६1KMAI, जुलाई - अगस्त, 2001 खडः XIII अंकः 7 व 8 NIVERSAL PURE चैतन्य लहरी महीं मूलाधारे कमपि मणिपूरे हुतवह स्थितं स्वाधिष्ठाने हृदि मरुत-माकाश- मुपरि । मनोऽपि भ्रूमध्ये सकलमपि भित्वा कुलपथ सहस्रारे पदमें सह रहसि पत्या चिहरसे।। हे देवी, मूधाधार में पृथ्वी तत्व का, मणिपुर (नाभि) चक्र में जल तत्व का, स्वाधिष्ठान चक्र में अग्नि तत्व का, अनहद चक्र में वायु तत्व का और इससे ऊपर विशुद्धि चक्र में आकाश तत्व का, आज्ञा चक्र में मनस (Mind) का भेदन करके कुलामार्ग (सुषुम्ना मार्ग) से उठकर सहस्रार कमल में आप अपने पति श्री सदाशिव के साथ विहार करती हैं। DHARMA ५{ RELIGION House of Representatives 7th District, Nein York roclamation "78h Birthday Celebration of Shri Mataji Nirmala Devi" is the sense of this Congressional Body, that thase individuals who have dedicated their life to public service and to belping others, should be publicly acknowledged and applauded. One such person is Shri Mataji Nirmala Duvi, and Whereas: Shri Mataji was born in Chindwara, India n 1923 and raised as a Christian. As: child her maturity and wisdomm impressed all who she encountered At a very young age she fought for India's independence working elosely with Mahatma Gandhi and today, continues to strive towards the realzation of his drenm for universal peace and unity, and. Whereas: Shri Mataji has a deep and abiding commitment and dedication to world peace the role of women in society, and 'Scif-Realization These issues are what have motivated Shri Mataji to become involved in her fight to improve the quality of life. Shu is the founder of Sahaja Yoga, a deep meditation which cnhances health ILId peacefulness and connects you to a higher level of awwareness of yourself and Whereas: pu "nox pajeDA 1 SOd au jo Shri Mataji has been nominated twice for the Nobel Peace Prize, she has reccived Global Nominations and in 1993 sho was appointed Honorary Menber of the Presidium of the Petravska Academy of Art and Science in St. Petersburg In 1986 she was named "Personality of the Year" by the Italian Govermment and was presented with a Congressional Record Honorarium by the 105" Congress in 1997, and Whereas: Friends, family and colleagues have gathered on this the 21" day of March, 200Ita celebrate Shrn Mataji's 78" birthday and to honor her for all her accomplishments Wishing her continued peace, happiness and success, be it therefore. Whereas: By the power incumbent in me as the duly clected Member of the House of Representatives from New York's Seventh Congressional District, I bestow Congressional Recognition upon Proclaimed: Shri Mataji NVirmała Devi In Witness lhereof, I have hereunto set my hand: NDRESS 4OSEPH CROWLEV Member of Congress STES ख ड अंक जुलाई चै तन्य लहरी 2 00 1 7 व XI11 अगस्त की पर 78वीं जन्मदिवस पूजा, 21.3.2001 16 78वाँ जन्मदिवस समारोह. 20.3.2001 27 श्री महादेव पूजा, 25.2.2001 38 एकादश रुद्र पूजा, 8.6.88 47 पूजा का महत्त्व ै त न य ल ह री प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर मुनीरका विहार, नई दिल्ली - 110067 162 मुद्रक अमरनाथ प्रैस प्रा. लिमिटेड डब्ल्यू एस एस 2/47 कीर्ति नगर औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली -15 फोन : 5447291, 5170197 सदस्यता के लिए कृपया इस पत्ते पर लिखें :- श्री ओ.पी. चान्दना एन - 463 ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली 110034 फोन : (011) 7013464 सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पत्ते पर भेजें : चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी-17, कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली - 110016 78वीं जन्मदिवस पूजा निर्मल धाम - दिल्ली 21.3.2001 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज आपने मेरा 78वाँ जन्मदिवस मनाने का निर्णय किया है आपने बहुत सुन्दर गुब्बारे सजाए हैं जैसे किसी नन्हें शिशु के जन्म दिवस पर प्रेममय हाथों से सजाए जाते हैं। कल जैसा मैंने आपको बताया आपको अपने विषय में खोज करनी होगी। यह खोजने का भी प्रयत्न करें कि जिस प्रकार आप मुझसे प्रेम करते हैं उसी प्रकार कितना प्रेम आप अन्य लोगों से करते हैं? सहजयोग में आए हैं तो आपको अपने अन्तर्अवलोकन के माध्यम से यह देख पाना हृदय में प्रेम का सागर प्राप्त करना है आसान होगा कि आप अन्य लोगों से कितना और अन्य लोगों के में भी इसी प्रेम करते हैं और उनकी कितनी परवाह प्रेम के सागर को खोजना है प्रेम ही करते हैं। अगर ऐसा हो जाए तो बिना वह गुण है जो आपको सभी कार्य समय बर्बाद किए सहजयोग की बहुत सी अत्यन्त सहजता से और सुन्दरता से समस्याएं समाप्त हो जाएंगी। मुझे बताया करने में सहायक है जैसा मैं ने सदैव गया है कि सहजयोग में अब भी लोग धन के पीछे भागते हैं वो सोचते हैं कि यही हैं तो कभी भी आप बेईमान नहीं हो सकते। स्थान हैं जहाँ वे कुछ पैसा बना सकते हैं। आपकी रुचि किसी अन्य चीज में न होकर मैं हैरान हूँ! यह वह क्षेत्र नहीं है जहाँ आप केवल स्वतन्त्रता प्राप्ति तथा उन अन्य चीज़ों अपनी इस इच्छा को कार्यान्वित कर सकें। में होगी जो आप अपने देश के लिए करना जरा से समय में आपकी पोल खुल जाएगी। चाहते हैं। इस देश में बहुत से महान इसके विपरीत यदि आप सहजयोग में नेताओं शहीद हुए हैं। हो सकता है आपमें से कुछ या उपनेताओं के रूप में अपनी शक्तितयों लोगों को इसका ज्ञान न हो कि किस की चिन्ता करते हैं, मेरी समझ में नहीं प्रकार उन्होंनें कष्टों को झेला! ये सब वे आता, तो भी आप भयंकर गलती करते हैं। देश प्रेम के कारण कर पाए । आपका देश यह स्थान इन सब चीज़ों के लिए नहीं हैं! आध्यात्मिकता का देश है, यह पूर्ण आत्मानन्द इसके लिए आप राजनीति में जा सकते हैं का देश है। यह ऐसा देश है जिसमें केवल और पैसा बनाने के लिए आप किसी घुड़दौड़ शान्ति का साम्राज्य है और जब आप ऐसे मैदान आदि में जा सकते हैं। आप यदि देश से प्रेम करते है, तो किस प्रकार आपमें हृदय कहा है, आप यदि अपने देश से प्रेम करते जुलाई अगस्त, 2001 । क े में । ।। 78वीं जन्मदिवस पूजा 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 7 व 8 क १ েইি। 99; ॐ ा ू धन और सत्ता आदि हथियाने के मूर्खतापूर्ण यदि इन व्यर्थ की चीजों के पीछे भागते हैं विचार आते हैं? मैं तो ये बात समझ नहीं और अपने अन्दर गड़बड़ियाँ करते हैं, यदि पाती। आप अच्छी तरह से जानते हैं कि आप स्वयं को नष्ट करना चाहते हैं तो मैंने अपने जीवन में उन चीजों की कभी किसी अन्य क्षेत्र में चले जाएं, सहजयोग में चिन्ता नहीं की। नि:सन्देह हमें कार्य के न आएं। सहजयोग में आपको ये जानना लिए धन चाहिए. सभी कार्यों के लिए धन होगा कि आपको वास्तव में समर्पित एवं चाहिए। परन्तु इसके पीछे दौड़ने की या ईमानदार होना पड़ेगा। अपने प्रेम का, अपनी उदारता का आनन्द, आपको लेना चाहिए। नहीं हैं। मैं हैरान हूँ कि मेरे इतने वर्षो के आप अनाव्रत तो हो ही जाएंगे परन्तु इसके कठोर परिश्रम के बावजूद भी कुछ लोग बाद जाएंगे कहाँ? आपकी स्थिति क्या होगी? आप यदि मूर्खताएं करते रहे तो, मैं कहूँगीं मूर्ख लोग। ये बात मेरी समझ में नहीं कि आपको भी अन्य लोगों की तरह से आती। उन्हें ये समझ लेना चाहेए कि नरक में जाना होगा क्योंकि प्रेम के स्वर्ग में बिना किसी देरी के उनकी पोल खुल आने के पश्चात् भी यदि आप इन मूर्खता पूर्ण चीज़ों के पीछे दौड़ते रहेंगे तो बड़ी तेज़ी से नरक में कूद जाएंगे। ये बात मैं ये वर्ष पोल खुलने का है. बिल्कुल स्पष्ट देख सकती हूँ। मुझे ये सब अपने अनाव्रत होने का, ये बात मैंने आपको पिछली जन्मदिवस पर नहीं कहना चाहिए था परन्तु बार भी बताई थी। आपके हृदय में यदि ये वर्ष अनावरण का है, अतः बहुत सावधान सहजयोग के लिए प्रेम नहीं है आपके हृदय रहें इस वर्ष किसी को भी क्षमा नहीं किया में यदि अपनी माँ के लिए प्रेम नहीं है, आप जाएगा। मैं क्या करूं, चाहे आज मेरा 1. इसका लालच करने की कोई आवश्यकता ऐसे हैं जो धन के पीछे दौड़ रहे हैं। कुछ जाएगी। जुलाई अगस्त, 2001 क 78वीं जन्मदिवस पूजा 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व B जन्मदिवस है मुझे आपको बताना पड़ेगा परन्तु सर्वप्रथम आपको इस बात का ज्ञान कि यह चुपचाप नहीं बैठेगा। आप जानते होना चाहिए कि क्या आप ये कार्य करने हैं कि कुछ शक्तियां भिन्न-भिन्न वर्षों में के योग्य हैं या विपरीत दिशा में ही कार्य संचारित होती हैं। मुझे लगता है कि भिन्न किए चले जा रहे हैं ? ये सुनकर मैं बहुत प्रकार की शक्तियां संचारित होने लगती हैं हैरान थी कि इतने वर्षों के पश्चात् भी और इस बार पोल खोलने वाली शक्तित लोगों ने अपने पुराने प्रलोभन नहीं त्यागे । संचारित होगी। आप चाहे अगुआ हों या न आज भी उनमें ये प्रलोभन बने हुए हैं इस हों, किसी भी प्रकार की बेईमानी यदि आप जन्मदिवस पर आप अवश्य ये बात स्मरण कर रहे हैं तो आपकी पोल खुल जाएगी करें कि सहजयोग करने में आपने कितने और आपको उचित दण्ड मिलेगा। सहजयोग वर्ष लगाए? जो आनन्द आपने प्राप्त किया उसे आप समझे तथा ये भी समझे कि हर वर्ष मेरे जन्मदिवस का चाहे आपको दण्डित न करे परन्तु फिर भी बहुत से तरीके हैं जिनके माध्यम से ये शक्ति कार्य करेगी। आनन्द आपने कितने दिनों तक लिया और इसमें कित ना गहन उ तरे ? किस इस शक्ति के कार्य करने का ३० प्रकार गहन उतरे? कितना परिवर्तित पहला तरीका अलक्ष्मी कहलाता है। अलक्ष्मी अर्थात जब आपको दण्ड मिलेगा हुए? किस प्रकार आपने आनन्द लिया और तो आप हैरान होंगे, आप दिवालिए हो किस प्रकार सहजयोग के गुणों को आत्मसात जाएंगे, आपके पास धन बिल्कुल न रह किया? जाएगा, आप अनावृत हो जाएगे, हो सकता है कि जेल चले जाएं। आज यद्यपि बहुत दिवस है. मैं आपको बताती हैँ कि उसे पूर्णतः ईमानदार होना पड़ता है। उसे आप सहजयोगी का मुख्य गुण ये है कि शुभ आप अशुभ कभी न बने। यहाँ पैसा बनाने के लिए नहीं आना है। वह यहाँ सत्ता हथियाने के लिए नहीं आया है, कल के प्रवचन में मैंने आपको समझाया वह तो यहाँ इस नए सुन्दर संसार में था कि आपके पास कौन सी शक्तियाँ हैं उन्नत होने के लिए आया है जिसका हम जिन्हें आप अन्य लोगों को दे सकते हैं जिनका आप स्वयं आनन्द ले सकते हैं विश्व का सृजन करना है, सर्वत्र रहने वाले और जिन्हें आप कार्यान्वित कर सकते हैं। सभी लोगों के लिए चाहे वे जंगलों में हो सृजन कर रहे हैं। सबके लिए हमने इस जुलाई-अगस्त, 2001 78वीं जन्मदिवस पूजा 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व 8 ४ ह भ ा Mother या हिमालय में या अन्य कहीं खोए हुए हों। नियंत्रण कर लिया है परन्तु अभी भी आपमें हमें ये सुन्दर संवेदना, आत्मसम्मान और कुछ लोग ऐसे हैं जो मूर्खता के दुर्गन्धमय गरिमा का ये सुन्दर अस्तित्व सर्वत्र फैलाना कीचड़ में फंसे हुए हैं । है। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि क्या आप आत्मा हैं? क्या आप अपनी आत्मा का सम्मान करते है? कल ही मैंने कहा था कि मेरा जन्मदिवस मना रहे हैं। ये बहुत अच्छी स्वयं को पहचानो। यदि ऐसा हो जाए कि बात है। यह सब देखकर अच्छा लगता है। आप स्वयं का सम्मान करने लगे तो बहुत आप सब मेरा श्रृंगार हैं। पूरे विश्व के लोग अच्छा होगा। आत्मा का सम्मन करना ये देखें कि आप लोग मेरे बच्चे हैं और आप बहुत महत्वपूर्ण है। आप यदि अपना सम्मान सब इतने मूल्यवान हैं और सूझबूझ वाले नहीं करते, बेकार की चीज़ों के पीछे दौड़ते हैं। आप मेरे बच्चे हैं मैंने वास्तव में आपके रहते हैं तो हम क्या करें? सहजयोग में लिए इस प्रकार कार्य किया है कि अपने आपने कौन से गुण आत्मसात किए हैं? जीवन की हर श्वास में मैंने आपके विषय कहीं यहां पर केवल व्यापार आदि जैसा में सोचा है । यह कार्य मैंने इतने सुन्दर तो नहीं शुरू कर लिया? यह अत्यन्त तरीके से करना चाहा कि आप वास्तव में आप लोग इतने उत्साह एवं प्रेम से कुछ खेदजनक बात है। परन्तु अब भी ऐसे लोग अच्छे, आदर्श सूझ-बूझ वाले विशिष्ट लोग हैं जो इन चीज़ों के दलदल में नष्ट हुए बनें। वह ऐसा दिन होगा जब आपको महसूस पड़े हैं। मैं जानती हूँ कि आपने बहुत सारी होगा कि आपका जन्मदिवस मनाया जा चीजों पर नियंत्रण कर लिया है, आपने रहा है। जब आप पूर्णतः स्वच्छ हो जाएंगे, बहुत सी उपलब्धियाँ प्राप्त कर ली हैं।मनुष्य पूर्णतः निर्मल हो जाएंगे, प्रेम की शुद्ध मूर्ति के लिए असम्भव चीजें आपने प्राप्त कर ली बन जाएंगे, वह दिन आपका, और मेरा भी, हैं इन सभी असम्भव चीज़ों पर आपने जन्म दिवस होगा ये सारी बातें मुझे आपको जुलाई-अगस्त, 2001 78वीं जन्मदिवस पूजा 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 7 व 8 बतानी पड़ीं क्योंकि कुछ चीजें मेरे सामनें आसान है परन्तु जब आप अपने विरुद्ध आई हैं और मुझे दुःख पहुँचा कि अभी भी कार्य करते हैं, सर्वसाधारण लोगों की कुछ लोग अपने मूल्य को, अपने महत्च को तरह से आचरण करते हैं तो आप नहीं समझ रहे हैं। यही कारण है कि मैंने सहजयोग में नहीं रह सकते। आपको उस दिन आपको बताया था कि स्वयं का सहजयोग से बाहर फेंक दिया जाएगा। ज्ञान प्राप्त करो। सर्वप्रथम 'स्वः' ही आत्मा है, यही आत्मा है, सर्वशक्तिमान परमात्मा जाएगा तो आप कहाँ रहेगे, आपका का प्रतिबिम्ब । आप भी यदि सर्व- क्या होगा? यह बात आप अच्छी तरह साधारण विवेकहीन लोगों की तरह से से जानते हैं। रहना चाहते हैं तो आप सहजयोग से बाहर रहें। परन्तु यदि आप सोचते हैं कि सहजयोग में आकर वास्तव में अपना महत्व करती हूँ कि शुभ बने। ऐसा कोई कार्य न दर्शाना है और अपने पर गर्व करना है तो करें जो अशुभ हो। ये लोग उसे मर्यादा समझने का प्रयत्न करें कि सहजयोग में आपको इन सब जब आपको सहजयोग से निकाल दिया आज के शुभ दिन मैं आपसे प्रार्थना कहते हैं परन्तु छोटी-छोटी चीजों से प्रकट होता है कि आप मंगलमय हैं। अत्यन्त सूक्ष्म, अत्यन्त छोटी- छोटी चीजें दर्शाती दुर्ब लताओं को त्यागना होगा। कु णडलिनी जब उठती है तो छः चक्रो को ज्योतिर्मय करके इन्हें पार करती है। है कि आप मंगलमय हैं ये सब आपको सीखनी नहीं पड़तीं, स्वतः ही ये गुण आपमें आ जाते हैं और सकती हूँ परन्तु आपकी कुण्डलिनी आप अपनी मंगलमयता का आनन्द लेते आपको दण्ड देगी आपको सुधारने के हैं। क्योंकि आप पवित्र हैं, निर्मल हैं, अपने लिए वह हर आवश्यक कार्य करेगी। अन्तःस्थित इस गुण का आप आनन्द लेते एक सीमा तक वह कार्य करेगी और हैं। जब यह घटित हो जाता है तभी आपका एक सीमा तक मैं आपको क्षमा कर उसके परचात् जब उसे लगेगा कि जन्म-दिवस होता है । आपको सुधारना सम्भव नहीं है तों मैं नहीं जानती क्या होगा और किस प्रकार आप जानते हैं कि आपका पुनर्जन्म घटनाएं घटेंगी! सहजयोग में आना, हुआ, आप सबका पुनर्जन्म हुआ आपका इसमें चलना और इसे कार्यान्वित करना पुनर्जन्म हुआ परन्तु अभी तक आप बच्चे जुलाई अगस्त, 2001 78वीं जन्मदिवरा पूजा 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व 8 थे। पर अब आप बड़े हो गए हैं हर तरह को नहीं समझ पाते! फिर भी, आपने से वह बड़प्पन नज़र आना चाहिए। व्यक्ति बहुत अच्छी उन्नति की है। मैं जानती हूँ जब बड़ा होता है तो अपनी अभिव्यक्ति कि बहुत से लोग बहुत अच्छे सहजयोगी करने के लिए, भिन्न कार्यों को करने हैं, वो वास्तव में बहुत महान सहजयोगी के लिए वह उद्यत हो जाता है । इसी हैं। उन्हें सहजयोगी या महायोगी कहलाने प्रकार जब आप सहजयोग में बड़े हो का पूरा अधिकार है। परन्तु ऐसा होना तथी जाते हैं तो आपको दर्शाना होता है सम्भव है और ऐसा तभी दिखाई देगा जब कि आप बड़े हो गए हैं, कि आप बहुत आप वास्तव में अन्दर से उन्नत हो जाएंगे गहन हैं और वरिष्ठ व्यक्ति है मैं ने और आपकी आत्मा प्रेम के स्वच्छ ।(पारदर्शी) कुछ छोटे बच्चों को भी देखा है। वह इतने सागर की तरह से चमक उठेगी। अब तार उन्नत एवं विवेकशील हैं कि कभी-कभी जुड़ गया है आपको सभी चक्रों का ज्ञान तो मुझे हैरानी होती है कि महान सन्त पुनः है आप जानते हैं कि कुण्डलिनी कैसे उठाई अवतरित हुए हैं! वह वास्तव में महान लोग जाती है। लोगों को रोगमुक्त करना, उनका इलाज करना भी आपको आता है। इस सारे ज्ञान के साथ इस प्रकार का जीवन परन्तु अभी भी यदि आप मूर्खतापूर्ण जो आपको मिला है यह दूध की तरह से है चीजों के पीछे भाग रहे हैं, अब भी जो आप अपनी शक्तियों को देते हैं और यदि आपमें कामुकता एवं लालच है तो आप सशक्त हो जाते हैं। इसके विषय में बेहतर होगा कि आप सहजयोग को आप आलस्य नहीं करते। आप यदि अपने हाल पर छोड़कर कोई और क्षेत्र आलसी हैं तो सहजयोगी नहीं हैं। खोज लें जहाँ आप यह सब कर सकें। अपने हृदय में इस चिंगारी को, इस आश्चर्य की बात है कि सहजयोग में शोले को लेकर आपने चनना है कि आकर भी लोग किस प्रकार अपने गौरव आपको आत्मा का ज्ञान है और ये हैं जिन्होंने पुनर्जन्म लिया है । ा ७ जुलाई अगस्त, 2001 78वीं जन्मदिवर पूजा 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 ु ज्ञान भी है कि अन्य लोगों के प्रति मुझे बहुत प्रेम करते हैं और मेरा जन्मदिवस आपने क्या करना है नि:सन्देह अपने मनाने के लिए आपने क्या कुछ किया है । पूर्वजन्मों में आप महान साधक रहे होंगे जिस प्रकार आपने इतनी सारी सजावट और आपकी जिज्ञासा ही आपको सहजयोग की है. मैं आपको पहले ही बता चुकी हूँ कि तक लाई है। उसी जिज्ञासा के साथ अब आप लोग ही मेरे अलंकार हैं आपके जीवन आप यहाँ पर हैं, फिर भी बेकार की चीजों ही मेरी सजावट है। जिस प्रकार आप स्वयं की ओर दौड़ रहे हैं! ऐसे लोग उन्नत नहीं को पहचानें गे, जिस प्रकार आप आचरण हो सकते। ऐसे लोग न खुद उन्नत होते करेंगे, उन्हीं से विश्व भर में चीजों को हैं और न अन्य लोगों को उन्नत कर समझा जाएगा। ये सब कहने का मेरा सकते हैं। अभिप्राय मात्र इतना है कि स्मरण रखें कि आपको उन्नत होना है। आपको अत्यन्त गहन व्यक्तित्व का बनना है अपना चीज़ जो व्यक्ति को समझनी तो मुख्य है वह ये है कि आप प्रेम में कितने उन्नत जन्मदिवस मनाते हुए आपको अपने अन्दर हुए हैं? आप किसी भयावह व्यक्ति को देखें उन्नत होना होगा । जो बहुत कठोर है, बड़ी अभद्रता पूर्वक बात करता है। वह सहजयोगी नहीं है, किसी भी तरह से नहीं है। परन्तु जो आपका क्या अनुभव है और आपने क्या व्यक्ति अन्य लोगों से प्रेम करता है, उनके देखा? आप किससे मिले, किस प्रकार बारे में सोचता है. अन्य लोगों की देखभाल बातचीत की? मेरा अभिप्राय ये है कि मैं करता है और जो अत्त्यन्त उदार है, वही बहुत से नाम जानती हूँ। वास्तव में मैं हर सहजयोगी है आप लोग विशेष गुणों वाले व्यक्ति का नाम जानती हूँ, हर व्यक्ति की हैं और ये गुण आपके जीवन में दिखाई कुण्डलिनी को पहचानती हूँ। मैं ये भी देने चाहिएं। मैं जानती हूँ कि आप लोग जानती हूँ कि किसकी कुण्डलिनी ठीक है हर रोज ये देखने का प्रयत्न करें कि जुलाई अगस्त, 2001 78वीं जन्मदिवस पूजा 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 श. और किसकी नहीं। मैं से लोगों को वह सामूहिक आनन्द की अवस्था प्राप्त कर जानती हूैँ। लोग मुझसे पूछते हैं कि आपको ली है! इतने नाम कैसे याद हैं? किस प्रकार आप इतने सारे नाम याद रखती हैं? ये बात मैं नहीं जानती परन्तु जब भी मैं किसी व्यक्ति बंधन नहीं लगाए। आप जो चाहे करिए। को देखती हैूँ तो उसकी कुण्डलिनी को जिस प्रकार से भी आप करना चाहें करें । देखती हूँ और उसकी कुण्डलिनी से मैं कभी मैंने धन आदि के विषय में कष्ट नहीं जान जाती हूँ कि वह व्यक्ति कौन है । दिया| परन्तु यह परीक्षा स्थल हैं। आप चाहे हजारों कुण्डलिनियाँ हों, परन्तु मैं जान यदि स्वयं को नहीं परखेंगे तो किस प्रकार जाती हूँ कौन व्यक्ति कौन है, क्योंकि मैं जान पाएंगे कि आप कहाँ तक पहुँचे हैं? उन्हें प्रेम करती हूँ। बहुत मैं ने आप पर कभी किसी प्रकार के आप ही विद्यार्थी हैं, आप ही परीक्षक हैं और आप ही वह व्यक्ति हैं जिसने स्वयं को आप यदि किसी को प्रेम करते हैं तो प्रमाण पत्र देना है। ऐसी अवस्था में आप जान जाते हैं कि वह क्या है। यह प्रेम समझने लगते हैं। ऐसी बहुत सी चीज़ों को मूर्खतापूर्ण रोमांस आदि नहीं है ये तो आप समझने लगते हैं जो अभी तक आपने अत्यन्त गहन एहसास है। अपने हृदय के नहीं समझी थीं मेरा अभिप्राय है ज्ञान। उद्यान में जब आप प्रवेश करते हैं तो चहुँ तथाकथित प्रचलित ज्ञान, कोई ज्ञान नहीं ओर आपको सुन्दर सुगन्ध महसूस होती है क्योंकि ये सब असत्य है, यह सारा ज्ञान है। सन्तों की तरह से ऐसे सुन्दर लोगों., मानसिक है। परन्तु वास्तव में पूर्ण ज्ञान का उद्धघारकों और सहजयोगियों के विषय में उदय आप में होता है. सभी के विषय में. जब आप सोचते हैं तो आपको कृतज्ञता सभी पक्षों के विषय में, आपके आस-पास की इतनी अनुभूति होती है कि आपने भी के विषय में और आप इतना स्पष्ट जान जुलाई-अगस्त, 2001 78वीं जन्मदिवस समारोह 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 7 व 8 जाते हैं कि यह होना चाहिए, यह घटित आप करते हैं, पलट कर उसका प्रभाव आप होना चाहिए। आपको ये स्पष्ट जान जाना पर होता है, केवल आध्यात्मिक उन्नति का चाहिए कि आप कहाँ हैं, आप क्या हैं और कोई दुष्प्रभाव नहीं होता। यह पुष्पित होती आपकी स्थिति क्या है? ऐसा नहीं है कि है, सुगन्धमय है और सुन्दर है। अपनी आत्मा आपमें कोई कम शक्तियाँ हैं। सभी शक्तियाँ के साथ होना इतना सुन्दर अनुभव है मानो आपमें हैं। परन्तु इनके लिए आपको गहनता आप स्वर्ग के सुन्दर उद्यान में प्रविश कर गए में जाना होगा। उदाहरण के रूप में मान हों। वह अनुभूति यदि आप प्राप्त करना लो ये कुआँ है जिसमें पानी है। परन्तु चाहते हैं तो इन सब मूर्खतापूर्ण विचारों को आपकी बाल्टी यदि इसकी गहराई में नहीं त्याग दें। सांसारिक मूर्खता को त्याग दें, ये जाती तो किस प्रकार आप जल ला सकते सभी चीजें त्याग दें। तब आपको लगेगा कि है? आपकी बाल्टी यदि पत्थरों से भरी हुई अब आप उस स्थान पर हैं जहाँ आपको हैं तो उस कुएं का क्या लाभ है? इसी होना चाहिए था। आपको कोई सन्देह न रह प्रकार हमारे अन्दर सभी कुछ विद्यमान है, जाएगा, आपमें कोई ललक न रहेगी किसी जैसे मैंने कल आपको बताया, और सहजयोग भी प्रकार से आप असन्तुष्ट न होंगे। परन्तु के मार्ग से आप गहनता में जा सकते हैं अब भी कुछ लोग अत्यन्त आरम्भिक स्थिति और अपने विषय में जान सकते हैं। यह में हैं मैं ये बात जानती हूँ परन्तु उन्हें मैंने अत्यन्त सुन्दर एवं स्वच्छ है और इसी का नहीं बताया क्योंकि यह वर्ष अनावरण का आनन्द लिया जाना चाहिए। जिन मूर्खतापूर्ण वर्ष है और उन सबकी पोल खुल जाएगी। चीजों के पीछे आप दौड़ रहे हैं और जिन्हें इसमें कोई सन्देह नहीं ऐसा कोई भी कार्य करने का क्या लाभ है जिससे आपकी पोल खुल जाए और पूरा सहजयोग संसार आपको मैंने आपको पहले भी बताया है कि अपराधी मान ले या आपको सम्मान. के अयोग्य कुण्डलिनी ही शुद्ध इच्छा है। यही शुद्ध समझे? या तो आप इससे बाहर हो जाएं इच्छा है क्योंकि अन्य इच्छाओं की पूर्ति तो और यदि आप इसमें ऊँचाई की सीढ़ियाँ कभी नहीं होती। आप एक चीज़ खरीदते हैं चढ़ना चाहते हैं तो आपकी दृष्टि ऊपर की पर उसका आनन्द नहीं लेते और दूसरी ओर होनी चाहिए. नीचे की ओर नहीं। ये चीज़ खरीदना चाहते हैं। उसका भी आनन्द देखना होगा कि कौन सी सीढ़ियाँ हैं। वो नहीं लेते। फिर एक अन्य चीज़ खरीदना सीढ़ियाँ आपको चढ़नी होंगी ये सीढ़ियाँ चाहते हैं। वह भी आपको आनन्द नहीं देती चढ़ने के पश्चात् आप कहाँ पहुँचते हैं ये बात क्योंकि यह शुद्ध इच्छा नहीं है। अर्थशास्त्र मैं आपको बताती हैँ। एक अत्यन्त सुन्दर एवं का सिद्धान्त है कि इच्छाएं कभी शांत नहीं सुगन्धमय उद्यान में, अपनी आत्मा के उद्यान होतीं। एक के बाद एक चीज़ आप खरीदते में जो कि बहुत सुन्दर है। इस सुन्दर उद्यान चले जाते हैं। अन्त में क्या होता है कि सभी में पहुँचने की अपेक्षा आप संसार की दलदल उद्यम लड़खड़ा जाते हैं । अमरीका में यही में फंसे हुए है जहाँ बहुत से लोग खो गए हैं! हो रहा है। एक सिद्धान्त है कि जो भी कुछ आप सहजयोग में किसलिए आए हैं? आप महत्वपूर्ण समझते हैं उनका नहीं। जुलाई-अगस्त, 2001 78वीं जन्मदिवस पूजा 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 ये सारे मूर्खतापूर्ण विचार छोड़ दें, इ्ञान प्राप्ति की जिज्ञासा होती है तो आत्मा आध्यात्मिकता को अपनाने का प्रयत्न करें, का ज्ञान आपको मिलता है। आत्मा के पावन आध्यात्मिकता को। पावनता ही नारा विषय में जानने की इच्छा शुद्ध इच्छा होनी है। आपमें पावनता होनी ही चाहिए और चाहिए। निःसन्देह आप विशेष लोग हैं। सहजयोग में आप अत्यन्त सुगमता से अपने निःसन्देह विशिष्ट बनने के लिए ही आपको अन्दर पावनता स्थापित कर सकते हैं । चुना गया है आपमें कुछ विशेषता तो आपको साक्षी अवस्था में उतरना होगा। होगी कि आप उस स्थिति तक पहुँच गए आपके साक्षीभाव के प्रक्षेपण से प्रतिक्रियाओं जहाँ आप आत्मा बनने का प्रयत्न कर रहे के अहं तथा बन्धन समाप्त हो जाएंगे। तब हैं। आत्मा पूर्णतः आत्मसन्तुष्ट करती है। आप प्रतिक्रिया नहीं करेगे, साक्षी भाव होकर सन्तुष्टि के लिए इसे किसी अन्य चीज़ की देखेंगे। सच्चा ज्ञान केवल साक्षित्व के आवश्यकता नहीं। वास्तव में ये सन्तोष-मूर्ति माध्यम से ही आता है साक्षी रूप में है। यह चीज़ों को देखती है, साक्षी रूप से यदि आप देखना नहीं जानते तो हम देखती हैं और साक्षी भाव से देखते कह सकते है कि जो भी ज्ञान आपको इसे जान जाती है । ये सब जानती है, प्राप्त होता है वह अहं तथा बन्धनों के आपको बताना नहीं पड़ता कि ये ऐसा है. माध्यम से प्राप्त होता है यह पूर्ण ये वैसा है। किसी चीज़ की बहुत अधिक ज्ञान नहीं है किसी भी चीज़ के पूर्णज्ञान अभिव्यक्ति नहीं करनी पड़ती। आप यदि को प्राप्त करने के लिए आपको पूर्णत्व स्वच्छ व्यक्ति हैं, आपकी इच्छाएं स्वच्छ हैं बिन्दु तक पहुँचना होगा। अतः उस स्तर और आपमें यदि उत्थान की शुद्ध इच्छा है तक पहुँचे जहाँ आप पूर्णतः स्वच्छ, पावन तो यह आत्म अभिव्यक्ति करती है। और निर्मल हों। हुए अतः एक बार फिर मुझे कुण्डलिनी के आपमें यदि कोई दोष हों तो उनके विषय में बताना है कि आपकी कुण्डलिनी लिए कभी अपनी भर्त्सना न करें। दोष तो ऐसी होनी चाहिए जो आपके अन्दर होने ही हैं क्योंकि आप मानव हैं। अपनी पूर्णतः स्थापित हो चुकी हो, आपमें आध्यात्मिक शक्ति से आप इन दोषों को पूर्णतः अभिव्यक्त हो रही हो और आपको नियंत्रित कर सकते हैं। इसके लिए आपको पूर्णतः ज्योतित कर रही हो। कुण्डलिनी क्या कुरना होगा? अन्तरअवलोकन प्रथम ऐसी होनी चाहिए और यह तभी सम्भव चीज़ है। सर्वप्रथम खोजने का प्रयत्न है जब आप इसकी उन्नति में बाधाएं न करें। स्वयं को स्वयं से अलग करके खड़ी करें आप यदि इसे उन्नत होने दें कहें, "हाँ, श्रीमान आप कैसे है?" इस तो ये उन्नत होती है और कार्य करती है। जिस प्रकार आप जानते हैं, ये कार्य है? और बाहर भी आप अपने को देखने मैंने वर्ष 1970 में आरम्भ किया था । इसलिए लगते हैं और जो 'स्वः' नहीं हैं, उन सब नहीं कि मैं इसे पहले आरम्भ नहीं कर करने लगते हैं। जब आपमें सकती थी, इसलिए भी नहीं कि संसार में प्रकार आरम्भ करें। "हां, आपका क्या इरादा चीज़ों को दूर 10 जुलाई-अगस्त, 2001 78वीं जन्मदिवस समारोह 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-Xlll अंक 7 व 8 सभी लोग बुरे हैं, परन्तु इसलिए कि सभी मुझमें ये कमी हैं, मैं क्यों पकड़ रहा हूँ? प्रकार की कुण्डलिनियों के संचालन में उस चक्र पर मैं क्यों पकड़ रहा हूँ? ऐसा कुशलता प्राप्त करने की मैं प्रतीक्षा कर क्यों घटित हो रहा है? रही थी। मुझे सभी प्रकार के क्रम परिवर्तन (Permutations and Combinations) कार्यान्वित करने थे और मैंने सोचा कि और यह तभी सम्भव होगी जब आप इन यदि कोई ऐसा मार्ग खोज निकाला जाए चक्रों की अनुभूति कर सकें। अब उन्नत जिसके माध्यम से सारे संयोग एक ही रेखा होना आपके हाथ में है महान लोगों, महान में कार्यान्वित हो सकें, केवल तभी कुण्डलिनी व्यक्तित्वों, इतिहास बनाने वाले महान उठेगी और ऐसा ही हुआ, यही घटित हुआ। धुरन्धर व्यक्तियों के रूप में उन्नत हों, मेरी सच्ची इच्छा के कारण, क्योंकि लोगों जिनका सम्मान होता है। सभी महान लोग के लिए मुझे बहुत दुख था कि वे अपने तथा महान सन्त बड़ी हस्ती वाले लोग थे। जीवन व्यर्थ की चीजों में बरबाद कर रहे परन्तु उन्हें कुण्डलिनी उठाने का ज्ञान न है, किसी चीज के लिए उनके हृदय में सच्चा एहसास नहीं है, किसी भी चीज़ के उठाने का विशेष ज्ञान आपके पास है। लिए सच्चा प्रेम नहीं है और उन्हें भी कोई आप जानते हैं कि कुण्डलिनी का अन्दाज़ा प्रेम नहीं करता। वे प्रेम नहीं कर सकते, किस प्रकार लगाया जाए? आप ये भी कोई उन्हें प्रेम नहीं करता और वे कष्टों में जानते हैं कि समस्या को किस प्रकार समझा फॅसे ये शिक्षा आपको स्वयं को देनी होगी था। ये ज्ञान आपको प्राप्त है। कुण्डलिनी हुए हैं । अतः मैं कहूँगी कि यह मेरा जाए तथा प्रेम एवं सुन्दरतापूर्वक किसी भी सोचा विचारा कार्य था। मैंने मनुष्यों को व्यक्ति को उसकी समस्या के विषय में बहुत सावधानी पूर्वक देखा। क्यों वे इस किस प्रकार बताया जाए। अतः आपकी प्रकार करते हैं? क्यों इस प्रकार का आचरण आत्मा का सन्देश ये है कि आप परस्पर करते हैं? क्यों वे चीजों को समझते नहीं ? प्रेम करें। आप यदि किसी से प्रेम नहीं क्यों वे कठोर हैं, क्यों चिल्लाते हैं? क्यों करते तो क्या कारण है? क्यों नहीं आप मारा-मारी करते हैं? क्यों वे ये सब कार्य प्रेम करते, उस व्यक्ति में क्या खराबी है? करते हैं? असन्तुलनों के कारण। परन्तु वह यदि सहजयोगी है और अच्छा अन्तर्वलोकन से यदि आप ये असन्तुलन सहजयोगी है तो क्या आपकी भावना ईष्ष्या देखने लगें तो अब आपको स्वयं को ठीक के कारण है या लालच के कारण या करने का ज्ञान है और आप इसे कार्यान्वित कामुकता के कारण? अब भी आप ऐसे ही कर सकते हैं। आपको केवल अपने चक्रों हैं। पूरे विश्व बन्धुत्व की एकाकारिता का पर कार्य करना होगा। देखें कि कौन सा वास्तव में आनन्द लिया जाना चाहिए। चक्र पकड़ रहा है? कहाँ समस्या है? आपको इसका अत्यन्त सुन्दरता पूर्वक आनन्द लिया अपना सम्मान इस प्रकार से करना होगा जाना चाहिए। यहाँ विद्यमान सभी चीजों कि आप स्वयं अपने डाक्टर बन जाएं और को देखें। इनमें कितना सामंजस्य है! ये स्वयं आपको अपने विषय में पूर्ण ज्ञान हो। सामंजस्य इसलिए है क्योंकि ये सब कार्य जुलाई-अगस्त, 2001 11 78वीं जन्मदिवस पूजा 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 प्रेम से किया गया है, इसीलिए इसमें पर विजय प्राप्त कर ली है। न्याय ने अन्याय तारतम्यता है। लोगों में यह इस प्रकार की पर जीत प्राप्त कर ली है। आज भी वही तारतम्यता का सृजन करता है कि एक भावना इतनी अधिक हैं कि मैं झण्डे को दूसरे की संगति का आनन्द आप देख देख भी नहीं सकती। इसे देखते ही मुझे सकते हैं। एक दूसरे की उपलब्धियों का पूरा इतिहास याद आ जाता है. पूरा दृश्य आनन्द इतना आनन्ददायी है कि इसका मेरे सामने आ जाता है कि कितने लोगों ने वर्णन मैं शब्दों में नहीं कर सकती। ऐसा बलिदान किया, कितने लोग शहीद हुए कर पाना असम्भव है। शब्द भावनाओं को लोगों ने इसके लिए कितना संघर्ष किया? प्रकट करने में असमर्थ हैं। जैसे मैंने बताया झण्डा उन्हीं के सम्मान में है और आप भी था, ऐसा प्रतीत होता है मानो आप स्वर्गीय उन्हीं सब चीजों के आधार हैं। आप सब उद्यान में प्रवेश कर गए हों। जब आप भी उन्हीं आदर्शो, उन सब बलिदानों तथा स्वयं जान जाएं तो ऐसी ही भावना आपमें मानव के हित में प्राप्त की जाने वाली होनी चाहिए क्योंकि जब आप स्वयं को उपलब्धियों के लिए हैं । अन्य लोगों जान जाते हैं तो आपको अपने अस्तित्व का के लिए आपको बहुत कुछ प्राप्त करना ज्ञान हो जाता है और आपको इतनी प्रसन्नता होगा । होती है कि आपकी आत्मा इतनी सुन्दर है, आप इतने सुन्दर हैं, इतने आनन्दित हैं और आपके पास सभी कुछ है! यह ज्ञान बनाएं जो आपने अन्य लोगों के लिए करने कि अन्दर से आप आनन्द से इतने हैं। लोगों के लिए आप क्या प्राप्त कर सुगन्धित हैं, आवश्यक है। यह अवस्था सकते हैं? अपने अन्दर ये गुण आत्मसात आपमें अवश्य होनी चाहिए। मैंने देखा है करने के कौन से मार्ग हैं जिनसे आप कि जब आप आनन्दातिरेक में होते हैं तो पूर्णतः अद्वितीय व्यक्तित्व बन सकें? बहुत आप नाचते हैं, गाते हैं वह स्थिति बहुत से महान नेता तथा महान लोग हुए जिन्हें ही अच्छी होती है। हर समय आपकी आत्मा लोग याद करते हैं। अब आपको क्या देखना को छोटी-छोटी चीजों से झूम उठना चाहिए। चाहिए? किस चीज़ ने उन्हें इतना महान किसी भी छोटी सी क्रांति, किसी भी बनाया? इतने वर्षों के पश्चात् भी अभी तक कलात्मक चीज़, करुणापूर्ण किया गया छोटा लोग उन्हें याद क्यों करते हैं? मैंने आपको सा कार्य या कृतज्ञता की अभिव्यक्ति से। शिवाजी महाराज का पुतला दिया है। भावना की उस गहनता को आप महसूस भी एक महान आत्मा थे। उनके सिद्धान्त, करें। उदाहरण के रूप में आज मैंने झण्डे उनका सौन्दर्यमय जीवन, उनकी भाषा और देखे। जब हमने स्वतन्त्रता प्राप्त की तब ये उनका दृष्टिकोण अत्यन्त महान था। सर्वोपरि झण्डा, हमने बर्तानवी झण्डा हटाए जाने के वें एक बहादुर व्यक्ति थे। बहादुरी का गुण पश्चात् इस झण्डे को ऊपर जाते हुए देखा। जब आपमें आ जाएगा तो किसी भी महत्वपूर्ण मैं बता नहीं सकती उस वक्त कौन सी कार्य को करने में आप न हिचकिचाएंगे। भावना थी कि आखिरकार सत्य ने असत्य किसी से आपको डर नहीं लगेगा। बिना अपने अन्दर उन कार्यों की रूपरेखा | वे जुलाई-अगस्त, 2001 12 नप 78वीं जन्मदिवस समारोह 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 7 व 8 इधर-उधर की बात किए आप जान जाएंगे परम चैतन्य से हो गया है जो सभी कुछ कि किस प्रकार समाधान खोजना है और कार्यान्वित करेगा। किस प्रकार कार्यान्वित करना है। ये कहते हुए मुझे अंत्यन्त हर्ष हो रहा आपके साथ ऐसा तभी घटित होगा है कि आज मैंने देखा कि आप में से बहुत जब आपको वास्तव में ये ज्ञान प्राप्त हो से लोग बहुत अच्छे सहजयोगी हैं, आपमें जाएगा, जब आपमें साहस की ऐसी शक्ति से बहुत से। यदि आप किसी ऐसे सहजयोगी आ जाएगी। आप दुस्साहसी नहीं बनेंगे। को देखें कि वह अच्छा नहीं है तो मुझे आपमें विवेक होगा। साहस के साथ आपमें इसकी सूचना दें। कृपा करके मुझे इसके विवेक होगा और यही आत्मा है, यही आपको विषय में बताएं। पता लगाएं कि कीं कोई बेशुमार विवेक एवं साहस प्रदान करेगी। व्यक्ति अत्याचार करने का या अन्य लोगों यह युद्ध करने की हिम्मत नहीं है और न को नियन्त्रित करने का पैसा बनाने का ही हिंसक स्वभाव है और न ही असभ्य प्रयत्न तो नहीं कर रहा, कहीं कोई कामुक स्वभाव। यह तो अत्यन्त शान्त, सुन्दर एवं या लोभी व्यक्ति तो नहीं? इसकी अभिव्यक्ति साहसिक दृष्टिकोण है चीनी सन्त की होनी चाहिए। एक बार जब आप इसे एक कहानी है। उस सन्त से राजा ने कहा कार्यान्वित कर लेंगे, आप समझ लें कि ये कि वह उसके मुर्गे को मुर्ग-लड़ाई का क्षेत्र धर्मयुद्ध' कहलाता है। धर्मयुद्ध अर्थात । परन्तु ये युद्ध ऐसा नहीं मुर्गे को यहाँ ले आओ। मैं उसे प्रशिक्षण है। हमारा धर्मयुद्ध ये है कि हम धर्म पर दूंगा। मुकाबले के दिन सभी मुर्गे अखाड़े खड़े हैं। धर्म का अर्थ ये तथाकथित ध्म से दौड़ गए क्योंकि वहाँ तो विवेक एवं नहीं, इसका अर्थ विश्व-निर्मला - धर्म है। साहस की शक्ति खड़ी हुई थी। शान्त होते आप अपने धर्म पर डटे हुए हैं और यह हुए भी साहस अत्यन्त शक्तिशाली है। नकारात्मकता जिसे हम अधर्म कहते हैं आपको किसी पर बम नहीं फेंकने होते, आपसे युद्ध कर रही है। अतः अपने धर्म पर केवल डटे रहें। जब तक आप पूर्णतः धार्मिक नहीं साहसपूर्वक डटे रहना होता है। ये एक हैं तब तक सहजयोग में आप कोई उपलब्धि प्राप्त नहीं कर सकते मैंने देखा यह अत्यन्त विनम्र है और मधुर है। इसी है कि विदेश में रहने वाले लोगों के बड़े साहस के साथ आप डटे रहेंगे । मैं जानती अटपटे विचार होते हैं। मेरे पास आकर वे हूँ आपमें से बहुत से लोग ऐसे ही हैं कहेंगे कि श्री माताजी मेरी एक पत्नी है उनके लिए न कोई संघर्ष है न कोई लड़ाई। परन्तु मैं एक अन्य महिला से प्रेम करता हूँ साहसपूर्वक डटे रहना और उचित लक्ष्य अब मैं क्या करू? मैंने कहा, "आप बाहर को प्राप्त करना। ऐसा करना बिल्कुल सम्भव हो जाओ, बस केवल बाहर हो जाओ"। या क्योंकि अब आपके तार सर्वशक्तिमान कई बार पत्नियाँ आकर कहतीं हैं परमात्मा से जुड़ गए हैं, आपका सम्बन्ध "श्री माताजी मेरे एक अन्य पुरूष से प्रशिक्षण दे| सन्त ने कहा ठीक है. अपने धर्म की लड़ाई किसी की हत्या नहीं करनी होती। अन्य गुण है जिसकी अभिव्यक्ति होगी । 13 जुलाई-अगस्त, 2001 পीट 78वीं जन्मदिवस पूजा 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 7 व B सम्बन्ध हैं, मुझे क्या करना चाहिए?" मैंने चिन्तित हूँ जिन्होंने सहजयोग को पतन कहा, "तुम बाहर हो जाओ, केवल इतना की ओर खींचा है। उन्हें समझ लेना चाहिए ही, तुम सहजयोग से बाहर हो जाओ।" कि मैं सब कुछ समझती हूँ। जब उन्हें तुम सहजयोग के लिए बेकार हो और हानि पहुँचेगी तो मुझे दोष न दें। ये बात सहजयोग तुम्हारे लिए बेकार है। तुम पूरी अत्यन्त स्पष्ट है कि वे सहजयोग के समीप तरह से जाति बाहर हो। अब उन्हें सहजयोग भी नहीं हैं । दिन प्रतिदिन सहजयोग तो से कुछ नहीं लेना देना। आपको पावन करता है। आप किसी अनुभव को देखें, किसी व्यक्ति को देखें, कुछ भारत में हमारे साथ बेईमानी की घटनाओं को देखें। ये आपको पवित्र करती समस्या है । भारतीय लोग बेईमान हैं। मैं हैं। यही इसकी पहचान है। मान लो मैं सोचती हूँ कि यह हमारा विशेष स्वभाव है, किसी बेईमान व्यक्ति को देखें तो हम अत्यन्त भ्रष्ट लोग हैं। भारत इतना अपने अन्दर देखने लगूंगी कि मैं स्वयं तो भ्रष्ट हो गया है कि मुझे विश्वास नहीं कोई बेईमानी नहीं कर रही? कल्पना करें होता! पैंतीस वर्ष पूर्व मैं यहीं थी, तब हमने आप ही वह व्यक्ति हैं जो सुधारक है। भ्रष्टाचार का नाम भी नहीं सुना था। अब अपने पर पड़ने वाले प्रभावों को सुधार रहे ये लोग इतने भ्रष्ट हो गए हैं कि भ्रष्टाचार हैं। आप कहाँ खड़े है? क्या आप सुधार सहजयोग में भी प्रवेश कर गया है। भ्रष्टाचार बिन्दु पर खड़े हैं या इसके साथ ही समाप्त यदि सहजयोग में प्रवेश करेगा तो भ्रष्टाचारी हो रहे हैं? एक दम से खोज लिए जाएंगे और दण्डित होंगे। मैं उन्हें दण्डित नहीं करूंगी, उनकी अपनी कुण्डलिनी उन्हें दण्डित करेगी। तो किया, आज का प्रवचन उसी का विस्तार अपराध करने में हर देश की अपनी विशेषता है। मैं आपको बता रही हूँ कि आप बहुत है। हम यहाँ अपराध करने नहीं आए हैं। महान लोग हैं। आप पूरे विश्व को बचा रहे अपराधियों के रूप में हम अपनी अभिव्यक्ति हैं। अपने जीवन काल में यह सब घटित नहीं करेंगे। हम तो यहाँ यह प्रमाणित होने की आशा मैंने नहीं की थी। परन्तु यह करने के लिए हैं कि हम पूर्ण हैं और बहुत सब घटित हो गया और मैं आप सबको, अच्छे लोग हैं। यही आत्मा है कि हम पूर्ण अत्यन्त अत्यन्त महान व्यक्त्तियों को, देखती है। पूर्व संस्कारों के अनुसार अब हमें नहीं हूँ। महिलाओं को विशेष रूप से बहुत चलना है। अब हम नए साम्राज्य में पहुँच अधिक कार्य करना होगा। मैं स्वयं एक गए हैं। ये एक नया क्षेत्र है जिसमें हम महिला हूँ और महिलाओं में प्रेम करने एवं पहुँचे हैं और इसका हमें आनन्द लेना सहन करने की एक विशेष शक्ति होती है। चाहिए। मैं तुरन्त कल का प्रवचन सभी लोगों ने पसन्द बम मुझे आशा है कि आप सब सुन्दर सहजयोगी बनेंगे। विश्व को कोई अन्य मेरे विचार में आप सब लोगों ने समझ चीज़ विश्वस्त नहीं कर सकती, केवल लिया है कि आज मैं उन लोगों के लिए आपका कार्य, आपकी योग्यताएं, आपके जुलाई-अगस्त, 2001 14 78 वीं जन्मदिवस समारोह 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व 8 प्रेम की शक्ति विश्वस्त कर सकती है। केवल आनन्द की अनुभूति करनी होगी। आप लोगों के विषय में मैंने बहुत सी चीजें यह सब मैं आपको इसलिए बता रही हूँ देखीं अनुभव की और जब मैं उनके विषय क्योंकि यह आपके अन्तःस्थित है, आपकी में सोचती हूँ तो वास्तव में हर्ष होता है। मैं शक्ति है, हर समय यह आपके अन्दर देखती हूँ कि लोग किस प्रकार संचालन विद्यमान है और आप इसका सामना भी करते हैं और किस प्रकार उन्होंने कठिन कर चुके हैं। आप सबको मैं जन्मदिवस की चीजों की देखभाल की और उन्हें कार्यान्वित शुभ कामनाएं देती हूँ और कामना करती हूँ किया। अब हम एक नए विश्व में हैं और कि आप एक नया जन्म, नई सूझबूझ और उस नए विश्व तथा सहजयोगियों की प्रजाति नया व्यक्तित्व प्राप्त करें। उस व्यक्तित्व में उन्हें परिणाम दर्शाने होंगे। उन्हें अपनी को स्वीकार करने का प्रयत्न करें, उसका शक्तियों, साहस और अपनी सूझ-बूझ का सम्मान करने का प्रयत्न करें। यही व्यक्तित्व परिचय देना होगा ये गम्भीर बात नहीं है है, यही आपकी आत्मा है। और न ही ये उथली बात है। यह तो आनन्ददायी है। आपको अपने विषय में परमात्मा आपको धन्य करे। 15 जुलाई-अगस्त, 2081 78वाँ जन्मदिवस समारोह दिल्ली 20.3.2001 न जायते म्रियते वा कदाचिन्नाय भूत्वा शंविता वा न भूयः अजो नित्य शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।। आत्मा जन्म-मरण से परे है। ये सदैव था और सदैव रहेगा। आत्मा अजन्मा है, नित्य है, शाश्वत है, पुरातन है और शरीर का नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता। ्री हमारी परम पूज्य, परम प्रिय माँ श्री देशों से सहजयोगी जन्मोत्सव में भाग लेने आदिशक्ति के 78वें जन्म दिवस का के लिए दिल्ली के निर्मल- धाम में एकत्र शुभअवसर 21 मार्च 2001 को आया। यह हुए और तीन दिनों तक निरन्तर दिव्य जन्मदिवस उनका था जो जन्म-मरण से चैतन्य लहरियों के सागर में गोते लगाए परे हैं, शाश्वत हैं और जैसा गुरुनानक तथा समारोह की रौनक बढ़ाई । बहुत से देवजी ने कहा है 'अकाल मूरत, अजूनी प्रतिष्ठावान लोगों ने भी इस समारोह में सैबं हैं। जन्म-मरण से ऊपर होते हुए भी भाग लिया और परमेश्वरी माँ के प्रति अपनी कृपासिन्धु आदिशक्ति अपने सहजयोगी बच्चों कृतज्ञता तथा श्रद्धा प्रकट की। विश्व भर को अपना जन्मोत्सव मनाकर आनन्द के से श्री माताजी को उनके 78वें जन्मदिवस सागर में गोते लगाने, अपनी उत्क्रान्ति तथा के शुभअवसर पर हजारों बधाई सन्देश आनन्द की शाश्वत अवस्था प्राप्त करने का आए जिनमें मानवहित के लिए किए गए अवसर प्रदान करती हैं। विश्व के 96वें उनके प्रयत्नों की भूरि- भूरि प्रशंसा की गई 16 जुलाई-अगस्त, 2001 78वाँ जन्मदिवस समारोह 20.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व 8 थी कुछ बधाई सन्देश निम्नलिखित हैं:- की आपकी विशिष्ट उपलब्धियों, और सेवाओं स्टेट ऑफ न्यूयार्क से गवर्नर जार्ज ई. को हृदय से मान्यता प्रदान करता हॅँ। आपके विशेष प्रयत्नों एवं उपलब्धियों ने एलिध्नी प्रदेश के नागरिकों के हृदय को आपके लिए सम्मानभाव से भर दिया है। पेटकी लिखते हैं:- प्रिय श्री माताजी, 1 आपके 78वें जन्मदिवस के शुभ अवसर पर अन्य लोगों के साथ सामूहिक रूप में आपको हार्दिक कधाई भेजते हुए मुझे अत्यन्त हर्ष हो रहा है । सिटि ऑफ पिट्सबर्ग (अमेरिका) के मेयर टॉम मर्फी अपने घोषणा पत्र में लिखते हैं:- श्री माताजी निर्मलादेवी का जन्म 21 मार्च 1923 को भारत में छिंदवाड़ा नामक चरित्र और वर्षों अपने उच्च स्थान पर हुआ। उनके बाल्यकाल में ही महात्मा गांधी ने उनकी प्रतिभा एवं विशिष्ट गुणों तक अथक कार्य के लिए आप विशेष बधाई और गहन सम्मान के अधिकारी हैं. प्रम एवं करुणा का जो उदाहरण गुणा की पहचाना। स्थापित किया है इस पर गर्व होना स्वाभाविक है। विश्वास रखें कि जिन लोगों सहजयोग की संस्थापक हैं। सहजयोग को आपने विवेक एवं सम्पन्नता प्रदान आध्यात्मिक उत्क्रान्ति प्राप्त करने का एक उनके लिए आप प्रेरणा का स्रोत हैं। आपने वे विश्व विख्यात आध्यात्मिक नेता तथा की अत्यन्त स्वाभाविक कार्य है जिसके लिए व्यक्ति को कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता। उन्होंने बहुत सी धमार्थ संस्थाओं की स्थापना की है। उन्हें संयुक्त राष्ट्र शान्ति मैडल प्रदान किया गया है और विश्वशान्ति पर आपके जन्मदिवस पर मंगलकामनाएं भाषण देने के लिए चार बार संयुक्त राषट्र संघ में आमंत्रित किया गया है नोबल जार्ज ई. पेटकी। शान्ति पुरस्कार के लिए भी दो बार उन्हें दिवस हम परमात्मा करे कि ये शुभ सबको जीवन में प्राप्त वरदानों पर दृष्टिपात करने का अवसर प्रदान करे। करते हुए। मनोनीत किया गया। County of Allegheny से बहां के चीफ एग्ज़िक्यूटिव ने श्रीमाताजी के लिए सम्मान प्रमाण पत्र भेजते लिखा सिटी ऑफ पिट्र्सबर्ग के मेयर के रूप में मैं श्रीमाताजी निर्मलादेवी को उनके 78वें जन्म दिवस पर बधाई देता हूँ और 21 मार्च 2001 बुधवार को पिट्ट्सबर्ग नगर को आपके 78वें जन्मदिवस समारोह के में श्रीमाताजी निर्मला देवी दिवस' घोषित हुए श्री माताजी निर्मला देवी 21 मार्च 2001 अवसर पर मैं अपनी शुभ कामनाएं अर्पण करता हूँ। करता हूँ और विश्वशान्ति तथा मानवहित टॉम मर्फी । नि 17 जुलाई-अगस्त, 2001 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन, निर्मल धाम, 20 मार्च 2001 ॐ 78Y BIRTHDAY FELICITATION OF H.H. MATAJI मातजी वी निर्माणा देवा के 7 े जन्म दिवस ां विषय में बताते हुए भी उन्हें संकोच होता है क्योंकि वे सोचते है कि कहीं ये उनका अहं न हो । सत्य साधको, जिन्होंने सत्य को खोज लिया है और जो अभी तक इसे खोजने एमान म का प्रयत्न कर रहे हैं, मानव की आश्चर्य चकित कर देने वाली सबसे बड़ी समस्या यह है कि मानव स्वयं को नहीं पहचानता। वो ये नहीं जानता कि उसमें कौन सी शक्तियाँ हैं, कौन सी सम्पदाएं हैं इसकी हवा निकल जाएगी। जब तक आप तथा ये भी नहीं जानता कि किस ऊँचाई दूसरों का सामना नहीं करते आपका अहं को वह प्राप्त कर सकता है! अपने आप के नीचे नहीं आ सकता। लेकिन किस प्रकार? विषय में अज्ञानता ही समस्या है। मैं आपको बताना चाहूंगी कि जब आप समाज का सामना मर करेंगे तो अहम् स्वतः ही कम ही जाएगा। जब आप सोचते हैं कि अन्य लोग आपसे बेहतर हैं, जब आप ये कहने से घबराते हैं मुख्य आप यदि अपने हृदय में झाँककर कि उन्हें परिवर्तित होना है, और जब आपको देखें और सोचे कि किस प्रकार का ये चिन्ता होती है कि आप अधिक आक्रामक आध्यात्मिक जीवन आप प्राप्त कर सकते हैं हो रहे हैं, तो अहं तो होता ही हैं यदि तो आप जान जाएंगे कि आप एक खजाना आप सहजयोगी हैं और प्रतिदिन है शक्तियों का, प्रेम का, न्यायशक्ति का ध्यानधारणा करते हैं अपनी शुद्धि करते हैं, और विवेकशक्ति का खजाना। समस्या ये तो आपके अन्दर एक शक्ति है जो परिणाम कि हमें इस बात की समझ ही नहीं है दर्शाएगी। यह अपनी शक्तियां दर्शाएगी कि हम हैं क्या और सहजयोगी भी इतने और इतनी शक्ति से अपना प्रकटीकरण विनम्र हैं कि वो इस बात को महसूस ही करेगी की आप हैरान रह जाएंगे! क्या मैं नहीं करते कि उनमें कौन सी शक्तियाँ हैं। वास्तव में ऐसा हूँ? कुण्डलिनी की जागृति कभी कभी तो मुझे लगता है कि सहजयोग से क्या होता है? ये छोटे-छोटे दोष जिन्हें की बात करने में भी उन्हें शर्म महसूस संस्कृत में हम षड्रिपु कहते हैं, ये सब छुट होती है. अन्य लोगों को सहजयोग के जाते हैं। परन्तु हमें स्वयं का सामना करना जुलाई-अगस्त, 2001 18 78वां जन्मदिवस समारोह 20.3.2001 वैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 7 व 8 78" BIRTHDAY FELICITATION OF H.H. MATAJI SHRI NIRMALA DEVI . प.