खंड: XIII अंकः 3 व 4 मार्च-अप्रैल, 2001 VIVERSAL PUBE चैतन्य लहरी २ कोई सहजयोगी यदि अपनी ही समस्याओं से घिरा हुआ है तो वह बिल्कुल भी सहजयोगी नहीं है। आप अन्य लोगों की समस्याओं का समाधान करने के लिए हैं केवल अपनी समस्याओं का नहीं और न ही ये कहते फिरने के लिए कि मेरी ये समस्या है। श्री कृष्ण पूजा (20.8.2000) SHNA NIHMALA DHARM. NOIDITSH इस अंक में गुड़ी पड़वा पूजा - 5.4.2000 4. भारतीय राजस्व सेवा अधिकारी सम्मेलन-17.4.2000 2. 1१ सहजयोगियों को भूकम्य का पूर्वाभास 25 3. श्री कृष्ण पूजा - 20.8.2000 28 3. 4.2.83 सहसरार चक्र 43 4. संक्रान्ति पूजा - प्रतिष्ठान- 2001 60 5. मुद्रक एवं प्रकाशक : विजय नालगिरकर 152ए मुनीरका विहार नई दिल्ली 110067 न् लहरी खड-XII अक 3 व 4 ल 2001 1 मार्च -अभं गुड़ी पड़ता पूजा (5.4.2000 नोयडा भवन) परम् पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन अपने यहाँ हिन्दुस्तान में देवी के दो नवरात्र पवित्र कर देती थी इतनी संहारक थी। ये माने जाते हैं। ये चैत्र नवरात्र जिसमें आज जो सातवीं शक्ति है उसे संहारक शक्ति का दिन जो शैल पुत्री के अवतरण का है। कहते हैं उसके बाद संहारक शक्ति आई शैल पुत्री माने जब उन्होंने हिमालय में जन्म Right Side में चली गई इसी Right Side में लिया था इसलिए उनको शैल पुत्री कहते हैं सावित्री गायत्री आदि हैं। पर संहारक शक्ति और फिर उसमें और भी उनके नाम हैं। का जो प्रादुर्भाव हुआ मतलब एक दिशाLeit लेकिन शैल पुत्री की विशेषता ये है कि में गई एक दिशा Right में गई और जो उनका प्रथम जन्म शैल पुत्री के रूप है । तो संहारक शक्ति है वो Centre में चली गई। हिमालय की उस ठण्ड में देवी का जन्म उसमें आप देखते हैं कि देवी के अनेक रूप हुआ और जो कुछ भी उन्हें करना था वो Heart चक्र में हैं. जैसे दुर्गा है और भी जो बही-शैल पुत्री ने किया। लेकिन आगे की उनके रूप हैं जिससे उन्होंने संहार किया। कहानी तो आपको मालूम ही है कि दक्ष ने वो हृदय पर विराजमान हैं। हृदय चक्र में. जो हवन बनाया था, उसमें उन्होंने शिवजी हमारे हृदय चक्र में वो विराजती हैं । तो इस को आमन्त्रण नहीं दिया ये शिवजी की पत्नी हृदय चक्र की एक शक्ति तो ये है ही कि श्रीं। तो फिर देवी ने उनको सती कह दिया कोई आपको परेशान करे या आप पर आधात तब सती हुई थीं। उन्होंने जाकर के उस करे या आपको दूविधा में डाल दे तो वो जो हवन कण्ड में अग्नि में अपनी आहुति दे दी. शक्ति है, हृदय में वो आपका Protection तब शिवजी आए और उनके शरीर को उठाकर करेगी और जो आपको सताएगा उसका निकले। तो अनेक जगह उनके शरीर के संहार करेगी तो बहाँ पर सबसे जो शक्ति टुकड़े गिर गए और उस जगह हम लोग का प्रादुर्भाव है यासबसे ज्यादा इसका असर मानते हैं कि देवी की शक्ति है, जैसे है वो है कुण्डलिनी का वहाँ पर आना। जब विध्याचल में है हर जगह। तो उनकी शक्ति वहाँ विचरण करती है ऐसा कहते हैं। और वो जो शक्ति थी वो किसी भी चीज को कुण्डलिनी हृदय चक्र पर आती है, क्योंकि कुण्डलिनी जगदम्बा शक्ति हैं, अम्बा, इसलिए जब वो आती है तब उसकी शक्ति और बढ़ चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अ प्रै ल 2001 2 जाती है। तो जब मनुष्य सहजयोग को प्राप्त होता है और ये शक्ति कुण्डलिनी के जागरण से उसके हृदय में स्थित होती है तो बो पूरी होने चाहिएं। गर गणेश में गड़बड़ हैं तो फिर उनको सही करना चाहिए। इस प्रकार नाना-विध उनकी क्रियाएं हैं पर आज की विशेषता ये है कि कहते हैं कि सर्वप्रथम तरह से आपको सम्भालती है। आपका रक्षण करती है पूरी तरह से। आपका बाल भी नहीं उन्होंने शैल पुत्री के नाम से जन्म लिया और बॉका हो सकता। पर उसको हृदय में रखना ये बात सत्य ही होगी। लेकिन उससे पहले चाहिए। माँ को हृदय में रखना चाहिए। ये जब आदिशक्ति इस संसार में आई तो एक माँ की शक्ति है, मातृत्व की शक्तित। और गाय के रूप में उन्होंने जन्म लिया। मतलब मातृत्व शक्ति ऐसी है कि वो अपने बच्चों को परम चैतन्य की जो बस्ती है उसमें उन्होंने हमेशा संरक्षित रखती है, हमेशा संरक्षण करती अवतरण लिया और वहाँ एक गाय बनकर है। सो इसीलिए कि जब कभी हम लोग रहीं खास बात ये है कि वहाँ गोकुल पहले परेशान होते हैं तो Medical Terminology ने ऐसा कहा है कि यहाँ पर जो हड्डी है वो हिलने लग जाती है और उससे जो चारों तरफ फैले हमारेAnti Bodies हैं, जिनको हमारी भाषा में तो हम गण कहेंगे, उन गणों को खबर आ जाती है और वो फौरन तैयार बना और वहाँ ये गाय रही। हरेक चीज़ पहले बनी और उसका प्रतिबिम्ब (Refiection) हमारे अन्दर है, जैसे सदाशिव तो उनसे शिव बन गए। सबके ऐसे Refiections आए हैं; उसी प्रकार देवी का भी है । सो देवी का प्रादुर्भाव जो हुआ वो तो पहले जब जन्म लिया मनुष्य रूप में तो शैल पुत्री है । इसलिए हुए हुए हो जाते हैं। तो गणों की भी वो महाराज्ञी हैं। आज का बड़ा महात्म्य है। लेकिन उस दशा उन्ही के आधार पर, उन्हीं की आज्ञा पर वो चलते हैं। इन लोगों, में जैसे गणेश और देवी में, जहाँ पर मैं बता रही हूँ, जिसको कि आप में कोई कभी भी झगड़ा होने का सवाल ही कहते हैं परम चैतन्य कि जो व्यवस्था है. नहीं आता। वैमनस्य होने का सवाल ही नहीं स्वर्ग कहिए, चाहे जो भी कहिए उसमें उन्होंने आता। वो दोनों ही शक्ति मानों जैसे आदिशक्ति के नाम से जन्म लिया और वो एकाकारिता। तो गणेश उनके बेटे हैं और एक गाय के स्वरूप में थीं। इसलिए हम वो उनकी माँ। तो जो लोग गणेश जी को लोग गाय को नहीं मारते क्योंकि वो माँ हैं। मानते हैं और जिन्होंने प्राप्त किया है गणेश यहाँ कि गाय में और विदेश की गाय में बहुत जी को सहज में भी उनको वो बिल्कुल फर्क है। इनकी शक्ल और होती है, उनकी अपने बच्चे जैसे सम्भालती हैं। पग-पग पर बिल्कुल अलग होती है मुझे याद है मेरी हर जगह उनको देखती हैं क्योंकि वो माँ हैं लडकियाँ छोटी थी। ये Grand Daughters, और आप गणेश हैं। पर आपके गणेश निर्मल तो पूछती थीं कि नानी यहाँ की भैंसें सफेद श्री e मार्च-अपर ल 2001 3 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 क्यों है? तो भैंस के और गाय केExpression शाकाम्भरी देवी का प्रादुर्भाव हुआ। उनमें ये में कोई फर्क ही नहीं है, तो लगेंगी कैसी? शक्ति थी कि वो उपज को बढ़ाती थीं हम अब गे आदिशक्ति के जन्म लेने का समय भी मेरठ में थे तो हमने भी बहुत वहाँ खेती नहीं था क्योंकि पहले आप जानते हैं कि बाड़ी करी। तो इतने बड़े-बड़े बैंगन आप द्वापर, त्रेता आदि होते गया। वो कलियुग में खा नहीं सकते! ये बड़े-बड़े टमाटर और ही उनको आना था क्योंकि सारे ही चक्रों ककड़ियाँ, इतनी मोटी इतनी लम्बी कुछ को लेकर, सारी ही देवियों को लेकर, सारी समझ में भी नहीं आता था लोगों को कि यें ही शक्तियों को लेकर के कलियुग में आना क्या है! हमें तो पाँच या छः Prizes मिले पड़ा । नहीं तो कार्य नहीं होता। इतना घोर वहाँ! वो शाकाम्भरी देवी की शक्ति है। तो कलियुग है। इस धोर कलियुग में कार्य जहाँ जिस शक्ति का प्रार्दुभाव होता है वहाँ करना बड़ा कठिन है और उसने महामाया ये शक्ति जो भी हो वही कार्य में ज्यादा रत स्वरूप लिया क्योंकि घोर कलियुग में यदि होती है । अब लोग कभी चामुण्डा कहेंगे कोई जाने कि ये आदिशक्ति हैं तो ऐसे ही कभी कुछ कहेंगे तो उसमें सबकोConfusion मारने को दौड़े। इसलिए महामाया बन गई होता था। लेकिन शक्ति के अनेक स्वरूप हैं और पहले का जो स्वरूप था तो वो इस और जिस चीज़ की जरूरत होती है उनको इस्तेमाल करती हैं । तो ऐसे कोई नहीं है कि पूरा - पूरा प्रचण्ड था क्योंकि इन दिनों में ऐसी कोई दुर्गा हैं तो फिर ये चामुण्डा कौन हैं? ऐसी तरह महामाया स्वरूप नहीं था। वो बात नहीं थी कि देवी को कोई मार डालेगा। बात नहीं है, ये सब हैं और इनका होना जरूरी है। अलग-अलग देवता हैं जिस प्रकार वो जमाना और था, और वो भी उनका जन्म जो हुआ हिमालय की गोद में हुआ और कार्य करते हैं, इसी प्रकार देवी को भी शक्ति उसके बाद विवाह शिव जैसे महान स्वरूपा माना है। देवी के बगैर कोई भी शक्तिशाली के साथ। तो बार लोगों अवतरण कुछ नहीं कार्य कर सकता चाहे वो को ये प्रश्न होता है कि एक नवरात्र ये है गुरु हो चाहे वो रामवतार हो या कृष्णावतार हो, क्राइस्ट हो, कोई हो। सबके पीछे में एक देवी की शक्ति होती थी इसलिए हमारे एक देवी के लिए कहते हैं कि महाकाली देश में माँ को इतना मानते हैं लोग। बहुत एक नवरात्र वो। है, महासरस्वती सब हैं लेकिन सब आदिशवित के ही अंग-प्रत्यंग हैं। इनका जो प्रादुर्भाव अब चलिए ऐसा कहना चाहिए भारतीय जो हैं शक्ति के पुजारी हैं। बाकी ऐसे ही जो चीजे बढ़ चली, झगड़े झगड़ूं सब लोग करते हुआ वो भी ऐसे ही समय में हुआ कि जिस कार्य को करना था, जैसे अब आपके मेरठ में चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मा्च अप्रै ल 2001 4 हुए, पर वास्तव में सब लोग शक्ति पुजारी को लोग आध्यात्म का चरम लक्ष्य समझें। हैं। जो विष्णु को मानते हैं वो भी शक्ति सब कुछ समझें पर यहाँ की जो औरतों की पुजारी हैं, जो शिव को मानते हैं वो भी स्थिति है, खासकर उत्तर हिन्दुस्तान में, वो शक्ति पुजारी हैं क्योंकि माँ-माँ को तो कोई बहुत दुखदायी है। औरत की इज्जत करना, नहीं बाँट सकता। तो ये ऐसी बड़ी भारी माने महापाप, उसको मारना पीटना ये तो संस्था माँ की अपने देश में है और इसलिए चलता ही रहता है। Dowry System, फिर हमें उसका बड़ा आदर करना चाहिए। बड़े अनेक तरीकों से आदमी अपने को उससे लोगों को भी करना चाहिए और बच्चों को ऊँचा बड़ा दिखाना चाहता है। वो है नहीं। भी। अभी तक हमारे देश की औरतें इतनी आदमी जिस चीज में है उसमें है लेकिन बिगडी नहीं हैं पर वो समझती नहीं हैं कि माँ औरत सम उसके अन्दर क्षमता नहीं। उसके बनने के लिए कौन से, कौन से ऐसे गुण अन्दर वो शक्ति नहीं। बच्चा नहीं पैदा कर होने चाहिए, जिससे अलंकृत हों और उसी सकता। जो औरत की इज्जत नहीं करते वो से अच्छे बच्चे बनें। अब आजकल क्योंकि देश भी नष्ट हो जाते हैं और जो माँ की जरा औरतों में और चक्कर चल पड़े हैं तो इज्जत नहीं करते वो भी देश नष्ट हो जाते उनको बच्चे ही नहीं होते। क्योंकि ऐसी हैं क्योंकि शक्ति ही खत्म हो गई। तो ये औरतों को क्यों बच्चे होंगे और जैसे नहीं होना चाहिए कि औरतों के पीछे भाग 1 दूसरे देश हैं जहाँ माताएं ठीक नहीं हैं तो वहाँ रहे हैं, औरत का Nomination कर रहे हैं। Equal हम लोग हैं पर Similar नहीं, बच्चे ही पैदा नहीं होते। जर्मनी में माइनस है, अमरीका में माइनस है, गोरे लोग माइनस अलग-अलग हैं। अपनी व्यवस्था अलग है। सब जगह ये क्यों माइनस हैं? क्योंकि आर उसकी अलग है। पर जो मैंने देखा है इन लोगों में मातृत्व नहीं है। अब धीरे-धीरे North India में बहुत ही बुरी हालत औरतों समझ रहे हैं इस बात को। मातृत्व न होने से की है। उनको कोई मानता ही नहीं । मैंने बच्चे क्यों पैदा होंगे? वो तो ऐसी जगह पैदा खुद ये देखा है कि औरत की कोई इज्जत नहीं और हर तरह से उसको परेशान किया जाता है। सो ये इसको बदलने का हम सोच लेकिन उसी के साथ-साथ मैं सोचती हैं रहे हैं। काफी प्रयत्न करना चाहिए। ये दूसरा होंगे जहाँ प्यार मिले, उन्हें कोई संवारे। कि हिन्दुस्तान के आदमियों को औरत की सृजन का कार्य है किसी का नाश करने का इज्जत करनी है और उसको प्यार करना नहीं, सृजन का कार्य है अगर ये हो जाए. है। ये बहुत जरूरी है क्योंकि आप लोगों को ये सृजन का कार्य बन जाए तो हमारी भारत थोड़े दिन में ये हो सकता है कि भारतवर्ष भूमि जो है शस्य श्यामलाम् हो जाए। हमें প मार्च -अप्रै ल 2001 5 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 इसके लिए कायदे कानून बनाने की जरूरत नहीं, अन्दर से ही हमें ये समझना चाहिए। स्त्री जो है ये देवी के ही लक्षण में है अब वो इस तरह से देवी के अनेक स्वरूप हमारे शास्त्रों में वर्णित हैं और वो सब बिल्कुल सही हैं। उनमें कोई ब्रुटियाँ नहीं हैं, गलती नहीं है पर इसकी गहनता समझने के लिए अगर कुछ खराब हो तो दूसरी बात है । पर स्त्री एक देवी है और उसकी इज्जत करना , सहज में उतरना पड़ेगा। वो vibration से आपको पता लगेगा और उसमें discrimin- उसको सम्भालना और उसको हर तरह मदद ation आप देखेंगे कि हरेक शक्ति के अलग करना, ये हरेक पुरुष का कर्त्तव्य है। पर ऐसे होता नहीं है। पुरुष हमेशा ऊपर में जमा viberation है। ये बड़ी सूक्ष्म बात है, इसलिए ये जितनी आपकी प्रगति होगी उतनी ही आप समझ पाएंगे। उसका मतलब नहीं कि रहता है। हरेक मामले में। उसके पास बद्धि ज्यादा होती है पर हृदय तो स्त्री के पास होता है। इसलिए कोशिश ये करनी चाहिए अब आप उसी में लगे रहिए, मतलब ये है कि स्त्री का मान रखा जाए। स्त्री को भी कि आप सिर्फ ध्यान धारणा से अपनी गर সक्ति बढ़ाएं और अपने को उस स्तर पर समझना चाहिए कि जब तक वो देवी स्वरूप । उतार लें तो आप खुद ही समझ जाएंगे कुछ हो हैं तब तक ठीक है पर वो गर और जाती है तो उसका क्यों मान किया जाए?े इसीन का देखते ही आप समझ जाएंगे कि इसलिए उसमें भी ये गुण विशेष आने चाहिएं और उसमें भी ये बात आनी चाहिए। गर ये कैसा आदमी है। एकदम वो ज्ञान, एकदम आ जाएगा क्योंकि हम ज्ञानवादी हैं और हमारी नसों में ज्ञान आ गया है। तो ये सब किसी स्त्री में ये गुण नहीं है तो उसको आप छोड़ दीजिए उसको आप अलग हटा दीजिए पर जिसमें हैं उससे ठीक बर्ताव करें। अधिकतर क्या देखा जाता है कि जो जबरदस्त औरतें हैं उनकी पूजा होती है और उसके साथ ही साथ Introspection । और जो बेचारी अच्छी हैं उनको लोग लताड़ते मैं क्यों कर रही हूँ, इसे मैं ऐसे क्यों कर रहा हैं। तो अपने को अपने जो अच्छे सहज हैँ? मुझे ऐसे क्या करना है? अपने ऊपर आदर्श हैं एक अच्छे पति पत्नी बनना चाहिए ध्यान होना चाहिए, दूसरे का नहीं क्योंकि और आपस में बहुत प्रेम और आपस में बहुत उसका कोई फायदा नहीं होने वाला। आपने understandings होनी चाहिए। तभी तो अपने को ठीक करना है. तभी दूसरे की सहजयोग असली फलेगा, नहीं तो नहीं फल पता हो जाएगा। पर उसके लिए ध्यान करना बहुत ज़रूरी है और कोई इसका मार्ग नहीं है कि आप बड़े पूजन करिए भजन करिए और ये करिए। कुछ नहीं, ध्यान करना चाहिए आप त्रुटि ठीक कर सकते हैं। तो अपने ऊपर ध्यान होना चाहिए कि मैं क्या कर रहा सकता। मार्च अप्रैल 2001 6 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 हूँ, ऐसे क्यों सोच रहा हूँ, मेरे दिमाग में ऐसी देखना है और दूसरे ये कि कहाँ तक मैं प्रेम बातें क्यों आती हैं? अपनी तरफ ध्यान होना करता हूँ? कहाँ तक मैं शुद्ध हैँ? कहां तक मैं चाहिए और दूसरे की तरफ प्रेम दृष्टि होनी अहंकार से बचा हूँ? ये अगर आप देखने चाहिए। प्रेम की दृष्टि कि मैं तो प्रेम में बैठा लग जाएं तो धीरे-धीरे सभी दोष भाग जाएंगे, हूँ और अन्दर मेरे क्या प्रेम हो रहा है सबके जैसे अगर कोई दुष्ट आदमी समझ लीजिए लिए? मैं सबको प्रेम दृष्टि से देखता हूँ? मैं आपके घर में आए आपकी उसके ऊपर सबको माफ कर देता हूँ? इस तरह से दो नजर पड़ी तो वो भाग जाएगा कि नहीं? चीज हैं- एक तो ध्यान और एक उसी प्रकार ये जो बैठे हैं घुसपैठ करने वाले, आत्मावलोकन, जिसे कहते हैं। तो ये दो ये सब भाग जाएंगे यदि आपintrospection चीज़ों से मनुष्य की प्रगति होती है। माने करें पर अगर आप अहंकार में, 'मैं तो ठीक एक तो ध्यान वो तो बात सही है कि ध्यान हैं मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ ऐसे चले तो यही से आप अपने अन्दर और चैतन्य अन्दर लेकर सफाई करने की जरूरत है। यही निर्मलता, के और बढ़ते हैं, और अपने अवलोकन अपने introspection से भी आप अपपन अन्दर और कण्डलिनी तो अपना कार्य कर ही रही के जो obstacles हैं उनको निकाल देते हैं। है वही आपको छुड़ाएगी। ये तो कोई कह जैसे एक नदी का प्रवाह बह रहा है, अब से यही स्वच्छता अन्दर आने की जरूरत है नहीं सकता कि हम छुडाएंगे लेकिन आपकी दृष्टि पड़ते ही आपकी वो जो बातें हैं दौड़ जाएगी। अब किसी को थोड़ी-थोड़ी लोलुपता उसके अन्दर बहुत से पत्थर हैं. कुछ हैं, तो ा प्रवाह ठीक से बह नहीं सकता। गर वो पत्थर क्या हैं आप देखते हैं और निकाल लें तो कुण्डलिनी का प्रवाह बिल्कुल ं होती है जैसे सत्ता मिल गई फिर भी रूके में बह सकता है और बहेगा। इसके बाद नहीं। तो चाहते हैं फिर और कोई सत्ता यही बात है। आप स्वयं ही इसको महसस करेंगे। इसकी प्रचीती होगी कि आप एकदम हैं- इसका कोई अन्त नहीं होता। और गर बड़े जोरों मिले। फिर उसके पीछे दौड़ रहे हैं, दौड़ रहे | स्वच्छ हो गए, अब कुछ रहा नहीं आपमें. ये चीज आपके नजर में आ जाए कि मैं तो एक दम स्वच्छ हो गए। वो चीज़ अन्दर से पागलों के जैसे दौड़ रहा हूँ, ये सत्ता के पीछे आने से उसमें एक तरह से मैं कहती हैं में, इसमें क्या है? बेकार है। शान्ति से बैठे ध्यान तो आप लोग करते हैं, ये मुझे मालूम जो मिलता है उसका उपभोग हो। अब दौड़ है, लेकिनintrospection अपने बारे में सोचना रहे हैं, दौड़ रहे हैं। जो मिला है उसको भी चाहिए। उसमें आलोचना करने की जरूरत नहीं भोग रहे, उसका भी नहीं आनन्द उठाया नहीं अपनी, लेकिन उसको साक्षी भाव से और दूसरे के पीछे भागे और दूसरे के पीछे | वैतन्य लहरी खंड-XllI अंक 3 वे 4 मार्च-अप्रै ल 2001 7 जब ये दशा आ जाएगी जिसको मैं मानते ही हैं ठीक है। लेकिन हम आपको सहजावस्था कहती हूँ तो सहजावस्था में मनवाते हैं और लोगों को इनको भी मानो, सारी दैवी शक्तियाँ जितनी हैं आपके चरणों उनको भी मानो उनको भी मानो। लेकिन मे आ जाएंगी। आपको सम्भालेगी, आपको गर हमें न मानते होते, किसी भी अवतरण गाइड करेंगी, आपको वरदान देंगी। सारी को मानते होते, क्राइस्ट को ले लें, तो उन्होंने चीजें आ जाएंगी। पर सहजावस्था आनी कहा तो है कि हम आपके पास भेज देंगे चाहिए। उसमें मैं ये करने वाला हूँ मुझे करना चाहिए मुझे ये करना है, वो करना है, ये जब शुरू रहता है तो मैं कहती हैँ कि अभी सहजावस्था नहीं है। और जब सहजावस्था ऐसा एक अवतार, और ऐसी आदिशक्ति आएंगी (Holy Ghost Wouid come) आखिर गर बो अपना कार्य पूरा कर गए होते तो काहे को कष्ट उठाते। मोहम्मद साहब ने भी कहा, सबने ये क्यों कहा कि उद्धरण संसार का होने वाला है। मानो उन्होंने भविष्य की बात करी, इसका मतलब ये होता है, है वो सारी शक्तियाँ हर पल हर तरह से सीधा- सीधा. कि उन्होंने जो भविष्यवाणी कही मदद करेंगी। जिसकी जो जरूरत होती है बो इसलिए कि वो जानते थे कि अभी समय वो पूरी करती है हरेक शक्ति में कोई न कोई नहीं आया है कि इनको हम पूर्णता में ले ऐसी विशेषता है और इसलिए शक्ति की हम जाएं. पूर्ण में ले जाएं और उनकी पूर्णता आने लोग पूजा करते हैं और उसको मानते हैं। के लिए स्थिति आने वाली है, ये कह देने से किसी भी अवतरण से ज्यादा हम शक्ति को ये बता देने से कि आपकी ऐसी स्थिति आने मानते हैं, सब लोग। उसका कारण ये है कि वाली है। कोई न कोई ऐसे आने वाले हैं और शक्ति ही हमको अवतरण की ओर अग्रसर उसके लिए आप सिर्फ अपना जो चित्त है ां आई तो जैसे छोटा एक बच्चा पालने में पल जाए ऐसे ही माँ की शक्ति के स्वरूप में वो बैठा है और ये जितनी भी शक्तियों का वर्णन 1 करती है, उसी की दृष्टि से हम अवतरण को साफ रखें और परमात्मा को याद करें रस्ता पहचान सकते हैं नहीं तो हम पहचान नहीं सकते इसलिए शक्ति ही है. आपकी गुरु शक्ति ही आपकी माता है और शक्ति ही बता देते हैं। लेकिन किसी ने सामूहिक चेतना नहीं दी चेतना भी बहुत कम लोगों को है। जिसकी वजह से वो चीज अब आप लोगों ने आपकी अगुआ है। इसलिए और किसी को मानने की जरूरत नहीं। जब एक बार शक्ति को आपने मान लिया तो शक्ति सबको मनवा प्राप्त की है। अब आपको तो बहुत जोरों में इसमें प्रगति करनी चाहिए। बस दो ही चीज़ तो करनी है, एक तो ये कि ध्यान करना है लेगी, सबको समझा देगी। और अब आपने और एक introspection और उसमें तीसरी सहज में देखा है अब आप लेाग सब हमें तो चीज़ जो है जब आपको जो उसमें होगा चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 8 मतलब सौन्दर्य दृष्टि आ जाएगी हरेक आनन्द उठाना सीखना ये शक्ति का ही आदमी की सुन्दरता दिखाई देगी, उसकी काम है। शक्ति आनन्द में ही है, आनन्ददायी अच्छाई दिखाई देगी। कितना भी आदमी है और जब ये आनन्द आने लगेगा तब आप आपसे दुष्टता से व्यवहार करे तो समझ में देखिएगा कि आप समझ जाएंगे कि अब तो आएगा नहीं। इनमें ये बात जरूरी थी। ये हम हो गए सहज। तो ये सहजावस्था है कि सीखने की बात है। तो आपकी नजर बुराई दृष्टि ही आपकी गलत चीजों पर नहीं जाएगी। से उठकर के अच्छाई पर जाएगी और जब क्या फायदा? क्योंकि आपको कुछ सीधा अच्छाई पर जाएगी तो आप अच्छाई संहार नहीं करना है, वो तो देवी का काम है, अपनाएंगे। लेकिन आपकी बुराई पर नजर आपको नहीं करना है। तो सारी दुनिया का रहेगी तो आप कैसे अच्छाई अपना सकते जो आनन्द अलग-अलग जगह छिपा हुआ ब 1 हैं? इसलिए ये जो स्थिति है जिसमें कि है उसका आकलन, उसका उपभोग लेना आप, मैंने कहा कि आप, अपने को भी आपके नसीब में है। इसलिए आज के दिन आत्मनिरीक्षण करें। गर आपमें सुन्दरता है क्योंकि आज मैंने बताया पहला दिन है. तो आपको अपने ही से आनन्द आएगा। गर उनका शैल पुत्री का और उन शैल पुत्री का आप दूसरों में देख रहे हैं तो और आनन्द मतलब ये भी होता है कि उनकी अवलोकन आएगा। तो सुन्दरता ही देखने के लिए है। शक्ति, क्योंकि हिमालय में पैदा हुई। हिमालय आदमी की अच्छाई देखनी चाहिए और उसमें सबसे ऊँचा पर्वत है और वहाँ से सारी दुनिया फिर आपको आश्चर्य होगा कि हरेक आदमी का अवलोकन, मतलब उनकी दृष्टि सब पर में कोई न कोई खूबी तो है ही। लेकिन पड़ने दीजिए पहले शैल -पुत्री का दिन वो उसका मज़ा कोई नहीं उठा सकता। अब सब देख लें है क्या? छोटे बच्चों को भी देखिए, सबको देखते हैं ये कौन हैं? वो कौन हैं? वो कौन है? उसी तरह शैल पुत्री का कार्य है और उस पर से और भी नाम है। शैलजा। ये वो हैं। पर जो अपने यहाँ ग्रन्थों े एक फूल है। फूल के अन्दर सुगन्ध है। लेकिन गर आपके पास नाक ही नहीं हो तो आप सुगन्ध कैसे लेंगे? ऐसी बात कि आपके अन्दर वो हृदय होना चाहिए जो उस प्यार जैसे को, उस महत्ता को, उस बड़प्पन को समझ में माना जाता है नवरात्रि जो चैत्र की नवरात्रि सके और उसको आप अपनाइए। तो जितना है उसमें जो पहले देवी का अवतरण हुआ वो वो आदमी अपने को नहीं आनन्दित कर हैं शैल पुत्री। हर जगह चैत्र की, जिसको सकता आप कर सकते हैं। उसमें जो छिपा बहुत मानते हैं, जैसे बिहार में आपके यहाँ हैं उसको आप जान सकते हैं और हुआ छठ होती है षष्ठी के दिन षष्ठी के दिन उसका आनन्द उठा सकते हैं। सो दूसरों से वहाँ होती है छठ। वो ये इस दिन में से है। मार्च-अप्रै लं 2001 9 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 अब गायत्री मंत्र भी बहुतRight Sided आदमी कि वो सरल हृदय लोग थे तो वो यही को नहीं कहना चाहिए क्योंकि Right side चीज देखते थे, इसको ही प्रप्त करते थे की Powers उनको तनाव की ओर ले जाती और प्राप्त किया। उनके हृदय में शक्ति थी है। उससे अच्छा Left side के मंत्र कहें जो ग्रहण करने की। अब हम लोग जरा बंट गए बहुत Right sided हैं| जो Left sided है वो है IRight sided हो गए है। तो भी सहजावस्था right side के मंत्र कहें। इस तरह सेBalance प्राप्त होनी चाहिए। सहजावस्था का जो आनन्द है उतना उनको नहीं आनन्द आया आ जाएगा। तो मतलब, ये समय आनन्द- विभोर होने का है। इतना बड़ा महत्वपूर्ण होंगा जितना वो आपको आएगा चैती के समय है और हमारा भी जन्म ऐसे ही समय गाने सुन के। बड़ा आनन्द आएगा. इतना में हुआ था। कमाल तो ये है कि इसके बाद, उनको नहीं आएगा। हो सकता है उनमें हमारे जन्म के बाद नबरात्र भी यहीं से शुरू इतनी आकलन शक्ति नहीं पर आप लोग थे और हमारे जन्म के बाद ही नवरात्र बड़े आनन्द से उसको सुन सकते हैं तो ये हुए शुरू हुए थे। सो इसके बड़े कमाल के बड़ा विशेष है और सबसे विशेष ये है कि combinations हैं। तो 21 मार्च के बाद ही विक्रमादित्य ने जब उसे स्वीकार किया तो नवरात्र आता है उससे पहले नहीं । इस प्रकार इस चैत्र की जो है बड़ी कमाल है माना, कि इसी से शुरू करना है। माने एक और अपने यहाँ चैत्र वगैरा ऐसे गाने भी होते तारीख, ये इसको अक्षय तृतीया ही नाम रख इसी को ये जो है तृतीया, इसी को उसने हैं। उसका एक ढंग होता है गाने का, चैती दिया। अक्षय तृतीया से ही उन्होंने अपने गाना। क्योंकि क्या है कि पहले के साधु सन्तों ने कवियों ने और बहुत सारे गायकों ने जब चैत्र की वो खुशियों को पाया तो वो शुरू करे कलैण्डर। वैसे ही शालिवाहन ने जो सवतसर बनाया, वो भी इसी तारीख से। आखिर उन्होंने और इन्होंने भी, इनकी तारीख एक जो है दोनों की । आश्चर्य की बात हैं क्योंकि इसमें विक्रमादित्य का राज्य था उसमें स्वर में बंध गया तो वो गाना शुरू हो गया। चैत्र का आनन्द जो है कि गाँवों में बहुत उन्होंने शालिवाहन ने Attack किया। उनको हराया बो तो बब्रुबाहन उनके मतलब मानते हैं चैत्र को। उस वक्त जो गाने आप सुनिए ऐसा लगता है कि अन्दर से उन्माद है, उत्साह और बहुत प्यार और आनन्द का उसमें अभिभाव है। तो वो इन देहाती औरतों में कहाँ से आया? देहात के लोगों में कैसें शालीवाहन शायद उनको हराया और उसके बाद उन्होंने बनाया ये शालीवाहन का शक और इस शालीवाहन के शक की जो पहली तारीख है वो भी अक्षय तृतीया है और उनकी भी जो पहली तारीख है वो भी अक्षय तृतीया आया? वो इतनी सुन्दर कविताएं लिखते हैं, इतनी सुन्दर कि वो कहाँ से आया? वो ये ही चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 10 है। बड़े आश्चर्य की बात है। और मुसलमानों से कहा जाए? अब मेरे लिए तो रोज़ ही प्रश्न का जो हिजरी होता है न वो भी यही है। है कि अब वो आ रहे हैं तो उनसे क्या कहेंगे? वो आ रहे हैं तो उनसे क्या कहेंगे? इनको कैसे समझाएंगे? लेकिन ये शक्ति जो first यही है वो। सबने इसी तारीख को माना firstऔर पारसी भीनवरोज कहते थे। कारण हैं प्यार की, ये जब हम देखते हैं चारों तरफ प्यार ही प्यार, आनन्द में है इस सबमें देखते हैं हर जगह प्यार ही प्यार है। तो वो प्यार हमारे अन्दर समा जाता है। ये आदान प्रदान करो वो सफल हो जाता है और खास कर से है और फिर उसके बाद उस प्यार से ही क्या? कारण ये कि एक ही शक्ति से प्रेरित लोग थे। तो उन्होंने इसी दिन को माना । ये बहुत महत्त्वपूर्ण है और इस दिन जो भी कार्य लोग कुछ गर विशेष कार्य करना है तो आप सबसे बात करें। सहजयोगियों को चाहिए उसको आज के दिन करते हैं क्योंकि आज किसी पर बिगड़ें नहीं, किसी से नाराज़ नहीं का दिन सबसे ज्यादा, सबसे ज्यादा पुण्य हों, वो मेरे पर छोड़ दें। शान्ति पूर्वक सब से Auspicious दिन है। तो बड़ी खुशी की बात मिलो एकदम सात्विकता आपके अन्दर आनी है कि आप सब लोग आए यहाँ और इसके चाहिए लोगों को समझना चाहिए कि आप बहुत सात्विक हैं और आपके अन्दर कोई घृणा क्रोध आदि नहीं। तब लोग समझेंगे ये बारे में हम लोगों ने इतना जाना। तो आज हम लोगों को अपने अन्दर यही बहुत जरूरी है। अब तो आप लोग पार हो निश्चय कर लेना चाहिए कि हम लोग रोज गए, सब कुछ हो गया। अब जो आगे का ध्यान करेंगे और उसी के साथ intro- spection | जब सोचेंगे तो अपने ही बारे में वो मैं बता रही हूँ। आशा है आप लोग इस दूसरे के बारे में नहीं। अपने बारे में सोचेंगे चीज का अनुसरण करेंगे और इसको अपने और फिर उसको किस तरह से मधरता से अन्दर की जो Introspection है उसको प्रेम हम अपना जीवन बिता देते हैं। बात करने से, अपने को भी प्रेम से देखना चाहिए. में, किसी से व्यवहार में हम उसको किस hatred से नहीं और फिर आपको समझ में तरह से मधुरता से हम अपने विचारों को आ जाएगा कि अरे मैं क्यों मैं ये कर रहा हैँ? प्रकट करें। ये सब सीखना चाहिए। जिससे हम किसी को नहीं दे सके, जिससे सात्विकता आ जाएगी। आदमी बड़े सात्विक तकलीफ न हो। उल्टे ही जो कुछ कहना है हो जाएंगे। इसी प्रकार से सहजयोग बहुत बो कहो। कभी-कभी जरूर कहना पड़ता है सुन्दर हो जाएगा और मेरा जो ये स्वप्न है जोरों में, पर अधिकतर जिससे आप कह रहे कि सारी दुनिया में इतने सहजयोगी हो हैं उसको ये हमेशा एहसास होना चाहिए कि जाएं कि दुनिया ही बदल जाए। तो अनन्त कार्य है उसके लिए जैसा व्यक्तित्व चाहिए जाने दो, छोड़ो। इस तरह से आदमी में एक दुख आशीर्वाद ये प्यार में कहा जा रहा है। तो उस प्यार में ही आपको बोलना चाहिए तो वो किस तरह सबको अनन्त आशीर्वाद चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च अप्रैल 2001 11 भारतीय राजस्व सेवा अधिकारी सम्मेलन दिल्ली 17.4.2000 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन सभी सत्य साधकों को मेरा प्रणाम! है कि आपके जीवन में क्या समस्या है? मैं अभी-अभी आपको सहजयोग के लाभ के स्वयं एक सरकारी अधिकारी की पत्नी हूँ विषय में बताया गया। परन्तु सहजयोग के और भली-भांति जानती हूँ कि सरकारी प्रभाव हम पर कहीं अधिक गहन और अधिक अधिकारियों के साथ क्या समस्याएं होती होते हैं। वास्तविकता ये है कि हम लोग हैं? इन समस्याओं को केवल वही व्यक्ति स्वयं को नहीं जानते, स्वयं के प्रति हम समझ सकता हैं जो सरकारी सेवा में रत चेतन नहीं हैं। हमें ये जानना होगा कि हम रहा हो। सबसे पहली चिन्ता जो हम लोगों है कि किस प्रकार हम कौन हैं. तब सभी शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक समस्याओं का मानसिक को होती है वह यह इस नौकरी में बने रहें? इस संस्था के अच्छे कारण हम जान पायेंगे। ये समझ लेना अत्यन्त सदस्य बने रहने के लिए अपने स्तर पर हम महत्वपूर्ण है कि हमें कितना सुन्दर बनाया गया है । मानव शरीर की रचना बहुत ही करने का प्रयत्न करते रहें, किसी न किसी सुन्दरतापूर्वक की गई है और यदि आप स्तर पर आकर आप महसूस करते हैं कि चिकित्सा विज्ञान पढ़े तो आप जान जाएंगे इसे न तो समझा गया है और ने ही इसका कि कितनी भली -भांति इसकी देखभाल की कोई पुरस्कार दिया गया है और न ही लोगों गई है। आप हृदय को लें या किसी अन्य ने इसके लिए आपको उत्साहित किया है। अवयव को, परन्तु हम लोग कई बार इसे ऐसी स्थिति में यह बहुत निराशाजनक बात बिगाड़ देते हैं. संभवतः इसलिए कि हमें हो जाती है क्योंकि अत्यन्त ईमानदारीपूर्वक क्या करें? आप जो भी करें, जो भी कुछ इसका ज्ञान नहीं है या इसलिए क्योंकि हम हम कठोर परिश्रम कर रहे होते हैं। वास्तव में अपनी ईमानदारी के कारण सरकारी अधिकारियों को काफी कष्ट उठाने पडते आज जब मैं आप लोगों की इतनी हैं इन कष्टों को मैं जानती हैँ तथा ये भी सम्माननीय सामूहिकता के सम्मुख बोल रही कि किस प्रकार उन्हें सहा जाए? इसके हूँ, मैं सोचती हूँ कि ये बताना बहुत आवश्यक बावजूद भी जब आपको एक प्रकार का नहीं जानते कि हम अपने लिए क्या करें? चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 12 अपमान या तिरस्कार सहना पड़ता है तो दिन भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों आप कई बार बहुत ही निराश और हतोत्साहित के सम्मुख बोलते मैंने बताया कि मेरे हो जाते हैं । हुए पति आरम्भ में भारतीय विदेश सेवा में चुने गए थे। मैंने उन्हें स्पष्ट बता दिया कि मैं हमें ये जानना है कि हम हैं क्या? एक विदेश नहीं जाऊंगी। अभी-अभी तो हमें बार जब हम ये जान जाएंगे कि हम क्या हैं तो हमें ये सब निराशा आदि न होगी। हम स्वतन्त्रता प्राप्त हुई है और आप विदेश जाना चाहते हो! फिर हम शराब नहीं पीते, वहाँ पर केवल सर्वसाधारण मानव ही नहीं हैं, नहीं! हम पशु नहीं हैं। हम तो अत्यन्त विशिष्ट हम पार्टियाँ कैसे करेंगे? मुझे विदेश सेवा से लोग है जिन्हें विशेष कार्य सौंपा गया है। कुछ नहीं लेना देना। आपको जाना है तो इसका प्रतिकार करने के लिए सबसे पहली चीज जो मैं सुझाऊंगी वो ये है कि आप अपने देश से प्रेम करें। इन लोगों ने आपको मेरे माता-पिता के विषय में बताया है, मैंने देशभक्ति देखी है । किस प्रकार उन्होंने देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। चले जाएं। मैं भारत में ही रहूँगी मेरी प्रतिक्रिया पर वो बहुत हैरान थे। उन्होंने कहा, "मैं भारतीय प्रशासनिक सेवा में आने का प्रयत्न करूँगा " और सौभाग्य से उन्हें ये नौकरी मिल गई चाहे इसके लिए उन्हें वेतन में कुछ हानि ही हुई। मैं बहुत प्रसन्न थी कि यही समय है जब हम देश को बना सकते हैं। उनके सरकारी अधिकारी होने के कारण लोग स्वतन्त्र हैं। आनन्द लेने के लिए हम कुछ न कर पाई। परन्तु उनके आज हमारी स्थिति कहीं बेहतर है । हम निःसन्देह मैं स्वतन्त्र हैं, जबकि इन लोगों को बहुत कष्ट माध्यम से मैं देख पाई कि हम बहुत से कार्य उठानें पड़े। मेरी माताजी पाँच बार जेल कर सकते हैं। इसके लिए मुझे कुछ करने गई। पिताजी जेल गए और कई बार तो की या अपने विचार देने की आवश्यकता ढाई-ढाई साल के लिए । हमारा बहुत बड़ा परिवार था फिर भी हमने इस सारे संघर्ष का बहुत आनन्द लिया। हमने इसका आनन्द इसलिए लिया क्योंकि हम जानते थे कि हम सेनानी हैं, देश की स्वतन्त्रता के लिए युद्ध करने वाले सिपाही। अब वह संघर्ष समाप्त नहीं है । वो स्वयं इस कार्य को कर सकते हैं और जिस प्रकार उन्होंने कार्य किया और जिस प्रकार कार्य में व्यस्त हुए वह आश्चर्यजनक था । जब तक हम यहाँ रहे उन्होंने एक छुट्टी भी नहीं ली। एक दिन के लिए भी नहीं। शास्त्री जी को ये लगा कि वे 1 हो गया है, स्वतन्त्रता के लिए हमें युद्ध नहीं अपना पारिवारिक जीवन बलिदान कर रहे करना। परन्तु अब हमें ये समझना है कि हैं। परन्तु ऐसा कुछ भी न था। मुझे कभी भी देश को दृढ़ करने का यही समय है। उस ऐसा नहीं महसूस हुआ। मैंने हमेशा यही मार्चअप्रै ल 2001 13 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 सोचा कि भारतीय होने के नाते देश को दृढ़ से पूर्ण। परन्तु आज हम लाग इन सारी करके शानदार बनाना हमारा कत्त्तव्य है। उपलब्धियों से कट गए हैं और यही कारण ऐसा हम कर सकते हैं क्योंकि हम अत्यन्त विवेकशील लोग हैं। है कि हम नहीं जानते कि अपनी इस मातृभूमि में क्या विशेषता है और हम क्या प्राप्त कर सकते हैं? एक दिन वो आएगा कि जब पूरा विश्व आप देखिए कि किस प्रकार लोग इसे व योग भूमि की पूजा करेगा । इंटरनेट और सॉफ्टवेयर के युग में प्रगति कर रहे हैं! मुझे ऐसा लगता है कि अब सरस्वती और लक्ष्मी परस्पर सहयोग करने शक्तियाँ हैं, मैं इन्हीं के विषय में आपको लगी हैं और इसी सहयोग का परिणाम लोगों बताऊंगी। आप हैरान होंगे कि प्रचीन काल इस जैसा बताया गया है कि हमारे अन्दर ये में दिखाई दे रहा है। अब समय आ गया है से ही इस देश को इस ज्ञान के विषय में जब हमारा देश आर्थिक शक्ति के रूप में जानकारी थी परन्तु बर्तानवी तथा अन्य विकसित हो सकता है। परन्तु चीजें यहीं साम्राज्यों के कारण ये सारा ज्ञान लुप्त हो नहीं समाप्त हो जातीं। चाहे आपका आर्थिक गया उन लोगों ने इस ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया। परन्तु उस समय भी नाथपन्थी लोग यहाँ थे। वे जानते थे कि स्तर बहुत ऊँचा हो या आप तकनीकी रूप से बहुत विकसित हों फिर भी यदि आप अत्यन्त विकसित देशों की ओर देखेंगे तो आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने का एकमात्र मार्ग जान जाएंगे कि ये देश सुखी नहीं हैं, वहाँ न शान्ति है न प्रेम। बड़ी अजीब स्थिति है कि धन के लिए कुछ भी नहीं खरीद सकता। ये कुण्डलिनी जागृति है। परन्तु लोगों के लिए आत्मसाक्षात्कार का विचार इतना सीमित था निरर्थक था कि लोग इसे नहीं पाना चाहते थे। कहते थे कि इसके लिए आपको अब हमारे सम्मुख समस्या ये है कि हमें इस बात का पता लगाना है कि हम चाहते क्या अपने परिवार त्यागने होंगे, सम्पत्ति त्यागनी हैं? इसके लिए हमारे सृष्टा ने पहले से ही होगी और सभी कुछ त्यागना होगा। आपको सब प्रबन्ध किए हुए हैं। अपनी उत्थान प्रक्रिया, सब लोगों से दूर हो जाना होगा, किसी अपने विकास, अपने पुनरुत्थान की तरफ सम्बन्धी से केवल एक कदम ले लेने से ही समस्याओं प्रकार के अटपटे विचार लोगों के मस्तिष्क का समाधान हो जाएगा। हममें ये योग्यता में आ गए और उन्होंने इन विचारों का खूब सम्बन्ध न रखना होगा। इस है। हम वास्तव में चुने हुए लोग हैं। वास्तव में इस देश के लोग। ये इतना महान देश है। ये योगभूमि है, दिव्यता और चैतन्य लहरियों प्रसार किया। इस प्रकार की सोच ने वास्तव में हमारे अन्तःस्थित वास्तविकता को नष्ट कर दिया, क्योंकि यह कहना यह त्याग दो, ho चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च -अप्रै ल 2001 14 वह त्याग दो तथा इस प्रकार के मूर्खतापूर्ण बात की। कबीर दास ने कहा, "ईडा. पिंगला, विचार नहीं होने चाहिए। आप कुछ भी नहीं सुखमना नाड़ी रे, शून्य शिखर पर अनहद् त्यागते, सभी कुछ ज्यों का त्यों होता है । बाजे रे । बाहर से आपको एक अहसास होता है कि आपने यह सब गुरु को दे दिया या किसी और को और इस प्रकार आत्मसाक्षात्कार के किसी ने भी न समझा कि वे क्या कह रहे हैं? उन्हें पढ़ते जाने से, पढ़ते जाने से आप कहाँ पहुँचेंगे? आदिशंकराचार्य ने भी प्रार्थना साथ यह सब चीजें जुड़ गई हैं। की कि हे माँ! कृपा करके किसी भी तरह से मेरे मस्तिष्क से इस अज्ञानान्धकार को दूर आपको कुछ भी नहीं त्यागना पड़ता। आप जैसे हैं कुण्डलिनी आपके अन्दर विद्यमान कर दीजिए। मैं तो शब्दों के जाल (शब्द- है। वे आपकी माँ हैं. आपकी व्यक्तिगत माँ। जालम) में फँसा हुआ हूँ कृपा करके मेरे अन्दर से ये शब्द जाल समाप्त कर दीजिए इन सभी ने यही कहा है। कबीरदास ने कहा, "पढ़ि पढ़ि पण्डित मूर्ख भए। तो आप यदि शास्त्रों को पढ़ते रहेंगे तो भी कार्य न होगा। वैज्ञानिक तथा बौद्धिक दृष्टि से आप केवल आप ही उनके बच्चे हैं। आपको कुछ भी त्यागने की जरूरत नहीं क्योंकि वे आपकी देखभाल करती हैं और आपको पुनर्जन्म देने वाली हैं। आपकी माँ ने जब आपको जन्म दिया था तो क्या उन्होंने कोई कष्ट आपको दिए? सभी कष्ट स्वयं सहकर वे आपको कहेंगे कि ये सब बकवास है। किसी ने भी विश्व में लाई। इसी प्रकार आपको पूनर्जन्म यह खोजने का प्रयत्न न किया कि इन सब देने के लिए, द्विज बनाने के लिए आपके लोगों ने जो कहा उसमें क्या सच्चाई है। अन्दर माँ को स्थापित कर दिया गयाहै। वे आज भी इन सब सन्तों का सम्मान किया : आपके अन्दर विद्यमान हैं और वहीं आपको जाता है परन्तु कोई भी गहनता में जाकर ये आत्मसाक्षात्कार दे सकती हैं। केवल मैं ही नहीं देखना चाहता कि इन्होंने जो लिखा आपको ये बात नहीं बता रही. विश्व के सभी उसका सारतत्व क्या है? सन्तों ने आपको यह बात बताई है। बारहवीं गुरुनानक ने कहा, "सहजसमाधि लाओ"। उन्होंने स्पष्ट कहा, "सहज रूप से स्वतः सन्तों ने यही बताया। परन्तु उससे भी पूर्व आप इसे प्राप्त करो।" लोगों को समझना मार्कण्डेय ऋषि ने इसकी बात की। इन चाहिए कि ये सभी कर्मकाण्ड, ये सभी आडंबर, लोगों के विषय में हम कुछ भी नहीं जानते। जो इन लोगों ने त्याग दिए थे, व्यर्थ हैं। सोलहवीं शताब्दी में गुरुनानक देव और श्री सोलहवीं शताब्दि में बहुत से सन्त हुए जिन्होंने कबीरदास आए और कुण्डलिनी जागृति की कुण्डलिनी की बात करनी चाही, परन्तु उन्होंने शताब्दि में ज्ञानदेव तथा उस समय के अन्य ho चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 मार्च-अप्र ल 2001 15 अपनी बातों को पद् में लिखा क्योंकि कविता (स्पष्ट हो गया)।" इस अज्ञात को उन्होंने अभिव्यक्ति का सुरक्षित माध्यम है। अन्यथा ऐंठन क्षेत्र (Torsion Area) का नाम दिया| लोगों ने उन्हें धमकाया होता, पीटा होता यह क्षेत्र हमसे बहुत परे है, हमारे मस्तिष्क और क्रूसारोपित कर दिया होता। अत: उन्होंने से ऊपर का क्षेत्र है। प्रायः हर समय हम सोचा कि गद्य (Prose) में लिखा ही न जाए, अपने मस्तिष्क से प्रतिक्रिया किए चले जाते पद्य में लिखना