e 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-23.txt है कि हम नहीं जानते फिर भी जनता की भिन्न प्रकार की समस्याओं करती है। मुख्य बात यह कि सोचने तथा भविष्य की योजनाओं आदि के का समाधान लोक सेवा अधिकारियों के माध्यम से ही होता है। मैंने सीखा कि लोक सेवा के लिए आवश्यक ऊर्जा कहां से आती है सहजयोग जीवन में महिलाओं को अत्यन्त सहनशील, के अनुसार शरीर के अन्तः स्थित एक सूक्ष्म त्यागशील तथा प्रसन्नचित्त होना पड़ता है। हम चक़र ही इस ऊर्जा का चक्र है और यही चक्र रत क्यों हैं? यह इस बात को हर समय खर्च होने वाले मस्तिष्क कोषाणुओं दर्शाता है। नि:सन्देह हम लोग विशेष हैं और की सृष्टि करता है । हर समय हम अपने मस्तिष्क पर जोर डाले रखते हैं और हर समय इसकी इस सेवा में हमारे पास विशेष शक्तियां हैं। परन्तु विना इन शक्ति का उपयोग करते हैं परन्तु यह नहीं जानते कि किस प्रकार इस शक्ति की कमी को दूर किया जा सकता है तथा यह कार्य केवल एक शक्तियों का दुरुपयोग किए आप क्या हैं? कुछ नहीं। इन शक्तियों का दुरुपयोग यदि आप करते हैं तो यह अनुचित है और यदि इनका उपरयोग नहीं करते तो आप शक्तिहीन हैं। वास्तव में यही स्थिति हैं। चक्र (दाया स्वाधिष्ठान) करता है। यही चक्र शरीर के बहुत से अन्य अवयवों की देखभाल परन्तु आनन्द, प्रसन्नता तथा सन्तोष का करता है। इस शक्ति का मस्तिष्क की ओर भविष्यवादी जीवन के लिए अनियन्त्रत बहाव ओरोत, तो केवल यह सत्य है कि आप अपने देश के लिए कार्य कर रहे हैं । देश भक्ति की यह बहुत सी समस्याएं खड़ी कर सकता है। न भावना जो मेंने अपने माता पिता और महात्मा केवल तनाव परन्तु बहुत सी अन्य समस्याएं भी ल गांधी से प्राप्त की थी उसके कारण मुझे लगा क्योंकि इस प्रकार के बहाव के कारण यह ऊर्जा कि हम सबका कर्त्तव्य है कि इस प्रकार कार्य समाप्त होने लगती है और जब हम संघर्ष की स्थिति में होते हैं तो यह शक्ति एक प्रकार से करें जो कि यह अत्यन्त रचनात्मक और सहायक हो। कठिन परिस्थितियों के कारण इस प्रकार के समाप्त होने लगती है और इस कारण हमारे कार्य करते हुए हमारे सम्मुख बहुत सी समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। मैं आपसे इन्हीं के बारे में सामने लगे शरीर यन्त्र के नक्शे पर आप स्पष्ट अन्दर भयानक असन्तुलन उत्पन्न हो सकते हैं। देख सकते हैं कि हमारे स्वचालित नाड़ी तन्त्र के बात करने वाली हूँ। किसी भी चीज़ को जब हम देखते हैं तो तीन मार्ग हैं । हम या तो बाई ओर होते हैं या दाई हम प्रतिक्रिया करते हैं। यह प्रतिक्रिया हमारे ओर। प्राय: हम मध्य में नहीं रह पाते। आप यदि अधिक सोचते बहुत अधिक भविष्यवादी है बहुत अन्दर दो प्रकार की समस्याएं उत्पन्न कर सकती है एक बन्धन (conditioning) की और दूसरी हैं, बहुत अधिक कार्य करते हैं तो आक्रामक (Right Sided) हो जाते हैं। और यह समझ अहम् (Ego) की। दोनों ही स्थितियां अत्यन्त लेना अत्यन्त आवश्यक है कि एसी स्थिति में कष्टकर हैं और हमें अत्यन्त अधीर और तनावमय 22 चैतन्य लहरी ॥खंड : XII अंक : 98 10. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-24.txt जब व्यक्ति बहुत अधिक दाई ओर को रहता है तो उसके मस्तिष्क के बाएं हिस्से में हम अपना सन्तुलन खोने लगते हैं। पहली हानि जो व्यक्ति को होती है वह होने वाले दुष्प्रभाव के कारण इसे पैरिफेरिया रोग है। यही चक्र क्योंकि लिवर की भी देखभाल हो सकता है जिसमें उसके हाथ और टांगे भी यह है कि उसका जिगर (Liver) खराब हो जाता करने वाला है इसलिए उस व्यक्ति का जिगर बिल्कुल मृतसम हो सकती हैं। ऐसे व्यक्ति को गम्भीर पक्षाघात भी हो सकता है जिसके कारण अनियन्त्रित हो जाता है। जिगर में उत्पन्न होने वाली गर्मी ऊपर को जाने लगती है इसलिए उसके शरीर का पूरा दाया हाथ प्रभावित हो आदमी को दमा रोग हो सकता है, बहुत सकता है-मुँह के क्षेत्र से लेकर हाथ, टांगे और भयंकर प्रकार का रोग जिसके लिए कहा सभी अवयव क्षतिग्रस्त हो सकते हैं अपने को जाता है कि वह लाइलाज है। परन्तु इसका सन्तुलित करने की चिन्ता न करने वाले लोग इलाज हो सकता है। प्रभावित व्यक्ति को की यह रोग भी प्रतीक्षा करता है। यह सब शरीर यदि आप सन्तुलित कर लें तो आसानी से के ऊपर के हिस्से के गम्भीर रोग हैं। शरीर के नीचे के हिस्से में, जब यह गर्मी अग्नाश्य की दमा रोग ठीक किया जा सकता है। जिगर की ता। रोग ओर बढ़ती है तो इसे अशक्त करके शक्कर गर्मी यदि ऊपर को जाने से यदि दमा नहीं होता का कारण बनती है। तत्पश्चात् थोड़ी सी और नीचे प्लीहा को प्रभावित करती है और व्यक्ति तो यह गर्मी हृदय को प्रभावित करती है। किसी व्यक्ति का हृदय यदि जन्म से ही खराब हो तो को रक्त कैन्सर भी हो सकता है। सहजयोग द्वारा वह बात तो समझ में आती है परन्तु 21-22 निसन्देह रक्त कैन्सर ठीक हुआ है। रक्त केन्सर वर्ष के मद्यपान करने वाले जवान टेनिस खिलाड़ी जिगर ठीक किया जाता सकता है। इसके पश्चात् को जान लेवा हृदयाघात हो जाना समझ में नहीं से निकली हुई यह गर्मी गुर्दों की समस्या उत्पन्न आता। शनेः शनैः इसी प्रकार से कार्यरत रहना करती हैं। गुर्दे बुरी तरह से प्रभावित हो जाते हैं और व्यक्ति इनके प्रतिरोपण (Transplantation) गहन हृदयाघात की ओर ले जा सकता है। ऐसा किसी भी व्यक्ति के साथ हो सकता है। परन्तु तो यह विशेष की कोशिश करता है, परन्तु इससे भी कोई जब वृद्धावस्था आरम्भ होती है रूप से अपनी शक्ति का प्रदर्शन करता है। तो अधिक लाभ नहीं होता यही गर्मी यदि आपके उदर को प्रभावित कर दें तो आप कब्ज रोग के यह एक आम रोग है। जब हृदय रोग हो जाता शिकार हो जाते हैं और सदैव गुस्से से भरे रहते है तो व्यक्ति गति निर्धारक यन्त्र आदि लगवाने में लगा रहता है। इसकी अपेक्षा यदि आप सहजयोग को अपना लें तो आपको अपने हृदय हैं। दाई और के. आक्रामक व्यक्ति को यह सब रोग हो सकते है और कोई उसकी सहायता भी की चिन्ता नहीं करनी पड़ेगी। हृदय बहुत ही नहीं कर पाता क्योंकि हर समय वह योजनाएं अच्छी स्थिति में रहेगा। वनाने तथा बौद्धिक कार्यों को करने में ही व्यस्त ाी 23 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 9 & 10. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-25.txt होता है। उसके मस्तिष्क को बिल्कुल आराम अचानक किस प्रकार यह घटित हो गया! बहुत नहीं होता। परिणामस्वरूप वह चिडचिड़ा हो सी असम्भव समस्याओं के समाधान आपको जाता है और अपनी इच्छा के विरूद्ध वह बहुत न प्राप्त हो जाते हैं। आपका स्वभाव बदल जाता है। हैं सी बातें कहता है। इन सारी चीजों से पता चलता जिसका अर्थ यह आप अत्यन्त शान्त हो जाते हैं कि दाई ओर की समस्या बहुत गम्भीर समस्या है कि आपमें साक्षी अवस्था विकसित हो गई है क्योंकि आप मस्तिष्क से ऊपर उठ चुके हैं। है जिसका सामना हम सबको करना है। इसका स्रोत आपकी प्रतिक्रिया है। अत: हमारे मस्तिष्क आप प्रतिक्रिया करना बन्द कर देते हैं। चीजों के कारण ही प्रतिक्रियाएं होती हैं। आपका मस्तिष्क यदि प्रतिक्रियाशील है तो इसे प्रतिक्रिया करने से को मात्र देखते हैं और आपका चित्त आश्चर्यजनक रूप से अत्यन्त शक्तिशाली हो जाता है। यह सब किस प्रकार रोका जा सकता है? आइंस्टाइन बता गए हैं कि सापेक्षता (Relativity) के सिद्धांत की चीजें आपमें हैं। केवल सोचें कि हमें थोडा सा प्रकाश प्राप्त करना है, योग प्राप्त करना है। खोज में कार्य करते हुए थक कर वह बगीचे में यहां बोल रही हूँ। इस यन्त्र ( माइक) का अपने कम चले गए और साबुन के बुलबुलों से खेलने लगे। वे कहते हैं कि अचानक किसी अज्ञात स्थान से बैज्ञानिक वर्णन उनके मस्तिष्क में आ गया । शक्ति स्रोत से जुड़ा होना आवश्यक है। स्रोत से जुड़े बगैर यह बेकार है। इसी प्रकार हमें भी स्रोत से जुड़ा होना चाहिए। हमें निर्णय करना हैं कि हमें परमेश्वरी शक्ति से सम्बन्ध बनाना पूरा इस स्थान को उन्होंने ऐंठन क्षेत्र (Torsion Area) का नाम दिया। हम सबमें यह ऐंउन क्षेत्र है। जो चाहिए। एक बार जब आप उस परमेश्वरी शक्ति सूक्ष्म ऊर्जा हमारे चहूँ और हैं, हमारी देखभाल से जुड़ जाएंगे तो ऐसा परिवर्तन आएगा कि आपके हाथ बोलने लगेंगे। कुरान में लिखा है कि करती है उसे मैं दिव्य प्रेम कहती हूँ। यह हम स्वयं को सन्तुलित करने में सम्पन्न करने में कयामा के समय आपके हाथ बोलेंगे। अत: में और पूर्ण ज्ञान देने में सापेक्ष ज्ञान (Relative कहती हूँ कि मैं केवल मुस्लिम नियमों को Knowledge) में, हमारी हर तरह से सहायता करती है। हम लोग ज्ञान मार्ग की बात कर रहे मानूंगी कि हाथ बोल रहे हैं अर्थात् अपने हाथों पर, पांचों अंगुलियों के सिरों पर और दो अन्य पूर्ण ज्ञान की बात। अब यह एंठन क्षेत्र बिन्दुओं पर आप अपने चक्रों काो महसूस कर ( Torsion Area) अद्भुत चीज है । कुण्डलिनी सकते हैं तत्पश्चात दूसरे के चक्रों को भी आप जब उठती है तो बह न केवल इन सभी छह महसूस कर सकते हैं क्योंकि आप सामूहिक मानव बन चुके हैं। अन्य कौन है। सभी को आप अपनी अंगुलियों के सिरों पर महसूस कर परन्तु यह आपको आइन्सटाइन के ऐंठन क्षेत्र से सकते हैं । कोई व्यक्ति देखने में ठीक ठाक और सामान्य लगेगा, परन्तु आप महसूस करेंगे कि चक्रों का पोषण करती है. यह उन्हें प्रकाश रजित करती है और उनका समन्वयन करती है, जोड़ती भी है। आप हैरान हो जाते हैं कि यह 24 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 9 & I0, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-26.txt नहीं किया हैं । मैंने केवल उनकी चैंतन्य लहरियों को महसूस किया। अपने पति को मैंने बताया वह ठीक नहीं है। उसे कोई भयानक समस्या है । लोगों की समस्या को आप अपनी अंगुलियों के कि आप लोग इनके साथ अन्याय कर रहे हैं। य सिरों पर महसूस कर सकंगे। किसी तरह से यदि विल्कुल ठीक हैं। वे कहने लगे कि तुम दखलंदाजी आप इस कला में निपुणता प्राप्त कर लें. ज्यादा से ज्यादा एक महीना इस कार्य में लगेगा. तो न करो। मैंने कहा में दखलंदाजी नहीं कर रही आप अन्य लोगों की कुण्डलिनी उठा सकते हैं। हूँ, पर मैं साबित कर दूँगी कि यह लड़कियाँ निर्दोष हैं और अवोध और सीधी-सादी है। आप इसी प्रकार यह