IRMALA मईजून, 2002 खंड : XIV अंक : 5 व6 PURE चैतन्य लहरी परमात्मा को इस बात की चिन्ता नहीं कि आप कितने धनवान है या कितने निर्धन वो तो केवल इतना खते हैं कि आप आध्यात्मिक रूप से कितने वैभवशाली हैं उन्हें आपकी उच्च शिक्षा, उच्च उपाधियों तथ लंकरणों से कुछ लेना-देना नहीं। वो तो केवल इतना देखते है कि आप कितने पावन एवं अबोध हैं। परम पूज्य माताजी NOIDAN DHARMA VHSIA UNIVERSAL े क दिवाली पूजा 1 लॉस एंजलिस 18.11.2001 11 क्रिसमस पूजा - गणपतिपुले 25.12.2001 21 मकर संक्रान्ति पूजा पालम विहार 13.4.2002 ४ गणेश पूजा 8.8.1989 37 औरंगाबाद पूजा 19.12.1989 ३७ श्रीरामपुर पूजा - 21.12.1989 शर हं दिवाली पूजा ा लॉस एंजलिस 18.11.2001 (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) समझ न होने के कारण ही वह ऐसा करता आज का दिन अत्यंत मंगलमय है क्योंकि आज असुर का दमन हो गया है। है सत्य को प्राप्त करने का ज्ञान ऐसे आसुरी शक्तियाँ दो कारणों से अपनी व्यक्ति में नहीं होता फिर भी वह स्वयं को म शक्ति सर्वत्र फैलाती हैं :- पहला कारण है अत्यन्त ज्ञानवान मानता है। यह सब होने आप में ज्ञान का अभाव। ऑँखें बन्द करके के बावजूद भी बहुत से ऐसे दल थे, बहुत आप गलत चीज़ों का अनुसरण करते चले से मूर्ख लोग थे जो अज्ञानता के कारण जाते हैं और सोचते हैं कि आप शक्त्तिशाली पूरी तरह नष्ट हो रहे थे। सहज में आने हैं। यह भ्रम केवल समस्याएं ही नहीं खड़ी वाले आप लोगों को पूर्ण ज्ञान है यह ज्ञान करता, पूर्ण विनाश भी करता है। नि:सन्देह अत्यन्त-अत्यन्त सूक्ष्म है, यह सतही ज्ञान हमने एक बहुत बड़ी चुनौती का सामना नहीं है। यह बहुत सूक्ष्म है। परन्तु इसका किया परन्तु सुगमता से इसका समाधान ज्ञान न होने के कारण लोग अज्ञान का गलत मार्ग अपना लेते हैं और अच्छे कार्य आधारित थी तथा समस्या खड़ी करना करने वालों का विरोध करते हैं। परन्तु इसका उद्देश्य था। किसी लक्ष्य को लेकर परमात्मा की शक्ति सर्वोपरि है। उसी महान यह समस्या बनाई गई थी परन्तु कोई भी शक्ति के अस्तित्व के प्रमाणित करने के इस बात की कल्पना न कर सकता था लिए ही यह सारा नाटक खेला गया है। इतनी सुगमता से और इतने कम समय में यह अत्यन्त अच्छी तरह से कार्यान्वित हुआ इसका समाधान हो जाएगा। मेरी इच्छा थी है और आप सब सहज योगियों के लिए कि दिवाली से पूर्व इस पर काबू पा लिया यह बहुत महान उपलब्धि है कि आप यह नाटक देख सकते हैं। बहुत से तथा-कथित सफल लोग इस नाटक को नहीं देख सकते, अज्ञानता के कारण भी लोग बहुत से परन्तु आप इसे देख सकते हैं क्योंकि आप कार्य करते हैं। किसी भी तथा-कथित धर्म तो मात्र दर्शक हैं। पूरा विश्व यद्यपि इसका या ऐसी किसी भी चीज़ का जब कोई अंग-प्रत्यंग है, आप इससे बाहर हैं और अनुसरण करता है तो सत्य के विषय में इसे स्पष्ट देख सकते हैं। जो भी कुछ 1 कर लिया। यह गलत सिद्धांतों पर जाए और मैंने ऐसा कर दिया है। मई-जून 2002 2 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 घटित हुआ है उस पर किसी को विश्वास होती है। परन्तु हम मानवों में ये शक्ति नहीं होता-कि यह दिवाली से पूर्व समाप्त नहीं होती कोई व्यक्ति यदि अपराधी है हो जाएगा। तो यह सब इसी प्रकार होता तो कुत्ता उस पर भौंकेगा या उस पर है-मूर्खता का यह सृजन-और हम भी झपटकर उसे गिरा देगा । वो सभी ऐसे कभी-कभी सोचते हैं कि यह मूर्खतापूर्ण कार्य करते हैं जो सामान्यतः वे नहीं करते चीज़ अन्य लोगों को प्रभावित करेगी। किस प्रकार कुत्तों में ये गुण विकसित हो प्रभावित करना महत्वपूर्ण नहीं। इन हारे गया है कि कौन चोर है और कौन नहीं । हुए लोगों को यदि आप देखें तो उन्होंने हम मनुष्यों में उच्च चेतना है और हम कौन सी छाप छोड़ी हैं? विश्व को प्रभावित बहुत सी चीजों के विषय में सोचते हैं, पशु करने के लिए वे वहाँ थे, यह दर्शाने के इन सब चीजों के विषय में नहीं सोच लिए कि वे महान योद्धा तथा लड़ाके हैं। सकते हम अपना खाना पकाते हैं पशु परन्तु उन्होंने क्या छाप छोड़ी? वे नहीं पकाते। मुझे तो कई बार ऐसा लगता आत्मसाक्षात्कारी हों या न हों फिर भी देख है कि हम अपना मस्तिष्क भी पकाते हैं। सकते हैं कि यह चमत्कार है। घटनाओं जिस प्रकार लोग व्यवहार करते हैं और अपने अहं के कारण सत्य से कन्नी काटने TI का इस प्रकार घटित होना चमत्कार है। का प्रयत्न करते हैं उस पर मुझे हैरानी होती है । क अब नया पक्ष आरम्भ हो गया है। आप होगे ुम सब के सम्मुख खुली चुनौती है कि लोगों को आत्मसाक्षात्कार दें। अब लोग इतने अज्ञानी नहीं हैं, वे इतने अभिशप्त नहीं हैं । नाटक था परन्तु आप इसका ठीक से अब मैं उन्हें परिवर्तित हुए पाती हूँ। सत्य अध्ययन करें और स्वयं पर लागू करके ये के प्रति उनका दृष्टिकोण बदल गया है देखें कि कहीं आप भी इस नाटक के और अब वे समझ गए हैं कि जिन अनुभवों अंग-प्रत्यंग तो नहीं । इसके लिए आपको में से वे गुजरे हैं सत्य उससे परे हैं। यह ऊँचा उठना होगा, और ऊँचा उठना होगा, बहुत आवश्यक है क्योंकि यदि मानव किसी अपने अहं प्रति अहं और अपने बन्धनों से बात को सत्य मान ले तो वह उसी में फँस ऊँचा और वहाँ से स्वयं को देखना होगा । जाता है। चाहे जो भी हो वो उसी में फँसा आपको स्वयं देखना होगा कि यह क्या है। रहता है। वो ये परखने का भी प्रयत्न नहीं क्यों मैं यह सब कार्य कर रहा हूँ क्यों मेरा करता कि यह सत्य है या नहीं। पशु इस चित्त ऐसा है, मेरे बाधित होने का क्या बात को समझ सकते हैं क्योंकि उनके कारण है - मेरी नासमझी का क्या कारण अन्दर बुराई को सूँघने की अन्तर्जात शक्ति है, क्यों मैं गलत चीजों को स्वीकार करता जो कुछ भी घटित हुआ ये सब एक मई-जून 2002 3 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 हूँ? एक बार जब आप इसे देखने लगेंगे कार्य करेगा। तब आपकी वास्तविक शक्तियाँ और अपने अन्दर निहित मूर्खता को यदि जाग उठेंगी-आत्म साक्षात्कार देने की आप तनिक सा भी देख लेंगे तब आप उन आपकी शक्तियाँ, अपने देश की तथा पूरे लोगों को भी क्षमा कर सकेंगे जिनकी बुद्धि विश्व की समस्याओं को समझने की आपकी को भ्रमित कर दिया गया है-पूर्णतः भ्रमित शक्तियाँ जब आपको ये महसूस हो जाएगा तथा इसी भ्रम के प्रभाव में जिन्होंने सभी कि आप ही इन गलत चीजों से लड़ने वाले कार्य किए हैं। स्थिति के अनुसार अब आप सिपाही हैं, इनको समाप्त करने की अन्य सब लोगों से ऊँचे उठ चुके हैं और जिम्मेदारी आपकी है तो चीजें कार्यान्वित उन सब से अधिक चेतन हैं। अतः आपको हो जाएंगी। सभी कार्य आप परमेश्वरी यह बात समझनी होगी, केवल तभी आप शक्ति पर नहीं छोड़ सकते। आपको उनके सभी अपराधों को क्षमा कर सकेंगे। अपनी दिव्य शक्तियों का उपयोग करना जो लोग वास्तव में खराब हैं उनके होगा और इस कार्य को करना होगा लिए चिन्तित होना आपका कार्य नहीं क्योंकि आप ही परमात्मा के सिपाही है । उन्हें नष्ट करना परमेश्वरी शक्ति हैं। निःसन्देह इस सुन्दर विचार के साथ का कार्य है । परन्तु आपको स्वयं को ही आप अपना शुद्धीकरण करने लगते हैं। देखना है और स्वयं पता लगाना है कि आपको सभी रहस्य जानने की कोई क्या आपमें अभी तक भी ऐसे कुछ विचार आवश्यकता नहीं है कि क्या घटित हो रहा हैं। कहने से अभिप्राय है कि आप है और कैसे घटित हो रहा है, वो कैसे | बचे हुए दर्पण को अच्छी तरह से साफ करें ताकि कार्य कर रहे हैं, ये आपका कार्य नहीं है। अपनी वास्तविकता को ठीक से देख सकें। आप एक सिपाही हैं, आपको तो बस युद्ध प्रयत्न करें, देखें और इसे साफ करने की करना है, अपनी तथा अन्य लोगों की कोशिश करें स्वयं को शुद्ध करना बहुत अज्ञानता से युद्ध क्योंकि सिपाहियों में जब ही महत्वपूर्ण है । अहं भाव आ जाता है तो प्रायः वो असफल हो जाते हैं और असफल होने पर उनके ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने बहुत से मस्तिष्क में अन्य बाधाएं आ जाती हैं। गलत कार्य किए हैं, मुझे उन पर दया बाधाएं नहीं होनी चाहिएं, आपको आगे बढ़ते आती है। उन्होंने गलत कार्य किए हैं। ये जाना है। अब आपके सम्मुख कोई भी देखना उनकी जिम्मेदारी है कि वो क्या करते रहे और क्यों करते रहे। ये सब सम्मुख अभी भी कुछ ऐसी समस्याएं हैं दुष्कर्म करने की क्या आवश्यकता थी? ये जिन पर हम काबू नहीं पा सकते। लोगों सारा अन्तर्वलोकन बहुत अच्छी तरह से की चेतना की उत्क्रान्ति सुगम कार्य नहीं बाधा नहीं है। ये बात मिथ्या है कि हमारे चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 4 है। लगता है कि इसके लिए पार-पथ की परन्तु यह अडोल खड़ी रहता है। इसका दूरी बहुत कम है। परन्तु वास्तविकता यह कारण ये है कि यह बहुत दृढ़तापूर्वक नहीं है, बात ऐसी नहीं है कुछ लोगों को बना है इसी प्रकार सहजयोग भी बहुत आज्ञा के बन्धनों से निकालना कभी-कभी दृढ़ता-पूर्वक बनाया गया है, कोई इसे कठिन कार्य होता है । मैं देखती हूं न तो नष्ट कर सकता है और न ही बहुत कि इस बिन्दू पर आकर आपमें से कुछ तोड़-मरोड़ सकता है। सभी को यही कार्य लोग असफल हो जाते हैं। लोगों करना है। उदाहरण के रूप में कुछ ने आकर मुझे बताया कि आपके सहजयोगी अन्तर्वलोकन इस स्थिति से उबरने ऐसे हैं, वैसे हैं, बहुत दिखावा करते हैं। का सर्वोत्तम उपाय है जब आपको मैंने कहा, "वास्तव में? मुझे यकीन नहीं ऐसा प्रतीत हो कि आप हमेशा ठीक हैं होता कि वो ऐसे हो सकते हैं! मैंने कहा, तो अन्तर्वलोकन करना सर्वोत्तम है । कि जो भी व्यक्ति ऐसा है उससे मैं क्या मैं सभी कुछ ठीक-ठीक कर रहा हूँ मिलना चाहूँगी तो वो कहने लगे नहीं, या नहीं, क्या मैं अपनी उत्क्रान्ति के लिए आप स्वयं पता लगा सकती हैं कि वो कौन कार्य कर रहा हूँ। भ्रम की स्थिति ऐसी हैं और क्यों इस तरह का व्यवहार करते होती है कि आप सोचते हैं कि आप ठीक हैं। मैंने उत्तर दिया मैं स्वयं तो सब कार्य कर रहे हैं। हमारे सहजयोग में कुछ जानती हूँ, परन्तु मैं चाहती हूँ आगे आते हैं, ये कार्य कि आप लोग ये समझें कि अन्य लोगों करते हैं, वो कार्य करते हैं। परन्तु ये के दोष खोजना बहुत सुगम है और सब कार्य करने के पीछे उनका उद्देश्य बहुत अच्छा भी लगता है परन्तु आप क्या है? कार्य करने में उनका उद्देश्य अपने अन्दर के दोषों को देखें । कौन केवल इतना होता है कि लोग उन्हें सी चीजें हमें भ्रमित कर रही हैं? देखें कि वो कार्य कर रहे हैं। वास्तव में अपनी चेतना को बेहतर बनाने का हमारा उद्देश्य अपने अन्दर की वास्तविकता यह सर्वोत्तम उपाय है। जैसे कार में लोग बहुत कुछ को देख पाना होना चाहिए। आपको देखना जाते हुए आपको सड़क का ज्ञान होना चाहिए कि आपके अन्दर क्या समस्या है । चाहिए, आपको ये पता होना चाहिए यह बात आप अच्छी तरह से समझ सकते कि आप कैसे गाड़ी चला रहे हैं। आपको हैं कि आप अपने तथा अन्य लोगों के लिए देखना चाहिए कि कौन सी समस्याएं हैं। सहायक रहें। उदाहरण के रूप में एक परन्तु ऐसा करने की अपेक्षा यदि आप बहुत बड़ा भवन है, उसके आस-पास के अपने को बहुत बड़ा तूफान समझते हैं तो सारे भवन भूचाल में धराशायी हो जाते हैं ठीक न होगा । मई-जून 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 5 आज का दिन बहुत बड़े उत्सव का आप फँसे रहेंगे तो अपने दोषों को न जान दिन है। मैं कहना चाहूँगी कि दिवाली का पाएंगे। उत्सव मनाना अत्यन्त-अत्यन्त आनन्ददायी है। परन्तु ये आनन्द केवल हमारे लिए ही नहीं है, यह पूरे विश्व के लिए है। हमें पूरे क्या है? हमें पूरे विश्व को शान्तिमय बनाना विश्व के लिए कार्य करना हैं अपने है। निःसन्देह स्वयं को परिवर्तित करना लिए, अपनी नौकरियों के लिए, धनार्जन बहुत महान बात है परन्तु अन्य लोगों को के लिए हमने कार्य किया परन्तु अन्य परिवर्तित करने से भी हम विश्व की सारी लोगों के लिए आप क्या कर रहे हैं? समस्याओं का अन्त कर सकते हैं। विश्व अपने अन्दर झाँककर ये देखना बहुत के सभी लोग यदि अच्छे बन जाएं और आवश्यक है। सहजयोग में केवल ऐसे सहजयोगी बन जाएं तो आप कल्पना करें ही लोग उपयोगी हो सकते हैं क्योंकि कि ये विश्व कैसा हो जाएगा! मेरे उस अब, आखिरकार हमारे जीवन का लक्ष्य उनके अन्दर करुणा एवं स्नेह-भाव होतास्वप्न के बारे में सोचें कि हमें सभी लोगों है और वे अन्य लोगों के हित के लिए कुछ का हृदय परिवर्तन करना है। ये कार्य हम करते हैं। किसी के लिए कुछ करना अत्यन्त आनन्ददायी होता है। दीप जब जलता है बना सकते