हिन्दी आवृत्ति चैतन्य लहरी जनवरी-फरवरी- 2001 अंक 1 & 2 खण्ड - Xllf र जो भी करुणा, जो भी प्रेम मैंने आपको दिया है उसे सहेज कर रखें और अन्य लोगों को वो करुणा व प्रेम लौटाएं अन्यथा आप समाप्त हो जाएंगे कहीं के न रहेंगे। स्थायी उन्नति तो तभी होगी जब आप एक ओर से अन्य लोगों को देंगे। अन्यथा आप निस्तेज हो जाएंगे। करुणा बाहर की ओर बहनी चाहिए। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी ৫ कि मे र अवोधिता आत्मा है और आत्मा ही अबाधिता हैं जिसे कोई भी नष्ट नहीं कर सकता। सहजयोग के माध्यम से अबोधिता को पुनर्स्थापित किया जा सकता है। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी गणेश पूजा कबैला 16.9.2000 म वा ु आप यदि अपनी आँखों का, अपनी नाक का, अपने कान का सम्मान करने वाल व्यक्ति हैं तो मैं आपको बताती हूँ कि आपके लिए सभी कुछ इतना आनन्ददायी हो जाएगा कि आप हैरान हो जाएंगे। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी गणेश पूजा कबैला 16.9.2000 डैल्फी में स्वयंभ श्रीगणेश मा ाी इस अंक में गणेश पूजा -16.9.2000 1. ६ दिल्ली पब्लिक प्रोग्राम 25.3.2000 15 2. 24 भूमि पूजन-7.4.2000 3. समर्पण एवं भक्ति का महात्म्य 6 अगस्त 1982 32 4. : योगी महाजन सम्पादक : विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 : अभिनव प्रिन्ट्स, दिल्ली-34 मुद्रक फोन : 7184340 ... गणेश पूजा कुबै ला 16.9.200O परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (अवोधिता एवं विवाह की पावनता) आज हम श्री गणेश पूजा करने के लिए उनका आश्रय उन्हें प्राप्त है। आजकल किसी एकत्र हुए हैं। जैसे कि आप भली-भाँति जानते हैं, श्री गणेश पावनता एवं पुनीतता के प्रतीक हैं । है, परन्तु आप ईसा-मसीह के जीवन के विषय अत: यह अबोधिता की पूजा है। श्रीगणेश की में जानते हैं। वह अत्यन्त अबोध थे। वे नहीं पूजा करते हुए आपको जानना होता है कि वे जानते थे कि उनके चारों तरफ किस प्रकार के अवोधिता की मूर्ति हैं। मैं हैरान होती हूँ कि हम अबोधिता का अर्थ जानते भी हैं या नहीं। अयोधिता को अबोधिता के विषय में बताना कठिन कार्य ाथी लोग हैं। वे यही समझते रहे कि लोग अबोध हैं। अत: वह उनसे इस प्रकार व्यवहार करते रहे जो एक ऐसा गुण है जो अन्तर्जात है, जिसे किसी कोई चालाक व्यक्ति नहीं कर सकता था। चालाक व्यक्ति की चालाकी को एकदम भाँप दूसरों जाता है और ऐसी बातें कहता है जो अन्य लोगों ने न समझी हों। परन्तु ईसा मसीह ने जो भी कुछ कहा उसमें अबोधिता की चैतन्य लहरियाँ पर लादी नहीं जा सकता और न ही जिसका प्रशिक्षण दिया जा सकता है। हो सकता है कि आप कहें कि चालाक तथा आक्ामक लोग अवोध व्यक्त पर आक्रमण करते हैं। परन्तु अबोधिता इतना महान गुण है थीं जिन्होंने अन्य लोगों को उचित सोच प्रदान की होगी तथा उनसे उचित सम्बन्ध भी रखें कि इसे नष्ट नहीं किया जा सकता। यह आत्मा और होंगे। जो भी हो वह समय उनके लिए का गुण है। अ्बाधिता आत्मा का गुण है जब आत्मा आपके अन्दर जागृत होती है तब आपको अवोधिता का गुण प्राप्त हो जाता है की अवोधिता पराजित नहीं हुई। इसने पावनता क आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति का न था। परन्तु श्रीगणेश एवं सौन्दर्य के ऐसे वातावरण की सृष्टि की जिसे आप ईसामसीह के जीवन में देख सकते हैं। जिसके द्वारा आप सारी नकारात्मकताओं का नियंत्रण कर लेते हैं और उन सभी चीजों पर नियंत्रण कर लेते हैं जो आपके उत्थान तथा मुझे प्रसन्नता है कि आपने विवाहों के विषय में सुना है। विवाह क्यों आवश्यक है? क्यों विवाह होने चाहिए? आजकल तो लोग विवाह के विना भी रह रहे हैं। परन्तु विवाह का आध्यात्मिक सूझ-बूझ के लिए हानिकारक हैं। अतः अबध बन पाना सम्भव नहीं है। आपको अबोध होना है अर्थात् आपमें अन्तर्जात अबोधिता हो। यरह सहजयोग के पश्चात् घटित होता है और अर्थ है विवाह की पावनता, आपकी शारीरिक आपक अन्दर तथा बाहर विद्यमान सभी बुरी एवं नकारात्मक भावनाओं से लड़ने की आपकी शक्तियां श्री गणेश की माँ द्वारा सुरक्षित हैं तथा मानसिक तथा भावनात्मक संपूर्णता की पावनता के लिए। पावनता के बिना यदि आप किसी चैतन्य लहरी ख खंड XIII अंक : & 2, 200। व्यक्ति के साथ रहते हैं तो वह विवाह अपूर्ण है। उससे जो वच्चे उत्पन्न होंगे वो भी ठीक न होंगे। इसी कारण से बिवाह आवश्यक है। जैसा ठीक है थोड़ा सा पानी लाओ। वे थोड़ा सा जल लाए। मैंने अपनी अंगुलियां उसमें डालीं और उसके बाद उन्होंने जल को चखा तो कहने लगे आप जानते हैं ईसा मसीह एक विवाहोत्सव में कि श्रीमाताजी इसका स्वाद तो वाइन जैसा है। सम्मिलित होने के लिए गए, क्यों उन्होंने विवाह मैंने कहा ईसा ने भी ऐसा ही किंया था । अतः पर इतना ध्यान दिया? क्योंकि विवाह परस्पर शराब में पावनता नहीं है। कोई भी ऐसी चीज़ आपके सम्बन्धों को पावनता प्रदान करता है। बनाने की आशा आप ईसा मसीह से कैसे कर सभी कुछ ठीक है। परन्तु पति-पत्नी के बीच सकते हैं जिससे आपकी चेतना चली जाए? शराब पीने वाले लोग सामान्य नहीं होते उनके सम्बन्ध पावन होने आवश्यक हैं अन्यथा उत्पन्न हुए बच्चे कुछ भी बन सकतं हैं-धोखेबाज, झूटे, डकैत। विवाह में यदि पावनता नहीं है तो इससे जन्मे बच्चे अत्यन्त क्रूर भी हो सकते हैं। यही मस्तिष्क में खराबी आ जाती है। गाडी चलाते हुए भी वे समस्याए उत्पन्न करते हैं । उनसे बातचीत करते हुए भी आप समझ सकते हैं कि कारण था कि वे विवाह को संस्था का पावन वे असामान्य हैं। कभी तो वो बहुत आक्रामक करने के लिए गए। होते हैं और कभी अत्यन्त निश्चष्ट। प्रायः बे परन्तु ये कहना निहायत मूर्खता है कि बहुत आक्रामक होते हैं और उनका आचरण उन्होंने शराब बनाई। उन्होंने तो पानी के स्वाद मानवीय नहीं होता। तो आपको ये समझना को अंगूर के रस के स्वाद में परिवर्तित कर दिया। हिब्रू भाषा में शराब को (wine) कहते हैं, सड़ाई गई शराब हानिकारक है और आध्यात्मिक जिसका अर्थ अंगूर का रस भी होता है। शराब जीवन के विरुद्ध। जिन देशों में शराब को पावन तुरन्त नहीं बनाई जा सकती। सडाने के लिए इसमें समय लगता है। काफी समय तक इसे लोग श्री गणेश तथा अवोधिता विरोधी हैं। ऐसे अत्यन्त आवश्यक है कि इतने लम्बे समय तक माना जाता है वे पतन की ओर जा रहे हैं। ये सड़ाना पड़ता है तब कहीं जाकर शराब बनती लोग अत्यन्त चालाक धूर्त तथा अन्य लोगों पर है। ईसा मसीह ने कहीं इतने सहज ढंग से जल रौब झाडूने वाले हो सकते हैं वे सभी प्रकार की का स्वाद परिवर्तित कर दिया तो भी यह नशा बुराइयों के कारण बन सकते हैं शराब की लत प्रदान करने वाली शराब केंसे हो सकती थी? में फंसे व्यक्ति पर विश्वास नहीं किया जा इसाई धर्म में बहुत सारे लोगों का यह विश्वास है कि ईसा मसीह ने शराब को पावन कर दिया किसी भी अन्य व्यक्ति के पीछे पड़ सकता है है। यह धारणा बिल्कुल गलत है। उन्होंने शराब को कभी पावन नहीं किया। जल का स्वाद सकता। ऐसा व्यक्ति अपने बीबी बच्चों तथा तथा उनके जीवन को नष्ट कर सकता हैं क्योंकि वह जानता है कि वो स्वयं तो नष्ट हो है। तो विशेष बात, जो व्यक्ति को मैं एक व्यक्ति से मिली उसने कहा कि श्री समझनी होती है वो ये है कि अवोधिता किसी भी ऐसी चीज़ की आज्ञा नहीं देती जो चेतना उन्होंने अंगूरों के रस सा बना दिया था। उस दिन ही चुका माताजी मुझे आत्मसाक्षात्कार दे दो। मेंने कहा चैतन्य लहरी ॥ खंड : XIII अक :। & 2, 200। विरोधी हो| मानवीय चेतना महत्वपूर्णतम इसका सम्मान होना ही चाहिए। आपर्क स्वास्थ्य या चेतना को विगाड़ने वाली कोई भी चीज लांगों को किसी प्रकार के कर्मकाण्ड की कोई गलत है। विशेषतौर पर सहजयोगियों के लिए हैं। पावनता हैं। बाहा पावनता की उन्हें कोई आवश्यकता नहीं। वे अबोध हैं और अबोध आवश्यकता नहीं। इस प्रकार से इनका जन्म आपको अपना स्वास्थ्य ठीक रखना होगा। अपने हुआ। पूर्ण अबोध रूप में। परन्तु इसका अर्थ ये स्वास्थ्य को आप किस तरह ठीक रख सकते नहीं है कि हम अपना मुकाबला उनसे करें। वे हैं? हानिकारक सभी चौजों को दूर रखकर। दिव्य अवतरण थे और उन्हें इसी प्रकार जन्म अतः विवाहित जीवन अत्यन्त पवित्र जीवन है। इसे आशीर्वाद प्राप्त हो रहे हैं। बैसे तो पादरी भी हैं लेना था परन्तु हमें पावन होना है तथा पावनता से परिपूर्ण जीवन बिताना है। एक अवतरण तथा परन्तु सहजयोग में तो मैं स्वयं विवाहित लोगों को आशीर्वादित करती हैँ। अत: व्यक्ति को समझना चाहिए कि उसे कितना बड़ा वरदान मिला है। फिर भी ऐसे बहुत से लोग हैं जो नहीं सकते। आप यदि वास्तव में अत्यन्त पावन आकर कहते हैं श्रीमाताजी हमें तलाक लेना है। एवं अबोध बनने का प्रयत्न करें तो आप समझ हम अच्छा विवाह करने का प्रयत्न कर रहे हैं। पाएंगे कि आपके जीवन भिन्न स्तर पर क्यों हैं। वे सभी प्रकार की कहानियां बताते हैं। जब आप मानव में यही अन्तर है। अवतरणों की आलोचना करना बहुत सुगम है। मानव ने सभो अवतरणों की आलोचना की क्योंकि मनुष्य उन्हें समझ अब यदि आप कहें कि श्रीमाताजी हम अबोधिता जानते हैं कि ये पावन विवाह है जो कि सहजयोग की विधियों के अनुसार हो रहा है तो ये खराब किस प्रकार हो सकता है? परन्तु यदि आप स्वयं ही खराब हैं तो कुछ नहीं हो सकता। विवाह के विषय में यदि आपके अटपटे विचार हैं तो इन्हें ठीक करने का प्रयत्न करें। यदि आप सहजयोग में विवाह करना चाहते हैं तो निश्चय करें कि विकसित कर सकते हैं तो आप नहीं कर सकते। अवीध बनने का क्या तरीका है? सहजयोग में अबोध बनने की उपयुक्त विधि है। हमारी निर्विचार-चेतना से अबोधिता विकसित होती है। जब आप निर्विचार चेतना में होते हैं तो क्या होता है? तब आप प्रतिक्रिया नहीं करते और न ही गलत चीजों में लिप्त होते आप सहज विवाह की पावनता का सम्मान हैं। तब आप किसी प्रकार के वाद-विवान करेंगे। या बहस मुवाहिसे में नहीं फँसते। चीजों को पराम मैं जानती हूँ कि पुरुष हो या महिलाएं, केवल देखते हैं और आपमें अन्तर्निहित कभी-कभी बुरे हो सकते हैं समस्याएं हो सकती हैं। परन्तु विवेकशील व्यक्ति इन सब चीजों को है, बिल्कुल वैसे ही जैसे गन्दे पानी के सहन करता है क्योंकि वह सहजयोग विवाह को तालाब से कमल खिलता है। ा अवोधिता अत्यन्त सुन्दरता पूर्वक जागृत होती तो हालात चाहे जो भी हों यदि आप पावनता का सम्मान करता है। यह कहना अन्तर्विरोध है कि ईसामसीह तथा श्रीगणेश की माताओं ने निर्विचार चेतना की अवस्था में हैं तो आप विना विवाह के उन्हें जन्म दिया वे तो स्वयं प्रतिक्रिया नहीं करते। प्रतिक्रिया न करना चैतन्य लहरी । खड : XIII अंक :। 8 2, 200। अबोधिता की निशानी है। प्रतिक्रिया न करने स्वयं को अत्यन्त दुर्बल पाएगा क्योंकि दूसरों पर वाले लोग युवा बने रहते हैं। उनकी आयु प्रभुत्व जमाने की शक्ति उसमें नहीं है नहीं झलकती। वे युवा ही बने रहते हैं । प्रतिक्रिया करना अच्छी बात नहीं है क्योंकि चेतना की अवस्था में जा सकते हैं। अपनी इससे आप अन्य लोगों में लिप्त हो जाते हैं। प्रतिक्रियाओं को कम करें, किसी भी चीज़ के सहजयोगी होने के नाते अब हम निर्विचार यदि आप प्रतिक्रिया नहीं करते तो आप केवल साक्षी होते हैं, किसी भी चीज़ में लिप्त नहीं होते। लिप्सा से आप दृर रहते हैं और इस प्रकार आपकी अबोधिता बढ़ती है और आप अत्यन्त आत्मविश्वस्त हो जाते हैं। चीन के एक राजा की कहानी मैंने पढ़ी प्रति प्रतिक्रिया को। अपने विषय में लांगां के इतने अजीबोगरीब विचार होते हैं कि वे प्रतिक्रिया करते हैं। उदाहरण के रूप में किसी ने मुझे ये गलीचे दिखाए। मैं बहुत प्रसन्न हुई। उन्होंने मुझे वताया कि सभी सहजयोगियों ने अपने हाथों इतने सुन्दर गलीचे बनाए हैं। ये जानकर मुझे बहुत हर्ष हुआ कि उन लोगों ने ये कार्य किया। कि मुझे तुम्हारी सहायता चाहिए। में अपने बेटे मैं यदि आम लोगों जैसी होती तो मैंने कहा होता का विकास इस प्रकार चाहता हूँ कि वह सभी हे, परमात्मा क्या रंग हैं. क्या चीज है! आदि समस्याओं का सामना कर सके। लोग जो चाहे आदि।' तो जो कुछ उन्होंने किया है में उसका थी जो एक सन्त के पास गया और उससे कहा करते रहें वह उनका सामना करने के योग्य बन आनन्द भी न ले पाती, आनन्द नाम की चीज़ जाए। ठीक है आप अपने बेटे को मेरे पास छोड़ खो जाती। दें, सन्त ने कहा। जब प्रतिस्पर्धा शुरू हुई तो उसका बेटा अखाड़े में पूर्ण- निर्विचारिता की वो देखता है उसका आनन्द लेता है। हर चीज़ स्थिति में सबको देखते हुए अडोल खड़ा रहा। उसे देखकर सभी लोग अखाड़े से और उस छोटे से लड़के की अबोधिता का बच्चा पूर्ण आनन्द लेता है। जो भी कुछ को वह आनन्ददायी बना लेता है। बच्चों को लौट आए देखें मैने देखा है कि बच्चों को जो भी कुछ मिलता है उसका खिलौना बना लेते हैं । उस दिन हम जिनोवा गए और वहाँ पर बड़े-बड़े अवरोध लगे देखे। कहीं से कुछ बच्चे आए और उन पर उनके तकों तथा आक्रामकता को सहन किया। चढ़के उन्हें घोड़ा बना लिया और आनन्द लेने बच्चों को मिलता है. कोई भी है. उसका वे खिलवाड़ बना आपकी शक्ति दर्शाएगी कि रौब झाडूने वाला ये लेते हैं । हर चीज़ उनके लिए एक खेल है व्यक्ति जो आपको कष्ट दे रहा है गलती पर है। उनके लिए जीवन भी एक आनन्ददायी खेल और वह व्यक्ति स्वयं भी महसूस करेगा कि इस है-केवल आनन्द की एक वस्तु। बच्चे आपको व्यक्ति पर मैं इतना दबाव डालने की कोशिश भी हर चीज का आनन्द लेने के लिए विवश सामना न कर सके। राजा आश्चर्यचकित था कि किस प्रकार उसके बेटे ने लोगों की आक्रामकता, कोई यदि आपसे कुछ कह तो आपको पूर्णत: लगे। जो भी कुछ अवोध बने रहना चाहिए। तब अ्बोधिता की स्थान उन्हें मिलता कर रहा हूँ फिर भी ये निश्चिंत है। तब वह कर देते हैं। आपका मिजाज़ यदि ठीक न हो तो चैतन्य लहरी । खंड : ४IlI अंक : । & 2,2001 1 & 2, 2001 आपको बताया है कि अबोधिता आत्मा है और आत्मा ही अबोधिता है जिसे कोई भी नष्ट बच्चे आपसे इस प्रकार व्यवहार करते हैं कि आपको मिजाज ठीक करके अत्यन्त सहज एवं ज स्वाभाविक बनना पड़ता है। किसी भी सीधे-सच्चे नहीं कर सकता। सहजयोग के माध्यम से व्यक्ति को जब आप देखते हैं तो आप कहते हैं अबोधिता को पुनर्स्थापित किया जा सकता कि वे बच्चों जैसे हैं वह चालाकी को तो है। हो सकता है कि आप अत्यन्त आक्रामक समझते ही नहीं। लोगों की धूर्तता को वे बिल्कुल व्यक्ति हों, अत्यन्त दुखी हों या हर समय अन्य नहीं समझते अपनी अबोधिता के संसार में रहते लोगों को तंग करने वाले व्यक्ति हों। ऐसा सम्भव हैं। इसी प्रकार सभी सहजयोगियों को अपने चहुँ है। परन्तु सहजयोग में आने के पश्चात् अपने और अवोधिता का परिमल (Aura) विकसित व्यक्तित्व को आप इतना सुन्दर एवं मधुर बना करना होगा। लोग देख सकें कि आप कितने सकते हैं कि ने केवल आप परन्तु अन्य लोग अवोध हैं, कितने मधुर हैं। कोई वाद-विवाद भी इसका आनन्द ले सकते हैं। ये अवोधिता नहीं, कोई लडाई-झगड़ा नहीं केवल निर्विचार पूर्ण सच्चा विवेक है। किसी मकसद के लिए चेतना की अवस्था का आन्तरिक सन्तोष है। बहुत से लोग कहते हैं कि श्रीमाताजी हम निर्विचार हो ही नहीं सकते। क्यों? क्यों आप को प्राप्त कर लेता निर्विचार नहीं हो सकते? क्योंकि जब भी किसी चीज को आप देखते हैं आप प्रतिक्रिया करना चाहते हैं । शनैः बन्द कर दें अन्न्तमनन करें और स्वयं प्रतिक्रियाओं को देखें और अपने मस्तिष्क खडे होकर वह देखता है कि लोग यह सब से सुधरने के लिए कहें तो ये कार्य हो पसन्द क्यों नहीं करते। सकता है। कोई प्रतिक्रिया यदि है तो कुछ भी न कहें, शान्त रहें। शनै: शनै:, आप हैरान होंगे उनमें कोई कमी नहीं है, परन्तु वास्तविकता ये कि. आप किस प्रकार निर्विचार चेतन हो गए हैं। आप देखेंगे कि आप कितने भिन्न हैं। आम यह कार्य नहीं करता, यह निर्वाज्य है। पूर्ण निस्वार्थ होने के कारण यह आनन्द को ऊंचाइयों है क्योंकि किसी भी चीज़ में इसका कोई भी स्वार्थ नहीं होता। सभी प्रकार के प्रयत्नों की सारहीनता को ये देख लेता है। लोग दा शनैः आप प्रतिक्रिया करना इधर-उधर क्यों दौड़े फिर रहे हैं? वं क्यों लड रहे हैं? इन सब चीजों का बह आनन्द लेता है। कुछ लोग सोच सकते हैं कि वे ठीक हैं नहीं है। जैसा मैंने बताया अबधिता अन्तर्जात गुण है। स्वयं को अबोध मानकर आपको स्वयं को धोखा नहीं देना चाहिए। इसके विपरीत अन्तर्दर्शन करें और स्वयं देखें कि अन्य लोगों लोगों जैसे आप नहीं हैं। परन्तु यदि गली में झगड़ा हो रहा हो तो आम आदमी की प्रतिक्रिया ये होती है कि इसका बह एक भाग बनना के साथ में अभी तक क्या करती रहा। आपका दृष्टिकोण क्या है। भावनात्मक विवेक के विषय चाहता है। वे भी झगड़ा करना चाहते हैं, उस लड़ाई-झगड़े का अंग-प्रत्यंग बनना चाहते हैं। में मैं आपको पहले ही बता चुकी हूँ। भावनात्मक इससे नहीं होना चाहते। ऐसे समय पर, यदि विवेक ही अबोधिता की अभिव्यक्ति है। यहीं दूर श्रीगणेश की अभिव्यक्ति है। जिन बच्चों को ये आपमें अबोधिता है तो वह कार्य करेगी। मैंने बत 7. चैतन्य लहरी । खड : XIII अक : । & 2, 2001 गम्भीरता से उस व्यक्ति की ओर देख रहा था । आशीर्वाद प्राप्त है वह सदैव आपका प्रसन्न वह कहने लगा माँ, जैसा आपने मुझे बताया था, करने का प्रयत्न करेंगे। वे जानते हैं कि आप ये तो घोड़े की तरह से नहीं खाते। सभी की क्या चाहते हैं, आपकी जरूरत क्या है। जो आनन्द आप चाहते हैं वे आपको प्रदान करेंगे। आपको प्रसन्न करने के लिए वे कंवल वही कार्य करेंगे जो आप चाहते हैं। उनकी अपनी कोई इच्छाएं नहीं होती. उनकी कोई माँगे नहीं होती. वै कभी नहीं कहते में ये चाहता हूँ. तुम मेरे लिए ऐसा करो., कभी नहीं। वे केवल आप ही को इच्छाओं को देखना चाहते हैं और आपकी जरूरतों को पूरा करने के लिए पूर्ण प्रयत्न करते अन्य लोगों तथा बड़ों के प्रति बच्चों के व्यवहार को देखना बहुत ही दिलचस्प है। मानो कोई महान सुझ-बूझ वाले बड़ी आयु के व्यक्ति बड़ा आघात लगा। सम्भवत: माँ ने उसे बताया बा होगा कि बह व्यक्ति घोड़े की तरह से खाता है। तो बच्चे इतने अबोध होते हैं कि उनकी बातों से आपका भेद खुल जाता है। बच्चों के बारे में बहुत से चुटकृुले हैं यदि आप इन चुटकुलों की पुस्तक लिखें तो लोगों को बहुत आनन्द आएगा। बच्चे सारी सच्ची बातों को अल्यन्त अवबोधिता पूर्वक कह देते हैं। व झूठ नहीं बोलते। वे बहुत सच्चे होते हैं। अबोधिता का यही गुण है। वच्चे झूठ नहीं बोलते। उनसे यदि पूछो कि तुमने कार्य किया तो तुरन्त बताएंगे कि हा मैन किया। तुमने ये कार्य नहीं किया तो बो कहेंगे नहीं मैंने ये कार्य नहीं किया। कभी झूठ लाग ही उन्हें सिखाते हैं किस प्रकार झूठ बोलना है. किस प्रकार धोखा देना है? एक अन्य बुरी चीज़ जो हम बच्चों को सिखाते हैं, विशेष पश्चिम में वह है उन्हें बताना कि सभी कुछ हो। नहीं बोलेंगे। बड़े अत: अवधिता में आप अत्यन्त विकसित तथा परिषक्व हो जाते हैं। अत्यन्त परिपक्व। इस परिपक्वता से आप जान जाते हैं कि इस व्यक्ति को क्या आवश्यकता है और दूसरे व्यक्ति को रूप से क्या नही मिलना चाहिए और उनके स्थापित होने का ढंग बहुत हो दिलचस्प होता है। मेरे विचार तुम्हारे पास होना चाहिए। लोग बच्चों से कहते हैं से बच्चे संसार की सबसे दिलचरूप चीज हैं। कि यह चौज़ तुम्हारी है। किसी और को मत मुझे गुलाब बहुत सुन्दर लगते हैं परन्तु बच्चे देना, ये तुम्हारी अपनी है। इसके विपरीत हमें उनसे भी सुन्दर हैं। वो आपको इतना कुछ उनसे कहना चाहिए कि तुम इसका जो चाहे सिखाते हैं कि उनकी अवोधिता को देखकर आप दग रह जाते हैं। बच्चो के विषय में बहुत से चुटकुले हैं । किस प्रकार वे आचरण करते हैं, कुछ बांट दंगे। उनका व्यवहार इतना सुन्दर होगा करो। ये बात उनकी अबोधिता पर छोड़ दो। आपको देखकर हैरानी होगी कि वे अपना सभी कि आप हैरान रह जाएंगे कि किस प्रकार वे किस प्रकार बातचीत करते हैं। अपनी अबोधिता में वे किसी को भी सबकुछ बता देते हैं। कुछ सभी को प्रसन्न करने तथा आनन्द दने का प्रयत्न करते हैं । ये सब करने की उनकी योंग्यता इस देखकर व्यक्ति को हैरानी होती भी छिपाना वे नहीं जानते। मुझे एक चुटकुला अद्भुत हैं याद है। एक बार एक व्यक्ति किसी के यहाँ है कि इन नन्हें वच्चा ने किस प्रकार ये योग्यता खाना खाने के लिए आया। उनका बच्चा बड़ी चैतन्द लहरी । खंड : XIII अंक :। 8 2, 200। पा ली। प्रकार की मूर्खता, वृद्धावस्था, स्वास्थ्य, मस्तिष्क यह श्रीगणेश का आशीर्वाद है कि बच्चे और सोच-विचार से ऊपर हैं। आपकी भावनाएं इतने मधुर, सुन्दर एवं आनन्हदायी हैं। बच्चों यदि अत्यन्त अबोध हैं तो आप अत्यन्त आनन्द सम बनने का प्रयत्न करें। आपको उन्हों सम बनना होगा। हो सकता है आपने बहुत सी है। मैंने देखा है कि लोगों में बिल्कुल भी लज्जा पुस्तकें पढ़ी हों, वहुत सी उपाधियाँ प्राप्त की नहीं है। मेरी समझ में नहीं आता कि कुछ हों। हो सकता है आप कोई महान चीज हों परन्तु महिलाएं पुरुषों को आकर्षित करना चाहती हैं आप बाल सुलभ नहीं हैं। आपको बाल सुलभ और कुछ पुरुष महिलाओं को। बच्चे कभी ऐसा होना होगा। अन्यथा कोई आपकी संगत पसन्द नहीं करेगा। ऐसे लोगों को हम उवाऊ कहते हैं। , मैं तो सोचती हूँ कि अवोधिताविहीन लोग ही घोड़़ों को प्रसन्न करना चाहेंगे परन्तु किसी व्यक्ति ऊवते हैं। वे आपको बताने का प्रयत्न करतें हैं को आकर्षित करने के लिए जाते हुए मैंने उन्हें कि आपको एसा अवश्य करना चाहिए। यदि कभी तहीं देखा। कारण ये है कि उनका में रहते हैं। आजकल निर्लज्जता की पराकाष्ठा नहीं करते। वे नहीं जानते कि पुरुषों या महिलाओं को आकर्षित करना क्या होता है। वो कुत्तों को आपने सफ़ल होना है तो एसा करें। बच्चों के लिए ये सब भाषण बेकार हैं। आपको भी ये जानते हैं। उन्हें पुरुषों या महिलाओं के पीछे बात समझ लेनी चाहिए कि ये फिजूल की बात दौड़कर अपने लिए समस्याएं खड़ी करने की कर रहे हैं। जिस प्रकार बच्चों को यदि अप्रिय आत्मसम्मान पूर्ण है, अपने विषय में वे भली-भांति क्या आवश्यकता है। या भयंकर बनने को कहा जाए तो वे उस बात उनका आत्मसम्मान पूर्ण है। वे आपको पूर्ण आत्म सम्मान प्रदान करते हैं । न आप किसी के सम्मुख झुकते हैं और न ही किसी को अपने सम्मुख झुकने के लिए मजबूर करते हैं । अबोधिता की चिन्ता नहीं करते उसी प्रकार आप भी यदि अबोध हैं तो कोई गलत चीज स्वीकार नहीं करेंगे। आप कुछ भी सुनें, कोई कुछ भी कहे. आप पर कोई फर्क नहीं पड़ता। उसे आप स्वीकार नहीं करते आप वैसा नहीं करते। आप ऐसा कर ही नहीं सकते क्योंकि अबोधिता आपको रक्षा करती है। उपयुक्त रूप से ये आपका पथ प्रदर्शन करती है कि आपका क्या करना है, क्या का यही सौन्दर्य है कि यह आपके अन्दर अत्यन्त भली भांति कार्य करता है। यही कारण है कि मैं हमेशा कहती हूँ कि श्रीगणेश की पूजा करो। मैं एक व्यक्ति को जानती हूँ जो बहुत ऊँचे पद पर थे परन्तु अचानक उन्हें पक्षाघात हो नहीं करना। अन्तर्दर्शन करके देखें कि आप अबोध हैं या नहीं। लोग सोचते हैं कि कोई उन्हें नियंत्रित करने का या हानि पहुँचाने का प्रयत्न गया। ये क्या हुआ? वो तो बहुत अच्छे व्यक्ति थे. उन्हें कैसे पक्षाघात हो गया ? तब मुझे पता चला कि औरतों के प्रति उनकी बुरी नीयत थी. कर रहा है या उन्हें नीचा दिखाना चाह रहा है जिसके कारण उन्हें यह समस्या हो गई। तो मैंने सोचा कि श्रीगणेश की पूजा ही अबोधिता एक ऐसा गुण है जो सभी बेहतर है। श्रीगणेश की पूजा करें। श्रीगणेश की अबोधिता को कोई नीचा नहीं दिखा सकता। ्र चैतन्य लहरी ॥ खंड :XIII अंक : & 2. 200। नहीं रहता। ऐसा व्यक्ति किसी चीज़ का आनन्द तही लेता। आप यदि अपनी आँखों का, पूजा करने से आपका मूलाधार ठीक होगा। ल्जा, विवेक, गरिमाभाव तथा आत्मसम्मान ठीक होगा। ऐसे वस्त्र धारण करें जिनसे प्रतीत हो आप अपनी नाक का, अपने कान का सम्मान करने वाले व्यक्ति हैं तो मैं आपको बताती बातचीत करें जिससे पता चले कि आप अपनी हूँ कि आपके लिए सभी कुछ इतना अपने शरीर का सम्मान करते हैं। इस प्रकार जिह्वा का, अपनी भाषा का सम्मान करते हैं। आनन्ददायी हो जाएगा कि आप हैरान हो आप यदि सहजयोगी हैं तो आपकी भाषा अश्लील जाएंगे। विश्व में आनन्द उठाने के लिए वहुत नहीं होगी। आपका मस्तिष्क इतना आअपवित्र नहीं सी चीजें हैं परन्तु लोग किसी अच्छी चौज को हो सकता जो गाली दे और बुरे शब्द कहे। सुनने में असमर्थ होते हैं। चहचहाते हुए पक्षियों अमरीका में मैंने देखा है कि लोग इतने बेढवे ढंग से बातचीत करते हैं कि आप भौचक्के रह जाते हैं। अपने मन की बात कहने के लिए का संगीत उन्हें सुनाई नहीं देता। बढ़ते हुए पेड़़ों. खिलते हुए फूलों तथा उनकी सुगन्ध को न वो देख सकते हैं न सूँघ सकते हैं। आत्म सम्मान के अश्लील शब्दों का या गन्दे शब्दों का उपयोग आवश्यक नहीं है। इससे आपकी जिह्वा खराब होती है और जिह्वा से अबोधिता चली जाती है। की सभी चीजों का आनन्द लेते हैं। ये सारी आपकी जिह्वा से अबोधिता यदि बिल्कुल चली चीजें तो व्यक्ति के आनन्द का सात होनी गई तो आपकी कहीं हुई बात क भी सत्य न स्तर का बहुत नौचा होना इसका कारण है। क्योंकि वे बहुत तुच्छ लाग है जो अपने आस-पास चाहिए। बच्चों की ओर देखें, वे किस प्रकार होगी. वह कभी सत्य न होगी। आनन्द के स्रोत हैं? मंच पर आकर काई यदि दौडता परन्तु यदि आप अवध हैं, आपकी जिह्वा पवित्र है तो जो भी कुछ आप बोलेंगे वह सत्य है तो किस प्रकार हम उसका आनन्द लेते हैं। क्यों? बच्चे को दौड़ते हुए देखकर हमें क्यों अच्छा लगता है। वच्चे को दौड़ते हुए दखकर हम कभी नहीं कहते कि वो पगला गया हो जाएगा। अत: हर प्रकार से अवोधिता का सम्मान किया जाना मूल चीज़ है। आपने कभी किसी से नाराज भी होना हो तो सबसे बढ़िया है या शराब पिए हुए है। इसके विपरीत बच्चे के तरीका है कि शान्त रहें चुप रहें अपनी ज़िह्वा का दौड़ने से हमें आनन्द आता है। क्यों? बच्चे का सम्मान करें। कुछ लोगों में आँखें मटकाने की माधुर्य, उसकी अवोधिता, जो कि उसकी शक्ति बहुत बुरी आदत होती है। हर समय औरतों की है, उसी के कारण वह इतना मधुर, इतना सुन्दर ओर देखते रहते हैं। कुछ औरतें भी ऐसी ही प्रतीत होता है कि हमारे हृदय में सच्चा आनन्द होती हैं। वे अपनी आँखों का सम्मान नहीं भर जाता है। करती। उन्हें न केवल आँखों के रोग हो जाते हैं अत: दूसरी बात ये है कि अवोधिता आनन्ददायी है। अबोधिता से लोगों को आनन्द मिलता है। अबोधितापूर्वक किया गया काम या कही गई बात अत्यन्त आनन्ददायी होती है। ऐसा बल्कि मस्तिष्क को समस्या भी हो जाती है। इस प्रकार के व्यवहार से मस्तिष्क ऐसा बिगड़ जाता है कि चीज़ों का आनन्द लेने का विवेक इसमें TO चैतन्य लहरी । खंड : XIlI अंक :& 2., 2001 व्यक्ति अत्यन्त सुन्दर एवं पारदर्शी होता है। खाने में, अच्छी बातचीत करने में कोई बुराई उसकी पारदर्शिता आनन्ददायी होती है तथा अत्यन्त नहीं है। परन्तु इन सभी बातां में अबोधिता के पवित्र यही कारण है कि श्रीगणेश की पूजा प्रति सम्मान और अबोधिता की अभिव्यक्ति सर्वप्रथम होती है। आदिशवित ने सर्वप्रथम श्रीगणेश होनी चाहिए। इस अवोधिता से हम समस्याओं देव का सृजन किया। क्योंकि सृजन करते हुए उन्हें देखना होता है कि सृजित देवता में अवोधिता समस्याओं का समाधान अवोधिता से ही सकता की शक्ति हो। अन्यथा लोग भटक जाएंगे और सभी प्रकार के कुकृत्य करेंगे। इसलिए सर्वप्रथम है। आपका श्री गणेश तत्व यदि दुर्वल है तो न उन्होंने श्री गणेश का सृजन किया जिनके पाबित्र्य जाने आपके साथ क्या हो जाए! आप जानते हैं को आप चैतन्य लहरियाँ भी कह सकते हैं ये कि आजकल बहुत सी भयानक बीमारियाँ हो चैतन्य लहरियाँ इतनी शक्तिशाली हैं कि हर चीज का नियन्त्रण करती है। नि:सन्देह ऐसे लोग भी हैं जो अपनी अवोधिता को बिल्कुल त्याग देते हैं और स्वयं का कोई अन्त नहीं समझते। होने चाहिए। जैसे आपकी बहन है माँ है,. भाई उन्हें बिल्कुल भुला दें। सामान्यतः उनकी अबोधिता है. पिता हैं। आपके सभी सम्बन्ध इतने सुन्दर का समाधान कर सकते हैं। विश्व की सभी है यही कारण है कि श्री गणेश बहुत महत्वपूर्ण रही हैं, क्योंकि लोग पवित्र नहीं हैं., उनके सम्बन्ध पवित्र नहीं हैं. आपकी अबोधिता द्वारा सभी सम्बन्ध पवित्र और पवित्र हैं क्योंकि आपके रिश्ते अबोधिता के हो उनका पथप्रदर्शन करेगी। आपको चाहे इस बात का ज्ञान हो चाहे न हो, यह इतनी मधुर हैं। चीज है कि यह लांगों को उनकी श्रेष्ठता व महानता में उतारती है। सहजयोगी के रूप में अबोधिता वश प्रेम करते हैं क्यों आपको प्रेम आप अपने पिता से, बंटी से, माँ से करना चाहिए। किसी पर प्रभुत्व जमाने के लिए यदि आप ऐसा करते हैं तो ये चालाकी है। प्रेम तो केवल प्रेम के लिए होना चाहिए (निर्वाज्य ) । हमने भी अपने अन्दर यही गुण विकसित, करने हैं। सहजयोगी कहीं भी जाए, कोई भी कार्य करने का प्रयत्न करें, किसी भी व्यक्ति से मिले, कोई भी सामाजिक कार्य करे, आपके अन्तर्निहित तो अब में प्रसन्न हूँ। कल आप लोगों के विवाह होंगे और जिनके विवाह हागे उन्हें समझना आनन्द का आभास लोगों को होना चाहिए। केवल इसी आनन्द के लिए श्रीआदिशक्ति ने चाहिए कि ये विवाह बहुत ही पवित्र हैं। बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह किसी अन्य विवाह की हो रहे श्री गणेश का सृजन किया। क्योंकि यह आन्तरिक तरह से नहीं है। यह विवाह मर सम्मुख आनन्द, यह अवाधिता किसी को हानि नहीं पहुँचा सकते। यह किसी चीज़ को आशा नहीं हैं अत: सावधान रहे। आप यदि विवाह नहीं करना चाहते तो न करें। अपने भावी साथी को समझने का अवसर आपको दिया गया है। परन्तु करती है। आपका व्यक्तित्व भी ऐसा ही होना विवाह के पश्चात यदि आप इसमें दोष खोजेंगे तो मेरे लिए भी कठिनाई होगी और आपके लिए करती, किसी चीज़ की माँग नहीं करती, कुछ भी नहीं चाहती। सर्वत्र केवल आनन्द का प्रसार चाहिए। अच्छी वेशभूषा पहनने से, अच्छा खाना 11 चैतन्य लहरी खड : XIII अक : & 2. 2001 घटना हो गई है । मैं चाहती हूँ कि आप सदैव अपने अन्त्निहिंत श्रीगणेश की पूजा करें। श्री भी। ये भी हो सकता है कि मैं विवाह करवाने बन्द कर दूं। अत: हम लोगों को पहले दिन से ही तलाक की बातें करने की आज्ञा नहीं दंते। गणेश अवोधिता हैं, वे ही आत्मा हैं। जब भी परन्तु वास्तव में यदि कोई समस्या है तो हमने सहजयोग में तलाक की आज्ञा भी दी है। कैथोलिक एकाकारिता बना लें। आप आत्मा को जानना चाहें श्री गणेश के साथ ये आपके अन्तर्निहित हैं और श्री गणेश चर्च तलाक की आज्ञा नहीं देता। यही कारण है कि पुरुष और महिलाएं, इधर-उधर, उल्टे-सीधे की शक्ति से यूर्णत: ज्योतिर्मय हो जाना आप सब लोगों के लिए विल्कुल सम्भव है। मुझे बहुत खुशी है कि आप सबने अपने लिए चुने गए साथियों को स्वीकारा और विवाह करने का सम्बन्ध बनाते हैं। यहाँ पर एसा नहीं है। परन्तु यह अत्यन्त अवोध घटना होनी चाहिए। आपके पावित्र्य को यदि चुनौती दी जा रही है और इस निर्णय कर लिया। परन्तु अब भी यदि आप न कारण से यदि आप तलाक लेते हैं तो ठीक है। इस बात से मैं सहमत हूँ। ऐसी स्थिति में आपको चाहते हों तो यह विवाह न करें। किसी तरह की तलाक ले लेना चाहिए। अत: अपने पावित्र्य को चालाकी करते का प्रयत्न न करें। कोई अटपटा बनाए रखें। आधुनिक काल में अपने पावित्र्य को कार्य न करें जिसके कारण आप अपने विवाह बनाए रखना वहुत महत्वपूर्ण है ताकि आपके अन्दर तथा अन्य लोगों के अन्दर श्री गणेश का आनन्द न उठा पाए। पहले दिन से ही ये बात समझने का प्रयत्न करें कि आपको अपने जागृत हो सकें। यही इस विश्व की रक्षा करेगी। जीवन साथी के प्रति अत्यन्त करुणामय होना अबोधिता के अतिरिक्त कोई भी अन्य चीज हागा. अत्यन्त सम्मानमय, प्रेममय और करुण। विश्व को बचा नहीं सकती। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण बात है जिसे लोग न तो समझते हैं न स्वीकारते हैं। मैंने विवाह को लोग अपना अधिकार मान लेते हैं जो भी सुना है कि सहज कुछ आप जानते हैं. जो भी कुछ आप कहते हैं या लिखते हैं कृपा करके ध्यान रखें कि इससे आपके अन्तनिर्हित अबोधिता को नहीं । इसे कभी भी अधिकार न माने। वास्तविक चोट न पहुँचे। नैतिकता विहीन जीवन जीने की कोई आवश्यकता नहीं है। आपकी अवोधिता का होना ही आवश्यक है। अबोधिता हो आपको नैतिक शक्ति तथा नैतिक सूझ बुझ प्रदान करती है। आपको कोई पुस्तके नहीं पढ़नी पड़तीं और नहीं दिया। मेरे विचार में विवाह को कामयाव न ही किसी गुरु के पास जाना पड़ता है। आनन्द यदि आप प्राप्त करना चाहते हैं तो अपने री अन्दर निश्छल प्रेम बनाए रखें और जीवन का आनन्द लें। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। मैंने लड़कियों के सम्मुख कोई भाषण बनाने का उत्तरदायित्व पुरुषों पर कहीं अधिक अबोधिता आपका पथ-प्रदर्शन करेगी और बताएगी है। पुरुषों को समझना चाहिए कि विवाह उनके कि ठीक क्या है। सहज में यही आपने प्राप्त जीवन का बहुत महत्त्वपूर्ण भाग है। बिवाह को करना है। आप सबको आत्म-साक्षात्कार मिल उचित सम्मान दिया ही जाना चाहिए। आरम्भ से चुका हे। आप लोगों के साथ ये बहुत बड़ी ही जिस प्रकार आप अपनी पत्नी की देखभाल 12 चतन्य लहरी ।खंड : XIII अंक : । & 2. 2001 करते हैं उससे बहुत सहायता मिलती है। पहले हो दिन से अत्यन्त सावधान हो जाएं। किसी देखना चाहिए कि एक अच्छा परिवार बनाने के प्रकार का भ्रम न पाल। आपकी पत्नी किसी लिए हमें कितने विवेक की आवश्यकता है। अन्य देश से आई हैं। उसके अपने ही विचार हैं, यही हमारी आवश्यकता है क्योंकि अच्छे परिवारों सहन-शक्ति की भी सीमा होती हैं। अत: हमें अपने ही प्रकार से उसका पालन-पोषण हुआ है। में ही अच्छे बच्चे जन्म लेंगे और सहजयोग उसके विचारों को समझने का प्रयत्न करें और सार्वभौमिक बन जाएगा। अतः केवल अपनी ही उसका सम्मान करें। इस कार्य को गम्भीरतापूर्वक चिन्ता न करें अपनी पत्नी का भी ध्यान रखें। उसकी जरूरतों और इच्छाओं का ध्यान रखें। ये सहजयोग में आपको समझना चाहिए कि इसी आपकी जिम्मेदारी है। विवाह के लिए विवाह आप नहीं कर रहे। विवाह आपकी जिम्मेदारी हैं। करें यह कोई मजाक नहीं है। विशेष रूप से के कारण आप पावन दम्पति हैं जिनका दायित्व है कि सहजयोंग को सम्पन्न बनाएं। सहजयोग अत्यन्त महान उपलब्धि है जो पूरे विश्व को हैं और सहजयोगियों के यहाँ बहुत सुन्दर बच्चे बहुत सुन्दर संस्थान में परिवर्तित कर सकती है भी जन्म लेते हैं। ऐसे बच्चे जो अत्यन्त विवेकशील और इसकी जिम्मेदारी आप पर है। पुरुष होने के हैं। फिर भी यदि आपको विवाह से कोई समस्या नाते आपको अपनी जिम्मेदारी समझनी है कि है ता आप मुझे बताएं। सहजयोग एक बहुत बड़ा आप एक महान व्यक्ति हैं और परिवार के सार्वभौमिक परिवार है । अतः आप पूरी सहजयोग मुखिया कल मैंने आपको बताया था कि मुझे संस्था के प्रति उत्तरदायी हैं। आपकी पत्नी एक तलाक में विश्वास नहीं है। मैं आपसे आशा करती हूँ कि आप अच्छे पति बनेंगे और अपनी रही है अत: उसे चीजों को समझने दें तथा कम से कम 95% सहजयोग विवाह सफल होते अन्य परिवार, अन्य देश, अन्य वातावरण से आ पत्नियों को अत्यन्त प्रेम. स्नह एवं दुलार देंगे। पुरुष और महिलाएं पूर्णतः समान सामंजस्य स्थापित करने दें। उसमें दोष न खोजें | अत्यन्त सुख तथा प्रसन्नता उसे प्रदान करें तभी हैं। चाहे एक जैसे न हों परन्तु पूर्णतः समान हैं वह सहजयोग में भली-भांति उन्नत होगी बच्चों और वे एक दूसरे के पूरक हैं। आप अपने का भी माँ का सम्मान करना अत्यन्त आवश्यक जीवन को महत्वपूर्णतम मानकर अपनी पत्नी है। जिस प्रकार आप सम्मान करते हैं उसी प्रकार की उपेक्षा न करें। मैंने देखा है कि सहजयोग में बच्चों को भी माँ का सम्मान करना चाहिए। हैं तो आपका में सहजयाग और सहजियों विवाह के प्रति यदि आप गम्भीर अधिकतर विवाह सफल होते हैं के बच्चे भी अत्यन्त सुन्दर होते हैं। विवाह जोवन निश्चित रूप से आनन्दमय बन जाएगा केवल अहं की स्पर्धा के कारण असफल सहजयोग में किसी को विवश नहीं किया जाता। होते हैं। अह यदि पुरुषों में न हुआ तो महिलाओं में होता है और यह आपके. आपकी पत्नी के. आपके बच्चों के जीवन को नष्ट कर सकता है। आपने स्वयं सहजयोग में विवाह करने का निर्णय लिया है और इस प्रकार ये विवाह हो रहे महिलाओं को मैंने कुछ नहीं बताया क्योंकि वे बहुत विवेकशील हैं और अपने भविष्य की ओर महिलाएं विवेकशील होती हैं परन्तु उनकी 13 चैतन्य लहरी खंड :XIll अंक़ : & 2.2001/ he अत्यन्त उत्सुकतापूर्वक देख रही हैं । मैं सोचती हूँ कि सदैव महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों को ही पुरुषों की तरह से चलने की आज्ञा नहीं देते। विवाह की जिम्मेदारी को समझना चाहिए। अन्तर्जात इसकी किसी भी प्रकार से आज्ञा नहीं है। मुझे रूप से महिलाएं जानती और समझती हैं कि उनके विवाहित जीवन का सफल होना बहुत समझेंगे कि आपने एक सहजयोगिनी से विवाह महत्वपूर्ण है परन्तु मैंने पाया है कि कभी-कभी किया है। किसी सामान्य लड़की से आपका पुरुष उन पर अपना अधिकार मान लेते हैं ऐसा विवाह नहीं हुआ आपका विवाह एक सहजयोगिनी नहीं होना चाहिए। प्रेम एवं स्नेह से जो भी कुछ से हुआ है आप उसको पूर्ण गौरव प्रदान करें वह करती है उसकी सराहना होनी चाहिए। और इस प्रकार आप सहजयोग को भी गौरवान्वित उसकी सराहना अपने प्रेम की अभिव्यक्ति कर सकते हैं। आप जानते हैं कि हम सहजयोग में अन्य हैं आशा है कि आप समझदार और इस बात को करने से ही आप उसके प्रति करेंगे। परमात्मा आपको धन्य करें। 14 चैतन्य लहरी खंड : XIII अंक : & 2. 2001 दिल्ली पब्लिक प्रोग्राम परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (25.3.2000) आज तक हम लोग जानते ही नहीं थे कि की। ऐसा मुझे लगता है कि लोग जो हैं वो हमें केवल सत्य मिला नहीं। जिस चौज को पीतल में खाना नहीं खाएंगे और लोहे में खाना खाएंगे। इस प्रकार की बहुत ही औपचारिक बातें लिया। फिर बहकते-बहकते ये बुद्धि उस दिशा इसमें लिखी हैं। लेकिन जो दृश्य है, जो सामने में चल पड़ी कि कोई सा भी काम करो वो दिखाई देता है वो बहुत भयानक है और बहुत विचलित करने वाला है। इसके पीछे यही कहना बुद्धि ठीक समझती थी उसी को हमने सत्य मान ठीक है, अच्छा है। इससे लाभ है ये ही करना चाहिए। सत्य से परे मनुष्य भटक गया और चाहिए कि मनुष्य को अपना रास्ता नहीं मिला भटकते-भटकते पता नहीं कौन सी खाई में और वह कहां से कहां भटक गया! उसको सुख जाकर गिरा। ये देख कर के लोग सोचते हैं कि नहीं मिला। इस सुख की खोज में वो गलत ऐसे कैसे हुआ? ऐसी स्थिति क्यों आई? मनुष्य चीज़़ों के पीछे भागा जिसे मृगतृष्णा कहते हैं। इस के अन्दर जो बुद्धि है उस बुद्धि की उस तरह प्रकार मनुष्य भटकते भटकते घोर अधकार में से कूबुद्धि में परिवर्तित क्यों कर दिया? उसको डूब गया। वो ये भी नहीं जानता कि जो मैं कर सुबुद्धि बनाना था। वो कुबुद्धि हो गई! और उस कुबुद्धि से ऐसी ऐसी चीजें निकलने लगीं जिससे न तो दूसरों को कोई सुख हो सकता है न तो स्वयं को कोई सुख हो सकता है। हम लोग कभी-कभी समझ में नहीं आता कि ये संसार रहा हूँ वो कुकर्म है और इस कुकरम्म का फल मुझको तो बुरा मिलेगा ही और को भी मिलेगा। इस तरह की चीजें इतनी बढ़ गई हैं कि मसर कभी-कभी घबरा जाते हैं सोच कर के कि ये कहा जाने वाला है। अपने देश में अनेक प्रश्न हैं का और देशों में भी बहुत से प्रश्न हैं। ये सोचना कि बाहर के लोग बहुत ठीक हैं ये गलत बात है। वो भी खोज में लगे हैं और उस खोज में वह देखना चाहते हैं कि किस तरह से बो उस स्थिति क्या हो रहा है। मारकाट हो रही है और हर तरह का हिंसक कार्य हो रहा है। छोटे-छोटे बच्चों तक को कोई नहीं छोड़ता। इस तरह की अनेक विकृतियां हमारे अंदर जो जागरूक हो गई हैं । उसकी देख कर के यही मैं कह सकती हैँ कि को प्राप्त करें जिससे वो मनुष्यता तो कम से घोर कलयुग है। कलयुग की परिसीमा है। इतना तो वर्णन शास्त्री में भी नहीं है कि ये ऐसा काल कम पा लें। इसका जो भी परिणाम है वो ये है कि मनुष्य निराशा में चला गया. उसके अंदर गहन निराशा आ गयी। वो सोचता है अब क्या आएगा। उन्होंने साधारण इधर उधर की बातें 15 चैतन्य लहरी खंड : XIII अंक :1 & 2., 2001 करें? सब ऐसा ही चलना है, चलेगा। इसको सतुसत् विवेक बुद्धि भी खत्म ही जाती हैं। कोई ठीक कर नहीं सकता। अब इसी आत्मा को पाने की बात है और ऐसे ही बक्त एक बात हमें याद रहना चाहिए इस आत्मा को किस प्रकार पाया जा सकता है कि साधु सन्तों ने कहा है कि अपने ही अंदर खोजो, अपने ही अन्दर सब कुछ है। काहे रे वन ये समझना चाहिए। इसी के लिए आपके शरीर के अंदर ही इसकी व्यवस्था है। कोई बाहर जाने खाजन जाई सदा निवासी सदा अनन्ता तोहे संग की जरूरत नहीं। आपक ही त्रिकोणाकार अस्थि समाई। बो कौन हैं। वो कौन सी चौज़ है जिसकं में एक शक्ति कुण्डलिती, एक पवित्र शक्ति बारे में सब संतों ने हिन्दुस्तान में भी कहा है स्थित है। जब इसकी जागृति होती है तो वो छः चक्रों में से गुजरती हुई अंत में ब्रह्मरन्ध्र को बाहर भी कहा है? सब धर्मों में भी है। इतना विप्रयास धर्मों का भी हो गया कि लोग इस बात भदते हुए उस सूक्ष्म शक्ति से एकाकारिता करती को भूल ही गये कि जा हमारे अंदर है उसे है जो परमेश्वर की प्रम शक्ति हैं। ऐसे अपने शास्त्रों में लिखा था लेकिन ऐसे तो कोई करता ये आत्मा पूरी तरह से जीवित नहीं। अपने देश के बहुत से साधु संत बाहर खोजना है। और हमारे अंदर हमारी आत्मा है। हर इसान में गये। मेरे ख्याल से मछिदरनाथ, गोरखनाथ गये अवस्था में है। वो आत्मा जो है वही परमात्मा का प्रतिबिम्ब हमारे हृदय में है। ऐसी तो बातें होंगे क्योंकि बोलिविया में भी ये लोग सब जानते सभी कहते हैं। सबने बताया की ऐसी आत्मा है। ह लेकिन लोग कहते हैं माँ हमने तो कभी जाना हैं। ये चक्रों के नाम जानते हैं और वो कुण्डलिनी के जागरण की वात जानते हैं। रूस में भी मैंने नहीं की ऐसी कोई चीज है। अब आपका समय देखा है और हर जगह देखती हूँ की पुरातन जो आ गया है इसे जानने का कि हमारो आत्मा, पंटिंगस है वो कितनी वहाँ चित्रकारी है। उसमें अन्तर-आत्मा क्यां चीज़ है और इस आत्मा का सब चक्र बने हैं। आप अगर थोड़ा सफर करें तो आप हैरान होंगे कि ये हम किस प्रकार पा सकते हैं। ये आत्मा माने सब चीज़ें इन्होंने कहाँ जैसे अच्छी सो अंदर सब चीज़ देख रही है और जानी और कैसे जानी? ये किसने बंताया? इसके अपने प्रकाश से भी अपने ही अंदर समेटे हुए लिए अपने यहाँ के कोई न कोई संत साधु गये है। वो ये भी नहीं करती कि कहीं हम गलत थे, ऐसा बताते हैं और उन्होंने ये बातें बताई। मगर हम लोगों को भी बता सब चले गये और काम करे रहे हैं तो इस गलत काम पर कोई प्रकाश डाले। क्योंकि हम तो अपनी सुबुद्धि को हमारे यहाँ भी लिख कर चले गये कि ऐसी कुबुद्धि बना चुके और हम देख ही नहीं सकते कुण्डलिनी आपके अंदर है। यहां तक के जो कि हम काई गलत काम कर रहे हैं! हर तरह नाथ पथी लोग थे उन्होंने इसके बारे में किसी का गलत कर्म हम करते हैं और कहते हैं हम तो बहुत अच्छे आदमी हैं। इस प्रकार हमारी को दे दीजिए तो लोग इसका क्या इस्तेमाल को बताया नहीं क्योंकि वो सोचते थे किसी और 16 चैतन्य लहरी खंड XIl अक : । 8 2. 200। आप गलत-गलत चीज की तरफ दौड़ना और है। जिन्होंने ऐसी चीज पढ़ी बो दुनिया भर की इसलिए इन्हांने साफ साफ कह दिया कि आप सब गुरुओं की सेवा करिए। एक बोरा भर के आप बहुत से मूर्तियाँ ले आइए, उनकी पूजा होगा कि ये सर्वसाधारण इन्सान के लिए नहीं करिए। अब बैठे हैं सवेरे चार बजे से, कर रहे देना। लेकिन किताबों में लिखा है। अब बारहवीं हैं। फिर ये उपवास करिए ये तपास करिए, इतने शताब्दि में ज्ञानेश्वर जी आए उन्होंने अपने गुरु कर्मकाण्ड हमारे अन्दर भर दिए कि हम उसी से कहा कि आप मुझे इजाजत दें, मैं अपनी में मिटे जा रहे हैं । ये भी नहीं हमारे समझ में करेंगे? क्या करेंगे क्या नहीं करेंगे? और हुआ झूठी-मूठी बातें फैलाते हैं और उन्होंने पैसा खूब कमाने धंधा बनाया। तो उनका यही विचार रहा ज्ञानेश्वरी में इसके बारे में लिखना चाहता हूँ। आता ये क्यों कर रहे हैं? इसका क्या फायदा छठे अध्याय में उन्होंने लिखा! लेकिन ऐसा भी हुआ हमारे वाप दादाओं ने यही किया और हम होता है कि धर्म के नाम पर बहुत लोग पैसा भी यही कर रहे हैं ? मोहम्मद साहब ने साफ कमाते हैं । तो उन्होंने कहा 'नहीं, ये निषिद्ध है, इसको मत पढ़ो। ये बेकार चीज है। ये सबके किसने बनाई है। ये चीजें किन लोगों ने बनाई हैं। बस का नहीं। अभी मैंने एक बड़े भारी साधु लेकिन ये ठीक है कि इन्होंने जो मक्का में एक बाबा का लैक्चर सुना। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ काले पत्थर के चारों तरफ प्रदक्षिणा डालने की कहा कि मूर्ति पूजा बन्द क्योंकि पता नहीं उन्होंने कैसे ये कहा आसानी से? आप नहीं बात कही है वो क्यों है? इस पत्थर में क्या समझ पाएंगे। पर इस तरह से गाली दी कि आप विशेषता थी? इस पत्थर में क्या बात थी जा कह लोग सब प्रवृत्ति मार्गी हैं। निवृत्ति मार्गी नहीं है। प्रवृत्ति माने इधर उधर दौड़ने की आपको जो रहे थे कि मूर्ति पूजा मत करो पर इस पत्थर के चारों तरफ क्यों घुमाते हैं? इसकी वजह ये थी क्रिया है वो आप है। अब बताइए! और संव कि मक्का में मक्केश्वर शिव हैं; वो शिव हैं, हाँ-हाँ कर रहे। पर आप निवृत्ति मार्गी नहीं है तो मक्केश्वर शिव हैं। लेकिन अब कैसे जानिएगा आप को ज्ञानमार्गी होना चाहिए क्योंकि सहज योग ज्ञान-मार्गी है। आप अपने तरीके से चलिए और गुरुओं की सेवा करिये। उनको प्रसाद दीजिए इनको ये करिये वी करिये। और लोग होता है तो ये छः चक्रों को छेद कर चारों तरफ मान गये! कोई किसी को कहे कि तुम निवृत्ति फैली हुई दैवी शक्ति से एकाकारिता प्राप्त करती नहीं हो तो एक तरह से तो ये गाली हो गई। है तब आपके हाथ में चैतन्य बहता है। तब लेकिन किसी को संस्कृत ही मालूम नहीं। जो आपके हाथ बताएंगे कि क्या सत्य है और क्या बोल रहे हैं ठीक ही बोल रहे हैं । कि वो मक्केश्वर शिव है? आप कैसे जानिएगा कि स्वयंभू मूर्ति कौन सी है? आपके पास कोई साधन नहीं। इसीलिए जब कुण्डलिनी का जागरण कुछ तो हमें गलत। इतनी सुन्दर व्यवस्था हमारे अन्दर पहले इन्होंने बनाया है और प्रवृत्ति पाने का मतलब है ही से बनी है। ये कुछ बनाने की जरूरत नहीं। 17 चैतऱ्य लहरी खंड : XIII अंक :& 2.200। : । 8 2. 200। अब आपके हाथ बता रहे हैं, माने आपके हाथ देवी हमारे अन्दर विद्या है। या कहना चाहिए कि ये मशीन है हमारे अन्दर। जब ये चलकर, जब जानते हैं। मोहम्मद साहब ने कहा है कि जब कियामा आएगा तो आपके हाथ बोलेंगे। आ गया कियामा अब इसे प्राप्त करो। कोई पढ़ता भी है, ये हो जाती है तब एक से एक चमत्कार शुरू आपको अपने ही बारे में दिखाई देते हैं। जितने शराबी शराब पीते थे उन्होंने शराब छोड़ दी, जब हाथ बोलेंगे तो इस हाथ से पता चलेगा क्या चीज़ गलत है, क्या चीज अच्छी है क्या चीज कितने ही दुष्ट लोग थे उन्होंने दुष्टता छोड़ दी। मैं तलियाती में गई तो वहाँ पर एक माफिया के मुख्य डॉन थे तो उन्होंने सहजयोग ले लिया। मैंने कहा भई कमाल है इन्होंने सहजयोग कैसे ले सही? अब कोई कहे कि मक्का में क्या रखा है हाथ उधर करके देख लोजिए जो लोग सहजयोगी हैं सब देख सकते हैं कि कितनी चैतन्य की लहरें हैं तो कौन सत्य है और कीन असत्य। लिया? कहने लगे माँ बो सहजयोगी हो गए ये आपकी मिलना चाहते हैं। वो आए तो इतने नम्र। आप अपने हाथ पर जान सकते हैं। इतनी सुन्दर ाड व्यवस्था कि पूरा यन्त्र ही हमारे अन्दर बना हुआ बस उन्हांने इतना कहा कि माँ मैने बहुत गुनाह है। इतना सुन्दर। जब ये व्यवस्था होती है और किए हैं इनकी मुझे माफी मिल जाएगी या नहीं जब आप उसे प्राप्त कर लेगे तो कमाल की बात ये बता दो? अरे! मैंन कहा क्या बात करते हो, है कि आपके अन्दर के दोष अपने ही आप तुमने गुनाह किए वो तो हो गए। अब भूतकाल विलय हो जाते क्योंकि आप दूसरी ही दुनिया में में हो गए पीछे हो गए। आज में तुमसे जो बात कर रही हैूँ वर्तमान की। और वो वात अब खत्म गुजर जाते हैं। आपके अन्दर काम, क्रोध, मोह. मद-मत्सर, लोभ ये जो आपके शत्रु हैं, भाग हुई अब वर्तमान में तुम क्या हो? तुम आज जाते हैं। हमारे लिए तो आश्चर्य की बात है कि कहाँ से कहाँ हो गए हो. ये देखना है। फिर इंग्लैण्ड में जब हमने पहले दिन प्रोग्राम किया उसने इतनी मदद की. हम लोगों की इतनी था तो वहाँ छः ड्ग एडिक्ट (नशेडी) आए। वो सराहना की और एक तरह से बड़ा आश्चर्य लोग ड्रंग लेते थे और दूसरे दिन ही वो साफ हो गए। भई ये तो कमाल है ये कैसे हो गया? हुआ कि ये जिस तरह जो माफिया का जा सबसे वहाँ मुख्य आदमी था उसमें ये बदलाव कैसे आ गया? वो कैसे इस चीज को मान गए? ये घटित कहने लगे अब तो हमें पता नहीं हमें तो लेना ही नहीं, हमें अच्छा ही नहीं लगता। ये बेकार है। हो गया, उसमें किसी को लैक्चर नहीं दिया, बड़े बढ़िया लोग हो गए। वही आज बहुत किसी को समझाया नहीं, बताया नहीं। ये घटना है और ये घटना इस कलियुग में होनी अत्यावश्यक हैं क्योंकि इससे आदमी जो है परिवर्तित हो जाता कार्यान्वित हैं और कार्य कर रहे हैं। तो ये जो चीज़ है कि अपने को प्राप्त करो कहा है, माने अपनी आत्मा को जानो, इसकी व्यवस्था भी है Transtorm हो जाता है। और जब आदमी हमारे ही अन्दर बनाई हुई है जैसे कोई बड़ी परिवर्तित हो जाता है तब वो इतना निखर आता 18 चंतन्य लहरी खड़ : XllI अक : । & 2. 2001 है इतना सुन्दर हो जाता है। आज दुनिया को इस सके और लोगों की भी जागृति करें और इस परिवर्तन की जरूरत यही परिवर्तन करना ही जागरण में इसे पाएं। इसको प्राप्त करने के बाद देखिए, मैने तो यही देखा है, है। हम सोचते हैं आप सब सहजयोगियों का काम न कहीं झगड़ा है। मैंने जहाँ तक हुआ हैं, की है मेहनत। इतने होता है, न कोई आफ़त होती है। कोई भी देश देशों में घूमी फिरी हूँ। अब आप लोगों को के लोग आएं, कहीं से भी आएं, न कांई मोर्चा चाहिए जो सहजयोग में आए हैं या आने वाले हैं बाँधता है न कोई झण्डे उठाता है, कुछ नहीं। उनको चाहिए कि और लोगों को बताएं और बस एक दूसरे का समागम है। सबसे बड़ा उनको इस परिवर्तन में लाना है बहुत से लोग आनन्द का सागर है और एक दूसरे से मिलकर भटके हैं यानि परमात्मा के नाम पर भटके ही बड़ा अच्छा लगता है। अपने देश की तो हुए हैं किसी भी संस्कृति है कि भाईचारा होना चाहिए। सवको हुए हैं, धर्म के नाम पर भटक हुए चीज़ में भटके हुए हैं। इनको जव आप इस आपसी मिलावा होना चाहिए। हरेक चीज़ में एक अवस्था में लाएंगे तब आप देखिए इनका दीप तरह से दूसरे की मदद करनी चाहिए। ये तो कैसे जलता है। अब इतनी सारी यहाँ बत्तियाँ अपनी संस्कृति हैं। जल रही हैं। इनका अगर कनैक्शन इनके साथ न हो, मेन के साथ तो क्या जल सकती हैं? विचित्र-विचित्र बातें होती गईं। ये देश अनेक हिस्सों में विभाजित हो गया और इसलिए इसी प्रकार जब तक हमारा ही सम्बन्ध जैसे कि इसमें भी बहुत से झगड़ें हो रहे हैं। जहां देखो ये है इसका सम्बन्ध ग़र मेन के साथ नहीं है तो वहीं झगड़े। कहीं जाइए तो एक मोर्चा लिए ये कोई उपयोग ही नही। इसी प्रकार हमारी खड़े हैं तो उधर दूसरा मोर्चा लिए खड़े हैं और इसका हालत है कि हमारा सम्बन्ध इस महान शक्ति के कोई भी बात को लेकर के इस तरह से कोई सी साथ है और सबसे बड़ी बात ये है कि ये सत्य भी चीज को लेकर के एक गठबन्धन करने का ही थी. सत्य ही है। और झगड़ा करने का। ये इन्सानियत की निशानी जब आपका चित्त इस आत्मा के प्रकाश से नहीं, ये तो जानवर भी नहीं करते फिर इन्सानों आलोकित होता है तो आप एक अलग ही को तो ऐसा नहीं करना चाहिए। इन्सान जो है ये प्रकाशमान व्यक्ति हो जाते हैं। ऐसे व्यक्ति कि सबसे ऊँची चीज़ परमात्मा ने बनाई है और जो सारे संसार की भलाई करता है। सारे संसार इसमें इतना सुन्दर अपने अन्दर जो पूर्णतः ये में ग़र मनुष्य बदल गया तो कोन सी आफ़त एक इन्तजाम कर दिया, ऐसी व्यवस्था कर दी है कि आप बहुत आसानी से इसे ়ाप्त कर लें आएगी। सारी आफ़त तो मनुष्य से ही है। जब और इसके लिए आपको पैसा-वैसा देनें से कोई मानव ही बदल जाएगा तो कोई सी भी परेशानी, कोई सी भी तकलीफ नहीं आएगी। इसलिए हमें मतलब ही नहीं है। जैसे एक साहब मुझसे कहने सोचना चाहिए कि किसी तरह से जितना हो लगे कि मैं आपको एक लाख रुपया देता T9 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक 2,2001 : 1 & ho ho आप मेरी कुण्डलिनी जगाइए। मैंन कहा जनाव देखिए हमसे मिलने एक आए थे. साहब वो आइबोरी कोस्ट के मुखिया थे. वो इतने नम्र आदमी इतने नम्र आदमी कि मैं तो हैरान हो गई। मैं आपको दो लाख रुपया देती हूँ आप बातचीत बन्द करिए। क्योंकि कुण्डलिनी को पैसा नहीं समझ में आता। कुण्डलिनी जो है एक दैवी शक्ति आपके अन्दर है आपकी शुद्ध इच्छा होने करिए कि हमारे देश में सव लोगों को सहजयोगी आकर नम्रतापूर्वक मुझसे कहते हैं कि माँ ऐसा बना दीजिए। मैंने कहा अच्छा ठीक है तुम्हीं बना पर, गर आपको शुद्ध इच्छा नहीं हुई तो जबरदस्ती सकते हो सबको। कहने लगे मैं तो इतना मज़े में नहीं हो सकती। ये ऐसा क्या चलेगा आप जबरदस्ती नहीं कर सकते। ग़र आपके अन्दर आ गया हूँ। उन्होंने तीन बीवियोंसे तलाक लिए। अव कहने लगे मैं तो शर्मिन्दा हूँ। मेरी क्या शुद्ध इच्छा है तभी ये कार्यान्वित होगी अब हमारी कोई सी भी इच्छा शुद्ध नहीं है रार शुद्ध जिन्दगी है? मैंने क्यों ऐसी जिन्दगी बनाई? मेरे होती तो आपका आजकल जो Economics है ये समझ में नहीं आया पर अब जो है में बिल्कुल नहीं चलता। Economics में क्या है कि आज बदल गया हूँ। अब मेरे अन्दर इतना आनन्द, इतनी शान्ति और इतना सुख हैं। और छः सो आपने समझ लोजिए मार धाड़ करके घर बनाया लोग, छ: सौ लोग वहाँ पर जो हैं सहजयोगी पर इसका कोई सन्तोष नहीं। फिर आपको मोटर और उन्होंने मुसलमान धर्म लिया था। मैंने कहा चाहिए. इसका भी सन्तोष नहीं। किसी चीज़ से सन्तोष ही जब नहीं मिलता इसका मतलब तुम मुसलमान क्यों हो गए? तो उन्होंने कहा कि इसलिए क्योंकि ये जो फ्ैन्च लोग हैं इनमें तो कोई नैतिकता है ही नहीं, Morality है ही नहीं। वो ये है कि अपनी आत्मा का इनकी तो नेतिकता एक दम बिल्कुल गई बीती आपकी इच्छा शुद्ध नहीं। ग़र शुद्ध इच्छा होती तो आपको सन्तोष मिलता लेकिन एक ही चीज़ में शुद्ध इच्छा है, आत्मसाक्षात्कार। आत्मा आपके चित्त में है। इसका है। तो हमने कहा मुसलमानों का धर्म ले लो उससे थोड़ी तो नैतिकता बनी रहेगी। इसलिए प्रकाश आपको आनन्द देगा. शान्ति दगा। सब तरह से ज्ञान देगा लेकिन सबसे ज्यादा ये आपको हम बन गए। तो मैंने कहा सहजयोग में तो सभी सामूहिक बनाएगा। इसमें आप सामूहिक हो जाएंगे। सामूहिकता की बात ये है कि दुनिया में हम लोग ये सोचते हैं हम लोग अलग हैं। ये फ़लाने धर्म एक समान हैं। इसमें किसी धर्म का अपमान नहीं. कोई ऊँचा नहीं नीचा नहीं। बल्कि आप अपने धर्म को बहुत अच्छे से समझ लेंगे। हैं ढिकाने हैं। एसा तो परमात्मा की नज़र में नहीं इसकी जो गहराई है उसको समझते हैं। अभी हैं। परमात्मा की नज़र में सब हम लोग उन्हीं के तक आप भटक रहे हैं तो आप उसे पा सकते आश्रय में हैं। ये दिमागी जमाखर्च है कि हम हैं। ये असलियत है जिसके लिए ये धर्म बनाए ऊँचे हैं, ये नीचे हैं, ये फलाना है ढिकाना हैं। गए थे। जो लोग आजकल धर्मं के नाम पर सब बिल्कुल ही दिमागी जमा खर्च है। आज लड़ाई-झगड़ा, ये वो करते हैं ये कैसे हो सकता 20 चैतन्य लहरी खंड : XIII अंक : । ৪ 2, 2001 2,2001 গ গe है? ये गलत चीज है और ये गलत काम है? सब मालूम है उसको सम्भालते हुए ये आपकी माँ उठती है और आपको इतनी भी इसलिए हो रहा है कि फिर से मैं कहूंगी कि अन्दर एक कुबुद्धि आ गई और कुबुद्धि ये कार्य करती है। अब इस कुबुद्धि को भी प्रकाशित करती है तकलीफ नहीं होती। आश्चर्य है। इतनी सी भी तकलीफ नहीं होती क्योंकि ये माँ है। जब आप पैदा हुए थे तो माँ ने सारा दुख अपने ऊपर झेला आपकी कुण्डलिनी। जब ये इस चक्र से गुजरती था। आपको कोई तकलीफ नहीं दी थी। उसी हैं, आज्ञा जिसे कहते हैं, तो वो प्रकाशित कर प्रकार ये माँ है। जब इसका जागरण होता है तो देती है और आपको समझ में आ जाता है कि किसी प्रकार की आपको तकलीफ नहीं होती ये मैं ये क्या कर रहा था? ये किस बेवकूफी में कोई परेशानी नहीं होती और आप एकदम कहाँ दौड़ रहा था? ये किस बात को लेकर मैं लड़ से कहाँ पहुँच जाते हैं। और फिर ये आश्चर्य रहा था। जब तक आप अपने को नहीं जानिएगा होता है कि आप ऐसे थे, ये सब आपके अन्दर था इतनी सम्पदा थी ये पता ही नहीं। बो हर तब तक आप सत्य को पहचान ही नहीं सकते और अब इसी चीज में अपनी जिन्दगी बरबाद हैं जैसे शारीरिक, मानसिक तरह से आपके साथ कर रहे हैं। अपनी करेंगे, अपने बच्चों की करेंगे. बौद्धिक आध्यात्मिक चारों स्तर पर ये चक्र इतना ही नहीं पर सारे देश का ही सल्यानाश हो कार्य करते हैं और सब तरह से ये मामला बन जाएगा। अनेक देशों का इस तरह से सत्यानाश जाता है। इसमें कोई शक नहीं, सहजयोग में हो रहा है। इसलिए एक जो ये चीज हमारे देश में है और जो बहुत ही पवित्र चीज़ है कि आने के बाद तन्दरुस्ती अच्छी हो जाती है, सब कुछ अच्छा हो जाता है। इतना ही नहीं, लेकिन आपको कुए्डलिनी का जागरण करना है। अब जो कुछ साम्पत्य स्थिति वो भी लक्ष्मी की कृपा ये कुण्डलिनी आपकी माँ है आपकी अपनी से ठीक हो जाती है। व्यक्तिगत, आपकी अपनी हो माँ है। बी किसी ओर की माँ नहीं। जैसे आपकी माँ के हो सकता अपने देश में इतने लोग सहजयोगी बने हैं अधिकतर उनकी सबकी सम्पत्ति ठीक हो गई, है पाँच-छः बच्चे हों आठ दस बच्चे हों, इस उनका व्यवहार ठीक हो गया, उनके झगड़े खत्म कुण्डलिनी के आप ही वेटे हैं आप ही बेटी हैं। हो गए। सब कुछ क्योंकि ये शक्ति चारों तरफ अब इस कुण्डलिनी का जब जागरण होता है विद्यमान है । हर जगह विचरण करती है और और जब ये जागृत होती है तो इसको सबकुछ वड़ी कार्यान्वित है और इस शक्ति के सहारे मालूम है आपके बारे में। इसके अन्दर आपके हमारा भला ही नहीं बल्कि एक विशेष रुप का बारे में सारा रिकार्ड हैं कि आप क्या चाहते हैं, आदर्श जीवन बन जाता है। ऐसा जीवन जिसे आप क्या थे. आपमें क्या-क्या दोष हैं, आपके देखकर कहें ये क्या आदमी है इस तरह का! शरीर में क्या दोष हैं? कहाँ कीन सी तकलीफ जैसा पहले कहते थे, साधू सन्तों के लिए। आज 21 चैतन्य लहरी खंड :XII अंक : । & 2, 2001 तो सहजयांग में इतने लोग बैठे हैं और इतने उन्होंने बहुत लोगों को प्यार दिया, इतने लोगों के सहज में आए हैं। ये इतने देशों में सहजयोग फैलने का कारण ये है कि सब देशों में एक फेक्सस आए कि में अभी उनमें से गुजर ही नहीं पाई। इतना प्यार, इतनी-इतनी बढ़िया-बढ़िया प्रकार की बड़ी ग्लानि एक तरह की निराशा बातें जिसके बारे में लोगों ने लिखा मैं सोच कर और दूसरे बहुत ज्यादा हिंसक वृत्तियाँ बढ़ गई हैरान हूँ। मैं नहीं सोचती थी कि ये इनका इतना प्यार लोगों में बँटा हुआ है इतने लोग उनको हैं। सो उसमें जो लोग थे उन्होंने सोचा ये गलत है तो वो सहज में आए। ऐसे बताते हैं 86 देशों में सहजयोग फैला हैं हालांकि मैं इतने देशों में तो गई नहीं, सही बात है। पर जैसे बीज उड़कर प्यार करते हैं। तो ये सारा प्यार का माहौल जिसमें आप आए सब आपको प्यार करेंगे। आप भी सबको प्यार करेंगे। यही सबसे बड़ी बात है जाएं, जहाँ भी बहाँ पौधा खड़ा हो सकता है। उसी प्रकार सहजयोग फैला और बड़ा आश्चर्य होता है कि वहाँ से लोग यहाँ आ जाएंगे और वहाँ भी आते हैं और इटली भी आ जाते हैं। पर मैं उनके देश में अभी तक नहीं जा पाई और हो सहजयोग की कि सहजयोग की शक्ति जो है प्रेम की शक्ति है और इसके आगे कोई और शक्ति नहीं चल सकती। प्रेम से बड़ी शक्ति जो प्रेम की शक्ति है इसी के एक बड़े भारी आवरण में आप हैं और हमेशा आपका सके तो कभी चली भी जाऊंगी। लेकिन उनका संरक्षण है आपको कोई छू नहीं सकता क्योंकि आपको परमात्मा प्रेम करते हैं। इनके जो प्यार है उनका आपसी प्यार और जो उनका आपसी मेलजोल है वो देखकर के बड़ी हैरान हूँ। किसी एक आदमी के लिए भी अभी बम्बई दुष्टता कर सकता है? ऐसे ऐसे हमारे यहाँ आगे कौन चल सकता है, इनके आगे कौन में जब बम फूटा था तो एक लड़का था हमेशा उदाहरण हा गए कि लोग कहते हैं माँ कैसे मैं कहता था माँ मैं जीना नहीं चाहता। मेरी माँ बहुत बदल गया मुझे पता नहीं! कैसे मैं पा गया मुझे खराब है। ये है वो है बार-बार यही कहता था । पता नहीं! ये सारी बातें सुनकर आप लोग भी उसी एक लड़के की मौत हुई। तो सारे देशों में बहुत खुश होते हैं क्योंकि सब आपके ही भाई इतने देशों में ये खबर हो गई और सब लोग दौड़ बन्धु हैं। सब आपके ही लोग है और इसे पड़े और पता लगाया कहाँ है क्या है फिर वहाँ जाकर कहा कि साधू सन्त हैं, ये तो है और दुनिया में बड़े अच्छे दिन आएंगे, बहुत उन्होंने कहा अच्छा तो हम तुमको जमीन देते हैं अच्छे दिन आएंगे और उसमें लोग हमेशा हमेशा तुम चाहो तो इसे यहाँ जलाओ इसी में गाडो। ऐसे ऐसे लोगों ने वहाँ चिट्ठियाँ भेजी कि मैं तो हैरान हो गई। इसके बाद में अभी मैंने देखा कि अभी भी बहुत लोगों को परिवर्तित करना है। देखकर के यूँ लगता है कि दुनिया बदलने वाली ये, वी? एक महान देश, एक महान व्यक्तित्व, महान कार्य को लें। ये होना है, ये हो रहा है, पर एक परिवर्तन बहुत जरूरी है और अभी तक इन्सान 22 हमारे भाई साहब की Death हो गई बाबा मामा। चेतन्य लहरी खड : XII अक : । & 2, 2001 । देंगे, जैसे कि पेड़ पौधों को आपको जल देना बने रहें लेकिन इन्सानियत से भी उतर गए। होता है. उसी प्रकार ये ग़र आप नहीं करंगे तो इनका परिवर्तन बहुत आसान है। इसे आप प्राप्त ये वृक्ष बढ़गा नहीं। इसीलिए ईसा ने कहा है कि कुछ बीज ऐसे पत्थर पर गिरे, कुछ बीज ऐसी जमीन में गए कि वहीं खत्म हो गए और कुछ बीज ऐसे थे जो कायदे की जमीन पर रहे और करें। परिवर्तन के सिवाय कोई और मार्ग नहीं है और इसमें ये कुण्डलिनी के जागरण से होता है और किसी से होता नहीं। अब कोई कहेगा कि माँ ये इसको अगर हम पानी में पनप करके वृक्ष बने। तो इसमें कोई धर्म की डाल दें तो चलेगा या इसको हम जलाए तो चलेगा? नहीं चलेगा इसका सिर्फ कनैक्शन आपको निन्दा नहीं है। किसी धर्म के विरोध में नहीं, पर सारे धर्मों का गौरव इसकी विशेषता है और एक लगाना है। लेकिन थोड़ा समय आपको देना सम्बन्ध जबरदस्त इन सब धर्मों में है वो स्थापित होगा। और जहाँ भी आपके सेन्टर हैं वहाँ जाए और अपनी गहनता बढ़ाएं। और ये बहुत लोग होगा एक बहुत ही ज्यादा आनन्दमय, सुखमय ऐसा जीवन भविष्य में आपके लिए बना है इसे कम करते हैं इसलिए इनकी उन्नति होती नहीं। जब तक आप इसे सामूहिकता का प्यार नहीं आप प्रप्त करा क ऐसा मेरा आपको अनन्त आशीर्वाद हैं 23 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : । & 2, 2001 भूमि पूजन- 2000 ট। नारी का आदर व सम्मान) 7.4.2000 (्रेटर नोएडा) परम पुज्य माताजी श्री नि्मला देवी का प्रवचन सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों आई कि हमारे देश में इतनी संस्कृति है इसकी को हमारा प्रणाम। मैंने तो इतनी आशा नहीं की थी कि आप इतने लोग इतनी बड़ी तादाद में इस जगह आएंगे और इस कार्य को समझंगे। एक भी हमारे देश में इतनी दुर्दशा क्यों है? तो ये बार एक प्रोग्राम में हम जा रहे थे। दौलताबाद ख्याल आया कि जहाँ की माताएँ ही इस पवित्रता भी है. और औरतें अपने चरित्र को एक बहुत ऊँची चीज़ समझती हैं। सब कुछ होते हुए प्रकार पीड़ित होंगी तो उनके बच्चों का क्या जगह का नाम है, उससे गुजर के सामने जाना था। रास्ते में गाड़ी खराव हो गई। सहज में ही हाल होगा? वे किस तरह से अपने बच्चों का गाड़ी खराब हा गई। सो उतर के देखा को वहाँ पाल सकती हैं और उनको कौन सौ शिक्षा बहुत सी औरतें, सौ से भी अधिक, अपने बच्चों सकती हैं? तब मेरे मन में ये विचार आया कि समेत। वहुत से बच्चे उनसे कई गुना ज्यादा। ऐसी कम से कम एक संस्था बननी चाहिए कि वहाँ एक नल फूटा था उससे पानी ले रहीं। जहाँ इस तरह की औरतें जिनका कोई सहारा इतनी धुप, बड़े फटे से कपड़े पहने हुए किसी नहीं, जो किसी तरह से जो रही हैं, उनके लिए तरह सर पे चुन्नी लिए हुए। मुझे समझ में नहीं आया कि क्या हो रहा है। तो मैंने उनसे पृछा कि काफी साल हो गए, लेकिन सहजयोग में भी आप लोग यहाँ क्या कर रहे हो? यहाँ कैसे काफी में व्यस्त रही। उत्तर प्रदेश तो मेरा ससुराल आए? तो उन्होंने कहा कि हम सब मुसलमान है और वहाँ जो मैंने देखा कि औरतों की कोई औरतें हैं और हमारा तलाक हो गया और ये इज्जत नहीं। औरतों को कोई मानता नहीं, सब हमारे बच्चे हैं। जो महर थी वी बहुत ही थोड़ी हावी। अगर कोई औरत जबरदस्त है तो वो ही कुछ न कुछ सहारा बनाना चाहिाए। अब इसे जी सकती है। जो Dominate कर सकती है वो ही जी सकती है और जो सोधी सरल है उसे तो हम यहाँ गिट्टी फोडते हैं। और रहते कहाँ खूब दबाया जाता है। हर तरह से। उसका हो? तो कहने लगी सामने जो घर है। कुछ कपड़े विल्कुल ख्याल नहीं। बो मरे चाहे जिए अगर थी। उसमें तो एक महीना भी चलना मुश्किल था लेकिन किसी तरह से हमें यहाँ काम मिल गया मर गई तो लोग उनको दावते देंगे कि फिर से थे। टूटा फूटा सा एक मकान तो नहीं कह सकते, उसी में, हम सब रहते हैं। वहीं पता नहीं शादी करों। सब देख के मैं तो हैरान हो गई क्यों मुझे बहुत रोना आया और एक पत्थर पर बैठ कर मैं रोने लगी। मेरे अदर एक भावना क्योंकि महाराष्ट्र में ऐसी हालत नहीं है। और जो विधवा हो गई तो विधवा ही बनी रही बेचारी। 