६1FM.AL. खंडः XIII अंकः 9 व 10 सितम्बर - अक्टूबर, 2001 RSAL PURE RELIGION चैतन्य लहरी ि ४ं अपने की क्षमाशीलता का स्मरण करने का प्रयत्न करें। तब आप जान पाएंगे कि आपका गुरू कितना महान है और वैसा गुरू पाने की कामना कितने साधकों के मन में रही होगी क्यों कि आपका गुरू सभी गुरूओं का ्रोत है । गुरु श्री माताजी गुरू पूजा, 198 DHANMA VANSIA ख- ।। चे तन्या |सितम्बर- लहरी अंक 9 व 10 बर 2001 श्री माताजी का प्रवजन, दिल्ली 17.12.2000 सहस्रार पूजा, कबेला, 6.5.2001 श्री ईसा मसीह पूजा, गणपतिपुले, 25.12.2000 13 1 सार्वजनिक कार्यक्रम, दिल्ली, 26.3.2001 23 35 श्री बुद्ध पूजा, स्पेन, 20.5.1989 50 | गुरु पूजा, 1981 सर सी.पी. श्रीवास्तव द्वारा लिखित भ्रष्टाचार भारत का आन्तरिक शत्रु' (Corruption-India's enemy within) के विमोचन के अवसर पर परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन दिल्ली, दिसम्बर 17, 2000 सभी सत्य साधकों को मेरा प्रणिपात। चाहते हैं तो भ्रष्ट क्यों होते है? ये मेरी इतने अच्छे भाषणों के पश्चात् मुझे समझ समझ में नहीं आता! किसी भी भ्रष्ट व्यक्ति में नहीं आता कि और क्या कहा जाए! माँ को शान्त या प्रसन्न स्थिति में मैंने कभी के रूप में एकमात्र समाधान जो मुझे नजर नहीं देखा। आप यदि अपने देश से प्रेम आता है वह यह है कि वास्तव में यदि करते हैं, मैंने अपने माता-पिता को आपमें अपनी मातृभूमि के प्रति देश-भक्ति है तो यही सारी समस्या का समाधान है । आप यदि देशभक्त हैं तो भ्रष्ट नहीं हो कर दिया क्योंकि वे अपने देश को प्रेम सकते। महान देशभक्त लोगों के विषय में करते थे। वृद्ध होने के कारण मैंने यह सब सहकर्मियों को और उनके मित्रों को देखा है। उन्होंने देश के लिए सभी कुछ बलिदान पढ़कर या उन लोगों के विषय में पढ़कर देखा है। किस प्रकार ये सारे कष्ट वो झेल जिन्होंने अपना जीवन बलिदान कर दिया पाए, किस प्रकार जेलों में गए और सभी है, किसी भी तरह से यदि ये गुण आप अत्याचार झेले! किस प्रकार उन्होंने यह अपने अन्दर विकसित कर लें तो सारा सब कुछ सहन किया, मैंने यह सब कुछ कार्य हो सकता है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के देखा। आज हम सब भारतीय इस बात को लिए उन्होंने बहुत कार्य किया, आप यदि स्मरण क्यों नहीं करते कि ये हमारी महान देश के लिए उनकी भावनाओं को समझ भूमि है। हमें ये समझना चाहिए कि यहाँ मात्र लें, इस प्रकार का भावनात्मक विवेक पर महान लोगों ने जन्म लिया। विश्व के अपने में जगा लें, इस प्रकार का देश प्रेम अन्य किसी देश में इतने महान लोग कभी अपने अन्दर विकसित कर लें तो मुझे उत्पन्न नहीं हुए। उनकी महानता, उनका विश्वास है कि आप पूर्णतः ईमानदार बन 'देश धर्म है कि उन्होंने अपने देश को प्रेम जाएंगे। कोई प्रश्न नहीं है, करने को कुछ किया और इस प्रकार श्रेष्ठता प्राप्त की भी बाकी नहीं है परन्तु ये चीज़ तो अत्यन्त जैसे इन्होंने कहा, देश धर्म में बहुत सी अन्तर्जात है और परमात्मा भी इसे चाहते चीजें आती हैं। महान पुरुषों ने श्रेष्ठता हैं। आप यदि वास्तव में मानसिक शान्ति और महानता के बारे में बताया परन्तु मेरी सितम्बर-अक्टू बर 2001 2 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 9 व 10 समझ में नहीं आता आज हम भ्रष्टाचार की यहीं रहना चाहती हूँ। आप यहीं भारतीय मूर्खता में किस प्रकार डूब गए हैं ! पैंतीस प्रशासनिक सेवा को चुन लें और उन्होंने वर्ष पूर्व हम दोनों ने भारत वर्ष छोड़ा था। ऐसा ही किया। उन्होंने केवल इतना ही जब हम वापिस आए तो मुझे आघात लगा नहीं किया, परन्तु मैं कहना चाहूँगी कि क्योंकि कि इससे पूर्व हमने किसी को उन्होंने कभी इस बात की शिकायत नहीं इतना भ्रष्ट होते हुए नहीं सुना था। कोई की कि उन्हें कोई हानि हो गई है। निःसन्देह चपरासी यदि माँगता भी था तो एक आध मैं भिन्न प्रकार की व्यक्ति हूँ परन्तु वे स्वयं रुपया। कहने का अभिप्राय ये है कि हम भी ऐसे ही हैं। इस देश की गरीबी को नहीं देखते। आज लोग इस बात से चिन्तित नहीं हैं कि इस की मुझे प्रसन्नता है। जैसा आप जानते हैं, ये पुस्तक प्रकाशित हो गई, इस बात 1. भयानक भ्रष्टाचार से हमारी क्या हानि हो यद्यपि मेरा स्वप्न ब्रह्मण्डीय है और मैं चाहती रही है। यह तो कैंसर से भी भयानक रोग हूँ कि महान परिवर्तन आएं। परन्तु मैं ये भी है। इस रोग का उपचार करने के लिए मैं जानती हूँ कि इस पर बहुत सा समय सोचती हूँ कि अपनी मातृभूमि की पूजा लगेगा इस प्रकार की पुस्तक को लोग एक मात्र उपाय है प्रातःकाल अपनी यदि पढ़ेंगे और समझेंगे और इसे गम्भीरता मातृभूमि की पूजा करें। उसका चित्र आपके से लेंगे तो हो सकता है कि मेरा स्वप्न पास है, उसे देखें, उसे प्रणाम करें और आसानी से साकार हो जाए। मैं ऐसा ही स्मरण रखें कि आप उसके ऋणी हैं। भारत महसूस करती हूँ और प्रार्थना करती हूँ कि में जन्म लेना भी महान सम्मान है, कि आप सब लोग शपथ लें कि आप सब अपने आपने इस देश में जन्म लिया। इसके लिए देश को प्रेम करेंगे और किसी भी प्रकार से कृतज्ञ हों। इस प्रकार के प्रेम का आनन्द इसे हानि पहुँचाने में आपको खुशी न होगी। लेना वास्तव में अत्यन्त महान है और ऐसा करना यदि आप सीख लें तो भ्रष्टाचार आश्चर्यजनक है। परमात्मा की धन्यवादी हैूँ रूपी इस भयावह राक्षस को समाप्त करने कि मेरे पति भी देशभक्त हैं। मैं सदैव के लिए आवश्यक महान प्रकाश देने के उनसे ये बताती रही हूँ कि मेरा रोम-रोम लिए यह काफी होगा । देशभक्त है। वे विदेश सेवा में थे परन्तु मैंने उन्हें कहा, मैं विदेश नहीं जाना चाहती, | परमात्मा आपको धन्य करें। सहस्रार पूजा (6.5.2001 ) कबेला-इटली परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन जिन सहजयोगियों ने सत्य को प्राप्त ईसाइ, जो भी थे, उनका विश्वास था कि कर लिया है, आज मैं उन्हें प्रणाम करती इन कर्मकाण्डों द्वारा कुछ प्राप्त किया जा हूँ। युग-युगान्तरों से सत्य की खोज होती सकता है, सत्य को जाना जा सकता है रही है। जब साधकों को ये पता चला कि और व्यक्ति आत्म साक्षात्कार प्राप्त कर सत्य को प्राप्त करने के लिए परमात्मा के सकता है। ऐसे सभी साधक गलत लोगों सम्मुख समर्पित हो जाने के अतिरिक्त कोई के पास गए. गलत दिशाओं में गए क्योंकि और मार्ग नहीं है तब भी उन्हें इस बात का वो तो वास्तव में अपने हृदय से सत्य को ज्ञान न था कि उसे किस प्रकार प्राप्त खोज रहे थे। इन भ्रमित करने वाले लोगों किया जाए और किस प्रकार इसे कार्यान्वित के पीछे जाकर ये साधक भ्रमित हो गए किया जाए। विश्व भर में जिज्ञासु हैं। मैं और ऐसे भयानक अंधकार -मय क्षेत्र में जब टर्की गई तो हैरान थी कि वहाँ पर चले गए कि उन्हें इस बात का ज्ञान भी न बहुत से सूफी हुए परन्तु उनके शिष्य रहा कि वे क्या खोज रहे हैं, उन्हें क्या आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं! उसका कारण खोजना चाहिए था, क्या प्राप्त करना चाहिए यह है कि वो सूफी भी न जानते थे कि था । ये भविष्यवाणी की गई है कि जब उन्हें आत्मसाक्षात्कार किस प्रकार मिला। कलियुग आएगा तो लोग स्वयं को जान जिज्ञासुओं के चहुँ ओर ऐसा अंधकार था । लेंगे। महाराज नल और कलि की एक कहानी है। कलि ने राजा नल की पत्नी जब मैं छोटी सी लड़की थी तब विश्व दमयन्ती का उनसे बिछोह करवा दिया भर में मैंने देखा कि सत्य को प्राप्त करने में था। एक बार नल ने उसे पकड़ लिया और विषय में लोग पूरी तरह अनभिज्ञ थे। भिन्न कहा, "अब मैं तुम्हारा वध करूगा। तुम प्रकार के तथाकथित धर्मों और कर्मकाण्डों अत्यन्त शैतान व्यक्ति हो, तुमने मुझे बहुत से सत्य साधक खो गए। वे सभी हानि पहुँचाई है। कलि ने कहा, "आप मेरा में बहुत प्रकार के कर्मकाण्ड किया करते थे, सुबह वध कर सकते हैं परन्तु वध करने से पूर्व से शाम तक कोई न कोई कर्मकाण्ड चलता ही रहता था । वो चाहे हिन्दू, मुसलमान, है कि जब कलियुग आएगा तब जंगलों, आप मेरा महात्म्य जान लें। मेरा महात्म्य ये सितम्बर-अक्टूबर 2001 4 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 पहाड़ों, घाटियों और हिमालय में बैठे हुए प्रकार की आधुनिक चीजें अपनानी शुरू सभी तपस्वी सर्व साधारण गृहस्थ बन जाएंगे। वे सब गृहस्थ भटकते रहने वाले सन्यासी नहीं होंगे और कर दीं जो गलत थीं और केवल मनोरंजन होंगे, इधर-उधर के लिए थीं। ऐसी परिस्थितियों में मैने पाया कि विश्व भर में बहुत बड़ी जिज्ञासु शक्ति थी और वे सब सत्य को प्राप्त कर लेंगे। ये भविष्यवाणी बहुत समय पूर्व की गई थी। इसके विषय में नल पुराण नाम एक पुस्तक कुछ झूठे लोगों ने इसका पूरा लाभ उठाया । भी है और संभवतः आपने इसमें पढ़ा होगा वे देश से बाहर गए और बेशुमार पैसा कि, "अब समय आ गया है जब लोग स्वयं बनाया और अपने असत्य से उन्हें अभिशप्त को पहचान लें।" सभी धर्मों ने एक ही बात किया। मैं नहीं समझ पाती कि उन कुगुरुओं कही है 'आप स्वयं को पहचान लें। इस्लाम ने उनके साथ क्या किया? इस प्रकार ने यही बात कही, बुद्ध ने यही बात कही, बहुत से सत्य साधक भटक गए। इसके इसाई धर्म ने यही बात कही और हिन्दू बावजूद भी मैं अमरीका गई और वहाँ पर धर्म भी यही बात कहता है। तब तक सभी हालात को देखकर मुझे बहुत चोट पहुँची। लोग सब प्रकार के उल्टे सीधे कार्य किए परन्तु किसी भी प्रकार से मैं वहाँ के लोगों चले जाते है परन्तु वे जानते हैं कि हमें की सहायता न कर पाई क्योंकि अभी तक मानसिक रूप से वे तैयार न थे वे न जानते थे कि उन्हें क्या प्राप्त करना है। सत्य का ज्ञान नहीं हुआ है। तो यह कार्य मेरे हिस्से में आया। अपने सत्य को आप धन से नहीं खरीद सकते। बचपन से ही मैं जानती थी कि मुझे यह सहस्रार खोलने के पश्चात् मैंने यह कार्य कार्य करना है। परन्तु जब मैंने मानव को आरम्भ किया। सहस्रार खोलने की कहानी देखा तो पाया कि अपने विषय में वह तो आप जानते ही हैं और ये भी जानते है कितना अंधेरे में है, वह कितना आक्रामक कि किस प्रकार मैंने एक व्यक्ति से है और कितना अपराधी प्रवृत्ति का है । आत्मसाक्षात्कार देना आरम्भ किया परन्तु उसकी शैली अत्यन्त क्रूर तथा अविश्वसनीय अमरीका से मैं बहुत निराश हुई । मैं सोच है। इसी समय मैंने हिटलर को उभरते हुए रही थी कि 'ये किस प्रकार बढ़ेगा ?' किस देखा । तब हमारा देश भी दासत्व की जंजीरों प्रकार कार्यान्वित होगा?' तब तक (भारत में जकड़ा हुआ था। मेरे माता-पिता का भी में ) हमारे पास पच्चीस लोग थे जिन्हें यही लक्ष्य था। जैसे-तैसे करके जब हमने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो चुका था। उन्होंने वास्तव में महसूस किया था कि आत्म- स्वतन्त्रता प्राप्त कर ली तो थोड़े से समय के बाद ही हम भटक गए। लोगों ने सभी साक्षात्कार से उन्हें क्या प्राप्त हुआ है। सितम्बर-अक्टूबर 2001 5 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 उन्हें लगा कि वे बहुत अच्छे लोग बन गए रहे थे क्योंकि ऐसी पूजा करना अत्यन्त भयानक होता है और यदि यह सत्य न हो। दी थीं और अब वे मेरी पूजा करना चाहते तो यह हानिकारक भी हो सकता हैं। परन्तु थे। मैंने कहा, "नहीं, नहीं, मेरी पूजा मत इसके विपरीत पूजा करते हुए उन सबको हैं। अपनी सारी बुरी आदतें उन्होंने त्याग करो, क्योंकि लोगों को अभी ये बात समझ आत्मसाक्षात्कार मिल गया और सब कह नहीं आएगी। परन्तु एक दिन उन्होंने मुझे उठे अब यह सत्य है। शीतल चैतन्य लहरियाँ प के लिए विवश कर दिया। अतः घर उन्हें अपने हाथों पर महसूस हुई। की छत पर उन्होंने मेरी पूजा की, किसी ने आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के सारे लक्षण उनमें उनको बता दिया था कि ये देवी हैं एक आरम्भ हो गए। उस समय मैं सभी पूजा कुछ न बार ऐसा हुआ था एक भूत बाधित नौकरानी बताना चाहती थी क्योंकि ऐसा कहने वाले हमारे कार्यक्रम के बाद आई और मुझे देवी बहुत से लोग थे कि मैं ये हूँ, मैं वो हूँ। उस के नामों से पुकारना शुरू कर दिया। लोगों समय मैं इन सारी चीज़ों को एकदम से ने उससे पूछा, "तुम क्या कह रही हो?" अनावृत नहीं करना चाहती थी, परन्तु शनैः हैं महिला होते हुए भी उस स्त्री की आवाज शनैः मैंने पाया कि लोग आकर्षित हुए पुरुषों जैसी थी। उसने कहा, "मैं आपको और मेरे कार्यक्रम पर आने लगे हैं। तब सच बता रही हूँ, ये परमेश्वरी हैं जो हमारी सहजयोग बड़ी अच्छी तरह से चारों तरफ रक्षा करने के लिए आईं हैं।" उसकी भाषा फैलने लगा। अतः यह सहस्रार दिवस या नौकरानियों जैसी न होकर अत्यन्त विद्वान जिस दिन ये सहस्रार खोला गया था बहुत ब्राह्हण जैसी थी जो आदि शंकराचार्य के महत्वपूर्ण है। ये अत्यन्त सूक्ष्म है । सारे श्लोकों का उच्चारण कर ले। अत्यन्त आश्चर्य की बात थी! लोगों ने उससे बहुत से प्रश्न पूछे और उसके बाद वह बेहोश हो कि साढ़े तीन कुण्डलों में यह साढ़े गई। मैंने लोगों को कहा, "उसकी बातों त्रिकोणाकार पवित्र अस्थि (Sacrum) में को मत सुनो इसका कोई लाभ नहीं है।" स्थित है। परन्तु हम ये नहीं जानते कि ये परन्तु वो इस बात से सहमत नहीं हुए और क्या कार्य करती है, कैसे कार्य करती है कहने लगे, श्रीमाताजी 'हमें आपकी पूजा और हमारे अन्दर क्या घटित होता है? छः करनी है।" कुण्डलिनी के विषय में हम जानते हैं चक्रों को पार करके यह सातवें चक्र को भेदती है। मुझे कहना चाहिए कि यह केवल तो किसी तरह से मैं पूजा के लिए छः चक्रों को भेदती है क्योंकि श्री गणेश के सहमत हो गई। पूजा करवाने के लिए लोग सात ब्राह्मण ले आए। बहुत घबरा वो चक्र का भेदन नहीं होता जब यह छठे चक्र (सहस्रार) का भेदन करती है तो आपका वे सितम्बर-अक्टूबर 2001 6 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 सम्बन्ध परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति से बहुतसारे चित्रों में देखा है इसमें भिन्न जोड़ देती है। प्रकार का प्रकाश होता है। यह ऊरज्जा प्रकाश के रूप में बहती है इसलिए यह प्रमात्रा परन्तु यह परमेश्वरी प्रेम (Divine Love) ऊर्जा है । फिर से मैं ऐसा सोचती हूँ, इसके है क्या? इसका क्या अर्थ है? ये माँ की विषय में विश्वस्त नहीं हूँ क्योंकि सदैव मैंने शक्ति है, हम कह सकते हैं कि यह आदि वैज्ञानिकों को अस्पष्ट पाया है। यह प्रमात्रा शक्ति की ऊर्जा है। जो चैतन्य लहरी के ऊर्जा, जिसके विषय में ये लोग बात करते माध्यम से सर्वत्र कार्य करती है। परन्तु ये हैं, आध्यात्मिक ऊर्जा या प्रेम शक्ति की चैतन्य लहरियाँ हैं क्या? यह अत्यन्त सूक्ष्म तरह से है जो हमारे चहूँ ओर बहती है। ऊर्जा है जो आपके सहस्रार से बहने लगती वैज्ञानिक लोग ये नहीं जानते कि ये प्रमात्रा हैं। सहस्रार की एक हजार पंखुड़ियाँ शनैः ऊर्जा क्या कार्य करती है परन्तु उन्होंने ये शनैः ज्योतिर्मय होने लगती हैं और चैतन्य देखा है कि इसमें प्रकाश है। वो इसे प्रमात्रा लहरियाँ व्यक्ति के पूरे शरीर में बहने लगती इसलिए कहते हैं कि उनके अनुसार यह हैं। व्यक्ति के हाथों में, पैरों में और पूरे ऊर्जाणु (Bundles) में प्रसारित होती है । शरीर में ये चैतन्य लहरियाँ प्रसारित होने उनके अनुसार हर समूह एक प्रमात्रा है। लगती है जितना अधिक हमारा चित्त यह ऊर्जा जब प्रसारित होती है, आपने सहस्रार पर होता है उतने ही कम समय में स्वयं देखा है, तो यह कार्य करती है। ये ये चैतन्य लहरियाँ प्रसारित होती हैं। हर दिशा में, हर आयाम में कार्य करती है। विज्ञान में मैंने पढ़ा हैं कि एक प्रमात्रा उदाहरण के रूप में यह शरीर पर भी ऊर्जा (Quantum Energy) होती है। मैं ये कार्य करती है। मान लो व्यक्ति को कोई नहीं जान पाई कि इसे प्रमात्रा (Quantum) शारीरिक रोग है तो यह कार्य करती है। नाम क्यों दिया गया है। इसका अर्थ श्री आपने देखा होगा कि मेरी उपस्थिति में गणेश की ऊर्जा हो सकता है, मैं नहीं बहुत से लोग रोग मुक्त हो जाते हैं। मात्र जानती, क्योंकि वैज्ञानिक तो अन्धे हैं। किस मेरी उपस्थिति में, मुझे उन पर कुछ करना चीज़ को वो क्या कहते हैं ये मैं नहीं नहीं पड़ता। जब भी मैं किसी व्यक्ति को जानती। तो इस ऊर्जा को उन्होंने प्रमात्रा देखती हूँ तो जान जाती हूँ कि उसे क्या ऊर्जा का नाम दिया। तो उनके अनुसार रोग है। मैं कहना चाहूँगी कि यह परमात्मा प्रमात्रा ऊर्जा अत्यन्त सूक्ष्मरूप से रहती है से मेरा सम्बन्ध (योग) है जो मुझे बताता है और आमतौर पर ये अदृश्य होती है परन्तु कि उस व्यक्ति में क्या कष्ट है और क्या इसमें प्रकाश होता है। जैसा आपने मेरे किया जाना चाहिए। उसे तुरन्त ठीक किया | सितम्बर-अक्टू बर 2001 7 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 जा सकता है। यह बात भी मुझे इसी है। परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति से प्रकार सूझती है। कहने का अभिप्राय यह एक हुए बिना किस प्रकार आप यह है कि मैं कोई प्रश्न नहीं पूछती, कुछ भी ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं? तो ये अत्यन्त खोजने का प्रयत्न नहीं करती, कोई विश्लेषण महान चीज़ है। वर्ष 1970 में मुझे लगा कि नहीं करती, परन्तु ये कहता है कि ऐसा मैं सहस्रार को खोल सकती हूँ ऐसा मुझे कर लो"। ये कहता भी नहीं है सीधे कर महसूस हुआ। मैं अभिभूत हो उठी क्योंकि देता है। यह स्वतः कार्य करता है। ये मैं ये बात जानती थी कि यही कठिनाई है, वर्णन करना कठिन है कि यह शक्ति किस यही बाधा है जो सभी मनुष्यों में है। उनके सहस्रार खुले हुए न होने के कारण वे अंधेरे में विचरण कर रहे हैं और इसी लो ग जिन्हों ने कारण से सारे युद्ध होते हैं और सभी प्रकार कार्य करती है। सब आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लिया है, प्रकार की समस्याएं भी। उनके सहस्रार अपनी शक्तियों को कार्यान्वित कर यदि खुल जाएं और उनका सम्बन्ध यदि सकते हैं । कैसे? उसे प्रसारित करके, परमेश्वरी शक्ति से हो जाए तो इन सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा हर को देकर और इस पर प्रयोग करके । प्रकार की समस्या का हल हो जाएगा और निःसन्देह सहजयोग आप लोगों के कारण सभी के जीवन खुशियों से भर जाएंगे। ये फैला है, आप ही अन्य लोगों को सहजयोग बात मैंने महसूस की। इससे मैं बहुत प्रसन्न में लाए हैं। परन्तु बात यहीं समाप्त नहीं हो हुई और आनन्द से झूम उठी। परन्तु किसी जाती। हमें पूरे विश्व को विनाश से ने मुझे नहीं समझा। मैं नहीं जानती क्यों? बचाना है और उसके लिए, मैं सोचती शायद लोगों ने सोचा कि मैं कोई मूर्खतापूर्ण इसका अनुभव करके, इसे अन्य लागों हूँ, पूरी जनसंख्या के कम से कम 40 बात कर रही हैूँ। किसी ने भी नहीं समझा प्रतिशत लोगों को आत्मसाक्षात्कारी होना कि ये क्या है क्योंकि शास्त्रों में भी कुण्डलिनी आवश्यक है। जो चाहे उनकी राष्ट्रीयता के विषय में कुछ स्पष्ट नहीं लिखा गया हो, जो चाहे उनका शिक्षा स्तर हो, सभी है केवल महान सन्त ज्ञानेश्वर ने अपनी को आत्म-साक्षात्कार दिया जाना चाहिए। पुस्तक के छठे अध्याय में कुण्डलिनी के विषय में लिखा था यह भी अधिक स्पष्ट भारतीय धर्म ग्रन्थों में स्पष्ट रूप से नहीं है उन्होंने मात्र इतना कहा कि लिखा है कि आत्मसाक्षात्कार के बिना कुण्डलिनी द्वारा आप जागृति पा सकते हैं। आपका जीवन व्यर्थ है। परन्तु ये आत्म साक्षात्कार है क्या? ये स्वयं का ज्ञान मैंने सुना है, उदेके अम्बे उदे' (हे कुण्डलिनी आप लोग सदैव वो भजन गाया करते हैं, सितम्बर-अक्टूबर 2001 8 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 9 व 10 माँ जागो)। परन्तु कोई नहीं जानता कि ये निर्विचार हो जाएं। उन्होंने एक बहुत बड़ा कुण्डलिनी क्या है और आप यह भजन कुण्ड बनाया जिसमें भिन्न आकार बनाए। क्यों गा रहे हैं। हमारे देश के गाँवों में यह उसमें कुछ पत्थर डाले। इस कुण्ड के भजन गाया जाता था परन्तु किसी ने भी किनारे पर बैठो और बिना कुछ सोचे इसे इसका अर्थ नहीं समझा। भजन के रूप में देखते रहो परन्तु लोगों की समझ में ये इसको गाते रहे या संगीत के रूप में इसका बात न आई। सामान्य रूप से कोई भी वहाँ जाता और कहता, "ओह ये कुण्ड ऐसा कि इस भजन में क्या कहा जा रहा है। प्रतीत होता है जैसे समुद्र के अन्दर जहाज यह सारी बात को गलत ढंग से समझना हो या ऐसा ही कुछ और कहता। परन्तु था। उन सभी कवियों ने जिन्होंने जागृति किसी ने भी निर्विचार समाधि में जाने का और आत्मसाक्षात्कार के विषय में स्पष्ट प्रयत्न न किया मैंने वहाँ कुछ लोगों को रूप से लिखा वह सब पुस्तकों में ही रह बताया कि यह कुण्ड निर्विचार समाधि की अवस्था प्राप्त करने के लिए है. उनकी आनन्द लेते रहें, किसी ने भी ये न समझा गया। लोग उसका पाठ करते, पहला पाठक जिस शब्द पर छोड़ता दूसरा वहीं से शुरु समझ में मेरी बात न आई। कर देता और वह तीसरे व्यक्ति के पढ़ने के लिए छोड़ता। इस तरह से पाठ होते रहे। शास्त्रों के विषय में भी यही बात है। सर्वव्यापक शक्ति की बात की जो कि बहुत बड़ी गलतफहमियाँ उत्पन्न कर दी ताओ' है लाओत्से ने सन्तों का वर्णन गईं और इनका उपयोग अपना उल्लू किया सन्त कैसे होते हैं किस प्रकार सीधा करने के लिए किया गया यही आचरण करते है, किस प्रकार बातचीत कारण है कि हमें वे लोग नहीं मिलते जिन्हें करते हैं. उनके तौर तरीके क्या होते हैं जापान में 'ताओ' हुए हैं। उन्होंने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया हो। धन आदि आदि। परन्तु किसी ने ये न बताया तथा पदवी प्राप्त करने के लिए लोगों ने कि किस प्रकार आप सन्त बन सकते हैं। बड़ी-बड़ी संस्थाएं, बड़ी-बड़ी धार्मिक संस्थाएं मैं सोचती हूँ कि कहीं भी ऐसा वर्णन नहीं आरम्भ कर दीं। मैं नहीं जानती कि उन्हें है कि एक साधारण व्यक्ति को सन्त किस किस नाम से पुकारा जाए परन्तु उनमें से प्रकार बनाया जाए। कोई भी आत्मसाक्षात्कारी नहीं था उदाहरण ज्ञानेश्वर जी बारहवीं शताब्दि में हुए। तब उन्होंने इसके विषय में बताया और जेन अर्थात ध्यान। जेन अपनी पुस्तक में बहुत कुछ लिखा। तब को उन्होंने इस प्रकार लाना चाहा कि लोग एक गुरु एक शिष्य की परंपरा थी कि एक के रूप में विदित्तमा नाम के एक सन्त थे जो चीन गए। वहाँ पर उन्होंने ज़ेन नामक धर्म आरम्भ किया। सितम्बर-अक्टू बर 2001 9 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 गुरु एक ही शिष्य को आत्मसाक्षात्कार दे है। आपका सहस्रार यदि खुल चुका बहुत से शिष्यों को नहीं। मैं नहीं जानती और आप यदि जानते हैं कि कुण्डलिनी कि किस कारण से उन्होंने ऐसा कानून या किस प्रकार उठाई जाए तो लोगों को नियम बनाया बारहवीं शताब्दि में ये कार्य आत्म साक्षात्कार देने का हर सम्भव प्रयत्न करें आत्मसाक्षात्कार देने का हर है आरम्भ हुआ, बहुत से सन्तों ने आत्म- साक्षात्कार के गुणगान किए। सभी ने ये सम्भव प्रयत्न करें। आत्मसाक्षात्कार से माना कि कर्मकाण्ड व्यर्थ है और इस प्रकार अधिक लाभ उन्हें कोई अन्य चीज़ नहीं उन्होंने कर्मकाण्डों को त्याग दिया, परन्तु पहुँचाएगी। बाकी दान करना, पैसा देना कोई न जानता था कि क्या घटित होना चाहिए। मैंने सभी की जीवनियाँ पढ़ी हैं। जी-जान से जिज्ञासुओं को खोज निकालना सभी सन्तों के विषय में पढ़ा है परन्तु ऐसा है । ये लगता है कि उनमें से कोई भी ये न देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई कि इन जानता था कि कुण्डलिनी को कैसे जागृत लोगों ने जिप्सियों पर कार्य करना आरम्भ किया जाए। ये मूल समस्या थी-वे नहीं किया है। जिप्सियों के लिए मेरे हृदय में जानते थे कि किस प्रकार कुण्डलिनी को विशेष भावना है। बिना अपने किसी दोष उठाया जाए। हो सकता है उनमें ये शक्ति के वे दयनीय जीवन जी रहे हैं। किस आदि सब बेकार है। सर्वोत्तम बात तो और उन्हें आत्म-साक्षात्कार देना ही न हो या उन्हें इसका ज्ञान ही न हो। प्रकार से जिप्सियों ने आत्म- साक्षात्कार ठीक है कि उन्होंने कुण्डलिनी की बात प्राप्त किया? कोई भी व्यक्ति यदि की। परन्तु कुण्डलिनी को उठाना वो न जानते थे। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना चाहता हो तो आप उसे आत्म साक्षात्कार दे सकते हैं। परन्तु आत्म साक्षात्कार किसी पर थोंपा नहीं जा सकता। उनमें यदि इंच्छा है, शुद्ध यह आध्यात्मिकता की विशेष शक्ति है । उनमें से कोई भी आपको ये न बता सका इच्छा है तो वे आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर कि कुण्डलिनी को किस प्रकार उठाएं । सकते हैं। अब आप सबको ये शक्ति प्राप्त हो गई है और यह अत्यन्त दुर्लभ है। आप सबको ये प्राप्त हो गई है। मुझे एक भी सहजयोगी बहुत से वर्ष गुजर चुके हैं। रात-दिन मैंने नज़र नहीं आता जिसमें कुण्डलिनी उठाने कठोर परिश्रम किया और मेरी एकमात्र की शक्ति न हो। अपनी इच्छा से चाहे इच्छा यही थी कि आप लोग इसे आप ये कार्य न करें, अपने आप में सन्तुष्ट गम्भीरता से लें हो जाएं, परन्तु ये कोई अच्छी बात नहीं अपने आत्मसाक्षात्कार को अपने तक अतः आज मुझे ये कहना है कि अब और कार्यान्वित करें। सितम्बर-अक्टूबर 2001 10 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 ही सीमित न रखें। जितने अधिक से आप लोगों को मेरे हाथ मजबूत करने होंगे। अधिक लोगों को आप आत्मसाक्षात्कार लोग कहते हैं कि देवी के एक हजार देंगे, मैं तथा सर्वशक्तिमान परमात्मा उतने ही अधिक आभारी होंगे आप हाथ है परन्तु वो एक हजार हाथ भी अब आपसे माँग रहे हैं कि अपने दो केवल अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार देने हाथों समेत आ जाओ और इसे कार्यान्वित करो। जो कार्य आपने करना होगी। आप कभी कोई गलती नहीं कर है वह बहुत महत्वपूर्ण है। संसार में भिन्न सकते क्योंकि कुण्डलिनी सब जानती है। प्रकार की समस्याएं हैं, चाहे वे राजनीतिक का प्रयत्न करें। आपसे कभी गलती नहीं वह आपको पहचानती है और यह भी जानती हों या अन्य प्रकार की, सभी अज्ञानता के है कि आप आत्म- साक्षात्कारी व्यक्ति हैं। कारण आती हैं और इनका समाधान भी वह आपका सम्मान करेगी आप यदि आपकी परमेश्वरी शक्ति के द्वारा ही हो गलतियाँ करेंगे तो वह आपकी गलतियां सकता है। इसका मैं आपको एक साधारण भी सुधारेगी और सभी प्रकार से आपकी उदाहरण दूंगी। तुर्की के लोग आए और मुझसे याचना करने लगे, "श्रीमाताजी आप आएं। अपनी यात्रा की तिथि आगे न बढ़ाए।" लेकिन मेरे पासपोर्ट की समस्या थी। मैंने सहायता करेगी। मैं तो मात्र एक गृहणी हूँ जिसे किसी का भी आश्रय न था, परन्तु मैं विश्वस्ति थी कहा, "मेरा पासपोर्ट तैयार नहीं है. मैं कैसे कि यह खोज निकालना मेरा कार्य हैं कि आऊंगी?" परन्तु तब मैने सोचा क्यों नहीं? | तो पासपोर्ट हम पासपोर्ट भी बनवा लेगे।" सहस्रार का भेदन किस प्रकार किया जाए । बाहर जो भी हालात थे या स्थिति थी, मेराबन गया वो चाहते थे कि मैं तूुर्की आऊं कार्य सहस्रार भेदन की विधि खोजना था क्योंकि उन्होंने कहा, "आर्थिक स्थिति बहुत और वह मैंने किया, आप भी इस बात को खराब हो गई है, अर्थव्यवस्था पूरी तरह से जानते हैं। अब यह आपका कार्य है। अब बिगड़ गई है, हम बर्बाद हो गए हैं ।" मैं वैज्ञानिक भी आपके पास आकर प्रश्न पूछा वहाँ गई, परन्तु इसके विषय में मैने कुछ करेंगे क्योंकि वे नहीं जानते कि वो जिन नहीं किया, फिरभी दो दिन के अन्दर विश्व चीजों के विषय में बातें कर रहे हैं हम बैंक ने दस करोड़ डालर की सहायता की उन्हीं को कार्यान्वित कर रहे हैं। अतः आप घोषणा कर दी। मैंने तो विश्व बैंक से कोई लोग अत्यन्त शक्तिशाली हैं। असली बात ये है कि आपमें से कितने लोग वास्तव में लेना देना। मैं नहीं जानती। तब मैंने कहा, इस कार्य को कर रहे हैं? आज बहुत "हो सकता है कि वो आपकी सहायता महत्वपूर्ण दिन है । मैं आपको बता दूं कि इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आप कष्ट में बात नहीं की थी मुझे विश्व बैंक से क्या सितम्बर-अक्टू बर 2001 11 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 हैं। वो कहने लगे, "कष्ट में तो बहुत से हैं। भेदभाव करने की या उनके पास बैठकर देश हैं, उन्होंने केवल हमारी सहायता क्यों उनके शिक्षा स्तर की जाँच करने की कोई आवश्यकता नहीं है चाहे जो भी हो मैं ये नहीं कह रही हूँ कि आप कुत्तों तथा पशुओं मैं हैरानी थी कि तुर्की में अधिकतर को आत्मसाक्षात्कार दें, केवल मनुष्यों को महिलाएं ही अगुआ थीं और उन्होंने बहुत दें। (माँ हँसती हैं) चाहे कोई भी मनुष्य हो, बड़ा कार्य किया है। मैं देखना चाहती हूँ वो अंग्रेज हों जर्मन हो, इटेलियन हों या की?" मैंने कहा, "ये तत्व की बात है।" कि आप लोग अपने देश में क्या कार्य कर किसी अन्य स्थान के हों। मुझे बताया गया रहे हैं? आप कह सकते हैं मेरे देश में लोग है कि कुछ लोग गोष्ठियाँ करते हैं और बिल्कुल लिए असहमति न प्रकट करूं। परन्तु ऐसे करते हैं और इस तरह से सहजयोग का स्थान, ऐसे छोटे-छोटे क्षेत्र भी हैं जहाँ प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। मुसलमान लोगों जाकर आप सहजयोग बता सकते हैं पर भी हमने कार्य आरम्भ कर दिया है। सहजयोग की बात कर सकते हैं। विशेष भारत में भी इसमें सफलता प्राप्त हुई है। रूप से संवाददाताओं (Media) को आप कायल कर सकते हैं। ये कार्य आपको विरोध नहीं किया। अतः यह कार्यान्वित हो करना होगा और खोज निकालना होगा कि सकता है। इसके विषय में न तो अधिक आप क्या कर सकते हैं? मेरी तरह से। निराश होने की आवश्यकता है और न ही मुझे किसी का सहारा न था, किसी ने मेरी परेशान होने की शनैः शनैः इसमें सुधार बेकार हैं। हो सकता है मैं इसके सभी प्रकार के लोगों के साथ कठोर परिश्रम आप नहीं जानते, किसी ने भी इसका सहायता न की, फिर भी किस प्रकार मैंने होगा। सहस्रार का भेदन किया। आप भी अन्य लोगों का सहस्रार भेदन कर सकते हैं। मेरे विचार से आत्मसाक्षात्कार का सबसे बड़ा शत्रु शराब है। लोगों को यदि मद्यपान हो ये कार्य कठिन नहीं है क्योंकि ये मेरा की लत पड़ जाए तो वे इसके गुलाम । मैं स्वप्न है कि इस विश्व में कम से कम 40 जाते है। उनके दिमाग ठीक नहीं रहते प्रतिशत लोग ऐसे हों जो आत्मसाक्षात्कारी सोचती हूँ शराब की लत के कारण उनका हों और जिन्होंने सहजयोग को अपना लिया सहस्रार बिगड़ जाता है। अतः मेरे विचार हो तथा जो अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार से मद्यपान सबसे बड़ा शत्रु है। यदि आप दे रहे हों और उनको परिवर्तित करने में शराब की लत में फँसे किसी व्यक्ति को लगे हुए हों। किसी के भी पास जाकर देखें और इस लत से उसे मुक्त कराना आप उसे सहजयोग के विषय में बता सकते चाहें तो आत्मसाक्षात्कार के द्वारा ये कार्य सितम्बर- अक्टूबर 2001 12 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 9 व 10 हो जाएगा। निःसन्देह हमारे और भी शत्रु अन्य लोगों को देना है। अपनी या आप हैं जैसे कुगुरु। इसके अतिरिक्त हमारे और थोड़े से लोगों की उपलब्धि से सन्तुष्ट हैं जो धर्म के मामले में छलयोजनाएं होकर नहीं बैठ जाना। तेजी से आपने शत्रु करते हैं परन्तु यह चीजें अधिक महत्वपूर्ण इसको प्रसारित करना है और यह कार्य नहीं हैं। तो आपको यदि शराब की लत में करने की क्षमता आपमें है। इसके लिए न फँसे है न दिखावे की। लोग मिलें तो मैं आपको बताती हैँ तो धन की आवश्यकता हुए कि वे परिवर्तित हो जाएंगे और समझ यह आपके अन्तःस्थित है और यह कार्य जाएंगे कि अभी तक जो कुछ भी वो कर रहे थे वो गलत था। उनका शराब पीना विद्यमान है, आप सभी लोगों में है। मैं ये और पलायन समाप्त हो जाएगा और वे सब जानती थी, निःसन्देह मैं तो ये सब कर्म क्षेत्र में लौट आएंगे तथा सहजयोग पहले से जानती थी अब आप लोग भी को कार्यान्वित करेंगे। करता है। ये आपमें पहले से ही है, आपमें इसे जान गए हैं। अतः अब आप लोग इसे कार्यान्वित करें। भली-भांति कार्यान्वित करें। अब आप लोग प्रेम के शान्त सैनिक हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि एक दिन ये संसार इसी चीज़ का आपने प्रसार करना है और बिल्कुल भिन्न स्थान बन जाएगा। यही चीज़ आपने अन्य लोगों को बतानी है। और जो आनन्द आप प्राप्त कर रहे हैं वह आप सबको बहुत-बहुत धन्यवाद । ***सस श्री ईसा मसीह पूजा गणपति पुले, 25.12.2000 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ना। तदि >ं *े आज का शुभ दिवस है जो मनाया जाता बार-बार कहा है कि 'अपने को जानो-अपने है। कारण, ईसामसीह का जन्म कहते हैं को जानो। यह कहते हुए भी लोगों ने इस कि आज हुआ था ईसामसीह के बारे में चीज़ का महत्व नहीं समझा और धर्म फैलाना लोग 1 बहुत कम जानते हैं क्योंकि वो छोटी शुरू कर दिया। अपने को जाने बगैर ही उम्र में बाहर चले गए थे और उसके धर्म फैल नहीं सकता, धीरे-धीरे वो बाद वापिस आकर के उन्होंने जो महान अधर्म हो जाता है और यही बात ईसाई कार्य किए वो सिर्फ तैंतीस (33) वर्ष के उम्र धर्म की हो गई | जैसे कि ईसामसीह एक तक ही थे। उसके बाद उनके जो शिष्य विवाहोत्सव में गए थे, शादी में गए थे और थे, बारह उन्होंने धर्म का प्रचार किया लेकिन वहाँ पानी में हाथ डाल के उन्होंने उसकी जैसे आप लोगों को भी समस्याएं आती हैं शराब बना दी ऐसा लिखा हुआ है। हिब्रु में उसी प्रकार उनको भी अनेक समस्याएं कहा जाता है जिसमें कि यह बात लिखी आई। पर इन बारह आदमियों ने बहुत गई है शुरूआत में, कि वो पानी जो था कार्य किया और शुरूआत के जो लोग उसका परिवर्तन जो हुआा सो जैसे कि इनको मानते थे उनको ग्नोस्टिक अंगूर का रस। इस तरह उसका स्वाद था (Gnostics) कहते थे। ग्नोस्टिक माने और अंगूर के रस को भी उसमें वाईन "जिन्होंने जाना है'। 'जन्म' से आता है ग्नः (wine) नहीं कहते। इसी बात को लेकर ग्नः माने जानना। और इन लोगों को भी के ईसाईयों ने कहा कि चलो यह तो बहुत सताया गया, इस बक्त के जो प्रीस्ट हमको मना नहीं है, शराब पीनी चाहिए (priest) वगैरह, लोग थे उन्होंने बहुत और इस तरह से ईसाईयों में शराब बहुत चल पड़ी। शराब अधर्म लाती है, शराब से मनुष्य विचलित हो जाता है ऐसी बात कैसे इसलिए शुरूआत में बड़ी तकलीफ से ईसामसीह कहते? यह तो बहुत आसान ईसामसीह की बातें लोगों में भर दी गई चीज़ है, हम भी कर सकते हैं, पानी में हाथ सताया। फिर जो उस वक्त सबको आत्मसक्षात्कार डालकर के हो सकता है कि उसका स्वाद प्राप्त नहीं हुआ था और ईसामसीह ने बदल दें। लेकिन इतनी लोग शराब पीने ी **५५ सितम्बर-अक्टू बर 2001 14 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 9 व 10 के नाम पर अधर्म करना मैं सोचती हूँ लग गए, हम तो हैरान हैं! इंग्लैंड में हम महापाप है और इस प्रकार सब गलत-गलत बातों को लोग अपना लेते हैं। उनके जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य था कि आपके अन्दर गए थे तो वहाँ तो कोई मरता था तो भी बैठ कर शराब, कोई पैदा होता था तो भी शराब, बात-बात में शराब और इतनी शराब चल पड़ी कि अब शराब के सिवा बात ही जो आज्ञा चक्र है उसका भेदन करें और नहीं करते। किसी के घर जाइए तो पहले इसलिए उन्होंने अपने को क्रॉस (cross) वो शराब देंगे, अगर आप शराब नहीं पीते पर टाँग दिया और फिर उसके बाद फिर तो वो समझ नहीं सकते कि आपसे बात से जीवित हो गए। यह चमत्कार लगता है क्या करें। इस प्रकार इसका प्रचलन गलत लेकिन परमेश्वरी कार्य को चमत्कार कोई चीज़ नहीं। यह उन्होंने दिखाया कि इन्सान चल पड़ा और अगर कोई कहे कि ईसामसीह ने ऐसा किया तो इससे बढ़ के गलत बात इस आज्ञा चक्र से बाहर जा सकता है और और कोई हो नहीं सकती। कभी भी कोई आज्ञा चक्र पे इन्होंने दो मन्त्र बताएं हैं इसे भी अवतरण आते हैं वो कभी भी आपको हम बीज मन्त्र कहे हैं हूँ और क्षम्' । क्षम् ऐसी बात नहीं सिखाएंगे कि जो आपके का मतलब है क्षमा करो। क्षमा करना, यह धर्म के विरोध में है। अब वो शराब का सबसे बड़ा मन्त्र है। जो आदमी क्षमा करना प्रचलन बढ़ते-बढ़ते हिन्दुस्तान में भी आ गया। जब हम लोग छोटे थे तो यहाँ उसका जो अहंकार है वो नष्ट हो जाता जानता है उसका ईगो (Ego) जो है या अंग्रेज़ों का राज था, कोई हिन्दुस्तानी लोग है । छोटी-छोटी बात में आदमी में अहंकार शराब नहीं पीते थे, जहां तक हम जानते होता है जैसे किसी से कह दिया भाई तुम हैं। हाँ कोई कोई रईस लोग पीते होंगे, बैठ जाओ जमीन पर तो उनका अहंकार लेकिन कोई नहीं पीता था और अब जिसको हो गया, अगर कहा कुर्सी पर बैठो तो देखो वो ही शराब पी रहे हैं और शराब में कहेंगे कि यह छोटी कुर्सी है हमको क्यों कितनी दुर्दशा होती है वो कोई जानता ही दी? हर एक मामले में मनुष्य को अपने बारे नहीं है और सोचता नहीं है और गलत में बड़ी कल्पनाएं होती हैं और वो कोई ज़रा सा कल्पना से कम चीज किसी ने की कि उसका अहंकार एक दम खड़ा हो जाता काम करते हैं । तो पहली चीज़ भई बताना चाहती हूँ है। कभी- कभी अन्जाने में भी ऐसी बात हो कि जो यह ईसाई लोग शराब पीते हैं तो सकती है और अन्जाने में भी कोई आदमी बड़ा धार्मिक कार्य नहीं करते हैं। यहाँ तक कुछ ऐसी बात करे तो जो आदमी अहंकारी कि इनके रोम में जो चर्च है वहाँ एक होता है उसको हर एक चीज़ में लगता है शराब बनाते हैं। धर्म से अधर्म करना, धर्म कि उसका अपमान हो रहा है। इस तरह পাঁ सितम्बर-अक्टू बर 2001 15 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 9 व 10 से वो हर समय एक अजीब सी हालत में लिए दिया है। और दूसरा हॅँ-हूँ जो है यह रहता है कि कोई भी उसके लिए करो 'क्षम्' से बिल्कुल उलटा अर्थ रखता है। हं काम तो सोचता है कि उसका अपमान हो माने यह जान लो तुम क्या हो। यह जान रहा है, उसको नीचा दिखाया जा रहा है लो कि तुम आत्मा हो, तुम यह शरीर, बुद्धि, यह दिमाग में बात बैठी रहती है और फिर मन, अहंकार आदि उपाधियाँ नहीं पर तुम आप सीधी भी बात करो, चाहे नहीं भी करो आत्मा हो और इस 'हूँ को जानकर के आप समझ लोगे कि मैं आत्मा हूँ। सबका एक ही अर्थ निकलता है। इसलिए देखना चाहिए और सोचना यह चाहिए कि जो ईसामसीह ने कहा है कि गलत-सलत बातें हमारे दिमाग में घमंड आपको अगर किसी के लिए भी ऐसा लगा से, गर्व से, मूर्खता से, अज्ञान से आई हुई आत्मा का मतलब यह है कि कितनी भी कि उसने आपका अपमान किया या उसने हैं यह सब बेकार हैं, इनका कोई अर्थ नहीं आपको दिया, तकलीफ दी तो उसे बनता। तुम साक्षात जब स्वच्छ आत्मा हो दुख आप क्षमा कर दो। अब देखिए अगर आप तो इस आत्मा में यह सब चीज आती नहीं सबको क्षमा कर दें तो क्या हो जाएगा? और तुम अत्यन्त पवित्र हो। सो दो चीज़े आपको कोई तकलीफ नहीं हो सकती, उन्होंने बताई एक तो यह कि आप आप परेशान नहीं हो सकते। जब आपने सबको क्षमा कर दो। कोई ज्ञान से, से भी कहे क्षमा कर क्षमा ही कर दिया तो उस बारे में आप अज्ञान कुछ कुछ सोचेंगे ही नहीं और कोई ऐसी घटना हो दो जिससे आप को तकलीफ नहीं होगी ही नहीं सकती कि जो आपके विपरीत हो क्योंकि क्षमा करिये न करिये आप करते क्योंकि आप सबको क्षमा करते रहते हैं क्या हैं? कुछ भी नहीं। पर जब आप क्षमा यह शक्ति हमें आज्ञा चक्र से मिलती है। नहीं करते हैं तब आप अपने को सताते हैं जिसका आज्ञा चक्र अच्छा होता है वो सबको और तंग करते हैं और जिस आदमी ने क्षमा कर देता है और नहीं तो दूसरा मार्ग आपको दुख दिया, तकलीफ दी वो तो मजे क्या? अगर आप क्षमा नहीं करेंगे तो आप में बैठा है तो इस तरह से आप देखें कि अपने ही को तकलीफ देंगे, अपने ही को कोई ऐसी बात हो उसे आप क्षमा करने की परेशान करेंगे और जो दूसरा आदमी है वो आदत डाल लें। हो सकता है उसने जान बूझ कर आपका दूसरी बात जो कही है उन्होंने कि तुम अपमान किया है तो वो और बलवत्तर हो जाएगा। इसलिए क्षमा करना उन्होंने बड़ा आत्मा हो, इस आत्मा को जानो। आत्मा भारी एक बड़ा भारी सन्देश मानव जाती के को तो कोई छू नहीं सकता, नष्ट नहीं कर सितम्बर-अक्टूबर 2001 16 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 सकता, उसको सता नहीं सकता। अगर भटकते रहते हैं, तो भी वो गहन नहीं आप वो आत्मा स्वरूप हैं तो उसमें पूर्णतया आते तो केन्द्र बिन्दु अगर आपका आज्ञा समविलीन होना चाहिए। लेकिन इस आत्मा है और उसके ओर लक्ष्य कर के अगर आप को प्राप्त करने के लिए आप देखें तो आप समझ जाएंगे कि यह आज्ञा जानते हैं कि कुण्डलिनी का जागरण होना जरूरी है और कुण्डलिनी के की वजह से आप चक्करों में पड़े हुए हैं. जागरण के बाद उसमें स्थित होना विचारों के चक्करों में पड़े हुए हैं, नाना पड़ता है, उसमें बैठना पड़ता है। जब तरह की उपाधियाँ इससे लग रही हैं। पर तक आप उसमें स्थित नहीं हों गे तब तक आप छोटी -छोटी बातों में उलझे इससे परे आप चले जाएंगे तब आप में यह रहेंगे। तत्व चक्र आपको घुमा रहा है। इस आज्ञा चक्र जब इस आज्ञा चक्र को आप लांघ जाएंगे, जो व्यथा है वो खत्म हो जाएगी। इसलिए आज्ञा चक्र का महात्मय माना जाता है। तो अपने में समाना आना चाहिए, अपने यहाँ तक कि बाईबल (Bible) में लिखा ही अन्दर समाना चाहिए। अपने अन्दर जब हुआ है कि जो आदमी माथे पर टीका आप समाने लग जाएंगे तो आपके अन्दर लगा कर आएगा वो बचेगा, लिखा है एक नितान्त शान्ति प्राप्त होगी और आप ऐसा वो सहजयोगी होंगे और कौन होगा! विचलित नहीं होंगे। इस शान्ति के दायरे काम तो प्रचण्ड है। वो बारह (12) आदमी में जब आप रहेंगे तो आपको आश्चर्य होगा थे, आप लोग हजारों हैं। लेकिन एक-एक कि आप जो छोटी-छोटी चीजों के लिए आदमी ने वहाँ जो मेहनत की है उसके हर समय परेशान रहते थे वो नहीं रहेंगे, एक सहस्त्रांश भी आप लोगों ने नहीं की आत्मा के आनन्द में आप डूबे रहेंगे। इस है, अन्यथा न जाने कहाँ से कहाँ यह कार्य आत्मा को प्राप्त करने के लिए मैंने कहा फैल सकता! अब मेरे लिए तो यही एक कि कुण्डलिनी का जागरण अत्यावश्यक है आधार है कि आप लोग सहजयोग को उसके लिए, उसके बगैर हो नहीं सकता। बढाएंगे और सारे विश्व में इसे फैलाएंगे। परमात्मा आपको धन्य करें। पर होने पर भी, जागरण होने पर भी लोग श्री ईसा मसीह पूजा 25.12.2000 (श्री माताजी के प्रवचन के अंग्रेजी भाग का अनुवाद) *भ भभ ২ मुझे खेद है कि मुझे हिन्दी भाषा में पड़ा और उस बलिदान में उन्होंने दर्शाया बोलना पड़ा क्योंकि यहाँ उपस्थित बहुत से कि मनुष्य को यदि सांसारिक बनावटी जीवन लोग सिर्फ हिन्दी भाषा समझते हैं। मैं जब से ऊपर उठना है तो उसे बलिदान करना बाहर होती हैँ तो केवल अंग्रेजी बोलती हूँ, पड़ेगा । क्या बलिदान करना पड़ेगा? आपको इसके अतिरिक्त कोई और भाषा नहीं। अपने षड्रिपु (काम, क्रोध, मद, मोह, मत्सर, इसलिए कभी-कभी मुझे परिवर्तन की भी लोभ) बलिदान करने पड़ेंगे। परन्तु कुण्डलिनी की जागृति के साथ ये षड्रिपु छुट जाते | ऐसा होना इस बात पर निर्भर करता है ईसा-मसीह के महान अवतरण के बारे कि आपकी कुण्डलिनी कितनी जागृत हुई। में मैंने इन्हें बताया कि एक महान लक्ष्य कुण्डलिनी यदि पूर्ण रुपेण उठ जाए लेकर वे पृथ्वी पर अवतरित हुए। वे आज्ञा तो, मैंने देखा है पहली बार में ही चक्र को खोलना चाहते थे जो कि बहुत ही लोग पूर्ण साक्षात्कारी हो जाते हैं। ऐसे संकीर्ण है और इससे पूर्व ये कभी न खोला लोग बहुत कम हैं, परन्तु ऐसे लोग हैं। इच्छा होती है। जा सका था। इस महान कार्य को करने के लिए उन्हें अपना जीवन बलिदान करना पड़ा। उनके इस बलिदान के कारण ही अधिकतर लोगों के साथ कुछ न कुछ परन्तु मुझे लगता है कि आपमें से यह संकीर्ण चक्र खुल पाया। उन्हें इस बात