हैं । बिना परिवर्तित ये लोग तो आपको प्रकाश देने के लिए अपने शरीर प्रकाशविहीन दीपक सम हैं लोगों में यदि को जलाता है। ऐसे लोग हमें सिखाते हैं परिवर्तित होने की संभावना है तो हमें सभी कि अपनी उच्च चेतना का आनन्द लेने के तरीके, सभी विविधाँ उन्हें परिवर्तित करने लिए हमें स्वयं भी कुछ करना चाहिए। मुझे के लिए अपनानी चाहिएं। मुझे विश्वास है पूर्ण विश्वास है कि यह सब कार्यान्वित कि अत्यन्त शीघ्र ऐसा दिन आएगा जब होगा इस प्रकाश को स्थिर तथा उत्साहपूर्ण आप कहेंगे श्रीमाताजी अब हम बिल्कुल बनाने के लिए भी मैं प्रयत्न कर रही हूँ ये सुरक्षित हैं। हो रहा है। आप लोग अपने कुम्भ भरने के लिए उत्सुक हैं, आप ऐसा कर सकते हैं । मेरे चिन्ता करने से आपका कोई भला न के विषय में न सोचे। अब आप इन पर होगा। अपनी वास्तविक तस्वीर यदि आप काबू पा चुके हैं। अपना आनन्द लें स्वयं देखना चाहेंगे तो भी उसमें आपको रुकावट पर विश्वास करें और इसे कार्यान्वित करें। होगी सर्वप्रथम आप स्वयं से मोह त्याग मुझे विश्वास है कि शीघ्र ही अत्यन्त तेजी कर सकते हैं। सभी लोगों को हम अच्छा हुए 1 बीते हुए समय तथा उसकी समस्याओं से यह घटित होगा। आपकी भी यही इच्छा दें। अन्यथा आप कभी ये न जान पाएंगे कि आपमें क्या दोष हैं। स्वयं से मोह में यदि है। इसे कार्यान्वित करने की विधियाँ आपके मई-जून 2002 6 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 पास हैं, इसे करने की जिज्ञासा भी आपमें दीपों की आवश्यकता है। अपने दीप से हैं। हमारी मुख्य चिन्ता यही होनी चाहिए आपको अन्य दीप प्रज्जवलित करने होंगे। कि 'किस प्रकार मैं इस व्यक्ति को परिवर्तित ये किसी भी दीपक को प्रज्जवलित कर कर सकता हूँ?" हर परिचित को आप सकता है। अतः किसी भी कीमत पर, किसी परिवर्तित कर सकते हैं। आप एक व्यक्ति भी स्थान पर इस कार्य को करें। मैं कुछ को सहज के विषय में बताएं तो दूसरा सहजयोगियों से मिली और उनसे पूछा कि व्यक्ति भी इसका अनुसरण करने लगता तुमने क्या किया है? वो कहने लगे कुछ है- जैसे आज जब हम हवाई अड्डे पर नहीं, हमने कुछ भी नहीं किया। क्यों? आए तो बहुत से लोगों ने मेरी ओर अपने आपने यदि कुछ भी नहीं किया तो आपका हाथ फैलाए हुए थे। मैंने "ये लोग आत्म-साक्षात्कार पाने का क्या लाभ हैं? कौन हैं? वे सहजयोगी नहीं थे ऐसा आप किसी को आत्म-साक्षात्कार नहीं देना करते हुए उन्होंने किसी को देखा होगा, ये चाहते, किसी से आप सहजयोग की बात बात मैं उनसे पूछ न सकी। परन्तु सभी ने नहीं करना चाहते, ऐसा करने में आपको बताया कि अपने हाथों पर वे शीतल लहरियाँ शर्म आती है! कृुछ अन्य-सहजयोंगियों से महसूस कर रहे हैं। इसके विषय में कवे कुछ मैं मिली तो उन्होंने कहा, कि श्रीमाताजी भी न जानते थे, कुण्डलिनी के विषय में वे हम अभी आपके कार्यक्रम से लौटे हैं । कुछ भी न जानते थे, कुछ भी नहीं। फिर आपको इतना विलम्ब कैसे हो गया? क्योंकि ये शीतल लहरियाँ क्यों आ रही हैं? हमने हमें बताया गया कि बम्ब का खतरा है। तो केवल अपने विचार उन्हें बताने हैं और आप बाहर प्रतीक्षा कर रहे थे? हाँ । कितने पूछा उन पर नाराज़ होने के स्थान पर अपना लोग? हम सभी हजारों लोग वहाँ प्रतीक्षा प्रेम उन्हें देना है। उन्हें अवसर प्रदान करना कर रहे थे और वहां कोई बम्ब न था। जब बहुत अच्छी बात है। आप आश्चर्य-चकित उन्होंने कहा कि यहाँ कोई बम्ब नहीं है तब होंगे कि परिवर्तित होने के लिए वे कितने हम अन्दर गए और हमें आत्मसाक्षात्कार उत्सुक हैं। बनावटी चीजें जो उनके पास मिला। परन्तु आप तो आत्म-साक्षात्कारी उनसे वे तंग आ चुके हैं। आप हैरान लोग थे नहीं, हमें ऐसा एहसास था कि हमें होंगे कि कितने लोग आपसे आत्म- कुछ समय प्रतीक्षा करनी है। परन्तु अब साक्षात्कार लेने की प्रतीक्षा कर रहे हैं! हमें पूर्ण विश्वास है कोई हमें हानि नहीं उन्हें भी दिवाली मनाने और दिवाली का पहुँचा सकता, कष्ट नहीं दे सकता, हम पर आनन्द लेने का अवसर प्रदान करें केवल काबू नहीं पा सकता। हम स्वयं ही स्वयं एक दीप से आप दिवाली नहीं मना सकतें दिवाली मनाने के लिए आपको बहुत से कि सहजयोग में अन्तर्वलोकन बहुत । को हानि पहुँचाते हैं। अतः मैं पुनः कहूंगी त मई-जून 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 महत्वपूर्ण है। प्रकाश आपके अन्दर है, आपको पिताजी बीमार हैं आदि-आदि। ये सारे सम्बन्ध तो आपकी हत्या करने के लिए हैं। अतः न कोई आपका भाई है न बहन, इसकी देखभाल करनी है। बहुत से लोगों के मुँह से जब मैंने सुना केवल सहजयोगी आपके भाई-बहन है । कि उन्हें दिवाली का आशीर्वाद प्राप्त हुआ अब आपके कुछ चरचेरे-ममेरे भाई बहन हैं है तो मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। कल यहाँ तो होने दें, उनकी चिन्ता करना आपका जो वर्षा हुई वह कितनी समय पर थी । कार्य नहीं है । यहाँ आने से पहले मुझे कुछ विश्व के इतिहास में ऐसा कभी कभी घटित पत्र मिले जिनमें लिखा था कि किसी के नहीं हुआ। तो कल ही क्यों ये वर्षा हुई चर्चेरे ममेरे भाई बहन का चरचेरा ममेरा और आपको एक नया अनुभव देने का भाई-बहन बीमार है तो मैंने उस महिला से प्रयत्न किया? आज ऐसा समय है कि प्रकृति पूछा कि क्यों आप इन चचेरे-ममेरे भाई- भी जानती है, और हमें भी जानना चाहिए, बहनों के बारे में लिखती रहती हैं? तो कि यह विशेष कार्य का समय है। मुझे जो कहती है, श्रीमाताजी मैं सहजयोग फैलाने पत्र मिलते हैं प्रायः उनमें बीमारी के विषय का प्रयत्न कर रही हूं। ये लोग यदि ठीक में लिखा होता है या सहजयोगियों के हो जाएंगे तो सहजयोग में आ जाएगें ।" माता-पिता या सम्बन्धियों की बीमारी के सहजयोग फैलाने का हमारा ये कोई तरीका बारे में, कुछ पत्र टूटी हुई शादियों के नहीं है ये तो एक प्रकार के विज्ञापन हैं विषय में बताते हैं। सभी प्रकार की बेवकूफियों कि आप पहले किसी को रोगमुक्त करें के विषय में लोग लिखते हैं। इसका कारण और तब वे सहजयोग में आए। हमें ऐसे ये हैं कि या तो ये लिखने वाले आत्म - लोगों की आवश्यकता नहीं है। मैं कभी साक्षात्कारी नहीं हैं या अधकचरे हैं। अन्यथा किसी को दुख नहीं पहुँचाना चाहती परन्तु वे सोचते कि क्यों हमें श्रीमाताजी को इसके मैं आपको सुधारना चाहती हूँ। सूझ-बूझ विषय में लिखना है हम स्वयं इस कार्य और विवेक देना चाहती हूँ। आप सहजयोगी को कर सकते हैं । ऐसी चीजे लिखने की किसलिए हैं? अपने सभी सम्बन्धियों आदि अपेक्षा व्यक्ति को लिखना चाहिए कि उसने को ठीक करने के लिए? हो सकता है वो कौन सी उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं, किस अपनी गलतियों आदि के लिए बीमार हों प्रकार ये उपलब्धियाँ पाई हैं, किस प्रकार ऐसे सब लोगों पर चित्त देने की अपेक्षा अन्य लोगों का प्रेम प्राप्त किया है. छोटे-छोटे आप स्वयं पर चित्त डालें और अपने उत्थान गाँवों में किस प्रकार सहजयोग कार्यान्वित पर चित्त डालें। आपको अपना सम्मान करना किया है। ऐसा लिखना ये लिखने से कहीं होगा आप यदि उनके सम्बन्धी हैं तो भी अच्छा है कि 'मेरे माताजी बीमार हैं, 'मेरे ये आपकी ज़िम्मेदारी नहीं है। विवेक इस चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 8 बात को समझने में हैं कि हम यहाँ पर उनसे मेरा क्या सम्बन्ध हैं? वे सहजयोगी उच्च कोटि का विशेष कार्य करने के लिए नहीं है। मैं केवल सहजयोगियों के लिए आए हैं। परन्तु ऐसा होता नहीं और ये जिम्मेदार हूँ। जब वो सहजयोगी नहीं है लोग लिखने में लगे रहते हैं । तो क्यों आप मुझे कष्ट देते हैं? ये बात ा एक महिला का सहजयोग में विवाह आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करना आवश्यक है। हुआ। उसने मुझे पत्र लिखा कि आठ या जो लोग आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना चाहते नौ महीने पहले उसका तलाक हो गया है। हैं आप उन्हें आत्म-साक्षात्कार दें और ठीक सभी लोग अब मुझे कह रहे हैं तुमने सहजयोग में विवाह किया और उधर भटकने वाले, सभी प्रकार के उल्टे सहजयोग की आलोचना कर रहे हैं। मैंने सीधे कार्य करने वालों के पीछे पड़े रहते कहा, "सहजयोग में विवाह करने के लिए हैं। आपके इस प्रकार के कार्यों से चिढ़ उसे किसने कहा था, मैंने तो नहीं कहा। चढ़ती है और परेशानी होती है । इन लोगों तो अब विवाह ही उसके लिए मुख्य चीज से मेरा कोई सम्बन्ध नहीं। आपको भी बन गया है कि मेरे परिवार के सभी लोग उनकी चिन्ता छोड़ देनी चाहिए। आपको ऐसा कर रहे हैं । उन्होंने सहजयोग के यह देखना होगा कि ये बातें बनाने वालें लिए क्या किया है? उसके विवाह समस्या लोग सहजयोग में आ सकें और आप उन्हें यदि ठीक नहीं होती तो वो लोग कहेंगे बताएं कि बो क्योंकि सहजयोग में नहीं हैं, सहजयोग में कुछ कमी है। उन्हें कहने इसी कारण उन्हें सारी समस्याएं हैं। दो। हमने ऐसा कोई वचन नहीं दिया। मैं सहजयोग में न होने के कारण ही उनके हमेशा तुमसे कहती हैँ कि अपनी माँ पिता, साथ ये सारी समस्याएं हैं। हम सब ठीक ये, वो के बारे में मुझे न लिखा करें। आप हैं बहुत अच्छे हैं। सहजयोग क्योंकि सबके यदि उन्हें ठीक करना नहीं जानते हैं तो लिए खुला हैं सभी प्रकार के लोग यहाँ सहजयोग छोड़ दें। आप स्वयं उन्हें ठीक आते हैं। कर सकते हैं, स्वयं इस कार्य को कर सकते है, परन्तु प्रतिदिन आप लोग मुझे इतने सारे पत्र लिख भेजते हैं! मैं उनसे आप स्वयं को वचन दें कि 'मैं उन पूछती हूँ कि क्या तुम्हारे पिता सहजयोग लोगों पर अपनी शक्ति बर्बाद नहीं में हैं? नहीं, श्रीमाताजी। न कोई भाई सहज में है और न कोई और परिवार का सदस्य। तो क्यों उनके बारे में मुझसे पूछते हैं। समझ पाना असंभव है। सहजयोग में कि क्यों से स्थापित करें। परन्तु आप लोग इधर- 1 आज दिवाली के दिन मैं चाहूंगी कि करूंगा जो सहजयोग में नही हैं ऐसा करना बहुत आवश्यक है क्योंकि हर समय चित्त व्यर्थ में गलत चीज़ों पर ही बना चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 9 रहता है। आपमें यदि थोड़ी सी भी बुद्धि है सक्रिय हैं और कुछ अन्य केवल आलोचना तो आपको समझना चाहिए कि अब आप करने में ही सक्रिय हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है बहुत उच्च कोटि के आध्यात्मिक लोगों से कि ये सब आपने कार्यान्वित करना है सम्बन्धित हैं ऐसे लोग संसार में बहुत कम क्योंकि यह वर्ष महान उपलब्धियों तथा हैं इन लोगों की संख्या बहुत कम है। सफलता का है। परन्तु यदि आप मूर्खतापूर्ण आप लोगों को चाहिए कि जी जान से कार्य करने लगेंगे तो कुछ भी कार्यान्वित न प्रयत्न करें कि अधिक से अधिक लोगों में होगा नि:सन्देह, मैं ये नहीं कहती कि इसे प्राप्त करने की जिज्ञासा हो। आप हमारे यहाँ अच्छे सहजयोगी नहीं है। ऐसे लोगों को बताएं कि आप इस स्थिति को लोग हमारे यहाँ हैं। हमारे यहाँ ऐसे सिपाही पा चुके हैं और वो भी इसे पा सकते हैं। हैं, उनके पास सभी प्रकार के शस्त्र हैं. व्यर्थ की चीज़ों की चिन्ता न करें आपको सभी कुछ है। परन्तु हमें और अधिक इस बात का ज्ञान होना आवश्यक है कि सहजयोगियों की आवश्यकता है क्योंकि आप एक विशेष प्रजाति हैं, विशेष प्रकार के हमें यह कार्य सामूहिक रूप से कार्यान्वित सिपाही हैं जिन्हें सहज कार्य करने के लिए करना है। अतः योजना बनाएं कि हमें क्या प्रशिक्षित किया गया है अतः अपने करना चाहिए । सम्बन्धियों, भाइयों और बहनों पर शक्ति बर्बाद करना आपके हित में नहीं है। ये बात समझी जानी आवश्यक है कि आप में बहुत बड़ा वाद-विवाद हुआ था। हम न अपनी शक्ति को संभाल कर रखें । हाल ही में इस्लामिक आचरण के बारे तो ईसाई हैं, न मुसलमान हैं न हिन्दु। हम किसलिए? सहजयोगियों के लिए । कोई भी इनमें से कुछ भी नहीं हैं क्योंकि ये कहकर व्यक्ति जो सहजयोगी है या सहजयोगी कि मैं सहजयोगी हूँ परन्तु ईसाई हूँ, आप बनना चाहता है उसकी आप सहायता करें। स्वयं को में नहीं बाँध सकते। आपको जो लोग सहजयोग में स्थापित हो चुके हैं वह तुच्छता छोड़नी होगी आप पूर्णतः उनकी आप सहायता करें। क्योंकि हम सहजयोगी हैं और किसी भी प्रकार की लोग एक- व्यक्तित्व हैं और परमात्मा के मूर्खतापूर्ण चीज़ से आपका कोई सम्बन्ध इस एक व्यक्तिव के हम सब भिन्न हाथ नहीं है। मैंने देखा है कि बहुत से मुसलमान हैं। अतः आप लोगों में इस एकाकारिता का लोग सहजयोग में आते हैं परन्तु उनमें से तुच्छता स्थापित होना आवश्यक है। इस एकरूपता बहुत कम ही वास्तविक सहजयोगी बन पाते हैं। वो आते हैं, मेरा प्रवचन सुनते हैं आदि-आदि। परन्तु उनमें से बहुत कम ही लोग तो अत्यन्त सच्चे सहजयोगी हैं । सहजयोगी बनने के को अन्य लोग भी देख सकें । सहजयोग में कुछ चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 10 पश्चात् आप अपनी जाति, तथाकथित धर्म अधकचरे लोगों का कोई लाभ नहीं, उनकी में दोष खोजने लगते हैं और यदि आप ओर ज्यादा ध्यान न दें। वो अधिक ध्यान वास्तव में उससे प्रेम करते हैं तो उसे योग्य नहीं है ये बात समझ ली जानी सुधारने का प्रयत्न करते हैं अन्यथा इसे चाहिए कि आपको न तो वैसा बनना है न छोड़ देते हैं। विशेष कार्य को करने के वैसे मित्र बनाने हैं। उन्हें आप सहजयोगी लिए आप विशेष लोग हैं । छोटी-छोटी भी न बनाएं। सहजयोगी ऐसा चरित्रवान मूर्खतापूर्ण चीज़ों पर आप अपनी शक्ति सिपाही है जो सत्य के लिए लड़ता है। बर्बाद नहीं कर सकते। ये बात आपको ऐसा व्यक्तित्व जब आप प्राप्त कर लेंगे तो समझ लेनी चाहिए। 