लोग कहते हैं कि सहजयोग 86 देशों में फैल चुका है निसन्देहः यह 86 देशों में फैल चुका है, यद्यपि मैं इन सभी देशों में नहीं बेकार ही इन्हें बुरा समझ रहे हैं। मैं उनके साथ गई। इस समय हमारे पास केवल एक ही कार ह होती थी तो में रिक्शे में बैठकर उस स्थान तक गई हूँ। इन सब देशों की यात्रा मेंने नहीं की है। अधिक से अधिक 20 देशों में गई होऊंगी। गई जहाँ एक व्यक्ति ने लिखा था कि वे बुरी औरतें हैं। मैंने वहां जाकर उससे पूछा कि क्या परन्तु इन देशों के जिन लोगों को साक्षात्कार में यही दो लड़कियाँ आपके ऊपर वाले फ्लैट प्राप्त हुआ उन्होंने जगह -2 जाकर अन्य लोगों रहती है? क्या इन्होंने ही यह सब किया है? को साक्षात्कार दिया। अफ्रीका में बैनिन नामक देश है उसमें 7000 सहजयोगी है। आप इसकी कहने लगा विल्कुल ही नहीं, वे तो कोई और कल्पना करें। वे सभी मुसलमान थे और सभी थी। यह नहीं थी। वापस आकर मैंने उन्हें (अपने पति को) बताया कि देखो मेंने इन्हें को साक्षात्कार प्राप्त हो गया है। इसको अर्थ यह नहीं है कि वे हिन्दू या मुसलमान नहीं रहे। चैतन्य लहरियों पर परखा था और यह बुरी आत्मसाक्षात्कार के बाद भी आप वहीं हैं। परन्तु महिलाएं नहीं हो सकती। तो कभी कभी हम उन लोगों को भी दण्डित करते हैं, उन पर क्रोध आप जानते हैं कि आपकों उस धर्म का सार करते हैं जो इस प्रकार के व्यवहार के योग्य नहीं प्राप्त हो गया है। अत: आप सभी धर्मों, अवतरणों होते क्योंकि हम उन्हें समझ नहीं पाते। गलत रास्ते पर भी हम चलते हैं और बहुत सी चीजों का सम्मान करते हैं क्योंकि अब आपको धर्म के विषय में सच्चा ज्ञान प्राप्त है। अपने विषय में में खो जाते हैं क्योंकि हमें ठीक ज्ञान नहीं होता। और पूरे ब्रह्माण्ड के विषय में सच्चा ज्ञान प्राप्त है। इसे आप अंगुलियों के सिरों पर महसूस कर अब कुण्डलिनी के उत्थान की घटना के बाद आप शारीरिक रूप से तो ठीक हो जाते हैं। सकते हैं। उदाहरण के रूप में यदि एक आदमी आता है। मेरे पति जब नगर दण्डाधिकारी थे तो शारीरिक चीजों की आपको चिन्ता नहीं रहती। दो महिलाएं पिछले दरवाजे से मेरे पास आईं वास्तव में लोगों के शारीरिक कष्ट दूर करने में और कहने लगीं कि पुलिस के यह लोग हमें कोई परेशानी नहीं है। हमारा एक सहज अस्पताल कष्ट दे रहे हैं। हम अच्छी औरतें हैं। हमने कुछ है जिसमें कमरों के किराए के अतिरिक्त कुछ 25 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 9 & 10, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-27.txt है। ऐसा नहीं है कि अन्य लोगों को इसका पता भी नहीं लिपा जाता और कमरे भी कभी-2 बहुत अच्छे होते हैं। वहां डाक्टर भी नि:शुल्क न था। वे भी इसे जानते थे। बोलीविया में, मैं कार्य करते हैं। इतनी अच्छी तरह से चौजों का हैरान थी, जब लोगों ने मुझे चक्रों के विषय में कार्यान्वित करते हैं कि बहुत से लोग रोगमुक्त बताया," हम सभी कुछ जानते हैं परन्तु कुण्डलिनी हो चुके हैं। बहुत से लोग विश्वभर से बहां आ रहे हैं। ही ऊंचे पद के लोग वहां आते हैं भी उन्हें ज्ञान था। मैंने सोचा कि पता तो लगाऊ उठाता हमें नहीं आता"। कुण्डलिनी शब्द का बहुत और रोग से मुक्ति पा लेते हैं। नि:सहाय भावनाओं कि किसने इन्हें इसके विषय में बताया है। उन्होंने बताया कि बहुत समय पूर्व भारत से दो के साथ-साथ यह सब कार्य नहीं करना होता। उनके रोगों को जानने के लिए रोग निदान के लिए उन्हें नहीं भेजा जाता। आम चिकित्सा है कि मछेन्द्रनाथ और गोरखनाथ यहाँ आए हों। सन्त यहाँ पर आए थे। मैंने सोचा कि हो सकता प्रणाली में तो रोग निदान करवाते करवाते रोगी वे यूक्रेन भी गए थे। संभवत: उन्होंने वहां के आधा मर जाता है। सहजयोग में अंगुलियों लोगों को कुण्डलिनी और इसकी जागृति के के सिरों पर आप जान जाते हैं कि व्यक्ति में विषय में बताया होगा। परन्तु उन्होंने बताया कि क्या कमी है। उसे बताने की कोई आवश्यकता कुण्डलिनी जागृति के विषय में कुछ नहीं जानते। नहीं कि उसमें क्या कमी है। इस कार्य को करने और कार्यान्वित करने का ज्ञान आपको है। आज हो जाएगा तो आप किसी की भी कुण्डलिनी एक बार सहजयोग के विषय में यह ज्ञान प्राप्त उठा सकेंगे और उसे रोग मुक्त कर सकेंगे जहां ही मेरे से आयु में बहुत छोटा मित्र हमें मिलने तक शरीर और मस्तिष्क का सम्बन्ध है आप जो को आया। वह बहुत ही वृद्ध और जीर्ण दिखाई दे रहा था। उसने बताया कि उसे पक्षाघात हो चाहे कर सकते हैं। मैंने देखा है कि तनाव मानव का मानसिक विकार है, जिसमें व्यक्ति तनावग्रस्त गया था। मैंने कहा कैसे? वह भी वैसा ही और क्रोधग्रस्त हा जाता है या बिल्कुल चुप हो है। व्यक्ति था जो जरूरत से ज्यादा परिश्रम किया करता था। उसकी कुण्डलिनी उठाने के 20 मिनट पश्चात् उसका चेहरा ठीक हो गया और पूरा ज्ञान है। आपके मस्तिष्क की प्रतिक्रिया ही इस स्थिति को संभालने का आपको जाता इस स्थिति का कारण बनती है। परन्तु आप यदि हाथ ठोक हो गए। कहने लगा कि छड़ी के मस्तिष्क से परे चले जाएं तो, आप हैरान होंगे सहारे के विना में चल नहीं सकता। मैंने कहा आपको आने वाले विचार पूर्ण होंगे और आपको ठीक है अब आप छड़ी के विना चलो, वह चलने लगा। जो लोग पहियों वाली कुर्सियों पर सूझने वाले समाधान भी पूर्ण होंगे तथा आपके आते हैं मैंने उन्हें दौड़ते हुए देखा है। हैरानी की विरोधी लोग भी आपके मित्र बन जाएंगे। जो बात है किस प्रकार यह सब कार्यान्वित होता है। लोग आपको कष्ट दे रहे हैं वे भी आपके प्रति हमें पता होना चाहिए कि यह हमारे देश का ज्ञान मधुर हो जाएंगे। यह मानव का अन्तपरिवर्तन 26 चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 9 8 ।0. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-28.txt है-अन्त्तपरिवर्तन। कहा जाता है कि हमारे षडरिपु (Transformation) है। उस दिन मेरे पास एक संवाददाता आए जिनका नाम श्री अब्बास था। है-काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, मत्सर। परन्तु आजकल तो मुझे लगता है कि इनसे भी अधिक रिपु हैं। मान लेते हैं कि यह छः ही हैं प्रेम की मेरे प्रति वे अत्यन्त आक्रामक थे। मुझसे उन्होंने अत्यन्त अटपटे प्रश्न पूछे। कहने लगे कि" आपने कैसे जाना कि आप दिव्य (Divine) है?" मैंने इस परमेश्वरी शक्ति से जब आपका योग हो जाता है तो यह सब चौजें बेकार लगने लगती है कहा "आपने कैसे जाना कि आप मानव हैं? वह खीझ गए। मैंने कहा देखो मैं दिव्य इसलिए हूँ और छूट जाती हैं। न कोई ईर्ष्या रहती है, न कि मैं प्रतिक्रिया नहीं करती"। मैं चीजों को कोई स्पर्धा। हमारे बहुत से लोग विदेश सेवाओं देखा करती थी और देखते हुए मैंने पाया कि मैं में हैं और वे हमें बताते हैं कि श्रीमाताजी लोग हमसे बहुत प्रसन्न हैं। मैंने पूछा क्यों? क्योंकि हम स्पर्धा नहीं करते। हम सब लोग राजदूत अन्य लोगों से भिन्न हूँ। परन्तु इन बातों का दिखावा करना मुझे अच्छा नहीं लगता था। इस आदि बन रहे हैं पर कोई हमसे नाराज नहीं है बात को कोई भी नहीं समझना चाहता। वास्तविकता कर्योंकि हममें स्पर्धा का अभाव है। व्यक्ति जब करनी पड़ती है। सहजयोग आपको प्रमाणित स्पर्धा के बारे में सोचता है तो गलत मार्ग पर जा बताने का यही स्वोत्तम उपाय है। कहने लगा सकता है-किसी भी प्रकार की अन्धेरी गलियों कि किस प्रकार में यह प्रमाण पा सकता हूँ। मैंने में और बिल्कुल भिन्न रास्तों पर। आत्मसाक्षात्कार कहा कि मुझे किसी प्रकार के रूढ़िवाद पर के पश्चात आप मध्य में होते हैं और आपमें पूर्ण सन्तुलन होता है और सभी प्रकार की लालसाएं विश्वास नहीं है. किसी भी प्रकार की रूढ़िवादिता पर विश्वास न करें। परन्तु स्वयं पर विश्वास अवश्य करें। कहने लगा निसन्देह। और उसी आदि आपको छोड़ देती है। व्यर्थ की चीजों के समय उसकी कुण्डलिनी एकदम से कहने लगा कि मेरी अंगुलियों के सिरों से यह शोहरत के पीछे भागे फिरते हैं । स्वतः ही इतने शीतल लहरियां कैसे निकल रही हैं? यह सबको सन्तुलित हो जाते हैं कि चिन्ता ही नहीं रहती पीछे आप नहीं भटकते फिरते और न ही अपनी चढ़ गयी। दिखाई दे रहा है? मैंने कहा कि इन शीतल कि क्या हो रहा है तथा घटनाओं का भय भी लहरियों को आपने तालू भाग पर भी महसूस नहीं रहता। उदाहरण के रूप में यदि आप जल करो। वह पूर्णतः परिवर्तित हो चुका था। कहने में खड़े हों तो आपको लहरों का डर रहता है। लगा कि जो भी प्रश्न मैंने आपसे पूछे थे मैं परन्तु यदि आप नाव में बैठ जाएं तो आप लहरों उनहें छापूंगा नहीं। यह सब बेवकूफी थी (हम बेवकूफ थे)। अब मैं विवेकशील मानव बन गया हूँ। वास्तव में यह कृण्डलिनी परिवर्तन करती सहजयोग कार्य करता है। जैसा मैंने कहा आप का आनन्द भी ले सकते हैं। किन्तु यदि आप तैरना सीख ले तो जल में कूदकर आप लोगों को बचा भी सकते हैं। इसी प्रकार सहज ढंग से 27 चैतन्य लहरी ॥खंड : XII अंक : 9.8 10. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-29.txt लोगों का मुझे बहुत ध्यान रहता है, सदेव से हमने मातृप्रेम के सन्देश के कभी नहीं समझा। मैं समझती हूँ कि मातृप्रेम बहुत से कार्य करता है और यही कारण है कि आप भी सुहृदय बन था." परन्तु मेरे पति के कठीर नियमों के कारण कि उनके दफ्तर के लोगों को न छुआ जाए. मैं न तो उनसे मिल सकी और न जाते हैं। में नहीं समझ पाती कि कोई मानव बातचीत कर किस प्रकार किसी दीन दुखी, गरीब के प्रति क्रूर सकी। किसी चपरासी से भी नहीं, आई.ए.