समस्याएं हैं और अधिकतर को आज्ञा चक्र का ज्ञान था। वो जानते थे कि घटनाक्रम की समस्या है। हमारा आज्ञा चक्र इसलिए ऐसे ही घटित होगा और उन्हें अपना बलिदान बहुत अधिक चलता है क्योंकि हम सभी स्वीकार करना होगा। वे दिव्य पुरुष थे। बाह्य वस्तुओं को देखकर प्रतिक्रिया के ऐसा करने में उन्हें कोई समस्या न थी रूप में सोचते हैं, हर चीज़ के प्रति हम परन्तु उन्होंने सोचा कि ऐसा किए बिना प्रतिक्रिया करते हैं। यहाँ मैं ये सारे लैम्प यदि ये कार्य हो सके तो अच्छा है। परन्तु देख रही हूँ। इनके बारे में मैं प्रतिक्रिया कर अन्ततः उन्हें अपना जीवन बलिदान करना सकती हूँ और पूछ सकती हूँ कि आप *** शL) *** चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 9 व 10 सितम्बर-अक्टूबर 2001 18 लोग इन्हें कहाँ से लाए, इन पर कितना इस प्रकार होती है जैसे मैं ये लैम्प देखकर पैसा खर्च हुआ, वर्ष भर इनको कहाँ रखते कह सकती हूँ कि मैं क्यों नहीं इन्हें ले आदि-आदि? मैं प्रतिक्रिया कर सकती सकती, या यदि ये मेरे पास हैं तो किसी हूँ। यह प्रतिक्रिया हमारे अहं एवं बन्धनों के और को मैं क्यों दूं? या तो अहं की प्रतिक्रियाएं कारण होती है। अहंकारी लोग अत्यन्त होती है या प्रतिअहं की। इन दोनों का संवेदनशील होते हैं। आप उन्हें यदि ऐसी समाप्त होना आवश्यक था और ये कार्य चीज दें जो बहुत गरिमामय नहीं है तो ईसामसीह के जीवन बलिदान द्वारा किया उन्हें खेद होता है। किसी भी चीज़ के गया ईसा मसीह दिव्य पुरुष थे और दिव्य विषय में उनके हृदय को चोट पहुँचती है पुरुष सागर की तरह होते हैं और सागर क्योंकि अपनी चेतना के कारण वे स्वयं को शून्य बिन्दू (0°) पर होता है। निम्नतम स्तर कुछ विशेष, कुछ ऊँचा मानते हैं । उनसे पर रहते हुए यह सारे कार्य करता है, व्यवहार करते हुए हमें बहुत सावधान रहना चाहिए क्योंकि यदि उन्हें ये महसूस हो बादलों का सृजन करता है, वर्षा बनाता है और वर्षा के पानी से जब सभी नदियाँ भर जाती हैं तो वे लौटकर समृद्र में आ जाती जाए कि कोई उनका तनिक सा भी अपमान कर रहा है तो वे पूर्णतः क्षुब्ध हो जाते हैं। हैं क्योंकि समुद्र का स्तर निम्नतम होता यह अहं की देन है। अहं आज्ञा चक्र की है। गतिविधि का एक भाग है । बन्धन अतः विनम्रता सहजयोगी का एक (Conditioning) इसका दूसरा भाग है। मापदण्ड है । विनम्रता विहीन व्यक्ति अब आपके साथ एक बन्धन है, जैसे को सहजयोगी नहीं कहा जा सकता। आप भारतीय हैं तो आपका बन्धन ये है कि मैंने देखा है, सहजयोगी भी कभी-कभी कोई यदि आपसे मिलने आए तो वह आपके बहुत क्रुद्ध हो जाते हैं, चिल्लाने लगते हैं, चरण-स्पर्श करे । मान लो वो आपका दुर्व्यवहार करने लगते हैं। ये व्यवहार दर्शाता सम्बन्धी है और आपके चरण नहीं छूता तो है कि वे अभी तक सहजयोगी नहीं है और आप नाराज हो जाते हैं। इस प्रकार का अभी उन्हें परिपक्व होना है। ये विनम्रता कोई भी बन्धन आपके मन में ये विचार व्यक्ति को अधिक स्थायित्व देती है, मैं पैदा करता है कि आपको अपमानित किया कहूँगी कि एक अधिक स्थायी अवस्था जा रहा है, आपका सम्मान नहीं किया जा जिसके कारण आप प्रतिक्रिया नहीं रहा और यह बात आपको बुरी लगती है। करेंगे, किसी भी चीज को देखकर आप अहं की अन्य प्रतिक्रियाएं जैसे मैंने बताया प्रतिक्रिया करते हैं, परन्तु तब आप प्रतिक्रिया প পাঁত ১tc सितम्बर-अक्टू बर 2001 19 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 नहीं करेंगे। वस्तु को केवल देखेंगे और व्यक्ति को महान नहीं बनाती। महानता इस प्रकार आपमें एक नई अवस्था, साक्षी तो अन्तर्निहित है और जब ये महानता अवस्था का उदय होगा जब आप साक्षी अन्दर होती है तो आप बाह्य वस्तुओं की बन जाएंगे तो केवल देखेंगे, प्रतिक्रिया चिन्ता नहीं करते। तब आप अपने अन्दर नहीं करेंगे, इसके विषय में सोचेंगे नहीं। इतने वैभवशाली हो चुके होते हैं कि आपको । बिना तब आप वर्तमान में होंगे। वर्तमान में आप बाह्य चीज़ों की चिन्ता नहीं होती देखते हैं और वास्तव में आनन्द लेते हैं । इन चीजों की चिन्ता किए आप गौरवमय सोचते हुए किसी भी कृति का आनन्द जीवन व्यतीत करते हैं । ईसा मसीह के आपके मस्तिष्क में नहीं होता परन्तु जीवन से भी हमें यही बात देखने को जब आप निर्विचार होते हैं तो उस मिलती है। वे अत्यन्त गौरवशाली व्यक्ति कृति के सौन्दर्य का पूर्ण आनन्द आपमें थे अन्यथा कोई गरीब व्यक्ति तो, जिसने प्रतिबिम्बित होता है और आपको गरीबी का स्वाद चखा हो, भिखारियों की अगाध शान्ति एवं आनन्द प्रदान करता शैली में बात करेगा। यदे किसी धनवान है। अतः व्यक्ति को सीखना है कि परिवार में जन्में व्यक्ति से आप बात करेंगे उसे प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। तो वह अत्यन्त बाह्य दिखावे के स्वभाव से आज की मुख्य समस्या ये है कि सभी बातचीत करेगा परन्तु दिव्य पुरुषों को ये मनुष्य प्रतिक्रिया करने में अत्यन्त कुशल सब चीज़ें छूती तक नहीं। उनके लिए हैं। प्रतिक्रिया करना आज के समाज का अमीरी-गरीबी, उच्च पद या सत्ता का अभाव, प्रमुख सिद्धान्त है। किसी भी समाचार पत्र सभी स्थितियाँ एक सम हैं। ऐसी स्थिति जब आपमें विकसित हो जाए तब आपको मानना चाहिए कि आप सहजयोगी बन गए या पुस्तक को आप उठाएं तो आपका सामना ऐसे लोगों से होगा जो प्रतिक्रिया करने में कुशल हैं, वे प्रतिक्रिया करते हैं और उस हैं मैंने देखा है कि गणपति पुले आने वाले प्रतिक्रिया के कारण विषय के सार तत्व लोग अब बहुत परिवर्तित हो गए हैं। आरम्भ में तो जब लोग वहाँ आते थे तो कहा करते तक नहीं जा पाते। सार तत्व को तो केवल साक्षी अवस्था द्वारा ही पाया जा सकता ये हमें पानी नहीं मिलता, यहाँ फलाँ है। ईसा-मसीह के बलिदान से हमें यही सुविधा नहीं मिलती, यहाँ गर्मी है या सर्दी सीखना है। उनका जन्म एक अत्यन्ति गरीब है। हर समय वे ऐसे बात करते थे मानो एवं विनम्र परिवार में बहुत ही कठिन छुट्टी बिताने के लिए आए हों। सहजयोग परिस्थितियों में हुआ। लक्ष्य ये दर्शाना बिल्कुल भिन्न है । यहाँ पर आप अपनी था कि बाह्य पदार्थ, बाह्य शानो शौकत साक्षी अवस्था विकसित करने के लिए हैं । सितम्बर-अक्टू बर 2001 20 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 आपने आज आकाश को देखा यह कितना कि किस प्रकार ये आपको अपने जाल में सुन्दर था! किस तरह नारंगी और नीले फँसाने का प्रयत्न करता है। आज के युग रंग आकाश में बिखरे हुए थे! स्वतः ही की यही समस्या है और इसीलिए हमें आज इसमें रंग उठते हैं और इनका यह आनन्द ईसामसीह की अत्यन्त आवश्यकता है। लेता है। इस बात की भी चिन्ता नहीं करता ये रंग सदैव बने रहने चाहिए। इस बात की भी इसे चिन्ता नहीं होती कि बात को नहीं समझते कि अहंवादी बनकर अंधेरा होते ही ये सब रंग समाप्त हो जाएंगे! वे स्वयं को, अन्य लोगों को पूरे, विश्व को ये मात्र देखता है। आकाश साक्षी रूप से कितनी हानि पहुँचा रहे हैं । यदि वो इस देखता है और जो भी कुछ उसे उपलब्ध आज की समस्या ये है कि लोग इस बात को समझ लें तो, मैं आपको बताती हैं हो जाए उसे ले लेता है। यही कारण है कि, वो इसे त्याग देंगे। परन्तु समस्या ये है कि यह इतना सुन्दर है और इतना कि लोग इसका आनन्द लेते हैं! इस प्रकार की तुच्छता या अधम जीवन का आनन्द लेते हैं! आप सब लोग सहजयोगी हैं, आपको ये समझना चाहिए कि ये अहं मेरी खोपड़ी आनन्ददायक। तो एक अन्य बात ये है कि जब आप आध्यात्मिकता की उस अवस्था में होते हैं पर क्यों सवार हो रहा है? मैने ऐसा क्या तो आप अत्यन्त शान्त एवं सुहृद होते हैं किया है? मैं कौन हूँ? एक बार जब इस और परस्पर प्रेम करते हैं। अहं की सभी प्रकार के प्रश्न पूछने लगते हैं तो ये अहं समस्याएं लुप्त हो जाती हैं। मेरे विचार से लुप्त ह जाता है । अहंकारी लोगों से व्यवहार अहं ही आपके जीवन के सारे वैभव करना मेरे लिए भी बहुत बड़ी समस्या है एवं सौन्दर्य को बाधित करता है। आप क्योंकि मैं उन्हें बता नहीं पाती कि तुम्हारे यदि इस अहं को मात्र देख सकें कि अन्दर अह है। ये बात यदि मैं उन्हें बता देँ 1 यह किस प्रकार कार्य करता है तो तो वे दौड़ जाएंगे। यदि मैं उन्हें ये कहूँ कि आप आनन्द में आ जाएंगे। यह एक तुम ठाक हो, बहुत अच्छे हो, बहुत भले हो, तो उनका अहं और अधिक बढ़ जाएगा और वे कहेंगे ओह! श्रीमाताजी ने मुझे कहा को देख सकते हैं। साक्षी रूप से देखने पर बहुत अच्छा हूँ ये बहुत बड़ी समस्या प्रकार का नाटक करता है। आप इस नाटक | है मैं लोग अचानक समझ जाते हैं कि आप इस है। मेरी समझ में नहीं आता कि मनुष्य के अहं में फंसे हुए नहीं है, आप तो मात्र इसे अहं को किस प्रकार ठीक करुं! मैं जानती देख रहे हैं। अपने अहं से जब आप निर्लिप्त हूँ उनमें अहं है परन्तु ये नहीं जानती किस होते हैं तो आप इस बात को देख पाते हैं प्रकार व्यवहार किया जाए। यदि आप ये चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 सितम्बर-अक्टूबर 2001 21 बात समझ लें कि आपमें क्या दोष है तो मैं होना चाहिए? मुझे ये क्यों सोचना चाहिए सोचती हूँ कि आप इस कार्य को कर कि मैं बहुत महान हूँ? अन्य लोग भी आपके सकते हैं। आपकी अपनी तथा मेरी समस्या अहं को बढ़ावा देते हैं क्योंकि वे आपसे को सुलझाने का यह अत्यन्त उत्तम उपाय है। लाभ उठाना चाहते हैं। वो आपके अहं को बढ़ावा देंगे, कहेंगे कि ये बहुत महान बात है, आप बहुत महान हैं, और आप उन्मत हो मेरा स्वप्न इतना महान है कि इसे एक जाएंगे मानो आपको मूसलधार वर्षा में फैंक जीवन में नहीं किया जा सकता। मैं दिया गया हो, और अहंकारग्रस्त लोगों की हूँ कि विश्व के सभी लोग बाढ़ की तरह से आप पनप उठते हैं। पूरा चाहती आत्मसाक्षात्कार पा लें। जिस प्रकार सहज अपने इर्द-गिर्द यदि आप देखें तो संस्कृति में हमने अहं से मुक्ति प्राप्त करने आधुनिक काल में सभी लोग अपने अहं के का प्रशिक्षण पाया है यह अत्यन्त प्रशसनीय प्रति अत्यन्त सजग हैं। जिस प्रकार उनके है। आप स्वयं अन्तर्अवलोकन कर सकते नाम समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में आते हैं, स्वयं। आप देख सकते हैं कि आपका हैं मुझे आश्चर्य होता है । वहाँ मेरा नाम आचरण ऐसा क्यों है। जिस प्रकार यदि छपता तो मुझे लज्जा आती क्योंकि सहजयोगी अन्तर्वलोकन कर सकते हैं वैसे यह मात्र आपके अहंकार की अभिव्यक्ति है अन्य नहीं कर सकते। क्योंकि सहजयोगी और भी नहीं। लोग भिन्न प्रकार के कुछ अपनी गहनता में पेंठ सकता है, वे स्वयं, कार्य आरम्भ करते हैं, ये उनके अहं की स्वयं को देख सकते हैं, वे अन्य लोगों को स्पर्धा है। बहुत प्रकार की स्पर्धाएं हैं जैसे देख सकते हैं और इस प्रकार वो ये देखने सौन्दर्य स्पर्धा, मिस्टर इंडिया स्पर्धा आदि । का प्रयत्न कर सकते है कि ये श्रीमान अहं ये सभी चीजें व्यक्ति के अहं को बढ़ावा 1 आपकी खोपड़ी में क्या कर रहे हैं? निःसन्देह हम ये भी जानते हैं कि ईसामसीह का मंत्र दौड़ते रहते हैं। वो सोचते हैं 'क्यों न मैं भी अहंकार की बाधा को दूर करने का सर्वोत्तम ऐसा ही बनु? तो ये सभी चीज़ें मृतपर्याय उपाय है, ये हमारी बहुत सहायता करता करने वाली हैं और आपके मस्तिष्क को है। परन्तु ये मन्त्र लेते हुए आपको अत्यन्त विनम्र अवस्था में होना चाहिए। आखिरकार हैं कि सफलता प्राप्त करने का यही तरीका देती हैं और लोग इन स्पर्धाओं के पीछे पूरी तरह से ढक लेती हैं और आप सोचते मैं हूँ कौन? इतने सारे सितारों और सुन्दर है। इस प्रकार की सफलता अधिक समय वस्तुओं को देखने वाला 'मैं कौन हूँ? मैंने तक नहीं चलती। शीघ्र ही समाप्त हो जाती क्या किया है? क्यों मुझे इतना अहंकारी है। चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 9 व 10 सितम्बर-अक्टू बर 2001 22 सहजयोग में प्राप्त की गई सफलता का अनुसरण करते हैं? क्या इस बात की कल्पना आप कर सकते हैं? ईसामसीह का शाश्वत होती है। जिस व्यक्ति में इस प्रकार का विनम्र स्वभाव है उसे पीढ़ियों तक याद अनुसरण करने का क्या यही तरीका है? किया जाएगा। किसी अहंकारी व्यक्ति का स्वयं को ईसाई कहलाने वाले और स्वयं पुतला मैंने कहीं लगा हुआ नहीं देखा। को ईसामसीह का अनुयायी बताने वाले इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति अहंकारी लोगों को अपने जीवन में ईसामसीह की था तो लोगों ने उसे विशेष रूप से अहंकारी वह विनम्रता, करुणा व प्रेम दशर्शानें चाहिए । कहा। अब भी ये बात असम्भव है कि परन्तु ऐसा नहीं है। किसी अहंकारी व्यक्ति की प्रशंसा में गीत अतः पश्चिमी देशों से आए हुए आप गाए जाएं या उसका पुतला लगाया जाए सभी लोग सहजसंस्कृति को सीखने का तो अपने हृदय में हम विनम्र लोगों को प्रयत्न करे। सहज संस्कृति में हम किस पसन्द करते है और यदि हम चाहते है कि प्रकार बात करते हैं, किस प्रकार रहते हैं. अन्य लोग भी हमें पसन्द करें तो हमें भी किस प्रकार एक दूसरे से सम्पर्क करते है? यह एकदम भिन्न है। एक बार जब आप विनम्र होना चाहिए। दिखावे के तौर पर सहज संस्कृति को अपने जीवन में उतार नहीं, वास्तव में, ये समझकर की हम क्या हैं, हमें गर्व क्यों होना चाहिए. अन्य लोगों लेंगे तो, आप हैरान होंगे कि आपके पर क्यों हमें प्रभुत्व जमाना चाहिए और पारस्परिक तालमेल को देखकर अन्य लोग उन्हें कष्ट देना चाहिए। आप यदि ये बात समझ लें तो आपने ईसामसीह के महान भी दंग रह जाएंगे कि किस प्रकार आप हर चीज की कितनी अच्छी तरह से देखभाल करते हैं! अवतरण के प्रति न्याय किया है । उन्होंने अपने बहुत से गुणों की अभिव्यक्ति की परन्तु अपने जीवन का बलिदान करके अहं रहना सर्वोत्तम है। यहाँ न अहं है न सहजयोगियों के रूप में इस संसार में चक्र का भेदन ही उनका महानतम संदेश बन्धन। ऐसा कुछ भी नहीं हैं। इन सभी है और ये बात हमें समझनी चाहिए। अपने दुर्गणों से आप पूर्णतः मुक्त हैं। तब आप आपको इसाई कहने वाले सबसे अधिक हैरान होंगे कि लोग किस प्रकार आप पर अहंकारी हैं। मैं हैरान थी कि इंग्लैण्ड में विश्वास करते हैं. किस प्रकार आपको चाहते अंग्रेज लोग अत्यन्त अहंकारी हैं। पश्चिम हैं। आप सब लोगों को मैं ईसामसीह के के अन्य देशों में भी मैंने देखा है कि लोग जन्मदिवस पर शुभकामनाएं देती हूँ और अहंकारवादी हैं। भारतीयों के मुकाबले उनमें आशा करती हूँ कि आप ईसामसीह के सन्देश विनम्रता का पूर्ण अभाव है और वे अत्यन्त और उनके जीवन को सदैव याद रखेंगे । अहंकारी हैं क्यों? क्योंकि वे ईसा-मसीह परमात्मा आपको आशीर्वादित करें । सार्वजनिक कार्यक्रम नेहरु स्टेडियम, दिल्ली-26.3.2001 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ये जागृती आपकी अपनी संपत्ति है। ये आपके अपने शुद्ध हृदय से पाई हुई प्रेम की बरसात है। इसमें न जाने हमारा लेना देना कितना है? किन्तु समझने की बात ये है कि गर आपके अंदर ये सूझ-बूझ नहीं होती तो इस तरह से ये कार्य संपन्न नहीं हो सकता सत्य को खोजने वाले और जिन्होंने सत्य को खोज भी लिया है, ऐसे सब साधकों को हमारा प्रणाम। दिल्ली में इतने व्यापक रूप से सहज योग फैला हुआ है कि एक ज़माने में तो विश्वास ही नहीं होता था कि दिल्ली में दो चार भी सहज योगी मिलेंगे! यहाँ का वातावरण ऐसा उस वक्त था कि लोग सत्ता था। इसमें ये ही समझना हैं कि अनेक संतों के पीछे दौड़ रहे थे और व्यवसायिक लोग ने इस देश में मेहनत की हर एक के पैसे के पीछे दौड़ रहे थे। तो मैं ये सोचती घर-घर में उनके बारे में चर्चा होती है और थी कि ये लोग अपनी आत्मा की ओर कब उन संतों के बारे में बहुत कुछ मालुमात 1. मुड़ेंगे? पर देखा गया कि सत्ता के पीछे बुजुर्गों को तो है ही, पर बच्चों को भी हो दौड़ने से वह सारी दौड़ निष्फल हो जाती जाती है। धीरें-धीरे ये बात जमती है कि है। थोड़े दिन टिकती है, ना जाने कितने आखिर ये लोग ऐसे कौन थे जिन्होंने इतना लोग सत्ताधारी हुए और कितने उसमें से परमार्थ साध्य किया। पता नहीं कैसे इतने उपर उठ गए। उसी तरह जो लोग धन व्यवसायिक लोग, जिनका सारा ध्यान रात प्राप्ति के लिए जीवन बिताते हैं उनका भी दिन पैसा कमाने में, सत्ता कमाने में जाता हाल वही हो जाता है क्योंकि कोई सी भी चीज जो हमारी वास्तविकता से दूर है, उसके तरफ जाने से अंत में यही सिद्ध होता है कि वो मुड़ कर सहज योग में आ गए हैं! क्योंकि उनकी वो जो खोज थी उसमें आनंद नहीं था, उसमें सुकून नहीं था शान्ति नहीं थी, किसी प्रकार का विशेष जीवन नहीं था जब ये वास्तविकता नहीं है। उसका सुख, उसका आनंद, क्षण भर में भंगुर हो जाता है, खत्म हो जाता है। इसी बजह से मैं देखती हूँ कि दिल्ली में लोगों में इस कदर से जागृती आ गई है। मनुष्य ये पता लगा लेता है कि उसके अन्दर कोई ऐसी वास्तविक आनंद की भावना आई नहीं, ना ही उसने कोई उस सुख को पाया जिसके लिए वह संसार में आया। ना जाने सितम्बर-अक्टूबर 2001 24 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 9 व 10 सत्य को खोजते हैं तो सोचते हैं कि सन्यास ले लें, हिमालय पर जाएं. अपने बाल मुंडा लें कैसे एक जोत से अनेक जोत जलती गई ! आज मैं देखती हूँ कि हज़ारों लोग यहाँ पर आज उपस्थित हैं जिन्होंने अपने अंदर की और और तरह की चीजें करें। जब सत्य का वास अंदर है तो बाह्य की चीजों से और उपकरणों से क्या होने वाला है? इससे तो अंतरात्मा को पहचाना है। सबसे पहले जान लेना चाहिए कि हमारे मनुष्य पा नहीं सकता सत्य को, क्योंकि इसके साथ कुछ सत्य लिपटा ही नहीं है। अंदर जो बहुत सी त्रुटियां है उसका कारण है कि हम लोगों ने धर्म को समझा नहीं। जो कुछ धर्म-मार्तण्डों ने बता दिया, हमने उन्हीं को सत्य मान लिया। उन्होंने कहा कि आईये तो करना क्या है? करना ये है कि आपके अंदर जो सुप्त शक्ति कुण्डलिनी की है, उसे जागृत करना है। अब कुण्डलिनी की शक्ति आपके अंदर है या नहीं, ऐसी शंका करना आप कुछ अनुष्ठान करिए या कुछ पूजा- पाठ करिए या और हर तरह की चीज़ बताई। मुसलमानों को भी इस तरह से पढ़ाया गया भी व्यर्थ है। हरेक इंसान के अंदर त्रिकोणाकार कि तुम गर इस तरह से नमाज पढ़ो और अस्थि में कुण्डलिनी की शक्ति है और उसे मुल्लाओं के कहने पर चलो तो तुम्हें मोक्ष जागृत करना बहुत ही ज़रूरी है, जिससे कि मिल जाएगा। अब मनुष्य सोचने लगा कि आप उस चीज़ को प्राप्त करें. जिसे मैं कहती ऐसा तो कुछ हुआ नहीं। ऐसी तो कोई प्राप्ति हूँ, सत्य, वास्तविकता'। सबने कहा है अपने हुई नहीं, फिर ये है क्या ये कर्मकाण्डों में को जानो, अपने को पहचानो। लेकिन कैसे? हम क्यों फंसे हुए हैं और ये कर्मकाण्ड हमें हम तो अपने को जानते ही नहीं । हम जो हैं बहुत ही गहरे अन्धकार में ले जाते हैं। हम अंदर से न जाने कितनी त्रुटियों से भरे हुए लोग सोचते हैं कि इस कर्मकाण्ड से हम हैं। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, सब तरह की चीज़े हमारे अंदर हैं और हम ये कुछ पा लेंगे, सो किसी ने पाया नहीं। जन्म नही समझ पाते कि ये कहाँ से सब आ रही जन्मांतर से लोगों ने कितने कर्मकाण्ड किए, उन्होंने क्या पाया! अब पाने का समय भी हैं और क्यों हमें इस तरह से ग्रसित किया होगा। आज इस कलियुग में ये समय आ हुआ है इस चीज़ को गर आप ध्यान पूर्वक समझे तो एक बात है कि ये त्रुटियां जो हैं ये गया। ऐसा आया है कि आपको सत्य प्राप्त सब बाह्य की हैं। आत्मा शुद्ध निरंतर है । हो। सत्य की प्राप्ति। यही सबसे बड़ी चीज है। सत्य ही प्रेम है और प्रेम ही सत्य है। उसके ऊपर कोई भी तरह की लांछना नहीं इसकी ओर आप ज़रा विचार करें कि हम आती और जब यह आई हैं तो ये किसी चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 9 व 10 सितम्बर-अक्टू बर 2001 25 वजह से आई होगी। होसकता है कि आपकी सोचना चाहिए कि वास्तविक मैं तो ये हूँ परंपरागत ही आई हो, पूर्वजन्म से आई, माँ और आज तक ना जाने किस चीज के पीछे बाप से आई, समाज से आई, ना जाने कहाँ भ्रामकता में मैं चला। ये सब होता गया, कहाँ से ये सब चीजें आपके अंदर समाविष्ट आपके अंदर जमता गया, बनता गया और ये हुईं? अब इसके पीछे गर खोजते रहें कि ये सब आपके सुबुद्धि, दुर्बुद्धि और न जाने कहाँ से आई, क्या हुआ, इससे अच्छा है कि किस चीज़ से जुटता गया। सबसे बड़ी बात इसे किसी तरह से नष्ट कर दें। ये हमारे है कि हमें अपने को गर पहचानना है तो सर्वप्रथम हमारा संबंध उस चारों तरफ अंदर जो खराबियाँ हैं, ये ही नष्ट हो जाएं फैली हुई चैतन्य सृष्टि से होना चाहिए। चैतन्य से एकाकारिता प्राप्त होनी चाहिए और उसके लिए, चैतन्य से एकाकारिता तो फिर क्या? हम एक शुद्ध चित्त बन जाते है। इसकी व्यवस्था जिस परमेश्वर ने आपको बनाया उसने की है। अब आपके अंदर इतनी ही स्वतंत्रता है कि आप अपने को पहचानने के लिए कुण्डलिनी ही उसका मार्ग है । और कोई मार्ग नहीं । कोई कुछ भी के लिए जो सर्व सिद्ध प्रक्रिया है उसको बताए, और कोई मार्ग है नहीं। ले किन अपनाएं। और वो प्रक्रिया है कुण्डलिनी लोग आपको भुलावे में डालते है और जागरण की। मैं ये बात कह रही हूँ, ऐसा लोग भटकने लगते है, जैसे मैं एक बार नहीं है। एक गुरु जी का प्रवचन सुन रही थी, तो अनादि काल से अपने भारत वर्ष में उन्होंने शुरू में ही गालियाँ देनी शुरू कर कुण्डलिनी और कुण्डलिनी के जागरण की दीं तो उन्होंने कहा कि आप लोग विकृत बात की गई। हाँ हालांकि उस वक्त में हैं। माने गाली हो गई। आप लोग विकृत हैं कुण्डलिनी का जागरण बहुत कम लोगों को और आप के जो तरीके हैं उसमें आप भगवान प्राप्त होता था और बहुत मुश्किलें होती थी। को नहीं खोज रहे हैं । आप प्रवृत्ति मार्गी हैं, लेकिन इसका भी समय आ जाता है कि ये आप हरेक चीज की तरफ दौड़ते हैं। ये तो सामूहिक हो जाए, और आज यही बात है बात सही है। आप सब इस तरह से एक कि सामूहिक स्थिति में आपने कुण्डलिनी तरफ से दूसरी तरफ दौड़ते हैं और दौड़ कर का जागरण पाया है। अब इस सामूहिक के आप अपने को खो जाते हैं। इस दौड में, स्थिति पे आ कर के जब आप कुण्डलिनी के इस तरह की प्रवृत्ति में हमारी सारी ही शक्ति जागरण से प्लावित हुए और जब आपके नष्ट हो जाती है। आज ये चाहिए तो कल अंदर एक विशेष रूप का चैतन्य स्वरूप वो चाहिए तो परसों वो चाहिए। भाग रहे हैं व्यक्तित्व प्रकट हुआ है उस वक्त आपको ये इधर से उधर, उधर से उधर व उधर से सितम्बर-अक्टूबर 2001 26 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 अंदर गलत धारणाएं बैठ जाती हैं और उसे हम मान भी लेते हैं क्योंकि हमारे अंदर विश्वास ही नहीं है कि हम कभी अपनी आत्मा को पा सकते हैं और जिससे हम उधर। अब ये जो उन्होंने गाली बक दी थी कि आप प्रवृत्ति मार्गी हैं तो उसको लोग मान लेते हैं कि अच्छा हम प्रवृत्ति मा्गी हैं। और वो दूसरों के लिए कहते हैं कि आप निवृत्ति मार्गी हैं नहीं तो क्यों आप आत्मा को प्राप्त अपने को जान सकते हैं। विश्वास रखो, कर रहे हो? गर आप निवृत्ति मार्गी हैं यानि यहाँ आज बहुत से लोग ऐसे बैठे हैं कि आपकी वृत्ति अगर इधर-उधर नहीं दौड़ती जिन्होंने कुण्डलिनी का जागरण और उसकी तो आप आत्मा को प्राप्त कर सकते हैं तो विशेषताओं से पूर्णतया अपने जीवन को पहले ही इस तरह की कठिन समस्या प्रफुल्लित किया हुआ है आप लोग सभी उपस्थित कर दी कि सर्व साधारण मनुष्य इस प्रकार इस चीज़ को पा सकते हैं। आप अपने को सोचेगा कि हाँ भई, मैं तो हूँ प्रवृति में कोई कमी नहीं है, कोई कमी नहीं है। ये मार्गी। तो वो कहेंगे कि अच्छा ठीक है। आप शक्ति आप सबके अंदर है। आपने कुछ भी गुरुओं की सेवा करो, उनको पैसा दो, ये किया हो, आपने कोई भी गलत काम किया मेहनत करो, ये कर्मकाण्ड करो। इधर पैसा हो, आप परमात्मा के विरोध में भी खड़े हुए लगाओ, उधर पैसा लगाओ और जिस तरह हों, चाहे जो भी किया हो, ये कुण्डलिनी तो से भी हो सके तुम सब कुछ अपना परमेश्वर अपनी जगह पर बैठी हुई है, जब कोई को दे दो और उसके बाद सन्यास ले लो। उसको जगाने वाला आएगा तो वो जग आपको ये बात समझ में आ जाती है कि भई जाएगी और ये जो बाह्य की चीजें हैं जिसको ये आसान चीज़ है। पर ये अंधों की बात है। प्रवृत्ति कहते हैं, ये जो आपके अंदर षडरिपू अच्छे भले आँख होते भी यदि कोई अगर हैं ये एकदम झड़ जाएंगे। जब आप देखते हैं कोई बीज आप माँ के उदर में डालते हैं तो अपने आप प्रस्फुटित होता है। बीज में तो कुछ नहीं दिखाई देता पर जब वो माँ के पेट में जाता है तो वो अपने आप प्रस्फुटित हो जाता है। इतना ही नहीं, उसके अंग प्रत्यंग में जीवन आ जाता है। उसी प्रकार कुण्डलिनी 1 हुए कहे कि तुम अंधे हो तो क्या इसे मान लेना चाहिए? कोई कहे कि आप प्रवृत्ति मार्गी हैं। तो क्या इसे मान लेना चाहिए? अगर आपके अंदर निवृत्ति नहीं हैं तो आप ज्ञान मार्ग मतलब सहज योग में नहीं आ सकते। इस तरह की एक भाषा ये लोग व्यवहार में लाते के जागरण से आप जागृत हो जाते हैं और हैं। उससे सर्व साधारण जनता ये कहती है कि भई हमारे लिए तो यह ठीक है कि आप के अंदर की जो वृत्तियाँ हैं, जो नाशकारी गुरुओ की सेवा करो, उनको सब दो, उसको हैं, जो गलत हैं वो अपने आप झड़ जाती हैं । सब समर्पण दो। इस तरह की जो हमारे ये बड़ा आश्चर्य का विषय है किन्तु ऐसे बड़े सितम्बर-अक्टू बर 2001 27 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 आश्चर्य की बात नहीं। क्योंकि यह घोर जागरण होता है तो आपका संबंध उस परम कलियुग है, ये घोर कलियुग है और इसके चैतन्य की शक्ति से हो जाता है और ये प्रताप से न जाने कितने लोग झुलस गए? संबंध बड़ा माना हुआ हैं। आइन्सटीन जैसे अब इसी कलियुग में ये कार्य होने वाला है इतने बड़े वैज्ञानिक ने यह कहा हैं कि जब और इसी कलियुग में आप इसे प्राप्त करने आपका संबंध (Torsion Area) (टोर्शन क्षेतर) वाले हैं। उस परम तत्व को आप प्राप्त करने उसको कहते हैं, होता है तो अकस्मात ऐसी वाले हैं जो आपके अंदर आत्मास्वरूप चीजे होती हैं, इस तरह से आप शांतचित्त हो विराजित है उसके प्रकाश में आप अपने जाते हैं कि उस शांत चित्त में न जाने कितनी को जानेंगे आप जानेंगे कि आप के अंदर उपलब्धियाँ होती हैं और न जाने कितने से कौन से कौन से दोष गिर गए और अब आप शुद्धचित्त वाले आत्मा स्वरूप हो गए। और नई-नई उपलब्धियाँ होती हैं। तरह के नए-नए आपको प्रयोग मिलते हैं इसको जब आप जान लेंगे कि आप की ये स्थिति है. और यही सच्चाई है, तो जितनी बार-बार जग कर सो जाते हैं और सो झठी बातें हैं, आप छोड़ देंगे। उससे क्या करके फिर जगते ये सारी चीज़े होते हुए भी जब लोग हैं, ऐसी भी दशा चलती है। ऐसे लोग नहीं होते कि जो एक बार पार कर के आप कहाँ जा सकते हैं? पर तब हो गए सो हो गए। उसके बाद उनकी फायदा? किसी भी झूठी बात को साथ ले तक झूठ नहीं दिखाई देता जब तक गहनता कितनी है इस पर निर्भर हैं। गर आपकी आत्मा जागृत नहीं होती। आत्मा आप गहन हैं तो ये चीज़ आपके अंदर जब होती हैं तो उसका बड़ा गहन अनुभव को समझ के प्रकाश में ही आप उस झूठ जागृत होता है। आप एकदम निर्विचारिता में चले जाते हैं। आज ही मैं बता रही थी कि मनुष्य सकते हैं जो आपको हर तरह से भुलावे में रखता है। इस भुलावे में हर तरह के लोग घूम रहे हैं। आप दुनिया की तरफ नज़र करें| किसी विचार क्यों करतें है? हर समय, हरेक चीज़ पर देखना और उस पर विचार करना। कोई भी धर्म का नाम ले करके आज लड़ रहे हैं। चीज है जैसे ये अब कारपेट है। ये कहाँ से अरे भई जब धर्म है, जब एक ही परमात्मा है आई होगी? कितने की होगी? क्या होगा? तो लड़ क्यों रहे हो? पर इस तरह के भुलावे दुनिया भर की झंझट इसके लिए होगी। तैयार हो जाते हैं, दिमागी जमाखर्च ऐसा बजाए इसके कि कितना सुन्दर है, उसका बन जाता है और उसको लोग अपना लेते सौन्दर्य, उसका आनंद लें, मनुष्य सोचते ही रहता है! इस तरह के सोच विचार से मनुष्य है। उसका कारण यही है कि उनकी समझ में अभी प्रकाश नहीं। जब कुण्डलिनी का कभी-कभी पगला भी जाता श) सितम्बर अक्टू बर 2001 28 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 तो किसी भी चीज की ओर देख कर उस कोई हैं नहीं। जैसे कोई साहब, वो कहेंगे पर प्रक्रिया करना, react करना, इससे बढ़ भई साहब "मैं चाहता हूँ कि मेरे पास एक के और कोई गलती नहीं है । क्योंकि जब मोटर आ जाए"। अच्छा भई, आ गई मोटर । तो उसका आनंद ही नहीं उठाया, फिर लगे आप प्रक्रिया कर रहे हैं या react कर रहे हैं किसी चीज़ पर तो वो आप अपने अहंकार के कारण या आपके अंदर जो सुप्त-चेतन है, जिसे कि (Conditioning) कहते हैं, उसके कुछ दूसरा ढूँढने। फिर वो चीज़ हो गई तो लगे फिर तीसरी चीज़। तो इसका मतलब आपकी वो इच्छाएं शुद्ध नहीं थीं गर वो कारण कर रहे हैं। आप इसलिए नहीं कर शुद्ध इच्छा होती तो आप तृप्त हो जाते। रहे हैं क्योंकि आप उसे पूरी तरह से देख रहे ये कुण्डलिनी शक्ति आपकी शुद्ध इच्छा हैं। वो साक्षी स्वरूपत्व आप में नहीं है। उस है और ये परमेश्वरी इच्छा है। ये जब चीज को आप पूरी तरह से देखें। अगर आप आपके अंदर जागृत हो जाती है तो पूरी तरह से उसे देख सकते हैं तो उस चीज़ आप तृप्त हो जाते हैं। तृप्त हो जाते हैं का आनंद आपके अंदर पूरी तरह से समा माने आप सोचते हैं कि ये जो मेरा मन, जाएगा। सबसे तो बड़ी बात ये है कि इस चाहिए, वो चाहिए, वो चाहिए करता था दशा में आने की बात बहुतों ने कही है। मैं उसके जगह अब मैं ऐसे सुन्दर बाग में आ कह रही हूँ ऐसी बात नहीं है पर वो बहुत गया हूँ जहाँ सुगंध ही सुगंध, आनंद ही से लोग समझ नहीं पाए होगें या उस वक्त आनंद, शन्ति ही शन्ति और प्रेम ही प्रेम बसा ये भी सोचा होगा कि ये कैसे हो सकता है? हुआ है। ये जब स्थिति आपकी आ जाती है हम तो एक मानव हैं, ये कैसे हो सकता है? तो फिर आप मुड़ कर नहीं देखते ऊधर जो कुण्डलिनी के जागरण से सब हो सकता है और जब कुण्डलिनी आप सब के अंदर वास्तव कुछ लोग जो फिर-फिर गिरते हैं, उठते हैं. में है. वो स्थित है वहाँ तो सिर्फ उसके फिर गिरते हैं। पर सहजयोग में जिसने एक जागरण की बात है। ये आपका धरोहर है। ये आपकी अपनी चीज़ है, जिसे आपने खरीदी चीज है और इतनी सहज में होती है। उसके नहीं उसके लिए कोई पैसा नहीं दिया, उसके लिए कुछ करना नहीं, उसके लिए आपको लिए किसी भी तरह की याचना नहीं की वो पैसा देना नहीं । कोई चीज़ नहीं, प्रार्थना अंदर है, वो स्थित है। सिर्फ उसकी जागृति नहीं, कुछ नहीं। सिर्फ आपके अंदर शुद्ध होने का विचार होना चाहिए। ये गलत चीज़ है। अधिकतर, होते हैं ऐसे भी बार इसे प्राप्त किया वो इतनी महत्पूर्ण इच्छा होनी चाहिए कि मैं अपने आत्मा को प्राप्त करूं। इस शुद्ध इच्छा से ही आप इसे प्राप्त करेंगे सिर्फ मन में यही एक इच्छा अब ये कुण्डलिनी शक्ति जो है ये आपकी बड़ी शुद्ध इच्छा है। शुद्ध इच्छा हमारे अलावा सितम्बर-अक्टूबर 2001 29 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 9 व 10 रखें कि मेरी कुण्डलिनी जागृत हो जाए। ये की बातें हैं। समझदारी क्या है कि आपको इच्छा ही इतनी प्रबल है कि उससे अनेक क्या मिला? आपने सब दिया, आपको क्या लोग, अनेक देशों में मैंने देखा कि, एकदम प्राप्त हुआ? आपको क्या मिला? क्या आपको से पार हो गए। जैसे एक देश है बेनिन। अपना आत्मसाक्षात्कार मिला? वहाँ पर, पहले वो मुसलमान लोग थे और वो फ्रैंच लोगों से इतने घबड़ा गए थे कि उन्होंने आत्मसाक्षात्कार के बाद ही आप जानेंगे कि आप क्या हैं और क्या आपकी शक्तियाँ हैं, और क्या कर सकते हैं आप? आप कितने समर्थ हैं? जब तक आपका अर्थ ही नहीं मिलता आप समर्थ कैसे होंगे? इस समर्थता में आप अनेक कार्य कर सकते हैं। मैं तो इतने आश्चर्य में हूँ कि परदेश में जब मैं रहती हूँ तो ये परदेसी, इन्होंने तो कुण्डलिनी मुसलमान धर्म ले लिया। मुसलमान धरमें लेने के बाद भी वो संतुष्ट नहीं थे। उससे भी परेशान, उससे भी झगड़े, ये वो। पर उनको जब सहजयोग मिल गया तो सब छोड़ छाड़ के अब मजे में हैं। आपको आश्चर्य होगा कि आज वहाँ भी 14,000 सहजयोगी हैं। वो सब का नाम भी नहीं सुना था। पर जब से पार मुसलमान। मैं तो मुसलमान उनको मानती हूँ कि हो गए तो न जाने क्या-क्या चमत्कार कर जिनके हाथ में चैतन्य आए। जिनके हाथ रहे हैं दुनिया भर की चीज़ों में पर जब ये बोलेंगे। आज कियामा का ज़माना है। गर मुझे बताते हैं तो मैं सोचती हूँ कि ये चमत्कार आप के हाथ बोल सकते हैं तो आप मुसलमान का भण्डारा जो है, ये कैसे एकदम से खुल हैं वरना हैं नहीं। मुसलमान का मतलब हैं गया? ये लोग इसे कैसे प्राप्त हुए? सब तरह समर्पण। जब तक आपके हाथ नहीं बोलते से शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, आपकी आप क्या समर्पण करेंगे? इस तरह से गलत पूर्णतया प्रगति हो जाती है और आप इसे चीज है फहमी में पड़े हुए लोग न जाने क्या-क्या आत्मसात कर लेते हैं। इतनी सुन्दर चीजे बना दें! इसके लिए ये नहीं है कि आप कि अपनी आत्मा को आप जान लें। आप ही किसी गर वेद-शास्त्र पढ़े हुए हैं या आप के अंदर यह हीरा है। आप ही के अंदर ये बड़ी तीर्थ यात्रा करते हैं और आप दुनिया ज्ञान हैं। आप ही के अंदर ये सब कुछ है। भर के ब्राह्मणों को, कहना चाहिए कि आज सिर्फ उसका मार्ग जो है सिर्फ कुण्डलिनी हमारे पड़ोस में एक बड़े जोरों में मंत्र बोलने जागरण है और कोई नहीं । ये मैं आपसे लग गए, ऐसे लोगों को आप प्रोत्साहित इसलिए बताना चाहती हूँ कि बहुत बार मुझे करते हैं और उनकी मदद करते हैं, और लोग प्रश्न पूछते हैं कि कुण्डलिनी के सिवाय उनको पैसा देते हैं, इससे कुछ नहीं होने और कोई मार्ग हैं? मैंने कहा और कोई मार्ग वाला। ये सब बेकार की बातें हैं। बेवकूफी नहीं । सच बात तो ये है। उसमें मेरा लेना-देना सितम्बर-अक्टूबर 2001 30 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 कुछ नहीं। लेकिन आपको तो जो सच है रोगों को ठीक करते हैं। पागलों को ठीक वही बताना है कि कुण्डलिनी के जागरण के करते हैं और सबको व्यसन से छुडाते हैं। ये सिवाय आपके पास और कोई मार्ग नहीं है सब शक्तियाँ हमारे अंदर कैसे आई? जिससे आप अपने को भी जाने और दुनिया को भी जाने। सारे दुनिया भर के धंधे साधन है, कुण्डलिनी का जागरण। और छोड़ कर के सीधे अपने अंदर बसी इस उसको जागृत रखना चाहिए इंधर-उधर | ये शक्ति आपके अंदर आने का एकमेव महान शक्ति का उद्घाटन करना ही भटकने वाले लोगों को, ये ठीक है. कि वो आपका परम कर्त्तव्य है। एक जगह जरा रुक जाएं और देखे कि आप में आज आप लोगों को यहाँ देखकर इतनी हैं कौन आप कितनी महान वस्तु हैं? आप कितना सामर्थ्य है? और उसे आप किस बड़ी तादाद में, मेरा हृदय भर आता है। एक तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं? मुझे पूर्ण आशा है कि अगले वर्ष मैं जब यहाँ आऊँ तो जमाना था कि मैं दिल्ली को बिल्ली कहती थी । यहाँ तो किसी की खोपड़ी में सहजयोग घुसेगा ही नहीं । वो मैं यहाँ देख रही हूँ कि आप लोगों ने इसे आत्मसात किया और इससे भी दूने लोग यहाँ रहें इतनी ही नहीं, वो लोग कार्यान्वित हों । सहजयोग में, उसको पा करके आपको सन्यास लेने की ज़रूरत अपनाया और सब तरह का लाभ ही लाभ है। हर तरह का लाभ इसमें हैं। और गर नहीं, हिमालय पर जाने की जरूरत नहीं। यहीं यहीं इस समाज में रह कर के सहजयोग को फैलाना है और इस तरह से विश्व में एक महालक्ष्मी की कृपा हो जाये तो अपना देश भी एक बहुत बड़ा सुरम्य और बहुत वैभवशाली देश हो सकता है। इसलिए सबको सामाजिक विशेष सहज समाज बनाना है। इस सहज रूप से इसे फैलाना चाहिए और इस समाज में वो ही करना चाहिए कि जो सारे सामाजिक रूप में हर तरह का पहलू हमें संसार का उद्धार कर सकता है। जितनी पहचानना है । जहाँ-जहाँ लोगों को तकलीफ इसकी त्रुटियाँ है उनको बिल्कुल पूरी तरह है, मैंने कम से कम ऐसे 16 प्रोजेक्ट बनाए हैं से नष्ट कर सकता है। ये कार्य आप लोग जिसमें औरतों को मदद करना, बच्चों को सब कर सकते हैं और इसलिए आप सब से मदद करना, बीमारों को मदद करना, बूढ़ों मैं बार-बार यही कहूँगी कि अपनी जागृति को मदद करना, खेतिहर लोगों को मदद कर लीजिए । मनन करें, मनन से जागृति करना आदि अनेक से Projects बनाए हैं कि बनी रहेगी और जो दोष हैं वो धीरे- जिसमें सहजयोग कार्यशील हो। और इस धीरे बिल्कुल निकल जाएंगे इससे आप कार्य को जो करते हैं वो समझते हैं कि ये एक सुन्दर स्वरूप, बहुत ही बढ़िया व्यक्ति हमारे अंदर इतनी शक्ति कहाँ से आई? हम हो जाएंगे ऐसे अगर व्यक्ति समाज में हो सितम्बर-अक्टू बर 2001 31 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 जाएं तो दुनिया भर की ये जो आफतें मची हिन्दुस्तान में तो मैं ये देखती हूँ हरेक को ये हुई हैं, दुनिया में मारा-मारी और इस तरह बीमारी हो गई है। जो देखो वो ही पैसा बनाता है, जो देखो वो ही चाहता है कि के घोर अत्याचार हो रहे हैं, ये सब रुक किस तरह से नोच-खसोट लें! अच्छा, परदेस में नहीं है। परदेस में ऐसा नहीं है । यानि मुझे जाएंगे। क्योंकि आप एक सुन्दर मानव प्रकृति बन जाएंगे और इन सब चीज़ों से आप दूर खुद हमेशा घबराहट लगी रहती है कि लोग मेरे पास इसलिए आ रहे हैं कि किस तरह रह कर के भी इन पर अपना प्रकाश डाल सकते हैं और सब ठीक कर सकते हैं। आज के इस वातावरण में मनुष्य घबड़ा सकता है से मुझसे पैसा निकालें। अब ये पैसा मेरा जो कि ये हो क्या रहा है? कैसे हो रहा है? इन है ये समाज कार्य के लिए है। इसलिए नहीं सबका एक ऐसे सोचना चाहिए कि एक दिन कि कोई चोर उच्चके आएं और मुझे लूट आता है कि सब चीज़ सामने आ के खड़ी हो लें। पर वो कोशिश करते हैं । इसी प्रकार जाती है और इतने दिन से चलने वाली ये एक तरह की अपने यहाँ एक भावना आ गई चीज़ एकदम से उद्घटित हो जाए। इसका है कि जैसे भी हो पैसा बनाएं। पर ये लक्ष्मी कारण क्या? कि सब लोगों ने अभी तक नहीं है। ये अलक्ष्मी है, क्योंकि आप तक जब आत्मा को वरण नहीं किया। गर आत्मा को लक्ष्मी आएगी तो वो बहुत चंचल है। बहुत आप अपना लें तो इस तरह की न गलतियाँ चंचल है और वो ऐसे रास्ते पर ले जाएगी होंगी न ऐसी चीज़ आगे चलेगी तो अब कि आपके अंदर अलक्ष्मी आ जाएगी, और उस अलक्ष्मी में आपको समझ नहीं आएगा ऐसी रुकावट आ गई है, इंसान हठात् खड़ा हो जाता है और सोचता है ये है क्या? ये है कि क्या करना है। इसलिए किसी भी चीज़ यही कि आप भटक गए हैं और कुछ लोग की ज्यादती करने से पहले सोच लेना चाहिए तो खाई में गिर गए, भटक कर यही चीजे कि हम कहाँ जा रहे हैं? कहाँ अग्रसर हो रहे हैं, इसको समझने की कोशिश करनी चाहिए। हैं? कौन से जंजाल में फंस रहे हैं? तो इस इतने सालों से अपने देश में जो महापाप तरह की जो भावनाएं हमें हैं कि पैसे के चल रहा था वो आज उद्भव हुआ। सामने मामले में हमें बहुत सतर्क रहना चाहिए और दूसरे का पैसा कैसे निकाल सकते हैं वो आ कर खड़ा हो गया। छोटे से परिमाण में, करना चाहिए, ये चलने वाला नहीं पैसा क्या उठा कर आप अपने साथ ले जाएंगे? ये हो गया। इससे जागृत होने की जरूरत है कि कहीं हम भी इस भटकावे में तो चल नहीं सारा कुकर्म है। ये आप ही की खोपड़ी पर बैठेगा। मैं यह मानती हूँ क्योंकि यह घोर रहे। हम भी इस तरह लुढ़क तो नहीं रहे कि जहाँ हमें नहीं जाना चाहिए। कलियुग है और इसी के साथ एक और चल आपको आश्चर्य होगा कि आजकल सितम्बर-अक्टू बर 2001 32 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 रहा है उसे मैं कृतयुग कहती हैँ। जब ये हो रहा हैं जो चाहता है कि किस तरह से परम चैतन्य कार्यान्वित है, कार्यान्वित है और दगा करें, किस तरह से पैसा लूटें। इससे ये परम चैतन्य वो कार्य कर रहा है जिससे मुक्ति का एक ही मार्ग है। वो है बार-बार ऐसे लोगों को ठोकरें लगेगीं और सहजयोग । इसी से हमारा समाज वो समझ जाएंगे कि ये हम बहुत ही सामाजिक व्यवस्थित हो जाएगा इसी से हमारे हित के विरोध में हैं गर आपको लोगों का हित पाना है तो आपके अंदर शक्ति है उसे समाज में आपसी प्रेम और आदर पनप जाएंगे। न की हम पैसे का आदर करें। आप जागृत करें और उनका हित सोचें । किन्तु हित के मामले में भी स्वार्थ नहीं होना भी लोग पागल हैं सत्ता चाहिए। काहे के चाहिए। असल में अपने यहाँ शब्द भी इतने लिए चाहिए सत्ता? किस लिए सत्ता चाहिए? सुन्दर हैं! स्वार्थ, माने स्व का अर्थ। क्या आपकी अपने पे सत्ता नहीं, आप दुनिया भर अब दूसरी बात है सत्ता। सत्ता के पीछे आपने अपने स्व का अर्थ जाना है? स्व का अर्थ जान लेना ही स्वार्थ है और बाकी सब बेकार है। गर ये चीज हम लोग समझ लें कि की सत्ता ले कर करोगे क्या? सत्ता चाहिए। हमें ये होना है हमें वो होना है किस दिन के लिए? कौन सा उससे लाभ है? उससे हमने अपने स्व का अर्थ नहीं जाना तो हम आपका क्या लाभ होने वाला हैं? सत्ता करने उधर ही अग्रसर होएंगे। वहीं हम कार्य करेंगे जिससे स्व का अर्थ जानने की व्यवस्था हो। के लिए भी बहुत बड़े आदर्श पुरुष हो गए हैं। उनकी हिम्मत, उनका बड़प्पन, उनकी इसलिए आजकल की जो भी कुछ सच्चाई, वो तो है नहीं और सत्ता चाहिए! कशमकश चली हुई है, झगडे बाजी चली हुई है, इसकी परंपरा बहुत पुरानी है। अपने वो क्या करेगा? हमारे मराठी में कहते हैं कि देश में स्थित हो गई, पता नहीं कैसे? पहले बंदर के हाथ में जली हुई लकड़ी दे दीजिए जब अंग्रेज आए. वो भी यही धंधे करते थे। तो वो तो सब कुछ जलाते फिरेगा | वही है उन्होंने हमारे यहाँ से कोहिनूर का हीरा ले आज सत्ता का रूप कि सब बंदर जैसे अपनी जैसे कोई आप बंदर को सत्ता दे दीजिए तो सत्ता को इस्तेमाल करते हैं, पैसा कमाने के लिए और पैसा कमाते है सत्ता के लिए! इस गए। उनको जब तक आप कुछ उपहार नहीं दो तो वो खुश नहीं होते थे। पर वो थोड़े परिमाण में था। अब तो बहुत ही बड़े तरह इन दोनों के द्वन्द में चलने से आज परिमाण में हरेक चीज़ है। तब से शुरू हुआ अपना देश बहुत ही गिर गया है, सामाजिक और अब बढ़ते-बढ़ते हमारे राजकारणी लोगों रूप से। सहज योग उसका इलाज है। ने किया और अब आगे बढ़ गया। अब सहजयोग में आने से आप समझ जाएंगे कि शुरू राजकारणी नहीं, बल्कि हरेक आदमी ऐसा यह महामूर्खता है और इस मूर्खता को सितम्बर-अक्टूबर 2001 33 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 9 व 10 हमें देखना चाहिए कि किस तरह से सहजयोगी नहीं करते। जिस दिन सहजयोग बहुत फैल जाएगा, उस दिन ये सब चीज़े जगह-जगह भूकंप आते हैं, तो क्या होता अपने आप नष्ट हो जाएंगी। ये रह ही नहीं हैं? अभी गुजरात में बड़ा भारी भूकंप आया। सकतीं। इसीलिए आपको समझना चाहिए वहाँ हमारे सिर्फ 18 सहजयोगी थे क्योंकि कि आजकल जो हम घबड़ाए हुए हैं कि गुजरातियों को पता नहीं क्या सहजयोग से अपने समाज का क्या होगा, उसको ठीक खास मतलब नहीं है! अब टर्की में भी बड़ा करने का भी, उसको सही रास्ते पर लाने भारी भूकंप आया। वहाँ भी जितने सहजयोगी का भी उत्तरदायित्व आपका है। आप कर थे सब बच गए। सब, एक से एक आर सकते हैं। आप जो सहजयोगी हैं, ये कर उनके घर भी बिल्कुल सही सलामत। मैंने सकते हैं और जो नहीं भी हैं उन्हें सहजयोग देखे खुद! क्योंकि आप परमात्मा के में लाना चाहिए। हमें अगर अच्छी समाज व्यवस्था चाहिए, अच्छी अगर एक व्यवस्था है। कोई आपको मार नहीं सकता। कोई ऐसी हो जिसमें कोई किसी को खसोटे नहीं, आपको नष्ट नहीं कर सकता। ऐसे ही मारे नहीं और सब लोग आपस में प्रेम भाव और भी जगह जहाँ भूकम्प आए, वहां भी में आ गए हैं तो आपका संरक्षण साम्राज्य से रहें, तो इसका इलाज सिर्फ सहजयोग हमने यही देखा कि सहजयोगी एक भी नष्ट हुआ, न उसका घर नष्ट