1 सर्वत्र प्रकाश हो जाएगा। दिवाली के दिन Whe आज मैं आप सब लोगों कों हृदय से इस दिवाली के दिन आपको ये बात आशीर्वाद देती हूँ। मैं चाहती हूं कि आप समझनी है कि परमात्मा का प्रकाश बनकर स्वयं का सम्मान करें और समझें कि इस चहुँ ओर फैलने के लिए आपको स्वयं को संस्था में या ये कहें सहजयोग के इस जलाना होगा परन्तु इसके लिए भी अति आन्दोलन में आपकी क्या स्थिति है और में नहीं जाना है। कुछ लोग आकर मुझे किस तरह से आप इसे कार्यान्वित कर रहे बताते है कि श्रीमाताजी हमने अपने हैं। चित्त को व्यर्थ की सभी सांसारिक माता-पिता को त्याग दिया है, ये त्याग चीज़ों से हटाकर आत्मा पर लाया जाना दिया हैं, वो त्याग दिया है फिर भी हम चाहिए । मैं कहूँगी कि यह अत्यन्त गतिशील ठीक नहीं हैं मैंने उनसे पूछा कि ये सब शक्ति बन जाएगी और अगले वर्ष जब मैं त्यागने की क्या ज़रूरत है? किसी चीज़ यहाँ आऊंगी तो स्थिति बिल्कुल भिन्न होगी। को यदि आपने पकड़ रखा हो तब तो आप हमें परमात्मा के सभी सुन्दर आशीष प्राप्त इसे त्यागें, और ये भी स्वतः ही समाप्त हो हो जाएंगे यह कार्य हमें सामूहिक रूप से जाती हैं। नहीं, हम अपने परिवार से, अत्यन्त सूझबूझ के साथ करना होगा। माता-पिता से, देश से बहुत लिप्त थे अब हमने बहुत कुछ छोड़ दिया है। ऐसे चा परमात्मा आपको धन्य करें। त पा +ै क्रिसमस पूजा पत गणपतिपुले - 25.12.2001 ला (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) ाी उतने साटे सहजयोगियों सत्य है क्या? सत्य ये है कि आप आत्मा हैं को ईसा मसीह की पूजा में उपस्थित देखकर और आपको आत्मा बनना है उन्होंने ही बहुत अच्छा लग रहा है। ईसाई-धर्म विश्व पुनर्जन्म की, आत्म-साक्षात्कार की बात में चहूँ ओर फैल गया है और ऐसे बहुत से की। परन्तु लोग उनकी कही हुई बातों को तथाकथित ईसाई हैं जो कहते हैं कि वे भूल गए हैं कि उन्हें क्या प्राप्त करना है। ईसा मसीह का अनुसरण करते हैं। मैं नहीं कितनी अजीब बात है कि ऐसे महान लोग जानती किस प्रकार! ईसा मसीह परम चैतन्य पृथ्वी पर अवतरित हुए और हमारे उत्थान का अवतरण थे, वो ओंकार थे । वे श्री के लिए आवश्यक धर्म सृजन किया मेरी गणेश थे और उन्हें मानने वाले लोगों को समझ में नहीं आता कि अपने इन गुरुओं बिल्कुल भिन्न व्यक्ति बनना होगा परन्तु की शिक्षाओं के बावजूद भी लोग किस जिस प्रकार सभी धर्मों में होता है, लोग प्रकार मूर्ख बन गए है! यह सारी धन बेतरतीब उल्टी दिशा में चल पड़ते हैं, लोलुपता है। केवल इतना ही नहीं यह सत्य पर आधारित नहीं है। मेरे विचार से यह इस धर्म का दूसरा क्रूसारोपण है । ईसा मसीह के जीवन का सारतत्व उनकी कोई भी ऐसा धर्म नहीं है जो वास्तव में निर्लिप्तता और बलिदान था। जो व्यक्ति बनाए गए सिद्धान्तों पर चलता हो। मैं नहीं निर्लिप्त होता है उसके लिए बलिदान जैसा समझ पाती कि किस प्रकार थोड़े से पैसे कुछ नहीं होता, वह तो अपने जीवन को या बतंगड़ बनाने के लिए ये लोग सत्य को नाटक की तरह से मानता है। इतना महान तोड़-मरोड़ देते हैं। ईसा मसीह के नाम व्यक्ति पृथ्वी पर अवतरित हुआ और इस पर इस प्रकार के कर्मकाण्ड हो रहे हैं । बिल्कुल उल्टी दिशा में। 1. तथाकथित ईसाई धर्म की सृष्टि की । और यद्यपि बहुत बार ये लड़खड़ाए हैं और ये युद्धों में तथा सभी प्रकार के पाखण्डों में विश्व पर इनके कुप्रभावों का अनुभव भी उलझ गया है! आप लोगों को यह बात उन्हें है। प्रतिक्रिया हमारी समझ में नहीं समझ आ रही है। वे सत्य के समर्थक थे आती कि क्यों इस प्रकार की गोल-मोल और ईसाई लोग तो ये भी नहीं जानते कि चीजें आ जाती हैं और लोग उन्हें स्वीकार मई-जून 2002 12 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 कर लेते हैं? किसी भी धर्म को लें। इन लोग पढ़े-लिखे हैं परन्तु वो भी लोगों पर दिनों पता नहीं इस्लाम किन चीजों की शासन करने के विचार में खोए हुए हैं । बात कर रहा है! मोहम्मद साहब के जीवन परमात्मा के नाम पर और आध्यात्मिकता में दो महत्वपूर्ण चीजें हैं-पहली मिराज के नाम पर ऐसे कार्य करना लज्जा जनक कहलाती है। ये कुण्डलिनी जागृति के है। अतिरिक्त कुछ भी नहीं। ये बात बिल्कुल स्पष्ट है । दूसरे उन्होंने जेहाद की बात की। जेहाद अर्थात अपने अंदर की सत्य क्या है? उन्हें सही आध्यात्मिकता के अब उन्हें ये बताना हमारा कर्तव्य है कि बुराइयों को समाप्त करना, आपने बुरे पथ पर लाना हमारा कर्तव्य है क्योंकि वो स्वभाव को समाप्त करना, षड्रिपुओं का वध करना। इसका अर्थ भी खोए हुए हैं, हिन्दु भी खोए हुए हैं. वे ये नहीं है कि मुसलमान बनकर अपना सभी खोए हुए हैं। उन्हें बिल्कुल भी समझ वध कर लें। ये तो बेवकूफी भरी बात है । नहीं है कि उनके धर्मों ने क्या सिखाया है क्या आप इसलिए मुसलमान बने हैं कि और उनका कर्तव्य क्या है। अन्ततः ईसा आप अपने आपको मार लें, वध कर लें? मसीह को क्रूसारोपित कर दिया गया | आप इसे कर्म काण्ड कहते हुए उन लोगों का देख सकते हैं । नभी खोए हुए हैं. ईसाई भी खोए हुए है, मुसलमान अपने मानना है कि ऐसा करने से वह जन्नत में जाएंगे, स्वर्ग में जाएंगे। किस प्रकार आप स्वर्ग में जा सकते हैं? मुसलमान होकर भी भी सत्य को स्थापित करने का प्रयत्न आप धार्मिक नहीं हैं, बिल्कुल भी नहीं हैं । किया गया, असत्य ने इसे समाप्त कर इन पापी लोगों की हत्या करके किस प्रकार डालने का प्रयत्न किया लोग सत्य को आप स्वर्ग में जा सकते हैं जहाँ आपको सहन न कर पाए । हमारे सामने सुकरात जन्नत का आनन्द मिलेगा? इसका कोई का उदाहरण है। उनकी हत्या करने की औचित्य नहीं है परन्तु सर्व प्रथम तो इन मौलाना लोगों ने अपनी पढ़ाई-लिखाई छोड़ हत्या कर दी। इस प्रकार हम जानते हैं कि दी है, अपनी पढ़ाई-लिखाई को छोड़ दिया धर्म के लिए जो भी लोग मूलभूत थे उन्हें है, अपनी पढ़ाई-लिखाई को समाप्त कर समाप्त किया जा रहा है क्योंकि लोग सत्य दिया है। वे स्वयं को बिल्कुल भी शिक्षित नहीं चाहते। वे इसी धर्म को मानते हैं नहीं करते। अतः उन्हें इस बात का बिल्कुल क्योंकि इसके माध्यम से वे लोगों पर सत्ता भी ज्ञान नहीं है कि विश्व में वे कहाँ खड़े प्राप्त कर सकते हैं । उन्होंने धर्म बना दिए हैं। उनकी स्थिति क्या है? कुछ थोड़े से हैं। मिराज कुण्डलिनी की जागृति है और अतः आप देख सकते हैं कि जब-जब क्या आवश्यकता थी? परन्तु लोगों ने उनकी मई-जून 2002 13 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 वो कहते हैं कि मिराज़ कभी घटित ही नहीं भारत इन मुसलमानों के कारण प्रदूषित हो हो सकती। बहुत अच्छा! आपमें से बहुत चुका है और दक्षिणी कट्टर पंथी हिन्दुओं से लोगों ने आत्मसाक्षात्कार पाया है। आपको के कारण। सभी प्रकार के कर्मकाण्ड, बुरे कुरान वर्णित चैतन्य- लहरियाँ व शीतल से बुरे भी, दक्षिणी भारत की महिला पर हवा प्राप्त हो गई हैं। परन्तु ये बात थोपे जाते हैं। महिला के बाल मुँडवाकर मुसलमानों को कौन समझा सकता है । उससे मन्दिर की परिक्रमा कराई जाती है, उस पर जल डाला जाता है और वो आप यदि कोई बात बताएंगे तो वे आपका गला काट देगे, बस जेहाद शुरु कर देंगे । लड़खड़ाती है. सीधे से चल नहीं पाती। ये तो आज इस आधुनिक समय में भी वे सब होते हुए मैंने स्वयं देखा है। इतने मूर्खतापूर्ण कार्य कर रहे हैं । हम देखते हैं कि लोग सभी मर्यादाओं, धर्म की सभी सीमाओं को पार कर गए हैं। इसके अतिरिक्त हमारे यहाँ सती प्रथा है अर्थात पति की मृत्यु के पश्चात् पत्नी की हत्या कर डालना। कोई भी ये बात मैं अमरीका गई तो हैरान थी कि किस नहीं समझ सकता कि धर्म की सारी प्रकार उन लोगों ने चारित्रिक मूल्यों को जिम्मेंदारी महिलाओं पर ही क्यों डाल दी भुला दिया है! उनमें चरित्र विवेक बिल्कुल गई है पुरुषों पर क्यों नहीं? परन्तु एक भी नहीं है। चरित्र को वो बाजार में बेच रहे बात अच्छी हो गई है कि अब आप बहुत हैं, इससे पैसा बना रहे हैं। इसके विपरित सी चीजें सुधार सकते हैं। मैंने अपने जीवन मुसलमानों की एक कौम 'वहाबी' कहते हैं काल में बहुत सी चीजें सुधारीं मैं हैरान कि महिलाएं ही पुरुषों के चरित्र को बिगाड़ती थी कि किस प्रकार मैं यह सब कार्य कर हैं, इसलिए उन्हें पर्दे में रखा जाना चाहिए। सकी! परन्तु इन मुसलमानों को, इस्लाम उन्हें आवरण में रखा जाना चाहिए । पंथियों को सुधारा नहीं जा सकता। अपनी अफगानिस्तान में जो भी महिलाएं सफेद महिलाओं के साथ ये इतने भयानक कृत्य चप्पल पहनती थीं उन्हें पीटा जाता था, करते हैं और यदि आप उनकी सहायता उनकी हत्या कर दी जाती थी भारत में करने का प्रयत्न करें तो वह भी असंभव है। भी, विशेष रूप से उत्तरी भारत में, बहुत से उदाहरण के लिए संसार में अकेली रह रही लोगों ने मुस्लिम संस्कृति अपना ली है । महिलाओं के लिए मैंने एक संस्था आरंभ उत्तरी भारत में वास्तव में महिलाओं के की- उन महिलाओं के लिए जिनके बच्चे थे साथ दुर्व्यवहार किया जाता है। मेरा विवाह जो यतीमों की तरह से थे मुझ हैरानी हुई भी उत्तरी भारत में हुआ अतः मैं जानती हूँ कि इन महिलाओं में से अधिकतर मुसलमान कि वहाँ पर पुरुष कितने क्रूर हैं। उत्तरी थीं, और इनके आठ-आठ, दस-दस बच्चे मई-जून 2002 14 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 थे और इनके लिए हमें अब अनाथालय भी प्रसन्नता हुई। वह कहने लगा, "मैं सहजयोग बनाना पड़ेगा। अपने धर्म से वे इन्हीं चीजों में आऊंगा, परन्तु मैं शराब पीना नहीं छोड़ का सृजन कर रही हैं। विधवा महिलाओं के सकता।" मैने पूछा, "क्यों? क्योंकि बाइबल लिए हिन्दुओं में भी अजीब प्रथा है। विधवा में लिखा है आपको शराब पीनी चाहिए"। महिला के प्रति उनका व्यवहार अति क्रूर "अच्छा", मैं तो जानती ही न थी!" ये कैसे होता है। वे इन विधवा महिलाओं को वृंदावन हो सकता है? ईसा मसीह कैसे कह सकते में रहने के लिए विवश करते हैं। मुझे हैं कि आपको शराब पीनी चाहिए? वे केवल बताया गया कि इन महिलाओं को प्रतिदिन आत्म साक्षात्कारी ही न थे वे तो स्वयं एक रुपया दिया जाता है। इस देश में एक आत्म- साक्षात्कार थे। वह कहने लगा, रुपये में कोई किस प्रकार जीवित रह सकता है? ये लोग बहुत से भिखारियों और बात कही है। कहाँ? वे एक विवाहोत्सव पर भिखारिनों का सृजन कर रहे हैं। अगर गए थे बिल्कुल ठीक। उस विवाह में यही धर्म है तो बेहतर है कि इसे न अपनाया उन्होंने लोगों के लिए शराब बनाई। उन्होंने आप जो चाहे कहती रहें, ईसा-मसीह ने ये जाए। ये सब काफी हो चुका-ब्राह्मणवाद बिल्कुल शराब नहीं बनाई। वे वहाँ गए के माध्यम से सभी प्रकार के कर्म काण्ड। ये ब्राह्मण बिल्कुल किसी काम के नहीं। और इतने थोड़े समय में उन्होंने पानी में अपना हाथ डाला और पानी का स्वाद अंगूरों के रस जैसा हो गया हिब्रू भाषा में धर्म सिखाने वाले लोगों को बहुत अंगूरों के रस को भी वाइन करते हैं। मैंने उच्च-स्तर का होना चाहिए। सहजयोग में कहा कि मैं भी यह कार्य कर सकती हूं यह दल-दल के अतिरिक्त कुछ भी नहीं परन्तु इसका अर्थ ये नहीं है कि मैं लोगों और इस दल-दल में फँसने वाला व्यक्ति का शराब पीना पसन्द करती हूँ। ऐसी समाप्त हो जाएगा। लोगों से आपने ये बात बेवकूफी भरी बात कौन कह सकता है? बतानी है कि वो क्या कर रहे हैं? सभी ाम महत्वपूर्ण चीज़ तो चेतना है। चेतना ही बुराइयों के लिए ये लोग धर्म का उपयोग कर रहे हैं जैसे इंग्लैण्ड में किसी की मृत्यु महत्वपूर्ण है और इसी को यदि