एस. हो सकता है! आपके अन्तःस्थित प्रेम समुद्र की की तो बात ही कुछ और थी। मैंने कहा ठीक है तरह से उमड़ूने लगता है और आप अत्यन्त उदार व्यक्ति बन जाते हैं। मैंने देखा है कि सभी में कोई ओर क्षेत्र चुन लूगी। परन्तु सौभाग्य से वे अब सेवानिवृत्त हो गए हैं और आश्चर्यजनक उदार लोगों की परमात्मा देखभाल करता है। मैं रूप से में अब आप लोगों से बातचीत करने को अपनी पिताजी का उदाहरण दूंगी। वो भी अत्यन्त स्वतनत्त्र हूँ। अन्यथा वे मुझे कभी आपसे बातचीत उदार व्यक्ति थे। वे सदैव कहा करते थे कि घर करने की आज्ञा न देते। उनका कहना था कि सदैव दूरी बनाकर रखना आवश्यक है। पार्टियों के दरवाजे, खिड़कियाँ हमेशा खुले रखो। हम यदि उनसे कहते कि चोर घुस आएंगे तो वे आदि में जाकर भी लोगों को चीजों के प्रति वाद विवाद करते देख मैं मुस्कराती थी और चुप रहती थी। इसलिए लोगों ने सोचा कि संभवत: मैं अंग्रेजी भाषा नहीं जानती या अपनी अज्ञनता के एक दिन एक चोर घर में घुस आया और कहते कि उन्हें आने दो। संगीत प्रेमी होने के कारण उन्होंने एक बड़ा ग्रामोफोन रखा हुआ था। कारण कुछ नहीं बोलती। परन्तु वे सभी लोग ग्रामोफोन उठा कर ले गया। अगले दिन पिताजी गम्भीर मुद्रा में बैठे हुए थे मेरी माताजी ने पूछा करने अब ध्यान धारणा कर रहे हैं। ध्यान-धारणा के लिए आपको स्वयं को फॉँसी पर नहीं कि क्या उन्हें ग्रामोफोन जाने का अफसोस हो लटकाना। आपके पास बहुत समय नहीं है। सोने रहा है? कहने लगे नहीं, नहीं, ग्रामोफोन तो दूसरा भी खरीद सकता हूँ। यह व्यक्ति जो से दस मिनट पूर्व आप ध्यान-धारणा कर सकते का हैं, आपको सुखद प्रतीत होगा। आपको लगेगा संगीत का गुण-ग्राही प्रतीत होता है, केवल कि आप अपनी समस्याओं से मुक्त हो गए हैं। ग्रामोफोन ही ले गया है, रिकार्ड तो वो ले ही विचार कुछ भी नहीं हैं। निर्विचार चेतना के नहीं गया। बजाएगा क्या? मेरी माताजी ने कहा कि आप अखवार में विज्ञापन दे दें जो व्यक्ति ग्रामोफोन ले गया है वो रिकार्ड भी ले जाए। कहने का मतलब यह है दुनिया में इतने उदार लोग भी हैं। मैंने बहुत से उदार लोग देखे हैं और विषय में मनोवैज्ञानिक ए.हयूम आपको सब वता चुके हैं। ए.हयूम जो फ्रायड के शिष्य थे और जिन्होंने फ्रायड के मातरति (मातृमनोग्रंथी) के सिद्धांत के विरूद्ध विद्रोह किया। गांधी जी ने जब स्वतन्त्रता संग्राम की घोषणा की आप जानते हैं कि हम भारतीय शक्ति के थी तब वे न केवल जेल गए परन्तु सर्वस्व त्याग पुजारी हैं। आजकल नवरात्रे चल रहे हैं परन्तु 28 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 9& 10, 2000 টি 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-30.txt लोगों की देखभाल की और लोगों के लिए इतना दिया। हम लोग बहुत बड़े बड़े घरों में रहते थे । तत्पश्चात् हम झापड़ियों में चले गए। परन्तु उन कार्य किया। आपको यदि लोगों के प्रति प्रेम नहीं झोपड़ियों का भी हमने आनन्द लिया क्योंकि है तो आप अपने विषय में और फिजूल की आनन्द तो हमारी राष्ट्रभक्ति का था और इंस चीजों में चिन्तित रहेंगे। आइ.ए.एस. महिलाओं 'भावना ने उस समय बहुत सहायता की। लोगों को भी मेरा हार्दिक धन्यवाद कि उन्होंने मुझे यहां निरमन्त्रित किया। मैं आप लांगों को बताना की इस भावना के कारण महात्मा गांधी को चाहूंगी कि महिलाओं को अपने पतियों की सहायता करनी ही हांती है। उन्हें ये समझने का की नई नई वस्तुएं आ रही हैं ठीक है इसमें प्रयत्न करना चाहिए कि वे शक्ति हैं और ये कोई बुराई नहीं है। ये आनी ही चाहिए। हमें शक्ति उन्हें पुरुषों का देनी चाहिए ताकि वे सम्पन्न होना है और हमारे देश को सम्पन्न होना बेहतर कार्य कर सकें। कभी-कभी तो मुझे बड़े है और मैं मानती हूँ हमारे देश को अधिक से अजीबोगरीब अनुभव होते हैं। ये मैं आपको अधिक वस्तुएं बनानी हैं। परन्तु इन चौजों के सुनाना चाहुँगी अत्यन्त रोचक बात है कि आरम्भ पीछे पीछे भटकना नहीं है। एक अन्य प्रकार की में मुझे आपकी वरिष्ठता और कनिष्ठता के बारे भी भटकन खड़ी हो जाती है कि मैं इस महिला में बिल्कुल भी ज्ञान न था। इस बात का मुझे बहुत सहायता प्राप्त हुई। आजकल पश्चिमी देशों से भिन्न प्रकार को क्या दूँ? इन महाशय के लिए मैं क्या करू? कहने से अभिप्राय कि चिन्ता एक दूसरा रूप बिल्कुल भी ज्ञान न था। शास्त्री जी के साथ कार्य करने के लिए मेरे पति दिल्ली आए। एक धारण कर लेती है कि क्या किया जाए? ऐसी पार्टी में विश्वविद्यालय की मेरी एक मित्र मुझे क्या चीज दी जाए उन्हें ये न लगे कि रिश्वत दी मिली उसने मुझसे पूछा," अरे! आप कैसी हैं?" जा रही है, क्योंकि कभी कभी सरकारी नौकर मैंने कहा" मेरे पति यहां आ गए हैं", वो क्या करते हैं?" मैंने कहा वह सरकारी नौकर हैं.. उन्हें देते हैं तो उन्हें लगता है कि रिश्वत दी जा यहाँ पर सभी सरकारी नौकर हैं परन्तु वे किस इतने सख्त होते हैं कि कोई भी चीज जब आप रही है। मैंने कहा ये रिश्वत नहीं है। प्रेम के पद पर हैं?" मैंने उत्तर दिया." मैं नहीं जानती, कारण ये चीज आपको दे रही थी। क्या आप परन्तु वे यहीं किसी पद पर हैं।" तुम रहती इसे ले लेंगे? बड़ी कठिनाई से वे लोग किसी कहाँ हो? मैंने बताया कि मे। मीना बाग में रहती चीज़ को स्वीकार करते हैं । परन्तु प्रेम की हूँ। हा! मीना बाग में आपके पति क्या करते हैं ? अभिव्यक्ति का भी तो यही मार्ग है। अपने प्रेम तुम्हें तो कहीं बेहतर पति मिल सकते थे तुमने के कारण आप बहुत लोकप्रिय हो जाएंगे अपने ऐसे आदमी से विवाह क्यों किया जो आपको दफ्तर में, अपने कार्य पर और पूरे देश में लोग मीना बाग में रखते हैं। बाबा। मैं नहीं जानती कि आपको याद करेंगे कि यही व्यक्ति था जिसने मीना बाग इतनी बुरी जगह है। मैंने उसे बताया ा 29 चैतन्य लहरी ॥खंड : XII अक : 9 & 10. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-31.txt कि शास्त्री जी ने हमें यहाँ आनं को कहा क्योंकि चीज़ों की वात करती थीं। कभी समाज की बात नहीं करती थी। एक अजीबोगरीब वातावरण था। और कहीं जगह न थी तो उन्होंने हमें मीना बाग अंग्रेजों ने अपनी विरासत हमारे सिर पर छोड़ दी थी और हम उसी में मस्त थे। लोगों के मस्तिष्क में जगह दे दी। जिस प्रकार से वो कह रही थीं मुझे लगा मीना बाग बहुत बुरी जगह थी। तब वह कहने लगी ये जो महाशय आ रहे हैं ये में अंग्रेजों से बेहतर कुछ अन्य न आता था। लम्बे व्यक्ति........तुम नहीं जानती ये बहुत महत्वपूर्ण हैं। तुम किसी तरह से इनसे बातचीत कर लो ये तुम्हारे पति को बहुत अच्छी नौकरी नेत्रहीन लोगों की संस्था की में अध्यक्ष थी। इस संस्था का नाम था 'नेत्रहीन समाज के मित्र'। इस संस्था के लिए हमें एक कार्यक्रम किया जिसमें भी दिलवा दंगे और बहुत अच्छा घर भी और नेत्रहीन लोगों ने ही अभिनय किया। गवर्नर जो व्यक्ति आ रहे थे वो मेरे पति थे। कहने साहब ने आना था और जब वे आए तो आयोजकों इन्हें जानती हो? मैंने कहा, हाँ, कंसे? ने जानना चाहा कि उनकी समीप वाली कुर्सी लगी, तुम ये मेरे पति हैं। उसके बाद उसने मुझसे बात नहीं पर कौन बैठेगा संस्था के अध्यक्ष होने के नाते केवल मुझको वहाँ बैठने के लिए कहा जानें की। कभी नहीं कहा कि मीना बाग में रहना इतना बुरा है आदि आदि। तो जो ज्ञान सरकारी घरों के विषयों में, सरकारी सम्पदा अधिकारियों वाला था। परन्तु इस बात को लेकर वे लोग परस्पर लड़ने लगे। मुझे बहुत घवराहट हुई। मैंने सोचा कि इसे मज़ाक में ले लेना चाहिए। इस को भी नहीं था वह उस महिला को था कि फलां जगह आइ.ए.एस. अधिकारियों के लिए हैं समेस्या के समाधान का यही सर्वात्तम तरीका है फलां जगह नहीं। क्या आप इस प्रकार को तो मेंने कहा कि ग्वनर के सिर पर हम एक फट्टा रख लेंगे और चिड़ियों की तरह से उस पर बैठ जाएंगे। तुरन्त उनका क्रोध शान्त हो गया और सभी कुछ ठीक हो गया। मेरा कहने से कल्पना करते हैं? अत: महिलाओं की इस प्रकार की लिप्सा व्यर्थ है। मुझे ये जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि अभिप्राय ये है कि महिलाओं का स्वभाव परिवर्तित आपकी यह संस्था इतना अच्छा और रचनात्मक कार्य कर रही हैं। वास्तव में मुझे बहुत खुशी हो गया है। ये बात आप स्पष्ट देख सकती हैं। हुई। मेरे पति कहते हैं कि तुम समाजवादी हो चाहे महिलाएं आत्मकेन्द्रत प्रतीत हो फिर भी क्योंकि मैं सदा सामाजिक समस्याओं पर ही मुझे प्रतीत होता है कि वे सामाजिक भी हैं। वे सोचती रहती हूँ। जैसे भी हो मैं समाजवादी हूँ पढ़ती लिखती हैं और समझती हैं कि इस देश क्योंकि यह सामूहिक विवेक है। जब मेंने सुना में क्या हो रहा है। में कहूँगी कि आजकल हमारा कि आप लोग इस प्रकार का कार्य कर रहे हैं तो देश अत्यन्त उथल-पुथल की स्थिति में है और ये सारी चीज़ें हमें समस्याओं के समाधान में मैंने कहा आश्चर्यजनक। मैं कल्पना भी नहीं कर सकती। उन दिनों में महिलाएं इधर-उधर की सहायक होगी। बेशुमार समस्याओं में से कुछ 30 चतन्य लहरी । खंड XII अंक : 9& 10, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-32.txt समस्याओं का समाधान होते ही मुझे विश्वास है जाते हैं, शरीर परिवर्तित हो जाता है और कि हमारा देश महानतम देशों में से एक होगा। अन्तर्परिवर्तन को देखकर हैरानी होती है। ये सब प्रतिभा की यहाँ कोई कमी नहीं है। इसके विषय आपमें अन्तर्जात हैं, आप सबको प्राप्त है, आपमें में कोई सन्देह नहीं। कठोर परिश्रम करने वालों कार्यरत है। केवल आपको अपना आत्मसाक्षात्कार का भी यहाँ अभाव नहीं है। अभाव है तो केवल प्राप्त करना है। यह आपका अन्तज्जञा है, अत्यन्त किसी ऐसे व्यक्ति का जो इन्हें योजनावद्ध कर सूक्ष्म ज्ञान। सके और वह व्यक्ति आत्मसाक्षात्कारी हो तथा सभी महिलाओं को मैं धन्यवाद देती हूँ जिसमें आत्मविश्वास हो, जिसमें आन्तरिक शक्ति कि उन्होंने मुझे यहाँ बुलाया ये अत्यन्त अद्भुत अनुभव है। में आज तक ये न जानती थी कि लोग क्या कर रहे हैं। तब सब कुछ परिवर्तित हो आई.ए.एस अधिकारी भी इस सुक्ष्म ज्ञान को सकता है। और आप लोगों का अन्त्तपरिवर्तन पाने के इच्छुक होंगे। मुम्बई में जब ये कार्य हुआ तो मुझे हैरानी हुई। अब वे लोग एक हो और जो इस बात की चिन्ता न करें कि अन्य सुन्दर मानव के रूप में हो सकता है। आप अपनी सभी विध्वंसकारी आदतें त्याग दें। इन्हें सभागार में सामूहिक रूप से ध्यान धारणा कर पूर्णतः त्याग दें। मैं कभी नहीं कहती कि 'त्याग दो । ऐसा यदि मैं कहूँगी तो आधे लोग तो यहाँ से उठकर ही चले जाएंगे। लन्दन में मैंने देखा रहे हैं। जिस प्रकार उन्होंने मेरा स्वागत किया वह ा। मैं तो हमेशा यही वास्तव में आश्चर्यजनक है। सोचा करती थी कि मुम्बई में आई.