हुआ। लातूर कर सकता है। सहजयोग दिखने में सीधा नहीं साधा है और सबके अंदर शक्ति होने से सब की ये बात है, कि लातूर में जहाँ हमारा सोचते हैं कि हम तो पार हो गए। पर इसमें Centre था उसके चारों तरफ, चारों तरफ रचना पड़ता है। इसमें रमना पड़ता है खंदक बन गया, चारों तरफ, और बीच में और उसके बाद ही इसकी शक्तियाँ पूरी तरह से जागृत होती हैं और उससे Centre बिल्कुल ठीक रहा और एक भी आप हिन्दुस्तान ही नहीं सारे संसार का लातूर उद्धार कर सकते हैं। इस उद्घार की का सहजयोगी मरा नहीं। ऐसा हुआ कि चतुर्दशी के दिन गणपति को विसर्जित व्यवस्था होनी चाहिए। अब इसमें कुछ-कछ करते हैं। सबने विसर्जन किया और विसर्जन करके आए और उनमें से जो लोग दुष्ट लोग ऐसे हैं कि वो शैतानी के पीछे हैं । उनकी इच्छाएं ही शैतान हैं। ठीक है, ऐसे प्रवृत्ति के थे, उन्होंने शराब ले कर पीना शुरू लोग रह जाएं। मैंने बहुत बार आपसे बताया । शराब पी कर के नाच रहे थे और है कि अब ये जो है, आखिरी Judgement आ गया है। इस वक्त में अगर आप अच्छाई भी सहजयोगी लातूर में किसी भी तरह से, को पकड़ें तो आप उठ जाएंगे और बुराई को पकड़ें तो आप गिर जाएगें। किया नाचते-नाचते सब जमीन के अंदर। पर एक कोई भी बात से वंचित नहीं है। उसका घर जैसे के तैसा रहा, उसकी गृहस्थी, उसके सितम्बर-अक्टूबर 2001 34 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 9 व 10 कुछ नहीं होगा। गहनता आनी चाहिए और बच्चे सब ठीक हैं। ये क्या चमत्कार नहीं तो और क्या है? इसी प्रकार आप भी समझ लें उसमें सब कुछ सहजयोग के बारे में जान लीजिए। बारीक से बारीक बात भी वहाँ आप समझ सकते हैं। कोई शास्त्र पढ़ने से मालूम कि परमात्मा का जो संरक्षण है वो आपके ऊपर है क्योंकि आप उसके साम्राज्य में गए हैं। इन सारे साम्राज्यों के बाहर इतने ऊँचे नहीं होगा, कुछ भी कुरान पढ़ने से मालूम आप चले गए कि अब किसी भी चीज़ का नहीं होगा, बाइबल पढ़ने से मालूम नहीं भय नहीं। कोई भी चीज़ आपको नष्ट नहीं होगा क्योंकि उस वक्त कुण्डलिनी का कर सकती। इस तरह से हमने सहजयोग में जागरण हुआ नहीं था और वो इन लोगों पे अनेक उदाहरण देखे हैं। अनेक लोगों को था जो अभी पार नहीं हुए हैं । उन लोगों के बीमारी से उठते देखा हैं। ड्रग लेने वाले लिए था कि वे किस तरह से इस दशा को लोग एक रात में ही बदल जाते हैं। किसी प्राप्त करें। पर अब आप तो प्राप्त कर चुके। अब इसके आगे का जो भी कार्य है वो कैसे करना चाहिए इसके लिए आप कृपया अपने घर के थोड़ी नज़दीक या दूर पर भी हो, को आश्चर्य होगा कि ये कैसे हुआ! वही बात मैंने कही कि कुण्डलिनी के जागरण से अपने अंदर की सब विकृतियाँ झड़ जाती हैं। इस तरह से हर जगह यह कार्य हो रहा है और जहाँ भी आपका वस्तु है उससे पास या दूर लोग इसको अब महसूस कर रहे हैं, इसको तो वहाँ आप Centre पर जरूर जाएं। मुझे समझ रहे है कि परिवर्तन की बहुत ज़रूरत है। इस परिवर्तन के सिवा कुछ भी नहीं समझेंगे, इसका मान रखेंगे। जो मिला है वो बदल सकता कुछ भी ठीक नहीं हो सकता। मनुष्य ही है जो सब गड़बड़ करता है और था वो आपने प्राप्त किया है। उसका आप ये मनुष्य ही है जो खुद इसको उठाएगा और गौरव जानेंगे, जब आप उसकी शक्ति को इसको बढ़ाएगा। बड़ा विश्वास है मुझे कि पाएंगें तो इसको प्राप्त करें और अपना सम्मान जिस तरह से यहाँ सहजयोग बढ़ा है, और रखें। अपनी रखें। आप इसमें उतरते भी आगे बढ़ता रहेगा। अनेक प्रांगण में, अनेक जाइये, गहरे, और मेरा पूर्ण आशीर्वाद है कि स्थिति में इसका प्रकाश चारों तरफ हो पाएगा। आप लोग पूर्णतया सुखी हो जाएँ, पूर्णतया आशा है कि इसको आप लोग शिरोधार्य अनंत है, अंनत वर्षों से किसी को नहीं मिला ये इज्जत आप सबको अनंत आशीर्वाद । आनंदित हो जाएँ, और पूर्णतया शान्तिमय अब अपने-अपने दायरे में देख लीजिए हो जाएँ। इसके अलावा आप स्वयं शक्तिशाली हो जाएँ । कि कहाँ आप के सेन्टर हैं। वहाँ आप जाइए परमात्मा आपको धन्य करें। और गहन उतरिये। एक दम से पार होने से श्री बुद्ध पूजा बार्सिलोना स्पेन (20.5.1989) परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज हम श्री बुद्ध की पूजा करने के अति में चला जाता है, इसलिए सदैव उन्होंने लिए यहाँ एकत्रित हुए हैं। भगवान बुद्ध, पिंगला नाड़ी पर कार्य किया और हमारे जैसा आप जानते है, गौतम थे उनका हित के लिए और हमारे अहम् को नियंत्रित जन्म राजपरिवार में हुआ था। बड़े होकर करने के लिए स्वयं को पिंगला नाड़ी पर उन्होंने मनुष्य को तीन तरह के दुखों से स्थापित कर लिया। आज्ञा चक्र को यदि कष्ट उठाते देखा और वे सन्यासी बन TI आप देखें तो इसके मध्य में ईसा मसीह हैं, हुए गए। वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि इच्छाओं बाईं ओर श्री बुद्ध हैं और दाई ओर श्री के कारण ही ये तीनों प्रकार की समस्याएं महावीर। सभी को भगवान (Lord) कहा हैं तो उन्होंने कहा कि व्यक्ति यदि इच्छाएं जाता है क्योंकि वे इन क्षेत्रों के शासक हैं। त्याग दे तो वह सभी समस्याओं से मुक्त आज्ञा चक्र का ये क्षेत्र तप का क्षेत्र हैं, हो जाएगा। उन्होंने वेद, उपनिषद और तपस्या का क्षेत्र है क्योंकि इन लोगों ने अन्य सभी ग्रन्थ पढ़े। वे बहुत से सन्तों हमारे लिए तपस्या की। अब हमें तपस्या और अन्य लागों के पास गए परन्तु उन्हें करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि आत्म साक्षात्कार प्राप्त नहीं हुआ। वास्तव ये अवतरण हमारे लिए सभी प्रकार की में वे अवतरण थे। अवतरणों को भी भिन्न संभव तपस्या कर चुके हैं। यही कारण है प्रकार से आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति तक पहुँचना कि सहजयोगियों को कोई तपस्या नहीं पड़ता है जिस प्रकार सभी संभाव्य शक्तियों करनी, अपनी सुन्दर चैतन्य लहरियों के को प्रकट होना होता है। परन्तु अवतरणों साथ वे अत्यन्त सुन्दर स्थिति में हैं। उन्हें बहुत अधिक संभाव्य शक्ति होती है और यदि द्वार खोल दिया जाए तो वह शक्ति और ऐसे स्थान पर छिपने की जहाँ बिच्छु, अपनी अभिव्यक्ति करती है। में जंगलों में जाने की, समाज से दौड़ने की सांप, चींटे तथा जीवन के लिए अन्य खतरे बुद्ध ने ये बात महसूस की कि मानव हों, कोई आवश्यकता नहीं है। तो तपस्या की सबसे बड़ी समस्या उसका अहम् है। का कार्य समाप्त हो गया है। भगवान बुद्ध अपने अहम में व्यक्ति एक के बाद एक ने अपने जीवन काल में और सदैव बताया सितम्बर-अक्टू बर 2001 36 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 बन गए थे। परन्तु इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि सभी लोग शाकाहारी बन जाएं| जिन लोगों में अहं है उनके लिए शाकाहारी कि त्याग की कोई आवश्यकता नहीं है। किसी भी प्रकार का त्याग अनावश्यक है । को यदि आप पढें, उनकी भगवान बुद्ध प्रारम्भिक शिक्षाओं को यदि देखें तो आप शाकाहारी भोजन करना और तामसिक लोगों बन जाना बेहतर है। उग्र लोगों का हैरान होंगे, कि किसी भी प्रकार का त्याग भोजन करना बेहतर है। अनावश्यक है। उन्होंने स्वयं तो तपस्या की ये बात हम भली-भांति जानते हैं। अतः का प्रोटीन युक्त परन्तु वह समय तपस्या का था। उस समय उन्होंने अत्यन्त प्रेम तथा स्नेह पूर्वक उन्हें उन्हें ऐसे लोगों की आवश्यकता थी जो नियंत्रित करने का प्रयत्न किया जो उनके जीजान से उनके विचारों का प्रचार कर साथ थे। परन्तु उनके संदेश का सारतत्व सकें। अतः सभी ने इस प्रकार का जीवन समझा जाना आवश्यक है। अपनाया। परन्तु कभी भी उनका विश्वास तपस्या में न था। वो तो शाकाहारी भी न थे एक बार वे एक गाँव में गए उन्हें भूख और उनसे पूछा, "श्रीमान क्या आप मुझे लगी हुई थी । वहाँ शिकारियों से उन्होंने बुद्ध धर्म की शिक्षा देंगे?" तब तक ये कोई खाने के लिए कुछ मॉँगा। शिकारी ने उत्तर धर्म न था, "क्या आप मुझे दीक्षा देंगे?" दिया कि आज सुबह हमने एक जंगली उन्होंने उत्तर दिया, "मेरे बच्चे केवल ब्राह्मणों सूअर का शिकार किया है लेकिन इसे ठंडा को दीक्षा दी जाती है अर्थात आत्मसाक्षात्कारी होने में कुछ समय लगेगा। उन्होंने कहा, लोगों को ही। आपका जन्म किस कुल एक बार एक लड़का उनके पास आया में ' 'कोई बात नहीं। किसी दाईं ओर के उग्र हुआ? लड़के ने उत्तर दिया, "श्रीमन मैं स्वभाव व्यक्ति का जंगली सूअर का बिना अपना कुल नहीं जानता।" वह लड़का अपनी ठंडा हुए मांस खाना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। माँ के पास वापिस गया और उससे पूछा, उन्होंने ये मांस खाया और ऐसा करते हुए "माँ मेरा कुल कौन सा है मेरे पिता कौन उनकी मृत्यु हुई। अवतरण जो भी कार्य थे", माँ ने उत्तर दिया मेरे बच्चे मैं अत्यन्त करते हैं उसका कोई अर्थ होता है। जिस गरीब महिला थी और मेरे पास जीवन तरह से हम ईसा-मसीह के जीवन में अर्थ यापन का कोई साधन न था, इसलिए मुझे खोजते हैं वैसे ही श्री बुद्ध के जीवन में भी बहुत से स्वामियों (Lords) के साथ रहना अर्थ खोजते हैं। यही कारण है कि बौद्ध पड़ा. मैं नहीं जानती कि तुम्हारे पिता कौन लोग शाकाहारी बन गए। क्योंकि इस हैं?" "आप नहीं जानती कि मेरे पिता कौन गर्मागर्म मांस को खाते हुए बुद्ध भगवान है?" उसने कहा, "नहीं।" वह लड़का भगवान की मृत्यु हो गई थी इसलिए वे शाकाहारी बुद्ध के पास गया और भगवान ने उससे सितम्बर-अक्टूबर 2001 37 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 9 व 10 पूछा आपके पिता कौन हैं? तुम्हारी जाति ब्राह्मण होने के नाते आपको चुस्त होना है। कौन सी है?" लड़के ने उत्तर दिया, श्रीमान मेरी कोई जाति नहीं है क्योंकि मेरी माँ ने ब्राह्मण चाहे न हों परन्तु ब्राह्मण परिवारों में बताया है उनके कई स्वामी थे और वे नहीं जानतीं कि किससे मेरा जन्म हुआ। अतः रहे हों, वे भी अब स्वयं को ब्राह्मण कहते मैं अपने पिता को नहीं जानता। भगवान हैं उनकी विशेषता क्या है? अधिकतर ने उसे गले से लगा लिया और कहा भारत में ब्राह्मण लोग हैं, जो वास्तविक जन्में हैं। हो सकता है उनके पूर्वज ब्राह्मण ब्राह्मण लोग प्रातः चार बजे उठ जाते हैं। बुद्ध तुम वास्तव में ब्राह्मण हो क्योंकि तुमने इस प्रकार आप उन्हें पहचान सकते हैं कि वे ब्राह्मण हैं। इस तरह से देखें तो मैं भी सत्य बात बता दी है। ब्राह्मण हूँ। चार बजे प्रातः उठकर वे स्नान अतः सत्य ही उनके जीवन का सार करते हैं और स्वयं को शुद्ध करके वे पूजा, तत्व है। सर्व प्रथम हमें अपने प्रति ईमानदार प्रार्थना या ध्यान के लिए बैठ जाते हैं। इस होना पड़ता है और मुझे लगता है कि स्वयं के प्रति ईमानदार होना कुछ लोगों के लिए यद्यपि वो सच्चे ब्राह्मण नहीं हैं। इसके बहुत कठिन कार्य है। वे जानते हैं कि विपरीत भारत में प्रकार वहाँ आप ब्राह्मण को पहचानते हैं। शूद्र प्रातः नौ बजे उठेंगे। सत्य से पलायन किस प्रकार करना है। वो यह उनकी परम्परा है। वे गन्दे कपड़े पहनते इस कार्य को करना जानते हैं सत्य से हैं, मुँह में अपने हाथ डालते हैं, गन्दगी से बचने के लिए वे तर्क देते हैं और युक्तियाँ घिरे घिनौने लोग होते है। ऐसे व्यक्ति लगाते हैं। ये स्पष्टीकरण आप किसे दे रहे को गन्दगी से दुर्गन्ध भी नहीं आती क्योंकि हैं? केवल अपने आप को? आपकी आत्मा परंपरागत वे यही कार्य करते हैं। अब हमें का निवास आपके अन्दर है और आपके पता चला है कि बहुत से ब्रह्मण हुए हैं चित्त द्वारा यह ज्योतिर्मय हो गई है। अब जिनका जन्म शूद्र परिवारों में हुआ। अतः आप किससे तर्क कर रहे हैं? अपनी आत्मा शुद्र परिवार में उत्पन्न होने से, व्यक्ति के से? ईसा मसीह का सन्देश ये है कि हमने जन्म से, वह शूद्र नहीं बन जाता। अपने द्रष्टिकोण, अपनी जाति के कारण ही व्यक्ति ब्राह्मण या शूद्र बनता है। परन्तु समाज में परंपरागत जाति को ही स्वीकार किया जाता है इन शूद्र लोगों के बाल बिखरे हुए होंगे, आप तुरन्त पहचान सकते हैं। वो बालों में तेल नहीं डालते। बिना तेल के उनके बाल हुए पुनरुत्थान प्राप्त करना है, परन्तु कैसे पुनरुत्थान प्राप्त करना है। सर्व प्रथम आपको अपने प्रति ईमानदार होना है। यह समझना सबसे जरूरी है कि आपकी जाति ब्राह्मण है, आपको ब्रह्म का ज्ञान है, आप सर्वव्यापक शक्ति को जानते हैं और उसे आपने महसूस हैं और सच्चे (Dishevelled) बिखरे रहते हैं। किया है। आप सच्चे ब्राह्मण सितम्बर-अक्टू बर 2001 38 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 दूसरे वे अपने यौन जीवन की चिन्ता और उसे गुदगुदाना! उस मूर्ख राक्षस ने, नहीं करते। राक्षसों की तरह से उनका जिसके मुँह में अमृत भरा हुआ था गुदगुदाहट जीवन होता है। राक्षस लोग ही दूसरों की के कारण अमृत उलट दिया और ऐसी महिलाओं के पीछे भागते हैं उन्हें देखते हैं मान्यता है कि जिस भूमि पर उसके मुँह से आदि-आदि। पुराणों के अनुसार ये कहते निकला हुआ अमृत गिरा वहाँ से लहसुन हुए मुझे खेद हो रहा है यह राक्षसों का पैदा हुआ। गुण है। सहजयोग में जब मैं लोगों को देखती हैँ कि वे अपने प्रति ईमानदार नहीं हैं तो उन्हें से समुद्र मन्थन में जब समुद्र अमृत प्रकट हुआ तो श्री विष्णु को राक्षसों की ये बात समझनी चाहिए कि अहं अत्यन्त दुर्बलता पता थी। जबरदस्ती राक्षस लोग चालाक चीज़ है। केवल इतना ही नहीं, अमृत कलश को ले गए। अपने अहंकार और शक्ति के कारण। वे कहीं अधिक बना देता है। उदाहरण के रूप में आप चालाक थे इसलिए देवताओं से देखें, महिलाएं सौन्दर्य प्रसाधन की दुकानों घड़े को छीन ले गए। राक्षस अमृत पीने ही पर जाकर श्रृंगार कराती हैं। ये पहनती हैं वाले थे। श्री विष्णु को राक्षसों की दुर्बलता वो करती हैं, मैं नहीं जानती कि वो क्या-क्या का ज्ञान था इसलिए उन्होंने मोहिनी रूप करती हैं परन्तु तीन चार घण्टों के बाद धारण किया। मोहिनी अर्थात सुन्दर स्त्री जब आती है तब भी वो वैसी ही लगती हैं। जो अपने वस्त्रों, सुडौल शरीर तथा सभी न जाने कितना पैसा वे उड़ेलती हैं और प्रकार की अदाओं से पुरुषों को आकर्षित हैरानी की बात है जब वे बाहर आती हैं तो करे। तुरन्त सभी राक्षस उस सुन्दरी (श्री उनके बाल एक भिन्न शैली में कटे होते हैं! विष्णु) पर फिदा हो गए। देवताओं और उनसे यदि आप पूछें कि आपने इस प्रकार राक्षसों का भेद आप जान सकते हैं। परन्तु बाल क्यों कटाए हैं तो वे कहती हैं, 'ये यूनान में अपनी समस्याओं का हल निकालने फैशन है। इसका अर्थ ये हुआ आपका के लिए देवताओं को राक्षस रूप में दर्शाया अपना कोई विचार नहीं है, आपकी अपनी है ज्यों ही विष्णु जी ने पाया कि एक कोई धारणा नहीं है। जो भी फैशन हो उसे राक्षस कुछ लेकर भागा है, तो पुराणों में आप स्वीकार कर लेते है। आप ये नहीं बताया है, मोहिनी रूप में श्रीविष्णु जी उसके समझ पाते ऐसा करना आपके लिए ठीक पास पहुँचे और हँस-हँस कर उसे गुदगुदाने है या नहीं। इस प्रकार अहं को बढ़ावा का प्रयत्न किया किसी अहंकारी राक्षस मिलता है मान लो कोई उद्यमी है जो अहं आपको दूसरे लोगों के अहं का दास अमृत के अन्य लोगों से कहीं अधिक चुस्त चालाक के पास अत्यन्त सुन्दर महिला का आना सितम्बर-अक्टू बर 2001 39 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 है, ऐसे बहुत से लोग हैं, अब वो कहता है शैली बनाने के लिए इनका उपयोग करती कि अपने सिर में एक विशेष प्रकार का तेल हैं। मैंने पूछा, कैसे? उन्होंने अपने वालों डालो, अपने बालों को एक विशेष रूप से का क्या हाल किया? आजकल वे अपने बाँधो तो वे अच्छे लगेंगे। इस प्रकार वे बालों में तेल नहीं डालतीं, अधिकतर गंजी विशेष रूप से विज्ञापन देता है। इस तरह हो गई हैं। आप यदि अपने बालों में तेल उसका सारा उत्पाद बिक जाता है बिना नहीं डालेंगे तो गंजे हो जाएंगे, ये बात मैं सोचे समझे लोग इसका उपयोग करते हैं। आपको बता रही हूँ। आप गंजे हो ही जाएंगे। हम तपस्वी लोग हैं, हम तेल नहीं डाल सकते। आप यदि सिर में तेल नहीं डालेंगे तो गंजे हो ही जाएंगे। तब बिना कुछ किए किसी बुद्ध संस्था में शामिल हो इसका अर्थ ये है कि आपका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं है । अहं क्या है? अहं से आपको व्यक्तित्च, चरित्र और स्वभाव मिलना चाहिए। जब सकेंगे। एक आराम और हो जाएगा, आपकी आप उन्हें देखते हैं तो बीमार लोगों की तरह से पहचान नहीं पाते, वैसे ही जैसे कहते हैं कि हम गंजे हो गए हैं! हमे कुछ सभी रोगियों की दाढ़ी, मूछें बढ़ी होने के लोग कहते हैं कि हम गंजे हो गए हैं, हमें हजामत नहीं करवानी पड़ेगी। अब वो लोग कारण आप उनमें अन्तर नहीं कर पाते। एक महिला और दूसरी महिला में आपको कुछ तो करना होगा। तो वे ये टोकरिया पहन लेते हैं और उनके ऊपर विग डाल अन्तर नजर नहीं आता क्योंकि सभी की लेते हैं। परन्तु क्यों? क्यों नहीं आपने सिर बालों की शैली एक जैसी होती है, सभी के में तेल डाला? आपके सिर पर घने बाल कपड़े एक जैसे होते हैं सभी कुछ एक होने चाहिएं। परन्तु आजकल यही फैशन जैसा होता है क्योंकि यही फैशन है। फैशन है। एक दिन एक महिला मेरे से बात कर का आरम्भ किसने किया? किसी बहुत रही थी और उसकी टोकरी गिर गई, साथ चालाक व्यक्ति ने जो पैसा बनाना चाहता में विग भी और इस प्रकार मुझे इस बात था। भारत में एक सुन्दर प्रकार की डलिया होती है, एक प्रकार की छोटी सी टोकरी। का पता चला। अचानक ये बाजार से गायब हो गई। हमारी समझ में नहीं आया कि सारी टोकरियाँ यदि ठीक प्रकार का अहं है तो आपका कहाँ गायब हो गईं! ऐसा होना असम्भव है, अपना व्यक्तित्व, चरित्र, सूझबूझ, विशेषता कोई इनका क्या करेगा? यह बड़ी और स्वभाव होना चाहिए। श्री बुद्ध ने क्या साधारण सी चीज़ है। ये सब अमरीका में किया? उन्होंने कहा कि सभी चीजों से, पहुँच गईं, क्यों? वहाँ महिलाएं बालों की अपने बालों से, अपनी भँवों से और हाथों अंतः यह समझना आवश्यक है कि आपमें सितम्बर-अक्टू बर 2001 40 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 पैरों आदि के बालों से मुक्ति पा लो । महान दिखाई देते हैं। यद्यपि आप चिमनी कल्पना करें कि यदि हम बुद्ध धर्म के की तरह से दिखाई देते हैं लेकिन ठीक अनुयायी होते तो हमारा क्या हाल हुआ है ये सारी चीजें कहकर उद्यमी आपके होता! उन्होंने कहा, ठीक है, आप गेरुआ अहं को बढ़ावा देते है। और आप वो सब वस्त्र पहनें, सारे बाल मुंडवाकर गेरुआ कह रहे हैं। ये कार्य करते हुए आप भूल वस्त्र पहनकर घूमें और महिलाओं को केवल जाते हैं कि आप महामूर्ख हैं। यदि हम इन दो वस्त्र पहनने की आज्ञा दी-एक ब्लाऊज धूर्त उद्यमियों की बातें सुनते रहे तो मैं और एक साड़ी । पेटीकोट भी नहीं, चाहे आपको बता देती हूँ कि आपका सारा सौन्दर्य आप रानी हों या सफाई कर्मी, सभी एक समाप्त हो जाएगा। पहले मोनालिसा हुआ जैसी दिखाई देनी चाहिएं। इसलिए आप करती थीं, आजकल ये कहीं दिखाई नहीं फैशन करना छोड़ दें। परन्तु बुद्ध लोग देती। आजकल भयानक मच्छर हैं। वो सबसे अधिक फैशनेबुल हैं, इनकी आप सोचती हैं कि वो बहुत सुन्दर हैं परन्तु कल्पना कर सकते हैं जापान में जाकर उनमें से चैतन्य लहरियाँ नहीं निकलती। यदि आप उनके फैशन देखेंगे तो पागल हो कलात्मकता के किसी भी मापदण्ड से वो जाएंगे। इतनी अधिक बनावट है! मेरी समझ सुन्दर नहीं हैं। चालीस वर्ष की होते-होते में नहीं आता कि वो बुद्ध धर्म कहाँ चला वो अस्सी साल की बूढ़ी दिखाई देती हैं। गया है जिसमें श्री बुद्ध ने प्राकृतिक लोगों | पल तो क्या घटित हो गया? अपने अहं के हाथों की पुतली बनकर हमने अपना की सराहना की थी। फैशन के इस जंगल में सारा बुद्ध धर्म खो गया है। मूलाधार खराब कर लिया है। मूलाधार दूसरी बात ये है कि दाई ओर के नियंत्रक है। दाईं ओर गतिवर्धक है आक्रामक और उग्र स्वभाव वाले लोगों को और बाईं ओर जो कि मूलाधार है यह समस्या हो जाती है। आप यदि उग्र स्वभाव नियंत्रक है। आप यदि बहुत अधिक दाई ओर को हैं तो अपनी बाईं ओर (भावनापक्ष) तथा झुक जाते हैं अर्थात आक्रामक हो मूलाधार की उपेक्षा कर देते हैं। आप कहते जाते हैं तो आपको बहुत सी समस्याएं हो हैं 'क्या दोष है', 'क्या दोष है? जब आपको सकती हैं। मैंने लोगों को कहते हुए सुना एड्स रोग हो जाता है तब दोष का आपको है कि बहुत अधिक सक्रिय (Over active) पता चलता है। जब तक कैंसर नहीं हो लोग बच्चे उत्पन्न नहीं कर सकते। पहला जाता, धूम्रपान में दोष नहीं नज़र आता। ये कहना कि 'क्या दोष है और दूसरे पूर्ण भारत में भी विज्ञापन दिए जाते हैं कि यदि शुष्कता' (Dryness) ऐसे लोगों के बच्चे आपके हाथ में सिगार है तो आप बहत नहीं हो सकते। यदि किसी तरह से हो भी सितम्बर अक्टूबर 2001 41 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 गए तो वे केवल राक्षस ही बन सकते हैं। अपने पतियों का भी त्याग करने की अतः बहुत अधिक त्याग प्रवृत्ति व्यक्ति को आवश्यकता नहीं है। वे सब पत्नीविहीन अति उग्र बना सकती है। यही कारण है थे श्री बुद्ध ने अपनी पत्नी का त्याग कर कि श्री बुद्ध ने कहा बहुत ज्यादा तपश्चर्या दिया था। श्री महावीर की पत्नी नहीं थी की आवश्यकता नहीं है उन्होंने ये बात और ईसामसीह ने विवाह नहीं किया परन्तु कही। यद्यपि जो लोग उनके साथ थे और सहजयोग में आप विवाह करते हैं आपके जिनकी वो देखभाल करते थे वो सभी बच्चे हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं। परन्तु, ब्रह्मचारी थे परन्तु उन लोगों को सन्तुलन जैसे हम कह रहे थे, अहं के कारण हम श्री बुद्ध दिया करते थे। अपने आप से ही लिप्त हो जाते हैं। अतः हम कह सकते हैं विश्व में तीन प्रकार के अतः एक बार यदि आप दाईं ओर को (उग्रता की ओर) चल पड़ते हैं तो आपका चिंता नहीं है, एक वो जो दूसरों की ही हैं: एक वो जिन्हें किसी अन्य की लोग अन्त स्वतः ही अत्यन्त निष्क्रिय व्यक्ति के रूप में होता है। परिणामस्वरूप आप बच्चे केवल अपने बारे में ही चिन्तित हैं । चिन्ता करते हैं और तीसरी प्रकार के लोग नहीं उत्पन्न कर सकेंगे, आपकी आयु लम्बी नहीं होगी, जैसे कोकीन लेने वाले लोगों के साथ होता है। हर चीज़ में आप बहुत के प्रति ईमानदारी है और इस ईमानदारी गतिशील हो उठते हैं। ऐसे लोगों के साथ जीना बहुत कठिन है क्योंकि ये लोग जैट आप विवाह कर सकते हैं, आपके पति या की गति से चलते हैं और मैं गज की तरह पत्नी हो सकते हैं, आप बच्चे उत्पन्न कर से। मैं तो उन्हें आते जाते ही देखती रहती सकते हैं। अहं ऐसे लोगों की सृष्टि करता हूँ। उनसे सम्बन्ध जोड़ना मेरी समझ में है जो अपने से, अपनी आकांक्षाओं से, नहीं आता। अतः अहम् को नियंत्रित करने परियोजनाओं से, नौकरी से, पत्नी से, बच्चों के लिए हमें श्री बुद्ध की पूजा करनी होगी, से, घर से, अपनी कार से, घोड़े से और श्री बुद्ध को पूजना होगा परन्तु सर्वप्रथम अपने कुत्ते से ही लिप्त होता है । ऐसे सिद्धान्त अपनी पावनता का सम्मान करना व्यक्ति से आप यदि कहें कि ओह! मुझे है। श्री बुद्ध का सम्मान अर्थात अपनी फलां व्यक्ति की चिन्ता है तो वह आपको अतः श्री बुद्ध का पहला सन्देश स्वयं का पहला क्षेत्र आपकी पावनंता हैं। पावनता का सम्मान, जिस प्रकार आपने बताएगा कि आपने अपना कर्त्तव्य कर दिया किया है, आपको अपनी पत्नी का त्याग है, अब क्यों आप उसकी चिन्ता करते हैं? अब आपको प्रसन्न होना चाहिए। परन्तु मैं तक वह बहुत निराशाजनक न हो। आपको किस प्रकार प्रसन्न हो सकती हूँ। मैं आप करने की आवश्यकता तब तक नहीं है जब सितम्बर-अक्टू बर 2001 42 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 जैसी नहीं हूँ। ऐसा व्यक्ति ये भी कहेगा करता। वह यदि इस तरफ से आ रहा हो कि मेरे पास तो घर है, किसी अन्य के पास तो उसे देखकर लोग रास्ता बदल लेंगे। भारत के सभी नगरों में ऐसे बहुत से लोग मेरा कमरा है, यह मेरा कालीन है । घर हैं। वो बहुत प्रसिद्ध हैं, सभी लोग उन्हें आने वाले आगन्तुकों को वह कहेगा कि जानते हैं। प्रातः सैर को जाते हुए किसी वहां बैठो, ये चीज़ वहाँ रख दो। वह इतना को यदि उनके दर्शन हो जाएं तो लोग भयानक और कठोर होता है। उसके मस्तिष्क कहते है हे परमात्मा आज तो हमें भोजन में सदैव मैं और मेरा ही चलते रहता है। भी नसीब नहीं होगा ।' मैंने पूछा क्यों? तो कहने लगे क्योंकि आज हमें इस मनहूस और अधिक और के दर्शन हो गए हैं। परन्तु वह व्यक्ति नहीं है तो मैं इसकी क्यों चिन्ता करूं? यह यह अहं अधिक अधिक बढ़ता जाता है और ऐसे लोगों की धारणाएं वैसी बन जाती हैं जैसे हिटलर की। हो सकता है उसे कुछ यहूदियों ने कोई उसे पसन्द नहीं करता। सभी देशों में अकड़ कर चलता है। वह किसी को नहीं भाता चाहे वह अपना कोई अन्त न समझे। सताया हो और उसके अहं ने इस सदमें ऐसे लोग हैं। सामूहिक बेवकूफियाँ हैं। को बहुत भयानक जेल का आकार दे दिया हो जिसके कारण वह सभी यहूदियों का कभी यदि आप ये देखें कि स्पेन के वध चाहने लगा। अतः इस प्रकार का व्यक्ति लोगों ने कितने ही अमरीकन लोगों का अपने आपमें इतना लिप्त होता है और उसे वध किया तो आपको विश्वास नहीं होता मैं, मेरा और मुझे ही याद रहता है। मैं कि उन्हीं स्पेन के लोगों के बच्चे आज सर्वश्रेष्ठ हूँ बाकी सब महामूर्ख हैं। मैं सबसे सहजयोगी हैं! मेरा कहने का अभिप्राय ये अधिक बुद्धिमान हूँ। मुझे हर चीज़ का ज्ञान है कि आप उनसे बिल्कुल भिन्न हैं और है। महात्मा की तरह से मैं सड़क पर आ सुन्दर हैं। तो ऐसी कौन सी चीज थी रहा था और मैंने एक डाकू देखा, भागकर जिसने उन्हें इतना अत्याचारी बना दिया? मैं पेड़ के पीछे जा छिपा। मैं कितना महान यही अहं, जिसके कारण वो इतना भी न हूँ? तब वह डाकू मेरे पास आया और मुझे देख पाए कि जिन लोगों का वध हम कर धमकी दी, मैने अपना सबकुछ उसे दे रहे हैं वे भी मानव हैं। उनके देश पर हमने दिया। मै कितना महान हूँ? तब वह डाकू आक्रमण किया, वहीं पर हम रह रहे हैं और | आकर मेरी पत्नी को ले गया। मैं कितना उन्हीं का हम वध कर रहे हैं। वहाँ रहने का हमें कोई अधिकार नहीं है पुर्तगाल के लोगों का भी यही हाल है। वे सब ब्राजील जा बसे यद्यपि वे पुर्तगाली हैं परन्तु पुर्तगाल महान हूँ? आत्मश्लाघा! और वह व्यक्ति बहुत प्रसन्न होता है! सभी लोग ऐसे व्यक्ति से तंग आ जाते हैं। कोई उसे पसन्द नहीं सितम्बर-अक्टूबर 2001 43 चैतन्य लहरी खंड-XIlI अंक 9 व 10 में भी केवल पाँच प्रतिशत ही बचे हैं। उन्हें आपको भुगतना पड़ता है। अत्यन्त सख्ती पुर्तगाल की बिल्कुल भी चिन्ता नहीं है से ये फल आपको भुगतना पड़ता है। अपने क्योंकि वह गरीब देश है। स्पेन के अहं से जो भी चालाकी आप करते हैं वह जो लोग अमरीका जा बसे हैं वो भी यही पलटकर आपको प्रभावित करती है। सोचते हैं कि हमने अमरीका को विजय सहजयोग में तो अहं का परिणाम सबसे किया है, हमने वहाँ के इतने लोगों को मार बुरा होता है। किसी को घोड़े (अह) पर दिया। उनके अहं के कारण ही ऐसा विनाश सवार होते हुए देखकर मुझे बहुत घबराहट होती है। बहुत हुआ। पहली बार जब मैं कोलंबिया गई तो एक व्यक्ति, जो संभवतः मुझे जानता था कहना चाहूँगी जो तामसी प्रवृत्ति होते हैं। कहने लगा, "माँ क्या आप ही वही व्यक्ति ये सदैव शिकायत ही करते रहते हैं। मुझे हैं जो आध्यात्मिक गुरु के रूप में प्रसिद्ध सिर दर्द हो गया, मुझे यहाँ दर्द हो रहा है, है?" मैने कहा, "'हॉँ, मैं ही हूँ, आप फरमाए मैं दूसरी प्रकार के लोगों के बारे में । वहाँ दर्द हो रहा है, मुझे ये हो गया, मुझे ये वह मुझे एक पार्टी में मिला था और उसने हो गया| उन्हें सभी प्रकार के रोग हो जाते मुझे माँ कहकर पुकारा तो मुझे हैरानी हुई। हैं। मैंने जैंरोमी (Jerome) की एक पुस्तक उसने कहा, "क्या आप हमारे देश को कोई में (मुझे आशा है आप जल्दी में नहीं है, ऐसा आशीष दे सकती हैं जिससे हम इन (हंसी) पढ़ा था कि एक व्यक्ति डॉक्टर के अमरीकनों को मात दे सकें। प्रकृति का कोई प्रकोप हो जाए, हमारे पास गेहूँ है। Medica) मैटीरिया मैडिका नामक ग्रन्थ में हम यहाँ गेहूँ उगाते हैं परन्तु ये लोग इसे जितनी भी बीमारियों का वर्णन है वो सब इतने सस्ते दामों में खरीदना चाहते हैं कि मुझमें हैं सिर्फ गृहणी के घुटने के सिवाए । इस पैसे से हम अपने परिवार भी नहीं पाल डॉक्टर ने पूछा कि ये रोग तुम्हें क्यों नहीं सकते। ये कीमत इतनी कम है कि आर्थिक हुआ? तो कहने लगा क्योंकि मैं गृहणी नहीं रूप से हमें दुर्बल कर देगी। हम खुद तो हूँ।" डॉक्टर ने पूछा, "तुम्हें ये सारी बीमारियाँ भूखों मरते हैं और इन्हें ये गेहूँ बेच देते हैं। कैसे हुई और तुम इनके विषय में कैसे अब कोलंम्बिया में यही लोग प्रथम दर्जे में जानते हैं?" तो कहने लगा मैंने मेटीरिया, यात्रा करते हैं और अमरीका के लोग कोकीन मैडिका जैसी पुस्तक पढ़ी और पाया कि लेते हैं और इनके चरण धोते हैं! अहंकार मुझे ये सारे रोग हैं। डॉक्टर ने कहा, "ठीक का यही फल है। इसका ख़ामियाज़ा आपको है, मैं तुम्हें औषधि देता हूँ परन्तु ये भुगतना पड़ता है। अपने अहं का फल औषधि तुमने अभी नहीं लेनी। यहाँ से पाँच पास गया और कहा, "श्रीमान (Materia सितम्बर-अक्टूबर 2001 44 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 कभी-कभी मैं सोचती हूँ कि वो महान मील दूर जाकर आप इसे ले सकते हैं। सन्त कहाँ खो गए हैं? वो तीसरी प्रकार के टुकड़ें में उसने दवाई दी। आगे कागज के जाकर जब उसने इसे खोला तो कागज लोग जिन्होंने कभी अपनी चिन्ता नहीं की की एक के बाद एक तह पाई जिसमें दवाई और जो स्वयं में लिप्त नहीं थे दूसरों के बिल्कुल भी न थी। कागज के अन्तिम हित में लगे रहते थे और उन्हीं की चिन्ता टुकड़े पर लिखा था, "मूर्ख व्यक्ति मैटीरिया करते थे दूसरे व्यक्ति को क्या कष्ट है, मैडिका का पढ़ना बन्द कर दो, तुम्हें कोई हमारे अगुआ को क्या परेशानी है, अगुआ रोग नहीं है ।" से मैं कैसा व्यवहार कर रहा हूँ , उसके साथ मैं क्या कर रहा हूँ? क्या मैं किसी अतः शिकायत करने वाले लोगों की प्रकार से उसकी सहायता करता हूँ? क्या एक अन्य किस्म है और कभी-कभी तो वे मैंने किसी को आत्मसाक्षात्कार दिया? क्या वास्तव में भूत बाधित और कष्ट कर होते मैंने ठीक प्रकार से उसे कोई पैसा दिया? हैं। मैं यदि गलती से उनका हाल-चाल क्या मैं विवेकशील हूँ या फिर हर समय को परेशान ही करता रहता हूँ और अगुआ हे फिर जाकर श्री माताजी से शिकायत करता पूछ लू तो उनके पास अपनी तकलीफों की एक लम्बी सूची होती है। मैं कहती हूँ, परमात्मा, "इस व्यक्ति से मैंने ऐसा क्यों हूँ। ऐसे लोग कभी सन्तुष्ट नहीं होते। एक पूछा?" वो लोग एक तरफ से शुरू हो जाते प्रकार के लोग अति सन्तुष्ट होते हैं और है: आज सुबह ऐसा हुआ, कल ये हुआ, दूसरी प्रकार के कभी सन्तुष्ट नहीं होते। खाना बहुत बुरा था, उन्होंने मुझसे बहुत एक अन्य प्रकार है जो मध्य में है और बुरा व्यवहार किया, सहजयोगी इतने खराब थे कि उन्होंने मुझे वहाँ जाने ही नहीं दिया, कि वे हैं या असन्तुष्ट? वे तो मुझे अकेला छोड़ दिया, किसी ने मेरी चिन्ता सदा दूसरों की सन्तुष्टि को ही देखते नहीं की । वे लोग इतने दुष्ट थे, बहुत हैं। श्री बुद्ध के जीवन में भी यही गुण कठोर थे और अगुआ भी मेरे प्रति बहुत देखा जाना चाहिए कि वे कैसे थे और कठोर है, उसने मेरे साथ अच्छा व्यवहार किस प्रकार सम्मान करते थे। यह देखने की चिन्ता भी नहीं करते सन्तुष्ट नहीं किया। कृपा करके उसे अगुआ के पद से हटा दें। उस अगुआ ने क्या किया ? उसने मुझे पानी नहीं पीने दिया। क्यों? क्यों उसने तुम्हें पानी नहीं पीने दिया? सत्य संदेश जिसे हम अपनी बाईं ओर से ऐसी ही मूर्खतापूर्ण बातें ये लोग करते रहते जान सकते हैं अपने चित्त से जान सकते हैं। अतः आज जो लोग श्री बुद्ध की पूजा कर रहे है उन्हें समझना चाहिए के उनका है, उसका प्रयोग सर्वप्रथम हमें स्वयं पर चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 9 व 10 सितम्बर-अक्टूबर 2001 45 करना चाहिए। लोग मुझे बताते हैं, "श्री व्यक्ति बनना होगा मैं यदि सहजयोगी हूँ, माताजी उसकी चैतन्य लहरियाँ ठीक नहीं परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति से यदि मेरा हैं, उस घर की चैतन्य लहरियाँ ठीक नहीं सम्बन्ध है तो मुझे वह प्रेम, वह करुणा हैं, उस चीज़ की चैतन्य लहरियाँ ठीक अन्य लोगों तक पहुँचाने का माध्यम बनना नहीं हैं। और बताने वाला व्यक्ति स्वयं मेरे होगा इधर-उधर की चीजों के लिए मेरे सम्मुख खड़ा हुआ कॉप रहा होता है। मैनें पास समय नहीं है। बाकी सब कार्य व्यर्थ उसे कहा, "आपकी अपनी चैतन्य लहरियाँ हैं। मेरा चित्त पावन होना चाहिए, मेरा कैसी हैं? "ओह, मुझे बहुत चैतन्य लहरियाँ जीवन पावन होना चाहिए। आ रही हैं! मुझे भी बहुत चैतन्य लहरियाँ आ रही हैं, कृपा सहजयोगियों के साथ ये समस्या है कि से शाम तक स्वयं को घोखा देता हूँ तो कई बार वो अपने महत्व को नहीं समझते। मुझमें श्रेष्ठता नहीं है, मुझमें आत्मसम्मान वो नहीं जानते कि उनका अहं ठीक है या मैं कहता कुछ हूँ, करता कुछ हूँ। सुबह करके क्षमा करें । नहीं है। इसे प्राप्त करना जब सम्भव है तो नहीं। अहंकार का सार-तत्व अहंभाव है, क्यों न बिना कोई पैसा खर्चे इसे प्राप्त कर कि मैं सहजयोगी हूँ। इस बात के साथ ईमानदारी को भी रखें, ईमानदारी कि मैं सम्भव हो तो क्यों न मुफ्त में ही चीजें प्राप्त सहजयोगी हूँ और ऐसे धर्म का अनयायी कर ली जाएं। जैसे मान लो श्री माताजी हूँ जो ब्रह्मांडीय है और जो अन्तज्जात का घर है तो क्यों न वहाँ शान से रहा रूप से आत्मलीन होना है इसके विषय जाए? आखिरकार ये निर्मला भवन है। वहाँ में कोई इधर-उधर की बात नहीं है । सभी कुछ मुफ्त मिलेगा। उनमें बिल्कुल ये मेरा अनुभव है और मुझे इस पर पूर्ण विश्वास है और ये मेरे अन्दर अन्तज्जात है। लिया जाए। ऐसे लोग सोचते हैं कि यदि में भी आत्म-सम्मान नहीं है। हो सके तो यहाँ-वहाँ से कुछ पैसा भी उधार ले लें। मैं यह अहंभाव है। मैं नहीं जानती कि अंग्रेजी ऐसे कई लोगों को जानती हूँ। श्री माताजी भाषा में इसे क्या कहेंगे-Highness । अब मान लो हम गणपति पुले दो दिनों के लिए मैं इस पृथ्वी पर अवतरित हूँ और ये जीवन आते हैं तो क्या आप हमसे एक दिन के परमात्मा के कार्य के लिए है। इसके लिए पैसे ले लेंगी? ये बात आम है। आपके पैसे मुझे शुद्ध व्यक्तित्व होना होगा क्योंकि मेरा कौन देगा? मुझे भी अपने खाने और रहने सम्बन्ध विश्व निर्मला धर्म से है, मुझे शुद्ध के पैसे देने होते हैं, मुझे भी देने होते हैं। होना होगा। ध्यान धारणा के माध्यम से, आज भगवान बुद्ध का समय नहीं है जब उन्हें अपना राज्य और सभी कुछ एक-एक अन्य तरीकों से, स्वयं पर दृष्टि रखकर ये शुद्धता मुझे प्राप्त करनी होगी और पाई, यहाँ तक कि अपने बाल भी धर्म (६ शुद्ध सितम्बर- अक्टूबर 2001 46 चैतन्य लहरी खंड-XIIII अंक 9 व 10 मुम) के लिए त्यागने पड़े। धर्म के लिए देखें कि उन्होंने तीनों प्रकार के लोगों की सभी कुछ त्यागकर वे खाली हाथ निकल समस्याओं को सुलझा दिया। सर्व प्रथम पड़े, बच्चे, बीवी, माता-पिता सभी कुछ बुद्ध हैं अर्थात आत्मसाक्षात्कारी। सभी त्यागकर। बुद्ध धर्म, बुद्ध शैली यही थी। आत्मसाक्षात्कारी लोगों का सम्मान किया जाना चाहिए और उनके सम्मुख समर्पित हजारों की संख्या में वे लोग बुद्ध धर्म होना चाहिए। मैं देखती हूँ बिना किसी बात सिखाने के लिए मीलों-मील पैदल जाया के एक सहजयोगी दूसरे सहजयोगी के करते थे । लोग जब ये सब देखते होंगे तो विषय में उल्टी सीधी बातें करता है। एक दूसरे के लिए सम्मान नहीं है बुद्धम् शरणं गच्छामि' अर्थात मैं स्वयं को प्रबुद्ध लोगों आज की पूजा के समर्पित करता हूँ। उनके आठ भगवान बुद्ध के शिष्य भी ऐसे ही थे। उनपर क्या प्रभाव पड़ता होगा! विशेष रूप से महत्वपूर्ण सम्मुख हैं, परन्तु हमारे यहाँ बहुत है क्योंकि मुझे लगता है कि अहं के कारण बुद्ध पश्चिमी देशों के लोग भटक गए हैं और से हैं। बुद्ध यहाँ सभी बुद्ध बैठे हुए हैं सभी लोग जिन्हें ज्ञान प्राप्त है, जो जिज्ञासु हैं, जो विधना हैं सभी मेरे सम्मुख हुए जैसे उन्होंने कहा कि 'बुद्धम् शरणम् छिपा सकेंगे। आप देखें कि हम सब बुद्ध गच्छामि मैं कहती हूँ कि मैं इन सभी सत्य धर्मी हैं। वो लोग अफगानिस्तान की चिन्ता साधकों के सम्मुख समर्पित हूँ। हमें सभी करेंगे, लामा की चिन्ता करेंगे, अन्य सभी सहजयोगियों का सम्मान करना चाहिए. लोगों की चिन्ता करेंगे क्योंकि वे बुद्ध चाहे वह श्वेत प्रजाति का हो, श्याम प्रजाति उन्हें बुद्ध की बहुत आवश्यकता है। उन्हें इस तथाकथित बुद्धधर्म की भी आवश्यकता है क्योंकि इसके पीछे वे अपनी कमियों को बैठे धर्मी हैं। परन्तु इसमें कोई सच्चाई नहीं है, बिल्कुल भी सच्चाई नहीं है। उसी सत्य एवं समर्पण का हो या नीली प्रजाति का हो। चाहे वह स्पेन से हो, इटली से हो, भारत से हो या को सहजयोगियों ने अपने अन्दर स्थापित किसी अन्य देश से। वह चाहे यहूदी धर्म से करना है। हो या इस्लाम से संबंधित हो या किसी भगवान बुद्ध ने कहा था, "बुद्धं शरणं अन्य धर्म से। चाहे वह वैध सन्तान हो या गच्छामि।" "मैं आत्मसाक्षात्कारी लोगों को अवैध, चाहे वह वैभवशाली परिवार से हो, प्रणाम करता है।" "धमम शरणं गच्छामि"। शाही परिवार से हो या दरिद्र परिवार से । धर्म को प्रणाम करता हूँ अर्थात विश्व चाहे उसके पास धन हो या न हो, वह चाहे निर्मलाधर्म को और अन्त में उन्होंने कहा स्वस्थ हो या अस्वस्थ, चाहे उसका पूर्व जीवन बहुत बुरा रहा हो। भूतकाल की मै 'संघम् शरणम् गच्छामि' अर्थात में सामूहिकता को प्रणाम करता हूँ। इस तरह से आप सभी बातों को भुलाना ही होगा। वे सब ho सितम्बर-अक्टूबर 2001 47 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 9 व 10 आलोचना करना बहुत आसान है, अन्य बुद्ध हैं और सभी प्रबुद्ध लोगों का सम्मान किया जाना चाहिए। उनकी इच्छाओं के लोगों की आलोचना करना बहुत ही आसान सम्मुख सिर झुकाना चाहिए। हर समय है। मैंने देखा है कि जो लोग दो लाइनें भी आप लोगों की इच्छाओं के सम्मुख सिर नहीं लिख सकते वे लोग शेक्सपियर की झुकाते रहने से अब मैं एक प्रकार से आलोचना कर सकते है, तुकाराम की इच्छामुक्त हो गई हूँ। ये बात मैं बताना आलोचना कर सकते है. सन्त ज्ञानेश्वर की चाहती हूँ। अब आपको इच्छा करनी होगी। अन्यथा मैं आपके लिए बेकार हूँ। मानो कविता तो आप लिख नहीं सकते, किस मेरी इच्छा शक्ति आपके मस्तिष्क में चली प्रकार आप आलोचना कर सकते है? एक आलोचना कर सकते हैं। दो लाइनों की गई हो और मेरे पास कुछ भी न बचा हो। रंग से भी वे चित्र नहीं बना सकते और चल पड़ते हैं आलोचना करने! मेरी समझ अतः आप लोग इच्छा करें। में नहीं आता कि किस प्रकार वे किसी की शरणम् गच्छामि', आलोचना कर पाते है! जिस व्यक्ति ने अत्यन्त महत्वपूर्ण है। हमने विश्व निर्मला किसी को आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया कुछ धर्म के लिए क्या किया है? विश्व निर्मला भी कार्य नहीं किया वह अगुआओं की धर्म के लिए जो भी कुछ आवश्यक है, चाहे आलोचना करता है. उनकी जो बहुत से इसके बाद धम्म ये आपका धन हो, चाहे ये आपका घर हा लोगों को आत्मसाक्षत्कार दे चुके है! आपने आपकी अन्य वस्तुएं हों, चाहे ये औआपका कितने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया? परिश्रम हो, किसी भी प्रकार का परिश्रम । मैं देखती हूँ कि कुछ लोग तो किसी दिखाएं फिर आलोचना करें। सारा ही कुछ पहले उस व्यक्ति जैसा कुछ कार्य करके भी प्रकार का कार्य कर लेंगे और कुछ आलोचना के माध्यम से होता है। मेरे विचार कोई भी कार्य नहीं करेंगे अतः हमें चाहिए कि वास्तव में श्रम दान करें से अपने साथ यह सबसे बड़ा अन्याय है उदाहरण के लिए एक दिन अगुआ क्योंकि आलोचना निकृष्टतम अहं है जो गण झाडू लगाएं दूसरे दिन सारी आप पर काबू पा लेता है। न कोई अहं महिलाएं झाडू लगाएं या कुछ और भाव है न उच्चता की भावना। सब ठीक कार्य करें ताकि आप लोगों को इस है। उन्होंने इतनी सुन्दर कविता लिखी है बात का पूरी तरह से पता चले कि मैं भी लिखूंगा। लोग कहते हैं कि उन्होंने परस्पर सम्मान किस प्रकार करना है लिखा है, परन्तु ये ठीक नहीं है। बेहतर जब आप मिलकर कोई कार्य करने लगते होगा कि वैसी दो पंक्तियाँ लिखकर देखें। हैं तो आपमें वास्तव में सम्मान भाव आता श्रीमाताजी उसकी अंग्रजी तो ठीक है, परन्तु है। अभी भी। आपकी अंग्रेजी कैसी है या आपकी * প सितम्बर-अक्टू बर 2001 48 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 स्पेनिश? क्या आपको स्पेनिश भाषा का उन्होंने कभी किसी की आलोचना नहीं की। ज्ञान है? तब वो यदि अंग्रेजी नहीं भी सभी भूतों, राक्षसों और असुरों की आलोचना जानता तो क्यों आप उसकी आलोचना करने का ये भयानक कार्य उन्होंने मुझ पर करें? तो जैसा मैंने आपको बताया, आलोचना छोड़ दिया था । उन्होंने सुगम मार्ग अपना ने सारी सृजनात्मकता की हत्या कर दी है, लिया- इन सब लोगों से किसलिए लड़ना हमारे व्यक्तित्व की हत्या कर दी है और है? इन्हें इनके हाल पर छोड़ दें। काश कि हर समय हम कापते ही रहते हैं। कोई भी मैं भी ऐसा ही कर सकती! परन्तु मैं ऐसा रैम्ब्रैन्ड (Rembrandt) माइकल एंजेलो नहीं कर सकती। पहले तीन वर्षो में मैने (Michel Angelo) जैसा नहीं हो सकता। ऐसा करने का प्रयत्न किया परन्तु यह कोई भी नहीं। क्योंकि आप हर चीज को करना मेरे लिए सम्भव न था। इन चीज़ों से आलोचना का रूप दे देते हैं। आपको लड़ना ही होगा परन्तु आपको आस्ट्रेलिया में इन लोगों ने संगीत नाटिका एक - दूसरे की आलोचना नहीं करनी चाहिए, के लिए थर्मोकोल के सुन्दर-सुन्दर समुद्री इससे मुझे बहुत चोट पहुँचती है। ऐसा जहाज आदि चीजें बनाई। आज भी लोग लगता है मानो एक हाथ दूसरे हाथ की उनकी आलोचना कर रहे हैं। जब भी उन्हें आलोचना कर रहा हो! मैं लगातार कई आस्ट्रेलिया की कोई तस्वीर देनी होती है दिनों तक श्री बुद्ध के बारे में बोल सकती तो वे वही तस्वीर देते हैं। यह महारानी हूँ। इसका कोई अन्त नहीं है। अपने जीवन मैरी एंटोएन्टे (Mary Antointe) की तरह से है। वहाँ पर यदि आपको कोई सुन्दर प्रदान कीं और यदि हमें वास्तव में उनके चीज़ देखनी हो तो जाकर उसके महत्व को देखें। आलोचना करना ठीक है यदि करना है तो हमें अपने अन्दर वह द्वारा उन्होंने मुझे बहुत सी सुन्दर चीजें सार तत्व को अपने अन्दर आत्मसात आप उस कला में कुशल हैं, उसके स्वामी नि्लिप्तता का भाव स्थापित करना हैं, केवल तभी ये ठीक है। कार्य में पारंगत होगा अनुयायियों के कारण सभी धर्म व्यक्ति को निःसन्देह आलोचना का नष्ट हुए श्री बुद्ध ने कहा था पूजा मत अधिकार है परन्तु आपको तो इस कला का करो, परमात्मा के विषय में बातचीत मत करो जरा सा ज्ञान भी नहीं है, आप कैसे इसकी । उन्होंने कहा परमात्मा की बात मत आलोचना कर सकते हैं? अहं का नियन्त्रण करो केवल आत्म साक्षात्कार की बात करो । आप श्री बुद्ध लोगों को पहले आत्म- साक्षात्कार पा लेने के जीवन में देख सकते हैं । श्री बुद्ध, जो प्रकाश थे, करुणा थे, आनन्द दो। उन्होंने कहा, "किसी भी चीज़ की थे और ज्ञान की मूर्ति थे। अपने जीवन में पूजा मत करो, पूजा ही मत करो क्योंकि वे सितम्बर-अक्टूबर 2001 49 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 जानते थे कि पूजा करने के लिए कुछ भी बिल्कुल झूठ होती है। अपने आप को नहीं है। अब इन लोगों के पास स्तूप धोखा देना अहं का कार्य है। अतः सावधान (Stupas) हैं और ये उनकी पूजा करते हैं। रहें, यही न कहते रहें मैं ठीक हूँ, मुझें सभी उल्टी- सीधी