आप बिगाड़ हो जाए तो लोग शैम्पेन पीते हैं, किसी के देंगे, खराब कर देंगे तो किस प्रकार आप संस्कार के लिए जाते हुए भी वे शैम्पेन सहजयोगी हो सकते हैं? उनको समझा पाना पीएंगे मैं हैरान थी कि ऐसे समय पर भी कठिन था कि आप शराब न पीएं। भारत में वे शैम्पेन पीते हैं और इसे धार्मिक कहते भी शराब पीना आम बात हो गई है। शराब हैं! सारे पादरी लोग भी शराब पीते हैं । पीना ईसाई धर्म के विरुद्ध है, हिन्दू धर्म के एक पादरी सहजयोग में आया, मुझे बहुत विरुद्ध है, इस्लाम के विरुद्ध है। कुरान में श्री मई-जून 2002 15 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 5 यद्यपि लिखा हुआ है कि शराब न पीएं परन्तु कई बार तो मैं हैरान होती हूँ कि इतने वे सब लोग शराब पीते है और उस धर्म अच्छा कार्य करने वाले लोग किस प्रकार को मानने के स्थान पर बहुत बड़े पापी बन से इतने विनम्र और भले हैं? किस प्रकार गए हैं क्या ईसा मसीह ने उनसे यही बनने उन्होंने ये उपलब्धि प्राप्त की है ये बात मैं की अपेक्षा की थी। आपको पावन व्यक्ति नहीं समझ सकती। नि:सन्देह कुछ लोग बनना होगा आपको 'निर्मल तत्व' प्राप्त धन लोलुप और सत्ता लोलुप भी हैं परन्तु इन चीज़ों से आनन्द नहीं मिलता। आपके करना होगा। यही सत्य है। अन्दर सत्य का प्रकाश ही आनन्द का मैंने आपको शालिवाहन के विषय में स्त्रोत है। आप सबने इस आनन्द का अनुभव एक कहानी भी बताई थी । वो कश्मीर में किया है, परन्तु अब मुझे ये कहना है कि ये ईसा मसीह से मिले और उनसे उनका अनुभव आपने अन्य लोगों को भी देना है। और उनके देश का नाम पूछा। ईसा मसीह ये केवल आपके लिए ही नहीं है । अधिक ने उत्तर दिया, कि मैं एक ऐसे देश से से अधिक लोगों को ये आनन्द अनुभव आया हूँ जहाँ लोग मलेच्छ हैं। मलेच्छ कराएं। परन्तु आपमें से कितने लोग इस अर्थात गन्दगी की इच्छा करने वाले। शालिवाहन ने उनसे कहा, "क्यों नहीं आप करते हैं? सिख जाति के लोग भी हैं, वे वहाँ जाकर उन लोगों को निर्मल तत्वं सहजयोग में आए परन्तु कहने लगे हम सिखाते?" वही निर्मल तत्वं आपको प्राप्त देवी की पूजा नहीं कर सकते। मैंने हो गया है यह आपको पावन करता है, पूछा, "क्यों?" आश्चर्य की बात है! क्योंकि आपकी बाधाओं को दूर करता है, आपको श्री गुरुनानक देव ने देवी की बात की है। कार्य को करते हैं? कितने लोग ये कार्य आनन्द, प्रसन्नता एवं सत्य प्रदान करता अपनी पुस्तक के पहले वाक्य में उन्होंने है। आपको यही माँगना चाहिए । अन्यथा लिखा, 'आद्या। आद्या आदिशक्ति हैं इसके सब अंधकार है। आपको प्रकाश नज़र नही बावजूद भी यदि मूर्खतापूर्वक सिख लोग आता चाहे आप ईसाई हों, हिन्दु हों, ऐसी बातें कहें! क्यों उन्होंने चण्डीगढ़ नाम रखा? वे भी मूर्ख हैं। वास्तव में तुलना मुसलमान हों या कोई अन्य। आपको सत्य का प्रकाश नहीं प्राप्त हो सकता । यही की कोई बात नहीं। सत्य का प्रकाश आपको प्राप्त करना है। उसके पश्चात् आपने क्या करना है? यह प्रकाश आपने अन्य लोगों को देना है, आपने आपने जीवन की ये सभी मूर्खताएं त्याग अन्य लोगों को परिवर्तित करना है। इस दी हैं या अभी भी आप इनके बन्धन में फॅसे दिशा में आपने बहुत परिश्रम किया है। हुए हैं? ये बात अत्यन्त महत्वपूर्ण है। जब अब आपको ये समझना है कि क्या चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 16 तक आप इन्ही बन्धनों पर अडे रहेंगे तो आप कौन होते हैं? आध्यात्मिकता के विषय समस्या बनी रहेगी। सहजयोग करता है। मैं आश्चर्य चकित थी कि अमरीका कि आध्यात्मिक या आध्यात्मिक रूप से में तीन सौ सहजयोगी थे, उन्हें कुछ भी सशक्त व्यक्ति के साथ क्या घटित हो सकता बहुत कुछ में आप क्या जानते हैं? आप क्या जानते हैं नहीं हुआ। उनमें से कुछ उस गगन चुम्बी है? क्या चीज़ इसे कार्यान्वित कर सकती इमारत में थे और कुछ सड़क पर थे। वे है? मानव के विषय में जो भी ज्ञान हमें है सभी लोग वहाँ पर थे परन्तु किसी को भी उसके आधार पर हम निष्कर्ष निकालने लगते हानि नहीं पहुँची। कुछ ने बताया कि अन्दर हैं और ये निष्कर्ष प्रायः गलत होते हैं। अपने किसी ने उनसे कहा, कि यहाँ से भाग जीवन में देखें। सहजयोगियों के जीवन में जाओ और हम दूसरी दिशा में दौड़ने लगे। बहुत से चमत्कार होते हैं। मैंने किसी से कुछ को दौड़ने में देर हुई। मैं नहीं समझ पाई इन तीनों को किस प्रकार से देरी हो संकलित कर दो। वह कहने लगा कि एक गई? परन्तु ये आसुरी लोग जो पूरे विश्व महीने के अन्दर चमत्कारों के जितने पत्र को नष्ट करने की सोच रहे हैं उनमें भी उसे आए वो उसके सिर से भी ऊँचे पहुँच कहा कि इन चमत्कारों को एक पुस्तक में सुधार हो रहा है। यही कारण है कि मैं गए। तब मैंने उसे कहा कि इस कार्य को अमेरिका गई और उन्हें बताया कि यह युद्ध छोड़ दो। परन्तु बुद्धिवादी लोगों को समझा दिवाली तक समाप्त हो जाएगा और ऐसा पाना कठिन है । ये सारी बातें उनकी खोपड़ी ही हुआ। ये सोचना कितनी बड़ी मूर्खता है में डाल पाना असंभव है। कि वे परमात्मा की सृष्टि को इस प्रकार से नष्ट कर सकते हैं । ऐसा करने वाले वो कौन हैं? विश्व को नष्ट करने का अधिकार जो लोग जिज्ञासु हैं हमें उन पर चित्त देना उन्होंने किस प्रकार प्राप्त किया है? परन्तु चाहिए । भारत में तो अब सहजयोग जेलों में यही मानवीय मूर्खताएं हैं । 1. अतः हमें हर सभव प्रयत्न करना चाहिए। भी पहुँच गया है। स्कूलों में तथा सर्वत्र सहजयोग फैल गया है। हाल ही में किसी ने ईसा मसीह पृथ्वी पर अवतरित हुए। उन्होंने मुझे बताया कि एक कैथोलिक चर्च में भी लोग काफी समय तक कार्य किया परन्तु उन्हें सहजयोग कर रहे हैं । मैं नहीं जानती कि क्रूसारोपित होना था तो वो हो गए। क्रूसारोपण किस प्रकार उन्हें सहजयोग स्वीकार करने हमारा गौरव नहीं है। उनका पुनर्जन्म के लिए सहमत किया है। परन्तु इसी प्रकार (Resurrection) ही गौरवमय है। निःसन्देह सहजयोग फैल रहा है । आप सब लोगों को उनका पुनर्जन्म हुआ। ये कहना कि ये सब व्यक्तिगत रूप से सभी जगह जाकर इसके असंभव है उचित न होगा ऐसा कहने वाले विषय में बातचीत करनी है और इसे कार्यान्वित चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 17 करना है। परन्तु सहजयोगी हैं। एक बार मैं हवाई जहाज से जा रही थी। आत्म विश्वास की कमी है। बहुत ही कम मेरे पास बैठी महिला के शरीर से बहुत ही लोग बाहर निकलकर इस कार्य को करते गर्मी निकल रही थी। मैंने उनसे पूछा कि हैं। इटली और आस्ट्रेलिया में मैंने देखा बहुत ही शर्मीले करें। मैं सोचती हूँ कि सहजयोगियों में उसका गुरु कौन है? उसने मुझे नाम बताया। मैं हैरान थी कि उसे आध्यात्मिकता का बिल्कुूल भी ज्ञान न था फिर भी ऐसे लोगों के बड़े-बड़े घर है, बड़े-बड़े मन्दिर हैं, सभी कुछ है। वह महिला अपने इस गुरु की प्रशंसा किए चली जा रही थी! मैंने सोचा कि यह अत्यन्त निर्लज्ज है उसके अपने अन्दर कुछ शरीर से इतनी गर्मी निकल रही थी और फिर भी वो अपने गुरु की बातें किए चली जा रही थी! परन्तु सहजयोगी ऐसा नहीं करते। मैं हैरान थी कि सहजयोगी क्यों नहीं सहजयोग के विषय में बात करते? उस दिन मैं किसी के कि सहजयोग का बहुत प्रचार हुआ है क्योंकि उन लोगों में ये दृढ़-विश्वास है कि जो हमें प्राप्त हुआ है वह हमें अन्य लोगों को भी देना है। हमें यह अन्य लोगों में भी बाँटना है । ईसा-मसीह के जीवन से हमें उनके बलिदान के विषय में समझना है । अपराधियों की तरह से इस प्रकार क्रूसारोपित हो जाना बहुत बड़ा बलिदान है परन्तु उन्होंने ऐसा किया। नहीं है उसके इसी प्रकार से आप लोग भी जब सहजयोग का कार्य करते हैं तो आपको ये साथ बाज़ार गई। मेरे साथ एक सहजयोगी नहीं सोचना चाहिए कि मेरे दादा का क्या भी था। मैं हैरान थी कि वह उन्हें मेरे विषय में होगा या मेरी दादी का क्या होगा? मेरे बताने लगा और आत्म-साक्षात्कार देने लगा। कहने से अभिप्राय है कि जितने भी पत्र उन लोगों को इससे बहुत प्रसन्नता हुई। कहीं मुझे मिलते हैं, वे सब इन्हीं चीज़ों से भरे भी आप जाएं अपने पड़ोस में अपने बाजार में, होते हैं। ये बड़ी अजीब बात है लोग सर्वत्र आपको सहजयोग के विषय में बताना केवल अपने संबन्धियों के विषय में ही चाहिए। जिस तरह से ईसाई लोग आनन्द चिन्तित हैं । विश्व भर में आपके जो गान (Carols) गाते हैं वैसे ही आपको भी सम्बन्धी हैं उनकी आपको कोई चिन्ता नहीं । भजन गाने चाहिएं और इसके माध्यम से हमें आप तो केवल अपनी पत्नी और बच्चे के सहजयोग बताना होगा हम इतने संकोचशील बारे में चिन्तित हैं मुझे केवल इसी प्रकार क्यों हैं? इतनी अधिक शर्म से सहजयोग का के ही पत्र मिलते हैं । कोई भी ये नहीं हित न होगा। अतः कृपा करके अन्य लोगों लिखता कि उसने कितने लोगों को आत्म-साक्षात्कार दिया। कभी कोई नहीं लिखता कि सहजयोग प्रचार - प्रसार में आपमें शक्तियाँ हैं। अपने पर भरोसा उन्होंने किस प्रकार सफलता प्राप्त की। को आत्म-साक्षात्कार देने का प्रयत्न करें। चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 8 मई-जून 2002 18 कोई भी नहीं लिखता कितने आश्चर्य की यदि 40 होते हैं तो लड़कियाँ 120 या 150 बात है! आपको यही बात बतानी है। मुझे होती हैं। तो किनसे हम उन लड़कियों का आशा है कि आप सब लोग सहजयोग विवाह करें? इस बात को आप सोचें। परन्तु प्रचार के महत्त्व को समझते हैं । सहजयोग ये लड़कियाँ शिकायत भरे पत्र लिखती हैं प्रचार यदि आप नहीं करते तो आप पूर्णतः व्यर्थ हैं। जिस प्रकार यहाँ पर बहुत सी कुछ नहीं कर सकते, उनकी कोई सहायता ज्योतियाँ जली हुई हैं वैसी ही मेरे लिए नहीं कर सकते अतः आप बाहर जाकर महानतम चीज़ विश्व भर में अधिक से अपनी इच्छानुसार कहीं भी विवाह कर लें या अधिक सहजयोगियों का होना है । आप शांति से प्रतीक्षा करें और अपना जीवन यदि इस विश्व को परिवर्तित दरना चाहते हैं, कठिनाई और अशान्तिमय प्रकार की शिकायतें कि मेरा विवाह हो जाना व्यर्थ जीवन, जो लोग जी रहे हैं, उनसे चाहिए था, अभी तक मेरा विवाह नहीं हुआ, यदि आपने बचना हैं तो आपको उन आदि को सुनना बहुत कठिन है। विवाह लोगों की रक्षा करनी होगी, उन्हें कभी भी हमारी प्राथमिकता न थी. फिर भी उबारना होगा। ये आपका कार्य है । सहजयोग में विवाह की आज्ञा दी गई। परन्तु सहजयोग के लिए आपने यही दक्षिणा अब सभी के लिए यह मुख्य कार्य बन गया देनी है। सहजयोग को केवल स्वयं तक है । या तो उनका विवाह नहीं होता और यदि सीमित न करें, अपने तक इसे सीमित न विवाह हो गया तो वो प्रसन्न नहीं हैं और करें, अपने तक इसे सीमित न करें। कि हमने चार बार आवेदन किया है। हम सहजयोग को समर्पित कर दें। उनकी इस यदि उनका तलाक हो गया है तो उनका पुनर्विवाह होना चाहिए। सभी प्रकार की चीजें और जटिलताएं नहीं हूँ। सहजयोग इन चीज़ों के लिए नहीं बना। आपका विवाह यदि सफल नहीं है तो जो पत्र मुझे मिलते हैं उन्हें यदि आप पढ़ेंगे तो आपको अत्यन्त निराशा होगी । मुझे जो पत्र आते हैं उनमें लोग लिखते हैं कि मैं जिनके लिए मैं तैयार शादी करना चाहता हूँ। ठीक है। बहुत सी यह मेरा काम नहीं है। यदि चीजें ऐसे ही लड़कियाँ है जो कहती हैं कि हम चार वर्षों चलती रहीं तो हमें विवाह बन्द करने पड़ेंगे । से सहजयोग में विवाह के लिए आवेदन कर मैं नहीं चाहती कि आप लोग मुझे इनके रहे हैं परन्तु हमारा विवाह नहीं हुआ। पहली विषय में लिखें इनसे पता चलता है कि हम बात तो ये है कि आपको पता होना चाहिए सहजयोग में कितने उथले हैं आप क्यों न कि पुरुषों की अपेक्षा महिला प्रार्थियों की मुझे ये लिखें कि आपने कितने लोगों को संख्या बहुत अधिक है। निःसन्देह वो बहुत आत्म साक्षात्कार दिया है? आपके ऐसा लिखने अच्छी हैं परन्तु आवेदन करने वाले लड़के से मुझे प्रसन्नता मिलेगी. इसकी अपेक्षा कि मई-जून 2002 19 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 आप अपनी पत्नी या किसी अन्य की शिकायत कार्य तो केवल ये है कि आपने कितने लोगों मुझसे करें। ये सब मेरा कार्य नहीं है। हमने को आत्म- साक्षात्कार दिया। यह अत्यन्त आपका विवाह कर दिया अब इसे निभाना कठिन कार्य है क्योंकि लोगों ने सभी महान आपका कार्य है परन्तु सहजयोग की ये अवतरणों, सूफियों और सन्तों के सिद्धवान्तों समस्या है। सभी धर्मों में बहुत से गलत को बिल्कुल गड़बड़ कर दिया है परन्तु कार्य होते रहे। परन्तु मैं सोचती हूँ कि आप लोग तो, कम से कम ऐसा न करें। सहजयोग में विवाह ही एकमात्र