माताजी थी निर्माल देवी के 78वें जन्म दिवस का अभिनन्दन समाचंह र म न कम होगा। सहजयोग में कुछ लोग सोचते हैं अपेक्षा यदि आप अपनी पूरी तस्वीर को कि हम बहुत महान बन सकते हैं या बहुत देख लें कि आपमें क्या करने की योग्यता उच्च पद प्राप्त कर सकते हैं आदि आदि। है? अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार देकर, ये बात नहीं है। ये बाह्य नहीं है। ये बाह्य उन्हें ये समझाकर कि उनकी क्या शक्तियाँ महत्वाकांक्षा नहीं है। यह तो आन्तरिक हैं, उनकी शक्तियां आपकी नहीं, वो क्या प्रकाश होता है जिसे ज्योतित होना है। उपलब्धियाँ प्राप्त कर सकते हैं। ये सब जहाँ तक चक्रों के ज्ञान का सम्बन्ध है करके आप क्या प्राप्त कर सकते हैं यदि ये इसमें आप सब अत्यन्त बुद्धिमान तथा कुशल बात आप जान लें तो मैं आपको बताती हैँ हैं। परन्तु आत्मा (स्व) के ज्ञान के विषय में कि सहजयोग प्रचार -प्रसार के कार्य में हम क्या है? क्या आप अपने विषय में जानते हैं लोग तेजी से बढ़ सकते हैं। कि आप क्या कर सकते हैं और आपमें क्या योग्यता है? इस मामले में हम पिछड़े हुए हैं। ठीक है, यह आपकी आन्तरिक जाएगा, बहुत से लोगों में इस प्रकार के इच्छा है क्योंकि आपको आत्मसाक्षात्कार मूर्खतापूर्ण विचार हैं, ऐसा करके आप कुछ प्राप्त हो चुका है। परन्तु फिर भी एक भी प्राप्त नहीं कर सकते। जितना अधिक मायने में अभी कमी है। यह कमी स्वयं पर आप ध्यान धारणा में उतरेंगे आपको समझ पूर्ण आत्मविश्वास का न होना है कि आप आयेगा कि आपके अन्दर बहुत से महान सत्य को जानते हैं और सत्य का ज्ञान गुण हैं, रत्नों के भण्डारगृह की तरह से प्राप्त होने के कारण अब आपको इस सत्य परन्तु आपको अपना सम्मान करना होगा का प्रसार करना है और अज्ञान के अंधकार और अपने अन्दर इस बात को जानना को समाप्त करना हैं। परन्तु मैने देखा है होगा कि आपने क्या प्राप्त कर लिया है। ये कि सहजयोग में आकर भी लोग अपने नहीं कि आप बाहय विश्व में क्या प्राप्त विषय में विचार बनाने लगते हैं और आयोजन करना चाहते हैं। कुछ लोग अगुआ बनना करने का प्रयत्न करते हैं। सभी प्रकार के चाहते हैं आदि आदि। ये सब मूर्खता है। कार्य वो करते हैं । मैं ये जानती हूँ। इसकी इसका कोई महत्व नहीं है सर्वोत्तम बात यह भय कि हमारे अन्दर अहं बढ़ जुलाई-अगस्त, 2001 19 क 78वँ जन्मदिवस समारोह 20.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XI अंक 7 व 8 तो ये जानना है कि अपने अन्दर आप प्रकार बात कर सकें कि वे समझ जाएं कि महान मूल्यवान प्रणाली के खजाने हैं और आप सहजयोगी हैं। यह शक्ति आपको इसे आप जागृत कर सकते हैं। आपमें केवल इसंलिए नहीं दी गई कि आप कह शक्तियाँ हैं। ये कार्य आप आसानी से कर सकें कि मैं सहजयोगी हूँ। इसलिए आपको सकते हैं, बिना किसी को तकलीफ पहुँचाए. ये शक्ति दी गई है कि आप स्वयं को बिना किसी को कष्ट दिए और बिना किसी अच्छी तरह से पहचान सकें और अपने से पैसा लिए। परन्तु वास्तव में मैं देखती हूँ वैभव तथा अपनी सूझ-बूझ में स्थापित कि लोग बाह्य से या तो धन लोलुप हैं या रहें। विश्व में असंख्य लोग हैं, लाखों- सत्ता लोलुप, अन्दर से नहीं। अन्दर तो करोड़ों आप ही लोग क्यों सहजयोग में वैभव है, शक्ति है और वो सभी कुछ है आए? मैंने आपको नहीं चुना, आपने मुझको जिसके बारे में आप सोचते हैं। मैं जानती चुना है और जब आपने मुझको चुना है तो हूँ कि कुछ लोग ऐसे हैं जो कभी मंच पर अवश्य आप अपने अन्दर समझें कि मेरे भी नहीं चढ़े थे, अब वे महान वक्ता बन अन्दर कुछ तो ऐसा होगा जिसके कारण मैं गए हैं मैं हैरान हूँ कि किस प्रकार उनमें सहजयोग में आया और इस प्रणाली को ये परिवर्तन आया! महानतम परिवर्तन तो समझा । ये बहुत सूक्ष्म लोग ही जान सकते ये है कि आप स्वयं को अच्छी तरह समझ है, स्थूल लोगों के लिए ये ज्ञान नहीं है। गए हैं और इस ज्ञान से आप अन्य लोगों परन्तु यदि आप स्वयं स्वयं को खोज लें को भी परिवर्तित कर सकते हैं. स्वयं को और तब आगे बढ़े तो अहं हो ही नहीं भी परिवर्तित कर सकते हैं । अपने को सकता क्योंकि आप अहं नहीं हैं। स्वयं तक ही सीमित न रखें। आपको विस्तृत होना होगा। यह शक्ति आपको इसलिए दी गई है कि आप स्वयं को जैसा मैंने बताया है वे सहजयोग से भी भली-भांति जान सकें । करुणामय और भद्र होकर लोगों से इस करने का प्रयत्न करते हैं जिससे वे उभर ा जिन लोगों में अहं है, उनके विषय में आत्म विश्वस्त पैसा बनाते हैं। वे चीजों का आयोजन कर जुलाई-अगस्त, 2001 20 78वाँ जन्मदिवस समारोह 20.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 यद्यपि उन्हें समझ पाना लोगों के लिए कठिन कार्य था फिर भी उन्होंने इतने अच्छे कार्य किए। कर सामने आएं। वे बिल्कुल निम्न स्तर पर हैं। परन्तु यदि आप वैसे नहीं हैं तो आपको हाथ बाँधकर नहीं बैठ जाना चाहिए। ये जानने के लिए कि मैं क्या हूँ आपको कार्य करना चाहिए। मैं क्या हूँ? ईसा मसीह ने कहा था, 'स्वयं जैसे टर्की में अतातुर्क हुए हर जगह पर को पहचानो', मोहम्मद साहब ने भी कहा एक व्यक्ति ऐसा हुआ। भारत में लाल स्वयं को पहचानो। सभी अवतरणों ने कहा बहादुर शास्त्री हुए जो अत्यंत महान व्यक्ति कि स्वयं को पहचानो। इसका अर्थ ये थे और जो सहजयोग के विषय में जानते हुआ कि आपमें कुछ महानता है। आपके थे। उन्होंने मेरा बहुत सम्मान किया लोग अन्दर वैभव निहित हैं. जिनका आपको हैरान होंगे कि उन्होंने मेरे पति से भी ज्ञान नहीं है। एक बार आप जब स्वयं को ज्यादा मेरा सम्मान क्यों किया! क्योंकि पहचान जाएंगे तो आपमें आत्मसम्मान जाग उन्होंने समझा कि सहजयोग क्या है? परन्तु जाएगा| आप गलत कार्य नहीं करेंगे, आपको इसका अवसर उन्हें नहीं मिला। अब आप क्रोध नहीं आएगा। तब आप प्रेम के सागर लोगों के पास इसका अवसर हैं। ठीक है में होंगे ऐसा ही होना चाहिए। सहजयोग कि मैं काफी बृद्ध हैँ। ये बात ठीक है। यही है। मेरे विचार में आजकल बहुत परन्तु अभी तक मैंने हार नहीं मानी। जब भयानक दिन हैं। जैसा लोग कहते हैं ये तक मैं जीवित हूँ आपको आपके व्यक्तित्व घोर कलियुग है। ठीक है, लेकिन इस के विषय में, आपको अपने विषय में विश्वस्त काल में आप यहाँ च्यों हैं? लोगों को करने के लिए कठोर परिश्रम करती रहूँगी। साक्षात्कार देने के लिए, उन्हें अच्छे विचार मैं इसीलिए जीवित हूँ। जब तक आप प्रदान करने के लिए। परन्तु कैसे? जब पूर्णत विश्वस्त नहीं हो जाते आप हैरान तक आप स्वयं को भली भांति पहचान नहीं होंगे कि सहजयोग में आकर भी लोग सभी जाते कि आपमें क्या क्या करने की योग्यता प्रकार के मूर्खतापूर्ण कार्य करते हैं। मैं है, आप ये कार्य कैसे कर सकते हैं? महान जानती हैँ वो ये कैसे करते हैं? परन्तु ऐसा व्यक्तियों के जीवन पर दृष्टि डालें। अब्राहिम करने वाले लोग वास्तव में सहजयोगी नहीं लिंकन जैसे लोगों के जीवन पर। अत्यन्त हैं। क्योंकि जबतक आप अपनी गहनता में युवावस्था में ही उन्हें ये बात समझ आ गई नहीं उतर जाते, जब तक आप ये नहीं थी कि अपने उदाहरण द्वारा अपनी मूल्य जान लेते कि आपका व्यक्तित्व वास्तव में प्रणाली उन्हें अन्य लोगों को समझानी होगी। क्या है तो जो भी प्रयत्न आप करते रहें, श्रट ब मैंने इस प्रकार की बहुत सी जीवनियां पढ़ी हैं, 21 जुलाई-अगस्त, 2001 78वाँ जन्मदिवस समारोह 20.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-Xill अंक 7 व 8 बह बिस्तर में लेट गया तब मूसलाधार वर्षा आरम्भ हुई। जो कुछ भी आप करते रहें वह सहज नहीं है। सहज अर्थात स्वतः। यह आपको स्वतः प्राप्त हो जाता है। हम जानते हैं कि सहजयोग में हम उस क्षेत्र से जुड़ जाते हैं जिसे आइंस्टाइन ने ऐंठन क्षेत्र (Torsion Area) नाम दिया है। परन्तु ये क्षेत्र आपके पीछे स्थित है। आपको आश्रय देने के लिए, आपकी सहायता करने के लिए परम चैतन्य है। आप सबको यह प्राप्त हो गया है, परन्तु अब भी आप इसमें विश्वास नहीं लिए कहती हैँ। परन्त इसलिए कि उसे करते। इसका विश्वास करें, स्वयं पर विश्वास इस बात का आभास है कि मैं पृथ्वी पर करें। आपके अन्दर यह शक्ति विद्यमान है । एक विशेष कार्य करने के लिए आई हूँ मैं जानती हूँ। प्रकृति आपके साथ होगी क्योंकि वह हमारी प्रतिनिधि है । ये हमारी सहायता करती है। आप यदि उस उच्च स्तर के हैं तो प्रकृति आपका साथ देगी। आपने देखा है कि बहुत बार प्रकृति ने मेरी सहायता की, इसलिए नहीं कि प्रकृति पर मेरा नियंत्रण था या मैं उसे कुछ करने के इसलिए मेरी सहायता होनी चाहिए । इसी प्रकार से यदि आप भी यह गुण अपने में मैं बम्बई के एक व्यक्ति को जानती स्थापित कर लें तो प्रकृति जान जाएगी कि हूँ। वह मछुआरा था और महान सहजयोगी आप लोग पूरे ब्रहमाण्ड का उद्धार करने के था। अब हमने उसे खो दिया है। एक दिन लिए हैं। ऐसा आप कर सकते हैं। चाहे मैं मछुआरों में सहजयोग प्रचार करने के लिए सोचती रहूँ कि पूरे विश्व का पुनरुत्थान वह एक अन्य टापू पर जा रहा था। उसने होना चाहिए, परन्तु मैं अकेली इस कार्य देखा कि आकाश में भयानक काले बादल को कैसे कर सकती हूँ? मैं यदि इस कार्य मंडरा रहे थे। वह बाहर आया और बादलों को कर सकती तो मुझे ये माध्यम लेने की से कहा "मैं अपनी माँ के कार्य से जा रहा आवश्यकता क्यों हूँ, तुम वर्षा करने की हिम्मत कैसे कर माध्यम जो स्वयं को जानते हैं, अपने कार्य सकते हो? जब तक मैं वापिस नहीं आता को जानते हैं और जिनमें इस कार्य को तुम्हें वर्षा नहीं करनी है। और हैरानी की अन्जाम देने की योग्यता है। निःसन्देह आप बात है कि वह बाहर गया अपना सारा लोग विशिष्ट हैं अन्यथा आप लोग यहां कार्य किया और पाँच घण्टों के पश्चात क्यों होते आपकी विशेषता ये है कि आप वापिस आया वापिस आने के पश्चात् जब परमेश्वरी पड़ती? ऐ से के अच्छे संचारक हैं। आप पूजा 22 जुलाई-अगस्त, 2001 78वाँ जन्मदिवस समारोह 20.3.2001 चैतन्य तहरी खंड-XIll अंक 7 व 8 सर्वप्रथम हमें ये जानना होगा कि हमारा बहुत अच्छे संचारक हैं, इसमें आप विशेषज्ञ हैं। यह कार्यान्वित होता है। स्वतः ये कार्य आधार क्या है? सबसे महत्वपूर्ण आधार ये करता है, परन्तु परमात्मा से आपका योग हैं कि हम विशेष देश में जन्में हैं और पूर्ण होना चाहिए। मूल्यों की पूर्णता के बारे इसके विषय में हमें चिन्ता होनी चाहिए। में बात करना ठीक है, परन्तु ये पूर्ण मूल्य लोग कहते हैं कि मैं विप्लवी थी, आदि क्या हमारे अन्दर है या नहीं? यदि ये हमारे आदि। मैंने क्रान्ति की और जेल भी गई, अन्दर विद्यमान हैं तो क्यों नहीं हम इन्हें परन्तु ये सब अपने देश की स्वतन्त्रता अन्य लोगों को आत्मसात करने देते? यह कार्य कढिन नहीं है। मैं आपको बताती हूँ कि ये बिल्कुल कठिन नहीं है। । मैं एक सर्वसाध रिण गृहणी हूँ। केवल मेरे प्रेम में या मैं कहूँ कि मेरे स्वभाव प्राप्त करने के लिए किया ये भिन्न चीजें हैं। परन्तु स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् क्या होना चाहिए था? हमें लोगों को महसू स करवाना चाहिए था कि वे क्या है? केवल भारत में ही नहीं सभी देशों में इस शक्ति को समझना के कारण. बाहर से चाहे मैं सर्वसाधारण गृहणी दिखाई दूं। लोग सोचा करते थे कि मैं इसलिए अधिक नहीं बोलती क्योंकि मुझे अंग्रेजी नहीं आती। सुधारने के लिए, सहायता करने के लिए. स्थिति यह थी परन्तु वास्तविकता यह उन्नत करने के लिए व परिवर्तित करने के नहीं है। वास्तविकता ये है कि मैं जानती लिए उन्हें क्या करना है? मैंने कभी किसी थी कि मैं क्या हूँ और ये भी कि मुझे क्या से नहीं कहा कि अपना नाम बदलो। आपने बनना है? बस। अन्तर केवल इतना है। भारतीय नाम मांगे हैं, ठीक है। मुख्य बात आप लोग भी यदि इस ज्ञान को अपने तो ये है कि आपके मन में अपने देशवासियों अन्दर विकसित कर लें तो आप अत्यन्त की चिन्ता होनी चाहिए। आपको इतना प्रगल्भ बन सकते हैं । आपकी महत्वाकांक्षाएं शक्तिशाली बनाया गया है आपकी और इच्छाऐँ समाप्त हो जाऐंगी आपको कुण्डलिनी उस अवस्था तक पहुँच गई है क्रोध नहीं आएगा और आपमें लालच भी जहाँ आप बहुत कुछ कर सकते हैं। मैं नहीं रहेगा। इस प्रकार ये सारे दुर्गुण आपसे जानती हूँ कि आपमें से कुछ लोगों ने बहुत छूट जाएंगे। चाहिए कि उस के दे श की कया आवश्यकता है? कार्य किया है और इसे कार्यान्वित किया 23 जुलाई-अगस्त, 2001 78वाँ जन्मदिवस समारोह 20.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 है, परन्तु अभी भी आप सबको यह कार्य तरह से आचरण कर रहे है? क्या आपको करना होगा मैं केवल इतना कहूँगी कि सागर सम अपने क्षेम का ज्ञान है? सागर 78वें जन्मदिवस पर भी मैं वहीं की बही हूँ, क्या है? मुझमें बहुत परिवर्तन नहीं हुआ, क्योंकि अपने अन्दर मुझे लगता हैं कि मुझे लोगों को बताना है कि वे क्या हैं? मुझे उन्हें मर्यादाएं हैं, जिन्हें ये कभी नहीं लांघता। एक बताना है कि वे क्या प्राप्त कर सकते हैं तरफ से यदि आप इसे धकेलें तो ये दुसरी और इसलिए मुझे इस प्रकार चलना है कि तरफ को बाहर निकल जाएगा। अतः आपको वे देख सकें कि स्वयं का ज्ञान प्राप्त करने अपनी मर्यादाओं में रहना चाहिए। अपने से अधिक महत्वपूर्ण कुछ नहीं हैं। आप चाहे अमीर हों या गरीब, इससे रहना बहुत महत्वपूर्ण है। बहुत से लोग कोई फर्क नहीं पड़ता। स्वयं को जानना जिन्होंने धूम्रपान करना बन्द कर दिया था ही महत्वपूर्ण है। मैं हैरान हूँ कि इस विषय फिर से धूम्रपान करे लगे हैं. जिन लोगों ने पर अभी तक बहुत कम लिखा गया है। परन्तु लाओत्से लिखित 'ताओ'- आपने वो लगे हैं इसका अर्थ ये है कि आप लोगों ने पुस्तक पढ़ी है या नहीं, बहुत अच्छी है। मर्यादाएं त्याग दी हैं। इन मर्यादाओं का ताओ का अर्थ है 'आप क्या हैं और इसका ध्यान रखा जाना आवश्यक है। स्वयं को वर्णन उन्होंने बहुत अच्छी तरह कि जब आप वह बन जाते हैं तो क्या होता जाने जाएंगे कि अआप क्या हैं। अवश्य अपना है। कमी सिर्फ इतनी थी कि उस अवस्था अवलोकन करें। स्वयं से कहें, "हाँजी, श्रीमान को किस प्रकार प्राप्त किया जाए। ये नहीं जी, अब क्या इरादा है?" तब आप अपने लिखा था कि उस अवस्था तक कैसे पहुँचा मस्तिष्क की कार्य शैली को जान जाएंगे। जाए उन्होंने सिर्फ उन लोगों का वर्णन ऐसा करने से परमेश्वरी के प्रेम का सागर किया जो ताओ थे, जो आत्मसाक्षात्कारी बहने लगेगा सम्भवतः हम नहीं जानते कि थे, जो उच्चस्तर के थे मैं हैरान थी कि सागर पृथ्वी में सबसे नीचा होता है। सारी लाओत्से ने कुण्डलिनी के विषय में कुछ ऊँचाईयों का माप हम समुद्र के स्तर से नहीं कहा परन्तु उन्होंने येंसी नदी के बारे करते हैं। समुद्र यदि शून्य बिन्दू पर है तो में बताया। उन्होंने कहा कि यह येंसी नदी हिमालय की ऊँचाई कितनी है? अतः समुद्र । कुण्डलिनी के विषय में बताने का यह सबसे निचले स्तर पर रहता है और यहीं उनका प्रतीकात्मक तरीका था। वे कवि कारण है कि सारा पानी, नदियों या वर्षा से थे। अन्ततः सागर तक पहुँच कर यह नदी आने वाला, सभी कुछ उसमें समा जाता है। सांगर बन जाती है। सागर के क्या गुण हैं, सूर्य की चिलचिलाती में फिर यह अपने इसका वर्णन उन्होंने बहुत सुन्दरता पूर्वक शरीर को जलाता है क्योंकि यह खुला होता किया है अब मान लो आप सब लोग है। स्वयं को जलाकर यह बादलों का सृजन सागर बन गए हैं, अब क्या आप सागर की करता हैं जिसके कारण पूरा चक्र चलता है। समुद्र को देखें इसकी अपनी सीमाऐं है, सन्तुलन में रहना चाहिए। अपने सन्तुलन में शराब पीनी छोड़ दी थी वो फिर शराब पीने से किया है देखें। स्वयं को यदि आप देखेते रहेंगे तो धूप ना 24 जुलाई-अगस्त, 2001 78वाँ जन्मदिवस समारोह 20.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व 8 वहां के लोग यदि सहजयोग अपना लें तो न तो उस राज्य में बाढ़ आ सकती है न ही कोई समस्याऐं हो सकती हैं। हमारे देश में, आपके देश में और सभी देशों में ऐसा ही है । बादल जाकर लोगों पर वर्षा करते हैं । पुनः नदियों का रूप धारण करके ये जल समुद्र में वापिस आ जाता है समुद्र के निम्नतम स्तर पर होने के कारण हर चीज़ को इसमें आना पड़ता है। सर्वप्रथम हमें बहुत अधिक सहजयोगी अतः पूर्ण विश्वास के साथ आप बनाने पड़ेंगे और सहजयोगी भी ऐसे हों अपने निम्नतम बिन्दु पर बने रहें, जिन्हें इस बात का ज्ञान हो कि वो सहजयोगी निम्नतम बिन्दु पर । स्वयं की तुलना हैं। लोगों को इस विषय में पूर्ण विश्वस्त किसी ऐसे व्यक्ति से न करें जो जीवन होना चाहिए कि आखिरकार आप सहजयोगी में बहुत उन्नति आदि कर रहा है। हैं। क्यों नहीं मैं जो कार्य कर सकती हूँ आप आप देखें कि आप निम्नतम बिन्दु पर सब भी वह कर सकते हैं? क्यों नहीं? आप हैं। निम्नतम बिन्दु पर आप खड़े हुए सब मेरे बच्चे हैं। आप ये सब कर सकते हैं। हैं और आप हैरान होंगे की सभी कुछ परन्तु आप में विश्वास होना चाहिए कि जैसे बहकर आपके पास आ जाएगा! हर हमारी माँ हैं, बिना अहंग्रस्त हुए, हम भी वैसे चीज बहकर आपकी ओर आना चाहेगी। ही बन सकते हैं। मैंने प्रायः देखा है कि लोग स्वयं को पहचानना ही मुख्य बात है, इसका अहम् से बहुत डरते है। इसमें अहम् बिल्कुल अर्थ ये है कि आप ये जानते हैं कि आप भी नहीं है क्योंकि आप तो समुद्र सम हैं और उच्चतम हैं। आप उच्चतम इसलिए हैं क्योंकि जैसा मैंने कहा समुद्र निम्नतम बिन्दु पर खड़ा है। यह भी इसी प्रकार कार्यान्वित होता है । पूरे विश्व को प्रेम करना कितना ये बात सत्य है कि गरीबों के लिए मेरे सुन्दर है! अपनी करुणा, अपनी उदारता का हृदय में अथाह प्रेम है। ये भी सत्य है कि आनन्द लेना अत्यन्त सुन्दर हैं। किसी भी मुझमें उनके लिए कुछ करने की तीव्र इच्छा अन्य चीज से अधिक मैं अपनी उदारता का थी और इसी कारण से हमने भारत में सोलह आनन्द लेती हूँ। परन्तु उस उदारता में मैं परियोजनाऐं चालू की हैं। ये सारा कार्य जानती हूँ कि मैं कुछ नहीं कर रही। यह तो केवल इसलिए हुआ कि मैं स्वयं को रोक न केवल मेरे आनन्द विवेक की अभिव्यक्ति सकी। लोगों को सभी प्रकार के दुख और होती है। फूलों को देखकर मैं बहुत प्रसन्न तकलीफे हैं। उड़ीसा के लिए मैंने बहुत होती हूँ । इसी प्रकार किसी को कुछ देकर प्रार्थना की क्योंकि वहां पर लोग कष्ट में हैं। मुझे बहुत आनन्द मिलता है। यह आनन्द है, हमें इसका कारण खोजना चाहिए कि वहां आनन्ददायी गुण। और सभी आनन्द- इतना कष्ट क्यों है? क्या समस्या है? मैं प्रदायक गुण आपके अन्दर विद्यमान हैं, आप बताती हूँ कि उड़ीसा अत्यन्त महान राज्य उन्हें खोज सकते हैं । आपमें शन्ति प्रदायी है। मैं वहां गई भी हूँ। वहां पर अभी भी गुण भी है। आपमें अनन्त शान्ति है। और लोगों में आत्मविश्वास का पूर्ण अभाव है। यदि ये शान्ति आपमे स्थापित हो गई तो इसे हैं। आप निम्नतम बिन्दु पर खड़े हुए जुलाई-अगस्त, 2001 25 78वाँ जन्मदिवस समारोह 20.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व ৪ आप वातावरण में, लोगों में और सभी चीजों मुझे कुछ देना चाहते हैं तो मुझे इतना भर में प्रसारित कर सकते हैं परन्तु यदि आपमें दे दें कि आप अपना विश्वास दर्शाएं क्रोध और गुस्सा आदि है तो ये कार्यान्वित और इसे कार्यान्वित करें। आप जो भी हैं, नहीं होगी तो आप को चाहिए कि स्वयं को आपको वातावरण को या किसी अन्य देखें, अपना अवलोकन करें, ध्यान धारणा चीज़ को बदलने की कोई आवश्यकता करें और खोज निकालें कि मुझमें क्या कमी नहीं है। जहां भी आप हैं. ईमानदारी से, है? यह इतनी महान शक्ति है और मैं सोचती निष्ठापूर्वक और विनम्र स्वभाव से वास्तव हूँ कि ये मेरे सम्मुख बैठी हुई है। ये विश्व के में बहुत सा कार्य कर सकते हैं। हर देश सभी मिथकों को निर्मूल सिद्ध कर देगी। मैं में और पूरे विश्व में आप यह कार्य कर ये बात जानती हूँ। परन्तु मैं ये नहीं जानती सकते हैं यह मेरी सबसे बड़ी इच्छा है। कि किस प्रकार उनमें ये चिंगारी भड़काई मैं सोचती हूँ कि मैं इच्छा विहीन व्यक्ति जाए, क्या किया जाए और कैसे लोगों को हूँ। आप लोग मेरी सूक्ष्म इच्छा को फलीभूत बताया जाए? करेंगे कि हमें पूरे विश्व को परिवर्तित करना चाहिए । अब मैं बार-बार आपको बता रही हूँ कि इस जन्मदिवस पर यदि आप वास्तव में परमात्मा आपको धन्य करें। जुलाई-अगस्त, 2001 26 श्री महादेव पूजा 25 फरवरी 2001, पुणे आज हम यहाँ महाशिवरात्रि मनाने के लिए आए हुए हैं। श्री महादेव के विषय में समझना हम सबके लिए महान सौभाग्य की बात हैं। आल्म-साक्षात्कार प्राप्त करने से पूर्व आप श्री महादेव के महान व्यक्तित्व, महान चरित्र एवं महान शक्ति के विषय में नहीं जान सकते। बिना विनम्र हुए उनकी महानता अचानक आ जाता है क्योंकि वे पंचतत्वों की गहनता तक पहुँच पाना या उसे समझ के स्वामी हैं। वे सभी तत्वों के शासक हैं। पाना सुगम नहीं है श्री महादेव के चरण वे पृथ्वी माँ के शासक हैं तथा अन्य तत्वों कमलों तक पहुँचने के लिए हमें अत्यन्त विनम्र होना होगा। आपने अनुभव किया है माध्यम से वे शासन करते हैं। वे शासक हैं कि इस महान व्यक्तित्व (देवता) के चरण और जिस चीज़ में भी उन्हें कोई गड़बड़ कमलों तक पहुँचने के लिए व्यक्ति को दिखाई देती हैं वे उसे नष्ट कर सकते हैं । सहस्रार से भी ऊपर जाना पड़ता है। वे मैं आपको बताना चाहती हूँ कि भूकम्प हमसे बहुत ऊपर हैं. हमारी परिकल्पना प्रबन्धन कार्य उन्हीं का है मेरा नहीं । विनाश (Conception) बुद्धि की पहुँच से भी बहुत कार्यों में मेरी कोई भूमिका नहीं है। वे ही ऊँचे हैं। परन्तु आत्मा के रूप में उनका देखते हैं कि पृथ्वी पर क्या हो रहा है और निवास हमारे हृदय में है और जब हमें मानव के साथ क्या घटित हो रहा है। मैं आत्म-साक्षात्कार प्राप्त होता है तो वे हममें आपको गुजरात का उदाहरण दूंगी। सभी बहुत स्पष्ट प्रतिबिम्बित होते हैं। फिर भी चीजों के बावजूद गुजरात के लोग अत्यन्त व्यक्ति को उनकी शक्तियों को समझना धन लोलुप हैं। हर समय वे शेयर बाज़ार आवश्यक है। थोड़़े से शब्दों में इस महान हर समय पैसा, देवता का वर्णन कर पाना सुगम नहीं है। पैसा, पैंसा, पैसा, पैसा विदेशों में होते उनकी शक्ति 'क्षमा है वे क्षमा करते हैं। एक सीमा अपराधों को, हमारी विध्वंसक गतिविधियों को और अन्य लोगों के लिए समस्याएं उत्पन्न करने वाले मस्तिष्क को वेक्षमा करते हैं । परन्तु विध्वंस उनकी महानतम शक्ति हैं प्रथाम तक हमारे । उनका प्रको प पर भी उनकी कारणात्मकता के प्रभाव के के बारे में चिंतित रहते हैं । हुए 27 जुलाई-अगस्त, 2001 श्री० चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 7 व श्री महादेव पूजा, 25.2.2001 भी वे अत्यन्त धन लोलुप हैं। कभी-कभी गिरिजाघरों के शिखर नष्ट कर डाले । बहुत तो मुझे आश्चर्य होता है कि उनसे सहजयोग से पादरियों के घर उजड़ गए । तूफान की बात करना असम्भव है। बनावटी चीज़ें, आगे बढ़ता हुआ एक स्थान पर पहुँचा तथाकथित कुगुरु आदि लोग उन्हें पसन्द जहाँ मैंने एक बहुत बड़ा किला खरीदा हैं। मैं नहीं जानती कि उनमें ये दुर्गुण कहाँ था इस किले के किनारे पर पहुँचते ही से आया। खैर जो भी हो। गुजरात में तूफान रुक गया। भावनगर नामक एक शहर है। भावनगर के लोग मेरे पास आए और चैतन्यित करवाने के लिए पादुका साथ लेकर आए। मैं हैरान कार्य नहीं है। परन्तु श्री महादेव तो ऐसा थी। मुझे प्रसन्नता हुई कि कम से कम ही करते हैं। यद्यपि वे अत्यन्त क्षमाशील हैं. कुछ लोग तो सहजयोग के विषय में सोच अत्यन्त करुणामय हैं, अत्यन्त आनन्द दाता रहे हैं। उन्होंने भावनगर में तथा बड़ौदा में हैं फिर भी आपको उनकी शक्तितयों के भी पूजा तथा हवन किया। इन दोनों स्थानों प्रति सावधान रहना चाहिए । उनकी सारी को भूकम्प ने छुआ तक नहीं-छुआ तक शक्तियाँ मेरी सृष्टि की रक्षा करने के लिए नहीं। क्या आप इसकी कल्पना कर सकते उपयोग होती हैं। इसके लिए वे किसी भी हैं? सूरत, जो कि बहुत दूर है, का तहस- सीमा तक चले जाते हैं और दशाते हैं कि नहस हो गया। वहाँ पर बहुत कम आध्यात्मिकता के कार्य में बाधा नहीं डालनी सहजयोगी हैं। सभी की रक्षा हुई और चाहिए। आध्यात्मिकता सच्ची होनी चाहिए। उनके घरों को भी कोई हानि नहीं पहुँची। ऐसा नहीं होना चाहिए जैसे कोई कुगुरु सर्वशक्तिमान परमात्मा के कोप से भी आपकी आकर जादुई करतब दिखाए या बहुत पुरानी माँ सुरक्षा प्रदान करती हैं। व्यक्ति को ये कहानियाँ सुनाए। आपमें यदि सच्ची बात भली-भांति समझ लेनी चाहिए कि आध्यात्मिकता है तो सदैव आपको सुरक्षा सभी पंच-तत्वों पर उनकी सत्ता है। मैं प्राप्त होगी और श्री शिव आपको आशीष फ्रांस गई वहाँ पर कुछ लोगों ने मुझे प्रदान करेंगे। वे महान कृपा-सिन्धु ैं सताने का प्रयत्न किया तथा सारे समाचार और आपको इतने वरदान दे सकते हैं पत्र मेरे पीछे पड़ गए। दूरदर्शन में तथा जिनकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते। सर्वत्र वे मेरे विरुद्ध उल्टी-सीधी बातें कर वे अत्यन्त क्षमाशील हैं। कहना चाहिए कि रहे थे मैं जानती थी कि कोई देवी प्रकोप वे क्षमा के स्रोत हैं आपके हृदय में यदि आने वाला है। अचानक समुद्र से एक क्षमा हो तभी वे आपके हृदय में निवास भयानक तूफान उठा। अचानक, कोई नहीं करते हैं। क्षमाशीलता के बिना आपमें जानता कि ये कहाँ से आया, और इसमें दो अत्यन्त असाध्य रोग विकसित होने समुद्री जहाज पूरी तरह से डूब गए तथा लगते हैं। आप यदि क्षमाशील नहीं हैं तो जो लोग इसे बचाने के लिए गए उन्हें आपका हृदय बहुत तेजी से चलता है कोई कैंसर रोग हो गया! ये तूफान पूरी शक्ति इसे छू नहीं सकता। आपको हृदयाघात से आगे बढ़ने लगा और वहाँ के सभी नहीं हो सकता, परन्तु यदि आप अवांछित मैं आपको बताना चाहूंगी यह मेरा जुलाई-अगस्त, 2001 28 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 श्री महादेव पूजा, 25.2.2001 रूप से सहिष्णु हैं और परमात्मा को कर्त्ता भाव के कारण, अपने किए कुकर्मों इस तरह का स्वभाव बिल्कुल मूर्खता पूर्ण का कष्ट भुगतते रहते है तो आपके हृदय है क्योंकि इस प्रकार के व्यक्ति को हृदय का आकार बढ़ने लगता है (Enlargement शूल की पूर्ण सम्भावना होती है। डरने की of Heart)। तो एक पक्ष ये है कि आपका क्या बात है? आप यदि सहजयोगी या हृदय अत्यन्त आक्रामक होकर हिटलर के सहजयोगिनी हैं तो आपको किसी भी चीज हृदय की तरह से हो जाता है। किसी भी से नहीं डरना । लोग चूहों से डरते हैं फिर बहाने से यदि आप किसी को कष्ट देने बड़ी ही शेखी में ये बातें करते हैं। उनका लगते हैं तो आपका हृदय कठोर हो जाता हृदय दिनोंदिन दुर्बल हो रहा है मैं ये भी है और तब आपको जानलेवा हृदयाघात हो कहूंगी कि भारतीय पुरुष इसके लिए सकता है तथा सभी प्रकार के कष्ट हो जिम्मेदार हैं। क्योंकि वे महिलाओं से सकते हैं। यह बात अटल हैं परन्तु मान पिछलग्गुओं की तरह से व्यवहार करते हैं। लो कि आप अवांछित रूप से सहिष्णु हैं मानों वे उन पर बोझ हों। मेरी समझ में और सभी ज्यादतियों को सहते चले जाते नहीं आता कि वे उन्हें क्या बनाना चाहते हैं, दब्बू हैं, डरपोक हैं, तो अपने डरपोक हैं। उनका व्यवहार इतना बुरा है कि इस पुने के कारण आपको एक अन्य प्रकार का हृदयरोग हो सकता है जिसे हृदयशूल कहते भारत में तो मैंने विशेष रूप से देखा है कि हैं। इसमें हृदय को बहुत कम रक्त की महिलाओं को महत्व नहीं दिया जाता। मात्रा पहुँचती है। आपमें दोष भाव (Sense महिला को घर में लाकर नौकरानी की of Guilt) पनप उठता है और आपका जीवन तरह से रखा जाता है। हर समय उसे मध्यम दर्ज (Mediocre) का बनकर रह घूँघट में रहना होता है। बिना इजाज़त के जाता है। स्वयं को अत्यन्त सहिष्णु मानने वो कहीं बाहर नहीं जा सकती. कितनी वाले लोगों के साथ यह कठिनाई होतीं है भयानक बात है? कुछ लोग कहते हैं कि ये जो कि बहुत ही दयनीय है। मेरा कहने सब मुसलमानों के प्रभाव के कारण हुआ। का ये अभिप्राय है कि आध्यात्मिकता के कारण सहनशीलता तो ठीक है परन्तु किसी चीज़ के भय के कारण में विश्वास करते हैं तो आपको इस प्रकार उत्पन्न हुई सहिष्णुता ठीक नहीं है । के मूर्खतापूर्ण नियमों के अनुसार नहीं चलना आप यदि सहजयोगी हैं तो किसी भी चाहिए। यही कारण है कि मुझे लगता है चीज़ से डरना आपका कार्य नहीं है। कि भारत में महिलाओं का उद्घार होना भारत में लोग हर चीज़ से डर जाते हैं। आवश्यक है। वे बहुत अच्छी हैं, अत्यन्त किसी गिलहरी को देख लें तो डर जाते है, सहिष्णु हैं, बहुत मधुर हैं फिर भी उन्हें छिपकली को देख लें तो घबरा जातें हैं। बड़ी-बड़ी भयानक बीमारियाँ. सभी प्रकार कहने का अभिप्राय ये है कि वो हर चीज़ के मानसिक रोग हो जाते हैं क्योंकि वे से डर जाते हैं। भारत की महिलाएं तो अपना मूल्य नहीं जानतीं, अपने आत्म सम्मान तिलच्टों (Cockroaches) से भी डरती हैं। भुलाकर पर विश्वास नहीं किया जा सकता। उत्तरी आप जब शाश्वत, आध्यात्मिक जीवन 29 जुलाई-अगस्त, 2001 श्री महादेव पूजा, 25.2.2001 चैतन्य लहरी खं-XIII अंक 7 व 8 को नहीं जानतीं। इस विषय पर मैं पहले है परन्तु यदि व्यक्ति आक्रामक बनने का भी विस्तार पूर्वक बता चुकी हूँ| पुरूषों को प्रयत्न करेगा तो वे उसे नष्ट भी कर देंगे। इस प्रकार व्यवहार क्यों करना चाहिए? मेरे कभी-कभी वे फाँसी लगाने के लिए व्यक्ति विचार से हमारे देश में 70 प्रतिशत महिलाएं को लम्बी रस्सी दे देते हैं और लोग सोचते हैं और उत्तरी भारत में इस 70 प्रतिशत हैं कि हम ठीक हैं, हमने श्री महादेव को जनसंख्या की शक्ति बरबाद हो रही है। प्रसन्न कर दिया है! मेरी समझ में नहीं आता वो स्वयं को समझते क्या हैं? महिलाओं को दण्डित किया जाता है। ऐसे देश कभी वैभव सम्पन्न नहीं हो देशों में महिलाएं पुरुषों पर बहुत हावी हैं। सकते क्योंकि महिलाएं लक्ष्मियों होती हैं। अत्यन्त आश्चर्य की बात है! मैं नहीं समझ परन्तु उन्हें भी लक्ष्मी सम होना होगा। पाती कि उन्होंने किस प्रकार स्थिति को लक्ष्मी जी की तरह से आचरण करना होगा। सम्भाला, परन्तु हर समय वे पुरुषो पर उनमें से महिलाएं ऐसी होती है कि हावी रहती हैं और पुरुषों को उनके अंगूठे आपको सदमा लगता है। वे कैसे महिलाएं के नीचे दबा रहना पड़ता है मैं नहीं हो सकती हैं? वे तो राक्षसियों की तरह से जानती कि वे ऐसा किस प्रकार कर पाई, दिखाई देती हैं समाज के अन्दर के इस परन्तु उन्होंने ऐसा किया! के न तो विनम्र प्रकार के असन्तुलन को श्री महादेव दण्डित हैं और न ही प्रेममय। एक के बाद एक करते हैं। वे अत्यन्त करुणामय हैं और दीन-दुखियों की देखभाल करते हैं। सताने प्रेम का उनमें पूर्ण अभाव है। वे नहीं जानती वाले लोगों को वे दण्ड देते हैं। आक्रामक कि प्रेम होता क्या है? परन्तु भारत में मैंने लोगों को नष्ट करना और सताए गए लोगों देखा है कि पूरुषों को प्रेम का ज्ञान नहीं की सहायता करना उनका एक गुण है। वे है। वे अपनी पत्नियों, अपनी जीवन संगिनियों कुण्डलिनी की बात नहीं करते. वे से प्रेम करना नहीं जानते। वे नहीं जानते आत्मसाक्षात्कार की बात नहीं करते। वे तो कि उनका सम्मान किस प्रकार किया जाना इतनी कठोरतापूर्वक दण्ड देते हैं कि व्यक्ति चाहिए। परिणामस्वरूप महादेव का प्रकोप स्तब्ध रह जाता है। कभी-कभी वो लोगों आता है और नाना विध भयंकर रोगों का को घोर कष्टों से मुक्त अपनी आयु से पूर्व ही मृत्यु को प्राप्त होते समस्याएं खड़ी कर देता है। विनम्र लोगों हैं। इन सारी चीजों का व्यक्ति को उचित के विरुद्ध भिन्न प्रकार के अत्याचार करने रूप से अवलोकन करना चाहिए। निःसन्देह के लिए भी समाज ही उत्तरदायी है । श्री महादेव रक्षा करने के लिए हैं परन्तु उससे भी कहीं अधिक वो नष्ट करने के लिए हैं। वे सभी पशुपक्षियों और प्रकृति की चाहिए कि यदि वह आक्रामक है तो श्री रक्षा करते हैं। वे ही पूर्ण आनन्द, आध्यात्मिकता का पूर्ण आनन्द प्रदान करते यदि अपने नौकर के प्रति क्रूर हैं या किसी इसके विपरीत, मैंने देखा है, पश्चिमी कुछ पति को वो तलाक देती चली जाती हैं। करते हैं । ये लोग सृजन करता है तथा ऐसे पुरुषों के लिए दोनों ही प्रकार से व्यक्ति को समझना महादेव की तीसरी औँंख उस पर है। आप जुलाई-अगस्त, 2001 30 श्री महादेव पूजा, 25.2.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIlf अंक 7 व 8 अधीनस्थ के प्रति आक्रामक हैं, या अपने प्राप्त नहीं हो सकता । जीवन में वो बच्चों के प्रति आक्रामक हैं तो याद रखना कोई उपलब्धि प्राप्त नहीं कर सकते जीवन में हमें क्या प्राप्त करना है पद, चाहिए कि प्रलयंकर महादेव आपको देख रहे हैं और उनका प्रकोप आप पर पड़ वैभव तथा भौतिक पदार्थ नहीं। आपको तो सकता हैं। वे मानव को अत्यन्त सुन्दर एवं प्रेममय हृदय प्राप्त करना है, एक ऐसा हृदय श्रेष्ठ बनाते हैं और चाहते हैं कि लोग जिससे आप प्रेम कर सकते हों। आपके हृदय परस्पर प्रेम करें। मानव में परस्पर प्रेम हो। में यदि श्री शिव का निवास है तो आप सभी अन्य लोगों के प्रति आपके आचरण को से अत्यन्त सुन्दरता पूर्वक प्रेम कर सकेंगे। वे अत्यन्त मधुर एवं कोमल बनाते हैं। आपके प्रेम के विषय में आपके मन में मूर्खतापूर्ण विचार व्यवहार में यदि कोमलता एवं माधुर्य का नहीं होंगे. केवल पावन प्रेम होगा सभी लोगों अभाव है तो आप गलत दिशा में जा के लिए शुद्ध प्रेम का होना एक वरदान है। इस अवस्था में व्यक्ति की सारी कठोरता समाप्त हो जाती है। उदाहरण के रूप में आपके उनका महानतम गुण ये है कि वे पास यदि थोड़ी सी भी शक्ति है तो आप उसका आपको ऊँचाई एवं गहनता प्रदान करते दुरुपयोग करने लगते हैं श्री शिव को देखें हैं। आप यदि उनकी पूजा करते है तो उनमें असंख्य शक्तियां हैं। इन शक्तियों का आप उस बुलन्दी तक पहुँच जाते हैं यदि वे दुरुपयोग करने लगें तो पृथ्वी पर घास जहाँ से संसार को साक्षी रूप में देखते का एक पत्ता भी शेष न बचेगा। हम कितने हैं। साक्षी स्वरूप में साक्षी होकर वे पूरे पापी और स्वार्थी हैं वे सब जानते हैं। फिर भी विश्व को देखते हैं। यही कारण है कि वे वे हमें अवसर प्रदान करते हैं कि किसी प्रकार "ज्ञान' हैं वे शुद्ध विद्या' हैं। चाहे आपको हम सुधर जाएं। वे अत्यन्त उदार हैं, अत्यन्त उदार। वे अत्यन्त क्षमाशील हैं और अत्यन्त हाथों पर दिव्य शीतल लहरियाँ महसूस उदार | मान लो रेगिस्तान में रहने वाले लोग कर लें, परन्तु क्या आपके पास ज्ञान है? बहुत अच्छे हैं और मरुस्थल में रहने के कारण मुझे आपको ये बताना पड़ता है कि कौन कष्ट उठा रहे हैं तो वे उनके लिए मरुद्यान सी उंगली का अर्थ क्या हैं? कौन से हाथ (Oasis) की सृष्टि कर देंगे। पृथ्वी माँ को भी का अर्थ क्या है? दिव्य चैतन्य लहरियों का वही नियंत्रित करते हैं। लोग यदि अर्थ क्या है? मैं आपको बताना चाहूंगी कि आध्यात्मिक हैं और उनकी पूजा करते हैं तो श्री महादेव ही वह ज्ञान हैं, वे ही शुद्ध उन्हें प्रसन्न करने के लिए वे सभी कुछ कर विद्या हैं, उच्चतम स्तर के पूर्ण ज्ञान। वही सकते हैं। परन्तु मानव इतना मूर्ख है कि परमात्मा के नाम पर लड़े चले जाता है। दक्षिण हैं उन्हें शुद्ध विद्या प्राप्त नहीं हो सकती, में दो प्रकार के लोग है-एक जो शिव को जो अहंकारी हैं अन्य लोगों से कोमलता, पूजते है, दूसरे जो विष्णु के पुजारी हैं। क्या आप इस बात की कल्पना कर सकते हैं कि करते उन्हें श्री महादेव का आशीर्वाद श्री विष्णु श्री शिव की पूजा किया करते थे ? न रहे हैं। आत्मसाक्षात्कार मिल जाए, चाहे आप अपने ज्ञान के स्रोत हैं। जो लोग विनम्र नहीं मधुरता एव सुन्दरतापूर्वक आचरण नहीं जुलाई-अगस्त, 2001 31 श्री महादेव पूजा, 25.2.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 ब 8 कोई ऊँचा है न कोई नीचा। ये बात महत्वपूर्ण शिव का आशीष प्राप्त करने के लिए व्यक्ति है। परन्तु लोग इसी बात को लेकर लड़ते को अत्यन्त प्रेममय होना आवश्यक है। ऐसा रहते हैं कि वे शिव के पुजारी हैं या विष्णु के। व्यक्ति चाहे बहुत अधिक चतुर चालाक न वे सत्य के समीप भी नहीं पहुँचे । सत्य को वो हो, चाहे बहुत अबोध हो और होना भी जान ही नहीं पाए। लड़ते ही रहे, लड़ते ही चाहिए क्योंकि जब आप किसी से प्रेम रहे। परमात्मा के नाम पर लड़ने वाले लोगों करते हैं तो उसकी सहायता करना चाहते पर शिव का प्रकोप होता है और अपने हैं मैंने स्वयं बहुत कष्ट उठाए हैं । मैंने त्रिशूल से वे उन पर वार करते हैं। लोगों की सहायता करने का प्रयत्न किया परन्तु उन्होंने मुझे धोखा दिया। तो क्या परमात्मा के नाम पर आपको लड़ना हुआ? ये उनका स्वभाव है, और वे नष्ट हो नहीं है, प्रेम करना है और समझना है। गए। मैं क्या कर सकती हूँ? मैंने तो उनसे परमात्मा के नाम पर लड़ाई झगड़ा मूर्खता नहीं कहा था कि मुझे धोखा दें., फिर भी है। केवल इतना ही नहीं, ये बहुत भयानक उन्होंने मुझे धोखा दिया! मेरी समझ में भी है। ऐसा करने वाले सभी लोग नष्ट हो नहीं आता क्यों? मैं तो अत्यन्त करुणामय जाएंगे। यह आत्मधातक है। ऐसे लोग पूर्णतः एवं प्रेममय थी फिर भी उन्होंने मुझे धोखा नष्ट हो जाएंगे। परमात्मा के नाम पर आपको दिया| ऐसा करने का परिणाम विनाश होता केवल प्रेम करना है। मूर्खता को सहन है, इसका मैं क्या कर सकती हूँ? मैं नहीं करने की कोई आवश्यकता नहीं है। आपको चाहती कि कोई नष्ट हो, मैं अपनी इस लोगों से प्रेम करना है और अपने प्रेम का सृष्टि को प्रेम करती हूँ । परन्तु यदि वे प्रसार करना है। शनैः-शनैः ये प्रेम पूरे विध्वंसक हों तो मेरे पास उनकी रक्षा करने विश्व में पहुँच जाएगा और मैं देख सकती का कोई रास्ता नहीं है। एक अन्य शक्ति हूँ कि मेरा स्वप्न साकार हो जाएगा। परन्तु है जो उन्हें नष्ट कर सकती है कभी-कभी यदि आपसी लड़ाई, घृणा, सभी प्रकार की मैं बिल्कुल मजबूर होती हूँ। मैं नहीं जानती आक्रामकता है तो ये सारी चीजें शिव कि किस प्रकार मैं अपनी बात कहूँ, परन्तु विरोधी है । ऐसे लोग नष्ट हो जाएंगे। व्यक्ति को समझना चाहिए कि सहजयोगी उनका मैं क्या करूंगी? वे यदि नष्ट हो के रूप में श्री शिव के आशीर्वाद को प्राप्त गए तो मैं क्या कर सकती हूँ? वे यदि धन करके आप अत्यन्त प्रेममय, उदार, अत्यन्त लोलुप हैं, बहुत अधिक भौतिकतावादी लोग मधुर तथा बच्चों की तरह अबोध बन हैं, तो वे प्रेम नहीं कर सकते। वे केवल जाते हैं। धन के लिए ही किसी को प्रेम करते हैं। ऐसे सभी लोग नष्ट हो जाएंगे। इसमें कोई सन्देह नहीं है । आपको अबोध बनना होगा। चतुर चालाक बनने की कोई आवश्यकता नहीं है। आप हैरान होंगे कि किस व्यक्ति को न केवल विनम्र होना चाहिए प्रकार आप की अबोधिता की रक्षा होती श्री है ! आप यदि अबोध हैं तो चिन्ता की बल्कि उसे प्रेममय भी होना चाहिए। जुलाई-अगस्त, 2001 32 श्री महादेव पूजा, 25.2.2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 कोई बात नहीं हैं एक अन्य शक्ति-श्री वे प्रतीक्षा करते हैं और उसके बाद पूरा शिव की तीसरी आँख- आपकी देखभाल परिवार खाता है बाकी के पशु को वहीं कर रही है। जहाँ भी आप जाते हैं ये छोड़ दिया जाता है। तत्पश्चात् सामर्थ्य आपके साथ होती है। इसका अर्थ ये अनुसार सभी पशु आते हैं और प्रसाद के नहीं है कि आप मूर्ख बन जाएं या रूप में इसे खाते हैं। सबसे बाद में कौए व्यवहारिकता को त्याग दें। श्री शिव इस पशु को खाते हैं। इतना अनुशासन, की शक्ति, उनका पथ प्रदर्शन, उनका मर्यादाओं की इतनी सूझ-बूझ! मैं हैरान हूँ प्रेम, उनकी करुणा, यह व्यवहारिक पक्ष कि किस प्रकार श्री शिव पशुओं को नियन्त्रित संभाल लेती है। इसका अनुभव आप करते हैं! हम कभी नहीं सुनते कि पशुओं जीवन के हर कदम पर करेंगे। परन्तु की सर्वप्रथम अपने कदमों (गतिविधियों) को ये कभी नहीं सुनने को मिलता कि पशु हड़ताल है या उनका कोई माफिया है । देखें। क्या आप आक्रामक हैं? क्या आप चोरी करते हैं। परन्तु आप कल्पना कीजिए कष्टकर हैं, आप कटु शब्द बोलते हैं या कि पशु अवस्था से आने के पश्चात् भी विनम्र हैं? क्या आप भद्र हैं। आप यदि मनुष्य उससे कहीं पतित है! हमारे अन्दर करुणामय हैं तो श्री शिव बहुत प्रसन्न होते यदि लड़ाई झगड़े का आचरण करने हैं प्रकृति में उनका साम्राज्य है। वे और के मूर्ख विचार हैं तो किस प्रकार हमारा प्रकृति की चीजें अत्यन्त सुव्यवस्थित हैं उत्थान होगा? ज़रा-ज़रा सी बात पर और अत्यन्त सूझ-बूझ से एक दूसरे के लोग लड़ने लगते हैं। पशु भी परस्पर थोड़ा साथ रहती हैं। उदाहरण के रूप में आप बहुत लड़ते हैं परन्तु वे दल बनाकर नहीं जंगल में जाते हैं और वहाँ यदि बिल्कुल लड़ते। वे दल बनाकर नहीं लड़ते जिस सन्नाटा है, पक्षियों की चहचहाहट भी नहीं प्रकार हम करते हैं। जरा सा मौका मिलते है तो आपको समझ जाना चाहिए कि वहाँ ही हम दल बना लेते हैं और लड़ने लगते पर कोई शेर बैठा हुआ है शेर क्योंकि हैं। पशु भी झुण्ड बनाते हैं परन्तु लड़ते राजा है, सभी अन्य प्राणी जानते हैं कि नहीं। उनमें ऐसी क्या बात है? पशु हर उन्हें उनकी आज्ञा में रहना है। और राजा चीज़ को बहुत अच्छी तरह से समझते हैं के सम्मुख मर्यादा क्या है, स्वतः ही वे जान तो क्यों न हम भी प्रकृति के नियमों को जाते हैं कि राजा के सम्मुख मर्यादा क्या समझें? है। शेर की उपस्थिति में कोई हिलता तक नहीं। शान से वह बैठता है अपनी शान से वह बैठता है। एक सप्ताह या पन्द्रह प्रकृति के सभी नियमों का पालन होना दिनों के बाद वह एक पशु का शिकार चाहिए। पृथ्वी माँ, आकाश तथा अन्य सभी करता है। उसे खाना खाना होता है। वह तत्वों की देखभाल भी वही करते हैं। हमारे किसी एक पशु को मारता है तथा शेर तथा लिए वे छोटे-छोटे बहुत उसका परिवार सबसे पहले खाता है। शिकार करते हैं। ऋतु परिवर्तन के साथ वे सुन्दर करने के पश्चात् उसका रक्त रिसने तक फूलों की सृष्टि करते हैं। सभी सुखकर, श्री महादेव इस बात को देखते हैं कि से सुन्दर कार्य 33 जुलाई-अगस्त, 2001 श्री महादेव पूजा, 25.2.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व 8 आनन्ददायी चीजों की सृष्टि वे ही करते हैं पत्नियों को प्रेम करते हैं। हो सकता है यह और उनकी देखभाल भी वे ही करते हैं। तलाक का भय हो। प्रेम में भय नहीं प्रकृति की सभी सुन्दर चीजें वे हमें देते हैं होना चाहिए। प्रेम तो हृदय से होना और हमें प्रसन्न करने और अबोध बालक चाहिए । बिना किसी भय के, बिना किसी की तरह से हमारा मनोरंजन करने का आक्रामकता के पावन प्रेम का आनन्द प्रयत्न करते हैं। परन्तु अपनी हेकड़ी में हर लें। परन्तु आज मनुष्यों में इसी का अभाव चीज के प्रति हमारी प्रतिक्रियाएं होती हैं । है जिस दिन मनुष्य प्रेम के सौदन्य को किसी कालीन को जब आप देखते हैं तो समझ लेगा उस दिन हम पर स्वर्ग से वह दिन अत्यन्त महान में विशेष रूप से ऐसा कहना आम बात है होगा जब महादेव अपनी तीसरी आँख को कि 'यह मुझे पसन्द नहीं है। किसी चीज़ बन्द कर लेंगे और उनके हृदय में पूर्ण को न पसन्द करने वाले आप कौन होते शान्ति होगी। यह मेरा स्वप्न है। आप कितनी है? आप अपने आप को क्या समझते हैं? ये शान्ति से बातचीत कर सकते हैं, इस चीज़ या मुझे को देखना आपका भविष्य है। कितनी पसन्द है अत्यन्त निर्लज्जता की बात है। मधुरता पूर्वक आप अन्य लोगों को प्रेम यह असम्भव है। मेरी समझ में नहीं आता करते हैं, अन्य लोगों को कितना कुछ देते कि ऐसे लोग कहाँ जाएंगे, उनका क्या हैं? उदाहरण के रूप में यदि किसी अन्य होगा? किसी चीज़ की प्रशंसा करने, हर को कुछ देना हो तो लोग बाज़ार जाकर चीज़ का आनन्द लेने की अपेक्षा उसकी सस्ती से सस्ती सड़ी हुई चीज ले आएंगे। आलोचना और उसके प्रति प्रतिक्रिया क्यों ये कोई तरीका नहीं है। प्रेमपूर्वक कोई भी करनी है? पाश्चात्य देशों में प्रतिक्रिया बहुत छोटा या बड़ा उपहार, जो भी आप किसी की जाती है। भारत में इतनी नहीं। सम्भवतः के लिए लाएं उससे आपका प्रेम झलके, सांस्कृतिक भिन्नता के कारण । यहाँ पर आपकी धन शक्ति नहीं । आजकल भारत भारत में यदि लोग ऐसा कहें तो उन्हें में भी आम बात है कि लोग अपने वैभव और अपनी वेशभूषा का प्रदर्शन करते हैं। किसलिए? मैंने ऐसे लोग देखे हैं जिनके अतः यह बात महत्वपूर्ण है कि किस मृत शरीर को उठाने के लिए चार लोग भी प्रकार आप अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करें । नहीं होते परन्तु अपने जीवन में वे स्वयं को यह कार्य अपनी पत्नी से आरम्भ करें। बहुत बड़ी चीज़ मानते हैं उस समय आपको अपने बच्चों तथा अन्य लोगों तक इसे ले देखना चाहिए कि उस व्यक्ति को प्रेम जाएं। कभी कभी हम इतने मूर्ख होते हैं कि करने वाले उसकी फिक्र करने वाले कितने सारे संसार को प्रेम करते हैं परन्तु अपनी लोग हैं हो सकता है कि परवरिश इसका पत्नियों को प्रेम नहीं कर सकते। भारत में कारण हो। हो सकता है कि उसे कभी प्रेम विशेष रूप से ऐसा होता है पश्चिम में भी, प्राप्त ही न हुआ हो। किसी भी चीज को मैंने देखा है, लोग भय के कारण अपनी आप दोष दे सकते हैं। परन्तु एक सहजयोगी कहते हैं कि मुझे ये पसन्द नहीं है पश्चिम पुष्पवर्षा होगी । कहना कि 'मुझे पसन्द नहीं है पागल समझा जाएगा। 34 जुलाई-अगस्त, 2001 श्री महादेव पूजा, 25.2.