हैन्दी आवृत्ति चैतन्य लहरी न से अंक जैयम्बर विसह्यर-2000 ॥४- an के ए बिना ध्यान-धारणा के आपका उत्थान नहीं हो सकता। आपको ध्यान-धारणा तो करनी ही होगी...तभी शुद्धिकरण होगा।..शनैः शनैः...आप बहुत गहन हो जाएंगे और आपकी शक्तियाँ प्रकट होने लगेंगी। जहाँ भी आप होंगे नकारात्मकता वहाँ से भाग जाएगी और सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान हो जाएगा। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी गुरु पूजा कबेला, 23,7.2000 श] ये ज्ञान, जो आपने प्राप्त किया है वह प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। तु एरम पन्य मानाजी शरी निर्मता हेी मेरा चित हमेशा आप पर होता है। सदैव आप लोग-ण लीगों की प्रधालित करता हुआ। मैं आपके विपय में सभी कुछ इसलिए जान लेती हैं कि मेरा चित्त सर्व्यापी है। आपके साथ कोई भी घटना यदि होती है, कोई भी परेशानी जब आपकी होती है, कोई भी परिवतन जब आप में होता है तो मै चित्त यहा पर होता है। परम पूल् माताी शरी तिर्मला देी ममरात्रि पु ा = । पस इस अंक में गुरु स्तुति 1. 2. गुरु पूजा 23.7.2000 ईस्टर पूजा-23.4.2000 3. 20 आदिशक्ति पूजा 4. 32 योगी महाजन सम्पादक : विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार , नई दिल्ली-110 067 : अभिनव प्रिन्ट्स, विल्ली- 34 फोन : 7184340 मुद्रक ्ड गुरु स्तुति परग पूज्य श्री मातानी के श्री चरणों में अर्पित ज्ञानेश्वरी के अध्याय 12 से 18 पर आधारित हे , गुरु माँ (गुरु मौली) आपको कोटि-कोटि प्रणाम। अपने बच्चों पर निर्मल एवं शाश्वत श्री माताजी, आप हमें आरती का बरदान 1. 6. देती हैं, आत्मा जिसकी लपट है, और खेलने के आनन्द-निरानन्द की उदारतापूर्वक वर्षा करने के लिए आप सर्वत्र विख्यात हैं। हे, गुरु माँ, हे करुणामयी, वासनारूपी सर्प लिए मन:शक्ति तथा प्राणशक्ति रूपी दो खिलौने प्रदान करती हैं। तथा, हे माँ, आध्यात्मिक आशीष के गहनों से हमारा श्रृंगार करती हैं । हे गुरु मौली (गुरु माँ). अपने अमृत का 2. अपने शिकंजे में कसकर जब हमें डसता है तो 7. उसका जहर हमारी चेतना का हरण कर लेता है। भोजन आप हमें प्रदान करती हैं और 'सोह वासना रूपी इस सर्प के जहर को उतारना भी ' हंसा' के अनहद नाद की लोरी गाकर हमारी बहुत कठिन कार्य है। परन्तु हे प्रेममयी माँ. आपके एक कटाक्ष मात्र से यह ज़हर लुप्त हो सुलाती हैं। जाता है तथा चेतना पुनर्जागृत हो उठती है। 3. हे, परमप्रिय गुरु, श्री माताजी. अत्यन्त आत्मा को ज्योतिर्मय करके हमें योगनिद्रा में हे श्रीमाताजी, हे गुरुमूर्ति, आप ही सभी साधकों की माँ हैं। सारी विद्या का उद्भव 8. आपके चरण कमलों से होता है। कृपा करके वर कृपा कर आपने अमृत का सागर हमें प्रदान किया है। सांसारिक जीवन की तपन किस प्रकार दें कि हम आपके चरण कमलों की छाया में हमें कष्ट दे सकती है और किस प्रकार इसके सदा-सर्वदा बने रहें। दुख हम पर विजयी हो सकते हैं? हे परम प्रिय गुरु, केवल आपकी कृपा के श्रीमाताजी अपनी करुणा का आश्रय जब 9. आप हमें प्रदान करती हैं तो हम दिव्य ज्ञान 4. कारण ही आपके बच्चे योग के आशीष का शुद्ध विद्या) में पारंगत हो जाते हैं। 10. हे गुरु, श्री माताजी, आपको कोटि-कोटि शाश्वत् आनन्द उठा रहे हैं। आप ही अत्यन्त प्रेमपूर्वक हम पर 'सोह' (मैं वही हूँ) की आशीष वर्षा कर रही है। प्रणाम। आपके चरण कमलों की छत्रछाया में ही शुद्ध विद्या पनपती है। श्रीमाता जी निःसन्देह हे माँ, अपने हृदय के झूले में, अपनी आपके चरण कमल ही हमारी आत्मा है। 11. श्रीमाता जी आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 5. गोद में, अपनी पोषक शक्ति द्वारा आप प्रेमपूर्वक अपने बच्चों का लालन पालन करती हैं और आपका स्मरण मात्र हमें शब्दों के अथाह सागर उन्हें योगनिद्रा में सुलाती हैं। पर आधिपत्य प्रदान करता है अर्थात् अपनी 50 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 2000 he सूक्ष्म भावनाओं को प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त करने की शक्ति प्राप्त हो जाती है और हमारी रक्षा करने में आप देर नहीं करतीं। आप करुणा का अनन्त सांगर हैं। सारा दिव्य ज्ञान आपका अभिन्न मित्र है। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि जिह्वा से दिव्य ज्ञान (शुद्ध विद्या) बहने लगती है। 18. श्रीमाताजी आपकी माया की लीला में श्रीमाताजी जो आपको कोटि कोटि प्रणाम। 12. आपके स्मरण मात्र से व्यक्ति की वाणी इतनी जब हम लिप्त होते हैं तो हमें लगता है यह मधुर हो जाती है कि माधुर्य, अमृत तथा सभी संसार सत्य है। परन्तु जब आप अपना ब्रह्म रूप रस विनम्र होकर शब्दों के माध्यम से तुरन्त प्रकट करती है अर्थात् सर्वशक्तिमान परमात्मा अभिव्यक्त हो जाते हैं। 3. श्रीमाताजी आपको कोटि कोटि प्रणाम । का सच्च रूप, तो हमें इस बात का ज्ञान होता है कि श्रीमाताजी आप ही सर्वव्याप्त हैं। श्रीमाताजी आपकी अनुकम्पा से आपके बच्चों को ऐसे आपको कोटि-कोटि प्रणाम। शब्द सूझते हैं जो आत्मा से उदित होने वाले गहन अनुभव तथा सूक्ष्म रहस्यों को अभिव्यक्त जादू का सम्मोहन डालता है तो दर्शक पूरे विश्व करते हैं । 19. श्रीमाताजी जादूगर जब दर्शकों पर अपने को भूल जाते हैं। परन्तु जादूगर स्वयं को छुपा 14. श्रीमाताजी हमारे हृदय जब आपके चरण नहीं सकता। परन्तु श्रीमाताजी आपकी माया का जादू आपके विषय में सत्य की चेतना को लुप्त कर देता है और व्यक्ति भ्रान्तिमय संसार को सत्य मान लेता है। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि कमलों में होते हैं तो सौभाग्यश्री, दिव्य ज्ञान तथा साक्षात्कार की कृपा हम पर होती है। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 15. श्रीमाताजी आप सर्वदेवों में महान् हैं। प्रणाम । 20. श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम । दिव्य ज्ञान का प्रकाश (प्रज्ञा) प्रदान करने वाले केवल आप ही संसार के जरें-जरें में व्याप्त हैं । सूर्य आप ही हैं। आप ही की कृपा से आपके बच्चे (साधक) निरानन्द रूपी जीवन आनन्द प्राप्त कर सके। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि सहजयोगियों तथा आत्मसाक्षात्कारी लोगों में आप अपने ब्रह्म रूप में प्रकट होती हैं। ब्रह्म रूप में प्रकट होकर उन्हें अन्तरप्रकाश प्रदान करती हैं। प्रणाम । परन्तु माया में लिप्त लाग आपके विषय में नहीं जान पाते। श्रीमाताजी आपसे सम्बन्धित आपकी 16. श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। आप ही वह वट वृक्ष हैं जिसकी छाया में है। आपके बच्चे सुख और सुरक्षा का अनुभव करते यह लीला अत्यन्त अद्भुत 21. श्रीमाताजी आप ही की शक्ति जल को हैं। अपने बच्चों के हृदय में आप ही 'सोहं' का तरलता तथा पृथ्वी माँ को क्षमा का गुण प्रदान सूक्ष्म रहस्य प्रकट करती हैं। आप ही वह सागर करती है। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। हैं जिसमें तीनों लोक प्रकट तथा लुप्त होते हैं। श्रीमाताजी त्रिलोकी में आप ही की शक्ति श्रीमाताजी कष्ट में फँसे अपने बच्चों की 22. 17. चैंतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 2000 सूर्य तथा चन्द्र की तरह चमकती है। विना हैं। आपकी शक्ति के वे मोती को जन्म देने वाली 27. श्रीमाताजी तदातम्य भाव हमारी युग सीप के खोल सम होते। श्रीमाताजी आपको हस्तांजलि सम है जिससे हम कलियाँ निकालकर आपके चरण कमलों में अर्पण करते हैं। हमारी कोटि-कोटि प्रणाम। 23. श्रीमाताजी आप ही की शक्ति के कारण नाड़ियाँ, चक्र तथा इन्द्रियाँ ही ये कलियाँ हैं। पवन स्वतन्त्रता पूर्वक कहीं भी बहती है तथा इन्हें हम आपके चरण कमलों में समर्पित करते सर्वव्याप्त प्रतीत होने वाला गगन आपके ब्रह्माण्डीय हैं आपको कोटि-कोटि प्रणाम। ार 28. श्रीमाताजी अनन्य भाव से (पूर्ण समर्पण अस्तित्व का मात्र नन्हा सा भाग है जिसे वैसे ही खोजना पड़ता है जैसे लुका छिपी खेल में छिपे हुए व्यक्ति को। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि उन पर अपनी अनामिका (Ring Finger) से भाव से) हम आपके चरण कमल धोते हैं और समर्पण का चन्दन लगाते हैं। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। प्रणाम। श्रीमाताजी केवल इतना ही नहीं है। माया 24. भी आपके विराट रूप का एक नन्हा सा अंश है 29. श्रीमाताजी आपके प्रति हमारा प्रेम स्वर्ण की तरह से है। कृपा करें कि हम इस स्वर्ण को और अन्तरप्रकाश का उद्भव भी आप ही की शक्ति के कारण है। श्रुतियों (वेदों) ने आपके पवित्र करके इसकी पाजेबें बनाकर इन्हें आपके रूप का वर्णन करने का निरर्थक प्रयास किया चरणों में पहना सकें। परन्तु आपके रूप को समझ न पाई। श्रीमाताजी 30. श्रीमाताजी कृपा करें कि अपने प्रेम के आपको कोटि-कोटि प्रणाम। शुद्ध स्वर्ण से अंगूठियाँ बनवाकर हम आपकी पादांगुलियों में पहनाएं। श्रीमाताजी परमात्मा के स्वरूप का वर्णन 25. करने में वेदों को दक्ष माना जाता था। परन्तु ये श्रीमाताजी, आनन्द-सुगन्ध से परिपूर्ण सत्व 31. गुण रूपी पुष्प हम आपके चरण कमलों में अर्पित करते हैं। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि दक्षता तभी तक सीमित थी जब तक उन्होंने आपके 'ब्रह्म रूप' का अवलोकन नहीं किया। आपके पावन स्वरूप का वर्णन आरम्भ करते ही प्रणाम। 32. श्रीमाताजी, अपने अहं की अगरबत्तौ वेद बिल्कुल वैसे ही शान्त हो जाते हैं जिस जलाकर हम न अहम् की भावना की ज्योति से प्रकार हम आपके ध्यान की स्थिति में होते हैं। आपके चरण कमलों की आरती उतारते हैं। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 26. श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। हम आपके सभी बच्चों ने अपने हृदय शुद्ध कर श्रीमाताजी हमारा शरीर और प्राण पादुकाओं 33. लिए हैं। कृपा करके अपने चरण कमल हमारे हृदय में विराजित करें। अपने हृदय में, श्रीमाताजी, कमलों में धारण कीजिए। श्रीमाताजी आपको का जोड़ा है। कृपा करके इसे अपने चरण कोटि-कोटि प्रणाम। हम आपके चरण कमलों की पूजा करना चाहते चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12. 2000 सभी बच्चे अखण्ड आभारी हैं। हमारे जीवन से 34. श्रीमाताजी कृपा करें कि आपके चरण कमलों में ये पूजा जो आपके बच्चे कर रहे हैं दुख समाप्त हो गए हैं, पाप क्या होता है ये हम सभी कमियों के बावजूद भी पूर्ण हो और आप इसे स्वीकार करें। भूल गए हैं और दारिद्रय का अस्तित्व समाप्त हो गया है। आपके पावन दर्शन करके जीवन की 35. श्रीमाताजी अपनी पूजा का ये अवसर पूर्णता का आनन्द हमें प्राप्त हो गया है। श्री य आपने हमें प्रदान किया, इसके लिए हम आपके माताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : । & 12. 2000 गुरु पूजा कबेला-23.7.2000 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन धर्मों ने यदि एक ही बात कही है तो आपके सभी धर्मों का कंवल लक्ष्य, स्वयं को जानना है आज हम यहाँ गुरुतत्व को समझने के लिए आए हैं। गुरु क्या करता है? आपके अन्दर जो भी कुछ है, आपके अन्तर्निहित बहुमूल्य गुण. आपके ज्ञान के लिए वह इन्हें खोजता है। परन्तु लोग कर्मकाण्डों में फैस जाते हैं। वे सोचते हैं कि ये कर्मकाण्ड करके वे परमात्मा के बहुत समीप हैं। अपने विषय में वे पूर्ण अन्धकार में वास्तव में सारा ज्ञान, सारी आध्यात्मिकता, सारा आनन्द आपके अन्तर्निहित है। यह सब आपके अन्दर विद्यमान है। गुरु तो केवल आपको आपके रहते हैं जिसका आत्मा से कोई मतलब नहीं। रहते हैं और दिन रात कुछ न कुछ ऐसा करते ज्ञान और आपकी आत्मा के प्रति चेतन करते हैं । सभी के अन्दर आत्मा है और सभी के अन्दर आध्यात्मिकता भी है। ऐसा कुछ भी नहीं है जो आपको बाहर से मिलता हो। परन्तु ये ज्ञान प्राप्त करने से पूर्व आप इससे कटे हुए होते हैं या अज्ञानता के कारण भिन्न प्रकार के व्यायाम, प्रार्थनाएँ, पूजाएँ आदि करते रहते हैं ऐसे लोगों को लोग पैसे देते रहते हैं, वे लोग धनवान हो जाते हैं। इनकी दिलचस्पी केवल धन में होती आपको मूर्ख है। आपका सारा धन लूटकर वे बनाते हैं। वे आपके अहंकार को भी बढ़ावा देते अन्धकार में होते हैं और उस अज्ञानता में आप नहीं जानते कि आपके अन्दर कौन सी सम्पदा हैं और इसके कारण आप भ्रम के समुद्र की ओर बहने लगते हैं और अन्तत: स्वयं को बहुत ही धार्मिक तथा परमात्मा से जुड़े हुए मानते हुए निहित है। अत: गुरु का कार्य यह है कि वह आपको इस बात का ज्ञान करवाए कि आप आप इसी भ्रम सागर में डूब जाते हैं। जबकि क्या हैं। ये पहला कदम है कि वह आपके वास्तव में आप परमात्मा से जुड़े ही न थे! अन्दर वह जागृति आरम्भ करता है जिसके द्वारा परमात्मा को जानने के लिए पहले आपको स्वयं को जानना चाहिए। स्वयं को जाने बिना परमात्मा आप जान जाते हैं कि बाह्य विश्व मात्र एक भ्रम है तथा आप अपने अन्तस में ज्योतित होने लगते ताः को नहीं जाना जा सकता। स्वयं का ज्ञान प्राप्त है। कुछ लोग तत्क्षण पूर्ण प्रकाश प्राप्त कर लेते करना बहुत आवश्यक है। परन्तु जब आपको स्वयं का ज्ञान प्राप्त होता है तो वह भी अधूरा हैं और कुछ इसे शनै: शनै: प्राप्त करते हैं। सभी धर्मों का सार यही है कि आप स्वयं को पहचानो। जो लोग धर्म के नाम पर लड़-झगड़ रहे हैं उनसे आपने पूछा है कि क्या आपके धर्म होता है। आपका अनुभव अधूरा होता है। यह ज्ञान आवश्यक है और केवल गुरु ही आपको आत्मा का ज्ञान देता है। अब आपने इसे जाँचना 9र ने आपको अपनी पहचान करवा दी है? सब चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : । & 12, 2000 है और परखना है कि आपके गुरु ने जो कुछ की शैली शनै: शनैः परिवर्तित होतीं है कैसे? बताया वह सत्य है या नहीं। गुरु की वताई हुई सर्वप्रथम अत्यन्त उग्र स्वभाव, क्रोधी तथा अहंकार बातें ठीक हैं भी सही या नहीं। कहीं ये बातें भी से पूर्ण व्यक्ति अत्यन्त भद्र एवं विनम्र होने लगता है। दूसरी तरह के भयग्रस्त और अत्यन्त एक अन्य प्रकार का भ्रम जाल तो नहीं है? उत्थान मार्ग पर लोग बहुत सी समस्याओं में फँस जाते हैं। जिनमें से सर्वोपरि अहं की उस स्थिति में व्यक्ति को भय विल्कुल नहीं सावधान रहने वाले व्यक्ति निर्भय हो जाते ि समस्या है विशेष रूप से पश्चिम में अहं वढ़ रहता। वह विश्वस्त होता है कि वह ठीक मार्ग जाता है और आप सोचने लगते हैं कि आप पर है और ठीक रास्ते पर चल रहा है। आसानी बहुत महान हैं और अन्य लोगों से अच्छे हैं और से ऐसा व्यक्ति उत्तेजित नहीं होता। फिर भी आपको और अधिक ऊँचाई तक उन्नत होना है, आप में कुछ बहुत ही विशेष हैं। यह अज्ञानता सांसारिक अज्ञानता से कहीं अधिक भयानक है उस स्तर तक जहाँ ध्यान-धारणा करते हुए आप क्योंकि सांसारिक अज्ञानता में आप गलत कार्य जान सके कि आपमें क्या दोष है। के परिणाम भी महसूस करते हैं। उत्थान मार्ग पर आपने अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लिया है, आत्मसाक्षात्कार का आशीर्वाद आपको जाते हुए जब आप आधे रास्ते पर होते हैं, जब आपकी अज्ञानता अपने विषय में होती है तब प्राप्त हो गया है, आपका स्वास्थ्य अच्छा हो गया है, आपको सभी प्रकार के इतने सारे आशीर्वाद व्यक्ति को समझना चाहिए कि उसमें अहं न हो। इस स्थिति में आत्मनिरीक्षण आरम्भ होता है गए हैं कि आप गणना भी नहीं कर प्राप्त हो सकते । सभी कुछ है परन्तु अभी आपको और अ्थात् सहजयोग के पूर्णज्ञान को है, जब आपको पता चलता है कि आपमें कोई समझना है। अपनी बौद्धिक योग्यता से सर्वप्रथम आपने इसे समझना है और तत्पश्चात् जाँचना है करने लगते हैं। यह प्रयत्न अत्यन्त ईमानदारी से कि यह कहाँ तक सत्य है, किस स्तर तक किया जाना चाहिए। सहजयोग में बहुत ही आपने इसे समझा है. कहाँ तक इसे आपने आरम्भिक स्थिति में लोग सोचने लगते हैं कार्यान्वित किया है और कहाँ तक इसे जाना है? कि वे बहुत महान हैं उन्हें आत्मदर्शन की अन्तर्दर्शन द्वारा जब आप स्वयं को देखने आवश्यकता नहीं है। ऐसे लोग आत्मसाक्षात्कार लगते हैं तो भक्ति के साम्राज्य में प्रवेश करने लगते हैं तब न तो आप बहुत अधिक बादलों में फँस जाते हैं। अत: आपको बोलते हैं और न किसी को परेशान करने आप स्वयं को देखने लगते हैं कि आपमें क्या त्रुटि है जब आप समझ जाते हैं कि आपमें अहं आगे जाना है है। कमी है या दोष है तभी आप आत्मनिरीक्षण को प्राप्त किए बिना ही पुन: अज्ञानता के आत्मदर्शन करना होगा और स्वयं देखना का प्रयत्न करते हैं। अत्यन्त मधुर, भद्र और विवेकशील व्यक्ति आप बन जाते हैं। ऐसे होगा कि आप क्या करते रहे हैं, आप क्या हैं? आप कहाँ तक उन्नत हुए हैं। ऐसे व्यक्ति व्यक्ति को स्वयं परखना चाहिए कि वह अन्य 10 चैतन्य लहरी खंड : XII अक : 11 8 12, 2000 सभी सन्तों को सताया गया और परेशान किया लोगों से किस प्रकार व्यवहार कर रहा है। अब चित्त एक व्यक्ति से दूसरे पर जाने लगता है गया। अधिकतर सन्तों को सताया गया परन्तु इन लोगों ने कभी इनका विरोध नहीं किया, कभी और आप देखने लगते हैं कि आप किस प्रकार बदला नहीं लिया और कोई क्रूर कार्य नहीं रहे हैं, आपकी सुहृदयता के क्या गुण हैं? किसी किया। परेशान करने वाले लोगों के लिए इनके मन में केवल करुणा भाव थे। हे परमात्मा कृपा आचरण कर रहे हैं, किस प्रकार आप प्रेम कर व्यक्ति से जब आप निर्वा्य प्रेम करते हैं तब उसके प्रति पूर्णतः समर्पित होते हैं पूर्णतः। उसकी करके इन्हैं क्षमा कर दें. ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं। ये लोग इतने करुणामय थे, आज्ञा आप मानते हैं और यदि यह प्रेम विद्यमान है जिसे आप समर्पण भी कहते हैं, तो आप करुणा ही इनका स्वभाव बन गई थी। करुणा जब स्वभाव बन जाती है तो ऐसे लोग पूर्णतः शान्त हो जाते हैं वे कभी उत्तेजित नहीं होते. किसी भी घटना से वे उत्तेजित नहीं होते। सांचते हैं कि यही परमात्मा की मर्जी है। उन्हें कुछ भी उसके लिए कुछ भी कर सकते हैं। यह मात्र प्रेम है। समर्पण प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं और बह प्रेम अत्यन्त आनन्ददायी है। यह भक्ति, ा और भक्ति उत्तेजित नहीं कर सकता, कुछ भी अशान्त नहीं यह समर्पण आरम्भ हो जाता है आपका शुद्धीकरण कर देती है। आपके सभी दुर्गुण जिन्हें मैं कमियाँ कहती हूँ तथा अपने गुरु तथा परमात्मा के प्रति अपनी भक्ति का। कर सकता। वे अपनी भक्ति का आनन्द लेते हैं, भक्ति के इसी आलम में वे चाहे कविता अन्दर की समस्याओं को आप समझते हैं और लिखें, चाहे नृत्य करें, चाहे भजन गाएं, क्योंकि समस्याओं से परिपूर्ण आप पाते हैं तो निर्वज्य शान्ति उनके अन्तःस्थित है और वे आनन्दमग्न प्रेम के कारण आप उस व्यक्ति को सहन करने हैं। अकेलेपन में भी वे कभी अकेले नहीं होते। अपना ही आनन्द लेते हैं। वे जानते हैं कि वे इन पर काबू पाते हैं। किसी को यदि इन दुर्गुणों, का प्रयत्न करते हैं । ऐसा व्यक्ति सब कुछ सहन करता है। उसमें किसी भी प्रकार को आक्रामकता परमात्मा के साथ एक रूप हैं तथा परमात्मा के आशीर्वादों का वे आनन्द लेते हैं। कृत्रिमता वे नहीं होती। ऐसे लोग केवल क्षमा करते हैं। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति बढ़ते ही चले जाते हैं। कभी नहीं अपनाते, कभी चिन्तित नहीं होते उनकी क्षमा करने की शक्ति अथाह होती है। कभी उत्तेजित नहीं होते न वे भविष्यवादी होते उनके मन में किसी के भी प्रति दुर्भावना नहीं हैं न वे भूतकाल की बातें सोचते हैं, सदैव वर्तमान में रहते हैं। वर्तमान में रहते हुए वे पूर्णत: शान्त होते हैं। कोई भी समस्या या दुर्घटना यदि हो तो वे तुरन्त निर्विचार समाधि में भक्ति का संगीत । क्षमा का यह धन इन गुरुओं चले जाते हैं। उनके अन्दर इस स्थिति में जाम होती। किसी के भी प्रति क्रोध नहीं होता वे सहन करते चले जाते हैं । और क्षमा करते जाते है। क्षमा का यह गुण संगीत सम हैं- आपकी चले जाने की योग्यता होती है। ने ईसा-मसीह के जीवन से प्राप्त किया होगा। 11 चैतन्य लहरों खंड : XII अंक : 11 & ।2, 2000 ho गुरु बनने के लिए आपको ऐसा व्यक्तित्व करने के लिए विवश हो जाएं, पूर्णतः विवश। आपको समझना चाहिए कि परमेश्वरी में न फँसे। मैं आपको अपना उदाहरण दूँगी। मैं शक्ति आपके आस-पास है और यह आपकी कभी जल्दबाजी नहीं करती। न ही कभी मैं सुरक्षा तथा आपकी सभी आवश्यकताओं समय की चिन्ता करती हूँ। एक बार मैं अमेरिका की पूर्ति का पूर्ण आश्वासन है। आप कह सकते हैं कि श्री माताजी आप वहुत विकसित करना होगा कि आप किसी भी वन्धन कके जा रही थी। आपको यदि इस बात पर विश्वास है कि परमात्मा ने आपके लिए सारी योजना बना शक्तिशाली हैं। परन्तु यदि आप परमेश्वरी रखी है तो आप निश्चिंत हो जाते हैं । परमात्मा कार्य के प्रति पूर्णतः समर्पित हो जाएं तो आपकी देखभाल कर रहे हैं तो चिन्ता क्यों आप भी अत्यन्त शक्तिशाली बन सकते हैं। आपको शक्तियाँ भी प्राप्त हो जाएंगी और परमेश्वरी कार्य भी। शक्तियों के साथ साथ करनी है? मुझे अमेरिका जाना था परन्तु एक बच्चा गिर गया। जाने के लिए मैं उठने ही वाली थी कि बच्चा गिरा और उसकी बाजू टूट गई। जब मैंने बच्चे को देखा तो कहा ठीक है पहले परमात्मा आपको आवश्यक कार्य भी देंगे तथा उसे करने के लिए आवश्यक समय भी मैं बच्चे को ठीक करूँगी। सब लोग कहने लगे प्रदान करेंगे। सभी कुछ परमात्मा आपको कि आप अमेरिका जा रहो हैं । मैंने कहा मैं प्रदान करेंगे। अन्य लोगों से बहकर करुणा जब निश्चित रूप से जाऊंगी। मैंने बच्चे को ठीक परमात्मा की ओर दिव्य व्यक्ति की ओर या आपके गुरु की ओर आने लगती है तो जीवन किया और इस कार्य में लगभग आधा घण्टा लगा। बाहर आकर मैने कहा कि अब वायुपत्तन बहुत ही सहज हो जाता है बहुत ही सहज। पर चलें। कहने लगे. ्रीमाताजी आपने बहुत देर सभी जटिलताएँ समाप्त हो जाती हैं और कर दी है। मैंने कहा,"मुझे कभी देर नही होती, आपको किसी भी चीज़ की चिन्ता नहीं चली, चलें।" हम बायुपत्तन पहुँचे और पाया कि रहती। आँखें बन्द करिए और आपके सभी कार्य हो जाते हैं। कार्य इस प्रकार होते हैं जिस वायुयान से मुझे जाना था वह खराब था, उसके स्थान पर एक अन्य यान आया था जो मानो आपको यही इच्छा रही हो। न तो न्यूयार्क के स्थान पर वाशिंगटन जा रहा था| वास्तव में मैं भी वाशिंगटन ही जाना चाहती थी। इसके विषय में सोचना पड़ता है। सभी कुछ आपको इसकी इच्छा करनी पड़ती है, न अब आप कल्पना कीजिए कि किस प्रकार चीजें स्वतः कार्यान्वित होता है। परमात्मा सभी घटित होती हैं। इसे हम सहज कहते हैं यह सहज कार्यान्वयन है। अर्थात् यह सब प्रयत्नविहीन आपके स्वास्थ्य और सभी चीज़़ों को। यह है, स्वत: घटित होता है। परन्तु सर्वप्रथम आपका व्यक्तित्व ऐसा होना चाहिए, आपकी भक्ति इतनी माँगनी नहीं पड़ती, आप तो ऐसे व्यक्तत्व दृढ़ होनी चाहिए कि परमात्मा आपकी देखभाल होते हैं जिसके लिए परमात्मा जिम्मेदार है । चैतन्य लहरी कार्यों को देखते हैं आपकी सुख-सुविधा, परमेश्वरी सहायता आपको खोजनी नहीं पड़ती, 12 ॥ खंड : XI अंक : । & 12, 2000 12,2000 अपने बच्चों की देखभाल करनी होती है और आप परमात्मा की विशेष जिम्मेदारी बन जाते हैं और वे जानते हैं कि आपके लिए क्या उनका मस्तिष्क एसी सभी सांसारिक चीज़ों में फैसा होता है और उनके पास ध्यान-धारणा के अच्छा है और क्या नहीं। मैं एक उदाहरण देती हूँ. ऐसे वहुत से लिए समय हो नहीं होता। बिना ध्यान-धारणा मैं दे सकती हूँ, मान लो मैंने सोचा कि के आपका उत्थान नहीं हो सकता। आपको कोई व्यक्ति मुझसे मिलने आ रहा है और उदाहरण ध्यान-धारणा तो करनी ही होगी। लोग सोचते है। हैं हमें आत्मसाक्षात्कार तो मिल ही गया सहजयोगियों ने कहा कि श्रीमाताजी वों तो बहुत बुरा है, तो वह आएगा ही नही, मेरे पास पहुँचेगा ही नहीं। सभी अच्छी घटनाएँ घटेंगी और यदि कोई बुरी घटना घटित होती है तो आप अपनी करुणा का उपयोग करें। कुछ बुरा घटित होने की स्थिति में आप अपनी करुणा का उपयोग सभी कुछ ठीक है। नहीं। आपको प्रतिदिन ध्यान-धारणा तो करनी ही होगी तभी शुद्धीकरण होता है। आन्तरिक शुद्धों के पश्चात् आप समझ पाते हैं क्या चीज़ आवश्यक है और क्या अनावश्यक है तथा ये भी कि आपके चक्र करके समस्या का समाधान करें। आप अपनी साफ हो गए हैं। परमात्मा ही इस कार्य को करते समस्याओं, अपने आस-पास की समस्याओं हैं, परन्तु आपको नियमपूर्वक ध्यान-धारणा करनी आवश्यक हैं। शने: शनैः आपको लगेगा कि तथा अपने समुदाय की समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। तो अब आपको आत्मसाक्षात्कार मिले आपको ध्यान-धारणा बहुत गहन हो गई है। आप बहुत गहन हो जाएंगे और आपकी चुका है! मैं नहीं जानती कि इसमें आप कितनी शक्तियाँ प्रकट होने लगेंगी जहाँ भी आप गहनता तक पहुँचेंगे? मेरे पास बहुत सी महिलाओं होंगे नकारात्मकता वहाँ से भाग जाएगी और सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान हो के बारे में शिकायत है, न ही वे ध्यान धारणी करती हैं और न अपनी देखभाल करती हैं। वे जाएगा| जो भी कुछ आपको चाहिए होगा वह आत्मसाक्षात्कारी नहीं है, यही कारण है कि उनके पति उन्हें तलाक देना चाहते हैं वे सोचते हैं कि ये औरतें बेकार हैं। कुछ पुरुष भी ऐसे ही मिल जाएगा। दूसरों की सहावता करने की इच्छा दूसरों को कुछ देने की इच्छा पूर्ण हो जाएगी। ये मेरा अपना अनुभव है जो मैं आपको बता रही हैं। इस समस्या का समाधान करने के लिए हूँ। सायकाल कम से कम दस मिनट और प्रात: करुणा का होना आवश्यक है। और काल कम से कम पाँच मिनट पूर्ण श्रद्धा तथा लगन से ध्यान करें। मैंने यहाँ उपस्थित कुछ लोगों में गहन भक्ति और श्रद्धा देखी है। श्रद्धा आपमें किसी भी तरह से अपनी करुणा द्वारा अपने जीवन साथी को ठीक मार्ग पर लाना आवश्यक भक्ति से कहीं ऊँची है। यह आपके अस्तित्व का अंग-प्रत्यंग बन जाती है और पूर्णतः आपके रोम-रोम में समा जाती है। ये श्रद्धा 13 है। आखिरकार पुरुष महिलाओं की अपेक्षा बहुत व्यस्त होते हैं, परन्तु महिलाओं के पास भी अन्य सन बहुत से कार्य होते हैं। उन्हें अपने परिवार की चैतन्य लहरी ख : । & 12, 2000 : X1I अंक जब आपको प्राप्त हो जाएगी तो ये बहुत सुझा सकता है किस प्रकार आपकी सहायता हो चमत्कारिक है। ये बहुत से चमत्कार करती सकती है। श्रद्धा से एक प्रकार के भाईचारे का है। ये बात सत्य है कि मेरे सोचने मात्र से बहुत भी उद्भव होता है। चाहे आप सहजयोग पर भाषण देते हों और सभी प्रकार के कार्य से लोग रोग-मुक्त हो गए। ये वास्तविकता है परन्तु इसका अर्थ ये नहीं है कि उन लोगों में करते हो, जब तक आपमें श्रद्धा नहीं हैं आपका उत्थान नहीं हो सकता। में कहना उस उच्च स्तर की श्रद्धा थी। कहने से मेरा अभिप्राय ये है कि उनमें वह श्रद्धा स्वयं में चाहूंगी कि यह श्रद्धा एक प्रकार का प्रेम है जो मन्द-मन्द अग्नि की तरह से फैलता है। विकसित करनी चाहिए। श्रद्धा आत्मा का नैसर्गिक प्रकाश है इसे ऐसी अग्नि की तरह से जो जलाती नहीं है, अपने अन्दर विकसित कैसे किया जाए? अपने गर्मी नहीं देती, सुन्दर शीतल लहरियों का अन्दर विकसित करने की लोग जी तोड़़ कोशिश अनुभव आपके अन्तस में भर देती है और कर रहे हैं। परन्तु श्रद्धा मानसिक गतिविधियों इस अनुभव को आप समझ भी जाते हैं। से नहीं विकसित की जा सकती। आत्मा के कभी किसी सहजयोगी की निन्दा न करें, कभी नहीं। कुछ सीमा तक मैं किसी ऐसे व्यक्ति की ध्यान-धारणा के अतिरिक्त किसी भी अन्य बात नहीं सुनती जो किसी सहजयोगी की शिकायत विधि से श्रद्धा विकसित नहीं हो सकती। मैं सदा आपसे ध्यान-धारणा के लिए कहती हैँ। करता है। परन्तु यदि यह शिकायत सामूहिक हो कौन व्यक्ति ध्यान-धारणा करता है और तो मुझे थोड़ी सी चिन्ता होती है और इसके विषय में मैं सम्बन्धित अगुआ से पूछती हूँ। कोई जाता है। लोग मेरी पूजा करेंगे, सहजयोग के व्यक्ति आकर यदि मुझसे शिकायतें करें तो बारे में बातचीत करेंगे लोकप्रियता के लिए प्राय: मैं उससे कहती हैँ कि आप स्वयं अन्तर्दर्शन कौन नहीं करता इसका मुझे तुरन्त पता चल बाहर जाकर सहज प्रचार करेंगे, परन्तु अपने करो वास्तविकता यह नहीं है। दूसरों के दोष अन्तस में उन्होंने अभी तक स्वयं को नहीं ढूंढना मानव की एक आम कमजोरी है। मानव खोजा। तो विकास की इस अवस्था में आपको अपने दोषों को नहीं देखता। अन्य लोगों के दोष पूर्ण उत्साह के साथ ये समझ लेना चाहिए कि खोजने का क्या लाभ है। अन्य लोगों में दोष खोजने से आपको कोई लाभ न होगा अपने दोष ध्यान-धारणा तथा अन्तर्दर्शन के साथ आप यह ढूँढने का प्रयत्न करें जिन्हें आप ठीक भी कर सकते हैं जिससे आपको लाभ भी हो सकता है और जिसे आप कार्यान्वित भी कर सकते हैं। ये आपकी जिम्मेदारी है। स्वयं को जानना आपके स्थिति सुगमता से प्राप्त कर सकते हैं। अन्तर्दर्शन द्वारा सूझ-बूझ का नया गुण आपमें विकसित हो जाएगा और आप समस्याओं का समाधान कर सकेंगे। किसी भी आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के अन्दर यह गुण होता है। वह आपकी सभी लिए आवश्यक है। अतः अच्छा होगा कि आप अपने दोष खोजें और उन्हें ठीक करें। 14 समस्याओं का समाधान खोज सकता है। वह चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 1। & 12, 2000 ी परन्तु कुछ लोग दूसरों के दोष खोजने की अपनी आदत पर गर्व करते हैं। बात-बात में वे कहते हैं कि मुझे ये पसन्द है मुझे वो पसन्द है। आत्मा के विषय में आपके क्या विचार हैं? आपको ये होता है तो आपको चाहिए सामूहिक रूप से उसकी सहायता करने के स्थान पर उसके विरूद्ध इस प्रकार सामूहिक भावना बनाना तो अत्यन्त गलत है। कोई भी सहजयोगी जब कठिनाई में पसन्द है आपको वो पसन्द है परन्तु आत्मा के उसकी सहायता करें। चाहे उसमें कुछ कमियाँ विषय में आपके क्या विचार हैं? क्या आपको ही क्यों न हों उसकी निन्दा न करें अगर आप ये कहते हैं उसमें ये कमी है, उसमें वो कमी है और उस व्यक्ति की निन्दा करने लगते हैं तो आप सहजयोगी नहीं हैं। आप तभी तक सहजयोगी हैं जब तक अन्त्तदर्शन के माध्यम से आप अपने दोष देख सकते ि वो पसन्द है? क्या आपको आत्मा का आनन्द आता है? लोग कहे चले जाएंगे मुझे ये पसन्द नहीं है, मुझे वो पसन्द नहीं है। ये कहना पश्चिमी देशों की आम बात है। अब आप देखिए कुछ महिलाओं ने सुन्दर हैं। कालीन बनाए हैं। ये इतने मोटे हैं कि मैं जब इन पर चलती हूँ तो कभी-कभी डोल जाती है परन्तु अब आपमें से अधिकतर लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो चुका है। इसका अनुभवे जिस प्रेम के साथ ये बनाए गए हैं वह मुझे इतना आपकों है। परन्तु आपमें से कुछ लोगों को आनन्द से भर देता है, इतनी खुशी प्रदान करता है कि आप कल्पना नहीं कर सकते कि में इसका ज्ञान नहीं है। आपको चाहिए कि वह ज्ञान य प्राप्त करें और परखें, ये ज्ञान वास्तव में है या उनके विषय में क्या महसूस करती हैूँ! यह आनन्द, आनन्द का ये सागर आपके अन्दर नहीं। जैसे अमेरिका में निह (NIH) नामक स्वास्थ्य निहित है और जब यह उमड़ने लगता है तो आपको कष्ट नहीं देता। यह आपको इतने चाहे, ये लोग डॉक्टर थे और उनमें से एक ने सुन्दर आनन्द से भर देता है कि इसका वर्णन आगे बढ़कर कहा"ठीक है अपनी चैतऱ्य लहरियों करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। आपके अस्तित्व पर यह एक फुहार की तरह से है। यह वहाँ गई सहजयोगिनियों ने बताया कि श्रीमन कृपा वर्षा है। अन्य लोगों द्वारा दिया गया प्रेम आपके हृदय में कुछ खराबी है। उसने कहा."