समस्या है। अतः कृपा करके सोचें कि आप किसे सबसे बड़ी बात ये है कि लड़के विवाह के आत्म साक्षात्कार दे सकते हैं, किससे लिए नहीं आते क्योंकि भारत में लड़कों का आप सहजयोग की बात कर सकते हैं। विवाह बहुत आसानी से हो जाता है। उन्हें हमें फैलना है आपके अगले पत्र में. दहेज आदि भी मिल जाता है। लड़कों की मुझे आशा है, मुझे ये सुनने को मिलेगा अपेक्षा लड़कियाँ पाँच अधिक हैं। लड़के कि आपने कितने लोगों को आत्म- गुना यहाँ विवाह नहीं करना चाहते। वो सहजयोगी होते हुए भी अपने विवाह स्वयं कराएंगे। मैं नहीं समझ पाती कि सहजयोग में आकर आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चातु भी उनके लिए विवाह का इतना महत्व क्यों है? साक्षात्कार दिया। ईसा मसीह के क्रूसारोपण, उनके जन्म और उनके पृथ्वी पर अवतरण के लिए आज्ञा चक्र ही सबसे बड़ा कारण है। आप जिन्हें आत्म-साक्षात्कार देते हैं वो आज्ञा चक्र पार सबसे महत्वपूर्ण बात तो ये है कि आपने करके सहस्रार में पहुँच जाते हैं । अत: कित्तने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया। यही सहजयोग में आप सभी कुछ समझते हैं। ये आपका जीवन है कमल यदि है तो यह अवश्य खिलेगा। परन्तु इसकी सुगन्ध बिखेरना समझना अत्यन्त सहज है परन्तु आत्म सब समझना अत्यन्त सुगम है, सहजयोग को आवश्यक है। कमल का भी उत्तरदायित्व है साक्षात्कार के बाद। अतः आस-पास, चहूँ तो आप लोगों का क्यों नहीं होना चाहिए? मैं ये नहीं कह रही हूँ कि ईसा मसीह की तरह आप भी क्रूसारोपित हो जाएं, नहीं। मैं कहती हूँ कि आप अपने जीवन का आनन्द लें, शान्ति, सुस्थिरता एवं सन्तुलन प्राप्त करें। परन्तु साथ-साथ आपने सहजयोग भी फैलाना है। अब आपका यही कार्य है। आपकी नौकरी आदि अधिक महत्वपूर्ण नहीं। महत्वपूर्ण ओर जाकर आपको देखना होगा कि कितने लोगों को आप आत्म-साक्षात्कार दे सकते हैं। सभी कुछ ठीक हैं। आपका पूजा करना भी ठीक है, पूजा भी ठीक है। परन्तु सबसे आवश्यक कार्य ये हैं कि आपने कितने लोगों को आत्म साक्षात्कार दिया। मैं जानना चाहूँगी कि कितने लोगों को आपने आत्म साक्षात्कार दिया, विशेष रूप से महिलाएं। क्योंकि महिलाएं मई-जून 2002 20 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 आत्म-साक्षात्कार देने में दूर्बल है। मैं जानती इतने उच्च देवता ने आज्ञा चक्र को पार कर हूँ कि वो बहुत कार्य कर सकती हैं। आखिरकार लिया वो अन्य लोगों ने क्यों नही किया? मैं भी एक महिला हूँ परन्तु सहजयोग में मैं महिलाओं को उस स्तर पर नहीं पाती। वो आपमें कितना दृढ़ संकल्प है। आपको ये बहुत कार्य कर सकती हैं परन्तु वे अपने जीवन बात समझनी चाहिए कि देवी आपकी माँग के महत्व को नहीं समझतीं। आप बहुत महत्वपूर्ण हैं। कितने लोग ऐसे आती हैं। उनका अपना ही समय है। परन्तु आज की पूजा के बाद हम देखेंगे कि करने पर नहीं आतीं, वे अपनी इच्छा से हैं जिन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ? बहुत यदि आप लोगों की संख्या अधिक हो से सूफियों को आत्म- साक्षात्कार मिला, जाए, बहुत बड़ी संख्या में लोग सन्त हो उन्होंने काव्य लिखे और बस समाप्त। बहुत जाएं और अन्य लोगों को भी आप सन्त से सन्तों ने बहुत कार्य किया, बहुत कुछ बनाएं तो हर तरह से मैं आपके साथ हूँ। लिखा। भारत में ऐसे बहुत से सन्त हुए। अन्यथा मैं आपको उपलब्ध हूँ, मैं आपके उन्होंने सभी ग्रंथ लिखे। लोग इन ग्रन्थों को साथ हूँ, आप मेरी चैतन्य-लहरियाँ प्राप्त पढ़ते हैं परन्तु कुछ भी घटित नहीं होता। कर सकते हैं मेरी पूजा भी कर सकते हैं। आपमें आत्म-साक्षात्कार देने की कला है । ये सारी चीजें आपको प्राप्त हैं, इसमें कोई आपको कुण्डलिनी का ज्ञान है. इसके विषय सन्देह नहीं परन्तु इन सब चीज़ों की में आप सभी कुछ जानते हैं। आगे बढ़े और योग्यता, इनका अधिकार भी आपको तभी लोगों से बात करें। जब मैंने सहजयोग आरम्भ तक है जब आप सहजयोग करते हैं। यदि किया तो मैं अकेली थी और मैं तो एक आप सहजयोग फैला रहे हैं और यदि आप महिला हूँ! तो अब आप लोगों का क्या है? इसे अन्य लोगों को दे रहे हैं केवल तभी आप सब लोगों के सम्मुख ये चुनौती है आपको देवी की चैतन्य लहरियाँ प्राप्त करने कि आपने कितने लोगों को आत्म साक्षात्कारी के योग्य माना जाएगा कुछ देशों में यदि बनाया। यहाँ तक कि आपके परिवार के सहयजोग इतना शक्तिशाली है तो आपके लोग भी सहजयोगी नहीं है आपकी बेटी देश में आपके पड़ोस में, आपके सम्बन्धियों और बैटा भी सहजयोगी नहीं हैं। तो ईसा में यह इतना शक्तिशाली क्यों नहीं? मसीह का महिमागान करने का क्या लाभ बहुत अतः आपको यह निर्णय करना है कि है? उनका स्तुति-गान यदि आप करते हैं अन्य लोगों को आत्म-साक्षात्कार देने के तो आपको चाहिए कि लोगों को आज्ञा से लिए आप स्वयं को समर्पित कर दें। ऊपर उठाएं। उनका स्थान हमारे अन्दर सहजयोग के विषय में बात-चीत करना कितना ऊँचा है। परन्तु आपने कभी उनका अत्यन्त आनन्ददायक है परमात्मा आपको धन्य करे। सम्मान नहीं किया कि आपके अन्दर विद्यमान श८ मकर संक्रान्ति पूजा पुणे - 14.1.2002 (परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) मकर संक्रान्ति का अर्थ है संक्रमण अर्थात कुछ बदलाव लाने वाला दिन। इस दिन सूर्य का उत्तरायण शुरु होता | हमारे भारत वर्ष में सारे त्यौहार चन्द्रमा संक्रान्ति के त्यौहार का सांस्कृतिक महत्व है। भारतवर्ष में यह त्यौहार बड़े उत्साह से मनाया जाता है। अन्य देशों में भी इसे मनाया जाता है। परन्तु भारत वर्ष में इसका की स्थिति के अनुसार चलते हैं, इसलिए विशेष महत्व है। भारत वर्ष में न ज्यादा उनकी तिथि बदलती रहती है। मकर संक्रान्ति सर्दी पड़ती है और न ज्यादा गर्मी यहाँ का दिन सूर्य की स्थिति पर निर्भर है और सन्तुलित स्थिति है । भारत वर्ष पर यही कारण है कि ये पर्व हर साल चौदह आदिशक्ति की कृपा है। अन्य देशों में सन्तुलन नहीं है वहाँ पर या तो भयंकर जनवरी को ही मनाया जाता है। सर्दी होती है या भयंकर गर्मी। मकर संक्रान्ति इस बात का संकेत है कि आज से सूर्य की गर्मी बढ़ती जाएगी। सूर्य की उष्णता मानव जाति के लिए हमारे अन्दर परिवर्तन आना उचित नहीं हितकारक है। इसी उष्णता के कारण हम है। सूर्य की गर्मी के कारण यदि हमारे चल-फिर सकते हैं, बोल-चाल सकते हैं। सूर्य की गर्मी के प्रभाव से ही मनुष्य को ये बात ठीक नहीं। क्रोध करना गलत है। क्रोध आता है इसलिए इस दिन गुड़ खाया षड्रिपुओं में क्रोध सबसे खराब है हम जाता है ताकि वाणी मधुर हो जाए। प्रकृति तथा मौसम के परिवर्तन के साथ अन्दर भी गर्मी आ जाए, हमें क्रोध आए तो लोग सहजयोगी हैं, हमारी जागृति हो चुकी है, अतः हमें शान्त रहना सीखना चाहिए । सूर्य की ऊष्मा से ही पृथ्वी पर धन-- वैसे तो सहजयोगी बहुत अच्छे हैं, उन्नत धान्य, फल-सब्जियाँ बगैरा होते हैं। इस हैं। बहुत कम, तकरीबन एक प्रतिशत लोग दिन देवी को फल- सब्जियाँ इत्यादि अर्पण ही अलक्ष्मी के पीछे लगे हुए हैं। इस करके देवी का आशीर्वाद लिया जाता है। पर गुस्सा आना स्वाभाविक हैं। परन्तु आदि शक्ति के आशीर्वाद से पृथ्वी तत्व उनको सुधारना आपका काम नहीं, ये कार्य शान्त हो जाता है और मानव जाति की आदिशक्ति का है। आपको शान्त रहकर उन्नति होती है। उन्नति करनी चाहिए। सभी कार्य परमात्मा चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 8 मई-जून 2002 22 पम की कृपा से होते हैं। इस बात का हमेशा ध्यान रहना चाहिए कुछ लोग खराब होते सकते हैं। परन्तु इसके लिए आपको सूक्ष्मता हैं, पैसे को ही सब कुछ मानते हैं। ऐसे एवं चैतन्य की स्थिति में रहना होगा । लोगों का सहजयोग में कोई काम नहीं। आध्यात्मिक ज्ञान का होना आवश्यक है, बाकी परन्तु इनका इलाज आपके पास नहीं है। सारी इच्छाएं व्यर्थ हैं । हमें सांसारिक इच्छाएं आदि-शक्ति स्वयं उन्हें संभाल लेंगी। आप भी स्थिति को इसी प्रकार संभाल Ihे नहीं करनी चाहिए। सहजयोगियों को अभी बहुत दूर जाना है। उन्हें अभी बहुत से उपक्रम अमरीका के राष्ट्रपति श्री जार्ज बुश पूरे करने हैं परमात्मा सभी कार्यो को पूर्ण साहब भी मुझे मानते हैं। हाल ही में मैंने करेंगे। चिन्ता न करें, शान्त रहें । उन्हें एक पत्र लिखा और तुरन्त ही स्थिति बदल गई। जनरल मुशर्रफ में भी बदलाव सूर्य-शक्ति अर्थात आत्म विश्वास। सूर्य आया और जनरल मुशर्रफ ने श्री बुश को उष्णता है. तेज है अब यह हम पर निर्भर संक्रान्ति का अर्थ है सूर्य शक्ति। लिखे मेरे पत्रानुसार अपने देश तथा इस्लाम करता है कि इस उष्णता से दग्ध होना को संबोधित किया। अपने पत्र में जो मैंने या सूर्य के तेज से आत्म-विश्वास प्राप्त लिखा था वही सब उनके भाषण में सुनाई करना है - तेजस्वी बनना दिया। है। आप सबको अनन्त आशीर्वाद । ास प्रिय सहजयोगी/ सहजयोगिनी जय श्री माता जी, आपके पते में यदि किसी भी प्रकार का कोई परिवर्तन हो या आप कभी स्थानातंरण करें तो कृपा करके तुरन्त अपना नया पता हमें लिखें ताकि आपकी चैतन्य लहरी की प्र में आपका यदि कोई सुझाव आदि है तो उसके विषय में भी हमें लिखने में संकोच न करें। ति हम समय पर आप तक पहुँचा सकें। चैतन्य लहरी के विषय ि आपके उत्थान की मंगल कामना करते हुए। चैतन्य लहरी नि जी न्द प ं श्री गणेश पूजा मर त न का प ] 8.8.1989 शरत्ल न पव प (परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) शा चतं प आज आप श्री गणेश की पूजा करने के शनैः स्मृति कार्य करने लगती है और वह लिए यहाॅ आए हैं। हर पूजा से पूर्व हम श्री गणेश की स्तुति गान करते हैं और हमारे करने लगता है। परन्तु आरम्भ में तो वह हृदय में श्री गणेश का स्थान है क्योंकि हम केवल अपने साथ घटित अच्छी. चीजों को ये बात समझ चुके हैं कि जब तक हमारी ही याद रखता है। यही कारण है कि हम अबोधिता के प्रतीक श्रीगणेश हमारे अन्दर सदैव अपने बचपन के विषय में सोचना सभी घटनाओं को स्मृति-पटल पर एकत्र जागृत नहीं हो जाते, हम परमात्मा के पसन्द करते हैं-उन चीजों के विषय में साम्राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते और वहाँ जिनका आनन्द हमने शैशवकाल में लिया रहने के लिए भी हमें श्री गणेश के आशीर्वाद था, सभी कष्टों, सभी उपद्रवों तथा उन का आनन्द लेना पड़ता है। अपने पाविन्र्य सभी कष्टों को जिनमें से हम गुजरे हैं याद को सदैव पुष्पित रखना पड़ता है। इसलिए रखने लगते हैं। इन्हें हम विस्तृत करने का हम उसकी स्तुति करते हैं और वे सुगमता से प्रसन्न हो जाते हैं । और सहजयोग में उन्हीं लोगों को याद रखते हैं जिन लोगों आने से पूर्व जो अपराध हमने किए होते हैं ने उनसे प्रेम किया हो, उन लोगों को नहीं उन्हें वे पूर्णतः भूल जाते हैं क्योंकि वे अनन्त जिन्होंने उन्हें सताया हो। सभवतः वे ऐसे प्रयत्न करते हैं। बचपन में बच्चे केवल लोगों को याद रखना ही नहीं चाहते । ऐसा बालक हैं। क० प्रतीत होता है परन्तु जब वे बड़े हो जाते आपने बच्चों को देखा है। उन्हें चाँटा हैं तब वे केवल उन्हीं को याद रखना मार दें, कभी उनसे नाराज हो जाएं, फिर चाहते हैं जिन्होंने उन्हें सताया हो, कष्ट भी वे इसे जाते हैं। वे केवल प्रेम को दिया हो । इस प्रकार वे स्वयं को दयनीय याद रखते हैं आपके द्वारा दिए गए कष्टों बना लेते है। को नहीं। बड़े हो जाने तक उन्हें कष्टकर चीजों की स्मृति नहीं रहती। बच्चा आरम्भ से ही माँ की कोख से जन्म लेने के पश्चात् अत्यन्त सूक्ष्म है-सूक्ष्मातिसूक्ष्म। सभी चीज़ों अपने कष्टों को याद नहीं रखता। शनैः में यह विद्यमान है । भौतिक पदार्थों में यह भूल परन्तु श्री गणेश का सिद्धान्त (तत्व) मई-जून 2002 24 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 चैतन्य लहरियों के रूप में विद्यमान है। प्रकट होने लगते हैं लोगों के दुष्कर्मों के चैतन्य-लहरियों के बिना कोई भी पदार्थ कारण प्रकृति में भी समस्याएं उत्पन्न होने नहीं होता सभी पदार्थों में चैतन्य लहरियाँ लगती हैं। प्राकृतिक विपदाएं केवल श्री होती हैं और इन चैतन्य लहरियों को सभी गणेश का ही अभिशाप होती हैं। सामूहिक पदार्थों के अणु-परमाणुओं में देखा जा रूप से लोग जब दुष्कर्म करने लगते सकता है। अतः श्रीगणेश प्रथम देवता हैं हैं, दुराचरण करने लगते हैं तब उन्हें जिन्हें भौतिक पदार्थ में भी स्थापित किया सबक सिखाने के लिए प्राकृतिक विपदाएं जा सकता है । परिणामस्वरूप हम देख आती हैं। अपने सार के रूप में