DHA LAL जनवरी - फरवरी, 2002 ONIVERSAL खंड : XIV अंक :1 व 2 FURE चैतन्य लहरी के the की बैंक अडोल धुरी पर यदि हमारा चित्त टिक जाता है तो हम आन्तरिक शान्ति के सोत और पूर्ण शान्ति एवं परम पूज्य माताजी आत्मा पहिए की सुस्थिर धुरी के समान है। निरन्तर गतिशील जीवन के पहिए के मध्य में स्थित (परा आधुनिक युग) आत्म ज्ञान की अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं। ২০ SIA के ५] दिवाली पूजा शूडी कैम्प, 1988 ०६ 512 ग्रीन द्वीप, आस्ट्रेलिया के पास नौका में यात्रा करते हुए श्री माताजी । ७ व । वैतन्य जनवरी - फरवरी लहरी खड - अके 2002 1 कृष्ण पूजा, काना जोहरी, अमेरीका 29.7.2001 14। जन कार्यक्रम, रॉयल अलबर्ट हॉल, लन्दन, 14.72001 221 महा शिवरात्रि पूजा, पंढरपुर, 29.2.1984 32 1 शक्ति देवी पूजा, मास्को, 17.9.1995 43 श्रीमाताजी के अवतरण की भविष्यवाणी 44| भविष्य दर्शन : भारत का और दुनिया का 48 आवाजें | सहजयोग का सार तत्व 49 चै त - य ल ह री प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर 162 - ए. मुनीरका विहार, नई दिल्ली 110067 मुद्रक अमरनाथ प्रैस प्रा. लिमिटेड डब्ल्यू एच एस 2 /47 कीर्ति नगर औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली-15 फोन : 5447291, 5170197 सदस्यता के लिए कृपया इस पते पर लिखें :- श्री ओ.पी. चान्दना एन 463 (G-11) ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली - 110034 फोन (011) 7013464 सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पते पर भेजें : चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी-17. कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली 110016 श्री कृष्ण पूजा निर्मल नगरी काना जोहरी, अमेरीका-29.7.2001 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज हम यहाँ पर श्री कृष्ण की, जो कि आश्चर्य होता है। तो वो आध्यात्मिकता की विराट थे. पूजा करने के लिए एकत्रित हुए बात कर रहे हैं, पूर्ण निर्लिप्तता की बात हैं। बिना रणक्षेत्र में प्रवेश किए उन्होंने कर रहे हैं और वहाँ दूसरी ओर अर्जुन से सभी प्रकार की आसुरी शक्तियों से युद्ध कह रहे हैं, "तुम जाओ और युद्ध करो, वे हैं किया। श्री कृष्ण का जीवन अत्यन्त सुन्दर, सब लोग तो पहले से ही मृत हैं तुम सृजनात्मक एवं प्रेममय है परन्तु उन्हें समझ किससे युद्ध करने जा रहे हो? इस द्वन्द पाना सुगम नहीं है। उदाहरण के तौर पर को समझ पाना कठिन है कि ये समझाने कुरूक्षेत्र में, जहाँ युद्ध हो रहा था, अर्जुन वाला व्यक्ति कि आप सबको स्थित प्रज्ञ एकदम हतोत्साहित हो गए और कहने बनना है अचानक अर्जुन को कहने लगता लगे, हमें क्यों युद्ध करना चाहिए. क्यों हमें है कि तुम जाओ और अपने शत्रुओं से युद्ध अपने सगे सम्बन्धियों से युद्ध करना चाहिए. करो! एक ओर तो पूर्ण निर्लिप्तता है और क्यों हमें अपने समीप के सम्बन्धियों से, दूसरी ओर वे युद्ध करने को कहते हैं! इस गुरुओं और मित्रों से युद्ध करना चाहिए? बात का वर्णन आप किस प्रकार करेंगे? श्री क्या यही धर्म है, क्या यही धर्म है?" इससे कृष्ण के अपने शब्दों में व्यक्ति कह सकता पूर्व गीता में श्री ने पैगम्बर के व्यक्तित्व है कि एक बार यदि आप आत्मसाक्षात्कारी का वर्णन किया है ऐसे व्यक्ति को हम हो जाएं, चेतना की उच्च स्थिति को प्राप्त सन्त कह सकते हैं । उन्होंने ऐसे व्यक्ति कर लें तो सभी कुछ निरर्थक है। परन्तु कृष्ण को स्थितप्रज्ञ कहा। उनसे जब स्थित प्रज्ञ इस क्षण तुम्हें धर्म की रक्षा करनी है, उस की परिभाषा पूछी गई तो उन्होंने बताया धर्म की नहीं जिसकी तुम बातें करते हो। कि स्थितप्रज्ञ वह व्यक्ति होता है जो अपने परन्तु धर्म का अभिप्राय मानव की उत्थान अन्दर पूर्णतः शान्त हो और अपने वातावरण प्रक्रिया से है जो चल रही है और सारे में भी शान्तिपूर्वक रह सके अत्यन्त आश्चर्य की बात है। गीता में उन्होंने ये सारा ज्ञान लोग जो धर्मपरायणता के पक्षधर हैं यदि समाप्त हो जाएँगे तो उत्थान की ये शक्ति बताया। यही ज्ञान सर्वोत्तम है और इसे किस प्रकार बचाई जा सकेगी? इस कार्य उन्होंने ज्ञानमार्ग का नाम दिया यही के लिए तुम्हें धर्मपरायण लोगों की रक्षा सहजयोग है जिसके द्वारा आप सूक्ष्म ज्ञान करनी होगी और तुम्हें किसी को मारना प्राप्त कर सकते हैं। परन्तु जब आरम्भ में नहीं है वे तो पहले से ही मृत हैं क्योंकि वो अर्जुन को यह शिक्षा देते हुए सुनते हैं तो लोग आत्मसाक्षात्कारी नहीं है और न ही वे जनवरी-फरवरी 2002 2 चैतन्य लहरी खंड-XIV अक 1 व 2 आत्मसाक्षात्कार की परवाह करते हैं। अतः निकट हैं। इस मार्ग को बहुत अधिक लोगों तुम्हें उनसे युद्ध करना होगा, नकारात्मक ने स्वीकार किया है और बहुत से धर्मों ने शक्तियों से तुम्हें युद्ध करना होगा, आसुरी भी स्वीकार किया है कि परमात्मा के प्रति लोगों से तुम्हें युद्ध करना होगा। इन सारी चीजों का वर्णन वे अत्यन्त सुन्दर ढंग से परमात्मा में किस प्रकार आपकी पूर्ण श्रद्धा करते हैं। वो कहते हैं कि हमारे अन्दर तीन हो सकती है? अभी तक तो परमात्मा से पूर्ण समर्पण हममें होना आवश्यक है। प्रकार की शक्तियाँ हैं इन शक्तियों को हम भी भली भांति जानते हैं और ये भी कि आपमें ये श्रद्धा हो सकती है? आप क्या मध्य शक्ति से हम सभी भौतिक, शारीरिक, कर रहे हैं, किस प्रकार आपका समर्पण आपका योग ही नहीं । किस प्रकार हुआ मानसिक एवं भावनात्मक, सभी प्रकार की परमात्मा के प्रति हो सकता है जिस परमात्मा समस्याएं जो हमारे सामने मुँह खोले खड़ी से आपका योग ही नहीं हुआ? हैं, से ऊपर उठते है और आध्यात्मिकता के नए साम्राज्य में प्रवेश करते हैं। इसी चीज़ करना है निर्लिप्त मस्तिष्क से आप अपना की रक्षा उन्होंने करना चाही। क्रूर लोगों कार्य करते चले जाएं। मेरा अभिप्राय ये है से, आक्रामक लोगों से, पथ भ्रष्ट करने कि ऐसा कर पाना सम्भव नहीं है। परन्तु वाले लोगों से उन्होंने रक्षा करनी चाही। लोग ऐसा ही कहते हैं कि हम अपने कर्म यदि आपको इस बात की समझ हो कि कर रहे हैं । अच्छे कर्म कर रहे हैं। सभी आपका सम्बन्धी कौन है, आपका भाई कौन प्रकार के अच्छे कार्य हम करते हैं, अपनी है, आपकी बहन कौन हे तो यह अत्यन्त शुद्धीकरण के लिए भिन्न स्थानों पर जाते सुन्दर सूझ-बूझ है। केवल साक्षात्कारी हैं, बहुत से आध्यात्मिक लोगों से भी मिलते व्यक्ति ही आपके सम्बन्धी हैं। ये आपके हैं, भिन्न स्थानों पर जाकर परमात्मा की अपने हैं और इनके लिए यदि आपको प्रार्थना करते हैं, सभी शुभ स्थानों की यात्रा दूसरा मार्ग कर्म का है कि आपको कार्य आक्रामक लोगों से युद्ध करना पड़े तो करते हैं, सभी ऐसे स्थानों की जिनका अच्छा होगा कि आप ये युद्ध करें आपको शास्त्रों में वर्णन है । इसके लिए हम सभी ये युद्ध करना है। धर्म का यही माग्ग है । जैसे आप सहजयोग में जानते हैं हमारे है । परन्तु हमारे अनुसार ये कर्म नहीं समक्ष तीन मार्ग हैं। एक भक्ति मार्ग है, आक्रामकर्ता है (Right Side)। आप जानते भक्ति में आप परमात्मा के गुणगान करते हैं कि बहुत से लोग अत्यन्त आक्रामक हैं। हैं उनके प्रति श्रद्धा रखते हैं, सभी प्रकार के कर्म काण्ड करते हैं, आदि-आदि और अक्खड़ होते हैं और वे अपना कोई अन्त आप सोचते हैं कि आप परमात्मा के बहुत नहीं समझते। उन्हें सुधारना बहुत कठिन प्रकार के कर्मकाण्ड करते हैं। यही कर्म आक्रामक लोग अत्यन्त अहंकारमय तथा जनवरी- फरवरी 2002 3 चैत-य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 कार्य है अपनी कोई कमी उन्हें नजर नहीं लड़ने की शक्ति आ जाती है। इस अवस्था आती। जो भी कार्य वे करते हैं वो सोचते में आपको इतनी शक्ति प्राप्त हो जाती है हैं कि वो ठीक हैं। ये कर्म योग है । परन्तु कि आप अपने चहुूँ और विद्यमान नकारात्मक श्री कृष्ण ने कहा है कि जो भी कम्म आप शक्तियों को समाप्त कर सकते हैं। ये बात करो उसके जो भी फल हों, आप नहीं समझ लेना अत्यन्त आवश्यक है कि यह जानते कि ये क्या फल हैं उन्होने अत्यन्त एक अवस्था है, ये केवल जुबानी जमा अनिश्चित रूप से ये सब कहा क्योंकि खर्च नहीं है। ये केवल यह मान लेना नहीं यदि उन्होंने पूर्ण निश्चित रूप से कहा है कि मैं वह हूँ। ये तो एक अवस्था है। होता तो लोग उन्हें कभी नहीं समझते। आप यदि उस अवस्था तक पहुँच जाएं उन्होंने कहा, कि ये सम्भव नहीं है कि जो जहाँ आप इन सब चीजों से ऊपर उठ कर्म आप कर रहे हैं वो ऐसे कर्म हों जो जाएं जहाँ आपके पास सारा ज्ञान हो, आपको परमात्मा के आशीर्वाद दिला सकें। शुद्ध ज्ञान हो, अस्तित्व का सूक्ष्म ज्ञान। उन्होंने ये बात कही, "कर्मण्य्येवाधिकारस्ते फलेषु मा कदाचने " जो भी कर्म आप करो कि हर कोई ज्ञान मार्ग को नहीं पा सकता। उनके फल मुझ पर सौंप दो। तो हमें कौन उसके लिए आपका एक विशिष्ट व्यक्तित्व से कर्म करने चाहिएं या हमें कर्म करने होना आवश्यक है। परन्तु ये सारी बातें छोड़ देने चाहिए? क्या हमें सारी गतिविधि भ्रामक हैं सभी लोग ज्ञान मार्ग को प्राप्त याँ त्याग देनी चाहिए? लोग द्वन्द स्थिति में फॅस गए। श्री कृष्ण की यही शैली है-लोगों को द्वन्द में फँसाना ताकि अन्दर विद्यमान है और हम सब इसे प्राप्त वे अपनी विवेक बुद्धि का प्रयोग करें । तीसरे स्थान पर विवेक सद-सद विवेक आत्मविश्वास नहीं है शायद इसी कारण है जिसे उन्होंने ज्ञान मार्ग कहा। यह यही ज्ञान मार्ग है बहुत से लोग कहते हैं की कर सकते हैं। हमारे अन्दर यह अन्तर्जीत है यह उत्थान की उपलब्धि है। यह हमारे कर सकते हैं । केवल एक बात है कि हममें हम इससे बचते रहते हैं और घटिया बुद्धि मध्य नाड़ी है जिसके द्वारा आपका उत्थान चीजों की तरफ बढ़ते हैं जैसे किसी के होता है। आप एक नई अवस्था में, अपने प्रति भी समर्पित हो जाना, किसी प्रकार मस्तिष्क की एक नई अवस्था में, अपने का कर्मकाण्ड करना, किसी पावन स्थान अस्तित्व की एक नई अवस्था में उन्नत पर जाना, सभी प्रकार की मूर्खताएं करना होते हैं और सभी प्रकार की मूर्खताओं से परन्तु ये सब आपको उत्थान नहीं प्रदान पूर्णतः ऊपर उठ जाते हैं। आपमें सभी करतीं, उत्थान जिसके द्वारा आप ज्ञान बुराइयों से, सभी प्रकार के भ्रष्टाचार से, प्राप्त करते हैं-शुद्ध ज्ञान, वास्तविक ज्ञान। जो कि इस संसार को नष्ट कर रहे हैं, आज तक आपने जो भी कुछ जाना वह जनवरी-फरवरी 2002 4 चैतन्य लहरी खंडे XIV अंक 1 वे 2 सब पुस्तकों में लिखा हुआ है या उसे सुनाने का प्रयत्न किया, ऐसा कर लें वैसा आपके माता-पिता ने आपको बताया या वह सब जानकारी जिसकी खोज आपने की सराहना की। कर लें । परन्तु वास्तव में उन्होंने ज्ञान मार्ग हमारा भी ज्ञान मार्ग है। ये ज्ञान है, बाहर की। परन्तु शुद्धतम ज्ञान, सच्चा ज्ञान जो वास्तविक ज्ञान है इसे आप केवल ज्ञान का वह मार्ग है जिसमें आपको पूर्ण अपने उत्थान द्वारा ही पा सकते हैं और ज्ञान प्राप्त करना है। जब तक आप पूर्ण अपने अन्दर स्थापित हो सकते हैं। ज्ञान प्राप्त नहीं कर लेते तब तक आप में स्थापित हो ज्ञानी नहीं हैं। इस प्रकार उन्होंने ये बात स्थापित कर दी कि हमारी उत्थान प्रक्रिया भली-भाति उस अवस्था सकते हैं आप यदि इसे नकारते रहें तो आप कभी इसे समझ न पाएंगे। परन्तु अन्य सभी मानवीय चेतनाओं से ऊपर आ सबका अधिकार है कि इसे पा लें। इसके लिए शिक्षित होना आवश्यक नहीं, बहुत सभी मानवीय चेतनाएं मूल्यहीन हैं। अब चुकी है। आध्यात्मिक व्यक्ति के लिए अन्य अधिक सहज व्यक्ति होना भी आचश्यक उसे कुछ ज्ञान है, वह जानता है कि यहाँ नहीं, बहुत अधिक अमीर या गरीब होना से न्यूयार्क तक कितने मील का फासला है भी आवश्यक नहीं। इन चीज़ों से कोई या कौन सी रेल वहाँ जाती है। यह ज्ञान फर्क नहीं पड़ता। जब तक आप मानव हैं सच्चा ज्ञान नहीं है। इस कपड़े का मूल्य और विनम्र हैं और ये सोचते हैं कि आपको क्या होगा. ये कालीन कितने की है, कौन ये अवस्था प्राप्त करनी है. आप सब इस सी दुकान से आप इसे खरीद सकते हैं? अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं। इस बात को आप सब भली-भाँति जानते ये सारा ज्ञान व्यर्थ है। ये सच्चा ज्ञान नहीं हैं, ऐसे व्यक्ति (आध्यात्मिक) को इन चीज़ों हैं। उस अवस्था में पहुँचकर आप अत्यन्त ज्ञानमय हो जाते हैं, अपने विषय में ज्ञानमय, हमारे अस्तित्व का ज्ञान होता है. पुरे ब्रह्माण्ड अन्य लोगों के विषय में ज्ञानमय, हर उस का ज्ञान नहीं होता परन्तु उसका ज्ञान का ज्ञान होता है। इस ज्ञान में ये नहीं होता कि सितारों की संख्या कितनी है या चीज के विषय में जो आपके चहूँ ओर है। परन्तु इस अवस्था को बनाए रखना और ब्रह्माण्ड कितने हैं, नहीं। यह तो 'पूर्ण का इससे भी ऊपर उठना है प्रकार का कोई सन्देह न रह जाए। श्री व्यक्ति इसके विषय में सब कुछ जानता कृष्ण ने यही बात सिखाई और यही है। उस सूक्ष्मता में वह उन बहुत सी चीजों उपलब्धि व्यक्ति को प्राप्त करनी है। परन्तु को खोज लेता है जिनके विषय में शायद उन्होंने नीतिवेत्ता की तरह से ये सारी बात उसने कभी सुना ही न हो और इस प्रकार जहाँ किसी भी सूक्ष्म आन्तरिक व्यक्तित्व होता है वह की। उन्होंने आपको भिन्न प्रकार कहानियाँ व्यक्ति महान ज्ञानमय व्यक्तित्व की अवस्था जनवरी-फरवरी 2002 5 चैतन्य लहरो खंड-XIV अंक 1 वे 2 तक पहुँच जाता है। यही अवस्था हमने करता हूँ-पुष्पम्, फलम, पत्रम् तोयम् । परन्तु वे स्पष्ट कहते हैं कि ऐसा करने से आपको प्राप्त करनी है हमारा जन्म मानव के रूप में हुआ और हमें पहले से ही बहुत सी क्या प्राप्त होता है यह अत्यन्त महत्वपूर्ण चीजों का ज्ञान है लोगां को बहुत सी है। उन्होंने कभी भी नहीं कहा कि आप चीज़ों का ज्ञान है परन्तु वास्तविकता का यदि मुझे कुछ अर्पण करोगे तो मैं भी ज्ञान नहीं है ये ज्ञान पुस्तकें पढ़ने या आपको कुछ दूंगा ऐसा कभी भी नहीं कहा। बौद्धिक खोज या भावनात्मक गतिविधियों तो कौन सी अवस्था होना चाहिए? स्थिति से नहीं प्राप्त होगा, नहीं। यह शाश्वत है क्या होनी चाहिए? उन्होंने कहा, "आप सदा मौजूद है। ये अस्तित्व में है और यदि मेरी स्तुति करेंगे, मेरी भक्ति करेंगे, अस्तित्व में रहेगा। आपने इसको समझना मुझे भेंट चढ़ाएंगे, वो सब कुछ तो ठीक है। है और ज्ञान प्राप्त करना है कि ये क्या है. आप अत्यन्त समर्पित हैं परन्तु आपको ये परिवर्तित नहीं हो सकता, इसे कोई 'अनन्य' भक्ति करनी होगी। उन्होंने अनन्य दूसरा आकार नहीं दिया जा सकता। ये शब्द का प्रयोग किया जिस का अर्थ होता जो है वही है और अब आपको इसी का है कि कोई अन्य नहीं होगा जब हमारी ज्ञान प्राप्त हो गया है। इस पर कोई सन्देह एकाकारिता होती है, जब हमारी तार जुड़ नहीं कर सकता क्योंकि जिन लोगों को ये जाती है, उस वक्त जो भी भक्ति आप अवस्था प्राप्त नहीं हुई केवल वही इस पर करेंगे, जो भक्ति संगीत आप गाएंगे, जो सन्देह कर सकते हैं, आपको सनकी कह भी पुष्प आप अर्पण करेंगे, जो भी अभिव्यक्ति सकते हैं, कुछ भी सोच सकते हैं। परन्तु आप करेंगे, वह अनन्य होनी चाहिए। उन्होंने आँखे खोलकर आप जो कुछ भी कहते हैं यही शब्द कहा कि अनन्य भक्ति करें। जो वह सत्य होता है। इसी प्रकार खुले दिल भी कुछ आप मुझे अर्पण करेंगे मैं वह और दिमाग से आप इस बात को समझते स्वीकार करूंगा । वे सभी कुछ स्वीकार हैं कि यही वास्तविक सत्य है और इसी करेंगे केवल वही भोक्ता हैं अर्थात आनन्द लेने वाले हैं। परन्तु आपको क्या प्राप्त ज्ञान को प्राप्त किया जाना चाहिए। कृष्ण के अनुसार इस ज्ञान को प्राप्त होगा? श्री कृष्ण कहते हैं कि जब आप करने के लिए साधक को बहुत सी परीक्षाओं अनन्य भक्ति करते हैं अर्थात मुझसे आपकी में से गुजरना होता है। एक रास्ता ये है समग्रता होती है तो मुझसे आपका योग कि आप उनकी (श्री कृष्ण की) स्तुति गान घटित होता है । करते रहें। वे कहते हैं, "आप मेरी प्रार्थना करते रहो, वे कहते हैं आप मुझे पुष्प जल या जो भी कुछ अर्पण करेंगे मैं उसे स्वीकार समझते। वो सोचते हैं कि भक्ति का अर्थ श्री इस प्रकार स्पष्ट शब्दों में उन्होंने भक्ति का वर्णन किया परन्तु लोग यह बात नहीं जनवरी-फरवरी 2002 6 पैतय लहरी खड-XIV अक 1 4 2 गलियों में खड़े होकर 'हरे रामा, हरे कृष्णा शाश्वत स्वभाव का कुछ वरदान आपको गाते चले जाना है उनके अनुसार यही देते हैं। वे आपको शान्ति प्रदान करते हैं. भक्ति है। वास्तविकता यह नहीं है। यदि हृदय की शान्ति। वे आपको सन्तुलन प्रदान ऐसा करना ठीक होता तो उन्हें कुछ प्राप्त करते हैं शान्तमय स्वभाव व आनन्दमय हो गया होता. कुछ तो प्राप्त हो गया जीवन भी वे आपको प्रदान करते होता! परन्तु उन्हें तो कुछ भी नहीं मिला। योगेश्वर से योग प्राप्त करने के पश्चात. इसके लिए श्रीकृष्ण को दाष नहीं दिया उनसे एकरूप होने के पश्चात जब हम जाना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा भक्ति करते हैं तो हमारे अन्दर ये गुण है कि अनन्य भक्ति होनी चाहिए। केवल जागृत हो जाते हैं। वस्त्र परिवर्तन से विशेष प्रकार के वस्त्र पहनकर कुछ नहीं होगा ये सब बाह्ा है। से कर्मयोगी पागलों की तरह से कार्य किए केवल दिखावा है वास्तव में अनन्य भक्ति चले जाते हैं, बिल्कुल पागलों की तरह से। आपके अन्दर होती है। जब आप उस वो समझते हैं कि हम निष्काम कर्म कर रहे यही बात व्यक्ति को समझनी है। बहुत अवस्था में होते हैं तब आप परमात्मा से है। बिना किसी इच्छा के हम लोगों की एकरूप होते हैं। जब तक आप उस अवस्था सेवा कर रह हैं, देश की सवा कर रहे है. को प्राप्त नहीं कर लेते, इतना ही नहीं, सभी की सेवा कर रहे हैं। अन्ततः ऐसे जब तक आप उसमें स्थापित नहीं हो लोगों को च्या प्राप्त होता है? हो सकता है जाते, आपको कुछ प्राप्त नहीं होता बहुत उन्हें धन प्राप्त हो जाए. हो सकता है से लोगों ने मुझे बताया कि "हम इतना आपको एक अच्छा घर मिल जाए, हो भक्ति योग कर रहे हैं, फिर भी हमें कुछ सकता है आपको ये सभी चीजें मिल जाएं प्राप्त नहीं होता। वास्तव में! कैसा भक्ति परन्तु हृदय की शान्ति आपको नहीं प्राप्त योग? हम श्री कृष्ण की गीता पढ़ते हैं, होती। वह आनन्द जो असीम है, जिसका प्रतिदिन प्रातः चार बजे उठकर स्नान करते वर्णन नहीं किया जा सकता, जिसकी हैं. कृष्ण गीता का पाठ करते हैं, ये करते व्याख्या नहीं की जा सकती, वह गहन हैं, वो करते हैं। तब हम भजन गाते हैं, आनन्द आपको नहीं प्राप्त होता। आपको परन्तु हमें कुछ भी नहीं प्राप्त हुआ। इसका वह शाश्वत शान्ति भी नहीं प्राप्त होती जो क्या कारण है? कारण ये है कि परमात्मा युद्ध रोक सकती है। यह शान्ति मानव से आपकी एकाकारिता नहीं है। और जब स्वभाव की क्रूरता को पूर्णतः समाप्त कर आप परमात्मा से एकरूप होते हैं तब सकती है। यह आपको प्राप्त नहीं होती। परमात्मा आपको क्या देते हैं? वो आपको इसके अतिरिक्त आपको शक्तियाँ भी प्राप्त घटिया नश्वर भौतिक पदार्थ नहीं देते, हो जाती हैं। आपको ज्ञान प्राप्त हो जाता नic जनवरी-फरवरी 2002 7 चैत-य लहरी खड-XIV अक 1 व 2 सभी के विषय में सूक्ष्म ज्ञान। परिवार टूट जाते हैं, उनमें कोई शान्ति सभी के विषय में आप जान जाते हैं कि नहीं होती, आप युद्ध भड़काते हैं? बात है- ज्ञान, उनमें क्या कमी है। अपने तथा अन्य लोगों केवल इतनी सी है कि अभी तक इस देश के विषय में आपको ज्ञान प्राप्त हो जाता की रक्षा की जा रही है। परन्तु आप लोगों है । यह ज्ञान आपको विद्यालय या ने बहुत से मूल निवासियों को नष्ट कर महाविद्यालय में नहीं मिलता। यह तो आपके दिया है और बहुत सी मौलिक चीजों को अपने अन्दर ही ज्ञान का सागर है। जो समाप्त कर दिया है। उन चीजों को जिनको कुछ भी आप देखना चाहते हैं, जो कुछ भी संभाला जाना चाहिए था एक दिन वो आप प्राप्त करना चाहते हैं, सब वहाँ विद्यमान आएगा जब वे लोग महसूस करेंगे कि वो है। यही सच्चा ज्ञान है जिसे सूक्ष्म ज्ञान के जो कुछ करते रहे वो वास्तव में गलत था । माध्यम से आप प्राप्त कर लेते हैं। सूक्ष्म एक दिन ऐसा आएगा जब अमेरीका में ज्ञान अर्थात चक्रों का ज्ञान, ब्रह्माण्ड का बहुत से आत्मसाक्षात्कारी लोग होंगे। परन्तु ज्ञान। इससे आप सभी कुछ प्राप्त कर आज की स्थिति तो ये है कि धनार्जन के सकते हैं। परन्तु अन्य लोगों को ज्ञान देने विचार से लोग पगला गए हैं। परन्तु अब में आपकी रुचि बहुत बढ़ जाती है । तब उन्हें लगता है कि अति हो गई है बस, तो आप बहुत सी चीजें जानना नहीं चाहते। अब क्या करें? अब क्या करें-सहजयोग में साहूकारी (ठंदापदह) के विषय में जानने आ जाएं। सहजयोग करें तब आपको अपने जीवन की क्या आवश्यकता है? ये जानने की क्या आवश्यकता है कि विश्व का सबसे ६ की सारी निधि प्राप्त हो जाएगी, वह निधि नी व्यक्ति कौन है? तब आप ये बाते नहीं जो आपके अन्दर है। यह आपको वह जानना चाहते। आपका पूरा दृष्टिकोण ही सारा सुख, सारा आनन्द प्रदान करेगी, बदल जाता है और आपको शान्त मस्तिष्क सारी वरिष्ठता प्रदान करेगी जो महान वैभव प्राप्त हो जाता है जिसे हर वांछित चीज और महानतम शक्ति आपको प्रदान कर का ज्ञान होता है । व्यक्ति को यही प्राप्त सकती है। हमें केवल इतना करना होगा कि सहजयोग अपना ले और अन्य लोगों करना है आपका देश अमेरीका बहुत अधिक कर्मकाण्डी है। ये हर समय काम- को भी सहजयोगी बनाएं ताकि वो भी काम में ही लगे रहता है। काम का नशा इन्हें मद्यपान सम है। वे घोर परिश्रम करते हैं परन्तु उन्हें क्या मिलता है? आपके बच्चे दूसरी की ओर दौड़ने का पागलपन समाप्त भी नशे के आदि हो जाते हैं, आपकी हो जाएगा क्योंकि इन भौतिक चीजों से पत्नियाँ इधर-उधर भागी फिरती हैं। आपके आप कभी भी सन्तुष्ट नहीं होते आज शान्ति, आनन्द और सन्तोष को प्राप्त कर सकें। ऐसा हो जाने पर एक चीज से ा जरी -फरवरी 2002 8 चैत-य लहरी सखंड-XIV अक 1 व 2 आप एक चीज खरीदना चाहते हैं, तो कल सत्य- असत्य का अन्तर जानने में कुशल हो जाते हैं । चैतन्य लहरियों पर आप सभी जान जाते हैं । अन्य लोग चाहे आप पर विश्वास न करे, ये अन्य बात है, परन्तु दूसरी। कभी भी आप सन्तुष्ट नहीं होते। परन्तु कुछ अपनी इच्छाओं से कभी भी आपको आनन्द प्राप्त नहीं होता अत: आपकी केवल एक आप जान जाते हैं, ठीक क्या है और गलत ही शुद्ध इच्छा होनी चाहिए कि परमात्मा से एक रूप हो जाएं। केवल इसी प्रकार ये है। सब कार्यान्वित होगा । क्या है कि यह सब श्री कृष्ण का वरदान जैसा कि आप जानते हैं, व हमारे श्री कृष्ण की विशेषता थी कि वे सदैव अन्तःस्थित सोलह उपकन्द्रो का नियंत्रण आत्मसाक्षात्कारी लोगों का, उचित मार्ग करत हैं । वे हर चीज का नियंत्रण करते पर चलने वाले लोगों का, धर्म निष्ठ लोगों हैं आपके गले, नाक आँखें और कानों का व नियंत्रण करते हैं । इन सभी चीजो का वे का साथ देते थे। किसी ऐसे व्यक्ति का साथ वो न देते थे जो धन बाहुल्य के नियंत्रण करते हैं। वो कहते हैं कि वे कारण अपने को बहुत महान समझता हो। विराट हैं विराट का अर्थ महान, महान दुर्योधन ने श्री कृष्ण को अपने महल में भगवान जिसे हम अकबर भी कहते हैं। आतिथ्य स्वीकार करने का निर्ंत्रण दिया मुसलमान भी इसको स्वीकार करके कहते परन्तु श्री कृष्ण दासी पुत्र विदुर के यहाँ हैं अल्लाह- गए क्योंकि विदुर आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति कारण यह (गीता) कुछ स्पष्ट है और कुछ थे वो आत्मसाक्षात्कारी थे श्री कृष्ण की स्पष्ट नहीं है। परन्तु वे विराट थे और दृष्टि में वे दुर्योधन से कहीं अधिक महान थे निःसन्देह दुर्योधन राजा थे परन्तु अत्यन्त दिखाया । उनका विराट रूप देखकर अर्जुन धूर्त और बुरे व्यक्ति थे। ओ-अकबर। पद्य में होने के अपना विराट रूप उन्होंने अर्जूुन को आश्चयचकित रह गया। वे ही विराट हैं. अत. सद सदविवेक वुद्धि आपका स्वभाव सभी कुछ उनमें समाया हुआ है, सभी कुछ उनका ग्रास है। वे यम हैं अर्थात के बन जाती है । तब आप सदैव सन्तुष्ट रहते मृत्यु हैं। क्योंकि आप जानते हैं कि आप कोई देवता हैं वो बहुत कुछ हैं। उनके अनन्त नाम है। ये सभी शक्तियाँ उनमें हैं और गलत कार्य नहीं कर रहे। सद-सद विवेक बुद्धि श्री कृष्ण का वरदान है। अन्य चीजों आवश्यकता अनुसार व उसका उपयोग के साथ वे हमें सद-सद विवेक बुद्धि का करते हैं। तो सहजयोगियां में सर्वप्रथम संतोष की भी वरदान देते हैं। आपको सत्य- असत्य में अन्तर करने का ज्ञान देना उनकी शैली शक्ति होनी चाहिए। यह विस्मयकारी शक्ति है। चैतन्य लहरियों के माध्यम से आप है सन्तोष की शक्ति का उपयोग करें । जनवरी-फरवरी 2002 9 मे-य लहरी स्वंस XIV अके 1 4 2 यहाँ पर आप सब लोग इतना आनन्द ले भी अत्यन्त सामूहिक है क्योंकि यह सभी रहे हे, इतनी प्रसन्नतापूर्वक रह रहे हैं । यह देशों में रुचि लेता है. सभी देशों की चिन्ता क्या दशांता है कि आप अत्यन्त सन्तुष्ट हैं, करता है। परन्तु गलत ढंग से उनकी सहायता करने का प्रयास करता है। इसकी अन्यथा कोई भी यहाँ रहना पसन्द ने करता। लोग कहते, "नहीं हम कोई अच्छा स्थान शली कभी ठीक नहीं होती। अब मान लो लेना चाहेंगे। ये क्या है? सब लोगों के कोई देश नशीले पदार्थ उत्पन्न करता है साथ हम यहाँ नहीं रहना चाहते । परन्तु तो अन्य देशों पर आक्रमण करने के स्थान अन्य लोगों के साथ मिलकर रहना, यह पर यह उस देश पर आक्रमण क्यों नहीं सामूहिकता भी श्रीकृष्ण का आशीर्वाद है। करता? यह ऐसा देश है। सद्-सद-विवेक वे आपको सामूहिकता सिखाते हैं, का इसमें पूर्ण अभाव है। सद-सद-विवेक प्राप्त किए बिना आप उचित रूप से अपनी सामूहिकता का आनन्द, सामूहिकता का मजा। जो व्यक्ति अकेला रहता है, दूसरों संघ शक्ति (Power of Collectivity) का प्रयोग नहीं करते। यद्यपि वे सामूहिक हैं से कटा रहता है वह तो शराबी की तरह 1. से है। वह श्री कृष्ण का पुजारी नहीं हो परन्तु उन्होंने कौन सा सागूहिक कार्य किया सकता। श्रीकृष्ण तो सभी लोगों का आनन्द लेता है, विशेष अलग है, वे भिन्न हैं। "जिन भी समस्याओं रूप से यदि वह आत्मसाक्षात्कारी हो तो का हम सामना कर रहे हैं वह हमारी की पूजा करने वाला व्यक्ति है? अब भी वो यही कहना चाहते हैं कि वे व्यक्ति उनकी संगति का पूरा आनन्द उठाता अपनी हैं। अतः श्रीकृष्ण के अपने ही देश है। आप उनके जीवन से ये बातें सुगमता में इस सामूहिकता को इतना कम कर से समझ सकते हैं। आप देखें कि आप दिया गया है! यद्यपि उनके अन्दर ये बात लोग मिलकर किस प्रकार प्रसन्नता और है, ये भावना है कि वे सभी देशों के विषय नैतिकता पूर्वक, पूर्ण कुशलता से, बिना में बात करें, सभी देशों का नेतृत्व करें फिर कोई अनैतिक कार्य किए, बिना कुछ चुराए, भी उन्हें चाहिए कि वे सभी देशों की राय पूछे। परन्तु उन देशों के विषय में अमरीका सदैव गलत निर्णय लेता है। ऐसा सद- अन्य लोगों के लिए बिना कोई दुर्भावना रखें आनन्द पूर्वक रहते हैं। आपमें ये आश्चर्यजनक घटना घटित हुई है कि अत्यन्त प्रसन्नता और सत्य पूर्वक आप है उनमें सद- सद-विवेक होना चाहिए। मिल जुल कर यहाँ रह रहे हैं। उनकी इस सामूहिकता को समझ जाना चाहिए क्योंकि मैं सदैव ये कहती हूँ कि श्री कृष्ण अमेरीका के शासक देव हैं। अमेरीका सद-विवेक बुद्धि के अभाव के कारण होता विशुद्धि चक्र के विषय में बहुत कुछ कहा जा सकता है परन्तु इस वक्त में विशुद्धि के दोनों ओर स्थित दो चक्रों के विषय में चिन्तित हूँ। विशुद्धि के बाई ओर जनवरी फरवरी 2002 10 चे-य लहरी ख-XIV अंक 1 4 2 का चक्र ललिता चक्र है और दाई और पर है, इधर-उधर भटकती रहती है तो वास्तव श्री चक्र। महिलाओं को सदा मैने यही में आप धर्म के विरोध में जा रहे हैं, अपनी सुझाव दिया है कि इन्हें ढक कर रखें। यह विकास प्रक्रिया के विरुद्ध चल रहे हैं और बहुत साधारण प्रतीत होता है परन्तु यह एक दिन ऐसा भी आ सकता है जब आप वहुत महत्वपूर्ण है नगा रखकर इनका अन्ध हो जाए या आपकी ओँखों में प्रदर्शन न करें क्योंकि इनकी शक्तियों को मोतियाबिन्द उतर आए आपको सभी प्रकार बचाकर रखना चाहिए। श्री चक्र और ललिता के चक्षु रोग हो सकते हैं जिनकी तरफ चक् दोनों ही अत्यन्त महत्वपूर्ण है। मैं ध्यान दिया जाना अत्यन्त आवश्यक है। यह चक्र जिहवा से भी जुड़ा हुआ है। की मादा शक्तियों हैं । ये बात यह जिहवा की देखभाल करता परन्तु जिन समझी जानी आवश्यक है कि जिस प्रकार लोगों को भयानक बातें कहने की आदत से आप अपने चक्रों का सम्मान करते हैं होती है या जो लोग अचानक कटु शब्द वैसी ही आपके चक्रों की स्थिति हो जाती उपयोग करते हैं या किसी के विषय में है। उन्हीं के अनुपात में आप कष्ट भुगतते अपशब्द बोलकर उसके पीछे पड़ जाते हैं | उदाहरण के रूप में आप यदि श्री तो ये सारी चीजं जिहवा के लिए हानिकारक गणेश का सम्मान नहीं करते तो आपको होती हैं । श्री कृष्ण को यह सब पसन्द नहीं कष्ट होगा और यदि आप गणेश का सम्मान है। यदि अपनी जिहवा का उपयोग आप करते हैं परन्तु उचित ढंग से बर्ताव नहीं अन्य लोगों को कठोर शब्द कहने के लिए करते तो भी आपको कष्ट होगा, आपको उपयोग करते हैं या उनके प्रति व्यंग्य करते हैं, गाली-गलौच करते हैं, तो मैं नहीं अतः पूरा शरीर प्रतिक्रिया करता है। जानती कि एक दिन आपकी जिहवा किस प्रकार की प्रतिक्रिया करेगी? यह भिन्न कहूंगी कि ये दोनों मादा शक्तियां हैं दोनों श्री कृष्ण समस्याएं होंगीं । बाह्ा प्रभावों के प्रति शरीर इस प्रकार से प्रतिक्रिया करता है कि आप देखने लगते प्रकार की प्रतिक्रिया करेगी, हो सकता है हैं कि कहीं कुछ खराबी है जिसके कारण कि ये मोटी हो जाए और हिले ही नहीं । परमात्मा जाने कि ये अन्दर की ओर खिंच आप इस प्रकार से व्यवहार कर रहे हैं । इसके अतिरिक्त आँखें भी विशुद्धि चक्र । की देन हैं अत: किसी भी चीज़ को देखते परन्तु इसका मानसिक पक्ष भी होता है। हुए आपकी दृष्टि अत्यन्त पवित्र होनी तब आपको ये नहीं पता चलता कि आप चाहिए। दृष्टि जितनी पवित्र होगी उतना किस बारे में बातचीत कर रहे हैं । आप जाए! यह तो इसका शारीरिक पक्ष है। कहना कुछ चाहेगे और कहेंगे कुछ और । ही अच्छी तरह से आप उसका आनन्द गे परन्तु दृष्टि यदि अपवित्र है, अस्थिर ये जिहवा के कारण ही सम्भव है । ऐसी भी लेंगे जनवरी-फरवरी 2002 11 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 पूर्ण सम्भावना होती है कि व्यक्ति बिल्कुल स्वीकार न करें। गालियाँ स्वीकार करके बोल ही न सके! बिल्कुल कुछ न बोल यदि आप रोते बिलखते हैं तो आपको सके। जिहवा को यदि इस प्रकार कष्ट कँसर हो सकता है। परन्तु मान लो कोई दिया जाएगा, गलत कार्य के लिए इसका आपको कुछ कहता है और आप जानते हैं उपयोग किया जाएगा तो कुछ भी सम्भव कि वह अत्यन्त मूर्ख है तो उससे परे रहें. है। गाली-गलौच के लिए या अपना उल्लू आपको कुछ भी न होगा अतः दोनों ही सीधा करने के लिए विनम्रता पूर्वक बात करने के लिए जिह्वा नहीं बनी है । इस श्रीकृष्ण आपके आस-पास लीला कर रहे प्रकार के कार्य जिह्वा के लिए बहुत हैं और वो देखते हैं कि आप किस सीमा खतरनाक हैं इनसे आपकी जिह्वा पर छाले पड़ सकते हैं जो इस सीमा तक बिगड़ जाते हैं कि कटुभाषी को जिह्वा का गले की देखभाल करनी चाहिए। जो लोग कैंसर भी हो सकता है। प्रकार से सावधान रहना होता है क्योंकि तक जा सकते हैं अब गला-गला बहुत महत्वपूर्ण है। हमें चीखते चिल्लाते रहते हैं अन्ततः उनकी कुछ लोग सोचते हैं कि हर चीज को वाक शक्ति समाप्त हो जाती है । गले की सहन किए चले जाना ठीक है। यह ठीक समस्या के कारण वे पगला जाते हैं। विशेष नहीं है। कोई यदि आपको सता रहा है तो रूप से उन्हें गले के सृजन की भयानक आप इसे सहन करने का प्रयत्न न करें। बीमारी हो जाती है, इसे सर्प रोग कहा जाता है और व्यक्ति का सॉँस घुट जाता इसका मुकाबला करें क्योंकि यदि आप इसे सहन किए चले जाते हैं तो आप बाईं है। ओर को जा सकते हैं और कैंसर जैसे भयानक रोग के शिकार हो सकते हैं। स्पष्ट एवं मधुर ढंग से बात करें। कभी भी आपको कैंसर हो सकता है। जो लोग किसी पर चिल्लाएं नहीं। अपनी वाणी में आक्रामक हैं उन्हें भी रोग हो सकते हैं और कभी चिड़चिड़ा पन न लाएं। आप यदि जो लोग सहिष्णु हैं उन्हें भी कष्ट हो चिड़चिड़े हैं तो कैंसर की शुरूआत हो सकते हैं । अतः जब भी किसी से बात करें अत्यन्त | सकती है। अतः आपको दोनों ही तरह से सावधान होना होगा क्योंकि आप सहजयोगी अतः आपको सन्तुलित अवस्था में रहना है व्यर्थ की चीजों को सहन नहीं करना। हैं आपको ये ज्ञान प्राप्त करना होगा कि मान लो कोई आपको गाली देता है तो आपको क्या नहीं करना है। कोई यदि आप बिल्कुल चुप रहें, केवल उस व्यक्ति कुछ बेवकूफी भरी बात करे तो उसे सहन की ओर देखें, बस। समझ लें कि वह नहीं करना अर्थात उसे स्वीकार नहीं करना। अत्यन्त मूर्ख है । परन्तु उन गालियों को कोई यदि आपको कुछ कह दे तो कभी श्री जनवरी फरवरी 2002 12 वै।न्य लहरी खंड XIV अंक 1 4ं 2 कभी उसे इसके विषय में बता दें कि तुम रोग ग्रस्त हो जाने का भय बना रहता है। इस प्रकार से कह रहे थे. वास्तव में बात ये सब मैंने आपको इसलिए बताया कि ऐसी नहीं है।" बेहतर होगा कि इन चीजों विशुद्धि चक्र के विषय में हम बहुत सी बातें को सहन न करें। आप ईसा मसीह नहीं जानते हैं विशुद्धि चक्र का हमें बहुत सूक्ष्म है। उनकी शवितियाँ आपके पास नहीं हैं। ज्ञान होना चाहिए। इस बात का हमें थोड़ा आप अगर ऐसा (सहन) करेंगे तो आपको सा ज्ञान होना चाहिए कि यदि हम विशुद्धि परिणाम भुगतने पड़ेंगे। अतः मध्य में रहने का प्रयत्न करें सब चीज़ों को देखते हुए क्या हो सकता है। चाहे आक्रामकरता हो या सहिष्णुता, दोनों में से चाहे कोई भी चीज हो, आपको इन हमारे दाँतों की भी देखभाल करते हैं, कानों दृष्टिकोणों के सम्मुख हार नहीं माननी की भी देखभाल करते हैं । आप जानते है चाहिए । मजबूती से अपने पैरों पर डटे कि दाँत और कानों का क्या करना है ये रहने का दृष्टिकोण अपने में बिकसित करें। उनके सालह कार्य हैं हम इन्हें कलाएं भी उदाहरण के रूप में मैने एक चीनी कहानी कह सकते हैं. सोलह कलाएं जिन पर ये चक्र को नहीं सम्भालेगे तो इसके साथ तो ये सब श्री कृष्ण के कार्य हैं। वो पढ़ी थी। एक राजा चाहता था कि उसके भिन्न भिन्न स्तर पर कार्य करते हैं। आपको दो मुर्गे दंगल जीतें। लोगों ने उसे कहा भी चाहिए कि भिन्न क्रियाओं तथा मागों कि वह अपने मुर्गे फला महात्मा के पास द्वारा और ये समझकर कि विशुद्धि चक्र का ने मूल्य न समझने पर हमें क्या कष्ट हो हैं अपने विशुद्धि चक्र की शक्तियों लाया गया तो वे अडोल खड़े हुए थे। अन्य को विकसित करने का प्रयत्न करें। अमेरीका क्योंकि पूरे विश्व का विशुद्धि भेजकर उन्हें प्रशिक्षित करवाए। राजा अपने मुर्गे महात्मा के पास भेज दिए उन्हें सकते मुगे जब उन पर आक्रमण करने लगे तब भी वे निश्चित खड़े रहे। दूसरे मुर्गे प्रयत्न चक्र है अतः यह आवश्यक है कि वहाँ के करते रहे, प्रयत्न करते रहे परन्तु ये मुर्गे कार्यकारी लोग विशुद्धि चक्र की सारी डटे रहे। परिणामस्वरूप सारे मुर्गे भाग शक्तियों को समझें और ये भी ज्ञान उन्हें गए। आपका चरित्र भी ऐसा ही होना हो कि इन शक्तियों को किस प्रकार सुरक्षित चाहिए। किसी के सामने आपको इसलिए करना है तथा किस प्रकार इनका प्रसार नहीं झुक जाना कि वह आक्रामक है और पूरे विश्व में करना है ये दोनों हाथ जो न ही स्वयं आक्रामक होकर किसी को कि विशुद्धि चक्र से आ रहे हैं इनसे आपने सताना है और न किसी के सिर पर सवार सहजयोग का प्रचार करना है सहजयोग होना है। ऐसा करना गले के लिए बहुत प्रसार के लिए आपको भिन्न देशों, भिन्न भयानक है। ऐसे गले को सदैव भयानक संसारों में जाना है, यहाँ तक कि छोटे-छोटे जनवरी-फरवरी 2002 13 चैतन्य लहरी खंड XIV अंक 1 व 2 गाँवों में भी जाना है। पहले आप चैतन्य प्रकार अमेरीका भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। लहरियों को महसूस कर लें। इसका अर्थ अमेरीका के नागरिक होने के नाते आपको ये है कि परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति को चाहिए कि यहाँ धर्म को बनाए रखें और आप अपने हाथों में महसूस करते हैं। ये वह सामूहिक शाश्वत प्रेम है जो का सृजन करें और सभी देशों के लोगों आपके हाथों पर आता है और आपको को प्रेम प्रदान करने के लिए प्रयत्नशील सिखाता है । विश्व की समस्याओं के लिए गहन सूझबूझ | रहें। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें अतः यह इतना महत्वपूर्ण चक्र है। इसी जन कार्य क्रम रॉयल अलबर्ट हॉल, लन्दन, 14.7.2001 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन सभी सत्य साधकों को मेरा नतमस्तक कि मानव बिना किसी कारण के एक दूसरे प्रणाम। आपमें से कुछ ने सत्य को प्राप्त को नष्ट करने का भयानक कार्य कर रहा कर लिया हैं। कुछ ने पूरी तरह से सत्य है। हमें सोचना होगा कि हमारा अन्तिम को प्राप्त नहीं किया है पर कुछ साधकों ने लक्ष्य क्या है और हम किधर जा रहे हैं ? इसे बिल्कुल भी प्राप्त नही किया है। आज क्या हम नर्क में जा रहे हैं या स्वर्ग में । की परिस्थितियों पर यदि आप दृष्टि डालें हमारे चहुँ ओर कैसी परिस्थितियाँ है और तो आपको स्वीकार करना पड़ेगा कि आज इन्हें ठीक करने में क्या आप सहायक बन चहुँ ओर बहुत एक के बाद एक देश सभी बुराइयों को अपना रहे हैं। गहन शीत युद्ध चल रहा है सकते हैं? भयकर उथल पुथल मानव के साथ सबसे बड़ी समस्या ये है है। कि अभी तक भी वे अज्ञानता के पूरे नियंत्रण लोग एक दूसरे का वध कर रहे हैं। सुन्दर में है। मैं तो इसे अज्ञानता ही कहूँगी और स्थानों का विध्वस किया जा रहा है। बिना इस अज्ञानता में इस अंधकार में मानव ये किसी बजह के एक दूसरे के गले काटे जा सब भयानक कृत्य कर रहा है। कोई भी ये रहे है। हम सब परमात्मा द्वारा सृजित नहीं समझना चाहता कि हम पूर्ण विनाश मानव हैं। सर्वशक्तिमान परमात्मा ने सभी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं कर रहे। क्या मानवों का सृजन किया है और उन्हें मानवीय यही हमारा लक्ष्य है कि हम पूरी तरह से चेतना के स्तर पर लाया है। नष्ट हो जाएं? किसी भी राष्ट्रीयता या इन परिस्थितियों में हमें देखना है किसी भी धर्म या सभी प्रकार की अच्छी कि सामूहिक रूप से हम किस दिशा चीजों के नाम की और चल पड़े हैं। क्या हमारा यही कर रहे हैं, हम तो सारे दुष्कर्म कर रहे हैं से हम कौन सा अच्छा कार्य लक्ष्य है? या क्या यही हमारा भाग्य है? युद्ध कर रहे हैं। युद्ध करना श्रेष्ठता नहीं क्या मानव का भाग्य यही है कि वह है। कोई भी व्यक्ति जो हमारे अन्दर की भूमि या अन्य चीजों के लिए एक दूसरे को घृणा को बढ़ावा दे सके हम उससे घृणा नष्ट कर दे। पूरे विश्व को एक नीडम करते हैं और मेरी समझ में नहीं आता इस बात को पसन्द किया जाता है। और इसके मानकर सोचे कि सर्वत्र क्या घटित हो रहा है। प्रतिदिन आप समाचार पत्र पढ़ते हैं बहाने से, इसके पथ प्रदर्शन से हम समूह और हर रोज उनमें भयानक खबरें होती हैं बनाते हैं ! जनवरी-फरवरी 2002 15 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 ये सब इसलिए घटित हो रहा है कि उस विषय में चिन्ता परमात्मा ने मानव यह अन्तिम निर्णय का समय है। मैंने आपको की इसलिए सृष्टि नहीं कि की आप बताया है कि यह अन्तिम निर्णय है और लड़ाई-झगड़े के लिए, रक्षा के लिए हर समय चिन्ता करें। परमात्मा ने आपकी यह अन्तिम निर्णय वास्तव में इस बात का फैसला करेगा कि किनकी रक्षा की जानी इसलिए सृष्टि की है कि आप पूर्ण शान्ति चाहिए और किनको पूर्णतः नष्ट हो जाना और तदातम्य तथा आनन्द के साथ जीवन चाहिए। यह अत्यन्त-अत्यन्त गम्भीर चीज व्यतीत करें। इसलिए हमारा सृजन हुआ है। जिन लोगों को भी इसके बारे में ज्ञान है, यही हमारा लक्ष्य है। मैं ये बात आपको है उन्हें इसके विषय में सोचना चाहिए। केवल बता नहीं रही, ये वास्तविकता है। यहाँ-वहाँ थोड़ी बहुत जोड़ा जाड़ी करने से कार्य न होगा चाहे जो कुछ भी आप कठिन नहीं है। परन्तु मैं ये देखती हूँ कि अतः हमें परिवर्तित होना होगा, ये परिवर्तन करते रहें जब तक आप मानव का हृदय किसी भी चीज़ से आप सन्तुष्ट हो जाते परिवर्तन नहीं करते इसे बचाया नहीं जा हैं। हिन्दू लोग मन्दिर में जाते है और सकता। ये हृदय परिवर्तन असंभव चीज़ कहते हैं, "ओह! हमने महान कार्य किया । नहीं है, यह कठिन भी नहीं है ये परिवर्तन ईसाई चर्च जाकर सोचते हैं कि उन्होंने का समय है, परिवर्तन का यही अवसर है, बहुत महान कार्य किया है! मुसलमान जाकर इसे हमारे अन्दर स्थापित किया गया है। नमाज पढ़ते हैं और सोचते हैं वो अत्यन्त इस शक्ति की शक्ति रूप में व्याख्या की महान हैं! इन सबने क्या प्राप्त किया? गई है। यह रहस्यमय मादा शक्ति है जो अपना सामना करें। कृपा करके अपनी हमारे अन्दर विराजमान है। सभी ने लिखा सीमाओं का अपनी कमियों का सामना करें है, यह बात कहने वाली मैं पहली व्यक्ति अपनी समस्याओं का सामना करें और स्वयं नहीं हूँ। परन्तु संभवतः अब तक कोई भी अपने लिए देखें कि क्या आप अपनी इसे न तो समझ सका न ही स्वीकार कर समस्याओं का समाधान कर सके हैं, क्या सका कि ये घटना हमारे अन्दर घटित हो। आप स्वयं को विपदाओं से बचा सके हैं? आपका जन्म केवल मानव बनने के लिए हो सकता है कि ये विपदाएं उन लोगों को नहीं हुआ बल्कि महा मानव बनने के लिए नष्ट करने के लिए आती हैं जो मानव को हुथा है। आपको आनन्द लेना होगा आपका हानि पहुँचा रहे हैं। तब तो यह परमात्मा जीवन आनन्द लेने के लिए योग्य होना का लक्ष्य होगा परन्तु आपका लक्ष्य क्या चाहिए। ये आशीर्वादों से परिपूर्ण होना है? आप ये क्यों नहीं सोचते कि "मैं वो चाहिए। जीवन अभिशाप नहीं होना चाहिए। व्यक्ति नहीं हूँ जो पत्थर है। मैं वह व्यक्ति सुबह से शाम तक इस विषय में चिन्ता हूँ जो आनन्द और प्रेम का स्रोत है। मैं जनवरी-फरवरी 2002 16 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 केवल बातें नहीं कर रही हूँ। मैं वास्तव में ये आपात स्थितियाँ हैं। आप आपात स्थितियों में रह रहे हैं। इस बात को समझने का प्रयत्न करें और मैं आपको चेतावनी देना चाहती हूँ यदि आप अपने अन्तस में चाहती हूँ कि आप सब अपना आत्म- साक्षात्कार प्राप्त करें। आत्मसाक्षात्कार है क्या? यह स्वयं को पहचानना है। आप स्वयं को नहीं पहचानते, गहन नहीं उतरते और ये नहीं देखते कि नहीं पहचानते आप स्वयं को। बिना स्वयं को पहचाने आप इस विश्व में जिए जा रहे अपनाते तो कुछ भी घटित हो सकता है। आप क्या हैं और अपने परिवर्तन को नहीं 1. है। क्या आप इस बात की कल्पना कर आपको सभी प्रकार के रोग हो रहे हैं। सकते हैं। आप नहीं जानते कि आप क्या बच्चों की सभी प्रकार की समस्याएं खड़ी हैं, आप नहीं जानते कि आप आत्मा हैं हो रही हैं, राष्ट्रीय स्तर पर भिन्न प्रकार तथा ज्ञान, शुद्ध ज्ञान का स्रोत हैं। कई बार की समस्याएं हैं, ऐसी समस्याएं जिनका मैं लोगों को किसी बाबाजी की सभा में बैठे समाधान लोग नहीं कर पाते। अतः हमें देखती हूँ जो उन्हें कथाएं सुना रहा इनसे बाहर निकलना होगा और अत्यन्त होता है और लोग अत्यन्त प्रसन्न हैं। इन सत्यनिष्ठ और दृढ़ व्यक्तित्व बनना होगा। कथाओं से न तो आपको वास्तविकता का हुए हम नहीं जानते कि सत्य क्या है? हम ज्ञान होगा न सत्य का। सत्य और तो पशुओं से भी बदतर हो गए हैं, पशुओं वास्तविकता को यदि आप प्राप्त करना की भी आँखें खुली हुई हैं परन्तु हमारी चाहते हैं तो ये समझने का प्रयत्न करें कि ऑँखें बन्द हैं। ये बात मैं आपकी भर्त्सना घटित होना होगा आपके अन्दर कोई करने के लिए नहीं कह रही हूँ आपको कुछ परिवर्तन घटित होना आवश्यक है जब सावधान करने के लिए कह रही हैं। आपको तक आप उस बिन्दू तक नहीं पहुँच जाते जागरूक करने के लिए कह रही हूँ कि तब तक आप पर्याप्त रूप से सूक्ष्म नहीं हैं, मानव को परिवर्तित होना होगा अन्यथा न ही आपने सूक्ष्मताओं को जाना है। इसके आज आपने मेरा भाषण सुन लिया और लिए आपको अपना परिवार त्यागने की, कल किसी और के भाषण में चले जाएंगे| अपने बच्चे त्यागने की, घरबार त्यागने की, ये तो रोजमर्रा का मनोरंजन है । परन्तु जंगल जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। लक्ष्य को जब मैं देखती हूँ तो मेरी समझ में इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। ऐसा नहीं आता कितने लोग जा पाएंगे, कितने कहना बड़ा अच्छा लगेगा कि "ठीक है, समाप्त हो जाएंगे! उनके साथ क्या घटित आप सब लोग सन्यास ले लें और अपना होगा, कौन सी बीमारियाँ उन्हें लग जाएंगी, सारा सामान मुझे दे दें। कितना मूर्खतापूर्ण कौन सी समस्याओं में वे फँस जाएंगे, उनके विचार है ये! | बच्चों का क्या होगा, उनके देश का क्या जनवरी-फरवरी 2002 17 चैत-य लहरी ख-XIV अक 1 व 2 होगा, इस पूरे विश्व का क्या होगा? मैं कुछ लोग श्वेत हैं और कुछ अश्वेत। इससे आपके दृष्टि क्षेत्र का विस्तार कर रही हैूँ। क्या फर्क पड़ता है? मेरी समझ में नहीं ये मेरा स्वप्न है कि विश्व के सभी लोग आता। इस प्रकार की मिथ्या बातें चल रही है हैं। इन मिथ्या चीजों के कारण लोग युद्ध और जब हम जेहाद की बात करते हैं कर रहे हैं । गोरे लोग कालों से युद्ध कर तो हम कहते हैं कि हमें अपने अन्दर के रहे हैं और काले गोरों से लड़ रहे हैं। और शत्रुओं से युद्ध करना होगा हमारे शत्रु फिर यही गोरे लोग अपनी चमडी का रंग बदलने के लिए जाकर धूप-स्नान करते हैं परिवर्तित हों । हमारे अन्दर शत्रु निहित कौन से हैं? आजकल सबसे भयानक शत्रु है हमारा और तेज धूप के कारण चर्म कैंसर का शिकार लोभ। इस लोभ के कारण लोग कुछ भी बनते हैं! इस बात को मैं नहीं समझ पाती, कर सकते हैं। इस लोभ के कारण सभी इसका कोई औचित्य नहीं है । हमारे अन्दर प्रकार के कुकृत्य हो रहे हैं। लोगों के पास ये देखने भर को सन्तुलन भी नहीं है कि धन होगा, उन्हें सभी प्रकार की सुविधाएं हम क्या कर रहे हैं? अपने इतने बहुमूल्य प्राप्त होंगी, परन्तु ये लोभ इतनी आसुरी समय को, जब हमें ये परिवर्तन प्राप्त कर चीज है क़ि आप ये भी नहीं देखते कि लेना चाहिए, क्या हम बर्बाद कर रहे हैं? आपके पास क्या चीज है। आप अधिक किसी भी चीज के कारण क्रोध आ सकता और अधिक पा लेना चाहते हैं। चाहे किसी है, किसी भी चीज़ के कारण गुर्सा भडक को धोखा देना पड़े. अपने संबंधियों को सकता है। ये तो मानवीय स्वभाव की तरह धोखा देना पड़े, सभी को धोखा देना पड़े से है जो कि बहुत आम है। छोटी-छोटी और इस प्रकार सबका पैसा हथिया लेना चाहते हैं। चीज़ों के लिए लोग गुस्से हो जाते हैं और ये गुस्सा उन्हें पसन्द है क्योंकि इस गुस्से हमारा दूसरा बड़ा शत्रु क्रोध है। क्रोध से वो दूसरों को सताते हैं और आक्रामक हमें चीजों की वास्तविकता नहीं देखने देता। हो जाते हैं। इसलिए वो चाहते हैं कि उनमें छोटी-छोटी चीजों के लिए हम गुस्से हो गुस्सा हो और इस गुस्से से वो अन्य लोगों जाते हैं। जैसे मैं इस देश में आई। मैंने देखा है कि लोग भिन्न रंग को देखकर ही बहुत बड़ी समस्या है। क्यों हम दूसरे लोगों क्रुद्ध हो जाते हैं! मेरी समझ में नहीं आता। को सताना चाहते है? क्यों हम उन पर परमात्मा ने भिन्न रंग बनाए हैं। अगर ऐसा नियंत्रण करना चाहते हैं, स्वयं पर तो हम न होता तो हम एक सेना की तरह से दिखाई निर्णय नहीं कर पाते, किसलिए हम दूसरे पड़ते और जीवन अत्यन्त दयनीय हो गया लोगों पर नियंत्रण करना चाहते हैं? इसकी होता। अतः प्रकृति ने रंगों का सृजन किया क्या आवश्यकता है? पर प्रभुत्व जमाने का प्रयत्न करते हैं। ये 1 जनवरी-फरवरी 2002 18 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 ब 2. इसके बाद मोह हमारा महा शत्रु है। बताते हैं कि वे एक महिला विशेष से या घरों के लिए मोह, भूमि के लिए मोह, बच्चों पुरुष विशेष से विवाह करना चाहते थे के लिए और सभी चीजों के लिए मोह । आदि आदि। किस तरह से वो ये सारी परन्तु कल जब हम यहाँ न होंगे, खुले चीजें कर पाते हैं और कह पाते हैं? इन हाथों से जाना पड़ेगा, कुछ भी हम साथ न सारी चीजों से कोई महान नहीं बन सकता। ले जा पाएंगे। अतः इस प्रकार की लिप्साओं को परिवर्तित होना होगा लोग अपनी कार, होगा, अपनी आत्मा को महसूस करना होगा। अपने घर, उनकी देख-रेख के विषय में आप आत्मा है। सर्वशक्तिमान परमात्मा के अत्यन्त तुनक मिजाज हैं। परन्तु आपके प्रतिबिम्ध के रूप में आत्मा आपके अन्दर अपने विषय में क्या है? क्या आप ठीक हैं, विराजमान है। आप अत्यन्त सशक्त बन अन्दर से क्या आप पूर्णत शान्त व आनन्दमय सकते हैं और यदि आप आत्मा बन जाएं हैं? गुस्से में क्यों अपनी शक्ति को बर्बाद तो आप पूर्ण गरिमामय तथा सन्तुलित हो कर रहे हैं? यह ऐसे जीवन का चिन्ह है सकते हैं आत्मा और आध्यात्मिक जीवन जिसे नष्ट होना होगा किसी दूसरे व्यक्ति के विषय में आपने बहुत सुना है परन्तु क्या को जब आप देखते हैं तो दुर्बलताएं दिखाई आप इस स्तर तक पहुँच सके? चाहे आप देती हैं। धन के अतिरिक्त महिलाएं, ये दुर्बलता भी आम बात है। महिलाओं की विषय में बाइबल, कुरान पढ़ते हैं तब भी पुरुषों के प्रति दुर्बलताएं । वे स्वयं आकर्षक बनाने का प्रयत्न करती हैं, बिन्दु तक कैसे पहुँचा जा सकता है? नहीं, किसलिए? सभी ने के पीछे या विपरीत लिंग के पीछे दौडकर होगा क्योंकि आप अत्यन्त महान हैं, अंत्यन्त अपने अन्दर अत्यन्त शक्तिशाली बनना जैन प्रणाली के विषय में, ताओ प्रणाली के को आप क्या जानते हैं कि आत्मा के उस होना है महिलाओं अभी तक नहीं जानते। आपको समझना वृद्ध आपने क्या प्राप्त किया? आपको गरिमा बहुमुल्य हैं और अन्दर से आप अत्यन्त का, आत्मसम्मान का कोई विवेक नहीं है। सुन्दर हैं परन्तु आपको इसका ज्ञान नहीं आप यदि अक्खड़ हैं तो बहुत अच्छे वस्त्र है आपको आत्मा बनना होगा। ये बनना पहनते हैं। और स्वयं को बहुत अच्छा समझते बहुत महत्वपूर्ण है । हैं ये कोई तरीका नहीं है। हमें अन्तर्अवलोकन करके स्वयं देखना होगा कि हम ऐसा क्यों आपके अन्दर व्यवस्था की है, इसे कुण्डलिनी कर रहे हैं। मूर्खतापूर्ण चीजों में अपनी कहते हैं। इसकी जागृति हो सकती है और शक्ति को क्यों बर्बाद कर रहे हैं? में बहुत ये जागृति आपको आत्म-साक्षात्कार दे से लोगों से मिलती हैँ उनमें से बहुत से सकती है आत्म ज्ञान दे सकती है। इसे अर्धपागल हैं और कुछ पूर्ण पागल। वो मुझे आत्म-साक्षात्कार भी कहते हैं। आपके इसके लिए सर्वशक्तिमान परमात्मा ने जनवरी-फरवरी 2002 19 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 जीवन में इस आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त इससे मुक्त हो जाते हैं। किसी को ये करना बहुत महत्वपूर्ण है। यह पूर्णतः निशुल्क बताना नहीं पड़ता कि आप योग पा लें। है, इसके लिए आप कोई धन नहीं दे आपके सभी बन्धन छुट जाते हैं । आपमें सकते। कितना धन आप इसके लिए दे ऐसे बन्धन हैं कि आप फलां देश से, फलां सकते हैं? जब ये पूर्णतः निशुल्क है तो धर्म से इससे या उससे सम्बन्धित हैं। आप क्यों नहीं आप आत्म साक्षात्कार प्राप्त कर किसी चीज से सम्बन्धित नहीं हैं। आपका लेते और क्यों नहीं आप उत्थान को प्राप्त सम्बन्ध परमात्मा के साम्राज्य से है। हमें करते? आपका न करना क्या धर्म के कारण यही प्राप्त करना है। वहीं पर आपको होना है? सभी धर्मों ने इसके विषय में कहा है । चाहिए। परन्तु अब भी यदि आप कथाएं मोहम्मद साहब ने अत्यन्त स्पष्ट रूप से पसन्द करते हैं तो इसका तो कोई अन्त कहा, "पुनरुत्थान के समय आपके हाथ नहीं है। आप अपना समय व्यर्थ कर रहे बोलेंगे। क्या आपके हाथ बोल रहे हैं? हैं समय घटता चला जा रहा है। मैं यहाँ हिन्दू इसके विषय में जानते हैं कि हमें पर मेरे विचार से पिछले बीस वर्षों से हूँ। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना है इन बाबाजी मैंने घोर परिश्रम किया परन्तु क्या देखती लोगों को सुनने से या इन्हें पैसे देते रहने हूँ कि लोगों को जिस बात का ज्ञान होना से कोई लाभ न होगा। इस प्रकार के चाहिए था उस बात का ज्ञान उन्हें नहीं है। कर्मकाण्ड जो हम कर रहे हैं ये तो हमारे वो ऐसे लोगों को पसन्द करते हैं जो बहुत पूर्वज भी करते रहे । किया? कुछ नहीं। उन्होंने क्या प्राप्त सुगम चीजे बताते हैं या उनका मनोरंजन करते हैं। अतः यह जान लेना हमारे लिए आवश्यक है कि हमें अपनी उत्थान की प्रक्रिया को कि आज ही प्रलय का दिन है। प्रलय अंतः पूर्ण मानवता को समझना होगा आत्मसाक्षात्कार के बिन्दु तक ले जाना समीप है और अत्यन्त सुगम बात ये है कि होगा हम यदि पूर्ण होते तो कोई समस्या न होती, हम यदि आत्मसाक्षात्कारी होते तो हैं। ऐसा करना बहुत आसान है। न तो कोई समस्या न होती। सभी प्रकार का आपको इस पर कोई समय खर्च करना है स्वार्थ, सभी प्रकार की सीमाएं हमने अपने और न ही पैसा । कोई परिश्रम भी आपको पर लगा ली हैं। सभी प्रकार का बन्धन, नहीं करना। आप अपना आत्मसाक्षात्कार सभी प्रकार का अहं हमारे जीवन में कार्यरत प्राप्त कर लें और अपने घर पर दस पन्द्रह है और हम पर शासन कर रहा है हमें मिनट ध्यान धारणा पर लगाएं। हमारा इसके चंगुल से निकलना होगा एक बार मस्तिष्क हर समय हमारे दुर्व्यवहारों को जब आपका योग हो जाता है तो आप न्यायोचित ठहराता है। मैं इसे आप परमात्मा के साम्राज्य में प्र्वेश कर रहे दुर्व्यवहार जनवरी-फरवरी 2002 20 वैत-य लहरी खड-XIV अक 1 वें 2 कह रही हूँ। ये सत्य के विरोध में है. हमें आत्मा बनना है सभी धर्मो ने यही परमात्मा की इच्छा के विरुद्ध है, मानवता बात सिखाई हैं, परन्तु इस बात का वर्णन के विरुद्ध है और ये सारी अच्छी चीजों को नहीं किया गया कि किस प्रकार आत्मा बनना है और यह कार्यान्वित नहीं हुआ। ये सारे बन्धन त्यागने होंगे और ये जानना कुछ लोगों ने आत्मसाक्षात्कार पा लिया होगा हम सब एक हैं। हम विश्वस्तरीय हैं। परन्तु उनका विश्वास नहीं किया गया, रंग, प्रजाति और धर्म के कारण हम एक किसी ने उनकी बात नहीं सुनी। लोगों ने दूसरे से अलग नहीं हैं। ये बात हमें जाननी उनकी हत्याएं की, उन्हें सताया और सूली होगी कि हम एक हैं और इस एकता को पर चढ़ा दिया। परन्तु अब आप लोग कृपा और एकरूपता को केवल नारों और करके इस बात को समझें। इसके को नष्ट कर देता है। मूल्य समझे कि आप लोग मानव क्यों है? किसलिए आपका सृजन किया गया है, इसके पीछे अपने हृदय में महसूस की जानी चाहिए। क्या उद्देश्य है? क्या आप मूर्खतापूर्ण चीज़ों ये बनावटी नहीं है, इसे वास्तविक होना के चलाए से चलते रहेंगे? क्या ये विभाजन होगा वास्तविक एकरूपता। और ये आपमें तत्व आपको समाप्त कर देंगे? नहीं-नहीं, शोरशराबो से स्थापित नहीं करना चाहिए ये एकरूपता क्या होनी चाहिए, ये बात तभी आती है जब आप महसूस कर लेते हैं आप सब आत्म साक्षात्कार प्राप्त कर लेंगे कि आप विराट के अंग-प्रत्यंग है । धर्म और आत्म साक्षात्कार प्राप्त करके अपने आपको चेतना के इस बिन्दु तक ले आते जीवन के मूल्य को समझ लेंगे । हैं। युद्ध और हत्याओं की प्रवृत्ति आपको यहाँ तक नहीं लाई। तो क्यों मानव ने साक्षात्कार प्राप्त कर लेंगे. कि आपकी अपना मुख मोड़ लिया? क्योंकि उसे अन्तःस्थित शक्ति जाग्रित हो जाएगी? ये धर्मपरायणता का ज्ञान बिल्कुल नहीं है, भली भांति आयोजित है वास्तव में परमात्मा क्योंकि उसके मन में लोभ भरा हुआ। अपने, महान सृजनकार हैं। जिस प्रकार उन्होंने अपने परिवार और अपने सम्बन्धियों के इसका सन्तुलन किया, जिस प्रकार ये प्रति मोह। आप अपने तक ही क्यों सीमित कार्यान्वित होती है, ये सब प्रशंसनीय है। समस्या ये है कि क्या आप अपना आत्म रहना चाहते हैं? आप आत्मा है और आत्मा इसके लिए अत्यन्त सूक्ष्म रूप से कार्य तो सागर है, प्रेम का, ज्ञान का और किया गया| इस घटना का घटित हो जाना आशीर्वादों को सागर । ही पर्याप्त नहीं है आप इसे प्राप्त करें हम अतः हमें निर्णय लेना होगा आज मुझे ये कह सकते हैं कि एक स्थान में घूमकर यही प्रार्थना करनी है कि बहुत ज्यादा देखें स्वयं देखें कि आप कितने सुन्दर हैं? समय शेष नहीं है। हमें निर्णय करना होगा। परमात्मा ने कितनी सुन्दर चीजें बनाई हैं? ho जनवरी-फरवरी 2002 21 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1व 2 आप सब इसमें उन्नत हों। एक बार जब इसके लिए तैयार हो जाएं। यही मुख्य आप इसमें उन्नत होते हैं तब आपको महसूस चीज है। आप क्या बन गए, यही मुख्य होता है कि आप कितनी महान चीज हैं, बात है। और तब ये आपकी समस्या होगी कितने बहुमूल्य रत्न, कितने महान व्यक्ति, मेरी नहीं कि आप इस मानव संस्कृति का क्या बनाते हैं। मैं तो केवल सहायता कर कितने प्रेममय, इतने महान कि आपका वर्णन ग्रन्थों में होना चाहिए। कोई भी ये सकती हूँ, इसे कार्यान्वित कर सकती हूँ। अतः मैं आप सबसे प्रार्थना करूंगी कि जानने का प्रयत्न नहीं करता किे बह क्या कर रहा था और उसने किस प्रकार कार्य आप अपना आत्मसाक्षात्कार प्रादा करने के किया। तो आज हम ये अनुभव प्राप्त कर लिए तैयार हो जाएं। अच्छी बात है । परन्तु सकते हैं। आत्मा का ये अनुभव, ये अत्यन्त जो लोग इसे नहीं पाना चाहते उन्हें विवश विशिष्ट चीज है। इस प्रकार इसे कभी भी नहीं किया जा सकता। तो बेहतर होगा प्राप्त नहीं किया जा सकता था परन्तु आज ऐसे लोग सभागार को छोडकर अपने कार्यों इसे प्राप्त किया जा सकता है। तो क्यों न को चले जाएं। करके परमात्मा आपको आशीर्वादित करें इस समय का लाभ उठा लें? कृपा महा शिवरात्रि पूजा पंढर पुर, 29.2.1984 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आधुनिक समय में कोई भी पवित्र स्थल कहलाने वाला स्थान अपवित्रतम स्थान बन तरीके से, सहज बुद्धि के साथ समझना इस सारी कहानी को अत्यन्त विवेकशील जाता है। आजकल इतनी अव्यवस्थित दशा चाहिए कि परमात्मा स्वयं सभी प्रकार है। पत्थरों से निकलने वाले कोमल अंकरण, के चमत्कार करने में सक्षम हैं। परमात्मा जिसे बहुत सी बाधाओं का सामना करना होता है, जैसी मौलिक चीज को स्थापित कर रहे करने का प्रयत्न जब हम कर रहे हैं तो हमें की स्थितियों को देखते हुए चमत्कार अपने मस्तिष्क दुरुस्त रखने होंगे और हर प्रतीत होता है । हम कह सकते हैं कि चीज के प्रति विवेकशील रहते हुए यह आज हम ऐसी बहुत सी चीजें देख रहे देखने का प्रयत्न करना होगा कि अपनी हैं जो चमत्कारी हैं। सौ वर्ष पहले सूझ-बूझ और सबूरी के माध्यम से हम भी न सोच पाता कि इतनी दूर दूराज क्या हासिल कर सकते हैं। ऐसा करना के स्थान पर भी यह सब प्रबन्ध किए जा द्वारा सृजित हम लोग आज जो कुछ हैं वह संसार की सौ वर्ष पहले कोई सकते हैं। ये सारे चमत्कार परमात्मा की बहुत आवश्यक है। आज, मैं सोचती हूं, हम सबके लिए शक्ति से हो रहे हैं । तो हम लोग उन दैवी अत्यन्त महान दिन है क्योंकि यह स्थान चमत्कारों का बहुत छोटे स्तर पर सृजन विराट का, श्री विट्ठल का, स्थान है। यह कर सकते हैं। परमात्मा के चमत्कारों की वह स्थान है जहाँ पर श्री विट्ठल ने अपने व्याख्या नहीं की जा सकती और न ही एक भक्त बेटे को दर्शन दिए और जब उस इनकी व्याख्या करनी चाहिए। ये चमत्कार भक्त ने उनसे कहा कि इस ईंट पर खडे हमारी बुद्धि से परे हैं और परमात्मा की हो जाओ", तो श्री विट्ठल वहाँ खड़े हो उपस्थिति के विषय में लोगों को विश्वस्त गए । ऐसा कहा जाता है कि प्रतीक्षा में वे कराने के लिए परमात्मा कुछ भी कर सकतें वहाँ खड़े रहे। कुछ लोग कहते हैं कि जो हैं। मूर्ति हम वहाँ देखते हैं वह इस रेत पर पृथ्वी माँ से प्रकट हुई और यह कहकर Dimension) में चल सकते हैं और चौथे पुन्ड्रीकाक्ष उसे साथ ले गए कि जब मैं आयाम में भी तथा अपनी इच्छानुसार कुछ अपने माता पिताजी के साथ व्यस्त था तो भी कर सकते हैं अपने रोजमर्रा के जीवन रही (श्री विट्ठल) मुझे और मेरे माता पिताजी में आप यही देखते हैं कि आप सब के साथ से मिलने आए थे। अतः ये उसी ईट पर कितने चमत्कार घुटित होते हैं! आप समझ खड़े हुए हैं जो मैंने फेंकी थी।" परमात्मा तीनों आयामों (Three भी नहीं पाते कि यह सब किस प्रकार ho जनवरी-फरवरी 2002 23 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 पंढरपुर शिव पूजा के लिए आने का घटित होता है! उन चीजों पर भी चमत्कार होते हैं जो जीवन्त नहीं हैं और लोग आश्चर्य विचार इसलिए था कि श्री शिव आत्मा का चकित रह जाते हैं कि यह सब किस प्रतीक हैं आत्मा का निवास आप सबमें प्रकार घटित होता है। अपनी आँखों से यह आपके हृदयों में है। सदा शिव का स्थान सब देखने के पश्चात् हमें विश्वास करना आपके सिर के तालू भाग में है परन्तु होगा कि वे परमात्मा है। आत्मा आपके हृदय में प्रतिबिम्बित है। श्री विट्ठल आपके मस्तिष्क हैं अतः आत्मा परमात्मा अपनी इच्छानुसार सभी कुछ कर सकते हैं और हम कुछ भी नहीं है। को मस्तिष्क में लाने का अर्थ मस्तिष्क को हम कुछ भी नहीं है। इसके विषय में, ज्योतिर्मय करना परमात्मा के चमत्कारों को समझने के विषय ज्योतिर्मय होना अर्थात परमात्मा को महसूस में कोई तर्क नहीं होना चाहिए। 'तर्क किस करने की आपके मस्तिष्क की सीमित है। आपके मस्तिष्क का प्रकार हो सकता है? किस प्रकार तर्क हो क्षमता को असीम बनाना। मैं 'समझना सकता है?" इस बात का आप वर्णन नहीं (Understand) शब्द उपयोग नहीं करूंगी, कर सकते। केवल तभी आप विश्वस्त हो परमात्मा को महसूस करना।" वो कितने सकते हैं जब आप ऐसी बौद्धिक अवस्था शक्तिशाली हैं, कितने चमत्कार करने वाले को प्राप्त कर लें जिसमें आप अपने अनुभव हैं, कितने महान हैं? दूसरी बात ये है कि मानव मस्तिष्क मृत चीजों से ही सृजन सर्वशक्तिमान हैं। ये धारणा बहुत कठिन करता है परन्तु जब आत्मा मस्तिष्क को है। यह बहुत कठिन है क्योंकि हम लोग ज्योतिर्मय करती है तब आप जीवन्त चीजों सीमित हैं, हमारी शक्तियाँ सीमित हैं। ये का सृजन करते हैं, कुण्डलिनी का जीवन्त बात हम समझ नहीं पाते कि किस प्रकार कार्य करते हैं । यहाँ तक कि भी जीवित परमात्मा सर्वशक्तिमान हो सकते हैं क्योंकि की तरह से बत्ताव करने लगते हैं क्योंकि के माध्यम से विश्वास कर सकें के परमात्मा मृत हमारे अन्दर वह क्षमता नहीं है। परमात्मा आप मृत की आत्मा को छू लेते हैं। परमाणु (Atom) या अणु (Molecules) उन्ही की इच्छा है कि हमारा अस्तित्व बना में अन्तःस्थित नाभिक (Nucleus) में हमारे सृष्टा हैं, परमात्मा हमारे रक्षक हैं. अणु रहे। सर्वशक्तिमान परमात्मा ही हमारा की आत्मा होती है। आप यदि अपनी आत्मा अस्तित्व हैं. सर्वशक्तिमान। वो जो चाहें बन जाते हैं तो हम कह सकते हैं कि अणु आपके साथ कर सकते हैं, वो इस विश्व या परमाणु का मस्तिष्क नाभिक (Nucleus) को नष्ट कर सकते हैं और दूसरे विश्व का की तरह से है परन्तु नाभिक (Nucleus) सृजन कर सकते हैं। उनकी इच्छा मात्र से का आत्मा नियंत्रण करती है, नाभिक के अन्दर निवास करने वाली आत्मा। सब कुछ हो जाता है। প जनवरी-फरवरी 2002 24 पैतनय लरी खंड-XIV अंक 1 व 2 तो अब आपके पास चित्त (Attention) चक्रों के सम्पर्क में आ जाता है और इसे समग्रन करने लगता है। या शरीर परमाणु का पूर्ण शरीर है। परन्तु जब आप अपनी आत्मा को मस्तिष्क में लाते हैं तो ये दूसरी अवस्था होती है इसके बाद नाभिक है और नाभिक के अन्दर आत्मा है। इसी प्रकार हमारा ये शरीर है और शरीर ये दूसरी अवस्था है तब आप वास्तव में के अन्दर चित्त है। इसके साथ-साथ एक आत्मसाक्षात्कारी बन जाते हैं, पूर्ण रूपेण, नाभिक है जो कि मस्तिष्क है। आत्मा हृदय पूर्ण रूपेण. क्योंकि तब आपकी आत्मा ही में है इसलिए मस्तिष्क का नियंत्रण आत्मा आपका मस्तिष्क बन जाती है। यह क्रिया के माध्यम से होता है। कैसे? हृदय के अत्यन्त गतिशील (Dynamic) है। तब यह इर्द-गिर्द सात परिमल (Auras) हैं जिनका मानव के पाँचवे आयाम (Fifth Dimension) गुणन किसी भी संख्या तक होता है। सात को यदि 16000 बार गुणा किया जाए तो इतनी शक्तियाँ हमारे सातों चक्रों को देखती बनते हैं, सामूहिक चेतना में आते हैं और हैं - 7 के 16000 गुणनफल (7 raised to कुण्डलिनी उठाने लगते हैं तो आप चौथे Power 16000-7)1 इस परिमल के माध्यम से आत्मा देख रही है-देख रही है । मैं फिर कह रही हूँ कि परिमल के माध्यम से आत्मा करत्ता बन जाते हैं। उदाहरण के रूप में, देख रही है। ये परिमल आपके मस्तिष्क में आपके सातों चक्रों के आचरण को देख चीज़ को उठा लो।" तब आप उस वस्तु रहा है। यह आपके मस्तिष्क में कार्यरत को अपने हाथों से पकड़कर ऊपर उठा सभी नाडियों को भी देख रहा है । पुनः लेते हैं। तब आप कर्त्ता हैं। परन्तु जब को खोलती है। प्रथम स्थान पर जब आप साक्षात्कारी आयाम को पार करते हैं। परन्तु आपकी आत्मा जब मस्तिष्क में आती है तो आप पाँच आयामों के हो जाते हैं अर्थात आप हमारा मस्तिष्क कहता है, "ठीक है, इस आपका मर्तिष्क आत्मा बन जाता है तो देख रहा है। परन्तु जब आप आत्मा का अपने मस्तिष्क में लाते हैं तो आप आत्मा ही करत्त्ता है। दो कदम आगे बढ़ जाते हैं क्योंकि जब आपकी कुण्डलिनी उठती है तो वह पूर्ण शिव बन जाते हैं: आत्मसाक्षात्कारी। श्री सदाशिव को छ लेती है और सदाशिव उस अवस्था में यदि आपको क्रोध आ जाए आत्मा को सूचित करते हैं, सूचित करते तब भी आप उससे लिप्त नहीं होते। आप हैं अर्थात आत्मा में प्रतिबिम्बित होते हैं। तो ये पहली अवस्था है जिसमें साक्षी परिमल है। आपके पास यदि कुछ भौतिक पदार्थ (Auras) आपके मस्तिष्क में स्थित भिन्न हो तो भी आप उनसे लिप्त नहीं होते आत्मा जब कत्ता बन जाती है तो आप ऐसे व्यक्ति बन जाते हैं जो पूर्णतः निर्लिप्त जनवरी-फरवरी 2002 25 चैत-य लहरी खड-XIV अक 1 व 2 अपने चित्त को देखें कि यह कहाँ जा नहीं हो सकते क्योंकि आत्मा तो निर्लिप्ता- पूर्ण निर्लिप्तता है। किसी भी प्रकार की रहा है। स्वयं को देखें ज्यों ही आप स्वयं लिप्सा आपको परेशान नहीं कर सकती, को देखने लगते हैं, अपने चित्त को देखने क्षण भर के लिए भी आप लिप्त नहीं होते। लगते हैं, आप अपनी आत्मा से एकरूप हो अब मैं कहूँगी कि आत्मा की निलिप्तता जाएंगे, क्योंकि आपने यदि अपने चित्त को को समझने के लिए हमे स्व य का देखना है तो आपको आत्मा बनना होगा। आत्मा बने बिना किस प्रकार आप चित्त को भली-भांति अध्ययन करना होगा, स्पष्ट "किस प्रकार हम लिप्त है? देख पाएंगे? रूप से पहले स्थान पर अपने मस्तिष्क द्वारा तो आप देखें कि आपका चित्त कहाँ जा हम लिप्त हैं। अधिकतर अपने मस्तिष्क रहा है । स्थूल रूप से सर्वप्रथम आपकी द्वारा क्योंकि हमारा सारा अहं और बन्धन लिप्तता आपके शरीर से होती है हम Ego and Conditionings) हमारे मस्तिष्क देखते हैं कि शिव को अपने शरीर से में हैं। अतः भावनात्मक लिप्तता मस्तिष्क बिल्कुल माह नहीं है वो कहीं भी सो जाते के माध्यम से है और हमारी सभी अहंवादी हैं, श्मशान घाट में जाकर वो सॉ जाते हैं लिप्तताएं भी हमारे मस्तिष्क के माध्यम क्योंकि वो लिप्त नहीं हैं, उन्हें कोई भूत से हैं। इसलिए कहा गया है कि आत्म - आदि नहीं पकड़ सकता। ऐसा कुछ भी साक्षात्कार के पश्चात् साक्षी भाव अपना नहीं हो सकता। वे निर्लिप्त हैं। आपको कर शिव तत्व का अभ्यास करने का प्रयत्न अपनी लिप्तताओं के माध्यम से निर्लिप्तता को देखना चाहिए। करना चाहिए। अब क्योंकि आप आत्म साक्षात्कारी व्यक्ति अभी तक ये अब किस प्रकार आप ये साक्षी भाव (Detachment) अपनाएं? क्योंकि किसी हैं, अभी आत्मा नहीं बने भी चीज से यद्यपि हम मस्तिष्क के माध्यम आपके मस्तिष्क में नहीं आई परन्तु अब भी से लिप्त होते हैं पन्तु वास्तव में यह लिप्तता आप आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति हैं । तो अब चित्त (Attention) के माध्यम से होती है। कम से कम आप अपने चित्त को तो देख अतः हम 'चित्त निरोध करने का प्रयत्न सकते हैं। ये कार्य आप कर सकते हैं ये करते हैं । अ्थात अपने चित्त को नियंत्रित कार्य आप कर सकते हैं । अत्यन्त स्पष्ट 1. रूप से अआप अपने चित्त को देख सकते हैं: करने का प्रयास। "यह कहाँ जा रहा है?" सहजयोग में यदि आपको ऊँचा उठना है ये देखने से कि आपका चित्त कहाँ जा रहा तो आपको अपना यन्त्र सुधारना होगा, किसी है और तब आप इसका नियंत्रण भी कर अन्य का यन्त्र नहीं। ये बात व्यक्ति को सकते हैं। यह अत्यन्त साधारण बात है। अपने चित्त को नियंत्रित करने के लिए निश्चित रूप से जान लेनी चाहिए । जनवरी-फरवरी 2002 26 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 आपको अपना चित्त इस से उस तक ले स्वीकार होना चाहिए और न पूछा जाना जाना होगा अपनी प्राथमिकताओं को बदलने चाहिए। बिल्कुल कोई बहाना नहीं बहानों का प्रयत्न करें यह सब कार्य अभी' करने के बिना जीवित रहना सर्वोत्तम मार्ग है । हैं - आत्मसाक्षात्कार के पश्चात पूर्ण सामान्य हिन्दी भाषा में कहा है कि जाही निर्लिप्तता। विधि राखे ताही विधि रहिए। जिस भी शरीर माँगता है, शरीर को थाडा हालात में आप मुझे रखेंगे मैं उसमें रहूंगा सा दुख देने का प्रयत्न करें। ये प्रयत्न और उसका आनन्द लूंगा। कबीर ने अपनी करें। जिस चीज़ को आप सुखकर समझते कविता में लिखा है कि "यदि आप मुझे हैं उसे थोड़ा सा कष्टदायी बनाने का प्रयत्न हाथी की सवारी कराएंगे अर्थात शाही सवारी, करें। इसी कारण से लोग हिमालय पर तो मैं उससे जाऊंगा, आप यदि मुझे पैदल जाया करते थे। देखिए इस स्थान पर आने के लिए ही हमारे सम्मुख बहुत सी समस्या राखे ताहि विधि रहिए। अतः मामले में आई। अब आप हिमालय पर जाने की किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं होनी कल्पना कीजिए| तो आत्मसाक्षात्कार प्राप्त चाहिए-कोई प्रतिक्रिया नहीं । प्रथम कोई करने के पश्चात् वे अपने शरीर को हिमालय बहाना नहीं और कोई प्रतिक्रिया नहीं । ले जाया करते थे, "ठीक है उन स्थितियों में रहो। देखें तुम किस प्रकार चलते हो। रूप में मानव की यह पहली इच्छा तो अब तपस्या का आरम्भ होता है एक भोजन पर बिल्कुल चित्त नहीं होना चाहिए। प्रकार ये तपस्या है जिसे आप अत्यन्त भोजन में नमक हो या न हो, जैसा भी सुख चलाएंगे तो मैं पैदल चलूंगा जाही विधि ा अब दूसरे स्थान पर भोजन है, पशु सुगमता से कर सकते हैं क्योंकि अब आप भोजन हो इस पर चित्त नहीं दिया जाना आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति हैं। आनन्द पूर्वक चाहिए। वास्तव में आपको ये भी याद नहीं इस शरीर को थोड़ा सा कष्ट देने का होना चाहिए आज सुबह आपने क्या खाया। प्रयत्न करें श्री शिव को इस बात से कोई परन्तु हम तो ये सोचते हैं कि आने वाले अन्तर नहीं पड़ता कि वे श्मशान घाट पर कल हम क्या खाएंगे। हम लोग शरीर को हैं, कैलाश पर या कहीं अन्य । आपका चित्त चलाने के लिए भोजन नहीं करते उससे कहाँ है? आप देखें कि आपका मानवीय कहीं अधिक जिह्वा के स्वाद की सन्तुष्टि चित्त बहुत ही खराब है, अत्यन्त लिप्त और करने के लिए करते हैं आप ये समझ लें बेवकूफी भरा। "हमने ये कार्य इसलिए किया कि यह सुख स्थूल चित्त की निशानी है । क्योंकि एक बहाना तैयार है या दूसरा। किसी भी प्रकार का सुख अत्यन्त स्थूल किसी बहाने की कोई आवश्यकता नहीं है। इन्द्रियार्थवाद होता है, इन्द्रियों का सुख। कोई बहाना न तो दिया जाना चाहिए, न यह बहुत स्थूल है। जनवरी-फरवरी 2002 27 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 परन्तु जब मैं कहती हैँ कि सुखों में नहीं पड़ता है चाहे ये गांजा हो या कुछ और! फँसना है तो इसका ये अर्थ नहीं है कि कभी उन्हें नशा नहीं चढ़ेगा, नशे का कोई आप सब लोग इतने गम्भीर स्वभाव के हो प्रश्न ही नहीं है। शिव सभी कुछ भस्मीभूत जाएं कि मानो आपके परिवार में किसी की कर देते हैं। लोग ये भी सोचते हैं कि शिव मृत्यु हो गई हो। इसके स्थान पर आपको की तरह से यदि वे किसी भी चीज की शिव सम होना होगा-अत्यन्त निर्लिप्त । विवाह के लिए वे तेज दौड़ने वाले शिव को दिखावे की क्या आवश्यकता है? बैल पर सवार होकर आए। वे बैल पर उन्हें दिखावा करने की क्या जरूरत है? चिन्ता नहीं करेंगे तो वे शिव बन जाएंगे । बहुत सवार थे और उनके दोनों पैर इस प्रकार जो भी वे पहनते हैं वही उनका सौन्दर्य से लटके हुए थे। तेज़ दौड़ता और उसे सम्भालते हुए अपनी टाँगों को नहीं है । लटकाए श्री शिव! और जा रहे हैं विवाह करने के लिए! और उनके बाराती, किसी भद्दापन है । ये भद्दापन है, बेवकूफी है। परन्तु की एक आँख है किसी का नाक नहीं है! आप जैसे चाहें वस्त्र पहन सकते हैं। यदि सभी प्रकार के अजीबो गरीब लोग उनके आप सर्वसाधारण वस्त्र पहनेंगे तो भी अत्यन्त साथ आ रहे हैं और उनकी पत्नी शिव के गरिमामय व्यक्ति प्रतीत होंगे परन्तु ऐसा विषय में लोगों की ऊल जलूल बातें सुनकर नहीं होना चाहिए कि आप कहें कि "ठीक व्याकुल हैं! उन्हें बिल्कुल चिन्ता नहीं है है इस परिस्थिति में हम शरीर पर एक कि उनकी क्या इज्ज़त होगी आदि आदि। चादर ही लपेट लेते हैं।" परन्तु इसका अर्थ ये नहीं है कि आप हिप्पी बन जाएं। ये बहुत बड़ी समस्या है कि एक विकसित हो गया है। वह आपको शक्ति बार जब आप इस प्रकार सोचने लगते हैं देता है कि आप जो चाहे पहनें इससे तो आप हिप्पी बन जाते हैं। बहुत से लोगों का ये मानना है कि शिव आपका सौन्दर्य तो सदैव विद्यमान है। कुछ हुआ बैल है, उन्हें कुछ भी करने की आवश्यकता अतः किसी भी चीज के साथ लिप्सा आत्मा के माध्यम से आपमें जो सौन्दर्य आपके सौन्दर्य पर कोई अन्तर न होगा। TI की तरह से आचरण करने से व्यक्ति शिव परन्तु क्या आपने वह अवस्था प्राप्त कर बन जाता है। बहुत से लोग इस प्रकार से ली है? वह अवस्था आपको केवल तभी सोचते हैं कि यदि व्यक्ति गांजा पीना शुरू प्राप्त होती है जब आपकी आत्मा आपके कर दे तो वह शिव बन जाएगा क्योंकि श्री मस्तिष्क में प्रवेश करती है। अहंवादी लोगों शिव गांजा पिया करते थे। शिव तो गांजा में ऐसा होना अधिक कठिन है। यही कारण इसलिए पीते थे ताकि इस जहर को वो है कि वे आनन्द नहीं ले सकते। जरा सा विश्व से समाप्त कर दें उन्हें क्या फर्क बहाना मिलते ही वे लड़खड़ा जाते हैं और जनवरी-फरवरी 2002 28 चें।