यह आपको रोमांचित कर देता है। यह प्रेम आप संस्थान में उन्होंने सहजयोगियों पर परीक्षण करने द्वारा मुझे बताइए कि मुझमें क्या कमी है।" तो न बात ठीक है, क्योंकि एक महीना पूर्व ही वह किसी से मांगते नहीं परन्तु जब भी किसी ऐसे हृदय की बाह्यपथ शल्य चिकित्सा (Bypass व्यक्ति को देखते हैं जो अत्यन्त प्रेममय, अत्यन्त Surgery) करवा चुका था। अस्पताल से वह ठीक ठाक बाहर आया था वे लोग हैरान हो गए क्योंकि रोग निदान करने में ही रोगी अधमरा हो सुहृदय है तो ऐसे सम्बन्ध में सच्ची मित्रता होती है। परन्तु सहजयोगियों की बुराई करना अत्यन्त गलत है और फिर लोगों से बताते फिरना कि उसमें ये कमी है, उसने ऐसा किया है तथा चैतन्य लहरी जाता है! तो चैतन्य लहरियाँ अनुभव करके व्यक्ति के रोग का पता लगाना अत्यन्त ही सुगम ड 15 खंड : XII अंक : 11 & 12, 2000 तरीका है। उन्होंने हमारी ओर बहुत ध्यान दिया खोज रहे हैं कि हम स्वयं को पहचानना चाहते हैं किसी तरह से हम जान गए हैं कि हमें स्वयं को पहचानना है इसलिए हम खोज रहे हैं। इसके अत: आपको चाहिए स्वयं को जाँचें, लिए हम सभी प्रकार के कार्य कर रहे हैं। मेरे है। अस्पताल में वह सहजयोग विकसित करना चाहते हैं। पुरखें और देखें कि आप क्या हैं| मान लो एक अभिप्राय ये हैं कि इस खोज के नाम पर हम पति-पत्नी हैं पत्नी ध्यान-धारणा करती है, सभी सभी प्रकार के गलत कार्य कर रहे हैं। परन्तु कुछ जानती है, वो जानती हैं कि उसके पति में यही खोज आपको सहजयोग तक ले आती क्या दोष है परन्तु उसे बताती नहीं। वह सहन करती रहती है, उसकी शिकायत नहीं करती जो कि कुण्डलिनी जागरण के माध्यम से सहज और न ही उसे कुछ कहती है। उसकी ये है। कुण्डलिनी अधिकतर कार्य कर देती है। सहनशीलता पति को विश्वस्त करती है कि किसी ने मुझे बताया कि कुण्डलिनी जागरण के उसकी पत्नी का व्यक्तित्व उससे कहीं ऊँचा है। बाद उसने रातोरात शराब और धूम्रपान त्याग वो चाहे जो कुछ हो, समझ जाता है कि उसकी दिया। मैं ऐसा करने के लिए कभी नहीं कहती तब आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना होता है ा पत्नी ने यह महान व्यक्तित्व प्राप्त कर लिया है। परन्तु रातोरात उसने ये सब त्याग दिया और पश्चिम के देशों में विशेष रूप से बहुत चारित्रिक कहने लगी कि पहले मैं अपने बालों की शैली खामियाँ हैं वास्तव में ऐसे लगता है जैसे उन्हें साँप ने ही काट लिया हो। पश्चिम के लोग जो विशेषज्ञ के पास जाकर मैं बाल बनाती थी। के विषय में बहुत तुनकमिजाज थी। बाल- सज्जा कुकृत्य करते हैं उनके विषय में अविकसित सौन्दर्य प्रसाधक के पास मैं बहुत सा समय देश के लोग तो सोच भी नहीं सकते। विकास ने लगाती थी। कहने लगी मैंने ये सब भी त्याग उन्हें सभी प्रकार की स्वच्छंदता दी है तथा दिया है। पहले मैं बेढगे वस्त्र पहनती थी परन्तु आवारागर्दी का स्वभाव दिया है। वो सोचते हैं कि वे स्वतन्त्र हैं और कहीं भी जाकर किसी भी अब में अपने शरीर का सम्मान करने लगी हूँ और गरिमामय वस्त्र पहनती हूँ। ये सारा ज्ञान प्रकार से मजे ले सकते हैं। यह एक आम शैली आपको स्वत: ही आ जाता है ये आपके अन्तनिर्हित है परन्तु आप अपने को जाँचे। क्या आप इन्हीं है क्योंकि ये आपका अपना ज्ञान है। गुरु के लोगों में से हैं या उन लोगों में से हैं जो उत्थान बताने से भी आपका पथ-प्रदर्शन होता है। गुरु मार्ग में आपसे कहीं ऊँचे हैं? यह एक प्रक्रिया का कार्य आपका पथ-प्रदर्शन करना है। तो इस स्थिति में क्या कमी है? सहजयोग में जो कमी है वह मुझे आपको बतानी है| विश्व में हमारे सम्मुख बहुत से सामूहिक विध्वंस हैं। एक दम से आप उत्थान के उस बिन्दू तक नहीं पहुँच सकते। कभी-कभी तो नए सहजयोगी पुराने सहजयोगियों से बहुत अच्छे होते हैं क्योंकि उनमें बहुत दृढ़ इच्छा होती है। आपकी समझना हुए, बहुत प्रकार की विपदाए, भूकम्प, बाढ़ तथा चक्रवात आए। परन्तु सहजयोगी सदैव सुरक्षित 16 चाहिए कि हम क्या खोज रहे हैं। हम इसलिए चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 1 & 12, 2000 প শ मैंने कहा अगर ये लोग इसी प्रकार फैलते गए रहे। नि:सन्देह इन प्राकृतिक विपत्तियों से सहजयोगी सदैव सुरक्षित रहे। परन्तु यह सुरक्षा प्राप्त करने पातदि और इनकी संख्या इतनी बढ़ गई तो क्या होगा? विनाश! वे तो इतने नकारात्मक लोग हैं कि के पश्चात् भी आपने क्या समझा? आपने क्या जाना? क्यों ये विपदाएं आ रही हैं? क्योंकि विश्व का हित तो करना उनके लिए असम्भव सहजयोग सामूहिक नहीं है। सहजयोग को है। इसी प्रकार से आप देखें कि कुगुरुओं की अत्यन्त सामूहिक होना है, इसे सर्वत्र फैलना है। सहजयोग को बहुत अधिक लोगों तक पहुँचना चाहिए। परन्तु हम इसके लिए कुछ सन्देश को फैलाते हैं? मैंने लोगों को सड़कों पर नहीं करते या कभी थोड़ा बहुत कर लेते हैं। गाते हुए देखा है। अटपटे वस्त्र पहनकर अपने आपको बाहर निकलना होगा। ईसामसीह के गुरु की स्तुति गाते हुए! हमें इस तरह की चीज़़ों बारह शिष्यों की ओर देखो। उन्होंने बहुत सी की कोई आवश्यकता नहीं है। आप लोगों को पतंजा तरफ लोग किस प्रकार खिंचे चले जाते हैं? किस प्रकार उनसे जुड़ जाते हैं और उनके गलतियाँ भी की फिर भी किस प्रकार उन्होंने ज्ञान प्राप्त हो गया है और नि:सन्देह आप आत्मसाक्षात्कारी हैं। परन्तु महत्वपूर्ण बात ये है कि आपने सहजयोग के लिए क्या किया? ईसाई-धर्म को फैलाया और कितनी प्रवलता से इस कार्य को किया? वह प्रबलता, वह गहनता सहजयोग आपको सर्वत्र फैलाना होगा उदाहरण के लिए आप मेरा एक बिल्ला (Badge) पहना करें तो लोग आपसे पूछेंगे कि ये क्या है? तब यदि आपमें नहीं है और यदि आप सहजयोग प्रसार के लिए स्वयं को पूर्णतः समर्पित नहीं कर देते तेा सामूहिक समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता। आप तो केवल अपनी सांसारिक चीज़ों में, अपनी नौकरियों आदि में ही व्यस्त हैं। सहजयोग में ये भी मान्य है, कोई एतराज नहीं है। परन्तु आपको अपना चित्त जीवन के दूसरे आप उन्हें सहजयोग के विषय में बताएं? आप सहजयोग के विषय में बातचीत करना शुरू कर दें. इसके अतिरिक्त कुछ न करें। केवल सहजयोग की बातचीत करें और सहजयोग को फैलाते जाएं। जब तक आप ये कार्य नहीं करते तब तक पक्ष पर भी डालना चाहिए कि हम सामूहिकता के लिए क्या कर रहे हैं? क्या हम सहजयोग ये सामूहिक न होगा और सामूहिक गलतियों के कारण जो प्राकृतिक विनाश होने वाला है वो होकर रहेगा। आपकी सुरक्षा बहुत सी विपदाओं से की जाती है। प्रदूषण होते हुए भी सहजयोगियों और क प्रचार कर रहे हैं? क्या हम लोगों को इसके विषय में अवगत करा रहे हैं? मैं हैरान थी कि एक बार वायुयान से यात्रा करते हुए एक महिला मेरी साथ वाली कुर्सी पर बैठी थी और उसकी पर इसका प्रभाव नहीं पड़ता। चाहे भूकम्प चैतन्य लहरियाँ बहुत खराब थीं। मैंने स्वयं को विनाश हो, सहजयोगी की सुरक्षा होगी। तो क्यों बन्धन दिया और उससे पूछा कि वह अपने न हम पूरे विश्व की रक्षा करें। विपत्ति के बाद विपत्ति आ रही है। यदि आपमें करुणा है तो उन आध्यात्मिक उत्थान के लिए क्या करती है? उसने बहाई मत का नाम लिया। हे परमात्मा। सब लोगों के विषय में सोरचे जो इन विपदाओं 17 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : ।। & 12, 2000 11 & 12. के शिकार होने वाले हैं इसमें कोई सन्देह नहीं कि मैं बहुत से लोगों को रोगमुक्त कर सकती हूँ। नि:सन्देह मैं नहीं जानती कि सहजयोग को करके उन्हें सामूहिक बनाना होगा, अन्यथा आप इस विश्व को परमात्मा के प्रकोप से नहीं बचा सकेंगे नि:सन्देह परमात्मा अत्यन्त क्रोधमय हैं। आप लोगों की तो वे रक्षा करेंगे सामूहिक किस प्रकार बनाए। अब आप बहुत बड़ी संख्या में हैं। आप परन्तु उसका क्या लाभ होगा? हमें तो पूरी पृथ्वी माँ को बचाना होगा और इस कार्य के सब लोग आत्मसाक्षात्कार देना प्रारम्भ कर सकते हैं। आप लोगों को चाहिए कि कम से लिए आपको तैयार रहना है। आपको यह सब कम सौ लोगों को आत्मसाक्षात्कार दें। कार्यान्वित करना होगा। जहाँ भी अवसर मिले जगह-जगह जाकर आत्मसाक्षात्कार के विषय में सहजयोग का प्रचार करें। कुछ लोगों ने मुझे बातचीत करें। परमेश्वर (परमेश्वरी माँ) की बताया कि श्रीमाताजी यदि आप आ जाएं तो स्तुति गाएं और आप पूरे विश्व को बचा लेंगे। थोड़़े से लोगों को बचा लेने से आप सतयुग तो मैरे जैसे बन सकते हैं। इसके विषय में लोगों नहीं ला सकते। इसके लिए पूरी पृथ्वी माँ को बता सकते हैं। मैंने केवल एक व्यक्ति से अच्छा होगा, क्यों? ऐसा क्यों है? आप लोग भी को बचाना होगा। इस पर रहने वाले सभी सहजयोग आरम्भ किया था और उस समय तो लोगों को बचाना होगा, चाहे जैसे भी ये सर्वत्र पूर्ण अंधेरा था। कोई साधक न था केवल भयानक लोग थे, फिर भी यह कार्यान्विवत हुआ। लोग हैं। दूरदर्शन पर मैंने देखा है कि किस प्रकार निर्लज्जतापूर्वक ये लोग उन चीजों की बातें करते हैं जिनके विषय में इन्हें बिल्कुल है आप सब लोग भी ऐसा ही क्यों नहीं करते ज्ञान नहीं है और हजारों लोग इनके पीछे-पीछे और इसके विषय में लोगों को क्यों नहीं बताते? घूमते हैं! ये बात नहीं है कि लोग मुर्ख हैं या वे अंत: हर व्यक्ति बहुत से सहजयोगी बना सकता आपका आचरण, आपकी शैली निश्चित रूप से लोगों को प्रभावित करेगी। आपको इस प्रकार किसी गलत मार्ग पर चलना चाहते हैं, परन्तु ये कुगुरु उन्हें फँसाने की कला में सिद्धहस्त है ये इसे कार्या्वित करना है कि सामूहिक चेतना जानते हैं कि किस तरह से उन्हें अपने शिकंजे प्राप्ति का अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकें। सहजयोग में लेना है किस तरह से उनसे बातचीत करनी केवल सहजयोगियों के लिए ही नहीं है। ये है। परन्तु सहजयोगी यदि किसी खराब चैतन्य सबके लिए है ताकि प्राकृतिक विपदाएं तथा लहरियों वाले व्यक्ति को देखता है तो वह भयानक घटनाएं जो घट रही हैं रुक जाएं, पूर्णतः रुक जाएं। मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ कि भाग खड़ा होता है! ऐसे व्यक्ति से बचने का इन्हें रोका जा सकता है। जिस प्रकार आपकी प्रयत्न करता है उनके पास जाकर ये नहीं सदा रक्षा की गई है वैसे ही उन सभी लोगों की रक्षा की जाएगी जो आत्मसाक्षात्कार को कहता कि आपकी चैतन्य लहरियाँ खराब हैं! अत: आप लोगों को साहसिक होना होगा और उन स्थानों पर जाकर उनसे बातचीत प्राप्त कर लेंगे। क्यों न खुलकर बातचीत की 18 चैंतऱ्य लहरी । खंड : X॥ अंक : 11 & 12.2000 सम्मुख बहुत सी चीजें हैं, उनमें आपका चरित्र भी है। कल इन्होंने मुझे बताया कि किस प्रकार जाए और लोगों को बताया जाए कि यदि हम इस प्रकार अपराध करते रहे, यदि हम इसी प्रकार चरित्रहीनता, धोखाधड़ी और शोषण करते रहे और स्वयं को यदि हमने लाओत्से ने गुरुओं के विषय में लिखा कि किस प्रकार वे सभी चीजों से ऊपर थे-अशांति, ईर्ष्या विनाशशक्ति बनाए रखा तो इस दैवी प्रकोप तथा व्यर्थ की बातचीत से ऊपर वे अत्यन्त से बचा नहीं जा सकेगा और मैं सोचती हूँ कि हम इसके लिए जिम्मेदार होंगे। हर कार्य करने के लिए या किसी भी बुराई से बचने के लिए आपको संस्थाएं बनाने की आवश्यकता नहीं है। मैं जानती हूँ कि आप लोगों में से कुछ लोग यह उन्हें विश्वास दिलाने और सहजयोग में लाने की स्थिति प्राप्त कर चुके हैं परन्तु अधिकतर ने महान हैं। वे गुरु हैं और गुरु रहेंगे और आप लोग यदि ऐसा ही करने का प्रयत्न करेंगे तो आप भी गुरु होंगे। आपने यही प्राप्त करना है। आपकी शक्ति से ही सब कार्य हो जाएगा। मुझे अपनी करुणा एवं प्रेम से उस स्थिति को प्राप्त आशा है कि गुरु के रूप में आप लोग समझेंगे कि आपने क्या करना है। गुरु के रूप में आपके करना है। परमात्मा आपको धन्य करे। 19 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 11 & 12.2000 ईस्टर पूजा इस्ताम्बूल टर्की 23.4.2000 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन महानतम घटना है, आपके जीवन की यह महानतम आज हम ईंसा मसीह के पुनर्जन्म की घटना है, और आपको चाहिए कि स्वयं को भाग्यशाली माने कि आप यह उपलब्धि प्राप्त महान घटना का उत्सव मना रहे हैं। आपका पुनर्जन्म भी वैसे ही हुआ और आपने परमेश्वरी प्रेम से परिपूर्ण नवजीवन प्राप्त कर लिया। आप कर सके। अपने पूर्व जन्मों में इस स्वर्गीय स्थिति सब जानते थे कि कुछ उच्च घटना घटित होनी को प्राप्त करने की आपकी तीव्र इच्छा के कारण ही ऐसा हुआ। खोजने के लिए लोग तथा आपको पुनर्जन्म पाना है। परन्तु कोई भी ये बाते न जानता था कि यह किस प्रकार होना दरी-कन्दराओं में जाया करते थे तथा सभी है। आपके अस्तित्व के प्रकार क कार्य किया करते थे। आप लोग यह सूक्ष्म पक्ष के विषय में आपको कभी नहीं बताया गया । सन्तों ने केवल सब तपस्याएं कर चुके हैं अब आपको कुछ इतना बताया कि आपको किस प्रकार आचरण नहीं त्यागना। कोई त्याग करने की जरूरत नहीं करना है उन्होंने कंवल इतना कहा कि अपने है। त्याग की धारणा गलत है। में कहूंगी कि यह असामयिक विचार है। यह समय तो आपके जीवन को किस प्रकार अत्यन्त पावन तथा सत्यनिष्ठ बना के रखें, परन्तु ये नहीं बताया कि सहज-पु्नजन्म, स्वतः उत्थान प्राप्त करने का है। इसके लिए आपको कुछ नहीं करना, यह इतना ये कार्य किस प्रकार हो पाएगा। नि:सन्देह भारत में लोग इसके विषय में जानते हैं परन्तु उनकी संख्या बहुत ही कम है। अब आप लोगों के हो रहा है। वास्तव में मुझे अत्यन्त प्रसन्नता हुई माध्यम से यह ज्ञान विश्व भर को जा रहा है। जब मेंने देखा कि मुसलमान लोग भी, जिनके जब आपकी अपनी माँ, आपकी व्यक्तिगत माँ, विषय में मैं बहुत चिन्तित थी और सोचती थी कुण्डलिनी, उठती हैं तो वे आपको पुनर्जन्म कि इन्हें किस प्रकार बचाया जाए. आत्मसाक्षात्कार प्रदान करती हैं और इस प्रकार परम चैतन्य से को प्राप्त कर रहे हैं। यह लोग बुराइयों के जाल आपका योग हो जाता है। ये सब बिना साक्षात्कार में फंसे हुए हैं। व्यक्ति को यह समझना चाहिए प्राप्त किए यदि बताया जाए तो यह अर्थविहीन कि कुरान मोहम्मद साहब की मृत्यु के 40 वर्षों है। परन्तु लोगों को इसके विषय में बड़े-बड़े के पश्चात् लिखी गई। तो हो सकता है कि शब्दों सहज है और इतनी अच्छी तरह से कार्यान्वित विचार दिए गए तथा उन्हें बताया गया कि एक को इंधर-उधर कर दिया गया हो और इनके दिन आपका पुनर्जन्म होगा। आपके लिए यह अर्थ भी संदिग्ध हों। उसी समय सुन्ना (SUNNA) 20 चैतन्य लहरी । खंड : XII अक :। 8 12.2000 नामक एक अन्य पुस्तक भी छपी ऑर इसको वह इन कार्यो के लिए जिम्मेदार हैं. जबकि छापने वाला व्यक्ति कोई सन्त न था, क्योंकि उनसे न तो इन्हें करने की योग्यता होती है और न ही इन कार्यों को करने का अधिकार उन्हें है। वह आत्मसाक्षात्कारी नहीं था। में नहीं समझ पाती कि धर्म के दृष्टिकोण से कविताओं को परिणाम स्वरूप ईसाईमत में मानव के अन्तरूत्थान आप किस प्रकार समझ पाते हैं और पद्य में के प्रति एक बहुत ही गलत दृष्टिकोण बना लिखी गई बातों को ठीक रूप से किस प्रकार लिया। इसके परिणाम आज आप दंखें। कैथोलिक व्याख्या करते हैं। मैं भी कवियित्री हूँ और चर्च में घटित होने वाली घटनाओं को आप देखें तो आश्चर्यचकित हो जाते हैं। जिस संस्था में कविता में सहजयोग की बातें लिख सकती थी। परन्तु मैंने कहा, नहीं, कविता को तोड़ा मरोड़ा सभी प्रकार की नालायकियां हो रही हैं वह किस प्रकार धार्मिक हो सकती हैं? मेरा जन्म भी जा सकता है और इस प्रकार लोग इसका दुरुपयोग कर सकते हैं। कविता में गूढ़ ज्ञान ईसाई परिवार में हुआ। जिस प्रकार ये लोग पूरे लिखने में यह समस्या है। भारत में भी यही अधिकार के साथ ईसा मसीह के जीवन के विषय में बातचीत करते थे और व्याख्या करते थे समस्या थी। उदाहरण के रूप में कबीर ने बहुत उससे मुझे आघात लगा। एक के बाद एक सुन्दर गूढ़ ज्ञान की बातों को पद्य में लिखा। परन्तु जिस प्रकार लोगों ने इसकी व्याख्या की पुस्तकें लिखी गई। एक से एक उपदेश दिए गए। मुझे लगा कि इनके कथनों में कोई सच्चाई वह अत्यन्त निराशाजनक था और कबीर की नहीं है। मैरे पिता जी ने भी यही महसूस किया वास्तविक कविताओं के अर्थ से बिल्कुल भिन्न। क्योंकि ये सारी पुस्तकें ईसा मसीह के जीवन के बहुत साल बाद आईं थीं इन पुस्तकों के लेखक भी इसके अधिकारी न थे वे आध्यात्मिक लोग न थे। वे तो केवल सत्ता-लोलुप थे और धर्म में किसी भी चीज के अर्थों को लोग आवश्यकतानुसार किसी भी प्रकार तोड़ मरोड़ सकते हैं। मैंने सोचा कि परमात्मा के विषय में मैंने भी कविताएं लिखी तो इनका भी वही हश होगा। सभी धर्मं में पद्य में लिखी गई ज्ञान की बातों के साथ ऐसा सत्ता प्राप्त करना चाहते थे। धर्म की शक्ति तो ही हुआ है। बाइबल के विषय में भी लोगों ने अन्तर्निहित है। इसे जागृत किया जाना चाहिए। मैं स्वीकार कर लिया कि पाल ही ईसा मसीह के इस देश के तथा अन्य देश के सूफियों को धन्यवाद देना चाहूंगी जिनके कारण लोग आज भी सोचते हैं कि इन पुस्तकों में लिखे शब्दों और सभी प्रकाशनों का आयोजन करेंगे। वह ईसा मसीह के पुनर्जन्म तथा निर्मल अवधारणा के बातों में कुछ है। विषय में नहीं छापना चाहता था। यह सारी बातें मानव के लिए यह भी एक वरदान है कि उसके मस्तिष्क में थीं और यही कारण था कि थॉम्स को भारत आना पड़ा और जॉन ने कुछ भी सभी देशों में कोई न कोई एक ऐसा महान पुरुष लिखने से इन्कार कर दिया। क्योंकि पाल जैसे पैदा हुआ जिसने बास्तविकता और सत्य की बात की। यद्यपि इन सन्तों की भत्त्सना की गई 21 लोग कार्यकारी बन बैठते हैं और सोचते हैं कि चैतन्य लहरी । खंड :XII अंक :1 8 12.2000 कष्ट दिए गए और बहुत से लोगों की हत्या कर दी गई। मैं देखती हूँ कि लोग सत्य और हैं. अपने आप पर आजमा सकते हैं; जो भी सत्यापन करें। इसे आप लोगों पर आजमा सकते वास्तविकता की बात नहीं सुनना चाहते। परन्तु कुछ आप हैं आप अपनी अंगुलियों के सिरों पर कल यह देखकर मुझे अत्यन्त हर्ष हुआ कि जानते हैं । मुस्लिम लोग अब एकत्र होकर यह समझने लगे हैं कि रोजमर्रा के कर्मकाण्डों से ऊपर उनका कुरान में कहा गया है कि कबामा के वक्त अर्थात् आपके पुनर्उत्थान के समय-दो चीजें ैं एक उच्च जीवन भी है। कर्मकाण्डों से परिपूर्ण कयामत और कयामा। बहुत से लोग इनका जीवन जो उन्होंने बिताया है, जिस प्रकार से घोर अन्तर नहीं जानते। कयामा का अर्थ है पुर्नजन्म परिश्रम उन्होंने किया है, हज के लिए 40 दिन का समय और कयामत का अर्थ है प्रलय। तो का उपवास जो उन्होंने किया है. इन सभी चीज़़ों के बावजूद भी उनमें परस्पर एकता न थी और मैं हेरान थी कि बहुत कहा गया है कि कयामा के समय आपके हाथ बोलेंगे और आप चैतन्य लहरियाँ अपनी अंगुलियों से स्थानों पर तो वे एक के सिरों पर महसूस करेंगे। मैं कहना चाहूँगी कि दूसरे की हत्या करने में लगे थे ऐसा किस जो लोग वास्तव में मुस्लिम हैं. जो समर्पित है प्रकार हो सकता है? इस प्रकार के दस्तूर उन्हें और जिन्हें परमात्मा को साम्राज्य में प्रवेश करने सामूहिक न बना पाए। वे सामूहिक न थे। उनकी भिन्न पहचाने थी, भिन्न पंथ थे जिनका पथ के लिए उच्च पद प्राप्त करने के लिए चुना गया है उनके हाथ बोलने चाहिए अथवा वे मुस्लिम नहीं है मैं उन्हें मुस्लिम नहीं कहूँगी। वे मानव प्रदर्शन पूर्णता अज्ञानी लोग कर रहे थे। अत: हमें लोगों की एकता, इनके सामूहिक स्वभाव का उत्सव मनाना चाहिए-उनके सामूहिक तो हो सकते हैं परन्तु मुस्लिम नहीं। अत: जो भी लोग स्वयं को मुस्लिम मानते हैं उनके लिए स्वभाव का जो सत्य से भटक चुके थे। सत्य के आवश्यक हैं कि वे चैतन्य लहरियां महसूस करें विषय में उन्हें बिल्कुल भी ज्ञान न था परन्तु और कयामा-पुनर्उत्थान के समय उनके हाथ बोलें। कयामा कयामत नहीं है। इन दोनों शब्दों के विषय में लोगों के मस्तिष्क में एक साधक कभी भी इन स्थितियों में शान्त नहीं बहुत भ्रम है। तो जो लोग चैतन्य लहरियों के माध्यम से हो सकता। वह खोजता ही रहता है जब तक उसे सत्य प्राप्त नहीं हो जाता। परन्तु कुछ साधक अपने ही ढंग से देखते हैं और साधना में ही खो अपने हाथों पर अपनी उपलब्धियों का सत्यापन जाते हैं। उन्हें यह समझाना कठिन होता है कि कर सकते हैं तथा अन्य लोगों के विषय में तुम पथभ्रष्ट हो गए हो। यह बात उन्हें अपने जान सकते हैं, कुरान के मुताबिक वही जीवनें से, अपनी उपलब्धियों से देखनी चाहिए सच्चे मुस्लिम हैं । परन्तु मुसलमान लोगों को कि उन्होंने क्या प्राप्त किया है? क्या उन्हें कुछ यह बात किसी ने नहीं बताई। यह सब वह नहीं अनुभव हुआ? अपनी उपलब्धियों के प्रति विश्वस्त जानते। उनके लिए तो मक्का जाकर वापस आ होने के लिए आपको चाहिए कि आप इनका जाना ही सभी कुछ है। हज करने के बाद वे 22 चैतन्य लहरी खंड :XII अंक : 11 8 12.2000 कर रहे हैं परन्तु उन्होंने ये अपराध किए क्यों? एक अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न जो उठता है वो ये वे तो अच्छाई के और सदाचार के लिए अधिकारी है कि मोहम्मद साहब मूर्ति पूजा के बिल्कुल थे तो उन्होंने कुकृत्य क्यों किए? क्यों उन्होंने गलत कार्य किए? अब वे परमात्मा से क्षमा मांग के वर्गाकार पत्थर की परिक्रमा करने को क्यों रहे हैं। ये अपराध उन्होंने इसलिए किए क्योंकि हाजी कहलवाते हैं, बस सब समाप्त । विरूद्ध थे फिर भी उन्होंने मक्का में काले रंग कहा? उसका क्या उद्देश्य था? वह पत्थर इतना वे आत्मसाक्षात्कारी न थे, न सहजयोगी थे। महत्वपूर्ण क्यों था? किसी मुसलमान से यदि सहजयोगी यदि कोई गलत कार्य करने का प्रयत्न करते हैं तो अपनी अंगुलियों के सिरों पर आप यह प्रश्न पूछे तो वह कहेगा कि यह जान जाते हैं कि वे गलत कर रहे हैं। हम भी उनका आदेश था। परन्तु आप प्रश्न कर सकते हैं कि आखिरकार ऐसा क्यों? वो भी तो एक उन्हें कह सकते हैं कि सहजयोग से बाहर पत्थर ही है। तो मोहम्मद साहब ने उसकी हो जाओ। परन्तु सहजयोगियों के लिए यह परिक्रमा करने के लिए क्यों कहा? बहुत सी भयानक दण्ड है सहजयोग से बाहर चले मूर्तियाँ थीं. और जिस प्रकार भारत में करते हैं जाने की बात उन्हें अच्छी नहीं लगती क्यों? लोगों ने उनकी पूजा करनी आरम्भ कर दी। क्योंकि उन्हें लगता है कि वे सच्चाई से ' पृथक किए जा रहे हैं सत्य के सभी आशीर्वादों से वे वंचित हो जाते हैं । वे इस प्रकार सोचते हैं! देखा जाए तो दण्ड कुछ भी नहीं है क्योंकि हम तो केवल उनसे सहजयोग छोड़ देने के लिए कहते हैं देखने के लिए यह दण्ड कुछ भी नहीं परन्तु यह पत्थर स्वयंभू था और इसका वर्णन भारतीय धर्मग्रन्थों में किया गया है कि एक मक्केश्वर शिव भी हैं । भारत में भिन्न स्थानों पर शिव है. वहाँ ज्योतिरलिंग है। मैं ये बात आपको बता रही हूँ परन्तु आपको इस पर विश्वास करने की आवश्यकता नहीं है। वहाँ जाकर अपनी है। परन्तु सहजयोग पूर्ण स्वतन्त्रता है। सहजयोग चैतन्य लहरियों पर सत्यापित करें कि ये शिव हैं पूर्ण आशीर्वाद है। सहजयोग पूर्ण शान्ति एवं कि नहीं। इस काले पत्थर के विषय में भी यही आनन्द है। आश्चर्य की बात है कि यदि आप कुरान पढ़े तो जान जाएंगे कि मोहम्मद साहब यही शान्ति स्थापित करना चाहते थे परन्तु ऐसा वात है। तो मोहम्मद साहब ने पता लगाया कि ये मक्केश्वर शिव हैं और श्री शिव का आशीर्वाद न हुआ। मैं कश्मीर के एक व्यक्ति से मिली उसने पूछा कि शान्ति कहाँ है? सभी लोग प्राप्त करने के लिए लोगों को इनकी परिक्रमा करनी चाहिए। परन्तु ये भी कर्मकाण्ड बन गया। आपस में लड़े जा रहे हैं। हम शान्ति चाहते हैं । ये सारा कार्य ही कर्मकाण्ड बन गया. और कोई परन्तु उसकी एक बात सुनकर हैरानी हुई. उसने कहा कि भारत में आपको भी इस कर्मकाण्ड से बच न पाया। इसाई धर्म में भी यही बात है। आज वो शान्ति मिलती बहुत है। कहने लगा कश्मीर तो पागलों का स्थान है। दिन है जब लोग अपने अपने अपराधों के लिए यहाँ पर हर समय सभी को चुनौती मिलती रहती 23 पश्चाताप और दोष-भावना की बात जोर-शोर से खंड : XII अंक : । & 12, 2000 चेतन्य लहरी है और इस्लाम के नाम पर हर चीज़ पर हमारे छ: दुश्मन हैं काम, क्रोध, मद, मत्सर, आक्रमण होता है। मैंने कहा,"यह इस्लाम नहीं लोभ और मोह। काम का अर्थ है यौन उद्दण्डता, है। इस्लाम का अर्थ है समर्पण।" कहने क्रोध यानि गुस्सा, मोह अर्थात लिप्सा, मद का लगा,"आप लोग यदि समर्पित होंगे तो ये मतलब है अहं और मत्सर का अर्थ है ईष्ष्या, छठा लोभ है। अज्ञानता, परवरिश, शिक्षा आदि लोग आपका वध कर देंगे। हम सुरक्षित नहीं के कारण ये सारी चीजें हमारे संस्कार बन गई है। अत्यन्त आश्चर्य की बात है कि अब मुसलमान थी। जब कुण्डलिनी जागृत होती है और आप स्वयं इस बात को महसूस कर रहे हैं कि यह कर्मकाण्डों से पूर्ण परमेश्वरी जीवन नहीं हो परमात्मा के साथ, एकरूप हो जाते हैं तो ये सारे सकता क्योंकि परमात्मा के लोग तो सब समान दुर्गुण छूट जाते हैं। तत्पश्चात् आप दृढ़ धरातल होते हैं। विश्व भर के सूफियों को देखो । मैंने पर होते हैं। आप महसूस करते हैं कि आपने उन्हें पढ़ा है। तुर्की के सूफियों को भी मैंने पढ़ा है और अन्य स्थान के सूफियों को भी। भारत में आदतों का आनन्द नहीं ले सकते। ये षड्रिपु भी सूफी थे यद्यपि उन्होंने कभी स्वयं को सूफी आपको मुक्त कर देते हैं । सत्य को पा लिया है और अब इन विध्वंसक अपने अन्दर आप परमेश्वरी साम्राजय में नहीं कहलवाया। आप जो चाहे सोचते रहें। मैरे प्रवेश कर जाते हैं । मानव का यही सच्चा पुनर्जन्म है। आप जानते हैं कि यद्यपि लोग पुस्तकों को नष्ट करते हैं, उनके अर्थों को बिगाड़ते हैं, फिर भी सूक्ष्म चीजें बनी रहती हैं। उदाहरण के रूप में ईस्टर के दिन हम अण्डे भेंट करते हैं । अण्डे विचार से सूफी का अर्थ है साफ, स्वच्छ, पावन। स्वच्छ लोग ही सूफी हैं। अपनी स्वच्छता में वे परमात्मा की कृपा, उनके प्रेम और दिव्य शान्ति के अतिरिक्त कुछ नहीं देखते। उन्होंने कभी युद्ध की बात न की। युद्ध की बातें करने वाले व्यक्ति भेंट करने का क्या अर्थ है? सर्वप्रथम तो अण्डा को दिव्य शान्ति का अधिकार नहीं होता। से हैं। हम इसलिए भेंट करते हैं क्योंकि यह परिवर्तित युद्ध पूर्णत: पागलपन की तरह पशु भी इस तरह से नहीं लड़ते। युद्ध तथा एक दूसरे हो सकता है। एक छोटे चूजे का रूप धारण कर की हत्या करने के लिए जब हम सोचते हैं तो सकता है, अण्डे का पुनर्जन्म हो सकता है। पशुओं से भी बदतर होते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। इस जघन्यता को सदा-सदा के लिए प्रतीक के रूप में जब आप अण्डा लेते हैं तो अण्डे में पुनर्जन्म लेने की योग्यता है । ईस्टर के रोक देना चाहिए। किसी पर जब तक आक्रमण इसका मतलब है कि आप एक भिन्न व्यक्ति न हो तब तक व्यक्ति को किसी की हत्या करने का अधिकार नहीं है। अपने पुनर्उत्थान के विषय में हम सुनते हैं कि हम बहुत सी चीजों से ऊपर बन सकते हैं। एक सुधरे हुए और महान आध्यात्मिक व्यक्ति। इसका अर्थ है कि आप आध्यात्मिक व्यक्ति बन सकते हैं। लोग नहीं य हैं, हमारे अन्दर वो सारे विध्वंसक गुण समाप्त जानते कि हम अण्डे क्यों भेंट करते हैं? मैंने यह बात बहुत से लोगों से पूछी। स्वयं को ईसाई 24 हो गए हैं। संस्कृत में इन्हें षड्रिपु कहते हैं । चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 11 & 12.2000 सूझ-बुझ ठीक है तो आप उनके पारस्परिक मत के महान धुरन्धर समझने वाले पादरियों से भी मैंने ये बात पूछी। वे न जानते थे कि अण्डे क्यों भेंट किए जाते हैं। सम्बन्ध समझ सकते हैं। आप समझ सकते हैं कि ईसामसीह श्री विष्णु और श्रीकृष्ण के पुत्र थे और उन्हें आशीर्वाद प्राप्त था कि वे पूरे ब्रह्माण्ड आप यदि श्रीगणेश के जन्म की कथा को पढ़े तब आप जान पाएंगे, आप हैरान होंगे, कि के आधार बनेंगे। ये बात अत्यन्त स्पष्ट रूप से कही गई थी कि आप पूरे ब्रह्माण्ड के मूलाधार ये लिखा हुआ है कि इन्हें ब्रह्माण्ड कहा जाता हॉगे। था। ब्रह्माण्ड अर्थात् ब्रह्मा जी का अण्डा। उसने अण्डे का आधा भाग श्री गणेश है जो अस्तित्व धारण किया और इसका आधा भाग वे महा-विष्णु बन गया अर्थात् ईसा मसीह और एक प्रकार से कुण्डलिनी का आधार कुण्डलिनी की देखभाल करते हैं और माँ को पावित्र्य की देखभाल करते हैं। दूसरा भाग जिसकी अभिव्यक्ति हुई है वे ईसा मसीह हैं जो पूरे आधा भाग श्री गणेश के रूप में बना रहा। कहा ा जाता है कि जन्म लेते ही महाविष्णु ने पिता के लिए रोना शुरू कर दिया। इसके विषय में सोचें। वे अपने पिता को खोज रहे थे! ईसा मसीह को ब्रह्माण्ड के आधार हैं। अतः स्वाभाविक रूप से यदि आप देखे तो वे अपनी पहली दो अंगुलियाँ उन्हें चारित्रिक आधार ही बनना था क्योंकि वे उठाते हैं। किसी भी अन्य अवतरण ने इन दो श्री गणेश के ही अंग प्रत्यंग हैं और मानव अंगुलियों का उपयोग नहीं किया। आप जानते हैं चारित्रिक आधार हैं। चरित्र के कारण ही आपको कि पहली अंगुली विशुद्धि को है और दूसरी संभाला जाएगा अन्य प्रकार की मूर्खताओं के के कारण नहीं। केवल चारित्रिकता के आधार पर नाभि की। इसका अर्थ है वे अपने पिता की बात कर रहे हैं जो नाभि के शासक है। वे कौन हैं? जिसका इसाई मत को मानने वाले लोगों के ये आप अच्छी तरह जानते हैं। वे विष्णु हैं जो जीवन में अभाव है। हैरानी की बात है कि श्री कृष्ण के रूप में भी अवतरित हुए तो इंसा सभी चीजों की आज्ञा देते हैं। कैथोलिक चर्च मसीह इस बात की ओर इशारा करते हैं कि वे दोनों मेरे पिता हैं। कितनी स्पष्टता पूर्वक उन्होंने तलाक नहीं ले लेते आप जो चाहे करते रहें। ये कार्य किया है! अंगुलियाँ उठाने की कोई विवाहोपरांत भी आप जो चाहे करें। मुझे बताया तथा अन्य चर्चा के अनुसार जब तक आप अन्य मुद्रा, अन्य शैली उन्होंने क्यों नहीं अपनाई? उन्होंने अपनी ये दो अंगुलियाँ उठाईं। इस प्रकार गया कि वैटिकन चर्च के साथ भी यही समस्या है। स्वयं को साक्षात्कारी (Baptised) कहलाने वाले लोग ऐसा किस प्रकार कर सकते हैं। पादरी लोग बप्तीस्म का बहुत बड़ा उत्सव करते हैं। कुण्डलिनी कहाँ है और सहस्रार कहाँ है और उन्होंने कहा कि मेरे पिता श्री विष्णु ही हैं जो कि श्री कृष्ण भी हैं। श्री कृष्ण की जीवनी में कहा गया है कि महाविष्णु आपके पुत्र होंगे। ये किस प्रकार आप अपना पुनर्जन्म लेते हैं। इनमें सारी चीजज़ें एक ही स्थान पर नहीं लिखी हैं। अलग-अलग लिखी हैं। परन्तु यदि आपकी कोई पुनर्जन्म नहीं होता केवल कोई पादरी 25 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12.2000 व्यक्ति के सिर पर हाथ रख देता है और कह ऐसे लोगों की उपलब्धि क्या है? इंसा-मसीह के जीवन का, उनके पूर्ण-अस्तित्व का, आधार देता है कि आपका बस्तीस्म हो गया। आत्मसाक्षात्कारी के सिर पर यदि कोई पादरी नैतिकता और पावनता की स्थापना है। आदिशक्ति ने सर्वप्रथम श्री गणेश का सृजन हाथ रख दें तो उसके साथ समस्या हो जाती है । इस प्रकार एक गैर साक्षात्कारी के सिर पर हाथ रखने से भी बच्चों को समस्या हो सकती है। किया क्योंकि वे चाहती थीं कि सारा वातावरण शद्ध हो। वे चाहती थीं कि मानव अपनी पावनता और प्रकाश प्रसारित करते हुए अपने व्यक्तित्व पादरी जब बच्चों को आशीर्वाद देते हैं तो बहुत से बच्चे जोर-2 से रोने लगते हैं क्योंकि ये बच्चे का आनन्द लें। शीशा यदि गन्दा हो और आप तो आत्मसाक्षात्कारी हैं परन्तु पादरी नहीं हैं। उस पर रोशनी डालें तो वह प्रकाश किस प्रकार बहुत ही दिलचस्पी की बात है। परन्तु लोग उसमें से गुजर पाएगा। अनैतिक जीवन दूसरों को कहते हैं पादरी बुरे हो सकते हैं ईसामसीह नहीं। परन्तु पादरी और ईसामसीह में किस प्रकार सम्बन्ध हो सकता है। ईसा-मसीह उच्च चरित्र लिए भी ये दोनों बातें पूरी तरह से सच साबित प्रकाश नहीं दे सकता और न ही आपके आन्तरिक प्रकाश को प्रदर्शित कर सकता है। अपवित्रता के होती हैं। परन्तु लोग कहते हैं कि उन्हें ये सब के पक्षधर थे। उनके विषय में भी आजकल लोग सभी प्रकार की उल्टी-सीधी बातें कह रहे स्वीकार करना होगा क्योंकि यदि आप अपने धर्म में बहुत से लोगों को लाना चाहते हैं तो समझ सकते। हम लोग इस प्रकार से पतित हो आपको बहुत सी चीजें स्वीकार करनी होंगी। गए हैं । पावन चरित्र का तो उनकी दृष्टि में कोई उनमें से अपवित्रता एक है! इसके विषय में आप सोचकर देखें अगन्य चक्र. जहाँ ईसा-मसीह विराजमान हैं, आपकी दृष्टि, ही यदि अपवित्र है, लोभ और वासना से परिपूर्ण है तो आप ईसा-मसीह विरोधी हैं। आपकी दृष्टि यदि पावन तब होती है जब पूरा विश्व नेता के रूप में उन्हें है, शुद्ध है केवल तभी आप परमात्मा के प्रेम हैं। किसी भी चरित्रवान व्यक्ति को वे नहीं अर्थ ही नहीं है। आप जो चाहे करते रहें। बस, चर्च जाकर इसे स्वीकार (Confess) कर लें। आधुनिक धर्म की यही मूर्खताएं हैं। हर धर्म की अपनी समस्याएं हैं। परन्तु सबसे बुरी स्थिति स्वीकार कर लेता है। इस प्रकार के चरित्रहीन का आनन्द उठा सकते हैं अन्यथा नहीं। किसी अन्य सहजयोगी या योगिनी के प्रेम का आनन्द जीवन की आज्ञा आप किस प्रकार लोगों को दे आप तभी उठा सकते हैं जब आप पूर्ण हों और सकते हैं। इस चरित्रहीनता को किस प्रकार सहन जब आपकी दृष्टि पावन हो। इसके विषय में सोचकर देखें। है, दोषमय है, तो मैं नहीं समझ पाती, कि किस कर सकते हैं जबकि आप ईसा-मसीह का अनुसरण करना चाहते हैं! ऐसा हो ही नहीं सकता। वे तो सद्चरित्र की मूर्ति थे वे श्री गणेश हैं। कैसे आप चर्चो, मन्दिरों में आने वाले लोगों को चरित्रहीनता की आज्ञा दे सकते हैं। ऐसा नहीं कर सकते। जो भी प्रमाण पत्र आपके परन्तु यदि आपकी दृष्टि अस्थिर प्रकार आप स्वयं को इसाई कह सकते हैं। आप लाबा 26 चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : । & ।2, 2000 पास हों परन्तु ऐसी स्थिति में भी आप अपने को की बो कल्पना ही नहीं कर सकते जो नैतिक इसाई नहीं कह सकते। क्योंकि इंसा मसीह को मानने वाले लोगों का जीवन पूर्णतः नैतिक होना विवेक हो। ऐसे लोगों की वो कल्पना ही नहीं रूप से उच्च कोटि के हों या जिनमें नैतिकता न। कर सकते। इस प्रकार के कार्य करने वाले लोग चाहिए, पूर्णत: मानवीय। आपके अन्तर्अस्तित्व आत्मसाक्षात्कारी नहीं होते, वे सहजयोगी नहीं की यह अनिवार्यता है कि आप अपनी पावनता का आनन्द उठाएं और सर्वापरि आपकी दूष्टि होते। यही कारण है कि नैतिकता का विचार पूर्णत: पवित्र हो। पाश्चात्य जीवन के बारे में जो उनके मस्तिष्क में नहीं आता। वे सोचते हैं कि मंजजा में जान सकी हूँ वो ये है कि उनकी दृष्टि पवित्र नहीं है। ये लोग चर्च जाते हैं परन्तु इनकी दृष्टि इधर-उधर भटकती रहती है। ऐसा कैसे हो हम भी अन्य लोगों जैसे हैं। वास्तव में उनमें से अधिकतर स्वयं को न्यायोचित्त ठहराने के लिए ऐसा करते हैं। महान पुरुषों के चरित्र का इतना भद्दा और भयानक वर्णन ये दर्शाता है कि अपनी मूल्य प्रणाली में मानव वास्तव में कितना सकता है? यदि आप ऐसा सोचते हैं कि ईसा-मसीह का पुनर्रूत्थान हुआ था और आपका भी पुनर्जन्म हुआ है तो आप इस प्रकार कैसे पत्तित हो चुका है। किसी आदर्श व्यक्तित्व के सोंच सकते हैं? सर्वप्रथम ये देखें कि आपकी विषय में वह सोच भी नहीं सकता। वे सोचते हैं आंखों में पावन प्रेम होना चाहिए। पावन प्रेम का ऐसा कहते हुए भी वे वास्तविकता से ऊपर की कोई सम्बन्धित मूल्य नहीं होता और न ही इसे बातें कर रहे हैं। सत्य को वे नहीं जानते। कल सूफी विचारों को बताते हुए उन्होंने लोभ का कोई स्थान नहीं है। आपके मस्तिष्क से आपकी चार अवस्थाओं का वर्णन किया। इससे हुई। इनमें से एक चीज हकीकत दूषित किया जा सकता है। इसमें वासना और बहुत प्रभावित है अर्थात वास्तविकता। आपको इसी वास्तविकता मैं ये दोनों दुर्गुण पूर्णत: समाप्त होने चाहिए। आजकल लोगों के मस्तिष्क में भयानक लोभ हैं। मैं नहीं में उतरना चाहिए। किसी चीज़ को देखना मात्र, जानती कि उनके मस्तिष्क में क्या-क्या भरा हुआ है क्योंकि मानव की अनैतिकता का बहुत वास्तविकता नहीं है। किसी चीज़ को देखना ही अधिक अध्ययन मैंने नहीं किया है। मैं तो नहीं है, हमें वह बनना है। आप अगर देखने लगते हैं तो आपको सफेद, लाल, पीला दिखाई देता है। परन्तु आप सफेद, लाल, पीले तो नहीं को समझने का प्रयत्न करती हूँ तो हैरान होती हूँ हैं। जब आप सत्य बन जाते हैं तभी आपसे सत्य प्रसारित होता है। आप सत्य को देखते केवल आप जैसे सुन्दर लोगों को ही देखती हूँ। परन्तु जब में इस तथाकथित पाश्चात्य संस्कृति कि शेक्सपियर जैसे, जो मेरी दृष्टि में अवधूत थे. व्यक्ति के जीवन को दर्शाने के लिए भी वे उन्हें स्त्रीलम्पट के रूप में दर्शाते हैं। अवधूत यही वास्तविक जीवन है जिसे आप किसी एक उच्चकोटि का योगी होता है जो जन्म से ही विध्वंसक आदतों से परे होता है। ऐसे व्यक्ति नहीं उलझाते। जब आप ऐसा नहीं करते । हैं, सत्य में रहते हैं, सत्य का आनन्द लेते हैं। असत्य काल्पनिक दिव्यता से छोटी चीज़ में 27 चैंतन्य लहरी खंड : XII अक : ।। & 12, 2000 तब आप सत्य होते हैं, हकीकत होते हैं और अपने व्यवहार में, अपनी बातों में, अपने जीवन में अपनी सभी बातों में सत्य प्रसारित करते हैं। ये सब कार्य आध्यात्मिकता की महान बातें भूल जाएं। आपको केवल इतना जानना है शक्तिप्रदायक हैं। सत्य पर खड़े व्यक्ति से कि आप क्या हैं? आपने स्वयं के विषय में और भी लोगों के जीवन का मार्ग प्रशस्त करना है। आपका यही कार्य हैं। ये न सोचे कि क्या हो रहा है, लोग कितने मूर्ख है दुष्चरित्र हैं। ये सब परम शुद्ध होने के नाते अपनी जिम्मेदारी के ये सारे गुण विषय में चेतन होना है । जैसे मेरा नाम (निर्मल) सारा असत्य, गलत एवं विध्वंसक चीजें स्वतः ही दूर भाग जाएंगी। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के पूर्णतः अंग-प्रत्यंग दर्शाता है आप मेरे बच्चे हैं, आप निर्मल के होते हैं। बच्चे हैं अर्थात् पावनता के। पावनता ही आपके तो पुनर्जन्म घटित हो चुका है इसमें कोई सन्देह नहीं। आपके हाथ बोलने लगे हैं। मैं आपको न तो कोई आदेश देना चाहती हूँ और न ही कोई निशचित मार्ग बताना चाहती हूँ जिस पर जीवन का आधार है। स्पष्ट रूप से देखें कि कला को, सुन्दर कृतियों को और सुन्दर मस्तिष्क द्वारा सृजित कृतियों का मूल्यांकन करने में कोई गलती न हो। आपके मूल्यांकन में न तो लालच आप चलें। आप स्वतन्त्र हैं। क्योंकि आप प्रकाश हो न तो वासना। शुद्ध मूल्यांकन। पावनता ही एक मात्र सन्देश है। एक बार जब आप अन्दर है। जब आप स्वयं प्रकाश हैं तो मुझे बताने की क से पावन हो जाएंगे तो आप स्वयं से प्रेम करेंगे। जाए। आप जानते हैं कि आपके पास प्रकाश है। वैसे ही जैसे मैं तुम्हें प्रेम करती हूँ। तुम भी सबसे प्रेम करोगे। तभी आप 'प्रेम' शब्द को क्या आवश्यकता है कि आप किसे रास्ते पर अत: आप स्वयं अपने प्रकाश से ज्योतित मार्ग पर अपना ही अनुसरण करें। किसी अन्य ने समझेंगे जिसका उद्भव पावनता से होता है। आपको नहीं बताना कि ऐसा करो ऐसा मत करो। आपको खुद तोलना होगा कि आपमें क्या दोष है। इसे आपने नहीं करना। अब भी यदि प्रेम सदैव वहेगा. उन लोगों की ओर जिन्हें इस अपनी पावनता के पुष्पीकरण और उसकी सुगन्ध का आप हर समय आनन्द लेंगे और आपका आप ये गलती कर रहे हैं तो आप जान लें कि प्रेम की आवश्यकता है और जिनकी देखभाल होनी आवश्यक है। आसुरी प्रवृत्ति' वाले लोगों बर्णित 'नबी' आप ही लोग हैं। आप ही लोग हैं की चिन्ता न करें। मैं केवल यही शब्द उपयोग कर सकती हूँ क्योंकि उनके विषय में बहुत सी जीवन की गन्दगी में फँसे दीन-दुखियों की बातें कही जा सकती हैं। उन्हें विनाशकारी बना आपने ही सहायता करनी है। इन थोड़े से सूफी रहने दें। वे तो स्वयं को ही नष्ट कर रहे हैं । हम लोगों की ओर देखो, ये अत्यन्त स्वच्छ थे किस उनकी चिन्ता क्यों करें? वे सोचते हैं कि वे प्रकार उन्होंने अन्य लोगों को बेहतर ज़िन्दगी की दूसरों को नष्ट कर रहे हैं परन्तु वास्तव में ओर मोड़ दिया! आप भी वही लोग हैं। आपने ऐसा नहीं है। वे स्वयं को ही नष्ट कर रहे हैं । 28 अभी आपको इससे ऊपर उठना है। कुरान जिन्होंने पूरे विश्व का पुनर्रुत्थान करना है। चैतन्य लहरी खंड :XII अंक : 11 & 12. 