यद्यपि श्री सकते हैं कि यह तत्व सूर्य में, चाँद में, पूरे गणेश हर चीज में विद्यमान हैं, उनमें पूरे ब्रह्माण्ड में, पूरी सृष्टि में और मानव में भी विश्व को नष्ट करने की अपनी शक्ति विद्यमान है । केवल मानव ही अपने कर्मों दर्शाने की भी क्षमता है। हम श्री गणेश को के कारण अपनी अबोधिता पर आवरण सूक्ष्म अस्तित्व के रूप में मानते हैं। हम चढ़ा लेता है, अन्यथा पशु तो अबोध हैं। मानते हैं कि छोटे से चूहे की सवारी करने मानव स्वतन्त्र है, वह यदि चाहे तो अपने वाला ये देवता भी सुक्ष्म ही होगा। पावित्र्य को आच्छादित कर सकता है और श्री गणेश के लिए अपने द्वार बन्द कर सकता है और कह सकता है कि श्री गणेश हैं अपने विवेक के कारण वे सभी देवताओं का अस्तित्व ही नहीं है। मानव अपनी अबोधिता को धुँधला कर देता है। यही सीखने के लिए वे हमें विवश करते हैं । वे कारण है कि श्री गणेश के अस्तित्व को हमारे गुरु हैं या ये कहूँ कि महागुरु ैं अनदेखा करके मानव सभी प्रकार के क्योंकि वे हमें सिखाते हैं कि किस प्रकार वे जितने सूक्ष्म हैं उतने ही महान भी के शिरोमणि हैं वे विवेक के देवता हैं। कुकृत्य करता रहता है। परन्तु उसके कार्य ऐसे आचरण करना है। हम यदि उनकी होते हैं जिनसे उसके द्वारा किए गए कुकृत्यों अवमानना करने का या उनसे दुर्व्यवहार के स्वाभाविक परिणाम भी दिखाई पडते करने का प्रयत्न करेंगे तो माँ (श्रीमाताजी) हैं। जैसे व्यक्ति यदि उन कार्यों को करता भी इस कार्य को अच्छा न मानेंगी क्योंकि है जो श्री गणेश को अच्छे नहीं लगते तो वो जानती हैं कि श्री गणेश की अवमानना कुछ सीमा तक तो यह चलता है, एक करने वाले लोग माँ का भी सम्मान नहीं सीमा तक श्री गणेश उसे क्षमा करते हैं, करते। अतः वे सम्मान के प्रतीक हैं| वे परन्तु अन्ततः वह कुकृत्य बीमारियों के रूप किसी अन्य देवता को नहीं पहचानते। वे में, शारीरिक बीमारियों के रूप में और सदाशिव को भी नहीं पहचानते, किसी अन्य महिलाओं में मानसिक रोगों के रूप में को भी वे नहीं पहचानते। वे केवल अपनी मई-जून 2002 25 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 माँ का सम्मान करते हैं। अतः वे अपनी माँ समझनी चाहिए यदि श्रीगणेश विवेक के के प्रति श्रद्धा एवं पूर्ण समर्पण की शक्ति हैं दाता हैं तो मुझमें भी विवेक होना चाहिए। और यही कारण है कि वे सभी देवताओं में यदि मुझमें विवेक है तो मुझमें सन्तुलन सर्वशक्तिशाली हैं और उनकी शक्तियों को होगा और मैं बच्चों से नाराज न होऊंगा कोई भी पार नही कर सकता। और उन्हें इस प्रकार से सुधारने का प्रयत्न करुंगा जिससे वे सुधर जाएं। इसके विपरीत हमें ये बात समझनी चाहिए कि ज्यों-ज्यों यदि आप अपने बच्चों के प्रति कठोर होंगे बच्चे बढ़ते हैं उनके अन्दर श्री गणेश भी तो वे प्रतिक्रिया कर सकते हैं और भटक बढ़ते हैं। परन्तु मनुष्य होने के कारण किसी सकते हैं । आप यदि उन पर बहुत अधिक न किसी प्रकार से वे श्री गणेश को अभिभूत बन्धन लगाएंगे तो वो भी उसी प्रकार से (Over Power) करने का प्रयत्न करते हैं व्यवहार करेंगे। इसलिए सहजयोगी माता-पिताओं का ये कर्तव्य है कि निर्लिप्त भाव से अपने बच्चों की इस प्रकार देखभाल करें कि उनमें श्री सिखाएं-जैसे श्रीगणेश अपनी माँ का सम्मान गणेश स्थापित हो जाएं। बच्चे में उसका करते है वैसे ही तुम अपनी माँ का सम्मान विवेक श्रीगणेश की पहली पहचान है। बच्चा करो। अपनी माँ का अर्थ है आपकी परमेश्वरी यदि विवेकशील नहीं है, कष्टकर है, यदि माँ, आपकी अपनी माँ। अतः अपने बच्चों को एक चीज़ अवश्य ये बहुत महत्वपूर्ण वह व्यवहार करना नहीं जानता, तो इससे है। पिता यदि बच्चों को माँ का सम्मान प्रकट होता है कि वह श्रीगणेश पर आक्रमण करना न सिखाए तो बच्चा कभी ठीक नहीं कर रहा है। और आजकल, इस आधुनिक हो सकता क्योंकि इस बात में कोई सन्देह युग में, बच्चों पर निरन्तर आक्रमण हो रहा नहीं है कि अधिकार (Authority) पिता का है। लोगों के लिए यह निर्णय कर पाना हक है, परन्तु माँ का सम्मान होना आवश्यक अत्यन्त कठिन हो गया है कि किस सीमा है। माँ को भी चाहिए कि पिता का सम्मान तक बच्चों के साथ समझाएं और किस करे वर्तमान स्थिति में यदि माता-पिता परस्पर झगड़ने लगे, एक दूसरे से उचित व्यवहार न करें तो इसका कुप्रभाव बच्चे के आज का भाषण इसी चीज़ पर होगा कि गणेश तत्व पर पड़ेगा सहजयोग में ये बच्चों के श्रीगणेश तत्व के मामलों में किस बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि परमात्मा की कृपा सीमा तक न जाएं। सीमा तक हमें जाना है। यह अत्यन्त से आप सबको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो महत्वपूर्ण है क्योंकि श्री गणेश ही विवेक के चुका है अतः आपको इस बात की समझ दाता हैं। अतः माता-पिता को यह बात होनी चाहिए कि अपने बच्चों के साथ किस चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 26 सीमा तक जाना है। उन्हें विवेकशील, हो जाता है। यहाँ तक कि मृत-सम प्रतीत चरित्रवान और धर्मपरायण बनाने के लिए होने वाली पृथ्वी माँ को भी जागृत किया पहली आवश्यकता उनके विवेक को बनाए जा सकता है। आप सहजयोगी यदि पृथ्वी रखने की है। वे यदि कोई विवेकपूर्ण बात पर नंगे पाँव चलें तो यह चैतन्यित हो कहें तो आपको चाहिए कि उसकी सराहना जाती है। तब इस पृथ्वी का प्रभाव घास करें। परन्तु यह बात उन्हें उचित समय पर पर, पेड़ों पर, फूलों पर देखा जा सकता और सम्मान पूर्वक कहनी चाहिए। अतः है। सहजयोगी मुझे बताते रहे हैं कि अपने उनका अभद्र व्यवहार भी सहन नहीं किया आश्रमों में जो फूल वो उगाते हैं उनके जाना चाहिए। अर्थात जो भी प्रकाश उनमें आकार बहुत बड़े होते हैं और वो बहुत है जो भी विवेक उनमें है, प्रकाश की तरह सुगन्धमय होते हैं। लन्दन तथा इंग्लैण्ड के से उसकी अभिव्यक्ति बाहर होनी चाहिए। डेजी पुष्पों में कभी सुगन्ध न हुआ करती थी, इनका आकार भी बहुत छोटा होता अब हम आगे चलकर यह देखते हैं कि था। अब वहाँ पर ये पुष्प बहुत बड़े आकार कहाँ तक श्री गणेश कार्य करते हैं । जैसा के तथा सुगन्धी से परिपूर्ण हो गए हैं। ये मैंने कहा, कण-कण में श्री गणेश विद्यमान चमत्कार है। पहली बार जब मैंने किसी को हैं परन्तु आपको उन्हें जागृत करना होगा। बताया कि डेज़़ी पुष्प अत्यन्त सुगन्धमय हैं उदाहरण के रूप में आपने चैतन्यित जल तो उसे विश्वास न हुआ, परन्तु पुष्प की देखा है। चैतन्यित का अर्थ क्या है? चैतन्यित सुगन्धी को महसूस करके वे हैरान हो का अर्थ है कि जल में गणेश तत्व को गए। जागृत किया जा रहा है। ये जल जब आपके पेट में जाता है, ऑँखों में जाता है व इसी प्रकार गणेश तत्व जागृत होकर या कहीं अन्य आप इसे डालते हैं तो यह चीज़ों को समझता है, इनका आयोजन कार्य करता है। जिस चीज़ में आप इसे करता है. इन्हें कार्यान्वित करता है परन्तु डालते हैं वहाँ ये गणेश तत्व को जागृत गणेश तत्व यदि सुप्त हो, जागृत न हुआ करता है। आपने देखा है कि कृषि के हो तो यह कार्य नहीं करता। जागृत होकर क्षेत्र में चैतन्यित जल से चमत्कार हुए हैं यह कार्य करता है, कार्यान्वित करता है। कृषि में इन चमत्कारों को देखकर लोग जैसे एक छोटा सा बीज जब अंकुरित आश्चर्यचकित रह गए। परन्तु यह अत्यन्त होता है तो इसकी नोक पर विद्यमान छोटे साधारण बात है। एक बार जब आप बीज से कोषाणु में गणेश तत्व होता है जो में गणेश तत्व को जागृत करते हैं तो यह जागृत हो रहा होता है। ये जानता है कि दस-गुना, कभी-कभी सौ गुना शक्तिशाली पृथ्वी में किस प्रकार घूमना है, किस प्रकार श्रीक मई-जून 2002 27 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 फैलना है और किस प्रकार जल के स्रोत आज्ञा चक्र की स्थिति बिगड़ी हुई होती है । तक पहुँचना है इसमें इस बात का विवेक ऐसी परिस्थितियों में गणेश तत्व भी प्रभावित होता है कि जीवित रहने और पोषण प्राप्त हो सकता है। आप यदि बहुत अधिक भौतिक वादी हैं, हर समय भौतिक पदार्थों के लिए भौतिक स्तर पर किस प्रकार वृक्ष को बढ़ने चिन्तित रहते हैं, हर समय घर की चीजों की आज्ञा देनी है। ये गणेश तत्व आज्ञा के विषय में चिन्तित रहते उनकी चक्र के स्तर पर आकर सूक्ष्मातिसूक्ष्म हो देखभाल करते रहते हैं, तब भी यह गणेश जाता है। आज्ञा चक्र पर ये जान जाता है तत्व बिगड़ सकता है । क्योंकि हर समय सका आध्यात्मिक आयाम आप इन्हीं चीजों के विषय में चिन्तित रहते (Dimension) है। जड़ के सिरे पर कार्य हैं जैसे दुकानों पर जा-जाकर आप देखते करने वाला छोटा सा गणेश तत्व का कोषाणु रहते हैं कि वहाँ पर क्या है और मुझे क्या अब आध्यात्मिकता के लिए गतिशील हो खरीदना चाहिए। आप यदि ऐसा ही करते उठता है। यही कारण है कि ध्यान करते रहेंगे तो गणेश तत्व प्रभावित रहेगा। परन्तु हुए लोग अपनी आँखें मुँद लेते हैं. अब वे यदि सौन्दर्य के लिए आप कोई चीज खरीदते किसी अन्य चीज को देखना नहीं चाहते। है, अपने घर को सजाने के लिए आप कोई उनकी इच्छा होती है कि कुण्डलिनी की चीज़ खरीदते हैं तो इसका अर्थ है अन्य ध्यान प्रक्रिया में केवल श्री गणेश ही कार्य लोगों को प्रसन्न करने के लिए आप यह कार्य कर रहे हैं। जब आप अन्य लोगों को करने के लिए किस सीमा तक जाना है। हुए कि अब करें। ध्यान के समय जब हम ऑँखें बन्द करते हैं तो ध्यान की ये शैली क्रियाशील प्रसन्न करना चाहते हैं तब यह दूसरी प्रकार होती है । नींद में स्वप्न लेते हुए किसी कार्य करता है। आपके उत्थान की गति व्यक्ति को यदि हम देखें तो हम पाएंगो कि की बढ़ाता है। ऐसा केवल तभी होता है जब आप अन्य लोगों को आनन्द देने के हर समय उसकी आँखें हिलती डुलती रहती लिए अपनी खरीदी हुई चीजों के सौन्दर्य हैं। आपके चित्त से अब यह गणेश तत्व को अन्य लोगों से बाँटने के लिए ऐसा गतिशील हो उठा है। अब भी यदि आपका चित्त सदैव एक चीज़ से दूसरी चीज़ पर, के लिए कुछ खरीद रहे हैं-मैंने हाल ही में एक स्थान से दूसरे स्थान पर भागता है तो यह प्रभावित है। विशेषरूप से यदि हम हर चीजें खरीदते हैं. उन्हें प्रसन्न करने के समय किसी पुरुष या स्त्री को ही ताकते लिए नहीं - यदि वे इस लक्ष्य से चीजें रहते हैं तब भी हमारा गणेश तत्व अशान्त खरीदते हैं तो भी गणेश तत्व विक्षुब्ध हो हो उठता है। ऐसे लोगों की कुण्डलिनी जाता है । अपने घर को सुन्दर बनाने के उठाना बहुत कठिन होता है क्योंकि उनके लिए आपको चीजें खरीदनी चाहिएं ताकि करते हैं। मान लो आप किसी को जलाने है कि लोग दूसरों को जलाने के लिए सुना चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व ৪ मई-जून 2002 28 कोई आगन्तुक यदि आपके घर में आए तो क्रियाशील होते हैं वही सुखकर होती हैं । कहे कि हमने कितनी सुन्दर चीजें देखी! वही व्यक्ति को शान्ति प्रदान कर सकती हैं। ऐसी ही कृतियाँ आपको प्रसन्नता प्रदान वस्तुओं से या पदार्थों से मोह नहीं होना करती हैं और इन्हीं की सराहना होनी चाहिए। चित्त इस बात पर होना चाहिए चाहिए। अतः श्रीगणेश आपके अन्दर उच्च कि उन्हें देखकर लोगों को कैसा लगता मूल्यों की स्थापना करते हैं और व्यक्ति के है। किस प्रकार की शान्ति और उन्हें अन्दर की अधमता, जो अधमता का आनन्द मिलता है। सौन्दर्य रूपी अपने श्रीगणेश लेती हैं, कम हो जाती है। कभी-कभी तो को वो देख सकते हैं । सुख श्रीगणेश इस अधमता को पूर्ण रूपेण नष्ट कर देते हैं। तिड यह भावना जब व्यक्ति में आ जाए तब मैं आपको मोनालिसा का उदाहरण दूंगी। हमें कहना चाहिए कि गणेश तत्व जागृत है ये भावना मातृत्व-भाव-सम होती है मोनालिसा को यदि आप देखें, मैं सोचती जिस प्रकार माँ अपने बच्चे को मधुर चीजें कि वे अभिनेत्री नहीं हैं और न ही सौन्दर्य देना चाहती है इसी प्रकार आपमें भी वात्सल्य प्रतियोगी (Beauty Contestant)। उनका है। इसे मातृत्व-भाव कहते हैं। आपमें यह मुख अत्यन्त सौम्य है. अत्यन्त मातृत्वपूर्ण, भावना होनी चाहिए कि लोग मेरे घर आएं अत्यन्त पावन। कारण ये है कि उसमें हैं तो उन्हें अत्यन्त प्रसन्न एवं आनन्दमय गणेश तत्व है. वे माँ हैं। इसकी कहानी होना चाहिए। इस प्रकार से आप महान इस प्रकार है कि इस महिला का बच्चा खो गणेश तत्व को सन्तुष्ट करते हैं। कलाकारों गया था जिसके कारण ये न कभी मुस्करा पर आपकी दृष्टि पड़ती है। कलाकार सकी न रुदन कर सकी। एक बार जब सृजनात्मक हैं। स्वाधिष्ठान के माध्यम से एक छोटा बच्चा इनके पास लाया गया पदार्थों में से वे सुन्दर चीज़ों