ही ठीक है। परन्तु पद्य को हैं। कुछ भी कहकर आप प्रतिक्रिया करते हैं। कभी हम भद्दी चीजों को लेकर प्रतिक्रिया किए बिना पढ़ने से भ्रम की स्थिति उत्पन्न करते हैं, कभी हम आक्रामक चीजों को लेकर हो रही है अतः पहले आपको ज्ञान प्रतिक्रिया करते हैं । किसी न किसी चीज़ (आत्मसाक्षात्कार) प्राप्त करना होगा। को लेकर आप प्रतिक्रिया करते हैं। उदाहरण सहजयोग ज्ञानमार्ग है जहाँ आपको ज्ञान, के रूप में मेरे सम्मुख यहाँ इन तीन सुन्दर पूर्ण ज्ञान, किताबी ज्ञान नहीं, प्राप्त होता है। पात्रों में पुष्प रखे गए हैं। अब लोग कहेंगे, कैसे? जब आपकी कुण्डलिनी उठती है तो हे परमात्मा! पता नहीं इन लोगों ने कितने वह आपके ब्रह्मरन्ध्र का भेदन करती है। पैसे खर्च किए होंगे परमात्मा जानते हैं "शून्य शिखर पर अनहद बाजे रे कहा गया उनके पास ये धन कहाँ से आया? उन्हें ऐसा है। और जब यह सूक्ष्म से अर्थात् परमात्मा नहीं करना चाहिए था, इन्होंने आयकर भी के प्रेम की दिव्य शक्ति से एक रूप हो जाती दिया है या नहीं? इस प्रकार चे ये बातें करने है तो आप इसे जो चाहे नाम दे सकते हैं। लगेंगे जिनका इन फूलों के सौन्दर्य और गलत ढंग से समझा जा रहा है। ज्ञान प्राप्त सन्तों ने इसे परम चैतन्य कहा। इसका योग जब परम चैतन्य से होता है तब काम, क्रोध, मद, मत्सर लोभ और मोह आदि दोष स्वतः आनन्द के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। इसी प्रकार मस्तिष्क की सारी प्रक्रिया चलती रहती है और इसी प्रकार हम तनाव में फँसते चले ही छुट जाते हैं। क्योंकि अब आप ज्ञान के जाते हैं। हम आनन्द नहीं ले पाते। हम क्यों क्षेत्र में होते हैं। आइंस्टीन ने इसके विषय में नहीं आनन्द ले पाते? कारण ये है कि हम लिखा है कि, "सम्बन्धित सिद्धान्त की आनन्द के स्रोत से जुड़े हुए नहीं हैं। मान अभिव्यक्ति करने के लिए मैं शब्द खोज रहा लीजिए ये यन्त्र (Mike) शक्ति स्रोत से जुड़ा था, परन्तु मेरी समझ में कुछ नहीं आया। हुआ न हो तो इसका क्या लाभ हैं? इसी प्रयोगशाला में मैं इतना परेशान हो गया कि प्रकार हम भी सदैव सोचते रहते हैं और इस "घर आ गया और साबुन के बुलबुलों से प्रकार से चित्त में डालते हैं कि ये प्रतिक्रिया खेलने लगा और अचानक किसी अज्ञात करता रहता है। किसी भी चीज को देखकर दिशा से ये सारा ज्ञान मेरे अन्दर कौंध गया हमें लगता है कि हम प्रतिक्रिया करें और मार्च-अपरै ल 2001 18 चैत्तन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 यदि कोई प्रतिक्रिया नहीं करता तो लोग सोचते हैं कि इसमें यह बात समझने की नामक आपकी दाई नाड़ी अत्यधिक उत्तेजित योग्यता ही नहीं है । इसके परिणामस्वरूप सर्वप्रथम पिंगला होकर थक जाती है। हर समय आप इसे सोच विचार के लिए और भविष्यवादी कुण्डलिनी की इस जागृति को आत्म- योजनाओं के लिए इस्तेमाल करते हैं । सभी साक्षात्कार कहते हैं। ईसा मसीह ने भी कहा भविष्यवादी लोग इसके कारण पीड़ित हैं था. "स्वयं को पहचानो ।" उन्होंने यह बात क्योंकि यह शक्ति है, यद्यपि चिकित्सा विज्ञान स्पष्ट कही थी। सभी ने यह बात कही, ऐसा इसके विषय में कुछ नहीं जानता। परन्तु नहीं है कि मैंने ही कहीं। अपने अन्दर प्रवेश हम जानते हैं कि यह दाई अनुकम्पी प्रणाली किए बिना हम सूक्ष्मता में नहीं जा सकते। (Right Sympethatic Nervous System) है । इस कार्य को करने के लिए परमात्मा ने यह अत्यधिक उत्तेजित हो उठता है और इसकी उत्तेजना इससे सम्बन्धित सभी चदक्रों की कार्यशक्ति को दुर्बल कर देती है। इसके त्रिकोणाकार अस्थि में कुण्डलिनी को स्थापित किया है यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। छः चक्रों में से इसका उत्थान होता है। ये चक्र कारण प्रभावित अवयवों में सर्वप्रथम जिगर शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक अस्तित्व Liver) है। ज़िगर एकदम उत्तेजित हो उठता है जिगर के उत्तेजित होने के क्या चिन्ह के लिए जिम्मेदार हैं तथा आध्यात्मिक उत्थान के लिए भी, और कुण्डलिनी इस सब में से हैं? इसके कारण आपको भूख नहीं लगती गुजरती है। सर्वप्रथम यह इनका समन्वय और कब्ज रोग हो जाता है। ये प्रभाव तो करती है. दूसरे इनको ज्योतिर्मय करती है। केवल उस स्थिति में होता है जब दुर्बलता बहुत ही निम्न स्तर की हो। जिगर का कार्य शरीर की ऊर्जा को रक्तसंचार में लाने का होता है। जिगर जब दुर्बल हो जाता है तो यह इनका पोषण भी करती हैं। इस प्रकार से आपको पूरी तरह से सन्तुलित करके आपको पूर्णतः स्वस्थ करती है। बताना चाहूँगी कि सुबह से शाम तक जिस गर्मी फैलती ही चली जाती है। जिगर से यह प्रकार का कार्य आप करते हैं, क्योंकि आप गर्मी हृदय को जाती है या उससे भी पहले बहुत परिश्रमी हैं, आपका चित्त सदैव अपने फेफड़ों को। ऐसे व्यक्ति को गम्भीर किस्म मैं आपको वह इस कार्य को नहीं कर पाता और यह कार्य पर होता है और किसी भी प्रकार से का दमा रोग हो सकता है। सहजयोग में अपनी योजनाओं को फलीभूत करने के लिए दमा को पूर्णतः ठीक किया जा सकता है। आप लगे रहते हैं । ऐसा करने का प्रभाव इसमें कोई सन्देह नहीं है। परन्तु इसके लिए पहले आपको आत्मसाक्षात्कारी होना आप पर क्या पड़ता है? आइए इसे देखें। चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 17 पड़ेगा। जिगर की गर्मी जब बाईं ओर को प्रभावस्वरूप व्यक्ति को भयानक कब्ज रोग जाती है तो इक्कीस वर्ष का टेनिस खेलने हो सकता है क्योंकि उसके नीचे की आँतडियाँ वाला युवक भी हृदयाघात का शिकार हो कार्य नहीं करती। अत्यधिक कार्य करने से सकता है। जिगर की ये गर्मी बड़ी उम्र के भविष्यवादी जीवन के कारण हम अपने अन्दर परिश्रमी व्यक्ति के लिए भी घातक हो सकती ये गर्मी उत्पन्न करते हैं । इसे रोकने का है। ऐसे व्यक्ति को जो अपनी चिन्ता नहीं कोई और साधन नहीं है । आप लोग भी करते। अपनी उपेक्षा करने वाले व्यक्ति को सरकारी कर्मचारी हैं। कर्त्तव्यपरायण लोग अचानक हृदयाघात हो सकता है। सरकारी हैं और बहुत ही परिश्रमपूर्वक कार्य करना नौकरों में ये आम रोग है क्योंकि वो इस बात की चिन्ता ही नहीं करते कि वे अपनी कित नी प्रकार स्थिति को सुधारा जाए और इस शक्ति इस कार्य में लगा रहे हैं। हमारे अन्दर प्रकार देश के लिए कार्यरत रहते हैं। परन्तु एक चक्र ऐसा है (दायां स्वाधिष्ठान ) जो इसके साथ-साथ यह भी देखना चाहिए कि जिगर की देखभाल करने के साथ मस्तिष्क हमारे अन्दर किस प्रकार असन्तुलन आ रहे चाहते हैं। सदैव यही सोचते हैं कि किस को ऊर्जा प्रदान करता है। हर समय यदि हैं। हम आक्रामक हुए जा रहे हैं और इससे आप विचार धुन्ध में फँसे रहते हैं तो ज़िगर भी कैंसर रोग हो सकता है। मैं आपको की स्थिति और खराब हो जाती है। बहुत बताऊंगी कि किस तरह? मुझे खेद है कि अधिक सोचने वाले व्यक्ति को जिगर की हमारी बातचीत शारीरिक रोगों की तरफ समस्या हो सकती है। परन्तु चीजें इसी के चली गई है। परन्तु बाएं और दाएं अनुकम्पी से ये दोनों चक्र जब एकरूप होते हैं तो एक साथ ही समाप्त नहीं हो जातीं। गर्मी वहाँ से चक्र का सृजन करते हैं। जब आप दाई ओर अग्नाश्य की ओर चली जाती है और व्यक्ति को शक्कर रोग (Diabeteas) हो सकता है। को बहुत अधिक कार्य किए चले जाते हैं इसकी आप कल्पना करें। आप यदि सोचना और इस प्रकार दाई ओर की शक्ति को बन्द कर दें तो शक्कर रोग को आसानी से बहुत अधिक खर्च करते हैं तो अचानक कोई ठीक किया जा सकता है। विचारों को आघात आपको लग सकता है। आपकी बाईं रोकना बहुत बड़ी समस्या है। इसके बारे में नाड़ी पर कोई ऐसा आघात लग सकता है मैं आपको बाद में बताऊंगी। यहाँ से बढकर जिसके कारण यह टूट जाती है और पूर्ण गर्मी प्लीहा (spleen) पर आक्रमण करती है (Whole) के साथ आपका सम्बन्ध दूट जाता और व्यक्ति को रक्त कैंसर तक हो सकता है। पूर्ण के साथ इस सम्बन्ध के टूटते ही है। ज़िगर की गर्मी आपके गुर्दों (Kidneys) पर भी आघात कर सकती है। इसके की पूरक नहीं रहतीं, परस्पर अहितकर बन परन्तु आपकी दाई और बाई नाड़ियाँ एक दूसरे मार्च-अप्रै ल 2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 18 जाती हैं और आपके कोषाणु भी इसी प्रकार जरूरत से अधिक कार्य करते हैं तो प्रकृति से व्यवहार करने लगते हैं और परिणाम इसे सुधारने का प्रयत्न करती है। कैंसर रोग होता है। सहजयोग में आप कैंसर को भी ठीक कर सकते हैं। ऐसा करना अब मुख्य बात ये है कि किस तरह से इसे कार्यान्वित किया जाए और किस तरह कठिन नहीं है। परन्तु सर्वोत्तम चीज ये है सन्तुलित किया जाए। आपकी कुण्डलिनी जब उठती है तो उनका संगठन करती है, पोषण करती है, ठीक करती है और अन्ततः: कि आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके इसमें स्थित हो जाएं। सभी पुरुषों व स्त्रियों के लिए यह उत्तम बात है। आपको स्रोत से, शक्ति के सागर से जोड़ती है। तब आपके साथ क्या होता है? कुछ दाईं नाडी के विषय में मैंने केवल एक बात बताई। सबसे बुरी बात तो यह है शरीर नहीं। तब जीवन अथक हो जाता है आप कभी भी थकते नहीं, सदैव शक्ति से भरे के दाएं भाग में पक्षाघात हो सकता है। हाल ही में हमारे एक बहुत अच्छे डॉक्टर थे जो रहते हैं और शक्ति आपसे बहती रहती है । सहज के लिए कार्य कर रहे थे। मैंने उनसे केवल शक्ति ही नहीं, ज्ञान भी. पुर्ण ज्ञान भी कहा श्रीमन अब आप वृद्ध हो गए हैं। आपको आपसे प्रसारित होता रहता है क्योंकि अब चाहिए कि आप दिन के समय भी विश्रआम आपकी अंगुलियाँ चक्रों का अनुभव करने लगती हैं और अपनी अंगुलियों के सिरों पर करें, शाम को जल्दी सो जाएं और बहुत अधिक परिश्रम न करें? आपकी उपस्थिति आप चैतन्य लहरियाँ महसूस करने लगते से ही काफी है। पर उन पर मेरी बात का कोई है। अब आप समझ सकते हैं कि कौन अधिक प्रभाव न हुआ। परिणामस्वरूप उन्हें चक्र पकड़ रहे हैं। इन्हें ठीक करना यदि अधरांगघात (Paraplegia) हो गया और आप सीख लें तो अपने तथा अन्य लोगों के । चक्रों को आप ठीक भी कर सकते हैं उनका दायां तथा बायां हाथ पूरी तरह से अशक्त हो गए। यह एक अलग बात है कि दूसरा परिवर्तन जो आपमें घटित होता अब वो ठीक हो गए हैं। परन्तु प्रकृति अपना वह है आपके व्यक्तित्व का सामूहिक व्यक्तित्व हिस्सा माँगती है और इसी कारण से वह में परिवर्तित हो जाना। आप सामूहिक व्यक्ति व्यक्ति अधरंगघात का शिकार हुआ। जो बन जाते हैं । जैसे इन दिनों हमने देखा है लोग इस प्रकार से पागलों की तरह से कार्य कि बहुत से स्नातक हैं और बहुत से करते हैं उनके सिर के बाएं गोलार्ध पर साफ्टवेयर विशेषज्ञ और कहीं पर भी हम अपने सम्बन्ध स्थापित कर सकते हैं । यही प्रणाली हमारे अन्तर्रचित भी है। किसी के है और उनके शरीर के दाएं दुष्प्रभावे पड़ता हिस्से को लकवा मार जाता है। आप क्योंकि প. चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 19 बारे में भी हम पता लगा सकते हैं कि उसमें सभी अवतरणों ने इसके बारे में बातचीत क्या समस्या है और अपने स्थान पर बैठे हुए ही उसे ठींक कर सकते हैं। ये सब हो की मोहम्मद साहब ने कहा कि पुनर्जन्म के समय आपके हाथ बोलेंगे इसका अर्थ क्या सकता है परन्तु आपको उस स्थिति तक है? यह इस बात का प्रमाण है कि आपने विकसित होना होगा इसके लिए आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लिया है । बहुत अधिक समय की भी जरूरत नहीं है। अब स्थिति अत्यन्त सहज है और एक बार जब कुण्डलिनी जागृत हो जाती है-यह एक नन्हें बीज के अंकुर की तरह से कार्यान्वित हो रही है, मैं नहीं जानती क्यों? होती है। यह अंकुर यदि पेड़ बन जाए तो सम्भवतः यह घोर कलियुग है जिसके कारण आप हैरान होंगे कि व्यक्ति का पूर्ण परिवर्तन यह सब कार्यान्वित होने लगा है। हजारों हो जाता है और हमारे अन्दर विद्यमान षडरिप लोग आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर रहे हैं। मेरी लुप्त हो जाते हैं। उनसे मुक्त होकर आप अनुपस्थिति में भी सहजयोगी बहुत से लोगों आत्मविश्वास से परिपूर्ण हो जाते हैं. आपके को आत्मसाक्षात्कार देते हैं। संसार में जो कां 1 घटित हो रहा है बह अत्यन्त महत्वपूर्ण है अन्दर की आक्रामकता शान्त हो जाती है और अन्य लोगों के दोष आप नहीं देखते और यह आप लोगों के लिए है। इसके बदले साक्षी बन जाते हैं। बिना प्रतिक्रिया किए आप कोई धन नहीं दे सकते, कुछ नहीं कर आप साक्षी रूप से सभी चीजों को देखने सकते। यह तो स्वतः है। सर्वशक्तिमान लगते हैं। मस्तिष्क से आप ऊपर उठ जाते परमात्मा ने इसकी स्थापना की है-कुण्डलिनी हैं। प्रतिक्रिया ही सभी तकलीफों का कारण की। केवल इतनी सी आवश्यकता है कि है। कोई आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति इसे जागृत करे, वैसे ही जैसे एक जलता हुआ दीपक अब आपको सच्चा ज्ञान प्राप्त हो जाता दूसरे दीपक को प्रज्जवलित कर सकता है। है। ये सभी मानसिक प्रतिक्रियाएं बिल्कुल केवल इतनी सी बात है। परन्तु यदि आपने अनावश्यक हैं। आप वास्तव में जान जाते हैं दूसरे दीपक को प्रज्जवलित कर दिया है और उसे स्थापित कर दिया है तो वह दीपक भी वही कार्य कर सकता है। सहजयोग कि कहाँ दोष हैं? क्या चीज़ ठीक होने वाली है? समाधान क्या है? अब आप सब जान जाते हैं। आप सब कुछ जान जाते हैं क्योंकि इसी प्रकार फैला है। इन सब देशों में मैं आप सरोत से जुड़े हुए हैं। स्रोत से एकरूप स्वयं नहीं गई। अधिक से अधिक बीस देशों हैं। स्रोत से जुड़े बिना आपका व्यक्तित्व में गई हूँगी परन्तु सहजयोग किस प्रकार अधूरा होता है। आपको हैरानी होगी कि फैला है? इसने अत्यन्त सुन्दर कार्य किया मार्च-अप्र ल 2001 20 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 3 व 4 है। यह हमारे देश का विज्ञान है. इसका विश्वास करते हैं तो स्वयं को भी प्रेम करें। उद्भव हमारे देश से है। नि:सन्देह अन्य स्वयं को क्षमा कर दें। अपने अन्दर दोष भाव लोगों ने भी इसके विषय में बात की। विलियम न रखें। स्वयं को क्षमा करने के पश्चात् अन्य ब्लेक ने इसके बारे में बताया। फिर भी मैं लोगों को भी क्षमा कर दें क्योंकि वो भी कहूँगी कि मूलतः यह ज्ञान भारतीय है । भारतीयों को यह ज्ञान था परन्तु वे सामूहिक आत्मसाक्षात्कार न दे पाए । अज्ञानान्धकार में है। उनमें भी समझने की योग्यता अभी नहीं है। अतः सबको क्षमा कर मैं एक ऐसा दें। तार्किक रूप से भी यदि हम देखें तो क्षमा करने या न करने वाले हम कोई नहीं क्षमा न करके आप अपनी हानि कर रहे हैं और जिन लोगों ने आपको कष्ट पहुँचाया है उनके हाथों खेल रहे हैं । अतः क्षमा कर देना तरीका विकसित करना चाहती थी जिसके द्वारा मानव के संयोग और क्रमपरिवर्तन को समझकर मैं सामूहिक साक्षात्कार के इस कार्य को कर सकूं, क्योंकि व्यक्तिगत स्तर की किसी भी खोज का अधिक महत्त्व नहीं ही सर्वोत्तम बात हैं। इस पर क्षमा के इस होता और मेरी इस खोज ने कार्य कया । आपके प्रेम एवं करूणा से यह कार्य कर रही चक्र को खोलने में आप बहुत मदद करते हैं। कुण्डलिनी के उत्थान में ये दो चक्र बहुत है। कुछ लोग अपनी दोष भावना के कारण बड़ी रूकावट है। अतः आपको स्वयं को इसे नहीं पा सकते। वो कहने लगते हैं, तथा अन्य लोगों को क्षमा करना होगा। केवल ओह! मैंने ये अपराध किया है, मैंने वो इतना ही। अपने हृदय में मात्र कह भर दें कि मैंने स्वय को क्षमा किया और अन्य लोगों समाप्त अब पूरा जीवन आप क्यों उसकी को भी क्षमा किया। आपको केवल विश्वस्त चिन्ता लगाए हुए हैं? ये एक चीज़ है। इस होना है कि किसी भी चीज के लिए आप प्रकार की भावना वास्तव में, प्रेम के इस चक्र स्वयं को दोषी नहीं ठहराएंगे। आपने कोई के लिए. बाईं विशुद्धि के लिए बहुत हानिकर अपराध नहीं किया। आपने क्या किया हैं? । कोई अपराध यदि आपने किया होता तो अतः आपको दोष भावना ग्रस्तु नहीं होना आप जेल में होते। परन्तु आप तो यहाँ पर अपराध किया है जो हो गया वो हो गया, है। इसके कारण कुण्डलिनी नहीं उढती है। दोष स्वीकृति (Confession) की कोई हैं। इसलिए स्वयं को क्यों दोषी मानना है? इतना सोचें कि आवश्यकता नहीं है। केवल कुछ लोग सोचते हैं कि जब तक हम बहुत अधिक धार्मिक नहीं होंगे, जब तक हम बहुत अधिक कर्मकाण्ड नही करेंगे हमारा आप मानव हैं और सभी मानव आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं । मैं आपको बता दूं कि ये प्रेम की शक्ति है। बौद्धिक योग्यता की शक्ति नहीं है। प्रेम की इस शक्ति में यदि आप उत्थान नहीं हो सकता। ऐसी बात नहीं है, हघ मार्च-अप्रैल 2001 21 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 आप आयकर अधिकारियों से मेरी प्रार्थना है बिल्कुल भी नहीं। हम इन चीजों में फँसे हुए हैं अतः आप इन्हें भूल जाएं। आप चाहे हिन्दू कि आपका जो कानून है उसके अनुसार हों, मुसलमान हों या इसाई, चाहे आपने आप स्त्री धन के पीछे पड़े हुए हैं। मैंने बहुत सी पूजाएं की हों, इससे कोई फर्क वित्तमंत्री से इसके विषय में बात की मगर नहीं पड़ता। सभी की कुण्डलिनी जागृत उन्होंने कोई ध्यान न दिया स्त्री धन को होती है। आपके चित्त का परमात्मा पर होना छूना पाप है। फिर भी इस कार्य को बहुत ही ही आपको शुद्ध रख सकता है। परन्तु ऐसा बुरी तरह से किया जा रहा है। आप सभी भी तभी होगा जब कुण्डलिनी की जागृति हो लोग बड़े-बड़े अफसर हैं, आप लोग ही जाएगी। लोगों के घरों में जाते हैं। हमारा एक पड़ोसी जौहरी था। उसके घर पर इन लोगों ने आपको एक अन्य चीज़ अवश्य बताना छापा मारा। सभी सोफों आदि को बिस्तरों चाहूँगी। महिलाओं के प्रति सदैव मेरी को इन्होंने फाड डाला। सभी कुछ किया। TI सहानुभूति रही है। दीन दुखी महिलाओं, मेरी समझ में नहीं आता कि किस प्रकार से लड़कियों तथा बच्चियों के लिए। जैसे इन्होंने सब करते हैं और उस समय उस घर में बताया, मैंने महिलाओं की सहायता के लिए कोई भी पुरुष न था केवल महिलाएं थीं । तब एक संस्था भी आरम्भ की है। मुझे लगता है उन्होंने अलमारियों की तलाशी ली। यह तो कि हमारे देश में महिलाओं के पास सम्पत्ति एक प्रकार से हिटलर जैसा दृष्टिकोण है। नहीं होती। जो भी कुछ उनके पास है वह उन्हें वहाँ से कुछ भी नहीं मिला परन्तु उन्होंने कानून के कारण है और कानून की सहायता धमकी दी कि यदि इस मामले की रिपोर्ट की की जब आवश्यकता होती है तो वह बड़ी ही तो वे दोबारा आकर सभी कुछ जब्त कर अभिशप्त स्थिति होती हैं। फिर भी लोग लेंगे कानूनन आप तलाशी ले सकते हैं तलाक मॉँगते चले जाते हैं और इस प्रकार परन्तु इस प्रकार की ज्यादतियों को आपको पारिवारिक जीवन नष्ट हो रहा है । अतः देखना चाहिए। मैं सोचती हूँ कि आपको पुरुषों को चाहिए कि वे अपने अन्दर महिलाओं महिलाओं के आभूषण लेने ही नहीं चाहिए। के प्रति सम्मान की भावना विकसित करें। बेचारी महिलाएं बैंक आदि के विषय में कुछ महिलाओं का प्रतिशत निश्चित रूप से पुरुषों नहीं जानती मैं स्वयं बैंक के विषय में कुछ से ज्यादा है । यदि आप लोग महिलाओं का नहीं जानती। गहने ही उनका बैंक है। किसी सम्मान नहीं करते तो वास्तव में पूरे देश की ने मुझसे कहा कि इस प्रकार महिलाएं सारे संस्कृति को नष्ट कर रहे हैं। हमें निश्चित काले धन का उपयोग करेंगी। परन्तु अब तो रूप से महिलाओं का सम्मान करना होगा। काला धन भी सारा बाजारों में पहुँच गया हैं चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 22 कोई इसे गहनों के रूप में नहीं रखना चाहता। गहने ही भारतीय महिलाओं का सहारा हैं। के लिए किसके पास समय है? अतः मेरी ये विनम्र प्रार्थना है कि आप लोग इसके विषय में सोचे और महिलाओं की सहायता के लिए जब जब भी मैं ऐसी किसी महिला से मिलती हूँ तो मुझे रूलाई आ जाती है। बम्बई में इस थोडे से धन की आज्ञा दें। हमारे एक पड़ोसी थे उनके यहाँ से तीन महिलाएं आई और उन्होंने बताया उनके घर मैं आपको बताना चाहूँगी कि स्वतन्त्रता पर छापा पड़ा और आयकर वाले लोग उनके संग्राम के समय मेरी माताजी ने हम लोगों भी गहने ले गए । मैंने पूछा कि आपने इन गहनों की घोषणा क्यों नहीं की थी। कहने दे दिए थे। यही उनकी सम्पदा है, यही लगी हमारे पति ऐसा नहीं करने देते, वो सब के लिए रखे हुए गहने भी महात्मा गाँधी को उनकी सम्पत्ति है, यही उनका धन है। हर समय ये उन्हें उपलब्ध होता है। गाँव की महिलाओं को तो बैंक आदि के बारे में बिल्कुल शराबी हैं और शराब के लिए गहने बेच देते है। अब हमारा सब कुछ चला गया है। मैंने कहा तुमने अपने घर पर रखे क्यों? बैंक में क्यों नहीं रखे? जब भी हमें पैसों की जरूरत धर्म कार्य है परन्तु आप गहनों के कारण होती है तो हम ये गहने बेच देते हैं और महिलाओं को परेशान न करें। जिस प्रकार भी ज्ञान नहीं होता इस विषय में आपसे बात करते हुए मुझे संकोच हो रहा था। यह जरूरत की चीज़ें ले लेते हैं। यही हमारा अपराधी मान कर उनसे व्यवहार किया जाता बैंक है। तो भारतीय जीवन का यह पक्ष भी है उसके कारण पहले से ही वे परेशान हैं। हमें समझना चाहिए। हम पश्चिमी महिलाए इस देश में गहना पहनना उनकी मजबूरी नहीं हैं। हम भारतीय महिलाएं हैं। परन्तु है। इसके बिना उनका काम नहीं चल सकता। हैरानी की बात है विश्व के किसी देश में भी यह देश महिलाओं की शक्ति का सम्मान पत।ा नहीं, रूस में भी नहीं, गहनों पर कोई कर नहीं है। हमारे देश में तो गहनों का उद्योग से करता है। ऐसा करने से आपको भी बहुत कष्टों और चिन्ताओं से मुक्ति मिलेगी। आपके कर्मचारी रातों को जाकर लोगों को परेशान करते हैं और फिर आपके पास शिकायत हैं। यहाँ पर अत्यन्त सुन्दर एवं सृजनात्मक कलाकार हैं। महिलाओं को अपने गहने रखने दें। उस पर आयकर क्यों लगाना हैं? इनकी आती है और आपकी परेशानी का कारण घोषणा करना बहुत ही कठिन काम है । बनते हैं। इस विषय में कुछ हो सके तो मैं कानून के अनुसार इन गहनों का पंजीकरण बहुत आभारी हूँगी। भारतीय महिलाओं के कराना पड़ता है। अपनी बेटी को भी यदि दुख दर्द के विषय में बात करना बहुत कुछ देना है तो आयुक्त के पास जाकर उसकी आज्ञा लेनी पडती है। यह सब करने दीन-दुखी, पीड़ित है और सताई हुई हैं। आवश्यक था क्योंकि वे तो पहले से ही बैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 23 हां, एक बार जब आपकी कुण्डलिनी विविध कलाएं सीख कर अपने पैरों पर खड़ी जागृत हो जाएगी तो आप सब कुछ समझ हो सकें। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके जाएंगे और पूरे देश के लोगों के प्रति आपके इसमें स्थापित हो जाने से व्यक्ति की हृदय में प्रेम जाग उठेगा। मैं जानती हूँ कि य विश्व में बहुत सी समस्याएं हैं। मेरी समझ में इतनी बढ़ जाती है कि आप आश्चर्य नहीं आता कि किस प्रकार इनका समाधान चकित रह जाते हैं । कई बार मेरे पति किया जाए। उदाहरण के रूप में हमारा एक मुझसे पूछते हैं कि किस प्रकार तुम यह सब स्कूल है, महाराष्ट्र में भी हमने एक स्कूल कुछ चलाती हो। मैं कहती हूँ कि मैं नहीं शुरू किया है। इस प्रकार की सात योजनाएं जानती, बस मैं सब जान जाती हूँ। आप सब योग्यता, विचार शक्ति और सूझ-बूझ चल रही हैं। परन्तु महिलाओं की समस्या जान जाएंगे कि किस प्रकार कार्य प्रबन्ध सबसे गम्भीर है । वे असहाय हैं और उनकी है और इसके पीछे अन्य लोगों का करना क्षतिपूर्ति करने का कोई मार्ग नहीं सूझ रहा प्रेम ही मुख्य चीज़ है। यह सारा कुछ अत्यन्त है। भारत की शक्ति होते हुए भी वे बहुत कष्ट में हैं। कुण्डलिनी भी एक महिला है। जीवन बहुत सुन्दर हो जाएगा और आप वह पुरुष नहीं है। सभी अवतार हुए परन्तु इसका आनन्द लेंगे। सारा लालच और षड़रिपु कण्डलिनी आदि शक्ति का प्रतिबिम्ब हैं। वे आपको छोड़ देंगे इस आधुनिक युग में यह शक्ति हैं। हम शक्ति पुजारी हैं परन्तु जिस आवश्यक सुन्दर रूप से कार्यान्वित होगा आपका है कि आप सब आत्मसाक्षात्कार प्रकार हम महिलाओं से ब्यवहार कर रहे हैं को प्राप्त करें। आखिरकार हम सब भारतीय हैं। हमारी संस्कृति ऐसी है कि हम आत्मसाक्षात्कार के लिए बने हैं। अन्य लोगों से हम बहुत भिन्न हैं। भारत देश में महिलाओं ने ही देश की संस्कृति की रक्षा की है । वह अत्यन्त आश्चर्यजनक हैं। हमें समझना चाहिए कि यदि महिलाएं जाग जाएं तो आपको कितनी शक्ति प्राप्त हो जाएगी। शक्ति जिस देश में भी मिली उसका माध्यम महिलाएं थीं किसी के भी जीवन को आप देखें चाहे वे महात्मा गांधी हो या शास्त्री हो। वे अपनी पत्नियों से कितना प्रेम करते थे और उनकी कितनी चिन्ता करते थे! हैरानी की बात है कि अपनी जनसंख्या के इतने बड़े भाग की हम उपेक्षा कर देते हैं। अब मैंने यह संस्था आरम्भ की है। मैं इन सबको आत्मसाक्षात्कार दूगी ताकि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके ये आत्मसाक्षात्कार द्वारा आप महिलाओं की रक्षा कर सकते हैं और सूझ-बूझ देकर उनकी सहायता कर सकते हैं। उन्हें परेशान नहीं करें। परेशान करना अनुचित है महिलाओं को परेशान करना पूरी तरह से वर्जित कर दें वे तो पहले से ही बहुत वे नहीं जानती कि वे क्या करें! यह कानून भी परेशान हैं। चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 24 उनकी कोई सहायता नहीं करता क्योंकि है कि इच्छाओं का कभी अन्त नहीं होता। सत्ता तो पुरुषों के हाथ में है। पुरुषों को परन्तु आत्मसाक्षाल्कार प्राप्त करने के पश्चात् चाहिए कि महिलाओं का मूल्य समझें, उनके जो कुछ भी प्राप्त होता है उससे आप सन्तुष्ट प्रेम की शक्ति को समझें। तभी यह कार्यान्वित हो जाते हैं । हर समय आप भागते नहीं होगा। मैं यह इसलिए नहीं कह रही कि मैं रहते सदैव शान्ति और आनन्द के साम्राज्य स्वयं एक महिला हूँ। वास्तव में जो मैंने देखा में बने रहते हैं। आपके साथ भी यही घंटित है वही बता रही हूँ कि हमने नारीत्व के साथ होना चाहिए। कितना अन्याय किया है । TI | मैं सदैव कहती हैं कि सरकारी अधिकारी हमारे देश की रीढ़ की तरह से हैं। वही लोग 1 अब कुण्डलिनी की जागृति के लिए हम केवल दस मिनट का समय लेंगे और आपको आत्मसाक्षात्कार मिल जाएगा। इसके सिद्धांतों के विषय में ग्रन्थ लिखे गए हैं जिन्हें आप देश की देखभाल करते हैं। उनके बिना कुछ नहीं ही सकता बतानवी शासन ने यदि कुछ अच्छा हमें दिया तो वह था सेवाओं का विचार। उनकी चलाई हुई शैली के कारण है ही आप देश की नींव हैं। आप कभी बीमार न पढ़ सकते हैं। पर सबसे अच्छी बात यह कि आप आत्मसाक्षात्कार को पा ले। परन्तु हों, कभी आपको समस्या न हो, इसलिए आत्मसाक्षात्कार किसी पर थोपा नहीं जा सकता। हृदय से आपको इसके लिए प्रार्थना आपकी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेना करनी होगी कुण्डलिनी शुद्ध इच्छा शक्ति हैं। यही वास्तविक इच्छा है, बाकी सब इच्छाएं साहब के प्रति मैं आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे निरर्थक हैं। आज व्यक्ति एक चीज लेना यहाँ आमान्त्रि किया। चाहता है कल दूसरी। इसका कोई अन्त नहीं होता। आधुनिक अर्थशास्त्र का नियम आवश्यक है। आपकी संस्था और कमिश्नर परमात्मा आपको धन्य करे। न स पा मार्च-अप्र ल 2001 25 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 सहजयोगियों को भू कम्प का पुर्वाभास प्रेम चन्द गुप्ता (एडवोकेट), बहादुर गंज, उज्जैन, मध्य प्रदेश सेवा में, हिलने के कारण मैं भी घड़ी के पैण्डुलम की ह श्रीमाताजी, तरह हिल रहा हूँ, जब कुछ देर तक हिलना बन्द नहीं हुआ तो सहसा मुंह से निकला-यह श्रीमाताजी ने अपनी करुणा और प्रेम हुए उन्हें पार उतारा है । सभी पर बिखेरते भूकप आ गया क्या? और ऑँखे खोलकर हम भी श्रीमाताजी के ॠणी होकर उनके देखा तो सब कुछ सामान्य था, कुछ नहीं द्वारा दिया हुआ सुखी जीवन गुजार रहे हैं। हिल रहा था। फिर से ध्यान करने लगे और हम उनका धन्यवाद तक अदा करने में अपने फिर वही पृथ्वी का हिलना व अपने आप का आपको असमर्थ पाते हैं, उनके ऋणों को हिलना महसूस होने लगा और कुछ समय तो संभव ही नहीं है। श्रीमाताजी की बाद यह हिलना बंद हो गया। ध्यान पूरा 1. चुकाना अनुकंपा से ही उज्जैन नगरपालिका निगम होने के बाद हिलने वाली घटना ही भूल गये फोन समिति 2 का सदस्य और अखिल और बात आयी गई हो गई। उसी शाम को भारतीय मानव अधिकार संरक्षण परिषद् संभाग उज्जैन संभाग उपाध्यक्ष के साथ-साथ उपरोक्त पदों पर आसीन श्रीमाताजी ने कराया जब पत्री कुमारी विनीता, कक्षा 11वीं, ध्यान कर रही थी तो उसे भी ऐसा ही महसूस हुआ और जब उसने भी आँखे खोलकर देखा तो है। उपरोक्त पते पर ही प्रति शनिवार को सब कुछ सामान्य था। बाहर सड़क पर भी शाम 7 बजे से सहजयोग ध्यान केन्द्र केस द्वारा श्रीमाताजी मानव का उत्थान करने में सब कुछ सामान्य था, कहीं कुछ नहीं हिला था। से निरंतर अग्रसर हैं । श्रीमाताजी की कृपा ही यह ताजा अनुभव लेखबद्ध करने का मामूली प्रयास कर रहा हूँ, वैसे अनुभवों को नहीं आया, कहीं भूकम्प आना रिकार्ड भी शब्दों और वाक्यों में उकेरना बहुत ही कठिन नही हुआ है। भूकम्प दिनांक 26 जनवरी, 25 जनवरी, 2001 को कहीं भी भूकम्प कार्य है फिर भी कोशिश कर रहा हूँ। 2001 की सुबह करीबन 8-55 बजे आया 25 जनवरी 2001 गुरूवार को ध्यानावस्था है । लेकिन हमें तो इस भूकम्प के आने का में लगा कि पृथ्वी हिल रही है और पृथ्वी के अहसास भी नहीं हुआ जबकि आसपास के चैतन्य लहरी खंड-Xll अंक 3 व मार्च-अप्रै ल 2001 26 लोग घरों से बाहर हो गये थे और उनके शाम को सेंटर प्रारंभ होना था । इन उपरोक्त घरों के सामान तक गिर गये थे किन्तु हमें परिस्थितियों के कारण जब श्रीमाताजी से तो यह भी पता नहीं चला कि लोग बाहर वायब्रेशंस से पूछा गया तो भूकम्प नहीं आना निकल गये है वह तो जब हम ऑफिस ज्ञात हुआ और भूकंप नहीं आने के लिये जाने के लिये नीचे सड़क पर आये तो मालूम श्रीमाताजी से प्रार्थना भी की और इसी कारण पड़ा कि भूकम्प आया है और लोगों में आसपास के लोगों को भी आश्वस्त किया अफरा-तफरी मच गई है। इस प्रकार भूकम्प जिससे आसपास की बस्ती खाली होने से 26 जनवरी की सुबह आया जिसकी पूर्व और अफरा-तफरी मचने से, श्रीमाताजी की सूचना श्रीमाताजी ने हमें एक दिन पहले 25 कृपा से, बच गई और हर बार की तरह उस जनवरी को ही सुबह दे दी। जबकि विशेषज्ञों दिन सेंटर पर श्रीमाताजी ने ध्यान करवाया । ा का कहना है कि विश्व में ऐसी कोई तकनीक नहीं हैं जिससे कि भूकम्प आने की पूर्व सूचना मिल सके। ऐसी दशा में क्या यह आश्चर्यजनक किन्तु सत्य नहीं है कि श्रीमाताजी की तकनीकों के आगे विश्व की, मानव मात्र की तकनीक मायने ही क्या रखती जीवन के प्रति निराशा आदि से मुक्त हो श्रीमाताजी की कृपा से ही मैं दमा, हाई-ब्लडप्रेशर, बाईं साईड के आधे शरीर के दर्द, पेशाब के बार-बार रुकने, हायपरएसीडिटी, हमेंशाबना रहने वाला सिर व माथे का भारीपन, दर्द, थकान, नर्वसता. है? गया हूँ। सेंटर पर आने जाने वाले अन्य सहजी जो खूनी बवासीर से पीड़ित थे ठीक इतना ही नहीं उसके बाद दूसरे दिन 27 हो गये हैं जिन घुटनों से एक फरलींग भी जनवरी को मध्य-प्रदेश शासन का पत्र जिला नहीं चला जाता था वे अब दौड़ने लगे हैं प्रशासन को मिला कि 24 घण्टों में पुनः और रोज मीलों चलते हैं, साइकिल चलाते भूकंप आ सकता है और इस पत्र के बढ़-चढ़कर अफवाह के रूप में फैल जाने उन्हें काम-धंधा मिल गया हैं। जिनके पावों से 2 बजे से दिन से ही लोग घरों से बाहर में एक्सीडेंट के कारण स्टील की राड लगी होकर मैदानों में चले गये तथा सारे शहर में हुई है वे भी अब तेज चाल से 30 कि.मी. तक अफरा-तफरी मच गई। हमारे घर यानी चलते है और जरा भी थकान नहीं होती उक्त सहजयोग सेंटर के आसपास के लोग उनमें इतनी अधिक ऊर्जा बढ़ गई है कि वे भी मैदान में जाने लगे और हमें भी लोगों ने थकने का नाम ही नहीं लेते हैं और काम हैं, साईकिल पर सामान लादकर लाते हैं, घर से बाहर निकलने को आग्रह किया। लेकिन उस दिन शनिवार होने के कारण है । कब, कैसे हो जाता है पता ही नहीं चलता मार्च -अप ल चैतन्य लहरी खंड -XIII अंक 3 व 4 2001 27 श्रीमाताजी सुबह 5 बजे आवाज देकर नये अनुभव साकार होते देखें है, कई घटनायें हमें ध्यान के लिए उठाती है. ऐसे और भी क्रियान्वित होते देखी है. जो इतनी अधिक हैं कई है जिन्हें श्रीमाताजी ध्यान के लिये उठाती कि सारी घटनाओं का यहां उल्लेख कर है किंतु आँखे खुलने पर सामने कोई नहीं पाना संभव ही नहीं है। केवल हृदय में महसूस होता है और ऐसा लगता है जैसे सोये ही ही किया जा सकता है अर्थात चौबीसों घण्टे नहीं थे, यानी एकदम तरोताजा। और जो कुछ न कुछ घटित होता ही रहता है । ऐसी काम हमें कठिन लगता है या नहीं हो रहा श्रीमाताजी की कृपा है। होता है (वैसे तो हमारे सारे काम श्रीमाताजी ही करती हैं) तो हम श्रीमाताजी से फलां काम करने की प्रार्थना करते हैं तो कुछ भी श्रीमाताजी से ऐसी ही कृपा हमेशा बनाये रखने की विनम्र प्रार्थना करता हूँ और एक उन्नत, उत्कृष्ट, अच्छा सहजयोगी बनाने की कामना श्रीमाताजी से करता हूँ तथा समय में काम बन जाते हैं और हमें कोई प्रयास तक नहीं करने पड़ते अथवा कुछ शुद्ध इच्छा करता हूँ कि श्रीमाताजी अपने विशेष नहीं करना पड़ता है। इस प्रकार एक श्रीचरणों से कभी भी हमें अलग नहीं करें ओर तो हमें आगे दूसरे दिन आने वाले और सदैव हमारे रोम-रोम में विराजमान भूकम्प की सूचना पहले ही मिल गई और दूसरा यह कि श्रीमाताजी के बताये अनुसार रहकर विश्व का कल्याण करें। तथा हमसे जो भी सेवा हो वह अधिक से अधिक करवाये । हमने भी लोगों को भूकंप नहीं आने के बारे प्रति, में आश्वस्त किया तो बस्ती में अफरा-तफरी मचने से बच गई। इससे भी अधिक कई पूर्व अनुभूतियाँ होती रहती हैं । यह ताजा अनुभूति है जिससे सारा विश्व परिचित है। जबसे सहजयोग में आयें है तब से अब तक नित्य चैतन्य लहरी में प्रकाशनार्थ भवदीय प्रेमचन्द गुप्ता एडवोकेट 10015, पुष्पांजली आर्यसमाज मार्ग, बहादुरगंज, उज्जैन (मध्य प्रदेश) चैतन्य लहरी खंड-XIli अंक 3 व 4 मार्च -अप्रै ल 2001 28 श्री कृष्ण पूजा कबैला 20.8.2000 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज हम यहाँ श्री कृष्ण की पूजा करने जानना है। आत्म साक्षात्कार का यही उद्देश्य के लिए आए हैं। आप जानते हैं कि सहजयोग है। परन्तु आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के में आने से पूर्व भी आप जिज्ञासु थे। भिन्न पश्चात् आप में क्या घटित होना चाहिए? स्थानों पर आप गए, भिन्न पुस्तके पढ़ीं और आपमें से कुछ तो खो भी गए। उस जिज्ञासा आपमें से बहुत से लोगों की रुचि नशे आदि व्यर्थ की चीज़ों में समाप्त हो गई है। बेकार में सम्भवतः आप ये न समझ पाए कि आप. की पुस्तकें पढ़ना आपने छोड़ दियाहै। शराब क्या खोज रहे हैं। वास्तव में आप स्वयं को आदि पीने में आपकी रुचि समाप्त हो गई पहचानना चाह रहे थे। सभी धर्मों में कहा है, है। परन्तु इतना ही काफी नही है, मात्र "स्वयं को पहचानिए"। ये एक आम बात है इतना काफी नहीं है इतना तो किसी भी जो सबने कही है। ये बात सभी धर्मों ने तरह से घटित हो सकता है। परमात्मा को निश्चित रूप से कही है कि "स्वयं को जानने से आपको इस बात का ज्ञान हो पहचानो क्योंकि स्वयं को पहचाने बिना जाना चाहिए कि वह क्यों चाहता है कि आप 1 आप परमात्मा को नहीं जान सकते, उसे जाने। क्योंकि परमात्मा आपमें अपना आध्यात्मिकता को नहीं जान सकते। प्रतिबिम्ब देखना चाहता है वह अपना तो स्वयं को पहचानना पहला कदम था प्रतिबिम्ब देखना चाहता है। यही कारण है जिसके लिए लोगों ने आपके साथ सभी कि परमात्मा ने आपका सृजन किया अब 1 प्रकार चालाकियाँ कीं। उन्होंने आपको भिन्न वह अपना प्रतिबिम्ब आपमें देखना चाहता विधियाँ सिखाई और भिन्न प्रकार से आपको लूटने तथा धोखा देने का प्रयत्न किया। वो सब कुछ हो चुका है। आप सहजयोग में आत्मसाक्षात्कार दिया है क्योंकि वे आपमें आते हैं और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करते हैं। अपना प्रतिबिम्ब देखना चाहती हैं। अतः हैं। 