खंड : XIV अक : 3 व 4 PURE RELIGION HSAINA मार्च अप्रैल, 2002 चैतन्य लहरी े कि हे श्रीमाताजी अत्यन्त कृपा करके पूरणावतार के रूप में इस विश्व में अवतरित होकर आप अपने बच्चों के हृदय-सिंहासन पर विराजमान हुई हैं अपने समी बच्चों की आप प्रेममयी माँ हैं। आपका निष्कलंक रूप अत्यन्त सुखकर है। आपकी एक झलक हमारे हृदयों को निरानन्द से भर देती है। ब्रह्माण्ड की बीज रूप, हे, श्री आदिशक्ति आपके दर्शन मात्र से सभी पाप समूल नष्ट हो जाते हैं। श्रीमाताजी, आपको कोटि-कोटि प्रणाम । ১ नवरात्रि पूजा, लोतराकी, यूनान, 21.10.2001 मार्च अप्रै ल खंड X1 V चैतन्य लहरी अं क 2002 थे गुरु स्तुति 1 गणेश पूजा - 22.9.2001, कबेला 7 15| नवरात्रि पूजा 21.10.2001, यूनान 24| श्री कृष्ण पूजा - 14.8.89 31 1 पहले स्वयं को पहचान लें -1.8.89 39| निर्मल वाणी । तिहाड़ के कुछ कैदी साधकों की कुछ अनुभूतियाँ 40 उ 41 | एक सहजी की अनुभूति 421 विद्यार्थी को सहजयोग से लाभ चै त न य ल ह री प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर 162 - ए. मुनीरका विहार, नई दिल्ली 110067 मुद्रक अमरनाथ प्रैस प्रा. लिमिटेड डब्ल्यू एच एस 2/47 कीर्ति नगर औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली -15 फोन : 5447291, 5170197 सदस्यता के लिए कृपया इस पते पर लिखें :- श्री ओ.पी. चान्दना T.१ - 463 (G-11) ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली - 110034 एन फोन : (011) 7013464 सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पते पर भेजें चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी-17, कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली 110016 का तही गुरु स्तुति परम् पूज्य माताजी के श्री चरणों में अर्पित ज्ञानेश्वरी के अध्याय 12 से 18 पर आधारित (1 से 35-वर्ष 2000 के अन्तिम अंक में) 36) श्रीमाताजी आप ही वह सूर्य है, जिसके 40 श्रीमाताजी आपको कोटि-शत प्रणाम | उदय से अद्वैत रूपी कमल पूर्ण गरिमा में हमारी बुद्धि तथा आत्म साक्षात्कार पौराणिक खिल उठा है तथा उस भ्रम का साम्राज्य चकवा-चकवी पक्षियों के जोड़े सम हैं जो अस्त हो गया है, जिसके कारण भौतिक विश्व को वास्तविकता मान लिया गया था । अंधकार में एक दूसरे से बिछुड़ कर मिलन श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। विचार विनिमय एवं वाद-विवादों के के लिए विलाप कर रहे थे। श्रीमाताजी आप ही वह सूर्य हैं जिसके प्रकाश ने हमारी बुद्धि रूपी आकाश को ज्योतिर्मय 37) श्रीमाताजी आप ही वह सूर्य हैं जिसने सांसारिक ज्ञान के टिमटिमाते सितारों रूपी किया तथा पक्षियों की इस जोड़ी का मिलन अविधा की रात्रि को निगल लिया है, तथा साधकों के लिए आत्म-साक्षात्कार रूपी शुभ दिन का उदय हो गया है। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। करवाया। 41) श्रीमाताजी आपको कोटि-शत प्रणाम । आप ही वह सूर्य हैं जिसके उदय से अगुरूओं का अमांगलिक काल समाप्त हो गया है तथा सभी साधकों के लिए आत्म-साक्षात्कार 38) श्रीमाताजी आप ही वह सूर्य हैं जो उषा काल को लेकर आए हैं जिसमें हमारे आत्मा रूपी पक्षियों ने आत्मसाक्षात्कार का प्राप्त करके उत्थान-प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त हुआ है। स्वप्न साकार करके शरीर रूपी घोंसलों से सामंजस्य त्याग दिया है। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 42) श्रीमाताजी आपको कोटि-शत प्रणाम। आप ही सूर्य हैं, आपकी बच्चों में वैसे ही दिव्य ज्ञान की ज्योति किरणें आपके कृपा 39) श्रीमाताजी आपको कोटि-शत प्रणाम | माया के अंधेरे साम्राज्य में हमारे आत्मा स्फुटित करती हैं जैसे पौराणिक सूर्यकान्त रूपी भवरे, कारण रूपी (causal) शरीर रल पर सूर्य की किरणें पड़ने से ज्योति कमलों के अन्दर फॅसे का आनन्द ले रहे थे श्रीमाताजी आप ही वह सूर्य हैं जिसने उन भँवरों को मुक्त किया है। प्रस्फुटित होती थीं श्रीमाताजी दिव्य ज्ञान की ये लपटें सांसारिक सुखों के मोह को सांसारिक सुखों हुए भस्म कर देती हैं। 43) श्रीमाताजी आपको कोटि-शत प्रणाम। मार्च -अप्रैल 2002 2 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 47) श्रीमाताजी आपको कोटि-शत प्रणाम। आप ही वह सूर्य हैं जिसकी कृपा से आपके बच्चों में सर्व-बन्धनों से मुक्ति का शुभ आप सूर्य हैं। ज्यों ज्यों आपकी कृपा किरणें दृढ होती हैं, असंख्य चमत्कार होते हैं तथा यह अनन्त सुख समृद्धि के आशीर्वादों की वर्षा करती हैं। श्रीमाताजी ये हमारे लिए दिवस उदय हुआ है। चेतावनियाँ हैं कि हमारा चित्त यदि आपके चरण-कमलों पर स्थापित नहीं है तो वही 48) श्रीमाताजी आपको कोटि-शत प्रणाम। सुख-समृद्धि मृग-तृष्णा बनकर हमें आत्मा तथा आपके चरण-कमलों से दूर धकेल साम्राज्य सदैव चमकता है। आपकी सकती हैं आप ही वह सूर्य हैं जो आत्मसाक्षाआत्कार के में कृपा आपके बच्चे में भ्रान्ति के अंधकार को समाप्त करती है और उन्हें अन्य सभी ज्ञानों से 44) श्रीमाताजी आपको कोटि-शत प्रणाम । श्रेष्ठ आत्मसाक्षात्कार का पूर्ण ज्ञान प्रदान आप ही वह सूर्य हैं जो अपनी गरिमा में करती हैं । पूर्ण पराकाष्ठा पर चमकता है। अपनी कृपा की किरणें जब आप अपने बच्चों पर डालती 49) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम । हैं तो वो सोहं (अद्वैत) का अनुभव करते हैं शब्दों में सीमित शक्ति होने के कारण और उनकी भ्रान्ति इस प्रकार से समाप्त आपकी स्तुति करने में शब्द असमर्थ हैं। हो जाती है जैसे दोपहर के समय हमारी आपकी स्तुति तो केवल आपके चरण कमलों परछाई हमारे पैरों के नीचे समाप्त हो जाती से एकरूप होकर ही की जा सकती है, है। जब शब्द, स्तुति करने वाली बुद्धि एवं स्तुति के शब्द आपके चरण कमलों से एक रूप हो जाएं। स्तुति का यही लक्ष्य है। 45) श्रीमाताजी आपको कोटि-शत प्रणाम। आप सूर्य हैं, आपकी कृपा से जब माया-रात्रि का अस्तित्व समाप्त हो जाता है को वास्तविकता समझने वाली मानसिक शब्दों के माध्यम से आपकी स्तुति कर भ्रान्ति-रूपी रात्रि भी समाप्त हो जाती है। पाना वास्तव में असम्भव है क्योंकि आपका वास्तव में ये संसार स्वप्न-सम है। 50) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम । तो संसार ज्ञान पाना अज्ञात को जानना है और ऐसा केवल पूर्ण मौन की अवस्था में ही किया जा सकता है जब आत्मा अपनी अभिव्यक्ति 46) श्रीमाताजी आपको कोटि शत प्रणाम। श्रीमाताजी आप ही वह सूर्य हैं जो ज्ञान करती है। श्रीमाताजी आप ही हमारी आत्मा और अंधकार के दिवस और रात्रि से परे ह हैं। आप ही ज्ञानोदय भी हैं क्योंकि आप तीनों प्रकार-वैखरी, मध्यमा और पश्यन्ति- स्वयं ज्योति हैं। हे ज्ञान के दैदीप्यमान परा वाणी की सूक्ष्मता में एक रूप हो जाते सूर्य! आपकी झलक कौन प्राप्त कर सकता हैं और परावाणी पूर्ण मौन की अवस्था में है? हैं। उस अवरथा में, श्रीमाताजी, वाणी के चली जाती है। मार्च-अप्रै ल 2002 3 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 51) ओ गुरुमाँ, श्रीमाताजी, आप ही प्रति समर्पित हैं आप उन्हें इस प्रकार से गणाधीश श्री गणेश हैं जिनकी योग-माया स्वयं से जोड़ लेती हैं कि उनके शरीर का से इस पूर्ण विकसित ब्रह्माण्ड का उदय अस्तित्व नाम-मात्र के लिए ही रह जाता होता है। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि है। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 1 प्रणाम् । 58) स्वयं को आपसे भिन्न मानने वाले 52) हे गुरु माँ, श्रीमाताजी आपको लोगों के लिए, जो आपके साकार रूप का कोटि-कोटि प्रणाम। आप श्री गणेश हैं । आपका स्मरण करके श्री शिव ने आत्मत्व कर्मकाण्डों से आप तक पहुँचने के लिए के किले में कैद तीन गुणों रूपी तीन नगरों प्रयत्नशील हैं, आप दुरग्राह्य हैं आपको से धिरी आत्मा को मुक्त किया। ध्यान करने जैसे भिन्न आध्यात्मिक कोटि-कोटि प्रणाम । 53) अत:, हे गुरु माँ, श्रीमाताजी! गुरु रूप 59) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। में श्री शिव की तुलना में आप श्रेष्ठ हैं जो धूरन्धर विद्वान ये नहीं मानते कि आप क्योंकि आप अपने बच्चों को अत्यन्त प्रेम पूर्ण हैं वो अपने सम्बन्धित ज्ञान के माध्यम पूर्वक भ्रम-सागर से पार करती हैं। से बौद्धिक रूप से आपको समझने का श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम । प्रयत्न करते हैं। परन्तु वे अज्ञानी हैं। 54) हे गुरुमाँ श्रीमाताजी, आपको कोटि- आखिरकार सर्वज्ञ "शब्द ब्रह्म" वेद भी आपका कोटि प्रणाम। आप ज्ञानहीन लोगों की समझ वर्णन करने में असमर्थ हैं। से परे हैं केवल ज्ञान-वान (आत्मसाक्षात्कारी) 60) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम | व्यक्ति ही आपको समझ सकते हैं। जब हम आपके दास बनना चाहते हैं तब 55) हे श्रीगुरु माँ आपको कोटि-कोटि भी दास और स्वामी का द्वैत बना रहता है। प्रणाम। श्री गणेश के रूप में चाहे आपकी अतः बेहतर तो यही है कि हम अपना कोई ऑँखें बहुत छोटी हों परन्तु इनको खोलने अस्तित्व ही न माने। तथा बन्द करने मात्र से आप ब्रह्माण्ड के 61) हे देवी, एवं गुरु श्रीमाताजी, आपको कोटि-कोटि प्रणाम । ध्यान करते हुए जब हम वह अवस्था प्राप्त करते हैं जिसमें हमारा सृजन एवं प्रलय की लीला करती है। माँ श्रीमाताजी, आपको कोटि- 56) हे गुरु कोटि प्रणाम। आपके प्रियजनों में हद्वैतवाद कोई अपना अस्तित्व नहीं रह जाता केवल समाप्त हो जाता है और उनका कोई तभी हम आपके चरण कमलों से एक हो सम्बन्ध बाकी नहीं बचता क्योंकि वे आपसे सकते हैं। यही आपकी पूजा है। एकरूप हो जाते हैं। 62) हे श्री आदिशक्ति गुरु माँ, आपको 57) आप क्योंकि सांसारिक बन्धनों को कोटि-कोटि प्रणाम| हमारी हार्दिक इच्छा तोड़ती हैं, जो लोग प्रसन्नता पूर्वक आपके है कि आपके चरण कमलों से एक होकर मार्च-अप्रै ल 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 वैसे ही आपके चरण कमलों की पूजा करें अपने सभी बच्चों की आप प्रेममयी माँ हैं । जैसे समुद्र के पानी में घुलकर नमक समुद्र सुगमतापूर्वक आप मृत्युदेव, यम की की पूजा करता है। गतिविधियों को नियंत्रित करती हैं । 63) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 67) हे परम प्रिय गुरु माँ, हे महादेवी जिस प्रकार खाली घड़े को समुद्र के जल श्रीमाताजी, आपको कोटि-कोटि धन्यवाद में डुबोने पर जल से भरकर ऊपर लाते हैं, अपने बच्चों की रक्षा करने के लिए उन्हें जिस प्रकार दीपक की बाती प्रज्जवलित सुधारने के लिए तथा उनके चित्त नियंत्रण होकर स्वयं दीपक बन जाती हैं वैसे ही के लिए आप उनके साथ चट्टान की तरह आपके चरण कमलों की पूजा करके हम से खड़ी हो जाती हैं । हे माँ ये सब कार्य भी पूर्णता का आनन्द प्राप्त करेंगे और आपके लिए लीला मात्र हैं। आप इनका तत्पश्चात् आपकी इच्छा को कार्यान्वित करने अत्यन्त आनन्द लेती हैं। के लिए आपके आदर्श माध्यम बनेंगे । 68) हे गुरु माँ, श्रीमाताजी आपको 64) हे महादेवी, हे गुरु, श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम । आपका निष्कलंक रूप कोटि-कोटि प्रणाम। जिन लोगों को आप अत्यन्त सुखकर है। आपकी एक झलक अपने चरण कमलों में शरण देती हैं उन्हें हमारे हृदयों को निरानन्द से भर देती हैं। सभी प्रकार की मंगलमयता का वरदान ब्रह्माण्ड की बीज रूप हे श्री आदिशक्ति देती हैं। आप जन्म वृद्धावस्था के बादलों आपके दर्शन मात्र से सभी पाप नष्ट हो को दूर कर देने वाली तीव्र वायु सम हैं। जाते हैं। 65) हे परम प्रिय गुरु, हे सर्व- शक्तिमान 69) हे गुरु माँ श्रीमाताजी आपको कोटि- आदि-शक्ति श्रीमाताजी आपको कोटि- कोटि प्रणाम आप ज्योति स्वरूप, हैं आप कोटि प्रणाम। अपावन तथा अशुभ को आप ही ने अपने बच्चों को ज्योतिर्मय बनाया है। समूल नष्ट करती हैं। वेदों तथा उपनिषदों जिस प्रकार आकाश बादलों को संभालता में आपको की गई प्रार्थना के फलस्वरूप है वैसे ही आप अपने अन्दर इस ब्रह्माण्ड आपका अवतरण हुआ है। वेदों तथा को सम्भाले हुए हैं श्रीमाताजी आत्म- उपनिषदों का वरदान देने वाली भी आप साक्षात्कार प्राप्त कर लेने के पश्चात् ही हैं। ये ब्रह्माण्ड हमें मिथ्या प्रतीत होता है। 66) हे गुरु माँ श्रीमाताजी, आपको कोटि- 70) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम । कोटि प्रणाम। अत्यन्त कृपा करके आपने आदि माँ होने के नाते आप सभी देवी पूर्णावतार के रूप में इस विश्व में अवतरण देवताओं गणों तथा पूरे ब्रह्माण्ड की गुरु लेना स्वीकार किया है और अपने बच्चों के हैं। हे परम पावनी, आपके कटाक्ष मात्र से हृदय के सिंहासन पर विराजित हुई हैं। आपके बच्चे इन्द्रीय सुखों से परिपूर्ण इस मार्च-अप्रै ल 2002 5 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 विश्व के भ्रान्तिमय स्वभाव को पहचान लेते कोई उपमा, कोई रूपक, कोई विशेषण एवं हैं हे करुणा की सागर माँ, भ्रान्तिमय कोई शब्द पर्याप्त नहीं है क्योंकि आप हर सांसारिक प्रलोभनों से मुक्ति प्रदान करने चीज़ से परे हैं आपकी स्तुति करने के के लिए आपके बच्चे आपके प्रति सदा लिए हमारे पास न तो शब्द हैं और न ही हममें योग्यता है। हम तो केवल इतना जानते हैं कि आपकी स्तुति करने के लिए सर्वदा के लिए कृतज्ञ है। 71) हे सर्वव्याप्त, सर्वशक्तिमान परमात्मा, हे हमारी प्रेममयी गुरु माँ, आपको हमें ध्यान धारणा करनी है और सहजयोग कोटि-कोटि प्रणाम । आप ही अपने बच्चों प्रसार के लिए कार्य करने हैं। की हृदय ज्योति हैं। आप ही का प्रकाश 75) हे ब्रह्माण्ड आत्मा, हे सर्वोपरि, हे उनके अन्तस को ज्योतिर्मय करता है तथा सर्वव्याप्त, सर्वशक्तिमान परमात्मा, सर्व दिव्य चैतन्य-लहरियों के रूप में प्रसारित देवी-देवताओं गणों एवं सहजयोगियों की होकर सांसारिक जीवन के व्याकुल कर गुरु माँ, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। कृपा देने वाले ताप से उनकी रक्षा करता है करके इस ब्रह्माण्ड पर प्रसन्न हो जाइए। तथा सभी प्रकार की व्याधियों से उन्हें आत्मा का दिव्य ज्ञान प्रदान करने के लिए आपके बच्चे, आपके प्रति कृतज्ञ हैं। मुक्त करता है। 72) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम्। आप अद्वितीय हैं, आपसा दूसरा कोई नहीं। सभी विनम्र, निर्लिप्त, विवेकशील तथा आपके प्रति समर्पित लोगों को आप गहन प्रेम दुष्ट दुष्टता छोड़कर शुभ कार्यों करती हैं, इतना अधिक प्रेम कि उनकी रक्षा करने के लिए, उनके हित को देखने के लिए और उनकी शुद्ध इच्छाओं को पूर्ण 77 ) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। करने के लिए एक दम तैयार रहती हैं । 76) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम्। श्रीमाताजी कृपा करें और आपकी कृपा से लोग अपनी में लग जाएं तथा सभी मनुष्यों में हार्दिक प्रेम जाग उठे। ४। आत्म-साक्षात्कार की ज्योति प्रदान करने 73) हे आदिगुरु श्रीमाताजी आपको कोटि- के लिए हम आपके सभी बच्चे आपके प्रति कोटि प्रणाम। आप स्वर्गीय कल्पतरु सम सदा सर्वदा कृतज्ञ हैं। कृपा करें कि आपकी हैं जो सभी इच्छाएं पूर्ण करता हैं। हम कृपा से विश्व से अज्ञानान्धकार मिट जाए । आपके सभी बच्चे निरन्तर आपके प्रति हैं कि आपने हम पर परम चैतन्य की वर्षा सके तथा सभी मानव अपनी शुद्ध इच्छा विश्व आत्मा तथा धर्म की सुनहरी धूप देख कृतज्ञ की पूर्ति का आनन्द उठा सकें। की। यह महानतम है, अवर्णनीय एवं कल्पना से परे है। 78) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। हे आदिगुरु श्रीमाताजी आपको कोटि- दिव्य आशीर्वाद तथा मंगलमय परम चैतन्य कोटि प्रणाम। आपकी स्तुति करने के लिए की वर्षा हम पर करने के लिए हम आपके मार्च -अप्रै ल 2002 6 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 सभी बच्चे अनुगृहीत हैं। श्रीमाताजी कृपा रूपी दिव्य चिन्तामणि रत्नों के नगरों सम करें कि सर्वशक्तिमान परमात्मा अर्थात आप हैं, और बोलते हुए अमृत सागर सम हैं। स्वयं के साधकों की भीड़ मंगलमयता की वर्षा में परस्पर अत्यन्त प्रेमपूर्वक मिलें। 80) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। हम आपके बच्चे आपके आभारी हैं कि 79) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। आपने हमें अपने अन्दर स्थान दिया तथा श्रीमाताजी हम आपके सभी बच्चे अपने प्रेम एवं करुणा से हमें शुद्ध कर रही आपके प्रति कृतज्ञ हैं कि आपने हमें हैं श्रीमाताजी आपकी कृपा से विश्व के आत्म -साक्षात्कारी व्यक्तियों की सामूहिकता सभी मानव जी भरके दिव्य आनन्द को प्राप्त करें और हे आदि पुरुष, हे परमात्मा, वे सब आपकी भक्ति एक हो जाएं। इनके समूह चलते फिरते में डूब जाएं। हे परमेश्वरी माँ बारम्बर आपको प्रदान की। कृपा करें, कि निष्कलंक चन्द्रमा, एवं तापहीन सूर्य-सम, इन लोगों के हृदय हे साक्षात् श्री परब्रह्म दिव्य कल्पतरुओं की तरह से हैं. चेतना कोटि शत प्रणाम | ॐँ नमः, ऊँ नमः, ऊ नमः । ता श्री गणेश पूजा कबेला-(22.9.2001) परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज हम यहाँ श्रीगणेश की पूजा करने खड़े हो जाते हैं । ये क्या है? जो हमें के लिए एकत्र हुए है श्री गणेश पावनता पावनता की रक्षा करने के लिए चेतन करती के देवता हैं वे अबोधिता के सागर हैं। है? हमारे लिये यह देखना कि विश्व में यद्यपि वे इतने युवा बालक हैं फिर भी वो पावनता पर आक्रमण किया जा रहा है पूरे विश्व से युद्ध कर सकते हैं। पूरी अत्यन्त लज्जा-जनक है। कोई भी अन्य नकारात्मकता को वे नष्ट कर सकते हैं, चीज़ सहन की जा सकती है। जिन अबोध पावनता का यही चिन्ह है । ऐसी बहुत सी लोगों ने कुछ भी गलती नहीं की, जिनके कहानियाँ हैं कि बच्चे बहुत अधिक ऊँचाई मन में कोई ईष्ष्या नहीं है, जो नन्हें बालकों से गिरे परन्तु वे बच गए. उन्हें कुछ भी की तरह से हैं, उन पर यदि कोई आक्रमण नहीं हुआ। उनकी पावनता इतनी शक्तिशाली करे तो पूरा विश्व न केवल प्रतिक्रिया करता कि यह किसी भी ऐसे व्यक्ति को हानि है बल्कि कोई इसे सहन नहीं कर पाता। नहीं पहुँचाती जिसे हानि नहीं पहुँचानी। किसी अबोध व्यक्ति को हानि पहुँचाए जाने इसमें पूरे विश्व का विवेक है, पूरे विश्व की को कोई सहन नहीं कर पाता। आप लोग सूझ-बूझ है। कोई यदि पावनता को हानि महसूस नहीं करते कि हमारे अन्दर बच्चों है। पहुँचाने का प्रयत्न करता है तो ये विश्व, ये के लिए प्रेम एवं सूझ-बूझ का सागर पूरा विश्व, जिसने चाहे पावनता का सम्मान क्यों? ऐसा क्यों होना चाहिए? हमें ऐसा न किया हो फिर भी यह पावनता को हानि क्यों करना चाहिए? विशेष रूप से बच्चों, पहुँचाने वालों के विरुद्ध खड़ा हो जाता है। अबोध बच्चों के साथ। कुछ लोग सदैव आप अपने जीवन में चहूँ ओर देख सकते अबोध व्यक्तियों पर आक्रमण करते रहते हैं। बच्चे अबोध है परन्तु कोई उन्हें सहारा प्रयत्न किया तो सभी लोग, चाहे जो भी नहीं देना चाहता। बच्चों से दुर्व्यवहार करने हों, चाहे वे किसी देश या राष्ट्रीयता के हों, को कोई भी अच्छा.नहीं समझता और किसी एकदम कूद पड़ते हैं, सभी उन्हें नियंत्रित ने यदि ऐसा किया तो प्रतिक्रिया स्वरूप उन्हें भयानक कष्ट भुगतने पड़े। हमारे अन्दर हैं किसी ने भी यदि बच्चों को कष्ट देने का करने और बच्चों की रक्षा करने के लिए न मार्च अप्रै ल 2002 8 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 ऐसी कौन सी चीज़ है जो अबोधिता के बात बच्चों की और अबोध व्यक्तियों की विरुद्ध इस प्रतिक्रिया का सृजन करती है । आती है तो हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियाँ उदाहरण के रूप में यदि नियमित रूप महसूस करता है। हो या लोग ऐसे युद्ध में लड़ रहे से युद्ध सामान्य मनुष्य के लिए अबोध होना हों तो उनमें सहानुभूति का अभाव हो जाता है और वो कहते हैं कि ठीक है उनमें कठिन है क्योंकि उनमें एक प्रकार की इतनी ही सूझबूझ है, वो ऐसे ही हैं । अधिकतम सहानुभूति केवल तभी आती है जब अबोधिता को चुनौती मिलती है। कर सकते हैं। ऐसे लोग धूर्त हो सकते हैं. मानव के यही गुण हैं कि उनमें श्रीगणेश आक्रामक, कष्टदायी या कुछ भी हो सकते की शक्तियाँ है और यही आपको यह भावना, भावना है कि वे कुछ महान हैं, सभी कुछ जानते हैं, किसी भी चीज का विश्लेषण हैं। किसी भी चीज़ के लिए तर्क देते हुए कहते हैं कि इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता । वे यह सामर्थ्य, यह सूझ-बूझ देती हैं जिनसे आप अबोध बच्चों, अबोध लोगों की रक्षा परन्तु ऐसे लोगों का कभी भी सम्मान नहीं करते हैं। जो लोग अबोधिता को नष्ट करने होता और इन गुणों के लिए उनकी प्रशंसा का प्रयत्न कर रहे हैं उनके विरुद्ध पूरा विश्व खड़ा है, इसमें कोई सन्देह नहीं हो सकता। वे यदि ऐसे आक्रमण या आलोचना का सम्मान करना ही सहज संस्कृति भी नहीं की जा सकती। हम सहजयोगियों के लिए अबोधिता का मुकाबला नहीं कर सकते तो मैं कहूंगी है। आपको चाहे ऐसा लगे कि आपको कि वे मानव नहीं हैं। श्रेष्ठ व्यक्तित्व के धोखा दिया गया है, आप पर प्रभुत्व लोग किसी भी चीज़ का बलिदान कर सकते हैं और किसी भी चीज़ को त्याग किया जा रहा है, फिर भी सहजयोगियों सकते हैं परन्तु वे पावनता की भावना को को अबोध होना है क्योंकि उनके अन्दर नहीं त्याग सकते। यह अत्यन्त उत्तम बात श्री गणेश की शक्ति विद्यमान है । अगर जमाया जा रहा है, आपका अपमान है। अबोध लोगों के लिए सुरक्षा एवं प्रेम का कितना बड़ा सागर है! अबोध व्यक्तियों उनका दुरुपयोग किया जा रहा है, अपमान किया जा रहा है, उन्हें कष्ट दिया जा रहा एवं बच्चों पर आक्रमण होते हुए जब हम है, उन पर प्रभुत्व जमाया जा रहा है तो देखते हैं तो किस प्रकार से हम उनकी आपको निरुत्साहित नहीं होना चाहिए। सब ओर आकर्षित होते है! मानव का यही ठीक है, अन्य लोगों की अबोधिता का नष्ट सौंदर्य है। निःसन्देह कुछ मनुष्य ऐसे भी करने का प्रयत्न उन्हें नहीं करना चाहिए । हैं जो अत्याचारी भी हो, सकते हैं जिन्हें स्वतः ही ये सब कार्यान्वित होगा आप हम शैतान कह सकते हैं। परन्तु जब आश्चर्य चकित होंगें कि अबोधिता जब दृढ़ मार्च-अप्रै ल 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 होती है तब पूरे ब्रह्माण्ड की अच्छाई उसके क्रूर और भद्दी चीज़ पर अपनी शक्ति बचाव के लिए आ जाती है। अमरीका का नष्ट नहीं करनी चाहिए। बच्चों को यदि वर्तमान युद्ध, तथाकथित युद्ध, इसका आप प्रेम नहीं कर सकते तो आप किसी भी उदाहरण है अमरीका के अबोध लोगों ने चीज़ को प्रेम नहीं कर सकते। मैं आज कोई भी अपराध न किया था फिर भी तक किसी भी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिली उनकी हत्या की गई उन्हें सताया गया जो बच्चों से प्रेम नहीं करता हो, जिसे पूरा विश्व उनके साथ खड़ा हो गया। विश्व हत्या करनी अच्छी लगती हो। कुछ लोग के सभी देश, चाहे वो अमरीका में विश्वास कह सकते है कि वो फूलों से प्रेम करते हैं, करते थे या नहीं, इस जघन्य अपराध के क्यों? आप फूलों से क्यों प्रेम करते हैं, विरुद्ध खड़े हो गए । वे उसी धर्म से हों या क्योंकि फूल अबोध हैं, अबोधिता का सौन्दर्य न हों, उस देश के हों या न हों, फिर भी उनमें है प्रकृति को आप क्यों प्रेम करते हैं जो लोग अबोधिता का पक्ष नहीं लेंगे उन्हें क्योंकि ये अबोध है। परन्तु जो लोग अलग-थलग करके नष्ट कर दिया जाएगा सहजयोगी हैं उन्ही में महानतम अबोधिता देखी जा सकती है। चतुर-चालाक होना उन्हें सबक मिल जाएगा कि अबोध लोगों बहुत आसान है परन्तु विवेकशील होने के लिए अबोधिता के सौन्दर्य को समझना इसमें कोई सन्देह नहीं है। हमेशा के लिए पर कभी आक्रमण नहीं करना। मैंने आपको बताया है कि सहजयोग में आवश्यक है। हो सकता है कि कोई कहे कि श्रीमाताजी हमारा अनुचित लाभ उठाया हमें कभी बच्चों पर क्रोध नहीं करना, किसी जा सकता है। आप यदि अबोध हैं तो कोई आपका अनुचित लाभ नहीं उठा सकता। भी प्रकार से उन्हें दण्ड नहीं देना। बच्चों के प्रति प्रेम ही हमारी उपलब्धि होगी । मुख्य विश्व भर के बच्चे चाहे वे हमारे परिवार के लोग चाहे सोचते रहें कि उन्होंने ऐसा किया है, वे अत्यन्त आक्रामक थे, आदि- आदि, परन्तु वे ऐसा नहीं कर सकते । अबोधिता तो चट्टान सम है जिसे कोई भी क्रोध का समुद्र हिला नहीं सकता। किसी न होकर किसी अन्य परिवार के हों, चाहे वे हमारे से लिप्त न हों, फिर भी बालक अबोध हैं, आपकी अपनी अबोधिता उनकी रक्षा करने का प्रयत्न करेगी अबोधिता पर जब आक्रमण होता है तो जिस प्रकार से भी प्रकार का प्रतिशोध इससे नहीं लिया लोग अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए जा सकता क्योंकि इस चट्टान की देखभाल खड़े हो जाते हैं. यह आश्चर्यजनक है । बच्चों पर कभी आक्रमण नहीं होना चाहिए। निःसन्देह उनमें रक्षा करने के लिए अपनी हमारे अन्दर की अबोधिता नष्ट नहीं हो शक्ति है परन्तु किसी अमंगलकारी, अत्यन्त सकती। आश्चर्य की बात है व्यक्ति चाहे और पोषण श्री गणेश कर रहे हैं । मैं आपको पहले भी बता चुकी हूँ कि चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2002 10 अपराधी हो, जितना चाहे क्रूर हो, चाहे जो गुण है। यह इस प्रकार से कार्य करती है हो, परन्तु उसके अन्दर की अबोधिता नष्ट मानो मानव की पूरी सूझ बूझ उसका पूरा नहीं होती। परमात्मा ने इतना रहस्यमय कार्यान्वयन अत्यन्त सुन्दरता पूर्वक प्राप्त गुण हमारे अन्दर स्थापित किया है! कर लिया हो। अब आप देखिये कि विश्व अबोधिता से हर समय हम खिलवाड़ करते में क्या चीज़ रह जाती है, कौन सी चीज रहते हैं और सोचते हैं कि ठीक है, मेरी को लोग स्मरण करते हैं, किस चीज का अपनी इच्छा है, इच्छानुसार जो चाहे मैं सम्मान करते हैं? केवल उच्च आदर्शों का करू और इस प्रकार हर समय अपनी इस सम्मान किया जाता है। परन्तु यदि आप शक्ति को कम करते रहते हैं या हम कह उच्च आदर्शों वाले लोगों के सूक्ष्म पक्ष को सकते हैं कि अपनी अबोधिता पर आवरण देखें तो चाहे इन लोगों को हानि पहुँचाई डालते रहते हैं और सोचते हैं कि अपने गई हो, चाहे इनकी हत्याएं की गई हों चालाक स्वभाव से लोगों को बेवकूफ़ बनाकर फिर भी उन्होंने अत्यन्त उच्च चरित्र और हमने बहुत बड़ा कार्य किया है। स्वभाव सज्जन स्वभाव का सुन्दर जीवन व्यतीत की ये चालाकी आपको किसी भी प्रकार किया और अपनी अबोधिता एवं पावनता के का सन्तोष नहीं दे सकती। यह कारण युग-युगान्तरों तक दैदीप्यमान रहे। आत्म-निर्भर नहीं है। किसी के साथ इस प्रकार के महान लोगों के जीवन को जब आप चालाकी करते हैं तो यह चालाकी आप देख सकते हैं। वे अत्यन्त सहज हैं, आप ही को प्रभावित करती है। पलटकर जान-बूझकर उन्होंने कुछ नहीं किया। इसका दुष्प्रभाव आप ही पर होता है और उनका आचरण अत्यन्त सहज है और यह अबोधिता में आपकी श्रद्धा को नष्ट करती है । महानतम आश्रय है और पृथ्वी पर यह अत्यन्त सहजतापूर्वक वो जीवन व्यतीत यही विश्वास महानतम है. करते हैं। एक के बाद एक राष्ट्र नष्ट हो सकता है परन्तु अबोधिता की शक्ति कभी नष्ट नहीं हो सकती। इसमें आप विश्वास रखें। स्वयं पर विश्वास रखें तथा इस बात ये सोचकर कि अबोधिता हमें दुर्बल करती पर कि अबोधिता के अतिरिक्त आप कुछ है, जो लोग अबोधिता का सम्मान नहीं भी नहीं हैं। आप कह सकते है कि अबोध करते, उन्होंने अबोधिता की शक्ति को नहीं लोगों को धोखा दिया जाता है । अबोध परखा है कि यह किस प्रकार कार्य करती व्यक्ति को कोई धोखा नहीं दे सकता क्योंकि है। विश्व भर से यह प्रतिक्रिया करती है। अबोधिता का मूल्य शाश्वत है। हो सकता परन्तु मेरे विचार