24 चैतम्य लहरी खंड : XIl अंक : । & 2.2001 बस उसकी कोई खैर नहीं। तो पहले तो मैंने सो तो मैरे अनुभव की बात थी तो मैने कहा कि ऐसी संस्था सबसे पहले उत्तर प्रदेश में बनना चाहिए और बड़े आनंद की बात है कि उत्तर प्रदेश में ही यह संस्था शुरु हो रही है। इसमें तो देश में कौन करेगा और करेगा भी तो उसे सत्रह हर हालत ये चाहेंगे कि जो औरतें अपने पैर पर खड़ी नहीं हैं और मोहताज हैं हर चीज़ के लिए, उनमे ऐसी शिक्षा देनी चाहिए कि वे अपने पैर कहें। लेकिन ये नहीं जानते कि यह नर्क की पर खड़ी हो जाएं और अपने बच्चों का पालन तो कहा कि सहजयोग में कोई विधवा गर आए उसका विवाह जरूर करवाना चाहिए। पर अपने बातें सुनाएगा। पुरुष होना ही बो सोचते हैं कि विशेष रूप के अधिकारी हैं कि जो चाहे सो गति है। ये बहुत बुरी बात है. दुष्टता है। दुसरों पोषण कर सके। उनको इज्जत मिल। पर इसी से सब कुछ होने बाला नहीं। ये समझ लीजिए कि ये एक बहुत छोटे पैमाने की बात है लेकिन ये तभी होगा जब यहाँ के समाज में स्त्री का के साथ दुष्टता करना ही बुरी बात हैं। परन्तु अपनी पत्नी, जो कि आपके सारे सुख का साधन हैं उसके साथ इस तरह से व्यवहार करना, तो अपनी संस्कृति का नहीं है यह काम। भारतीय संस्कृति में यह कहा जाता है "यत्र जहाँ स्त्री स्थान बनेगा। यहाँ के पुरुष इस वात को समझेंगे कि उनका अपने घर की, औरतों की तरफ, नार्याः पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता बच्चियों की तरफ क्या कर्त्तव्य है और क्या उन्हें पूजनीय हो वहाँ पर देवता निवास करते है | करना चाहिए। उनका जीवन बहुत एकॉँगी है इतना ही नहीं। पर स्त्री को भी यूजनीय होना उसको बदलना चाहिए। और उनको अपनी Family चाहिए। इतने विपत्ति में, इतने तकलीफ में आज अपने बाल-बच्चे अपनी पत्नी, माँ सबको बहुत हमारे देश की नारी है, उसी वजह से हमारे देश प्यार से देखना चाहिए और समझना चाहिए। में कभी अच्छा साम्राज्य आ नहीं सकता। कुछ यहाँ आप सब इतने लोग हैं। सब पुरुषों ने रर ये कसम ले ली कि हम औरतों की इज्जत करंगे और कोई विधवा हो जाता है। आदमी तो कभी होता ही नहीं विधवा। लेकिन गर कोई औरत आपको। लक्ष्मी से ले कर हर एक देवी कोई भी विधवा हो जाए तो उसकी दुर्दशा है। इतनी आशीर्वाद नहीं देंगी आपको, गर आप अपनी बेचारी की दुर्दशा कर देते हैं। औरतें ही खुद पत्नी का ख्याल न करें और उसको सम्मान से उनको कहती हैं। औरतें ही उनको कहती है कि यंत्र ", । अच्छा हो ही नहीं सकता। क्योंकि सारी देवियां, आजकल नवरात्री भी हैं, ऐसी बातों से बहुत नाराज है। वो कोई भी आशीर्वाद नहीं दंगी न रखें। इसीलिए हमारे देश में इस कदर हर तरह की परेशानी है। मैं तो सोचती हूँ कि गर ये चौज ठीक हो जाए तो हमारी हर तरह की ये तो तुम्हारा दुर्भाग्य है, तुम्हारा ही कुछ है और यहाँ तक कि तुमने अपने पति को खा लिया है । ऐसा भी कहती हैं। ये तो मैंने अपने कान से परेशानियाँ ठीक हो जाएँ क्योंकि साक्षात् लक्ष्मी सुना है। इसीलिए पहले शायद औरतें धवराहट से सती हो जाती थीं। और अगर कोई युवती को जो नहीं मानते तो उनको क्या अधिकार है विधवा हो जाए और देखने में वह सुन्दर हो तो का वरदान इसी से मिलता है। घर की गृहलक्ष्मी कि लक्ष्मी के आशीर्वाद से वो प्लावित हो? अब 25 चैतन्य लहरी ।खंड : XIII अंक : & 2. 2001 इस मामले पर और मैंने Video पर देखा था कि तरह की आफत। हर तरह की आफत, इस दश उन्होंने विधवाओं को दिखाया था जो बृंदावन में में और देश में इसलिए नहीं हैं कि उनमें नैतिकता नहीं है। कोई गर औरत विधवा हो तो और उधर गोकुल में रहती है। कृष्ण तो सोच रहे होंगे कि पता नहीं कहाँ से बेचारियों के साथ वो घूमघाम के अपना पति ढूंढ लेगी नहीं तो ज्यादती हो रही है। वो विधवाएँ हैं और उनकी और कोई कारोंबार ढूंढ लेगी। ये अपना ऐसा देश दुर्दशा है कि सारे दिन वे है कि पद्मिनी के साथ 32000 औरतें होम वेचारियों की इतनी गाना गाएं और एक रुपया उनको मिलता है और कुण्ड में कूद पड़ी अपनी आवरू. बचाने के उनको हर तरह से वहाँ के लोग इस्तेमाल करते लिए, अपनी इज्जत बचाने के लिए। इस देश में हैं। पर ऐसी फिल्म देखने से किसी में जागृति फिर औरतों के लिए कौन सा मार्ग बचा हुआ नहीं आई! वहाँ पाँच लाख औरतें हैं इस तरह ?? अपनी इज्जत से वो रह ही नहीं सकती। की। किसी के मन में धारणा नहीं आई. कि उनकी तो इतनी बुरी दशा है कि इससे मैं सोचती हूँ कि किसी को गर कोई रोग हो जाए रहे हैं, कि जा करके उनका कुछ कल्याण करें. तो कम से कम बो किसी अस्पताल में जा सकता है। उसके लिए कोई न कोई व्यवस्था हो कदर संवेदनशील नहीं, बिल्कुल उल्टा ही है। सकती है। पर ये बताइये कि इस तरह की औरतों की जो पीड़ा है वो किस तरह से आप इतना पेसा कमा रहे हैं, ये कर रहे हैं, वो कर उनके लिए कोई चीज़ बनाए? माने मनुष्य इस उसके मन में ये भी भावना नहीं आई। इस फिल्म को बहुत दिखाया गया। फिर मेंने कहा ऐसी फिल्म को दिखाने से कोई फायदा नहीं। सहानुभूति तक नहीं। यहाँ तक कि एक विधवा अब एक थी वो बाकई यहाँ आई थीं, वो दिखाने स्त्री को गर आपने देख लिया तो बड़ा अपशगुन के लिए कि वो तो सिर्फ बदनाम करने के लिए हो गया। एक विधवा स्त्री है तो उसके हाथ का आई थीं। उनकी पब्लिसिटी बहुत हो गई, वो कम कर सकते हैं? इतना दु:ख और कोई खाना नहीं खाने का। ये अपना समाज ये नहीं फिल्म दिखाने से क्या होगा। इन लागों के पास इतने पैसे हैं तो क्यों न ये विधवा के आश्रम आदि कायदे के बनाएं? आज हैं दो चार लेकिन वो कायदे के नहीं है। तो ऐसे आश्रम क्यों न जिनको आप इतना मानते हैं। वो जब विधवा हो जानता कि ये कहीं शास्त्रों में लिखा नहीं है। श्री राम ने स्वयं मंदोदरी का विवाह विभीषण से करा दिया। श्री राम ने (अनेक उदाहरण हैं) बनाए जाएँ जहाँ इन औरतों का पालन पोषण तो गई तो उसका विवाह उन्होंने विभीषण से करा हो कम से कम। बहुत सी औरतें तो इसोलिए दिया। तो फिर कहेंगे कि हाँ यहाँ तक ठीक है अपनी आत्महत्या कर लेती हैं कि ऐसे जीने से और नहीं तो इससे आगे कहीं नहीं शादी कर अच्छा हम आत्महत्या कर लें। एक तो स्त्री के सकते। अब आप ही सोचिये कि गर आपकी लिए विवाह करना ही चाहिए और विवाह के माँ, बहन, बेटी, उनकी दुर्दशा हो रही है तो ऐसे बाद उसके पति गर नहीं रहे तो गए काम से। समाज से तो भगवान बचाए। बेहतर है कि ऐसा फिर उसका जीना मुश्किल और उस पर हर कोई समाज ही न हो और अगर है तो सबको चैतन्य लहरी 26 खंड : XIl अंक : 1 8 2. 200I औरतों ने सीख लिया है कि बेहतर है हम लोग जीने का, आनंद से रहने का पूर्ण अधिकार हो । सो मैं चाहूँगी कि जिन्होंने कभी भी अपने घर में या बाहर में औरतों को सताया हो, औरत का तो कार्य ही है कि सब चीज कां उनको बिल्कुल बदल जाना चाहिए। और अपने को दोषी समझना चाहिए कि हमने जबरदस्त बन जाएँ। पर इसमें कोई फायदा नहीं। आत्मसात करे क्योंकि पृथ्वी जैसी उसकी अपनी शक्तियाँ हैं। किन्तु अपनी शक्तियों को जगाएं और उससे सृजन करें और अपने दम पर करें एक अनाथ असहाय औरत को सताया है अपनी पत्नी को भी जिसने सताया है। अपनी और स्वाभिमान से रहें । किसी तरह की भी बातें बेटी को जिसने सताया है वो सब बहुत बड़े करने से यह कार्य नहीं होंगा। इसको पूरी तरह दोषी हैं। से समझ लेना चाहिए कि ये महापाप है और ऐसे गलत काम करने नहीं देने चाहिए। तभी और मैं ये नहीं बता सकती कि उनका क्या हाल होगा। क्योंकि अब सत्ययुग की शुरूआत होगी और हरेक के लिए जरूरी है कि वो धर्मपथ पर रहे। धर्म में सबसे बड़ी चीज़ है प्रेम। और जो अपनी पत्नी को ही प्रेम नहीं कर सकता तो वो किसको प्रेम करेगा? अपनी बेटो से ही प्रेम नहीं हमारे देश में परिवर्तन आ सकता है। सिर्फ सहजयोग में आने से कोई फायदा नहीं है। सब लोगों को, सहजयोगी हों या नहीं हों, आपके पड़ोस में ही यदि कोई औरत को मार रहा है तो आपको उसे छुड़ाना चाहिए। कोई शराब पी कर घर में दंगा मस्ती कर रहा है तो उसको ठिकाने कर सकता वो किसको प्रेम करेगा? उसका दोष लगाना चाहिए। ये आपका सामाजिक क्त्तव्य है ही न होती तो आपकी माँ कहाँ से आती और और जब तक ऐसी जागृति आप लोगों में नहीं आप कहाँ से आते? इसके प्रति बहुत तींव्र आएगी तब तक ये कार्य नहीं हो सकता। दूसरी बात खुद औरतों की ऐसी है कि इनमें इतना ज्यादा स्वाभिमान है कि ये हर हालत सह लेंगी यही है कि वो स्त्री है। और अगर दुनिया में स्त्री संवेदना आनी चाहिए। अच्छा महाराष्ट्र में भी काफी वाल विधवा का प्रभाव था। इतना नहीं तो भी। पर वहाँ पर ऐसे-2 लोग हो गए जैसे किन्तु इनसे किसी विधवा से कहो कि तिलक थे, गोखले थे, रानाडे थे इन्होंने सबने विधवाओं से विवाह किया और उन्होंने वहाँ पर सहजयोगिनी थी। देखने में बहुत सुन्दर थी और तुम शादी कर लो तो हो गया बस। हमारे यहाँ एक बहुत चेतना लाई। Reforms किए। वहाँ पर पूना तीन बच्चे थे। बड़ा लड़का काई 15-16 साल में जैसे औरतों की शिक्षा एकदम नि:शुल्क है का होगा अब वो कमाने के लिए कहीं भी जाए, कोई भी काम करे, बस आदमी उसके पीछे उससे भी ज्यादा यहाँ कार्य करने की ज़रूरत है पागल। अपनी बीबी के पीछे में नहीं है। दूसरे क्योंकि यहाँ उससे कहीं ज्यादा दुर्दशा है। यहाँ की बीबी और वो विधवा है तो चलो उसके गोल घुमा के. मैने कहा कि, मरे ख्याल से ये जो आपके स्नातक तक उन्हें एक पेसा नहीं देना यड़ता। हा के लोगों में जागृति लाना और उनमें चेतना लाना पीछे। तो उनसे मैंने कहा कि, बहुत ज़रूरी है। उसी की जगह अगर औरत बहुत जबरदस्त है तो उसका राज होता है। बहुत सी प्रश्न हैं इसके लिए अच्छा है कि आप शादी 27 चैतन्य लहरी ।खंड : XIII अक :1 & 2, 2001 औरतों की यह दुर्दशा करो। ऐसे कोई विधि तो कर लीजिए। तो वो तो बेहोश हो गई। सुनते के साथ हो बेहोश हो गई कि माँ आपने एसी बात कैसे कही? जब उन्हें होश आया तो उसने कहा है नहीं कि साथ मरना चाहिए, गर यह धर्म होता तो सब साथ ही मरते। पर साथ तो मरते नहीं। माँ कौन सा मुझमें ऐसा दोय पाया जो आपने इतनी कड़ी सजा सुनाई। अरे भाई ये कौन सी से। इतना दुःख औरतों ने उठाया है कि अब ं में सजा सुना रही हूँ। माने ये भी इतना गर इत्तफाकन औरत बच गई तो वी तो गई काम आपको उठाने की जरूरत नहीं। फिर वो बड़ी तुम्हं ज्यादा हमारे अंदर संस्कार और Conditioning है औरतों में, विधवा हो गए। ये हमारे समाज की देन है। विधवा हो गए तो गए इसके बाद हम लडाका भी हो सकती हैं, गुस्सैली भी हो सकती हैं। घर में बड़ा राजकारण भी करती हैं सब कुछ हो सकता है। लेकिन बो अच्छी औरत नहीं बन विवाह नहीं कर सकते. कुछ नहीं कर सकते, सकती। बो या तो बहुत दु:खी. या बहुत परेशान, हम करेंगे तो बस बेकार। कोन समझाए तब फिर मैंने उनके लड़के को समझाया कि तुम बनाई गई और इस पर हम कोशिश करेंगे कि अपनी अम्मा को समझाओ। वो कहीं नहीं रह सकती थी क्योंकि दिखने में सुन्दर धथी और शायद विधवा थी। तो एक साथ बाद उनकी और गर वो विधवाएं हैं और अभी जवान है तो खोपड़ी में बात आई, जब उन पे काफी आफते उनकी हम अच्छी जगह शादी कर दें। आप लोग आ गई तब एक साल बाद उनकी समझ में आई नहीं करियेगा तो अमेरिका में करवा देंगे। आप कि माँ जो कह रही है ठीक बात है। फिर शादी लोग बैठे रहिए यहाँ। यही बेहतर है। अपने को की। यहाँ तो होना आवश्यक है, फिर कोई बहुत समझते हैं तो बैठे रहिए। ये घमण्ड आदमी विधवा हो गई तो बिल्कुल ही दुनिया से गई बीती औरत। उनकी शादी फिर अमेरिका में औरतों का करने की जरूरत नहीं आदमियों का तो इसलिए यह एक संस्था छोटे ही पैमान पर इसमें उन लोगों को ऐसे रास्ते पर लगाएं कि वो अपने पैसों पर खड़े हों तथा स्वाभिमान से जीएं। का जाना चाहिए। मैं हमेशा कहती हैँ कि reform करवा दी तो उनके बच्चे भी पल गए, बड़े हो गए, अपने-2 ठिकानों पर पहुँच गए। वो लोग भोख माँगेगी पर फिर से शादी नहीं करेंगी। ये reform करो। इतना घमण्ड किस चीज़ का है आपके सिर पर। क्या समझते हैं आप अपने आप को। अभी कोई बता रहा था कि कोई गर भी कोई भगवान ने बताया है? किसी शास्त्र में LA.S में आ गया तो वो तो सबसे बड़ी दामाद लिखा है? कहीं भी नहीं है। ये सब यूँ ही बनाए है। तो मैंने कहा A.S. में है क्या? कौड़ी न धेला। कुछ कमाई नहीं, कुछ मैं तो वैधव्य को मानते ही नहीं हैं। मानते ही नहीं जानती हूँ न। गर ईमानदार है तो। गर बेईमान है तो भी आफत और गर ईमानदार है तो भी आफत। फिर भी औरतें उसमें रहती है। अपने चार लोगों को देखती हैं संभालती हैं प्यार करती दोनों आदमी साथ ही मरें और नहीं मरें तो हैं। पर मेरी समझ में नहीं आया कि ये खोपड़़ी हुए है, औरतों पर आक्रमण करने के लिए। हम नहीं खास। हैं। क्योंकि वैधव्य क्या हुआ, जो पति, मर गए, तो मर गए। अव वो वैधव्य बन कर उनके माथे पर बन गया। क्या कोई जरूरी चीज है? या तो 28 चैतन्य लहरी । खंड : XI॥ अंक : ৪ 2. 200। शक्तिहीन गर दें तो किस काम का है देश किस में कैसे आया आदमियों की कि बे अगर ।A.S. हो गए तो बड़े अफलातून हो गए। कोई भी बात काम का है? लंगड़ा है देश आपका पूरी तरह है अगर इंसान के. वो भी से। बड़ी-2 बातें करने से और Lecture से कुछ नहीं होगा. फिल्म दिखाने से, नाटक दिखाने से कुछ नहीं होगा। कर के दिखाना हांगा। अपने डंडा जीवन में और अपने समाज क जीवन में खड़े मारे। चाहे कुछ भी करे, उसको लगता नहीं कि हो जाएँ कुछ लोग कि हाँ हम तो हैं।reformist I अब बेकार की चीज़ें फैका इसको। इसकी कोई खोपड़़ी में घुस जाती खासकर हिन्दुस्तान में तो वे वाकई में Balloon के जैसे उड़ने लग जाते हैं। फिर चाहे किसी के लात मारे। किसी के थप्पड़ मारे। किसी को हम ये क्या कर रहे हैं। वैसे तो Vegetarian बनेंगे। जैन लोग कहते हैं कि मच्छर को मत जरूरत नहीं। ऐसे बंध गए हैं कि वो भी अपनी दुष्टता से छुटकारा नहीं पाते और औरतें ऐसी बन गई हैं कि वो उसको सहते ही जाती हैं। मारो। खटमल को मत मारो, जो खून पीते रहते हैं हमेशा, उनको मत मारो। पर अपनी बीबोी को अब इसका परिणाम क्या हो रहा है बो कोई नहीं देखता बच्चे खराब हो रहे हैं । आपके बच्चे ही दुष्ट हो रहे हैं चोरी करेंगे। ये करेंगे। ये सब आया कैसे? क्योंकि मार सकते हैं, आसान। क्योंकि वो आपकी बीबी है और इसीलिए तो आई है कि मार खाए। अगर मार नहीं खा सकती तो वो वीबी क्या? ये जो हमारी दशा है और जो हम इस निम्न स्तर पर हैं उसकी भी बजह यह है कि हमारे अंदर के जो समाज टूट गया, क्योंकि family टूट गई, इसलिए हुआ। तो अपने कुटुंब जो हैं, बहुत महत्वपूर्ण चीज हैं। एक-एक कुटुंब से ही समाज बनता है और समाज से ही देश बनता है। देश की बातें करते हैं और कुटुंब। कुटुंब तो खत्म हो रहे हैं। अपने कुटुंब को मूल्य हैं वे खत्म हो रहे हैं। यहले हमारे यहाँ कहते हैं कि जो बड़भूँजे होते हैं वे ही अपनी बीबी को मारते हैं। मैंने तो देखा यहाँ सभी मारते हैं, ऐसी कोई बात नहीं। कोई इस मामले में किसी को शर्म नहीं, दया नहीं। हाँ बाकी मामले में सबको खुब शर्मोहया है परन्तु इस मामले में किसी को शर्मोहया नहीं। बीबी को सबके सामने डाँट देंगे। कोई उनकी उसमें हरज नहीं कि भई हमने क्यों डाँटा। एक बो पहले ही से शिक्षा नहीं इज्जत से रहना, स्वाभिमान से रहना, देशभक्ति से रहना तभी हो सकता है जब घर की औरत ठीक हो। उसकी इज्जत हो। उसको समझने की कोशिश करें । हमारे महाराष्ट्र में भी ऐसी एक दो समाज व्यवस्था है जहाँ इधर से जैसा ही मामला बहुओं के साथ किया जाता है। पर वॉों भी बदल घर में। यही सिखाया जाता है क्या कि इस तरह से आप व्यवहार करो? तो जहाँ तक मुझे हो जाएगा और ये भी बदल जाएगा। इसको बदलना सकता है मैं इस संस्था के लिए पूरी मंहनत ही पड़ेगा। अगर बदलेंगे नहीं, उनके वच्चे उठ कर इन्हीं आदमियों को मारंगे। बीबी को मार की बात तो वाद में होगी। पहले इनको मारेंगे। तब सबकी खोपड़ी ठीक आएगी। इतना अहकार मानव में है, मनुष्य में है। आखिर किस चीज़ करूँगी और जितना हो सकता है इसमें औरों का उद्धार करना चाहिए। गर आज हमारे देश में 65 फीसदी औरतें हैं, उससे भी ज्यादा. तो उस एक पूरे समाज के एक महत्वपूर्ण अंग को आप का 29 चैतन्य लहरी । खड : XIII अक :1 & 2,200। का इतना अहंकार है? कौन सी ऐसी चीजज़ तुमने कि आप उन्हें प्यार करते हैं । पूरी समझ, इसमें पाई है जिसका तुम इतना अहंकार कर रहे हो? कोई ऐसी बात नहीं कि वो आपकी खापड़ी पर अब इस संस्था को चाहिए कि सब लोग बैठ जाएंगी। एकाध होती हैं। लेकिन आदमी गर पूरी तरह से मदद करें। ये नहीं कि सिर्फ पैसा कमजोर नहीं है तो औरत कभी भी उसकी दे दें. पर इसको पनपाने में। अब सबसे बड़ा प्रश्न तो ये है कि है, उनको खोज कर निकालना है। अब हमें क्या पता कि कहाँ कि औरतें हैं, क्या. अब हम तो खिल सकते। बच्चे तो माँ को मानते ही नहीं। माँ यहाँ रहते भी नहीं। तो इस तरह की औरतें अगर के पैर भी इस तरह से छुएँगे जैसे कोई ईंट या आपको मालूम हैं. जो पीड़ित हैं. दुःखी हैं और जिनका कोई सहारा नहीं, और जो विधवा बन खोपड़ी पर नहीं बैठ सकती। पर वो इतनी दबी हमें ऐसी औरतों को खोजना हुई भी नहीं रहना चाहिए कि जिससे बच्चे भी नहीं पनप रहे हैं, जिसमें कुछ फूल ही नहीं पत्थर बीच में पड़ा हो। और बाप को फुरसत नहीं। तो बच्चे तो बिगड़ ही जाएंगे। और उससे कर बहुत कुछ सह रही हैं, ऐसी सब औरतों को जो जो आज दशाएं हुई हैं, जो-जो आप पढ़ते हैं, आपको इस संस्था में लाना चाहिए। अभी तो ये पेपर में देखते हैं, उसका कारण ही ये है कि हमारी कुटुंब व्यवस्था ठीक नहीं है। वो बहुत जरूरी है कि उसको आप ठीक रखिए। यही कह रहे हैं कि 100 औरतों का इंतजाम है। 100 से क्या होगा, पर उसके बाद उनसे बातचीत करके. उनको समझा बुझा के., जो लोग अंदर हमारे समाज का ताना बाना है। इसके सहारे आएंगी वो तो आएंगी ही लेकिन जो बाहर रहेगी. उनको भी समझाया जा सकता है। उनके पति को भी समझाया जा सकता है, उनके घर वालों का मान रखना उसका उत्थान करना और लोगों को भी समझाया जा सकता है। अपना ही देश ऐसा है जहाँ अब भी कुटुंब व्यवस्था चल रही तरह से समझना चाहिए और उधर ध्यान देना है। बाकी कहीं नहीं है। उसका उत्तरदायित्व चाहिए। ये मेरी आंतरिक इच्छा है। ऐसा वो औरतों को है, आदमियों को नहीं। ये भारतीय नारी की विशेषता है जिसने इस देश को रोक आशीर्वाद। किन्तु उस आशीर्वाद में सबको अपने रखा है, नहीं तो कब के चले जाते। इसलिए साथ समेटिए। हमें तो लोगों को जोड़ना है। जब अब आप समझ लीजिए कि गर आपने अतिशयता एक कुटुंब ही को आप नहीं जोड़ सकते तो करी तो यही औरतें जो हैं क्रान्ति कर देंगी आपके लिए। वो ठीक नहीं है, वो प्रेम का हनन है, अच्छी बात नहीं। अच्छी बात ये है कि ये वड़ी भारी बात आपने प्राप्त करी। ये ज्ञान समझदारी रख कर अपनी स्त्रियों की अपनी मार्ग है और इसमें आपको पता है प्रेम क्या चीज बेटियों की हिफाज़त करें। उनको देखें, सम्भालें, है और किस तरह से आदान प्रदान करना उनको प्यार दें। और उनको यं पता होना चाहिए चाहिए। आपस में किस तरह से समझना चाहिए। आज आप भी यहाँ बैठे हुए हैं और आगे भी अगर चलाना है तो कृपया याद रखिए कि औरत को परिवर्तित करना भी आपको परम लक्ष्य की आपको सबको मैं हमेशा कहती हैँ कि अनन्त आप किसको जोड़ेंगे? सबको चाहिए कि प्रेम से आपस में रहें। अब आप सहजयोगी हो गए और 30 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XIII अंक :। & 2.2001 । आनी चाहिए। समझदारी में बढ़ना चाहिए। यहाँ तो मैं देख रही हूँ बहुत से सहजयोगी हैं तो उनके लिए एक नई बात अब इस चीज़ से आप हैरान होइयेगा कि सारा समाज एकदम बदल जाएगा। अपने को परदेसियों जैसे नहीं होना है। बिल्कुल भी नहीं। बहाँ तो कचहरी करेंगी औरतें, अमेरिका में तो औरतें सात-सात, बैठे हुए बता रही हूँ। आप सहजयोगी हैं तो सब लोगों को समझ लेना चाहिए कि ये सहजयोगी हैं। उसी आठ-आठ शादी करती हैं। औरतें और रईस हो जाती हैं तो पति सब गरीब हो जाते हैं। ये हम प्रकार सहजयोगी समझ लेना चाहिए कि जो सहजयोगी हैं वो हैं जो नहीं हैं तो नहीं हैं। लोग नहीं चाहते। चाहते क्या हैं? आपसी प्रेम हो, बच्चे अच्छे से हों और आप देखिए, इससे सबको समेटना आना चाहिए। इसी सहज योग के स्वभाव से ही आप दुनिया को जीत सकते बड़ा लाभ होगा। बहुत लाभ होगा। इतना लाभ होगा ऐसे समाज का और ऐसे देश का। इसमें ये हैं। जो बात मैंने कही है उसको आप हृदय में आपसी झगड़े करना कोर्ट कचहरी करना कोई बाँध लें। यह दर्द है मेरे अन्दर। इस दर्द को जरूरत नहीं। गर ये सबके अच्छे के लिए है तो ये ही क्यों नहीं करते। इस तरह से समझदारी आप लोग खत्म कर सकते हैं। आप सबको अनन्त आशीर्वाद। 31 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक :। & 2., 2001 समर्पण एवं भक्ति का महात्म्य परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन निर्मला पैलेस-लन्दन ( 6 अगस्त 1982 ) आज मैं आपको सहजयोग में समर्पण अपनी राष्ट्रीयता के आधार पर यदि आप और भक्ति के महत्व के विषय में बताऊंगी। किसी चीज़ का विश्लेषण करना चाहेंगे तो व्यक्ति में समर्पण एवं भक्ति होना आवश्यक है। जब हम पर्वत के समीप खड़े होते हैं तो हम इसे पूरी तरह से देख नहीं सकते। यही कारण है कि अपने समीप के विस्तार को तथा अपने सम्मुख हक्के-बक्क रह जाएंगे। ये आपकी बुद्धि से बहुत परे है बड़ी अनोखी है और आपकी शक्ति से कहीं ऊपर है। ये वास्तव में आपसे परे क है। विद्यमान महानता को हम महसूस नहीं कर अब इसके विषय में सोचें। "आपको सकते। उनके लिए यह भ्रम कार्यान्वित रहता आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया हैं।" क्या आप जो लोग मानसिक रूप से ये नहीं समझ पाते कि इस बात का विश्वास कर सकते हैं कि आप वे क्या हैं, उन्हें क्या प्राप्त हो गया है, अपने जीवन काल में ही आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं। किसी ने यदि आपको ये बात कहाँ तक उन्हें जाना है, इसके लिए उन्हें ही बताई होती तो आप कभी भी इस बात पर आत्मसाक्षात्कार क्या है, इसका विस्तार क्या है. क क्यों चुना गया है, जीवन का लक्ष्य क्या है, वे विश्वास नहीं करते कि किस प्रकार आप अपने कहाँ तक पहुँच चुके हैं और कहाँ तक वो समझ इसी जन्म में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकते सकते हैं? ये सारे रहस्य पकड़ से बाहर हैं और हैं। नि:सन्देह आप खोज रहे थे क्योंकि आपको व्यक्ति हक्का-बक्का रह जाता है और जब उसे बताया जा रहा था कि आपको खोजना है और बास्तव में आत्मसाक्षात्कार मिलता है तो वह ये आपको भी लगा कि आपको खोजना है। परन्तु आपने कभी नहीं सोचा था कि यह इस प्रकार से नहीं समझ पाता कि उसके साथ क्या घटना घटित हो गई है यही कारण है कि इसे समझना केवल लेंगे। कार्यान्वित होगा कि आप आत्मसाक्षात्कार को पा तभी सम्भव है जब आप ये समझ जाएं कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के बाद भी स्वयं को किस प्रकार समर्पित करना है और आप ये महसूस न कर सके कि "यह क्या था! किस प्रकार भक्ति करनी है। चैंतन्य लहरी बिल्कुल वैसे ही जैसे आपको समुद्र में डाल 32 ी । खंड : XIII अंक : & 2, 2001 क्योंकि इसमें आपने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया दिया गया हो फिर भी आप ये न जान पाए हों कि समुद्र का विस्तार कितना है, इसमें आप है। आपने यदि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं किया, कितने उतर गए हैं. ये क्या है, हम कहाँ हैं और तो ठीक है, यदि आप कानाफूसी करते हैं वो भी हमारा लक्ष्य क्या है?" इन सब रहस्यों के ठीक है, आप यदि अधपके लोग हैं तो भी ठीक साथ-साथ एक अन्य घटना जो घटित होती है है, थोड़ा बहुत दुर्व्यवहार करते हैं तो भी ठीक वह है हमारा निर्विचार हो जाना। तो ताकिक रूप है। सब कुछ क्षमा कर दिया जाएगा। हर आदमी सोचता है कि श्रीमाताजी से आप ये जान ही नहीं पाते कि इसका औचित्य क्या है! हमें क्षमा कर रही हैं। परन्तु वास्तविकता ये अतः अनुभव की विशालता, आपकी नहीं है। मैं तो अपने स्वभाववश क्षमा कर माँ के अवतरण की गरिमा या आत्मसाक्षात्कार रही हूँ। परन्तु मेरी क्षमा को आप अपना रूपी आपको दी गई अनुपम भेंट को आप अधिकार न मान लें। इस क्षमा को स्वीकार करके आप स्वयं को मुसीबत में फंसा रहे से नहीं समझ सकते। क्या अपनी सूझ-बूझ आप समझ सकते हैं कि क्या घटित हुआ हैं। हर समय यदि आप सोचते हैं कि "श्रीमाताजी है? नहीं आप नहीं समझ सकते क्योंकि आप इतनी क्षमावान हैं, कृपा करके मुझे क्षमा कर दीजिए।" आपको तो क्षमा किया जा चुका तार्किकता आपको उस आयाम तक नहीं पहुँचा सकती जिसमें आप प्रवेश नहीं कर सकते। तर्कसंगति वास्तव में समाप्त हो चुकी है। है। एक बार जब आपने मुझे श्रीमाताजी कह दिया तो मैं आपको क्षमा कर देती हूँ। परन्तु यह बताने के लिए ताक्किकता बाकी नहीं बची कि आप क्यों खोज रहे थे तथा आप कहाँ पहुँच इसका लाभ क्या है? इस क्षमा का आपको कोई लाभ न होगा। आपने अपनी हानि कर ली। इस बात को तर्कसंगति से यदि आप गए। तो, बूँद जो कि सागर बन चुकी है, समझेंगे तो जान जाएंगे कि भक्ति क्या है| आपके लिए केवल यही मार्ग बचा है कि अत: सहजयोग की भक्ति में व्यक्ति को महसूस करना चाहिए कि सहजयोग में जो कुछ भी आपने देखा है वह आपके मस्तिष्क अन्य बूँदों के साथ इस प्रकार से सम्पर्क से परे है ये पहली बात है। नि:सन्देह ये रखें जिससे कि उनके माध्यम से पूर्ण मानवीय मस्तिष्क से परे है। अतः मानवीय स्वयं को सागर में विलय कर दें ताकि कम से कम सागर को तो महसूस कर सकें तथा बनाए ( विराट ) को जान सकें। स्तर पर इस पर बहस न करें और न ही इसकी तो पूर्ण भक्ति सर्वोपरि है। ये बहुत महत्वपूर्ण है। इसी जन्म में यह इतनी अधिक महत्वपूर्ण हैं बातचीत करें। सामूहिक स्तर पर आप इसकी बात कर सकते हैं। और जब आप सामूहिक स्तर 33 चैतन्य लहरी खंड : XIII अंक : । & 2. 