1. देवी की भी यही बात है। देवी ने आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने का लक्ष्य क्या आपको उस प्रतिबिम्ब के लिए स्वयं को है? लक्ष्य परमात्मा को या परमेश्वरी को तैयार करना होगा वह प्रतिबिम्ब अत्यन्त প भारच-अप्रै ल 2001 29 चैतन्य लहरी खंड-XIII अक 3 व 4 पावन, सुन्दर, प्रेममय, करुणामय तथा विवेक से परिपूर्ण है तो व्यक्ति को यह स्थिति प्राप्त करनी होती है जहाँ वे समझ सके कि उसमें विवेक होना आवश्यक है। आपमें यदि आने वाली आरुरी शक्तियों को नष्ट कर रहे थे । अपनी विनोद शीलता में रहते हुए उन्होंने ये सब कार्य किया बचपन में राक्षसों को मारा। बालरूप में भी वे कितने परिपक्व थे विवेक का अभाव है तो आप आत्मसाक्षात्कारी इसका अन्दाजा आप उनके पूतनावध तथा दो अन्य राक्षसों के वध से लगा सकते हैं। एक ओर तो वे राक्षसों के वध से लगा सकते है। एक ओर तो वे राक्षसों का वध करते थे व्यक्ति नहीं है । श्री कृष्ण (विशुद्धि) के स्तर पर जब आप पहुँचते हैं तो वे चाहते हैं कि आप विराट या और दसरी ओर गोपियों के साथ खेलते थे. विराटांगना के अंग-प्रत्यंग बन जाएं। विराट सताते थे और लीला करते थे, क्यों? क्योंकि के अंग-प्रत्यंग बनकर आप ये न सोचते वो चाहते थे कि सभी प्रकार की लीला और फिरें कि अब आप पूर्णतः ठीक हो गए हैं । उत्सव होते रहे। एक बार जब प्रलयकारी ऐसा आपने कुछ नहीं करना। इसके आगे वर्षा हुई तो उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी आप क्या करते हैं वह मुख्य बात है। उंगली पर उठा लिया। लोगों को समझ आत्म साक्षात्कार के पश्चात् आपको देखना जाना चाहिए था कि ऐसा करना असम्भव है कि आपके अन्दर श्री कृष्ण सम विभूतियों कार्य था। यह तो चमत्कार था। परन्तु श्री कृष्ण अपनी नन्ही उंगली पर पर्वत को उठाकर खड़े रहे, गोप-गोपियों की रक्षा करने के लिए, अत्यन्त सहज रूप से उन्होंने ये कार्य किया। तत्पश्चात् यमुना के जल में उन्होंने (अवतरणों) के जीवन से आया हुआ प्रतिबिम्ब होना चाहिए। श्री कृष्ण ने बहुत कठिन परिस्थितियों में जन्म लिया। वहाँ से उन्हें गोकुल ले जाया कालिया मर्दन किया। ये भयानक सर्प यमुना गया जहाँ यशोदा जी ने उनका ललन पॉलन के जल में जहर फैलाकर लोगों की हत्या किया। वहीं पर उन्होंने अपनी लीला का के कर रहा था। बिना कुछ पूछे तो यमुना आरम्भ किया। अतः आपको भी विनोदशील होना होगा और विनोद एवं आनन्द की सृष्टि करनी होगी। उन्होंने कभी नहीं कहा कि पत्नी सर्पिणी ने उनसे प्रार्थना की कि वे उसे हिमालय में जाकर किसी बूढे संत की तरह क्षमा कर दें। ये सारी चीजें दरशाती हैं कि से बैठ जाओ। आपको बच्चों से घुल-मिल बिना किसी अहम के छः सात वर्ष में ये कार्य जाना चाहिए. उनसे बातें करनी चाहिए और करने बाल बच्चा कोई सामान्य व्यक्ति न उनसे खेलना चाहिए और आनन्द लेना था। अपनी उपलब्धियों के विषय में उन्होंने चाहिए। सारी लीला करते हुए भी वे मार्ग में सोचा तक नहीं, सारे कार्य कर डाले । क्योंकि जल में कद गए और कालिया मर्दन करके उन्होंने लोगों की रक्षा की । कालिया की मार्चअप्रै ल 2001 30 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 वो जानते थे कि बो श्री कृष्ण (अवतरण) हैं। जाते हैं उसकी सूची बनाते हैं. नाप-तोल लेते हैं और घर जाकर कहते हैं कि कल हम इस पर निर्णय लेंगे सहजयोगी का व्यवहार अतः पहली चीज जिसके विषय में आफने सावधान होना है, वह यह है कि आप साक्षात्कारी लोग हैं। आप साधारण रूप से ऐसा नहीं होना चाहिए। सहजयोगी को अपने कार्य करने वाले साधारण लोग नहीं है। निर्णय पूर्णतः स्वाभाविक ढंग से तत्क्षण ले आप विशेष लोग है जिन्हें सर्वशक्तिमान लेने चाहिए। आपको ऐसा होना चाहिए। परमात्मा के गुणों को प्रतिबिम्बित करने के मान लो कोई व्यक्ति डूब रहा है तो पहली लिए बनाया गया है। आपसे ये आशा नहीं अन्तः प्रेरणा ये होनी चाहिए कि आपको उसे की जाती कि आप जाकर कालिया जैसे बचाना चाहिए। किस प्रकार आप उसे बचाते हैं? आप पानी में कूद पड़े क्योंकि आपको तो परमेश्वरी सुरक्षा प्राप्त है। आपको कुछ नहीं असुरों का वध करें क्योंकि आज तो ऐसी स्थिति है कि आपकी हर समय रक्षा की जा हो सकता। अतः पानी में कूद कर उस व्यक्ति की रक्षा करें इस प्रकार का दृष्टिकोण रही है। कोई आपको हानि नहीं पहुँचा सकता। कोई आपकी हत्या नहीं कर सकता तथा सहजयोगी होने के नाते आपकी देखभाल होना तो कम से कम आवश्यक है। आपका स्वभाव ऐसा होना चाहिए कि आप अत्यन्त स्वाभाविक निर्णय लें। ये सभी चीजें परिवर्तित निर्णय लेने के विषय में व्यक्ति का क्या होती है, सभी प्रकार के सोच-विचार, निर्णय दृष्टिकोण होना चाहिए. यह बात उसे समझनी के लिए बड़ी-बड़ी गोष्ठी करना आदि चीजें चाहिए। निर्णय स्वाभाविक (सहज) होने आपके लिए नहीं है। रोजमर्रा के जीवन में चाहिए। निर्णय लेने के विषय में ढील नहीं भी आपको ऐसा ही होना चाहिए। राजनैतिक, की जा रही है। करनी चाहिए । तुरन्त जाकर चीज़ों को देखें और श्रीकृष्ण की तरह तुरन्त और सहज आपको नेतृत्व करना होगा और अत्यन्त सहज रूप से निर्णय लें, जैसे वो नदी में कूद पड़े। होना होगा। आर्थिक तथा जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी इसी प्रकार आपके निर्णय भी अत्यन्त स्वाभाविक होने चाहिए। मान लो आप एक किस सह ज आप प्रकार (spontaneous) हो सकते हैं मेरे अन्दर कालीन खरीदना चाहते हैं, ठीक है, दुकान पर जाए और सारा कुछ देख लें। जीवन के क्या गुण है? मेरे पास कौन से शस्त्र है? हर क्षेत्र में आपके निर्णय स्वाभाविक तथा आपको समझना होगा कि क्या निर्णय लू? तुरन्त होने चाहिएं। लेकिन मैं तो बिल्कुल क्या आप जानते है कि आपमें चैतन्य लहरियाँ भिन्न शैली देखती हूँ। लेग एक-एक दुकान है और आपको इनका एहसास है? आपका चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अप्र ल 2001 31 जानते हैं कि चैतन्य लहरियाँ क्या है? आप दुर्दशा थी और यह भूतही महल सी लगती ये भी जानते है कि चैतन्य लहरियाँ आपको थी। इसमें कोई सन्देह नहीं हैं । जो भी लोग क्या बता रही है और क्या सूचना दे रही हैं । मेरे साथ गए थे सभी कहने लगे, ऐसा चैतन्य लहरियाँ आपसे बाते करती है। चैतन्य स्थान! श्रीमाता ज़ी आप इसे नहीं खरीद लहरियों के माध्यम से आपको पलभर में सकते। जान लेना चाहिए कि आपको क्या करना है। किसी ने मुझे बताया श्री माताजी जब मैं कबैला आता हूँ तो मुझे बहुत अधिक चैतन्य रही हूँ कब? आज, अभी। वह हैरान था। आता है। ये बास्तविकता है। परन्तु आपमें मैने उससे पूछा कि मुझे बताएऐं कि किस से कितने लोगों को ऐसा महसूस होता है। प्रकार मैं इसे खरीद सकती हूँ। उसने बताया मैने मेयर को बताया कि मैं इसे खरीद कारण यह है कि अभी तक आपकी कि इटली में यह कार्य बहुत आसान है। एक संवेदनशीलता विकसित नहीं हुई। चैतन्य लहरियों के विषय में आपको पर कब्जा कीजिए इमारत में आपको यदि तिहाई कीमत देकर खरीद लीजिए इमारत अपनी संवेदनशील होना है। किसी पर भी दृष्टि कोई बुराई नजर आए तो आप इसे छोड़ डालकर, किसी के भी समीप बैठते ही आपको सकती हैं परन्तु आपको दिया हुआ पैसा पता चल जाना चाहिए। किसी से हाथ मिलाते छोड़ना पड़ेगा। विक्रेता यदि सौदे से इन्कार आपको पता चल जाना चाहिए के उस पैसा देना पड़ेगा। करता है तो उसे दुगुना हुए व्यक्ति की चैतन्य लहरियाँ कैसी हैं? इस मैंने कहा बहुत अच्छा सौदा है। मैं ये मकान प्रकार की संवेदनशीलता आप स्वयं में खरीद रही हूँ। मैने आपको बताया कि मैं विकसित कर लें तो निश्चित रूप से आप इसे खरीद रही हूं, मैं ये मकान खरीद रही सहज (Spontaneous) निर्णय लेंगे आप हूँ। सभी लोग हैरान थे कि श्री माताजी क्या जानते हैं मैं ऐसा करने में बहुत पारगंत हूँ। कर रहे है? तो किसने निर्णय किया? चैतन्य यह कबैला मैने पाँच मिनट में खरीदा था। लहरियों ने । केवल पाँच मिनट में। जब मैं यहाँ आई तो वे निर्णय हुआ और मैने कहा मैं इसे खरीद रही 1 स्थान की चैतन्य लहरियों ने। कहने लगे कि आप ऊपर नहीं जा सकतीं हूँ। इससे पूर्व मुझे सात किले दिखाए गए क्योंकि आपके पास बड़ी कार है। मेयर ने लेकिन मैंने कहा, नहीं। बाहर से ही मैने कहा आप आइये, मैं आपको अपनी कार में उनको खरीदने से इन्कार कर दिया। लोग ले जाऊंगा। मैं उनके साथ कार में गई और हैरान थे कि मैं किले के अन्दर तक नहीं थे जाकर पाया कि पूरी इमारत बहुत ही गई मैने उनसे कहा कि इनसे पूछो कि जीर्ण-शीर्ण स्थिति में थी पूरी इमारत की इसमें क्या था? बताया गया कि यहाँ मठ पैतन्य] लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 म1चं-अप ल 2001 32 (Nunnery) था। मैने कहा देखो। अब आपमें क्या है? स्वयं को परखने का यही तरीका भी इसी प्रकार से सहजता पूर्वक निर्णय लेने है। असफलताओं से घबराएँ नहीं और न ही की शक्ति विकसित होनी चाहिए । तब आप सफलताओं से मदमस्त हो जाए क्योंकि अब हैरान होंगे, इतने थोड़े में आप कितनी बड़ी आप आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति हैं। आप यदि उपलब्धि प्राप्त कर सकते हैं इसका अभिप्राय संवेदनशील हैं तो, नि:सन्देह तुरन्त जान ये नहीं है कि आप सभी ऐसा ही करने लगें। जाएंगे कि वास्तविकता क्या है? मैं ये नहीं सर्वप्रथम आपको चैतन्य लहरियों की वह संवेदनशीलता प्राप्त करनी होगी। करती हैँ, परन्तु करने का प्रयत्न अवश्य वह संवेदनशीलता जब आपमें आ जाएगी करें। तब मैं कहूँ गी कि आप सहजयोग में परिपक्व हो गए हैं। अत: परिपक्वता लाई जानी चाहिए। आप ये नहीं कह की बहुत अधिक प्रशंसा करते हैं और कहते स क ते कि कहूँगी कि आप भी वैसा ही करें जैसा मैं मैंने देखा है कि कुछ लोग किसी व्यक्ति अ ब है मुझे ढीक हैं कि वह बहुत अच्छा है, आप उससे अवश्य आत्मसाक्षात्कार मिल गया है। मैं ऐसा मिलें। ऐसा होगा वैसा होगा। मैने कहा ठीक कर सकता हूँ। पहले आपको अपनी है आप मुझे उरका फोटो दिखाएं। फोटो संवेदनशीलता का वजन आँकना होगा। देखकर मैने कहा मुझे खेद है मैं उससे नहीं ये आप किस प्रकार जान पाएगें? उदाहरण मिल सकती। उनकी समझ में मेरी ये बात के रूप में यह देखने के लिए कि आपका नहीं आती। इतना महान व्यक्ति है, कल कुछ नहीं है सब मिथ्या है, आप सहज निर्णय मंत्री बनेगा। मैं उससे नहीं मिलना चाहती। ये सम्भव है परन्तु आप स्वयं देख सकते अगले ही दिन समाचार पत्रों में उसके विषय हैं कि आपके निर्णय सहज होते हुए भी यदि में एक बहुत बड़ी रिपोर्ट छपी होती हैं कि असफल होते हैं. यदि वे गलत हैं. उनमें यदि कुछ गलतियाँ हैं तो के आपके लिए कष्ट लें। वह बुरा व्यक्ति है। अतः सहज ढंग से जो आपने निर्णय किए हैं उसकी सूझ-बूझ तथा अपने अनुभवों का मुकाबला करें। परन्तु मैं कहूँगी कि सहज निर्णयों पर डटे रहें इसके विषय में सोचे मत कि किस प्रकार ये कार्यान्वित होगा और हमें क्या करना चाहिए? कर होंगे, चाहे आर्थिक रूप से हों या राजनैतिक रूप से या किसी अन्य प्रकार से और तभी आपकी सारी मूल्य प्रणाली भली-भांति परखी जाएगी। कहाँ तक आप सहजयोग में उतरे हैं? कहां तक आपने आपके मस्तिष्क पर इसका बहुत गहन प्रभाव पडता है क्योंकि आप ये जानते हैं कि आत्म-साक्षात्कार पाया है और आपकी स्थिति पैतन्य लहरी खंड-XIII अक 3 व 4 मार्च -अ ल 2001 33 गलत क्या है और ठीक क्या है। मैं नहीं इतना बड़ा महल बनाया। वह महल जल के जानती कि आपमें से कितने लोगों ने मेरा नीचे चला गया था, फिर भी ये वहाँ विद्यमान था। इसी प्रकार जो भी अवतरण अवतरित बनाया हुआ घर देखा है? हुए वे अत्यन्त सृजनात्मक थे व्यक्ति में श्री कृष्ण का एक अन्य गुण ये था कि वे यदि सजनात्मकता नहीं हैं ता अत्यन्त सृजनात्मक थे। अपने बचचपन में ही आत्मसाक्षात्कार का क्या लाभ है? उन्होंने ये सब कार्य किए, सारी शरारते की महानतम सृजनात्मक कार्य जो व्यक्ति और बड़े होकर द्वारिका क्षेत्र के सम्राट बने। आसानी से कर सकता हैं वह है तब वे राजाओं जैसे वस्त्राभूषण धारण करते सहजयो गी बनाना। सुगमतम और थे। आखिरकार वे सम्राट थे शैशवकाल में आनन्ददायी कार्य अन्य लोगों को सहजयोगी वे मोर पंख धारण किया करते थे परन्तु बनाना और उन्हें वह दैवी आशीर्वाद देना है, राजा बनने के पश्चात् मुकुट धारण करके जिसे वे जन्म-जन्मातरों से खोज रहे थे। सिंहासन पर बैठकर राजाओं की शान से उन्हें ये आशीर्वाद देकर आप नहीं जानते कि लोगों से बात करते थे। उनमें ये सारी महानता आपको कितने आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। तो | थी और वे अत्यन्त सृजनात्मक भी थे। द्वारका अब आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो 1 चुका में उन्होंने सोने का एंक बहुत सुन्दर किला, है और मैं कहूँगी कि अत्यन्त आसानी से या कह सकते है महल बनाया। इस बात पर आपको ये प्राप्त हो गया है। सभी लोग क्या आप विश्वास कर सकते हैं? श्री कृष्ण कहते हैं कि यह तत्क्षण निर्वाण है। ने ये कार्य किया, परन्तु बाद में वह सब जल 'सहजयोग' तत्क्षण निर्वाण है ये बात में डूब गया । अब भारत के बुद्धिवादी लोग, जिन्हें पश्चिम से प्रशिक्षण प्राप्त हुआ है सत्य है। परन्तु जो चीज़ आपको आसानी से और तत्क्षण प्राप्त हो जाती है आप सोचते हैं कि यह सम्भव नहीं हैं। वो कहते हैं उसका मूल्य नहीं समझ पाते । आप लोग कि जल में कुछ नहीं है और न ही श्री कृष्ण कहते हैं कि भारत को आसानी से स्वतन्त्रता ने वहाँ कोई महल बनाया। यह सब मात्र एक कहानी है- एक मनगढंत कथा। परन्तु प्राप्त हो गई। स्वतन्त्रता इतनी आसानी से कुछ लोगों को इस बात पर विश्वास था. उन्होंने समुद्र प्राप्त नहीं हो गई कि वे उसका मूल्य न ये बात भी सत्य है कि कोई चीज यदि मुफ्त या बिना किसी प्रयत्न के के जल में खोज करवाई और समझे। परन्तु वहाँ एक बहुत बड़ा महल खोज निकाला । उसमें थोड़ा बहुत सोना भी शेष था। ये लोग प्राप्त हो जाए तो व्यक्ति उसका मूल्य नहीं आश्चर्य चकित थे कि किस प्रकार उन्होंने समझता। चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 34 आप सोचते हैं कि यह मेरा अधिकार है । के कारण उनकी मृत्यु हो गई आपको तो क्या आप जानते हैं कि आत्म-साक्षात्कार कुछ भी नहीं हुआ। बिना किसी कठिनाई के प्राप्त करने के लिए लोगों ने कितने कष्ट अत्यन्त प्रेमपूर्वक आप सबको आत्मसाक्षात्कार झेले? हिमालय में जाकर लोग एक टाँग पर मिल गया। आपको कुछ भी नहीं करना या सिर के भार खड़े होकर तपस्या करते थे. पड़ा, उसके लिए कोई पैसा भी नहीं देना फिर भी उन्हें आत्म-साक्षात्कार नहीं मिलता पड़ा। परन्तु इसका अभिप्राय ये नहीं है कि था। मैंने कुछ लोगों के विषय में सुना है जो आप इसका मूल्य ही न समझें बीज को यदि पृथ्वी माँ में डाल दिया जाए तो यह आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के लिए स्वतः अंकुरित हो जाता है और अंकुरण को अट्ठाइस वर्षों तक एक ही कमरे में बन्द जीवन प्रदान करता है और यह पहले पौधे रहे। ऐसा उन्होंने क्यों किया? क्योंकि उन्होंने और फिर पेड़ का रूप धारण करता है। सोचा कि अन्य लोगों तथा गन्दे वातावरण परन्तु आपको इसको सींचना होगा और माली की तरह से इसकी देखभाल करनी होगी। जहाँ तक आपका अपना सम्बन्ध है आपको से दूर रहकर शायद उन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाए। परन्तु उन्हें आत्म साक्षात्कार प्राप्त नहीं हुआ। अतः व्यक्ति को समझना स्वयं ये सब कार्य करना होगा। चाहिए कि चाहे मुझे आसानी से सर्व प्रथम आपको इसमें करुणा एवं प्रेम आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है फिर भी यह अत्यन्त महान और बहु मूल्यतम की खुराक डालनी होगी। क्या आपके अन्दर उपलब्धि है। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना करुणा एवं प्रेम है? क्या आप लोगों से प्रेम बहुत सुगम नहीं है। आत्मसाक्षात्कारी लोगों करते हैं? आज ही किसी ने मुझे बताया और के विषय में आप पढ़ते हैं। शायद वे तो मुझे सदमा लगा, "कि मुझे बच्चे पसन्द नहीं जानते भी न थे कि किस प्रकार उन्हें ये है।" मैने पूछा, "आपको बच्चे अच्छे नहीं प्राप्त हो गया वे तो कुण्डलिनी के विषय में भी न जानते थे फिर भी उन्हें आत्म साक्षात्कार हैं अपने नहीं। इसकी कल्पना कीजिए |! लगते? नहीं, मुझे अन्य लोगों के बच्चे पसन्द आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? ऐसी बात मिल गया। अपने गुरु के माध्यम से या आप कैसे कह सकतें हैं? आपको अपने ही बच्चे अच्छे नहीं लगते! सर्वप्रथम आप सबको मैं ये कहूँगी कि कभी भी ये नहीं कहना चाहिए कि मुझे पसन्द है या मुझे पसन्द नहीं है । ये उल्टे मंत्र हैं। ये आम बात है कि 'मुझे ये पसन्द है। आप कौन हैं? मुझे ये कालीन सम्भवतः अपनी तपस्या के कारण। बुद्ध को ही लें, आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के लिए उन्हें कितना कष्ट उठाना पड़ा? इसके बारे में सोचें । कैसे उन्हें आत्म साक्षात्कार प्राप्त हुआ? उनके जीवन के कष्टों को देखकर आप कॉँप उठेगे अन्ततः दारिद्रय और भूख चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 मार्चअप्रैल 2001 35 पसन्द है या मुझे ये कालीन पसन्द नहीं है। लिए ले जाया करते थे। इस कार्य को श्री मुझे ये चाँदी की चीज़ अच्छी नहीं लगती । आप कौन होते हैं? क्या आप कोई ऐसी ये संत भी जल की कॉवड़ उठाकर महाराष्ट्र कृष्ण के प्रति महान समर्पण माना.जाता था । चीज बना सकते हैं? इस प्रकार कोई निर्णय में स्थित अपने गाँव से चला। जब वह लेना भी ये दर्शाता है कि लोग सोचते हैं श्री कृष्ण मन्दिर की तलहटी तक पहुँचा तो ऐसा करना भी अत्यन्त सहज है। ये सहज उसने देखा कि एक गधा प्यास से मर रहा नहीं है। अपने बन्धनों (पूर्व-संस्कारों) के है। अपनी काँवड़ का जल उन्होंने गधे को कारण आप सोचते है कि आपको ये कहने पिला दिया। सभी लोग कहने लगे कि इतनी का अधिकार है कि मुझे पसन्द नहीं है. मैं दूर से, कितने ही मील चलकर, देवता पर नहीं चाहता। परन्तु आप कौन होते है? आप चढ़ाने के लिए जो जल आप लाए थे उसे यदि आत्मा हैं तो आप कभी भी ऐसे शब्द आपने गंधे को पिला दिया! संत ने कहा, उपयोग नहीं करेगें, क्योंकि इनसे किसी को भी चोट पहुँच सकती है । 1 "क्या आप नहीं जानते कि परमात्मा इस जल को लेने के लिए नीचे उतर आए हैं?" उनका दृष्टिकोण देखें। अतः आत्मसाक्षात्कारी कभी भी आप ऐसी कोई बात नहीं करेंगे जिससे दूसरे लोगों को चोट पहुँचे, कभी भी आप ऐसा कोई कार्य नहीं करेंगे जा दूसरा की करुणा इस प्रकार की होनी चाहिए । अत्यन्त उदारता से परिपूर्ण ।आप यदि उदार नहीं हैं कंजूस हैं, सदैव अपने पैसे की के लिए भयानक हों। सदैव अत्यन्त प्रेममय, बचत के विषय में चिन्तित रहते' हैं तो आप परिपक्व सहजयोगी नहीं है अभी करुणा और शान्ति प्रदान करने वाली बाते कहें। अन्य लोगों के प्रति आपको आनन्द आप परिपक्व नहीं हैं। इसके अतिरिक्त ऐसा प्रसार करना है। आत्मा की शक्ति अन्य धन आपको प्रसन्नता भी नहीं प्रदान करेगा । लोगों को आनन्द प्रदान करती है। आप कंजूसी आत्मा के विरूद्ध है। आत्मा अत्यन्त यदि उदासीन है तो आप उदार है-अत्यन्त उदार । यह कभी कुछ आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं। बचाने का प्रयत्न नहीं करती, किसी को आपको आनन्द प्रेम एवं करुणा प्रदान धोखा देने का प्रयत्न नहीं करती, कुछ चुराने करने के योग्य होना चाहिए और ये सब का प्रयत्न नहीं करती। इन सब बातों का सहज रूप से घटित होना चाहिए। भारत के प्रश्न ही नहीं होता क्योंकि ऐसे व्यक्ति में महाराष्ट्र प्रदेश के एक संत की कहानी है। लोभ बाकी नहीं रहता। उसमें लोभ का वहाँ के सभी लोग काँवड़ में जल भरकर नामों-निशान नहीं रहता और यही कारण है गुजरात स्थित श्रीकृष्ण मन्दिर में चढ़ाने के कि आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति कभी दोषी नहीं fuY श्री चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मारच-अप्रै ल 2001 36 होता। उसे अत्यन्त उदार होना पड़ता है। व्यक्ति का पतन हो गया। किसी भी हालात मैंने ऐसे बहुत से लोग देखे हैं जो अत्यन्त में आपको कुछ नहीं माँगना चाहिए क्योंकि उदार हैं और दूसरों की समस्याओं की जिन्हें अब आप पूर्ण हैं। केवल सन्तुष्ट नहीं हैं पूर्ण बहुत समझ है। कोई सहजयोगी यदि हैं। कोई आपको क्या दे सकता है? जब अपनी ही समस्याओं से घिरा हुआ है तो आप पूर्णता की स्थिति में होते हैं तो वह बिल्कुल भी सहजयोगी नहीं है। सारी इच्छाएं लुप्त हो जाती हैं । जैसे आज जब मैं आ रही थी तो मैने देखा बहुत से सितारे निकल आए हैं । मैने कहा, ज्यों ही आप अन्य लोगों की समस्याओं का समाधान करने के लिए हैं केवल अपनी समस्याओं का नहीं और न ही ये कहते चन्द्रमा उदय होगा ये सब लुप्त फिरने के लिए कि मेरी ये समस्या है। इसी प्रकार जब आप पूर्ण होते हैं तो हो जाएगें। समस्या (Problem) शब्द आधुनिक युग की देन है। इससे पूर्व हमने कभी ये शब्द उपयोग नहीं किया था। ज्योमिति में हम Problem शब्द का उपयोग करते थे। परन्तु अब इसकी आप किसी से आशा नहीं करते कि करे। इसके विपरीत आपके लिए कुछ आप ये देखना चाहते है कि आप अन्य लोगों के लिए क्या कर सकते हैं। आप उपयोग शुरु हो गया है। लोग कहते हैं कोई इस प्रकार परिव्तित होते हैं कि अन्य सभी समस्या में फँसे हुए हैं। मेरे विचार में वे लोगों की समस्याओं को भी अपने प्र स्वयं समस्याएं हैं। ले लेते हैं उनकी समस्याओं में कूद पड़ते हैं। ाब ये अत्यन्त रोचक विकास है जो आपमें अतः आपको समझना है कि अपनी समस्याएं दूसरे लोगों को नहीं देनी घटित होना चाहिए। यह आप सबमें घटित चाहिएं। किसी से कुछ माँगना नहीं होना चाहिए क्योंकि आपने आत्मसाक्षात्कार चाहिए। कृपा करके मेरा ये कार्य कर प्राप्त कर लिया है । आपमें ऐसा व्यक्तित्व दें, मेरा वो कार्य कर दें आश्चर्य की विकसित हो जाता है जो केवल अन्य लोगों बात है कि लोग दूसरों का लाभ उठाते के लिए जीवित रहता है अपने लिए नहीं। हैं। कुछ लोग किसी देश की यात्रा आप हैरान होंगे कि आप कहीं भी रह सकते करना चाहते हैं तो वो कहेंगे कि आप हैं. कहीं भी सो सकते हैं। आप चाहें तो मुझे बुला लीजिए मैं आपके देश में खाना खा सकते हैं न चाहें तो इसकी कोई आना चाहता हूँ और कोई भी उदार सहजयोगी कह देता है, ठीक है आ जाओ । ऐसी स्थिति में माँगने वाले क्योंकि अब आप अन्दर से संतुष्ट हैं । अब आवश्यकता नहीं रहती। जैसा भी भोजन आपको मिलेगा आप उसका आनन्द लेंगे। चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 3 व 4 | चं-अप्रै ल तो आपको दूसरे लोगों के लिए खाना बनाना अन्य भाई ने बाबा मामा से पूछा कि तुम्हें ये अच्छा लगेगा। उन्हें भोजन दें जहाँ तक हो उर्दू कविताएं कैसे सूझतीं हैं? उन्होंने उत्तर सके अन्य लोगों के लिए कार्य करें। परन्तु दिया, "सभी कुछ मुझे श्रीमाताजी बताती कुछ लोगों की अपनी ही समस्याएं हैं। हैं। वे यही कहा करते थे, "माताजी मुझे वे सहजयोगी नहीं है आत्मा को किस सब कुछ बताती हैं। प्रकार समस्याएं हो सकती हैं? किस प्रकार आत्म - साक्षात्कारी व्यक्ति को उठती हैं और आप स्वयं पर ही आश्चर्य समस्याएं हो सकती हैं। अतः इस बात करते हैं कि किस प्रकार यह सृजनात्मकता को समझे कि अब आप आत्मा हैं और मुझमें जाग उठी! किसी गणितज्ञ के कवि सभी चीजों से ऊपर हैं। आपकी बन जाने की कल्पना करें। यह असम्भव आपके अन्दर की सृजनात्मकता खिल सृजनात्मकता भी अब नए आयाम प्राप्त करती है । स्थिति है परन्तु आपमें ये क्षेम है । आप सबमें ये योग्यता है कि आप सृजनात्मक बन सकते हैं । सभी प्रकार से आपने सृजनात्मक बनना अब आप अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार देने लगते हैं, कला का सृजन करते हैं। आप है। मैं कहना चाहूँगी कि मैं भी बहुत बाबा मामा को जानते हैं। साहित्य का उन्हें सृजनात्मक हूँ। हर समय मैं कुछ न कुछ कोई खास ज्ञान न था और न ही उन्हें भाषा कार्यान्वित करती रहती हूँ और मेरा कार्य का ज्ञान था। वो तो गणित में पारंगत थे बखूबी होता है। सामान्य लोगों की तरह से क्योंकि मेरे माताजी भी गणितज्ञ थे। तो मुझे इस बात की भी आकांक्षा नहीं होती कि बाबामामा को भाषा का कोई विशेष ज्ञान न मेरे कार्यों की प्रशंसा की जाए या ये समाचार था। भाषा में उनकी इतनी बुरी हालत थी कि स्कूल के उनके प्रस्ताव मैं लिखा करती दिलचस्पी नहीं। सृजन के लिए सृजन करें। पत्रों कि सुर्खियों में हों। इसमें मेरी कोई थी। परन्तु आत्म-साक्षात्कार के पश्चात् आप भी सृजन के लिए सृजन करें। उन्होंने इतनी सुन्दर कविताएं लिखीं कि सृजनात्मकता का आनन्द लें और जो भी विश्वास ही नहीं होता! कोई सोच भी नही कुछ लोग कहते हैं या करते हैं उसे सहज सकता कि ये बाबा मामा ऐसा लिख सकते है, क्योंकि भाषा का तो उन्हें ज्ञान ही न था। रूप से लें। हों सकता है लोग आपके प्रति आक्रामक हों या आपकी प्रशंसा कर रहे हों। जैसा मैंने आपको पहले बताया उनके लिए लेकिन इन चीज़ों का आप पर कोई प्रभाव प्रस्ताव मैं लिखा करती थी आश्चर्य की नहीं होंना चाहिए। कई बार आप जब कहते बात है, उन्होंने उर्दू, हिन्दी और मराठी में हैं श्री माताजी की जय' तो आपके साथ-साथ कविताएं लिखनी शुरू कर दीं । मेरे एक मैं भी कहती हैं। मैं भूल जाती हैं कि आप वैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 3 व 4 मार्च-अ ल 2001 38 लोग मेरी जयकार कर रहे हैं। जो भी हो उच्च अवस्था में पहुँच जाते हैं जब आप आपको इन सब चीजों से ऊपर उठ जाना परिवर्तित होते हैं चाहिए । तो उत्क्रान्ति की उच्च अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं। आपका स्वभाव परन्तु लोगों का व्यवहार समझ में नही बल्कुल बदल जाता है और आप उठ खडे होते हैं। सहजयोगी भी यदि अन्य लोगों की आता। उनका व्यवहार ऐसा क्यों है? सहजयोग में आकर भी उनमें अगुआ बनने की, सहजयोग के आयोजक बनने की तीव्र तरह से हों तो सहजयोग अपनाने का क्या लाभ है? ईसा मसीह कौन थे? वे एक बढ़ई के पुत्र थे। उन्हें बिल्कुल भी शिक्षा प्राप्त न इच्छा होती हैं । वो चाहते हैं कि सहजयोग में सभी लोग उन्हें जानें। महान सहजयोगी के हुई। परन्तु उन्होंने क्या कर दिखाया? वे रूप में वे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति पाना चाहते है. आत्मा थे। उन्होंने अपने अन्दर के परमात्मा परन्तु ये कभी नहीं सोचते कि मैंने क्या को प्रतिबिम्बित किया और क्रूसारोपित हो सृजनात्मकता द्शाई है, क्या सृजन किया गए सहजयोग में आपको क्रूस पर नहीं है? मानव में ये आम बात है, वो चाहते हैं कि चढ़ना पड़ता। अन्य लोग उनकी प्रशंसा करें और उनका यहाँ आपके लिए ऐसी कठिन परिक्षाऐं बड़ा नाम हो। किस कारण से? आप यदि आत्मा हैं तो, सभी जानते हैं, दिखावे के नहीं हैं परन्तु आपकी मूल्य प्रणाली की लिए, प्रदर्शन के लिए क्या है. आगे आने के परीक्षा होती है । अन्तर्दर्शन द्वारा इस लिए क्या है? आप चाहे सबसे पीछे हों फिर बात का पता लगाएं कि आप किस प्रकार भी आप जानते हैं कि प्रकाश है ।अतः आपको अपने अन्धेरों में से निकलना होगा क्योंकि कार्य कर रहे हैं । स्वयं से पूछे कि श्रीमान सहजयोगी, आप कैसे हैं ?' क्या आप प्रकाश हैं और प्रकाश फैलाते हैं। अब भी आप उन सारी चीजों में लिप्त इसकी अपेक्षा आप स्वयं यदि अंधेरे में हैं जिनमें वो लोग लगे हुए हैं जो हैं तो क्या प्रकाश फैलाएंगे? आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं? खोजने का अंतः आपकी आत्मा को समस्याएं नहीं हो प्रयत्न करें क्योंकि सहजयोग की उन्नति सकतीं। इसे कोई भय नहीं है। सर्वोपरि आपके आचरण से, आपकी शैली से इसमें विवेक है, गहन विवेक और आपके और आपके चेहरे पर दिखाई देती है । अत्यन्त उच्च व्यक्तित्व का यही चिन्ह है। ऐसे व्यक्ति के चेहरे पर झुर्रियां भी नहीं जैसा मैंने बताया यह उत्क्रान्ति है और जब होती उसे कोई चिन्ता नहीं होती और आप परिवर्तित हो जाते है तो उत्क्रान्ति की चिन्ता यदि न हो तो झुर्रियां नहीं पड़तीं । चेतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अप्र ल 2001 39 ऐसा व्यक्ति किसी से परेशान नहीं होता। कि मेरे पति मेरे भाई की तरह से हैं। मैने इसके विपरीत वह घटनाओं पर हँसता है। कहा, वास्तव में । उनके मस्तिष्क सभी प्रकार स्विजरलैण्ड के एक चर्च में एक बार एक के मूर्खता पूर्ण विचारों से भरे हुए थे। कहने महिला बाइबल से मुझे मारने के लिए आई से अभिप्राया ये है कि उनके अन्दर आत्मा के मैं हॅँसने लगी कि मैं भी क्या चीज़ हूँ जिसे प्रकाश का पूर्ण अभाव था।आत्मा का प्रकाश खाइबल ग्रन्थ द्वारा चोटें पहुँचाई जाने वाली जब आपमें होता है तो आपकी समझ हैं। उस महिला ने जब मुझे हँसते हुए देखा भी बिल्कुल भिन्न होती है । अपनी चिन्ता तो वह घबरा गई। मैं कह रही थी कि आपको नहीं होती। आप दूसरों के लिए इसकी मूर्खता को देखो, ये मुझे बाइबल से चिन्तित होते हैं और उन्हीं की समस्याओं मारना चाहती है। चोट मारने के लिए पत्थर का समाधान खोजने में लगे रहते हैं । आदि कोई अन्य चीज तो समझ आती है उनकी सहायता करने का प्रयत्न करते परन्तु बाइबल तो मुझे कभी भी चोट नहीं हैं ऐसा करना, आपके लिए बहुत आसान पहुँचाएगी। ये सारी घटनाएं आपके सम्मुख है दीपक के लिए सबसे सहजकार्य क्या हुई हैं और इनके विषय में आप जानते हैं। हैं? जलना। एक बार जब यह प्रकाशित हो है नकारात्त्मक शक्तियाँ आपको हानि तो यह जलता रहता है। प्रकाश-हीन जाता पहुँचाना चाहती हैं। वो आपको बुरी होना इसके लिए कठिन होता है परन्तु तरह से हानि पहुँचाएगी। मानसिक रूप से वो आपको हानि पहुँचाएगी और हो और इतने वर्षों तक उन्नत होने के बाद भी मानव में, मैं नहीं समझ पाती, आत्मसाक्षात्कार सकता है भावनात्मक रूप से भी हानि इतनी मूर्खताएं भरी रहती हैं कि वे अपने को नहीं कर पाते! यह आत्मा है आप इसे मार नहीं पहुँचा सकता, कम से कम हानि का सकते ये बुझ नहीं सकती। साधारण दीपक प्रभाव आप पर नहीं होता। इस हानि की बुझ सकता है परन्तु आत्मा रूपी दीपक चिन्ता आप नहीं करते। परन्तु आपने क्या कभी नहीं बुझ सकता। इस दीपक में कौन पहुँचाएं। परन्तु जब आप इनसे ऊपर उठ जाते हैं तो कोई आपको हानि नहीं आत्मसाक्षात्कार की महत्ता महसूस सृजन किया है? आज मेरे पास कुछ महिलाएं सा तेल जलता है? आपकी करुणा, प्रेम और पुरुष आए। वे सब तलाक के लिए आए थे। सहजयोग में विवाह करने के पश्चात् वे तथा अन्य लोगों के प्रति सेवाभाव ही इसका तेल है मैं जानती हूँ कि कुछ लोग अत्यन्त तलाक के लिए आए थे। क्या आप इसकी रौबीले और कष्टदायी होते हैं, परन्तु उनका कल्पना कर सकते हैं? मुझे बहुत सदमा भी ध्यान रखें। समझ लें कि वे आप जैसे पहुँचा। उनके विचार बड़े अजीबोगरीब थे नहीं हैं, वे पूर्ण नहीं हैं उनमें समस्याएं हैं। बैतन्य लहरी खंड-Xll अंक 3 व 4 मार्चअप्रल 2001 40 उनकी देखभाल के पैर अत्यन्त गन्दे और फटे हुए थे। उन्होंने करने के स्थान पर यदि आप सोचने लगते उनके फटे हुए पैरों पर बाम लगाई। फटे हुए हैं कि मैं क्यों उसकी चिन्ता करूं, ये मेरे पैरों को आराम पहुँचाने के लिए उन्होंने अतः उनकी देखभाल करें यथासम्भव प्रयत्न किए और अपने बिस्तर पर उन्हें सुलाया महिलाओं को उन्हें पंखा सकते हैं, इस प्रकार की प्रतिक्रिया आत्मा झलने के लिए कहा ताकि वे चैन से सो की नहीं हो सकती। आध्यात्मिक व्यक्ति की सकें। श्रीकृष्ण की करूणा को देखें, ये कितनी लिए क्या करता हैं, तो हो गया आपका । इस प्रकार की अभिव्यक्ति या, कह पतन 1 प्रतिक्रियाएं बिल्कुल भिन्न होती हैं । सुन्दर थी! क्या हम भी उतने करुण हैं? यह सब करने की श्रीकृष्ण को कोई आवश्यकता न थी। यह कोई नाटक न था। उनके हृदय मित्र अत्यन्त दरिद्र थे। वे श्रीकृष्ण से मिलने का सहज निर्णय था। सुदामा के आने की आए। उनकी पत्नी ने भेंट के रूप में भुने हुए खबर मिलते ही वे नंगे पाँव दौड़ पड़े। पुराने चावल भेजे क्योंकि प्रथा है कि किसी मित्र मित्र के आने पर वे अत्यन्त प्रसन्न हुए। के जीवन को देखें उनके एक श्री कृष्ण से मिलने जाऐं तो कुछ लेकर अवश्य जाऐं। उन्हें काफी संकोच हो रहा था जब वे पहुँचे बाद में जब वे हस्तिनापुर गए तो कौरव तो श्रीकृष्ण अपने महल में थे और द्वारपालों के बड़े पुत्र दुर्योधन ने उनसे कहा कि आप ने उन्हें महल में जाने की आज्ञा न दी। आइए और मेरे महल में ठहरिए। तो श्रीकृष्ण उन्होंने द्वारपालों से कहा आप जाकर श्री ने उत्तर दिया ठीक है मैं तुम्हारे पास ठहरूंगा कृष्ण को केवल इतना बता दें कि सुदामा परन्तु भोजन में विदुर के साथ करुंगा। विदुर आया है । श्री कृष्ण अपने सिंहासन पर बैठकर एक दासी के पुत्र थे श्रीकृष्ण ने उनके यहाँ कुछ विचार- विमर्श कर रहे थे उन्होंने भोजन किया गरीब विदुर ने न जाने उनको सुना तो कह उठे सुदामा आए हैं? सिंहासन क्या भोजन कराया होगा? दुर्योधन तो उन्हें छोड़कर वे दौड़ पड़े और द्वार पर पहुँचकर राजसिक भोजन खिलाते । तो ऐसे व्यक्तियों | बार-बार सुदामा को गले से लगाया। उनसे के लिए स्वाद और खाने के स्तर का कोई पूछा, "तुम यहाँ क्यों खड़े हों? सुदामा को महत्व नहीं रह जाता। आत्मसाक्षात्कारी विदुर ले जाकर उन्होंने अपने सिंहासन पर बैठाया को उन्होंने सम्मान दिया अन्य सहजयोगियों और अपनी पत्नी से कहा कि इनके चरण का सम्मान आवश्यक है। कोई सहजयोगी धोओ।" तब उन्होंने उनके लिए वस्त्र मंगवाए यदि किसी गवर्नर का सम्मान करें तो ये और स्नान करवाया। अपने बिस्तर पर उन्हें बात समझ नहीं आती। आत्मा इन सब चीजों सुलाया। श्री कृष्ण के प्रेम को देखें! सुदामा से ऊपर है सहजयोगीं में भी यदि कोई चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 41 त्रुटि है तो ये उसका भी सम्मान नहीं करती। हमें समझना चाहिए कि आध्यात्मिक व्यक्ति बड़े-बड़े नामों तथा ख्याति वाले लोगों से कहीं अधिक ऊँचा होता है। सभी आध्यात्मिक रही थी। उनकी शक्ति में विवेक एवं सूझ-बूझ थी। विवेकहीन शक्ति दिव्य शक्ति न होकर आसुरी शक्ति हो सकती है। कोई भी व्यक्ति आपके प्रति तभी शुभ-चिन्तक हो सकता है व्यक्तियों के जीवन से फ्रेम झलकता है। जब आप उसके शुभ-चिन्तक हों। भारत में सभी संतों, सभी अवतरणों में प्रेम सर्वोपरि बहुत से अवधूत हुए। वे आत्मसाक्षात्कारी थे था बिना किसी आकांक्षा के. किसी इच्छा जिन्होंने अपना समाज लोगों की भीड़-भाड से नहीं, वे प्रेम करते थे उनका व्यक्तित्व को त्यागकर किसी छोटे से स्थान या गुफा ही ऐसा होता है, जिससे परमात्मा का प्रेम में तपस्या का जीवन गुजारा। उन्होंने सोचा प्रतिबिम्बित होता है। वही प्रतिबिम्ब आपसे कि जब लोग उनकी बात को समझ ही नहीं भी झलकना चाहिए। आप सहजयोगी हैं सकते तो उनकी बात का क्या लाभ है। ऐसे परन्तु इसका अभिप्राय ये नहीं कि आप अन्य लोग गिने-चुने हैं। कोई एक यहाँ था और लोगों से उच्च हैं। नि:सन्देह आप अन्य लोगों दूसरा कहीं ओर। बो क्या कर सकते थे? से भिन्न हैं, उनसे उन्नत हैं। श्रेष्ठ होने का आप सहजयोगियों की तरह से वो इतनी अहं आपमें नहीं है इसीलिए आप उनसे भिन्न बड़ी संख्या में न थे आप सहजयोगियों की तरह से वो इतनी बड़ी संख्या में न थे। आप अत्यन्त विनम्र हैं इसीलिए आप भिन्न हैं आप अत्यन्त आन्नदमय हैं, अत्यन्त आपके साथ बहुत से सह जयोगी मित्र हैं। वे शांत है इसी कारण अन्य लोगों से भिन्न हैं। अकेले थे और उन्होंने समाज से स्वयं को छुपाकर रखा। वे लोगों से न मिलते थे श्रीकृष्ण के जीवन की बहुत सी बातें मैं क्योंकि उन्हें भय था कि उन्होंने यदि कुछ आपको बता सकती हूँ जो ये दर्शाती हैं कि बताया तो उनकी हत्या कर दी जाएगी। वे योगेश्वर थे। वे योग के स्वामी थे। वे परन्तु आप लोगों के साथ ऐसा नहीं हो विराट थे। परन्तु उन्होंने अपना विराट रूप केवल अर्जुन को दिखाया किसी अन्य को अत्यन्त शानदार आध्यात्मिक लोगों तथा अच्छे नहीं। कोई भी अन्य व्यक्ति अर्जुन सा नहीं मित्रों का प्रबुद्ध समाज आपके साथ है। ये विराट रूप को देखकर अर्जुन भी घबरा सब होते हुए भी यदि आप सृजन नहीं कर गए। ग्वाले की तरह से श्री कृष्ण गोकुल में सकते तो मैं क्या कहूँ? आपको कुछ सृजन रहे और कभी अपनी शक्तियों का प्रदर्शन करना होगा चाहे वह कला हो, संगीत हो, नहीं किया। उनकी शक्तियाँ अन्तर्निहित थीं कविता हो, साहित्य हो, लेख हो या कोई और इनकी अभिव्यक्ति सहज रूप से हो अन्य चीज आपको सृजन करना होगा। सकता क्योंकि आपका तो सहज समाज है। था। ाच-अप्र ल 2001 42 मैततन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 सृजन की यही मुख्य उपलब्धि आपने पानी वे आपका अनुसरण करें और सहजयोग होगी। सर्वत्र सहजयोगी बनाना ही आपका अपना लें। आप यदि पूर्णत्व प्राप्त कर लें तो मुख्य कार्य है। मैं यहाँ हूँ परन्तु अपने वास्तव में आप महायोगी हैं। आपको यह उदाहरण से आप लोगों को यह (सहजयोग) अवस्था प्राप्त करनी ही होगी। महायोगी दर्शाना होगा कि यह कुछ महान चीज़ है। बनने से अधिक महत्वपूर्ण कार्य कुछ भी नहीं किस प्रकार बड़े-बड़े तपस्वियों ने ये स्थिति है। इस अवस्था में आपकी आत्मा सभी को प्राप्त की? आपको भी वह स्थिति प्राप्त करनी आनन्द शान्ति और आशीर्वाद प्रदान करती है। आप ही सभी को प्रेरित कर सकते हैं कि है। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें । मार्च-अप्रै ल 2001 43 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 सहसार चुक्र नई दिल्ली 4 फरवरी, 1983 (श्री चक्र एवं ललिता चक्र का वर्णन) (निर्मला योग से उद्धृत) परम् पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज मैं आपको अन्तिम चक्र, सहस्रार और मस्तिष्क में स्थित सात पीठों को, जो के बारे में बताऊंगी। सहस्रार अन्तिम Limbic area की मध्य रेखा पर रखे गये हैं. चक्र, मस्तिष्क के तालू क्षेत्र (Limbic area) प्रकाशित करती है। अगर हम पीछे से के अन्दर होता है। हमारा सिर नारियल शुरू करें तो सबसे पीछे मूलाधार चक्र है, जैसा है । नारियल के ऊपर जटाएं होती हैं उसके चारों तरफ स्वाधिष्ठान, फिर नाभि, फिर उसका एक सख्त खोल (Nut) होता फिर अनहत, फिर विशुद्धि और उसके बाद है, फिर एक काला खोल और उसके आज्ञा चक्र होता है इस तरह यह छ: चक्र अन्दर सफेद गिरी और उसके अन्दर मिलकर सातवाँ चक्र सहस्त्रार बनता है । रिक्त स्थान (Space) और पानी होता है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात है जो हमें पता हमारा मस्तिष्क भी इसी प्रकार बना होता होनी चाहिए। श्री चक्र दांयीं ओर की है। यह श्रीशक्ति का फल है श्री शक्ति कार्य शक्ति है और ललिता चक्र बांयी दांयीं तरफ की शक्ति है, और बाँयीं तरफ ओर की कार्य शक्ति है । अत: जब की शक्ति ललिता-शक्ति है। तो हमारे कुण्डलिनी नहीं जागृत होती, तो हम दांयीं अन्दर दो चक्र हैं-बाँयें कंधे के जरा ओर की शक्ति से शारीरिक और मानसिक नीचे ललिता चक्र और दाहिने कंधे के कार्य करते हैं. इसलिये हमारा मस्तिष्क जरा नीचे श्री चक्र। ये दो चक्र. दाँयीं दांयीं ओर की क्रिया करता है। अत: तरफ महासरस्वती शक्ति और बाँयीं तरफ हमारा मस्तिष्क श्रीफल की तरह है। महाकाली शक्ति को चलाते हैं। कुण्डलिनी शक्ति दोनों के बीचोंबीच है। और यह एक खाली स्थान है, जिसके सहस्रार वास्तव में छः चक्रों का समूह है, उसे उठकर अलग-अलग च क्रों को दोनों तरफ एक हजार नाड़ियाँ होती हैं भेदकर Limic area में प्रवेश करना होता और जब प्रकाश Limbic area मे आता है, है और वहाँ सातों चक्रों को प्रकाशित तब इन नाड़ियों का प्रज्जवलन होता हैं. करना होता है। तो वह छः चक्रों को और वे लौ (ज्वाला) के समान दिखाई देती भेदकर Limbic area में प्रवेश करती है हैं। बहुत ही सौम्य लौ के समान दिखाई चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अप्र ल 2001 44 देती हैं और इन सबकी लौ में वो सभी यानि आप रंग देख सकते हैं, आप रंगों के सात रंग होते हैं, जो इन्द्रधनुष में दिखाई अलग -अलग रूप देख सकते हैं, आप देते हैं। परन्तु अन्तिम लौ अन्त में समग्र वस्तु की उत्तमता (quality) को देख सकते लौ बन जाती है। यह बिलकुल (crystal हैं। लेकिन आप यह नहीं बता सकते कि क्या यह कालीन किसी संत ने इस्तेमाल clear) स्वच्छ लौ होती है। अतः ये सब सात तरह के प्रकाश अन्त में एक स्वच्छ किया हुआ है? आप यह नहीं बता सकते कि यह किसी दैवी व्यक्ति ने बनाया है या (crystal clear) प्रकाश बन जाते हैं। हैं किसी दानव ने। आप यह भी नहीं बता । सकते कि यह व्यक्ति अच्छा है या बुरा है। सहस्रार में जिन्हें एक हजार पंखुडियाँ कहते हैं। एक हजार नाड़ियाँ होती लेकिन यदि आप मस्तिष्क को आडा आप यह भी नहीं बता सकते कि यह (transverse) 5 (horizontal) काटे तो आप देख सकते हैं अपने किसी रिश्तेदार के बारे में यह नहीं कि ये सब नाड़ियाँ इस तरह से, पंखुडियों बता सकते कि यह अच्छा रिश्तेदार है या की तरह, Limbic area में रखी होती हैं। बुरा रिश्तेदार, या वह किस प्रकार का और अगर आप इस तरह से (vertically) व्यक्ति है। वह गलत प्रकार के लोगों के खड़ी काटे, तो आप पायेंगे कि हर एक पास जाता है या सही लोगों के पास जाता नाड़ियों के संग्रह में कई नाड़ियाँ हैं। इस है उसके गलत सम्बन्ध हैं या ठीक? यहां प्रकार मस्तिष्क प्रदीप्त होने के पश्चात् 'ठीक का मतलब दैवी से है। तो आप सहस्रार लौ के एक जलते हुए गट्ठे अपने मस्तिष्क से दैवी (Divine) के बारे में (burning bundle) के समान दिखाई देता भी नहीं जानते। कुछ भी नहीं, कुछ देवता (deity) स्वयंभु हैं या नहीं। आप काटें या समतल कुछ भी नहीं जानते। एक मनुष्य की आध है यह बड़ा गहन विषय है इस प्रकार कुण्डलिनी द्वारा मस्तिष्क याल्मिकता को परखना आपके लिए असंभव है जब तक कुण्डलिनी Limbic मस्तिष्क में अनुभूति होती है। इसीलिए area में न पहुँच जाये । आप यह नहीं प्रदीप्त कर देने पर सत्य की आपके यह सत्यखण्ड' कहलाता है, यानि आप मालूम कर सकते कि यह मनुष्य सच्चा है सत्य को, जो आपके मस्तिष्क द्वारा ग्रहण या नहीं। यह गुरु सच्चा है या नहीं। होता है, देखना शुरु कर देते हैं। क्योंकि क्योंकि दिव्यत्व (Divinity) की आपके इससे पहले जो कुछ भी आप अपने अपने मस्तिष्क में अनुभूति नहीं हो सकती, मस्तिष्क द्वारा देखते हैं, सत्थ नहीं होता जब तक कि आपकी आल्मा का प्रकाश जो आप देखते हैं सिर्फ बाह्य रूप ही हैं। इसमें प्रकाशित नहीं होता। पैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अ्र ल 2001 45 आत्मा हृदय में अभिव्यक्त होती है, अनुभूति प्राप्त होती है वह 'सत्य' होती है। हृदय में प्रतिबिम्बित होती है। आत्मा का किसी को क्या तकलीफ है, यह आप स्थान हृदय में होता है ऐसा कह सकते अपनी उंगलियों पर देखते हैं। तो पहले हैं। लेकिन वास्तव में आत्मा का स्थान ऊपर, यहाँ है. जो सर्वशक्तिमान भगवान हैं। आप अपने चित्त से जानते हैं कि की आत्मा है, जिसे आप ' कहते हैं या 'सदाशिव' या आप इसे रहीम' कह सकते हैं। आप उसे अनेक नामों से पुकार सकते हैं, जो प्रभु निरंजन खराब है क्योंकि अगर आप कहें कि इस के बारे में प्रयोग होते हैं-निरंजन, आप अपने चित्त से उँगलियों पर देखते परचरदिगारं कौन-सा चक्र कौंन सी उंगली की 'पकड़' है तब आप अपने मस्तिष्क की सहायता से पहचानते हैं कि कौनसा चक्र उंगली की पकड़ है तो इसका मतलब यह नहीं कि यह विशुद्धि चक्र है। लेकिन निरंकार, हरेक प्रकार के शब्द जो "निर", "निः से शुरू होते हैं। शरीर में हरेक चक्र आपका मस्तिष्क यह बता सकता है कि पर आप एक अलग प्रकार का आनन्द यह विशुद्धि चक्र है और वह दर्शाता है कि इस व्यक्ति को विशुद्धि चक्र की तकलीफ है। लेकिन यह भी मस्तिष्क की बात प्राप्त करते हैं। कुण्डलिनी जागने के बाद हर क चक्र का एक अलग प्रकार का आनन्द होता है और कुण्डलिनी के ऊपर चढ़ते समय प्रत्येक चक्र पर जो आनन्द पाप्त होता है उसका अलग-अलग नामऔर फिर आप बताते हैं कि कौनसा चक्र (Rationalization) है क्योंकि आप पहले देखते हैं कि कौनसी उंगली की 'पकड' है त है। जब कुण्डलिनी सहस्रार में आती है, तब जो आनन्द प्राप्त होता है, उसे 'निरानन्द' कहते हैं। निर' का