2000 उन्हें भूल जाएं, भुला दें उन्हें। आप स्वयं को पूरे अन्दर कोई परिवर्तन नहीं होता। मेरे पास कोई विश्व के उत्थान के लिए जिम्मेदार मानें, थोड़े व्यक्ति आया मैंने उससे कहा तुम पादरी क्यों से लोगों के लिए नहीं। आप अत्यन्त विवेकशील बन गए? क्योंकि मेरे पास नौकरी नहीं थी। हैं। ज्ञानवान हैं और के अशिक्षित शिष्यों जैसे नहीं हैं जिन्हें वाले हैं ईसामसीह नौकरी न होने के कारण मुझे पादरी बनना पड़ा। सूझ-वूझ क्या आप कल्पना कर सकते हैं? उसको कोई आत्मसाक्षात्कार तो मिल गया परन्तु वे आपके और नौकरी नहीं मिली तो उसने ये काम स्वीकार कर लिया। तब आपने क्या किया? उन्होंने मुझे स्तर के न थे और न ही इतना कुछ समझते थे। वे केवल उस स्तर तक पहुँच सके जहाँ से इस समझाया कि मुझे क्या सिखाना है और सर्वप्रथम झंझट भरे इसाई मत का उदय हुआ। परन्तु आप मुझे उसका अभ्यास करना पड़ा और सबकुछ जुबानी याद करना पड़ा। तत्पश्चात् मैंने वे सब बातें करनी शुरु कर दीं। मेरे विचार से वह कोई ऐसे झंझट नहीं खड़े कर सकते। आप तो ऐसे गुँजायमान होने वाले नए धर्म का सृजन करेंगे जो सार्वभौमिक होगा। अत्यन्त भूत-वाधित व्यक्ति होगा। उसके पास अपना मस्तिष्क नहीं था। वह यह भी न जानता ये देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई कि अब विश्व भर के लोग सहजयोगी हैं। सर्वत्र फैला था कि उसे क्या बात करनी है। बाइबल का एक यह सार्वभौमिक आन्दोलन है। तथाकथित धर्मों वाक्य लेकर वह उसके बारे में बोलता चला के सीमित विचारों से इसे कुछ नहीं लेना देना। इन संकुचित विचारों से इसे कुछ नहीं लेना देना। इन्हीं संकुचित विचारों ने सभी धर्मों को नष्ट चाहते थे ज्यों ही उपदेश समाप्त होता. श्वास किया है। इस्लाम, इसाई मत हिन्दु धर्म जाएगा और लोगों को उबाएगा। मैं हैरान थी कि पन्द्रह मिनट के अन्दर लोग चर्च से चले जाना सब लेने के लिए लोग बाहर की ओर दौडते और नष्ट हुए हैं और बुद्ध धर्म तो सबसे बदतर स्थिति में आ गया है। बुद्ध धर्म में लोग सभी यही सब प्रदान करता है? क्या आपके अन्दर परमात्मा का धन्यवाद करते। क्या धर्म आपको कुछ त्याग देते हैं, अपनी सभी चीज़ों को त्याग देते हैं। अपनी सारी सम्पत्ति गुरु को दे देते हैं। यही घटित होना चाहिए? नहीं, ऐसा नहीं होना चाहिए? धार्मिक होकर तो आप अपनी आत्मा का आनन्द लेते हैं. सामूहिकता का आनन्द लेते इसकी आप कल्पना करें! गुरु इतने लालची हैं, अच्छाई और नैतिकता का आनन्द लेते हैं। ये और भयानक लोग हैं! ऐसा व्यक्ति किस प्रकार सारा अनुभव तो जीवनामृत जैसा है। जिससे मानव पूर्णतया परिवर्तित हो जाता है। कर्मकाण्ड बहुत अधिक हैं। हिन्दू धर्म में कर्मकाण्डों का बाहुल्य है आप दाएं को बैठें, पुनर्जन्म प्रदान कर सकता है? वह तो स्वयं ही अत्यन्त लालची दूसरों को भ्रमित करने वाला और दूसरों की चीजें छीनने वाला है। इसाई धर्म में भी यही बात है लोग मठवासिनियाँ (Nuns). बाएं को बैठे, इस समय ये कार्य करें तथा अन्य पादरी (Fathers), मठवासी (Brothers) और बहुत सी चीज़ें आपकी बहन की मृत्यु होने पर 29 पता नहीं क्या-क्या बन जाते हैं? परन्तु उनके चैंतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 2000 आपको कितने दिन भूखा रहना है और पति की कहें, परन्तु मुझे ठीक कर दें ।" मैने कहा,"पहले वचन दो कि मन्दिर से जो भी धन आएगा उसे मृत्यु होने पर कितने दिन। जो चला गया वो आप लोगों की बेहतरी पर खर्च करोगे। " परन्तु चला गया समाप्त। शरीर समाप्त हो जाता है। तो वो ऐसा कैसे कर सकते हैं ? वे साक्षात्कारी लोग आपका इतने दिनों तक व्रत करना बिल्कुल गलत है। व्रत करने से तो हो सकता है आपके नहीं है। बेतुके वस्त्र पहनकर में इन सारे पादरियों को घूमते देखती हूँ। ये सब मृत शरीरों की तरह इन कर्मकाण्डों का सृजन करने वाले लोग जो से अपनी भयानक लहरियाँ लिए हुए चारों तरफ वे किसी भी घुम रहे हैं। मेरी तो समझ में नहीं आता। लोग अन्दर भूत प्रवेश कर जाएं। मैं तो ये कहूँगी कि बहुत महान होने का दावा करते हैं प्रकार से नैतिकता और उच्च जीवन के लिए बहुत ही सीधे हैं वे सोचते हैं कि अरे ये तो जिम्मेदार नहीं है। वे अत्यन्त भौतिक एवं अर्थहीन पादरी हैं, पुजारी हैं, इनका सम्मान होना ही जीवन व्यतीत करते हैं। मैं एक बार श्रीगणेश जी चाहिए। लोग ये भी नहीं देखते और न ही के मन्दिर गई, जहाँ स्वयंभू गणेश हैं, आठ मूल्यांकन करते हैं कि अपने आपको पादरी या स्वयंभू मन्दिरों में से एक। मैं हैरान थी कि वहाँ पुजारी कहने वाले व्यक्ति का आध्यात्मिक मूल्य क्या है? ये मूल्यांकन आपका कार्य है। आपको उनसे झगड़ा नहीं करना, ने ही उनकी भत्त्ंना का पुजारी पक्षघात से पीड़ित था उसके भाई की मृत्यु भी पक्षघात के कारण हुई थी और उसका पुत्र भी पक्षघात का शिकार था। कहने लगा माँ करनी है और न ही उनके दोषों की व्याख्या। ये श्री गणेश हमारे साथ क्या कर रहे हैं? मैंने इसकी कोई आवश्यकता ,नहीं। आपको केवल कहा आप श्री गणेश के साथ क्या कर रहे हैं? इतना समझना है कि आप उनसे भिन्न हैं आपमें इसका अधिकार है इसकी योग्यता है। इनसे आप कितना धन कमाते हैं? कहने लगा इसी अधिकार और आत्मविश्वास के साथ सर्वत्र बहुत सा। और इस पैसे का आप क्या करते हैं? जाकर आपको लोगों की रक्षा करनी है आप क्या इससे आप समाज का कोई हित करते हैं? आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति हैं, आपको पुनर्जन्म क्या आप लोगों का जीवन बेहतर बनाने का प्राप्त हो गया है, आप योगी हैं, इस बात को प्रयत्न करते हैं? क्या आपका चित्त समाज की मैं मानती हूँ। परन्तु आपका कार्य क्या है? ये बेहतरी पर है या आप अपनी ही चिन्ता में लगे हुए हैं? इन सबके परिणाम स्वरूप उसको पक्षाघात हुआ, उसके भाई को पक्षाघात हुआ. उसके पुत्र को पक्षाघात हुआ और इसके लिए वह श्री लोगों को अपने हाथों में लेकर इन्हें प्रकाश गणेश को दोष दे रहा था! कहने लगा." क्या ये की ओर ले जाएं। आपके पुनर्जन्म का यही सच्चे गणेश हैं? मैंने कहा,"हाँ, ये तो सच्चे घटना आपके साथ क्यों घटी? आपमें ये प्रकाश क्यों आया? इसलिए कि इन नेत्रहीन अर्थ है। पुनर्जन्म केवल आपके उत्थान के गणेश हैं परन्तु तुम नही हो, तुम इनके आशीर्वाद लिए ही नहीं, यह परमेश्वरी कृपा आपको इसलिए मिली है ताकि आप पूरे विश्व को 30 के योग्य नहीं हो। कहने लगा." माँ आप जो चाहे चैतन्य लहरी । खंड :XII अंक :1! 8 12, 2000। आपमें से बहुत से लोगों ने यह कार्य किया है कितने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया? कितने और मैं कहूँगी, आप चाहे पुरुष हो या महिला आपको यह कार्य करना है। आपकी माँ की जहाँ तक हो सके दिव्य बना सकें। आपने लोगों से आपने सहजयोग के विषय में बात की? मैं आपको बताती हैँ कि एक वार मैं वायुयान में आपसे यही प्रार्थना है कि अपने आत्मसाक्षात्कार यात्रा कर रही थी और वहाँ एक महिला मेरे साथ सहयात्री थी। मैं हैरान थी कि वह मुझसे पर होना चाहिए और इस बात पर कि आपने अपने पंथ, अपने मुर्ख गुरु के बारे में बातें करने कितने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया. कितने लगी। निर्लज्जतापूर्वक वह बातें किए जा रही थी लोगों को आप बचाने वाले हैं? आपके करने के और मैं उसे सुन रही थी। मैंने सोचा कि सहजयोगी लिए यही साधारण सा कार्य है। बस आप लोगों का प्रयोग करें, आपका चित्त सदैव आत्मसाक्षात्कार की कुण्डलिनी उठा क्यों नहीं इस तरह से सहजयोग की बात करते, सभी सहजयोगियों को सहजयोग के विषय में बातचीत करनी है। चाहे गलत लोगों से न करें परन्तु अच्छे लोगों से तो सहजयोग की बातचीत करनी ही है। आपने केवल यही कार्य करना है। इसी कार्य को करने के लिए दें। ऐसा आप कर सकते हैं। आप देखें कि किस प्रकार अपने हाथ के इशारे से दूसरे लोगों की कुण्डलिनी उठा सकते हैं और उन्हें आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं। आपने कुछ नहीं करना और आपका जीवन भी अधिक कठिन नहीं है। आपका कार्य सुगमतम है। आपको आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ है। केवल अपना हाथ उठाना होगा, आपके हाथ में शक्ति है, शंका करने के स्थान पर केवल अपना आत्मसाक्षात्कार आपको इसलिए नहीं दिया हाथ उठाकर आप अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार गया कि आप जंगल में चले जाएं या विश्व दे सकते हैं । इसीलिए मैं कहती हूँ आप लोग की नज़रों से गायब हो जाएं। आपको आत्मसाक्षात्कार और पुनर्जन्म अन्य लोगों को पुनर्जन्म पा चुके हैं, आप सब आत्मसाक्षात्कारी हैं और आपने ही इस पृथ्वी पर दिव्य स्वर्ग का प्रकाश-रंजित करने के लिए दिया गया है। आप इसीलिए यहाँ पर हैं और ये कार्य कर सकते हैं। बहुत सृजन करना है। से लोगों ने इस कार्य को किया है। परमात्मा आपको धन्य करें। 31 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 1। & 12, 2000 श्री आदिशक्ति पूजा जयपुर 11-12-94) परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज हम लोग आदिशक्ति का पूजन कर महामाया स्वरूप था। रहे हैं। जिसमें सब कुछ आ जाता है। बहुत से आदिशक्ति को महामाया स्वरूप होना जरूरी है क्योंकि सारा ही शक्ति का जिसमें समन्वय लोगों ने आदिशक्ति का नाम भी नहीं सुना। हम लोग शक्ति के पुजारी हैं, शाक्तधर्मी हैं और हो, प्रकाश हो और हर तरह से जो हरेक शक्ति विशेष कर राजे-महाराजे सभी शक्ति की पूजा की अधिकारिणी हो उसे महामाया का ही स्वरूप करते हैं । सबकी अपनी-2 देवियाँ हैं और उन लेना पड़ता है। उसका कारण ये है कि जो प्रचण्ड शक्तियाँ इस स्वरूप में संसार में आती हैं। यहाँ की देवी सब दवियों के नाम अलग-2 हैं. सबसे पहले सुरभि के रूप में आई थी ये का नाम भी अलग है. गणगौर। लेकिन आदिशक्ति शक्ति, जो एक गाय थी। उसमें सारे ही देवी देवता बसे हैं और उसके बाद एक बार सती का एक बार अवतरण इस राजस्थान में हुआ जो वो सती देवी के रूप में यहाँ प्रकट हुई। उनका देवी के रूप में, एक ही बार इस राजस्थान में बड़ा उपकार है जो राजस्थान में अब भी अपनी अवतरित हुई। मैंने आपसे बताया कि मेरा संबंध संस्कृति, स्त्री धर्म, पति का धर्म, पत्नी का धर्म, इस राजस्थान से बहुत पुराना है क्यांकि हमारे राजधर्म हरेक तरह के धर्म को उनकी शक्ति ने पूर्वज राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के सिसौदिया वंश प्लावित किया, Nourish किया। सती देवी की गाथा आप सब जानते हैं। के थे। आदिशक्ति की अनंत शक्तियाँ हैं और मुझे नए तरीके से बताने की ज़रूरत नहीं; पर वे स्वयं गणगौर थीं। उनका विवाह कर दिया गया ऐसी कोई शक्ति नहीं जो उनके पास नहीं। लेकिन उन शक्तियों को छिपा कर ही रखना परन्तु विवाह करके जब वो जा रही थीं तब कुछ पड़ता है। उसके दो कारण हैं। एक तो कारण ये गुण्डों ने घेर लिया और उनके पति को भी मार कि लोग गर जान जाएं कि ये आदिशक्ति हैं तो दिया। तब पालकी से बाहर आ कर उन्होंने हर प्रकार के लोग उन पर प्रहार कर सकते हैं अपना रूद्र रूप धारण किया और सबका सर्वनाश क्योंकि ये लोग सब बिल्कुल दुष्ट हैं जाहिल हैं करते हुए खुद भी उन्होंने अपना देह त्याग दिया। इसमें जो विशेष चीज़ जानने की है कि बचपन और परमात्मा के विरोध में खड़े हैं। भगवान के नाम पर पैसा कमाते हैं और उसका दुर्व्यवहार अपना स्वरूप किसी को बताया नहीं क्योंकि वो करते हैं। ये सारे ही लोग गर जाने जाएँ कि 32 से शादी होने तक किसी भी हालत में उन्होंने चैतन्य लहरी । खंड : XII अक : ।1 & 12. 2000 आदिशक्ति संसार में आई हैं तो या तो भाग खड़े होंगे या सब जुट कर के ये कोशिश करेंगे कि किसी तरह से आदिशक्ति का कार्य इस कलयुगे आफिसर, उनके दिमाग में आया कि आज तक कोई अंग्रेज सीधी-सादी हमारी हिन्दी भाषा नहीं बोल सकता तो ये कौन माई का लाल निकला है जिसने गीता को लिखा है संस्कृत में। कुछ तो में हो न पाए। उसके लिए बहुत ज़रूरी है कि महामाया का स्वरूप ले लिया जाए। दूसरा इस गड़बड़ होगी। तो उन्होंने एक किताब खोली तो देखा कि उसमें व्हिस्की! समझ गए, सारी किताबों स्वरूप से एक बड़ा गहरा काम, सूक्ष्म काम के अंदर व्हिस्की और ऊपर से गीता। तो मतलब करना है जो कभी भी किसी ने आज तक नहीं किया। वो है सामूहिक चेतना। सामूहिक तो ये कि गीता बहुत उच्च चीज़ है हिन्दुस्तानियों के छोड़िये, एक ही आदमी को पार कराने में लोगों लिए, गीता का नाम लेते ही चाहे बो कुछ जाने को सालों लग जाते हैं। इस कार्य को करने में या ना जाने माथे पर लगा लेते हैं। लेकिन... और वो भी बखूबी इस तरीके से कि किसी को अंग्रेजों में इस तरह से जो छिपाने की शक्ति है कोई भी हानि नहीं पहुँचे। ऐसे ही जैसे नाव में वो कमाल की है, कि गीता को इस्तेमाल करो। बिठा करके आराम से दूसरे किनारे पहुँचाया कोई सी भी समझ लीजिए यहाँ टेबल गंदी हो जाए! मैंने कल भाषण अपने में बताया कि धर्म गई तो उसमें फौरन हम प्लास्टिक बिछा कर कितना विपरीत हो गया है। धर्म की बाते जिन्होंने दूसरा टेबलक्लॉथ बिदछा कर उसको हम सुन्दर कर लेंगे और बार-बार मैं भी देखती हूँ कि कहीं भी जाइये तो बहुत से पर्दे लगे होंगे। मैंने कहा ये क्या है तो कुछ नहीं, कुछ नहीं। पर्दा हटाइये तो ऊपर से बहुत सारे गंदै कपड़े, ये बो। करी वो तो ठीक थे लेकिन जिनसे कहीं वो लोग गड़बड़ थे। सो उन्होंने धर्म को समझा नहीं, धर्म को एक बड़ी भ्रान्ति में डाल दिया कि गर कोई आदमी यह सोचने लग जाए-अपने धर्म के बारे में तो वो भाग खड़ा हो जाए क्योंकि धर्म के नाम सो ऐव छिपाने की भी हमारे महामाया शक्ति में के पीछे जो-जो तौर तरीके हैं वो बहुत भयंकर एक बहुत बड़ी त्रुटि है। क्योंकि ये लोग कहीं से हैं। कहीं तो स्त्रियों की अवहेलना, कहीं तो कुछ सीख कर आए ही होंगे चाहे हमने नहीं बच्चों का दमन तो कहीं लूटमार। हर तरह के सिखाया हो पर किसी ने तो सिखाया ही होगा गलत काम धर्म के नाम पर होते हैं। एक बार कि ये ऐव अपने कैसे छिपाए जाएँ और छिपा के बंबई में बहुत सी गीता छप करके बाहर से उसको कैसे पचा लिया जाए। जो हमारे ऐब हैं आई, तो लोग बड़े खुश हुए कि अब हमारी उसको हटाने के लिए हम प्रयत्नशील नहीं गीता लंदन में छपने लगी। इससे बढ़ करके और होते। उसको छिपाने में प्रयत्नशील होते हैं क्या बात हांगी! हिन्दुस्तानी तो वैसे ही अंग्रेज के और दूसरों के ऐब देखने में हम बड़े होशियार पैर पे लोटता रहा और अब गीता अगर वहाँ छप होते हैं। अब ये बिल्कुल विपरीत बात है। महामाया की शक्ति इसलिए बनी है और विकीर्णित हुई कि आपके अंदर जो दोष हैं 33 गई तो हिन्दुस्तानियों ने सोचा वाह-2, कि वाह क्या कमाल हो गया! पर एक कोई थे कस्टम चैतन्य लहरी खंड :XII अंक : 1 & ।2. 2000 & 12. की पकड़ का मतलब क्या है? सबसे पहले तो आप अपने Past के बारे में सोचते रहते हैं । वो निकाले जाएँ और उसको अपने शरीर में आत्मसात किया जाए और फिर उसकी सफाई दूसरी बात कि मेरे बाप ये थे और मेरे बाप के बाप ये थे. ये सोचते रहते हैं । नसीब है उनको अपना पूर्वजन्म याद नहीं आता, पर ये पूछेंगे माँ लोग आए नहीं मेरे पास जो कि मुझे बड़ा दुःख मैं पूर्वजन्म में कौन था? अब मैं, एक साहब ने उठाना पड़े. सही बात तो ये है। वो लोग मुझे मुझे बहुत तंग किया मैं पूर्वजन्म में कोन था, देखते ही भाग जाते हैं शायद इसलिए ये मेरे कौन था? फिर मैंने कहा देखी बेटे मैं तुमको की जाए। ये कार्य बड़ा कठिन है. ऐसा मुझे लगता था शुरू-2 में लेकिन ऐसे कोई खास ऐैब वाले सामने कभी प्रश्न खड़ा नहीं हुआ। पर आश्चर्य की बात है कि जो लोग भूत से ग्रसित हैं या नहीं बता रही हूँ तो इसका मतलब कुछ गड़बड़ी है। क्यों मुझसे पूछ रहे हो? इस जन्म में अच्छा जो लोग हमेशा बुरे काम करते हैं और जो है तुम मैरे साथ हो। क्यों मुझे बार-बार पूछ रहे हो? इस जन्म में अच्छा है तुम मेरे साथ हो । लोग गुरूघंटाल हैं वो सब मुझे अच्छी तरह से जानते हैं, ना जाने कैसे! या तो उनकी क्यों मुझे बार-2. पूछ रहे हो कि मैं पूर्वजन्म में है। आंखें पीछे की ओर हैं या जो भी कहिए वो कौन था। उससे तुम्हारा क्या लाभ होने वाला मुझे पहले पहचानते हैं। सहजयोगी नहीं पहचान नहीं मुझे अच्छा लगेगा। अच्छा अगर मैंने कहा पाते। हो सकता है उनकी आंखें चकाचौध हो जाती हों, मुझे समझ में नहीं आता। पर आप कि तुम पूर्वजन्म में जयपुर के महाराजा थे. समझ लो, तो तुमको क्या गद्दी मिल जाएगी? वहाँ जाओगे तो वहाँ से भगा देंगे सब। तो किसी भी भूत ग्रस्त आदमी को ले आइये। वो थर- थर कॉँपने लगेगा और ऐसा भागेगा कि सोचे पूर्वजन्म की बात क्यों करते हो? क्योंकि मुझे जैसे किसी ने हंटर मारा है। लेकिन सहजयोगियों का ऐसा नहीं। उनको पहचान भी इतनी नहीं है। कहीं का राजा था? मेैंने कहा लक्षण तो दिखते अच्छी बात है, क्योंकि आदिशक्ति का एक स्वरूप जो महाकाली का है उसे आप देख लें तो ज्योतिषी ने बताया, तुमसे एक ज्योतिषी ने बताया था कि मैं पूर्वजन्म में नहीं तुम्हारे अंदर राजा होने के। अब तुमको पैसे एंठने के लिए। वो पूरा गया काम से, भयंकर है, ये देख सकते तुमने राजा जैसे कुछ गले का कंठा वंठा दिया हैं! हाथी-आथी भी देख सकते हैं घोड़़े भी देख उसको कि बस ऐसे ही पैसों में टाल दिया? सकते हैं । पर बाकी किसी को दिखाना बड़ी उन्होंने कहा कि आप मज़ाक कर रहे हैं । मैंने कहा कि तुम बेवकूफी की बात कर रहे हो तो लेकिन महाकाली का स्वरूप होना बहुत मैं क्या करू? यहाँ तुम अपनी पूर्वजन्म पूछने के लिए मेरे पास आए। मैं कोई ज्योतिष शास्त्र तो जानती नहीं हूँ। मुझे इसमें कोई भी, किसी भी तरह की दिलचस्पी नहीं है। तुम ज्योतिष शास्त्री 34 कठिन बात है। न जाने यहाँ- कितने लोग बैठेंगे ? जरूरी है। जब तक महाकाली प्रकट नहीं होती। आपके अंदर बसी बाई ओर (left side) की पकड़ जा नहीं सकती। बाई ओर (Left side) चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 1 & 12, 2000 के पास जाओ और वो तुमसे कहेगा, तुम इंग्लेंड उन्होंने कहा ये महाशय जो हैं, इनका नाम में के राजा थे तो दे दो उसको कुछ। इंग्लैंड के नहीं बताऊँगी, ये डाक्टर साहब हैं और ये भागें नहीं देते वैसे उधर के लोगों हुए हैं आनंदमार्ग से। तो कहने लगे आपको में विश्वास ही नहीं । अब इसी बात की ले कर आश्चर्य होगा माँ, ये आनंदमार्ग के बड़े भारी बैठ गए कि पिछले जन्म में मैं ये था और प्रचारक थे। दुनिया भर में घूमे, खूब पैसा कमाया और फिर इनके गुरु जो थे वो इनको अपना राजा वगैरह कुछ पिछले जन्म में बो था। तब महाकाली का स्वरूप अगर दिखाएँ तो सारे ही जन्म भूल आद्य शिष्य मानते थे। तो हुआ क्या? ये कलकत्ते जाएँगे! इसकी बहुत जरूरत है। महाकाली में देवी के मन्दिर में थे। जहाँ बकरा काटा जाता के स्वरूप के सिवाय ऐसे पागल छूट नहीं सकते। अब मैंने देखा कि जो भागे तो फिर आए काटते हैं देवी के सामने, कि उसके अंदर भूत नहीं। फिर उन्होंने सामना नहीं किया मेरा। अब ये तो विल्कुल सोचिए कि बहुत छोटी सी बात इसमें डाल कर के उसको उस भूत से छुटकारा हैं। पर उसके अलावा महाकाली की जरूरत है हो। हम लोग तो नींबू पर ही उतार देते हैं | कि जिन लोगों को ये गुरूओं ने भूत लगा दिया शाकाहारी (Vegetarian ) अपना तो सब मामला । हैं। अब गुरूओं के भूत ऐसे होते हैं कि या तो क्योंकि बहुत से बनिए आ गए हैं न सहजयोग है। ये बात तो सही नहीं। बो बकरा इसलिए डाल कर के, और जो भूतग्रस्त हैं उसका भूत आप गुरु का कहना मानो और बिल्कुल उनके में। सो नींबू को काट करके निकल जाता है, जैसे हो जाओ। वो कहें तुमसे कि जा कर उनके घर में डाका डालो, तो डाका डालो। उसको मार भूतों को महाकाली दिखाई देती है। वही रूप डालों तो उसको मार डालो। ये करो भाग जाता है। तो ये जो भूतग्रस्त लोग हैं उनके , तो वो दिखाई देता है और थर-थर-थर-थर काँपते हैं। करो। एकदम गुरु की हाथ में आप शीष नवा ऐसे और कोई कहेगा? अब ये क्यों धर-थर कॉप रहे हैं? और अनेक तरह के भूत लग जाते हैं और आश्चर्य मुझे लगता है कि अहँ (Ego) करके घूमो तो ठीक है नहीं तो गुरु लग जाएगा आपके पीछे। आपसे कहा किसी को मारो। उसको नहीं मार सके तो दूसरे से कहेगा। इसी को मार डालो। एक अच्छी बात भी है। ऐसे झूठे का अगर भूत लग गया तो उसको भी महाकाली का रूप दिखाई देता है। गुरु एक तरह से अपना और अपने शिष्यों का ही नाश करते रहे लेकिन यहाँ देखती हूँ कि हो रहा था तो उन्होंने कहा कि माताजी तो ब्राह्मण और पूना का किस्सा। पूना में एक प्रोग्राम तो भी उन्हीं के चरणों में चले नहीं हैं, तो हमारे यहाँ पर प्रोग्राम नहीं हो सकता। नाश हो रहा है जो ब्राह्मण होगा वो ही आए। तो वहाँ के जो जा रहे हैं। हमारे यहाँ एक साहब पुलिस के साथ आए। मैं शायद अशोका होटल में थी। तो मेरे कार्यकर्त्ता थे उन्होंने कहा, अच्छा ठीक है, हम पति ने कहा, ये क्या झगड़ा है? पुलिस काहे पेपर में दे देतें हैं कि माता जी ब्राह्मण नहीं हैं, आई? मैंने कहा पता नहीं देखो तो सही। तो यहाँ प्रोग्राम नहीं हो रहा। दूसरी जगह प्रोग्राम 35 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : ।। 8 12, 2000 গ करते हैं। ना-ना, ना-ना ऐसा नहीं करो। ये रही, तो उसने कहा कि इतनी महँगी कैसे हो हमको नहीं दिखाना है, यहीं करते हैं प्रोग्राम। गई? एक रु. की 10 रु. में! उसने कहा कि मुझे किसी ने कुछ बताया नहीं तो मैंने कहा अच्छा आप लोग. पता नहीं कैसे ये दिमाग में हौँडिया, सब बिक गई। ये सब लोग हौँडयां लिए एक माता जी आई हैं वो हौडिया, हॉडियों पे चल पड़े। आया? आप में से जो कोई ब्राह्मण है मेरी ओर हाथ करे दोनो ऐसे, अब उनके लगे हाथ हिलने! मैंने कहा पूना में इतने भूत, बाप रे! कुछ समझ में ही नहीं आया। मैंने कहा हैंडिया ले के छोड़ो। तुम लोग क्यों हिल रहे हो? मैंने तो नहीं आओ, नींबू ले के आओ तो बैठें। पर वो नहीं लाए, उनकी आँखे लगी घूमने. वो लगे घूमने। मैं था तुमसे हिलने को। मुझे क्यों कह रहे हो? तो उठ के चली गई कि तो सारा यहाँ भूतों का जमघट है। जो लोग हाडिया ले के बैठे थे वो तो अरे माँ बंद करो बंद करो माँ। आप शक्ति हो, कहा, अपने आप ही हिले जा रहे हो! मैंने कहा तुम्हीं रोको? रुकता ही नहीं, करें क्या? तो मैने कहा मैने तो नहीं कहा। पर पता नहीं क्यों बड़ा कुछ ठीक थे पर बाकी के जो थे वो खडे हो कर के हो हो हा हा, ही ही करने लगे। तो मैंने उनको ये घमण्ड था कि वो बड़े ब्राह्मण है तो कहा कि भई ये गर महाकाली की शक्ति कुछ कहने लगे माँ उधर भी कुछ ब्राह्मण बैठे हुए हैं कम हो जाए तो अच्छी बात है। अब ये एक चीज़ ठीक करने के बाद दूसरे आ गए। माने कौन जिसको आप साइको सोमैटिक कहते जैसे नहीं बाबा हम लोग ब्राह्मण नहीं हैं। हम लोग कैसर, मस्कुलर, ये वो दुनिया भर की बीमारियाँ प्रमाणित (Certified) पागल हैं, थाना से आए जिसको डाक्टर लोग नहीं ठीक कर सकते। भय लग रहा है, पता नहीं क्या हो रहा है? अब उनके भी हाथ हिले रहे हैं। मैंने कही झूठ, जरा उनसे पूछों वो लोग कौन हैं। ब्राह्मण हैं? अरे हैं। वहाँ पर आपकी माताजी के पास जा कर अच्छा मानेंगे नहीं, डॉक्टर मानते नहीं जब तक एक पागल ठीक हो गया था इसलिए हम आए हैं। हम लोग ब्राह्मण नहीं हैं। अब उनके आँखें रोगी मर नहीं जाएगा। खींचो पैसे। एक साहब को गुर्दा रोग (Kidney trouble) हो गया तो मैंने कहा मैं आपकी किडनी ठीक कर दूँगी। एक खुली। मैंने कहा समझ गए आप। वो भी पागल और आप भी पागल। दोनों ही पागल। तब उनके शर्त ये है कि आप अपना धंधा बंद करिये कि जो लोगों को ये जो आप टेबलों पे चढ़ा-चढ़ा के सारा पैसा खींचते हो उससे बो ठीक नहीं होता। हाथ छूटे। शुरुआत में तो बहुत ज्यादा महाकाली का प्रताप है। कुछ समझ ही में नहीं आता था कि ये महाकाली जी अपना प्रताप कुछ कम करें तो मैं दूसरे भी काम करू। पूना में तो ये हाल मरने से पहले Bankrupt हो जाता है। Dialysis बंद आप करो तो मैं तैयार हूँ। हाँ-हाँ माँ आप क मेरी किडनी ठीक कर दो। ठीक कर दी पर दो हो गया कि मेरी एक भर्तीजी (Neice) है उसे महीने बाद फिर चालू उनकी दुकान। डाक्टर लोग कब सच बोलते हैं और कब झूठ बोलते उ6 मैने कहा कि एक हॉडिया ले आओ। तो बाज़ार मैं गई, तो एक रुपये की हँडी 10 रु. में बिक चैतन्य लहरी । खंड :XII अंक : । & 12, 2000 हैं? भगवान जाने। फिर उनको Kidney Trouble हो गई। वो मैंने कहा साहब इस बार क्या हुआ? स्वरूप और बो रुद्र बहुत जरूरो है नहीं तो ये Negativity भागने वाली नहीं है। ये सिर्फ रुद्र स्वरूप से ही। एकादश रुद्र में जो 11 रुद्र हैं वो कहने लगे फिर से Kidney Trouble है। मैंने कहा वो नहीं है अब Cancer चल पड़ा है। ग्यारह ही रुद्र में महाकाली की ही शक्ति विराजमान है। और वो हमारे मेधा पर यहाँ अब घबड़ा गए। मैंने कहा मेंने आपसे कहा था। आपने फिर से चालू कर दी अपनी दुकान। अब माँ मैं पेट कैसे भरूँगा? मैंने इतने रुपये की ग्यारह चक्रों में समाई हुई हैं। गर किसी आदमी का एकादश पकड़ गया तो सोच लीजिए उसको तो केंसर या कोई न कोई left sided भयंकर मशीनरी मँगवाई है, ये कर रहा हूँ, वो कर रहा incurable Disease सहजयोग का Science जो है वो पूरी तरह से उत्तम है। उसमें कोई आप दोष नहीं निकाल सकते। अब लोग आए कंसर लेकर हूं। मैंने कहा बेच डालो मशीनरी को खत्म करो। सुना है वो अब हैं नहीं महाराज सहजयोग में तो सारी जितनी left side की बीमारियाँ हैं, जितनी हैं साइको-सोमैटिक Disease जिसका कोई Cure Neurosis, फलाना ढिकाना, पचास तरह के, नहीं है वो सब महालक्ष्मी की कृपा से ही ठीक हो सकती है। इसीलिए महालक्ष्मी का ही मंत्र एड्स. और कहने लगे कि माँ हम तो कभी किसी गुरु के पास गए नहीं। अरे भई गुरु के पास गए नहीं, तुम्हारी माँ गई होगी तुम्हारे बाप गए होंगे। नहीं वो भी नहीं हुआ। हाँ रजनीश की किताबें पढी थीं और सत्य साई बाबा का फोटो कहना पड़ेगा और महालक्ष्मी को जब तक आप प्रकट नहीं करियेगा ये बीमारियाँ ठीक नहीं हो सकतीं। और इतनी गर्मी इन लोगों से निकलती हैं कि समझ में नहीं आता! हमारे घर में है। और एक दो देख लो मैंने कहा। London में जबकि सब लोग हीटर लगाते हैं आप एक कैंसर Patient को ले आइये और दो चार और बीमारियाँ आ जाएंगी। फिर आना। उसकी कुण्डलिनी जागृत कर दीजिए हीटर का खर्चा गया। इतनी गर्मी निकलती है। जिसकी तो उन पर तो रुद्र स्वरूप ही देवी का दिखना वहाँ जाएँगे। बीमारियाँ पकड़ेंगे और यहाँ आएँगे। कोई हद नहीं। इधर गर्मी निकलती है उधर वो चाहिए ना। क्या भूतों से कहा जाए कि आ रोते रहते हैं अक्सर, क्योंकि इसके साथ रोना बैठ-बैठ, तू खाना खा. ले पान। बहुत से लोग चलता है। महालक्ष्मी के दर्शन हों तो रोना रुके। पूछते हैं कि माँ देवी का रुद्र स्वरूप कैसे हो माँ सरस्वती के दर्शन तो दूर ही रहे. ये तो माँ सकता है? गर वो माँ है तो माँ का स्वरूप रुद्र काली के ही दर्शन होंगे अब उनको देखकर कैसे हो सकता है? क्यों नहीं। बच्चों को ठीक लि रोना ही आएगा। अब उनसे कहें क्या? सूक्ष्म करने के लिए रुद्र स्वरूप भी धारण किया। रूप से आप देखिये कि महालक्ष्मी का जो सौम्य स्वरूप, ये बच्चों के लिए हानिकर जाना स्वरूप है। अति रौद्रा। देवी के उसमें कहते हैं अतिरौद्रा अतिसौम्या पर महालक्ष्मी अतिरौद्रा। रुद्र जा सकता है। उनका रुद्र स्वरूप बहुत जरूरी है। उसके 37 चैतन्य लहरी खंड :XII अंक : 11 & 12.2000 सिवाय वो ठीक ही नहीं हो सकते। परन्तु रुद्र जो स्त्रीत्व था वो तो कम हो ही जाता है। स्वरूप में किसी को हानि नहीं पहुँचाई। ये विशेष बात हैं। जैसे कि पहले महाकाली ने इसको मारा, उसको मारा, इसकी जीभ खींची. ये शालीनता वो खत्म हो जाता है। पुरुषत्व ज्यादा आ जाता है। स्त्रीत्व कम आ जाता है। और स्त्री का जो सबसे बड़ा गुण है वो शालीनता जो स्त्री का स्वरूप है उसको किया, ऐसा कुछ नहीं। आज का जो महाकाली रणांगन में जाने की जरूरत नहीं है। पद्मिनी ने का स्वरूप है वो है रुद्र। इसकी कोई जरूरत ही नहीं, ये सब करने की। मनुष्य ऐसे ही घबड़ा अपने को 3000 औरतों के साथ चित्तौडगढ़ के किले पर ही जला लिया था। वो कोई तलवार कर के ठीक हो जाता है। उस स्वरूप को देखते ही ठीक हो जाता है और जब वो उस स्वरूप लेकर बाहर नहीं गई। पर जब जरूरत पड़ी तो को देखता है अपने आप उसकी बीमारसियों ठीक हो जाती हैं क्योंकि उसके अंदर जो Negative झाँसी की रानी हाथ में तलवार ले कर खड़ी हो गई! तब मुझे याद है अंग्रेज़ ने कहा था कि हमारी तो विजय है लेकिन गौरव तो झाँसी की चीज़ है वो भाग जाती है। तो किसी की गर्दन काटने की या जीभ काटने की या आँख निकालने की कोई जरूरत नहीं है। माँ काली का स्वरूप गर इस्तेमाल ही न किया जाए तो सहजयोग का रानी का है। अपने देश में अनेक तरह की उज्जवल चरित्र बाली औरते हुई हैं। पति परायण स्त्री धर्म में अत्यंत उच्च ऐसी औरतें हो गई हैं जिन्होंने अपनी सूझबूझ से अपना घर सभाला। कार्य ही न हो सके क्योंकि Negative forces के कारण सारे चक्र पकड़े जाते हैं और चक्र ठीक किए बगैर कुण्डलिनी चढ़ेगी नहीं। इसलिए चूड़ियाँ व सब जेवर निकाल दिए। राणा प्रताप जब गाँधी जी ने ललकारा तो औरतों ने अपनी माँ काली का स्वरूप बहुत वंदनीय है, बहुत का ही किस्सा है कि राणा प्रताप ने देखा कि सराहनीय है जो कि किसी को शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुँचाती। सिर्फ उसके स्वरूप से जो ये शंका हुई कि मैं क्यों ऐसा कर रहा हूँ. अपने बुरी बातें हैं वो भाग जाती हैं। अब मियाँ बीबी के झगड़े ये सबसे बड़ा नहीं जाता? तो वो चिट्ठी लिखने बैठे अकबर उसकी लड़की की घास की बनाई हुई रोटी भी एक बिलाव उठा कर ले गया. तो उनके मन अहंकार के लिए? मैं अकबर की शरण क्यों आजकल क्योंकि बीबियाँ पढ़ गई को। उस वक्त क्षत्राणी, उनकी पत्नी की शक्ति प्राब्लम है। और मियाँ चाहते हैं कि बीवी बिल्कुूल देहाती जागृत हुई। हाथ में भाला ले कर उसने अपनी हो। अब वो देहाती तो है नहीं, उसको देहाती लड़की पर लगाया और कहा कि में तुझे मार जिससे ये जो कमज़ोरी इनके अंदर डालती हूँ कैसे बनाएँगे? एक बार शहरी हो गए, तो शहरी हो गए। चाहे आप लँहगा पहन लीजिए और चाहे आई हैं। तब राणा प्रताप की आँखें खुली। हमारे यहाँ औरतों ने गर सोचना ही है तो तो आप पेट पहन लीजिए। दिमाग तो शहरी हो गए। अब जो शहरी दिमाग हो गए तो उसके बाद पिछली बात सोचें कि रणांगन में अपने पतियों 38 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : । & 12, 2000 हँसी में टाल दे और हँस कर के हजारों प्रश्न को का टीका लगा कर वो लड़ने भेजती थीं। इन अंग्रेजों से कौन लड़े आदमी? पर हल कर दें। ये जो बारीकी होती है इसको शक्ति औरतों की है। क्योंकि आजकल औरतें समझने के लिए मैंने कहा था आप शरदचन्द्र पढिए। उसमें सबकी नोंक-झोंक औरतें कैसे संभालें? ये होशियारी की बातें हैं। हम लोगों को अशक्त हो गई और आदमी भी नि:शक्त हो गए। ये शक्ति जो हैं ये स्त्री की शालीनता है। और ान Politics में जाने की ज़रूरत नहीं, और इस गंदे Economics में तो जाने की बिल्कुल भी ज़रूरत जब तक ये शालीनता क्रियान्वित नहीं होती तो गृहलक्ष्मी की शक्ति उसके अंदर प्रकटित ही नहीं होती। लेकिन चतुर होना चाहिए। गृहलक्ष्मी नहीं । लेकिन समाज की सारी धुरी, समाज का को चतुर होना चाहिए और दूसरे उसमें सूझबूझ होनी चाहिए। सो ये कहें कि जब महाकाली शक्ति अत्यंत शांत हो जाती है तो वो गृहलक्ष्मी अपने घर को अच्छा बनाती है, अपने पति को हो जाती हैं । महाकाली शक्ति। बी को मानते हैं कि वो गृहंलक्ष्मी का सिंहासन बनाती है। और कल मैंने कहा भी कि हमारे सुशोभित करें। महाकाली की इस शक्ति से स्त्री हिन्दुस्तान की औरतों की वजह से ही आज सारा कार्य स्त्री पर निर्भर है। जो स्त्री अपने बच्चों को अच्छा बनाती है। तो हम फातिमा स्वास्थ्य देती है वो स्त्री एक बहुत बलिष्ठ समय अपने बच्चे को ठीक रास्ते पर रखती हैं। अपने हमारा समाज ठीक है। पर स्त्री का स्वभाव शालीन होना चाहिए और उनकी शक्ति भी चीज़ के साक्षी हैं कि एक पतिव्रता स्त्री के शालीनता में है। उद्यमता में नहीं है। उसको दंड पतिव्रत को कोई नष्ट नहीं कर सकता क्योंकि ठोकने की ज़रूरत नहीं है। बिल्कुल नहीं। उसकी ये शक्ति है। ये महाकाली की शक्ति है. लोग जो शालीनता है उस शक्ति पर वो सारी दुनिया डरते हैं एक पतिव्रता स्त्री से। और पतियों को को जीत ले। उसकी चाल-ढाल, उसका ढंग चरित्र को उज्जवल रखती है और हम लोग इस एक देवी स्वरूप होना चाहिए। वो महाकाली शक्ति हैं। वो अनेक चौज़ों में बैठतो है। उसके भी जान लेना चाहिए कि उनके अंदर जो कार्य शक्ति है वो भी स्त्री से ही आती है। और वो शक्ति गर स्त्री से आती है तो स्त्री में पहली अपने-अपने वाहन हैं चीज़ शालीनता है या नहीं। गर स्त्री जबरदस्त है. बैठती है तो उसे ललिता गौरी कहते हैं। इधर बैठ, उधर बैठ, ये चल, वो कर, जो ऐसे अँगुली दिखाना शुरू कर दी तो, वो चुप। पति होते हैं। ज़रूरी नहीं कि आप घूंघट लें, का अधिकार है । लेकिन शालीनता से आप जीत ज़रूरी नहीं कि आप सर ढकें, लेकिन आँखों सकते हैं। उसमें चतुरता चाहिए। ये शालीनता के में शालीनता होनी चाहिए। शालीन बहुत लिए कोई किसी को मार-पीट चिल्लाना, कुछ बड़ा शब्द है इसमें बहुत लेकिन वो जब हाथी पर कला, हावभाव उसके सब बहुत इज्जितेदार सुन्दर सी चीज़ें समाई हुई नहीं। एक तो शालीन स्त्री में हास्यरस बहुत हैं। क्योंकि वो रुद्र स्वरूपा हैं उस रुद्र स्वरूपा को बहुत सौम्य स्वरूपा होना है। इसीलिए कहा 39 प्रस्फुटित होना चाहिए। किसी भी चौज़ को वो चैतन्य लहरी खंड :XII अंक : 11 & 12, 2000 गए। देश के बारे में न जाने लोगों ने क्या-क्या लिखा? अब वो सब कविताएँ चली गई और ये सब गंदे फिल्मी गाने बजते रहते हैं । और गणेश जी के सामने क्योंकि सुबुद्धि ही नहीं है, मुनध्य है कि आप घृंघट ले लो. सर ढक लो। बुका ले लो क्योंकि आप महाकाली हैं। जो आपको देख ले वो ही भस्म हो जाए। जो बुरी निगाह से आपको देखे वो ही खत्म हो जाए। आपके सुरक्षण के लिए नहीं, Protection के लिए नहीं में सुबुद्धि नहीं है। वो बेकार के काम करते लेकिन जो दूसरे के लिए नहीं लेकिन जो आपके ऊपर बुरी निगाह डाले वो भस्म हो जाए नष्ट हो सबसे बढ़ कर गर कोई है तो मैं कहूँगी ये रहता है। बुद्धि से कुछ भी निकाल ले! इसमें जाए। वो भस्म हो जाए। ऐसी ही ये महाकाली की महान शक्ति है। देखने में तो बहुत ही नहीं। निस्संकोच उन्होंने अपने विचार सबके उज्जवल बहुत ही शालीन पर अंदर से, उसकी सामने रख दिए और सबने उसे मान लिया। अब शक्ति तो अंदर से क्रियान्वित होती है। तो मैं यहाँ नहीं आपको बताऊँगी क्योंंकि यहाँ बताने फ़्रायड। इससे बढ़ कर कोई औलिया मैंने देखा महाकाली को लौग कहते हैं कि ये एक बड़ी लायक हैं नहीं उसके गंदे-गरदे विचार वो तो रुद्र शक्ति है माँ किन्तु इसकी शालीनता आप देखें तो आश्चर्य होता है कि क्या ये महामाया अच्छा है हिन्दुस्तान में नहीं आए नहीं तो सब उसको काट कर फेंक देते। और उस आदमी हैं? तो ये महाकाली और इतनी शालीन जैसे का लिखा. एक line आप पढ़िए तो आप जान नववधु, वाह वाह। ऐसी शर्मायगी ऐसे मीठे जायेंगे कि ये बड़ा ही बेशर्म आदमी है या भूत है या राक्षस है। जो भी है, ये उसने अपनी बोल बोलेंगी जैसे फूल झड़ रहे हों! ऐसे प्यार करेगी कि विश्वास ही नहीं होता। लेकिन ये लेखनी का और बुद्धि का उपयोग किया हैं। महाकाली की शक्ति है। इसको जिसने पा लिया शारदा के विरोध में सब लिखा और पि उसको कोई न तो भूत छू सकता है। उसको लिख दिया उन्होंने। अब सब जगह शुरु हो गई कौन छुएगा, वो ही भूत को पकड़ेगा। और जो कि हममें तो साहब भक्ति है। हम चाहे जो स्त्री ऐसी होती है उसके एक नज़र से वो लोगों लिखें। आजकल के अखवार वाले भी वैसे ही हैं। उनके भी ऊट पटाँग जो समझ में आती है बात वो लिखते रहते हैं, और कोई अच्छी बात तो लिखना ही नहीं जानते। कौन मर गया, कितने को भस्म कर सकती है। अब दूसरी शक्ति है महासरस्वती की जिससे की हमें बृद्धि में अनेक तरह के कलात्मक और अनेक तरह के विचारक प्रकाश आते हैं। मर गए? अभी मर रहा है, वो रोज देंगे मर रहा है तो भई मर जाने दो फिर लिखो। भई काहे को रोज़-रोज सबको सताते हो। बो मरता ही नहीं है, सरस्वती की कृपा से। शारदा...शारदा की कृपा से हमारे अंदर अनेक विचार बड़े सुन्दर, बड़े शांत, बहुत शीतल, बहुत कविताएँ आती हैं पर रोने गाने वाली नहीं, ऐसी आती हैं कि जिससे रोज़ इतना सारा लिख देंगे। मरा नहीं, अभी मरता नहीं। एक बार मरने के बाद इत्मीनान से लिखो। मरने तो वाले हैं ही अब क्यों रोज-रोज़ ये सब 40 आप जागरूक हों। बड़े-बड़े राष्ट्रीय गीत लिखे चैतन्य लहरी खंड XII अंक : 1। & 12, 2000 बातें। किसने पूछा है आपसे? फिर लिखेंगे. क्या है कि कृष्ण जो थे ये शूद्र धर्म के थे या महाझूठ बोलते हैं ये लोग। डर नहीं उन्हें शारदा देवी का। शारदा देवी तो हैं सत्य को देने वाली और सत्य की अधिष्ठात्री हैं। जो अपने सर में अशद्र थे, काले थे और राम जो थे वो ब्राह्मण धर्म के थे। अरे मैंने कहा काहे.