2001 क कष्ट दे रहे हैं; आप स्वयं को कष्ट दे रहे पर आ जाते हैं तब आपको समझना होता है कि मेरे साथ सम्बन्ध तभी स्थापित हो सकते हैं, हैं ये आपके लिए हानिकारक है।" बहुत से लोग कहते हैं. "ये मेरा बायाँ स्वाधिष्ठान है।" कुछ कहते हैं, "मैं भूत-बाधित तभी अच्छी तरह से स्थापित हो सकते हैं जब आप अत्यन्त सामूहिक रूप से तथा एक रूप था, मेरे अन्दर भूत था।" कुछ अन्य लोग कोई होकर अन्य लोगों से सम्बन्ध स्थापित कर लेते और बात कहते हैं। आप जिसको भी दोष दे रहे हैं। हैं वास्तव में कौन आपसे स्पष्टीकरण माँग रहा जैसे मैंने आपको बताया कि बूँद सागर हैं? आप स्वयं ही स्वयं से पूछ रहे हैं। आप बन जाती है, अस्तित्व समाप्त करके अन्य बूँदों के साथ विलय होकर बँद को सागर अपना सामना नहीं कर रहे हैं। तो मेरे अनुसार स्वयं का सामना करना बनना है वो सभी बूँदे जो अपना व्यक्तिगत ही भक्ति है। सर्वप्रथम आप अपना सामना अस्तित्व समाप्त कर देती हैं अंततः सागर करें और स्वयं देखें कि आप क्या कर रहे बन जाती हैं। अत: हम देखते हैं कि भक्ति दो धारी हैं? आप स्वयं ही खुद के शत्रु हैं कोई अन्य आपका शत्रु नहीं है। निश्चित रूप से आपकी श्रीमाताजी तो आपके शत्रु नहीं हैं। किसी भी एक और परस्पर शंकु की तरह से है जो सामूहिकता में जुड़ा है और दूसरी ओर आपकी माँ से। तरह से आपकी शत्रु नहीं हैं। न ही किसी सहजयोग में मैं जो कुछ देखती हूँ वे आप प्रकार से कोई भूत आपका शत्रु है। आप यदि उन्हें न बुलाएं तो वे नहीं आ सकते। नहीं देख सकते। आप लोगों के सम्मुख ये बात प्रमाणित हो चुकी है या नहीं? या आप लोग कोई भी बुरा आदमी तो आपका शत्रु नहीं है इसके और अधिक प्रमाण चाहते हैं। अब ये क्योंकि यदि आप आध्यात्मिक रूप से दृढ़ प्रमाणित हो चुका है कि श्रीमाताजी हमसे बहुत हैं तो वह आपको प्रभावित नहीं कर सकता। आगे तक देखती है और जो भी कुछ वे देखती अतः आप स्वयं अपने शत्रु हैं यह बात निर्णित है। हैं वह घटित होता है| अपने इस शत्रु से मुक्ति पाने का एकमात्र अतः कोई भी व्यक्ति जो श्रीमाताजी उपाय ये है कि आप समर्पित हो जाए। के साथ छल करता है वह वास्तव में स्वयं मान लो आप कहते हैं कि मेरा श्रीमाताजो से छल कर रहा है। "किसी प्रकार का भी में या परमात्मा में पूर्ण विश्वास है तो आप छल बदि आप मुझसे करते हैं या आप किसी का तो आश्रय लिए हुए हैं। ये बात ठीक सोचते हैं कि श्रीमाताजी क्षमावान हैं, वे हमें है न? और किसी चीजज़़ को आपने छोड़ा हुआ क्षमा कर देंगी, तो वास्तव में आप स्वयं को उ4 चैतन्य लहरी खंड :XIlI अंक : & 2.2001 समर्पण आपकी ओर मुड़कर, आपके होनी चाहिए। मान लो यदि आप डूब रहे हों अन्तर्निहित दिव्य व्यक्तित्व की ओर देख रहा भी तो है। परन्तु आपकी पकड़ (सम्बन्ध) बहुत दुढ़ तो क्या आप ताकिकतापूर्वक सोचंगे कि 'मुझे है। एक बार जब आपमें दिव्य व्यक्तित्व का बचाने वाले इस व्यक्ति का हाथ थाम लेना उदय हो जाता है। तो श्रद्धा की समस्या नहीं रह जाती। आप इससे एकरूप हो जाते हैं और चाहिए या नहीं?" न की मजबूती से आप उसका हाथ थाम लेगे? आपकी पकड बहुत दृढ़ इसका आनन्द लते है। परन्तु ये तर्कसंगति बहुत बुरी चीज़ है ये आपके साथ चालाकी करती है और आपको ये से आप उस हाथ होगी, पूरी ताकत. पूरी श्रद्धा लंगे कि किसी भी तरह से मुझे बचा को पकड़े नहीं समझने दंती कि अभी तक जो जीवन लो। हमारे अन्दर भी ऐसी ही भावना होनी यापन आपने किया वह अत्यन्त भौतिक और हैं चाहिए कि "मैं अपनी गलतियों के कारण डूब अपरिष्कृत था। अब आप इससे निकल आए इससे ऊपर उठ गए हैं अब आप उन्नत हो गए रहा हूँ यदि मुझे बचना है तो पूर्णतया, पूरी तरह से मुझे सहजयोग में लीन हो जाना होगा। तभी मैं हैं। पुष्पीकृत होने और सुगंध बिखेरने के लिए आपको यह ताकिकता त्यागनी होगी। यह आवश्यक बच सकता हूँ।" क्योंकि इस स्तर पर, जबकि आप उच्च कोटि के आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति हैं, है ताकिकता से. वाद-विवाद से बचने का प्रयत्न अब अगली छलांग लगाने का एकमात्र मार्ग जैसा करें। तर्क न करें। अब भी, मैं देखती हूं, बहुत से सहजयोगी मनोविज्ञान का तर्क देते हैं। मैं आपसे बता रही थी भक्ति है। इसके अतिरिक्त " श्रीमाताजी, हो सकता है वह असुरक्षित हो। यह किसी भी हालत में सभी चीजें गौण हैं। अब भी यदि अन्य चीजें आपकी दृष्टि में महत्वपूर्ण अजीब बात है। कहीं पुस्तक में पढ़ लो कि असुरक्षा के कारण कोई ऐसा करता हैं। बास्तव में सहजयोग में अब हमने देखा है कि ये पहली छलांग आप लगा चुके हैं, आपको तथाकथित असुरक्षित लोग ही सबसे अधिक हैं और आपका चित्त इन पर है ता आप यह दूसरी छलांग नहीं लगा सकते। आक्रामक हैं। ये अन्य लोगों से चालाकी करते आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो चुका है। परन्तु पहली हैं, उनके जीवन नष्ट करते हैं और आनन्द लेते छलांग से दूसरी छलांग लगाने के लिए आपको हैं। परपीड़न का आनन्द लेने वाले से नराधम कठोर परिश्रम करना होगा। दूसरी छलांग के स्तर लोग हैं। आपने ऐसे लोगों को देखा है इस प्रकार से वे अपने ही साथ छल करते हैं । तक आपको आना होगा। दूसरी छलांग का सामना आपको करना होगा। स्वयं से न तो आपको विषाद होना चाहिए न ही विरक्ति। स्वयं को एक एक वार जब आप ये जान जाएगे कि भिन्न अस्तित्व मानें। अपने साथ छल नहीं करना, और अपने साथ 35 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अक : 8 2. 2001 =ি आप छल करना क्यों चाहते हैं? क्यों अपने साथ में मैं न दे पाता।" वह बहुत ईमानदार था और छल करना चाहते हैं? आपको आत्मा बनना है. स्पष्ट कह दिया कि मैं न दे पाता परन्तु मेरी समझ में अब भी नहीं आता कि क्यों नहीं दे बसे। हमें अपना शत्रु नहीं बनना चाहिए। क्या हम अपने शत्रु हैं।? पाता। इस प्रकार अन्तिम समय तक हम छोटी-छोटी एक बार जब आप अपना सामना करने चीजों से चिपके रहते हैं । साड़ी का एक कोना यदि जरा सा भी लगेंगे तो आप स्वयं को पसन्द करंगे। आपको उलझ जाए तो यह पुरी साड़ी को उलझा सकता निराशा न होगी क्योंकि आपकी आत्मा गरिमामय है। तनिक सी उलझन पूरी साड़ी को उलझा है. सुन्दर है और निष्कलक है तथा. सर्वॉपरि. सकती है। एक छोटे से पिन से आप इसे उलझा निर्लिप्त हैं। सर्वप्रथम आपके चित्त को ये स्वीकार सकते हैं। ये छोटे-छोटे पिन (लिप्साएं करना होगा कि "यह निर्लिप्सा ही मेरा जीवन उलझाने के लिए काफी हैं। इन्हें नकारा है। मैं विल्कुल भिन्न व्यक्तित्व हूँ। निर्लप्सा हो जाना चाहिए। इनकी तरफ ध्यान दिया जाना चाहिए। स्वयं की ओर देखें और कहें, "ओह! मेरा जोवन है।" ये श्रीमान अहंकार है, ठीक है। अब मैं स्वयं को निर्लिप्त करो। देखता हूँ कि तुम कैसे वापिस जाते हो? इन सभी चीज़ों को खेल के रूप में देखने के लिए एक बार एक व्यक्ति मेरे घर पर मुझे मिलने आया। मेरे पास एक सुन्दर लैम्प था जो आपको स्वयं पर दृष्टि रखनी होगी तथा अपने उसे पसन्द आया। मैंने कहा"आप ये लैम्प ले अहं और प्रति अहं से खिलवाड़ करना होगा। सकते हो।" वह हैरान हो गया। उसकी पत्नी ने हो सकता है? मुझे टेलीफोन किया ये कैंसे वास्तव में अभी तक तो वे आपसे खलवाड़ कर आपने एसा सुन्दर लैम्प कैसे दे दिया? मैंने रहे हैं। एक बार जब आप उनके स्वामी बन कहा, "ये कौन सी बड़ी बात है? मृत्यु के समय जाएंगे तो आप उनसे खिलवाड़ करेंगे। मैंने देखा क्या मैं इसे साथ ले जाऊंगी? क्या ये मेरे साथ है कि बहुत बार मैं बहुत सी बातें बताती हैूँ जाएगा?" ता्किक दृष्टि से देखें। उसे यदि ये परन्तु कुछ ही समय पश्चात् लोग वैज्ञानिक प्रमाणों के साथ इनके विषय में समझाने लगते पसन्द आया तो उसे ले जाने दें। घर में मेरे पास बहुत से लैम्प हैं। यदि उनमें से एक वह ले भी है? हैं। बहुत बार ऐसा हुआ है। जब भी मैं कुछ कहती हूँ तो इसके "परन्तु मैंने अपने पति से पूछा, कि यदि तुम्हारे विषय में पूर्णतः विश्वस्त होती हूँ। सत्य के पास ऐसा ही कोई लैम्प होता तो क्या आप उन्हें अतिरिक्त मैं कुछ नहीं बताती। मैं जानती हूँ कि वह कहने लगी, गया तो क्या फ्क पड़ता मैं केवल सत्य बता रही हूँ। परन्तु इसके अन्दर दे देते? कहने लगे. "नहीं, मैं नहीं देता। वास्तव 36 चैतन्य लहरी :8 2. 200I खड : XIII अक क्या आपको उससे ईष्यां है? यहाँ तक कहा पैठ कर मैं ये नहीं पता लगाती कि ये सत्य है या नहीं। ये खोजने के लिए मैं कोई पुस्तक भी नहीं पढ़ती। मैं आपसे भी नहीं पूछती। मुझे स्वयं पर विश्वास है. स्वयं पर मुझे पूर्ण विश्वास है। जो भी कुछ मैं कहती हैँ, वह सत्य है। निश्चित रूप से मैं जानती हूँ कि जो भी कुछ मैं कहंगी गया| परन्तु जब उसने अपने असली दाँत दिखाए तब लोगों को समझ में आया। तो सत्य के विषय में इस प्रकार को सूझ-बूझ विकसित करने के लिए सर्वप्रथम आपको चाहिए कि स्वयं को सत्य में स्थापित हि कर लें। और सत्य ये है कि आप परमात्मा वह सत्य ही होगा। आपके के माध्यम हैं क्योंकि आपकों आत्मसाक्षात्कार परन्तु आपके साथ ऐसा नहीं है। साथ एसा नहीं है कि जो भी कुछ आप कहें वह मिल चुका है जो लोगों में नहीं है। इस चेतना में बने रहें हैं। आपमें एक विशेष चेतना सत्य ही हो। अतः सर्वप्रथम उस अवस्था में मैं कहूँगा बह स्थापित हों कि जो भी कुछ और इसका उद्घोष करें, दावा करें। इससे आपको भयभीत नहीं होना चाहिए। नि:सन्देह सत्य ही होगा। अब यह कार्य किस प्रकार करें? आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो चुका है। आप जिह्वा ऐसी होनी चाहिए कि उससे जो इसका अनुभव कर चुके हैं। इस बात की कहें कुछ भी आप कहें वह सत्य हो। अन्ततः आपकी कि मुझको आत्मसाक्षात्कार मिल चुका है। जो ग कही हुई बात सत्य हो जाएगी। यही कारण है कुछ भी हो, मैं जानता हूँ मैं आत्मसाक्षात्कारी हूँ। कि समर्पण होना ही चाहिए। इस पर दृढ़ हो जाए। किस प्रकार का समर्पण : "मैं क्यों झूठ आपको सत्य की यह अभिव्यक्ति करते हुए बोलू? झूठ बोलने की कोई आवश्यकता नहीं है। प्रकाश सम होना होगा। प्रकाश शक्तपूर्वक स्वयं की प्रकट करता है। यह केवल अपनी शक्ति में यदि झूठ भी बोलूंगी तो मेरा श्रीमाताजी) (श को ही प्रकट नहीं करता अन्य लोगों को दर्शाता कहा हुआ तथाकथित असत्य भी सत्य हो जाएगा भी है कि यह चमकता है। प्रकाश दर्शाता हैं कि "में प्रकाश हूँ" तथा "आप मेरी रोशनी में किसी व्यक्ति के बारे में जब मैं कहती हूँ कि चलो। यदि आप ऐसा करने का प्रयत्न नहीं मेरी कही हुई बात कभी भी असत्य नहीं होती। करते तो मैं तुम्हें जला भी सकता हूँ। उसमें वह बुरा है तो कई बार आप कहते हैं, " श्रीमाताजी वह ती बहुत अच्छा आदमी है। आप कैसे उसके विषय में ऐसी बात कह रही हैं। हमारे पास ऐसा ही एक व्यक्ति श्री माइकल थे। "ओह. श्रीमाताजी वह तेजस्विता है, वह तेज है, प्रकाश का वह तौखापन है। प्रकाश की वह तेजस्विता व तीखापन। आपके सत्य का यही प्रमाण है। आपको न वह इतना प्रिय व्यक्ति है। किसी ने कहा श्रीमाताजी किसी मन्त्री का भय है न प्रधानमन्त्री का और 37 चैतन्य लहरो खड : XII अक :। & 2, 200। सिर कटवा लिए लोगों ने उन्हें सताया। कुछ न सम्राट का, किसी का भी भय नहीं। परन्तु लोगों ने अपना सारा धन न्यौछावर कर दिया । "यह वास्तविकता है। इस बात को में जानता हूँ।' मैं आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति हूँ। मैं सत्य हूँ।" सभी प्रकार से सताए गए परन्तु उन्होंने यही सोचा कि यही सत्य है और सत्य को नहीं आप यदि कहेंगे कि "मैं सत्य हूँ तो वह सत्य हो जाएगा। इसमें कोई सन्देह नहीं है, जो भी छोड़ा। उनमें से कुछ लोग बलि के मुर्ख बकरे भी थे वे असत्य के लिए न्यौछावर हो गए। कुछ आप करेंगे वह सत्य होगा। परन्तु कहें, "मैं परन्तु अब आप जानते हैं कि आप सत्य सत्य हूँ।" परन्तु इसके लिए स्वयं का सामना करने के लिए वास्तविक शुद्धीकरण आवश्यक है। देने के लिए तैयार रहना चाहिए। क्योंकि आप पर खड़े हैं और सत्य के लिए आपको बलिदान सत्य का बलिदान नहीं कर सकते। आप तो समर्पण का अर्थ है कि आप अपनी माँ से ( श्रीमाताजी से), सहजयोग से और जिस असत्य की बलि दे रहे हैं। सत्य को आपने प्राप्त किया है उससे इसके लिए आपको साहस एवं शक्ति से परिपूर्ण लोगों की आवश्यकता है, इन हैं। इसके बिना आप यह दृढ़तापूर्वक जुड़े हुए अधकचरे लोगों की नहीं जो सुबह से शाम कार्य नहीं कर सकते क्योंकि यही आपका स्रोत तक श्रीमाताजी से क्षमा याचना ही करने में हैं, आप सत्य पर खड़े हैं जिसमें महान शक्ति है, महान दृढ़ता है। लगे रहते हैं। ये क्या है? क्षमा मांगने की क्या बात है? मैं तो तुम्हें हर क्षण क्षमा करती इन सभी लोगों में, ईसा मसीह में, मोहम्मद साहब में यह शक्ति थी। इन सभी महान अवतरणों रहती हूँ। परन्तु आप क्या कर रहे हैं? आप में यह शक्ति थी। "पूर्ण साहस तथा बल के कैसे व्यक्ति हैं? साथ सत्य को कहने की शक्ति ताकि लोग इसे इस विषय में सोचे कि आपको सत्य पर स्वीकार कर लें। चाहे इसके लिए उन्हें कष्ट खड़ा होना है। इसके लिए आपको साहसो एव उठाने पड़े फिर भी उन्होंने इसका बुरा नहीं सशक्त होना पड़ेगा और आपमें वही तेजी होनी आवश्यक है। आपके अन्दर प्रकाश स्तम्भ के माना। सत्य जो है उसका कहा जाना आवश्यक प्रकाश की तरह से तेजस्विता होनी चाहिए। समर्पण के विषय में पहली बात जो हमे परन्तु इसके साथ साथ पूर्ण समर्पण भी होना समझनी है वह यह है कि-आप पूर्णतः समर्पित आवश्यक है। यदि इस लैम्प में तेल न हो तो हैं, किसी का भय आपको नहीं है, अपनी यह बुझ जाएगा। इसमें तेल होना आवश्यक है हानियों की भी आपको चिन्ता नहीं है। अन्यथा यह बुझ जाएगा। अत: समर्पण भी लोगों ने अपने प्राण दे दिए अपने आपमें इसी तेल की तरह से है। ये ही स्रोत से कुछ 38 चैतन्य लहरी । खंड : XIII अंक : 8 2.2001 ho परन्तु यह इसका केवल एक पक्ष है जो समर्पण से आपको कोई और अर्थ नहीं कि पर्याप्त नहीं है। कोवल सत्य बनने के लिए आपको जोड़े हुए हैं। समर्पण का यही अर्थ है। लगाना चाहिए सिवाय इसके कि यह प्रकाश एक पक्ष है परन्तु इसका दूसरा पहलू यह है कि है जो चमकता है, जो सुधारता है और अन्य लोगों का पथ प्रदर्शन करता है। यदि ऐसा नहीं है तो आपको अपने स्रोत से शक्ति पूरी जब यह सरोत आपके पास आता है तो आप करुणा बन जाते हैं। सत्य और करुणा एक ही चीज है। आप इस बात पर विश्वास नहों करेंगे तरह से प्राप्त नहीं हो रही और इसलिए परन्तु यह सत्य है। जिस प्रकार प्रकाश बनने के आपकी ज्योति भी पूरी तरह से नहीं जल लिए बत्तो और तेल को एकरूप होना पड़ता है जलने से प्रकाश प्राप्त होता है। इसी और तेल के रही है। अत: जब आप समर्पित हो तो कभी ा न सोचें कि आप कुछ त्याग कर रहे हैं प्रकार करुणा आपको सत्य प्रदान करती है। जिसके कारण आप करम कल्ला (Cabbage) इसमें कोई अन्तर नहीं है। केवल अवस्था का अन्तर है। तेल जो कि प्रकाश है और जो जल बन जाएं। लोग ऐसा ही सांचते हैं कि कर्म हीन बन जाओ। इसके विपरीत समर्पण से आप रहा है उसे आप नहीं देख सकते । अतः करुणा ही आपका स्रोत है तथा प्रगल्भ (Dynamic) बन जाते हैं। आप वास्तविक शक्ति बन जाते हैं: विनाश की नहीं भण्डार भी। तो करुणा के इस स्रोत से आप रचनात्मकता की। कहने से मेरा अभिप्राय यह करुणा प्राप्त करें। मैंने ऐसे लोगों को देखा है जो मुझसे करुणा चाहते हैं। वे चाहते हैं कि मैं उनसे प्रेम की आवश्यकता होती है। विनाश के लिए कितनी करूं। परन्तु इस पर यदि चिन्तन किया जाए शक्ति की आवश्यकता होती है? बहुत कम। तो क्या वे अन्य लोगों से इसी प्रकार प्रेम करते हैं? मैं एऐसे लॉंगों को जानती हूँ जो दूसरों है कि विध्वंस के लिए अधिक शक्ति की आवश्यकता नहीं होती। सृजन के लिए शक्ति जरा सी देर में सभी कुछ नष्ट किया जा सकता है। परन्तु सृजन के लिए महान शक्ति की से कठोर शब्द बोलेंगे और फिर आकर मुझसे कहेंगे. "श्रीमाताजी मुझे क्षमा कर दीजिए।" या आवश्यकता होती है और वह शक्त वह सतत फिर मस्तिष्क की सनक के कारण कुछ कठोर शक्ति, निरन्तर बहने वाली शक्ति होनी आवश्यक है। इसके लिए समर्पण आवश्यक है। अपने शक्ति के स्रोत से जुड़कर आपको करेंगे। "श्रीमाताजी मुझे क्षमा कर दीजिए। जब आप क्षमा मांगते हैं तो में जानना चाहूँगी कि क्या आपने अन्य लोगों के साथ करुणापूर्वक व्यवहार पूरी ताकत से खड़ा होना होगा। बिना किसी भय के। यही सत्य है। इसी सत्य को आपने प्राप्त किया? मुझसे क्षमा प्राप्त करने के पश्चात् भी क्षमा के तथा करुणा के सरोत से क्षमा प्राप्त करने करना है। यह बहुत महत्वपूर्ण हैं। 39 चैतन्य लहरी खंड : XIII अंक : 1 & 2, 2001 परस्पर सहजयोगी एक भिन्न प्रजाति हैं। के पश्चात् भी, क्या आपने अन्य लोगों को हर समय एक दूसरे को आश्रय देना होगा करुणी दी? क्या आप अन्य लोगों के साथ करुणामय हैं? करुणा केवल एक ओर की नहीं और परस्पर देखभाल करनी होगी। जब में होनी चाहिए। आप यदि मेरी करुणा का लाभ सहजयोगियों को दूसरे सहजयोगिगों की आलोचना उठा रहे हैं तो इसे केवल अपने हित के करते हुए देखती हूँ तो मुझे हैरानी होती है लिए उपयोग करके भूल न जाएं। ऐसा यदि क्योंकि आप एक ही विराट के अंग- प्रत्यंग हैं आप करेंगे तो कभी आपका उत्थान नहीं हो किस प्रकार आप आलोचना कर सकते हैं। एक सकेगा। आँख का दूसरी आँख का आलोचना करना मेरी आप उन्नत होना चाहते हैं तो अपने समझ में नहीं आता। में तो आलोचना कर अन्दर उस करुणा को सहेज कर रखें। जो भी सकती हूँ, ठीक है; परन्तु आप क्यों आलोचना करुणा, जो भी प्रेम मैंने आपको दिया है करें? क्यों आपको एक-दूसरे की आलोचना उसे सहेज कर रखें और अन्य लोगों को वो करनी चाहिए? आपके करने के लिए केवल करुणा व प्रेम लौटाएं अन्यथा आप समाप्त एक ही चीज़ है, परस्पर प्रेम करें। हो जाएंगे, कहीं के न रहेंगे स्थायी उन्ति क्राइस्ट ने ये बात केवल तीन बार कही तो तभी होगी जब आप एक और से करुणा थी, मैं ये बात एक सौ आठ वार कह चुकी हूँ, "कि आपको परस्पर प्रेम करना है केवल इसी एवं प्रेम लेकर दूसरी ओर से अन्य लोगों को देंगे। अन्यथा आप निस्तेज हो जाएंगे। करुणा तरह आप अपनी करुणा की अभिव्यक्ति कर बाहर की ओर बहनी चाहिए। सकते हैं। मैंने यदि आपको कभी प्रेम किया परन्तु ये बहुत कठिन कार्य है। लोग है तो दूसरों के प्रति आपमें धैर्य एवं प्रेम श्रीमाताजी से करुणा प्राप्त करने में बहुत दक्ष हैं। होना चाहिए। कई बार मैं लोगों को उकसाती हैँ वे यदि करुणामय हैं भी तो प्रायः वियतनाम के और वे तुरन्त किसी न किसी की आलोचना लोगों के प्रति करुणामय होंगे, अपने आश्रम के करनी आरम्भ कर देते हैं। लोगों के प्रति नहीं। वियतनाम के लोगों के लिए मूल बात ये है कि हमारे हृदय से वो बहुत चिन्तित हैं। कहेंगे," ओह श्रीमाताजी। करुणा यदि बह रही है केवल तभी हम हमें वियतनाम के लोगों की बहुत चिन्ता है। हम श्रीमाताजी से करुणा प्राप्त कर सकते हैं। उनके लिए धन एकत्र कर रहे हैं और वियतनाम कोई ऐसा स्थान नहीं है जहाँ पर मैंने करुणा वर्षा पैसा भेजने की कोशिश कर रहे हैं " और यहाँ न की हो और अब मुझे लगता है कि जब तक आश्रम में रहने वाले लोग आपस में झगड़ रहे आप इस करुणा को अन्य लोगों तक नहीं हैं! यह किसी भी तरह से करुणा नहीं है। पहुँचाएंगे किस प्रकार मैं ये करुणा आपको देती 40 चैतन्य लहरी खंड : XIII अंक :। & 2. 2001 108 वर्ष से भी वृद्ध व्यक्ति की माँ हूँ। वास्तव रहूंगी? इसे सम्भालने के लिए अब आपमें स्थान कहाँ बचा है। अच्छा होगा कि इसे बांट दें। में आपको चाहिए कि अन्य लोगों को ममत्व प्रदान करें और उनके लिए आपके हृदय में अपने अन्दर को थोड़ा सा खाली कर दें ताकि मैं आपको और अधिक करुणा दे सकूं। यह गहन प्रेम एवं करुणा का भाव हो। अपनी सुख-सुविधा और लाभ के विषय में न सोचकर अन्य लोगों के हित के विषय में सोचना चाहिए आपको सोचना होगा कि "लोगों को सुख पहुँचाने बहुत सहज कार्य है इसके विषय में व्यक्ति को समझना चाहिए कि सोत से करुणा केवल तभी बह सकती है जब मार्ग पूर्णतः विस्तृत हो। थेम्स नदी की तरह। हम इसके उद्गम के लिए मैं क्या कर सकता हूँ और उसके स्थान को देखने के लिए गए। सात बहुत पश्चात् अपनी सुख-सुविधा के बारे में सोचना होगा। छोटी-छोटी धाराओं से निकलती हुई ये एक करुणा का ये प्रवाह जब आरम्भ हो छोटी सरिता है जो बाद में थेम्स नदी बन गई है। जाएगा तब समर्पण पूर्ण हो जाएगा। तब वह यह यदि विस्तृत नहीं होती तो आरम्भ में ही रुक स्थिति होगी कि "श्रीमाताजी हमें आपको जो कृपा प्राप्त हो रही है वह हम दूसरे लोगों को भी दे रहे हैं। यही श्रद्धा है। तो श्रद्धा का ये प्रवाह गई होती। यह न बाहर आ सकती न बह सकती। क्रोध या परेशानी के कारण ऐसा नहीं है एकतरफा नहीं है ये दोतरफा है। किसी चीज़ से परन्तु इसके स्वभाव के कारण ये न बह सकती। आप जुड़ जाते हैं, उससे सम्बन्धित हो जाते हैं अत: व्यक्ति को करुणा अन्य लोगों में ताकि उससे कुछ प्राप्त करके अन्य लोगों को दे सकें। अन्तत: यह सामूहिक अस्तित्व तक पहुँच जाता है अर्थात् अपने स्रोत तक पहुँच जाता है। क्या करें? बाँटनी ही होगी। करुणा बनावटी या अस्वाभाविक नहीं होनी चाहिए। इसे अल्यन्त नैसर्गिक और स्वैच्छिक होना चाहिए, अन्तर्भावना। यह आपके इस ज्योतिर्मय दृष्टिकोण से हमें समझना चाहिए। अहं, प्रतिअहं या भावनात्मकता की अभिव्यक्ति एक विशिष्टता या "अब हमारा विवाह नहीं है। यह तो एक प्रकार की सूझ-बूझ है कि वह सहजयोगी है आप भी सहजयोगी हैं, अत: हो गया है, हमारे पास अलग स्थान होना चाहिए या अब हमें अलग रहना चाहिए।" यह सब भाई हैं। आम भाईयों की तरह से नहीं, भिन्न ठीक है विवाहित होने पर आपको थोड़ी सी प्रकार के आध्यात्मिक भाई हैं, आप आध्यात्मिक एकान्तता आवश्यक है। उसके विषय में मैं लोग हैं। इन्कार नहीं कर रही। परन्तु जहाँ तक करुणा का अत: करुणा होनी ही चाहिए। अन्य लोगों सम्बन्ध है विवाहित लोगों को कहीं अधिक के लिए अत्यन्त भावपूर्ण मातृसम तथा पितृसम करुणामय होना होगा परन्तु आप लोग तो केवल करुणा मेरा कहने से अभिप्राय है कि मैं तो अपने बच्चों, अपनी सुख-सुविधाओं, अपने पति 41 चैतन्य लहरी खंड : XIII अंक : & 2, 2001 जीवन के प्रति अपना दृष्टिकोण वदल लें और अपनी पत्नी के विषय में ही चिन्तित होते हैं। सहजयोग में एसे लोगों के लिए कोई स्थान आप ऐसा कर सकते हैं क्योंकि आपका दृष्टिकोण नहीं है। यह तो पूर्णत: सामूहिक है। जब आप तो बदल चुका है। अब यदि आप भिन्न व्यक्ति अपने बच्चे के लिए मिठाई लाते हैं तो आश्रम बनने का प्रयत्न करेंगे तो न बन सकेंगे। अब आप पुष्प बन चुके हैं, अचानक पत्ता नहीं बन के अन्य बच्चों के लिए भी मिठाई लाएं। आप एक परिवार हैं और पूरे परिवार को एक ही सकते। अब पुष्प हैं और पुष्प सम आपको रहना होगा। प्रकार की तरंगों के साथ चलना चाहिए। मैंने इससे पहले भी आपको बताया है कि हम अलग यही आपको याद रखना है कि करुणा से खाने आदि का प्रबन्ध नहीं कर सकते। इसी ऐसा प्रवाह है, सहजयोगी के लिए यह अत्यन्त प्रकार भिन्न लोगों के लिए हम जीवन के भिन्न स्वाभाविक गुण है। किसी अन्य के लिए यह स्वाभाविक नहीं है। करुणा आदि की बात करने स्तर नहीं बना सकते। बाले अन्य लोग वास्तव में बिल्कुल भी करुणामय हम सबको उन्हीं चीजों का आनन्द लना प ल है जो सभी के लिए उपलब्ध है। ऐसा ही होना नहीं होते। वे तो धन, पदवी, अहं सन्तुष्टिकरण आदि के लिए करुणा की बातें करते हैं। परन्तु चाहिए। भौतिक स्तर पर यह उपलब्धि प्राप्त की जानी चाहिए। कोई विवाह यदि अटपटा है और जिसके कारण सभी लोगों को परेशानी होती है आप में करुणा है इसलिए आप करुणा की बात करते हैं । करुणा आपसे प्रवाहित हो रही है और तो भावनात्मक स्तर पर यह बेकार है। विवाह तो आप करुणा कर रहे हैं। इसके पीछे कोई अन्य सभी को सुख देने के लिए किए जाते हैं। अत: ध्येय नहीं है। केवल इसी प्रकार आपको स्थायी विवाह का निर्णय लेने से पूर्व सोचें कि आप करुणा प्राप्त होगी। चालाकी नहीं कर रहे हैं । सहजयोग में चालाकी जैसा आज सुबह मैं आपको बता रही थी आप लोग एक संस्था में गए और इसे बहुत करना बहुत भयानक है। आप केवल अपने विवाहों के मामले में ही चालाकी नहीं कर रहे सुन्दर बना दिया। परन्तु उनके जाते ही संस्था हैं, आप किसी अन्य को भी अपने साथ लिप्त समाप्त हो जाती है क्योंकि वे संस्था को कुछ कर रहे है। ये सोचते हुए कि श्रीमाताजी आपको क्षमा कर देंगी, मैं तो आपको क्षमा कर दूंगी विशेष दे नहीं पाते। दिया क्या जाना चाहिए? करुणा से परिपूर्ण विशाल हृदय। यदि आप यह नहीं दे पाते तो आपके जाते ही सभी कुछ परन्तु आपका उत्थान कठिन हो जाएगा। अत: जैसे आप पहले करते थे, किसी भी मामले में बंजर हो जाता है। ये उत्थान नहीं है। पानी लाकर चालाकी करने का प्रयत्न न करें। स्वयं को यदि आप पौधे में और पृथ्वी में दें और सींचे तो परिवर्तित करें, पूर्णतः परिवर्तित कर लें। ये बहुत सुन्दर हो जाती है। और आप कह 42 चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : & 2. 2001 सकते हैं बहुत ही सुन्दर हरियाली है। जल का मेरा कहने का ये भी अर्थ नहीं है कि, जैसे कुछ स्रोत यदि हटा लिया जाए तो ये सूख जाती है। लोग यहाँ करते हैं, आप कभी घर पर न रुकें, परन्तु सहजयोग भिन्न है। सहजयोग में हर वक्त दौड़ते रहें। मेरे कहने का ये अर्थ आप पौधे की तरह से केवल बढ़ते ही नहीं । बिल्कुल भी नहीं है। ये बात मुझे पुनः बतानी पौधे की ऊर्जा स्रोत के रूप में, विकसित पड़ रही है अन्यथा ये लोग हर वक्त दौड़ते ही होते हैं। इस पौधे को यदि यहाँ से उखाड़ रहेंगे। मेरा कहने का ये मतलब नहीं हैं। मेरा ये अभिप्राय है कि हर वक्त किसी कर कहीं ओर लगा दिया जाए तो ये अन्य पौधों को भी सींचेगा। यह नया आयाम आपने एक चीज़ से चिपके न रहें किसी स्थान को अपने अन्दर पा लिया है तथा आप इसके छोड़ने से घबराएं नहीं। क्योंकि अब आप सहजयोगी विषय में जानते हैं? एक बार जव इस पौधे हैं। आप समुद्र में प्रविश कर गए हैं और समुद्र आपको कहीं भी ले जा सकता है को उखाड़ कर बाहर ले जाया जाएगा तो भी ये मरेगा नहीं। बिल्कुल भी नहीं। यह स्वयं तो बढ़ेगा ही अन्य पौधों को भी बढ़ाएगा। करें क्योंकि आपने ये करुणा सर्वत्र फैलानी है तो कहीं भी जाने के लिए स्वयं को तैयार हमारे अन्दर यह एक अन्य प्रकार का विकास और समृद्ध होना है। परमात्मा के इस साम्राज्य में हुआ है और अब हम बिल्कुल भिन्न स्थिति में आपने परमात्मा की सेवा करनी है ये सेवा तभी हैं और यही स्थिति मैं चाहती हूँ कि चाहे सम्भव है जब आपको इस बात का ज्ञान हो कि आपकी अपने स्थान से उखाड़ कर दूसरे स्थान इस महान सार्वभौमिक कार्य के लिए आप यहाँ पर लगा दिया जाए...मैंने देखा है कि जब मैं हैं। केवल इंग्लैण्ड, भारत या अमेरिका के लिए लोगों से कहती हूँ कि ये स्थान छोड़कर वहाँ ही नहीं परन्तु एक सार्वभौमिक कार्य के लिए चले जाओ तो वे डर जाते हैं। "वेहतर होगा कि जो कि हमारे विकास का सारांश है। अपनी आप वहाँ जाकर ये कार्य करें और वे डर जाते सृष्टि और सृष्टा के लिए यह सबसे बड़ा कार्य । आप ऐसे पौधे हैं जो कहीं भी जाकर है जो हमें करना है। आपको इस कार्य के लिए चुना गया है कोई भी चीज़ जो आपकी अभिव्यक्ति को पूर्ण नहीं करती उसकी तरफ फल-फूल सकते हैं। केवल इतना ही नहीं अन्य लोगों को भी पोषण प्रदान कर सकते हैं। आपमें वास्तव में ये शक्ति है। अत: एक ही स्थान से अपना चित्त न जाने दें । ऐसी सब चीज़ों को चिपके न रहें। एक ही स्थान से यदि आप लिप्त त्याग दें, अपनी शक्ति को बर्बाद न करें। हैं तो सोचें कि वहाँ कुछ न कुछ कमी अवश्य आपकी करुणा, आपका प्रेम ही आपकी अभिव्यक्ति है। होगी। ये बहुत भयानक है। स्मरण रहे कि कोई भी स्थान जो आपको पकड़े उससे भाग खड़े हों । परन्तु अब भी ये कंवल तर्कसंगत ही न 43 चैतन्य लहरी खंड :XII अंक : 1 & 2, 200। গ अपने साथ ये घटित होने दें । केवल चैतन्य रह जाए। मैंने जो कुछ भी आपसे कहा है, वह आपको ऐसी स्थिति में लाने के लिए है चेतना से स्वयं को परखें। "क्या, मैं अन्य ६८. जिसमें आप चैतन्य लहरियाँ आत्मसात करने लोगों को चैतन्य लहरियाँ दे रहा हूँ? क्या मैंने अपने में चैतन्य लहरियों का भण्डार भर लगें और चैतन्य लहरियाँ दें। यह एक क्रिया है, एक घटना है जो आपके अन्दर घटित लिया है या मैं स्वयं को नष्ट कर रहा हूँ? ये होना चाहिए। यह ताकिंकता नहीं है, इसके विषय में सोच नहीं है। ये चीजें कहने मात्र से मैं सब आपको एक विशेष अर्थ तथा व्यवसाय प्रदान करेगा। जैसा मैंने कहा, "परमात्मा की आपकी सोच को अभिभूत कर रही हूँ। आप नौकरी।" परमात्मा आपको धन्य करें। मानवीय चेतना महत्वपूर्णतम है। इसका सम्मान होना ही चाहिए। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी गणेश कबैला 16.9.2000 पूजा 44 चैतन्य लहरी खंड : XIII अंक :1 & 2, 2001 परमाणु जख फटता है तो वितने खिध का ारण बनता है पबन्तु मानख हढय जब बछुलता है तो उससे कितनी प्रेम सबिताएं निळलती हैं। ये सबिताएं प्रेम सागब की सृष्टि करती हैं। कहज सामूहिकता का प्रेम अपने ही अन्दब सीमित नही बह सळता। खि्तृत होळन इसे समाज तब पहुँचना होता है। अन्य लोगों, समाज तथा मानवीय समस्याओं के प्रति अपनी चिन्ता की यह अभिष्यक्त करता है । यह चिन्ता प्रेम का आडोलन है जिसे करुणा की संक्ञा की जाती है। ककणा सा्षात् देणी श्री माताजी के हढय के জहती है। सान् कणा े रखूप में देखी की पूजा होती है। उनळी कणा प्राप्त करने का सौभाग्य हमें प्राप्त ह है। अब हमें ठनळी ळणा का माध्यम बनना है। अपनी ढ़ि्य करूणा में उन्होंने कीन-दूछिायों के लिए कई ळार्य शुक किए हैं। हाल ही में उन्होंने निरा महिला तथा बालगृह की नीव बखी है। इस अवसब पर उनके हृढयस्प प्रषचन को मुनकर सखळी आंखों में ककणा के अंसु बह निकले। इन महिलाओं तथा बच्चों के लिए उनके हदय की पीशा से हमारे हढय कराह उठे! हम सब उस पीड़ा को ढूब करने का खचन केते हैं। कणा का आहोलन हमें अत्यधिक गहनता में ले जाता है। परहित की ओर जब हमारा चित्त जाता है तो अपने खिबय में हमारी सोच कम हो जाती है । इसके परिणामस्वसप अहम् को मिलने बाला ईंधन कम हो जाता है और अहम् घटने लगता है। हमारे खिचार भी हितर हो जाते हैं। ठढाहरण के रूप में पिछली ढिखाली हमने पांच कौ कपये के पटाखे जलाए धे। হন कीखाली पर बिचार आया कि यों न आधे पैसे गलियों में चलने खाले बच्चों की इस संथा को दे दिए जाएं। हो सकता है किसी दिन निरास्रित बच्चे केवी लक्ष्मी के कम्मान में ढीप जलाने े योग्य हो जाएं। पशहित की ये भावना आन्तरिक आनन्द भी प्रदान करती है। इसी प्रकार ज्योत से ज्योत जलती चली जाएगी। गलियों में अटकने बाले, गलियों के अधेरों के भयानक बीहड में खोए हुए इन निराम्ित बच्चों को आत्मसाकात्ा भी प्राप्त नही हो सका है। हमारी आलका्षा है किआत्मा का ये प्रकाश उन्हें सकषात् श्री महालक्ष्मी भ्री आকিছাজিন माताजी श्री निर्मला देवी के चशण कमलों तक ले जाए। तो आइए हम सख भी अपनी परमेश्वरी माँ क्वारा आवम्भ किए गए इस यज् में ठकाबता पूर्खल योगढान दें। ---------------------- 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-0.txt हिन्दी आवृत्ति चैतन्य लहरी जनवरी-फरवरी- 2001 अंक 1 & 2 खण्ड - Xllf र जो भी करुणा, जो भी प्रेम मैंने आपको दिया है उसे सहेज कर रखें और अन्य लोगों को वो करुणा व प्रेम लौटाएं अन्यथा आप समाप्त हो जाएंगे कहीं के न रहेंगे। स्थायी उन्नति तो तभी होगी जब आप एक ओर से अन्य लोगों को देंगे। अन्यथा आप निस्तेज हो जाएंगे। करुणा बाहर की ओर बहनी चाहिए। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी ৫ 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-1.txt कि मे र अवोधिता आत्मा है और आत्मा ही अबाधिता हैं जिसे कोई भी नष्ट नहीं कर सकता। सहजयोग के माध्यम से अबोधिता को पुनर्स्थापित किया जा सकता है। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी गणेश पूजा कबैला 16.9.2000 म वा ु आप यदि अपनी आँखों का, अपनी नाक का, अपने कान का सम्मान करने वाल व्यक्ति हैं तो मैं आपको बताती हूँ कि आपके लिए सभी कुछ इतना आनन्ददायी हो जाएगा कि आप हैरान हो जाएंगे। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी गणेश पूजा कबैला 16.9.2000 डैल्फी में स्वयंभ श्रीगणेश मा ाी 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-2.txt इस अंक में गणेश पूजा -16.9.2000 1. ६ दिल्ली पब्लिक प्रोग्राम 25.3.2000 15 2. 24 भूमि पूजन-7.4.2000 3. समर्पण एवं भक्ति का महात्म्य 6 अगस्त 1982 32 4. : योगी महाजन सम्पादक : विजय नालगिरकर प्रकाशक 162, मुनीरका विहार, नई दिल्ली-110 067 : अभिनव प्रिन्ट्स, दिल्ली-34 मुद्रक फोन : 7184340 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-3.txt ... 