अर्थ है सिर्फ, आनन्द ही आनन्द, और कुछ भी और ज्यादा खुल जाता है, तो आपको नहीं। आश्चर्य की बात है कि मेरा नाम भी सोचने की जरूरत नहीं पड़ती; आप तुरन्त नीरा है। अपने परिवार में मुझे नीरा कह देते हैं। उस समय आपके चित्त' में पकारा जाता है। नीरा का मतलब है मेरी', 'मरियम, क्योंकि इसका अर्थ है मैरीन (marine), 'नीरा' जल है, संस्कृत भाषा में 'नीर' का अर्थ जल होता है। तो मस्तिष्क में इसे निरानन्द कहते हैं । खराब है। लेकिन जब सत्यखण्ड यानि सहस्त्रार और आपके सत्य' में कोई अन्तर नहीं रह जाता। प्रकाशमान चित्त और प्रकाशमान मस्तिष्क' एकाकार हो जाते हैं । ऐसे व्यक्ति के लिए कोई समस्या नहीं रह जाती और उंगलियों पर देखने की अन्त में इस अवस्था का उन्मोचन जरूरत नहीं पड़ती है। उंगलियों पर कुछ (शुभारम्भ) होता है। सर्वप्रथम आपको जो देखकर और फिर मस्तिष्क से जानने की श्रीम the चैतन्य लहरी खंड-XIl अक 3 च 4 माचं-अ ल 2001 46 हो जाते हैं कि हाँ, यह ऐसा ही है। आपने कोई जरूरत नहीं रह जाती है। जैसा कि आपने सहजयोग में सीखा है कि अगर देखा है कि यह विशुद्धि चक्र ही है। अतः इस उंगली में कुछ गडबड़ हैं, तो इसका सत्त्य तर्कांनुसार मस्तिष्क को स्वीकार्य हो जाता है। फिर भी मस्तिष्क बाह्य स्तर मतलब आज्ञा चक्र खराब है, यह आवश्यक नहीं। आप बस कह देते हैं कि आज्ञा चक्र gross level) पर ही कार्यशील रहता है। खराब है। आपने जैसा कहा, वास्तव में वैसा ही होता हैं। दूसरी अवस्था में, जेसा मैंने बताया आप विश्वास करते हैं, पक्की तरह से जान जाते हैं कि इसका अर्थ विशुद्धि चक्र है, इसके बारे में कोई शंका नहीं। इस प्रकार 'निर्विकल्प' की अवस्था आरम्भ हो उसके बाद, मस्तिष्क और भी ज्यादा खुलता है। सर्वप्रथम, जैसे मैंने बताया, यह चित्त के साथ एकाकार हो जाता है। जाती है, जब मेरे और सहजयोग के बारे में कोई शंका नहीं रह जाती। लेकिन उस फिर. जब यह 'आत्मा' के साथ पूर्णतया एकाकार हो जाता है, तब आप जों कुछ समय आपके अन्दर मस्तिष्क का और भी कहते हैं वह सत्य ही होता है। आप बस कह देते हैं, और वही वास्तव में होता उन्मोचन (खुलना) प्रारम्भ हो जाता है। है इस प्रकार यह मस्तिष्क तीन नये उसके लिए आपको ध्यान (meditation) आयामों को प्रकट करता है। सर्वप्रथम यह तार्किक निष्कर्षों (ogical conclusions करना पड़ता है। नम्रता में (in humility) ) स्थित होकर आपको ध्यान करना पड़ता है। इस नई अवस्था के लिए जब आपका जैंसा मैंने है चित्त स्वयं आपके मस्तिष्क, प्रदीप्त द्वारा सत्य को व्यक्त करता है। बताया, मेरे अगर इस उंगली की पकड़ तो इसका मतलब विशुद्धि चक्र खराब है, मस्तिष्क, में विलय हो जाता है। इसके और फिर आप उस व्यक्ति से पूछते हैं. लिए व्यक्ति को अत्यन्त सच्चाई और "क्या आपको यहाँ कुछ तकलीफ हैं? बह कहता है, "हाँ है।" तब आपका मुझमें आत्मसमर्पण करना पड़ता है। विश्वास होता है और आप विश्वास करते नम तापूर्वक सहजयों ग के प्रति आप चै तन्यलहरिया हैं कि यह जो विशुद्धि चक्र दिखाई दे रहा (vibrations) प्राप्त कर लेते हैं तब आप क्या करते हैं? लोगों की अलग-अलग आधारित निष्कर्ष है। क्योंकि आपने प्रयोग प्रतिक्रिया होती है । कुछ लो ग इन किया, आप देख रहे हैं और फिर भी लहरियों का मूल्य तक नहीं समझते। कुछ सन्देह कर रहे हैं कि माताजी जो बताती लोग सीखने की कोशिश करते हैं कि हैं वह सत्य है या नहीं। फिर आप निश्चित इसका क्या अर्थ है और कुछ लोग तुरन्त अब जब है सो सत्य है। यह एक त्क पर चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 सोचने लगते हैं, "अब हम आत्म- साक्षात्कारी हो गए हैं और अन्य लोगों को ही स्थूल (gross) व्यक्ति सहजयोग में आत्मसाक्षात्कार दे सकते है।" की सवारी (egotrip) करने लगते हैं जब पहली बात जो आपको जरूर जाननी वे अहंकार की सवारी करने लगते हैं, तो वे अपने आपको असफल पाते हैं और उन्हें सहजयोग में ईमानदार, बहुत ही जहाँ से शुरू किया था वहीं वापस आना ईमानदार रहना पड़े गा। ईमानदारी पड़ता है। यह सांप और सीढ़ी के खेल की से मतलब है, मैं ने देखा है, जैसे कि तरह होता है। तो चैतन्यलहरियों के कहीं कोई भोज (खाना-पीना) या प्रति बहुत ही विनम्र और ग्राही, वे दूसरी बात बड़ी स्थूल है। कुछ बहुत वे अहंकार प्रवेश कर लेते हैं। कोई बात नहीं। लेकिन चाहिए, वह यह है कि आप को शादी की पा्टी है तो आदरपूर्ण (receptive) प्रतिक्रिया होनी आत्म-सम्मान को तिलाँजलि देकर चाहिए। चुपके से घुस जायेंगे उन्हें कोई बाह्य रूप में, जैसा मैंने आपको बताया विचार नहीं कि इसके लिए पैसा कौन कि मस्तिष्क में पिता (सदाशिव) का स्थान देगा? वे अपने सारे परिवार को ले आएंगे और बैठ जाएंगे। फिर, ऐसे है। इस लिये अगर आप पिता (सदाशिव) के विरुद्ध कोई पाप करते हैं. तो आगामी लोग भी होते हैं जो सहजयोग में जो नये आयाम खुलने में समय लगता है। पसा देना चाहिए उससे बचते हैं। मान फिर हम पुस्तक पढ़ने लगते हैं और लीजिए कि खाना खा रहे हैं या सफर कर यद्यपि बताया गया है कि पहले पुस्तक रहे हैं या विदेश से आ रहे हैं, तो उन्हें की चै तन्य लहरियाँ (vibrations) अपने सफर के लिए और खाने-पीने के देखो और फिर उसे पढ़ो। लेकिन लिए पैसा देना चाहिये । आपको पता बहुत बार मारी पैसा देना पड़ता आप कहते हैं, "क्या बुरी बात है. हमें है अन्य पुस्तकें भी पढ़नी चाहियें तो है। कोई बात नहीं, मैं इसका विचार जैसा मैंने बताया आप सांप सीढी के नहीं करती लेकिन यह आपके लिए खेल में नीचे गिर जाते हैं। यह भी ठीक नहीं। मुख्य बात यह है कि यह हैं आपके लिए ठीक नहीं है तो पैसे के सो चते है । सां प एक "ध्यान करने की क्या आवश्यकता है? मामले में आपके सहजयोग के प्रति मेरे पास समय नहीं है, मुझे यह करना के से आचरण है यह भी बहुत वह करना है। परिणाम वश आपकी महत्वपूर्ण बात है। यद्यपि यह बहुत उन्नति नहीं होती है। ही स्थूल सी (gross) प्रतीत होती है, পাঁ मार्च -अप्र ल 2001 48 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 3 व । लेकिन यह आपकी उन्नति में बहुत देना चाहिये वह न देने की आदत होती समस्या उत्पन्न कर सकती हैं, क्यों कि है, इत्यादि । यह छल-कपट के समान उससे नाभि चक्र खराब हो जाता है है ये लोग शीघ्र सहजयोग से बाहर और जैसा कि आप जानते हैं कि अगर चले जाते हैं । भले ही शुरु में ये लोग नाभि खराब हो गई तो यह खराबी बहुत बड़े ने ता लगे ले कि न वे सारे भव्सागर (void) पर व्याप्त हो देखते-देखते यों ही बाहर निकल जाती है, और अगर भवसागर खराब जाते हैं। कई बार लोग मुझसे पूछते हो गया तो एकादश रुद्र की संहार है कि आप पैसे का हिसाब-किताब शक्तियाँ जो यहाँ पर हैं, पकड़ी जाती (account) क्यों नहीं रखती हैं ? परन्तु को ई हिसाब-किताब (account) आदि में मु.झे हैं। स ह जयो ग तो यहजयोग में आने से पहले यह सब रखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि सहयोगी मेरे मुनीम हैं। अगर आप जाते सहजयोग से चाल-बाजियां करने की दुष्कर्म करते ठीक था। आप सब प्रकार के थे और आप अनायास नरक में पहुँच थे। नरक में जाना तो बहुत ही आसान है । दो छलांग लगाओ और नरक में पहुँच जाओ। बाकी सब कुछ आप जाने। लेकिन कोशिश करते हैं, तो आपका नाभि चक्र क्षति ग्रस्त होता है और आप अपनी चेतना खो बैठते हैं जो आपके साथ कभी नहीं हुआ होता। एक ओर आपने हजारों रुपये बनाए. किन्तु दूसरी ओर लाखों रुपये (सहजयोग की बहुमूल्य सम्पदा) खो बैठते हैं । नरक में जाना सबसे आसान काम है। इसके लिए आपको कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती। लेकिन जब आप ऊपर उठ रहे हैं, उन्नति कर रहे हैं, तब थोड़ा कठिनाई है। आपको ध्यान रखना है कि आपको किसी भी प्रकार की समस्या | आप लड़खड़ाएं (डगमगाएं) नहीं, गिरें नहीं, और ऊपर उठते रहें का सामना करना पड़ सकता है, जो मैं नहीं बता सकती। और फिर आप है कि कहते हैं कि यह समस्या कैसे आई? आप अपनी पुरानी आदतों में तो नहीं फंस अतः यदि आप अपनी साधना रहे हैं। कुछ लोगों में सहजयोग को (seeking) में ईमानदार नहीं हैं तो नुकसान पहुँचा कर पैसा बचाने की आदत नाभि चक्र की पकड़ आती है | होती है। कुछ लोगों को सहजयोग को साधना (seeking) की ईमानदारी का क्षति पहुँचा कर पैसा कमाने की आदत सिर्फ यह मतलब नहीं कि शब्दों में कह देना मैं साधक हूँ बल्कि इसका इसलिये आपको सतक्क रहना होती हैं। कुछ लोगों को उन्हें जो पैसा मार्च अप्र ल 2001 49 पैतनय लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 यह अर्थ भी है कि आपका अपने प्रति बहुत ऊंचे नहीं उठ सकते। मुख्य बात और दूसरों के प्रति कैसा आचरण है । यह है कि आपको इसमें पूर्ण, हृदय देना आपको अपने प्रति ईमानदार रहना है जैसे कि कुछ लोग सहजयोग में आते चाहिए कि आप ध्यान (meditation) हैं और पीछे हैं, "यह ऐसा के लिए बैठे, अपना अन्तर -यो ग होना चाहिए था, वह ऐसा होना चाहिए सुधारने की कोशिश करें और अपनी था वगैरह-वर्गैरह। ऐसे लोगों को निर्विचार चे तना (thoughtiess इसा-मसीह ने बुड बुड़ाने वाली उस स्थिति जीवात्माए (murmuring souls) कहा है। को प्राप्त करने की कोशिश करें, जहां उन्होंने कहा था "इन बुडबुड़ाने वाली करें । जीवात्माओं से सावधान रहो।" ऐसे सभी इस ईमानदारी का मधुर रस मिलता है व्यक्ति जो पीछे बुडबुड़ाते हैं और फायदा और अपने निजी अस्तित्व (being) अर्थात उठाते रहते हैं, जैसे कि वे दूसरों को आत्मा में आप उत्तरोत्तर ऊंचे और गहरे बचाने की कोशिश कर रहे हों, ऐसे लोग बहुत दुःख उठा सकते हैं। क्योंकि वे एक दोहरा छल कर रहे हैं। प्रभु के साम्राज्य में जब आप प्रवेश करते हैं तो यह दोहरा बुडबुडाते रहते awareness) को बढ़ाएं। आप संचमुच ही निर्विचार अनुभव उतरते जाते हैं। सर्वप्रथम आप मुझ पर निर्भर करते हैं। कि "आखिर माताजी सब कुछ करेंगी। छल बहुत ही खतरनाक होता है। किसी भी राज्य के, किसी भी राज्य के अगर आप जब मैं माताजी के पास गया तो मेरा सहस्रार खुल गया। यह हुआ, वह हुआ। नागरिक हैं और आप उसके प्रति लेकिन स्वयं ऐसा काम क्यों नहीं करते जो आपका सहस्रार खोलने में सहायक हो। विश्वासघात करते हैं, तो आपको दण्ड मिलता है लेकिन 'प्रभु के साम्राज्य में, तो सहस्रार का खुलना बहुत ही आवश्यक है। यह इतना आनन्दमय है, पूर्ण तया आनन्दमय, पूर्ण आशीर्वाद आप पर आश्चर्य की बात है ऐसी रचना है कि न्यौछावर कर दिये जाते हैं । पूर्णतया, हर सम्पदा- स्वास्थ्य, धन, मानसिक, सहसार में ब्रह्मरन्घ्र एक ऐ से बिन्दु पर जहां हृदय (अनहत) चक्र है। अतः भावनात्मक सभी प्रकार की सम्पदा यह जानना आवश्यक है कि ब्रह्मरन्ध्र आपको सहजयोग में प्राप्त होती है, का आपके हृदय से सीधा (direct) निस्संदेह। लेकिन जब आप इतने सम्पन्न सम्बन्ध है। अगर आप सहजयोग को (blessesd) किये जाते हैं, तो आपको क्षमा भी प्रदान की जाती है. अनेक बार की जाती है और आपको बहुत हृदय से न करके बाह्य रूप में (superficially) ही करेंगे. तो आप चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अप्र ल 2001 50 लम्बा अवसर प्रदान किया जाता है । करते हैं। जो भी व्यक्ति आपको किन्तु यदि आप नहीं संभलते तो नुकसान पहुँचाने की को शिश करेगा , आपका विनाश होता है. पूर्ण विनाश, वह बहुत हानि भोगेगा और उसे आपके रास्ते से हटा दिया जाएगा। आधा नहीं। भगवान आपकी प्रत्येक बात में रक्षा करते अतः वे लोग जो सोचते हैं कि वेहैं और परे चित्त से और पूरी सावधानी से सहजयोग से बेईमानी कर सकते हैं, बहुत सतर्क रहें। कृपया ऐसा न करें, अगर आप करते हैं कि उनकी दया का बखान शब्दों सहजयोग में रहना नहीं चाहते, तो अच्छा आपकी देखभाल करते हैं । वे इतना प्रेम में नहीं किया जा सकता है। उसकी केवल होगा आप चले जाएं, हमारे लिए और अनुभूति की जा सकती है और वह समझा आपके लिए भी यही अच्छा है। क्योंकि जा सकता है। अगर आप बेईमानी करते हैं, या छल-कपट करते है तो आप कष्ट भोगते हैं और फिर आप अजीब और हास्यास्पद बेईमान होते हैं, वे अपने पूर्व संस्कार (funny) लगते हैं तो लोग कहने लगते हैं (background) की वजह से, कभी-कभी कि सहजयोग में क्या बुराई है? और हम अपनी शिक्षा की वजह से, अपने बेमतलब भुगतेंगे (बदनामी के कारण) क्योंकि हम आपको दर्पण में नहीं दिखा या कायरता की बजह से ऐसा करते हैं। सकते कि यह आदमी बहुत ही. बहुत ही एक और चीज जो आपको बेईमान बना ज्यादा विश्वासघाती रहा था। हम यह सकती है वह है आपके पूर्वजन्मों के नहीं दिखा सकते कि यह आदमी बहुत ही, संस्कार और उसी के अनुसार आप जन्म बहुत ही ज्यादा विश्वासघाती रहा था। हम लेते हैं और उसी के अनुसार आपकी यह नहीं दिखा सकते इस प्रकार पहले कुण्डलिनी की अवस्था होती है। हमें बदनामी मिलेगी और दूसरे इस तरह अब समस्या यह है कि जो लोग पालन - पोषण (upbringing) की वजह से के आचरण से आपको भी हानि होगी। अगर आपको हानि हुई तो भी हमें बदनामी लोग महान पुरुषार्थी और संकल्प वाले भिलेगी कि ऐसा कैसे हुआ? लेकिन अगर होते हैं इतनी प्रगति से ऊंचे उठते हैं कि आप सहजयोग और अपनी साधना तारों, ग्रहों, नक्षत्रों आदि की सारी (seeking) के बारे में ईमानदार हैं तो समस्याएं लुप्त हो जाती हैं और आप एक आप अनुमान नहीं लगा सकते कि 'सहजयोगी बन जाते हैं अ्ात एक भगवान आपकी कितनी देखभाल नवजात, बिलकू ल भिन्न व्यक्तित्व लेकिन आत्मसाक्षात्कार के बाद जो चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 51 (personality) जिसका अपने विगत जीवन आ जाते हैं। अतः ये दस चीजें और एक से कोई सम्बन्ध नहीं होता, जिस प्रकार विराट विष्णु का स्थान, क्योंकि हमारे पेट एक अंडे का एक सुन्दर पक्षी बन जाता (stomach) में भी दस गुरुओं के स्थान हैं है। और एक विष्णु का स्थान है, इन सब में खराबी आ जाती है। तब साधना में भी तो, जब यह कुण्डलिनी यहाँ पहुँच गलती होती है और ये दस गुरु अपना जाती है तो सहस्रार में प्रवेश पाने के मार्ग में सर्वप्रथम जो रुकावट आती है वह है स्थान त्याग कर देते हैं। तब आषको इस एकादश रुद्र की पकड़ हो जात्ती है। जब एकादश रुद्र। ग्यारह संहार शक्त्तयाँ यहाँ होती हैं, पांच इस तरफ पाँच उस तरफ, इस प्रकार की चीज आपके अन्दर आ जाती है, जैसे कि मैंने बताया, एक इस ओर (ईडा) और एक उस ओर (पिंगला). और एक बीच में। हमारे द्वारा किये गये दो प्रकार के पापों से इन रुकावटो को तो जिन लोगों ने गलत प्रकार के निर्माण होता है । अगर हम अपना सिर गलत ( मिथ्या) गुरुओं के आगे झुकाते हैं. उनके मार्ग को अपनाते हैं तो दाहिनी है जिससे कै सर जै सी असाध्य न व्यक्तियों के आगे सिर झुकाया है, उनका ऐसा स्वभाव या ऐसा व्यक्तित्व बन जाता दुष्ट ओर की पांच रुद्र शक्तियों में खराबी (incurable) बीमारियों का आक्रमण हो सकता है। जिन लोगों ने गलत व्यक्तियों आगे झुके हैं जो गलत किस्म का व्यक्ति है के आगे सिर झुकाया है उनको कैंसर या आती है। अगर आप किसी ऐसे व्यक्त के और भगवान के विरुद्ध है तो दायीं ओर इस प्रकार की कोई भी बीमारी हो सकती समस्या उत्पन्न ही जाती है। अगर आप 1 है। | यह सोचते है मैं अपनी देखभाल खुद अब जो लोग सोंचते हैं कि मैं किसी हूँ, मैं भगवान की परवाह नहीं सुनना चाहता और मैं भगवान में नहीं करता, मुझे भगवान नहीं चाहिए, मुझे विश्वास नहीं करता, भगवान कौन है? मैं इससे कोई मतलब नहीं, ऐसे लोगों के कर सकता हूँ, मैं अपना गुरु स्वयं हूँ, मुझे कौन शिक्षा दे सकता है, मैं किसी को बात और से अच्छा भगवान की परवाह नहीं करता । अगर बायीं ओर के एकादश रुट्र की पकड़ भी इस प्रकार की भावनाएं आपके अन्दर हैं अत्यधिक खतरनाक होती है क्योंकि ऐसे तो आपकी दाथीं ओर नहीं, बल्कि बायीं लोगों को शारीरिक रूप में दायीं ओर ओर खराबी आ जाती है। क्योंकि आपका (पिंगला) की तकलीफें, जैस हृदय रोग, दायां भाग (पाश्श्व, बाजू) घूम कर इधर और दायीं ओर की अन्य प्रकार की (बायीं ओर) और बायां भाग दाहिनी तरफ तकलीफें हो जाती है । चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 वे 4 मा्च-अप्र ल 2001 52 अतः कुण्डलिनी के सहस्रार में प्रवेश संगठनों के सदस्य थे, बचा लिए गये हैं । पाने के विरुद्ध जो सबसे बड़ी रुकावट लेकिन किसी को भी विश्वास दिलाना कि आती है, वह एकादश रुद्र है जो जो कुछ भी वे कर रहे हैं गलत काम है भवसागर (void) से आता है, और जो और उन्हें सही रास्ते पर आ जाना चाहिए. मेघा' यानी मस्तिष्क के फर्श (plate) को बहुत कठिन काम हैं। ढकता है। इस तरह यह लिम्बिक (तालू) क्षेत्र (limbic area) में प्रवेश नहीं कर सकती। यहां तक कि वे लोग जो गलत हुआ और यही नक्षत्र है जो कैंसर की गुरुओं के। निष्कर्ष पर पहुँचे और सहजयोग के नक्षत्र कैंसर की बीमारी को ठीक करता है. सम्मुख आत्म-समर्पण कर दें, अपनी यही सब असाध्य बीमारियों के लिए हैं। त्रुटियों को स्वीकार करें, और कहें कि मैं अंतः जो लोग अन्धाधुंध गलत मार्ग पर स्वयं ही गुरू हूँ तो वे ठीक हो सकते हैं। चलते जाते हैं, उन्हें अजीब तरह के और जो लोग यह कहते हैं मैं ही सबसे हृदय-रोग, दिल-धड़कना (palpitation), बड़ा हूँ, मैं भगवान में विश्वास नहीं करता. अनिंद्रा (insomnia), उल्टियां चक्कर मैं किसी भी ईश्वर के दूत (prophet) में आना, उल्टासीधा बकना. हो जाते हैं । विश्वास नहीं करता-ईश्वर के विरुद्ध या गलत गुरु के पास जाना और उसके आगे ईश्वर के दूत के विरुद्ध होना एक ही बात सिर झुकाना बहुत है-ईश्वर विरोधी व्यक्तित्व जो इस तरह की बात करते हैं, और इस लिये निषिद्ध हो जाता है। जो लोग सहजयोग समस्याओं को निर्माण करते हैं, अगर वे के विरुद्ध है उनका सहस्रार बहुत ही अपने को विनम्र बनाएं और सहजयोग को, अतः प्लूटों के विरुद्ध एक नक्षत्र उत्पन्न बीमारी लाया है। क्योंकि प्लूटो नाम का पास जा चुके हैं, अगर सही ही गम्भीर बात है। इस प्रकार के आदमी के लिये सहस्रार में प्रवेश कठोर (सख्त) होता है, एक बादाम या सुपर कौशस' (super conscious) अर्थात अखरोट के बाहरी खोल (nut) की भांकति मध्य मार्ग को, परमात्मा के साम्राज्य में जो तोड़ा नहीं जा सकता। अगर आप प्रवेश पाने का एक मात्र मार्ग के रूप में हथौड़ी का भी उपयोग करें तो भी आप स्वीकार करें तो वे भी ठीक हो सकते है । नहीं तोड़ सकते। मैंने देखा है कि जो लोग तांत्रिक थे, बचा लिए गये हैं । मैंने देखा कि जो लोग को पहचानना (मान्यता देना) आवश्यक आज समय आ गया है कि सहजयोग सब प्रकार की गलत चीजें कर चुके थे, है आपको पहचानना ही पड़ेगा आपने वचा लिए गये हैं। जो लोग विभिन्न किसी संत, किसी पैगम्बर, किसी अवतार, मार्च - अप्रै चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 ल 2001 53 किसी को भी नहीं पहचाना। लेकिन आज शिवजी से प्रश्न पूछा तभी चैतन्य लहरियां तो यह शर्त है कि आपको पहचानना (vibrations) आनी शुरू हो गई तो पड़ेगा। अगर आपने नहीं पहचाना, तो सहसार पर सहजयोग की पहचान कराने आपका सहस्रार नहीं खुलेगा, क्योंकि यही (मान्यता प्रदान कराने) का भार है, यह समय हैं जबकि सहस्रार खोला गया, और उसको सिद्ध करता है और विश्वास आपको अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करवाता है। और अगर सिद्ध करने पर भी करना है यह एक बहुत ही आवश्यक बात आप उसे पहचानते नहीं, तो आप है कि आप सहजयोग को पहचानें। कई आत्मसाक्षात्कार नहीं प्राप्त कर सकते। लोग ऐसे हैं जो कहते हैं. "माँ. सहजयोग में इस तरह क्यों विश्वास करें? हम बस आपको माँ पुकार सकते हैं, आप हमारी माँ रूप में पहचानते हैं, वे अनधिकार हो सकती हो।" ठीक है। कोई बात नहीं। जतीर लेकिन जो पहचानते भी हैं, वे आंशिक स्वतन्त्रता लेते हैं । आचरण में यथोचित् लेकिन आप आत्मसाक्षात्कार नहीं प्राप्त आदर भाव, नम्रमा व संयम नहीं बरतते, वे कर सकते। और अगर आपने यह प्राप्त हास्यास्पद प्रकार से व्यवहार करते हैं, यह कर भी लिया तो आप इसे स्थायी नहीं रख नहीं समझते कि यहां पर यह महापुरुष जो सकते । आपको पहचानना पड़ें गा । हैं. वह कौन हैं? मैंने कई बार देखा है कि पहचानना ही सहजयोग की पूजा है मैं भाषण दे रही होती हूँ और लोग हाथ में भगवान का ऊपर करके कुण्डलिनी चढ़ा रहे होते हैं जानना चाहते हैं तो पहचानना ही पूजा या गप्पें मार रहे होते हैं। मुझे आश्चर्य है। सहजयोग में अन्य सभी गण, देवता, होता है। क्योंकि अगर आपने पहचाना है, देवी, शक्ति एक ही हैं और जो कोई भी तो आपको पता होना चाहिए कि आप सहजयोग को नहीं पहचानता. उन्हें (गण, किसके सम्मुख खड़े हैं। क्योंकि यह मेरे देवता आदि को) उस व्यक्ति की परवाह फायदे के लिए नहीं हैं मेरी इसमें कोई नहीं, वह किस प्रकार का मनुष्य है। हानि नहीं होने वाली। बस यह केवल यह उदाहरणार्थ, एक आदमी जो शिवजी की दर्शाता है कि अपनी उत्क्रान्ति में आपने पूजा करता है मेरे पास आया। और मैंने पहचाना नहीं, मान्यता देने में असमर्थ अगर आप सहजयोंग 1 देखा कि उसका अनहत पकड़ा हुआ । रहे। है यह आश्चर्य की बात है। उसने कहा, "मां मै। शिवजी की पूजा करता हूँ, फिर मेरा अनहत कैसे पकडा हुआ है?" मैंने कहा, तुम्हें सहजयोग को पहचानना पड़ेगा। गलत है। मुझ पर एकाधिकार जमाने की और जिस प्रकार कुछ लोग मुझपर एकाधिकार ज़माते हैं, वह भी बिल्कुल पैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 3 व 4 मार्च -अपर ल 2001 54 कोई आवश्यकता नहीं। कोई भी मुझ पर से। ले किन सर्व प्रथम आपको पूरी अधिकार नहीं जमा सकता। कुछ लोग ईमानदारी से पहचानना है। एक बार ऐसे भी हैं जो कहते हैं 'मां गलत समझी' । आपने पहचान लिया, तो धीरे-धीरे आप मुझे कभी भी गलतफहमी नहीं होती, वह सब कुछ करेंगे जो करना है. आप सवाल ही पैदा नहीं होता। या कुछ लोग जान जाते हैं क्या करना है। मुझे सलाह देतें हैं, "यह कीजिए, वह कीजिए। यह भी आवश्यक नहीं। अपने आपको इस मर्यादा (protocol) में ढालने (integration) हैं । सहस्रार में सारे चक्र की कोशिश करो, जो सहजयोग में स्थित हैं। अतः सब देवता / देवी का ही आवश्यक है, और जिसे आज मैंने समगीकरण है। आँर आप उनके पहली बार ही वताया है, कि आप समग्रीकरण की अनुभूति कर सकते हो। सम्पूर्णतया पहचानने की कोशिश करें । अर्थात् जब आपकी कुण्डलिनी सहस्रार में और अगर आप नहीं पहचानते, तो मुझे पहुँच जाती हैं तो आपका मानसिक, खेद है, मैं आपको आत्मसाक्षात्कार नहीं दे भावात्मक और आध्यात्मिक व्यक्तित्व एक सकती जो कि स्थायी रहे । क्षणिक रूप से आप इसे पा सकते हैं किन्तु वह स्थायी व्यक्तित्व भी इसी में विलय हो जाता है। नहीं होगा। सहसार का सार समग्रीकरण बहुत ही हो जाता है आपका शारीरिक तब आपको कोई भी समस्या नहीं रहती, जैसे कि 'मुझे माँ से प्रेम है, किन्तु मुझे खेद है मुझे यह पैसा अवश्य चुराना है। तो अपनी उच्च अवस्था को प्राप्त करने का सरलतम मार्ग है, आप शनै:-शनैः (धीरे-धीरे) पहचाने। मान्यता प्रदान करें। मुझे पता है, मैंने माताजी को पहचाना है, यदि किसी में कोई दोष या कमी है तो मैं जानता हूँ कि वे महान हैं, लेकिन मैं उसे वह बताना कठिन है, असम्भव है। कुछ नहीं कर सकता, मुझे झूठ बोलना ही सहजयोग में आने के बाद में यह बता पड़ेगा" या "मुझे यह गलत काम करना ही पड़ेगा क्योंकि अन्य कुछ साथ कोईा समझौता नहीं हो सकता, उपाय नहीं मेरे सकती हूँ कि यह चक्र पकड़ा है, वह चक्र पकड़ा है। लेकिन, क्योंकि आपको यह ज्ञात है कि उक्त चक्र पकड़ने का क्या आपके व्यक्तित्व का पूर्णतया समग्रीकरण अर्थ है। आप फिर आते हैं और कहते हैं, आवश्यक है। अपने धर्मों को ठीक करना तो मैं आपको क्यों बताऊँ कि आपका पड़ेगा आप गलत काम करके और कहें चक्र खराब है? आपको स्वयं ही अपने आपको स्वच्छ करना है, पूरी ईमानदारी सकता। कि मैं सहजयोगी हूँ यह चल नहीं चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 मार्च-अपर ल 2001 55 लेकिन इसके लिए सामर्थ्य अन्दर से शक्ति मिलती है जिससे आप जैसा आती है आपकी आत्मा आपको बल समझते हैं तदनुसार कार्य करते हैं, और ड प्रदान करती हैं, आप बस अपनी संकल्प जैसा आप समझते हैं उससे आप प्रसन्न शक्ति लगाते हैं कि "हाँ, मेरी आत्मा कार्य रहते हैं । तो आप ऐसी अवस्था में पहुँच करें" और आप अपनी आत्मा के अनुसार जाते हैं जहां आप इस 'निरानन्द को पाते ही कार्य करने लगते हैं। और जहाँ आप हैं। और यह निरानन्द आपको मिलता हैं 1 अपनी आत्मा के अनुसार कार्य करने जब आप पूर्णतया आत्मा स्वरूप बन जाते लगते हैं आप देखते हैं कि आप किसी हैं। निरानन्द अवस्था में कोई भेद-भाव नहीं रह जाता। यह अद्वैत है । 'एक चीज के दास नहीं है। आप समर्थ हो जाते अर्थात् (सम+अर्थ) अर्थ के समतुल्य; व्यक्तित्व होता है हैं, । अर्थात आप पूर्णतया सम+अर्थ; समर्थ का अर्थ शक्तिशाली समग्र हो जाते हैं और आनन्द में कहीं व्यक्तित्व भी है। तो आपका वह न्यूनता (अपूर्णता) नहीं रहती। वह सम्पूर्ण शक्तिशाली व्यक्तित्व बन जाता है जिसे होता है। इसमें प्रसन्नता या दुःख के पहलू कोई भी प्रलोभन नहीं होता, कोई भी नहीं होते, बल्कि यह बस आनन्द' होता असद-विचार नहीं होता, कोई पकड़ नहीं है। आनन्द का अर्थ यह नहीं कि आप होती. कोई समस्या नहीं होती। ठहाका मार कर हँसे या मुस्कराते रहें । यह निस्तब्धाता (stillness) आपके स्वार्थी लोग केवल अपने आपको ही अन्तरतम का विश्राम भाव (quietitude). नुकसान पहुँचा रहे हैं, सहजयोग को शान्ति (peace) आपके व्यक्तित्व की, नहीं। सहजयोग तो प्रस्थापित होगा ही आपकी आत्मा की जो चैतन्य लहरियों के यदि इस नौका में दस आदमी ही हों, तो रूप में स्फूरित होती हैं. जिनकी आपको भी ईश्वर को परवाह नहीं । माँ होने की अनुभति होती है। जब आपको उस शान्ति वजह से मुझे ही परवाह करनी पड़ती है। की अनुभूति होती है तब आप अपने को माँ होने की वजह से मैं चाहती हैँ कि इस सुर्य के प्रकाश के समान अनुभव करते हैं, नौका में अधिकतम लोग आएं। लेकिन उस सौन्दर्य की छटा चारों ओर बिखरती एक बार नौका में सवार होने के बाद रहती है। बेईमानी के काम करके वापस कूदने की कोशिश न करें । भष्ट किन्तु पहले हम अपने निजी. स्वार्थी, मूर्ख कल्पनाओं से भयभीत होते हैं। अतः यह बहुत सरल है कि आप समग्र उनको फेंक दो। वे हम पर छायी होती हैं हो जाएं। समग्रीकरण से आपको वह क्योंकि हम असुरक्षित थे और क्योंकि পাঁ मा्च-अ प ल 2001 58 चैतन्य लहरी खंड-XIII अक 3 व 4 हमारे गलत विचार थे उन्हें फेंक दो। पूर्णतया प्रज्जवलित हो गया है आपका ईश्वर के साथ एकरूप होकर खडे रहो। आप पाओगे कि ये सब भय व्यर्थ थे। जाने कि यह जो व्यक्तित्व सामने खड़ा है हमारी शुद्धता बहुत आवश्यक है। यह वह प्रकाश है। इसी प्रकार सहस्र की शुद्धता तब आती है जब आप सहजयोग में देखभाल करनी है। बताई विधि के अनुसार वास्तव में शुद्धिकरण करें। मुखमंडल ऐसा होना चाहिए कि लोग सहस्र की देखभाल करने के लिए यह बहुत जरूरी है कि आप सर्दियों में अपना सिर ढके। सर्दियों में सिर ढकना आशीर्वाद है यह ऐसे सुन्दर रूप से अच्छा है ताकि मस्तिष्क ठण्ड से ना जमे, क्रियान्वित हुआ है। सहस्त्रार बेधना बहुत क्योंकि मस्तिष्क भी मेघा (fat) का बना होता है । और फिर मस्तिष्क को बहुत बेधा तो मुझे पता नहीं था कि यह कार्य ज्यादा गर्मी से भी बचाना चाहिए। अपने इतना सफल होगा पहले मैंने सोचा कि मस्तिष्क को ठीक रखने के लिए, आपको मैं कहूँगी सहस्र दैव (ईश्वर) का कठिन कार्य है। और जब मैंने सचमुच इसे 1 यह उचित समय से पहले हो गया। हर समय धूप में ही नहीं बैठे रहना चाहिए. क्योंकि कई राक्षस अभी भी गलियों में जैसा कि कुछ पाश्चात्य लोग करते हैं। अपना माल बेच रहे हैं और कई ऐसे ६ उससे आपका मस्तिष्क पिघल जाता है Tर्मन्धि लोग भी हैं जो तथाकथित धर्म के और आप एक सनकी मनुष्य बन जाते हैं, नाम की दुहाई देते हैं किन्तु वास्तव में जो इस बात का संकेत है कि आपके कुछ उनके जो क्रिया-कलाप है वे वास्तव में समय बाद पागल होने की सम्भावना है। आत्मा के धर्म नहीं हैं। ले किन धीरे-धीरे हमने अपनी जड़ें जमा ली हैं। ढके रखें। सिर ढकना बहुत आवश्यक है । अब आओ सहस्रार के मध्य से इस सत्य लेकिन सिर को कभी-कभी ढकना को अपने अन्दर जड़ें जमाने दो। और जब चाहिए, हमेशा नहीं। क्योंकि अगर आप यह सत्य उस प्रकाश में बदल जाय जो हमेशा ही सिर पर एक भारी पट्टा आपका मार्गदर्शन करता है. ऐसा प्रकाश बांधे रहें तो रक्त का संचार ठीक प्रकार से अगर आप धूप में भी बैठें तो अपना सिर जो आपका पोषण करता है, ऐसा प्रकाश नहीं होगा और आपके रक्त संचार में जो आपको प्रदीप्त करता है और आपको तकलीफ होगी अतः केवल कभी-कभी एक ऐसा व्यक्तित्व प्रदान करता है जिसमें (हमेशा नहीं) सिर को सूर्य अथवा चन्द्रमा प्रकाश है तभी आपको समझना चाहिए के प्रकाश में खुला रखना उचित है। नहीं कि आपका सहस्त्रार आपकी आत्मा द्वारा तो आप चांद के प्रकाश में अत्यधिक वैठे चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 3 व 4 मार्च -अप्रै ल 2001 57 तो पागलखाने पहुँच जाएंगे। मैं जो कुछ ईसामसीह, जो सिर के दोनों तरफ हैं, भी बताती हैँ, आपको समझना चाहिए कि यहां (पीछे) महागणेश हैं और यहां (सामने सहजयोग में किसी भी चीज में अति' ना माथा) ईसामसीह हैं । दोनों आपकी दृष्टि करें। यहां तक कि पानी में भी लोग ठीक करने में आपकी सहायता करते हैं तीन-तीन घंटे तक बैठे रहते हैं। मैने ऐसा और आपको समझदारी व सदबुद्धि प्रदान कभी नहीं कहा। सिर्फ दस मिनट के लिए करते हैं। तो सदबुद्धि किसी चीज से आपको पानी में बैठना है, किन्तु वह पूरे चिपकने में नहीं है। सहजयोगी चिपकने हृदय से। अगर मैं उनसे कुछ करने को वाले लोग नहीं हैं। अगर वे चिपक जाते हैं कहती हैं तो वे चार घंटे तक करते रहेंगे। तो समझ लो वे उन्नति नहीं कर रहे हैं । इसकी कोई आवश्यकता नहीं। केवल दस आपको विचारों (ideas) से नहीं चिपकना चाहिये और न व्यक्तियों से चिपकना चाहिये। आपको हमेशा गतिमान रहना मिनट के लिए कीजिए। अपने शरीर को भिन्न-भिन्न प्रकार के अनुभव. उपचार (treatment) दीजिए चाहिये, इसका यह मतलब नहीं कि इस हमेशा एक ही व्यवस्था नहीं। इस तरह तो में आप कहीं गिर जाएं और आपका शरीर नीरस या बोझल (०ver burdened) अनुभव करेगा। अगर आप किसी को बताएं कि उठना है, गिरना नहीं है आपके लिए यह मन्त्र है तो इसे तभी तक प्रयोग करना चाहिए जब तक के आप इस गलिशीलता सोचें अरे. हम तो बहुत उन्नति कर रहे हैं क्योंकि हम गिर रहे हैं। आपको ऊंचा (bored) हो जाएगा तो जब आप सहजयोग में कुछ प्राप्ति कर रहे हैं तो आपको सर्वप्रथम देखना चक्र की बाधा से छुटकारा न पा ले । उसके पश्चात् नहीं। मान लीजिए इस जगह एक पेंच लगाना है। तो आप इसको तभी तक घुमाएंगे जब तक कि यह मजबूती से न गड़ जाए। आप इसको अगर आप अभी लोगों पर भौं कते हैं गड़ने के बाद भी घुमाते नहीं जाते। क्या तो आपको यह आप इसको लगातार घुमाते ही चले जान लेना चाहिए कि आपमें कुछ दोष जाएंगे ताकि सारी चीज बिगड़ जाए? है। या आप मन में उदास, उद्विग्न अच्छा है कि आप सदयुद्धि विवेक का और अकारण कुपित होते या आपकी प्रयोग करें। और इस सदबृद्धि के लिए मनःस्थिति बिगड़ती है तो आप समझ आपको श्री गणेश या ईसामसीह को लें कि आप अभी सहजयोगी नहीं हैं । चाहिए कि आपका स्वास्थ्य ठीक रहे, आपका सस्तिष्क सुचारू (normal) रहे. आप एक सामान्य (normal) व्यक्ति हों। (अप्रिय बोलते हैं ) आप अपने आप की जांच कर सकते हैं। जानना चाहिए। मैतन्य लहरी खंड-XII अक 3 व ४ माव-अप्र ल 2001 58 अगर आप एक पक्षी की तरह स्वच्छन्द है-प्रभु आपकी जैसी इच्छा हो वही हो (tree) हैं तो ठीक है। लेकिन इसका यह (Thy will be done) । आप कहें प्रभु आपकी अर्थ नहीं कि आप सड़क पर चिड़िया की जैसी इच्छा हो। और कैसा आश्चर्य है कि आपकी इच्छाएं बदल जाती हैं, आपके एक मूढ़ आदमी के सामने में कोई भी संकल्प बदल जाते हैं और जो कुछ भी उपमा दूं वह अत्यन्त मूर्खता पूर्ण आचरण आप कहते हैं वही हो जाता है। लेकिन करेगा लेकिन वही एक सद्बुद्धिमान के जब ऐसा हो जाता है तो लोगों में अहंकार सामने देने से वह उसका सही उपयोग उत्पन्न हो जाता है । अत: सतर्क रहें। यह करेगा। तो यह समझना चाहिए कि सब शक्ति द्वारा किया जाता है, आपके सहजयोग विवेकी मनुष्यों द्वारा विवेक द्वारा नहीं। आपकी 'आत्मा' द्वारा, आप द्वारा नहीं । आपको आत्मा होना है । और तरह गाते फिरें या पेड़ों पर फुदकते फिरें। पूर्वक जाना जाता है। जब आप आत्मा हो ही जाते हैं तो आप सहजयोग में होता क्या कि है आप एक अकर्म में होते हैं, जहां आप जानते नहीं चीज को दृढ़ता चीज है आपकी आत्मा और आपका पूर्वक पकड़ लेते हैं। वह कि आप कर रहे हैं, बस हो जाता है, आप अनुभव नहीं करते आप अवगत नहीं होते। सम्पूर्ण व्यक्तित्व एक पतंग की तरह विचरण करता है, जैसे एक पतंग हरे क चीज के ऊपर उड़ती फिरती है। आप एक ही चीज से चिपके रहते हैं. वह है ज्यादातर चक्र खुल गए होंगे। लेकिन यह आपकी आत्मा। अगर आप सचमुच सब मेरा' क़ार्य है अब आपको भी कुछ ऐ सा कर सकें, यथार्थ में अर घर जाकर काम (home work) करना है। ईमानदारी से, पैसा परिवार और अन्य आपको भी अभ्यास करना है और अपने सा सारिक वस्तुओं के बारे में आपको देखना है। सावधान रहो। अपने अधिक चिन्ता किए बिना, तो आप आपको दर्पण में देखने और अपना सामना सहजयोग में सफल है। इनके बारे में करने की कोशिश करो। आप देखें आप बस चिन्ता न करें, आपको चिन्ता करने कितने ईमानदार रहे हैं, आप कितने शुद्ध की आवश्यकता नहीं। बस बन्धन दीजिए। रहे हैं सामूहिकता में आप कितने मित्रता अगर ऐसा नहीं हो पाता तो आपका पूर्ण हैं, जो सहजयोग में बहुत महत्व सहजयोग समाप्त। अगर हो जाता है तो रखता है। अगर आप सामूहिक नहीं इन सब भाषणों के बाद, आप के बहुत अच्छा। आपकी व्यक्तिगत इच्छा का अगर आप अकेले या हास्यास्पद हैं, अगर आप दूसरों से विचार संचार नहीं महत्व नहीं, प्रभु की इच्छा का महत्व पैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 3 व 4 मा्च-अप्र ल 2001 59 (communicate) कर सकते, तो समझे लें उठ रहा है। कोई इस प्रकार अपने को कि कुछ गड़बड़ है। और तब आप अपने निम्न न समझे या अपमानित अनुभव न आपका सामना करें (अपने को जांचें) और करे, कि कोई उन्हें निम्न समझता है। अपने आपको ठीक करने की कोशिश औरों को सोचने दो उससे क्या होता है, करें। जैसे एक साड़ी को उतार कर साफ भगवान तो ऐसा नहीं सोचता । तो ये किया जाता है। आप अपने को अपने 'स्व छोटी-छोटी बातों से आप सतर्क रहें। से अलग करके साफ करें। इसी प्रकार इस कृतयुग में आत्मसाक्षात्कार का चरम सहजयोगी प्रगति करें गे जब कुछ लक्ष्य प्राप्त करना बहुत ही आसान है। सहजयोगी ऊँचे उठेंगे तो और अनेक उनसे प्रभावित होंगे और ऊँचे उठेंगे इस मैं सोचती हूँ कि मैंने सहस्रार के बारे में प्रकार सब सहजयोगी समुदाय बहत बहुत कुछ बताया है। अगर आपकी कोई तीव्रता से ऊँचे उठ सकता है। लेकिन समस्या है तो आप अभी पूछ लें। लेकिन तुम लोग जो ऊँचे उठ रहे हो, और ज्यादा सिर्फ सहस्रार के बारे में, और किसी के उन्नति करो, बिना अपनी उन्नति के बारे बारे में नहीं। अच्छा होगा कि आप मेरे से अन्य विषय के बजाय सिर्फ सहस्रार के में सोचते हुए। यह बहुत आवश्यक है। बारे में ही प्रश्न पूछें । जो लोग सोचते हैं कि दूसरे लोग उनसे ऊँचे हैं वे भी गलत सोचते हैं. क्योंकि ऐसी बात नहीं है। समस्त ही ऊंचा परमात्मा आपको धन्य करें। माच-अप ल 2001 60 पैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 संक्रान्ति पूजा (2001) प्रतिष्ठान पुणे अत्याधिक कर्मकाण्ड करने वाले लोग जल्दी से परिवर्तित नहीं होते हमें अपने कि तप करो, उपयास करो पति-पत्नी का स्वभाव परिवर्तित करने चाहिए। उत्तर भारत में कर्मकाण्ड इतने अधिक नहीं हैं। वे लोग तपस्या से कहीं श्रेष्ठ है। भक्ति आनन्द का गंगा में स्नान करते है परन्तु अब उनमें स्रोत है। सहजयोग अपनाने वाले लोगों को बदलाव आया है बहुत से सुशिक्षित लोग न कोई तपस्या करनी है न कुछ त्यागना है। सहजयोग में आए हैं और उन्हें देखकर आश्चर्य जहाँ हैं वहीं पर सब कुछ पाना है। होता है। महाराष्ट्र के लोगों को यदि कहा जाए त्याग करो तो वे ये सब करेंगे। परन्तु भक्ति बहुत आत्मसाक्षात्कार अन्य लोगों को भी देना चाहिए नहीं तो आत्मसाक्षात्कार का क्या लाभ है? महाराष्ट्र में बहुत से साधु संत हुए जिन्होंने तपस्वी लोग देना नहीं जानते। अपनी भक्ति बहुत परिश्रम किया परन्तु उसका कोई से आप सबकुछ दे सकते हैं। उपयोग नहीं हुआ सारा जीवन कर्मकाण्ड में चला गया। परन्तु अब परिवर्तन होना चाहिए और हम सबको जागृत होना चाहिए। होता। केवल हृदय से प्रार्थना करनी होती है भोर हो गई है, अब सोने का क्या अर्थ है ? भक्ति में भी कुछ छोड़ना त्यागना नहीं कि, "मैं अपना पूरा जीवन सहजयोग के लिए समर्पित करता हूँ। न कुछ छोड़ना है महाराष्ट्र की स्थिति देखकर बहुत दुख न तपस्या करनी है। आपमें इतनी भक्ति होता है। यहाँ पर लोग इतना कार्य कर गए होनी चाहिए कि वह प्रसारित हो और लोगों फिर भी लोगों को सहजयोग में उतरना में प्रज्जवलित हो, फिर देखें कैसा आनन्द चाहिए और बह आनन्द दूसरों को देने की आता है। सहज को यदि आपने अपने योग्यता भी होनी चाहिए। तक ही सीमित कर लिया तो आनन्द शीघ्र ही समाप्त हो जाएगा। आनन्द मैं स्वयं महाराष्ट्र से हूँ। यहाँ बहुत दुष्ट लोग भी हुए जिन्होंने सब बर्बाद कर दिया। आप लोगों को विशेष वरदान प्राप्त इसे बॉटे। अपने तक सीमित रखने में हैं, आप युवा हैं और बहुत कुछ कर सकते है। से को यदि बढ़ाना है तो दूसरे लोगों में कोई विशेष बात नहीं है। आप सबको अनन्त आशीर्वाद । ---------------------- 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-0.txt खंड: XIII अंकः 3 व 4 मार्च-अप्रैल, 2001 VIVERSAL PUBE चैतन्य लहरी २ कोई सहजयोगी यदि अपनी ही समस्याओं से घिरा हुआ है तो वह बिल्कुल भी सहजयोगी नहीं है। आप अन्य लोगों की समस्याओं का समाधान करने के लिए हैं केवल अपनी समस्याओं का नहीं और न ही ये कहते फिरने के लिए कि मेरी ये समस्या है। श्री कृष्ण पूजा (20.8.2000) SHNA NIHMALA DHARM. NOIDITSH 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-1.txt इस अंक में गुड़ी पड़वा पूजा - 5.4.2000 4. भारतीय राजस्व सेवा अधिकारी सम्मेलन-17.4.2000 2. 1१ सहजयोगियों को भूकम्य का पूर्वाभास 25 3. श्री कृष्ण पूजा - 20.8.2000 28 3. 