और इसलिए ए इनकी शुद्र मानते हैं और उनको ब्राह्मण मानते हैं। मैंने कहा अच्छा! ये कीन से शास्त्र में से सत्य का प्रकाश आता है वो शारदा की ही है। आपने पढ़ा? सच बात तो बताऊँ कि जवाहर लाल जी ने भी जो किताब लिखी है वो Discovery किसी और चीज की होगी India आप जब लिखते हैं तो आप सोच नहीं रहे कि आपके अंदर ये लेखन शवित कहाँ से आई। ये किसने आपको लेखन शक्ति दी है? शारदा देवी ने या किसी भूतनी ने आपको दी है? इसी प्रकार की Discovery नही। मैंने देखा है। बहुतों ने ऊट-पटाँग कुण्डलिनी के वारे में बातें लिखी हैं। एक अरबिन्दों साहव हैं, ये हिन्दुस्तान की बात लिख रहे हैं। कोई गहराई वो तो बस पता नहीं कहाँ से कहाँ, कहाँ से नहीं उनमें जो देखो बो किसी पे भी लिखना इतनी superficial इतनी ओछी किताब! शुरू कर देता है! अभी तक मैंने कुछ नहीं कहाँ, कहाँ से कहाँ चले गए! कुछ उसमें अर्थ ही नहीं है, वो क्या लिखते हैं पता नहीं। उनका लिखा। बड़ा नाम है अरबिन्दो मार्ग। मैं हमेशा उस मार्ग से नहीं जाती क्योंकि पता नहीं कहाँ चला जाए? बात लिखो। अभी तो सबकी खोपड़ियाँ इतनी जहाँ उसकी खोपड़ी गई वही लिखता गया, खुली नहीं हैं। और किसी ने भी नहीं लिखा। हाँ लिखता गया, लिखता गया। और कुछ भी उसमें मोहम्मद साहब ने तो कुछ भी नहीं लिखा। मैं सोचती हैँ सबकी खोपड़ी में जाए ऐसी उनको तो लिखना ही पढ़ना नहीं आता था बेचारों की बात सत्य नहीं। अब वो सावित्री की गाथा गाई उन्होंने, अब साबित्री का ये अरे क्या करने को। चालीस आदमियों से उन्होंने बताया कि भई का है। और उनकी वो जो भी उनका रिश्ता रहा ये मुझको मालूम हुआ। Revelation हुआ ये हो, पता नहीं वो जो माता जी थीं वो पचासों तो ऐसे-ऐसे हैं। उनको भी लिखना पढ़ना नहीं आता उनके मुँह पर शिकनें पड़ी हुई हैं और कहें ये जवान होने वाली है। वो मर गईं, गाड़ दिया तो एक बड़ा दुष्ट आदमी था। उसका नाम था...कुछ भी अभी जवान तो हुई नहीं। और उनकी ऐसा ही नाम था। ये मेरे पिता ने मुझे बात बताई किताबों पे किताबें। ऊट-पटाँग ऐसे। ऐसे धर्म के और अब ये पक्का है. ये पता है ये सच है। उस था। तो चालीस साल तक कुछ लिखा नहीं गया। ारी महाशय ने बड़ा दुष्ट था। हज़रत अली को मारा उसके लड़के को मारा। उसके बाद खलीफा को मारा फिर दूसरे खलीफा को मारा और उसका जिगर उसकी माँ खा गई। ऐसा ये गंदा आदमी। औरतों का बो....था। उसने कुरान को Edit लोग हैं। फिर आज के न जाने कितने intellectuals निकल आए हैं दूसरे हाल में मैंने पढ़ी एक साहब है अपने को बड़े भारी लेखक समझते हैं। नाम मैं भूल गई। पंजाबी हैं पंजाबी। कभी उन्होंने संस्कृत पढ़ा नहीं होगा और लिखते 41 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 1 & 12, 2000 गर आप पढ़िए तो आप कहानी लिखना शुरू कर देंगे। ऐसे-ऐसे लेखक अपने यहाँ हो गए इस किया। अब वताईये और कुरान-कुरान लिए घुमते हैं! इसकी authenticity कुछ है नहीं और बाईबल में भी Paul ने सारा सत्यानाश कर भारत वर्ष में कि ऐसे कहीं नहीं हुए होंगे। दिया। ये तो ईसाई कम से कम मानते हैं। वो टालस्टाय हो गए बहुत बड़े. में मानती हैं पर नाम भर के ईसाई हैं। चलो अच्छा है क्योंकि उनसे भी बढ़ कर शरतचन्द्र। महाराष्ट्र में तो ऐसी-ऐसी बातें किसी से कहो तो मारने को बहुत ही ज़्यादा। एक.. उनके नाम बताने से दौड़ेंगे। जिस कुरान इतिहास है, ये सच्ची बात है। उसमें शारदा देवी ही नहीं किया क्योंकि ये सब मामला Political के लिए लड़ते हैं उसका ये फायदा नहीं। लेकिन किसी ने उनको translate का क्या हाथ? शारदा देवी की कृपा से बहुतों ने बहुत कुछ लिखा। ज्ञानेश्वर जी ने ज्ञानश्वरी है भई। ये Political क्या है। शारदा देवी कोई Political है। ये Political मामला है कि आपके Chief Minister साहब गर कहें तो Academy लिखी और उसके बाद एक और किताब। इतनी सुन्दर है कि ऐसा लगता है कि आप अमृत पी रहे हैं। संतों ने लिखा जिन पर शारदा देवी की बनेगी। हमारे Chief Minister साहब महाराष्ट्र के, वो तो अंग्रेजी भी बोलना नहीं जानते, मराठी भी नहीं जानते बो क्या करेंगे? अनपढ़ आदमी जैसे कृपा हुई। ज्ञानेश्वरी की शुरूआत में शारदा देवी की कृपा से बो लिखते हैं कि मेरे वचन जो भी हैं। सब अनपढ़ ही होते हैं आजकल तो Chief में कह रहा हूँ ये में शारदा देवी को प्रसन्न करने के लिए कह रहा हूँ लेकिन ये शब्द किसी भी Minister? वो क्या recommend करंगे? उनको क्या मालूम? Recommend करने के लिए कोई पढ़ा लिखा आदमी हो। उनको कोई जानने तरह से आपको दुःख नहीं पहुँचाएंगे। जिस तरह हहै से पंखुड़ियाँ धीरे से आ कर जमीन पर गिर जाती है उसी तरह मेरे शब्द भी आपके हृदय पर वाला हो. बना दिया recommend करने के लिए। हरेक चीज़ को वो ही recommend करते हैं। नहीं तो ऐसी-ऐसी सुन्दर चीजें। दक्षिण में कोई उत्तर के एक कवि हैं। उनकी कविताएँ इतनी सुन्दर कि मैं आपसे क्या जानती हूँ, पर अग्रेजी में भी कई बड़े कवि हो बताऊँ। शारदा देवी की अत्यंत कृपा अपने देश विजन पर है। सबसे बढ़िया लेखक अपने देश में हैं। गिरें और आपको सुगन्धित करें। क्या लिखना। इतनी सुन्दर कविता और इतना सीम्य उसका स्वरूप! ऐसे लगता है कि जैसे प अमृत का रस पी रहे हों! अब इसलिए कि मैं मराठी भाषा गए और उनकी कविताएँ हम लोगों ने नाम की किताब में दी हुई हैं आप पढ़िए। westernised नहीं बल्कि असली हिन्दुस्तानी उनका नाम था विलियम ब्लेक। और इतनी भारतीय लोग हैं। उनमें पैसा नहीं है पर सरस्वती जोशीली कविता कि आप के अंदर जोश आ की बड़ी कृपा है। एक से एक। अब राजस्थान पर उस की बड़ी कृपा रही। यहाँ बड़े-बड़े कवि जाए। शारदा जैसे उनकी कविताओं में से निकल कर आपके अंदर बस गई हों। बैसे ही शरद-चन्द्र, हो गए और यहाँ से Alexander भी यहाँ की 42 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 2000 एक विलियम व्लेक की हम बात कहंगे वो भी इसलिए। लेकिन बाकी। एक साहब हैं उन्होंने एक बड़े भारी कवि हैं चंद्रबर्दाई। यहीं के हैं कविता लिखी। मार रोने की कविता। जैसे अपने राजस्थान के हैं। उनको अपने साथ ले गए और यहाँ गज़ले होती हैं वैसे रोने की कविता उन्होंने लिखी। कि अच्छे भले घर में बैठे खाते-पीते संस्कृति देख कर इतने अचंभे में पड़ गए! तो न वापस गए और अपने साथ चंद्रवदाई को ले गए। राजस्थानी language में उनका बड़ा वर्णन किया। आदमी हैं पर नाटक बना कर कविता लिखी कि फिर सूफियों में खुसरो हैं, क्या कविताए हैं। मैं कहीं पे जा कर कंद हो गया। क्यों हुए, कुछ कबीर दास हैं। गुरु नानक साहब का तो कहना ही क्या, वो तो गुरु हैं। रामदास स्वामी। बंगाल में नहीं होते ता पता चलता और कैद में ये हुआ और मेरे बाल सफेद इसलिए नहीं हुए और फलाना नहीं हुआ और ढिकाना नहीं हुआ। और सारे ही शब्द इनके ऐसे-एसे अरे भाई ऐसा अगर तुम्हें तकलीफ हो व्यवस्थित। ऐसा लगता है मानों निर्विचारिता में रही थी तो तुम कहीं वहीं डूब जाते। अच्छा रहता। ऐसी रोने वाली कविता! जो कविता उठाओं वो रोने वाली। और अच्छे भले बैठे हैं। मतलब भी क्या एक से एक कवि हो गए। और ये सब शारदा देवी की कृपा से है। सारे शब्दों से मानो धर्म बहता हो। प्रकाश लिखे गए हों। इतने शुद्ध वर्णन। ये हम जरूर कहेंगे कि सबसे ज्यादा संस्कृत में और उसक बाद मराठी में ही आध्यात्म पे किताबें बढ़िया उनको कोई तकलीफ होने पर लिखो तो भी समझ में आता है। अच्छे भले बैठे है पैसा कमा पैसा लिखीं। ना जाने बड़ी गहराई से, आध्यात्म पे अग्रेजी में भी इतना लिखा जाता है माँ तो बहाँ क्या शारदा रहे हैं। सबको रुला रहे हैं और आप खा और लोगों को भी रोना बड़ा अच्छा रहे हैं। का कोई वो नहीं? अब यही सोचिए कि अंग्रेजी लगता है! हमारे एक मुसलमान पहचान में, तो कहने लगे माताजी ये गज़ल लोग क्यों गाते हैं? भाषा में आत्मा के लिए spirit शब्द है, है ना? I à नहीं। कहने लगे जितने लोग गज़ल पसंद करते हैं वो अपनी बीवी से प्यार नहीं करते, वो कुछ मेंने कहा उन्हीं से पूछो जो गाते हैं। मुझे तो पसंद शराब को भी spirit और भूत को भी spirit । ये कोई भाषा हुई? ये शारदा देवी की कृपा से ऐसी भाषा नहीं। और फ्ैंच भाषा तो उससे भी गई बीती। एक दम। उसमें चेतना के लिए कोई शब्द और ही से प्यार करते हैं। मैने कहा आपने कंसे जाना? मेंने देखा है ये बात हैं और रोते रहते हैं। नहीं। अग्रेजी में कम से कम awareness, अरे अपनी बीबी है क्यों रो रहे हैं, ये बीबी बैठी उसमें awareness के लिए कोई शब्द नहीं। और उसमें आत्मा कं लिए जितने दारू के लिए जिन्दा। उसी के साथ रहो, आराम से मज़ा उठाओ। अब तीसरे के लिए रो रहे हैं। तू नहीं शब्द हैं वो लगा दीजिए आत्मा के साथ। मिला और तेरी छाया नहीं मिली। ये क्या शारदा ये सब उन पर आशीर्वाद हुआ। बे बड़े-बड्ड लेखक हो गए, सब जो भी लेखक वहाँ हुए हैं राजकारणी लोग. राजकरण पर लिख गए। हाँ देवी के आशीर्वाद में से होती है ऐसी कविताएँ? ये सिर्फ लोगों को मूर्ख बनाने के लिए एक और 43 चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : ! & 12. 2000 तरह के लोग होते हैं। एक साहब हमारे यहाँ साड़ी पहन के और राधा बनते थे और कृष्ण के आए थे। बहुत दिन पहले की बात है तो उन्होंने शराब पे कुछ सुना दिया। बड़े मशहूर आदमी हैं। उसमें कोई अर्थ नहीं, बेकार की बात हैं। साधू शराब से ये होता है, फिर मधुशाला होता है और संतों को इससे क्या मतलब? वो तो कबीर को फलाना होता है। मैंने कहा जो रस्ते में मरते हैं वो भी लोग कहते हैं कि कबीर ने कह दिया कि भी तो कहों। मैंने फिर उनको एक कविता सुनाई "सैंया निकस गए मैं न लड़ी थी" अरे वाह. उसी वक्त, मैं तो शीघ्र-कवि हूँ। मैंने कहा क्यों सैंया निकस गए माने क्या कि प्राण निकल गए. ना प्याला झूमता है, पी वही मदहोश हाला। खुसरो ने लिखा प्याला क्यों नहीं झुमता, वो क्यों नहीं झुमता? से नैना मिला के" अरे सूफी और तुम हो। तुम तो प्याले से भी नैना मिलाना सिवाय परमात्मा के? छाप माने कमजोर हो। इसके बाद उन्होंने शराब की बात मुसलमानों की पहचान और तिलक माने हिन्दुओं नहीं करी। कुछ समझ ही में नहीं आता। जब की, सब मैंने छोड़ दिया, तुझसे जब मैंने आँखें साथ नाचते थे। अब ये रोमाँटिकपना जो है, "छाप, तिलक सब दीन्हीं, तो आदमी वो किससे क्यों झूमते मिलाई। उन्होंने देहाती भाषा में, इस तरह की बीबी मर गई तो उसका सुनाया उन्होंने। उस पर भाषा में लिखा। ऐसे जैसे "मेरा नैहर छूटो ही एक कविता बना ली और सुनते हैं कि 15 दिन ति बाद उन्होंने शादी भी कर ली और फिर उस पर जाए". अब तो क्या वो बहुरानी थे के क्या नैहर छोड़ने के। क्योंकि गहराई नहीं है तो सृफियों को दूसरी कविता बना ली। जैसा मौका लग गया वैसे ही। इस प्रकार अपने देश में बहुत सस्ते भी हम सोंचते हैं कि बो Film Star हैं, फिल्मी क गाने गा रहे हैं। गहराई नहीं है ना, समझ नहीं। तो टाईप के कवि पैदा हुए और विशेषकर वो कवि जो कि भगवान को सब चीज़ में घसीटते हैं और शारदा जी भी जो हैं, वो भी कभी-कभी महामाया परमात्मा को मनुष्य के जैसा दिखाते हैं। ये तो महापाप है और उन पर शारदा देवी की जो भी स्वरूप हो जाती हैं। जैसे zen, zen के जो कवि ।ि लिखते हैं वो एक सहजयोगी ही समझ सकता है. कृपा है वह महाकाली के दरवाजे में जाने वाली है। माने विद्यापति साहब एक लेखक थे। अब और और कोई नहीं समझ सकता। वो जिस तरह से कोई चीज़ का वर्णन करते हैं। छोटी सी भी, या कृष्ण का पता नहीं साहब क्या श्रृंगार जिस तरह के वो चित्र बनाते हैं वह बहुत ही राधा सूक्ष्म और उसकी संवेदना सिर्फ एक योगी जन राधा को कहाँ टाइम कि श्रृंगार करें? सारे विश्व ही कर सकते हैं और कोई नहीं। अब कव्वाली में लोग मुजरा गाते हैं और मुजरे में कव्वाली। ये कोई शारदा देवी का आशीर्वाद नहीं। किसी भी सजा रहे हैं। अरे उस कृष्ण को कहाँ टाइम। उस की जिसको चिन्ता और रा-धा रा माने Energy और धा माने धारने वाली। उसको क्या ये सब सता दुनिया भर का रोमाँस करने की जरूरत? अब तरह ऐसे Mixtures करना। दम संगीत में भी शुद्धता आनी चाहिए। अब डाल दिया उन पर रोमॉँस। यहाँ तक कि वाजिद अली साहब जिनके 165 बीवियाँ थीं वो भी संगीत में भी देखते हैं कि उसमें जापानी भी ले 44 चैतन्य लहरी खंड :XII अंक : ।। & 12, 2000 आते हैं और अंग्रेज़ी भी ले आते हैं और सब ले रंग समाया ये रंग बनके जब फैल जाता है। ये आते हैं, क्योंकि शुद्ध संगीत गाना नहीं आता। और मिला-मिला के. मिलाकर करते चलो। में नहीं। देहात में गाते हैं लोग कितने प्रेम से और शारदा अपने देश में ही होली हो सकती है और किसी रंगों के हमारे यहाँ जो खेल होता है, रंगों देवी के पूर्ण आशीर्वाद से! उनके आशीर्वाद से के हमारे यहाँ जो साड़ियाँ बनती हैं कपड़े बनते ही जितने महान ग्रंथ हैं वो बने। कितने महान हैं, लँहगे बनते हैं, ये सब उनके देश में कहाँ? नाटक या कादम्बरियाँ लिखीं गई बो सब इस वहाँ तो Grey कपड़े पहन कर चलेंगे। अब शारदा देवी के आशीर्वाद से। किन्तु इस वर्तमान Grey से बढ़ गए तो काले। ऐसे भूत के जैसी शक्लें और ऊपर से काले कपड़े पहन कर में ऐसा लगती है कि शारदा देवीं ने अपना हाथ कुछ रोक लिया है या ये आशीर्वाद कम हो गया है। इस राजस्थान में जो कला का प्रार्दुभाव हुआ है, मैं देखती हूँ कि दो-तीन साल में ही एकदम घूमते हैं। एक से उतरे तो दूसरे। उनकी कोई हिम्मत है ऐसी एक भी साड़ी बना कर दिखा दें तो हम फिर से अंग्रेजों कला फूट पड़ी है। ये बिल्कुल शारदा देवी का को मान लें। एक, रंग-बिरंगे हर तरह औरतों के ही आशीर्वाद है इसमें कोई शक नहीं। ऐसी-एसी नक्काशियाँ। ऐसी-ऐसी चीजें इतना सुन्दर शारदा देवी ने इन लोगों को यहाँ बनाने लग गए लोग हाथ से अपने! बड़ा आश्चर्य! पहले भी यहाँ बड़ी अच्छी नक्काशियाँ होती थीं, सफाई का ख्याल बहुत है। औरतें बहुत साफ हैं लोग तराशते थे, पर अब सारे Pottery में देख घर वगैरह साफ रखती हैं। पर बाहर वहुत गंद लीजिए, कहीं देख लीजिए। क्या सुन्दर-सुन्दर है। आदमी लोगों को कोई मतलब ही नहीं बाहर कला! बढ़िया ऐसे रंग-बिरंगी ऐसी चीजें! हम से। सब कुड़ा बाहर फिंकता है और, परदेस में कले ही एक फैक्टरी देखने गए थे तो हमने सोचा आज ये साड़ी पहनें। ये राजस्थानी रंग हैं करते सारे। और डरते नहीं। ऐसा रंग हर एक तरह का Dress होते हैं। इस राजस्थान में तो क्या कहे? बसाया है। वैसे एक बात जरूर कहेंगे कि यहाँ । बाहर साफ है क्योंकि आदमी लोग खुद साफ हैं। यहाँ आदमी लोग हाथ में झाडू लेकर साफ करेंगे। अरे बाप रे, उनके तो सर का ताज रंग पहनते हैं। अंग्रेज़ ऐसे नहीं। वो कहते हैं एक उतर जाएगा। तो सफाई और व्यवस्थितता. ये भी गर हो तो उसके ऊपर बिल्कुल मेल नहीं ना शारदा देवी का ही आशीर्वाद है। औरतें तो उनके हृदय में और दिमाग में, लगता है, दिमाग में उनके मेल नहीं । अपना घर बगैरह बहुत सुन्दर साफ सजा के रखती है। देखते हैं हम पर ऑगन से बाहर हुए इनको भाषा की समझ तो है नहीं, कुछ कि आदमियों के सब वहाँ वहाँ सब नज़र आते भी कह लो। अब जब हृदय और दिमाग एक हैं। गर ऐसी प्रथा हम सीख लें अंग्रेजों से कि वो होगा तब लोग समझेंगे ये चीज क्या है कि जिसे अंग्रेज़ी में यूँ बदल सकते हैं मारे खुशी के जो सब आदमी मिल करके सन्डे के रोज़ उसका जलसा मनाते हैं। सब लोग आपस में बाहर 45 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 1 & 12, 2000 बैं । पता हुआ कि वहाँ जर्मन लोगों से बड़े impressed हैं क्योंकि टर्की से बहुत से लोग जर्मनी गए थे इसलिए जर्मन लोगों को बहुत मानते हैं और ये कहूँगी कि आप लोगों के यहाँ निकल कर और सब लोग मिलकर जलसा करें, चलो आज सफाई करेंगे, गार्डन ठीक करेंगे। ये करेंगे, वो करेंगे। पर हमारे यहाँ नौकर चाकर हैं। हम क्यों करें। नौकरों से करवाएँ। ये गंदगी जो हैं ये शारदा देवी को पास में नहीं आने देती है। है, खाना है वहुत बढ़िया. जरा भारी है पर अच्छा है। पर गर आप टकिश बहुत स्वाद बढ़िया खाना खाएँगे तो आप कहेंगे माँ ये तो खाने की बिल्कुल चरम सीमा है । और एक साथ एक वो हट ही गई। बहुत जरूरी है कि सफाई करनी चाहिए और सफाई भी सुचारू रूप से Artistic होनी चाहिए। यहाँ तो बहुत ही कला का प्रार्दुभाव है। और ये कोई सोंच भी नहीं सकता और ऐसी चीज़ कहीं और बन ही नहीं सकती, जो आपने होटल में हम गए थे 5000 आदमी एक साथ खाना खा रहे थे और गरम-गरम एऐसी फूली हुई रोटियाँ कि पूछिए नहीं। मुझे जरा खाने की वैसे बना कर रख दी। असंभव लेकिन है। कला है इतनी ज्यादा अक्ल नहीं है पर मेरा वर्णन करना आपके पास। सब कुछ है पर इसे मंडप तक पूजा तक और उसके बाद। तो सीमा में आप बाँध नहीं सकते शारदा देवी को। वो असीम है। कोई खाना खाए तो वाह-वाह ऐसा तो हमने कोई विशेष ना होगा पर अगर कोई टर्की जा कर और उनकी कृपा असीम तक चलती है। आप कभी खाना खाया ही नहीं। वहरहाल जो भी हो कहें कि बस हम शारदा देवी के पुजारी हैं तो आपके घर तक तो ऐसी बात नहीं। वैसे बहुत ही वहाँ लोग आ करके खाना खाते हैं। पर आपको कला पूर्ण यहाँ के लोग हैं। बहुत सुन्दर। इतने हैरानी होगी कि ये टकिश लोग जमर्मनी से खाना सुन्दर घर आपको मेरे ख्याल से हिन्दुस्तान में मँगा कर खाते हैं। और कपड़े सिलते हैं वहाँ कहीं नहीं मिलेंगे। उसका कारण है यहाँ की जर्मन भेजते हैं, कपड़े वो वहाँ सिले जाते हैं पृथ्वी से ये बढिया पत्थर निकले ये एक एक और उसका आपने इस्तेमाल किया और से import होते हैं। ये अपने यहाँ भी हैं काफी पत्थर हैं और इसके अलावा और भी यहाँ बड़ी ये बीमारी कि imported चीज़, ये हम imported इतना अच्छा वहाँ खाना मिलता है कि परदेस से । टर्की में, फिर वापस जाते हैं जर्मनी में फिर वहाँ से लाए। Import करने का जैसा इस देश में कुछ कलात्मक चीजें हैं। इतनी कलात्मक चीजें इस ाि धरती ने आपको दीं। ये भी शारदा जी की ही भी नहीं। एकदम रद्दी लोग। क्या बनाते हैं वहाँ कृपा से कि आपके अंदर ये शक्ति आई कि इन पत्थरों को आप तराशें और उसका सदुपयोग करें। जैसे कि टर्की में बड़ी गरीबी आ गई बड़े कलात्मक लोग। कुछ मेरी अक्ल में नहीं बनती है टर्की में, आपको दुनिया में ऐसी अच्छा घड़ी, घड़ी बनाते हैं; ये तो गुलामी की चीज़ है वेकार है। अपने देश में जो चीजे बनती और हैं उसका क्या कहना। उनके यहाँ जो Pottery आया कि इतने कलात्मक लोग हैं और इनमें Pottery नहीं मिलेगी। China से भी better, लेकिन उनके Dinner set में खाना खाते हैं तो 46 इतनी गरीबी क्यों आ गई? आखिर क्या बात है? चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 1 & 12. 2000 आप गरीब नहीं होएंगे तो क्या होएंगे? और की जगह हिन्दुस्तानियों को रख दो और कहेंगे हम बहुत गरीब हो गए। तो जाओ और हिन्दुस्तानियों की जगह अंग्रेज़ों को। Solution तो निकल आया लेकिन मेरे दिमाग में ये बात आई ि अब जर्मनी में जा कर भीख माँगों, वो अच्छा रहेगा। तो शारदा देवी की जिस देश में इतनी कृपा है तो उनको क्या जरूरत है परदेसी चीज़ों वो बड़े अच्छे थे। ये एहदीपना का लक्षण है। हाँ को इस्तेमाल करने की? उनके ना तो संस्कृति में बुड्ढे लोग हों मेरी समझ में आती है लेकिन कुछ है, न तो उनके कपड़ों में कुछ है और नही उनके खाने पीने में कुछ है। सब बासी खाना चढ़ती है। क्योंकि वो विदेशी चीज़ है इसलिए कि ये अच्छी वात नहीं। जो जंगलों में जाते थे जवान लोगों को एहदीपना की कहाँ से बात है। कम से कम औरतों में से शाम तक। ताज़ी सब्जी बहाँ बहुत ज्यादा Smart खाते हैं सुबह मिलती नहीं। अब काँटे चम्मच से खाए बगैर कुछ अक्ल आ गई है। पहले मैं नायलोन की आजकल लोग सोचते हैं कि आप देहाती हो साड़ियाँ हमारे घर वालों के लिए लाती थी तो गए! अब बाहर के सहजयोगी हाथ से खाते हैं बहुत खुश होते थे, उन्होंने कहा माँ हम तो अपने यहाँ की साड़ियां ही पहनते हैं, ये हमें नहीं पसंद। अब वहाँ कोई सिल्की साड़ियाँ हुई? बहाँ हैं कि गणपति पुले में बड़े से तो लाएँगे तो नायलोन की साड़ियाँ ही लाएँगे। मत लाओ साड़ियाँ हमको नहीं चाहिए। वो मेरे घर वाले। लेकिन वाकी लोगों में ऐसा नहीं। एक पले और अपने Indian सहजयोगी जो हैं काँटे चम्मच से खाते हैं। यहाँ तक इस कदर हम अंग्रेज़ होने की कोशिश करते मुश्किल से इंडियन्स के लिए और Foreigners के लिए अलग-अलग Bathrooms बनाए। Indians के Indians ढंग के और Foreigners देवी से हमने कहा कि वहाँ तो नायलोन ही है| के Foreigners ढंग के। तो Indians ने कहा मैं तो शिफान पहनती हैँ सिर्फ शिफॉन। अच्छा ये हमें तो वैसे ही अंग्रेज़ी के ढंग के चाहिए माँ। मोटी है और मैं शिफॉन पहनती हूँ। मैंने कहा अंग्रेज़ी ढंग के आपको चाहिए। और Foreigners कितने गज़ लगते हैं आपको? और इस कदर हम लोगों में जो पहले की औरत की शालीनता बहुत खुश हुए कि हिन्दुस्तानी ढंग के हमारे लिए। Very clean Mother, very celan। वो थी वो पैसे बो बचाती थी रोकती थी और उन बहुत खुश हुए लेकिन हिन्दुस्तानियों को तो औरतों का हाल ये है कि वो आदमियों से भी attached चाहिए। पहले जाते थे जंगलो में और ज्यादा खर्च करती हैं। Hair dressers के पास अब attached! इतनी अंग्रेजीयत हमारे अंदर जाओ। नाखून कटवाने हैं पता नहीं क्या-क्या? अमेरिका में एक आर्टिकल निकला था बहुत आ गई। बहरहाल उसमें भी हर्ज नहीं। तो बेचारे अच्छा कि आजकल इसलिए Divorse हो रहे वहाँ के leader साहब आए कि माँ में क्या हैं, क्योंकि Hair dresser आ गए हैं कुछ मुझे करू? मैंने तो अंग्रेज़ों के लिए वो बनाए, उनको वो पसंद नहीं और हिन्दुस्तानियों के लिए जो संबंध समझ में नहीं आया। कहने लगे ऐसे आदमी किसी एक औरत पर गर फिदा हो जाएँ 47 बनाए उनको वो पसंद नहीं। मेंने कहा अंग्रेजों चैतन्य लहरो खंड : XII अंक : 1। & 12, 2000 12,2000 हों। ऐसे भी लोग मैंने देखे हैं कि जो औरंगजेब तो वो उनके Hair-dress से। अब दूसरे दिन से भी बढ़ कर हैं। संगीत वे जानते नहीं लेकिन उनकी Hair dresser बदल गया उनका भी मन बोलेंगे बहुत। एक साहब बड़े अपने को संगीतकार हट गया। अब रोज़ ही गर आप Hair-dress बदलते फिरिए और उतने आप पति करिए, उतनी आप पत्नियाँ करिये तो बड़े आश्चर्य की समझ कर बैठे। मैंने कहा, हैं कोन महाराज? बोले इनका बात है। उनके पागलपन सीखने की अपने को बड़ा भारी Association है संगीत पर मैंने कहा ज़रूरत नहीं। कम से कम हिन्दुस्तान में औरतों ने अपना तरीका छोड़ा नहीं। जिस तरह से वो और बाजा भी बजा रहे थे। वाह-वाह. तो इनसे चलती हैं, घूमती हैं, अपने को बो समझती हैं। ये कहिए कि दरबारी गाए। तो दरबारी तो गा जिस दिन औरत ने अपनी शालीनता छोड़ दी चुके भाई। अभी दरबारी गा चुके। तो अब क्या अच्छा। तो कहते अभी इन्होंने गाना गाया था दरबारी गाएँ तो तानड़ा गाएँ दरबारी, कानडा उसी दिन उस क अंदर से जितना कुछ शुद्ध कला का स्वरूप कहिए, या स्त्री का स्वरूप, एक ही बात। हर प्रोग्राम में हाजिर, हर जगह अध्यक्ष| पनि का स्वरूप, माता का स्वरूप सब खत्म हो Musician से पहले उनको ही हार पहनाया जाएगा। ये शारदा देवी की कृपा में रहने वाले सब लोगों को पता होना चाहिए। एक कहावत जाता। मैंने कहा ये बहरा है कि क्या है। ये है। दरबारी गा रहा था या क्या। तो फिर आप इस दौर में आए क्यों। ठीक है आप संगीत के लिए कि आप जो भी कुछ करते हैं उसको दिखावे नहीं आए। फिर इसमें क्यों आए। हर चीज़ में "Art is in hiding the art" की ज़रूरत नहीं और उसमें Show बाज़ी की मास्टरी। जरूरत नहीं। किन्तु आप जो कुछ भी करते हैं, पहनते हैं, ओढ़ते हैं गर आपको शारदा देवी की पूर्ण मेहरबानी चाहिए तो दूसरों के लिए करिए, अपने लिए नहीं। दूसरे क्या कर रहे हैं। तो लोग एक देवी जी थीं। वो तो पता नहीं क्या थी अपनी Govt में उनके बाल पक गए और वो कला वला कुछ नहीं जानती थीं कला की सूक्ष्मता कुछ नहीं जानती थी और बड़ा नाम था! है ा कहेंगे कि हाँ एक Actress बन कर घूमेंगे, सब तो गर आपको शारदा देवी के शरण में रहना लोग हमें देखेंगे, और क्या। बहुत Popular हो तो अपने गाँव में, अपने देश में, जो कुछ होता जाएँगे। नहीं! मैंने देखा है जितनी भी Actress है और जो कुछ आज तक उन्होंने बनाया है, लोग हैं उनका नाम ऐसे लोग लेते हैं जैसे कोई कलाकारों ने उसका इज्जत करनी चाहिए। अजंता रास्ते पे खड़ी औरत हो। उसकी कोई इज्जत नहीं देखा लोगों ने पर स्विटजरलैंड जाएँगे! अजंता जैसी चीज़ Switzerland के नाम के नहीं। नुमाइश की चीज़ है । सारी चीज़ में भी शारदा जी का एक आवरण होना चाहिए। संगीत, बाबा के दादा कोई नहीं बना सकता। आपको मालूम होना चाहिए। चाहे देहात का ही चैतन्य लहरी Switzerland में देखने का क्या है? पत्थर। हम 48 । खंड : XII अंक : 11 & 12, 2000 औरतों को ज़मीन में गाड़ कर मार रहे हैं और कुछ लोग. कराची में कल देखा मैंने, दूसरों को पत्थरों पर पत्थर मार रहे हैं। वहाँ पर कला कैसे तो Switzeriand गए थे अजंता नहीं देखी? आबू नहीं देखे । जो अपने देश के बारे में जानेगा ही नहीं वो इस देश को प्यार कैसे करेगा? कृपा है। होगी? तो इस भारतवर्ष में जो देवी की जब कला इस देश में चारों तरफ से बह रही है। चारों तरफ से बहने लगी है। सो कला उसे आप अपनी नज़रों से देखिए। उसको समझिए. उसका आनंद उठाइए। फिर नाट्यकला है बंगाल की तरफ रूचि रखना और अपने देश की कला थार तता को पहले अपनाना चाहिए। नहीं तो वाकई में में और महाराष्ट्र में, नाट्यकला बहुत ऊँची है। बेवकूफी की भी हद होती हैं। एक साहब ने वहाँ लोग Cinema नहीं जाते। नाटक को जाते हैं। महाराष्ट्रियन लोग आप लोगों जैसे रईस नहीं मुझे बड़े Special बुलाया। ये बहुत दिन पहले की वात है। 30 साल हो गए होंगे अमेरिका से हैं। पर पांच रु. का टिकट हो चाहे सात रु. का आए। आप माता जी को बुलाओ। उनकी वहन हो वो जा कर नाटक देखेंगे। इसलिए नाट्यकला। हमारी सहज योग में हैं। आप Airport पर जाने से पहले आपको एक चीज़ दिखानी है। अमेरिका सिनेमा तो गड़बड़ा गए। अब नाटक भी गड़बड़ा से आए थे मैंने कहा पता नहीं क्या लाए हैं मैं जाएंगे और ना जाने क्या-क्या हो जाएँगी। कुछ-कुछ वहाँ गई। देखती क्या हूँ वो एक पंप ले कर पहले सिनेमा बहुत अच्छे थे। पर अब ऐसी अजीब चीजें देखने में आई हैं कि लगता है आए हैं और एक बलून में भरने लगे और उसका सोफा बनाया। कहने लगे देखिए। अब विराजिए इस पर। मैंने कहा भई देखो. मेरे पास शारदा देवी यहाँ से भाग खड़ी हो जाएँगी। उनका मान तो छोड़ो उनका बिल्कुल अपमान लोग करते हैं। इतनी विचित्र चीज़ें मेंने इस India में बेहुत ज्यादा Vibrations हैं। ये फट जाएगा। मेरें देखीं। मुझे आश्चर्य लगता है कि ये ऐसे चल कैसे रहे हैं। अब उन्होंने कहा है कि फिल्मों में लिए कोई तख्त-वख्त बिछा दो तुम, उस पर मैं बैठ जाऊँगी। मैं अपनी देसी हिन्दुस्तानी मोटी औरत हूँ, मेरे बस का नहीं है। अरे कहने लगे आप पर कुछ impression ही नहीं पड़ा। मैंने से हम निकाल देंगे ये बो। हमारे जिन्दा जी हम अगर देख ले कि ये गंदगी निकल जाए तो बड़ा आनंद आएगा। तो India की जो Art हे वो सूचक है। जैसे आप Chinese Art देखिए तो सींग कहा impression अभी पड़ा हैं पर जब इस जैसे, एक भूत के जैसा बना है Chinese, ऑर पर से मैं गिरूगी तो Depression हा जाएगा। तो सबसे पहले जो बात कही वो अब फिर कहूँगी कि शारदा देवी की कृपा आपके इस भारत वर्ष पर बहुत है और क्योंकि पाकिस्तान व बांग्लादेश Egypt की Art देखिए तो सब Dead है। कहीं वो Mummies बनाएंगे, ये आदमी ऐसे बनाएंगे जैसे कोई लाश खड़ी कर दी। पहले England, America में कला ठीक थी जब तक realistic भी इसी देश का एक भाग है वहाँ पर भी है। पर धीरे-धीरे हट जाएगी। आजकल तो लोग वहाँ बनाते रहे । फिर impressionistic बनाया, तब एक दूसरे को पत्थर ही मार रहे हैं। कुछ लोग } ॥ खंड : XII अंक :॥ & 12, 2000 तक भी ठीक थी पर अब वहाँ जो Modern 49 चैतन्य] लहरी कला बन गई है ये आपके मैरे और किसी भी इंसान के बस की नहीं। ऐसी विकृति आ गई है बहुत अच्छा बजाने लगते हैं। शारदा जी की कृपा हो गई उन पर। लेकिन आपको सुनकर आश्चर्य है, होगा कि हमारे देश का जो संगीत और कि लगता है शारदा देवी वाकई भाग गई हैं और नृत्य ऐसा कहीं भी दुनिया में नहीं है कहीं भी। जितनी गंदी और जितनी उल्टी-सीधी और जितनी अब तीसरी जो हमारे अंदर शक्ति है अधर्मी Picture बनेगी उतना ही उसका दाम, सिनेमा में। शारदा का बड़ा अपमान है। आप त्रिगुणात्मिका, वो महालक्ष्मी की शक्ति है। अब सब सहजयोगियों को कला की समझ होनी लक्ष्मी जी की पूजा तो अभी करके आए हैं टक्की चाहिए और कलात्मक चीजें आप इस्तेमाल में वहाँ गरीबी आ गई थी इसलिए। पर जब तक जर्मनी से बो सामान मंगाना बंद नहीं करेंगे करिए। खासकर हाथ से बनी हुड। तो ये तब तक उनकी गरीबी नहीं जाने वाली। कहने Ecological Problem ही खत्म हो जाए। अपने घर में दो सुन्दर चीजें होने से लगे अब हमको उसी का taste हो गया। मैंने अच्छा है बनिस्वत 25 प्लास्टिक की चीज़ें और कहा वाह भई। अब भूखे मरोगे तो क्या होगा? 40 पेपर प्लेट्स। ये अपने भारत की संस्कृति है। इसके रोम-रोम में शारदा का प्रकाश है। औरतों तो दीवाली वहीं हो गई। अब महालक्ष्मी की जो तो मैंने सोचा वहाँ लक्ष्मी जी की पूजा हो जाए है यह सिर्फ साधकों के लिए। ने इसे बचाए रक्खा है अब आदमियों को भी पूजा जब लक्ष्मी जी का पूरी तरह से उपयोग ले लिया और बहुत हो गई लक्ष्मी. जैसे हुआ था, महावीर को हुआ था, आ गई और उपरति आने के बाद वो परमात्मा चाहिए कि इसकी रक्षा करें। सब क्योंकि अब हिन्दुस्तान में ऐसे बहुत से लोग हैं जो चार रंग से ज्यादा पांचवाँ रंग नहीं जानते। आप जानते हैं बुद्ध को उपरति (विरक्ति) ना डाक्टर साहब बहुत से रंग, आते हैं? नहीं तो डॉक्टर लोग नहीं जानते। मैं तो डाक्टरों के साथ को खोजने निकले। ये जो खोजने की शक्ति रही हूँ. डाक्टरों के साथ पढ़ कभी नहीं आएगी। लेकिन जानते हैं तो बहुत temple है कोल्हापुर में, स्वयंभू है। तो वहाँ के बड़ी बात है। सो वो भी सूक्ष्म दृष्टि अपने अंदर जोगवा गाते हैं, कि हे अम्बे तू जाग हे अम्बे तू आनी चाहिए। नाट्य कला में, हर चीज़ में, नृत्य में हर चीज़ में। अब ये नहीं आदमी औरतों जैसे नाचें, ये नहीं लेकिन आदमी आदमियों जैसे, मन्दिर में ये क्यों गाते हो भई? औरतें औरतों जैसे उसके शुद्ध स्वरूप में जब हूँ। इनको कला ये महालक्ष्मी की शक्ति है। ये महालक्ष्मी का जाग ये नामदेव ने लिखा 16वीं शताब्दि में। वहाँ के ब्राह्मणों से मैंने कहा कि महालक्ष्मी के कहने लगे पता नहीं अनादि काल से यहाँ चल रहा है यही गाना। जब से नामदेव हुए हैं। संगीत में नृत्य में मैंने बहुत दफा देखा है कि तो अम्बे कौन है? कहने लगे देवी है कोई। मैंने कहा आपको इतना भी नहीं मालूम? मैंने कहा आपको तो में नहीं समझा पाऊँगी ये बड़ी 50 उतरें तो तब शारदा जी की तो कृपा हैं ही । लोग जब हमारे सामने बंजाते हैं तो बहुत जल्दी उनका नाम बढ़ जाता है, बहुत नाम होता है। चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & I2. 2000 । महामाया। जब सहस्त्रार को खोलने का काम मुश्किल है। पर महालक्ष्मी के मन्दिर में भी अम्बे जागती है। वो वैसे। मध्यमार्ग में महालक्ष्मी आता है तो बो महामाया का स्वरूप धारण बहुत छिपा हुआ, है। उस मार्ग में आपकी सारी खोज left की करती है और वो स्वरूप बड़ा छिपा हुआ और जैसे-जैसे उसे जानने right की, बुद्धि की सब खत्म हो जाती है। और आप मध्यमार्ग में आ गए। जब आपने खोजना का आप प्रयत्न करते हैं, तो आप सूक्ष्म से शुरू कर दिया तब आप पर महालक्ष्मी की कृपा हो जाती है। Bible में इसे Redeemer कहा है। तीन शक्तियाँ बताई उन्होंने। पहली शक्ति सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम हो जाते हैं। यह सूक्ष्मता अत्यंत आवश्यक है क्योंकि हमारे अंदर जो कुछ भी गौरवशाली विशेष धन है उसको जानने के लिए सूक्ष्म होना बहुत आवश्यक है। उसमें को कहा है Comforter, Left side की। Right Side की को कहा है Councellor और बीच वाली को Redeemer ये Holy Ghost की तीन शक्तियाँ हैं। सो जो मध्य मार्ग में आप प्रवेश करने लगते हैं और मध्य एक बाधा आती है और वो है आपकी left और Right की खोंच। इसलिए हमसे हमेशा कहते हैं कि अपने को आप प्रत्यक्ष करा करो । Introspection दूसरों को नहीं, अपने को। धौरे-धीरे ये होने से आप सहज में उतरेंगे। आप चक्रों के मार्ग में आ जाते हैं तब आप एक साधक हो गए और साधक के ऊपर महालक्ष्मी उमड़ बारे में जानते हैं। महाकाली की शक्ति के बारे पड़ती है। महालक्ष्मी की कृपा उस पर होती में मैंने बता दिया और महासरस्वती के बारे में, है। महालक्ष्मी की शक्ति का चढ़ना बहुत और महालक्ष्मी के बारे में मैने बहुत बार, वहुत मुश्किल है क्योंकि कभी मन Left को जाता बार बताया है। ये सब बताना बताना रह जाता है, कभी Right को जाता है। कभी left को हैं। जब तक साधक उस स्थिति को प्राप्त जाता है, कभी Right को। एक भाग कुण्डलिनी नहीं होता उसे चैन नहीं आता। उस स्थिति के जागरण से ही मध्य मार्ग को प्राप्त करते को प्राप्त करने पर भी उसको इस्तेमाल नहीं हैं। पहले तो वो एक सोपान ब्रिज बनाती निर्विकल्प में उतरना मुश्किल हो जाता है। हैं। Void और उससे गुज़र कर कुण्डलिनी शक्ति, मध्य मार्ग से गुज़रती हुई ब्रह्मरंद्र को छेदती हुई ब्रह्माण्ड से एकाकारिता प्राप्त शक्तियों का वर्णन किया लेकिन उससे परे करती है और जब ये घटना हो जाती है, आदिशक्ति है और उनका वर्णन करना कोई करते तो ये विश्वास पक्का नहीं बनता और आज का lecture कुछ ज्यादा हो गया क्योंकि विषय ही कुछ एंसा था। ये तो तीनों आसान नहीं। वो बड़ी ऊँची चीज़ हैं । उनका उसके बाद त्रिगुणात्मिका मिलकर के आपकी वर्णन करना तो कठिन है। आप ही लोग उनका आज्ञा चक्र को छेदकर जब आप सहस्त्रार में आते हैं तो यहाँ आदिशक्ति का स्वरूप वर्णन कर सकते हैं मैं नहीं। ये आप पर छोड़ती सबको मेरा अनन्त आशीर्वाद। 51 हूँ। महामाया का है। सहस्त्रारे महामाया, सहस्त्रारे चैतन्य लहरी खंड :Xll अंक : 11 & 12. 2000 hcA s कट MATASSL ब] हि ु स थ सहजयोग केन्द्र हरिद्वार उत्तर प्रदेश में दिवाली पूजा 2000 के पश्चात् लिए गए फोटोग्राफ में प्रसन्नता से कुण्डलाकार में नाचती हुई कुण्डलिनियाँ। ोस ---------------------- 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-0.txt हैन्दी आवृत्ति चैतन्य लहरी न से अंक जैयम्बर विसह्यर-2000 ॥४- an के ए बिना ध्यान-धारणा के आपका उत्थान नहीं हो सकता। आपको ध्यान-धारणा तो करनी ही होगी...तभी शुद्धिकरण होगा।..शनैः शनैः...आप बहुत गहन हो जाएंगे और आपकी शक्तियाँ प्रकट होने लगेंगी। जहाँ भी आप होंगे नकारात्मकता वहाँ से भाग जाएगी और सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान हो जाएगा। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी गुरु पूजा कबेला, 23,7.2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-1.txt श] ये ज्ञान, जो आपने प्राप्त किया है वह प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। तु एरम पन्य मानाजी शरी निर्मता हेी मेरा चित हमेशा आप पर होता है। सदैव आप लोग-ण लीगों की प्रधालित करता हुआ। मैं आपके विपय में सभी कुछ इसलिए जान लेती हैं कि मेरा चित्त सर्व्यापी है। आपके साथ कोई भी घटना यदि होती है, कोई भी परेशानी जब आपकी होती है, कोई भी परिवतन जब आप में होता है तो मै चित्त यहा पर होता है। परम पूल् माताी शरी तिर्मला देी ममरात्रि पु ा = । पस 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-2.txt इस अंक में गुरु स्तुति 1. 2. गुरु पूजा 23.7.2000 ईस्टर पूजा-23.4.2000 3. 20 आदिशक्ति पूजा 4. 32 योगी महाजन सम्पादक : विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार , नई दिल्ली-110 067 : अभिनव प्रिन्ट्स, विल्ली- 34 फोन : 7184340 मुद्रक ्ड 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-3.txt गुरु स्तुति परग पूज्य श्री मातानी के श्री चरणों में अर्पित ज्ञानेश्वरी के अध्याय 12 से 18 पर आधारित हे , गुरु माँ (गुरु मौली) आपको कोटि-कोटि प्रणाम। अपने बच्चों पर निर्मल एवं शाश्वत श्री माताजी, आप हमें आरती का बरदान 1. 