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIl अक 7 व 8 को ये समझ लेना अत्यन्त आवश्यक है कि रखें कि जिस प्रकार लोग हमारी आलोचना प्रे म ही उसका जीवन है, प्रे म ही कर रहे हैं कि हम व्यवहारिक नहीं हैं, हमने आध्यात्मिकता है और कुछ भी करने के बहुत सा धन नहीं कमाया, सत्ता नहीं प्राप्त लिए बिना कोई आशा किए प्रेम करिए मैं की या अन्य चीजे, तो यह सब महत्वहीन जानती हूँ कि कुछ लोग गरीबों की सहायता हैं। इस प्रकार के लोग तो बाज़ारों में बहुत आदि करने में बहुत आगे होते हैं। परन्तु बिक रहे हैं हम उनसे भिन्न हैं । हम मानव रत्न हैं और रत्नों की तरह से ही हमें होती है। वो सोचते हैं कि ओह, "हम महान चमकना हैं। अपने अन्दर से सारी बुराइयों हैं।" हम ये कार्य कर रहे हैं, हम वो कार्य को दूर करके स्वयं को तराशना है। जिस कर रहे हैं! लेकिन यह सब वे अपने अहं प्रकार रत्न को तराशने पर ही उसकी की तुष्टि के लिए करते हैं, प्रेम के लिए सुन्दरता की अभिव्यक्ति होती है । यदि मेरे नहीं। तो जब आप कार्य करते हैं तो आपको अन्दर कोई इच्छा रही है तो वह केवल इस चीज़ की समझ होनी चाहिए कि यह इतनी कि आप श्री महादेव के गुणों का अनुसरण करने का प्रयत्न करें। वे निर्लिप्त की तुष्टि के लिए आप यह कार्य कर रहे हैं, पूर्णतया निर्लिप्त । वे अस्थियाँ आदि हैं, नाम या पद के लिए नहीं। आपका प्रेम धारण करते हैं, उन्हें चिन्ता नहीं होती कि यदि इस प्रकार से निर्लिप्त प्रेम है, विरक्त वे कहाँ रहते हैं, किसके साथ रहते हैं, प्रेम है तो आपको किसी प्रमाण पत्र की उनके पास क्या है? किसी चीज की भी आवश्यकता नहीं। आपमें यह गुण है और उन्हें चिन्ता नहीं रहती। हमें भी उतना ही निर्लिप्त होना चाहिए। परन्तु उन्हीं की तरह से प्रेममय, अत्यन्त प्रेममय होना चाहिए। मुझे खेद है कि मुझे अंग्रेजी भाषा में किस प्रकार उनका हृदय अन्य लोगों के बोलना पड़ा। सम्भवतः कुछ ऐसे लोग भी लिए प्रेम से परिपूर्ण है? किस प्रकार वे यहाँ हों जो अंग्रेजी को नहीं समझते परन्तु हमारी देख रेख करते हैं? मैं आपको चेतावनी आजकल अंग्रेजी का दबदबा है इसलिए दे रही हूँ क्योंकि आप सब मुझसे बहुत प्रेम हमें अंग्रेजी बोलनी पड़ती है। मैं कोई अन्य करते हैं। परन्तु आपको परस्पर भी प्रेम भाषा नहीं बोल सकती परन्तु व्यक्ति को करना चाहिए। आपका प्रेममय हृदय होना प्रेम की भाषा बोलनी चाहिए। पशुओं को चाहिए और अन्य लोगों को प्रेम कर देखें। घोड़ा, कुत्ता सभी पशु आपके प्रेम को आपको संतोष होना चाहिए। यह गुण आप समझते हैं। किस तरह वो आपको समझते अपने में विकसित कर सकें तो आपकी हैं! किस तरह अपने प्रेम की अभिव्यक्ति ऊँचाई बढ़ जाएगी। सहजयोग में आपकी करते हैं! वे अत्यन्त मधुर हैं और ये गुण गहनता बढ़ जाएगी। ठीक है कि देवी हमें उनसे सीखना है अन्यथा मेरी समझ आपको श्रद्धा प्रदान करती हैं परन्तु श्रद्धा में नहीं आता कि किस प्रकार लोगों को की गहनता को मैं नहीं जानती। आप क्या प्रेम का मूल्य समझाया जाए? कृपया ध्यान कहते हैं, मराठी में इसे ध्यास कहते हैं । इन सब कार्यों के पीछे प्रभुत्व की भावना अपनी आत्मा की तुष्टि के लिए है और प्रेम आप इसका आनन्द ले रहे हैं। जुलाई-अगस्त, 2001 35 श्री महादेव पूजा, 25.2.2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 उस प्रेम की गहनता, उस प्रेम का आनन्द। की ये शान्ति टूटती है तो श्री शिव स्थिति तब आपको किसी चीज़ की आवश्यकता को अपने हाथ में ले लेते हैं । अतः व्यक्ति नहीं होती। आपको क्या चाहिए? आपको को समय की, प्रकृति की तथा अन्य सभी सभी कुछ प्राप्त हो चुका है, अब आपको चीज़ों की लय का ज्ञान होना चाहिए। लोग क्या चाहिए! महादेव की महानता की तरह फूलों के नाम तक नहीं जानते! वो नहीं से। वे इतने महान हैं कि अत्यन्त निर्लिप्त 'जानते कि ये फूल कौन से हैं और कौन हैं उन्हें किस चीज़ की आवश्यकता है? सी ऋतु में यह खिलते हैं! अपने जीवन कहने का अभिप्राय है कि उनसे महान कुछ की लय का भी उन्हें ज्ञान नहीं है! किसी भी नहीं, उनसे महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं । तो को इन चीज़ों की चिन्ता नहीं है चहूँ ओर उन्हें किस चीज़ की आवश्यकता है। उन्हें यदि आप देखें तो ऋतुएं हैं तथा अन्य हैं, जैसे ये किसी चीज़ की आवश्यकता नहीं है और चीजें हैं। यह सब लयबद्ध ह यही कारण है कि वे निर्लिप्त हैं। यही तबला बजा रहा है या पखावज जिस पर निर्लिप्तता आपको अपने अन्दर विकसित ये सारी सुन्दर धुने बजा रहे हैं और सारी करनी है। परन्तु श्री महादेव सभी कलाओं, ऋतुएं परिवर्तित हो रही हैं प्रकृति समृद्ध संगीत तथा ताल के स्वामी हैं। उस दिन होती है, खिलती है और फिर उस पर आपने देखा कि ये लड़के ताल बजा रहे उतार आ जाता है। यह बात हम नहीं थे। हर चीज़ के ताल की सृष्टि श्री महादेव देखते। हम केवल अपने तक ही सीमित रहते हैं। हम कहते हैं, "आप कैसे हैं?" श्री माताजी, मुझे सिर दर्द है, मेरे पेट में तालबद्ध जीवन जो हमें प्राप्त है उसका गड़बड़ी है, मुझे ये तकलीफ है आदि-आदि । अभी हमें ज्ञान नहीं है। आप देखें कि बच्चा परन्तु दूसरा व्यक्ति कहेगा कि आह मैं नौ महीने और कुछ दिनों के पश्चात् जन्म बिल्कुल ठीक हूँ।" तो मामला क्या है? श्री लेता है। यह तालबद्धता किसकी देन है? माताजी इस विश्व को ठीक कर दीजिए. भिन्न प्रकार के पुष्प अपने-अपने समय पर आप इस विश्व को ठीक क्यों नहीं करती? निकलते हैं। प्रकृति में भिन्न ऋतुएं आती उसे अन्य लोगों की चिन्ता है अपनी नहीं । हैं। इन सारी चीज़ों को कौन लयबद्ध करता विश्व को प्रसन्न और सुन्दर बनाने के लिए है? वे स्वयं लय हैं और प्रकृति में तथा व्यक्ति को क्या करना चाहिए? इसके लिए अन्य सभी चीज़ों में उसी लय को बनाए मनुष्य को कठिन परिश्रम करना होगा। रखा जाता है। हर चीज़ में एक लय है। उसे सोचना होगा कि संसार को सुन्दर लयबद्ध व्यक्ति वही है जिसका हृदय बहुत बनाना क्या हमारा कतर्त्तव्य नहीं है? क्या विशाल है और जो सागर की तरह से है। संसार को तालबद्ध करना हमारा कार्य नहीं किसी भी क्रूर तथा बुरे व्यक्ति को देखते हैं? इस प्रकार की ताल बद्धता जिसमें ही आपके अन्दर ये ताल बिगड़ जाता है। हमारी आत्मा का संगीत हो। ये हमारा एक शांत, सुन्दर झील में तरंगे नहीं होती कर्त्तव्य है हमें ये कार्य करना होगा। केवल प्रेम होता है और जब यह लय, हृदय सहजयोग को केवल अपने लिए नहीं करते हैं। जुलाई-अगस्त, 2001 36 श्री महादेव पूजा, 25.2.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व 8 अन्य लोगों के लिए भी अपनाना होगा। कहाँ तक आप इस शक्ति के साथ हैं। हर समय केवल अपनी ही चिन्ता नहीं कहाँ तक इससे ओत-प्रोत हैं। श्री शिव करनी होगी, अन्य लोगों की भी करनी की यह लयबद्धता, आपको चैतन्य-लहरियाँ होगी। ये प्रेम है जो नैसर्गिक है जब प्रदान करती है। चैतन्य लहरियाँ तरंगों के यह प्रेम कार्य करता है तो चमत्कार रूप में बहती हैं और ये तरंगे आपको कर देता है। पूर्णतः अपने में निमग्न कर लें और आप सब इनमें समा जाए। आपका अहं भाव आज की शाम अत्यन्त सुन्दर है कि (1-ness) इसमें विलय हो जाए। यही मेरा आज हम अपनी उत्क्रान्ति के इतने महान आशीर्वाद है। स्रोत की पूजा कर रहे हैं और मुझे आशा है कि आप लोग इस बात को समझेंगे कि आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद । 37 जुलाई-अगस्त, 2001 एकादश रुद्र पूजा ৪ अक्टूबर 1988, विएना आध्यात्मिकता के इतिहास में आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है। सभी पैगम्बरों ने एकादश रुद्र अवतरण की भविष्यवाणी की। न्दोंने कहा कि एकादश अवतार आएंगे और सारी आसुरी शक्तियों तथा सारी परमात्मा विरोधी गतिविधियों को नष्ट करेगे। वारतव में एकादश तत्व की रचना भवसागर मं होती है क्योंकि जब अंतरिक्ष ! अपनी ध्यान धारणा के माध्यम स भ्रम सागर को पार करने के लिए तेयार होते हैं तो आसुरी शक्तियाँ उन्हें सताती है, कष्ट देती है, उनक भा्ग में बाधा डालती हैं तथा उनका वध करती है। ये नकारात्मक शक्तियाँ सं पौधे पशु आदि मध्य में न होने के मानवीय असफलताओं के कारण पनपीं। कारण नष्ट हों गए, क्योंकि वे अत्यन्त मनुष्य जब असफल हुआ तो उसकी दृष्टि अहकारी और चालाक थे। कुछ बहुत बड़े अपने से बेहतर लोगों पर पड़ी और उसे थे, कुछ बहुत छोटे थे। उन सबको बाहर लगा कि वह तो उन मनुष्यों के मुकाबले फेंक दिया गया और बाहर फेंक दिए जाने कहीं भी नहीं है। कई बार क्रोध एवं ईष्ष्या पर उन्हें लगा कि उन्हें अवश्य प्रतिकार के कारण उसमें दुष्ट स्वभाव जाग उठा जिसने भवसागर में परमात्मा विरोधी में चले गए और कलात्मक लोगों को हानि नकारात्मकता की सृष्टि की। इस प्रकार पहुँचाने के लिए सूक्ष्म रूप धारण करके आ भवसागर में दुष्टता को आकार प्रदान किया गए जैसे आजकल विषाणु (Viruses) हम गया। जैसा आप सहजयोग में देखते हैं, पर आक्रमण करते हैं। ये वो पौधे (तत्व) हैं बहुत बार हमने ऐसा देखा होगा, जब आप जो संचरण से बाहर चले गए थे। कुछ किसी गलत गुरु या गलत व्यक्ति के पास जाते हैं या कोई अनाधिकार पूजा करते है परिसंचरण समाप्त हो जाएगा, बहुत से तो आपका आया भवसागर पकड़ता है। नशीले पदार्थों का परिसंचरण भी समाप्त बाए भवसागर में घे सारी विध्वंसक शक्तियां हो जाएगा| ये सभी तत्व हमारे अन्दर एक कार्य करती हैं। विकास प्रक्रिया में भी बहुत प्रकार के क्रोध. विकास विरोधी एवं २० करना चाहिए। ये सभी सामूहिक अवचेतना 1 समय पश्चात् हम देखेंगे कि तम्बाकू का जुलाई-अगस्त, 2001 38 चैतन्य लहरी खंड-Xl॥ अंक 7 व 8 एकादश रुद्र पूजा, 8.10.1988 स्वतन्त्रता विरोधी शक्तियों का रूप धारण मुकाबला करने के लिए हमें नकारात्मकता कर सकते हैं। विरोधी शक्तियाँ प्राप्त होनी चाहिएं। इस के लिए यह स्थान अत्यन्त उपयुक्त पूजा अतः भवसागर क्षेत्र में इन सभी भयानक है। मैं उन सब सहजयोगियों की धन्यवादी नकारात्मक शक्तियों का उद्भव हुआ। इसी हूँ जिन्होंने एकादश रुद्र पूजा के लिए यह प्रकार बहुत से मनुष्य जिन्होंने जन्म लिया स्थान चुना। आधुनिक काल में, जैसा हम और इसी प्रकार जन्म लेकर जिन मनुष्यों देखते है, ये सारी शक्तियाँ अत्यन्त सूक्ष्म ने अपने अहंकार का बल दिखाने का प्रयत्न रूप से कार्य कर रही हैं, ऐसे तरीके से किया, जो अहंकार प्रणालियों में चले गए जिसे मानव समझ नहीं सकते और इसमें और सोचा कि वे अन्य लोगों को नियंत्रित फंसे रहते हैं। आप यदि देखें कि जिस कर सकते है तथा सभी मनुष्यों पर शासन प्रकार हमें व्यर्थ की चीजें लुभातीं हैं या कर सकते है, पूरे विश्व पर नियंत्रण स्थापित आकर्षित करती हैं, जिस प्रकार भयानक कर सकते है, ऐसे सभी लोग इतिहास में रोग हर कदम पर हमारी प्रतीक्षा कर रहे शक्तिशाली संस्थाएं बन गए। आज भी हैं, हमें लगता है कि हम उस दल दल के ऐसी सी शक्तियाँ पनप रही हैं। हर किनारे पर खड़े हैं जिसमें फॅसने के बाद बहुत क्षण ये शक्तियाँ बन रही हैं और नष्ट हो सम्भवतः हम कभी न निकल सकें, उससे रही हैं। हमारे भव सागर में ये बनती हैं कभी छुटकारा न पा सकें। अतः हमें समझना और फिर नष्ट हो जाती हैं। ये लोग यदि चाहिए कि हमारे अन्दर ऐसा क्या है जो दाई ओर से (दाएं भवसागर से) पनपते हैं प्रकृति के विकास विरोधी, उत्क्रान्ति तो हम उन्हें परा चेतन (Supra Comscious कहते हैं और जो बाई ओर से आते हैं उन्हें को सदा के लिए नष्ट कर सके। प्रकृति में अवचेतन तत्व कहते हैं। ये सभी तत्व जीवित यदि आप देखें तो हर चीज़ नियमित रूप रहते हैं क्योंकि मानव को परमात्मा के रूप से प्रसारित होती है। उदाहरण के रूप में में बनाया गया है ये तत्व सर्वशक्तिमान सर्दियों में पत्तों को झड़ना होता है क्योंकि परमात्मा के सामूहिक अवचेतन में तथा पेड़ -पौधों का पोषण करने के लिए उन उनके पराचेतन में रहते हैं । ये शक्तियाँ पत्तों की नाइट्रोजन को पृथ्वी माँ में जाना तब तक रहती हैं जब तक ये नर्क में नहीं होता है। इतना ही नहीं पृथ्वी माँ को सूर्य चली जातीं। इसी प्रकार मानव में भी ये की किरणें भी मिलनी आवश्यक हैं, इसलिए शक्तियाँ विद्यमान रहती हैं और हम पर पतझड़ होना आवश्यक है ताकि किरणें काबू पाने का प्रयत्न करती रहती हैं। ) विरोधी और सृजनात्मकता विरोधी स्वभाव पृथ्वी माँ में प्रवेश करके इसका पोषण कर सकें। पोषण प्राप्त करके पेड़ पुनः हरे-भरे बहुत अच्छी बात है कि ये पूजा हम हो उठते हैं ताकि सूर्य का प्रकाश प्राप्त आस्ट्रिया में कर रहे हैं क्योंकि विश्व के करके वे क्लोरोफिल (Chlorophyll) बना भूगोल में यूरोप भवसागर है और आस्ट्रिया सकें। पृथ्वी माँ से जल चूसकर वे इसे वह स्थान हैं जहाँ आसुरी शक्तियों का वातावरण में वाष्पित करते हैं और वर्षा के ये 39 जुलाई-अगस्त, 2001 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 7 व a एकादश रुद्र पूजा, 8.10.1988 लिए उत्प्रेरक (Catalyst) का कार्य करते हैं इस शक्ति को अपने अन्दर उन्नत | वर्षा ऋतु में वर्षा होती है, जल का होने देने के लिए सर्वप्रथम हमें अत्यन्त पोषण प्राप्त करके पुनः पेड़ों के सारे पत्ते अन्तर्दर्शी होना चाहिए। ये देखने का प्रयत्न झड़ जाते हैं और इस प्रकार अत्यन्त सुन्दरता करना चाहिए कि हमारे साथ क्या घटित पूर्वक ये सारा चक्र चलता रहता है। इसमें हो रहा है। अपनी गतिविधियों को देखना कोई विपर्यय (Reversion) नहीं है, यह तो चाहिए। क्या हम उत्क्रान्ति की ओर बढ़ एक निरन्तर चक्र है जो सृजन और पुनः रहे हैं या विनाश की ओर? हम क्या कर सृजन करने के लिए सुन्दर ढंग से चलता रहे हैं? हमारे अन्तःस्थित एकादश रुद्र शक्ति रहता है। परन्तु मानव के हस्तक्षेप से प्रकृति इतनी शक्तिशाली है, इतनी शक्तिशाली है गड़बड़ा जाती है। प्रकृति को हम समृद्ध भी कि यह न केवल प्रकृति में बल्कि मानव में कर सकते हैं आप प्राकृतिक तरीकों से भी कार्य करती है। इस प्रकार से ये कार्य प्रकृति को विनाश से बचा सकते हैं। परन्तु करती है कि आप स्तब्ध रह जाते हैं, आश्चर्य जब आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाता चकित हो जाते हैं । जिस सज्जन को मैंने है तो अपनी चैतन्य लहरियों से आप उन आत्मसाक्षात्कार दिया है वह अत्यन्त समर्पित सभी प्रकृतिक चीज़ों की रक्षा कर सकते हैं हैं परन्तु वह उस अवस्था में नहीं है जहाँ जो आधुनिकता के दुष्प्रभाव के कारण सड़ वह सहजयोग में आ सके। कुछ लोगों ने रही हैं। उसे बहुत कष्ट देने का प्रयत्न किया और उसने मुझे बताया कि वे सब दुर्घटना के अतः सर्वप्रथम हम आत्मसाक्षात्कार शिकार हो गए और अस्पताल में पड़े हैं। का प्रभाव देखते हैं कि किस प्रकार यह मैंने कहा मैंने तो कुछ नहीं किया, अपने ही एकादश रुद्र के रूप में कार्य करता है। कारनामों से उन्होंने सारी सीमाएं लाँधीं इस रूप में ये उन सारी आसुरी शक्तियों और जब व्यक्ति अच्छाई की सीमाएं को नष्ट कर देता है जो प्रकृति को नष्ट लाँघता है तो स्वाभाविक रूप से बह एक करने में लगी हुई हैं। मुझे विश्वास हैं ऐसी अवस्था में पहुँच जाता है जिसे हम कि एक दिन आप सब ऐसी अवस्था आसुरी अवस्था कहते हैं। इस स्थिति के तक उन्नत हो जाएंगे कि आपका एक खड्ड में यदि आप पड़ जाते हैं तो आपको कटाक्ष पेड़ों को हराभरा करने, फलों में कष्ट उठाना पड़ता है। इसका प्रभाव मिठास भरने तथा फूलों को सुगन्धित सहजयोगियों पर भी पड़ता है। मैं एक ऐसे करने के लिए काफी होगा। ऐसा होना सहजयोगी को भी जानती हूँ जिसने पैसों सम्भव है क्योंकि हमारी उत्क्रान्ति के परिणाम के मामले में गड़बड़ करने का प्रयत्न किया। निकल रहे हैं। शनैः शनैः यह परिणाम दर्शा मैने नहीं सोचा था कि उसे दण्ड मिलना रही है ताकि आप बौखला न जाएं, आपको चाहिए। मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा था कि आघात ने पहुँचे, ताकि आप स्वयं देख उसे दण्ड मिलें । परन्तु उन शक्तियों ने सकें कि आप क्या हैं और क्या प्राप्त कर कार्य किया। उसकी अपनी शक्तियों ने रहे हैं। उसके विरुद्ध कार्य किया और वह इतना 40 जुलाई-अगस्त, 2001 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व 8 एकादश रुद्र पूजा, 8.10.1988 बीमार हुआ, इतना अधिक बीमार हुआ कि और उनके द्वारा बनाए गए भ्रमों के कारण मेरे सम्मुख वह सूखे पत्ते की तरह से लोगों ने उन्हें स्वीकार कर लिया है । इन्हें कांपता था। मैंने उसे कभी नहीं बताया कि स्वीकार करने वाले सभी लोग मेरे बच्चे हैं. मैं उसके कारनामे जानती हूँ। ये जिज्ञासु हैं, सत्य साधक हैं। ये ऐसा हुआ मानों धन ऐंठने के लिए बच्चों को सहजयोग में, जब आप आते हैं तो, उठा लिया जाए। ये लोग बच्चों को मेरे आपको जान लेना चाहिए कि शनै: शनैः सामने कर देते हैं और मेरी समझ में नहीं परन्तु निरन्तर, आप एक सीधी खड़ी पगडंडी आता कि मैं क्या करूं? मैं राक्षसों को पर चढ़ रहे हैं। यह सब क्योंकि बहुत मारने का प्रयत्न करती हैं परन्तु मेरे बच्चे शीघ्रता से करना होता है इसलिए चढ़ाई सामने आकर खड़े हो जाते हैं। तो बहुत खड़ी है और उस चढ़ाई को चढ़ते आधुनिक काल में इन्हें नष्ट करने का कौन हुए आपको ध्यान रखना होगा कि यदि सा सर्वोत्तम उपाय है? निःसन्देह, उनका आप ऊपर को नहीं बढ़ते तो नीचे को वध किया जा सकता है, वे मर सकते हैं। फिसल जाएंगे और यदि किनारों की ओर परन्तु जिन लोगों को उन्होंने भ्रमित किया जाएंगे तो आप खड्ड में गिर जाएंगे। आप कह सकते हैं कि श्री माताजी हम इधर किस प्रकार करु? यह अत्यन्त कठिन और उधर बढ़ रहे हैं । इसलिए आड़ोलन पतन के कारण भी व्यक्ति इस आड़ोलन राक्षसों को एक ऐसी अवस्था तक ले आया (Movement) को महसूस कर सकता है जाए जहाँ इनका पर्दाफ़ाश हो जाए, ये यह विनाश का आड़ोलन है अतः आपको अनावृत हो जाएं और पूरा विश्व इन्हें पहचान अपने विषय में आवश्यक विवेक होना चाहिए। जाए कि ये कैसे लगते हैं। इसलिए बाहर हम उत्थान की ओर जा रहे हैं या पतन से इनसे लड़ने या यम से इनका वध करने की ओर? क्या हम पथभ्रष्ट हो रहे हैं या के लिए कहने की अपेक्षा इन्हें एकादश रुद्र हमारे कदम ऊँचाई की ओर बढ़ रहे है? के शिकंजे में फँसा देना उत्तम है ताकि कभी-कभी हमें महसूस नहीं होता कि अपने दुष्कर्मों के कारण लोगों के सम्मुख ब्रह्माण्ड के इतिहास में हम विश्व की ये नग्न हो जाएं। झूठ के इस घिनौने खेल भयानकर्तम नकारात्मकता के बीच में हैं। का यह एक लाभ है। असत्य सदैव अनावृत्त प्राचीन काल में एक समय पर कोई एक हो जाता है। उनके मुख पर आप सदैव राक्षस होता था, जिसे सम्भालना होता था। उनके पाखण्ड, दुराशय और शैतानी योजनाएं एक राक्षस को नियंत्रित करना आसान स्पष्ट लिखे देख सकते हैं। कार्य था। परन्तु इतने अधिक राक्षसों को सम्भालने के लिए बहुत अधिक कार्य की आवश्यकता है। सबसे बुरी बात तो ये है पराकाष्ठा पर हैं। हमें अधिक अधिक कि आधुनिक समय में ये राक्षस लोगों के सावधान और अधिक सूझ-बूझ वाला होना मस्तिष्क में प्रवेश कर गए हैं । उनकी शिक्षाओं होगा आप सब इसके लिए अच्छी तरह से हैं, जिन्हें हानि पहुँचाई है उनकी रक्षा मैं है। नाजुक कार्य है। एक मात्र ये है कि इन आधुनिक समय में ये आक्रमण चुस्त, जुलाई-अगस्त, 2001 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 7 व 8 एकादश रुद्र पूजा, 8.10.1988 तैयार हैं। परन्तु सदैव हम ये भूल जाते हैं, लोग यदि सूचना देना चाहें तो बेशक दें कि हमारे अन्दर चैतन्य लहरियाँ है कि परन्तु मैं तो जानती हूँ कि वास्तव में चैतन्य लहरियों की नई चेतना हमें प्राप्त हो परिस्थिति क्या है। चुकी है तथा हमारे अन्दर चैतन्य चेतना | चैतन्य चेतना एक प्रकार का दूत है जो में एक बार राहुरी के एक अतिथि गृह कि पूर्ण है, जो सूचित करती है और हमें मैं प्रतीक्षा कर रही थी वहाँ पाँच -छः बताती है कि हमारे अन्दर क्या कमी है प्राध्यापक अपनी साइकिलों पर आए। उन्होंने तथा अन्य लोगों में क्या दोष हैं? परन्तु आकर मुझे बताया कि श्री माताजी हम यदि आप मानसिक या भावनात्मक उद्यमों आपको एक व्यक्ति विशेष के विषय में से अपने निर्णय लेने आरम्भ कर दें तो चेतावनी देने आए हैं। मैंने कहा, यह सज्जन निश्चित रूप से आप भ्रम में फँस जाएंगे कौन है? उन्होंने उस व्यक्ति का नाम बताया क्योंकि ये सारे प्रश्न एक तरफे होते हैं। और कहा उससे सावधान रहें, वह राजनीति जैसे कोई भी मानसिक प्रक्षेपण, रेखीय दिशा करता है। मैंने कहा उसके विषय में आप बस इतना ही जानते हैं? उन्होंने कहा, हाँ, ही पर उसका प्रभाव होता है। भावनात्मक आपको उससे बहुत सावधान होना होगा। प्रक्षेपण का भी ऐसा ही परिणाम होता है मैंने कहा, अब मैं आपको उस व्यक्ति के और शारीरिक प्रक्षेपण का भी परन्तु जब विषय में बताती हूँ। इस व्यक्ति की पत्नी आप चैतन्य लहरियों के माध्यम से देखने इसकी विवाहिता नहीं है, वह किसी अन्य लगते हैं तो आप अपनी आत्मा से कहते हैं की पत्नी है और वह व्यक्ति उस स्त्री को है। (Linear Way) में चलता है और फिर आप भगा कर ले आया है। बच्चा इसका पूर्णज्ञान' (Absolute Knowledge) है । तब परन्तु इसने उस महिला का बलात्कार किया आप न तो अपने अहम् के सम्मुख, न अपने था जिसके कारण यह बच्चा उत्पन्न हुआ। बन्धनों के सम्मुख, न किसी संस्कार के जब मैंने ये बातें बतानी शुरू कीं तो उन लोगों की आँखे फटी सी रह गईं कि वह आपको सूचित करे और आत्मा 1 सम्मुख और न ही किसी गुरु के सम्मुख । कहने घुटने टेकते हैं। आप केवल स्वयं पर निर्भर लगे 'श्री माताजी आप ये सब कैसे जानती करते हैं । अतः आप सबके लिए ये समझना हैं? मैंने कहा आप जाकर पता लगाएं कि आवश्यक है कि हम मानसिक स्तर पर मैं जो कुछ कह रही हूँ वह सत्य है या निर्णय न लेकर चैतन्य लहरियों के माध्यम नहीं । वे पूर्णतः स्तब्ध थे वो वापिस चले से निर्णय लेंगे बहुत से लोग सोचते हैं कि गए और फिर मुझे सूचित किया कि श्री जब मैं किसी व्यक्ति के विषय में कुछ माताजी आश्चर्य की बात है आपने जो कहती हैं तो संभवतः किसी अन्य ने मुझे कुछ भी बताया या वह सब सत्य था! अतः सूचना दी होगी। परन्तु कल्पना कीजिए चैतन्य लहरी पर आप सभी कुछ जान कि मैं यदि चैतन्य लहरियों का स्रोत हूँ तो सकते हैं | परन्तु जो लोग बिना चैतन्य मुझे सूचना देने के लिए क्या रह जाता है? लहरी के निर्णय लेने का प्रयत्न करते हैं वे कोई भी व्यक्ति आकर मुझे क्यों सूचना दे? गलतियाँ कर सकते हैं, जब तक आप उस जुलाई-अगस्त, 2001 42 चैत्तन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व ৪। एकादश रुद्र पूजा, 8.10.1988 अवस्था तक नहीं पहुँच जाते जहाँ बिना हाथ फैलाए आप सब कुछ जान जाते हैं। शक्ति को जागृत करने के लिए पूजा कर परन्तु उस अवस्था तक पहुँचने के लिए रहे हैं। ये शक्ति आपके अन्दर की सर्वप्रथम आपको अपनी बुद्धि चैतन्य लहरियों नकारात्मकता तथा पूरे विश्व की के सम्मुख झुकानी होगी। कुछ लोगों की नकारात्मकता से निपटने में सहायता करेगी। चैतन्य लहरियाँ ठीक नहीं होती, सम्भवतः खराब विशुद्धि के कारण ऐसा हो। उन्हें बहुत से लोग हैं जिनके पास भिन्न चाहिए कि अपनी विशुद्धि का ध्यान रखें। आयुध, साधन और हथियार हैं। ये सभी उन्हें यदि विशुद्धि का कोई रोग नहीं है तो हथियार आपके पास हैं, आपके अन्दर हैं वे अपने अन्दर महसूस कर सकते है कि और निश्चित रूप से आप इन्हें उपयोग कौन से चक्र पकड़ रहे हैं और फलां व्यक्ति कर सकते हैं। परन्तु सर्वप्रथम आपको यें की स्थिति क्या है? प्रायः, क्योंकि हम जानना होगा कि आपके पास कौन से आधुनिक काल में हैं, सुन्दर दिखाई देने हथियार हैं और किस प्रकार उनका उपयोग वाले लोग उन लोगों की अपेक्षा अधिक करना है आज भयानक अंध विश्वास है, भूतबाधित होते हैं जो सुन्दर नहीं दिखाई भयानक गलत धारणाएं हैं । लोगों ने असंख्य देते। एक बार एक महिला हमारे कार्यक्रम संस्था रूपी किले बना लिए हैं, विश्व में में आई। वह पूरी तरह से भूत-बाधित थी। सभी प्रकार के मूर्खतापूर्ण कार्य होते हैं। ये छड़ी की तरह से पतली थी। सहजयोग सब समाप्त हो जाएंगे उनके विषय में का आरम्भ था। सभी लोगों को लगा कि किसी को कुछ भी ज्ञान न होगा लोग कितनी सुन्दर महिला सहजयोग में आ गई उन्हें इस पृथ्वी पर आसुरी जीवों के रूप में है! मैने उन्हें कहा कि फिलहाल इसे जानेंगे अन्ततः जीवन्त शक्ति ही जीवित सभागार से बाहर बिठाओ। उनकी समझ रहेगी। हमें ये जानना होगा कि हमें जीवन्त में नहीं आया। जब वह ठीक हो गई तो शक्ति का ज्ञान है। इसके विषय में हमें बिल्कुल भिन्न दिखाई देने लगी। मेरे लिए अत्यन्त विश्वस्त होना होगा और इस बात तो वो बहुत ही सुन्दर है। जो सौन्दर्य उस समय देखा गया था संभवतः वह शक्ति का ज्ञान है। तब हमारे अन्दर एकादश नकारात्मकता का वेश था जिसे लोगों ने रुद्र अत्यन्त सशक्त हो जाता है। आपको देखा। जैसे आप सिनामें के नायक, नायिकाओं और विदूषकों को देखते हैं जो मिलेगा। सहजयोग को झुकाने या हानि राष्ट्रपतियों तथा बड़े-बड़े लोगों की भूमिकाएं पहुँचाने वाली किसी भी संस्था को परिणाम करते हैं। उनके मुख पर आप स्पष्ट लिखा भुगतने होंगे। जैसा आप जानते है, मैं (Muf हुआ देख सकते हैं कि वे कितने भयानक है? जब तक आप उस स्तर के तथा गई उसने मुझसे दुर्व्यवहार किया। अगले निष्कपट नहीं हैं आप ये बात नहीं समझ सप्ताह वह शो बन्द हो गया। भारत में एक सकेंगे। आज हम अपने अन्दर एकादश रुद्र अब हमारे बहुत से हाथ हैं, हमारे यहाँ पर हमें गर्व करना होगा कि हमें जीवन्त कष्ट देने वालें व्यक्ति को कठोर दण्ड Biffin Sho) मफ बिफिन शो देखने के लिए समाचार पत्र ने मुझ पर बेहूदे लेख लिखने 43 जुलाई-अगस्त, 2001 चैतन्य लहरी खंड-XIlI अंक 7 व 8 एकादश रुद्र पूजा, 8.10.1988 शुरू किए थे। कई महीनों के लिए वह देने का प्रयत्न करेगा तो यह शक्ति कार्य समाचार पत्र ही बन्द हो गया। ऐसा होता करेगी। शारीरिक स्तर पर यह आपके मस्तक है मैं ऐसी कोई बात नहीं कहती, परन्तु पर विराजमान है। एकादश रुद्र आपके जिस तरह से घटनाएं घटती हैं वह आश्चर्य मस्तक पर दिखाई देता है और इसकी चकित करने वाली होती हैं। ये एकादश खराबी के कारण यहाँ पर (मस्तक पर) रुद्र अब किस प्रकार कार्यशील है? सबसे सूजन आ जाती है। कुछ लोगों में यहाँ अहम् बात तो ये है कि ये एकादश केवल एक घुमाव और गूमड़ (उठाव) सा देखा कलियुग में, आधुनिककाल में ही कार्य होगा कँसर के रोगियों को यदि आप देखें करेगा। इससे पूर्व ये गतिशील न था । तो उनके बाएं मस्तक से दाई ओर को ये क्योंकि उस समय कोई एक-आध ही गुरु उठाव होता है। काफी बड़ा, दाई तरफ होता था। आज जो राक्षस गुरु रूप में आए एक गूमड़ सा। कुछ लोगों को ये उठाव हैं। पूर्व काल में वो शैतान रहे होंगे कहीं बाईं तरफ को होता है अतः बाई तरफ से कोई एक आध-राक्षस होता था, उसका उठकर यह दाई तरफ को जाता है और वध करना बहुत आसान था। कस का दाई तरफ से उठने वाला बाई तरफ जाता वध करने में श्रीकृष्ण को कोई लम्बा समय है। दाई तरफ को जाने वाले गूमड़ अधिक नहीं लगा और रावण का वध करने में भयानक होते हैं क्योंकि ये अत्यन्त गुप्त श्रीराम को राक्षसों का वध एक बार जब होते हैं, छुपे हुए, जिन्हें देखा नहीं जा उन्होंने कर दिया तो सारा वातावरण शुद्ध सकता। परन्तु व्यक्ति को ये बहुत हानि हो गया परन्तु ये लोग मच्छरों की तरह पहुँचाते हैं। से हैं। एक के बाद एक बेशुमार संख्या में उत्पन्न हो जाते हैं। इनका कोई अन्त नहीं। ये लोग मानव शरीरों में प्रवेश कर कार्यरत हैं इन्हें पूरी तरह से नष्ट किया गए हैं और उन्हें भयानक रोग, समस्याओं जा सकता है यदि हम अपने अन्दर एकादश लथा कष्ट से भर दिया है। अतः समस्या रुद्र शक्ति विकसित कर लें। ये इतनी कहीं अधिक जटिल एवं गम्भीर है। ये जितनी भी भयानक शक्तियोँ आज अधिक शक्तिशाली नहीं है। एक सहजयोगी ऐसी हजारों आसुरी शक्तियों का वध कर तो ये एकादश रुद्र हैं जिनकी ग्यारह सकता है जबकि ये एक सहजयोगी को विध्वंसक शक्तियाँ है । हम कहते हैं कि हानि नहीं पहुंचा सकतीं। वास्तव में आपके दस दिशाएं हैं और यह ग्यारहवीं है। दस सम्मुख ये शक्तिहीन हैं। आपको कष्ट देने बाहर से और एक अन्दर से। इनका प्रकोप का इनके पास कोई मार्ग नहीं है। आप उन सभी लोगों पर पड़ सकता है जो यदि शक्तिशाली हैं तो ये हो जाएंगी, सहजयोग की उन्नति में बाधक बनने का सदा सर्वदा के लिए लुप्त हो जाएंगी। प्रयत्न करते हैं। इसके विरोध में कार्य स्मरण रखें कि भारत में एक स्थान पर करते हैं या जो मेरे और आपके विरोध में तीन सहजयोगी गाँव की एक विशेष सड़क कार्य करते हैं। कोई भी यदि आपको कष्ट से जाया करते थे। एक बार एक कार्य- क्रम लुप्त 44 जुलाई-अगस्त, 2001 चैंतन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व 8 एकादश रुद्र पूजा, 8.10, 1988 में एक महिला भूतबाधित हो गई और हो स्वयं को इन आसुरी लोगों के सम्मुख हो हो हो करने लगी। उससे पूछा कि वह झुकाकर इनकी दासता स्वीकार कर लेते बहाँ क्यों है? उसने उत्तर दिया कि इस है और इन नियंत्रक व्यक्तियों के गौरव में महिला में हम आपको ये बताने के लिए अन्य लोगों को भी नष्ट करने का प्रयत्न आए हैं कि आप उन तीनों सहजयोगियों करते हैं। को बता दें कि वे इस मार्ग से न जाएं। सारे गाँव तो हम वैसे ही छोड़ चुके हैं और अब इस क्षेत्र में रहते हैं। सारी रात अगर है। जहाँ ऐसी शक्तियाँ प्रवेश नहीं कर सहजयोगी इस मार्ग से आते रहेंगे तो हम सकतीं। यहाँ पर आप बहुत प्रसन्न हैं । इधर-उधर भागते रहेंगे। अतः उन तीनों आपके मस्तक पर चहूँ ओर इस क्षेत्र की सहजयोगियों को कह दें कि वे उस मार्ग देखभाल करने के लिए एकादश रुद्र खड़े से न जाएं ताकि हमारे रहने के लिए कुछ हैं। वे सब देख रहे हैं. वे प्रहरी हैं । कोई स्थान तो बच जाए। ये सभी विकास प्रणाली आपको हानि नहीं पहुँचा सकता। अत्यन्त से बाहर हो चुके हैं। ये मृत लोग हैं और ये शान से आप अपने सहस्रार में स्थापित हैं। लोग अपने सूक्ष्म शरीर में हमारे अन्दर कुछ भी आपको छू नहीं सकता, कोई भी इसके पश्चात् सहजयोग का क्षेत्र आता मृत प्रवेश कर सकते हैं और तत्वों की रचना आपको कलंकित नहीं कर सकता। एकादश कर सकते हैं। ये तत्व हमें काबू कर सकते रुद्र बहुत चुस्त हैं और उनके बहुत से पक्ष हैं और हमें बाधित कर सकते हैं। इस तरह हैं। हर देवता के बहुत से पक्ष होते हैं और के भूतबाधित लोग बिल्कुल सामान्य प्रतीत ये सारे पहलू इस क्षेत्र को हर समय होते हैं। जैसा आज मैं बता रही थी सम यौन लैंगिकता, अति लैगिकता या लैंगिकता बाह्य शक्ति इसमें प्रवेश न कर सके। का पूर्ण अभाव, कलात्मकता का पूर्ण अभाव आपके अन्दर भी यही शक्ति विद्यमान है । या अतिकलात्मक प्रवृत्तियाँ, बहुत अधिक सहस्रार के इस क्षेत्र में जब भी कोई बाह्य खाना या बिल्कुल न खाना, ब्रत् करना, शक्ति प्रवेश करने का प्रयत्न करती है तो बहुत अधिक डरना या बिल्कुल न डरना, तुरन्त ये गतिशील हो उठते हैं और उस हर बात में ये कहना कि इसमें क्या दोष है, व्यक्ति को इतनी हानि पहुँचा सकते हैं कि परमात्मा का भी भय न खाना या चींटी से आप स्वयं हैरान रह जाते हैं। आपको पता भी डरना। कुछ लोग इर समय दोष भाव भी नहीं चलता कि यह सब कैसे हो गया। ग्रस्त रहते हैं और कुछ लोग दूसरों को परन्तु इस शक्ति को विकसित करने के बैकार बताकर उन्हें दोष भाव में ढकलते लिए पूर्ण निष्ठा एवं सूझ-बूझ पूर्वक ध्यान हैं। कुछ लोग अत्यन्त क्रूर होते हैं, अन्य धारणा करनी आवश्यक है। केवल इतना लोगों के मामलों में हस्तक्षेप करके वे उन्हें भर नहीं कि मेरे फोटो के सामने बैठकर दास बना सकते हैं, कुछ भी कर सकते हैं, आप कहें, "श्री माताजी मैं स्वयं को आपके अपने भाषणों से भयानक युद्ध करवा सकते सम्मुख समर्पित करता हूँ आदि आदि।" हैं और कुछ अन्य ऐसे हो सकते हैं जो निष्कपटता पूर्वक, क्योंकि देवता जानते हैं प्रकाशमान करते रहते हैं ताकि कोई भी 45 जुलाई-अगस्त, 2001 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 7 व 8 एकादेश रुद्र पूजा, 8.10.1988 तो आज हमें इस कलियुग में और कौन वास्तव में उन्नत होना और नकारात्मकता को पूर्णतः नष्ट करने के उत्क्रान्ति को प्राप्त करना चाह रहा है। लिए इन एकादश रुद्र शक्तियों का आहवान एक प्रकार से यह संघर्ष है। ये संघर्ष है करना है और ये प्रार्थना भी करनी है कि कि सत्यनिष्ठ कौन हैं, गहनता में कौन है युदि हमारे अन्दर कोई नकारात्मकता है तो परन्तु ऐसा संघर्ष नहीं जिसका कोई फल यह नष्ट हो जाए। सहजयोग विरोधी कोई न मिले। संसार का कोई अन्य संघर्ष आपको नकारात्मकता यदि है तो वह नष्ट हो जाए कोई भी फल नहीं देता फिर ये संघर्ष तो हमारे चरित्र में, हमारी सूझ-बूझ में कोई नकारात्मकता है तो वह नष्ट हो जानी इतना साधारण है, इसका इतना वर्णन किया जा चुका है, इसे इतना कार्यान्वित किया चाहिए। एकादश रुद्र के विषय में आज का जा चुका है कि आपको अधिक चिन्ता यही सन्देश है करने के लिए कुछ शेष नहीं है। परमात्मा आपको धन्य करे। 46 जुलाई-अगस्त, 2001 पूजा का महत्व भाग-1 परिचय सहजयोगी होने के नाते श्री आदिशक्ति की साक्षात रूप में या उनके फोटो की पूजा चाहिए। अपने एक पत्र में श्री माता जी ने करने की आज्ञा प्राप्त होने का सौभाग्य हमें कहा है कि 'पूजा हृदय में करनी चाहिए । प्राप्त है। गरिमामयी माँ साक्षात रूप में या पूजा के दृश्य हृदय में उतर कर हमारे अपनी सर्वव्यापक उपस्थिति के माध्यम से लिए निरन्तर आन्नद के स्ोत बन जाने हमारी पूजा को स्वीकार करती हैं । जब - जब भी हम श्री माता जी का ध्यान तथा उनसे प्रार्थना करते हैं वे हमारे साथ होती हैं। अतः श्री माता जी की पूजा करते हुऐ बन जाने दीजिए और इस प्रकार सहजयोगियों का एक उत्तरदायित्व होता गंगा जल की तरह पवित्र तथा है। श्री माता जी के चरण कमलों पर अमृत की तरह शुभकर बने चित्त से पूरी तरह से चित्त स्थिर करके उनकी श्री माता जी के चरण कमलों की पूजा पूजा की जानी चाहिए। पूजा अनचाहे से भी चित्त विक्षेप (ध्यान का हटना) सम्मान विहीनता सम है । मंत्रोच्चारण, महादेवी की महिमा - गान आध्यात्मिक विकास के लिए पूजा अत्यन्त के लिए तथा श्रद्धापूर्वक समर्पित की सहायक है और यह आदिशक्ति की कृपा गई भेंट को स्वीकार करने के लिए, का आहवान करती है। बल देकर उन्होंने देवी से प्रार्थना के रूप में होता है पूजा अन्तस का एक भाग बन जानी चाहिए। हृदय को आदिशक्ति का सिंहासन के समय कीजिए। आदि शंकराचार्य ने कहा है कि कहा है कि सर्व - व्यापक शक्ति से जब चित्त का एकाकार हो जाता है तो शुद्ध श्रद्धा का उदय हृदय से होता है निर्विकल्प अवस्था में योगी, इष्ट तथा और इसकी प्रतिबिम्ब आत्मा, देवी मां की शुभ पूजा करने से प्रसन्न होती है। श्री जब हमारी देवी मां निरन्तर विद्यमान हैं माताजी के अनुसार पूजा हृदय से होनी तो हम पूजा स्वीकार करने के लिए चाहिए । हृदय से की गयी पूजा अति सुन्दर उनका आह्वान किस प्रकार कर सकते हैं? लहरियों का आहवान करती है तथा हर पूरा ब्रहमांड ही जब उनके विराट अस्तित्व उपस्थित व्यक्ति दैवी आनन्द का अनुभव में स्थित है तो हम उन्हें क्या भेंट कर पुजारी के द्वैत से ऊपर उठ जाता है। सकते हैं? करता है। 47 जुलाई-अगस्त, 2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 पूजा का महत्व उनके असीम (विराट) रूप के दर्शन यह है कि पूजा के लिए आपको मध्यम-प्रकार कर पाने में असमर्थ हम सब सहजयोगियों के लोगों को नहीं लाना चाहिए क्योंकि पूजा को अपनी पूजा का शुभ-अवसर प्रदान करने को सहन करना अति कठिन है । मेरे अस्तित्व, के लिए श्री माता जी ने सीमित (मानव) रूप चरणों तथा कर-कमलों का मूल्य अभी तक धारण किया है इस कृपा के लिए हमारा लोगों ने नहीं समझा है। वे यहां आने के योग्य नहीं हैं। अतः भाई, बहन या मित्र होने के नाते किसी व्यक्ति को न लाएं। यह अनुचित है। असह्य देकर आप उस व्यक्ति के उत्थान के अवसर बिगाड़ रहे हैं। वह इसे सहन नहीं कर सकता। पूजा बहुत ही कम लोगों के लिए हैं। अतः याद रखें कि पूजा रोम-रोम उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए । मनस्त्वं व्योमस्त्वं मरुदसिसारथिरसि त्वमापस्त्वं भूमिस्त्वयि परिणतायां नहि परम् त्वमेव स्वात्मानं परिणामयितुं विश्वपुषा चिदानन्दकारं शिवयुवति भावेन विभूषे।। अधिक लोगों के लिए नहीं है । अर्थात् तुम हो मन, वायु, आकाश, अग्नि, जल और भूमि तुम्ही हो। सभी कुछ है परिणति में तुम्हारी, इसके बाहर कुछ भी नहीं है। परिणत स्वयं को करने हेतु, चिदानन्दाकार की विराट-देह से की अभिव्यक्ति। अब चरणामृत-अर्थात मेरे चरणों का अमृत भी सभी के लिए नहीं होता और न ही पूजा की आशीष सब के लिए होता है। अतः जो लोग पूरी तरह तैयार नहीं है उनसे बचने का प्रयत्न करें। सर्वप्रथम वे सन्देह करना शुरू कर देंगे। नियम-आचरण सम्बन्धी समस्या भी होगी। आवश्यक सम्मान के साथ वे पूजा को स्वीकार न सकेंगे यहां तू मन है, तू आकाश है, तू वायु है और आना अत्यन्त सौभाग्य से होता है और यह वह अग्नि भी तू सौभाग्य हर किसी को नहीं प्रदान किया जा वायु जिसका सारथि है है। तू जल है और तू भूमि है, तेरी परिणति सकता। के बाहर कुछ भी नहीं है। तूने ही अपने आपको परिणत करने के लिए चिदानन्दाकार यदि आप समझ सकें तो यह सहजोग को विराट देह के भाव द्वारा व्यक्त किया का रहस्य है। और प्रारम्भ में इस रहस्य के विषय में बहुत कम लोगों को बताना है। एक दिन सभी रहस्य उघड़ने वाले हैं-परन्तु सब श्री माताजी के भाषणों से पूजा के के लिए नहीं। जब आप इस सत्य को पहचान जायेंगे कि आप सौभाग्यशाली हैं तो आप के 5 मई 1980 के सहस्त्रार दिवस के अवसर पर आचरण से प्रकट होगा कि यह सौभाग्य आपको प्रदान किया गया है। आज विश्वभर सहज योग के विषय में आज मैंने में ध्यान करने वाले बहुत से लोग हैं। मैं इन आपको कुछ रहस्य बताने हैं - एक रहस्य सब लोगों के विषय में सोच रही हूं। आपको हुआ है। विषय में उद्धरण जी श्री माता जी के प्रवचन से उद्धत :- जुलाई-अगस्त, 2001 48 चैतन्य लहरी खंड-Xll अंक 7 व 8 पूजा का महत्व भी इनके विषय में सोचना है और यह समझना है कि ये आपकी तरह ही विराट अस्तित्व के अंग-प्रत्यंग है परन्तु आप लोग मेरे अस्तित्व के चेतन अंश हैं। को ही प्रदान किया जाता है। आप सब योग्य व्यक्ति हैं इसी कारण मैं यह सब आपको बतला रही हूं। निष्कपटता आपकी सफलता की कुन्जी है। यह एक सौभाग्य है कि मैं यह कुन्जी आपको दे रही हूं। पाश्चात्य बुद्धि के लोगों को यदि आप कुछ बतायें तो वे दंड इत्यादि अवांछनीय शब्दों का उपयोग कर देते हैं। आपको सम्मान सूचक तथा उचित शब्दों का उपयोग मेरे प्रति करना चाहिए । अतः इस समय यह पूजा आप केवल अपने तथा लंदन के लोगों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के हित के लिए कर रहे हैं। विश्वभर के सहजयोगियों के अतिरिक्त आप स्वयं को उन सहजयोगियों की तरह अभिव्यक्त कर रहे हैं जो मुझे पहचान चुके हैं और मुझसे दूसरे लोगों को आशीष देने के लिए प्रार्थना कर रहे हैं जिससे कि वे भी मुझे पहचान सकें। मुझे आशा है इस पूजा से मेरी पहचान आपको और अधिक स्पष्ट हो जायेगी। मुझे पहचानकर आप केवल अपने आपको पहचानेगें तथा सभी कार्य बड़े सुन्दर ढंग से होने लगेंगे। यदि आपकी आचरण विधि ठीक नहीं है तो आप उलटे-सीधे कायं द्वारा सभी कुछ बिगाड़ लेते हैं। अतः सावधान रहिए। इस अवसर को सौभाग्य मानिये आप सभी विशेष व्यक्ति हैं और यह अवसर आपके प्रति विशेष इस प्रकार बातें नहीं कर सकती। परन्तु आपको यह सब मैं इसलिए बता सकती हूँ क्योंकि पूरी कुन्जी मैं आपको देना चाहती हूँ। है। जन-साधारण से मैं कृपा मैं केवल यह चाहती हूं कि आप केवल निष्कपट बनें तथा सहजयोग में कपट न करें। कपट करने से आपको भी बहुत हानि होगी तथा अन्य सहजयोगियों को भी। अतः छल न करें। छल द्वारा क्योंकि आप मुक्ति पथ को हानि पहुंचायेंगें तो आप भी दण्डित होंगे और परिणाम स्वरूप आप ही हानि पीड़ित होंगे। अतः निष्कपट बनने का प्रयत्न करें, यह कठिन कार्य नहीं है । 1 स्वयं को देखकर यदि आप यह जान सकें कि आप कितने सौभाग्यशाली हैं, कि सहजयोग क्या है, तब आप समझेंगे कि यहां पर विद्यमान होना कितने सौभाग्य सुकृतियों के कारण यहां पर आपकी उपस्थिति से कपट का मार्ग नहीं अपनाना है। बहुत आपके कितने जीवन पुरस्कृत हो गये हैं? से लोग सोचते हैं कि मां ताड़ना कर रही हैं। यह ज्ञान आपको और अधिक निष्कपटता परन्तु ताड़ना जैसे शब्द गलत हैं, तथा इनका पूर्वक पूजा करने में सहायक होगा। तथा सुफल की बात है। आपकी प्रयोग मेरे लिए नहीं होना चाहिए। सौभाग्यवश आप यहां हैं, और आपको यह पता होना ईश्वर आपको आशीष प्रदान करें। पहिए कि सौभाग्य केवल योग्य व्यक्तियों नीचे उद्धरित वार्ता में 19 जुलाई 1980 जुलाई-अगस्त, 2001 49 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 7 व 8 पूजा का महत्व को ब्रिटेन में श्री माता जी ने पूजा का मेरी पूजा करो और मेरे अन्दर के सभी अर्थ बताया देवता जागृत होंगे तथा परिणामतः आपके अन्तःस्थित देवता भी जागृत हो जायेंगे। अब पूजा के लिए आप लोगों को समझना अतः मेरा आशीष ग्रहण करके योग्य है कि साक्षात्कार के बिना पूजा का कोई बनने के लिए आपकी लहरियों का अर्थ नहीं, क्योंकि आप "अनन्य नहीं हैं, सुधरना अति आवश्यक है। अर्थात आपको अपने विराट रूप के प्रति चेतन होना है। कृष्ण ने भक्ति को अनन्य बताते हुए कहा कि मैं अनन्य भक्ति प्रदान तो किसी भी पूजा या भाव-अभिव्यक्ति का करूंगा। वे अनन्य भक्ति चाहते हैं। अनन्य कोई लाभ नहीं। तो सर्व प्रथम हम एक अर्थात जहां दूसरा कोई न हो अर्थात जब आप साक्षात्कारी हों। अन्यथा वे कहते हैं को तैयार करते हैं। यह तैयारी भिन्न "पुष्पम् फलम् तोयम्" अर्थात "पुष्प, फल व देवी-देवताओं को प्रार्थना द्वारा- अर्थात जल, स्वीकार्य है मुझे, समर्पित जो करो," यदि ग्रहण-सामर्थ्य ही अच्छी नहीं है प्रकार से अपने यंत्र (शरीर) या प्रक्षेपण-यन्त्र कुंडलिनी पूजा द्वारा-होती है। मेरी कुंडलिनी की प्रार्थना करने से आप अपने प्रतिबिम्ब को परन्तु जब देने की बात आती है तो वे सुधार लेते हैं क्योंकि आपकी प्रार्थना से कहते हैं- पास आना है, अर्थात् "मुझ से एकाकारिता हो जाने के पश्चात जागृत कर देता है। यह जागृति ही ही आप में भक्ति जागती है उससे पूर्व नहीं, आपके उत्थान का प्रारम्भ है। इससे पूर्व आपके सम्बन्ध नहीं जुड़े होते। मेरी लहरियों का बहाव आपकी ओर हो जाता है तथा आपकी कुंडलिनी को "अनन्य भक्ति पूर्वक आप को मेरे एक बार जब आपका यन्त्र (शरीर-तन्त्र) पूजा मनुष्य की बायीं ओर की ठीक हो जाता है तो आप अपनी अभिव्यक्ति भावनात्मकता की अभिव्यक्ति है, यह बाहर की ओर करते हैं। किस प्रकार करते दायीं ओर की उग्रता को, विशेषतया हैं आप यह अभिव्यक्ति? ब्रह्मांड की रक्षक अति उग्र स्वभाव को तथा उग्र वातावरण के रूप में देवी की शक्तियों का को निष्प्रभावित करती है। पूजा क्यों कि भक्ति तथा समर्पण की अभिव्यक्ति है द्वारा आप यह कार्य करते हैं। अतः यह उग्र स्वभावी व्यक्तियों के लिए हितकर है। पूजा करने से होता क्या है? ऐसा पाया गया है और अब मैं भी बारम्बार करके अपनी भावाभिव्यक्ति तुम्हें बता रही हूं कि पूजा द्वारा आपको (हृदय-प्रेम) को आप प्रतिध्वनित (गुंजन) अपने अन्दर के सुप्त देवी-देवताओं को करते हैं। तब आपकी अभिव्यक्त अति जगाना है। परन्तु क्योंकि ये देवता, आदि-देव मेरे साथ हैं इसलिए आप धटना घटित होती जो की चमत्कारिक है। महिमा- गान करके उनकी पूजा-अर्चवना महा - देवी की शक्तियों का गुण-गान शक्तिशाली हो जाती है। एक अति सूक्ष्म ये जुलाई-अगस्त, 2001 50 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 पूजा का महत्व करेंगे तो यह जीवनहीन होंगे और ज्ञान-पूर्वक समझ कर करने पर पूर्णतया जीवन्त बन जायेंगे मेरे चरणों को आराम पहुंचाने के लिए आप तेल इत्यादि अन्य वस्तुएं लगाते हैं। इस तरह आप हृदय से कहते हैं। श्री माता जी आपने घोर परिश्रम किया है, आपके चरण कमलों ने भी बहुत परिश्रम यह सब बातें अति साधारण लगती हैं जैसे मेरे चरण धोना अति साधारण प्रतीत होता है। अब आप इन चरणों को देखिए । मैं नहीं जानती कि आप इनमें पूरे ब्रह्मांड को देखते हैं या नहीं - मैं तो इसे यहां देखकर आश्चर्य- चकित रह जाती हूं : मेरे चरण धोते समय आप क्या करते किया है" हैं? वास्तव में मेरे चरण घोर परिश्रम करते हैं और तब इन्हें आराम पहुंचाने के लिए आप थोड़ा सा जल इन पर डालते हैं और यह यही बात कहें तो यह महत्वहीन है। परन्तु संकेत देते हैं कि इन चरणों द्वारा किये गये मेरे चरणों के प्रति आपका प्रेम महत्वपूर्ण है । प्रयत्नों को आप अनुभव कर सकते हैं। और जैसे बच्चे के प्रेम पूर्वक मां के गाल पर हाथ तब एक प्रकार का मधुर तथा संगीतमय प्रेम रख देने मात्र से मां का हृदय प्रेम से द्रवित इन चरणों से बह निकलता है। जैसे आज हो उठता है। यह आचरण पारस्परिक है। जब मैं आ रही थी तो अचानक पॉल को यह अति सूक्ष्म क्रिया है जो इसी प्रकार कार्य खड़े देखा सावधानी तथा समझदारी है - श्री माता जी करते हैं उतना ही अधिक आनन्द आप पाते आ रही हैं। कहीं वे खो न जायें। बस इतने हैं। तर्क तथा बुद्धि - प्रयोग से यह आनन्द भर से करुणा बहने लगी क्योंकि यह प्रेम तो नहीं मिल सकता। सब कुछ समझता है। किसी वस्तु की इसे आशा नहीं, परन्तु केवल प्रेम को स्वीकार करने वाले व्यक्ति की उपस्थित में ही यह आवश्यक है। परन्तु आपकी प्रेम-अभिव्यक्ति आडोलित होता है। सामान्य रूप (बुद्धि-प्रयोग) से यदि आप वही हुआ, देखो कितनी करती है। हृदय से आप जितना मुझे प्रेम सर्व प्रथम आपका शुद्धि-करण श्री माता जी के प्रति होनी ही चाहिए। यही चरम - सीमा है जिसे प्राप्त करते ही आप आप कैसे कह सकते हैं कि आप ग्राही सर्व - शक्तिमान बन जाते हैं और दूसरे लोगों (पाने वाले) हैं? इन छोटी-छोटी बातों की को भी यह शक्ति दे सकते हैं। परन्तु यह अभिव्यक्ति द्वारा। अतः जब आप मेरे चरणों देना भी एक दूसरे के आश्रअय पर निर्भर है को आराम पहुंचाते हैं, इन्हें धोते है, साफ क्योंकि देवी आपके विषय में सब कुछ जानती करते हैं तो आपको पता होता है कि इनका हैं। यदि आप कोई अनुचित प्रयास करेंगे तो महत्व क्या है, आप इस महत्व को पहचानते देवी आपको स्पष्ट रूप से बिना किसी संकोच । यह मान्यता आप किस प्रकार प्रकट के कह देगी कि ऐसा नहीं होना चाहिए। करेंगे? यह छोटे-छोटे समारोह इसलिए फिर भी कार्य को करने के लिए आपको पता महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह आपकी मान्यताओं होना चाहिए कि इसे परस्पर आश्रित होना को प्रकट करते हैं। अज्ञानता में यदि इन्हें है। यह एक तरफा नहीं हो सकती। 