ए. एस. अधिकारी अत्यन्त घमण्डी हैं। वे लोग आपकी ओर कभी कि वारह लोग जिन्हें नशे की लत थी. उन्होंने रातोंरात नशे छोड़ दिए। नशा सेवन आदि की देखेंगे भी नहीं। परन्तु वे लोग अत्यन्त विनम्र बन गए हैं। मैं नहीं जानती किस प्रकार उनमें ये समस्याएं हम बिना किसी कठिनाई के हल कर सकते हैं और आप लोगों को इसी कार्य के लिए पदारूढ़ किया गया है आपकी स्थिति बहुत कठिन है क्योंकि आप पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। जिसे समझा जाना आवश्यक है। विना जिम्मेदारी श्रेष्ठता मनोग्रन्थि आ गई? उनके विषय में हमारे सी शिकायते थीं। परन्तु अब पास बहुत वे बहुत परिवर्तित हो गए हैं। इसी प्रकार आप सबको भी परिवर्तित होना चाहिए और सामूहिक बनना चाहिए। यह संयुक्त होना नहीं है सामूहिक होना है। एक को समझे हम कुछ भी प्राप्त न कर सकंगे। परन्तु एक बार यदि आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लें तो स्वतः ही आप जिम्मेदार बन जाएंगे। और जिम्मेदारी का बोझ भी आपको महसूस न दूसरे की सहायता करते हुए इस तरह के जीवन के विषय में आप सोचें। विश्व भर में जहाँ भी आप जाएंगे आपको बहन-भाई मिलेंगे। बो भी यहाँ पर आते हैं। यहाँ आकर वे हमारी मातृभूमि, होगा। आप एकदम शान्त हो जाएंगे। ऐसे व्यक्ति से मिलना भी अत्यन्त सुखद होता है। आप भारतभूमि को चूमते हैं। मैंने जब उनसे पूछा कि हैरान होंगे कि कभी कभी तो चेहरे परिवर्तित हो तुम ऐसा क्यों करते हो तो उत्तर मिला ये 31 चैतन्य लहरी । खड : XII अंक : 9& 10. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-33.txt योगभूमि है, विशेष देश है। यहाँ पर हमें हमारा आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ। आपको हैरानी होगी कि ये देश योगभूमि है । शिव हैं, यह शिव की चैतन्य लहरियाँ हैं। यह सच्चाई है। मराठी पत्रिका में हाल ही में मैंने एक लेख पढ़ा जिसमें लिखा था कि इस्लाम धर्म एक वार अपने पति के साथ जब में आने से पूर्व शिव को पूजा जाता था। परन्तु वायुयान से यात्रा कर रही थी तो मैंने अपने पति मन्दिरों में लोग बहुत ज्यादा कर्मकाण्डी बन गए को बताया कि हम भारत में प्रवेश कर रहे हैं थे। मोहम्मद साहव ने कहा कि पत्थरों को मत उन्होंने पूछा," तुमने कैसे जाना?" मैंने कहा. पूजो। परन्तु स्वयंभु देवता भी तो हैं। वहाँ जाकर चारों तरफ मुझे चैतन्य दिखाई दे रहा है| वे अपनी सीट से उठकर जहाज के चालक के को जांचेंगे तो जान जायेंगे कि आप लोग अपनी चैतन्य लहरियों से जब आप इस सत्य पास इस बात की सच्चाई को परखने के लिए गए। चालक ने आत्मसाक्षात्कार के योग्य हैं। आपका भूत कुछ भी रहा हो, कोई बात नहीं। अब हमें वर्तमान में कहा "श्रीमन हमने अभी-अभी भारत में प्रवेश किया है। मैंने कहा," देखो ये रहना है। भूतकाल समाप्त हो गया है, भविष्य का कोई अस्तित्व नहीं। आप वर्तमान में रहेंगे हमारी भूमि है जो आध्यात्मिकता से परिपूर्ण है । जो भी कुछ लिखा गया है उसे हमें सत्यापित और यही सच्चाई है। आप सब चैतन्य लहरियाँ करना चाहिए। देखना चाहिए कि क्यों कुछ स्थान महसूस कर सकते हैं। इस देश के बहुत से स्वयंभु है? किस प्रकार आप ये बात जान सकते सन्तों ने कहा कि यह आपके अन्दर विद्यमान हैं? स्थान-स्थान पर मन्दिर बने हुए हैं। स्वयंभु है, अपने अन्दर इसे खोजो। शान्ति आपके मन्दिरों के चैतन्य को आप अपनी अंगुलियों पर महसूस कर सकते हैं। आप हैरान होंगे कि भी जो कुछ उन्होंने लिखा उसे कोई नहीं समझता। मक्का में एक बड़ा काला पत्थर है। मोहम्मद साहब ने कहा था कि पत्थरों को मत पूजो पिंगला, सुखमन क्योंकि मूर्तियां बनाकर लोग धनार्जन करते थे। बाजे रे। उन्होंने बहुत कुछ कहा पर कबीर को परन्तु इस पत्थर की परिक्रमा करने के लिए कोन समझता है। गुरुनानक देव ने भी स्पष्ट अन्तर्निहित है कुण्डलिनी जागृति के विषय में कबीर साहब ने इसके विषय में लिखा,"ईडा. नाडी रे, शुन्य शिखर पर अनहद उन्होंने कहा, और इसकी परिक्रमा करना कहा, मुसलमानों का बहुत बड़ा कार्य है। उनसे पूछें कि वे पत्थर की पूजा क्यों करते हैं ? वे नहीं जानते, परन्तु काहे रे बन खोजन जाई सदा निवासी, सदा अलेपा मैं तोहे संग समाई इस बात को जानती हूँ क्योंकि यह शास्त्रों में लिखा हुआ है कि यह पत्थर मक्केश्वर शिव हैं। यह शिव हैं। मेरा ऐसा कहते गई है। फिर कबीर साहब ने कहा, परन्तु यह सब कहने सुनने की बातें बन पढ़ि पढ़ि पण्डित मूर्ख भए। हो चैतन्य लहरियाँ बहने लगी हैं। उसे पत्थर में 32 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 9& 10, 2000 ।। ख "heé 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-34.txt श्री आदिशंकराचार्य ने भी माँ आदिशक्ति से प्रार्थना की कि मुझे शब्दजाल से मुक्त करो। मुझे आशा है कि यदि आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने की इच्छा करेंगे तो यह कार्य हो महाराष्ट्र में एक थैला भरके मूर्तियां लेकर सुबह चार बजे लोग पूजा करनी शुरु कर देते हैं और सहज है और इस पर कोई विशेष समय नहीं जाएगा। जैसा बताया गया है कि यह कार्य बहुत नौ बजे तक पूजा करते हैं। तब स्नान करके कुछ लगता। यह तो घटना मात्र है। सर्वप्रथम आप सबको क्षमा कर दें। अब लोग कहते हैं कि खाकर दफ्तर जाते हैं। वहाँ ये आम प्रथा है । हमें श्रीमाताजी हम क्षमा नहीं कर सकते। विशेष रूप समझना चाहिए कि ये मात्र कर्मकाण्ड है, आपको से पश्चिम के लोग ऐसा कहते हैं वे क्षमा नहीं कर सकते। बिल्कुल भी नहीं। परन्तु आप सोचें चाहिए कि सच्चाई को समझो और यह जान लो कि किसकी पूजा की जानी चाहिए। इन सब बातों पर अपनी शक्ति व्यर्थ नहीं करनी चाहिए। क्षमा न करके भी आपको क्या लाभ होता है। क्षमा न करने से तो आप उनके हाथों में खेलते उस ज्ञान में उतर जाना बहुत आसान है केवल हैं और स्वयं को कष्ट देते हैं अत: बेहतर होगा वही परमेश्वरी प्रेम है। आप वही ज्ञान सत्य है। समझ भी नहीं पाते कि किस प्रकार आप इतने भले, प्रेममय और सम्माननीय बन जाते हैं। आप सबको क्षमा कर दें। में जानती हूँ कि बहुत वा से भयानक लोग हैं जिन्होंने आपको बहुत सताया आपके अन्दर से ये इतनी अद्भुत चीज है। होगा, कष्ट दिया होगा, परन्तु उनको क्षमा कर जिसे बिना कुछ खर्च किए आप पा सकते हैं। दें। आप स्वयं को भी क्षमा कर दें। किसी भी कर्म के लिए स्वयं को दोषी न मानें। जो होना था इसके लिए केवल प्रार्थना करें। आपके विकास की यह जीवन्त प्रक्रिया है। विकसित होने के वह हो चुका, वस समाप्त। उन बातों को याद करके स्वयं को दोषी लिए हमने कितना धन खर्च किया है। कुछ भी मानने का क्या लाभ है? कभी-कभी ये दोष नहीं। हमें कुछ भी नहीं खर्चना पड़ता। यह स्वत: ही हो जाता है। नन्हें से बीज की तरह ये भाव बहुत बढ़ जाता है। एक बार मैंने एक अंकुरित हो जाता है। परन्तु इसे बढ़ाना होता है व्यक्ति से पूछा कि आप क्यों स्वयं को दोषी और इसके लिए आपको प्रतिदिन कुछ देर मान रहे हों? कहने लगा मैंने अध्यक्ष पर कॉफी गिरा दी। मैंने कहा,"तो क्या हुआ? आपने ध्यान-धारणा करना आवश्यक है। यह कोई जान-बूझकर ऐसा नहीं किया, तो आप क्यों ऐसा सोचते हैं। तब कहीं उसने स्वयं को क्षमा किया। लम्बी-चौड़ी क्रिया नहीं है, एक प्रकार से चक्रों को शुद्ध करने का तरीका है। कभी-कभी चक्रों में बाधाएं आ जाती हैं जिनका शुद्ध होना आवश्यक ऐसी भावना किसी को जीवन भर परेशान करती रहे इसकी आप कल्पना करें! तो व्यक्ति को इस है और यह कार्य ध्यान धारणा द्वारा किया जा प्रकार नहीं सोचना चाहिए कि मैंने फलां गलतियाँ सकता है। ध्यान-धारणा शक्ति एवं आनन्द प्रदायी की है कंसे मुझे आत्मसाक्षात्कार मिल सकता है। है। 33 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : 9& 10. 2000 नाध्छ 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-35.txt ये बहुत आवश्यक है कि आप स्वयं को दोषी भारतभूमि में, योगभूमि पर बैठे हैं। इस देश में न मानें। आपने गर अपराध किए होते तो आप जागृति बहुत शीघ्र होती है विशेष रूप से आप जेल में बैठे होते यहाँ न होते। स्वयं के विषय में लोगों को क्योंकि आप लोग इस देश को बहुत ब खुद निर्णय न करें। स्वयं को पहचाने। अपने आपको पहचानने के लिए ये आपको करना करते हैं। तो बिना किसी सोच विचार के अपने होगा। अपने प्रति आपकी भावना प्रेम एवं दोनों हाथ मेरी ओर फैला दें। मेरी प्रार्थना है कि प्रेम करते हैं और इसके लिए कठोर परिश्रम भी वमाी आप सबको और स्वयं को भी क्षमा कर दें। सम्मानमय होनी चाहिए। मुझे आशा है कि आज ही आपकी इच्छानुरूप आपको आत्मसाक्षात्कार यदि आप ऐसा नहीं करते तो आपका विशुद्धि प्राप्त हो जाएगा। जो लोग आत्मसाक्षात्कार नहीं चक्र बांधित रहेगा और आज्ञा चक्र भी अवरूद्ध लेना चाहते वो बाहर चले जाएं क्योंकि मैं नहीं रहेगा। अपने हाथों पर सबसे पहले आपको अंगुलियों के सिरों पर गर्म या ठण्डी हवा चाहती कि वे अन्य लोगों के उत्थान में बाधा डालें। आप यदि आत्मसाक्षात्कार नहीं लेना चाहते महसूस होगी और फिर आपकी हथेलियों पर। तो मैं इसे आप पर थोप नहीं सकती। कुछ लोग सोचते हैं कि यह वातानुकूलन (Air आत्मसाक्षात्कार न किसी पर थोपा जा सकता है Condition) के कारण है, परन्तु ऐसा कुछ नहीं है। स्वयं पर भरोसा करें। अब दायाँ हाथ मेरी न इसके लिए धन दिया जा सकता है न इसके लिए धन दिया जा सकता है। कुण्डलिनी यदि नहीं उठती तो बात और है। यहाँ पर हमारे ध्यान ओर करें और अपने बाएं हाथ से, सिर को थोड़ा झुकाकर, तालू भाग में देखें कि यहाँ से भी केन्द्र हैं वहाँ जाकर अपने चक्रों की खराबियों शीतल लहरियाँ निकल रही हैं। अपने हाथ को को आप ठीक करवा सकते हैं। स्वयं पर विश्वास इंधर-उधर चलाकर महसूस करें। लहरियाँ यदि गर्म हैं तो आपको कहना होगा कि मैंने सबको रखें इस कार्य में बहुत अधिक समय नहीं लगेगा। यह तुरन्त कार्यान्वित होगा। विदेशी लोग क्षमा किया। हृदय से आपको क्षमा करना होगा। स्वयं को क्षमा नहीं कर पाते और भारतीय दूसरों अब अपना बायाँ हाथ मेरी ओर करके सिर के को। दोनों के दृष्टिकोण भिन्न भिन्न हैं परन्तु हमें ऊपर दायें हाथ से चैतन्य महसूस करें। अब दोनों को क्षमा करना होगा इस प्रकार छिन्न-भिन्न होने के लिए परमात्मा ने आपको नहीं बनाया, दोनों हाथ मेरी ओर करके बिना कुछ सोचे मेरी ओर देखे। कुछ क्षणों की निर्विचारिता भी महत्वपूर्ण है इसे निर्विचार समाधि कहते हैं जो बहुत अपनी गरिमा को प्राप्त करने के लिए बनाया है। आप अपने दोनों हाथ मेरी