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-4.txt गणेश पूजा कुबै ला 16.9.200O परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (अवोधिता एवं विवाह की पावनता) आज हम श्री गणेश पूजा करने के लिए उनका आश्रय उन्हें प्राप्त है। आजकल किसी एकत्र हुए हैं। जैसे कि आप भली-भाँति जानते हैं, श्री गणेश पावनता एवं पुनीतता के प्रतीक हैं । है, परन्तु आप ईसा-मसीह के जीवन के विषय अत: यह अबोधिता की पूजा है। श्रीगणेश की में जानते हैं। वह अत्यन्त अबोध थे। वे नहीं पूजा करते हुए आपको जानना होता है कि वे जानते थे कि उनके चारों तरफ किस प्रकार के अवोधिता की मूर्ति हैं। मैं हैरान होती हूँ कि हम अबोधिता का अर्थ जानते भी हैं या नहीं। अयोधिता को अबोधिता के विषय में बताना कठिन कार्य ाथी लोग हैं। वे यही समझते रहे कि लोग अबोध हैं। अत: वह उनसे इस प्रकार व्यवहार करते रहे जो एक ऐसा गुण है जो अन्तर्जात है, जिसे किसी कोई चालाक व्यक्ति नहीं कर सकता था। चालाक व्यक्ति की चालाकी को एकदम भाँप दूसरों जाता है और ऐसी बातें कहता है जो अन्य लोगों ने न समझी हों। परन्तु ईसा मसीह ने जो भी कुछ कहा उसमें अबोधिता की चैतन्य लहरियाँ पर लादी नहीं जा सकता और न ही जिसका प्रशिक्षण दिया जा सकता है। हो सकता है कि आप कहें कि चालाक तथा आक्ामक लोग अवोध व्यक्त पर आक्रमण करते हैं। परन्तु अबोधिता इतना महान गुण है थीं जिन्होंने अन्य लोगों को उचित सोच प्रदान की होगी तथा उनसे उचित सम्बन्ध भी रखें कि इसे नष्ट नहीं किया जा सकता। यह आत्मा और होंगे। जो भी हो वह समय उनके लिए का गुण है। अ्बाधिता आत्मा का गुण है जब आत्मा आपके अन्दर जागृत होती है तब आपको अवोधिता का गुण प्राप्त हो जाता है की अवोधिता पराजित नहीं हुई। इसने पावनता क आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति का न था। परन्तु श्रीगणेश एवं सौन्दर्य के ऐसे वातावरण की सृष्टि की जिसे आप ईसामसीह के जीवन में देख सकते हैं। जिसके द्वारा आप सारी नकारात्मकताओं का नियंत्रण कर लेते हैं और उन सभी चीजों पर नियंत्रण कर लेते हैं जो आपके उत्थान तथा मुझे प्रसन्नता है कि आपने विवाहों के विषय में सुना है। विवाह क्यों आवश्यक है? क्यों विवाह होने चाहिए? आजकल तो लोग विवाह के विना भी रह रहे हैं। परन्तु विवाह का आध्यात्मिक सूझ-बूझ के लिए हानिकारक हैं। अतः अबध बन पाना सम्भव नहीं है। आपको अबोध होना है अर्थात् आपमें अन्तर्जात अबोधिता हो। यरह सहजयोग के पश्चात् घटित होता है और अर्थ है विवाह की पावनता, आपकी शारीरिक आपक अन्दर तथा बाहर विद्यमान सभी बुरी एवं नकारात्मक भावनाओं से लड़ने की आपकी शक्तियां श्री गणेश की माँ द्वारा सुरक्षित हैं तथा मानसिक तथा भावनात्मक संपूर्णता की पावनता के लिए। पावनता के बिना यदि आप किसी चैतन्य लहरी ख खंड XIII अंक : & 2, 200। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-5.txt व्यक्ति के साथ रहते हैं तो वह विवाह अपूर्ण है। उससे जो वच्चे उत्पन्न होंगे वो भी ठीक न होंगे। इसी कारण से बिवाह आवश्यक है। जैसा ठीक है थोड़ा सा पानी लाओ। वे थोड़ा सा जल लाए। मैंने अपनी अंगुलियां उसमें डालीं और उसके बाद उन्होंने जल को चखा तो कहने लगे आप जानते हैं ईसा मसीह एक विवाहोत्सव में कि श्रीमाताजी इसका स्वाद तो वाइन जैसा है। सम्मिलित होने के लिए गए, क्यों उन्होंने विवाह मैंने कहा ईसा ने भी ऐसा ही किंया था । अतः पर इतना ध्यान दिया? क्योंकि विवाह परस्पर शराब में पावनता नहीं है। कोई भी ऐसी चीज़ आपके सम्बन्धों को पावनता प्रदान करता है। बनाने की आशा आप ईसा मसीह से कैसे कर सभी कुछ ठीक है। परन्तु पति-पत्नी के बीच सकते हैं जिससे आपकी चेतना चली जाए? शराब पीने वाले लोग सामान्य नहीं होते उनके सम्बन्ध पावन होने आवश्यक हैं अन्यथा उत्पन्न हुए बच्चे कुछ भी बन सकतं हैं-धोखेबाज, झूटे, डकैत। विवाह में यदि पावनता नहीं है तो इससे जन्मे बच्चे अत्यन्त क्रूर भी हो सकते हैं। यही मस्तिष्क में खराबी आ जाती है। गाडी चलाते हुए भी वे समस्याए उत्पन्न करते हैं । उनसे बातचीत करते हुए भी आप समझ सकते हैं कि कारण था कि वे विवाह को संस्था का पावन वे असामान्य हैं। कभी तो वो बहुत आक्रामक करने के लिए गए। होते हैं और कभी अत्यन्त निश्चष्ट। प्रायः बे परन्तु ये कहना निहायत मूर्खता है कि बहुत आक्रामक होते हैं और उनका आचरण उन्होंने शराब बनाई। उन्होंने तो पानी के स्वाद मानवीय नहीं होता। तो आपको ये समझना को अंगूर के रस के स्वाद में परिवर्तित कर दिया। हिब्रू भाषा में शराब को (wine) कहते हैं, सड़ाई गई शराब हानिकारक है और आध्यात्मिक जिसका अर्थ अंगूर का रस भी होता है। शराब जीवन के विरुद्ध। जिन देशों में शराब को पावन तुरन्त नहीं बनाई जा सकती। सडाने के लिए इसमें समय लगता है। काफी समय तक इसे लोग श्री गणेश तथा अवोधिता विरोधी हैं। ऐसे अत्यन्त आवश्यक है कि इतने लम्बे समय तक माना जाता है वे पतन की ओर जा रहे हैं। ये सड़ाना पड़ता है तब कहीं जाकर शराब बनती लोग अत्यन्त चालाक धूर्त तथा अन्य लोगों पर है। ईसा मसीह ने कहीं इतने सहज ढंग से जल रौब झाडूने वाले हो सकते हैं वे सभी प्रकार की का स्वाद परिवर्तित कर दिया तो भी यह नशा बुराइयों के कारण बन सकते हैं शराब की लत प्रदान करने वाली शराब केंसे हो सकती थी? में फंसे व्यक्ति पर विश्वास नहीं किया जा इसाई धर्म में बहुत सारे लोगों का यह विश्वास है कि ईसा मसीह ने शराब को पावन कर दिया किसी भी अन्य व्यक्ति के पीछे पड़ सकता है है। यह धारणा बिल्कुल गलत है। उन्होंने शराब को कभी पावन नहीं किया। जल का स्वाद सकता। ऐसा व्यक्ति अपने बीबी बच्चों तथा तथा उनके जीवन को नष्ट कर सकता हैं क्योंकि वह जानता है कि वो स्वयं तो नष्ट हो है। तो विशेष बात, जो व्यक्ति को मैं एक व्यक्ति से मिली उसने कहा कि श्री समझनी होती है वो ये है कि अवोधिता किसी भी ऐसी चीज़ की आज्ञा नहीं देती जो चेतना उन्होंने अंगूरों के रस सा बना दिया था। उस दिन ही चुका माताजी मुझे आत्मसाक्षात्कार दे दो। मेंने कहा चैतन्य लहरी ॥ खंड : XIII अक :। & 2, 200। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-6.txt विरोधी हो| मानवीय चेतना महत्वपूर्णतम इसका सम्मान होना ही चाहिए। आपर्क स्वास्थ्य या चेतना को विगाड़ने वाली कोई भी चीज लांगों को किसी प्रकार के कर्मकाण्ड की कोई गलत है। विशेषतौर पर सहजयोगियों के लिए हैं। पावनता हैं। बाहा पावनता की उन्हें कोई आवश्यकता नहीं। वे अबोध हैं और अबोध आवश्यकता नहीं। इस प्रकार से इनका जन्म आपको अपना स्वास्थ्य ठीक रखना होगा। अपने हुआ। पूर्ण अबोध रूप में। परन्तु इसका अर्थ ये स्वास्थ्य को आप किस तरह ठीक रख सकते नहीं है कि हम अपना मुकाबला उनसे करें। वे हैं? हानिकारक सभी चौजों को दूर रखकर। दिव्य अवतरण थे और उन्हें इसी प्रकार जन्म अतः विवाहित जीवन अत्यन्त पवित्र जीवन है। इसे आशीर्वाद प्राप्त हो रहे हैं। बैसे तो पादरी भी हैं लेना था परन्तु हमें पावन होना है तथा पावनता से परिपूर्ण जीवन बिताना है। एक अवतरण तथा परन्तु सहजयोग में तो मैं स्वयं विवाहित लोगों को आशीर्वादित करती हैँ। अत: व्यक्ति को समझना चाहिए कि उसे कितना बड़ा वरदान मिला है। फिर भी ऐसे बहुत से लोग हैं जो नहीं सकते। आप यदि वास्तव में अत्यन्त पावन आकर कहते हैं श्रीमाताजी हमें तलाक लेना है। एवं अबोध बनने का प्रयत्न करें तो आप समझ हम अच्छा विवाह करने का प्रयत्न कर रहे हैं। पाएंगे कि आपके जीवन भिन्न स्तर पर क्यों हैं। वे सभी प्रकार की कहानियां बताते हैं। जब आप मानव में यही अन्तर है। अवतरणों की आलोचना करना बहुत सुगम है। मानव ने सभो अवतरणों की आलोचना की क्योंकि मनुष्य उन्हें समझ अब यदि आप कहें कि श्रीमाताजी हम अबोधिता जानते हैं कि ये पावन विवाह है जो कि सहजयोग की विधियों के अनुसार हो रहा है तो ये खराब किस प्रकार हो सकता है? परन्तु यदि आप स्वयं ही खराब हैं तो कुछ नहीं हो सकता। विवाह के विषय में यदि आपके अटपटे विचार हैं तो इन्हें ठीक करने का प्रयत्न करें। यदि आप सहजयोग में विवाह करना चाहते हैं तो निश्चय करें कि विकसित कर सकते हैं तो आप नहीं कर सकते। अवीध बनने का क्या तरीका है? सहजयोग में अबोध बनने की उपयुक्त विधि है। हमारी निर्विचार-चेतना से अबोधिता विकसित होती है। जब आप निर्विचार चेतना में होते हैं तो क्या होता है? तब आप प्रतिक्रिया नहीं करते और न ही गलत चीजों में लिप्त होते आप सहज विवाह की पावनता का सम्मान हैं। तब आप किसी प्रकार के वाद-विवान करेंगे। या बहस मुवाहिसे में नहीं फँसते। चीजों को पराम मैं जानती हूँ कि पुरुष हो या महिलाएं, केवल देखते हैं और आपमें अन्तर्निहित कभी-कभी बुरे हो सकते हैं समस्याएं हो सकती हैं। परन्तु विवेकशील व्यक्ति इन सब चीजों को है, बिल्कुल वैसे ही जैसे गन्दे पानी के सहन करता है क्योंकि वह सहजयोग विवाह को तालाब से कमल खिलता है। ा अवोधिता अत्यन्त सुन्दरता पूर्वक जागृत होती तो हालात चाहे जो भी हों यदि आप पावनता का सम्मान करता है। यह कहना अन्तर्विरोध है कि ईसामसीह तथा श्रीगणेश की माताओं ने निर्विचार चेतना की अवस्था में हैं तो आप विना विवाह के उन्हें जन्म दिया वे तो स्वयं प्रतिक्रिया नहीं करते। प्रतिक्रिया न करना चैतन्य लहरी । खड : XIII अंक :। 8 2, 200। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-7.txt अबोधिता की निशानी है। प्रतिक्रिया न करने स्वयं को अत्यन्त दुर्बल पाएगा क्योंकि दूसरों पर वाले लोग युवा बने रहते हैं। उनकी आयु प्रभुत्व जमाने की शक्ति उसमें नहीं है नहीं झलकती। वे युवा ही बने रहते हैं । प्रतिक्रिया करना अच्छी बात नहीं है क्योंकि चेतना की अवस्था में जा सकते हैं। अपनी इससे आप अन्य लोगों में लिप्त हो जाते हैं। प्रतिक्रियाओं को कम करें, किसी भी चीज़ के सहजयोगी होने के नाते अब हम निर्विचार यदि आप प्रतिक्रिया नहीं करते तो आप केवल साक्षी होते हैं, किसी भी चीज़ में लिप्त नहीं होते। लिप्सा से आप दृर रहते हैं और इस प्रकार आपकी अबोधिता बढ़ती है और आप अत्यन्त आत्मविश्वस्त हो जाते हैं। चीन के एक राजा की कहानी मैंने पढ़ी प्रति प्रतिक्रिया को। अपने विषय में लांगां के इतने अजीबोगरीब विचार होते हैं कि वे प्रतिक्रिया करते हैं। उदाहरण के रूप में किसी ने मुझे ये गलीचे दिखाए। मैं बहुत प्रसन्न हुई। उन्होंने मुझे वताया कि सभी सहजयोगियों ने अपने हाथों इतने सुन्दर गलीचे बनाए हैं। ये जानकर मुझे बहुत हर्ष हुआ कि उन लोगों ने ये कार्य किया। कि मुझे तुम्हारी सहायता चाहिए। में अपने बेटे मैं यदि आम लोगों जैसी होती तो मैंने कहा होता का विकास इस प्रकार चाहता हूँ कि वह सभी हे, परमात्मा क्या रंग हैं. क्या चीज है! आदि समस्याओं का सामना कर सके। लोग जो चाहे आदि।' तो जो कुछ उन्होंने किया है में उसका थी जो एक सन्त के पास गया और उससे कहा करते रहें वह उनका सामना करने के योग्य बन आनन्द भी न ले पाती, आनन्द नाम की चीज़ जाए। ठीक है आप अपने बेटे को मेरे पास छोड़ खो जाती। दें, सन्त ने कहा। जब प्रतिस्पर्धा शुरू हुई तो उसका बेटा अखाड़े में पूर्ण- निर्विचारिता की वो देखता है उसका आनन्द लेता है। हर चीज़ स्थिति में सबको देखते हुए अडोल खड़ा रहा। उसे देखकर सभी लोग अखाड़े से और उस छोटे से लड़के की अबोधिता का बच्चा पूर्ण आनन्द लेता है। जो भी कुछ को वह आनन्ददायी बना लेता है। बच्चों को लौट आए देखें मैने देखा है कि बच्चों को जो भी कुछ मिलता है उसका खिलौना बना लेते हैं । उस दिन हम जिनोवा गए और वहाँ पर बड़े-बड़े अवरोध लगे देखे। कहीं से कुछ बच्चे आए और उन पर उनके तकों तथा आक्रामकता को सहन किया। चढ़के उन्हें घोड़ा बना लिया और आनन्द लेने बच्चों को मिलता है. कोई भी है. उसका वे खिलवाड़ बना आपकी शक्ति दर्शाएगी कि रौब झाडूने वाला ये लेते हैं । हर चीज़ उनके लिए एक खेल है व्यक्ति जो आपको कष्ट दे रहा है गलती पर है। उनके लिए जीवन भी एक आनन्ददायी खेल और वह व्यक्ति स्वयं भी महसूस करेगा कि इस है-केवल आनन्द की एक वस्तु। बच्चे आपको व्यक्ति पर मैं इतना दबाव डालने की कोशिश भी हर चीज का आनन्द लेने के लिए विवश सामना न कर सके। राजा आश्चर्यचकित था कि किस प्रकार उसके बेटे ने लोगों की आक्रामकता, कोई यदि आपसे कुछ कह तो आपको पूर्णत: लगे। जो भी कुछ अवोध बने रहना चाहिए। तब अ्बोधिता की स्थान उन्हें मिलता कर रहा हूँ फिर भी ये निश्चिंत है। तब वह कर देते हैं। आपका मिजाज़ यदि ठीक न हो तो चैतन्य लहरी । खंड : ४IlI अंक : । & 2,2001 1 & 2, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-8.txt आपको बताया है कि अबोधिता आत्मा है और आत्मा ही अबोधिता है जिसे कोई भी नष्ट बच्चे आपसे इस प्रकार व्यवहार करते हैं कि आपको मिजाज ठीक करके अत्यन्त सहज एवं ज स्वाभाविक बनना पड़ता है। किसी भी सीधे-सच्चे नहीं कर सकता। सहजयोग के माध्यम से व्यक्ति को जब आप देखते हैं तो आप कहते हैं अबोधिता को पुनर्स्थापित किया जा सकता कि वे बच्चों जैसे हैं वह चालाकी को तो है। हो सकता है कि आप अत्यन्त आक्रामक समझते ही नहीं। लोगों की धूर्तता को वे बिल्कुल व्यक्ति हों, अत्यन्त दुखी हों या हर समय अन्य नहीं समझते अपनी अबोधिता के संसार में रहते लोगों को तंग करने वाले व्यक्ति हों। ऐसा सम्भव हैं। इसी प्रकार सभी सहजयोगियों को अपने चहुँ है। परन्तु सहजयोग में आने के पश्चात् अपने और अवोधिता का परिमल (Aura) विकसित व्यक्तित्व को आप इतना सुन्दर एवं मधुर बना करना होगा। लोग देख सकें कि आप कितने सकते हैं कि ने केवल आप परन्तु अन्य लोग अवोध हैं, कितने मधुर हैं। कोई वाद-विवाद भी इसका आनन्द ले सकते हैं। ये अवोधिता नहीं, कोई लडाई-झगड़ा नहीं केवल निर्विचार पूर्ण सच्चा विवेक है। किसी मकसद के लिए चेतना की अवस्था का आन्तरिक सन्तोष है। बहुत से लोग कहते हैं कि श्रीमाताजी हम निर्विचार हो ही नहीं सकते। क्यों? क्यों आप को प्राप्त कर लेता निर्विचार नहीं हो सकते? क्योंकि जब भी किसी चीज को आप देखते हैं आप प्रतिक्रिया करना चाहते हैं । शनैः बन्द कर दें अन्न्तमनन करें और स्वयं प्रतिक्रियाओं को देखें और अपने मस्तिष्क खडे होकर वह देखता है कि लोग यह सब से सुधरने के लिए कहें तो ये कार्य हो पसन्द क्यों नहीं करते। सकता है। कोई प्रतिक्रिया यदि है तो कुछ भी न कहें, शान्त रहें। शनै: शनै:, आप हैरान होंगे उनमें कोई कमी नहीं है, परन्तु वास्तविकता ये कि. आप किस प्रकार निर्विचार चेतन हो गए हैं। आप देखेंगे कि आप कितने भिन्न हैं। आम यह कार्य नहीं करता, यह निर्वाज्य है। पूर्ण निस्वार्थ होने के कारण यह आनन्द को ऊंचाइयों है क्योंकि किसी भी चीज़ में इसका कोई भी स्वार्थ नहीं होता। सभी प्रकार के प्रयत्नों की सारहीनता को ये देख लेता है। लोग दा शनैः आप प्रतिक्रिया करना इधर-उधर क्यों दौड़े फिर रहे हैं? वं क्यों लड रहे हैं? इन सब चीजों का बह आनन्द लेता है। कुछ लोग सोच सकते हैं कि वे ठीक हैं नहीं है। जैसा मैंने बताया अबधिता अन्तर्जात गुण है। स्वयं को अबोध मानकर आपको स्वयं को धोखा नहीं देना चाहिए। इसके विपरीत अन्तर्दर्शन करें और स्वयं देखें कि अन्य लोगों लोगों जैसे आप नहीं हैं। परन्तु यदि गली में झगड़ा हो रहा हो तो आम आदमी की प्रतिक्रिया ये होती है कि इसका बह एक भाग बनना के साथ में अभी तक क्या करती रहा। आपका दृष्टिकोण क्या है। भावनात्मक विवेक के विषय चाहता है। वे भी झगड़ा करना चाहते हैं, उस लड़ाई-झगड़े का अंग-प्रत्यंग बनना चाहते हैं। में मैं आपको पहले ही बता चुकी हूँ। भावनात्मक इससे नहीं होना चाहते। ऐसे समय पर, यदि विवेक ही अबोधिता की अभिव्यक्ति है। यहीं दूर श्रीगणेश की अभिव्यक्ति है। जिन बच्चों को ये आपमें अबोधिता है तो वह कार्य करेगी। मैंने बत 7. चैतन्य लहरी । खड : XIII अक : । & 2, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-9.txt गम्भीरता से उस व्यक्ति की ओर देख रहा था । आशीर्वाद प्राप्त है वह सदैव आपका प्रसन्न वह कहने लगा माँ, जैसा आपने मुझे बताया था, करने का प्रयत्न करेंगे। वे जानते हैं कि आप ये तो घोड़े की तरह से नहीं खाते। सभी की क्या चाहते हैं, आपकी जरूरत क्या है। जो आनन्द आप चाहते हैं वे आपको प्रदान करेंगे। आपको प्रसन्न करने के लिए वे कंवल वही कार्य करेंगे जो आप चाहते हैं। उनकी अपनी कोई इच्छाएं नहीं होती. उनकी कोई माँगे नहीं होती. वै कभी नहीं कहते में ये चाहता हूँ. तुम मेरे लिए ऐसा करो., कभी नहीं। वे केवल आप ही को इच्छाओं को देखना चाहते हैं और आपकी जरूरतों को पूरा करने के लिए पूर्ण प्रयत्न करते अन्य लोगों तथा बड़ों के प्रति बच्चों के व्यवहार को देखना बहुत ही दिलचस्प है। मानो कोई महान सुझ-बूझ वाले बड़ी आयु के व्यक्ति बड़ा आघात लगा। सम्भवत: माँ ने उसे बताया बा होगा कि बह व्यक्ति घोड़े की तरह से खाता है। तो बच्चे इतने अबोध होते हैं कि उनकी बातों से आपका भेद खुल जाता है। बच्चों के बारे में बहुत से चुटकृुले हैं यदि आप इन चुटकुलों की पुस्तक लिखें तो लोगों को बहुत आनन्द आएगा। बच्चे सारी सच्ची बातों को अल्यन्त अवबोधिता पूर्वक कह देते हैं। व झूठ नहीं बोलते। वे बहुत सच्चे होते हैं। अबोधिता का यही गुण है। वच्चे झूठ नहीं बोलते। उनसे यदि पूछो कि तुमने कार्य किया तो तुरन्त बताएंगे कि हा मैन किया। तुमने ये कार्य नहीं किया तो बो कहेंगे नहीं मैंने ये कार्य नहीं किया। कभी झूठ लाग ही उन्हें सिखाते हैं किस प्रकार झूठ बोलना है. किस प्रकार धोखा देना है? एक अन्य बुरी चीज़ जो हम बच्चों को सिखाते हैं, विशेष पश्चिम में वह है उन्हें बताना कि सभी कुछ हो। नहीं बोलेंगे। बड़े अत: अवधिता में आप अत्यन्त विकसित तथा परिषक्व हो जाते हैं। अत्यन्त परिपक्व। इस परिपक्वता से आप जान जाते हैं कि इस व्यक्ति को क्या आवश्यकता है और दूसरे व्यक्ति को रूप से क्या नही मिलना चाहिए और उनके स्थापित होने का ढंग बहुत हो दिलचस्प होता है। मेरे विचार तुम्हारे पास होना चाहिए। लोग बच्चों से कहते हैं से बच्चे संसार की सबसे दिलचरूप चीज हैं। कि यह चौज़ तुम्हारी है। किसी और को मत मुझे गुलाब बहुत सुन्दर लगते हैं परन्तु बच्चे देना, ये तुम्हारी अपनी है। इसके विपरीत हमें उनसे भी सुन्दर हैं। वो आपको इतना कुछ उनसे कहना चाहिए कि तुम इसका जो चाहे सिखाते हैं कि उनकी अवोधिता को देखकर आप दग रह जाते हैं। बच्चो के विषय में बहुत से चुटकुले हैं । किस प्रकार वे आचरण करते हैं, कुछ बांट दंगे। उनका व्यवहार इतना सुन्दर होगा करो। ये बात उनकी अबोधिता पर छोड़ दो। आपको देखकर हैरानी होगी कि वे अपना सभी कि आप हैरान रह जाएंगे कि किस प्रकार वे किस प्रकार बातचीत करते हैं। अपनी अबोधिता में वे किसी को भी सबकुछ बता देते हैं। कुछ सभी को प्रसन्न करने तथा आनन्द दने का प्रयत्न करते हैं । ये सब करने की उनकी योंग्यता इस देखकर व्यक्ति को हैरानी होती भी छिपाना वे नहीं जानते। मुझे एक चुटकुला अद्भुत हैं याद है। एक बार एक व्यक्ति किसी के यहाँ है कि इन नन्हें वच्चा ने किस प्रकार ये योग्यता खाना खाने के लिए आया। उनका बच्चा बड़ी चैतन्द लहरी । खंड : XIII अंक :। 8 2, 200। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-10.txt पा ली। प्रकार की मूर्खता, वृद्धावस्था, स्वास्थ्य, मस्तिष्क यह श्रीगणेश का आशीर्वाद है कि बच्चे और सोच-विचार से ऊपर हैं। आपकी भावनाएं इतने मधुर, सुन्दर एवं आनन्हदायी हैं। बच्चों यदि अत्यन्त अबोध हैं तो आप अत्यन्त आनन्द सम बनने का प्रयत्न करें। आपको उन्हों सम बनना होगा। हो सकता है आपने बहुत सी है। मैंने देखा है कि लोगों में बिल्कुल भी लज्जा पुस्तकें पढ़ी हों, वहुत सी उपाधियाँ प्राप्त की नहीं है। मेरी समझ में नहीं आता कि कुछ हों। हो सकता है आप कोई महान चीज हों परन्तु महिलाएं पुरुषों को आकर्षित करना चाहती हैं आप बाल सुलभ नहीं हैं। आपको बाल सुलभ और कुछ पुरुष महिलाओं को। बच्चे कभी ऐसा होना होगा। अन्यथा कोई आपकी संगत पसन्द नहीं करेगा। ऐसे लोगों को हम उवाऊ कहते हैं। , मैं तो सोचती हूँ कि अवोधिताविहीन लोग ही घोड़़ों को प्रसन्न करना चाहेंगे परन्तु किसी व्यक्ति ऊवते हैं। वे आपको बताने का प्रयत्न करतें हैं को आकर्षित करने के लिए जाते हुए मैंने उन्हें कि आपको एसा अवश्य करना चाहिए। यदि कभी तहीं देखा। कारण ये है कि उनका में रहते हैं। आजकल निर्लज्जता की पराकाष्ठा नहीं करते। वे नहीं जानते कि पुरुषों या महिलाओं को आकर्षित करना क्या होता है। वो कुत्तों को आपने सफ़ल होना है तो एसा करें। बच्चों के लिए ये सब भाषण बेकार हैं। आपको भी ये जानते हैं। उन्हें पुरुषों या महिलाओं के पीछे बात समझ लेनी चाहिए कि ये फिजूल की बात दौड़कर अपने लिए समस्याएं खड़ी करने की कर रहे हैं। जिस प्रकार बच्चों को यदि अप्रिय आत्मसम्मान पूर्ण है, अपने विषय में वे भली-भांति क्या आवश्यकता है। या भयंकर बनने को कहा जाए तो वे उस बात उनका आत्मसम्मान पूर्ण है। वे आपको पूर्ण आत्म सम्मान प्रदान करते हैं । न आप किसी के सम्मुख झुकते हैं और न ही किसी को अपने सम्मुख झुकने के लिए मजबूर करते हैं । अबोधिता की चिन्ता नहीं करते उसी प्रकार आप भी यदि अबोध हैं तो कोई गलत चीज स्वीकार नहीं करेंगे। आप कुछ भी सुनें, कोई कुछ भी कहे. आप पर कोई फर्क नहीं पड़ता। उसे आप स्वीकार नहीं करते आप वैसा नहीं करते। आप ऐसा कर ही नहीं सकते क्योंकि अबोधिता आपको रक्षा करती है। उपयुक्त रूप से ये आपका पथ प्रदर्शन करती है कि आपका क्या करना है, क्या का यही सौन्दर्य है कि यह आपके अन्दर अत्यन्त भली भांति कार्य करता है। यही कारण है कि मैं हमेशा कहती हूँ कि श्रीगणेश की पूजा करो। मैं एक व्यक्ति को जानती हूँ जो बहुत ऊँचे पद पर थे परन्तु अचानक उन्हें पक्षाघात हो नहीं करना। अन्तर्दर्शन करके देखें कि आप अबोध हैं या नहीं। लोग सोचते हैं कि कोई उन्हें नियंत्रित करने का या हानि पहुँचाने का प्रयत्न गया। ये क्या हुआ? वो तो बहुत अच्छे व्यक्ति थे. उन्हें कैसे पक्षाघात हो गया ? तब मुझे पता चला कि औरतों के प्रति उनकी बुरी नीयत थी. कर रहा है या उन्हें नीचा दिखाना चाह रहा है जिसके कारण उन्हें यह समस्या हो गई। तो मैंने सोचा कि श्रीगणेश की पूजा ही अबोधिता एक ऐसा गुण है जो सभी बेहतर है। श्रीगणेश की पूजा करें। श्रीगणेश की अबोधिता को कोई नीचा नहीं दिखा सकता। ्र चैतन्य लहरी ॥ खंड :XIII अंक : & 2. 200। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-11.txt नहीं रहता। ऐसा व्यक्ति किसी चीज़ का आनन्द तही लेता। आप यदि अपनी आँखों का, पूजा करने से आपका मूलाधार ठीक होगा। ल्जा, विवेक, गरिमाभाव तथा आत्मसम्मान ठीक होगा। ऐसे वस्त्र धारण करें जिनसे प्रतीत हो आप अपनी नाक का, अपने कान का सम्मान करने वाले व्यक्ति हैं तो मैं आपको बताती बातचीत करें जिससे पता चले कि आप अपनी हूँ कि आपके लिए सभी कुछ इतना अपने शरीर का सम्मान करते हैं। इस प्रकार जिह्वा का, अपनी भाषा का सम्मान करते हैं। आनन्ददायी हो जाएगा कि आप हैरान हो आप यदि सहजयोगी हैं तो आपकी भाषा अश्लील जाएंगे। विश्व में आनन्द उठाने के लिए वहुत नहीं होगी। आपका मस्तिष्क इतना आअपवित्र नहीं सी चीजें हैं परन्तु लोग किसी अच्छी चौज को हो सकता जो गाली दे और बुरे शब्द कहे। सुनने में असमर्थ होते हैं। चहचहाते हुए पक्षियों अमरीका में मैंने देखा है कि लोग इतने बेढवे ढंग से बातचीत करते हैं कि आप भौचक्के रह जाते हैं। अपने मन की बात कहने के लिए का संगीत उन्हें सुनाई नहीं देता। बढ़ते हुए पेड़़ों. खिलते हुए फूलों तथा उनकी सुगन्ध को न वो देख सकते हैं न सूँघ सकते हैं। आत्म सम्मान के अश्लील शब्दों का या गन्दे शब्दों का उपयोग आवश्यक नहीं है। इससे आपकी जिह्वा खराब होती है और जिह्वा से अबोधिता चली जाती है। की सभी चीजों का आनन्द लेते हैं। ये सारी आपकी जिह्वा से अबोधिता यदि बिल्कुल चली चीजें तो व्यक्ति के आनन्द का सात होनी गई तो आपकी कहीं हुई बात क भी सत्य न स्तर का बहुत नौचा होना इसका कारण है। क्योंकि वे बहुत तुच्छ लाग है जो अपने आस-पास चाहिए। बच्चों की ओर देखें, वे किस प्रकार होगी. वह कभी सत्य न होगी। आनन्द के स्रोत हैं? मंच पर आकर काई यदि दौडता परन्तु यदि आप अवध हैं, आपकी जिह्वा पवित्र है तो जो भी कुछ आप बोलेंगे वह सत्य है तो किस प्रकार हम उसका आनन्द लेते हैं। क्यों? बच्चे को दौड़ते हुए देखकर हमें क्यों अच्छा लगता है। वच्चे को दौड़ते हुए दखकर हम कभी नहीं कहते कि वो पगला गया हो जाएगा। अत: हर प्रकार से अवोधिता का सम्मान किया जाना मूल चीज़ है। आपने कभी किसी से नाराज भी होना हो तो सबसे बढ़िया है या शराब पिए हुए है। इसके विपरीत बच्चे के तरीका है कि शान्त रहें चुप रहें अपनी ज़िह्वा का दौड़ने से हमें आनन्द आता है। क्यों? बच्चे का सम्मान करें। कुछ लोगों में आँखें मटकाने की माधुर्य, उसकी अवोधिता, जो कि उसकी शक्ति बहुत बुरी आदत होती है। हर समय औरतों की है, उसी के कारण वह इतना मधुर, इतना सुन्दर ओर देखते रहते हैं। कुछ औरतें भी ऐसी ही प्रतीत होता है कि हमारे हृदय में सच्चा आनन्द होती हैं। वे अपनी आँखों का सम्मान नहीं भर जाता है। करती। उन्हें न केवल आँखों के रोग हो जाते हैं अत: दूसरी बात ये है कि अवोधिता आनन्ददायी है। अबोधिता से लोगों को आनन्द मिलता है। अबोधितापूर्वक किया गया काम या कही गई बात अत्यन्त आनन्ददायी होती है। ऐसा बल्कि मस्तिष्क को समस्या भी हो जाती है। इस प्रकार के व्यवहार से मस्तिष्क ऐसा बिगड़ जाता है कि चीज़ों का आनन्द लेने का विवेक इसमें TO चैतन्य लहरी । खंड : XIlI अंक :& 2., 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-12.txt व्यक्ति अत्यन्त सुन्दर एवं पारदर्शी होता है। खाने में, अच्छी बातचीत करने में कोई बुराई उसकी पारदर्शिता आनन्ददायी होती है तथा अत्यन्त नहीं है। परन्तु इन सभी बातां में अबोधिता के पवित्र यही कारण है कि श्रीगणेश की पूजा प्रति सम्मान और अबोधिता की अभिव्यक्ति सर्वप्रथम होती है। आदिशवित ने सर्वप्रथम श्रीगणेश होनी चाहिए। इस अवोधिता से हम समस्याओं देव का सृजन किया। क्योंकि सृजन करते हुए उन्हें देखना होता है कि सृजित देवता में अवोधिता समस्याओं का समाधान अवोधिता से ही सकता की शक्ति हो। अन्यथा लोग भटक जाएंगे और सभी प्रकार के कुकृत्य करेंगे। इसलिए सर्वप्रथम है। आपका श्री गणेश तत्व यदि दुर्वल है तो न उन्होंने श्री गणेश का सृजन किया जिनके पाबित्र्य जाने आपके साथ क्या हो जाए! आप जानते हैं को आप चैतन्य लहरियाँ भी कह सकते हैं ये कि आजकल बहुत सी भयानक बीमारियाँ हो चैतन्य लहरियाँ इतनी शक्तिशाली हैं कि हर चीज का नियन्त्रण करती है। नि:सन्देह ऐसे लोग भी हैं जो अपनी अवोधिता को बिल्कुल त्याग देते हैं और स्वयं का कोई अन्त नहीं समझते। होने चाहिए। जैसे आपकी बहन है माँ है,. भाई उन्हें बिल्कुल भुला दें। सामान्यतः उनकी अबोधिता है. पिता हैं। आपके सभी सम्बन्ध इतने सुन्दर का समाधान कर सकते हैं। विश्व की सभी है यही कारण है कि श्री गणेश बहुत महत्वपूर्ण रही हैं, क्योंकि लोग पवित्र नहीं हैं., उनके सम्बन्ध पवित्र नहीं हैं. आपकी अबोधिता द्वारा सभी सम्बन्ध पवित्र और पवित्र हैं क्योंकि आपके रिश्ते अबोधिता के हो उनका पथप्रदर्शन करेगी। आपको चाहे इस बात का ज्ञान हो चाहे न हो, यह इतनी मधुर हैं। चीज है कि यह लांगों को उनकी श्रेष्ठता व महानता में उतारती है। सहजयोगी के रूप में अबोधिता वश प्रेम करते हैं क्यों आपको प्रेम आप अपने पिता से, बंटी से, माँ से करना चाहिए। किसी पर प्रभुत्व जमाने के लिए यदि आप ऐसा करते हैं तो ये चालाकी है। प्रेम तो केवल प्रेम के लिए होना चाहिए (निर्वाज्य ) । हमने भी अपने अन्दर यही गुण विकसित, करने हैं। सहजयोगी कहीं भी जाए, कोई भी कार्य करने का प्रयत्न करें, किसी भी व्यक्ति से मिले, कोई भी सामाजिक कार्य करे, आपके अन्तर्निहित तो अब में प्रसन्न हूँ। कल आप लोगों के विवाह होंगे और जिनके विवाह हागे उन्हें समझना आनन्द का आभास लोगों को होना चाहिए। केवल इसी आनन्द के लिए श्रीआदिशक्ति ने चाहिए कि ये विवाह बहुत ही पवित्र हैं। बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह किसी अन्य विवाह की हो रहे श्री गणेश का सृजन किया। क्योंकि यह आन्तरिक तरह से नहीं है। यह विवाह मर सम्मुख आनन्द, यह अवाधिता किसी को हानि नहीं पहुँचा सकते। यह किसी चीज़ को आशा नहीं हैं अत: सावधान रहे। आप यदि विवाह नहीं करना चाहते तो न करें। अपने भावी साथी को समझने का अवसर आपको दिया गया है। परन्तु करती है। आपका व्यक्तित्व भी ऐसा ही होना विवाह के पश्चात यदि आप इसमें दोष खोजेंगे तो मेरे लिए भी कठिनाई होगी और आपके लिए करती, किसी चीज़ की माँग नहीं करती, कुछ भी नहीं चाहती। सर्वत्र केवल आनन्द का प्रसार चाहिए। अच्छी वेशभूषा पहनने से, अच्छा खाना 11 चैतन्य लहरी खड : XIII अक : & 2. 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-13.txt घटना हो गई है । मैं चाहती हूँ कि आप सदैव अपने अन्त्निहिंत श्रीगणेश की पूजा करें। श्री भी। ये भी हो सकता है कि मैं विवाह करवाने बन्द कर दूं। अत: हम लोगों को पहले दिन से ही तलाक की बातें करने की आज्ञा नहीं दंते। गणेश अवोधिता हैं, वे ही आत्मा हैं। जब भी परन्तु वास्तव में यदि कोई समस्या है तो हमने सहजयोग में तलाक की आज्ञा भी दी है। कैथोलिक एकाकारिता बना लें। आप आत्मा को जानना चाहें श्री गणेश के साथ ये आपके अन्तर्निहित हैं और श्री गणेश चर्च तलाक की आज्ञा नहीं देता। यही कारण है कि पुरुष और महिलाएं, इधर-उधर, उल्टे-सीधे की शक्ति से यूर्णत: ज्योतिर्मय हो जाना आप सब लोगों के लिए विल्कुल सम्भव है। मुझे बहुत खुशी है कि आप सबने अपने लिए चुने गए साथियों को स्वीकारा और विवाह करने का सम्बन्ध बनाते हैं। यहाँ पर एसा नहीं है। परन्तु यह अत्यन्त अवोध घटना होनी चाहिए। आपके पावित्र्य को यदि चुनौती दी जा रही है और इस निर्णय कर लिया। परन्तु अब भी यदि आप न कारण से यदि आप तलाक लेते हैं तो ठीक है। इस बात से मैं सहमत हूँ। ऐसी स्थिति में आपको चाहते हों तो यह विवाह न करें। किसी तरह की तलाक ले लेना चाहिए। अत: अपने पावित्र्य को चालाकी करते का प्रयत्न न करें। कोई अटपटा बनाए रखें। आधुनिक काल में अपने पावित्र्य को कार्य न करें जिसके कारण आप अपने विवाह बनाए रखना वहुत महत्वपूर्ण है ताकि आपके अन्दर तथा अन्य लोगों के अन्दर श्री गणेश का आनन्द न उठा पाए। पहले दिन से ही ये बात समझने का प्रयत्न करें कि आपको अपने जागृत हो सकें। यही इस विश्व की रक्षा करेगी। जीवन साथी के प्रति अत्यन्त करुणामय होना अबोधिता के अतिरिक्त कोई भी अन्य चीज हागा. अत्यन्त सम्मानमय, प्रेममय और करुण। विश्व को बचा नहीं सकती। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण बात है जिसे लोग न तो समझते हैं न स्वीकारते हैं। मैंने विवाह को लोग अपना अधिकार मान लेते हैं जो भी सुना है कि सहज कुछ आप जानते हैं. जो भी कुछ आप कहते हैं या लिखते हैं कृपा करके ध्यान रखें कि इससे आपके अन्तनिर्हित अबोधिता को नहीं । इसे कभी भी अधिकार न माने। वास्तविक चोट न पहुँचे। नैतिकता विहीन जीवन जीने की कोई आवश्यकता नहीं है। आपकी अवोधिता का होना ही आवश्यक है। अबोधिता हो आपको नैतिक शक्ति तथा नैतिक सूझ बुझ प्रदान करती है। आपको कोई पुस्तके नहीं पढ़नी पड़तीं और नहीं दिया। मेरे विचार में विवाह को कामयाव न ही किसी गुरु के पास जाना पड़ता है। आनन्द यदि आप प्राप्त करना चाहते हैं तो अपने री अन्दर निश्छल प्रेम बनाए रखें और जीवन का आनन्द लें। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। मैंने लड़कियों के सम्मुख कोई भाषण बनाने का उत्तरदायित्व पुरुषों पर कहीं अधिक अबोधिता आपका पथ-प्रदर्शन करेगी और बताएगी है। पुरुषों को समझना चाहिए कि विवाह उनके कि ठीक क्या है। सहज में यही आपने प्राप्त जीवन का बहुत महत्त्वपूर्ण भाग है। बिवाह को करना है। आप सबको आत्म-साक्षात्कार मिल उचित सम्मान दिया ही जाना चाहिए। आरम्भ से चुका हे। आप लोगों के साथ ये बहुत बड़ी ही जिस प्रकार आप अपनी पत्नी की देखभाल 12 चतन्य लहरी ।खंड : XIII अंक : । & 2. 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-14.txt करते हैं उससे बहुत सहायता मिलती है। पहले हो दिन से अत्यन्त सावधान हो जाएं। किसी देखना चाहिए कि एक अच्छा परिवार बनाने के प्रकार का भ्रम न पाल। आपकी पत्नी किसी लिए हमें कितने विवेक की आवश्यकता है। अन्य देश से आई हैं। उसके अपने ही विचार हैं, यही हमारी आवश्यकता है क्योंकि अच्छे परिवारों सहन-शक्ति की भी सीमा होती हैं। अत: हमें अपने ही प्रकार से उसका पालन-पोषण हुआ है। में ही अच्छे बच्चे जन्म लेंगे और सहजयोग उसके विचारों को समझने का प्रयत्न करें और सार्वभौमिक बन जाएगा। अतः केवल अपनी ही उसका सम्मान करें। इस कार्य को गम्भीरतापूर्वक चिन्ता न करें अपनी पत्नी का भी ध्यान रखें। उसकी जरूरतों और इच्छाओं का ध्यान रखें। ये सहजयोग में आपको समझना चाहिए कि इसी आपकी जिम्मेदारी है। विवाह के लिए विवाह आप नहीं कर रहे। विवाह आपकी जिम्मेदारी हैं। करें यह कोई मजाक नहीं है। विशेष रूप से के कारण आप पावन दम्पति हैं जिनका दायित्व है कि सहजयोंग को सम्पन्न बनाएं। सहजयोग अत्यन्त महान उपलब्धि है जो पूरे विश्व को हैं और सहजयोगियों के यहाँ बहुत सुन्दर बच्चे बहुत सुन्दर संस्थान में परिवर्तित कर सकती है भी जन्म लेते हैं। ऐसे बच्चे जो अत्यन्त विवेकशील और इसकी जिम्मेदारी आप पर है। पुरुष होने के हैं। फिर भी यदि आपको विवाह से कोई समस्या नाते आपको अपनी जिम्मेदारी समझनी है कि है ता आप मुझे बताएं। सहजयोग एक बहुत बड़ा आप एक महान व्यक्ति हैं और परिवार के सार्वभौमिक परिवार है । अतः आप पूरी सहजयोग मुखिया कल मैंने आपको बताया था कि मुझे संस्था के प्रति उत्तरदायी हैं। आपकी पत्नी एक तलाक में विश्वास नहीं है। मैं आपसे आशा करती हूँ कि आप अच्छे पति बनेंगे और अपनी रही है अत: उसे चीजों को समझने दें तथा कम से कम 95% सहजयोग विवाह सफल होते अन्य परिवार, अन्य देश, अन्य वातावरण से आ पत्नियों को अत्यन्त प्रेम. स्नह एवं दुलार देंगे। पुरुष और महिलाएं पूर्णतः समान सामंजस्य स्थापित करने दें। उसमें दोष न खोजें | अत्यन्त सुख तथा प्रसन्नता उसे प्रदान करें तभी हैं। चाहे एक जैसे न हों परन्तु पूर्णतः समान हैं वह सहजयोग में भली-भांति उन्नत होगी बच्चों और वे एक दूसरे के पूरक हैं। आप अपने का भी माँ का सम्मान करना अत्यन्त आवश्यक जीवन को महत्वपूर्णतम मानकर अपनी पत्नी है। जिस प्रकार आप सम्मान करते हैं उसी प्रकार की उपेक्षा न करें। मैंने देखा है कि सहजयोग में बच्चों को भी माँ का सम्मान करना चाहिए। हैं तो आपका में सहजयाग और सहजियों विवाह के प्रति यदि आप गम्भीर अधिकतर विवाह सफल होते हैं के बच्चे भी अत्यन्त सुन्दर होते हैं। विवाह जोवन निश्चित रूप से आनन्दमय बन जाएगा केवल अहं की स्पर्धा के कारण असफल सहजयोग में किसी को विवश नहीं किया जाता। होते हैं। अह यदि पुरुषों में न हुआ तो महिलाओं में होता है और यह आपके. आपकी पत्नी के. आपके बच्चों के जीवन को नष्ट कर सकता है। आपने स्वयं सहजयोग में विवाह करने का निर्णय लिया है और इस प्रकार ये विवाह हो रहे महिलाओं को मैंने कुछ नहीं बताया क्योंकि वे बहुत विवेकशील हैं और अपने भविष्य की ओर महिलाएं विवेकशील होती हैं परन्तु उनकी 13 चैतन्य लहरी खंड :XIll अंक़ : & 2.2001/ he 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-15.txt अत्यन्त उत्सुकतापूर्वक देख रही हैं । मैं सोचती हूँ कि सदैव महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों को ही पुरुषों की तरह से चलने की आज्ञा नहीं देते। विवाह की जिम्मेदारी को समझना चाहिए। अन्तर्जात इसकी किसी भी प्रकार से आज्ञा नहीं है। मुझे रूप से महिलाएं जानती और समझती हैं कि उनके विवाहित जीवन का सफल होना बहुत समझेंगे कि आपने एक सहजयोगिनी से विवाह महत्वपूर्ण है परन्तु मैंने पाया है कि कभी-कभी किया है। किसी सामान्य लड़की से आपका पुरुष उन पर अपना अधिकार मान लेते हैं ऐसा विवाह नहीं हुआ आपका विवाह एक सहजयोगिनी नहीं होना चाहिए। प्रेम एवं स्नेह से जो भी कुछ से हुआ है आप उसको पूर्ण गौरव प्रदान करें वह करती है उसकी सराहना होनी चाहिए। और इस प्रकार आप सहजयोग को भी गौरवान्वित उसकी सराहना अपने प्रेम की अभिव्यक्ति कर सकते हैं। आप जानते हैं कि हम सहजयोग में अन्य हैं आशा है कि आप समझदार और इस बात को करने से ही आप उसके प्रति करेंगे। परमात्मा आपको धन्य करें। 14 चैतन्य लहरी खंड : XIII अंक : & 2. 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-16.txt दिल्ली पब्लिक प्रोग्राम परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (25.3.2000) आज तक हम लोग जानते ही नहीं थे कि की। ऐसा मुझे लगता है कि लोग जो हैं वो हमें केवल सत्य मिला नहीं। जिस चौज को पीतल में खाना नहीं खाएंगे और लोहे में खाना खाएंगे। इस प्रकार की बहुत ही औपचारिक बातें लिया। फिर बहकते-बहकते ये बुद्धि उस दिशा इसमें लिखी हैं। लेकिन जो दृश्य है, जो सामने में चल पड़ी कि कोई सा भी काम करो वो दिखाई देता है वो बहुत भयानक है और बहुत विचलित करने वाला है। इसके पीछे यही कहना बुद्धि ठीक समझती थी उसी को हमने सत्य मान ठीक है, अच्छा है। इससे लाभ है ये ही करना चाहिए। सत्य से परे मनुष्य भटक गया और चाहिए कि मनुष्य को अपना रास्ता नहीं मिला भटकते-भटकते पता नहीं कौन सी खाई में और वह कहां से कहां भटक गया! उसको सुख जाकर गिरा। ये देख कर के लोग सोचते हैं कि नहीं मिला। इस सुख की खोज में वो गलत ऐसे कैसे हुआ? ऐसी स्थिति क्यों आई? मनुष्य चीज़़ों के पीछे भागा जिसे मृगतृष्णा कहते हैं। इस के अन्दर जो बुद्धि है उस बुद्धि की उस तरह प्रकार मनुष्य भटकते भटकते घोर अधकार में से कूबुद्धि में परिवर्तित क्यों कर दिया? उसको डूब गया। वो ये भी नहीं जानता कि जो मैं कर सुबुद्धि बनाना था। वो कुबुद्धि हो गई! और उस कुबुद्धि से ऐसी ऐसी चीजें निकलने लगीं जिससे न तो दूसरों को कोई सुख हो सकता है न तो स्वयं को कोई सुख हो सकता है। हम लोग कभी-कभी समझ में नहीं आता कि ये संसार रहा हूँ वो कुकर्म है और इस कुकरम्म का फल मुझको तो बुरा मिलेगा ही और को भी मिलेगा। इस तरह की चीजें इतनी बढ़ गई हैं कि मसर कभी-कभी घबरा जाते हैं सोच कर के कि ये कहा जाने वाला है। अपने देश में अनेक प्रश्न हैं का और देशों में भी बहुत से प्रश्न हैं। ये सोचना कि बाहर के लोग बहुत ठीक हैं ये गलत बात है। वो भी खोज में लगे हैं और उस खोज में वह देखना चाहते हैं कि किस तरह से बो उस स्थिति क्या हो रहा है। मारकाट हो रही है और हर तरह का हिंसक कार्य हो रहा है। छोटे-छोटे बच्चों तक को कोई नहीं छोड़ता। इस तरह की अनेक विकृतियां हमारे अंदर जो जागरूक हो गई हैं । उसकी देख कर के यही मैं कह सकती हैँ कि को प्राप्त करें जिससे वो मनुष्यता तो कम से घोर कलयुग है। कलयुग की परिसीमा है। इतना तो वर्णन शास्त्री में भी नहीं है कि ये ऐसा काल कम पा लें। इसका जो भी परिणाम है वो ये है कि मनुष्य निराशा में चला गया. उसके अंदर गहन निराशा आ गयी। वो सोचता है अब क्या आएगा। उन्होंने साधारण इधर उधर की बातें 15 चैतन्य लहरी खंड : XIII अंक :1 & 2., 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-17.txt करें? सब ऐसा ही चलना है, चलेगा। इसको सतुसत् विवेक बुद्धि भी खत्म ही जाती हैं। कोई ठीक कर नहीं सकता। अब इसी आत्मा को पाने की बात है और ऐसे ही बक्त एक बात हमें याद रहना चाहिए इस आत्मा को किस प्रकार पाया जा सकता है कि साधु सन्तों ने कहा है कि अपने ही अंदर खोजो, अपने ही अन्दर सब कुछ है। काहे रे वन ये समझना चाहिए। इसी के लिए आपके शरीर के अंदर ही इसकी व्यवस्था है। कोई बाहर जाने खाजन जाई सदा निवासी सदा अनन्ता तोहे संग की जरूरत नहीं। आपक ही त्रिकोणाकार अस्थि समाई। बो कौन हैं। वो कौन सी चौज़ है जिसकं में एक शक्ति कुण्डलिती, एक पवित्र शक्ति बारे में सब संतों ने हिन्दुस्तान में भी कहा है स्थित है। जब इसकी जागृति होती है तो वो छः चक्रों में से गुजरती हुई अंत में ब्रह्मरन्ध्र को बाहर भी कहा है? सब धर्मों में भी है। इतना विप्रयास धर्मों का भी हो गया कि लोग इस बात भदते हुए उस सूक्ष्म शक्ति से एकाकारिता करती को भूल ही गये कि जा हमारे अंदर है उसे है जो परमेश्वर की प्रम शक्ति हैं। ऐसे अपने शास्त्रों में लिखा था लेकिन ऐसे तो कोई करता ये आत्मा पूरी तरह से जीवित नहीं। अपने देश के बहुत से साधु संत बाहर खोजना है। और हमारे अंदर हमारी आत्मा है। हर इसान में गये। मेरे ख्याल से मछिदरनाथ, गोरखनाथ गये अवस्था में है। वो आत्मा जो है वही परमात्मा का प्रतिबिम्ब हमारे हृदय में है। ऐसी तो बातें होंगे क्योंकि बोलिविया में भी ये लोग सब जानते सभी कहते हैं। सबने बताया की ऐसी आत्मा है। ह लेकिन लोग कहते हैं माँ हमने तो कभी जाना हैं। ये चक्रों के नाम जानते हैं और वो कुण्डलिनी के जागरण की वात जानते हैं। रूस में भी मैंने नहीं की ऐसी कोई चीज है। अब आपका समय देखा है और हर जगह देखती हूँ की पुरातन जो आ गया है इसे जानने का कि हमारो आत्मा, पंटिंगस है वो कितनी वहाँ चित्रकारी है। उसमें अन्तर-आत्मा क्यां चीज़ है और इस आत्मा का सब चक्र बने हैं। आप अगर थोड़ा सफर करें तो आप हैरान होंगे कि ये हम किस प्रकार पा सकते हैं। ये आत्मा माने सब चीज़ें इन्होंने कहाँ जैसे अच्छी सो अंदर सब चीज़ देख रही है और जानी और कैसे जानी? ये किसने बंताया? इसके अपने प्रकाश से भी अपने ही अंदर समेटे हुए लिए अपने यहाँ के कोई न कोई संत साधु गये है। वो ये भी नहीं करती कि कहीं हम गलत थे, ऐसा बताते हैं और उन्होंने ये बातें बताई। मगर हम लोगों को भी बता सब चले गये और काम करे रहे हैं तो इस गलत काम पर कोई प्रकाश डाले। क्योंकि हम तो अपनी सुबुद्धि को हमारे यहाँ भी लिख कर चले गये कि ऐसी कुबुद्धि बना चुके और हम देख ही नहीं सकते कुण्डलिनी आपके अंदर है। यहां तक के जो कि हम काई गलत काम कर रहे हैं! हर तरह नाथ पथी लोग थे उन्होंने इसके बारे में किसी का गलत कर्म हम करते हैं और कहते हैं हम तो बहुत अच्छे आदमी हैं। इस प्रकार हमारी को दे दीजिए तो लोग इसका क्या इस्तेमाल को बताया नहीं क्योंकि वो सोचते थे किसी और 16 चैतन्य लहरी खंड XIl अक : । 8 2. 200। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-18.txt आप गलत-गलत चीज की तरफ दौड़ना और है। जिन्होंने ऐसी चीज पढ़ी बो दुनिया भर की इसलिए इन्हांने साफ साफ कह दिया कि आप सब गुरुओं की सेवा करिए। एक बोरा भर के आप बहुत से मूर्तियाँ ले आइए, उनकी पूजा होगा कि ये सर्वसाधारण इन्सान के लिए नहीं करिए। अब बैठे हैं सवेरे चार बजे से, कर रहे देना। लेकिन किताबों में लिखा है। अब बारहवीं हैं। फिर ये उपवास करिए ये तपास करिए, इतने शताब्दि में ज्ञानेश्वर जी आए उन्होंने अपने गुरु कर्मकाण्ड हमारे अन्दर भर दिए कि हम उसी से कहा कि आप मुझे इजाजत दें, मैं अपनी में मिटे जा रहे हैं । ये भी नहीं हमारे समझ में करेंगे? क्या करेंगे क्या नहीं करेंगे? और हुआ झूठी-मूठी बातें फैलाते हैं और उन्होंने पैसा खूब कमाने धंधा बनाया। तो उनका यही विचार रहा ज्ञानेश्वरी में इसके बारे में लिखना चाहता हूँ। आता ये क्यों कर रहे हैं? इसका क्या फायदा छठे अध्याय में उन्होंने लिखा! लेकिन ऐसा भी हुआ हमारे वाप दादाओं ने यही किया और हम होता है कि धर्म के नाम पर बहुत लोग पैसा भी यही कर रहे हैं ? मोहम्मद साहब ने साफ कमाते हैं । तो उन्होंने कहा 'नहीं, ये निषिद्ध है, इसको मत पढ़ो। ये बेकार चीज है। ये सबके किसने बनाई है। ये चीजें किन लोगों ने बनाई हैं। बस का नहीं। अभी मैंने एक बड़े भारी साधु लेकिन ये ठीक है कि इन्होंने जो मक्का में एक बाबा का लैक्चर सुना। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ काले पत्थर के चारों तरफ प्रदक्षिणा डालने की कहा कि मूर्ति पूजा बन्द क्योंकि पता नहीं उन्होंने कैसे ये कहा आसानी से? आप नहीं बात कही है वो क्यों है? इस पत्थर में क्या समझ पाएंगे। पर इस तरह से गाली दी कि आप विशेषता थी? इस पत्थर में क्या बात थी जा कह लोग सब प्रवृत्ति मार्गी हैं। निवृत्ति मार्गी नहीं है। प्रवृत्ति माने इधर उधर दौड़ने की आपको जो रहे थे कि मूर्ति पूजा मत करो पर इस पत्थर के चारों तरफ क्यों घुमाते हैं? इसकी वजह ये थी क्रिया है वो आप है। अब बताइए! और संव कि मक्का में मक्केश्वर शिव हैं; वो शिव हैं, हाँ-हाँ कर रहे। पर आप निवृत्ति मार्गी नहीं है तो मक्केश्वर शिव हैं। लेकिन अब कैसे जानिएगा आप को ज्ञानमार्गी होना चाहिए क्योंकि सहज योग ज्ञान-मार्गी है। आप अपने तरीके से चलिए और गुरुओं की सेवा करिये। उनको प्रसाद दीजिए इनको ये करिये वी करिये। और लोग होता है तो ये छः चक्रों को छेद कर चारों तरफ मान गये! कोई किसी को कहे कि तुम निवृत्ति फैली हुई दैवी शक्ति से एकाकारिता प्राप्त करती नहीं हो तो एक तरह से तो ये गाली हो गई। है तब आपके हाथ में चैतन्य बहता है। तब लेकिन किसी को संस्कृत ही मालूम नहीं। जो आपके हाथ बताएंगे कि क्या सत्य है और क्या बोल रहे हैं ठीक ही बोल रहे हैं । कि वो मक्केश्वर शिव है? आप कैसे जानिएगा कि स्वयंभू मूर्ति कौन सी है? आपके पास कोई साधन नहीं। इसीलिए जब कुण्डलिनी का जागरण कुछ तो हमें गलत। इतनी सुन्दर व्यवस्था हमारे अन्दर पहले इन्होंने बनाया है और प्रवृत्ति पाने का मतलब है ही से बनी है। ये कुछ बनाने की जरूरत नहीं। 17 चैतऱ्य लहरी खंड : XIII अंक :& 2.200। : । 8 2. 200। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-19.txt अब आपके हाथ बता रहे हैं, माने आपके हाथ देवी हमारे अन्दर विद्या है। या कहना चाहिए कि ये मशीन है हमारे अन्दर। जब ये चलकर, जब जानते हैं। मोहम्मद साहब ने कहा है कि जब कियामा आएगा तो आपके हाथ बोलेंगे। आ गया कियामा अब इसे प्राप्त करो। कोई पढ़ता भी है, ये हो जाती है तब एक से एक चमत्कार शुरू आपको अपने ही बारे में दिखाई देते हैं। जितने शराबी शराब पीते थे उन्होंने शराब छोड़ दी, जब हाथ बोलेंगे तो इस हाथ से पता चलेगा क्या चीज़ गलत है, क्या चीज अच्छी है क्या चीज कितने ही दुष्ट लोग थे उन्होंने दुष्टता छोड़ दी। मैं तलियाती में गई तो वहाँ पर एक माफिया के मुख्य डॉन थे तो उन्होंने सहजयोग ले लिया। मैंने कहा भई कमाल है इन्होंने सहजयोग कैसे ले सही? अब कोई कहे कि मक्का में क्या रखा है हाथ उधर करके देख लोजिए जो लोग सहजयोगी हैं सब देख सकते हैं कि कितनी चैतन्य की लहरें हैं तो कौन सत्य है और कीन असत्य। लिया? कहने लगे माँ बो सहजयोगी हो गए ये आपकी मिलना चाहते हैं। वो आए तो इतने नम्र। आप अपने हाथ पर जान सकते हैं। इतनी सुन्दर ाड व्यवस्था कि पूरा यन्त्र ही हमारे अन्दर बना हुआ बस उन्हांने इतना कहा कि माँ मैने बहुत गुनाह है। इतना सुन्दर। जब ये व्यवस्था होती है और किए हैं इनकी मुझे माफी मिल जाएगी या नहीं जब आप उसे प्राप्त कर लेगे तो कमाल की बात ये बता दो? अरे! मैंन कहा क्या बात करते हो, है कि आपके अन्दर के दोष अपने ही आप तुमने गुनाह किए वो तो हो गए। अब भूतकाल विलय हो जाते क्योंकि आप दूसरी ही दुनिया में में हो गए पीछे हो गए। आज में तुमसे जो बात कर रही हैूँ वर्तमान की। और वो वात अब खत्म गुजर जाते हैं। आपके अन्दर काम, क्रोध, मोह. मद-मत्सर, लोभ ये जो आपके शत्रु हैं, भाग हुई अब वर्तमान में तुम क्या हो? तुम आज जाते हैं। हमारे लिए तो आश्चर्य की बात है कि कहाँ से कहाँ हो गए हो. ये देखना है। फिर इंग्लैण्ड में जब हमने पहले दिन प्रोग्राम किया उसने इतनी मदद की. हम लोगों की इतनी था तो वहाँ छः ड्ग एडिक्ट (नशेडी) आए। वो सराहना की और एक तरह से बड़ा आश्चर्य लोग ड्रंग लेते थे और दूसरे दिन ही वो साफ हो गए। भई ये तो कमाल है ये कैसे हो गया? हुआ कि ये जिस तरह जो माफिया का जा सबसे वहाँ मुख्य आदमी था उसमें ये बदलाव कैसे आ गया? वो कैसे इस चीज को मान गए? ये घटित कहने लगे अब तो हमें पता नहीं हमें तो लेना ही नहीं, हमें अच्छा ही नहीं लगता। ये बेकार है। हो गया, उसमें किसी को लैक्चर नहीं दिया, बड़े बढ़िया लोग हो गए। वही आज बहुत किसी को समझाया नहीं, बताया नहीं। ये घटना है और ये घटना इस कलियुग में होनी अत्यावश्यक हैं क्योंकि इससे आदमी जो है परिवर्तित हो जाता कार्यान्वित हैं और कार्य कर रहे हैं। तो ये जो चीज़ है कि अपने को प्राप्त करो कहा है, माने अपनी आत्मा को जानो, इसकी व्यवस्था भी है Transtorm हो जाता है। और जब आदमी हमारे ही अन्दर बनाई हुई है जैसे कोई बड़ी परिवर्तित हो जाता है तब वो इतना निखर आता 18 चंतन्य लहरी खड़ : XllI अक : । & 2. 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-20.txt है इतना सुन्दर हो जाता है। आज दुनिया को इस सके और लोगों की भी जागृति करें और इस परिवर्तन की जरूरत यही परिवर्तन करना ही जागरण में इसे पाएं। इसको प्राप्त करने के बाद देखिए, मैने तो यही देखा है, है। हम सोचते हैं आप सब सहजयोगियों का काम न कहीं झगड़ा है। मैंने जहाँ तक हुआ हैं, की है मेहनत। इतने होता है, न कोई आफ़त होती है। कोई भी देश देशों में घूमी फिरी हूँ। अब आप लोगों को के लोग आएं, कहीं से भी आएं, न कांई मोर्चा चाहिए जो सहजयोग में आए हैं या आने वाले हैं बाँधता है न कोई झण्डे उठाता है, कुछ नहीं। उनको चाहिए कि और लोगों को बताएं और बस एक दूसरे का समागम है। सबसे बड़ा उनको इस परिवर्तन में लाना है बहुत से लोग आनन्द का सागर है और एक दूसरे से मिलकर भटके हैं यानि परमात्मा के नाम पर भटके ही बड़ा अच्छा लगता है। अपने देश की तो हुए हैं किसी भी संस्कृति है कि भाईचारा होना चाहिए। सवको हुए हैं, धर्म के नाम पर भटक हुए चीज़ में भटके हुए हैं। इनको जव आप इस आपसी मिलावा होना चाहिए। हरेक चीज़ में एक अवस्था में लाएंगे तब आप देखिए इनका दीप तरह से दूसरे की मदद करनी चाहिए। ये तो कैसे जलता है। अब इतनी सारी यहाँ बत्तियाँ अपनी संस्कृति हैं। जल रही हैं। इनका अगर कनैक्शन इनके साथ न हो, मेन के साथ तो क्या जल सकती हैं? विचित्र-विचित्र बातें होती गईं। ये देश अनेक हिस्सों में विभाजित हो गया और इसलिए इसी प्रकार जब तक हमारा ही सम्बन्ध जैसे कि इसमें भी बहुत से झगड़ें हो रहे हैं। जहां देखो ये है इसका सम्बन्ध ग़र मेन के साथ नहीं है तो वहीं झगड़े। कहीं जाइए तो एक मोर्चा लिए ये कोई उपयोग ही नही। इसी प्रकार हमारी खड़े हैं तो उधर दूसरा मोर्चा लिए खड़े हैं और इसका हालत है कि हमारा सम्बन्ध इस महान शक्ति के कोई भी बात को लेकर के इस तरह से कोई सी साथ है और सबसे बड़ी बात ये है कि ये सत्य भी चीज को लेकर के एक गठबन्धन करने का ही थी. सत्य ही है। और झगड़ा करने का। ये इन्सानियत की निशानी जब आपका चित्त इस आत्मा के प्रकाश से नहीं, ये तो जानवर भी नहीं करते फिर इन्सानों आलोकित होता है तो आप एक अलग ही को तो ऐसा नहीं करना चाहिए। इन्सान जो है ये प्रकाशमान व्यक्ति हो जाते हैं। ऐसे व्यक्ति कि सबसे ऊँची चीज़ परमात्मा ने बनाई है और जो सारे संसार की भलाई करता है। सारे संसार इसमें इतना सुन्दर अपने अन्दर जो पूर्णतः ये में ग़र मनुष्य बदल गया तो कोन सी आफ़त एक इन्तजाम कर दिया, ऐसी व्यवस्था कर दी है कि आप बहुत आसानी से इसे ়ाप्त कर लें आएगी। सारी आफ़त तो मनुष्य से ही है। जब और इसके लिए आपको पैसा-वैसा देनें से कोई मानव ही बदल जाएगा तो कोई सी भी परेशानी, कोई सी भी तकलीफ नहीं आएगी। इसलिए हमें मतलब ही नहीं है। जैसे एक साहब मुझसे कहने सोचना चाहिए कि किसी तरह से जितना हो लगे कि मैं आपको एक लाख रुपया देता T9 चैतन्य लहरी । खंड : XII अंक 2,2001 : 1 & ho ho 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-21.txt आप मेरी कुण्डलिनी जगाइए। मैंन कहा जनाव देखिए हमसे मिलने एक आए थे. साहब वो आइबोरी कोस्ट के मुखिया थे. वो इतने नम्र आदमी इतने नम्र आदमी कि मैं तो हैरान हो गई। मैं आपको दो लाख रुपया देती हूँ आप बातचीत बन्द करिए। क्योंकि कुण्डलिनी को पैसा नहीं समझ में आता। कुण्डलिनी जो है एक दैवी शक्ति आपके अन्दर है आपकी शुद्ध इच्छा होने करिए कि हमारे देश में सव लोगों को सहजयोगी आकर नम्रतापूर्वक मुझसे कहते हैं कि माँ ऐसा बना दीजिए। मैंने कहा अच्छा ठीक है तुम्हीं बना पर, गर आपको शुद्ध इच्छा नहीं हुई तो जबरदस्ती सकते हो सबको। कहने लगे मैं तो इतना मज़े में नहीं हो सकती। ये ऐसा क्या चलेगा आप जबरदस्ती नहीं कर सकते। ग़र आपके अन्दर आ गया हूँ। उन्होंने तीन बीवियोंसे तलाक लिए। अव कहने लगे मैं तो शर्मिन्दा हूँ। मेरी क्या शुद्ध इच्छा है तभी ये कार्यान्वित होगी अब हमारी कोई सी भी इच्छा शुद्ध नहीं है रार शुद्ध जिन्दगी है? मैंने क्यों ऐसी जिन्दगी बनाई? मेरे होती तो आपका आजकल जो Economics है ये समझ में नहीं आया पर अब जो है में बिल्कुल नहीं चलता। Economics में क्या है कि आज बदल गया हूँ। अब मेरे अन्दर इतना आनन्द, इतनी शान्ति और इतना सुख हैं। और छः सो आपने समझ लोजिए मार धाड़ करके घर बनाया लोग, छ: सौ लोग वहाँ पर जो हैं सहजयोगी पर इसका कोई सन्तोष नहीं। फिर आपको मोटर और उन्होंने मुसलमान धर्म लिया था। मैंने कहा चाहिए. इसका भी सन्तोष नहीं। किसी चीज़ से सन्तोष ही जब नहीं मिलता इसका मतलब तुम मुसलमान क्यों हो गए? तो उन्होंने कहा कि इसलिए क्योंकि ये जो फ्ैन्च लोग हैं इनमें तो कोई नैतिकता है ही नहीं, Morality है ही नहीं। वो ये है कि अपनी आत्मा का इनकी तो नेतिकता एक दम बिल्कुल गई बीती आपकी इच्छा शुद्ध नहीं। ग़र शुद्ध इच्छा होती तो आपको सन्तोष मिलता लेकिन एक ही चीज़ में शुद्ध इच्छा है, आत्मसाक्षात्कार। आत्मा आपके चित्त में है। इसका है। तो हमने कहा मुसलमानों का धर्म ले लो उससे थोड़ी तो नैतिकता बनी रहेगी। इसलिए प्रकाश आपको आनन्द देगा. शान्ति दगा। सब तरह से ज्ञान देगा लेकिन सबसे ज्यादा ये आपको हम बन गए। तो मैंने कहा सहजयोग में तो सभी सामूहिक बनाएगा। इसमें आप सामूहिक हो जाएंगे। सामूहिकता की बात ये है कि दुनिया में हम लोग ये सोचते हैं हम लोग अलग हैं। ये फ़लाने धर्म एक समान हैं। इसमें किसी धर्म का अपमान नहीं. कोई ऊँचा नहीं नीचा नहीं। बल्कि आप अपने धर्म को बहुत अच्छे से समझ लेंगे। हैं ढिकाने हैं। एसा तो परमात्मा की नज़र में नहीं इसकी जो गहराई है उसको समझते हैं। अभी हैं। परमात्मा की नज़र में सब हम लोग उन्हीं के तक आप भटक रहे हैं तो आप उसे पा सकते आश्रय में हैं। ये दिमागी जमाखर्च है कि हम हैं। ये असलियत है जिसके लिए ये धर्म बनाए ऊँचे हैं, ये नीचे हैं, ये फलाना है ढिकाना हैं। गए थे। जो लोग आजकल धर्मं के नाम पर सब बिल्कुल ही दिमागी जमा खर्च है। आज लड़ाई-झगड़ा, ये वो करते हैं ये कैसे हो सकता 20 चैतन्य लहरी खंड : XIII अंक : । ৪ 2, 2001 2,2001 গ গe 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-22.txt है? ये गलत चीज है और ये गलत काम है? सब मालूम है उसको सम्भालते हुए ये आपकी माँ उठती है और आपको इतनी भी इसलिए हो रहा है कि फिर से मैं कहूंगी कि अन्दर एक कुबुद्धि आ गई और कुबुद्धि ये कार्य करती है। अब इस कुबुद्धि को भी प्रकाशित करती है तकलीफ नहीं होती। आश्चर्य है। इतनी सी भी तकलीफ नहीं होती क्योंकि ये माँ है। जब आप पैदा हुए थे तो माँ ने सारा दुख अपने ऊपर झेला आपकी कुण्डलिनी। जब ये इस चक्र से गुजरती था। आपको कोई तकलीफ नहीं दी थी। उसी हैं, आज्ञा जिसे कहते हैं, तो वो प्रकाशित कर प्रकार ये माँ है। जब इसका जागरण होता है तो देती है और आपको समझ में आ जाता है कि किसी प्रकार की आपको तकलीफ नहीं होती ये मैं ये क्या कर रहा था? ये किस बेवकूफी में कोई परेशानी नहीं होती और आप एकदम कहाँ दौड़ रहा था? ये किस बात को लेकर मैं लड़ से कहाँ पहुँच जाते हैं। और फिर ये आश्चर्य रहा था। जब तक आप अपने को नहीं जानिएगा होता है कि आप ऐसे थे, ये सब आपके अन्दर था इतनी सम्पदा थी ये पता ही नहीं। बो हर तब तक आप सत्य को पहचान ही नहीं सकते और अब इसी चीज में अपनी जिन्दगी बरबाद हैं जैसे शारीरिक, मानसिक तरह से आपके साथ कर रहे हैं। अपनी करेंगे, अपने बच्चों की करेंगे. बौद्धिक आध्यात्मिक चारों स्तर पर ये चक्र इतना ही नहीं पर सारे देश का ही सल्यानाश हो कार्य करते हैं और सब तरह से ये मामला बन जाएगा। अनेक देशों का इस तरह से सत्यानाश जाता है। इसमें कोई शक नहीं, सहजयोग में हो रहा है। इसलिए एक जो ये चीज हमारे देश में है और जो बहुत ही पवित्र चीज़ है कि आने के बाद तन्दरुस्ती अच्छी हो जाती है, सब कुछ अच्छा हो जाता है। इतना ही नहीं, लेकिन आपको कुए्डलिनी का जागरण करना है। अब जो कुछ साम्पत्य स्थिति वो भी लक्ष्मी की कृपा ये कुण्डलिनी आपकी माँ है आपकी अपनी से ठीक हो जाती है। व्यक्तिगत, आपकी अपनी हो माँ है। बी किसी ओर की माँ नहीं। जैसे आपकी माँ के हो सकता अपने देश में इतने लोग सहजयोगी बने हैं अधिकतर उनकी सबकी सम्पत्ति ठीक हो गई, है पाँच-छः बच्चे हों आठ दस बच्चे हों, इस उनका व्यवहार ठीक हो गया, उनके झगड़े खत्म कुण्डलिनी के आप ही वेटे हैं आप ही बेटी हैं। हो गए। सब कुछ क्योंकि ये शक्ति चारों तरफ अब इस कुण्डलिनी का जब जागरण होता है विद्यमान है । हर जगह विचरण करती है और और जब ये जागृत होती है तो इसको सबकुछ वड़ी कार्यान्वित है और इस शक्ति के सहारे मालूम है आपके बारे में। इसके अन्दर आपके हमारा भला ही नहीं बल्कि एक विशेष रुप का बारे में सारा रिकार्ड हैं कि आप क्या चाहते हैं, आदर्श जीवन बन जाता है। ऐसा जीवन जिसे आप क्या थे. आपमें क्या-क्या दोष हैं, आपके देखकर कहें ये क्या आदमी है इस तरह का! शरीर में क्या दोष हैं? कहाँ कीन सी तकलीफ जैसा पहले कहते थे, साधू सन्तों के लिए। आज 21 चैतन्य लहरी खंड :XII अंक : । & 2, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-23.txt तो सहजयांग में इतने लोग बैठे हैं और इतने उन्होंने बहुत लोगों को प्यार दिया, इतने लोगों के सहज में आए हैं। ये इतने देशों में सहजयोग फैलने का कारण ये है कि सब देशों में एक फेक्सस आए कि में अभी उनमें से गुजर ही नहीं पाई। इतना प्यार, इतनी-इतनी बढ़िया-बढ़िया प्रकार की बड़ी ग्लानि एक तरह की निराशा बातें जिसके बारे में लोगों ने लिखा मैं सोच कर और दूसरे बहुत ज्यादा हिंसक वृत्तियाँ बढ़ गई हैरान हूँ। मैं नहीं सोचती थी कि ये इनका इतना प्यार लोगों में बँटा हुआ है इतने लोग उनको हैं। सो उसमें जो लोग थे उन्होंने सोचा ये गलत है तो वो सहज में आए। ऐसे बताते हैं 86 देशों में सहजयोग फैला हैं हालांकि मैं इतने देशों में तो गई नहीं, सही बात है। पर जैसे बीज उड़कर प्यार करते हैं। तो ये सारा प्यार का माहौल जिसमें आप आए सब आपको प्यार करेंगे। आप भी सबको प्यार करेंगे। यही सबसे बड़ी बात है जाएं, जहाँ भी बहाँ पौधा खड़ा हो सकता है। उसी प्रकार सहजयोग फैला और बड़ा आश्चर्य होता है कि वहाँ से लोग यहाँ आ जाएंगे और वहाँ भी आते हैं और इटली भी आ जाते हैं। पर मैं उनके देश में अभी तक नहीं जा पाई और हो सहजयोग की कि सहजयोग की शक्ति जो है प्रेम की शक्ति है और इसके आगे कोई और शक्ति नहीं चल सकती। प्रेम से बड़ी शक्ति जो प्रेम की शक्ति है इसी के एक बड़े भारी आवरण में आप हैं और हमेशा आपका सके तो कभी चली भी जाऊंगी। लेकिन उनका संरक्षण है आपको कोई छू नहीं सकता क्योंकि आपको परमात्मा प्रेम करते हैं। इनके जो प्यार है उनका आपसी प्यार और जो उनका आपसी मेलजोल है वो देखकर के बड़ी हैरान हूँ। किसी एक आदमी के लिए भी अभी बम्बई दुष्टता कर सकता है? ऐसे ऐसे हमारे यहाँ आगे कौन चल सकता है, इनके आगे कौन में जब बम फूटा था तो एक लड़का था हमेशा उदाहरण हा गए कि लोग कहते हैं माँ कैसे मैं कहता था माँ मैं जीना नहीं चाहता। मेरी माँ बहुत बदल गया मुझे पता नहीं! कैसे मैं पा गया मुझे खराब है। ये है वो है बार-बार यही कहता था । पता नहीं! ये सारी बातें सुनकर आप लोग भी उसी एक लड़के की मौत हुई। तो सारे देशों में बहुत खुश होते हैं क्योंकि सब आपके ही भाई इतने देशों में ये खबर हो गई और सब लोग दौड़ बन्धु हैं। सब आपके ही लोग है और इसे पड़े और पता लगाया कहाँ है क्या है फिर वहाँ जाकर कहा कि साधू सन्त हैं, ये तो है और दुनिया में बड़े अच्छे दिन आएंगे, बहुत उन्होंने कहा अच्छा तो हम तुमको जमीन देते हैं अच्छे दिन आएंगे और उसमें लोग हमेशा हमेशा तुम चाहो तो इसे यहाँ जलाओ इसी में गाडो। ऐसे ऐसे लोगों ने वहाँ चिट्ठियाँ भेजी कि मैं तो हैरान हो गई। इसके बाद में अभी मैंने देखा कि अभी भी बहुत लोगों को परिवर्तित करना है। देखकर के यूँ लगता है कि दुनिया बदलने वाली ये, वी? एक महान देश, एक महान व्यक्तित्व, महान कार्य को लें। ये होना है, ये हो रहा है, पर एक परिवर्तन बहुत जरूरी है और अभी तक इन्सान 22 हमारे भाई साहब की Death हो गई बाबा मामा। चेतन्य लहरी खड : XII अक : । & 2, 2001 । 