51 जुलाई-अगस्त, 2001 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व 8 पूजा का महत्व सबसे बड़े हैं, उनके पहले बेटे हैं। आपके भाईयों में से सबसे बड़े भाई हैं और यद्यपि कार्तिकेय को सदा बड़े भाई का स्थान दिया जाता है और गणेश जी स्वयं को छोटा भाई कहते हैं, फिर भी उनकी रचना पहले की गई थी । क्योंकि श्री गणेश सदा तरुण रहते हैं इसलिए वे आप सबसे छोटे हैं। समझने पूजा वास्तव में प्रोत्साहन देने वाली की यह अत्यन्त सूक्ष्म बात है कि छोटा होते क्रिया है। यह आपको एक नये साम्राज्य में हुए भी वे इतने विवेकशील हैं। वे साक्षात ले जाती है। वास्तव में यह चमत्कार है। एक विवेक हैं। क्या आप इतने बुद्धिमान बच्चे की बार जब आप पूजा कर लेते हैं तो अपने मौन कल्पना कर सकते हैं? आयु में आप सदा श्री में भी बहुत सी अभिव्यक्ति कर सकते हैं। गणेश से बड़े हैं। परन्तु विवेक में वे ही सबसे निष्कपटता एक तरफा नहीं हो सकती यह दोनों ओर से होनी चाहिए। तभी यह भली-भांति कार्य कर सकती है और तब एक प्रकार के समभाव स्नेहक के रूप में प्रेम को लाते हैं और अन्तस में एक सुन्दर आड़ोलन का अनुभव होता है। पुत्र आपका मौन भी अत्यन्त शक्तिशाली बन बड़े हैं। जाता है इसी तरह से आपको समझना चाहिए पश्चिमी देश के लोगों को विशेषतया कि छोटी-छोटी क्रियाओं से, मंत्रोच्चारण से अपनी अबोधिता को स्थापित करना है। यह किस प्रकार हम अपने अन्दर के देवताओं अत्यन्त महत्वपूर्ण है। सबसे पहले इसी पर का आह्वान करते हैं क्योंकि आप जागृत हैं. आक्रमण होता है। बहुत सी दुष्ट शक्तियां आपका हर शब्द जागृत है, अतः अब आपके इस पर आक्रमण करती हैं। अतः हमें अपनी मंत्र भी सिद्ध हैं। अबोधिता को दृढ़ करना है। यह अत्यन्त शक्तिशाली गुण है यह कोई बुराई नहीं देखता। अबोधिता नहीं देखती केवल व सिद्धि स्थापना की विधि बताने वाली हूँ। प्रेम करती है। बचपन में बच्चा नहीं जानता हर चक्र और उसके शासक देवता की सिद्धि कि माता-पिता या कोई अन्य उससे घृणा प्राप्त करने की विधि। निस्संदेह इस गुरु करता है। निष्कपटता पूर्वक बच्चा रहता है। पूजा पर यह कार्य होगा। परन्तु यह पूजा परन्तु अचानक जब उसे पता चलता है कि पूरी सूझ-बूझ तथा पूर्ण मान्यता के साथ, लोग परस्पर प्रेम नहीं करते तो उसे सदमा इसे परम-सौभाग्य मानते हुए. होनी चाहिए। पहुंचता है। इस गुरु पूजा पर मैं आपको सिद्ध करने कुछ सभी देवता और ऋषि गण इस पर अतः श्री गणेश पश्चिमी देशों के लिए ईष्ष्या कर रहे हैं । आपके लिए महान लाभ अति महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे ही हर चीज के तथा सौभाग्य है। अतः इसका पूरा लाभ सार है। यही कारण है कि सर्व प्रथम हम श्री उठायें। बहुत ही छोटी-छोटी चीजें मुझे गणेश की पूजा करते हैं। परमात्मा ने सर्वप्रथम प्रसन्न कर सकती हैं- आप जानते हैं कि श्री गणेश की रचना की क्योंकि वही उनके आपकी मां बहुत ही साधारण चीजों से प्रसन्न 52 जुलाई-अगस्त, 2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 पूजा का महत्व सर्व प्रथम हमें यह दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि हम आत्मा हैं और शेष सभी कुछ छाया मात्र है। इस तथ्य की अनुभूति हमारे क्योंकि आप निर्विचार समाधि में चले अन्तस में होनी चाहिए। इसकी अनुभूति के जायें गे अतः इसके विषय में अधिक पश्चात सब कुछ सरल हो जाता है । आपने आज तक स्वयं को जितना जाना है आप महसूस तथा अनुभव करना है। यही ऊर्ध्व उससे कहीं अधिक हैं। इस नयी स्थिति में अनुभव से प्राप्त हुआ है अतः यह अन्ध-विश्वास नहीं 18 जून 1983 को पूजा तथा हवन हैं अनुभवगम्य होने के कारण इसमें बुद्धि का महत्व बताते हुए श्री माता जी के प्रयोग की कोई आवश्यकता नहीं और न ही इसे बुद्धि द्वारा चुनौती दी जानी चाहिए। आज इतने सारे. जिनमें से कुछ नये भी बुद्धि प्रयोग द्वारा आप अधोगति को प्राप्त है, सहजयोगियों के मध्य आकर मुझे होंगे। जिस प्रकार आकाश में नक्षत्र की असीम आनन्द की अनुभूति हो रही है। झलक पा कर वैज्ञानिक उसके अस्तित्व में सम्भवतः मैं आप सबको हज़ारों वर्ष पूर्व से विश्वास करते हैं ठीक उसी प्रकार जब आप जानती हूँ। क्योंकि सहजयोग में आपको अपने साक्षात्कार का हल्का सा अनुभव प्राप्त एक साधारण सी बात समझनी है कि आप कर लेते हैं तो कम से कम आपको अपने केवल आत्मा हैं और आत्मा के अतिरिक्त आत्मा होने का विश्वास हो जाना चाहिए। हृदय से आपने पूजा हो जाती है । कितने बस इसी का महत्व है। की सोचने-विचारने के स्थान पर इसे समझना, गति है। आपका यह विश्वास आपके अपने भाषण की प्रतिलिपिः- कुछ भी नहीं। अपनी जागृति के इस अनुभव पर दृढ़ रह कर आप अपना ध्यान इस तथ्य पर रखो कि आप आत्मा हैं। अपनी बुद्धि से कहो कि अब आपको धोखा देना छोड़ दे। इस प्रकार आप अपनी बुद्धि की दिशा बदल सकते हैं। आत्मा की तुलना हम सूर्य से कर सकते हैं। सूर्य बादलों से ढका अवश्य हो सकता है परन्तु वह सूर्य ही रहता है आप इसे दीप्ति नहीं प्रदान कर सकते। यह स्वतः प्रकाशित है। बादलों के हट जाने पर यह वातावरण अब आपकी बुद्धि आत्मा की खोज में कार्य-रत हो जायेगी। निष्ठा का यही तात्पर्य है कि शुद्ध-बुद्धि को उन्नत करती है। यद्यपि अज्ञान-अन्धकार के बादलों को फटते हुए आपने देखा है फिर भी बादलों का अस्तित्व अभी भी है अतः बादलों को हटाने के लिए आपने परम-चैतन्य की लहरियों का प्रयोग करना है चैतन्य लहरियों का लाभ उठाने की कई विधियां हैं। अतः लहरियों का स्रोत को प्रकाश प्रदान करता है। ठीक इसी प्रकार हमारी आत्मा अज्ञान के अन्धकार से ढकी हुई है। अज्ञानान्धकार के कारण आप इसे देख नहीं सकते। बादलों के हट जाने पर भी इनकी कुछ छाया बनी रहती है। सूर्य को स्पष्ट रूप से देखने के लिए आकाश का स्वच्छ होना अत्यन्त आवश्यक है। बहुत सी विधियों से हम इस अज्ञान रूपी अन्धकार को दूर कर सकते हैं। 53 जुलाई-अगस्त, 2001 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 7 व 8 पूजा का महत्व अन्यत्र हैं और यह स्रोत है आपकी अपनी द्वारा आप साकार को निराकार में कुंडलिनी। आपके अपने शरीर-तन्त्र में परिवर्तित कर उसकी अनुभूति करते हैं । आदि-कुंडलिनी आपके समक्ष हैं और अन्य आपके सारे चक्र ऊर्जा के केन्द्र हैं और जिज्ञासुओं की अपेक्षा आप कहीं अधिक सभी चक्रों पर उनके शासक देवता विद्यमान हैं निराकार होते हुए भी उन्हें भाग्यवान हैं। साकार रूप प्रदान किया जाता है। जब विग्रह, अर्थात पृथ्वी मां की चैतन्य आप पूजा करते हैं तो उनका साकार लहरियों का स्वयंभुः मूर्त रूप, की पूजा करने रूप परिवर्तित हो कर चैतन्य लहरियों में लोगों के सामने बहुत सी समस्याएं थी। के रूप में प्रवाहित होने लगता है और सर्व प्रथम उन्हें सविकल्य समाधि में ध्यान मग्न होना पड़ता था। इस अवस्था में उन्हें मान्यताएं, जिन्होंने आत्मा को ढका हुआ विग्रह पर ध्यान लगाना पड़ता था। इस प्रकार से सभी गलत धारणाए. था, दूर हो जाती हैं। पूजा के विषय में आप सोच नहीं सकते क्योंकि पूजा का क्षेत्र विग्रह से तात्पर्य चैतन्य-लहरियों से विचार-क्षेत्र से परे है। आपको समझना है परिपूर्ण मूर्ति से है। उस मूर्ति को देखते हुए कि आप पूजा के प्रति तार्किक दृष्टि कोण अपनी कुंडलिनी को ऊर्ध्व-मुखी करने की नहीं अपना सकते आपने अपने चक्रों का चेष्टा जिज्ञासु किया करते थे और कुंडलिनी सर्वाधिक लाभ उठाना है और इसके लिए भी आज्ञा चक्र तक आ जाया करती थी। आपको पूजा तथा चैतन्य-लहरियों के बहाव सहस्रार भेदन कर कुंडलिनी का बाहर आना अति दुष्कर कार्य था क्योंकि उस अवस्था में यह बहाव अज्ञान-अंधकार रूप बादलों को जिज्ञासु को साकार से निराकार की ओर फाड़ देगा। अतः आपका केवल एक ही कार्य जाना पड़ता है। अमूत का ध्यान करना है, एक ही साधन है कि पूजा पर ध्यान असम्भव कार्य था । मुसलमानों तथा कई केन्द्रित करें और साक्षी बनें। आप ही द्रष्टा अन्य लोगों ने ऐसा करने का प्रयत्न किया। हैं। द्रष्टा शब्द के दो अर्थ हैं. पहला यह है इन परिस्थितियों में आवश्यक था कि कि वह केवल तटस्थ रहकर देखता है। वह जटिलताओं को करने के लिए निराकार केवल ज्ञान है, बिना किसी विचार और को साकार रूप में मान लिया जाये ज्यों ही प्रतिक्रिया के देखता मात्र है और सहज रूप आप साकार का ध्यान करते हैं आप से ग्रहण करता है। आपके और देवताओं के स्वयं निराकार हो जाते हैं। उदाहरणार्थ बीच आवश्यक सामन्जस्य की कमी कई बार अपने समक्ष पड़ी बर्फ जब आप छूते हैं तो मेरे लिए बोझ बन जाती है। यह पिघलने लगती है और आपको शीतलता की प्रतीति होनी शुरू हो जाती है । पर ध्यान केन्द्रित करना है लहरियों का दूर एक ओर आपके मंत्रोच्चारण से देवता जागृत हो जाते हैं और दूसरी ओर आप अपने अन्तस में उनसे कुछ ग्रहण नहीं करना चाहते। अतः अपने शरीर में उत्पन्न उस समस्या का समाधान अब सहज ही हो गया है। पूजा एक ऐसी विधि है जिसके जुलाई-अंगस्त, 2001 54 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 पूजा का महत्व अतिरिक्त शक्ति का संचय मुझे करना में इस महत्व का वर्णन न कर पायें, तो उन्होंने नियमित रूप से की जाने वाली पूजा का महिमा-गान त्याग दिया। पड़ता है। अतः अपने हृदय को खुला रख कर बिना बुद्धि प्रयोग के पूजा करना आपके हित में होगा। आज हम पूजा की विधि में परिवर्तन का मण्डप बनाते थे जिसमें जिहोवा की पूजा कर रहे हैं। पहले हम हवन करेंगे और फिर के लिए भी स्थान बनाया जाता था। अब पूजा। यही उपयुक्त होगा क्योंकि इस तरह सहजयोग में जिहोवा सदाशिव हैं तथा मां हम अग्नि तत्व को जागृत करेंगे जो सभी मैरी महालक्ष्मी हैं । दोषों को जला देगा। मेरे चरण धोने का भी वही फल होता है जो हवन की अग्नि प्रज्जवलित करने का आज पहले हम हवन तथा फिर मां मैरी के रूप में वे अवतरित हुई करेंगे और फिर । दोनों समान हैं। आप "देवी महात्मय" नामक पुस्तक में ईसा के मेरी पूजा जल अथवा अग्नि से कर सकते हैं। ईसा के पूर्व भी लोग एक विशेष प्रकार 1 वे पहले भी अवतरित हुई। सीता, राधा पूजा जन्म के विषय में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है। ईसा राधा के पुत्र थे. राधा महालक्ष्मी हैं। अतः डिम्ब, अण्डा, के रूप में एक अन्य अग्नि का सार-तत्व कान्ति में है। जो अवस्था में उनका जन्म हुआ और आधे भी बुराई है उसको जला दिए जाने पर यह कान्ति आप सब के शरीर तथा चेहरे को लिया और शेष आधा भाग महाविष्णु, जो आभामय बनाती है और जब आप हवन करते कि हमारे भगवान ईसा हैं, के रूप में अवतरित हैं तो सारा वातावरण चैतन्य-लहरियों से हुआ। परिपूर्ण हो जाता है। अण्ड ने श्री गणेश के रूप में पुनः अवतरण महाविष्णु का वर्णन पूर्णतया जीसज़ क्राइस्ट का चित्रण है महालक्ष्मी अवतरित निम्नलिखित वार्ता में 24 मई 1986 हुई और निर्मल परिकल्पना (इच्छा) से अपने शिशु को जन्म दिया। ऐसा उन्होंने राधा रूप में भी किया था अतः ईसा महान ईश्वर के आज मैं आपको पूजा का महत्व (विराट के) पुत्र हैं। वास्तव में विष्णु महाविष्णु तथा विष्णु ही विराट बनता है। अब यह प्राचीन इसाई भी "मैरी" की प्रतिमा, विष्णु-तत्व विराट का रूप धारण करता है तस्वीर या सम्भवतः येशु की मां की रंगीन और राम, कृष्ण तथा विराट अर्थात अकबर शीशे पर बनी आकृति की पूजा-आराधना भी बनता है अतः ईसा स्वयं ओंकार हैं तथा चैतन्य लहरियां भी स्वयं ही हैं । परन्तु बाद में जब लोग अधिक तार्किक शेष सभी अवतरणों को शरीर धारण करने बनने लगे, और पूजा के महत्व के ज्ञान- अभाव के लिए धरा मां का तत्व (पृथ्वी-तत्व) लेना परमात्मा आपको आशीष दें. को श्री माता जी ने मेड्रिड में पूजा के महत्व के विषय में बताया बताऊंगी। किया करते थे। 55 जुलाई-अगस्त, 2001 चैंतन्य लहरी खंड-XIlI अंक 7 व पूजा का महत्व अन्ततः उन्हें प्रकाश का स्रोत यह मूर्ति प्राप्त हुई। उन्होंने इसे बाहर निकाला और इसी के प्रकाश में वे गुफा में चलते रहे। बाहर पड़ा। ईसा का शरीर पूर्णतः ओंकार है तथा श्री गणेश उनका पृथ्वी तत्व हैं। अतः हम कह सकते हैं कि ईसा श्री एकत्रित बहुत से लोग यह देख आश्चर्य- गणेश की अवतरित शक्ति हैं। यही कारण चकित रह गये । है कि वे जल पर चल सकते थे। वे देवत्व का निर्मलतम रूप हैं क्योंकि वे केवल चैतन्य लहरियां मात्र ही हैं। अतः मेरे साक्षात् रूप पर करते हैं। यह प्रतिमा उन्हें ठीक उसी की पूजा जब आप करते हैं तो इसमें प्रकार चैतन्य लहरियां प्रदान करती है जैसे अवास्तविक कुछ भी नहीं। लोग अब उस मूर्ति की पूजा उस स्थान স। मैं आपको परन्तु जिस मात्रा में लहरियां मैं देती हूं उतनी यह नहीं दे सकती। हो सकता ईसा और मां मैरी के जीवन काल में ही है कि वहां की कुछ अन्य प्रतिमाएं भी आपको लोगों को उनकी पूजा करनी चाहिए थी । चैतन्य लहरियां प्रदान करें। भारत में भी, ईसाईयों के दस धर्माचरणों में यह कहा गया कि जिस का सृजन पृथ्वी तथा आकाश ने महा-गणेश अंर्थात् ईसा स्वयम्भु रूप में पृथ्वी किया है उसका पुनः सृजन, पुनरुत्पत्ति नहीं मां के गर्भ से प्रकटित हुए। महागणेश के की जानी चाहिए। अवतारों का सृजन परमात्मा शरीर के नीचे का भाग तथा उनका शिरोभाग ही करते हैं। केवल आधुनिक काल में ही समूचा पहाड़ है। वहां पर समुद्र का पानी भी अवतरणों का चित्र लेना सम्भव हैं, पहले मीठा है तथा मीठे पानी के कई कुएं भी वहीं इसकी सम्भावना नहीं थी। पृथ्वी मां द्वारा विद्यमान हैं । सृजित का अभिप्राय स्वयम्भु रचनाओं से है। अब स्वयम्भु रचनाएं बहुत स्थानों पर पायी जा सकती हैं। कुछ साक्षात्कारी आत्माओं ने ने मरे चित्र लिए और उनमें से कुछ चित्रों में भी सुन्दर प्रतिमाओं की संरचना की है। आप में से कुछ लोग गणपतिपुले गये वहां यदि आपको याद हो तो वहां कई लोगों मेरे हृदय में से प्रकाश प्रस्फुटित हो रहा है। चित्रों में कुछ लोगों ने मुझे बताया कि कुछ मैं जब पुर्तगाल गयी तो वहां लेडी प्रकाश नहीं था लेकिन जब उन्होंने नैगेटिव ऑफ राक्स, चट्टान देवी का उत्सव था। से पुनः चित्र बनाए तो उन चित्रों में भी जब मैं उत्सव स्थान पर गयी तो बहां पर मां प्रकाश पाया गया। मैरी की पांच इंच आकार की, बहुत छोटी सी, प्रतिमा थी जिसका चेहरा ठीक मेरे जैसा था। वहां के लोगों ने मुझे बताया कि दो कि दैवी शक्ति के साम्राज्य में विभिन्न प्रकार छोटे बच्चों ने खरगोश का पीछा करते हुए के चमत्कार होते हैं। ठीक यही बात पूजा में इस प्रतिमा को पाया उन्हें चट्टानों के है। जब हम पूजा करते हैं तो सर्वप्रथम नीचे खोह में से प्रकाश का आनास हुआ। वे श्री णेश की आराधना करते हैं और प्रकाश के स्रोत की खोज में लगे रहे और इसा प्रकार आप अपने अन्दर श्री गणेश अतः आपको यह अवश्य जानना चाहिए 1 जुलाई-अगस्त, 2001 56 चैतन्य लहरी खंड-Xl अंक 7 व 8 पूजा का महत्व को जागृत तथा स्थापित करती हैं उनके यह कार्य बहुत कठिन था और आपको रूप में मेरी पूजा करके आप में सहजयोग समझाने की प्रक्रिया में और अबोधिता प्रस्थापित होती है । पर आप आपको आपमें निहित आपकी शक्ति बतलाने देखेंगे कि चैतन्य लहरियां बढ़ती हैं, में मेरे शरीर को बहुत कुछ सहन करना आप अपने अन्दर शांति का अनुभव पड़ता है। करते हैं। यदि आप मेरे प्रति रुक्ष व्यवहार जब आप श्री गणेश के नामों का उच्चारण करते हैं, मेरा सम्नान नहीं करते तो करते हैं तो आप उनके गुणों से परिचित ईसा को बहुत क्रोध आता है क्यों कि वे कह चुके हैं कि वे परम-चैतन्य के विरुद्ध करते हैं तो वे आपके द्वारा अपने गुणों कुछ भी सहन नहीं करेंगे अतः मेरा व शक्तियों को प्रस्फुटित करते हैं। इस आज्ञा चक्र तीव्र रूप से घूमना शुरू कर प्रकार से यह दैवी शक्ति कार्य करती है देता है और क्रोध उगलने लगता है। मानों आपको उन गुणों से प्लाकित कर परन्तु मुझे इसे सहन करना पड़ता है। देती है। तब आप आदि-शक्ति की मैं आपको नहीं बतला सकती कि ईसा उस समय आपको मुझसे क्या कहलवाना चाहते हैं क्योंकि वे अपने कार्य को करने से आदि शक्ति के समस्त तत्काल अंजाम देना चाहते हैं। परन्तु (सातों) चक्र जागृत हो उठते हैं तथा इन मुझे थोड़ा सा सावधान रहना पड़ता है जायें । सृष्टि में पहली बार ऐसा अवतरण हुआ है। साथ ही के समय यदि आप मेरे यह ठीक उसी प्रकार से है जैसे आप पहले प्रति विरोध अथवा सन्देह ग्रस्त हैं एक कमरा बनाते हैं फिर दूसरा और फिर और चैतन्य लहरियां स्वयं में समाहित तीसरा। इस प्रकार सात कमरे बना कर गृह नहीं करते तो मुझे समस्या होती है। का निर्माण कार्य पूरा होता है । आपको गृह चैतन्य लहरियां- क्योंकि-बह रही हैं की कुंजियां मिल जाती हैं और आप अपने और आप उन्हें आत्मसात नहीं कर पा गृह को खोलते हैं। इसी प्रकार से मैं सामूहिक रहे हैं तो मेरी समझ में नहीं आता रूप से आत्मसाक्षात्कार प्रदान करती हूं। कि मैं किस प्रकार उन्हें अपने में ऐसा होना पहले सम्भव नहीं था लेकिन अब सीमित रख सकं। इन्हें सीमित करने में सातों चक्रों के समन्वय से यह सम्भव हो मुझे कष्ट भुगतना पड़ता है। यह चीज़े पाया है और अब आप आदि-शक्तिति की प्रतीकात्मक है और यह प्रतीक वास्तव आराधना कर रहे हैं। मेरा आपके समान में कार्य करते हैं। उदाहरणार्थ, आप मानव-रूप, मेरा महामाया रूप है। मैं किसी को प्यार से एक पुष्प भेंट करते हैं तो आप जैसा व्यवहार करती हूँ और स्वयं उसे अत्यधिक आनन्द और कृतज्ञता की को ठीक आप जैसा बना लिया है। यद्यपि अनुभूति होती है और आप जब मुझे पुष्प, होते हैं, जब आप उनके गुणों की आराधना आराधना करते हैं । पूजा चक्रों द्वारा वे अपना कार्य शुरू कर देती हैं। ताकि आप परे शान पूजा न हो 57 जुलाई-अगस्त, 2001 चैतन्य लहरी खंड-XIl अक 7 व ৪ पूजा का महत्व जल अथवा कोई अन्य चीज भेंट करते है तो अनुभूति के लिए पूजा को सहज रूप से तत्व और चक्रों पर स्थित देवता प्रसन्न हो कीजिए। जाते हैं और वे अपने गुणों की तथा तुम्हारे प्रति आशीष रूप में चैतन्य-लहरियों की वर्षा करते हैं। इस प्रकार दैवी शक्ति कार्य करती है और पूजा के पश्चात आप इस में श्री माता जी की वार्ता शक्ति द्वारा की गई कृपा की शनैः-शनैः अनुभूति करते हैं। करें परमात्मा आप पर कृपा । 18 दिसम्बर 1989 को गणपतिपुले जैसे आप सब विश्वास करते हैं मैं आदिशक्ति हूँ" इसका प्रमाण भी आपके पास अब हम इस समय यहाँ पूजा कर रहे हैं है। पूजा के माध्यम से भी आप इसका प्रमाण और विश्व भर में सहजयोगियों को इस पूजा प्राप्त कर सकते हैं केवल इतना ही नहीं, का ज्ञान है। वे ध्यान मग्न बैठे हैं और इस पूजा से मेरे चक्रों पर स्थित देवता उल्लसित तरह वे भी आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं। होते हैं और अधिक लहरियां छोड़ना चाहते इसीलिए हम उन्हें पूजा प्रारंभ होने का हैं । जब वे बहुत सी चैतन्य लहरियां छोड़ने समय बता देते हैं। अतः समय पर लगते हैं तो आप आश्चर्य चकित रह जाते हैं हमें पूजा में बैठ जाना चाहिए ताकि कि किस प्रकार पूजा के पश्चात आप इन ध्यान-मग्न हो कर अन्यत्र बैठे सहजयोगी लहरियों में शराबोर होकर अत्यन्त उच्च भी आप ही की तरह से लाभन्वित हो स्तर तक उन्नत हो गए। निःसन्देह यह सकें । सत्य है कि पूजा के समय आप काफी उच्च स्तर का अनुभव करते हैं क्योंकि आप समझते यदि अभी तक पूजा के इन हैं कि आप उस ऊंचाई को बनाये रख सकते थोड़ी सी बातों के ज्ञान के योग्य आप हैं कुछ लोग वास्तव में इस स्तर को नहीं है तो भी चिन्ता की कोई बात बनाए रख सकते हैं परन्तु प्रायः लोग नहीं। आपकी अनभिज्ञता तथा निर्दोष भाव यो-यो नामक खिलौने की तरह ऊपर को परमात्मा जानते हैं तथा आपको क्षमा नीचे होते रहते हैं। अतः उस अवस्था प्रदान करते हैं। विनम्र हृदय से पूजा को बनाये रखने के लिए मनुष्य को करते हुए यदि आपसे अनजाने में कोई भूल निर्विचार-समाधि में ध्यान लगाना हो जाती है तो आपको दोष-भाव-ग्रस्त चाहिए। केवल देवी की पूजा की ही आज्ञा नहीं होना चाहिए। धीरे-धीरे आप सब जान है परमात्मा की पूजा की आज्ञा भी है परन्तु जायेंगे। लेकिन यदि आप जान बूझ कर हमें ज्ञान होना चाहिए कि देवी कौन हैं और गलती करते हैं तो यह अच्छा नहीं है। परमात्मा कौन हैं। जैसे हम अपने बच्चों को क्षमा करते हैं वैसे ही परमात्मा भी अपने अबोध बच्चों को क्षमा कर देते हैं। अतः आप इस विषय में निश्चित हो जाइये और हृदय में आनन्द की महत्त्व की अतः ऐरे-गैरे की अन्धा-धुन्ध पूजा स्वीकार नहीं की जानी चाहिए। आप हैरान होंगे कि सहजयोग के पहले चार वर्षों में मैंने 58 जुलाई-अगस्त, 2001 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 7 व 8 पूजा का महत्व एक भी पूजा की आज्ञा नहीं दी। यहां तक कि लोगों ने कहा "आप हमारी गुरु हैं, आप लगा कि पूजा में एक विशेष प्रकार की धातु हमें गुरु पूजा की आज्ञा दीजिए"। मैंने कहा और विशेष प्रकार की विधि का प्रयोग करना "नहीं, मैं ऐसा नहीं करूंगी"। तब चार वर्षों है। इन धातुओं का हम पर एक विशेष प्रभाव के पश्चात लोगों ने नवरात्रि - दिवस पर एक होता है और किस धातु से आप पूजा पूजा करनी चाही। मैंने कहा "ठीक है आप करते हैं उसका भी एक विशेष प्रभाव ऐसा कर सकते है। थोड़े से लोग थे जिन्होंने होता है। यह सब आध्यात्म विज्ञान है अनुभव किया कि पूजा उन्हें अत्यधिक लहरियां और पूजा के उत्तम परिणाम प्राप्त करने और उच्च आध्यात्मिकता प्रदान कर सकती के लिए, विज्ञान की तरह से ही, इसका हैं। अचानक उन्होंने कई नए आयाम छू ज्ञान होना हमारे लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण लिए और मुझ से प्रार्थना करने लगे कि "श्री है । माता जी कृपया आप हमें पूजा का अवसर दीजिए। लोगों को पूजा की विधि का भी सोचती हूं कि अब लोगों में पूजा की अच्छी इस प्रकार हमारी समझ में यह आने है । मैं इस तरह से पूजा का प्रारम्भ हुआ। ज्ञान न था। उलझन पूर्ण कार्य होते हुऐ भी मुझे पूजा के विषय में सब कुछ बताना पड़ा। समझ आ गई है। महाराष्ट्र में लोग पूजा विधि में बहुत कुशल हैं और इस विषय में इस तरह सदा मैं यह सब करती रही। आपको आश्चर्य होगा कि पहली बार कहा श्री माता जी हमारा आपको एक साड़ी जब मैं दिल्ली गयी (यदि कोई मेरा वह मेंट करना उचित है।" तो मैने कहा "आप फोटो ढूंढ सके तो आप जान पांयेगे) तो मैं तो सिकुड़ती चली गयी, मेरा संकोच से सिकुड़ गया। सदमें के कारण मैं अति क्षीण हो गयी क्योंकि वे लोग प्लास्टिक वस्तुओं के लिए वे मुझ से तर्क करते रहे की पुरानी वस्तुओं का प्रयोग पूजा में कर रहे थे। मैंने सोचा हे परमात्मा अब क्या करें । । मैंने उत्तर दिया इससे पूर्व मैं पूजा के लिए कोई पैसा देने की ठीक है मुझे साड़ी भेंट करो या जो मर्जी ।" आज्ञा भी नहीं देती थी। तब मैंने कहा कि आर अब आप मंहगी साड़ी देने लगे हैं। मैंने "ठीक है हर पूजा के लिए एक पाई देना कई बार प्रार्थना पूर्वक आपको समझाने का शुरू कीजिए." और इस प्रकार लोगों ने प्रयत्न किया कि मैं अब वृद्ध हो गई हैँ और थोड़े-थोड़े पैसे देने शुरू किये जिसे धीरे- एक वृद्ध देवी को आप कोई साधारण वस्तु धीरे उन्होंने बढ़ा दिया। यह मैंने इसलिए भेंट कर सकते हैं। परन्तु कोई इस बात को किया क्योंकि मुझे पता था कि वो लोग ये स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं। देखें नहीं जानते कि पूजा में चाँदी की वस्तुओं हम किस तरह इस मामले को निपटा पाते का प्रयोग किया जाता है। हर वस्तु पर मेरा है। अंतः इन बातों से कोई अन्तर नहीं पड़ता। नाम लिखा जाने लगा ताकि आपके पास परन्तु जिस कार्य को आप करना चाहते रहते हुए भी आपको याद रहे कि वह मेरी हैं, उसे कितना महत्व देते हैं । इससे सम्पत्ति है। उनसे तर्क करना अति कठिन है। उन्होंने मुझे एक साधारण साड़ी दें, मंहगी साड़ी मैं शरीर स्वीकार न करूंगी।" इस तरह से छोटी-छोटी पूरा साड़ी भेंट नहीं कर सकते अन्तर पड़ता है। यह बहुत महत्वपूर्ण 1 59 जुलाई-अगस्त, 2001 चैतम्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व 8 पूजा का महत्व है। परन्तु जिस कार्य को आप करते हैं होना चाहिए। हाथ धोना ठीक है, परन्तु क्या उसे पूर्ण चित्त, श्रद्धा तथा महत्व देना आपका हृदय भी स्वच्छ है? चित्त जब हृदय आवश्यक है। बिना उच्च प्राथमिकता पर होता है तो यह अन्यत्र नहीं भटकता। दिए कार्य नहीं होता। बिना आवश्यक यद्यपि आप बाहर से शांत होते हैं, आपके महत्व दिये कार्य सफल नहीं होता । अन्तस में द्वन्द् चल रहा होता है, अतः अधिक देर तक आपको मौन नहीं रहना है। यह समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि यदि मनुष्य का हृदय स्वच्छ नहीं है तो मौन यदि आप पूजा से लाभान्वित होना चाहते अति हानिकारक बन जाता है। परन्तु अवांछित हैं तो इसे सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी। वार्तालाप भी महाविपत्ति का कारण बन पूजा से पूर्व यदि आपका मन शैतानी या सकता है। संदेह कर रहा है तो इसे शांत हो जाने की आज्ञा दीजिए क्योंकि यह मन आपके विरुद्ध कार्य कर सकता है। पूजा में पूर्ण श्रद्धा से आप मंत्रोच्चारण कीजिए। श्रद्धा का कोई विकल्प नहीं है। गहन श्रद्धा उत्पन्न हो जाने पर ही आप अतः पूजा के लिए ग्रहणशील बन कर पूजा करें ताकि स्वयं आपका हृदय सारी तैयार रहना है और इससे लाभान्वित होना पूजा को करे। उस समय आशीष लहरियां बहने लगती हैं, क्योंकि आत्मा कहती है, पूजा के फल तथा आशीष के विषय "इस समय कोई विचार कैसे आ सकता है?" है। में बताते श्री माता जी :- हुए लोग अपने ग्लास में मदिरा उड़ेलते हैं। का प्रसाद और आशीष फल किस प्रकार आपकी पूजा भी उसी प्रकार की है। आपकी प्राप्त करना है, इस का ज्ञान आपको होना श्रद्धा भी मदिरा है, जिसे आप पूजा तथा चाहिए। पूजा या प्रार्थना का उदय आपके मंत्रोच्चारण में उड़ेलते हैं। सब कुछ भूल कर हृदय से होता है मंत्र आपकी कुंडलिनी जब वह सुरापान आप कर रहे होते हैं, तो के शब्द हैं। परन्तु यदि पूजा हृदय से किस प्रकार कोई विचार आपको आ सकता नहीं की गई और मंत्रोच्चारण के साथ है? और तब आनन्द का वर्णन शब्दों में कैसे यदि कुंडलिनी का संबंध नहीं जुड़ा तो किया जा सकता है? उस दैवी-सुरा को पूजा केवल कर्म-काण्ड बन कर रह विचाररूपी तुच्छ प्रकार के ग्लास में पुनः कौन उड़ेलना चाहेगा? इस दैवी सुरा-पान करने का आनन्द सर्वदा विद्यमान रहने में निर्विचार हो जाना, पूजा के वाला तथा शाश्वत है। यही आपका वैभव साथ हृदय का पूर्णतया जुड़ा होना आवश्यक बन जाता है। मेरी उपस्थिति में ऐसी बहुत है। पूर्ण निष्कपटता से हृदय के साथ पूजा सी पूजाएं हो चुकी हैं। हर बार एक महान में भेंट चढ़ाने लहर आकर आपको एक नये साम्राज्य में लें के विषय में कोई दिखावा या बंधन नहीं जाती है। ऐसे बहुत से साम्राज्यों का अनुभव पूजा एक बाह्य भेट है, परन्तु पूजा जाती हैं।" पूजा सामग्री को एकत्रित करें। पूजा जुलाई-अगस्त, 2001 60 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 7 व ৪ पूजा का महत्व आपका अपना हो जाता है। ये अनुभव आपके समय तक बैठना पड़ सकता है इसलिए व्यक्तित्व को विशालता प्रदान कर आपके अपने चित्त की एकाग्रता के लिए अच्छा होगा कि पूजा से पहले हम कुछ (भोजन आदि) खा लें और पूजा में ढीले, आरामदायक लिये आनन्द के नये द्वार खोल देते हैं। हृदय में पूजा करना सर्वोत्तम है। मेरी वस्त्र पहन कर बैठें। जिस तस्वीर को आप देख रहे हैं, उसे यदि हृदय-गम्य कर सकें या पूजा के पश्चात इसकी झलक हृदय की गहराईयों में उत्तार श्री माताजी की पूजा करते हैं, इसलिए हमें सकें तो बह आनन्द जो आप उस समय यह सोचकर निराश नहीं होना चाहिए कि प्राप्त करते हैं, शाश्वत तथा अनन्त बन सकता हम पूजा नहीं कर रहे । सहजयोग में सभी है। परमात्मा आपको आशीष प्रदान करें। सभी की ओर से केवल कुछ लोग ही कुछ दैवी शक्ति द्वारा पूर्वनियोजित होता है. अतः प्रथम ग्रहण किया गया स्थान, बिना श्री माताजी की पूजा के समय पालन किसी विशेष कारण के, नहीं छोड़ना चाहिए करने योग्य नियमाचरण। श्री माताजी की कृपा द्वारा कुछ ऐसे मार्गदर्शक नियम बनाएे गए द्वारा प्रदत्त वह स्थान ईश्वर की खोज में हैं जिनका श्री माताजी की पूजा करते समय हमारी प्रगति के लिए उपयुक्त है। हमारी हम सभी को पालन करना चाहिए ताकि हमें आन्तरिक गहनता श्री माताजी से हमारी पूजा का अधिकतम लाभ मिल सके। श्री शरीरिक निकटता से कहीं अधिक माताजी की पूजा के कार्यक्रम का उचित महत्वपूर्ण है । स्थान एवं समय तो दैवी शक्ति स्वयं निश्चित करती हैं इसलिए हमें अपनी ओर से लिए किसी विशेष स्थान और समय पर बल और श्री माताजी पूजा के समय जो चैतन्य नहीं देना चाहिए। इसके अतिरिक्त पूजा के प्रवाहित करती हैं उससे पूजा के लिए चुने स्थान पर सभी कार्य अत्यन्त शान्तिपूर्वक हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से वे हमारे चक्रों करने चाहिएं। और इस बात की चिन्ता नहीं करनी चाहिए से और अनुभव कि हम श्री माताजी से दूर बैठे हैं। ईश्वर सहजयोग सामूहिकता पर आधारित है के पूजा की शुद्धि करती हैं। इसके अतिरिक्त ऐसी पूजाओं द्वारा सौभाग्यवश यदि हम सब साक्षात श्री माताजी की के समय उपस्थित हों तो साधक कई अन्य शक्तियां प्राप्त कर सकता हमें सदैव उनके आगमन से पूर्व ही पूजा के है। इसलिए पूजा के ऐसे अवसरों पर, इधर स्थान पर एकत्र हो बन्धन लेकर, ध्यान में उधर की बातें सोचकर बिना अपना समय बैठ जाना चाहिए। जब श्री माताजी पधारें व्यर्थ किए, हमें पूर्ण एकाग्रता से अपना चित्त तो सभी को उनके सम्मान में खड़े हो जाना श्री माताजी की पूजा में लगा कर पूजा का चाहिए और उनके स्थान ग्रहण करने के अधिकतम लाभ उठाने के लिए प्रयत्नशील उपरान्त ही बैठना चाहिए। पूजा में हमें लम्बे रहना चाहिए। पूजा 61 जुलाई-अगस्त, 2001 औैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 7 व पूजा का महत्व श्रीमाताजी की आज्ञा के बिना कोई भी हर सहजयोगी को पूजा के ऐसे प्राप्त व्यक्ति श्री माताजी को न छुए । ऐसा करना सुअवसरों से अधिकतम लाभ उठाने का प्रयत्न दैवी - नियमाचरणों के विरुद्ध है। जब श्री माताजी पूजा के स्थान से प्रस्थान करती हैं तो प्रत्येक व्यक्ति को उनके सम्मान में खड़े पूजा का हर क्षण बहुमूल्य होता है अतः करना चाहिए। ऐसी पूजा के समय सहजयोगियों को हो जाना चाहिए। याद रखना चाहिए कि वे साक्षात आदिशक्ति के समक्ष बैठे हैं। अतः श्री माताजी की आज्ञा के बिना उन्हें आखें बन्द नहीं पहले, यदि सम्भव हो, श्रद्धा पूर्वक प्रसाद करनी चाहिएं । सहजयोगियों को चाहिए कि जाने से ग्रहण कर उसका आनन्द-लाभ करें। श्री माताजी के फोटो के प्रति चित्त सदैव पूरी तरह से पूजा की ओर होना चाहिए और छोटी-छोटी परेशानियों आवश्यक सम्मान नियम के अनुभव के कारण चित्त की एकाग्रता भंग नहीं होनी चाहिए। सहजयोगियों को चाहिए अन्यत्र जहाँ भी स्थापित हो साक्षात् श्री कि वे पूजा में ऐसे नए लोगों को लेकर माताजी की प्रतीक है। अतः इसे पूर्ण सम्मान न आएं जिन्होंने अभी श्री माताजी के के साथ, सभी नियमाचरणों का पालन करते दिव्य-स्वरूप को नहीं पहचाना क्योंकि हुए रखना चाहिए। घर के किसी ऊँचे स्थान इससे पूजा में चैतन्य प्रवाह पर असर पड़ श्री माताज़ी की तस्वीर हमारे घर में या पर प्रतिष्ठापित कर श्री माताजी के फोटो को प्रायः इधर-उधर नहीं करना चाहिये। सकता है। श्री माताजी का चित्र गृह सुसज्जित प्रत्येक व्यक्ति को हृदय से हर क्षण पूजा के कार्यक्रम में मग्न रहना चाहिए करने की वस्तु नहीं है अतः प्रतिदिन और चित्त द्वारा चैतन्य लहरियों को इसकी पूजा कर, पुष्पार्पण किया जाना अधिकाधिक आत्मसात करने का प्रयत्न चाहिए फोटोग्राफ को गुलाब जल से साफ करना चाहिए । इससे न केवल हमारे कर इस पर कुंकुम लगाया जाना चाहिए। व्यक्तिगत उत्थान में सहायता मिलती प्रातः एवम् सायं श्री माताजी के चित्र के है बल्कि श्री माताजी के साकार रूप सम्मुख दीपक या मोमबत्ती जला कर द्वारा प्रसारित चैतन्य लहरियों को ठीक मन्त्रोच्चारण करना वांछनीय (अभीष्ट) है। से ग्रहण करने पर श्री माताजी को भी आराम मिलता है। सामूहिक पूजा, ध्यान-धारणा, तत्पश्चात आरती तथा मन्त्रोच्चारण के माध्यम से वहां पूजा के उपरान्त, श्री माताजी की आज्ञा विद्यमान रह कर हमारी पूजा को स्वीकार से, साधक समीप जा कर श्री माताजी के करने की प्रार्थना हम परम पूज्या श्री माताजी दर्शन कर सकते हैं। से करते हैं। अतः पूजा तथा आरती के 62 जुलाई-अगस्त, 2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक र व 8 पूजा का महत्व पश्चात् कुछ समय तक शांत रहकर हम लोग यह अर्पण करने का नाटक करें श्रद्धा-समर्पण के उस वातावरण को बनाये और परमात्मा हमें अपनी कृपा तथा प्रेम में रखना आवश्यक है क्योंकि उस समय चैतन्य नहला दें। इसके लिए वे अति उत्सुक हैं। लहरियों के माध्यम से श्री माताजी की निराकार रूप में उपस्थिति प्रकट होती है । इस समय सहजयोगी शांति पूर्वक ध्यान उपयोग कर सकते हैं :- मग्न रह कर श्री माताजी द्वारा आशीष रूप में भेजी गई चैतन्य लहरियों को अधिकाधिक विशेष पूजा के लिए स्वयं को तैयार करने के आप इस प्रलेख को तीन प्रकार से 1. साक्षात्, श्री माताजी के समक्ष, एक लिए । 2. उन सहजयोग केन्द्रों के पथ- प्रदर्शक आत्म-सात कर आनन्द प्राप्त करें। सामूहिक पूजा तथा ध्यान के समय के रूप में जो किसी विशेष अवसर पर व्यक्तिगत मामलों, या जो मामले सहजयोग सामूहिक पूजा करना चाहते हों। से सम्बंधित न हों, पर बातचीत न करें क्योंकि ऐसा करने से हमारा चित्त लक्ष्य से भटक 3. घर पर एक साधारण पूजा के पथ-प्रदर्शक के रूप में। जाता है। पहला मार्ग पूर्ण उत्सच है जो मानव को पूजा के पश्चात् बंधन लें, यह चैतन्य श्री माताजी के समक्ष एक विशेष पूजा के लहरियों का कवच है जो हमारी रक्षा करता लिए स्वयं को तैयार करने की आज्ञा देता है। अतः निर्विचारिता में रहकर श्री माताजी है। भेंट जो चढ़ाई जाती है, महत्वहीन नहीं के प्रति पूर्ण सम्मान तथा श्रद्धा पूर्वक बंधन होतीं। पूजा और मंत्र बनाने वाले ॠषियों लेना चाहिए। सन्तुलित तथा निर्विचार रहने को ज्ञान था कि वे क्या कर रहे हैं, और श्री के लिए हमे अपनी कुंडलिनी ऊपर उठानी माताजी ने नियामाचरण बनायें हैं इससे ज्ञात होता है कि पूजा विधि में बड़ा लचीलापन चाहिए। इस क्रिया के अभ्यास से अन्तध्यान 1 मात्र (केवल चित्त को अन्दर ले जा कर) है तथा परिस्थितियों के प्रति अनुकूलन- होने से हमारी कुंडलिनी उठ जायेगी| शीलता है (एडाप्टेबिलिटी)। पूजा करने का अभिप्राय यह होता है पूजा के लिए क्या आवश्यक अब तक आपको यह ज्ञान प्राप्त हो कि लोग उन देवताओं को प्रसन्न कर सके चुका है कि श्रद्धा तथा निर्विचार समाधि के जिनकी धूजा श्री माताजी के समक्ष की जाती अतिरिक्त कुछ भी आवश्यक नहीं। पूजा है, कोई भी कर्मकाण्ड लह। ों के ज्ञान उत्सव एक ऐसी मधुर अभिव्यक्ति है जो तथा कृपा अनुभूति का स्थान नहीं ले मनुष्यों को अर्पण तथा ग्रहण करने का नाटक सकता । इसके विपरीत कर्म काण्ड करने की आज्ञा देती है। कहावतः- "परमात्मा सौ गुना लौटाते हैं। प्रकट करती है कि ईश्वर अधीर हैं कि करते हैं, फिर भी बिना सम्मान भावना लहरियों के विरुद्ध कार्य करता है। यद्यपि हम अपनी माँ श्री माताजी से प्रेम 63 जुलाई-अगस्त, 2001 पूजा का महत्व चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 परमात्मा की पूजा नहीं हो सकती। अतः सकते हैं, भजन गाना या मौन रहना या सम्मान तथा नियमाचरणों, की आवश्यकता श्री माताजी के नामों का उच्चारण हमारी है परमात्मा के प्रति जितनी अधिक श्रद्धा इच्छानुसार तथा प्रेम हम में है उतना ही अधिक सम्मान में अर्पण स्वरूप ही हैं। हमसे प्रकट होता है। प्रारम्भ करने के लिए प्रथम आवश्यकता इस समारोह की खोज तथा इसके विषय में पढ़ना है। है क्योंकि ये सब कार्य भी स्वयं तीसरे स्थान पर घर में साधारण पूजा है। श्री माताजी के चरण कमलों को सामान्य रूप से धोना, इत्र व पुष्प भेंट करना एक या दूसरे स्थान पर यह प्रलेख उन केन्द्रों दो मंत्र उच्चारण करना, दीपक और अगरबत्ती के लिए पथ-प्रदर्शक हैं जो किसी विशेष जलाना पर्याप्त है। अगले अध्याय में श्रद्धा अवसर पर सामूहिक पूजा करना चाहते हैं। की अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में उपयोग इस कार्यविधि का नियमपूर्वक अनुसरण की जाने वाली विधियों तथा वस्तुओं का वर्णन है। के महत्वपूर्ण है । इस कुछ भाग छोड़े भी जा जुलाई-अगस्त, 2001 64 Receg Sa Vecognilion pecial WHEREAS, on March 21st, Shri Mataji Nirmala Davi, founder of Sahaja Yoga Meditation, will celebrate her 78th birthday: and WHEREAS, Shri Mataji is one of the most significant voices on world peace loday and has been nominated twice for the Nobel Peace Prize for her extraordinary.humanitarian efforts, and WHEREAS, Sahaja Yoga is a meditation practice which has helped hundreds of thousands in over 75 countries worldwide enjoy more peaceful, healthy, and balanced lives; and WHEREAS, the City of Plano would like to send birthday felicitations and well wishes to Shri Mataji on the day of her 78th birthday, March 21, 2001, NOW, THEREFORE, I, JERAN AKERS, MAYOR OF THE CITY OF PLANO, TEXAS do hereby extend special recognition to Shri Mataji Nirmala Devi for her revolutionary and seifless work in the field of yoga, meditation and world peace. Offica fthe Mayer FINDOE Shri Mataji On behalf of the Government and People of British Columbia I am pleased to offer you my hearty congratulations and very best wishes on the occasion of your Seventy-eighth Birthday May you enjoy every future happiness March 21, 2001 Premier 105 LOS OUNDED Birthday Greetings Shri Natji ri Nimada Devi %3D We in the "City of the Angels extend our very best wishes for a wonderful birthday celebration filled with family, friends and fond memories. March 21, 2001 the Richard JRiordan Mayor Proclamation City of Cincinnati le It Proclaimed: Whereas, shri Adiji Nirmala Deit, foder af Sinhujar Yogur Medituitleim attd wice-newANed fior the Nobel Pence Prize, in thar ondy prmn to wadi m-ma kimdalini, u euery nhich is the key he healih, hilane, uner pence all well-being Thi nrgi erablen indrvidualt to efforthesshy ter inte a tate a higher anarerE nd to become a C ndes dnd sicielies, e of higher KouE Of uell-teing in thưir fmilien, communtdes and sNcieties, aind, Whereas, it nare ihun 70 ieller täroughuur North Aamerieut, puullle Silhuje Yoga programs are bring conducivd. in the Grenier Cincinnati area Salua Yoga Meiditation Auna bent itieght, Jree uf charge, at ihe Cinciamati Art Atuverim, Xavie University, Ravinninl tern Collage, Clermont Coliege ihe Cinciumali ri AMunen, Navie: University. Rarinn H .and Miami Universiy for emer 15 yeart Currenth, free rkir jprngrant are being offered tu thr puhlie at the Coumuni Friendy Mereting Houre ir North Avandale, md Whereas, in mer cotetrice. Jor the pat 30 pears, Solarja foga har het afered sund tuught to lundrede uf thounanita a peopile riegaileas of oge ar backytuun The trianskarunatianal renlor are healing wpiag and univeraal Frut Bomday tai rurzil. South Africa io Narth tmerica, Surhaiu Yogn Mutitation hux hriped impreve iver and iommunities and. Whereas, shrt Aanaji fainderd Sabaja Yoga interniatiarial in 1970 ut a nan- to hutpring puople throuigh the uhe af ean-ta-leun profit, ulutieer argunizitien, dedicated mentitation wechnlqan Prohlems of aleohpl and drug mildictiont, healih tnd emational tasare hrve heen mach tnpryral thrtugh ther une of Sahuja Yog4, nil, Whereas, Sbri Mataji Nirmula rni har made outstandung contritutions o ndern life thruge her disciven f Sahaja Yoja and her auny chartialde iand hiemanitarian endeavorn. These inclule Intrmational schaali fiw children.arounl the warld, organttaniM as improve the eroic condition of Iniluir wani, Edieul facilities thut ice no-tavati Sahaja Yoga techriqier, angolng renmerch ing Suhrju Yogi technigues at the Nationat fastitates af ne atrens-reulueion progru ir aeranis S KEpainien, oatreach projeranee ja social service agncies auch as hetvred woe's shullers iarectional faclitia, drug refutiliration arnera enior citizet cerE. puhlicatian af her her pegeing rarel warldwide to speak at iee Saikaja Toga Health, Heihesilat, MD, workpslite hoak "Afeta-Madern Era and pirigra Low, Cherefore, 3, Charlie Lnken, Mayar af the City of Cincianati do hereby preclaim Wednesday, March 21. 2001, ar "SHRI NIRMALA DEVI DAY" N Cincinnati. IN WITNESS WHEREOF, I Auve hereunta set ary hand and rutie thiv seal of the Ciy of Cincinnul to he ifixed this I5 day of March ir the pear Tme Theungnd und One. Charlle Luken, Muyyie City af Cincinnati Allegheny County of Office of the Chief Executive Community Citation of Merit irarded to Shri Mataji Nirmala Devi In celchration of vaur 78" hirthday on March 21, 2001, I offer best wisheH and recugnize your significant contributiuns to world peace and extraordinary humanitarian achievements; and in recognitinn of distingushed endeavor and accomplishment, which have eamed the esteens af the citizens . GEAllegheny County Presented on hehalf of the eiticens of Allegheny County by the Office of the Chief ExccutivE, this 3th day af March, 2001 Ratry lle Chief Executive GOVERNOR GRAY DAVIS Commendation Shri Mataji Nirmala Devi Mach 21, 2001 It is a great pleasure to join your family and friends in celebrating your 78" birthday. Your dedication to your community is truly an inspiration. I hope the gathering of your dear family and friends helps you celebrate this momentous occasion in a very meaningful way. On behalf of the people of the State of California, please accept my congratulations on this very special day. ay Davis Governor Gray Davis STATE CAPTTOL SACRAMENTO. CALIFORNIA 958 L4 (916)445-2841 New Vork tate Assembly Citation HONORING Shri Mataji Nizmala Ekert, farnder of Suhair Yoge Meilituria, nn ithe occunion nf her TW lirihdg WHEREAS, A Me sese of this AsteIdlent Bonly tan romumNte ant arkowrievige lue intiviui ul devore reir Mvn primiring prce. Ail amut well-britig, therety bainging frope at eervne thry Weneda WIHERKAS, Miei Aanyi Niruti Devi, Imder ef Satuja Yops Mestination, bem e Marci 31 Chrinhm, falit, her fatlher nar me of Whe anthurs af tintia Contmtatirat and Marc 31 23 WHEREAS, Stei Mtil's spetal qunliter were eecagniced tre Matumur Gonidh, nuf ahư ahen sred in hir Aslv ere teragnisnt ny Matum tlie munvenieni fior the Inutrpeiadeare of Awi aut Gomdhi she utinl vardirine wd m erive WHEREAS. Shri AMuti fomuded in intranienai whonl fr chuldreni in buit, a iryumittioni to my ihe eriminr eonudifa of Auduet emuen and a huspt whicdi amevessfuly emploer Sailagai Yoga merhads: nd WHENEAS, Siri Miterji is a dyrsnir ant puwerfet presener uho mvils serkheder. ung peeches wkd prace, the mle of vew in sociry nd self reviizntion, and Sri Manais iphn ina the problemt af imrmity are deep amf reveatng e ku been i re deqn and ga paker at ur teruninual seniies aned rferenees; and WHEREAS, Sui AMuni ias nwer beru mitd for the Nobel Pece Prite, hun bren fnornd by he Emtel Stes Congres, tribnation n peare. hnalh wuf the well being af people in over 75 runtans, wut , and hut recelit ay hteraatinual astrds and rittm in rerogntion af her WHEREAS. Salurja Yogr ir tnght loilly, wrhour churge, r Mor Sare tiniversity of New York Patrz wnd iat thie thry Top Druy Rehabilinanim farliv it Rhinebeck, Nirw York ; anuf Neir WHEREAS, Suhjur Pngu i curreurly the jet of ei e reunt ar ahe Nutiomal inititutes of ilenbt. IN Washingtn. D.C. regarding the medil benefier of dhe peatiee, and extend le Shri Ma ar cimaraia kir ir WHEREAS, Thia Ariemled ldy is greatly muned ste ere nd devord rommtitnent in helping create radnmer, hralhier, wrr buleric ed ven Mrmigh Mnitation, r, Mierefore. Ie it PMr, Mhereforc, be it s Legisltne Boİy pNar ie itr deliteroti e honr Shri Maniji Nimaka Devt her 78h ENrthulav, ad be ir farthes RESOLVED, Tiur this fenmuler af Shatuajar Yogu Medimion, on phe occuria f her 7ei Ertulay, and be it perthes RESOLVED, That t eayy af hin Ciutim, arilaty engrosird, be tratrt to Sri Manaji Ninmele ent. ly Orider of Keven A. Calill Kevir A. Cahill, Member of Assemtly STATE OF TEXAS OFFICE OF THE GOVERRNC To all to whom these presets shall come, Greetings: Know ije, that ye. this certificate is presented to: Shri Mataji Nirmala Devi On The Occasiom Of Her 78th Birthday In sotisng whercof 1 fane sipunl my me cauted the Seal af tlie Stare uf Ter f ffnd ar the City if stmtin, thii the 1 day o JAlannch, 201 Higual my OF STATE PuRry Rice KICK Rick Perry Governor of Texas TEXAS City of Pittsburgh Office of the Mayor A Proclamation By virtue of the authority vested in me as Mayor of the City of Pittsburgh, I do hereby issue this proclamation honoring Shri Mataji Nirmala Devi WHEREAS, Shri Mataji Nirmala Devi was born on March 21, 1923 in Chindiwara, India and as a young girl Mahatma Gandhi recognized her deep and special qualities and; WHEREAS, she is a world renowned spiritual leader and the founder of Sahaja Yoga, a natural, effortless way to spiritual enlightenment and, WHEREAS, she has founded many charitable organizations and has been awarded the United Nations Peace Medal, has been invited by the United Nations four times to speak on world peace and has twice been nominated for the Nobel Peuce Prize. NOW THEREFORE BE IT RESOLVED that I, as Mayor of the City of Pittsburgh, do hereby congratulate Shri Mataji Nirmala Devi on her 78 birthday and do hereby deelare Wednesday, March 21, 2001 to be "Shri Mataji Nirmala Devi Day" in the City of Pittsburgh. IN WITNESS WHEREOF, I have hereunto set my hand and caused the Seai of the City of Pittsburgh to be affixed. Tom Murphy March 21, 2001 Mejoi March 21", 2001 Congratulations Shri Mataji Nirmala Devi On your 78 Birthday Edmontun City Couticil Bryan Andersan Robert Noce Allan Bolstad Michael Phair Rose Rosenberger Jim Toylor Terry Cavanagh Leruy Chahley Wendy Kinsella Dave Thiele Larry Langley Bu Smith Mayor CITY ---------------------- 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-0.txt ६1KMAI, जुलाई - अगस्त, 2001 खडः XIII अंकः 7 व 8 NIVERSAL PURE चैतन्य लहरी महीं मूलाधारे कमपि मणिपूरे हुतवह स्थितं स्वाधिष्ठाने हृदि मरुत-माकाश- मुपरि । मनोऽपि भ्रूमध्ये सकलमपि भित्वा कुलपथ सहस्रारे पदमें सह रहसि पत्या चिहरसे।। हे देवी, मूधाधार में पृथ्वी तत्व का, मणिपुर (नाभि) चक्र में जल तत्व का, स्वाधिष्ठान चक्र में अग्नि तत्व का, अनहद चक्र में वायु तत्व का और इससे ऊपर विशुद्धि चक्र में आकाश तत्व का, आज्ञा चक्र में मनस (Mind) का भेदन करके कुलामार्ग (सुषुम्ना मार्ग) से उठकर सहस्रार कमल में आप अपने पति श्री सदाशिव के साथ विहार करती हैं। DHARMA ५{ RELIGION 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-1.txt House of Representatives 7th District, Nein York roclamation "78h Birthday Celebration of Shri Mataji Nirmala Devi" is the sense of this Congressional Body, that thase individuals who have dedicated their life to public service and to belping others, should be publicly acknowledged and applauded. One such person is Shri Mataji Nirmala Duvi, and Whereas: Shri Mataji was born in Chindwara, India n 1923 and raised as a Christian. As: child her maturity and wisdomm impressed all who she encountered At a very young age she fought for India's independence working elosely with Mahatma Gandhi and today, continues to strive towards the realzation of his drenm for universal peace and unity, and. Whereas: Shri Mataji has a deep and abiding commitment and dedication to world peace the role of women in society, and 'Scif-Realization These issues are what have motivated Shri Mataji to become involved in her fight to improve the quality of life. Shu is the founder of Sahaja Yoga, a deep meditation which cnhances health ILId peacefulness and connects you to a higher level of awwareness of yourself and Whereas: pu "nox pajeDA 1 SOd au jo Shri Mataji has been nominated twice for the Nobel Peace Prize, she has reccived Global Nominations and in 1993 sho was appointed Honorary Menber of the Presidium of the Petravska Academy of Art and Science in St. Petersburg In 1986 she was named "Personality of the Year" by the Italian Govermment and was presented with a Congressional Record Honorarium by the 105" Congress in 1997, and Whereas: Friends, family and colleagues have gathered on this the 21" day of March, 200Ita celebrate Shrn Mataji's 78" birthday and to honor her for all her accomplishments Wishing her continued peace, happiness and success, be it therefore. Whereas: By the power incumbent in me as the duly clected Member of the House of Representatives from New York's Seventh Congressional District, I bestow Congressional Recognition upon Proclaimed: Shri Mataji NVirmała Devi In Witness lhereof, I have hereunto set my hand: NDRESS 4OSEPH CROWLEV Member of Congress STES 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-2.txt ख ड अंक जुलाई चै तन्य लहरी 2 00 1 7 व XI11 अगस्त की पर 78वीं जन्मदिवस पूजा, 21.3.2001 16 78वाँ जन्मदिवस समारोह. 20.3.2001 27 श्री महादेव पूजा, 25.2.2001 38 एकादश रुद्र पूजा, 8.6.88 47 पूजा का महत्त्व 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-3.txt ै त न य ल ह री प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर मुनीरका विहार, नई दिल्ली - 110067 162 मुद्रक अमरनाथ प्रैस प्रा. लिमिटेड डब्ल्यू एस एस 2/47 कीर्ति नगर औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली -15 फोन : 5447291, 5170197 सदस्यता के लिए कृपया इस पत्ते पर लिखें :- श्री ओ.