6. देती हैं, आत्मा जिसकी लपट है, और खेलने के आनन्द-निरानन्द की उदारतापूर्वक वर्षा करने के लिए आप सर्वत्र विख्यात हैं। हे, गुरु माँ, हे करुणामयी, वासनारूपी सर्प लिए मन:शक्ति तथा प्राणशक्ति रूपी दो खिलौने प्रदान करती हैं। तथा, हे माँ, आध्यात्मिक आशीष के गहनों से हमारा श्रृंगार करती हैं । हे गुरु मौली (गुरु माँ). अपने अमृत का 2. अपने शिकंजे में कसकर जब हमें डसता है तो 7. उसका जहर हमारी चेतना का हरण कर लेता है। भोजन आप हमें प्रदान करती हैं और 'सोह वासना रूपी इस सर्प के जहर को उतारना भी ' हंसा' के अनहद नाद की लोरी गाकर हमारी बहुत कठिन कार्य है। परन्तु हे प्रेममयी माँ. आपके एक कटाक्ष मात्र से यह ज़हर लुप्त हो सुलाती हैं। जाता है तथा चेतना पुनर्जागृत हो उठती है। 3. हे, परमप्रिय गुरु, श्री माताजी. अत्यन्त आत्मा को ज्योतिर्मय करके हमें योगनिद्रा में हे श्रीमाताजी, हे गुरुमूर्ति, आप ही सभी साधकों की माँ हैं। सारी विद्या का उद्भव 8. आपके चरण कमलों से होता है। कृपा करके वर कृपा कर आपने अमृत का सागर हमें प्रदान किया है। सांसारिक जीवन की तपन किस प्रकार दें कि हम आपके चरण कमलों की छाया में हमें कष्ट दे सकती है और किस प्रकार इसके सदा-सर्वदा बने रहें। दुख हम पर विजयी हो सकते हैं? हे परम प्रिय गुरु, केवल आपकी कृपा के श्रीमाताजी अपनी करुणा का आश्रय जब 9. आप हमें प्रदान करती हैं तो हम दिव्य ज्ञान 4. कारण ही आपके बच्चे योग के आशीष का शुद्ध विद्या) में पारंगत हो जाते हैं। 10. हे गुरु, श्री माताजी, आपको कोटि-कोटि शाश्वत् आनन्द उठा रहे हैं। आप ही अत्यन्त प्रेमपूर्वक हम पर 'सोह' (मैं वही हूँ) की आशीष वर्षा कर रही है। प्रणाम। आपके चरण कमलों की छत्रछाया में ही शुद्ध विद्या पनपती है। श्रीमाता जी निःसन्देह हे माँ, अपने हृदय के झूले में, अपनी आपके चरण कमल ही हमारी आत्मा है। 11. श्रीमाता जी आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 5. गोद में, अपनी पोषक शक्ति द्वारा आप प्रेमपूर्वक अपने बच्चों का लालन पालन करती हैं और आपका स्मरण मात्र हमें शब्दों के अथाह सागर उन्हें योगनिद्रा में सुलाती हैं। पर आधिपत्य प्रदान करता है अर्थात् अपनी 50 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 2000 he 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-4.txt सूक्ष्म भावनाओं को प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त करने की शक्ति प्राप्त हो जाती है और हमारी रक्षा करने में आप देर नहीं करतीं। आप करुणा का अनन्त सांगर हैं। सारा दिव्य ज्ञान आपका अभिन्न मित्र है। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि जिह्वा से दिव्य ज्ञान (शुद्ध विद्या) बहने लगती है। 18. श्रीमाताजी आपकी माया की लीला में श्रीमाताजी जो आपको कोटि कोटि प्रणाम। 12. आपके स्मरण मात्र से व्यक्ति की वाणी इतनी जब हम लिप्त होते हैं तो हमें लगता है यह मधुर हो जाती है कि माधुर्य, अमृत तथा सभी संसार सत्य है। परन्तु जब आप अपना ब्रह्म रूप रस विनम्र होकर शब्दों के माध्यम से तुरन्त प्रकट करती है अर्थात् सर्वशक्तिमान परमात्मा अभिव्यक्त हो जाते हैं। 3. श्रीमाताजी आपको कोटि कोटि प्रणाम । का सच्च रूप, तो हमें इस बात का ज्ञान होता है कि श्रीमाताजी आप ही सर्वव्याप्त हैं। श्रीमाताजी आपकी अनुकम्पा से आपके बच्चों को ऐसे आपको कोटि-कोटि प्रणाम। शब्द सूझते हैं जो आत्मा से उदित होने वाले गहन अनुभव तथा सूक्ष्म रहस्यों को अभिव्यक्त जादू का सम्मोहन डालता है तो दर्शक पूरे विश्व करते हैं । 19. श्रीमाताजी जादूगर जब दर्शकों पर अपने को भूल जाते हैं। परन्तु जादूगर स्वयं को छुपा 14. श्रीमाताजी हमारे हृदय जब आपके चरण नहीं सकता। परन्तु श्रीमाताजी आपकी माया का जादू आपके विषय में सत्य की चेतना को लुप्त कर देता है और व्यक्ति भ्रान्तिमय संसार को सत्य मान लेता है। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि कमलों में होते हैं तो सौभाग्यश्री, दिव्य ज्ञान तथा साक्षात्कार की कृपा हम पर होती है। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 15. श्रीमाताजी आप सर्वदेवों में महान् हैं। प्रणाम । 20. श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम । दिव्य ज्ञान का प्रकाश (प्रज्ञा) प्रदान करने वाले केवल आप ही संसार के जरें-जरें में व्याप्त हैं । सूर्य आप ही हैं। आप ही की कृपा से आपके बच्चे (साधक) निरानन्द रूपी जीवन आनन्द प्राप्त कर सके। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि सहजयोगियों तथा आत्मसाक्षात्कारी लोगों में आप अपने ब्रह्म रूप में प्रकट होती हैं। ब्रह्म रूप में प्रकट होकर उन्हें अन्तरप्रकाश प्रदान करती हैं। प्रणाम । परन्तु माया में लिप्त लाग आपके विषय में नहीं जान पाते। श्रीमाताजी आपसे सम्बन्धित आपकी 16. श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। आप ही वह वट वृक्ष हैं जिसकी छाया में है। आपके बच्चे सुख और सुरक्षा का अनुभव करते यह लीला अत्यन्त अद्भुत 21. श्रीमाताजी आप ही की शक्ति जल को हैं। अपने बच्चों के हृदय में आप ही 'सोहं' का तरलता तथा पृथ्वी माँ को क्षमा का गुण प्रदान सूक्ष्म रहस्य प्रकट करती हैं। आप ही वह सागर करती है। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। हैं जिसमें तीनों लोक प्रकट तथा लुप्त होते हैं। श्रीमाताजी त्रिलोकी में आप ही की शक्ति श्रीमाताजी कष्ट में फँसे अपने बच्चों की 22. 17. चैंतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-5.txt सूर्य तथा चन्द्र की तरह चमकती है। विना हैं। आपकी शक्ति के वे मोती को जन्म देने वाली 27. श्रीमाताजी तदातम्य भाव हमारी युग सीप के खोल सम होते। श्रीमाताजी आपको हस्तांजलि सम है जिससे हम कलियाँ निकालकर आपके चरण कमलों में अर्पण करते हैं। हमारी कोटि-कोटि प्रणाम। 23. श्रीमाताजी आप ही की शक्ति के कारण नाड़ियाँ, चक्र तथा इन्द्रियाँ ही ये कलियाँ हैं। पवन स्वतन्त्रता पूर्वक कहीं भी बहती है तथा इन्हें हम आपके चरण कमलों में समर्पित करते सर्वव्याप्त प्रतीत होने वाला गगन आपके ब्रह्माण्डीय हैं आपको कोटि-कोटि प्रणाम। ार 28. श्रीमाताजी अनन्य भाव से (पूर्ण समर्पण अस्तित्व का मात्र नन्हा सा भाग है जिसे वैसे ही खोजना पड़ता है जैसे लुका छिपी खेल में छिपे हुए व्यक्ति को। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि उन पर अपनी अनामिका (Ring Finger) से भाव से) हम आपके चरण कमल धोते हैं और समर्पण का चन्दन लगाते हैं। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। प्रणाम। श्रीमाताजी केवल इतना ही नहीं है। माया 24. भी आपके विराट रूप का एक नन्हा सा अंश है 29. श्रीमाताजी आपके प्रति हमारा प्रेम स्वर्ण की तरह से है। कृपा करें कि हम इस स्वर्ण को और अन्तरप्रकाश का उद्भव भी आप ही की शक्ति के कारण है। श्रुतियों (वेदों) ने आपके पवित्र करके इसकी पाजेबें बनाकर इन्हें आपके रूप का वर्णन करने का निरर्थक प्रयास किया चरणों में पहना सकें। परन्तु आपके रूप को समझ न पाई। श्रीमाताजी 30. श्रीमाताजी कृपा करें कि अपने प्रेम के आपको कोटि-कोटि प्रणाम। शुद्ध स्वर्ण से अंगूठियाँ बनवाकर हम आपकी पादांगुलियों में पहनाएं। श्रीमाताजी परमात्मा के स्वरूप का वर्णन 25. करने में वेदों को दक्ष माना जाता था। परन्तु ये श्रीमाताजी, आनन्द-सुगन्ध से परिपूर्ण सत्व 31. गुण रूपी पुष्प हम आपके चरण कमलों में अर्पित करते हैं। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि दक्षता तभी तक सीमित थी जब तक उन्होंने आपके 'ब्रह्म रूप' का अवलोकन नहीं किया। आपके पावन स्वरूप का वर्णन आरम्भ करते ही प्रणाम। 32. श्रीमाताजी, अपने अहं की अगरबत्तौ वेद बिल्कुल वैसे ही शान्त हो जाते हैं जिस जलाकर हम न अहम् की भावना की ज्योति से प्रकार हम आपके ध्यान की स्थिति में होते हैं। आपके चरण कमलों की आरती उतारते हैं। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 26. श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। हम आपके सभी बच्चों ने अपने हृदय शुद्ध कर श्रीमाताजी हमारा शरीर और प्राण पादुकाओं 33. लिए हैं। कृपा करके अपने चरण कमल हमारे हृदय में विराजित करें। अपने हृदय में, श्रीमाताजी, कमलों में धारण कीजिए। श्रीमाताजी आपको का जोड़ा है। कृपा करके इसे अपने चरण कोटि-कोटि प्रणाम। हम आपके चरण कमलों की पूजा करना चाहते चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-6.txt सभी बच्चे अखण्ड आभारी हैं। हमारे जीवन से 34. श्रीमाताजी कृपा करें कि आपके चरण कमलों में ये पूजा जो आपके बच्चे कर रहे हैं दुख समाप्त हो गए हैं, पाप क्या होता है ये हम सभी कमियों के बावजूद भी पूर्ण हो और आप इसे स्वीकार करें। भूल गए हैं और दारिद्रय का अस्तित्व समाप्त हो गया है। आपके पावन दर्शन करके जीवन की 35. श्रीमाताजी अपनी पूजा का ये अवसर पूर्णता का आनन्द हमें प्राप्त हो गया है। श्री य आपने हमें प्रदान किया, इसके लिए हम आपके माताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : । & 12. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-7.txt गुरु पूजा कबेला-23.7.2000 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन धर्मों ने यदि एक ही बात कही है तो आपके सभी धर्मों का कंवल लक्ष्य, स्वयं को जानना है आज हम यहाँ गुरुतत्व को समझने के लिए आए हैं। गुरु क्या करता है? आपके अन्दर जो भी कुछ है, आपके अन्तर्निहित बहुमूल्य गुण. आपके ज्ञान के लिए वह इन्हें खोजता है। परन्तु लोग कर्मकाण्डों में फैस जाते हैं। वे सोचते हैं कि ये कर्मकाण्ड करके वे परमात्मा के बहुत समीप हैं। अपने विषय में वे पूर्ण अन्धकार में वास्तव में सारा ज्ञान, सारी आध्यात्मिकता, सारा आनन्द आपके अन्तर्निहित है। यह सब आपके अन्दर विद्यमान है। गुरु तो केवल आपको आपके रहते हैं जिसका आत्मा से कोई मतलब नहीं। रहते हैं और दिन रात कुछ न कुछ ऐसा करते ज्ञान और आपकी आत्मा के प्रति चेतन करते हैं । सभी के अन्दर आत्मा है और सभी के अन्दर आध्यात्मिकता भी है। ऐसा कुछ भी नहीं है जो आपको बाहर से मिलता हो। परन्तु ये ज्ञान प्राप्त करने से पूर्व आप इससे कटे हुए होते हैं या अज्ञानता के कारण भिन्न प्रकार के व्यायाम, प्रार्थनाएँ, पूजाएँ आदि करते रहते हैं ऐसे लोगों को लोग पैसे देते रहते हैं, वे लोग धनवान हो जाते हैं। इनकी दिलचस्पी केवल धन में होती आपको मूर्ख है। आपका सारा धन लूटकर वे बनाते हैं। वे आपके अहंकार को भी बढ़ावा देते अन्धकार में होते हैं और उस अज्ञानता में आप नहीं जानते कि आपके अन्दर कौन सी सम्पदा हैं और इसके कारण आप भ्रम के समुद्र की ओर बहने लगते हैं और अन्तत: स्वयं को बहुत ही धार्मिक तथा परमात्मा से जुड़े हुए मानते हुए निहित है। अत: गुरु का कार्य यह है कि वह आपको इस बात का ज्ञान करवाए कि आप आप इसी भ्रम सागर में डूब जाते हैं। जबकि क्या हैं। ये पहला कदम है कि वह आपके वास्तव में आप परमात्मा से जुड़े ही न थे! अन्दर वह जागृति आरम्भ करता है जिसके द्वारा परमात्मा को जानने के लिए पहले आपको स्वयं को जानना चाहिए। स्वयं को जाने बिना परमात्मा आप जान जाते हैं कि बाह्य विश्व मात्र एक भ्रम है तथा आप अपने अन्तस में ज्योतित होने लगते ताः को नहीं जाना जा सकता। स्वयं का ज्ञान प्राप्त है। कुछ लोग तत्क्षण पूर्ण प्रकाश प्राप्त कर लेते करना बहुत आवश्यक है। परन्तु जब आपको स्वयं का ज्ञान प्राप्त होता है तो वह भी अधूरा हैं और कुछ इसे शनै: शनै: प्राप्त करते हैं। सभी धर्मों का सार यही है कि आप स्वयं को पहचानो। जो लोग धर्म के नाम पर लड़-झगड़ रहे हैं उनसे आपने पूछा है कि क्या आपके धर्म होता है। आपका अनुभव अधूरा होता है। यह ज्ञान आवश्यक है और केवल गुरु ही आपको आत्मा का ज्ञान देता है। अब आपने इसे जाँचना 9र ने आपको अपनी पहचान करवा दी है? सब चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : । & 12, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-8.txt है और परखना है कि आपके गुरु ने जो कुछ की शैली शनै: शनैः परिवर्तित होतीं है कैसे? बताया वह सत्य है या नहीं। गुरु की वताई हुई सर्वप्रथम अत्यन्त उग्र स्वभाव, क्रोधी तथा अहंकार बातें ठीक हैं भी सही या नहीं। कहीं ये बातें भी से पूर्ण व्यक्ति अत्यन्त भद्र एवं विनम्र होने लगता है। दूसरी तरह के भयग्रस्त और अत्यन्त एक अन्य प्रकार का भ्रम जाल तो नहीं है? उत्थान मार्ग पर लोग बहुत सी समस्याओं में फँस जाते हैं। जिनमें से सर्वोपरि अहं की उस स्थिति में व्यक्ति को भय विल्कुल नहीं सावधान रहने वाले व्यक्ति निर्भय हो जाते ि समस्या है विशेष रूप से पश्चिम में अहं वढ़ रहता। वह विश्वस्त होता है कि वह ठीक मार्ग जाता है और आप सोचने लगते हैं कि आप पर है और ठीक रास्ते पर चल रहा है। आसानी बहुत महान हैं और अन्य लोगों से अच्छे हैं और से ऐसा व्यक्ति उत्तेजित नहीं होता। फिर भी आपको और अधिक ऊँचाई तक उन्नत होना है, आप में कुछ बहुत ही विशेष हैं। यह अज्ञानता सांसारिक अज्ञानता से कहीं अधिक भयानक है उस स्तर तक जहाँ ध्यान-धारणा करते हुए आप क्योंकि सांसारिक अज्ञानता में आप गलत कार्य जान सके कि आपमें क्या दोष है। के परिणाम भी महसूस करते हैं। उत्थान मार्ग पर आपने अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लिया है, आत्मसाक्षात्कार का आशीर्वाद आपको जाते हुए जब आप आधे रास्ते पर होते हैं, जब आपकी अज्ञानता अपने विषय में होती है तब प्राप्त हो गया है, आपका स्वास्थ्य अच्छा हो गया है, आपको सभी प्रकार के इतने सारे आशीर्वाद व्यक्ति को समझना चाहिए कि उसमें अहं न हो। इस स्थिति में आत्मनिरीक्षण आरम्भ होता है गए हैं कि आप गणना भी नहीं कर प्राप्त हो सकते । सभी कुछ है परन्तु अभी आपको और अ्थात् सहजयोग के पूर्णज्ञान को है, जब आपको पता चलता है कि आपमें कोई समझना है। अपनी बौद्धिक योग्यता से सर्वप्रथम आपने इसे समझना है और तत्पश्चात् जाँचना है करने लगते हैं। यह प्रयत्न अत्यन्त ईमानदारी से कि यह कहाँ तक सत्य है, किस स्तर तक किया जाना चाहिए। सहजयोग में बहुत ही आपने इसे समझा है. कहाँ तक इसे आपने आरम्भिक स्थिति में लोग सोचने लगते हैं कार्यान्वित किया है और कहाँ तक इसे जाना है? कि वे बहुत महान हैं उन्हें आत्मदर्शन की अन्तर्दर्शन द्वारा जब आप स्वयं को देखने आवश्यकता नहीं है। ऐसे लोग आत्मसाक्षात्कार लगते हैं तो भक्ति के साम्राज्य में प्रवेश करने लगते हैं तब न तो आप बहुत अधिक बादलों में फँस जाते हैं। अत: आपको बोलते हैं और न किसी को परेशान करने आप स्वयं को देखने लगते हैं कि आपमें क्या त्रुटि है जब आप समझ जाते हैं कि आपमें अहं आगे जाना है है। कमी है या दोष है तभी आप आत्मनिरीक्षण को प्राप्त किए बिना ही पुन: अज्ञानता के आत्मदर्शन करना होगा और स्वयं देखना का प्रयत्न करते हैं। अत्यन्त मधुर, भद्र और विवेकशील व्यक्ति आप बन जाते हैं। ऐसे होगा कि आप क्या करते रहे हैं, आप क्या हैं? आप कहाँ तक उन्नत हुए हैं। ऐसे व्यक्ति व्यक्ति को स्वयं परखना चाहिए कि वह अन्य 10 चैतन्य लहरी खंड : XII अक : 11 8 12, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-9.txt सभी सन्तों को सताया गया और परेशान किया लोगों से किस प्रकार व्यवहार कर रहा है। अब चित्त एक व्यक्ति से दूसरे पर जाने लगता है गया। अधिकतर सन्तों को सताया गया परन्तु इन लोगों ने कभी इनका विरोध नहीं किया, कभी और आप देखने लगते हैं कि आप किस प्रकार बदला नहीं लिया और कोई क्रूर कार्य नहीं रहे हैं, आपकी सुहृदयता के क्या गुण हैं? किसी किया। परेशान करने वाले लोगों के लिए इनके मन में केवल करुणा भाव थे। हे परमात्मा कृपा आचरण कर रहे हैं, किस प्रकार आप प्रेम कर व्यक्ति से जब आप निर्वा्य प्रेम करते हैं तब उसके प्रति पूर्णतः समर्पित होते हैं पूर्णतः। उसकी करके इन्हैं क्षमा कर दें. ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं। ये लोग इतने करुणामय थे, आज्ञा आप मानते हैं और यदि यह प्रेम विद्यमान है जिसे आप समर्पण भी कहते हैं, तो आप करुणा ही इनका स्वभाव बन गई थी। करुणा जब स्वभाव बन जाती है तो ऐसे लोग पूर्णतः शान्त हो जाते हैं वे कभी उत्तेजित नहीं होते. किसी भी घटना से वे उत्तेजित नहीं होते। सांचते हैं कि यही परमात्मा की मर्जी है। उन्हें कुछ भी उसके लिए कुछ भी कर सकते हैं। यह मात्र प्रेम है। समर्पण प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं और बह प्रेम अत्यन्त आनन्ददायी है। यह भक्ति, ा और भक्ति उत्तेजित नहीं कर सकता, कुछ भी अशान्त नहीं यह समर्पण आरम्भ हो जाता है आपका शुद्धीकरण कर देती है। आपके सभी दुर्गुण जिन्हें मैं कमियाँ कहती हूँ तथा अपने गुरु तथा परमात्मा के प्रति अपनी भक्ति का। कर सकता। वे अपनी भक्ति का आनन्द लेते हैं, भक्ति के इसी आलम में वे चाहे कविता अन्दर की समस्याओं को आप समझते हैं और लिखें, चाहे नृत्य करें, चाहे भजन गाएं, क्योंकि समस्याओं से परिपूर्ण आप पाते हैं तो निर्वज्य शान्ति उनके अन्तःस्थित है और वे आनन्दमग्न प्रेम के कारण आप उस व्यक्ति को सहन करने हैं। अकेलेपन में भी वे कभी अकेले नहीं होते। अपना ही आनन्द लेते हैं। वे जानते हैं कि वे इन पर काबू पाते हैं। किसी को यदि इन दुर्गुणों, का प्रयत्न करते हैं । ऐसा व्यक्ति सब कुछ सहन करता है। उसमें किसी भी प्रकार को आक्रामकता परमात्मा के साथ एक रूप हैं तथा परमात्मा के आशीर्वादों का वे आनन्द लेते हैं। कृत्रिमता वे नहीं होती। ऐसे लोग केवल क्षमा करते हैं। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति बढ़ते ही चले जाते हैं। कभी नहीं अपनाते, कभी चिन्तित नहीं होते उनकी क्षमा करने की शक्ति अथाह होती है। कभी उत्तेजित नहीं होते न वे भविष्यवादी होते उनके मन में किसी के भी प्रति दुर्भावना नहीं हैं न वे भूतकाल की बातें सोचते हैं, सदैव वर्तमान में रहते हैं। वर्तमान में रहते हुए वे पूर्णत: शान्त होते हैं। कोई भी समस्या या दुर्घटना यदि हो तो वे तुरन्त निर्विचार समाधि में भक्ति का संगीत । क्षमा का यह धन इन गुरुओं चले जाते हैं। उनके अन्दर इस स्थिति में जाम होती। किसी के भी प्रति क्रोध नहीं होता वे सहन करते चले जाते हैं । और क्षमा करते जाते है। क्षमा का यह गुण संगीत सम हैं- आपकी चले जाने की योग्यता होती है। ने ईसा-मसीह के जीवन से प्राप्त किया होगा। 11 चैतन्य लहरों खंड : XII अंक : 11 & ।2, 2000 ho 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-10.txt गुरु बनने के लिए आपको ऐसा व्यक्तित्व करने के लिए विवश हो जाएं, पूर्णतः विवश। आपको समझना चाहिए कि परमेश्वरी में न फँसे। मैं आपको अपना उदाहरण दूँगी। मैं शक्ति आपके आस-पास है और यह आपकी कभी जल्दबाजी नहीं करती। न ही कभी मैं सुरक्षा तथा आपकी सभी आवश्यकताओं समय की चिन्ता करती हूँ। एक बार मैं अमेरिका की पूर्ति का पूर्ण आश्वासन है। आप कह सकते हैं कि श्री माताजी आप वहुत विकसित करना होगा कि आप किसी भी वन्धन कके जा रही थी। आपको यदि इस बात पर विश्वास है कि परमात्मा ने आपके लिए सारी योजना बना शक्तिशाली हैं। परन्तु यदि आप परमेश्वरी रखी है तो आप निश्चिंत हो जाते हैं । परमात्मा कार्य के प्रति पूर्णतः समर्पित हो जाएं तो आपकी देखभाल कर रहे हैं तो चिन्ता क्यों आप भी अत्यन्त शक्तिशाली बन सकते हैं। आपको शक्तियाँ भी प्राप्त हो जाएंगी और परमेश्वरी कार्य भी। शक्तियों के साथ साथ करनी है? मुझे अमेरिका जाना था परन्तु एक बच्चा गिर गया। जाने के लिए मैं उठने ही वाली थी कि बच्चा गिरा और उसकी बाजू टूट गई। जब मैंने बच्चे को देखा तो कहा ठीक है पहले परमात्मा आपको आवश्यक कार्य भी देंगे तथा उसे करने के लिए आवश्यक समय भी मैं बच्चे को ठीक करूँगी। सब लोग कहने लगे प्रदान करेंगे। सभी कुछ परमात्मा आपको कि आप अमेरिका जा रहो हैं । मैंने कहा मैं प्रदान करेंगे। अन्य लोगों से बहकर करुणा जब निश्चित रूप से जाऊंगी। मैंने बच्चे को ठीक परमात्मा की ओर दिव्य व्यक्ति की ओर या आपके गुरु की ओर आने लगती है तो जीवन किया और इस कार्य में लगभग आधा घण्टा लगा। बाहर आकर मैने कहा कि अब वायुपत्तन बहुत ही सहज हो जाता है बहुत ही सहज। पर चलें। कहने लगे. ्रीमाताजी आपने बहुत देर सभी जटिलताएँ समाप्त हो जाती हैं और कर दी है। मैंने कहा,"मुझे कभी देर नही होती, आपको किसी भी चीज़ की चिन्ता नहीं चली, चलें।" हम बायुपत्तन पहुँचे और पाया कि रहती। आँखें बन्द करिए और आपके सभी कार्य हो जाते हैं। कार्य इस प्रकार होते हैं जिस वायुयान से मुझे जाना था वह खराब था, उसके स्थान पर एक अन्य यान आया था जो मानो आपको यही इच्छा रही हो। न तो न्यूयार्क के स्थान पर वाशिंगटन जा रहा था| वास्तव में मैं भी वाशिंगटन ही जाना चाहती थी। इसके विषय में सोचना पड़ता है। सभी कुछ आपको इसकी इच्छा करनी पड़ती है, न अब आप कल्पना कीजिए कि किस प्रकार चीजें स्वतः कार्यान्वित होता है। परमात्मा सभी घटित होती हैं। इसे हम सहज कहते हैं यह सहज कार्यान्वयन है। अर्थात् यह सब प्रयत्नविहीन आपके स्वास्थ्य और सभी चीज़़ों को। यह है, स्वत: घटित होता है। परन्तु सर्वप्रथम आपका व्यक्तित्व ऐसा होना चाहिए, आपकी भक्ति इतनी माँगनी नहीं पड़ती, आप तो ऐसे व्यक्तत्व दृढ़ होनी चाहिए कि परमात्मा आपकी देखभाल होते हैं जिसके लिए परमात्मा जिम्मेदार है । चैतन्य लहरी कार्यों को देखते हैं आपकी सुख-सुविधा, परमेश्वरी सहायता आपको खोजनी नहीं पड़ती, 12 ॥ खंड : XI अंक : । & 12, 2000 12,2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-11.txt अपने बच्चों की देखभाल करनी होती है और आप परमात्मा की विशेष जिम्मेदारी बन जाते हैं और वे जानते हैं कि आपके लिए क्या उनका मस्तिष्क एसी सभी सांसारिक चीज़ों में फैसा होता है और उनके पास ध्यान-धारणा के अच्छा है और क्या नहीं। मैं एक उदाहरण देती हूँ. ऐसे वहुत से लिए समय हो नहीं होता। बिना ध्यान-धारणा मैं दे सकती हूँ, मान लो मैंने सोचा कि के आपका उत्थान नहीं हो सकता। आपको कोई व्यक्ति मुझसे मिलने आ रहा है और उदाहरण ध्यान-धारणा तो करनी ही होगी। लोग सोचते है। हैं हमें आत्मसाक्षात्कार तो मिल ही गया सहजयोगियों ने कहा कि श्रीमाताजी वों तो बहुत बुरा है, तो वह आएगा ही नही, मेरे पास पहुँचेगा ही नहीं। सभी अच्छी घटनाएँ घटेंगी और यदि कोई बुरी घटना घटित होती है तो आप अपनी करुणा का उपयोग करें। कुछ बुरा घटित होने की स्थिति में आप अपनी करुणा का उपयोग सभी कुछ ठीक है। नहीं। आपको प्रतिदिन ध्यान-धारणा तो करनी ही होगी तभी शुद्धीकरण होता है। आन्तरिक शुद्धों के पश्चात् आप समझ पाते हैं क्या चीज़ आवश्यक है और क्या अनावश्यक है तथा ये भी कि आपके चक्र करके समस्या का समाधान करें। आप अपनी साफ हो गए हैं। परमात्मा ही इस कार्य को करते समस्याओं, अपने आस-पास की समस्याओं हैं, परन्तु आपको नियमपूर्वक ध्यान-धारणा करनी आवश्यक हैं। शने: शनैः आपको लगेगा कि तथा अपने समुदाय की समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। तो अब आपको आत्मसाक्षात्कार मिले आपको ध्यान-धारणा बहुत गहन हो गई है। आप बहुत गहन हो जाएंगे और आपकी चुका है! मैं नहीं जानती कि इसमें आप कितनी शक्तियाँ प्रकट होने लगेंगी जहाँ भी आप गहनता तक पहुँचेंगे? मेरे पास बहुत सी महिलाओं होंगे नकारात्मकता वहाँ से भाग जाएगी और सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान हो के बारे में शिकायत है, न ही वे ध्यान धारणी करती हैं और न अपनी देखभाल करती हैं। वे जाएगा| जो भी कुछ आपको चाहिए होगा वह आत्मसाक्षात्कारी नहीं है, यही कारण है कि उनके पति उन्हें तलाक देना चाहते हैं वे सोचते हैं कि ये औरतें बेकार हैं। कुछ पुरुष भी ऐसे ही मिल जाएगा। दूसरों की सहावता करने की इच्छा दूसरों को कुछ देने की इच्छा पूर्ण हो जाएगी। ये मेरा अपना अनुभव है जो मैं आपको बता रही हैं। इस समस्या का समाधान करने के लिए हूँ। सायकाल कम से कम दस मिनट और प्रात: करुणा का होना आवश्यक है। और काल कम से कम पाँच मिनट पूर्ण श्रद्धा तथा लगन से ध्यान करें। मैंने यहाँ उपस्थित कुछ लोगों में गहन भक्ति और श्रद्धा देखी है। श्रद्धा आपमें किसी भी तरह से अपनी करुणा द्वारा अपने जीवन साथी को ठीक मार्ग पर लाना आवश्यक भक्ति से कहीं ऊँची है। यह आपके अस्तित्व का अंग-प्रत्यंग बन जाती है और पूर्णतः आपके रोम-रोम में समा जाती है। ये श्रद्धा 13 है। आखिरकार पुरुष महिलाओं की अपेक्षा बहुत व्यस्त होते हैं, परन्तु महिलाओं के पास भी अन्य सन बहुत से कार्य होते हैं। उन्हें अपने परिवार की चैतन्य लहरी ख : । & 12, 2000 : X1I अंक 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-12.txt जब आपको प्राप्त हो जाएगी तो ये बहुत सुझा सकता है किस प्रकार आपकी सहायता हो चमत्कारिक है। ये बहुत से चमत्कार करती सकती है। श्रद्धा से एक प्रकार के भाईचारे का है। ये बात सत्य है कि मेरे सोचने मात्र से बहुत भी उद्भव होता है। चाहे आप सहजयोग पर भाषण देते हों और सभी प्रकार के कार्य से लोग रोग-मुक्त हो गए। ये वास्तविकता है परन्तु इसका अर्थ ये नहीं है कि उन लोगों में करते हो, जब तक आपमें श्रद्धा नहीं हैं आपका उत्थान नहीं हो सकता। में कहना उस उच्च स्तर की श्रद्धा थी। कहने से मेरा अभिप्राय ये है कि उनमें वह श्रद्धा स्वयं में चाहूंगी कि यह श्रद्धा एक प्रकार का प्रेम है जो मन्द-मन्द अग्नि की तरह से फैलता है। विकसित करनी चाहिए। श्रद्धा आत्मा का नैसर्गिक प्रकाश है इसे ऐसी अग्नि की तरह से जो जलाती नहीं है, अपने अन्दर विकसित कैसे किया जाए? अपने गर्मी नहीं देती, सुन्दर शीतल लहरियों का अन्दर विकसित करने की लोग जी तोड़़ कोशिश अनुभव आपके अन्तस में भर देती है और कर रहे हैं। परन्तु श्रद्धा मानसिक गतिविधियों इस अनुभव को आप समझ भी जाते हैं। से नहीं विकसित की जा सकती। आत्मा के कभी किसी सहजयोगी की निन्दा न करें, कभी नहीं। कुछ सीमा तक मैं किसी ऐसे व्यक्ति की ध्यान-धारणा के अतिरिक्त किसी भी अन्य बात नहीं सुनती जो किसी सहजयोगी की शिकायत विधि से श्रद्धा विकसित नहीं हो सकती। मैं सदा आपसे ध्यान-धारणा के लिए कहती हैँ। करता है। परन्तु यदि यह शिकायत सामूहिक हो कौन व्यक्ति ध्यान-धारणा करता है और तो मुझे थोड़ी सी चिन्ता होती है और इसके विषय में मैं सम्बन्धित अगुआ से पूछती हूँ। कोई जाता है। लोग मेरी पूजा करेंगे, सहजयोग के व्यक्ति आकर यदि मुझसे शिकायतें करें तो बारे में बातचीत करेंगे लोकप्रियता के लिए प्राय: मैं उससे कहती हैँ कि आप स्वयं अन्तर्दर्शन कौन नहीं करता इसका मुझे तुरन्त पता चल बाहर जाकर सहज प्रचार करेंगे, परन्तु अपने करो वास्तविकता यह नहीं है। दूसरों के दोष अन्तस में उन्होंने अभी तक स्वयं को नहीं ढूंढना मानव की एक आम कमजोरी है। मानव खोजा। तो विकास की इस अवस्था में आपको अपने दोषों को नहीं देखता। अन्य लोगों के दोष पूर्ण उत्साह के साथ ये समझ लेना चाहिए कि खोजने का क्या लाभ है। अन्य लोगों में दोष खोजने से आपको कोई लाभ न होगा अपने दोष ध्यान-धारणा तथा अन्तर्दर्शन के साथ आप यह ढूँढने का प्रयत्न करें जिन्हें आप ठीक भी कर सकते हैं जिससे आपको लाभ भी हो सकता है और जिसे आप कार्यान्वित भी कर सकते हैं। ये आपकी जिम्मेदारी है। स्वयं को जानना आपके स्थिति सुगमता से प्राप्त कर सकते हैं। अन्तर्दर्शन द्वारा सूझ-बूझ का नया गुण आपमें विकसित हो जाएगा और आप समस्याओं का समाधान कर सकेंगे। किसी भी आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के अन्दर यह गुण होता है। वह आपकी सभी लिए आवश्यक है। अतः अच्छा होगा कि आप अपने दोष खोजें और उन्हें ठीक करें। 14 समस्याओं का समाधान खोज सकता है। वह चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : 1। & 12, 2000 ी 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-13.txt परन्तु कुछ लोग दूसरों के दोष खोजने की अपनी आदत पर गर्व करते हैं। बात-बात में वे कहते हैं कि मुझे ये पसन्द है मुझे वो पसन्द है। आत्मा के विषय में आपके क्या विचार हैं? आपको ये होता है तो आपको चाहिए सामूहिक रूप से उसकी सहायता करने के स्थान पर उसके विरूद्ध इस प्रकार सामूहिक भावना बनाना तो अत्यन्त गलत है। कोई भी सहजयोगी जब कठिनाई में पसन्द है आपको वो पसन्द है परन्तु आत्मा के उसकी सहायता करें। चाहे उसमें कुछ कमियाँ विषय में आपके क्या विचार हैं? क्या आपको ही क्यों न हों उसकी निन्दा न करें अगर आप ये कहते हैं उसमें ये कमी है, उसमें वो कमी है और उस व्यक्ति की निन्दा करने लगते हैं तो आप सहजयोगी नहीं हैं। आप तभी तक सहजयोगी हैं जब तक अन्त्तदर्शन के माध्यम से आप अपने दोष देख सकते ि वो पसन्द है? क्या आपको आत्मा का आनन्द आता है? लोग कहे चले जाएंगे मुझे ये पसन्द नहीं है, मुझे वो पसन्द नहीं है। ये कहना पश्चिमी देशों की आम बात है। अब आप देखिए कुछ महिलाओं ने सुन्दर हैं। कालीन बनाए हैं। ये इतने मोटे हैं कि मैं जब इन पर चलती हूँ तो कभी-कभी डोल जाती है परन्तु अब आपमें से अधिकतर लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो चुका है। इसका अनुभवे जिस प्रेम के साथ ये बनाए गए हैं वह मुझे इतना आपकों है। परन्तु आपमें से कुछ लोगों को आनन्द से भर देता है, इतनी खुशी प्रदान करता है कि आप कल्पना नहीं कर सकते कि में इसका ज्ञान नहीं है। आपको चाहिए कि वह ज्ञान य प्राप्त करें और परखें, ये ज्ञान वास्तव में है या उनके विषय में क्या महसूस करती हैूँ! यह आनन्द, आनन्द का ये सागर आपके अन्दर नहीं। जैसे अमेरिका में निह (NIH) नामक स्वास्थ्य निहित है और जब यह उमड़ने लगता है तो आपको कष्ट नहीं देता। यह आपको इतने चाहे, ये लोग डॉक्टर थे और उनमें से एक ने सुन्दर आनन्द से भर देता है कि इसका वर्णन आगे बढ़कर कहा"ठीक है अपनी चैतऱ्य लहरियों करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। आपके अस्तित्व पर यह एक फुहार की तरह से है। यह वहाँ गई सहजयोगिनियों ने बताया कि श्रीमन कृपा वर्षा है। अन्य लोगों द्वारा दिया गया प्रेम आपके हृदय में कुछ खराबी है। उसने कहा."यह आपको रोमांचित कर देता है। यह प्रेम आप संस्थान में उन्होंने सहजयोगियों पर परीक्षण करने द्वारा मुझे बताइए कि मुझमें क्या कमी है।" तो न बात ठीक है, क्योंकि एक महीना पूर्व ही वह किसी से मांगते नहीं परन्तु जब भी किसी ऐसे हृदय की बाह्यपथ शल्य चिकित्सा (Bypass व्यक्ति को देखते हैं जो अत्यन्त प्रेममय, अत्यन्त Surgery) करवा चुका था। अस्पताल से वह ठीक ठाक बाहर आया था वे लोग हैरान हो गए क्योंकि रोग निदान करने में ही रोगी अधमरा हो सुहृदय है तो ऐसे सम्बन्ध में सच्ची मित्रता होती है। परन्तु सहजयोगियों की बुराई करना अत्यन्त गलत है और फिर लोगों से बताते फिरना कि उसमें ये कमी है, उसने ऐसा किया है तथा चैतन्य लहरी जाता है! तो चैतन्य लहरियाँ अनुभव करके व्यक्ति के रोग का पता लगाना अत्यन्त ही सुगम ड 15 खंड : XII अंक : 11 & 12, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-14.txt तरीका है। उन्होंने हमारी ओर बहुत ध्यान दिया खोज रहे हैं कि हम स्वयं को पहचानना चाहते हैं किसी तरह से हम जान गए हैं कि हमें स्वयं को पहचानना है इसलिए हम खोज रहे हैं। इसके अत: आपको चाहिए स्वयं को जाँचें, लिए हम सभी प्रकार के कार्य कर रहे हैं। मेरे है। अस्पताल में वह सहजयोग विकसित करना चाहते हैं। पुरखें और देखें कि आप क्या हैं| मान लो एक अभिप्राय ये हैं कि इस खोज के नाम पर हम पति-पत्नी हैं पत्नी ध्यान-धारणा करती है, सभी सभी प्रकार के गलत कार्य कर रहे हैं। परन्तु कुछ जानती है, वो जानती हैं कि उसके पति में यही खोज आपको सहजयोग तक ले आती क्या दोष है परन्तु उसे बताती नहीं। वह सहन करती रहती है, उसकी शिकायत नहीं करती जो कि कुण्डलिनी जागरण के माध्यम से सहज और न ही उसे कुछ कहती है। उसकी ये है। कुण्डलिनी अधिकतर कार्य कर देती है। सहनशीलता पति को विश्वस्त करती है कि किसी ने मुझे बताया कि कुण्डलिनी जागरण के उसकी पत्नी का व्यक्तित्व उससे कहीं ऊँचा है। बाद उसने रातोरात शराब और धूम्रपान त्याग वो चाहे जो कुछ हो, समझ जाता है कि उसकी दिया। मैं ऐसा करने के लिए कभी नहीं कहती तब आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना होता है ा पत्नी ने यह महान व्यक्तित्व प्राप्त कर लिया है। परन्तु रातोरात उसने ये सब त्याग दिया और पश्चिम के देशों में विशेष रूप से बहुत चारित्रिक कहने लगी कि पहले मैं अपने बालों की शैली खामियाँ हैं वास्तव में ऐसे लगता है जैसे उन्हें साँप ने ही काट लिया हो। पश्चिम के लोग जो विशेषज्ञ के पास जाकर मैं बाल बनाती थी। के विषय में बहुत तुनकमिजाज थी। बाल- सज्जा कुकृत्य करते हैं उनके विषय में अविकसित सौन्दर्य प्रसाधक के पास मैं बहुत सा समय देश के लोग तो सोच भी नहीं सकते। विकास ने लगाती थी। कहने लगी मैंने ये सब भी त्याग उन्हें सभी प्रकार की स्वच्छंदता दी है तथा दिया है। पहले मैं बेढगे वस्त्र पहनती थी परन्तु आवारागर्दी का स्वभाव दिया है। वो सोचते हैं कि वे स्वतन्त्र हैं और कहीं भी जाकर किसी भी अब में अपने शरीर का सम्मान करने लगी हूँ और गरिमामय वस्त्र पहनती हूँ। ये सारा ज्ञान प्रकार से मजे ले सकते हैं। यह एक आम शैली आपको स्वत: ही आ जाता है ये आपके अन्तनिर्हित है परन्तु आप अपने को जाँचे। क्या आप इन्हीं है क्योंकि ये आपका अपना ज्ञान है। गुरु के लोगों में से हैं या उन लोगों में से हैं जो उत्थान बताने से भी आपका पथ-प्रदर्शन होता है। गुरु मार्ग में आपसे कहीं ऊँचे हैं? यह एक प्रक्रिया का कार्य आपका पथ-प्रदर्शन करना है। तो इस स्थिति में क्या कमी है? सहजयोग में जो कमी है वह मुझे आपको बतानी है| विश्व में हमारे सम्मुख बहुत से सामूहिक विध्वंस हैं। एक दम से आप उत्थान के उस बिन्दू तक नहीं पहुँच सकते। कभी-कभी तो नए सहजयोगी पुराने सहजयोगियों से बहुत अच्छे होते हैं क्योंकि उनमें बहुत दृढ़ इच्छा होती है। आपकी समझना हुए, बहुत प्रकार की विपदाए, भूकम्प, बाढ़ तथा चक्रवात आए। परन्तु सहजयोगी सदैव सुरक्षित 16 चाहिए कि हम क्या खोज रहे हैं। हम इसलिए चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 1 & 12, 2000 প শ 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-15.txt मैंने कहा अगर ये लोग इसी प्रकार फैलते गए रहे। नि:सन्देह इन प्राकृतिक विपत्तियों से सहजयोगी सदैव सुरक्षित रहे। परन्तु यह सुरक्षा प्राप्त करने पातदि और इनकी संख्या इतनी बढ़ गई तो क्या होगा? विनाश! वे तो इतने नकारात्मक लोग हैं कि के पश्चात् भी आपने क्या समझा? आपने क्या जाना? क्यों ये विपदाएं आ रही हैं? क्योंकि विश्व का हित तो करना उनके लिए असम्भव सहजयोग सामूहिक नहीं है। सहजयोग को है। इसी प्रकार से आप देखें कि कुगुरुओं की अत्यन्त सामूहिक होना है, इसे सर्वत्र फैलना है। सहजयोग को बहुत अधिक लोगों तक पहुँचना चाहिए। परन्तु हम इसके लिए कुछ सन्देश को फैलाते हैं? मैंने लोगों को सड़कों पर नहीं करते या कभी थोड़ा बहुत कर लेते हैं। गाते हुए देखा है। अटपटे वस्त्र पहनकर अपने आपको बाहर निकलना होगा। ईसामसीह के गुरु की स्तुति गाते हुए! हमें इस तरह की चीज़़ों बारह शिष्यों की ओर देखो। उन्होंने बहुत सी की कोई आवश्यकता नहीं है। आप लोगों को पतंजा तरफ लोग किस प्रकार खिंचे चले जाते हैं? किस प्रकार उनसे जुड़ जाते हैं और उनके गलतियाँ भी की फिर भी किस प्रकार उन्होंने ज्ञान प्राप्त हो गया है और नि:सन्देह आप आत्मसाक्षात्कारी हैं। परन्तु महत्वपूर्ण बात ये है कि आपने सहजयोग के लिए क्या किया? ईसाई-धर्म को फैलाया और कितनी प्रवलता से इस कार्य को किया? वह प्रबलता, वह गहनता सहजयोग आपको सर्वत्र फैलाना होगा उदाहरण के लिए आप मेरा एक बिल्ला (Badge) पहना करें तो लोग आपसे पूछेंगे कि ये क्या है? तब यदि आपमें नहीं है और यदि आप सहजयोग प्रसार के लिए स्वयं को पूर्णतः समर्पित नहीं कर देते तेा सामूहिक समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता। आप तो केवल अपनी सांसारिक चीज़ों में, अपनी नौकरियों आदि में ही व्यस्त हैं। सहजयोग में ये भी मान्य है, कोई एतराज नहीं है। परन्तु आपको अपना चित्त जीवन के दूसरे आप उन्हें सहजयोग के विषय में बताएं? आप सहजयोग के विषय में बातचीत करना शुरू कर दें. इसके अतिरिक्त कुछ न करें। केवल सहजयोग की बातचीत करें और सहजयोग को फैलाते जाएं। जब तक आप ये कार्य नहीं करते तब तक पक्ष पर भी डालना चाहिए कि हम सामूहिकता के लिए क्या कर रहे हैं? क्या हम सहजयोग ये सामूहिक न होगा और सामूहिक गलतियों के कारण जो प्राकृतिक विनाश होने वाला है वो होकर रहेगा। आपकी सुरक्षा बहुत सी विपदाओं से की जाती है। प्रदूषण होते हुए भी सहजयोगियों और क प्रचार कर रहे हैं? क्या हम लोगों को इसके विषय में अवगत करा रहे हैं? मैं हैरान थी कि एक बार वायुयान से यात्रा करते हुए एक महिला मेरी साथ वाली कुर्सी पर बैठी थी और उसकी पर इसका प्रभाव नहीं पड़ता। चाहे भूकम्प चैतन्य लहरियाँ बहुत खराब थीं। मैंने स्वयं को विनाश हो, सहजयोगी की सुरक्षा होगी। तो क्यों बन्धन दिया और उससे पूछा कि वह अपने न हम पूरे विश्व की रक्षा करें। विपत्ति के बाद विपत्ति आ रही है। यदि आपमें करुणा है तो उन आध्यात्मिक उत्थान के लिए क्या करती है? उसने बहाई मत का नाम लिया। हे परमात्मा। सब लोगों के विषय में सोरचे जो इन विपदाओं 17 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अंक : ।। & 12, 2000 11 & 12. 