से मानव अभी तक भी है वो धन या अन्य भौतिक चीजों के मामले अबोधिता की शक्ति के प्रति चेतन नहीं है, में आपको धोखा दे सकें। परन्तु अत्यन्त बो नहीं जानता कि अबोध होना महानतम शाश्वत् चीज तो आपकी अबोधिता है और महानतम शक्ति है। मार्च-अप्ल 2002 11 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 जब आप पूर्णतः अबोध होंगे तथा अपनी हैं और ये भी नहीं सोचना समझना चाहते अबोधिता की देखभाल करेंगे तो आप जीवन कि ऐसा करना गलत है, तो वास्तव में हमें इस बात का ज्ञान नहीं होता कि इसका में सफलतम व्यक्ति होंगे। जैसा मैंने आपको बताया अबोधिता कभी परिणाम क्या होगा। हिटलर के साथ क्या नष्ट नहीं होती आपके अपवित्र विचारों हुआ? उसने सोचा कि वह पूरे विश्व को और दुष्कर्मों के कारण से यह आच्छादित नष्ट कर सकता है और इतने लोगों की हो सकती है। यदि आप अबोधिता के अंबर हत्या करने के पश्चात् भी महान व्यक्ति से बादलों को हटा सकें तो सभी कुछ बना रह सकता है। जो लोग ये भी नहीं इतना स्पष्ट हो जाता है जैसे कि आपने समझे पाति कि किन लोगों का वास्तव में पुरे विश्व पर विजय प्राप्त कर ली। आप सम्मान होता है वे मूर्ख हैं। युग युगान्तरों ईसा का उदाहरण ले उन्हें क्रूसारोपित किया से इतिहास में हिटलर जैसा कोई भी व्यक्ति नहीं हुआ। उसको इस बात की समझ ही न थी कि क्या वह वास्तव में विश्व की गया, उनका अपमान किया गया, उन्हें कष्ट दिए गए। परन्तु जिन लोगों ने उनके साथ ऐसा व्यवहार किया वे कहाँ है, उन्हें कौन सत्ता चाहता है। यदि उसे किसी महान जानता है? उनका नाम तक कोई नहीं व्यक्ति का सम्मान चाहिए था तो वह महान जानता, कोई उनकी बात तक नहीं करता। व्यक्तियों के पदचिन्हों पर चलता और महान अकेले ईसा मसीह को इतना सताया गया. व्यक्ति वही होते हैं जो पावन हैं अबोध हैं। इसके बावजूद भी क्या हुआ? पूरे विश्व में उनकी अबोधिता ही उनकी मुख्य शक्ति उन्हें सम्मान मिला, पूरा विश्व उनका सम्मान होती है। किसी का भी उदाहरण लें। मैं करता है, सभी लोग कहते हैं कि देखो नहीं जानती कि किस प्रकार इस बात को किस प्रकार से उन्हें क्रूसारोपित किया गया! बताऊँ कि ये शक्ति कैसे कार्य करती है उन्होंने क्या किया! इस प्रकार का कुछ भी क्योंकि यह बहुत प्रकार से कार्य करती है। नहीं, वे तो मात्र सम्मान करते है। किस आप ऐतिहासिक घटनाओं का अध्ययन कर चीज़ का वो सम्मान करते हैं? वे सारतत्व, सकते हैं। ऐसा करने पर आप जान जाएंगे अबोधिता के पूर्ण सार-तत्व का सम्मान कि जो व्यक्ति अबोध है, सहज है एवं करते हैं। सहजयोग में आप लोग कहते हैं विवेकशील है उसी को लोग जीवन पर्यन्त कि वो अबोधिता के अवतरण थे, वो श्री याद करते हैं। शैशवकाल में जब मैं बहुत गणेश के अवतरण थे और इस बात का छोटी थी, स्कूल जाया करती थी, तब सत्यापन किया जा सकता है। अंतः अपने पुस्तकालय में जाकर मैं उन महान लोगों दुर - साहसों में जब हम ये सोचते हैं कि की जीवनियाँ पढ़ती थी जिन्होंने हमारे लिए अपनी इच्छानुसार हम कुछ भी कर सकते महान चीज़ों का सृजन किया। ऐसे बहुत ार्च-3प ल 2002 12 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 से लोगों के विषय में मैंने पढ़ा। मैं यह महत्वपूर्ण कुछ भी न था आदर्शों के सम्मुख जानकर बहुत प्रभावित थी कि उनमें से उन्होंने अपने जीवन को भी तुच्छ माना। कितने सहज व बाल सुलभ थे! अब्राहिम 1. कुछ लिंकन, जिनके लिए मेरे हृदय में अगाध आपकी अबोधिता से ही आती है। यही श्रद्धा थी, उन्हें भी उनकी पत्नी ने बहुत आपको सिखाती है कि आपके आदर्श क्या सताया। वे उनसे कहती थीं कि तुम कितने हैं, किस प्रकार आपको जीवित रहना है, गन्दे हो, तुम्हे वस्त्र पहनने का भी शहूर किस प्रकार आपको जीवन-यापन करना नहीं है, तुम आचरण करना भी नहीं जानते। चाहिए? सत्ता या मंत्री आदि के उच्च पद हर समय वह उनके साथ क्रूरता पूर्वक होना महत्वपूर्ण नहीं है बहुत से लोग आए व्यवहार करती और उन्हें सताती। अन्ततः और चले गए । बहुत से महत्वकांक्षी और अब्राहिम लिंकन की हत्या हो गई। व्यक्ति क्रूर लोग आए । वे सब कहाँ है? कोई कह सकता है कि अब्राहिम लिंकन बनने उनकी चिन्ता नहीं करता, कोई उनकी का क्या फायदा है? क्योंकि उसकी हत्या ओर देखना नहीं चाहता। उनका चित्र यदि कर दी गई थी, वह सफल व्यक्ति न थे। दिखाई दे जाए तो लोग अपनी आँखे बन्द परन्तु आज तक भी पूरा विश्वं उन्हें जानता है, हो सकता है लोग उनकी पत्नी को न देखना चाहते। परन्तु यदि कोई नन्हा सा जानते हों परन्तु सब जानते थे कि अब्राहिम अबोध बच्चा अबोधिता पूर्वक बात कर रहा लिंकन कौन है? पत्नी के लिए वे अत्यन्त हो तो सभी उसकी प्रशंसा करते हैं। ये घिनौने थे और वह उनके लिए सभी प्रकार आदर्श और आदर्शवाद की संवेदना केवल कर लेते हैं और कहते हैं कि हम इन्हें नहीं सभी महान व्यक्ति इसी अबोधिता के प्रतीक हैं। अबोधिता ही उनका विशेष गुण थी और अबोधिता ने ही उन्हें विवेक प्रदान के अपमान जनक शब्द उपयोग करती थी। उनकी पत्नी का आज कोई सम्मान किया। विवेकशीलता श्रीगणेश का मुख्य नहीं करता, कोई उसके विषय में नहीं के गुण है अपने अबोधिता के गुण कारण सोचता। आज भी अब्राहिम लिंकन का वे जानते थे कि संफलता क्या है। कई बार सम्मान होता है क्यों? उनकी हत्या हुई अबोध व्यक्तियों को अपने अबोधिता के उन्हें मार दिया गया इसी से पता चलता गण का ज्ञान ही नहीं होता। आश्चर्य की है कि उनमें जीवित रहने की शक्ति न थी। बात है कि सर्वसाधारण, अत्यन्त सहज, परन्तु वे युगों से जीवित हैं, इतने वर्ष बीत तेज तर्रारा न प्रतीत होने वाले, अच्छे जाने के बाद भी वे जीवित हैं उन सभी राजनीतिज्ञ न बन पाने वाले लोगों में किस महान व्यक्तियों के उदाहरण लें जो प्रकार अबोधिता का यह गुण चमक उठता अबोध थे। इसी कारण से उनके आदर्श थे, है! मानव की सारी गरिमा की ये पराकाष्ठा उनके लिए उनके आदर्शों से अधिक है- अबोध बन जाना। मार्च-अप्र ल 2002 13 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 तो अबोध बनने के लिए आपको और मृत्योपरान्त भी उन्हें तिरस्कार पूर्वक क्या करना होगा? लोग पूछेंगे श्री माताजी देखा जाता है। लोग उनका नाम तक नहीं अबोध बनने के लिए हम क्या करें? सर्वप्रथम लेना चाहते, उनके चित्र नहीं देखना चाहते, आप स्वयं देख सकते हैं कि किस प्रकार उनसे किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नहीं आपका मस्तिष्क कार्य करता है, ये क्या रखना चाहते। ऐसी स्थिति में होता ये है करता है, किस प्रकार प्रतिक्रिया करता है? कि कुछ धूर्त लोग जो, अबोध नहीं है, जो व्यक्ति को यही सब देखना होता है और अबोधिता विरोधी हैं, वे उनका अनुसरण इसी को मैं अन्तर अवलोकन कहती हूँ। करने लगते हैं क्योंकि ऐसा करना उन्हें आपका मस्तिष्क किस प्रकार की योजनाएं अच्छा लगता है। आक्रामक बनना, चालाकी बनाता है, किस चीज को ये सर्वोत्तम समझता करना, उनके अनुकूल है। इस प्रकार एक है? उस सोच में, उस विचार प्रक्रिया में नए समूह की सृष्टि होती है इस समूह स्वयं को देखने के लिए सबसे अधिक को हम शैतानी समूह (Satanic Group) आवश्यक तरीका कौन सा है? सर्वप्रथम कह सकते हैं। यह आसुरी समूह भी एवं सर्वोपरि यह कि आपको इस बात का अबोध व्यक्ति का बिल्कुल कुछ नहीं बिगाड़ ज्ञान हो कि आप किस प्रकार प्रतिक्रिया सकता। इसी बात की व्याख्या करते हुए करते हैं। क्या आपकी प्रतिक्रिया सहज, गीता में एक श्लोक है :- (अबोधिता पूर्ण) प्रतिक्रिया है या प्रतिशोध नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । पूर्ण प्रतिक्रिया। स्वयं को देख पाना अत्यन्त सुगम है क्योंकि अब आप सब सहजयोगी हैं। आप स्वयं देख सकते हैं कि आपके प्रति किसी भी प्रकार की आक्रामकर्ा या हैरान होंगे कि प्रकृति सब कुछ समझती कष्ट देने के प्रयास के प्रति आपकी प्रतिक्रिया है। मैने आपको बताया कि प्रकृति अबोध कैसी है? किस प्रकार आप इस पर प्रतिक्रिया है, यह सब समझती है और उपयुक्त क्षण करते है? आप यदि शक्तिशाली व्यक्ति हैं में आक्रामक व्यक्ति के विरुद्ध कार्य करती तो अपने आचरण में आप इसके कारण है, उस व्यक्ति के विरुद्ध जो अबोध लोगों बिल्कुल नहीं डोलते आप स्वयं देखते हैं को बदनाम करने का या कष्ट देने का कि लोग जो आपके साथ कर रहे हैं वह प्रयत्न करता है। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ।। आत्मा विनाश से परे है। परन्तु आप अत्यन्त मूर्खतापूर्ण आचरण है और जब लोग मूर्खता कर रहे हैं तो इसके विषय में चिन्तित क्यों होना है? इस पर अपनी शक्ति अबोधिता की पूजा करनी है मैं जानती है को नष्ट क्यों करना हैं? स्थिति उस सीमा किं कभी-कभी व्यक्ति को लगता है कि तक पहुँचती है कि उनकी मूर्खता इस उसे दबाया जा रहा है और इसके कारण प्रकार से अनावृत होती है कि जीवन पर्यन्त वह उदास हो जाता है। किस लिए अन्य अतः हमे समझ लेना चाहिए कि हमें मार्च -अप्रै ल 2002 14 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 लोग आपके साथ ऐसा व्यवहार करते है? लोग आप सहजयोगियों को कभी भूलेंगे और आपके मस्तिष्क में ऐसे विचार उठते नहीं । आप लोग अबोधिता की शक्ति और हैं। परन्तु अपनी अबोधिता की यदि आप बहादुरी दिखाएं। पूजा करते हैं तो सदैव आप प्रसन्नचित्त, करुणामय एवं विनम्र होंगे अतः हमें मुझे खेद है। मैं तो आने के लिए तैयार थी सावधान रहना है कि आप स्वयं ही स्वयं परन्तु विवाह अब बहुत बड़ी समस्या बनते को नष्ट करते हैं, स्वयं ही अपनी हत्या चले जा रहे हैं। विवाह के लिए आवेदन करते हैं। हिटलर के विषय में आपका क्या इतनी देर तक आए कि अन्तिम क्षण तक कहना है? हिटलर ने स्वयं को नष्ट किया। हम इनके विषय में निर्णय करते रहे। मैं स्वयं के अतिरिक्त किसने उसका विनाश आपको बताती हूँ ये आखिरी बार हुआ। किया? नि:सन्देह किसी न किसी प्रकार सभी की मृत्यु होनी है और उसे भी मरना पहले भेजें तथा गणपति पुले के लिए कम आज के कार्यक्रम में विलम्ब होने का से अगली बार से हम इस पर रोक लगा देंगे। अपने आवेदन पत्र कम से कम आठ दिन ही था परन्तु उसने स्वयं को सदा-सर्वदा के लिए नष्ट कर लिया। अतः व्यक्ति स्वयं में केवल चौबीस धण्टे होते हैं जिन्हें बढ़ाया अपनी हत्या करता है। आप यदि अबोध हैं । ये मेरी प्रार्थना है कि आप तो अबोधिता के माध्यम से आप अपनी रक्षा यदि चाहते हैं कि आपके विवाह का निर्णय कर सकते हैं और गरिमा प्राप्त कर सकते किया जाए तो कृपया इस प्रकार आवेदन हैं। अबोधिता की शक्ति पर विश्वास करें। पत्र भेजें कि मुझे कार्य करने के लिए समय अपने जीवन में किस प्रकार आप अबोधिता मिल जाए। अन्यथा ये कार्य मुझे अन्य से कम दो सप्ताह पहले, क्योंकि एक दिन नहीं जा सकता 1. की शक्ति को दर्शाते हैं, किस प्रकार एक लोगों पर छोड़ना पड़ेगा। आप यदि चाहेंगे दूसरे के प्रति आचरण करते हैं, ये अत्यन्त तो ये कार्य किया जा सकता है। ये समझना महत्वपूर्ण है। इसी को मैं प्रेम कहती हूँ अत्यन्त सुगम है कि विवाह अत्यन्त महत्वपूर्ण अपने प्रति यह दृष्टिकोण अपनाए बिना है। विवाह करके आप अबोध बच्चे उत्पन्न आप करुणामय नहीं हो सकते, आप कर सकते हैं । परन्तु यदि आप गैर सुदृढ़ नहीं हो सकते। अस्थायी रूप से जिम्मेदाराना ढंग से व्यवहार करेंगे तो यह चाहे आपको ऐसा लगे परन्तु स्थायी करुणामय स्वभाव अबोधिता के निरन्तर प्रवाह से, आपके चरित्र से निरन्तर तो हम विवाह न करवा सकेंगे। इसके लिए बहने वाली अबोधिता से ही आता है। एक सप्ताह का समय मिलना आवश्यक मानव में यह इतना पारदर्शक गुण है कि है। आशा है आप. इस बात को समझेंगे। यह उसका पोषण करती है और सभी चीज़ों आपका बहुत-बहुत धन्यवाद । को नियंत्रित करती है। हजारों वर्षों तक कार्य कैसे होंगा? मेरी प्रार्थना है कि समय मूल्य को समझें क्योंकि अगली बार से के आप यदि अपने आवेदन पत्र देर से भेजेंगे परमात्मा आप पर कृपा करें। बा नवरात्रि पूजा लोतराकी, यूनान -21.10.2001 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज हम यहाँ देवी पूजा करने के लिए जहाँ सभी अच्छे लोगों को विशेष रूप से एकत्रित हुए हैं। बहुत बार ये पूजा की गई सहजयोगियों को महिषासुर जैसे इन असुरों तथा देवताओं ने असुरों के अत्याचारं से के विनाश के लिए अपनी बुद्धि का प्रयोग अपनी रक्षा करने के लिए देवी से प्रार्थना करना चाहिए। की आज भी मुझे वैसा ही लगता है कि हम अजीबोगरीब परिस्थिति के शिकंजे में फॅस गए हैं कुछ लोग असुर हैं जिन्होंने क्योंकि असुर-असुर के रूप में आते थे लोगों को सम्मोहित कर दिया है और लोग और ये देखा जा सकता था कि वे राक्षस वह सब कुछ करने का प्रयत्न कर रहे हैं हैं उन्होंने ऐसा क्यों किया, वो अत्याचारी जो उन्हें नहीं करना चाहिए था। परन्तु वे क्यों थे? क्योंकि तथाकथित मानव होते हुए नहीं जानते कि हर चीज की एक सीमा भी वे मानव नहीं है। स्वभाव से राक्षस होने होती है। उस सीमा तक पहुँचा जा चुका है के कारण वे कुछ ऐसा करना चाहते हैं उन दिनों में कार्य बहुत सहज होता था न मार्च-अप्रै ल 2002 16 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 जिससे मानव को, अच्छे मनुष्यों को नष्ट हैं?" परन्तु उनके पूरे आचरण में क्रूरता अन्तर्जात रूप में थी, अत्यन्त क्रूर। मेरे पिताजी जब भी ये क्रूरता देखते तो उनहें निकाल देते। अन्य लोगों के साथ बर्ताव करने के उनके तरीके अत्यन्त अशुभ होते कर सकें। अब ये बात स्पष्ट है कि उनके नष्ट होने का समय आ गया है। थे। मैं किसी भी प्रकार से इस्लाम धर्म के विरुद्ध नहीं हो सकती और न ही मोहम्मद साहब की आलोचना करती हूँ। वे दिव्य थे तक पहुँच जाएंगी! वो लोग अधिकतर उन्होंने दिव्य कार्य करने का प्रयत्न किया अफगानिस्तान के थे, क्या आप इसकी परन्तु उस दिव्य कार्य से ये मूर्ख लोग कल्पना कर सकते हैं । वो अन्य अफगानी पनप उठे जो आसुरी लोगों को स्वीकार लोगों को भी सताया करते थे। जहाँ कहीं करते हैं। ये जानकर आपको आश्चर्य होगा भी वे जाते क्रूरता उनकी विशेषता होती। कि इस्लाम में 74 समूह हैं। वो कहते हैं सभी अफगानी ऐसे नहीं हैं परन्तु उनमें से कि हम एक धर्म को मानते हैं। परन्तु वो कुछ ऐसे हैं। कुछ लोग तो अत्यन्त प्रेममय, ऐसा नहीं करते। इनमें से कुछ लोग तो दयामय, सहायता करने वाले और अत्यन्त वास्तव में असुर हैं जो स्वयं को देवबंधी अच्छे लोग हैं परन्तु कुछ अत्यन्त क्रूर । कहते है क्योंकि भारत में इस नाम का एक पहले तो हम न समझ पाए कि ये सब क्या मैं नहीं जानती थी कि चीजें इस अवस्था क स्थान है। ये लोग वाहबी कहलाते हैं। मैं है। परन्तु मेरे पिताजी जो कि इस्लाम के बहुत समय से इन लोगों को जानती हूँ विद्वान क्योंकि हमारे घर में, मेरे पिताजी की गृहस्थी इस्लाम धर्म को मानने वाले नहीं है। ये में, हमारे यहाँ बहुत से मुसलमान लोग स्वयं को वाहबी कहते हैं, ये इस्लाम रसोइयों, ड्राइवरों या चालकों या अन्य नौकरों धर्म के लोग हैं। आज मैं ये बात स्पष्ट देख के रूप में कार्य किया करते थे ये वाहबीं सकती हूँ। ऐसा नहीं है कि अन्य धर्मों व लोग बहुत दिलचस्प हैं क्योंकि ये मोहम्मद समूहों में बुरे लोग नहीं है परन्तु ये वाहबी साहब को भी नहीं मानते इनसे यदि कहें लोग चुपके-चुपके भिन्न समूहों को कि मोहम्मद साहब ने ऐसा-ऐसा कहा है तों ये कहते हैं, "नहीं, हम मोहम्मद साहब नहीं हैं। मेरे पिताजी ने मुझे बताया था कि को नहीं मानते।" "तो आप किसमें विश्वास एक दिन ये लोग आतंकवादी हो जाएंगे करते हैं?" "हम अल्लाह में विश्वास करते और पूरे विश्व को नष्ट करने का प्रयत्न हैं।" क्या आप अल्लाह से मिले? क्या आपने करेंगे। उन्हें देखा कि आप उनमे विश्वास करते थे, उन्होंने हमें बताया कि ये सब कार्यान्वित कर रहे थे । ये बहुत अधिक तब ये बात् मैं न समझ पाई क्योंकि ये सब लोग भी तो मनुष्य की तरह से ही चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 मार्च -अप्रल 2002 17 लगते थे। परन्तु पिताजी ने मुझे लिखा है, इस विषय पर भी आप इनसे बहस नहीं कर सकते क्योंकि वे कुरान को भी नहीं मानते। इनका बताया था कि "ये पूरी तरह से छलावरण में हैं. जब ये क्रूरता आरम्भ करेंगे तो कहना है कि मोहम्मद साहब तुम्हें पता भी न चलेगा।" पर विश्वास न करें, अल्लाह को माने। परमात्मा हमारे देश में एक आक्रान्ता जानता है कि किस प्रकार ये घुस आया था ा उसका नाम था मोहम्मद शाह जुड़ पाते हैं! अब्दाली । ये शनैः शनैः ये अत्यन्त-अत्यन्त क्रूर व्यक्ति था और मुसलमान होते हुए भी यह मुसलमानों हुई कि ये लोग सम्मोहित करते हैं जैसे की हत्या कर दिया करता था क्योंके इसका हमारे यहाँ कुछ भयानक लोग गुरु बनकर मानना ये था कि कोई मोहम्मद साहब की सम्मोहित करते हैं । लोगों को सम्मोहित पूजा न करे क्योंकि मोहम्मद साहब ने कहा करते हुए आपने उन्हें देखा है। ऐसे बहुत था मैं परमात्मा नहीं हूँ (I am not Divine)। से कुगुरुओं का पर्दाफाश हुआ है और मुर्ख लोगों से बचने के लिए मैं भी यही बाकी लोगों का हो जाएगा। उनमें से अधि कहा करती थी। वर्षों तक मैं कहा करती कतर लोगों की पैसों में दिलचस्पी थी। ६ थी "मैं परमेश्वरी नहीं हूं। परन्तु लोगों ने र्म के नाम पर किसी भी प्रकार से अधिक जब मेरी चैतन्य लहरियाँ आदि महसूस की से अधिक धन प्राप्ति में परन्तु उस समय तो उन्हें विश्वास हो गया। परन्तु मोहम्मद लोगों ने न तो उनके अत्याचारों को देखा साहब पर विश्वास करने वाले लोगों को ये और न ही उनके तौर तरीकों को। देखकर हैरानी क्रूर कभी न समझ पाए। ये अत्यन्त क्रूर है क्योंकि ये मोहम्मद साहब में भी विश्वास नहीं करते। इनसे आप किसी भी मामले कि हम निज़ामुद्दीन औलिया गए थे वहाँ पर बात नहीं कर सकते। कुरान में क्या ये अत्याचार बढ़ने लगा। आप जानते हैं पर मैंने पाया कि एक मदरसा हैमदरसा ০ मार्च-अ ल 2002 18 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 अर्थात पाठशाला। उस मदरसे में छोटे-छोटे बच्चों को प्रवेश दिया जाता था यह सब पाकिस्तान परस्पर सदैव लड़ते रहते हैं भली-भांति योजनाबद्ध था। बताया गया परन्तु इस बार पाकिस्तानियों ने महसूस कि दिल्ली में भी 120 मदरसे हैं। कोई नही किया कि यदि हम भारत से इसी प्रकार जानता कि वहाँ क्या पढ़ाते हैं, कैसे सम्मोहन लड़ते रहे तो हमें आतंकवादी कहा जाएगा। करते हैं? किस प्रकार ये सब चीजें करते तो उन्होंने कहा कि हम अपने देश में हैं? एक बार जब मैं निज़ामुद्दीन गई तो मैंने आतंकवाद नहीं चलने देंगे। परन्तु वहाँ के पाया कि वहाँ लोग भजन आदि गा रहे थे। नए राष्ट्रपति ने 65 विद्वान, राजदूत उनमें मुझे सच्चे प्रेम की भावना नज़र आई। अफगानिस्तान के इन मदरसों में भेजे ताकि उन्होंने भी मेरे प्रेम को महसूस किया सभी वो सीख सकें कि क्रूर किस प्रकार बनना ने और सहजयोग में आने लगे परन्तु मैं है। "घृणा की शिक्षा देना" कह सकते हैं, नहीं जानती थी कि वहाँ पर एक मदरसा घृणा की शिक्षा देना"। निःसन्देह बहुत से भी है। मैंने उनसे पूछा, "निजामुद्दीन साहब मुसलमान क्रूर नहीं हैं परन्तु यदि आप तो औलिया थे, पैगम्बर थे यहाँ पर चैतन्य मोहम्मद साहब का सम्मान नहीं करते और लहरियाँ क्यों ठीक नहीं हैं? बीच-बीच में मुस्लिम कहलाते हैं तो आपसे क्या प्रसारित मुझे बहुत खराब चैतन्य-लहरियाँ आ रही होगा? थी। तो उन्होने मुझे बताया कि श्रीमाताजी यहाँ एक मदरसा है। जिस प्रकार, आप जानते हैं, भारत और तो ये सारी गलत धारणाएं पनपीं और इस्लाम भिन्न समूहों में बँट गया। यहाँ तक भी ठीक है। परन्तु एक ऐसा समूह बनाना अब आप देखें कि आसुरी शक्तियों किस प्रकार कार्य करती हैं। प्रायः असूर इसी जो मानवता विरोधी हो, यह अत्यन्त भयानक प्रकार कार्य करते हैं। वो जाकर झण्ड योजना थी। मैं नहीं जानती कि कितने बनाते हैं, युद्ध द्वारा लोगों की हत्या करते मुसलमान इसके विषय में जानते थे पूरे हैं। वो लोग संख्या में कम थे फिर भी विश्व में उन्होंने मदरसे स्थापित किए और क्रूरता ही उनका धर्म था। वो चाहे जैसे इन संस्थाओं से शिक्षा प्राप्त करके निकले रहते हों, उन्हीं मदरसों में बच्चों को सिखाया जाता महिलाओं के प्रति थी। महिलाओं से ये है कि किस प्रकार क्रूर बनना है और लोग अत्यन्त तिरस्कार पूर्वक व्यवहार करते घृणा करनी है। अतः "घृणा की शिक्षा" हैं और तनिक सा भी सम्मान उन्हें नहीं (Education in Hatred) आरम्भ हुई और देते। इसी बात से पता चलता है कि इन तु क्रूर बने रहना चाहते थे। लोग अत्यन्त क्रूर थे। उनकी पहली क्रूरता घृणा की इस शिक्षा का ताना-बाना विश्व लोगों पर किसी का नियंत्रण नहीं है। ऐसा भर में इन मदरसों ने बुना। करने के लिए न तो कुरान में लिखा है न मार्च -अप्रै ल 2002 19 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 ये सब क्योंकि काव्य की भाषा में लिखा गया था लोग इसे अपनी सुविधानुसार तोड़-मरोड़ सकते | परन्तु मोहम्मद साहब कभी भी ये नहीं कह सकते थे कि आप क्रूर बनिए काड या इस प्रकार के जुल्म कीजिए | अत्यन्त खेद की बात है कि आधुनिक काल में लोगों में धूर्तता-पूर्ण धारणाएं अपना ही मोहम्मद साहब ने ऐसा कहा । मोहम्मद साहब ने कहा था, "परमात्मा दया के सागर ली हैं। परन्तु लोगों में इन धारणाओं का हैं, वे शान्ति के दाता हैं। उन्होंने जो भी विरोध करने की शक्ति भी उत्पन्न हो जाती कुछ किया वह सब दिव्य कार्य, इसके है। यहूदियों में भी ऐसी ही विरोध शक्ति विषय में कोई सन्देह नहीं है परन्तु कुछ विकसित हो गई लोगों ने जिस प्रकार आसुरी शक्तियों का लोगों में घृणा ही इसके लिए जिम्मेदार है, । इन दोनों प्रकार के साथ पकड़ लिया उसके कारण लोगों के ये बात अत्यन्त स्पष्ट है। मन में मुस्लिम धर्म के प्रति गलत फहमियाँ पैदा हो गई। सहजयोग में आप लोग परस्पर पूर्ण निश्छल और सहज जीवन-यापन में विश्वास "इस्लाम' का अर्थ है 'समर्पण'/समर्पित करते हैं। लोग समझते हैं कि यह भी एक लोग तो आप हैं। समर्पित का अर्थ है वो भिन्न समूह है अब हमारा क्या कर्तव्य है? लोग जिन्होंने वासना, लोभ आदि रिपुओं हमसे क्या करने की अपेक्षा है? सर्वप्रथम को त्याग दिया है तथा जो सामान्य लोगों हमें अन्तर-अवलोकन करना चाहिए। आप से ऊपर हैं। एक अन्य दिलचस्प बात ये यदि हिन्दू हैं तो बैठकर आपको सोचना थी कि मोहम्मद साहब ने कहा था "कियामा चाहिए कि किसी अन्य व्यक्ति से आप के समय आपके हाथ बोलेंगे" (At the time इसलिए घृणा तो नहीं करते कि वो मुस्लिम of resurrection your hands would है इस प्रकार आप उससे घृणा नहीं कर speak)। ये बात उन्होंने स्पष्ट कही थी। सकते किसी व्यक्ति के मुसलमान होने के चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2002 20 प्राचीन युग कारण आप उससे घृणा नहीं कर सकतें। में वध करना देवी के लिए आप क्योंकि मुसलमान हैं और समर्पित हैं उपयुक्त कार्य था । देवी ऐसे सभी लोगों तो किस प्रकार आप किसी से घृणा कर का वध कर दिया करती थी। अत्यन्त सकते हैं। आप यदि समर्पित हैं तो परमात्मा खेदजनक बात है कि परमात्मा ने जिस के प्रति समर्पित हैं। परमात्मा विरोधी आप प्राणी का विकास अमीबा से मानव-अवस्था तक किया है हम उसी से घृणा करते हैं! परन्तु ऐसा ही हुआ है। नि:सन्देह सहजयोग भिन्न है। सहजी जानते हैं कि प्रेम का किस प्रकार हो सकते हैं। अतः इन भ्रामक विचारों को त्याग दिया जाना चाहिए। मान लो आप हिन्दू हैं-तो किसी से घृणा करना आपका कार्य नहीं है, यह निश्चित बात है। आनन्द किस प्रकार लेना है। प्रेम का आनन्द "हिन्दू' शब्द की उत्पति सिन्धु नदी से हुई लेना उन्हें अच्छा लगता है। वे आनन्द लेते क्योंकि सिकन्दर महान सिन्धु शब्द का हैं, ये बात आप देख सकते हैं। किसी तरह उच्चारण न कर पाता था इसलिए वह से यदि आप घृणा समाप्त कर सकें-किसी हिन्दू कहने लगा। अब इसी शब्द को लेकर तरह से, किसी तरह से अपनी इच्छा शक्ति लोगों ने भारत में भयानक घृणा के बीज बो से-मानव को जो भी कुछ उल्टा-सीधा दिए हैं। क्रूरता उनका विषय न था। यह बताया जा रहा है उसे नकारते हुए चुनौती अच्छी बात थी कि उन्होंने कभी लोगों को देते हुए, मुझे विश्वास है। सताना नहीं चाहा। तो यह क्रूरता एवं घणा का दृष्टिकोण अन्य माध्यमों से आया। ये सम्बन्धों और मित्रता को सुधारने के लिए लोग खुल्लमखुल्ला घृणा करते हैं। घृणा बहुत बड़ा दुर्गुण है, यह बहुत भयानक भी है। अतः आप सब लोग इस बात को जान लें, मेरे लिए यह अत्यन्त कष्टकर है कि समय पर पृथ्वी पर अवतरित हुई हूँ? यहाँ हम मानव एक दूसरे से घृणा करते हैं। मुझे एक मानव-दूसरे मानव के प्रति घृणा जबकि हम ये बात भली-भांति जानते हैं करता हुआ दिखाई देता है। वे प्रेम और कि प्रेम अत्यन्त सुन्दर भावना है तो किसलिए 'घृणा' की बातें करते हैं। ये अत्यन्त गम्भीर आप घृणा अपनाते हैं? क्योंकि लोगों ने बात है कि आप सभी बच्चों का अन्त इस झूठ बोल-बोल कर आपको प्रभावित किया प्रकार से हो। कहने से मेरा अभिप्राय है कि इसलिए आप घृणा करते हैं? कितनी बड़ी मुझे ऐसे अनुभव हुए हैं जिनके विषय में उपलब्धि है! मानव बनना और तत्पश्चात् यदि मैं आपको बताऊ तो तुम्हें आघात घृणा से पूर्ण व्यक्ति होना! अब इससे आगे लगेगा किस प्रकार से लोग आसुरी स्वभाव क्या होगा, मैं नहीं जानती! ये बहुत कठिन कार्य है। जो लोंग पृथ्वी पर स्थितियों, ये अवतरित हुए थे, किस प्रकार वे घृणा गर्त में फँस गए हैं! के मेरा हृदय रुदन करता है कि मैं कैसे के गर्त में चले गए हैं ! चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2002 21 हमें यह सूझ-बूझ प्राप्त करनी है, अपने के रूप में हमारी गतिविधियाँ इतनी महत्वपूर्ण विषय में सूझ-बूझ। क्या हम किसी से हैं, हमें इतना समय देना पड़ता है। मूर्खतापूर्ण घृणा करते है? क्या हमें ऐसी धारणाएं और छिछोरी बातों की चिन्ता नहीं करनी। मिलती हैं जो हमें मिलनी चाहिए या हमें हमारे अन्दर और बाहर जो भी गम्भीर चीज़ ऐसे कार्य मिलते हैं जो हमें करने चाहिएं। है उसे बाहर निकालना है। मैं यदि आपसे क्या आपमें ऐसे गुण हैं? पता लगाएं। क्या पूछूं कि "आप कितने लोगों से घृणा करते आप अन्य लोगों से घृणा करते हैं। मानव हैं?" तो 'आप कह सकते हैं. "बीस लोगों मस्तिष्क के लिए यह सब सड़े -गले विचार से। ऐसी चीज़ों का पूरा वातावरण ही मुझे हैं। पाशिवक प्रवृत्ति की धारणाएं मानव मस्तिष्क के लिए बिल्कुल ठीक नहीं होतीं नहीं आता हम सहजयोगी क्या करने वाले परन्तु ऐसा ही हो रहा है और यही चीजें हैं! सहजयोगियों की योजनाएं क्या हैं? उभर कर आ रही हैं। आप यदि गरीब हैं कृपा करके आप सब अपने अन्दर झाँकें तो ठीक है, घृणा करके आप वैभवशाली और सोचें कि हम कौन से रचनात्मक कार्य नहीं बन सकते। आपको यदि कोई कर रहे हैं और कौन से विध्वंसात्मक कार्यों कठिनाइयाँ हैं तो आपका कर्त्तव्य है कि को किए चले जा रहे हैं? ये सब समझने उन कठिनाइयों को दूर करें उनका लाभ न के लिए आपको एक बड़े झटके की उठाएं। ये सब समाप्त होना चाहिए। आश्चर्य आवश्यकता है। की बात है कि हमें अपने कर्मों की बिल्कुल चिन्ता ही नहीं है! हाँ, आपमें सूझबूझ का वांछित विवेक होना चाहिए कि हम कहाँ हम करते हैं, ये मुझे बहुत पसन्द हैं। परन्तु गलत हैं। किसी के विषय में यदि आपमें यदि आप मेरे हृदय से पूछे तो यह अत्यन्त कोई गलतफहमी है तो इसे पूरी तरह से दुखी और रुग्ण है। इस समय सहजयोगियों निकाल दें। लोग आपको कष्ट देने का | पश्चाताप से भर देता है और मुझे समझ सारे कार्यक्रम और पूजाएं जिस प्रकार के रूप में हमें जो करना है वह ये है कि प्रयत्न करते हैं, ठीक है। ऐसे