पी. चान्दना एन - 463 ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली 110034 फोन : (011) 7013464 सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पत्ते पर भेजें : चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी-17, कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली - 110016 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-4.txt 78वीं जन्मदिवस पूजा निर्मल धाम - दिल्ली 21.3.2001 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज आपने मेरा 78वाँ जन्मदिवस मनाने का निर्णय किया है आपने बहुत सुन्दर गुब्बारे सजाए हैं जैसे किसी नन्हें शिशु के जन्म दिवस पर प्रेममय हाथों से सजाए जाते हैं। कल जैसा मैंने आपको बताया आपको अपने विषय में खोज करनी होगी। यह खोजने का भी प्रयत्न करें कि जिस प्रकार आप मुझसे प्रेम करते हैं उसी प्रकार कितना प्रेम आप अन्य लोगों से करते हैं? सहजयोग में आए हैं तो आपको अपने अन्तर्अवलोकन के माध्यम से यह देख पाना हृदय में प्रेम का सागर प्राप्त करना है आसान होगा कि आप अन्य लोगों से कितना और अन्य लोगों के में भी इसी प्रेम करते हैं और उनकी कितनी परवाह प्रेम के सागर को खोजना है प्रेम ही करते हैं। अगर ऐसा हो जाए तो बिना वह गुण है जो आपको सभी कार्य समय बर्बाद किए सहजयोग की बहुत सी अत्यन्त सहजता से और सुन्दरता से समस्याएं समाप्त हो जाएंगी। मुझे बताया करने में सहायक है जैसा मैं ने सदैव गया है कि सहजयोग में अब भी लोग धन के पीछे भागते हैं वो सोचते हैं कि यही हैं तो कभी भी आप बेईमान नहीं हो सकते। स्थान हैं जहाँ वे कुछ पैसा बना सकते हैं। आपकी रुचि किसी अन्य चीज में न होकर मैं हैरान हूँ! यह वह क्षेत्र नहीं है जहाँ आप केवल स्वतन्त्रता प्राप्ति तथा उन अन्य चीज़ों अपनी इस इच्छा को कार्यान्वित कर सकें। में होगी जो आप अपने देश के लिए करना जरा से समय में आपकी पोल खुल जाएगी। चाहते हैं। इस देश में बहुत से महान इसके विपरीत यदि आप सहजयोग में नेताओं शहीद हुए हैं। हो सकता है आपमें से कुछ या उपनेताओं के रूप में अपनी शक्तितयों लोगों को इसका ज्ञान न हो कि किस की चिन्ता करते हैं, मेरी समझ में नहीं प्रकार उन्होंनें कष्टों को झेला! ये सब वे आता, तो भी आप भयंकर गलती करते हैं। देश प्रेम के कारण कर पाए । आपका देश यह स्थान इन सब चीज़ों के लिए नहीं हैं! आध्यात्मिकता का देश है, यह पूर्ण आत्मानन्द इसके लिए आप राजनीति में जा सकते हैं का देश है। यह ऐसा देश है जिसमें केवल और पैसा बनाने के लिए आप किसी घुड़दौड़ शान्ति का साम्राज्य है और जब आप ऐसे मैदान आदि में जा सकते हैं। आप यदि देश से प्रेम करते है, तो किस प्रकार आपमें हृदय कहा है, आप यदि अपने देश से प्रेम करते जुलाई अगस्त, 2001 । क े में । ।। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-5.txt 78वीं जन्मदिवस पूजा 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 7 व 8 क १ েইি। 99; ॐ ा ू धन और सत्ता आदि हथियाने के मूर्खतापूर्ण यदि इन व्यर्थ की चीजों के पीछे भागते हैं विचार आते हैं? मैं तो ये बात समझ नहीं और अपने अन्दर गड़बड़ियाँ करते हैं, यदि पाती। आप अच्छी तरह से जानते हैं कि आप स्वयं को नष्ट करना चाहते हैं तो मैंने अपने जीवन में उन चीजों की कभी किसी अन्य क्षेत्र में चले जाएं, सहजयोग में चिन्ता नहीं की। नि:सन्देह हमें कार्य के न आएं। सहजयोग में आपको ये जानना लिए धन चाहिए. सभी कार्यों के लिए धन होगा कि आपको वास्तव में समर्पित एवं चाहिए। परन्तु इसके पीछे दौड़ने की या ईमानदार होना पड़ेगा। अपने प्रेम का, अपनी उदारता का आनन्द, आपको लेना चाहिए। नहीं हैं। मैं हैरान हूँ कि मेरे इतने वर्षो के आप अनाव्रत तो हो ही जाएंगे परन्तु इसके कठोर परिश्रम के बावजूद भी कुछ लोग बाद जाएंगे कहाँ? आपकी स्थिति क्या होगी? आप यदि मूर्खताएं करते रहे तो, मैं कहूँगीं मूर्ख लोग। ये बात मेरी समझ में नहीं कि आपको भी अन्य लोगों की तरह से आती। उन्हें ये समझ लेना चाहेए कि नरक में जाना होगा क्योंकि प्रेम के स्वर्ग में बिना किसी देरी के उनकी पोल खुल आने के पश्चात् भी यदि आप इन मूर्खता पूर्ण चीज़ों के पीछे दौड़ते रहेंगे तो बड़ी तेज़ी से नरक में कूद जाएंगे। ये बात मैं ये वर्ष पोल खुलने का है. बिल्कुल स्पष्ट देख सकती हूँ। मुझे ये सब अपने अनाव्रत होने का, ये बात मैंने आपको पिछली जन्मदिवस पर नहीं कहना चाहिए था परन्तु बार भी बताई थी। आपके हृदय में यदि ये वर्ष अनावरण का है, अतः बहुत सावधान सहजयोग के लिए प्रेम नहीं है आपके हृदय रहें इस वर्ष किसी को भी क्षमा नहीं किया में यदि अपनी माँ के लिए प्रेम नहीं है, आप जाएगा। मैं क्या करूं, चाहे आज मेरा 1. इसका लालच करने की कोई आवश्यकता ऐसे हैं जो धन के पीछे दौड़ रहे हैं। कुछ जाएगी। जुलाई अगस्त, 2001 क 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-6.txt 78वीं जन्मदिवस पूजा 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व B जन्मदिवस है मुझे आपको बताना पड़ेगा परन्तु सर्वप्रथम आपको इस बात का ज्ञान कि यह चुपचाप नहीं बैठेगा। आप जानते होना चाहिए कि क्या आप ये कार्य करने हैं कि कुछ शक्तियां भिन्न-भिन्न वर्षों में के योग्य हैं या विपरीत दिशा में ही कार्य संचारित होती हैं। मुझे लगता है कि भिन्न किए चले जा रहे हैं ? ये सुनकर मैं बहुत प्रकार की शक्तियां संचारित होने लगती हैं हैरान थी कि इतने वर्षों के पश्चात् भी और इस बार पोल खोलने वाली शक्तित लोगों ने अपने पुराने प्रलोभन नहीं त्यागे । संचारित होगी। आप चाहे अगुआ हों या न आज भी उनमें ये प्रलोभन बने हुए हैं इस हों, किसी भी प्रकार की बेईमानी यदि आप जन्मदिवस पर आप अवश्य ये बात स्मरण कर रहे हैं तो आपकी पोल खुल जाएगी करें कि सहजयोग करने में आपने कितने और आपको उचित दण्ड मिलेगा। सहजयोग वर्ष लगाए? जो आनन्द आपने प्राप्त किया उसे आप समझे तथा ये भी समझे कि हर वर्ष मेरे जन्मदिवस का चाहे आपको दण्डित न करे परन्तु फिर भी बहुत से तरीके हैं जिनके माध्यम से ये शक्ति कार्य करेगी। आनन्द आपने कितने दिनों तक लिया और इसमें कित ना गहन उ तरे ? किस इस शक्ति के कार्य करने का ३० प्रकार गहन उतरे? कितना परिवर्तित पहला तरीका अलक्ष्मी कहलाता है। अलक्ष्मी अर्थात जब आपको दण्ड मिलेगा हुए? किस प्रकार आपने आनन्द लिया और तो आप हैरान होंगे, आप दिवालिए हो किस प्रकार सहजयोग के गुणों को आत्मसात जाएंगे, आपके पास धन बिल्कुल न रह किया? जाएगा, आप अनावृत हो जाएगे, हो सकता है कि जेल चले जाएं। आज यद्यपि बहुत दिवस है. मैं आपको बताती हैँ कि उसे पूर्णतः ईमानदार होना पड़ता है। उसे आप सहजयोगी का मुख्य गुण ये है कि शुभ आप अशुभ कभी न बने। यहाँ पैसा बनाने के लिए नहीं आना है। वह यहाँ सत्ता हथियाने के लिए नहीं आया है, कल के प्रवचन में मैंने आपको समझाया वह तो यहाँ इस नए सुन्दर संसार में था कि आपके पास कौन सी शक्तियाँ हैं उन्नत होने के लिए आया है जिसका हम जिन्हें आप अन्य लोगों को दे सकते हैं जिनका आप स्वयं आनन्द ले सकते हैं विश्व का सृजन करना है, सर्वत्र रहने वाले और जिन्हें आप कार्यान्वित कर सकते हैं। सभी लोगों के लिए चाहे वे जंगलों में हो सृजन कर रहे हैं। सबके लिए हमने इस जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-7.txt 78वीं जन्मदिवस पूजा 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व 8 ४ ह भ ा Mother या हिमालय में या अन्य कहीं खोए हुए हों। नियंत्रण कर लिया है परन्तु अभी भी आपमें हमें ये सुन्दर संवेदना, आत्मसम्मान और कुछ लोग ऐसे हैं जो मूर्खता के दुर्गन्धमय गरिमा का ये सुन्दर अस्तित्व सर्वत्र फैलाना कीचड़ में फंसे हुए हैं । है। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि क्या आप आत्मा हैं? क्या आप अपनी आत्मा का सम्मान करते है? कल ही मैंने कहा था कि मेरा जन्मदिवस मना रहे हैं। ये बहुत अच्छी स्वयं को पहचानो। यदि ऐसा हो जाए कि बात है। यह सब देखकर अच्छा लगता है। आप स्वयं का सम्मान करने लगे तो बहुत आप सब मेरा श्रृंगार हैं। पूरे विश्व के लोग अच्छा होगा। आत्मा का सम्मन करना ये देखें कि आप लोग मेरे बच्चे हैं और आप बहुत महत्वपूर्ण है। आप यदि अपना सम्मान सब इतने मूल्यवान हैं और सूझबूझ वाले नहीं करते, बेकार की चीज़ों के पीछे दौड़ते हैं। आप मेरे बच्चे हैं मैंने वास्तव में आपके रहते हैं तो हम क्या करें? सहजयोग में लिए इस प्रकार कार्य किया है कि अपने आपने कौन से गुण आत्मसात किए हैं? जीवन की हर श्वास में मैंने आपके विषय कहीं यहां पर केवल व्यापार आदि जैसा में सोचा है । यह कार्य मैंने इतने सुन्दर तो नहीं शुरू कर लिया? यह अत्यन्त तरीके से करना चाहा कि आप वास्तव में आप लोग इतने उत्साह एवं प्रेम से कुछ खेदजनक बात है। परन्तु अब भी ऐसे लोग अच्छे, आदर्श सूझ-बूझ वाले विशिष्ट लोग हैं जो इन चीज़ों के दलदल में नष्ट हुए बनें। वह ऐसा दिन होगा जब आपको महसूस पड़े हैं। मैं जानती हूँ कि आपने बहुत सारी होगा कि आपका जन्मदिवस मनाया जा चीजों पर नियंत्रण कर लिया है, आपने रहा है। जब आप पूर्णतः स्वच्छ हो जाएंगे, बहुत सी उपलब्धियाँ प्राप्त कर ली हैं।मनुष्य पूर्णतः निर्मल हो जाएंगे, प्रेम की शुद्ध मूर्ति के लिए असम्भव चीजें आपने प्राप्त कर ली बन जाएंगे, वह दिन आपका, और मेरा भी, हैं इन सभी असम्भव चीज़ों पर आपने जन्म दिवस होगा ये सारी बातें मुझे आपको जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-8.txt 78वीं जन्मदिवस पूजा 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 7 व 8 बतानी पड़ीं क्योंकि कुछ चीजें मेरे सामनें आसान है परन्तु जब आप अपने विरुद्ध आई हैं और मुझे दुःख पहुँचा कि अभी भी कार्य करते हैं, सर्वसाधारण लोगों की कुछ लोग अपने मूल्य को, अपने महत्च को तरह से आचरण करते हैं तो आप नहीं समझ रहे हैं। यही कारण है कि मैंने सहजयोग में नहीं रह सकते। आपको उस दिन आपको बताया था कि स्वयं का सहजयोग से बाहर फेंक दिया जाएगा। ज्ञान प्राप्त करो। सर्वप्रथम 'स्वः' ही आत्मा है, यही आत्मा है, सर्वशक्तिमान परमात्मा जाएगा तो आप कहाँ रहेगे, आपका का प्रतिबिम्ब । आप भी यदि सर्व- क्या होगा? यह बात आप अच्छी तरह साधारण विवेकहीन लोगों की तरह से से जानते हैं। रहना चाहते हैं तो आप सहजयोग से बाहर रहें। परन्तु यदि आप सोचते हैं कि सहजयोग में आकर वास्तव में अपना महत्व करती हूँ कि शुभ बने। ऐसा कोई कार्य न दर्शाना है और अपने पर गर्व करना है तो करें जो अशुभ हो। ये लोग उसे मर्यादा समझने का प्रयत्न करें कि सहजयोग में आपको इन सब जब आपको सहजयोग से निकाल दिया आज के शुभ दिन मैं आपसे प्रार्थना कहते हैं परन्तु छोटी-छोटी चीजों से प्रकट होता है कि आप मंगलमय हैं। अत्यन्त सूक्ष्म, अत्यन्त छोटी- छोटी चीजें दर्शाती दुर्ब लताओं को त्यागना होगा। कु णडलिनी जब उठती है तो छः चक्रो को ज्योतिर्मय करके इन्हें पार करती है। है कि आप मंगलमय हैं ये सब आपको सीखनी नहीं पड़तीं, स्वतः ही ये गुण आपमें आ जाते हैं और सकती हूँ परन्तु आपकी कुण्डलिनी आप अपनी मंगलमयता का आनन्द लेते आपको दण्ड देगी आपको सुधारने के हैं। क्योंकि आप पवित्र हैं, निर्मल हैं, अपने लिए वह हर आवश्यक कार्य करेगी। अन्तःस्थित इस गुण का आप आनन्द लेते एक सीमा तक वह कार्य करेगी और हैं। जब यह घटित हो जाता है तभी आपका एक सीमा तक मैं आपको क्षमा कर उसके परचात् जब उसे लगेगा कि जन्म-दिवस होता है । आपको सुधारना सम्भव नहीं है तों मैं नहीं जानती क्या होगा और किस प्रकार आप जानते हैं कि आपका पुनर्जन्म घटनाएं घटेंगी! सहजयोग में आना, हुआ, आप सबका पुनर्जन्म हुआ आपका इसमें चलना और इसे कार्यान्वित करना पुनर्जन्म हुआ परन्तु अभी तक आप बच्चे जुलाई अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-9.txt 78वीं जन्मदिवरा पूजा 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व 8 थे। पर अब आप बड़े हो गए हैं हर तरह को नहीं समझ पाते! फिर भी, आपने से वह बड़प्पन नज़र आना चाहिए। व्यक्ति बहुत अच्छी उन्नति की है। मैं जानती हूँ जब बड़ा होता है तो अपनी अभिव्यक्ति कि बहुत से लोग बहुत अच्छे सहजयोगी करने के लिए, भिन्न कार्यों को करने हैं, वो वास्तव में बहुत महान सहजयोगी के लिए वह उद्यत हो जाता है । इसी हैं। उन्हें सहजयोगी या महायोगी कहलाने प्रकार जब आप सहजयोग में बड़े हो का पूरा अधिकार है। परन्तु ऐसा होना तथी जाते हैं तो आपको दर्शाना होता है सम्भव है और ऐसा तभी दिखाई देगा जब कि आप बड़े हो गए हैं, कि आप बहुत आप वास्तव में अन्दर से उन्नत हो जाएंगे गहन हैं और वरिष्ठ व्यक्ति है मैं ने और आपकी आत्मा प्रेम के स्वच्छ ।(पारदर्शी) कुछ छोटे बच्चों को भी देखा है। वह इतने सागर की तरह से चमक उठेगी। अब तार उन्नत एवं विवेकशील हैं कि कभी-कभी जुड़ गया है आपको सभी चक्रों का ज्ञान तो मुझे हैरानी होती है कि महान सन्त पुनः है आप जानते हैं कि कुण्डलिनी कैसे उठाई अवतरित हुए हैं! वह वास्तव में महान लोग जाती है। लोगों को रोगमुक्त करना, उनका इलाज करना भी आपको आता है। इस सारे ज्ञान के साथ इस प्रकार का जीवन परन्तु अभी भी यदि आप मूर्खतापूर्ण जो आपको मिला है यह दूध की तरह से है चीजों के पीछे भाग रहे हैं, अब भी जो आप अपनी शक्तियों को देते हैं और यदि आपमें कामुकता एवं लालच है तो आप सशक्त हो जाते हैं। इसके विषय में बेहतर होगा कि आप सहजयोग को आप आलस्य नहीं करते। आप यदि अपने हाल पर छोड़कर कोई और क्षेत्र आलसी हैं तो सहजयोगी नहीं हैं। खोज लें जहाँ आप यह सब कर सकें। अपने हृदय में इस चिंगारी को, इस आश्चर्य की बात है कि सहजयोग में शोले को लेकर आपने चनना है कि आकर भी लोग किस प्रकार अपने गौरव आपको आत्मा का ज्ञान है और ये हैं जिन्होंने पुनर्जन्म लिया है । ा ७ जुलाई अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-10.txt 78वीं जन्मदिवर पूजा 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 ु ज्ञान भी है कि अन्य लोगों के प्रति मुझे बहुत प्रेम करते हैं और मेरा जन्मदिवस आपने क्या करना है नि:सन्देह अपने मनाने के लिए आपने क्या कुछ किया है । पूर्वजन्मों में आप महान साधक रहे होंगे जिस प्रकार आपने इतनी सारी सजावट और आपकी जिज्ञासा ही आपको सहजयोग की है. मैं आपको पहले ही बता चुकी हूँ कि तक लाई है। उसी जिज्ञासा के साथ अब आप लोग ही मेरे अलंकार हैं आपके जीवन आप यहाँ पर हैं, फिर भी बेकार की चीजों ही मेरी सजावट है। जिस प्रकार आप स्वयं की ओर दौड़ रहे हैं! ऐसे लोग उन्नत नहीं को पहचानें गे, जिस प्रकार आप आचरण हो सकते। ऐसे लोग न खुद उन्नत होते करेंगे, उन्हीं से विश्व भर में चीजों को हैं और न अन्य लोगों को उन्नत कर समझा जाएगा। ये सब कहने का मेरा सकते हैं। अभिप्राय मात्र इतना है कि स्मरण रखें कि आपको उन्नत होना है। आपको अत्यन्त गहन व्यक्तित्व का बनना है अपना चीज़ जो व्यक्ति को समझनी तो मुख्य है वह ये है कि आप प्रेम में कितने उन्नत जन्मदिवस मनाते हुए आपको अपने अन्दर हुए हैं? आप किसी भयावह व्यक्ति को देखें उन्नत होना होगा । जो बहुत कठोर है, बड़ी अभद्रता पूर्वक बात करता है। वह सहजयोगी नहीं है, किसी भी तरह से नहीं है। परन्तु जो आपका क्या अनुभव है और आपने क्या व्यक्ति अन्य लोगों से प्रेम करता है, उनके देखा? आप किससे मिले, किस प्रकार बारे में सोचता है. अन्य लोगों की देखभाल बातचीत की? मेरा अभिप्राय ये है कि मैं करता है और जो अत्त्यन्त उदार है, वही बहुत से नाम जानती हूँ। वास्तव में मैं हर सहजयोगी है आप लोग विशेष गुणों वाले व्यक्ति का नाम जानती हूँ, हर व्यक्ति की हैं और ये गुण आपके जीवन में दिखाई कुण्डलिनी को पहचानती हूँ। मैं ये भी देने चाहिएं। मैं जानती हूँ कि आप लोग जानती हूँ कि किसकी कुण्डलिनी ठीक है हर रोज ये देखने का प्रयत्न करें कि जुलाई अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-11.txt 78वीं जन्मदिवस पूजा 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 श. और किसकी नहीं। मैं से लोगों को वह सामूहिक आनन्द की अवस्था प्राप्त कर जानती हूैँ। लोग मुझसे पूछते हैं कि आपको ली है! इतने नाम कैसे याद हैं? किस प्रकार आप इतने सारे नाम याद रखती हैं? ये बात मैं नहीं जानती परन्तु जब भी मैं किसी व्यक्ति बंधन नहीं लगाए। आप जो चाहे करिए। को देखती हैूँ तो उसकी कुण्डलिनी को जिस प्रकार से भी आप करना चाहें करें । देखती हूँ और उसकी कुण्डलिनी से मैं कभी मैंने धन आदि के विषय में कष्ट नहीं जान जाती हूँ कि वह व्यक्ति कौन है । दिया| परन्तु यह परीक्षा स्थल हैं। आप चाहे हजारों कुण्डलिनियाँ हों, परन्तु मैं जान यदि स्वयं को नहीं परखेंगे तो किस प्रकार जाती हूँ कौन व्यक्ति कौन है, क्योंकि मैं जान पाएंगे कि आप कहाँ तक पहुँचे हैं? उन्हें प्रेम करती हूँ। बहुत मैं ने आप पर कभी किसी प्रकार के आप ही विद्यार्थी हैं, आप ही परीक्षक हैं और आप ही वह व्यक्ति हैं जिसने स्वयं को आप यदि किसी को प्रेम करते हैं तो प्रमाण पत्र देना है। ऐसी अवस्था में आप जान जाते हैं कि वह क्या है। यह प्रेम समझने लगते हैं। ऐसी बहुत सी चीज़ों को मूर्खतापूर्ण रोमांस आदि नहीं है ये तो आप समझने लगते हैं जो अभी तक आपने अत्यन्त गहन एहसास है। अपने हृदय के नहीं समझी थीं मेरा अभिप्राय है ज्ञान। उद्यान में जब आप प्रवेश करते हैं तो चहुँ तथाकथित प्रचलित ज्ञान, कोई ज्ञान नहीं ओर आपको सुन्दर सुगन्ध महसूस होती है क्योंकि ये सब असत्य है, यह सारा ज्ञान है। सन्तों की तरह से ऐसे सुन्दर लोगों., मानसिक है। परन्तु वास्तव में पूर्ण ज्ञान का उद्धघारकों और सहजयोगियों के विषय में उदय आप में होता है. सभी के विषय में. जब आप सोचते हैं तो आपको कृतज्ञता सभी पक्षों के विषय में, आपके आस-पास की इतनी अनुभूति होती है कि आपने भी के विषय में और आप इतना स्पष्ट जान जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-12.txt 78वीं जन्मदिवस समारोह 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 7 व 8 जाते हैं कि यह होना चाहिए, यह घटित आप करते हैं, पलट कर उसका प्रभाव आप होना चाहिए। आपको ये स्पष्ट जान जाना पर होता है, केवल आध्यात्मिक उन्नति का चाहिए कि आप कहाँ हैं, आप क्या हैं और कोई दुष्प्रभाव नहीं होता। यह पुष्पित होती आपकी स्थिति क्या है? ऐसा नहीं है कि है, सुगन्धमय है और सुन्दर है। अपनी आत्मा आपमें कोई कम शक्तियाँ हैं। सभी शक्तियाँ के साथ होना इतना सुन्दर अनुभव है मानो आपमें हैं। परन्तु इनके लिए आपको गहनता आप स्वर्ग के सुन्दर उद्यान में प्रविश कर गए में जाना होगा। उदाहरण के रूप में मान हों। वह अनुभूति यदि आप प्राप्त करना लो ये कुआँ है जिसमें पानी है। परन्तु चाहते हैं तो इन सब मूर्खतापूर्ण विचारों को आपकी बाल्टी यदि इसकी गहराई में नहीं त्याग दें। सांसारिक मूर्खता को त्याग दें, ये जाती तो किस प्रकार आप जल ला सकते सभी चीजें त्याग दें। तब आपको लगेगा कि है? आपकी बाल्टी यदि पत्थरों से भरी हुई अब आप उस स्थान पर हैं जहाँ आपको हैं तो उस कुएं का क्या लाभ है? इसी होना चाहिए था। आपको कोई सन्देह न रह प्रकार हमारे अन्दर सभी कुछ विद्यमान है, जाएगा, आपमें कोई ललक न रहेगी किसी जैसे मैंने कल आपको बताया, और सहजयोग भी प्रकार से आप असन्तुष्ट न होंगे। परन्तु के मार्ग से आप गहनता में जा सकते हैं अब भी कुछ लोग अत्यन्त आरम्भिक स्थिति और अपने विषय में जान सकते हैं। यह में हैं मैं ये बात जानती हूँ परन्तु उन्हें मैंने अत्यन्त सुन्दर एवं स्वच्छ है और इसी का नहीं बताया क्योंकि यह वर्ष अनावरण का आनन्द लिया जाना चाहिए। जिन मूर्खतापूर्ण वर्ष है और उन सबकी पोल खुल जाएगी। चीजों के पीछे आप दौड़ रहे हैं और जिन्हें इसमें कोई सन्देह नहीं ऐसा कोई भी कार्य करने का क्या लाभ है जिससे आपकी पोल खुल जाए और पूरा सहजयोग संसार आपको मैंने आपको पहले भी बताया है कि अपराधी मान ले या आपको सम्मान. के अयोग्य कुण्डलिनी ही शुद्ध इच्छा है। यही शुद्ध समझे? या तो आप इससे बाहर हो जाएं इच्छा है क्योंकि अन्य इच्छाओं की पूर्ति तो और यदि आप इसमें ऊँचाई की सीढ़ियाँ कभी नहीं होती। आप एक चीज़ खरीदते हैं चढ़ना चाहते हैं तो आपकी दृष्टि ऊपर की पर उसका आनन्द नहीं लेते और दूसरी ओर होनी चाहिए. नीचे की ओर नहीं। ये चीज़ खरीदना चाहते हैं। उसका भी आनन्द देखना होगा कि कौन सी सीढ़ियाँ हैं। वो नहीं लेते। फिर एक अन्य चीज़ खरीदना सीढ़ियाँ आपको चढ़नी होंगी ये सीढ़ियाँ चाहते हैं। वह भी आपको आनन्द नहीं देती चढ़ने के पश्चात् आप कहाँ पहुँचते हैं ये बात क्योंकि यह शुद्ध इच्छा नहीं है। अर्थशास्त्र मैं आपको बताती हैँ। एक अत्यन्त सुन्दर एवं का सिद्धान्त है कि इच्छाएं कभी शांत नहीं सुगन्धमय उद्यान में, अपनी आत्मा के उद्यान होतीं। एक के बाद एक चीज़ आप खरीदते में जो कि बहुत सुन्दर है। इस सुन्दर उद्यान चले जाते हैं। अन्त में क्या होता है कि सभी में पहुँचने की अपेक्षा आप संसार की दलदल उद्यम लड़खड़ा जाते हैं । अमरीका में यही में फंसे हुए है जहाँ बहुत से लोग खो गए हैं! हो रहा है। एक सिद्धान्त है कि जो भी कुछ आप सहजयोग में किसलिए आए हैं? आप महत्वपूर्ण समझते हैं उनका नहीं। जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-13.txt 78वीं जन्मदिवस पूजा 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 ये सारे मूर्खतापूर्ण विचार छोड़ दें, इ्ञान प्राप्ति की जिज्ञासा होती है तो आत्मा आध्यात्मिकता को अपनाने का प्रयत्न करें, का ज्ञान आपको मिलता है। आत्मा के पावन आध्यात्मिकता को। पावनता ही नारा विषय में जानने की इच्छा शुद्ध इच्छा होनी है। आपमें पावनता होनी ही चाहिए और चाहिए। निःसन्देह आप विशेष लोग हैं। सहजयोग में आप अत्यन्त सुगमता से अपने निःसन्देह विशिष्ट बनने के लिए ही आपको अन्दर पावनता स्थापित कर सकते हैं । चुना गया है आपमें कुछ विशेषता तो आपको साक्षी अवस्था में उतरना होगा। होगी कि आप उस स्थिति तक पहुँच गए आपके साक्षीभाव के प्रक्षेपण से प्रतिक्रियाओं जहाँ आप आत्मा बनने का प्रयत्न कर रहे के अहं तथा बन्धन समाप्त हो जाएंगे। तब हैं। आत्मा पूर्णतः आत्मसन्तुष्ट करती है। आप प्रतिक्रिया नहीं करेगे, साक्षी भाव होकर सन्तुष्टि के लिए इसे किसी अन्य चीज़ की देखेंगे। सच्चा ज्ञान केवल साक्षित्व के आवश्यकता नहीं। वास्तव में ये सन्तोष-मूर्ति माध्यम से ही आता है साक्षी रूप में है। यह चीज़ों को देखती है, साक्षी रूप से यदि आप देखना नहीं जानते तो हम देखती हैं और साक्षी भाव से देखते कह सकते है कि जो भी ज्ञान आपको इसे जान जाती है । ये सब जानती है, प्राप्त होता है वह अहं तथा बन्धनों के आपको बताना नहीं पड़ता कि ये ऐसा है. माध्यम से प्राप्त होता है यह पूर्ण ये वैसा है। किसी चीज़ की बहुत अधिक ज्ञान नहीं है किसी भी चीज़ के पूर्णज्ञान अभिव्यक्ति नहीं करनी पड़ती। आप यदि को प्राप्त करने के लिए आपको पूर्णत्व स्वच्छ व्यक्ति हैं, आपकी इच्छाएं स्वच्छ हैं बिन्दु तक पहुँचना होगा। अतः उस स्तर और आपमें यदि उत्थान की शुद्ध इच्छा है तक पहुँचे जहाँ आप पूर्णतः स्वच्छ, पावन तो यह आत्म अभिव्यक्ति करती है। और निर्मल हों। हुए अतः एक बार फिर मुझे कुण्डलिनी के आपमें यदि कोई दोष हों तो उनके विषय में बताना है कि आपकी कुण्डलिनी लिए कभी अपनी भर्त्सना न करें। दोष तो ऐसी होनी चाहिए जो आपके अन्दर होने ही हैं क्योंकि आप मानव हैं। अपनी पूर्णतः स्थापित हो चुकी हो, आपमें आध्यात्मिक शक्ति से आप इन दोषों को पूर्णतः अभिव्यक्त हो रही हो और आपको नियंत्रित कर सकते हैं। इसके लिए आपको पूर्णतः ज्योतित कर रही हो। कुण्डलिनी क्या कुरना होगा? अन्तरअवलोकन प्रथम ऐसी होनी चाहिए और यह तभी सम्भव चीज़ है। सर्वप्रथम खोजने का प्रयत्न है जब आप इसकी उन्नति में बाधाएं न करें। स्वयं को स्वयं से अलग करके खड़ी करें आप यदि इसे उन्नत होने दें कहें, "हाँ, श्रीमान आप कैसे है?" इस तो ये उन्नत होती है और कार्य करती है। जिस प्रकार आप जानते हैं, ये कार्य है? और बाहर भी आप अपने को देखने मैंने वर्ष 1970 में आरम्भ किया था । इसलिए लगते हैं और जो 'स्वः' नहीं हैं, उन सब नहीं कि मैं इसे पहले आरम्भ नहीं कर करने लगते हैं। जब आपमें सकती थी, इसलिए भी नहीं कि संसार में प्रकार आरम्भ करें। "हां, आपका क्या इरादा चीज़ों को दूर 10 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-14.txt 78वीं जन्मदिवस समारोह 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-Xlll अंक 7 व 8 सभी लोग बुरे हैं, परन्तु इसलिए कि सभी मुझमें ये कमी हैं, मैं क्यों पकड़ रहा हूँ? प्रकार की कुण्डलिनियों के संचालन में उस चक्र पर मैं क्यों पकड़ रहा हूँ? ऐसा कुशलता प्राप्त करने की मैं प्रतीक्षा कर क्यों घटित हो रहा है? रही थी। मुझे सभी प्रकार के क्रम परिवर्तन (Permutations and Combinations) कार्यान्वित करने थे और मैंने सोचा कि और यह तभी सम्भव होगी जब आप इन यदि कोई ऐसा मार्ग खोज निकाला जाए चक्रों की अनुभूति कर सकें। अब उन्नत जिसके माध्यम से सारे संयोग एक ही रेखा होना आपके हाथ में है महान लोगों, महान में कार्यान्वित हो सकें, केवल तभी कुण्डलिनी व्यक्तित्वों, इतिहास बनाने वाले महान उठेगी और ऐसा ही हुआ, यही घटित हुआ। धुरन्धर व्यक्तियों के रूप में उन्नत हों, मेरी सच्ची इच्छा के कारण, क्योंकि लोगों जिनका सम्मान होता है। सभी महान लोग के लिए मुझे बहुत दुख था कि वे अपने तथा महान सन्त बड़ी हस्ती वाले लोग थे। जीवन व्यर्थ की चीजों में बरबाद कर रहे परन्तु उन्हें कुण्डलिनी उठाने का ज्ञान न है, किसी चीज के लिए उनके हृदय में सच्चा एहसास नहीं है, किसी भी चीज़ के उठाने का विशेष ज्ञान आपके पास है। लिए सच्चा प्रेम नहीं है और उन्हें भी कोई आप जानते हैं कि कुण्डलिनी का अन्दाज़ा प्रेम नहीं करता। वे प्रेम नहीं कर सकते, किस प्रकार लगाया जाए? आप ये भी कोई उन्हें प्रेम नहीं करता और वे कष्टों में जानते हैं कि समस्या को किस प्रकार समझा फॅसे ये शिक्षा आपको स्वयं को देनी होगी था। ये ज्ञान आपको प्राप्त है। कुण्डलिनी हुए हैं । अतः मैं कहूँगी कि यह मेरा जाए तथा प्रेम एवं सुन्दरतापूर्वक किसी भी सोचा विचारा कार्य था। मैंने मनुष्यों को व्यक्ति को उसकी समस्या के विषय में बहुत सावधानी पूर्वक देखा। क्यों वे इस किस प्रकार बताया जाए। अतः आपकी प्रकार करते हैं? क्यों इस प्रकार का आचरण आत्मा का सन्देश ये है कि आप परस्पर करते हैं? क्यों वे चीजों को समझते नहीं ? प्रेम करें। आप यदि किसी से प्रेम नहीं क्यों वे कठोर हैं, क्यों चिल्लाते हैं? क्यों करते तो क्या कारण है? क्यों नहीं आप मारा-मारी करते हैं? क्यों वे ये सब कार्य प्रेम करते, उस व्यक्ति में क्या खराबी है? करते हैं? असन्तुलनों के कारण। परन्तु वह यदि सहजयोगी है और अच्छा अन्तर्वलोकन से यदि आप ये असन्तुलन सहजयोगी है तो क्या आपकी भावना ईष्ष्या देखने लगें तो अब आपको स्वयं को ठीक के कारण है या लालच के कारण या करने का ज्ञान है और आप इसे कार्यान्वित कामुकता के कारण? अब भी आप ऐसे ही कर सकते हैं। आपको केवल अपने चक्रों हैं। पूरे विश्व बन्धुत्व की एकाकारिता का पर कार्य करना होगा। देखें कि कौन सा वास्तव में आनन्द लिया जाना चाहिए। चक्र पकड़ रहा है? कहाँ समस्या है? आपको इसका अत्यन्त सुन्दरता पूर्वक आनन्द लिया अपना सम्मान इस प्रकार से करना होगा जाना चाहिए। यहाँ विद्यमान सभी चीजों कि आप स्वयं अपने डाक्टर बन जाएं और को देखें। इनमें कितना सामंजस्य है! ये स्वयं आपको अपने विषय में पूर्ण ज्ञान हो। सामंजस्य इसलिए है क्योंकि ये सब कार्य जुलाई-अगस्त, 2001 11 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-15.txt 78वीं जन्मदिवस पूजा 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 प्रेम से किया गया है, इसीलिए इसमें पर विजय प्राप्त कर ली है। न्याय ने अन्याय तारतम्यता है। लोगों में यह इस प्रकार की पर जीत प्राप्त कर ली है। आज भी वही तारतम्यता का सृजन करता है कि एक भावना इतनी अधिक हैं कि मैं झण्डे को दूसरे की संगति का आनन्द आप देख देख भी नहीं सकती। इसे देखते ही मुझे सकते हैं। एक दूसरे की उपलब्धियों का पूरा इतिहास याद आ जाता है. पूरा दृश्य आनन्द इतना आनन्ददायी है कि इसका मेरे सामने आ जाता है कि कितने लोगों ने वर्णन मैं शब्दों में नहीं कर सकती। ऐसा बलिदान किया, कितने लोग शहीद हुए कर पाना असम्भव है। शब्द भावनाओं को लोगों ने इसके लिए कितना संघर्ष किया? प्रकट करने में असमर्थ हैं। जैसे मैंने बताया झण्डा उन्हीं के सम्मान में है और आप भी था, ऐसा प्रतीत होता है मानो आप स्वर्गीय उन्हीं सब चीजों के आधार हैं। आप सब उद्यान में प्रवेश कर गए हों। जब आप भी उन्हीं आदर्शो, उन सब बलिदानों तथा स्वयं जान जाएं तो ऐसी ही भावना आपमें मानव के हित में प्राप्त की जाने वाली होनी चाहिए क्योंकि जब आप स्वयं को उपलब्धियों के लिए हैं । अन्य लोगों जान जाते हैं तो आपको अपने अस्तित्व का के लिए आपको बहुत कुछ प्राप्त करना ज्ञान हो जाता है और आपको इतनी प्रसन्नता होगा । होती है कि आपकी आत्मा इतनी सुन्दर है, आप इतने सुन्दर हैं, इतने आनन्दित हैं और आपके पास सभी कुछ है! यह ज्ञान बनाएं जो आपने अन्य लोगों के लिए करने कि अन्दर से आप आनन्द से इतने हैं। लोगों के लिए आप क्या प्राप्त कर सुगन्धित हैं, आवश्यक है। यह अवस्था सकते हैं? अपने अन्दर ये गुण आत्मसात आपमें अवश्य होनी चाहिए। मैंने देखा है करने के कौन से मार्ग हैं जिनसे आप कि जब आप आनन्दातिरेक में होते हैं तो पूर्णतः अद्वितीय व्यक्तित्व बन सकें? बहुत आप नाचते हैं, गाते हैं वह स्थिति बहुत से महान नेता तथा महान लोग हुए जिन्हें ही अच्छी होती है। हर समय आपकी आत्मा लोग याद करते हैं। अब आपको क्या देखना को छोटी-छोटी चीजों से झूम उठना चाहिए। चाहिए? किस चीज़ ने उन्हें इतना महान किसी भी छोटी सी क्रांति, किसी भी बनाया? इतने वर्षों के पश्चात् भी अभी तक कलात्मक चीज़, करुणापूर्ण किया गया छोटा लोग उन्हें याद क्यों करते हैं? मैंने आपको सा कार्य या कृतज्ञता की अभिव्यक्ति से। शिवाजी महाराज का पुतला दिया है। भावना की उस गहनता को आप महसूस भी एक महान आत्मा थे। उनके सिद्धान्त, करें। उदाहरण के रूप में आज मैंने झण्डे उनका सौन्दर्यमय जीवन, उनकी भाषा और देखे। जब हमने स्वतन्त्रता प्राप्त की तब ये उनका दृष्टिकोण अत्यन्त महान था। सर्वोपरि झण्डा, हमने बर्तानवी झण्डा हटाए जाने के वें एक बहादुर व्यक्ति थे। बहादुरी का गुण पश्चात् इस झण्डे को ऊपर जाते हुए देखा। जब आपमें आ जाएगा तो किसी भी महत्वपूर्ण मैं बता नहीं सकती उस वक्त कौन सी कार्य को करने में आप न हिचकिचाएंगे। भावना थी कि आखिरकार सत्य ने असत्य किसी से आपको डर नहीं लगेगा। बिना अपने अन्दर उन कार्यों की रूपरेखा | वे जुलाई-अगस्त, 2001 12 नप 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-16.txt 78वीं जन्मदिवस समारोह 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 7 व 8 इधर-उधर की बात किए आप जान जाएंगे परम चैतन्य से हो गया है जो सभी कुछ कि किस प्रकार समाधान खोजना है और कार्यान्वित करेगा। किस प्रकार कार्यान्वित करना है। ये कहते हुए मुझे अंत्यन्त हर्ष हो रहा आपके साथ ऐसा तभी घटित होगा है कि आज मैंने देखा कि आप में से बहुत जब आपको वास्तव में ये ज्ञान प्राप्त हो से लोग बहुत अच्छे सहजयोगी हैं, आपमें जाएगा, जब आपमें साहस की ऐसी शक्ति से बहुत से। यदि आप किसी ऐसे सहजयोगी आ जाएगी। आप दुस्साहसी नहीं बनेंगे। को देखें कि वह अच्छा नहीं है तो मुझे आपमें विवेक होगा। साहस के साथ आपमें इसकी सूचना दें। कृपा करके मुझे इसके विवेक होगा और यही आत्मा है, यही आपको विषय में बताएं। पता लगाएं कि कीं कोई बेशुमार विवेक एवं साहस प्रदान करेगी। व्यक्ति अत्याचार करने का या अन्य लोगों यह युद्ध करने की हिम्मत नहीं है और न को नियन्त्रित करने का पैसा बनाने का ही हिंसक स्वभाव है और न ही असभ्य प्रयत्न तो नहीं कर रहा, कहीं कोई कामुक स्वभाव। यह तो अत्यन्त शान्त, सुन्दर एवं या लोभी व्यक्ति तो नहीं? इसकी अभिव्यक्ति साहसिक दृष्टिकोण है चीनी सन्त की होनी चाहिए। एक बार जब आप इसे एक कहानी है। उस सन्त से राजा ने कहा कार्यान्वित कर लेंगे, आप समझ लें कि ये कि वह उसके मुर्गे को मुर्ग-लड़ाई का क्षेत्र धर्मयुद्ध' कहलाता है। धर्मयुद्ध अर्थात । परन्तु ये युद्ध ऐसा नहीं मुर्गे को यहाँ ले आओ। मैं उसे प्रशिक्षण है। हमारा धर्मयुद्ध ये है कि हम धर्म पर दूंगा। मुकाबले के दिन सभी मुर्गे अखाड़े खड़े हैं। धर्म का अर्थ ये तथाकथित ध्म से दौड़ गए क्योंकि वहाँ तो विवेक एवं नहीं, इसका अर्थ विश्व-निर्मला - धर्म है। साहस की शक्ति खड़ी हुई थी। शान्त होते आप अपने धर्म पर डटे हुए हैं और यह हुए भी साहस अत्यन्त शक्तिशाली है। नकारात्मकता जिसे हम अधर्म कहते हैं आपको किसी पर बम नहीं फेंकने होते, आपसे युद्ध कर रही है। अतः अपने धर्म पर केवल डटे रहें। जब तक आप पूर्णतः धार्मिक नहीं साहसपूर्वक डटे रहना होता है। ये एक हैं तब तक सहजयोग में आप कोई उपलब्धि प्राप्त नहीं कर सकते मैंने देखा यह अत्यन्त विनम्र है और मधुर है। इसी है कि विदेश में रहने वाले लोगों के बड़े साहस के साथ आप डटे रहेंगे । मैं जानती अटपटे विचार होते हैं। मेरे पास आकर वे हूँ आपमें से बहुत से लोग ऐसे ही हैं कहेंगे कि श्री माताजी मेरी एक पत्नी है उनके लिए न कोई संघर्ष है न कोई लड़ाई। परन्तु मैं एक अन्य महिला से प्रेम करता हूँ साहसपूर्वक डटे रहना और उचित लक्ष्य अब मैं क्या करू? मैंने कहा, "आप बाहर को प्राप्त करना। ऐसा करना बिल्कुल सम्भव हो जाओ, बस केवल बाहर हो जाओ"। या क्योंकि अब आपके तार सर्वशक्तिमान कई बार पत्नियाँ आकर कहतीं हैं परमात्मा से जुड़ गए हैं, आपका सम्बन्ध "श्री माताजी मेरे एक अन्य पुरूष से प्रशिक्षण दे| सन्त ने कहा ठीक है. अपने धर्म की लड़ाई किसी की हत्या नहीं करनी होती। अन्य गुण है जिसकी अभिव्यक्ति होगी । 13 जुलाई-अगस्त, 2001 পीट 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-17.txt 78वीं जन्मदिवस पूजा 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 7 व B सम्बन्ध हैं, मुझे क्या करना चाहिए?" मैंने चिन्तित हूँ जिन्होंने सहजयोग को पतन कहा, "तुम बाहर हो जाओ, केवल इतना की ओर खींचा है। उन्हें समझ लेना चाहिए ही, तुम सहजयोग से बाहर हो जाओ।" कि मैं सब कुछ समझती हूँ। जब उन्हें तुम सहजयोग के लिए बेकार हो और हानि पहुँचेगी तो मुझे दोष न दें। ये बात सहजयोग तुम्हारे लिए बेकार है। तुम पूरी अत्यन्त स्पष्ट है कि वे सहजयोग के समीप तरह से जाति बाहर हो। अब उन्हें सहजयोग भी नहीं हैं । दिन प्रतिदिन सहजयोग तो से कुछ नहीं लेना देना। आपको पावन करता है। आप किसी अनुभव को देखें, किसी व्यक्ति को देखें, कुछ भारत में हमारे साथ बेईमानी की घटनाओं को देखें। ये आपको पवित्र करती समस्या है । भारतीय लोग बेईमान हैं। मैं हैं। यही इसकी पहचान है। मान लो मैं सोचती हूँ कि यह हमारा विशेष स्वभाव है, किसी बेईमान व्यक्ति को देखें तो हम अत्यन्त भ्रष्ट लोग हैं। भारत इतना अपने अन्दर देखने लगूंगी कि मैं स्वयं तो भ्रष्ट हो गया है कि मुझे विश्वास नहीं कोई बेईमानी नहीं कर रही? कल्पना करें होता! पैंतीस वर्ष पूर्व मैं यहीं थी, तब हमने आप ही वह व्यक्ति हैं जो सुधारक है। भ्रष्टाचार का नाम भी नहीं सुना था। अब अपने पर पड़ने वाले प्रभावों को सुधार रहे ये लोग इतने भ्रष्ट हो गए हैं कि भ्रष्टाचार हैं। आप कहाँ खड़े है? क्या आप सुधार सहजयोग में भी प्रवेश कर गया है। भ्रष्टाचार बिन्दु पर खड़े हैं या इसके साथ ही समाप्त यदि सहजयोग में प्रवेश करेगा तो भ्रष्टाचारी हो रहे हैं? एक दम से खोज लिए जाएंगे और दण्डित होंगे। मैं उन्हें दण्डित नहीं करूंगी, उनकी अपनी कुण्डलिनी उन्हें दण्डित करेगी। तो किया, आज का प्रवचन उसी का विस्तार अपराध करने में हर देश की अपनी विशेषता है। मैं आपको बता रही हूँ कि आप बहुत है। हम यहाँ अपराध करने नहीं आए हैं। महान लोग हैं। आप पूरे विश्व को बचा रहे अपराधियों के रूप में हम अपनी अभिव्यक्ति हैं। अपने जीवन काल में यह सब घटित नहीं करेंगे। हम तो यहाँ यह प्रमाणित होने की आशा मैंने नहीं की थी। परन्तु यह करने के लिए हैं कि हम पूर्ण हैं और बहुत सब घटित हो गया और मैं आप सबको, अच्छे लोग हैं। यही आत्मा है कि हम पूर्ण अत्यन्त अत्यन्त महान व्यक्त्तियों को, देखती है। पूर्व संस्कारों के अनुसार अब हमें नहीं हूँ। महिलाओं को विशेष रूप से बहुत चलना है। अब हम नए साम्राज्य में पहुँच अधिक कार्य करना होगा। मैं स्वयं एक गए हैं। ये एक नया क्षेत्र है जिसमें हम महिला हूँ और महिलाओं में प्रेम करने एवं पहुँचे हैं और इसका हमें आनन्द लेना सहन करने की एक विशेष शक्ति होती है। चाहिए। मैं तुरन्त कल का प्रवचन सभी लोगों ने पसन्द बम मुझे आशा है कि आप सब सुन्दर सहजयोगी बनेंगे। विश्व को कोई अन्य मेरे विचार में आप सब लोगों ने समझ चीज़ विश्वस्त नहीं कर सकती, केवल लिया है कि आज मैं उन लोगों के लिए आपका कार्य, आपकी योग्यताएं, आपके जुलाई-अगस्त, 2001 14 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-18.txt 78 वीं जन्मदिवस समारोह 21.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व 8 प्रेम की शक्ति विश्वस्त कर सकती है। केवल आनन्द की अनुभूति करनी होगी। आप लोगों के विषय में मैंने बहुत सी चीजें यह सब मैं आपको इसलिए बता रही हूँ देखीं अनुभव की और जब मैं उनके विषय क्योंकि यह आपके अन्तःस्थित है, आपकी में सोचती हूँ तो वास्तव में हर्ष होता है। मैं शक्ति है, हर समय यह आपके अन्दर देखती हूँ कि लोग किस प्रकार संचालन विद्यमान है और आप इसका सामना भी करते हैं और किस प्रकार उन्होंने कठिन कर चुके हैं। आप सबको मैं जन्मदिवस की चीजों की देखभाल की और उन्हें कार्यान्वित शुभ कामनाएं देती हूँ और कामना करती हूँ किया। अब हम एक नए विश्व में हैं और कि आप एक नया जन्म, नई सूझबूझ और उस नए विश्व तथा सहजयोगियों की प्रजाति नया व्यक्तित्व प्राप्त करें। उस व्यक्तित्व में उन्हें परिणाम दर्शाने होंगे। उन्हें अपनी को स्वीकार करने का प्रयत्न करें, उसका शक्तियों, साहस और अपनी सूझ-बूझ का सम्मान करने का प्रयत्न करें। यही व्यक्तित्व परिचय देना होगा ये गम्भीर बात नहीं है है, यही आपकी आत्मा है। और न ही ये उथली बात है। यह तो आनन्ददायी है। आपको अपने विषय में परमात्मा आपको धन्य करे। 15 जुलाई-अगस्त, 2081 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-19.txt 78वाँ जन्मदिवस समारोह दिल्ली 20.3.2001 न जायते म्रियते वा कदाचिन्नाय भूत्वा शंविता वा न भूयः अजो नित्य शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।। आत्मा जन्म-मरण से परे है। ये सदैव था और सदैव रहेगा। आत्मा अजन्मा है, नित्य है, शाश्वत है, पुरातन है और शरीर का नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता। ्री हमारी परम पूज्य, परम प्रिय माँ श्री देशों से सहजयोगी जन्मोत्सव में भाग लेने आदिशक्ति के 78वें जन्म दिवस का के लिए दिल्ली के निर्मल- धाम में एकत्र शुभअवसर 21 मार्च 2001 को आया। यह हुए और तीन दिनों तक निरन्तर दिव्य जन्मदिवस उनका था जो जन्म-मरण से चैतन्य लहरियों के सागर में गोते लगाए परे हैं, शाश्वत हैं और जैसा गुरुनानक तथा समारोह की रौनक बढ़ाई । बहुत से देवजी ने कहा है 'अकाल मूरत, अजूनी प्रतिष्ठावान लोगों ने भी इस समारोह में सैबं हैं। जन्म-मरण से ऊपर होते हुए भी भाग लिया और परमेश्वरी माँ के प्रति अपनी कृपासिन्धु आदिशक्ति अपने सहजयोगी बच्चों कृतज्ञता तथा श्रद्धा प्रकट की। विश्व भर को अपना जन्मोत्सव मनाकर आनन्द के से श्री माताजी को उनके 78वें जन्मदिवस सागर में गोते लगाने, अपनी उत्क्रान्ति तथा के शुभअवसर पर हजारों बधाई सन्देश आनन्द की शाश्वत अवस्था प्राप्त करने का आए जिनमें मानवहित के लिए किए गए अवसर प्रदान करती हैं। विश्व के 96वें उनके प्रयत्नों की भूरि- भूरि प्रशंसा की गई 16 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-20.txt 78वाँ जन्मदिवस समारोह 20.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व 8 थी कुछ बधाई सन्देश निम्नलिखित हैं:- की आपकी विशिष्ट उपलब्धियों, और सेवाओं स्टेट ऑफ न्यूयार्क से गवर्नर जार्ज ई. को हृदय से मान्यता प्रदान करता हॅँ। आपके विशेष प्रयत्नों एवं उपलब्धियों ने एलिध्नी प्रदेश के नागरिकों के हृदय को आपके लिए सम्मानभाव से भर दिया है। पेटकी लिखते हैं:- प्रिय श्री माताजी, 1 आपके 78वें जन्मदिवस के शुभ अवसर पर अन्य लोगों के साथ सामूहिक रूप में आपको हार्दिक कधाई भेजते हुए मुझे अत्यन्त हर्ष हो रहा है । सिटि ऑफ पिट्सबर्ग (अमेरिका) के मेयर टॉम मर्फी अपने घोषणा पत्र में लिखते हैं:- श्री माताजी निर्मलादेवी का जन्म 21 मार्च 1923 को भारत में छिंदवाड़ा नामक चरित्र और वर्षों अपने उच्च स्थान पर हुआ। उनके बाल्यकाल में ही महात्मा गांधी ने उनकी प्रतिभा एवं विशिष्ट गुणों तक अथक कार्य के लिए आप विशेष बधाई और गहन सम्मान के अधिकारी हैं. प्रम एवं करुणा का जो उदाहरण गुणा की पहचाना। स्थापित किया है इस पर गर्व होना स्वाभाविक है। विश्वास रखें कि जिन लोगों सहजयोग की संस्थापक हैं। सहजयोग को आपने विवेक एवं सम्पन्नता प्रदान आध्यात्मिक उत्क्रान्ति प्राप्त करने का एक उनके लिए आप प्रेरणा का स्रोत हैं। आपने वे विश्व विख्यात आध्यात्मिक नेता तथा की अत्यन्त स्वाभाविक कार्य है जिसके लिए व्यक्ति को कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता। उन्होंने बहुत सी धमार्थ संस्थाओं की स्थापना की है। उन्हें संयुक्त राष्ट्र शान्ति मैडल प्रदान किया गया है और विश्वशान्ति पर आपके जन्मदिवस पर मंगलकामनाएं भाषण देने के लिए चार बार संयुक्त राषट्र संघ में आमंत्रित किया गया है नोबल जार्ज ई. पेटकी। शान्ति पुरस्कार के लिए भी दो बार उन्हें दिवस हम परमात्मा करे कि ये शुभ सबको जीवन में प्राप्त वरदानों पर दृष्टिपात करने का अवसर प्रदान करे। करते हुए। मनोनीत किया गया। County of Allegheny से बहां के चीफ एग्ज़िक्यूटिव ने श्रीमाताजी के लिए सम्मान प्रमाण पत्र भेजते लिखा सिटी ऑफ पिट्र्सबर्ग के मेयर के रूप में मैं श्रीमाताजी निर्मलादेवी को उनके 78वें जन्म दिवस पर बधाई देता हूँ और 21 मार्च 2001 बुधवार को पिट्ट्सबर्ग नगर को आपके 78वें जन्मदिवस समारोह के में श्रीमाताजी निर्मला देवी दिवस' घोषित हुए श्री माताजी निर्मला देवी 21 मार्च 2001 अवसर पर मैं अपनी शुभ कामनाएं अर्पण करता हूँ। करता हूँ और विश्वशान्ति तथा मानवहित टॉम मर्फी । नि 17 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-21.txt परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन, निर्मल धाम, 20 मार्च 2001 ॐ 78Y BIRTHDAY FELICITATION OF H.H. MATAJI मातजी वी निर्माणा देवा के 7 े जन्म दिवस ां विषय में बताते हुए भी उन्हें संकोच होता है क्योंकि वे सोचते है कि कहीं ये उनका अहं न हो । सत्य साधको, जिन्होंने सत्य को खोज लिया है और जो अभी तक इसे खोजने एमान म का प्रयत्न कर रहे हैं, मानव की आश्चर्य चकित कर देने वाली सबसे बड़ी समस्या यह है कि मानव स्वयं को नहीं पहचानता। वो ये नहीं जानता कि उसमें कौन सी शक्तियाँ हैं, कौन सी सम्पदाएं हैं इसकी हवा निकल जाएगी। जब तक आप तथा ये भी नहीं जानता कि किस ऊँचाई दूसरों का सामना नहीं करते आपका अहं को वह प्राप्त कर सकता है! अपने आप के नीचे नहीं आ सकता। लेकिन किस प्रकार? विषय में अज्ञानता ही समस्या है। मैं आपको बताना चाहूंगी कि जब आप समाज का सामना मर करेंगे तो अहम् स्वतः ही कम ही जाएगा। जब आप सोचते हैं कि अन्य लोग आपसे बेहतर हैं, जब आप ये कहने से घबराते हैं मुख्य आप यदि अपने हृदय में झाँककर कि उन्हें परिवर्तित होना है, और जब आपको देखें और सोचे कि किस प्रकार का ये चिन्ता होती है कि आप अधिक आक्रामक आध्यात्मिक जीवन आप प्राप्त कर सकते हैं हो रहे हैं, तो अहं तो होता ही हैं यदि तो आप जान जाएंगे कि आप एक खजाना आप सहजयोगी हैं और प्रतिदिन है शक्तियों का, प्रेम का, न्यायशक्ति का ध्यानधारणा करते हैं अपनी शुद्धि करते हैं, और विवेकशक्ति का खजाना। समस्या ये तो आपके अन्दर एक शक्ति है जो परिणाम कि हमें इस बात की समझ ही नहीं है दर्शाएगी। यह अपनी शक्तियां दर्शाएगी कि हम हैं क्या और सहजयोगी भी इतने और इतनी शक्ति से अपना प्रकटीकरण विनम्र हैं कि वो इस बात को महसूस ही करेगी की आप हैरान रह जाएंगे! क्या मैं नहीं करते कि उनमें कौन सी शक्तियाँ हैं। वास्तव में ऐसा हूँ? कुण्डलिनी की जागृति कभी कभी तो मुझे लगता है कि सहजयोग से क्या होता है? ये छोटे-छोटे दोष जिन्हें की बात करने में भी उन्हें शर्म महसूस संस्कृत में हम षड्रिपु कहते हैं, ये सब छुट होती है. अन्य लोगों को सहजयोग के जाते हैं। परन्तु हमें स्वयं का सामना करना जुलाई-अगस्त, 2001 18 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-22.txt 78वां जन्मदिवस समारोह 20.3.2001 वैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 7 व 8 78" BIRTHDAY FELICITATION OF H.H. MATAJI SHRI NIRMALA DEVI . प.