चीज़ों की पूजा करते हैं कोई दोष नहीं है । और इसका कोई अन्त नहीं है। ये लोग कहते हैं कि ये भगवान बुद्ध के दाँत हैं। मेरा कहने से अभिप्राय है कि किस प्रकार कठिन समय के विषय में सोचना चाहिए ये बुद्ध के दाँत हो सकते हैं? श्री बुद्ध की जिसमें महात्मा बुद्ध थे। फिर भी उन्होंने जब मृत्यु हुई तो क्या उन्होंने उनके दाँत हमारे लिए सहजयोग का सृजन किया और निकाल लिए थे? ये बुद्ध के दाँत हैं, ऐसा उनकी करुणा-वर्षा, कठोर परिश्रम, उनके कहकर लोग उनकी पूजा कर रहे हैं । मैंने समर्पण और बलिदानों का आनन्द हम ले देखा कि उनमें बिल्कुल भी चैतन्य लहरियां रहे हैं। सत्य तो हमें सुन्दरता प्रदान करता नहीं हैं। चैतन्य लहरियों का पूर्ण अभाव है। आज के इस शुभ अवसर पर हमें उस था। सिर के बाल और नाखून तो समझ में आते हैं परन्तु ये लोग जगह-जगह उनके दाँतों की पूजा किए चले जा रहे हैं! मैं जानती हूँ कि मेरे सहजयोगी-सहजयोग परमात्मा आपको धन्य करें। ये सभी सुन्दर चीजें मैं आप लोगों के लिए सोच रही हूँ। श्री बुद्ध को ये कभी प्राप्त नहीं हुईं। उन्हें कभी सुख नहीं मिला । तो अब हमें ये दर्शाना होगा कि हम इसके लहरियां समाप्त हो जाएंगी। अतः इस योग्य हैं। प्रणिधान (Deep Devotion) शब्द को इतना नहीं खराब कर सकते । वो यदि ऐसा करेंगे तो उनकी चैतन्य मामले में सावधान रहें। परन्तु मैंने देखा है कि अहं के कारण तो लोगों की चेतना उपयोग किया गया है इसके लिए। क्या आप सहजयोग के योग्य हैं? हमें सहजयोग के योग्य बनना होगा। ही समाप्त हो जाती है। "नहीं, मैं ठीक हूँ" नहीं मुझे चैतन्य लहरियाँ आ रही हैं, नहीं मैं बिल्कुल ठीक हूँ। वास्तव में ये बात परमात्मा आपको धन्य करें। गुरु पूजा सितम्बर-1981 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज की पूजा का आयोजन क्यों किया बहुत बड़ी दूरी है और केवल 'पूर्ण गुरु' ही इस दूरी को समाप्त कर सकता है। गया है? आज पूर्णिमा है अर्थात चाँद आज पूरा हमें ये बात समझ लेनी चाहिए कि सभी शिष्यों के लिए गुरु की पूजा बहुत आवश्यक है। इन दैवी नियमों के विषय में बताने वाला है। परन्तु गुरु को भी सच्चा गुरु होना चाहिए। गुरु पूर्ण होना चाहिए। जो अपने शिष्यों की शिष्यों का अनुचित लाभ उठाने वाला या जिसे परमात्मा ने गुरु बनने का अधिकार नियमों को आत्मसात कर सकें। गुरु इस नहीं दिया, ऐसा गुरु नहीं। इस पूजा का दूरी को भरने के लिए होता है। इसीलिए आयोजन इसलिए किया गया है क्योंकि आप गुरु को उच्च दर्जे का आत्मसाक्षात्कारी एवं सब लोगों को परमात्मा के विधान में महान विकसित होना आवश्यक है। समझ को इतना उन्नत कर सके कि वे इन (Statutes of the Lord) दीक्षित किया गया ये आवश्यक नहीं कि गुरु त्यागी हो या | आप को बताया गया है कि मानव के क्या धर्म होते हैं। इसके लिए वास्तव में जंगलों में रहता हो। वह सामान्य गृहस्थ भी आपको है वह राजा भी हो सकता है। धर्मादेशों की पुस्तक पढ़कर आप जान सकते व्यक्ति के जीवन की बाह्य अभिव्यक्तियों है कि दैवी-विधान क्या है? लेकिन गुरु को का कोई महत्व नहीं है गुरु जब तक दैवी ये देखना होता है कि शिष्य इन नियमों का विधान को आत्मसात नहीं कर लेता तब तक पालन करें। इन धर्मादेशों का पालन किया उसके सांसारिक पद का कोई महत्व नहीं जाना चाहिए, इन्हें अपने जीवन में उतारना होता। चाहिए। ऐसा करना बहुत कठिन कार्य है| और गुरु के बिना, एक सुधारक शक्त के बिना परमात्मा के इस विधान पर चलना बहुत कठिन है क्योंकि मानवीय विधान कौन से हैं, क्या हैं? पहला विधान-ये चेतना और परमेश्वरी चेतना के बीच में है कि 'आप किसी को दुख नहीं दे की आवश्यकता नहीं है। हो सकता गुरु मैं पुनः कहती हूँ कि आपको दैवी विधान आत्मसात करने चाहिएं। आइए देखें कि वे পা चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 सितम्बर-अक्टू बर 2001 51 सकते । पशु किसी को भी हानि पहुँचाते हैं अपने मन में प्रेम भाव पैदा करें क्योंकि कभी क्योंकि वे नहीं समझते कि वो क्या कर रहे तो आप भी गलत मार्ग पर चले होंगे। सहज हैं। सांप के पास यदि आप जाएंगे तो वह में आने से पूर्व उन्हें भटकाया गया अत: काटेगा, बिच्छू के पास यदि आप जाएंगे तो अपने मन में उनके लिए सहानुभूति के भाव वह डंक मारेगा परन्तु मानव को चाहिए वो बनाएं। इसीलिए यदि आपने कभी गलतियाँ किसी को हानि न पहुँचाए। मनुष्य किसी की हैं तो अच्छा है, ऐसी स्थिति में आपके को सुधार तो सकता है लेकिन हानि पहुँचाने मन में अन्य लोगों के लिए अधिक हमदरदी का अधिकार उसको नहीं, लेकिन अहिंसा के होगी। अतः किसी मनुष्य के प्रति हिंसा न इस नियम को उस स्तर तक खींचा गया कि करें उसे किसी प्रकार का शारीरिक कष्ट न वास्तविकता ही समाप्त हो गई। उदाहरण पहुँचाएं या कष्ट देने के लिए उसकी भावनाओं के रूप में कहा गया कि किसी के प्रति हिंसा की चोट न पहुँचाएं. सुधारने के लिए यदि मत करो (Do not harm anyone) तो लोग आवश्यक हो तो इसका कुछ औचित्य है। कहने लगे ठीक है हम मच्छरों और खटमलों (Haethrow) हीथ्रो हवाई अड्डे पर श्री को भी हानि नहीं पहुँचाएंगे, उन्हें मारेंगे माताजी ने पुष्टि की कि किसी भी हालात में नहीं। कुछ लोग ऐसे धर्मों का पालन कर रहे हमें किसी को हानि नहीं पहुँचानी। हैं जिनमें वे मच्छरों व खटमलों की रक्षा करते हैं। यह बेवकूफी, किसी चीज़ को मूर्खता की सीमा तक ले जाना, सच्चाई नहीं टाँगों पर खड़ा होना है और ये समझना है हो सकती। सर्वप्रथम हमें उन लोगों के प्रति कि आपकी एकाकारिता सत्य से है और हिंसा नहीं करनी चाहिए जो आत्मसाक्षात्कारी आप सत्य के साक्ष्य (Testimony) हैं अर्थात दूसरा विधान ये है कि आपको अपनी हैं तथा परमात्मा के मार्ग पर चल रहे हैं। हो आपने सत्य को देखा है। आप जानते हैं कि सकता है उनमें कुछ गलतियाँ हों जिन्हें सत्य क्या है और असत्य से आप समझौता सुधार की आवश्यकता हो। अभी तक कोई नहीं कर सकते। आप कर ही नहीं सकते। भी व्यक्ति पूर्ण नहीं है अतः उन्हें हानि न इसके लिए किसी को भी हानि पहुँचाने की पहुँचाएं, सदैव उनकी सहायता करने का आवश्यकता नहीं है। आपको इसकी घोषणा मात्र करनी है। साहस पूर्वक खड़े होकर आपको कहना है कि मैंने सत्य को देखा है दूसरे स्थान पर, सच्चा जिज्ञासु गलत भी और सत्य ऐसा है। सत्य के साथ आपको हो सकता है। हो सकता है वह गलत लोगों एकरूप होना है ताकि आपके अन्दर सत्य प्रयत्न करें। के पास गया हों, हो सकता है उसने कुछ के प्रकाश को लोग देख सकें और उसे गलत कार्य किए हों। परन्तु उनके लिए स्वीकार कर सकें । चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 9 व 10 सितम्बर-अक्टूबर 2001 52 स्वयं को परखें। ये केवल अन्य लोगों को बताने की बात नहीं कि आपको सत्यनिष्ठ होना है और हमने यह सत्य देखा है तथा ये परमात्मा के विधान हैं और ये इस प्रकार कार्य करते हैं। हो गया है । सहजयोगियों में यह पक्ष अभी बहुत दुर्बल है। जिस तरह से भी आप चाहें सत्य की घोषणा कर सकते है। आप पुस्तकें लिख सकते हैं, अपने मित्रों और संबंधियों से बातचीत करके उन्हें बता सकते हैं कि अब यही सत्य हैं, कि आप परमात्मा के साम्राज्य चैतन्य चेतना के माध्यम से हम देख पाए में प्रवेश कर चुके हैं, कि परमात्मा की कृपा हैं कि सत्य ऐसा है। इसके विषय में पूर्णतः से आपको आशीर्वाद मिल गया है। विश्वस्त हो जाएं। इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम आपको स्वयं को भली-भांति परखना होगा अन्यथा आप आसुरी हैं कि आप आत्म-साक्षात्कारी लोग हैं और शक्तियों के हाथों में पड़ सकते है । लोग सर्वत्र व्याप्त इस परमेश्वरी शक्ति को आपने अब आप इस सत्य की घोषणा कर सकते जब नया-नया सहजयोग शुरु करते हैं तो अनुभव किया है, तथा आप अन्य लोगों को से लोगों के साथ ऐसा होता है। उन्हें आत्म- साक्षात्कार दे सकते हैं और सत्य को बहुत चैतन्य लेना होगा अतः सावधान रहें। स्वीकार करके आप उसमें अपनी ओर से कुछ जोड़ नहीं रहे, सत्य से स्वयं को अलंकृत पूर्णतः विश्वस्त हो जाएं कि आप सत्य ही कर रहे हैं । कह रहे हैं, इसके सिवाए कुछ नहीं कह रहे और सत्य को आपने पूरी तरह महसूस किया है। जिन लोगों को चैतन्य लहरियों का साहस की आवश्यकता होती है। हो सकता अनुभव नहीं हुआ वे सहजयोग की बात है कभी लोग आपका मज़ाक उड़ाएं, आप न करें। ऐसा करने का उन्हें कोई पर हंसें, आपको सताएं परन्तु इन सब चीजों अधिकार नहीं उन्हें चैतन्य लहरियाँ लेनी की चिन्ता आपने नहीं करनी क्योंकि अब चाहिए। पहले उन्हें अपने अन्दर चैतन्य आप दैवी विधान तथा परमात्मा की कृपा से लहरियां आत्म-सात करनी होंगी तभी वो जुड़ गए हैं। कह सकते हैं हाँ हमने महसूस किया। सत्य का आनन्द लेने के लिए व्यक्ति को 1 जब यह आपका सम्बन्ध (योग) है तो आधुनिक काल में यह अत्यन्त आपको इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए महत्वपूर्ण कार्य है जिसे सहजयोगियों कि लोग क्या कहते हैं। साहस पूर्वक खड़े ने करना है अर्थात ऊंची आवाज में होकर आपको सत्य से स्वयं को अलंकृत करना है और लोगों को इसके विषय में घोषणा करनी है कि उन्हें सत्य प्राप्त सितम्बर-अक्टूबर 2001 53 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 9 व 10 बताना है। तब लोग जान जाएंगे, कि आपने महत्वपूर्ण बात ये है कि आप सत्य का ज्ञान प्राप्त करें, सत्य के साक्ष्य के रूप में खड़े हों सत्य को प्राप्त कर लिया है। अधिकार के साथ जब आप सत्य के विषय में लोगों को और इसका उद्घोष करें। बताएंगे तो वे जान जाएंगे कि आपने सत्य गुरु बनने के लिए सहजयोगी को जो तीसरा कार्य आवश्यक है वह है अपने अन्दर प्राप्त कर लिया है। जो व्यक्ति आत्म- साक्षात्कारी नहीं है तथा आत्म- साक्षात्कारी व्यक्ति में मूलतः यही अन्तर होता है कि निर्लिप्तता उत्पन्न करना। शनैः शनैः आप ये आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति परमात्मा से दूरी गुण अपने अन्दर विकसित करें क्योंकि बिना की वेदना की बात नहीं करता। वह कहता इस गुण को अपने अन्दर विकसित किए है, "अब मैंने इसे पा लिया है, ये सत्य है, आपको लगेगा कि आपके अन्दर चैतन्य जैसे, ईसा-मसीह ने कहा था, 'मैं ही प्रकाश लहरियाँ अच्छी तरह से नहीं बह रहीं। सभी प्रकार की निर्लिप्तता विकसित करनी होगी अर्थात आपको अपनी प्राथमिकताएं बदलनी होंगी। एक बार जब आपका चित्त आत्मा पर हूँ, मैं ही पथ हूँ (Iam the Light, I am the Path)। इस प्रकार का दावा कोई अन्य व्यक्ति भी कर सकता है, परन्तु आप ये समझ सकते हैं कि उसका दावा सच्चा नहीं स्थापित हो जाएगा तो अनावश्यक चीजों के प्रति आपकी लिप्सा स्वतः ही घटने लगेगी । उदाहरण के रूप में आपके माता-पिता हैं, है। आपके आत्मविश्वास से, आपके हृदय से प्रवाहित होने वाली पूर्ण सूझ-बूझ से लोग बहन हैं। भारत में यह बहुत बड़ी समस्या है। सारे असत्य को त्याग देना आवश्यक होता इनमें लोग बहुत लिप्त होते हैं। इतना ही है। इस बात की चिन्ता न करें कि कोई बुरा नहीं भारतीय लोग अपने बच्चों से भी बहुत मान जाएगा क्योंकि सत्य बताकर आप उनकी लिप्त होते हैं। 'ये मेरा बेटा है और बाकी सब यतीम हैं! केवल आप ही के बच्चे समझ लेंगे कि यह पूर्ण सत्य है," और तब रक्षा कर रहे हैं, उन्हें हानि नहीं पहुँचा रहे । परन्तु सत्य उचित रूप से बताया जाना वास्तविक बच्चे हैं "मेरी बेटी, मुझे अपने चाहिए, छिछोरेपन से नहीं। अत्यन्त आकर्षक बेटे के लिए, अपने पिता के लिए अपनी माँ ढंग से आप उन्हें बताएं कि ये गलत है। ऐसे के लिए ऐसा करना पड़ेगा!" दो तरह की समय की प्रतीक्षा करें जब आप आत्म-विश्वास लिप्साएं हैं एक मोह के कारण लिप्सा, कि आप उनके लिए ये वो सभी कुछ करना चाहते है उनको संपत्ति देना चाहते हैं, उनका बीमा कराना चाहते हैं और सभी कुछ करना चाहते हैं। दूसरी लिप्सा दूसरे प्रकार की है जैसी यहाँ (लन्दन में) है आप अपने पिता के साथ बता सकें। उन्हें बताएं कि ये गलत है, आप नहीं जानते परन्तु ये गलत है। हम भी ऐसे कार्य कर चुके हैं। इस प्रकार आप अपने गुरु तत्व की अभिव्यक्ति कर सकते हैं। आपको सत्य निष्ठ होना पड़ेगा । सबसे सितम्बर-अक्टू बर 2001 54 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 से घृणा करते हैं, अपनी माँ से घृणा करते हैं और सभी से घृणा करते हैं दोनों ही चीजें है। ये मूर्खता है। हर सुन्दर चीज़ को असुन्दर बनाने का यह मानवीय गुण है वास्तव में एक सी हैं। अतः निर्लिप्तता भाव अवश्य निर्लिप्त व्यक्ति ही अत्यन्त सुन्दर है, अत्यन्त विकसित होना चाहिए। निर्लिप्तता ये है प्रेममय है, प्रेम की प्रतिमूर्ति । फूलों की ओर कि आप ही अपने पिता हैं, आप ही देखें। वे निर्लिप्त हैं। कल उनकी मृत्यु हो अपनी माता हैं, आप ही सभी कुछ हैं। जाएगी, वो जिएंगे नहीं, परन्तु हर क्षण वो आपके लिए आपकी आत्मा ही सभी कुछ आपके लिए सुगन्ध बिखेरते रहते हैं । पेड़ है । आपने अपनी आत्मा का ही आनन्द किसी चीज़़ से लिप्त नहीं हैं, कल उन्होंने लेना है तभी आपमें निर्लिप्तता आएगी। तब आप वास्तव में उनका हित करेंगे क्योंकि यदि उनके पास आए तो वह उन्हें छाया एवं उनके मोह से निकलकर आप उनका सच्चा मर जाना है परन्तु कोई बात नहीं। कोई भी फल देते हैं। रूप देख सकेंगे और जान सकेंगे कि उनके मोह अर्थात प्रेम की मृत्यु। प्रेम की मृत्यु लिए क्या किया जाना चाहिए। ही मोह है। उदाहरण के रूप में पेड़ के अन्दर रस जड़ों से उठता है। सभी आवश्यक अवयवों में प्रसारित होता है-सभी फुलों, फलों आदि में-और बाकी का पृथ्वी माँ में वापिस चला जाता है। किसी विशेष चीज़ से यह लिप्त नहीं होता। मान लो यदि पेड़ का (Craze) होनी चाहिए-अपनी आत्मा में रस एक फल से लिप्त हो जाए तो क्या स्थापित होना, पूर्णतः स्थापित होना। तब होगा? वह फल मर जाएगा और पेड़ भी मर प्रलोभनों (Crazes) के प्रति मोह, उदाहरण के रूप में लोगों को बहुत सी सनक का मोह होता है। किसी भी चीज के लिए लोग सनकी हो जाते हैं, किसी भी चीज के लिए व्यक्ति को समझना चाहिए केवल एक लगन अन्य सभी प्रकार की सनक समाप्त हो जाएगी जाएगा। निर्लिप्तता आपके प्रेम का संचारण क्योंकि आत्मा में स्थापित होना अत्यन्त (Circulation) करती है। आनन्दायी होता है, ये अत्यन्त पोषक है और अत्यन्त सुन्दरतम। बाकी सारी चीजें जाती हैं और आप केवल उसी का आनन्द वस्तुओं के साथ यदि भावनाएं जुड़ी हुई नहीं लेते हैं जो सारे आनन्द का स्रोत है। आप हैं तो वे मूल्यहीन हैं उदाहरण के रूप में अपनी आत्मा में लिप्त हो जाते हैं और जो साड़ी आज मैंने पहनी हुई है वह गुरु निर्लिप्तता कार्यान्वित होने लगती है। पूजा (गुरु पूर्णिमा) के लिए लाई गई थी कभी-कभी निर्लिप्तता को अन्य लोगों के परन्तु इनके पास कोई साड़ी नहीं थी, उस प्रति शुष्क होने की अनुमति मान लिया जाता दिन इन्हें पूजा के लिए साड़ी चाहिए थी तो अब भौतिक पदार्थों के विषय में । छूट सितम्बर-अक्टू बर 2001 55 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 9 व 10 मैंने कहा, "यदि आप जोर देते हैं तो मैं यह यदि आपने कार्य को करना है तो ईसा-मसीह या आदिशंकराचार्य की तरह से गम्भीर पहन लेती हूँ। परन्तु इसे मैंने आज पहना। क्योंकि अत्यन्त श्रद्धा और प्रेम के साथ ये आचरण अपनाने होंगे इन लोगों का जीवन साड़ी लाई गई थी कि गुरु पूजा पर श्री बहुत छोटा था । इस छोटे से जीवन में माताजी को हल्के रंग की साड़ी पहना अच्छा इन्होंने इतना महान कार्य करना था कि लगेगा सफेद रेशम का वास्तविक रंग-पूर्ण समस्याओं से बचने के लिए इन्हें तो सैनिकों निर्लिप्तता का प्रतीक। परन्तु सफेद में सभी जैसी वर्दी पहन लेनी चाहिए थी। समस्याओं रंगों का मिश्रण है, केवल तभी यह सफेद से बचने के लिए, अन्य लोगों को प्रभावित बनता है। इसमें इतना सन्तुलन और समग्रता करने के लिए नहीं। स्वयं को निर्लिप्त दर्शाकर है। आपको भी श्वेत (पावन) बन जाना चाहिए। आज की अपेक्षा अधिक पावन। निर्लिप्तता पावनता है, अबोधिता है। उनका आचरण इसके बिल्कुल विपरीत होता अन्य लोगों को प्रभावित करने के लिए आजकल लोग ऐसा करते हैं और वास्तव में अबोधिता के प्रकाश में किसी भी प्रकार की है अपावनता आपको दिखाई नहीं पड़ती। आपको पता भी नहीं चलता कि कोई व्यक्ति आपके पास बुरे इरादे से आया है। कोई न देना-अहिंसा-पहला कार्य है। किसी की व्यक्ति आपके पास चोरी के इरादे से आता अतः हम समझते हैं कि किसी को कष्ट हत्या मत करो। है तब भी आप कहेंगे आइए, आपकी क्या सेवा की जाए। आप उसको चाय आदि पेश मछली आदि मत खाओ। ये सब बेवकूफी करते हैं, तब वह कहता है, "मैं तुम्हें लूटने केहै। नि:सन्देह आपको अच्छे अच्छे व्यजनों के लिए आया हूँ।" ठीक है यदि आप चाहते हैं पीछे भी नहीं दौड़ना, यह बात भी सच है। तो लट लो। इस हालात में वह व्यक्ति किसी की हत्या न करने का अर्थ है, किसी आपको लूटेगा नहीं। निर्लिप्तता द्वारा व्यक्त को यह अबोधिता अपने अन्दर विकसित करेंगे (Thou Shall not kill)। तो किसी को इसका अर्थ ये नहीं है कि आप मांस- मनुष्य की हत्या न करें। आप हत्या नहीं करनी चाहिए। हानि न पहुँचाना पहली आवश्यकता है। दूसरी बात ये जानना है कि आपने सत्य को अंतः गुरु बनने के लिए निर्लिप्तता होनी चाहिए। निर्लिप्तता का अर्थ व्यक्ति में प्राप्त कर लिया है। आपको सत्य का साक्ष्य देना होगा। को सन्यास या त्याग आदि नहीं है। संसार तीसरा निर्लिप्तता है जिसके विषर में मैंने आपको बताया। किसी व्यक्ति से इसलिए दिखाने के लिए कभी-कभी तपस्वियों जैसी वेश-भूषा भी पहननी चाहिए। कम समय में सितम्बर-अक्टू बर 2001 56 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 लिप्त नहीं होना क्योंकि वह हमारा सम्बंधी यह आपको करना होगा पूरा पहिया आपको आदि है। सबके लिए समान प्रेम की भावना विकसित करना और किसी से भी घृणा न सम्बन्धों को स्थापित करने के लिए आरम्भ करना। यह भी निकृष्टतम लिप्सा है। 'मैं में बहुत से कार्य किए गए थे। कुछ नियम घृणा करता हूँ शब्द सहजयोगियों के मस्तिष्क आचरण ऐसे कार्य करते हैं जैसे रसायनिक में भी नहीं आना चाहिए। इसे दण्डक कहते नियम करते हैं। रसायन और भौतिक शास्त्र हैं, दण्डक कहते हैं, यही विधान (Statute) में, भौतिक नियम हैं । मानवीय नियम भी है। आप किसी से भी घृणा नहीं कर सकते, व्यक्ति को समझने चाहिएं- पारस्परिक राक्षसों से भी नहीं। अच्छा होगा कि उनसे सम्बन्ध, सम्बन्धों की श्रेष्ठता, सम्बन्धों की उल्टा घुमाना होगा। समाज में इन पावन पावनता भी समझी जानी चाहिए। घृणा न करें, उन्हें अवसर दें। चरित्रवान जीवन व्यतीत करें। पति-पत्नी चौथा दैवी विधान ये है कि चरित्रवान जीवन बिताएं' (To lead a Moral Life)। ये के बीच सम्बन्धों की पावनता को समझा आदेश गुरुओं ने दिए थे। सुकरात और जाना चाहिए। केवल तभी आप खुशहाल उनके बाद मोज़िस, अब्राहिम, दत्तात्रेय, जनक, विवाहित जीवन प्राप्त कर सकते हैं। खुशहाली मोहम्मद साहब और सौ वर्ष पूर्व श्री साईं का यही आधार है। ईसा-मसीह ने कहा है नाथ। सभी ने कहा कि आपको चरित्रवान कि "आपको परगमन नहीं करना (Thou जीवन जीना चाहिए। किसी ने भी ये नहीं shalt not commit Adultery) (संभवतः वो कहा कि आप विवाह न करें, अपनी पत्नी से जानते थे कि इस मामले में आधुनिक लोग बात न करें या अपनी पत्नी से कोई सम्बन्ध अपने मस्तिष्क का उपयोग करेंगे)। उन्होंने न रखें। ये सब बेवकूफी है। चरित्रवान जीवन कहा, कि "आपको परगमन नहीं करना व्यतीत करें। आप यदि युवा हैं और अविवाहित उन दिनों में ये सोचना कितनी दूरदृष्टि थी? हैं तो अपनी दृष्टि पृथ्वी पर रखें, पृथ्वी माँ भारत में रहते हुए मैं भी इस बात को न आपको अबोधिता प्रदान करती हैं। समझ पाई थी। यहाँ आने के पश्चात् ही मैं समझ पाई कि उनका क्या अभिप्राय था। ये है--पकड़ है। यह आनन्द 1 पार्चात्य जीवन में अधिकतर भ्रम एवं ऑँखों की पकड़ समस्याएं इसलिए उत्पन्न हो गई हैं क्योंकि विहीन व्यर्थ का आचरण है । इसके कारण उन्होंने चरित्र को ताक पर रख दिया है । चित्त पूर्णतः विचलित हो जाता है। यह चरित्र को समाज के मूल आधार के रूप में गरिमाविहीन है । दृष्टि अत्यन्त सुस्थिर होनी स्वीकार करना उनके लिए मुश्किल कार्य चाहिए। आँखें स्थिर होनी चाहिएं। किसी है। यह पूर्ण उल्टाव (Reversion) है, परन्तु की तरफ यदि आप स्थिरता पूर्वक देखें तो सितम्बर-अक्टूबर 2001 57 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 सुन्दर हों, अन्य लोगों को प्रसन्नता एवं आनन्द प्रदान करें और उनकी आँखों को अच्छी उसे इस बात का ज्ञान हो जाना चाहिए कि आप में सहजयोग है। अत्यन्त प्रेम, सम्मान एवं गरिमापूर्वक लोगों की ओर देखें उन्हें लगें गुरु के पास ऐसी चीज़ें होनी चाहिए ताकें नहीं। किसी की तरफ एकटक ताकना जो उसके जीवन को प्रतीकात्मक बनाएं बाधाओं के हाथ खेलना होता है। पूरा समाज और ये दर्शाएं कि वह व्यक्ति अत्यन्त दार्शनिक ही बाधित है। सारी शैतानी शक्तियाँ विचरण है। अधार्मिकता का प्रतीक बन सकने वाली कर रही हैं और मैं सोचती हूँ कि जिस कोई भी चीज़ उसके पास नहीं होनी चाहिए। प्रकार से लोग बाधाग्रस्त हैं वे सूक्ष्मता पूर्वक उसकी वेशभूषा तथा अन्य वस्तुएं उसकी चीजों को देख नहीं पाते। वे इसाई कहलाते धार्मिकता को अभिव्यक्त करने वाली होनी हैं। चित्त की ओर देखना आवश्यक है। ये चाहिए। किसी भी अपवित्र तथा खराब चैतन्य अत्यन्त आवश्यक कार्य है क्योंकि चित्त ने वाली चीज़ का संग्रह नहीं किया जाना चाहिए। जो भी आपके पास है उसके विषय में सोचना चाहिए कि आप ये वस्तु किसे दे अतः हमें समझना है कि नैतिकता क्या सकते हैं। इसका अर्थ ये हुआ कि आपकी है? लोगों को हँसने दो और कहने दो कि ये संग्रहित वस्तुएं आपकी उदारता की भावुक लोग हैं (Goody Goodies) या वो अभिव्यक्ति करने के लिए होनी चाहिएं। जो चाहे कहें। धर्मपरायण होने पर हमें गर्व सहजयोगी को समुद्र की तरह से उदार है। इसके कारण हम लज्जित नहीं हैं। होना होगा कंजूस सहजयोगी के विषय में धर्मपरायणता का ये महत्वपूर्ण भाग है। जो तो मैं सोच भी नहीं सकती। ये तो ऐसे हुआ लोग इसका (नैतिकता) पालन नहीं करते मानो प्रकाश में अंधेरा मिला दिया जाए शीघ्र ही उनकी चैतन्य लहरियाँ चली सहजयोग में कंजूसी वर्जित है जिस व्यक्ति का मस्तिष्क इस बात पर जाता है कि मैं ही ज्योतिर्मय होना है। वस्तु जाएंगी । किस प्रकार पैसा बचा सकता हूँ, कैस प्रकार अब गुरु के विषय में गुरु को संचय मेहनत बचा सकता हूँ-मेहनत और पैसा नहीं करना चाहिए। उसके पास अधिक बचाने के बहुत से उपाय हैं। दूसरों को संग्रहित वस्तुएं नहीं होनी चाहिए। केवल धोखा देने और छोटी-छोटी चीजों में पैसा आवश्यकता की वस्तुएं ही उसके पास होनी बनाने के भी तरीके हैं। परन्तु ये सब सहजयोग चाहिएं। गुरु को अपनी सारी सम्पत्ति दे विरोधी हैं। इनसे आपका पतन होगा अपनी डालनी चाहिए। धन लाभ के लिए उसे टिकटें उदारता का आनन्द लें। कितनी बार मैं आदि एकत्र नहीं करनी चाहिएं । ऐसी वस्तुएं आपको उदारता के विषय में बता चुकी हूँ? एकत्र की जा सकती हैं जो उपयोगी हों, आपके बाँटने की विधि के अतिरिक्त आपका tho सितम्बर-अक्टू बर 2001 58 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 भावनात्मक पक्ष इतना सुन्दर है कि आप को छोड़कर अधिक स्वाभाविक बनें। मेरे कल्पना नहीं कर सकते। एक महिला के कहने का ये अभिप्राय नहीं है कि जड़ों को विवाह के तीस वर्ष के पश्चात् लन्दन में मैं खोदकर उनको खाएं या कच्ची मछली खाएं। उसे अचानक मिली। वह कहने लगी, "क्या मेरा ये अभिप्राय नहीं है। सदैव अति में जाने संयोग है!" मैंने पूछा, "क्यों?" उसने कहा, से बचें परन्तु ऐसा जीवन बिताने का प्रयत्न "मैंने आज वही मोतियों का हार पहना हुआ करें जो अधिक स्वाभाविक हो, इस प्रकार से है जो तुमने मुझे मेरे विवाह के अवसर पर स्वाभाविक कि लोग जान सकें कि आपमें भेंट किया था और आज ही तुमसे मिलना मिथ्या अभिमान नहीं है कुछ लोग दूसरी प्रकार के भी हो सकते हैं। लोगों का ध्यान है? उस मुलाकात से सारा दृश्य ही हुआ बदल गया। छोटी सी चीज़ जो आप भेंट आकर्षित करने के लिए वे आवारा की तरह करते हैं उसका कितना महत्व है! देने की से वस्त्र पहनते हैं, मेरा अभिप्राय है कि ये महानतम कला व्यक्ति को सहजयोग में चीज़े दोनों तरह से हो सकती हैं। फिर मै सीखनी चाहिए। सांसारिक चीजों को छोड़ देखती हैँ कि कुछ लोग अपनी बातों को दें। जैसे आप किसी के जन्मदिवस पर रंगते हैं अतः आचरण में आपको अत्यन्त बधाई सन्देश भेजते हैं, कहते हैं,'आपका स्वाभाविक होना होगा। बहुत धन्यवाद ।" अपने सन्देश को अधिक गंभीर तथा महत्वपूर्ण बनाएं। हमें देखना है कि आप ने किस प्रकार प्रेम के प्रतीक विवेक का उपयोग नहीं करते उनके लिए 1 अतः स्वाभाविक बने। जो लोग अपने (Symbol of Love) को विकसित किया। जब आपकी ये चीजें चैतन्य लहरियों से इस बात का बेतुका अर्थ भी निकल सकता परिपूर्ण होती है और आप इन्हें किसी सहजयोगी को देते हैं तो वह समझ जाता है कि यह क्या है? सहजयोगियों के साथ कभी चाहिएं जो आप पर सुहाएं। उदाहरण के है। सहजयोग में विवेक अत्यावश्यक है और हर समय आपको विवेक बनाए रखना होगा। स्वाभाविक अर्थात आपको सहज वस्त्र पहनने भी उदारता में कमी न रखें। शनैः शनैः आप आश्चर्य चकित हों गे कि किस प्रकार छोटी-छोटी चीजों से आप उनके हृदय जीति लेते हैं, मानो चैतन्य लहरियाँ इन्हीं चीज़ों के रूप में इस जलवायु में आपको श्री राम जैसे वस्त्र पहनने की कोई आवश्यकता नहीं है । शरीर के ऊपरी हिस्से में वे कुछ नहीं पहनते के। उसकी कोई आवश्यकता ही न थी। जिस देश से आप सम्बन्धित हैं उसी की माध्यम से बहकर उन लोगों के लिए सभी कुछ कार्यान्वित कर रही हों! वेशभूषा अवसर के अनुसार आपको पहननी चाहिए, ऐसी वेशभूषा जिसे आप अच्छी व गरिमामय मानते हों। ये आपके शिष्टता और सहजयोगियों के लिए आवश्यक है कि वे प्राकृतिक चीज़ों का उपयोग करें, बनावट सितम्बर-अक्टू बर 2001 59 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 व्यक्तित्व को छलकाएगा। जो भी वस्त्र आप भिन्न हों। किसी भी तरह के अटपटे वस्त्र पर फबें आपको वही पहनने चाहिए। उन पहनने की आपको आवश्यकता नहीं है। लोगों की तरह से नहीं जो कई रंग के वस्त्र पहनते है; लम्ब सूट पहनते हैं, जिनसे वे सहजयोगियों के लिए सामान्य होना अत्यन्त विदूषकों की तरह से प्रतीत होते हैं। विदूषको आवश्यक है। आपको न किसी धर्म की निन्दा जैसे या छैलाओं जैसे वस्त्र आवश्यक नहीं करने की आवश्यकता है और न ही कभी अन्य लोगों की तरह से वस्त्र पहनें। किसी अवतरण का अपमान करने की। ऐसा करना पाप है सहजयोग में ऐसा करना हैं। साधारण सुन्दर वस्त्र पहनने चाहिएं जिनसे आप गरिमामय प्रतीत हों। पूर्वी देशों में लोग मानते हैं कि परमात्मा ने सुन्दर शरीर प्रदान बहुत बड़ा अपराध है क्योंकि आप जानते हैं किया है उसे मानव द्वारा बनाई गई सुन्दर कि ये अवतरण कौन हैं। परस्पर आप लोगों चीज़ों से सजाया जाना चाहिए ताकि उस में जातिवाद की भावना नहीं होनी चाहिए। शरीर का सम्मान किया जा सके, उसकी आप चीनी (Chinese) हों या कोई और, पूजा की जा सके। उदाहरण के रूप में जब तक हम मानव हैं तो हमें इस बात का भारत में महिलाएं साड़ी पहनती हैं। साड़ी ज्ञान होना चाहिए कि हम एक ही प्रकार से उनकी मनोवृत्ति (Moods) की अभिव्यक्ति हँसते हैं, एक ही प्रकार से मुस्कराते हैं और करती है तथा उनकी इस भावना की कि वे एक ही प्रकार से कार्य करते हैं। अपनी शरीर का सम्मान करती हैं। वस्त्र उपयोग के लिए होने चाहिएं और गरिमा के लिए भी। सहजयोगियों को एक जैसे वस्त्र पहनने की आवश्यकता नहीं है। एक जैसे ये सब हमारे मानसिक बन्धन हैं, सामाजिक बन्धन हैं कि ये छूत है ये अछूत है। भारतीय समाज में ये कुप्रथा है, भयानक! ब्राह्मण वाद ने भारत को पूरी तरह नष्ट कर दिया। इससे आपको सीखना चाहिए। उदाहरण के वस्त्र मुझे अच्छे नहीं लगते। हर व्यक्ति भिन्न प्रतीत होना चाहिए। रूप में गीता के लेखक व्यास कौन थे? एक के नाजायज पुत्र थे। उन्हें जान- मछुआरन पूजा के लिए चाहे आप एक जैसे वस्त्र बूझकर इस तरह का जन्म दिया गया था। पहन लें। पूजा के मामले में आपका चित्त गीता पढ़ने वाले सभी ब्राह्मणों से पूछे कि वैचित्र्य पर होना आवश्यक नहीं है परन्तु व्यास कौन थे? वास्तविक ब्राह्मण वही है जो इसके अतिरिक्त आपको सामान्य व्यक्ति होना आत्मसाक्षात्कारी है। जाति या जन्म से कोई है। आप सब गृहस्थ हैं, आपको कोई घोषणा नहीं करनी। आपको तो मैं ये भी नहीं कहती ब्राह्मण नहीं बनता। कुम-कुम लगाकर गलियों में जाओ । आपको सामान्य होना चाहिए जो दूसरों से के बाद भी राष्ट्रवाद की मूर्खता भरी हुई है। पश्चिम में सारी उच्च शिक्षा और उन्नति कि सितम्बर-अक्टू बर 2001 60 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 मेरी तो समझ में भी नहीं आता कि कोई सिखाता है कि सिगार किस तरह से पिएं. व्यक्ति श्वेत हो या अश्वेत, आखिरकार बीयर किस प्रकार पिएं । सुबह से शाम तक परमात्मा ने रंगों का वैचित्र्य भी तो बनाना इस प्रकार करता है। यह सारा बन्धन कचरे था। आपको (लन्दन के लोगों को) किसने की तरह से फैंक दिया जाना चाहिए और बताया कि आप ही पृथ्वी पर सबसे अधिक देखना चाहिए कि परमात्मा ने आपका सृजन सुन्दर लोग हैं। हो सकता है कि यहाँ के अपने बच्चों के रूप में किया है। यह अत्यन्त बाज़ारों या हालीवुड के लिए यह बात ठीक सुन्दर चीज़ है इन मूर्खतापूर्ण विचारों से आप इसे क्यों गन्दा कर रहे हैं? "मुझे पसन्द हो। परन्तु परमात्मा के साम्राज्य में सात-सात पतियों से विवाह करने वाली, सभी प्रकार है या न पसन्द है" का भद्दापन मूर्खता है। की अटपटी तथाकथित सुन्दर, लोगों को केवल एक ही शब्द होना चाहिए "मैं प्रेम प्रवेश नहीं मिलेगा। उन सबको नर्क में डाल करता हूँ बाकी सब चीज़ों को भूल जाएं । ये दिया जाएगा। परमात्मा ने आप सबको अपने याद करने की आवश्यकता नहीं है कि अंग्रेजों बच्चों के रूप में बनाया है। ने जर्मन के साथ क्या किया सभी कुछ भुला दें। ये सब कुछ करने वाले लोग मर सौन्दर्य हृदय का होता है चेहरे का नहीं। चुके हैं। हम भिन्न लोग हैं, हम सन्त हैं ये हृदय का सौन्दर्य ही दिखाई पड़ता है और सब दैवी विधान है जो मैंने आपको बताएं हैं चमकता है। हो सकता है लोग इसके विषय और जिन्हें आपको आत्मसात करना में जानते हों। यही कारण है कि लोग जाकर अपने चेहरे ताम्र वर्ण बनाते हैं। मैं नहीं जानती। सबकुछ जानते हैं फिर भी बहुत अधिक देती हूँ। आपके चरित्र के माध्यम से, आपके दिखावा करते हैं। किसी को काले बाल व्यक्तित्व के माध्यम से और जिस प्रकार आज मैं आपको गुरु बनने का अधिकार वे पसन्द हैं तो किसी को लाल। कहने का अभिप्राय है कि सभी प्रकार के बाल होने करते हैं और प्रकाश की अभिव्यक्ति करते हैं चाहिए। किसी विशेष प्रकार के बालों का उसे देखकर अन्य लोग भी आपका अनुसरण आप सहजयोग का अपने जीवन में आचरण करेंगे। यह उनके हृदय में परमात्मा के दैवी पसन्द किया जाना मेरी समझ में नहीं आता। विधानों को स्थापित करेगा और उनका उद्धार करेगा। आपको मोक्ष प्राप्त हो गया है, अन्य पसन्द या नापसन्द जैसी कोई चीज नहीं | परमात्मा की बनाई गई सभी चीजें सुन्दर हैं, आप इसका निर्णय करने वाले कौन हैं लोगों का भी उद्धार करें। आप ही माध्यम (Channels) हैं। बिना माध्यमों के ये सर्वव्यापी शक्ति कार्यान्वित नहीं हो सकती। यही शैली कि मुझे ये पसन्द है ये नापसन्द है। "मैं क्या है? आप समझें कि यह 'मैं' अहम् है जिसको समाज बढ़ावा दे रहा है, जो आपको है। आप यदि सूर्य को देखें तो इसका प्रकाश सितम्बर-अक्टू बर 2001 61 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 9 व 10 प्रकार लोगों को आकर्षित करेंगे। आपको गर्व होना चाहिए, गर्वित होना चाहिए आपको। इस उपलब्धि पर आपके मन में अन्य लोगों के प्रति करुणा एवं सहानुभूति होनी चाहिए। अब संक्षिप्त में मैंने आपको बताना है कि इसकी किरणों के माध्यम से फैलता है । आपकी धमनियों के माध्यम से आपके हृदय का रक्त प्रसारित होता है। धरमनियाँ अति सूक्ष्म होती हैं। आप ही वह रक्तवाहिकाएं हैं जिनके माध्यम से मेरा प्रेम रूपी यह रक्त सभी लोगों में प्रवाहित होगा। रक्त यह कार्य आपको कैसे करना है। स्पष्ट रूप से आपने अपने भवसागर को कार्यान्वित वाहिकाएं ही यदि टूटी हुई होंगी तो लोगों तक रक्त नहीं पहुँचेगा यही कारण है कि करना है। आप लोग महत्वपूर्ण हैं। आप जितने विशाल होंगे रक्त धमनियाँ भी उतनी ही विशाल होंगी और उनके माध्यम से आपने सभी लोगों को सम्मिलित कर लेना है। इस कार्य के लिए आप जिम्मेदार हैं। सर्वप्रथम आपको ये समझना है कि भवसागर तभी पकड़ता है यदि आप गलत गुरु के पास गए हों। अपने गुरु के विषय में आपको पूरी तरह से ज्ञान होना चाहिए। अपने गुरु का चरित्र तथा ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न करें। यह बहुत कठिन कार्य है क्योंकि आपके गुरु भ्रान्ति रूपेण हैं, वे महामाया हैं, उनके बारे में जान पाना सुगम नहीं है। गुरु में गौरव का होना अत्यन्त आवश्यक है। गुरु अथात वज़ान, गुरुत्वाकर्षण। गुरु तत्व का अर्थ है गुरुत्वाकर्षण। आपमें अपने वज़न का गुरुत्वाकर्षण होना चाहिए, अर्थात चारित्रिक वज़ान, गरिमा का वजन, सामान्य रूप से वे आचरण करती हैं और कभी-कभी तो आप हतप्रभ हो जाते हैं। परन्तु आप देखें कि छोटी-छोटी चीजों में भी वे किस प्रकार आचरण करती है। किस आचरण का वजन, श्रद्धा का वजन और आपके प्रकाश का वज़न। प्रकार उनका चरित्र अभिव्यक्त होता है। किस प्रकार उनका प्रेम अभिव्यक्त होता है। अपने गुरु की क्षमाशीलता का स्मरण करने का प्रयत्न करें। तब आप जान पाएंगे कि तुच्छता और मिथ्याभिमान से आप गुरु नहीं बनते। घटियापन, अभद्र भाषा, घटिया मज़ाक, क्रोध एवं गुस्सा, ये सब दुर्गुण पूरी तरह से त्याग दिए जाने चाहिएं। अपनी गरिमा, अपनी वाणी के माधुर्य से लोगों को प्रभावित करें। इन गुणों से लोग वैसे ही आकर्षित होंगे जैसे पुष्प के अन्दर निहित मधु से मधुमक्खी होती है । आप भी इसी इच्छा होगी कि उन्हें भी ऐसा गुरु प्राप्त कितना महान है और वैसा आपका गुरु गुरु पाने की कामना कितने साधकों के मन में रही होगी क्यों कि आपका गुरु सभी गुरुओं का स्रोत है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश की भी उत्कृष्ट सितम्बर-अक्टू बर 2001 62 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 होता। वे सब आपसे ईष्या करते होंगे परन्तु आप उसे ग्रहण न कर लें। आपकी गुरु सर्वोच्च हैं इसमें कोई सन्देह नहीं। परन्तु गुरु भ्रान्तिमय है। अतः अपने भवसागर को ठीक करने के लिए कहें कि श्री आपको इस बात की भी समझ होनी चाहिए माताजी आप हमारी गुरु हैं। उनकी कि सर्वोच्चता कि वो शक्तियाँ आपमें नहीं भ्रान्तिमयता के कारण गुरु के प्रति वांछित हैं। मैं भय, श्रद्धा और सम्मान आपमें स्थापित नहीं जानती कि प्रलोभन क्या होते है, कुछ नहीं हो पाता जब तक आपमें वह श्रद्धा (Awe) जानती। जो भी कुछ मुझे अच्छा लगता है पूर्ण श्रद्धा विकसित नहीं हो जाती। आपका यह सब मेरी मौज मात्र है। परन्तु इतना होते गुरु तत्व स्थापित नहीं हो सकेगा। इस हुए भी मैंने स्वयं को अत्यन्त सामान्य बनाया मामले में कोई भी छूट नहीं ली जानी चाहिए। है क्योंकि मुझे आपके सम्मुख इस प्रकार मैं स्वयं आपको बता रही हूँ परन्तु मैं अत्यन्त प्रतीत होना है कि आप दैवी विधानों को भ्रान्तिमय हूँ। अगले ही क्षण मैं आपको हँसाकर जान सकें मेरे लिए कोई विधान नहीं है । ये सब बातें भुलवा देती हूँ-क्योंकि यह कार्य आप ही के लिए मैं ये सब कार्य करती हूँ करने की आपकी स्वतन्त्रता को मैं परख और आपको छोटी छोटी चीजें सिखाती हूँ रही हूँ- पूर्ण स्वतन्त्रता से मैं आपके साथ क्योंकि आप अभी तक बच्चे हैं। ये इन सब चीज़ों से ऊपर हूँ। मैं नहीं | | इस प्रकार खेलती हूँ कि हर क्षण आप भूल जाएंगे कि मैं आपकी गुरु हूँ-हर क्षण। इसी प्रकार आप स्मरण रखें कि जब अन्य लोगों से आप सहजयोग के विषय में बात कर रहे हों तो याद रहे कि हर समय वो आपको देखेंगे और जानने का प्रयत्न करेंगे अतः सर्वप्रथम अपने गुरु को पहचानने का प्रयत्न करें-उन्हें अपने हृदय में स्थापित करें मेरा कहने का अभिप्राय है कि आपकी कि कितनी गहनता से आप इसमें उतरे हैं। जिस प्रकार मैं आपको समझती हूँ उस प्रकार गुरु अत्यन्त महान हैं। काश मेरा भी कोई ऐसा ही गुरु होता। आपकी गुरु निरीच्छ हैं, आप उन्हें समझने का प्रयत्न करें। जिस निष्पाप है, पूर्णतः निष्पाप। मैं जो भी कार्य करु मेरे लिए वह पाप नहीं है। मैं किसी का से आप उन्हें प्रेम करें। निश्चित रूप से मैं भी वध कर सकती हूँ या कोई भी छल आपको प्रेम करती हूँ। परन्तु मैं निर्मला हूँ मैं योजना कर सकती हूँ। मैं आपको बताती हूँ प्रेम से परे हूँ, यह बिल्कुल ही भिन्न अवस्था प्रकार मैं आपको प्रेम करती हूँ उसी प्रकार कि यह बात सत्य है। मैं जो चाहे करुं मैं है। पाप से ऊपर हूँ। परन्तु मुझे सदैव यह ध्यान रहता है कि आपकी उपस्थिति में मैं कोई ऐसा कार्य न करूं ताकि मेरा गुण मानकर में हैं क्योंकि कोई भी गुरु कभी इतनी बारीकियों में आप बहुत ही अच्छी स्थिति इस हालात सितम्बर-अक्टू बर 2001 63 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 9 व 10 में नहीं गया इसके अतिरिक्त मैं सारी शक्तियों का स्रोत हूँ, सारी शक्तियों का। ये तक आप नहीं करेंगे तब तक मेरा स्वास्थ्य बिगड़ा रहेगा। बात इतनी गहन है। परन्तु सब शक्तियाँ आप मुझसे प्राप्त कर सकते मेरे लिए क्या अच्छा स्वास्थ्य और क्या बुरा हैं, जिस भी शक्ति की आपकी इच्छा हो । मैं स्वास्थ्य? इन सुन्दर स्थितियों में आपको इच्छा मुक्त हूँ परन्तु आपकी जो भी इच्छा वास्तव में पूर्ण सम्पन्नता प्राप्त कर लेनी होगी वह पूर्ण होगी । यहाँ तक कि मेरे लिए चाहिए। गुरु बनने के लिए आपके सम्मुख भी आप ही को इच्छा करनी होगी। यह बात कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। आप देखें कि किस प्रकार से मैं आपसे बंधी हुई हूँ? मेरे अच्छे स्वास्थ्य की कामना जब आप सबको अनन्त आशीर्वाद । 'सहजी की कलम से जय श्री माताजी किन्तु घबराहट और अकस्मात घटना के मैं गोपालपुर विद्यालय में अध्यापक के कारण मुझसे बन्धन नहीं लग सका। बस, मैं पद पर कार्यरत हूँ। दिनांक 26.7.2001 को भी श्री माता जी से प्रार्थना करने लगा कि माँ विद्यालय लगा हुआ था, करीब पौने बाहर बजे थे, मैं कक्षा में पढ़ा रहा था। सम्पूर्ण आप ही हमें बचाओ। इसी बीच गाँव के हजारों लोग हमारी मदद के लिए उमड़ पड़े विद्यालय अपना कार्य कर रहा था। अचानक भयानक घटना घटी, विद्यालय के पास में और बच्चों को बाहर निकालने में सहायता लगी पानी की पाईप लाईन फट गयी और करने लगे पानी इतना बढ़ चुका था कि पानी की तेजधार विद्यालय पर पड़ने लगी। बच्चों को हाथों में पकड़ कर बाहर लाया गया! ही मिनटों में विद्यालय का आँगन पानी कुछ से 3-4 फुट तक भर गया, कमरे और दिवारें गिरने लगें । मेरे कमरे की छत भी हिलने लगी तथा छत की चार दीवारी भी गिरने की नींव हिल गयी, परन्तु श्री माता जी की पानी के भराव के कारण सारे विद्यालय लगी। चारों तरफ हाहाकर मच गया। बच्चों कृपा से मेरी कक्षा की एक ईंट तक नहीं में बचाओ-बचाओ की चिल्लाहट शुरू हो हिली! और सारे विद्यालय के बच्चे और अध्यापक सुरक्षित बच गये! गई। मैं कक्षा में पढ़ा रहा था तभी ये घटना घटी और सभी कक्षाओं में पानी बढ़ता चला विद्याधर कौशिक जा रहा था तभी मेरी कक्षा के सभी बच्चे भजनपुरा और मैं श्री माता जी से प्रार्थना करने लगे । सभी बच्चे रो रहे थे और चिल्ला रहे थे। ।। जय श्री माता जी।। इसी बीच मैंने बन्धन लगाने का प्रयास किया री चै त न य ल ह प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर 162 - ए. मुनीरका विहार, नई दिल्ली - 110067 मुद्रक अमरनाथ प्रेस प्रा. लिमिटेड डब्ल्यू.एच.एस. 2/47 कीर्ति नगर औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली-15 फोन : 5447291, 5170197 कृपया इस पत्ते पर लिखें श्री ओ.पी. चान्दना सदस्यता के लिए - एन -463कषि नगर, रानी बाग दिल्ली - 110034 फोन (011) 7013464 सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकातियाँ निम्न पते पर भेजें : चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी-17. कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली 110016 ---------------------- 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-0.txt ६1FM.AL. खंडः XIII अंकः 9 व 10 सितम्बर - अक्टूबर, 2001 RSAL PURE RELIGION चैतन्य लहरी ि ४ं अपने की क्षमाशीलता का स्मरण करने का प्रयत्न करें। तब आप जान पाएंगे कि आपका गुरू कितना महान है और वैसा गुरू पाने की कामना कितने साधकों के मन में रही होगी क्यों कि आपका गुरू सभी गुरूओं का ्रोत है । गुरु श्री माताजी गुरू पूजा, 198 DHANMA VANSIA 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-1.txt ख- ।। चे तन्या |सितम्बर- लहरी अंक 9 व 10 बर 2001 श्री माताजी का प्रवजन, दिल्ली 17.12.2000 सहस्रार पूजा, कबेला, 6.5.2001 श्री ईसा मसीह पूजा, गणपतिपुले, 25.12.2000 13 1 सार्वजनिक कार्यक्रम, दिल्ली, 26.3.2001 23 35 श्री बुद्ध पूजा, स्पेन, 20.5.1989 50 | गुरु पूजा, 1981 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-2.txt सर सी.पी. श्रीवास्तव द्वारा लिखित भ्रष्टाचार भारत का आन्तरिक शत्रु' (Corruption-India's enemy within) के विमोचन के अवसर पर परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन दिल्ली, दिसम्बर 17, 2000 सभी सत्य साधकों को मेरा प्रणिपात। चाहते हैं तो भ्रष्ट क्यों होते है? ये मेरी इतने अच्छे भाषणों के पश्चात् मुझे समझ समझ में नहीं आता! किसी भी भ्रष्ट व्यक्ति में नहीं आता कि और क्या कहा जाए! माँ को शान्त या प्रसन्न स्थिति में मैंने कभी के रूप में एकमात्र समाधान जो मुझे नजर नहीं देखा। आप यदि अपने देश से प्रेम आता है वह यह है कि वास्तव में यदि करते हैं, मैंने अपने माता-पिता को आपमें अपनी मातृभूमि के प्रति देश-भक्ति है तो यही सारी समस्या का समाधान है । आप यदि देशभक्त हैं तो भ्रष्ट नहीं हो कर दिया क्योंकि वे अपने देश को प्रेम सकते। महान देशभक्त लोगों के विषय में करते थे। वृद्ध होने के कारण मैंने यह सब सहकर्मियों को और उनके मित्रों को देखा है। उन्होंने देश के लिए सभी कुछ बलिदान पढ़कर या उन लोगों के विषय में पढ़कर देखा है। किस प्रकार ये सारे कष्ट वो झेल जिन्होंने अपना जीवन बलिदान कर दिया पाए, किस प्रकार जेलों में गए और सभी है, किसी भी तरह से यदि ये गुण आप अत्याचार झेले! किस प्रकार उन्होंने यह अपने अन्दर विकसित कर लें तो सारा सब कुछ सहन किया, मैंने यह सब कुछ कार्य हो सकता है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के देखा। आज हम सब भारतीय इस बात को लिए उन्होंने बहुत कार्य किया, आप यदि स्मरण क्यों नहीं करते कि ये हमारी महान देश के लिए उनकी भावनाओं को समझ भूमि है। हमें ये समझना चाहिए कि यहाँ मात्र लें, इस प्रकार का भावनात्मक विवेक पर महान लोगों ने जन्म लिया। विश्व के अपने में जगा लें, इस प्रकार का देश प्रेम अन्य किसी देश में इतने महान लोग कभी अपने अन्दर विकसित कर लें तो मुझे उत्पन्न नहीं हुए। उनकी महानता, उनका विश्वास है कि आप पूर्णतः ईमानदार बन 'देश धर्म है कि उन्होंने अपने देश को प्रेम जाएंगे। कोई प्रश्न नहीं है, करने को कुछ किया और इस प्रकार श्रेष्ठता प्राप्त की भी बाकी नहीं है परन्तु ये चीज़ तो अत्यन्त जैसे इन्होंने कहा, देश धर्म में बहुत सी अन्तर्जात है और परमात्मा भी इसे चाहते चीजें आती हैं। महान पुरुषों ने श्रेष्ठता हैं। आप यदि वास्तव में मानसिक शान्ति और महानता के बारे में बताया परन्तु मेरी 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-3.