व्यक्ति के कम से कम हमें अपना चित्त तो अवश्य विषय में भी हममें दुर्भावना नहीं होनी चाहिए । अत्यन्त आश्चर्य की बात है कि हम इन बताना होगा। आप समझें कि सहजयोग में चीज़ों को कभी नहीं देखते कि ये कितनी परेशानी ये है कि व्यक्ति स्वयं आनन्द लेने भददी और अजीब हैं तथा इस प्रकार व्यक्तित्व को नष्ट करती हैं! डालना चाहिए और तब आपको सबको हमारे लगते हैं और तब अपने आस-पास भी नहीं देखते कि क्या हो रहा है? अब मैं आपको बताना चाहूंगी कि आप कुछ लोगों को सुधार भी सकते हैं। मुझे कभी नहीं लगा की सहजयोगियों आजकल मैं मिथ्या और वास्तविकता के मार्च -अप्रैल 2002 22 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 सहजयोगी नहीं हैं उनमें युद्ध नहीं है। यह ध में फँसी हुई हूँ। क्या ये वह क्षेत्र है - युद्ध मैं नहीं जानती कि इसे किस प्रकार कहूँ - तो ऐसा युद्ध है जिसमें हम सब एक हैं क्या अभी तक भी हमारे अन्दर कुछ ऐसी और हमी को इसका मुकाबला करना है। चीज़ बनी हुई है कि अब भी हम अपनी हर कदम पर हमें अधिक सूक्ष्म होना है। दुर्बलताओं से लड़ने का प्रयत्न नहीं करते ? मैं आप सबसे प्रार्थना करती हूँ कि स्वयं इस बात की ओर ध्यान देना आज पर ध्यान-धारणा करके स्वयं देखें कि कमी अत्यन्त-अत्यन्त आवश्यक है कि क्या हम भी कार्यरत इस आसुरी शक्ति के अंग-प्रत्यंग तो नहीं? क्या हम इससे मुक्त हैं और बहुत बड़ा आघात है और इस सदमें करने के लिए तैयार हैं? यह को कम करने के लिए सहजयोगी क्या कर बहुत बड़ा युद्ध है और मुझे आशा है कि कहाँ है? ये इससे युद्ध सकते हैं? मानव जीवन के इन भयानक यह निर्णयात्मक होगा। इसके पश्चात् मानव तौर-तरीकों को समाप्त करने के लिए वो पर कोई अत्याचार न होंगे, इसके बाद क्या कर सकते हैं? ऐसा करना सम्भव है। कोई लड़ाई न होगी. क्योंकि ये हममें युद्ध प्रेम की शक्ति से आप ये कार्य कर सकते और राक्षसों में है। यह साधारण लड़ाई हैं परन्तु इसके लिए हमें अपने हृदयों में नहीं है। यह बात उन लोगों को भी समझाई प्रेम की शक्ति विकसित करनी होगी इसके जानी चाहिए जो आसुरी शक्तियों का पक्ष विषय में सोचें हम सबके लिए यह बहुत लेते हैं। आप केवल किस प्रकार जान बड़ा पाठ है, स्वयं देखें कि क्या हम ठीक पाएंगे कि कौन विरुद्ध है और कौन नहीं हैं या अन्य लोगों से घृणा ही करते चले है? आप ज्ञानवान हैं, आप सहजयोगी हैं, जा रहे हैं! हमारे मस्तिष्क की क्या भूमिका आप जानते हैं कि गलत कौन है? मैं जानती है? घृणा करना या प्रेम करना? यह प्रेम हूँ कि सहजयोगी उनकी रक्षा कर सकते हैं। जब आपको ज्योतित करेगा तो, आप हैरान और उन्हें ज्ञान एवं प्रेम के सही मार्ग पर होंगे, कि आप मेरे लिए बहुत बड़ी शक्ति ला सकते हैं परन्तु आजकल हो रहे आसुरी बन गए हैं। मैं, अकेली, इन सबसे युद्ध प्रचार से सावधान रहें। नहीं कर सकती। मुझे ऐसे लोगों की मैं आपके अन्तर्मन को छू लेना चाहती आवश्यकता है जो वास्तव में अपने प्रेम को उन्न्त करें, और किसी चीज को नहीं सबके लिए ये एक चुनौती हैं, विश्व भर के कि हमारे सम्मुख उपस्थित भय की महत्ता सभी सहजयोगीयों के लिए। यह केवल को आप समझेंगे। हो सकता है कि कोई विश्वास करने वाले और न करने वालों में, भी मानव न बचे, हो सकता है कोई भी सहजयोगियों में और उन लोगों में जो बालक न बचे। क्योंकि जिस तरह की ४ हम हूँ जो पवित्रीकरण करे। मुझे विश्वास है । मार्च-3प्रै ल 2002 23 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 चीजें कार्यान्वित हो रही हैं ये बहुत कठिन करें, केवल यही शक्ति इन आसुरी" शक्तियों हैं, बहुत ही दुष्कर। मेरा पूरा अस्तित्व डोल का मुकाबला करने का क्षेम सृजन करेगी। जाता है, कॉप उठता है। जीवन के हर कोने में आप सबको देखना चाहिए कि ये बात कहाँ हो रही है? कहाँ लोग क्रूरता का मेरा पूर्ण आशीर्वाद आपके साथ है और मैं चाहती हूँ कि आप सब व्यक्तिगत रूप से इसे कार्यान्वित करे कितने लोगों को आप प्रेम करते ें कार्यान्वित करे कितने लोगों को आप प्रेम करते हैं, कितने लोगों को? इस बात का पता लगाना बात कर रहे हैं? क्या घटित हो रहा है? मैं जो भी सोचती रहं, दो नहीं है हम सब हैं... ये एक नहीं है, है। मुझे आशा है कि आप लोग समझ गए होंगे कि आपसे क्या चाहती हूँ। एक नई पीढ़ी जो युद्ध मैं लड़ रही हैं वह बहुत गम्भीर का उदय हो रहा है। प्रकृति का है, इसमें कोई सन्देह नहीं । परन्तु यदि आप सब लोग सामूहिक रूप से ये युद्ध लड़े तो हम कितना कुछ कार्यान्वित कर सकते हैं! मेरे सारे प्रयत्न, सूझे-बूझ, बताया गया है कि कुछ लोग अपने समूह शक्तियाँ, मेरा सभी कुछ अब आपके हाथों में है और अब आपको इसके लिए तैयार होना चाहिए। किसी चीज को पढ़ने या बातचीत करने मात्र से नहीं, अपने अन्दर आपको प्रेम की शक्ति को दृढ़ करना होगा। ऐसे लोगों को सहजयोगी बनाने का कोई आप सब मेरे हृदय में हैं और मैं आपसे बहुत प्रेम करती हूँ और चाहती हूैँ कि इस में आप मेरे सिपाही बनें। मुझे ये भी युद्ध बना रहे हैं, यह अत्यन्त नकारात्मक दृष्टिकोण है। इस समय पूर्ण एकता हमारी आवश्यकता हैं। अतः ऐसे लोगों को जब आप देखें तो उन्हें सुधर जाने को कहें । मुझे पूर्ण विश्वास है कि सहस्रार के लाभ नहीं। खुलने से आप ऐसा करेंगे। प्रेम की शक्ति से हर चीज को पढ़ने और समझने की पेम एवं शान्ति के सच्चे सिपाही बने। इसी ये मेरी हार्दिक इच्छा है कि आप सब लोग प्रयत्न करें। यह अत्यन्त गहन विषय है कार्य के लिए आप सब लोग यहाँ है। और इसी के लिए आप सबका जन्म हुआ है। अतः और जब आप इस पर बात करते हैं तो आधी अन्दर होती हैँ और आधी बाहर। परन्तु मुझे आपको बताना हैं कि आप सब इस शक्ति को (प्रेम की शक्ति) विकसित आप सब लोग आत्मा का आनन्द लें। आप सबको अनन्त आशीर्वाद श्री कृष्ण पूजा सेफरान - इंग्लैण्ड, 14.8.89 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज हम यहाँ पर श्री कृष्णावतार की मानव के रूप में वे अवतरित हुए। श्री पूजा करने के लिए एकत्र हुए हैं। श्री सीताजी के रूप में उन्होंने लक्ष्मी तत्व से कृष्ण, श्री नारायण- श्री विष्णु के अवतरण विवाह किया उन्होंने सामान्य विवाहित हैं। अवतरण सदा अपने गुणों, शक्तियों तथा स्वभाव के साथ अवतरित होते हैं। अतः जब श्री कृष्ण अवतरित हुए तो वे भी जीवन द्वारा उन्होंने दर्शाया कि पत्नी के श्री नारायण और श्री राम के गुणों से साथ किस प्रकार पति को होना चाहिए। सम्पन्न थे। पूर्वावतरण के समय उनकी इसके बाद उन्होंने राजा के रूप में अपनी जिन-जिन बातों को लोगों ने गलत ढंग भूमिका निभाई। राजा बनने के पश्चात् से समझा हो या उनके जिन गुणों को लोग उन्होंने पाया कि रावण से सीता को लौटा अति की सीमा तक ले गए हों, वर्तमान कर लाने के लिए लोग उनकी आलोचना जीवन बिताया। तत्पश्चात् श्री सीताजी को त्यागकर वे सन्यासी के रूप में रहे । अपने अवतरण के समय वे उन्हें सुधारने का प्रयत्न करते है। यही कारण है कि वे दूर भेज दिया। इतने संवेदनशील सत्तारूढ़ बार-बार अवतरित होते हैं। श्री विष्णु सृष्टि कितने लोग हैं जो अपने आचरण द्वारा ऐसे और धर्म के रक्षक हैं। अतः जब-जब भी वे उदाहरण स्थापित कर सकें कि वे अपनी अवतरित हुए तो उन्होंने इस बात का ध्यान रखा कि लोग अपने धर्मों का पालन जी महालक्ष्मी थीं और इस सारी लीला को करें। आपको आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करके समझती थीं, अतः वे घर छोड़कर चली स्वयं को ठीक प्रकार से श्री महालक्ष्मी के गईं। कर रहे हैं। अत: श्री राम ने उन्हें राज्य से प्रजा के सम्मुख आदर्श बन जाएं? श्री सीता मध्य मार्ग पर रखना होगा। अपने प्रथम सम्राट के रूप में श्री राम ने सिखाया अवतरण में श्री विष्णु ने श्री राम के रूप में हितैषी राजा की अपनी मर्यादाओं को स्थापित कि प्रजा पर किस प्रकार शासन करना करने का प्रयत्न किया। चाहिए। राजा के आदर्शों को उन्होंने स्थापित किया और कहा जाता है कि राम- राज्य श्री राम पुरुषोत्तम थे अर्थात वे मानव आदर्शतम राज्य था । उनके साम्राज्य में श्रेष्ठ थे। सभी मानवीय गुण सम्पन्न पूर्ण शान्ति थी, स्पर्धा न थी। सभी लोग आनन्द मार्चअ ल 2002 25 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 एवं शान्तिपूर्वक रहते थे क्योंकि उन्होंने उनके कार्यों से पता चलता था कि ये न्यायव्यवहार, धर्म, आनन्द, शान्ति एवं समृद्धि अवतार हैं फिर भी मर्यादा-वश उन्होंने इस का प्रसार किया। परन्तु स्वभाववश लोग तथ्य को भुलाए रखा। महामाया की तरह अवतरणों के व्यवहार को असामान्य बना से। आज के सभी कैमरे महामाया के प्रमाण देते हैं श्री राम क्योंकि त्यागी के रूप में दे रहे हैं कि वे सत्य हैं और वे कैसी हैं, रहा करते थे, लोगों ने भी त्यागप्रवृत्ति अपना परन्तु अवरतण ये दर्शाते हैं कि उन्हें इस ली। लोग अत्यन्त गम्भीर हो गए, वो न बात का स्मरण नहीं है और न ही वे इस हँसते थे न मुस्काते थे। हर चीज बहुत बात को जानते हैं अवतरण को यदि यह गम्भीर हो गई। कुछ लोगों ने विवाह करने बात याद है तो उसके ये कार्यकलाप मानवीय बन्द कर दिए और अपना सन्तुलन खो न होकर दिव्य बन जाएंगे। उसकी बैठे। विवाह व्यक्ति को सन्तुलन प्रदान गतिविधियाँ परमेश्वरी गतिविधियाँ हो जाएंगी करता है। इन गर्भीर परिस्थितियों में यह और ऐसा करना साननीय न होगा। उनके दर्शाने के लिए श्री कृंष्ण अवतरित हुए कि कार्य-कलापों को मनुष्य सहन न कर पाएंगे। सारी सृष्टि लीला मात्र है गम्भीर शुष्क वे घबरा जाएंगे और एक प्रकार का भय और त्यागी बनने की कोई आवश्यकता ने प्रायः उन पर छा जाएगा। अतः श्री कृष्ण नहीं। वास्तव में श्री राम के समय से पूर्व सर्व-साधारण मानव की तरह से व्यवहार के सभी सन्त विवाह किया करते थे। श्रीराम किया। के समय से एक तरह का अटपटा शैशव-काल में उन्हें मक्खन बहुत पसन्द ब्राह्मण-वाद आरम्भ हो गया। ब्राह्मणों ने जाति प्रणाली को गलत दिशा दे दी। और था। विशुद्धि चक्र के लिए मक्खन अत्यन्त अब जातियाँ जन्मानुसार निश्चित होने लगीं लाभकर है। चाय में यदि थोड़ा सा मक्खन व्यक्ति के कार्य के अनुसार नहीं। ब्राह्मण है। अपने नन्हे-नन्हें साथियों की लोग अन्य सभी जातियों पर हावी हो गए। डाल लें तो गले की खुश्की से आराम मिलता सहायता से वे मटकियाँ तोड़ देते और मिलकर सारा मक्खन खा जाते। कभी-कभी वे छोटे-छोटे झूठ बोलते। उनकी सभी केवल पाँच वर्ष की आयु में ही श्री कृष्ण शरारतें, बाल सुलभ झूठ, सूझ बूझ की ने सभी प्रकार की लीलाएं और शरारतें भावना का सृजन करने के लक्ष्य से थी । कीं। कालिया नाग का मर्दन किया और बच्चे जब माँ के साथ इस प्रकार की शरारते लीलाएं करते हुए अपनी शक्ति द्वारा बहुत करते हैं तो इन शरारतों को बहुत मधुर से असुरों का वध किया। श्रीराम ने अपने माना जाता है। पूर्वी देशों के लोग बच्चों अवतरण होने की बात भुला दी थी। यद्यपि की इन शरारतों का आनन्द उठाते हैं । के रूप में अतः श्री कृष्ण ग्वाले के अवतरित हुए। पुत्र मार्च-अप्रै ल 2002 26 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 बच्चों के प्रति कठोर व्यवहार प्रायः इसलिए उन्हें व्यवहार के तौर-तरीके भी आने चाहिएं। होता है क्योंकि लोग बच्चों से प्रेम नहीं परन्तु इसके साथ-साथ उनकी छोटी-छोटी करते। अपने गलीचों और भौतिक पदार्थों शरारतों का भी आनन्द उठाया जाना चाहिए। से वे इसलिए प्रेम करते हैं कि उन्हें पुनः केवल बाल्यकाल में ही वे शरारतें कर बेचा जा सकता है परन्तु बच्चों को बेचा सकते हैं, बड़े होकर नहीं। उन्हें शरारतें नहीं जा सकता। भौतिक पदार्थों के लिए और लीलाएं करने की स्वतन्त्रता मिलनी माँ बाप और बच्चे एक दूसरे से अलग हो चाहिए अन्यथा वे अत्यन्त गम्भीर होकर जाते हैं क्योंकि भौतिक पदार्थ अधिक त्यागी बन सकते हैं। जो माँ-बाप बच्चों के साथ बहुत कठोर हैं वो कभी भी सामान्य नहीं हो सकते। या तो वे अत्यन्त विकृत होते हैं या शान्त होकर बैठ जाते हैं, जीवन महत्वपूर्ण बन जाते हैं। वैसे तो चोरी को बुरा माना जाता है परन्तु श्री कृष्ण सभी महिलाओं के घरों से मक्खन चुरा लिया करते थे क्योंकि ये महिलाएं मथुरा के असुरों को ये मक्खन दे दिया करती थीं। मक्खन खा-खाकर असुर से आपको अत्यन्त प्रेम और सूझ-बूझ से शक्तिशाली हो रहे थे अतः श्री कृष्ण का सामना नहीं कर सकते। एक जीवन . का सामना नहीं कर पाते और दूसरों का सामना जीवन नहीं कर पाता। अपने बच्चों ने व्यवहार करना होगा परन्तु उन्हें इस बात सोचा कि मक्खन चुराकर खा लेना बेहतर है ताकि ये असुरों तक न पहुँचे। थोड़ा सा धन बचाने के लिए हम अपने बच्चों को भूखों मार देते हैं। धन लोलुपता इस प्रकार मानते हैं पैसे आदि किसी अन्य चीज़ को से है, हम सोचते है कि सभी चीज़ें पुनः बो नहीं जानते। बच्चे के मन में आपका का ज्ञान होना भी आवश्यक है कि यदि वे दुर्व्यवहार करेंगे तो इस प्रेम के वे अधिकारी न रहेंगे बच्चे केवल प्रेम को बिक सकती है। अतः बच्चे हम पर स्थायी प्रेम अत्यन्त बहुमूल्य उपलब्धि बन जाता है। सहजयोग परमेश्वरी प्रेम पर आधारित है और यह तभी कार्यान्वित हो सकता है बोझ बन जाते हैं। बच्चों के साथ इस प्रकार व्यवहार किया जाता है मानों वो हम पर बोझ हों। मूल्य प्रणाली का आधार यदि केवल धन बन जाए तो परिवार में जब लोग प्रेममय होंगे। लोग यदि धन बच्चों का कोई स्थान नहीं रह जाता। सत्ता और अपने सम्मान आदि को ही प्रेम सहजयोग के अनुसार बच्चे विश्व के करेंगे, अपने बच्चों और परिवार को नहीं सारे वैभव से भी अधिक महत्वपूर्ण हैं। तो वे समाज का एक बहुत बड़ा हिस्सा खो देंगे। और इसी प्रकार उनका पालन-पोषण होना चाहिए। निःसन्देह बच्चों को भी अपनी गरिमा का ज्ञान होना चाहिए और में स्थापित करना चाहते थे इस कार्य के राज के रूप में श्रीकृष्ण लोगों को धर्म मार्च-अप ल 2002 27 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 लिए उन्हें पंचमहाभूतों की आवश्यकता थी, एक दम से क्रोधित हो जाने वाले व्यक्ति इसलिए उन्होंने पंचमहाभूतों का स्त्री रूप को दाई विशुद्धि की समस्या होती है। में सृजन किया और उनसे विवाह किया वास्तव में वे उन्हीं के अंग-प्रत्यंग हैं। वे किसी को डाँटना भी हो तो भी अत्यन्त योगेश्वर थे, पूर्णतः निर्लिप्त, योगस्थित, परन्तु प्रेमपूर्वक हमें कहना चाहिए, "आप क्या कर सभी व्यवहारिक कार्यों के लिए उनकी पाँच रहे हैं,? कुछ देर मौन धारण करके विशुद्धि पत्नियाँ थीं। इसके बाद सोलह हजार अन्य महिलाएं, कुछ अन्य न होकर उनकी अपनी बहुत अच्छा है। सोलह हजार शक्तियाँ थीं विशुद्धि चक्र की सोलह पंखुड़ियाँ होती है। विराट चक्र (सहस्रार) की हजार पंखुडियों से यदि इन्हें है। ये गर्मी जब ऊपर को उठती है तो गुणा किया जाए तो ये 16000 शक्तियाँ सर्वप्रथम दाएं हृदय पर जाती है और आप बनती है। ये सोलह हजार शक्तियाँ स्त्रियों अत्यन्त क्रोधी पति या पिता बन सकते हैं। । व्यक्ति को समझना चाहिए कि हमने यदि चक्र को आराम देना इस चक्र के लिए दाई ओर को जिगर से गर्मी आने लगती ये गर्मी दाई विशुद्धि पर जाती के रूप में प्रकट हुई और एक दुष्ट राक्षस तत्पश्चात् है राजा इन्हें ले गया। उस राजा को हरा कर और व्यक्ति अत्यन्त चिड़चिड़ा और क्रोधी श्री कृष्ण ने इन स्त्रियों को मुक्त कराया और उनसे विवाह करके उन्हें प्रदान चिल्लाता रहता है। इस प्रकार से किसी की। बन जाता है और हर समय दूसरों पर सुरक्षा पर यदि आप क्रोध करेंगे तो वह व्यक्ति आपसे डर जाएगा और हो सकता. है कि जब-जब भी हमें विशुद्धि की समस्या उसमें हीन भावना आ जाए तथा वह होती है तो हमें यह बात समझनी चाहिए उदासीन प्रवृत्ति (Left Sided) बन जाए। कि इसके दोनों ओर कौन से देवी देवता परमात्मा ही जानते हैं कि जिस व्यक्ति के विराजमान हैं और उनके कौन से गुणों का ऊपर हर समय कोई चिल्लाने वाला हो हमारे अन्दर अभाव है जिसके कारण हम उसका क्या हाल होगा! कष्ट उठा रहे हैं। जब हमारी दाई विशुद्धि पकड़ती है तो हमें देखना चाहिए कि माधुर्य श्री कृष्ण का सार तत्व है, राधा किस प्रकार वे बॉसुरी बजाते थे और बांसुरी उनकी शक्ति थी। रा' अर्थात शक्ति धा के मधुर संगीत से पूरा वातावरण शान्त हो अर्थात धारण करने वाला। 'आहलाद' अथात जाया करता था परन्तु आधुनिक युग आनन्द-प्रदायी गुण' उनकी शक्ति थी। संगीत एकदम से दूसरे प्रकार का है। श्री कृष्ण योगेश्वर थे, शाश्वत् साक्षी । चीखने इसमें तो ऐसे लगता है कि दाई विशुद्धि या चिल्लाने वाला, जोर से बोलने वाला और तो दूट जाएगी या फट जाएगी! संगीत श्रीकृष्ण के जीवन से हमें सीखना है कि में मार्च-अप्रै ल 2002 28 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 यदि शान्ति प्रदायी होने के स्थान पर प्रियमवद' और ये सत्य हितकर भी होना भड़काऊ है तो यह सहस्रार क्षेत्र को जड़वत चाहिए। मान लो आप किसी को सत्य बात कर देता है। सहस्रार श्री कृष्ण के विराट कहते हैं तो हो सकता है उसे यह बात तत्व का सिंहासन हैं। दाई विशुद्धि का उस समय पसन्द न आए परन्तु यदि यह है और मस्तिष्क उसके हित में है तो कुछ समय पश्चात् वह जड़वत हो जाने के कारण आप मादक आपके प्रति आभारी होगा कि आपने उसकी दवाईयाँ लेना शुरू कर देते हैं। कुछ ही सहायता करने का प्रयत्न किया। हितकर दिनों में आपको लगता है कि जो दवाईयाँ कार्य के लिए आपको यदि कोई झूठ भी आप ले रहे हैं उनका नशा काफी नहीं है बोलना पड़े तो कोई बात नहीं क्योंकि विशुद्धि तो आप और अधिक नशीली दवाईयाँ लेते चक्र के देवता श्री कृष्ण आपकी भावना को प्रभाव सहस्रार पर पड़ता जानते हैं। हैं। इस प्रकार चलता रहता है और अन्ततः आप एक ऐसी अवस्था में पहुँच जाते हैं कि कही के भी नहीं रहते, जहाँ केवल आत्म- विनाश ही होता है। लोगों को उनकी कमियाँ बताने से आप जी नहीं चुरा सकते, विशेष तौर से उन लोगों को जिनकी जिम्मेदारी आप पर हैं। श्री कृष्ण दिव्य कूटनीतिज्ञ थे। देवी जैसे परिवार, सम्बन्धी आदि। जो बात ठीक कूटनीति क्या है? कि आपने चिल्लाना नहीं है वह स्पष्ट बता देना सर्वोत्तम है। ये है। किसी को यदि आप किसी परिणाम आपका कर्त्तव्य है। लोग ऐसा करने से भी तक लाना चाहते हैं तो सर्वोत्तम उपाय ये हिचकिचाते हैं। कुछ लोग जो अपने बच्चों हैं कि आप विषय को बदल दें। ऐसा करने का सामना नहीं करना चाहते वो उन्हें के लिए आपको अत्यन्त चतुर होना पड़ेगा। भिन्न किस्मों के खिलौने दिए चले जाते 1 किसी व्यक्ति से पूर्ण तारतम्यता स्थापित हैं। अनुशासन का अर्थ प्रभुत्व जमाना नहीं करने के लिए आपको उस व्यक्ति के साथ है, इसका अर्थ ये है कि जो भी कुछ हम खेलना पड़ेगा। हमें ये बात समझनी होगी कर रहे हैं वह आपकी तथा अन्य लोगों की कि उनकी हितैषी प्रवृत्ति ही उनकी कूटनीति आत्मा के हित में है। यही सहज अनुशासन का सारतत्व है। आपको सारी मानवजाति है । का हित करना होगा, अभी तक आप केवल बाईं विशुद्धि, विद्युत की तरह है। व्यक्ति अपने या किसी व्यक्ति विशेष के हित के लिए कार्य करते हैं। अतः चीखने चिल्लाने विष्णुमाया की तरह से चीख चिल्लाकर की कोई जरूरत नहीं। विनोदशीलता ूर्वक दूसरों का पर्दाफाश कर सकता है आपको कार्य करते हुए स्वयं को हितैषिता के स्तर इस बात से नहीं घबराना चाहिए कि 'मैं पर लाएं। श्री कृष्ण ने कहा था सत्यमुवद् इस कार्य को कैसे कर सकता हॅू। दोष चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2002 29 भाव ग्रस्त लोग अधिकतर वो हैं जिन्होंने चकित होंगे कि इसमें से चैतन्य-लहरियाँ आत्मविश्वास खो दिया है और जिनका भी बह रही हैं जहाँ भी आप चैतन्य- लहरियाँ भेजना चाहेंगे, इसके माध्यम से अत्यन्त जटिल अवस्था है। हमें सावधान जाएंगी। इसके समीप कम्प्यूटर रखकर रहना है कि हम दोष भाव ग्रस्त तो नहीं कम्प्यूटर के माध्यम से आप चैतन्य लहरियों हैं। दोष भाव मिथ्या है. वास्तविकता से को जाँच सकते हैं। ये इतनी अद्वितीय जब हम भागना चाहते हैं तो कहते हैं हम चीज़ है कि गडगड़ाने और दहाडने वाली दोषी हैं। आपको वास्तविकता का सामना यह शक्ति बाई ओर को है ताकि यह करना होगा। ये देखने का प्रयत्न करें कि संभाव्य शक्ति के रूप में उन लोगों में बनी आपमें और अन्य लोगों में कौन से दोष हैं। रहे जो दोषभावना और हीन-- भावना ग्रस्त हैं या जो गोपनशील (Sly) है और महसूस करते हैं कि वे बेकार हैं। विषमता पर ध्यान दें। उनकी शक्ति ऐसे व्यक्ति में अभिव्यक्त अहम् बाई ओर को प्रवेश कर गया है। ये विष्णु माया क्योंकि कुछ अन्य न होकर विद्युत सम हैं, विद्युत लोगों को अनावृत करती है, उनपर चीखती, चिल्लाती और होती है जिसमें आत्म-विश्वास की कमी है दहाडती है। आपको यदि बाईं विशुद्धि की और जब ये शक्ति बलपूर्वक अपनी समस्या है तो आपको ये तरीके अपनाने अभिव्यक्ति करती है तो उस व्यक्ति में होंगे। जिन लोगों को बाई विशुद्धि की आत्मविश्वास जाग उठता है विष्णुमाया 1 समस्या है उन्हें चाहिए कि समुद्र पर आकर की जब हम बात करते हैं तो हमें इस बात समुद्र से कहें "मैं समुद्र का स्वामी हूँ, मैं ये का ध्यान होना चाहिए कि वे वहँ (बाई हैँ, मैं वो हूँ।" हूँ । विशुद्धि) पर विराजमान है । हम जब भी गों की शंक्त चाह महान वेक्ता बन सकते हैं। दुष्ट लो का पर्दाफाश कर सकते हैं. मेघ विद्युत सम । हैं गले के दाई ओर श्री स्वर तंतुओं पर होती है-माधुर्य की शक्ति विष्णु-माया बलशाली शक्ति है परन्तु अपना अस्तित्व दर्शाने के लिए यह अपनी श्ति विष्णमाया दोनों प्रकार के लोगों को सन्तुलन को चीखने-चिल्लाने पर उपयोग करती प्रदान करती हैं। मध्यमार्ग पर जब कुण्डलिनी है। जितने भी चमत्कारी फोटो आपको प्राप्त उठती है तो अधिकतर लोगों की विशुद्धि होते हैं ये सब विष्णुमाया की ही कृपा से पकड़ी हुई होती है। अतः उन्हें विश्वस्त है विद्युत के रूप में यही इन सब कार्यों को करती हैं। ये श्री कृष्ण की बहन हैं और अपने आपमें पूर्णतः सन्तुलित हैं, मध्यमार्ग बहुत सूक्ष्म हैं। अत्यन्त सूक्ष्म ढंग से ये पर हैं क्योंकि इस स्थिति पर होने पर ही वे आपकी सहायता करती हैं। इस माइक्रोफोन मधुर दयामय एवं सुहृदय हो सकते हैं । के अन्दर विद्युत है परन्तु आप आश्चर्य कुछ लोग अन्य लोगों का अनुचित लाभ कृष्ण हो सकते हैं. मेघ गर्जन सम हो सकते परन्तु प्रायः हम ऐसे होते नहीं। अतः ं होना होता है कि वे दोषभावग्रस्त नहीं हैं. मार्च-अप्रैल 2002 30 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 उठाने के लिए मधुर होने का दिखावा करते है, आपकी क्या समस्या है। आपके वातावरण हैं। ऐसे लोग नर्क में जाएंगे क्योंकि वे तथा अन्य चीज़ों में क्या दोष है। श्रीकृष्ण की शक्ति का दुरुपयोग करते हैं। आज जब हम श्रीकृष्ण की पूजा कर रहे विशुद्धि चक्र को साफ रखना अत्यन्त हैं तो हमें जान लेना चाहिए कि अन्ततः वे महत्वपूर्ण है। सर्वप्रथम तो हमारा हृदय मस्तिष्क बन जाते हैं। पेट की चर्बी मस्तिष्क अत्यन्त स्वच्छ एवं सुन्दर होना आवश्यक में जाती है और इस प्रकार श्री नारायण है जिससे श्री कृष्ण के मधुर संगीत की मस्तिष्क में प्रवेश करके विराट का- अकबर सुगन्ध आए। अपनी विशुद्धि को सुधारें। का रूप धारण करते हैं। अकबर बनने के इसे कार्यान्वित करें विराट को देखें और पश्चात पदार्थ में वही मस्तिष्क होते हैं। पता लगाएं कि आपमें क्या कमी है और यही कारण है कि श्री इस कमी को दूर करें। कोई अन्य इसे ठीक नहीं कर सकता। विश्वस्त हो जाएं उनमें अहम नहीं होता उनका मस्तिष्क कि आपको अपनी पूरी समझ है। ऐसा विकसित हो जाता है परन्तु उनमें अहंकार होना केवल तभी सम्भव है जब आप साक्षी नहीं होता अहमुविहीन विवेक, जिसे मैं बन जाएंगे, अन्यथा आप कभी स्वयं को शुद्ध बुद्धि कहती हैं, की अभिव्यक्ति उनमें नहीं देख सकते क्योंकि विशुद्धि के स्तर होने लगती है। पर ही आप साक्षी बन सकते हैं । साक्षी करने की कृष्ण वाले लोग दिमागंदार बन जाते हैं परन्तु पूजा अवस्था प्राप्त होने के पश्चात् आप अपनी विशुद्धि में देख पाते हैं कि आपमें क्या कमी परमात्मा आपको धन्य करें पहले स्वयं को पहचान लें पोरचेस्टर हॉल, लन्दन 1.8.1989 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन सर्वप्रथम हमे ये समझना है कि सत्य करना नहीं है कि अब आप हिन्दू, ईसाई, जो है वही है । इसे हम धारणा बद्ध नहीं मुसलमान या कुछ अन्य बन गए हैं । हिन्दू, कर सकते, आयोजित नहीं कर सकते तथा ईसाई या मुसलमान होते हुए भी आप कोई अपने उद्देश्य साधन के लिए इसका उपयोग भी अपराध कर सकते हैं या कोई भी गलत नहीं कर सकते। आँखों पर दोनों तरफ कार्य कर सकते हैं। ऐसा करने से कोई भी घोड़े की तरह से पर्दा लगा कर, अपने बाह्य चीज़ आपको रोक नहीं सकती। अतः बन्धनों (conditioning) के साथ हम सत्य ये सब चीजें इतनी बाह्य हो चुकी हैं कि को नहीं खोज सकते। हमें स्वतंत्र व्यक्तित्व अब लोग कहने लगे हैं कि परमात्मा हैं ही बनना होता है। सत्य को पहचानने के लिए नहीं, धर्म नाम की कोई चीज़ नहीं है ये हमें वैज्ञानिक की तरह से खुले मरस्तिष्क बात सत्य नहीं है। का होना पड़ता है। किसी के उपदेश, भविष्यवाणियाँ या कथनों को आँखे बन्द सर्वप्रथम जब आप कहते हैं कि परमात्मा करके स्वीकार नहीं कर लिया जाना चाहिए। नहीं है वो आपको ये खोजने का प्रयत्न कल्र शाश्वत की खोज तथा नश्वर की सीमाओं करना चाहिए कि क्या हम परमात्मा के को समझना सभी धर्मों का सार तत्व है। विषय में कुछ पता लगा सके या अपने यही कारण है कि हमने अपना संतुलन खो अहंकारवश हम कह रहे हैं कि परमात्मा दिया है। हम यदि सत्य को जानना चाहते नहीं है क्या हम यह देखने में सफल हुए हैं तो हमें यह समझना होगा कि मानवीय कि परमात्मा हैं या नहीं हैं? परमात्मा के चेतना पर हम सत्य को नहीं जान विषय में बात करने वाले लोगों की बातों से पाते। मानवीय चेतना पर सत्य एक आप परमात्मा का आँकलन न करें कोई धारणा बन जाता है। हमें आध्यात्मिक भी व्यक्ति परमात्मा के विषय में बातचीत चेतना प्राप्त करनी होगी। ये आध्यात्मिक कर सकता है क्योंकि वो जानते हैं कि चेतना आपके अस्तित्व की ही एक अवस्था ऐसा कोई कानून नही जो उन्हें पकड़ सकता है जिसमें आप आत्मा बन जाते हैं। यह हो। लोग परमात्मा के पक्ष में बोल सकते किसी व्यक्ति को बनावटी रूप से प्रमाणित हैं, परमात्मा के विरोध मे बोल सकते हैं मार्च-3 ल 2002 32 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 और जो चाहे कर सकते हैं। परमात्मा और लिए नहीं। आपमें और मशीनों में सन्तुलन सभी पैगम्बरों के विरुद्ध बोलकर लोग पैसा नहीं है, आपमें और विज्ञान में संतुलन नहीं भी बना सकते हैं । है। कोई भी चीज जब आपको प्राप्त होती है तो आप पगला जाते हैं। संतुलन आपको अतः मुक्त होने के लिए हमें थोड़ा सा केवल तभी मिल सकता है जब आप आत्मा स्वतन्त्र होना पड़ेगा। आप यदि आत्मा को पहचानना चाहते हैं तो 'स्वयं को पहचाने । से बनाए हुए झाड़ फानूस देख रहे हैं। अपने मध्य नाड़ी तन्त्र पर आपको परमात्मा इनमें जब तक प्रकाश न हो यह अर्थ को जानना होगा। जैसे मैं महसूस कर हीन हैं, इसी प्रकार से आपके चित्त में सकती हूँ कि यह ठण्डा है या गर्म, आपको परमेश्वरी शक्ति को महसूस करना होगा, बन जाएं यहाँ पर आप बहुत सुन्दर ढंग भी जब तक आत्मा का प्रकाश नहीं आता, आप अपना अर्थ नहीं जान उस शक्ति को जो सर्वव्यापी है। सत्य है और सत्य की अभिव्यक्ति करती है क्योंकि सकते। ये माइक्रो फोन यदि ऊर्जा के यह परमात्मा का प्रेम है। पहले आपको ये औति से जुड़ा हुआ न हो तो ये बेकार है । शक्ति अपने मध्य नाड़ी तन्त्र पर महसूस करनी होगी यही 'बोध' है । इसी प्रकार बिना शक्ति के सोत से जुड़े हम 'पूर्ण' को नहीं जान सकते और यही सारी समस्याओं का कारण है। व्यक्ति कह सकता है कि पश्चिम में बहुत उन्नति हुई है और हर मामले में हम बहुत आगे बढ़े हैं परन्तु आप यदि देखें कि हॅूँ तो मेरा अभिप्राय जड़ों के ज्ञान से है विज्ञान में आगे बढ़कर हमने क्या बनाया और इसके लिए आपको सूक्ष्म व्यक्तित्व है-हाइड्रोजन बम, एटम बम और सभी बनना होगा स्थूल मस्तिष्क से आप इसे प्रकार के असुर अपने सिर पर बिठा लिये नहीं देख सकते। सूक्ष्म व्यक्तित्व बनने के हैं। कोई भी गतिविधि जो हम शुरु करते हैं उसमें हम अति की सीमा तक चले जाते मानवीय गतिविधियों, सभी धर्मों में कुछ न हैं। संतुलन का पूर्ण अभाव है। किसी भी कुछ गड़बड़ी हो गई है यही कारण है कि प्रकार का मानसिक प्रक्षेपण रेखीय होता है आज हम ये विडम्बना देख रहे हैं । हमें यह एक रेखा में चलता है और जब ये शाश्वत को प्राप्त करना है। हो सकता है पलटकर वापिस आता है तब व्यक्ति का ये बात कुछ भिन्न प्रतीत हो। उदाहरण के दम घुटता है। देखिए यहाँ किस प्रकार रूप में भगवान बुद्ध और महावीर ने परमात्मा तेजाबी बारिश हुई! आपने मशीनरी बना की बात ही नहीं की। चार बर्षों तक मैंने दी। मशीनें आपके लिए हैं, आप मशीनों के भी परमात्मा की बात नहीं की ज्यों ही अन्तर-स्थित यंत्र की बात जब मैं करती लिए आपको जड़ों को जानना होगा। सभी 1 मार्च-अल 2002 33 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 ব 4 आप परमात्मा की बात करने लगते हैं तो यह अबोधिता का प्रतीक है । अबोधिता ही लोग उछल पड़ते हैं कि कब हम परमात्मा व्यक्ति को सच्चा आश्रय और सच्ची शक्ति बनेंगे। अतः पहले आप आत्मा (Self) बन प्रदान करती है। हो सकता है कि इस पर जाएं। ये पहली सीढ़ी है । सभी सन्तों ने बादल छा जाएं। कुछ लोग कह सकते हैं कहा पहले आप आत्मा बन जाएं। आपके कि हमने अबोधिता को नष्ट कर दिया है। पास यदि आँखें ही न हों तो रंगों को आप जो चाहे आपने किया हो यह नष्ट नहीं हो कैसे देख सकते हैं? ये आपके हित में है सकती। इसमें समस्याएं हो सकती हैं परन्तु कि आप जिस चीज के योग्य हैं. जो चीज़ यह नष्ट नहीं हो सकती। यह इतना अदभुत आपकी अपनी है उसे प्राप्त कर लें और चक्र है, इसकी चार पंखुड़ियाँ है जो श्रोणीय मानव के रूप में आत्मा बनना (आत्म चक्र (Pelvic plexus) की देखभाल करता साक्षात्कार को प्राप्त करना) आपका है। जन्म सिद्ध अधिकार है यही सहजयोग है । स्वतन्त्र होने के कारण हम सभी प्रकार के कार्य किए चले जाते हैं जो हमारे लिए हितकर नहीं होते। कोई बात नहीं, कुण्डतलिनी हुआ। यह योग, परमात्मा के साथ यह नष्ट नहीं हो सकती, वो स्रोत जिसने आपको एकाकारिता प्राप्त करना, आपका जन्म सिद्ध आत्मसाक्षात्कार प्रदान करना है। मैं कहती अधिकार है । मानव के रूप में यह आपका हूँ कि वे आपकी अपनी माँ हैं। ये आपकी जन्म-सिद्ध अधिकार है। आप ही उत्क्रान्ति प्रेममयी माँ हैं जो आपके पूर्व जन्मों की का सार तत्व हैं। यह कार्यान्वित होना ही सभी बातें जानती हैं। ये तो मात्र अवसर चाहिए। परन्तु कृपा करके अपने हृदय खोल की प्रतीक्षा में हैं कि जागृति देकर आपको दें, अपने मस्तिष्क खोल दें और फिर स्वयं पुनर्जन्म दे सकें । वे परमेश्वरी माँ हैं। किसी अपने लिए देखें। मैं जानती हूँ कि यह भी प्रकार का कष्ट ये आपको नहीं होने कार्य करेगा। परन्तु इसके विषय में सोचकर देंगी। कुण्डलिनी जागृति में जो कष्ट आते 'सह' अर्थात साथ और 'ज' अर्थात जन्मा आप इसे धारणाबद्ध (conceptualize) नहीं हैं वो उन लोगों के कारण होते हैं जो इस कर सकते। हमारी जिज्ञासा में एक बहुत विषय में शिक्षित नहीं हैं, जिन्हें कुण्डलिनी बड़ी समस्या ये है कि हम किसी न किसी का ज्ञान नहीं है, फिर भी कुण्डलिनी जागृति प्रकार की धारणा के पीछे दौड़ते रहते हैं। की अनाधिकार चेष्टा करते हैं। कुण्डलिनी अब आपने यह सूक्ष्म तन्त्र देखा है। कभी भी आपको कष्ट नहीं देगी। इसके मानव की विकास प्रक्रिया में हमारे अन्दर विपरीत जब यह जागृत होती है और जब बनाया गया यह सुन्दरतम यंत्र है। इसका आपमें जागृति हो जाती है तो सर्वप्रथम पहला केन्द्र सबसे अधिक सुन्दर है। क्योंकि आपमें निर्विचार चेतनास्थापित हो जाती है माच-अप्रै ल 2002 34 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 क्योंकि विचार उठते रहते हैं और समाप्त क्रोध आदि बिल्कुल शान्त हो जाते हैं । होते रहते हैं कुण्डलिनी इन विचारों के समय को कम करती है। इन विचारों के व्यक्ति भी करुणामय हो उठता है। लोग बीच का समय वर्तमान होता है। अतः यह कहते हैं कि कुछ राष्ट्रों की कुछ विशेष आपको वर्तमान में रोकती है और आप बातें होती हैं। हर चीज समाप्त हो जाती वर्तमान में उन्नत होते हैं। आप यदि सोचना है। इस चक्र के कारण जो कि इतना चाहें तो सोच सकते हैं और न सोचना चाहें गतिशील है और जो शुद्ध विद्या की तो निर्विचार रहते हैं। कुण्डलिनी जब आज्ञा अभिव्यक्ति प्रदान करता है. आपका मध्य आश्चर्य की बात है कि अत्यन्त गतिशील चक्र को पार कर लेती है तब ये घटना नाड़ी तन्त्र संवेदनशील हो उठता है अपनी घटित होती है। अंगुलियों के सिरों पर आप महसूस करने दूसरे चक्र में जब ये प्रवेश करती है तब लगते हैं। जैसे किसी व्यक्ति ने आकर मुझसे कहा मेरा आज्ञा चक्र पकड़ रहा है। आप गतिशील हो उठते हैं क्योंकि दूसरा इसका अर्थ ये है कि मुझमें अहम् बढ़ा हुआ चक्र कला एवं सृजनात्मकता का होता है। मेरे भाई, जो कि शासपत्रित लेखाकार हैं वे है। कोई व्यक्ति क्या स्वयं ऐसा कह सकता भाषाओं के मामले मे बहुत दुर्बल थे। आज है? इसके विपरीत यदि आप किसी से कहें कि अहंकारी हो तो ऐसा करना बहुत तुम वे संस्कृत, उर्दू और मराठी में कविताएं लिखते हैं। मराठी भाषा तो बहुत ही कठिन है। कुण्डलिनी जब उठती है तो इस चक्र का पोषण करती है। बहुत अच्छी माँ की आज्ञा पर सवार हैं और मैं इस चक्र को तरह से ये पोषण करती है। आत्म- ही भयानक होगा। परन्तु आत्मज्ञान के कारण आप जानते हैं कि श्रीमान अहं आपकी तब तक पार नहीं कर सकता जब तक साक्षात्कार प्राप्त कर लेने के पश्चात ही इसमें बाधा है। यह बाधा मुझे दूर करनी ही अमजदअली इतने महान कलाकर बन पाए क्योंकि कुण्डलिनी के उत्थान के बाद ही सृजनात्मकता अत्यन्त गहन और गतिशील तार जुड़ जाएगा तो आप स्वयं तुरन्त जान हो जाती है । तब व्यक्ति अत्यन्त विनम्र, मध जाएंगे तथा सभी अटपटे विचारों और पुर एवं करुणामय बन जाता है। ये हिंसा, भयानक कार्यों के लिए जिम्मेदार ये चक्र क्रोध या गुस्सा आपकी देन नहीं है । ये अत्यन्त हितकर और सुन्दर बन जाएगा। आपके जिगर की देन है। जब आप क्रोधित होगी। यह आपमें अन्तर्जात है। एक बार जब | ये लोग जो हिन्दी का एक शब्द भी न बोल होते हैं तो आपकी समझ में नहीं आता सकते थे वे संस्कृत में भजन गाने लगे हैं। आप क्या करें। नशे में जो कलाकार आज उन्नति करने के लिए तरह आप जो चाहे करते हैं। जागृति से ये संघर्ष कर रहे हैं, सहजयोग में आकर वे घुत व्यक्ति की मार्च-अप्रै ल 2002 35 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 महान कलाकार बन जाते हैं। परन्तु मैं परन्तु पदार्थ का सौन्दर्य इस चीज़ में है कहूंगी कि अभी भी प्रलोभन हैं। आप सभी कि किसी अन्य के प्रति अपने प्रेम की महान कलाकार बन जाएंगे, धन कमाना अभिव्यक्ति करने के लिए हम ये पदार्थ शुरू कर देंगे आदि-आदि। परन्तु यही वो उसे भेंट करें। पदार्थ केवल इसी कार्य के उपलब्धियाँ नहीं है जिनसे आप सन्तुष्ट हो लिए उपयुक्त हैं। विशेषरूप से आप अपना जाएं। आप कभी भी सन्तुष्ट नहीं होंगे। प्रेम प्रकट कर सकते हैं। आपका ऐसा अब हम तीसरे चक्र पर आते हैं जो करना उस व्यक्ति को अच्छा लगेगा । आपमें नाभि चक्र कहलाता है। इस चक्र का एक ऐसी गहनता विकसित होगी और आप ओर जल तत्व से और दूसरा अग्नि तत्व से बना है। इसके चहूँ ओर दस संयोजकताएं हैं - हमारे अन्दर हमारा अन्तर्जात धर्म। आवश्यकता न रहेगी क्योंकि सभी लोगों ज्यों ही कुण्डलिनी उठती है नाभि चक्र या अत्यन्त सुन्दर एवं प्रेममय समाज में प्रवेश करेंगे। फिर आपको किसी चीज़ की को आपकी आवश्यकताओं की चिन्ता होगी । सूर्य चक्र हमें धार्मिकता प्रदान करता है और तब ये चक्र प्रकाश से भर जाता है। इसी चक्र से आता है। आपको ये चिंता रातों-रात लोगों ने नशे त्याग दिए, शराब नहीं करनी पड़ती कि आपको क्या खाना आदि सभी बुरी आदतें छोड़ दी और सबसे है। जो भी कुछ आपके लिए अच्छा अच्छी बात ये है कि अब वे अपने सद्गुणों है, हितकर है आप वही खाते हैं। आप ये आनन्द जो आप दे रहे हैं यह का आनन्द लेते हैं। कुछ लोग सोचते हैं अत्यन्त विवेकशील होकर अन्य लोगों कि तब जीवन में क्या आनन्द रह जाएगा? को प्रसन्न रखते हैं। ये कहकर आप किसी शराबखाने में जाकर रात को आप शराब को नाराज नहीं करते कि यह खाना खराब पीते हैं और सुबह उस नशे के कारण है, मुझे वो चाहिए। मुझे चाहिए समाप्त निष्क्रिय होते हैं। सहजयोग में आज आप हो जाता है। मानों मोमबत्ती जो अभी तक साक्षात्कार लें और कल आपकी स्थिति जली नहीं है प्रकाश की माँग कर रही बेहतर होगी। ये कभी आपको हानि नहीं हो! मुझे प्रकाश चाहिए। परन्तु एक बार पहुँचाता, करता। न ये बनावटी है और न ही नशे में ये अन्य लोगों को प्रकाश देती है। इसी कभी आप पर प्रतिक्रिया नहीं जब ये प्रज्जवलित हो जाती है तो स्वतः करने वाला। आपके अन्दर से ही इसका धुत्त आनन्द फूट पड़ता है। प्रकार आप भी स्वतः अपना प्रकाश, अपना प्रेम, अपना आनन्द अन्य लोगों को देने सहजयोग में हमारे अन्दर वो क्षेम पनप लगते हैं। अब आपको दस धर्मादेशों उठता है कि हम अपनी उदारता का आनन्द पर नहीं चलना पड़ेगा। अब वो दिन चले ले सकें। अभी तक हम भौत्तिकवादी हैं। गए. अब स्वतः ही आप वैसे बन जाते श्र कार मार्च-अप्रै ल 2002 36 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 हैं-अत्यन्त सुन्दर, स्नेह एवं गरिमामय जाता है। परिणामस्वरूप व्यक्ति को सभी व्यक्ति। प्रकार के रोग, ज़िगर की समस्या और सहजयोगियों के चेहरों पर चमक देखिए., शक्कर रोग आदि हो जाते हैं। अधिक चेहरे कितने कांतिमय हैं? कुछ लोगों की मीठा खाने से शक्कर रोग नहीं होता। आयु देखने में दस-बीस वर्ष कम हो जाती भारत के गाँवों में लोग इतना मीठा खाते हैं है और फिर भी वे उत्साह से परिपूर्ण होते कि चाय के प्याले में डाली गई चीनी में हैं। वे कभी थकते नहीं। पश्चिमी देशों के चम्मच खड़ा किया जा सकता है। परन्तु लोग विशेष रूप से बहुत जल्दी थक जाते उन्हें कभी शक्कर रोग नहीं होता इसका हैं, युवा लोग भी। आप क्यों थकते हैं कारण ये है कि वो कभी कल के विषय में क्योंकि आप सोचते बहुत अधिक हैं। आपकी नहीं सोचते। कठिन परिश्रम करते हैं खाना सारी शक्ति सोचने में ही व्यर्थ हो जाती है, खाते हैं और आराम से सोते हैं, उन्हें नींद आनन्द उठाने के लिए कुछ भी शक्ति शेष की गोलियाँ खाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। नहीं बचती। उदाहरण के लिए आप किसी अतः शक्कर रोग बहुत अधिक सोचने के को रात के खाने पर बुलाते हैं। आप सोचने कारण होता है तथा सहजयोग ध्यान द्वारा लगते हैं कि पेय कौन सा होगा, खाने को इसे सुगमता पूर्वक ठीक भी किया जा अरा गरम किस प्रकार रखा जाएगा, आदि-आदि। सकता है।. आप इतने चिड़चिड़े और उत्तेजित होते हैं कि जब मेहमान आते हैं तो उन्हें लगता है है वह है रक्त कैंसर। रक्त कैंसर भी बहुत कि उन्हें वापिस चले जाना चाहिए. क्योंकि अधिक सोचने वाले लोगों को होता है। सोचने और योजना बनाने से इतना तनाव जिन बच्चों की माँ बहुत ही ज्यादा सतर्क तीसरी बीमारी जो कि बहुत ही भयानक उत्पन्न हो चुका होता है। अंततः पूरा आनन्द होती है उन्हें भी रक्त कैंसर हो सकता है। समाप्त हो जाता है। विशेष रूप से जब महिलाएं कालीनों, अपने अतः दूसरा केन्द्र बहुत ही चमत्कारिक घर की छोटी-छोटी चीजों के प्रति बहुत कार्य करता है। जब हम सोच रहे होते हैं अधिक टोका-टाकी करती हैं तो उनके तो यह हमारे मस्तिष्क को श्वेत कोषाणु घर में कोई चूहा भी नहीं आना चाहता। भेजता है। ये आपके जिगर, अग्नाशय, प्लीहा, हर समय वे सोचती रहती हैं और योजनाएं । इसका दुष्प्रभाव बच्चों पर की देखभाल करता है। परन्तु जब हम पड़ता है और बच्चों को रक्त कैंसर हो पागलों की तरह से सोचते हैं तो ये सारे सकता है । हमारा प्लीहा गतिमापक कार्य छोड़कर स्वाधिष्ठान चक्र मस्तिष्क (speedo meter) है । यही आपके जीवन को श्वेत ऊर्जाकरण भेजने में व्यस्त हो को लय प्रदान करता है। हम जब हर गुर्दो तथा पेट के अन्तःस्थित अन्य अवयवों बनाती रहती हैं मार्च अप्रै ल चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 2002 37 समय उत्तेजित एवं घबराए रहते हैं तो यह यदि आप हर समय ही आपात स्थिति में यन्त्र खराब हो जाता है। उदाहरण के रूप रहेंगे तो बेचारा प्लीहा पगला जाता है। में प्रातःकाल जब हम उठते हैं तो समाचार इसकी समझ में नहीं आता कि क्या करे। पत्र देखते हैं जिसमें किसी के मरने की या यह अधिक से अधिक लाल रक्त कण किसी दुर्घटना की खबर छपी होती है। छोड़ने लगते हैं और अन्ततः सोचता है कि उसे देखते ही व्यक्ति को झटका लगता मेरा पाला पागल व्यक्ति से पड़ गया है, है। वो कभी इस बात की सूचना नहीं देते मुझे समझ ही नहीं आता कि कब काम कि कितने लोगों को आत्म साक्षात्कार दिया करु, कब न करूं। ऐसा व्यक्ति सदैव गया है या कौन से अच्छे कार्य हो रहे हैं। असुरक्षित होता है और अचानक कोई अन्य वे सदैव ऐसे समाचार छापते हैं जो आपके सदमा पहुँचने से उसे रक्त कैंसर हो सकता मस्तिष्क को, आपके तालू क्षेत्र को आघात है। ऐसे में डाक्टर प्रमाणित कर देता है कि पहुँचाते हैं। अन्यथा आप उन्हें गम्भीरता से एक महीने में आपकी मृत्यु हो जाएगी। नहीं लेंगे। शरीर यन्त्र की कार्य प्रणाली सहजयोग ने बहुत से रक्त कैंसर रोगियों अत्यन्त कोमल है इसे झटका लगता है। को ठीक किया है क्योंकि कुण्डलिनी जब बिना नाश्ता किए आप कार मे बैठ जाते हैं जागृत होती है तो भूतकाल या भविष्यकाल या देर होने की वजह से नाश्ता आपके के हर समय चलने वाले विचार नियंत्रित हाथ में होता है या रास्ते पर ट्रैफिक जाम हो जाते हैं। कुण्डलिनी सहस्रार को पार होता है। आप चीखते-चिल्लाते हैं, किसी करती है और प्लीहा का पोषण करती है। तरह से कर करा के आप दफ्तर पहुँचते हैं कैसर तथा अन्य असाध्य रोगों के प्रति भेद्य और वहाँ पर आपका अफसर रौद्र रूप ६ होना भी इन्ही चक्रों की बिगड़ी हुई स्थिति Tरण किए होता है। इस तरह से आप पूरी कारण होता है। के तरह तनाव ग्रस्त हो रहे हैं। हम स्वतन्त्र उसके पश्चात् हृदय चक्र है। यह बाएं लोग हैं। रात को अपने घर में यदि आप और दाएं दोनों ओर का नियंत्रण करता है। ऊँची आवाज में गाते हैं तो पड़ोसी आपको जैसे आप जानते हैं रोगों से लड़ने के लिए थाने भेज देते हैं। आप कुछ भी नहीं कर उरोस्थित रोग प्रतिकारकों का सृजन करती पाते। किसी भी तरह से आप स्वतन्त्र नहीं | ये हमारी माँ का चक्र है। मातृत्व जब चुनौती मिलती है तो महिलाओं में आपने वहाँ पहुँचना है। इन सारी चीज़ों का स्तन कैंसर हो सुकता है। मान लो कोई हम पर प्रभाव होता है और हम उत्तेजना से परस्त्रियों के पीछे भागता है और भर जाते हैं। आपात स्थिति के लिए प्लीहा उसकी पत्नी चिंतित रहती है तो उसे स्तन ही लाल रक्त कोषाणु छोड़ता है परन्तु कैंसर हो सकता है क्योंकि उसके मातृत्व को है। | आप घड़ी से बंधे रहते हैं। इस समय पुरुष माच-अ ल 2002 38 मैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 को चुनौती मिलती है और उसकी सुरक्षा आसानी से ठीक किया जा सकता है। की भावना डावाँडोल हो जाती है। इसके दायाँ हृदय पति या पिता का चक्र है । आप परिणामस्वरूप उसे ये समस्या हो सकती यदि अच्छे पति नहीं है या आपकी पत्नी है। आप बहुत अधिक सोचते है और अत्यन्त झगड़ालू स्वभाव की है, या आप अच्छे आक्रामक और भविष्यवादी बन जाते है। पिता नहीं हैं या आपके पिता आपके प्रति कुछ लोग बहुत अधिक योजनाएं बनाते हैं, क्रूर है या यदि आपने अपने पिता को क्षमा आज से दस साल आगे की। लोग यहाँ नहीं किया है तो आपको दमा रोग हो तक सोचते हैं कि मृत्यु होने पर उन्हें कौन सकता है। परन्तु पृथ्वी पर अवतरित होने से वस्त्र पहनाएं जाएंगे और उन्हें कहाँ से पूर्व हम स्वयं अपने माता-पिता का दफनाया जाएगा। इस प्रकार की भविष्यवादी चुनाव करते है। हो सकता है वो गलत हों योजनाएं शरीर में अत्यन्त भयानक गर्मी जिद्दी हों, सिरजोर हों। हो सकता है वे पैदा कर देती हैं। जिगर जो कि इस गर्मी शराबी हों परन्तु यदि आप उन्हें त्यागना का शोषण करता है, यह केन्द्र उसकी चाहें तो भी उनसे क्षमा लेलें और उन्हें क्षमा उपेक्षा कर देता है और परिणामस्वरूप ये कर दें अन्यथा ये समस्या आपके साथ बनी गर्मी ऊपर की ओर जाकर दाएं हृदय को रहेगी। प्रभावित करती है जिसके कारण व्यक्ति आपको अनन्त आशीर्वाद को दमा रोग हो सकता है। अस्थमा अत्यन्त निर्मल वाणी माया के बगैर चित्त की तैयारी नहीं हमें इस शरीररूपी मन्दिर की देखभाल को अपना मुख्य कर्त्तव्यं समझकर सततु होती, अंतः इस माया से डरने के बजाय आगे बढ़ना है। पर यही उसे पहचानिए। प्रयत्न करते हुए तभी वह आपका मार्ग आपकी जिन्दगी का लक्ष्य नहीं होना चाहिए। प्रकाशित करेगी । जैसे सूर्य को बादल ढक यह तो एक अत्यन्त छोटा-सा हिस्सा है देते हैं और उसके दर्शन भी करा सकते अपनी जिन्दगी का, जैसे तमाम जगह स्वच्छ हैं। माया मिथ्या है, यह जानते ही वह कर आप बाहर आ जाते हैं। यदि आपको अलग हट जाती है, और सूर्य का दर्शन हो कोई समस्या है तो उसे भूल जाइए। शनैः जाता है। सूर्य (ब्रह्म, सत्य) तो सदा सर्वदा शनैः आपकी दशा में सुधार आ जाएगा है ही, परन्तु बादल (माया) का काम क्या मुख्य बात तो यह है कि अपनी आत्मा में होता है? बादलों की वजह से ही मन में रहें, संतुष्ट रहें। बारम्बार आग्रह न करें कि सूर्य-दर्शन की तीव्र इच्छा पैदा होती है। माँ हमें ठीक करें। परन्तु कहना चाहिए "माँ फिर सूर्य क्षणभर के लिए चमकता है और हमें आध्यात्मिक जीवन में स्थापित रखिए। छिप जाता है। इस कारण ऑँखों को सूर्य आप स्वतः इच्छानुसार रोगमुक्त हो जाएंगे। देखने की ताकत और हिम्मत आती है । तिहाड जेल में बन्द साधकों के कुछ पत्र सहजयोग महायोग परम पूज्य माता जी मैं जेल में 27.10.99 सहजयोग करता हॅूँ। और आराम से रहता को आया तो मुझे पता नहीं था कि हमारे हूँ। श्री माता जी की कृपा से और अब मैं जेल न. 5 में सहजयोग हो रहा है। और मैं हमेशा करता रहूंगा और आशा करता हूँ वार्ड में था तो मुझे नहीं पता था कि कि जब तक जेल में रहूंगा तब तक और सहजयोग क्या है। इसके करने से क्या फायदा होता है। और जब मेरी गिनती कट रहूंगा कि जेल में रहकर मैंने सहजयोग कर वार्ड न. 7/4 में आया तो मैंने देखा किया और मेरे अन्दर इतने बदलाव आये कि बैरिक नं. चार में सहजयोग रोज होता और मैंने सोचा भी नहीं था कि जेल में है। और मैं ने भी करना शुरू किया तो एक रहकर मेरे अन्दर इतने परिवर्तन आ जायेगे हफ्ता तक मैं बहुत परेशान होता था कि और मैं ठीक हो जाऊँगा । इससे और ध्यान बाहर जाकर सबको अपने बारे में भी बताता इससे कोई फायदा नहीं है और यह एक लगाकर सहजयोग करता हूँ। फालतू का चीज़ है और जब मैंने दिल लगाकर करना शुरू किया तो मुझे बहुत पिता का नाम : मसी प्रसाद फायदे हुए। मेरा पैर टूट चुका था और पता : तुर्कमान नार्मल टैक्सी स्टैन्ड, उसमें सूजन थी, वह भी ठीक हो गया और गोरखपुर (यू.पी.) मैं शरीर से भी परेशान था वह भी ठीक हो तीहाड़ जेल न. 5/ रामकरण पुर गया। और अब मैं रोज सुबह-शाम हरिनगर डिपो, नई दिल्ली- 110064 ००০০ मैं जेल न. 5 के वार्ड न. 7 की वैरिक न. करना चाहता हूँ। कृप्या करके आप हमारी 4 का एक विचाराधीन बन्दी हूँ। सहजयोग अनुरोध को सुने सहजयोग करने में हमारी करना मुझे बहुत अच्छा लगता है। और सहायता करें और आने वाली परेशानी को अब मुझे किसी भी प्रकार की कोई परेशानी खत्म करवाये, आपकी अति होगी । नहीं रहती। मैं अपने आपको काफी हलका कृप्या धन्यवाद राकेश कुमार महसूस करता हूँ और आगे भी सहजयोग ००० एक सहजी की अनुभूति श्री माता जी यद्धपि आपके द्वारा प्रदान करके इन सभी शब्दों को पूर्ण रूप से किये गये आनन्द व अनुभूति को शब्दों में चैतन्य से भर दिजिए । बताना या पिरोना कठिन ही नहीं अपितु असम्भव सा है क्योंकि हे देवी आप तो किये गये योग अवस्था में हम आत्मा आपके सभी शब्दों से परे हैं किन्तु श्री माता जी सुसज्जित गोरा (कुण्डलिनी) रूप का पिता आपके द्वारा प्रदत्त शब्द वॉणी एवं संगीत सँदाशिव से मिलन अर्थात सहस्रार तक आने ही ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा हम (आत्मा) की यात्रा का दर्शन पाते हैं उसका ही वर्णन का भाव आप से बता सकते हैं। हे माँ कृपा करनी की छोटी सी चेष्टा की है कृपा अनुमति कर इन सभी भावों (शब्दों) की अविद्या दूर दिजिए आपको कोटि-कोटि धन्यवाद! माँ इन शब्दों में जो आपके द्वारा प्रदान आत्म दर्शन आत्मा कहती है:- मेरे पाँच विकारों को बजकर, पंच तत्वू की देही नाम करी। रूपु सुनहरा धर कर के गोरा मिलने शिव धाम चली।। मेरे पाँच विकारों. ले भूत-भविष्य पहिये दो, वर्तमीन का देखो रथ है बना। पुग-पग देवों का वंदन है, चैतन्य का ऐसा पथ है बना।। ये दृश्य अलौकिक देखी मैं जीवन मेरा तुम प्राण भरी यूँ रुप सुनहरा. इस रथ, की क्या मैं छुटा कहूँ सब सूर्य-चन्द्र ये थोड़े हैं गणनायैक रथ को हॉक रहे, बुज़रंग, भैरव दो घोड़े हैं। माँ मुझ पर तुम उपकार किये धारण मुझको परिधान करी यूँ रूँप सुनहरा. ब्रुह्मा जी तुझको जन्म दिये विष्णु जी नैं श्रृंगार किया । आदिं गुरु ने तुमको शिक्षा दी तब दुर्गौ का आधार लिया।। अब मुँझको खुद में ले कर के करके तुम मुझको राम चली यूँ रुपे सुनहरा.. माँ शारदे वीणा वाद् करे बजूती है मुरूली कान्हा की। झूमी है सृष्टी सारी माँ कैरती हैं नृत्य यूँ राधा जी।। तुम क्षमा आभूषणी धारे हो, ईसा माँ तुझको द्वार करी। यूँ रुप सुनहरी. डमरू धड़कन् कैलाश बाजे शिव चरणून में माँ अर्पित हैं। नेटराज़ के प्रेम की वर्षा में अब रोम-रोम माँ गर्वित है।। कहाँ मुझे माँ ले आये मेरी स्वर्ग में सुबूह-शाम करी यूँ रुपु सुनहरा धर कर के, गोरा मिलने शिव धाम चली मेरे पाँच.. ला कोटि-कोटि नमन जय श्री माता जी विद्यार्थी को सहजयोग से लाभ श्री माताजी, आपकी परम कृपा से हम है, आप उसकी जानकार हैं। मेरे इस कलम जो भी पढ़ते हैं, वह हमारे ध्यान में रहे, से जो भी स्याही निकलेगी वह आप ही ऐसा ही हो। परम् पूज्य श्री माताजी को है। मैं सफल हुआ तो वह सफलता मेरे देह अपना गुरु मानकर अपनी प्रगति कीजिए की होगी, परंतु अगर मैं असफल रहा तो और अपना सुधार कीजिए। श्री माताजी असफल होने का कारण ढूंढकर उसमें एक असामान्य अद्वितीय एवम् अलौलिक सुधार करूंगा यद्यपि इस परीक्षा को मैं व्यक्तित्व हैं। हमें उन्हें पहचानना चाहिए। लिख रहा हूँ परंतु मेरे द्वारा आप ही इस परीक्षा में सफल होना, हर मनुष्य के भौतिक परीक्षा को लिख रही हैं । उन्नति का एक अभिन्न अंग है। केवल डिग्री प्राप्त कर लेने से शिक्षा प्राप्ति का () पढ़ाई का कोई छोटा और आसान पथ अभ्यास की पद्धति अंत नहीं होता अपना ज्ञान बढ़ाना बहुत नहीं है। परिश्रम से ही फल की प्राप्ति हो सकती है। आवश्यक है। अपनी ज्ञानवृद्धि से, और अपने को जान लेने से हम श्री माताजी और सहजयोग को अधिक समझ पाऍँगे। (2) हमेशा प्रसन्नचित और खुश रहना चाहिए । सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अधिक से अधिक भाग लेने से हमारे व्यक्तित्व का विकास (3) हर दिन ध्यान करना, सफलता की होता है। सहजयोगियों की परीक्षा में अच्छे अंक लाने पर श्री माताजी हर्षित होती हैं। (4) हमें ध्यान और परिश्रम दोनों में संतुलन सीढ़ी का पहला पड़ाव है। रखना है। केवल ध्यान से ही सफलता अच्छे अंक प्राप्त करना और अपना भविष्य नहीं मिल सकती। निर्माण करना, हर सहजयोगी का धर्म है । हम इस पूर्ण के एक सूक्ष्म भाग हैं। यद्यपि (5) परीक्षा में लिखते समय चित्त को नम्र हम सभी उच्च कोटि के गायक, चिकित्सक आदि नहीं बन सकते परंतु श्री माताजी के (6) परीक्षा से पहले ठंडे पानी और बाहरी और एकाग्र रखिए। भोजन से दूर रहिए। ध्यान से हम अपनी क्षमता में वृद्धि कर सकते हैं। (7) अपने चित्त को शुद्ध करके पढ़ना आवश्यक है। इससे चित्त स्थिर और परीक्षा के पूर्व श्री माताजी से प्रार्थना श्री माताजी मैंने जो भी अभ्यास किया शांत रहता है। ।ा।।-3प ल 2002 43 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 (৪) परीक्षा के समय श्री माताजी की फोटो अपने पास रख परीक्षा दे सकते हैं । ज्यादा प्रश्नों को हल करने का प्रयत्न करें। (७) परीक्षा में उपयोग में आनेवाली वस्तुओं की लिस्ट बनाकर उसे एक दिन जमा (12)पेपर के अंत में अपने लिखे का दोबारा पठन कीजिए । हुए उत्तरों कर लीजिए । (13) पेपर वापस करते समय चित्त से श्री माताजी को अर्पण कीजिए। (10) श्री माताजी से प्रार्थना करनी चाहिए। 'श्री माताजी आप ज्ञान के सागर हैं। (14) पेपर के विषय में चर्चा न करे, घर जाकर अगले विषय की तैयारी करें । आप ही मुझसे यह परीक्षा लिखवा रही हैं। मंत्र का उच्चारण करना चाहिए या देवी सर्व भूतेषु बुद्धिरुपेण, शांतीरुपेण (15) तीखा, मीठे, कड़वे और अतिशीत वस्तुओं संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः | से दूर रहें। (16)ध्यान और अभ्यास का योग्य नियोजन करें। (11) पेपर मिलने पर उसे बंधन दीजिए । पेपर कठिन होने पर भी ज्यादा से (17)रोज 5-10 मिनट पानी पैर क्रिया करें। है नवरात्रि पूजा, लोतराकी, यूनान, 21.10.2001 ---------------------- 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-0.txt खंड : XIV अक : 3 व 4 PURE RELIGION HSAINA मार्च अप्रैल, 2002 चैतन्य लहरी े कि हे श्रीमाताजी अत्यन्त कृपा करके पूरणावतार के रूप में इस विश्व में अवतरित होकर आप अपने बच्चों के हृदय-सिंहासन पर विराजमान हुई हैं अपने समी बच्चों की आप प्रेममयी माँ हैं। आपका निष्कलंक रूप अत्यन्त सुखकर है। आपकी एक झलक हमारे हृदयों को निरानन्द से भर देती है। ब्रह्माण्ड की बीज रूप, हे, श्री आदिशक्ति आपके दर्शन मात्र से सभी पाप समूल नष्ट हो जाते हैं। श्रीमाताजी, आपको कोटि-कोटि प्रणाम । ১ 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-1.txt नवरात्रि पूजा, लोतराकी, यूनान, 21.10.2001 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-2.txt मार्च अप्रै ल खंड X1 V चैतन्य लहरी अं क 2002 थे गुरु स्तुति 1 गणेश पूजा - 22.9.2001, कबेला 7 15| नवरात्रि पूजा 21.10.2001, यूनान 24| श्री कृष्ण पूजा - 14.8.89 31 1 पहले स्वयं को पहचान लें -1.8.89 39| निर्मल वाणी । तिहाड़ के कुछ कैदी साधकों की कुछ अनुभूतियाँ 40 उ 41 | एक सहजी की अनुभूति 421 विद्यार्थी को सहजयोग से लाभ 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-3.txt चै त न य ल ह री प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर 162 - ए. मुनीरका विहार, नई दिल्ली 110067 मुद्रक अमरनाथ प्रैस प्रा. लिमिटेड डब्ल्यू एच एस 2/47 कीर्ति नगर औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली -15 फोन : 5447291, 5170197 सदस्यता के लिए कृपया इस पते पर लिखें :- श्री ओ.पी. चान्दना T.