माताजी थी निर्माल देवी के 78वें जन्म दिवस का अभिनन्दन समाचंह र म न कम होगा। सहजयोग में कुछ लोग सोचते हैं अपेक्षा यदि आप अपनी पूरी तस्वीर को कि हम बहुत महान बन सकते हैं या बहुत देख लें कि आपमें क्या करने की योग्यता उच्च पद प्राप्त कर सकते हैं आदि आदि। है? अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार देकर, ये बात नहीं है। ये बाह्य नहीं है। ये बाह्य उन्हें ये समझाकर कि उनकी क्या शक्तियाँ महत्वाकांक्षा नहीं है। यह तो आन्तरिक हैं, उनकी शक्तियां आपकी नहीं, वो क्या प्रकाश होता है जिसे ज्योतित होना है। उपलब्धियाँ प्राप्त कर सकते हैं। ये सब जहाँ तक चक्रों के ज्ञान का सम्बन्ध है करके आप क्या प्राप्त कर सकते हैं यदि ये इसमें आप सब अत्यन्त बुद्धिमान तथा कुशल बात आप जान लें तो मैं आपको बताती हैँ हैं। परन्तु आत्मा (स्व) के ज्ञान के विषय में कि सहजयोग प्रचार -प्रसार के कार्य में हम क्या है? क्या आप अपने विषय में जानते हैं लोग तेजी से बढ़ सकते हैं। कि आप क्या कर सकते हैं और आपमें क्या योग्यता है? इस मामले में हम पिछड़े हुए हैं। ठीक है, यह आपकी आन्तरिक जाएगा, बहुत से लोगों में इस प्रकार के इच्छा है क्योंकि आपको आत्मसाक्षात्कार मूर्खतापूर्ण विचार हैं, ऐसा करके आप कुछ प्राप्त हो चुका है। परन्तु फिर भी एक भी प्राप्त नहीं कर सकते। जितना अधिक मायने में अभी कमी है। यह कमी स्वयं पर आप ध्यान धारणा में उतरेंगे आपको समझ पूर्ण आत्मविश्वास का न होना है कि आप आयेगा कि आपके अन्दर बहुत से महान सत्य को जानते हैं और सत्य का ज्ञान गुण हैं, रत्नों के भण्डारगृह की तरह से प्राप्त होने के कारण अब आपको इस सत्य परन्तु आपको अपना सम्मान करना होगा का प्रसार करना है और अज्ञान के अंधकार और अपने अन्दर इस बात को जानना को समाप्त करना हैं। परन्तु मैने देखा है होगा कि आपने क्या प्राप्त कर लिया है। ये कि सहजयोग में आकर भी लोग अपने नहीं कि आप बाहय विश्व में क्या प्राप्त विषय में विचार बनाने लगते हैं और आयोजन करना चाहते हैं। कुछ लोग अगुआ बनना करने का प्रयत्न करते हैं। सभी प्रकार के चाहते हैं आदि आदि। ये सब मूर्खता है। कार्य वो करते हैं । मैं ये जानती हूँ। इसकी इसका कोई महत्व नहीं है सर्वोत्तम बात यह भय कि हमारे अन्दर अहं बढ़ जुलाई-अगस्त, 2001 19 क 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-23.txt 78वँ जन्मदिवस समारोह 20.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XI अंक 7 व 8 तो ये जानना है कि अपने अन्दर आप प्रकार बात कर सकें कि वे समझ जाएं कि महान मूल्यवान प्रणाली के खजाने हैं और आप सहजयोगी हैं। यह शक्ति आपको इसे आप जागृत कर सकते हैं। आपमें केवल इसंलिए नहीं दी गई कि आप कह शक्तियाँ हैं। ये कार्य आप आसानी से कर सकें कि मैं सहजयोगी हूँ। इसलिए आपको सकते हैं, बिना किसी को तकलीफ पहुँचाए. ये शक्ति दी गई है कि आप स्वयं को बिना किसी को कष्ट दिए और बिना किसी अच्छी तरह से पहचान सकें और अपने से पैसा लिए। परन्तु वास्तव में मैं देखती हूँ वैभव तथा अपनी सूझ-बूझ में स्थापित कि लोग बाह्य से या तो धन लोलुप हैं या रहें। विश्व में असंख्य लोग हैं, लाखों- सत्ता लोलुप, अन्दर से नहीं। अन्दर तो करोड़ों आप ही लोग क्यों सहजयोग में वैभव है, शक्ति है और वो सभी कुछ है आए? मैंने आपको नहीं चुना, आपने मुझको जिसके बारे में आप सोचते हैं। मैं जानती चुना है और जब आपने मुझको चुना है तो हूँ कि कुछ लोग ऐसे हैं जो कभी मंच पर अवश्य आप अपने अन्दर समझें कि मेरे भी नहीं चढ़े थे, अब वे महान वक्ता बन अन्दर कुछ तो ऐसा होगा जिसके कारण मैं गए हैं मैं हैरान हूँ कि किस प्रकार उनमें सहजयोग में आया और इस प्रणाली को ये परिवर्तन आया! महानतम परिवर्तन तो समझा । ये बहुत सूक्ष्म लोग ही जान सकते ये है कि आप स्वयं को अच्छी तरह समझ है, स्थूल लोगों के लिए ये ज्ञान नहीं है। गए हैं और इस ज्ञान से आप अन्य लोगों परन्तु यदि आप स्वयं स्वयं को खोज लें को भी परिवर्तित कर सकते हैं. स्वयं को और तब आगे बढ़े तो अहं हो ही नहीं भी परिवर्तित कर सकते हैं । अपने को सकता क्योंकि आप अहं नहीं हैं। स्वयं तक ही सीमित न रखें। आपको विस्तृत होना होगा। यह शक्ति आपको इसलिए दी गई है कि आप स्वयं को जैसा मैंने बताया है वे सहजयोग से भी भली-भांति जान सकें । करुणामय और भद्र होकर लोगों से इस करने का प्रयत्न करते हैं जिससे वे उभर ा जिन लोगों में अहं है, उनके विषय में आत्म विश्वस्त पैसा बनाते हैं। वे चीजों का आयोजन कर जुलाई-अगस्त, 2001 20 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-24.txt 78वाँ जन्मदिवस समारोह 20.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 यद्यपि उन्हें समझ पाना लोगों के लिए कठिन कार्य था फिर भी उन्होंने इतने अच्छे कार्य किए। कर सामने आएं। वे बिल्कुल निम्न स्तर पर हैं। परन्तु यदि आप वैसे नहीं हैं तो आपको हाथ बाँधकर नहीं बैठ जाना चाहिए। ये जानने के लिए कि मैं क्या हूँ आपको कार्य करना चाहिए। मैं क्या हूँ? ईसा मसीह ने कहा था, 'स्वयं जैसे टर्की में अतातुर्क हुए हर जगह पर को पहचानो', मोहम्मद साहब ने भी कहा एक व्यक्ति ऐसा हुआ। भारत में लाल स्वयं को पहचानो। सभी अवतरणों ने कहा बहादुर शास्त्री हुए जो अत्यंत महान व्यक्ति कि स्वयं को पहचानो। इसका अर्थ ये थे और जो सहजयोग के विषय में जानते हुआ कि आपमें कुछ महानता है। आपके थे। उन्होंने मेरा बहुत सम्मान किया लोग अन्दर वैभव निहित हैं. जिनका आपको हैरान होंगे कि उन्होंने मेरे पति से भी ज्ञान नहीं है। एक बार आप जब स्वयं को ज्यादा मेरा सम्मान क्यों किया! क्योंकि पहचान जाएंगे तो आपमें आत्मसम्मान जाग उन्होंने समझा कि सहजयोग क्या है? परन्तु जाएगा| आप गलत कार्य नहीं करेंगे, आपको इसका अवसर उन्हें नहीं मिला। अब आप क्रोध नहीं आएगा। तब आप प्रेम के सागर लोगों के पास इसका अवसर हैं। ठीक है में होंगे ऐसा ही होना चाहिए। सहजयोग कि मैं काफी बृद्ध हैँ। ये बात ठीक है। यही है। मेरे विचार में आजकल बहुत परन्तु अभी तक मैंने हार नहीं मानी। जब भयानक दिन हैं। जैसा लोग कहते हैं ये तक मैं जीवित हूँ आपको आपके व्यक्तित्व घोर कलियुग है। ठीक है, लेकिन इस के विषय में, आपको अपने विषय में विश्वस्त काल में आप यहाँ च्यों हैं? लोगों को करने के लिए कठोर परिश्रम करती रहूँगी। साक्षात्कार देने के लिए, उन्हें अच्छे विचार मैं इसीलिए जीवित हूँ। जब तक आप प्रदान करने के लिए। परन्तु कैसे? जब पूर्णत विश्वस्त नहीं हो जाते आप हैरान तक आप स्वयं को भली भांति पहचान नहीं होंगे कि सहजयोग में आकर भी लोग सभी जाते कि आपमें क्या क्या करने की योग्यता प्रकार के मूर्खतापूर्ण कार्य करते हैं। मैं है, आप ये कार्य कैसे कर सकते हैं? महान जानती हैँ वो ये कैसे करते हैं? परन्तु ऐसा व्यक्तियों के जीवन पर दृष्टि डालें। अब्राहिम करने वाले लोग वास्तव में सहजयोगी नहीं लिंकन जैसे लोगों के जीवन पर। अत्यन्त हैं। क्योंकि जबतक आप अपनी गहनता में युवावस्था में ही उन्हें ये बात समझ आ गई नहीं उतर जाते, जब तक आप ये नहीं थी कि अपने उदाहरण द्वारा अपनी मूल्य जान लेते कि आपका व्यक्तित्व वास्तव में प्रणाली उन्हें अन्य लोगों को समझानी होगी। क्या है तो जो भी प्रयत्न आप करते रहें, श्रट ब मैंने इस प्रकार की बहुत सी जीवनियां पढ़ी हैं, 21 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-25.txt 78वाँ जन्मदिवस समारोह 20.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-Xill अंक 7 व 8 बह बिस्तर में लेट गया तब मूसलाधार वर्षा आरम्भ हुई। जो कुछ भी आप करते रहें वह सहज नहीं है। सहज अर्थात स्वतः। यह आपको स्वतः प्राप्त हो जाता है। हम जानते हैं कि सहजयोग में हम उस क्षेत्र से जुड़ जाते हैं जिसे आइंस्टाइन ने ऐंठन क्षेत्र (Torsion Area) नाम दिया है। परन्तु ये क्षेत्र आपके पीछे स्थित है। आपको आश्रय देने के लिए, आपकी सहायता करने के लिए परम चैतन्य है। आप सबको यह प्राप्त हो गया है, परन्तु अब भी आप इसमें विश्वास नहीं लिए कहती हैँ। परन्त इसलिए कि उसे करते। इसका विश्वास करें, स्वयं पर विश्वास इस बात का आभास है कि मैं पृथ्वी पर करें। आपके अन्दर यह शक्ति विद्यमान है । एक विशेष कार्य करने के लिए आई हूँ मैं जानती हूँ। प्रकृति आपके साथ होगी क्योंकि वह हमारी प्रतिनिधि है । ये हमारी सहायता करती है। आप यदि उस उच्च स्तर के हैं तो प्रकृति आपका साथ देगी। आपने देखा है कि बहुत बार प्रकृति ने मेरी सहायता की, इसलिए नहीं कि प्रकृति पर मेरा नियंत्रण था या मैं उसे कुछ करने के इसलिए मेरी सहायता होनी चाहिए । इसी प्रकार से यदि आप भी यह गुण अपने में मैं बम्बई के एक व्यक्ति को जानती स्थापित कर लें तो प्रकृति जान जाएगी कि हूँ। वह मछुआरा था और महान सहजयोगी आप लोग पूरे ब्रहमाण्ड का उद्धार करने के था। अब हमने उसे खो दिया है। एक दिन लिए हैं। ऐसा आप कर सकते हैं। चाहे मैं मछुआरों में सहजयोग प्रचार करने के लिए सोचती रहूँ कि पूरे विश्व का पुनरुत्थान वह एक अन्य टापू पर जा रहा था। उसने होना चाहिए, परन्तु मैं अकेली इस कार्य देखा कि आकाश में भयानक काले बादल को कैसे कर सकती हूँ? मैं यदि इस कार्य मंडरा रहे थे। वह बाहर आया और बादलों को कर सकती तो मुझे ये माध्यम लेने की से कहा "मैं अपनी माँ के कार्य से जा रहा आवश्यकता क्यों हूँ, तुम वर्षा करने की हिम्मत कैसे कर माध्यम जो स्वयं को जानते हैं, अपने कार्य सकते हो? जब तक मैं वापिस नहीं आता को जानते हैं और जिनमें इस कार्य को तुम्हें वर्षा नहीं करनी है। और हैरानी की अन्जाम देने की योग्यता है। निःसन्देह आप बात है कि वह बाहर गया अपना सारा लोग विशिष्ट हैं अन्यथा आप लोग यहां कार्य किया और पाँच घण्टों के पश्चात क्यों होते आपकी विशेषता ये है कि आप वापिस आया वापिस आने के पश्चात् जब परमेश्वरी पड़ती? ऐ से के अच्छे संचारक हैं। आप पूजा 22 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-26.txt 78वाँ जन्मदिवस समारोह 20.3.2001 चैतन्य तहरी खंड-XIll अंक 7 व 8 सर्वप्रथम हमें ये जानना होगा कि हमारा बहुत अच्छे संचारक हैं, इसमें आप विशेषज्ञ हैं। यह कार्यान्वित होता है। स्वतः ये कार्य आधार क्या है? सबसे महत्वपूर्ण आधार ये करता है, परन्तु परमात्मा से आपका योग हैं कि हम विशेष देश में जन्में हैं और पूर्ण होना चाहिए। मूल्यों की पूर्णता के बारे इसके विषय में हमें चिन्ता होनी चाहिए। में बात करना ठीक है, परन्तु ये पूर्ण मूल्य लोग कहते हैं कि मैं विप्लवी थी, आदि क्या हमारे अन्दर है या नहीं? यदि ये हमारे आदि। मैंने क्रान्ति की और जेल भी गई, अन्दर विद्यमान हैं तो क्यों नहीं हम इन्हें परन्तु ये सब अपने देश की स्वतन्त्रता अन्य लोगों को आत्मसात करने देते? यह कार्य कढिन नहीं है। मैं आपको बताती हूँ कि ये बिल्कुल कठिन नहीं है। । मैं एक सर्वसाध रिण गृहणी हूँ। केवल मेरे प्रेम में या मैं कहूँ कि मेरे स्वभाव प्राप्त करने के लिए किया ये भिन्न चीजें हैं। परन्तु स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् क्या होना चाहिए था? हमें लोगों को महसू स करवाना चाहिए था कि वे क्या है? केवल भारत में ही नहीं सभी देशों में इस शक्ति को समझना के कारण. बाहर से चाहे मैं सर्वसाधारण गृहणी दिखाई दूं। लोग सोचा करते थे कि मैं इसलिए अधिक नहीं बोलती क्योंकि मुझे अंग्रेजी नहीं आती। सुधारने के लिए, सहायता करने के लिए. स्थिति यह थी परन्तु वास्तविकता यह उन्नत करने के लिए व परिवर्तित करने के नहीं है। वास्तविकता ये है कि मैं जानती लिए उन्हें क्या करना है? मैंने कभी किसी थी कि मैं क्या हूँ और ये भी कि मुझे क्या से नहीं कहा कि अपना नाम बदलो। आपने बनना है? बस। अन्तर केवल इतना है। भारतीय नाम मांगे हैं, ठीक है। मुख्य बात आप लोग भी यदि इस ज्ञान को अपने तो ये है कि आपके मन में अपने देशवासियों अन्दर विकसित कर लें तो आप अत्यन्त की चिन्ता होनी चाहिए। आपको इतना प्रगल्भ बन सकते हैं । आपकी महत्वाकांक्षाएं शक्तिशाली बनाया गया है आपकी और इच्छाऐँ समाप्त हो जाऐंगी आपको कुण्डलिनी उस अवस्था तक पहुँच गई है क्रोध नहीं आएगा और आपमें लालच भी जहाँ आप बहुत कुछ कर सकते हैं। मैं नहीं रहेगा। इस प्रकार ये सारे दुर्गुण आपसे जानती हूँ कि आपमें से कुछ लोगों ने बहुत छूट जाएंगे। चाहिए कि उस के दे श की कया आवश्यकता है? कार्य किया है और इसे कार्यान्वित किया 23 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-27.txt 78वाँ जन्मदिवस समारोह 20.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 है, परन्तु अभी भी आप सबको यह कार्य तरह से आचरण कर रहे है? क्या आपको करना होगा मैं केवल इतना कहूँगी कि सागर सम अपने क्षेम का ज्ञान है? सागर 78वें जन्मदिवस पर भी मैं वहीं की बही हूँ, क्या है? मुझमें बहुत परिवर्तन नहीं हुआ, क्योंकि अपने अन्दर मुझे लगता हैं कि मुझे लोगों को बताना है कि वे क्या हैं? मुझे उन्हें मर्यादाएं हैं, जिन्हें ये कभी नहीं लांघता। एक बताना है कि वे क्या प्राप्त कर सकते हैं तरफ से यदि आप इसे धकेलें तो ये दुसरी और इसलिए मुझे इस प्रकार चलना है कि तरफ को बाहर निकल जाएगा। अतः आपको वे देख सकें कि स्वयं का ज्ञान प्राप्त करने अपनी मर्यादाओं में रहना चाहिए। अपने से अधिक महत्वपूर्ण कुछ नहीं हैं। आप चाहे अमीर हों या गरीब, इससे रहना बहुत महत्वपूर्ण है। बहुत से लोग कोई फर्क नहीं पड़ता। स्वयं को जानना जिन्होंने धूम्रपान करना बन्द कर दिया था ही महत्वपूर्ण है। मैं हैरान हूँ कि इस विषय फिर से धूम्रपान करे लगे हैं. जिन लोगों ने पर अभी तक बहुत कम लिखा गया है। परन्तु लाओत्से लिखित 'ताओ'- आपने वो लगे हैं इसका अर्थ ये है कि आप लोगों ने पुस्तक पढ़ी है या नहीं, बहुत अच्छी है। मर्यादाएं त्याग दी हैं। इन मर्यादाओं का ताओ का अर्थ है 'आप क्या हैं और इसका ध्यान रखा जाना आवश्यक है। स्वयं को वर्णन उन्होंने बहुत अच्छी तरह कि जब आप वह बन जाते हैं तो क्या होता जाने जाएंगे कि अआप क्या हैं। अवश्य अपना है। कमी सिर्फ इतनी थी कि उस अवस्था अवलोकन करें। स्वयं से कहें, "हाँजी, श्रीमान को किस प्रकार प्राप्त किया जाए। ये नहीं जी, अब क्या इरादा है?" तब आप अपने लिखा था कि उस अवस्था तक कैसे पहुँचा मस्तिष्क की कार्य शैली को जान जाएंगे। जाए उन्होंने सिर्फ उन लोगों का वर्णन ऐसा करने से परमेश्वरी के प्रेम का सागर किया जो ताओ थे, जो आत्मसाक्षात्कारी बहने लगेगा सम्भवतः हम नहीं जानते कि थे, जो उच्चस्तर के थे मैं हैरान थी कि सागर पृथ्वी में सबसे नीचा होता है। सारी लाओत्से ने कुण्डलिनी के विषय में कुछ ऊँचाईयों का माप हम समुद्र के स्तर से नहीं कहा परन्तु उन्होंने येंसी नदी के बारे करते हैं। समुद्र यदि शून्य बिन्दू पर है तो में बताया। उन्होंने कहा कि यह येंसी नदी हिमालय की ऊँचाई कितनी है? अतः समुद्र । कुण्डलिनी के विषय में बताने का यह सबसे निचले स्तर पर रहता है और यहीं उनका प्रतीकात्मक तरीका था। वे कवि कारण है कि सारा पानी, नदियों या वर्षा से थे। अन्ततः सागर तक पहुँच कर यह नदी आने वाला, सभी कुछ उसमें समा जाता है। सांगर बन जाती है। सागर के क्या गुण हैं, सूर्य की चिलचिलाती में फिर यह अपने इसका वर्णन उन्होंने बहुत सुन्दरता पूर्वक शरीर को जलाता है क्योंकि यह खुला होता किया है अब मान लो आप सब लोग है। स्वयं को जलाकर यह बादलों का सृजन सागर बन गए हैं, अब क्या आप सागर की करता हैं जिसके कारण पूरा चक्र चलता है। समुद्र को देखें इसकी अपनी सीमाऐं है, सन्तुलन में रहना चाहिए। अपने सन्तुलन में शराब पीनी छोड़ दी थी वो फिर शराब पीने से किया है देखें। स्वयं को यदि आप देखेते रहेंगे तो धूप ना 24 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-28.txt 78वाँ जन्मदिवस समारोह 20.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व 8 वहां के लोग यदि सहजयोग अपना लें तो न तो उस राज्य में बाढ़ आ सकती है न ही कोई समस्याऐं हो सकती हैं। हमारे देश में, आपके देश में और सभी देशों में ऐसा ही है । बादल जाकर लोगों पर वर्षा करते हैं । पुनः नदियों का रूप धारण करके ये जल समुद्र में वापिस आ जाता है समुद्र के निम्नतम स्तर पर होने के कारण हर चीज़ को इसमें आना पड़ता है। सर्वप्रथम हमें बहुत अधिक सहजयोगी अतः पूर्ण विश्वास के साथ आप बनाने पड़ेंगे और सहजयोगी भी ऐसे हों अपने निम्नतम बिन्दु पर बने रहें, जिन्हें इस बात का ज्ञान हो कि वो सहजयोगी निम्नतम बिन्दु पर । स्वयं की तुलना हैं। लोगों को इस विषय में पूर्ण विश्वस्त किसी ऐसे व्यक्ति से न करें जो जीवन होना चाहिए कि आखिरकार आप सहजयोगी में बहुत उन्नति आदि कर रहा है। हैं। क्यों नहीं मैं जो कार्य कर सकती हूँ आप आप देखें कि आप निम्नतम बिन्दु पर सब भी वह कर सकते हैं? क्यों नहीं? आप हैं। निम्नतम बिन्दु पर आप खड़े हुए सब मेरे बच्चे हैं। आप ये सब कर सकते हैं। हैं और आप हैरान होंगे की सभी कुछ परन्तु आप में विश्वास होना चाहिए कि जैसे बहकर आपके पास आ जाएगा! हर हमारी माँ हैं, बिना अहंग्रस्त हुए, हम भी वैसे चीज बहकर आपकी ओर आना चाहेगी। ही बन सकते हैं। मैंने प्रायः देखा है कि लोग स्वयं को पहचानना ही मुख्य बात है, इसका अहम् से बहुत डरते है। इसमें अहम् बिल्कुल अर्थ ये है कि आप ये जानते हैं कि आप भी नहीं है क्योंकि आप तो समुद्र सम हैं और उच्चतम हैं। आप उच्चतम इसलिए हैं क्योंकि जैसा मैंने कहा समुद्र निम्नतम बिन्दु पर खड़ा है। यह भी इसी प्रकार कार्यान्वित होता है । पूरे विश्व को प्रेम करना कितना ये बात सत्य है कि गरीबों के लिए मेरे सुन्दर है! अपनी करुणा, अपनी उदारता का हृदय में अथाह प्रेम है। ये भी सत्य है कि आनन्द लेना अत्यन्त सुन्दर हैं। किसी भी मुझमें उनके लिए कुछ करने की तीव्र इच्छा अन्य चीज से अधिक मैं अपनी उदारता का थी और इसी कारण से हमने भारत में सोलह आनन्द लेती हूँ। परन्तु उस उदारता में मैं परियोजनाऐं चालू की हैं। ये सारा कार्य जानती हूँ कि मैं कुछ नहीं कर रही। यह तो केवल इसलिए हुआ कि मैं स्वयं को रोक न केवल मेरे आनन्द विवेक की अभिव्यक्ति सकी। लोगों को सभी प्रकार के दुख और होती है। फूलों को देखकर मैं बहुत प्रसन्न तकलीफे हैं। उड़ीसा के लिए मैंने बहुत होती हूँ । इसी प्रकार किसी को कुछ देकर प्रार्थना की क्योंकि वहां पर लोग कष्ट में हैं। मुझे बहुत आनन्द मिलता है। यह आनन्द है, हमें इसका कारण खोजना चाहिए कि वहां आनन्ददायी गुण। और सभी आनन्द- इतना कष्ट क्यों है? क्या समस्या है? मैं प्रदायक गुण आपके अन्दर विद्यमान हैं, आप बताती हूँ कि उड़ीसा अत्यन्त महान राज्य उन्हें खोज सकते हैं । आपमें शन्ति प्रदायी है। मैं वहां गई भी हूँ। वहां पर अभी भी गुण भी है। आपमें अनन्त शान्ति है। और लोगों में आत्मविश्वास का पूर्ण अभाव है। यदि ये शान्ति आपमे स्थापित हो गई तो इसे हैं। आप निम्नतम बिन्दु पर खड़े हुए जुलाई-अगस्त, 2001 25 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-29.txt 78वाँ जन्मदिवस समारोह 20.3.2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व ৪ आप वातावरण में, लोगों में और सभी चीजों मुझे कुछ देना चाहते हैं तो मुझे इतना भर में प्रसारित कर सकते हैं परन्तु यदि आपमें दे दें कि आप अपना विश्वास दर्शाएं क्रोध और गुस्सा आदि है तो ये कार्यान्वित और इसे कार्यान्वित करें। आप जो भी हैं, नहीं होगी तो आप को चाहिए कि स्वयं को आपको वातावरण को या किसी अन्य देखें, अपना अवलोकन करें, ध्यान धारणा चीज़ को बदलने की कोई आवश्यकता करें और खोज निकालें कि मुझमें क्या कमी नहीं है। जहां भी आप हैं. ईमानदारी से, है? यह इतनी महान शक्ति है और मैं सोचती निष्ठापूर्वक और विनम्र स्वभाव से वास्तव हूँ कि ये मेरे सम्मुख बैठी हुई है। ये विश्व के में बहुत सा कार्य कर सकते हैं। हर देश सभी मिथकों को निर्मूल सिद्ध कर देगी। मैं में और पूरे विश्व में आप यह कार्य कर ये बात जानती हूँ। परन्तु मैं ये नहीं जानती सकते हैं यह मेरी सबसे बड़ी इच्छा है। कि किस प्रकार उनमें ये चिंगारी भड़काई मैं सोचती हूँ कि मैं इच्छा विहीन व्यक्ति जाए, क्या किया जाए और कैसे लोगों को हूँ। आप लोग मेरी सूक्ष्म इच्छा को फलीभूत बताया जाए? करेंगे कि हमें पूरे विश्व को परिवर्तित करना चाहिए । अब मैं बार-बार आपको बता रही हूँ कि इस जन्मदिवस पर यदि आप वास्तव में परमात्मा आपको धन्य करें। जुलाई-अगस्त, 2001 26 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-30.txt श्री महादेव पूजा 25 फरवरी 2001, पुणे आज हम यहाँ महाशिवरात्रि मनाने के लिए आए हुए हैं। श्री महादेव के विषय में समझना हम सबके लिए महान सौभाग्य की बात हैं। आल्म-साक्षात्कार प्राप्त करने से पूर्व आप श्री महादेव के महान व्यक्तित्व, महान चरित्र एवं महान शक्ति के विषय में नहीं जान सकते। बिना विनम्र हुए उनकी महानता अचानक आ जाता है क्योंकि वे पंचतत्वों की गहनता तक पहुँच पाना या उसे समझ के स्वामी हैं। वे सभी तत्वों के शासक हैं। पाना सुगम नहीं है श्री महादेव के चरण वे पृथ्वी माँ के शासक हैं तथा अन्य तत्वों कमलों तक पहुँचने के लिए हमें अत्यन्त विनम्र होना होगा। आपने अनुभव किया है माध्यम से वे शासन करते हैं। वे शासक हैं कि इस महान व्यक्तित्व (देवता) के चरण और जिस चीज़ में भी उन्हें कोई गड़बड़ कमलों तक पहुँचने के लिए व्यक्ति को दिखाई देती हैं वे उसे नष्ट कर सकते हैं । सहस्रार से भी ऊपर जाना पड़ता है। वे मैं आपको बताना चाहती हूँ कि भूकम्प हमसे बहुत ऊपर हैं. हमारी परिकल्पना प्रबन्धन कार्य उन्हीं का है मेरा नहीं । विनाश (Conception) बुद्धि की पहुँच से भी बहुत कार्यों में मेरी कोई भूमिका नहीं है। वे ही ऊँचे हैं। परन्तु आत्मा के रूप में उनका देखते हैं कि पृथ्वी पर क्या हो रहा है और निवास हमारे हृदय में है और जब हमें मानव के साथ क्या घटित हो रहा है। मैं आत्म-साक्षात्कार प्राप्त होता है तो वे हममें आपको गुजरात का उदाहरण दूंगी। सभी बहुत स्पष्ट प्रतिबिम्बित होते हैं। फिर भी चीजों के बावजूद गुजरात के लोग अत्यन्त व्यक्ति को उनकी शक्तियों को समझना धन लोलुप हैं। हर समय वे शेयर बाज़ार आवश्यक है। थोड़़े से शब्दों में इस महान हर समय पैसा, देवता का वर्णन कर पाना सुगम नहीं है। पैसा, पैंसा, पैसा, पैसा विदेशों में होते उनकी शक्ति 'क्षमा है वे क्षमा करते हैं। एक सीमा अपराधों को, हमारी विध्वंसक गतिविधियों को और अन्य लोगों के लिए समस्याएं उत्पन्न करने वाले मस्तिष्क को वेक्षमा करते हैं । परन्तु विध्वंस उनकी महानतम शक्ति हैं प्रथाम तक हमारे । उनका प्रको प पर भी उनकी कारणात्मकता के प्रभाव के के बारे में चिंतित रहते हैं । हुए 27 जुलाई-अगस्त, 2001 श्री० 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-31.txt चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 7 व श्री महादेव पूजा, 25.2.2001 भी वे अत्यन्त धन लोलुप हैं। कभी-कभी गिरिजाघरों के शिखर नष्ट कर डाले । बहुत तो मुझे आश्चर्य होता है कि उनसे सहजयोग से पादरियों के घर उजड़ गए । तूफान की बात करना असम्भव है। बनावटी चीज़ें, आगे बढ़ता हुआ एक स्थान पर पहुँचा तथाकथित कुगुरु आदि लोग उन्हें पसन्द जहाँ मैंने एक बहुत बड़ा किला खरीदा हैं। मैं नहीं जानती कि उनमें ये दुर्गुण कहाँ था इस किले के किनारे पर पहुँचते ही से आया। खैर जो भी हो। गुजरात में तूफान रुक गया। भावनगर नामक एक शहर है। भावनगर के लोग मेरे पास आए और चैतन्यित करवाने के लिए पादुका साथ लेकर आए। मैं हैरान कार्य नहीं है। परन्तु श्री महादेव तो ऐसा थी। मुझे प्रसन्नता हुई कि कम से कम ही करते हैं। यद्यपि वे अत्यन्त क्षमाशील हैं. कुछ लोग तो सहजयोग के विषय में सोच अत्यन्त करुणामय हैं, अत्यन्त आनन्द दाता रहे हैं। उन्होंने भावनगर में तथा बड़ौदा में हैं फिर भी आपको उनकी शक्तितयों के भी पूजा तथा हवन किया। इन दोनों स्थानों प्रति सावधान रहना चाहिए । उनकी सारी को भूकम्प ने छुआ तक नहीं-छुआ तक शक्तियाँ मेरी सृष्टि की रक्षा करने के लिए नहीं। क्या आप इसकी कल्पना कर सकते उपयोग होती हैं। इसके लिए वे किसी भी हैं? सूरत, जो कि बहुत दूर है, का तहस- सीमा तक चले जाते हैं और दशाते हैं कि नहस हो गया। वहाँ पर बहुत कम आध्यात्मिकता के कार्य में बाधा नहीं डालनी सहजयोगी हैं। सभी की रक्षा हुई और चाहिए। आध्यात्मिकता सच्ची होनी चाहिए। उनके घरों को भी कोई हानि नहीं पहुँची। ऐसा नहीं होना चाहिए जैसे कोई कुगुरु सर्वशक्तिमान परमात्मा के कोप से भी आपकी आकर जादुई करतब दिखाए या बहुत पुरानी माँ सुरक्षा प्रदान करती हैं। व्यक्ति को ये कहानियाँ सुनाए। आपमें यदि सच्ची बात भली-भांति समझ लेनी चाहिए कि आध्यात्मिकता है तो सदैव आपको सुरक्षा सभी पंच-तत्वों पर उनकी सत्ता है। मैं प्राप्त होगी और श्री शिव आपको आशीष फ्रांस गई वहाँ पर कुछ लोगों ने मुझे प्रदान करेंगे। वे महान कृपा-सिन्धु ैं सताने का प्रयत्न किया तथा सारे समाचार और आपको इतने वरदान दे सकते हैं पत्र मेरे पीछे पड़ गए। दूरदर्शन में तथा जिनकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते। सर्वत्र वे मेरे विरुद्ध उल्टी-सीधी बातें कर वे अत्यन्त क्षमाशील हैं। कहना चाहिए कि रहे थे मैं जानती थी कि कोई देवी प्रकोप वे क्षमा के स्रोत हैं आपके हृदय में यदि आने वाला है। अचानक समुद्र से एक क्षमा हो तभी वे आपके हृदय में निवास भयानक तूफान उठा। अचानक, कोई नहीं करते हैं। क्षमाशीलता के बिना आपमें जानता कि ये कहाँ से आया, और इसमें दो अत्यन्त असाध्य रोग विकसित होने समुद्री जहाज पूरी तरह से डूब गए तथा लगते हैं। आप यदि क्षमाशील नहीं हैं तो जो लोग इसे बचाने के लिए गए उन्हें आपका हृदय बहुत तेजी से चलता है कोई कैंसर रोग हो गया! ये तूफान पूरी शक्ति इसे छू नहीं सकता। आपको हृदयाघात से आगे बढ़ने लगा और वहाँ के सभी नहीं हो सकता, परन्तु यदि आप अवांछित मैं आपको बताना चाहूंगी यह मेरा जुलाई-अगस्त, 2001 28 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-32.txt चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 श्री महादेव पूजा, 25.2.2001 रूप से सहिष्णु हैं और परमात्मा को कर्त्ता भाव के कारण, अपने किए कुकर्मों इस तरह का स्वभाव बिल्कुल मूर्खता पूर्ण का कष्ट भुगतते रहते है तो आपके हृदय है क्योंकि इस प्रकार के व्यक्ति को हृदय का आकार बढ़ने लगता है (Enlargement शूल की पूर्ण सम्भावना होती है। डरने की of Heart)। तो एक पक्ष ये है कि आपका क्या बात है? आप यदि सहजयोगी या हृदय अत्यन्त आक्रामक होकर हिटलर के सहजयोगिनी हैं तो आपको किसी भी चीज हृदय की तरह से हो जाता है। किसी भी से नहीं डरना । लोग चूहों से डरते हैं फिर बहाने से यदि आप किसी को कष्ट देने बड़ी ही शेखी में ये बातें करते हैं। उनका लगते हैं तो आपका हृदय कठोर हो जाता हृदय दिनोंदिन दुर्बल हो रहा है मैं ये भी है और तब आपको जानलेवा हृदयाघात हो कहूंगी कि भारतीय पुरुष इसके लिए सकता है तथा सभी प्रकार के कष्ट हो जिम्मेदार हैं। क्योंकि वे महिलाओं से सकते हैं। यह बात अटल हैं परन्तु मान पिछलग्गुओं की तरह से व्यवहार करते हैं। लो कि आप अवांछित रूप से सहिष्णु हैं मानों वे उन पर बोझ हों। मेरी समझ में और सभी ज्यादतियों को सहते चले जाते नहीं आता कि वे उन्हें क्या बनाना चाहते हैं, दब्बू हैं, डरपोक हैं, तो अपने डरपोक हैं। उनका व्यवहार इतना बुरा है कि इस पुने के कारण आपको एक अन्य प्रकार का हृदयरोग हो सकता है जिसे हृदयशूल कहते भारत में तो मैंने विशेष रूप से देखा है कि हैं। इसमें हृदय को बहुत कम रक्त की महिलाओं को महत्व नहीं दिया जाता। मात्रा पहुँचती है। आपमें दोष भाव (Sense महिला को घर में लाकर नौकरानी की of Guilt) पनप उठता है और आपका जीवन तरह से रखा जाता है। हर समय उसे मध्यम दर्ज (Mediocre) का बनकर रह घूँघट में रहना होता है। बिना इजाज़त के जाता है। स्वयं को अत्यन्त सहिष्णु मानने वो कहीं बाहर नहीं जा सकती. कितनी वाले लोगों के साथ यह कठिनाई होतीं है भयानक बात है? कुछ लोग कहते हैं कि ये जो कि बहुत ही दयनीय है। मेरा कहने सब मुसलमानों के प्रभाव के कारण हुआ। का ये अभिप्राय है कि आध्यात्मिकता के कारण सहनशीलता तो ठीक है परन्तु किसी चीज़ के भय के कारण में विश्वास करते हैं तो आपको इस प्रकार उत्पन्न हुई सहिष्णुता ठीक नहीं है । के मूर्खतापूर्ण नियमों के अनुसार नहीं चलना आप यदि सहजयोगी हैं तो किसी भी चाहिए। यही कारण है कि मुझे लगता है चीज़ से डरना आपका कार्य नहीं है। कि भारत में महिलाओं का उद्घार होना भारत में लोग हर चीज़ से डर जाते हैं। आवश्यक है। वे बहुत अच्छी हैं, अत्यन्त किसी गिलहरी को देख लें तो डर जाते है, सहिष्णु हैं, बहुत मधुर हैं फिर भी उन्हें छिपकली को देख लें तो घबरा जातें हैं। बड़ी-बड़ी भयानक बीमारियाँ. सभी प्रकार कहने का अभिप्राय ये है कि वो हर चीज़ के मानसिक रोग हो जाते हैं क्योंकि वे से डर जाते हैं। भारत की महिलाएं तो अपना मूल्य नहीं जानतीं, अपने आत्म सम्मान तिलच्टों (Cockroaches) से भी डरती हैं। भुलाकर पर विश्वास नहीं किया जा सकता। उत्तरी आप जब शाश्वत, आध्यात्मिक जीवन 29 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-33.txt श्री महादेव पूजा, 25.2.2001 चैतन्य लहरी खं-XIII अंक 7 व 8 को नहीं जानतीं। इस विषय पर मैं पहले है परन्तु यदि व्यक्ति आक्रामक बनने का भी विस्तार पूर्वक बता चुकी हूँ| पुरूषों को प्रयत्न करेगा तो वे उसे नष्ट भी कर देंगे। इस प्रकार व्यवहार क्यों करना चाहिए? मेरे कभी-कभी वे फाँसी लगाने के लिए व्यक्ति विचार से हमारे देश में 70 प्रतिशत महिलाएं को लम्बी रस्सी दे देते हैं और लोग सोचते हैं और उत्तरी भारत में इस 70 प्रतिशत हैं कि हम ठीक हैं, हमने श्री महादेव को जनसंख्या की शक्ति बरबाद हो रही है। प्रसन्न कर दिया है! मेरी समझ में नहीं आता वो स्वयं को समझते क्या हैं? महिलाओं को दण्डित किया जाता है। ऐसे देश कभी वैभव सम्पन्न नहीं हो देशों में महिलाएं पुरुषों पर बहुत हावी हैं। सकते क्योंकि महिलाएं लक्ष्मियों होती हैं। अत्यन्त आश्चर्य की बात है! मैं नहीं समझ परन्तु उन्हें भी लक्ष्मी सम होना होगा। पाती कि उन्होंने किस प्रकार स्थिति को लक्ष्मी जी की तरह से आचरण करना होगा। सम्भाला, परन्तु हर समय वे पुरुषो पर उनमें से महिलाएं ऐसी होती है कि हावी रहती हैं और पुरुषों को उनके अंगूठे आपको सदमा लगता है। वे कैसे महिलाएं के नीचे दबा रहना पड़ता है मैं नहीं हो सकती हैं? वे तो राक्षसियों की तरह से जानती कि वे ऐसा किस प्रकार कर पाई, दिखाई देती हैं समाज के अन्दर के इस परन्तु उन्होंने ऐसा किया! के न तो विनम्र प्रकार के असन्तुलन को श्री महादेव दण्डित हैं और न ही प्रेममय। एक के बाद एक करते हैं। वे अत्यन्त करुणामय हैं और दीन-दुखियों की देखभाल करते हैं। सताने प्रेम का उनमें पूर्ण अभाव है। वे नहीं जानती वाले लोगों को वे दण्ड देते हैं। आक्रामक कि प्रेम होता क्या है? परन्तु भारत में मैंने लोगों को नष्ट करना और सताए गए लोगों देखा है कि पूरुषों को प्रेम का ज्ञान नहीं की सहायता करना उनका एक गुण है। वे है। वे अपनी पत्नियों, अपनी जीवन संगिनियों कुण्डलिनी की बात नहीं करते. वे से प्रेम करना नहीं जानते। वे नहीं जानते आत्मसाक्षात्कार की बात नहीं करते। वे तो कि उनका सम्मान किस प्रकार किया जाना इतनी कठोरतापूर्वक दण्ड देते हैं कि व्यक्ति चाहिए। परिणामस्वरूप महादेव का प्रकोप स्तब्ध रह जाता है। कभी-कभी वो लोगों आता है और नाना विध भयंकर रोगों का को घोर कष्टों से मुक्त अपनी आयु से पूर्व ही मृत्यु को प्राप्त होते समस्याएं खड़ी कर देता है। विनम्र लोगों हैं। इन सारी चीजों का व्यक्ति को उचित के विरुद्ध भिन्न प्रकार के अत्याचार करने रूप से अवलोकन करना चाहिए। निःसन्देह के लिए भी समाज ही उत्तरदायी है । श्री महादेव रक्षा करने के लिए हैं परन्तु उससे भी कहीं अधिक वो नष्ट करने के लिए हैं। वे सभी पशुपक्षियों और प्रकृति की चाहिए कि यदि वह आक्रामक है तो श्री रक्षा करते हैं। वे ही पूर्ण आनन्द, आध्यात्मिकता का पूर्ण आनन्द प्रदान करते यदि अपने नौकर के प्रति क्रूर हैं या किसी इसके विपरीत, मैंने देखा है, पश्चिमी कुछ पति को वो तलाक देती चली जाती हैं। करते हैं । ये लोग सृजन करता है तथा ऐसे पुरुषों के लिए दोनों ही प्रकार से व्यक्ति को समझना महादेव की तीसरी औँंख उस पर है। आप जुलाई-अगस्त, 2001 30 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-34.txt श्री महादेव पूजा, 25.2.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIlf अंक 7 व 8 अधीनस्थ के प्रति आक्रामक हैं, या अपने प्राप्त नहीं हो सकता । जीवन में वो बच्चों के प्रति आक्रामक हैं तो याद रखना कोई उपलब्धि प्राप्त नहीं कर सकते जीवन में हमें क्या प्राप्त करना है पद, चाहिए कि प्रलयंकर महादेव आपको देख रहे हैं और उनका प्रकोप आप पर पड़ वैभव तथा भौतिक पदार्थ नहीं। आपको तो सकता हैं। वे मानव को अत्यन्त सुन्दर एवं प्रेममय हृदय प्राप्त करना है, एक ऐसा हृदय श्रेष्ठ बनाते हैं और चाहते हैं कि लोग जिससे आप प्रेम कर सकते हों। आपके हृदय परस्पर प्रेम करें। मानव में परस्पर प्रेम हो। में यदि श्री शिव का निवास है तो आप सभी अन्य लोगों के प्रति आपके आचरण को से अत्यन्त सुन्दरता पूर्वक प्रेम कर सकेंगे। वे अत्यन्त मधुर एवं कोमल बनाते हैं। आपके प्रेम के विषय में आपके मन में मूर्खतापूर्ण विचार व्यवहार में यदि कोमलता एवं माधुर्य का नहीं होंगे. केवल पावन प्रेम होगा सभी लोगों अभाव है तो आप गलत दिशा में जा के लिए शुद्ध प्रेम का होना एक वरदान है। इस अवस्था में व्यक्ति की सारी कठोरता समाप्त हो जाती है। उदाहरण के रूप में आपके उनका महानतम गुण ये है कि वे पास यदि थोड़ी सी भी शक्ति है तो आप उसका आपको ऊँचाई एवं गहनता प्रदान करते दुरुपयोग करने लगते हैं श्री शिव को देखें हैं। आप यदि उनकी पूजा करते है तो उनमें असंख्य शक्तियां हैं। इन शक्तियों का आप उस बुलन्दी तक पहुँच जाते हैं यदि वे दुरुपयोग करने लगें तो पृथ्वी पर घास जहाँ से संसार को साक्षी रूप में देखते का एक पत्ता भी शेष न बचेगा। हम कितने हैं। साक्षी स्वरूप में साक्षी होकर वे पूरे पापी और स्वार्थी हैं वे सब जानते हैं। फिर भी विश्व को देखते हैं। यही कारण है कि वे वे हमें अवसर प्रदान करते हैं कि किसी प्रकार "ज्ञान' हैं वे शुद्ध विद्या' हैं। चाहे आपको हम सुधर जाएं। वे अत्यन्त उदार हैं, अत्यन्त उदार। वे अत्यन्त क्षमाशील हैं और अत्यन्त हाथों पर दिव्य शीतल लहरियाँ महसूस उदार | मान लो रेगिस्तान में रहने वाले लोग कर लें, परन्तु क्या आपके पास ज्ञान है? बहुत अच्छे हैं और मरुस्थल में रहने के कारण मुझे आपको ये बताना पड़ता है कि कौन कष्ट उठा रहे हैं तो वे उनके लिए मरुद्यान सी उंगली का अर्थ क्या हैं? कौन से हाथ (Oasis) की सृष्टि कर देंगे। पृथ्वी माँ को भी का अर्थ क्या है? दिव्य चैतन्य लहरियों का वही नियंत्रित करते हैं। लोग यदि अर्थ क्या है? मैं आपको बताना चाहूंगी कि आध्यात्मिक हैं और उनकी पूजा करते हैं तो श्री महादेव ही वह ज्ञान हैं, वे ही शुद्ध उन्हें प्रसन्न करने के लिए वे सभी कुछ कर विद्या हैं, उच्चतम स्तर के पूर्ण ज्ञान। वही सकते हैं। परन्तु मानव इतना मूर्ख है कि परमात्मा के नाम पर लड़े चले जाता है। दक्षिण हैं उन्हें शुद्ध विद्या प्राप्त नहीं हो सकती, में दो प्रकार के लोग है-एक जो शिव को जो अहंकारी हैं अन्य लोगों से कोमलता, पूजते है, दूसरे जो विष्णु के पुजारी हैं। क्या आप इस बात की कल्पना कर सकते हैं कि करते उन्हें श्री महादेव का आशीर्वाद श्री विष्णु श्री शिव की पूजा किया करते थे ? न रहे हैं। आत्मसाक्षात्कार मिल जाए, चाहे आप अपने ज्ञान के स्रोत हैं। जो लोग विनम्र नहीं मधुरता एव सुन्दरतापूर्वक आचरण नहीं जुलाई-अगस्त, 2001 31 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-35.txt श्री महादेव पूजा, 25.2.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 ब 8 कोई ऊँचा है न कोई नीचा। ये बात महत्वपूर्ण शिव का आशीष प्राप्त करने के लिए व्यक्ति है। परन्तु लोग इसी बात को लेकर लड़ते को अत्यन्त प्रेममय होना आवश्यक है। ऐसा रहते हैं कि वे शिव के पुजारी हैं या विष्णु के। व्यक्ति चाहे बहुत अधिक चतुर चालाक न वे सत्य के समीप भी नहीं पहुँचे । सत्य को वो हो, चाहे बहुत अबोध हो और होना भी जान ही नहीं पाए। लड़ते ही रहे, लड़ते ही चाहिए क्योंकि जब आप किसी से प्रेम रहे। परमात्मा के नाम पर लड़ने वाले लोगों करते हैं तो उसकी सहायता करना चाहते पर शिव का प्रकोप होता है और अपने हैं मैंने स्वयं बहुत कष्ट उठाए हैं । मैंने त्रिशूल से वे उन पर वार करते हैं। लोगों की सहायता करने का प्रयत्न किया परन्तु उन्होंने मुझे धोखा दिया। तो क्या परमात्मा के नाम पर आपको लड़ना हुआ? ये उनका स्वभाव है, और वे नष्ट हो नहीं है, प्रेम करना है और समझना है। गए। मैं क्या कर सकती हूँ? मैंने तो उनसे परमात्मा के नाम पर लड़ाई झगड़ा मूर्खता नहीं कहा था कि मुझे धोखा दें., फिर भी है। केवल इतना ही नहीं, ये बहुत भयानक उन्होंने मुझे धोखा दिया! मेरी समझ में भी है। ऐसा करने वाले सभी लोग नष्ट हो नहीं आता क्यों? मैं तो अत्यन्त करुणामय जाएंगे। यह आत्मधातक है। ऐसे लोग पूर्णतः एवं प्रेममय थी फिर भी उन्होंने मुझे धोखा नष्ट हो जाएंगे। परमात्मा के नाम पर आपको दिया| ऐसा करने का परिणाम विनाश होता केवल प्रेम करना है। मूर्खता को सहन है, इसका मैं क्या कर सकती हूँ? मैं नहीं करने की कोई आवश्यकता नहीं है। आपको चाहती कि कोई नष्ट हो, मैं अपनी इस लोगों से प्रेम करना है और अपने प्रेम का सृष्टि को प्रेम करती हूँ । परन्तु यदि वे प्रसार करना है। शनैः-शनैः ये प्रेम पूरे विध्वंसक हों तो मेरे पास उनकी रक्षा करने विश्व में पहुँच जाएगा और मैं देख सकती का कोई रास्ता नहीं है। एक अन्य शक्ति हूँ कि मेरा स्वप्न साकार हो जाएगा। परन्तु है जो उन्हें नष्ट कर सकती है कभी-कभी यदि आपसी लड़ाई, घृणा, सभी प्रकार की मैं बिल्कुल मजबूर होती हूँ। मैं नहीं जानती आक्रामकता है तो ये सारी चीजें शिव कि किस प्रकार मैं अपनी बात कहूँ, परन्तु विरोधी है । ऐसे लोग नष्ट हो जाएंगे। व्यक्ति को समझना चाहिए कि सहजयोगी उनका मैं क्या करूंगी? वे यदि नष्ट हो के रूप में श्री शिव के आशीर्वाद को प्राप्त गए तो मैं क्या कर सकती हूँ? वे यदि धन करके आप अत्यन्त प्रेममय, उदार, अत्यन्त लोलुप हैं, बहुत अधिक भौतिकतावादी लोग मधुर तथा बच्चों की तरह अबोध बन हैं, तो वे प्रेम नहीं कर सकते। वे केवल जाते हैं। धन के लिए ही किसी को प्रेम करते हैं। ऐसे सभी लोग नष्ट हो जाएंगे। इसमें कोई सन्देह नहीं है । आपको अबोध बनना होगा। चतुर चालाक बनने की कोई आवश्यकता नहीं है। आप हैरान होंगे कि किस व्यक्ति को न केवल विनम्र होना चाहिए प्रकार आप की अबोधिता की रक्षा होती श्री है ! आप यदि अबोध हैं तो चिन्ता की बल्कि उसे प्रेममय भी होना चाहिए। जुलाई-अगस्त, 2001 32 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-36.txt श्री महादेव पूजा, 25.2.2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 कोई बात नहीं हैं एक अन्य शक्ति-श्री वे प्रतीक्षा करते हैं और उसके बाद पूरा शिव की तीसरी आँख- आपकी देखभाल परिवार खाता है बाकी के पशु को वहीं कर रही है। जहाँ भी आप जाते हैं ये छोड़ दिया जाता है। तत्पश्चात् सामर्थ्य आपके साथ होती है। इसका अर्थ ये अनुसार सभी पशु आते हैं और प्रसाद के नहीं है कि आप मूर्ख बन जाएं या रूप में इसे खाते हैं। सबसे बाद में कौए व्यवहारिकता को त्याग दें। श्री शिव इस पशु को खाते हैं। इतना अनुशासन, की शक्ति, उनका पथ प्रदर्शन, उनका मर्यादाओं की इतनी सूझ-बूझ! मैं हैरान हूँ प्रेम, उनकी करुणा, यह व्यवहारिक पक्ष कि किस प्रकार श्री शिव पशुओं को नियन्त्रित संभाल लेती है। इसका अनुभव आप करते हैं! हम कभी नहीं सुनते कि पशुओं जीवन के हर कदम पर करेंगे। परन्तु की सर्वप्रथम अपने कदमों (गतिविधियों) को ये कभी नहीं सुनने को मिलता कि पशु हड़ताल है या उनका कोई माफिया है । देखें। क्या आप आक्रामक हैं? क्या आप चोरी करते हैं। परन्तु आप कल्पना कीजिए कष्टकर हैं, आप कटु शब्द बोलते हैं या कि पशु अवस्था से आने के पश्चात् भी विनम्र हैं? क्या आप भद्र हैं। आप यदि मनुष्य उससे कहीं पतित है! हमारे अन्दर करुणामय हैं तो श्री शिव बहुत प्रसन्न होते यदि लड़ाई झगड़े का आचरण करने हैं प्रकृति में उनका साम्राज्य है। वे और के मूर्ख विचार हैं तो किस प्रकार हमारा प्रकृति की चीजें अत्यन्त सुव्यवस्थित हैं उत्थान होगा? ज़रा-ज़रा सी बात पर और अत्यन्त सूझ-बूझ से एक दूसरे के लोग लड़ने लगते हैं। पशु भी परस्पर थोड़ा साथ रहती हैं। उदाहरण के रूप में आप बहुत लड़ते हैं परन्तु वे दल बनाकर नहीं जंगल में जाते हैं और वहाँ यदि बिल्कुल लड़ते। वे दल बनाकर नहीं लड़ते जिस सन्नाटा है, पक्षियों की चहचहाहट भी नहीं प्रकार हम करते हैं। जरा सा मौका मिलते है तो आपको समझ जाना चाहिए कि वहाँ ही हम दल बना लेते हैं और लड़ने लगते पर कोई शेर बैठा हुआ है शेर क्योंकि हैं। पशु भी झुण्ड बनाते हैं परन्तु लड़ते राजा है, सभी अन्य प्राणी जानते हैं कि नहीं। उनमें ऐसी क्या बात है? पशु हर उन्हें उनकी आज्ञा में रहना है। और राजा चीज़ को बहुत अच्छी तरह से समझते हैं के सम्मुख मर्यादा क्या है, स्वतः ही वे जान तो क्यों न हम भी प्रकृति के नियमों को जाते हैं कि राजा के सम्मुख मर्यादा क्या समझें? है। शेर की उपस्थिति में कोई हिलता तक नहीं। शान से वह बैठता है अपनी शान से वह बैठता है। एक सप्ताह या पन्द्रह प्रकृति के सभी नियमों का पालन होना दिनों के बाद वह एक पशु का शिकार चाहिए। पृथ्वी माँ, आकाश तथा अन्य सभी करता है। उसे खाना खाना होता है। वह तत्वों की देखभाल भी वही करते हैं। हमारे किसी एक पशु को मारता है तथा शेर तथा लिए वे छोटे-छोटे बहुत उसका परिवार सबसे पहले खाता है। शिकार करते हैं। ऋतु परिवर्तन के साथ वे सुन्दर करने के पश्चात् उसका रक्त रिसने तक फूलों की सृष्टि करते हैं। सभी सुखकर, श्री महादेव इस बात को देखते हैं कि से सुन्दर कार्य 33 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-37.txt श्री महादेव पूजा, 25.2.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व 8 आनन्ददायी चीजों की सृष्टि वे ही करते हैं पत्नियों को प्रेम करते हैं। हो सकता है यह और उनकी देखभाल भी वे ही करते हैं। तलाक का भय हो। प्रेम में भय नहीं प्रकृति की सभी सुन्दर चीजें वे हमें देते हैं होना चाहिए। प्रेम तो हृदय से होना और हमें प्रसन्न करने और अबोध बालक चाहिए । बिना किसी भय के, बिना किसी की तरह से हमारा मनोरंजन करने का आक्रामकता के पावन प्रेम का आनन्द प्रयत्न करते हैं। परन्तु अपनी हेकड़ी में हर लें। परन्तु आज मनुष्यों में इसी का अभाव चीज के प्रति हमारी प्रतिक्रियाएं होती हैं । है जिस दिन मनुष्य प्रेम के सौदन्य को किसी कालीन को जब आप देखते हैं तो समझ लेगा उस दिन हम पर स्वर्ग से वह दिन अत्यन्त महान में विशेष रूप से ऐसा कहना आम बात है होगा जब महादेव अपनी तीसरी आँख को कि 'यह मुझे पसन्द नहीं है। किसी चीज़ बन्द कर लेंगे और उनके हृदय में पूर्ण को न पसन्द करने वाले आप कौन होते शान्ति होगी। यह मेरा स्वप्न है। आप कितनी है? आप अपने आप को क्या समझते हैं? ये शान्ति से बातचीत कर सकते हैं, इस चीज़ या मुझे को देखना आपका भविष्य है। कितनी पसन्द है अत्यन्त निर्लज्जता की बात है। मधुरता पूर्वक आप अन्य लोगों को प्रेम यह असम्भव है। मेरी समझ में नहीं आता करते हैं, अन्य लोगों को कितना कुछ देते कि ऐसे लोग कहाँ जाएंगे, उनका क्या हैं? उदाहरण के रूप में यदि किसी अन्य होगा? किसी चीज़ की प्रशंसा करने, हर को कुछ देना हो तो लोग बाज़ार जाकर चीज़ का आनन्द लेने की अपेक्षा उसकी सस्ती से सस्ती सड़ी हुई चीज ले आएंगे। आलोचना और उसके प्रति प्रतिक्रिया क्यों ये कोई तरीका नहीं है। प्रेमपूर्वक कोई भी करनी है? पाश्चात्य देशों में प्रतिक्रिया बहुत छोटा या बड़ा उपहार, जो भी आप किसी की जाती है। भारत में इतनी नहीं। सम्भवतः के लिए लाएं उससे आपका प्रेम झलके, सांस्कृतिक भिन्नता के कारण । यहाँ पर आपकी धन शक्ति नहीं । आजकल भारत भारत में यदि लोग ऐसा कहें तो उन्हें में भी आम बात है कि लोग अपने वैभव और अपनी वेशभूषा का प्रदर्शन करते हैं। किसलिए? मैंने ऐसे लोग देखे हैं जिनके अतः यह बात महत्वपूर्ण है कि किस मृत शरीर को उठाने के लिए चार लोग भी प्रकार आप अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करें । नहीं होते परन्तु अपने जीवन में वे स्वयं को यह कार्य अपनी पत्नी से आरम्भ करें। बहुत बड़ी चीज़ मानते हैं उस समय आपको अपने बच्चों तथा अन्य लोगों तक इसे ले देखना चाहिए कि उस व्यक्ति को प्रेम जाएं। कभी कभी हम इतने मूर्ख होते हैं कि करने वाले उसकी फिक्र करने वाले कितने सारे संसार को प्रेम करते हैं परन्तु अपनी लोग हैं हो सकता है कि परवरिश इसका पत्नियों को प्रेम नहीं कर सकते। भारत में कारण हो। हो सकता है कि उसे कभी प्रेम विशेष रूप से ऐसा होता है पश्चिम में भी, प्राप्त ही न हुआ हो। किसी भी चीज को मैंने देखा है, लोग भय के कारण अपनी आप दोष दे सकते हैं। परन्तु एक सहजयोगी कहते हैं कि मुझे ये पसन्द नहीं है पश्चिम पुष्पवर्षा होगी । कहना कि 'मुझे पसन्द नहीं है पागल समझा जाएगा। 34 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-38.txt श्री महादेव पूजा, 25.2.