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-24.txt देंगे, जैसे कि पेड़ पौधों को आपको जल देना बने रहें लेकिन इन्सानियत से भी उतर गए। होता है. उसी प्रकार ये ग़र आप नहीं करंगे तो इनका परिवर्तन बहुत आसान है। इसे आप प्राप्त ये वृक्ष बढ़गा नहीं। इसीलिए ईसा ने कहा है कि कुछ बीज ऐसे पत्थर पर गिरे, कुछ बीज ऐसी जमीन में गए कि वहीं खत्म हो गए और कुछ बीज ऐसे थे जो कायदे की जमीन पर रहे और करें। परिवर्तन के सिवाय कोई और मार्ग नहीं है और इसमें ये कुण्डलिनी के जागरण से होता है और किसी से होता नहीं। अब कोई कहेगा कि माँ ये इसको अगर हम पानी में पनप करके वृक्ष बने। तो इसमें कोई धर्म की डाल दें तो चलेगा या इसको हम जलाए तो चलेगा? नहीं चलेगा इसका सिर्फ कनैक्शन आपको निन्दा नहीं है। किसी धर्म के विरोध में नहीं, पर सारे धर्मों का गौरव इसकी विशेषता है और एक लगाना है। लेकिन थोड़ा समय आपको देना सम्बन्ध जबरदस्त इन सब धर्मों में है वो स्थापित होगा। और जहाँ भी आपके सेन्टर हैं वहाँ जाए और अपनी गहनता बढ़ाएं। और ये बहुत लोग होगा एक बहुत ही ज्यादा आनन्दमय, सुखमय ऐसा जीवन भविष्य में आपके लिए बना है इसे कम करते हैं इसलिए इनकी उन्नति होती नहीं। जब तक आप इसे सामूहिकता का प्यार नहीं आप प्रप्त करा क ऐसा मेरा आपको अनन्त आशीर्वाद हैं 23 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक : । & 2, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-25.txt भूमि पूजन- 2000 ট। नारी का आदर व सम्मान) 7.4.2000 (्रेटर नोएडा) परम पुज्य माताजी श्री नि्मला देवी का प्रवचन सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों आई कि हमारे देश में इतनी संस्कृति है इसकी को हमारा प्रणाम। मैंने तो इतनी आशा नहीं की थी कि आप इतने लोग इतनी बड़ी तादाद में इस जगह आएंगे और इस कार्य को समझंगे। एक भी हमारे देश में इतनी दुर्दशा क्यों है? तो ये बार एक प्रोग्राम में हम जा रहे थे। दौलताबाद ख्याल आया कि जहाँ की माताएँ ही इस पवित्रता भी है. और औरतें अपने चरित्र को एक बहुत ऊँची चीज़ समझती हैं। सब कुछ होते हुए प्रकार पीड़ित होंगी तो उनके बच्चों का क्या जगह का नाम है, उससे गुजर के सामने जाना था। रास्ते में गाड़ी खराव हो गई। सहज में ही हाल होगा? वे किस तरह से अपने बच्चों का गाड़ी खराब हा गई। सो उतर के देखा को वहाँ पाल सकती हैं और उनको कौन सौ शिक्षा बहुत सी औरतें, सौ से भी अधिक, अपने बच्चों सकती हैं? तब मेरे मन में ये विचार आया कि समेत। वहुत से बच्चे उनसे कई गुना ज्यादा। ऐसी कम से कम एक संस्था बननी चाहिए कि वहाँ एक नल फूटा था उससे पानी ले रहीं। जहाँ इस तरह की औरतें जिनका कोई सहारा इतनी धुप, बड़े फटे से कपड़े पहने हुए किसी नहीं, जो किसी तरह से जो रही हैं, उनके लिए तरह सर पे चुन्नी लिए हुए। मुझे समझ में नहीं आया कि क्या हो रहा है। तो मैंने उनसे पृछा कि काफी साल हो गए, लेकिन सहजयोग में भी आप लोग यहाँ क्या कर रहे हो? यहाँ कैसे काफी में व्यस्त रही। उत्तर प्रदेश तो मेरा ससुराल आए? तो उन्होंने कहा कि हम सब मुसलमान है और वहाँ जो मैंने देखा कि औरतों की कोई औरतें हैं और हमारा तलाक हो गया और ये इज्जत नहीं। औरतों को कोई मानता नहीं, सब हमारे बच्चे हैं। जो महर थी वी बहुत ही थोड़ी हावी। अगर कोई औरत जबरदस्त है तो वो ही कुछ न कुछ सहारा बनाना चाहिाए। अब इसे जी सकती है। जो Dominate कर सकती है वो ही जी सकती है और जो सोधी सरल है उसे तो हम यहाँ गिट्टी फोडते हैं। और रहते कहाँ खूब दबाया जाता है। हर तरह से। उसका हो? तो कहने लगी सामने जो घर है। कुछ कपड़े विल्कुल ख्याल नहीं। बो मरे चाहे जिए अगर थी। उसमें तो एक महीना भी चलना मुश्किल था लेकिन किसी तरह से हमें यहाँ काम मिल गया मर गई तो लोग उनको दावते देंगे कि फिर से थे। टूटा फूटा सा एक मकान तो नहीं कह सकते, उसी में, हम सब रहते हैं। वहीं पता नहीं शादी करों। सब देख के मैं तो हैरान हो गई क्यों मुझे बहुत रोना आया और एक पत्थर पर बैठ कर मैं रोने लगी। मेरे अदर एक भावना क्योंकि महाराष्ट्र में ऐसी हालत नहीं है। और जो विधवा हो गई तो विधवा ही बनी रही बेचारी। 24 चैतम्य लहरी खंड : XIl अंक : । & 2.2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-26.txt बस उसकी कोई खैर नहीं। तो पहले तो मैंने सो तो मैरे अनुभव की बात थी तो मैने कहा कि ऐसी संस्था सबसे पहले उत्तर प्रदेश में बनना चाहिए और बड़े आनंद की बात है कि उत्तर प्रदेश में ही यह संस्था शुरु हो रही है। इसमें तो देश में कौन करेगा और करेगा भी तो उसे सत्रह हर हालत ये चाहेंगे कि जो औरतें अपने पैर पर खड़ी नहीं हैं और मोहताज हैं हर चीज़ के लिए, उनमे ऐसी शिक्षा देनी चाहिए कि वे अपने पैर कहें। लेकिन ये नहीं जानते कि यह नर्क की पर खड़ी हो जाएं और अपने बच्चों का पालन तो कहा कि सहजयोग में कोई विधवा गर आए उसका विवाह जरूर करवाना चाहिए। पर अपने बातें सुनाएगा। पुरुष होना ही बो सोचते हैं कि विशेष रूप के अधिकारी हैं कि जो चाहे सो गति है। ये बहुत बुरी बात है. दुष्टता है। दुसरों पोषण कर सके। उनको इज्जत मिल। पर इसी से सब कुछ होने बाला नहीं। ये समझ लीजिए कि ये एक बहुत छोटे पैमाने की बात है लेकिन ये तभी होगा जब यहाँ के समाज में स्त्री का के साथ दुष्टता करना ही बुरी बात हैं। परन्तु अपनी पत्नी, जो कि आपके सारे सुख का साधन हैं उसके साथ इस तरह से व्यवहार करना, तो अपनी संस्कृति का नहीं है यह काम। भारतीय संस्कृति में यह कहा जाता है "यत्र जहाँ स्त्री स्थान बनेगा। यहाँ के पुरुष इस वात को समझेंगे कि उनका अपने घर की, औरतों की तरफ, नार्याः पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता बच्चियों की तरफ क्या कर्त्तव्य है और क्या उन्हें पूजनीय हो वहाँ पर देवता निवास करते है | करना चाहिए। उनका जीवन बहुत एकॉँगी है इतना ही नहीं। पर स्त्री को भी यूजनीय होना उसको बदलना चाहिए। और उनको अपनी Family चाहिए। इतने विपत्ति में, इतने तकलीफ में आज अपने बाल-बच्चे अपनी पत्नी, माँ सबको बहुत हमारे देश की नारी है, उसी वजह से हमारे देश प्यार से देखना चाहिए और समझना चाहिए। में कभी अच्छा साम्राज्य आ नहीं सकता। कुछ यहाँ आप सब इतने लोग हैं। सब पुरुषों ने रर ये कसम ले ली कि हम औरतों की इज्जत करंगे और कोई विधवा हो जाता है। आदमी तो कभी होता ही नहीं विधवा। लेकिन गर कोई औरत आपको। लक्ष्मी से ले कर हर एक देवी कोई भी विधवा हो जाए तो उसकी दुर्दशा है। इतनी आशीर्वाद नहीं देंगी आपको, गर आप अपनी बेचारी की दुर्दशा कर देते हैं। औरतें ही खुद पत्नी का ख्याल न करें और उसको सम्मान से उनको कहती हैं। औरतें ही उनको कहती है कि यंत्र ", । अच्छा हो ही नहीं सकता। क्योंकि सारी देवियां, आजकल नवरात्री भी हैं, ऐसी बातों से बहुत नाराज है। वो कोई भी आशीर्वाद नहीं दंगी न रखें। इसीलिए हमारे देश में इस कदर हर तरह की परेशानी है। मैं तो सोचती हूँ कि गर ये चौज ठीक हो जाए तो हमारी हर तरह की ये तो तुम्हारा दुर्भाग्य है, तुम्हारा ही कुछ है और यहाँ तक कि तुमने अपने पति को खा लिया है । ऐसा भी कहती हैं। ये तो मैंने अपने कान से परेशानियाँ ठीक हो जाएँ क्योंकि साक्षात् लक्ष्मी सुना है। इसीलिए पहले शायद औरतें धवराहट से सती हो जाती थीं। और अगर कोई युवती को जो नहीं मानते तो उनको क्या अधिकार है विधवा हो जाए और देखने में वह सुन्दर हो तो का वरदान इसी से मिलता है। घर की गृहलक्ष्मी कि लक्ष्मी के आशीर्वाद से वो प्लावित हो? अब 25 चैतन्य लहरी ।खंड : XIII अंक : & 2. 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-27.txt इस मामले पर और मैंने Video पर देखा था कि तरह की आफत। हर तरह की आफत, इस दश उन्होंने विधवाओं को दिखाया था जो बृंदावन में में और देश में इसलिए नहीं हैं कि उनमें नैतिकता नहीं है। कोई गर औरत विधवा हो तो और उधर गोकुल में रहती है। कृष्ण तो सोच रहे होंगे कि पता नहीं कहाँ से बेचारियों के साथ वो घूमघाम के अपना पति ढूंढ लेगी नहीं तो ज्यादती हो रही है। वो विधवाएँ हैं और उनकी और कोई कारोंबार ढूंढ लेगी। ये अपना ऐसा देश दुर्दशा है कि सारे दिन वे है कि पद्मिनी के साथ 32000 औरतें होम वेचारियों की इतनी गाना गाएं और एक रुपया उनको मिलता है और कुण्ड में कूद पड़ी अपनी आवरू. बचाने के उनको हर तरह से वहाँ के लोग इस्तेमाल करते लिए, अपनी इज्जत बचाने के लिए। इस देश में हैं। पर ऐसी फिल्म देखने से किसी में जागृति फिर औरतों के लिए कौन सा मार्ग बचा हुआ नहीं आई! वहाँ पाँच लाख औरतें हैं इस तरह ?? अपनी इज्जत से वो रह ही नहीं सकती। की। किसी के मन में धारणा नहीं आई. कि उनकी तो इतनी बुरी दशा है कि इससे मैं सोचती हूँ कि किसी को गर कोई रोग हो जाए रहे हैं, कि जा करके उनका कुछ कल्याण करें. तो कम से कम बो किसी अस्पताल में जा सकता है। उसके लिए कोई न कोई व्यवस्था हो कदर संवेदनशील नहीं, बिल्कुल उल्टा ही है। सकती है। पर ये बताइये कि इस तरह की औरतों की जो पीड़ा है वो किस तरह से आप इतना पेसा कमा रहे हैं, ये कर रहे हैं, वो कर उनके लिए कोई चीज़ बनाए? माने मनुष्य इस उसके मन में ये भी भावना नहीं आई। इस फिल्म को बहुत दिखाया गया। फिर मेंने कहा ऐसी फिल्म को दिखाने से कोई फायदा नहीं। सहानुभूति तक नहीं। यहाँ तक कि एक विधवा अब एक थी वो बाकई यहाँ आई थीं, वो दिखाने स्त्री को गर आपने देख लिया तो बड़ा अपशगुन के लिए कि वो तो सिर्फ बदनाम करने के लिए हो गया। एक विधवा स्त्री है तो उसके हाथ का आई थीं। उनकी पब्लिसिटी बहुत हो गई, वो कम कर सकते हैं? इतना दु:ख और कोई खाना नहीं खाने का। ये अपना समाज ये नहीं फिल्म दिखाने से क्या होगा। इन लागों के पास इतने पैसे हैं तो क्यों न ये विधवा के आश्रम आदि कायदे के बनाएं? आज हैं दो चार लेकिन वो कायदे के नहीं है। तो ऐसे आश्रम क्यों न जिनको आप इतना मानते हैं। वो जब विधवा हो जानता कि ये कहीं शास्त्रों में लिखा नहीं है। श्री राम ने स्वयं मंदोदरी का विवाह विभीषण से करा दिया। श्री राम ने (अनेक उदाहरण हैं) बनाए जाएँ जहाँ इन औरतों का पालन पोषण तो गई तो उसका विवाह उन्होंने विभीषण से करा हो कम से कम। बहुत सी औरतें तो इसोलिए दिया। तो फिर कहेंगे कि हाँ यहाँ तक ठीक है अपनी आत्महत्या कर लेती हैं कि ऐसे जीने से और नहीं तो इससे आगे कहीं नहीं शादी कर अच्छा हम आत्महत्या कर लें। एक तो स्त्री के सकते। अब आप ही सोचिये कि गर आपकी लिए विवाह करना ही चाहिए और विवाह के माँ, बहन, बेटी, उनकी दुर्दशा हो रही है तो ऐसे बाद उसके पति गर नहीं रहे तो गए काम से। समाज से तो भगवान बचाए। बेहतर है कि ऐसा फिर उसका जीना मुश्किल और उस पर हर कोई समाज ही न हो और अगर है तो सबको चैतन्य लहरी 26 खंड : XIl अंक : 1 8 2. 200I 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-28.txt औरतों ने सीख लिया है कि बेहतर है हम लोग जीने का, आनंद से रहने का पूर्ण अधिकार हो । सो मैं चाहूँगी कि जिन्होंने कभी भी अपने घर में या बाहर में औरतों को सताया हो, औरत का तो कार्य ही है कि सब चीज कां उनको बिल्कुल बदल जाना चाहिए। और अपने को दोषी समझना चाहिए कि हमने जबरदस्त बन जाएँ। पर इसमें कोई फायदा नहीं। आत्मसात करे क्योंकि पृथ्वी जैसी उसकी अपनी शक्तियाँ हैं। किन्तु अपनी शक्तियों को जगाएं और उससे सृजन करें और अपने दम पर करें एक अनाथ असहाय औरत को सताया है अपनी पत्नी को भी जिसने सताया है। अपनी और स्वाभिमान से रहें । किसी तरह की भी बातें बेटी को जिसने सताया है वो सब बहुत बड़े करने से यह कार्य नहीं होंगा। इसको पूरी तरह दोषी हैं। से समझ लेना चाहिए कि ये महापाप है और ऐसे गलत काम करने नहीं देने चाहिए। तभी और मैं ये नहीं बता सकती कि उनका क्या हाल होगा। क्योंकि अब सत्ययुग की शुरूआत होगी और हरेक के लिए जरूरी है कि वो धर्मपथ पर रहे। धर्म में सबसे बड़ी चीज़ है प्रेम। और जो अपनी पत्नी को ही प्रेम नहीं कर सकता तो वो किसको प्रेम करेगा? अपनी बेटो से ही प्रेम नहीं हमारे देश में परिवर्तन आ सकता है। सिर्फ सहजयोग में आने से कोई फायदा नहीं है। सब लोगों को, सहजयोगी हों या नहीं हों, आपके पड़ोस में ही यदि कोई औरत को मार रहा है तो आपको उसे छुड़ाना चाहिए। कोई शराब पी कर घर में दंगा मस्ती कर रहा है तो उसको ठिकाने कर सकता वो किसको प्रेम करेगा? उसका दोष लगाना चाहिए। ये आपका सामाजिक क्त्तव्य है ही न होती तो आपकी माँ कहाँ से आती और और जब तक ऐसी जागृति आप लोगों में नहीं आप कहाँ से आते? इसके प्रति बहुत तींव्र आएगी तब तक ये कार्य नहीं हो सकता। दूसरी बात खुद औरतों की ऐसी है कि इनमें इतना ज्यादा स्वाभिमान है कि ये हर हालत सह लेंगी यही है कि वो स्त्री है। और अगर दुनिया में स्त्री संवेदना आनी चाहिए। अच्छा महाराष्ट्र में भी काफी वाल विधवा का प्रभाव था। इतना नहीं तो भी। पर वहाँ पर ऐसे-2 लोग हो गए जैसे किन्तु इनसे किसी विधवा से कहो कि तिलक थे, गोखले थे, रानाडे थे इन्होंने सबने विधवाओं से विवाह किया और उन्होंने वहाँ पर सहजयोगिनी थी। देखने में बहुत सुन्दर थी और तुम शादी कर लो तो हो गया बस। हमारे यहाँ एक बहुत चेतना लाई। Reforms किए। वहाँ पर पूना तीन बच्चे थे। बड़ा लड़का काई 15-16 साल में जैसे औरतों की शिक्षा एकदम नि:शुल्क है का होगा अब वो कमाने के लिए कहीं भी जाए, कोई भी काम करे, बस आदमी उसके पीछे उससे भी ज्यादा यहाँ कार्य करने की ज़रूरत है पागल। अपनी बीबी के पीछे में नहीं है। दूसरे क्योंकि यहाँ उससे कहीं ज्यादा दुर्दशा है। यहाँ की बीबी और वो विधवा है तो चलो उसके गोल घुमा के. मैने कहा कि, मरे ख्याल से ये जो आपके स्नातक तक उन्हें एक पेसा नहीं देना यड़ता। हा के लोगों में जागृति लाना और उनमें चेतना लाना पीछे। तो उनसे मैंने कहा कि, बहुत ज़रूरी है। उसी की जगह अगर औरत बहुत जबरदस्त है तो उसका राज होता है। बहुत सी प्रश्न हैं इसके लिए अच्छा है कि आप शादी 27 चैतन्य लहरी ।खंड : XIII अक :1 & 2, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-29.txt औरतों की यह दुर्दशा करो। ऐसे कोई विधि तो कर लीजिए। तो वो तो बेहोश हो गई। सुनते के साथ हो बेहोश हो गई कि माँ आपने एसी बात कैसे कही? जब उन्हें होश आया तो उसने कहा है नहीं कि साथ मरना चाहिए, गर यह धर्म होता तो सब साथ ही मरते। पर साथ तो मरते नहीं। माँ कौन सा मुझमें ऐसा दोय पाया जो आपने इतनी कड़ी सजा सुनाई। अरे भाई ये कौन सी से। इतना दुःख औरतों ने उठाया है कि अब ं में सजा सुना रही हूँ। माने ये भी इतना गर इत्तफाकन औरत बच गई तो वी तो गई काम आपको उठाने की जरूरत नहीं। फिर वो बड़ी तुम्हं ज्यादा हमारे अंदर संस्कार और Conditioning है औरतों में, विधवा हो गए। ये हमारे समाज की देन है। विधवा हो गए तो गए इसके बाद हम लडाका भी हो सकती हैं, गुस्सैली भी हो सकती हैं। घर में बड़ा राजकारण भी करती हैं सब कुछ हो सकता है। लेकिन बो अच्छी औरत नहीं बन विवाह नहीं कर सकते. कुछ नहीं कर सकते, सकती। बो या तो बहुत दु:खी. या बहुत परेशान, हम करेंगे तो बस बेकार। कोन समझाए तब फिर मैंने उनके लड़के को समझाया कि तुम बनाई गई और इस पर हम कोशिश करेंगे कि अपनी अम्मा को समझाओ। वो कहीं नहीं रह सकती थी क्योंकि दिखने में सुन्दर धथी और शायद विधवा थी। तो एक साथ बाद उनकी और गर वो विधवाएं हैं और अभी जवान है तो खोपड़ी में बात आई, जब उन पे काफी आफते उनकी हम अच्छी जगह शादी कर दें। आप लोग आ गई तब एक साल बाद उनकी समझ में आई नहीं करियेगा तो अमेरिका में करवा देंगे। आप कि माँ जो कह रही है ठीक बात है। फिर शादी लोग बैठे रहिए यहाँ। यही बेहतर है। अपने को की। यहाँ तो होना आवश्यक है, फिर कोई बहुत समझते हैं तो बैठे रहिए। ये घमण्ड आदमी विधवा हो गई तो बिल्कुल ही दुनिया से गई बीती औरत। उनकी शादी फिर अमेरिका में औरतों का करने की जरूरत नहीं आदमियों का तो इसलिए यह एक संस्था छोटे ही पैमान पर इसमें उन लोगों को ऐसे रास्ते पर लगाएं कि वो अपने पैसों पर खड़े हों तथा स्वाभिमान से जीएं। का जाना चाहिए। मैं हमेशा कहती हैँ कि reform करवा दी तो उनके बच्चे भी पल गए, बड़े हो गए, अपने-2 ठिकानों पर पहुँच गए। वो लोग भोख माँगेगी पर फिर से शादी नहीं करेंगी। ये reform करो। इतना घमण्ड किस चीज़ का है आपके सिर पर। क्या समझते हैं आप अपने आप को। अभी कोई बता रहा था कि कोई गर भी कोई भगवान ने बताया है? किसी शास्त्र में LA.S में आ गया तो वो तो सबसे बड़ी दामाद लिखा है? कहीं भी नहीं है। ये सब यूँ ही बनाए है। तो मैंने कहा A.S. में है क्या? कौड़ी न धेला। कुछ कमाई नहीं, कुछ मैं तो वैधव्य को मानते ही नहीं हैं। मानते ही नहीं जानती हूँ न। गर ईमानदार है तो। गर बेईमान है तो भी आफत और गर ईमानदार है तो भी आफत। फिर भी औरतें उसमें रहती है। अपने चार लोगों को देखती हैं संभालती हैं प्यार करती दोनों आदमी साथ ही मरें और नहीं मरें तो हैं। पर मेरी समझ में नहीं आया कि ये खोपड़़ी हुए है, औरतों पर आक्रमण करने के लिए। हम नहीं खास। हैं। क्योंकि वैधव्य क्या हुआ, जो पति, मर गए, तो मर गए। अव वो वैधव्य बन कर उनके माथे पर बन गया। क्या कोई जरूरी चीज है? या तो 28 चैतन्य लहरी । खंड : XI॥ अंक : ৪ 2. 200। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-30.txt शक्तिहीन गर दें तो किस काम का है देश किस में कैसे आया आदमियों की कि बे अगर ।A.S. हो गए तो बड़े अफलातून हो गए। कोई भी बात काम का है? लंगड़ा है देश आपका पूरी तरह है अगर इंसान के. वो भी से। बड़ी-2 बातें करने से और Lecture से कुछ नहीं होगा. फिल्म दिखाने से, नाटक दिखाने से कुछ नहीं होगा। कर के दिखाना हांगा। अपने डंडा जीवन में और अपने समाज क जीवन में खड़े मारे। चाहे कुछ भी करे, उसको लगता नहीं कि हो जाएँ कुछ लोग कि हाँ हम तो हैं।reformist I अब बेकार की चीज़ें फैका इसको। इसकी कोई खोपड़़ी में घुस जाती खासकर हिन्दुस्तान में तो वे वाकई में Balloon के जैसे उड़ने लग जाते हैं। फिर चाहे किसी के लात मारे। किसी के थप्पड़ मारे। किसी को हम ये क्या कर रहे हैं। वैसे तो Vegetarian बनेंगे। जैन लोग कहते हैं कि मच्छर को मत जरूरत नहीं। ऐसे बंध गए हैं कि वो भी अपनी दुष्टता से छुटकारा नहीं पाते और औरतें ऐसी बन गई हैं कि वो उसको सहते ही जाती हैं। मारो। खटमल को मत मारो, जो खून पीते रहते हैं हमेशा, उनको मत मारो। पर अपनी बीबोी को अब इसका परिणाम क्या हो रहा है बो कोई नहीं देखता बच्चे खराब हो रहे हैं । आपके बच्चे ही दुष्ट हो रहे हैं चोरी करेंगे। ये करेंगे। ये सब आया कैसे? क्योंकि मार सकते हैं, आसान। क्योंकि वो आपकी बीबी है और इसीलिए तो आई है कि मार खाए। अगर मार नहीं खा सकती तो वो वीबी क्या? ये जो हमारी दशा है और जो हम इस निम्न स्तर पर हैं उसकी भी बजह यह है कि हमारे अंदर के जो समाज टूट गया, क्योंकि family टूट गई, इसलिए हुआ। तो अपने कुटुंब जो हैं, बहुत महत्वपूर्ण चीज हैं। एक-एक कुटुंब से ही समाज बनता है और समाज से ही देश बनता है। देश की बातें करते हैं और कुटुंब। कुटुंब तो खत्म हो रहे हैं। अपने कुटुंब को मूल्य हैं वे खत्म हो रहे हैं। यहले हमारे यहाँ कहते हैं कि जो बड़भूँजे होते हैं वे ही अपनी बीबी को मारते हैं। मैंने तो देखा यहाँ सभी मारते हैं, ऐसी कोई बात नहीं। कोई इस मामले में किसी को शर्म नहीं, दया नहीं। हाँ बाकी मामले में सबको खुब शर्मोहया है परन्तु इस मामले में किसी को शर्मोहया नहीं। बीबी को सबके सामने डाँट देंगे। कोई उनकी उसमें हरज नहीं कि भई हमने क्यों डाँटा। एक बो पहले ही से शिक्षा नहीं इज्जत से रहना, स्वाभिमान से रहना, देशभक्ति से रहना तभी हो सकता है जब घर की औरत ठीक हो। उसकी इज्जत हो। उसको समझने की कोशिश करें । हमारे महाराष्ट्र में भी ऐसी एक दो समाज व्यवस्था है जहाँ इधर से जैसा ही मामला बहुओं के साथ किया जाता है। पर वॉों भी बदल घर में। यही सिखाया जाता है क्या कि इस तरह से आप व्यवहार करो? तो जहाँ तक मुझे हो जाएगा और ये भी बदल जाएगा। इसको बदलना सकता है मैं इस संस्था के लिए पूरी मंहनत ही पड़ेगा। अगर बदलेंगे नहीं, उनके वच्चे उठ कर इन्हीं आदमियों को मारंगे। बीबी को मार की बात तो वाद में होगी। पहले इनको मारेंगे। तब सबकी खोपड़ी ठीक आएगी। इतना अहकार मानव में है, मनुष्य में है। आखिर किस चीज़ करूँगी और जितना हो सकता है इसमें औरों का उद्धार करना चाहिए। गर आज हमारे देश में 65 फीसदी औरतें हैं, उससे भी ज्यादा. तो उस एक पूरे समाज के एक महत्वपूर्ण अंग को आप का 29 चैतन्य लहरी । खड : XIII अक :1 & 2,200। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-31.txt का इतना अहंकार है? कौन सी ऐसी चीजज़ तुमने कि आप उन्हें प्यार करते हैं । पूरी समझ, इसमें पाई है जिसका तुम इतना अहंकार कर रहे हो? कोई ऐसी बात नहीं कि वो आपकी खापड़ी पर अब इस संस्था को चाहिए कि सब लोग बैठ जाएंगी। एकाध होती हैं। लेकिन आदमी गर पूरी तरह से मदद करें। ये नहीं कि सिर्फ पैसा कमजोर नहीं है तो औरत कभी भी उसकी दे दें. पर इसको पनपाने में। अब सबसे बड़ा प्रश्न तो ये है कि है, उनको खोज कर निकालना है। अब हमें क्या पता कि कहाँ कि औरतें हैं, क्या. अब हम तो खिल सकते। बच्चे तो माँ को मानते ही नहीं। माँ यहाँ रहते भी नहीं। तो इस तरह की औरतें अगर के पैर भी इस तरह से छुएँगे जैसे कोई ईंट या आपको मालूम हैं. जो पीड़ित हैं. दुःखी हैं और जिनका कोई सहारा नहीं, और जो विधवा बन खोपड़ी पर नहीं बैठ सकती। पर वो इतनी दबी हमें ऐसी औरतों को खोजना हुई भी नहीं रहना चाहिए कि जिससे बच्चे भी नहीं पनप रहे हैं, जिसमें कुछ फूल ही नहीं पत्थर बीच में पड़ा हो। और बाप को फुरसत नहीं। तो बच्चे तो बिगड़ ही जाएंगे। और उससे कर बहुत कुछ सह रही हैं, ऐसी सब औरतों को जो जो आज दशाएं हुई हैं, जो-जो आप पढ़ते हैं, आपको इस संस्था में लाना चाहिए। अभी तो ये पेपर में देखते हैं, उसका कारण ही ये है कि हमारी कुटुंब व्यवस्था ठीक नहीं है। वो बहुत जरूरी है कि उसको आप ठीक रखिए। यही कह रहे हैं कि 100 औरतों का इंतजाम है। 100 से क्या होगा, पर उसके बाद उनसे बातचीत करके. उनको समझा बुझा के., जो लोग अंदर हमारे समाज का ताना बाना है। इसके सहारे आएंगी वो तो आएंगी ही लेकिन जो बाहर रहेगी. उनको भी समझाया जा सकता है। उनके पति को भी समझाया जा सकता है, उनके घर वालों का मान रखना उसका उत्थान करना और लोगों को भी समझाया जा सकता है। अपना ही देश ऐसा है जहाँ अब भी कुटुंब व्यवस्था चल रही तरह से समझना चाहिए और उधर ध्यान देना है। बाकी कहीं नहीं है। उसका उत्तरदायित्व चाहिए। ये मेरी आंतरिक इच्छा है। ऐसा वो औरतों को है, आदमियों को नहीं। ये भारतीय नारी की विशेषता है जिसने इस देश को रोक आशीर्वाद। किन्तु उस आशीर्वाद में सबको अपने रखा है, नहीं तो कब के चले जाते। इसलिए साथ समेटिए। हमें तो लोगों को जोड़ना है। जब अब आप समझ लीजिए कि गर आपने अतिशयता एक कुटुंब ही को आप नहीं जोड़ सकते तो करी तो यही औरतें जो हैं क्रान्ति कर देंगी आपके लिए। वो ठीक नहीं है, वो प्रेम का हनन है, अच्छी बात नहीं। अच्छी बात ये है कि ये वड़ी भारी बात आपने प्राप्त करी। ये ज्ञान समझदारी रख कर अपनी स्त्रियों की अपनी मार्ग है और इसमें आपको पता है प्रेम क्या चीज बेटियों की हिफाज़त करें। उनको देखें, सम्भालें, है और किस तरह से आदान प्रदान करना उनको प्यार दें। और उनको यं पता होना चाहिए चाहिए। आपस में किस तरह से समझना चाहिए। आज आप भी यहाँ बैठे हुए हैं और आगे भी अगर चलाना है तो कृपया याद रखिए कि औरत को परिवर्तित करना भी आपको परम लक्ष्य की आपको सबको मैं हमेशा कहती हैँ कि अनन्त आप किसको जोड़ेंगे? सबको चाहिए कि प्रेम से आपस में रहें। अब आप सहजयोगी हो गए और 30 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XIII अंक :। & 2.2001 । 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-32.txt आनी चाहिए। समझदारी में बढ़ना चाहिए। यहाँ तो मैं देख रही हूँ बहुत से सहजयोगी हैं तो उनके लिए एक नई बात अब इस चीज़ से आप हैरान होइयेगा कि सारा समाज एकदम बदल जाएगा। अपने को परदेसियों जैसे नहीं होना है। बिल्कुल भी नहीं। बहाँ तो कचहरी करेंगी औरतें, अमेरिका में तो औरतें सात-सात, बैठे हुए बता रही हूँ। आप सहजयोगी हैं तो सब लोगों को समझ लेना चाहिए कि ये सहजयोगी हैं। उसी आठ-आठ शादी करती हैं। औरतें और रईस हो जाती हैं तो पति सब गरीब हो जाते हैं। ये हम प्रकार सहजयोगी समझ लेना चाहिए कि जो सहजयोगी हैं वो हैं जो नहीं हैं तो नहीं हैं। लोग नहीं चाहते। चाहते क्या हैं? आपसी प्रेम हो, बच्चे अच्छे से हों और आप देखिए, इससे सबको समेटना आना चाहिए। इसी सहज योग के स्वभाव से ही आप दुनिया को जीत सकते बड़ा लाभ होगा। बहुत लाभ होगा। इतना लाभ होगा ऐसे समाज का और ऐसे देश का। इसमें ये हैं। जो बात मैंने कही है उसको आप हृदय में आपसी झगड़े करना कोर्ट कचहरी करना कोई बाँध लें। यह दर्द है मेरे अन्दर। इस दर्द को जरूरत नहीं। गर ये सबके अच्छे के लिए है तो ये ही क्यों नहीं करते। इस तरह से समझदारी आप लोग खत्म कर सकते हैं। आप सबको अनन्त आशीर्वाद। 31 चैतन्य लहरी खंड : XII अंक :। & 2., 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-33.txt समर्पण एवं भक्ति का महात्म्य परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन निर्मला पैलेस-लन्दन ( 6 अगस्त 1982 ) आज मैं आपको सहजयोग में समर्पण अपनी राष्ट्रीयता के आधार पर यदि आप और भक्ति के महत्व के विषय में बताऊंगी। किसी चीज़ का विश्लेषण करना चाहेंगे तो व्यक्ति में समर्पण एवं भक्ति होना आवश्यक है। जब हम पर्वत के समीप खड़े होते हैं तो हम इसे पूरी तरह से देख नहीं सकते। यही कारण है कि अपने समीप के विस्तार को तथा अपने सम्मुख हक्के-बक्क रह जाएंगे। ये आपकी बुद्धि से बहुत परे है बड़ी अनोखी है और आपकी शक्ति से कहीं ऊपर है। ये वास्तव में आपसे परे क है। विद्यमान महानता को हम महसूस नहीं कर अब इसके विषय में सोचें। "आपको सकते। उनके लिए यह भ्रम कार्यान्वित रहता आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया हैं।" क्या आप जो लोग मानसिक रूप से ये नहीं समझ पाते कि इस बात का विश्वास कर सकते हैं कि आप वे क्या हैं, उन्हें क्या प्राप्त हो गया है, अपने जीवन काल में ही आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं। किसी ने यदि आपको ये बात कहाँ तक उन्हें जाना है, इसके लिए उन्हें ही बताई होती तो आप कभी भी इस बात पर आत्मसाक्षात्कार क्या है, इसका विस्तार क्या है. क क्यों चुना गया है, जीवन का लक्ष्य क्या है, वे विश्वास नहीं करते कि किस प्रकार आप अपने कहाँ तक पहुँच चुके हैं और कहाँ तक वो समझ इसी जन्म में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकते सकते हैं? ये सारे रहस्य पकड़ से बाहर हैं और हैं। नि:सन्देह आप खोज रहे थे क्योंकि आपको व्यक्ति हक्का-बक्का रह जाता है और जब उसे बताया जा रहा था कि आपको खोजना है और बास्तव में आत्मसाक्षात्कार मिलता है तो वह ये आपको भी लगा कि आपको खोजना है। परन्तु आपने कभी नहीं सोचा था कि यह इस प्रकार से नहीं समझ पाता कि उसके साथ क्या घटना घटित हो गई है यही कारण है कि इसे समझना केवल लेंगे। कार्यान्वित होगा कि आप आत्मसाक्षात्कार को पा तभी सम्भव है जब आप ये समझ जाएं कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के बाद भी स्वयं को किस प्रकार समर्पित करना है और आप ये महसूस न कर सके कि "यह क्या था! किस प्रकार भक्ति करनी है। चैंतन्य लहरी बिल्कुल वैसे ही जैसे आपको समुद्र में डाल 32 ी । खंड : XIII अंक : & 2, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-34.txt क्योंकि इसमें आपने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया दिया गया हो फिर भी आप ये न जान पाए हों कि समुद्र का विस्तार कितना है, इसमें आप है। आपने यदि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं किया, कितने उतर गए हैं. ये क्या है, हम कहाँ हैं और तो ठीक है, यदि आप कानाफूसी करते हैं वो भी हमारा लक्ष्य क्या है?" इन सब रहस्यों के ठीक है, आप यदि अधपके लोग हैं तो भी ठीक साथ-साथ एक अन्य घटना जो घटित होती है है, थोड़ा बहुत दुर्व्यवहार करते हैं तो भी ठीक वह है हमारा निर्विचार हो जाना। तो ताकिक रूप है। सब कुछ क्षमा कर दिया जाएगा। हर आदमी सोचता है कि श्रीमाताजी से आप ये जान ही नहीं पाते कि इसका औचित्य क्या है! हमें क्षमा कर रही हैं। परन्तु वास्तविकता ये अतः अनुभव की विशालता, आपकी नहीं है। मैं तो अपने स्वभाववश क्षमा कर माँ के अवतरण की गरिमा या आत्मसाक्षात्कार रही हूँ। परन्तु मेरी क्षमा को आप अपना रूपी आपको दी गई अनुपम भेंट को आप अधिकार न मान लें। इस क्षमा को स्वीकार करके आप स्वयं को मुसीबत में फंसा रहे से नहीं समझ सकते। क्या अपनी सूझ-बूझ आप समझ सकते हैं कि क्या घटित हुआ हैं। हर समय यदि आप सोचते हैं कि "श्रीमाताजी है? नहीं आप नहीं समझ सकते क्योंकि आप इतनी क्षमावान हैं, कृपा करके मुझे क्षमा कर दीजिए।" आपको तो क्षमा किया जा चुका तार्किकता आपको उस आयाम तक नहीं पहुँचा सकती जिसमें आप प्रवेश नहीं कर सकते। तर्कसंगति वास्तव में समाप्त हो चुकी है। है। एक बार जब आपने मुझे श्रीमाताजी कह दिया तो मैं आपको क्षमा कर देती हूँ। परन्तु यह बताने के लिए ताक्किकता बाकी नहीं बची कि आप क्यों खोज रहे थे तथा आप कहाँ पहुँच इसका लाभ क्या है? इस क्षमा का आपको कोई लाभ न होगा। आपने अपनी हानि कर ली। इस बात को तर्कसंगति से यदि आप गए। तो, बूँद जो कि सागर बन चुकी है, समझेंगे तो जान जाएंगे कि भक्ति क्या है| आपके लिए केवल यही मार्ग बचा है कि अत: सहजयोग की भक्ति में व्यक्ति को महसूस करना चाहिए कि सहजयोग में जो कुछ भी आपने देखा है वह आपके मस्तिष्क अन्य बूँदों के साथ इस प्रकार से सम्पर्क से परे है ये पहली बात है। नि:सन्देह ये रखें जिससे कि उनके माध्यम से पूर्ण मानवीय मस्तिष्क से परे है। अतः मानवीय स्वयं को सागर में विलय कर दें ताकि कम से कम सागर को तो महसूस कर सकें तथा बनाए ( विराट ) को जान सकें। स्तर पर इस पर बहस न करें और न ही इसकी तो पूर्ण भक्ति सर्वोपरि है। ये बहुत महत्वपूर्ण है। इसी जन्म में यह इतनी अधिक महत्वपूर्ण हैं बातचीत करें। सामूहिक स्तर पर आप इसकी बात कर सकते हैं। और जब आप सामूहिक स्तर 33 चैतन्य लहरी खंड : XIII अंक : । & 2. 