ओर फैला दें और यदि जूते पहने हो तो इन्हें उतार दें क्योंकि अन्ततः निर्विकल्प अवस्था बन जाती है। पहले आप निर्विचार चेतना में आते हैं फिर निर्विकल्प पृथ्वी माँ भी हमारे आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने चेतना में। यही स्थिति आपको प्राप्त करनी है। अब जिन लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो में बहुत सहायक होती है। आप दिल्ली में, उ4 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 9 & 10, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-36.txt गया है वे अपने दोनों हाथ ऊपर उठाएं आपमें और सुन्दर (विकसित) लोगों की नई पीढ़ी में प्रवेश करें। यह अत्यन्त अद्भुत समय है। इसके हैं। आपको बधाई हो जिन लोगों को महसूस नहीं लिए मैंने तो केवल इतना किया है कि सामूहिक से अधिकतर को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया हुआ वे हमारे किसी भी केंद्र पर जाकर चेतना की विधि खोजी है। मैंने केवल यही कार्य आत्मसाक्षात्कार पा लें। कुण्डलिनी आपकी किया है। अन्यथा यह सब पहले से ही विद्यमान व्यक्तिगत माँ है. आपके विषय में सभी कुछ था नाथपंथी इसका प्रयोग करते थे। लोगों को इसका ज्ञान था। मैंने मानवीय समस्याओं के जानती हैं। आपकी शारीरिक समस्याओं का उन्हें सम्मिश्रण और क्रम परिवर्तन (Permutation जानती है। आपकी आकांक्षाओं और भूत को ज्ञान है। वे आपकी माँ हैं और माँ की तरह से and Combinations) की खोज की और देखा आप सबमें ये क्यों है। यह सामूहिक घटना पूरे लेती हैं। कुण्डलिनी भी आपकी माँ हैं और विश्व के लिए आशीर्वाद बन गई है। एक बार बच्चे को जन्म देने के सभी कष्ट स्वयं झेल अपने प्रेम के कारण यह सब कार्य करती हैं। फिर मैं आपका धन्यवाद करती हूँ कि आपने समय आ गया है कि हम सब अन्त्तपरिवर्तित हों मुझे यहाँ निर्मन्त्रित किया। परमात्मा आपको धन्य करें 35 चैतन्य लहरी खड : XII अक : 9 & 10, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-37.txt अन्य लोगों को प्रभावित त्रत कैसे करें! हेग, हालैण्ड-17.9.86 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन अन्य लोगों को प्रभावित करने के लिए तो बहुत ही नियमित हैं और मैं हमेशा देर से हमें ये पता होना चाहिए कि अपने आप पर पहुँचता हूँ। किसी से आपको यदि एक निश्चित हमारा कितना नियंत्रण है। ये बहुत आवश्यक है। है। समय पर मिलना हो तब भी आपको बिल्कुल उदाहरण के रूप में कुछ लोगों की अपनी समय-निष्ठ होना चाहिए। आपको सदैव समय तस्वीर अच्छी नहीं होती फिर भी वे अन्य लोगों निष्ठ होना है । को प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं । यह तो पश्चिम में विशेष रूप से मैंने देखा है कि मात्र मज़ाक है। जिस व्यक्ति की आअपनी ही लोग प्रातः बहुत देर से उठते हैं, बहुत आलसी तस्वीर खराब है उससे कौन प्रभावित होगा? हैं और मुर्दों की तरह से चलते हैं वास्तविकता ये है कि वो संसार से ऊब चुकें हैं। संसार में बेी अतः बाह्य रूप को निखारने से पूर्व आंतरिक उन्हें भेज दिया गया है और किसी तरह से वे रूप का निखारा जाना आवश्यक है। उदाहरण के रूप में दफ्तर में सदैव देर सब चला रहे हैं। ऐसा व्यक्ति किसी को प्रभावित से आने वाला व्यक्ति, समय का जिसे कोई नहीं कर सकता। लोग आपकी तस्वीर को देखते हैं कि यह व्यक्ति तो खुद ही किसी तरह से अत: यदि आप अन्य लोगों से समय पर आने जीवन की गाड़ी धकेल रहा है क्यों हम इसी की के लिए कहते हैं तो ठीक समय पर आने वाले तरह से चलें? यह हमें क्या बता सकता है? यदि आप स्वयं आलसी जीव हैं तो आप अन्य विवेक नहीं, ऐसे व्यक्ति का सम्मान नहीं होता। लोगों में आपको प्रथम होना चाहिए। समय का लोगों को प्रभावित नहीं कर सकते। अन्य लेगों पाबन्द होने के लिए आपका नाम हो। दस बजे यदि आपने दफ्तर पहुँचना है तो पाँच मिनट को प्रभावित करने के लिए आपको प्रात: जल्दी पहले वहाँ पर पहुँचे और ठीक समय पर अन्दर उठने की आदत होनी चाहिए। प्रात: जल्दी प्रवेश करें। समय की ये पाबन्दी बहुत ही उठकर नहा-धोकर चुस्त हो जाना चाहिए। महत्वपूर्ण है। ये पाबन्दी लोगों की सहायक होती है और इसके कारण लोगों के मन में आपका खौफ बन जाता है। वो सोचते हैं कि यह व्यक्ति कुछ लोगों का विश्वास है कि फैशनेबुल होने से, फैशनेबुल वस्त्र धारण करने से लोग प्रभावित होते हैं ये बात सत्य नहीं है। क्योंकि वो 36 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 9 & 10. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-38.txt सोचते हैं कि आपमें आत्मविश्वास नहीं है। परन्तु यदि आपमें आत्म-विश्वास की कमी है आपको अपनी एक ऐसी तस्वीर बनानी होगी कि तो आप ये कार्य न कर सकेंगे अतः सर्वप्रथम आप इस प्रकार के गुणवान व्यक्ति है जैसे अपने में आत्मविश्वास स्थापित किया जाना चाहिए। नाटक के चरित्र होते हैं। व्यक्ति उन्हीं विशेषताओं के साथ बातचीत करता है। लोगों को पूरी तरह है कि "मैं आत्मा हूँ, मैं शिशु हँ. आदिशक्ति ने से पता होना चाहिए कि ये आपकी शैली है तथा आपमें ये गुण हैं और इस मामले में आप कभी नहीं झुकते। लोगों से बातचीत करते हुए आपकी शैली में वैठकर कैसे आप खाना खाते हैं कई लोग का उत्तम होना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आपकी चाल-ढाल भी अच्छी होनी चाहिए। ये सब चीज़ें बहुत आवाज करते हैं, अन्य लोग आपकी ये अच्छी तरह से व्यवस्थित कर लेनी चाहिए कि सहजयोगियों के लिए यह कह देना बहुत आसान स्वयं मुझे चुना है।" अत: आपमें अथाह आत्मविश्वास होना चाहिए। आपको देखना चाहिए कि लोगों के बीच अपना मुंह बहुत बड़ा खोलकर खाना खाते हुए सारी बातें देखते हैं। किस प्रकार आप खाते हैं। किस प्रकार आप बातचीत करते हैं। अपना मुँह आप मरे-मरे से न चलें, अपनी टांगे इधर-उधर खुला न रखें, इस प्रकार आप कभी लोगों को न फेके, सीधे होकर चलें और सीधे बैठें। लोग इस बात को देखें कि आपमें आत्मविश्वास है, आत्मविश्वास विहीन आचरण किसी को भी प्रभावित न कर सकेंगे। लेकिन मुँह को भींचकर भी न रखें। इसे सामान्य रूप से बन्द रखें ताकि प्रभावित नहीं कर सकता। अतः आपकी लोग ये न समझें कि आप उन्हें चिढ़ा रहे हैं या चाल-ढाल, बातचीत, उठने-बैठने के तरीके और फिर आप उनसे नाराज हैं। चेहरे के हाव-भाव सामान्य होने चाहिए जो न आक्रामक हों और न कान अभिव्यक्ति के ढंग से आत्मविश्वास छलकना चाहिए। आत्मविश्वास की भावना आपमें होनी दब्बू। आपका मुँह यदि खुला रहता है तो लोग चाहिए लेकिन व्यक्ति में आत्मविश्वास तभी सोचेंगे," ओह! ये अजीब बेवकूफ है " दाँतों से आता है जब उसे लगे कि वह सुरक्षत है। यदि आप अपने होंठ दबाते हैं तो लोग आपको सहजयोग में यदि आपका मध्य हृदय चक्र ठीक आक्रामक समझ लेंगे। अत: व्यक्ति को देखना म.#।८ चाहिए कि अन्य लोगों के सम्मुख वह किस है तो ऐसा हो सकता है। अपने आपसे कहें," श्री माताजी मेरे साथ हैं, श्री माताजी मेरी सहायता प्रकार बैठता है, किस प्रकार बातचीत करता है। अन्य लोगों को प्रभावित करने के लिए आवश्यक है कि आप सर्वप्रथम अपने व्यक्तित्व का सम्मान करें और फिर अपने व्यवहार द्वारा अन्य लोगों कर रही हैं और मैं श्रीमाताजी के साथ हँ। चिन्ता करने के लिए मेरे सम्मुख कुछ भी नहीं है।" तब आपका मध्य हदये चक्र ठीक हो जाएगा। ये बात आप अन्य लोगों से नहीं कह सकते परन्तु के व्यक्तित्व का। कोई यदि आपके पास आता है तो उससे यदि आपका व्यक्तित्व आत्मविश्वास से परिपूर्ण है तो यह बात आप दूसरों में भर सकते हैं। अत्यन्त भद्रता-पूर्वक वातचीत करें। ये समझकर 37 चैतन्य लहरी खंड XII अंक : 9.8 10. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-39.txt जहाँ तक हो सके किसी से कोई कार्य करने के लिए न कहें। ऐसा करने से लोगों को बह अच्छी तरह से आरामपूर्वक बैठ सकें। चोट पहुँचती है। उदाहरण के रूप में मैं जब हैूँ" ऐसा करो, ये बत्ती कि साक्षात् परमात्मा आपके पास आए हैं। मुझमें यदि आत्मा है तो उसमें भी तो है। ध्यान रखें कि उससे चाय आदि के लिए पूछे। उसे ये महसूस आप लोगों को कहती करवाएं कि उसके आने से आपको कोई परेशानी बुझा दो।" आखिरकार आप मेरे बच्चे हैं इसलिए नहीं हुई। उससे मिलकर आपको प्रसन्ता हुई। मेरा ऐसा कहना ठीक है। यह एक भिन्न प्रकार अत्यन्त प्रेम पूर्वक उसके साथ बैठें। कई बार आत्मविश्वास की कमी के कारण व्यक्ति आगन्तुक के विषय में अधीर हो उठता है। ये अधीरता कि हल्के से उठें, बातचीत करते हुए बत्ती जला का सम्बन्ध है परन्तु जब आपमें अन्य लोगों से कार-व्यवहार करना होता है तब आपको चाहिए असुरक्षा का चिन्ह है। किसी से बातचीत करतें हुए आपको अधीर नहीं होना चाहिए। व्यक्ति की स्थिति ऐसी होनी चाहिए कि दूसरा व्यक्ति पूर्णतः विश्वस्त हो सके और उसे लगे कि ये महाशय मेरे आने से बहुत खुश है। दें। उनसे कहें " मैं यदि बत्ती जला दूँ तो आपको कष्ट तो न होगा?" आचरण सम्बन्धी आक्रामकरता अपनी छाप छोड़ती है। सहजयोग में यह दूसरी तरह से है। सहजयोग में कुण्डलिनी सर्वप्रथम है और उसके बाद सभी कार्य। लोगों को यदि आप प्रभावित करना चाहते लोगों को प्रभावित करने का एक अन्य तरीका ये है कि उन्हें बोलने का अवसर दें। हैं तो उनकी जड़ों को बनाना होगा और ऐसा स्वयं ज्यादा न बोलें, धेर्यपूर्वक उनकी बात को करने के लिए आपको उनमें अपने प्रति विश्वास सुनें। उनकी बात को सुनकर कहें" नि:सन्देह ये कायम करना होगा। उन्हें विश्वास होना चाहिए सत्य हे मैें आपके साथ सहमत हूँ...परन्तु.. कि जो कुछ भी आप कह रहे हैं वह सत्य है। उन्हें लगे कि जो भी कुछ आप कह रहे हैं वह न असत्य है न ऐसी बात जिसमें आपकी अपनी फिर आप शुरू कर सकते हैं। "नहीं! बिल्कुल भी नहीं!" ऐसा करके उन्हें आघात न पहुँचाएं इसके विपरीत आपको देखना चाहिए कि वे क्या श्रद्धा नहीं है। आपकी बात करने की शैली अन्य लोगों को प्रभावित करती है कि यह व्यक्ति कहते हैं। आप मुझे देखें। बहुत बार में ऐसा ही करती हूँ। कोई यदि कुछ कहता है," ओह! ये सत्य कह रहा है। अत: सभी कुछ आपकी व्यवहार शैली से आरम्भ होना चाहिए। और अब वेशभूषा। लोगों को प्रभावित आपने बात का दूसरा पक्ष भी देखा है तथा करने के लिए वेशभूषा भी बहुत महत्वपूर्ण है। मान लो आप किसी से सरकारी रूप से जुड़े हुए मत थोपें। अपनी बात लोगों को कहनी है हैं या व्यापार में उसे प्रभावित करना चाहते हैं। आपको चाहिए कि औपचारिक वस्त्र धारण करें, सत्य है परन्तु यह बात इस प्रकार है..." इस प्रकार उन्हें बुरा नहीं लगता। वो सोचते हैं कि आपमें सन्तुलन है। अपने विचार दूसरों पर परन्तु इस प्रकार कि उन्हें ये न लगे कि आप स्वयं को उन पर थोप रहे हैं। चैतन्य लहरी खंड : XII अक ढीले-ढाले या कभी-कभी पहने जाने वाले वस्र 38 :9& 10. 