१ - 463 (G-11) ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली - 110034 एन फोन : (011) 7013464 सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पते पर भेजें चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी-17, कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली 110016 का तही 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-4.txt गुरु स्तुति परम् पूज्य माताजी के श्री चरणों में अर्पित ज्ञानेश्वरी के अध्याय 12 से 18 पर आधारित (1 से 35-वर्ष 2000 के अन्तिम अंक में) 36) श्रीमाताजी आप ही वह सूर्य है, जिसके 40 श्रीमाताजी आपको कोटि-शत प्रणाम | उदय से अद्वैत रूपी कमल पूर्ण गरिमा में हमारी बुद्धि तथा आत्म साक्षात्कार पौराणिक खिल उठा है तथा उस भ्रम का साम्राज्य चकवा-चकवी पक्षियों के जोड़े सम हैं जो अस्त हो गया है, जिसके कारण भौतिक विश्व को वास्तविकता मान लिया गया था । अंधकार में एक दूसरे से बिछुड़ कर मिलन श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। विचार विनिमय एवं वाद-विवादों के के लिए विलाप कर रहे थे। श्रीमाताजी आप ही वह सूर्य हैं जिसके प्रकाश ने हमारी बुद्धि रूपी आकाश को ज्योतिर्मय 37) श्रीमाताजी आप ही वह सूर्य हैं जिसने सांसारिक ज्ञान के टिमटिमाते सितारों रूपी किया तथा पक्षियों की इस जोड़ी का मिलन अविधा की रात्रि को निगल लिया है, तथा साधकों के लिए आत्म-साक्षात्कार रूपी शुभ दिन का उदय हो गया है। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। करवाया। 41) श्रीमाताजी आपको कोटि-शत प्रणाम । आप ही वह सूर्य हैं जिसके उदय से अगुरूओं का अमांगलिक काल समाप्त हो गया है तथा सभी साधकों के लिए आत्म-साक्षात्कार 38) श्रीमाताजी आप ही वह सूर्य हैं जो उषा काल को लेकर आए हैं जिसमें हमारे आत्मा रूपी पक्षियों ने आत्मसाक्षात्कार का प्राप्त करके उत्थान-प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त हुआ है। स्वप्न साकार करके शरीर रूपी घोंसलों से सामंजस्य त्याग दिया है। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम । 42) श्रीमाताजी आपको कोटि-शत प्रणाम। आप ही सूर्य हैं, आपकी बच्चों में वैसे ही दिव्य ज्ञान की ज्योति किरणें आपके कृपा 39) श्रीमाताजी आपको कोटि-शत प्रणाम | माया के अंधेरे साम्राज्य में हमारे आत्मा स्फुटित करती हैं जैसे पौराणिक सूर्यकान्त रूपी भवरे, कारण रूपी (causal) शरीर रल पर सूर्य की किरणें पड़ने से ज्योति कमलों के अन्दर फॅसे का आनन्द ले रहे थे श्रीमाताजी आप ही वह सूर्य हैं जिसने उन भँवरों को मुक्त किया है। प्रस्फुटित होती थीं श्रीमाताजी दिव्य ज्ञान की ये लपटें सांसारिक सुखों के मोह को सांसारिक सुखों हुए भस्म कर देती हैं। 43) श्रीमाताजी आपको कोटि-शत प्रणाम। 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-5.txt मार्च -अप्रैल 2002 2 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 47) श्रीमाताजी आपको कोटि-शत प्रणाम। आप ही वह सूर्य हैं जिसकी कृपा से आपके बच्चों में सर्व-बन्धनों से मुक्ति का शुभ आप सूर्य हैं। ज्यों ज्यों आपकी कृपा किरणें दृढ होती हैं, असंख्य चमत्कार होते हैं तथा यह अनन्त सुख समृद्धि के आशीर्वादों की वर्षा करती हैं। श्रीमाताजी ये हमारे लिए दिवस उदय हुआ है। चेतावनियाँ हैं कि हमारा चित्त यदि आपके चरण-कमलों पर स्थापित नहीं है तो वही 48) श्रीमाताजी आपको कोटि-शत प्रणाम। सुख-समृद्धि मृग-तृष्णा बनकर हमें आत्मा तथा आपके चरण-कमलों से दूर धकेल साम्राज्य सदैव चमकता है। आपकी सकती हैं आप ही वह सूर्य हैं जो आत्मसाक्षाआत्कार के में कृपा आपके बच्चे में भ्रान्ति के अंधकार को समाप्त करती है और उन्हें अन्य सभी ज्ञानों से 44) श्रीमाताजी आपको कोटि-शत प्रणाम । श्रेष्ठ आत्मसाक्षात्कार का पूर्ण ज्ञान प्रदान आप ही वह सूर्य हैं जो अपनी गरिमा में करती हैं । पूर्ण पराकाष्ठा पर चमकता है। अपनी कृपा की किरणें जब आप अपने बच्चों पर डालती 49) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम । हैं तो वो सोहं (अद्वैत) का अनुभव करते हैं शब्दों में सीमित शक्ति होने के कारण और उनकी भ्रान्ति इस प्रकार से समाप्त आपकी स्तुति करने में शब्द असमर्थ हैं। हो जाती है जैसे दोपहर के समय हमारी आपकी स्तुति तो केवल आपके चरण कमलों परछाई हमारे पैरों के नीचे समाप्त हो जाती से एकरूप होकर ही की जा सकती है, है। जब शब्द, स्तुति करने वाली बुद्धि एवं स्तुति के शब्द आपके चरण कमलों से एक रूप हो जाएं। स्तुति का यही लक्ष्य है। 45) श्रीमाताजी आपको कोटि-शत प्रणाम। आप सूर्य हैं, आपकी कृपा से जब माया-रात्रि का अस्तित्व समाप्त हो जाता है को वास्तविकता समझने वाली मानसिक शब्दों के माध्यम से आपकी स्तुति कर भ्रान्ति-रूपी रात्रि भी समाप्त हो जाती है। पाना वास्तव में असम्भव है क्योंकि आपका वास्तव में ये संसार स्वप्न-सम है। 50) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम । तो संसार ज्ञान पाना अज्ञात को जानना है और ऐसा केवल पूर्ण मौन की अवस्था में ही किया जा सकता है जब आत्मा अपनी अभिव्यक्ति 46) श्रीमाताजी आपको कोटि शत प्रणाम। श्रीमाताजी आप ही वह सूर्य हैं जो ज्ञान करती है। श्रीमाताजी आप ही हमारी आत्मा और अंधकार के दिवस और रात्रि से परे ह हैं। आप ही ज्ञानोदय भी हैं क्योंकि आप तीनों प्रकार-वैखरी, मध्यमा और पश्यन्ति- स्वयं ज्योति हैं। हे ज्ञान के दैदीप्यमान परा वाणी की सूक्ष्मता में एक रूप हो जाते सूर्य! आपकी झलक कौन प्राप्त कर सकता हैं और परावाणी पूर्ण मौन की अवस्था में है? हैं। उस अवरथा में, श्रीमाताजी, वाणी के चली जाती है। 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-6.txt मार्च-अप्रै ल 2002 3 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 51) ओ गुरुमाँ, श्रीमाताजी, आप ही प्रति समर्पित हैं आप उन्हें इस प्रकार से गणाधीश श्री गणेश हैं जिनकी योग-माया स्वयं से जोड़ लेती हैं कि उनके शरीर का से इस पूर्ण विकसित ब्रह्माण्ड का उदय अस्तित्व नाम-मात्र के लिए ही रह जाता होता है। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि है। श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 1 प्रणाम् । 58) स्वयं को आपसे भिन्न मानने वाले 52) हे गुरु माँ, श्रीमाताजी आपको लोगों के लिए, जो आपके साकार रूप का कोटि-कोटि प्रणाम। आप श्री गणेश हैं । आपका स्मरण करके श्री शिव ने आत्मत्व कर्मकाण्डों से आप तक पहुँचने के लिए के किले में कैद तीन गुणों रूपी तीन नगरों प्रयत्नशील हैं, आप दुरग्राह्य हैं आपको से धिरी आत्मा को मुक्त किया। ध्यान करने जैसे भिन्न आध्यात्मिक कोटि-कोटि प्रणाम । 53) अत:, हे गुरु माँ, श्रीमाताजी! गुरु रूप 59) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। में श्री शिव की तुलना में आप श्रेष्ठ हैं जो धूरन्धर विद्वान ये नहीं मानते कि आप क्योंकि आप अपने बच्चों को अत्यन्त प्रेम पूर्ण हैं वो अपने सम्बन्धित ज्ञान के माध्यम पूर्वक भ्रम-सागर से पार करती हैं। से बौद्धिक रूप से आपको समझने का श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम । प्रयत्न करते हैं। परन्तु वे अज्ञानी हैं। 54) हे गुरुमाँ श्रीमाताजी, आपको कोटि- आखिरकार सर्वज्ञ "शब्द ब्रह्म" वेद भी आपका कोटि प्रणाम। आप ज्ञानहीन लोगों की समझ वर्णन करने में असमर्थ हैं। से परे हैं केवल ज्ञान-वान (आत्मसाक्षात्कारी) 60) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम | व्यक्ति ही आपको समझ सकते हैं। जब हम आपके दास बनना चाहते हैं तब 55) हे श्रीगुरु माँ आपको कोटि-कोटि भी दास और स्वामी का द्वैत बना रहता है। प्रणाम। श्री गणेश के रूप में चाहे आपकी अतः बेहतर तो यही है कि हम अपना कोई ऑँखें बहुत छोटी हों परन्तु इनको खोलने अस्तित्व ही न माने। तथा बन्द करने मात्र से आप ब्रह्माण्ड के 61) हे देवी, एवं गुरु श्रीमाताजी, आपको कोटि-कोटि प्रणाम । ध्यान करते हुए जब हम वह अवस्था प्राप्त करते हैं जिसमें हमारा सृजन एवं प्रलय की लीला करती है। माँ श्रीमाताजी, आपको कोटि- 56) हे गुरु कोटि प्रणाम। आपके प्रियजनों में हद्वैतवाद कोई अपना अस्तित्व नहीं रह जाता केवल समाप्त हो जाता है और उनका कोई तभी हम आपके चरण कमलों से एक हो सम्बन्ध बाकी नहीं बचता क्योंकि वे आपसे सकते हैं। यही आपकी पूजा है। एकरूप हो जाते हैं। 62) हे श्री आदिशक्ति गुरु माँ, आपको 57) आप क्योंकि सांसारिक बन्धनों को कोटि-कोटि प्रणाम| हमारी हार्दिक इच्छा तोड़ती हैं, जो लोग प्रसन्नता पूर्वक आपके है कि आपके चरण कमलों से एक होकर 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-7.txt मार्च-अप्रै ल 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 वैसे ही आपके चरण कमलों की पूजा करें अपने सभी बच्चों की आप प्रेममयी माँ हैं । जैसे समुद्र के पानी में घुलकर नमक समुद्र सुगमतापूर्वक आप मृत्युदेव, यम की की पूजा करता है। गतिविधियों को नियंत्रित करती हैं । 63) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। 67) हे परम प्रिय गुरु माँ, हे महादेवी जिस प्रकार खाली घड़े को समुद्र के जल श्रीमाताजी, आपको कोटि-कोटि धन्यवाद में डुबोने पर जल से भरकर ऊपर लाते हैं, अपने बच्चों की रक्षा करने के लिए उन्हें जिस प्रकार दीपक की बाती प्रज्जवलित सुधारने के लिए तथा उनके चित्त नियंत्रण होकर स्वयं दीपक बन जाती हैं वैसे ही के लिए आप उनके साथ चट्टान की तरह आपके चरण कमलों की पूजा करके हम से खड़ी हो जाती हैं । हे माँ ये सब कार्य भी पूर्णता का आनन्द प्राप्त करेंगे और आपके लिए लीला मात्र हैं। आप इनका तत्पश्चात् आपकी इच्छा को कार्यान्वित करने अत्यन्त आनन्द लेती हैं। के लिए आपके आदर्श माध्यम बनेंगे । 68) हे गुरु माँ, श्रीमाताजी आपको 64) हे महादेवी, हे गुरु, श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम । आपका निष्कलंक रूप कोटि-कोटि प्रणाम। जिन लोगों को आप अत्यन्त सुखकर है। आपकी एक झलक अपने चरण कमलों में शरण देती हैं उन्हें हमारे हृदयों को निरानन्द से भर देती हैं। सभी प्रकार की मंगलमयता का वरदान ब्रह्माण्ड की बीज रूप हे श्री आदिशक्ति देती हैं। आप जन्म वृद्धावस्था के बादलों आपके दर्शन मात्र से सभी पाप नष्ट हो को दूर कर देने वाली तीव्र वायु सम हैं। जाते हैं। 65) हे परम प्रिय गुरु, हे सर्व- शक्तिमान 69) हे गुरु माँ श्रीमाताजी आपको कोटि- आदि-शक्ति श्रीमाताजी आपको कोटि- कोटि प्रणाम आप ज्योति स्वरूप, हैं आप कोटि प्रणाम। अपावन तथा अशुभ को आप ही ने अपने बच्चों को ज्योतिर्मय बनाया है। समूल नष्ट करती हैं। वेदों तथा उपनिषदों जिस प्रकार आकाश बादलों को संभालता में आपको की गई प्रार्थना के फलस्वरूप है वैसे ही आप अपने अन्दर इस ब्रह्माण्ड आपका अवतरण हुआ है। वेदों तथा को सम्भाले हुए हैं श्रीमाताजी आत्म- उपनिषदों का वरदान देने वाली भी आप साक्षात्कार प्राप्त कर लेने के पश्चात् ही हैं। ये ब्रह्माण्ड हमें मिथ्या प्रतीत होता है। 66) हे गुरु माँ श्रीमाताजी, आपको कोटि- 70) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम । कोटि प्रणाम। अत्यन्त कृपा करके आपने आदि माँ होने के नाते आप सभी देवी पूर्णावतार के रूप में इस विश्व में अवतरण देवताओं गणों तथा पूरे ब्रह्माण्ड की गुरु लेना स्वीकार किया है और अपने बच्चों के हैं। हे परम पावनी, आपके कटाक्ष मात्र से हृदय के सिंहासन पर विराजित हुई हैं। आपके बच्चे इन्द्रीय सुखों से परिपूर्ण इस 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-8.txt मार्च-अप्रै ल 2002 5 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 विश्व के भ्रान्तिमय स्वभाव को पहचान लेते कोई उपमा, कोई रूपक, कोई विशेषण एवं हैं हे करुणा की सागर माँ, भ्रान्तिमय कोई शब्द पर्याप्त नहीं है क्योंकि आप हर सांसारिक प्रलोभनों से मुक्ति प्रदान करने चीज़ से परे हैं आपकी स्तुति करने के के लिए आपके बच्चे आपके प्रति सदा लिए हमारे पास न तो शब्द हैं और न ही हममें योग्यता है। हम तो केवल इतना जानते हैं कि आपकी स्तुति करने के लिए सर्वदा के लिए कृतज्ञ है। 71) हे सर्वव्याप्त, सर्वशक्तिमान परमात्मा, हे हमारी प्रेममयी गुरु माँ, आपको हमें ध्यान धारणा करनी है और सहजयोग कोटि-कोटि प्रणाम । आप ही अपने बच्चों प्रसार के लिए कार्य करने हैं। की हृदय ज्योति हैं। आप ही का प्रकाश 75) हे ब्रह्माण्ड आत्मा, हे सर्वोपरि, हे उनके अन्तस को ज्योतिर्मय करता है तथा सर्वव्याप्त, सर्वशक्तिमान परमात्मा, सर्व दिव्य चैतन्य-लहरियों के रूप में प्रसारित देवी-देवताओं गणों एवं सहजयोगियों की होकर सांसारिक जीवन के व्याकुल कर गुरु माँ, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। कृपा देने वाले ताप से उनकी रक्षा करता है करके इस ब्रह्माण्ड पर प्रसन्न हो जाइए। तथा सभी प्रकार की व्याधियों से उन्हें आत्मा का दिव्य ज्ञान प्रदान करने के लिए आपके बच्चे, आपके प्रति कृतज्ञ हैं। मुक्त करता है। 72) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम्। आप अद्वितीय हैं, आपसा दूसरा कोई नहीं। सभी विनम्र, निर्लिप्त, विवेकशील तथा आपके प्रति समर्पित लोगों को आप गहन प्रेम दुष्ट दुष्टता छोड़कर शुभ कार्यों करती हैं, इतना अधिक प्रेम कि उनकी रक्षा करने के लिए, उनके हित को देखने के लिए और उनकी शुद्ध इच्छाओं को पूर्ण 77 ) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। करने के लिए एक दम तैयार रहती हैं । 76) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम्। श्रीमाताजी कृपा करें और आपकी कृपा से लोग अपनी में लग जाएं तथा सभी मनुष्यों में हार्दिक प्रेम जाग उठे। ४। आत्म-साक्षात्कार की ज्योति प्रदान करने 73) हे आदिगुरु श्रीमाताजी आपको कोटि- के लिए हम आपके सभी बच्चे आपके प्रति कोटि प्रणाम। आप स्वर्गीय कल्पतरु सम सदा सर्वदा कृतज्ञ हैं। कृपा करें कि आपकी हैं जो सभी इच्छाएं पूर्ण करता हैं। हम कृपा से विश्व से अज्ञानान्धकार मिट जाए । आपके सभी बच्चे निरन्तर आपके प्रति हैं कि आपने हम पर परम चैतन्य की वर्षा सके तथा सभी मानव अपनी शुद्ध इच्छा विश्व आत्मा तथा धर्म की सुनहरी धूप देख कृतज्ञ की पूर्ति का आनन्द उठा सकें। की। यह महानतम है, अवर्णनीय एवं कल्पना से परे है। 78) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। हे आदिगुरु श्रीमाताजी आपको कोटि- दिव्य आशीर्वाद तथा मंगलमय परम चैतन्य कोटि प्रणाम। आपकी स्तुति करने के लिए की वर्षा हम पर करने के लिए हम आपके 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-9.txt मार्च -अप्रै ल 2002 6 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 सभी बच्चे अनुगृहीत हैं। श्रीमाताजी कृपा रूपी दिव्य चिन्तामणि रत्नों के नगरों सम करें कि सर्वशक्तिमान परमात्मा अर्थात आप हैं, और बोलते हुए अमृत सागर सम हैं। स्वयं के साधकों की भीड़ मंगलमयता की वर्षा में परस्पर अत्यन्त प्रेमपूर्वक मिलें। 80) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। हम आपके बच्चे आपके आभारी हैं कि 79) श्रीमाताजी आपको कोटि-कोटि प्रणाम। आपने हमें अपने अन्दर स्थान दिया तथा श्रीमाताजी हम आपके सभी बच्चे अपने प्रेम एवं करुणा से हमें शुद्ध कर रही आपके प्रति कृतज्ञ हैं कि आपने हमें हैं श्रीमाताजी आपकी कृपा से विश्व के आत्म -साक्षात्कारी व्यक्तियों की सामूहिकता सभी मानव जी भरके दिव्य आनन्द को प्राप्त करें और हे आदि पुरुष, हे परमात्मा, वे सब आपकी भक्ति एक हो जाएं। इनके समूह चलते फिरते में डूब जाएं। हे परमेश्वरी माँ बारम्बर आपको प्रदान की। कृपा करें, कि निष्कलंक चन्द्रमा, एवं तापहीन सूर्य-सम, इन लोगों के हृदय हे साक्षात् श्री परब्रह्म दिव्य कल्पतरुओं की तरह से हैं. चेतना कोटि शत प्रणाम | ॐँ नमः, ऊँ नमः, ऊ नमः । ता 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-10.txt श्री गणेश पूजा कबेला-(22.9.2001) परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज हम यहाँ श्रीगणेश की पूजा करने खड़े हो जाते हैं । ये क्या है? जो हमें के लिए एकत्र हुए है श्री गणेश पावनता पावनता की रक्षा करने के लिए चेतन करती के देवता हैं वे अबोधिता के सागर हैं। है? हमारे लिये यह देखना कि विश्व में यद्यपि वे इतने युवा बालक हैं फिर भी वो पावनता पर आक्रमण किया जा रहा है पूरे विश्व से युद्ध कर सकते हैं। पूरी अत्यन्त लज्जा-जनक है। कोई भी अन्य नकारात्मकता को वे नष्ट कर सकते हैं, चीज़ सहन की जा सकती है। जिन अबोध पावनता का यही चिन्ह है । ऐसी बहुत सी लोगों ने कुछ भी गलती नहीं की, जिनके कहानियाँ हैं कि बच्चे बहुत अधिक ऊँचाई मन में कोई ईष्ष्या नहीं है, जो नन्हें बालकों से गिरे परन्तु वे बच गए. उन्हें कुछ भी की तरह से हैं, उन पर यदि कोई आक्रमण नहीं हुआ। उनकी पावनता इतनी शक्तिशाली करे तो पूरा विश्व न केवल प्रतिक्रिया करता कि यह किसी भी ऐसे व्यक्ति को हानि है बल्कि कोई इसे सहन नहीं कर पाता। नहीं पहुँचाती जिसे हानि नहीं पहुँचानी। किसी अबोध व्यक्ति को हानि पहुँचाए जाने इसमें पूरे विश्व का विवेक है, पूरे विश्व की को कोई सहन नहीं कर पाता। आप लोग सूझ-बूझ है। कोई यदि पावनता को हानि महसूस नहीं करते कि हमारे अन्दर बच्चों है। पहुँचाने का प्रयत्न करता है तो ये विश्व, ये के लिए प्रेम एवं सूझ-बूझ का सागर पूरा विश्व, जिसने चाहे पावनता का सम्मान क्यों? ऐसा क्यों होना चाहिए? हमें ऐसा न किया हो फिर भी यह पावनता को हानि क्यों करना चाहिए? विशेष रूप से बच्चों, पहुँचाने वालों के विरुद्ध खड़ा हो जाता है। अबोध बच्चों के साथ। कुछ लोग सदैव आप अपने जीवन में चहूँ ओर देख सकते अबोध व्यक्तियों पर आक्रमण करते रहते हैं। बच्चे अबोध है परन्तु कोई उन्हें सहारा प्रयत्न किया तो सभी लोग, चाहे जो भी नहीं देना चाहता। बच्चों से दुर्व्यवहार करने हों, चाहे वे किसी देश या राष्ट्रीयता के हों, को कोई भी अच्छा.नहीं समझता और किसी एकदम कूद पड़ते हैं, सभी उन्हें नियंत्रित ने यदि ऐसा किया तो प्रतिक्रिया स्वरूप उन्हें भयानक कष्ट भुगतने पड़े। हमारे अन्दर हैं किसी ने भी यदि बच्चों को कष्ट देने का करने और बच्चों की रक्षा करने के लिए न 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-11.txt मार्च अप्रै ल 2002 8 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 ऐसी कौन सी चीज़ है जो अबोधिता के बात बच्चों की और अबोध व्यक्तियों की विरुद्ध इस प्रतिक्रिया का सृजन करती है । आती है तो हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियाँ उदाहरण के रूप में यदि नियमित रूप महसूस करता है। हो या लोग ऐसे युद्ध में लड़ रहे से युद्ध सामान्य मनुष्य के लिए अबोध होना हों तो उनमें सहानुभूति का अभाव हो जाता है और वो कहते हैं कि ठीक है उनमें कठिन है क्योंकि उनमें एक प्रकार की इतनी ही सूझबूझ है, वो ऐसे ही हैं । अधिकतम सहानुभूति केवल तभी आती है जब अबोधिता को चुनौती मिलती है। कर सकते हैं। ऐसे लोग धूर्त हो सकते हैं. मानव के यही गुण हैं कि उनमें श्रीगणेश आक्रामक, कष्टदायी या कुछ भी हो सकते की शक्तियाँ है और यही आपको यह भावना, भावना है कि वे कुछ महान हैं, सभी कुछ जानते हैं, किसी भी चीज का विश्लेषण हैं। किसी भी चीज़ के लिए तर्क देते हुए कहते हैं कि इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता । वे यह सामर्थ्य, यह सूझ-बूझ देती हैं जिनसे आप अबोध बच्चों, अबोध लोगों की रक्षा परन्तु ऐसे लोगों का कभी भी सम्मान नहीं करते हैं। जो लोग अबोधिता को नष्ट करने होता और इन गुणों के लिए उनकी प्रशंसा का प्रयत्न कर रहे हैं उनके विरुद्ध पूरा विश्व खड़ा है, इसमें कोई सन्देह नहीं हो सकता। वे यदि ऐसे आक्रमण या आलोचना का सम्मान करना ही सहज संस्कृति भी नहीं की जा सकती। हम सहजयोगियों के लिए अबोधिता का मुकाबला नहीं कर सकते तो मैं कहूंगी है। आपको चाहे ऐसा लगे कि आपको कि वे मानव नहीं हैं। श्रेष्ठ व्यक्तित्व के धोखा दिया गया है, आप पर प्रभुत्व लोग किसी भी चीज़ का बलिदान कर सकते हैं और किसी भी चीज़ को त्याग किया जा रहा है, फिर भी सहजयोगियों सकते हैं परन्तु वे पावनता की भावना को को अबोध होना है क्योंकि उनके अन्दर नहीं त्याग सकते। यह अत्यन्त उत्तम बात श्री गणेश की शक्ति विद्यमान है । अगर जमाया जा रहा है, आपका अपमान है। अबोध लोगों के लिए सुरक्षा एवं प्रेम का कितना बड़ा सागर है! अबोध व्यक्तियों उनका दुरुपयोग किया जा रहा है, अपमान किया जा रहा है, उन्हें कष्ट दिया जा रहा एवं बच्चों पर आक्रमण होते हुए जब हम है, उन पर प्रभुत्व जमाया जा रहा है तो देखते हैं तो किस प्रकार से हम उनकी आपको निरुत्साहित नहीं होना चाहिए। सब ओर आकर्षित होते है! मानव का यही ठीक है, अन्य लोगों की अबोधिता का नष्ट सौंदर्य है। निःसन्देह कुछ मनुष्य ऐसे भी करने का प्रयत्न उन्हें नहीं करना चाहिए । हैं जो अत्याचारी भी हो, सकते हैं जिन्हें स्वतः ही ये सब कार्यान्वित होगा आप हम शैतान कह सकते हैं। परन्तु जब आश्चर्य चकित होंगें कि अबोधिता जब दृढ़ 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-12.txt मार्च-अप्रै ल 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 होती है तब पूरे ब्रह्माण्ड की अच्छाई उसके क्रूर और भद्दी चीज़ पर अपनी शक्ति बचाव के लिए आ जाती है। अमरीका का नष्ट नहीं करनी चाहिए। बच्चों को यदि वर्तमान युद्ध, तथाकथित युद्ध, इसका आप प्रेम नहीं कर सकते तो आप किसी भी उदाहरण है अमरीका के अबोध लोगों ने चीज़ को प्रेम नहीं कर सकते। मैं आज कोई भी अपराध न किया था फिर भी तक किसी भी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिली उनकी हत्या की गई उन्हें सताया गया जो बच्चों से प्रेम नहीं करता हो, जिसे पूरा विश्व उनके साथ खड़ा हो गया। विश्व हत्या करनी अच्छी लगती हो। कुछ लोग के सभी देश, चाहे वो अमरीका में विश्वास कह सकते है कि वो फूलों से प्रेम करते हैं, करते थे या नहीं, इस जघन्य अपराध के क्यों? आप फूलों से क्यों प्रेम करते हैं, विरुद्ध खड़े हो गए । वे उसी धर्म से हों या क्योंकि फूल अबोध हैं, अबोधिता का सौन्दर्य न हों, उस देश के हों या न हों, फिर भी उनमें है प्रकृति को आप क्यों प्रेम करते हैं जो लोग अबोधिता का पक्ष नहीं लेंगे उन्हें क्योंकि ये अबोध है। परन्तु जो लोग अलग-थलग करके नष्ट कर दिया जाएगा सहजयोगी हैं उन्ही में महानतम अबोधिता देखी जा सकती है। चतुर-चालाक होना उन्हें सबक मिल जाएगा कि अबोध लोगों बहुत आसान है परन्तु विवेकशील होने के लिए अबोधिता के सौन्दर्य को समझना इसमें कोई सन्देह नहीं है। हमेशा के लिए पर कभी आक्रमण नहीं करना। मैंने आपको बताया है कि सहजयोग में आवश्यक है। हो सकता है कि कोई कहे कि श्रीमाताजी हमारा अनुचित लाभ उठाया हमें कभी बच्चों पर क्रोध नहीं करना, किसी जा सकता है। आप यदि अबोध हैं तो कोई आपका अनुचित लाभ नहीं उठा सकता। भी प्रकार से उन्हें दण्ड नहीं देना। बच्चों के प्रति प्रेम ही हमारी उपलब्धि होगी । मुख्य विश्व भर के बच्चे चाहे वे हमारे परिवार के लोग चाहे सोचते रहें कि उन्होंने ऐसा किया है, वे अत्यन्त आक्रामक थे, आदि- आदि, परन्तु वे ऐसा नहीं कर सकते । अबोधिता तो चट्टान सम है जिसे कोई भी क्रोध का समुद्र हिला नहीं सकता। किसी न होकर किसी अन्य परिवार के हों, चाहे वे हमारे से लिप्त न हों, फिर भी बालक अबोध हैं, आपकी अपनी अबोधिता उनकी रक्षा करने का प्रयत्न करेगी अबोधिता पर जब आक्रमण होता है तो जिस प्रकार से भी प्रकार का प्रतिशोध इससे नहीं लिया लोग अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए जा सकता क्योंकि इस चट्टान की देखभाल खड़े हो जाते हैं. यह आश्चर्यजनक है । बच्चों पर कभी आक्रमण नहीं होना चाहिए। निःसन्देह उनमें रक्षा करने के लिए अपनी हमारे अन्दर की अबोधिता नष्ट नहीं हो शक्ति है परन्तु किसी अमंगलकारी, अत्यन्त सकती। आश्चर्य की बात है व्यक्ति चाहे और पोषण श्री गणेश कर रहे हैं । मैं आपको पहले भी बता चुकी हूँ कि 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-13.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2002 10 अपराधी हो, जितना चाहे क्रूर हो, चाहे जो गुण है। यह इस प्रकार से कार्य करती है हो, परन्तु उसके अन्दर की अबोधिता नष्ट मानो मानव की पूरी सूझ बूझ उसका पूरा नहीं होती। परमात्मा ने इतना रहस्यमय कार्यान्वयन अत्यन्त सुन्दरता पूर्वक प्राप्त गुण हमारे अन्दर स्थापित किया है! कर लिया हो। अब आप देखिये कि विश्व अबोधिता से हर समय हम खिलवाड़ करते में क्या चीज़ रह जाती है, कौन सी चीज रहते हैं और सोचते हैं कि ठीक है, मेरी को लोग स्मरण करते हैं, किस चीज का अपनी इच्छा है, इच्छानुसार जो चाहे मैं सम्मान करते हैं? केवल उच्च आदर्शों का करू और इस प्रकार हर समय अपनी इस सम्मान किया जाता है। परन्तु यदि आप शक्ति को कम करते रहते हैं या हम कह उच्च आदर्शों वाले लोगों के सूक्ष्म पक्ष को सकते हैं कि अपनी अबोधिता पर आवरण देखें तो चाहे इन लोगों को हानि पहुँचाई डालते रहते हैं और सोचते हैं कि अपने गई हो, चाहे इनकी हत्याएं की गई हों चालाक स्वभाव से लोगों को बेवकूफ़ बनाकर फिर भी उन्होंने अत्यन्त उच्च चरित्र और हमने बहुत बड़ा कार्य किया है। स्वभाव सज्जन स्वभाव का सुन्दर जीवन व्यतीत की ये चालाकी आपको किसी भी प्रकार किया और अपनी अबोधिता एवं पावनता के का सन्तोष नहीं दे सकती। यह कारण युग-युगान्तरों तक दैदीप्यमान रहे। आत्म-निर्भर नहीं है। किसी के साथ इस प्रकार के महान लोगों के जीवन को जब आप चालाकी करते हैं तो यह चालाकी आप देख सकते हैं। वे अत्यन्त सहज हैं, आप ही को प्रभावित करती है। पलटकर जान-बूझकर उन्होंने कुछ नहीं किया। इसका दुष्प्रभाव आप ही पर होता है और उनका आचरण अत्यन्त सहज है और यह अबोधिता में आपकी श्रद्धा को नष्ट करती है । महानतम आश्रय है और पृथ्वी पर यह अत्यन्त सहजतापूर्वक वो जीवन व्यतीत यही विश्वास महानतम है. करते हैं। एक के बाद एक राष्ट्र नष्ट हो सकता है परन्तु अबोधिता की शक्ति कभी नष्ट नहीं हो सकती। इसमें आप विश्वास रखें। स्वयं पर विश्वास रखें तथा इस बात ये सोचकर कि अबोधिता हमें दुर्बल करती पर कि अबोधिता के अतिरिक्त आप कुछ है, जो लोग अबोधिता का सम्मान नहीं भी नहीं हैं। आप कह सकते है कि अबोध करते, उन्होंने अबोधिता की शक्ति को नहीं लोगों को धोखा दिया जाता है । अबोध परखा है कि यह किस प्रकार कार्य करती व्यक्ति को कोई धोखा नहीं दे सकता क्योंकि है। विश्व भर से यह प्रतिक्रिया करती है। अबोधिता का मूल्य शाश्वत है। हो सकता परन्तु मेरे विचार से मानव अभी तक भी है वो धन या अन्य भौतिक चीजों के मामले अबोधिता की शक्ति के प्रति चेतन नहीं है, में आपको धोखा दे सकें। परन्तु अत्यन्त बो नहीं जानता कि अबोध होना महानतम शाश्वत् चीज तो आपकी अबोधिता है और महानतम शक्ति है। 