का सृजन और उस बच्चे को इन्होंने देखा तो इनके करते हैं परन्तु स्वाधिष्ठान पर यदि श्रीगणेश मुख पर बच्चे के प्रति प्रेम की जो मुस्कान जागृत न होंगे तो बनाई गई वस्तुएं सुन्दर उभरी, उसी मुस्कार का चित्रण इस महान न होंगी आजकल आप देखते हैं कि कलाकार ने किया है यही कारण है कि कलाकार अत्यन्त विकृत और चरित्रहीन लोग निरन्तर इसकी प्रशंसा करते हैं चीज़ों का सृजन कर रहे हैं। इन कृतियों का कोई शाश्वत मूल्य नहीं होता। लोग आज इन्हें खरीदते हैं और कल इन्हें फैंक चित्र की प्रशंसा करते हैं यद्यपि माँ बच्चे के देते हैं। जिन कृतियों में सूक्ष्म गणेश- तत्व सम्बन्धों में उनकी कोई विशेष दिलचस्पी पश्चिमी देशों के लोग भी मोनालिसा के ১c मई-जून 2002 29 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 नहीं है। कहीं भी आप चले जाइए माँ बच्चे सबसे अधिक आनन्ददायी सिद्धान्त है-बच्चों का विषय ही सर्वोत्तम है। फोटो दिखाऊंगी। यह माँ बच्चे का है, ईसा संगति का आनन्द लेना। क्यों? क्योंकि मसीह की माँ और उनके बच्चे का। ईसा-मसीह के जन्म के समय माँ वहाँ माधुर्य आपके हृदय में उतर जाता है। थीं माँ- बच्चे का सिद्धान्त उन्हें अपनाना तुरन्त चेहरा खिल उठता है मैंने आपको ही था। इसके बिना वह चित्र महान नहीं बताया था कि मैंने मगरमच्छ को अपने माना जाता, या आपको वास्तव में ईसामसीह अण्डे तोड़ते हुए देखा है। काश, कि उस को लेना पड़ता, जो कि स्वयं श्री गणेश समय आपने उस मगरमच्छ की आँखों को तत्व हैं। इसमें कोई संशय नहीं है । छाम मैंने उन दिनों में बनी ऐसी कोई अन्य तस्वीर नहीं देखी हैं जिनमें ये सिद्धान्त न मैं आपको एक को देखना, उनके साथ खेलना, उनकी जब आप बच्चे को देखते हैं तो उसका माे देखा होता कितनी सावधानीपूर्वक वह अपने अण्डों को तोड़ रही थी उसकी आँखें अत्यन्त सुन्दर थीं, प्रेम उन ऑँखों से फूट पड़ रहा था। आप विश्वास ही नहीं कर अपनाए गए हों। पिकासो ने भी इस सिद्धान्त सकते कि ये उसी मगरमच्छ की आँखें हैं। का उपयोग किया है। जो लोग अत्यन्त इतने आराम से बह अपने मुँह से उन आधुनिक हैं उन्हें भी लोकप्रिय होने के अण्डों को तोड़ रही थी और उनसे छोटे-छोटे लिए इस तत्व का उपयोग करना पड़ा। मगरमच्छ बाहर निकल रहे थे। उन बच्चों परन्तु लोकप्रिय होने के लिए कुछ लोगों ने को किनारे पर लाकर उन्हें अपने मुँह में श्री गणेश विरोधी सिद्धान्त का भी उपयोग डालकर अत्यन्त सावधानी पूर्वक वह मादा किया। ऐसी सारी चीजें हो गई हैं और मैं मगरमच्छ उन्हें धो रही थी आप हैरान देखती हूं कि शनैः शनैः ऐसा सब कुछ होंगे कि अपने मुँह का उपयोग वह स्नानागृह पतन के गर्त में जा रहा है। यद्यपि लोगों की तरह से कर रही थी! के चरित्र का पतन हो चुका है फिर भी वे रैमब्रेन्ट को पसन्द करते हैं और लियानार्डो को पाना चाहते हैं। वो ऐसे कलाकारों की अपने बच्चों पर कार्य करते हैं। परन्तु जब कलाकृतियाँ प्राप्त करना चाहते हैं जिनमें आप तथाकथित आधुनिक बन जाते हैं तब माँ-बच्चे का चित्रण किया गया हो। ये तुम्हारी गतिविधियाँ बड़ी अजीब होती हैं। आश्चर्य की बात है। इस बार जब मैं ऐसे भी लोग हैं जो अपने बच्चों की हत्या आस्ट्रिया गई तो मैंने कहा कि हमारे पास बहुत सुन्दर माँ और बच्चा है। तो ये सिद्धान्त मेरा कहने का अभिप्राय ये है कि ऐसे लोग अत्यन्त आनन्ददायी है। मानव के लिए यह राक्षसों से भी बदतर हैं। राक्षसों ने भी ऐसे आपको देखना चाहिए कि पशु किस प्रकार कर देते हैं, अपने बच्चों को गाली देते हैं । चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 30 गणेश तत्व के सूक्ष्म पक्ष को यदि हम देखें तो इसकी अभिव्यक्ति हमारी आँखों में होती है। मैं जब किसी चीज को देखती हूँ तो आनन्ददायी पदार्थ के रूप में इसे देखती हूँ, केवल आनन्दायी चीज़ के रूप में कोई चीज़ यदि मैं खरीदती हूँ तो मेरे मन में ये कार्य नहीं किए होंगें, पिशाचों ने भी नहीं किए होंगे। गण हैरान हैं कि किस प्रकार के जीव पैदा हो गए हैं, ये कहाँ से आ गए हैं? इनमें अपने बच्चों के लिए भी प्रेम नहीं है, ये अपने बच्चों की हत्या कर सकते हैं उनके हाथ तोड़ सकते हैं! अतः अपने बच्चे के प्रति आपका प्रेम अत्यन्त आवश्यक है। परन्तु भावना होती है कि फलां व्यक्ति के लिए मैं सहजयोगी होने के नाते हमारा प्रेम केवल ये चीज़ खरीदूं, उसे अच्छी लगेगी । मैं अपने बच्चों तक ही सीमित नहीं होना चाहिए। जानती हूँ कि किसको क्या अच्छा लगता दूसरी बात ये है कि हमें अपने प्रेम को है। इसलिए मैं उसके लिए वही चीज़ सीमाबद्ध करना चाहिए और ये सीमा खरीदती हूँ। परिवार के लिए कुछ खरीदते है-हितैषिता। क्या ये मेरे बच्चे के हित में हुए भी मैं इसी प्रकार सोचती हूँ। मैंने अभी होगा, क्या मैं अपने बच्चे को बिगाड़ रहा हूँ, एक घर बनाया है जिसमें मैं ये सारी चीजें, क्या मैं अपने बच्चे को बहुत ज्यादा प्रोत्साहन आपके दिए हुए सारे उपहार अजायबघर दे रहा हूँ, क्या मैं अपने बच्चे के हाथों खेल की तरह से रखूंगी। सभी ग्रामीणों से मैं रहा हूँ, या मैं अपने बच्चे को ठीक से चला कहूंगी कि आकर उस अजायबघर को देखें। रहा हूँ? शैशवकाल में माता-पिता को ही उन्होंने कभी इस तरह की चीजें नहीं देखी अपने बच्चों को चलाना होता है। उन्हें बच्चों हैं और न ही वे स्विटज़रलैण्ड और इंग्लैण्ड को प्रशिक्षित करना होता और बच्चों को भी की यात्रा कर सकते हैं। इसलिए मैं ये घर आज्ञाकारी बनकर उनकी बात को सुनना इस प्रकार से बना रही हूँ कि ग्रामीण लोग, चाहिए। परन्तु आजकल बच्चे आज्ञाकारी जिन्होंने इतनी सुन्दर चीजें पहले कभी नहीं हैं क्योंकि वो जानते हैं कि माता-पिता नहीं देखीं, आकर इन्हें देख सकें। ही परस्पर आज्ञाकारी नहीं है। पूरा समाज भारत में आम लोगों के मन में ईर्ष्या नहीं होती ईष्या की भावना तो नए ही इस तरह का बन गया है कि बच्चे माता-पिता को परेशान करते रहते हैं और वो ऐसे ही बन जाते हैं। परन्तु कोई बात भौतिकतावादी लोगों में उत्पन्न हो गई है। नहीं, आप लोग सहजयोगी हैं आपने अपने अन्यथा वो हमेशा यही कहते हैं कि कितनी बच्चों का इस प्रकार पोषण करना है कि वो अच्छी चीज़ है! कितनी सुन्दर है! जैसे आज्ञाकारी हों, विवेकशील, संवेदनशील हों। उस दिन आप लोग पुणे में सहजयोग के उन्हें वैसा ही प्रेम दें जैसे मगरमच्छ अपने भजन गा रहे थे। वास्तव में आप लोगों ने बच्चों को देता है। भारतीय संगीत पर बहुत अच्छी पकड़ बना চ F a मई-जून 2002 31 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 ली है । जब आप लोग गा रहे थे तो वहाँ हमारे पास है शायद वीडियों नहीं है। आप पर कुशल संगीतज्ञ भी बैठे हुए थे। वो सभी इसे लें और देखें कि किस प्रकार मेरे नाट्य कला में भी सिद्धहस्त थे तथा भारत बच्चों की सराहना की गई और किस प्रकार के सुप्रसिद्ध कलाकार थे उन्होंने मुझसे उन्होंने संगीत गाया सभी सुप्रसिद्ध प्रार्थना की कि श्री माताजी हम आपका संगीतकार बैठकर इस प्रकार उनकी जन्मदिवस मनाना चाहते हैं। मैंने कहा. "ये सराहना कर रहे थे मानो संगीत गायन बहुत कठिन बात है क्योंकि वह स्थान करते हुए छोटे-छोटे बच्चों की सराहना बहुत दूर है। नहीं, नहीं हम आ जाएंगे । पूरी रात और पूरा दिन उन्होंने सफर किया और प्रातः पाँच बजे वो पहुँचे। तीन या चार बजे प्रातः अपना नाटक समाप्त करके मधुर आवाज से मातृत्व का सुख मिलता पूरा दिन उन्होंने यात्रा की और बैलगाँव से है। आप देखें कि ये बच्चे कितना मधुर गा लगभग पाँच बजे पहुँचे। छः साढ़े छ: बजे रहे हैं। सुप्रसिद्ध कलाकार भी जब आप उनका कार्यक्रम था, वो तैयार हुए और लोगों को इसी प्रकार गाते हुए देखते हैं तो शानदार मंच संचालन किया उन्होंने कहा उन्हें भी इसी आनन्द का एहसास होता है कि हम लज्जित हैं हम सोचा करते थे कि कि किस प्रकार ये बच्चे, ये लोग इतना हम महाराष्ट्रियन लोग संगीत और तालों में अच्छा गा सकते हैं! किस प्रकार उन्हें अत्यन्त कुशल हैं, परन्तु जिस प्रकार से इतना ज्ञान प्राप्त हुआ! उस प्रशंसा ने, उस इन विदेशी कलाकारों ने हमारा संगीत गान मधुर भावना ने अत्यन्त सुन्दर वातावरण किया है हमें लज्जा आ रही है। इतनी की सृष्टि की महान कलाकारों ने भी ये अच्छी तरह से हम भी नहीं गा सकते। नहीं कहा कि "ये क्या संगीत है? कुछ भी यद्यपि हम उनका संगीत नहीं गा सकते नहीं है।" उन लोगों ने भी इस बात की परन्तु उन्होंने हमारे भजन गाए हम सबको सराहना की कि भारतीय संगीत का इन बहुत लज्जा तथा उलझन हुई कि किस लोगों को बिल्कुल ज्ञान न था फिर भी ये प्रकार उन्होंने इतना अच्छा गाया! उनकी इतना अच्छा गा रहे हैं। उस सराहना में इतनी सराहना हुई कि मुझे भी उलझन मातृत्व, पितृत्व और वात्सल्य भाव था जिसने हुई। लोगों ने कहा, कि ये कैसे हो गया स्थिति को अत्यन्त सुन्दर बना दिया| है? उनके गुरु ने क्या कर दिया है? ऐसा कौन सा जादू कर दिया है कि ये इतना अच्छा गा रहे हैं। सराहना ने सब पर जादू मैनुहिन के साथ बजाना पड़े तो उनके कर दिया। मेरे ख्याल से उसका ऑडियोटेप सम्मुख वह एक बच्चा है परन्तु मैने देखा कर रहे हों। ड वास्तव में बात ये थी कि वात्सल्यपूर्ण टी रवि-शंकर जैसे व्यक्ति को यदि यहूदी वैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 32 है कि रविशंकर उसकी देखभाल करते हैं, यदि आधुनिकता के नज़रिए से देखें तो उसे संभालते हैं, हर समय वे उसकी देखभाल लोग कहते हैं कि इनका व्यक्तित्व उभरने करते हैं और उसका संचालन करते हैं। दो, इन्हें स्वतन्त्र होने दो। इसलिए माता- संगीत में हमने ये भी देखा है कि पिता अपने बच्चों की देखभाल उस प्रकार तबला-वादक जब किसी बड़े संगीतकार से नहीं करते जिस प्रकार से उन्हें करनी के सम्मुख बैठता है तो उससे प्रार्थना करता चाहिए, कि ये मेरा बेटा है और मुझमें है कि मुझे संभालना, हमेशा अपने अन्दर प्रतिभा है यह प्रतिभा मुझे उसमें भी जागृत करनी होगी ताकि वह उन्नत हो सके। वात्सल्य की भावना लिए हुए! इसी पुत्र के माध्यम से मेरा अस्तित्व शाश्वत् जीवन में भी परस्पर मधुर सम्बन्ध बनाए बना रह सकेगा। अतः व्यक्तिगत अस्तित्व रखने के लिए ये चीजें आवश्यक हैं। जो की ये भावना कि घर से चले जाओ, जो लोग हमारे से छोटे हैं, जो सुस्थापित नहीं चाहे करो, अपने पैरों पर खड़े होओ, ठीक हैं, जो बहुत प्रतिभावान नहीं हैं या जिन्हें नहीं है जीवन एक निरन्तर प्रक्रिया है, सहजयोग का अच्छा ज्ञान नहीं है। तथा यह केवल अपने टॉँगों पर खड़ा होना ही जो सहजयोग में नए हैं, हमें पिता या माता नहीं है । व्यक्ति को हर समय पूर्ण से जुड़े रूप से उनकी देखभाल करनी चाहिए। वे रहना है जब तक आप पूर्ण से जुड़े लोग अभी कुशल नहीं है। हमारे अन्दर नहीं रहते आप अबोधिता की सामूहिकता गणेश तत्व है, हमें चाहिए कि उनके गणेश (Collectivity of Innocence) को नहीं तत्व को भी उत्साहित करें। आत्मतत्व या समझ सकते। उच्च अवस्था को प्राप्त करने के लिए वे हम पर निर्भर हो सकें| नि्ड गुरु तत्व पूर्णतः गणेश तत्व से बँधा किसी का बच्चा, किसी अन्य व्यक्ति की है। गुरु हे अबोधिता की सामूहिकता को देखकर कई बार मुझे बहुत प्रसन्नता होती है कि में यदि गणेश तत्व नहीं होगा गोद में अत्यन्त प्रेम से बैठा होता है. मानो तो वह अत्यन्त भयंकर हो उठेगा और फिर वह उसका अपना पिता हो । बच्चे का आकर कोई भी उसके साथ न रहना चाहेगा आपकी गोदी में बैठ जाना, बिना यह जाने लोग उससे दूर दौड़ जाएंगे। सच्चा गुरु कि ये मेरा पिता नहीं है! परन्तु इस बात यद्यपि अपने शिष्यों को दण्डित करता है, की चेतना उसे नहीं होती। यह चेतना मेरे उन पर क्रोधित होता है परन्तु मूलतः वह और मेरे अपने की भावना को फैलाती है सोचता है ये मेरी सन्तान हैं और मैं इन्हें कि यह मेरा है, यह तेरा है और यह आपको विकसित कर रहा हूँ, बना रहा हूँ। परन्तु एक एहसास प्रदान करती है कि अब हम मई-जून 2002 33 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 5 माध्यम हैं, यंत्र हैं, गणेश तत्व को अभिव्यक्त क्रूर नहीं होना कोई ऐसा कार्य नहीं करना करने का साधन हैं। गणेश तत्व अर्थात जिससे अन्य लोगों का अपमान हो, ताकि चैतन्य को अभिव्यक्त करने का। आपके मधुर सम्बन्ध बने रहें। अतः चैतन्य लहरियाँ, जिनके विषय में अतः परमात्मा और आपके बीच सम्बन्ध आप हमेशा पूछते रहते हैं, श्रीगणेश या गणेश तत्व के माध्यम से ही होते हैं। जब ओंकार के