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIl अक 7 व 8 को ये समझ लेना अत्यन्त आवश्यक है कि रखें कि जिस प्रकार लोग हमारी आलोचना प्रे म ही उसका जीवन है, प्रे म ही कर रहे हैं कि हम व्यवहारिक नहीं हैं, हमने आध्यात्मिकता है और कुछ भी करने के बहुत सा धन नहीं कमाया, सत्ता नहीं प्राप्त लिए बिना कोई आशा किए प्रेम करिए मैं की या अन्य चीजे, तो यह सब महत्वहीन जानती हूँ कि कुछ लोग गरीबों की सहायता हैं। इस प्रकार के लोग तो बाज़ारों में बहुत आदि करने में बहुत आगे होते हैं। परन्तु बिक रहे हैं हम उनसे भिन्न हैं । हम मानव रत्न हैं और रत्नों की तरह से ही हमें होती है। वो सोचते हैं कि ओह, "हम महान चमकना हैं। अपने अन्दर से सारी बुराइयों हैं।" हम ये कार्य कर रहे हैं, हम वो कार्य को दूर करके स्वयं को तराशना है। जिस कर रहे हैं! लेकिन यह सब वे अपने अहं प्रकार रत्न को तराशने पर ही उसकी की तुष्टि के लिए करते हैं, प्रेम के लिए सुन्दरता की अभिव्यक्ति होती है । यदि मेरे नहीं। तो जब आप कार्य करते हैं तो आपको अन्दर कोई इच्छा रही है तो वह केवल इस चीज़ की समझ होनी चाहिए कि यह इतनी कि आप श्री महादेव के गुणों का अनुसरण करने का प्रयत्न करें। वे निर्लिप्त की तुष्टि के लिए आप यह कार्य कर रहे हैं, पूर्णतया निर्लिप्त । वे अस्थियाँ आदि हैं, नाम या पद के लिए नहीं। आपका प्रेम धारण करते हैं, उन्हें चिन्ता नहीं होती कि यदि इस प्रकार से निर्लिप्त प्रेम है, विरक्त वे कहाँ रहते हैं, किसके साथ रहते हैं, प्रेम है तो आपको किसी प्रमाण पत्र की उनके पास क्या है? किसी चीज की भी आवश्यकता नहीं। आपमें यह गुण है और उन्हें चिन्ता नहीं रहती। हमें भी उतना ही निर्लिप्त होना चाहिए। परन्तु उन्हीं की तरह से प्रेममय, अत्यन्त प्रेममय होना चाहिए। मुझे खेद है कि मुझे अंग्रेजी भाषा में किस प्रकार उनका हृदय अन्य लोगों के बोलना पड़ा। सम्भवतः कुछ ऐसे लोग भी लिए प्रेम से परिपूर्ण है? किस प्रकार वे यहाँ हों जो अंग्रेजी को नहीं समझते परन्तु हमारी देख रेख करते हैं? मैं आपको चेतावनी आजकल अंग्रेजी का दबदबा है इसलिए दे रही हूँ क्योंकि आप सब मुझसे बहुत प्रेम हमें अंग्रेजी बोलनी पड़ती है। मैं कोई अन्य करते हैं। परन्तु आपको परस्पर भी प्रेम भाषा नहीं बोल सकती परन्तु व्यक्ति को करना चाहिए। आपका प्रेममय हृदय होना प्रेम की भाषा बोलनी चाहिए। पशुओं को चाहिए और अन्य लोगों को प्रेम कर देखें। घोड़ा, कुत्ता सभी पशु आपके प्रेम को आपको संतोष होना चाहिए। यह गुण आप समझते हैं। किस तरह वो आपको समझते अपने में विकसित कर सकें तो आपकी हैं! किस तरह अपने प्रेम की अभिव्यक्ति ऊँचाई बढ़ जाएगी। सहजयोग में आपकी करते हैं! वे अत्यन्त मधुर हैं और ये गुण गहनता बढ़ जाएगी। ठीक है कि देवी हमें उनसे सीखना है अन्यथा मेरी समझ आपको श्रद्धा प्रदान करती हैं परन्तु श्रद्धा में नहीं आता कि किस प्रकार लोगों को की गहनता को मैं नहीं जानती। आप क्या प्रेम का मूल्य समझाया जाए? कृपया ध्यान कहते हैं, मराठी में इसे ध्यास कहते हैं । इन सब कार्यों के पीछे प्रभुत्व की भावना अपनी आत्मा की तुष्टि के लिए है और प्रेम आप इसका आनन्द ले रहे हैं। जुलाई-अगस्त, 2001 35 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-39.txt श्री महादेव पूजा, 25.2.2001 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 उस प्रेम की गहनता, उस प्रेम का आनन्द। की ये शान्ति टूटती है तो श्री शिव स्थिति तब आपको किसी चीज़ की आवश्यकता को अपने हाथ में ले लेते हैं । अतः व्यक्ति नहीं होती। आपको क्या चाहिए? आपको को समय की, प्रकृति की तथा अन्य सभी सभी कुछ प्राप्त हो चुका है, अब आपको चीज़ों की लय का ज्ञान होना चाहिए। लोग क्या चाहिए! महादेव की महानता की तरह फूलों के नाम तक नहीं जानते! वो नहीं से। वे इतने महान हैं कि अत्यन्त निर्लिप्त 'जानते कि ये फूल कौन से हैं और कौन हैं उन्हें किस चीज़ की आवश्यकता है? सी ऋतु में यह खिलते हैं! अपने जीवन कहने का अभिप्राय है कि उनसे महान कुछ की लय का भी उन्हें ज्ञान नहीं है! किसी भी नहीं, उनसे महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं । तो को इन चीज़ों की चिन्ता नहीं है चहूँ ओर उन्हें किस चीज़ की आवश्यकता है। उन्हें यदि आप देखें तो ऋतुएं हैं तथा अन्य हैं, जैसे ये किसी चीज़ की आवश्यकता नहीं है और चीजें हैं। यह सब लयबद्ध ह यही कारण है कि वे निर्लिप्त हैं। यही तबला बजा रहा है या पखावज जिस पर निर्लिप्तता आपको अपने अन्दर विकसित ये सारी सुन्दर धुने बजा रहे हैं और सारी करनी है। परन्तु श्री महादेव सभी कलाओं, ऋतुएं परिवर्तित हो रही हैं प्रकृति समृद्ध संगीत तथा ताल के स्वामी हैं। उस दिन होती है, खिलती है और फिर उस पर आपने देखा कि ये लड़के ताल बजा रहे उतार आ जाता है। यह बात हम नहीं थे। हर चीज़ के ताल की सृष्टि श्री महादेव देखते। हम केवल अपने तक ही सीमित रहते हैं। हम कहते हैं, "आप कैसे हैं?" श्री माताजी, मुझे सिर दर्द है, मेरे पेट में तालबद्ध जीवन जो हमें प्राप्त है उसका गड़बड़ी है, मुझे ये तकलीफ है आदि-आदि । अभी हमें ज्ञान नहीं है। आप देखें कि बच्चा परन्तु दूसरा व्यक्ति कहेगा कि आह मैं नौ महीने और कुछ दिनों के पश्चात् जन्म बिल्कुल ठीक हूँ।" तो मामला क्या है? श्री लेता है। यह तालबद्धता किसकी देन है? माताजी इस विश्व को ठीक कर दीजिए. भिन्न प्रकार के पुष्प अपने-अपने समय पर आप इस विश्व को ठीक क्यों नहीं करती? निकलते हैं। प्रकृति में भिन्न ऋतुएं आती उसे अन्य लोगों की चिन्ता है अपनी नहीं । हैं। इन सारी चीज़ों को कौन लयबद्ध करता विश्व को प्रसन्न और सुन्दर बनाने के लिए है? वे स्वयं लय हैं और प्रकृति में तथा व्यक्ति को क्या करना चाहिए? इसके लिए अन्य सभी चीज़ों में उसी लय को बनाए मनुष्य को कठिन परिश्रम करना होगा। रखा जाता है। हर चीज़ में एक लय है। उसे सोचना होगा कि संसार को सुन्दर लयबद्ध व्यक्ति वही है जिसका हृदय बहुत बनाना क्या हमारा कतर्त्तव्य नहीं है? क्या विशाल है और जो सागर की तरह से है। संसार को तालबद्ध करना हमारा कार्य नहीं किसी भी क्रूर तथा बुरे व्यक्ति को देखते हैं? इस प्रकार की ताल बद्धता जिसमें ही आपके अन्दर ये ताल बिगड़ जाता है। हमारी आत्मा का संगीत हो। ये हमारा एक शांत, सुन्दर झील में तरंगे नहीं होती कर्त्तव्य है हमें ये कार्य करना होगा। केवल प्रेम होता है और जब यह लय, हृदय सहजयोग को केवल अपने लिए नहीं करते हैं। जुलाई-अगस्त, 2001 36 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-40.txt श्री महादेव पूजा, 25.2.2001 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व 8 अन्य लोगों के लिए भी अपनाना होगा। कहाँ तक आप इस शक्ति के साथ हैं। हर समय केवल अपनी ही चिन्ता नहीं कहाँ तक इससे ओत-प्रोत हैं। श्री शिव करनी होगी, अन्य लोगों की भी करनी की यह लयबद्धता, आपको चैतन्य-लहरियाँ होगी। ये प्रेम है जो नैसर्गिक है जब प्रदान करती है। चैतन्य लहरियाँ तरंगों के यह प्रेम कार्य करता है तो चमत्कार रूप में बहती हैं और ये तरंगे आपको कर देता है। पूर्णतः अपने में निमग्न कर लें और आप सब इनमें समा जाए। आपका अहं भाव आज की शाम अत्यन्त सुन्दर है कि (1-ness) इसमें विलय हो जाए। यही मेरा आज हम अपनी उत्क्रान्ति के इतने महान आशीर्वाद है। स्रोत की पूजा कर रहे हैं और मुझे आशा है कि आप लोग इस बात को समझेंगे कि आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद । 37 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-41.txt एकादश रुद्र पूजा ৪ अक्टूबर 1988, विएना आध्यात्मिकता के इतिहास में आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है। सभी पैगम्बरों ने एकादश रुद्र अवतरण की भविष्यवाणी की। न्दोंने कहा कि एकादश अवतार आएंगे और सारी आसुरी शक्तियों तथा सारी परमात्मा विरोधी गतिविधियों को नष्ट करेगे। वारतव में एकादश तत्व की रचना भवसागर मं होती है क्योंकि जब अंतरिक्ष ! अपनी ध्यान धारणा के माध्यम स भ्रम सागर को पार करने के लिए तेयार होते हैं तो आसुरी शक्तियाँ उन्हें सताती है, कष्ट देती है, उनक भा्ग में बाधा डालती हैं तथा उनका वध करती है। ये नकारात्मक शक्तियाँ सं पौधे पशु आदि मध्य में न होने के मानवीय असफलताओं के कारण पनपीं। कारण नष्ट हों गए, क्योंकि वे अत्यन्त मनुष्य जब असफल हुआ तो उसकी दृष्टि अहकारी और चालाक थे। कुछ बहुत बड़े अपने से बेहतर लोगों पर पड़ी और उसे थे, कुछ बहुत छोटे थे। उन सबको बाहर लगा कि वह तो उन मनुष्यों के मुकाबले फेंक दिया गया और बाहर फेंक दिए जाने कहीं भी नहीं है। कई बार क्रोध एवं ईष्ष्या पर उन्हें लगा कि उन्हें अवश्य प्रतिकार के कारण उसमें दुष्ट स्वभाव जाग उठा जिसने भवसागर में परमात्मा विरोधी में चले गए और कलात्मक लोगों को हानि नकारात्मकता की सृष्टि की। इस प्रकार पहुँचाने के लिए सूक्ष्म रूप धारण करके आ भवसागर में दुष्टता को आकार प्रदान किया गए जैसे आजकल विषाणु (Viruses) हम गया। जैसा आप सहजयोग में देखते हैं, पर आक्रमण करते हैं। ये वो पौधे (तत्व) हैं बहुत बार हमने ऐसा देखा होगा, जब आप जो संचरण से बाहर चले गए थे। कुछ किसी गलत गुरु या गलत व्यक्ति के पास जाते हैं या कोई अनाधिकार पूजा करते है परिसंचरण समाप्त हो जाएगा, बहुत से तो आपका आया भवसागर पकड़ता है। नशीले पदार्थों का परिसंचरण भी समाप्त बाए भवसागर में घे सारी विध्वंसक शक्तियां हो जाएगा| ये सभी तत्व हमारे अन्दर एक कार्य करती हैं। विकास प्रक्रिया में भी बहुत प्रकार के क्रोध. विकास विरोधी एवं २० करना चाहिए। ये सभी सामूहिक अवचेतना 1 समय पश्चात् हम देखेंगे कि तम्बाकू का जुलाई-अगस्त, 2001 38 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-42.txt चैतन्य लहरी खंड-Xl॥ अंक 7 व 8 एकादश रुद्र पूजा, 8.10.1988 स्वतन्त्रता विरोधी शक्तियों का रूप धारण मुकाबला करने के लिए हमें नकारात्मकता कर सकते हैं। विरोधी शक्तियाँ प्राप्त होनी चाहिएं। इस के लिए यह स्थान अत्यन्त उपयुक्त पूजा अतः भवसागर क्षेत्र में इन सभी भयानक है। मैं उन सब सहजयोगियों की धन्यवादी नकारात्मक शक्तियों का उद्भव हुआ। इसी हूँ जिन्होंने एकादश रुद्र पूजा के लिए यह प्रकार बहुत से मनुष्य जिन्होंने जन्म लिया स्थान चुना। आधुनिक काल में, जैसा हम और इसी प्रकार जन्म लेकर जिन मनुष्यों देखते है, ये सारी शक्तियाँ अत्यन्त सूक्ष्म ने अपने अहंकार का बल दिखाने का प्रयत्न रूप से कार्य कर रही हैं, ऐसे तरीके से किया, जो अहंकार प्रणालियों में चले गए जिसे मानव समझ नहीं सकते और इसमें और सोचा कि वे अन्य लोगों को नियंत्रित फंसे रहते हैं। आप यदि देखें कि जिस कर सकते है तथा सभी मनुष्यों पर शासन प्रकार हमें व्यर्थ की चीजें लुभातीं हैं या कर सकते है, पूरे विश्व पर नियंत्रण स्थापित आकर्षित करती हैं, जिस प्रकार भयानक कर सकते है, ऐसे सभी लोग इतिहास में रोग हर कदम पर हमारी प्रतीक्षा कर रहे शक्तिशाली संस्थाएं बन गए। आज भी हैं, हमें लगता है कि हम उस दल दल के ऐसी सी शक्तियाँ पनप रही हैं। हर किनारे पर खड़े हैं जिसमें फॅसने के बाद बहुत क्षण ये शक्तियाँ बन रही हैं और नष्ट हो सम्भवतः हम कभी न निकल सकें, उससे रही हैं। हमारे भव सागर में ये बनती हैं कभी छुटकारा न पा सकें। अतः हमें समझना और फिर नष्ट हो जाती हैं। ये लोग यदि चाहिए कि हमारे अन्दर ऐसा क्या है जो दाई ओर से (दाएं भवसागर से) पनपते हैं प्रकृति के विकास विरोधी, उत्क्रान्ति तो हम उन्हें परा चेतन (Supra Comscious कहते हैं और जो बाई ओर से आते हैं उन्हें को सदा के लिए नष्ट कर सके। प्रकृति में अवचेतन तत्व कहते हैं। ये सभी तत्व जीवित यदि आप देखें तो हर चीज़ नियमित रूप रहते हैं क्योंकि मानव को परमात्मा के रूप से प्रसारित होती है। उदाहरण के रूप में में बनाया गया है ये तत्व सर्वशक्तिमान सर्दियों में पत्तों को झड़ना होता है क्योंकि परमात्मा के सामूहिक अवचेतन में तथा पेड़ -पौधों का पोषण करने के लिए उन उनके पराचेतन में रहते हैं । ये शक्तियाँ पत्तों की नाइट्रोजन को पृथ्वी माँ में जाना तब तक रहती हैं जब तक ये नर्क में नहीं होता है। इतना ही नहीं पृथ्वी माँ को सूर्य चली जातीं। इसी प्रकार मानव में भी ये की किरणें भी मिलनी आवश्यक हैं, इसलिए शक्तियाँ विद्यमान रहती हैं और हम पर पतझड़ होना आवश्यक है ताकि किरणें काबू पाने का प्रयत्न करती रहती हैं। ) विरोधी और सृजनात्मकता विरोधी स्वभाव पृथ्वी माँ में प्रवेश करके इसका पोषण कर सकें। पोषण प्राप्त करके पेड़ पुनः हरे-भरे बहुत अच्छी बात है कि ये पूजा हम हो उठते हैं ताकि सूर्य का प्रकाश प्राप्त आस्ट्रिया में कर रहे हैं क्योंकि विश्व के करके वे क्लोरोफिल (Chlorophyll) बना भूगोल में यूरोप भवसागर है और आस्ट्रिया सकें। पृथ्वी माँ से जल चूसकर वे इसे वह स्थान हैं जहाँ आसुरी शक्तियों का वातावरण में वाष्पित करते हैं और वर्षा के ये 39 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-43.txt चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 7 व a एकादश रुद्र पूजा, 8.10.1988 लिए उत्प्रेरक (Catalyst) का कार्य करते हैं इस शक्ति को अपने अन्दर उन्नत | वर्षा ऋतु में वर्षा होती है, जल का होने देने के लिए सर्वप्रथम हमें अत्यन्त पोषण प्राप्त करके पुनः पेड़ों के सारे पत्ते अन्तर्दर्शी होना चाहिए। ये देखने का प्रयत्न झड़ जाते हैं और इस प्रकार अत्यन्त सुन्दरता करना चाहिए कि हमारे साथ क्या घटित पूर्वक ये सारा चक्र चलता रहता है। इसमें हो रहा है। अपनी गतिविधियों को देखना कोई विपर्यय (Reversion) नहीं है, यह तो चाहिए। क्या हम उत्क्रान्ति की ओर बढ़ एक निरन्तर चक्र है जो सृजन और पुनः रहे हैं या विनाश की ओर? हम क्या कर सृजन करने के लिए सुन्दर ढंग से चलता रहे हैं? हमारे अन्तःस्थित एकादश रुद्र शक्ति रहता है। परन्तु मानव के हस्तक्षेप से प्रकृति इतनी शक्तिशाली है, इतनी शक्तिशाली है गड़बड़ा जाती है। प्रकृति को हम समृद्ध भी कि यह न केवल प्रकृति में बल्कि मानव में कर सकते हैं आप प्राकृतिक तरीकों से भी कार्य करती है। इस प्रकार से ये कार्य प्रकृति को विनाश से बचा सकते हैं। परन्तु करती है कि आप स्तब्ध रह जाते हैं, आश्चर्य जब आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाता चकित हो जाते हैं । जिस सज्जन को मैंने है तो अपनी चैतन्य लहरियों से आप उन आत्मसाक्षात्कार दिया है वह अत्यन्त समर्पित सभी प्रकृतिक चीज़ों की रक्षा कर सकते हैं हैं परन्तु वह उस अवस्था में नहीं है जहाँ जो आधुनिकता के दुष्प्रभाव के कारण सड़ वह सहजयोग में आ सके। कुछ लोगों ने रही हैं। उसे बहुत कष्ट देने का प्रयत्न किया और उसने मुझे बताया कि वे सब दुर्घटना के अतः सर्वप्रथम हम आत्मसाक्षात्कार शिकार हो गए और अस्पताल में पड़े हैं। का प्रभाव देखते हैं कि किस प्रकार यह मैंने कहा मैंने तो कुछ नहीं किया, अपने ही एकादश रुद्र के रूप में कार्य करता है। कारनामों से उन्होंने सारी सीमाएं लाँधीं इस रूप में ये उन सारी आसुरी शक्तियों और जब व्यक्ति अच्छाई की सीमाएं को नष्ट कर देता है जो प्रकृति को नष्ट लाँघता है तो स्वाभाविक रूप से बह एक करने में लगी हुई हैं। मुझे विश्वास हैं ऐसी अवस्था में पहुँच जाता है जिसे हम कि एक दिन आप सब ऐसी अवस्था आसुरी अवस्था कहते हैं। इस स्थिति के तक उन्नत हो जाएंगे कि आपका एक खड्ड में यदि आप पड़ जाते हैं तो आपको कटाक्ष पेड़ों को हराभरा करने, फलों में कष्ट उठाना पड़ता है। इसका प्रभाव मिठास भरने तथा फूलों को सुगन्धित सहजयोगियों पर भी पड़ता है। मैं एक ऐसे करने के लिए काफी होगा। ऐसा होना सहजयोगी को भी जानती हूँ जिसने पैसों सम्भव है क्योंकि हमारी उत्क्रान्ति के परिणाम के मामले में गड़बड़ करने का प्रयत्न किया। निकल रहे हैं। शनैः शनैः यह परिणाम दर्शा मैने नहीं सोचा था कि उसे दण्ड मिलना रही है ताकि आप बौखला न जाएं, आपको चाहिए। मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा था कि आघात ने पहुँचे, ताकि आप स्वयं देख उसे दण्ड मिलें । परन्तु उन शक्तियों ने सकें कि आप क्या हैं और क्या प्राप्त कर कार्य किया। उसकी अपनी शक्तियों ने रहे हैं। उसके विरुद्ध कार्य किया और वह इतना 40 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-44.txt चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व 8 एकादश रुद्र पूजा, 8.10.1988 बीमार हुआ, इतना अधिक बीमार हुआ कि और उनके द्वारा बनाए गए भ्रमों के कारण मेरे सम्मुख वह सूखे पत्ते की तरह से लोगों ने उन्हें स्वीकार कर लिया है । इन्हें कांपता था। मैंने उसे कभी नहीं बताया कि स्वीकार करने वाले सभी लोग मेरे बच्चे हैं. मैं उसके कारनामे जानती हूँ। ये जिज्ञासु हैं, सत्य साधक हैं। ये ऐसा हुआ मानों धन ऐंठने के लिए बच्चों को सहजयोग में, जब आप आते हैं तो, उठा लिया जाए। ये लोग बच्चों को मेरे आपको जान लेना चाहिए कि शनै: शनैः सामने कर देते हैं और मेरी समझ में नहीं परन्तु निरन्तर, आप एक सीधी खड़ी पगडंडी आता कि मैं क्या करूं? मैं राक्षसों को पर चढ़ रहे हैं। यह सब क्योंकि बहुत मारने का प्रयत्न करती हैं परन्तु मेरे बच्चे शीघ्रता से करना होता है इसलिए चढ़ाई सामने आकर खड़े हो जाते हैं। तो बहुत खड़ी है और उस चढ़ाई को चढ़ते आधुनिक काल में इन्हें नष्ट करने का कौन हुए आपको ध्यान रखना होगा कि यदि सा सर्वोत्तम उपाय है? निःसन्देह, उनका आप ऊपर को नहीं बढ़ते तो नीचे को वध किया जा सकता है, वे मर सकते हैं। फिसल जाएंगे और यदि किनारों की ओर परन्तु जिन लोगों को उन्होंने भ्रमित किया जाएंगे तो आप खड्ड में गिर जाएंगे। आप कह सकते हैं कि श्री माताजी हम इधर किस प्रकार करु? यह अत्यन्त कठिन और उधर बढ़ रहे हैं । इसलिए आड़ोलन पतन के कारण भी व्यक्ति इस आड़ोलन राक्षसों को एक ऐसी अवस्था तक ले आया (Movement) को महसूस कर सकता है जाए जहाँ इनका पर्दाफ़ाश हो जाए, ये यह विनाश का आड़ोलन है अतः आपको अनावृत हो जाएं और पूरा विश्व इन्हें पहचान अपने विषय में आवश्यक विवेक होना चाहिए। जाए कि ये कैसे लगते हैं। इसलिए बाहर हम उत्थान की ओर जा रहे हैं या पतन से इनसे लड़ने या यम से इनका वध करने की ओर? क्या हम पथभ्रष्ट हो रहे हैं या के लिए कहने की अपेक्षा इन्हें एकादश रुद्र हमारे कदम ऊँचाई की ओर बढ़ रहे है? के शिकंजे में फँसा देना उत्तम है ताकि कभी-कभी हमें महसूस नहीं होता कि अपने दुष्कर्मों के कारण लोगों के सम्मुख ब्रह्माण्ड के इतिहास में हम विश्व की ये नग्न हो जाएं। झूठ के इस घिनौने खेल भयानकर्तम नकारात्मकता के बीच में हैं। का यह एक लाभ है। असत्य सदैव अनावृत्त प्राचीन काल में एक समय पर कोई एक हो जाता है। उनके मुख पर आप सदैव राक्षस होता था, जिसे सम्भालना होता था। उनके पाखण्ड, दुराशय और शैतानी योजनाएं एक राक्षस को नियंत्रित करना आसान स्पष्ट लिखे देख सकते हैं। कार्य था। परन्तु इतने अधिक राक्षसों को सम्भालने के लिए बहुत अधिक कार्य की आवश्यकता है। सबसे बुरी बात तो ये है पराकाष्ठा पर हैं। हमें अधिक अधिक कि आधुनिक समय में ये राक्षस लोगों के सावधान और अधिक सूझ-बूझ वाला होना मस्तिष्क में प्रवेश कर गए हैं । उनकी शिक्षाओं होगा आप सब इसके लिए अच्छी तरह से हैं, जिन्हें हानि पहुँचाई है उनकी रक्षा मैं है। नाजुक कार्य है। एक मात्र ये है कि इन आधुनिक समय में ये आक्रमण चुस्त, जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-45.txt चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 7 व 8 एकादश रुद्र पूजा, 8.10.1988 तैयार हैं। परन्तु सदैव हम ये भूल जाते हैं, लोग यदि सूचना देना चाहें तो बेशक दें कि हमारे अन्दर चैतन्य लहरियाँ है कि परन्तु मैं तो जानती हूँ कि वास्तव में चैतन्य लहरियों की नई चेतना हमें प्राप्त हो परिस्थिति क्या है। चुकी है तथा हमारे अन्दर चैतन्य चेतना | चैतन्य चेतना एक प्रकार का दूत है जो में एक बार राहुरी के एक अतिथि गृह कि पूर्ण है, जो सूचित करती है और हमें मैं प्रतीक्षा कर रही थी वहाँ पाँच -छः बताती है कि हमारे अन्दर क्या कमी है प्राध्यापक अपनी साइकिलों पर आए। उन्होंने तथा अन्य लोगों में क्या दोष हैं? परन्तु आकर मुझे बताया कि श्री माताजी हम यदि आप मानसिक या भावनात्मक उद्यमों आपको एक व्यक्ति विशेष के विषय में से अपने निर्णय लेने आरम्भ कर दें तो चेतावनी देने आए हैं। मैंने कहा, यह सज्जन निश्चित रूप से आप भ्रम में फँस जाएंगे कौन है? उन्होंने उस व्यक्ति का नाम बताया क्योंकि ये सारे प्रश्न एक तरफे होते हैं। और कहा उससे सावधान रहें, वह राजनीति जैसे कोई भी मानसिक प्रक्षेपण, रेखीय दिशा करता है। मैंने कहा उसके विषय में आप बस इतना ही जानते हैं? उन्होंने कहा, हाँ, ही पर उसका प्रभाव होता है। भावनात्मक आपको उससे बहुत सावधान होना होगा। प्रक्षेपण का भी ऐसा ही परिणाम होता है मैंने कहा, अब मैं आपको उस व्यक्ति के और शारीरिक प्रक्षेपण का भी परन्तु जब विषय में बताती हूँ। इस व्यक्ति की पत्नी आप चैतन्य लहरियों के माध्यम से देखने इसकी विवाहिता नहीं है, वह किसी अन्य लगते हैं तो आप अपनी आत्मा से कहते हैं की पत्नी है और वह व्यक्ति उस स्त्री को है। (Linear Way) में चलता है और फिर आप भगा कर ले आया है। बच्चा इसका पूर्णज्ञान' (Absolute Knowledge) है । तब परन्तु इसने उस महिला का बलात्कार किया आप न तो अपने अहम् के सम्मुख, न अपने था जिसके कारण यह बच्चा उत्पन्न हुआ। बन्धनों के सम्मुख, न किसी संस्कार के जब मैंने ये बातें बतानी शुरू कीं तो उन लोगों की आँखे फटी सी रह गईं कि वह आपको सूचित करे और आत्मा 1 सम्मुख और न ही किसी गुरु के सम्मुख । कहने घुटने टेकते हैं। आप केवल स्वयं पर निर्भर लगे 'श्री माताजी आप ये सब कैसे जानती करते हैं । अतः आप सबके लिए ये समझना हैं? मैंने कहा आप जाकर पता लगाएं कि आवश्यक है कि हम मानसिक स्तर पर मैं जो कुछ कह रही हूँ वह सत्य है या निर्णय न लेकर चैतन्य लहरियों के माध्यम नहीं । वे पूर्णतः स्तब्ध थे वो वापिस चले से निर्णय लेंगे बहुत से लोग सोचते हैं कि गए और फिर मुझे सूचित किया कि श्री जब मैं किसी व्यक्ति के विषय में कुछ माताजी आश्चर्य की बात है आपने जो कहती हैं तो संभवतः किसी अन्य ने मुझे कुछ भी बताया या वह सब सत्य था! अतः सूचना दी होगी। परन्तु कल्पना कीजिए चैतन्य लहरी पर आप सभी कुछ जान कि मैं यदि चैतन्य लहरियों का स्रोत हूँ तो सकते हैं | परन्तु जो लोग बिना चैतन्य मुझे सूचना देने के लिए क्या रह जाता है? लहरी के निर्णय लेने का प्रयत्न करते हैं वे कोई भी व्यक्ति आकर मुझे क्यों सूचना दे? गलतियाँ कर सकते हैं, जब तक आप उस जुलाई-अगस्त, 2001 42 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-46.txt चैत्तन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व ৪। एकादश रुद्र पूजा, 8.10.1988 अवस्था तक नहीं पहुँच जाते जहाँ बिना हाथ फैलाए आप सब कुछ जान जाते हैं। शक्ति को जागृत करने के लिए पूजा कर परन्तु उस अवस्था तक पहुँचने के लिए रहे हैं। ये शक्ति आपके अन्दर की सर्वप्रथम आपको अपनी बुद्धि चैतन्य लहरियों नकारात्मकता तथा पूरे विश्व की के सम्मुख झुकानी होगी। कुछ लोगों की नकारात्मकता से निपटने में सहायता करेगी। चैतन्य लहरियाँ ठीक नहीं होती, सम्भवतः खराब विशुद्धि के कारण ऐसा हो। उन्हें बहुत से लोग हैं जिनके पास भिन्न चाहिए कि अपनी विशुद्धि का ध्यान रखें। आयुध, साधन और हथियार हैं। ये सभी उन्हें यदि विशुद्धि का कोई रोग नहीं है तो हथियार आपके पास हैं, आपके अन्दर हैं वे अपने अन्दर महसूस कर सकते है कि और निश्चित रूप से आप इन्हें उपयोग कौन से चक्र पकड़ रहे हैं और फलां व्यक्ति कर सकते हैं। परन्तु सर्वप्रथम आपको यें की स्थिति क्या है? प्रायः, क्योंकि हम जानना होगा कि आपके पास कौन से आधुनिक काल में हैं, सुन्दर दिखाई देने हथियार हैं और किस प्रकार उनका उपयोग वाले लोग उन लोगों की अपेक्षा अधिक करना है आज भयानक अंध विश्वास है, भूतबाधित होते हैं जो सुन्दर नहीं दिखाई भयानक गलत धारणाएं हैं । लोगों ने असंख्य देते। एक बार एक महिला हमारे कार्यक्रम संस्था रूपी किले बना लिए हैं, विश्व में में आई। वह पूरी तरह से भूत-बाधित थी। सभी प्रकार के मूर्खतापूर्ण कार्य होते हैं। ये छड़ी की तरह से पतली थी। सहजयोग सब समाप्त हो जाएंगे उनके विषय में का आरम्भ था। सभी लोगों को लगा कि किसी को कुछ भी ज्ञान न होगा लोग कितनी सुन्दर महिला सहजयोग में आ गई उन्हें इस पृथ्वी पर आसुरी जीवों के रूप में है! मैने उन्हें कहा कि फिलहाल इसे जानेंगे अन्ततः जीवन्त शक्ति ही जीवित सभागार से बाहर बिठाओ। उनकी समझ रहेगी। हमें ये जानना होगा कि हमें जीवन्त में नहीं आया। जब वह ठीक हो गई तो शक्ति का ज्ञान है। इसके विषय में हमें बिल्कुल भिन्न दिखाई देने लगी। मेरे लिए अत्यन्त विश्वस्त होना होगा और इस बात तो वो बहुत ही सुन्दर है। जो सौन्दर्य उस समय देखा गया था संभवतः वह शक्ति का ज्ञान है। तब हमारे अन्दर एकादश नकारात्मकता का वेश था जिसे लोगों ने रुद्र अत्यन्त सशक्त हो जाता है। आपको देखा। जैसे आप सिनामें के नायक, नायिकाओं और विदूषकों को देखते हैं जो मिलेगा। सहजयोग को झुकाने या हानि राष्ट्रपतियों तथा बड़े-बड़े लोगों की भूमिकाएं पहुँचाने वाली किसी भी संस्था को परिणाम करते हैं। उनके मुख पर आप स्पष्ट लिखा भुगतने होंगे। जैसा आप जानते है, मैं (Muf हुआ देख सकते हैं कि वे कितने भयानक है? जब तक आप उस स्तर के तथा गई उसने मुझसे दुर्व्यवहार किया। अगले निष्कपट नहीं हैं आप ये बात नहीं समझ सप्ताह वह शो बन्द हो गया। भारत में एक सकेंगे। आज हम अपने अन्दर एकादश रुद्र अब हमारे बहुत से हाथ हैं, हमारे यहाँ पर हमें गर्व करना होगा कि हमें जीवन्त कष्ट देने वालें व्यक्ति को कठोर दण्ड Biffin Sho) मफ बिफिन शो देखने के लिए समाचार पत्र ने मुझ पर बेहूदे लेख लिखने 43 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-47.txt चैतन्य लहरी खंड-XIlI अंक 7 व 8 एकादश रुद्र पूजा, 8.10.1988 शुरू किए थे। कई महीनों के लिए वह देने का प्रयत्न करेगा तो यह शक्ति कार्य समाचार पत्र ही बन्द हो गया। ऐसा होता करेगी। शारीरिक स्तर पर यह आपके मस्तक है मैं ऐसी कोई बात नहीं कहती, परन्तु पर विराजमान है। एकादश रुद्र आपके जिस तरह से घटनाएं घटती हैं वह आश्चर्य मस्तक पर दिखाई देता है और इसकी चकित करने वाली होती हैं। ये एकादश खराबी के कारण यहाँ पर (मस्तक पर) रुद्र अब किस प्रकार कार्यशील है? सबसे सूजन आ जाती है। कुछ लोगों में यहाँ अहम् बात तो ये है कि ये एकादश केवल एक घुमाव और गूमड़ (उठाव) सा देखा कलियुग में, आधुनिककाल में ही कार्य होगा कँसर के रोगियों को यदि आप देखें करेगा। इससे पूर्व ये गतिशील न था । तो उनके बाएं मस्तक से दाई ओर को ये क्योंकि उस समय कोई एक-आध ही गुरु उठाव होता है। काफी बड़ा, दाई तरफ होता था। आज जो राक्षस गुरु रूप में आए एक गूमड़ सा। कुछ लोगों को ये उठाव हैं। पूर्व काल में वो शैतान रहे होंगे कहीं बाईं तरफ को होता है अतः बाई तरफ से कोई एक आध-राक्षस होता था, उसका उठकर यह दाई तरफ को जाता है और वध करना बहुत आसान था। कस का दाई तरफ से उठने वाला बाई तरफ जाता वध करने में श्रीकृष्ण को कोई लम्बा समय है। दाई तरफ को जाने वाले गूमड़ अधिक नहीं लगा और रावण का वध करने में भयानक होते हैं क्योंकि ये अत्यन्त गुप्त श्रीराम को राक्षसों का वध एक बार जब होते हैं, छुपे हुए, जिन्हें देखा नहीं जा उन्होंने कर दिया तो सारा वातावरण शुद्ध सकता। परन्तु व्यक्ति को ये बहुत हानि हो गया परन्तु ये लोग मच्छरों की तरह पहुँचाते हैं। से हैं। एक के बाद एक बेशुमार संख्या में उत्पन्न हो जाते हैं। इनका कोई अन्त नहीं। ये लोग मानव शरीरों में प्रवेश कर कार्यरत हैं इन्हें पूरी तरह से नष्ट किया गए हैं और उन्हें भयानक रोग, समस्याओं जा सकता है यदि हम अपने अन्दर एकादश लथा कष्ट से भर दिया है। अतः समस्या रुद्र शक्ति विकसित कर लें। ये इतनी कहीं अधिक जटिल एवं गम्भीर है। ये जितनी भी भयानक शक्तियोँ आज अधिक शक्तिशाली नहीं है। एक सहजयोगी ऐसी हजारों आसुरी शक्तियों का वध कर तो ये एकादश रुद्र हैं जिनकी ग्यारह सकता है जबकि ये एक सहजयोगी को विध्वंसक शक्तियाँ है । हम कहते हैं कि हानि नहीं पहुंचा सकतीं। वास्तव में आपके दस दिशाएं हैं और यह ग्यारहवीं है। दस सम्मुख ये शक्तिहीन हैं। आपको कष्ट देने बाहर से और एक अन्दर से। इनका प्रकोप का इनके पास कोई मार्ग नहीं है। आप उन सभी लोगों पर पड़ सकता है जो यदि शक्तिशाली हैं तो ये हो जाएंगी, सहजयोग की उन्नति में बाधक बनने का सदा सर्वदा के लिए लुप्त हो जाएंगी। प्रयत्न करते हैं। इसके विरोध में कार्य स्मरण रखें कि भारत में एक स्थान पर करते हैं या जो मेरे और आपके विरोध में तीन सहजयोगी गाँव की एक विशेष सड़क कार्य करते हैं। कोई भी यदि आपको कष्ट से जाया करते थे। एक बार एक कार्य- क्रम लुप्त 44 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-48.txt चैंतन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व 8 एकादश रुद्र पूजा, 8.10, 1988 में एक महिला भूतबाधित हो गई और हो स्वयं को इन आसुरी लोगों के सम्मुख हो हो हो करने लगी। उससे पूछा कि वह झुकाकर इनकी दासता स्वीकार कर लेते बहाँ क्यों है? उसने उत्तर दिया कि इस है और इन नियंत्रक व्यक्तियों के गौरव में महिला में हम आपको ये बताने के लिए अन्य लोगों को भी नष्ट करने का प्रयत्न आए हैं कि आप उन तीनों सहजयोगियों करते हैं। को बता दें कि वे इस मार्ग से न जाएं। सारे गाँव तो हम वैसे ही छोड़ चुके हैं और अब इस क्षेत्र में रहते हैं। सारी रात अगर है। जहाँ ऐसी शक्तियाँ प्रवेश नहीं कर सहजयोगी इस मार्ग से आते रहेंगे तो हम सकतीं। यहाँ पर आप बहुत प्रसन्न हैं । इधर-उधर भागते रहेंगे। अतः उन तीनों आपके मस्तक पर चहूँ ओर इस क्षेत्र की सहजयोगियों को कह दें कि वे उस मार्ग देखभाल करने के लिए एकादश रुद्र खड़े से न जाएं ताकि हमारे रहने के लिए कुछ हैं। वे सब देख रहे हैं. वे प्रहरी हैं । कोई स्थान तो बच जाए। ये सभी विकास प्रणाली आपको हानि नहीं पहुँचा सकता। अत्यन्त से बाहर हो चुके हैं। ये मृत लोग हैं और ये शान से आप अपने सहस्रार में स्थापित हैं। लोग अपने सूक्ष्म शरीर में हमारे अन्दर कुछ भी आपको छू नहीं सकता, कोई भी इसके पश्चात् सहजयोग का क्षेत्र आता मृत प्रवेश कर सकते हैं और तत्वों की रचना आपको कलंकित नहीं कर सकता। एकादश कर सकते हैं। ये तत्व हमें काबू कर सकते रुद्र बहुत चुस्त हैं और उनके बहुत से पक्ष हैं और हमें बाधित कर सकते हैं। इस तरह हैं। हर देवता के बहुत से पक्ष होते हैं और के भूतबाधित लोग बिल्कुल सामान्य प्रतीत ये सारे पहलू इस क्षेत्र को हर समय होते हैं। जैसा आज मैं बता रही थी सम यौन लैंगिकता, अति लैगिकता या लैंगिकता बाह्य शक्ति इसमें प्रवेश न कर सके। का पूर्ण अभाव, कलात्मकता का पूर्ण अभाव आपके अन्दर भी यही शक्ति विद्यमान है । या अतिकलात्मक प्रवृत्तियाँ, बहुत अधिक सहस्रार के इस क्षेत्र में जब भी कोई बाह्य खाना या बिल्कुल न खाना, ब्रत् करना, शक्ति प्रवेश करने का प्रयत्न करती है तो बहुत अधिक डरना या बिल्कुल न डरना, तुरन्त ये गतिशील हो उठते हैं और उस हर बात में ये कहना कि इसमें क्या दोष है, व्यक्ति को इतनी हानि पहुँचा सकते हैं कि परमात्मा का भी भय न खाना या चींटी से आप स्वयं हैरान रह जाते हैं। आपको पता भी डरना। कुछ लोग इर समय दोष भाव भी नहीं चलता कि यह सब कैसे हो गया। ग्रस्त रहते हैं और कुछ लोग दूसरों को परन्तु इस शक्ति को विकसित करने के बैकार बताकर उन्हें दोष भाव में ढकलते लिए पूर्ण निष्ठा एवं सूझ-बूझ पूर्वक ध्यान हैं। कुछ लोग अत्यन्त क्रूर होते हैं, अन्य धारणा करनी आवश्यक है। केवल इतना लोगों के मामलों में हस्तक्षेप करके वे उन्हें भर नहीं कि मेरे फोटो के सामने बैठकर दास बना सकते हैं, कुछ भी कर सकते हैं, आप कहें, "श्री माताजी मैं स्वयं को आपके अपने भाषणों से भयानक युद्ध करवा सकते सम्मुख समर्पित करता हूँ आदि आदि।" हैं और कुछ अन्य ऐसे हो सकते हैं जो निष्कपटता पूर्वक, क्योंकि देवता जानते हैं प्रकाशमान करते रहते हैं ताकि कोई भी 45 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-49.txt चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 7 व 8 एकादेश रुद्र पूजा, 8.10.1988 तो आज हमें इस कलियुग में और कौन वास्तव में उन्नत होना और नकारात्मकता को पूर्णतः नष्ट करने के उत्क्रान्ति को प्राप्त करना चाह रहा है। लिए इन एकादश रुद्र शक्तियों का आहवान एक प्रकार से यह संघर्ष है। ये संघर्ष है करना है और ये प्रार्थना भी करनी है कि कि सत्यनिष्ठ कौन हैं, गहनता में कौन है युदि हमारे अन्दर कोई नकारात्मकता है तो परन्तु ऐसा संघर्ष नहीं जिसका कोई फल यह नष्ट हो जाए। सहजयोग विरोधी कोई न मिले। संसार का कोई अन्य संघर्ष आपको नकारात्मकता यदि है तो वह नष्ट हो जाए कोई भी फल नहीं देता फिर ये संघर्ष तो हमारे चरित्र में, हमारी सूझ-बूझ में कोई नकारात्मकता है तो वह नष्ट हो जानी इतना साधारण है, इसका इतना वर्णन किया जा चुका है, इसे इतना कार्यान्वित किया चाहिए। एकादश रुद्र के विषय में आज का जा चुका है कि आपको अधिक चिन्ता यही सन्देश है करने के लिए कुछ शेष नहीं है। परमात्मा आपको धन्य करे। 46 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-50.txt पूजा का महत्व भाग-1 परिचय सहजयोगी होने के नाते श्री आदिशक्ति की साक्षात रूप में या उनके फोटो की पूजा चाहिए। अपने एक पत्र में श्री माता जी ने करने की आज्ञा प्राप्त होने का सौभाग्य हमें कहा है कि 'पूजा हृदय में करनी चाहिए । प्राप्त है। गरिमामयी माँ साक्षात रूप में या पूजा के दृश्य हृदय में उतर कर हमारे अपनी सर्वव्यापक उपस्थिति के माध्यम से लिए निरन्तर आन्नद के स्ोत बन जाने हमारी पूजा को स्वीकार करती हैं । जब - जब भी हम श्री माता जी का ध्यान तथा उनसे प्रार्थना करते हैं वे हमारे साथ होती हैं। अतः श्री माता जी की पूजा करते हुऐ बन जाने दीजिए और इस प्रकार सहजयोगियों का एक उत्तरदायित्व होता गंगा जल की तरह पवित्र तथा है। श्री माता जी के चरण कमलों पर अमृत की तरह शुभकर बने चित्त से पूरी तरह से चित्त स्थिर करके उनकी श्री माता जी के चरण कमलों की पूजा पूजा की जानी चाहिए। पूजा अनचाहे से भी चित्त विक्षेप (ध्यान का हटना) सम्मान विहीनता सम है । मंत्रोच्चारण, महादेवी की महिमा - गान आध्यात्मिक विकास के लिए पूजा अत्यन्त के लिए तथा श्रद्धापूर्वक समर्पित की सहायक है और यह आदिशक्ति की कृपा गई भेंट को स्वीकार करने के लिए, का आहवान करती है। बल देकर उन्होंने देवी से प्रार्थना के रूप में होता है पूजा अन्तस का एक भाग बन जानी चाहिए। हृदय को आदिशक्ति का सिंहासन के समय कीजिए। आदि शंकराचार्य ने कहा है कि कहा है कि सर्व - व्यापक शक्ति से जब चित्त का एकाकार हो जाता है तो शुद्ध श्रद्धा का उदय हृदय से होता है निर्विकल्प अवस्था में योगी, इष्ट तथा और इसकी प्रतिबिम्ब आत्मा, देवी मां की शुभ पूजा करने से प्रसन्न होती है। श्री जब हमारी देवी मां निरन्तर विद्यमान हैं माताजी के अनुसार पूजा हृदय से होनी तो हम पूजा स्वीकार करने के लिए चाहिए । हृदय से की गयी पूजा अति सुन्दर उनका आह्वान किस प्रकार कर सकते हैं? लहरियों का आहवान करती है तथा हर पूरा ब्रहमांड ही जब उनके विराट अस्तित्व उपस्थित व्यक्ति दैवी आनन्द का अनुभव में स्थित है तो हम उन्हें क्या भेंट कर पुजारी के द्वैत से ऊपर उठ जाता है। सकते हैं? करता है। 47 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-51.txt चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 पूजा का महत्व उनके असीम (विराट) रूप के दर्शन यह है कि पूजा के लिए आपको मध्यम-प्रकार कर पाने में असमर्थ हम सब सहजयोगियों के लोगों को नहीं लाना चाहिए क्योंकि पूजा को अपनी पूजा का शुभ-अवसर प्रदान करने को सहन करना अति कठिन है । मेरे अस्तित्व, के लिए श्री माता जी ने सीमित (मानव) रूप चरणों तथा कर-कमलों का मूल्य अभी तक धारण किया है इस कृपा के लिए हमारा लोगों ने नहीं समझा है। वे यहां आने के योग्य नहीं हैं। अतः भाई, बहन या मित्र होने के नाते किसी व्यक्ति को न लाएं। यह अनुचित है। असह्य देकर आप उस व्यक्ति के उत्थान के अवसर बिगाड़ रहे हैं। वह इसे सहन नहीं कर सकता। पूजा बहुत ही कम लोगों के लिए हैं। अतः याद रखें कि पूजा रोम-रोम उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए । मनस्त्वं व्योमस्त्वं मरुदसिसारथिरसि त्वमापस्त्वं भूमिस्त्वयि परिणतायां नहि परम् त्वमेव स्वात्मानं परिणामयितुं विश्वपुषा चिदानन्दकारं शिवयुवति भावेन विभूषे।। अधिक लोगों के लिए नहीं है । अर्थात् तुम हो मन, वायु, आकाश, अग्नि, जल और भूमि तुम्ही हो। सभी कुछ है परिणति में तुम्हारी, इसके बाहर कुछ भी नहीं है। परिणत स्वयं को करने हेतु, चिदानन्दाकार की विराट-देह से की अभिव्यक्ति। अब चरणामृत-अर्थात मेरे चरणों का अमृत भी सभी के लिए नहीं होता और न ही पूजा की आशीष सब के लिए होता है। अतः जो लोग पूरी तरह तैयार नहीं है उनसे बचने का प्रयत्न करें। सर्वप्रथम वे सन्देह करना शुरू कर देंगे। नियम-आचरण सम्बन्धी समस्या भी होगी। आवश्यक सम्मान के साथ वे पूजा को स्वीकार न सकेंगे यहां तू मन है, तू आकाश है, तू वायु है और आना अत्यन्त सौभाग्य से होता है और यह वह अग्नि भी तू सौभाग्य हर किसी को नहीं प्रदान किया जा वायु जिसका सारथि है है। तू जल है और तू भूमि है, तेरी परिणति सकता। के बाहर कुछ भी नहीं है। तूने ही अपने आपको परिणत करने के लिए चिदानन्दाकार यदि आप समझ सकें तो यह सहजोग को विराट देह के भाव द्वारा व्यक्त किया का रहस्य है। और प्रारम्भ में इस रहस्य के विषय में बहुत कम लोगों को बताना है। एक दिन सभी रहस्य उघड़ने वाले हैं-परन्तु सब श्री माताजी के भाषणों से पूजा के के लिए नहीं। जब आप इस सत्य को पहचान जायेंगे कि आप सौभाग्यशाली हैं तो आप के 5 मई 1980 के सहस्त्रार दिवस के अवसर पर आचरण से प्रकट होगा कि यह सौभाग्य आपको प्रदान किया गया है। आज विश्वभर सहज योग के विषय में आज मैंने में ध्यान करने वाले बहुत से लोग हैं। मैं इन आपको कुछ रहस्य बताने हैं - एक रहस्य सब लोगों के विषय में सोच रही हूं। आपको हुआ है। विषय में उद्धरण जी श्री माता जी के प्रवचन से उद्धत :- जुलाई-अगस्त, 2001 48 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-52.txt चैतन्य लहरी खंड-Xll अंक 7 व 8 पूजा का महत्व भी इनके विषय में सोचना है और यह समझना है कि ये आपकी तरह ही विराट अस्तित्व के अंग-प्रत्यंग है परन्तु आप लोग मेरे अस्तित्व के चेतन अंश हैं। को ही प्रदान किया जाता है। आप सब योग्य व्यक्ति हैं इसी कारण मैं यह सब आपको बतला रही हूं। निष्कपटता आपकी सफलता की कुन्जी है। यह एक सौभाग्य है कि मैं यह कुन्जी आपको दे रही हूं। पाश्चात्य बुद्धि के लोगों को यदि आप कुछ बतायें तो वे दंड इत्यादि अवांछनीय शब्दों का उपयोग कर देते हैं। आपको सम्मान सूचक तथा उचित शब्दों का उपयोग मेरे प्रति करना चाहिए । अतः इस समय यह पूजा आप केवल अपने तथा लंदन के लोगों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के हित के लिए कर रहे हैं। विश्वभर के सहजयोगियों के अतिरिक्त आप स्वयं को उन सहजयोगियों की तरह अभिव्यक्त कर रहे हैं जो मुझे पहचान चुके हैं और मुझसे दूसरे लोगों को आशीष देने के लिए प्रार्थना कर रहे हैं जिससे कि वे भी मुझे पहचान सकें। मुझे आशा है इस पूजा से मेरी पहचान आपको और अधिक स्पष्ट हो जायेगी। मुझे पहचानकर आप केवल अपने आपको पहचानेगें तथा सभी कार्य बड़े सुन्दर ढंग से होने लगेंगे। यदि आपकी आचरण विधि ठीक नहीं है तो आप उलटे-सीधे कायं द्वारा सभी कुछ बिगाड़ लेते हैं। अतः सावधान रहिए। इस अवसर को सौभाग्य मानिये आप सभी विशेष व्यक्ति हैं और यह अवसर आपके प्रति विशेष इस प्रकार बातें नहीं कर सकती। परन्तु आपको यह सब मैं इसलिए बता सकती हूँ क्योंकि पूरी कुन्जी मैं आपको देना चाहती हूँ। है। जन-साधारण से मैं कृपा मैं केवल यह चाहती हूं कि आप केवल निष्कपट बनें तथा सहजयोग में कपट न करें। कपट करने से आपको भी बहुत हानि होगी तथा अन्य सहजयोगियों को भी। अतः छल न करें। छल द्वारा क्योंकि आप मुक्ति पथ को हानि पहुंचायेंगें तो आप भी दण्डित होंगे और परिणाम स्वरूप आप ही हानि पीड़ित होंगे। अतः निष्कपट बनने का प्रयत्न करें, यह कठिन कार्य नहीं है । 1 स्वयं को देखकर यदि आप यह जान सकें कि आप कितने सौभाग्यशाली हैं, कि सहजयोग क्या है, तब आप समझेंगे कि यहां पर विद्यमान होना कितने सौभाग्य सुकृतियों के कारण यहां पर आपकी उपस्थिति से कपट का मार्ग नहीं अपनाना है। बहुत आपके कितने जीवन पुरस्कृत हो गये हैं? से लोग सोचते हैं कि मां ताड़ना कर रही हैं। यह ज्ञान आपको और अधिक निष्कपटता परन्तु ताड़ना जैसे शब्द गलत हैं, तथा इनका पूर्वक पूजा करने में सहायक होगा। तथा सुफल की बात है। आपकी प्रयोग मेरे लिए नहीं होना चाहिए। सौभाग्यवश आप यहां हैं, और आपको यह पता होना ईश्वर आपको आशीष प्रदान करें। पहिए कि सौभाग्य केवल योग्य व्यक्तियों नीचे उद्धरित वार्ता में 19 जुलाई 1980 जुलाई-अगस्त, 2001 49 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-53.txt चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 7 व 8 पूजा का महत्व को ब्रिटेन में श्री माता जी ने पूजा का मेरी पूजा करो और मेरे अन्दर के सभी अर्थ बताया देवता जागृत होंगे तथा परिणामतः आपके अन्तःस्थित देवता भी जागृत हो जायेंगे। अब पूजा के लिए आप लोगों को समझना अतः मेरा आशीष ग्रहण करके योग्य है कि साक्षात्कार के बिना पूजा का कोई बनने के लिए आपकी लहरियों का अर्थ नहीं, क्योंकि आप "अनन्य नहीं हैं, सुधरना अति आवश्यक है। अर्थात आपको अपने विराट रूप के प्रति चेतन होना है। कृष्ण ने भक्ति को अनन्य बताते हुए कहा कि मैं अनन्य भक्ति प्रदान तो किसी भी पूजा या भाव-अभिव्यक्ति का करूंगा। वे अनन्य भक्ति चाहते हैं। अनन्य कोई लाभ नहीं। तो सर्व प्रथम हम एक अर्थात जहां दूसरा कोई न हो अर्थात जब आप साक्षात्कारी हों। अन्यथा वे कहते हैं को तैयार करते हैं। यह तैयारी भिन्न "पुष्पम् फलम् तोयम्" अर्थात "पुष्प, फल व देवी-देवताओं को प्रार्थना द्वारा- अर्थात जल, स्वीकार्य है मुझे, समर्पित जो करो," यदि ग्रहण-सामर्थ्य ही अच्छी नहीं है प्रकार से अपने यंत्र (शरीर) या प्रक्षेपण-यन्त्र कुंडलिनी पूजा द्वारा-होती है। मेरी कुंडलिनी की प्रार्थना करने से आप अपने प्रतिबिम्ब को परन्तु जब देने की बात आती है तो वे सुधार लेते हैं क्योंकि आपकी प्रार्थना से कहते हैं- पास आना है, अर्थात् "मुझ से एकाकारिता हो जाने के पश्चात जागृत कर देता है। यह जागृति ही ही आप में भक्ति जागती है उससे पूर्व नहीं, आपके उत्थान का प्रारम्भ है। इससे पूर्व आपके सम्बन्ध नहीं जुड़े होते। मेरी लहरियों का बहाव आपकी ओर हो जाता है तथा आपकी कुंडलिनी को "अनन्य भक्ति पूर्वक आप को मेरे एक बार जब आपका यन्त्र (शरीर-तन्त्र) पूजा मनुष्य की बायीं ओर की ठीक हो जाता है तो आप अपनी अभिव्यक्ति भावनात्मकता की अभिव्यक्ति है, यह बाहर की ओर करते हैं। किस प्रकार करते दायीं ओर की उग्रता को, विशेषतया हैं आप यह अभिव्यक्ति? ब्रह्मांड की रक्षक अति उग्र स्वभाव को तथा उग्र वातावरण के रूप में देवी की शक्तियों का को निष्प्रभावित करती है। पूजा क्यों कि भक्ति तथा समर्पण की अभिव्यक्ति है द्वारा आप यह कार्य करते हैं। अतः यह उग्र स्वभावी व्यक्तियों के लिए हितकर है। पूजा करने से होता क्या है? ऐसा पाया गया है और अब मैं भी बारम्बार करके अपनी भावाभिव्यक्ति तुम्हें बता रही हूं कि पूजा द्वारा आपको (हृदय-प्रेम) को आप प्रतिध्वनित (गुंजन) अपने अन्दर के सुप्त देवी-देवताओं को करते हैं। तब आपकी अभिव्यक्त अति जगाना है। परन्तु क्योंकि ये देवता, आदि-देव मेरे साथ हैं इसलिए आप धटना घटित होती जो की चमत्कारिक है। महिमा- गान करके उनकी पूजा-अर्चवना महा - देवी की शक्तियों का गुण-गान शक्तिशाली हो जाती है। एक अति सूक्ष्म ये जुलाई-अगस्त, 2001 50 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-54.txt चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 पूजा का महत्व करेंगे तो यह जीवनहीन होंगे और ज्ञान-पूर्वक समझ कर करने पर पूर्णतया जीवन्त बन जायेंगे मेरे चरणों को आराम पहुंचाने के लिए आप तेल इत्यादि अन्य वस्तुएं लगाते हैं। इस तरह आप हृदय से कहते हैं। श्री माता जी आपने घोर परिश्रम किया है, आपके चरण कमलों ने भी बहुत परिश्रम यह सब बातें अति साधारण लगती हैं जैसे मेरे चरण धोना अति साधारण प्रतीत होता है। अब आप इन चरणों को देखिए । मैं नहीं जानती कि आप इनमें पूरे ब्रह्मांड को देखते हैं या नहीं - मैं तो इसे यहां देखकर आश्चर्य- चकित रह जाती हूं : मेरे चरण धोते समय आप क्या करते किया है" हैं? वास्तव में मेरे चरण घोर परिश्रम करते हैं और तब इन्हें आराम पहुंचाने के लिए आप थोड़ा सा जल इन पर डालते हैं और यह यही बात कहें तो यह महत्वहीन है। परन्तु संकेत देते हैं कि इन चरणों द्वारा किये गये मेरे चरणों के प्रति आपका प्रेम महत्वपूर्ण है । प्रयत्नों को आप अनुभव कर सकते हैं। और जैसे बच्चे के प्रेम पूर्वक मां के गाल पर हाथ तब एक प्रकार का मधुर तथा संगीतमय प्रेम रख देने मात्र से मां का हृदय प्रेम से द्रवित इन चरणों से बह निकलता है। जैसे आज हो उठता है। यह आचरण पारस्परिक है। जब मैं आ रही थी तो अचानक पॉल को यह अति सूक्ष्म क्रिया है जो इसी प्रकार कार्य खड़े देखा सावधानी तथा समझदारी है - श्री माता जी करते हैं उतना ही अधिक आनन्द आप पाते आ रही हैं। कहीं वे खो न जायें। बस इतने हैं। तर्क तथा बुद्धि - प्रयोग से यह आनन्द भर से करुणा बहने लगी क्योंकि यह प्रेम तो नहीं मिल सकता। सब कुछ समझता है। किसी वस्तु की इसे आशा नहीं, परन्तु केवल प्रेम को स्वीकार करने वाले व्यक्ति की उपस्थित में ही यह आवश्यक है। परन्तु आपकी प्रेम-अभिव्यक्ति आडोलित होता है। सामान्य रूप (बुद्धि-प्रयोग) से यदि आप वही हुआ, देखो कितनी करती है। हृदय से आप जितना मुझे प्रेम सर्व प्रथम आपका शुद्धि-करण श्री माता जी के प्रति होनी ही चाहिए। यही चरम - सीमा है जिसे प्राप्त करते ही आप आप कैसे कह सकते हैं कि आप ग्राही सर्व - शक्तिमान बन जाते हैं और दूसरे लोगों (पाने वाले) हैं? इन छोटी-छोटी बातों की को भी यह शक्ति दे सकते हैं। परन्तु यह अभिव्यक्ति द्वारा। अतः जब आप मेरे चरणों देना भी एक दूसरे के आश्रअय पर निर्भर है को आराम पहुंचाते हैं, इन्हें धोते है, साफ क्योंकि देवी आपके विषय में सब कुछ जानती करते हैं तो आपको पता होता है कि इनका हैं। यदि आप कोई अनुचित प्रयास करेंगे तो महत्व क्या है, आप इस महत्व को पहचानते देवी आपको स्पष्ट रूप से बिना किसी संकोच । यह मान्यता आप किस प्रकार प्रकट के कह देगी कि ऐसा नहीं होना चाहिए। करेंगे? यह छोटे-छोटे समारोह इसलिए फिर भी कार्य को करने के लिए आपको पता महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह आपकी मान्यताओं होना चाहिए कि इसे परस्पर आश्रित होना को प्रकट करते हैं। अज्ञानता में यदि इन्हें है। यह एक तरफा नहीं हो सकती। 