4.2.83 सहसरार चक्र 43 4. संक्रान्ति पूजा - प्रतिष्ठान- 2001 60 5. मुद्रक एवं प्रकाशक : विजय नालगिरकर 152ए मुनीरका विहार नई दिल्ली 110067 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-2.txt न् लहरी खड-XII अक 3 व 4 ल 2001 1 मार्च -अभं गुड़ी पड़ता पूजा (5.4.2000 नोयडा भवन) परम् पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन अपने यहाँ हिन्दुस्तान में देवी के दो नवरात्र पवित्र कर देती थी इतनी संहारक थी। ये माने जाते हैं। ये चैत्र नवरात्र जिसमें आज जो सातवीं शक्ति है उसे संहारक शक्ति का दिन जो शैल पुत्री के अवतरण का है। कहते हैं उसके बाद संहारक शक्ति आई शैल पुत्री माने जब उन्होंने हिमालय में जन्म Right Side में चली गई इसी Right Side में लिया था इसलिए उनको शैल पुत्री कहते हैं सावित्री गायत्री आदि हैं। पर संहारक शक्ति और फिर उसमें और भी उनके नाम हैं। का जो प्रादुर्भाव हुआ मतलब एक दिशाLeit लेकिन शैल पुत्री की विशेषता ये है कि में गई एक दिशा Right में गई और जो उनका प्रथम जन्म शैल पुत्री के रूप है । तो संहारक शक्ति है वो Centre में चली गई। हिमालय की उस ठण्ड में देवी का जन्म उसमें आप देखते हैं कि देवी के अनेक रूप हुआ और जो कुछ भी उन्हें करना था वो Heart चक्र में हैं. जैसे दुर्गा है और भी जो बही-शैल पुत्री ने किया। लेकिन आगे की उनके रूप हैं जिससे उन्होंने संहार किया। कहानी तो आपको मालूम ही है कि दक्ष ने वो हृदय पर विराजमान हैं। हृदय चक्र में. जो हवन बनाया था, उसमें उन्होंने शिवजी हमारे हृदय चक्र में वो विराजती हैं । तो इस को आमन्त्रण नहीं दिया ये शिवजी की पत्नी हृदय चक्र की एक शक्ति तो ये है ही कि श्रीं। तो फिर देवी ने उनको सती कह दिया कोई आपको परेशान करे या आप पर आधात तब सती हुई थीं। उन्होंने जाकर के उस करे या आपको दूविधा में डाल दे तो वो जो हवन कण्ड में अग्नि में अपनी आहुति दे दी. शक्ति है, हृदय में वो आपका Protection तब शिवजी आए और उनके शरीर को उठाकर करेगी और जो आपको सताएगा उसका निकले। तो अनेक जगह उनके शरीर के संहार करेगी तो बहाँ पर सबसे जो शक्ति टुकड़े गिर गए और उस जगह हम लोग का प्रादुर्भाव है यासबसे ज्यादा इसका असर मानते हैं कि देवी की शक्ति है, जैसे है वो है कुण्डलिनी का वहाँ पर आना। जब विध्याचल में है हर जगह। तो उनकी शक्ति वहाँ विचरण करती है ऐसा कहते हैं। और वो जो शक्ति थी वो किसी भी चीज को कुण्डलिनी हृदय चक्र पर आती है, क्योंकि कुण्डलिनी जगदम्बा शक्ति हैं, अम्बा, इसलिए जब वो आती है तब उसकी शक्ति और बढ़ 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-3.txt चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अ प्रै ल 2001 2 जाती है। तो जब मनुष्य सहजयोग को प्राप्त होता है और ये शक्ति कुण्डलिनी के जागरण से उसके हृदय में स्थित होती है तो बो पूरी होने चाहिएं। गर गणेश में गड़बड़ हैं तो फिर उनको सही करना चाहिए। इस प्रकार नाना-विध उनकी क्रियाएं हैं पर आज की विशेषता ये है कि कहते हैं कि सर्वप्रथम तरह से आपको सम्भालती है। आपका रक्षण करती है पूरी तरह से। आपका बाल भी नहीं उन्होंने शैल पुत्री के नाम से जन्म लिया और बॉका हो सकता। पर उसको हृदय में रखना ये बात सत्य ही होगी। लेकिन उससे पहले चाहिए। माँ को हृदय में रखना चाहिए। ये जब आदिशक्ति इस संसार में आई तो एक माँ की शक्ति है, मातृत्व की शक्तित। और गाय के रूप में उन्होंने जन्म लिया। मतलब मातृत्व शक्ति ऐसी है कि वो अपने बच्चों को परम चैतन्य की जो बस्ती है उसमें उन्होंने हमेशा संरक्षित रखती है, हमेशा संरक्षण करती अवतरण लिया और वहाँ एक गाय बनकर है। सो इसीलिए कि जब कभी हम लोग रहीं खास बात ये है कि वहाँ गोकुल पहले परेशान होते हैं तो Medical Terminology ने ऐसा कहा है कि यहाँ पर जो हड्डी है वो हिलने लग जाती है और उससे जो चारों तरफ फैले हमारेAnti Bodies हैं, जिनको हमारी भाषा में तो हम गण कहेंगे, उन गणों को खबर आ जाती है और वो फौरन तैयार बना और वहाँ ये गाय रही। हरेक चीज़ पहले बनी और उसका प्रतिबिम्ब (Refiection) हमारे अन्दर है, जैसे सदाशिव तो उनसे शिव बन गए। सबके ऐसे Refiections आए हैं; उसी प्रकार देवी का भी है । सो देवी का प्रादुर्भाव जो हुआ वो तो पहले जब जन्म लिया मनुष्य रूप में तो शैल पुत्री है । इसलिए हुए हुए हो जाते हैं। तो गणों की भी वो महाराज्ञी हैं। आज का बड़ा महात्म्य है। लेकिन उस दशा उन्ही के आधार पर, उन्हीं की आज्ञा पर वो चलते हैं। इन लोगों, में जैसे गणेश और देवी में, जहाँ पर मैं बता रही हूँ, जिसको कि आप में कोई कभी भी झगड़ा होने का सवाल ही कहते हैं परम चैतन्य कि जो व्यवस्था है. नहीं आता। वैमनस्य होने का सवाल ही नहीं स्वर्ग कहिए, चाहे जो भी कहिए उसमें उन्होंने आता। वो दोनों ही शक्ति मानों जैसे आदिशक्ति के नाम से जन्म लिया और वो एकाकारिता। तो गणेश उनके बेटे हैं और एक गाय के स्वरूप में थीं। इसलिए हम वो उनकी माँ। तो जो लोग गणेश जी को लोग गाय को नहीं मारते क्योंकि वो माँ हैं। मानते हैं और जिन्होंने प्राप्त किया है गणेश यहाँ कि गाय में और विदेश की गाय में बहुत जी को सहज में भी उनको वो बिल्कुल फर्क है। इनकी शक्ल और होती है, उनकी अपने बच्चे जैसे सम्भालती हैं। पग-पग पर बिल्कुल अलग होती है मुझे याद है मेरी हर जगह उनको देखती हैं क्योंकि वो माँ हैं लडकियाँ छोटी थी। ये Grand Daughters, और आप गणेश हैं। पर आपके गणेश निर्मल तो पूछती थीं कि नानी यहाँ की भैंसें सफेद श्री e 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-4.txt मार्च-अपर ल 2001 3 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 क्यों है? तो भैंस के और गाय केExpression शाकाम्भरी देवी का प्रादुर्भाव हुआ। उनमें ये में कोई फर्क ही नहीं है, तो लगेंगी कैसी? शक्ति थी कि वो उपज को बढ़ाती थीं हम अब गे आदिशक्ति के जन्म लेने का समय भी मेरठ में थे तो हमने भी बहुत वहाँ खेती नहीं था क्योंकि पहले आप जानते हैं कि बाड़ी करी। तो इतने बड़े-बड़े बैंगन आप द्वापर, त्रेता आदि होते गया। वो कलियुग में खा नहीं सकते! ये बड़े-बड़े टमाटर और ही उनको आना था क्योंकि सारे ही चक्रों ककड़ियाँ, इतनी मोटी इतनी लम्बी कुछ को लेकर, सारी ही देवियों को लेकर, सारी समझ में भी नहीं आता था लोगों को कि यें ही शक्तियों को लेकर के कलियुग में आना क्या है! हमें तो पाँच या छः Prizes मिले पड़ा । नहीं तो कार्य नहीं होता। इतना घोर वहाँ! वो शाकाम्भरी देवी की शक्ति है। तो कलियुग है। इस धोर कलियुग में कार्य जहाँ जिस शक्ति का प्रार्दुभाव होता है वहाँ करना बड़ा कठिन है और उसने महामाया ये शक्ति जो भी हो वही कार्य में ज्यादा रत स्वरूप लिया क्योंकि घोर कलियुग में यदि होती है । अब लोग कभी चामुण्डा कहेंगे कोई जाने कि ये आदिशक्ति हैं तो ऐसे ही कभी कुछ कहेंगे तो उसमें सबकोConfusion मारने को दौड़े। इसलिए महामाया बन गई होता था। लेकिन शक्ति के अनेक स्वरूप हैं और पहले का जो स्वरूप था तो वो इस और जिस चीज़ की जरूरत होती है उनको इस्तेमाल करती हैं । तो ऐसे कोई नहीं है कि पूरा - पूरा प्रचण्ड था क्योंकि इन दिनों में ऐसी कोई दुर्गा हैं तो फिर ये चामुण्डा कौन हैं? ऐसी तरह महामाया स्वरूप नहीं था। वो बात नहीं थी कि देवी को कोई मार डालेगा। बात नहीं है, ये सब हैं और इनका होना जरूरी है। अलग-अलग देवता हैं जिस प्रकार वो जमाना और था, और वो भी उनका जन्म जो हुआ हिमालय की गोद में हुआ और कार्य करते हैं, इसी प्रकार देवी को भी शक्ति उसके बाद विवाह शिव जैसे महान स्वरूपा माना है। देवी के बगैर कोई भी शक्तिशाली के साथ। तो बार लोगों अवतरण कुछ नहीं कार्य कर सकता चाहे वो को ये प्रश्न होता है कि एक नवरात्र ये है गुरु हो चाहे वो रामवतार हो या कृष्णावतार हो, क्राइस्ट हो, कोई हो। सबके पीछे में एक देवी की शक्ति होती थी इसलिए हमारे एक देवी के लिए कहते हैं कि महाकाली देश में माँ को इतना मानते हैं लोग। बहुत एक नवरात्र वो। है, महासरस्वती सब हैं लेकिन सब आदिशवित के ही अंग-प्रत्यंग हैं। इनका जो प्रादुर्भाव अब चलिए ऐसा कहना चाहिए भारतीय जो हैं शक्ति के पुजारी हैं। बाकी ऐसे ही जो चीजे बढ़ चली, झगड़े झगड़ूं सब लोग करते हुआ वो भी ऐसे ही समय में हुआ कि जिस कार्य को करना था, जैसे अब आपके मेरठ में 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-5.txt चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मा्च अप्रै ल 2001 4 हुए, पर वास्तव में सब लोग शक्ति पुजारी को लोग आध्यात्म का चरम लक्ष्य समझें। हैं। जो विष्णु को मानते हैं वो भी शक्ति सब कुछ समझें पर यहाँ की जो औरतों की पुजारी हैं, जो शिव को मानते हैं वो भी स्थिति है, खासकर उत्तर हिन्दुस्तान में, वो शक्ति पुजारी हैं क्योंकि माँ-माँ को तो कोई बहुत दुखदायी है। औरत की इज्जत करना, नहीं बाँट सकता। तो ये ऐसी बड़ी भारी माने महापाप, उसको मारना पीटना ये तो संस्था माँ की अपने देश में है और इसलिए चलता ही रहता है। Dowry System, फिर हमें उसका बड़ा आदर करना चाहिए। बड़े अनेक तरीकों से आदमी अपने को उससे लोगों को भी करना चाहिए और बच्चों को ऊँचा बड़ा दिखाना चाहता है। वो है नहीं। भी। अभी तक हमारे देश की औरतें इतनी आदमी जिस चीज में है उसमें है लेकिन बिगडी नहीं हैं पर वो समझती नहीं हैं कि माँ औरत सम उसके अन्दर क्षमता नहीं। उसके बनने के लिए कौन से, कौन से ऐसे गुण अन्दर वो शक्ति नहीं। बच्चा नहीं पैदा कर होने चाहिए, जिससे अलंकृत हों और उसी सकता। जो औरत की इज्जत नहीं करते वो से अच्छे बच्चे बनें। अब आजकल क्योंकि देश भी नष्ट हो जाते हैं और जो माँ की जरा औरतों में और चक्कर चल पड़े हैं तो इज्जत नहीं करते वो भी देश नष्ट हो जाते उनको बच्चे ही नहीं होते। क्योंकि ऐसी हैं क्योंकि शक्ति ही खत्म हो गई। तो ये औरतों को क्यों बच्चे होंगे और जैसे नहीं होना चाहिए कि औरतों के पीछे भाग 1 दूसरे देश हैं जहाँ माताएं ठीक नहीं हैं तो वहाँ रहे हैं, औरत का Nomination कर रहे हैं। Equal हम लोग हैं पर Similar नहीं, बच्चे ही पैदा नहीं होते। जर्मनी में माइनस है, अमरीका में माइनस है, गोरे लोग माइनस अलग-अलग हैं। अपनी व्यवस्था अलग है। सब जगह ये क्यों माइनस हैं? क्योंकि आर उसकी अलग है। पर जो मैंने देखा है इन लोगों में मातृत्व नहीं है। अब धीरे-धीरे North India में बहुत ही बुरी हालत औरतों समझ रहे हैं इस बात को। मातृत्व न होने से की है। उनको कोई मानता ही नहीं । मैंने बच्चे क्यों पैदा होंगे? वो तो ऐसी जगह पैदा खुद ये देखा है कि औरत की कोई इज्जत नहीं और हर तरह से उसको परेशान किया जाता है। सो ये इसको बदलने का हम सोच लेकिन उसी के साथ-साथ मैं सोचती हैं रहे हैं। काफी प्रयत्न करना चाहिए। ये दूसरा होंगे जहाँ प्यार मिले, उन्हें कोई संवारे। कि हिन्दुस्तान के आदमियों को औरत की सृजन का कार्य है किसी का नाश करने का इज्जत करनी है और उसको प्यार करना नहीं, सृजन का कार्य है अगर ये हो जाए. है। ये बहुत जरूरी है क्योंकि आप लोगों को ये सृजन का कार्य बन जाए तो हमारी भारत थोड़े दिन में ये हो सकता है कि भारतवर्ष भूमि जो है शस्य श्यामलाम् हो जाए। हमें প 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-6.txt मार्च -अप्रै ल 2001 5 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 इसके लिए कायदे कानून बनाने की जरूरत नहीं, अन्दर से ही हमें ये समझना चाहिए। स्त्री जो है ये देवी के ही लक्षण में है अब वो इस तरह से देवी के अनेक स्वरूप हमारे शास्त्रों में वर्णित हैं और वो सब बिल्कुल सही हैं। उनमें कोई ब्रुटियाँ नहीं हैं, गलती नहीं है पर इसकी गहनता समझने के लिए अगर कुछ खराब हो तो दूसरी बात है । पर स्त्री एक देवी है और उसकी इज्जत करना , सहज में उतरना पड़ेगा। वो vibration से आपको पता लगेगा और उसमें discrimin- उसको सम्भालना और उसको हर तरह मदद ation आप देखेंगे कि हरेक शक्ति के अलग करना, ये हरेक पुरुष का कर्त्तव्य है। पर ऐसे होता नहीं है। पुरुष हमेशा ऊपर में जमा viberation है। ये बड़ी सूक्ष्म बात है, इसलिए ये जितनी आपकी प्रगति होगी उतनी ही आप समझ पाएंगे। उसका मतलब नहीं कि रहता है। हरेक मामले में। उसके पास बद्धि ज्यादा होती है पर हृदय तो स्त्री के पास होता है। इसलिए कोशिश ये करनी चाहिए अब आप उसी में लगे रहिए, मतलब ये है कि स्त्री का मान रखा जाए। स्त्री को भी कि आप सिर्फ ध्यान धारणा से अपनी गर সक्ति बढ़ाएं और अपने को उस स्तर पर समझना चाहिए कि जब तक वो देवी स्वरूप । उतार लें तो आप खुद ही समझ जाएंगे कुछ हो हैं तब तक ठीक है पर वो गर और जाती है तो उसका क्यों मान किया जाए?े इसीन का देखते ही आप समझ जाएंगे कि इसलिए उसमें भी ये गुण विशेष आने चाहिएं और उसमें भी ये बात आनी चाहिए। गर ये कैसा आदमी है। एकदम वो ज्ञान, एकदम आ जाएगा क्योंकि हम ज्ञानवादी हैं और हमारी नसों में ज्ञान आ गया है। तो ये सब किसी स्त्री में ये गुण नहीं है तो उसको आप छोड़ दीजिए उसको आप अलग हटा दीजिए पर जिसमें हैं उससे ठीक बर्ताव करें। अधिकतर क्या देखा जाता है कि जो जबरदस्त औरतें हैं उनकी पूजा होती है और उसके साथ ही साथ Introspection । और जो बेचारी अच्छी हैं उनको लोग लताड़ते मैं क्यों कर रही हूँ, इसे मैं ऐसे क्यों कर रहा हैं। तो अपने को अपने जो अच्छे सहज हैँ? मुझे ऐसे क्या करना है? अपने ऊपर आदर्श हैं एक अच्छे पति पत्नी बनना चाहिए ध्यान होना चाहिए, दूसरे का नहीं क्योंकि और आपस में बहुत प्रेम और आपस में बहुत उसका कोई फायदा नहीं होने वाला। आपने understandings होनी चाहिए। तभी तो अपने को ठीक करना है. तभी दूसरे की सहजयोग असली फलेगा, नहीं तो नहीं फल पता हो जाएगा। पर उसके लिए ध्यान करना बहुत ज़रूरी है और कोई इसका मार्ग नहीं है कि आप बड़े पूजन करिए भजन करिए और ये करिए। कुछ नहीं, ध्यान करना चाहिए आप त्रुटि ठीक कर सकते हैं। तो अपने ऊपर ध्यान होना चाहिए कि मैं क्या कर रहा सकता। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-7.txt मार्च अप्रैल 2001 6 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 हूँ, ऐसे क्यों सोच रहा हूँ, मेरे दिमाग में ऐसी देखना है और दूसरे ये कि कहाँ तक मैं प्रेम बातें क्यों आती हैं? अपनी तरफ ध्यान होना करता हूँ? कहाँ तक मैं शुद्ध हैँ? कहां तक मैं चाहिए और दूसरे की तरफ प्रेम दृष्टि होनी अहंकार से बचा हूँ? ये अगर आप देखने चाहिए। प्रेम की दृष्टि कि मैं तो प्रेम में बैठा लग जाएं तो धीरे-धीरे सभी दोष भाग जाएंगे, हूँ और अन्दर मेरे क्या प्रेम हो रहा है सबके जैसे अगर कोई दुष्ट आदमी समझ लीजिए लिए? मैं सबको प्रेम दृष्टि से देखता हूँ? मैं आपके घर में आए आपकी उसके ऊपर सबको माफ कर देता हूँ? इस तरह से दो नजर पड़ी तो वो भाग जाएगा कि नहीं? चीज हैं- एक तो ध्यान और एक उसी प्रकार ये जो बैठे हैं घुसपैठ करने वाले, आत्मावलोकन, जिसे कहते हैं। तो ये दो ये सब भाग जाएंगे यदि आपintrospection चीज़ों से मनुष्य की प्रगति होती है। माने करें पर अगर आप अहंकार में, 'मैं तो ठीक एक तो ध्यान वो तो बात सही है कि ध्यान हैं मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ ऐसे चले तो यही से आप अपने अन्दर और चैतन्य अन्दर लेकर सफाई करने की जरूरत है। यही निर्मलता, के और बढ़ते हैं, और अपने अवलोकन अपने introspection से भी आप अपपन अन्दर और कण्डलिनी तो अपना कार्य कर ही रही के जो obstacles हैं उनको निकाल देते हैं। है वही आपको छुड़ाएगी। ये तो कोई कह जैसे एक नदी का प्रवाह बह रहा है, अब से यही स्वच्छता अन्दर आने की जरूरत है नहीं सकता कि हम छुडाएंगे लेकिन आपकी दृष्टि पड़ते ही आपकी वो जो बातें हैं दौड़ जाएगी। अब किसी को थोड़ी-थोड़ी लोलुपता उसके अन्दर बहुत से पत्थर हैं. कुछ हैं, तो ा प्रवाह ठीक से बह नहीं सकता। गर वो पत्थर क्या हैं आप देखते हैं और निकाल लें तो कुण्डलिनी का प्रवाह बिल्कुल ं होती है जैसे सत्ता मिल गई फिर भी रूके में बह सकता है और बहेगा। इसके बाद नहीं। तो चाहते हैं फिर और कोई सत्ता यही बात है। आप स्वयं ही इसको महसस करेंगे। इसकी प्रचीती होगी कि आप एकदम हैं- इसका कोई अन्त नहीं होता। और गर बड़े जोरों मिले। फिर उसके पीछे दौड़ रहे हैं, दौड़ रहे | स्वच्छ हो गए, अब कुछ रहा नहीं आपमें. ये चीज आपके नजर में आ जाए कि मैं तो एक दम स्वच्छ हो गए। वो चीज़ अन्दर से पागलों के जैसे दौड़ रहा हूँ, ये सत्ता के पीछे आने से उसमें एक तरह से मैं कहती हैं में, इसमें क्या है? बेकार है। शान्ति से बैठे ध्यान तो आप लोग करते हैं, ये मुझे मालूम जो मिलता है उसका उपभोग हो। अब दौड़ है, लेकिनintrospection अपने बारे में सोचना रहे हैं, दौड़ रहे हैं। जो मिला है उसको भी चाहिए। उसमें आलोचना करने की जरूरत नहीं भोग रहे, उसका भी नहीं आनन्द उठाया नहीं अपनी, लेकिन उसको साक्षी भाव से और दूसरे के पीछे भागे और दूसरे के पीछे | 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-8.txt वैतन्य लहरी खंड-XllI अंक 3 वे 4 मार्च-अप्रै ल 2001 7 जब ये दशा आ जाएगी जिसको मैं मानते ही हैं ठीक है। लेकिन हम आपको सहजावस्था कहती हूँ तो सहजावस्था में मनवाते हैं और लोगों को इनको भी मानो, सारी दैवी शक्तियाँ जितनी हैं आपके चरणों उनको भी मानो उनको भी मानो। लेकिन मे आ जाएंगी। आपको सम्भालेगी, आपको गर हमें न मानते होते, किसी भी अवतरण गाइड करेंगी, आपको वरदान देंगी। सारी को मानते होते, क्राइस्ट को ले लें, तो उन्होंने चीजें आ जाएंगी। पर सहजावस्था आनी कहा तो है कि हम आपके पास भेज देंगे चाहिए। उसमें मैं ये करने वाला हूँ मुझे करना चाहिए मुझे ये करना है, वो करना है, ये जब शुरू रहता है तो मैं कहती हैँ कि अभी सहजावस्था नहीं है। और जब सहजावस्था ऐसा एक अवतार, और ऐसी आदिशक्ति आएंगी (Holy Ghost Wouid come) आखिर गर बो अपना कार्य पूरा कर गए होते तो काहे को कष्ट उठाते। मोहम्मद साहब ने भी कहा, सबने ये क्यों कहा कि उद्धरण संसार का होने वाला है। मानो उन्होंने भविष्य की बात करी, इसका मतलब ये होता है, है वो सारी शक्तियाँ हर पल हर तरह से सीधा- सीधा. कि उन्होंने जो भविष्यवाणी कही मदद करेंगी। जिसकी जो जरूरत होती है बो इसलिए कि वो जानते थे कि अभी समय वो पूरी करती है हरेक शक्ति में कोई न कोई नहीं आया है कि इनको हम पूर्णता में ले ऐसी विशेषता है और इसलिए शक्ति की हम जाएं. पूर्ण में ले जाएं और उनकी पूर्णता आने लोग पूजा करते हैं और उसको मानते हैं। के लिए स्थिति आने वाली है, ये कह देने से किसी भी अवतरण से ज्यादा हम शक्ति को ये बता देने से कि आपकी ऐसी स्थिति आने मानते हैं, सब लोग। उसका कारण ये है कि वाली है। कोई न कोई ऐसे आने वाले हैं और शक्ति ही हमको अवतरण की ओर अग्रसर उसके लिए आप सिर्फ अपना जो चित्त है ां आई तो जैसे छोटा एक बच्चा पालने में पल जाए ऐसे ही माँ की शक्ति के स्वरूप में वो बैठा है और ये जितनी भी शक्तियों का वर्णन 1 करती है, उसी की दृष्टि से हम अवतरण को साफ रखें और परमात्मा को याद करें रस्ता पहचान सकते हैं नहीं तो हम पहचान नहीं सकते इसलिए शक्ति ही है. आपकी गुरु शक्ति ही आपकी माता है और शक्ति ही बता देते हैं। लेकिन किसी ने सामूहिक चेतना नहीं दी चेतना भी बहुत कम लोगों को है। जिसकी वजह से वो चीज अब आप लोगों ने आपकी अगुआ है। इसलिए और किसी को मानने की जरूरत नहीं। जब एक बार शक्ति को आपने मान लिया तो शक्ति सबको मनवा प्राप्त की है। अब आपको तो बहुत जोरों में इसमें प्रगति करनी चाहिए। बस दो ही चीज़ तो करनी है, एक तो ये कि ध्यान करना है लेगी, सबको समझा देगी। और अब आपने और एक introspection और उसमें तीसरी सहज में देखा है अब आप लेाग सब हमें तो चीज़ जो है जब आपको जो उसमें होगा 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-9.txt चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 8 मतलब सौन्दर्य दृष्टि आ जाएगी हरेक आनन्द उठाना सीखना ये शक्ति का ही आदमी की सुन्दरता दिखाई देगी, उसकी काम है। शक्ति आनन्द में ही है, आनन्ददायी अच्छाई दिखाई देगी। कितना भी आदमी है और जब ये आनन्द आने लगेगा तब आप आपसे दुष्टता से व्यवहार करे तो समझ में देखिएगा कि आप समझ जाएंगे कि अब तो आएगा नहीं। इनमें ये बात जरूरी थी। ये हम हो गए सहज। तो ये सहजावस्था है कि सीखने की बात है। तो आपकी नजर बुराई दृष्टि ही आपकी गलत चीजों पर नहीं जाएगी। से उठकर के अच्छाई पर जाएगी और जब क्या फायदा? क्योंकि आपको कुछ सीधा अच्छाई पर जाएगी तो आप अच्छाई संहार नहीं करना है, वो तो देवी का काम है, अपनाएंगे। लेकिन आपकी बुराई पर नजर आपको नहीं करना है। तो सारी दुनिया का रहेगी तो आप कैसे अच्छाई अपना सकते जो आनन्द अलग-अलग जगह छिपा हुआ ब 1 हैं? इसलिए ये जो स्थिति है जिसमें कि है उसका आकलन, उसका उपभोग लेना आप, मैंने कहा कि आप, अपने को भी आपके नसीब में है। इसलिए आज के दिन आत्मनिरीक्षण करें। गर आपमें सुन्दरता है क्योंकि आज मैंने बताया पहला दिन है. तो आपको अपने ही से आनन्द आएगा। गर उनका शैल पुत्री का और उन शैल पुत्री का आप दूसरों में देख रहे हैं तो और आनन्द मतलब ये भी होता है कि उनकी अवलोकन आएगा। तो सुन्दरता ही देखने के लिए है। शक्ति, क्योंकि हिमालय में पैदा हुई। हिमालय आदमी की अच्छाई देखनी चाहिए और उसमें सबसे ऊँचा पर्वत है और वहाँ से सारी दुनिया फिर आपको आश्चर्य होगा कि हरेक आदमी का अवलोकन, मतलब उनकी दृष्टि सब पर में कोई न कोई खूबी तो है ही। लेकिन पड़ने दीजिए पहले शैल -पुत्री का दिन वो उसका मज़ा कोई नहीं उठा सकता। अब सब देख लें है क्या? छोटे बच्चों को भी देखिए, सबको देखते हैं ये कौन हैं? वो कौन हैं? वो कौन है? उसी तरह शैल पुत्री का कार्य है और उस पर से और भी नाम है। शैलजा। ये वो हैं। पर जो अपने यहाँ ग्रन्थों े एक फूल है। फूल के अन्दर सुगन्ध है। लेकिन गर आपके पास नाक ही नहीं हो तो आप सुगन्ध कैसे लेंगे? ऐसी बात कि आपके अन्दर वो हृदय होना चाहिए जो उस प्यार जैसे को, उस महत्ता को, उस बड़प्पन को समझ में माना जाता है नवरात्रि जो चैत्र की नवरात्रि सके और उसको आप अपनाइए। तो जितना है उसमें जो पहले देवी का अवतरण हुआ वो वो आदमी अपने को नहीं आनन्दित कर हैं शैल पुत्री। हर जगह चैत्र की, जिसको सकता आप कर सकते हैं। उसमें जो छिपा बहुत मानते हैं, जैसे बिहार में आपके यहाँ हैं उसको आप जान सकते हैं और हुआ छठ होती है षष्ठी के दिन षष्ठी के दिन उसका आनन्द उठा सकते हैं। सो दूसरों से वहाँ होती है छठ। वो ये इस दिन में से है। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-10.txt मार्च-अप्रै लं 2001 9 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 अब गायत्री मंत्र भी बहुतRight Sided आदमी कि वो सरल हृदय लोग थे तो वो यही को नहीं कहना चाहिए क्योंकि Right side चीज देखते थे, इसको ही प्रप्त करते थे की Powers उनको तनाव की ओर ले जाती और प्राप्त किया। उनके हृदय में शक्ति थी है। उससे अच्छा Left side के मंत्र कहें जो ग्रहण करने की। अब हम लोग जरा बंट गए बहुत Right sided हैं| जो Left sided है वो है IRight sided हो गए है। तो भी सहजावस्था right side के मंत्र कहें। इस तरह सेBalance प्राप्त होनी चाहिए। सहजावस्था का जो आनन्द है उतना उनको नहीं आनन्द आया आ जाएगा। तो मतलब, ये समय आनन्द- विभोर होने का है। इतना बड़ा महत्वपूर्ण होंगा जितना वो आपको आएगा चैती के समय है और हमारा भी जन्म ऐसे ही समय गाने सुन के। बड़ा आनन्द आएगा. इतना में हुआ था। कमाल तो ये है कि इसके बाद, उनको नहीं आएगा। हो सकता है उनमें हमारे जन्म के बाद नबरात्र भी यहीं से शुरू इतनी आकलन शक्ति नहीं पर आप लोग थे और हमारे जन्म के बाद ही नवरात्र बड़े आनन्द से उसको सुन सकते हैं तो ये हुए शुरू हुए थे। सो इसके बड़े कमाल के बड़ा विशेष है और सबसे विशेष ये है कि combinations हैं। तो 21 मार्च के बाद ही विक्रमादित्य ने जब उसे स्वीकार किया तो नवरात्र आता है उससे पहले नहीं । इस प्रकार इस चैत्र की जो है बड़ी कमाल है माना, कि इसी से शुरू करना है। माने एक और अपने यहाँ चैत्र वगैरा ऐसे गाने भी होते तारीख, ये इसको अक्षय तृतीया ही नाम रख इसी को ये जो है तृतीया, इसी को उसने हैं। उसका एक ढंग होता है गाने का, चैती दिया। अक्षय तृतीया से ही उन्होंने अपने गाना। क्योंकि क्या है कि पहले के साधु सन्तों ने कवियों ने और बहुत सारे गायकों ने जब चैत्र की वो खुशियों को पाया तो वो शुरू करे कलैण्डर। वैसे ही शालिवाहन ने जो सवतसर बनाया, वो भी इसी तारीख से। आखिर उन्होंने और इन्होंने भी, इनकी तारीख एक जो है दोनों की । आश्चर्य की बात हैं क्योंकि इसमें विक्रमादित्य का राज्य था उसमें स्वर में बंध गया तो वो गाना शुरू हो गया। चैत्र का आनन्द जो है कि गाँवों में बहुत उन्होंने शालिवाहन ने Attack किया। उनको हराया बो तो बब्रुबाहन उनके मतलब मानते हैं चैत्र को। उस वक्त जो गाने आप सुनिए ऐसा लगता है कि अन्दर से उन्माद है, उत्साह और बहुत प्यार और आनन्द का उसमें अभिभाव है। तो वो इन देहाती औरतों में कहाँ से आया? देहात के लोगों में कैसें शालीवाहन शायद उनको हराया और उसके बाद उन्होंने बनाया ये शालीवाहन का शक और इस शालीवाहन के शक की जो पहली तारीख है वो भी अक्षय तृतीया है और उनकी भी जो पहली तारीख है वो भी अक्षय तृतीया आया? वो इतनी सुन्दर कविताएं लिखते हैं, इतनी सुन्दर कि वो कहाँ से आया? वो ये ही 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-11.txt चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 10 है। बड़े आश्चर्य की बात है। और मुसलमानों से कहा जाए? अब मेरे लिए तो रोज़ ही प्रश्न का जो हिजरी होता है न वो भी यही है। है कि अब वो आ रहे हैं तो उनसे क्या कहेंगे? वो आ रहे हैं तो उनसे क्या कहेंगे? इनको कैसे समझाएंगे? लेकिन ये शक्ति जो first यही है वो। सबने इसी तारीख को माना firstऔर पारसी भीनवरोज कहते थे। कारण हैं प्यार की, ये जब हम देखते हैं चारों तरफ प्यार ही प्यार, आनन्द में है इस सबमें देखते हैं हर जगह प्यार ही प्यार है। तो वो प्यार हमारे अन्दर समा जाता है। ये आदान प्रदान करो वो सफल हो जाता है और खास कर से है और फिर उसके बाद उस प्यार से ही क्या? कारण ये कि एक ही शक्ति से प्रेरित लोग थे। तो उन्होंने इसी दिन को माना । ये बहुत महत्त्वपूर्ण है और इस दिन जो भी कार्य लोग कुछ गर विशेष कार्य करना है तो आप सबसे बात करें। सहजयोगियों को चाहिए उसको आज के दिन करते हैं क्योंकि आज किसी पर बिगड़ें नहीं, किसी से नाराज़ नहीं का दिन सबसे ज्यादा, सबसे ज्यादा पुण्य हों, वो मेरे पर छोड़ दें। शान्ति पूर्वक सब से Auspicious दिन है। तो बड़ी खुशी की बात मिलो एकदम सात्विकता आपके अन्दर आनी है कि आप सब लोग आए यहाँ और इसके चाहिए लोगों को समझना चाहिए कि आप बहुत सात्विक हैं और आपके अन्दर कोई घृणा क्रोध आदि नहीं। तब लोग समझेंगे ये बारे में हम लोगों ने इतना जाना। तो आज हम लोगों को अपने अन्दर यही बहुत जरूरी है। अब तो आप लोग पार हो निश्चय कर लेना चाहिए कि हम लोग रोज गए, सब कुछ हो गया। अब जो आगे का ध्यान करेंगे और उसी के साथ intro- spection | जब सोचेंगे तो अपने ही बारे में वो मैं बता रही हूँ। आशा है आप लोग इस दूसरे के बारे में नहीं। अपने बारे में सोचेंगे चीज का अनुसरण करेंगे और इसको अपने और फिर उसको किस तरह से मधरता से अन्दर की जो Introspection है उसको प्रेम हम अपना जीवन बिता देते हैं। बात करने से, अपने को भी प्रेम से देखना चाहिए. में, किसी से व्यवहार में हम उसको किस hatred से नहीं और फिर आपको समझ में तरह से मधुरता से हम अपने विचारों को आ जाएगा कि अरे मैं क्यों मैं ये कर रहा हैँ? प्रकट करें। ये सब सीखना चाहिए। जिससे हम किसी को नहीं दे सके, जिससे सात्विकता आ जाएगी। आदमी बड़े सात्विक तकलीफ न हो। उल्टे ही जो कुछ कहना है हो जाएंगे। इसी प्रकार से सहजयोग बहुत बो कहो। कभी-कभी जरूर कहना पड़ता है सुन्दर हो जाएगा और मेरा जो ये स्वप्न है जोरों में, पर अधिकतर जिससे आप कह रहे कि सारी दुनिया में इतने सहजयोगी हो हैं उसको ये हमेशा एहसास होना चाहिए कि जाएं कि दुनिया ही बदल जाए। तो अनन्त कार्य है उसके लिए जैसा व्यक्तित्व चाहिए जाने दो, छोड़ो। इस तरह से आदमी में एक दुख आशीर्वाद ये प्यार में कहा जा रहा है। तो उस प्यार में ही आपको बोलना चाहिए तो वो किस तरह सबको अनन्त आशीर्वाद 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-12.txt चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च अप्रैल 2001 11 भारतीय राजस्व सेवा अधिकारी सम्मेलन दिल्ली 17.4.2000 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन सभी सत्य साधकों को मेरा प्रणाम! है कि आपके जीवन में क्या समस्या है? मैं अभी-अभी आपको सहजयोग के लाभ के स्वयं एक सरकारी अधिकारी की पत्नी हूँ विषय में बताया गया। परन्तु सहजयोग के और भली-भांति जानती हूँ कि सरकारी प्रभाव हम पर कहीं अधिक गहन और अधिक अधिकारियों के साथ क्या समस्याएं होती होते हैं। वास्तविकता ये है कि हम लोग हैं? इन समस्याओं को केवल वही व्यक्ति स्वयं को नहीं जानते, स्वयं के प्रति हम समझ सकता हैं जो सरकारी सेवा में रत चेतन नहीं हैं। हमें ये जानना होगा कि हम रहा हो। सबसे पहली चिन्ता जो हम लोगों है कि किस प्रकार हम कौन हैं. तब सभी शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक समस्याओं का मानसिक को होती है वह यह इस नौकरी में बने रहें? इस संस्था के अच्छे कारण हम जान पायेंगे। ये समझ लेना अत्यन्त सदस्य बने रहने के लिए अपने स्तर पर हम महत्वपूर्ण है कि हमें कितना सुन्दर बनाया गया है । मानव शरीर की रचना बहुत ही करने का प्रयत्न करते रहें, किसी न किसी सुन्दरतापूर्वक की गई है और यदि आप स्तर पर आकर आप महसूस करते हैं कि चिकित्सा विज्ञान पढ़े तो आप जान जाएंगे इसे न तो समझा गया है और ने ही इसका कि कितनी भली -भांति इसकी देखभाल की कोई पुरस्कार दिया गया है और न ही लोगों गई है। आप हृदय को लें या किसी अन्य ने इसके लिए आपको उत्साहित किया है। अवयव को, परन्तु हम लोग कई बार इसे ऐसी स्थिति में यह बहुत निराशाजनक बात बिगाड़ देते हैं. संभवतः इसलिए कि हमें हो जाती है क्योंकि अत्यन्त ईमानदारीपूर्वक क्या करें? आप जो भी करें, जो भी कुछ इसका ज्ञान नहीं है या इसलिए क्योंकि हम हम कठोर परिश्रम कर रहे होते हैं। वास्तव में अपनी ईमानदारी के कारण सरकारी अधिकारियों को काफी कष्ट उठाने पडते आज जब मैं आप लोगों की इतनी हैं इन कष्टों को मैं जानती हैँ तथा ये भी सम्माननीय सामूहिकता के सम्मुख बोल रही कि किस प्रकार उन्हें सहा जाए? इसके हूँ, मैं सोचती हूँ कि ये बताना बहुत आवश्यक बावजूद भी जब आपको एक प्रकार का नहीं जानते कि हम अपने लिए क्या करें? 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-13.txt चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 12 अपमान या तिरस्कार सहना पड़ता है तो दिन भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों आप कई बार बहुत ही निराश और हतोत्साहित के सम्मुख बोलते मैंने बताया कि मेरे हो जाते हैं । हुए पति आरम्भ में भारतीय विदेश सेवा में चुने गए थे। मैंने उन्हें स्पष्ट बता दिया कि मैं हमें ये जानना है कि हम हैं क्या? एक विदेश नहीं जाऊंगी। अभी-अभी तो हमें बार जब हम ये जान जाएंगे कि हम क्या हैं तो हमें ये सब निराशा आदि न होगी। हम स्वतन्त्रता प्राप्त हुई है और आप विदेश जाना चाहते हो! फिर हम शराब नहीं पीते, वहाँ पर केवल सर्वसाधारण मानव ही नहीं हैं, नहीं! हम पशु नहीं हैं। हम तो अत्यन्त विशिष्ट हम पार्टियाँ कैसे करेंगे? मुझे विदेश सेवा से लोग है जिन्हें विशेष कार्य सौंपा गया है। कुछ नहीं लेना देना। आपको जाना है तो इसका प्रतिकार करने के लिए सबसे पहली चीज जो मैं सुझाऊंगी वो ये है कि आप अपने देश से प्रेम करें। इन लोगों ने आपको मेरे माता-पिता के विषय में बताया है, मैंने देशभक्ति देखी है । किस प्रकार उन्होंने देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। चले जाएं। मैं भारत में ही रहूँगी मेरी प्रतिक्रिया पर वो बहुत हैरान थे। उन्होंने कहा, "मैं भारतीय प्रशासनिक सेवा में आने का प्रयत्न करूँगा " और सौभाग्य से उन्हें ये नौकरी मिल गई चाहे इसके लिए उन्हें वेतन में कुछ हानि ही हुई। मैं बहुत प्रसन्न थी कि यही समय है जब हम देश को बना सकते हैं। उनके सरकारी अधिकारी होने के कारण लोग स्वतन्त्र हैं। आनन्द लेने के लिए हम कुछ न कर पाई। परन्तु उनके आज हमारी स्थिति कहीं बेहतर है । हम निःसन्देह मैं स्वतन्त्र हैं, जबकि इन लोगों को बहुत कष्ट माध्यम से मैं देख पाई कि हम बहुत से कार्य उठानें पड़े। मेरी माताजी पाँच बार जेल कर सकते हैं। इसके लिए मुझे कुछ करने गई। पिताजी जेल गए और कई बार तो की या अपने विचार देने की आवश्यकता ढाई-ढाई साल के लिए । हमारा बहुत बड़ा परिवार था फिर भी हमने इस सारे संघर्ष का बहुत आनन्द लिया। हमने इसका आनन्द इसलिए लिया क्योंकि हम जानते थे कि हम सेनानी हैं, देश की स्वतन्त्रता के लिए युद्ध करने वाले सिपाही। अब वह संघर्ष समाप्त नहीं है । वो स्वयं इस कार्य को कर सकते हैं और जिस प्रकार उन्होंने कार्य किया और जिस प्रकार कार्य में व्यस्त हुए वह आश्चर्यजनक था । जब तक हम यहाँ रहे उन्होंने एक छुट्टी भी नहीं ली। एक दिन के लिए भी नहीं। शास्त्री जी को ये लगा कि वे 1 हो गया है, स्वतन्त्रता के लिए हमें युद्ध नहीं अपना पारिवारिक जीवन बलिदान कर रहे करना। परन्तु अब हमें ये समझना है कि हैं। परन्तु ऐसा कुछ भी न था। मुझे कभी भी देश को दृढ़ करने का यही समय है। उस ऐसा नहीं महसूस हुआ। मैंने हमेशा यही 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-14.txt मार्चअप्रै ल 2001 13 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 सोचा कि भारतीय होने के नाते देश को दृढ़ से पूर्ण। परन्तु आज हम लाग इन सारी करके शानदार बनाना हमारा कत्त्तव्य है। उपलब्धियों से कट गए हैं और यही कारण ऐसा हम कर सकते हैं क्योंकि हम अत्यन्त विवेकशील लोग हैं। है कि हम नहीं जानते कि अपनी इस मातृभूमि में क्या विशेषता है और हम क्या प्राप्त कर सकते हैं? एक दिन वो आएगा कि जब पूरा विश्व आप देखिए कि किस प्रकार लोग इसे व योग भूमि की पूजा करेगा । इंटरनेट और सॉफ्टवेयर के युग में प्रगति कर रहे हैं! मुझे ऐसा लगता है कि अब सरस्वती और लक्ष्मी परस्पर सहयोग करने शक्तियाँ हैं, मैं इन्हीं के विषय में आपको लगी हैं और इसी सहयोग का परिणाम लोगों बताऊंगी। आप हैरान होंगे कि प्रचीन काल इस जैसा बताया गया है कि हमारे अन्दर ये में दिखाई दे रहा है। अब समय आ गया है से ही इस देश को इस ज्ञान के विषय में जब हमारा देश आर्थिक शक्ति के रूप में जानकारी थी परन्तु बर्तानवी तथा अन्य विकसित हो सकता है। परन्तु चीजें यहीं साम्राज्यों के कारण ये सारा ज्ञान लुप्त हो नहीं समाप्त हो जातीं। चाहे आपका आर्थिक गया उन लोगों ने इस ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया। परन्तु उस समय भी नाथपन्थी लोग यहाँ थे। वे जानते थे कि स्तर बहुत ऊँचा हो या आप तकनीकी रूप से बहुत विकसित हों फिर भी यदि आप अत्यन्त विकसित देशों की ओर देखेंगे तो आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने का एकमात्र मार्ग जान जाएंगे कि ये देश सुखी नहीं हैं, वहाँ न शान्ति है न प्रेम। बड़ी अजीब स्थिति है कि धन के लिए कुछ भी नहीं खरीद सकता। ये कुण्डलिनी जागृति है। परन्तु लोगों के लिए आत्मसाक्षात्कार का विचार इतना सीमित था निरर्थक था कि लोग इसे नहीं पाना चाहते थे। कहते थे कि इसके लिए आपको अब हमारे सम्मुख समस्या ये है कि हमें इस बात का पता लगाना है कि हम चाहते क्या अपने परिवार त्यागने होंगे, सम्पत्ति त्यागनी हैं? इसके लिए हमारे सृष्टा ने पहले से ही होगी और सभी कुछ त्यागना होगा। आपको सब प्रबन्ध किए हुए हैं। अपनी उत्थान प्रक्रिया, सब लोगों से दूर हो जाना होगा, किसी अपने विकास, अपने पुनरुत्थान की तरफ सम्बन्धी से केवल एक कदम ले लेने से ही समस्याओं प्रकार के अटपटे विचार लोगों के मस्तिष्क का समाधान हो जाएगा। हममें ये योग्यता में आ गए और उन्होंने इन विचारों का खूब सम्बन्ध न रखना होगा। इस है। हम वास्तव में चुने हुए लोग हैं। वास्तव में इस देश के लोग। ये इतना महान देश है। ये योगभूमि है, दिव्यता और चैतन्य लहरियों प्रसार किया। इस प्रकार की सोच ने वास्तव में हमारे अन्तःस्थित वास्तविकता को नष्ट कर दिया, क्योंकि यह कहना यह त्याग दो, ho 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-15.txt चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च -अप्रै ल 2001 14 वह त्याग दो तथा इस प्रकार के मूर्खतापूर्ण बात की। कबीर दास ने कहा, "ईडा. पिंगला, विचार नहीं होने चाहिए। आप कुछ भी नहीं सुखमना नाड़ी रे, शून्य शिखर पर अनहद् त्यागते, सभी कुछ ज्यों का त्यों होता है । बाजे रे । बाहर से आपको एक अहसास होता है कि आपने यह सब गुरु को दे दिया या किसी और को और इस प्रकार आत्मसाक्षात्कार के किसी ने भी न समझा कि वे क्या कह रहे हैं? उन्हें पढ़ते जाने से, पढ़ते जाने से आप कहाँ पहुँचेंगे? आदिशंकराचार्य ने भी प्रार्थना साथ यह सब चीजें जुड़ गई हैं। की कि हे माँ! कृपा करके किसी भी तरह से मेरे मस्तिष्क से इस अज्ञानान्धकार को दूर आपको कुछ भी नहीं त्यागना पड़ता। आप जैसे हैं कुण्डलिनी आपके अन्दर विद्यमान कर दीजिए। मैं तो शब्दों के जाल (शब्द- है। वे आपकी माँ हैं. आपकी व्यक्तिगत माँ। जालम) में फँसा हुआ हूँ कृपा करके मेरे अन्दर से ये शब्द जाल समाप्त कर दीजिए इन सभी ने यही कहा है। कबीरदास ने कहा, "पढ़ि पढ़ि पण्डित मूर्ख भए। तो आप यदि शास्त्रों को पढ़ते रहेंगे तो भी कार्य न होगा। वैज्ञानिक तथा बौद्धिक दृष्टि से आप केवल आप ही उनके बच्चे हैं। आपको कुछ भी त्यागने की जरूरत नहीं क्योंकि वे आपकी देखभाल करती हैं और आपको पुनर्जन्म देने वाली हैं। आपकी माँ ने जब आपको जन्म दिया था तो क्या उन्होंने कोई कष्ट आपको दिए? सभी कष्ट स्वयं सहकर वे आपको कहेंगे कि ये सब बकवास है। किसी ने भी विश्व में लाई। इसी प्रकार आपको पूनर्जन्म यह खोजने का प्रयत्न न किया कि इन सब देने के लिए, द्विज बनाने के लिए आपके लोगों ने जो कहा उसमें क्या सच्चाई है। अन्दर माँ को स्थापित कर दिया गयाहै। वे आज भी इन सब सन्तों का सम्मान किया : आपके अन्दर विद्यमान हैं और वहीं आपको जाता है परन्तु कोई भी गहनता में जाकर ये आत्मसाक्षात्कार दे सकती हैं। केवल मैं ही नहीं देखना चाहता कि इन्होंने जो लिखा आपको ये बात नहीं बता रही. विश्व के सभी उसका सारतत्व क्या है? सन्तों ने आपको यह बात बताई है। बारहवीं गुरुनानक ने कहा, "सहजसमाधि लाओ"। उन्होंने स्पष्ट कहा, "सहज रूप से स्वतः सन्तों ने यही बताया। परन्तु उससे भी पूर्व आप इसे प्राप्त करो।" लोगों को समझना मार्कण्डेय ऋषि ने इसकी बात की। इन चाहिए कि ये सभी कर्मकाण्ड, ये सभी आडंबर, लोगों के विषय में हम कुछ भी नहीं जानते। जो इन लोगों ने त्याग दिए थे, व्यर्थ हैं। सोलहवीं शताब्दी में गुरुनानक देव और श्री सोलहवीं शताब्दि में बहुत से सन्त हुए जिन्होंने कबीरदास आए और कुण्डलिनी जागृति की कुण्डलिनी की बात करनी चाही, परन्तु उन्होंने शताब्दि में ज्ञानदेव तथा उस समय के अन्य ho 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-16.txt चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 मार्च-अप्र ल 2001 15 अपनी बातों को पद् में लिखा क्योंकि कविता (स्पष्ट हो गया)।" इस अज्ञात को उन्होंने अभिव्यक्ति का सुरक्षित माध्यम है। अन्यथा ऐंठन क्षेत्र (Torsion Area) का नाम दिया| लोगों ने उन्हें धमकाया होता, पीटा होता यह क्षेत्र हमसे बहुत परे है, हमारे मस्तिष्क और क्रूसारोपित कर दिया होता। अत: उन्होंने से ऊपर का क्षेत्र है। प्रायः हर समय हम सोचा कि गद्य (Prose) में लिखा ही न जाए, अपने मस्तिष्क से प्रतिक्रिया किए चले जाते पद्य में लिखना ही ठीक है। परन्तु पद्य को हैं। कुछ भी कहकर आप प्रतिक्रिया करते हैं। कभी हम भद्दी चीजों को लेकर प्रतिक्रिया किए बिना पढ़ने से भ्रम की स्थिति उत्पन्न करते हैं, कभी हम आक्रामक चीजों को लेकर हो रही है अतः पहले आपको ज्ञान प्रतिक्रिया करते हैं । किसी न किसी चीज़ (आत्मसाक्षात्कार) प्राप्त करना होगा। को लेकर आप प्रतिक्रिया करते हैं। उदाहरण सहजयोग ज्ञानमार्ग है जहाँ आपको ज्ञान, के रूप में मेरे सम्मुख यहाँ इन तीन सुन्दर पूर्ण ज्ञान, किताबी ज्ञान नहीं, प्राप्त होता है। पात्रों में पुष्प रखे गए हैं। अब लोग कहेंगे, कैसे? जब आपकी कुण्डलिनी उठती है तो हे परमात्मा! पता नहीं इन लोगों ने कितने वह आपके ब्रह्मरन्ध्र का भेदन करती है। पैसे खर्च किए होंगे परमात्मा जानते हैं "शून्य शिखर पर अनहद बाजे रे कहा गया उनके पास ये धन कहाँ से आया? उन्हें ऐसा है। और जब यह सूक्ष्म से अर्थात् परमात्मा नहीं करना चाहिए था, इन्होंने आयकर भी के प्रेम की दिव्य शक्ति से एक रूप हो जाती दिया है या नहीं? इस प्रकार चे ये बातें करने है तो आप इसे जो चाहे नाम दे सकते हैं। लगेंगे जिनका इन फूलों के सौन्दर्य और गलत ढंग से समझा जा रहा है। ज्ञान प्राप्त सन्तों ने इसे परम चैतन्य कहा। इसका योग जब परम चैतन्य से होता है तब काम, क्रोध, मद, मत्सर लोभ और मोह आदि दोष स्वतः आनन्द के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। इसी प्रकार मस्तिष्क की सारी प्रक्रिया चलती रहती है और इसी प्रकार हम तनाव में फँसते चले ही छुट जाते हैं। क्योंकि अब आप ज्ञान के जाते हैं। हम आनन्द नहीं ले पाते। हम क्यों क्षेत्र में होते हैं। आइंस्टीन ने इसके विषय में नहीं आनन्द ले पाते? कारण ये है कि हम लिखा है कि, "सम्बन्धित सिद्धान्त की आनन्द के स्रोत से जुड़े हुए नहीं हैं। मान अभिव्यक्ति करने के लिए मैं शब्द खोज रहा लीजिए ये यन्त्र (Mike) शक्ति स्रोत से जुड़ा था, परन्तु मेरी समझ में कुछ नहीं आया। हुआ न हो तो इसका क्या लाभ हैं? इसी प्रयोगशाला में मैं इतना परेशान हो गया कि प्रकार हम भी सदैव सोचते रहते हैं और इस "घर आ गया और साबुन के बुलबुलों से प्रकार से चित्त में डालते हैं कि ये प्रतिक्रिया खेलने लगा और अचानक किसी अज्ञात करता रहता है। किसी भी चीज को देखकर दिशा से ये सारा ज्ञान मेरे अन्दर कौंध गया हमें लगता है कि हम प्रतिक्रिया करें और 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-17.txt मार्च-अपरै ल 2001 18 चैत्तन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 यदि कोई प्रतिक्रिया नहीं करता तो लोग सोचते हैं कि इसमें यह बात समझने की नामक आपकी दाई नाड़ी अत्यधिक उत्तेजित योग्यता ही नहीं है । इसके परिणामस्वरूप सर्वप्रथम पिंगला होकर थक जाती है। हर समय आप इसे सोच विचार के लिए और भविष्यवादी कुण्डलिनी की इस जागृति को आत्म- योजनाओं के लिए इस्तेमाल करते हैं । सभी साक्षात्कार कहते हैं। ईसा मसीह ने भी कहा भविष्यवादी लोग इसके कारण पीड़ित हैं था. "स्वयं को पहचानो ।" उन्होंने यह बात क्योंकि यह शक्ति है, यद्यपि चिकित्सा विज्ञान स्पष्ट कही थी। सभी ने यह बात कही, ऐसा इसके विषय में कुछ नहीं जानता। परन्तु नहीं है कि मैंने ही कहीं। अपने अन्दर प्रवेश हम जानते हैं कि यह दाई अनुकम्पी प्रणाली किए बिना हम सूक्ष्मता में नहीं जा सकते। (Right Sympethatic Nervous System) है । इस कार्य को करने के लिए परमात्मा ने यह अत्यधिक उत्तेजित हो उठता है और इसकी उत्तेजना इससे सम्बन्धित सभी चदक्रों की कार्यशक्ति को दुर्बल कर देती है। इसके त्रिकोणाकार अस्थि में कुण्डलिनी को स्थापित किया है यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। छः चक्रों में से इसका उत्थान होता है। ये चक्र कारण प्रभावित अवयवों में सर्वप्रथम जिगर शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक अस्तित्व Liver) है। ज़िगर एकदम उत्तेजित हो उठता है जिगर के उत्तेजित होने के क्या चिन्ह के लिए जिम्मेदार हैं तथा आध्यात्मिक उत्थान के लिए भी, और कुण्डलिनी इस सब में से हैं? इसके कारण आपको भूख नहीं लगती गुजरती है। सर्वप्रथम यह इनका समन्वय और कब्ज रोग हो जाता है। ये प्रभाव तो करती है. दूसरे इनको ज्योतिर्मय करती है। केवल उस स्थिति में होता है जब दुर्बलता बहुत ही निम्न स्तर की हो। जिगर का कार्य शरीर की ऊर्जा को रक्तसंचार में लाने का होता है। जिगर जब दुर्बल हो जाता है तो यह इनका पोषण भी करती हैं। इस प्रकार से आपको पूरी तरह से सन्तुलित करके आपको पूर्णतः स्वस्थ करती है। बताना चाहूँगी कि सुबह से शाम तक जिस गर्मी फैलती ही चली जाती है। जिगर से यह प्रकार का कार्य आप करते हैं, क्योंकि आप गर्मी हृदय को जाती है या उससे भी पहले बहुत परिश्रमी हैं, आपका चित्त सदैव अपने फेफड़ों को। ऐसे व्यक्ति को गम्भीर किस्म मैं आपको वह इस कार्य को नहीं कर पाता और यह कार्य पर होता है और किसी भी प्रकार से का दमा रोग हो सकता है। सहजयोग में अपनी योजनाओं को फलीभूत करने के लिए दमा को पूर्णतः ठीक किया जा सकता है। आप लगे रहते हैं । ऐसा करने का प्रभाव इसमें कोई सन्देह नहीं है। परन्तु इसके लिए पहले आपको आत्मसाक्षात्कारी होना आप पर क्या पड़ता है? आइए इसे देखें। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-18.txt चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 17 पड़ेगा। जिगर की गर्मी जब बाईं ओर को प्रभावस्वरूप व्यक्ति को भयानक कब्ज रोग जाती है तो इक्कीस वर्ष का टेनिस खेलने हो सकता है क्योंकि उसके नीचे की आँतडियाँ वाला युवक भी हृदयाघात का शिकार हो कार्य नहीं करती। अत्यधिक कार्य करने से सकता है। जिगर की ये गर्मी बड़ी उम्र के भविष्यवादी जीवन के कारण हम अपने अन्दर परिश्रमी व्यक्ति के लिए भी घातक हो सकती ये गर्मी उत्पन्न करते हैं । इसे रोकने का है। ऐसे व्यक्ति को जो अपनी चिन्ता नहीं कोई और साधन नहीं है । आप लोग भी करते। अपनी उपेक्षा करने वाले व्यक्ति को सरकारी कर्मचारी हैं। कर्त्तव्यपरायण लोग अचानक हृदयाघात हो सकता है। सरकारी हैं और बहुत ही परिश्रमपूर्वक कार्य करना नौकरों में ये आम रोग है क्योंकि वो इस बात की चिन्ता ही नहीं करते कि वे अपनी कित नी प्रकार स्थिति को सुधारा जाए और इस शक्ति इस कार्य में लगा रहे हैं। हमारे अन्दर प्रकार देश के लिए कार्यरत रहते हैं। परन्तु एक चक्र ऐसा है (दायां स्वाधिष्ठान ) जो इसके साथ-साथ यह भी देखना चाहिए कि जिगर की देखभाल करने के साथ मस्तिष्क हमारे अन्दर किस प्रकार असन्तुलन आ रहे चाहते हैं। सदैव यही सोचते हैं कि किस को ऊर्जा प्रदान करता है। हर समय यदि हैं। हम आक्रामक हुए जा रहे हैं और इससे आप विचार धुन्ध में फँसे रहते हैं तो ज़िगर भी कैंसर रोग हो सकता है। मैं आपको की स्थिति और खराब हो जाती है। बहुत बताऊंगी कि किस तरह? मुझे खेद है कि अधिक सोचने वाले व्यक्ति को जिगर की हमारी बातचीत शारीरिक रोगों की तरफ समस्या हो सकती है। परन्तु चीजें इसी के चली गई है। परन्तु बाएं और दाएं अनुकम्पी से ये दोनों चक्र जब एकरूप होते हैं तो एक साथ ही समाप्त नहीं हो जातीं। गर्मी वहाँ से चक्र का सृजन करते हैं। जब आप दाई ओर अग्नाश्य की ओर चली जाती है और व्यक्ति को शक्कर रोग (Diabeteas) हो सकता है। को बहुत अधिक कार्य किए चले जाते हैं इसकी आप कल्पना करें। आप यदि सोचना और इस प्रकार दाई ओर की शक्ति को बन्द कर दें तो शक्कर रोग को आसानी से बहुत अधिक खर्च करते हैं तो अचानक कोई ठीक किया जा सकता है। विचारों को आघात आपको लग सकता है। आपकी बाईं रोकना बहुत बड़ी समस्या है। इसके बारे में नाड़ी पर कोई ऐसा आघात लग सकता है मैं आपको बाद में बताऊंगी। यहाँ से बढकर जिसके कारण यह टूट जाती है और पूर्ण गर्मी प्लीहा (spleen) पर आक्रमण करती है (Whole) के साथ आपका सम्बन्ध दूट जाता और व्यक्ति को रक्त कैंसर तक हो सकता है। पूर्ण के साथ इस सम्बन्ध के टूटते ही है। ज़िगर की गर्मी आपके गुर्दों (Kidneys) पर भी आघात कर सकती है। इसके की पूरक नहीं रहतीं, परस्पर अहितकर बन परन्तु आपकी दाई और बाई नाड़ियाँ एक दूसरे 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-19.txt मार्च-अप्रै ल 2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 18 जाती हैं और आपके कोषाणु भी इसी प्रकार जरूरत से अधिक कार्य करते हैं तो प्रकृति से व्यवहार करने लगते हैं और परिणाम इसे सुधारने का प्रयत्न करती है। कैंसर रोग होता है। सहजयोग में आप कैंसर को भी ठीक कर सकते हैं। ऐसा करना अब मुख्य बात ये है कि किस तरह से इसे कार्यान्वित किया जाए और किस तरह कठिन नहीं है। परन्तु सर्वोत्तम चीज ये है सन्तुलित किया जाए। आपकी कुण्डलिनी जब उठती है तो उनका संगठन करती है, पोषण करती है, ठीक करती है और अन्ततः: कि आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके इसमें स्थित हो जाएं। सभी पुरुषों व स्त्रियों के लिए यह उत्तम बात है। आपको स्रोत से, शक्ति के सागर से जोड़ती है। तब आपके साथ क्या होता है? कुछ दाईं नाडी के विषय में मैंने केवल एक बात बताई। सबसे बुरी बात तो यह है शरीर नहीं। तब जीवन अथक हो जाता है आप कभी भी थकते नहीं, सदैव शक्ति से भरे के दाएं भाग में पक्षाघात हो सकता है। हाल ही में हमारे एक बहुत अच्छे डॉक्टर थे जो रहते हैं और शक्ति आपसे बहती रहती है । सहज के लिए कार्य कर रहे थे। मैंने उनसे केवल शक्ति ही नहीं, ज्ञान भी. पुर्ण ज्ञान भी कहा श्रीमन अब आप वृद्ध हो गए हैं। आपको आपसे प्रसारित होता रहता है क्योंकि अब चाहिए कि आप दिन के समय भी विश्रआम आपकी अंगुलियाँ चक्रों का अनुभव करने लगती हैं और अपनी अंगुलियों के सिरों पर करें, शाम को जल्दी सो जाएं और बहुत अधिक परिश्रम न करें? आपकी उपस्थिति आप चैतन्य लहरियाँ महसूस करने लगते से ही काफी है। पर उन पर मेरी बात का कोई है। अब आप समझ सकते हैं कि कौन अधिक प्रभाव न हुआ। परिणामस्वरूप उन्हें चक्र पकड़ रहे हैं। इन्हें ठीक करना यदि अधरांगघात (Paraplegia) हो गया और आप सीख लें तो अपने तथा अन्य लोगों के । चक्रों को आप ठीक भी कर सकते हैं उनका दायां तथा बायां हाथ पूरी तरह से अशक्त हो गए। यह एक अलग बात है कि दूसरा परिवर्तन जो आपमें घटित होता अब वो ठीक हो गए हैं। परन्तु प्रकृति अपना वह है आपके व्यक्तित्व का सामूहिक व्यक्तित्व हिस्सा माँगती है और इसी कारण से वह में परिवर्तित हो जाना। आप सामूहिक व्यक्ति व्यक्ति अधरंगघात का शिकार हुआ। जो बन जाते हैं । जैसे इन दिनों हमने देखा है लोग इस प्रकार से पागलों की तरह से कार्य कि बहुत से स्नातक हैं और बहुत से करते हैं उनके सिर के बाएं गोलार्ध पर साफ्टवेयर विशेषज्ञ और कहीं पर भी हम अपने सम्बन्ध स्थापित कर सकते हैं । यही प्रणाली हमारे अन्तर्रचित भी है। किसी के है और उनके शरीर के दाएं दुष्प्रभावे पड़ता हिस्से को लकवा मार जाता है। आप क्योंकि প. 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-20.txt चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 19 बारे में भी हम पता लगा सकते हैं कि उसमें सभी अवतरणों ने इसके बारे में बातचीत क्या समस्या है और अपने स्थान पर बैठे हुए ही उसे ठींक कर सकते हैं। ये सब हो की मोहम्मद साहब ने कहा कि पुनर्जन्म के समय आपके हाथ बोलेंगे इसका अर्थ क्या सकता है परन्तु आपको उस स्थिति तक है? यह इस बात का प्रमाण है कि आपने विकसित होना होगा इसके लिए आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लिया है । बहुत अधिक समय की भी जरूरत नहीं है। अब स्थिति अत्यन्त सहज है और एक बार जब कुण्डलिनी जागृत हो जाती है-यह एक नन्हें बीज के अंकुर की तरह से कार्यान्वित हो रही है, मैं नहीं जानती क्यों? होती है। यह अंकुर यदि पेड़ बन जाए तो सम्भवतः यह घोर कलियुग है जिसके कारण आप हैरान होंगे कि व्यक्ति का पूर्ण परिवर्तन यह सब कार्यान्वित होने लगा है। हजारों हो जाता है और हमारे अन्दर विद्यमान षडरिप लोग आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर रहे हैं। मेरी लुप्त हो जाते हैं। उनसे मुक्त होकर आप अनुपस्थिति में भी सहजयोगी बहुत से लोगों आत्मविश्वास से परिपूर्ण हो जाते हैं. आपके को आत्मसाक्षात्कार देते हैं। संसार में जो कां 1 घटित हो रहा है बह अत्यन्त महत्वपूर्ण है अन्दर की आक्रामकता शान्त हो जाती है और अन्य लोगों के दोष आप नहीं देखते और यह आप लोगों के लिए है। इसके बदले साक्षी बन जाते हैं। बिना प्रतिक्रिया किए आप कोई धन नहीं दे सकते, कुछ नहीं कर आप साक्षी रूप से सभी चीजों को देखने सकते। यह तो स्वतः है। सर्वशक्तिमान लगते हैं। मस्तिष्क से आप ऊपर उठ जाते परमात्मा ने इसकी स्थापना की है-कुण्डलिनी हैं। प्रतिक्रिया ही सभी तकलीफों का कारण की। केवल इतनी सी आवश्यकता है कि है। कोई आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति इसे जागृत करे, वैसे ही जैसे एक जलता हुआ दीपक अब आपको सच्चा ज्ञान प्राप्त हो जाता दूसरे दीपक को प्रज्जवलित कर सकता है। है। ये सभी मानसिक प्रतिक्रियाएं बिल्कुल केवल इतनी सी बात है। परन्तु यदि आपने अनावश्यक हैं। आप वास्तव में जान जाते हैं दूसरे दीपक को प्रज्जवलित कर दिया है और उसे स्थापित कर दिया है तो वह दीपक भी वही कार्य कर सकता है। सहजयोग कि कहाँ दोष हैं? क्या चीज़ ठीक होने वाली है? समाधान क्या है? अब आप सब जान जाते हैं। आप सब कुछ जान जाते हैं क्योंकि इसी प्रकार फैला है। इन सब देशों में मैं आप सरोत से जुड़े हुए हैं। स्रोत से एकरूप स्वयं नहीं गई। अधिक से अधिक बीस देशों हैं। स्रोत से जुड़े बिना आपका व्यक्तित्व में गई हूँगी परन्तु सहजयोग किस प्रकार अधूरा होता है। आपको हैरानी होगी कि फैला है? इसने अत्यन्त सुन्दर कार्य किया 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-21.txt मार्च-अप्र ल 2001 20 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 3 व 4 है। यह हमारे देश का विज्ञान है. इसका विश्वास करते हैं तो स्वयं को भी प्रेम करें। उद्भव हमारे देश से है। नि:सन्देह अन्य स्वयं को क्षमा कर दें। अपने अन्दर दोष भाव लोगों ने भी इसके विषय में बात की। विलियम न रखें। स्वयं को क्षमा करने के पश्चात् अन्य ब्लेक ने इसके बारे में बताया। फिर भी मैं लोगों को भी क्षमा कर दें क्योंकि वो भी कहूँगी कि मूलतः यह ज्ञान भारतीय है । भारतीयों को यह ज्ञान था परन्तु वे सामूहिक आत्मसाक्षात्कार न दे पाए । अज्ञानान्धकार में है। उनमें भी समझने की योग्यता अभी नहीं है। अतः सबको क्षमा कर मैं एक ऐसा दें। तार्किक रूप से भी यदि हम देखें तो क्षमा करने या न करने वाले हम कोई नहीं क्षमा न करके आप अपनी हानि कर रहे हैं और जिन लोगों ने आपको कष्ट पहुँचाया है उनके हाथों खेल रहे हैं । अतः क्षमा कर देना तरीका विकसित करना चाहती थी जिसके द्वारा मानव के संयोग और क्रमपरिवर्तन को समझकर मैं सामूहिक साक्षात्कार के इस कार्य को कर सकूं, क्योंकि व्यक्तिगत स्तर की किसी भी खोज का अधिक महत्त्व नहीं ही सर्वोत्तम बात हैं। इस पर क्षमा के इस होता और मेरी इस खोज ने कार्य कया । आपके प्रेम एवं करूणा से यह कार्य कर रही चक्र को खोलने में आप बहुत मदद करते हैं। कुण्डलिनी के उत्थान में ये दो चक्र बहुत है। कुछ लोग अपनी दोष भावना के कारण बड़ी रूकावट है। अतः आपको स्वयं को इसे नहीं पा सकते। वो कहने लगते हैं, तथा अन्य लोगों को क्षमा करना होगा। केवल ओह! मैंने ये अपराध किया है, मैंने वो इतना ही। अपने हृदय में मात्र कह भर दें कि मैंने स्वय को क्षमा किया और अन्य लोगों समाप्त अब पूरा जीवन आप क्यों उसकी को भी क्षमा किया। आपको केवल विश्वस्त चिन्ता लगाए हुए हैं? ये एक चीज़ है। इस होना है कि किसी भी चीज के लिए आप प्रकार की भावना वास्तव में, प्रेम के इस चक्र स्वयं को दोषी नहीं ठहराएंगे। आपने कोई के लिए. बाईं विशुद्धि के लिए बहुत हानिकर अपराध नहीं किया। आपने क्या किया हैं? । कोई अपराध यदि आपने किया होता तो अतः आपको दोष भावना ग्रस्तु नहीं होना आप जेल में होते। परन्तु आप तो यहाँ पर अपराध किया है जो हो गया वो हो गया, है। इसके कारण कुण्डलिनी नहीं उढती है। दोष स्वीकृति (Confession) की कोई हैं। इसलिए स्वयं को क्यों दोषी मानना है? इतना सोचें कि आवश्यकता नहीं है। केवल कुछ लोग सोचते हैं कि जब तक हम बहुत अधिक धार्मिक नहीं होंगे, जब तक हम बहुत अधिक कर्मकाण्ड नही करेंगे हमारा आप मानव हैं और सभी मानव आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं । मैं आपको बता दूं कि ये प्रेम की शक्ति है। बौद्धिक योग्यता की शक्ति नहीं है। प्रेम की इस शक्ति में यदि आप उत्थान नहीं हो सकता। ऐसी बात नहीं है, हघ 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-22.txt मार्च-अप्रैल 2001 21 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 आप आयकर अधिकारियों से मेरी प्रार्थना है बिल्कुल भी नहीं। हम इन चीजों में फँसे हुए हैं अतः आप इन्हें भूल जाएं। आप चाहे हिन्दू कि आपका जो कानून है उसके अनुसार हों, मुसलमान हों या इसाई, चाहे आपने आप स्त्री धन के पीछे पड़े हुए हैं। मैंने बहुत सी पूजाएं की हों, इससे कोई फर्क वित्तमंत्री से इसके विषय में बात की मगर नहीं पड़ता। सभी की कुण्डलिनी जागृत उन्होंने कोई ध्यान न दिया स्त्री धन को होती है। आपके चित्त का परमात्मा पर होना छूना पाप है। फिर भी इस कार्य को बहुत ही ही आपको शुद्ध रख सकता है। परन्तु ऐसा बुरी तरह से किया जा रहा है। आप सभी भी तभी होगा जब कुण्डलिनी की जागृति हो लोग बड़े-बड़े अफसर हैं, आप लोग ही जाएगी। लोगों के घरों में जाते हैं। हमारा एक पड़ोसी जौहरी था। उसके घर पर इन लोगों ने आपको एक अन्य चीज़ अवश्य बताना छापा मारा। सभी सोफों आदि को बिस्तरों चाहूँगी। महिलाओं के प्रति सदैव मेरी को इन्होंने फाड डाला। सभी कुछ किया। TI सहानुभूति रही है। दीन दुखी महिलाओं, मेरी समझ में नहीं आता कि किस प्रकार से लड़कियों तथा बच्चियों के लिए। जैसे इन्होंने सब करते हैं और उस समय उस घर में बताया, मैंने महिलाओं की सहायता के लिए कोई भी पुरुष न था केवल महिलाएं थीं । तब एक संस्था भी आरम्भ की है। मुझे लगता है उन्होंने अलमारियों की तलाशी ली। यह तो कि हमारे देश में महिलाओं के पास सम्पत्ति एक प्रकार से हिटलर जैसा दृष्टिकोण है। नहीं होती। जो भी कुछ उनके पास है वह उन्हें वहाँ से कुछ भी नहीं मिला परन्तु उन्होंने कानून के कारण है और कानून की सहायता धमकी दी कि यदि इस मामले की रिपोर्ट की की जब आवश्यकता होती है तो वह बड़ी ही तो वे दोबारा आकर सभी कुछ जब्त कर अभिशप्त स्थिति होती हैं। फिर भी लोग लेंगे कानूनन आप तलाशी ले सकते हैं तलाक मॉँगते चले जाते हैं और इस प्रकार परन्तु इस प्रकार की ज्यादतियों को आपको पारिवारिक जीवन नष्ट हो रहा है । अतः देखना चाहिए। मैं सोचती हूँ कि आपको पुरुषों को चाहिए कि वे अपने अन्दर महिलाओं महिलाओं के आभूषण लेने ही नहीं चाहिए। के प्रति सम्मान की भावना विकसित करें। बेचारी महिलाएं बैंक आदि के विषय में कुछ महिलाओं का प्रतिशत निश्चित रूप से पुरुषों नहीं जानती मैं स्वयं बैंक के विषय में कुछ से ज्यादा है । यदि आप लोग महिलाओं का नहीं जानती। गहने ही उनका बैंक है। किसी सम्मान नहीं करते तो वास्तव में पूरे देश की ने मुझसे कहा कि इस प्रकार महिलाएं सारे संस्कृति को नष्ट कर रहे हैं। हमें निश्चित काले धन का उपयोग करेंगी। परन्तु अब तो रूप से महिलाओं का सम्मान करना होगा। काला धन भी सारा बाजारों में पहुँच गया हैं 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-23.txt चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 22 कोई इसे गहनों के रूप में नहीं रखना चाहता। गहने ही भारतीय महिलाओं का सहारा हैं। के लिए किसके पास समय है? अतः मेरी ये विनम्र प्रार्थना है कि आप लोग इसके विषय में सोचे और महिलाओं की सहायता के लिए जब जब भी मैं ऐसी किसी महिला से मिलती हूँ तो मुझे रूलाई आ जाती है। बम्बई में इस थोडे से धन की आज्ञा दें। हमारे एक पड़ोसी थे उनके यहाँ से तीन महिलाएं आई और उन्होंने बताया उनके घर मैं आपको बताना चाहूँगी कि स्वतन्त्रता पर छापा पड़ा और आयकर वाले लोग उनके संग्राम के समय मेरी माताजी ने हम लोगों भी गहने ले गए । मैंने पूछा कि आपने इन गहनों की घोषणा क्यों नहीं की थी। कहने दे दिए थे। यही उनकी सम्पदा है, यही लगी हमारे पति ऐसा नहीं करने देते, वो सब के लिए रखे हुए गहने भी महात्मा गाँधी को उनकी सम्पत्ति है, यही उनका धन है। हर समय ये उन्हें उपलब्ध होता है। गाँव की महिलाओं को तो बैंक आदि के बारे में बिल्कुल शराबी हैं और शराब के लिए गहने बेच देते है। अब हमारा सब कुछ चला गया है। मैंने कहा तुमने अपने घर पर रखे क्यों? बैंक में क्यों नहीं रखे? जब भी हमें पैसों की जरूरत धर्म कार्य है परन्तु आप गहनों के कारण होती है तो हम ये गहने बेच देते हैं और महिलाओं को परेशान न करें। जिस प्रकार भी ज्ञान नहीं होता इस विषय में आपसे बात करते हुए मुझे संकोच हो रहा था। यह जरूरत की चीज़ें ले लेते हैं। यही हमारा अपराधी मान कर उनसे व्यवहार किया जाता बैंक है। तो भारतीय जीवन का यह पक्ष भी है उसके कारण पहले से ही वे परेशान हैं। हमें समझना चाहिए। हम पश्चिमी महिलाए इस देश में गहना पहनना उनकी मजबूरी नहीं हैं। हम भारतीय महिलाएं हैं। परन्तु है। इसके बिना उनका काम नहीं चल सकता। हैरानी की बात है विश्व के किसी देश में भी यह देश महिलाओं की शक्ति का सम्मान पत।ा नहीं, रूस में भी नहीं, गहनों पर कोई कर नहीं है। हमारे देश में तो गहनों का उद्योग से करता है। ऐसा करने से आपको भी बहुत कष्टों और चिन्ताओं से मुक्ति मिलेगी। आपके कर्मचारी रातों को जाकर लोगों को परेशान करते हैं और फिर आपके पास शिकायत हैं। यहाँ पर अत्यन्त सुन्दर एवं सृजनात्मक कलाकार हैं। महिलाओं को अपने गहने रखने दें। उस पर आयकर क्यों लगाना हैं? इनकी आती है और आपकी परेशानी का कारण घोषणा करना बहुत ही कठिन काम है । बनते हैं। इस विषय में कुछ हो सके तो मैं कानून के अनुसार इन गहनों का पंजीकरण बहुत आभारी हूँगी। भारतीय महिलाओं के कराना पड़ता है। अपनी बेटी को भी यदि दुख दर्द के विषय में बात करना बहुत कुछ देना है तो आयुक्त के पास जाकर उसकी आज्ञा लेनी पडती है। यह सब करने दीन-दुखी, पीड़ित है और सताई हुई हैं। आवश्यक था क्योंकि वे तो पहले से ही 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-24.txt बैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 23 हां, एक बार जब आपकी कुण्डलिनी विविध कलाएं सीख कर अपने पैरों पर खड़ी जागृत हो जाएगी तो आप सब कुछ समझ हो सकें। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके जाएंगे और पूरे देश के लोगों के प्रति आपके इसमें स्थापित हो जाने से व्यक्ति की हृदय में प्रेम जाग उठेगा। मैं जानती हूँ कि य विश्व में बहुत सी समस्याएं हैं। मेरी समझ में इतनी बढ़ जाती है कि आप आश्चर्य नहीं आता कि किस प्रकार इनका समाधान चकित रह जाते हैं । कई बार मेरे पति किया जाए। उदाहरण के रूप में हमारा एक मुझसे पूछते हैं कि किस प्रकार तुम यह सब स्कूल है, महाराष्ट्र में भी हमने एक स्कूल कुछ चलाती हो। मैं कहती हूँ कि मैं नहीं शुरू किया है। इस प्रकार की सात योजनाएं जानती, बस मैं सब जान जाती हूँ। आप सब योग्यता, विचार शक्ति और सूझ-बूझ चल रही हैं। परन्तु महिलाओं की समस्या जान जाएंगे कि किस प्रकार कार्य प्रबन्ध सबसे गम्भीर है । वे असहाय हैं और उनकी है और इसके पीछे अन्य लोगों का करना क्षतिपूर्ति करने का कोई मार्ग नहीं सूझ रहा प्रेम ही मुख्य चीज़ है। यह सारा कुछ अत्यन्त है। भारत की शक्ति होते हुए भी वे बहुत कष्ट में हैं। कुण्डलिनी भी एक महिला है। जीवन बहुत सुन्दर हो जाएगा और आप वह पुरुष नहीं है। सभी अवतार हुए परन्तु इसका आनन्द लेंगे। सारा लालच और षड़रिपु कण्डलिनी आदि शक्ति का प्रतिबिम्ब हैं। वे आपको छोड़ देंगे इस आधुनिक युग में यह शक्ति हैं। हम शक्ति पुजारी हैं परन्तु जिस आवश्यक सुन्दर रूप से कार्यान्वित होगा आपका है कि आप सब आत्मसाक्षात्कार प्रकार हम महिलाओं से ब्यवहार कर रहे हैं को प्राप्त करें। आखिरकार हम सब भारतीय हैं। हमारी संस्कृति ऐसी है कि हम आत्मसाक्षात्कार के लिए बने हैं। अन्य लोगों से हम बहुत भिन्न हैं। भारत देश में महिलाओं ने ही देश की संस्कृति की रक्षा की है । वह अत्यन्त आश्चर्यजनक हैं। हमें समझना चाहिए कि यदि महिलाएं जाग जाएं तो आपको कितनी शक्ति प्राप्त हो जाएगी। शक्ति जिस देश में भी मिली उसका माध्यम महिलाएं थीं किसी के भी जीवन को आप देखें चाहे वे महात्मा गांधी हो या शास्त्री हो। वे अपनी पत्नियों से कितना प्रेम करते थे और उनकी कितनी चिन्ता करते थे! हैरानी की बात है कि अपनी जनसंख्या के इतने बड़े भाग की हम उपेक्षा कर देते हैं। अब मैंने यह संस्था आरम्भ की है। मैं इन सबको आत्मसाक्षात्कार दूगी ताकि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके ये आत्मसाक्षात्कार द्वारा आप महिलाओं की रक्षा कर सकते हैं और सूझ-बूझ देकर उनकी सहायता कर सकते हैं। उन्हें परेशान नहीं करें। परेशान करना अनुचित है महिलाओं को परेशान करना पूरी तरह से वर्जित कर दें वे तो पहले से ही बहुत वे नहीं जानती कि वे क्या करें! यह कानून भी परेशान हैं। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-25.txt चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 24 उनकी कोई सहायता नहीं करता क्योंकि है कि इच्छाओं का कभी अन्त नहीं होता। सत्ता तो पुरुषों के हाथ में है। पुरुषों को परन्तु आत्मसाक्षाल्कार प्राप्त करने के पश्चात् चाहिए कि महिलाओं का मूल्य समझें, उनके जो कुछ भी प्राप्त होता है उससे आप सन्तुष्ट प्रेम की शक्ति को समझें। तभी यह कार्यान्वित हो जाते हैं । हर समय आप भागते नहीं होगा। मैं यह इसलिए नहीं कह रही कि मैं रहते सदैव शान्ति और आनन्द के साम्राज्य स्वयं एक महिला हूँ। वास्तव में जो मैंने देखा में बने रहते हैं। आपके साथ भी यही घंटित है वही बता रही हूँ कि हमने नारीत्व के साथ होना चाहिए। कितना अन्याय किया है । TI | मैं सदैव कहती हैं कि सरकारी अधिकारी हमारे देश की रीढ़ की तरह से हैं। वही लोग 1 अब कुण्डलिनी की जागृति के लिए हम केवल दस मिनट का समय लेंगे और आपको आत्मसाक्षात्कार मिल जाएगा। इसके सिद्धांतों के विषय में ग्रन्थ लिखे गए हैं जिन्हें आप देश की देखभाल करते हैं। उनके बिना कुछ नहीं ही सकता बतानवी शासन ने यदि कुछ अच्छा हमें दिया तो वह था सेवाओं का विचार। उनकी चलाई हुई शैली के कारण है ही आप देश की नींव हैं। आप कभी बीमार न पढ़ सकते हैं। पर सबसे अच्छी बात यह कि आप आत्मसाक्षात्कार को पा ले। परन्तु हों, कभी आपको समस्या न हो, इसलिए आत्मसाक्षात्कार किसी पर थोपा नहीं जा सकता। हृदय से आपको इसके लिए प्रार्थना आपकी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेना करनी होगी कुण्डलिनी शुद्ध इच्छा शक्ति हैं। यही वास्तविक इच्छा है, बाकी सब इच्छाएं साहब के प्रति मैं आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे निरर्थक हैं। आज व्यक्ति एक चीज लेना यहाँ आमान्त्रि किया। चाहता है कल दूसरी। इसका कोई अन्त नहीं होता। आधुनिक अर्थशास्त्र का नियम आवश्यक है। आपकी संस्था और कमिश्नर परमात्मा आपको धन्य करे। न स पा 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-26.txt मार्च-अप्र ल 2001 25 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 सहजयोगियों को भू कम्प का पुर्वाभास प्रेम चन्द गुप्ता (एडवोकेट), बहादुर गंज, उज्जैन, मध्य प्रदेश सेवा में, हिलने के कारण मैं भी घड़ी के पैण्डुलम की ह श्रीमाताजी, तरह हिल रहा हूँ, जब कुछ देर तक हिलना बन्द नहीं हुआ तो सहसा मुंह से निकला-यह श्रीमाताजी ने अपनी करुणा और प्रेम हुए उन्हें पार उतारा है । सभी पर बिखेरते भूकप आ गया क्या? और ऑँखे खोलकर हम भी श्रीमाताजी के ॠणी होकर उनके देखा तो सब कुछ सामान्य था, कुछ नहीं द्वारा दिया हुआ सुखी जीवन गुजार रहे हैं। हिल रहा था। फिर से ध्यान करने लगे और हम उनका धन्यवाद तक अदा करने में अपने फिर वही पृथ्वी का हिलना व अपने आप का आपको असमर्थ पाते हैं, उनके ऋणों को हिलना महसूस होने लगा और कुछ समय तो संभव ही नहीं है। श्रीमाताजी की बाद यह हिलना बंद हो गया। ध्यान पूरा 1. चुकाना अनुकंपा से ही उज्जैन नगरपालिका निगम होने के बाद हिलने वाली घटना ही भूल गये फोन समिति 2 का सदस्य और अखिल और बात आयी गई हो गई। उसी शाम को भारतीय मानव अधिकार संरक्षण परिषद् संभाग उज्जैन संभाग उपाध्यक्ष के साथ-साथ उपरोक्त पदों पर आसीन श्रीमाताजी ने कराया जब पत्री कुमारी विनीता, कक्षा 11वीं, ध्यान कर रही थी तो उसे भी ऐसा ही महसूस हुआ और जब उसने भी आँखे खोलकर देखा तो है। उपरोक्त पते पर ही प्रति शनिवार को सब कुछ सामान्य था। बाहर सड़क पर भी शाम 7 बजे से सहजयोग ध्यान केन्द्र केस द्वारा श्रीमाताजी मानव का उत्थान करने में सब कुछ सामान्य था, कहीं कुछ नहीं हिला था। से निरंतर अग्रसर हैं । श्रीमाताजी की कृपा ही यह ताजा अनुभव लेखबद्ध करने का मामूली प्रयास कर रहा हूँ, वैसे अनुभवों को नहीं आया, कहीं भूकम्प आना रिकार्ड भी शब्दों और वाक्यों में उकेरना बहुत ही कठिन नही हुआ है। भूकम्प दिनांक 26 जनवरी, 25 जनवरी, 2001 को कहीं भी भूकम्प कार्य है फिर भी कोशिश कर रहा हूँ। 2001 की सुबह करीबन 8-55 बजे आया 25 जनवरी 2001 गुरूवार को ध्यानावस्था है । लेकिन हमें तो इस भूकम्प के आने का में लगा कि पृथ्वी हिल रही है और पृथ्वी के अहसास भी नहीं हुआ जबकि आसपास के 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-27.txt चैतन्य लहरी खंड-Xll अंक 3 व मार्च-अप्रै ल 2001 26 लोग घरों से बाहर हो गये थे और उनके शाम को सेंटर प्रारंभ होना था । इन उपरोक्त घरों के सामान तक गिर गये थे किन्तु हमें परिस्थितियों के कारण जब श्रीमाताजी से तो यह भी पता नहीं चला कि लोग बाहर वायब्रेशंस से पूछा गया तो भूकम्प नहीं आना निकल गये है वह तो जब हम ऑफिस ज्ञात हुआ और भूकंप नहीं आने के लिये जाने के लिये नीचे सड़क पर आये तो मालूम श्रीमाताजी से प्रार्थना भी की और इसी कारण पड़ा कि भूकम्प आया है और लोगों में आसपास के लोगों को भी आश्वस्त किया अफरा-तफरी मच गई है। इस प्रकार भूकम्प जिससे आसपास की बस्ती खाली होने से 26 जनवरी की सुबह आया जिसकी पूर्व और अफरा-तफरी मचने से, श्रीमाताजी की सूचना श्रीमाताजी ने हमें एक दिन पहले 25 कृपा से, बच गई और हर बार की तरह उस जनवरी को ही सुबह दे दी। जबकि विशेषज्ञों दिन सेंटर पर श्रीमाताजी ने ध्यान करवाया । ा का कहना है कि विश्व में ऐसी कोई तकनीक नहीं हैं जिससे कि भूकम्प आने की पूर्व सूचना मिल सके। ऐसी दशा में क्या यह आश्चर्यजनक किन्तु सत्य नहीं है कि श्रीमाताजी की तकनीकों के आगे विश्व की, मानव मात्र की तकनीक मायने ही क्या रखती जीवन के प्रति निराशा आदि से मुक्त हो श्रीमाताजी की कृपा से ही मैं दमा, हाई-ब्लडप्रेशर, बाईं साईड के आधे शरीर के दर्द, पेशाब के बार-बार रुकने, हायपरएसीडिटी, हमेंशाबना रहने वाला सिर व माथे का भारीपन, दर्द, थकान, नर्वसता. है? गया हूँ। सेंटर पर आने जाने वाले अन्य सहजी जो खूनी बवासीर से पीड़ित थे ठीक इतना ही नहीं उसके बाद दूसरे दिन 27 हो गये हैं जिन घुटनों से एक फरलींग भी जनवरी को मध्य-प्रदेश शासन का पत्र जिला नहीं चला जाता था वे अब दौड़ने लगे हैं प्रशासन को मिला कि 24 घण्टों में पुनः और रोज मीलों चलते हैं, साइकिल चलाते भूकंप आ सकता है और इस पत्र के बढ़-चढ़कर अफवाह के रूप में फैल जाने उन्हें काम-धंधा मिल गया हैं। जिनके पावों से 2 बजे से दिन से ही लोग घरों से बाहर में एक्सीडेंट के कारण स्टील की राड लगी होकर मैदानों में चले गये तथा सारे शहर में हुई है वे भी अब तेज चाल से 30 कि.मी. तक अफरा-तफरी मच गई। हमारे घर यानी चलते है और जरा भी थकान नहीं होती उक्त सहजयोग सेंटर के आसपास के लोग उनमें इतनी अधिक ऊर्जा बढ़ गई है कि वे भी मैदान में जाने लगे और हमें भी लोगों ने थकने का नाम ही नहीं लेते हैं और काम हैं, साईकिल पर सामान लादकर लाते हैं, घर से बाहर निकलने को आग्रह किया। लेकिन उस दिन शनिवार होने के कारण है । कब, कैसे हो जाता है पता ही नहीं चलता 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-28.txt मार्च -अप ल चैतन्य लहरी खंड -XIII अंक 3 व 4 2001 27 श्रीमाताजी सुबह 5 बजे आवाज देकर नये अनुभव साकार होते देखें है, कई घटनायें हमें ध्यान के लिए उठाती है. ऐसे और भी क्रियान्वित होते देखी है. जो इतनी अधिक हैं कई है जिन्हें श्रीमाताजी ध्यान के लिये उठाती कि सारी घटनाओं का यहां उल्लेख कर है किंतु आँखे खुलने पर सामने कोई नहीं पाना संभव ही नहीं है। केवल हृदय में महसूस होता है और ऐसा लगता है जैसे सोये ही ही किया जा सकता है अर्थात चौबीसों घण्टे नहीं थे, यानी एकदम तरोताजा। और जो कुछ न कुछ घटित होता ही रहता है । ऐसी काम हमें कठिन लगता है या नहीं हो रहा श्रीमाताजी की कृपा है। होता है (वैसे तो हमारे सारे काम श्रीमाताजी ही करती हैं) तो हम श्रीमाताजी से फलां काम करने की प्रार्थना करते हैं तो कुछ भी श्रीमाताजी से ऐसी ही कृपा हमेशा बनाये रखने की विनम्र प्रार्थना करता हूँ और एक उन्नत, उत्कृष्ट, अच्छा सहजयोगी बनाने की कामना श्रीमाताजी से करता हूँ तथा समय में काम बन जाते हैं और हमें कोई प्रयास तक नहीं करने पड़ते अथवा कुछ शुद्ध इच्छा करता हूँ कि श्रीमाताजी अपने विशेष नहीं करना पड़ता है। इस प्रकार एक श्रीचरणों से कभी भी हमें अलग नहीं करें ओर तो हमें आगे दूसरे दिन आने वाले और सदैव हमारे रोम-रोम में विराजमान भूकम्प की सूचना पहले ही मिल गई और दूसरा यह कि श्रीमाताजी के बताये अनुसार रहकर विश्व का कल्याण करें। तथा हमसे जो भी सेवा हो वह अधिक से अधिक करवाये । हमने भी लोगों को भूकंप नहीं आने के बारे प्रति, में आश्वस्त किया तो बस्ती में अफरा-तफरी मचने से बच गई। इससे भी अधिक कई पूर्व अनुभूतियाँ होती रहती हैं । यह ताजा अनुभूति है जिससे सारा विश्व परिचित है। जबसे सहजयोग में आयें है तब से अब तक नित्य चैतन्य लहरी में प्रकाशनार्थ भवदीय प्रेमचन्द गुप्ता एडवोकेट 10015, पुष्पांजली आर्यसमाज मार्ग, बहादुरगंज, उज्जैन (मध्य प्रदेश) 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-29.txt चैतन्य लहरी खंड-XIli अंक 3 व 4 मार्च -अप्रै ल 2001 28 श्री कृष्ण पूजा कबैला 20.8.2000 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज हम यहाँ श्री कृष्ण की पूजा करने जानना है। आत्म साक्षात्कार का यही उद्देश्य के लिए आए हैं। आप जानते हैं कि सहजयोग है। परन्तु आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के में आने से पूर्व भी आप जिज्ञासु थे। भिन्न पश्चात् आप में क्या घटित होना चाहिए? स्थानों पर आप गए, भिन्न पुस्तके पढ़ीं और आपमें से कुछ तो खो भी गए। उस जिज्ञासा आपमें से बहुत से लोगों की रुचि नशे आदि व्यर्थ की चीज़ों में समाप्त हो गई है। बेकार में सम्भवतः आप ये न समझ पाए कि आप. की पुस्तकें पढ़ना आपने छोड़ दियाहै। शराब क्या खोज रहे हैं। वास्तव में आप स्वयं को आदि पीने में आपकी रुचि समाप्त हो गई पहचानना चाह रहे थे। सभी धर्मों में कहा है, है। परन्तु इतना ही काफी नही है, मात्र "स्वयं को पहचानिए"। ये एक आम बात है इतना काफी नहीं है इतना तो किसी भी जो सबने कही है। ये बात सभी धर्मों ने तरह से घटित हो सकता है। परमात्मा को निश्चित रूप से कही है कि "स्वयं को जानने से आपको इस बात का ज्ञान हो पहचानो क्योंकि स्वयं को पहचाने बिना जाना चाहिए कि वह क्यों चाहता है कि आप 1 आप परमात्मा को नहीं जान सकते, उसे जाने। क्योंकि परमात्मा आपमें अपना आध्यात्मिकता को नहीं जान सकते। प्रतिबिम्ब देखना चाहता है वह अपना तो स्वयं को पहचानना पहला कदम था प्रतिबिम्ब देखना चाहता है। यही कारण है जिसके लिए लोगों ने आपके साथ सभी कि परमात्मा ने आपका सृजन किया अब 1 प्रकार चालाकियाँ कीं। उन्होंने आपको भिन्न वह अपना प्रतिबिम्ब आपमें देखना चाहता विधियाँ सिखाई और भिन्न प्रकार से आपको लूटने तथा धोखा देने का प्रयत्न किया। वो सब कुछ हो चुका है। आप सहजयोग में आत्मसाक्षात्कार दिया है क्योंकि वे आपमें आते हैं और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करते हैं। अपना प्रतिबिम्ब देखना चाहती हैं। अतः हैं। 