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-14.txt मार्च-अप्ल 2002 11 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 जब आप पूर्णतः अबोध होंगे तथा अपनी हैं और ये भी नहीं सोचना समझना चाहते अबोधिता की देखभाल करेंगे तो आप जीवन कि ऐसा करना गलत है, तो वास्तव में हमें इस बात का ज्ञान नहीं होता कि इसका में सफलतम व्यक्ति होंगे। जैसा मैंने आपको बताया अबोधिता कभी परिणाम क्या होगा। हिटलर के साथ क्या नष्ट नहीं होती आपके अपवित्र विचारों हुआ? उसने सोचा कि वह पूरे विश्व को और दुष्कर्मों के कारण से यह आच्छादित नष्ट कर सकता है और इतने लोगों की हो सकती है। यदि आप अबोधिता के अंबर हत्या करने के पश्चात् भी महान व्यक्ति से बादलों को हटा सकें तो सभी कुछ बना रह सकता है। जो लोग ये भी नहीं इतना स्पष्ट हो जाता है जैसे कि आपने समझे पाति कि किन लोगों का वास्तव में पुरे विश्व पर विजय प्राप्त कर ली। आप सम्मान होता है वे मूर्ख हैं। युग युगान्तरों ईसा का उदाहरण ले उन्हें क्रूसारोपित किया से इतिहास में हिटलर जैसा कोई भी व्यक्ति नहीं हुआ। उसको इस बात की समझ ही न थी कि क्या वह वास्तव में विश्व की गया, उनका अपमान किया गया, उन्हें कष्ट दिए गए। परन्तु जिन लोगों ने उनके साथ ऐसा व्यवहार किया वे कहाँ है, उन्हें कौन सत्ता चाहता है। यदि उसे किसी महान जानता है? उनका नाम तक कोई नहीं व्यक्ति का सम्मान चाहिए था तो वह महान जानता, कोई उनकी बात तक नहीं करता। व्यक्तियों के पदचिन्हों पर चलता और महान अकेले ईसा मसीह को इतना सताया गया. व्यक्ति वही होते हैं जो पावन हैं अबोध हैं। इसके बावजूद भी क्या हुआ? पूरे विश्व में उनकी अबोधिता ही उनकी मुख्य शक्ति उन्हें सम्मान मिला, पूरा विश्व उनका सम्मान होती है। किसी का भी उदाहरण लें। मैं करता है, सभी लोग कहते हैं कि देखो नहीं जानती कि किस प्रकार इस बात को किस प्रकार से उन्हें क्रूसारोपित किया गया! बताऊँ कि ये शक्ति कैसे कार्य करती है उन्होंने क्या किया! इस प्रकार का कुछ भी क्योंकि यह बहुत प्रकार से कार्य करती है। नहीं, वे तो मात्र सम्मान करते है। किस आप ऐतिहासिक घटनाओं का अध्ययन कर चीज़ का वो सम्मान करते हैं? वे सारतत्व, सकते हैं। ऐसा करने पर आप जान जाएंगे अबोधिता के पूर्ण सार-तत्व का सम्मान कि जो व्यक्ति अबोध है, सहज है एवं करते हैं। सहजयोग में आप लोग कहते हैं विवेकशील है उसी को लोग जीवन पर्यन्त कि वो अबोधिता के अवतरण थे, वो श्री याद करते हैं। शैशवकाल में जब मैं बहुत गणेश के अवतरण थे और इस बात का छोटी थी, स्कूल जाया करती थी, तब सत्यापन किया जा सकता है। अंतः अपने पुस्तकालय में जाकर मैं उन महान लोगों दुर - साहसों में जब हम ये सोचते हैं कि की जीवनियाँ पढ़ती थी जिन्होंने हमारे लिए अपनी इच्छानुसार हम कुछ भी कर सकते महान चीज़ों का सृजन किया। ऐसे बहुत 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-15.txt ार्च-3प ल 2002 12 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 से लोगों के विषय में मैंने पढ़ा। मैं यह महत्वपूर्ण कुछ भी न था आदर्शों के सम्मुख जानकर बहुत प्रभावित थी कि उनमें से उन्होंने अपने जीवन को भी तुच्छ माना। कितने सहज व बाल सुलभ थे! अब्राहिम 1. कुछ लिंकन, जिनके लिए मेरे हृदय में अगाध आपकी अबोधिता से ही आती है। यही श्रद्धा थी, उन्हें भी उनकी पत्नी ने बहुत आपको सिखाती है कि आपके आदर्श क्या सताया। वे उनसे कहती थीं कि तुम कितने हैं, किस प्रकार आपको जीवित रहना है, गन्दे हो, तुम्हे वस्त्र पहनने का भी शहूर किस प्रकार आपको जीवन-यापन करना नहीं है, तुम आचरण करना भी नहीं जानते। चाहिए? सत्ता या मंत्री आदि के उच्च पद हर समय वह उनके साथ क्रूरता पूर्वक होना महत्वपूर्ण नहीं है बहुत से लोग आए व्यवहार करती और उन्हें सताती। अन्ततः और चले गए । बहुत से महत्वकांक्षी और अब्राहिम लिंकन की हत्या हो गई। व्यक्ति क्रूर लोग आए । वे सब कहाँ है? कोई कह सकता है कि अब्राहिम लिंकन बनने उनकी चिन्ता नहीं करता, कोई उनकी का क्या फायदा है? क्योंकि उसकी हत्या ओर देखना नहीं चाहता। उनका चित्र यदि कर दी गई थी, वह सफल व्यक्ति न थे। दिखाई दे जाए तो लोग अपनी आँखे बन्द परन्तु आज तक भी पूरा विश्वं उन्हें जानता है, हो सकता है लोग उनकी पत्नी को न देखना चाहते। परन्तु यदि कोई नन्हा सा जानते हों परन्तु सब जानते थे कि अब्राहिम अबोध बच्चा अबोधिता पूर्वक बात कर रहा लिंकन कौन है? पत्नी के लिए वे अत्यन्त हो तो सभी उसकी प्रशंसा करते हैं। ये घिनौने थे और वह उनके लिए सभी प्रकार आदर्श और आदर्शवाद की संवेदना केवल कर लेते हैं और कहते हैं कि हम इन्हें नहीं सभी महान व्यक्ति इसी अबोधिता के प्रतीक हैं। अबोधिता ही उनका विशेष गुण थी और अबोधिता ने ही उन्हें विवेक प्रदान के अपमान जनक शब्द उपयोग करती थी। उनकी पत्नी का आज कोई सम्मान किया। विवेकशीलता श्रीगणेश का मुख्य नहीं करता, कोई उसके विषय में नहीं के गुण है अपने अबोधिता के गुण कारण सोचता। आज भी अब्राहिम लिंकन का वे जानते थे कि संफलता क्या है। कई बार सम्मान होता है क्यों? उनकी हत्या हुई अबोध व्यक्तियों को अपने अबोधिता के उन्हें मार दिया गया इसी से पता चलता गण का ज्ञान ही नहीं होता। आश्चर्य की है कि उनमें जीवित रहने की शक्ति न थी। बात है कि सर्वसाधारण, अत्यन्त सहज, परन्तु वे युगों से जीवित हैं, इतने वर्ष बीत तेज तर्रारा न प्रतीत होने वाले, अच्छे जाने के बाद भी वे जीवित हैं उन सभी राजनीतिज्ञ न बन पाने वाले लोगों में किस महान व्यक्तियों के उदाहरण लें जो प्रकार अबोधिता का यह गुण चमक उठता अबोध थे। इसी कारण से उनके आदर्श थे, है! मानव की सारी गरिमा की ये पराकाष्ठा उनके लिए उनके आदर्शों से अधिक है- अबोध बन जाना। 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-16.txt मार्च-अप्र ल 2002 13 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 तो अबोध बनने के लिए आपको और मृत्योपरान्त भी उन्हें तिरस्कार पूर्वक क्या करना होगा? लोग पूछेंगे श्री माताजी देखा जाता है। लोग उनका नाम तक नहीं अबोध बनने के लिए हम क्या करें? सर्वप्रथम लेना चाहते, उनके चित्र नहीं देखना चाहते, आप स्वयं देख सकते हैं कि किस प्रकार उनसे किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नहीं आपका मस्तिष्क कार्य करता है, ये क्या रखना चाहते। ऐसी स्थिति में होता ये है करता है, किस प्रकार प्रतिक्रिया करता है? कि कुछ धूर्त लोग जो, अबोध नहीं है, जो व्यक्ति को यही सब देखना होता है और अबोधिता विरोधी हैं, वे उनका अनुसरण इसी को मैं अन्तर अवलोकन कहती हूँ। करने लगते हैं क्योंकि ऐसा करना उन्हें आपका मस्तिष्क किस प्रकार की योजनाएं अच्छा लगता है। आक्रामक बनना, चालाकी बनाता है, किस चीज को ये सर्वोत्तम समझता करना, उनके अनुकूल है। इस प्रकार एक है? उस सोच में, उस विचार प्रक्रिया में नए समूह की सृष्टि होती है इस समूह स्वयं को देखने के लिए सबसे अधिक को हम शैतानी समूह (Satanic Group) आवश्यक तरीका कौन सा है? सर्वप्रथम कह सकते हैं। यह आसुरी समूह भी एवं सर्वोपरि यह कि आपको इस बात का अबोध व्यक्ति का बिल्कुल कुछ नहीं बिगाड़ ज्ञान हो कि आप किस प्रकार प्रतिक्रिया सकता। इसी बात की व्याख्या करते हुए करते हैं। क्या आपकी प्रतिक्रिया सहज, गीता में एक श्लोक है :- (अबोधिता पूर्ण) प्रतिक्रिया है या प्रतिशोध नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । पूर्ण प्रतिक्रिया। स्वयं को देख पाना अत्यन्त सुगम है क्योंकि अब आप सब सहजयोगी हैं। आप स्वयं देख सकते हैं कि आपके प्रति किसी भी प्रकार की आक्रामकर्ा या हैरान होंगे कि प्रकृति सब कुछ समझती कष्ट देने के प्रयास के प्रति आपकी प्रतिक्रिया है। मैने आपको बताया कि प्रकृति अबोध कैसी है? किस प्रकार आप इस पर प्रतिक्रिया है, यह सब समझती है और उपयुक्त क्षण करते है? आप यदि शक्तिशाली व्यक्ति हैं में आक्रामक व्यक्ति के विरुद्ध कार्य करती तो अपने आचरण में आप इसके कारण है, उस व्यक्ति के विरुद्ध जो अबोध लोगों बिल्कुल नहीं डोलते आप स्वयं देखते हैं को बदनाम करने का या कष्ट देने का कि लोग जो आपके साथ कर रहे हैं वह प्रयत्न करता है। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ।। आत्मा विनाश से परे है। परन्तु आप अत्यन्त मूर्खतापूर्ण आचरण है और जब लोग मूर्खता कर रहे हैं तो इसके विषय में चिन्तित क्यों होना है? इस पर अपनी शक्ति अबोधिता की पूजा करनी है मैं जानती है को नष्ट क्यों करना हैं? स्थिति उस सीमा किं कभी-कभी व्यक्ति को लगता है कि तक पहुँचती है कि उनकी मूर्खता इस उसे दबाया जा रहा है और इसके कारण प्रकार से अनावृत होती है कि जीवन पर्यन्त वह उदास हो जाता है। किस लिए अन्य अतः हमे समझ लेना चाहिए कि हमें 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-17.txt मार्च -अप्रै ल 2002 14 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 लोग आपके साथ ऐसा व्यवहार करते है? लोग आप सहजयोगियों को कभी भूलेंगे और आपके मस्तिष्क में ऐसे विचार उठते नहीं । आप लोग अबोधिता की शक्ति और हैं। परन्तु अपनी अबोधिता की यदि आप बहादुरी दिखाएं। पूजा करते हैं तो सदैव आप प्रसन्नचित्त, करुणामय एवं विनम्र होंगे अतः हमें मुझे खेद है। मैं तो आने के लिए तैयार थी सावधान रहना है कि आप स्वयं ही स्वयं परन्तु विवाह अब बहुत बड़ी समस्या बनते को नष्ट करते हैं, स्वयं ही अपनी हत्या चले जा रहे हैं। विवाह के लिए आवेदन करते हैं। हिटलर के विषय में आपका क्या इतनी देर तक आए कि अन्तिम क्षण तक कहना है? हिटलर ने स्वयं को नष्ट किया। हम इनके विषय में निर्णय करते रहे। मैं स्वयं के अतिरिक्त किसने उसका विनाश आपको बताती हूँ ये आखिरी बार हुआ। किया? नि:सन्देह किसी न किसी प्रकार सभी की मृत्यु होनी है और उसे भी मरना पहले भेजें तथा गणपति पुले के लिए कम आज के कार्यक्रम में विलम्ब होने का से अगली बार से हम इस पर रोक लगा देंगे। अपने आवेदन पत्र कम से कम आठ दिन ही था परन्तु उसने स्वयं को सदा-सर्वदा के लिए नष्ट कर लिया। अतः व्यक्ति स्वयं में केवल चौबीस धण्टे होते हैं जिन्हें बढ़ाया अपनी हत्या करता है। आप यदि अबोध हैं । ये मेरी प्रार्थना है कि आप तो अबोधिता के माध्यम से आप अपनी रक्षा यदि चाहते हैं कि आपके विवाह का निर्णय कर सकते हैं और गरिमा प्राप्त कर सकते किया जाए तो कृपया इस प्रकार आवेदन हैं। अबोधिता की शक्ति पर विश्वास करें। पत्र भेजें कि मुझे कार्य करने के लिए समय अपने जीवन में किस प्रकार आप अबोधिता मिल जाए। अन्यथा ये कार्य मुझे अन्य से कम दो सप्ताह पहले, क्योंकि एक दिन नहीं जा सकता 1. की शक्ति को दर्शाते हैं, किस प्रकार एक लोगों पर छोड़ना पड़ेगा। आप यदि चाहेंगे दूसरे के प्रति आचरण करते हैं, ये अत्यन्त तो ये कार्य किया जा सकता है। ये समझना महत्वपूर्ण है। इसी को मैं प्रेम कहती हूँ अत्यन्त सुगम है कि विवाह अत्यन्त महत्वपूर्ण अपने प्रति यह दृष्टिकोण अपनाए बिना है। विवाह करके आप अबोध बच्चे उत्पन्न आप करुणामय नहीं हो सकते, आप कर सकते हैं । परन्तु यदि आप गैर सुदृढ़ नहीं हो सकते। अस्थायी रूप से जिम्मेदाराना ढंग से व्यवहार करेंगे तो यह चाहे आपको ऐसा लगे परन्तु स्थायी करुणामय स्वभाव अबोधिता के निरन्तर प्रवाह से, आपके चरित्र से निरन्तर तो हम विवाह न करवा सकेंगे। इसके लिए बहने वाली अबोधिता से ही आता है। एक सप्ताह का समय मिलना आवश्यक मानव में यह इतना पारदर्शक गुण है कि है। आशा है आप. इस बात को समझेंगे। यह उसका पोषण करती है और सभी चीज़ों आपका बहुत-बहुत धन्यवाद । को नियंत्रित करती है। हजारों वर्षों तक कार्य कैसे होंगा? मेरी प्रार्थना है कि समय मूल्य को समझें क्योंकि अगली बार से के आप यदि अपने आवेदन पत्र देर से भेजेंगे परमात्मा आप पर कृपा करें। 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-18.txt बा नवरात्रि पूजा लोतराकी, यूनान -21.10.2001 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज हम यहाँ देवी पूजा करने के लिए जहाँ सभी अच्छे लोगों को विशेष रूप से एकत्रित हुए हैं। बहुत बार ये पूजा की गई सहजयोगियों को महिषासुर जैसे इन असुरों तथा देवताओं ने असुरों के अत्याचारं से के विनाश के लिए अपनी बुद्धि का प्रयोग अपनी रक्षा करने के लिए देवी से प्रार्थना करना चाहिए। की आज भी मुझे वैसा ही लगता है कि हम अजीबोगरीब परिस्थिति के शिकंजे में फॅस गए हैं कुछ लोग असुर हैं जिन्होंने क्योंकि असुर-असुर के रूप में आते थे लोगों को सम्मोहित कर दिया है और लोग और ये देखा जा सकता था कि वे राक्षस वह सब कुछ करने का प्रयत्न कर रहे हैं हैं उन्होंने ऐसा क्यों किया, वो अत्याचारी जो उन्हें नहीं करना चाहिए था। परन्तु वे क्यों थे? क्योंकि तथाकथित मानव होते हुए नहीं जानते कि हर चीज की एक सीमा भी वे मानव नहीं है। स्वभाव से राक्षस होने होती है। उस सीमा तक पहुँचा जा चुका है के कारण वे कुछ ऐसा करना चाहते हैं उन दिनों में कार्य बहुत सहज होता था न 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-19.txt मार्च-अप्रै ल 2002 16 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 जिससे मानव को, अच्छे मनुष्यों को नष्ट हैं?" परन्तु उनके पूरे आचरण में क्रूरता अन्तर्जात रूप में थी, अत्यन्त क्रूर। मेरे पिताजी जब भी ये क्रूरता देखते तो उनहें निकाल देते। अन्य लोगों के साथ बर्ताव करने के उनके तरीके अत्यन्त अशुभ होते कर सकें। अब ये बात स्पष्ट है कि उनके नष्ट होने का समय आ गया है। थे। मैं किसी भी प्रकार से इस्लाम धर्म के विरुद्ध नहीं हो सकती और न ही मोहम्मद साहब की आलोचना करती हूँ। वे दिव्य थे तक पहुँच जाएंगी! वो लोग अधिकतर उन्होंने दिव्य कार्य करने का प्रयत्न किया अफगानिस्तान के थे, क्या आप इसकी परन्तु उस दिव्य कार्य से ये मूर्ख लोग कल्पना कर सकते हैं । वो अन्य अफगानी पनप उठे जो आसुरी लोगों को स्वीकार लोगों को भी सताया करते थे। जहाँ कहीं करते हैं। ये जानकर आपको आश्चर्य होगा भी वे जाते क्रूरता उनकी विशेषता होती। कि इस्लाम में 74 समूह हैं। वो कहते हैं सभी अफगानी ऐसे नहीं हैं परन्तु उनमें से कि हम एक धर्म को मानते हैं। परन्तु वो कुछ ऐसे हैं। कुछ लोग तो अत्यन्त प्रेममय, ऐसा नहीं करते। इनमें से कुछ लोग तो दयामय, सहायता करने वाले और अत्यन्त वास्तव में असुर हैं जो स्वयं को देवबंधी अच्छे लोग हैं परन्तु कुछ अत्यन्त क्रूर । कहते है क्योंकि भारत में इस नाम का एक पहले तो हम न समझ पाए कि ये सब क्या मैं नहीं जानती थी कि चीजें इस अवस्था क स्थान है। ये लोग वाहबी कहलाते हैं। मैं है। परन्तु मेरे पिताजी जो कि इस्लाम के बहुत समय से इन लोगों को जानती हूँ विद्वान क्योंकि हमारे घर में, मेरे पिताजी की गृहस्थी इस्लाम धर्म को मानने वाले नहीं है। ये में, हमारे यहाँ बहुत से मुसलमान लोग स्वयं को वाहबी कहते हैं, ये इस्लाम रसोइयों, ड्राइवरों या चालकों या अन्य नौकरों धर्म के लोग हैं। आज मैं ये बात स्पष्ट देख के रूप में कार्य किया करते थे ये वाहबीं सकती हूँ। ऐसा नहीं है कि अन्य धर्मों व लोग बहुत दिलचस्प हैं क्योंकि ये मोहम्मद समूहों में बुरे लोग नहीं है परन्तु ये वाहबी साहब को भी नहीं मानते इनसे यदि कहें लोग चुपके-चुपके भिन्न समूहों को कि मोहम्मद साहब ने ऐसा-ऐसा कहा है तों ये कहते हैं, "नहीं, हम मोहम्मद साहब नहीं हैं। मेरे पिताजी ने मुझे बताया था कि को नहीं मानते।" "तो आप किसमें विश्वास एक दिन ये लोग आतंकवादी हो जाएंगे करते हैं?" "हम अल्लाह में विश्वास करते और पूरे विश्व को नष्ट करने का प्रयत्न हैं।" क्या आप अल्लाह से मिले? क्या आपने करेंगे। उन्हें देखा कि आप उनमे विश्वास करते थे, उन्होंने हमें बताया कि ये सब कार्यान्वित कर रहे थे । ये बहुत अधिक तब ये बात् मैं न समझ पाई क्योंकि ये सब लोग भी तो मनुष्य की तरह से ही 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-20.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 मार्च -अप्रल 2002 17 लगते थे। परन्तु पिताजी ने मुझे लिखा है, इस विषय पर भी आप इनसे बहस नहीं कर सकते क्योंकि वे कुरान को भी नहीं मानते। इनका बताया था कि "ये पूरी तरह से छलावरण में हैं. जब ये क्रूरता आरम्भ करेंगे तो कहना है कि मोहम्मद साहब तुम्हें पता भी न चलेगा।" पर विश्वास न करें, अल्लाह को माने। परमात्मा हमारे देश में एक आक्रान्ता जानता है कि किस प्रकार ये घुस आया था ा उसका नाम था मोहम्मद शाह जुड़ पाते हैं! अब्दाली । ये शनैः शनैः ये अत्यन्त-अत्यन्त क्रूर व्यक्ति था और मुसलमान होते हुए भी यह मुसलमानों हुई कि ये लोग सम्मोहित करते हैं जैसे की हत्या कर दिया करता था क्योंके इसका हमारे यहाँ कुछ भयानक लोग गुरु बनकर मानना ये था कि कोई मोहम्मद साहब की सम्मोहित करते हैं । लोगों को सम्मोहित पूजा न करे क्योंकि मोहम्मद साहब ने कहा करते हुए आपने उन्हें देखा है। ऐसे बहुत था मैं परमात्मा नहीं हूँ (I am not Divine)। से कुगुरुओं का पर्दाफाश हुआ है और मुर्ख लोगों से बचने के लिए मैं भी यही बाकी लोगों का हो जाएगा। उनमें से अधि कहा करती थी। वर्षों तक मैं कहा करती कतर लोगों की पैसों में दिलचस्पी थी। ६ थी "मैं परमेश्वरी नहीं हूं। परन्तु लोगों ने र्म के नाम पर किसी भी प्रकार से अधिक जब मेरी चैतन्य लहरियाँ आदि महसूस की से अधिक धन प्राप्ति में परन्तु उस समय तो उन्हें विश्वास हो गया। परन्तु मोहम्मद लोगों ने न तो उनके अत्याचारों को देखा साहब पर विश्वास करने वाले लोगों को ये और न ही उनके तौर तरीकों को। देखकर हैरानी क्रूर कभी न समझ पाए। ये अत्यन्त क्रूर है क्योंकि ये मोहम्मद साहब में भी विश्वास नहीं करते। इनसे आप किसी भी मामले कि हम निज़ामुद्दीन औलिया गए थे वहाँ पर बात नहीं कर सकते। कुरान में क्या ये अत्याचार बढ़ने लगा। आप जानते हैं पर मैंने पाया कि एक मदरसा हैमदरसा ০ 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-21.txt मार्च-अ ल 2002 18 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 अर्थात पाठशाला। उस मदरसे में छोटे-छोटे बच्चों को प्रवेश दिया जाता था यह सब पाकिस्तान परस्पर सदैव लड़ते रहते हैं भली-भांति योजनाबद्ध था। बताया गया परन्तु इस बार पाकिस्तानियों ने महसूस कि दिल्ली में भी 120 मदरसे हैं। कोई नही किया कि यदि हम भारत से इसी प्रकार जानता कि वहाँ क्या पढ़ाते हैं, कैसे सम्मोहन लड़ते रहे तो हमें आतंकवादी कहा जाएगा। करते हैं? किस प्रकार ये सब चीजें करते तो उन्होंने कहा कि हम अपने देश में हैं? एक बार जब मैं निज़ामुद्दीन गई तो मैंने आतंकवाद नहीं चलने देंगे। परन्तु वहाँ के पाया कि वहाँ लोग भजन आदि गा रहे थे। नए राष्ट्रपति ने 65 विद्वान, राजदूत उनमें मुझे सच्चे प्रेम की भावना नज़र आई। अफगानिस्तान के इन मदरसों में भेजे ताकि उन्होंने भी मेरे प्रेम को महसूस किया सभी वो सीख सकें कि क्रूर किस प्रकार बनना ने और सहजयोग में आने लगे परन्तु मैं है। "घृणा की शिक्षा देना" कह सकते हैं, नहीं जानती थी कि वहाँ पर एक मदरसा घृणा की शिक्षा देना"। निःसन्देह बहुत से भी है। मैंने उनसे पूछा, "निजामुद्दीन साहब मुसलमान क्रूर नहीं हैं परन्तु यदि आप तो औलिया थे, पैगम्बर थे यहाँ पर चैतन्य मोहम्मद साहब का सम्मान नहीं करते और लहरियाँ क्यों ठीक नहीं हैं? बीच-बीच में मुस्लिम कहलाते हैं तो आपसे क्या प्रसारित मुझे बहुत खराब चैतन्य-लहरियाँ आ रही होगा? थी। तो उन्होने मुझे बताया कि श्रीमाताजी यहाँ एक मदरसा है। जिस प्रकार, आप जानते हैं, भारत और तो ये सारी गलत धारणाएं पनपीं और इस्लाम भिन्न समूहों में बँट गया। यहाँ तक भी ठीक है। परन्तु एक ऐसा समूह बनाना अब आप देखें कि आसुरी शक्तियों किस प्रकार कार्य करती हैं। प्रायः असूर इसी जो मानवता विरोधी हो, यह अत्यन्त भयानक प्रकार कार्य करते हैं। वो जाकर झण्ड योजना थी। मैं नहीं जानती कि कितने बनाते हैं, युद्ध द्वारा लोगों की हत्या करते मुसलमान इसके विषय में जानते थे पूरे हैं। वो लोग संख्या में कम थे फिर भी विश्व में उन्होंने मदरसे स्थापित किए और क्रूरता ही उनका धर्म था। वो चाहे जैसे इन संस्थाओं से शिक्षा प्राप्त करके निकले रहते हों, उन्हीं मदरसों में बच्चों को सिखाया जाता महिलाओं के प्रति थी। महिलाओं से ये है कि किस प्रकार क्रूर बनना है और लोग अत्यन्त तिरस्कार पूर्वक व्यवहार करते घृणा करनी है। अतः "घृणा की शिक्षा" हैं और तनिक सा भी सम्मान उन्हें नहीं (Education in Hatred) आरम्भ हुई और देते। इसी बात से पता चलता है कि इन तु क्रूर बने रहना चाहते थे। लोग अत्यन्त क्रूर थे। उनकी पहली क्रूरता घृणा की इस शिक्षा का ताना-बाना विश्व लोगों पर किसी का नियंत्रण नहीं है। ऐसा भर में इन मदरसों ने बुना। करने के लिए न तो कुरान में लिखा है न 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-22.txt मार्च -अप्रै ल 2002 19 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 ये सब क्योंकि काव्य की भाषा में लिखा गया था लोग इसे अपनी सुविधानुसार तोड़-मरोड़ सकते | परन्तु मोहम्मद साहब कभी भी ये नहीं कह सकते थे कि आप क्रूर बनिए काड या इस प्रकार के जुल्म कीजिए | अत्यन्त खेद की बात है कि आधुनिक काल में लोगों में धूर्तता-पूर्ण धारणाएं अपना ही मोहम्मद साहब ने ऐसा कहा । मोहम्मद साहब ने कहा था, "परमात्मा दया के सागर ली हैं। परन्तु लोगों में इन धारणाओं का हैं, वे शान्ति के दाता हैं। उन्होंने जो भी विरोध करने की शक्ति भी उत्पन्न हो जाती कुछ किया वह सब दिव्य कार्य, इसके है। यहूदियों में भी ऐसी ही विरोध शक्ति विषय में कोई सन्देह नहीं है परन्तु कुछ विकसित हो गई लोगों ने जिस प्रकार आसुरी शक्तियों का लोगों में घृणा ही इसके लिए जिम्मेदार है, । इन दोनों प्रकार के साथ पकड़ लिया उसके कारण लोगों के ये बात अत्यन्त स्पष्ट है। मन में मुस्लिम धर्म के प्रति गलत फहमियाँ पैदा हो गई। सहजयोग में आप लोग परस्पर पूर्ण निश्छल और सहज जीवन-यापन में विश्वास "इस्लाम' का अर्थ है 'समर्पण'/समर्पित करते हैं। लोग समझते हैं कि यह भी एक लोग तो आप हैं। समर्पित का अर्थ है वो भिन्न समूह है अब हमारा क्या कर्तव्य है? लोग जिन्होंने वासना, लोभ आदि रिपुओं हमसे क्या करने की अपेक्षा है? सर्वप्रथम को त्याग दिया है तथा जो सामान्य लोगों हमें अन्तर-अवलोकन करना चाहिए। आप से ऊपर हैं। एक अन्य दिलचस्प बात ये यदि हिन्दू हैं तो बैठकर आपको सोचना थी कि मोहम्मद साहब ने कहा था "कियामा चाहिए कि किसी अन्य व्यक्ति से आप के समय आपके हाथ बोलेंगे" (At the time इसलिए घृणा तो नहीं करते कि वो मुस्लिम of resurrection your hands would है इस प्रकार आप उससे घृणा नहीं कर speak)। ये बात उन्होंने स्पष्ट कही थी। सकते किसी व्यक्ति के मुसलमान होने के 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-23.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2002 20 प्राचीन युग कारण आप उससे घृणा नहीं कर सकतें। में वध करना देवी के लिए आप क्योंकि मुसलमान हैं और समर्पित हैं उपयुक्त कार्य था । देवी ऐसे सभी लोगों तो किस प्रकार आप किसी से घृणा कर का वध कर दिया करती थी। अत्यन्त सकते हैं। आप यदि समर्पित हैं तो परमात्मा खेदजनक बात है कि परमात्मा ने जिस के प्रति समर्पित हैं। परमात्मा विरोधी आप प्राणी का विकास अमीबा से मानव-अवस्था तक किया है हम उसी से घृणा करते हैं! परन्तु ऐसा ही हुआ है। नि:सन्देह सहजयोग भिन्न है। सहजी जानते हैं कि प्रेम का किस प्रकार हो सकते हैं। अतः इन भ्रामक विचारों को त्याग दिया जाना चाहिए। मान लो आप हिन्दू हैं-तो किसी से घृणा करना आपका कार्य नहीं है, यह निश्चित बात है। आनन्द किस प्रकार लेना है। प्रेम का आनन्द "हिन्दू' शब्द की उत्पति सिन्धु नदी से हुई लेना उन्हें अच्छा लगता है। वे आनन्द लेते क्योंकि सिकन्दर महान सिन्धु शब्द का हैं, ये बात आप देख सकते हैं। किसी तरह उच्चारण न कर पाता था इसलिए वह से यदि आप घृणा समाप्त कर सकें-किसी हिन्दू कहने लगा। अब इसी शब्द को लेकर तरह से, किसी तरह से अपनी इच्छा शक्ति लोगों ने भारत में भयानक घृणा के बीज बो से-मानव को जो भी कुछ उल्टा-सीधा दिए हैं। क्रूरता उनका विषय न था। यह बताया जा रहा है उसे नकारते हुए चुनौती अच्छी बात थी कि उन्होंने कभी लोगों को देते हुए, मुझे विश्वास है। सताना नहीं चाहा। तो यह क्रूरता एवं घणा का दृष्टिकोण अन्य माध्यमों से आया। ये सम्बन्धों और मित्रता को सुधारने के लिए लोग खुल्लमखुल्ला घृणा करते हैं। घृणा बहुत बड़ा दुर्गुण है, यह बहुत भयानक भी है। अतः आप सब लोग इस बात को जान लें, मेरे लिए यह अत्यन्त कष्टकर है कि समय पर पृथ्वी पर अवतरित हुई हूँ? यहाँ हम मानव एक दूसरे से घृणा करते हैं। मुझे एक मानव-दूसरे मानव के प्रति घृणा जबकि हम ये बात भली-भांति जानते हैं करता हुआ दिखाई देता है। वे प्रेम और कि प्रेम अत्यन्त सुन्दर भावना है तो किसलिए 'घृणा' की बातें करते हैं। ये अत्यन्त गम्भीर आप घृणा अपनाते हैं? क्योंकि लोगों ने बात है कि आप सभी बच्चों का अन्त इस झूठ बोल-बोल कर आपको प्रभावित किया प्रकार से हो। कहने से मेरा अभिप्राय है कि इसलिए आप घृणा करते हैं? कितनी बड़ी मुझे ऐसे अनुभव हुए हैं जिनके विषय में उपलब्धि है! मानव बनना और तत्पश्चात् यदि मैं आपको बताऊ तो तुम्हें आघात घृणा से पूर्ण व्यक्ति होना! अब इससे आगे लगेगा किस प्रकार से लोग आसुरी स्वभाव क्या होगा, मैं नहीं जानती! ये बहुत कठिन कार्य है। जो लोंग पृथ्वी पर स्थितियों, ये अवतरित हुए थे, किस प्रकार वे घृणा गर्त में फँस गए हैं! के मेरा हृदय रुदन करता है कि मैं कैसे के गर्त में चले गए हैं ! 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-24.