-। लंहरी खसे X1V अके 1 े 2 आत्मा जो कि आनन्द का स्रोत है. नहीं द्विविधता कहाँ हैं? आप ही सूर्य हैं और आती. प्रकट नहीं होती। आनन्द तो सीन्दर्य आप ही घूप है, आप ही शब्द हैं आप ही है। आनन्द ही सीन्दर्य है परन्तु यह एक अर्थ हैं तो द्विविधता कहाँ है? अवस्था है जिसे व्यक्ति ने प्राप्त करना है। लिपसाएं भिन्न तरीकों से आती हैं। आप परन्तु जब पृथक्कीकरण (Separation) होता है तब द्विविधता होती है। पृथक होने इनमें उतरते चले जाए तो आपको अपने के कारण आपमें लिप्सा भाव आ जाता परिवार से मोह हो जाता है। मेरे बच्चे का क्यांकि आप यदि वही क्या होगा? मेरे पति का क्या होगा? मेरी किस प्रकार होंगे? इस बात को क्या आप मा, मेरी पत्नी तथा सभी मूर्खताओं का क्या हैं तो आप लिप्त समझ पाए? आपमें और 'आपके में यदि अन्तर है और दूरी है तभी आप लिप्त होते है। होगा? कीन आपकी मों है और कीन आपका घरन्तु यह में हूँ-दूसरा कीन है? पूरा पिता? कौन आपका पति है और कौन ब्रह्माण्ड में ही हूँ अन्य कौन है? सभी कुछ आपकी पत्नी हे? श्री शिव सो ये सारी चीजें मैं हूँ दूसरा कोन है? यह मस्तिष्क तरंग नहीं है और न ही है। यह अहं लहरी है। दूसरा कौन है? कोई नहीं जानते। उनके लिए तो वे और उनकी शक्तियां अविच्छेदय (inseparable) तो वे अवत व्यक्तित्व पर खड़े हुए हैं उनमें नही। कोई द्वैतवाद नहीं। जब द्विविधता (Duality) होती है तब आप कहते हैं मेरी पत्नी, मरा आफके मस्तिष्क में आ जाती है और आप नाक मेरे कान, मेरे हाथ, मेरा, मेरा मेरा विराट के अंग प्रत्यंग बन जाते हैं । जैसा और इस प्रकार आप अधोगति की ओर मैंन आपको बताया विराट ही मस्तिष्क है । ये तभी सम्भव है जब आपकी आत्मा बढते जाते है । तब यदि आप अपना गुरूसा प्रकट करते हैं, तब तक अपना स्नेह प्रकट करते हैं, करुणा प्रकट या कुछ अन्य, तो आपकी आत्मा जब तक हम मेरा कहते हैं द्विविधता शेष होती है। परन्तु जब मैं कहती करते हैं। हूं में, य नाक तब द्विविधता नहीं होती। ही यह सब अभिव्यक्ति करती है क्योंकि शिव ही शक्ति, शक्ति ही शिव द्विविधता नहीं है। परन्तु सदैव हम अपनी है अब यह सीमित" मस्तिष्क, असीम आत्मा द्विविधता में रहते हैं, इसके कारण लि प्तता बन गया है। बनी रहती है। न हो तो इसमें मसितिष्क का तो अस्तित्व ही खत्म हो गया । द्विविधता यदि में नहीं जानती, मैं वास्तव में नहीं जानती लिता का ह आप यदि प्रकाश हैं और कि इस प्रकार सोचने के लिए क्या उपमा आप ही दपक है तो ह्विविधता कहा है? दूँ परन्तु हम इसे इस प्रकार समझ सकते आप ही याद चांद है आप ही चाँदनी हैं तो है कि समुद्र पर यदि हम कोई रग डालें तो ১hr he ज4री फररी 2002 29 पैत-य लंहरी खंड XIV अके 1 व 2 उसका जल रंगीन हो जाना सम्भव नहीं रंगमय हो जाए। पूरा वातारण, हर चीज़, हैं। समझने का प्रयत्न करें कि कछ थोड़ा जिसे भी आप देखें वह रंगीन हो जानी सा रंग यदि समुद्र पर डाल दिया जाए तो चाहिए। रंग का अस्तित्व समाप्त हो जाता है इसी यही कारण है कि आज मेंने शिवतत्व बात को दूसरी तरह समझें। समूद्र का को मस्तिष्क में लाने का प्रयत्न किया। जल यदि रंगीन हो और इस जल को मस्तिष्क में शिव तत्व को लाने के लिए वातावरण में डाल दिया जाए या किसी पहला तरीका ये है कि आप मस्तिष्क से चीज़ पर डाल दिया जाए, किसी भी वस्तु कहे "श्रीमान मस्तिष्क आप कहाँ जा रहे पर डाल दिया जाए. तो यह सब रंगीन ही है। आपका ध्यान इस चीज पर जा रहा है उस चीज पर जा रहा है और आप इनमें जाता है। आत्मा उस सागर की तरह से है जिसमें उलझ रहे है। अब स्वयं को निर्लिप्त करें प्रकाश है और जब ये सागर मस्तिष्क रूपी आर स्वयं मस्तिष्क वन जाए निर्लिप्त हो जाएं, नि्लिप्त हो जाए नन्हे से प्याले में उतरता है तो प्याले का अस्तित्व समाप्त हो जाता है और सभी कुछ आध्यात्मिक बन जाता है। सभी कुछ। हुए नि्िप्त मस्तिष्क को लें। यह स्वतः ही आप हर चीज को आध्यात्मिक बना सकते घटित होगा जब तक आपके चित्त के हैं. किसी भी चीज को आध्यात्मिक बना सकते हैं। किसी भी चीज को यदि आप छू होगा । अतः सरभी साधकों को स्वयं सोच दें तो वह आध्यात्मिक हो जाती है। रेत समझकर ये तपस्या करनी हागी। आध्यात्मिक हो जाती है, पृथ्वी आध्यात्मिक तब आत्मा के रंग से पूरी तरह से भरे साथ ये सीमाएं बनी रहेंगी ये घटित न मैं आपके साथ हूँ। अब आपको इस प्रकार से काई पूजाएं करने की आवश्यकता है। दिव्य पदार्थ आध्यात्मिक हो जाते हैं, नहीं हैं। परन्तु अब आपको वह अवस्था प्राप्त करनी है और इसके लिए पूजा की हो जाती है, वातावरण आध्यात्मिक हो जाता हर चीज आध्यात्मिक हो जाती है। है और आवश्यकता है। मुझे आशा है कि आपमें से अंतः आत्मा सागर (असीम) आपका मस्तिष्क सीमित है । आपके सीमित मस्तिष्क की लिप्तता को बहुत से लोग मेरे जीवन काल में ही शिवतत्व बन जाएगे। परन्तु ये न समझे कि मैं आपको कष्ट उठाने का कह रही हूँ। इस प्रकार के आत्मा रूपी सागर के दायरे में लाना आवश्यक है । मस्तिष्क की सारी सीमाएं उत्थान में कोई कंष्ट नहीं उठाना पड़ता । टूट जानी मस्तिष्क को भरे तो यह उस छोट्ट प्याले की अवस्था है यही समय होता है जब को पूरी तरह से तोड़ दे और यह प्याला आप निरानन्द बन जाते हैं। सहस्रार में चाहिए ताकि जब वह सागर आप यदि इसे समझे तो ये अत्यन्त आनन्द जनवरी फरवरी 2002 30 पैतन्य लहरी ख-XIV अक 1 वे 2 कर सकते हैं। अतः इसके लिए प्रयत्न इसी आनन्द का नाम बताया गया है। यह নाम निरानन्द' है। और आप जानते है कि करें। आपकी माँ का नाम भी निरा है. आप तो आज से हम गहनतर स्तर पर निरानन्द हो जाते हैं। तो आज की शिव प्ूजा का विशेष अर्थ आपमें से कुछ इस स्तर को प्राप्त न कर है। मुझे आशा है कि बाह्य में, स्थूल ढंग से पाएं परन्तु आप सबको गहनता में जाने हम जो भी करेंगे वह सूक्ष्म रूप से का प्रयत्न करना चाहिए। हर एक को । सहजयोग आरम्भ करते हैं । हो सकता है कुछ घटित होगा। ऐसा करने के लिए न तो वैभवशाली व्यक्तियों मैं आपकी आत्मा को आपके मस्तिष्क में की आवश्यकता है और न ही बहुत पढ़ें लाने का प्रयत्न कर रही हैं, परन्तु कभी लिखों की। नहीं बिल्कुल भी नहीं। कभी मुझे ये कार्य कठिन लगता है क्योंकि अभी भी आपका चित्त उलझा हुआ है। स्वयं को निर्लिप्त करने का प्रयत्न करें। पहली जड़ों की तरह से होते हैं जो अन्य क्रोध, वासना, लोभ सभी विकारों को कम लोगों के लिए बहुत गहराई में जाती हैं करने का प्रयत्न करें जैसे खाने के बारे में ताकि अन्य लोगों के लिए भी मार्ग बन मैंने डा. वारेन से कहा, "इनसे कहें कि कम सके। खाया करें, पेटुओं की तरह से न खाएं। कभी-कभी किसी प्रीति भोज में चाहे आप अथर्वशीर्ष पढ़ेंगे. मेरे चरण आदि को बहुत ज्यादा खा लें परन्तु सदैव ऐसा न करें ये ज्यादा नहीं धोना है। केवल अथर्वशीर्ष करना सहजयोगी की निशानी नहीं है नियंत्रण हैं। जो लोग ध्यान धारणा करते हैं, समर्पित हैं, वही गहनता में उतरते हैं क्योंकि वो आज की पूजा में हम संक्षिप्त गणेश शिव हर वक्त स्वच्छ, निर्मल एवं निष्पाप अपनी वाणी पर नियंत्रण करने का प्रयत्न होते हैं, तो निष्कलंक को आप क्यों धोएंगे। आप कह सकते हैं कि श्रीमाताजी आपके रहे हो या करूणा की, या करूणामय होने चरण कमलों को धोते हुए जल में आपका का दिखावा कर रहे हैं? नियंत्रण करने का चैतन्य आ जाता है।" परन्तु ये इतने निर्लिप्त हैं कि इन्हें धोने की कोई आवश्यकता नहीं। मैं जानती हूँ कि आपमें से कुछ विशेष रूप से उस अवस्था में जब आप लोग बहुत अधिक न कर सकेंगे ये ठीक पूरी तरह से धुल जाते हैं. पूरी तरह से करने का प्रयत्न करें। करें। आप अपने क्रोध की अभिव्यक्ति कर प्रयत्न करें। | मैं बार-बार आपको बताने का प्रयत्न स्वच्छ हो जाते हैं। करुंगी, आपकी सहायता करने का प्रयत्न करेंगे। क्योंकि करुंगी और आपमें से अधिकतर ऐसा देवी जो कि कुमारी हैं उनकी पूजा होनी इसके बाद आप देवी पूजन जनवरी-फरवरी 2002 31 चैतन्य लहरी खंड-XIV अक 1 व 2 चाहिए। हम गौरी के 108 नाम लेंगे । आकर्षण, अन्य सभी सुख, अहं के सभी तत्पश्चात् हम शिव की पूजा करेंगे। मुझे खेद है कि एक ही प्रवचन में मैं निरानन्द तत्व में पूरी तरह से उतर जाएं। आपको सब कुछ नहीं बता पाऊंगी। परन्तु आनन्द आदि त्याग दें और शिव तत्व के मुझे आशा है कि मैं आपको बता पाई हूँ आपके आत्मसाक्षात्कार में आपकी निर्लिप्तता कि आज मैं यहाँ क्यों आई और आज का अवश्य अभिव्यक्त होनी चाहिए। निर्लिप्तता। दिन इतना महान क्यों है। यहाँ उपस्थित समर्पण क्या है? ये कुछ नहीं है, जब आप निर्लिप्त होते हैं तो स्वतः ही समर्पित होते चाहिए कि परमात्मा आप पर बहुत दयालु हैं। अन्य चीज़ों से जब आप चिपके होते हैं हैं। उन्होंने आपको यहाँ उपस्थित होने के तब आप बिल्कुल भी समर्पित नहीं होते। मेरे प्रति समर्पित होना क्या है? मैं तो एक बार जब आप निर्लिप्त हो जाएंगे तो इतनी निर्लिप्त व्यक्ति हूँ कि ये सब मेरी आपमें जिम्मेदारी का भाव आ जाएगा। आप समझ में ही नहीं आता! मैंने आपसे क्या अभिव्यक्त- जिम्मेदार हो जाएंगे यह निकालना है? मैं इतनी निर्लिप्त हूँ, इसके जिम्मेदारी आपको अहं नहीं देगी। यह अतिरिक्त कुछ नहीं। आज हम सब लोग प्रार्थना करेंगे कि की अभिव्यक्ति करेगी और स्वतः प्रकट "हे परमात्मा हमें शक्ति दो और आकर्षण होगी । आप सब लोग भाग्यशाली हैं। आपको सोचना लिए और यह सब सुनने के लिए चुना है। जिम्मेदारी स्वयं को पूर्ण करेगी। ये स्वयं परमात्मा आपको धन्य करें। का वह स्रोत दो जिससे हम अन्य सभी शक्ति देवी पूजा मॉस्को, 17.9.95 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन मुझे खेद है कि आज आने में देर हुई राष्ट्र को हानि पहुँचाने वाले कार्य करने के परन्तु मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपने परस्पर लिए ये एकत्र हो जाते हैं । सहजयोगियों संगत का आनन्द लिया होगा और को तो इस प्रकार के आनन्द का ज्ञान ही सामूहिकता का आनन्द तो अत्यन्त महान नहीं है। जब होता है। एक बार ऐसा हुआ कि मुझे कहीं उनका हर क्षण आनन्द से परिपूर्ण होता जाना था और बायुयान के आने में विलम्ब है। कल जब आप लोग वायुपत्तन पर एकत्र हुआ। मुझे चिन्ता हुई कि मैं देर से पहुँचूंगी हुए तो मैं ये बात देख पाई । आप लोग मेरी परन्तु वायुयान समय से सात घण्टे देर से प्रतीक्षा कर रहे थे और जब मैं पहुँची तो आया और दिल्ली के सभी सहजयोगी जो मैंने देखा कि किस प्रकार आपके चेहरे वे सामूहिकता में होते हैं तो मुझे लेने वायुपत्तन आए थे वो वहाँ मेरी आनन्द से चमक रहे हैं। प्रतीक्षा कर रहे थे। जब मैं वहाँ पहुँची तो वे सब इतने तरोताजा और अच्छे दिखाई निर्णय किया है देवी की पूजा जिनके आज हमने देवी की पूजा करने का दे रहे थे कि, मैं हैरान हैं, मैंने उनसे पूछा बहुत से रूप हैं। बार-बार मानव की आसुरी कि क्या आप घर वापिस चले गए थे? शक्तियों से रक्षा करने के लिए तथा उन्हें कहने लगे नहीं नहीं आपकी प्रतीक्षा में हम सुरक्षा भाव प्रदान करने के लिए देवी पूरी रात वायुपत्तन पर गा रहे थे, नाच रहे अवतरित हुई। परन्तु मैं नहीं सोचती कि थे और आनन्द ले रहे थे। सहजयोग की किसी भी अवतरण में उन्होंने आत्मसाक्षात्कार विशेषता है कि हम हर क्षण का आनन्द ले का कार्य किया। ये अत्यन्त दिलचस्प और सकते हैं। अपने हित के लिए आनन्द ले आनन्ददायी कार्य है आसुरी लोगों से युद्ध सकते हैं पश्चिमी देशों, विशेष रूप से करके अच्छे लोगों की रक्षा उन्हें करनी अमरीका, में आधुनिक धारणा ये है कि हमें पड़ी क्योंकि असुरों के हाथों ये लोग अपनी अपने जीवन के हर क्षण का आनन्द लेना अबोधिता और सहजता के कारण कष्ट 1 चाहिए परन्तु वास्तव में जिन चीजों को ये उठा रहे थे। ये सब कुछ बहुत समय पूर्व आनन्द की सज्ञा देते हैं वे सब आत्मघातक घटित हुआ। आज बसन्त का विशेष समय है जिसमें आप सब लोग फल बन गए है। मद्यपान या द्वन्द युद्ध आदि निराशाजनक कार्य जो ये करते हैं वो नहीं किए जाने हैं। पृथ्वी पर बहुत से पुष्प थे। अब आप चाहिएं। ऐसे कार्यो से इनकी सामूहिकता सब फल बन गए हैं यह बात अत्यन्त बहुत भयानक हो जाती है कि ये तस्करी उत्साहजनक है कि रूस और यूक्रेन में और हत्याएं करने लगते हैं । स्वयं को तथा इतनी अधिक संख्या में लोग आध्यात्मिक काम जनवरी-फरवरी 2002 33 चैत-य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 रूप से संवेदनशील हैं। आत्मसाक्षात्कारी प्रसन्नता होगी जब इस देश की और यूक्रेन होना आप सबके लिए बहुत बड़ा आशीष की सारी समस्याओं का हल आप लोग है। यह सारी सामूहिक घटना निश्चित रूप निकाल लेंगे इसके लिए आपको अपनी से पूरे विश्व के लिए महान उद्धारक साबित सरकार पर निर्भर रहने की कोई आवश्यकता होगी। हमारे देश में समस्याएं हैं। परन्तु अब मैं देश के पतन की ओर अग्रसर होने का आप सब सहजयोगियों को बता रही हूँ कि कारण मैं समझ पाई हूँ। आपके ज्योतित जो भी शक्तियाँ आपको प्राप्त हुई हैं देवी विवेक के माध्यम से देवी की यह शक्ति, की उन सब शक्तियों को आप आयोजित जो कि आपके अन्दर जागृत है, आपको रूप से प्रतिपादित करें। सहजयोगी होना पर्याप्त सूझ-बूझ प्रदान करेगी कि आप अत्यन्त आनन्दायी है परन्तु आप लोग तो इस समस्या का समाधान कर सकते हैं । सहजयोग को अग्नि की तरह तेजी से फैला रहे हैं क्योंकि ये दोनों दे श वह ये है कि यहाँ के लोग समझते हैं कि आश्चर्यजनक रूप से आध्यात्मिकता के प्रति पूरे पश्चिम में वैभव का प्राचुर्य है। पश्चिमी अत्यन्त संवेदनशील हैं। देवी की यह शक्ति देश स्वर्ण से भरे हुए नहीं । जिस प्रकार जो आपने अपने अन्दर प्राप्त कर ली है आप लोग आनन्द से परिपूर्ण है वहाँ पर तो इसे अब विवेकशील तरीके से प्रसारित किया आनन्द का पूर्ण अभाव है। उन लोगों के जाना चाहिए । उदाहरण के रूप में एक चेहरे आपकी तरह से सुन्दर और सन्तोषमय बार जब मैं यहाँ आई तो आप लोग अत्यन्त नहीं हैं। आप यदि सूक्ष्मता से देखें तो उन्हें कठिनाई से गुजर रहे थे और शायद मैंने आर्थिक समस्याएं भी हैं। इस देश में इसलिए उस स्थिति को संभाला भी था। परन्तु अब नहीं है। मैं आपको बताती रही हूँ कि इस इस देश में पहली चीज जो मैंने देखी है समस्या है कि यहाँ पर सभी चीजें विदेशों आप सब इस कार्य को संभाल सकते हैं से आई हैं। इन वस्तुओं को भेजने वाले और इस शक्ति को प्रतिपादित कर सकते देशों में मन्दी का प्रकोप है। वहाँ पर कुछ हैं। अब मैं देखती हूँ कि यहाँ पर समस्या बिकता नहीं है। ये सारा कबाड़ा और बेकार मुख्य रूप से आर्थिक है और आप लोग की चीज़े वे आपके देश में, यूक्रेन में, तथा यदि अपने मस्तिष्क इस समस्या पर डालें पूर्वी ब्लाक के देशों को भेज रहे हैं । जो भी तो आप इसका कारण जान जाएंगे। मेरे रूबल आपके पास थे वो सब आपने इन कचरा वस्तुओं को खरीदने पर बर्बाद कर सन्तोषजनक है। मैं आपकी माँ हूँ और दिए। मेरे देश में जब स्वतन्त्रता संग्राम प्रति आपका जो समर्पण है वह अत्यन्त युक्रेन के लोगों की भी माँ हूँ। परन्तु में चल रहा था तो महात्मा गांधी ने कहा हम रूस और पूरे यूक्रेन की भी माँ हूँ। मुझे तब कोई भी विदेशी चीज नहीं खरीदेंगे। उन्होंने जनवरी-फरवरी 2002 34 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 वे 2 कहा हम यदि विदेशों से आई चीजों को न कुड़े पर बर्बाद कर रहे हैं। एक बार यदि खरीदें तो हमारा उद्योग और हस्तशिल्प विदेशों से आने वाली इन सब चीज़ों का उन्नत होगा। महात्मा गाँधी ने हमारे देश आना बन्द कर दें, इनका पूर्णत बहिष्कार की जीवन शैली को ही परिवर्तित कर दिया। कर दें तब, आप हैरान होंगे वे लोग यहाँ सभी लोगों को भारत में बनी खादी पहनने क्या करते हैं। वो सब परमात्मा के प्रेम की के लिए प्रेरित किया गया आज भी आप शक्ति के विरुद्ध भारत के बाजारों में कोई भी आयायित करना चाहते हैं। किसी से यदि आप प्यार चीज नहीं पा सकते। संघर्ष के दिनों में करते हैं तो आप उसका शोषण नहीं कर कोई यदि विदेशी चीजें अपनी दुकान पर सकते। ये चीजे आपके देश के लिए हितकर बेचने का प्रयत्न करते तो विद्यार्थी व युवा नहीं हैं। पश्चिम के लोगों की शैली को कार्यकर्ता जाकर ऐसी दुकानों के सम्मुख यदि आप देखें तो आपको आघात पहुँचेगा। खड़े हो जाते और कहते विदेशी चीजें मत देवी द्वारा वरदान के रूप में दी गई सभी बेचो। उस समय हम पर अंग्रेजों का शासन सुन्दर चीजों को उन्होंने नष्ट कर दिया है। था। वे हमें गिरफ्तार करते परन्तु कोई इस जीवन के पावित्र्य का तथा आध्यात्मिकता बात की चिन्ता नहीं करता। आयातित चीजों का उन्हें कोई विवेक नहीं रहा। वे तो पर रोक लगा दी गई थी आज भी हम केवल पैसा-पैसा-पैसा जानते हैं। उनमें बाजार में आयातित वस्तुएं नहीं खरीद चरित्रविवेक का भी पूर्ण अभाव है । सकते। निःसन्देह कुछ मूर्ख लोग हैं जो तस्करी द्वारा चीजें ले आते हैं और मूर्ख देवी को प्रसन्न कर सकते हैं? यदि आप लोग पाश्चात्य संस्कृति अपनाने के लिए वो सहजयोगी हैं तो आपको इस बात का वस्तु खरीदना चाहते हैं। परन्तु ऐसे लोग ज्ञान होना चाहिए कि कौन सी चीजें देवी बहुत कम हैं और उस देश में देवी की को प्रसन्न करती हैं। देवी को प्रसन्न किए शक्ति के प्रभाव से ऐसे लोगों का पर्दाफाश बिना न तो आप प्रसन्न हो सकते हैं न ही हो रहा है। अतः अपने देश के प्रति आपका कभी अच्छे सहजयोगी बन सकते हैं। इसके भी कर्तव्य है। पृथ्वी माँ ने आपको एक लिए आपमें ये समझने का विवेक होना स्थान दिया है, जन्म दिया है। अतः आपको आवश्यक है कि देवी केस प्रकार प्रसन्न हैं क्योंकि वे तो शोषण सदचरित्र के बिना किस प्रकार आप इस देश की मान मर्यादा और खुशहाली होती हैं। सहजयोगियों के अतिरिक्त मेरे की रक्षा करनी चाहिए। किस प्रकार अमरीकन तथा अन्य लोगों ने उतना चिवेक नहीं यहाँ पर कचरे की दुकाने खोल दी हैं और इसका कारण निःसन्देह, ये है कि हर यहाँ के लोग अपने बहुमूल्य धन को इस समय वो क्षणिक सुखों के विषय में सोचते मैं हैरान हूँ कि विचार में पश्चिम के आधे लोगों में भी है जितना आपमें है । जनवरी-फरवरी 2002 35 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 रहते हैं तथा चरित्रहीन जीवन शैली को विश्व भर के लोगों के जीवन को बेहतर अपना लेते हैं, उस शैली को जो देवी बनाने के लिए ये शक्ति निरन्तर कार्यरत (Goddess) विरोधी है । ये लोग भयंकर है । परन्तु दुर्भाग्य की बात है कि सभी देश असाध्य रोगों से पीड़ित हैं। अपने माँ-बाप आप जैसे नहीं हैं जिनमें अपनी देवी माँ का को वे मार डालते हैं। अपने बच्चों की वे प्रेम महसूस करने के लिए हृदय हो। यह 1 हत्या कर देते हैं। प्रेम का तो कोई प्रश्न ही तो प्रेम एवं करुणा का सागर है जो सभी नहीं है। देवी की शक्ति तो प्रेम की शक्ति तटों को छू लेना चाहता है। ये चाहता है है। विश्व में उनके सभी कार्य, उनकी करुणा कि सभी के हृदय छू ले। परन्तु कुछ लोग एवं प्रेम के माध्यम से होते हैं। देवी का पूर्ण तो पत्थर होते हैं। रूस के पास अत्यन्त शरीर, उनका पूर्ण अस्तित्व ही करुणा एवं विशाल हृदय है और यूक्रेन के पास भी | प्रेम से बना हुआ है, किसी अन्य तत्व से मेरी समझ में नहीं आता कि पूर्वी ब्लाक के नहीं। ये शक्ति वास्तविकता की सूझ-बूझ देशों ने किस प्रकार इतना विशाल एवं प्रदान करती है और व्यक्ति को अन्दर उत्तम हृदय प्राप्त कर लिया! वो ज्यादा बाहर से ज्योतिर्मय भी करती है। उदाहरण वैभवशाली नहीं है इस कारण से हमें उन्हें के रूप में आपको यदि किसी व्यक्ति से छोटा नहीं मान लेना चाहिए। जहाँ आप प्रेम है तो आप उसके विषय में सब कुछ अपने बच्चों का और बच्चे अपने माँ बाप जान जाते हैं। इसका पैसे से कुछ नहीं का विश्वास नहीं कर सकते वहाँ वैभव का लेना-देना। यह उच्चतम, बहुमूल्यतम एवं क्या महत्व है? पैसे के लिए वे एक दूसरे है जो आपको की हत्या कर देते हैं। निःसन्देह वहाँ पर अत्यन्त महत्त्वपूर्ण शक्ति प्राप्त हो गई है। जब कभी आप किसी ऐसा प्रभाव है कि लोग किसी भी कीमत उत्तम या हितकर कार्य के लिए सोचते हैं पर पैसा चाहते हैं। तो यह शक्ति आपके उस विचार में प्रवेश कर जाती है और तत्पश्चात् ये विचार पूरे माफिया से डरेंगे नहीं और अपनी ध्यान ब्रह्माण्ड में आपके देश में तथा लोगों में धारणा के दौरान यदि आप ये माँगेंगे कि प्रसारित हो जाते हैं। इस प्रेम और करुणा श्री माताजी ये माफिया समाप्त हो जाए तो का केवल एक लाभ है, सभी को आनन्दमय मैं वचन देती हूँ कि ये माफिया समाप्त हो देखना बस। सच्चे शब्दों में आनन्द मग्न जाएगा ये कार्य हो जाएगा। कल जिस देखना। इस शक्ति को सामूहिकता की प्रकार आपने मेरे अच्छे स्वास्थ्य के लिए चिन्ता होती है तथा व्यक्ति की भी। यह आप लोग यदि ये निर्णय करें कि आप प्रार्थना की वैसे ही अपने देश के हित की पूरे विश्व की चिन्ता करती है और किसी याचना करें। ये आपके विचारों का विवेक देश विशेष की भी। इस आधुनिक काल में हैं। आपकी विवेकशीलता इतनी तीव्र हो जनवरी फरवरी 2002 36 पैतन्य लहरी खं-XIV अंक । व 2 जाएगी कि मैं इसे परम विवेक का नाम कार के दरवाजे पर रखते ताकि मुझे चोट देती हूँ। इस विवेक के माध्यम से आप न लगे इतना ही नहीं उन्होंने सभी जड़ों तक देख पाएंगे और समस्या का एवं अस्वस्थ लोगों, तथा जो लोग चल नहीं वृद्ध सकते थे, उनकी बहुत देखभाल की उनकी समाधान कर लेंगे। अतः सर्वप्रथम आपको देश भक्त बनना कुर्सियों को वे चीन की महान दीवार तक होगा। मैं ये बताना चाहूँगी कि जब मैं चीन ले गए। उन्होंने गोष्ठी में भाग लेने वाले गई तो ये देख कर हैरान हुई कि यद्यपि वो लोगों की इतनी सहायता की कि मैंने लोग साम्यवादी हैं फिर भी वो अत्यन्त दूरदर्शन पर देखा कि वापिस जाते हुए देशभक्त हैं। वो अत्यन्त चरित्रवान भी हैं। अमेरिका के लोग भी फूट-फूट कर रो रहे मैंने पाया कि धन के मामले में वो इसलिए थे और पत्थर दिल अमेरिका के लोग भी उन्नत हो गये हैं क्योंकि उनके यहाँ से कह रहे थे कि ये प्रेम हमें अपने देश में जितने भी लोग विदेश जाते हैं वो अपना प्राप्त नहीं होता। यह सब अत्यन्त हृदयस्पर्शी धन चीन भेजते हैं ताकि उनका देश विकसित था और इस आधुनिक काल में अत्यन्त हो सके | इस गोष्ठी के लिए जब मैं चीन स्पष्ट था। आज जब लोग इतने शुष्क गई तो मुझे हैरानी हुई कि किस प्रकार कार्यकर्ताओं ने, जो कि विद्यार्थी थे. अपनी बिना कोई पैसा लिए सारा कार्य किया। सेवाएं निःशुल्क अर्पित कीं! वायुपत्तन पर किसी ने अगर इन्हें टिप देनी चाही तो वही लोग थे, होटलों में वही लोग थे, इन्होंने स्वीकार नहीं की हम खरीददारी बाजारों में वही लोग थे, सर्वत्र वही लोग के लिए बाजार गए और वहाँ बहुत से खड़े थे और इस बात को देख रहे थे लोगो को आत्मसाक्षात्कार दिया| बाजार स्वभाव और धन लोलुप हैं इन लोगों ने हुए कि यह गोष्ठी सफल हो। यद्यपि चीन के गए, दुकानों पर गए और वहाँ सभी लोग लोग खाने के बहुत शौकीन हैं फिर भी इस बहुत तेजी से आत्मसाक्षात्कार ले रहे थे। गोष्ठी के दौरान वो लोग पूरा पूरा दिन उन्होंने जब पूछा तो मैंने उन्हें एक बात खाना नहीं खाते थे उदाहरण के रूप में वे बताई कि रूस के लोग उन्हें पसन्द नहीं मेरे प्रति बहुत विनम्र एवं करुणामय थे। करते क्योंकि चीन के लोग रूस जाकर जब हम बाहर गए तो पूरा दिन हम बाहर विवाह कर लेते हैं और फिर रूसी महिलाओं परन्तु ड्राइवर ने बिल्कुल इस बात की को तलाक दे देते हैं और अपनी पत्नी को शिकायत नहीं की कि उसे खाना नहीं वहाँ ले आते हैं उन्होंने मुझे इसका कारण मिला, कुछ नहीं मिला। वे आत्मसाक्षात्कारी बताया कि रूस की महिलाएं तलाक देने नहीं हैं परन्तु जब मैं बाहर जाने के लिए के लिए बहुत उपयुक्त हैं बहुत ही जल्दी वे थे तलाक स्वीकार कर लेती हैं। वो अत्यन्त कार तक आई तो सब आकर अपना हाथ जनवरी-फरवरी 2002 37 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 रौबीली हैं लेकिन रूसी सहजयोगी महिलाएं है कि वहाँ उपस्थित अमरीकन लोगों के ऐसी नहीं हैं। परन्तु चीन की महिलाएं ऐसी विषय में भी उन्होंने कहा कि वो अभी बच्चे नहीं हैं। वे अत्यन्त विवेकशील हैं। वो जानती हैं, उन्हें अभी विकसित होना है। ये अत्यन्त हैं कि उनकी भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है आश्चर्य की बात थी । अमरीका के लोग और ये भी जानती हैं कि उनके बच्चे इस प्रकार से बनने चाहिए कि वो अच्छे चीनी और हर बात पर इठला रहे थे और उन्होंने नागरिक बन सकें। प्रायः वो परिवार से इतना ही कहा कि ये अभी बचकाने हैं। बाहर नहीं जाना चाहतीं और न ही अपने मुझे इस बात की चिन्ता नहीं है कि उनकी बच्चों की अनदेखी करना चाहती हैं, बिल्कुल सरकार किस प्रकार की है और आपकी भी नहीं । उनके धर में यदि कोई दादीमाँ कैसी? महत्वपूर्ण बात तो ये है कि हम उनके बच्चों की देखभाल के लिए है केवल किस प्रकार के लोग हैं उनपर मैं बहुत तभी वे अपने बच्चों को छोड़कर जाती हैं। हैरान थी अपने बच्चों के प्रति वे बहुत अत्यन्त अपमानजनक व्यवहार कर रहे थे ये बुजुर्ग महिलाएं भी अत्यन्त स्नेहमय एवं चिन्तित थीं कि बच्चे किस प्रकार का आचरण करूण होती हैं। केवल ऐसा होने पर ही करते हैं किस प्रकार बात करते है और चीन की महिलाएं बाहर कार्य करने के उनके सम्बन्ध अन्य लोगों से किस प्रकार लिए जाती हैं ये देखकर मैं हैरान थी कि के हैं । वो अपने बच्चों को सिखाते हैं कि रूस के लोगों की तरह से वे महिलाएं भी बो अपनी चीजें अन्य लोगों से बाँटें, इन सभी प्रकार के कार्य कर रही थीं। चाहे वे चीजों पर केवल उन्हीं का ही अधिकार रेलगाड़ियाँ न चलाएं, चाहे वे कारखाने न नहीं है। उनकी चीजें सभी बच्चों की हैं। चलाएं क्योंकि आप जानते हैं चीन की महिलाएं कद-बुत में छोटी हैं और अत्यन्त था, सहजयोग में भी हम चाहते हैं कि सभी स्वस्थ भी हैं। परन्तु परमात्मा की कृपा से लोग मिलकर चीजों का आनन्द लें। जिस आप लोगों को उनसे कहीं अच्छा स्वास्थ्य उनका ये व्यवहार सहजयोग की तरह प्रकार से अपने देश की कला का वो सम्मान अच्छी ऊँचाई प्राप्त हुई है। आपके डीलडौल करते हैं उसे देखकर मैं हैरान थी अपने की वो भी वास्तव में सराहना करती हैं और देश के कलाकारों के विषय में वे सब कहती हैं देखिए ये लोग कितने विशालकाय जानते हैं जबकि उनका देश बहुत बड़ा है। हैं और हम उनके सम्मुख बौने हैं! मैं हैरान वो ये भी जानते हैं कि देश के किस भाग थी क्योंकि उन्होंने किसी की आलोचना में कौन सी कलात्मक वस्तुएं बनाई जाती नहीं की। उन्हें इस बात का ज्ञान था कि हैं मैं वास्तव में उन पर बहुत हैरान थी, किस व्यक्ति में, किस खूबी की प्रशंसा की खास कर पुरुषों पर। भारत में हमारे लोग जानी चाहिए। ये अत्यन्त आश्चर्य की बात अत्यन्त निराशाजनक हैं, कला की तो उन्हें जनवरी-फरवरी 2002 38 मैतन्य लहरी खंड-XIV अक 1 व 2 कोई चिन्ता ही नहीं। कला के विषय में वे हुए हैं परन्तु आप परस्पर प्रेम करते हैं । कुछ नहीं जानते। वो ये भी नहीं जानते कि इस बिना पर कि एक का रंग श्वेत है और अपने घर को किस प्रकार साफ करना है दूसरे का अश्वेत, आप एक दूसरे का अपमान या बर्तन किस प्रकार साफ करने हैं. वो नहीं करते। क्योंकि प्रेम ने आपको विशेष कुछ भी नहीं जानते, खाना बनाना तक रूप से ये सूक्ष्म अन्तर्दृष्टि प्रदान की है । उन्हें नहीं आता। मैं तो कहूँगी कि वों घर यह दृष्टि आन्तरिक सौन्दर्य, आपके अस्तित्व में अन्य बच्चों की तरह से हैं जिन्हें बहुत के आन्तरिक सौन्दर्य को देखती है। एक दूसरे का आप आनन्द लेते हैं क्योंकि आपको इसमें महिलाओं को बहुत बड़ी भूमिका प्रेम का मूल्य पता है जैसा मैंने कहा प्रेम निभानी होती है क्योंकि महिलाए पुरुषों को अत्यन्त महत्वपूर्ण, अत्यन्त मूल्यवान गुण है अंधकार में बनाए रखने के लिए सभी कुछ परन्तु यह प्रेम पूर्णतः स्वच्छ प्रेम होना चाहिए। करती हैं। पुरुष महिलाओं के हाथों की इसमें कामुकता और लोभ का कोई स्थान बने रहें । पुरुषों को न तो सड़कों नहीं है किसी व्यक्ति को इसलिए प्रेम का ज्ञान है न शहरों का । महिलाएं सभी नहीं करना चाहिए क्योंकि आप उस व्यक्ति कुछ जानती हैं आप यदि उनसे पूछें कि का लाभ उठाना चाहते हैं, क्योंकि उस ये गलीचा क्या है? यह किस देश से आया व्यक्ति के पास धन है या उसमें किसी प्रकार का आकर्षण है । किसी विशेष कारण कि यह कहाँ से आया है आपके लिए यह से प्रेम किसी के साथ एक रूप नहीं होता, कुछ सीखना होता है। मेरा विचार है कि कटपुतली है? तो उनका उत्तर होगा हमें नहीं पता जानना अत्यन्त आवश्यक है कि आपका प्रेम तो बस प्रेम के लिए होता है। अतः श क्या है। अपने देश को प्रेम करना आप लोग महसूस करें कि आपके अन्दर आयके लिए अत्यन्त आवश्यक है । देश को कौन सी शक्तियों हैं । उदाहरण के तौर पर यदि आप पहचानते ही नहीं, समझते ही कल जब मैं नहीं पहुँची तो वो लोग सारे नहीं तो किस प्रकार देश से प्रेम करेंगे? दरवाजे और कम्प्यूटर बन्द कर चुके थे अपनी माँ को यदि आप पहचानते ही नहीं मेरी समझ में नहीं आता कि आप लोगों ने तो आप किस प्रकार उन्हें प्रेम करेंगे वहाँ कम्प्यूटर क्यों अपना लिए हैं! ये तो ऐसी भर एक बहुत महान शक्ति कार्यरत है और चीज है जो प्रेम को समझती ही नहीं । मुझे पूर्ण विश्वास है कि एक दिन चीन के लोग भी आप लोगों में पूरी तरह से सम्मिलित लोग वहाँ पर एकत्र हो गए थे बाहर हो जएंगे। प्रेम सम्मान को जन्म देता है । पहां पर आप लोग भिन्न स्थानों से, भिन्न बन्द किए जा चुके थे और दरवाजे बन्द गुणों वाले, भिन्न योग्यताओं वाले लोग आए करने का कार्य कम्प्यूटरों ने किया था । से वायुयान आ रहे थे और हजारों बहुत निकलना इनके लिए असम्भव था । दरवाजे जनवरी-फरवरी 2002 39 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 इन्हें पहले कभी मेरे रम्मुख गाने का अवसर दरवाजों के लिए कम्प्यूटर का उपयोग करने की क्या आवश्यकता है? हम इतने अधिक न दिया गया था। संभवतः ये लोग ग्रामीण मनुष्य हैं, ये कार्य करने के लिए मनुष्यों को थे मैंने तुरन्त कहा ठीक है उन्हें तुरन्त क्यों नही कहा जाता जैसे चीन के लोगों ने मंच पर लाओ और आज आप सब लोग किया। वहाँ पर न तो कोई अव्यवस्था थी जानते हैं कि नोयडा का संगीत क्या है! न भीड़, चाहे कोई भी आए! हजारों दस अत्यन्त प्रेम पूर्वक इतनी ऊँची आवाज में हजार, बीस हजार लोग वहाँ पर थे और उन्होंने भजन गाए कि अब विश्व भर में सभी लोग उचित मार्ग से गुजर गए क्योंकि आप नोयडा का संगीत सुन सकते हैं वहाँ पर प्रेम एवं सम्मान था। विश्व के और उनकी ग्रामीण कविताओं को सुन किसी भी कोने में मैंने कम्प्यूटरों द्वारा दरवाजे सकते हैं । प्रेम के लिए आपको कृत्रिमता बन्द करते नहीं देखा। तो एशिया ही (Sophistication) की आवश्यकता नहीं है । क्यों इतना आधुनिक और मशीनीकृत होना आपमें यदि सच्चा प्रेम है तो आप अत्यन्त हुए चाहता है? मेरी समझ में ये बात नहीं भद्र एवं मधुर बन जाते हैं। आती। इस मशीनीकरण को यदि आप बहुत अधिक अपना लेंगे तो आपमें प्रेम की शक्ति प्रेम व्यक्ति को पागल नहीं बनाता। परन्तु प्रेम तो देवी का महानतम आशीष है, समाप्त हो जाएगी। पश्चिम में अधिक कुछ लोग सोचते हैं कि आप यदि किसी मशीनीकरण ने लोगों को नष्ट कर दिया से प्रेम करते हैं और आपको आपका प्रेम बहुत है उनके हृदय में प्रेम का पूर्ण अभाव हो प्राप्त नहीं हो रहा तो आप किसी की भी गया है देवी की शक्ति रोबोट्स के हत्या कर सकते हैं। सर्वत्र लोग ऐसे कुक्रत्य माध्यम से कार्य नहीं कर सकती। क्या ये कर रहे हैं । प्रेम तो इतना पावन है कि यह कर सकती है? जहाँ तक सम्भव हो आपको अत्यन्त शक्तिशाली है और कार्य करता मशीनीकरण की कोई आवश्यकता नहीं है । है जैसे मैं अभी बता रही थी कल ये सब गणपति पुले में एक बार ऐसा हुआ कि लोग अन्दर बन्द थे सभी लोग बहुत चिन्तित माइक पूरी तरह से एकदम बन्द हो गए थे और उन्हें बताना चाहते थे कि वो मुझे और हम संगीत का आरम्भ न कर पाए । बाहर आने दें परन्तु वे किसी की बात दिल्ली सहजयोग से कोई व्यक्ति आया सुनने को तैयार ही नहीं थे मैंने कहा ये और कहने लगा हमारे पास नोयडा के कुछ बात भूल जाओ। ये मामला मुझे निपटाने लोग हैं जिन्हें माइक्स की आवश्यकता नहीं दो। मैं जाकर उस सज्जन के सम्मुख है। मैंने इन लोगों के विषय में कभी न खड़ी हो गई, तुरन्त उसने मेरा पासपोर्ट सुना था। मैं ये भी न जानती थी कि कोई लिया और उस पर मोहर लगा दी। बिना ऐसा संगीतज्ञों का समूह भी है। इससे पूर्व किसी बहस मुबाहसे के, बिना किसी समस्या जनवरी- फरवरी 2002 40 चैनय लहरी ख XIV अंक । । 