2000 श्u 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-40.txt (Drawing Room) हे अब वैठक तो बैठक है शयनागार नहीं, दोनों को मिलाएं नहीं। इनका न पहने। व्यापार के लिए उपयुक्त वेशभूषा धारण करें जैसे धारियों वाला गहरे नीले रंग का सूट गलत ढंग से उपयोग एक बार यदि आप करने जिसमें जैकिट भी हो, साफ-सुथरे अच्छे जूते अच्छी तरह से संवारे गए बाल जिनमें थोड़ा तेल लगे तो फिर इसका कोई अन्त नहीं। मैंने लोगों भी लगा हुआ हो ठीक रहेगा। चुस्त व्यापारी सम प्रतीत हों। को एसे वस्त्र पहनकर दफ्तर जाते हुए देखा जो तैराकी सुट से लगते हैं ये सारी चीजें सुधरनी दुनिया भर के फ़ैशन यदि आप करेंगे तो ये तो प्रतिदिन परिवर्तित होते रहते हैं। आज बाल आवश्यक हैं और इन्हें आसानी से सुधारा जा सकता है। लोगों को केवल इतना बताना होगा इस तरफ होंगे तो कल उस तरफ। तो अपने कि इस प्रकार उल्टे सीधे वस्त्र पहनकर वो बालों को इस प्रकार बनाए जैसे एक अधिकारी किसी को प्रभावित नहीं कर सकते। बिना अपने को बनाने चाहिए। बालों में भली-भाति कंघी करें। पुराने समय में फिल्मों के अभिनेता भी प्रभावित नहीं किया जा सकता। रूप रंग और व्यवहार को निखारे दूसरों को बालों में तेल लगाया करते थे, कभी उनके बाल अन्य लोगों से कार-व्यवहार करते हुए सुखे न होते थे कहने से मेरा अभिप्राय ये है कि बाल अच्छी तरह से संबरे होने चाहिए। बाजार में आपके बालों को संवारने के लिए अनेक विना आपको सच्चा होना चाहिए. झूठ न बोलें। न कहने वाली यदि कोई बात हो, तो न कहें। ये झूठ बोलना नहीं है। कहने के लायक चीज़ों को कहें। ऐसा न करें कि आज कुछ कहें, कल कुछ तेल की बस्तुएं उपलब्ध हैं। बालों का संवरा कहें और परसों कुछ और इससे लोगों के मस्तिष्क में बहुत बड़ी रिक्ति बन जाती है। कहीं ताकि इस बात का पता चले होना आवश्यक है कि आपने रूप रंग तथा बालों की शैली की और ध्यान दिया। अत: पदानुसार अपनी उपयुक्त अन्दर से वे सोचते हैं कि आप धोखेबाज हैं और तस्वीर बनाएं। यदि कोई रसोईया तैराकी सूट समस्याओं से भागने की कोशिश कर रहे हैं| पहनकर खड़ा हो जाए तो कैसा लगेगा ? बड़ा ही अजीब। रसोइए को रसोइए की तरह से वस्त्र मान लो अभी मैं आपसे बात कर रही हूँ, बात करते करते मैं यदि घड़ी देखने लगेँ तो यह पहनने चाहिए। इसी प्रकार एक व्यापारी को बहुत ही अपमानजनक है। आप यदि किसी व्यापारी की तरह से वेश-भूषा धारण करनी विशेष चीज़ के बारे में बात कर रहे हैं और चाहिए। अपने दफ्तर आप जीन पहनकर नहीं जा अचानक मैं विषय बदल देँं तो यह भी बहुत अपमानजनक है क्योंकि सभी लोग इतने बुद्धिमान तो हैं कि इस बात को देख सकें कि आप उस सकते क्योंकि आप यदि ऐसा करेंगे तो सभी कर्मचारी वैसा ही करने लगेंगे। इस तरह के कार्यों से लापरवाही पनपती हैं। दफ्तर या व्यापार मामले से बचने का प्रयत्न कर रहे हैं। एक सीमा तक आप इसे ले जा सकते हैं परन्तु फिर चीजें कुछ हास्यास्पद मोड़ लेने लगें तो यह 39 के स्थान से बाहर ढीलापन ठीक है परन्तु व्यापार में नहीं। मान लो हमारी एक वैठक चैतन्य लहरी खंड :XII अक : 9 & 10. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-41.txt दर्शाने के लिए आपको फिर वापिस आना होगा। पर विश्वास नहीं है।" ऐसा कहना नासमझी है। जैसे कल मैंने कहा,"कि आप जानते हैं कि मैंने हमें क्या करना है, हमारा ऐसा विश्वास है, हम कभी सर्पिणी (Serpent) के विषय में नहीं ऐसा सोचते हैं, आपकी क्या राय है।" या उनसे लिखा। किसी अन्य ने यदि इसके विषय में वे सब बातें बताए। अपनी संस्था, अपने उत्पादन लिखा तो मैं क्यों इसका खुलासा करू। इसे मैं आदि के विषय में बताएं। कहें "अब यह उपलब्ध है, ये वस्तु यहाँ है। हमने देखा है कि कभी सर्पिणी की शक्ति नहीं कहती क्योंकि ऐसा कथन लोगों को भ्रमित करता है। परन्तु इससे बहुत लाभ हुआ है और यह इस प्रकार कार्य करती है। इसके विषय में हमारे पास फिर भी किसी ने ऐसा कहा है तो आप क्या कर र सकते हैं?" ऐसी कोई बात यदि आप कह दें तो सूचना है। आप ये विवरण देख सकते हैं और उसे एक ऐसे हास्यास्पद स्तर तक ले आएं कि स्वयं उन्हें उपयोग कर सकते हैं। व्यक्ति स्वयं चुप हो जाए। दूसरे व्यक्ति की जो सेवा आप करते हैं अचानक कभी विषय को न बदलें। इस वह बहुत पसन्द की जाती हैं। यह केवल अहं जक प्रकार विषय बदलने का अर्थ ये होता है कि नहीं आप उस मामले से बचना चाहते हैं तथा इसका है, यह उसे सुख प्रदान करती है। जैसे लोग एयर इंडिया से यात्रा करना पसन्द करते हैं । समाधान करने के योग्यता आपमें नहीं है। कई बहुत से लोग कहते हैं कि हम एयर इंडिया से बार लोग ऐसा ही करते हैं, वो ऐसा ही कहते हैं, "ठीक है, हमें इस विषय पर बात करनी चाहिए। जाना पसन्द करेंगे। जानने का प्रयत्न करें कि क्यों? क्योंकि आजकल अन्य हवाई कम्पनी बम आप ऐसा नहीं कर सकते, इस प्रकार से विषय आदि के डर के कारण बहुत जाच पड़ताल परिवर्तन के कारण बहुत सी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। दूसरों से बात करते हुए ध्यान रहे कि आप अपने विषय में न बोलें, "मैं ऐसा हूँ, मैं वैसा हूँ।" इस बात को कोई पसन्द नहीं करती है और उनकी कीमतें भी बहुत ज्यादा हैं। एयर इंडिया को पसन्द करने का एक कारण ये भी है कि इसमें कार्य करने वाली महिलाएं अत्यन्त विनम्र हैं। यात्रियों की भली-भांति देखभाल करती हैं। वे घटिया औरतें नहीं हैं। खाना आदि करता अपने विषय में बात करना मूर्खता है। परोसते हुए वे यात्रियों का बहुत ध्यान रखती हैं। अपनी डींग मारने के स्थान पर केवल पूछें " आप क्या कर रहे हैं ? आपका पेशा क्या है? आप कैसे हैं?" सामने वाले व्यक्ति से इस प्रकार के उनके खाने में व्यंजन भी बहुत होते हैं। जितना चाहे खाना खाओ, आपका मनपसन्द खाना वे पाँच-छः बार आपको देते हैं इन सब चीजों से आपको खुशी होती है। घण्टी बजाते ही वे प्रश्न पूछे । आपको जब बात करनी हो तो अपनी संस्था के बारे में बात करें। में' कहकर बात न आपके सम्मुख हाजिर हो जाते हैं। मेरा कहने का करें सदैव 'हम' कहें। "मैं ऐसा कार्य कभी नहीं अभिप्राय ये है कि जब आपको विक्रय करना करता । ऐसा करने से मैं घृणा करता हूँ। मुझे इस चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 9 & 10. 2000 होता है तो आपको भी सेवा करनी पड़ती है। 40 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-42.txt बाजार पर पकड़ नहीं बनती. इसको पेश करने के ढंग से बनती है। पेश करना अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। इसकी एक बार जब आपको ये बात समझ आ जाती हैं ता आपका दृष्टिकोण ही परिवर्तित हो जाता है। आपको अन्य लोगों की सेवा करनी होती है। सूचना युस्तिका उपयुक्त अच्छे लोगों से तैयार करवाई जानी चाहिए या आपको स्वयं है। केवल सेवा द्वारा ही चीजें कार्यान्वित होती हैं मैं देखना चाहिए कि यह कार्य सुन्दरता से हुआ आपको बताऊंगी कि कैसे । इस पर कुछ खर्च कर लेने में अच्छाई है। यह खर्चा उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए मूल लागत अंग्रेजों के साथ यह बहुत बड़ी समस्या है। यही कारण है कि उन्हें इतनी हानि हो रही है। आप यदि सोचे कि उत्पाद को कहीं रख है। वे अत्यन्त अक्खड़ हैं। किसी अंग्रेज के पास देना भर ही काफी है तो यह बिक न सकेगा। जाकर यदि आप पूछे,"क्या मैं आपके उत्पाद को देख सकता हूँ?" "आपको क्या चाहिए? में आधुनिक समय में किसी भी वस्तु या उत्पाद आपका उत्पाद देखना चाहूँगा। ठीक है, अभी को बेचने के लिए यह सब आवश्यक हैं हमारे पास देने के लिए कुछ नहीं है लोगों को प्रभावित करने के लिए विज्ञापनों यदि परन्तु से अधिक जरूरत उनसे भली भांति व्यवहार आप अपनी अर्जी छोड़ देंगे तो हम आपको यह चीज भेज देंगे ।" समाप्त। उस व्यक्ति को कोई करने की है। मैं आपको बताती हूँ कि किसी भी चीज को खरीदने से पूर्व मैंने कहां से खरीददारी चिन्ता नहीं। हर समय आपको चाहिए कि अपने ग्राहकों से बातचीत करने के लिए तैयार रहें। किसी की थी और उन लोगों के साथ मुझे क्या अनुभव थे मैं ऐसे लोगों के पास जाना चाहती हूँ जो हुए मेरे प्रति विनम्र, करुणामय तथा भले थे जिनका व्यापारिक उद्यम में यदि आप कुछ बना रहे हैं आचरण मेरे प्रति बहुत अच्छा था और जिन्होंने लिए सूचना पुस्तिका होनी चाहिए जो सदैव मेरा मजाक उड़ाने के स्थान पर उस चीज के प्रति पूरी जानकारी दी थी। लायड में कुछ पूँजी तो आपको इसका पूरा ज्ञान होना चाहिए। इसके उपलब्ध हो। ठीक प्रकार से इसकी कीमतें तय की जानी चाहिए तथा इसे उचित ढंग से रखा लगाने के लिए मैं गई। बैंक में धन जमा करना जाना चाहिए। कोई यदि आपके पास आता है. बहुत बड़ी बात है। उन लोगों को समझना उस व्यक्ति को यदि आप जानते हैं, वह यदि चाहिए कि यह बहुत बड़ी बात है। परन्तु यह उपयुक्त व्यक्ति है और आपके पास यदि व्यापार के लिए आता है तो आप उससे कहें कि" यह चीज आपके सम्मुख है आप इसे ले और स्वयं देखें।" उसे समझाएं कि यह क्या है। "यह इस प्रकार है और इसके लिए हम आपको इतनी ज्योंही मैं अन्दर पहुँची उसने पूछा," आप कौन रियायत देंगे।" यह सारी चीजें मस्तिष्क को हैं?" मैंने उसे बताया," मैं ये हूँ।" "ओह हम लोग चहां पर एक छोटी सी लड़की बिठा देते हैं। आने वाले ग्राहकों से बातचीत करने के लिए अवश्य कोई अच्छे व्यक्तित्व का व्यकि्ति होना चाहिए। एक छोटी सी लड़की वहाँ बैठी थी। काड आपके लिए कुछ नहीं कर सकते " मैंने कहा 41 प्रभावित करती हैं। उत्पाद के गुण के कारण चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 9& 10. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-43.txt ठीक है और तब मैंने उसे भारत के उच्चायुक्त तीन चीजों का आपने ध्यान रखना है-व्यक्ति का नाम बताया ताकि वो इस तरह से बात न को आराम से बिठाना है और उसे सबकुछ करे। बताना है, विश्वासपूर्वक उसकी बात सुननी तो उसने यह नहीं देखा कि मैं ड्राइवर है। तब वह व्यक्ति आप पर भरोसा करता है। चालित मर्सिडीज कार में आई थी। बहुत महंगी किसी संस्था में यदि आपको कार्य संभालना हो साड़ी पहने हुंई थी। देखने में मैं जनक थी। उसे समझ जाना चाहिए था कि मुझसे एक सर्वसाधारण मजदूर की तरह से व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए। तब उसने कहा कि मुझे अपनी पहचान देनी होगी आदि आदि। मैं इतनी तंग आई कि दूसरे बैंक में चली गई। उस बैंक के अधिकारी ने तुरन्त पहचान लिया कि यह बुद्धिमान व्यक्ति है और अच्छा ग्राहक। उस महिला ने देख लिया कि मैंने हीरे पहने ता तो आपका व्यक्तित्व अत्यन्त विवेकशील होना बहुत सम्मान चाहिए। दूसरे जो आप कहते हैं उसका अनुसरण भी आपको करना चाहिए। मान लो मैं आपको कहूँ कि आपको किसी से पैसा नहीं लेना हैं और मैं स्वयं पैसा लेने लगू तो आप क्या करेंगे? आप मुझ पर बिल्कुल भरोसा न करेंगे। पूजा आदि के लिए जो भी पैसा आप मुझे देते हैं उसे मैं पैकेट बना कर रखती हूँ और आपके लिए चांदी आदि के बर्तन खरीदने के लिए लगाती हूँ। हुए थे आदि आदि। एकदम वह बोली आइये अति महत्वपूर्ण व्यक्ति कक्ष में चलते हैं मैंने कुछ भी न कहा था। वह मुझे बहां ले गई और बड़े प्रेम से बात की। कहने लगी"मैं एक मिनट का समय ले लू?" अन्दर जाकर फोन पर उसने मेरे बारे में सारी जानकारी प्राप्त कर ली। इसकी मुझे कोई जरूरत नहीं होती। मैं इसको इस्तेमाल करने की सोच भी नहीं सकती हूँ। यह पैसा आपने मुझे दिया है और कायदे से यह मेरा है। परन्तु मैं इससे पूजा के बर्तन खरीदती हूँ जिसे आप इस्तेमाल करते हैं। यह तो मजाक की है बात परन्तु सभी लोग जानते हैं कि श्रीमाताजी बिल्कुल शुद्ध हृदय हैं। आपको भी लोगों के इस प्रकार के कार्य व्यक्ति के सामने नहीं साथ बिल्कुल साफ रहना होगा। उन्हें पता होना से कर लिया जाना चाहिए ताकि उसे बुरा न चाहिए कि आप उनसे चालाकी नहीं करते या लगे। उसे पता नहीं लगना चाहिए कि आप उनकी पीठ पीछे उन्हें हानि नहीं पहुँचाते। कुछ लोग आपकी अनुपस्थिति में आपको तो इस प्रकार से कार्य करना हमारी बहुत हानि पहुंचाने की कोशिश करते हैं । ऐसे लोगों सहायता करता है क्योंकि आपको अक्खड़ नहीं को कोई भी पसन्द नहीं करता। सहज ढंग से व्यवहार करते हुए कोई व्यक्ति यदि ठीक नहीं नहीं पड़ता। इस प्रकार की चीज किसी को है तो उसे विनम्रता से बता दें कि समस्या क्या पसन्द नहीं आती कि आप किसी को नीचा है। "हमारे सम्मुख यह समस्या है। आप बताएं होने चाहिए। उसकी जानकारी का सत्यापन चुपके उसके बारे में पूछताछ कर रहे हैं। दा बनना पड़ता। हेकड़ बनकर आपको कुछ कहना दिखाएं या उस पर सन्देह करने का प्रयत्न करें। कि इसका क्या समाधान है?" तब उस व्यक्ति 42 चैतन्य लहरी खंड XII अंक : 9.& 10. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-44.txt को बुरा नहीं लगेगा। परन्तु किसी व्यक्ति को आप यदि कहें कि आपको ऐसा पसन्द नहीं है तो उसे अच्छा नहीं लगेगा। मैं आपको सभी कुछ बताती हूँ परन्तु ऐसे ढंग से कि आप सब कुछ में हाथ नहीं बटाएंगे, वे कुछ भी नहीं करेंगे। समझ भी लें और आपको भी न लगे। तो अत: लोगों को जिम्मेदार बनाना भी प्रशासन का एक महत्वपूर्ण भाग है। आप स्वय यदि सारा कुछ करना शुरू कर देंगे तो लोग आपके कार्य उनको जिम्मेदार बनाने का सर्वोत्तम उपाय उनकी बुरा र प्रशंसा करना है। किसी ने यदि कोई अच्छा कार्य यह अत्यन्त आवश्यक है कि आपकी शैली ऐसी होनी चाहिए जिसे लोग समझें और आपका किया है तो उसे कहें आपने बहुत अच्छा कार्य किया है. ये बात सीधे से न कहकर इस व्यवहार उचित ढंगे का हो। परन्तु प्रकार से कहें कि उस व्यक्ति को ये लगे कि वास्तव में जब आप लोगों को प्रभावित करने का प्रयत्न नहीं करते तो लोग आपसे उसे सराहा गया है। मधुर शब्दों से और छोटी-छोटी प्रभावित होते हैं। कला को छिपाने में ही कला निहित है। इसके विषय में कोई संकल्प प्रकट चीज़ों से भी आप यह कार्य कर सकते हैं। मैं आपको एक उदाहरण देती हूँ। राजेश बहुत अच्छे हैं और उन्हें किसी चीज़ की जरूरत नहीं होना चाहिए। लोगों की बातचीत में आपको दर्शाना चाहिए कि आप सब सुन रहे हैं और समझ रहे हैं। पाँच -दस लोगों से जब आपको नहीं है। वह इतना धनवान है कि हम उसे क्या दे सकते हैं। एक बार बह मुझे अपनी गाड़ी में बातचीत करनी हो तो उनमें सदूभावना उत्पन्न कहीं ले जा रहा था उसके हाथ में एक स्विस करनी चाहिए। अब जैसे मैं चाहती हूँ कि आप विवाह कर लें तो मैं आपको उस लड़की के विषय में बताऊंगी कि वह कैसी है। इस प्रकार से कि न तो आपको चोट पहुँचे और न उसे, ड्राइवर का धोखा देना उसे सहन न हुआ। वह और आप इसके लिए राजी हो जाएं। क्योंकि उसे थाने ले गया परन्तु वह चाक में यदि कोई आपसे उसके विषय में कुछ मेंने राजेश की नाराज़गी को देखा और कहा कि चाकू था। उसने बह चाकू अपने ड्राइवर को फल आदि काटने के लिए दिया। इसके पश्चात् वह चाकू गुम हो गया। वह बहुत नाराज़ हुआ। उसे न मिला। बाद भूल जाओ कोई बात नहीं है। अगली बार में भारत गई तो उसके लिए एक बहुत सुन्दर सा बताता है तो आप कहेंगे माँ ने यह बात नहीं बताई। अत: बहुत ही प्रेम से आप कहें कि उसमें "ये छोटी-छोटी चीजें हैं, परन्तु ठीक है, वह बहुत ही शालीन बन सकती है। इन सारी कहने लगे" श्रीमाताजी आपको कैसे याद रहा?" चाकू लेकर गई। उसे देखकर वह द्रवित हो उठे, परेशान चीज़ों को वह चला सकती है।" अब ये आप मैंने कहा, "उस समय आप बहुत हुए थे " उसने कहा, "चाकू के लिए नहीं उस व्यक्ति की धोखेबाज़ी के कारण। परन्तु सभी पर निर्भर करेगा कि आप किस प्रकार चीजों को चलाते हैं। तो आपको व्यक्ति के विषय में पूरा ज्ञान होना चाहिए ताकि आप ये जान सकें कि कुछ ठीक-ठाक हो गया। तो किसी व्यक्ति की छोटी-छोटी चीज़ों को आप देखेंगे तो उसे बहुत 43 अब ये मेरी जिम्मेदारी है। चैतन्य लहरी खंड :XII अंक : 9 & 10. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-45.txt "कहने लगे वह तुम्हारे पास क्यों आया? मैंने कहा,"सम्भवत: उसने ये सोचा होगा कि मैं आपसे ज्यादा क्षमाशील हूँ। कहने लगे."कि मैं अच्छा लगेगा। मैं आपको ग्रेगोर की एक बात बताती हैूँ। किसी दुकान पर हम साड़ियाँ देखने गए। एक साड़ी मुझे अच्छी लगी परन्तु उसे मैंन नहीं भी क्षमाशील हो सकता हूँ।" तो उसे क्षमा कर खरीदा। मुझे लगा कि इतना सारा पैसा बेकार दें, मुझमें ये युक्तियाँ स्वाभाविक रूप से हैं आप करना ठीक न था। मैंने वह साड़ी छोड़ दी। अगले दिन मुझे भेंट करने के लिए ग्रेगोर वही प्रभावित करना कठिन नहीं है। छोटी-छोटी चीज़ों साड़ी लाया। उस साड़ी को मैंने खजाने की तरह से बहुत अन्तर पड़ता है। आपके कर्मचारी यदि से संभाल कर रखा। छोटी-छोटी चीजों को बहुत बीमार हों तो उनकी देखभाल करें, पता लगाएं भी इन्हें आत्मसात कर सकते हैं। दूसरे लोगों को पतंत कि उनकी पत्नियाँ और बच्चे तो बीमार नहीं हैं. महत्व दिया जा सकता है। उनका ध्यान रखें। संस्था को परिवार की तरह से एक बार मेरे पति के दफ्तर के एक लिया जाना चाहिए। किसी के पति-पत्नी यदि व्यक्ति ने अधिक तनख्वाह की लालच में दूसरी बीमार हैं तो उन्हें फूल भेज दें। संस्था में नौकरी कर ली। जब वह वहाँ गया तो क्रिसमस आदि पर लोग प्रायः एक कार्ड उसे पता चला कि वहाँ की स्थिति बहुत ही भेज देते हैं लेकिन संस्था की अपनी ही कार्ड भेजने की शैली होनी चाहिए। कार्ड पर आप खराब हैं। वहाँ जाकर वह बहुत दुखी हुआ और वापिस अपने पुराने कार्यालय आना चाहा। जब वापिस आया तो मेरे पति बहुत नाराज़ हुए और स्वयं हस्ताक्षर करें और उस पर थोड़ा सा अपने कहने लगे" कि मैंने तुम्हें जाने से रोका था परन्तु तुमने मेरी बात नहीं मानी। अब मैं तुम्हें वापिस पत्नी ठीक होगी, मुझे आशा है आपके बच्चे हाथ से अवश्य लिखें। मुझे आशा है आपकी ठीक होंगे। यदि आप उनकी पत्नी को जानते हैं नहीं ले सकता।" वह व्यक्ति मेरे पास आया। न तो लिखें" उन्हें मेरा नमस्कार कहना। " उन्हें जाने उसने क्या सोचा? उसने मुझे सारी घटना बताई और कहा कि वह जहाजरानी निगम में शराब आदि पिलाने की ज़रूरत नहीं है, केवल है। वापिस आना चाहता कहने लगा," मुझसे कुछ यह महसूस करवाना आवश्यक है कि उन्हें प्रेम गलती हुई और अब श्री श्रीवास्तव मुझसे नाराज़ किया जाना है तथा वे संस्था से जुड़े हुए हें और हैं और अब मुझे बापिस नहीं लेना चाहते। मेरे वे महत्वपूर्ण हैं। किसी के पद परिवर्तन के विषय में भी पति जब घर आए तो मैंने उनसे कहा, कि वह मुझसे मिलने आया था." ओह! तो वह तुम्हारे सावधानी बरतें। मान लो मैं चाहती हूँ कि क्रिस्टिन अमरीका की लीडर बने और ग्रेगोर भी पास आया था जैसे तुम मेरी अफ़सर हो!" और वहाँ हो परन्तु क्रिस्टिन के मामलों में दखलन्दाजी न करें तो मैंने कहा, "ग्रेगोर देखो वह वहाँ पर वे बहुत गुस्से हो गए। मैंने कहा बह आपके निगम में आना चाहता है मेरे विचार से आपको है और वह बहुत अच्छे ढंग से लोगों से बर्ताव 44 उसका ध्यान रखना चाहिए। चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 9 & 10, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-46.txt कर रही है। वहाँ के लोगों को वह जानती है कि उनमें क्या कमी है। परन्तु कृपा करके इन सब चीजों का ध्यान रखो, इस तरह से कार्य हो जाएगा। लोग आपको गम्भीरता से लेंगे क्योंकि वे जानते हैं कि आप स्वयं जिम्मेदार हैं और उन तथा लोग भी उसे प्रेम करते हैं तथा सम्मान करते हैं। आप एक नए व्यक्ति हो जो वहाँ जा रहे हो और क्रिस्टिन के पति भी हो। आप विश्व लीडर हैं इसलिए आपको वहाँ के स्थानीय मामलों में दखलन्दाजी नहीं करनी।" और उसने पर ज़िम्मेदारी डाल रहे हैं। ये सब इस प्रकार होना चाहिए। लखनऊ में मिठाइयों की एक बहुत प्रसिद्ध दुकान है। उसके पिता की मृत्यु हो गई है परन्तु इस बात को समझ लिया। यदि मैंने कहा होता" वहाँ जाकर कुछ नहीं वोलना, अब तुम चुप रहना, तो बेटा वहाँ पर है। उसका बहुत बड़ा सा पेट है, सम्भवत: ये बात कार्यान्वित न होती। वह यह सब जानता है। राजेश को भी मैं यही बात कहूंगी फिर भी वह वहाँ बैठा रहता है। कार लेकर आप वहाँ जा सकते हैं क्योंकि दुकान अच्छी खासी दूरी पर है। उसकी युक्ति पर मैंने ध्यान कि विश्व में कहीं भी जाकर सहज का कार्य करो। दिया। सबसे पहले वह मिठाई के लिए आपका बिना पूरा प्रबन्ध किए लोगों को अचानक दूसरी जगह मत भेजो। इस बात का ध्यान रखो आदेश लेता है। आपको बिठाकर वह अपने कि जिस व्यक्ति को भेजा गया है उसके लिए नौकरों से कहेगा."