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 2 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 9 व 10 समझ में नहीं आता आज हम भ्रष्टाचार की यहीं रहना चाहती हूँ। आप यहीं भारतीय मूर्खता में किस प्रकार डूब गए हैं ! पैंतीस प्रशासनिक सेवा को चुन लें और उन्होंने वर्ष पूर्व हम दोनों ने भारत वर्ष छोड़ा था। ऐसा ही किया। उन्होंने केवल इतना ही जब हम वापिस आए तो मुझे आघात लगा नहीं किया, परन्तु मैं कहना चाहूँगी कि क्योंकि कि इससे पूर्व हमने किसी को उन्होंने कभी इस बात की शिकायत नहीं इतना भ्रष्ट होते हुए नहीं सुना था। कोई की कि उन्हें कोई हानि हो गई है। निःसन्देह चपरासी यदि माँगता भी था तो एक आध मैं भिन्न प्रकार की व्यक्ति हूँ परन्तु वे स्वयं रुपया। कहने का अभिप्राय ये है कि हम भी ऐसे ही हैं। इस देश की गरीबी को नहीं देखते। आज लोग इस बात से चिन्तित नहीं हैं कि इस की मुझे प्रसन्नता है। जैसा आप जानते हैं, ये पुस्तक प्रकाशित हो गई, इस बात 1. भयानक भ्रष्टाचार से हमारी क्या हानि हो यद्यपि मेरा स्वप्न ब्रह्मण्डीय है और मैं चाहती रही है। यह तो कैंसर से भी भयानक रोग हूँ कि महान परिवर्तन आएं। परन्तु मैं ये भी है। इस रोग का उपचार करने के लिए मैं जानती हूँ कि इस पर बहुत सा समय सोचती हूँ कि अपनी मातृभूमि की पूजा लगेगा इस प्रकार की पुस्तक को लोग एक मात्र उपाय है प्रातःकाल अपनी यदि पढ़ेंगे और समझेंगे और इसे गम्भीरता मातृभूमि की पूजा करें। उसका चित्र आपके से लेंगे तो हो सकता है कि मेरा स्वप्न पास है, उसे देखें, उसे प्रणाम करें और आसानी से साकार हो जाए। मैं ऐसा ही स्मरण रखें कि आप उसके ऋणी हैं। भारत महसूस करती हूँ और प्रार्थना करती हूँ कि में जन्म लेना भी महान सम्मान है, कि आप सब लोग शपथ लें कि आप सब अपने आपने इस देश में जन्म लिया। इसके लिए देश को प्रेम करेंगे और किसी भी प्रकार से कृतज्ञ हों। इस प्रकार के प्रेम का आनन्द इसे हानि पहुँचाने में आपको खुशी न होगी। लेना वास्तव में अत्यन्त महान है और ऐसा करना यदि आप सीख लें तो भ्रष्टाचार आश्चर्यजनक है। परमात्मा की धन्यवादी हैूँ रूपी इस भयावह राक्षस को समाप्त करने कि मेरे पति भी देशभक्त हैं। मैं सदैव के लिए आवश्यक महान प्रकाश देने के उनसे ये बताती रही हूँ कि मेरा रोम-रोम लिए यह काफी होगा । देशभक्त है। वे विदेश सेवा में थे परन्तु मैंने उन्हें कहा, मैं विदेश नहीं जाना चाहती, | परमात्मा आपको धन्य करें। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-4.txt सहस्रार पूजा (6.5.2001 ) कबेला-इटली परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन जिन सहजयोगियों ने सत्य को प्राप्त ईसाइ, जो भी थे, उनका विश्वास था कि कर लिया है, आज मैं उन्हें प्रणाम करती इन कर्मकाण्डों द्वारा कुछ प्राप्त किया जा हूँ। युग-युगान्तरों से सत्य की खोज होती सकता है, सत्य को जाना जा सकता है रही है। जब साधकों को ये पता चला कि और व्यक्ति आत्म साक्षात्कार प्राप्त कर सत्य को प्राप्त करने के लिए परमात्मा के सकता है। ऐसे सभी साधक गलत लोगों सम्मुख समर्पित हो जाने के अतिरिक्त कोई के पास गए. गलत दिशाओं में गए क्योंकि और मार्ग नहीं है तब भी उन्हें इस बात का वो तो वास्तव में अपने हृदय से सत्य को ज्ञान न था कि उसे किस प्रकार प्राप्त खोज रहे थे। इन भ्रमित करने वाले लोगों किया जाए और किस प्रकार इसे कार्यान्वित के पीछे जाकर ये साधक भ्रमित हो गए किया जाए। विश्व भर में जिज्ञासु हैं। मैं और ऐसे भयानक अंधकार -मय क्षेत्र में जब टर्की गई तो हैरान थी कि वहाँ पर चले गए कि उन्हें इस बात का ज्ञान भी न बहुत से सूफी हुए परन्तु उनके शिष्य रहा कि वे क्या खोज रहे हैं, उन्हें क्या आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं! उसका कारण खोजना चाहिए था, क्या प्राप्त करना चाहिए यह है कि वो सूफी भी न जानते थे कि था । ये भविष्यवाणी की गई है कि जब उन्हें आत्मसाक्षात्कार किस प्रकार मिला। कलियुग आएगा तो लोग स्वयं को जान जिज्ञासुओं के चहुँ ओर ऐसा अंधकार था । लेंगे। महाराज नल और कलि की एक कहानी है। कलि ने राजा नल की पत्नी जब मैं छोटी सी लड़की थी तब विश्व दमयन्ती का उनसे बिछोह करवा दिया भर में मैंने देखा कि सत्य को प्राप्त करने में था। एक बार नल ने उसे पकड़ लिया और विषय में लोग पूरी तरह अनभिज्ञ थे। भिन्न कहा, "अब मैं तुम्हारा वध करूगा। तुम प्रकार के तथाकथित धर्मों और कर्मकाण्डों अत्यन्त शैतान व्यक्ति हो, तुमने मुझे बहुत से सत्य साधक खो गए। वे सभी हानि पहुँचाई है। कलि ने कहा, "आप मेरा में बहुत प्रकार के कर्मकाण्ड किया करते थे, सुबह वध कर सकते हैं परन्तु वध करने से पूर्व से शाम तक कोई न कोई कर्मकाण्ड चलता ही रहता था । वो चाहे हिन्दू, मुसलमान, है कि जब कलियुग आएगा तब जंगलों, आप मेरा महात्म्य जान लें। मेरा महात्म्य ये 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-5.txt सितम्बर-अक्टूबर 2001 4 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 पहाड़ों, घाटियों और हिमालय में बैठे हुए प्रकार की आधुनिक चीजें अपनानी शुरू सभी तपस्वी सर्व साधारण गृहस्थ बन जाएंगे। वे सब गृहस्थ भटकते रहने वाले सन्यासी नहीं होंगे और कर दीं जो गलत थीं और केवल मनोरंजन होंगे, इधर-उधर के लिए थीं। ऐसी परिस्थितियों में मैने पाया कि विश्व भर में बहुत बड़ी जिज्ञासु शक्ति थी और वे सब सत्य को प्राप्त कर लेंगे। ये भविष्यवाणी बहुत समय पूर्व की गई थी। इसके विषय में नल पुराण नाम एक पुस्तक कुछ झूठे लोगों ने इसका पूरा लाभ उठाया । भी है और संभवतः आपने इसमें पढ़ा होगा वे देश से बाहर गए और बेशुमार पैसा कि, "अब समय आ गया है जब लोग स्वयं बनाया और अपने असत्य से उन्हें अभिशप्त को पहचान लें।" सभी धर्मों ने एक ही बात किया। मैं नहीं समझ पाती कि उन कुगुरुओं कही है 'आप स्वयं को पहचान लें। इस्लाम ने उनके साथ क्या किया? इस प्रकार ने यही बात कही, बुद्ध ने यही बात कही, बहुत से सत्य साधक भटक गए। इसके इसाई धर्म ने यही बात कही और हिन्दू बावजूद भी मैं अमरीका गई और वहाँ पर धर्म भी यही बात कहता है। तब तक सभी हालात को देखकर मुझे बहुत चोट पहुँची। लोग सब प्रकार के उल्टे सीधे कार्य किए परन्तु किसी भी प्रकार से मैं वहाँ के लोगों चले जाते है परन्तु वे जानते हैं कि हमें की सहायता न कर पाई क्योंकि अभी तक मानसिक रूप से वे तैयार न थे वे न जानते थे कि उन्हें क्या प्राप्त करना है। सत्य का ज्ञान नहीं हुआ है। तो यह कार्य मेरे हिस्से में आया। अपने सत्य को आप धन से नहीं खरीद सकते। बचपन से ही मैं जानती थी कि मुझे यह सहस्रार खोलने के पश्चात् मैंने यह कार्य कार्य करना है। परन्तु जब मैंने मानव को आरम्भ किया। सहस्रार खोलने की कहानी देखा तो पाया कि अपने विषय में वह तो आप जानते ही हैं और ये भी जानते है कितना अंधेरे में है, वह कितना आक्रामक कि किस प्रकार मैंने एक व्यक्ति से है और कितना अपराधी प्रवृत्ति का है । आत्मसाक्षात्कार देना आरम्भ किया परन्तु उसकी शैली अत्यन्त क्रूर तथा अविश्वसनीय अमरीका से मैं बहुत निराश हुई । मैं सोच है। इसी समय मैंने हिटलर को उभरते हुए रही थी कि 'ये किस प्रकार बढ़ेगा ?' किस देखा । तब हमारा देश भी दासत्व की जंजीरों प्रकार कार्यान्वित होगा?' तब तक (भारत में जकड़ा हुआ था। मेरे माता-पिता का भी में ) हमारे पास पच्चीस लोग थे जिन्हें यही लक्ष्य था। जैसे-तैसे करके जब हमने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो चुका था। उन्होंने वास्तव में महसूस किया था कि आत्म- स्वतन्त्रता प्राप्त कर ली तो थोड़े से समय के बाद ही हम भटक गए। लोगों ने सभी साक्षात्कार से उन्हें क्या प्राप्त हुआ है। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-6.txt सितम्बर-अक्टूबर 2001 5 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 उन्हें लगा कि वे बहुत अच्छे लोग बन गए रहे थे क्योंकि ऐसी पूजा करना अत्यन्त भयानक होता है और यदि यह सत्य न हो। दी थीं और अब वे मेरी पूजा करना चाहते तो यह हानिकारक भी हो सकता हैं। परन्तु थे। मैंने कहा, "नहीं, नहीं, मेरी पूजा मत इसके विपरीत पूजा करते हुए उन सबको हैं। अपनी सारी बुरी आदतें उन्होंने त्याग करो, क्योंकि लोगों को अभी ये बात समझ आत्मसाक्षात्कार मिल गया और सब कह नहीं आएगी। परन्तु एक दिन उन्होंने मुझे उठे अब यह सत्य है। शीतल चैतन्य लहरियाँ प के लिए विवश कर दिया। अतः घर उन्हें अपने हाथों पर महसूस हुई। की छत पर उन्होंने मेरी पूजा की, किसी ने आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के सारे लक्षण उनमें उनको बता दिया था कि ये देवी हैं एक आरम्भ हो गए। उस समय मैं सभी पूजा कुछ न बार ऐसा हुआ था एक भूत बाधित नौकरानी बताना चाहती थी क्योंकि ऐसा कहने वाले हमारे कार्यक्रम के बाद आई और मुझे देवी बहुत से लोग थे कि मैं ये हूँ, मैं वो हूँ। उस के नामों से पुकारना शुरू कर दिया। लोगों समय मैं इन सारी चीज़ों को एकदम से ने उससे पूछा, "तुम क्या कह रही हो?" अनावृत नहीं करना चाहती थी, परन्तु शनैः हैं महिला होते हुए भी उस स्त्री की आवाज शनैः मैंने पाया कि लोग आकर्षित हुए पुरुषों जैसी थी। उसने कहा, "मैं आपको और मेरे कार्यक्रम पर आने लगे हैं। तब सच बता रही हूँ, ये परमेश्वरी हैं जो हमारी सहजयोग बड़ी अच्छी तरह से चारों तरफ रक्षा करने के लिए आईं हैं।" उसकी भाषा फैलने लगा। अतः यह सहस्रार दिवस या नौकरानियों जैसी न होकर अत्यन्त विद्वान जिस दिन ये सहस्रार खोला गया था बहुत ब्राह्हण जैसी थी जो आदि शंकराचार्य के महत्वपूर्ण है। ये अत्यन्त सूक्ष्म है । सारे श्लोकों का उच्चारण कर ले। अत्यन्त आश्चर्य की बात थी! लोगों ने उससे बहुत से प्रश्न पूछे और उसके बाद वह बेहोश हो कि साढ़े तीन कुण्डलों में यह साढ़े गई। मैंने लोगों को कहा, "उसकी बातों त्रिकोणाकार पवित्र अस्थि (Sacrum) में को मत सुनो इसका कोई लाभ नहीं है।" स्थित है। परन्तु हम ये नहीं जानते कि ये परन्तु वो इस बात से सहमत नहीं हुए और क्या कार्य करती है, कैसे कार्य करती है कहने लगे, श्रीमाताजी 'हमें आपकी पूजा और हमारे अन्दर क्या घटित होता है? छः करनी है।" कुण्डलिनी के विषय में हम जानते हैं चक्रों को पार करके यह सातवें चक्र को भेदती है। मुझे कहना चाहिए कि यह केवल तो किसी तरह से मैं पूजा के लिए छः चक्रों को भेदती है क्योंकि श्री गणेश के सहमत हो गई। पूजा करवाने के लिए लोग सात ब्राह्मण ले आए। बहुत घबरा वो चक्र का भेदन नहीं होता जब यह छठे चक्र (सहस्रार) का भेदन करती है तो आपका वे 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-7.txt सितम्बर-अक्टूबर 2001 6 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 सम्बन्ध परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति से बहुतसारे चित्रों में देखा है इसमें भिन्न जोड़ देती है। प्रकार का प्रकाश होता है। यह ऊरज्जा प्रकाश के रूप में बहती है इसलिए यह प्रमात्रा परन्तु यह परमेश्वरी प्रेम (Divine Love) ऊर्जा है । फिर से मैं ऐसा सोचती हूँ, इसके है क्या? इसका क्या अर्थ है? ये माँ की विषय में विश्वस्त नहीं हूँ क्योंकि सदैव मैंने शक्ति है, हम कह सकते हैं कि यह आदि वैज्ञानिकों को अस्पष्ट पाया है। यह प्रमात्रा शक्ति की ऊर्जा है। जो चैतन्य लहरी के ऊर्जा, जिसके विषय में ये लोग बात करते माध्यम से सर्वत्र कार्य करती है। परन्तु ये हैं, आध्यात्मिक ऊर्जा या प्रेम शक्ति की चैतन्य लहरियाँ हैं क्या? यह अत्यन्त सूक्ष्म तरह से है जो हमारे चहूँ ओर बहती है। ऊर्जा है जो आपके सहस्रार से बहने लगती वैज्ञानिक लोग ये नहीं जानते कि ये प्रमात्रा हैं। सहस्रार की एक हजार पंखुड़ियाँ शनैः ऊर्जा क्या कार्य करती है परन्तु उन्होंने ये शनैः ज्योतिर्मय होने लगती हैं और चैतन्य देखा है कि इसमें प्रकाश है। वो इसे प्रमात्रा लहरियाँ व्यक्ति के पूरे शरीर में बहने लगती इसलिए कहते हैं कि उनके अनुसार यह हैं। व्यक्ति के हाथों में, पैरों में और पूरे ऊर्जाणु (Bundles) में प्रसारित होती है । शरीर में ये चैतन्य लहरियाँ प्रसारित होने उनके अनुसार हर समूह एक प्रमात्रा है। लगती है जितना अधिक हमारा चित्त यह ऊर्जा जब प्रसारित होती है, आपने सहस्रार पर होता है उतने ही कम समय में स्वयं देखा है, तो यह कार्य करती है। ये ये चैतन्य लहरियाँ प्रसारित होती हैं। हर दिशा में, हर आयाम में कार्य करती है। विज्ञान में मैंने पढ़ा हैं कि एक प्रमात्रा उदाहरण के रूप में यह शरीर पर भी ऊर्जा (Quantum Energy) होती है। मैं ये कार्य करती है। मान लो व्यक्ति को कोई नहीं जान पाई कि इसे प्रमात्रा (Quantum) शारीरिक रोग है तो यह कार्य करती है। नाम क्यों दिया गया है। इसका अर्थ श्री आपने देखा होगा कि मेरी उपस्थिति में गणेश की ऊर्जा हो सकता है, मैं नहीं बहुत से लोग रोग मुक्त हो जाते हैं। मात्र जानती, क्योंकि वैज्ञानिक तो अन्धे हैं। किस मेरी उपस्थिति में, मुझे उन पर कुछ करना चीज़ को वो क्या कहते हैं ये मैं नहीं नहीं पड़ता। जब भी मैं किसी व्यक्ति को जानती। तो इस ऊर्जा को उन्होंने प्रमात्रा देखती हूँ तो जान जाती हूँ कि उसे क्या ऊर्जा का नाम दिया। तो उनके अनुसार रोग है। मैं कहना चाहूँगी कि यह परमात्मा प्रमात्रा ऊर्जा अत्यन्त सूक्ष्मरूप से रहती है से मेरा सम्बन्ध (योग) है जो मुझे बताता है और आमतौर पर ये अदृश्य होती है परन्तु कि उस व्यक्ति में क्या कष्ट है और क्या इसमें प्रकाश होता है। जैसा आपने मेरे किया जाना चाहिए। उसे तुरन्त ठीक किया | 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-8.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 7 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 जा सकता है। यह बात भी मुझे इसी है। परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति से प्रकार सूझती है। कहने का अभिप्राय यह एक हुए बिना किस प्रकार आप यह है कि मैं कोई प्रश्न नहीं पूछती, कुछ भी ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं? तो ये अत्यन्त खोजने का प्रयत्न नहीं करती, कोई विश्लेषण महान चीज़ है। वर्ष 1970 में मुझे लगा कि नहीं करती, परन्तु ये कहता है कि ऐसा मैं सहस्रार को खोल सकती हूँ ऐसा मुझे कर लो"। ये कहता भी नहीं है सीधे कर महसूस हुआ। मैं अभिभूत हो उठी क्योंकि देता है। यह स्वतः कार्य करता है। ये मैं ये बात जानती थी कि यही कठिनाई है, वर्णन करना कठिन है कि यह शक्ति किस यही बाधा है जो सभी मनुष्यों में है। उनके सहस्रार खुले हुए न होने के कारण वे अंधेरे में विचरण कर रहे हैं और इसी लो ग जिन्हों ने कारण से सारे युद्ध होते हैं और सभी प्रकार कार्य करती है। सब आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लिया है, प्रकार की समस्याएं भी। उनके सहस्रार अपनी शक्तियों को कार्यान्वित कर यदि खुल जाएं और उनका सम्बन्ध यदि सकते हैं । कैसे? उसे प्रसारित करके, परमेश्वरी शक्ति से हो जाए तो इन सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा हर को देकर और इस पर प्रयोग करके । प्रकार की समस्या का हल हो जाएगा और निःसन्देह सहजयोग आप लोगों के कारण सभी के जीवन खुशियों से भर जाएंगे। ये फैला है, आप ही अन्य लोगों को सहजयोग बात मैंने महसूस की। इससे मैं बहुत प्रसन्न में लाए हैं। परन्तु बात यहीं समाप्त नहीं हो हुई और आनन्द से झूम उठी। परन्तु किसी जाती। हमें पूरे विश्व को विनाश से ने मुझे नहीं समझा। मैं नहीं जानती क्यों? बचाना है और उसके लिए, मैं सोचती शायद लोगों ने सोचा कि मैं कोई मूर्खतापूर्ण इसका अनुभव करके, इसे अन्य लागों हूँ, पूरी जनसंख्या के कम से कम 40 बात कर रही हैूँ। किसी ने भी नहीं समझा प्रतिशत लोगों को आत्मसाक्षात्कारी होना कि ये क्या है क्योंकि शास्त्रों में भी कुण्डलिनी आवश्यक है। जो चाहे उनकी राष्ट्रीयता के विषय में कुछ स्पष्ट नहीं लिखा गया हो, जो चाहे उनका शिक्षा स्तर हो, सभी है केवल महान सन्त ज्ञानेश्वर ने अपनी को आत्म-साक्षात्कार दिया जाना चाहिए। पुस्तक के छठे अध्याय में कुण्डलिनी के विषय में लिखा था यह भी अधिक स्पष्ट भारतीय धर्म ग्रन्थों में स्पष्ट रूप से नहीं है उन्होंने मात्र इतना कहा कि लिखा है कि आत्मसाक्षात्कार के बिना कुण्डलिनी द्वारा आप जागृति पा सकते हैं। आपका जीवन व्यर्थ है। परन्तु ये आत्म साक्षात्कार है क्या? ये स्वयं का ज्ञान मैंने सुना है, उदेके अम्बे उदे' (हे कुण्डलिनी आप लोग सदैव वो भजन गाया करते हैं, 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-9.txt सितम्बर-अक्टूबर 2001 8 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 9 व 10 माँ जागो)। परन्तु कोई नहीं जानता कि ये निर्विचार हो जाएं। उन्होंने एक बहुत बड़ा कुण्डलिनी क्या है और आप यह भजन कुण्ड बनाया जिसमें भिन्न आकार बनाए। क्यों गा रहे हैं। हमारे देश के गाँवों में यह उसमें कुछ पत्थर डाले। इस कुण्ड के भजन गाया जाता था परन्तु किसी ने भी किनारे पर बैठो और बिना कुछ सोचे इसे इसका अर्थ नहीं समझा। भजन के रूप में देखते रहो परन्तु लोगों की समझ में ये इसको गाते रहे या संगीत के रूप में इसका बात न आई। सामान्य रूप से कोई भी वहाँ जाता और कहता, "ओह ये कुण्ड ऐसा कि इस भजन में क्या कहा जा रहा है। प्रतीत होता है जैसे समुद्र के अन्दर जहाज यह सारी बात को गलत ढंग से समझना हो या ऐसा ही कुछ और कहता। परन्तु था। उन सभी कवियों ने जिन्होंने जागृति किसी ने भी निर्विचार समाधि में जाने का और आत्मसाक्षात्कार के विषय में स्पष्ट प्रयत्न न किया मैंने वहाँ कुछ लोगों को रूप से लिखा वह सब पुस्तकों में ही रह बताया कि यह कुण्ड निर्विचार समाधि की अवस्था प्राप्त करने के लिए है. उनकी आनन्द लेते रहें, किसी ने भी ये न समझा गया। लोग उसका पाठ करते, पहला पाठक जिस शब्द पर छोड़ता दूसरा वहीं से शुरु समझ में मेरी बात न आई। कर देता और वह तीसरे व्यक्ति के पढ़ने के लिए छोड़ता। इस तरह से पाठ होते रहे। शास्त्रों के विषय में भी यही बात है। सर्वव्यापक शक्ति की बात की जो कि बहुत बड़ी गलतफहमियाँ उत्पन्न कर दी ताओ' है लाओत्से ने सन्तों का वर्णन गईं और इनका उपयोग अपना उल्लू किया सन्त कैसे होते हैं किस प्रकार सीधा करने के लिए किया गया यही आचरण करते है, किस प्रकार बातचीत कारण है कि हमें वे लोग नहीं मिलते जिन्हें करते हैं. उनके तौर तरीके क्या होते हैं जापान में 'ताओ' हुए हैं। उन्होंने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया हो। धन आदि आदि। परन्तु किसी ने ये न बताया तथा पदवी प्राप्त करने के लिए लोगों ने कि किस प्रकार आप सन्त बन सकते हैं। बड़ी-बड़ी संस्थाएं, बड़ी-बड़ी धार्मिक संस्थाएं मैं सोचती हूँ कि कहीं भी ऐसा वर्णन नहीं आरम्भ कर दीं। मैं नहीं जानती कि उन्हें है कि एक साधारण व्यक्ति को सन्त किस किस नाम से पुकारा जाए परन्तु उनमें से प्रकार बनाया जाए। कोई भी आत्मसाक्षात्कारी नहीं था उदाहरण ज्ञानेश्वर जी बारहवीं शताब्दि में हुए। तब उन्होंने इसके विषय में बताया और जेन अर्थात ध्यान। जेन अपनी पुस्तक में बहुत कुछ लिखा। तब को उन्होंने इस प्रकार लाना चाहा कि लोग एक गुरु एक शिष्य की परंपरा थी कि एक के रूप में विदित्तमा नाम के एक सन्त थे जो चीन गए। वहाँ पर उन्होंने ज़ेन नामक धर्म आरम्भ किया। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-10.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 9 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 गुरु एक ही शिष्य को आत्मसाक्षात्कार दे है। आपका सहस्रार यदि खुल चुका बहुत से शिष्यों को नहीं। मैं नहीं जानती और आप यदि जानते हैं कि कुण्डलिनी कि किस कारण से उन्होंने ऐसा कानून या किस प्रकार उठाई जाए तो लोगों को नियम बनाया बारहवीं शताब्दि में ये कार्य आत्म साक्षात्कार देने का हर सम्भव प्रयत्न करें आत्मसाक्षात्कार देने का हर है आरम्भ हुआ, बहुत से सन्तों ने आत्म- साक्षात्कार के गुणगान किए। सभी ने ये सम्भव प्रयत्न करें। आत्मसाक्षात्कार से माना कि कर्मकाण्ड व्यर्थ है और इस प्रकार अधिक लाभ उन्हें कोई अन्य चीज़ नहीं उन्होंने कर्मकाण्डों को त्याग दिया, परन्तु पहुँचाएगी। बाकी दान करना, पैसा देना कोई न जानता था कि क्या घटित होना चाहिए। मैंने सभी की जीवनियाँ पढ़ी हैं। जी-जान से जिज्ञासुओं को खोज निकालना सभी सन्तों के विषय में पढ़ा है परन्तु ऐसा है । ये लगता है कि उनमें से कोई भी ये न देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई कि इन जानता था कि कुण्डलिनी को कैसे जागृत लोगों ने जिप्सियों पर कार्य करना आरम्भ किया जाए। ये मूल समस्या थी-वे नहीं किया है। जिप्सियों के लिए मेरे हृदय में जानते थे कि किस प्रकार कुण्डलिनी को विशेष भावना है। बिना अपने किसी दोष उठाया जाए। हो सकता है उनमें ये शक्ति के वे दयनीय जीवन जी रहे हैं। किस आदि सब बेकार है। सर्वोत्तम बात तो और उन्हें आत्म-साक्षात्कार देना ही न हो या उन्हें इसका ज्ञान ही न हो। प्रकार से जिप्सियों ने आत्म- साक्षात्कार ठीक है कि उन्होंने कुण्डलिनी की बात प्राप्त किया? कोई भी व्यक्ति यदि की। परन्तु कुण्डलिनी को उठाना वो न जानते थे। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना चाहता हो तो आप उसे आत्म साक्षात्कार दे सकते हैं। परन्तु आत्म साक्षात्कार किसी पर थोंपा नहीं जा सकता। उनमें यदि इंच्छा है, शुद्ध यह आध्यात्मिकता की विशेष शक्ति है । उनमें से कोई भी आपको ये न बता सका इच्छा है तो वे आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर कि कुण्डलिनी को किस प्रकार उठाएं । सकते हैं। अब आप सबको ये शक्ति प्राप्त हो गई है और यह अत्यन्त दुर्लभ है। आप सबको ये प्राप्त हो गई है। मुझे एक भी सहजयोगी बहुत से वर्ष गुजर चुके हैं। रात-दिन मैंने नज़र नहीं आता जिसमें कुण्डलिनी उठाने कठोर परिश्रम किया और मेरी एकमात्र की शक्ति न हो। अपनी इच्छा से चाहे इच्छा यही थी कि आप लोग इसे आप ये कार्य न करें, अपने आप में सन्तुष्ट गम्भीरता से लें हो जाएं, परन्तु ये कोई अच्छी बात नहीं अपने आत्मसाक्षात्कार को अपने तक अतः आज मुझे ये कहना है कि अब और कार्यान्वित करें। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-11.txt सितम्बर-अक्टूबर 2001 10 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 ही सीमित न रखें। जितने अधिक से आप लोगों को मेरे हाथ मजबूत करने होंगे। अधिक लोगों को आप आत्मसाक्षात्कार लोग कहते हैं कि देवी के एक हजार देंगे, मैं तथा सर्वशक्तिमान परमात्मा उतने ही अधिक आभारी होंगे आप हाथ है परन्तु वो एक हजार हाथ भी अब आपसे माँग रहे हैं कि अपने दो केवल अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार देने हाथों समेत आ जाओ और इसे कार्यान्वित करो। जो कार्य आपने करना होगी। आप कभी कोई गलती नहीं कर है वह बहुत महत्वपूर्ण है। संसार में भिन्न सकते क्योंकि कुण्डलिनी सब जानती है। प्रकार की समस्याएं हैं, चाहे वे राजनीतिक का प्रयत्न करें। आपसे कभी गलती नहीं वह आपको पहचानती है और यह भी जानती हों या अन्य प्रकार की, सभी अज्ञानता के है कि आप आत्म- साक्षात्कारी व्यक्ति हैं। कारण आती हैं और इनका समाधान भी वह आपका सम्मान करेगी आप यदि आपकी परमेश्वरी शक्ति के द्वारा ही हो गलतियाँ करेंगे तो वह आपकी गलतियां सकता है। इसका मैं आपको एक साधारण भी सुधारेगी और सभी प्रकार से आपकी उदाहरण दूंगी। तुर्की के लोग आए और मुझसे याचना करने लगे, "श्रीमाताजी आप आएं। अपनी यात्रा की तिथि आगे न बढ़ाए।" लेकिन मेरे पासपोर्ट की समस्या थी। मैंने सहायता करेगी। मैं तो मात्र एक गृहणी हूँ जिसे किसी का भी आश्रय न था, परन्तु मैं विश्वस्ति थी कहा, "मेरा पासपोर्ट तैयार नहीं है. मैं कैसे कि यह खोज निकालना मेरा कार्य हैं कि आऊंगी?" परन्तु तब मैने सोचा क्यों नहीं? | तो पासपोर्ट हम पासपोर्ट भी बनवा लेगे।" सहस्रार का भेदन किस प्रकार किया जाए । बाहर जो भी हालात थे या स्थिति थी, मेराबन गया वो चाहते थे कि मैं तूुर्की आऊं कार्य सहस्रार भेदन की विधि खोजना था क्योंकि उन्होंने कहा, "आर्थिक स्थिति बहुत और वह मैंने किया, आप भी इस बात को खराब हो गई है, अर्थव्यवस्था पूरी तरह से जानते हैं। अब यह आपका कार्य है। अब बिगड़ गई है, हम बर्बाद हो गए हैं ।" मैं वैज्ञानिक भी आपके पास आकर प्रश्न पूछा वहाँ गई, परन्तु इसके विषय में मैने कुछ करेंगे क्योंकि वे नहीं जानते कि वो जिन नहीं किया, फिरभी दो दिन के अन्दर विश्व चीजों के विषय में बातें कर रहे हैं हम बैंक ने दस करोड़ डालर की सहायता की उन्हीं को कार्यान्वित कर रहे हैं। अतः आप घोषणा कर दी। मैंने तो विश्व बैंक से कोई लोग अत्यन्त शक्तिशाली हैं। असली बात ये है कि आपमें से कितने लोग वास्तव में लेना देना। मैं नहीं जानती। तब मैंने कहा, इस कार्य को कर रहे हैं? आज बहुत "हो सकता है कि वो आपकी सहायता महत्वपूर्ण दिन है । मैं आपको बता दूं कि इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आप कष्ट में बात नहीं की थी मुझे विश्व बैंक से क्या 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-12.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 11 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 हैं। वो कहने लगे, "कष्ट में तो बहुत से हैं। भेदभाव करने की या उनके पास बैठकर देश हैं, उन्होंने केवल हमारी सहायता क्यों उनके शिक्षा स्तर की जाँच करने की कोई आवश्यकता नहीं है चाहे जो भी हो मैं ये नहीं कह रही हूँ कि आप कुत्तों तथा पशुओं मैं हैरानी थी कि तुर्की में अधिकतर को आत्मसाक्षात्कार दें, केवल मनुष्यों को महिलाएं ही अगुआ थीं और उन्होंने बहुत दें। (माँ हँसती हैं) चाहे कोई भी मनुष्य हो, बड़ा कार्य किया है। मैं देखना चाहती हूँ वो अंग्रेज हों जर्मन हो, इटेलियन हों या की?" मैंने कहा, "ये तत्व की बात है।" कि आप लोग अपने देश में क्या कार्य कर किसी अन्य स्थान के हों। मुझे बताया गया रहे हैं? आप कह सकते हैं मेरे देश में लोग है कि कुछ लोग गोष्ठियाँ करते हैं और बिल्कुल लिए असहमति न प्रकट करूं। परन्तु ऐसे करते हैं और इस तरह से सहजयोग का स्थान, ऐसे छोटे-छोटे क्षेत्र भी हैं जहाँ प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। मुसलमान लोगों जाकर आप सहजयोग बता सकते हैं पर भी हमने कार्य आरम्भ कर दिया है। सहजयोग की बात कर सकते हैं। विशेष भारत में भी इसमें सफलता प्राप्त हुई है। रूप से संवाददाताओं (Media) को आप कायल कर सकते हैं। ये कार्य आपको विरोध नहीं किया। अतः यह कार्यान्वित हो करना होगा और खोज निकालना होगा कि सकता है। इसके विषय में न तो अधिक आप क्या कर सकते हैं? मेरी तरह से। निराश होने की आवश्यकता है और न ही मुझे किसी का सहारा न था, किसी ने मेरी परेशान होने की शनैः शनैः इसमें सुधार बेकार हैं। हो सकता है मैं इसके सभी प्रकार के लोगों के साथ कठोर परिश्रम आप नहीं जानते, किसी ने भी इसका सहायता न की, फिर भी किस प्रकार मैंने होगा। सहस्रार का भेदन किया। आप भी अन्य लोगों का सहस्रार भेदन कर सकते हैं। मेरे विचार से आत्मसाक्षात्कार का सबसे बड़ा शत्रु शराब है। लोगों को यदि मद्यपान हो ये कार्य कठिन नहीं है क्योंकि ये मेरा की लत पड़ जाए तो वे इसके गुलाम । मैं स्वप्न है कि इस विश्व में कम से कम 40 जाते है। उनके दिमाग ठीक नहीं रहते प्रतिशत लोग ऐसे हों जो आत्मसाक्षात्कारी सोचती हूँ शराब की लत के कारण उनका हों और जिन्होंने सहजयोग को अपना लिया सहस्रार बिगड़ जाता है। अतः मेरे विचार हो तथा जो अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार से मद्यपान सबसे बड़ा शत्रु है। यदि आप दे रहे हों और उनको परिवर्तित करने में शराब की लत में फँसे किसी व्यक्ति को लगे हुए हों। किसी के भी पास जाकर देखें और इस लत से उसे मुक्त कराना आप उसे सहजयोग के विषय में बता सकते चाहें तो आत्मसाक्षात्कार के द्वारा ये कार्य 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-13.txt सितम्बर- अक्टूबर 2001 12 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 9 व 10 हो जाएगा। निःसन्देह हमारे और भी शत्रु अन्य लोगों को देना है। अपनी या आप हैं जैसे कुगुरु। इसके अतिरिक्त हमारे और थोड़े से लोगों की उपलब्धि से सन्तुष्ट हैं जो धर्म के मामले में छलयोजनाएं होकर नहीं बैठ जाना। तेजी से आपने शत्रु करते हैं परन्तु यह चीजें अधिक महत्वपूर्ण इसको प्रसारित करना है और यह कार्य नहीं हैं। तो आपको यदि शराब की लत में करने की क्षमता आपमें है। इसके लिए न फँसे है न दिखावे की। लोग मिलें तो मैं आपको बताती हैँ तो धन की आवश्यकता हुए कि वे परिवर्तित हो जाएंगे और समझ यह आपके अन्तःस्थित है और यह कार्य जाएंगे कि अभी तक जो कुछ भी वो कर रहे थे वो गलत था। उनका शराब पीना विद्यमान है, आप सभी लोगों में है। मैं ये और पलायन समाप्त हो जाएगा और वे सब जानती थी, निःसन्देह मैं तो ये सब कर्म क्षेत्र में लौट आएंगे तथा सहजयोग पहले से जानती थी अब आप लोग भी को कार्यान्वित करेंगे। करता है। ये आपमें पहले से ही है, आपमें इसे जान गए हैं। अतः अब आप लोग इसे कार्यान्वित करें। भली-भांति कार्यान्वित करें। अब आप लोग प्रेम के शान्त सैनिक हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि एक दिन ये संसार इसी चीज़ का आपने प्रसार करना है और बिल्कुल भिन्न स्थान बन जाएगा। यही चीज़ आपने अन्य लोगों को बतानी है। और जो आनन्द आप प्राप्त कर रहे हैं वह आप सबको बहुत-बहुत धन्यवाद । 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-14.txt ***सस श्री ईसा मसीह पूजा गणपति पुले, 25.12.2000 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ना। तदि >ं *े आज का शुभ दिवस है जो मनाया जाता बार-बार कहा है कि 'अपने को जानो-अपने है। कारण, ईसामसीह का जन्म कहते हैं को जानो। यह कहते हुए भी लोगों ने इस कि आज हुआ था ईसामसीह के बारे में चीज़ का महत्व नहीं समझा और धर्म फैलाना लोग 1 बहुत कम जानते हैं क्योंकि वो छोटी शुरू कर दिया। अपने को जाने बगैर ही उम्र में बाहर चले गए थे और उसके धर्म फैल नहीं सकता, धीरे-धीरे वो बाद वापिस आकर के उन्होंने जो महान अधर्म हो जाता है और यही बात ईसाई कार्य किए वो सिर्फ तैंतीस (33) वर्ष के उम्र धर्म की हो गई | जैसे कि ईसामसीह एक तक ही थे। उसके बाद उनके जो शिष्य विवाहोत्सव में गए थे, शादी में गए थे और थे, बारह उन्होंने धर्म का प्रचार किया लेकिन वहाँ पानी में हाथ डाल के उन्होंने उसकी जैसे आप लोगों को भी समस्याएं आती हैं शराब बना दी ऐसा लिखा हुआ है। हिब्रु में उसी प्रकार उनको भी अनेक समस्याएं कहा जाता है जिसमें कि यह बात लिखी आई। पर इन बारह आदमियों ने बहुत गई है शुरूआत में, कि वो पानी जो था कार्य किया और शुरूआत के जो लोग उसका परिवर्तन जो हुआा सो जैसे कि इनको मानते थे उनको ग्नोस्टिक अंगूर का रस। इस तरह उसका स्वाद था (Gnostics) कहते थे। ग्नोस्टिक माने और अंगूर के रस को भी उसमें वाईन "जिन्होंने जाना है'। 'जन्म' से आता है ग्नः (wine) नहीं कहते। इसी बात को लेकर ग्नः माने जानना। और इन लोगों को भी के ईसाईयों ने कहा कि चलो यह तो बहुत सताया गया, इस बक्त के जो प्रीस्ट हमको मना नहीं है, शराब पीनी चाहिए (priest) वगैरह, लोग थे उन्होंने बहुत और इस तरह से ईसाईयों में शराब बहुत चल पड़ी। शराब अधर्म लाती है, शराब से मनुष्य विचलित हो जाता है ऐसी बात कैसे इसलिए शुरूआत में बड़ी तकलीफ से ईसामसीह कहते? यह तो बहुत आसान ईसामसीह की बातें लोगों में भर दी गई चीज़ है, हम भी कर सकते हैं, पानी में हाथ सताया। फिर जो उस वक्त सबको आत्मसक्षात्कार डालकर के हो सकता है कि उसका स्वाद प्राप्त नहीं हुआ था और ईसामसीह ने बदल दें। लेकिन इतनी लोग शराब पीने ी **५५ 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-15.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 14 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 9 व 10 के नाम पर अधर्म करना मैं सोचती हूँ लग गए, हम तो हैरान हैं! इंग्लैंड में हम महापाप है और इस प्रकार सब गलत-गलत बातों को लोग अपना लेते हैं। उनके जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य था कि आपके अन्दर गए थे तो वहाँ तो कोई मरता था तो भी बैठ कर शराब, कोई पैदा होता था तो भी शराब, बात-बात में शराब और इतनी शराब चल पड़ी कि अब शराब के सिवा बात ही जो आज्ञा चक्र है उसका भेदन करें और नहीं करते। किसी के घर जाइए तो पहले इसलिए उन्होंने अपने को क्रॉस (cross) वो शराब देंगे, अगर आप शराब नहीं पीते पर टाँग दिया और फिर उसके बाद फिर तो वो समझ नहीं सकते कि आपसे बात से जीवित हो गए। यह चमत्कार लगता है क्या करें। इस प्रकार इसका प्रचलन गलत लेकिन परमेश्वरी कार्य को चमत्कार कोई चीज़ नहीं। यह उन्होंने दिखाया कि इन्सान चल पड़ा और अगर कोई कहे कि ईसामसीह ने ऐसा किया तो इससे बढ़ के गलत बात इस आज्ञा चक्र से बाहर जा सकता है और और कोई हो नहीं सकती। कभी भी कोई आज्ञा चक्र पे इन्होंने दो मन्त्र बताएं हैं इसे भी अवतरण आते हैं वो कभी भी आपको हम बीज मन्त्र कहे हैं हूँ और क्षम्' । क्षम् ऐसी बात नहीं सिखाएंगे कि जो आपके का मतलब है क्षमा करो। क्षमा करना, यह धर्म के विरोध में है। अब वो शराब का सबसे बड़ा मन्त्र है। जो आदमी क्षमा करना प्रचलन बढ़ते-बढ़ते हिन्दुस्तान में भी आ गया। जब हम लोग छोटे थे तो यहाँ उसका जो अहंकार है वो नष्ट हो जाता जानता है उसका ईगो (Ego) जो है या अंग्रेज़ों का राज था, कोई हिन्दुस्तानी लोग है । छोटी-छोटी बात में आदमी में अहंकार शराब नहीं पीते थे, जहां तक हम जानते होता है जैसे किसी से कह दिया भाई तुम हैं। हाँ कोई कोई रईस लोग पीते होंगे, बैठ जाओ जमीन पर तो उनका अहंकार लेकिन कोई नहीं पीता था और अब जिसको हो गया, अगर कहा कुर्सी पर बैठो तो देखो वो ही शराब पी रहे हैं और शराब में कहेंगे कि यह छोटी कुर्सी है हमको क्यों कितनी दुर्दशा होती है वो कोई जानता ही दी? हर एक मामले में मनुष्य को अपने बारे नहीं है और सोचता नहीं है और गलत में बड़ी कल्पनाएं होती हैं और वो कोई ज़रा सा कल्पना से कम चीज किसी ने की कि उसका अहंकार एक दम खड़ा हो जाता काम करते हैं । तो पहली चीज़ भई बताना चाहती हूँ है। कभी- कभी अन्जाने में भी ऐसी बात हो कि जो यह ईसाई लोग शराब पीते हैं तो सकती है और अन्जाने में भी कोई आदमी बड़ा धार्मिक कार्य नहीं करते हैं। यहाँ तक कुछ ऐसी बात करे तो जो आदमी अहंकारी कि इनके रोम में जो चर्च है वहाँ एक होता है उसको हर एक चीज़ में लगता है शराब बनाते हैं। धर्म से अधर्म करना, धर्म कि उसका अपमान हो रहा है। इस तरह পাঁ 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-16.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 15 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 9 व 10 से वो हर समय एक अजीब सी हालत में लिए दिया है। और दूसरा हॅँ-हूँ जो है यह रहता है कि कोई भी उसके लिए करो 'क्षम्' से बिल्कुल उलटा अर्थ रखता है। हं काम तो सोचता है कि उसका अपमान हो माने यह जान लो तुम क्या हो। यह जान रहा है, उसको नीचा दिखाया जा रहा है लो कि तुम आत्मा हो, तुम यह शरीर, बुद्धि, यह दिमाग में बात बैठी रहती है और फिर मन, अहंकार आदि उपाधियाँ नहीं पर तुम आप सीधी भी बात करो, चाहे नहीं भी करो आत्मा हो और इस 'हूँ को जानकर के आप समझ लोगे कि मैं आत्मा हूँ। सबका एक ही अर्थ निकलता है। इसलिए देखना चाहिए और सोचना यह चाहिए कि जो ईसामसीह ने कहा है कि गलत-सलत बातें हमारे दिमाग में घमंड आपको अगर किसी के लिए भी ऐसा लगा से, गर्व से, मूर्खता से, अज्ञान से आई हुई आत्मा का मतलब यह है कि कितनी भी कि उसने आपका अपमान किया या उसने हैं यह सब बेकार हैं, इनका कोई अर्थ नहीं आपको दिया, तकलीफ दी तो उसे बनता। तुम साक्षात जब स्वच्छ आत्मा हो दुख आप क्षमा कर दो। अब देखिए अगर आप तो इस आत्मा में यह सब चीज आती नहीं सबको क्षमा कर दें तो क्या हो जाएगा? और तुम अत्यन्त पवित्र हो। सो दो चीज़े आपको कोई तकलीफ नहीं हो सकती, उन्होंने बताई एक तो यह कि आप आप परेशान नहीं हो सकते। जब आपने सबको क्षमा कर दो। कोई ज्ञान से, से भी कहे क्षमा कर क्षमा ही कर दिया तो उस बारे में आप अज्ञान कुछ कुछ सोचेंगे ही नहीं और कोई ऐसी घटना हो दो जिससे आप को तकलीफ नहीं होगी ही नहीं सकती कि जो आपके विपरीत हो क्योंकि क्षमा करिये न करिये आप करते क्योंकि आप सबको क्षमा करते रहते हैं क्या हैं? कुछ भी नहीं। पर जब आप क्षमा यह शक्ति हमें आज्ञा चक्र से मिलती है। नहीं करते हैं तब आप अपने को सताते हैं जिसका आज्ञा चक्र अच्छा होता है वो सबको और तंग करते हैं और जिस आदमी ने क्षमा कर देता है और नहीं तो दूसरा मार्ग आपको दुख दिया, तकलीफ दी वो तो मजे क्या? अगर आप क्षमा नहीं करेंगे तो आप में बैठा है तो इस तरह से आप देखें कि अपने ही को तकलीफ देंगे, अपने ही को कोई ऐसी बात हो उसे आप क्षमा करने की परेशान करेंगे और जो दूसरा आदमी है वो आदत डाल लें। हो सकता है उसने जान बूझ कर आपका दूसरी बात जो कही है उन्होंने कि तुम अपमान किया है तो वो और बलवत्तर हो जाएगा। इसलिए क्षमा करना उन्होंने बड़ा आत्मा हो, इस आत्मा को जानो। आत्मा भारी एक बड़ा भारी सन्देश मानव जाती के को तो कोई छू नहीं सकता, नष्ट नहीं कर 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-17.txt सितम्बर-अक्टूबर 2001 16 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 सकता, उसको सता नहीं सकता। अगर भटकते रहते हैं, तो भी वो गहन नहीं आप वो आत्मा स्वरूप हैं तो उसमें पूर्णतया आते तो केन्द्र बिन्दु अगर आपका आज्ञा समविलीन होना चाहिए। लेकिन इस आत्मा है और उसके ओर लक्ष्य कर के अगर आप को प्राप्त करने के लिए आप देखें तो आप समझ जाएंगे कि यह आज्ञा जानते हैं कि कुण्डलिनी का जागरण होना जरूरी है और कुण्डलिनी के की वजह से आप चक्करों में पड़े हुए हैं. जागरण के बाद उसमें स्थित होना विचारों के चक्करों में पड़े हुए हैं, नाना पड़ता है, उसमें बैठना पड़ता है। जब तरह की उपाधियाँ इससे लग रही हैं। पर तक आप उसमें स्थित नहीं हों गे तब तक आप छोटी -छोटी बातों में उलझे इससे परे आप चले जाएंगे तब आप में यह रहेंगे। तत्व चक्र आपको घुमा रहा है। इस आज्ञा चक्र जब इस आज्ञा चक्र को आप लांघ जाएंगे, जो व्यथा है वो खत्म हो जाएगी। इसलिए आज्ञा चक्र का महात्मय माना जाता है। तो अपने में समाना आना चाहिए, अपने यहाँ तक कि बाईबल (Bible) में लिखा ही अन्दर समाना चाहिए। अपने अन्दर जब हुआ है कि जो आदमी माथे पर टीका आप समाने लग जाएंगे तो आपके अन्दर लगा कर आएगा वो बचेगा, लिखा है एक नितान्त शान्ति प्राप्त होगी और आप ऐसा वो सहजयोगी होंगे और कौन होगा! विचलित नहीं होंगे। इस शान्ति के दायरे काम तो प्रचण्ड है। वो बारह (12) आदमी में जब आप रहेंगे तो आपको आश्चर्य होगा थे, आप लोग हजारों हैं। लेकिन एक-एक कि आप जो छोटी-छोटी चीजों के लिए आदमी ने वहाँ जो मेहनत की है उसके हर समय परेशान रहते थे वो नहीं रहेंगे, एक सहस्त्रांश भी आप लोगों ने नहीं की आत्मा के आनन्द में आप डूबे रहेंगे। इस है, अन्यथा न जाने कहाँ से कहाँ यह कार्य आत्मा को प्राप्त करने के लिए मैंने कहा फैल सकता! अब मेरे लिए तो यही एक कि कुण्डलिनी का जागरण अत्यावश्यक है आधार है कि आप लोग सहजयोग को उसके लिए, उसके बगैर हो नहीं सकता। बढाएंगे और सारे विश्व में इसे फैलाएंगे। परमात्मा आपको धन्य करें। पर होने पर भी, जागरण होने पर भी लोग 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-18.txt श्री ईसा मसीह पूजा 25.12.2000 (श्री माताजी के प्रवचन के अंग्रेजी भाग का अनुवाद) *भ भभ ২ मुझे खेद है कि मुझे हिन्दी भाषा में पड़ा और उस बलिदान में उन्होंने दर्शाया बोलना पड़ा क्योंकि यहाँ उपस्थित बहुत से कि मनुष्य को यदि सांसारिक बनावटी जीवन लोग सिर्फ हिन्दी भाषा समझते हैं। मैं जब से ऊपर उठना है तो उसे बलिदान करना बाहर होती हैँ तो केवल अंग्रेजी बोलती हूँ, पड़ेगा । क्या बलिदान करना पड़ेगा? आपको इसके अतिरिक्त कोई और भाषा नहीं। अपने षड्रिपु (काम, क्रोध, मद, मोह, मत्सर, इसलिए कभी-कभी मुझे परिवर्तन की भी लोभ) बलिदान करने पड़ेंगे। परन्तु कुण्डलिनी की जागृति के साथ ये षड्रिपु छुट जाते | ऐसा होना इस बात पर निर्भर करता है ईसा-मसीह के महान अवतरण के बारे कि आपकी कुण्डलिनी कितनी जागृत हुई। में मैंने इन्हें बताया कि एक महान लक्ष्य कुण्डलिनी यदि पूर्ण रुपेण उठ जाए लेकर वे पृथ्वी पर अवतरित हुए। वे आज्ञा तो, मैंने देखा है पहली बार में ही चक्र को खोलना चाहते थे जो कि बहुत ही लोग पूर्ण साक्षात्कारी हो जाते हैं। ऐसे संकीर्ण है और इससे पूर्व ये कभी न खोला लोग बहुत कम हैं, परन्तु ऐसे लोग हैं। इच्छा होती है। जा सका था। इस महान कार्य को करने के लिए उन्हें अपना जीवन बलिदान करना पड़ा। उनके इस बलिदान के कारण ही अधिकतर लोगों के साथ कुछ न कुछ परन्तु मुझे लगता है कि आपमें से यह संकीर्ण चक्र खुल पाया। उन्हें इस बात समस्याएं हैं और अधिकतर को आज्ञा चक्र का ज्ञान था। वो जानते थे कि घटनाक्रम की समस्या है। हमारा आज्ञा चक्र इसलिए ऐसे ही घटित होगा और उन्हें अपना बलिदान बहुत अधिक चलता है क्योंकि हम सभी स्वीकार करना होगा। वे दिव्य पुरुष थे। बाह्य वस्तुओं को देखकर प्रतिक्रिया के ऐसा करने में उन्हें कोई समस्या न थी रूप में सोचते हैं, हर चीज़ के प्रति हम परन्तु उन्होंने सोचा कि ऐसा किए बिना प्रतिक्रिया करते हैं। यहाँ मैं ये सारे लैम्प यदि ये कार्य हो सके तो अच्छा है। परन्तु देख रही हूँ। इनके बारे में मैं प्रतिक्रिया कर अन्ततः उन्हें अपना जीवन बलिदान करना सकती हूँ और पूछ सकती हूँ कि आप *** शL) *** 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-19.txt चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 9 व 10 सितम्बर-अक्टूबर 2001 18 लोग इन्हें कहाँ से लाए, इन पर कितना इस प्रकार होती है जैसे मैं ये लैम्प देखकर पैसा खर्च हुआ, वर्ष भर इनको कहाँ रखते कह सकती हूँ कि मैं क्यों नहीं इन्हें ले आदि-आदि? मैं प्रतिक्रिया कर सकती सकती, या यदि ये मेरे पास हैं तो किसी हूँ। यह प्रतिक्रिया हमारे अहं एवं बन्धनों के और को मैं क्यों दूं? या तो अहं की प्रतिक्रियाएं कारण होती है। अहंकारी लोग अत्यन्त होती है या प्रतिअहं की। इन दोनों का संवेदनशील होते हैं। आप उन्हें यदि ऐसी समाप्त होना आवश्यक था और ये कार्य चीज दें जो बहुत गरिमामय नहीं है तो ईसामसीह के जीवन बलिदान द्वारा किया उन्हें खेद होता है। किसी भी चीज़ के गया ईसा मसीह दिव्य पुरुष थे और दिव्य विषय में उनके हृदय को चोट पहुँचती है पुरुष सागर की तरह होते हैं और सागर क्योंकि अपनी चेतना के कारण वे स्वयं को शून्य बिन्दू (0°) पर होता है। निम्नतम स्तर कुछ विशेष, कुछ ऊँचा मानते हैं । उनसे पर रहते हुए यह सारे कार्य करता है, व्यवहार करते हुए हमें बहुत सावधान रहना चाहिए क्योंकि यदि उन्हें ये महसूस हो बादलों का सृजन करता है, वर्षा बनाता है और वर्षा के पानी से जब सभी नदियाँ भर जाती हैं तो वे लौटकर समृद्र में आ जाती जाए कि कोई उनका तनिक सा भी अपमान कर रहा है तो वे पूर्णतः क्षुब्ध हो जाते हैं। हैं क्योंकि समुद्र का स्तर निम्नतम होता यह अहं की देन है। अहं आज्ञा चक्र की है। गतिविधि का एक भाग है । बन्धन अतः विनम्रता सहजयोगी का एक (Conditioning) इसका दूसरा भाग है। मापदण्ड है । विनम्रता विहीन व्यक्ति अब आपके साथ एक बन्धन है, जैसे को सहजयोगी नहीं कहा जा सकता। आप भारतीय हैं तो आपका बन्धन ये है कि मैंने देखा है, सहजयोगी भी कभी-कभी कोई यदि आपसे मिलने आए तो वह आपके बहुत क्रुद्ध हो जाते हैं, चिल्लाने लगते हैं, चरण-स्पर्श करे । मान लो वो आपका दुर्व्यवहार करने लगते हैं। ये व्यवहार दर्शाता सम्बन्धी है और आपके चरण नहीं छूता तो है कि वे अभी तक सहजयोगी नहीं है और आप नाराज हो जाते हैं। इस प्रकार का अभी उन्हें परिपक्व होना है। ये विनम्रता कोई भी बन्धन आपके मन में ये विचार व्यक्ति को अधिक स्थायित्व देती है, मैं पैदा करता है कि आपको अपमानित किया कहूँगी कि एक अधिक स्थायी अवस्था जा रहा है, आपका सम्मान नहीं किया जा जिसके कारण आप प्रतिक्रिया नहीं रहा और यह बात आपको बुरी लगती है। करेंगे, किसी भी चीज को देखकर आप अहं की अन्य प्रतिक्रियाएं जैसे मैंने बताया प्रतिक्रिया करते हैं, परन्तु तब आप प्रतिक्रिया প পাঁত ১tc 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-20.