2001 क 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-35.txt कष्ट दे रहे हैं; आप स्वयं को कष्ट दे रहे पर आ जाते हैं तब आपको समझना होता है कि मेरे साथ सम्बन्ध तभी स्थापित हो सकते हैं, हैं ये आपके लिए हानिकारक है।" बहुत से लोग कहते हैं. "ये मेरा बायाँ स्वाधिष्ठान है।" कुछ कहते हैं, "मैं भूत-बाधित तभी अच्छी तरह से स्थापित हो सकते हैं जब आप अत्यन्त सामूहिक रूप से तथा एक रूप था, मेरे अन्दर भूत था।" कुछ अन्य लोग कोई होकर अन्य लोगों से सम्बन्ध स्थापित कर लेते और बात कहते हैं। आप जिसको भी दोष दे रहे हैं। हैं वास्तव में कौन आपसे स्पष्टीकरण माँग रहा जैसे मैंने आपको बताया कि बूँद सागर हैं? आप स्वयं ही स्वयं से पूछ रहे हैं। आप बन जाती है, अस्तित्व समाप्त करके अन्य बूँदों के साथ विलय होकर बँद को सागर अपना सामना नहीं कर रहे हैं। तो मेरे अनुसार स्वयं का सामना करना बनना है वो सभी बूँदे जो अपना व्यक्तिगत ही भक्ति है। सर्वप्रथम आप अपना सामना अस्तित्व समाप्त कर देती हैं अंततः सागर करें और स्वयं देखें कि आप क्या कर रहे बन जाती हैं। अत: हम देखते हैं कि भक्ति दो धारी हैं? आप स्वयं ही खुद के शत्रु हैं कोई अन्य आपका शत्रु नहीं है। निश्चित रूप से आपकी श्रीमाताजी तो आपके शत्रु नहीं हैं। किसी भी एक और परस्पर शंकु की तरह से है जो सामूहिकता में जुड़ा है और दूसरी ओर आपकी माँ से। तरह से आपकी शत्रु नहीं हैं। न ही किसी सहजयोग में मैं जो कुछ देखती हूँ वे आप प्रकार से कोई भूत आपका शत्रु है। आप यदि उन्हें न बुलाएं तो वे नहीं आ सकते। नहीं देख सकते। आप लोगों के सम्मुख ये बात प्रमाणित हो चुकी है या नहीं? या आप लोग कोई भी बुरा आदमी तो आपका शत्रु नहीं है इसके और अधिक प्रमाण चाहते हैं। अब ये क्योंकि यदि आप आध्यात्मिक रूप से दृढ़ प्रमाणित हो चुका है कि श्रीमाताजी हमसे बहुत हैं तो वह आपको प्रभावित नहीं कर सकता। आगे तक देखती है और जो भी कुछ वे देखती अतः आप स्वयं अपने शत्रु हैं यह बात निर्णित है। हैं वह घटित होता है| अपने इस शत्रु से मुक्ति पाने का एकमात्र अतः कोई भी व्यक्ति जो श्रीमाताजी उपाय ये है कि आप समर्पित हो जाए। के साथ छल करता है वह वास्तव में स्वयं मान लो आप कहते हैं कि मेरा श्रीमाताजो से छल कर रहा है। "किसी प्रकार का भी में या परमात्मा में पूर्ण विश्वास है तो आप छल बदि आप मुझसे करते हैं या आप किसी का तो आश्रय लिए हुए हैं। ये बात ठीक सोचते हैं कि श्रीमाताजी क्षमावान हैं, वे हमें है न? और किसी चीजज़़ को आपने छोड़ा हुआ क्षमा कर देंगी, तो वास्तव में आप स्वयं को उ4 चैतन्य लहरी खंड :XIlI अंक : & 2.2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-36.txt समर्पण आपकी ओर मुड़कर, आपके होनी चाहिए। मान लो यदि आप डूब रहे हों अन्तर्निहित दिव्य व्यक्तित्व की ओर देख रहा भी तो है। परन्तु आपकी पकड़ (सम्बन्ध) बहुत दुढ़ तो क्या आप ताकिकतापूर्वक सोचंगे कि 'मुझे है। एक बार जब आपमें दिव्य व्यक्तित्व का बचाने वाले इस व्यक्ति का हाथ थाम लेना उदय हो जाता है। तो श्रद्धा की समस्या नहीं रह जाती। आप इससे एकरूप हो जाते हैं और चाहिए या नहीं?" न की मजबूती से आप उसका हाथ थाम लेगे? आपकी पकड बहुत दृढ़ इसका आनन्द लते है। परन्तु ये तर्कसंगति बहुत बुरी चीज़ है ये आपके साथ चालाकी करती है और आपको ये से आप उस हाथ होगी, पूरी ताकत. पूरी श्रद्धा लंगे कि किसी भी तरह से मुझे बचा को पकड़े नहीं समझने दंती कि अभी तक जो जीवन लो। हमारे अन्दर भी ऐसी ही भावना होनी यापन आपने किया वह अत्यन्त भौतिक और हैं चाहिए कि "मैं अपनी गलतियों के कारण डूब अपरिष्कृत था। अब आप इससे निकल आए इससे ऊपर उठ गए हैं अब आप उन्नत हो गए रहा हूँ यदि मुझे बचना है तो पूर्णतया, पूरी तरह से मुझे सहजयोग में लीन हो जाना होगा। तभी मैं हैं। पुष्पीकृत होने और सुगंध बिखेरने के लिए आपको यह ताकिकता त्यागनी होगी। यह आवश्यक बच सकता हूँ।" क्योंकि इस स्तर पर, जबकि आप उच्च कोटि के आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति हैं, है ताकिकता से. वाद-विवाद से बचने का प्रयत्न अब अगली छलांग लगाने का एकमात्र मार्ग जैसा करें। तर्क न करें। अब भी, मैं देखती हूं, बहुत से सहजयोगी मनोविज्ञान का तर्क देते हैं। मैं आपसे बता रही थी भक्ति है। इसके अतिरिक्त " श्रीमाताजी, हो सकता है वह असुरक्षित हो। यह किसी भी हालत में सभी चीजें गौण हैं। अब भी यदि अन्य चीजें आपकी दृष्टि में महत्वपूर्ण अजीब बात है। कहीं पुस्तक में पढ़ लो कि असुरक्षा के कारण कोई ऐसा करता हैं। बास्तव में सहजयोग में अब हमने देखा है कि ये पहली छलांग आप लगा चुके हैं, आपको तथाकथित असुरक्षित लोग ही सबसे अधिक हैं और आपका चित्त इन पर है ता आप यह दूसरी छलांग नहीं लगा सकते। आक्रामक हैं। ये अन्य लोगों से चालाकी करते आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो चुका है। परन्तु पहली हैं, उनके जीवन नष्ट करते हैं और आनन्द लेते छलांग से दूसरी छलांग लगाने के लिए आपको हैं। परपीड़न का आनन्द लेने वाले से नराधम कठोर परिश्रम करना होगा। दूसरी छलांग के स्तर लोग हैं। आपने ऐसे लोगों को देखा है इस प्रकार से वे अपने ही साथ छल करते हैं । तक आपको आना होगा। दूसरी छलांग का सामना आपको करना होगा। स्वयं से न तो आपको विषाद होना चाहिए न ही विरक्ति। स्वयं को एक एक वार जब आप ये जान जाएगे कि भिन्न अस्तित्व मानें। अपने साथ छल नहीं करना, और अपने साथ 35 चैतन्य लहरी ॥ खंड : XII अक : 8 2. 2001 =ি 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-37.txt आप छल करना क्यों चाहते हैं? क्यों अपने साथ में मैं न दे पाता।" वह बहुत ईमानदार था और छल करना चाहते हैं? आपको आत्मा बनना है. स्पष्ट कह दिया कि मैं न दे पाता परन्तु मेरी समझ में अब भी नहीं आता कि क्यों नहीं दे बसे। हमें अपना शत्रु नहीं बनना चाहिए। क्या हम अपने शत्रु हैं।? पाता। इस प्रकार अन्तिम समय तक हम छोटी-छोटी एक बार जब आप अपना सामना करने चीजों से चिपके रहते हैं । साड़ी का एक कोना यदि जरा सा भी लगेंगे तो आप स्वयं को पसन्द करंगे। आपको उलझ जाए तो यह पुरी साड़ी को उलझा सकता निराशा न होगी क्योंकि आपकी आत्मा गरिमामय है। तनिक सी उलझन पूरी साड़ी को उलझा है. सुन्दर है और निष्कलक है तथा. सर्वॉपरि. सकती है। एक छोटे से पिन से आप इसे उलझा निर्लिप्त हैं। सर्वप्रथम आपके चित्त को ये स्वीकार सकते हैं। ये छोटे-छोटे पिन (लिप्साएं करना होगा कि "यह निर्लिप्सा ही मेरा जीवन उलझाने के लिए काफी हैं। इन्हें नकारा है। मैं विल्कुल भिन्न व्यक्तित्व हूँ। निर्लप्सा हो जाना चाहिए। इनकी तरफ ध्यान दिया जाना चाहिए। स्वयं की ओर देखें और कहें, "ओह! मेरा जोवन है।" ये श्रीमान अहंकार है, ठीक है। अब मैं स्वयं को निर्लिप्त करो। देखता हूँ कि तुम कैसे वापिस जाते हो? इन सभी चीज़ों को खेल के रूप में देखने के लिए एक बार एक व्यक्ति मेरे घर पर मुझे मिलने आया। मेरे पास एक सुन्दर लैम्प था जो आपको स्वयं पर दृष्टि रखनी होगी तथा अपने उसे पसन्द आया। मैंने कहा"आप ये लैम्प ले अहं और प्रति अहं से खिलवाड़ करना होगा। सकते हो।" वह हैरान हो गया। उसकी पत्नी ने हो सकता है? मुझे टेलीफोन किया ये कैंसे वास्तव में अभी तक तो वे आपसे खलवाड़ कर आपने एसा सुन्दर लैम्प कैसे दे दिया? मैंने रहे हैं। एक बार जब आप उनके स्वामी बन कहा, "ये कौन सी बड़ी बात है? मृत्यु के समय जाएंगे तो आप उनसे खिलवाड़ करेंगे। मैंने देखा क्या मैं इसे साथ ले जाऊंगी? क्या ये मेरे साथ है कि बहुत बार मैं बहुत सी बातें बताती हैूँ जाएगा?" ता्किक दृष्टि से देखें। उसे यदि ये परन्तु कुछ ही समय पश्चात् लोग वैज्ञानिक प्रमाणों के साथ इनके विषय में समझाने लगते पसन्द आया तो उसे ले जाने दें। घर में मेरे पास बहुत से लैम्प हैं। यदि उनमें से एक वह ले भी है? हैं। बहुत बार ऐसा हुआ है। जब भी मैं कुछ कहती हूँ तो इसके "परन्तु मैंने अपने पति से पूछा, कि यदि तुम्हारे विषय में पूर्णतः विश्वस्त होती हूँ। सत्य के पास ऐसा ही कोई लैम्प होता तो क्या आप उन्हें अतिरिक्त मैं कुछ नहीं बताती। मैं जानती हूँ कि वह कहने लगी, गया तो क्या फ्क पड़ता मैं केवल सत्य बता रही हूँ। परन्तु इसके अन्दर दे देते? कहने लगे. "नहीं, मैं नहीं देता। वास्तव 36 चैतन्य लहरी :8 2. 200I खड : XIII अक 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-38.txt क्या आपको उससे ईष्यां है? यहाँ तक कहा पैठ कर मैं ये नहीं पता लगाती कि ये सत्य है या नहीं। ये खोजने के लिए मैं कोई पुस्तक भी नहीं पढ़ती। मैं आपसे भी नहीं पूछती। मुझे स्वयं पर विश्वास है. स्वयं पर मुझे पूर्ण विश्वास है। जो भी कुछ मैं कहती हैँ, वह सत्य है। निश्चित रूप से मैं जानती हूँ कि जो भी कुछ मैं कहंगी गया| परन्तु जब उसने अपने असली दाँत दिखाए तब लोगों को समझ में आया। तो सत्य के विषय में इस प्रकार को सूझ-बूझ विकसित करने के लिए सर्वप्रथम आपको चाहिए कि स्वयं को सत्य में स्थापित हि कर लें। और सत्य ये है कि आप परमात्मा वह सत्य ही होगा। आपके के माध्यम हैं क्योंकि आपकों आत्मसाक्षात्कार परन्तु आपके साथ ऐसा नहीं है। साथ एसा नहीं है कि जो भी कुछ आप कहें वह मिल चुका है जो लोगों में नहीं है। इस चेतना में बने रहें हैं। आपमें एक विशेष चेतना सत्य ही हो। अतः सर्वप्रथम उस अवस्था में मैं कहूँगा बह स्थापित हों कि जो भी कुछ और इसका उद्घोष करें, दावा करें। इससे आपको भयभीत नहीं होना चाहिए। नि:सन्देह सत्य ही होगा। अब यह कार्य किस प्रकार करें? आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो चुका है। आप जिह्वा ऐसी होनी चाहिए कि उससे जो इसका अनुभव कर चुके हैं। इस बात की कहें कुछ भी आप कहें वह सत्य हो। अन्ततः आपकी कि मुझको आत्मसाक्षात्कार मिल चुका है। जो ग कही हुई बात सत्य हो जाएगी। यही कारण है कुछ भी हो, मैं जानता हूँ मैं आत्मसाक्षात्कारी हूँ। कि समर्पण होना ही चाहिए। इस पर दृढ़ हो जाए। किस प्रकार का समर्पण : "मैं क्यों झूठ आपको सत्य की यह अभिव्यक्ति करते हुए बोलू? झूठ बोलने की कोई आवश्यकता नहीं है। प्रकाश सम होना होगा। प्रकाश शक्तपूर्वक स्वयं की प्रकट करता है। यह केवल अपनी शक्ति में यदि झूठ भी बोलूंगी तो मेरा श्रीमाताजी) (श को ही प्रकट नहीं करता अन्य लोगों को दर्शाता कहा हुआ तथाकथित असत्य भी सत्य हो जाएगा भी है कि यह चमकता है। प्रकाश दर्शाता हैं कि "में प्रकाश हूँ" तथा "आप मेरी रोशनी में किसी व्यक्ति के बारे में जब मैं कहती हूँ कि चलो। यदि आप ऐसा करने का प्रयत्न नहीं मेरी कही हुई बात कभी भी असत्य नहीं होती। करते तो मैं तुम्हें जला भी सकता हूँ। उसमें वह बुरा है तो कई बार आप कहते हैं, " श्रीमाताजी वह ती बहुत अच्छा आदमी है। आप कैसे उसके विषय में ऐसी बात कह रही हैं। हमारे पास ऐसा ही एक व्यक्ति श्री माइकल थे। "ओह. श्रीमाताजी वह तेजस्विता है, वह तेज है, प्रकाश का वह तौखापन है। प्रकाश की वह तेजस्विता व तीखापन। आपके सत्य का यही प्रमाण है। आपको न वह इतना प्रिय व्यक्ति है। किसी ने कहा श्रीमाताजी किसी मन्त्री का भय है न प्रधानमन्त्री का और 37 चैतन्य लहरो खड : XII अक :। & 2, 200। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-39.txt सिर कटवा लिए लोगों ने उन्हें सताया। कुछ न सम्राट का, किसी का भी भय नहीं। परन्तु लोगों ने अपना सारा धन न्यौछावर कर दिया । "यह वास्तविकता है। इस बात को में जानता हूँ।' मैं आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति हूँ। मैं सत्य हूँ।" सभी प्रकार से सताए गए परन्तु उन्होंने यही सोचा कि यही सत्य है और सत्य को नहीं आप यदि कहेंगे कि "मैं सत्य हूँ तो वह सत्य हो जाएगा। इसमें कोई सन्देह नहीं है, जो भी छोड़ा। उनमें से कुछ लोग बलि के मुर्ख बकरे भी थे वे असत्य के लिए न्यौछावर हो गए। कुछ आप करेंगे वह सत्य होगा। परन्तु कहें, "मैं परन्तु अब आप जानते हैं कि आप सत्य सत्य हूँ।" परन्तु इसके लिए स्वयं का सामना करने के लिए वास्तविक शुद्धीकरण आवश्यक है। देने के लिए तैयार रहना चाहिए। क्योंकि आप पर खड़े हैं और सत्य के लिए आपको बलिदान सत्य का बलिदान नहीं कर सकते। आप तो समर्पण का अर्थ है कि आप अपनी माँ से ( श्रीमाताजी से), सहजयोग से और जिस असत्य की बलि दे रहे हैं। सत्य को आपने प्राप्त किया है उससे इसके लिए आपको साहस एवं शक्ति से परिपूर्ण लोगों की आवश्यकता है, इन हैं। इसके बिना आप यह दृढ़तापूर्वक जुड़े हुए अधकचरे लोगों की नहीं जो सुबह से शाम कार्य नहीं कर सकते क्योंकि यही आपका स्रोत तक श्रीमाताजी से क्षमा याचना ही करने में हैं, आप सत्य पर खड़े हैं जिसमें महान शक्ति है, महान दृढ़ता है। लगे रहते हैं। ये क्या है? क्षमा मांगने की क्या बात है? मैं तो तुम्हें हर क्षण क्षमा करती इन सभी लोगों में, ईसा मसीह में, मोहम्मद साहब में यह शक्ति थी। इन सभी महान अवतरणों रहती हूँ। परन्तु आप क्या कर रहे हैं? आप में यह शक्ति थी। "पूर्ण साहस तथा बल के कैसे व्यक्ति हैं? साथ सत्य को कहने की शक्ति ताकि लोग इसे इस विषय में सोचे कि आपको सत्य पर स्वीकार कर लें। चाहे इसके लिए उन्हें कष्ट खड़ा होना है। इसके लिए आपको साहसो एव उठाने पड़े फिर भी उन्होंने इसका बुरा नहीं सशक्त होना पड़ेगा और आपमें वही तेजी होनी आवश्यक है। आपके अन्दर प्रकाश स्तम्भ के माना। सत्य जो है उसका कहा जाना आवश्यक प्रकाश की तरह से तेजस्विता होनी चाहिए। समर्पण के विषय में पहली बात जो हमे परन्तु इसके साथ साथ पूर्ण समर्पण भी होना समझनी है वह यह है कि-आप पूर्णतः समर्पित आवश्यक है। यदि इस लैम्प में तेल न हो तो हैं, किसी का भय आपको नहीं है, अपनी यह बुझ जाएगा। इसमें तेल होना आवश्यक है हानियों की भी आपको चिन्ता नहीं है। अन्यथा यह बुझ जाएगा। अत: समर्पण भी लोगों ने अपने प्राण दे दिए अपने आपमें इसी तेल की तरह से है। ये ही स्रोत से कुछ 38 चैतन्य लहरी । खंड : XIII अंक : 8 2.2001 ho 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-40.txt परन्तु यह इसका केवल एक पक्ष है जो समर्पण से आपको कोई और अर्थ नहीं कि पर्याप्त नहीं है। कोवल सत्य बनने के लिए आपको जोड़े हुए हैं। समर्पण का यही अर्थ है। लगाना चाहिए सिवाय इसके कि यह प्रकाश एक पक्ष है परन्तु इसका दूसरा पहलू यह है कि है जो चमकता है, जो सुधारता है और अन्य लोगों का पथ प्रदर्शन करता है। यदि ऐसा नहीं है तो आपको अपने स्रोत से शक्ति पूरी जब यह सरोत आपके पास आता है तो आप करुणा बन जाते हैं। सत्य और करुणा एक ही चीज है। आप इस बात पर विश्वास नहों करेंगे तरह से प्राप्त नहीं हो रही और इसलिए परन्तु यह सत्य है। जिस प्रकार प्रकाश बनने के आपकी ज्योति भी पूरी तरह से नहीं जल लिए बत्तो और तेल को एकरूप होना पड़ता है जलने से प्रकाश प्राप्त होता है। इसी और तेल के रही है। अत: जब आप समर्पित हो तो कभी ा न सोचें कि आप कुछ त्याग कर रहे हैं प्रकार करुणा आपको सत्य प्रदान करती है। जिसके कारण आप करम कल्ला (Cabbage) इसमें कोई अन्तर नहीं है। केवल अवस्था का अन्तर है। तेल जो कि प्रकाश है और जो जल बन जाएं। लोग ऐसा ही सांचते हैं कि कर्म हीन बन जाओ। इसके विपरीत समर्पण से आप रहा है उसे आप नहीं देख सकते । अतः करुणा ही आपका स्रोत है तथा प्रगल्भ (Dynamic) बन जाते हैं। आप वास्तविक शक्ति बन जाते हैं: विनाश की नहीं भण्डार भी। तो करुणा के इस स्रोत से आप रचनात्मकता की। कहने से मेरा अभिप्राय यह करुणा प्राप्त करें। मैंने ऐसे लोगों को देखा है जो मुझसे करुणा चाहते हैं। वे चाहते हैं कि मैं उनसे प्रेम की आवश्यकता होती है। विनाश के लिए कितनी करूं। परन्तु इस पर यदि चिन्तन किया जाए शक्ति की आवश्यकता होती है? बहुत कम। तो क्या वे अन्य लोगों से इसी प्रकार प्रेम करते हैं? मैं एऐसे लॉंगों को जानती हूँ जो दूसरों है कि विध्वंस के लिए अधिक शक्ति की आवश्यकता नहीं होती। सृजन के लिए शक्ति जरा सी देर में सभी कुछ नष्ट किया जा सकता है। परन्तु सृजन के लिए महान शक्ति की से कठोर शब्द बोलेंगे और फिर आकर मुझसे कहेंगे. "श्रीमाताजी मुझे क्षमा कर दीजिए।" या आवश्यकता होती है और वह शक्त वह सतत फिर मस्तिष्क की सनक के कारण कुछ कठोर शक्ति, निरन्तर बहने वाली शक्ति होनी आवश्यक है। इसके लिए समर्पण आवश्यक है। अपने शक्ति के स्रोत से जुड़कर आपको करेंगे। "श्रीमाताजी मुझे क्षमा कर दीजिए। जब आप क्षमा मांगते हैं तो में जानना चाहूँगी कि क्या आपने अन्य लोगों के साथ करुणापूर्वक व्यवहार पूरी ताकत से खड़ा होना होगा। बिना किसी भय के। यही सत्य है। इसी सत्य को आपने प्राप्त किया? मुझसे क्षमा प्राप्त करने के पश्चात् भी क्षमा के तथा करुणा के सरोत से क्षमा प्राप्त करने करना है। यह बहुत महत्वपूर्ण हैं। 39 चैतन्य लहरी खंड : XIII अंक : 1 & 2, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-41.txt परस्पर सहजयोगी एक भिन्न प्रजाति हैं। के पश्चात् भी, क्या आपने अन्य लोगों को हर समय एक दूसरे को आश्रय देना होगा करुणी दी? क्या आप अन्य लोगों के साथ करुणामय हैं? करुणा केवल एक ओर की नहीं और परस्पर देखभाल करनी होगी। जब में होनी चाहिए। आप यदि मेरी करुणा का लाभ सहजयोगियों को दूसरे सहजयोगिगों की आलोचना उठा रहे हैं तो इसे केवल अपने हित के करते हुए देखती हूँ तो मुझे हैरानी होती है लिए उपयोग करके भूल न जाएं। ऐसा यदि क्योंकि आप एक ही विराट के अंग- प्रत्यंग हैं आप करेंगे तो कभी आपका उत्थान नहीं हो किस प्रकार आप आलोचना कर सकते हैं। एक सकेगा। आँख का दूसरी आँख का आलोचना करना मेरी आप उन्नत होना चाहते हैं तो अपने समझ में नहीं आता। में तो आलोचना कर अन्दर उस करुणा को सहेज कर रखें। जो भी सकती हूँ, ठीक है; परन्तु आप क्यों आलोचना करुणा, जो भी प्रेम मैंने आपको दिया है करें? क्यों आपको एक-दूसरे की आलोचना उसे सहेज कर रखें और अन्य लोगों को वो करनी चाहिए? आपके करने के लिए केवल करुणा व प्रेम लौटाएं अन्यथा आप समाप्त एक ही चीज़ है, परस्पर प्रेम करें। हो जाएंगे, कहीं के न रहेंगे स्थायी उन्ति क्राइस्ट ने ये बात केवल तीन बार कही तो तभी होगी जब आप एक और से करुणा थी, मैं ये बात एक सौ आठ वार कह चुकी हूँ, "कि आपको परस्पर प्रेम करना है केवल इसी एवं प्रेम लेकर दूसरी ओर से अन्य लोगों को देंगे। अन्यथा आप निस्तेज हो जाएंगे। करुणा तरह आप अपनी करुणा की अभिव्यक्ति कर बाहर की ओर बहनी चाहिए। सकते हैं। मैंने यदि आपको कभी प्रेम किया परन्तु ये बहुत कठिन कार्य है। लोग है तो दूसरों के प्रति आपमें धैर्य एवं प्रेम श्रीमाताजी से करुणा प्राप्त करने में बहुत दक्ष हैं। होना चाहिए। कई बार मैं लोगों को उकसाती हैँ वे यदि करुणामय हैं भी तो प्रायः वियतनाम के और वे तुरन्त किसी न किसी की आलोचना लोगों के प्रति करुणामय होंगे, अपने आश्रम के करनी आरम्भ कर देते हैं। लोगों के प्रति नहीं। वियतनाम के लोगों के लिए मूल बात ये है कि हमारे हृदय से वो बहुत चिन्तित हैं। कहेंगे," ओह श्रीमाताजी। करुणा यदि बह रही है केवल तभी हम हमें वियतनाम के लोगों की बहुत चिन्ता है। हम श्रीमाताजी से करुणा प्राप्त कर सकते हैं। उनके लिए धन एकत्र कर रहे हैं और वियतनाम कोई ऐसा स्थान नहीं है जहाँ पर मैंने करुणा वर्षा पैसा भेजने की कोशिश कर रहे हैं " और यहाँ न की हो और अब मुझे लगता है कि जब तक आश्रम में रहने वाले लोग आपस में झगड़ रहे आप इस करुणा को अन्य लोगों तक नहीं हैं! यह किसी भी तरह से करुणा नहीं है। पहुँचाएंगे किस प्रकार मैं ये करुणा आपको देती 40 चैतन्य लहरी खंड : XIII अंक :। & 2. 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-42.txt 108 वर्ष से भी वृद्ध व्यक्ति की माँ हूँ। वास्तव रहूंगी? इसे सम्भालने के लिए अब आपमें स्थान कहाँ बचा है। अच्छा होगा कि इसे बांट दें। में आपको चाहिए कि अन्य लोगों को ममत्व प्रदान करें और उनके लिए आपके हृदय में अपने अन्दर को थोड़ा सा खाली कर दें ताकि मैं आपको और अधिक करुणा दे सकूं। यह गहन प्रेम एवं करुणा का भाव हो। अपनी सुख-सुविधा और लाभ के विषय में न सोचकर अन्य लोगों के हित के विषय में सोचना चाहिए आपको सोचना होगा कि "लोगों को सुख पहुँचाने बहुत सहज कार्य है इसके विषय में व्यक्ति को समझना चाहिए कि सोत से करुणा केवल तभी बह सकती है जब मार्ग पूर्णतः विस्तृत हो। थेम्स नदी की तरह। हम इसके उद्गम के लिए मैं क्या कर सकता हूँ और उसके स्थान को देखने के लिए गए। सात बहुत पश्चात् अपनी सुख-सुविधा के बारे में सोचना होगा। छोटी-छोटी धाराओं से निकलती हुई ये एक करुणा का ये प्रवाह जब आरम्भ हो छोटी सरिता है जो बाद में थेम्स नदी बन गई है। जाएगा तब समर्पण पूर्ण हो जाएगा। तब वह यह यदि विस्तृत नहीं होती तो आरम्भ में ही रुक स्थिति होगी कि "श्रीमाताजी हमें आपको जो कृपा प्राप्त हो रही है वह हम दूसरे लोगों को भी दे रहे हैं। यही श्रद्धा है। तो श्रद्धा का ये प्रवाह गई होती। यह न बाहर आ सकती न बह सकती। क्रोध या परेशानी के कारण ऐसा नहीं है एकतरफा नहीं है ये दोतरफा है। किसी चीज़ से परन्तु इसके स्वभाव के कारण ये न बह सकती। आप जुड़ जाते हैं, उससे सम्बन्धित हो जाते हैं अत: व्यक्ति को करुणा अन्य लोगों में ताकि उससे कुछ प्राप्त करके अन्य लोगों को दे सकें। अन्तत: यह सामूहिक अस्तित्व तक पहुँच जाता है अर्थात् अपने स्रोत तक पहुँच जाता है। क्या करें? बाँटनी ही होगी। करुणा बनावटी या अस्वाभाविक नहीं होनी चाहिए। इसे अल्यन्त नैसर्गिक और स्वैच्छिक होना चाहिए, अन्तर्भावना। यह आपके इस ज्योतिर्मय दृष्टिकोण से हमें समझना चाहिए। अहं, प्रतिअहं या भावनात्मकता की अभिव्यक्ति एक विशिष्टता या "अब हमारा विवाह नहीं है। यह तो एक प्रकार की सूझ-बूझ है कि वह सहजयोगी है आप भी सहजयोगी हैं, अत: हो गया है, हमारे पास अलग स्थान होना चाहिए या अब हमें अलग रहना चाहिए।" यह सब भाई हैं। आम भाईयों की तरह से नहीं, भिन्न ठीक है विवाहित होने पर आपको थोड़ी सी प्रकार के आध्यात्मिक भाई हैं, आप आध्यात्मिक एकान्तता आवश्यक है। उसके विषय में मैं लोग हैं। इन्कार नहीं कर रही। परन्तु जहाँ तक करुणा का अत: करुणा होनी ही चाहिए। अन्य लोगों सम्बन्ध है विवाहित लोगों को कहीं अधिक के लिए अत्यन्त भावपूर्ण मातृसम तथा पितृसम करुणामय होना होगा परन्तु आप लोग तो केवल करुणा मेरा कहने से अभिप्राय है कि मैं तो अपने बच्चों, अपनी सुख-सुविधाओं, अपने पति 41 चैतन्य लहरी खंड : XIII अंक : & 2, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-43.txt जीवन के प्रति अपना दृष्टिकोण वदल लें और अपनी पत्नी के विषय में ही चिन्तित होते हैं। सहजयोग में एसे लोगों के लिए कोई स्थान आप ऐसा कर सकते हैं क्योंकि आपका दृष्टिकोण नहीं है। यह तो पूर्णत: सामूहिक है। जब आप तो बदल चुका है। अब यदि आप भिन्न व्यक्ति अपने बच्चे के लिए मिठाई लाते हैं तो आश्रम बनने का प्रयत्न करेंगे तो न बन सकेंगे। अब आप पुष्प बन चुके हैं, अचानक पत्ता नहीं बन के अन्य बच्चों के लिए भी मिठाई लाएं। आप एक परिवार हैं और पूरे परिवार को एक ही सकते। अब पुष्प हैं और पुष्प सम आपको रहना होगा। प्रकार की तरंगों के साथ चलना चाहिए। मैंने इससे पहले भी आपको बताया है कि हम अलग यही आपको याद रखना है कि करुणा से खाने आदि का प्रबन्ध नहीं कर सकते। इसी ऐसा प्रवाह है, सहजयोगी के लिए यह अत्यन्त प्रकार भिन्न लोगों के लिए हम जीवन के भिन्न स्वाभाविक गुण है। किसी अन्य के लिए यह स्वाभाविक नहीं है। करुणा आदि की बात करने स्तर नहीं बना सकते। बाले अन्य लोग वास्तव में बिल्कुल भी करुणामय हम सबको उन्हीं चीजों का आनन्द लना प ल है जो सभी के लिए उपलब्ध है। ऐसा ही होना नहीं होते। वे तो धन, पदवी, अहं सन्तुष्टिकरण आदि के लिए करुणा की बातें करते हैं। परन्तु चाहिए। भौतिक स्तर पर यह उपलब्धि प्राप्त की जानी चाहिए। कोई विवाह यदि अटपटा है और जिसके कारण सभी लोगों को परेशानी होती है आप में करुणा है इसलिए आप करुणा की बात करते हैं । करुणा आपसे प्रवाहित हो रही है और तो भावनात्मक स्तर पर यह बेकार है। विवाह तो आप करुणा कर रहे हैं। इसके पीछे कोई अन्य सभी को सुख देने के लिए किए जाते हैं। अत: ध्येय नहीं है। केवल इसी प्रकार आपको स्थायी विवाह का निर्णय लेने से पूर्व सोचें कि आप करुणा प्राप्त होगी। चालाकी नहीं कर रहे हैं । सहजयोग में चालाकी जैसा आज सुबह मैं आपको बता रही थी आप लोग एक संस्था में गए और इसे बहुत करना बहुत भयानक है। आप केवल अपने विवाहों के मामले में ही चालाकी नहीं कर रहे सुन्दर बना दिया। परन्तु उनके जाते ही संस्था हैं, आप किसी अन्य को भी अपने साथ लिप्त समाप्त हो जाती है क्योंकि वे संस्था को कुछ कर रहे है। ये सोचते हुए कि श्रीमाताजी आपको क्षमा कर देंगी, मैं तो आपको क्षमा कर दूंगी विशेष दे नहीं पाते। दिया क्या जाना चाहिए? करुणा से परिपूर्ण विशाल हृदय। यदि आप यह नहीं दे पाते तो आपके जाते ही सभी कुछ परन्तु आपका उत्थान कठिन हो जाएगा। अत: जैसे आप पहले करते थे, किसी भी मामले में बंजर हो जाता है। ये उत्थान नहीं है। पानी लाकर चालाकी करने का प्रयत्न न करें। स्वयं को यदि आप पौधे में और पृथ्वी में दें और सींचे तो परिवर्तित करें, पूर्णतः परिवर्तित कर लें। ये बहुत सुन्दर हो जाती है। और आप कह 42 चैतन्य लहरी ।खंड : XII अंक : & 2. 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-44.txt सकते हैं बहुत ही सुन्दर हरियाली है। जल का मेरा कहने का ये भी अर्थ नहीं है कि, जैसे कुछ स्रोत यदि हटा लिया जाए तो ये सूख जाती है। लोग यहाँ करते हैं, आप कभी घर पर न रुकें, परन्तु सहजयोग भिन्न है। सहजयोग में हर वक्त दौड़ते रहें। मेरे कहने का ये अर्थ आप पौधे की तरह से केवल बढ़ते ही नहीं । बिल्कुल भी नहीं है। ये बात मुझे पुनः बतानी पौधे की ऊर्जा स्रोत के रूप में, विकसित पड़ रही है अन्यथा ये लोग हर वक्त दौड़ते ही होते हैं। इस पौधे को यदि यहाँ से उखाड़ रहेंगे। मेरा कहने का ये मतलब नहीं हैं। मेरा ये अभिप्राय है कि हर वक्त किसी कर कहीं ओर लगा दिया जाए तो ये अन्य पौधों को भी सींचेगा। यह नया आयाम आपने एक चीज़ से चिपके न रहें किसी स्थान को अपने अन्दर पा लिया है तथा आप इसके छोड़ने से घबराएं नहीं। क्योंकि अब आप सहजयोगी विषय में जानते हैं? एक बार जव इस पौधे हैं। आप समुद्र में प्रविश कर गए हैं और समुद्र आपको कहीं भी ले जा सकता है को उखाड़ कर बाहर ले जाया जाएगा तो भी ये मरेगा नहीं। बिल्कुल भी नहीं। यह स्वयं तो बढ़ेगा ही अन्य पौधों को भी बढ़ाएगा। करें क्योंकि आपने ये करुणा सर्वत्र फैलानी है तो कहीं भी जाने के लिए स्वयं को तैयार हमारे अन्दर यह एक अन्य प्रकार का विकास और समृद्ध होना है। परमात्मा के इस साम्राज्य में हुआ है और अब हम बिल्कुल भिन्न स्थिति में आपने परमात्मा की सेवा करनी है ये सेवा तभी हैं और यही स्थिति मैं चाहती हूँ कि चाहे सम्भव है जब आपको इस बात का ज्ञान हो कि आपकी अपने स्थान से उखाड़ कर दूसरे स्थान इस महान सार्वभौमिक कार्य के लिए आप यहाँ पर लगा दिया जाए...मैंने देखा है कि जब मैं हैं। केवल इंग्लैण्ड, भारत या अमेरिका के लिए लोगों से कहती हूँ कि ये स्थान छोड़कर वहाँ ही नहीं परन्तु एक सार्वभौमिक कार्य के लिए चले जाओ तो वे डर जाते हैं। "वेहतर होगा कि जो कि हमारे विकास का सारांश है। अपनी आप वहाँ जाकर ये कार्य करें और वे डर जाते सृष्टि और सृष्टा के लिए यह सबसे बड़ा कार्य । आप ऐसे पौधे हैं जो कहीं भी जाकर है जो हमें करना है। आपको इस कार्य के लिए चुना गया है कोई भी चीज़ जो आपकी अभिव्यक्ति को पूर्ण नहीं करती उसकी तरफ फल-फूल सकते हैं। केवल इतना ही नहीं अन्य लोगों को भी पोषण प्रदान कर सकते हैं। आपमें वास्तव में ये शक्ति है। अत: एक ही स्थान से अपना चित्त न जाने दें । ऐसी सब चीज़ों को चिपके न रहें। एक ही स्थान से यदि आप लिप्त त्याग दें, अपनी शक्ति को बर्बाद न करें। हैं तो सोचें कि वहाँ कुछ न कुछ कमी अवश्य आपकी करुणा, आपका प्रेम ही आपकी अभिव्यक्ति है। होगी। ये बहुत भयानक है। स्मरण रहे कि कोई भी स्थान जो आपको पकड़े उससे भाग खड़े हों । परन्तु अब भी ये कंवल तर्कसंगत ही न 43 चैतन्य लहरी खंड :XII अंक : 1 & 2, 200। গ 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-45.txt अपने साथ ये घटित होने दें । केवल चैतन्य रह जाए। मैंने जो कुछ भी आपसे कहा है, वह आपको ऐसी स्थिति में लाने के लिए है चेतना से स्वयं को परखें। "क्या, मैं अन्य ६८. जिसमें आप चैतन्य लहरियाँ आत्मसात करने लोगों को चैतन्य लहरियाँ दे रहा हूँ? क्या मैंने अपने में चैतन्य लहरियों का भण्डार भर लगें और चैतन्य लहरियाँ दें। यह एक क्रिया है, एक घटना है जो आपके अन्दर घटित लिया है या मैं स्वयं को नष्ट कर रहा हूँ? ये होना चाहिए। यह ताकिंकता नहीं है, इसके विषय में सोच नहीं है। ये चीजें कहने मात्र से मैं सब आपको एक विशेष अर्थ तथा व्यवसाय प्रदान करेगा। जैसा मैंने कहा, "परमात्मा की आपकी सोच को अभिभूत कर रही हूँ। आप नौकरी।" परमात्मा आपको धन्य करें। मानवीय चेतना महत्वपूर्णतम है। इसका सम्मान होना ही चाहिए। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी गणेश कबैला 16.9.2000 पूजा 44 चैतन्य लहरी खंड : XIII अंक :1 & 2, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-47.txt परमाणु जख फटता है तो वितने खिध का ारण बनता है पबन्तु मानख हढय जब बछुलता है तो उससे कितनी प्रेम सबिताएं निळलती हैं। ये सबिताएं प्रेम सागब की सृष्टि करती हैं। कहज सामूहिकता का प्रेम अपने ही अन्दब सीमित नही बह सळता। खि्तृत होळन इसे समाज तब पहुँचना होता है। अन्य लोगों, समाज तथा मानवीय समस्याओं के प्रति अपनी चिन्ता की यह अभिष्यक्त करता है । यह चिन्ता प्रेम का आडोलन है जिसे करुणा की संक्ञा की जाती है। ककणा सा्षात् देणी श्री माताजी के हढय के জहती है। सान् कणा े रखूप में देखी की पूजा होती है। उनळी कणा प्राप्त करने का सौभाग्य हमें प्राप्त ह है। अब हमें ठनळी ळणा का माध्यम बनना है। अपनी ढ़ि्य करूणा में उन्होंने कीन-दूछिायों के लिए कई ळार्य शुक किए हैं। हाल ही में उन्होंने निरा महिला तथा बालगृह की नीव बखी है। इस अवसब पर उनके हृढयस्प प्रषचन को मुनकर सखळी आंखों में ककणा के अंसु बह निकले। इन महिलाओं तथा बच्चों के लिए उनके हदय की पीशा से हमारे हढय कराह उठे! हम सब उस पीड़ा को ढूब करने का खचन केते हैं। कणा का आहोलन हमें अत्यधिक गहनता में ले जाता है। परहित की ओर जब हमारा चित्त जाता है तो अपने खिबय में हमारी सोच कम हो जाती है । इसके परिणामस्वसप अहम् को मिलने बाला ईंधन कम हो जाता है और अहम् घटने लगता है। हमारे खिचार भी हितर हो जाते हैं। ठढाहरण के रूप में पिछली ढिखाली हमने पांच कौ कपये के पटाखे जलाए धे। হন कीखाली पर बिचार आया कि यों न आधे पैसे गलियों में चलने खाले बच्चों की इस संथा को दे दिए जाएं। हो सकता है किसी दिन निरास्रित बच्चे केवी लक्ष्मी के कम्मान में ढीप जलाने े योग्य हो जाएं। पशहित की ये भावना आन्तरिक आनन्द भी प्रदान करती है। इसी प्रकार ज्योत से ज्योत जलती चली जाएगी। गलियों में अटकने बाले, गलियों के अधेरों के भयानक बीहड में खोए हुए इन निराम्ित बच्चों को आत्मसाकात्ा भी प्राप्त नही हो सका है। हमारी आलका्षा है किआत्मा का ये प्रकाश उन्हें सकषात् श्री महालक्ष्मी भ्री आকিছাজিন माताजी श्री निर्मला देवी के चशण कमलों तक ले जाए। तो आइए हम सख भी अपनी परमेश्वरी माँ क्वारा आवम्भ किए गए इस यज् में ठकाबता पूर्खल योगढान दें।