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2002 21 हमें यह सूझ-बूझ प्राप्त करनी है, अपने के रूप में हमारी गतिविधियाँ इतनी महत्वपूर्ण विषय में सूझ-बूझ। क्या हम किसी से हैं, हमें इतना समय देना पड़ता है। मूर्खतापूर्ण घृणा करते है? क्या हमें ऐसी धारणाएं और छिछोरी बातों की चिन्ता नहीं करनी। मिलती हैं जो हमें मिलनी चाहिए या हमें हमारे अन्दर और बाहर जो भी गम्भीर चीज़ ऐसे कार्य मिलते हैं जो हमें करने चाहिएं। है उसे बाहर निकालना है। मैं यदि आपसे क्या आपमें ऐसे गुण हैं? पता लगाएं। क्या पूछूं कि "आप कितने लोगों से घृणा करते आप अन्य लोगों से घृणा करते हैं। मानव हैं?" तो 'आप कह सकते हैं. "बीस लोगों मस्तिष्क के लिए यह सब सड़े -गले विचार से। ऐसी चीज़ों का पूरा वातावरण ही मुझे हैं। पाशिवक प्रवृत्ति की धारणाएं मानव मस्तिष्क के लिए बिल्कुल ठीक नहीं होतीं नहीं आता हम सहजयोगी क्या करने वाले परन्तु ऐसा ही हो रहा है और यही चीजें हैं! सहजयोगियों की योजनाएं क्या हैं? उभर कर आ रही हैं। आप यदि गरीब हैं कृपा करके आप सब अपने अन्दर झाँकें तो ठीक है, घृणा करके आप वैभवशाली और सोचें कि हम कौन से रचनात्मक कार्य नहीं बन सकते। आपको यदि कोई कर रहे हैं और कौन से विध्वंसात्मक कार्यों कठिनाइयाँ हैं तो आपका कर्त्तव्य है कि को किए चले जा रहे हैं? ये सब समझने उन कठिनाइयों को दूर करें उनका लाभ न के लिए आपको एक बड़े झटके की उठाएं। ये सब समाप्त होना चाहिए। आश्चर्य आवश्यकता है। की बात है कि हमें अपने कर्मों की बिल्कुल चिन्ता ही नहीं है! हाँ, आपमें सूझबूझ का वांछित विवेक होना चाहिए कि हम कहाँ हम करते हैं, ये मुझे बहुत पसन्द हैं। परन्तु गलत हैं। किसी के विषय में यदि आपमें यदि आप मेरे हृदय से पूछे तो यह अत्यन्त कोई गलतफहमी है तो इसे पूरी तरह से दुखी और रुग्ण है। इस समय सहजयोगियों निकाल दें। लोग आपको कष्ट देने का | पश्चाताप से भर देता है और मुझे समझ सारे कार्यक्रम और पूजाएं जिस प्रकार के रूप में हमें जो करना है वह ये है कि प्रयत्न करते हैं, ठीक है। ऐसे व्यक्ति के कम से कम हमें अपना चित्त तो अवश्य विषय में भी हममें दुर्भावना नहीं होनी चाहिए । अत्यन्त आश्चर्य की बात है कि हम इन बताना होगा। आप समझें कि सहजयोग में चीज़ों को कभी नहीं देखते कि ये कितनी परेशानी ये है कि व्यक्ति स्वयं आनन्द लेने भददी और अजीब हैं तथा इस प्रकार व्यक्तित्व को नष्ट करती हैं! डालना चाहिए और तब आपको सबको हमारे लगते हैं और तब अपने आस-पास भी नहीं देखते कि क्या हो रहा है? अब मैं आपको बताना चाहूंगी कि आप कुछ लोगों को सुधार भी सकते हैं। मुझे कभी नहीं लगा की सहजयोगियों आजकल मैं मिथ्या और वास्तविकता के 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-25.txt मार्च -अप्रैल 2002 22 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 सहजयोगी नहीं हैं उनमें युद्ध नहीं है। यह ध में फँसी हुई हूँ। क्या ये वह क्षेत्र है - युद्ध मैं नहीं जानती कि इसे किस प्रकार कहूँ - तो ऐसा युद्ध है जिसमें हम सब एक हैं क्या अभी तक भी हमारे अन्दर कुछ ऐसी और हमी को इसका मुकाबला करना है। चीज़ बनी हुई है कि अब भी हम अपनी हर कदम पर हमें अधिक सूक्ष्म होना है। दुर्बलताओं से लड़ने का प्रयत्न नहीं करते ? मैं आप सबसे प्रार्थना करती हूँ कि स्वयं इस बात की ओर ध्यान देना आज पर ध्यान-धारणा करके स्वयं देखें कि कमी अत्यन्त-अत्यन्त आवश्यक है कि क्या हम भी कार्यरत इस आसुरी शक्ति के अंग-प्रत्यंग तो नहीं? क्या हम इससे मुक्त हैं और बहुत बड़ा आघात है और इस सदमें करने के लिए तैयार हैं? यह को कम करने के लिए सहजयोगी क्या कर बहुत बड़ा युद्ध है और मुझे आशा है कि कहाँ है? ये इससे युद्ध सकते हैं? मानव जीवन के इन भयानक यह निर्णयात्मक होगा। इसके पश्चात् मानव तौर-तरीकों को समाप्त करने के लिए वो पर कोई अत्याचार न होंगे, इसके बाद क्या कर सकते हैं? ऐसा करना सम्भव है। कोई लड़ाई न होगी. क्योंकि ये हममें युद्ध प्रेम की शक्ति से आप ये कार्य कर सकते और राक्षसों में है। यह साधारण लड़ाई हैं परन्तु इसके लिए हमें अपने हृदयों में नहीं है। यह बात उन लोगों को भी समझाई प्रेम की शक्ति विकसित करनी होगी इसके जानी चाहिए जो आसुरी शक्तियों का पक्ष विषय में सोचें हम सबके लिए यह बहुत लेते हैं। आप केवल किस प्रकार जान बड़ा पाठ है, स्वयं देखें कि क्या हम ठीक पाएंगे कि कौन विरुद्ध है और कौन नहीं हैं या अन्य लोगों से घृणा ही करते चले है? आप ज्ञानवान हैं, आप सहजयोगी हैं, जा रहे हैं! हमारे मस्तिष्क की क्या भूमिका आप जानते हैं कि गलत कौन है? मैं जानती है? घृणा करना या प्रेम करना? यह प्रेम हूँ कि सहजयोगी उनकी रक्षा कर सकते हैं। जब आपको ज्योतित करेगा तो, आप हैरान और उन्हें ज्ञान एवं प्रेम के सही मार्ग पर होंगे, कि आप मेरे लिए बहुत बड़ी शक्ति ला सकते हैं परन्तु आजकल हो रहे आसुरी बन गए हैं। मैं, अकेली, इन सबसे युद्ध प्रचार से सावधान रहें। नहीं कर सकती। मुझे ऐसे लोगों की मैं आपके अन्तर्मन को छू लेना चाहती आवश्यकता है जो वास्तव में अपने प्रेम को उन्न्त करें, और किसी चीज को नहीं सबके लिए ये एक चुनौती हैं, विश्व भर के कि हमारे सम्मुख उपस्थित भय की महत्ता सभी सहजयोगीयों के लिए। यह केवल को आप समझेंगे। हो सकता है कि कोई विश्वास करने वाले और न करने वालों में, भी मानव न बचे, हो सकता है कोई भी सहजयोगियों में और उन लोगों में जो बालक न बचे। क्योंकि जिस तरह की ४ हम हूँ जो पवित्रीकरण करे। मुझे विश्वास है । 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-26.txt मार्च-3प्रै ल 2002 23 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 चीजें कार्यान्वित हो रही हैं ये बहुत कठिन करें, केवल यही शक्ति इन आसुरी" शक्तियों हैं, बहुत ही दुष्कर। मेरा पूरा अस्तित्व डोल का मुकाबला करने का क्षेम सृजन करेगी। जाता है, कॉप उठता है। जीवन के हर कोने में आप सबको देखना चाहिए कि ये बात कहाँ हो रही है? कहाँ लोग क्रूरता का मेरा पूर्ण आशीर्वाद आपके साथ है और मैं चाहती हूँ कि आप सब व्यक्तिगत रूप से इसे कार्यान्वित करे कितने लोगों को आप प्रेम करते ें कार्यान्वित करे कितने लोगों को आप प्रेम करते हैं, कितने लोगों को? इस बात का पता लगाना बात कर रहे हैं? क्या घटित हो रहा है? मैं जो भी सोचती रहं, दो नहीं है हम सब हैं... ये एक नहीं है, है। मुझे आशा है कि आप लोग समझ गए होंगे कि आपसे क्या चाहती हूँ। एक नई पीढ़ी जो युद्ध मैं लड़ रही हैं वह बहुत गम्भीर का उदय हो रहा है। प्रकृति का है, इसमें कोई सन्देह नहीं । परन्तु यदि आप सब लोग सामूहिक रूप से ये युद्ध लड़े तो हम कितना कुछ कार्यान्वित कर सकते हैं! मेरे सारे प्रयत्न, सूझे-बूझ, बताया गया है कि कुछ लोग अपने समूह शक्तियाँ, मेरा सभी कुछ अब आपके हाथों में है और अब आपको इसके लिए तैयार होना चाहिए। किसी चीज को पढ़ने या बातचीत करने मात्र से नहीं, अपने अन्दर आपको प्रेम की शक्ति को दृढ़ करना होगा। ऐसे लोगों को सहजयोगी बनाने का कोई आप सब मेरे हृदय में हैं और मैं आपसे बहुत प्रेम करती हूँ और चाहती हूैँ कि इस में आप मेरे सिपाही बनें। मुझे ये भी युद्ध बना रहे हैं, यह अत्यन्त नकारात्मक दृष्टिकोण है। इस समय पूर्ण एकता हमारी आवश्यकता हैं। अतः ऐसे लोगों को जब आप देखें तो उन्हें सुधर जाने को कहें । मुझे पूर्ण विश्वास है कि सहस्रार के लाभ नहीं। खुलने से आप ऐसा करेंगे। प्रेम की शक्ति से हर चीज को पढ़ने और समझने की पेम एवं शान्ति के सच्चे सिपाही बने। इसी ये मेरी हार्दिक इच्छा है कि आप सब लोग प्रयत्न करें। यह अत्यन्त गहन विषय है कार्य के लिए आप सब लोग यहाँ है। और इसी के लिए आप सबका जन्म हुआ है। अतः और जब आप इस पर बात करते हैं तो आधी अन्दर होती हैँ और आधी बाहर। परन्तु मुझे आपको बताना हैं कि आप सब इस शक्ति को (प्रेम की शक्ति) विकसित आप सब लोग आत्मा का आनन्द लें। आप सबको अनन्त आशीर्वाद 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-27.txt श्री कृष्ण पूजा सेफरान - इंग्लैण्ड, 14.8.89 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज हम यहाँ पर श्री कृष्णावतार की मानव के रूप में वे अवतरित हुए। श्री पूजा करने के लिए एकत्र हुए हैं। श्री सीताजी के रूप में उन्होंने लक्ष्मी तत्व से कृष्ण, श्री नारायण- श्री विष्णु के अवतरण विवाह किया उन्होंने सामान्य विवाहित हैं। अवतरण सदा अपने गुणों, शक्तियों तथा स्वभाव के साथ अवतरित होते हैं। अतः जब श्री कृष्ण अवतरित हुए तो वे भी जीवन द्वारा उन्होंने दर्शाया कि पत्नी के श्री नारायण और श्री राम के गुणों से साथ किस प्रकार पति को होना चाहिए। सम्पन्न थे। पूर्वावतरण के समय उनकी इसके बाद उन्होंने राजा के रूप में अपनी जिन-जिन बातों को लोगों ने गलत ढंग भूमिका निभाई। राजा बनने के पश्चात् से समझा हो या उनके जिन गुणों को लोग उन्होंने पाया कि रावण से सीता को लौटा अति की सीमा तक ले गए हों, वर्तमान कर लाने के लिए लोग उनकी आलोचना जीवन बिताया। तत्पश्चात् श्री सीताजी को त्यागकर वे सन्यासी के रूप में रहे । अपने अवतरण के समय वे उन्हें सुधारने का प्रयत्न करते है। यही कारण है कि वे दूर भेज दिया। इतने संवेदनशील सत्तारूढ़ बार-बार अवतरित होते हैं। श्री विष्णु सृष्टि कितने लोग हैं जो अपने आचरण द्वारा ऐसे और धर्म के रक्षक हैं। अतः जब-जब भी वे उदाहरण स्थापित कर सकें कि वे अपनी अवतरित हुए तो उन्होंने इस बात का ध्यान रखा कि लोग अपने धर्मों का पालन जी महालक्ष्मी थीं और इस सारी लीला को करें। आपको आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करके समझती थीं, अतः वे घर छोड़कर चली स्वयं को ठीक प्रकार से श्री महालक्ष्मी के गईं। कर रहे हैं। अत: श्री राम ने उन्हें राज्य से प्रजा के सम्मुख आदर्श बन जाएं? श्री सीता मध्य मार्ग पर रखना होगा। अपने प्रथम सम्राट के रूप में श्री राम ने सिखाया अवतरण में श्री विष्णु ने श्री राम के रूप में हितैषी राजा की अपनी मर्यादाओं को स्थापित कि प्रजा पर किस प्रकार शासन करना करने का प्रयत्न किया। चाहिए। राजा के आदर्शों को उन्होंने स्थापित किया और कहा जाता है कि राम- राज्य श्री राम पुरुषोत्तम थे अर्थात वे मानव आदर्शतम राज्य था । उनके साम्राज्य में श्रेष्ठ थे। सभी मानवीय गुण सम्पन्न पूर्ण शान्ति थी, स्पर्धा न थी। सभी लोग आनन्द 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-28.txt मार्चअ ल 2002 25 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 एवं शान्तिपूर्वक रहते थे क्योंकि उन्होंने उनके कार्यों से पता चलता था कि ये न्यायव्यवहार, धर्म, आनन्द, शान्ति एवं समृद्धि अवतार हैं फिर भी मर्यादा-वश उन्होंने इस का प्रसार किया। परन्तु स्वभाववश लोग तथ्य को भुलाए रखा। महामाया की तरह अवतरणों के व्यवहार को असामान्य बना से। आज के सभी कैमरे महामाया के प्रमाण देते हैं श्री राम क्योंकि त्यागी के रूप में दे रहे हैं कि वे सत्य हैं और वे कैसी हैं, रहा करते थे, लोगों ने भी त्यागप्रवृत्ति अपना परन्तु अवरतण ये दर्शाते हैं कि उन्हें इस ली। लोग अत्यन्त गम्भीर हो गए, वो न बात का स्मरण नहीं है और न ही वे इस हँसते थे न मुस्काते थे। हर चीज बहुत बात को जानते हैं अवतरण को यदि यह गम्भीर हो गई। कुछ लोगों ने विवाह करने बात याद है तो उसके ये कार्यकलाप मानवीय बन्द कर दिए और अपना सन्तुलन खो न होकर दिव्य बन जाएंगे। उसकी बैठे। विवाह व्यक्ति को सन्तुलन प्रदान गतिविधियाँ परमेश्वरी गतिविधियाँ हो जाएंगी करता है। इन गर्भीर परिस्थितियों में यह और ऐसा करना साननीय न होगा। उनके दर्शाने के लिए श्री कृंष्ण अवतरित हुए कि कार्य-कलापों को मनुष्य सहन न कर पाएंगे। सारी सृष्टि लीला मात्र है गम्भीर शुष्क वे घबरा जाएंगे और एक प्रकार का भय और त्यागी बनने की कोई आवश्यकता ने प्रायः उन पर छा जाएगा। अतः श्री कृष्ण नहीं। वास्तव में श्री राम के समय से पूर्व सर्व-साधारण मानव की तरह से व्यवहार के सभी सन्त विवाह किया करते थे। श्रीराम किया। के समय से एक तरह का अटपटा शैशव-काल में उन्हें मक्खन बहुत पसन्द ब्राह्मण-वाद आरम्भ हो गया। ब्राह्मणों ने जाति प्रणाली को गलत दिशा दे दी। और था। विशुद्धि चक्र के लिए मक्खन अत्यन्त अब जातियाँ जन्मानुसार निश्चित होने लगीं लाभकर है। चाय में यदि थोड़ा सा मक्खन व्यक्ति के कार्य के अनुसार नहीं। ब्राह्मण है। अपने नन्हे-नन्हें साथियों की लोग अन्य सभी जातियों पर हावी हो गए। डाल लें तो गले की खुश्की से आराम मिलता सहायता से वे मटकियाँ तोड़ देते और मिलकर सारा मक्खन खा जाते। कभी-कभी वे छोटे-छोटे झूठ बोलते। उनकी सभी केवल पाँच वर्ष की आयु में ही श्री कृष्ण शरारतें, बाल सुलभ झूठ, सूझ बूझ की ने सभी प्रकार की लीलाएं और शरारतें भावना का सृजन करने के लक्ष्य से थी । कीं। कालिया नाग का मर्दन किया और बच्चे जब माँ के साथ इस प्रकार की शरारते लीलाएं करते हुए अपनी शक्ति द्वारा बहुत करते हैं तो इन शरारतों को बहुत मधुर से असुरों का वध किया। श्रीराम ने अपने माना जाता है। पूर्वी देशों के लोग बच्चों अवतरण होने की बात भुला दी थी। यद्यपि की इन शरारतों का आनन्द उठाते हैं । के रूप में अतः श्री कृष्ण ग्वाले के अवतरित हुए। पुत्र 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-29.txt मार्च-अप्रै ल 2002 26 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 बच्चों के प्रति कठोर व्यवहार प्रायः इसलिए उन्हें व्यवहार के तौर-तरीके भी आने चाहिएं। होता है क्योंकि लोग बच्चों से प्रेम नहीं परन्तु इसके साथ-साथ उनकी छोटी-छोटी करते। अपने गलीचों और भौतिक पदार्थों शरारतों का भी आनन्द उठाया जाना चाहिए। से वे इसलिए प्रेम करते हैं कि उन्हें पुनः केवल बाल्यकाल में ही वे शरारतें कर बेचा जा सकता है परन्तु बच्चों को बेचा सकते हैं, बड़े होकर नहीं। उन्हें शरारतें नहीं जा सकता। भौतिक पदार्थों के लिए और लीलाएं करने की स्वतन्त्रता मिलनी माँ बाप और बच्चे एक दूसरे से अलग हो चाहिए अन्यथा वे अत्यन्त गम्भीर होकर जाते हैं क्योंकि भौतिक पदार्थ अधिक त्यागी बन सकते हैं। जो माँ-बाप बच्चों के साथ बहुत कठोर हैं वो कभी भी सामान्य नहीं हो सकते। या तो वे अत्यन्त विकृत होते हैं या शान्त होकर बैठ जाते हैं, जीवन महत्वपूर्ण बन जाते हैं। वैसे तो चोरी को बुरा माना जाता है परन्तु श्री कृष्ण सभी महिलाओं के घरों से मक्खन चुरा लिया करते थे क्योंकि ये महिलाएं मथुरा के असुरों को ये मक्खन दे दिया करती थीं। मक्खन खा-खाकर असुर से आपको अत्यन्त प्रेम और सूझ-बूझ से शक्तिशाली हो रहे थे अतः श्री कृष्ण का सामना नहीं कर सकते। एक जीवन . का सामना नहीं कर पाते और दूसरों का सामना जीवन नहीं कर पाता। अपने बच्चों ने व्यवहार करना होगा परन्तु उन्हें इस बात सोचा कि मक्खन चुराकर खा लेना बेहतर है ताकि ये असुरों तक न पहुँचे। थोड़ा सा धन बचाने के लिए हम अपने बच्चों को भूखों मार देते हैं। धन लोलुपता इस प्रकार मानते हैं पैसे आदि किसी अन्य चीज़ को से है, हम सोचते है कि सभी चीज़ें पुनः बो नहीं जानते। बच्चे के मन में आपका का ज्ञान होना भी आवश्यक है कि यदि वे दुर्व्यवहार करेंगे तो इस प्रेम के वे अधिकारी न रहेंगे बच्चे केवल प्रेम को बिक सकती है। अतः बच्चे हम पर स्थायी प्रेम अत्यन्त बहुमूल्य उपलब्धि बन जाता है। सहजयोग परमेश्वरी प्रेम पर आधारित है और यह तभी कार्यान्वित हो सकता है बोझ बन जाते हैं। बच्चों के साथ इस प्रकार व्यवहार किया जाता है मानों वो हम पर बोझ हों। मूल्य प्रणाली का आधार यदि केवल धन बन जाए तो परिवार में जब लोग प्रेममय होंगे। लोग यदि धन बच्चों का कोई स्थान नहीं रह जाता। सत्ता और अपने सम्मान आदि को ही प्रेम सहजयोग के अनुसार बच्चे विश्व के करेंगे, अपने बच्चों और परिवार को नहीं सारे वैभव से भी अधिक महत्वपूर्ण हैं। तो वे समाज का एक बहुत बड़ा हिस्सा खो देंगे। और इसी प्रकार उनका पालन-पोषण होना चाहिए। निःसन्देह बच्चों को भी अपनी गरिमा का ज्ञान होना चाहिए और में स्थापित करना चाहते थे इस कार्य के राज के रूप में श्रीकृष्ण लोगों को धर्म 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-30.txt मार्च-अप ल 2002 27 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 लिए उन्हें पंचमहाभूतों की आवश्यकता थी, एक दम से क्रोधित हो जाने वाले व्यक्ति इसलिए उन्होंने पंचमहाभूतों का स्त्री रूप को दाई विशुद्धि की समस्या होती है। में सृजन किया और उनसे विवाह किया वास्तव में वे उन्हीं के अंग-प्रत्यंग हैं। वे किसी को डाँटना भी हो तो भी अत्यन्त योगेश्वर थे, पूर्णतः निर्लिप्त, योगस्थित, परन्तु प्रेमपूर्वक हमें कहना चाहिए, "आप क्या कर सभी व्यवहारिक कार्यों के लिए उनकी पाँच रहे हैं,? कुछ देर मौन धारण करके विशुद्धि पत्नियाँ थीं। इसके बाद सोलह हजार अन्य महिलाएं, कुछ अन्य न होकर उनकी अपनी बहुत अच्छा है। सोलह हजार शक्तियाँ थीं विशुद्धि चक्र की सोलह पंखुड़ियाँ होती है। विराट चक्र (सहस्रार) की हजार पंखुडियों से यदि इन्हें है। ये गर्मी जब ऊपर को उठती है तो गुणा किया जाए तो ये 16000 शक्तियाँ सर्वप्रथम दाएं हृदय पर जाती है और आप बनती है। ये सोलह हजार शक्तियाँ स्त्रियों अत्यन्त क्रोधी पति या पिता बन सकते हैं। । व्यक्ति को समझना चाहिए कि हमने यदि चक्र को आराम देना इस चक्र के लिए दाई ओर को जिगर से गर्मी आने लगती ये गर्मी दाई विशुद्धि पर जाती के रूप में प्रकट हुई और एक दुष्ट राक्षस तत्पश्चात् है राजा इन्हें ले गया। उस राजा को हरा कर और व्यक्ति अत्यन्त चिड़चिड़ा और क्रोधी श्री कृष्ण ने इन स्त्रियों को मुक्त कराया और उनसे विवाह करके उन्हें प्रदान चिल्लाता रहता है। इस प्रकार से किसी की। बन जाता है और हर समय दूसरों पर सुरक्षा पर यदि आप क्रोध करेंगे तो वह व्यक्ति आपसे डर जाएगा और हो सकता. है कि जब-जब भी हमें विशुद्धि की समस्या उसमें हीन भावना आ जाए तथा वह होती है तो हमें यह बात समझनी चाहिए उदासीन प्रवृत्ति (Left Sided) बन जाए। कि इसके दोनों ओर कौन से देवी देवता परमात्मा ही जानते हैं कि जिस व्यक्ति के विराजमान हैं और उनके कौन से गुणों का ऊपर हर समय कोई चिल्लाने वाला हो हमारे अन्दर अभाव है जिसके कारण हम उसका क्या हाल होगा! कष्ट उठा रहे हैं। जब हमारी दाई विशुद्धि पकड़ती है तो हमें देखना चाहिए कि माधुर्य श्री कृष्ण का सार तत्व है, राधा किस प्रकार वे बॉसुरी बजाते थे और बांसुरी उनकी शक्ति थी। रा' अर्थात शक्ति धा के मधुर संगीत से पूरा वातावरण शान्त हो अर्थात धारण करने वाला। 'आहलाद' अथात जाया करता था परन्तु आधुनिक युग आनन्द-प्रदायी गुण' उनकी शक्ति थी। संगीत एकदम से दूसरे प्रकार का है। श्री कृष्ण योगेश्वर थे, शाश्वत् साक्षी । चीखने इसमें तो ऐसे लगता है कि दाई विशुद्धि या चिल्लाने वाला, जोर से बोलने वाला और तो दूट जाएगी या फट जाएगी! संगीत श्रीकृष्ण के जीवन से हमें सीखना है कि में 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-31.txt मार्च-अप्रै ल 2002 28 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 यदि शान्ति प्रदायी होने के स्थान पर प्रियमवद' और ये सत्य हितकर भी होना भड़काऊ है तो यह सहस्रार क्षेत्र को जड़वत चाहिए। मान लो आप किसी को सत्य बात कर देता है। सहस्रार श्री कृष्ण के विराट कहते हैं तो हो सकता है उसे यह बात तत्व का सिंहासन हैं। दाई विशुद्धि का उस समय पसन्द न आए परन्तु यदि यह है और मस्तिष्क उसके हित में है तो कुछ समय पश्चात् वह जड़वत हो जाने के कारण आप मादक आपके प्रति आभारी होगा कि आपने उसकी दवाईयाँ लेना शुरू कर देते हैं। कुछ ही सहायता करने का प्रयत्न किया। हितकर दिनों में आपको लगता है कि जो दवाईयाँ कार्य के लिए आपको यदि कोई झूठ भी आप ले रहे हैं उनका नशा काफी नहीं है बोलना पड़े तो कोई बात नहीं क्योंकि विशुद्धि तो आप और अधिक नशीली दवाईयाँ लेते चक्र के देवता श्री कृष्ण आपकी भावना को प्रभाव सहस्रार पर पड़ता जानते हैं। हैं। इस प्रकार चलता रहता है और अन्ततः आप एक ऐसी अवस्था में पहुँच जाते हैं कि कही के भी नहीं रहते, जहाँ केवल आत्म- विनाश ही होता है। लोगों को उनकी कमियाँ बताने से आप जी नहीं चुरा सकते, विशेष तौर से उन लोगों को जिनकी जिम्मेदारी आप पर हैं। श्री कृष्ण दिव्य कूटनीतिज्ञ थे। देवी जैसे परिवार, सम्बन्धी आदि। जो बात ठीक कूटनीति क्या है? कि आपने चिल्लाना नहीं है वह स्पष्ट बता देना सर्वोत्तम है। ये है। किसी को यदि आप किसी परिणाम आपका कर्त्तव्य है। लोग ऐसा करने से भी तक लाना चाहते हैं तो सर्वोत्तम उपाय ये हिचकिचाते हैं। कुछ लोग जो अपने बच्चों हैं कि आप विषय को बदल दें। ऐसा करने का सामना नहीं करना चाहते वो उन्हें के लिए आपको अत्यन्त चतुर होना पड़ेगा। भिन्न किस्मों के खिलौने दिए चले जाते 1 किसी व्यक्ति से पूर्ण तारतम्यता स्थापित हैं। अनुशासन का अर्थ प्रभुत्व जमाना नहीं करने के लिए आपको उस व्यक्ति के साथ है, इसका अर्थ ये है कि जो भी कुछ हम खेलना पड़ेगा। हमें ये बात समझनी होगी कर रहे हैं वह आपकी तथा अन्य लोगों की कि उनकी हितैषी प्रवृत्ति ही उनकी कूटनीति आत्मा के हित में है। यही सहज अनुशासन का सारतत्व है। आपको सारी मानवजाति है । का हित करना होगा, अभी तक आप केवल बाईं विशुद्धि, विद्युत की तरह है। व्यक्ति अपने या किसी व्यक्ति विशेष के हित के लिए कार्य करते हैं। अतः चीखने चिल्लाने विष्णुमाया की तरह से चीख चिल्लाकर की कोई जरूरत नहीं। विनोदशीलता ूर्वक दूसरों का पर्दाफाश कर सकता है आपको कार्य करते हुए स्वयं को हितैषिता के स्तर इस बात से नहीं घबराना चाहिए कि 'मैं पर लाएं। श्री कृष्ण ने कहा था सत्यमुवद् इस कार्य को कैसे कर सकता हॅू। दोष 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-32.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 मार्च-अप्रै ल 2002 29 भाव ग्रस्त लोग अधिकतर वो हैं जिन्होंने चकित होंगे कि इसमें से चैतन्य-लहरियाँ आत्मविश्वास खो दिया है और जिनका भी बह रही हैं जहाँ भी आप चैतन्य- लहरियाँ भेजना चाहेंगे, इसके माध्यम से अत्यन्त जटिल अवस्था है। हमें सावधान जाएंगी। इसके समीप कम्प्यूटर रखकर रहना है कि हम दोष भाव ग्रस्त तो नहीं कम्प्यूटर के माध्यम से आप चैतन्य लहरियों हैं। दोष भाव मिथ्या है. वास्तविकता से को जाँच सकते हैं। ये इतनी अद्वितीय जब हम भागना चाहते हैं तो कहते हैं हम चीज़ है कि गडगड़ाने और दहाडने वाली दोषी हैं। आपको वास्तविकता का सामना यह शक्ति बाई ओर को है ताकि यह करना होगा। ये देखने का प्रयत्न करें कि संभाव्य शक्ति के रूप में उन लोगों में बनी आपमें और अन्य लोगों में कौन से दोष हैं। रहे जो दोषभावना और हीन-- भावना ग्रस्त हैं या जो गोपनशील (Sly) है और महसूस करते हैं कि वे बेकार हैं। विषमता पर ध्यान दें। उनकी शक्ति ऐसे व्यक्ति में अभिव्यक्त अहम् बाई ओर को प्रवेश कर गया है। ये विष्णु माया क्योंकि कुछ अन्य न होकर विद्युत सम हैं, विद्युत लोगों को अनावृत करती है, उनपर चीखती, चिल्लाती और होती है जिसमें आत्म-विश्वास की कमी है दहाडती है। आपको यदि बाईं विशुद्धि की और जब ये शक्ति बलपूर्वक अपनी समस्या है तो आपको ये तरीके अपनाने अभिव्यक्ति करती है तो उस व्यक्ति में होंगे। जिन लोगों को बाई विशुद्धि की आत्मविश्वास जाग उठता है विष्णुमाया 1 समस्या है उन्हें चाहिए कि समुद्र पर आकर की जब हम बात करते हैं तो हमें इस बात समुद्र से कहें "मैं समुद्र का स्वामी हूँ, मैं ये का ध्यान होना चाहिए कि वे वहँ (बाई हैँ, मैं वो हूँ।" हूँ । विशुद्धि) पर विराजमान है । हम जब भी गों की शंक्त चाह महान वेक्ता बन सकते हैं। दुष्ट लो का पर्दाफाश कर सकते हैं. मेघ विद्युत सम । हैं गले के दाई ओर श्री स्वर तंतुओं पर होती है-माधुर्य की शक्ति विष्णु-माया बलशाली शक्ति है परन्तु अपना अस्तित्व दर्शाने के लिए यह अपनी श्ति विष्णमाया दोनों प्रकार के लोगों को सन्तुलन को चीखने-चिल्लाने पर उपयोग करती प्रदान करती हैं। मध्यमार्ग पर जब कुण्डलिनी है। जितने भी चमत्कारी फोटो आपको प्राप्त उठती है तो अधिकतर लोगों की विशुद्धि होते हैं ये सब विष्णुमाया की ही कृपा से पकड़ी हुई होती है। अतः उन्हें विश्वस्त है विद्युत के रूप में यही इन सब कार्यों को करती हैं। ये श्री कृष्ण की बहन हैं और अपने आपमें पूर्णतः सन्तुलित हैं, मध्यमार्ग बहुत सूक्ष्म हैं। अत्यन्त सूक्ष्म ढंग से ये पर हैं क्योंकि इस स्थिति पर होने पर ही वे आपकी सहायता करती हैं। इस माइक्रोफोन मधुर दयामय एवं सुहृदय हो सकते हैं । के अन्दर विद्युत है परन्तु आप आश्चर्य कुछ लोग अन्य लोगों का अनुचित लाभ कृष्ण हो सकते हैं. मेघ गर्जन सम हो सकते परन्तु प्रायः हम ऐसे होते नहीं। अतः ं होना होता है कि वे दोषभावग्रस्त नहीं हैं. 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-33.txt मार्च-अप्रैल 2002 30 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 उठाने के लिए मधुर होने का दिखावा करते है, आपकी क्या समस्या है। आपके वातावरण हैं। ऐसे लोग नर्क में जाएंगे क्योंकि वे तथा अन्य चीज़ों में क्या दोष है। श्रीकृष्ण की शक्ति का दुरुपयोग करते हैं। आज जब हम श्रीकृष्ण की पूजा कर रहे विशुद्धि चक्र को साफ रखना अत्यन्त हैं तो हमें जान लेना चाहिए कि अन्ततः वे महत्वपूर्ण है। सर्वप्रथम तो हमारा हृदय मस्तिष्क बन जाते हैं। पेट की चर्बी मस्तिष्क अत्यन्त स्वच्छ एवं सुन्दर होना आवश्यक में जाती है और इस प्रकार श्री नारायण है जिससे श्री कृष्ण के मधुर संगीत की मस्तिष्क में प्रवेश करके विराट का- अकबर सुगन्ध आए। अपनी विशुद्धि को सुधारें। का रूप धारण करते हैं। अकबर बनने के इसे कार्यान्वित करें विराट को देखें और पश्चात पदार्थ में वही मस्तिष्क होते हैं। पता लगाएं कि आपमें क्या कमी है और यही कारण है कि श्री इस कमी को दूर करें। कोई अन्य इसे ठीक नहीं कर सकता। विश्वस्त हो जाएं उनमें अहम नहीं होता उनका मस्तिष्क कि आपको अपनी पूरी समझ है। ऐसा विकसित हो जाता है परन्तु उनमें अहंकार होना केवल तभी सम्भव है जब आप साक्षी नहीं होता अहमुविहीन विवेक, जिसे मैं बन जाएंगे, अन्यथा आप कभी स्वयं को शुद्ध बुद्धि कहती हैं, की अभिव्यक्ति उनमें नहीं देख सकते क्योंकि विशुद्धि के स्तर होने लगती है। पर ही आप साक्षी बन सकते हैं । साक्षी करने की कृष्ण वाले लोग दिमागंदार बन जाते हैं परन्तु पूजा अवस्था प्राप्त होने के पश्चात् आप अपनी विशुद्धि में देख पाते हैं कि आपमें क्या कमी परमात्मा आपको धन्य करें 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-34.txt पहले स्वयं को पहचान लें पोरचेस्टर हॉल, लन्दन 1.8.1989 परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन सर्वप्रथम हमे ये समझना है कि सत्य करना नहीं है कि अब आप हिन्दू, ईसाई, जो है वही है । इसे हम धारणा बद्ध नहीं मुसलमान या कुछ अन्य बन गए हैं । हिन्दू, कर सकते, आयोजित नहीं कर सकते तथा ईसाई या मुसलमान होते हुए भी आप कोई अपने उद्देश्य साधन के लिए इसका उपयोग भी अपराध कर सकते हैं या कोई भी गलत नहीं कर सकते। आँखों पर दोनों तरफ कार्य कर सकते हैं। ऐसा करने से कोई भी घोड़े की तरह से पर्दा लगा कर, अपने बाह्य चीज़ आपको रोक नहीं सकती। अतः बन्धनों (conditioning) के साथ हम सत्य ये सब चीजें इतनी बाह्य हो चुकी हैं कि को नहीं खोज सकते। हमें स्वतंत्र व्यक्तित्व अब लोग कहने लगे हैं कि परमात्मा हैं ही बनना होता है। सत्य को पहचानने के लिए नहीं, धर्म नाम की कोई चीज़ नहीं है ये हमें वैज्ञानिक की तरह से खुले मरस्तिष्क बात सत्य नहीं है। का होना पड़ता है। किसी के उपदेश, भविष्यवाणियाँ या कथनों को आँखे बन्द सर्वप्रथम जब आप कहते हैं कि परमात्मा करके स्वीकार नहीं कर लिया जाना चाहिए। नहीं है वो आपको ये खोजने का प्रयत्न कल्र शाश्वत की खोज तथा नश्वर की सीमाओं करना चाहिए कि क्या हम परमात्मा के को समझना सभी धर्मों का सार तत्व है। विषय में कुछ पता लगा सके या अपने यही कारण है कि हमने अपना संतुलन खो अहंकारवश हम कह रहे हैं कि परमात्मा दिया है। हम यदि सत्य को जानना चाहते नहीं है क्या हम यह देखने में सफल हुए हैं तो हमें यह समझना होगा कि मानवीय कि परमात्मा हैं या नहीं हैं? परमात्मा के चेतना पर हम सत्य को नहीं जान विषय में बात करने वाले लोगों की बातों से पाते। मानवीय चेतना पर सत्य एक आप परमात्मा का आँकलन न करें कोई धारणा बन जाता है। हमें आध्यात्मिक भी व्यक्ति परमात्मा के विषय में बातचीत चेतना प्राप्त करनी होगी। ये आध्यात्मिक कर सकता है क्योंकि वो जानते हैं कि चेतना आपके अस्तित्व की ही एक अवस्था ऐसा कोई कानून नही जो उन्हें पकड़ सकता है जिसमें आप आत्मा बन जाते हैं। यह हो। लोग परमात्मा के पक्ष में बोल सकते किसी व्यक्ति को बनावटी रूप से प्रमाणित हैं, परमात्मा के विरोध मे बोल सकते हैं 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-35.txt मार्च-3 ल 2002 32 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 और जो चाहे कर सकते हैं। परमात्मा और लिए नहीं। आपमें और मशीनों में सन्तुलन सभी पैगम्बरों के विरुद्ध बोलकर लोग पैसा नहीं है, आपमें और विज्ञान में संतुलन नहीं भी बना सकते हैं । है। कोई भी चीज जब आपको प्राप्त होती है तो आप पगला जाते हैं। संतुलन आपको अतः मुक्त होने