2 के. क्योंकि प्रेम अत्यन्त खामोश है परन्तु करनी है ये जानती हैं किस प्रकार कार्य यह कार्य करता है। ये अत्यन्त सुन्दर ढंग करना है। आपको कुछ नहीं करना पड़ता से कार्य करता है। प्रेम अत्यन्त विवेकशील स्वतः होता है । आपकी मानसिक भी है ये आपको समाधान सुझाता है। ये गतिविधियां इसके विरोध में जाती हैं क्योंकि बात पूरी तरह से सत्य है क्योंकि यह मानसिक गतिविधि कहेगी, ओह इस प्रकार अपनी अभिव्यक्ति करना चाहता है । प्रेम आप किसी से कैसे प्रेम कर सकते हैं. किसी को हानि नहीं पहुँचाता। किसी को इसका कोई लाभ नहीं। आपको इस तरह कष्ट नहीं देता मैं हमेशा जड़ के सिरे पर के अटपटे विचार देने वाली आपकी मानसिक विद्यमान विवेकशील कोषाणु का उदाहरण गतिविधियाँ ही हैं मानसिक गतिविधि दिया करती हैँ। जड़ बढ़नी शुरू होती है सीमित तथा रेखीय है। हर व्यक्ति के भिन्न और ये सूक्ष्म कोषाणु, छोटा सा कोषाणु और सीमित विचार हैं। यही कारण है कि जानता है कि किस प्रकार पृथ्वी मीं में लोग परस्पर लड़ रहे हैं, यही कारण है कि प्रवेश करते चले जाना है मान लो इसके युद्ध किए जा रहे हैं परन्तु जब प्रेम की मार्ग में कोई पत्थर आ जाए तो यह उस पत्थर के इर्द गिर्द से बड़ी शान्ति से चला है तब आप किस प्रकार युद्ध करेंगे? यह शक्ति आपको पूर्ण सत्य प्रदान करती जाता है और उसे बाँध लेता है। स्पष्टीकरण ये होता है कि जब ये पेड़ बड़ा होगा तो आवश्यकता है व्योंकि हमारी शारीरि शक्ति पत्थर उसे शक्ति प्रदान करेंगे, उसे सहायता अत्यन्त सीमित है मैं जानती है कि आप देंगे। तो सहज रूप से यह पत्थर के सब मुझसे अत्यन्त प्रेम करते हैं परन्तु आपको इर्द -गिर्द घूम जाता है और अन्ततः अपनी चाहिए कि परस्पर भी प्रेम करें, एक दूसरे अभिव्यक्ति करता है। इस प्रकार प्रेम देवी का भी सम्मान करें केवल तभी मुझे ये की शक्ति है जो अत्यन्त सूक्ष्म है. अत्यन्त महसूस होगा कि प्रेम की इस शक्ति की शान्त है, परन्तु अपनी अभिव्यक्ति करती अभिव्यक्ति हुई है। हम एक सहजयोगी के है इन सभी अभिव्यक्तियों को आप चमत्कार कहते हैं। आप इन्हें कोई भी नाम दे सकते अन्य सहजयोगियों को भी बुलाया हुआ हैं। यही देवी पूरे ब्रह्माण्ड पर शासन कर था। मुझे उनके घर में रात्रि का खाना अतः हमें प्रेम की इस शक्ति की घर में थे और उसने मुझसे मिलने के लिए रही हैं। यही तुम्हारे मध्य हृदय चक्र पर खाना था। मैं नहीं जानती थी कि वहाँ विराजमान है । आपकी तथा पूरे ब्रह्माण्ड उपस्थित अन्य सहजयोगियों के लिए उसने की देखभाल करने वाली यह शक्ति प्रेम खाना बनवाया है कि नहीं । मैंने उन लोगों की शुद्ध इच्छा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं से कहा, ठीक है, कार्यक्रम समाप्त हो गया है। ये जानती हैं कि किस प्रकार अभिव्यक्ति है अब आप अपने घरों को जा सकते हैं । जनवरी-फरवरी 2002 41 चै तन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 वे 2 क्योंकि मैंने सोचा था कि यह व्यक्ति सबके से चखे हैं और चखकर ये मीठे-मीठे बेर एकत्र किए हैं । भारत में किसी दूसरे लोग वहाँ से जाने लगे तो वह दौड़ता हुआ व्यक्ति के मुंह से छुआ हुआ कोई अन्य लिए खाना नहीं बनवा सकता। जब सब आया, बोला, "श्री माताजी आपने ये क्या किया, मैंने सब लोगों के लिए खाना बनवाय व्यक्ति खाता नहीं। भारतीय स्वच्छता के नियमानुसार किसी का झूठा खाना अत्यन्त है। केवल देवी की है वास्तव में? अब ये लोग कहाँ चले गए। अपवित्र माना जाता ये लोग अभी गली में ही थे ये दौड़ता झूठन और उनके छुए हुए भोजन को ही हुआ सीढ़ी से नीचे उतरा और उनसे कहने पवित्र माना जाता है। लेकिन ये तो बिल्कुल लगा, 'वापिस आओ, वापिस आओ, खाना खाओ। वो सब हँसने लगे और ये भद्र झूठे बेर एक अवतरण को समर्पित किए। जिसने सभी सहजयोगियों के लिए श्री राम में भी देवी की शक्तियाँ थी। उलट बात थी। शबरी ने अपने चखे हुए पुरुष खाना बनवाया था इतना आनन्दित हुआ। श्री राम ने भी तुरन्त वे बेर शबरी के हाथ और हम सबने खाने का बहुत आनन्द से लिए और उन्हें खाने लगे कहने लगे लिया। रामायण में एक बहुत ही सुन्दर कि अमृतसम ये बेर मैंने पहले कभी नहीं कहानी है। इस प्रेम के विषय में मैं आपको खाए। उनकी पत्नी श्री सीताजी ने भी अवश्य बताना चाहूँगी। श्री राम जब जंगल उनसे वे बेर लेकर खाए लेकिन उनके भाई में गए. बनवास के समय जब वे जंगल में लक्ष्मण को इस बात पर क्रोध आ रहा था। पहुँचे तो वहाँ एक बहुत वृद्ध महिला थी वो सोच रहे थे कि इस महिला में मर्यादा जिसके बहुत थोड़े से दाँत बचे थे परन्तु की कमी है और उसको दण्डित करना वह श्रीराम की महान भक्त थी जीवन चाह रहे थे परन्तु जब श्री सीताजी ने पर्यन्त वह श्री राम के दर्शन के स्वप्न श्री राम से बेर माँगे तो वे शान्त हो गए । देखती रही थी। जब श्री राम ने उसे अपने बेर खाकर श्री सीताजी ने भी वही बात दर्शन दिए तो वह आनन्द से भर गई। वह कही कि अमृत की तरह से इतने मधुर ग्रामीण महिला थी, आदिवासी परिवारों से । भारत में आदिवासी परिवारों को बहुत ही भी सोचा कि ये दोनों सारा अमृत खा रहे फल मैंने कभी नहीं खाए। तो लक्ष्मन जी ने नीची जाति का माना जाता है। परन्तु हैं मैं क्यों न खाऊ? उन्होंने भी अपनी भाभी उसने श्री राम के लिए जंगली फल, बेर, से वो फल मॉँगे। तब श्री सीताजी ने कहा एकत्र किए थे। मैं नहीं जानती कि बेरों को आप यहाँ क्या कहते हैं। उसने श्री राम से क्यों तुम्हें ये फल चाहिए? उनकी बहुत कहा क्योंकि आप खट्टे फल पसन्द नहीं याचना पर श्री सीताजी ने उन्हें कुछ बेर करते इसलिए मैंने ये सारे फल अपने दांतों दिए जिन्हें लक्ष्मण ने खाया और कहने "नहीं-नहीं, तुम तो नाराज हो रहे थे, अब जनवरी-फरवरी 2002 42 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 हृदय को जीत लेते हैं! 99 प्रतिशत लोग लगे, वाह इनमें तो सारे फलों का अमृत है । कहने का अभिप्राय ये है कि सारी कृत्रिमता, इस पावन प्रेम के पूर्ण नियन्त्रण में आ सारे मशीनीकरण से ऊपर प्रेम की यह जाएंगे इतना ही नहीं, ये पवित्र प्रेम उन गतिशीलता कहीं अधिक है। प्रेम की यह सभी नकारात्मक शक्तियों को नष्ट करता शक्ति आपको उसी प्रकार दी गई है जिस है जो आपको हानि पहुँचाने का प्रयत्न कर प्रकार श्री गणेश को दी गई थी। आपको रही हैं। ये आपको सिखाता है कि चाहिए कि इस शक्ति को धारण करें। एक वास्तविकता की पूरी तस्वीर को किस प्रकार बार जब आप इसे धारण कर लेंगे तो समझना है क्योंकि ये तो ऐसा प्रकाश है व्यक्तिगत रूप में या सामूहिक रूप में आप जो सारे अंधकार को ज्योतिर्मय करता है। इसे प्रतिपादित कर सकेंगे। किसी व्यक्ति आपके अन्दर और बाहर के अन्धकार को। को यदि आप जीतना चाहें तो अपने हृदय आपमें जब ये प्रेम आ जाता है तो आप में आप कहें ठीक है, 'देवी माँ, कृपा करके अपने अन्दर अत्यन्त शान्ति हो जाते हैं और इस व्यक्ति पर कार्य करें । मेरा पवित्र प्रेम आपकी शान्ति अभिव्यक्त होती है। इस व्यक्ति पर कार्य करे और आप हैरान होंगे कि आप किस प्रकार उस व्यक्ति के परमात्मा आपको आशीर्वादित करें পtL. श्री माताजी के अवतरण की भविष्यवाणी (एक पत्र) विश्व के सभी सहजयोगी-भाई और बहनों को शेंदुर्णी (महाराष्ट्र राज्य, जिला जलगांव या 12 साल का बालक रद्दी बेचने के लिए सेंटर की ओर से जय श्री माताजी ऐसा यह अनमोल सा लेख एक दिन 10 हाटेल पर आया। उस रद्दी में यह युग साधना पुस्तीका में यह लेख मिला। गाँवों अभी तक विश्व में और भारत भूमी पर की सभी दुकाने छोड़कर यह बालक सबसे उच्चत्तम तथा सब देवाताओं की सहजयोगी के ही हॉटेल पर कैसा आया शक्ति के साथ श्री आदिशक्ति का अवतरण इसका मुझे बहुत आश्चर्य लगा! लेकिन परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का ही इस बात का मुझे पूर्ण विश्वास है कि यकीनन यह योग घटित होने का काम श्री आदिशक्ति निर्मला माँ ने बहुत ही सहज यही बात शाहजहाँपुर (मध्य प्रदेश) के तरीके से कराया। श्री आदिशक्ति निर्मला श्री माँ के चरणों में मेरा शत-शत कोटी विनम्र मालूम है। है यह आप सभी को सुप्रसिद्ध संत और योगी महात्मा रामचंद्रजी इन्होंने श्री आदिशक्ति माताजी प्रणाम| का विश्व का और भारत का युग परिवर्तन कराने के लिये ही अवतरण लिया है। यह भविष्यवाणी स्पष्ट की है। आपका सहजयोगी भाई श्री राजेन्द्र बी. सूर्यवंशी शेंदुर्णी, जि. जलगाँव (अगस्त 1986, अंक क्रमाक 8, युग साधना मासिक पुस्तिका में दिया मराठी लेख का हिंदी अनुवाद) महाराष्ट्र-424204 भविष्य दर्शन: भारत का और दुनिया का युग परिवरतनकारी शक्ति का अधिभाव हो बुका है शाहजहाँपुर के महात्मा रामचद्र जी की भविष्यवाणी (मराठी लख का अनुवाद) जनवरी 1971 में राष्ट्रधर्म नामक पत्रिका हलचल का परिणाम होता है । तब तक वह में दुनिया के भविष्य का एक पूर्व सकेत घटना योजना व विचारमथन के स्वरूप में नामक एक लेख छपा था। इसमें कई प्रारंभ में कबल मन तक ही मर्यादित रहती भविष्यवाणीयों के साथ बंगला दश में होने है। भविष्य के सदर्भ में भी कुछ ऐसा ही बाले खण्डप्रलय की भविष्यवाणी की गई थी। उसी में बिहार में होने वाले माहापुर होना है ईश्वरी महाशक्तियों को जो कुछ और भयकर हानि के बारे में भविष्यवाणी काम करवाना हाता है उसकी योजना बहुत की गई थी। सचमुच में ऐसा होगा इसका पहले से बनायी जाती है। तत्पश्चात वह कोई सकेत उस वक्त नहीं था। उसके वाद सचगुच में 2 समुद्ी चक्री तूफान करके उन्हें परिवर्तन के कार्य में नियुक्त हुए और पूर्वी पाकिस्तान के 20 लाख लोगों करती है। प्रत्यक्ष घटना होने से काफी के प्राण हर लिये। इस भविष्य कथन के पहले यह घटना सूक्ष्मरूप से अस्तित्व में बाद 10-11 माह मं ही बिहार मे महापुर आती है तथापि युद्ध या तत्सदृश्य वही अपनी सहायक शक्तियों से सलाह - मशवरा परन्तु घटनाओं की सूचना बहुत थोडे लोगों को का ताडव नृत्य हुआ था। यह भविष्यकथन शहाजहाँपुर के (मध्य होती है। और वे उसे औरों से गोपनीय प्रदेश) सुप्रसिद्ध योगी व संत म. जी ने किया था । योगाभ्यास द्वारा अंतर भी केवल निर्मल योगात्मा ही जान सकते चेतन में 25-50 वर्षापरात होनेवाले भविष्य की परीपक्व होती घटनायें, वर्तमान घटनाओ योंगी भविष्यकालीन घटना चर्तमान काल की तरह ही सुस्पष्ट देखी जा सकती हैं। की घटनाओं की तरह स्पष्ट देख सकता ऋतुविज्ञान के तज्ञ जानते हैं की आज वर्षा है। यह कोई वरड़ी अशक्य बात नहीं है। करने वाले बादल 5-6 दिन पहले ही आकाश में जमा होने लगते हैं । वह जिस चर्चा हम कर रह है उन महात्मा रामचंद्रजी भाप से बनते हैं वह कई महीनों से समुद्र में के शब्द कुछ इस प्रकार है- जब जब इस तैयार हो रहीं थी और इसे बनाने वाली संसार में कोई देवदूत या अवतार आया, कडी घूप उससे काफी पहले से इसकी तब तब प्रकृती ने उसके नवनिर्माण से तैयारी में लग जाती है। साराश आज रामचद्र रखते हैं। इसी तरह ईश्वरी विधि-विधान हैं। सिध्वातंत. यह निनात सत्य है कि य इस लेख में जिनकी भविष्यवाणी की जा पहले की अवस्था नष्ट करने में उस गदद घटना होती है, वह बहुत पहले से शुरू हुई की हैं । उस महासघर्ष की अवस्था इस जनवरी-फरवरी 2002 45 पै।-य लहरी ख -XIV अक 1 वें 2 सांसारिक उहापोह के लिये मन' तत्व भी शतक के अंत तक निश्चित रूप से आ जानी चाहिये परिवर्तन काल अब बिल्कुल प्राप्त होता है अचेतन मन (अतीकद्रिय जगत पास आ चुका है। अब वह टल नहीं सकता। का अधिष्ठान) ये प्रत्यक्ष जगत कारण ही परमेश्वरी सत्ता मानव रूप में अपने परमप्रिय पृथ्वी के भारतवर्ष में (जिस स्वर्गस्वरूप है। मन से ही सारी याजनाये बनती हैं और बताया गया है) जन्म ले चुकी है और अपने फिर वे कार्यान्वित होती हैं। परमेश्वर में कार्य में निमग्न हो चुकी है। जब उसका कार्य और योजनायें सब जान जायेंगे तव के उदबोधन के लिये वा मार्गदर्शन के लिए "मनस शक्ति नहीं होती तथापि मानवजाति मनस शक्ति की आवश्यकता होती है। लोगों को समझ आयेगा कि भगवान रामचंद्र, भगवान श्रीकृष्ण भगवान बुद्ध ओर भगवान इसीलिये अदृश्य चेतना के स्वरूप में कार्य जैसा अवतार हमारे जीवनकाल में करने वाली सत्ता को मनसे परिपूर्ण होने के परशुराम ही आया और हम उसे पहचान भी नहीं लिए किसी एक शरीर में व्यक्त होना पड़ता पायें सहकार्य करना तो बहुत दूर की बात है शरीर में रहकर भी, शरीर की कोई भी है । आसक्ति उसे नहीं होती काम क्रोध, लोभ, मोह आदि मनोविकार उसे स्पर्श भी नहीं कर सकते वह भूत-भविष्य संत योगी रामचद्र जी को यश या नाम कमाने की काई लालसा नहीं है। सच्चे योगी की तरह वे निश्कामरूप से सब कुछ जानती है, फिर भी अन्य मानवों की तरह ही काम करती है । तथापि उसका आत्मकल्याण और लोककल्याण के कार्य में लगे रहते हैं। वे इस भविष्यवाणी से प्रेरणा अतीद्रिय ज्ञान, सामर्थय, तथा मनोबल इतना देते हैं कि जो जागृत आत्माऐं हे और जिनके पास विवेक है व इस विद्यमान कोई सा भी दुस्तर से दुस्तर कार्य को पहचाने और उसके नवनिर्माण असंभवनीय कार्य उस सहज शक्य हो जाता प्रचंड और प्रखर होता है कि दुनिया का देवदूत के महासंघर्ष में है। ऐसी ही एक दिव्य सत्ता भारतवर्ष में की तरह युक्तीवाहिनी के सेनापति बनकर आगे आयें। हनुमान, नल नील. अंगद आजकल कार्य कर रही है। जल्दी ही लोग उसे पहचानने लगेंगे । अपनी इस भविष्यवार्णी में एक तरफ म. झांकाखोर लागो ने ओर आर्य समाज कुछ के ता्किकों ने म. रामचंद्रजी का एक शंका रामचद्र जी ने इस देवयसत्ता के प्रचड "परमात्मा तो एक सर्वव्याी सत्ता है साम्य के वर मे वताया है बहीं इस पूछ्ी तत्वतः वह अवतार केस ले सकते हैं इस पहचानने के लिये निशानी बतायी है। उनकी पर उन्होंने समझाया, प्रत्यक ययात न 1. भविष्यवाणी का यह नाग बार बार पढ़कर याद करने योग्य हे । वह कहते हैं कि सूर्य एक अचेतन तत्व क्रियाशील होता ह उसे जनवरी-फरवरी 2002 46 चैतन्य लहरी खंड XIV अंक 1 4 2 की गर्मी पिछले कुछ समय से कम होती एक भयंकर ज्वालामुखी का उद्रेक होगा । जा रही है इससे सारे वैज्ञानिक चिंतित इंग्लैंड का दक्षिणी भाग समुद्र में डूब जायेगा। हैं। इसका कारण उन्हें समझ में नहीं आ इंग्लैण्ड का हवामान अतीशीतल हो जायेगा । रहा। सूर्य की ऊर्जा अगर इसी तरह कम एशिया, अमेरीका और यूरोप के आज बड़े होती गयी तो भौतिक साधन होने के बावजूद प्रगत और वैभवसंपन्न देश जो जागतिक मानवजाति का अस्तित्व ही खतरे में आ राजकारण में मनमाना स्वराचार कर रहे है, सकता है। ऐसा डर उन्हें लगा हुआ है। उनका भविष्य तो बड़ा ही अधकार पूर्ण है। इस संकट से बचने का कोई भी उपाय " जो माक्क्सवाद एशिया और बाकी कई स्थानों उनको सूझ नहीं रहा। योगाचार्य रामचंद्र कहते हैं कि सूर्य की एशिया में ही होने वाला है। अमरीका की शव्ति का यह असामान्य और अपूर्व हास सारी समृद्धि मिट्टी में मिल जायेगी। गल्फ मनुष्य रूपमें इस ईश्वरी शक्ति का किया स्ट्रीम के बहाव की दिशा भी बदल जायेगी। हुआ परिवर्तन है। प्रकृति जो भी परिवर्तन इस दौरान भारतवर्ष अपनी अध्यात्मिक, करती हैं वह सूर्य के परिवर्तन से ही होता धार्मिक सामाजिक, आर्थिक, औद्योगिक तथा है क्योंकि सूर्य ही दृश्य जगत का आत्मा राजकीय उन्नति करते हुए सर्वोच्च स्थान है। सूर्य के तीव्र हास का प्रयोजन है कि पर विराजमान हो जायेगा और पुनश्च पूरी अपेक्षित परिवर्तन तीव्रसा से, जल्दी से जल्दी मानवजाति का और संसार का नेतृत्व आ जाये इस शक्ति का उपयोग ईंश्वर करने का सामर्थ्य प्राप्त करेगा तद्पश्चात द्वारा नियुक्त यह अवतार ही कर रहा है। प्रदीर्घकाल तक विश्व का नेतृत्व भारत के ये कार्य पूर्ण होते ही जब प्रकृति की नयी हाथों में रहेगा। व्यवस्था सुचारू रूपसे स्थापित हो जायेगी तब सूर्य फिर एकबार अपनी (वत्तपहपदस) पर सुप्रतिष्ठित बन गया है उसका दफन म. रामचंद्र जी कहते हैं कि आज का बुद्धिवाद और नास्तिकता धर्म एवं अध यात्म संबंधी उत्कट श्रद्धी में बदल जायेगा। अतैव यह सिद्ध होता है कि यह नया इसके लिये जो ईश्वरी शक्ति प्रकट हुई है अवतार महान सावित्रशक्ति-गायत्रीतत्व वा वह अंहभाव से पूर्ण तथा मुक्त रहेगी। सूर्यशक्ति संपन्न सिद्ध होगा। नवसृजन के शरीर में रहकर भी वह एक नितांत भावनाओं से सृजन की हुई भावमूर्ती होगी। वह योगीराज जी ने और भी कई भविष्य- असलियत में मानव मन के स्थान पर ईश्वरी होगी सैंकड़ो, हजारों दुःखी कर रही हैं। वे कहते हैं कि मैंने अपनी जनों की मदद करते हुए वह युगपरिवर्तन प्रखरता धारण कर लेगा। अवतार के ये स्पष्ट लक्षण है। वाणीयाँ की हैं जो सत्यसिद्ध होने का इतंजार मन से युक्त अतींद्रिय योगदृष्टी से देखा है कि लंदन में की प्रक्रिया पूर्ण कर रही है। जनवरी-फरवरी 2002 47 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 इस नवअवतार का सबसे महत्वपूर्ण वह एक नवयुग होगा, एक स्वर्गीय सत्ययुग कार्य होगा महासंघर्ष का संचालन करना। होगा तब भारतीय अध्यात्म सारे विश्व इस कार्य में उसकी विचारशक्ति एवम में फैलेगा, और दुनिया के समस्त मानव दृश्य आत्मशक्ति कार्यशील रहेगी एक वर्णभेद, जातिभेद, संस्कृतिभेद, लिंगभेद तरफ यह शक्ति विश्वभर में आतंरिक इन सबसे मुक्त हो जायेंगे और मानवता विचारक्रांती का तूफान लायेगी. और के आदर्श सिद्धांतों का अनुसरण करते दूसरी ओर प्रकृती को क्षुब्ध करके महा- हुए जीवन-यापन करने लगेंगे। ईश्वरी भंयकर स्थिती का निर्माण करेगी कॉलरा, प्रक्रिया आजकल इसी कार्य में निमग्न युद्ध, अतिवृष्टी इत्यादि सभी इस मनुष्यरूपी है। ईश्वरी सत्ता की रुद्र प्रक्रिया होगी। ये सब बहुत ही भयानक और अटपटा लगेगा। के लिये नहीं कही गयी है। अतींद्रिय दृष्टाकी तथापि आज जगभर में जो जराजीर्ण, सड़ी इसके पीछे की प्रेरणा समझनी चाहिये। गली विकृतियाँ फैली हुई हैं. इन जख्मों को धोकर स्वच्छ करते हुए वेदनायें तो होंगी सत्ता का अस्तित्व स्वीकार करता हो, तो ही। यह पीड़ाप्रद परिस्थिति में ही स्वच्छ उसके कार्य में मदद और सहकार्य करने होगी। इसके बाद जो संसार बचेगा का साहस भी प्रकट करना चाहिये । यह भविष्यवाणी केवल कौतुहुल-पूर्तता अगर हमारा अतःकरण किसी ईश्वरी दिव्य आवाजें (Voices) (Andrew Law) (अल्बर्ट हाल लन्दन, जनकार्यक्रम में पहली बार आए साधक की सहज अभिव्यक्ति) | 21 वर्ष की आयु में यह साधक जब परन्तु, "मुझे लगता है मेरी समस्याओं का महाविद्यालय में विद्यार्थी था तब से इसे सर्वोत्तम समाधान भारतीय अपने मस्तिष्क के अन्दर से कुछ आवाजें सुनाई देने लगीं। ये आवाजें सदैव उसे ध्यान धारणा की सहजयोग शैली में है। सहजयोग का अभ्यास अब विश्व भर में आत्म हत्या द्वारा जीवन का अन्त करने की किया जा रहा है। इसका श्रेय उन सब प्रेरणा देतीं, उसकी स्थिति इतनी खराब सहजयोगियों को जाता है जो बिना कोई हुई कि वह अपनी तुलना शारलोट ब्रान्त पैसा लिए (विश्वास नहीं होता) इसका संदेश (Carlotte Brante) के प्रसिद्ध उपन्यास जेन जनजन तक पहुँचाने का प्रयत्न करते हैं। आयर की नायिका जेन से करने लगा। सहजयोग में भिन्न धर्मों तथा सन्तों के सार जेन को अपने अन्दर से श्री रोचेस्टर तत्व को स्थान दिया गया है और इसमें (Mr. Rochester) की भूत- ही आवाजें शान्ति और सुनाई देती थीं इस मनो-वैज्ञानिक स्थिति से वह विभाजित व्यक्तित्व (Split करने के लिए सभी Personality) हो गया था जेम्स (James Joyce) के Potrait of the Artist as a Young सकते हैं। मेरी आवाजों (Voices) की तथा आध्यात्मिक उन्नति के लक्ष्य को प्राप्त धर्मों के लोग सामूहिक रूप से भाग ले Man का हवाला देते हुए वो कहता है कि, मेरे स्वास्थ्य की समस्याओं का सहजयोग "परमात्मा ने बहुत सी आवाजों में आपसे सर्वोतम समाधान है। मैं आशा करता हॅूँ कि बात की परन्तु आप उन पर ध्यान नहीं मॉड्जले अस्पताल (Maudsley Hospital) लन्दन के धर्म क्षेत्र (Faith Zone) में भी a God Spoke to you by so many voices but you would not hear) जेम्स सहजयोग ध्यान धारणा आरम्भ की जानी जॉयस के इस वाक्य से बह बहुत प्रभावित चाहिए क्योंकि यहाँ पर चिकित्सा विशेषज्ञ हुआ और स्वयं से प्रश्न किया कि "क्या हम तथा धार्मिक लोग धर्म तथा मानसिक स्वास्थ्य सत्य की आवाज की ओर ध्यान देते हैं? अन्तर्विश्लेषण करते हुए ये साधक आगे में अन्तर्सम्बन्ध खोजने का प्रयत्न कर रहे कहता है कि ये आवाजें प्रेरणात्मक होती हैं हैं। एन्ड्रेयू लॉ सहजयोंग का सार तत्व परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन लन्दन कम लोग अपने उत्थान की प्रक्रिया में आज के प्रवचन में मैं सहजयोग के सार के विषय में बताऊंगी। सर्व प्रथम हमारे गहन रुचि रखते हैं और जो उस अंधकार लिए ये समझना आवश्यक है कि हम एक से ऊपर उठकर, जिसमें वे फॅसे हुए हैं, के लिए आना चाहेंगे। भयानक समय में से गुजर रहे है जिसके आत्मसाक्षात्कार परिणाम के विषय में कुछ कह पाना सम्भव अहंकार वादी सभी देशों में ये बात समझाना नहीं है। जीवन पर दृष्टि डालकर ऐसा कठिन होगा कि सच्चाई ये है कि अभी लगता है कि हम ये नहीं समझ पाते कि तक भी वे अंधकार में हैं। हमें बहुत कुछ हमने अपने सम्मुख आए उत्थान के इस सीखना है क्योंकि वो लोग चाँद तक पहुँच अवसर को यदि खो दिया तो हम न केवल चुके हैं इसलिए वो सोचते हैं कि वो सभी इस देश इंग्लैण्ड को ही उत्थान से वंचित कुछ जानते हैं। उनकी अज्ञानता के विषय करेंगे बल्कि ये पूरी मानवता के लिए गहन में बता पाना अत्यन्त कठिन कार्य है। में ये कहते हैं कि जब वो उदाहरण के रूप हानि होगी। परन्तु समस्या ये है कि परमात्मा, अंतरिक्ष में चक्कर लगा रहे थे तो उन्हें उत्थान और उच्च जीवन के नाम पर मिथ्या लोगों का एक बहुत बड़ा समूह निकल कोई परमात्मा दिखाई नहीं दिया ऐसा पड़ा है और यह किसी को भी सत्य के कहना तो ऐसे हुआ कि एक व्यक्ति तीसरे अस्तित्व के विषय में समझाना लगभग तल तक गया परन्तु उसने शिखर को नहीं देखा। असंभव बना रहा है। कभी-कभी तो मुझे लगता है, कि मैने एक ऐसा अद्वितीय तरीका विकसित कर अभिव्यक्ति कहाँ करते हैं? हमारे अन्दर लिया है जिसके माध्यम से मैं विश्व भर में क्या वो इसी प्रकार से अपनी अभिव्यक्ति सामूहिक रूप से आत्मसाक्षात्कार दे सकती करते हैं? हम ये नहीं जानते कि क्या हूँ। परन्तु जनता का आत्मसाक्षात्कार में रूचि न लेना मेरे सामने समस्या खड़ी कर उसे देख पाना हमारे प्रयत्नों के माध्यम से परमात्मा का निवास कहाँ है? वो अपनी देखना है। जो कुछ हम देखना चाहते हैं देता है। सत्य बात तो ये है कि बहुत ही ही सम्भव है। "अगर हम परमात्मा को नहीं जनवरी-फरवरी 2002 50 चंत-य लहरी खड-XIV अंक 1 व 2 देख पाए हैं तो उसका अस्तित्व ही नहीं हैं हम ऐसी चीज भी पा सकते हैं जो है इस विषय पर हम इस प्रकार से बिकाऊ नहीं है। जो भी हो हमें कठोर अपना दृष्टिकोण बनाते हैं तो क्यों नहीं हम परिश्रम करना होगा जिस प्रकार लोग से उन सारी चीजो को अमान्य कर देते जिन्हें प्रतिक्रिया करते हैं वह कभी-कभी तो अत्यन्त हमने अपने प्रयत्नों से नहीं जाना? क्योंकि निराशा जनक तथा मूर्खतापूर्ण होता है। हम उनके (परमात्मा) विषय में नहीं जान जैसे उस दिन क्रिटेन की एक सभा में में माए इसलिए वे हैं ही नहीं, उनका अस्तित्व पूरा समय हँसती ही रही। ये कितने खेद ही नहीं है! आप एक गुफा में धूम रहे हैं। की बात है एक सज्जन हमारे कार्यक्रम में जब आप अपनी ही परछाई को देखते हैं आए और उन्होंने शिकायत की कि देखिए. और विश्वास करते हैं फिर भी कहते किसी अन्य चीज का अस्तित्व ही नहीं है। प्रकाश का अस्तित्व नहीं है। निरन्तर में वे इस प्रकार के दृष्टिकोण का सामना करती क्या परमात्मा के सम्मुख एक प्रबन्ध निरदेशक रही हैूँ। कभी कभी तो मेरी समझ में नहीं क्या होता हैं किसके पास समय है वीडियो देखता रहे? उनका फोटोग्राफ लेने में किसकी रूचि है? कहते हैं कि वे प्रबन्ध निरदेशक हैं तो है, या राजा भी क्या होता है? आता कि किस प्रकार उन्हें आत्मसाक्षात्कार इस बात को सोचे। वह क्या है? अपने टूं। अब आपको दूसरी प्रकार से आरम्भ विषय में वो क्या सोचता हैं उसने हमारी करना होगा आपको जिज्ञासु होना होगा, शिकायत की तो कभी कभी तो, कानून भी आपको इसकी याचना करनी होगी कोई इतने मूर्खतापूर्ण है कि व्यक्ति के लिए उसे आकर आपके चरणों में गिरकर ये नहीं समझ पाना कठिन है । मुझे लगता है कि कहेगा कि कृपा करके अपना आत्म - उनके मस्तिष्क पर इतना मैल चढ़ गया है साक्षात्कार ले लीजिए। कृपा करके, परमात्मा कि वे आत्मसाक्षात्कार नहीं लेंगे हो सकता के लिए इसे प्राप्त कर लीजिए क्योंकि है कि वे ये अवसर खो दें। यहाँ कोई कुछ बेचने के लिए तो नहीं आया है। यहाँ कुछ भी नहीं बिक रहा। आपको विपणन की आदत है। कोई की । मैं आपको बताती हूँ, कि जो मूर्खताएं रादि कुछ बेच रहा होता तो वह आपको आपने अपने चहूँ ओर बना ली हैं उनका समझाने की कोशिश करता और आपसे वास्तव में परमात्मा स्वयं नहीं जानते कि उन्होंने किस प्रकार के मानव की रचना ज्ञान परमात्मा को भी नहीं है। अपने प्रार्थना करता। विपणन पर आप अपने अज्ञानान्धकार से आपने सभी प्रकार की पाऊंडस बचा सकते हैं परन्तु यहाँ तो कुछ मूर्खताओं का सृजन कर लिया है । अपने बेचने के लिए हैं ही नहीं। आज के इस अहंकार से, अपने चयन की स्वतंत्रता से वातावरण में जहाँ हम इस बात से अनुभिज्ञ आपने ये सब कुछ कर लिया है। इस बात जनवरी-फरवरी 2002 51 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 की व्याख्या मैं नहीं कर सकती कि लोगों उन्हें बाहर खदेड दिया जाएगा परमात्मा ने इस प्रकार के अज्ञानान्धकार का सृजन के साम्राज्य में उन्हें प्रवेश नहीं करने दिया क्यों कर लिया है जिसे न तो तोड़ा जा जाएगा| ये साम्राज्य केवल उन्ही लोगों के सकता है न दूर किया जा सकता है। आप लिए है जिन्होंने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लोग इस लिया है। केवल परमात्मा की बातें करने अंधकार से इतने एकरूप हैं। ये तो वालों के लिए परमात्मा का साम्राज्य नहीं चिपके हुए मोहर (जंउच) की तरह से है है जो लोग कहते हैं, हम परमात्मा के छुटना ही नहीं चाहती। जब ऐसा कुछ पुजारी हैं, हमने इतना कुछ सीख लिया है, घटित होता है तो आप सोचते हैं हे यदि इतना कुछ है तो ठीक है अब जहाँ से जो परमात्मा।" पूरी सृष्टि का सृजन किया आप आए थे वापिस चले जाओ। आपने जो गया है सभी कार्य किए गए हैं फिर भी कुछ भी ज्ञान पाया वह अपनी चेतना के मानव इस अवस्था तक पहुँच गया है! माध्यम से पाया और अपनी ही चेतना में परन्तु अब इस आधुनिक जीवन में जो आप यापन कर रहे हैं, आपको लगता है होनी चाहिए। ये बात आप नहीं जानते। कि लोग इतने मूर्ख हैं कि अपनी मूर्खता मानवीय चेतना को अभी और उन्नत होना से, अपनी जाहिलता से वो दूसरे लोगों को है। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् भी उन्नत भी भ्रमित कर रहे हैं । परन्तु जो लोग आपको जानना है। परन्तु ये चेतना ज्योतिर्मय 1 होने के लिए इस चेतना को बहुत लम्बी वास्तव में साधक हैं उन तक केसे पहुँचा यात्रा करनी पड़ती है । जाए? उन लोगों तक जो युग युगान्तरों से साधक हैं। उनके सारे पूर्व जन्म व्यर्थ हो आत्मसाक्षात्कार देने के लिए कभी कभी गए हैं। ये बात अत्यन्त निराशाजनक लगती कुछ भी समय नहीं लगता । मैं जानती हूँ, है। परन्तु सारी निराशाओं के मध्य अभी भी ऐसा बहुत बार घटित हुआ परन्तु लोग मुझे आशा है कि हम ब्रह्माण्ड के सभी नहीं जानते कि उन्हें क्या प्राप्त करना है। कोनों में पहुँच जाएंगे और सभी सन्च्चे अहंकार इतना भयानक दुर्गुण है कि लोग साधकों को खोज लेंगे। उनकी ये इच्छा बहुत से लोगों को सामूहिकता में है ये देखना भी नहीं चाहते कि उनमें क्या कमी है? उन्हें क्या पाना है और क्या पाने कि परमात्मा को पा ले। परमात्मा का ज्ञान पा लेना सभी साधकों की योग्यता उनमें है। वे उस सौन्दर्य को, उस प्रकाश को जो कि आत्मा है देखना भी करना राजाओं या प्रबन्ध निर्देशकों या बड़े नहीं चाहते। परमात्मा के प्रेम का प्रतिबिम्ब, बड़े लोगों के लिए नहीं है। परमात्मा के सोची जा सकने वाली बहुमूल्यतम चीज़ की शक्ति है। परमात्मा का ज्ञान प्राप्त है। सम्मुख इन सब चीजों की क्या कीमत है? जनवरी-फरवरी 2002 52 चैत-्य लहरी खंड-XIV अक 1 ব 2 इंग्लैण्ड में सहजयोग बढ़ने की गति करना चाहते हैं और अपनी चेतना के बहुत ही धीमी रही। यदि ईसा मसीह के माध्यम से जानना चाहते हैं कि सत्य क्या समय से ऐसा होता तो मुझे निराशा न है। आपको अपनी आत्मा को पहचानना होती क्योंकि उस समय बहुत कम साधक होगा। बिना अपनी आत्मा का ज्ञान प्राप्त थे वास्तव में ईसा के बहुत समीप रहने किए आप सत्य को नहीं जान सकते। और वाले भी सत्य साधक ने थे। परन्तु आप जो भी बातें मैं आपसे करती रहूँ केवल सत्य साधक हैं। आपमें से बहुत से लोगो समय को बर्बाद करना होगा क्योंकि अभी ने सत्य साधना करने के लिए इस मार्ग को तक आपमें चेतना नहीं है। सत्य का ज्ञान अपनाया है परन्तु हम जा कहाँ रहे हैं? प्राप्त करने की चेतना नहीं है जिसके विषय इसके विषय में हम क्या कर रहे हैं? सत्य में मैं बात कर रही हू। इसीलिए मैं अत्यन्त के विषय में हमारे विचार क्या हैं? क्या विनम्रता से आपसे कहती हैं कि आत्मा बन हमारे विचार हमारे अहं की देन नहीं हैं? जाएं। आपको जो कुछ करने के लिए कहा कहीं ऐसा तो नहीं कि हम सत्य को खोजना गया है उसे करने में आपको हिचकिचाहट ही नहीं चाहते? इस देश के बहुत से बड़े कसी? ऐसा करके ही आप आत्मसाक्षात्कार बड़े लोगों से मैं मिली. उन लोगों से जो प्राप्त कर सकेगे सर्वप्रथम आपको आत्मा महत्वपूर्ण पदों पर आरूढ़ हैं, लार्ड हैं. लेडीज बनना होगा जब तक ये चेतना ज्योतिर्मय हैं और बहुत से अन्य उच्च लोग हैं। वे नहीं हो जाती आप देख नहीं सकते। ये तो कहते हैं, परिवर्तित कौन होना चाहता है?" अन्धे व्यक्ति के सम्मुख प्रकृति के रंगो का क्यों कि उनका तो सोचना ये है कि वो वर्णन करने जैसा होगा आपको अपनी महानतम हैं। ऐसे हालात में । परन्तु ऐसा करना वे अपने पद, अपने लार्डस, और अपनी लोगों को बहुत कठिन लगता है । वो इतने भौतिक उपलब्धियों को मृत्योपरांत स्वर्ग में मूर्ख हो गए हैं कि वो ये भी नहीं समझते अपने साथ ले जाना चाहते हैं! वो कहते हैं, कि ये क्या है और इसको समझने की कौन परिवर्तित होना चाहता है?" और उनकी कोई इच्छा भी नहीं है! उत्पन्न होकर ऑँखे खोलनी होंगीं कोई आपसे कहता है कि वहाँ जो पेड़ क्या कहा जा सकता है सिवाए इसके कि वे अन्तिम छोर पर पूर्ण विराम पर पहुँच है उसकी जड़ें हैं। परन्तु आप इस बात पर गए हैं इसके आगे यात्रा सम्भव ही नहीं विश्वास ही नहीं करते क्यों कि जड़ें दिखाई है। मैं कहना चाहती हैँ कि आत्मसाक्षात्कार खोजने का प्रयत्न कर लिया जाए? मान केवल उन्हीं लोगों को प्राप्त हो सकता है लो कोई कहता है 'बाहर जो कुछ है उससे ही नहीं दे रहीं। तो क्यों न जड़ों को जो साधक हैं, आत्म साक्षात्कार को प्राप्त कहीं अधिक अंदर है तो क्यों न इसे देख जनवरी-फरवरी 2002 53 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 लिया जाए उसे देख लेने के मार्ग में आपकी इतनी समग्रता है कि किसी साँड बाधाएं क्यों उत्पन्न की जाएं, विशेष रूप से को सींगों से पकड़कर नियंत्रित करना जब यह विश्व की सर्वोत्तम उपलब्धि प्रदान आसान है परन्तु किसी अहंवादी को करने वाला हो या आत्मा नामक अत्यन्त सहजयोग अभ्यास में लगा पाना कठिन है। आज अहंवादी लोगों से मैं निराश हूँ । वाला हो तो क्यों न इसे प्राप्त कर लें। परन्तु और भी भावनाएं आती हैं, करुणा आपको इसके लिए कोई पैसा नहीं खर्चना, और अगाध प्रेम की भावनाएं। इन लोगों में कोई कष्ट नहीं उठाना, आपको कुछ नहीं विवेक उत्पन्न करने के लिए मुझे अवश्य कुछ करना चाहिए। इनके साथ कुछ होना परन्तु इसके लिए आपमें शुद्ध इच्छा ही चाहिए अन्यथा मुझे पूर्ण विनाश नज़र होनी चाहिए। यही बात मैं आपको समझाने आ रहा है। ऐसा हो जाएगा मैं आपको सुन्दर चीज़ की एक झलक प्रदान करने करना। का प्रयत्न कर रही हूँ। जब तक आपके उस तरह से डराना नहीं चाहती जैसे श्रीमती हृदय में इसे प्राप्त करने की शुद्ध इच्छा थैचर रूसी लोगों के विषय में करती हैं। नहीं है तब तक परमात्मा आकर आपके यह सब काल्पनिक हो सकता है परन्तु यह चरणों पर गिरकर आपसे प्रार्थना नहीं करेंगे वास्तविक है। मैं आपको चेतावनी देती हूँ कि कृपा करके मुझे प्राप्त करने की इच्छा कि विनाश विनाश के रूप में आने वाला कीजिए। ये बात यदि आपकी समझ में आ है परन्तु सबसे बड़ी बात तो उस इच्छा जाएगी तो वास्तव में आप इच्छा करेंगे का असफल होना है कि वो आपमें प्रसारित क्योंकि यह अत्यन्त इच्छा योग्य चीज है। न हो सकी आपने जिसे परमात्मा का मैं आपको बता दूँ कि यह कुण्डलिनी ही साम्राज्य लाने के लिए चुना है परन्तु आपके अतःस्थित शुद्ध इच्छा है। यह अभी अचानक आप देखेंगे कि वो सब लोग नाले प्रकट नहीं हुई है, अभी जागृत नहीं हुई है, में पड़ गए है जहाँ से निकलने के लिए अर्थात इसने अभी कार्य नहीं किया है। उनके पास कोई मार्ग नहीं है कभी कभी कल्पना करें कि यह कितनी महत्वपूर्ण है? सहजयोगियों को भी निराशा होती है । जो आपको इच्छा करनी चाहिए कि परमात्मा भी कुछ हो, जहाँ तक मैं देखती हूँ उनमें से एक रूप हो जाएं, आत्मा के साथ आप समग्र हो जाएं। ये इच्छा अत्यन्त दृढ़ होनी इतनी इच्छाविहीन कि हो सकता है इच्छाएं चाहिए । यदि ऐसा न होगा तो आप सदैव कार्यान्वित न हों । आप जानते हैं कि कुण्डलिनी को चुनौती देंगे, अर्थात आप मैं इच्छाविहीन व्यक्ति हूँ। इसलिए कुण्डलिनी विरोधी बन जाएंगे। ऐसी स्थिति सहजयोगियों से अनुरोध है कि उन्हें इच्छा में कुण्डलिनी उठेगी नहीं। अहं के साथ करनी चाहिए ताकि लोगों में आत्मा बनने अगाध इच्छा है। परन्तु मैं इच्छाविहीन हॅँ, जनवरी-फरवरी 2002 54 चैतन्य लहरी खंड-XIV अक 1 व 2 अपने जूते बाहर रखें और अपनी आत्मा की महान इच्छा जागृत हो। ये महानतम चीज है जो हम अपने भाइयों, बहनों, लोगों, की इच्छा करें। मेरा प्रयत्न है कि किसी भी बच्चों को वह सुन्दर प्रकाश, सुन्दर समय दे सके जिसका उन्हें आनन्द लेना चाहिए तरह से आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो । जाए। मेरी इच्छा एक माँ की इच्छा सम है मुझे विश्वास है कि जो लोग पहली बार कि बच्चे को स्तान करवा दिया जाए और आए हैं वो मेरी कठिनाई को समझेंगे और उसे शुद्ध कर दिया जाए। तो जिस प्रकार यह देखने का प्रयत्न करेंगे कि आपको आप चाहेंगे मैं कार्य करने के लिए तैयार हूँ अपने आत्म साक्षात्कार की इच्छा करनी परन्तु कम से कम इस बारे में विश्वस्त करें चाहिए, किसी और चीज़ की नहीं । उसकी इच्दा करें बाकी सब चीजों को भूल इच्छा है। कि आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने की केवल जाएं चाहे आप प्रबन्ध निदेशक हों या परमात्मा आपको आशीर्वादित करें बादशाह। चमत्कारिक तस्वीरें ू आकाश में श्री गणेश गा ॐ मई, 1994, गुलबर्न, आस्ट्रेलिया श्री शिव प्रतिमा, एलिफैन्टा गुफा मुम्बई, 1985 (एक विदेशी सहज योगी द्वारा) ा भ क श्री शिव प्रतिमा, एलिफैन्टा गुफा मुम्बई, 1985 का (10 मिनट के ध्यान पश्चात् एक विदेशी सहज योगी द्वारा) श्र 4 थी ८ ---------------------- 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-0.txt DHA LAL जनवरी - फरवरी, 2002 ONIVERSAL खंड : XIV अंक :1 व 2 FURE चैतन्य लहरी के the की बैंक अडोल धुरी पर यदि हमारा चित्त टिक जाता है तो हम आन्तरिक शान्ति के सोत और पूर्ण शान्ति एवं परम पूज्य माताजी आत्मा पहिए की सुस्थिर धुरी के समान है। निरन्तर गतिशील जीवन के पहिए के मध्य में स्थित (परा आधुनिक युग) आत्म ज्ञान की अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं। ২০ SIA 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-1.txt के ५] दिवाली पूजा शूडी कैम्प, 1988 ०६ 512 ग्रीन द्वीप, आस्ट्रेलिया के पास नौका में यात्रा करते हुए श्री माताजी 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-2.txt । ७ व । वैतन्य जनवरी - फरवरी लहरी खड - अके 2002 1 कृष्ण पूजा, काना जोहरी, अमेरीका 29.7.2001 14। जन कार्यक्रम, रॉयल अलबर्ट हॉल, लन्दन, 14.72001 221 महा शिवरात्रि पूजा, पंढरपुर, 29.2.1984 32 1 शक्ति देवी पूजा, मास्को, 17.9.1995 43 श्रीमाताजी के अवतरण की भविष्यवाणी 44| भविष्य दर्शन : भारत का और दुनिया का 48 आवाजें | सहजयोग का सार तत्व 49 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-3.txt चै त - य ल ह री प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर 162 - ए. मुनीरका विहार, नई दिल्ली 110067 मुद्रक अमरनाथ प्रैस प्रा. लिमिटेड डब्ल्यू एच एस 2 /47 कीर्ति नगर औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली-15 फोन : 5447291, 5170197 सदस्यता के लिए कृपया इस पते पर लिखें :- श्री ओ.