1. देवी की भी यही बात है। देवी ने आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने का लक्ष्य क्या आपको उस प्रतिबिम्ब के लिए स्वयं को है? लक्ष्य परमात्मा को या परमेश्वरी को तैयार करना होगा वह प्रतिबिम्ब अत्यन्त প 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-30.txt भारच-अप्रै ल 2001 29 चैतन्य लहरी खंड-XIII अक 3 व 4 पावन, सुन्दर, प्रेममय, करुणामय तथा विवेक से परिपूर्ण है तो व्यक्ति को यह स्थिति प्राप्त करनी होती है जहाँ वे समझ सके कि उसमें विवेक होना आवश्यक है। आपमें यदि आने वाली आरुरी शक्तियों को नष्ट कर रहे थे । अपनी विनोद शीलता में रहते हुए उन्होंने ये सब कार्य किया बचपन में राक्षसों को मारा। बालरूप में भी वे कितने परिपक्व थे विवेक का अभाव है तो आप आत्मसाक्षात्कारी इसका अन्दाजा आप उनके पूतनावध तथा दो अन्य राक्षसों के वध से लगा सकते हैं। एक ओर तो वे राक्षसों के वध से लगा सकते है। एक ओर तो वे राक्षसों का वध करते थे व्यक्ति नहीं है । श्री कृष्ण (विशुद्धि) के स्तर पर जब आप पहुँचते हैं तो वे चाहते हैं कि आप विराट या और दसरी ओर गोपियों के साथ खेलते थे. विराटांगना के अंग-प्रत्यंग बन जाएं। विराट सताते थे और लीला करते थे, क्यों? क्योंकि के अंग-प्रत्यंग बनकर आप ये न सोचते वो चाहते थे कि सभी प्रकार की लीला और फिरें कि अब आप पूर्णतः ठीक हो गए हैं । उत्सव होते रहे। एक बार जब प्रलयकारी ऐसा आपने कुछ नहीं करना। इसके आगे वर्षा हुई तो उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी आप क्या करते हैं वह मुख्य बात है। उंगली पर उठा लिया। लोगों को समझ आत्म साक्षात्कार के पश्चात् आपको देखना जाना चाहिए था कि ऐसा करना असम्भव है कि आपके अन्दर श्री कृष्ण सम विभूतियों कार्य था। यह तो चमत्कार था। परन्तु श्री कृष्ण अपनी नन्ही उंगली पर पर्वत को उठाकर खड़े रहे, गोप-गोपियों की रक्षा करने के लिए, अत्यन्त सहज रूप से उन्होंने ये कार्य किया। तत्पश्चात् यमुना के जल में उन्होंने (अवतरणों) के जीवन से आया हुआ प्रतिबिम्ब होना चाहिए। श्री कृष्ण ने बहुत कठिन परिस्थितियों में जन्म लिया। वहाँ से उन्हें गोकुल ले जाया कालिया मर्दन किया। ये भयानक सर्प यमुना गया जहाँ यशोदा जी ने उनका ललन पॉलन के जल में जहर फैलाकर लोगों की हत्या किया। वहीं पर उन्होंने अपनी लीला का के कर रहा था। बिना कुछ पूछे तो यमुना आरम्भ किया। अतः आपको भी विनोदशील होना होगा और विनोद एवं आनन्द की सृष्टि करनी होगी। उन्होंने कभी नहीं कहा कि पत्नी सर्पिणी ने उनसे प्रार्थना की कि वे उसे हिमालय में जाकर किसी बूढे संत की तरह क्षमा कर दें। ये सारी चीजें दरशाती हैं कि से बैठ जाओ। आपको बच्चों से घुल-मिल बिना किसी अहम के छः सात वर्ष में ये कार्य जाना चाहिए. उनसे बातें करनी चाहिए और करने बाल बच्चा कोई सामान्य व्यक्ति न उनसे खेलना चाहिए और आनन्द लेना था। अपनी उपलब्धियों के विषय में उन्होंने चाहिए। सारी लीला करते हुए भी वे मार्ग में सोचा तक नहीं, सारे कार्य कर डाले । क्योंकि जल में कद गए और कालिया मर्दन करके उन्होंने लोगों की रक्षा की । कालिया की 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-31.txt मार्चअप्रै ल 2001 30 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 वो जानते थे कि बो श्री कृष्ण (अवतरण) हैं। जाते हैं उसकी सूची बनाते हैं. नाप-तोल लेते हैं और घर जाकर कहते हैं कि कल हम इस पर निर्णय लेंगे सहजयोगी का व्यवहार अतः पहली चीज जिसके विषय में आफने सावधान होना है, वह यह है कि आप साक्षात्कारी लोग हैं। आप साधारण रूप से ऐसा नहीं होना चाहिए। सहजयोगी को अपने कार्य करने वाले साधारण लोग नहीं है। निर्णय पूर्णतः स्वाभाविक ढंग से तत्क्षण ले आप विशेष लोग है जिन्हें सर्वशक्तिमान लेने चाहिए। आपको ऐसा होना चाहिए। परमात्मा के गुणों को प्रतिबिम्बित करने के मान लो कोई व्यक्ति डूब रहा है तो पहली लिए बनाया गया है। आपसे ये आशा नहीं अन्तः प्रेरणा ये होनी चाहिए कि आपको उसे की जाती कि आप जाकर कालिया जैसे बचाना चाहिए। किस प्रकार आप उसे बचाते हैं? आप पानी में कूद पड़े क्योंकि आपको तो परमेश्वरी सुरक्षा प्राप्त है। आपको कुछ नहीं असुरों का वध करें क्योंकि आज तो ऐसी स्थिति है कि आपकी हर समय रक्षा की जा हो सकता। अतः पानी में कूद कर उस व्यक्ति की रक्षा करें इस प्रकार का दृष्टिकोण रही है। कोई आपको हानि नहीं पहुँचा सकता। कोई आपकी हत्या नहीं कर सकता तथा सहजयोगी होने के नाते आपकी देखभाल होना तो कम से कम आवश्यक है। आपका स्वभाव ऐसा होना चाहिए कि आप अत्यन्त स्वाभाविक निर्णय लें। ये सभी चीजें परिवर्तित निर्णय लेने के विषय में व्यक्ति का क्या होती है, सभी प्रकार के सोच-विचार, निर्णय दृष्टिकोण होना चाहिए. यह बात उसे समझनी के लिए बड़ी-बड़ी गोष्ठी करना आदि चीजें चाहिए। निर्णय स्वाभाविक (सहज) होने आपके लिए नहीं है। रोजमर्रा के जीवन में चाहिए। निर्णय लेने के विषय में ढील नहीं भी आपको ऐसा ही होना चाहिए। राजनैतिक, की जा रही है। करनी चाहिए । तुरन्त जाकर चीज़ों को देखें और श्रीकृष्ण की तरह तुरन्त और सहज आपको नेतृत्व करना होगा और अत्यन्त सहज रूप से निर्णय लें, जैसे वो नदी में कूद पड़े। होना होगा। आर्थिक तथा जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी इसी प्रकार आपके निर्णय भी अत्यन्त स्वाभाविक होने चाहिए। मान लो आप एक किस सह ज आप प्रकार (spontaneous) हो सकते हैं मेरे अन्दर कालीन खरीदना चाहते हैं, ठीक है, दुकान पर जाए और सारा कुछ देख लें। जीवन के क्या गुण है? मेरे पास कौन से शस्त्र है? हर क्षेत्र में आपके निर्णय स्वाभाविक तथा आपको समझना होगा कि क्या निर्णय लू? तुरन्त होने चाहिएं। लेकिन मैं तो बिल्कुल क्या आप जानते है कि आपमें चैतन्य लहरियाँ भिन्न शैली देखती हूँ। लेग एक-एक दुकान है और आपको इनका एहसास है? आपका 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-32.txt चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अप्र ल 2001 31 जानते हैं कि चैतन्य लहरियाँ क्या है? आप दुर्दशा थी और यह भूतही महल सी लगती ये भी जानते है कि चैतन्य लहरियाँ आपको थी। इसमें कोई सन्देह नहीं हैं । जो भी लोग क्या बता रही है और क्या सूचना दे रही हैं । मेरे साथ गए थे सभी कहने लगे, ऐसा चैतन्य लहरियाँ आपसे बाते करती है। चैतन्य स्थान! श्रीमाता ज़ी आप इसे नहीं खरीद लहरियों के माध्यम से आपको पलभर में सकते। जान लेना चाहिए कि आपको क्या करना है। किसी ने मुझे बताया श्री माताजी जब मैं कबैला आता हूँ तो मुझे बहुत अधिक चैतन्य रही हूँ कब? आज, अभी। वह हैरान था। आता है। ये बास्तविकता है। परन्तु आपमें मैने उससे पूछा कि मुझे बताएऐं कि किस से कितने लोगों को ऐसा महसूस होता है। प्रकार मैं इसे खरीद सकती हूँ। उसने बताया मैने मेयर को बताया कि मैं इसे खरीद कारण यह है कि अभी तक आपकी कि इटली में यह कार्य बहुत आसान है। एक संवेदनशीलता विकसित नहीं हुई। चैतन्य लहरियों के विषय में आपको पर कब्जा कीजिए इमारत में आपको यदि तिहाई कीमत देकर खरीद लीजिए इमारत अपनी संवेदनशील होना है। किसी पर भी दृष्टि कोई बुराई नजर आए तो आप इसे छोड़ डालकर, किसी के भी समीप बैठते ही आपको सकती हैं परन्तु आपको दिया हुआ पैसा पता चल जाना चाहिए। किसी से हाथ मिलाते छोड़ना पड़ेगा। विक्रेता यदि सौदे से इन्कार आपको पता चल जाना चाहिए के उस पैसा देना पड़ेगा। करता है तो उसे दुगुना हुए व्यक्ति की चैतन्य लहरियाँ कैसी हैं? इस मैंने कहा बहुत अच्छा सौदा है। मैं ये मकान प्रकार की संवेदनशीलता आप स्वयं में खरीद रही हूँ। मैने आपको बताया कि मैं विकसित कर लें तो निश्चित रूप से आप इसे खरीद रही हूं, मैं ये मकान खरीद रही सहज (Spontaneous) निर्णय लेंगे आप हूँ। सभी लोग हैरान थे कि श्री माताजी क्या जानते हैं मैं ऐसा करने में बहुत पारगंत हूँ। कर रहे है? तो किसने निर्णय किया? चैतन्य यह कबैला मैने पाँच मिनट में खरीदा था। लहरियों ने । केवल पाँच मिनट में। जब मैं यहाँ आई तो वे निर्णय हुआ और मैने कहा मैं इसे खरीद रही 1 स्थान की चैतन्य लहरियों ने। कहने लगे कि आप ऊपर नहीं जा सकतीं हूँ। इससे पूर्व मुझे सात किले दिखाए गए क्योंकि आपके पास बड़ी कार है। मेयर ने लेकिन मैंने कहा, नहीं। बाहर से ही मैने कहा आप आइये, मैं आपको अपनी कार में उनको खरीदने से इन्कार कर दिया। लोग ले जाऊंगा। मैं उनके साथ कार में गई और हैरान थे कि मैं किले के अन्दर तक नहीं थे जाकर पाया कि पूरी इमारत बहुत ही गई मैने उनसे कहा कि इनसे पूछो कि जीर्ण-शीर्ण स्थिति में थी पूरी इमारत की इसमें क्या था? बताया गया कि यहाँ मठ 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-33.txt पैतन्य] लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 म1चं-अप ल 2001 32 (Nunnery) था। मैने कहा देखो। अब आपमें क्या है? स्वयं को परखने का यही तरीका भी इसी प्रकार से सहजता पूर्वक निर्णय लेने है। असफलताओं से घबराएँ नहीं और न ही की शक्ति विकसित होनी चाहिए । तब आप सफलताओं से मदमस्त हो जाए क्योंकि अब हैरान होंगे, इतने थोड़े में आप कितनी बड़ी आप आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति हैं। आप यदि उपलब्धि प्राप्त कर सकते हैं इसका अभिप्राय संवेदनशील हैं तो, नि:सन्देह तुरन्त जान ये नहीं है कि आप सभी ऐसा ही करने लगें। जाएंगे कि वास्तविकता क्या है? मैं ये नहीं सर्वप्रथम आपको चैतन्य लहरियों की वह संवेदनशीलता प्राप्त करनी होगी। करती हैँ, परन्तु करने का प्रयत्न अवश्य वह संवेदनशीलता जब आपमें आ जाएगी करें। तब मैं कहूँ गी कि आप सहजयोग में परिपक्व हो गए हैं। अत: परिपक्वता लाई जानी चाहिए। आप ये नहीं कह की बहुत अधिक प्रशंसा करते हैं और कहते स क ते कि कहूँगी कि आप भी वैसा ही करें जैसा मैं मैंने देखा है कि कुछ लोग किसी व्यक्ति अ ब है मुझे ढीक हैं कि वह बहुत अच्छा है, आप उससे अवश्य आत्मसाक्षात्कार मिल गया है। मैं ऐसा मिलें। ऐसा होगा वैसा होगा। मैने कहा ठीक कर सकता हूँ। पहले आपको अपनी है आप मुझे उरका फोटो दिखाएं। फोटो संवेदनशीलता का वजन आँकना होगा। देखकर मैने कहा मुझे खेद है मैं उससे नहीं ये आप किस प्रकार जान पाएगें? उदाहरण मिल सकती। उनकी समझ में मेरी ये बात के रूप में यह देखने के लिए कि आपका नहीं आती। इतना महान व्यक्ति है, कल कुछ नहीं है सब मिथ्या है, आप सहज निर्णय मंत्री बनेगा। मैं उससे नहीं मिलना चाहती। ये सम्भव है परन्तु आप स्वयं देख सकते अगले ही दिन समाचार पत्रों में उसके विषय हैं कि आपके निर्णय सहज होते हुए भी यदि में एक बहुत बड़ी रिपोर्ट छपी होती हैं कि असफल होते हैं. यदि वे गलत हैं. उनमें यदि कुछ गलतियाँ हैं तो के आपके लिए कष्ट लें। वह बुरा व्यक्ति है। अतः सहज ढंग से जो आपने निर्णय किए हैं उसकी सूझ-बूझ तथा अपने अनुभवों का मुकाबला करें। परन्तु मैं कहूँगी कि सहज निर्णयों पर डटे रहें इसके विषय में सोचे मत कि किस प्रकार ये कार्यान्वित होगा और हमें क्या करना चाहिए? कर होंगे, चाहे आर्थिक रूप से हों या राजनैतिक रूप से या किसी अन्य प्रकार से और तभी आपकी सारी मूल्य प्रणाली भली-भांति परखी जाएगी। कहाँ तक आप सहजयोग में उतरे हैं? कहां तक आपने आपके मस्तिष्क पर इसका बहुत गहन प्रभाव पडता है क्योंकि आप ये जानते हैं कि आत्म-साक्षात्कार पाया है और आपकी स्थिति 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-34.txt पैतन्य लहरी खंड-XIII अक 3 व 4 मार्च -अ ल 2001 33 गलत क्या है और ठीक क्या है। मैं नहीं इतना बड़ा महल बनाया। वह महल जल के जानती कि आपमें से कितने लोगों ने मेरा नीचे चला गया था, फिर भी ये वहाँ विद्यमान था। इसी प्रकार जो भी अवतरण अवतरित बनाया हुआ घर देखा है? हुए वे अत्यन्त सृजनात्मक थे व्यक्ति में श्री कृष्ण का एक अन्य गुण ये था कि वे यदि सजनात्मकता नहीं हैं ता अत्यन्त सृजनात्मक थे। अपने बचचपन में ही आत्मसाक्षात्कार का क्या लाभ है? उन्होंने ये सब कार्य किए, सारी शरारते की महानतम सृजनात्मक कार्य जो व्यक्ति और बड़े होकर द्वारिका क्षेत्र के सम्राट बने। आसानी से कर सकता हैं वह है तब वे राजाओं जैसे वस्त्राभूषण धारण करते सहजयो गी बनाना। सुगमतम और थे। आखिरकार वे सम्राट थे शैशवकाल में आनन्ददायी कार्य अन्य लोगों को सहजयोगी वे मोर पंख धारण किया करते थे परन्तु बनाना और उन्हें वह दैवी आशीर्वाद देना है, राजा बनने के पश्चात् मुकुट धारण करके जिसे वे जन्म-जन्मातरों से खोज रहे थे। सिंहासन पर बैठकर राजाओं की शान से उन्हें ये आशीर्वाद देकर आप नहीं जानते कि लोगों से बात करते थे। उनमें ये सारी महानता आपको कितने आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। तो | थी और वे अत्यन्त सृजनात्मक भी थे। द्वारका अब आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो 1 चुका में उन्होंने सोने का एंक बहुत सुन्दर किला, है और मैं कहूँगी कि अत्यन्त आसानी से या कह सकते है महल बनाया। इस बात पर आपको ये प्राप्त हो गया है। सभी लोग क्या आप विश्वास कर सकते हैं? श्री कृष्ण कहते हैं कि यह तत्क्षण निर्वाण है। ने ये कार्य किया, परन्तु बाद में वह सब जल 'सहजयोग' तत्क्षण निर्वाण है ये बात में डूब गया । अब भारत के बुद्धिवादी लोग, जिन्हें पश्चिम से प्रशिक्षण प्राप्त हुआ है सत्य है। परन्तु जो चीज़ आपको आसानी से और तत्क्षण प्राप्त हो जाती है आप सोचते हैं कि यह सम्भव नहीं हैं। वो कहते हैं उसका मूल्य नहीं समझ पाते । आप लोग कि जल में कुछ नहीं है और न ही श्री कृष्ण कहते हैं कि भारत को आसानी से स्वतन्त्रता ने वहाँ कोई महल बनाया। यह सब मात्र एक कहानी है- एक मनगढंत कथा। परन्तु प्राप्त हो गई। स्वतन्त्रता इतनी आसानी से कुछ लोगों को इस बात पर विश्वास था. उन्होंने समुद्र प्राप्त नहीं हो गई कि वे उसका मूल्य न ये बात भी सत्य है कि कोई चीज यदि मुफ्त या बिना किसी प्रयत्न के के जल में खोज करवाई और समझे। परन्तु वहाँ एक बहुत बड़ा महल खोज निकाला । उसमें थोड़ा बहुत सोना भी शेष था। ये लोग प्राप्त हो जाए तो व्यक्ति उसका मूल्य नहीं आश्चर्य चकित थे कि किस प्रकार उन्होंने समझता। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-35.txt चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 34 आप सोचते हैं कि यह मेरा अधिकार है । के कारण उनकी मृत्यु हो गई आपको तो क्या आप जानते हैं कि आत्म-साक्षात्कार कुछ भी नहीं हुआ। बिना किसी कठिनाई के प्राप्त करने के लिए लोगों ने कितने कष्ट अत्यन्त प्रेमपूर्वक आप सबको आत्मसाक्षात्कार झेले? हिमालय में जाकर लोग एक टाँग पर मिल गया। आपको कुछ भी नहीं करना या सिर के भार खड़े होकर तपस्या करते थे. पड़ा, उसके लिए कोई पैसा भी नहीं देना फिर भी उन्हें आत्म-साक्षात्कार नहीं मिलता पड़ा। परन्तु इसका अभिप्राय ये नहीं है कि था। मैंने कुछ लोगों के विषय में सुना है जो आप इसका मूल्य ही न समझें बीज को यदि पृथ्वी माँ में डाल दिया जाए तो यह आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के लिए स्वतः अंकुरित हो जाता है और अंकुरण को अट्ठाइस वर्षों तक एक ही कमरे में बन्द जीवन प्रदान करता है और यह पहले पौधे रहे। ऐसा उन्होंने क्यों किया? क्योंकि उन्होंने और फिर पेड़ का रूप धारण करता है। सोचा कि अन्य लोगों तथा गन्दे वातावरण परन्तु आपको इसको सींचना होगा और माली की तरह से इसकी देखभाल करनी होगी। जहाँ तक आपका अपना सम्बन्ध है आपको से दूर रहकर शायद उन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाए। परन्तु उन्हें आत्म साक्षात्कार प्राप्त नहीं हुआ। अतः व्यक्ति को समझना स्वयं ये सब कार्य करना होगा। चाहिए कि चाहे मुझे आसानी से सर्व प्रथम आपको इसमें करुणा एवं प्रेम आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है फिर भी यह अत्यन्त महान और बहु मूल्यतम की खुराक डालनी होगी। क्या आपके अन्दर उपलब्धि है। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना करुणा एवं प्रेम है? क्या आप लोगों से प्रेम बहुत सुगम नहीं है। आत्मसाक्षात्कारी लोगों करते हैं? आज ही किसी ने मुझे बताया और के विषय में आप पढ़ते हैं। शायद वे तो मुझे सदमा लगा, "कि मुझे बच्चे पसन्द नहीं जानते भी न थे कि किस प्रकार उन्हें ये है।" मैने पूछा, "आपको बच्चे अच्छे नहीं प्राप्त हो गया वे तो कुण्डलिनी के विषय में भी न जानते थे फिर भी उन्हें आत्म साक्षात्कार हैं अपने नहीं। इसकी कल्पना कीजिए |! लगते? नहीं, मुझे अन्य लोगों के बच्चे पसन्द आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? ऐसी बात मिल गया। अपने गुरु के माध्यम से या आप कैसे कह सकतें हैं? आपको अपने ही बच्चे अच्छे नहीं लगते! सर्वप्रथम आप सबको मैं ये कहूँगी कि कभी भी ये नहीं कहना चाहिए कि मुझे पसन्द है या मुझे पसन्द नहीं है । ये उल्टे मंत्र हैं। ये आम बात है कि 'मुझे ये पसन्द है। आप कौन हैं? मुझे ये कालीन सम्भवतः अपनी तपस्या के कारण। बुद्ध को ही लें, आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के लिए उन्हें कितना कष्ट उठाना पड़ा? इसके बारे में सोचें । कैसे उन्हें आत्म साक्षात्कार प्राप्त हुआ? उनके जीवन के कष्टों को देखकर आप कॉँप उठेगे अन्ततः दारिद्रय और भूख 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-36.txt चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 मार्चअप्रैल 2001 35 पसन्द है या मुझे ये कालीन पसन्द नहीं है। लिए ले जाया करते थे। इस कार्य को श्री मुझे ये चाँदी की चीज़ अच्छी नहीं लगती । आप कौन होते हैं? क्या आप कोई ऐसी ये संत भी जल की कॉवड़ उठाकर महाराष्ट्र कृष्ण के प्रति महान समर्पण माना.जाता था । चीज बना सकते हैं? इस प्रकार कोई निर्णय में स्थित अपने गाँव से चला। जब वह लेना भी ये दर्शाता है कि लोग सोचते हैं श्री कृष्ण मन्दिर की तलहटी तक पहुँचा तो ऐसा करना भी अत्यन्त सहज है। ये सहज उसने देखा कि एक गधा प्यास से मर रहा नहीं है। अपने बन्धनों (पूर्व-संस्कारों) के है। अपनी काँवड़ का जल उन्होंने गधे को कारण आप सोचते है कि आपको ये कहने पिला दिया। सभी लोग कहने लगे कि इतनी का अधिकार है कि मुझे पसन्द नहीं है. मैं दूर से, कितने ही मील चलकर, देवता पर नहीं चाहता। परन्तु आप कौन होते है? आप चढ़ाने के लिए जो जल आप लाए थे उसे यदि आत्मा हैं तो आप कभी भी ऐसे शब्द आपने गंधे को पिला दिया! संत ने कहा, उपयोग नहीं करेगें, क्योंकि इनसे किसी को भी चोट पहुँच सकती है । 1 "क्या आप नहीं जानते कि परमात्मा इस जल को लेने के लिए नीचे उतर आए हैं?" उनका दृष्टिकोण देखें। अतः आत्मसाक्षात्कारी कभी भी आप ऐसी कोई बात नहीं करेंगे जिससे दूसरे लोगों को चोट पहुँचे, कभी भी आप ऐसा कोई कार्य नहीं करेंगे जा दूसरा की करुणा इस प्रकार की होनी चाहिए । अत्यन्त उदारता से परिपूर्ण ।आप यदि उदार नहीं हैं कंजूस हैं, सदैव अपने पैसे की के लिए भयानक हों। सदैव अत्यन्त प्रेममय, बचत के विषय में चिन्तित रहते' हैं तो आप परिपक्व सहजयोगी नहीं है अभी करुणा और शान्ति प्रदान करने वाली बाते कहें। अन्य लोगों के प्रति आपको आनन्द आप परिपक्व नहीं हैं। इसके अतिरिक्त ऐसा प्रसार करना है। आत्मा की शक्ति अन्य धन आपको प्रसन्नता भी नहीं प्रदान करेगा । लोगों को आनन्द प्रदान करती है। आप कंजूसी आत्मा के विरूद्ध है। आत्मा अत्यन्त यदि उदासीन है तो आप उदार है-अत्यन्त उदार । यह कभी कुछ आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं। बचाने का प्रयत्न नहीं करती, किसी को आपको आनन्द प्रेम एवं करुणा प्रदान धोखा देने का प्रयत्न नहीं करती, कुछ चुराने करने के योग्य होना चाहिए और ये सब का प्रयत्न नहीं करती। इन सब बातों का सहज रूप से घटित होना चाहिए। भारत के प्रश्न ही नहीं होता क्योंकि ऐसे व्यक्ति में महाराष्ट्र प्रदेश के एक संत की कहानी है। लोभ बाकी नहीं रहता। उसमें लोभ का वहाँ के सभी लोग काँवड़ में जल भरकर नामों-निशान नहीं रहता और यही कारण है गुजरात स्थित श्रीकृष्ण मन्दिर में चढ़ाने के कि आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति कभी दोषी नहीं fuY श्री 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-37.txt चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मारच-अप्रै ल 2001 36 होता। उसे अत्यन्त उदार होना पड़ता है। व्यक्ति का पतन हो गया। किसी भी हालात मैंने ऐसे बहुत से लोग देखे हैं जो अत्यन्त में आपको कुछ नहीं माँगना चाहिए क्योंकि उदार हैं और दूसरों की समस्याओं की जिन्हें अब आप पूर्ण हैं। केवल सन्तुष्ट नहीं हैं पूर्ण बहुत समझ है। कोई सहजयोगी यदि हैं। कोई आपको क्या दे सकता है? जब अपनी ही समस्याओं से घिरा हुआ है तो आप पूर्णता की स्थिति में होते हैं तो वह बिल्कुल भी सहजयोगी नहीं है। सारी इच्छाएं लुप्त हो जाती हैं । जैसे आज जब मैं आ रही थी तो मैने देखा बहुत से सितारे निकल आए हैं । मैने कहा, ज्यों ही आप अन्य लोगों की समस्याओं का समाधान करने के लिए हैं केवल अपनी समस्याओं का नहीं और न ही ये कहते चन्द्रमा उदय होगा ये सब लुप्त फिरने के लिए कि मेरी ये समस्या है। इसी प्रकार जब आप पूर्ण होते हैं तो हो जाएगें। समस्या (Problem) शब्द आधुनिक युग की देन है। इससे पूर्व हमने कभी ये शब्द उपयोग नहीं किया था। ज्योमिति में हम Problem शब्द का उपयोग करते थे। परन्तु अब इसकी आप किसी से आशा नहीं करते कि करे। इसके विपरीत आपके लिए कुछ आप ये देखना चाहते है कि आप अन्य लोगों के लिए क्या कर सकते हैं। आप उपयोग शुरु हो गया है। लोग कहते हैं कोई इस प्रकार परिव्तित होते हैं कि अन्य सभी समस्या में फँसे हुए हैं। मेरे विचार में वे लोगों की समस्याओं को भी अपने प्र स्वयं समस्याएं हैं। ले लेते हैं उनकी समस्याओं में कूद पड़ते हैं। ाब ये अत्यन्त रोचक विकास है जो आपमें अतः आपको समझना है कि अपनी समस्याएं दूसरे लोगों को नहीं देनी घटित होना चाहिए। यह आप सबमें घटित चाहिएं। किसी से कुछ माँगना नहीं होना चाहिए क्योंकि आपने आत्मसाक्षात्कार चाहिए। कृपा करके मेरा ये कार्य कर प्राप्त कर लिया है । आपमें ऐसा व्यक्तित्व दें, मेरा वो कार्य कर दें आश्चर्य की विकसित हो जाता है जो केवल अन्य लोगों बात है कि लोग दूसरों का लाभ उठाते के लिए जीवित रहता है अपने लिए नहीं। हैं। कुछ लोग किसी देश की यात्रा आप हैरान होंगे कि आप कहीं भी रह सकते करना चाहते हैं तो वो कहेंगे कि आप हैं. कहीं भी सो सकते हैं। आप चाहें तो मुझे बुला लीजिए मैं आपके देश में खाना खा सकते हैं न चाहें तो इसकी कोई आना चाहता हूँ और कोई भी उदार सहजयोगी कह देता है, ठीक है आ जाओ । ऐसी स्थिति में माँगने वाले क्योंकि अब आप अन्दर से संतुष्ट हैं । अब आवश्यकता नहीं रहती। जैसा भी भोजन आपको मिलेगा आप उसका आनन्द लेंगे। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-38.txt चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 3 व 4 | चं-अप्रै ल तो आपको दूसरे लोगों के लिए खाना बनाना अन्य भाई ने बाबा मामा से पूछा कि तुम्हें ये अच्छा लगेगा। उन्हें भोजन दें जहाँ तक हो उर्दू कविताएं कैसे सूझतीं हैं? उन्होंने उत्तर सके अन्य लोगों के लिए कार्य करें। परन्तु दिया, "सभी कुछ मुझे श्रीमाताजी बताती कुछ लोगों की अपनी ही समस्याएं हैं। हैं। वे यही कहा करते थे, "माताजी मुझे वे सहजयोगी नहीं है आत्मा को किस सब कुछ बताती हैं। प्रकार समस्याएं हो सकती हैं? किस प्रकार आत्म - साक्षात्कारी व्यक्ति को उठती हैं और आप स्वयं पर ही आश्चर्य समस्याएं हो सकती हैं। अतः इस बात करते हैं कि किस प्रकार यह सृजनात्मकता को समझे कि अब आप आत्मा हैं और मुझमें जाग उठी! किसी गणितज्ञ के कवि सभी चीजों से ऊपर हैं। आपकी बन जाने की कल्पना करें। यह असम्भव आपके अन्दर की सृजनात्मकता खिल सृजनात्मकता भी अब नए आयाम प्राप्त करती है । स्थिति है परन्तु आपमें ये क्षेम है । आप सबमें ये योग्यता है कि आप सृजनात्मक बन सकते हैं । सभी प्रकार से आपने सृजनात्मक बनना अब आप अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार देने लगते हैं, कला का सृजन करते हैं। आप है। मैं कहना चाहूँगी कि मैं भी बहुत बाबा मामा को जानते हैं। साहित्य का उन्हें सृजनात्मक हूँ। हर समय मैं कुछ न कुछ कोई खास ज्ञान न था और न ही उन्हें भाषा कार्यान्वित करती रहती हूँ और मेरा कार्य का ज्ञान था। वो तो गणित में पारंगत थे बखूबी होता है। सामान्य लोगों की तरह से क्योंकि मेरे माताजी भी गणितज्ञ थे। तो मुझे इस बात की भी आकांक्षा नहीं होती कि बाबामामा को भाषा का कोई विशेष ज्ञान न मेरे कार्यों की प्रशंसा की जाए या ये समाचार था। भाषा में उनकी इतनी बुरी हालत थी कि स्कूल के उनके प्रस्ताव मैं लिखा करती दिलचस्पी नहीं। सृजन के लिए सृजन करें। पत्रों कि सुर्खियों में हों। इसमें मेरी कोई थी। परन्तु आत्म-साक्षात्कार के पश्चात् आप भी सृजन के लिए सृजन करें। उन्होंने इतनी सुन्दर कविताएं लिखीं कि सृजनात्मकता का आनन्द लें और जो भी विश्वास ही नहीं होता! कोई सोच भी नही कुछ लोग कहते हैं या करते हैं उसे सहज सकता कि ये बाबा मामा ऐसा लिख सकते है, क्योंकि भाषा का तो उन्हें ज्ञान ही न था। रूप से लें। हों सकता है लोग आपके प्रति आक्रामक हों या आपकी प्रशंसा कर रहे हों। जैसा मैंने आपको पहले बताया उनके लिए लेकिन इन चीज़ों का आप पर कोई प्रभाव प्रस्ताव मैं लिखा करती थी आश्चर्य की नहीं होंना चाहिए। कई बार आप जब कहते बात है, उन्होंने उर्दू, हिन्दी और मराठी में हैं श्री माताजी की जय' तो आपके साथ-साथ कविताएं लिखनी शुरू कर दीं । मेरे एक मैं भी कहती हैं। मैं भूल जाती हैं कि आप 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-39.txt वैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 3 व 4 मार्च-अ ल 2001 38 लोग मेरी जयकार कर रहे हैं। जो भी हो उच्च अवस्था में पहुँच जाते हैं जब आप आपको इन सब चीजों से ऊपर उठ जाना परिवर्तित होते हैं चाहिए । तो उत्क्रान्ति की उच्च अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं। आपका स्वभाव परन्तु लोगों का व्यवहार समझ में नही बल्कुल बदल जाता है और आप उठ खडे होते हैं। सहजयोगी भी यदि अन्य लोगों की आता। उनका व्यवहार ऐसा क्यों है? सहजयोग में आकर भी उनमें अगुआ बनने की, सहजयोग के आयोजक बनने की तीव्र तरह से हों तो सहजयोग अपनाने का क्या लाभ है? ईसा मसीह कौन थे? वे एक बढ़ई के पुत्र थे। उन्हें बिल्कुल भी शिक्षा प्राप्त न इच्छा होती हैं । वो चाहते हैं कि सहजयोग में सभी लोग उन्हें जानें। महान सहजयोगी के हुई। परन्तु उन्होंने क्या कर दिखाया? वे रूप में वे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति पाना चाहते है. आत्मा थे। उन्होंने अपने अन्दर के परमात्मा परन्तु ये कभी नहीं सोचते कि मैंने क्या को प्रतिबिम्बित किया और क्रूसारोपित हो सृजनात्मकता द्शाई है, क्या सृजन किया गए सहजयोग में आपको क्रूस पर नहीं है? मानव में ये आम बात है, वो चाहते हैं कि चढ़ना पड़ता। अन्य लोग उनकी प्रशंसा करें और उनका यहाँ आपके लिए ऐसी कठिन परिक्षाऐं बड़ा नाम हो। किस कारण से? आप यदि आत्मा हैं तो, सभी जानते हैं, दिखावे के नहीं हैं परन्तु आपकी मूल्य प्रणाली की लिए, प्रदर्शन के लिए क्या है. आगे आने के परीक्षा होती है । अन्तर्दर्शन द्वारा इस लिए क्या है? आप चाहे सबसे पीछे हों फिर बात का पता लगाएं कि आप किस प्रकार भी आप जानते हैं कि प्रकाश है ।अतः आपको अपने अन्धेरों में से निकलना होगा क्योंकि कार्य कर रहे हैं । स्वयं से पूछे कि श्रीमान सहजयोगी, आप कैसे हैं ?' क्या आप प्रकाश हैं और प्रकाश फैलाते हैं। अब भी आप उन सारी चीजों में लिप्त इसकी अपेक्षा आप स्वयं यदि अंधेरे में हैं जिनमें वो लोग लगे हुए हैं जो हैं तो क्या प्रकाश फैलाएंगे? आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं? खोजने का अंतः आपकी आत्मा को समस्याएं नहीं हो प्रयत्न करें क्योंकि सहजयोग की उन्नति सकतीं। इसे कोई भय नहीं है। सर्वोपरि आपके आचरण से, आपकी शैली से इसमें विवेक है, गहन विवेक और आपके और आपके चेहरे पर दिखाई देती है । अत्यन्त उच्च व्यक्तित्व का यही चिन्ह है। ऐसे व्यक्ति के चेहरे पर झुर्रियां भी नहीं जैसा मैंने बताया यह उत्क्रान्ति है और जब होती उसे कोई चिन्ता नहीं होती और आप परिवर्तित हो जाते है तो उत्क्रान्ति की चिन्ता यदि न हो तो झुर्रियां नहीं पड़तीं । 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-40.txt चेतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अप्र ल 2001 39 ऐसा व्यक्ति किसी से परेशान नहीं होता। कि मेरे पति मेरे भाई की तरह से हैं। मैने इसके विपरीत वह घटनाओं पर हँसता है। कहा, वास्तव में । उनके मस्तिष्क सभी प्रकार स्विजरलैण्ड के एक चर्च में एक बार एक के मूर्खता पूर्ण विचारों से भरे हुए थे। कहने महिला बाइबल से मुझे मारने के लिए आई से अभिप्राया ये है कि उनके अन्दर आत्मा के मैं हॅँसने लगी कि मैं भी क्या चीज़ हूँ जिसे प्रकाश का पूर्ण अभाव था।आत्मा का प्रकाश खाइबल ग्रन्थ द्वारा चोटें पहुँचाई जाने वाली जब आपमें होता है तो आपकी समझ हैं। उस महिला ने जब मुझे हँसते हुए देखा भी बिल्कुल भिन्न होती है । अपनी चिन्ता तो वह घबरा गई। मैं कह रही थी कि आपको नहीं होती। आप दूसरों के लिए इसकी मूर्खता को देखो, ये मुझे बाइबल से चिन्तित होते हैं और उन्हीं की समस्याओं मारना चाहती है। चोट मारने के लिए पत्थर का समाधान खोजने में लगे रहते हैं । आदि कोई अन्य चीज तो समझ आती है उनकी सहायता करने का प्रयत्न करते परन्तु बाइबल तो मुझे कभी भी चोट नहीं हैं ऐसा करना, आपके लिए बहुत आसान पहुँचाएगी। ये सारी घटनाएं आपके सम्मुख है दीपक के लिए सबसे सहजकार्य क्या हुई हैं और इनके विषय में आप जानते हैं। हैं? जलना। एक बार जब यह प्रकाशित हो है नकारात्त्मक शक्तियाँ आपको हानि तो यह जलता रहता है। प्रकाश-हीन जाता पहुँचाना चाहती हैं। वो आपको बुरी होना इसके लिए कठिन होता है परन्तु तरह से हानि पहुँचाएगी। मानसिक रूप से वो आपको हानि पहुँचाएगी और हो और इतने वर्षों तक उन्नत होने के बाद भी मानव में, मैं नहीं समझ पाती, आत्मसाक्षात्कार सकता है भावनात्मक रूप से भी हानि इतनी मूर्खताएं भरी रहती हैं कि वे अपने को नहीं कर पाते! यह आत्मा है आप इसे मार नहीं पहुँचा सकता, कम से कम हानि का सकते ये बुझ नहीं सकती। साधारण दीपक प्रभाव आप पर नहीं होता। इस हानि की बुझ सकता है परन्तु आत्मा रूपी दीपक चिन्ता आप नहीं करते। परन्तु आपने क्या कभी नहीं बुझ सकता। इस दीपक में कौन पहुँचाएं। परन्तु जब आप इनसे ऊपर उठ जाते हैं तो कोई आपको हानि नहीं आत्मसाक्षात्कार की महत्ता महसूस सृजन किया है? आज मेरे पास कुछ महिलाएं सा तेल जलता है? आपकी करुणा, प्रेम और पुरुष आए। वे सब तलाक के लिए आए थे। सहजयोग में विवाह करने के पश्चात् वे तथा अन्य लोगों के प्रति सेवाभाव ही इसका तेल है मैं जानती हूँ कि कुछ लोग अत्यन्त तलाक के लिए आए थे। क्या आप इसकी रौबीले और कष्टदायी होते हैं, परन्तु उनका कल्पना कर सकते हैं? मुझे बहुत सदमा भी ध्यान रखें। समझ लें कि वे आप जैसे पहुँचा। उनके विचार बड़े अजीबोगरीब थे नहीं हैं, वे पूर्ण नहीं हैं उनमें समस्याएं हैं। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-41.txt बैतन्य लहरी खंड-Xll अंक 3 व 4 मार्चअप्रल 2001 40 उनकी देखभाल के पैर अत्यन्त गन्दे और फटे हुए थे। उन्होंने करने के स्थान पर यदि आप सोचने लगते उनके फटे हुए पैरों पर बाम लगाई। फटे हुए हैं कि मैं क्यों उसकी चिन्ता करूं, ये मेरे पैरों को आराम पहुँचाने के लिए उन्होंने अतः उनकी देखभाल करें यथासम्भव प्रयत्न किए और अपने बिस्तर पर उन्हें सुलाया महिलाओं को उन्हें पंखा सकते हैं, इस प्रकार की प्रतिक्रिया आत्मा झलने के लिए कहा ताकि वे चैन से सो की नहीं हो सकती। आध्यात्मिक व्यक्ति की सकें। श्रीकृष्ण की करूणा को देखें, ये कितनी लिए क्या करता हैं, तो हो गया आपका । इस प्रकार की अभिव्यक्ति या, कह पतन 1 प्रतिक्रियाएं बिल्कुल भिन्न होती हैं । सुन्दर थी! क्या हम भी उतने करुण हैं? यह सब करने की श्रीकृष्ण को कोई आवश्यकता न थी। यह कोई नाटक न था। उनके हृदय मित्र अत्यन्त दरिद्र थे। वे श्रीकृष्ण से मिलने का सहज निर्णय था। सुदामा के आने की आए। उनकी पत्नी ने भेंट के रूप में भुने हुए खबर मिलते ही वे नंगे पाँव दौड़ पड़े। पुराने चावल भेजे क्योंकि प्रथा है कि किसी मित्र मित्र के आने पर वे अत्यन्त प्रसन्न हुए। के जीवन को देखें उनके एक श्री कृष्ण से मिलने जाऐं तो कुछ लेकर अवश्य जाऐं। उन्हें काफी संकोच हो रहा था जब वे पहुँचे बाद में जब वे हस्तिनापुर गए तो कौरव तो श्रीकृष्ण अपने महल में थे और द्वारपालों के बड़े पुत्र दुर्योधन ने उनसे कहा कि आप ने उन्हें महल में जाने की आज्ञा न दी। आइए और मेरे महल में ठहरिए। तो श्रीकृष्ण उन्होंने द्वारपालों से कहा आप जाकर श्री ने उत्तर दिया ठीक है मैं तुम्हारे पास ठहरूंगा कृष्ण को केवल इतना बता दें कि सुदामा परन्तु भोजन में विदुर के साथ करुंगा। विदुर आया है । श्री कृष्ण अपने सिंहासन पर बैठकर एक दासी के पुत्र थे श्रीकृष्ण ने उनके यहाँ कुछ विचार- विमर्श कर रहे थे उन्होंने भोजन किया गरीब विदुर ने न जाने उनको सुना तो कह उठे सुदामा आए हैं? सिंहासन क्या भोजन कराया होगा? दुर्योधन तो उन्हें छोड़कर वे दौड़ पड़े और द्वार पर पहुँचकर राजसिक भोजन खिलाते । तो ऐसे व्यक्तियों | बार-बार सुदामा को गले से लगाया। उनसे के लिए स्वाद और खाने के स्तर का कोई पूछा, "तुम यहाँ क्यों खड़े हों? सुदामा को महत्व नहीं रह जाता। आत्मसाक्षात्कारी विदुर ले जाकर उन्होंने अपने सिंहासन पर बैठाया को उन्होंने सम्मान दिया अन्य सहजयोगियों और अपनी पत्नी से कहा कि इनके चरण का सम्मान आवश्यक है। कोई सहजयोगी धोओ।" तब उन्होंने उनके लिए वस्त्र मंगवाए यदि किसी गवर्नर का सम्मान करें तो ये और स्नान करवाया। अपने बिस्तर पर उन्हें बात समझ नहीं आती। आत्मा इन सब चीजों सुलाया। श्री कृष्ण के प्रेम को देखें! सुदामा से ऊपर है सहजयोगीं में भी यदि कोई 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-42.txt चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 41 त्रुटि है तो ये उसका भी सम्मान नहीं करती। हमें समझना चाहिए कि आध्यात्मिक व्यक्ति बड़े-बड़े नामों तथा ख्याति वाले लोगों से कहीं अधिक ऊँचा होता है। सभी आध्यात्मिक रही थी। उनकी शक्ति में विवेक एवं सूझ-बूझ थी। विवेकहीन शक्ति दिव्य शक्ति न होकर आसुरी शक्ति हो सकती है। कोई भी व्यक्ति आपके प्रति तभी शुभ-चिन्तक हो सकता है व्यक्तियों के जीवन से फ्रेम झलकता है। जब आप उसके शुभ-चिन्तक हों। भारत में सभी संतों, सभी अवतरणों में प्रेम सर्वोपरि बहुत से अवधूत हुए। वे आत्मसाक्षात्कारी थे था बिना किसी आकांक्षा के. किसी इच्छा जिन्होंने अपना समाज लोगों की भीड़-भाड से नहीं, वे प्रेम करते थे उनका व्यक्तित्व को त्यागकर किसी छोटे से स्थान या गुफा ही ऐसा होता है, जिससे परमात्मा का प्रेम में तपस्या का जीवन गुजारा। उन्होंने सोचा प्रतिबिम्बित होता है। वही प्रतिबिम्ब आपसे कि जब लोग उनकी बात को समझ ही नहीं भी झलकना चाहिए। आप सहजयोगी हैं सकते तो उनकी बात का क्या लाभ है। ऐसे परन्तु इसका अभिप्राय ये नहीं कि आप अन्य लोग गिने-चुने हैं। कोई एक यहाँ था और लोगों से उच्च हैं। नि:सन्देह आप अन्य लोगों दूसरा कहीं ओर। बो क्या कर सकते थे? से भिन्न हैं, उनसे उन्नत हैं। श्रेष्ठ होने का आप सहजयोगियों की तरह से वो इतनी अहं आपमें नहीं है इसीलिए आप उनसे भिन्न बड़ी संख्या में न थे आप सहजयोगियों की तरह से वो इतनी बड़ी संख्या में न थे। आप अत्यन्त विनम्र हैं इसीलिए आप भिन्न हैं आप अत्यन्त आन्नदमय हैं, अत्यन्त आपके साथ बहुत से सह जयोगी मित्र हैं। वे शांत है इसी कारण अन्य लोगों से भिन्न हैं। अकेले थे और उन्होंने समाज से स्वयं को छुपाकर रखा। वे लोगों से न मिलते थे श्रीकृष्ण के जीवन की बहुत सी बातें मैं क्योंकि उन्हें भय था कि उन्होंने यदि कुछ आपको बता सकती हूँ जो ये दर्शाती हैं कि बताया तो उनकी हत्या कर दी जाएगी। वे योगेश्वर थे। वे योग के स्वामी थे। वे परन्तु आप लोगों के साथ ऐसा नहीं हो विराट थे। परन्तु उन्होंने अपना विराट रूप केवल अर्जुन को दिखाया किसी अन्य को अत्यन्त शानदार आध्यात्मिक लोगों तथा अच्छे नहीं। कोई भी अन्य व्यक्ति अर्जुन सा नहीं मित्रों का प्रबुद्ध समाज आपके साथ है। ये विराट रूप को देखकर अर्जुन भी घबरा सब होते हुए भी यदि आप सृजन नहीं कर गए। ग्वाले की तरह से श्री कृष्ण गोकुल में सकते तो मैं क्या कहूँ? आपको कुछ सृजन रहे और कभी अपनी शक्तियों का प्रदर्शन करना होगा चाहे वह कला हो, संगीत हो, नहीं किया। उनकी शक्तियाँ अन्तर्निहित थीं कविता हो, साहित्य हो, लेख हो या कोई और इनकी अभिव्यक्ति सहज रूप से हो अन्य चीज आपको सृजन करना होगा। सकता क्योंकि आपका तो सहज समाज है। था। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-43.txt ाच-अप्र ल 2001 42 मैततन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 सृजन की यही मुख्य उपलब्धि आपने पानी वे आपका अनुसरण करें और सहजयोग होगी। सर्वत्र सहजयोगी बनाना ही आपका अपना लें। आप यदि पूर्णत्व प्राप्त कर लें तो मुख्य कार्य है। मैं यहाँ हूँ परन्तु अपने वास्तव में आप महायोगी हैं। आपको यह उदाहरण से आप लोगों को यह (सहजयोग) अवस्था प्राप्त करनी ही होगी। महायोगी दर्शाना होगा कि यह कुछ महान चीज़ है। बनने से अधिक महत्वपूर्ण कार्य कुछ भी नहीं किस प्रकार बड़े-बड़े तपस्वियों ने ये स्थिति है। इस अवस्था में आपकी आत्मा सभी को प्राप्त की? आपको भी वह स्थिति प्राप्त करनी आनन्द शान्ति और आशीर्वाद प्रदान करती है। आप ही सभी को प्रेरित कर सकते हैं कि है। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें । 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-44.txt मार्च-अप्रै ल 2001 43 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 सहसार चुक्र नई दिल्ली 4 फरवरी, 1983 (श्री चक्र एवं ललिता चक्र का वर्णन) (निर्मला योग से उद्धृत) परम् पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज मैं आपको अन्तिम चक्र, सहस्रार और मस्तिष्क में स्थित सात पीठों को, जो के बारे में बताऊंगी। सहस्रार अन्तिम Limbic area की मध्य रेखा पर रखे गये हैं. चक्र, मस्तिष्क के तालू क्षेत्र (Limbic area) प्रकाशित करती है। अगर हम पीछे से के अन्दर होता है। हमारा सिर नारियल शुरू करें तो सबसे पीछे मूलाधार चक्र है, जैसा है । नारियल के ऊपर जटाएं होती हैं उसके चारों तरफ स्वाधिष्ठान, फिर नाभि, फिर उसका एक सख्त खोल (Nut) होता फिर अनहत, फिर विशुद्धि और उसके बाद है, फिर एक काला खोल और उसके आज्ञा चक्र होता है इस तरह यह छ: चक्र अन्दर सफेद गिरी और उसके अन्दर मिलकर सातवाँ चक्र सहस्त्रार बनता है । रिक्त स्थान (Space) और पानी होता है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात है जो हमें पता हमारा मस्तिष्क भी इसी प्रकार बना होता होनी चाहिए। श्री चक्र दांयीं ओर की है। यह श्रीशक्ति का फल है श्री शक्ति कार्य शक्ति है और ललिता चक्र बांयी दांयीं तरफ की शक्ति है, और बाँयीं तरफ ओर की कार्य शक्ति है । अत: जब की शक्ति ललिता-शक्ति है। तो हमारे कुण्डलिनी नहीं जागृत होती, तो हम दांयीं अन्दर दो चक्र हैं-बाँयें कंधे के जरा ओर की शक्ति से शारीरिक और मानसिक नीचे ललिता चक्र और दाहिने कंधे के कार्य करते हैं. इसलिये हमारा मस्तिष्क जरा नीचे श्री चक्र। ये दो चक्र. दाँयीं दांयीं ओर की क्रिया करता है। अत: तरफ महासरस्वती शक्ति और बाँयीं तरफ हमारा मस्तिष्क श्रीफल की तरह है। महाकाली शक्ति को चलाते हैं। कुण्डलिनी शक्ति दोनों के बीचोंबीच है। और यह एक खाली स्थान है, जिसके सहस्रार वास्तव में छः चक्रों का समूह है, उसे उठकर अलग-अलग च क्रों को दोनों तरफ एक हजार नाड़ियाँ होती हैं भेदकर Limic area में प्रवेश करना होता और जब प्रकाश Limbic area मे आता है, है और वहाँ सातों चक्रों को प्रकाशित तब इन नाड़ियों का प्रज्जवलन होता हैं. करना होता है। तो वह छः चक्रों को और वे लौ (ज्वाला) के समान दिखाई देती भेदकर Limbic area में प्रवेश करती है हैं। बहुत ही सौम्य लौ के समान दिखाई 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-45.txt चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अप्र ल 2001 44 देती हैं और इन सबकी लौ में वो सभी यानि आप रंग देख सकते हैं, आप रंगों के सात रंग होते हैं, जो इन्द्रधनुष में दिखाई अलग -अलग रूप देख सकते हैं, आप देते हैं। परन्तु अन्तिम लौ अन्त में समग्र वस्तु की उत्तमता (quality) को देख सकते लौ बन जाती है। यह बिलकुल (crystal हैं। लेकिन आप यह नहीं बता सकते कि क्या यह कालीन किसी संत ने इस्तेमाल clear) स्वच्छ लौ होती है। अतः ये सब सात तरह के प्रकाश अन्त में एक स्वच्छ किया हुआ है? आप यह नहीं बता सकते कि यह किसी दैवी व्यक्ति ने बनाया है या (crystal clear) प्रकाश बन जाते हैं। हैं किसी दानव ने। आप यह भी नहीं बता । सकते कि यह व्यक्ति अच्छा है या बुरा है। सहस्रार में जिन्हें एक हजार पंखुडियाँ कहते हैं। एक हजार नाड़ियाँ होती लेकिन यदि आप मस्तिष्क को आडा आप यह भी नहीं बता सकते कि यह (transverse) 5 (horizontal) काटे तो आप देख सकते हैं अपने किसी रिश्तेदार के बारे में यह नहीं कि ये सब नाड़ियाँ इस तरह से, पंखुडियों बता सकते कि यह अच्छा रिश्तेदार है या की तरह, Limbic area में रखी होती हैं। बुरा रिश्तेदार, या वह किस प्रकार का और अगर आप इस तरह से (vertically) व्यक्ति है। वह गलत प्रकार के लोगों के खड़ी काटे, तो आप पायेंगे कि हर एक पास जाता है या सही लोगों के पास जाता नाड़ियों के संग्रह में कई नाड़ियाँ हैं। इस है उसके गलत सम्बन्ध हैं या ठीक? यहां प्रकार मस्तिष्क प्रदीप्त होने के पश्चात् 'ठीक का मतलब दैवी से है। तो आप सहस्रार लौ के एक जलते हुए गट्ठे अपने मस्तिष्क से दैवी (Divine) के बारे में (burning bundle) के समान दिखाई देता भी नहीं जानते। कुछ भी नहीं, कुछ देवता (deity) स्वयंभु हैं या नहीं। आप काटें या समतल कुछ भी नहीं जानते। एक मनुष्य की आध है यह बड़ा गहन विषय है इस प्रकार कुण्डलिनी द्वारा मस्तिष्क याल्मिकता को परखना आपके लिए असंभव है जब तक कुण्डलिनी Limbic मस्तिष्क में अनुभूति होती है। इसीलिए area में न पहुँच जाये । आप यह नहीं प्रदीप्त कर देने पर सत्य की आपके यह सत्यखण्ड' कहलाता है, यानि आप मालूम कर सकते कि यह मनुष्य सच्चा है सत्य को, जो आपके मस्तिष्क द्वारा ग्रहण या नहीं। यह गुरु सच्चा है या नहीं। होता है, देखना शुरु कर देते हैं। क्योंकि क्योंकि दिव्यत्व (Divinity) की आपके इससे पहले जो कुछ भी आप अपने अपने मस्तिष्क में अनुभूति नहीं हो सकती, मस्तिष्क द्वारा देखते हैं, सत्थ नहीं होता जब तक कि आपकी आल्मा का प्रकाश जो आप देखते हैं सिर्फ बाह्य रूप ही हैं। इसमें प्रकाशित नहीं होता। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-46.txt पैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अ्र ल 2001 45 आत्मा हृदय में अभिव्यक्त होती है, अनुभूति प्राप्त होती है वह 'सत्य' होती है। हृदय में प्रतिबिम्बित होती है। आत्मा का किसी को क्या तकलीफ है, यह आप स्थान हृदय में होता है ऐसा कह सकते अपनी उंगलियों पर देखते हैं। तो पहले हैं। लेकिन वास्तव में आत्मा का स्थान ऊपर, यहाँ है. जो सर्वशक्तिमान भगवान हैं। आप अपने चित्त से जानते हैं कि की आत्मा है, जिसे आप ' कहते हैं या 'सदाशिव' या आप इसे रहीम' कह सकते हैं। आप उसे अनेक नामों से पुकार सकते हैं, जो प्रभु निरंजन खराब है क्योंकि अगर आप कहें कि इस के बारे में प्रयोग होते हैं-निरंजन, आप अपने चित्त से उँगलियों पर देखते परचरदिगारं कौन-सा चक्र कौंन सी उंगली की 'पकड़' है तब आप अपने मस्तिष्क की सहायता से पहचानते हैं कि कौनसा चक्र उंगली की पकड़ है तो इसका मतलब यह नहीं कि यह विशुद्धि चक्र है। लेकिन निरंकार, हरेक प्रकार के शब्द जो "निर", "निः से शुरू होते हैं। शरीर में हरेक चक्र आपका मस्तिष्क यह बता सकता है कि पर आप एक अलग प्रकार का आनन्द यह विशुद्धि चक्र है और वह दर्शाता है कि इस व्यक्ति को विशुद्धि चक्र की तकलीफ है। लेकिन यह भी मस्तिष्क की बात प्राप्त करते हैं। कुण्डलिनी जागने के बाद हर क चक्र का एक अलग प्रकार का आनन्द होता है और कुण्डलिनी के ऊपर चढ़ते समय प्रत्येक चक्र पर जो आनन्द पाप्त होता है उसका अलग-अलग नामऔर फिर आप बताते हैं कि कौनसा चक्र (Rationalization) है क्योंकि आप पहले देखते हैं कि कौनसी उंगली की 'पकड' है त है। जब कुण्डलिनी सहस्रार में आती है, तब जो आनन्द प्राप्त होता है, उसे 'निरानन्द' कहते हैं। निर' का अर्थ है सिर्फ, आनन्द ही आनन्द, और कुछ भी और ज्यादा खुल जाता है, तो आपको नहीं। आश्चर्य की बात है कि मेरा नाम भी सोचने की जरूरत नहीं पड़ती; आप तुरन्त नीरा है। अपने परिवार में मुझे नीरा कह देते हैं। उस समय आपके चित्त' में पकारा जाता है। नीरा का मतलब है मेरी', 'मरियम, क्योंकि इसका अर्थ है मैरीन (marine), 'नीरा' जल है, संस्कृत भाषा में 'नीर' का अर्थ जल होता है। तो मस्तिष्क में इसे निरानन्द कहते हैं । खराब है। लेकिन जब सत्यखण्ड यानि सहस्त्रार और आपके सत्य' में कोई अन्तर नहीं रह जाता। प्रकाशमान चित्त और प्रकाशमान मस्तिष्क' एकाकार हो जाते हैं । ऐसे व्यक्ति के लिए कोई समस्या नहीं रह जाती और उंगलियों पर देखने की अन्त में इस अवस्था का उन्मोचन जरूरत नहीं पड़ती है। उंगलियों पर कुछ (शुभारम्भ) होता है। सर्वप्रथम आपको जो देखकर और फिर मस्तिष्क से जानने की श्रीम the 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-47.txt चैतन्य लहरी खंड-XIl अक 3 च 4 माचं-अ ल 2001 46 हो जाते हैं कि हाँ, यह ऐसा ही है। आपने कोई जरूरत नहीं रह जाती है। जैसा कि आपने सहजयोग में सीखा है कि अगर देखा है कि यह विशुद्धि चक्र ही है। अतः इस उंगली में कुछ गडबड़ हैं, तो इसका सत्त्य तर्कांनुसार मस्तिष्क को स्वीकार्य हो जाता है। फिर भी मस्तिष्क बाह्य स्तर मतलब आज्ञा चक्र खराब है, यह आवश्यक नहीं। आप बस कह देते हैं कि आज्ञा चक्र gross level) पर ही कार्यशील रहता है। खराब है। आपने जैसा कहा, वास्तव में वैसा ही होता हैं। दूसरी अवस्था में, जेसा मैंने बताया आप विश्वास करते हैं, पक्की तरह से जान जाते हैं कि इसका अर्थ विशुद्धि चक्र है, इसके बारे में कोई शंका नहीं। इस प्रकार 'निर्विकल्प' की अवस्था आरम्भ हो उसके बाद, मस्तिष्क और भी ज्यादा खुलता है। सर्वप्रथम, जैसे मैंने बताया, यह चित्त के साथ एकाकार हो जाता है। जाती है, जब मेरे और सहजयोग के बारे में कोई शंका नहीं रह जाती। लेकिन उस फिर. जब यह 'आत्मा' के साथ पूर्णतया एकाकार हो जाता है, तब आप जों कुछ समय आपके अन्दर मस्तिष्क का और भी कहते हैं वह सत्य ही होता है। आप बस कह देते हैं, और वही वास्तव में होता उन्मोचन (खुलना) प्रारम्भ हो जाता है। है इस प्रकार यह मस्तिष्क तीन नये उसके लिए आपको ध्यान (meditation) आयामों को प्रकट करता है। सर्वप्रथम यह तार्किक निष्कर्षों (ogical conclusions करना पड़ता है। नम्रता में (in humility) ) स्थित होकर आपको ध्यान करना पड़ता है। इस नई अवस्था के लिए जब आपका जैंसा मैंने है चित्त स्वयं आपके मस्तिष्क, प्रदीप्त द्वारा सत्य को व्यक्त करता है। बताया, मेरे अगर इस उंगली की पकड़ तो इसका मतलब विशुद्धि चक्र खराब है, मस्तिष्क, में विलय हो जाता है। इसके और फिर आप उस व्यक्ति से पूछते हैं. लिए व्यक्ति को अत्यन्त सच्चाई और "क्या आपको यहाँ कुछ तकलीफ हैं? बह कहता है, "हाँ है।" तब आपका मुझमें आत्मसमर्पण करना पड़ता है। विश्वास होता है और आप विश्वास करते नम तापूर्वक सहजयों ग के प्रति आप चै तन्यलहरिया हैं कि यह जो विशुद्धि चक्र दिखाई दे रहा (vibrations) प्राप्त कर लेते हैं तब आप क्या करते हैं? लोगों की अलग-अलग आधारित निष्कर्ष है। क्योंकि आपने प्रयोग प्रतिक्रिया होती है । कुछ लो ग इन किया, आप देख रहे हैं और फिर भी लहरियों का मूल्य तक नहीं समझते। कुछ सन्देह कर रहे हैं कि माताजी जो बताती लोग सीखने की कोशिश करते हैं कि हैं वह सत्य है या नहीं। फिर आप निश्चित इसका क्या अर्थ है और कुछ लोग तुरन्त अब जब है सो सत्य है। यह एक त्क पर 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-48.txt चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 सोचने लगते हैं, "अब हम आत्म- साक्षात्कारी हो गए हैं और अन्य लोगों को ही स्थूल (gross) व्यक्ति सहजयोग में आत्मसाक्षात्कार दे सकते है।" की सवारी (egotrip) करने लगते हैं जब पहली बात जो आपको जरूर जाननी वे अहंकार की सवारी करने लगते हैं, तो वे अपने आपको असफल पाते हैं और उन्हें सहजयोग में ईमानदार, बहुत ही जहाँ से शुरू किया था वहीं वापस आना ईमानदार रहना पड़े गा। ईमानदारी पड़ता है। यह सांप और सीढ़ी के खेल की से मतलब है, मैं ने देखा है, जैसे कि तरह होता है। तो चैतन्यलहरियों के कहीं कोई भोज (खाना-पीना) या प्रति बहुत ही विनम्र और ग्राही, वे दूसरी बात बड़ी स्थूल है। कुछ बहुत वे अहंकार प्रवेश कर लेते हैं। कोई बात नहीं। लेकिन चाहिए, वह यह है कि आप को शादी की पा्टी है तो आदरपूर्ण (receptive) प्रतिक्रिया होनी आत्म-सम्मान को तिलाँजलि देकर चाहिए। चुपके से घुस जायेंगे उन्हें कोई बाह्य रूप में, जैसा मैंने आपको बताया विचार नहीं कि इसके लिए पैसा कौन कि मस्तिष्क में पिता (सदाशिव) का स्थान देगा? वे अपने सारे परिवार को ले आएंगे और बैठ जाएंगे। फिर, ऐसे है। इस लिये अगर आप पिता (सदाशिव) के विरुद्ध कोई पाप करते हैं. तो आगामी लोग भी होते हैं जो सहजयोग में जो नये आयाम खुलने में समय लगता है। पसा देना चाहिए उससे बचते हैं। मान फिर हम पुस्तक पढ़ने लगते हैं और लीजिए कि खाना खा रहे हैं या सफर कर यद्यपि बताया गया है कि पहले पुस्तक रहे हैं या विदेश से आ रहे हैं, तो उन्हें की चै तन्य लहरियाँ (vibrations) अपने सफर के लिए और खाने-पीने के देखो और फिर उसे पढ़ो। लेकिन लिए पैसा देना चाहिये । आपको पता बहुत बार मारी पैसा देना पड़ता आप कहते हैं, "क्या बुरी बात है. हमें है अन्य पुस्तकें भी पढ़नी चाहियें तो है। कोई बात नहीं, मैं इसका विचार जैसा मैंने बताया आप सांप सीढी के नहीं करती लेकिन यह आपके लिए खेल में नीचे गिर जाते हैं। यह भी ठीक नहीं। मुख्य बात यह है कि यह हैं आपके लिए ठीक नहीं है तो पैसे के सो चते है । सां प एक "ध्यान करने की क्या आवश्यकता है? मामले में आपके सहजयोग के प्रति मेरे पास समय नहीं है, मुझे यह करना के से आचरण है यह भी बहुत वह करना है। परिणाम वश आपकी महत्वपूर्ण बात है। यद्यपि यह बहुत उन्नति नहीं होती है। ही स्थूल सी (gross) प्रतीत होती है, পাঁ 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-49.txt मार्च -अप्र ल 2001 48 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 3 व । लेकिन यह आपकी उन्नति में बहुत देना चाहिये वह न देने की आदत होती समस्या उत्पन्न कर सकती हैं, क्यों कि है, इत्यादि । यह छल-कपट के समान उससे नाभि चक्र खराब हो जाता है है ये लोग शीघ्र सहजयोग से बाहर और जैसा कि आप जानते हैं कि अगर चले जाते हैं । भले ही शुरु में ये लोग नाभि खराब हो गई तो यह खराबी बहुत बड़े ने ता लगे ले कि न वे सारे भव्सागर (void) पर व्याप्त हो देखते-देखते यों ही बाहर निकल जाती है, और अगर भवसागर खराब जाते हैं। कई बार लोग मुझसे पूछते हो गया तो एकादश रुद्र की संहार है कि आप पैसे का हिसाब-किताब शक्तियाँ जो यहाँ पर हैं, पकड़ी जाती (account) क्यों नहीं रखती हैं ? परन्तु को ई हिसाब-किताब (account) आदि में मु.झे हैं। स ह जयो ग तो यहजयोग में आने से पहले यह सब रखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि सहयोगी मेरे मुनीम हैं। अगर आप जाते सहजयोग से चाल-बाजियां करने की दुष्कर्म करते ठीक था। आप सब प्रकार के थे और आप अनायास नरक में पहुँच थे। नरक में जाना तो बहुत ही आसान है । दो छलांग लगाओ और नरक में पहुँच जाओ। बाकी सब कुछ आप जाने। लेकिन कोशिश करते हैं, तो आपका नाभि चक्र क्षति ग्रस्त होता है और आप अपनी चेतना खो बैठते हैं जो आपके साथ कभी नहीं हुआ होता। एक ओर आपने हजारों रुपये बनाए. किन्तु दूसरी ओर लाखों रुपये (सहजयोग की बहुमूल्य सम्पदा) खो बैठते हैं । नरक में जाना सबसे आसान काम है। इसके लिए आपको कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती। लेकिन जब आप ऊपर उठ रहे हैं, उन्नति कर रहे हैं, तब थोड़ा कठिनाई है। आपको ध्यान रखना है कि आपको किसी भी प्रकार की समस्या | आप लड़खड़ाएं (डगमगाएं) नहीं, गिरें नहीं, और ऊपर उठते रहें का सामना करना पड़ सकता है, जो मैं नहीं बता सकती। और फिर आप है कि कहते हैं कि यह समस्या कैसे आई? आप अपनी पुरानी आदतों में तो नहीं फंस अतः यदि आप अपनी साधना रहे हैं। कुछ लोगों में सहजयोग को (seeking) में ईमानदार नहीं हैं तो नुकसान पहुँचा कर पैसा बचाने की आदत नाभि चक्र की पकड़ आती है | होती है। कुछ लोगों को सहजयोग को साधना (seeking) की ईमानदारी का क्षति पहुँचा कर पैसा कमाने की आदत सिर्फ यह मतलब नहीं कि शब्दों में कह देना मैं साधक हूँ बल्कि इसका इसलिये आपको सतक्क रहना होती हैं। कुछ लोगों को उन्हें जो पैसा 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-50.txt मार्च अप्र ल 2001 49 पैतनय लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 यह अर्थ भी है कि आपका अपने प्रति बहुत ऊंचे नहीं उठ सकते। मुख्य बात और दूसरों के प्रति कैसा आचरण है । यह है कि आपको इसमें पूर्ण, हृदय देना आपको अपने प्रति ईमानदार रहना है जैसे कि कुछ लोग सहजयोग में आते चाहिए कि आप ध्यान (meditation) हैं और पीछे हैं, "यह ऐसा के लिए बैठे, अपना अन्तर -यो ग होना चाहिए था, वह ऐसा होना चाहिए सुधारने की कोशिश करें और अपनी था वगैरह-वर्गैरह। ऐसे लोगों को निर्विचार चे तना (thoughtiess इसा-मसीह ने बुड बुड़ाने वाली उस स्थिति जीवात्माए (murmuring souls) कहा है। को प्राप्त करने की कोशिश करें, जहां उन्होंने कहा था "इन बुडबुड़ाने वाली करें । जीवात्माओं से सावधान रहो।" ऐसे सभी इस ईमानदारी का मधुर रस मिलता है व्यक्ति जो पीछे बुडबुड़ाते हैं और फायदा और अपने निजी अस्तित्व (being) अर्थात उठाते रहते हैं, जैसे कि वे दूसरों को आत्मा में आप उत्तरोत्तर ऊंचे और गहरे बचाने की कोशिश कर रहे हों, ऐसे लोग बहुत दुःख उठा सकते हैं। क्योंकि वे एक दोहरा छल कर रहे हैं। प्रभु के साम्राज्य में जब आप प्रवेश करते हैं तो यह दोहरा बुडबुडाते रहते awareness) को बढ़ाएं। आप संचमुच ही निर्विचार अनुभव उतरते जाते हैं। सर्वप्रथम आप मुझ पर निर्भर करते हैं। कि "आखिर माताजी सब कुछ करेंगी। छल बहुत ही खतरनाक होता है। किसी भी राज्य के, किसी भी राज्य के अगर आप जब मैं माताजी के पास गया तो मेरा सहस्रार खुल गया। यह हुआ, वह हुआ। नागरिक हैं और आप उसके प्रति लेकिन स्वयं ऐसा काम क्यों नहीं करते जो आपका सहस्रार खोलने में सहायक हो। विश्वासघात करते हैं, तो आपको दण्ड मिलता है लेकिन 'प्रभु के साम्राज्य में, तो सहस्रार का खुलना बहुत ही आवश्यक है। यह इतना आनन्दमय है, पूर्ण तया आनन्दमय, पूर्ण आशीर्वाद आप पर आश्चर्य की बात है ऐसी रचना है कि न्यौछावर कर दिये जाते हैं । पूर्णतया, हर सम्पदा- स्वास्थ्य, धन, मानसिक, सहसार में ब्रह्मरन्घ्र एक ऐ से बिन्दु पर जहां हृदय (अनहत) चक्र है। अतः भावनात्मक सभी प्रकार की सम्पदा यह जानना आवश्यक है कि ब्रह्मरन्ध्र आपको सहजयोग में प्राप्त होती है, का आपके हृदय से सीधा (direct) निस्संदेह। लेकिन जब आप इतने सम्पन्न सम्बन्ध है। अगर आप सहजयोग को (blessesd) किये जाते हैं, तो आपको क्षमा भी प्रदान की जाती है. अनेक बार की जाती है और आपको बहुत हृदय से न करके बाह्य रूप में (superficially) ही करेंगे. तो आप 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-51.txt चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अप्र ल 2001 50 लम्बा अवसर प्रदान किया जाता है । करते हैं। जो भी व्यक्ति आपको किन्तु यदि आप नहीं संभलते तो नुकसान पहुँचाने की को शिश करेगा , आपका विनाश होता है. पूर्ण विनाश, वह बहुत हानि भोगेगा और उसे आपके रास्ते से हटा दिया जाएगा। आधा नहीं। भगवान आपकी प्रत्येक बात में रक्षा करते अतः वे लोग जो सोचते हैं कि वेहैं और परे चित्त से और पूरी सावधानी से सहजयोग से बेईमानी कर सकते हैं, बहुत सतर्क रहें। कृपया ऐसा न करें, अगर आप करते हैं कि उनकी दया का बखान शब्दों सहजयोग में रहना नहीं चाहते, तो अच्छा आपकी देखभाल करते हैं । वे इतना प्रेम में नहीं किया जा सकता है। उसकी केवल होगा आप चले जाएं, हमारे लिए और अनुभूति की जा सकती है और वह समझा आपके लिए भी यही अच्छा है। क्योंकि जा सकता है। अगर आप बेईमानी करते हैं, या छल-कपट करते है तो आप कष्ट भोगते हैं और फिर आप अजीब और हास्यास्पद बेईमान होते हैं, वे अपने पूर्व संस्कार (funny) लगते हैं तो लोग कहने लगते हैं (background) की वजह से, कभी-कभी कि सहजयोग में क्या बुराई है? और हम अपनी शिक्षा की वजह से, अपने बेमतलब भुगतेंगे (बदनामी के कारण) क्योंकि हम आपको दर्पण में नहीं दिखा या कायरता की बजह से ऐसा करते हैं। सकते कि यह आदमी बहुत ही. बहुत ही एक और चीज जो आपको बेईमान बना ज्यादा विश्वासघाती रहा था। हम यह सकती है वह है आपके पूर्वजन्मों के नहीं दिखा सकते कि यह आदमी बहुत ही, संस्कार और उसी के अनुसार आप जन्म बहुत ही ज्यादा विश्वासघाती रहा था। हम लेते हैं और उसी के अनुसार आपकी यह नहीं दिखा सकते इस प्रकार पहले कुण्डलिनी की अवस्था होती है। हमें बदनामी मिलेगी और दूसरे इस तरह अब समस्या यह है कि जो लोग पालन - पोषण (upbringing) की वजह से के आचरण से आपको भी हानि होगी। अगर आपको हानि हुई तो भी हमें बदनामी लोग महान पुरुषार्थी और संकल्प वाले भिलेगी कि ऐसा कैसे हुआ? लेकिन अगर होते हैं इतनी प्रगति से ऊंचे उठते हैं कि आप सहजयोग और अपनी साधना तारों, ग्रहों, नक्षत्रों आदि की सारी (seeking) के बारे में ईमानदार हैं तो समस्याएं लुप्त हो जाती हैं और आप एक आप अनुमान नहीं लगा सकते कि 'सहजयोगी बन जाते हैं अ्ात एक भगवान आपकी कितनी देखभाल नवजात, बिलकू ल भिन्न व्यक्तित्व लेकिन आत्मसाक्षात्कार के बाद जो 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-52.txt चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2001 51 (personality) जिसका अपने विगत जीवन आ जाते हैं। अतः ये दस चीजें और एक से कोई सम्बन्ध नहीं होता, जिस प्रकार विराट विष्णु का स्थान, क्योंकि हमारे पेट एक अंडे का एक सुन्दर पक्षी बन जाता (stomach) में भी दस गुरुओं के स्थान हैं है। और एक विष्णु का स्थान है, इन सब में खराबी आ जाती है। तब साधना में भी तो, जब यह कुण्डलिनी यहाँ पहुँच गलती होती है और ये दस गुरु अपना जाती है तो सहस्रार में प्रवेश पाने के मार्ग में सर्वप्रथम जो रुकावट आती है वह है स्थान त्याग कर देते हैं। तब आषको इस एकादश रुद्र की पकड़ हो जात्ती है। जब एकादश रुद्र। ग्यारह संहार शक्त्तयाँ यहाँ होती हैं, पांच इस तरफ पाँच उस तरफ, इस प्रकार की चीज आपके अन्दर आ जाती है, जैसे कि मैंने बताया, एक इस ओर (ईडा) और एक उस ओर (पिंगला). और एक बीच में। हमारे द्वारा किये गये दो प्रकार के पापों से इन रुकावटो को तो जिन लोगों ने गलत प्रकार के निर्माण होता है । अगर हम अपना सिर गलत ( मिथ्या) गुरुओं के आगे झुकाते हैं. उनके मार्ग को अपनाते हैं तो दाहिनी है जिससे कै सर जै सी असाध्य न व्यक्तियों के आगे सिर झुकाया है, उनका ऐसा स्वभाव या ऐसा व्यक्तित्व बन जाता दुष्ट ओर की पांच रुद्र शक्तियों में खराबी (incurable) बीमारियों का आक्रमण हो सकता है। जिन लोगों ने गलत व्यक्तियों आगे झुके हैं जो गलत किस्म का व्यक्ति है के आगे सिर झुकाया है उनको कैंसर या आती है। अगर आप किसी ऐसे व्यक्त के और भगवान के विरुद्ध है तो दायीं ओर इस प्रकार की कोई भी बीमारी हो सकती समस्या उत्पन्न ही जाती है। अगर आप 1 है। | यह सोचते है मैं अपनी देखभाल खुद अब जो लोग सोंचते हैं कि मैं किसी हूँ, मैं भगवान की परवाह नहीं सुनना चाहता और मैं भगवान में नहीं करता, मुझे भगवान नहीं चाहिए, मुझे विश्वास नहीं करता, भगवान कौन है? मैं इससे कोई मतलब नहीं, ऐसे लोगों के कर सकता हूँ, मैं अपना गुरु स्वयं हूँ, मुझे कौन शिक्षा दे सकता है, मैं किसी को बात और से अच्छा भगवान की परवाह नहीं करता । अगर बायीं ओर के एकादश रुट्र की पकड़ भी इस प्रकार की भावनाएं आपके अन्दर हैं अत्यधिक खतरनाक होती है क्योंकि ऐसे तो आपकी दाथीं ओर नहीं, बल्कि बायीं लोगों को शारीरिक रूप में दायीं ओर ओर खराबी आ जाती है। क्योंकि आपका (पिंगला) की तकलीफें, जैस हृदय रोग, दायां भाग (पाश्श्व, बाजू) घूम कर इधर और दायीं ओर की अन्य प्रकार की (बायीं ओर) और बायां भाग दाहिनी तरफ तकलीफें हो जाती है । 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-53.txt चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 वे 4 मा्च-अप्र ल 2001 52 अतः कुण्डलिनी के सहस्रार में प्रवेश संगठनों के सदस्य थे, बचा लिए गये हैं । पाने के विरुद्ध जो सबसे बड़ी रुकावट लेकिन किसी को भी विश्वास दिलाना कि आती है, वह एकादश रुद्र है जो जो कुछ भी वे कर रहे हैं गलत काम है भवसागर (void) से आता है, और जो और उन्हें सही रास्ते पर आ जाना चाहिए. मेघा' यानी मस्तिष्क के फर्श (plate) को बहुत कठिन काम हैं। ढकता है। इस तरह यह लिम्बिक (तालू) क्षेत्र (limbic area) में प्रवेश नहीं कर सकती। यहां तक कि वे लोग जो गलत हुआ और यही नक्षत्र है जो कैंसर की गुरुओं के। निष्कर्ष पर पहुँचे और सहजयोग के नक्षत्र कैंसर की बीमारी को ठीक करता है. सम्मुख आत्म-समर्पण कर दें, अपनी यही सब असाध्य बीमारियों के लिए हैं। त्रुटियों को स्वीकार करें, और कहें कि मैं अंतः जो लोग अन्धाधुंध गलत मार्ग पर स्वयं ही गुरू हूँ तो वे ठीक हो सकते हैं। चलते जाते हैं, उन्हें अजीब तरह के और जो लोग यह कहते हैं मैं ही सबसे हृदय-रोग, दिल-धड़कना (palpitation), बड़ा हूँ, मैं भगवान में विश्वास नहीं करता. अनिंद्रा (insomnia), उल्टियां चक्कर मैं किसी भी ईश्वर के दूत (prophet) में आना, उल्टासीधा बकना. हो जाते हैं । विश्वास नहीं करता-ईश्वर के विरुद्ध या गलत गुरु के पास जाना और उसके आगे ईश्वर के दूत के विरुद्ध होना एक ही बात सिर झुकाना बहुत है-ईश्वर विरोधी व्यक्तित्व जो इस तरह की बात करते हैं, और इस लिये निषिद्ध हो जाता है। जो लोग सहजयोग समस्याओं को निर्माण करते हैं, अगर वे के विरुद्ध है उनका सहस्रार बहुत ही अपने को विनम्र बनाएं और सहजयोग को, अतः प्लूटों के विरुद्ध एक नक्षत्र उत्पन्न बीमारी लाया है। क्योंकि प्लूटो नाम का पास जा चुके हैं, अगर सही ही गम्भीर बात है। इस प्रकार के आदमी के लिये सहस्रार में प्रवेश कठोर (सख्त) होता है, एक बादाम या सुपर कौशस' (super conscious) अर्थात अखरोट के बाहरी खोल (nut) की भांकति मध्य मार्ग को, परमात्मा के साम्राज्य में जो तोड़ा नहीं जा सकता। अगर आप प्रवेश पाने का एक मात्र मार्ग के रूप में हथौड़ी का भी उपयोग करें तो भी आप स्वीकार करें तो वे भी ठीक हो सकते है । नहीं तोड़ सकते। मैंने देखा है कि जो लोग तांत्रिक थे, बचा लिए गये हैं । मैंने देखा कि जो लोग को पहचानना (मान्यता देना) आवश्यक आज समय आ गया है कि सहजयोग सब प्रकार की गलत चीजें कर चुके थे, है आपको पहचानना ही पड़ेगा आपने वचा लिए गये हैं। जो लोग विभिन्न किसी संत, किसी पैगम्बर, किसी अवतार, 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-54.txt मार्च - अप्रै चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 ल 2001 53 किसी को भी नहीं पहचाना। लेकिन आज शिवजी से प्रश्न पूछा तभी चैतन्य लहरियां तो यह शर्त है कि आपको पहचानना (vibrations) आनी शुरू हो गई तो पड़ेगा। अगर आपने नहीं पहचाना, तो सहसार पर सहजयोग की पहचान कराने आपका सहस्रार नहीं खुलेगा, क्योंकि यही (मान्यता प्रदान कराने) का भार है, यह समय हैं जबकि सहस्रार खोला गया, और उसको सिद्ध करता है और विश्वास आपको अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करवाता है। और अगर सिद्ध करने पर भी करना है यह एक बहुत ही आवश्यक बात आप उसे पहचानते नहीं, तो आप है कि आप सहजयोग को पहचानें। कई आत्मसाक्षात्कार नहीं प्राप्त कर सकते। लोग ऐसे हैं जो कहते हैं. "माँ. सहजयोग में इस तरह क्यों विश्वास करें? हम बस आपको माँ पुकार सकते हैं, आप हमारी माँ रूप में पहचानते हैं, वे अनधिकार हो सकती हो।" ठीक है। कोई बात नहीं। जतीर लेकिन जो पहचानते भी हैं, वे आंशिक स्वतन्त्रता लेते हैं । आचरण में यथोचित् लेकिन आप आत्मसाक्षात्कार नहीं प्राप्त आदर भाव, नम्रमा व संयम नहीं बरतते, वे कर सकते। और अगर आपने यह प्राप्त हास्यास्पद प्रकार से व्यवहार करते हैं, यह कर भी लिया तो आप इसे स्थायी नहीं रख नहीं समझते कि यहां पर यह महापुरुष जो सकते । आपको पहचानना पड़ें गा । हैं. वह कौन हैं? मैंने कई बार देखा है कि पहचानना ही सहजयोग की पूजा है मैं भाषण दे रही होती हूँ और लोग हाथ में भगवान का ऊपर करके कुण्डलिनी चढ़ा रहे होते हैं जानना चाहते हैं तो पहचानना ही पूजा या गप्पें मार रहे होते हैं। मुझे आश्चर्य है। सहजयोग में अन्य सभी गण, देवता, होता है। क्योंकि अगर आपने पहचाना है, देवी, शक्ति एक ही हैं और जो कोई भी तो आपको पता होना चाहिए कि आप सहजयोग को नहीं पहचानता. उन्हें (गण, किसके सम्मुख खड़े हैं। क्योंकि यह मेरे देवता आदि को) उस व्यक्ति की परवाह फायदे के लिए नहीं हैं मेरी इसमें कोई नहीं, वह किस प्रकार का मनुष्य है। हानि नहीं होने वाली। बस यह केवल यह उदाहरणार्थ, एक आदमी जो शिवजी की दर्शाता है कि अपनी उत्क्रान्ति में आपने पूजा करता है मेरे पास आया। और मैंने पहचाना नहीं, मान्यता देने में असमर्थ अगर आप सहजयोंग 1 देखा कि उसका अनहत पकड़ा हुआ । रहे। है यह आश्चर्य की बात है। उसने कहा, "मां मै। शिवजी की पूजा करता हूँ, फिर मेरा अनहत कैसे पकडा हुआ है?" मैंने कहा, तुम्हें सहजयोग को पहचानना पड़ेगा। गलत है। मुझ पर एकाधिकार जमाने की और जिस प्रकार कुछ लोग मुझपर एकाधिकार ज़माते हैं, वह भी बिल्कुल 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-55.txt पैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 3 व 4 मार्च -अपर ल 2001 54 कोई आवश्यकता नहीं। कोई भी मुझ पर से। ले किन सर्व प्रथम आपको पूरी अधिकार नहीं जमा सकता। कुछ लोग ईमानदारी से पहचानना है। एक बार ऐसे भी हैं जो कहते हैं 'मां गलत समझी' । आपने पहचान लिया, तो धीरे-धीरे आप मुझे कभी भी गलतफहमी नहीं होती, वह सब कुछ करेंगे जो करना है. आप सवाल ही पैदा नहीं होता। या कुछ लोग जान जाते हैं क्या करना है। मुझे सलाह देतें हैं, "यह कीजिए, वह कीजिए। यह भी आवश्यक नहीं। अपने आपको इस मर्यादा (protocol) में ढालने (integration) हैं । सहस्रार में सारे चक्र की कोशिश करो, जो सहजयोग में स्थित हैं। अतः सब देवता / देवी का ही आवश्यक है, और जिसे आज मैंने समगीकरण है। आँर आप उनके पहली बार ही वताया है, कि आप समग्रीकरण की अनुभूति कर सकते हो। सम्पूर्णतया पहचानने की कोशिश करें । अर्थात् जब आपकी कुण्डलिनी सहस्रार में और अगर आप नहीं पहचानते, तो मुझे पहुँच जाती हैं तो आपका मानसिक, खेद है, मैं आपको आत्मसाक्षात्कार नहीं दे भावात्मक और आध्यात्मिक व्यक्तित्व एक सकती जो कि स्थायी रहे । क्षणिक रूप से आप इसे पा सकते हैं किन्तु वह स्थायी व्यक्तित्व भी इसी में विलय हो जाता है। नहीं होगा। सहसार का सार समग्रीकरण बहुत ही हो जाता है आपका शारीरिक तब आपको कोई भी समस्या नहीं रहती, जैसे कि 'मुझे माँ से प्रेम है, किन्तु मुझे खेद है मुझे यह पैसा अवश्य चुराना है। तो अपनी उच्च अवस्था को प्राप्त करने का सरलतम मार्ग है, आप शनै:-शनैः (धीरे-धीरे) पहचाने। मान्यता प्रदान करें। मुझे पता है, मैंने माताजी को पहचाना है, यदि किसी में कोई दोष या कमी है तो मैं जानता हूँ कि वे महान हैं, लेकिन मैं उसे वह बताना कठिन है, असम्भव है। कुछ नहीं कर सकता, मुझे झूठ बोलना ही सहजयोग में आने के बाद में यह बता पड़ेगा" या "मुझे यह गलत काम करना ही पड़ेगा क्योंकि अन्य कुछ साथ कोईा समझौता नहीं हो सकता, उपाय नहीं मेरे सकती हूँ कि यह चक्र पकड़ा है, वह चक्र पकड़ा है। लेकिन, क्योंकि आपको यह ज्ञात है कि उक्त चक्र पकड़ने का क्या आपके व्यक्तित्व का पूर्णतया समग्रीकरण अर्थ है। आप फिर आते हैं और कहते हैं, आवश्यक है। अपने धर्मों को ठीक करना तो मैं आपको क्यों बताऊँ कि आपका पड़ेगा आप गलत काम करके और कहें चक्र खराब है? आपको स्वयं ही अपने आपको स्वच्छ करना है, पूरी ईमानदारी सकता। कि मैं सहजयोगी हूँ यह चल नहीं 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-56.txt चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 3 व 4 मार्च-अपर ल 2001 55 लेकिन इसके लिए सामर्थ्य अन्दर से शक्ति मिलती है जिससे आप जैसा आती है आपकी आत्मा आपको बल समझते हैं तदनुसार कार्य करते हैं, और ड प्रदान करती हैं, आप बस अपनी संकल्प जैसा आप समझते हैं उससे आप प्रसन्न शक्ति लगाते हैं कि "हाँ, मेरी आत्मा कार्य रहते हैं । तो आप ऐसी अवस्था में पहुँच करें" और आप अपनी आत्मा के अनुसार जाते हैं जहां आप इस 'निरानन्द को पाते ही कार्य करने लगते हैं। और जहाँ आप हैं। और यह निरानन्द आपको मिलता हैं 1 अपनी आत्मा के अनुसार कार्य करने जब आप पूर्णतया आत्मा स्वरूप बन जाते लगते हैं आप देखते हैं कि आप किसी हैं। निरानन्द अवस्था में कोई भेद-भाव नहीं रह जाता। यह अद्वैत है । 'एक चीज के दास नहीं है। आप समर्थ हो जाते अर्थात् (सम+अर्थ) अर्थ के समतुल्य; व्यक्तित्व होता है हैं, । अर्थात आप पूर्णतया सम+अर्थ; समर्थ का अर्थ शक्तिशाली समग्र हो जाते हैं और आनन्द में कहीं व्यक्तित्व भी है। तो आपका वह न्यूनता (अपूर्णता) नहीं रहती। वह सम्पूर्ण शक्तिशाली व्यक्तित्व बन जाता है जिसे होता है। इसमें प्रसन्नता या दुःख के पहलू कोई भी प्रलोभन नहीं होता, कोई भी नहीं होते, बल्कि यह बस आनन्द' होता असद-विचार नहीं होता, कोई पकड़ नहीं है। आनन्द का अर्थ यह नहीं कि आप होती. कोई समस्या नहीं होती। ठहाका मार कर हँसे या मुस्कराते रहें । यह निस्तब्धाता (stillness) आपके स्वार्थी लोग केवल अपने आपको ही अन्तरतम का विश्राम भाव (quietitude). नुकसान पहुँचा रहे हैं, सहजयोग को शान्ति (peace) आपके व्यक्तित्व की, नहीं। सहजयोग तो प्रस्थापित होगा ही आपकी आत्मा की जो चैतन्य लहरियों के यदि इस नौका में दस आदमी ही हों, तो रूप में स्फूरित होती हैं. जिनकी आपको भी ईश्वर को परवाह नहीं । माँ होने की अनुभति होती है। जब आपको उस शान्ति वजह से मुझे ही परवाह करनी पड़ती है। की अनुभूति होती है तब आप अपने को माँ होने की वजह से मैं चाहती हैँ कि इस सुर्य के प्रकाश के समान अनुभव करते हैं, नौका में अधिकतम लोग आएं। लेकिन उस सौन्दर्य की छटा चारों ओर बिखरती एक बार नौका में सवार होने के बाद रहती है। बेईमानी के काम करके वापस कूदने की कोशिश न करें । भष्ट किन्तु पहले हम अपने निजी. स्वार्थी, मूर्ख कल्पनाओं से भयभीत होते हैं। अतः यह बहुत सरल है कि आप समग्र उनको फेंक दो। वे हम पर छायी होती हैं हो जाएं। समग्रीकरण से आपको वह क्योंकि हम असुरक्षित थे और क्योंकि পাঁ 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-57.txt मा्च-अ प ल 2001 58 चैतन्य लहरी खंड-XIII अक 3 व 4 हमारे गलत विचार थे उन्हें फेंक दो। पूर्णतया प्रज्जवलित हो गया है आपका ईश्वर के साथ एकरूप होकर खडे रहो। आप पाओगे कि ये सब भय व्यर्थ थे। जाने कि यह जो व्यक्तित्व सामने खड़ा है हमारी शुद्धता बहुत आवश्यक है। यह वह प्रकाश है। इसी प्रकार सहस्र की शुद्धता तब आती है जब आप सहजयोग में देखभाल करनी है। बताई विधि के अनुसार वास्तव में शुद्धिकरण करें। मुखमंडल ऐसा होना चाहिए कि लोग सहस्र की देखभाल करने के लिए यह बहुत जरूरी है कि आप सर्दियों में अपना सिर ढके। सर्दियों में सिर ढकना आशीर्वाद है यह ऐसे सुन्दर रूप से अच्छा है ताकि मस्तिष्क ठण्ड से ना जमे, क्रियान्वित हुआ है। सहस्त्रार बेधना बहुत क्योंकि मस्तिष्क भी मेघा (fat) का बना होता है । और फिर मस्तिष्क को बहुत बेधा तो मुझे पता नहीं था कि यह कार्य ज्यादा गर्मी से भी बचाना चाहिए। अपने इतना सफल होगा पहले मैंने सोचा कि मस्तिष्क को ठीक रखने के लिए, आपको मैं कहूँगी सहस्र दैव (ईश्वर) का कठिन कार्य है। और जब मैंने सचमुच इसे 1 यह उचित समय से पहले हो गया। हर समय धूप में ही नहीं बैठे रहना चाहिए. क्योंकि कई राक्षस अभी भी गलियों में जैसा कि कुछ पाश्चात्य लोग करते हैं। अपना माल बेच रहे हैं और कई ऐसे ६ उससे आपका मस्तिष्क पिघल जाता है Tर्मन्धि लोग भी हैं जो तथाकथित धर्म के और आप एक सनकी मनुष्य बन जाते हैं, नाम की दुहाई देते हैं किन्तु वास्तव में जो इस बात का संकेत है कि आपके कुछ उनके जो क्रिया-कलाप है वे वास्तव में समय बाद पागल होने की सम्भावना है। आत्मा के धर्म नहीं हैं। ले किन धीरे-धीरे हमने अपनी जड़ें जमा ली हैं। ढके रखें। सिर ढकना बहुत आवश्यक है । अब आओ सहस्रार के मध्य से इस सत्य लेकिन सिर को कभी-कभी ढकना को अपने अन्दर जड़ें जमाने दो। और जब चाहिए, हमेशा नहीं। क्योंकि अगर आप यह सत्य उस प्रकाश में बदल जाय जो हमेशा ही सिर पर एक भारी पट्टा आपका मार्गदर्शन करता है. ऐसा प्रकाश बांधे रहें तो रक्त का संचार ठीक प्रकार से अगर आप धूप में भी बैठें तो अपना सिर जो आपका पोषण करता है, ऐसा प्रकाश नहीं होगा और आपके रक्त संचार में जो आपको प्रदीप्त करता है और आपको तकलीफ होगी अतः केवल कभी-कभी एक ऐसा व्यक्तित्व प्रदान करता है जिसमें (हमेशा नहीं) सिर को सूर्य अथवा चन्द्रमा प्रकाश है तभी आपको समझना चाहिए के प्रकाश में खुला रखना उचित है। नहीं कि आपका सहस्त्रार आपकी आत्मा द्वारा तो आप चांद के प्रकाश में अत्यधिक वैठे 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-58.txt चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 3 व 4 मार्च -अप्रै ल 2001 57 तो पागलखाने पहुँच जाएंगे। मैं जो कुछ ईसामसीह, जो सिर के दोनों तरफ हैं, भी बताती हैँ, आपको समझना चाहिए कि यहां (पीछे) महागणेश हैं और यहां (सामने सहजयोग में किसी भी चीज में अति' ना माथा) ईसामसीह हैं । दोनों आपकी दृष्टि करें। यहां तक कि पानी में भी लोग ठीक करने में आपकी सहायता करते हैं तीन-तीन घंटे तक बैठे रहते हैं। मैने ऐसा और आपको समझदारी व सदबुद्धि प्रदान कभी नहीं कहा। सिर्फ दस मिनट के लिए करते हैं। तो सदबुद्धि किसी चीज से आपको पानी में बैठना है, किन्तु वह पूरे चिपकने में नहीं है। सहजयोगी चिपकने हृदय से। अगर मैं उनसे कुछ करने को वाले लोग नहीं हैं। अगर वे चिपक जाते हैं कहती हैं तो वे चार घंटे तक करते रहेंगे। तो समझ लो वे उन्नति नहीं कर रहे हैं । इसकी कोई आवश्यकता नहीं। केवल दस आपको विचारों (ideas) से नहीं चिपकना चाहिये और न व्यक्तियों से चिपकना चाहिये। आपको हमेशा गतिमान रहना मिनट के लिए कीजिए। अपने शरीर को भिन्न-भिन्न प्रकार के अनुभव. उपचार (treatment) दीजिए चाहिये, इसका यह मतलब नहीं कि इस हमेशा एक ही व्यवस्था नहीं। इस तरह तो में आप कहीं गिर जाएं और आपका शरीर नीरस या बोझल (०ver burdened) अनुभव करेगा। अगर आप किसी को बताएं कि उठना है, गिरना नहीं है आपके लिए यह मन्त्र है तो इसे तभी तक प्रयोग करना चाहिए जब तक के आप इस गलिशीलता सोचें अरे. हम तो बहुत उन्नति कर रहे हैं क्योंकि हम गिर रहे हैं। आपको ऊंचा (bored) हो जाएगा तो जब आप सहजयोग में कुछ प्राप्ति कर रहे हैं तो आपको सर्वप्रथम देखना चक्र की बाधा से छुटकारा न पा ले । उसके पश्चात् नहीं। मान लीजिए इस जगह एक पेंच लगाना है। तो आप इसको तभी तक घुमाएंगे जब तक कि यह मजबूती से न गड़ जाए। आप इसको अगर आप अभी लोगों पर भौं कते हैं गड़ने के बाद भी घुमाते नहीं जाते। क्या तो आपको यह आप इसको लगातार घुमाते ही चले जान लेना चाहिए कि आपमें कुछ दोष जाएंगे ताकि सारी चीज बिगड़ जाए? है। या आप मन में उदास, उद्विग्न अच्छा है कि आप सदयुद्धि विवेक का और अकारण कुपित होते या आपकी प्रयोग करें। और इस सदबृद्धि के लिए मनःस्थिति बिगड़ती है तो आप समझ आपको श्री गणेश या ईसामसीह को लें कि आप अभी सहजयोगी नहीं हैं । चाहिए कि आपका स्वास्थ्य ठीक रहे, आपका सस्तिष्क सुचारू (normal) रहे. आप एक सामान्य (normal) व्यक्ति हों। (अप्रिय बोलते हैं ) आप अपने आप की जांच कर सकते हैं। जानना चाहिए। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-59.txt मैतन्य लहरी खंड-XII अक 3 व ४ माव-अप्र ल 2001 58 अगर आप एक पक्षी की तरह स्वच्छन्द है-प्रभु आपकी जैसी इच्छा हो वही हो (tree) हैं तो ठीक है। लेकिन इसका यह (Thy will be done) । आप कहें प्रभु आपकी अर्थ नहीं कि आप सड़क पर चिड़िया की जैसी इच्छा हो। और कैसा आश्चर्य है कि आपकी इच्छाएं बदल जाती हैं, आपके एक मूढ़ आदमी के सामने में कोई भी संकल्प बदल जाते हैं और जो कुछ भी उपमा दूं वह अत्यन्त मूर्खता पूर्ण आचरण आप कहते हैं वही हो जाता है। लेकिन करेगा लेकिन वही एक सद्बुद्धिमान के जब ऐसा हो जाता है तो लोगों में अहंकार सामने देने से वह उसका सही उपयोग उत्पन्न हो जाता है । अत: सतर्क रहें। यह करेगा। तो यह समझना चाहिए कि सब शक्ति द्वारा किया जाता है, आपके सहजयोग विवेकी मनुष्यों द्वारा विवेक द्वारा नहीं। आपकी 'आत्मा' द्वारा, आप द्वारा नहीं । आपको आत्मा होना है । और तरह गाते फिरें या पेड़ों पर फुदकते फिरें। पूर्वक जाना जाता है। जब आप आत्मा हो ही जाते हैं तो आप सहजयोग में होता क्या कि है आप एक अकर्म में होते हैं, जहां आप जानते नहीं चीज को दृढ़ता चीज है आपकी आत्मा और आपका पूर्वक पकड़ लेते हैं। वह कि आप कर रहे हैं, बस हो जाता है, आप अनुभव नहीं करते आप अवगत नहीं होते। सम्पूर्ण व्यक्तित्व एक पतंग की तरह विचरण करता है, जैसे एक पतंग हरे क चीज के ऊपर उड़ती फिरती है। आप एक ही चीज से चिपके रहते हैं. वह है ज्यादातर चक्र खुल गए होंगे। लेकिन यह आपकी आत्मा। अगर आप सचमुच सब मेरा' क़ार्य है अब आपको भी कुछ ऐ सा कर सकें, यथार्थ में अर घर जाकर काम (home work) करना है। ईमानदारी से, पैसा परिवार और अन्य आपको भी अभ्यास करना है और अपने सा सारिक वस्तुओं के बारे में आपको देखना है। सावधान रहो। अपने अधिक चिन्ता किए बिना, तो आप आपको दर्पण में देखने और अपना सामना सहजयोग में सफल है। इनके बारे में करने की कोशिश करो। आप देखें आप बस चिन्ता न करें, आपको चिन्ता करने कितने ईमानदार रहे हैं, आप कितने शुद्ध की आवश्यकता नहीं। बस बन्धन दीजिए। रहे हैं सामूहिकता में आप कितने मित्रता अगर ऐसा नहीं हो पाता तो आपका पूर्ण हैं, जो सहजयोग में बहुत महत्व सहजयोग समाप्त। अगर हो जाता है तो रखता है। अगर आप सामूहिक नहीं इन सब भाषणों के बाद, आप के बहुत अच्छा। आपकी व्यक्तिगत इच्छा का अगर आप अकेले या हास्यास्पद हैं, अगर आप दूसरों से विचार संचार नहीं महत्व नहीं, प्रभु की इच्छा का महत्व 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-60.txt पैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 3 व 4 मा्च-अप्र ल 2001 59 (communicate) कर सकते, तो समझे लें उठ रहा है। कोई इस प्रकार अपने को कि कुछ गड़बड़ है। और तब आप अपने निम्न न समझे या अपमानित अनुभव न आपका सामना करें (अपने को जांचें) और करे, कि कोई उन्हें निम्न समझता है। अपने आपको ठीक करने की कोशिश औरों को सोचने दो उससे क्या होता है, करें। जैसे एक साड़ी को उतार कर साफ भगवान तो ऐसा नहीं सोचता । तो ये किया जाता है। आप अपने को अपने 'स्व छोटी-छोटी बातों से आप सतर्क रहें। से अलग करके साफ करें। इसी प्रकार इस कृतयुग में आत्मसाक्षात्कार का चरम सहजयोगी प्रगति करें गे जब कुछ लक्ष्य प्राप्त करना बहुत ही आसान है। सहजयोगी ऊँचे उठेंगे तो और अनेक उनसे प्रभावित होंगे और ऊँचे उठेंगे इस मैं सोचती हूँ कि मैंने सहस्रार के बारे में प्रकार सब सहजयोगी समुदाय बहत बहुत कुछ बताया है। अगर आपकी कोई तीव्रता से ऊँचे उठ सकता है। लेकिन समस्या है तो आप अभी पूछ लें। लेकिन तुम लोग जो ऊँचे उठ रहे हो, और ज्यादा सिर्फ सहस्रार के बारे में, और किसी के उन्नति करो, बिना अपनी उन्नति के बारे बारे में नहीं। अच्छा होगा कि आप मेरे से अन्य विषय के बजाय सिर्फ सहस्रार के में सोचते हुए। यह बहुत आवश्यक है। बारे में ही प्रश्न पूछें । जो लोग सोचते हैं कि दूसरे लोग उनसे ऊँचे हैं वे भी गलत सोचते हैं. क्योंकि ऐसी बात नहीं है। समस्त ही ऊंचा परमात्मा आपको धन्य करें। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-61.txt माच-अप ल 2001 60 पैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 3 व 4 संक्रान्ति पूजा (2001) प्रतिष्ठान पुणे अत्याधिक कर्मकाण्ड करने वाले लोग जल्दी से परिवर्तित नहीं होते हमें अपने कि तप करो, उपयास करो पति-पत्नी का स्वभाव परिवर्तित करने चाहिए। उत्तर भारत में कर्मकाण्ड इतने अधिक नहीं हैं। वे लोग तपस्या से कहीं श्रेष्ठ है। भक्ति आनन्द का गंगा में स्नान करते है परन्तु अब उनमें स्रोत है। सहजयोग अपनाने वाले लोगों को बदलाव आया है बहुत से सुशिक्षित लोग न कोई तपस्या करनी है न कुछ त्यागना है। सहजयोग में आए हैं और उन्हें देखकर आश्चर्य जहाँ हैं वहीं पर सब कुछ पाना है। होता है। महाराष्ट्र के लोगों को यदि कहा जाए त्याग करो तो वे ये सब करेंगे। परन्तु भक्ति बहुत आत्मसाक्षात्कार अन्य लोगों को भी देना चाहिए नहीं तो आत्मसाक्षात्कार का क्या लाभ है? महाराष्ट्र में बहुत से साधु संत हुए जिन्होंने तपस्वी लोग देना नहीं जानते। अपनी भक्ति बहुत परिश्रम किया परन्तु उसका कोई से आप सबकुछ दे सकते हैं। उपयोग नहीं हुआ सारा जीवन कर्मकाण्ड में चला गया। परन्तु अब परिवर्तन होना चाहिए और हम सबको जागृत होना चाहिए। होता। केवल हृदय से प्रार्थना करनी होती है भोर हो गई है, अब सोने का क्या अर्थ है ? भक्ति में भी कुछ छोड़ना त्यागना नहीं कि, "मैं अपना पूरा जीवन सहजयोग के लिए समर्पित करता हूँ। न कुछ छोड़ना है महाराष्ट्र की स्थिति देखकर बहुत दुख न तपस्या करनी है। आपमें इतनी भक्ति होता है। यहाँ पर लोग इतना कार्य कर गए होनी चाहिए कि वह प्रसारित हो और लोगों फिर भी लोगों को सहजयोग में उतरना में प्रज्जवलित हो, फिर देखें कैसा आनन्द चाहिए और बह आनन्द दूसरों को देने की आता है। सहज को यदि आपने अपने योग्यता भी होनी चाहिए। तक ही सीमित कर लिया तो आनन्द शीघ्र ही समाप्त हो जाएगा। आनन्द मैं स्वयं महाराष्ट्र से हूँ। यहाँ बहुत दुष्ट लोग भी हुए जिन्होंने सब बर्बाद कर दिया। आप लोगों को विशेष वरदान प्राप्त इसे बॉटे। अपने तक सीमित रखने में हैं, आप युवा हैं और बहुत कुछ कर सकते है। से को यदि बढ़ाना है तो दूसरे लोगों में कोई विशेष बात नहीं है। आप सबको अनन्त आशीर्वाद ।