के लिए हमें थोड़ा सा केवल तभी मिल सकता है जब आप आत्मा स्वतन्त्र होना पड़ेगा। आप यदि आत्मा को पहचानना चाहते हैं तो 'स्वयं को पहचाने । से बनाए हुए झाड़ फानूस देख रहे हैं। अपने मध्य नाड़ी तन्त्र पर आपको परमात्मा इनमें जब तक प्रकाश न हो यह अर्थ को जानना होगा। जैसे मैं महसूस कर हीन हैं, इसी प्रकार से आपके चित्त में सकती हूँ कि यह ठण्डा है या गर्म, आपको परमेश्वरी शक्ति को महसूस करना होगा, बन जाएं यहाँ पर आप बहुत सुन्दर ढंग भी जब तक आत्मा का प्रकाश नहीं आता, आप अपना अर्थ नहीं जान उस शक्ति को जो सर्वव्यापी है। सत्य है और सत्य की अभिव्यक्ति करती है क्योंकि सकते। ये माइक्रो फोन यदि ऊर्जा के यह परमात्मा का प्रेम है। पहले आपको ये औति से जुड़ा हुआ न हो तो ये बेकार है । शक्ति अपने मध्य नाड़ी तन्त्र पर महसूस करनी होगी यही 'बोध' है । इसी प्रकार बिना शक्ति के सोत से जुड़े हम 'पूर्ण' को नहीं जान सकते और यही सारी समस्याओं का कारण है। व्यक्ति कह सकता है कि पश्चिम में बहुत उन्नति हुई है और हर मामले में हम बहुत आगे बढ़े हैं परन्तु आप यदि देखें कि हॅूँ तो मेरा अभिप्राय जड़ों के ज्ञान से है विज्ञान में आगे बढ़कर हमने क्या बनाया और इसके लिए आपको सूक्ष्म व्यक्तित्व है-हाइड्रोजन बम, एटम बम और सभी बनना होगा स्थूल मस्तिष्क से आप इसे प्रकार के असुर अपने सिर पर बिठा लिये नहीं देख सकते। सूक्ष्म व्यक्तित्व बनने के हैं। कोई भी गतिविधि जो हम शुरु करते हैं उसमें हम अति की सीमा तक चले जाते मानवीय गतिविधियों, सभी धर्मों में कुछ न हैं। संतुलन का पूर्ण अभाव है। किसी भी कुछ गड़बड़ी हो गई है यही कारण है कि प्रकार का मानसिक प्रक्षेपण रेखीय होता है आज हम ये विडम्बना देख रहे हैं । हमें यह एक रेखा में चलता है और जब ये शाश्वत को प्राप्त करना है। हो सकता है पलटकर वापिस आता है तब व्यक्ति का ये बात कुछ भिन्न प्रतीत हो। उदाहरण के दम घुटता है। देखिए यहाँ किस प्रकार रूप में भगवान बुद्ध और महावीर ने परमात्मा तेजाबी बारिश हुई! आपने मशीनरी बना की बात ही नहीं की। चार बर्षों तक मैंने दी। मशीनें आपके लिए हैं, आप मशीनों के भी परमात्मा की बात नहीं की ज्यों ही अन्तर-स्थित यंत्र की बात जब मैं करती लिए आपको जड़ों को जानना होगा। सभी 1 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-36.txt मार्च-अल 2002 33 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 ব 4 आप परमात्मा की बात करने लगते हैं तो यह अबोधिता का प्रतीक है । अबोधिता ही लोग उछल पड़ते हैं कि कब हम परमात्मा व्यक्ति को सच्चा आश्रय और सच्ची शक्ति बनेंगे। अतः पहले आप आत्मा (Self) बन प्रदान करती है। हो सकता है कि इस पर जाएं। ये पहली सीढ़ी है । सभी सन्तों ने बादल छा जाएं। कुछ लोग कह सकते हैं कहा पहले आप आत्मा बन जाएं। आपके कि हमने अबोधिता को नष्ट कर दिया है। पास यदि आँखें ही न हों तो रंगों को आप जो चाहे आपने किया हो यह नष्ट नहीं हो कैसे देख सकते हैं? ये आपके हित में है सकती। इसमें समस्याएं हो सकती हैं परन्तु कि आप जिस चीज के योग्य हैं. जो चीज़ यह नष्ट नहीं हो सकती। यह इतना अदभुत आपकी अपनी है उसे प्राप्त कर लें और चक्र है, इसकी चार पंखुड़ियाँ है जो श्रोणीय मानव के रूप में आत्मा बनना (आत्म चक्र (Pelvic plexus) की देखभाल करता साक्षात्कार को प्राप्त करना) आपका है। जन्म सिद्ध अधिकार है यही सहजयोग है । स्वतन्त्र होने के कारण हम सभी प्रकार के कार्य किए चले जाते हैं जो हमारे लिए हितकर नहीं होते। कोई बात नहीं, कुण्डतलिनी हुआ। यह योग, परमात्मा के साथ यह नष्ट नहीं हो सकती, वो स्रोत जिसने आपको एकाकारिता प्राप्त करना, आपका जन्म सिद्ध आत्मसाक्षात्कार प्रदान करना है। मैं कहती अधिकार है । मानव के रूप में यह आपका हूँ कि वे आपकी अपनी माँ हैं। ये आपकी जन्म-सिद्ध अधिकार है। आप ही उत्क्रान्ति प्रेममयी माँ हैं जो आपके पूर्व जन्मों की का सार तत्व हैं। यह कार्यान्वित होना ही सभी बातें जानती हैं। ये तो मात्र अवसर चाहिए। परन्तु कृपा करके अपने हृदय खोल की प्रतीक्षा में हैं कि जागृति देकर आपको दें, अपने मस्तिष्क खोल दें और फिर स्वयं पुनर्जन्म दे सकें । वे परमेश्वरी माँ हैं। किसी अपने लिए देखें। मैं जानती हूँ कि यह भी प्रकार का कष्ट ये आपको नहीं होने कार्य करेगा। परन्तु इसके विषय में सोचकर देंगी। कुण्डलिनी जागृति में जो कष्ट आते 'सह' अर्थात साथ और 'ज' अर्थात जन्मा आप इसे धारणाबद्ध (conceptualize) नहीं हैं वो उन लोगों के कारण होते हैं जो इस कर सकते। हमारी जिज्ञासा में एक बहुत विषय में शिक्षित नहीं हैं, जिन्हें कुण्डलिनी बड़ी समस्या ये है कि हम किसी न किसी का ज्ञान नहीं है, फिर भी कुण्डलिनी जागृति प्रकार की धारणा के पीछे दौड़ते रहते हैं। की अनाधिकार चेष्टा करते हैं। कुण्डलिनी अब आपने यह सूक्ष्म तन्त्र देखा है। कभी भी आपको कष्ट नहीं देगी। इसके मानव की विकास प्रक्रिया में हमारे अन्दर विपरीत जब यह जागृत होती है और जब बनाया गया यह सुन्दरतम यंत्र है। इसका आपमें जागृति हो जाती है तो सर्वप्रथम पहला केन्द्र सबसे अधिक सुन्दर है। क्योंकि आपमें निर्विचार चेतनास्थापित हो जाती है 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-37.txt माच-अप्रै ल 2002 34 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 क्योंकि विचार उठते रहते हैं और समाप्त क्रोध आदि बिल्कुल शान्त हो जाते हैं । होते रहते हैं कुण्डलिनी इन विचारों के समय को कम करती है। इन विचारों के व्यक्ति भी करुणामय हो उठता है। लोग बीच का समय वर्तमान होता है। अतः यह कहते हैं कि कुछ राष्ट्रों की कुछ विशेष आपको वर्तमान में रोकती है और आप बातें होती हैं। हर चीज समाप्त हो जाती वर्तमान में उन्नत होते हैं। आप यदि सोचना है। इस चक्र के कारण जो कि इतना चाहें तो सोच सकते हैं और न सोचना चाहें गतिशील है और जो शुद्ध विद्या की तो निर्विचार रहते हैं। कुण्डलिनी जब आज्ञा अभिव्यक्ति प्रदान करता है. आपका मध्य आश्चर्य की बात है कि अत्यन्त गतिशील चक्र को पार कर लेती है तब ये घटना नाड़ी तन्त्र संवेदनशील हो उठता है अपनी घटित होती है। अंगुलियों के सिरों पर आप महसूस करने दूसरे चक्र में जब ये प्रवेश करती है तब लगते हैं। जैसे किसी व्यक्ति ने आकर मुझसे कहा मेरा आज्ञा चक्र पकड़ रहा है। आप गतिशील हो उठते हैं क्योंकि दूसरा इसका अर्थ ये है कि मुझमें अहम् बढ़ा हुआ चक्र कला एवं सृजनात्मकता का होता है। मेरे भाई, जो कि शासपत्रित लेखाकार हैं वे है। कोई व्यक्ति क्या स्वयं ऐसा कह सकता भाषाओं के मामले मे बहुत दुर्बल थे। आज है? इसके विपरीत यदि आप किसी से कहें कि अहंकारी हो तो ऐसा करना बहुत तुम वे संस्कृत, उर्दू और मराठी में कविताएं लिखते हैं। मराठी भाषा तो बहुत ही कठिन है। कुण्डलिनी जब उठती है तो इस चक्र का पोषण करती है। बहुत अच्छी माँ की आज्ञा पर सवार हैं और मैं इस चक्र को तरह से ये पोषण करती है। आत्म- ही भयानक होगा। परन्तु आत्मज्ञान के कारण आप जानते हैं कि श्रीमान अहं आपकी तब तक पार नहीं कर सकता जब तक साक्षात्कार प्राप्त कर लेने के पश्चात ही इसमें बाधा है। यह बाधा मुझे दूर करनी ही अमजदअली इतने महान कलाकर बन पाए क्योंकि कुण्डलिनी के उत्थान के बाद ही सृजनात्मकता अत्यन्त गहन और गतिशील तार जुड़ जाएगा तो आप स्वयं तुरन्त जान हो जाती है । तब व्यक्ति अत्यन्त विनम्र, मध जाएंगे तथा सभी अटपटे विचारों और पुर एवं करुणामय बन जाता है। ये हिंसा, भयानक कार्यों के लिए जिम्मेदार ये चक्र क्रोध या गुस्सा आपकी देन नहीं है । ये अत्यन्त हितकर और सुन्दर बन जाएगा। आपके जिगर की देन है। जब आप क्रोधित होगी। यह आपमें अन्तर्जात है। एक बार जब | ये लोग जो हिन्दी का एक शब्द भी न बोल होते हैं तो आपकी समझ में नहीं आता सकते थे वे संस्कृत में भजन गाने लगे हैं। आप क्या करें। नशे में जो कलाकार आज उन्नति करने के लिए तरह आप जो चाहे करते हैं। जागृति से ये संघर्ष कर रहे हैं, सहजयोग में आकर वे घुत व्यक्ति की 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-38.txt मार्च-अप्रै ल 2002 35 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 महान कलाकार बन जाते हैं। परन्तु मैं परन्तु पदार्थ का सौन्दर्य इस चीज़ में है कहूंगी कि अभी भी प्रलोभन हैं। आप सभी कि किसी अन्य के प्रति अपने प्रेम की महान कलाकार बन जाएंगे, धन कमाना अभिव्यक्ति करने के लिए हम ये पदार्थ शुरू कर देंगे आदि-आदि। परन्तु यही वो उसे भेंट करें। पदार्थ केवल इसी कार्य के उपलब्धियाँ नहीं है जिनसे आप सन्तुष्ट हो लिए उपयुक्त हैं। विशेषरूप से आप अपना जाएं। आप कभी भी सन्तुष्ट नहीं होंगे। प्रेम प्रकट कर सकते हैं। आपका ऐसा अब हम तीसरे चक्र पर आते हैं जो करना उस व्यक्ति को अच्छा लगेगा । आपमें नाभि चक्र कहलाता है। इस चक्र का एक ऐसी गहनता विकसित होगी और आप ओर जल तत्व से और दूसरा अग्नि तत्व से बना है। इसके चहूँ ओर दस संयोजकताएं हैं - हमारे अन्दर हमारा अन्तर्जात धर्म। आवश्यकता न रहेगी क्योंकि सभी लोगों ज्यों ही कुण्डलिनी उठती है नाभि चक्र या अत्यन्त सुन्दर एवं प्रेममय समाज में प्रवेश करेंगे। फिर आपको किसी चीज़ की को आपकी आवश्यकताओं की चिन्ता होगी । सूर्य चक्र हमें धार्मिकता प्रदान करता है और तब ये चक्र प्रकाश से भर जाता है। इसी चक्र से आता है। आपको ये चिंता रातों-रात लोगों ने नशे त्याग दिए, शराब नहीं करनी पड़ती कि आपको क्या खाना आदि सभी बुरी आदतें छोड़ दी और सबसे है। जो भी कुछ आपके लिए अच्छा अच्छी बात ये है कि अब वे अपने सद्गुणों है, हितकर है आप वही खाते हैं। आप ये आनन्द जो आप दे रहे हैं यह का आनन्द लेते हैं। कुछ लोग सोचते हैं अत्यन्त विवेकशील होकर अन्य लोगों कि तब जीवन में क्या आनन्द रह जाएगा? को प्रसन्न रखते हैं। ये कहकर आप किसी शराबखाने में जाकर रात को आप शराब को नाराज नहीं करते कि यह खाना खराब पीते हैं और सुबह उस नशे के कारण है, मुझे वो चाहिए। मुझे चाहिए समाप्त निष्क्रिय होते हैं। सहजयोग में आज आप हो जाता है। मानों मोमबत्ती जो अभी तक साक्षात्कार लें और कल आपकी स्थिति जली नहीं है प्रकाश की माँग कर रही बेहतर होगी। ये कभी आपको हानि नहीं हो! मुझे प्रकाश चाहिए। परन्तु एक बार पहुँचाता, करता। न ये बनावटी है और न ही नशे में ये अन्य लोगों को प्रकाश देती है। इसी कभी आप पर प्रतिक्रिया नहीं जब ये प्रज्जवलित हो जाती है तो स्वतः करने वाला। आपके अन्दर से ही इसका धुत्त आनन्द फूट पड़ता है। प्रकार आप भी स्वतः अपना प्रकाश, अपना प्रेम, अपना आनन्द अन्य लोगों को देने सहजयोग में हमारे अन्दर वो क्षेम पनप लगते हैं। अब आपको दस धर्मादेशों उठता है कि हम अपनी उदारता का आनन्द पर नहीं चलना पड़ेगा। अब वो दिन चले ले सकें। अभी तक हम भौत्तिकवादी हैं। गए. अब स्वतः ही आप वैसे बन जाते श्र 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-39.txt कार मार्च-अप्रै ल 2002 36 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 हैं-अत्यन्त सुन्दर, स्नेह एवं गरिमामय जाता है। परिणामस्वरूप व्यक्ति को सभी व्यक्ति। प्रकार के रोग, ज़िगर की समस्या और सहजयोगियों के चेहरों पर चमक देखिए., शक्कर रोग आदि हो जाते हैं। अधिक चेहरे कितने कांतिमय हैं? कुछ लोगों की मीठा खाने से शक्कर रोग नहीं होता। आयु देखने में दस-बीस वर्ष कम हो जाती भारत के गाँवों में लोग इतना मीठा खाते हैं है और फिर भी वे उत्साह से परिपूर्ण होते कि चाय के प्याले में डाली गई चीनी में हैं। वे कभी थकते नहीं। पश्चिमी देशों के चम्मच खड़ा किया जा सकता है। परन्तु लोग विशेष रूप से बहुत जल्दी थक जाते उन्हें कभी शक्कर रोग नहीं होता इसका हैं, युवा लोग भी। आप क्यों थकते हैं कारण ये है कि वो कभी कल के विषय में क्योंकि आप सोचते बहुत अधिक हैं। आपकी नहीं सोचते। कठिन परिश्रम करते हैं खाना सारी शक्ति सोचने में ही व्यर्थ हो जाती है, खाते हैं और आराम से सोते हैं, उन्हें नींद आनन्द उठाने के लिए कुछ भी शक्ति शेष की गोलियाँ खाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। नहीं बचती। उदाहरण के लिए आप किसी अतः शक्कर रोग बहुत अधिक सोचने के को रात के खाने पर बुलाते हैं। आप सोचने कारण होता है तथा सहजयोग ध्यान द्वारा लगते हैं कि पेय कौन सा होगा, खाने को इसे सुगमता पूर्वक ठीक भी किया जा अरा गरम किस प्रकार रखा जाएगा, आदि-आदि। सकता है।. आप इतने चिड़चिड़े और उत्तेजित होते हैं कि जब मेहमान आते हैं तो उन्हें लगता है है वह है रक्त कैंसर। रक्त कैंसर भी बहुत कि उन्हें वापिस चले जाना चाहिए. क्योंकि अधिक सोचने वाले लोगों को होता है। सोचने और योजना बनाने से इतना तनाव जिन बच्चों की माँ बहुत ही ज्यादा सतर्क तीसरी बीमारी जो कि बहुत ही भयानक उत्पन्न हो चुका होता है। अंततः पूरा आनन्द होती है उन्हें भी रक्त कैंसर हो सकता है। समाप्त हो जाता है। विशेष रूप से जब महिलाएं कालीनों, अपने अतः दूसरा केन्द्र बहुत ही चमत्कारिक घर की छोटी-छोटी चीजों के प्रति बहुत कार्य करता है। जब हम सोच रहे होते हैं अधिक टोका-टाकी करती हैं तो उनके तो यह हमारे मस्तिष्क को श्वेत कोषाणु घर में कोई चूहा भी नहीं आना चाहता। भेजता है। ये आपके जिगर, अग्नाशय, प्लीहा, हर समय वे सोचती रहती हैं और योजनाएं । इसका दुष्प्रभाव बच्चों पर की देखभाल करता है। परन्तु जब हम पड़ता है और बच्चों को रक्त कैंसर हो पागलों की तरह से सोचते हैं तो ये सारे सकता है । हमारा प्लीहा गतिमापक कार्य छोड़कर स्वाधिष्ठान चक्र मस्तिष्क (speedo meter) है । यही आपके जीवन को श्वेत ऊर्जाकरण भेजने में व्यस्त हो को लय प्रदान करता है। हम जब हर गुर्दो तथा पेट के अन्तःस्थित अन्य अवयवों बनाती रहती हैं 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-40.txt मार्च अप्रै ल चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 2002 37 समय उत्तेजित एवं घबराए रहते हैं तो यह यदि आप हर समय ही आपात स्थिति में यन्त्र खराब हो जाता है। उदाहरण के रूप रहेंगे तो बेचारा प्लीहा पगला जाता है। में प्रातःकाल जब हम उठते हैं तो समाचार इसकी समझ में नहीं आता कि क्या करे। पत्र देखते हैं जिसमें किसी के मरने की या यह अधिक से अधिक लाल रक्त कण किसी दुर्घटना की खबर छपी होती है। छोड़ने लगते हैं और अन्ततः सोचता है कि उसे देखते ही व्यक्ति को झटका लगता मेरा पाला पागल व्यक्ति से पड़ गया है, है। वो कभी इस बात की सूचना नहीं देते मुझे समझ ही नहीं आता कि कब काम कि कितने लोगों को आत्म साक्षात्कार दिया करु, कब न करूं। ऐसा व्यक्ति सदैव गया है या कौन से अच्छे कार्य हो रहे हैं। असुरक्षित होता है और अचानक कोई अन्य वे सदैव ऐसे समाचार छापते हैं जो आपके सदमा पहुँचने से उसे रक्त कैंसर हो सकता मस्तिष्क को, आपके तालू क्षेत्र को आघात है। ऐसे में डाक्टर प्रमाणित कर देता है कि पहुँचाते हैं। अन्यथा आप उन्हें गम्भीरता से एक महीने में आपकी मृत्यु हो जाएगी। नहीं लेंगे। शरीर यन्त्र की कार्य प्रणाली सहजयोग ने बहुत से रक्त कैंसर रोगियों अत्यन्त कोमल है इसे झटका लगता है। को ठीक किया है क्योंकि कुण्डलिनी जब बिना नाश्ता किए आप कार मे बैठ जाते हैं जागृत होती है तो भूतकाल या भविष्यकाल या देर होने की वजह से नाश्ता आपके के हर समय चलने वाले विचार नियंत्रित हाथ में होता है या रास्ते पर ट्रैफिक जाम हो जाते हैं। कुण्डलिनी सहस्रार को पार होता है। आप चीखते-चिल्लाते हैं, किसी करती है और प्लीहा का पोषण करती है। तरह से कर करा के आप दफ्तर पहुँचते हैं कैसर तथा अन्य असाध्य रोगों के प्रति भेद्य और वहाँ पर आपका अफसर रौद्र रूप ६ होना भी इन्ही चक्रों की बिगड़ी हुई स्थिति Tरण किए होता है। इस तरह से आप पूरी कारण होता है। के तरह तनाव ग्रस्त हो रहे हैं। हम स्वतन्त्र उसके पश्चात् हृदय चक्र है। यह बाएं लोग हैं। रात को अपने घर में यदि आप और दाएं दोनों ओर का नियंत्रण करता है। ऊँची आवाज में गाते हैं तो पड़ोसी आपको जैसे आप जानते हैं रोगों से लड़ने के लिए थाने भेज देते हैं। आप कुछ भी नहीं कर उरोस्थित रोग प्रतिकारकों का सृजन करती पाते। किसी भी तरह से आप स्वतन्त्र नहीं | ये हमारी माँ का चक्र है। मातृत्व जब चुनौती मिलती है तो महिलाओं में आपने वहाँ पहुँचना है। इन सारी चीज़ों का स्तन कैंसर हो सुकता है। मान लो कोई हम पर प्रभाव होता है और हम उत्तेजना से परस्त्रियों के पीछे भागता है और भर जाते हैं। आपात स्थिति के लिए प्लीहा उसकी पत्नी चिंतित रहती है तो उसे स्तन ही लाल रक्त कोषाणु छोड़ता है परन्तु कैंसर हो सकता है क्योंकि उसके मातृत्व को है। | आप घड़ी से बंधे रहते हैं। इस समय पुरुष 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-41.txt माच-अ ल 2002 38 मैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 को चुनौती मिलती है और उसकी सुरक्षा आसानी से ठीक किया जा सकता है। की भावना डावाँडोल हो जाती है। इसके दायाँ हृदय पति या पिता का चक्र है । आप परिणामस्वरूप उसे ये समस्या हो सकती यदि अच्छे पति नहीं है या आपकी पत्नी है। आप बहुत अधिक सोचते है और अत्यन्त झगड़ालू स्वभाव की है, या आप अच्छे आक्रामक और भविष्यवादी बन जाते है। पिता नहीं हैं या आपके पिता आपके प्रति कुछ लोग बहुत अधिक योजनाएं बनाते हैं, क्रूर है या यदि आपने अपने पिता को क्षमा आज से दस साल आगे की। लोग यहाँ नहीं किया है तो आपको दमा रोग हो तक सोचते हैं कि मृत्यु होने पर उन्हें कौन सकता है। परन्तु पृथ्वी पर अवतरित होने से वस्त्र पहनाएं जाएंगे और उन्हें कहाँ से पूर्व हम स्वयं अपने माता-पिता का दफनाया जाएगा। इस प्रकार की भविष्यवादी चुनाव करते है। हो सकता है वो गलत हों योजनाएं शरीर में अत्यन्त भयानक गर्मी जिद्दी हों, सिरजोर हों। हो सकता है वे पैदा कर देती हैं। जिगर जो कि इस गर्मी शराबी हों परन्तु यदि आप उन्हें त्यागना का शोषण करता है, यह केन्द्र उसकी चाहें तो भी उनसे क्षमा लेलें और उन्हें क्षमा उपेक्षा कर देता है और परिणामस्वरूप ये कर दें अन्यथा ये समस्या आपके साथ बनी गर्मी ऊपर की ओर जाकर दाएं हृदय को रहेगी। प्रभावित करती है जिसके कारण व्यक्ति आपको अनन्त आशीर्वाद को दमा रोग हो सकता है। अस्थमा अत्यन्त 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-42.txt निर्मल वाणी माया के बगैर चित्त की तैयारी नहीं हमें इस शरीररूपी मन्दिर की देखभाल को अपना मुख्य कर्त्तव्यं समझकर सततु होती, अंतः इस माया से डरने के बजाय आगे बढ़ना है। पर यही उसे पहचानिए। प्रयत्न करते हुए तभी वह आपका मार्ग आपकी जिन्दगी का लक्ष्य नहीं होना चाहिए। प्रकाशित करेगी । जैसे सूर्य को बादल ढक यह तो एक अत्यन्त छोटा-सा हिस्सा है देते हैं और उसके दर्शन भी करा सकते अपनी जिन्दगी का, जैसे तमाम जगह स्वच्छ हैं। माया मिथ्या है, यह जानते ही वह कर आप बाहर आ जाते हैं। यदि आपको अलग हट जाती है, और सूर्य का दर्शन हो कोई समस्या है तो उसे भूल जाइए। शनैः जाता है। सूर्य (ब्रह्म, सत्य) तो सदा सर्वदा शनैः आपकी दशा में सुधार आ जाएगा है ही, परन्तु बादल (माया) का काम क्या मुख्य बात तो यह है कि अपनी आत्मा में होता है? बादलों की वजह से ही मन में रहें, संतुष्ट रहें। बारम्बार आग्रह न करें कि सूर्य-दर्शन की तीव्र इच्छा पैदा होती है। माँ हमें ठीक करें। परन्तु कहना चाहिए "माँ फिर सूर्य क्षणभर के लिए चमकता है और हमें आध्यात्मिक जीवन में स्थापित रखिए। छिप जाता है। इस कारण ऑँखों को सूर्य आप स्वतः इच्छानुसार रोगमुक्त हो जाएंगे। देखने की ताकत और हिम्मत आती है । 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-43.txt तिहाड जेल में बन्द साधकों के कुछ पत्र सहजयोग महायोग परम पूज्य माता जी मैं जेल में 27.10.99 सहजयोग करता हॅूँ। और आराम से रहता को आया तो मुझे पता नहीं था कि हमारे हूँ। श्री माता जी की कृपा से और अब मैं जेल न. 5 में सहजयोग हो रहा है। और मैं हमेशा करता रहूंगा और आशा करता हूँ वार्ड में था तो मुझे नहीं पता था कि कि जब तक जेल में रहूंगा तब तक और सहजयोग क्या है। इसके करने से क्या फायदा होता है। और जब मेरी गिनती कट रहूंगा कि जेल में रहकर मैंने सहजयोग कर वार्ड न. 7/4 में आया तो मैंने देखा किया और मेरे अन्दर इतने बदलाव आये कि बैरिक नं. चार में सहजयोग रोज होता और मैंने सोचा भी नहीं था कि जेल में है। और मैं ने भी करना शुरू किया तो एक रहकर मेरे अन्दर इतने परिवर्तन आ जायेगे हफ्ता तक मैं बहुत परेशान होता था कि और मैं ठीक हो जाऊँगा । इससे और ध्यान बाहर जाकर सबको अपने बारे में भी बताता इससे कोई फायदा नहीं है और यह एक लगाकर सहजयोग करता हूँ। फालतू का चीज़ है और जब मैंने दिल लगाकर करना शुरू किया तो मुझे बहुत पिता का नाम : मसी प्रसाद फायदे हुए। मेरा पैर टूट चुका था और पता : तुर्कमान नार्मल टैक्सी स्टैन्ड, उसमें सूजन थी, वह भी ठीक हो गया और गोरखपुर (यू.पी.) मैं शरीर से भी परेशान था वह भी ठीक हो तीहाड़ जेल न. 5/ रामकरण पुर गया। और अब मैं रोज सुबह-शाम हरिनगर डिपो, नई दिल्ली- 110064 ००০০ मैं जेल न. 5 के वार्ड न. 7 की वैरिक न. करना चाहता हूँ। कृप्या करके आप हमारी 4 का एक विचाराधीन बन्दी हूँ। सहजयोग अनुरोध को सुने सहजयोग करने में हमारी करना मुझे बहुत अच्छा लगता है। और सहायता करें और आने वाली परेशानी को अब मुझे किसी भी प्रकार की कोई परेशानी खत्म करवाये, आपकी अति होगी । नहीं रहती। मैं अपने आपको काफी हलका कृप्या धन्यवाद राकेश कुमार महसूस करता हूँ और आगे भी सहजयोग ००० 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-44.txt एक सहजी की अनुभूति श्री माता जी यद्धपि आपके द्वारा प्रदान करके इन सभी शब्दों को पूर्ण रूप से किये गये आनन्द व अनुभूति को शब्दों में चैतन्य से भर दिजिए । बताना या पिरोना कठिन ही नहीं अपितु असम्भव सा है क्योंकि हे देवी आप तो किये गये योग अवस्था में हम आत्मा आपके सभी शब्दों से परे हैं किन्तु श्री माता जी सुसज्जित गोरा (कुण्डलिनी) रूप का पिता आपके द्वारा प्रदत्त शब्द वॉणी एवं संगीत सँदाशिव से मिलन अर्थात सहस्रार तक आने ही ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा हम (आत्मा) की यात्रा का दर्शन पाते हैं उसका ही वर्णन का भाव आप से बता सकते हैं। हे माँ कृपा करनी की छोटी सी चेष्टा की है कृपा अनुमति कर इन सभी भावों (शब्दों) की अविद्या दूर दिजिए आपको कोटि-कोटि धन्यवाद! माँ इन शब्दों में जो आपके द्वारा प्रदान आत्म दर्शन आत्मा कहती है:- मेरे पाँच विकारों को बजकर, पंच तत्वू की देही नाम करी। रूपु सुनहरा धर कर के गोरा मिलने शिव धाम चली।। मेरे पाँच विकारों. ले भूत-भविष्य पहिये दो, वर्तमीन का देखो रथ है बना। पुग-पग देवों का वंदन है, चैतन्य का ऐसा पथ है बना।। ये दृश्य अलौकिक देखी मैं जीवन मेरा तुम प्राण भरी यूँ रुप सुनहरा. इस रथ, की क्या मैं छुटा कहूँ सब सूर्य-चन्द्र ये थोड़े हैं गणनायैक रथ को हॉक रहे, बुज़रंग, भैरव दो घोड़े हैं। माँ मुझ पर तुम उपकार किये धारण मुझको परिधान करी यूँ रूँप सुनहरा. ब्रुह्मा जी तुझको जन्म दिये विष्णु जी नैं श्रृंगार किया । आदिं गुरु ने तुमको शिक्षा दी तब दुर्गौ का आधार लिया।। अब मुँझको खुद में ले कर के करके तुम मुझको राम चली यूँ रुपे सुनहरा.. माँ शारदे वीणा वाद् करे बजूती है मुरूली कान्हा की। झूमी है सृष्टी सारी माँ कैरती हैं नृत्य यूँ राधा जी।। तुम क्षमा आभूषणी धारे हो, ईसा माँ तुझको द्वार करी। यूँ रुप सुनहरी. डमरू धड़कन् कैलाश बाजे शिव चरणून में माँ अर्पित हैं। नेटराज़ के प्रेम की वर्षा में अब रोम-रोम माँ गर्वित है।। कहाँ मुझे माँ ले आये मेरी स्वर्ग में सुबूह-शाम करी यूँ रुपु सुनहरा धर कर के, गोरा मिलने शिव धाम चली मेरे पाँच.. ला कोटि-कोटि नमन जय श्री माता जी 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-45.txt विद्यार्थी को सहजयोग से लाभ श्री माताजी, आपकी परम कृपा से हम है, आप उसकी जानकार हैं। मेरे इस कलम जो भी पढ़ते हैं, वह हमारे ध्यान में रहे, से जो भी स्याही निकलेगी वह आप ही ऐसा ही हो। परम् पूज्य श्री माताजी को है। मैं सफल हुआ तो वह सफलता मेरे देह अपना गुरु मानकर अपनी प्रगति कीजिए की होगी, परंतु अगर मैं असफल रहा तो और अपना सुधार कीजिए। श्री माताजी असफल होने का कारण ढूंढकर उसमें एक असामान्य अद्वितीय एवम् अलौलिक सुधार करूंगा यद्यपि इस परीक्षा को मैं व्यक्तित्व हैं। हमें उन्हें पहचानना चाहिए। लिख रहा हूँ परंतु मेरे द्वारा आप ही इस परीक्षा में सफल होना, हर मनुष्य के भौतिक परीक्षा को लिख रही हैं । उन्नति का एक अभिन्न अंग है। केवल डिग्री प्राप्त कर लेने से शिक्षा प्राप्ति का () पढ़ाई का कोई छोटा और आसान पथ अभ्यास की पद्धति अंत नहीं होता अपना ज्ञान बढ़ाना बहुत नहीं है। परिश्रम से ही फल की प्राप्ति हो सकती है। आवश्यक है। अपनी ज्ञानवृद्धि से, और अपने को जान लेने से हम श्री माताजी और सहजयोग को अधिक समझ पाऍँगे। (2) हमेशा प्रसन्नचित और खुश रहना चाहिए । सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अधिक से अधिक भाग लेने से हमारे व्यक्तित्व का विकास (3) हर दिन ध्यान करना, सफलता की होता है। सहजयोगियों की परीक्षा में अच्छे अंक लाने पर श्री माताजी हर्षित होती हैं। (4) हमें ध्यान और परिश्रम दोनों में संतुलन सीढ़ी का पहला पड़ाव है। रखना है। केवल ध्यान से ही सफलता अच्छे अंक प्राप्त करना और अपना भविष्य नहीं मिल सकती। निर्माण करना, हर सहजयोगी का धर्म है । हम इस पूर्ण के एक सूक्ष्म भाग हैं। यद्यपि (5) परीक्षा में लिखते समय चित्त को नम्र हम सभी उच्च कोटि के गायक, चिकित्सक आदि नहीं बन सकते परंतु श्री माताजी के (6) परीक्षा से पहले ठंडे पानी और बाहरी और एकाग्र रखिए। भोजन से दूर रहिए। ध्यान से हम अपनी क्षमता में वृद्धि कर सकते हैं। (7) अपने चित्त को शुद्ध करके पढ़ना आवश्यक है। इससे चित्त स्थिर और परीक्षा के पूर्व श्री माताजी से प्रार्थना श्री माताजी मैंने जो भी अभ्यास किया शांत रहता है। 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-46.txt ।ा।।-3प ल 2002 43 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 3 व 4 (৪) परीक्षा के समय श्री माताजी की फोटो अपने पास रख परीक्षा दे सकते हैं । ज्यादा प्रश्नों को हल करने का प्रयत्न करें। (७) परीक्षा में उपयोग में आनेवाली वस्तुओं की लिस्ट बनाकर उसे एक दिन जमा (12)पेपर के अंत में अपने लिखे का दोबारा पठन कीजिए । हुए उत्तरों कर लीजिए । (13) पेपर वापस करते समय चित्त से श्री माताजी को अर्पण कीजिए। (10) श्री माताजी से प्रार्थना करनी चाहिए। 'श्री माताजी आप ज्ञान के सागर हैं। (14) पेपर के विषय में चर्चा न करे, घर जाकर अगले विषय की तैयारी करें । आप ही मुझसे यह परीक्षा लिखवा रही हैं। मंत्र का उच्चारण करना चाहिए या देवी सर्व भूतेषु बुद्धिरुपेण, शांतीरुपेण (15) तीखा, मीठे, कड़वे और अतिशीत वस्तुओं संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः | से दूर रहें। (16)ध्यान और अभ्यास का योग्य नियोजन करें। (11) पेपर मिलने पर उसे बंधन दीजिए । पेपर कठिन होने पर भी ज्यादा से (17)रोज 5-10 मिनट पानी पैर क्रिया करें। 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-47.txt है नवरात्रि पूजा, लोतराकी, यूनान, 21.10.2001