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-16.txt के शिकार होने वाले हैं इसमें कोई सन्देह नहीं कि मैं बहुत से लोगों को रोगमुक्त कर सकती हूँ। नि:सन्देह मैं नहीं जानती कि सहजयोग को करके उन्हें सामूहिक बनाना होगा, अन्यथा आप इस विश्व को परमात्मा के प्रकोप से नहीं बचा सकेंगे नि:सन्देह परमात्मा अत्यन्त क्रोधमय हैं। आप लोगों की तो वे रक्षा करेंगे सामूहिक किस प्रकार बनाए। अब आप बहुत बड़ी संख्या में हैं। आप परन्तु उसका क्या लाभ होगा? हमें तो पूरी पृथ्वी माँ को बचाना होगा और इस कार्य के सब लोग आत्मसाक्षात्कार देना प्रारम्भ कर सकते हैं। आप लोगों को चाहिए कि कम से लिए आपको तैयार रहना है। आपको यह सब कम सौ लोगों को आत्मसाक्षात्कार दें। कार्यान्वित करना होगा। जहाँ भी अवसर मिले जगह-जगह जाकर आत्मसाक्षात्कार के विषय में सहजयोग का प्रचार करें। कुछ लोगों ने मुझे बातचीत करें। परमेश्वर (परमेश्वरी माँ) की बताया कि श्रीमाताजी यदि आप आ जाएं तो स्तुति गाएं और आप पूरे विश्व को बचा लेंगे। थोड़़े से लोगों को बचा लेने से आप सतयुग तो मैरे जैसे बन सकते हैं। इसके विषय में लोगों नहीं ला सकते। इसके लिए पूरी पृथ्वी माँ को बता सकते हैं। मैंने केवल एक व्यक्ति से अच्छा होगा, क्यों? ऐसा क्यों है? आप लोग भी को बचाना होगा। इस पर रहने वाले सभी सहजयोग आरम्भ किया था और उस समय तो लोगों को बचाना होगा, चाहे जैसे भी ये सर्वत्र पूर्ण अंधेरा था। कोई साधक न था केवल भयानक लोग थे, फिर भी यह कार्यान्विवत हुआ। लोग हैं। दूरदर्शन पर मैंने देखा है कि किस प्रकार निर्लज्जतापूर्वक ये लोग उन चीजों की बातें करते हैं जिनके विषय में इन्हें बिल्कुल है आप सब लोग भी ऐसा ही क्यों नहीं करते ज्ञान नहीं है और हजारों लोग इनके पीछे-पीछे और इसके विषय में लोगों को क्यों नहीं बताते? घूमते हैं! ये बात नहीं है कि लोग मुर्ख हैं या वे अंत: हर व्यक्ति बहुत से सहजयोगी बना सकता आपका आचरण, आपकी शैली निश्चित रूप से लोगों को प्रभावित करेगी। आपको इस प्रकार किसी गलत मार्ग पर चलना चाहते हैं, परन्तु ये कुगुरु उन्हें फँसाने की कला में सिद्धहस्त है ये इसे कार्या्वित करना है कि सामूहिक चेतना जानते हैं कि किस तरह से उन्हें अपने शिकंजे प्राप्ति का अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकें। सहजयोग में लेना है किस तरह से उनसे बातचीत करनी केवल सहजयोगियों के लिए ही नहीं है। ये है। परन्तु सहजयोगी यदि किसी खराब चैतन्य सबके लिए है ताकि प्राकृतिक विपदाएं तथा लहरियों वाले व्यक्ति को देखता है तो वह भयानक घटनाएं जो घट रही हैं रुक जाएं, पूर्णतः रुक जाएं। मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ कि भाग खड़ा होता है! ऐसे व्यक्ति से बचने का इन्हें रोका जा सकता है। जिस प्रकार आपकी प्रयत्न करता है उनके पास जाकर ये नहीं सदा रक्षा की गई है वैसे ही उन सभी लोगों की रक्षा की जाएगी जो आत्मसाक्षात्कार को कहता कि आपकी चैतन्य लहरियाँ खराब हैं! अत: आप लोगों को साहसिक होना होगा और उन स्थानों पर जाकर उनसे बातचीत प्राप्त कर लेंगे। क्यों न खुलकर बातचीत की 18 चैंतऱ्य लहरी । खंड : X॥ अंक : 11 & 12.2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-17.txt सम्मुख बहुत सी चीजें हैं, उनमें आपका चरित्र भी है। कल इन्होंने मुझे बताया कि किस प्रकार जाए और लोगों को बताया जाए कि यदि हम इस प्रकार अपराध करते रहे, यदि हम इसी प्रकार चरित्रहीनता, धोखाधड़ी और शोषण करते रहे और स्वयं को यदि हमने लाओत्से ने गुरुओं के विषय में लिखा कि किस प्रकार वे सभी चीजों से ऊपर थे-अशांति, ईर्ष्या विनाशशक्ति बनाए रखा तो इस दैवी प्रकोप तथा व्यर्थ की बातचीत से ऊपर वे अत्यन्त से बचा नहीं जा सकेगा और मैं सोचती हूँ कि हम इसके लिए जिम्मेदार होंगे। हर कार्य करने के लिए या किसी भी बुराई से बचने के लिए आपको संस्थाएं बनाने की आवश्यकता नहीं है। मैं जानती हूँ कि आप लोगों में से कुछ लोग यह उन्हें विश्वास दिलाने और सहजयोग में लाने की स्थिति प्राप्त कर चुके हैं परन्तु अधिकतर ने महान हैं। वे गुरु हैं और गुरु रहेंगे और आप लोग यदि ऐसा ही करने का प्रयत्न करेंगे तो आप भी गुरु होंगे। आपने यही प्राप्त करना है। आपकी शक्ति से ही सब कार्य हो जाएगा। मुझे अपनी करुणा एवं प्रेम से उस स्थिति को प्राप्त आशा है कि गुरु के रूप में आप लोग समझेंगे कि आपने क्या करना है। गुरु के रूप में आपके करना है। परमात्मा आपको धन्य करे। 19 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 11 & 12.2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-18.txt ईस्टर पूजा इस्ताम्बूल टर्की 23.4.2000 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन महानतम घटना है, आपके जीवन की यह महानतम आज हम ईंसा मसीह के पुनर्जन्म की घटना है, और आपको चाहिए कि स्वयं को भाग्यशाली माने कि आप यह उपलब्धि प्राप्त महान घटना का उत्सव मना रहे हैं। आपका पुनर्जन्म भी वैसे ही हुआ और आपने परमेश्वरी प्रेम से परिपूर्ण नवजीवन प्राप्त कर लिया। आप कर सके। अपने पूर्व जन्मों में इस स्वर्गीय स्थिति सब जानते थे कि कुछ उच्च घटना घटित होनी को प्राप्त करने की आपकी तीव्र इच्छा के कारण ही ऐसा हुआ। खोजने के लिए लोग तथा आपको पुनर्जन्म पाना है। परन्तु कोई भी ये बाते न जानता था कि यह किस प्रकार होना दरी-कन्दराओं में जाया करते थे तथा सभी है। आपके अस्तित्व के प्रकार क कार्य किया करते थे। आप लोग यह सूक्ष्म पक्ष के विषय में आपको कभी नहीं बताया गया । सन्तों ने केवल सब तपस्याएं कर चुके हैं अब आपको कुछ इतना बताया कि आपको किस प्रकार आचरण नहीं त्यागना। कोई त्याग करने की जरूरत नहीं करना है उन्होंने कंवल इतना कहा कि अपने है। त्याग की धारणा गलत है। में कहूंगी कि यह असामयिक विचार है। यह समय तो आपके जीवन को किस प्रकार अत्यन्त पावन तथा सत्यनिष्ठ बना के रखें, परन्तु ये नहीं बताया कि सहज-पु्नजन्म, स्वतः उत्थान प्राप्त करने का है। इसके लिए आपको कुछ नहीं करना, यह इतना ये कार्य किस प्रकार हो पाएगा। नि:सन्देह भारत में लोग इसके विषय में जानते हैं परन्तु उनकी संख्या बहुत ही कम है। अब आप लोगों के हो रहा है। वास्तव में मुझे अत्यन्त प्रसन्नता हुई माध्यम से यह ज्ञान विश्व भर को जा रहा है। जब मेंने देखा कि मुसलमान लोग भी, जिनके जब आपकी अपनी माँ, आपकी व्यक्तिगत माँ, विषय में मैं बहुत चिन्तित थी और सोचती थी कुण्डलिनी, उठती हैं तो वे आपको पुनर्जन्म कि इन्हें किस प्रकार बचाया जाए. आत्मसाक्षात्कार प्रदान करती हैं और इस प्रकार परम चैतन्य से को प्राप्त कर रहे हैं। यह लोग बुराइयों के जाल आपका योग हो जाता है। ये सब बिना साक्षात्कार में फंसे हुए हैं। व्यक्ति को यह समझना चाहिए प्राप्त किए यदि बताया जाए तो यह अर्थविहीन कि कुरान मोहम्मद साहब की मृत्यु के 40 वर्षों है। परन्तु लोगों को इसके विषय में बड़े-बड़े के पश्चात् लिखी गई। तो हो सकता है कि शब्दों सहज है और इतनी अच्छी तरह से कार्यान्वित विचार दिए गए तथा उन्हें बताया गया कि एक को इंधर-उधर कर दिया गया हो और इनके दिन आपका पुनर्जन्म होगा। आपके लिए यह अर्थ भी संदिग्ध हों। उसी समय सुन्ना (SUNNA) 20 चैतन्य लहरी । खंड : XII अक :। 8 12.2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-19.txt नामक एक अन्य पुस्तक भी छपी ऑर इसको वह इन कार्यो के लिए जिम्मेदार हैं. जबकि छापने वाला व्यक्ति कोई सन्त न था, क्योंकि उनसे न तो इन्हें करने की योग्यता होती है और न ही इन कार्यों को करने का अधिकार उन्हें है। वह आत्मसाक्षात्कारी नहीं था। में नहीं समझ पाती कि धर्म के दृष्टिकोण से कविताओं को परिणाम स्वरूप ईसाईमत में मानव के अन्तरूत्थान आप किस प्रकार समझ पाते हैं और पद्य में के प्रति एक बहुत ही गलत दृष्टिकोण बना लिखी गई बातों को ठीक रूप से किस प्रकार लिया। इसके परिणाम आज आप दंखें। कैथोलिक व्याख्या करते हैं। मैं भी कवियित्री हूँ और चर्च में घटित होने वाली घटनाओं को आप देखें तो आश्चर्यचकित हो जाते हैं। जिस संस्था में कविता में सहजयोग की बातें लिख सकती थी। परन्तु मैंने कहा, नहीं, कविता को तोड़ा मरोड़ा सभी प्रकार की नालायकियां हो रही हैं वह किस प्रकार धार्मिक हो सकती हैं? मेरा जन्म भी जा सकता है और इस प्रकार लोग इसका दुरुपयोग कर सकते हैं। कविता में गूढ़ ज्ञान ईसाई परिवार में हुआ। जिस प्रकार ये लोग पूरे लिखने में यह समस्या है। भारत में भी यही अधिकार के साथ ईसा मसीह के जीवन के विषय में बातचीत करते थे और व्याख्या करते थे समस्या थी। उदाहरण के रूप में कबीर ने बहुत उससे मुझे आघात लगा। एक के बाद एक सुन्दर गूढ़ ज्ञान की बातों को पद्य में लिखा। परन्तु जिस प्रकार लोगों ने इसकी व्याख्या की पुस्तकें लिखी गई। एक से एक उपदेश दिए गए। मुझे लगा कि इनके कथनों में कोई सच्चाई वह अत्यन्त निराशाजनक था और कबीर की नहीं है। मैरे पिता जी ने भी यही महसूस किया वास्तविक कविताओं के अर्थ से बिल्कुल भिन्न। क्योंकि ये सारी पुस्तकें ईसा मसीह के जीवन के बहुत साल बाद आईं थीं इन पुस्तकों के लेखक भी इसके अधिकारी न थे वे आध्यात्मिक लोग न थे। वे तो केवल सत्ता-लोलुप थे और धर्म में किसी भी चीज के अर्थों को लोग आवश्यकतानुसार किसी भी प्रकार तोड़ मरोड़ सकते हैं। मैंने सोचा कि परमात्मा के विषय में मैंने भी कविताएं लिखी तो इनका भी वही हश होगा। सभी धर्मं में पद्य में लिखी गई ज्ञान की बातों के साथ ऐसा सत्ता प्राप्त करना चाहते थे। धर्म की शक्ति तो ही हुआ है। बाइबल के विषय में भी लोगों ने अन्तर्निहित है। इसे जागृत किया जाना चाहिए। मैं स्वीकार कर लिया कि पाल ही ईसा मसीह के इस देश के तथा अन्य देश के सूफियों को धन्यवाद देना चाहूंगी जिनके कारण लोग आज भी सोचते हैं कि इन पुस्तकों में लिखे शब्दों और सभी प्रकाशनों का आयोजन करेंगे। वह ईसा मसीह के पुनर्जन्म तथा निर्मल अवधारणा के बातों में कुछ है। विषय में नहीं छापना चाहता था। यह सारी बातें मानव के लिए यह भी एक वरदान है कि उसके मस्तिष्क में थीं और यही कारण था कि थॉम्स को भारत आना पड़ा और जॉन ने कुछ भी सभी देशों में कोई न कोई एक ऐसा महान पुरुष लिखने से इन्कार कर दिया। क्योंकि पाल जैसे पैदा हुआ जिसने बास्तविकता और सत्य की बात की। यद्यपि इन सन्तों की भत्त्सना की गई 21 लोग कार्यकारी बन बैठते हैं और सोचते हैं कि चैतन्य लहरी । खंड :XII अंक :1 8 12.2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-20.txt कष्ट दिए गए और बहुत से लोगों की हत्या कर दी गई। मैं देखती हूँ कि लोग सत्य और हैं. अपने आप पर आजमा सकते हैं; जो भी सत्यापन करें। इसे आप लोगों पर आजमा सकते वास्तविकता की बात नहीं सुनना चाहते। परन्तु कुछ आप हैं आप अपनी अंगुलियों के सिरों पर कल यह देखकर मुझे अत्यन्त हर्ष हुआ कि जानते हैं । मुस्लिम लोग अब एकत्र होकर यह समझने लगे हैं कि रोजमर्रा के कर्मकाण्डों से ऊपर उनका कुरान में कहा गया है कि कबामा के वक्त अर्थात् आपके पुनर्उत्थान के समय-दो चीजें ैं एक उच्च जीवन भी है। कर्मकाण्डों से परिपूर्ण कयामत और कयामा। बहुत से लोग इनका जीवन जो उन्होंने बिताया है, जिस प्रकार से घोर अन्तर नहीं जानते। कयामा का अर्थ है पुर्नजन्म परिश्रम उन्होंने किया है, हज के लिए 40 दिन का समय और कयामत का अर्थ है प्रलय। तो का उपवास जो उन्होंने किया है. इन सभी चीज़़ों के बावजूद भी उनमें परस्पर एकता न थी और मैं हेरान थी कि बहुत कहा गया है कि कयामा के समय आपके हाथ बोलेंगे और आप चैतन्य लहरियाँ अपनी अंगुलियों से स्थानों पर तो वे एक के सिरों पर महसूस करेंगे। मैं कहना चाहूँगी कि दूसरे की हत्या करने में लगे थे ऐसा किस जो लोग वास्तव में मुस्लिम हैं. जो समर्पित है प्रकार हो सकता है? इस प्रकार के दस्तूर उन्हें और जिन्हें परमात्मा को साम्राज्य में प्रवेश करने सामूहिक न बना पाए। वे सामूहिक न थे। उनकी भिन्न पहचाने थी, भिन्न पंथ थे जिनका पथ के लिए उच्च पद प्राप्त करने के लिए चुना गया है उनके हाथ बोलने चाहिए अथवा वे मुस्लिम नहीं है मैं उन्हें मुस्लिम नहीं कहूँगी। वे मानव प्रदर्शन पूर्णता अज्ञानी लोग कर रहे थे। अत: हमें लोगों की एकता, इनके सामूहिक स्वभाव का उत्सव मनाना चाहिए-उनके सामूहिक तो हो सकते हैं परन्तु मुस्लिम नहीं। अत: जो भी लोग स्वयं को मुस्लिम मानते हैं उनके लिए स्वभाव का जो सत्य से भटक चुके थे। सत्य के आवश्यक हैं कि वे चैतन्य लहरियां महसूस करें विषय में उन्हें बिल्कुल भी ज्ञान न था परन्तु और कयामा-पुनर्उत्थान के समय उनके हाथ बोलें। कयामा कयामत नहीं है। इन दोनों शब्दों के विषय में लोगों के मस्तिष्क में एक साधक कभी भी इन स्थितियों में शान्त नहीं बहुत भ्रम है। तो जो लोग चैतन्य लहरियों के माध्यम से हो सकता। वह खोजता ही रहता है जब तक उसे सत्य प्राप्त नहीं हो जाता। परन्तु कुछ साधक अपने ही ढंग से देखते हैं और साधना में ही खो अपने हाथों पर अपनी उपलब्धियों का सत्यापन जाते हैं। उन्हें यह समझाना कठिन होता है कि कर सकते हैं तथा अन्य लोगों के विषय में तुम पथभ्रष्ट हो गए हो। यह बात उन्हें अपने जान सकते हैं, कुरान के मुताबिक वही जीवनें से, अपनी उपलब्धियों से देखनी चाहिए सच्चे मुस्लिम हैं । परन्तु मुसलमान लोगों को कि उन्होंने क्या प्राप्त किया है? क्या उन्हें कुछ यह बात किसी ने नहीं बताई। यह सब वह नहीं अनुभव हुआ? अपनी उपलब्धियों के प्रति विश्वस्त जानते। उनके लिए तो मक्का जाकर वापस आ होने के लिए आपको चाहिए कि आप इनका जाना ही सभी कुछ है। हज करने के बाद वे 22 चैतन्य लहरी खंड :XII अंक : 11 8 12.2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-21.txt कर रहे हैं परन्तु उन्होंने ये अपराध किए क्यों? एक अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न जो उठता है वो ये वे तो अच्छाई के और सदाचार के लिए अधिकारी है कि मोहम्मद साहब मूर्ति पूजा के बिल्कुल थे तो उन्होंने कुकृत्य क्यों किए? क्यों उन्होंने गलत कार्य किए? अब वे परमात्मा से क्षमा मांग के वर्गाकार पत्थर की परिक्रमा करने को क्यों रहे हैं। ये अपराध उन्होंने इसलिए किए क्योंकि हाजी कहलवाते हैं, बस सब समाप्त । विरूद्ध थे फिर भी उन्होंने मक्का में काले रंग कहा? उसका क्या उद्देश्य था? वह पत्थर इतना वे आत्मसाक्षात्कारी न थे, न सहजयोगी थे। महत्वपूर्ण क्यों था? किसी मुसलमान से यदि सहजयोगी यदि कोई गलत कार्य करने का प्रयत्न करते हैं तो अपनी अंगुलियों के सिरों पर आप यह प्रश्न पूछे तो वह कहेगा कि यह जान जाते हैं कि वे गलत कर रहे हैं। हम भी उनका आदेश था। परन्तु आप प्रश्न कर सकते हैं कि आखिरकार ऐसा क्यों? वो भी तो एक उन्हें कह सकते हैं कि सहजयोग से बाहर पत्थर ही है। तो मोहम्मद साहब ने उसकी हो जाओ। परन्तु सहजयोगियों के लिए यह परिक्रमा करने के लिए क्यों कहा? बहुत सी भयानक दण्ड है सहजयोग से बाहर चले मूर्तियाँ थीं. और जिस प्रकार भारत में करते हैं जाने की बात उन्हें अच्छी नहीं लगती क्यों? लोगों ने उनकी पूजा करनी आरम्भ कर दी। क्योंकि उन्हें लगता है कि वे सच्चाई से ' पृथक किए जा रहे हैं सत्य के सभी आशीर्वादों से वे वंचित हो जाते हैं । वे इस प्रकार सोचते हैं! देखा जाए तो दण्ड कुछ भी नहीं है क्योंकि हम तो केवल उनसे सहजयोग छोड़ देने के लिए कहते हैं देखने के लिए यह दण्ड कुछ भी नहीं परन्तु यह पत्थर स्वयंभू था और इसका वर्णन भारतीय धर्मग्रन्थों में किया गया है कि एक मक्केश्वर शिव भी हैं । भारत में भिन्न स्थानों पर शिव है. वहाँ ज्योतिरलिंग है। मैं ये बात आपको बता रही हूँ परन्तु आपको इस पर विश्वास करने की आवश्यकता नहीं है। वहाँ जाकर अपनी है। परन्तु सहजयोग पूर्ण स्वतन्त्रता है। सहजयोग चैतन्य लहरियों पर सत्यापित करें कि ये शिव हैं पूर्ण आशीर्वाद है। सहजयोग पूर्ण शान्ति एवं कि नहीं। इस काले पत्थर के विषय में भी यही आनन्द है। आश्चर्य की बात है कि यदि आप कुरान पढ़े तो जान जाएंगे कि मोहम्मद साहब यही शान्ति स्थापित करना चाहते थे परन्तु ऐसा वात है। तो मोहम्मद साहब ने पता लगाया कि ये मक्केश्वर शिव हैं और श्री शिव का आशीर्वाद न हुआ। मैं कश्मीर के एक व्यक्ति से मिली उसने पूछा कि शान्ति कहाँ है? सभी लोग प्राप्त करने के लिए लोगों को इनकी परिक्रमा करनी चाहिए। परन्तु ये भी कर्मकाण्ड बन गया। आपस में लड़े जा रहे हैं। हम शान्ति चाहते हैं । ये सारा कार्य ही कर्मकाण्ड बन गया. और कोई परन्तु उसकी एक बात सुनकर हैरानी हुई. उसने कहा कि भारत में आपको भी इस कर्मकाण्ड से बच न पाया। इसाई धर्म में भी यही बात है। आज वो शान्ति मिलती बहुत है। कहने लगा कश्मीर तो पागलों का स्थान है। दिन है जब लोग अपने अपने अपराधों के लिए यहाँ पर हर समय सभी को चुनौती मिलती रहती 23 पश्चाताप और दोष-भावना की बात जोर-शोर से खंड : XII अंक : । & 12, 2000 चेतन्य लहरी 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-22.txt है और इस्लाम के नाम पर हर चीज़ पर हमारे छ: दुश्मन हैं काम, क्रोध, मद, मत्सर, आक्रमण होता है। मैंने कहा,"यह इस्लाम नहीं लोभ और मोह। काम का अर्थ है यौन उद्दण्डता, है। इस्लाम का अर्थ है समर्पण।" कहने क्रोध यानि गुस्सा, मोह अर्थात लिप्सा, मद का लगा,"आप लोग यदि समर्पित होंगे तो ये मतलब है अहं और मत्सर का अर्थ है ईष्ष्या, छठा लोभ है। अज्ञानता, परवरिश, शिक्षा आदि लोग आपका वध कर देंगे। हम सुरक्षित नहीं के कारण ये सारी चीजें हमारे संस्कार बन गई है। अत्यन्त आश्चर्य की बात है कि अब मुसलमान थी। जब कुण्डलिनी जागृत होती है और आप स्वयं इस बात को महसूस कर रहे हैं कि यह कर्मकाण्डों से पूर्ण परमेश्वरी जीवन नहीं हो परमात्मा के साथ, एकरूप हो जाते हैं तो ये सारे सकता क्योंकि परमात्मा के लोग तो सब समान दुर्गुण छूट जाते हैं। तत्पश्चात् आप दृढ़ धरातल होते हैं। विश्व भर के सूफियों को देखो । मैंने पर होते हैं। आप महसूस करते हैं कि आपने उन्हें पढ़ा है। तुर्की के सूफियों को भी मैंने पढ़ा है और अन्य स्थान के सूफियों को भी। भारत में आदतों का आनन्द नहीं ले सकते। ये षड्रिपु भी सूफी थे यद्यपि उन्होंने कभी स्वयं को सूफी आपको मुक्त कर देते हैं । सत्य को पा लिया है और अब इन विध्वंसक अपने अन्दर आप परमेश्वरी साम्राजय में नहीं कहलवाया। आप जो चाहे सोचते रहें। मैरे प्रवेश कर जाते हैं । मानव का यही सच्चा पुनर्जन्म है। आप जानते हैं कि यद्यपि लोग पुस्तकों को नष्ट करते हैं, उनके अर्थों को बिगाड़ते हैं, फिर भी सूक्ष्म चीजें बनी रहती हैं। उदाहरण के रूप में ईस्टर के दिन हम अण्डे भेंट करते हैं । अण्डे विचार से सूफी का अर्थ है साफ, स्वच्छ, पावन। स्वच्छ लोग ही सूफी हैं। अपनी स्वच्छता में वे परमात्मा की कृपा, उनके प्रेम और दिव्य शान्ति के अतिरिक्त कुछ नहीं देखते। उन्होंने कभी युद्ध की बात न की। युद्ध की बातें करने वाले व्यक्ति भेंट करने का क्या अर्थ है? सर्वप्रथम तो अण्डा को दिव्य शान्ति का अधिकार नहीं होता। से हैं। हम इसलिए भेंट करते हैं क्योंकि यह परिवर्तित युद्ध पूर्णत: पागलपन की तरह पशु भी इस तरह से नहीं लड़ते। युद्ध तथा एक दूसरे हो सकता है। एक छोटे चूजे का रूप धारण कर की हत्या करने के लिए जब हम सोचते हैं तो सकता है, अण्डे का पुनर्जन्म हो सकता है। पशुओं से भी बदतर होते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। इस जघन्यता को सदा-सदा के लिए प्रतीक के रूप में जब आप अण्डा लेते हैं तो अण्डे में पुनर्जन्म लेने की योग्यता है । ईस्टर के रोक देना चाहिए। किसी पर जब तक आक्रमण इसका मतलब है कि आप एक भिन्न व्यक्ति न हो तब तक व्यक्ति को किसी की हत्या करने का अधिकार नहीं है। अपने पुनर्उत्थान के विषय में हम सुनते हैं कि हम बहुत सी चीजों से ऊपर बन सकते हैं। एक सुधरे हुए और महान आध्यात्मिक व्यक्ति। इसका अर्थ है कि आप आध्यात्मिक व्यक्ति बन सकते हैं। लोग नहीं य हैं, हमारे अन्दर वो सारे विध्वंसक गुण समाप्त जानते कि हम अण्डे क्यों भेंट करते हैं? मैंने यह बात बहुत से लोगों से पूछी। स्वयं को ईसाई 24 हो गए हैं। संस्कृत में इन्हें षड्रिपु कहते हैं । चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक : 11 & 12.2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-23.txt सूझ-बुझ ठीक है तो आप उनके पारस्परिक मत के महान धुरन्धर समझने वाले पादरियों से भी मैंने ये बात पूछी। वे न जानते थे कि अण्डे क्यों भेंट किए जाते हैं। सम्बन्ध समझ सकते हैं। आप समझ सकते हैं कि ईसामसीह श्री विष्णु और श्रीकृष्ण के पुत्र थे और उन्हें आशीर्वाद प्राप्त था कि वे पूरे ब्रह्माण्ड आप यदि श्रीगणेश के जन्म की कथा को पढ़े तब आप जान पाएंगे, आप हैरान होंगे, कि के आधार बनेंगे। ये बात अत्यन्त स्पष्ट रूप से कही गई थी कि आप पूरे ब्रह्माण्ड के मूलाधार ये लिखा हुआ है कि इन्हें ब्रह्माण्ड कहा जाता हॉगे। था। ब्रह्माण्ड अर्थात् ब्रह्मा जी का अण्डा। उसने अण्डे का आधा भाग श्री गणेश है जो अस्तित्व धारण किया और इसका आधा भाग वे महा-विष्णु बन गया अर्थात् ईसा मसीह और एक प्रकार से कुण्डलिनी का आधार कुण्डलिनी की देखभाल करते हैं और माँ को पावित्र्य की देखभाल करते हैं। दूसरा भाग जिसकी अभिव्यक्ति हुई है वे ईसा मसीह हैं जो पूरे आधा भाग श्री गणेश के रूप में बना रहा। कहा ा जाता है कि जन्म लेते ही महाविष्णु ने पिता के लिए रोना शुरू कर दिया। इसके विषय में सोचें। वे अपने पिता को खोज रहे थे! ईसा मसीह को ब्रह्माण्ड के आधार हैं। अतः स्वाभाविक रूप से यदि आप देखे तो वे अपनी पहली दो अंगुलियाँ उन्हें चारित्रिक आधार ही बनना था क्योंकि वे उठाते हैं। किसी भी अन्य अवतरण ने इन दो श्री गणेश के ही अंग प्रत्यंग हैं और मानव अंगुलियों का उपयोग नहीं किया। आप जानते हैं चारित्रिक आधार हैं। चरित्र के कारण ही आपको कि पहली अंगुली विशुद्धि को है और दूसरी संभाला जाएगा अन्य प्रकार की मूर्खताओं के के कारण नहीं। केवल चारित्रिकता के आधार पर नाभि की। इसका अर्थ है वे अपने पिता की बात कर रहे हैं जो नाभि के शासक है। वे कौन हैं? जिसका इसाई मत को मानने वाले लोगों के ये आप अच्छी तरह जानते हैं। वे विष्णु हैं जो जीवन में अभाव है। हैरानी की बात है कि श्री कृष्ण के रूप में भी अवतरित हुए तो इंसा सभी चीजों की आज्ञा देते हैं। कैथोलिक चर्च मसीह इस बात की ओर इशारा करते हैं कि वे दोनों मेरे पिता हैं। कितनी स्पष्टता पूर्वक उन्होंने तलाक नहीं ले लेते आप जो चाहे करते रहें। ये कार्य किया है! अंगुलियाँ उठाने की कोई विवाहोपरांत भी आप जो चाहे करें। मुझे बताया तथा अन्य चर्चा के अनुसार जब तक आप अन्य मुद्रा, अन्य शैली उन्होंने क्यों नहीं अपनाई? उन्होंने अपनी ये दो अंगुलियाँ उठाईं। इस प्रकार गया कि वैटिकन चर्च के साथ भी यही समस्या है। स्वयं को साक्षात्कारी (Baptised) कहलाने वाले लोग ऐसा किस प्रकार कर सकते हैं। पादरी लोग बप्तीस्म का बहुत बड़ा उत्सव करते हैं। कुण्डलिनी कहाँ है और सहस्रार कहाँ है और उन्होंने कहा कि मेरे पिता श्री विष्णु ही हैं जो कि श्री कृष्ण भी हैं। श्री कृष्ण की जीवनी में कहा गया है कि महाविष्णु आपके पुत्र होंगे। ये किस प्रकार आप अपना पुनर्जन्म लेते हैं। इनमें सारी चीजज़ें एक ही स्थान पर नहीं लिखी हैं। अलग-अलग लिखी हैं। परन्तु यदि आपकी कोई पुनर्जन्म नहीं होता केवल कोई पादरी 25 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12.2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-24.txt व्यक्ति के सिर पर हाथ रख देता है और कह ऐसे लोगों की उपलब्धि क्या है? इंसा-मसीह के जीवन का, उनके पूर्ण-अस्तित्व का, आधार देता है कि आपका बस्तीस्म हो गया। आत्मसाक्षात्कारी के सिर पर यदि कोई पादरी नैतिकता और पावनता की स्थापना है। आदिशक्ति ने सर्वप्रथम श्री गणेश का सृजन हाथ रख दें तो उसके साथ समस्या हो जाती है । इस प्रकार एक गैर साक्षात्कारी के सिर पर हाथ रखने से भी बच्चों को समस्या हो सकती है। किया क्योंकि वे चाहती थीं कि सारा वातावरण शद्ध हो। वे चाहती थीं कि मानव अपनी पावनता और प्रकाश प्रसारित करते हुए अपने व्यक्तित्व पादरी जब बच्चों को आशीर्वाद देते हैं तो बहुत से बच्चे जोर-2 से रोने लगते हैं क्योंकि ये बच्चे का आनन्द लें। शीशा यदि गन्दा हो और आप तो आत्मसाक्षात्कारी हैं परन्तु पादरी नहीं हैं। उस पर रोशनी डालें तो वह प्रकाश किस प्रकार बहुत ही दिलचस्पी की बात है। परन्तु लोग उसमें से गुजर पाएगा। अनैतिक जीवन दूसरों को कहते हैं पादरी बुरे हो सकते हैं ईसामसीह नहीं। परन्तु पादरी और ईसामसीह में किस प्रकार सम्बन्ध हो सकता है। ईसा-मसीह उच्च चरित्र लिए भी ये दोनों बातें पूरी तरह से सच साबित प्रकाश नहीं दे सकता और न ही आपके आन्तरिक प्रकाश को प्रदर्शित कर सकता है। अपवित्रता के होती हैं। परन्तु लोग कहते हैं कि उन्हें ये सब के पक्षधर थे। उनके विषय में भी आजकल लोग सभी प्रकार की उल्टी-सीधी बातें कह रहे स्वीकार करना होगा क्योंकि यदि आप अपने धर्म में बहुत से लोगों को लाना चाहते हैं तो समझ सकते। हम लोग इस प्रकार से पतित हो आपको बहुत सी चीजें स्वीकार करनी होंगी। गए हैं । पावन चरित्र का तो उनकी दृष्टि में कोई उनमें से अपवित्रता एक है! इसके विषय में आप सोचकर देखें अगन्य चक्र. जहाँ ईसा-मसीह विराजमान हैं, आपकी दृष्टि, ही यदि अपवित्र है, लोभ और वासना से परिपूर्ण है तो आप ईसा-मसीह विरोधी हैं। आपकी दृष्टि यदि पावन तब होती है जब पूरा विश्व नेता के रूप में उन्हें है, शुद्ध है केवल तभी आप परमात्मा के प्रेम हैं। किसी भी चरित्रवान व्यक्ति को वे नहीं अर्थ ही नहीं है। आप जो चाहे करते रहें। बस, चर्च जाकर इसे स्वीकार (Confess) कर लें। आधुनिक धर्म की यही मूर्खताएं हैं। हर धर्म की अपनी समस्याएं हैं। परन्तु सबसे बुरी स्थिति स्वीकार कर लेता है। इस प्रकार के चरित्रहीन का आनन्द उठा सकते हैं अन्यथा नहीं। किसी अन्य सहजयोगी या योगिनी के प्रेम का आनन्द जीवन की आज्ञा आप किस प्रकार लोगों को दे आप तभी उठा सकते हैं जब आप पूर्ण हों और सकते हैं। इस चरित्रहीनता को किस प्रकार सहन जब आपकी दृष्टि पावन हो। इसके विषय में सोचकर देखें। है, दोषमय है, तो मैं नहीं समझ पाती, कि किस कर सकते हैं जबकि आप ईसा-मसीह का अनुसरण करना चाहते हैं! ऐसा हो ही नहीं सकता। वे तो सद्चरित्र की मूर्ति थे वे श्री गणेश हैं। कैसे आप चर्चो, मन्दिरों में आने वाले लोगों को चरित्रहीनता की आज्ञा दे सकते हैं। ऐसा नहीं कर सकते। जो भी प्रमाण पत्र आपके परन्तु यदि आपकी दृष्टि अस्थिर प्रकार आप स्वयं को इसाई कह सकते हैं। आप लाबा 26 चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : । & ।2, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-25.txt पास हों परन्तु ऐसी स्थिति में भी आप अपने को की बो कल्पना ही नहीं कर सकते जो नैतिक इसाई नहीं कह सकते। क्योंकि इंसा मसीह को मानने वाले लोगों का जीवन पूर्णतः नैतिक होना विवेक हो। ऐसे लोगों की वो कल्पना ही नहीं रूप से उच्च कोटि के हों या जिनमें नैतिकता न। कर सकते। इस प्रकार के कार्य करने वाले लोग चाहिए, पूर्णत: मानवीय। आपके अन्तर्अस्तित्व आत्मसाक्षात्कारी नहीं होते, वे सहजयोगी नहीं की यह अनिवार्यता है कि आप अपनी पावनता का आनन्द उठाएं और सर्वापरि आपकी दूष्टि होते। यही कारण है कि नैतिकता का विचार पूर्णत: पवित्र हो। पाश्चात्य जीवन के बारे में जो उनके मस्तिष्क में नहीं आता। वे सोचते हैं कि मंजजा में जान सकी हूँ वो ये है कि उनकी दृष्टि पवित्र नहीं है। ये लोग चर्च जाते हैं परन्तु इनकी दृष्टि इधर-उधर भटकती रहती है। ऐसा कैसे हो हम भी अन्य लोगों जैसे हैं। वास्तव में उनमें से अधिकतर स्वयं को न्यायोचित्त ठहराने के लिए ऐसा करते हैं। महान पुरुषों के चरित्र का इतना भद्दा और भयानक वर्णन ये दर्शाता है कि अपनी मूल्य प्रणाली में मानव वास्तव में कितना सकता है? यदि आप ऐसा सोचते हैं कि ईसा-मसीह का पुनर्रूत्थान हुआ था और आपका भी पुनर्जन्म हुआ है तो आप इस प्रकार कैसे पत्तित हो चुका है। किसी आदर्श व्यक्तित्व के सोंच सकते हैं? सर्वप्रथम ये देखें कि आपकी विषय में वह सोच भी नहीं सकता। वे सोचते हैं आंखों में पावन प्रेम होना चाहिए। पावन प्रेम का ऐसा कहते हुए भी वे वास्तविकता से ऊपर की कोई सम्बन्धित मूल्य नहीं होता और न ही इसे बातें कर रहे हैं। सत्य को वे नहीं जानते। कल सूफी विचारों को बताते हुए उन्होंने लोभ का कोई स्थान नहीं है। आपके मस्तिष्क से आपकी चार अवस्थाओं का वर्णन किया। इससे हुई। इनमें से एक चीज हकीकत दूषित किया जा सकता है। इसमें वासना और बहुत प्रभावित है अर्थात वास्तविकता। आपको इसी वास्तविकता मैं ये दोनों दुर्गुण पूर्णत: समाप्त होने चाहिए। आजकल लोगों के मस्तिष्क में भयानक लोभ हैं। मैं नहीं में उतरना चाहिए। किसी चीज़ को देखना मात्र, जानती कि उनके मस्तिष्क में क्या-क्या भरा हुआ है क्योंकि मानव की अनैतिकता का बहुत वास्तविकता नहीं है। किसी चीज़ को देखना ही अधिक अध्ययन मैंने नहीं किया है। मैं तो नहीं है, हमें वह बनना है। आप अगर देखने लगते हैं तो आपको सफेद, लाल, पीला दिखाई देता है। परन्तु आप सफेद, लाल, पीले तो नहीं को समझने का प्रयत्न करती हूँ तो हैरान होती हूँ हैं। जब आप सत्य बन जाते हैं तभी आपसे सत्य प्रसारित होता है। आप सत्य को देखते केवल आप जैसे सुन्दर लोगों को ही देखती हूँ। परन्तु जब में इस तथाकथित पाश्चात्य संस्कृति कि शेक्सपियर जैसे, जो मेरी दृष्टि में अवधूत थे. व्यक्ति के जीवन को दर्शाने के लिए भी वे उन्हें स्त्रीलम्पट के रूप में दर्शाते हैं। अवधूत यही वास्तविक जीवन है जिसे आप किसी एक उच्चकोटि का योगी होता है जो जन्म से ही विध्वंसक आदतों से परे होता है। ऐसे व्यक्ति नहीं उलझाते। जब आप ऐसा नहीं करते । हैं, सत्य में रहते हैं, सत्य का आनन्द लेते हैं। असत्य काल्पनिक दिव्यता से छोटी चीज़ में 27 चैंतन्य लहरी खंड : XII अक : ।। & 12, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-26.txt तब आप सत्य होते हैं, हकीकत होते हैं और अपने व्यवहार में, अपनी बातों में, अपने जीवन में अपनी सभी बातों में सत्य प्रसारित करते हैं। ये सब कार्य आध्यात्मिकता की महान बातें भूल जाएं। आपको केवल इतना जानना है शक्तिप्रदायक हैं। सत्य पर खड़े व्यक्ति से कि आप क्या हैं? आपने स्वयं के विषय में और भी लोगों के जीवन का मार्ग प्रशस्त करना है। आपका यही कार्य हैं। ये न सोचे कि क्या हो रहा है, लोग कितने मूर्ख है दुष्चरित्र हैं। ये सब परम शुद्ध होने के नाते अपनी जिम्मेदारी के ये सारे गुण विषय में चेतन होना है । जैसे मेरा नाम (निर्मल) सारा असत्य, गलत एवं विध्वंसक चीजें स्वतः ही दूर भाग जाएंगी। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के पूर्णतः अंग-प्रत्यंग दर्शाता है आप मेरे बच्चे हैं, आप निर्मल के होते हैं। बच्चे हैं अर्थात् पावनता के। पावनता ही आपके तो पुनर्जन्म घटित हो चुका है इसमें कोई सन्देह नहीं। आपके हाथ बोलने लगे हैं। मैं आपको न तो कोई आदेश देना चाहती हूँ और न ही कोई निशचित मार्ग बताना चाहती हूँ जिस पर जीवन का आधार है। स्पष्ट रूप से देखें कि कला को, सुन्दर कृतियों को और सुन्दर मस्तिष्क द्वारा सृजित कृतियों का मूल्यांकन करने में कोई गलती न हो। आपके मूल्यांकन में न तो लालच आप चलें। आप स्वतन्त्र हैं। क्योंकि आप प्रकाश हो न तो वासना। शुद्ध मूल्यांकन। पावनता ही एक मात्र सन्देश है। एक बार जब आप अन्दर है। जब आप स्वयं प्रकाश हैं तो मुझे बताने की क से पावन हो जाएंगे तो आप स्वयं से प्रेम करेंगे। जाए। आप जानते हैं कि आपके पास प्रकाश है। वैसे ही जैसे मैं तुम्हें प्रेम करती हूँ। तुम भी सबसे प्रेम करोगे। तभी आप 'प्रेम' शब्द को क्या आवश्यकता है कि आप किसे रास्ते पर अत: आप स्वयं अपने प्रकाश से ज्योतित मार्ग पर अपना ही अनुसरण करें। किसी अन्य ने समझेंगे जिसका उद्भव पावनता से होता है। आपको नहीं बताना कि ऐसा करो ऐसा मत करो। आपको खुद तोलना होगा कि आपमें क्या दोष है। इसे आपने नहीं करना। अब भी यदि प्रेम सदैव वहेगा. उन लोगों की ओर जिन्हें इस अपनी पावनता के पुष्पीकरण और उसकी सुगन्ध का आप हर समय आनन्द लेंगे और आपका आप ये गलती कर रहे हैं तो आप जान लें कि प्रेम की आवश्यकता है और जिनकी देखभाल होनी आवश्यक है। आसुरी प्रवृत्ति' वाले लोगों बर्णित 'नबी' आप ही लोग हैं। आप ही लोग हैं की चिन्ता न करें। मैं केवल यही शब्द उपयोग कर सकती हूँ क्योंकि उनके विषय में बहुत सी जीवन की गन्दगी में फँसे दीन-दुखियों की बातें कही जा सकती हैं। उन्हें विनाशकारी बना आपने ही सहायता करनी है। इन थोड़े से सूफी रहने दें। वे तो स्वयं को ही नष्ट कर रहे हैं । हम लोगों की ओर देखो, ये अत्यन्त स्वच्छ थे किस उनकी चिन्ता क्यों करें? वे सोचते हैं कि वे प्रकार उन्होंने अन्य लोगों को बेहतर ज़िन्दगी की दूसरों को नष्ट कर रहे हैं परन्तु वास्तव में ओर मोड़ दिया! आप भी वही लोग हैं। आपने ऐसा नहीं है। वे स्वयं को ही नष्ट कर रहे हैं । 28 अभी आपको इससे ऊपर उठना है। कुरान जिन्होंने पूरे विश्व का पुनर्रुत्थान करना है। चैतन्य लहरी खंड :XII अंक : 11 & 12. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-27.txt उन्हें भूल जाएं, भुला दें उन्हें। आप स्वयं को पूरे अन्दर कोई परिवर्तन नहीं होता। मेरे पास कोई विश्व के उत्थान के लिए जिम्मेदार मानें, थोड़े व्यक्ति आया मैंने उससे कहा तुम पादरी क्यों से लोगों के लिए नहीं। आप अत्यन्त विवेकशील बन गए? क्योंकि मेरे पास नौकरी नहीं थी। हैं। ज्ञानवान हैं और के अशिक्षित शिष्यों जैसे नहीं हैं जिन्हें वाले हैं ईसामसीह नौकरी न होने के कारण मुझे पादरी बनना पड़ा। सूझ-वूझ क्या आप कल्पना कर सकते हैं? उसको कोई आत्मसाक्षात्कार तो मिल गया परन्तु वे आपके और नौकरी नहीं मिली तो उसने ये काम स्वीकार कर लिया। तब आपने क्या किया? उन्होंने मुझे स्तर के न थे और न ही इतना कुछ समझते थे। वे केवल उस स्तर तक पहुँच सके जहाँ से इस समझाया कि मुझे क्या सिखाना है और सर्वप्रथम झंझट भरे इसाई मत का उदय हुआ। परन्तु आप मुझे उसका अभ्यास करना पड़ा और सबकुछ जुबानी याद करना पड़ा। तत्पश्चात् मैंने वे सब बातें करनी शुरु कर दीं। मेरे विचार से वह कोई ऐसे झंझट नहीं खड़े कर सकते। आप तो ऐसे गुँजायमान होने वाले नए धर्म का सृजन करेंगे जो सार्वभौमिक होगा। अत्यन्त भूत-वाधित व्यक्ति होगा। उसके पास अपना मस्तिष्क नहीं था। वह यह भी न जानता ये देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई कि अब विश्व भर के लोग सहजयोगी हैं। सर्वत्र फैला था कि उसे क्या बात करनी है। बाइबल का एक यह सार्वभौमिक आन्दोलन है। तथाकथित धर्मों वाक्य लेकर वह उसके बारे में बोलता चला के सीमित विचारों से इसे कुछ नहीं लेना देना। इन संकुचित विचारों से इसे कुछ नहीं लेना देना। इन्हीं संकुचित विचारों ने सभी धर्मों को नष्ट चाहते थे ज्यों ही उपदेश समाप्त होता. श्वास किया है। इस्लाम, इसाई मत हिन्दु धर्म जाएगा और लोगों को उबाएगा। मैं हैरान थी कि पन्द्रह मिनट के अन्दर लोग चर्च से चले जाना सब लेने के लिए लोग बाहर की ओर दौडते और नष्ट हुए हैं और बुद्ध धर्म तो सबसे बदतर स्थिति में आ गया है। बुद्ध धर्म में लोग सभी यही सब प्रदान करता है? क्या आपके अन्दर परमात्मा का धन्यवाद करते। क्या धर्म आपको कुछ त्याग देते हैं, अपनी सभी चीज़ों को त्याग देते हैं। अपनी सारी सम्पत्ति गुरु को दे देते हैं। यही घटित होना चाहिए? नहीं, ऐसा नहीं होना चाहिए? धार्मिक होकर तो आप अपनी आत्मा का आनन्द लेते हैं. सामूहिकता का आनन्द लेते इसकी आप कल्पना करें! गुरु इतने लालची हैं, अच्छाई और नैतिकता का आनन्द लेते हैं। ये और भयानक लोग हैं! ऐसा व्यक्ति किस प्रकार सारा अनुभव तो जीवनामृत जैसा है। जिससे मानव पूर्णतया परिवर्तित हो जाता है। कर्मकाण्ड बहुत अधिक हैं। हिन्दू धर्म में कर्मकाण्डों का बाहुल्य है आप दाएं को बैठें, पुनर्जन्म प्रदान कर सकता है? वह तो स्वयं ही अत्यन्त लालची दूसरों को भ्रमित करने वाला और दूसरों की चीजें छीनने वाला है। इसाई धर्म में भी यही बात है लोग मठवासिनियाँ (Nuns). बाएं को बैठे, इस समय ये कार्य करें तथा अन्य पादरी (Fathers), मठवासी (Brothers) और बहुत सी चीज़ें आपकी बहन की मृत्यु होने पर 29 पता नहीं क्या-क्या बन जाते हैं? परन्तु उनके चैंतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-28.txt आपको कितने दिन भूखा रहना है और पति की कहें, परन्तु मुझे ठीक कर दें ।" मैने कहा,"पहले वचन दो कि मन्दिर से जो भी धन आएगा उसे मृत्यु होने पर कितने दिन। जो चला गया वो आप लोगों की बेहतरी पर खर्च करोगे। " परन्तु चला गया समाप्त। शरीर समाप्त हो जाता है। तो वो ऐसा कैसे कर सकते हैं ? वे साक्षात्कारी लोग आपका इतने दिनों तक व्रत करना बिल्कुल गलत है। व्रत करने से तो हो सकता है आपके नहीं है। बेतुके वस्त्र पहनकर में इन सारे पादरियों को घूमते देखती हूँ। ये सब मृत शरीरों की तरह इन कर्मकाण्डों का सृजन करने वाले लोग जो से अपनी भयानक लहरियाँ लिए हुए चारों तरफ वे किसी भी घुम रहे हैं। मेरी तो समझ में नहीं आता। लोग अन्दर भूत प्रवेश कर जाएं। मैं तो ये कहूँगी कि बहुत महान होने का दावा करते हैं प्रकार से नैतिकता और उच्च जीवन के लिए बहुत ही सीधे हैं वे सोचते हैं कि अरे ये तो जिम्मेदार नहीं है। वे अत्यन्त भौतिक एवं अर्थहीन पादरी हैं, पुजारी हैं, इनका सम्मान होना ही जीवन व्यतीत करते हैं। मैं एक बार श्रीगणेश जी चाहिए। लोग ये भी नहीं देखते और न ही के मन्दिर गई, जहाँ स्वयंभू गणेश हैं, आठ मूल्यांकन करते हैं कि अपने आपको पादरी या स्वयंभू मन्दिरों में से एक। मैं हैरान थी कि वहाँ पुजारी कहने वाले व्यक्ति का आध्यात्मिक मूल्य क्या है? ये मूल्यांकन आपका कार्य है। आपको उनसे झगड़ा नहीं करना, ने ही उनकी भत्त्ंना का पुजारी पक्षघात से पीड़ित था उसके भाई की मृत्यु भी पक्षघात के कारण हुई थी और उसका पुत्र भी पक्षघात का शिकार था। कहने लगा माँ करनी है और न ही उनके दोषों की व्याख्या। ये श्री गणेश हमारे साथ क्या कर रहे हैं? मैंने इसकी कोई आवश्यकता ,नहीं। आपको केवल कहा आप श्री गणेश के साथ क्या कर रहे हैं? इतना समझना है कि आप उनसे भिन्न हैं आपमें इसका अधिकार है इसकी योग्यता है। इनसे आप कितना धन कमाते हैं? कहने लगा इसी अधिकार और आत्मविश्वास के साथ सर्वत्र बहुत सा। और इस पैसे का आप क्या करते हैं? जाकर आपको लोगों की रक्षा करनी है आप क्या इससे आप समाज का कोई हित करते हैं? आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति हैं, आपको पुनर्जन्म क्या आप लोगों का जीवन बेहतर बनाने का प्राप्त हो गया है, आप योगी हैं, इस बात को प्रयत्न करते हैं? क्या आपका चित्त समाज की मैं मानती हूँ। परन्तु आपका कार्य क्या है? ये बेहतरी पर है या आप अपनी ही चिन्ता में लगे हुए हैं? इन सबके परिणाम स्वरूप उसको पक्षाघात हुआ, उसके भाई को पक्षाघात हुआ. उसके पुत्र को पक्षाघात हुआ और इसके लिए वह श्री लोगों को अपने हाथों में लेकर इन्हें प्रकाश गणेश को दोष दे रहा था! कहने लगा." क्या ये की ओर ले जाएं। आपके पुनर्जन्म का यही सच्चे गणेश हैं? मैंने कहा,"हाँ, ये तो सच्चे घटना आपके साथ क्यों घटी? आपमें ये प्रकाश क्यों आया? इसलिए कि इन नेत्रहीन अर्थ है। पुनर्जन्म केवल आपके उत्थान के गणेश हैं परन्तु तुम नही हो, तुम इनके आशीर्वाद लिए ही नहीं, यह परमेश्वरी कृपा आपको इसलिए मिली है ताकि आप पूरे विश्व को 30 के योग्य नहीं हो। कहने लगा." माँ आप जो चाहे चैतन्य लहरी । खंड :XII अंक :1! 8 12, 2000। 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-29.txt आपमें से बहुत से लोगों ने यह कार्य किया है कितने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया? कितने और मैं कहूँगी, आप चाहे पुरुष हो या महिला आपको यह कार्य करना है। आपकी माँ की जहाँ तक हो सके दिव्य बना सकें। आपने लोगों से आपने सहजयोग के विषय में बात की? मैं आपको बताती हैँ कि एक वार मैं वायुयान में आपसे यही प्रार्थना है कि अपने आत्मसाक्षात्कार यात्रा कर रही थी और वहाँ एक महिला मेरे साथ सहयात्री थी। मैं हैरान थी कि वह मुझसे पर होना चाहिए और इस बात पर कि आपने अपने पंथ, अपने मुर्ख गुरु के बारे में बातें करने कितने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया. कितने लगी। निर्लज्जतापूर्वक वह बातें किए जा रही थी लोगों को आप बचाने वाले हैं? आपके करने के और मैं उसे सुन रही थी। मैंने सोचा कि सहजयोगी लिए यही साधारण सा कार्य है। बस आप लोगों का प्रयोग करें, आपका चित्त सदैव आत्मसाक्षात्कार की कुण्डलिनी उठा क्यों नहीं इस तरह से सहजयोग की बात करते, सभी सहजयोगियों को सहजयोग के विषय में बातचीत करनी है। चाहे गलत लोगों से न करें परन्तु अच्छे लोगों से तो सहजयोग की बातचीत करनी ही है। आपने केवल यही कार्य करना है। इसी कार्य को करने के लिए दें। ऐसा आप कर सकते हैं। आप देखें कि किस प्रकार अपने हाथ के इशारे से दूसरे लोगों की कुण्डलिनी उठा सकते हैं और उन्हें आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं। आपने कुछ नहीं करना और आपका जीवन भी अधिक कठिन नहीं है। आपका कार्य सुगमतम है। आपको आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ है। केवल अपना हाथ उठाना होगा, आपके हाथ में शक्ति है, शंका करने के स्थान पर केवल अपना आत्मसाक्षात्कार आपको इसलिए नहीं दिया हाथ उठाकर आप अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार गया कि आप जंगल में चले जाएं या विश्व दे सकते हैं । इसीलिए मैं कहती हूँ आप लोग की नज़रों से गायब हो जाएं। आपको आत्मसाक्षात्कार और पुनर्जन्म अन्य लोगों को पुनर्जन्म पा चुके हैं, आप सब आत्मसाक्षात्कारी हैं और आपने ही इस पृथ्वी पर दिव्य स्वर्ग का प्रकाश-रंजित करने के लिए दिया गया है। आप इसीलिए यहाँ पर हैं और ये कार्य कर सकते हैं। बहुत सृजन करना है। से लोगों ने इस कार्य को किया है। परमात्मा आपको धन्य करें। 31 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 1। & 12, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-30.txt श्री आदिशक्ति पूजा जयपुर 11-12-94) परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज हम लोग आदिशक्ति का पूजन कर महामाया स्वरूप था। रहे हैं। जिसमें सब कुछ आ जाता है। बहुत से आदिशक्ति को महामाया स्वरूप होना जरूरी है क्योंकि सारा ही शक्ति का जिसमें समन्वय लोगों ने आदिशक्ति का नाम भी नहीं सुना। हम लोग शक्ति के पुजारी हैं, शाक्तधर्मी हैं और हो, प्रकाश हो और हर तरह से जो हरेक शक्ति विशेष कर राजे-महाराजे सभी शक्ति की पूजा की अधिकारिणी हो उसे महामाया का ही स्वरूप करते हैं । सबकी अपनी-2 देवियाँ हैं और उन लेना पड़ता है। उसका कारण ये है कि जो प्रचण्ड शक्तियाँ इस स्वरूप में संसार में आती हैं। यहाँ की देवी सब दवियों के नाम अलग-2 हैं. सबसे पहले सुरभि के रूप में आई थी ये का नाम भी अलग है. गणगौर। लेकिन आदिशक्ति शक्ति, जो एक गाय थी। उसमें सारे ही देवी देवता बसे हैं और उसके बाद एक बार सती का एक बार अवतरण इस राजस्थान में हुआ जो वो सती देवी के रूप में यहाँ प्रकट हुई। उनका देवी के रूप में, एक ही बार इस राजस्थान में बड़ा उपकार है जो राजस्थान में अब भी अपनी अवतरित हुई। मैंने आपसे बताया कि मेरा संबंध संस्कृति, स्त्री धर्म, पति का धर्म, पत्नी का धर्म, इस राजस्थान से बहुत पुराना है क्यांकि हमारे राजधर्म हरेक तरह के धर्म को उनकी शक्ति ने पूर्वज राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के सिसौदिया वंश प्लावित किया, Nourish किया। सती देवी की गाथा आप सब जानते हैं। के थे। आदिशक्ति की अनंत शक्तियाँ हैं और मुझे नए तरीके से बताने की ज़रूरत नहीं; पर वे स्वयं गणगौर थीं। उनका विवाह कर दिया गया ऐसी कोई शक्ति नहीं जो उनके पास नहीं। लेकिन उन शक्तियों को छिपा कर ही रखना परन्तु विवाह करके जब वो जा रही थीं तब कुछ पड़ता है। उसके दो कारण हैं। एक तो कारण ये गुण्डों ने घेर लिया और उनके पति को भी मार कि लोग गर जान जाएं कि ये आदिशक्ति हैं तो दिया। तब पालकी से बाहर आ कर उन्होंने हर प्रकार के लोग उन पर प्रहार कर सकते हैं अपना रूद्र रूप धारण किया और सबका सर्वनाश क्योंकि ये लोग सब बिल्कुल दुष्ट हैं जाहिल हैं करते हुए खुद भी उन्होंने अपना देह त्याग दिया। इसमें जो विशेष चीज़ जानने की है कि बचपन और परमात्मा के विरोध में खड़े हैं। भगवान के नाम पर पैसा कमाते हैं और उसका दुर्व्यवहार अपना स्वरूप किसी को बताया नहीं क्योंकि वो करते हैं। ये सारे ही लोग गर जाने जाएँ कि 32 से शादी होने तक किसी भी हालत में उन्होंने चैतन्य लहरी । खंड : XII अक : ।1 & 12. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-31.txt आदिशक्ति संसार में आई हैं तो या तो भाग खड़े होंगे या सब जुट कर के ये कोशिश करेंगे कि किसी तरह से आदिशक्ति का कार्य इस कलयुगे आफिसर, उनके दिमाग में आया कि आज तक कोई अंग्रेज सीधी-सादी हमारी हिन्दी भाषा नहीं बोल सकता तो ये कौन माई का लाल निकला है जिसने गीता को लिखा है संस्कृत में। कुछ तो में हो न पाए। उसके लिए बहुत ज़रूरी है कि महामाया का स्वरूप ले लिया जाए। दूसरा इस गड़बड़ होगी। तो उन्होंने एक किताब खोली तो देखा कि उसमें व्हिस्की! समझ गए, सारी किताबों स्वरूप से एक बड़ा गहरा काम, सूक्ष्म काम के अंदर व्हिस्की और ऊपर से गीता। तो मतलब करना है जो कभी भी किसी ने आज तक नहीं किया। वो है सामूहिक चेतना। सामूहिक तो ये कि गीता बहुत उच्च चीज़ है हिन्दुस्तानियों के छोड़िये, एक ही आदमी को पार कराने में लोगों लिए, गीता का नाम लेते ही चाहे बो कुछ जाने को सालों लग जाते हैं। इस कार्य को करने में या ना जाने माथे पर लगा लेते हैं। लेकिन... और वो भी बखूबी इस तरीके से कि किसी को अंग्रेजों में इस तरह से जो छिपाने की शक्ति है कोई भी हानि नहीं पहुँचे। ऐसे ही जैसे नाव में वो कमाल की है, कि गीता को इस्तेमाल करो। बिठा करके आराम से दूसरे किनारे पहुँचाया कोई सी भी समझ लीजिए यहाँ टेबल गंदी हो जाए! मैंने कल भाषण अपने में बताया कि धर्म गई तो उसमें फौरन हम प्लास्टिक बिछा कर कितना विपरीत हो गया है। धर्म की बाते जिन्होंने दूसरा टेबलक्लॉथ बिदछा कर उसको हम सुन्दर कर लेंगे और बार-बार मैं भी देखती हूँ कि कहीं भी जाइये तो बहुत से पर्दे लगे होंगे। मैंने कहा ये क्या है तो कुछ नहीं, कुछ नहीं। पर्दा हटाइये तो ऊपर से बहुत सारे गंदै कपड़े, ये बो। करी वो तो ठीक थे लेकिन जिनसे कहीं वो लोग गड़बड़ थे। सो उन्होंने धर्म को समझा नहीं, धर्म को एक बड़ी भ्रान्ति में डाल दिया कि गर कोई आदमी यह सोचने लग जाए-अपने धर्म के बारे में तो वो भाग खड़ा हो जाए क्योंकि धर्म के नाम सो ऐव छिपाने की भी हमारे महामाया शक्ति में के पीछे जो-जो तौर तरीके हैं वो बहुत भयंकर एक बहुत बड़ी त्रुटि है। क्योंकि ये लोग कहीं से हैं। कहीं तो स्त्रियों की अवहेलना, कहीं तो कुछ सीख कर आए ही होंगे चाहे हमने नहीं बच्चों का दमन तो कहीं लूटमार। हर तरह के सिखाया हो पर किसी ने तो सिखाया ही होगा गलत काम धर्म के नाम पर होते हैं। एक बार कि ये ऐव अपने कैसे छिपाए जाएँ और छिपा के बंबई में बहुत सी गीता छप करके बाहर से उसको कैसे पचा लिया जाए। जो हमारे ऐब हैं आई, तो लोग बड़े खुश हुए कि अब हमारी उसको हटाने के लिए हम प्रयत्नशील नहीं गीता लंदन में छपने लगी। इससे बढ़ करके और होते। उसको छिपाने में प्रयत्नशील होते हैं क्या बात हांगी! हिन्दुस्तानी तो वैसे ही अंग्रेज के और दूसरों के ऐब देखने में हम बड़े होशियार पैर पे लोटता रहा और अब गीता अगर वहाँ छप होते हैं। अब ये बिल्कुल विपरीत बात है। महामाया की शक्ति इसलिए बनी है और विकीर्णित हुई कि आपके अंदर जो दोष हैं 33 गई तो हिन्दुस्तानियों ने सोचा वाह-2, कि वाह क्या कमाल हो गया! पर एक कोई थे कस्टम चैतन्य लहरी खंड :XII अंक : 1 & ।2. 2000 & 12. 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-32.txt की पकड़ का मतलब क्या है? सबसे पहले तो आप अपने Past के बारे में सोचते रहते हैं । वो निकाले जाएँ और उसको अपने शरीर में आत्मसात किया जाए और फिर उसकी सफाई दूसरी बात कि मेरे बाप ये थे और मेरे बाप के बाप ये थे. ये सोचते रहते हैं । नसीब है उनको अपना पूर्वजन्म याद नहीं आता, पर ये पूछेंगे माँ लोग आए नहीं मेरे पास जो कि मुझे बड़ा दुःख मैं पूर्वजन्म में कौन था? अब मैं, एक साहब ने उठाना पड़े. सही बात तो ये है। वो लोग मुझे मुझे बहुत तंग किया मैं पूर्वजन्म में कोन था, देखते ही भाग जाते हैं शायद इसलिए ये मेरे कौन था? फिर मैंने कहा देखी बेटे मैं तुमको की जाए। ये कार्य बड़ा कठिन है. ऐसा मुझे लगता था शुरू-2 में लेकिन ऐसे कोई खास ऐैब वाले सामने कभी प्रश्न खड़ा नहीं हुआ। पर आश्चर्य की बात है कि जो लोग भूत से ग्रसित हैं या नहीं बता रही हूँ तो इसका मतलब कुछ गड़बड़ी है। क्यों मुझसे पूछ रहे हो? इस जन्म में अच्छा जो लोग हमेशा बुरे काम करते हैं और जो है तुम मैरे साथ हो। क्यों मुझे बार-बार पूछ रहे हो? इस जन्म में अच्छा है तुम मेरे साथ हो । लोग गुरूघंटाल हैं वो सब मुझे अच्छी तरह से जानते हैं, ना जाने कैसे! या तो उनकी क्यों मुझे बार-2. पूछ रहे हो कि मैं पूर्वजन्म में है। आंखें पीछे की ओर हैं या जो भी कहिए वो कौन था। उससे तुम्हारा क्या लाभ होने वाला मुझे पहले पहचानते हैं। सहजयोगी नहीं पहचान नहीं मुझे अच्छा लगेगा। अच्छा अगर मैंने कहा पाते। हो सकता है उनकी आंखें चकाचौध हो जाती हों, मुझे समझ में नहीं आता। पर आप कि तुम पूर्वजन्म में जयपुर के महाराजा थे. समझ लो, तो तुमको क्या गद्दी मिल जाएगी? वहाँ जाओगे तो वहाँ से भगा देंगे सब। तो किसी भी भूत ग्रस्त आदमी को ले आइये। वो थर- थर कॉँपने लगेगा और ऐसा भागेगा कि सोचे पूर्वजन्म की बात क्यों करते हो? क्योंकि मुझे जैसे किसी ने हंटर मारा है। लेकिन सहजयोगियों का ऐसा नहीं। उनको पहचान भी इतनी नहीं है। कहीं का राजा था? मेैंने कहा लक्षण तो दिखते अच्छी बात है, क्योंकि आदिशक्ति का एक स्वरूप जो महाकाली का है उसे आप देख लें तो ज्योतिषी ने बताया, तुमसे एक ज्योतिषी ने बताया था कि मैं पूर्वजन्म में नहीं तुम्हारे अंदर राजा होने के। अब तुमको पैसे एंठने के लिए। वो पूरा गया काम से, भयंकर है, ये देख सकते तुमने राजा जैसे कुछ गले का कंठा वंठा दिया हैं! हाथी-आथी भी देख सकते हैं घोड़़े भी देख उसको कि बस ऐसे ही पैसों में टाल दिया? सकते हैं । पर बाकी किसी को दिखाना बड़ी उन्होंने कहा कि आप मज़ाक कर रहे हैं । मैंने कहा कि तुम बेवकूफी की बात कर रहे हो तो लेकिन महाकाली का स्वरूप होना बहुत मैं क्या करू? यहाँ तुम अपनी पूर्वजन्म पूछने के लिए मेरे पास आए। मैं कोई ज्योतिष शास्त्र तो जानती नहीं हूँ। मुझे इसमें कोई भी, किसी भी तरह की दिलचस्पी नहीं है। तुम ज्योतिष शास्त्री 34 कठिन बात है। न जाने यहाँ- कितने लोग बैठेंगे ? जरूरी है। जब तक महाकाली प्रकट नहीं होती। आपके अंदर बसी बाई ओर (left side) की पकड़ जा नहीं सकती। बाई ओर (Left side) चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 1 & 12, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-33.txt के पास जाओ और वो तुमसे कहेगा, तुम इंग्लेंड उन्होंने कहा ये महाशय जो हैं, इनका नाम में के राजा थे तो दे दो उसको कुछ। इंग्लैंड के नहीं बताऊँगी, ये डाक्टर साहब हैं और ये भागें नहीं देते वैसे उधर के लोगों हुए हैं आनंदमार्ग से। तो कहने लगे आपको में विश्वास ही नहीं । अब इसी बात की ले कर आश्चर्य होगा माँ, ये आनंदमार्ग के बड़े भारी बैठ गए कि पिछले जन्म में मैं ये था और प्रचारक थे। दुनिया भर में घूमे, खूब पैसा कमाया और फिर इनके गुरु जो थे वो इनको अपना राजा वगैरह कुछ पिछले जन्म में बो था। तब महाकाली का स्वरूप अगर दिखाएँ तो सारे ही जन्म भूल आद्य शिष्य मानते थे। तो हुआ क्या? ये कलकत्ते जाएँगे! इसकी बहुत जरूरत है। महाकाली में देवी के मन्दिर में थे। जहाँ बकरा काटा जाता के स्वरूप के सिवाय ऐसे पागल छूट नहीं सकते। अब मैंने देखा कि जो भागे तो फिर आए काटते हैं देवी के सामने, कि उसके अंदर भूत नहीं। फिर उन्होंने सामना नहीं किया मेरा। अब ये तो विल्कुल सोचिए कि बहुत छोटी सी बात इसमें डाल कर के उसको उस भूत से छुटकारा हैं। पर उसके अलावा महाकाली की जरूरत है हो। हम लोग तो नींबू पर ही उतार देते हैं | कि जिन लोगों को ये गुरूओं ने भूत लगा दिया शाकाहारी (Vegetarian ) अपना तो सब मामला । हैं। अब गुरूओं के भूत ऐसे होते हैं कि या तो क्योंकि बहुत से बनिए आ गए हैं न सहजयोग है। ये बात तो सही नहीं। बो बकरा इसलिए डाल कर के, और जो भूतग्रस्त हैं उसका भूत आप गुरु का कहना मानो और बिल्कुल उनके में। सो नींबू को काट करके निकल जाता है, जैसे हो जाओ। वो कहें तुमसे कि जा कर उनके घर में डाका डालो, तो डाका डालो। उसको मार भूतों को महाकाली दिखाई देती है। वही रूप डालों तो उसको मार डालो। ये करो भाग जाता है। तो ये जो भूतग्रस्त लोग हैं उनके , तो वो दिखाई देता है और थर-थर-थर-थर काँपते हैं। करो। एकदम गुरु की हाथ में आप शीष नवा ऐसे और कोई कहेगा? अब ये क्यों धर-थर कॉप रहे हैं? और अनेक तरह के भूत लग जाते हैं और आश्चर्य मुझे लगता है कि अहँ (Ego) करके घूमो तो ठीक है नहीं तो गुरु लग जाएगा आपके पीछे। आपसे कहा किसी को मारो। उसको नहीं मार सके तो दूसरे से कहेगा। इसी को मार डालो। एक अच्छी बात भी है। ऐसे झूठे का अगर भूत लग गया तो उसको भी महाकाली का रूप दिखाई देता है। गुरु एक तरह से अपना और अपने शिष्यों का ही नाश करते रहे लेकिन यहाँ देखती हूँ कि हो रहा था तो उन्होंने कहा कि माताजी तो ब्राह्मण और पूना का किस्सा। पूना में एक प्रोग्राम तो भी उन्हीं के चरणों में चले नहीं हैं, तो हमारे यहाँ पर प्रोग्राम नहीं हो सकता। नाश हो रहा है जो ब्राह्मण होगा वो ही आए। तो वहाँ के जो जा रहे हैं। हमारे यहाँ एक साहब पुलिस के साथ आए। मैं शायद अशोका होटल में थी। तो मेरे कार्यकर्त्ता थे उन्होंने कहा, अच्छा ठीक है, हम पति ने कहा, ये क्या झगड़ा है? पुलिस काहे पेपर में दे देतें हैं कि माता जी ब्राह्मण नहीं हैं, आई? मैंने कहा पता नहीं देखो तो सही। तो यहाँ प्रोग्राम नहीं हो रहा। दूसरी जगह प्रोग्राम 35 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : ।। 8 12, 2000 গ 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-34.txt करते हैं। ना-ना, ना-ना ऐसा नहीं करो। ये रही, तो उसने कहा कि इतनी महँगी कैसे हो हमको नहीं दिखाना है, यहीं करते हैं प्रोग्राम। गई? एक रु. की 10 रु. में! उसने कहा कि मुझे किसी ने कुछ बताया नहीं तो मैंने कहा अच्छा आप लोग. पता नहीं कैसे ये दिमाग में हौँडिया, सब बिक गई। ये सब लोग हौँडयां लिए एक माता जी आई हैं वो हौडिया, हॉडियों पे चल पड़े। आया? आप में से जो कोई ब्राह्मण है मेरी ओर हाथ करे दोनो ऐसे, अब उनके लगे हाथ हिलने! मैंने कहा पूना में इतने भूत, बाप रे! कुछ समझ में ही नहीं आया। मैंने कहा हैंडिया ले के छोड़ो। तुम लोग क्यों हिल रहे हो? मैंने तो नहीं आओ, नींबू ले के आओ तो बैठें। पर वो नहीं लाए, उनकी आँखे लगी घूमने. वो लगे घूमने। मैं था तुमसे हिलने को। मुझे क्यों कह रहे हो? तो उठ के चली गई कि तो सारा यहाँ भूतों का जमघट है। जो लोग हाडिया ले के बैठे थे वो तो अरे माँ बंद करो बंद करो माँ। आप शक्ति हो, कहा, अपने आप ही हिले जा रहे हो! मैंने कहा तुम्हीं रोको? रुकता ही नहीं, करें क्या? तो मैने कहा मैने तो नहीं कहा। पर पता नहीं क्यों बड़ा कुछ ठीक थे पर बाकी के जो थे वो खडे हो कर के हो हो हा हा, ही ही करने लगे। तो मैंने उनको ये घमण्ड था कि वो बड़े ब्राह्मण है तो कहा कि भई ये गर महाकाली की शक्ति कुछ कहने लगे माँ उधर भी कुछ ब्राह्मण बैठे हुए हैं कम हो जाए तो अच्छी बात है। अब ये एक चीज़ ठीक करने के बाद दूसरे आ गए। माने कौन जिसको आप साइको सोमैटिक कहते जैसे नहीं बाबा हम लोग ब्राह्मण नहीं हैं। हम लोग कैसर, मस्कुलर, ये वो दुनिया भर की बीमारियाँ प्रमाणित (Certified) पागल हैं, थाना से आए जिसको डाक्टर लोग नहीं ठीक कर सकते। भय लग रहा है, पता नहीं क्या हो रहा है? अब उनके भी हाथ हिले रहे हैं। मैंने कही झूठ, जरा उनसे पूछों वो लोग कौन हैं। ब्राह्मण हैं? अरे हैं। वहाँ पर आपकी माताजी के पास जा कर अच्छा मानेंगे नहीं, डॉक्टर मानते नहीं जब तक एक पागल ठीक हो गया था इसलिए हम आए हैं। हम लोग ब्राह्मण नहीं हैं। अब उनके आँखें रोगी मर नहीं जाएगा। खींचो पैसे। एक साहब को गुर्दा रोग (Kidney trouble) हो गया तो मैंने कहा मैं आपकी किडनी ठीक कर दूँगी। एक खुली। मैंने कहा समझ गए आप। वो भी पागल और आप भी पागल। दोनों ही पागल। तब उनके शर्त ये है कि आप अपना धंधा बंद करिये कि जो लोगों को ये जो आप टेबलों पे चढ़ा-चढ़ा के सारा पैसा खींचते हो उससे बो ठीक नहीं होता। हाथ छूटे। शुरुआत में तो बहुत ज्यादा महाकाली का प्रताप है। कुछ समझ ही में नहीं आता था कि ये महाकाली जी अपना प्रताप कुछ कम करें तो मैं दूसरे भी काम करू। पूना में तो ये हाल मरने से पहले Bankrupt हो जाता है। Dialysis बंद आप करो तो मैं तैयार हूँ। हाँ-हाँ माँ आप क मेरी किडनी ठीक कर दो। ठीक कर दी पर दो हो गया कि मेरी एक भर्तीजी (Neice) है उसे महीने बाद फिर चालू उनकी दुकान। डाक्टर लोग कब सच बोलते हैं और कब झूठ बोलते उ6 मैने कहा कि एक हॉडिया ले आओ। तो बाज़ार मैं गई, तो एक रुपये की हँडी 10 रु. में बिक चैतन्य लहरी । खंड :XII अंक : । & 12, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-35.txt हैं? भगवान जाने। फिर उनको Kidney Trouble हो गई। वो मैंने कहा साहब इस बार क्या हुआ? स्वरूप और बो रुद्र बहुत जरूरो है नहीं तो ये Negativity भागने वाली नहीं है। ये सिर्फ रुद्र स्वरूप से ही। एकादश रुद्र में जो 11 रुद्र हैं वो कहने लगे फिर से Kidney Trouble है। मैंने कहा वो नहीं है अब Cancer चल पड़ा है। ग्यारह ही रुद्र में महाकाली की ही शक्ति विराजमान है। और वो हमारे मेधा पर यहाँ अब घबड़ा गए। मैंने कहा मेंने आपसे कहा था। आपने फिर से चालू कर दी अपनी दुकान। अब माँ मैं पेट कैसे भरूँगा? मैंने इतने रुपये की ग्यारह चक्रों में समाई हुई हैं। गर किसी आदमी का एकादश पकड़ गया तो सोच लीजिए उसको तो केंसर या कोई न कोई left sided भयंकर मशीनरी मँगवाई है, ये कर रहा हूँ, वो कर रहा incurable Disease सहजयोग का Science जो है वो पूरी तरह से उत्तम है। उसमें कोई आप दोष नहीं निकाल सकते। अब लोग आए कंसर लेकर हूं। मैंने कहा बेच डालो मशीनरी को खत्म करो। सुना है वो अब हैं नहीं महाराज सहजयोग में तो सारी जितनी left side की बीमारियाँ हैं, जितनी हैं साइको-सोमैटिक Disease जिसका कोई Cure Neurosis, फलाना ढिकाना, पचास तरह के, नहीं है वो सब महालक्ष्मी की कृपा से ही ठीक हो सकती है। इसीलिए महालक्ष्मी का ही मंत्र एड्स. और कहने लगे कि माँ हम तो कभी किसी गुरु के पास गए नहीं। अरे भई गुरु के पास गए नहीं, तुम्हारी माँ गई होगी तुम्हारे बाप गए होंगे। नहीं वो भी नहीं हुआ। हाँ रजनीश की किताबें पढी थीं और सत्य साई बाबा का फोटो कहना पड़ेगा और महालक्ष्मी को जब तक आप प्रकट नहीं करियेगा ये बीमारियाँ ठीक नहीं हो सकतीं। और इतनी गर्मी इन लोगों से निकलती हैं कि समझ में नहीं आता! हमारे घर में है। और एक दो देख लो मैंने कहा। London में जबकि सब लोग हीटर लगाते हैं आप एक कैंसर Patient को ले आइये और दो चार और बीमारियाँ आ जाएंगी। फिर आना। उसकी कुण्डलिनी जागृत कर दीजिए हीटर का खर्चा गया। इतनी गर्मी निकलती है। जिसकी तो उन पर तो रुद्र स्वरूप ही देवी का दिखना वहाँ जाएँगे। बीमारियाँ पकड़ेंगे और यहाँ आएँगे। कोई हद नहीं। इधर गर्मी निकलती है उधर वो चाहिए ना। क्या भूतों से कहा जाए कि आ रोते रहते हैं अक्सर, क्योंकि इसके साथ रोना बैठ-बैठ, तू खाना खा. ले पान। बहुत से लोग चलता है। महालक्ष्मी के दर्शन हों तो रोना रुके। पूछते हैं कि माँ देवी का रुद्र स्वरूप कैसे हो माँ सरस्वती के दर्शन तो दूर ही रहे. ये तो माँ सकता है? गर वो माँ है तो माँ का स्वरूप रुद्र काली के ही दर्शन होंगे अब उनको देखकर कैसे हो सकता है? क्यों नहीं। बच्चों को ठीक लि रोना ही आएगा। अब उनसे कहें क्या? सूक्ष्म करने के लिए रुद्र स्वरूप भी धारण किया। रूप से आप देखिये कि महालक्ष्मी का जो सौम्य स्वरूप, ये बच्चों के लिए हानिकर जाना स्वरूप है। अति रौद्रा। देवी के उसमें कहते हैं अतिरौद्रा अतिसौम्या पर महालक्ष्मी अतिरौद्रा। रुद्र जा सकता है। उनका रुद्र स्वरूप बहुत जरूरी है। उसके 37 चैतन्य लहरी खंड :XII अंक : 11 & 12.2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-36.txt सिवाय वो ठीक ही नहीं हो सकते। परन्तु रुद्र जो स्त्रीत्व था वो तो कम हो ही जाता है। स्वरूप में किसी को हानि नहीं पहुँचाई। ये विशेष बात हैं। जैसे कि पहले महाकाली ने इसको मारा, उसको मारा, इसकी जीभ खींची. ये शालीनता वो खत्म हो जाता है। पुरुषत्व ज्यादा आ जाता है। स्त्रीत्व कम आ जाता है। और स्त्री का जो सबसे बड़ा गुण है वो शालीनता जो स्त्री का स्वरूप है उसको किया, ऐसा कुछ नहीं। आज का जो महाकाली रणांगन में जाने की जरूरत नहीं है। पद्मिनी ने का स्वरूप है वो है रुद्र। इसकी कोई जरूरत ही नहीं, ये सब करने की। मनुष्य ऐसे ही घबड़ा अपने को 3000 औरतों के साथ चित्तौडगढ़ के किले पर ही जला लिया था। वो कोई तलवार कर के ठीक हो जाता है। उस स्वरूप को देखते ही ठीक हो जाता है और जब वो उस स्वरूप लेकर बाहर नहीं गई। पर जब जरूरत पड़ी तो को देखता है अपने आप उसकी बीमारसियों ठीक हो जाती हैं क्योंकि उसके अंदर जो Negative झाँसी की रानी हाथ में तलवार ले कर खड़ी हो गई! तब मुझे याद है अंग्रेज़ ने कहा था कि हमारी तो विजय है लेकिन गौरव तो झाँसी की चीज़ है वो भाग जाती है। तो किसी की गर्दन काटने की या जीभ काटने की या आँख निकालने की कोई जरूरत नहीं है। माँ काली का स्वरूप गर इस्तेमाल ही न किया जाए तो सहजयोग का रानी का है। अपने देश में अनेक तरह की उज्जवल चरित्र बाली औरते हुई हैं। पति परायण स्त्री धर्म में अत्यंत उच्च ऐसी औरतें हो गई हैं जिन्होंने अपनी सूझबूझ से अपना घर सभाला। कार्य ही न हो सके क्योंकि Negative forces के कारण सारे चक्र पकड़े जाते हैं और चक्र ठीक किए बगैर कुण्डलिनी चढ़ेगी नहीं। इसलिए चूड़ियाँ व सब जेवर निकाल दिए। राणा प्रताप जब गाँधी जी ने ललकारा तो औरतों ने अपनी माँ काली का स्वरूप बहुत वंदनीय है, बहुत का ही किस्सा है कि राणा प्रताप ने देखा कि सराहनीय है जो कि किसी को शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुँचाती। सिर्फ उसके स्वरूप से जो ये शंका हुई कि मैं क्यों ऐसा कर रहा हूँ. अपने बुरी बातें हैं वो भाग जाती हैं। अब मियाँ बीबी के झगड़े ये सबसे बड़ा नहीं जाता? तो वो चिट्ठी लिखने बैठे अकबर उसकी लड़की की घास की बनाई हुई रोटी भी एक बिलाव उठा कर ले गया. तो उनके मन अहंकार के लिए? मैं अकबर की शरण क्यों आजकल क्योंकि बीबियाँ पढ़ गई को। उस वक्त क्षत्राणी, उनकी पत्नी की शक्ति प्राब्लम है। और मियाँ चाहते हैं कि बीवी बिल्कुूल देहाती जागृत हुई। हाथ में भाला ले कर उसने अपनी हो। अब वो देहाती तो है नहीं, उसको देहाती लड़की पर लगाया और कहा कि में तुझे मार जिससे ये जो कमज़ोरी इनके अंदर डालती हूँ कैसे बनाएँगे? एक बार शहरी हो गए, तो शहरी हो गए। चाहे आप लँहगा पहन लीजिए और चाहे आई हैं। तब राणा प्रताप की आँखें खुली। हमारे यहाँ औरतों ने गर सोचना ही है तो तो आप पेट पहन लीजिए। दिमाग तो शहरी हो गए। अब जो शहरी दिमाग हो गए तो उसके बाद पिछली बात सोचें कि रणांगन में अपने पतियों 38 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : । & 12, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-37.txt हँसी में टाल दे और हँस कर के हजारों प्रश्न को का टीका लगा कर वो लड़ने भेजती थीं। इन अंग्रेजों से कौन लड़े आदमी? पर हल कर दें। ये जो बारीकी होती है इसको शक्ति औरतों की है। क्योंकि आजकल औरतें समझने के लिए मैंने कहा था आप शरदचन्द्र पढिए। उसमें सबकी नोंक-झोंक औरतें कैसे संभालें? ये होशियारी की बातें हैं। हम लोगों को अशक्त हो गई और आदमी भी नि:शक्त हो गए। ये शक्ति जो हैं ये स्त्री की शालीनता है। और ान Politics में जाने की ज़रूरत नहीं, और इस गंदे Economics में तो जाने की बिल्कुल भी ज़रूरत जब तक ये शालीनता क्रियान्वित नहीं होती तो गृहलक्ष्मी की शक्ति उसके अंदर प्रकटित ही नहीं होती। लेकिन चतुर होना चाहिए। गृहलक्ष्मी नहीं । लेकिन समाज की सारी धुरी, समाज का को चतुर होना चाहिए और दूसरे उसमें सूझबूझ होनी चाहिए। सो ये कहें कि जब महाकाली शक्ति अत्यंत शांत हो जाती है तो वो गृहलक्ष्मी अपने घर को अच्छा बनाती है, अपने पति को हो जाती हैं । महाकाली शक्ति। बी को मानते हैं कि वो गृहंलक्ष्मी का सिंहासन बनाती है। और कल मैंने कहा भी कि हमारे सुशोभित करें। महाकाली की इस शक्ति से स्त्री हिन्दुस्तान की औरतों की वजह से ही आज सारा कार्य स्त्री पर निर्भर है। जो स्त्री अपने बच्चों को अच्छा बनाती है। तो हम फातिमा स्वास्थ्य देती है वो स्त्री एक बहुत बलिष्ठ समय अपने बच्चे को ठीक रास्ते पर रखती हैं। अपने हमारा समाज ठीक है। पर स्त्री का स्वभाव शालीन होना चाहिए और उनकी शक्ति भी चीज़ के साक्षी हैं कि एक पतिव्रता स्त्री के शालीनता में है। उद्यमता में नहीं है। उसको दंड पतिव्रत को कोई नष्ट नहीं कर सकता क्योंकि ठोकने की ज़रूरत नहीं है। बिल्कुल नहीं। उसकी ये शक्ति है। ये महाकाली की शक्ति है. लोग जो शालीनता है उस शक्ति पर वो सारी दुनिया डरते हैं एक पतिव्रता स्त्री से। और पतियों को को जीत ले। उसकी चाल-ढाल, उसका ढंग चरित्र को उज्जवल रखती है और हम लोग इस एक देवी स्वरूप होना चाहिए। वो महाकाली शक्ति हैं। वो अनेक चौज़ों में बैठतो है। उसके भी जान लेना चाहिए कि उनके अंदर जो कार्य शक्ति है वो भी स्त्री से ही आती है। और वो शक्ति गर स्त्री से आती है तो स्त्री में पहली अपने-अपने वाहन हैं चीज़ शालीनता है या नहीं। गर स्त्री जबरदस्त है. बैठती है तो उसे ललिता गौरी कहते हैं। इधर बैठ, उधर बैठ, ये चल, वो कर, जो ऐसे अँगुली दिखाना शुरू कर दी तो, वो चुप। पति होते हैं। ज़रूरी नहीं कि आप घूंघट लें, का अधिकार है । लेकिन शालीनता से आप जीत ज़रूरी नहीं कि आप सर ढकें, लेकिन आँखों सकते हैं। उसमें चतुरता चाहिए। ये शालीनता के में शालीनता होनी चाहिए। शालीन बहुत लिए कोई किसी को मार-पीट चिल्लाना, कुछ बड़ा शब्द है इसमें बहुत लेकिन वो जब हाथी पर कला, हावभाव उसके सब बहुत इज्जितेदार सुन्दर सी चीज़ें समाई हुई नहीं। एक तो शालीन स्त्री में हास्यरस बहुत हैं। क्योंकि वो रुद्र स्वरूपा हैं उस रुद्र स्वरूपा को बहुत सौम्य स्वरूपा होना है। इसीलिए कहा 39 प्रस्फुटित होना चाहिए। किसी भी चौज़ को वो चैतन्य लहरी खंड :XII अंक : 11 & 12, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-38.txt गए। देश के बारे में न जाने लोगों ने क्या-क्या लिखा? अब वो सब कविताएँ चली गई और ये सब गंदे फिल्मी गाने बजते रहते हैं । और गणेश जी के सामने क्योंकि सुबुद्धि ही नहीं है, मुनध्य है कि आप घृंघट ले लो. सर ढक लो। बुका ले लो क्योंकि आप महाकाली हैं। जो आपको देख ले वो ही भस्म हो जाए। जो बुरी निगाह से आपको देखे वो ही खत्म हो जाए। आपके सुरक्षण के लिए नहीं, Protection के लिए नहीं में सुबुद्धि नहीं है। वो बेकार के काम करते लेकिन जो दूसरे के लिए नहीं लेकिन जो आपके ऊपर बुरी निगाह डाले वो भस्म हो जाए नष्ट हो सबसे बढ़ कर गर कोई है तो मैं कहूँगी ये रहता है। बुद्धि से कुछ भी निकाल ले! इसमें जाए। वो भस्म हो जाए। ऐसी ही ये महाकाली की महान शक्ति है। देखने में तो बहुत ही नहीं। निस्संकोच उन्होंने अपने विचार सबके उज्जवल बहुत ही शालीन पर अंदर से, उसकी सामने रख दिए और सबने उसे मान लिया। अब शक्ति तो अंदर से क्रियान्वित होती है। तो मैं यहाँ नहीं आपको बताऊँगी क्योंंकि यहाँ बताने फ़्रायड। इससे बढ़ कर कोई औलिया मैंने देखा महाकाली को लौग कहते हैं कि ये एक बड़ी लायक हैं नहीं उसके गंदे-गरदे विचार वो तो रुद्र शक्ति है माँ किन्तु इसकी शालीनता आप देखें तो आश्चर्य होता है कि क्या ये महामाया अच्छा है हिन्दुस्तान में नहीं आए नहीं तो सब उसको काट कर फेंक देते। और उस आदमी हैं? तो ये महाकाली और इतनी शालीन जैसे का लिखा. एक line आप पढ़िए तो आप जान नववधु, वाह वाह। ऐसी शर्मायगी ऐसे मीठे जायेंगे कि ये बड़ा ही बेशर्म आदमी है या भूत है या राक्षस है। जो भी है, ये उसने अपनी बोल बोलेंगी जैसे फूल झड़ रहे हों! ऐसे प्यार करेगी कि विश्वास ही नहीं होता। लेकिन ये लेखनी का और बुद्धि का उपयोग किया हैं। महाकाली की शक्ति है। इसको जिसने पा लिया शारदा के विरोध में सब लिखा और पि उसको कोई न तो भूत छू सकता है। उसको लिख दिया उन्होंने। अब सब जगह शुरु हो गई कौन छुएगा, वो ही भूत को पकड़ेगा। और जो कि हममें तो साहब भक्ति है। हम चाहे जो स्त्री ऐसी होती है उसके एक नज़र से वो लोगों लिखें। आजकल के अखवार वाले भी वैसे ही हैं। उनके भी ऊट पटाँग जो समझ में आती है बात वो लिखते रहते हैं, और कोई अच्छी बात तो लिखना ही नहीं जानते। कौन मर गया, कितने को भस्म कर सकती है। अब दूसरी शक्ति है महासरस्वती की जिससे की हमें बृद्धि में अनेक तरह के कलात्मक और अनेक तरह के विचारक प्रकाश आते हैं। मर गए? अभी मर रहा है, वो रोज देंगे मर रहा है तो भई मर जाने दो फिर लिखो। भई काहे को रोज़-रोज सबको सताते हो। बो मरता ही नहीं है, सरस्वती की कृपा से। शारदा...