पी. चान्दना एन 463 (G-11) ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली - 110034 फोन (011) 7013464 सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पते पर भेजें : चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी-17. कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली 110016 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-4.txt श्री कृष्ण पूजा निर्मल नगरी काना जोहरी, अमेरीका-29.7.2001 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज हम यहाँ पर श्री कृष्ण की, जो कि आश्चर्य होता है। तो वो आध्यात्मिकता की विराट थे. पूजा करने के लिए एकत्रित हुए बात कर रहे हैं, पूर्ण निर्लिप्तता की बात हैं। बिना रणक्षेत्र में प्रवेश किए उन्होंने कर रहे हैं और वहाँ दूसरी ओर अर्जुन से सभी प्रकार की आसुरी शक्तियों से युद्ध कह रहे हैं, "तुम जाओ और युद्ध करो, वे हैं किया। श्री कृष्ण का जीवन अत्यन्त सुन्दर, सब लोग तो पहले से ही मृत हैं तुम सृजनात्मक एवं प्रेममय है परन्तु उन्हें समझ किससे युद्ध करने जा रहे हो? इस द्वन्द पाना सुगम नहीं है। उदाहरण के तौर पर को समझ पाना कठिन है कि ये समझाने कुरूक्षेत्र में, जहाँ युद्ध हो रहा था, अर्जुन वाला व्यक्ति कि आप सबको स्थित प्रज्ञ एकदम हतोत्साहित हो गए और कहने बनना है अचानक अर्जुन को कहने लगता लगे, हमें क्यों युद्ध करना चाहिए. क्यों हमें है कि तुम जाओ और अपने शत्रुओं से युद्ध अपने सगे सम्बन्धियों से युद्ध करना चाहिए. करो! एक ओर तो पूर्ण निर्लिप्तता है और क्यों हमें अपने समीप के सम्बन्धियों से, दूसरी ओर वे युद्ध करने को कहते हैं! इस गुरुओं और मित्रों से युद्ध करना चाहिए? बात का वर्णन आप किस प्रकार करेंगे? श्री क्या यही धर्म है, क्या यही धर्म है?" इससे कृष्ण के अपने शब्दों में व्यक्ति कह सकता पूर्व गीता में श्री ने पैगम्बर के व्यक्तित्व है कि एक बार यदि आप आत्मसाक्षात्कारी का वर्णन किया है ऐसे व्यक्ति को हम हो जाएं, चेतना की उच्च स्थिति को प्राप्त सन्त कह सकते हैं । उन्होंने ऐसे व्यक्ति कर लें तो सभी कुछ निरर्थक है। परन्तु कृष्ण को स्थितप्रज्ञ कहा। उनसे जब स्थित प्रज्ञ इस क्षण तुम्हें धर्म की रक्षा करनी है, उस की परिभाषा पूछी गई तो उन्होंने बताया धर्म की नहीं जिसकी तुम बातें करते हो। कि स्थितप्रज्ञ वह व्यक्ति होता है जो अपने परन्तु धर्म का अभिप्राय मानव की उत्थान अन्दर पूर्णतः शान्त हो और अपने वातावरण प्रक्रिया से है जो चल रही है और सारे में भी शान्तिपूर्वक रह सके अत्यन्त आश्चर्य की बात है। गीता में उन्होंने ये सारा ज्ञान लोग जो धर्मपरायणता के पक्षधर हैं यदि समाप्त हो जाएँगे तो उत्थान की ये शक्ति बताया। यही ज्ञान सर्वोत्तम है और इसे किस प्रकार बचाई जा सकेगी? इस कार्य उन्होंने ज्ञानमार्ग का नाम दिया यही के लिए तुम्हें धर्मपरायण लोगों की रक्षा सहजयोग है जिसके द्वारा आप सूक्ष्म ज्ञान करनी होगी और तुम्हें किसी को मारना प्राप्त कर सकते हैं। परन्तु जब आरम्भ में नहीं है वे तो पहले से ही मृत हैं क्योंकि वो अर्जुन को यह शिक्षा देते हुए सुनते हैं तो लोग आत्मसाक्षात्कारी नहीं है और न ही वे 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-5.txt जनवरी-फरवरी 2002 2 चैतन्य लहरी खंड-XIV अक 1 व 2 आत्मसाक्षात्कार की परवाह करते हैं। अतः निकट हैं। इस मार्ग को बहुत अधिक लोगों तुम्हें उनसे युद्ध करना होगा, नकारात्मक ने स्वीकार किया है और बहुत से धर्मों ने शक्तियों से तुम्हें युद्ध करना होगा, आसुरी भी स्वीकार किया है कि परमात्मा के प्रति लोगों से तुम्हें युद्ध करना होगा। इन सारी चीजों का वर्णन वे अत्यन्त सुन्दर ढंग से परमात्मा में किस प्रकार आपकी पूर्ण श्रद्धा करते हैं। वो कहते हैं कि हमारे अन्दर तीन हो सकती है? अभी तक तो परमात्मा से पूर्ण समर्पण हममें होना आवश्यक है। प्रकार की शक्तियाँ हैं इन शक्तियों को हम भी भली भांति जानते हैं और ये भी कि आपमें ये श्रद्धा हो सकती है? आप क्या मध्य शक्ति से हम सभी भौतिक, शारीरिक, कर रहे हैं, किस प्रकार आपका समर्पण आपका योग ही नहीं । किस प्रकार हुआ मानसिक एवं भावनात्मक, सभी प्रकार की परमात्मा के प्रति हो सकता है जिस परमात्मा समस्याएं जो हमारे सामने मुँह खोले खड़ी से आपका योग ही नहीं हुआ? हैं, से ऊपर उठते है और आध्यात्मिकता के नए साम्राज्य में प्रवेश करते हैं। इसी चीज़ करना है निर्लिप्त मस्तिष्क से आप अपना की रक्षा उन्होंने करना चाही। क्रूर लोगों कार्य करते चले जाएं। मेरा अभिप्राय ये है से, आक्रामक लोगों से, पथ भ्रष्ट करने कि ऐसा कर पाना सम्भव नहीं है। परन्तु वाले लोगों से उन्होंने रक्षा करनी चाही। लोग ऐसा ही कहते हैं कि हम अपने कर्म यदि आपको इस बात की समझ हो कि कर रहे हैं । अच्छे कर्म कर रहे हैं। सभी आपका सम्बन्धी कौन है, आपका भाई कौन प्रकार के अच्छे कार्य हम करते हैं, अपनी है, आपकी बहन कौन हे तो यह अत्यन्त शुद्धीकरण के लिए भिन्न स्थानों पर जाते सुन्दर सूझ-बूझ है। केवल साक्षात्कारी हैं, बहुत से आध्यात्मिक लोगों से भी मिलते व्यक्ति ही आपके सम्बन्धी हैं। ये आपके हैं, भिन्न स्थानों पर जाकर परमात्मा की अपने हैं और इनके लिए यदि आपको प्रार्थना करते हैं, सभी शुभ स्थानों की यात्रा दूसरा मार्ग कर्म का है कि आपको कार्य आक्रामक लोगों से युद्ध करना पड़े तो करते हैं, सभी ऐसे स्थानों की जिनका अच्छा होगा कि आप ये युद्ध करें आपको शास्त्रों में वर्णन है । इसके लिए हम सभी ये युद्ध करना है। धर्म का यही माग्ग है । जैसे आप सहजयोग में जानते हैं हमारे है । परन्तु हमारे अनुसार ये कर्म नहीं समक्ष तीन मार्ग हैं। एक भक्ति मार्ग है, आक्रामकर्ता है (Right Side)। आप जानते भक्ति में आप परमात्मा के गुणगान करते हैं कि बहुत से लोग अत्यन्त आक्रामक हैं। हैं उनके प्रति श्रद्धा रखते हैं, सभी प्रकार के कर्म काण्ड करते हैं, आदि-आदि और अक्खड़ होते हैं और वे अपना कोई अन्त आप सोचते हैं कि आप परमात्मा के बहुत नहीं समझते। उन्हें सुधारना बहुत कठिन प्रकार के कर्मकाण्ड करते हैं। यही कर्म आक्रामक लोग अत्यन्त अहंकारमय तथा 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-6.txt जनवरी- फरवरी 2002 3 चैत-य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 कार्य है अपनी कोई कमी उन्हें नजर नहीं लड़ने की शक्ति आ जाती है। इस अवस्था आती। जो भी कार्य वे करते हैं वो सोचते में आपको इतनी शक्ति प्राप्त हो जाती है हैं कि वो ठीक हैं। ये कर्म योग है । परन्तु कि आप अपने चहुूँ और विद्यमान नकारात्मक श्री कृष्ण ने कहा है कि जो भी कम्म आप शक्तियों को समाप्त कर सकते हैं। ये बात करो उसके जो भी फल हों, आप नहीं समझ लेना अत्यन्त आवश्यक है कि यह जानते कि ये क्या फल हैं उन्होने अत्यन्त एक अवस्था है, ये केवल जुबानी जमा अनिश्चित रूप से ये सब कहा क्योंकि खर्च नहीं है। ये केवल यह मान लेना नहीं यदि उन्होंने पूर्ण निश्चित रूप से कहा है कि मैं वह हूँ। ये तो एक अवस्था है। होता तो लोग उन्हें कभी नहीं समझते। आप यदि उस अवस्था तक पहुँच जाएं उन्होंने कहा, कि ये सम्भव नहीं है कि जो जहाँ आप इन सब चीजों से ऊपर उठ कर्म आप कर रहे हैं वो ऐसे कर्म हों जो जाएं जहाँ आपके पास सारा ज्ञान हो, आपको परमात्मा के आशीर्वाद दिला सकें। शुद्ध ज्ञान हो, अस्तित्व का सूक्ष्म ज्ञान। उन्होंने ये बात कही, "कर्मण्य्येवाधिकारस्ते फलेषु मा कदाचने " जो भी कर्म आप करो कि हर कोई ज्ञान मार्ग को नहीं पा सकता। उनके फल मुझ पर सौंप दो। तो हमें कौन उसके लिए आपका एक विशिष्ट व्यक्तित्व से कर्म करने चाहिएं या हमें कर्म करने होना आवश्यक है। परन्तु ये सारी बातें छोड़ देने चाहिए? क्या हमें सारी गतिविधि भ्रामक हैं सभी लोग ज्ञान मार्ग को प्राप्त याँ त्याग देनी चाहिए? लोग द्वन्द स्थिति में फॅस गए। श्री कृष्ण की यही शैली है-लोगों को द्वन्द में फँसाना ताकि अन्दर विद्यमान है और हम सब इसे प्राप्त वे अपनी विवेक बुद्धि का प्रयोग करें । तीसरे स्थान पर विवेक सद-सद विवेक आत्मविश्वास नहीं है शायद इसी कारण है जिसे उन्होंने ज्ञान मार्ग कहा। यह यही ज्ञान मार्ग है बहुत से लोग कहते हैं की कर सकते हैं। हमारे अन्दर यह अन्तर्जीत है यह उत्थान की उपलब्धि है। यह हमारे कर सकते हैं । केवल एक बात है कि हममें हम इससे बचते रहते हैं और घटिया बुद्धि मध्य नाड़ी है जिसके द्वारा आपका उत्थान चीजों की तरफ बढ़ते हैं जैसे किसी के होता है। आप एक नई अवस्था में, अपने प्रति भी समर्पित हो जाना, किसी प्रकार मस्तिष्क की एक नई अवस्था में, अपने का कर्मकाण्ड करना, किसी पावन स्थान अस्तित्व की एक नई अवस्था में उन्नत पर जाना, सभी प्रकार की मूर्खताएं करना होते हैं और सभी प्रकार की मूर्खताओं से परन्तु ये सब आपको उत्थान नहीं प्रदान पूर्णतः ऊपर उठ जाते हैं। आपमें सभी करतीं, उत्थान जिसके द्वारा आप ज्ञान बुराइयों से, सभी प्रकार के भ्रष्टाचार से, प्राप्त करते हैं-शुद्ध ज्ञान, वास्तविक ज्ञान। जो कि इस संसार को नष्ट कर रहे हैं, आज तक आपने जो भी कुछ जाना वह 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-7.txt जनवरी-फरवरी 2002 4 चैतन्य लहरी खंडे XIV अंक 1 वे 2 सब पुस्तकों में लिखा हुआ है या उसे सुनाने का प्रयत्न किया, ऐसा कर लें वैसा आपके माता-पिता ने आपको बताया या वह सब जानकारी जिसकी खोज आपने की सराहना की। कर लें । परन्तु वास्तव में उन्होंने ज्ञान मार्ग हमारा भी ज्ञान मार्ग है। ये ज्ञान है, बाहर की। परन्तु शुद्धतम ज्ञान, सच्चा ज्ञान जो वास्तविक ज्ञान है इसे आप केवल ज्ञान का वह मार्ग है जिसमें आपको पूर्ण अपने उत्थान द्वारा ही पा सकते हैं और ज्ञान प्राप्त करना है। जब तक आप पूर्ण अपने अन्दर स्थापित हो सकते हैं। ज्ञान प्राप्त नहीं कर लेते तब तक आप में स्थापित हो ज्ञानी नहीं हैं। इस प्रकार उन्होंने ये बात स्थापित कर दी कि हमारी उत्थान प्रक्रिया भली-भाति उस अवस्था सकते हैं आप यदि इसे नकारते रहें तो आप कभी इसे समझ न पाएंगे। परन्तु अन्य सभी मानवीय चेतनाओं से ऊपर आ सबका अधिकार है कि इसे पा लें। इसके लिए शिक्षित होना आवश्यक नहीं, बहुत सभी मानवीय चेतनाएं मूल्यहीन हैं। अब चुकी है। आध्यात्मिक व्यक्ति के लिए अन्य अधिक सहज व्यक्ति होना भी आचश्यक उसे कुछ ज्ञान है, वह जानता है कि यहाँ नहीं, बहुत अधिक अमीर या गरीब होना से न्यूयार्क तक कितने मील का फासला है भी आवश्यक नहीं। इन चीज़ों से कोई या कौन सी रेल वहाँ जाती है। यह ज्ञान फर्क नहीं पड़ता। जब तक आप मानव हैं सच्चा ज्ञान नहीं है। इस कपड़े का मूल्य और विनम्र हैं और ये सोचते हैं कि आपको क्या होगा. ये कालीन कितने की है, कौन ये अवस्था प्राप्त करनी है. आप सब इस सी दुकान से आप इसे खरीद सकते हैं? अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं। इस बात को आप सब भली-भाँति जानते ये सारा ज्ञान व्यर्थ है। ये सच्चा ज्ञान नहीं हैं, ऐसे व्यक्ति (आध्यात्मिक) को इन चीज़ों हैं। उस अवस्था में पहुँचकर आप अत्यन्त ज्ञानमय हो जाते हैं, अपने विषय में ज्ञानमय, हमारे अस्तित्व का ज्ञान होता है. पुरे ब्रह्माण्ड अन्य लोगों के विषय में ज्ञानमय, हर उस का ज्ञान नहीं होता परन्तु उसका ज्ञान का ज्ञान होता है। इस ज्ञान में ये नहीं होता कि सितारों की संख्या कितनी है या चीज के विषय में जो आपके चहूँ ओर है। परन्तु इस अवस्था को बनाए रखना और ब्रह्माण्ड कितने हैं, नहीं। यह तो 'पूर्ण का इससे भी ऊपर उठना है प्रकार का कोई सन्देह न रह जाए। श्री व्यक्ति इसके विषय में सब कुछ जानता कृष्ण ने यही बात सिखाई और यही है। उस सूक्ष्मता में वह उन बहुत सी चीजों उपलब्धि व्यक्ति को प्राप्त करनी है। परन्तु को खोज लेता है जिनके विषय में शायद उन्होंने नीतिवेत्ता की तरह से ये सारी बात उसने कभी सुना ही न हो और इस प्रकार जहाँ किसी भी सूक्ष्म आन्तरिक व्यक्तित्व होता है वह की। उन्होंने आपको भिन्न प्रकार कहानियाँ व्यक्ति महान ज्ञानमय व्यक्तित्व की अवस्था 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-8.txt जनवरी-फरवरी 2002 5 चैतन्य लहरो खंड-XIV अंक 1 वे 2 तक पहुँच जाता है। यही अवस्था हमने करता हूँ-पुष्पम्, फलम, पत्रम् तोयम् । परन्तु वे स्पष्ट कहते हैं कि ऐसा करने से आपको प्राप्त करनी है हमारा जन्म मानव के रूप में हुआ और हमें पहले से ही बहुत सी क्या प्राप्त होता है यह अत्यन्त महत्वपूर्ण चीजों का ज्ञान है लोगां को बहुत सी है। उन्होंने कभी भी नहीं कहा कि आप चीज़ों का ज्ञान है परन्तु वास्तविकता का यदि मुझे कुछ अर्पण करोगे तो मैं भी ज्ञान नहीं है ये ज्ञान पुस्तकें पढ़ने या आपको कुछ दूंगा ऐसा कभी भी नहीं कहा। बौद्धिक खोज या भावनात्मक गतिविधियों तो कौन सी अवस्था होना चाहिए? स्थिति से नहीं प्राप्त होगा, नहीं। यह शाश्वत है क्या होनी चाहिए? उन्होंने कहा, "आप सदा मौजूद है। ये अस्तित्व में है और यदि मेरी स्तुति करेंगे, मेरी भक्ति करेंगे, अस्तित्व में रहेगा। आपने इसको समझना मुझे भेंट चढ़ाएंगे, वो सब कुछ तो ठीक है। है और ज्ञान प्राप्त करना है कि ये क्या है. आप अत्यन्त समर्पित हैं परन्तु आपको ये परिवर्तित नहीं हो सकता, इसे कोई 'अनन्य' भक्ति करनी होगी। उन्होंने अनन्य दूसरा आकार नहीं दिया जा सकता। ये शब्द का प्रयोग किया जिस का अर्थ होता जो है वही है और अब आपको इसी का है कि कोई अन्य नहीं होगा जब हमारी ज्ञान प्राप्त हो गया है। इस पर कोई सन्देह एकाकारिता होती है, जब हमारी तार जुड़ नहीं कर सकता क्योंकि जिन लोगों को ये जाती है, उस वक्त जो भी भक्ति आप अवस्था प्राप्त नहीं हुई केवल वही इस पर करेंगे, जो भक्ति संगीत आप गाएंगे, जो सन्देह कर सकते हैं, आपको सनकी कह भी पुष्प आप अर्पण करेंगे, जो भी अभिव्यक्ति सकते हैं, कुछ भी सोच सकते हैं। परन्तु आप करेंगे, वह अनन्य होनी चाहिए। उन्होंने आँखे खोलकर आप जो कुछ भी कहते हैं यही शब्द कहा कि अनन्य भक्ति करें। जो वह सत्य होता है। इसी प्रकार खुले दिल भी कुछ आप मुझे अर्पण करेंगे मैं वह और दिमाग से आप इस बात को समझते स्वीकार करूंगा । वे सभी कुछ स्वीकार हैं कि यही वास्तविक सत्य है और इसी करेंगे केवल वही भोक्ता हैं अर्थात आनन्द लेने वाले हैं। परन्तु आपको क्या प्राप्त ज्ञान को प्राप्त किया जाना चाहिए। कृष्ण के अनुसार इस ज्ञान को प्राप्त होगा? श्री कृष्ण कहते हैं कि जब आप करने के लिए साधक को बहुत सी परीक्षाओं अनन्य भक्ति करते हैं अर्थात मुझसे आपकी में से गुजरना होता है। एक रास्ता ये है समग्रता होती है तो मुझसे आपका योग कि आप उनकी (श्री कृष्ण की) स्तुति गान घटित होता है । करते रहें। वे कहते हैं, "आप मेरी प्रार्थना करते रहो, वे कहते हैं आप मुझे पुष्प जल या जो भी कुछ अर्पण करेंगे मैं उसे स्वीकार समझते। वो सोचते हैं कि भक्ति का अर्थ श्री इस प्रकार स्पष्ट शब्दों में उन्होंने भक्ति का वर्णन किया परन्तु लोग यह बात नहीं 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-9.txt जनवरी-फरवरी 2002 6 पैतय लहरी खड-XIV अक 1 4 2 गलियों में खड़े होकर 'हरे रामा, हरे कृष्णा शाश्वत स्वभाव का कुछ वरदान आपको गाते चले जाना है उनके अनुसार यही देते हैं। वे आपको शान्ति प्रदान करते हैं. भक्ति है। वास्तविकता यह नहीं है। यदि हृदय की शान्ति। वे आपको सन्तुलन प्रदान ऐसा करना ठीक होता तो उन्हें कुछ प्राप्त करते हैं शान्तमय स्वभाव व आनन्दमय हो गया होता. कुछ तो प्राप्त हो गया जीवन भी वे आपको प्रदान करते होता! परन्तु उन्हें तो कुछ भी नहीं मिला। योगेश्वर से योग प्राप्त करने के पश्चात. इसके लिए श्रीकृष्ण को दाष नहीं दिया उनसे एकरूप होने के पश्चात जब हम जाना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा भक्ति करते हैं तो हमारे अन्दर ये गुण है कि अनन्य भक्ति होनी चाहिए। केवल जागृत हो जाते हैं। वस्त्र परिवर्तन से विशेष प्रकार के वस्त्र पहनकर कुछ नहीं होगा ये सब बाह्ा है। से कर्मयोगी पागलों की तरह से कार्य किए केवल दिखावा है वास्तव में अनन्य भक्ति चले जाते हैं, बिल्कुल पागलों की तरह से। आपके अन्दर होती है। जब आप उस वो समझते हैं कि हम निष्काम कर्म कर रहे यही बात व्यक्ति को समझनी है। बहुत अवस्था में होते हैं तब आप परमात्मा से है। बिना किसी इच्छा के हम लोगों की एकरूप होते हैं। जब तक आप उस अवस्था सेवा कर रह हैं, देश की सवा कर रहे है. को प्राप्त नहीं कर लेते, इतना ही नहीं, सभी की सेवा कर रहे हैं। अन्ततः ऐसे जब तक आप उसमें स्थापित नहीं हो लोगों को च्या प्राप्त होता है? हो सकता है जाते, आपको कुछ प्राप्त नहीं होता बहुत उन्हें धन प्राप्त हो जाए. हो सकता है से लोगों ने मुझे बताया कि "हम इतना आपको एक अच्छा घर मिल जाए, हो भक्ति योग कर रहे हैं, फिर भी हमें कुछ सकता है आपको ये सभी चीजें मिल जाएं प्राप्त नहीं होता। वास्तव में! कैसा भक्ति परन्तु हृदय की शान्ति आपको नहीं प्राप्त योग? हम श्री कृष्ण की गीता पढ़ते हैं, होती। वह आनन्द जो असीम है, जिसका प्रतिदिन प्रातः चार बजे उठकर स्नान करते वर्णन नहीं किया जा सकता, जिसकी हैं. कृष्ण गीता का पाठ करते हैं, ये करते व्याख्या नहीं की जा सकती, वह गहन हैं, वो करते हैं। तब हम भजन गाते हैं, आनन्द आपको नहीं प्राप्त होता। आपको परन्तु हमें कुछ भी नहीं प्राप्त हुआ। इसका वह शाश्वत शान्ति भी नहीं प्राप्त होती जो क्या कारण है? कारण ये है कि परमात्मा युद्ध रोक सकती है। यह शान्ति मानव से आपकी एकाकारिता नहीं है। और जब स्वभाव की क्रूरता को पूर्णतः समाप्त कर आप परमात्मा से एकरूप होते हैं तब सकती है। यह आपको प्राप्त नहीं होती। परमात्मा आपको क्या देते हैं? वो आपको इसके अतिरिक्त आपको शक्तियाँ भी प्राप्त घटिया नश्वर भौतिक पदार्थ नहीं देते, हो जाती हैं। आपको ज्ञान प्राप्त हो जाता नic 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-10.txt जनवरी-फरवरी 2002 7 चैत-य लहरी खड-XIV अक 1 व 2 सभी के विषय में सूक्ष्म ज्ञान। परिवार टूट जाते हैं, उनमें कोई शान्ति सभी के विषय में आप जान जाते हैं कि नहीं होती, आप युद्ध भड़काते हैं? बात है- ज्ञान, उनमें क्या कमी है। अपने तथा अन्य लोगों केवल इतनी सी है कि अभी तक इस देश के विषय में आपको ज्ञान प्राप्त हो जाता की रक्षा की जा रही है। परन्तु आप लोगों है । यह ज्ञान आपको विद्यालय या ने बहुत से मूल निवासियों को नष्ट कर महाविद्यालय में नहीं मिलता। यह तो आपके दिया है और बहुत सी मौलिक चीजों को अपने अन्दर ही ज्ञान का सागर है। जो समाप्त कर दिया है। उन चीजों को जिनको कुछ भी आप देखना चाहते हैं, जो कुछ भी संभाला जाना चाहिए था एक दिन वो आप प्राप्त करना चाहते हैं, सब वहाँ विद्यमान आएगा जब वे लोग महसूस करेंगे कि वो है। यही सच्चा ज्ञान है जिसे सूक्ष्म ज्ञान के जो कुछ करते रहे वो वास्तव में गलत था । माध्यम से आप प्राप्त कर लेते हैं। सूक्ष्म एक दिन ऐसा आएगा जब अमेरीका में ज्ञान अर्थात चक्रों का ज्ञान, ब्रह्माण्ड का बहुत से आत्मसाक्षात्कारी लोग होंगे। परन्तु ज्ञान। इससे आप सभी कुछ प्राप्त कर आज की स्थिति तो ये है कि धनार्जन के सकते हैं। परन्तु अन्य लोगों को ज्ञान देने विचार से लोग पगला गए हैं। परन्तु अब में आपकी रुचि बहुत बढ़ जाती है । तब उन्हें लगता है कि अति हो गई है बस, तो आप बहुत सी चीजें जानना नहीं चाहते। अब क्या करें? अब क्या करें-सहजयोग में साहूकारी (ठंदापदह) के विषय में जानने आ जाएं। सहजयोग करें तब आपको अपने जीवन की क्या आवश्यकता है? ये जानने की क्या आवश्यकता है कि विश्व का सबसे ६ की सारी निधि प्राप्त हो जाएगी, वह निधि नी व्यक्ति कौन है? तब आप ये बाते नहीं जो आपके अन्दर है। यह आपको वह जानना चाहते। आपका पूरा दृष्टिकोण ही सारा सुख, सारा आनन्द प्रदान करेगी, बदल जाता है और आपको शान्त मस्तिष्क सारी वरिष्ठता प्रदान करेगी जो महान वैभव प्राप्त हो जाता है जिसे हर वांछित चीज और महानतम शक्ति आपको प्रदान कर का ज्ञान होता है । व्यक्ति को यही प्राप्त सकती है। हमें केवल इतना करना होगा कि सहजयोग अपना ले और अन्य लोगों करना है आपका देश अमेरीका बहुत अधिक कर्मकाण्डी है। ये हर समय काम- को भी सहजयोगी बनाएं ताकि वो भी काम में ही लगे रहता है। काम का नशा इन्हें मद्यपान सम है। वे घोर परिश्रम करते हैं परन्तु उन्हें क्या मिलता है? आपके बच्चे दूसरी की ओर दौड़ने का पागलपन समाप्त भी नशे के आदि हो जाते हैं, आपकी हो जाएगा क्योंकि इन भौतिक चीजों से पत्नियाँ इधर-उधर भागी फिरती हैं। आपके आप कभी भी सन्तुष्ट नहीं होते आज शान्ति, आनन्द और सन्तोष को प्राप्त कर सकें। ऐसा हो जाने पर एक चीज से ा 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-11.txt जरी -फरवरी 2002 8 चैत-य लहरी सखंड-XIV अक 1 व 2 आप एक चीज खरीदना चाहते हैं, तो कल सत्य- असत्य का अन्तर जानने में कुशल हो जाते हैं । चैतन्य लहरियों पर आप सभी जान जाते हैं । अन्य लोग चाहे आप पर विश्वास न करे, ये अन्य बात है, परन्तु दूसरी। कभी भी आप सन्तुष्ट नहीं होते। परन्तु कुछ अपनी इच्छाओं से कभी भी आपको आनन्द प्राप्त नहीं होता अत: आपकी केवल एक आप जान जाते हैं, ठीक क्या है और गलत ही शुद्ध इच्छा होनी चाहिए कि परमात्मा से एक रूप हो जाएं। केवल इसी प्रकार ये है। सब कार्यान्वित होगा । क्या है कि यह सब श्री कृष्ण का वरदान जैसा कि आप जानते हैं, व हमारे श्री कृष्ण की विशेषता थी कि वे सदैव अन्तःस्थित सोलह उपकन्द्रो का नियंत्रण आत्मसाक्षात्कारी लोगों का, उचित मार्ग करत हैं । वे हर चीज का नियंत्रण करते पर चलने वाले लोगों का, धर्म निष्ठ लोगों हैं आपके गले, नाक आँखें और कानों का व नियंत्रण करते हैं । इन सभी चीजो का वे का साथ देते थे। किसी ऐसे व्यक्ति का साथ वो न देते थे जो धन बाहुल्य के नियंत्रण करते हैं। वो कहते हैं कि वे कारण अपने को बहुत महान समझता हो। विराट हैं विराट का अर्थ महान, महान दुर्योधन ने श्री कृष्ण को अपने महल में भगवान जिसे हम अकबर भी कहते हैं। आतिथ्य स्वीकार करने का निर्ंत्रण दिया मुसलमान भी इसको स्वीकार करके कहते परन्तु श्री कृष्ण दासी पुत्र विदुर के यहाँ हैं अल्लाह- गए क्योंकि विदुर आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति कारण यह (गीता) कुछ स्पष्ट है और कुछ थे वो आत्मसाक्षात्कारी थे श्री कृष्ण की स्पष्ट नहीं है। परन्तु वे विराट थे और दृष्टि में वे दुर्योधन से कहीं अधिक महान थे निःसन्देह दुर्योधन राजा थे परन्तु अत्यन्त दिखाया । उनका विराट रूप देखकर अर्जुन धूर्त और बुरे व्यक्ति थे। ओ-अकबर। पद्य में होने के अपना विराट रूप उन्होंने अर्जूुन को आश्चयचकित रह गया। वे ही विराट हैं. अत. सद सदविवेक वुद्धि आपका स्वभाव सभी कुछ उनमें समाया हुआ है, सभी कुछ उनका ग्रास है। वे यम हैं अर्थात के बन जाती है । तब आप सदैव सन्तुष्ट रहते मृत्यु हैं। क्योंकि आप जानते हैं कि आप कोई देवता हैं वो बहुत कुछ हैं। उनके अनन्त नाम है। ये सभी शक्तियाँ उनमें हैं और गलत कार्य नहीं कर रहे। सद-सद विवेक बुद्धि श्री कृष्ण का वरदान है। अन्य चीजों आवश्यकता अनुसार व उसका उपयोग के साथ वे हमें सद-सद विवेक बुद्धि का करते हैं। तो सहजयोगियां में सर्वप्रथम संतोष की भी वरदान देते हैं। आपको सत्य- असत्य में अन्तर करने का ज्ञान देना उनकी शैली शक्ति होनी चाहिए। यह विस्मयकारी शक्ति है। चैतन्य लहरियों के माध्यम से आप है सन्तोष की शक्ति का उपयोग करें । 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-12.txt जनवरी-फरवरी 2002 9 मे-य लहरी स्वंस XIV अके 1 4 2 यहाँ पर आप सब लोग इतना आनन्द ले भी अत्यन्त सामूहिक है क्योंकि यह सभी रहे हे, इतनी प्रसन्नतापूर्वक रह रहे हैं । यह देशों में रुचि लेता है. सभी देशों की चिन्ता क्या दशांता है कि आप अत्यन्त सन्तुष्ट हैं, करता है। परन्तु गलत ढंग से उनकी सहायता करने का प्रयास करता है। इसकी अन्यथा कोई भी यहाँ रहना पसन्द ने करता। लोग कहते, "नहीं हम कोई अच्छा स्थान शली कभी ठीक नहीं होती। अब मान लो लेना चाहेंगे। ये क्या है? सब लोगों के कोई देश नशीले पदार्थ उत्पन्न करता है साथ हम यहाँ नहीं रहना चाहते । परन्तु तो अन्य देशों पर आक्रमण करने के स्थान अन्य लोगों के साथ मिलकर रहना, यह पर यह उस देश पर आक्रमण क्यों नहीं सामूहिकता भी श्रीकृष्ण का आशीर्वाद है। करता? यह ऐसा देश है। सद्-सद-विवेक वे आपको सामूहिकता सिखाते हैं, का इसमें पूर्ण अभाव है। सद-सद-विवेक प्राप्त किए बिना आप उचित रूप से अपनी सामूहिकता का आनन्द, सामूहिकता का मजा। जो व्यक्ति अकेला रहता है, दूसरों संघ शक्ति (Power of Collectivity) का प्रयोग नहीं करते। यद्यपि वे सामूहिक हैं से कटा रहता है वह तो शराबी की तरह 1. से है। वह श्री कृष्ण का पुजारी नहीं हो परन्तु उन्होंने कौन सा सागूहिक कार्य किया सकता। श्रीकृष्ण तो सभी लोगों का आनन्द लेता है, विशेष अलग है, वे भिन्न हैं। "जिन भी समस्याओं रूप से यदि वह आत्मसाक्षात्कारी हो तो का हम सामना कर रहे हैं वह हमारी की पूजा करने वाला व्यक्ति है? अब भी वो यही कहना चाहते हैं कि वे व्यक्ति उनकी संगति का पूरा आनन्द उठाता अपनी हैं। अतः श्रीकृष्ण के अपने ही देश है। आप उनके जीवन से ये बातें सुगमता में इस सामूहिकता को इतना कम कर से समझ सकते हैं। आप देखें कि आप दिया गया है! यद्यपि उनके अन्दर ये बात लोग मिलकर किस प्रकार प्रसन्नता और है, ये भावना है कि वे सभी देशों के विषय नैतिकता पूर्वक, पूर्ण कुशलता से, बिना में बात करें, सभी देशों का नेतृत्व करें फिर कोई अनैतिक कार्य किए, बिना कुछ चुराए, भी उन्हें चाहिए कि वे सभी देशों की राय पूछे। परन्तु उन देशों के विषय में अमरीका सदैव गलत निर्णय लेता है। ऐसा सद- अन्य लोगों के लिए बिना कोई दुर्भावना रखें आनन्द पूर्वक रहते हैं। आपमें ये आश्चर्यजनक घटना घटित हुई है कि अत्यन्त प्रसन्नता और सत्य पूर्वक आप है उनमें सद- सद-विवेक होना चाहिए। मिल जुल कर यहाँ रह रहे हैं। उनकी इस सामूहिकता को समझ जाना चाहिए क्योंकि मैं सदैव ये कहती हूँ कि श्री कृष्ण अमेरीका के शासक देव हैं। अमेरीका सद-विवेक बुद्धि के अभाव के कारण होता विशुद्धि चक्र के विषय में बहुत कुछ कहा जा सकता है परन्तु इस वक्त में विशुद्धि के दोनों ओर स्थित दो चक्रों के विषय में चिन्तित हूँ। विशुद्धि के बाई ओर 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-13.txt जनवरी फरवरी 2002 10 चे-य लहरी ख-XIV अंक 1 4 2 का चक्र ललिता चक्र है और दाई और पर है, इधर-उधर भटकती रहती है तो वास्तव श्री चक्र। महिलाओं को सदा मैने यही में आप धर्म के विरोध में जा रहे हैं, अपनी सुझाव दिया है कि इन्हें ढक कर रखें। यह विकास प्रक्रिया के विरुद्ध चल रहे हैं और बहुत साधारण प्रतीत होता है परन्तु यह एक दिन ऐसा भी आ सकता है जब आप वहुत महत्वपूर्ण है नगा रखकर इनका अन्ध हो जाए या आपकी ओँखों में प्रदर्शन न करें क्योंकि इनकी शक्तियों को मोतियाबिन्द उतर आए आपको सभी प्रकार बचाकर रखना चाहिए। श्री चक्र और ललिता के चक्षु रोग हो सकते हैं जिनकी तरफ चक् दोनों ही अत्यन्त महत्वपूर्ण है। मैं ध्यान दिया जाना अत्यन्त आवश्यक है। यह चक्र जिहवा से भी जुड़ा हुआ है। की मादा शक्तियों हैं । ये बात यह जिहवा की देखभाल करता परन्तु जिन समझी जानी आवश्यक है कि जिस प्रकार लोगों को भयानक बातें कहने की आदत से आप अपने चक्रों का सम्मान करते हैं होती है या जो लोग अचानक कटु शब्द वैसी ही आपके चक्रों की स्थिति हो जाती उपयोग करते हैं या किसी के विषय में है। उन्हीं के अनुपात में आप कष्ट भुगतते अपशब्द बोलकर उसके पीछे पड़ जाते हैं | उदाहरण के रूप में आप यदि श्री तो ये सारी चीजं जिहवा के लिए हानिकारक गणेश का सम्मान नहीं करते तो आपको होती हैं । श्री कृष्ण को यह सब पसन्द नहीं कष्ट होगा और यदि आप गणेश का सम्मान है। यदि अपनी जिहवा का उपयोग आप करते हैं परन्तु उचित ढंग से बर्ताव नहीं अन्य लोगों को कठोर शब्द कहने के लिए करते तो भी आपको कष्ट होगा, आपको उपयोग करते हैं या उनके प्रति व्यंग्य करते हैं, गाली-गलौच करते हैं, तो मैं नहीं अतः पूरा शरीर प्रतिक्रिया करता है। जानती कि एक दिन आपकी जिहवा किस प्रकार की प्रतिक्रिया करेगी? यह भिन्न कहूंगी कि ये दोनों मादा शक्तियां हैं दोनों श्री कृष्ण समस्याएं होंगीं । बाह्ा प्रभावों के प्रति शरीर इस प्रकार से प्रतिक्रिया करता है कि आप देखने लगते प्रकार की प्रतिक्रिया करेगी, हो सकता है हैं कि कहीं कुछ खराबी है जिसके कारण कि ये मोटी हो जाए और हिले ही नहीं । परमात्मा जाने कि ये अन्दर की ओर खिंच आप इस प्रकार से व्यवहार कर रहे हैं । इसके अतिरिक्त आँखें भी विशुद्धि चक्र । की देन हैं अत: किसी भी चीज़ को देखते परन्तु इसका मानसिक पक्ष भी होता है। हुए आपकी दृष्टि अत्यन्त पवित्र होनी तब आपको ये नहीं पता चलता कि आप चाहिए। दृष्टि जितनी पवित्र होगी उतना किस बारे में बातचीत कर रहे हैं । आप जाए! यह तो इसका शारीरिक पक्ष है। कहना कुछ चाहेगे और कहेंगे कुछ और । ही अच्छी तरह से आप उसका आनन्द गे परन्तु दृष्टि यदि अपवित्र है, अस्थिर ये जिहवा के कारण ही सम्भव है । ऐसी भी लेंगे 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-14.txt जनवरी-फरवरी 2002 11 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 पूर्ण सम्भावना होती है कि व्यक्ति बिल्कुल स्वीकार न करें। गालियाँ स्वीकार करके बोल ही न सके! बिल्कुल कुछ न बोल यदि आप रोते बिलखते हैं तो आपको सके। जिहवा को यदि इस प्रकार कष्ट कँसर हो सकता है। परन्तु मान लो कोई दिया जाएगा, गलत कार्य के लिए इसका आपको कुछ कहता है और आप जानते हैं उपयोग किया जाएगा तो कुछ भी सम्भव कि वह अत्यन्त मूर्ख है तो उससे परे रहें. है। गाली-गलौच के लिए या अपना उल्लू आपको कुछ भी न होगा अतः दोनों ही सीधा करने के लिए विनम्रता पूर्वक बात करने के लिए जिह्वा नहीं बनी है । इस श्रीकृष्ण आपके आस-पास लीला कर रहे प्रकार के कार्य जिह्वा के लिए बहुत हैं और वो देखते हैं कि आप किस सीमा खतरनाक हैं इनसे आपकी जिह्वा पर छाले पड़ सकते हैं जो इस सीमा तक बिगड़ जाते हैं कि कटुभाषी को जिह्वा का गले की देखभाल करनी चाहिए। जो लोग कैंसर भी हो सकता है। प्रकार से सावधान रहना होता है क्योंकि तक जा सकते हैं अब गला-गला बहुत महत्वपूर्ण है। हमें चीखते चिल्लाते रहते हैं अन्ततः उनकी कुछ लोग सोचते हैं कि हर चीज को वाक शक्ति समाप्त हो जाती है । गले की सहन किए चले जाना ठीक है। यह ठीक समस्या के कारण वे पगला जाते हैं। विशेष नहीं है। कोई यदि आपको सता रहा है तो रूप से उन्हें गले के सृजन की भयानक आप इसे सहन करने का प्रयत्न न करें। बीमारी हो जाती है, इसे सर्प रोग कहा जाता है और व्यक्ति का सॉँस घुट जाता इसका मुकाबला करें क्योंकि यदि आप इसे सहन किए चले जाते हैं तो आप बाईं है। ओर को जा सकते हैं और कैंसर जैसे भयानक रोग के शिकार हो सकते हैं। स्पष्ट एवं मधुर ढंग से बात करें। कभी भी आपको कैंसर हो सकता है। जो लोग किसी पर चिल्लाएं नहीं। अपनी वाणी में आक्रामक हैं उन्हें भी रोग हो सकते हैं और कभी चिड़चिड़ा पन न लाएं। आप यदि जो लोग सहिष्णु हैं उन्हें भी कष्ट हो चिड़चिड़े हैं तो कैंसर की शुरूआत हो सकते हैं । अतः जब भी किसी से बात करें अत्यन्त | सकती है। अतः आपको दोनों ही तरह से सावधान होना होगा क्योंकि आप सहजयोगी अतः आपको सन्तुलित अवस्था में रहना है व्यर्थ की चीजों को सहन नहीं करना। हैं आपको ये ज्ञान प्राप्त करना होगा कि मान लो कोई आपको गाली देता है तो आपको क्या नहीं करना है। कोई यदि आप बिल्कुल चुप रहें, केवल उस व्यक्ति कुछ बेवकूफी भरी बात करे तो उसे सहन की ओर देखें, बस। समझ लें कि वह नहीं करना अर्थात उसे स्वीकार नहीं करना। अत्यन्त मूर्ख है । परन्तु उन गालियों को कोई यदि आपको कुछ कह दे तो कभी श्री 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-15.txt जनवरी फरवरी 2002 12 वै।न्य लहरी खंड XIV अंक 1 4ं 2 कभी उसे इसके विषय में बता दें कि तुम रोग ग्रस्त हो जाने का भय बना रहता है। इस प्रकार से कह रहे थे. वास्तव में बात ये सब मैंने आपको इसलिए बताया कि ऐसी नहीं है।" बेहतर होगा कि इन चीजों विशुद्धि चक्र के विषय में हम बहुत सी बातें को सहन न करें। आप ईसा मसीह नहीं जानते हैं विशुद्धि चक्र का हमें बहुत सूक्ष्म है। उनकी शवितियाँ आपके पास नहीं हैं। ज्ञान होना चाहिए। इस बात का हमें थोड़ा आप अगर ऐसा (सहन) करेंगे तो आपको सा ज्ञान होना चाहिए कि यदि हम विशुद्धि परिणाम भुगतने पड़ेंगे। अतः मध्य में रहने का प्रयत्न करें सब चीज़ों को देखते हुए क्या हो सकता है। चाहे आक्रामकरता हो या सहिष्णुता, दोनों में से चाहे कोई भी चीज हो, आपको इन हमारे दाँतों की भी देखभाल करते हैं, कानों दृष्टिकोणों के सम्मुख हार नहीं माननी की भी देखभाल करते हैं । आप जानते है चाहिए । मजबूती से अपने पैरों पर डटे कि दाँत और कानों का क्या करना है ये रहने का दृष्टिकोण अपने में बिकसित करें। उनके सालह कार्य हैं हम इन्हें कलाएं भी उदाहरण के रूप में मैने एक चीनी कहानी कह सकते हैं. सोलह कलाएं जिन पर ये चक्र को नहीं सम्भालेगे तो इसके साथ तो ये सब श्री कृष्ण के कार्य हैं। वो पढ़ी थी। एक राजा चाहता था कि उसके भिन्न भिन्न स्तर पर कार्य करते हैं। आपको दो मुर्गे दंगल जीतें। लोगों ने उसे कहा भी चाहिए कि भिन्न क्रियाओं तथा मागों कि वह अपने मुर्गे फला महात्मा के पास द्वारा और ये समझकर कि विशुद्धि चक्र का ने मूल्य न समझने पर हमें क्या कष्ट हो हैं अपने विशुद्धि चक्र की शक्तियों लाया गया तो वे अडोल खड़े हुए थे। अन्य को विकसित करने का प्रयत्न करें। अमेरीका क्योंकि पूरे विश्व का विशुद्धि भेजकर उन्हें प्रशिक्षित करवाए। राजा अपने मुर्गे महात्मा के पास भेज दिए उन्हें सकते मुगे जब उन पर आक्रमण करने लगे तब भी वे निश्चित खड़े रहे। दूसरे मुर्गे प्रयत्न चक्र है अतः यह आवश्यक है कि वहाँ के करते रहे, प्रयत्न करते रहे परन्तु ये मुर्गे कार्यकारी लोग विशुद्धि चक्र की सारी डटे रहे। परिणामस्वरूप सारे मुर्गे भाग शक्तियों को समझें और ये भी ज्ञान उन्हें गए। आपका चरित्र भी ऐसा ही होना हो कि इन शक्तियों को किस प्रकार सुरक्षित चाहिए। किसी के सामने आपको इसलिए करना है तथा किस प्रकार इनका प्रसार नहीं झुक जाना कि वह आक्रामक है और पूरे विश्व में करना है ये दोनों हाथ जो न ही स्वयं आक्रामक होकर किसी को कि विशुद्धि चक्र से आ रहे हैं इनसे आपने सताना है और न किसी के सिर पर सवार सहजयोग का प्रचार करना है सहजयोग होना है। ऐसा करना गले के लिए बहुत प्रसार के लिए आपको भिन्न देशों, भिन्न भयानक है। ऐसे गले को सदैव भयानक संसारों में जाना है, यहाँ तक कि छोटे-छोटे 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-16.txt जनवरी-फरवरी 2002 13 चैतन्य लहरी खंड XIV अंक 1 व 2 गाँवों में भी जाना है। पहले आप चैतन्य प्रकार अमेरीका भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। लहरियों को महसूस कर लें। इसका अर्थ अमेरीका के नागरिक होने के नाते आपको ये है कि परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति को चाहिए कि यहाँ धर्म को बनाए रखें और आप अपने हाथों में महसूस करते हैं। ये वह सामूहिक शाश्वत प्रेम है जो का सृजन करें और सभी देशों के लोगों आपके हाथों पर आता है और आपको को प्रेम प्रदान करने के लिए प्रयत्नशील सिखाता है । विश्व की समस्याओं के लिए गहन सूझबूझ | रहें। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें अतः यह इतना महत्वपूर्ण चक्र है। इसी 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-17.txt जन कार्य क्रम रॉयल अलबर्ट हॉल, लन्दन, 14.7.2001 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन सभी सत्य साधकों को मेरा नतमस्तक कि मानव बिना किसी कारण के एक दूसरे प्रणाम। आपमें से कुछ ने सत्य को प्राप्त को नष्ट करने का भयानक कार्य कर रहा कर लिया हैं। कुछ ने पूरी तरह से सत्य है। हमें सोचना होगा कि हमारा अन्तिम को प्राप्त नहीं किया है पर कुछ साधकों ने लक्ष्य क्या है और हम किधर जा रहे हैं ? इसे बिल्कुल भी प्राप्त नही किया है। आज क्या हम नर्क में जा रहे हैं या स्वर्ग में । की परिस्थितियों पर यदि आप दृष्टि डालें हमारे चहुँ ओर कैसी परिस्थितियाँ है और तो आपको स्वीकार करना पड़ेगा कि आज इन्हें ठीक करने में क्या आप सहायक बन चहुँ ओर बहुत एक के बाद एक देश सभी बुराइयों को अपना रहे हैं। गहन शीत युद्ध चल रहा है सकते हैं? भयकर उथल पुथल मानव के साथ सबसे बड़ी समस्या ये है है। कि अभी तक भी वे अज्ञानता के पूरे नियंत्रण लोग एक दूसरे का वध कर रहे हैं। सुन्दर में है। मैं तो इसे अज्ञानता ही कहूँगी और स्थानों का विध्वस किया जा रहा है। बिना इस अज्ञानता में इस अंधकार में मानव ये किसी बजह के एक दूसरे के गले काटे जा सब भयानक कृत्य कर रहा है। कोई भी ये रहे है। हम सब परमात्मा द्वारा सृजित नहीं समझना चाहता कि हम पूर्ण विनाश मानव हैं। सर्वशक्तिमान परमात्मा ने सभी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं कर रहे। क्या मानवों का सृजन किया है और उन्हें मानवीय यही हमारा लक्ष्य है कि हम पूरी तरह से चेतना के स्तर पर लाया है। नष्ट हो जाएं? किसी भी राष्ट्रीयता या इन परिस्थितियों में हमें देखना है किसी भी धर्म या सभी प्रकार की अच्छी कि सामूहिक रूप से हम किस दिशा चीजों के नाम की और चल पड़े हैं। क्या हमारा यही कर रहे हैं, हम तो सारे दुष्कर्म कर रहे हैं से हम कौन सा अच्छा कार्य लक्ष्य है? या क्या यही हमारा भाग्य है? युद्ध कर रहे हैं। युद्ध करना श्रेष्ठता नहीं क्या मानव का भाग्य यही है कि वह है। कोई भी व्यक्ति जो हमारे अन्दर की भूमि या अन्य चीजों के लिए एक दूसरे को घृणा को बढ़ावा दे सके हम उससे घृणा नष्ट कर दे। पूरे विश्व को एक नीडम करते हैं और मेरी समझ में नहीं आता इस बात को पसन्द किया जाता है। और इसके मानकर सोचे कि सर्वत्र क्या घटित हो रहा है। प्रतिदिन आप समाचार पत्र पढ़ते हैं बहाने से, इसके पथ प्रदर्शन से हम समूह और हर रोज उनमें भयानक खबरें होती हैं बनाते हैं ! 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-18.txt जनवरी-फरवरी 2002 15 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 ये सब इसलिए घटित हो रहा है कि उस विषय में चिन्ता परमात्मा ने मानव यह अन्तिम निर्णय का समय है। मैंने आपको की इसलिए सृष्टि नहीं कि की आप बताया है कि यह अन्तिम निर्णय है और लड़ाई-झगड़े के लिए, रक्षा के लिए हर समय चिन्ता करें। परमात्मा ने आपकी यह अन्तिम निर्णय वास्तव में इस बात का फैसला करेगा कि किनकी रक्षा की जानी इसलिए सृष्टि की है कि आप पूर्ण शान्ति चाहिए और किनको पूर्णतः नष्ट हो जाना और तदातम्य तथा आनन्द के साथ जीवन चाहिए। यह अत्यन्त-अत्यन्त गम्भीर चीज व्यतीत करें। इसलिए हमारा सृजन हुआ है। जिन लोगों को भी इसके बारे में ज्ञान है, यही हमारा लक्ष्य है। मैं ये बात आपको है उन्हें इसके विषय में सोचना चाहिए। केवल बता नहीं रही, ये वास्तविकता है। यहाँ-वहाँ थोड़ी बहुत जोड़ा जाड़ी करने से कार्य न होगा चाहे जो कुछ भी आप कठिन नहीं है। परन्तु मैं ये देखती हूँ कि अतः हमें परिवर्तित होना होगा, ये परिवर्तन करते रहें जब तक आप मानव का हृदय किसी भी चीज़ से आप सन्तुष्ट हो जाते परिवर्तन नहीं करते इसे बचाया नहीं जा हैं। हिन्दू लोग मन्दिर में जाते है और सकता। ये हृदय परिवर्तन असंभव चीज़ कहते हैं, "ओह! हमने महान कार्य किया । नहीं है, यह कठिन भी नहीं है ये परिवर्तन ईसाई चर्च जाकर सोचते हैं कि उन्होंने का समय है, परिवर्तन का यही अवसर है, बहुत महान कार्य किया है! मुसलमान जाकर इसे हमारे अन्दर स्थापित किया गया है। नमाज पढ़ते हैं और सोचते हैं वो अत्यन्त इस शक्ति की शक्ति रूप में व्याख्या की महान हैं! इन सबने क्या प्राप्त किया? गई है। यह रहस्यमय मादा शक्ति है जो अपना सामना करें। कृपा करके अपनी हमारे अन्दर विराजमान है। सभी ने लिखा सीमाओं का अपनी कमियों का सामना करें है, यह बात कहने वाली मैं पहली व्यक्ति अपनी समस्याओं का सामना करें और स्वयं नहीं हूँ। परन्तु संभवतः अब तक कोई भी अपने लिए देखें कि क्या आप अपनी इसे न तो समझ सका न ही स्वीकार कर समस्याओं का समाधान कर सके हैं, क्या सका कि ये घटना हमारे अन्दर घटित हो। आप स्वयं को विपदाओं से बचा सके हैं? आपका जन्म केवल मानव बनने के लिए हो सकता है कि ये विपदाएं उन लोगों को नहीं हुआ बल्कि महा मानव बनने के लिए नष्ट करने के लिए आती हैं जो मानव को हुथा है। आपको आनन्द लेना होगा आपका हानि पहुँचा रहे हैं। तब तो यह परमात्मा जीवन आनन्द लेने के लिए योग्य होना का लक्ष्य होगा परन्तु आपका लक्ष्य क्या चाहिए। ये आशीर्वादों से परिपूर्ण होना है? आप ये क्यों नहीं सोचते कि "मैं वो चाहिए। जीवन अभिशाप नहीं होना चाहिए। व्यक्ति नहीं हूँ जो पत्थर है। मैं वह व्यक्ति सुबह से शाम तक इस विषय में चिन्ता हूँ जो आनन्द और प्रेम का स्रोत है। मैं 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-19.txt जनवरी-फरवरी 2002 16 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 केवल बातें नहीं कर रही हूँ। मैं वास्तव में ये आपात स्थितियाँ हैं। आप आपात स्थितियों में रह रहे हैं। इस बात को समझने का प्रयत्न करें और मैं आपको चेतावनी देना चाहती हूँ यदि आप अपने अन्तस में चाहती हूँ कि आप सब अपना आत्म- साक्षात्कार प्राप्त करें। आत्मसाक्षात्कार है क्या? यह स्वयं को पहचानना है। आप स्वयं को नहीं पहचानते, गहन नहीं उतरते और ये नहीं देखते कि नहीं पहचानते आप स्वयं को। बिना स्वयं को पहचाने आप इस विश्व में जिए जा रहे अपनाते तो कुछ भी घटित हो सकता है। आप क्या हैं और अपने परिवर्तन को नहीं 1. है। क्या आप इस बात की कल्पना कर आपको सभी प्रकार के रोग हो रहे हैं। सकते हैं। आप नहीं जानते कि आप क्या बच्चों की सभी प्रकार की समस्याएं खड़ी हैं, आप नहीं जानते कि आप आत्मा हैं हो रही हैं, राष्ट्रीय स्तर पर भिन्न प्रकार तथा ज्ञान, शुद्ध ज्ञान का स्रोत हैं। कई बार की समस्याएं हैं, ऐसी समस्याएं जिनका मैं लोगों को किसी बाबाजी की सभा में बैठे समाधान लोग नहीं कर पाते। अतः हमें देखती हूँ जो उन्हें कथाएं सुना रहा इनसे बाहर निकलना होगा और अत्यन्त होता है और लोग अत्यन्त प्रसन्न हैं। इन सत्यनिष्ठ और दृढ़ व्यक्तित्व बनना होगा। कथाओं से न तो आपको वास्तविकता का हुए हम नहीं जानते कि सत्य क्या है? हम ज्ञान होगा न सत्य का। सत्य और तो पशुओं से भी बदतर हो गए हैं, पशुओं वास्तविकता को यदि आप प्राप्त करना की भी आँखें खुली हुई हैं परन्तु हमारी चाहते हैं तो ये समझने का प्रयत्न करें कि ऑँखें बन्द हैं। ये बात मैं आपकी भर्त्सना घटित होना होगा आपके अन्दर कोई करने के लिए नहीं कह रही हूँ आपको कुछ परिवर्तन घटित होना आवश्यक है जब सावधान करने के लिए कह रही हैं। आपको तक आप उस बिन्दू तक नहीं पहुँच जाते जागरूक करने के लिए कह रही हूँ कि तब तक आप पर्याप्त रूप से सूक्ष्म नहीं हैं, मानव को परिवर्तित होना होगा अन्यथा न ही आपने सूक्ष्मताओं को जाना है। इसके आज आपने मेरा भाषण सुन लिया और लिए आपको अपना परिवार त्यागने की, कल किसी और के भाषण में चले जाएंगे| अपने बच्चे त्यागने की, घरबार त्यागने की, ये तो रोजमर्रा का मनोरंजन है । परन्तु जंगल जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। लक्ष्य को जब मैं देखती हूँ तो मेरी समझ में इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। ऐसा नहीं आता कितने लोग जा पाएंगे, कितने कहना बड़ा अच्छा लगेगा कि "ठीक है, समाप्त हो जाएंगे! उनके साथ क्या घटित आप सब लोग सन्यास ले लें और अपना होगा, कौन सी बीमारियाँ उन्हें लग जाएंगी, सारा सामान मुझे दे दें। कितना मूर्खतापूर्ण कौन सी समस्याओं में वे फँस जाएंगे, उनके विचार है ये! | बच्चों का क्या होगा, उनके देश का क्या 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-20.txt जनवरी-फरवरी 2002 17 चैत-य लहरी ख-XIV अक 1 व 2 होगा, इस पूरे विश्व का क्या होगा? मैं कुछ लोग श्वेत हैं और कुछ अश्वेत। इससे आपके दृष्टि क्षेत्र का विस्तार कर रही हैूँ। क्या फर्क पड़ता है? मेरी समझ में नहीं ये मेरा स्वप्न है कि विश्व के सभी लोग आता। इस प्रकार की मिथ्या बातें चल रही है हैं। इन मिथ्या चीजों के कारण लोग युद्ध और जब हम जेहाद की बात करते हैं कर रहे हैं । गोरे लोग कालों से युद्ध कर तो हम कहते हैं कि हमें अपने अन्दर के रहे हैं और काले गोरों से लड़ रहे हैं। और शत्रुओं से युद्ध करना होगा हमारे शत्रु फिर यही गोरे लोग अपनी चमडी का रंग बदलने के लिए जाकर धूप-स्नान करते हैं परिवर्तित हों । हमारे अन्दर शत्रु निहित कौन से हैं? आजकल सबसे भयानक शत्रु है हमारा और तेज धूप के कारण चर्म कैंसर का शिकार लोभ। इस लोभ के कारण लोग कुछ भी बनते हैं! इस बात को मैं नहीं समझ पाती, कर सकते हैं। इस लोभ के कारण सभी इसका कोई औचित्य नहीं है । हमारे अन्दर प्रकार के कुकृत्य हो रहे हैं। लोगों के पास ये देखने भर को सन्तुलन भी नहीं है कि धन होगा, उन्हें सभी प्रकार की सुविधाएं हम क्या कर रहे हैं? अपने इतने बहुमूल्य प्राप्त होंगी, परन्तु ये लोभ इतनी आसुरी समय को, जब हमें ये परिवर्तन प्राप्त कर चीज है क़ि आप ये भी नहीं देखते कि लेना चाहिए, क्या हम बर्बाद कर रहे हैं? आपके पास क्या चीज है। आप अधिक किसी भी चीज के कारण क्रोध आ सकता और अधिक पा लेना चाहते हैं। चाहे किसी है, किसी भी चीज़ के कारण गुर्सा भडक को धोखा देना पड़े. अपने संबंधियों को सकता है। ये तो मानवीय स्वभाव की तरह धोखा देना पड़े, सभी को धोखा देना पड़े से है जो कि बहुत आम है। छोटी-छोटी और इस प्रकार सबका पैसा हथिया लेना चाहते हैं। चीज़ों के लिए लोग गुस्से हो जाते हैं और ये गुस्सा उन्हें पसन्द है क्योंकि इस गुस्से हमारा दूसरा बड़ा शत्रु क्रोध है। क्रोध से वो दूसरों को सताते हैं और आक्रामक हमें चीजों की वास्तविकता नहीं देखने देता। हो जाते हैं। इसलिए वो चाहते हैं कि उनमें छोटी-छोटी चीजों के लिए हम गुस्से हो गुस्सा हो और इस गुस्से से वो अन्य लोगों जाते हैं। जैसे मैं इस देश में आई। मैंने देखा है कि लोग भिन्न रंग को देखकर ही बहुत बड़ी समस्या है। क्यों हम दूसरे लोगों क्रुद्ध हो जाते हैं! मेरी समझ में नहीं आता। को सताना चाहते है? क्यों हम उन पर परमात्मा ने भिन्न रंग बनाए हैं। अगर ऐसा नियंत्रण करना चाहते हैं, स्वयं पर तो हम न होता तो हम एक सेना की तरह से दिखाई निर्णय नहीं कर पाते, किसलिए हम दूसरे पड़ते और जीवन अत्यन्त दयनीय हो गया लोगों पर नियंत्रण करना चाहते हैं? इसकी होता। अतः प्रकृति ने रंगों का सृजन किया क्या आवश्यकता है? पर प्रभुत्व जमाने का प्रयत्न करते हैं। ये 1 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-21.txt जनवरी-फरवरी 2002 18 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 ब 2. इसके बाद मोह हमारा महा शत्रु है। बताते हैं कि वे एक महिला विशेष से या घरों के लिए मोह, भूमि के लिए मोह, बच्चों पुरुष विशेष से विवाह करना चाहते थे के लिए और सभी चीजों के लिए मोह । आदि आदि। किस तरह से वो ये सारी परन्तु कल जब हम यहाँ न होंगे, खुले चीजें कर पाते हैं और कह पाते हैं? इन हाथों से जाना पड़ेगा, कुछ भी हम साथ न सारी चीजों से कोई महान नहीं बन सकता। ले जा पाएंगे। अतः इस प्रकार की लिप्साओं को परिवर्तित होना होगा लोग अपनी कार, होगा, अपनी आत्मा को महसूस करना होगा। अपने घर, उनकी देख-रेख के विषय में आप आत्मा है। सर्वशक्तिमान परमात्मा के अत्यन्त तुनक मिजाज हैं। परन्तु आपके प्रतिबिम्ध के रूप में आत्मा आपके अन्दर अपने विषय में क्या है? क्या आप ठीक हैं, विराजमान है। आप अत्यन्त सशक्त बन अन्दर से क्या आप पूर्णत शान्त व आनन्दमय सकते हैं और यदि आप आत्मा बन जाएं हैं? गुस्से में क्यों अपनी शक्ति को बर्बाद तो आप पूर्ण गरिमामय तथा सन्तुलित हो कर रहे हैं? यह ऐसे जीवन का चिन्ह है सकते हैं आत्मा और आध्यात्मिक जीवन जिसे नष्ट होना होगा किसी दूसरे व्यक्ति के विषय में आपने बहुत सुना है परन्तु क्या को जब आप देखते हैं तो दुर्बलताएं दिखाई आप इस स्तर तक पहुँच सके? चाहे आप देती हैं। धन के अतिरिक्त महिलाएं, ये दुर्बलता भी आम बात है। महिलाओं की विषय में बाइबल, कुरान पढ़ते हैं तब भी पुरुषों के प्रति दुर्बलताएं । वे स्वयं आकर्षक बनाने का प्रयत्न करती हैं, बिन्दु तक कैसे पहुँचा जा सकता है? नहीं, किसलिए? सभी ने के पीछे या विपरीत लिंग के पीछे दौडकर होगा क्योंकि आप अत्यन्त महान हैं, अंत्यन्त अपने अन्दर अत्यन्त शक्तिशाली बनना जैन प्रणाली के विषय में, ताओ प्रणाली के को आप क्या जानते हैं कि आत्मा के उस होना है महिलाओं अभी तक नहीं जानते। आपको समझना वृद्ध आपने क्या प्राप्त किया? आपको गरिमा बहुमुल्य हैं और अन्दर से आप अत्यन्त का, आत्मसम्मान का कोई विवेक नहीं है। सुन्दर हैं परन्तु आपको इसका ज्ञान नहीं आप यदि अक्खड़ हैं तो बहुत अच्छे वस्त्र है आपको आत्मा बनना होगा। ये बनना पहनते हैं। और स्वयं को बहुत अच्छा समझते बहुत महत्वपूर्ण है । हैं ये कोई तरीका नहीं है। हमें अन्तर्अवलोकन करके स्वयं देखना होगा कि हम ऐसा क्यों आपके अन्दर व्यवस्था की है, इसे कुण्डलिनी कर रहे हैं। मूर्खतापूर्ण चीजों में अपनी कहते हैं। इसकी जागृति हो सकती है और शक्ति को क्यों बर्बाद कर रहे हैं? में बहुत ये जागृति आपको आत्म-साक्षात्कार दे से लोगों से मिलती हैँ उनमें से बहुत से सकती है आत्म ज्ञान दे सकती है। इसे अर्धपागल हैं और कुछ पूर्ण पागल। वो मुझे आत्म-साक्षात्कार भी कहते हैं। आपके इसके लिए सर्वशक्तिमान परमात्मा ने 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-22.txt जनवरी-फरवरी 2002 19 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 जीवन में इस आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त इससे मुक्त हो जाते हैं। किसी को ये करना बहुत महत्वपूर्ण है। यह पूर्णतः निशुल्क बताना नहीं पड़ता कि आप योग पा लें। है, इसके लिए आप कोई धन नहीं दे आपके सभी बन्धन छुट जाते हैं । आपमें सकते। कितना धन आप इसके लिए दे ऐसे बन्धन हैं कि आप फलां देश से, फलां सकते हैं? जब ये पूर्णतः निशुल्क है तो धर्म से इससे या उससे सम्बन्धित हैं। आप क्यों नहीं आप आत्म साक्षात्कार प्राप्त कर किसी चीज से सम्बन्धित नहीं हैं। आपका लेते और क्यों नहीं आप उत्थान को प्राप्त सम्बन्ध परमात्मा के साम्राज्य से है। हमें करते? आपका न करना क्या धर्म के कारण यही प्राप्त करना है। वहीं पर आपको होना है? सभी धर्मों ने इसके विषय में कहा है । चाहिए। परन्तु अब भी यदि आप कथाएं मोहम्मद साहब ने अत्यन्त स्पष्ट रूप से पसन्द करते हैं तो इसका तो कोई अन्त कहा, "पुनरुत्थान के समय आपके हाथ नहीं है। आप अपना समय व्यर्थ कर रहे बोलेंगे। क्या आपके हाथ बोल रहे हैं? हैं समय घटता चला जा रहा है। मैं यहाँ हिन्दू इसके विषय में जानते हैं कि हमें पर मेरे विचार से पिछले बीस वर्षों से हूँ। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना है इन बाबाजी मैंने घोर परिश्रम किया परन्तु क्या देखती लोगों को सुनने से या इन्हें पैसे देते रहने हूँ कि लोगों को जिस बात का ज्ञान होना से कोई लाभ न होगा। इस प्रकार के चाहिए था उस बात का ज्ञान उन्हें नहीं है। कर्मकाण्ड जो हम कर रहे हैं ये तो हमारे वो ऐसे लोगों को पसन्द करते हैं जो बहुत पूर्वज भी करते रहे । किया? कुछ नहीं। उन्होंने क्या प्राप्त सुगम चीजे बताते हैं या उनका मनोरंजन करते हैं। अतः यह जान लेना हमारे लिए आवश्यक है कि हमें अपनी उत्थान की प्रक्रिया को कि आज ही प्रलय का दिन है। प्रलय अंतः पूर्ण मानवता को समझना होगा आत्मसाक्षात्कार के बिन्दु तक ले जाना समीप है और अत्यन्त सुगम बात ये है कि होगा हम यदि पूर्ण होते तो कोई समस्या न होती, हम यदि आत्मसाक्षात्कारी होते तो हैं। ऐसा करना बहुत आसान है। न तो कोई समस्या न होती। सभी प्रकार का आपको इस पर कोई समय खर्च करना है स्वार्थ, सभी प्रकार की सीमाएं हमने अपने और न ही पैसा । कोई परिश्रम भी आपको पर लगा ली हैं। सभी प्रकार का बन्धन, नहीं करना। आप अपना आत्मसाक्षात्कार सभी प्रकार का अहं हमारे जीवन में कार्यरत प्राप्त कर लें और अपने घर पर दस पन्द्रह है और हम पर शासन कर रहा है हमें मिनट ध्यान धारणा पर लगाएं। हमारा इसके चंगुल से निकलना होगा एक बार मस्तिष्क हर समय हमारे दुर्व्यवहारों को जब आपका योग हो जाता है तो आप न्यायोचित ठहराता है। मैं इसे आप परमात्मा के साम्राज्य में प्र्वेश कर रहे दुर्व्यवहार 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-23.txt जनवरी-फरवरी 2002 20 वैत-य लहरी खड-XIV अक 1 वें 2 कह रही हूँ। ये सत्य के विरोध में है. हमें आत्मा बनना है सभी धर्मो ने यही परमात्मा की इच्छा के विरुद्ध है, मानवता बात सिखाई हैं, परन्तु इस बात का वर्णन के विरुद्ध है और ये सारी अच्छी चीजों को नहीं किया गया कि किस प्रकार आत्मा बनना है और यह कार्यान्वित नहीं हुआ। ये सारे बन्धन त्यागने होंगे और ये जानना कुछ लोगों ने आत्मसाक्षात्कार पा लिया होगा हम सब एक हैं। हम विश्वस्तरीय हैं। परन्तु उनका विश्वास नहीं किया गया, रंग, प्रजाति और धर्म के कारण हम एक किसी ने उनकी बात नहीं सुनी। लोगों ने दूसरे से अलग नहीं हैं। ये बात हमें जाननी उनकी हत्याएं की, उन्हें सताया और सूली होगी कि हम एक हैं और इस एकता को पर चढ़ा दिया। परन्तु अब आप लोग कृपा और एकरूपता को केवल नारों और करके इस बात को समझें। इसके को नष्ट कर देता है। मूल्य समझे कि आप लोग मानव क्यों है? किसलिए आपका सृजन किया गया है, इसके पीछे अपने हृदय में महसूस की जानी चाहिए। क्या उद्देश्य है? क्या आप मूर्खतापूर्ण चीज़ों ये बनावटी नहीं है, इसे वास्तविक होना के चलाए से चलते रहेंगे? क्या ये विभाजन होगा वास्तविक एकरूपता। और ये आपमें तत्व आपको समाप्त कर देंगे? नहीं-नहीं, शोरशराबो से स्थापित नहीं करना चाहिए ये एकरूपता क्या होनी चाहिए, ये बात तभी आती है जब आप महसूस कर लेते हैं आप सब आत्म साक्षात्कार प्राप्त कर लेंगे कि आप विराट के अंग-प्रत्यंग है । धर्म और आत्म साक्षात्कार प्राप्त करके अपने आपको चेतना के इस बिन्दु तक ले आते जीवन के मूल्य को समझ लेंगे । हैं। युद्ध और हत्याओं की प्रवृत्ति आपको यहाँ तक नहीं लाई। तो क्यों मानव ने साक्षात्कार प्राप्त कर लेंगे. कि आपकी अपना मुख मोड़ लिया? क्योंकि उसे अन्तःस्थित शक्ति जाग्रित हो जाएगी? ये धर्मपरायणता का ज्ञान बिल्कुल नहीं है, भली भांति आयोजित है वास्तव में परमात्मा क्योंकि उसके मन में लोभ भरा हुआ। अपने, महान सृजनकार हैं। जिस प्रकार उन्होंने अपने परिवार और अपने सम्बन्धियों के इसका सन्तुलन किया, जिस प्रकार ये प्रति मोह। आप अपने तक ही क्यों सीमित कार्यान्वित होती है, ये सब प्रशंसनीय है। समस्या ये है कि क्या आप अपना आत्म रहना चाहते हैं? आप आत्मा है और आत्मा इसके लिए अत्यन्त सूक्ष्म रूप से कार्य तो सागर है, प्रेम का, ज्ञान का और किया गया| इस घटना का घटित हो जाना आशीर्वादों को सागर । ही पर्याप्त नहीं है आप इसे प्राप्त करें हम अतः हमें निर्णय लेना होगा आज मुझे ये कह सकते हैं कि एक स्थान में घूमकर यही प्रार्थना करनी है कि बहुत ज्यादा देखें स्वयं देखें कि आप कितने सुन्दर हैं? समय शेष नहीं है। हमें निर्णय करना होगा। परमात्मा ने कितनी सुन्दर चीजें बनाई हैं? ho 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-24.txt जनवरी-फरवरी 2002 21 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1व 2 आप सब इसमें उन्नत हों। एक बार जब इसके लिए तैयार हो जाएं। यही मुख्य आप इसमें उन्नत होते हैं तब आपको महसूस चीज है। आप क्या बन गए, यही मुख्य होता है कि आप कितनी महान चीज हैं, बात है। और तब ये आपकी समस्या होगी कितने बहुमूल्य रत्न, कितने महान व्यक्ति, मेरी नहीं कि आप इस मानव संस्कृति का क्या बनाते हैं। मैं तो केवल सहायता कर कितने प्रेममय, इतने महान कि आपका वर्णन ग्रन्थों में होना चाहिए। कोई भी ये सकती हूँ, इसे कार्यान्वित कर सकती हूँ। अतः मैं आप सबसे प्रार्थना करूंगी कि जानने का प्रयत्न नहीं करता किे बह क्या कर रहा था और उसने किस प्रकार कार्य आप अपना आत्मसाक्षात्कार प्रादा करने के किया। तो आज हम ये अनुभव प्राप्त कर लिए तैयार हो जाएं। अच्छी बात है । परन्तु सकते हैं। आत्मा का ये अनुभव, ये अत्यन्त जो लोग इसे नहीं पाना चाहते उन्हें विवश विशिष्ट चीज है। इस प्रकार इसे कभी भी नहीं किया जा सकता। तो बेहतर होगा प्राप्त नहीं किया जा सकता था परन्तु आज ऐसे लोग सभागार को छोडकर अपने कार्यों इसे प्राप्त किया जा सकता है। तो क्यों न को चले जाएं। करके परमात्मा आपको आशीर्वादित करें इस समय का लाभ उठा लें? कृपा 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-25.txt महा शिवरात्रि पूजा पंढर पुर, 29.2.1984 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आधुनिक समय में कोई भी पवित्र स्थल कहलाने वाला स्थान अपवित्रतम स्थान बन तरीके से, सहज बुद्धि के साथ समझना इस सारी कहानी को अत्यन्त विवेकशील जाता है। आजकल इतनी अव्यवस्थित दशा चाहिए कि परमात्मा स्वयं सभी प्रकार है। पत्थरों से निकलने वाले कोमल अंकरण, के चमत्कार करने में सक्षम हैं। परमात्मा जिसे बहुत सी बाधाओं का सामना करना होता है, जैसी मौलिक चीज को स्थापित कर रहे करने का प्रयत्न जब हम कर रहे हैं तो हमें की स्थितियों को देखते हुए चमत्कार अपने मस्तिष्क दुरुस्त रखने होंगे और हर प्रतीत होता है । हम कह सकते हैं कि चीज के प्रति विवेकशील रहते हुए यह आज हम ऐसी बहुत सी चीजें देख रहे देखने का प्रयत्न करना होगा कि अपनी हैं जो चमत्कारी हैं। सौ वर्ष पहले सूझ-बूझ और सबूरी के माध्यम से हम भी न सोच पाता कि इतनी दूर दूराज क्या हासिल कर सकते हैं। ऐसा करना के स्थान पर भी यह सब प्रबन्ध किए जा द्वारा सृजित हम लोग आज जो कुछ हैं वह संसार की सौ वर्ष पहले कोई सकते हैं। ये सारे चमत्कार परमात्मा की बहुत आवश्यक है। आज, मैं सोचती हूं, हम सबके लिए शक्ति से हो रहे हैं । तो हम लोग उन दैवी अत्यन्त महान दिन है क्योंकि यह स्थान चमत्कारों का बहुत छोटे स्तर पर सृजन विराट का, श्री विट्ठल का, स्थान है। यह कर सकते हैं। परमात्मा के चमत्कारों की वह स्थान है जहाँ पर श्री विट्ठल ने अपने व्याख्या नहीं की जा सकती और न ही एक भक्त बेटे को दर्शन दिए और जब उस इनकी व्याख्या करनी चाहिए। ये चमत्कार भक्त ने उनसे कहा कि इस ईंट पर खडे हमारी बुद्धि से परे हैं और परमात्मा की हो जाओ", तो श्री विट्ठल वहाँ खड़े हो उपस्थिति के विषय में लोगों को विश्वस्त गए । ऐसा कहा जाता है कि प्रतीक्षा में वे कराने के लिए परमात्मा कुछ भी कर सकतें वहाँ खड़े रहे। कुछ लोग कहते हैं कि जो हैं। मूर्ति हम वहाँ देखते हैं वह इस रेत पर पृथ्वी माँ से प्रकट हुई और यह कहकर Dimension) में चल सकते हैं और चौथे पुन्ड्रीकाक्ष उसे साथ ले गए कि जब मैं आयाम में भी तथा अपनी इच्छानुसार कुछ अपने माता पिताजी के साथ व्यस्त था तो भी कर सकते हैं अपने रोजमर्रा के जीवन रही (श्री विट्ठल) मुझे और मेरे माता पिताजी में आप यही देखते हैं कि आप सब के साथ से मिलने आए थे। अतः ये उसी ईट पर कितने चमत्कार घुटित होते हैं! आप समझ खड़े हुए हैं जो मैंने फेंकी थी।" परमात्मा तीनों आयामों (Three भी नहीं पाते कि यह सब किस प्रकार ho 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-26.txt जनवरी-फरवरी 2002 23 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 पंढरपुर शिव पूजा के लिए आने का घटित होता है! उन चीजों पर भी चमत्कार होते हैं जो जीवन्त नहीं हैं और लोग आश्चर्य विचार इसलिए था कि श्री शिव आत्मा का चकित रह जाते हैं कि यह सब किस प्रतीक हैं आत्मा का निवास आप सबमें प्रकार घटित होता है। अपनी आँखों से यह आपके हृदयों में है। सदा शिव का स्थान सब देखने के पश्चात् हमें विश्वास करना आपके सिर के तालू भाग में है परन्तु होगा कि वे परमात्मा है। आत्मा आपके हृदय में प्रतिबिम्बित है। श्री विट्ठल आपके मस्तिष्क हैं अतः आत्मा परमात्मा अपनी इच्छानुसार सभी कुछ कर सकते हैं और हम कुछ भी नहीं है। को मस्तिष्क में लाने का अर्थ मस्तिष्क को हम कुछ भी नहीं है। इसके विषय में, ज्योतिर्मय करना परमात्मा के चमत्कारों को समझने के विषय ज्योतिर्मय होना अर्थात परमात्मा को महसूस में कोई तर्क नहीं होना चाहिए। 'तर्क किस करने की आपके मस्तिष्क की सीमित है। आपके मस्तिष्क का प्रकार हो सकता है? किस प्रकार तर्क हो क्षमता को असीम बनाना। मैं 'समझना सकता है?" इस बात का आप वर्णन नहीं (Understand) शब्द उपयोग नहीं करूंगी, कर सकते। केवल तभी आप विश्वस्त हो परमात्मा को महसूस करना।" वो कितने सकते हैं जब आप ऐसी बौद्धिक अवस्था शक्तिशाली हैं, कितने चमत्कार करने वाले को प्राप्त कर लें जिसमें आप अपने अनुभव हैं, कितने महान हैं? दूसरी बात ये है कि मानव मस्तिष्क मृत चीजों से ही सृजन सर्वशक्तिमान हैं। ये धारणा बहुत कठिन करता है परन्तु जब आत्मा मस्तिष्क को है। यह बहुत कठिन है क्योंकि हम लोग ज्योतिर्मय करती है तब आप जीवन्त चीजों सीमित हैं, हमारी शक्तियाँ सीमित हैं। ये का सृजन करते हैं, कुण्डलिनी का जीवन्त बात हम समझ नहीं पाते कि किस प्रकार कार्य करते हैं । यहाँ तक कि भी जीवित परमात्मा सर्वशक्तिमान हो सकते हैं क्योंकि की तरह से बत्ताव करने लगते हैं क्योंकि के माध्यम से विश्वास कर सकें के परमात्मा मृत हमारे अन्दर वह क्षमता नहीं है। परमात्मा आप मृत की आत्मा को छू लेते हैं। परमाणु (Atom) या अणु (Molecules) उन्ही की इच्छा है कि हमारा अस्तित्व बना में अन्तःस्थित नाभिक (Nucleus) में हमारे सृष्टा हैं, परमात्मा हमारे रक्षक हैं. अणु रहे। सर्वशक्तिमान परमात्मा ही हमारा की आत्मा होती है। आप यदि अपनी आत्मा अस्तित्व हैं. सर्वशक्तिमान। वो जो चाहें बन जाते हैं तो हम कह सकते हैं कि अणु आपके साथ कर सकते हैं, वो इस विश्व या परमाणु का मस्तिष्क नाभिक (Nucleus) को नष्ट कर सकते हैं और दूसरे विश्व का की तरह से है परन्तु नाभिक (Nucleus) सृजन कर सकते हैं। उनकी इच्छा मात्र से का आत्मा नियंत्रण करती है, नाभिक के अन्दर निवास करने वाली आत्मा। सब कुछ हो जाता है। প 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-27.txt जनवरी-फरवरी 2002 24 पैतनय लरी खंड-XIV अंक 1 व 2 तो अब आपके पास चित्त (Attention) चक्रों के सम्पर्क में आ जाता है और इसे समग्रन करने लगता है। या शरीर परमाणु का पूर्ण शरीर है। परन्तु जब आप अपनी आत्मा को मस्तिष्क में लाते हैं तो ये दूसरी अवस्था होती है इसके बाद नाभिक है और नाभिक के अन्दर आत्मा है। इसी प्रकार हमारा ये शरीर है और शरीर ये दूसरी अवस्था है तब आप वास्तव में के अन्दर चित्त है। इसके साथ-साथ एक आत्मसाक्षात्कारी बन जाते हैं, पूर्ण रूपेण, नाभिक है जो कि मस्तिष्क है। आत्मा हृदय पूर्ण रूपेण. क्योंकि तब आपकी आत्मा ही में है इसलिए मस्तिष्क का नियंत्रण आत्मा आपका मस्तिष्क बन जाती है। यह क्रिया के माध्यम से होता है। कैसे? हृदय के अत्यन्त गतिशील (Dynamic) है। तब यह इर्द-गिर्द सात परिमल (Auras) हैं जिनका मानव के पाँचवे आयाम (Fifth Dimension) गुणन किसी भी संख्या तक होता है। सात को यदि 16000 बार गुणा किया जाए तो इतनी शक्तियाँ हमारे सातों चक्रों को देखती बनते हैं, सामूहिक चेतना में आते हैं और हैं - 7 के 16000 गुणनफल (7 raised to कुण्डलिनी उठाने लगते हैं तो आप चौथे Power 16000-7)1 इस परिमल के माध्यम से आत्मा देख रही है-देख रही है । मैं फिर कह रही हूँ कि परिमल के माध्यम से आत्मा करत्ता बन जाते हैं। उदाहरण के रूप में, देख रही है। ये परिमल आपके मस्तिष्क में आपके सातों चक्रों के आचरण को देख चीज़ को उठा लो।" तब आप उस वस्तु रहा है। यह आपके मस्तिष्क में कार्यरत को अपने हाथों से पकड़कर ऊपर उठा सभी नाडियों को भी देख रहा है । पुनः लेते हैं। तब आप कर्त्ता हैं। परन्तु जब को खोलती है। प्रथम स्थान पर जब आप साक्षात्कारी आयाम को पार करते हैं। परन्तु आपकी आत्मा जब मस्तिष्क में आती है तो आप पाँच आयामों के हो जाते हैं अर्थात आप हमारा मस्तिष्क कहता है, "ठीक है, इस आपका मर्तिष्क आत्मा बन जाता है तो देख रहा है। परन्तु जब आप आत्मा का अपने मस्तिष्क में लाते हैं तो आप आत्मा ही करत्त्ता है। दो कदम आगे बढ़ जाते हैं क्योंकि जब आपकी कुण्डलिनी उठती है तो वह पूर्ण शिव बन जाते हैं: आत्मसाक्षात्कारी। श्री सदाशिव को छ लेती है और सदाशिव उस अवस्था में यदि आपको क्रोध आ जाए आत्मा को सूचित करते हैं, सूचित करते तब भी आप उससे लिप्त नहीं होते। आप हैं अर्थात आत्मा में प्रतिबिम्बित होते हैं। तो ये पहली अवस्था है जिसमें साक्षी परिमल है। आपके पास यदि कुछ भौतिक पदार्थ (Auras) आपके मस्तिष्क में स्थित भिन्न हो तो भी आप उनसे लिप्त नहीं होते आत्मा जब कत्ता बन जाती है तो आप ऐसे व्यक्ति बन जाते हैं जो पूर्णतः निर्लिप्त 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-28.txt जनवरी-फरवरी 2002 25 चैत-य लहरी खड-XIV अक 1 व 2 अपने चित्त को देखें कि यह कहाँ जा नहीं हो सकते क्योंकि आत्मा तो निर्लिप्ता- पूर्ण निर्लिप्तता है। किसी भी प्रकार की रहा है। स्वयं को देखें ज्यों ही आप स्वयं लिप्सा आपको परेशान नहीं कर सकती, को देखने लगते हैं, अपने चित्त को देखने क्षण भर के लिए भी आप लिप्त नहीं होते। लगते हैं, आप अपनी आत्मा से एकरूप हो अब मैं कहूँगी कि आत्मा की निलिप्तता जाएंगे, क्योंकि आपने यदि अपने चित्त को को समझने के लिए हमे स्व य का देखना है तो आपको आत्मा बनना होगा। आत्मा बने बिना किस प्रकार आप चित्त को भली-भांति अध्ययन करना होगा, स्पष्ट "किस प्रकार हम लिप्त है? देख पाएंगे? रूप से पहले स्थान पर अपने मस्तिष्क द्वारा तो आप देखें कि आपका चित्त कहाँ जा हम लिप्त हैं। अधिकतर अपने मस्तिष्क रहा है । स्थूल रूप से सर्वप्रथम आपकी द्वारा क्योंकि हमारा सारा अहं और बन्धन लिप्तता आपके शरीर से होती है हम Ego and Conditionings) हमारे मस्तिष्क देखते हैं कि शिव को अपने शरीर से में हैं। अतः भावनात्मक लिप्तता मस्तिष्क बिल्कुल माह नहीं है वो कहीं भी सो जाते के माध्यम से है और हमारी सभी अहंवादी हैं, श्मशान घाट में जाकर वो सॉ जाते हैं लिप्तताएं भी हमारे मस्तिष्क के माध्यम क्योंकि वो लिप्त नहीं हैं, उन्हें कोई भूत से हैं। इसलिए कहा गया है कि आत्म - आदि नहीं पकड़ सकता। ऐसा कुछ भी साक्षात्कार के पश्चात् साक्षी भाव अपना नहीं हो सकता। वे निर्लिप्त हैं। आपको कर शिव तत्व का अभ्यास करने का प्रयत्न अपनी लिप्तताओं के माध्यम से निर्लिप्तता को देखना चाहिए। करना चाहिए। अब क्योंकि आप आत्म साक्षात्कारी व्यक्ति अभी तक ये अब किस प्रकार आप ये साक्षी भाव (Detachment) अपनाएं? क्योंकि किसी हैं, अभी आत्मा नहीं बने भी चीज से यद्यपि हम मस्तिष्क के माध्यम आपके मस्तिष्क में नहीं आई परन्तु अब भी से लिप्त होते हैं पन्तु वास्तव में यह लिप्तता आप आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति हैं । तो अब चित्त (Attention) के माध्यम से होती है। कम से कम आप अपने चित्त को तो देख अतः हम 'चित्त निरोध करने का प्रयत्न सकते हैं। ये कार्य आप कर सकते हैं ये करते हैं । अ्थात अपने चित्त को नियंत्रित कार्य आप कर सकते हैं । अत्यन्त स्पष्ट 1. रूप से अआप अपने चित्त को देख सकते हैं: करने का प्रयास। "यह कहाँ जा रहा है?" सहजयोग में यदि आपको ऊँचा उठना है ये देखने से कि आपका चित्त कहाँ जा रहा तो आपको अपना यन्त्र सुधारना होगा, किसी है और तब आप इसका नियंत्रण भी कर अन्य का यन्त्र नहीं। ये बात व्यक्ति को सकते हैं। यह अत्यन्त साधारण बात है। अपने चित्त को नियंत्रित करने के लिए निश्चित रूप से जान लेनी चाहिए । 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-29.txt जनवरी-फरवरी 2002 26 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 आपको अपना चित्त इस से उस तक ले स्वीकार होना चाहिए और न पूछा जाना जाना होगा अपनी प्राथमिकताओं को बदलने चाहिए। बिल्कुल कोई बहाना नहीं बहानों का प्रयत्न करें यह सब कार्य अभी' करने के बिना जीवित रहना सर्वोत्तम मार्ग है । हैं - आत्मसाक्षात्कार के पश्चात पूर्ण सामान्य हिन्दी भाषा में कहा है कि जाही निर्लिप्तता। विधि राखे ताही विधि रहिए। जिस भी शरीर माँगता है, शरीर को थाडा हालात में आप मुझे रखेंगे मैं उसमें रहूंगा सा दुख देने का प्रयत्न करें। ये प्रयत्न और उसका आनन्द लूंगा। कबीर ने अपनी करें। जिस चीज़ को आप सुखकर समझते कविता में लिखा है कि "यदि आप मुझे हैं उसे थोड़ा सा कष्टदायी बनाने का प्रयत्न हाथी की सवारी कराएंगे अर्थात शाही सवारी, करें। इसी कारण से लोग हिमालय पर तो मैं उससे जाऊंगा, आप यदि मुझे पैदल जाया करते थे। देखिए इस स्थान पर आने के लिए ही हमारे सम्मुख बहुत सी समस्या राखे ताहि विधि रहिए। अतः मामले में आई। अब आप हिमालय पर जाने की किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं होनी कल्पना कीजिए| तो आत्मसाक्षात्कार प्राप्त चाहिए-कोई प्रतिक्रिया नहीं । प्रथम कोई करने के पश्चात् वे अपने शरीर को हिमालय बहाना नहीं और कोई प्रतिक्रिया नहीं । ले जाया करते थे, "ठीक है उन स्थितियों में रहो। देखें तुम किस प्रकार चलते हो। रूप में मानव की यह पहली इच्छा तो अब तपस्या का आरम्भ होता है एक भोजन पर बिल्कुल चित्त नहीं होना चाहिए। प्रकार ये तपस्या है जिसे आप अत्यन्त भोजन में नमक हो या न हो, जैसा भी सुख चलाएंगे तो मैं पैदल चलूंगा जाही विधि ा अब दूसरे स्थान पर भोजन है, पशु सुगमता से कर सकते हैं क्योंकि अब आप भोजन हो इस पर चित्त नहीं दिया जाना आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति हैं। आनन्द पूर्वक चाहिए। वास्तव में आपको ये भी याद नहीं इस शरीर को थोड़ा सा कष्ट देने का होना चाहिए आज सुबह आपने क्या खाया। प्रयत्न करें श्री शिव को इस बात से कोई परन्तु हम तो ये सोचते हैं कि आने वाले अन्तर नहीं पड़ता कि वे श्मशान घाट पर कल हम क्या खाएंगे। हम लोग शरीर को हैं, कैलाश पर या कहीं अन्य । आपका चित्त चलाने के लिए भोजन नहीं करते उससे कहाँ है? आप देखें कि आपका मानवीय कहीं अधिक जिह्वा के स्वाद की सन्तुष्टि चित्त बहुत ही खराब है, अत्यन्त लिप्त और करने के लिए करते हैं आप ये समझ लें बेवकूफी भरा। "हमने ये कार्य इसलिए किया कि यह सुख स्थूल चित्त की निशानी है । क्योंकि एक बहाना तैयार है या दूसरा। किसी भी प्रकार का सुख अत्यन्त स्थूल किसी बहाने की कोई आवश्यकता नहीं है। इन्द्रियार्थवाद होता है, इन्द्रियों का सुख। कोई बहाना न तो दिया जाना चाहिए, न यह बहुत स्थूल है। 