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 19 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 नहीं करेंगे। वस्तु को केवल देखेंगे और व्यक्ति को महान नहीं बनाती। महानता इस प्रकार आपमें एक नई अवस्था, साक्षी तो अन्तर्निहित है और जब ये महानता अवस्था का उदय होगा जब आप साक्षी अन्दर होती है तो आप बाह्य वस्तुओं की बन जाएंगे तो केवल देखेंगे, प्रतिक्रिया चिन्ता नहीं करते। तब आप अपने अन्दर नहीं करेंगे, इसके विषय में सोचेंगे नहीं। इतने वैभवशाली हो चुके होते हैं कि आपको । बिना तब आप वर्तमान में होंगे। वर्तमान में आप बाह्य चीज़ों की चिन्ता नहीं होती देखते हैं और वास्तव में आनन्द लेते हैं । इन चीजों की चिन्ता किए आप गौरवमय सोचते हुए किसी भी कृति का आनन्द जीवन व्यतीत करते हैं । ईसा मसीह के आपके मस्तिष्क में नहीं होता परन्तु जीवन से भी हमें यही बात देखने को जब आप निर्विचार होते हैं तो उस मिलती है। वे अत्यन्त गौरवशाली व्यक्ति कृति के सौन्दर्य का पूर्ण आनन्द आपमें थे अन्यथा कोई गरीब व्यक्ति तो, जिसने प्रतिबिम्बित होता है और आपको गरीबी का स्वाद चखा हो, भिखारियों की अगाध शान्ति एवं आनन्द प्रदान करता शैली में बात करेगा। यदे किसी धनवान है। अतः व्यक्ति को सीखना है कि परिवार में जन्में व्यक्ति से आप बात करेंगे उसे प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। तो वह अत्यन्त बाह्य दिखावे के स्वभाव से आज की मुख्य समस्या ये है कि सभी बातचीत करेगा परन्तु दिव्य पुरुषों को ये मनुष्य प्रतिक्रिया करने में अत्यन्त कुशल सब चीज़ें छूती तक नहीं। उनके लिए हैं। प्रतिक्रिया करना आज के समाज का अमीरी-गरीबी, उच्च पद या सत्ता का अभाव, प्रमुख सिद्धान्त है। किसी भी समाचार पत्र सभी स्थितियाँ एक सम हैं। ऐसी स्थिति जब आपमें विकसित हो जाए तब आपको मानना चाहिए कि आप सहजयोगी बन गए या पुस्तक को आप उठाएं तो आपका सामना ऐसे लोगों से होगा जो प्रतिक्रिया करने में कुशल हैं, वे प्रतिक्रिया करते हैं और उस हैं मैंने देखा है कि गणपति पुले आने वाले प्रतिक्रिया के कारण विषय के सार तत्व लोग अब बहुत परिवर्तित हो गए हैं। आरम्भ में तो जब लोग वहाँ आते थे तो कहा करते तक नहीं जा पाते। सार तत्व को तो केवल साक्षी अवस्था द्वारा ही पाया जा सकता ये हमें पानी नहीं मिलता, यहाँ फलाँ है। ईसा-मसीह के बलिदान से हमें यही सुविधा नहीं मिलती, यहाँ गर्मी है या सर्दी सीखना है। उनका जन्म एक अत्यन्ति गरीब है। हर समय वे ऐसे बात करते थे मानो एवं विनम्र परिवार में बहुत ही कठिन छुट्टी बिताने के लिए आए हों। सहजयोग परिस्थितियों में हुआ। लक्ष्य ये दर्शाना बिल्कुल भिन्न है । यहाँ पर आप अपनी था कि बाह्य पदार्थ, बाह्य शानो शौकत साक्षी अवस्था विकसित करने के लिए हैं । 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-21.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 20 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 आपने आज आकाश को देखा यह कितना कि किस प्रकार ये आपको अपने जाल में सुन्दर था! किस तरह नारंगी और नीले फँसाने का प्रयत्न करता है। आज के युग रंग आकाश में बिखरे हुए थे! स्वतः ही की यही समस्या है और इसीलिए हमें आज इसमें रंग उठते हैं और इनका यह आनन्द ईसामसीह की अत्यन्त आवश्यकता है। लेता है। इस बात की भी चिन्ता नहीं करता ये रंग सदैव बने रहने चाहिए। इस बात की भी इसे चिन्ता नहीं होती कि बात को नहीं समझते कि अहंवादी बनकर अंधेरा होते ही ये सब रंग समाप्त हो जाएंगे! वे स्वयं को, अन्य लोगों को पूरे, विश्व को ये मात्र देखता है। आकाश साक्षी रूप से कितनी हानि पहुँचा रहे हैं । यदि वो इस देखता है और जो भी कुछ उसे उपलब्ध आज की समस्या ये है कि लोग इस बात को समझ लें तो, मैं आपको बताती हैं हो जाए उसे ले लेता है। यही कारण है कि, वो इसे त्याग देंगे। परन्तु समस्या ये है कि यह इतना सुन्दर है और इतना कि लोग इसका आनन्द लेते हैं! इस प्रकार की तुच्छता या अधम जीवन का आनन्द लेते हैं! आप सब लोग सहजयोगी हैं, आपको ये समझना चाहिए कि ये अहं मेरी खोपड़ी आनन्ददायक। तो एक अन्य बात ये है कि जब आप आध्यात्मिकता की उस अवस्था में होते हैं पर क्यों सवार हो रहा है? मैने ऐसा क्या तो आप अत्यन्त शान्त एवं सुहृद होते हैं किया है? मैं कौन हूँ? एक बार जब इस और परस्पर प्रेम करते हैं। अहं की सभी प्रकार के प्रश्न पूछने लगते हैं तो ये अहं समस्याएं लुप्त हो जाती हैं। मेरे विचार से लुप्त ह जाता है । अहंकारी लोगों से व्यवहार अहं ही आपके जीवन के सारे वैभव करना मेरे लिए भी बहुत बड़ी समस्या है एवं सौन्दर्य को बाधित करता है। आप क्योंकि मैं उन्हें बता नहीं पाती कि तुम्हारे यदि इस अहं को मात्र देख सकें कि अन्दर अह है। ये बात यदि मैं उन्हें बता देँ 1 यह किस प्रकार कार्य करता है तो तो वे दौड़ जाएंगे। यदि मैं उन्हें ये कहूँ कि आप आनन्द में आ जाएंगे। यह एक तुम ठाक हो, बहुत अच्छे हो, बहुत भले हो, तो उनका अहं और अधिक बढ़ जाएगा और वे कहेंगे ओह! श्रीमाताजी ने मुझे कहा को देख सकते हैं। साक्षी रूप से देखने पर बहुत अच्छा हूँ ये बहुत बड़ी समस्या प्रकार का नाटक करता है। आप इस नाटक | है मैं लोग अचानक समझ जाते हैं कि आप इस है। मेरी समझ में नहीं आता कि मनुष्य के अहं में फंसे हुए नहीं है, आप तो मात्र इसे अहं को किस प्रकार ठीक करुं! मैं जानती देख रहे हैं। अपने अहं से जब आप निर्लिप्त हूँ उनमें अहं है परन्तु ये नहीं जानती किस होते हैं तो आप इस बात को देख पाते हैं प्रकार व्यवहार किया जाए। यदि आप ये 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-22.txt चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 सितम्बर-अक्टूबर 2001 21 बात समझ लें कि आपमें क्या दोष है तो मैं होना चाहिए? मुझे ये क्यों सोचना चाहिए सोचती हूँ कि आप इस कार्य को कर कि मैं बहुत महान हूँ? अन्य लोग भी आपके सकते हैं। आपकी अपनी तथा मेरी समस्या अहं को बढ़ावा देते हैं क्योंकि वे आपसे को सुलझाने का यह अत्यन्त उत्तम उपाय है। लाभ उठाना चाहते हैं। वो आपके अहं को बढ़ावा देंगे, कहेंगे कि ये बहुत महान बात है, आप बहुत महान हैं, और आप उन्मत हो मेरा स्वप्न इतना महान है कि इसे एक जाएंगे मानो आपको मूसलधार वर्षा में फैंक जीवन में नहीं किया जा सकता। मैं दिया गया हो, और अहंकारग्रस्त लोगों की हूँ कि विश्व के सभी लोग बाढ़ की तरह से आप पनप उठते हैं। पूरा चाहती आत्मसाक्षात्कार पा लें। जिस प्रकार सहज अपने इर्द-गिर्द यदि आप देखें तो संस्कृति में हमने अहं से मुक्ति प्राप्त करने आधुनिक काल में सभी लोग अपने अहं के का प्रशिक्षण पाया है यह अत्यन्त प्रशसनीय प्रति अत्यन्त सजग हैं। जिस प्रकार उनके है। आप स्वयं अन्तर्अवलोकन कर सकते नाम समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में आते हैं, स्वयं। आप देख सकते हैं कि आपका हैं मुझे आश्चर्य होता है । वहाँ मेरा नाम आचरण ऐसा क्यों है। जिस प्रकार यदि छपता तो मुझे लज्जा आती क्योंकि सहजयोगी अन्तर्वलोकन कर सकते हैं वैसे यह मात्र आपके अहंकार की अभिव्यक्ति है अन्य नहीं कर सकते। क्योंकि सहजयोगी और भी नहीं। लोग भिन्न प्रकार के कुछ अपनी गहनता में पेंठ सकता है, वे स्वयं, कार्य आरम्भ करते हैं, ये उनके अहं की स्वयं को देख सकते हैं, वे अन्य लोगों को स्पर्धा है। बहुत प्रकार की स्पर्धाएं हैं जैसे देख सकते हैं और इस प्रकार वो ये देखने सौन्दर्य स्पर्धा, मिस्टर इंडिया स्पर्धा आदि । का प्रयत्न कर सकते है कि ये श्रीमान अहं ये सभी चीजें व्यक्ति के अहं को बढ़ावा 1 आपकी खोपड़ी में क्या कर रहे हैं? निःसन्देह हम ये भी जानते हैं कि ईसामसीह का मंत्र दौड़ते रहते हैं। वो सोचते हैं 'क्यों न मैं भी अहंकार की बाधा को दूर करने का सर्वोत्तम ऐसा ही बनु? तो ये सभी चीज़ें मृतपर्याय उपाय है, ये हमारी बहुत सहायता करता करने वाली हैं और आपके मस्तिष्क को है। परन्तु ये मन्त्र लेते हुए आपको अत्यन्त विनम्र अवस्था में होना चाहिए। आखिरकार हैं कि सफलता प्राप्त करने का यही तरीका देती हैं और लोग इन स्पर्धाओं के पीछे पूरी तरह से ढक लेती हैं और आप सोचते मैं हूँ कौन? इतने सारे सितारों और सुन्दर है। इस प्रकार की सफलता अधिक समय वस्तुओं को देखने वाला 'मैं कौन हूँ? मैंने तक नहीं चलती। शीघ्र ही समाप्त हो जाती क्या किया है? क्यों मुझे इतना अहंकारी है। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-23.txt चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 9 व 10 सितम्बर-अक्टू बर 2001 22 सहजयोग में प्राप्त की गई सफलता का अनुसरण करते हैं? क्या इस बात की कल्पना आप कर सकते हैं? ईसामसीह का शाश्वत होती है। जिस व्यक्ति में इस प्रकार का विनम्र स्वभाव है उसे पीढ़ियों तक याद अनुसरण करने का क्या यही तरीका है? किया जाएगा। किसी अहंकारी व्यक्ति का स्वयं को ईसाई कहलाने वाले और स्वयं पुतला मैंने कहीं लगा हुआ नहीं देखा। को ईसामसीह का अनुयायी बताने वाले इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति अहंकारी लोगों को अपने जीवन में ईसामसीह की था तो लोगों ने उसे विशेष रूप से अहंकारी वह विनम्रता, करुणा व प्रेम दशर्शानें चाहिए । कहा। अब भी ये बात असम्भव है कि परन्तु ऐसा नहीं है। किसी अहंकारी व्यक्ति की प्रशंसा में गीत अतः पश्चिमी देशों से आए हुए आप गाए जाएं या उसका पुतला लगाया जाए सभी लोग सहजसंस्कृति को सीखने का तो अपने हृदय में हम विनम्र लोगों को प्रयत्न करे। सहज संस्कृति में हम किस पसन्द करते है और यदि हम चाहते है कि प्रकार बात करते हैं, किस प्रकार रहते हैं. अन्य लोग भी हमें पसन्द करें तो हमें भी किस प्रकार एक दूसरे से सम्पर्क करते है? यह एकदम भिन्न है। एक बार जब आप विनम्र होना चाहिए। दिखावे के तौर पर सहज संस्कृति को अपने जीवन में उतार नहीं, वास्तव में, ये समझकर की हम क्या हैं, हमें गर्व क्यों होना चाहिए. अन्य लोगों लेंगे तो, आप हैरान होंगे कि आपके पर क्यों हमें प्रभुत्व जमाना चाहिए और पारस्परिक तालमेल को देखकर अन्य लोग उन्हें कष्ट देना चाहिए। आप यदि ये बात समझ लें तो आपने ईसामसीह के महान भी दंग रह जाएंगे कि किस प्रकार आप हर चीज की कितनी अच्छी तरह से देखभाल करते हैं! अवतरण के प्रति न्याय किया है । उन्होंने अपने बहुत से गुणों की अभिव्यक्ति की परन्तु अपने जीवन का बलिदान करके अहं रहना सर्वोत्तम है। यहाँ न अहं है न सहजयोगियों के रूप में इस संसार में चक्र का भेदन ही उनका महानतम संदेश बन्धन। ऐसा कुछ भी नहीं हैं। इन सभी है और ये बात हमें समझनी चाहिए। अपने दुर्गणों से आप पूर्णतः मुक्त हैं। तब आप आपको इसाई कहने वाले सबसे अधिक हैरान होंगे कि लोग किस प्रकार आप पर अहंकारी हैं। मैं हैरान थी कि इंग्लैण्ड में विश्वास करते हैं. किस प्रकार आपको चाहते अंग्रेज लोग अत्यन्त अहंकारी हैं। पश्चिम हैं। आप सब लोगों को मैं ईसामसीह के के अन्य देशों में भी मैंने देखा है कि लोग जन्मदिवस पर शुभकामनाएं देती हूँ और अहंकारवादी हैं। भारतीयों के मुकाबले उनमें आशा करती हूँ कि आप ईसामसीह के सन्देश विनम्रता का पूर्ण अभाव है और वे अत्यन्त और उनके जीवन को सदैव याद रखेंगे । अहंकारी हैं क्यों? क्योंकि वे ईसा-मसीह परमात्मा आपको आशीर्वादित करें । 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-24.txt सार्वजनिक कार्यक्रम नेहरु स्टेडियम, दिल्ली-26.3.2001 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ये जागृती आपकी अपनी संपत्ति है। ये आपके अपने शुद्ध हृदय से पाई हुई प्रेम की बरसात है। इसमें न जाने हमारा लेना देना कितना है? किन्तु समझने की बात ये है कि गर आपके अंदर ये सूझ-बूझ नहीं होती तो इस तरह से ये कार्य संपन्न नहीं हो सकता सत्य को खोजने वाले और जिन्होंने सत्य को खोज भी लिया है, ऐसे सब साधकों को हमारा प्रणाम। दिल्ली में इतने व्यापक रूप से सहज योग फैला हुआ है कि एक ज़माने में तो विश्वास ही नहीं होता था कि दिल्ली में दो चार भी सहज योगी मिलेंगे! यहाँ का वातावरण ऐसा उस वक्त था कि लोग सत्ता था। इसमें ये ही समझना हैं कि अनेक संतों के पीछे दौड़ रहे थे और व्यवसायिक लोग ने इस देश में मेहनत की हर एक के पैसे के पीछे दौड़ रहे थे। तो मैं ये सोचती घर-घर में उनके बारे में चर्चा होती है और थी कि ये लोग अपनी आत्मा की ओर कब उन संतों के बारे में बहुत कुछ मालुमात 1. मुड़ेंगे? पर देखा गया कि सत्ता के पीछे बुजुर्गों को तो है ही, पर बच्चों को भी हो दौड़ने से वह सारी दौड़ निष्फल हो जाती जाती है। धीरें-धीरे ये बात जमती है कि है। थोड़े दिन टिकती है, ना जाने कितने आखिर ये लोग ऐसे कौन थे जिन्होंने इतना लोग सत्ताधारी हुए और कितने उसमें से परमार्थ साध्य किया। पता नहीं कैसे इतने उपर उठ गए। उसी तरह जो लोग धन व्यवसायिक लोग, जिनका सारा ध्यान रात प्राप्ति के लिए जीवन बिताते हैं उनका भी दिन पैसा कमाने में, सत्ता कमाने में जाता हाल वही हो जाता है क्योंकि कोई सी भी चीज जो हमारी वास्तविकता से दूर है, उसके तरफ जाने से अंत में यही सिद्ध होता है कि वो मुड़ कर सहज योग में आ गए हैं! क्योंकि उनकी वो जो खोज थी उसमें आनंद नहीं था, उसमें सुकून नहीं था शान्ति नहीं थी, किसी प्रकार का विशेष जीवन नहीं था जब ये वास्तविकता नहीं है। उसका सुख, उसका आनंद, क्षण भर में भंगुर हो जाता है, खत्म हो जाता है। इसी बजह से मैं देखती हूँ कि दिल्ली में लोगों में इस कदर से जागृती आ गई है। मनुष्य ये पता लगा लेता है कि उसके अन्दर कोई ऐसी वास्तविक आनंद की भावना आई नहीं, ना ही उसने कोई उस सुख को पाया जिसके लिए वह संसार में आया। ना जाने 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-25.txt सितम्बर-अक्टूबर 2001 24 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 9 व 10 सत्य को खोजते हैं तो सोचते हैं कि सन्यास ले लें, हिमालय पर जाएं. अपने बाल मुंडा लें कैसे एक जोत से अनेक जोत जलती गई ! आज मैं देखती हूँ कि हज़ारों लोग यहाँ पर आज उपस्थित हैं जिन्होंने अपने अंदर की और और तरह की चीजें करें। जब सत्य का वास अंदर है तो बाह्य की चीजों से और उपकरणों से क्या होने वाला है? इससे तो अंतरात्मा को पहचाना है। सबसे पहले जान लेना चाहिए कि हमारे मनुष्य पा नहीं सकता सत्य को, क्योंकि इसके साथ कुछ सत्य लिपटा ही नहीं है। अंदर जो बहुत सी त्रुटियां है उसका कारण है कि हम लोगों ने धर्म को समझा नहीं। जो कुछ धर्म-मार्तण्डों ने बता दिया, हमने उन्हीं को सत्य मान लिया। उन्होंने कहा कि आईये तो करना क्या है? करना ये है कि आपके अंदर जो सुप्त शक्ति कुण्डलिनी की है, उसे जागृत करना है। अब कुण्डलिनी की शक्ति आपके अंदर है या नहीं, ऐसी शंका करना आप कुछ अनुष्ठान करिए या कुछ पूजा- पाठ करिए या और हर तरह की चीज़ बताई। मुसलमानों को भी इस तरह से पढ़ाया गया भी व्यर्थ है। हरेक इंसान के अंदर त्रिकोणाकार कि तुम गर इस तरह से नमाज पढ़ो और अस्थि में कुण्डलिनी की शक्ति है और उसे मुल्लाओं के कहने पर चलो तो तुम्हें मोक्ष जागृत करना बहुत ही ज़रूरी है, जिससे कि मिल जाएगा। अब मनुष्य सोचने लगा कि आप उस चीज़ को प्राप्त करें. जिसे मैं कहती ऐसा तो कुछ हुआ नहीं। ऐसी तो कोई प्राप्ति हूँ, सत्य, वास्तविकता'। सबने कहा है अपने हुई नहीं, फिर ये है क्या ये कर्मकाण्डों में को जानो, अपने को पहचानो। लेकिन कैसे? हम क्यों फंसे हुए हैं और ये कर्मकाण्ड हमें हम तो अपने को जानते ही नहीं । हम जो हैं बहुत ही गहरे अन्धकार में ले जाते हैं। हम अंदर से न जाने कितनी त्रुटियों से भरे हुए लोग सोचते हैं कि इस कर्मकाण्ड से हम हैं। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, सब तरह की चीज़े हमारे अंदर हैं और हम ये कुछ पा लेंगे, सो किसी ने पाया नहीं। जन्म नही समझ पाते कि ये कहाँ से सब आ रही जन्मांतर से लोगों ने कितने कर्मकाण्ड किए, उन्होंने क्या पाया! अब पाने का समय भी हैं और क्यों हमें इस तरह से ग्रसित किया होगा। आज इस कलियुग में ये समय आ हुआ है इस चीज़ को गर आप ध्यान पूर्वक समझे तो एक बात है कि ये त्रुटियां जो हैं ये गया। ऐसा आया है कि आपको सत्य प्राप्त सब बाह्य की हैं। आत्मा शुद्ध निरंतर है । हो। सत्य की प्राप्ति। यही सबसे बड़ी चीज है। सत्य ही प्रेम है और प्रेम ही सत्य है। उसके ऊपर कोई भी तरह की लांछना नहीं इसकी ओर आप ज़रा विचार करें कि हम आती और जब यह आई हैं तो ये किसी 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-26.txt चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 9 व 10 सितम्बर-अक्टू बर 2001 25 वजह से आई होगी। होसकता है कि आपकी सोचना चाहिए कि वास्तविक मैं तो ये हूँ परंपरागत ही आई हो, पूर्वजन्म से आई, माँ और आज तक ना जाने किस चीज के पीछे बाप से आई, समाज से आई, ना जाने कहाँ भ्रामकता में मैं चला। ये सब होता गया, कहाँ से ये सब चीजें आपके अंदर समाविष्ट आपके अंदर जमता गया, बनता गया और ये हुईं? अब इसके पीछे गर खोजते रहें कि ये सब आपके सुबुद्धि, दुर्बुद्धि और न जाने कहाँ से आई, क्या हुआ, इससे अच्छा है कि किस चीज़ से जुटता गया। सबसे बड़ी बात इसे किसी तरह से नष्ट कर दें। ये हमारे है कि हमें अपने को गर पहचानना है तो सर्वप्रथम हमारा संबंध उस चारों तरफ अंदर जो खराबियाँ हैं, ये ही नष्ट हो जाएं फैली हुई चैतन्य सृष्टि से होना चाहिए। चैतन्य से एकाकारिता प्राप्त होनी चाहिए और उसके लिए, चैतन्य से एकाकारिता तो फिर क्या? हम एक शुद्ध चित्त बन जाते है। इसकी व्यवस्था जिस परमेश्वर ने आपको बनाया उसने की है। अब आपके अंदर इतनी ही स्वतंत्रता है कि आप अपने को पहचानने के लिए कुण्डलिनी ही उसका मार्ग है । और कोई मार्ग नहीं । कोई कुछ भी के लिए जो सर्व सिद्ध प्रक्रिया है उसको बताए, और कोई मार्ग है नहीं। ले किन अपनाएं। और वो प्रक्रिया है कुण्डलिनी लोग आपको भुलावे में डालते है और जागरण की। मैं ये बात कह रही हूँ, ऐसा लोग भटकने लगते है, जैसे मैं एक बार नहीं है। एक गुरु जी का प्रवचन सुन रही थी, तो अनादि काल से अपने भारत वर्ष में उन्होंने शुरू में ही गालियाँ देनी शुरू कर कुण्डलिनी और कुण्डलिनी के जागरण की दीं तो उन्होंने कहा कि आप लोग विकृत बात की गई। हाँ हालांकि उस वक्त में हैं। माने गाली हो गई। आप लोग विकृत हैं कुण्डलिनी का जागरण बहुत कम लोगों को और आप के जो तरीके हैं उसमें आप भगवान प्राप्त होता था और बहुत मुश्किलें होती थी। को नहीं खोज रहे हैं । आप प्रवृत्ति मार्गी हैं, लेकिन इसका भी समय आ जाता है कि ये आप हरेक चीज की तरफ दौड़ते हैं। ये तो सामूहिक हो जाए, और आज यही बात है बात सही है। आप सब इस तरह से एक कि सामूहिक स्थिति में आपने कुण्डलिनी तरफ से दूसरी तरफ दौड़ते हैं और दौड़ कर का जागरण पाया है। अब इस सामूहिक के आप अपने को खो जाते हैं। इस दौड में, स्थिति पे आ कर के जब आप कुण्डलिनी के इस तरह की प्रवृत्ति में हमारी सारी ही शक्ति जागरण से प्लावित हुए और जब आपके नष्ट हो जाती है। आज ये चाहिए तो कल अंदर एक विशेष रूप का चैतन्य स्वरूप वो चाहिए तो परसों वो चाहिए। भाग रहे हैं व्यक्तित्व प्रकट हुआ है उस वक्त आपको ये इधर से उधर, उधर से उधर व उधर से 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-27.txt सितम्बर-अक्टूबर 2001 26 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 अंदर गलत धारणाएं बैठ जाती हैं और उसे हम मान भी लेते हैं क्योंकि हमारे अंदर विश्वास ही नहीं है कि हम कभी अपनी आत्मा को पा सकते हैं और जिससे हम उधर। अब ये जो उन्होंने गाली बक दी थी कि आप प्रवृत्ति मार्गी हैं तो उसको लोग मान लेते हैं कि अच्छा हम प्रवृत्ति मा्गी हैं। और वो दूसरों के लिए कहते हैं कि आप निवृत्ति मार्गी हैं नहीं तो क्यों आप आत्मा को प्राप्त अपने को जान सकते हैं। विश्वास रखो, कर रहे हो? गर आप निवृत्ति मार्गी हैं यानि यहाँ आज बहुत से लोग ऐसे बैठे हैं कि आपकी वृत्ति अगर इधर-उधर नहीं दौड़ती जिन्होंने कुण्डलिनी का जागरण और उसकी तो आप आत्मा को प्राप्त कर सकते हैं तो विशेषताओं से पूर्णतया अपने जीवन को पहले ही इस तरह की कठिन समस्या प्रफुल्लित किया हुआ है आप लोग सभी उपस्थित कर दी कि सर्व साधारण मनुष्य इस प्रकार इस चीज़ को पा सकते हैं। आप अपने को सोचेगा कि हाँ भई, मैं तो हूँ प्रवृति में कोई कमी नहीं है, कोई कमी नहीं है। ये मार्गी। तो वो कहेंगे कि अच्छा ठीक है। आप शक्ति आप सबके अंदर है। आपने कुछ भी गुरुओं की सेवा करो, उनको पैसा दो, ये किया हो, आपने कोई भी गलत काम किया मेहनत करो, ये कर्मकाण्ड करो। इधर पैसा हो, आप परमात्मा के विरोध में भी खड़े हुए लगाओ, उधर पैसा लगाओ और जिस तरह हों, चाहे जो भी किया हो, ये कुण्डलिनी तो से भी हो सके तुम सब कुछ अपना परमेश्वर अपनी जगह पर बैठी हुई है, जब कोई को दे दो और उसके बाद सन्यास ले लो। उसको जगाने वाला आएगा तो वो जग आपको ये बात समझ में आ जाती है कि भई जाएगी और ये जो बाह्य की चीजें हैं जिसको ये आसान चीज़ है। पर ये अंधों की बात है। प्रवृत्ति कहते हैं, ये जो आपके अंदर षडरिपू अच्छे भले आँख होते भी यदि कोई अगर हैं ये एकदम झड़ जाएंगे। जब आप देखते हैं कोई बीज आप माँ के उदर में डालते हैं तो अपने आप प्रस्फुटित होता है। बीज में तो कुछ नहीं दिखाई देता पर जब वो माँ के पेट में जाता है तो वो अपने आप प्रस्फुटित हो जाता है। इतना ही नहीं, उसके अंग प्रत्यंग में जीवन आ जाता है। उसी प्रकार कुण्डलिनी 1 हुए कहे कि तुम अंधे हो तो क्या इसे मान लेना चाहिए? कोई कहे कि आप प्रवृत्ति मार्गी हैं। तो क्या इसे मान लेना चाहिए? अगर आपके अंदर निवृत्ति नहीं हैं तो आप ज्ञान मार्ग मतलब सहज योग में नहीं आ सकते। इस तरह की एक भाषा ये लोग व्यवहार में लाते के जागरण से आप जागृत हो जाते हैं और हैं। उससे सर्व साधारण जनता ये कहती है कि भई हमारे लिए तो यह ठीक है कि आप के अंदर की जो वृत्तियाँ हैं, जो नाशकारी गुरुओ की सेवा करो, उनको सब दो, उसको हैं, जो गलत हैं वो अपने आप झड़ जाती हैं । सब समर्पण दो। इस तरह की जो हमारे ये बड़ा आश्चर्य का विषय है किन्तु ऐसे बड़े 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-28.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 27 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 आश्चर्य की बात नहीं। क्योंकि यह घोर जागरण होता है तो आपका संबंध उस परम कलियुग है, ये घोर कलियुग है और इसके चैतन्य की शक्ति से हो जाता है और ये प्रताप से न जाने कितने लोग झुलस गए? संबंध बड़ा माना हुआ हैं। आइन्सटीन जैसे अब इसी कलियुग में ये कार्य होने वाला है इतने बड़े वैज्ञानिक ने यह कहा हैं कि जब और इसी कलियुग में आप इसे प्राप्त करने आपका संबंध (Torsion Area) (टोर्शन क्षेतर) वाले हैं। उस परम तत्व को आप प्राप्त करने उसको कहते हैं, होता है तो अकस्मात ऐसी वाले हैं जो आपके अंदर आत्मास्वरूप चीजे होती हैं, इस तरह से आप शांतचित्त हो विराजित है उसके प्रकाश में आप अपने जाते हैं कि उस शांत चित्त में न जाने कितनी को जानेंगे आप जानेंगे कि आप के अंदर उपलब्धियाँ होती हैं और न जाने कितने से कौन से कौन से दोष गिर गए और अब आप शुद्धचित्त वाले आत्मा स्वरूप हो गए। और नई-नई उपलब्धियाँ होती हैं। तरह के नए-नए आपको प्रयोग मिलते हैं इसको जब आप जान लेंगे कि आप की ये स्थिति है. और यही सच्चाई है, तो जितनी बार-बार जग कर सो जाते हैं और सो झठी बातें हैं, आप छोड़ देंगे। उससे क्या करके फिर जगते ये सारी चीज़े होते हुए भी जब लोग हैं, ऐसी भी दशा चलती है। ऐसे लोग नहीं होते कि जो एक बार पार कर के आप कहाँ जा सकते हैं? पर तब हो गए सो हो गए। उसके बाद उनकी फायदा? किसी भी झूठी बात को साथ ले तक झूठ नहीं दिखाई देता जब तक गहनता कितनी है इस पर निर्भर हैं। गर आपकी आत्मा जागृत नहीं होती। आत्मा आप गहन हैं तो ये चीज़ आपके अंदर जब होती हैं तो उसका बड़ा गहन अनुभव को समझ के प्रकाश में ही आप उस झूठ जागृत होता है। आप एकदम निर्विचारिता में चले जाते हैं। आज ही मैं बता रही थी कि मनुष्य सकते हैं जो आपको हर तरह से भुलावे में रखता है। इस भुलावे में हर तरह के लोग घूम रहे हैं। आप दुनिया की तरफ नज़र करें| किसी विचार क्यों करतें है? हर समय, हरेक चीज़ पर देखना और उस पर विचार करना। कोई भी धर्म का नाम ले करके आज लड़ रहे हैं। चीज है जैसे ये अब कारपेट है। ये कहाँ से अरे भई जब धर्म है, जब एक ही परमात्मा है आई होगी? कितने की होगी? क्या होगा? तो लड़ क्यों रहे हो? पर इस तरह के भुलावे दुनिया भर की झंझट इसके लिए होगी। तैयार हो जाते हैं, दिमागी जमाखर्च ऐसा बजाए इसके कि कितना सुन्दर है, उसका बन जाता है और उसको लोग अपना लेते सौन्दर्य, उसका आनंद लें, मनुष्य सोचते ही रहता है! इस तरह के सोच विचार से मनुष्य है। उसका कारण यही है कि उनकी समझ में अभी प्रकाश नहीं। जब कुण्डलिनी का कभी-कभी पगला भी जाता श) 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-29.txt सितम्बर अक्टू बर 2001 28 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 तो किसी भी चीज की ओर देख कर उस कोई हैं नहीं। जैसे कोई साहब, वो कहेंगे पर प्रक्रिया करना, react करना, इससे बढ़ भई साहब "मैं चाहता हूँ कि मेरे पास एक के और कोई गलती नहीं है । क्योंकि जब मोटर आ जाए"। अच्छा भई, आ गई मोटर । तो उसका आनंद ही नहीं उठाया, फिर लगे आप प्रक्रिया कर रहे हैं या react कर रहे हैं किसी चीज़ पर तो वो आप अपने अहंकार के कारण या आपके अंदर जो सुप्त-चेतन है, जिसे कि (Conditioning) कहते हैं, उसके कुछ दूसरा ढूँढने। फिर वो चीज़ हो गई तो लगे फिर तीसरी चीज़। तो इसका मतलब आपकी वो इच्छाएं शुद्ध नहीं थीं गर वो कारण कर रहे हैं। आप इसलिए नहीं कर शुद्ध इच्छा होती तो आप तृप्त हो जाते। रहे हैं क्योंकि आप उसे पूरी तरह से देख रहे ये कुण्डलिनी शक्ति आपकी शुद्ध इच्छा हैं। वो साक्षी स्वरूपत्व आप में नहीं है। उस है और ये परमेश्वरी इच्छा है। ये जब चीज को आप पूरी तरह से देखें। अगर आप आपके अंदर जागृत हो जाती है तो पूरी तरह से उसे देख सकते हैं तो उस चीज़ आप तृप्त हो जाते हैं। तृप्त हो जाते हैं का आनंद आपके अंदर पूरी तरह से समा माने आप सोचते हैं कि ये जो मेरा मन, जाएगा। सबसे तो बड़ी बात ये है कि इस चाहिए, वो चाहिए, वो चाहिए करता था दशा में आने की बात बहुतों ने कही है। मैं उसके जगह अब मैं ऐसे सुन्दर बाग में आ कह रही हूँ ऐसी बात नहीं है पर वो बहुत गया हूँ जहाँ सुगंध ही सुगंध, आनंद ही से लोग समझ नहीं पाए होगें या उस वक्त आनंद, शन्ति ही शन्ति और प्रेम ही प्रेम बसा ये भी सोचा होगा कि ये कैसे हो सकता है? हुआ है। ये जब स्थिति आपकी आ जाती है हम तो एक मानव हैं, ये कैसे हो सकता है? तो फिर आप मुड़ कर नहीं देखते ऊधर जो कुण्डलिनी के जागरण से सब हो सकता है और जब कुण्डलिनी आप सब के अंदर वास्तव कुछ लोग जो फिर-फिर गिरते हैं, उठते हैं. में है. वो स्थित है वहाँ तो सिर्फ उसके फिर गिरते हैं। पर सहजयोग में जिसने एक जागरण की बात है। ये आपका धरोहर है। ये आपकी अपनी चीज़ है, जिसे आपने खरीदी चीज है और इतनी सहज में होती है। उसके नहीं उसके लिए कोई पैसा नहीं दिया, उसके लिए कुछ करना नहीं, उसके लिए आपको लिए किसी भी तरह की याचना नहीं की वो पैसा देना नहीं । कोई चीज़ नहीं, प्रार्थना अंदर है, वो स्थित है। सिर्फ उसकी जागृति नहीं, कुछ नहीं। सिर्फ आपके अंदर शुद्ध होने का विचार होना चाहिए। ये गलत चीज़ है। अधिकतर, होते हैं ऐसे भी बार इसे प्राप्त किया वो इतनी महत्पूर्ण इच्छा होनी चाहिए कि मैं अपने आत्मा को प्राप्त करूं। इस शुद्ध इच्छा से ही आप इसे प्राप्त करेंगे सिर्फ मन में यही एक इच्छा अब ये कुण्डलिनी शक्ति जो है ये आपकी बड़ी शुद्ध इच्छा है। शुद्ध इच्छा हमारे अलावा 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-30.txt सितम्बर-अक्टूबर 2001 29 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 9 व 10 रखें कि मेरी कुण्डलिनी जागृत हो जाए। ये की बातें हैं। समझदारी क्या है कि आपको इच्छा ही इतनी प्रबल है कि उससे अनेक क्या मिला? आपने सब दिया, आपको क्या लोग, अनेक देशों में मैंने देखा कि, एकदम प्राप्त हुआ? आपको क्या मिला? क्या आपको से पार हो गए। जैसे एक देश है बेनिन। अपना आत्मसाक्षात्कार मिला? वहाँ पर, पहले वो मुसलमान लोग थे और वो फ्रैंच लोगों से इतने घबड़ा गए थे कि उन्होंने आत्मसाक्षात्कार के बाद ही आप जानेंगे कि आप क्या हैं और क्या आपकी शक्तियाँ हैं, और क्या कर सकते हैं आप? आप कितने समर्थ हैं? जब तक आपका अर्थ ही नहीं मिलता आप समर्थ कैसे होंगे? इस समर्थता में आप अनेक कार्य कर सकते हैं। मैं तो इतने आश्चर्य में हूँ कि परदेश में जब मैं रहती हूँ तो ये परदेसी, इन्होंने तो कुण्डलिनी मुसलमान धर्म ले लिया। मुसलमान धरमें लेने के बाद भी वो संतुष्ट नहीं थे। उससे भी परेशान, उससे भी झगड़े, ये वो। पर उनको जब सहजयोग मिल गया तो सब छोड़ छाड़ के अब मजे में हैं। आपको आश्चर्य होगा कि आज वहाँ भी 14,000 सहजयोगी हैं। वो सब का नाम भी नहीं सुना था। पर जब से पार मुसलमान। मैं तो मुसलमान उनको मानती हूँ कि हो गए तो न जाने क्या-क्या चमत्कार कर जिनके हाथ में चैतन्य आए। जिनके हाथ रहे हैं दुनिया भर की चीज़ों में पर जब ये बोलेंगे। आज कियामा का ज़माना है। गर मुझे बताते हैं तो मैं सोचती हूँ कि ये चमत्कार आप के हाथ बोल सकते हैं तो आप मुसलमान का भण्डारा जो है, ये कैसे एकदम से खुल हैं वरना हैं नहीं। मुसलमान का मतलब हैं गया? ये लोग इसे कैसे प्राप्त हुए? सब तरह समर्पण। जब तक आपके हाथ नहीं बोलते से शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, आपकी आप क्या समर्पण करेंगे? इस तरह से गलत पूर्णतया प्रगति हो जाती है और आप इसे चीज है फहमी में पड़े हुए लोग न जाने क्या-क्या आत्मसात कर लेते हैं। इतनी सुन्दर चीजे बना दें! इसके लिए ये नहीं है कि आप कि अपनी आत्मा को आप जान लें। आप ही किसी गर वेद-शास्त्र पढ़े हुए हैं या आप के अंदर यह हीरा है। आप ही के अंदर ये बड़ी तीर्थ यात्रा करते हैं और आप दुनिया ज्ञान हैं। आप ही के अंदर ये सब कुछ है। भर के ब्राह्मणों को, कहना चाहिए कि आज सिर्फ उसका मार्ग जो है सिर्फ कुण्डलिनी हमारे पड़ोस में एक बड़े जोरों में मंत्र बोलने जागरण है और कोई नहीं । ये मैं आपसे लग गए, ऐसे लोगों को आप प्रोत्साहित इसलिए बताना चाहती हूँ कि बहुत बार मुझे करते हैं और उनकी मदद करते हैं, और लोग प्रश्न पूछते हैं कि कुण्डलिनी के सिवाय उनको पैसा देते हैं, इससे कुछ नहीं होने और कोई मार्ग हैं? मैंने कहा और कोई मार्ग वाला। ये सब बेकार की बातें हैं। बेवकूफी नहीं । सच बात तो ये है। उसमें मेरा लेना-देना 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-31.txt सितम्बर-अक्टूबर 2001 30 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 कुछ नहीं। लेकिन आपको तो जो सच है रोगों को ठीक करते हैं। पागलों को ठीक वही बताना है कि कुण्डलिनी के जागरण के करते हैं और सबको व्यसन से छुडाते हैं। ये सिवाय आपके पास और कोई मार्ग नहीं है सब शक्तियाँ हमारे अंदर कैसे आई? जिससे आप अपने को भी जाने और दुनिया को भी जाने। सारे दुनिया भर के धंधे साधन है, कुण्डलिनी का जागरण। और छोड़ कर के सीधे अपने अंदर बसी इस उसको जागृत रखना चाहिए इंधर-उधर | ये शक्ति आपके अंदर आने का एकमेव महान शक्ति का उद्घाटन करना ही भटकने वाले लोगों को, ये ठीक है. कि वो आपका परम कर्त्तव्य है। एक जगह जरा रुक जाएं और देखे कि आप में आज आप लोगों को यहाँ देखकर इतनी हैं कौन आप कितनी महान वस्तु हैं? आप कितना सामर्थ्य है? और उसे आप किस बड़ी तादाद में, मेरा हृदय भर आता है। एक तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं? मुझे पूर्ण आशा है कि अगले वर्ष मैं जब यहाँ आऊँ तो जमाना था कि मैं दिल्ली को बिल्ली कहती थी । यहाँ तो किसी की खोपड़ी में सहजयोग घुसेगा ही नहीं । वो मैं यहाँ देख रही हूँ कि आप लोगों ने इसे आत्मसात किया और इससे भी दूने लोग यहाँ रहें इतनी ही नहीं, वो लोग कार्यान्वित हों । सहजयोग में, उसको पा करके आपको सन्यास लेने की ज़रूरत अपनाया और सब तरह का लाभ ही लाभ है। हर तरह का लाभ इसमें हैं। और गर नहीं, हिमालय पर जाने की जरूरत नहीं। यहीं यहीं इस समाज में रह कर के सहजयोग को फैलाना है और इस तरह से विश्व में एक महालक्ष्मी की कृपा हो जाये तो अपना देश भी एक बहुत बड़ा सुरम्य और बहुत वैभवशाली देश हो सकता है। इसलिए सबको सामाजिक विशेष सहज समाज बनाना है। इस सहज रूप से इसे फैलाना चाहिए और इस समाज में वो ही करना चाहिए कि जो सारे सामाजिक रूप में हर तरह का पहलू हमें संसार का उद्धार कर सकता है। जितनी पहचानना है । जहाँ-जहाँ लोगों को तकलीफ इसकी त्रुटियाँ है उनको बिल्कुल पूरी तरह है, मैंने कम से कम ऐसे 16 प्रोजेक्ट बनाए हैं से नष्ट कर सकता है। ये कार्य आप लोग जिसमें औरतों को मदद करना, बच्चों को सब कर सकते हैं और इसलिए आप सब से मदद करना, बीमारों को मदद करना, बूढ़ों मैं बार-बार यही कहूँगी कि अपनी जागृति को मदद करना, खेतिहर लोगों को मदद कर लीजिए । मनन करें, मनन से जागृति करना आदि अनेक से Projects बनाए हैं कि बनी रहेगी और जो दोष हैं वो धीरे- जिसमें सहजयोग कार्यशील हो। और इस धीरे बिल्कुल निकल जाएंगे इससे आप कार्य को जो करते हैं वो समझते हैं कि ये एक सुन्दर स्वरूप, बहुत ही बढ़िया व्यक्ति हमारे अंदर इतनी शक्ति कहाँ से आई? हम हो जाएंगे ऐसे अगर व्यक्ति समाज में हो 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-32.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 31 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 जाएं तो दुनिया भर की ये जो आफतें मची हिन्दुस्तान में तो मैं ये देखती हूँ हरेक को ये हुई हैं, दुनिया में मारा-मारी और इस तरह बीमारी हो गई है। जो देखो वो ही पैसा बनाता है, जो देखो वो ही चाहता है कि के घोर अत्याचार हो रहे हैं, ये सब रुक किस तरह से नोच-खसोट लें! अच्छा, परदेस में नहीं है। परदेस में ऐसा नहीं है । यानि मुझे जाएंगे। क्योंकि आप एक सुन्दर मानव प्रकृति बन जाएंगे और इन सब चीज़ों से आप दूर खुद हमेशा घबराहट लगी रहती है कि लोग मेरे पास इसलिए आ रहे हैं कि किस तरह रह कर के भी इन पर अपना प्रकाश डाल सकते हैं और सब ठीक कर सकते हैं। आज के इस वातावरण में मनुष्य घबड़ा सकता है से मुझसे पैसा निकालें। अब ये पैसा मेरा जो कि ये हो क्या रहा है? कैसे हो रहा है? इन है ये समाज कार्य के लिए है। इसलिए नहीं सबका एक ऐसे सोचना चाहिए कि एक दिन कि कोई चोर उच्चके आएं और मुझे लूट आता है कि सब चीज़ सामने आ के खड़ी हो लें। पर वो कोशिश करते हैं । इसी प्रकार जाती है और इतने दिन से चलने वाली ये एक तरह की अपने यहाँ एक भावना आ गई चीज़ एकदम से उद्घटित हो जाए। इसका है कि जैसे भी हो पैसा बनाएं। पर ये लक्ष्मी कारण क्या? कि सब लोगों ने अभी तक नहीं है। ये अलक्ष्मी है, क्योंकि आप तक जब आत्मा को वरण नहीं किया। गर आत्मा को लक्ष्मी आएगी तो वो बहुत चंचल है। बहुत आप अपना लें तो इस तरह की न गलतियाँ चंचल है और वो ऐसे रास्ते पर ले जाएगी होंगी न ऐसी चीज़ आगे चलेगी तो अब कि आपके अंदर अलक्ष्मी आ जाएगी, और उस अलक्ष्मी में आपको समझ नहीं आएगा ऐसी रुकावट आ गई है, इंसान हठात् खड़ा हो जाता है और सोचता है ये है क्या? ये है कि क्या करना है। इसलिए किसी भी चीज़ यही कि आप भटक गए हैं और कुछ लोग की ज्यादती करने से पहले सोच लेना चाहिए तो खाई में गिर गए, भटक कर यही चीजे कि हम कहाँ जा रहे हैं? कहाँ अग्रसर हो रहे हैं, इसको समझने की कोशिश करनी चाहिए। हैं? कौन से जंजाल में फंस रहे हैं? तो इस इतने सालों से अपने देश में जो महापाप तरह की जो भावनाएं हमें हैं कि पैसे के चल रहा था वो आज उद्भव हुआ। सामने मामले में हमें बहुत सतर्क रहना चाहिए और दूसरे का पैसा कैसे निकाल सकते हैं वो आ कर खड़ा हो गया। छोटे से परिमाण में, करना चाहिए, ये चलने वाला नहीं पैसा क्या उठा कर आप अपने साथ ले जाएंगे? ये हो गया। इससे जागृत होने की जरूरत है कि कहीं हम भी इस भटकावे में तो चल नहीं सारा कुकर्म है। ये आप ही की खोपड़ी पर बैठेगा। मैं यह मानती हूँ क्योंकि यह घोर रहे। हम भी इस तरह लुढ़क तो नहीं रहे कि जहाँ हमें नहीं जाना चाहिए। कलियुग है और इसी के साथ एक और चल आपको आश्चर्य होगा कि आजकल 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-33.