51 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-55.txt चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व 8 पूजा का महत्व सबसे बड़े हैं, उनके पहले बेटे हैं। आपके भाईयों में से सबसे बड़े भाई हैं और यद्यपि कार्तिकेय को सदा बड़े भाई का स्थान दिया जाता है और गणेश जी स्वयं को छोटा भाई कहते हैं, फिर भी उनकी रचना पहले की गई थी । क्योंकि श्री गणेश सदा तरुण रहते हैं इसलिए वे आप सबसे छोटे हैं। समझने पूजा वास्तव में प्रोत्साहन देने वाली की यह अत्यन्त सूक्ष्म बात है कि छोटा होते क्रिया है। यह आपको एक नये साम्राज्य में हुए भी वे इतने विवेकशील हैं। वे साक्षात ले जाती है। वास्तव में यह चमत्कार है। एक विवेक हैं। क्या आप इतने बुद्धिमान बच्चे की बार जब आप पूजा कर लेते हैं तो अपने मौन कल्पना कर सकते हैं? आयु में आप सदा श्री में भी बहुत सी अभिव्यक्ति कर सकते हैं। गणेश से बड़े हैं। परन्तु विवेक में वे ही सबसे निष्कपटता एक तरफा नहीं हो सकती यह दोनों ओर से होनी चाहिए। तभी यह भली-भांति कार्य कर सकती है और तब एक प्रकार के समभाव स्नेहक के रूप में प्रेम को लाते हैं और अन्तस में एक सुन्दर आड़ोलन का अनुभव होता है। पुत्र आपका मौन भी अत्यन्त शक्तिशाली बन बड़े हैं। जाता है इसी तरह से आपको समझना चाहिए पश्चिमी देश के लोगों को विशेषतया कि छोटी-छोटी क्रियाओं से, मंत्रोच्चारण से अपनी अबोधिता को स्थापित करना है। यह किस प्रकार हम अपने अन्दर के देवताओं अत्यन्त महत्वपूर्ण है। सबसे पहले इसी पर का आह्वान करते हैं क्योंकि आप जागृत हैं. आक्रमण होता है। बहुत सी दुष्ट शक्तियां आपका हर शब्द जागृत है, अतः अब आपके इस पर आक्रमण करती हैं। अतः हमें अपनी मंत्र भी सिद्ध हैं। अबोधिता को दृढ़ करना है। यह अत्यन्त शक्तिशाली गुण है यह कोई बुराई नहीं देखता। अबोधिता नहीं देखती केवल व सिद्धि स्थापना की विधि बताने वाली हूँ। प्रेम करती है। बचपन में बच्चा नहीं जानता हर चक्र और उसके शासक देवता की सिद्धि कि माता-पिता या कोई अन्य उससे घृणा प्राप्त करने की विधि। निस्संदेह इस गुरु करता है। निष्कपटता पूर्वक बच्चा रहता है। पूजा पर यह कार्य होगा। परन्तु यह पूजा परन्तु अचानक जब उसे पता चलता है कि पूरी सूझ-बूझ तथा पूर्ण मान्यता के साथ, लोग परस्पर प्रेम नहीं करते तो उसे सदमा इसे परम-सौभाग्य मानते हुए. होनी चाहिए। पहुंचता है। इस गुरु पूजा पर मैं आपको सिद्ध करने कुछ सभी देवता और ऋषि गण इस पर अतः श्री गणेश पश्चिमी देशों के लिए ईष्ष्या कर रहे हैं । आपके लिए महान लाभ अति महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे ही हर चीज के तथा सौभाग्य है। अतः इसका पूरा लाभ सार है। यही कारण है कि सर्व प्रथम हम श्री उठायें। बहुत ही छोटी-छोटी चीजें मुझे गणेश की पूजा करते हैं। परमात्मा ने सर्वप्रथम प्रसन्न कर सकती हैं- आप जानते हैं कि श्री गणेश की रचना की क्योंकि वही उनके आपकी मां बहुत ही साधारण चीजों से प्रसन्न 52 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-56.txt चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 पूजा का महत्व सर्व प्रथम हमें यह दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि हम आत्मा हैं और शेष सभी कुछ छाया मात्र है। इस तथ्य की अनुभूति हमारे क्योंकि आप निर्विचार समाधि में चले अन्तस में होनी चाहिए। इसकी अनुभूति के जायें गे अतः इसके विषय में अधिक पश्चात सब कुछ सरल हो जाता है । आपने आज तक स्वयं को जितना जाना है आप महसूस तथा अनुभव करना है। यही ऊर्ध्व उससे कहीं अधिक हैं। इस नयी स्थिति में अनुभव से प्राप्त हुआ है अतः यह अन्ध-विश्वास नहीं 18 जून 1983 को पूजा तथा हवन हैं अनुभवगम्य होने के कारण इसमें बुद्धि का महत्व बताते हुए श्री माता जी के प्रयोग की कोई आवश्यकता नहीं और न ही इसे बुद्धि द्वारा चुनौती दी जानी चाहिए। आज इतने सारे. जिनमें से कुछ नये भी बुद्धि प्रयोग द्वारा आप अधोगति को प्राप्त है, सहजयोगियों के मध्य आकर मुझे होंगे। जिस प्रकार आकाश में नक्षत्र की असीम आनन्द की अनुभूति हो रही है। झलक पा कर वैज्ञानिक उसके अस्तित्व में सम्भवतः मैं आप सबको हज़ारों वर्ष पूर्व से विश्वास करते हैं ठीक उसी प्रकार जब आप जानती हूँ। क्योंकि सहजयोग में आपको अपने साक्षात्कार का हल्का सा अनुभव प्राप्त एक साधारण सी बात समझनी है कि आप कर लेते हैं तो कम से कम आपको अपने केवल आत्मा हैं और आत्मा के अतिरिक्त आत्मा होने का विश्वास हो जाना चाहिए। हृदय से आपने पूजा हो जाती है । कितने बस इसी का महत्व है। की सोचने-विचारने के स्थान पर इसे समझना, गति है। आपका यह विश्वास आपके अपने भाषण की प्रतिलिपिः- कुछ भी नहीं। अपनी जागृति के इस अनुभव पर दृढ़ रह कर आप अपना ध्यान इस तथ्य पर रखो कि आप आत्मा हैं। अपनी बुद्धि से कहो कि अब आपको धोखा देना छोड़ दे। इस प्रकार आप अपनी बुद्धि की दिशा बदल सकते हैं। आत्मा की तुलना हम सूर्य से कर सकते हैं। सूर्य बादलों से ढका अवश्य हो सकता है परन्तु वह सूर्य ही रहता है आप इसे दीप्ति नहीं प्रदान कर सकते। यह स्वतः प्रकाशित है। बादलों के हट जाने पर यह वातावरण अब आपकी बुद्धि आत्मा की खोज में कार्य-रत हो जायेगी। निष्ठा का यही तात्पर्य है कि शुद्ध-बुद्धि को उन्नत करती है। यद्यपि अज्ञान-अन्धकार के बादलों को फटते हुए आपने देखा है फिर भी बादलों का अस्तित्व अभी भी है अतः बादलों को हटाने के लिए आपने परम-चैतन्य की लहरियों का प्रयोग करना है चैतन्य लहरियों का लाभ उठाने की कई विधियां हैं। अतः लहरियों का स्रोत को प्रकाश प्रदान करता है। ठीक इसी प्रकार हमारी आत्मा अज्ञान के अन्धकार से ढकी हुई है। अज्ञानान्धकार के कारण आप इसे देख नहीं सकते। बादलों के हट जाने पर भी इनकी कुछ छाया बनी रहती है। सूर्य को स्पष्ट रूप से देखने के लिए आकाश का स्वच्छ होना अत्यन्त आवश्यक है। बहुत सी विधियों से हम इस अज्ञान रूपी अन्धकार को दूर कर सकते हैं। 53 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-57.txt चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 7 व 8 पूजा का महत्व अन्यत्र हैं और यह स्रोत है आपकी अपनी द्वारा आप साकार को निराकार में कुंडलिनी। आपके अपने शरीर-तन्त्र में परिवर्तित कर उसकी अनुभूति करते हैं । आदि-कुंडलिनी आपके समक्ष हैं और अन्य आपके सारे चक्र ऊर्जा के केन्द्र हैं और जिज्ञासुओं की अपेक्षा आप कहीं अधिक सभी चक्रों पर उनके शासक देवता विद्यमान हैं निराकार होते हुए भी उन्हें भाग्यवान हैं। साकार रूप प्रदान किया जाता है। जब विग्रह, अर्थात पृथ्वी मां की चैतन्य आप पूजा करते हैं तो उनका साकार लहरियों का स्वयंभुः मूर्त रूप, की पूजा करने रूप परिवर्तित हो कर चैतन्य लहरियों में लोगों के सामने बहुत सी समस्याएं थी। के रूप में प्रवाहित होने लगता है और सर्व प्रथम उन्हें सविकल्य समाधि में ध्यान मग्न होना पड़ता था। इस अवस्था में उन्हें मान्यताएं, जिन्होंने आत्मा को ढका हुआ विग्रह पर ध्यान लगाना पड़ता था। इस प्रकार से सभी गलत धारणाए. था, दूर हो जाती हैं। पूजा के विषय में आप सोच नहीं सकते क्योंकि पूजा का क्षेत्र विग्रह से तात्पर्य चैतन्य-लहरियों से विचार-क्षेत्र से परे है। आपको समझना है परिपूर्ण मूर्ति से है। उस मूर्ति को देखते हुए कि आप पूजा के प्रति तार्किक दृष्टि कोण अपनी कुंडलिनी को ऊर्ध्व-मुखी करने की नहीं अपना सकते आपने अपने चक्रों का चेष्टा जिज्ञासु किया करते थे और कुंडलिनी सर्वाधिक लाभ उठाना है और इसके लिए भी आज्ञा चक्र तक आ जाया करती थी। आपको पूजा तथा चैतन्य-लहरियों के बहाव सहस्रार भेदन कर कुंडलिनी का बाहर आना अति दुष्कर कार्य था क्योंकि उस अवस्था में यह बहाव अज्ञान-अंधकार रूप बादलों को जिज्ञासु को साकार से निराकार की ओर फाड़ देगा। अतः आपका केवल एक ही कार्य जाना पड़ता है। अमूत का ध्यान करना है, एक ही साधन है कि पूजा पर ध्यान असम्भव कार्य था । मुसलमानों तथा कई केन्द्रित करें और साक्षी बनें। आप ही द्रष्टा अन्य लोगों ने ऐसा करने का प्रयत्न किया। हैं। द्रष्टा शब्द के दो अर्थ हैं. पहला यह है इन परिस्थितियों में आवश्यक था कि कि वह केवल तटस्थ रहकर देखता है। वह जटिलताओं को करने के लिए निराकार केवल ज्ञान है, बिना किसी विचार और को साकार रूप में मान लिया जाये ज्यों ही प्रतिक्रिया के देखता मात्र है और सहज रूप आप साकार का ध्यान करते हैं आप से ग्रहण करता है। आपके और देवताओं के स्वयं निराकार हो जाते हैं। उदाहरणार्थ बीच आवश्यक सामन्जस्य की कमी कई बार अपने समक्ष पड़ी बर्फ जब आप छूते हैं तो मेरे लिए बोझ बन जाती है। यह पिघलने लगती है और आपको शीतलता की प्रतीति होनी शुरू हो जाती है । पर ध्यान केन्द्रित करना है लहरियों का दूर एक ओर आपके मंत्रोच्चारण से देवता जागृत हो जाते हैं और दूसरी ओर आप अपने अन्तस में उनसे कुछ ग्रहण नहीं करना चाहते। अतः अपने शरीर में उत्पन्न उस समस्या का समाधान अब सहज ही हो गया है। पूजा एक ऐसी विधि है जिसके जुलाई-अंगस्त, 2001 54 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-58.txt चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 पूजा का महत्व अतिरिक्त शक्ति का संचय मुझे करना में इस महत्व का वर्णन न कर पायें, तो उन्होंने नियमित रूप से की जाने वाली पूजा का महिमा-गान त्याग दिया। पड़ता है। अतः अपने हृदय को खुला रख कर बिना बुद्धि प्रयोग के पूजा करना आपके हित में होगा। आज हम पूजा की विधि में परिवर्तन का मण्डप बनाते थे जिसमें जिहोवा की पूजा कर रहे हैं। पहले हम हवन करेंगे और फिर के लिए भी स्थान बनाया जाता था। अब पूजा। यही उपयुक्त होगा क्योंकि इस तरह सहजयोग में जिहोवा सदाशिव हैं तथा मां हम अग्नि तत्व को जागृत करेंगे जो सभी मैरी महालक्ष्मी हैं । दोषों को जला देगा। मेरे चरण धोने का भी वही फल होता है जो हवन की अग्नि प्रज्जवलित करने का आज पहले हम हवन तथा फिर मां मैरी के रूप में वे अवतरित हुई करेंगे और फिर । दोनों समान हैं। आप "देवी महात्मय" नामक पुस्तक में ईसा के मेरी पूजा जल अथवा अग्नि से कर सकते हैं। ईसा के पूर्व भी लोग एक विशेष प्रकार 1 वे पहले भी अवतरित हुई। सीता, राधा पूजा जन्म के विषय में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है। ईसा राधा के पुत्र थे. राधा महालक्ष्मी हैं। अतः डिम्ब, अण्डा, के रूप में एक अन्य अग्नि का सार-तत्व कान्ति में है। जो अवस्था में उनका जन्म हुआ और आधे भी बुराई है उसको जला दिए जाने पर यह कान्ति आप सब के शरीर तथा चेहरे को लिया और शेष आधा भाग महाविष्णु, जो आभामय बनाती है और जब आप हवन करते कि हमारे भगवान ईसा हैं, के रूप में अवतरित हैं तो सारा वातावरण चैतन्य-लहरियों से हुआ। परिपूर्ण हो जाता है। अण्ड ने श्री गणेश के रूप में पुनः अवतरण महाविष्णु का वर्णन पूर्णतया जीसज़ क्राइस्ट का चित्रण है महालक्ष्मी अवतरित निम्नलिखित वार्ता में 24 मई 1986 हुई और निर्मल परिकल्पना (इच्छा) से अपने शिशु को जन्म दिया। ऐसा उन्होंने राधा रूप में भी किया था अतः ईसा महान ईश्वर के आज मैं आपको पूजा का महत्व (विराट के) पुत्र हैं। वास्तव में विष्णु महाविष्णु तथा विष्णु ही विराट बनता है। अब यह प्राचीन इसाई भी "मैरी" की प्रतिमा, विष्णु-तत्व विराट का रूप धारण करता है तस्वीर या सम्भवतः येशु की मां की रंगीन और राम, कृष्ण तथा विराट अर्थात अकबर शीशे पर बनी आकृति की पूजा-आराधना भी बनता है अतः ईसा स्वयं ओंकार हैं तथा चैतन्य लहरियां भी स्वयं ही हैं । परन्तु बाद में जब लोग अधिक तार्किक शेष सभी अवतरणों को शरीर धारण करने बनने लगे, और पूजा के महत्व के ज्ञान- अभाव के लिए धरा मां का तत्व (पृथ्वी-तत्व) लेना परमात्मा आपको आशीष दें. को श्री माता जी ने मेड्रिड में पूजा के महत्व के विषय में बताया बताऊंगी। किया करते थे। 55 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-59.txt चैंतन्य लहरी खंड-XIlI अंक 7 व पूजा का महत्व अन्ततः उन्हें प्रकाश का स्रोत यह मूर्ति प्राप्त हुई। उन्होंने इसे बाहर निकाला और इसी के प्रकाश में वे गुफा में चलते रहे। बाहर पड़ा। ईसा का शरीर पूर्णतः ओंकार है तथा श्री गणेश उनका पृथ्वी तत्व हैं। अतः हम कह सकते हैं कि ईसा श्री एकत्रित बहुत से लोग यह देख आश्चर्य- गणेश की अवतरित शक्ति हैं। यही कारण चकित रह गये । है कि वे जल पर चल सकते थे। वे देवत्व का निर्मलतम रूप हैं क्योंकि वे केवल चैतन्य लहरियां मात्र ही हैं। अतः मेरे साक्षात् रूप पर करते हैं। यह प्रतिमा उन्हें ठीक उसी की पूजा जब आप करते हैं तो इसमें प्रकार चैतन्य लहरियां प्रदान करती है जैसे अवास्तविक कुछ भी नहीं। लोग अब उस मूर्ति की पूजा उस स्थान স। मैं आपको परन्तु जिस मात्रा में लहरियां मैं देती हूं उतनी यह नहीं दे सकती। हो सकता ईसा और मां मैरी के जीवन काल में ही है कि वहां की कुछ अन्य प्रतिमाएं भी आपको लोगों को उनकी पूजा करनी चाहिए थी । चैतन्य लहरियां प्रदान करें। भारत में भी, ईसाईयों के दस धर्माचरणों में यह कहा गया कि जिस का सृजन पृथ्वी तथा आकाश ने महा-गणेश अंर्थात् ईसा स्वयम्भु रूप में पृथ्वी किया है उसका पुनः सृजन, पुनरुत्पत्ति नहीं मां के गर्भ से प्रकटित हुए। महागणेश के की जानी चाहिए। अवतारों का सृजन परमात्मा शरीर के नीचे का भाग तथा उनका शिरोभाग ही करते हैं। केवल आधुनिक काल में ही समूचा पहाड़ है। वहां पर समुद्र का पानी भी अवतरणों का चित्र लेना सम्भव हैं, पहले मीठा है तथा मीठे पानी के कई कुएं भी वहीं इसकी सम्भावना नहीं थी। पृथ्वी मां द्वारा विद्यमान हैं । सृजित का अभिप्राय स्वयम्भु रचनाओं से है। अब स्वयम्भु रचनाएं बहुत स्थानों पर पायी जा सकती हैं। कुछ साक्षात्कारी आत्माओं ने ने मरे चित्र लिए और उनमें से कुछ चित्रों में भी सुन्दर प्रतिमाओं की संरचना की है। आप में से कुछ लोग गणपतिपुले गये वहां यदि आपको याद हो तो वहां कई लोगों मेरे हृदय में से प्रकाश प्रस्फुटित हो रहा है। चित्रों में कुछ लोगों ने मुझे बताया कि कुछ मैं जब पुर्तगाल गयी तो वहां लेडी प्रकाश नहीं था लेकिन जब उन्होंने नैगेटिव ऑफ राक्स, चट्टान देवी का उत्सव था। से पुनः चित्र बनाए तो उन चित्रों में भी जब मैं उत्सव स्थान पर गयी तो बहां पर मां प्रकाश पाया गया। मैरी की पांच इंच आकार की, बहुत छोटी सी, प्रतिमा थी जिसका चेहरा ठीक मेरे जैसा था। वहां के लोगों ने मुझे बताया कि दो कि दैवी शक्ति के साम्राज्य में विभिन्न प्रकार छोटे बच्चों ने खरगोश का पीछा करते हुए के चमत्कार होते हैं। ठीक यही बात पूजा में इस प्रतिमा को पाया उन्हें चट्टानों के है। जब हम पूजा करते हैं तो सर्वप्रथम नीचे खोह में से प्रकाश का आनास हुआ। वे श्री णेश की आराधना करते हैं और प्रकाश के स्रोत की खोज में लगे रहे और इसा प्रकार आप अपने अन्दर श्री गणेश अतः आपको यह अवश्य जानना चाहिए 1 जुलाई-अगस्त, 2001 56 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-60.txt चैतन्य लहरी खंड-Xl अंक 7 व 8 पूजा का महत्व को जागृत तथा स्थापित करती हैं उनके यह कार्य बहुत कठिन था और आपको रूप में मेरी पूजा करके आप में सहजयोग समझाने की प्रक्रिया में और अबोधिता प्रस्थापित होती है । पर आप आपको आपमें निहित आपकी शक्ति बतलाने देखेंगे कि चैतन्य लहरियां बढ़ती हैं, में मेरे शरीर को बहुत कुछ सहन करना आप अपने अन्दर शांति का अनुभव पड़ता है। करते हैं। यदि आप मेरे प्रति रुक्ष व्यवहार जब आप श्री गणेश के नामों का उच्चारण करते हैं, मेरा सम्नान नहीं करते तो करते हैं तो आप उनके गुणों से परिचित ईसा को बहुत क्रोध आता है क्यों कि वे कह चुके हैं कि वे परम-चैतन्य के विरुद्ध करते हैं तो वे आपके द्वारा अपने गुणों कुछ भी सहन नहीं करेंगे अतः मेरा व शक्तियों को प्रस्फुटित करते हैं। इस आज्ञा चक्र तीव्र रूप से घूमना शुरू कर प्रकार से यह दैवी शक्ति कार्य करती है देता है और क्रोध उगलने लगता है। मानों आपको उन गुणों से प्लाकित कर परन्तु मुझे इसे सहन करना पड़ता है। देती है। तब आप आदि-शक्ति की मैं आपको नहीं बतला सकती कि ईसा उस समय आपको मुझसे क्या कहलवाना चाहते हैं क्योंकि वे अपने कार्य को करने से आदि शक्ति के समस्त तत्काल अंजाम देना चाहते हैं। परन्तु (सातों) चक्र जागृत हो उठते हैं तथा इन मुझे थोड़ा सा सावधान रहना पड़ता है जायें । सृष्टि में पहली बार ऐसा अवतरण हुआ है। साथ ही के समय यदि आप मेरे यह ठीक उसी प्रकार से है जैसे आप पहले प्रति विरोध अथवा सन्देह ग्रस्त हैं एक कमरा बनाते हैं फिर दूसरा और फिर और चैतन्य लहरियां स्वयं में समाहित तीसरा। इस प्रकार सात कमरे बना कर गृह नहीं करते तो मुझे समस्या होती है। का निर्माण कार्य पूरा होता है । आपको गृह चैतन्य लहरियां- क्योंकि-बह रही हैं की कुंजियां मिल जाती हैं और आप अपने और आप उन्हें आत्मसात नहीं कर पा गृह को खोलते हैं। इसी प्रकार से मैं सामूहिक रहे हैं तो मेरी समझ में नहीं आता रूप से आत्मसाक्षात्कार प्रदान करती हूं। कि मैं किस प्रकार उन्हें अपने में ऐसा होना पहले सम्भव नहीं था लेकिन अब सीमित रख सकं। इन्हें सीमित करने में सातों चक्रों के समन्वय से यह सम्भव हो मुझे कष्ट भुगतना पड़ता है। यह चीज़े पाया है और अब आप आदि-शक्तिति की प्रतीकात्मक है और यह प्रतीक वास्तव आराधना कर रहे हैं। मेरा आपके समान में कार्य करते हैं। उदाहरणार्थ, आप मानव-रूप, मेरा महामाया रूप है। मैं किसी को प्यार से एक पुष्प भेंट करते हैं तो आप जैसा व्यवहार करती हूँ और स्वयं उसे अत्यधिक आनन्द और कृतज्ञता की को ठीक आप जैसा बना लिया है। यद्यपि अनुभूति होती है और आप जब मुझे पुष्प, होते हैं, जब आप उनके गुणों की आराधना आराधना करते हैं । पूजा चक्रों द्वारा वे अपना कार्य शुरू कर देती हैं। ताकि आप परे शान पूजा न हो 57 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-61.txt चैतन्य लहरी खंड-XIl अक 7 व ৪ पूजा का महत्व जल अथवा कोई अन्य चीज भेंट करते है तो अनुभूति के लिए पूजा को सहज रूप से तत्व और चक्रों पर स्थित देवता प्रसन्न हो कीजिए। जाते हैं और वे अपने गुणों की तथा तुम्हारे प्रति आशीष रूप में चैतन्य-लहरियों की वर्षा करते हैं। इस प्रकार दैवी शक्ति कार्य करती है और पूजा के पश्चात आप इस में श्री माता जी की वार्ता शक्ति द्वारा की गई कृपा की शनैः-शनैः अनुभूति करते हैं। करें परमात्मा आप पर कृपा । 18 दिसम्बर 1989 को गणपतिपुले जैसे आप सब विश्वास करते हैं मैं आदिशक्ति हूँ" इसका प्रमाण भी आपके पास अब हम इस समय यहाँ पूजा कर रहे हैं है। पूजा के माध्यम से भी आप इसका प्रमाण और विश्व भर में सहजयोगियों को इस पूजा प्राप्त कर सकते हैं केवल इतना ही नहीं, का ज्ञान है। वे ध्यान मग्न बैठे हैं और इस पूजा से मेरे चक्रों पर स्थित देवता उल्लसित तरह वे भी आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं। होते हैं और अधिक लहरियां छोड़ना चाहते इसीलिए हम उन्हें पूजा प्रारंभ होने का हैं । जब वे बहुत सी चैतन्य लहरियां छोड़ने समय बता देते हैं। अतः समय पर लगते हैं तो आप आश्चर्य चकित रह जाते हैं हमें पूजा में बैठ जाना चाहिए ताकि कि किस प्रकार पूजा के पश्चात आप इन ध्यान-मग्न हो कर अन्यत्र बैठे सहजयोगी लहरियों में शराबोर होकर अत्यन्त उच्च भी आप ही की तरह से लाभन्वित हो स्तर तक उन्नत हो गए। निःसन्देह यह सकें । सत्य है कि पूजा के समय आप काफी उच्च स्तर का अनुभव करते हैं क्योंकि आप समझते यदि अभी तक पूजा के इन हैं कि आप उस ऊंचाई को बनाये रख सकते थोड़ी सी बातों के ज्ञान के योग्य आप हैं कुछ लोग वास्तव में इस स्तर को नहीं है तो भी चिन्ता की कोई बात बनाए रख सकते हैं परन्तु प्रायः लोग नहीं। आपकी अनभिज्ञता तथा निर्दोष भाव यो-यो नामक खिलौने की तरह ऊपर को परमात्मा जानते हैं तथा आपको क्षमा नीचे होते रहते हैं। अतः उस अवस्था प्रदान करते हैं। विनम्र हृदय से पूजा को बनाये रखने के लिए मनुष्य को करते हुए यदि आपसे अनजाने में कोई भूल निर्विचार-समाधि में ध्यान लगाना हो जाती है तो आपको दोष-भाव-ग्रस्त चाहिए। केवल देवी की पूजा की ही आज्ञा नहीं होना चाहिए। धीरे-धीरे आप सब जान है परमात्मा की पूजा की आज्ञा भी है परन्तु जायेंगे। लेकिन यदि आप जान बूझ कर हमें ज्ञान होना चाहिए कि देवी कौन हैं और गलती करते हैं तो यह अच्छा नहीं है। परमात्मा कौन हैं। जैसे हम अपने बच्चों को क्षमा करते हैं वैसे ही परमात्मा भी अपने अबोध बच्चों को क्षमा कर देते हैं। अतः आप इस विषय में निश्चित हो जाइये और हृदय में आनन्द की महत्त्व की अतः ऐरे-गैरे की अन्धा-धुन्ध पूजा स्वीकार नहीं की जानी चाहिए। आप हैरान होंगे कि सहजयोग के पहले चार वर्षों में मैंने 58 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-62.txt चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 7 व 8 पूजा का महत्व एक भी पूजा की आज्ञा नहीं दी। यहां तक कि लोगों ने कहा "आप हमारी गुरु हैं, आप लगा कि पूजा में एक विशेष प्रकार की धातु हमें गुरु पूजा की आज्ञा दीजिए"। मैंने कहा और विशेष प्रकार की विधि का प्रयोग करना "नहीं, मैं ऐसा नहीं करूंगी"। तब चार वर्षों है। इन धातुओं का हम पर एक विशेष प्रभाव के पश्चात लोगों ने नवरात्रि - दिवस पर एक होता है और किस धातु से आप पूजा पूजा करनी चाही। मैंने कहा "ठीक है आप करते हैं उसका भी एक विशेष प्रभाव ऐसा कर सकते है। थोड़े से लोग थे जिन्होंने होता है। यह सब आध्यात्म विज्ञान है अनुभव किया कि पूजा उन्हें अत्यधिक लहरियां और पूजा के उत्तम परिणाम प्राप्त करने और उच्च आध्यात्मिकता प्रदान कर सकती के लिए, विज्ञान की तरह से ही, इसका हैं। अचानक उन्होंने कई नए आयाम छू ज्ञान होना हमारे लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण लिए और मुझ से प्रार्थना करने लगे कि "श्री है । माता जी कृपया आप हमें पूजा का अवसर दीजिए। लोगों को पूजा की विधि का भी सोचती हूं कि अब लोगों में पूजा की अच्छी इस प्रकार हमारी समझ में यह आने है । मैं इस तरह से पूजा का प्रारम्भ हुआ। ज्ञान न था। उलझन पूर्ण कार्य होते हुऐ भी मुझे पूजा के विषय में सब कुछ बताना पड़ा। समझ आ गई है। महाराष्ट्र में लोग पूजा विधि में बहुत कुशल हैं और इस विषय में इस तरह सदा मैं यह सब करती रही। आपको आश्चर्य होगा कि पहली बार कहा श्री माता जी हमारा आपको एक साड़ी जब मैं दिल्ली गयी (यदि कोई मेरा वह मेंट करना उचित है।" तो मैने कहा "आप फोटो ढूंढ सके तो आप जान पांयेगे) तो मैं तो सिकुड़ती चली गयी, मेरा संकोच से सिकुड़ गया। सदमें के कारण मैं अति क्षीण हो गयी क्योंकि वे लोग प्लास्टिक वस्तुओं के लिए वे मुझ से तर्क करते रहे की पुरानी वस्तुओं का प्रयोग पूजा में कर रहे थे। मैंने सोचा हे परमात्मा अब क्या करें । । मैंने उत्तर दिया इससे पूर्व मैं पूजा के लिए कोई पैसा देने की ठीक है मुझे साड़ी भेंट करो या जो मर्जी ।" आज्ञा भी नहीं देती थी। तब मैंने कहा कि आर अब आप मंहगी साड़ी देने लगे हैं। मैंने "ठीक है हर पूजा के लिए एक पाई देना कई बार प्रार्थना पूर्वक आपको समझाने का शुरू कीजिए." और इस प्रकार लोगों ने प्रयत्न किया कि मैं अब वृद्ध हो गई हैँ और थोड़े-थोड़े पैसे देने शुरू किये जिसे धीरे- एक वृद्ध देवी को आप कोई साधारण वस्तु धीरे उन्होंने बढ़ा दिया। यह मैंने इसलिए भेंट कर सकते हैं। परन्तु कोई इस बात को किया क्योंकि मुझे पता था कि वो लोग ये स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं। देखें नहीं जानते कि पूजा में चाँदी की वस्तुओं हम किस तरह इस मामले को निपटा पाते का प्रयोग किया जाता है। हर वस्तु पर मेरा है। अंतः इन बातों से कोई अन्तर नहीं पड़ता। नाम लिखा जाने लगा ताकि आपके पास परन्तु जिस कार्य को आप करना चाहते रहते हुए भी आपको याद रहे कि वह मेरी हैं, उसे कितना महत्व देते हैं । इससे सम्पत्ति है। उनसे तर्क करना अति कठिन है। उन्होंने मुझे एक साधारण साड़ी दें, मंहगी साड़ी मैं शरीर स्वीकार न करूंगी।" इस तरह से छोटी-छोटी पूरा साड़ी भेंट नहीं कर सकते अन्तर पड़ता है। यह बहुत महत्वपूर्ण 1 59 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-63.txt चैतम्य लहरी खंड-XIl अंक 7 व 8 पूजा का महत्व है। परन्तु जिस कार्य को आप करते हैं होना चाहिए। हाथ धोना ठीक है, परन्तु क्या उसे पूर्ण चित्त, श्रद्धा तथा महत्व देना आपका हृदय भी स्वच्छ है? चित्त जब हृदय आवश्यक है। बिना उच्च प्राथमिकता पर होता है तो यह अन्यत्र नहीं भटकता। दिए कार्य नहीं होता। बिना आवश्यक यद्यपि आप बाहर से शांत होते हैं, आपके महत्व दिये कार्य सफल नहीं होता । अन्तस में द्वन्द् चल रहा होता है, अतः अधिक देर तक आपको मौन नहीं रहना है। यह समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि यदि मनुष्य का हृदय स्वच्छ नहीं है तो मौन यदि आप पूजा से लाभान्वित होना चाहते अति हानिकारक बन जाता है। परन्तु अवांछित हैं तो इसे सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी। वार्तालाप भी महाविपत्ति का कारण बन पूजा से पूर्व यदि आपका मन शैतानी या सकता है। संदेह कर रहा है तो इसे शांत हो जाने की आज्ञा दीजिए क्योंकि यह मन आपके विरुद्ध कार्य कर सकता है। पूजा में पूर्ण श्रद्धा से आप मंत्रोच्चारण कीजिए। श्रद्धा का कोई विकल्प नहीं है। गहन श्रद्धा उत्पन्न हो जाने पर ही आप अतः पूजा के लिए ग्रहणशील बन कर पूजा करें ताकि स्वयं आपका हृदय सारी तैयार रहना है और इससे लाभान्वित होना पूजा को करे। उस समय आशीष लहरियां बहने लगती हैं, क्योंकि आत्मा कहती है, पूजा के फल तथा आशीष के विषय "इस समय कोई विचार कैसे आ सकता है?" है। में बताते श्री माता जी :- हुए लोग अपने ग्लास में मदिरा उड़ेलते हैं। का प्रसाद और आशीष फल किस प्रकार आपकी पूजा भी उसी प्रकार की है। आपकी प्राप्त करना है, इस का ज्ञान आपको होना श्रद्धा भी मदिरा है, जिसे आप पूजा तथा चाहिए। पूजा या प्रार्थना का उदय आपके मंत्रोच्चारण में उड़ेलते हैं। सब कुछ भूल कर हृदय से होता है मंत्र आपकी कुंडलिनी जब वह सुरापान आप कर रहे होते हैं, तो के शब्द हैं। परन्तु यदि पूजा हृदय से किस प्रकार कोई विचार आपको आ सकता नहीं की गई और मंत्रोच्चारण के साथ है? और तब आनन्द का वर्णन शब्दों में कैसे यदि कुंडलिनी का संबंध नहीं जुड़ा तो किया जा सकता है? उस दैवी-सुरा को पूजा केवल कर्म-काण्ड बन कर रह विचाररूपी तुच्छ प्रकार के ग्लास में पुनः कौन उड़ेलना चाहेगा? इस दैवी सुरा-पान करने का आनन्द सर्वदा विद्यमान रहने में निर्विचार हो जाना, पूजा के वाला तथा शाश्वत है। यही आपका वैभव साथ हृदय का पूर्णतया जुड़ा होना आवश्यक बन जाता है। मेरी उपस्थिति में ऐसी बहुत है। पूर्ण निष्कपटता से हृदय के साथ पूजा सी पूजाएं हो चुकी हैं। हर बार एक महान में भेंट चढ़ाने लहर आकर आपको एक नये साम्राज्य में लें के विषय में कोई दिखावा या बंधन नहीं जाती है। ऐसे बहुत से साम्राज्यों का अनुभव पूजा एक बाह्य भेट है, परन्तु पूजा जाती हैं।" पूजा सामग्री को एकत्रित करें। पूजा जुलाई-अगस्त, 2001 60 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-64.txt चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 7 व ৪ पूजा का महत्व आपका अपना हो जाता है। ये अनुभव आपके समय तक बैठना पड़ सकता है इसलिए व्यक्तित्व को विशालता प्रदान कर आपके अपने चित्त की एकाग्रता के लिए अच्छा होगा कि पूजा से पहले हम कुछ (भोजन आदि) खा लें और पूजा में ढीले, आरामदायक लिये आनन्द के नये द्वार खोल देते हैं। हृदय में पूजा करना सर्वोत्तम है। मेरी वस्त्र पहन कर बैठें। जिस तस्वीर को आप देख रहे हैं, उसे यदि हृदय-गम्य कर सकें या पूजा के पश्चात इसकी झलक हृदय की गहराईयों में उत्तार श्री माताजी की पूजा करते हैं, इसलिए हमें सकें तो बह आनन्द जो आप उस समय यह सोचकर निराश नहीं होना चाहिए कि प्राप्त करते हैं, शाश्वत तथा अनन्त बन सकता हम पूजा नहीं कर रहे । सहजयोग में सभी है। परमात्मा आपको आशीष प्रदान करें। सभी की ओर से केवल कुछ लोग ही कुछ दैवी शक्ति द्वारा पूर्वनियोजित होता है. अतः प्रथम ग्रहण किया गया स्थान, बिना श्री माताजी की पूजा के समय पालन किसी विशेष कारण के, नहीं छोड़ना चाहिए करने योग्य नियमाचरण। श्री माताजी की कृपा द्वारा कुछ ऐसे मार्गदर्शक नियम बनाएे गए द्वारा प्रदत्त वह स्थान ईश्वर की खोज में हैं जिनका श्री माताजी की पूजा करते समय हमारी प्रगति के लिए उपयुक्त है। हमारी हम सभी को पालन करना चाहिए ताकि हमें आन्तरिक गहनता श्री माताजी से हमारी पूजा का अधिकतम लाभ मिल सके। श्री शरीरिक निकटता से कहीं अधिक माताजी की पूजा के कार्यक्रम का उचित महत्वपूर्ण है । स्थान एवं समय तो दैवी शक्ति स्वयं निश्चित करती हैं इसलिए हमें अपनी ओर से लिए किसी विशेष स्थान और समय पर बल और श्री माताजी पूजा के समय जो चैतन्य नहीं देना चाहिए। इसके अतिरिक्त पूजा के प्रवाहित करती हैं उससे पूजा के लिए चुने स्थान पर सभी कार्य अत्यन्त शान्तिपूर्वक हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से वे हमारे चक्रों करने चाहिएं। और इस बात की चिन्ता नहीं करनी चाहिए से और अनुभव कि हम श्री माताजी से दूर बैठे हैं। ईश्वर सहजयोग सामूहिकता पर आधारित है के पूजा की शुद्धि करती हैं। इसके अतिरिक्त ऐसी पूजाओं द्वारा सौभाग्यवश यदि हम सब साक्षात श्री माताजी की के समय उपस्थित हों तो साधक कई अन्य शक्तियां प्राप्त कर सकता हमें सदैव उनके आगमन से पूर्व ही पूजा के है। इसलिए पूजा के ऐसे अवसरों पर, इधर स्थान पर एकत्र हो बन्धन लेकर, ध्यान में उधर की बातें सोचकर बिना अपना समय बैठ जाना चाहिए। जब श्री माताजी पधारें व्यर्थ किए, हमें पूर्ण एकाग्रता से अपना चित्त तो सभी को उनके सम्मान में खड़े हो जाना श्री माताजी की पूजा में लगा कर पूजा का चाहिए और उनके स्थान ग्रहण करने के अधिकतम लाभ उठाने के लिए प्रयत्नशील उपरान्त ही बैठना चाहिए। पूजा में हमें लम्बे रहना चाहिए। पूजा 61 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-65.txt औैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 7 व पूजा का महत्व श्रीमाताजी की आज्ञा के बिना कोई भी हर सहजयोगी को पूजा के ऐसे प्राप्त व्यक्ति श्री माताजी को न छुए । ऐसा करना सुअवसरों से अधिकतम लाभ उठाने का प्रयत्न दैवी - नियमाचरणों के विरुद्ध है। जब श्री माताजी पूजा के स्थान से प्रस्थान करती हैं तो प्रत्येक व्यक्ति को उनके सम्मान में खड़े पूजा का हर क्षण बहुमूल्य होता है अतः करना चाहिए। ऐसी पूजा के समय सहजयोगियों को हो जाना चाहिए। याद रखना चाहिए कि वे साक्षात आदिशक्ति के समक्ष बैठे हैं। अतः श्री माताजी की आज्ञा के बिना उन्हें आखें बन्द नहीं पहले, यदि सम्भव हो, श्रद्धा पूर्वक प्रसाद करनी चाहिएं । सहजयोगियों को चाहिए कि जाने से ग्रहण कर उसका आनन्द-लाभ करें। श्री माताजी के फोटो के प्रति चित्त सदैव पूरी तरह से पूजा की ओर होना चाहिए और छोटी-छोटी परेशानियों आवश्यक सम्मान नियम के अनुभव के कारण चित्त की एकाग्रता भंग नहीं होनी चाहिए। सहजयोगियों को चाहिए अन्यत्र जहाँ भी स्थापित हो साक्षात् श्री कि वे पूजा में ऐसे नए लोगों को लेकर माताजी की प्रतीक है। अतः इसे पूर्ण सम्मान न आएं जिन्होंने अभी श्री माताजी के के साथ, सभी नियमाचरणों का पालन करते दिव्य-स्वरूप को नहीं पहचाना क्योंकि हुए रखना चाहिए। घर के किसी ऊँचे स्थान इससे पूजा में चैतन्य प्रवाह पर असर पड़ श्री माताज़ी की तस्वीर हमारे घर में या पर प्रतिष्ठापित कर श्री माताजी के फोटो को प्रायः इधर-उधर नहीं करना चाहिये। सकता है। श्री माताजी का चित्र गृह सुसज्जित प्रत्येक व्यक्ति को हृदय से हर क्षण पूजा के कार्यक्रम में मग्न रहना चाहिए करने की वस्तु नहीं है अतः प्रतिदिन और चित्त द्वारा चैतन्य लहरियों को इसकी पूजा कर, पुष्पार्पण किया जाना अधिकाधिक आत्मसात करने का प्रयत्न चाहिए फोटोग्राफ को गुलाब जल से साफ करना चाहिए । इससे न केवल हमारे कर इस पर कुंकुम लगाया जाना चाहिए। व्यक्तिगत उत्थान में सहायता मिलती प्रातः एवम् सायं श्री माताजी के चित्र के है बल्कि श्री माताजी के साकार रूप सम्मुख दीपक या मोमबत्ती जला कर द्वारा प्रसारित चैतन्य लहरियों को ठीक मन्त्रोच्चारण करना वांछनीय (अभीष्ट) है। से ग्रहण करने पर श्री माताजी को भी आराम मिलता है। सामूहिक पूजा, ध्यान-धारणा, तत्पश्चात आरती तथा मन्त्रोच्चारण के माध्यम से वहां पूजा के उपरान्त, श्री माताजी की आज्ञा विद्यमान रह कर हमारी पूजा को स्वीकार से, साधक समीप जा कर श्री माताजी के करने की प्रार्थना हम परम पूज्या श्री माताजी दर्शन कर सकते हैं। से करते हैं। अतः पूजा तथा आरती के 62 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-66.txt चैतन्य लहरी खंड-XII अंक र व 8 पूजा का महत्व पश्चात् कुछ समय तक शांत रहकर हम लोग यह अर्पण करने का नाटक करें श्रद्धा-समर्पण के उस वातावरण को बनाये और परमात्मा हमें अपनी कृपा तथा प्रेम में रखना आवश्यक है क्योंकि उस समय चैतन्य नहला दें। इसके लिए वे अति उत्सुक हैं। लहरियों के माध्यम से श्री माताजी की निराकार रूप में उपस्थिति प्रकट होती है । इस समय सहजयोगी शांति पूर्वक ध्यान उपयोग कर सकते हैं :- मग्न रह कर श्री माताजी द्वारा आशीष रूप में भेजी गई चैतन्य लहरियों को अधिकाधिक विशेष पूजा के लिए स्वयं को तैयार करने के आप इस प्रलेख को तीन प्रकार से 1. साक्षात्, श्री माताजी के समक्ष, एक लिए । 2. उन सहजयोग केन्द्रों के पथ- प्रदर्शक आत्म-सात कर आनन्द प्राप्त करें। सामूहिक पूजा तथा ध्यान के समय के रूप में जो किसी विशेष अवसर पर व्यक्तिगत मामलों, या जो मामले सहजयोग सामूहिक पूजा करना चाहते हों। से सम्बंधित न हों, पर बातचीत न करें क्योंकि ऐसा करने से हमारा चित्त लक्ष्य से भटक 3. घर पर एक साधारण पूजा के पथ-प्रदर्शक के रूप में। जाता है। पहला मार्ग पूर्ण उत्सच है जो मानव को पूजा के पश्चात् बंधन लें, यह चैतन्य श्री माताजी के समक्ष एक विशेष पूजा के लहरियों का कवच है जो हमारी रक्षा करता लिए स्वयं को तैयार करने की आज्ञा देता है। अतः निर्विचारिता में रहकर श्री माताजी है। भेंट जो चढ़ाई जाती है, महत्वहीन नहीं के प्रति पूर्ण सम्मान तथा श्रद्धा पूर्वक बंधन होतीं। पूजा और मंत्र बनाने वाले ॠषियों लेना चाहिए। सन्तुलित तथा निर्विचार रहने को ज्ञान था कि वे क्या कर रहे हैं, और श्री के लिए हमे अपनी कुंडलिनी ऊपर उठानी माताजी ने नियामाचरण बनायें हैं इससे ज्ञात होता है कि पूजा विधि में बड़ा लचीलापन चाहिए। इस क्रिया के अभ्यास से अन्तध्यान 1 मात्र (केवल चित्त को अन्दर ले जा कर) है तथा परिस्थितियों के प्रति अनुकूलन- होने से हमारी कुंडलिनी उठ जायेगी| शीलता है (एडाप्टेबिलिटी)। पूजा करने का अभिप्राय यह होता है पूजा के लिए क्या आवश्यक अब तक आपको यह ज्ञान प्राप्त हो कि लोग उन देवताओं को प्रसन्न कर सके चुका है कि श्रद्धा तथा निर्विचार समाधि के जिनकी धूजा श्री माताजी के समक्ष की जाती अतिरिक्त कुछ भी आवश्यक नहीं। पूजा है, कोई भी कर्मकाण्ड लह। ों के ज्ञान उत्सव एक ऐसी मधुर अभिव्यक्ति है जो तथा कृपा अनुभूति का स्थान नहीं ले मनुष्यों को अर्पण तथा ग्रहण करने का नाटक सकता । इसके विपरीत कर्म काण्ड करने की आज्ञा देती है। कहावतः- "परमात्मा सौ गुना लौटाते हैं। प्रकट करती है कि ईश्वर अधीर हैं कि करते हैं, फिर भी बिना सम्मान भावना लहरियों के विरुद्ध कार्य करता है। यद्यपि हम अपनी माँ श्री माताजी से प्रेम 63 जुलाई-अगस्त, 2001 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-67.txt पूजा का महत्व चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 7 व 8 परमात्मा की पूजा नहीं हो सकती। अतः सकते हैं, भजन गाना या मौन रहना या सम्मान तथा नियमाचरणों, की आवश्यकता श्री माताजी के नामों का उच्चारण हमारी है परमात्मा के प्रति जितनी अधिक श्रद्धा इच्छानुसार तथा प्रेम हम में है उतना ही अधिक सम्मान में अर्पण स्वरूप ही हैं। हमसे प्रकट होता है। प्रारम्भ करने के लिए प्रथम आवश्यकता इस समारोह की खोज तथा इसके विषय में पढ़ना है। है क्योंकि ये सब कार्य भी स्वयं तीसरे स्थान पर घर में साधारण पूजा है। श्री माताजी के चरण कमलों को सामान्य रूप से धोना, इत्र व पुष्प भेंट करना एक या दूसरे स्थान पर यह प्रलेख उन केन्द्रों दो मंत्र उच्चारण करना, दीपक और अगरबत्ती के लिए पथ-प्रदर्शक हैं जो किसी विशेष जलाना पर्याप्त है। अगले अध्याय में श्रद्धा अवसर पर सामूहिक पूजा करना चाहते हैं। की अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में उपयोग इस कार्यविधि का नियमपूर्वक अनुसरण की जाने वाली विधियों तथा वस्तुओं का वर्णन है। के महत्वपूर्ण है । इस कुछ भाग छोड़े भी जा जुलाई-अगस्त, 2001 64 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-68.txt Receg Sa Vecognilion pecial WHEREAS, on March 21st, Shri Mataji Nirmala Davi, founder of Sahaja Yoga Meditation, will celebrate her 78th birthday: and WHEREAS, Shri Mataji is one of the most significant voices on world peace loday and has been nominated twice for the Nobel Peace Prize for her extraordinary.humanitarian efforts, and WHEREAS, Sahaja Yoga is a meditation practice which has helped hundreds of thousands in over 75 countries worldwide enjoy more peaceful, healthy, and balanced lives; and WHEREAS, the City of Plano would like to send birthday felicitations and well wishes to Shri Mataji on the day of her 78th birthday, March 21, 2001, NOW, THEREFORE, I, JERAN AKERS, MAYOR OF THE CITY OF PLANO, TEXAS do hereby extend special recognition to Shri Mataji Nirmala Devi for her revolutionary and seifless work in the field of yoga, meditation and world peace. Offica fthe Mayer 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-69.txt FINDOE Shri Mataji On behalf of the Government and People of British Columbia I am pleased to offer you my hearty congratulations and very best wishes on the occasion of your Seventy-eighth Birthday May you enjoy every future happiness March 21, 2001 Premier 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-70.txt 105 LOS OUNDED Birthday Greetings Shri Natji ri Nimada Devi %3D We in the "City of the Angels extend our very best wishes for a wonderful birthday celebration filled with family, friends and fond memories. March 21, 2001 the Richard JRiordan Mayor 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-71.txt Proclamation City of Cincinnati le It Proclaimed: Whereas, shri Adiji Nirmala Deit, foder af Sinhujar Yogur Medituitleim attd wice-newANed fior the Nobel Pence Prize, in thar ondy prmn to wadi m-ma kimdalini, u euery nhich is the key he healih, hilane, uner pence all well-being Thi nrgi erablen indrvidualt to efforthesshy ter inte a tate a higher anarerE nd to become a C ndes dnd sicielies, e of higher KouE Of uell-teing in thưir fmilien, communtdes and sNcieties, aind, Whereas, it nare ihun 70 ieller täroughuur North Aamerieut, puullle Silhuje Yoga programs are bring conducivd. in the Grenier Cincinnati area Salua Yoga Meiditation Auna bent itieght, Jree uf charge, at ihe Cinciamati Art Atuverim, Xavie University, Ravinninl tern Collage, Clermont Coliege ihe Cinciumali ri AMunen, Navie: University. Rarinn H .and Miami Universiy for emer 15 yeart Currenth, free rkir jprngrant are being offered tu thr puhlie at the Coumuni Friendy Mereting Houre ir North Avandale, md Whereas, in mer cotetrice. Jor the pat 30 pears, Solarja foga har het afered sund tuught to lundrede uf thounanita a peopile riegaileas of oge ar backytuun The trianskarunatianal renlor are healing wpiag and univeraal Frut Bomday tai rurzil. South Africa io Narth tmerica, Surhaiu Yogn Mutitation hux hriped impreve iver and iommunities and. Whereas, shrt Aanaji fainderd Sabaja Yoga interniatiarial in 1970 ut a nan- to hutpring puople throuigh the uhe af ean-ta-leun profit, ulutieer argunizitien, dedicated mentitation wechnlqan Prohlems of aleohpl and drug mildictiont, healih tnd emational tasare hrve heen mach tnpryral thrtugh ther une of Sahuja Yog4, nil, Whereas, Sbri Mataji Nirmula rni har made outstandung contritutions o ndern life thruge her disciven f Sahaja Yoja and her auny chartialde iand hiemanitarian endeavorn. These inclule Intrmational schaali fiw children.arounl the warld, organttaniM as improve the eroic condition of Iniluir wani, Edieul facilities thut ice no-tavati Sahaja Yoga techriqier, angolng renmerch ing Suhrju Yogi technigues at the Nationat fastitates af ne atrens-reulueion progru ir aeranis S KEpainien, oatreach projeranee ja social service agncies auch as hetvred woe's shullers iarectional faclitia, drug refutiliration arnera enior citizet cerE. puhlicatian af her her pegeing rarel warldwide to speak at iee Saikaja Toga Health, Heihesilat, MD, workpslite hoak "Afeta-Madern Era and pirigra Low, Cherefore, 3, Charlie Lnken, Mayar af the City of Cincianati do hereby preclaim Wednesday, March 21. 2001, ar "SHRI NIRMALA DEVI DAY" N Cincinnati. IN WITNESS WHEREOF, I Auve hereunta set ary hand and rutie thiv seal of the Ciy of Cincinnul to he ifixed this I5 day of March ir the pear Tme Theungnd und One. Charlle Luken, Muyyie City af Cincinnati 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-72.txt Allegheny County of Office of the Chief Executive Community Citation of Merit irarded to Shri Mataji Nirmala Devi In celchration of vaur 78" hirthday on March 21, 2001, I offer best wisheH and recugnize your significant contributiuns to world peace and extraordinary humanitarian achievements; and in recognitinn of distingushed endeavor and accomplishment, which have eamed the esteens af the citizens . GEAllegheny County Presented on hehalf of the eiticens of Allegheny County by the Office of the Chief ExccutivE, this 3th day af March, 2001 Ratry lle Chief Executive 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-73.txt GOVERNOR GRAY DAVIS Commendation Shri Mataji Nirmala Devi Mach 21, 2001 It is a great pleasure to join your family and friends in celebrating your 78" birthday. Your dedication to your community is truly an inspiration. I hope the gathering of your dear family and friends helps you celebrate this momentous occasion in a very meaningful way. On behalf of the people of the State of California, please accept my congratulations on this very special day. ay Davis Governor Gray Davis STATE CAPTTOL SACRAMENTO. CALIFORNIA 958 L4 (916)445-2841 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-74.txt New Vork tate Assembly Citation HONORING Shri Mataji Nizmala Ekert, farnder of Suhair Yoge Meilituria, nn ithe occunion nf her TW lirihdg WHEREAS, A Me sese of this AsteIdlent Bonly tan romumNte ant arkowrievige lue intiviui ul devore reir Mvn primiring prce. Ail amut well-britig, therety bainging frope at eervne thry Weneda WIHERKAS, Miei Aanyi Niruti Devi, Imder ef Satuja Yops Mestination, bem e Marci 31 Chrinhm, falit, her fatlher nar me of Whe anthurs af tintia Contmtatirat and Marc 31 23 WHEREAS, Stei Mtil's spetal qunliter were eecagniced tre Matumur Gonidh, nuf ahư ahen sred in hir Aslv ere teragnisnt ny Matum tlie munvenieni fior the Inutrpeiadeare of Awi aut Gomdhi she utinl vardirine wd m erive WHEREAS. Shri AMuti fomuded in intranienai whonl fr chuldreni in buit, a iryumittioni to my ihe eriminr eonudifa of Auduet emuen and a huspt whicdi amevessfuly emploer Sailagai Yoga merhads: nd WHENEAS, Siri Miterji is a dyrsnir ant puwerfet presener uho mvils serkheder. ung peeches wkd prace, the mle of vew in sociry nd self reviizntion, and Sri Manais iphn ina the problemt af imrmity are deep amf reveatng e ku been i re deqn and ga paker at ur teruninual seniies aned rferenees; and WHEREAS, Sui AMuni ias nwer beru mitd for the Nobel Pece Prite, hun bren fnornd by he Emtel Stes Congres, tribnation n peare. hnalh wuf the well being af people in over 75 runtans, wut , and hut recelit ay hteraatinual astrds and rittm in rerogntion af her WHEREAS. Salurja Yogr ir tnght loilly, wrhour churge, r Mor Sare tiniversity of New York Patrz wnd iat thie thry Top Druy Rehabilinanim farliv it Rhinebeck, Nirw York ; anuf Neir WHEREAS, Suhjur Pngu i curreurly the jet of ei e reunt ar ahe Nutiomal inititutes of ilenbt. IN Washingtn. D.C. regarding the medil benefier of dhe peatiee, and extend le Shri Ma ar cimaraia kir ir WHEREAS, Thia Ariemled ldy is greatly muned ste ere nd devord rommtitnent in helping create radnmer, hralhier, wrr buleric ed ven Mrmigh Mnitation, r, Mierefore. Ie it PMr, Mhereforc, be it s Legisltne Boİy pNar ie itr deliteroti e honr Shri Maniji Nimaka Devt her 78h ENrthulav, ad be ir farthes RESOLVED, Tiur this fenmuler af Shatuajar Yogu Medimion, on phe occuria f her 7ei Ertulay, and be it perthes RESOLVED, That t eayy af hin Ciutim, arilaty engrosird, be tratrt to Sri Manaji Ninmele ent. ly Orider of Keven A. Calill Kevir A. Cahill, Member of Assemtly 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-75.txt STATE OF TEXAS OFFICE OF THE GOVERRNC To all to whom these presets shall come, Greetings: Know ije, that ye. this certificate is presented to: Shri Mataji Nirmala Devi On The Occasiom Of Her 78th Birthday In sotisng whercof 1 fane sipunl my me cauted the Seal af tlie Stare uf Ter f ffnd ar the City if stmtin, thii the 1 day o JAlannch, 201 Higual my OF STATE PuRry Rice KICK Rick Perry Governor of Texas TEXAS 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-76.txt City of Pittsburgh Office of the Mayor A Proclamation By virtue of the authority vested in me as Mayor of the City of Pittsburgh, I do hereby issue this proclamation honoring Shri Mataji Nirmala Devi WHEREAS, Shri Mataji Nirmala Devi was born on March 21, 1923 in Chindiwara, India and as a young girl Mahatma Gandhi recognized her deep and special qualities and; WHEREAS, she is a world renowned spiritual leader and the founder of Sahaja Yoga, a natural, effortless way to spiritual enlightenment and, WHEREAS, she has founded many charitable organizations and has been awarded the United Nations Peace Medal, has been invited by the United Nations four times to speak on world peace and has twice been nominated for the Nobel Peuce Prize. NOW THEREFORE BE IT RESOLVED that I, as Mayor of the City of Pittsburgh, do hereby congratulate Shri Mataji Nirmala Devi on her 78 birthday and do hereby deelare Wednesday, March 21, 2001 to be "Shri Mataji Nirmala Devi Day" in the City of Pittsburgh. IN WITNESS WHEREOF, I have hereunto set my hand and caused the Seai of the City of Pittsburgh to be affixed. Tom Murphy March 21, 2001 Mejoi 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-77.txt March 21", 2001 Congratulations Shri Mataji Nirmala Devi On your 78 Birthday Edmontun City Couticil Bryan Andersan Robert Noce Allan Bolstad Michael Phair Rose Rosenberger Jim Toylor Terry Cavanagh Leruy Chahley Wendy Kinsella Dave Thiele Larry Langley Bu Smith Mayor CITY