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-30.txt जनवरी-फरवरी 2002 27 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 परन्तु जब मैं कहती हैँ कि सुखों में नहीं पड़ता है चाहे ये गांजा हो या कुछ और! फँसना है तो इसका ये अर्थ नहीं है कि कभी उन्हें नशा नहीं चढ़ेगा, नशे का कोई आप सब लोग इतने गम्भीर स्वभाव के हो प्रश्न ही नहीं है। शिव सभी कुछ भस्मीभूत जाएं कि मानो आपके परिवार में किसी की कर देते हैं। लोग ये भी सोचते हैं कि शिव मृत्यु हो गई हो। इसके स्थान पर आपको की तरह से यदि वे किसी भी चीज की शिव सम होना होगा-अत्यन्त निर्लिप्त । विवाह के लिए वे तेज दौड़ने वाले शिव को दिखावे की क्या आवश्यकता है? बैल पर सवार होकर आए। वे बैल पर उन्हें दिखावा करने की क्या जरूरत है? चिन्ता नहीं करेंगे तो वे शिव बन जाएंगे । बहुत सवार थे और उनके दोनों पैर इस प्रकार जो भी वे पहनते हैं वही उनका सौन्दर्य से लटके हुए थे। तेज़ दौड़ता और उसे सम्भालते हुए अपनी टाँगों को नहीं है । लटकाए श्री शिव! और जा रहे हैं विवाह करने के लिए! और उनके बाराती, किसी भद्दापन है । ये भद्दापन है, बेवकूफी है। परन्तु की एक आँख है किसी का नाक नहीं है! आप जैसे चाहें वस्त्र पहन सकते हैं। यदि सभी प्रकार के अजीबो गरीब लोग उनके आप सर्वसाधारण वस्त्र पहनेंगे तो भी अत्यन्त साथ आ रहे हैं और उनकी पत्नी शिव के गरिमामय व्यक्ति प्रतीत होंगे परन्तु ऐसा विषय में लोगों की ऊल जलूल बातें सुनकर नहीं होना चाहिए कि आप कहें कि "ठीक व्याकुल हैं! उन्हें बिल्कुल चिन्ता नहीं है है इस परिस्थिति में हम शरीर पर एक कि उनकी क्या इज्ज़त होगी आदि आदि। चादर ही लपेट लेते हैं।" परन्तु इसका अर्थ ये नहीं है कि आप हिप्पी बन जाएं। ये बहुत बड़ी समस्या है कि एक विकसित हो गया है। वह आपको शक्ति बार जब आप इस प्रकार सोचने लगते हैं देता है कि आप जो चाहे पहनें इससे तो आप हिप्पी बन जाते हैं। बहुत से लोगों का ये मानना है कि शिव आपका सौन्दर्य तो सदैव विद्यमान है। कुछ हुआ बैल है, उन्हें कुछ भी करने की आवश्यकता अतः किसी भी चीज के साथ लिप्सा आत्मा के माध्यम से आपमें जो सौन्दर्य आपके सौन्दर्य पर कोई अन्तर न होगा। TI की तरह से आचरण करने से व्यक्ति शिव परन्तु क्या आपने वह अवस्था प्राप्त कर बन जाता है। बहुत से लोग इस प्रकार से ली है? वह अवस्था आपको केवल तभी सोचते हैं कि यदि व्यक्ति गांजा पीना शुरू प्राप्त होती है जब आपकी आत्मा आपके कर दे तो वह शिव बन जाएगा क्योंकि श्री मस्तिष्क में प्रवेश करती है। अहंवादी लोगों शिव गांजा पिया करते थे। शिव तो गांजा में ऐसा होना अधिक कठिन है। यही कारण इसलिए पीते थे ताकि इस जहर को वो है कि वे आनन्द नहीं ले सकते। जरा सा विश्व से समाप्त कर दें उन्हें क्या फर्क बहाना मिलते ही वे लड़खड़ा जाते हैं और 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-31.txt जनवरी-फरवरी 2002 28 चें।-। लंहरी खसे X1V अके 1 े 2 आत्मा जो कि आनन्द का स्रोत है. नहीं द्विविधता कहाँ हैं? आप ही सूर्य हैं और आती. प्रकट नहीं होती। आनन्द तो सीन्दर्य आप ही घूप है, आप ही शब्द हैं आप ही है। आनन्द ही सीन्दर्य है परन्तु यह एक अर्थ हैं तो द्विविधता कहाँ है? अवस्था है जिसे व्यक्ति ने प्राप्त करना है। लिपसाएं भिन्न तरीकों से आती हैं। आप परन्तु जब पृथक्कीकरण (Separation) होता है तब द्विविधता होती है। पृथक होने इनमें उतरते चले जाए तो आपको अपने के कारण आपमें लिप्सा भाव आ जाता परिवार से मोह हो जाता है। मेरे बच्चे का क्यांकि आप यदि वही क्या होगा? मेरे पति का क्या होगा? मेरी किस प्रकार होंगे? इस बात को क्या आप मा, मेरी पत्नी तथा सभी मूर्खताओं का क्या हैं तो आप लिप्त समझ पाए? आपमें और 'आपके में यदि अन्तर है और दूरी है तभी आप लिप्त होते है। होगा? कीन आपकी मों है और कीन आपका घरन्तु यह में हूँ-दूसरा कीन है? पूरा पिता? कौन आपका पति है और कौन ब्रह्माण्ड में ही हूँ अन्य कौन है? सभी कुछ आपकी पत्नी हे? श्री शिव सो ये सारी चीजें मैं हूँ दूसरा कोन है? यह मस्तिष्क तरंग नहीं है और न ही है। यह अहं लहरी है। दूसरा कौन है? कोई नहीं जानते। उनके लिए तो वे और उनकी शक्तियां अविच्छेदय (inseparable) तो वे अवत व्यक्तित्व पर खड़े हुए हैं उनमें नही। कोई द्वैतवाद नहीं। जब द्विविधता (Duality) होती है तब आप कहते हैं मेरी पत्नी, मरा आफके मस्तिष्क में आ जाती है और आप नाक मेरे कान, मेरे हाथ, मेरा, मेरा मेरा विराट के अंग प्रत्यंग बन जाते हैं । जैसा और इस प्रकार आप अधोगति की ओर मैंन आपको बताया विराट ही मस्तिष्क है । ये तभी सम्भव है जब आपकी आत्मा बढते जाते है । तब यदि आप अपना गुरूसा प्रकट करते हैं, तब तक अपना स्नेह प्रकट करते हैं, करुणा प्रकट या कुछ अन्य, तो आपकी आत्मा जब तक हम मेरा कहते हैं द्विविधता शेष होती है। परन्तु जब मैं कहती करते हैं। हूं में, य नाक तब द्विविधता नहीं होती। ही यह सब अभिव्यक्ति करती है क्योंकि शिव ही शक्ति, शक्ति ही शिव द्विविधता नहीं है। परन्तु सदैव हम अपनी है अब यह सीमित" मस्तिष्क, असीम आत्मा द्विविधता में रहते हैं, इसके कारण लि प्तता बन गया है। बनी रहती है। न हो तो इसमें मसितिष्क का तो अस्तित्व ही खत्म हो गया । द्विविधता यदि में नहीं जानती, मैं वास्तव में नहीं जानती लिता का ह आप यदि प्रकाश हैं और कि इस प्रकार सोचने के लिए क्या उपमा आप ही दपक है तो ह्विविधता कहा है? दूँ परन्तु हम इसे इस प्रकार समझ सकते आप ही याद चांद है आप ही चाँदनी हैं तो है कि समुद्र पर यदि हम कोई रग डालें तो ১hr he 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-32.txt ज4री फररी 2002 29 पैत-य लंहरी खंड XIV अके 1 व 2 उसका जल रंगीन हो जाना सम्भव नहीं रंगमय हो जाए। पूरा वातारण, हर चीज़, हैं। समझने का प्रयत्न करें कि कछ थोड़ा जिसे भी आप देखें वह रंगीन हो जानी सा रंग यदि समुद्र पर डाल दिया जाए तो चाहिए। रंग का अस्तित्व समाप्त हो जाता है इसी यही कारण है कि आज मेंने शिवतत्व बात को दूसरी तरह समझें। समूद्र का को मस्तिष्क में लाने का प्रयत्न किया। जल यदि रंगीन हो और इस जल को मस्तिष्क में शिव तत्व को लाने के लिए वातावरण में डाल दिया जाए या किसी पहला तरीका ये है कि आप मस्तिष्क से चीज़ पर डाल दिया जाए, किसी भी वस्तु कहे "श्रीमान मस्तिष्क आप कहाँ जा रहे पर डाल दिया जाए. तो यह सब रंगीन ही है। आपका ध्यान इस चीज पर जा रहा है उस चीज पर जा रहा है और आप इनमें जाता है। आत्मा उस सागर की तरह से है जिसमें उलझ रहे है। अब स्वयं को निर्लिप्त करें प्रकाश है और जब ये सागर मस्तिष्क रूपी आर स्वयं मस्तिष्क वन जाए निर्लिप्त हो जाएं, नि्लिप्त हो जाए नन्हे से प्याले में उतरता है तो प्याले का अस्तित्व समाप्त हो जाता है और सभी कुछ आध्यात्मिक बन जाता है। सभी कुछ। हुए नि्िप्त मस्तिष्क को लें। यह स्वतः ही आप हर चीज को आध्यात्मिक बना सकते घटित होगा जब तक आपके चित्त के हैं. किसी भी चीज को आध्यात्मिक बना सकते हैं। किसी भी चीज को यदि आप छू होगा । अतः सरभी साधकों को स्वयं सोच दें तो वह आध्यात्मिक हो जाती है। रेत समझकर ये तपस्या करनी हागी। आध्यात्मिक हो जाती है, पृथ्वी आध्यात्मिक तब आत्मा के रंग से पूरी तरह से भरे साथ ये सीमाएं बनी रहेंगी ये घटित न मैं आपके साथ हूँ। अब आपको इस प्रकार से काई पूजाएं करने की आवश्यकता है। दिव्य पदार्थ आध्यात्मिक हो जाते हैं, नहीं हैं। परन्तु अब आपको वह अवस्था प्राप्त करनी है और इसके लिए पूजा की हो जाती है, वातावरण आध्यात्मिक हो जाता हर चीज आध्यात्मिक हो जाती है। है और आवश्यकता है। मुझे आशा है कि आपमें से अंतः आत्मा सागर (असीम) आपका मस्तिष्क सीमित है । आपके सीमित मस्तिष्क की लिप्तता को बहुत से लोग मेरे जीवन काल में ही शिवतत्व बन जाएगे। परन्तु ये न समझे कि मैं आपको कष्ट उठाने का कह रही हूँ। इस प्रकार के आत्मा रूपी सागर के दायरे में लाना आवश्यक है । मस्तिष्क की सारी सीमाएं उत्थान में कोई कंष्ट नहीं उठाना पड़ता । टूट जानी मस्तिष्क को भरे तो यह उस छोट्ट प्याले की अवस्था है यही समय होता है जब को पूरी तरह से तोड़ दे और यह प्याला आप निरानन्द बन जाते हैं। सहस्रार में चाहिए ताकि जब वह सागर आप यदि इसे समझे तो ये अत्यन्त आनन्द 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-33.txt जनवरी फरवरी 2002 30 पैतन्य लहरी ख-XIV अक 1 वे 2 कर सकते हैं। अतः इसके लिए प्रयत्न इसी आनन्द का नाम बताया गया है। यह নाम निरानन्द' है। और आप जानते है कि करें। आपकी माँ का नाम भी निरा है. आप तो आज से हम गहनतर स्तर पर निरानन्द हो जाते हैं। तो आज की शिव प्ूजा का विशेष अर्थ आपमें से कुछ इस स्तर को प्राप्त न कर है। मुझे आशा है कि बाह्य में, स्थूल ढंग से पाएं परन्तु आप सबको गहनता में जाने हम जो भी करेंगे वह सूक्ष्म रूप से का प्रयत्न करना चाहिए। हर एक को । सहजयोग आरम्भ करते हैं । हो सकता है कुछ घटित होगा। ऐसा करने के लिए न तो वैभवशाली व्यक्तियों मैं आपकी आत्मा को आपके मस्तिष्क में की आवश्यकता है और न ही बहुत पढ़ें लाने का प्रयत्न कर रही हैं, परन्तु कभी लिखों की। नहीं बिल्कुल भी नहीं। कभी मुझे ये कार्य कठिन लगता है क्योंकि अभी भी आपका चित्त उलझा हुआ है। स्वयं को निर्लिप्त करने का प्रयत्न करें। पहली जड़ों की तरह से होते हैं जो अन्य क्रोध, वासना, लोभ सभी विकारों को कम लोगों के लिए बहुत गहराई में जाती हैं करने का प्रयत्न करें जैसे खाने के बारे में ताकि अन्य लोगों के लिए भी मार्ग बन मैंने डा. वारेन से कहा, "इनसे कहें कि कम सके। खाया करें, पेटुओं की तरह से न खाएं। कभी-कभी किसी प्रीति भोज में चाहे आप अथर्वशीर्ष पढ़ेंगे. मेरे चरण आदि को बहुत ज्यादा खा लें परन्तु सदैव ऐसा न करें ये ज्यादा नहीं धोना है। केवल अथर्वशीर्ष करना सहजयोगी की निशानी नहीं है नियंत्रण हैं। जो लोग ध्यान धारणा करते हैं, समर्पित हैं, वही गहनता में उतरते हैं क्योंकि वो आज की पूजा में हम संक्षिप्त गणेश शिव हर वक्त स्वच्छ, निर्मल एवं निष्पाप अपनी वाणी पर नियंत्रण करने का प्रयत्न होते हैं, तो निष्कलंक को आप क्यों धोएंगे। आप कह सकते हैं कि श्रीमाताजी आपके रहे हो या करूणा की, या करूणामय होने चरण कमलों को धोते हुए जल में आपका का दिखावा कर रहे हैं? नियंत्रण करने का चैतन्य आ जाता है।" परन्तु ये इतने निर्लिप्त हैं कि इन्हें धोने की कोई आवश्यकता नहीं। मैं जानती हूँ कि आपमें से कुछ विशेष रूप से उस अवस्था में जब आप लोग बहुत अधिक न कर सकेंगे ये ठीक पूरी तरह से धुल जाते हैं. पूरी तरह से करने का प्रयत्न करें। करें। आप अपने क्रोध की अभिव्यक्ति कर प्रयत्न करें। | मैं बार-बार आपको बताने का प्रयत्न स्वच्छ हो जाते हैं। करुंगी, आपकी सहायता करने का प्रयत्न करेंगे। क्योंकि करुंगी और आपमें से अधिकतर ऐसा देवी जो कि कुमारी हैं उनकी पूजा होनी इसके बाद आप देवी पूजन 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-34.txt जनवरी-फरवरी 2002 31 चैतन्य लहरी खंड-XIV अक 1 व 2 चाहिए। हम गौरी के 108 नाम लेंगे । आकर्षण, अन्य सभी सुख, अहं के सभी तत्पश्चात् हम शिव की पूजा करेंगे। मुझे खेद है कि एक ही प्रवचन में मैं निरानन्द तत्व में पूरी तरह से उतर जाएं। आपको सब कुछ नहीं बता पाऊंगी। परन्तु आनन्द आदि त्याग दें और शिव तत्व के मुझे आशा है कि मैं आपको बता पाई हूँ आपके आत्मसाक्षात्कार में आपकी निर्लिप्तता कि आज मैं यहाँ क्यों आई और आज का अवश्य अभिव्यक्त होनी चाहिए। निर्लिप्तता। दिन इतना महान क्यों है। यहाँ उपस्थित समर्पण क्या है? ये कुछ नहीं है, जब आप निर्लिप्त होते हैं तो स्वतः ही समर्पित होते चाहिए कि परमात्मा आप पर बहुत दयालु हैं। अन्य चीज़ों से जब आप चिपके होते हैं हैं। उन्होंने आपको यहाँ उपस्थित होने के तब आप बिल्कुल भी समर्पित नहीं होते। मेरे प्रति समर्पित होना क्या है? मैं तो एक बार जब आप निर्लिप्त हो जाएंगे तो इतनी निर्लिप्त व्यक्ति हूँ कि ये सब मेरी आपमें जिम्मेदारी का भाव आ जाएगा। आप समझ में ही नहीं आता! मैंने आपसे क्या अभिव्यक्त- जिम्मेदार हो जाएंगे यह निकालना है? मैं इतनी निर्लिप्त हूँ, इसके जिम्मेदारी आपको अहं नहीं देगी। यह अतिरिक्त कुछ नहीं। आज हम सब लोग प्रार्थना करेंगे कि की अभिव्यक्ति करेगी और स्वतः प्रकट "हे परमात्मा हमें शक्ति दो और आकर्षण होगी । आप सब लोग भाग्यशाली हैं। आपको सोचना लिए और यह सब सुनने के लिए चुना है। जिम्मेदारी स्वयं को पूर्ण करेगी। ये स्वयं परमात्मा आपको धन्य करें। का वह स्रोत दो जिससे हम अन्य सभी 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-35.txt शक्ति देवी पूजा मॉस्को, 17.9.95 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन मुझे खेद है कि आज आने में देर हुई राष्ट्र को हानि पहुँचाने वाले कार्य करने के परन्तु मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपने परस्पर लिए ये एकत्र हो जाते हैं । सहजयोगियों संगत का आनन्द लिया होगा और को तो इस प्रकार के आनन्द का ज्ञान ही सामूहिकता का आनन्द तो अत्यन्त महान नहीं है। जब होता है। एक बार ऐसा हुआ कि मुझे कहीं उनका हर क्षण आनन्द से परिपूर्ण होता जाना था और बायुयान के आने में विलम्ब है। कल जब आप लोग वायुपत्तन पर एकत्र हुआ। मुझे चिन्ता हुई कि मैं देर से पहुँचूंगी हुए तो मैं ये बात देख पाई । आप लोग मेरी परन्तु वायुयान समय से सात घण्टे देर से प्रतीक्षा कर रहे थे और जब मैं पहुँची तो आया और दिल्ली के सभी सहजयोगी जो मैंने देखा कि किस प्रकार आपके चेहरे वे सामूहिकता में होते हैं तो मुझे लेने वायुपत्तन आए थे वो वहाँ मेरी आनन्द से चमक रहे हैं। प्रतीक्षा कर रहे थे। जब मैं वहाँ पहुँची तो वे सब इतने तरोताजा और अच्छे दिखाई निर्णय किया है देवी की पूजा जिनके आज हमने देवी की पूजा करने का दे रहे थे कि, मैं हैरान हैं, मैंने उनसे पूछा बहुत से रूप हैं। बार-बार मानव की आसुरी कि क्या आप घर वापिस चले गए थे? शक्तियों से रक्षा करने के लिए तथा उन्हें कहने लगे नहीं नहीं आपकी प्रतीक्षा में हम सुरक्षा भाव प्रदान करने के लिए देवी पूरी रात वायुपत्तन पर गा रहे थे, नाच रहे अवतरित हुई। परन्तु मैं नहीं सोचती कि थे और आनन्द ले रहे थे। सहजयोग की किसी भी अवतरण में उन्होंने आत्मसाक्षात्कार विशेषता है कि हम हर क्षण का आनन्द ले का कार्य किया। ये अत्यन्त दिलचस्प और सकते हैं। अपने हित के लिए आनन्द ले आनन्ददायी कार्य है आसुरी लोगों से युद्ध सकते हैं पश्चिमी देशों, विशेष रूप से करके अच्छे लोगों की रक्षा उन्हें करनी अमरीका, में आधुनिक धारणा ये है कि हमें पड़ी क्योंकि असुरों के हाथों ये लोग अपनी अपने जीवन के हर क्षण का आनन्द लेना अबोधिता और सहजता के कारण कष्ट 1 चाहिए परन्तु वास्तव में जिन चीजों को ये उठा रहे थे। ये सब कुछ बहुत समय पूर्व आनन्द की सज्ञा देते हैं वे सब आत्मघातक घटित हुआ। आज बसन्त का विशेष समय है जिसमें आप सब लोग फल बन गए है। मद्यपान या द्वन्द युद्ध आदि निराशाजनक कार्य जो ये करते हैं वो नहीं किए जाने हैं। पृथ्वी पर बहुत से पुष्प थे। अब आप चाहिएं। ऐसे कार्यो से इनकी सामूहिकता सब फल बन गए हैं यह बात अत्यन्त बहुत भयानक हो जाती है कि ये तस्करी उत्साहजनक है कि रूस और यूक्रेन में और हत्याएं करने लगते हैं । स्वयं को तथा इतनी अधिक संख्या में लोग आध्यात्मिक काम 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-36.txt जनवरी-फरवरी 2002 33 चैत-य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 रूप से संवेदनशील हैं। आत्मसाक्षात्कारी प्रसन्नता होगी जब इस देश की और यूक्रेन होना आप सबके लिए बहुत बड़ा आशीष की सारी समस्याओं का हल आप लोग है। यह सारी सामूहिक घटना निश्चित रूप निकाल लेंगे इसके लिए आपको अपनी से पूरे विश्व के लिए महान उद्धारक साबित सरकार पर निर्भर रहने की कोई आवश्यकता होगी। हमारे देश में समस्याएं हैं। परन्तु अब मैं देश के पतन की ओर अग्रसर होने का आप सब सहजयोगियों को बता रही हूँ कि कारण मैं समझ पाई हूँ। आपके ज्योतित जो भी शक्तियाँ आपको प्राप्त हुई हैं देवी विवेक के माध्यम से देवी की यह शक्ति, की उन सब शक्तियों को आप आयोजित जो कि आपके अन्दर जागृत है, आपको रूप से प्रतिपादित करें। सहजयोगी होना पर्याप्त सूझ-बूझ प्रदान करेगी कि आप अत्यन्त आनन्दायी है परन्तु आप लोग तो इस समस्या का समाधान कर सकते हैं । सहजयोग को अग्नि की तरह तेजी से फैला रहे हैं क्योंकि ये दोनों दे श वह ये है कि यहाँ के लोग समझते हैं कि आश्चर्यजनक रूप से आध्यात्मिकता के प्रति पूरे पश्चिम में वैभव का प्राचुर्य है। पश्चिमी अत्यन्त संवेदनशील हैं। देवी की यह शक्ति देश स्वर्ण से भरे हुए नहीं । जिस प्रकार जो आपने अपने अन्दर प्राप्त कर ली है आप लोग आनन्द से परिपूर्ण है वहाँ पर तो इसे अब विवेकशील तरीके से प्रसारित किया आनन्द का पूर्ण अभाव है। उन लोगों के जाना चाहिए । उदाहरण के रूप में एक चेहरे आपकी तरह से सुन्दर और सन्तोषमय बार जब मैं यहाँ आई तो आप लोग अत्यन्त नहीं हैं। आप यदि सूक्ष्मता से देखें तो उन्हें कठिनाई से गुजर रहे थे और शायद मैंने आर्थिक समस्याएं भी हैं। इस देश में इसलिए उस स्थिति को संभाला भी था। परन्तु अब नहीं है। मैं आपको बताती रही हूँ कि इस इस देश में पहली चीज जो मैंने देखी है समस्या है कि यहाँ पर सभी चीजें विदेशों आप सब इस कार्य को संभाल सकते हैं से आई हैं। इन वस्तुओं को भेजने वाले और इस शक्ति को प्रतिपादित कर सकते देशों में मन्दी का प्रकोप है। वहाँ पर कुछ हैं। अब मैं देखती हूँ कि यहाँ पर समस्या बिकता नहीं है। ये सारा कबाड़ा और बेकार मुख्य रूप से आर्थिक है और आप लोग की चीज़े वे आपके देश में, यूक्रेन में, तथा यदि अपने मस्तिष्क इस समस्या पर डालें पूर्वी ब्लाक के देशों को भेज रहे हैं । जो भी तो आप इसका कारण जान जाएंगे। मेरे रूबल आपके पास थे वो सब आपने इन कचरा वस्तुओं को खरीदने पर बर्बाद कर सन्तोषजनक है। मैं आपकी माँ हूँ और दिए। मेरे देश में जब स्वतन्त्रता संग्राम प्रति आपका जो समर्पण है वह अत्यन्त युक्रेन के लोगों की भी माँ हूँ। परन्तु में चल रहा था तो महात्मा गांधी ने कहा हम रूस और पूरे यूक्रेन की भी माँ हूँ। मुझे तब कोई भी विदेशी चीज नहीं खरीदेंगे। उन्होंने 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-37.txt जनवरी-फरवरी 2002 34 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 वे 2 कहा हम यदि विदेशों से आई चीजों को न कुड़े पर बर्बाद कर रहे हैं। एक बार यदि खरीदें तो हमारा उद्योग और हस्तशिल्प विदेशों से आने वाली इन सब चीज़ों का उन्नत होगा। महात्मा गाँधी ने हमारे देश आना बन्द कर दें, इनका पूर्णत बहिष्कार की जीवन शैली को ही परिवर्तित कर दिया। कर दें तब, आप हैरान होंगे वे लोग यहाँ सभी लोगों को भारत में बनी खादी पहनने क्या करते हैं। वो सब परमात्मा के प्रेम की के लिए प्रेरित किया गया आज भी आप शक्ति के विरुद्ध भारत के बाजारों में कोई भी आयायित करना चाहते हैं। किसी से यदि आप प्यार चीज नहीं पा सकते। संघर्ष के दिनों में करते हैं तो आप उसका शोषण नहीं कर कोई यदि विदेशी चीजें अपनी दुकान पर सकते। ये चीजे आपके देश के लिए हितकर बेचने का प्रयत्न करते तो विद्यार्थी व युवा नहीं हैं। पश्चिम के लोगों की शैली को कार्यकर्ता जाकर ऐसी दुकानों के सम्मुख यदि आप देखें तो आपको आघात पहुँचेगा। खड़े हो जाते और कहते विदेशी चीजें मत देवी द्वारा वरदान के रूप में दी गई सभी बेचो। उस समय हम पर अंग्रेजों का शासन सुन्दर चीजों को उन्होंने नष्ट कर दिया है। था। वे हमें गिरफ्तार करते परन्तु कोई इस जीवन के पावित्र्य का तथा आध्यात्मिकता बात की चिन्ता नहीं करता। आयातित चीजों का उन्हें कोई विवेक नहीं रहा। वे तो पर रोक लगा दी गई थी आज भी हम केवल पैसा-पैसा-पैसा जानते हैं। उनमें बाजार में आयातित वस्तुएं नहीं खरीद चरित्रविवेक का भी पूर्ण अभाव है । सकते। निःसन्देह कुछ मूर्ख लोग हैं जो तस्करी द्वारा चीजें ले आते हैं और मूर्ख देवी को प्रसन्न कर सकते हैं? यदि आप लोग पाश्चात्य संस्कृति अपनाने के लिए वो सहजयोगी हैं तो आपको इस बात का वस्तु खरीदना चाहते हैं। परन्तु ऐसे लोग ज्ञान होना चाहिए कि कौन सी चीजें देवी बहुत कम हैं और उस देश में देवी की को प्रसन्न करती हैं। देवी को प्रसन्न किए शक्ति के प्रभाव से ऐसे लोगों का पर्दाफाश बिना न तो आप प्रसन्न हो सकते हैं न ही हो रहा है। अतः अपने देश के प्रति आपका कभी अच्छे सहजयोगी बन सकते हैं। इसके भी कर्तव्य है। पृथ्वी माँ ने आपको एक लिए आपमें ये समझने का विवेक होना स्थान दिया है, जन्म दिया है। अतः आपको आवश्यक है कि देवी केस प्रकार प्रसन्न हैं क्योंकि वे तो शोषण सदचरित्र के बिना किस प्रकार आप इस देश की मान मर्यादा और खुशहाली होती हैं। सहजयोगियों के अतिरिक्त मेरे की रक्षा करनी चाहिए। किस प्रकार अमरीकन तथा अन्य लोगों ने उतना चिवेक नहीं यहाँ पर कचरे की दुकाने खोल दी हैं और इसका कारण निःसन्देह, ये है कि हर यहाँ के लोग अपने बहुमूल्य धन को इस समय वो क्षणिक सुखों के विषय में सोचते मैं हैरान हूँ कि विचार में पश्चिम के आधे लोगों में भी है जितना आपमें है । 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-38.txt जनवरी-फरवरी 2002 35 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 रहते हैं तथा चरित्रहीन जीवन शैली को विश्व भर के लोगों के जीवन को बेहतर अपना लेते हैं, उस शैली को जो देवी बनाने के लिए ये शक्ति निरन्तर कार्यरत (Goddess) विरोधी है । ये लोग भयंकर है । परन्तु दुर्भाग्य की बात है कि सभी देश असाध्य रोगों से पीड़ित हैं। अपने माँ-बाप आप जैसे नहीं हैं जिनमें अपनी देवी माँ का को वे मार डालते हैं। अपने बच्चों की वे प्रेम महसूस करने के लिए हृदय हो। यह 1 हत्या कर देते हैं। प्रेम का तो कोई प्रश्न ही तो प्रेम एवं करुणा का सागर है जो सभी नहीं है। देवी की शक्ति तो प्रेम की शक्ति तटों को छू लेना चाहता है। ये चाहता है है। विश्व में उनके सभी कार्य, उनकी करुणा कि सभी के हृदय छू ले। परन्तु कुछ लोग एवं प्रेम के माध्यम से होते हैं। देवी का पूर्ण तो पत्थर होते हैं। रूस के पास अत्यन्त शरीर, उनका पूर्ण अस्तित्व ही करुणा एवं विशाल हृदय है और यूक्रेन के पास भी | प्रेम से बना हुआ है, किसी अन्य तत्व से मेरी समझ में नहीं आता कि पूर्वी ब्लाक के नहीं। ये शक्ति वास्तविकता की सूझ-बूझ देशों ने किस प्रकार इतना विशाल एवं प्रदान करती है और व्यक्ति को अन्दर उत्तम हृदय प्राप्त कर लिया! वो ज्यादा बाहर से ज्योतिर्मय भी करती है। उदाहरण वैभवशाली नहीं है इस कारण से हमें उन्हें के रूप में आपको यदि किसी व्यक्ति से छोटा नहीं मान लेना चाहिए। जहाँ आप प्रेम है तो आप उसके विषय में सब कुछ अपने बच्चों का और बच्चे अपने माँ बाप जान जाते हैं। इसका पैसे से कुछ नहीं का विश्वास नहीं कर सकते वहाँ वैभव का लेना-देना। यह उच्चतम, बहुमूल्यतम एवं क्या महत्व है? पैसे के लिए वे एक दूसरे है जो आपको की हत्या कर देते हैं। निःसन्देह वहाँ पर अत्यन्त महत्त्वपूर्ण शक्ति प्राप्त हो गई है। जब कभी आप किसी ऐसा प्रभाव है कि लोग किसी भी कीमत उत्तम या हितकर कार्य के लिए सोचते हैं पर पैसा चाहते हैं। तो यह शक्ति आपके उस विचार में प्रवेश कर जाती है और तत्पश्चात् ये विचार पूरे माफिया से डरेंगे नहीं और अपनी ध्यान ब्रह्माण्ड में आपके देश में तथा लोगों में धारणा के दौरान यदि आप ये माँगेंगे कि प्रसारित हो जाते हैं। इस प्रेम और करुणा श्री माताजी ये माफिया समाप्त हो जाए तो का केवल एक लाभ है, सभी को आनन्दमय मैं वचन देती हूँ कि ये माफिया समाप्त हो देखना बस। सच्चे शब्दों में आनन्द मग्न जाएगा ये कार्य हो जाएगा। कल जिस देखना। इस शक्ति को सामूहिकता की प्रकार आपने मेरे अच्छे स्वास्थ्य के लिए चिन्ता होती है तथा व्यक्ति की भी। यह आप लोग यदि ये निर्णय करें कि आप प्रार्थना की वैसे ही अपने देश के हित की पूरे विश्व की चिन्ता करती है और किसी याचना करें। ये आपके विचारों का विवेक देश विशेष की भी। इस आधुनिक काल में हैं। आपकी विवेकशीलता इतनी तीव्र हो 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-39.txt जनवरी फरवरी 2002 36 पैतन्य लहरी खं-XIV अंक । व 2 जाएगी कि मैं इसे परम विवेक का नाम कार के दरवाजे पर रखते ताकि मुझे चोट देती हूँ। इस विवेक के माध्यम से आप न लगे इतना ही नहीं उन्होंने सभी जड़ों तक देख पाएंगे और समस्या का एवं अस्वस्थ लोगों, तथा जो लोग चल नहीं वृद्ध सकते थे, उनकी बहुत देखभाल की उनकी समाधान कर लेंगे। अतः सर्वप्रथम आपको देश भक्त बनना कुर्सियों को वे चीन की महान दीवार तक होगा। मैं ये बताना चाहूँगी कि जब मैं चीन ले गए। उन्होंने गोष्ठी में भाग लेने वाले गई तो ये देख कर हैरान हुई कि यद्यपि वो लोगों की इतनी सहायता की कि मैंने लोग साम्यवादी हैं फिर भी वो अत्यन्त दूरदर्शन पर देखा कि वापिस जाते हुए देशभक्त हैं। वो अत्यन्त चरित्रवान भी हैं। अमेरिका के लोग भी फूट-फूट कर रो रहे मैंने पाया कि धन के मामले में वो इसलिए थे और पत्थर दिल अमेरिका के लोग भी उन्नत हो गये हैं क्योंकि उनके यहाँ से कह रहे थे कि ये प्रेम हमें अपने देश में जितने भी लोग विदेश जाते हैं वो अपना प्राप्त नहीं होता। यह सब अत्यन्त हृदयस्पर्शी धन चीन भेजते हैं ताकि उनका देश विकसित था और इस आधुनिक काल में अत्यन्त हो सके | इस गोष्ठी के लिए जब मैं चीन स्पष्ट था। आज जब लोग इतने शुष्क गई तो मुझे हैरानी हुई कि किस प्रकार कार्यकर्ताओं ने, जो कि विद्यार्थी थे. अपनी बिना कोई पैसा लिए सारा कार्य किया। सेवाएं निःशुल्क अर्पित कीं! वायुपत्तन पर किसी ने अगर इन्हें टिप देनी चाही तो वही लोग थे, होटलों में वही लोग थे, इन्होंने स्वीकार नहीं की हम खरीददारी बाजारों में वही लोग थे, सर्वत्र वही लोग के लिए बाजार गए और वहाँ बहुत से खड़े थे और इस बात को देख रहे थे लोगो को आत्मसाक्षात्कार दिया| बाजार स्वभाव और धन लोलुप हैं इन लोगों ने हुए कि यह गोष्ठी सफल हो। यद्यपि चीन के गए, दुकानों पर गए और वहाँ सभी लोग लोग खाने के बहुत शौकीन हैं फिर भी इस बहुत तेजी से आत्मसाक्षात्कार ले रहे थे। गोष्ठी के दौरान वो लोग पूरा पूरा दिन उन्होंने जब पूछा तो मैंने उन्हें एक बात खाना नहीं खाते थे उदाहरण के रूप में वे बताई कि रूस के लोग उन्हें पसन्द नहीं मेरे प्रति बहुत विनम्र एवं करुणामय थे। करते क्योंकि चीन के लोग रूस जाकर जब हम बाहर गए तो पूरा दिन हम बाहर विवाह कर लेते हैं और फिर रूसी महिलाओं परन्तु ड्राइवर ने बिल्कुल इस बात की को तलाक दे देते हैं और अपनी पत्नी को शिकायत नहीं की कि उसे खाना नहीं वहाँ ले आते हैं उन्होंने मुझे इसका कारण मिला, कुछ नहीं मिला। वे आत्मसाक्षात्कारी बताया कि रूस की महिलाएं तलाक देने नहीं हैं परन्तु जब मैं बाहर जाने के लिए के लिए बहुत उपयुक्त हैं बहुत ही जल्दी वे थे तलाक स्वीकार कर लेती हैं। वो अत्यन्त कार तक आई तो सब आकर अपना हाथ 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-40.txt जनवरी-फरवरी 2002 37 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 रौबीली हैं लेकिन रूसी सहजयोगी महिलाएं है कि वहाँ उपस्थित अमरीकन लोगों के ऐसी नहीं हैं। परन्तु चीन की महिलाएं ऐसी विषय में भी उन्होंने कहा कि वो अभी बच्चे नहीं हैं। वे अत्यन्त विवेकशील हैं। वो जानती हैं, उन्हें अभी विकसित होना है। ये अत्यन्त हैं कि उनकी भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है आश्चर्य की बात थी । अमरीका के लोग और ये भी जानती हैं कि उनके बच्चे इस प्रकार से बनने चाहिए कि वो अच्छे चीनी और हर बात पर इठला रहे थे और उन्होंने नागरिक बन सकें। प्रायः वो परिवार से इतना ही कहा कि ये अभी बचकाने हैं। बाहर नहीं जाना चाहतीं और न ही अपने मुझे इस बात की चिन्ता नहीं है कि उनकी बच्चों की अनदेखी करना चाहती हैं, बिल्कुल सरकार किस प्रकार की है और आपकी भी नहीं । उनके धर में यदि कोई दादीमाँ कैसी? महत्वपूर्ण बात तो ये है कि हम उनके बच्चों की देखभाल के लिए है केवल किस प्रकार के लोग हैं उनपर मैं बहुत तभी वे अपने बच्चों को छोड़कर जाती हैं। हैरान थी अपने बच्चों के प्रति वे बहुत अत्यन्त अपमानजनक व्यवहार कर रहे थे ये बुजुर्ग महिलाएं भी अत्यन्त स्नेहमय एवं चिन्तित थीं कि बच्चे किस प्रकार का आचरण करूण होती हैं। केवल ऐसा होने पर ही करते हैं किस प्रकार बात करते है और चीन की महिलाएं बाहर कार्य करने के उनके सम्बन्ध अन्य लोगों से किस प्रकार लिए जाती हैं ये देखकर मैं हैरान थी कि के हैं । वो अपने बच्चों को सिखाते हैं कि रूस के लोगों की तरह से वे महिलाएं भी बो अपनी चीजें अन्य लोगों से बाँटें, इन सभी प्रकार के कार्य कर रही थीं। चाहे वे चीजों पर केवल उन्हीं का ही अधिकार रेलगाड़ियाँ न चलाएं, चाहे वे कारखाने न नहीं है। उनकी चीजें सभी बच्चों की हैं। चलाएं क्योंकि आप जानते हैं चीन की महिलाएं कद-बुत में छोटी हैं और अत्यन्त था, सहजयोग में भी हम चाहते हैं कि सभी स्वस्थ भी हैं। परन्तु परमात्मा की कृपा से लोग मिलकर चीजों का आनन्द लें। जिस आप लोगों को उनसे कहीं अच्छा स्वास्थ्य उनका ये व्यवहार सहजयोग की तरह प्रकार से अपने देश की कला का वो सम्मान अच्छी ऊँचाई प्राप्त हुई है। आपके डीलडौल करते हैं उसे देखकर मैं हैरान थी अपने की वो भी वास्तव में सराहना करती हैं और देश के कलाकारों के विषय में वे सब कहती हैं देखिए ये लोग कितने विशालकाय जानते हैं जबकि उनका देश बहुत बड़ा है। हैं और हम उनके सम्मुख बौने हैं! मैं हैरान वो ये भी जानते हैं कि देश के किस भाग थी क्योंकि उन्होंने किसी की आलोचना में कौन सी कलात्मक वस्तुएं बनाई जाती नहीं की। उन्हें इस बात का ज्ञान था कि हैं मैं वास्तव में उन पर बहुत हैरान थी, किस व्यक्ति में, किस खूबी की प्रशंसा की खास कर पुरुषों पर। भारत में हमारे लोग जानी चाहिए। ये अत्यन्त आश्चर्य की बात अत्यन्त निराशाजनक हैं, कला की तो उन्हें 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-41.txt जनवरी-फरवरी 2002 38 मैतन्य लहरी खंड-XIV अक 1 व 2 कोई चिन्ता ही नहीं। कला के विषय में वे हुए हैं परन्तु आप परस्पर प्रेम करते हैं । कुछ नहीं जानते। वो ये भी नहीं जानते कि इस बिना पर कि एक का रंग श्वेत है और अपने घर को किस प्रकार साफ करना है दूसरे का अश्वेत, आप एक दूसरे का अपमान या बर्तन किस प्रकार साफ करने हैं. वो नहीं करते। क्योंकि प्रेम ने आपको विशेष कुछ भी नहीं जानते, खाना बनाना तक रूप से ये सूक्ष्म अन्तर्दृष्टि प्रदान की है । उन्हें नहीं आता। मैं तो कहूँगी कि वों घर यह दृष्टि आन्तरिक सौन्दर्य, आपके अस्तित्व में अन्य बच्चों की तरह से हैं जिन्हें बहुत के आन्तरिक सौन्दर्य को देखती है। एक दूसरे का आप आनन्द लेते हैं क्योंकि आपको इसमें महिलाओं को बहुत बड़ी भूमिका प्रेम का मूल्य पता है जैसा मैंने कहा प्रेम निभानी होती है क्योंकि महिलाए पुरुषों को अत्यन्त महत्वपूर्ण, अत्यन्त मूल्यवान गुण है अंधकार में बनाए रखने के लिए सभी कुछ परन्तु यह प्रेम पूर्णतः स्वच्छ प्रेम होना चाहिए। करती हैं। पुरुष महिलाओं के हाथों की इसमें कामुकता और लोभ का कोई स्थान बने रहें । पुरुषों को न तो सड़कों नहीं है किसी व्यक्ति को इसलिए प्रेम का ज्ञान है न शहरों का । महिलाएं सभी नहीं करना चाहिए क्योंकि आप उस व्यक्ति कुछ जानती हैं आप यदि उनसे पूछें कि का लाभ उठाना चाहते हैं, क्योंकि उस ये गलीचा क्या है? यह किस देश से आया व्यक्ति के पास धन है या उसमें किसी प्रकार का आकर्षण है । किसी विशेष कारण कि यह कहाँ से आया है आपके लिए यह से प्रेम किसी के साथ एक रूप नहीं होता, कुछ सीखना होता है। मेरा विचार है कि कटपुतली है? तो उनका उत्तर होगा हमें नहीं पता जानना अत्यन्त आवश्यक है कि आपका प्रेम तो बस प्रेम के लिए होता है। अतः श क्या है। अपने देश को प्रेम करना आप लोग महसूस करें कि आपके अन्दर आयके लिए अत्यन्त आवश्यक है । देश को कौन सी शक्तियों हैं । उदाहरण के तौर पर यदि आप पहचानते ही नहीं, समझते ही कल जब मैं नहीं पहुँची तो वो लोग सारे नहीं तो किस प्रकार देश से प्रेम करेंगे? दरवाजे और कम्प्यूटर बन्द कर चुके थे अपनी माँ को यदि आप पहचानते ही नहीं मेरी समझ में नहीं आता कि आप लोगों ने तो आप किस प्रकार उन्हें प्रेम करेंगे वहाँ कम्प्यूटर क्यों अपना लिए हैं! ये तो ऐसी भर एक बहुत महान शक्ति कार्यरत है और चीज है जो प्रेम को समझती ही नहीं । मुझे पूर्ण विश्वास है कि एक दिन चीन के लोग भी आप लोगों में पूरी तरह से सम्मिलित लोग वहाँ पर एकत्र हो गए थे बाहर हो जएंगे। प्रेम सम्मान को जन्म देता है । पहां पर आप लोग भिन्न स्थानों से, भिन्न बन्द किए जा चुके थे और दरवाजे बन्द गुणों वाले, भिन्न योग्यताओं वाले लोग आए करने का कार्य कम्प्यूटरों ने किया था । से वायुयान आ रहे थे और हजारों बहुत निकलना इनके लिए असम्भव था । दरवाजे 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-42.txt जनवरी-फरवरी 2002 39 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 इन्हें पहले कभी मेरे रम्मुख गाने का अवसर दरवाजों के लिए कम्प्यूटर का उपयोग करने की क्या आवश्यकता है? हम इतने अधिक न दिया गया था। संभवतः ये लोग ग्रामीण मनुष्य हैं, ये कार्य करने के लिए मनुष्यों को थे मैंने तुरन्त कहा ठीक है उन्हें तुरन्त क्यों नही कहा जाता जैसे चीन के लोगों ने मंच पर लाओ और आज आप सब लोग किया। वहाँ पर न तो कोई अव्यवस्था थी जानते हैं कि नोयडा का संगीत क्या है! न भीड़, चाहे कोई भी आए! हजारों दस अत्यन्त प्रेम पूर्वक इतनी ऊँची आवाज में हजार, बीस हजार लोग वहाँ पर थे और उन्होंने भजन गाए कि अब विश्व भर में सभी लोग उचित मार्ग से गुजर गए क्योंकि आप नोयडा का संगीत सुन सकते हैं वहाँ पर प्रेम एवं सम्मान था। विश्व के और उनकी ग्रामीण कविताओं को सुन किसी भी कोने में मैंने कम्प्यूटरों द्वारा दरवाजे सकते हैं । प्रेम के लिए आपको कृत्रिमता बन्द करते नहीं देखा। तो एशिया ही (Sophistication) की आवश्यकता नहीं है । क्यों इतना आधुनिक और मशीनीकृत होना आपमें यदि सच्चा प्रेम है तो आप अत्यन्त हुए चाहता है? मेरी समझ में ये बात नहीं भद्र एवं मधुर बन जाते हैं। आती। इस मशीनीकरण को यदि आप बहुत अधिक अपना लेंगे तो आपमें प्रेम की शक्ति प्रेम व्यक्ति को पागल नहीं बनाता। परन्तु प्रेम तो देवी का महानतम आशीष है, समाप्त हो जाएगी। पश्चिम में अधिक कुछ लोग सोचते हैं कि आप यदि किसी मशीनीकरण ने लोगों को नष्ट कर दिया से प्रेम करते हैं और आपको आपका प्रेम बहुत है उनके हृदय में प्रेम का पूर्ण अभाव हो प्राप्त नहीं हो रहा तो आप किसी की भी गया है देवी की शक्ति रोबोट्स के हत्या कर सकते हैं। सर्वत्र लोग ऐसे कुक्रत्य माध्यम से कार्य नहीं कर सकती। क्या ये कर रहे हैं । प्रेम तो इतना पावन है कि यह कर सकती है? जहाँ तक सम्भव हो आपको अत्यन्त शक्तिशाली है और कार्य करता मशीनीकरण की कोई आवश्यकता नहीं है । है जैसे मैं अभी बता रही थी कल ये सब गणपति पुले में एक बार ऐसा हुआ कि लोग अन्दर बन्द थे सभी लोग बहुत चिन्तित माइक पूरी तरह से एकदम बन्द हो गए थे और उन्हें बताना चाहते थे कि वो मुझे और हम संगीत का आरम्भ न कर पाए । बाहर आने दें परन्तु वे किसी की बात दिल्ली सहजयोग से कोई व्यक्ति आया सुनने को तैयार ही नहीं थे मैंने कहा ये और कहने लगा हमारे पास नोयडा के कुछ बात भूल जाओ। ये मामला मुझे निपटाने लोग हैं जिन्हें माइक्स की आवश्यकता नहीं दो। मैं जाकर उस सज्जन के सम्मुख है। मैंने इन लोगों के विषय में कभी न खड़ी हो गई, तुरन्त उसने मेरा पासपोर्ट सुना था। मैं ये भी न जानती थी कि कोई लिया और उस पर मोहर लगा दी। बिना ऐसा संगीतज्ञों का समूह भी है। इससे पूर्व किसी बहस मुबाहसे के, बिना किसी समस्या 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-43.txt जनवरी- फरवरी 2002 40 चैनय लहरी ख XIV अंक । । 