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 32 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 रहा है उसे मैं कृतयुग कहती हैँ। जब ये हो रहा हैं जो चाहता है कि किस तरह से परम चैतन्य कार्यान्वित है, कार्यान्वित है और दगा करें, किस तरह से पैसा लूटें। इससे ये परम चैतन्य वो कार्य कर रहा है जिससे मुक्ति का एक ही मार्ग है। वो है बार-बार ऐसे लोगों को ठोकरें लगेगीं और सहजयोग । इसी से हमारा समाज वो समझ जाएंगे कि ये हम बहुत ही सामाजिक व्यवस्थित हो जाएगा इसी से हमारे हित के विरोध में हैं गर आपको लोगों का हित पाना है तो आपके अंदर शक्ति है उसे समाज में आपसी प्रेम और आदर पनप जाएंगे। न की हम पैसे का आदर करें। आप जागृत करें और उनका हित सोचें । किन्तु हित के मामले में भी स्वार्थ नहीं होना भी लोग पागल हैं सत्ता चाहिए। काहे के चाहिए। असल में अपने यहाँ शब्द भी इतने लिए चाहिए सत्ता? किस लिए सत्ता चाहिए? सुन्दर हैं! स्वार्थ, माने स्व का अर्थ। क्या आपकी अपने पे सत्ता नहीं, आप दुनिया भर अब दूसरी बात है सत्ता। सत्ता के पीछे आपने अपने स्व का अर्थ जाना है? स्व का अर्थ जान लेना ही स्वार्थ है और बाकी सब बेकार है। गर ये चीज हम लोग समझ लें कि की सत्ता ले कर करोगे क्या? सत्ता चाहिए। हमें ये होना है हमें वो होना है किस दिन के लिए? कौन सा उससे लाभ है? उससे हमने अपने स्व का अर्थ नहीं जाना तो हम आपका क्या लाभ होने वाला हैं? सत्ता करने उधर ही अग्रसर होएंगे। वहीं हम कार्य करेंगे जिससे स्व का अर्थ जानने की व्यवस्था हो। के लिए भी बहुत बड़े आदर्श पुरुष हो गए हैं। उनकी हिम्मत, उनका बड़प्पन, उनकी इसलिए आजकल की जो भी कुछ सच्चाई, वो तो है नहीं और सत्ता चाहिए! कशमकश चली हुई है, झगडे बाजी चली हुई है, इसकी परंपरा बहुत पुरानी है। अपने वो क्या करेगा? हमारे मराठी में कहते हैं कि देश में स्थित हो गई, पता नहीं कैसे? पहले बंदर के हाथ में जली हुई लकड़ी दे दीजिए जब अंग्रेज आए. वो भी यही धंधे करते थे। तो वो तो सब कुछ जलाते फिरेगा | वही है उन्होंने हमारे यहाँ से कोहिनूर का हीरा ले आज सत्ता का रूप कि सब बंदर जैसे अपनी जैसे कोई आप बंदर को सत्ता दे दीजिए तो सत्ता को इस्तेमाल करते हैं, पैसा कमाने के लिए और पैसा कमाते है सत्ता के लिए! इस गए। उनको जब तक आप कुछ उपहार नहीं दो तो वो खुश नहीं होते थे। पर वो थोड़े परिमाण में था। अब तो बहुत ही बड़े तरह इन दोनों के द्वन्द में चलने से आज परिमाण में हरेक चीज़ है। तब से शुरू हुआ अपना देश बहुत ही गिर गया है, सामाजिक और अब बढ़ते-बढ़ते हमारे राजकारणी लोगों रूप से। सहज योग उसका इलाज है। ने किया और अब आगे बढ़ गया। अब सहजयोग में आने से आप समझ जाएंगे कि शुरू राजकारणी नहीं, बल्कि हरेक आदमी ऐसा यह महामूर्खता है और इस मूर्खता को 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-34.txt सितम्बर-अक्टूबर 2001 33 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 9 व 10 हमें देखना चाहिए कि किस तरह से सहजयोगी नहीं करते। जिस दिन सहजयोग बहुत फैल जाएगा, उस दिन ये सब चीज़े जगह-जगह भूकंप आते हैं, तो क्या होता अपने आप नष्ट हो जाएंगी। ये रह ही नहीं हैं? अभी गुजरात में बड़ा भारी भूकंप आया। सकतीं। इसीलिए आपको समझना चाहिए वहाँ हमारे सिर्फ 18 सहजयोगी थे क्योंकि कि आजकल जो हम घबड़ाए हुए हैं कि गुजरातियों को पता नहीं क्या सहजयोग से अपने समाज का क्या होगा, उसको ठीक खास मतलब नहीं है! अब टर्की में भी बड़ा करने का भी, उसको सही रास्ते पर लाने भारी भूकंप आया। वहाँ भी जितने सहजयोगी का भी उत्तरदायित्व आपका है। आप कर थे सब बच गए। सब, एक से एक आर सकते हैं। आप जो सहजयोगी हैं, ये कर उनके घर भी बिल्कुल सही सलामत। मैंने सकते हैं और जो नहीं भी हैं उन्हें सहजयोग देखे खुद! क्योंकि आप परमात्मा के में लाना चाहिए। हमें अगर अच्छी समाज व्यवस्था चाहिए, अच्छी अगर एक व्यवस्था है। कोई आपको मार नहीं सकता। कोई ऐसी हो जिसमें कोई किसी को खसोटे नहीं, आपको नष्ट नहीं कर सकता। ऐसे ही मारे नहीं और सब लोग आपस में प्रेम भाव और भी जगह जहाँ भूकम्प आए, वहां भी में आ गए हैं तो आपका संरक्षण साम्राज्य से रहें, तो इसका इलाज सिर्फ सहजयोग हमने यही देखा कि सहजयोगी एक भी नष्ट हुआ, न उसका घर नष्ट हुआ। लातूर कर सकता है। सहजयोग दिखने में सीधा नहीं साधा है और सबके अंदर शक्ति होने से सब की ये बात है, कि लातूर में जहाँ हमारा सोचते हैं कि हम तो पार हो गए। पर इसमें Centre था उसके चारों तरफ, चारों तरफ रचना पड़ता है। इसमें रमना पड़ता है खंदक बन गया, चारों तरफ, और बीच में और उसके बाद ही इसकी शक्तियाँ पूरी तरह से जागृत होती हैं और उससे Centre बिल्कुल ठीक रहा और एक भी आप हिन्दुस्तान ही नहीं सारे संसार का लातूर उद्धार कर सकते हैं। इस उद्घार की का सहजयोगी मरा नहीं। ऐसा हुआ कि चतुर्दशी के दिन गणपति को विसर्जित व्यवस्था होनी चाहिए। अब इसमें कुछ-कछ करते हैं। सबने विसर्जन किया और विसर्जन करके आए और उनमें से जो लोग दुष्ट लोग ऐसे हैं कि वो शैतानी के पीछे हैं । उनकी इच्छाएं ही शैतान हैं। ठीक है, ऐसे प्रवृत्ति के थे, उन्होंने शराब ले कर पीना शुरू लोग रह जाएं। मैंने बहुत बार आपसे बताया । शराब पी कर के नाच रहे थे और है कि अब ये जो है, आखिरी Judgement आ गया है। इस वक्त में अगर आप अच्छाई भी सहजयोगी लातूर में किसी भी तरह से, को पकड़ें तो आप उठ जाएंगे और बुराई को पकड़ें तो आप गिर जाएगें। किया नाचते-नाचते सब जमीन के अंदर। पर एक कोई भी बात से वंचित नहीं है। उसका घर जैसे के तैसा रहा, उसकी गृहस्थी, उसके 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-35.txt सितम्बर-अक्टूबर 2001 34 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 9 व 10 कुछ नहीं होगा। गहनता आनी चाहिए और बच्चे सब ठीक हैं। ये क्या चमत्कार नहीं तो और क्या है? इसी प्रकार आप भी समझ लें उसमें सब कुछ सहजयोग के बारे में जान लीजिए। बारीक से बारीक बात भी वहाँ आप समझ सकते हैं। कोई शास्त्र पढ़ने से मालूम कि परमात्मा का जो संरक्षण है वो आपके ऊपर है क्योंकि आप उसके साम्राज्य में गए हैं। इन सारे साम्राज्यों के बाहर इतने ऊँचे नहीं होगा, कुछ भी कुरान पढ़ने से मालूम आप चले गए कि अब किसी भी चीज़ का नहीं होगा, बाइबल पढ़ने से मालूम नहीं भय नहीं। कोई भी चीज़ आपको नष्ट नहीं होगा क्योंकि उस वक्त कुण्डलिनी का कर सकती। इस तरह से हमने सहजयोग में जागरण हुआ नहीं था और वो इन लोगों पे अनेक उदाहरण देखे हैं। अनेक लोगों को था जो अभी पार नहीं हुए हैं । उन लोगों के बीमारी से उठते देखा हैं। ड्रग लेने वाले लिए था कि वे किस तरह से इस दशा को लोग एक रात में ही बदल जाते हैं। किसी प्राप्त करें। पर अब आप तो प्राप्त कर चुके। अब इसके आगे का जो भी कार्य है वो कैसे करना चाहिए इसके लिए आप कृपया अपने घर के थोड़ी नज़दीक या दूर पर भी हो, को आश्चर्य होगा कि ये कैसे हुआ! वही बात मैंने कही कि कुण्डलिनी के जागरण से अपने अंदर की सब विकृतियाँ झड़ जाती हैं। इस तरह से हर जगह यह कार्य हो रहा है और जहाँ भी आपका वस्तु है उससे पास या दूर लोग इसको अब महसूस कर रहे हैं, इसको तो वहाँ आप Centre पर जरूर जाएं। मुझे समझ रहे है कि परिवर्तन की बहुत ज़रूरत है। इस परिवर्तन के सिवा कुछ भी नहीं समझेंगे, इसका मान रखेंगे। जो मिला है वो बदल सकता कुछ भी ठीक नहीं हो सकता। मनुष्य ही है जो सब गड़बड़ करता है और था वो आपने प्राप्त किया है। उसका आप ये मनुष्य ही है जो खुद इसको उठाएगा और गौरव जानेंगे, जब आप उसकी शक्ति को इसको बढ़ाएगा। बड़ा विश्वास है मुझे कि पाएंगें तो इसको प्राप्त करें और अपना सम्मान जिस तरह से यहाँ सहजयोग बढ़ा है, और रखें। अपनी रखें। आप इसमें उतरते भी आगे बढ़ता रहेगा। अनेक प्रांगण में, अनेक जाइये, गहरे, और मेरा पूर्ण आशीर्वाद है कि स्थिति में इसका प्रकाश चारों तरफ हो पाएगा। आप लोग पूर्णतया सुखी हो जाएँ, पूर्णतया आशा है कि इसको आप लोग शिरोधार्य अनंत है, अंनत वर्षों से किसी को नहीं मिला ये इज्जत आप सबको अनंत आशीर्वाद । आनंदित हो जाएँ, और पूर्णतया शान्तिमय अब अपने-अपने दायरे में देख लीजिए हो जाएँ। इसके अलावा आप स्वयं शक्तिशाली हो जाएँ । कि कहाँ आप के सेन्टर हैं। वहाँ आप जाइए परमात्मा आपको धन्य करें। और गहन उतरिये। एक दम से पार होने से 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-36.txt श्री बुद्ध पूजा बार्सिलोना स्पेन (20.5.1989) परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज हम श्री बुद्ध की पूजा करने के अति में चला जाता है, इसलिए सदैव उन्होंने लिए यहाँ एकत्रित हुए हैं। भगवान बुद्ध, पिंगला नाड़ी पर कार्य किया और हमारे जैसा आप जानते है, गौतम थे उनका हित के लिए और हमारे अहम् को नियंत्रित जन्म राजपरिवार में हुआ था। बड़े होकर करने के लिए स्वयं को पिंगला नाड़ी पर उन्होंने मनुष्य को तीन तरह के दुखों से स्थापित कर लिया। आज्ञा चक्र को यदि कष्ट उठाते देखा और वे सन्यासी बन TI आप देखें तो इसके मध्य में ईसा मसीह हैं, हुए गए। वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि इच्छाओं बाईं ओर श्री बुद्ध हैं और दाई ओर श्री के कारण ही ये तीनों प्रकार की समस्याएं महावीर। सभी को भगवान (Lord) कहा हैं तो उन्होंने कहा कि व्यक्ति यदि इच्छाएं जाता है क्योंकि वे इन क्षेत्रों के शासक हैं। त्याग दे तो वह सभी समस्याओं से मुक्त आज्ञा चक्र का ये क्षेत्र तप का क्षेत्र हैं, हो जाएगा। उन्होंने वेद, उपनिषद और तपस्या का क्षेत्र है क्योंकि इन लोगों ने अन्य सभी ग्रन्थ पढ़े। वे बहुत से सन्तों हमारे लिए तपस्या की। अब हमें तपस्या और अन्य लागों के पास गए परन्तु उन्हें करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि आत्म साक्षात्कार प्राप्त नहीं हुआ। वास्तव ये अवतरण हमारे लिए सभी प्रकार की में वे अवतरण थे। अवतरणों को भी भिन्न संभव तपस्या कर चुके हैं। यही कारण है प्रकार से आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति तक पहुँचना कि सहजयोगियों को कोई तपस्या नहीं पड़ता है जिस प्रकार सभी संभाव्य शक्तियों करनी, अपनी सुन्दर चैतन्य लहरियों के को प्रकट होना होता है। परन्तु अवतरणों साथ वे अत्यन्त सुन्दर स्थिति में हैं। उन्हें बहुत अधिक संभाव्य शक्ति होती है और यदि द्वार खोल दिया जाए तो वह शक्ति और ऐसे स्थान पर छिपने की जहाँ बिच्छु, अपनी अभिव्यक्ति करती है। में जंगलों में जाने की, समाज से दौड़ने की सांप, चींटे तथा जीवन के लिए अन्य खतरे बुद्ध ने ये बात महसूस की कि मानव हों, कोई आवश्यकता नहीं है। तो तपस्या की सबसे बड़ी समस्या उसका अहम् है। का कार्य समाप्त हो गया है। भगवान बुद्ध अपने अहम में व्यक्ति एक के बाद एक ने अपने जीवन काल में और सदैव बताया 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-37.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 36 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 बन गए थे। परन्तु इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि सभी लोग शाकाहारी बन जाएं| जिन लोगों में अहं है उनके लिए शाकाहारी कि त्याग की कोई आवश्यकता नहीं है। किसी भी प्रकार का त्याग अनावश्यक है । को यदि आप पढें, उनकी भगवान बुद्ध प्रारम्भिक शिक्षाओं को यदि देखें तो आप शाकाहारी भोजन करना और तामसिक लोगों बन जाना बेहतर है। उग्र लोगों का हैरान होंगे, कि किसी भी प्रकार का त्याग भोजन करना बेहतर है। अनावश्यक है। उन्होंने स्वयं तो तपस्या की ये बात हम भली-भांति जानते हैं। अतः का प्रोटीन युक्त परन्तु वह समय तपस्या का था। उस समय उन्होंने अत्यन्त प्रेम तथा स्नेह पूर्वक उन्हें उन्हें ऐसे लोगों की आवश्यकता थी जो नियंत्रित करने का प्रयत्न किया जो उनके जीजान से उनके विचारों का प्रचार कर साथ थे। परन्तु उनके संदेश का सारतत्व सकें। अतः सभी ने इस प्रकार का जीवन समझा जाना आवश्यक है। अपनाया। परन्तु कभी भी उनका विश्वास तपस्या में न था। वो तो शाकाहारी भी न थे एक बार वे एक गाँव में गए उन्हें भूख और उनसे पूछा, "श्रीमान क्या आप मुझे लगी हुई थी । वहाँ शिकारियों से उन्होंने बुद्ध धर्म की शिक्षा देंगे?" तब तक ये कोई खाने के लिए कुछ मॉँगा। शिकारी ने उत्तर धर्म न था, "क्या आप मुझे दीक्षा देंगे?" दिया कि आज सुबह हमने एक जंगली उन्होंने उत्तर दिया, "मेरे बच्चे केवल ब्राह्मणों सूअर का शिकार किया है लेकिन इसे ठंडा को दीक्षा दी जाती है अर्थात आत्मसाक्षात्कारी होने में कुछ समय लगेगा। उन्होंने कहा, लोगों को ही। आपका जन्म किस कुल एक बार एक लड़का उनके पास आया में ' 'कोई बात नहीं। किसी दाईं ओर के उग्र हुआ? लड़के ने उत्तर दिया, "श्रीमन मैं स्वभाव व्यक्ति का जंगली सूअर का बिना अपना कुल नहीं जानता।" वह लड़का अपनी ठंडा हुए मांस खाना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। माँ के पास वापिस गया और उससे पूछा, उन्होंने ये मांस खाया और ऐसा करते हुए "माँ मेरा कुल कौन सा है मेरे पिता कौन उनकी मृत्यु हुई। अवतरण जो भी कार्य थे", माँ ने उत्तर दिया मेरे बच्चे मैं अत्यन्त करते हैं उसका कोई अर्थ होता है। जिस गरीब महिला थी और मेरे पास जीवन तरह से हम ईसा-मसीह के जीवन में अर्थ यापन का कोई साधन न था, इसलिए मुझे खोजते हैं वैसे ही श्री बुद्ध के जीवन में भी बहुत से स्वामियों (Lords) के साथ रहना अर्थ खोजते हैं। यही कारण है कि बौद्ध पड़ा. मैं नहीं जानती कि तुम्हारे पिता कौन लोग शाकाहारी बन गए। क्योंकि इस हैं?" "आप नहीं जानती कि मेरे पिता कौन गर्मागर्म मांस को खाते हुए बुद्ध भगवान है?" उसने कहा, "नहीं।" वह लड़का भगवान की मृत्यु हो गई थी इसलिए वे शाकाहारी बुद्ध के पास गया और भगवान ने उससे 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-38.txt सितम्बर-अक्टूबर 2001 37 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 9 व 10 पूछा आपके पिता कौन हैं? तुम्हारी जाति ब्राह्मण होने के नाते आपको चुस्त होना है। कौन सी है?" लड़के ने उत्तर दिया, श्रीमान मेरी कोई जाति नहीं है क्योंकि मेरी माँ ने ब्राह्मण चाहे न हों परन्तु ब्राह्मण परिवारों में बताया है उनके कई स्वामी थे और वे नहीं जानतीं कि किससे मेरा जन्म हुआ। अतः रहे हों, वे भी अब स्वयं को ब्राह्मण कहते मैं अपने पिता को नहीं जानता। भगवान हैं उनकी विशेषता क्या है? अधिकतर ने उसे गले से लगा लिया और कहा भारत में ब्राह्मण लोग हैं, जो वास्तविक जन्में हैं। हो सकता है उनके पूर्वज ब्राह्मण ब्राह्मण लोग प्रातः चार बजे उठ जाते हैं। बुद्ध तुम वास्तव में ब्राह्मण हो क्योंकि तुमने इस प्रकार आप उन्हें पहचान सकते हैं कि वे ब्राह्मण हैं। इस तरह से देखें तो मैं भी सत्य बात बता दी है। ब्राह्मण हूँ। चार बजे प्रातः उठकर वे स्नान अतः सत्य ही उनके जीवन का सार करते हैं और स्वयं को शुद्ध करके वे पूजा, तत्व है। सर्व प्रथम हमें अपने प्रति ईमानदार प्रार्थना या ध्यान के लिए बैठ जाते हैं। इस होना पड़ता है और मुझे लगता है कि स्वयं के प्रति ईमानदार होना कुछ लोगों के लिए यद्यपि वो सच्चे ब्राह्मण नहीं हैं। इसके बहुत कठिन कार्य है। वे जानते हैं कि विपरीत भारत में प्रकार वहाँ आप ब्राह्मण को पहचानते हैं। शूद्र प्रातः नौ बजे उठेंगे। सत्य से पलायन किस प्रकार करना है। वो यह उनकी परम्परा है। वे गन्दे कपड़े पहनते इस कार्य को करना जानते हैं सत्य से हैं, मुँह में अपने हाथ डालते हैं, गन्दगी से बचने के लिए वे तर्क देते हैं और युक्तियाँ घिरे घिनौने लोग होते है। ऐसे व्यक्ति लगाते हैं। ये स्पष्टीकरण आप किसे दे रहे को गन्दगी से दुर्गन्ध भी नहीं आती क्योंकि हैं? केवल अपने आप को? आपकी आत्मा परंपरागत वे यही कार्य करते हैं। अब हमें का निवास आपके अन्दर है और आपके पता चला है कि बहुत से ब्रह्मण हुए हैं चित्त द्वारा यह ज्योतिर्मय हो गई है। अब जिनका जन्म शूद्र परिवारों में हुआ। अतः आप किससे तर्क कर रहे हैं? अपनी आत्मा शुद्र परिवार में उत्पन्न होने से, व्यक्ति के से? ईसा मसीह का सन्देश ये है कि हमने जन्म से, वह शूद्र नहीं बन जाता। अपने द्रष्टिकोण, अपनी जाति के कारण ही व्यक्ति ब्राह्मण या शूद्र बनता है। परन्तु समाज में परंपरागत जाति को ही स्वीकार किया जाता है इन शूद्र लोगों के बाल बिखरे हुए होंगे, आप तुरन्त पहचान सकते हैं। वो बालों में तेल नहीं डालते। बिना तेल के उनके बाल हुए पुनरुत्थान प्राप्त करना है, परन्तु कैसे पुनरुत्थान प्राप्त करना है। सर्व प्रथम आपको अपने प्रति ईमानदार होना है। यह समझना सबसे जरूरी है कि आपकी जाति ब्राह्मण है, आपको ब्रह्म का ज्ञान है, आप सर्वव्यापक शक्ति को जानते हैं और उसे आपने महसूस हैं और सच्चे (Dishevelled) बिखरे रहते हैं। किया है। आप सच्चे ब्राह्मण 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-39.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 38 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 दूसरे वे अपने यौन जीवन की चिन्ता और उसे गुदगुदाना! उस मूर्ख राक्षस ने, नहीं करते। राक्षसों की तरह से उनका जिसके मुँह में अमृत भरा हुआ था गुदगुदाहट जीवन होता है। राक्षस लोग ही दूसरों की के कारण अमृत उलट दिया और ऐसी महिलाओं के पीछे भागते हैं उन्हें देखते हैं मान्यता है कि जिस भूमि पर उसके मुँह से आदि-आदि। पुराणों के अनुसार ये कहते निकला हुआ अमृत गिरा वहाँ से लहसुन हुए मुझे खेद हो रहा है यह राक्षसों का पैदा हुआ। गुण है। सहजयोग में जब मैं लोगों को देखती हैँ कि वे अपने प्रति ईमानदार नहीं हैं तो उन्हें से समुद्र मन्थन में जब समुद्र अमृत प्रकट हुआ तो श्री विष्णु को राक्षसों की ये बात समझनी चाहिए कि अहं अत्यन्त दुर्बलता पता थी। जबरदस्ती राक्षस लोग चालाक चीज़ है। केवल इतना ही नहीं, अमृत कलश को ले गए। अपने अहंकार और शक्ति के कारण। वे कहीं अधिक बना देता है। उदाहरण के रूप में आप चालाक थे इसलिए देवताओं से देखें, महिलाएं सौन्दर्य प्रसाधन की दुकानों घड़े को छीन ले गए। राक्षस अमृत पीने ही पर जाकर श्रृंगार कराती हैं। ये पहनती हैं वाले थे। श्री विष्णु को राक्षसों की दुर्बलता वो करती हैं, मैं नहीं जानती कि वो क्या-क्या का ज्ञान था इसलिए उन्होंने मोहिनी रूप करती हैं परन्तु तीन चार घण्टों के बाद धारण किया। मोहिनी अर्थात सुन्दर स्त्री जब आती है तब भी वो वैसी ही लगती हैं। जो अपने वस्त्रों, सुडौल शरीर तथा सभी न जाने कितना पैसा वे उड़ेलती हैं और प्रकार की अदाओं से पुरुषों को आकर्षित हैरानी की बात है जब वे बाहर आती हैं तो करे। तुरन्त सभी राक्षस उस सुन्दरी (श्री उनके बाल एक भिन्न शैली में कटे होते हैं! विष्णु) पर फिदा हो गए। देवताओं और उनसे यदि आप पूछें कि आपने इस प्रकार राक्षसों का भेद आप जान सकते हैं। परन्तु बाल क्यों कटाए हैं तो वे कहती हैं, 'ये यूनान में अपनी समस्याओं का हल निकालने फैशन है। इसका अर्थ ये हुआ आपका के लिए देवताओं को राक्षस रूप में दर्शाया अपना कोई विचार नहीं है, आपकी अपनी है ज्यों ही विष्णु जी ने पाया कि एक कोई धारणा नहीं है। जो भी फैशन हो उसे राक्षस कुछ लेकर भागा है, तो पुराणों में आप स्वीकार कर लेते है। आप ये नहीं बताया है, मोहिनी रूप में श्रीविष्णु जी उसके समझ पाते ऐसा करना आपके लिए ठीक पास पहुँचे और हँस-हँस कर उसे गुदगुदाने है या नहीं। इस प्रकार अहं को बढ़ावा का प्रयत्न किया किसी अहंकारी राक्षस मिलता है मान लो कोई उद्यमी है जो अहं आपको दूसरे लोगों के अहं का दास अमृत के अन्य लोगों से कहीं अधिक चुस्त चालाक के पास अत्यन्त सुन्दर महिला का आना 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-40.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 39 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 है, ऐसे बहुत से लोग हैं, अब वो कहता है शैली बनाने के लिए इनका उपयोग करती कि अपने सिर में एक विशेष प्रकार का तेल हैं। मैंने पूछा, कैसे? उन्होंने अपने वालों डालो, अपने बालों को एक विशेष रूप से का क्या हाल किया? आजकल वे अपने बाँधो तो वे अच्छे लगेंगे। इस प्रकार वे बालों में तेल नहीं डालतीं, अधिकतर गंजी विशेष रूप से विज्ञापन देता है। इस तरह हो गई हैं। आप यदि अपने बालों में तेल उसका सारा उत्पाद बिक जाता है बिना नहीं डालेंगे तो गंजे हो जाएंगे, ये बात मैं सोचे समझे लोग इसका उपयोग करते हैं। आपको बता रही हूँ। आप गंजे हो ही जाएंगे। हम तपस्वी लोग हैं, हम तेल नहीं डाल सकते। आप यदि सिर में तेल नहीं डालेंगे तो गंजे हो ही जाएंगे। तब बिना कुछ किए किसी बुद्ध संस्था में शामिल हो इसका अर्थ ये है कि आपका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं है । अहं क्या है? अहं से आपको व्यक्तित्च, चरित्र और स्वभाव मिलना चाहिए। जब सकेंगे। एक आराम और हो जाएगा, आपकी आप उन्हें देखते हैं तो बीमार लोगों की तरह से पहचान नहीं पाते, वैसे ही जैसे कहते हैं कि हम गंजे हो गए हैं! हमे कुछ सभी रोगियों की दाढ़ी, मूछें बढ़ी होने के लोग कहते हैं कि हम गंजे हो गए हैं, हमें हजामत नहीं करवानी पड़ेगी। अब वो लोग कारण आप उनमें अन्तर नहीं कर पाते। एक महिला और दूसरी महिला में आपको कुछ तो करना होगा। तो वे ये टोकरिया पहन लेते हैं और उनके ऊपर विग डाल अन्तर नजर नहीं आता क्योंकि सभी की लेते हैं। परन्तु क्यों? क्यों नहीं आपने सिर बालों की शैली एक जैसी होती है, सभी के में तेल डाला? आपके सिर पर घने बाल कपड़े एक जैसे होते हैं सभी कुछ एक होने चाहिएं। परन्तु आजकल यही फैशन जैसा होता है क्योंकि यही फैशन है। फैशन है। एक दिन एक महिला मेरे से बात कर का आरम्भ किसने किया? किसी बहुत रही थी और उसकी टोकरी गिर गई, साथ चालाक व्यक्ति ने जो पैसा बनाना चाहता में विग भी और इस प्रकार मुझे इस बात था। भारत में एक सुन्दर प्रकार की डलिया होती है, एक प्रकार की छोटी सी टोकरी। का पता चला। अचानक ये बाजार से गायब हो गई। हमारी समझ में नहीं आया कि सारी टोकरियाँ यदि ठीक प्रकार का अहं है तो आपका कहाँ गायब हो गईं! ऐसा होना असम्भव है, अपना व्यक्तित्व, चरित्र, सूझबूझ, विशेषता कोई इनका क्या करेगा? यह बड़ी और स्वभाव होना चाहिए। श्री बुद्ध ने क्या साधारण सी चीज़ है। ये सब अमरीका में किया? उन्होंने कहा कि सभी चीजों से, पहुँच गईं, क्यों? वहाँ महिलाएं बालों की अपने बालों से, अपनी भँवों से और हाथों अंतः यह समझना आवश्यक है कि आपमें 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-41.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 40 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 पैरों आदि के बालों से मुक्ति पा लो । महान दिखाई देते हैं। यद्यपि आप चिमनी कल्पना करें कि यदि हम बुद्ध धर्म के की तरह से दिखाई देते हैं लेकिन ठीक अनुयायी होते तो हमारा क्या हाल हुआ है ये सारी चीजें कहकर उद्यमी आपके होता! उन्होंने कहा, ठीक है, आप गेरुआ अहं को बढ़ावा देते है। और आप वो सब वस्त्र पहनें, सारे बाल मुंडवाकर गेरुआ कह रहे हैं। ये कार्य करते हुए आप भूल वस्त्र पहनकर घूमें और महिलाओं को केवल जाते हैं कि आप महामूर्ख हैं। यदि हम इन दो वस्त्र पहनने की आज्ञा दी-एक ब्लाऊज धूर्त उद्यमियों की बातें सुनते रहे तो मैं और एक साड़ी । पेटीकोट भी नहीं, चाहे आपको बता देती हूँ कि आपका सारा सौन्दर्य आप रानी हों या सफाई कर्मी, सभी एक समाप्त हो जाएगा। पहले मोनालिसा हुआ जैसी दिखाई देनी चाहिएं। इसलिए आप करती थीं, आजकल ये कहीं दिखाई नहीं फैशन करना छोड़ दें। परन्तु बुद्ध लोग देती। आजकल भयानक मच्छर हैं। वो सबसे अधिक फैशनेबुल हैं, इनकी आप सोचती हैं कि वो बहुत सुन्दर हैं परन्तु कल्पना कर सकते हैं जापान में जाकर उनमें से चैतन्य लहरियाँ नहीं निकलती। यदि आप उनके फैशन देखेंगे तो पागल हो कलात्मकता के किसी भी मापदण्ड से वो जाएंगे। इतनी अधिक बनावट है! मेरी समझ सुन्दर नहीं हैं। चालीस वर्ष की होते-होते में नहीं आता कि वो बुद्ध धर्म कहाँ चला वो अस्सी साल की बूढ़ी दिखाई देती हैं। गया है जिसमें श्री बुद्ध ने प्राकृतिक लोगों | पल तो क्या घटित हो गया? अपने अहं के हाथों की पुतली बनकर हमने अपना की सराहना की थी। फैशन के इस जंगल में सारा बुद्ध धर्म खो गया है। मूलाधार खराब कर लिया है। मूलाधार दूसरी बात ये है कि दाई ओर के नियंत्रक है। दाईं ओर गतिवर्धक है आक्रामक और उग्र स्वभाव वाले लोगों को और बाईं ओर जो कि मूलाधार है यह समस्या हो जाती है। आप यदि उग्र स्वभाव नियंत्रक है। आप यदि बहुत अधिक दाई ओर को हैं तो अपनी बाईं ओर (भावनापक्ष) तथा झुक जाते हैं अर्थात आक्रामक हो मूलाधार की उपेक्षा कर देते हैं। आप कहते जाते हैं तो आपको बहुत सी समस्याएं हो हैं 'क्या दोष है', 'क्या दोष है? जब आपको सकती हैं। मैंने लोगों को कहते हुए सुना एड्स रोग हो जाता है तब दोष का आपको है कि बहुत अधिक सक्रिय (Over active) पता चलता है। जब तक कैंसर नहीं हो लोग बच्चे उत्पन्न नहीं कर सकते। पहला जाता, धूम्रपान में दोष नहीं नज़र आता। ये कहना कि 'क्या दोष है और दूसरे पूर्ण भारत में भी विज्ञापन दिए जाते हैं कि यदि शुष्कता' (Dryness) ऐसे लोगों के बच्चे आपके हाथ में सिगार है तो आप बहत नहीं हो सकते। यदि किसी तरह से हो भी 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-42.txt सितम्बर अक्टूबर 2001 41 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 गए तो वे केवल राक्षस ही बन सकते हैं। अपने पतियों का भी त्याग करने की अतः बहुत अधिक त्याग प्रवृत्ति व्यक्ति को आवश्यकता नहीं है। वे सब पत्नीविहीन अति उग्र बना सकती है। यही कारण है थे श्री बुद्ध ने अपनी पत्नी का त्याग कर कि श्री बुद्ध ने कहा बहुत ज्यादा तपश्चर्या दिया था। श्री महावीर की पत्नी नहीं थी की आवश्यकता नहीं है उन्होंने ये बात और ईसामसीह ने विवाह नहीं किया परन्तु कही। यद्यपि जो लोग उनके साथ थे और सहजयोग में आप विवाह करते हैं आपके जिनकी वो देखभाल करते थे वो सभी बच्चे हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं। परन्तु, ब्रह्मचारी थे परन्तु उन लोगों को सन्तुलन जैसे हम कह रहे थे, अहं के कारण हम श्री बुद्ध दिया करते थे। अपने आप से ही लिप्त हो जाते हैं। अतः हम कह सकते हैं विश्व में तीन प्रकार के अतः एक बार यदि आप दाईं ओर को (उग्रता की ओर) चल पड़ते हैं तो आपका चिंता नहीं है, एक वो जो दूसरों की ही हैं: एक वो जिन्हें किसी अन्य की लोग अन्त स्वतः ही अत्यन्त निष्क्रिय व्यक्ति के रूप में होता है। परिणामस्वरूप आप बच्चे केवल अपने बारे में ही चिन्तित हैं । चिन्ता करते हैं और तीसरी प्रकार के लोग नहीं उत्पन्न कर सकेंगे, आपकी आयु लम्बी नहीं होगी, जैसे कोकीन लेने वाले लोगों के साथ होता है। हर चीज़ में आप बहुत के प्रति ईमानदारी है और इस ईमानदारी गतिशील हो उठते हैं। ऐसे लोगों के साथ जीना बहुत कठिन है क्योंकि ये लोग जैट आप विवाह कर सकते हैं, आपके पति या की गति से चलते हैं और मैं गज की तरह पत्नी हो सकते हैं, आप बच्चे उत्पन्न कर से। मैं तो उन्हें आते जाते ही देखती रहती सकते हैं। अहं ऐसे लोगों की सृष्टि करता हूँ। उनसे सम्बन्ध जोड़ना मेरी समझ में है जो अपने से, अपनी आकांक्षाओं से, नहीं आता। अतः अहम् को नियंत्रित करने परियोजनाओं से, नौकरी से, पत्नी से, बच्चों के लिए हमें श्री बुद्ध की पूजा करनी होगी, से, घर से, अपनी कार से, घोड़े से और श्री बुद्ध को पूजना होगा परन्तु सर्वप्रथम अपने कुत्ते से ही लिप्त होता है । ऐसे सिद्धान्त अपनी पावनता का सम्मान करना व्यक्ति से आप यदि कहें कि ओह! मुझे है। श्री बुद्ध का सम्मान अर्थात अपनी फलां व्यक्ति की चिन्ता है तो वह आपको अतः श्री बुद्ध का पहला सन्देश स्वयं का पहला क्षेत्र आपकी पावनंता हैं। पावनता का सम्मान, जिस प्रकार आपने बताएगा कि आपने अपना कर्त्तव्य कर दिया किया है, आपको अपनी पत्नी का त्याग है, अब क्यों आप उसकी चिन्ता करते हैं? अब आपको प्रसन्न होना चाहिए। परन्तु मैं तक वह बहुत निराशाजनक न हो। आपको किस प्रकार प्रसन्न हो सकती हूँ। मैं आप करने की आवश्यकता तब तक नहीं है जब 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-43.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 42 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 जैसी नहीं हूँ। ऐसा व्यक्ति ये भी कहेगा करता। वह यदि इस तरफ से आ रहा हो कि मेरे पास तो घर है, किसी अन्य के पास तो उसे देखकर लोग रास्ता बदल लेंगे। भारत के सभी नगरों में ऐसे बहुत से लोग मेरा कमरा है, यह मेरा कालीन है । घर हैं। वो बहुत प्रसिद्ध हैं, सभी लोग उन्हें आने वाले आगन्तुकों को वह कहेगा कि जानते हैं। प्रातः सैर को जाते हुए किसी वहां बैठो, ये चीज़ वहाँ रख दो। वह इतना को यदि उनके दर्शन हो जाएं तो लोग भयानक और कठोर होता है। उसके मस्तिष्क कहते है हे परमात्मा आज तो हमें भोजन में सदैव मैं और मेरा ही चलते रहता है। भी नसीब नहीं होगा ।' मैंने पूछा क्यों? तो कहने लगे क्योंकि आज हमें इस मनहूस और अधिक और के दर्शन हो गए हैं। परन्तु वह व्यक्ति नहीं है तो मैं इसकी क्यों चिन्ता करूं? यह यह अहं अधिक अधिक बढ़ता जाता है और ऐसे लोगों की धारणाएं वैसी बन जाती हैं जैसे हिटलर की। हो सकता है उसे कुछ यहूदियों ने कोई उसे पसन्द नहीं करता। सभी देशों में अकड़ कर चलता है। वह किसी को नहीं भाता चाहे वह अपना कोई अन्त न समझे। सताया हो और उसके अहं ने इस सदमें ऐसे लोग हैं। सामूहिक बेवकूफियाँ हैं। को बहुत भयानक जेल का आकार दे दिया हो जिसके कारण वह सभी यहूदियों का कभी यदि आप ये देखें कि स्पेन के वध चाहने लगा। अतः इस प्रकार का व्यक्ति लोगों ने कितने ही अमरीकन लोगों का अपने आपमें इतना लिप्त होता है और उसे वध किया तो आपको विश्वास नहीं होता मैं, मेरा और मुझे ही याद रहता है। मैं कि उन्हीं स्पेन के लोगों के बच्चे आज सर्वश्रेष्ठ हूँ बाकी सब महामूर्ख हैं। मैं सबसे सहजयोगी हैं! मेरा कहने का अभिप्राय ये अधिक बुद्धिमान हूँ। मुझे हर चीज़ का ज्ञान है कि आप उनसे बिल्कुल भिन्न हैं और है। महात्मा की तरह से मैं सड़क पर आ सुन्दर हैं। तो ऐसी कौन सी चीज थी रहा था और मैंने एक डाकू देखा, भागकर जिसने उन्हें इतना अत्याचारी बना दिया? मैं पेड़ के पीछे जा छिपा। मैं कितना महान यही अहं, जिसके कारण वो इतना भी न हूँ? तब वह डाकू मेरे पास आया और मुझे देख पाए कि जिन लोगों का वध हम कर धमकी दी, मैने अपना सबकुछ उसे दे रहे हैं वे भी मानव हैं। उनके देश पर हमने दिया। मै कितना महान हूँ? तब वह डाकू आक्रमण किया, वहीं पर हम रह रहे हैं और | आकर मेरी पत्नी को ले गया। मैं कितना उन्हीं का हम वध कर रहे हैं। वहाँ रहने का हमें कोई अधिकार नहीं है पुर्तगाल के लोगों का भी यही हाल है। वे सब ब्राजील जा बसे यद्यपि वे पुर्तगाली हैं परन्तु पुर्तगाल महान हूँ? आत्मश्लाघा! और वह व्यक्ति बहुत प्रसन्न होता है! सभी लोग ऐसे व्यक्ति से तंग आ जाते हैं। कोई उसे पसन्द नहीं 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-44.txt सितम्बर-अक्टूबर 2001 43 चैतन्य लहरी खंड-XIlI अंक 9 व 10 में भी केवल पाँच प्रतिशत ही बचे हैं। उन्हें आपको भुगतना पड़ता है। अत्यन्त सख्ती पुर्तगाल की बिल्कुल भी चिन्ता नहीं है से ये फल आपको भुगतना पड़ता है। अपने क्योंकि वह गरीब देश है। स्पेन के अहं से जो भी चालाकी आप करते हैं वह जो लोग अमरीका जा बसे हैं वो भी यही पलटकर आपको प्रभावित करती है। सोचते हैं कि हमने अमरीका को विजय सहजयोग में तो अहं का परिणाम सबसे किया है, हमने वहाँ के इतने लोगों को मार बुरा होता है। किसी को घोड़े (अह) पर दिया। उनके अहं के कारण ही ऐसा विनाश सवार होते हुए देखकर मुझे बहुत घबराहट होती है। बहुत हुआ। पहली बार जब मैं कोलंबिया गई तो एक व्यक्ति, जो संभवतः मुझे जानता था कहना चाहूँगी जो तामसी प्रवृत्ति होते हैं। कहने लगा, "माँ क्या आप ही वही व्यक्ति ये सदैव शिकायत ही करते रहते हैं। मुझे हैं जो आध्यात्मिक गुरु के रूप में प्रसिद्ध सिर दर्द हो गया, मुझे यहाँ दर्द हो रहा है, है?" मैने कहा, "'हॉँ, मैं ही हूँ, आप फरमाए मैं दूसरी प्रकार के लोगों के बारे में । वहाँ दर्द हो रहा है, मुझे ये हो गया, मुझे ये वह मुझे एक पार्टी में मिला था और उसने हो गया| उन्हें सभी प्रकार के रोग हो जाते मुझे माँ कहकर पुकारा तो मुझे हैरानी हुई। हैं। मैंने जैंरोमी (Jerome) की एक पुस्तक उसने कहा, "क्या आप हमारे देश को कोई में (मुझे आशा है आप जल्दी में नहीं है, ऐसा आशीष दे सकती हैं जिससे हम इन (हंसी) पढ़ा था कि एक व्यक्ति डॉक्टर के अमरीकनों को मात दे सकें। प्रकृति का कोई प्रकोप हो जाए, हमारे पास गेहूँ है। Medica) मैटीरिया मैडिका नामक ग्रन्थ में हम यहाँ गेहूँ उगाते हैं परन्तु ये लोग इसे जितनी भी बीमारियों का वर्णन है वो सब इतने सस्ते दामों में खरीदना चाहते हैं कि मुझमें हैं सिर्फ गृहणी के घुटने के सिवाए । इस पैसे से हम अपने परिवार भी नहीं पाल डॉक्टर ने पूछा कि ये रोग तुम्हें क्यों नहीं सकते। ये कीमत इतनी कम है कि आर्थिक हुआ? तो कहने लगा क्योंकि मैं गृहणी नहीं रूप से हमें दुर्बल कर देगी। हम खुद तो हूँ।" डॉक्टर ने पूछा, "तुम्हें ये सारी बीमारियाँ भूखों मरते हैं और इन्हें ये गेहूँ बेच देते हैं। कैसे हुई और तुम इनके विषय में कैसे अब कोलंम्बिया में यही लोग प्रथम दर्जे में जानते हैं?" तो कहने लगा मैंने मेटीरिया, यात्रा करते हैं और अमरीका के लोग कोकीन मैडिका जैसी पुस्तक पढ़ी और पाया कि लेते हैं और इनके चरण धोते हैं! अहंकार मुझे ये सारे रोग हैं। डॉक्टर ने कहा, "ठीक का यही फल है। इसका ख़ामियाज़ा आपको है, मैं तुम्हें औषधि देता हूँ परन्तु ये भुगतना पड़ता है। अपने अहं का फल औषधि तुमने अभी नहीं लेनी। यहाँ से पाँच पास गया और कहा, "श्रीमान (Materia 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-45.txt सितम्बर-अक्टूबर 2001 44 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 कभी-कभी मैं सोचती हूँ कि वो महान मील दूर जाकर आप इसे ले सकते हैं। सन्त कहाँ खो गए हैं? वो तीसरी प्रकार के टुकड़ें में उसने दवाई दी। आगे कागज के जाकर जब उसने इसे खोला तो कागज लोग जिन्होंने कभी अपनी चिन्ता नहीं की की एक के बाद एक तह पाई जिसमें दवाई और जो स्वयं में लिप्त नहीं थे दूसरों के बिल्कुल भी न थी। कागज के अन्तिम हित में लगे रहते थे और उन्हीं की चिन्ता टुकड़े पर लिखा था, "मूर्ख व्यक्ति मैटीरिया करते थे दूसरे व्यक्ति को क्या कष्ट है, मैडिका का पढ़ना बन्द कर दो, तुम्हें कोई हमारे अगुआ को क्या परेशानी है, अगुआ रोग नहीं है ।" से मैं कैसा व्यवहार कर रहा हूँ , उसके साथ मैं क्या कर रहा हूँ? क्या मैं किसी अतः शिकायत करने वाले लोगों की प्रकार से उसकी सहायता करता हूँ? क्या एक अन्य किस्म है और कभी-कभी तो वे मैंने किसी को आत्मसाक्षात्कार दिया? क्या वास्तव में भूत बाधित और कष्ट कर होते मैंने ठीक प्रकार से उसे कोई पैसा दिया? हैं। मैं यदि गलती से उनका हाल-चाल क्या मैं विवेकशील हूँ या फिर हर समय को परेशान ही करता रहता हूँ और अगुआ हे फिर जाकर श्री माताजी से शिकायत करता पूछ लू तो उनके पास अपनी तकलीफों की एक लम्बी सूची होती है। मैं कहती हूँ, परमात्मा, "इस व्यक्ति से मैंने ऐसा क्यों हूँ। ऐसे लोग कभी सन्तुष्ट नहीं होते। एक पूछा?" वो लोग एक तरफ से शुरू हो जाते प्रकार के लोग अति सन्तुष्ट होते हैं और है: आज सुबह ऐसा हुआ, कल ये हुआ, दूसरी प्रकार के कभी सन्तुष्ट नहीं होते। खाना बहुत बुरा था, उन्होंने मुझसे बहुत एक अन्य प्रकार है जो मध्य में है और बुरा व्यवहार किया, सहजयोगी इतने खराब थे कि उन्होंने मुझे वहाँ जाने ही नहीं दिया, कि वे हैं या असन्तुष्ट? वे तो मुझे अकेला छोड़ दिया, किसी ने मेरी चिन्ता सदा दूसरों की सन्तुष्टि को ही देखते नहीं की । वे लोग इतने दुष्ट थे, बहुत हैं। श्री बुद्ध के जीवन में भी यही गुण कठोर थे और अगुआ भी मेरे प्रति बहुत देखा जाना चाहिए कि वे कैसे थे और कठोर है, उसने मेरे साथ अच्छा व्यवहार किस प्रकार सम्मान करते थे। यह देखने की चिन्ता भी नहीं करते सन्तुष्ट नहीं किया। कृपा करके उसे अगुआ के पद से हटा दें। उस अगुआ ने क्या किया ? उसने मुझे पानी नहीं पीने दिया। क्यों? क्यों उसने तुम्हें पानी नहीं पीने दिया? सत्य संदेश जिसे हम अपनी बाईं ओर से ऐसी ही मूर्खतापूर्ण बातें ये लोग करते रहते जान सकते हैं अपने चित्त से जान सकते हैं। अतः आज जो लोग श्री बुद्ध की पूजा कर रहे है उन्हें समझना चाहिए के उनका है, उसका प्रयोग सर्वप्रथम हमें स्वयं पर 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-46.txt चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 9 व 10 सितम्बर-अक्टूबर 2001 45 करना चाहिए। लोग मुझे बताते हैं, "श्री व्यक्ति बनना होगा मैं यदि सहजयोगी हूँ, माताजी उसकी चैतन्य लहरियाँ ठीक नहीं परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति से यदि मेरा हैं, उस घर की चैतन्य लहरियाँ ठीक नहीं सम्बन्ध है तो मुझे वह प्रेम, वह करुणा हैं, उस चीज़ की चैतन्य लहरियाँ ठीक अन्य लोगों तक पहुँचाने का माध्यम बनना नहीं हैं। और बताने वाला व्यक्ति स्वयं मेरे होगा इधर-उधर की चीजों के लिए मेरे सम्मुख खड़ा हुआ कॉप रहा होता है। मैनें पास समय नहीं है। बाकी सब कार्य व्यर्थ उसे कहा, "आपकी अपनी चैतन्य लहरियाँ हैं। मेरा चित्त पावन होना चाहिए, मेरा कैसी हैं? "ओह, मुझे बहुत चैतन्य लहरियाँ जीवन पावन होना चाहिए। आ रही हैं! मुझे भी बहुत चैतन्य लहरियाँ आ रही हैं, कृपा सहजयोगियों के साथ ये समस्या है कि से शाम तक स्वयं को घोखा देता हूँ तो कई बार वो अपने महत्व को नहीं समझते। मुझमें श्रेष्ठता नहीं है, मुझमें आत्मसम्मान वो नहीं जानते कि उनका अहं ठीक है या मैं कहता कुछ हूँ, करता कुछ हूँ। सुबह करके क्षमा करें । नहीं है। इसे प्राप्त करना जब सम्भव है तो नहीं। अहंकार का सार-तत्व अहंभाव है, क्यों न बिना कोई पैसा खर्चे इसे प्राप्त कर कि मैं सहजयोगी हूँ। इस बात के साथ ईमानदारी को भी रखें, ईमानदारी कि मैं सम्भव हो तो क्यों न मुफ्त में ही चीजें प्राप्त सहजयोगी हूँ और ऐसे धर्म का अनयायी कर ली जाएं। जैसे मान लो श्री माताजी हूँ जो ब्रह्मांडीय है और जो अन्तज्जात का घर है तो क्यों न वहाँ शान से रहा रूप से आत्मलीन होना है इसके विषय जाए? आखिरकार ये निर्मला भवन है। वहाँ में कोई इधर-उधर की बात नहीं है । सभी कुछ मुफ्त मिलेगा। उनमें बिल्कुल ये मेरा अनुभव है और मुझे इस पर पूर्ण विश्वास है और ये मेरे अन्दर अन्तज्जात है। लिया जाए। ऐसे लोग सोचते हैं कि यदि में भी आत्म-सम्मान नहीं है। हो सके तो यहाँ-वहाँ से कुछ पैसा भी उधार ले लें। मैं यह अहंभाव है। मैं नहीं जानती कि अंग्रेजी ऐसे कई लोगों को जानती हूँ। श्री माताजी भाषा में इसे क्या कहेंगे-Highness । अब मान लो हम गणपति पुले दो दिनों के लिए मैं इस पृथ्वी पर अवतरित हूँ और ये जीवन आते हैं तो क्या आप हमसे एक दिन के परमात्मा के कार्य के लिए है। इसके लिए पैसे ले लेंगी? ये बात आम है। आपके पैसे मुझे शुद्ध व्यक्तित्व होना होगा क्योंकि मेरा कौन देगा? मुझे भी अपने खाने और रहने सम्बन्ध विश्व निर्मला धर्म से है, मुझे शुद्ध के पैसे देने होते हैं, मुझे भी देने होते हैं। होना होगा। ध्यान धारणा के माध्यम से, आज भगवान बुद्ध का समय नहीं है जब उन्हें अपना राज्य और सभी कुछ एक-एक अन्य तरीकों से, स्वयं पर दृष्टि रखकर ये शुद्धता मुझे प्राप्त करनी होगी और पाई, यहाँ तक कि अपने बाल भी धर्म (६ शुद्ध 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-47.txt सितम्बर- अक्टूबर 2001 46 चैतन्य लहरी खंड-XIIII अंक 9 व 10 मुम) के लिए त्यागने पड़े। धर्म के लिए देखें कि उन्होंने तीनों प्रकार के लोगों की सभी कुछ त्यागकर वे खाली हाथ निकल समस्याओं को सुलझा दिया। सर्व प्रथम पड़े, बच्चे, बीवी, माता-पिता सभी कुछ बुद्ध हैं अर्थात आत्मसाक्षात्कारी। सभी त्यागकर। बुद्ध धर्म, बुद्ध शैली यही थी। आत्मसाक्षात्कारी लोगों का सम्मान किया जाना चाहिए और उनके सम्मुख समर्पित हजारों की संख्या में वे लोग बुद्ध धर्म होना चाहिए। मैं देखती हूँ बिना किसी बात सिखाने के लिए मीलों-मील पैदल जाया के एक सहजयोगी दूसरे सहजयोगी के करते थे । लोग जब ये सब देखते होंगे तो विषय में उल्टी सीधी बातें करता है। एक दूसरे के लिए सम्मान नहीं है बुद्धम् शरणं गच्छामि' अर्थात मैं स्वयं को प्रबुद्ध लोगों आज की पूजा के समर्पित करता हूँ। उनके आठ भगवान बुद्ध के शिष्य भी ऐसे ही थे। उनपर क्या प्रभाव पड़ता होगा! विशेष रूप से महत्वपूर्ण सम्मुख हैं, परन्तु हमारे यहाँ बहुत है क्योंकि मुझे लगता है कि अहं के कारण बुद्ध पश्चिमी देशों के लोग भटक गए हैं और से हैं। बुद्ध यहाँ सभी बुद्ध बैठे हुए हैं सभी लोग जिन्हें ज्ञान प्राप्त है, जो जिज्ञासु हैं, जो विधना हैं सभी मेरे सम्मुख हुए जैसे उन्होंने कहा कि 'बुद्धम् शरणम् छिपा सकेंगे। आप देखें कि हम सब बुद्ध गच्छामि मैं कहती हूँ कि मैं इन सभी सत्य धर्मी हैं। वो लोग अफगानिस्तान की चिन्ता साधकों के सम्मुख समर्पित हूँ। हमें सभी करेंगे, लामा की चिन्ता करेंगे, अन्य सभी सहजयोगियों का सम्मान करना चाहिए. लोगों की चिन्ता करेंगे क्योंकि वे बुद्ध चाहे वह श्वेत प्रजाति का हो, श्याम प्रजाति उन्हें बुद्ध की बहुत आवश्यकता है। उन्हें इस तथाकथित बुद्धधर्म की भी आवश्यकता है क्योंकि इसके पीछे वे अपनी कमियों को बैठे धर्मी हैं। परन्तु इसमें कोई सच्चाई नहीं है, बिल्कुल भी सच्चाई नहीं है। उसी सत्य एवं समर्पण का हो या नीली प्रजाति का हो। चाहे वह स्पेन से हो, इटली से हो, भारत से हो या को सहजयोगियों ने अपने अन्दर स्थापित किसी अन्य देश से। वह चाहे यहूदी धर्म से करना है। हो या इस्लाम से संबंधित हो या किसी भगवान बुद्ध ने कहा था, "बुद्धं शरणं अन्य धर्म से। चाहे वह वैध सन्तान हो या गच्छामि।" "मैं आत्मसाक्षात्कारी लोगों को अवैध, चाहे वह वैभवशाली परिवार से हो, प्रणाम करता है।" "धमम शरणं गच्छामि"। शाही परिवार से हो या दरिद्र परिवार से । धर्म को प्रणाम करता हूँ अर्थात विश्व चाहे उसके पास धन हो या न हो, वह चाहे निर्मलाधर्म को और अन्त में उन्होंने कहा स्वस्थ हो या अस्वस्थ, चाहे उसका पूर्व जीवन बहुत बुरा रहा हो। भूतकाल की मै 'संघम् शरणम् गच्छामि' अर्थात में सामूहिकता को प्रणाम करता हूँ। इस तरह से आप सभी बातों को भुलाना ही होगा। वे सब ho 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-48.txt सितम्बर-अक्टूबर 2001 47 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 9 व 10 आलोचना करना बहुत आसान है, अन्य बुद्ध हैं और सभी प्रबुद्ध लोगों का सम्मान किया जाना चाहिए। उनकी इच्छाओं के लोगों की आलोचना करना बहुत ही आसान सम्मुख सिर झुकाना चाहिए। हर समय है। मैंने देखा है कि जो लोग दो लाइनें भी आप लोगों की इच्छाओं के सम्मुख सिर नहीं लिख सकते वे लोग शेक्सपियर की झुकाते रहने से अब मैं एक प्रकार से आलोचना कर सकते है, तुकाराम की इच्छामुक्त हो गई हूँ। ये बात मैं बताना आलोचना कर सकते है. सन्त ज्ञानेश्वर की चाहती हूँ। अब आपको इच्छा करनी होगी। अन्यथा मैं आपके लिए बेकार हूँ। मानो कविता तो आप लिख नहीं सकते, किस मेरी इच्छा शक्ति आपके मस्तिष्क में चली प्रकार आप आलोचना कर सकते है? एक आलोचना कर सकते हैं। दो लाइनों की गई हो और मेरे पास कुछ भी न बचा हो। रंग से भी वे चित्र नहीं बना सकते और चल पड़ते हैं आलोचना करने! मेरी समझ अतः आप लोग इच्छा करें। में नहीं आता कि किस प्रकार वे किसी की शरणम् गच्छामि', आलोचना कर पाते है! जिस व्यक्ति ने अत्यन्त महत्वपूर्ण है। हमने विश्व निर्मला किसी को आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया कुछ धर्म के लिए क्या किया है? विश्व निर्मला भी कार्य नहीं किया वह अगुआओं की धर्म के लिए जो भी कुछ आवश्यक है, चाहे आलोचना करता है. उनकी जो बहुत से इसके बाद धम्म ये आपका धन हो, चाहे ये आपका घर हा लोगों को आत्मसाक्षत्कार दे चुके है! आपने आपकी अन्य वस्तुएं हों, चाहे ये औआपका कितने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया? परिश्रम हो, किसी भी प्रकार का परिश्रम । मैं देखती हूँ कि कुछ लोग तो किसी दिखाएं फिर आलोचना करें। सारा ही कुछ पहले उस व्यक्ति जैसा कुछ कार्य करके भी प्रकार का कार्य कर लेंगे और कुछ आलोचना के माध्यम से होता है। मेरे विचार कोई भी कार्य नहीं करेंगे अतः हमें चाहिए कि वास्तव में श्रम दान करें से अपने साथ यह सबसे बड़ा अन्याय है उदाहरण के लिए एक दिन अगुआ क्योंकि आलोचना निकृष्टतम अहं है जो गण झाडू लगाएं दूसरे दिन सारी आप पर काबू पा लेता है। न कोई अहं महिलाएं झाडू लगाएं या कुछ और भाव है न उच्चता की भावना। सब ठीक कार्य करें ताकि आप लोगों को इस है। उन्होंने इतनी सुन्दर कविता लिखी है बात का पूरी तरह से पता चले कि मैं भी लिखूंगा। लोग कहते हैं कि उन्होंने परस्पर सम्मान किस प्रकार करना है लिखा है, परन्तु ये ठीक नहीं है। बेहतर जब आप मिलकर कोई कार्य करने लगते होगा कि वैसी दो पंक्तियाँ लिखकर देखें। हैं तो आपमें वास्तव में सम्मान भाव आता श्रीमाताजी उसकी अंग्रजी तो ठीक है, परन्तु है। अभी भी। आपकी अंग्रेजी कैसी है या आपकी * প 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-49.