शारदा की कृपा से हमारे अंदर अनेक विचार बड़े सुन्दर, बड़े शांत, बहुत शीतल, बहुत कविताएँ आती हैं पर रोने गाने वाली नहीं, ऐसी आती हैं कि जिससे रोज़ इतना सारा लिख देंगे। मरा नहीं, अभी मरता नहीं। एक बार मरने के बाद इत्मीनान से लिखो। मरने तो वाले हैं ही अब क्यों रोज-रोज़ ये सब 40 आप जागरूक हों। बड़े-बड़े राष्ट्रीय गीत लिखे चैतन्य लहरी खंड XII अंक : 1। & 12, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-39.txt बातें। किसने पूछा है आपसे? फिर लिखेंगे. क्या है कि कृष्ण जो थे ये शूद्र धर्म के थे या महाझूठ बोलते हैं ये लोग। डर नहीं उन्हें शारदा देवी का। शारदा देवी तो हैं सत्य को देने वाली और सत्य की अधिष्ठात्री हैं। जो अपने सर में अशद्र थे, काले थे और राम जो थे वो ब्राह्मण धर्म के थे। अरे मैंने कहा काहे.और इसलिए ए इनकी शुद्र मानते हैं और उनको ब्राह्मण मानते हैं। मैंने कहा अच्छा! ये कीन से शास्त्र में से सत्य का प्रकाश आता है वो शारदा की ही है। आपने पढ़ा? सच बात तो बताऊँ कि जवाहर लाल जी ने भी जो किताब लिखी है वो Discovery किसी और चीज की होगी India आप जब लिखते हैं तो आप सोच नहीं रहे कि आपके अंदर ये लेखन शवित कहाँ से आई। ये किसने आपको लेखन शक्ति दी है? शारदा देवी ने या किसी भूतनी ने आपको दी है? इसी प्रकार की Discovery नही। मैंने देखा है। बहुतों ने ऊट-पटाँग कुण्डलिनी के वारे में बातें लिखी हैं। एक अरबिन्दों साहव हैं, ये हिन्दुस्तान की बात लिख रहे हैं। कोई गहराई वो तो बस पता नहीं कहाँ से कहाँ, कहाँ से नहीं उनमें जो देखो बो किसी पे भी लिखना इतनी superficial इतनी ओछी किताब! शुरू कर देता है! अभी तक मैंने कुछ नहीं कहाँ, कहाँ से कहाँ चले गए! कुछ उसमें अर्थ ही नहीं है, वो क्या लिखते हैं पता नहीं। उनका लिखा। बड़ा नाम है अरबिन्दो मार्ग। मैं हमेशा उस मार्ग से नहीं जाती क्योंकि पता नहीं कहाँ चला जाए? बात लिखो। अभी तो सबकी खोपड़ियाँ इतनी जहाँ उसकी खोपड़ी गई वही लिखता गया, खुली नहीं हैं। और किसी ने भी नहीं लिखा। हाँ लिखता गया, लिखता गया। और कुछ भी उसमें मोहम्मद साहब ने तो कुछ भी नहीं लिखा। मैं सोचती हैँ सबकी खोपड़ी में जाए ऐसी उनको तो लिखना ही पढ़ना नहीं आता था बेचारों की बात सत्य नहीं। अब वो सावित्री की गाथा गाई उन्होंने, अब साबित्री का ये अरे क्या करने को। चालीस आदमियों से उन्होंने बताया कि भई का है। और उनकी वो जो भी उनका रिश्ता रहा ये मुझको मालूम हुआ। Revelation हुआ ये हो, पता नहीं वो जो माता जी थीं वो पचासों तो ऐसे-ऐसे हैं। उनको भी लिखना पढ़ना नहीं आता उनके मुँह पर शिकनें पड़ी हुई हैं और कहें ये जवान होने वाली है। वो मर गईं, गाड़ दिया तो एक बड़ा दुष्ट आदमी था। उसका नाम था...कुछ भी अभी जवान तो हुई नहीं। और उनकी ऐसा ही नाम था। ये मेरे पिता ने मुझे बात बताई किताबों पे किताबें। ऊट-पटाँग ऐसे। ऐसे धर्म के और अब ये पक्का है. ये पता है ये सच है। उस था। तो चालीस साल तक कुछ लिखा नहीं गया। ारी महाशय ने बड़ा दुष्ट था। हज़रत अली को मारा उसके लड़के को मारा। उसके बाद खलीफा को मारा फिर दूसरे खलीफा को मारा और उसका जिगर उसकी माँ खा गई। ऐसा ये गंदा आदमी। औरतों का बो....था। उसने कुरान को Edit लोग हैं। फिर आज के न जाने कितने intellectuals निकल आए हैं दूसरे हाल में मैंने पढ़ी एक साहब है अपने को बड़े भारी लेखक समझते हैं। नाम मैं भूल गई। पंजाबी हैं पंजाबी। कभी उन्होंने संस्कृत पढ़ा नहीं होगा और लिखते 41 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 1 & 12, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-40.txt गर आप पढ़िए तो आप कहानी लिखना शुरू कर देंगे। ऐसे-ऐसे लेखक अपने यहाँ हो गए इस किया। अब वताईये और कुरान-कुरान लिए घुमते हैं! इसकी authenticity कुछ है नहीं और बाईबल में भी Paul ने सारा सत्यानाश कर भारत वर्ष में कि ऐसे कहीं नहीं हुए होंगे। दिया। ये तो ईसाई कम से कम मानते हैं। वो टालस्टाय हो गए बहुत बड़े. में मानती हैं पर नाम भर के ईसाई हैं। चलो अच्छा है क्योंकि उनसे भी बढ़ कर शरतचन्द्र। महाराष्ट्र में तो ऐसी-ऐसी बातें किसी से कहो तो मारने को बहुत ही ज़्यादा। एक.. उनके नाम बताने से दौड़ेंगे। जिस कुरान इतिहास है, ये सच्ची बात है। उसमें शारदा देवी ही नहीं किया क्योंकि ये सब मामला Political के लिए लड़ते हैं उसका ये फायदा नहीं। लेकिन किसी ने उनको translate का क्या हाथ? शारदा देवी की कृपा से बहुतों ने बहुत कुछ लिखा। ज्ञानेश्वर जी ने ज्ञानश्वरी है भई। ये Political क्या है। शारदा देवी कोई Political है। ये Political मामला है कि आपके Chief Minister साहब गर कहें तो Academy लिखी और उसके बाद एक और किताब। इतनी सुन्दर है कि ऐसा लगता है कि आप अमृत पी रहे हैं। संतों ने लिखा जिन पर शारदा देवी की बनेगी। हमारे Chief Minister साहब महाराष्ट्र के, वो तो अंग्रेजी भी बोलना नहीं जानते, मराठी भी नहीं जानते बो क्या करेंगे? अनपढ़ आदमी जैसे कृपा हुई। ज्ञानेश्वरी की शुरूआत में शारदा देवी की कृपा से बो लिखते हैं कि मेरे वचन जो भी हैं। सब अनपढ़ ही होते हैं आजकल तो Chief में कह रहा हूँ ये में शारदा देवी को प्रसन्न करने के लिए कह रहा हूँ लेकिन ये शब्द किसी भी Minister? वो क्या recommend करंगे? उनको क्या मालूम? Recommend करने के लिए कोई पढ़ा लिखा आदमी हो। उनको कोई जानने तरह से आपको दुःख नहीं पहुँचाएंगे। जिस तरह हहै से पंखुड़ियाँ धीरे से आ कर जमीन पर गिर जाती है उसी तरह मेरे शब्द भी आपके हृदय पर वाला हो. बना दिया recommend करने के लिए। हरेक चीज़ को वो ही recommend करते हैं। नहीं तो ऐसी-ऐसी सुन्दर चीजें। दक्षिण में कोई उत्तर के एक कवि हैं। उनकी कविताएँ इतनी सुन्दर कि मैं आपसे क्या जानती हूँ, पर अग्रेजी में भी कई बड़े कवि हो बताऊँ। शारदा देवी की अत्यंत कृपा अपने देश विजन पर है। सबसे बढ़िया लेखक अपने देश में हैं। गिरें और आपको सुगन्धित करें। क्या लिखना। इतनी सुन्दर कविता और इतना सीम्य उसका स्वरूप! ऐसे लगता है कि जैसे प अमृत का रस पी रहे हों! अब इसलिए कि मैं मराठी भाषा गए और उनकी कविताएँ हम लोगों ने नाम की किताब में दी हुई हैं आप पढ़िए। westernised नहीं बल्कि असली हिन्दुस्तानी उनका नाम था विलियम ब्लेक। और इतनी भारतीय लोग हैं। उनमें पैसा नहीं है पर सरस्वती जोशीली कविता कि आप के अंदर जोश आ की बड़ी कृपा है। एक से एक। अब राजस्थान पर उस की बड़ी कृपा रही। यहाँ बड़े-बड़े कवि जाए। शारदा जैसे उनकी कविताओं में से निकल कर आपके अंदर बस गई हों। बैसे ही शरद-चन्द्र, हो गए और यहाँ से Alexander भी यहाँ की 42 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & 12, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-41.txt एक विलियम व्लेक की हम बात कहंगे वो भी इसलिए। लेकिन बाकी। एक साहब हैं उन्होंने एक बड़े भारी कवि हैं चंद्रबर्दाई। यहीं के हैं कविता लिखी। मार रोने की कविता। जैसे अपने राजस्थान के हैं। उनको अपने साथ ले गए और यहाँ गज़ले होती हैं वैसे रोने की कविता उन्होंने लिखी। कि अच्छे भले घर में बैठे खाते-पीते संस्कृति देख कर इतने अचंभे में पड़ गए! तो न वापस गए और अपने साथ चंद्रवदाई को ले गए। राजस्थानी language में उनका बड़ा वर्णन किया। आदमी हैं पर नाटक बना कर कविता लिखी कि फिर सूफियों में खुसरो हैं, क्या कविताए हैं। मैं कहीं पे जा कर कंद हो गया। क्यों हुए, कुछ कबीर दास हैं। गुरु नानक साहब का तो कहना ही क्या, वो तो गुरु हैं। रामदास स्वामी। बंगाल में नहीं होते ता पता चलता और कैद में ये हुआ और मेरे बाल सफेद इसलिए नहीं हुए और फलाना नहीं हुआ और ढिकाना नहीं हुआ। और सारे ही शब्द इनके ऐसे-एसे अरे भाई ऐसा अगर तुम्हें तकलीफ हो व्यवस्थित। ऐसा लगता है मानों निर्विचारिता में रही थी तो तुम कहीं वहीं डूब जाते। अच्छा रहता। ऐसी रोने वाली कविता! जो कविता उठाओं वो रोने वाली। और अच्छे भले बैठे हैं। मतलब भी क्या एक से एक कवि हो गए। और ये सब शारदा देवी की कृपा से है। सारे शब्दों से मानो धर्म बहता हो। प्रकाश लिखे गए हों। इतने शुद्ध वर्णन। ये हम जरूर कहेंगे कि सबसे ज्यादा संस्कृत में और उसक बाद मराठी में ही आध्यात्म पे किताबें बढ़िया उनको कोई तकलीफ होने पर लिखो तो भी समझ में आता है। अच्छे भले बैठे है पैसा कमा पैसा लिखीं। ना जाने बड़ी गहराई से, आध्यात्म पे अग्रेजी में भी इतना लिखा जाता है माँ तो बहाँ क्या शारदा रहे हैं। सबको रुला रहे हैं और आप खा और लोगों को भी रोना बड़ा अच्छा रहे हैं। का कोई वो नहीं? अब यही सोचिए कि अंग्रेजी लगता है! हमारे एक मुसलमान पहचान में, तो कहने लगे माताजी ये गज़ल लोग क्यों गाते हैं? भाषा में आत्मा के लिए spirit शब्द है, है ना? I à नहीं। कहने लगे जितने लोग गज़ल पसंद करते हैं वो अपनी बीवी से प्यार नहीं करते, वो कुछ मेंने कहा उन्हीं से पूछो जो गाते हैं। मुझे तो पसंद शराब को भी spirit और भूत को भी spirit । ये कोई भाषा हुई? ये शारदा देवी की कृपा से ऐसी भाषा नहीं। और फ्ैंच भाषा तो उससे भी गई बीती। एक दम। उसमें चेतना के लिए कोई शब्द और ही से प्यार करते हैं। मैने कहा आपने कंसे जाना? मेंने देखा है ये बात हैं और रोते रहते हैं। नहीं। अग्रेजी में कम से कम awareness, अरे अपनी बीबी है क्यों रो रहे हैं, ये बीबी बैठी उसमें awareness के लिए कोई शब्द नहीं। और उसमें आत्मा कं लिए जितने दारू के लिए जिन्दा। उसी के साथ रहो, आराम से मज़ा उठाओ। अब तीसरे के लिए रो रहे हैं। तू नहीं शब्द हैं वो लगा दीजिए आत्मा के साथ। मिला और तेरी छाया नहीं मिली। ये क्या शारदा ये सब उन पर आशीर्वाद हुआ। बे बड़े-बड्ड लेखक हो गए, सब जो भी लेखक वहाँ हुए हैं राजकारणी लोग. राजकरण पर लिख गए। हाँ देवी के आशीर्वाद में से होती है ऐसी कविताएँ? ये सिर्फ लोगों को मूर्ख बनाने के लिए एक और 43 चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : ! & 12. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-42.txt तरह के लोग होते हैं। एक साहब हमारे यहाँ साड़ी पहन के और राधा बनते थे और कृष्ण के आए थे। बहुत दिन पहले की बात है तो उन्होंने शराब पे कुछ सुना दिया। बड़े मशहूर आदमी हैं। उसमें कोई अर्थ नहीं, बेकार की बात हैं। साधू शराब से ये होता है, फिर मधुशाला होता है और संतों को इससे क्या मतलब? वो तो कबीर को फलाना होता है। मैंने कहा जो रस्ते में मरते हैं वो भी लोग कहते हैं कि कबीर ने कह दिया कि भी तो कहों। मैंने फिर उनको एक कविता सुनाई "सैंया निकस गए मैं न लड़ी थी" अरे वाह. उसी वक्त, मैं तो शीघ्र-कवि हूँ। मैंने कहा क्यों सैंया निकस गए माने क्या कि प्राण निकल गए. ना प्याला झूमता है, पी वही मदहोश हाला। खुसरो ने लिखा प्याला क्यों नहीं झुमता, वो क्यों नहीं झुमता? से नैना मिला के" अरे सूफी और तुम हो। तुम तो प्याले से भी नैना मिलाना सिवाय परमात्मा के? छाप माने कमजोर हो। इसके बाद उन्होंने शराब की बात मुसलमानों की पहचान और तिलक माने हिन्दुओं नहीं करी। कुछ समझ ही में नहीं आता। जब की, सब मैंने छोड़ दिया, तुझसे जब मैंने आँखें साथ नाचते थे। अब ये रोमाँटिकपना जो है, "छाप, तिलक सब दीन्हीं, तो आदमी वो किससे क्यों झूमते मिलाई। उन्होंने देहाती भाषा में, इस तरह की बीबी मर गई तो उसका सुनाया उन्होंने। उस पर भाषा में लिखा। ऐसे जैसे "मेरा नैहर छूटो ही एक कविता बना ली और सुनते हैं कि 15 दिन ति बाद उन्होंने शादी भी कर ली और फिर उस पर जाए". अब तो क्या वो बहुरानी थे के क्या नैहर छोड़ने के। क्योंकि गहराई नहीं है तो सृफियों को दूसरी कविता बना ली। जैसा मौका लग गया वैसे ही। इस प्रकार अपने देश में बहुत सस्ते भी हम सोंचते हैं कि बो Film Star हैं, फिल्मी क गाने गा रहे हैं। गहराई नहीं है ना, समझ नहीं। तो टाईप के कवि पैदा हुए और विशेषकर वो कवि जो कि भगवान को सब चीज़ में घसीटते हैं और शारदा जी भी जो हैं, वो भी कभी-कभी महामाया परमात्मा को मनुष्य के जैसा दिखाते हैं। ये तो महापाप है और उन पर शारदा देवी की जो भी स्वरूप हो जाती हैं। जैसे zen, zen के जो कवि ।ि लिखते हैं वो एक सहजयोगी ही समझ सकता है. कृपा है वह महाकाली के दरवाजे में जाने वाली है। माने विद्यापति साहब एक लेखक थे। अब और और कोई नहीं समझ सकता। वो जिस तरह से कोई चीज़ का वर्णन करते हैं। छोटी सी भी, या कृष्ण का पता नहीं साहब क्या श्रृंगार जिस तरह के वो चित्र बनाते हैं वह बहुत ही राधा सूक्ष्म और उसकी संवेदना सिर्फ एक योगी जन राधा को कहाँ टाइम कि श्रृंगार करें? सारे विश्व ही कर सकते हैं और कोई नहीं। अब कव्वाली में लोग मुजरा गाते हैं और मुजरे में कव्वाली। ये कोई शारदा देवी का आशीर्वाद नहीं। किसी भी सजा रहे हैं। अरे उस कृष्ण को कहाँ टाइम। उस की जिसको चिन्ता और रा-धा रा माने Energy और धा माने धारने वाली। उसको क्या ये सब सता दुनिया भर का रोमाँस करने की जरूरत? अब तरह ऐसे Mixtures करना। दम संगीत में भी शुद्धता आनी चाहिए। अब डाल दिया उन पर रोमॉँस। यहाँ तक कि वाजिद अली साहब जिनके 165 बीवियाँ थीं वो भी संगीत में भी देखते हैं कि उसमें जापानी भी ले 44 चैतन्य लहरी खंड :XII अंक : ।। & 12, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-43.txt आते हैं और अंग्रेज़ी भी ले आते हैं और सब ले रंग समाया ये रंग बनके जब फैल जाता है। ये आते हैं, क्योंकि शुद्ध संगीत गाना नहीं आता। और मिला-मिला के. मिलाकर करते चलो। में नहीं। देहात में गाते हैं लोग कितने प्रेम से और शारदा अपने देश में ही होली हो सकती है और किसी रंगों के हमारे यहाँ जो खेल होता है, रंगों देवी के पूर्ण आशीर्वाद से! उनके आशीर्वाद से के हमारे यहाँ जो साड़ियाँ बनती हैं कपड़े बनते ही जितने महान ग्रंथ हैं वो बने। कितने महान हैं, लँहगे बनते हैं, ये सब उनके देश में कहाँ? नाटक या कादम्बरियाँ लिखीं गई बो सब इस वहाँ तो Grey कपड़े पहन कर चलेंगे। अब शारदा देवी के आशीर्वाद से। किन्तु इस वर्तमान Grey से बढ़ गए तो काले। ऐसे भूत के जैसी शक्लें और ऊपर से काले कपड़े पहन कर में ऐसा लगती है कि शारदा देवीं ने अपना हाथ कुछ रोक लिया है या ये आशीर्वाद कम हो गया है। इस राजस्थान में जो कला का प्रार्दुभाव हुआ है, मैं देखती हूँ कि दो-तीन साल में ही एकदम घूमते हैं। एक से उतरे तो दूसरे। उनकी कोई हिम्मत है ऐसी एक भी साड़ी बना कर दिखा दें तो हम फिर से अंग्रेजों कला फूट पड़ी है। ये बिल्कुल शारदा देवी का को मान लें। एक, रंग-बिरंगे हर तरह औरतों के ही आशीर्वाद है इसमें कोई शक नहीं। ऐसी-एसी नक्काशियाँ। ऐसी-ऐसी चीजें इतना सुन्दर शारदा देवी ने इन लोगों को यहाँ बनाने लग गए लोग हाथ से अपने! बड़ा आश्चर्य! पहले भी यहाँ बड़ी अच्छी नक्काशियाँ होती थीं, सफाई का ख्याल बहुत है। औरतें बहुत साफ हैं लोग तराशते थे, पर अब सारे Pottery में देख घर वगैरह साफ रखती हैं। पर बाहर वहुत गंद लीजिए, कहीं देख लीजिए। क्या सुन्दर-सुन्दर है। आदमी लोगों को कोई मतलब ही नहीं बाहर कला! बढ़िया ऐसे रंग-बिरंगी ऐसी चीजें! हम से। सब कुड़ा बाहर फिंकता है और, परदेस में कले ही एक फैक्टरी देखने गए थे तो हमने सोचा आज ये साड़ी पहनें। ये राजस्थानी रंग हैं करते सारे। और डरते नहीं। ऐसा रंग हर एक तरह का Dress होते हैं। इस राजस्थान में तो क्या कहे? बसाया है। वैसे एक बात जरूर कहेंगे कि यहाँ । बाहर साफ है क्योंकि आदमी लोग खुद साफ हैं। यहाँ आदमी लोग हाथ में झाडू लेकर साफ करेंगे। अरे बाप रे, उनके तो सर का ताज रंग पहनते हैं। अंग्रेज़ ऐसे नहीं। वो कहते हैं एक उतर जाएगा। तो सफाई और व्यवस्थितता. ये भी गर हो तो उसके ऊपर बिल्कुल मेल नहीं ना शारदा देवी का ही आशीर्वाद है। औरतें तो उनके हृदय में और दिमाग में, लगता है, दिमाग में उनके मेल नहीं । अपना घर बगैरह बहुत सुन्दर साफ सजा के रखती है। देखते हैं हम पर ऑगन से बाहर हुए इनको भाषा की समझ तो है नहीं, कुछ कि आदमियों के सब वहाँ वहाँ सब नज़र आते भी कह लो। अब जब हृदय और दिमाग एक हैं। गर ऐसी प्रथा हम सीख लें अंग्रेजों से कि वो होगा तब लोग समझेंगे ये चीज क्या है कि जिसे अंग्रेज़ी में यूँ बदल सकते हैं मारे खुशी के जो सब आदमी मिल करके सन्डे के रोज़ उसका जलसा मनाते हैं। सब लोग आपस में बाहर 45 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 1 & 12, 2000 बैं । 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-44.txt पता हुआ कि वहाँ जर्मन लोगों से बड़े impressed हैं क्योंकि टर्की से बहुत से लोग जर्मनी गए थे इसलिए जर्मन लोगों को बहुत मानते हैं और ये कहूँगी कि आप लोगों के यहाँ निकल कर और सब लोग मिलकर जलसा करें, चलो आज सफाई करेंगे, गार्डन ठीक करेंगे। ये करेंगे, वो करेंगे। पर हमारे यहाँ नौकर चाकर हैं। हम क्यों करें। नौकरों से करवाएँ। ये गंदगी जो हैं ये शारदा देवी को पास में नहीं आने देती है। है, खाना है वहुत बढ़िया. जरा भारी है पर अच्छा है। पर गर आप टकिश बहुत स्वाद बढ़िया खाना खाएँगे तो आप कहेंगे माँ ये तो खाने की बिल्कुल चरम सीमा है । और एक साथ एक वो हट ही गई। बहुत जरूरी है कि सफाई करनी चाहिए और सफाई भी सुचारू रूप से Artistic होनी चाहिए। यहाँ तो बहुत ही कला का प्रार्दुभाव है। और ये कोई सोंच भी नहीं सकता और ऐसी चीज़ कहीं और बन ही नहीं सकती, जो आपने होटल में हम गए थे 5000 आदमी एक साथ खाना खा रहे थे और गरम-गरम एऐसी फूली हुई रोटियाँ कि पूछिए नहीं। मुझे जरा खाने की वैसे बना कर रख दी। असंभव लेकिन है। कला है इतनी ज्यादा अक्ल नहीं है पर मेरा वर्णन करना आपके पास। सब कुछ है पर इसे मंडप तक पूजा तक और उसके बाद। तो सीमा में आप बाँध नहीं सकते शारदा देवी को। वो असीम है। कोई खाना खाए तो वाह-वाह ऐसा तो हमने कोई विशेष ना होगा पर अगर कोई टर्की जा कर और उनकी कृपा असीम तक चलती है। आप कभी खाना खाया ही नहीं। वहरहाल जो भी हो कहें कि बस हम शारदा देवी के पुजारी हैं तो आपके घर तक तो ऐसी बात नहीं। वैसे बहुत ही वहाँ लोग आ करके खाना खाते हैं। पर आपको कला पूर्ण यहाँ के लोग हैं। बहुत सुन्दर। इतने हैरानी होगी कि ये टकिश लोग जमर्मनी से खाना सुन्दर घर आपको मेरे ख्याल से हिन्दुस्तान में मँगा कर खाते हैं। और कपड़े सिलते हैं वहाँ कहीं नहीं मिलेंगे। उसका कारण है यहाँ की जर्मन भेजते हैं, कपड़े वो वहाँ सिले जाते हैं पृथ्वी से ये बढिया पत्थर निकले ये एक एक और उसका आपने इस्तेमाल किया और से import होते हैं। ये अपने यहाँ भी हैं काफी पत्थर हैं और इसके अलावा और भी यहाँ बड़ी ये बीमारी कि imported चीज़, ये हम imported इतना अच्छा वहाँ खाना मिलता है कि परदेस से । टर्की में, फिर वापस जाते हैं जर्मनी में फिर वहाँ से लाए। Import करने का जैसा इस देश में कुछ कलात्मक चीजें हैं। इतनी कलात्मक चीजें इस ाि धरती ने आपको दीं। ये भी शारदा जी की ही भी नहीं। एकदम रद्दी लोग। क्या बनाते हैं वहाँ कृपा से कि आपके अंदर ये शक्ति आई कि इन पत्थरों को आप तराशें और उसका सदुपयोग करें। जैसे कि टर्की में बड़ी गरीबी आ गई बड़े कलात्मक लोग। कुछ मेरी अक्ल में नहीं बनती है टर्की में, आपको दुनिया में ऐसी अच्छा घड़ी, घड़ी बनाते हैं; ये तो गुलामी की चीज़ है वेकार है। अपने देश में जो चीजे बनती और हैं उसका क्या कहना। उनके यहाँ जो Pottery आया कि इतने कलात्मक लोग हैं और इनमें Pottery नहीं मिलेगी। China से भी better, लेकिन उनके Dinner set में खाना खाते हैं तो 46 इतनी गरीबी क्यों आ गई? आखिर क्या बात है? चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 1 & 12. 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-45.txt आप गरीब नहीं होएंगे तो क्या होएंगे? और की जगह हिन्दुस्तानियों को रख दो और कहेंगे हम बहुत गरीब हो गए। तो जाओ और हिन्दुस्तानियों की जगह अंग्रेज़ों को। Solution तो निकल आया लेकिन मेरे दिमाग में ये बात आई ि अब जर्मनी में जा कर भीख माँगों, वो अच्छा रहेगा। तो शारदा देवी की जिस देश में इतनी कृपा है तो उनको क्या जरूरत है परदेसी चीज़ों वो बड़े अच्छे थे। ये एहदीपना का लक्षण है। हाँ को इस्तेमाल करने की? उनके ना तो संस्कृति में बुड्ढे लोग हों मेरी समझ में आती है लेकिन कुछ है, न तो उनके कपड़ों में कुछ है और नही उनके खाने पीने में कुछ है। सब बासी खाना चढ़ती है। क्योंकि वो विदेशी चीज़ है इसलिए कि ये अच्छी वात नहीं। जो जंगलों में जाते थे जवान लोगों को एहदीपना की कहाँ से बात है। कम से कम औरतों में से शाम तक। ताज़ी सब्जी बहाँ बहुत ज्यादा Smart खाते हैं सुबह मिलती नहीं। अब काँटे चम्मच से खाए बगैर कुछ अक्ल आ गई है। पहले मैं नायलोन की आजकल लोग सोचते हैं कि आप देहाती हो साड़ियाँ हमारे घर वालों के लिए लाती थी तो गए! अब बाहर के सहजयोगी हाथ से खाते हैं बहुत खुश होते थे, उन्होंने कहा माँ हम तो अपने यहाँ की साड़ियां ही पहनते हैं, ये हमें नहीं पसंद। अब वहाँ कोई सिल्की साड़ियाँ हुई? बहाँ हैं कि गणपति पुले में बड़े से तो लाएँगे तो नायलोन की साड़ियाँ ही लाएँगे। मत लाओ साड़ियाँ हमको नहीं चाहिए। वो मेरे घर वाले। लेकिन वाकी लोगों में ऐसा नहीं। एक पले और अपने Indian सहजयोगी जो हैं काँटे चम्मच से खाते हैं। यहाँ तक इस कदर हम अंग्रेज़ होने की कोशिश करते मुश्किल से इंडियन्स के लिए और Foreigners के लिए अलग-अलग Bathrooms बनाए। Indians के Indians ढंग के और Foreigners देवी से हमने कहा कि वहाँ तो नायलोन ही है| के Foreigners ढंग के। तो Indians ने कहा मैं तो शिफान पहनती हैँ सिर्फ शिफॉन। अच्छा ये हमें तो वैसे ही अंग्रेज़ी के ढंग के चाहिए माँ। मोटी है और मैं शिफॉन पहनती हूँ। मैंने कहा अंग्रेज़ी ढंग के आपको चाहिए। और Foreigners कितने गज़ लगते हैं आपको? और इस कदर हम लोगों में जो पहले की औरत की शालीनता बहुत खुश हुए कि हिन्दुस्तानी ढंग के हमारे लिए। Very clean Mother, very celan। वो थी वो पैसे बो बचाती थी रोकती थी और उन बहुत खुश हुए लेकिन हिन्दुस्तानियों को तो औरतों का हाल ये है कि वो आदमियों से भी attached चाहिए। पहले जाते थे जंगलो में और ज्यादा खर्च करती हैं। Hair dressers के पास अब attached! इतनी अंग्रेजीयत हमारे अंदर जाओ। नाखून कटवाने हैं पता नहीं क्या-क्या? अमेरिका में एक आर्टिकल निकला था बहुत आ गई। बहरहाल उसमें भी हर्ज नहीं। तो बेचारे अच्छा कि आजकल इसलिए Divorse हो रहे वहाँ के leader साहब आए कि माँ में क्या हैं, क्योंकि Hair dresser आ गए हैं कुछ मुझे करू? मैंने तो अंग्रेज़ों के लिए वो बनाए, उनको वो पसंद नहीं और हिन्दुस्तानियों के लिए जो संबंध समझ में नहीं आया। कहने लगे ऐसे आदमी किसी एक औरत पर गर फिदा हो जाएँ 47 बनाए उनको वो पसंद नहीं। मेंने कहा अंग्रेजों चैतन्य लहरो खंड : XII अंक : 1। & 12, 2000 12,2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-46.txt हों। ऐसे भी लोग मैंने देखे हैं कि जो औरंगजेब तो वो उनके Hair-dress से। अब दूसरे दिन से भी बढ़ कर हैं। संगीत वे जानते नहीं लेकिन उनकी Hair dresser बदल गया उनका भी मन बोलेंगे बहुत। एक साहब बड़े अपने को संगीतकार हट गया। अब रोज़ ही गर आप Hair-dress बदलते फिरिए और उतने आप पति करिए, उतनी आप पत्नियाँ करिये तो बड़े आश्चर्य की समझ कर बैठे। मैंने कहा, हैं कोन महाराज? बोले इनका बात है। उनके पागलपन सीखने की अपने को बड़ा भारी Association है संगीत पर मैंने कहा ज़रूरत नहीं। कम से कम हिन्दुस्तान में औरतों ने अपना तरीका छोड़ा नहीं। जिस तरह से वो और बाजा भी बजा रहे थे। वाह-वाह. तो इनसे चलती हैं, घूमती हैं, अपने को बो समझती हैं। ये कहिए कि दरबारी गाए। तो दरबारी तो गा जिस दिन औरत ने अपनी शालीनता छोड़ दी चुके भाई। अभी दरबारी गा चुके। तो अब क्या अच्छा। तो कहते अभी इन्होंने गाना गाया था दरबारी गाएँ तो तानड़ा गाएँ दरबारी, कानडा उसी दिन उस क अंदर से जितना कुछ शुद्ध कला का स्वरूप कहिए, या स्त्री का स्वरूप, एक ही बात। हर प्रोग्राम में हाजिर, हर जगह अध्यक्ष| पनि का स्वरूप, माता का स्वरूप सब खत्म हो Musician से पहले उनको ही हार पहनाया जाएगा। ये शारदा देवी की कृपा में रहने वाले सब लोगों को पता होना चाहिए। एक कहावत जाता। मैंने कहा ये बहरा है कि क्या है। ये है। दरबारी गा रहा था या क्या। तो फिर आप इस दौर में आए क्यों। ठीक है आप संगीत के लिए कि आप जो भी कुछ करते हैं उसको दिखावे नहीं आए। फिर इसमें क्यों आए। हर चीज़ में "Art is in hiding the art" की ज़रूरत नहीं और उसमें Show बाज़ी की मास्टरी। जरूरत नहीं। किन्तु आप जो कुछ भी करते हैं, पहनते हैं, ओढ़ते हैं गर आपको शारदा देवी की पूर्ण मेहरबानी चाहिए तो दूसरों के लिए करिए, अपने लिए नहीं। दूसरे क्या कर रहे हैं। तो लोग एक देवी जी थीं। वो तो पता नहीं क्या थी अपनी Govt में उनके बाल पक गए और वो कला वला कुछ नहीं जानती थीं कला की सूक्ष्मता कुछ नहीं जानती थी और बड़ा नाम था! है ा कहेंगे कि हाँ एक Actress बन कर घूमेंगे, सब तो गर आपको शारदा देवी के शरण में रहना लोग हमें देखेंगे, और क्या। बहुत Popular हो तो अपने गाँव में, अपने देश में, जो कुछ होता जाएँगे। नहीं! मैंने देखा है जितनी भी Actress है और जो कुछ आज तक उन्होंने बनाया है, लोग हैं उनका नाम ऐसे लोग लेते हैं जैसे कोई कलाकारों ने उसका इज्जत करनी चाहिए। अजंता रास्ते पे खड़ी औरत हो। उसकी कोई इज्जत नहीं देखा लोगों ने पर स्विटजरलैंड जाएँगे! अजंता जैसी चीज़ Switzerland के नाम के नहीं। नुमाइश की चीज़ है । सारी चीज़ में भी शारदा जी का एक आवरण होना चाहिए। संगीत, बाबा के दादा कोई नहीं बना सकता। आपको मालूम होना चाहिए। चाहे देहात का ही चैतन्य लहरी Switzerland में देखने का क्या है? पत्थर। हम 48 । खंड : XII अंक : 11 & 12, 2000 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-47.txt औरतों को ज़मीन में गाड़ कर मार रहे हैं और कुछ लोग. कराची में कल देखा मैंने, दूसरों को पत्थरों पर पत्थर मार रहे हैं। वहाँ पर कला कैसे तो Switzeriand गए थे अजंता नहीं देखी? आबू नहीं देखे । जो अपने देश के बारे में जानेगा ही नहीं वो इस देश को प्यार कैसे करेगा? कृपा है। होगी? तो इस भारतवर्ष में जो देवी की जब कला इस देश में चारों तरफ से बह रही है। चारों तरफ से बहने लगी है। सो कला उसे आप अपनी नज़रों से देखिए। उसको समझिए. उसका आनंद उठाइए। फिर नाट्यकला है बंगाल की तरफ रूचि रखना और अपने देश की कला थार तता को पहले अपनाना चाहिए। नहीं तो वाकई में में और महाराष्ट्र में, नाट्यकला बहुत ऊँची है। बेवकूफी की भी हद होती हैं। एक साहब ने वहाँ लोग Cinema नहीं जाते। नाटक को जाते हैं। महाराष्ट्रियन लोग आप लोगों जैसे रईस नहीं मुझे बड़े Special बुलाया। ये बहुत दिन पहले की वात है। 30 साल हो गए होंगे अमेरिका से हैं। पर पांच रु. का टिकट हो चाहे सात रु. का आए। आप माता जी को बुलाओ। उनकी वहन हो वो जा कर नाटक देखेंगे। इसलिए नाट्यकला। हमारी सहज योग में हैं। आप Airport पर जाने से पहले आपको एक चीज़ दिखानी है। अमेरिका सिनेमा तो गड़बड़ा गए। अब नाटक भी गड़बड़ा से आए थे मैंने कहा पता नहीं क्या लाए हैं मैं जाएंगे और ना जाने क्या-क्या हो जाएँगी। कुछ-कुछ वहाँ गई। देखती क्या हूँ वो एक पंप ले कर पहले सिनेमा बहुत अच्छे थे। पर अब ऐसी अजीब चीजें देखने में आई हैं कि लगता है आए हैं और एक बलून में भरने लगे और उसका सोफा बनाया। कहने लगे देखिए। अब विराजिए इस पर। मैंने कहा भई देखो. मेरे पास शारदा देवी यहाँ से भाग खड़ी हो जाएँगी। उनका मान तो छोड़ो उनका बिल्कुल अपमान लोग करते हैं। इतनी विचित्र चीज़ें मेंने इस India में बेहुत ज्यादा Vibrations हैं। ये फट जाएगा। मेरें देखीं। मुझे आश्चर्य लगता है कि ये ऐसे चल कैसे रहे हैं। अब उन्होंने कहा है कि फिल्मों में लिए कोई तख्त-वख्त बिछा दो तुम, उस पर मैं बैठ जाऊँगी। मैं अपनी देसी हिन्दुस्तानी मोटी औरत हूँ, मेरे बस का नहीं है। अरे कहने लगे आप पर कुछ impression ही नहीं पड़ा। मैंने से हम निकाल देंगे ये बो। हमारे जिन्दा जी हम अगर देख ले कि ये गंदगी निकल जाए तो बड़ा आनंद आएगा। तो India की जो Art हे वो सूचक है। जैसे आप Chinese Art देखिए तो सींग कहा impression अभी पड़ा हैं पर जब इस जैसे, एक भूत के जैसा बना है Chinese, ऑर पर से मैं गिरूगी तो Depression हा जाएगा। तो सबसे पहले जो बात कही वो अब फिर कहूँगी कि शारदा देवी की कृपा आपके इस भारत वर्ष पर बहुत है और क्योंकि पाकिस्तान व बांग्लादेश Egypt की Art देखिए तो सब Dead है। कहीं वो Mummies बनाएंगे, ये आदमी ऐसे बनाएंगे जैसे कोई लाश खड़ी कर दी। पहले England, America में कला ठीक थी जब तक realistic भी इसी देश का एक भाग है वहाँ पर भी है। पर धीरे-धीरे हट जाएगी। आजकल तो लोग वहाँ बनाते रहे । फिर impressionistic बनाया, तब एक दूसरे को पत्थर ही मार रहे हैं। कुछ लोग } ॥ खंड : XII अंक :॥ & 12, 2000 तक भी ठीक थी पर अब वहाँ जो Modern 49 चैतन्य] लहरी 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-48.txt कला बन गई है ये आपके मैरे और किसी भी इंसान के बस की नहीं। ऐसी विकृति आ गई है बहुत अच्छा बजाने लगते हैं। शारदा जी की कृपा हो गई उन पर। लेकिन आपको सुनकर आश्चर्य है, होगा कि हमारे देश का जो संगीत और कि लगता है शारदा देवी वाकई भाग गई हैं और नृत्य ऐसा कहीं भी दुनिया में नहीं है कहीं भी। जितनी गंदी और जितनी उल्टी-सीधी और जितनी अब तीसरी जो हमारे अंदर शक्ति है अधर्मी Picture बनेगी उतना ही उसका दाम, सिनेमा में। शारदा का बड़ा अपमान है। आप त्रिगुणात्मिका, वो महालक्ष्मी की शक्ति है। अब सब सहजयोगियों को कला की समझ होनी लक्ष्मी जी की पूजा तो अभी करके आए हैं टक्की चाहिए और कलात्मक चीजें आप इस्तेमाल में वहाँ गरीबी आ गई थी इसलिए। पर जब तक जर्मनी से बो सामान मंगाना बंद नहीं करेंगे करिए। खासकर हाथ से बनी हुड। तो ये तब तक उनकी गरीबी नहीं जाने वाली। कहने Ecological Problem ही खत्म हो जाए। अपने घर में दो सुन्दर चीजें होने से लगे अब हमको उसी का taste हो गया। मैंने अच्छा है बनिस्वत 25 प्लास्टिक की चीज़ें और कहा वाह भई। अब भूखे मरोगे तो क्या होगा? 40 पेपर प्लेट्स। ये अपने भारत की संस्कृति है। इसके रोम-रोम में शारदा का प्रकाश है। औरतों तो दीवाली वहीं हो गई। अब महालक्ष्मी की जो तो मैंने सोचा वहाँ लक्ष्मी जी की पूजा हो जाए है यह सिर्फ साधकों के लिए। ने इसे बचाए रक्खा है अब आदमियों को भी पूजा जब लक्ष्मी जी का पूरी तरह से उपयोग ले लिया और बहुत हो गई लक्ष्मी. जैसे हुआ था, महावीर को हुआ था, आ गई और उपरति आने के बाद वो परमात्मा चाहिए कि इसकी रक्षा करें। सब क्योंकि अब हिन्दुस्तान में ऐसे बहुत से लोग हैं जो चार रंग से ज्यादा पांचवाँ रंग नहीं जानते। आप जानते हैं बुद्ध को उपरति (विरक्ति) ना डाक्टर साहब बहुत से रंग, आते हैं? नहीं तो डॉक्टर लोग नहीं जानते। मैं तो डाक्टरों के साथ को खोजने निकले। ये जो खोजने की शक्ति रही हूँ. डाक्टरों के साथ पढ़ कभी नहीं आएगी। लेकिन जानते हैं तो बहुत temple है कोल्हापुर में, स्वयंभू है। तो वहाँ के बड़ी बात है। सो वो भी सूक्ष्म दृष्टि अपने अंदर जोगवा गाते हैं, कि हे अम्बे तू जाग हे अम्बे तू आनी चाहिए। नाट्य कला में, हर चीज़ में, नृत्य में हर चीज़ में। अब ये नहीं आदमी औरतों जैसे नाचें, ये नहीं लेकिन आदमी आदमियों जैसे, मन्दिर में ये क्यों गाते हो भई? औरतें औरतों जैसे उसके शुद्ध स्वरूप में जब हूँ। इनको कला ये महालक्ष्मी की शक्ति है। ये महालक्ष्मी का जाग ये नामदेव ने लिखा 16वीं शताब्दि में। वहाँ के ब्राह्मणों से मैंने कहा कि महालक्ष्मी के कहने लगे पता नहीं अनादि काल से यहाँ चल रहा है यही गाना। जब से नामदेव हुए हैं। संगीत में नृत्य में मैंने बहुत दफा देखा है कि तो अम्बे कौन है? कहने लगे देवी है कोई। मैंने कहा आपको इतना भी नहीं मालूम? मैंने कहा आपको तो में नहीं समझा पाऊँगी ये बड़ी 50 उतरें तो तब शारदा जी की तो कृपा हैं ही । लोग जब हमारे सामने बंजाते हैं तो बहुत जल्दी उनका नाम बढ़ जाता है, बहुत नाम होता है। चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : 11 & I2. 2000 । 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-49.txt महामाया। जब सहस्त्रार को खोलने का काम मुश्किल है। पर महालक्ष्मी के मन्दिर में भी अम्बे जागती है। वो वैसे। मध्यमार्ग में महालक्ष्मी आता है तो बो महामाया का स्वरूप धारण बहुत छिपा हुआ, है। उस मार्ग में आपकी सारी खोज left की करती है और वो स्वरूप बड़ा छिपा हुआ और जैसे-जैसे उसे जानने right की, बुद्धि की सब खत्म हो जाती है। और आप मध्यमार्ग में आ गए। जब आपने खोजना का आप प्रयत्न करते हैं, तो आप सूक्ष्म से शुरू कर दिया तब आप पर महालक्ष्मी की कृपा हो जाती है। Bible में इसे Redeemer कहा है। तीन शक्तियाँ बताई उन्होंने। पहली शक्ति सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम हो जाते हैं। यह सूक्ष्मता अत्यंत आवश्यक है क्योंकि हमारे अंदर जो कुछ भी गौरवशाली विशेष धन है उसको जानने के लिए सूक्ष्म होना बहुत आवश्यक है। उसमें को कहा है Comforter, Left side की। Right Side की को कहा है Councellor और बीच वाली को Redeemer ये Holy Ghost की तीन शक्तियाँ हैं। सो जो मध्य मार्ग में आप प्रवेश करने लगते हैं और मध्य एक बाधा आती है और वो है आपकी left और Right की खोंच। इसलिए हमसे हमेशा कहते हैं कि अपने को आप प्रत्यक्ष करा करो । Introspection दूसरों को नहीं, अपने को। धौरे-धीरे ये होने से आप सहज में उतरेंगे। आप चक्रों के मार्ग में आ जाते हैं तब आप एक साधक हो गए और साधक के ऊपर महालक्ष्मी उमड़ बारे में जानते हैं। महाकाली की शक्ति के बारे पड़ती है। महालक्ष्मी की कृपा उस पर होती में मैंने बता दिया और महासरस्वती के बारे में, है। महालक्ष्मी की शक्ति का चढ़ना बहुत और महालक्ष्मी के बारे में मैने बहुत बार, वहुत मुश्किल है क्योंकि कभी मन Left को जाता बार बताया है। ये सब बताना बताना रह जाता है, कभी Right को जाता है। कभी left को हैं। जब तक साधक उस स्थिति को प्राप्त जाता है, कभी Right को। एक भाग कुण्डलिनी नहीं होता उसे चैन नहीं आता। उस स्थिति के जागरण से ही मध्य मार्ग को प्राप्त करते को प्राप्त करने पर भी उसको इस्तेमाल नहीं हैं। पहले तो वो एक सोपान ब्रिज बनाती निर्विकल्प में उतरना मुश्किल हो जाता है। हैं। Void और उससे गुज़र कर कुण्डलिनी शक्ति, मध्य मार्ग से गुज़रती हुई ब्रह्मरंद्र को छेदती हुई ब्रह्माण्ड से एकाकारिता प्राप्त शक्तियों का वर्णन किया लेकिन उससे परे करती है और जब ये घटना हो जाती है, आदिशक्ति है और उनका वर्णन करना कोई करते तो ये विश्वास पक्का नहीं बनता और आज का lecture कुछ ज्यादा हो गया क्योंकि विषय ही कुछ एंसा था। ये तो तीनों आसान नहीं। वो बड़ी ऊँची चीज़ हैं । उनका उसके बाद त्रिगुणात्मिका मिलकर के आपकी वर्णन करना तो कठिन है। आप ही लोग उनका आज्ञा चक्र को छेदकर जब आप सहस्त्रार में आते हैं तो यहाँ आदिशक्ति का स्वरूप वर्णन कर सकते हैं मैं नहीं। ये आप पर छोड़ती सबको मेरा अनन्त आशीर्वाद। 51 हूँ। महामाया का है। सहस्त्रारे महामाया, सहस्त्रारे चैतन्य लहरी खंड :Xll अंक : 11 & 12. 2000 hcA s कट 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-50.txt MATASSL 2000_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-51.txt ब] हि ु स थ सहजयोग केन्द्र हरिद्वार उत्तर प्रदेश में दिवाली पूजा 2000 के पश्चात् लिए गए फोटोग्राफ में प्रसन्नता से कुण्डलाकार में नाचती हुई कुण्डलिनियाँ। ोस