2 के. क्योंकि प्रेम अत्यन्त खामोश है परन्तु करनी है ये जानती हैं किस प्रकार कार्य यह कार्य करता है। ये अत्यन्त सुन्दर ढंग करना है। आपको कुछ नहीं करना पड़ता से कार्य करता है। प्रेम अत्यन्त विवेकशील स्वतः होता है । आपकी मानसिक भी है ये आपको समाधान सुझाता है। ये गतिविधियां इसके विरोध में जाती हैं क्योंकि बात पूरी तरह से सत्य है क्योंकि यह मानसिक गतिविधि कहेगी, ओह इस प्रकार अपनी अभिव्यक्ति करना चाहता है । प्रेम आप किसी से कैसे प्रेम कर सकते हैं. किसी को हानि नहीं पहुँचाता। किसी को इसका कोई लाभ नहीं। आपको इस तरह कष्ट नहीं देता मैं हमेशा जड़ के सिरे पर के अटपटे विचार देने वाली आपकी मानसिक विद्यमान विवेकशील कोषाणु का उदाहरण गतिविधियाँ ही हैं मानसिक गतिविधि दिया करती हैँ। जड़ बढ़नी शुरू होती है सीमित तथा रेखीय है। हर व्यक्ति के भिन्न और ये सूक्ष्म कोषाणु, छोटा सा कोषाणु और सीमित विचार हैं। यही कारण है कि जानता है कि किस प्रकार पृथ्वी मीं में लोग परस्पर लड़ रहे हैं, यही कारण है कि प्रवेश करते चले जाना है मान लो इसके युद्ध किए जा रहे हैं परन्तु जब प्रेम की मार्ग में कोई पत्थर आ जाए तो यह उस पत्थर के इर्द गिर्द से बड़ी शान्ति से चला है तब आप किस प्रकार युद्ध करेंगे? यह शक्ति आपको पूर्ण सत्य प्रदान करती जाता है और उसे बाँध लेता है। स्पष्टीकरण ये होता है कि जब ये पेड़ बड़ा होगा तो आवश्यकता है व्योंकि हमारी शारीरि शक्ति पत्थर उसे शक्ति प्रदान करेंगे, उसे सहायता अत्यन्त सीमित है मैं जानती है कि आप देंगे। तो सहज रूप से यह पत्थर के सब मुझसे अत्यन्त प्रेम करते हैं परन्तु आपको इर्द -गिर्द घूम जाता है और अन्ततः अपनी चाहिए कि परस्पर भी प्रेम करें, एक दूसरे अभिव्यक्ति करता है। इस प्रकार प्रेम देवी का भी सम्मान करें केवल तभी मुझे ये की शक्ति है जो अत्यन्त सूक्ष्म है. अत्यन्त महसूस होगा कि प्रेम की इस शक्ति की शान्त है, परन्तु अपनी अभिव्यक्ति करती अभिव्यक्ति हुई है। हम एक सहजयोगी के है इन सभी अभिव्यक्तियों को आप चमत्कार कहते हैं। आप इन्हें कोई भी नाम दे सकते अन्य सहजयोगियों को भी बुलाया हुआ हैं। यही देवी पूरे ब्रह्माण्ड पर शासन कर था। मुझे उनके घर में रात्रि का खाना अतः हमें प्रेम की इस शक्ति की घर में थे और उसने मुझसे मिलने के लिए रही हैं। यही तुम्हारे मध्य हृदय चक्र पर खाना था। मैं नहीं जानती थी कि वहाँ विराजमान है । आपकी तथा पूरे ब्रह्माण्ड उपस्थित अन्य सहजयोगियों के लिए उसने की देखभाल करने वाली यह शक्ति प्रेम खाना बनवाया है कि नहीं । मैंने उन लोगों की शुद्ध इच्छा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं से कहा, ठीक है, कार्यक्रम समाप्त हो गया है। ये जानती हैं कि किस प्रकार अभिव्यक्ति है अब आप अपने घरों को जा सकते हैं । 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-44.txt जनवरी-फरवरी 2002 41 चै तन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 वे 2 क्योंकि मैंने सोचा था कि यह व्यक्ति सबके से चखे हैं और चखकर ये मीठे-मीठे बेर एकत्र किए हैं । भारत में किसी दूसरे लोग वहाँ से जाने लगे तो वह दौड़ता हुआ व्यक्ति के मुंह से छुआ हुआ कोई अन्य लिए खाना नहीं बनवा सकता। जब सब आया, बोला, "श्री माताजी आपने ये क्या किया, मैंने सब लोगों के लिए खाना बनवाय व्यक्ति खाता नहीं। भारतीय स्वच्छता के नियमानुसार किसी का झूठा खाना अत्यन्त है। केवल देवी की है वास्तव में? अब ये लोग कहाँ चले गए। अपवित्र माना जाता ये लोग अभी गली में ही थे ये दौड़ता झूठन और उनके छुए हुए भोजन को ही हुआ सीढ़ी से नीचे उतरा और उनसे कहने पवित्र माना जाता है। लेकिन ये तो बिल्कुल लगा, 'वापिस आओ, वापिस आओ, खाना खाओ। वो सब हँसने लगे और ये भद्र झूठे बेर एक अवतरण को समर्पित किए। जिसने सभी सहजयोगियों के लिए श्री राम में भी देवी की शक्तियाँ थी। उलट बात थी। शबरी ने अपने चखे हुए पुरुष खाना बनवाया था इतना आनन्दित हुआ। श्री राम ने भी तुरन्त वे बेर शबरी के हाथ और हम सबने खाने का बहुत आनन्द से लिए और उन्हें खाने लगे कहने लगे लिया। रामायण में एक बहुत ही सुन्दर कि अमृतसम ये बेर मैंने पहले कभी नहीं कहानी है। इस प्रेम के विषय में मैं आपको खाए। उनकी पत्नी श्री सीताजी ने भी अवश्य बताना चाहूँगी। श्री राम जब जंगल उनसे वे बेर लेकर खाए लेकिन उनके भाई में गए. बनवास के समय जब वे जंगल में लक्ष्मण को इस बात पर क्रोध आ रहा था। पहुँचे तो वहाँ एक बहुत वृद्ध महिला थी वो सोच रहे थे कि इस महिला में मर्यादा जिसके बहुत थोड़े से दाँत बचे थे परन्तु की कमी है और उसको दण्डित करना वह श्रीराम की महान भक्त थी जीवन चाह रहे थे परन्तु जब श्री सीताजी ने पर्यन्त वह श्री राम के दर्शन के स्वप्न श्री राम से बेर माँगे तो वे शान्त हो गए । देखती रही थी। जब श्री राम ने उसे अपने बेर खाकर श्री सीताजी ने भी वही बात दर्शन दिए तो वह आनन्द से भर गई। वह कही कि अमृत की तरह से इतने मधुर ग्रामीण महिला थी, आदिवासी परिवारों से । भारत में आदिवासी परिवारों को बहुत ही भी सोचा कि ये दोनों सारा अमृत खा रहे फल मैंने कभी नहीं खाए। तो लक्ष्मन जी ने नीची जाति का माना जाता है। परन्तु हैं मैं क्यों न खाऊ? उन्होंने भी अपनी भाभी उसने श्री राम के लिए जंगली फल, बेर, से वो फल मॉँगे। तब श्री सीताजी ने कहा एकत्र किए थे। मैं नहीं जानती कि बेरों को आप यहाँ क्या कहते हैं। उसने श्री राम से क्यों तुम्हें ये फल चाहिए? उनकी बहुत कहा क्योंकि आप खट्टे फल पसन्द नहीं याचना पर श्री सीताजी ने उन्हें कुछ बेर करते इसलिए मैंने ये सारे फल अपने दांतों दिए जिन्हें लक्ष्मण ने खाया और कहने "नहीं-नहीं, तुम तो नाराज हो रहे थे, अब 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-45.txt जनवरी-फरवरी 2002 42 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 हृदय को जीत लेते हैं! 99 प्रतिशत लोग लगे, वाह इनमें तो सारे फलों का अमृत है । कहने का अभिप्राय ये है कि सारी कृत्रिमता, इस पावन प्रेम के पूर्ण नियन्त्रण में आ सारे मशीनीकरण से ऊपर प्रेम की यह जाएंगे इतना ही नहीं, ये पवित्र प्रेम उन गतिशीलता कहीं अधिक है। प्रेम की यह सभी नकारात्मक शक्तियों को नष्ट करता शक्ति आपको उसी प्रकार दी गई है जिस है जो आपको हानि पहुँचाने का प्रयत्न कर प्रकार श्री गणेश को दी गई थी। आपको रही हैं। ये आपको सिखाता है कि चाहिए कि इस शक्ति को धारण करें। एक वास्तविकता की पूरी तस्वीर को किस प्रकार बार जब आप इसे धारण कर लेंगे तो समझना है क्योंकि ये तो ऐसा प्रकाश है व्यक्तिगत रूप में या सामूहिक रूप में आप जो सारे अंधकार को ज्योतिर्मय करता है। इसे प्रतिपादित कर सकेंगे। किसी व्यक्ति आपके अन्दर और बाहर के अन्धकार को। को यदि आप जीतना चाहें तो अपने हृदय आपमें जब ये प्रेम आ जाता है तो आप में आप कहें ठीक है, 'देवी माँ, कृपा करके अपने अन्दर अत्यन्त शान्ति हो जाते हैं और इस व्यक्ति पर कार्य करें । मेरा पवित्र प्रेम आपकी शान्ति अभिव्यक्त होती है। इस व्यक्ति पर कार्य करे और आप हैरान होंगे कि आप किस प्रकार उस व्यक्ति के परमात्मा आपको आशीर्वादित करें পtL. 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-46.txt श्री माताजी के अवतरण की भविष्यवाणी (एक पत्र) विश्व के सभी सहजयोगी-भाई और बहनों को शेंदुर्णी (महाराष्ट्र राज्य, जिला जलगांव या 12 साल का बालक रद्दी बेचने के लिए सेंटर की ओर से जय श्री माताजी ऐसा यह अनमोल सा लेख एक दिन 10 हाटेल पर आया। उस रद्दी में यह युग साधना पुस्तीका में यह लेख मिला। गाँवों अभी तक विश्व में और भारत भूमी पर की सभी दुकाने छोड़कर यह बालक सबसे उच्चत्तम तथा सब देवाताओं की सहजयोगी के ही हॉटेल पर कैसा आया शक्ति के साथ श्री आदिशक्ति का अवतरण इसका मुझे बहुत आश्चर्य लगा! लेकिन परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का ही इस बात का मुझे पूर्ण विश्वास है कि यकीनन यह योग घटित होने का काम श्री आदिशक्ति निर्मला माँ ने बहुत ही सहज यही बात शाहजहाँपुर (मध्य प्रदेश) के तरीके से कराया। श्री आदिशक्ति निर्मला श्री माँ के चरणों में मेरा शत-शत कोटी विनम्र मालूम है। है यह आप सभी को सुप्रसिद्ध संत और योगी महात्मा रामचंद्रजी इन्होंने श्री आदिशक्ति माताजी प्रणाम| का विश्व का और भारत का युग परिवर्तन कराने के लिये ही अवतरण लिया है। यह भविष्यवाणी स्पष्ट की है। आपका सहजयोगी भाई श्री राजेन्द्र बी. सूर्यवंशी शेंदुर्णी, जि. जलगाँव (अगस्त 1986, अंक क्रमाक 8, युग साधना मासिक पुस्तिका में दिया मराठी लेख का हिंदी अनुवाद) महाराष्ट्र-424204 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-47.txt भविष्य दर्शन: भारत का और दुनिया का युग परिवरतनकारी शक्ति का अधिभाव हो बुका है शाहजहाँपुर के महात्मा रामचद्र जी की भविष्यवाणी (मराठी लख का अनुवाद) जनवरी 1971 में राष्ट्रधर्म नामक पत्रिका हलचल का परिणाम होता है । तब तक वह में दुनिया के भविष्य का एक पूर्व सकेत घटना योजना व विचारमथन के स्वरूप में नामक एक लेख छपा था। इसमें कई प्रारंभ में कबल मन तक ही मर्यादित रहती भविष्यवाणीयों के साथ बंगला दश में होने है। भविष्य के सदर्भ में भी कुछ ऐसा ही बाले खण्डप्रलय की भविष्यवाणी की गई थी। उसी में बिहार में होने वाले माहापुर होना है ईश्वरी महाशक्तियों को जो कुछ और भयकर हानि के बारे में भविष्यवाणी काम करवाना हाता है उसकी योजना बहुत की गई थी। सचमुच में ऐसा होगा इसका पहले से बनायी जाती है। तत्पश्चात वह कोई सकेत उस वक्त नहीं था। उसके वाद सचगुच में 2 समुद्ी चक्री तूफान करके उन्हें परिवर्तन के कार्य में नियुक्त हुए और पूर्वी पाकिस्तान के 20 लाख लोगों करती है। प्रत्यक्ष घटना होने से काफी के प्राण हर लिये। इस भविष्य कथन के पहले यह घटना सूक्ष्मरूप से अस्तित्व में बाद 10-11 माह मं ही बिहार मे महापुर आती है तथापि युद्ध या तत्सदृश्य वही अपनी सहायक शक्तियों से सलाह - मशवरा परन्तु घटनाओं की सूचना बहुत थोडे लोगों को का ताडव नृत्य हुआ था। यह भविष्यकथन शहाजहाँपुर के (मध्य होती है। और वे उसे औरों से गोपनीय प्रदेश) सुप्रसिद्ध योगी व संत म. जी ने किया था । योगाभ्यास द्वारा अंतर भी केवल निर्मल योगात्मा ही जान सकते चेतन में 25-50 वर्षापरात होनेवाले भविष्य की परीपक्व होती घटनायें, वर्तमान घटनाओ योंगी भविष्यकालीन घटना चर्तमान काल की तरह ही सुस्पष्ट देखी जा सकती हैं। की घटनाओं की तरह स्पष्ट देख सकता ऋतुविज्ञान के तज्ञ जानते हैं की आज वर्षा है। यह कोई वरड़ी अशक्य बात नहीं है। करने वाले बादल 5-6 दिन पहले ही आकाश में जमा होने लगते हैं । वह जिस चर्चा हम कर रह है उन महात्मा रामचंद्रजी भाप से बनते हैं वह कई महीनों से समुद्र में के शब्द कुछ इस प्रकार है- जब जब इस तैयार हो रहीं थी और इसे बनाने वाली संसार में कोई देवदूत या अवतार आया, कडी घूप उससे काफी पहले से इसकी तब तब प्रकृती ने उसके नवनिर्माण से तैयारी में लग जाती है। साराश आज रामचद्र रखते हैं। इसी तरह ईश्वरी विधि-विधान हैं। सिध्वातंत. यह निनात सत्य है कि य इस लेख में जिनकी भविष्यवाणी की जा पहले की अवस्था नष्ट करने में उस गदद घटना होती है, वह बहुत पहले से शुरू हुई की हैं । उस महासघर्ष की अवस्था इस 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-48.txt जनवरी-फरवरी 2002 45 पै।-य लहरी ख -XIV अक 1 वें 2 सांसारिक उहापोह के लिये मन' तत्व भी शतक के अंत तक निश्चित रूप से आ जानी चाहिये परिवर्तन काल अब बिल्कुल प्राप्त होता है अचेतन मन (अतीकद्रिय जगत पास आ चुका है। अब वह टल नहीं सकता। का अधिष्ठान) ये प्रत्यक्ष जगत कारण ही परमेश्वरी सत्ता मानव रूप में अपने परमप्रिय पृथ्वी के भारतवर्ष में (जिस स्वर्गस्वरूप है। मन से ही सारी याजनाये बनती हैं और बताया गया है) जन्म ले चुकी है और अपने फिर वे कार्यान्वित होती हैं। परमेश्वर में कार्य में निमग्न हो चुकी है। जब उसका कार्य और योजनायें सब जान जायेंगे तव के उदबोधन के लिये वा मार्गदर्शन के लिए "मनस शक्ति नहीं होती तथापि मानवजाति मनस शक्ति की आवश्यकता होती है। लोगों को समझ आयेगा कि भगवान रामचंद्र, भगवान श्रीकृष्ण भगवान बुद्ध ओर भगवान इसीलिये अदृश्य चेतना के स्वरूप में कार्य जैसा अवतार हमारे जीवनकाल में करने वाली सत्ता को मनसे परिपूर्ण होने के परशुराम ही आया और हम उसे पहचान भी नहीं लिए किसी एक शरीर में व्यक्त होना पड़ता पायें सहकार्य करना तो बहुत दूर की बात है शरीर में रहकर भी, शरीर की कोई भी है । आसक्ति उसे नहीं होती काम क्रोध, लोभ, मोह आदि मनोविकार उसे स्पर्श भी नहीं कर सकते वह भूत-भविष्य संत योगी रामचद्र जी को यश या नाम कमाने की काई लालसा नहीं है। सच्चे योगी की तरह वे निश्कामरूप से सब कुछ जानती है, फिर भी अन्य मानवों की तरह ही काम करती है । तथापि उसका आत्मकल्याण और लोककल्याण के कार्य में लगे रहते हैं। वे इस भविष्यवाणी से प्रेरणा अतीद्रिय ज्ञान, सामर्थय, तथा मनोबल इतना देते हैं कि जो जागृत आत्माऐं हे और जिनके पास विवेक है व इस विद्यमान कोई सा भी दुस्तर से दुस्तर कार्य को पहचाने और उसके नवनिर्माण असंभवनीय कार्य उस सहज शक्य हो जाता प्रचंड और प्रखर होता है कि दुनिया का देवदूत के महासंघर्ष में है। ऐसी ही एक दिव्य सत्ता भारतवर्ष में की तरह युक्तीवाहिनी के सेनापति बनकर आगे आयें। हनुमान, नल नील. अंगद आजकल कार्य कर रही है। जल्दी ही लोग उसे पहचानने लगेंगे । अपनी इस भविष्यवार्णी में एक तरफ म. झांकाखोर लागो ने ओर आर्य समाज कुछ के ता्किकों ने म. रामचंद्रजी का एक शंका रामचद्र जी ने इस देवयसत्ता के प्रचड "परमात्मा तो एक सर्वव्याी सत्ता है साम्य के वर मे वताया है बहीं इस पूछ्ी तत्वतः वह अवतार केस ले सकते हैं इस पहचानने के लिये निशानी बतायी है। उनकी पर उन्होंने समझाया, प्रत्यक ययात न 1. भविष्यवाणी का यह नाग बार बार पढ़कर याद करने योग्य हे । वह कहते हैं कि सूर्य एक अचेतन तत्व क्रियाशील होता ह उसे 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-49.txt जनवरी-फरवरी 2002 46 चैतन्य लहरी खंड XIV अंक 1 4 2 की गर्मी पिछले कुछ समय से कम होती एक भयंकर ज्वालामुखी का उद्रेक होगा । जा रही है इससे सारे वैज्ञानिक चिंतित इंग्लैंड का दक्षिणी भाग समुद्र में डूब जायेगा। हैं। इसका कारण उन्हें समझ में नहीं आ इंग्लैण्ड का हवामान अतीशीतल हो जायेगा । रहा। सूर्य की ऊर्जा अगर इसी तरह कम एशिया, अमेरीका और यूरोप के आज बड़े होती गयी तो भौतिक साधन होने के बावजूद प्रगत और वैभवसंपन्न देश जो जागतिक मानवजाति का अस्तित्व ही खतरे में आ राजकारण में मनमाना स्वराचार कर रहे है, सकता है। ऐसा डर उन्हें लगा हुआ है। उनका भविष्य तो बड़ा ही अधकार पूर्ण है। इस संकट से बचने का कोई भी उपाय " जो माक्क्सवाद एशिया और बाकी कई स्थानों उनको सूझ नहीं रहा। योगाचार्य रामचंद्र कहते हैं कि सूर्य की एशिया में ही होने वाला है। अमरीका की शव्ति का यह असामान्य और अपूर्व हास सारी समृद्धि मिट्टी में मिल जायेगी। गल्फ मनुष्य रूपमें इस ईश्वरी शक्ति का किया स्ट्रीम के बहाव की दिशा भी बदल जायेगी। हुआ परिवर्तन है। प्रकृति जो भी परिवर्तन इस दौरान भारतवर्ष अपनी अध्यात्मिक, करती हैं वह सूर्य के परिवर्तन से ही होता धार्मिक सामाजिक, आर्थिक, औद्योगिक तथा है क्योंकि सूर्य ही दृश्य जगत का आत्मा राजकीय उन्नति करते हुए सर्वोच्च स्थान है। सूर्य के तीव्र हास का प्रयोजन है कि पर विराजमान हो जायेगा और पुनश्च पूरी अपेक्षित परिवर्तन तीव्रसा से, जल्दी से जल्दी मानवजाति का और संसार का नेतृत्व आ जाये इस शक्ति का उपयोग ईंश्वर करने का सामर्थ्य प्राप्त करेगा तद्पश्चात द्वारा नियुक्त यह अवतार ही कर रहा है। प्रदीर्घकाल तक विश्व का नेतृत्व भारत के ये कार्य पूर्ण होते ही जब प्रकृति की नयी हाथों में रहेगा। व्यवस्था सुचारू रूपसे स्थापित हो जायेगी तब सूर्य फिर एकबार अपनी (वत्तपहपदस) पर सुप्रतिष्ठित बन गया है उसका दफन म. रामचंद्र जी कहते हैं कि आज का बुद्धिवाद और नास्तिकता धर्म एवं अध यात्म संबंधी उत्कट श्रद्धी में बदल जायेगा। अतैव यह सिद्ध होता है कि यह नया इसके लिये जो ईश्वरी शक्ति प्रकट हुई है अवतार महान सावित्रशक्ति-गायत्रीतत्व वा वह अंहभाव से पूर्ण तथा मुक्त रहेगी। सूर्यशक्ति संपन्न सिद्ध होगा। नवसृजन के शरीर में रहकर भी वह एक नितांत भावनाओं से सृजन की हुई भावमूर्ती होगी। वह योगीराज जी ने और भी कई भविष्य- असलियत में मानव मन के स्थान पर ईश्वरी होगी सैंकड़ो, हजारों दुःखी कर रही हैं। वे कहते हैं कि मैंने अपनी जनों की मदद करते हुए वह युगपरिवर्तन प्रखरता धारण कर लेगा। अवतार के ये स्पष्ट लक्षण है। वाणीयाँ की हैं जो सत्यसिद्ध होने का इतंजार मन से युक्त अतींद्रिय योगदृष्टी से देखा है कि लंदन में की प्रक्रिया पूर्ण कर रही है। 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-50.txt जनवरी-फरवरी 2002 47 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 इस नवअवतार का सबसे महत्वपूर्ण वह एक नवयुग होगा, एक स्वर्गीय सत्ययुग कार्य होगा महासंघर्ष का संचालन करना। होगा तब भारतीय अध्यात्म सारे विश्व इस कार्य में उसकी विचारशक्ति एवम में फैलेगा, और दुनिया के समस्त मानव दृश्य आत्मशक्ति कार्यशील रहेगी एक वर्णभेद, जातिभेद, संस्कृतिभेद, लिंगभेद तरफ यह शक्ति विश्वभर में आतंरिक इन सबसे मुक्त हो जायेंगे और मानवता विचारक्रांती का तूफान लायेगी. और के आदर्श सिद्धांतों का अनुसरण करते दूसरी ओर प्रकृती को क्षुब्ध करके महा- हुए जीवन-यापन करने लगेंगे। ईश्वरी भंयकर स्थिती का निर्माण करेगी कॉलरा, प्रक्रिया आजकल इसी कार्य में निमग्न युद्ध, अतिवृष्टी इत्यादि सभी इस मनुष्यरूपी है। ईश्वरी सत्ता की रुद्र प्रक्रिया होगी। ये सब बहुत ही भयानक और अटपटा लगेगा। के लिये नहीं कही गयी है। अतींद्रिय दृष्टाकी तथापि आज जगभर में जो जराजीर्ण, सड़ी इसके पीछे की प्रेरणा समझनी चाहिये। गली विकृतियाँ फैली हुई हैं. इन जख्मों को धोकर स्वच्छ करते हुए वेदनायें तो होंगी सत्ता का अस्तित्व स्वीकार करता हो, तो ही। यह पीड़ाप्रद परिस्थिति में ही स्वच्छ उसके कार्य में मदद और सहकार्य करने होगी। इसके बाद जो संसार बचेगा का साहस भी प्रकट करना चाहिये । यह भविष्यवाणी केवल कौतुहुल-पूर्तता अगर हमारा अतःकरण किसी ईश्वरी दिव्य 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-51.txt आवाजें (Voices) (Andrew Law) (अल्बर्ट हाल लन्दन, जनकार्यक्रम में पहली बार आए साधक की सहज अभिव्यक्ति) | 21 वर्ष की आयु में यह साधक जब परन्तु, "मुझे लगता है मेरी समस्याओं का महाविद्यालय में विद्यार्थी था तब से इसे सर्वोत्तम समाधान भारतीय अपने मस्तिष्क के अन्दर से कुछ आवाजें सुनाई देने लगीं। ये आवाजें सदैव उसे ध्यान धारणा की सहजयोग शैली में है। सहजयोग का अभ्यास अब विश्व भर में आत्म हत्या द्वारा जीवन का अन्त करने की किया जा रहा है। इसका श्रेय उन सब प्रेरणा देतीं, उसकी स्थिति इतनी खराब सहजयोगियों को जाता है जो बिना कोई हुई कि वह अपनी तुलना शारलोट ब्रान्त पैसा लिए (विश्वास नहीं होता) इसका संदेश (Carlotte Brante) के प्रसिद्ध उपन्यास जेन जनजन तक पहुँचाने का प्रयत्न करते हैं। आयर की नायिका जेन से करने लगा। सहजयोग में भिन्न धर्मों तथा सन्तों के सार जेन को अपने अन्दर से श्री रोचेस्टर तत्व को स्थान दिया गया है और इसमें (Mr. Rochester) की भूत- ही आवाजें शान्ति और सुनाई देती थीं इस मनो-वैज्ञानिक स्थिति से वह विभाजित व्यक्तित्व (Split करने के लिए सभी Personality) हो गया था जेम्स (James Joyce) के Potrait of the Artist as a Young सकते हैं। मेरी आवाजों (Voices) की तथा आध्यात्मिक उन्नति के लक्ष्य को प्राप्त धर्मों के लोग सामूहिक रूप से भाग ले Man का हवाला देते हुए वो कहता है कि, मेरे स्वास्थ्य की समस्याओं का सहजयोग "परमात्मा ने बहुत सी आवाजों में आपसे सर्वोतम समाधान है। मैं आशा करता हॅूँ कि बात की परन्तु आप उन पर ध्यान नहीं मॉड्जले अस्पताल (Maudsley Hospital) लन्दन के धर्म क्षेत्र (Faith Zone) में भी a God Spoke to you by so many voices but you would not hear) जेम्स सहजयोग ध्यान धारणा आरम्भ की जानी जॉयस के इस वाक्य से बह बहुत प्रभावित चाहिए क्योंकि यहाँ पर चिकित्सा विशेषज्ञ हुआ और स्वयं से प्रश्न किया कि "क्या हम तथा धार्मिक लोग धर्म तथा मानसिक स्वास्थ्य सत्य की आवाज की ओर ध्यान देते हैं? अन्तर्विश्लेषण करते हुए ये साधक आगे में अन्तर्सम्बन्ध खोजने का प्रयत्न कर रहे कहता है कि ये आवाजें प्रेरणात्मक होती हैं हैं। एन्ड्रेयू लॉ 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-52.txt सहजयोंग का सार तत्व परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन लन्दन कम लोग अपने उत्थान की प्रक्रिया में आज के प्रवचन में मैं सहजयोग के सार के विषय में बताऊंगी। सर्व प्रथम हमारे गहन रुचि रखते हैं और जो उस अंधकार लिए ये समझना आवश्यक है कि हम एक से ऊपर उठकर, जिसमें वे फॅसे हुए हैं, के लिए आना चाहेंगे। भयानक समय में से गुजर रहे है जिसके आत्मसाक्षात्कार परिणाम के विषय में कुछ कह पाना सम्भव अहंकार वादी सभी देशों में ये बात समझाना नहीं है। जीवन पर दृष्टि डालकर ऐसा कठिन होगा कि सच्चाई ये है कि अभी लगता है कि हम ये नहीं समझ पाते कि तक भी वे अंधकार में हैं। हमें बहुत कुछ हमने अपने सम्मुख आए उत्थान के इस सीखना है क्योंकि वो लोग चाँद तक पहुँच अवसर को यदि खो दिया तो हम न केवल चुके हैं इसलिए वो सोचते हैं कि वो सभी इस देश इंग्लैण्ड को ही उत्थान से वंचित कुछ जानते हैं। उनकी अज्ञानता के विषय करेंगे बल्कि ये पूरी मानवता के लिए गहन में बता पाना अत्यन्त कठिन कार्य है। में ये कहते हैं कि जब वो उदाहरण के रूप हानि होगी। परन्तु समस्या ये है कि परमात्मा, अंतरिक्ष में चक्कर लगा रहे थे तो उन्हें उत्थान और उच्च जीवन के नाम पर मिथ्या लोगों का एक बहुत बड़ा समूह निकल कोई परमात्मा दिखाई नहीं दिया ऐसा पड़ा है और यह किसी को भी सत्य के कहना तो ऐसे हुआ कि एक व्यक्ति तीसरे अस्तित्व के विषय में समझाना लगभग तल तक गया परन्तु उसने शिखर को नहीं देखा। असंभव बना रहा है। कभी-कभी तो मुझे लगता है, कि मैने एक ऐसा अद्वितीय तरीका विकसित कर अभिव्यक्ति कहाँ करते हैं? हमारे अन्दर लिया है जिसके माध्यम से मैं विश्व भर में क्या वो इसी प्रकार से अपनी अभिव्यक्ति सामूहिक रूप से आत्मसाक्षात्कार दे सकती करते हैं? हम ये नहीं जानते कि क्या हूँ। परन्तु जनता का आत्मसाक्षात्कार में रूचि न लेना मेरे सामने समस्या खड़ी कर उसे देख पाना हमारे प्रयत्नों के माध्यम से परमात्मा का निवास कहाँ है? वो अपनी देखना है। जो कुछ हम देखना चाहते हैं देता है। सत्य बात तो ये है कि बहुत ही ही सम्भव है। "अगर हम परमात्मा को नहीं 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-53.txt जनवरी-फरवरी 2002 50 चंत-य लहरी खड-XIV अंक 1 व 2 देख पाए हैं तो उसका अस्तित्व ही नहीं हैं हम ऐसी चीज भी पा सकते हैं जो है इस विषय पर हम इस प्रकार से बिकाऊ नहीं है। जो भी हो हमें कठोर अपना दृष्टिकोण बनाते हैं तो क्यों नहीं हम परिश्रम करना होगा जिस प्रकार लोग से उन सारी चीजो को अमान्य कर देते जिन्हें प्रतिक्रिया करते हैं वह कभी-कभी तो अत्यन्त हमने अपने प्रयत्नों से नहीं जाना? क्योंकि निराशा जनक तथा मूर्खतापूर्ण होता है। हम उनके (परमात्मा) विषय में नहीं जान जैसे उस दिन क्रिटेन की एक सभा में में माए इसलिए वे हैं ही नहीं, उनका अस्तित्व पूरा समय हँसती ही रही। ये कितने खेद ही नहीं है! आप एक गुफा में धूम रहे हैं। की बात है एक सज्जन हमारे कार्यक्रम में जब आप अपनी ही परछाई को देखते हैं आए और उन्होंने शिकायत की कि देखिए. और विश्वास करते हैं फिर भी कहते किसी अन्य चीज का अस्तित्व ही नहीं है। प्रकाश का अस्तित्व नहीं है। निरन्तर में वे इस प्रकार के दृष्टिकोण का सामना करती क्या परमात्मा के सम्मुख एक प्रबन्ध निरदेशक रही हैूँ। कभी कभी तो मेरी समझ में नहीं क्या होता हैं किसके पास समय है वीडियो देखता रहे? उनका फोटोग्राफ लेने में किसकी रूचि है? कहते हैं कि वे प्रबन्ध निरदेशक हैं तो है, या राजा भी क्या होता है? आता कि किस प्रकार उन्हें आत्मसाक्षात्कार इस बात को सोचे। वह क्या है? अपने टूं। अब आपको दूसरी प्रकार से आरम्भ विषय में वो क्या सोचता हैं उसने हमारी करना होगा आपको जिज्ञासु होना होगा, शिकायत की तो कभी कभी तो, कानून भी आपको इसकी याचना करनी होगी कोई इतने मूर्खतापूर्ण है कि व्यक्ति के लिए उसे आकर आपके चरणों में गिरकर ये नहीं समझ पाना कठिन है । मुझे लगता है कि कहेगा कि कृपा करके अपना आत्म - उनके मस्तिष्क पर इतना मैल चढ़ गया है साक्षात्कार ले लीजिए। कृपा करके, परमात्मा कि वे आत्मसाक्षात्कार नहीं लेंगे हो सकता के लिए इसे प्राप्त कर लीजिए क्योंकि है कि वे ये अवसर खो दें। यहाँ कोई कुछ बेचने के लिए तो नहीं आया है। यहाँ कुछ भी नहीं बिक रहा। आपको विपणन की आदत है। कोई की । मैं आपको बताती हूँ, कि जो मूर्खताएं रादि कुछ बेच रहा होता तो वह आपको आपने अपने चहूँ ओर बना ली हैं उनका समझाने की कोशिश करता और आपसे वास्तव में परमात्मा स्वयं नहीं जानते कि उन्होंने किस प्रकार के मानव की रचना ज्ञान परमात्मा को भी नहीं है। अपने प्रार्थना करता। विपणन पर आप अपने अज्ञानान्धकार से आपने सभी प्रकार की पाऊंडस बचा सकते हैं परन्तु यहाँ तो कुछ मूर्खताओं का सृजन कर लिया है । अपने बेचने के लिए हैं ही नहीं। आज के इस अहंकार से, अपने चयन की स्वतंत्रता से वातावरण में जहाँ हम इस बात से अनुभिज्ञ आपने ये सब कुछ कर लिया है। इस बात 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-54.txt जनवरी-फरवरी 2002 51 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 की व्याख्या मैं नहीं कर सकती कि लोगों उन्हें बाहर खदेड दिया जाएगा परमात्मा ने इस प्रकार के अज्ञानान्धकार का सृजन के साम्राज्य में उन्हें प्रवेश नहीं करने दिया क्यों कर लिया है जिसे न तो तोड़ा जा जाएगा| ये साम्राज्य केवल उन्ही लोगों के सकता है न दूर किया जा सकता है। आप लिए है जिन्होंने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लोग इस लिया है। केवल परमात्मा की बातें करने अंधकार से इतने एकरूप हैं। ये तो वालों के लिए परमात्मा का साम्राज्य नहीं चिपके हुए मोहर (जंउच) की तरह से है है जो लोग कहते हैं, हम परमात्मा के छुटना ही नहीं चाहती। जब ऐसा कुछ पुजारी हैं, हमने इतना कुछ सीख लिया है, घटित होता है तो आप सोचते हैं हे यदि इतना कुछ है तो ठीक है अब जहाँ से जो परमात्मा।" पूरी सृष्टि का सृजन किया आप आए थे वापिस चले जाओ। आपने जो गया है सभी कार्य किए गए हैं फिर भी कुछ भी ज्ञान पाया वह अपनी चेतना के मानव इस अवस्था तक पहुँच गया है! माध्यम से पाया और अपनी ही चेतना में परन्तु अब इस आधुनिक जीवन में जो आप यापन कर रहे हैं, आपको लगता है होनी चाहिए। ये बात आप नहीं जानते। कि लोग इतने मूर्ख हैं कि अपनी मूर्खता मानवीय चेतना को अभी और उन्नत होना से, अपनी जाहिलता से वो दूसरे लोगों को है। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् भी उन्नत भी भ्रमित कर रहे हैं । परन्तु जो लोग आपको जानना है। परन्तु ये चेतना ज्योतिर्मय 1 होने के लिए इस चेतना को बहुत लम्बी वास्तव में साधक हैं उन तक केसे पहुँचा यात्रा करनी पड़ती है । जाए? उन लोगों तक जो युग युगान्तरों से साधक हैं। उनके सारे पूर्व जन्म व्यर्थ हो आत्मसाक्षात्कार देने के लिए कभी कभी गए हैं। ये बात अत्यन्त निराशाजनक लगती कुछ भी समय नहीं लगता । मैं जानती हूँ, है। परन्तु सारी निराशाओं के मध्य अभी भी ऐसा बहुत बार घटित हुआ परन्तु लोग मुझे आशा है कि हम ब्रह्माण्ड के सभी नहीं जानते कि उन्हें क्या प्राप्त करना है। कोनों में पहुँच जाएंगे और सभी सन्च्चे अहंकार इतना भयानक दुर्गुण है कि लोग साधकों को खोज लेंगे। उनकी ये इच्छा बहुत से लोगों को सामूहिकता में है ये देखना भी नहीं चाहते कि उनमें क्या कमी है? उन्हें क्या पाना है और क्या पाने कि परमात्मा को पा ले। परमात्मा का ज्ञान पा लेना सभी साधकों की योग्यता उनमें है। वे उस सौन्दर्य को, उस प्रकाश को जो कि आत्मा है देखना भी करना राजाओं या प्रबन्ध निर्देशकों या बड़े नहीं चाहते। परमात्मा के प्रेम का प्रतिबिम्ब, बड़े लोगों के लिए नहीं है। परमात्मा के सोची जा सकने वाली बहुमूल्यतम चीज़ की शक्ति है। परमात्मा का ज्ञान प्राप्त है। सम्मुख इन सब चीजों की क्या कीमत है? 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-55.txt जनवरी-फरवरी 2002 52 चैत-्य लहरी खंड-XIV अक 1 ব 2 इंग्लैण्ड में सहजयोग बढ़ने की गति करना चाहते हैं और अपनी चेतना के बहुत ही धीमी रही। यदि ईसा मसीह के माध्यम से जानना चाहते हैं कि सत्य क्या समय से ऐसा होता तो मुझे निराशा न है। आपको अपनी आत्मा को पहचानना होती क्योंकि उस समय बहुत कम साधक होगा। बिना अपनी आत्मा का ज्ञान प्राप्त थे वास्तव में ईसा के बहुत समीप रहने किए आप सत्य को नहीं जान सकते। और वाले भी सत्य साधक ने थे। परन्तु आप जो भी बातें मैं आपसे करती रहूँ केवल सत्य साधक हैं। आपमें से बहुत से लोगो समय को बर्बाद करना होगा क्योंकि अभी ने सत्य साधना करने के लिए इस मार्ग को तक आपमें चेतना नहीं है। सत्य का ज्ञान अपनाया है परन्तु हम जा कहाँ रहे हैं? प्राप्त करने की चेतना नहीं है जिसके विषय इसके विषय में हम क्या कर रहे हैं? सत्य में मैं बात कर रही हू। इसीलिए मैं अत्यन्त के विषय में हमारे विचार क्या हैं? क्या विनम्रता से आपसे कहती हैं कि आत्मा बन हमारे विचार हमारे अहं की देन नहीं हैं? जाएं। आपको जो कुछ करने के लिए कहा कहीं ऐसा तो नहीं कि हम सत्य को खोजना गया है उसे करने में आपको हिचकिचाहट ही नहीं चाहते? इस देश के बहुत से बड़े कसी? ऐसा करके ही आप आत्मसाक्षात्कार बड़े लोगों से मैं मिली. उन लोगों से जो प्राप्त कर सकेगे सर्वप्रथम आपको आत्मा महत्वपूर्ण पदों पर आरूढ़ हैं, लार्ड हैं. लेडीज बनना होगा जब तक ये चेतना ज्योतिर्मय हैं और बहुत से अन्य उच्च लोग हैं। वे नहीं हो जाती आप देख नहीं सकते। ये तो कहते हैं, परिवर्तित कौन होना चाहता है?" अन्धे व्यक्ति के सम्मुख प्रकृति के रंगो का क्यों कि उनका तो सोचना ये है कि वो वर्णन करने जैसा होगा आपको अपनी महानतम हैं। ऐसे हालात में । परन्तु ऐसा करना वे अपने पद, अपने लार्डस, और अपनी लोगों को बहुत कठिन लगता है । वो इतने भौतिक उपलब्धियों को मृत्योपरांत स्वर्ग में मूर्ख हो गए हैं कि वो ये भी नहीं समझते अपने साथ ले जाना चाहते हैं! वो कहते हैं, कि ये क्या है और इसको समझने की कौन परिवर्तित होना चाहता है?" और उनकी कोई इच्छा भी नहीं है! उत्पन्न होकर ऑँखे खोलनी होंगीं कोई आपसे कहता है कि वहाँ जो पेड़ क्या कहा जा सकता है सिवाए इसके कि वे अन्तिम छोर पर पूर्ण विराम पर पहुँच है उसकी जड़ें हैं। परन्तु आप इस बात पर गए हैं इसके आगे यात्रा सम्भव ही नहीं विश्वास ही नहीं करते क्यों कि जड़ें दिखाई है। मैं कहना चाहती हैँ कि आत्मसाक्षात्कार खोजने का प्रयत्न कर लिया जाए? मान केवल उन्हीं लोगों को प्राप्त हो सकता है लो कोई कहता है 'बाहर जो कुछ है उससे ही नहीं दे रहीं। तो क्यों न जड़ों को जो साधक हैं, आत्म साक्षात्कार को प्राप्त कहीं अधिक अंदर है तो क्यों न इसे देख 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-56.txt जनवरी-फरवरी 2002 53 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 1 व 2 लिया जाए उसे देख लेने के मार्ग में आपकी इतनी समग्रता है कि किसी साँड बाधाएं क्यों उत्पन्न की जाएं, विशेष रूप से को सींगों से पकड़कर नियंत्रित करना जब यह विश्व की सर्वोत्तम उपलब्धि प्रदान आसान है परन्तु किसी अहंवादी को करने वाला हो या आत्मा नामक अत्यन्त सहजयोग अभ्यास में लगा पाना कठिन है। आज अहंवादी लोगों से मैं निराश हूँ । वाला हो तो क्यों न इसे प्राप्त कर लें। परन्तु और भी भावनाएं आती हैं, करुणा आपको इसके लिए कोई पैसा नहीं खर्चना, और अगाध प्रेम की भावनाएं। इन लोगों में कोई कष्ट नहीं उठाना, आपको कुछ नहीं विवेक उत्पन्न करने के लिए मुझे अवश्य कुछ करना चाहिए। इनके साथ कुछ होना परन्तु इसके लिए आपमें शुद्ध इच्छा ही चाहिए अन्यथा मुझे पूर्ण विनाश नज़र होनी चाहिए। यही बात मैं आपको समझाने आ रहा है। ऐसा हो जाएगा मैं आपको सुन्दर चीज़ की एक झलक प्रदान करने करना। का प्रयत्न कर रही हूँ। जब तक आपके उस तरह से डराना नहीं चाहती जैसे श्रीमती हृदय में इसे प्राप्त करने की शुद्ध इच्छा थैचर रूसी लोगों के विषय में करती हैं। नहीं है तब तक परमात्मा आकर आपके यह सब काल्पनिक हो सकता है परन्तु यह चरणों पर गिरकर आपसे प्रार्थना नहीं करेंगे वास्तविक है। मैं आपको चेतावनी देती हूँ कि कृपा करके मुझे प्राप्त करने की इच्छा कि विनाश विनाश के रूप में आने वाला कीजिए। ये बात यदि आपकी समझ में आ है परन्तु सबसे बड़ी बात तो उस इच्छा जाएगी तो वास्तव में आप इच्छा करेंगे का असफल होना है कि वो आपमें प्रसारित क्योंकि यह अत्यन्त इच्छा योग्य चीज है। न हो सकी आपने जिसे परमात्मा का मैं आपको बता दूँ कि यह कुण्डलिनी ही साम्राज्य लाने के लिए चुना है परन्तु आपके अतःस्थित शुद्ध इच्छा है। यह अभी अचानक आप देखेंगे कि वो सब लोग नाले प्रकट नहीं हुई है, अभी जागृत नहीं हुई है, में पड़ गए है जहाँ से निकलने के लिए अर्थात इसने अभी कार्य नहीं किया है। उनके पास कोई मार्ग नहीं है कभी कभी कल्पना करें कि यह कितनी महत्वपूर्ण है? सहजयोगियों को भी निराशा होती है । जो आपको इच्छा करनी चाहिए कि परमात्मा भी कुछ हो, जहाँ तक मैं देखती हूँ उनमें से एक रूप हो जाएं, आत्मा के साथ आप समग्र हो जाएं। ये इच्छा अत्यन्त दृढ़ होनी इतनी इच्छाविहीन कि हो सकता है इच्छाएं चाहिए । यदि ऐसा न होगा तो आप सदैव कार्यान्वित न हों । आप जानते हैं कि कुण्डलिनी को चुनौती देंगे, अर्थात आप मैं इच्छाविहीन व्यक्ति हूँ। इसलिए कुण्डलिनी विरोधी बन जाएंगे। ऐसी स्थिति सहजयोगियों से अनुरोध है कि उन्हें इच्छा में कुण्डलिनी उठेगी नहीं। अहं के साथ करनी चाहिए ताकि लोगों में आत्मा बनने अगाध इच्छा है। परन्तु मैं इच्छाविहीन हॅँ, 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-57.txt जनवरी-फरवरी 2002 54 चैतन्य लहरी खंड-XIV अक 1 व 2 अपने जूते बाहर रखें और अपनी आत्मा की महान इच्छा जागृत हो। ये महानतम चीज है जो हम अपने भाइयों, बहनों, लोगों, की इच्छा करें। मेरा प्रयत्न है कि किसी भी बच्चों को वह सुन्दर प्रकाश, सुन्दर समय दे सके जिसका उन्हें आनन्द लेना चाहिए तरह से आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो । जाए। मेरी इच्छा एक माँ की इच्छा सम है मुझे विश्वास है कि जो लोग पहली बार कि बच्चे को स्तान करवा दिया जाए और आए हैं वो मेरी कठिनाई को समझेंगे और उसे शुद्ध कर दिया जाए। तो जिस प्रकार यह देखने का प्रयत्न करेंगे कि आपको आप चाहेंगे मैं कार्य करने के लिए तैयार हूँ अपने आत्म साक्षात्कार की इच्छा करनी परन्तु कम से कम इस बारे में विश्वस्त करें चाहिए, किसी और चीज़ की नहीं । उसकी इच्दा करें बाकी सब चीजों को भूल इच्छा है। कि आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने की केवल जाएं चाहे आप प्रबन्ध निदेशक हों या परमात्मा आपको आशीर्वादित करें बादशाह। 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-58.txt चमत्कारिक तस्वीरें ू आकाश में श्री गणेश गा ॐ मई, 1994, गुलबर्न, आस्ट्रेलिया 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-59.txt श्री शिव प्रतिमा, एलिफैन्टा गुफा मुम्बई, 1985 (एक विदेशी सहज योगी द्वारा) ा भ क श्री शिव प्रतिमा, एलिफैन्टा गुफा मुम्बई, 1985 का (10 मिनट के ध्यान पश्चात् एक विदेशी सहज योगी द्वारा) श्र 4 थी ८