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 48 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 स्पेनिश? क्या आपको स्पेनिश भाषा का उन्होंने कभी किसी की आलोचना नहीं की। ज्ञान है? तब वो यदि अंग्रेजी नहीं भी सभी भूतों, राक्षसों और असुरों की आलोचना जानता तो क्यों आप उसकी आलोचना करने का ये भयानक कार्य उन्होंने मुझ पर करें? तो जैसा मैंने आपको बताया, आलोचना छोड़ दिया था । उन्होंने सुगम मार्ग अपना ने सारी सृजनात्मकता की हत्या कर दी है, लिया- इन सब लोगों से किसलिए लड़ना हमारे व्यक्तित्व की हत्या कर दी है और है? इन्हें इनके हाल पर छोड़ दें। काश कि हर समय हम कापते ही रहते हैं। कोई भी मैं भी ऐसा ही कर सकती! परन्तु मैं ऐसा रैम्ब्रैन्ड (Rembrandt) माइकल एंजेलो नहीं कर सकती। पहले तीन वर्षो में मैने (Michel Angelo) जैसा नहीं हो सकता। ऐसा करने का प्रयत्न किया परन्तु यह कोई भी नहीं। क्योंकि आप हर चीज को करना मेरे लिए सम्भव न था। इन चीज़ों से आलोचना का रूप दे देते हैं। आपको लड़ना ही होगा परन्तु आपको आस्ट्रेलिया में इन लोगों ने संगीत नाटिका एक - दूसरे की आलोचना नहीं करनी चाहिए, के लिए थर्मोकोल के सुन्दर-सुन्दर समुद्री इससे मुझे बहुत चोट पहुँचती है। ऐसा जहाज आदि चीजें बनाई। आज भी लोग लगता है मानो एक हाथ दूसरे हाथ की उनकी आलोचना कर रहे हैं। जब भी उन्हें आलोचना कर रहा हो! मैं लगातार कई आस्ट्रेलिया की कोई तस्वीर देनी होती है दिनों तक श्री बुद्ध के बारे में बोल सकती तो वे वही तस्वीर देते हैं। यह महारानी हूँ। इसका कोई अन्त नहीं है। अपने जीवन मैरी एंटोएन्टे (Mary Antointe) की तरह से है। वहाँ पर यदि आपको कोई सुन्दर प्रदान कीं और यदि हमें वास्तव में उनके चीज़ देखनी हो तो जाकर उसके महत्व को देखें। आलोचना करना ठीक है यदि करना है तो हमें अपने अन्दर वह द्वारा उन्होंने मुझे बहुत सी सुन्दर चीजें सार तत्व को अपने अन्दर आत्मसात आप उस कला में कुशल हैं, उसके स्वामी नि्लिप्तता का भाव स्थापित करना हैं, केवल तभी ये ठीक है। कार्य में पारंगत होगा अनुयायियों के कारण सभी धर्म व्यक्ति को निःसन्देह आलोचना का नष्ट हुए श्री बुद्ध ने कहा था पूजा मत अधिकार है परन्तु आपको तो इस कला का करो, परमात्मा के विषय में बातचीत मत करो जरा सा ज्ञान भी नहीं है, आप कैसे इसकी । उन्होंने कहा परमात्मा की बात मत आलोचना कर सकते हैं? अहं का नियन्त्रण करो केवल आत्म साक्षात्कार की बात करो । आप श्री बुद्ध लोगों को पहले आत्म- साक्षात्कार पा लेने के जीवन में देख सकते हैं । श्री बुद्ध, जो प्रकाश थे, करुणा थे, आनन्द दो। उन्होंने कहा, "किसी भी चीज़ की थे और ज्ञान की मूर्ति थे। अपने जीवन में पूजा मत करो, पूजा ही मत करो क्योंकि वे 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-50.txt सितम्बर-अक्टूबर 2001 49 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 जानते थे कि पूजा करने के लिए कुछ भी बिल्कुल झूठ होती है। अपने आप को नहीं है। अब इन लोगों के पास स्तूप धोखा देना अहं का कार्य है। अतः सावधान (Stupas) हैं और ये उनकी पूजा करते हैं। रहें, यही न कहते रहें मैं ठीक हूँ, मुझें सभी उल्टी- सीधी चीज़ों की पूजा करते हैं कोई दोष नहीं है । और इसका कोई अन्त नहीं है। ये लोग कहते हैं कि ये भगवान बुद्ध के दाँत हैं। मेरा कहने से अभिप्राय है कि किस प्रकार कठिन समय के विषय में सोचना चाहिए ये बुद्ध के दाँत हो सकते हैं? श्री बुद्ध की जिसमें महात्मा बुद्ध थे। फिर भी उन्होंने जब मृत्यु हुई तो क्या उन्होंने उनके दाँत हमारे लिए सहजयोग का सृजन किया और निकाल लिए थे? ये बुद्ध के दाँत हैं, ऐसा उनकी करुणा-वर्षा, कठोर परिश्रम, उनके कहकर लोग उनकी पूजा कर रहे हैं । मैंने समर्पण और बलिदानों का आनन्द हम ले देखा कि उनमें बिल्कुल भी चैतन्य लहरियां रहे हैं। सत्य तो हमें सुन्दरता प्रदान करता नहीं हैं। चैतन्य लहरियों का पूर्ण अभाव है। आज के इस शुभ अवसर पर हमें उस था। सिर के बाल और नाखून तो समझ में आते हैं परन्तु ये लोग जगह-जगह उनके दाँतों की पूजा किए चले जा रहे हैं! मैं जानती हूँ कि मेरे सहजयोगी-सहजयोग परमात्मा आपको धन्य करें। ये सभी सुन्दर चीजें मैं आप लोगों के लिए सोच रही हूँ। श्री बुद्ध को ये कभी प्राप्त नहीं हुईं। उन्हें कभी सुख नहीं मिला । तो अब हमें ये दर्शाना होगा कि हम इसके लहरियां समाप्त हो जाएंगी। अतः इस योग्य हैं। प्रणिधान (Deep Devotion) शब्द को इतना नहीं खराब कर सकते । वो यदि ऐसा करेंगे तो उनकी चैतन्य मामले में सावधान रहें। परन्तु मैंने देखा है कि अहं के कारण तो लोगों की चेतना उपयोग किया गया है इसके लिए। क्या आप सहजयोग के योग्य हैं? हमें सहजयोग के योग्य बनना होगा। ही समाप्त हो जाती है। "नहीं, मैं ठीक हूँ" नहीं मुझे चैतन्य लहरियाँ आ रही हैं, नहीं मैं बिल्कुल ठीक हूँ। वास्तव में ये बात परमात्मा आपको धन्य करें। 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-51.txt गुरु पूजा सितम्बर-1981 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज की पूजा का आयोजन क्यों किया बहुत बड़ी दूरी है और केवल 'पूर्ण गुरु' ही इस दूरी को समाप्त कर सकता है। गया है? आज पूर्णिमा है अर्थात चाँद आज पूरा हमें ये बात समझ लेनी चाहिए कि सभी शिष्यों के लिए गुरु की पूजा बहुत आवश्यक है। इन दैवी नियमों के विषय में बताने वाला है। परन्तु गुरु को भी सच्चा गुरु होना चाहिए। गुरु पूर्ण होना चाहिए। जो अपने शिष्यों की शिष्यों का अनुचित लाभ उठाने वाला या जिसे परमात्मा ने गुरु बनने का अधिकार नियमों को आत्मसात कर सकें। गुरु इस नहीं दिया, ऐसा गुरु नहीं। इस पूजा का दूरी को भरने के लिए होता है। इसीलिए आयोजन इसलिए किया गया है क्योंकि आप गुरु को उच्च दर्जे का आत्मसाक्षात्कारी एवं सब लोगों को परमात्मा के विधान में महान विकसित होना आवश्यक है। समझ को इतना उन्नत कर सके कि वे इन (Statutes of the Lord) दीक्षित किया गया ये आवश्यक नहीं कि गुरु त्यागी हो या | आप को बताया गया है कि मानव के क्या धर्म होते हैं। इसके लिए वास्तव में जंगलों में रहता हो। वह सामान्य गृहस्थ भी आपको है वह राजा भी हो सकता है। धर्मादेशों की पुस्तक पढ़कर आप जान सकते व्यक्ति के जीवन की बाह्य अभिव्यक्तियों है कि दैवी-विधान क्या है? लेकिन गुरु को का कोई महत्व नहीं है गुरु जब तक दैवी ये देखना होता है कि शिष्य इन नियमों का विधान को आत्मसात नहीं कर लेता तब तक पालन करें। इन धर्मादेशों का पालन किया उसके सांसारिक पद का कोई महत्व नहीं जाना चाहिए, इन्हें अपने जीवन में उतारना होता। चाहिए। ऐसा करना बहुत कठिन कार्य है| और गुरु के बिना, एक सुधारक शक्त के बिना परमात्मा के इस विधान पर चलना बहुत कठिन है क्योंकि मानवीय विधान कौन से हैं, क्या हैं? पहला विधान-ये चेतना और परमेश्वरी चेतना के बीच में है कि 'आप किसी को दुख नहीं दे की आवश्यकता नहीं है। हो सकता गुरु मैं पुनः कहती हूँ कि आपको दैवी विधान आत्मसात करने चाहिएं। आइए देखें कि वे পা 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-52.txt चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 सितम्बर-अक्टू बर 2001 51 सकते । पशु किसी को भी हानि पहुँचाते हैं अपने मन में प्रेम भाव पैदा करें क्योंकि कभी क्योंकि वे नहीं समझते कि वो क्या कर रहे तो आप भी गलत मार्ग पर चले होंगे। सहज हैं। सांप के पास यदि आप जाएंगे तो वह में आने से पूर्व उन्हें भटकाया गया अत: काटेगा, बिच्छू के पास यदि आप जाएंगे तो अपने मन में उनके लिए सहानुभूति के भाव वह डंक मारेगा परन्तु मानव को चाहिए वो बनाएं। इसीलिए यदि आपने कभी गलतियाँ किसी को हानि न पहुँचाए। मनुष्य किसी की हैं तो अच्छा है, ऐसी स्थिति में आपके को सुधार तो सकता है लेकिन हानि पहुँचाने मन में अन्य लोगों के लिए अधिक हमदरदी का अधिकार उसको नहीं, लेकिन अहिंसा के होगी। अतः किसी मनुष्य के प्रति हिंसा न इस नियम को उस स्तर तक खींचा गया कि करें उसे किसी प्रकार का शारीरिक कष्ट न वास्तविकता ही समाप्त हो गई। उदाहरण पहुँचाएं या कष्ट देने के लिए उसकी भावनाओं के रूप में कहा गया कि किसी के प्रति हिंसा की चोट न पहुँचाएं. सुधारने के लिए यदि मत करो (Do not harm anyone) तो लोग आवश्यक हो तो इसका कुछ औचित्य है। कहने लगे ठीक है हम मच्छरों और खटमलों (Haethrow) हीथ्रो हवाई अड्डे पर श्री को भी हानि नहीं पहुँचाएंगे, उन्हें मारेंगे माताजी ने पुष्टि की कि किसी भी हालात में नहीं। कुछ लोग ऐसे धर्मों का पालन कर रहे हमें किसी को हानि नहीं पहुँचानी। हैं जिनमें वे मच्छरों व खटमलों की रक्षा करते हैं। यह बेवकूफी, किसी चीज़ को मूर्खता की सीमा तक ले जाना, सच्चाई नहीं टाँगों पर खड़ा होना है और ये समझना है हो सकती। सर्वप्रथम हमें उन लोगों के प्रति कि आपकी एकाकारिता सत्य से है और हिंसा नहीं करनी चाहिए जो आत्मसाक्षात्कारी आप सत्य के साक्ष्य (Testimony) हैं अर्थात दूसरा विधान ये है कि आपको अपनी हैं तथा परमात्मा के मार्ग पर चल रहे हैं। हो आपने सत्य को देखा है। आप जानते हैं कि सकता है उनमें कुछ गलतियाँ हों जिन्हें सत्य क्या है और असत्य से आप समझौता सुधार की आवश्यकता हो। अभी तक कोई नहीं कर सकते। आप कर ही नहीं सकते। भी व्यक्ति पूर्ण नहीं है अतः उन्हें हानि न इसके लिए किसी को भी हानि पहुँचाने की पहुँचाएं, सदैव उनकी सहायता करने का आवश्यकता नहीं है। आपको इसकी घोषणा मात्र करनी है। साहस पूर्वक खड़े होकर आपको कहना है कि मैंने सत्य को देखा है दूसरे स्थान पर, सच्चा जिज्ञासु गलत भी और सत्य ऐसा है। सत्य के साथ आपको हो सकता है। हो सकता है वह गलत लोगों एकरूप होना है ताकि आपके अन्दर सत्य प्रयत्न करें। के पास गया हों, हो सकता है उसने कुछ के प्रकाश को लोग देख सकें और उसे गलत कार्य किए हों। परन्तु उनके लिए स्वीकार कर सकें । 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-53.txt चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 9 व 10 सितम्बर-अक्टूबर 2001 52 स्वयं को परखें। ये केवल अन्य लोगों को बताने की बात नहीं कि आपको सत्यनिष्ठ होना है और हमने यह सत्य देखा है तथा ये परमात्मा के विधान हैं और ये इस प्रकार कार्य करते हैं। हो गया है । सहजयोगियों में यह पक्ष अभी बहुत दुर्बल है। जिस तरह से भी आप चाहें सत्य की घोषणा कर सकते है। आप पुस्तकें लिख सकते हैं, अपने मित्रों और संबंधियों से बातचीत करके उन्हें बता सकते हैं कि अब यही सत्य हैं, कि आप परमात्मा के साम्राज्य चैतन्य चेतना के माध्यम से हम देख पाए में प्रवेश कर चुके हैं, कि परमात्मा की कृपा हैं कि सत्य ऐसा है। इसके विषय में पूर्णतः से आपको आशीर्वाद मिल गया है। विश्वस्त हो जाएं। इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम आपको स्वयं को भली-भांति परखना होगा अन्यथा आप आसुरी हैं कि आप आत्म-साक्षात्कारी लोग हैं और शक्तियों के हाथों में पड़ सकते है । लोग सर्वत्र व्याप्त इस परमेश्वरी शक्ति को आपने अब आप इस सत्य की घोषणा कर सकते जब नया-नया सहजयोग शुरु करते हैं तो अनुभव किया है, तथा आप अन्य लोगों को से लोगों के साथ ऐसा होता है। उन्हें आत्म- साक्षात्कार दे सकते हैं और सत्य को बहुत चैतन्य लेना होगा अतः सावधान रहें। स्वीकार करके आप उसमें अपनी ओर से कुछ जोड़ नहीं रहे, सत्य से स्वयं को अलंकृत पूर्णतः विश्वस्त हो जाएं कि आप सत्य ही कर रहे हैं । कह रहे हैं, इसके सिवाए कुछ नहीं कह रहे और सत्य को आपने पूरी तरह महसूस किया है। जिन लोगों को चैतन्य लहरियों का साहस की आवश्यकता होती है। हो सकता अनुभव नहीं हुआ वे सहजयोग की बात है कभी लोग आपका मज़ाक उड़ाएं, आप न करें। ऐसा करने का उन्हें कोई पर हंसें, आपको सताएं परन्तु इन सब चीजों अधिकार नहीं उन्हें चैतन्य लहरियाँ लेनी की चिन्ता आपने नहीं करनी क्योंकि अब चाहिए। पहले उन्हें अपने अन्दर चैतन्य आप दैवी विधान तथा परमात्मा की कृपा से लहरियां आत्म-सात करनी होंगी तभी वो जुड़ गए हैं। कह सकते हैं हाँ हमने महसूस किया। सत्य का आनन्द लेने के लिए व्यक्ति को 1 जब यह आपका सम्बन्ध (योग) है तो आधुनिक काल में यह अत्यन्त आपको इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए महत्वपूर्ण कार्य है जिसे सहजयोगियों कि लोग क्या कहते हैं। साहस पूर्वक खड़े ने करना है अर्थात ऊंची आवाज में होकर आपको सत्य से स्वयं को अलंकृत करना है और लोगों को इसके विषय में घोषणा करनी है कि उन्हें सत्य प्राप्त 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-54.txt सितम्बर-अक्टूबर 2001 53 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 9 व 10 बताना है। तब लोग जान जाएंगे, कि आपने महत्वपूर्ण बात ये है कि आप सत्य का ज्ञान प्राप्त करें, सत्य के साक्ष्य के रूप में खड़े हों सत्य को प्राप्त कर लिया है। अधिकार के साथ जब आप सत्य के विषय में लोगों को और इसका उद्घोष करें। बताएंगे तो वे जान जाएंगे कि आपने सत्य गुरु बनने के लिए सहजयोगी को जो तीसरा कार्य आवश्यक है वह है अपने अन्दर प्राप्त कर लिया है। जो व्यक्ति आत्म- साक्षात्कारी नहीं है तथा आत्म- साक्षात्कारी व्यक्ति में मूलतः यही अन्तर होता है कि निर्लिप्तता उत्पन्न करना। शनैः शनैः आप ये आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति परमात्मा से दूरी गुण अपने अन्दर विकसित करें क्योंकि बिना की वेदना की बात नहीं करता। वह कहता इस गुण को अपने अन्दर विकसित किए है, "अब मैंने इसे पा लिया है, ये सत्य है, आपको लगेगा कि आपके अन्दर चैतन्य जैसे, ईसा-मसीह ने कहा था, 'मैं ही प्रकाश लहरियाँ अच्छी तरह से नहीं बह रहीं। सभी प्रकार की निर्लिप्तता विकसित करनी होगी अर्थात आपको अपनी प्राथमिकताएं बदलनी होंगी। एक बार जब आपका चित्त आत्मा पर हूँ, मैं ही पथ हूँ (Iam the Light, I am the Path)। इस प्रकार का दावा कोई अन्य व्यक्ति भी कर सकता है, परन्तु आप ये समझ सकते हैं कि उसका दावा सच्चा नहीं स्थापित हो जाएगा तो अनावश्यक चीजों के प्रति आपकी लिप्सा स्वतः ही घटने लगेगी । उदाहरण के रूप में आपके माता-पिता हैं, है। आपके आत्मविश्वास से, आपके हृदय से प्रवाहित होने वाली पूर्ण सूझ-बूझ से लोग बहन हैं। भारत में यह बहुत बड़ी समस्या है। सारे असत्य को त्याग देना आवश्यक होता इनमें लोग बहुत लिप्त होते हैं। इतना ही है। इस बात की चिन्ता न करें कि कोई बुरा नहीं भारतीय लोग अपने बच्चों से भी बहुत मान जाएगा क्योंकि सत्य बताकर आप उनकी लिप्त होते हैं। 'ये मेरा बेटा है और बाकी सब यतीम हैं! केवल आप ही के बच्चे समझ लेंगे कि यह पूर्ण सत्य है," और तब रक्षा कर रहे हैं, उन्हें हानि नहीं पहुँचा रहे । परन्तु सत्य उचित रूप से बताया जाना वास्तविक बच्चे हैं "मेरी बेटी, मुझे अपने चाहिए, छिछोरेपन से नहीं। अत्यन्त आकर्षक बेटे के लिए, अपने पिता के लिए अपनी माँ ढंग से आप उन्हें बताएं कि ये गलत है। ऐसे के लिए ऐसा करना पड़ेगा!" दो तरह की समय की प्रतीक्षा करें जब आप आत्म-विश्वास लिप्साएं हैं एक मोह के कारण लिप्सा, कि आप उनके लिए ये वो सभी कुछ करना चाहते है उनको संपत्ति देना चाहते हैं, उनका बीमा कराना चाहते हैं और सभी कुछ करना चाहते हैं। दूसरी लिप्सा दूसरे प्रकार की है जैसी यहाँ (लन्दन में) है आप अपने पिता के साथ बता सकें। उन्हें बताएं कि ये गलत है, आप नहीं जानते परन्तु ये गलत है। हम भी ऐसे कार्य कर चुके हैं। इस प्रकार आप अपने गुरु तत्व की अभिव्यक्ति कर सकते हैं। आपको सत्य निष्ठ होना पड़ेगा । सबसे 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-55.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 54 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 से घृणा करते हैं, अपनी माँ से घृणा करते हैं और सभी से घृणा करते हैं दोनों ही चीजें है। ये मूर्खता है। हर सुन्दर चीज़ को असुन्दर बनाने का यह मानवीय गुण है वास्तव में एक सी हैं। अतः निर्लिप्तता भाव अवश्य निर्लिप्त व्यक्ति ही अत्यन्त सुन्दर है, अत्यन्त विकसित होना चाहिए। निर्लिप्तता ये है प्रेममय है, प्रेम की प्रतिमूर्ति । फूलों की ओर कि आप ही अपने पिता हैं, आप ही देखें। वे निर्लिप्त हैं। कल उनकी मृत्यु हो अपनी माता हैं, आप ही सभी कुछ हैं। जाएगी, वो जिएंगे नहीं, परन्तु हर क्षण वो आपके लिए आपकी आत्मा ही सभी कुछ आपके लिए सुगन्ध बिखेरते रहते हैं । पेड़ है । आपने अपनी आत्मा का ही आनन्द किसी चीज़़ से लिप्त नहीं हैं, कल उन्होंने लेना है तभी आपमें निर्लिप्तता आएगी। तब आप वास्तव में उनका हित करेंगे क्योंकि यदि उनके पास आए तो वह उन्हें छाया एवं उनके मोह से निकलकर आप उनका सच्चा मर जाना है परन्तु कोई बात नहीं। कोई भी फल देते हैं। रूप देख सकेंगे और जान सकेंगे कि उनके मोह अर्थात प्रेम की मृत्यु। प्रेम की मृत्यु लिए क्या किया जाना चाहिए। ही मोह है। उदाहरण के रूप में पेड़ के अन्दर रस जड़ों से उठता है। सभी आवश्यक अवयवों में प्रसारित होता है-सभी फुलों, फलों आदि में-और बाकी का पृथ्वी माँ में वापिस चला जाता है। किसी विशेष चीज़ से यह लिप्त नहीं होता। मान लो यदि पेड़ का (Craze) होनी चाहिए-अपनी आत्मा में रस एक फल से लिप्त हो जाए तो क्या स्थापित होना, पूर्णतः स्थापित होना। तब होगा? वह फल मर जाएगा और पेड़ भी मर प्रलोभनों (Crazes) के प्रति मोह, उदाहरण के रूप में लोगों को बहुत सी सनक का मोह होता है। किसी भी चीज के लिए लोग सनकी हो जाते हैं, किसी भी चीज के लिए व्यक्ति को समझना चाहिए केवल एक लगन अन्य सभी प्रकार की सनक समाप्त हो जाएगी जाएगा। निर्लिप्तता आपके प्रेम का संचारण क्योंकि आत्मा में स्थापित होना अत्यन्त (Circulation) करती है। आनन्दायी होता है, ये अत्यन्त पोषक है और अत्यन्त सुन्दरतम। बाकी सारी चीजें जाती हैं और आप केवल उसी का आनन्द वस्तुओं के साथ यदि भावनाएं जुड़ी हुई नहीं लेते हैं जो सारे आनन्द का स्रोत है। आप हैं तो वे मूल्यहीन हैं उदाहरण के रूप में अपनी आत्मा में लिप्त हो जाते हैं और जो साड़ी आज मैंने पहनी हुई है वह गुरु निर्लिप्तता कार्यान्वित होने लगती है। पूजा (गुरु पूर्णिमा) के लिए लाई गई थी कभी-कभी निर्लिप्तता को अन्य लोगों के परन्तु इनके पास कोई साड़ी नहीं थी, उस प्रति शुष्क होने की अनुमति मान लिया जाता दिन इन्हें पूजा के लिए साड़ी चाहिए थी तो अब भौतिक पदार्थों के विषय में । छूट 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-56.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 55 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 9 व 10 मैंने कहा, "यदि आप जोर देते हैं तो मैं यह यदि आपने कार्य को करना है तो ईसा-मसीह या आदिशंकराचार्य की तरह से गम्भीर पहन लेती हूँ। परन्तु इसे मैंने आज पहना। क्योंकि अत्यन्त श्रद्धा और प्रेम के साथ ये आचरण अपनाने होंगे इन लोगों का जीवन साड़ी लाई गई थी कि गुरु पूजा पर श्री बहुत छोटा था । इस छोटे से जीवन में माताजी को हल्के रंग की साड़ी पहना अच्छा इन्होंने इतना महान कार्य करना था कि लगेगा सफेद रेशम का वास्तविक रंग-पूर्ण समस्याओं से बचने के लिए इन्हें तो सैनिकों निर्लिप्तता का प्रतीक। परन्तु सफेद में सभी जैसी वर्दी पहन लेनी चाहिए थी। समस्याओं रंगों का मिश्रण है, केवल तभी यह सफेद से बचने के लिए, अन्य लोगों को प्रभावित बनता है। इसमें इतना सन्तुलन और समग्रता करने के लिए नहीं। स्वयं को निर्लिप्त दर्शाकर है। आपको भी श्वेत (पावन) बन जाना चाहिए। आज की अपेक्षा अधिक पावन। निर्लिप्तता पावनता है, अबोधिता है। उनका आचरण इसके बिल्कुल विपरीत होता अन्य लोगों को प्रभावित करने के लिए आजकल लोग ऐसा करते हैं और वास्तव में अबोधिता के प्रकाश में किसी भी प्रकार की है अपावनता आपको दिखाई नहीं पड़ती। आपको पता भी नहीं चलता कि कोई व्यक्ति आपके पास बुरे इरादे से आया है। कोई न देना-अहिंसा-पहला कार्य है। किसी की व्यक्ति आपके पास चोरी के इरादे से आता अतः हम समझते हैं कि किसी को कष्ट हत्या मत करो। है तब भी आप कहेंगे आइए, आपकी क्या सेवा की जाए। आप उसको चाय आदि पेश मछली आदि मत खाओ। ये सब बेवकूफी करते हैं, तब वह कहता है, "मैं तुम्हें लूटने केहै। नि:सन्देह आपको अच्छे अच्छे व्यजनों के लिए आया हूँ।" ठीक है यदि आप चाहते हैं पीछे भी नहीं दौड़ना, यह बात भी सच है। तो लट लो। इस हालात में वह व्यक्ति किसी की हत्या न करने का अर्थ है, किसी आपको लूटेगा नहीं। निर्लिप्तता द्वारा व्यक्त को यह अबोधिता अपने अन्दर विकसित करेंगे (Thou Shall not kill)। तो किसी को इसका अर्थ ये नहीं है कि आप मांस- मनुष्य की हत्या न करें। आप हत्या नहीं करनी चाहिए। हानि न पहुँचाना पहली आवश्यकता है। दूसरी बात ये जानना है कि आपने सत्य को अंतः गुरु बनने के लिए निर्लिप्तता होनी चाहिए। निर्लिप्तता का अर्थ व्यक्ति में प्राप्त कर लिया है। आपको सत्य का साक्ष्य देना होगा। को सन्यास या त्याग आदि नहीं है। संसार तीसरा निर्लिप्तता है जिसके विषर में मैंने आपको बताया। किसी व्यक्ति से इसलिए दिखाने के लिए कभी-कभी तपस्वियों जैसी वेश-भूषा भी पहननी चाहिए। कम समय में 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-57.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 56 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 लिप्त नहीं होना क्योंकि वह हमारा सम्बंधी यह आपको करना होगा पूरा पहिया आपको आदि है। सबके लिए समान प्रेम की भावना विकसित करना और किसी से भी घृणा न सम्बन्धों को स्थापित करने के लिए आरम्भ करना। यह भी निकृष्टतम लिप्सा है। 'मैं में बहुत से कार्य किए गए थे। कुछ नियम घृणा करता हूँ शब्द सहजयोगियों के मस्तिष्क आचरण ऐसे कार्य करते हैं जैसे रसायनिक में भी नहीं आना चाहिए। इसे दण्डक कहते नियम करते हैं। रसायन और भौतिक शास्त्र हैं, दण्डक कहते हैं, यही विधान (Statute) में, भौतिक नियम हैं । मानवीय नियम भी है। आप किसी से भी घृणा नहीं कर सकते, व्यक्ति को समझने चाहिएं- पारस्परिक राक्षसों से भी नहीं। अच्छा होगा कि उनसे सम्बन्ध, सम्बन्धों की श्रेष्ठता, सम्बन्धों की उल्टा घुमाना होगा। समाज में इन पावन पावनता भी समझी जानी चाहिए। घृणा न करें, उन्हें अवसर दें। चरित्रवान जीवन व्यतीत करें। पति-पत्नी चौथा दैवी विधान ये है कि चरित्रवान जीवन बिताएं' (To lead a Moral Life)। ये के बीच सम्बन्धों की पावनता को समझा आदेश गुरुओं ने दिए थे। सुकरात और जाना चाहिए। केवल तभी आप खुशहाल उनके बाद मोज़िस, अब्राहिम, दत्तात्रेय, जनक, विवाहित जीवन प्राप्त कर सकते हैं। खुशहाली मोहम्मद साहब और सौ वर्ष पूर्व श्री साईं का यही आधार है। ईसा-मसीह ने कहा है नाथ। सभी ने कहा कि आपको चरित्रवान कि "आपको परगमन नहीं करना (Thou जीवन जीना चाहिए। किसी ने भी ये नहीं shalt not commit Adultery) (संभवतः वो कहा कि आप विवाह न करें, अपनी पत्नी से जानते थे कि इस मामले में आधुनिक लोग बात न करें या अपनी पत्नी से कोई सम्बन्ध अपने मस्तिष्क का उपयोग करेंगे)। उन्होंने न रखें। ये सब बेवकूफी है। चरित्रवान जीवन कहा, कि "आपको परगमन नहीं करना व्यतीत करें। आप यदि युवा हैं और अविवाहित उन दिनों में ये सोचना कितनी दूरदृष्टि थी? हैं तो अपनी दृष्टि पृथ्वी पर रखें, पृथ्वी माँ भारत में रहते हुए मैं भी इस बात को न आपको अबोधिता प्रदान करती हैं। समझ पाई थी। यहाँ आने के पश्चात् ही मैं समझ पाई कि उनका क्या अभिप्राय था। ये है--पकड़ है। यह आनन्द 1 पार्चात्य जीवन में अधिकतर भ्रम एवं ऑँखों की पकड़ समस्याएं इसलिए उत्पन्न हो गई हैं क्योंकि विहीन व्यर्थ का आचरण है । इसके कारण उन्होंने चरित्र को ताक पर रख दिया है । चित्त पूर्णतः विचलित हो जाता है। यह चरित्र को समाज के मूल आधार के रूप में गरिमाविहीन है । दृष्टि अत्यन्त सुस्थिर होनी स्वीकार करना उनके लिए मुश्किल कार्य चाहिए। आँखें स्थिर होनी चाहिएं। किसी है। यह पूर्ण उल्टाव (Reversion) है, परन्तु की तरफ यदि आप स्थिरता पूर्वक देखें तो 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-58.txt सितम्बर-अक्टूबर 2001 57 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 सुन्दर हों, अन्य लोगों को प्रसन्नता एवं आनन्द प्रदान करें और उनकी आँखों को अच्छी उसे इस बात का ज्ञान हो जाना चाहिए कि आप में सहजयोग है। अत्यन्त प्रेम, सम्मान एवं गरिमापूर्वक लोगों की ओर देखें उन्हें लगें गुरु के पास ऐसी चीज़ें होनी चाहिए ताकें नहीं। किसी की तरफ एकटक ताकना जो उसके जीवन को प्रतीकात्मक बनाएं बाधाओं के हाथ खेलना होता है। पूरा समाज और ये दर्शाएं कि वह व्यक्ति अत्यन्त दार्शनिक ही बाधित है। सारी शैतानी शक्तियाँ विचरण है। अधार्मिकता का प्रतीक बन सकने वाली कर रही हैं और मैं सोचती हूँ कि जिस कोई भी चीज़ उसके पास नहीं होनी चाहिए। प्रकार से लोग बाधाग्रस्त हैं वे सूक्ष्मता पूर्वक उसकी वेशभूषा तथा अन्य वस्तुएं उसकी चीजों को देख नहीं पाते। वे इसाई कहलाते धार्मिकता को अभिव्यक्त करने वाली होनी हैं। चित्त की ओर देखना आवश्यक है। ये चाहिए। किसी भी अपवित्र तथा खराब चैतन्य अत्यन्त आवश्यक कार्य है क्योंकि चित्त ने वाली चीज़ का संग्रह नहीं किया जाना चाहिए। जो भी आपके पास है उसके विषय में सोचना चाहिए कि आप ये वस्तु किसे दे अतः हमें समझना है कि नैतिकता क्या सकते हैं। इसका अर्थ ये हुआ कि आपकी है? लोगों को हँसने दो और कहने दो कि ये संग्रहित वस्तुएं आपकी उदारता की भावुक लोग हैं (Goody Goodies) या वो अभिव्यक्ति करने के लिए होनी चाहिएं। जो चाहे कहें। धर्मपरायण होने पर हमें गर्व सहजयोगी को समुद्र की तरह से उदार है। इसके कारण हम लज्जित नहीं हैं। होना होगा कंजूस सहजयोगी के विषय में धर्मपरायणता का ये महत्वपूर्ण भाग है। जो तो मैं सोच भी नहीं सकती। ये तो ऐसे हुआ लोग इसका (नैतिकता) पालन नहीं करते मानो प्रकाश में अंधेरा मिला दिया जाए शीघ्र ही उनकी चैतन्य लहरियाँ चली सहजयोग में कंजूसी वर्जित है जिस व्यक्ति का मस्तिष्क इस बात पर जाता है कि मैं ही ज्योतिर्मय होना है। वस्तु जाएंगी । किस प्रकार पैसा बचा सकता हूँ, कैस प्रकार अब गुरु के विषय में गुरु को संचय मेहनत बचा सकता हूँ-मेहनत और पैसा नहीं करना चाहिए। उसके पास अधिक बचाने के बहुत से उपाय हैं। दूसरों को संग्रहित वस्तुएं नहीं होनी चाहिए। केवल धोखा देने और छोटी-छोटी चीजों में पैसा आवश्यकता की वस्तुएं ही उसके पास होनी बनाने के भी तरीके हैं। परन्तु ये सब सहजयोग चाहिएं। गुरु को अपनी सारी सम्पत्ति दे विरोधी हैं। इनसे आपका पतन होगा अपनी डालनी चाहिए। धन लाभ के लिए उसे टिकटें उदारता का आनन्द लें। कितनी बार मैं आदि एकत्र नहीं करनी चाहिएं । ऐसी वस्तुएं आपको उदारता के विषय में बता चुकी हूँ? एकत्र की जा सकती हैं जो उपयोगी हों, आपके बाँटने की विधि के अतिरिक्त आपका tho 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-59.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 58 चैतन्य लहरी खंड-XIII अंक 9 व 10 भावनात्मक पक्ष इतना सुन्दर है कि आप को छोड़कर अधिक स्वाभाविक बनें। मेरे कल्पना नहीं कर सकते। एक महिला के कहने का ये अभिप्राय नहीं है कि जड़ों को विवाह के तीस वर्ष के पश्चात् लन्दन में मैं खोदकर उनको खाएं या कच्ची मछली खाएं। उसे अचानक मिली। वह कहने लगी, "क्या मेरा ये अभिप्राय नहीं है। सदैव अति में जाने संयोग है!" मैंने पूछा, "क्यों?" उसने कहा, से बचें परन्तु ऐसा जीवन बिताने का प्रयत्न "मैंने आज वही मोतियों का हार पहना हुआ करें जो अधिक स्वाभाविक हो, इस प्रकार से है जो तुमने मुझे मेरे विवाह के अवसर पर स्वाभाविक कि लोग जान सकें कि आपमें भेंट किया था और आज ही तुमसे मिलना मिथ्या अभिमान नहीं है कुछ लोग दूसरी प्रकार के भी हो सकते हैं। लोगों का ध्यान है? उस मुलाकात से सारा दृश्य ही हुआ बदल गया। छोटी सी चीज़ जो आप भेंट आकर्षित करने के लिए वे आवारा की तरह करते हैं उसका कितना महत्व है! देने की से वस्त्र पहनते हैं, मेरा अभिप्राय है कि ये महानतम कला व्यक्ति को सहजयोग में चीज़े दोनों तरह से हो सकती हैं। फिर मै सीखनी चाहिए। सांसारिक चीजों को छोड़ देखती हैँ कि कुछ लोग अपनी बातों को दें। जैसे आप किसी के जन्मदिवस पर रंगते हैं अतः आचरण में आपको अत्यन्त बधाई सन्देश भेजते हैं, कहते हैं,'आपका स्वाभाविक होना होगा। बहुत धन्यवाद ।" अपने सन्देश को अधिक गंभीर तथा महत्वपूर्ण बनाएं। हमें देखना है कि आप ने किस प्रकार प्रेम के प्रतीक विवेक का उपयोग नहीं करते उनके लिए 1 अतः स्वाभाविक बने। जो लोग अपने (Symbol of Love) को विकसित किया। जब आपकी ये चीजें चैतन्य लहरियों से इस बात का बेतुका अर्थ भी निकल सकता परिपूर्ण होती है और आप इन्हें किसी सहजयोगी को देते हैं तो वह समझ जाता है कि यह क्या है? सहजयोगियों के साथ कभी चाहिएं जो आप पर सुहाएं। उदाहरण के है। सहजयोग में विवेक अत्यावश्यक है और हर समय आपको विवेक बनाए रखना होगा। स्वाभाविक अर्थात आपको सहज वस्त्र पहनने भी उदारता में कमी न रखें। शनैः शनैः आप आश्चर्य चकित हों गे कि किस प्रकार छोटी-छोटी चीजों से आप उनके हृदय जीति लेते हैं, मानो चैतन्य लहरियाँ इन्हीं चीज़ों के रूप में इस जलवायु में आपको श्री राम जैसे वस्त्र पहनने की कोई आवश्यकता नहीं है । शरीर के ऊपरी हिस्से में वे कुछ नहीं पहनते के। उसकी कोई आवश्यकता ही न थी। जिस देश से आप सम्बन्धित हैं उसी की माध्यम से बहकर उन लोगों के लिए सभी कुछ कार्यान्वित कर रही हों! वेशभूषा अवसर के अनुसार आपको पहननी चाहिए, ऐसी वेशभूषा जिसे आप अच्छी व गरिमामय मानते हों। ये आपके शिष्टता और सहजयोगियों के लिए आवश्यक है कि वे प्राकृतिक चीज़ों का उपयोग करें, बनावट 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-60.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 59 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 व्यक्तित्व को छलकाएगा। जो भी वस्त्र आप भिन्न हों। किसी भी तरह के अटपटे वस्त्र पर फबें आपको वही पहनने चाहिए। उन पहनने की आपको आवश्यकता नहीं है। लोगों की तरह से नहीं जो कई रंग के वस्त्र पहनते है; लम्ब सूट पहनते हैं, जिनसे वे सहजयोगियों के लिए सामान्य होना अत्यन्त विदूषकों की तरह से प्रतीत होते हैं। विदूषको आवश्यक है। आपको न किसी धर्म की निन्दा जैसे या छैलाओं जैसे वस्त्र आवश्यक नहीं करने की आवश्यकता है और न ही कभी अन्य लोगों की तरह से वस्त्र पहनें। किसी अवतरण का अपमान करने की। ऐसा करना पाप है सहजयोग में ऐसा करना हैं। साधारण सुन्दर वस्त्र पहनने चाहिएं जिनसे आप गरिमामय प्रतीत हों। पूर्वी देशों में लोग मानते हैं कि परमात्मा ने सुन्दर शरीर प्रदान बहुत बड़ा अपराध है क्योंकि आप जानते हैं किया है उसे मानव द्वारा बनाई गई सुन्दर कि ये अवतरण कौन हैं। परस्पर आप लोगों चीज़ों से सजाया जाना चाहिए ताकि उस में जातिवाद की भावना नहीं होनी चाहिए। शरीर का सम्मान किया जा सके, उसकी आप चीनी (Chinese) हों या कोई और, पूजा की जा सके। उदाहरण के रूप में जब तक हम मानव हैं तो हमें इस बात का भारत में महिलाएं साड़ी पहनती हैं। साड़ी ज्ञान होना चाहिए कि हम एक ही प्रकार से उनकी मनोवृत्ति (Moods) की अभिव्यक्ति हँसते हैं, एक ही प्रकार से मुस्कराते हैं और करती है तथा उनकी इस भावना की कि वे एक ही प्रकार से कार्य करते हैं। अपनी शरीर का सम्मान करती हैं। वस्त्र उपयोग के लिए होने चाहिएं और गरिमा के लिए भी। सहजयोगियों को एक जैसे वस्त्र पहनने की आवश्यकता नहीं है। एक जैसे ये सब हमारे मानसिक बन्धन हैं, सामाजिक बन्धन हैं कि ये छूत है ये अछूत है। भारतीय समाज में ये कुप्रथा है, भयानक! ब्राह्मण वाद ने भारत को पूरी तरह नष्ट कर दिया। इससे आपको सीखना चाहिए। उदाहरण के वस्त्र मुझे अच्छे नहीं लगते। हर व्यक्ति भिन्न प्रतीत होना चाहिए। रूप में गीता के लेखक व्यास कौन थे? एक के नाजायज पुत्र थे। उन्हें जान- मछुआरन पूजा के लिए चाहे आप एक जैसे वस्त्र बूझकर इस तरह का जन्म दिया गया था। पहन लें। पूजा के मामले में आपका चित्त गीता पढ़ने वाले सभी ब्राह्मणों से पूछे कि वैचित्र्य पर होना आवश्यक नहीं है परन्तु व्यास कौन थे? वास्तविक ब्राह्मण वही है जो इसके अतिरिक्त आपको सामान्य व्यक्ति होना आत्मसाक्षात्कारी है। जाति या जन्म से कोई है। आप सब गृहस्थ हैं, आपको कोई घोषणा नहीं करनी। आपको तो मैं ये भी नहीं कहती ब्राह्मण नहीं बनता। कुम-कुम लगाकर गलियों में जाओ । आपको सामान्य होना चाहिए जो दूसरों से के बाद भी राष्ट्रवाद की मूर्खता भरी हुई है। पश्चिम में सारी उच्च शिक्षा और उन्नति कि 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-61.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 60 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 मेरी तो समझ में भी नहीं आता कि कोई सिखाता है कि सिगार किस तरह से पिएं. व्यक्ति श्वेत हो या अश्वेत, आखिरकार बीयर किस प्रकार पिएं । सुबह से शाम तक परमात्मा ने रंगों का वैचित्र्य भी तो बनाना इस प्रकार करता है। यह सारा बन्धन कचरे था। आपको (लन्दन के लोगों को) किसने की तरह से फैंक दिया जाना चाहिए और बताया कि आप ही पृथ्वी पर सबसे अधिक देखना चाहिए कि परमात्मा ने आपका सृजन सुन्दर लोग हैं। हो सकता है कि यहाँ के अपने बच्चों के रूप में किया है। यह अत्यन्त बाज़ारों या हालीवुड के लिए यह बात ठीक सुन्दर चीज़ है इन मूर्खतापूर्ण विचारों से आप इसे क्यों गन्दा कर रहे हैं? "मुझे पसन्द हो। परन्तु परमात्मा के साम्राज्य में सात-सात पतियों से विवाह करने वाली, सभी प्रकार है या न पसन्द है" का भद्दापन मूर्खता है। की अटपटी तथाकथित सुन्दर, लोगों को केवल एक ही शब्द होना चाहिए "मैं प्रेम प्रवेश नहीं मिलेगा। उन सबको नर्क में डाल करता हूँ बाकी सब चीज़ों को भूल जाएं । ये दिया जाएगा। परमात्मा ने आप सबको अपने याद करने की आवश्यकता नहीं है कि अंग्रेजों बच्चों के रूप में बनाया है। ने जर्मन के साथ क्या किया सभी कुछ भुला दें। ये सब कुछ करने वाले लोग मर सौन्दर्य हृदय का होता है चेहरे का नहीं। चुके हैं। हम भिन्न लोग हैं, हम सन्त हैं ये हृदय का सौन्दर्य ही दिखाई पड़ता है और सब दैवी विधान है जो मैंने आपको बताएं हैं चमकता है। हो सकता है लोग इसके विषय और जिन्हें आपको आत्मसात करना में जानते हों। यही कारण है कि लोग जाकर अपने चेहरे ताम्र वर्ण बनाते हैं। मैं नहीं जानती। सबकुछ जानते हैं फिर भी बहुत अधिक देती हूँ। आपके चरित्र के माध्यम से, आपके दिखावा करते हैं। किसी को काले बाल व्यक्तित्व के माध्यम से और जिस प्रकार आज मैं आपको गुरु बनने का अधिकार वे पसन्द हैं तो किसी को लाल। कहने का अभिप्राय है कि सभी प्रकार के बाल होने करते हैं और प्रकाश की अभिव्यक्ति करते हैं चाहिए। किसी विशेष प्रकार के बालों का उसे देखकर अन्य लोग भी आपका अनुसरण आप सहजयोग का अपने जीवन में आचरण करेंगे। यह उनके हृदय में परमात्मा के दैवी पसन्द किया जाना मेरी समझ में नहीं आता। विधानों को स्थापित करेगा और उनका उद्धार करेगा। आपको मोक्ष प्राप्त हो गया है, अन्य पसन्द या नापसन्द जैसी कोई चीज नहीं | परमात्मा की बनाई गई सभी चीजें सुन्दर हैं, आप इसका निर्णय करने वाले कौन हैं लोगों का भी उद्धार करें। आप ही माध्यम (Channels) हैं। बिना माध्यमों के ये सर्वव्यापी शक्ति कार्यान्वित नहीं हो सकती। यही शैली कि मुझे ये पसन्द है ये नापसन्द है। "मैं क्या है? आप समझें कि यह 'मैं' अहम् है जिसको समाज बढ़ावा दे रहा है, जो आपको है। आप यदि सूर्य को देखें तो इसका प्रकाश 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-62.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 61 चैतन्य लहरी खंड-XII अंक 9 व 10 प्रकार लोगों को आकर्षित करेंगे। आपको गर्व होना चाहिए, गर्वित होना चाहिए आपको। इस उपलब्धि पर आपके मन में अन्य लोगों के प्रति करुणा एवं सहानुभूति होनी चाहिए। अब संक्षिप्त में मैंने आपको बताना है कि इसकी किरणों के माध्यम से फैलता है । आपकी धमनियों के माध्यम से आपके हृदय का रक्त प्रसारित होता है। धरमनियाँ अति सूक्ष्म होती हैं। आप ही वह रक्तवाहिकाएं हैं जिनके माध्यम से मेरा प्रेम रूपी यह रक्त सभी लोगों में प्रवाहित होगा। रक्त यह कार्य आपको कैसे करना है। स्पष्ट रूप से आपने अपने भवसागर को कार्यान्वित वाहिकाएं ही यदि टूटी हुई होंगी तो लोगों तक रक्त नहीं पहुँचेगा यही कारण है कि करना है। आप लोग महत्वपूर्ण हैं। आप जितने विशाल होंगे रक्त धमनियाँ भी उतनी ही विशाल होंगी और उनके माध्यम से आपने सभी लोगों को सम्मिलित कर लेना है। इस कार्य के लिए आप जिम्मेदार हैं। सर्वप्रथम आपको ये समझना है कि भवसागर तभी पकड़ता है यदि आप गलत गुरु के पास गए हों। अपने गुरु के विषय में आपको पूरी तरह से ज्ञान होना चाहिए। अपने गुरु का चरित्र तथा ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न करें। यह बहुत कठिन कार्य है क्योंकि आपके गुरु भ्रान्ति रूपेण हैं, वे महामाया हैं, उनके बारे में जान पाना सुगम नहीं है। गुरु में गौरव का होना अत्यन्त आवश्यक है। गुरु अथात वज़ान, गुरुत्वाकर्षण। गुरु तत्व का अर्थ है गुरुत्वाकर्षण। आपमें अपने वज़न का गुरुत्वाकर्षण होना चाहिए, अर्थात चारित्रिक वज़ान, गरिमा का वजन, सामान्य रूप से वे आचरण करती हैं और कभी-कभी तो आप हतप्रभ हो जाते हैं। परन्तु आप देखें कि छोटी-छोटी चीजों में भी वे किस प्रकार आचरण करती है। किस आचरण का वजन, श्रद्धा का वजन और आपके प्रकाश का वज़न। प्रकार उनका चरित्र अभिव्यक्त होता है। किस प्रकार उनका प्रेम अभिव्यक्त होता है। अपने गुरु की क्षमाशीलता का स्मरण करने का प्रयत्न करें। तब आप जान पाएंगे कि तुच्छता और मिथ्याभिमान से आप गुरु नहीं बनते। घटियापन, अभद्र भाषा, घटिया मज़ाक, क्रोध एवं गुस्सा, ये सब दुर्गुण पूरी तरह से त्याग दिए जाने चाहिएं। अपनी गरिमा, अपनी वाणी के माधुर्य से लोगों को प्रभावित करें। इन गुणों से लोग वैसे ही आकर्षित होंगे जैसे पुष्प के अन्दर निहित मधु से मधुमक्खी होती है । आप भी इसी इच्छा होगी कि उन्हें भी ऐसा गुरु प्राप्त कितना महान है और वैसा आपका गुरु गुरु पाने की कामना कितने साधकों के मन में रही होगी क्यों कि आपका गुरु सभी गुरुओं का स्रोत है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश की भी उत्कृष्ट 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-63.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 62 चैतन्य लहरी खंड-XIll अंक 9 व 10 होता। वे सब आपसे ईष्या करते होंगे परन्तु आप उसे ग्रहण न कर लें। आपकी गुरु सर्वोच्च हैं इसमें कोई सन्देह नहीं। परन्तु गुरु भ्रान्तिमय है। अतः अपने भवसागर को ठीक करने के लिए कहें कि श्री आपको इस बात की भी समझ होनी चाहिए माताजी आप हमारी गुरु हैं। उनकी कि सर्वोच्चता कि वो शक्तियाँ आपमें नहीं भ्रान्तिमयता के कारण गुरु के प्रति वांछित हैं। मैं भय, श्रद्धा और सम्मान आपमें स्थापित नहीं जानती कि प्रलोभन क्या होते है, कुछ नहीं हो पाता जब तक आपमें वह श्रद्धा (Awe) जानती। जो भी कुछ मुझे अच्छा लगता है पूर्ण श्रद्धा विकसित नहीं हो जाती। आपका यह सब मेरी मौज मात्र है। परन्तु इतना होते गुरु तत्व स्थापित नहीं हो सकेगा। इस हुए भी मैंने स्वयं को अत्यन्त सामान्य बनाया मामले में कोई भी छूट नहीं ली जानी चाहिए। है क्योंकि मुझे आपके सम्मुख इस प्रकार मैं स्वयं आपको बता रही हूँ परन्तु मैं अत्यन्त प्रतीत होना है कि आप दैवी विधानों को भ्रान्तिमय हूँ। अगले ही क्षण मैं आपको हँसाकर जान सकें मेरे लिए कोई विधान नहीं है । ये सब बातें भुलवा देती हूँ-क्योंकि यह कार्य आप ही के लिए मैं ये सब कार्य करती हूँ करने की आपकी स्वतन्त्रता को मैं परख और आपको छोटी छोटी चीजें सिखाती हूँ रही हूँ- पूर्ण स्वतन्त्रता से मैं आपके साथ क्योंकि आप अभी तक बच्चे हैं। ये इन सब चीज़ों से ऊपर हूँ। मैं नहीं | | इस प्रकार खेलती हूँ कि हर क्षण आप भूल जाएंगे कि मैं आपकी गुरु हूँ-हर क्षण। इसी प्रकार आप स्मरण रखें कि जब अन्य लोगों से आप सहजयोग के विषय में बात कर रहे हों तो याद रहे कि हर समय वो आपको देखेंगे और जानने का प्रयत्न करेंगे अतः सर्वप्रथम अपने गुरु को पहचानने का प्रयत्न करें-उन्हें अपने हृदय में स्थापित करें मेरा कहने का अभिप्राय है कि आपकी कि कितनी गहनता से आप इसमें उतरे हैं। जिस प्रकार मैं आपको समझती हूँ उस प्रकार गुरु अत्यन्त महान हैं। काश मेरा भी कोई ऐसा ही गुरु होता। आपकी गुरु निरीच्छ हैं, आप उन्हें समझने का प्रयत्न करें। जिस निष्पाप है, पूर्णतः निष्पाप। मैं जो भी कार्य करु मेरे लिए वह पाप नहीं है। मैं किसी का से आप उन्हें प्रेम करें। निश्चित रूप से मैं भी वध कर सकती हूँ या कोई भी छल आपको प्रेम करती हूँ। परन्तु मैं निर्मला हूँ मैं योजना कर सकती हूँ। मैं आपको बताती हूँ प्रेम से परे हूँ, यह बिल्कुल ही भिन्न अवस्था प्रकार मैं आपको प्रेम करती हूँ उसी प्रकार कि यह बात सत्य है। मैं जो चाहे करुं मैं है। पाप से ऊपर हूँ। परन्तु मुझे सदैव यह ध्यान रहता है कि आपकी उपस्थिति में मैं कोई ऐसा कार्य न करूं ताकि मेरा गुण मानकर में हैं क्योंकि कोई भी गुरु कभी इतनी बारीकियों में आप बहुत ही अच्छी स्थिति इस हालात 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-64.txt सितम्बर-अक्टू बर 2001 63 चैतन्य लहरी खंड-XIl अंक 9 व 10 में नहीं गया इसके अतिरिक्त मैं सारी शक्तियों का स्रोत हूँ, सारी शक्तियों का। ये तक आप नहीं करेंगे तब तक मेरा स्वास्थ्य बिगड़ा रहेगा। बात इतनी गहन है। परन्तु सब शक्तियाँ आप मुझसे प्राप्त कर सकते मेरे लिए क्या अच्छा स्वास्थ्य और क्या बुरा हैं, जिस भी शक्ति की आपकी इच्छा हो । मैं स्वास्थ्य? इन सुन्दर स्थितियों में आपको इच्छा मुक्त हूँ परन्तु आपकी जो भी इच्छा वास्तव में पूर्ण सम्पन्नता प्राप्त कर लेनी होगी वह पूर्ण होगी । यहाँ तक कि मेरे लिए चाहिए। गुरु बनने के लिए आपके सम्मुख भी आप ही को इच्छा करनी होगी। यह बात कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। आप देखें कि किस प्रकार से मैं आपसे बंधी हुई हूँ? मेरे अच्छे स्वास्थ्य की कामना जब आप सबको अनन्त आशीर्वाद । 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-65.txt 'सहजी की कलम से जय श्री माताजी किन्तु घबराहट और अकस्मात घटना के मैं गोपालपुर विद्यालय में अध्यापक के कारण मुझसे बन्धन नहीं लग सका। बस, मैं पद पर कार्यरत हूँ। दिनांक 26.7.2001 को भी श्री माता जी से प्रार्थना करने लगा कि माँ विद्यालय लगा हुआ था, करीब पौने बाहर बजे थे, मैं कक्षा में पढ़ा रहा था। सम्पूर्ण आप ही हमें बचाओ। इसी बीच गाँव के हजारों लोग हमारी मदद के लिए उमड़ पड़े विद्यालय अपना कार्य कर रहा था। अचानक भयानक घटना घटी, विद्यालय के पास में और बच्चों को बाहर निकालने में सहायता लगी पानी की पाईप लाईन फट गयी और करने लगे पानी इतना बढ़ चुका था कि पानी की तेजधार विद्यालय पर पड़ने लगी। बच्चों को हाथों में पकड़ कर बाहर लाया गया! ही मिनटों में विद्यालय का आँगन पानी कुछ से 3-4 फुट तक भर गया, कमरे और दिवारें गिरने लगें । मेरे कमरे की छत भी हिलने लगी तथा छत की चार दीवारी भी गिरने की नींव हिल गयी, परन्तु श्री माता जी की पानी के भराव के कारण सारे विद्यालय लगी। चारों तरफ हाहाकर मच गया। बच्चों कृपा से मेरी कक्षा की एक ईंट तक नहीं में बचाओ-बचाओ की चिल्लाहट शुरू हो हिली! और सारे विद्यालय के बच्चे और अध्यापक सुरक्षित बच गये! गई। मैं कक्षा में पढ़ा रहा था तभी ये घटना घटी और सभी कक्षाओं में पानी बढ़ता चला विद्याधर कौशिक जा रहा था तभी मेरी कक्षा के सभी बच्चे भजनपुरा और मैं श्री माता जी से प्रार्थना करने लगे । सभी बच्चे रो रहे थे और चिल्ला रहे थे। ।। जय श्री माता जी।। इसी बीच मैंने बन्धन लगाने का प्रयास किया 2001_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-66.txt री चै त न य ल ह प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर 162 - ए. मुनीरका विहार, नई दिल्ली - 110067 मुद्रक अमरनाथ प्रेस प्रा. लिमिटेड डब्ल्यू.एच.एस. 2/47 कीर्ति नगर औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली-15 फोन : 5447291, 5170197 कृपया इस पत्ते पर लिखें श्री ओ.पी. चान्दना सदस्यता के लिए - एन -463कषि नगर, रानी बाग दिल्ली - 110034 फोन (011) 7013464 सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकातियाँ निम्न पते पर भेजें : चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी-17. कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली 110016