तुम लोग क्या कर रहे हो? इनका सामान क्यों नहीं देते. इतने समय से ये ठीक से प्रबन्ध है। देखें कि वास्तव में आप उस यहाँ बैठे हैं, इन लोगों की ओर देखो। लोगों का व्यक्ति को दूसरे स्थान पर भेजना चाहते हैं। पूरी तरह से आप यदि विश्वस्त नहीं हैं तो मामले इतना समय बर्बाद करते हैं। फिर उसने मुझसे को लटकने दें। समय के अनुसार ये सब चीजें पूछा आपने अभी तो हवाई जहाज से नहीं जाना मैंने कहा,"नहीं, मैं ठीक हूँ।" तो सदैव उसके भली-भांति घटित हो जाती हैं । थोडा सा समय गुजर जाने दें। व्यक्ति को इसके विषय में संकेत दें,"लोग शिकायत कर रहे हैं. क्या करें? मैं पास यही बहाना होता है। तब वह कहने लगा"मैंने ये मिठाई बहुत विशेष रूप से बनाई है आप इसे चाहूंगी कि तुम मेरी सहायता करो।" ताकि उसे लगे कि आपने सुधरने के लिए उसे काफी चखकर देखें। आप उस चीज़ का स्वाद देखेंगे और कहेंगे, ठीक है. ये चीज भी मुझे दे दो। इस प्रकार से वह चलता रहता है। समय लगाता है समय दिया। बिना समय दिए यदि आप किसी और कुछ समय के पश्चात कहता है."इन लोगों की ओर देखो ये कितने खराब हैं। अपना काम को कहें"कि अब आप यहाँ से चले जाओ।" तो वह आपका शत्रु बन जाएगा। इसके विपरीत आपको कहना चाहिए."मुझे समाप्त करना भी इन्हें नहीं आता। अरे, वहाँ क्या कर रहे हो, इन श्रीमतीजी को मिठाईयाँ क्यों नहीं देते? इन्होंने अभी जाना है। इतना समय खेद है, परन्तु ये लोग ऐसे ही हैं, ये हमें कष्ट देने का प्रयत्न कर रहे हैं और मुझे हर समय क्यों लगा रहे हो? मुझे खेद है, आप ये मिठाईयाँ 45 परेशान कर रहे हैं। मेरी भी समझ में नहीं आता चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 9& 10. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-47.txt चखेंगी? और वे ये सब आपके चखने के लिएचाहिए। दफ्तर में फैशनेबुल वस्त्र पहनने वाले ले आएंगे। आप कुछ भी खाइए। आप कहते अच्छे प्रशासक नहीं हो सकते क्योंकि वे ढीले हैं,"ठीक है, इन सब चीज़ों को खाते-खाते जब पड़ जाते हैं और ढीले व्यक्तित्व के लोगों का आप दुकान से बाहर निकलने लगते हैं तो नाजायज़ लाभ उठाया जाता है। एक तरह से आपकी जेब के सारे पैसे समाप्त हो चुके होते हैं आपको सख्त होना चाहिए। सदैव दफ्तर के क्योंकि दुकान की हर मिठाई आप खरीद लेते हैं। उसकी यही युक्ति उपयुक्त वस्त्र पहने तो लोगों को इससे घवराहट है। होगी। कुछ समय बाद आप यह सब समझ जाते हैं और उससे कहते हैं कि मैं ये सब चालाकियाँ जानता हूँ. आप मुझे बो भी अपने अफ़सर को कहता है" हे टॉम, आप सब दे दें जिसकी मुझे जरूरत है। मैं ये कहते का प्रयत्न कर रही हूँ कि जब आप उसे अपनी चीजें बेचते हुए देखते हैं हैं. तो कोई अदना सा कर्मचारी भी जब उसके तो मधुरता का एक रिश्ता बिकसित हो जाता है। इसके विपरीत यदि कोई कहे कि"ये मेरी बनाई है तुम्हारे पास थोड़ा सा तम्बाकू है? और वह इसी प्रकार आजकल दफ्तर में एक ड्राइवर कैसे हो?" कोई सम्मान नहीं है या यदि अफ़सर कोई नशा लेता है, जैसे भारत में तम्बाकू खाते पास जाता है तो अफ़सर उससे भी यही पूछता अपनी जेब से निकालकर उसे तम्बाकू देता है। हुई चीज़ है आपको यदि चाहिए तो ले लो नहीं तो बाहर हो जाओ। तो आप एकदम बहाँ से बस हो गई सारी मर्यादा समाप्त। तो इस तरह की सारी आदतें हानिकारक हैं। इनसे मुक्त होने बाहर ही हो जाएंगे। बेचने का पूरा दृष्टिकोण इस प्रकार क्रेता और विक्रेता के सम्बन्धों पर आ जाता है। तो भी अपने मातहत कर्मचारियों से उम्मीद का प्रयत्न करें। आप ऐसा अगर नहीं कर सके सम्बन्ध कार्य करते हैं उत्पाद नहीं। उत्पाद को करें कि वे आपकी इस आदत को ठीक बताएं। घटिया मज़ाक और चीजें कोई पसन्द नहीं करता भाड़ में जाने दो उसकी कोई चिन्ता नहीं करता। पाँच तरह के उत्पाद यदि एक ही तरह के हों तो आप उस संस्था के पास जाएंगे जो विवेकशील हो और सम्मानपूर्वक लोगों से व्यवहार करती हो और समय पर अच्छी चीजें उन्हें पहुँचाती हो। परन्तु पहले पता लगाएं कि अन्य संस्थाओं में परन्तु ये छोटे कर्मचारी ऐसे मज़ाक करते हैं और समझते हैं कि वे लोकप्रिय हैं। वे लोकप्रिय नहीं हैं क्योंकि लोकप्रियता तो अपनी विशेषताओं से पाई जा सकती है उन जैसा बनके नहीं। मैं आपको एक अन्य घटना बताती हूँ श्री सी.पी. के दफ्तर में एक महिला थी जो जीन्स श्री सी.पी. ने उसे बुलाया क्या गुण हैं? उनके पास क्या चीज़ है? वे क्या बेच रहे हैं? परन्तु अधिकतर मैंने देखा है कि ग्राहक के साथ आपके सम्बन्ध कार्य करते हैं । और कहा श्रीमती जी मैं नहीं चाहूँगा कि आप दफतर में भी आपके सम्बन्ध अच्छे होने ऐसे वस्त्र पहनें। आप पैन्ट या कोई भी विवेकशील चाहिए। सर्वोपरि आपका व्यक्तित्व अच्छा होना बेशभूषा पहन सकती हैं परन्तु ये जीन मत पहनकर आती थी। 46 चैतन्य लहरी । खड : XII अंक : 98 10. 2000 ve क 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-48.txt पहनिए। वह कहने लगी"ठीक है. गलियों में. घर में या अन्यत्र ये पहनी जा सकती है तो यहाँ हम अपने बच्चों के साथ भी ऐसा ही करते हैं। भारतीयों को जब किसी के घर जाना होता है तो वे पहले ही बच्चों को सिखाते हैं कि वहाँ जाकर तुम्हें कुछ माँगना नहीं है। उनकी किसी चीज़ को हाथ नहीं लगाना बहुत अधिक क्यों नहीं? ऐसा नहीं हो सकता। " श्री सी. पी. ने कहा,"ठीक है, तो कृपा करके आप त्याग-पत्र दे दें, मैं तुम्हें नहीं रखूंगा। तत्पश्चात् उसने ठीक प्रकार के कपड़े पहनने शुरु कर दिए। अच्छी वेषभूषा से काफी फ़र्क पड़ता है। नहीं खाना। खाना भी हो तो बहुत कम खाना है| जब आपको कुछ दिया जाए तो धन्यवाद कहना कल मेरे पास कोई सफेद साड़ी न थी। है। वहाँ पहुंचने पर सबको नमस्कार करना है। अपने कार्यक्रमों में मैं सदैव सफेद साड़ी पहनती हूँ। लाल बार्डर वाली सफेद साड़ी कल मुझे हैं और कहा जाता है यदि तुम ऐसा नहीं करोगे पहननी पड़ी। इससे बहुत फर्क पड़ता है । मान तो अगली बार तुम्हें साथ नहीं ले जाएंगे। लो मैं आपसे मिलने आ रही हूँ तो मेरी वेशभूषा घर पर ही ये सब चीजें बच्चों को सिखाई जाती तो इस प्रकार उन्हें पहले से ही सावधान का आप पर बहुत असर पड़ेगा," ओह! श्री कर दिया जाता है। वास्तव में उन्हें इस चीज़ का माताजी ने हमसे मिलने के लिए फला साड़ी ज्ञान होता है कि क्या करना है। मान लो बिना पहनी थी। यह आपक अन्दर प्रकाश की तरह से तैयारी के अपनी संस्था के पाँच लोगों को आप है। आपकी वेशभूषा और आपका आचरण आपके अन्तस को दर्शाता है। किसी प्रकार की ढील आपके प्रशासन को खराब करती है। अतः सदैव मीटिंग में ले जाते हैं तो वे वहाँ पर बहस करने लगते हैं। आरम्भ में सहजयोगी ऐसा ही किया करते थे। अन्य लोगों के सामने वे मुझसे बहस किया करते थे जिसके कारण समस्या होती थी। अपने पद का ध्यान रखें। मैंने देखा है कि दफ्तरों में लोग उलट अत: मुझे उनसे कहना पड़ा कि अन्य लोगों के कर जवाब देते हैं। आपके अपने लोग सामने सामने बहस न करें। आपने यदि मुझे कुछ बोलते हैं। परन्तु यदि जापान की कम्पनियों को देखें तो वहाँ केवल एक व्यक्ति बोलता है सब चुप्पी साधे बैठे रहते हैं। जब वह उनसे बताना ही है तो अलग से बताएं। परस्पर भी बाकी ईष्ष्यांभाव नहीं होने चाहिए। अपने लोगों के बीच ईष्ष्या बहुत देखने को मिलती है। आपको कोई प्रश्न पूछता है तभी वह बोलते हैं। उनमें वताना होगा, "हर आदमी का अपना कार्य है एक प्रकार की निष्ठा बनी हुई है। किसी भी सभी कुछ करना है और अच्छी तरह से करना कार्यक्रम पर जाने से पहले वह पाँच लोगों को है। हम सब साथ हैं और एक हैं। आप सब इन बुलाएगा और उनसे कहेगा हमें ऐसा करना है। तुम्हें ये बात कहनी है और तुम्हें ये। सभी कुछ दायां| तो परस्पर इंष्ष्यां केैसी? इस प्रकार सभी पूर्वनिश्चित होता है। अन्य लोगों की उपस्थिति कुछ ठीक हो जाएगा। संस्था सशक्त हो जाएगी में किसी को भी बोलने की स्वतन्त्रता नहीं होती। जिसका लाभ हम सबको होगा अत: संस्था के दो हाथों की तरह से हैं एक बायां है और एक 47 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 9& 10. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-49.txt प्रति उन्हें निष्ठावान बनाएं। हमारे शुद्ध लाभ कहने का क्या लाभ? वह यदि कारण बताने के अगर अधिक हैं तो अच्छे बोनस भी दिए जाने लिए आपके पास आए तो आपको ये कहने के लिए तैयार होना होगा कि उसे ये बात क्यों तो अन्दर से मैं समझती हूँ कि आपकी करनी पड़ी और मैंने यह बात क्यों नहीं कही। कुण्डलिनी बहुत अच्छी है और जानती हूँ कि मैंने स्वयं ये बात इसलिए नहीं कही ताकि कार्यों को किस प्रकार करना है। मान लो मुझे मूर्खता करने वाला वह व्यक्ति अपना स्थान चाहिए। किसी से आपके विषय में कहना है तो में पहचान ले और आपके सम्बन्ध भी ठीक ठीक कहँगी कि "उसकी देखभाल करते हुए ये कार्य बने रहें। अत: आपके पारस्परिक सम्बन्ध आपकी करो?" हो सकता है वह लापरवाह हो, वह मेरी गरिमा, आत्मसम्मान और अन्य लोगों के सम्मान बात को नहीं समझेगा। वह कहेगा,"श्रीमाताजी बनाए रखते हुए पनपने चाहिए। जिस प्रकार ऐसा कह रही थी।" अत: मुझे उसको चेतावनी देनी होगी." आप स्वयं ये सब कहो, उसके आप अपने प्रति व्यवहार करते हैं वैसे ही अन्य लोगों से करें। आपमें यदि अपने प्रति ही बोलने से पहले ये सब कुछ समझाया जाना सम्मान नहीं है तो किस प्रकार आप अन्य लोगों आवश्यक है क्योंकि कार्य हो जाने के पश्चात् का सम्मान करेंगे। 48 चैंतन्य लहरी खंड : XII अंक : 9 & 10. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-50.txt ২২৯,