अतिरिक्त कुछ भी नहीं और आपका सम्बन्ध परमात्मा से बन जाता है जब स्थिति ऐसी होती है तो केवल वात्सल्य तो चैतन्य-लहरियों बहती हैं और तब वही की भावना रह जाती है। माँ और बच्चे के सम्बन्ध आपके द्वारा किए गए हर कार्य में बीच प्रेम की भावना, यही भावना चैतन्य - फैल जाता है। आपको देखना चाहिए कि लहरियाँ है । माँ और बच्चे के बीच की दूरी ही चैतन्य-लहरियाँ हैं। व्यक्ति को यही चैतन्य-लहरियाँ हों । केवल वही चीजें अच्छी होती हैं जिनमें महसूस करना है कि वह अभी तक बच्चा है और माँ भी हैं जो बच्चे का पोषण कर रही हैं, उसे सारी शक्तियाँ दे रही हैं, प्रेम के विषय में कुछ महत्वपूर्ण बातें बताऊंगी। कर रही हैं। बच्चे की सीमाओं को देखते ये सर्वव्यापक शक्ति चैतन्य लहरियों के हुए उसकी देखभाल कर रही हैं। बच्चे का अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। परम चैतन्य- सारा माधुर्य और उसके विवेक को समझा चैतन्य लहरियों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं जाना चाहिए। यही चैतन्य- लहरियाँ हैं। है इसमें सारी पहचान, सभी सम्बन्ध समाप्त इसके सूक्ष्म-पक्ष को यदि आप देखें तो हो जाते हैं। माता-पिता के सम्बन्ध सभी आपको पता चलेगा कि यह केवल मेरा समाप्त हो जाते हैं, कुछ भी नहीं रहता, बच्चा ही नहीं है, यह सीमा बद्ध नहीं है केवल चैतन्य लहरियाँ, केवल सूक्ष्म वात्सल्य क्योंकि यह शाश्वत् है, सर्वत्र है। आप इस रह जाता है। केवल चैतन्य लहरियों से ही पर अधिकार नहीं कर सकते। पश्चिमी हर चीज का उद्गम है और यह अपने देशों के लोग जिस प्रकार चीज़ों को लेते हैं आपमें ही समाई हुई है। जैसे हम कह उनसे हम भारतीयों को बहुत कुछ सीखना सकते हैं कि सूर्य की किरणे निकलती हैं. है। हमें स्वीकार करना है कि सुन्दर चीज़ों क्लोरोफिल बनाने का प्रयत्न करती हैं। को संभालने के कौन से तरीके हैं, किस परन्तु आप सूर्य का मुकाबला उससे नहीं प्रकार सुन्दर तत्वों की देखभाल करनी है कर सकते या हम कह सकते हैं कि सागर और किस प्रकार सुन्दर सम्बन्धों का से मेघ निकलते हैं और पृथ्वी माँ का पोषण प्रबन्धन करना है आपको कठोर नहीं होना, करते हैं । उनकी भी तुलना नहीं की जा पत आज मैं आपको इस सर्वव्यापक शक्ति चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 34 सकती। हर चीज़ परम-चैतन्य में निहित रही हूँ। इसके बाद हम जल को देखते है। हैं, झील के अन्दर हम जल को देखते हैं। जल वहाँ है और सूर्य के कारण हम पल अतः हम कह सकते हैं कि ज्ञान के जल को देख सकते हैं। तत्पश्चात् मान लो अतिरिक्त कुछ नहीं, सत्य के अतिरिक्त हम मृगतृष्णा को देखते हैं और मान लेते कुछ भी नहीं, प्रकाश के अतिरिक्त कुछ भी हैं यह जल है और इसके पीछे दौड़ते नहीं। परन्तु जब इसकी तहें (Folds) है । परन्तु ये सभी कुछ सूर्य का खेल है. निकलते हैं और इस चैतन्य की तहों में हम चाहे ये मृगतृष्णा हो, चाहे ये जल हो, या ये फँस जाते हैं तब अज्ञान में फँस जाते हैं। सूर्य हो। परन्तु अज्ञान नाम की कोई चीज़ नहीं है. इसका कोई अस्तित्व ही नहीं है जैसे अंधेरा है तो इसका कारण है प्रकाश नहीं करता है और हम अपनी चेतना में खो है। प्रकाश के आते ही अंधेरा समाप्त हो जाते है कि हम परम-चैतन्य हैं। इस प्रकार जाता है, इसका कोई अस्तित्व ही नहीं ि हि व इसी प्रकार से ये परम-चैतन्य कार्य खेल शुरु होता है। रहता। अंतः अज्ञानता का कोई अस्तित्व नहीं है। परन्तु लोग इस सागर की लहरों में फँसकर खो जाते हैं। इस प्रकार हम वहाँ बैठे हुए थे और वर्षा होने लगी ये एक चीज़ को भली-भांति समझ लेते हैं कि हम परम चैतन्य है, परम-चैतन्य से कर सकती हूँ वर्षा हुई। कुछ लोग स्वयं बने हैं, हर समय परम-चैतन्य से घिरे कुछ हैं। परन्तु कभी-कभी हम इसकी तहों ही देर बाद वर्षा पूजा के स्थान से हटकर (Folds) में खो जाते हैं, क्यों? क्यों पीछे की ओर चली गई। जहाँ हम बैठे हुए हम इन तहों में खो जाते हैं? अपनी थे वहाँ वर्षा न हो रही थी तत्पश्चात् ऐसा अचेतनता के कारण चेतनता का जैसे कल की पूजा से पहले दिन हम साबित करने के लिए कि मैं वर्षा को नियंत्रित को ढक रहे थे। मैंने बन्धन दिया और हुए हुआ कि घने बादलों के बीच से सूर्य निकला आना आवश्यक है कि हम परम-चैतन्य और चारों तरफ घूप छा गई इसी प्रकार के ही अंग-प्रत्यंग हैं। इस सारी प्रक्रिया से आपको परम-चैतन्य की शक्तियों के को चिद्विलास कहते हैं। ये विलास प्रति चेतन होना होगा । हैं। परमात्मा के चित्त का लीलामय आनन्द लेना। अब आप पूछेंगे ये कैसे हो सकता है? उदाहरण के रूप में हम सूर्य गतिशील करते हैं। मान लो के आप समुद्र को देखते हैं। मैं इसी की एक उपमा दे में है और हर समय समुद्र आपको प्रभावित जब आप बन्धन देते हैं तो चैतन्य को चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व ৪ मई-जून 2002 35 करता रहता है। समुद्र के अन्दर आप विवेकशील हैं। विवेक के अतिरिक्त वे गतिशील नहीं हो सकते। जल से आप ये भी नहीं हैं। वे विवेक के दाता हैं। यही नहीं कह सकते कि ऐसा करो, वैसा करो। कारण है कि वे असूर विनाशक हैं। हमारी कुछ हिम परन्तु आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के रूप चेतना को उन्नत करके वही हमारे सभी में आपको शक्ति प्राप्त हो जाती है। कष्टों को दूर करते हैं। ये सत्य है कि अब आप जल से कह सकते हैं कि कष्ट नहीं रह सकते क्योंकि आप ठीक है लुप्त हो जाओ। ऐसा करो, बन्धन देते हैं और यह कार्य करता है। वैसा करो, परन्तु यह स्थिति प्राप्त करने के लिए आपको स्वामित्व प्राप्त करना होगा स्वामित्व प्राप्त करने के लिए जैसे के विषय में लिखने को कहा । अब उसका पदार्थ मानव बन जाता है और मानव को कहना है कि लोगों द्वारा भेजे गए चमत्कार पदार्थ पर स्वामित्व हासिल करना होता है. इतने अधिक हैं कि उसका एक बहुत बड़ा तभी आप पदार्थ को नियंत्रित कर सकते हैं ग्रंथ बन गया है ये तो होना ही था परन्तु मैंने किसी व्यक्ति को घटित चमत्कारों तो हम उसी पर वापिस आ जाते हैं। चैतन्य आत्म साक्षात्कार से पूर्व जो चीजें आपको चमत्कार लगती थीं अब वो चमत्कार नहीं सकते हैं, जल को नियंत्रित कर सकते हैं, रहीं। आपके लिए चमत्कार का अर्थ ही सूर्य को नियंत्रित कर सकते हैं, चन्द्रमा को समाप्त हो गया है क्योंकि अब आपमें शक्ति नियंत्रित कर सकते हैं। क्योंकि अब है और आप ये चमत्कार कर सकते हैं। हर चीज पर ये कार्य करता है। आपकी प्रतिभा बात का ज्ञान है कि समन्वय स्थापित हो पर, आपकी सूझ-बूझ पर, आपकी शिक्षा पर तथा सर्वत्र परम चैतन्य कार्य करता है। लहरियों से हम फसल को नियंत्रित कर एकरूपता स्थापित हो गई है। हमें इस चुका है। ता कुछ लड़के थे उन्होंने बताया कि श्री माताजी अतः ये सारा खेल मेरे लिए बहुत सुन्दर हम प्रश्न न हल कर पा रहे थे तो हमने है। मैं इसे देखती हूँ। अब आप सबको भी बन्धन दिए. एकदम से उस समस्या का ये समझना है कि आप आत्म-साक्षात्कारी हल सूझ गया और हमने उस प्रश्न का बन गए हैं और आपके पास भी ये शक्तियाँ उत्तर लिख लिया। सहजयोगियों के साथ हैं। जिन भी मूर्खतापूर्ण चीज़ों में आप फँसे ये सब घटित हो रहा है । हुए थे उन्हें अब आप त्याग दें। इन चीज़ों में फँसे रहने में कोई विवेक नहीं है। अब आप विवेकपूर्ण कार्य करें क्योंकि अब आपके जो आप करते हैं, आपको इस बात का अन्दर श्री गणेश जागृत हैं और वे पूर्णतः ज्ञान होना चाहिए कि परम-चैतन्य कार्य िजा अतः सभी कार्यो में, उन सभी चीजों में चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 36 करता है केवल आपको अपने विषय में सकते हैं । स्वामिर्व से ये अभिप्राय नहीं है और इसके विषय में चेतन होना आवश्यक कि आप इस पर प्रभुत्व जमा ले, परन्तु आप इसे ऐसे ही कह सकते हैं जैसे जिन्न चेतना में चले जाएं तो परम चैतन्य को कहते हैं। परन्तु कभी-कभी हम कार्य करता है, ये बात आप देख चुके परम-चैतन्य का सम्मान नहीं करते, ये हैं। परन्तु अभी भी बहुत से लोग इस बात भी अत्यन्त आश्चर्य चकित करने वाली बात को नहीं समझे हैं बहुत से लोग है। हर समय जिस प्रकार से हम कार्य यद्यपि अपनी बुद्धि से इस बात को करते है, जिस प्रकार हम व्यवहार करते हैं समझ चुके हैं परन्तु हृदय से वे इस जैसे मेरे सम्मुख बैठकर भी लोग ऑँखें मूँद सत्य को नहीं समझे और कुछ लोग चाहे लेते हैं। वो मेरी साक्षात् की पूजा करने के इसे हृदय से जानते हैं फिर भी अपने चित्त स्थान पर मेरे फोटो की पूजा करने लगते हैं। कभी-कभी जिस प्रकार से वे कुण्डलिनी को चलाते हैं, जिस प्रकार वे अपने से व अतः आपको केवल तीन चीजों में अन्य लोगों से व्यवहार करते हैं, ये आश्चर्य है, ये कार्य करता है। एक बार आप से इसे गतिशील नहीं करते। सुधार लाना है-पहली आपका हृदय, जनक होता है। ये सारी चीजें समझी जानी दूसरी आपका मस्तिष्क तीसरा आपका आवश्यक हैं क्योंकि अब हम परमात्मा के जिगर। अपने इन तीनों अवयवों को साम्राज्य में अर्थात परम चैतन्य में प्रवेश यदि आप सुधार सकें तो परम चैतन्य कर चुके हैं और इस साम्राज्य के हम गतिशील हो उठेगा परन्तु धन आदि महत्वपूर्ण नागरिक हैं । व्यक्ति यदि इस भौतिक पदार्थों पर चित्त को लगाए बात को समझ सके तो, मैं सोचती हूँ कि, रखना व्यर्थ है । परम चैतन्य आपके सहजयोग अत्यन्त सफल होगा | सभी कुछ लिए हर चीज़ की सृष्टि करेगा हो चमत्कारिक रूप से कार्यान्वित होगा, सभी सकता है ये नोटों का सृजन न करे कुछ गतिशील हो उठेगा। जिन लोगों को क्योंकि इसके पास टकसाल नहीं है, इन संभावनाओं का ज्ञान ही नहीं है वे कहाँ परन्तु यह नोटों की संभावना का सृजन पहुँच सकते हैं? उन्हें बाहर फैंक दिया अवश्य करेगा। ये बात भली-भांति समझी जाता है अर्थात अज्ञानता में, अन्धकार में। जानी आवश्यक है और इसका ज्ञान अत्यन्त परन्तु वे भी पुनः प्रकाश में लौट सकते हैं। आनन्ददायी है कि आप परम चैतन्य के प्रति चेतन हैं। और आप इसके स्वामी बन परमात्मा आपको धन्य करें। ी पतलि औरंगाबाद पूजा भ् छ 19 दिसम्बर, 1989 (परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) ाम |चल मेरे जीवन में औरंगाबाद का ताकि हाथियों की नस्ल ही नष्ट कर दी विशेष महत्व है क्योंकि मेरे पूर्वज यहाँ से जाए। परन्तु श्री विष्णु जी ने बहाँ प्रकट बहुत समीप स्थित पैठन नामक स्थान से होकर मगरमच्छ का वध करके गजेन्द्र की सम्बन्धित थे पैठन का मूल नाम प्रतिष्ठान रक्षा की । वहाँ रहने वाले विशालकाय पशुओं था। महान काव्य रामायण' के सृष्टा ऋषि में से केवल गज ही बचाए जा सके। इसी वाल्मीकि यहीं इसी क्षेत्र में रहा करते थे। लिए इस स्थान को गजेन्द्र मोक्ष' तीर्थ प्रतिष्ठान या पैठन तक जाने वाले, गोदावरी कहा जाता है। के दूसरे किनारे पर शालिवाहन साम्राज्य म वाल्मीकि लोगों को लूटा करते थे। वे मछुआरे थे। एक बार जब नारद वहाँ सीताजी यहीं रहीं। उनका एक पुत्र आये तो वाल्मीकि ने उन्हें भी लूटा। नारद रूस चला गया तथा दूसरा चीन। कुश ने उससे पूछा कि क्यों वह उन्हें लूट रहा चीन गया तथा लव रूस। लव की सन्ताने है? वाल्मीकि ने उत्तर दिया - 'क्योंकि मुझे रूसी लोग स्लाव कहलाते हैं तथा कुश के अपने बच्चों, पत्नी तथा विशाल परिवार का पालन करना है परिवार में अकेला मैं ही कमाने वाला हूँ। तब नारद ने प्रश्न किया इसी क्षेत्र में विशालकाय पशुओं तथा कि 'क्या तुम्हारे बच्चे और परिवार के लोग तेज-तर्रार, बुद्धिमान एवं संवेदनशील जीवों तुम्हारे लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर में विकास के लिए गहन संघर्ष हुआ। देंगे? वाल्मीकि ने कहा "मुझे इसका पूर्ण अधिकतर विशालकाय पशु नष्ट कर दिए विश्वास है।" नारद ने उससे कहा कि तुम गए, नदी में भारी संख्या में मगरमच्छ रह मृतक सम बन जाओ। वाल्मीकि के मृत-सम गए। गज-साम्राट गजेन्द्र एक बार जब शरीर को उठा कर नारद और चार सन्त वहाँ पानी पी रहा था तो एक विशालकाय उसके घर ले गए और उसके परिवार जनों मगरमच्छ ने उस पर आक्रमण कर दिया। को बताया कि उन्हें लूटते हुए वह मारा मगरमच्छ उसे इसलिए मारना चाहता था गया। परन्तु इसे जीवित करने का एक था। चीनी वंशज कुशाण। चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 38 उपाय है । इसके स्थान पर आपमें किसी महत्वपूर्ण भाग यहाँ घटित हुआ। शालीवाहन ने राजाओं ने वाल्मीकि मन्दिर बनाने में बहुत एक को अपना जीवन देना होगा। नारद सब को समझाने का प्रयत्न किया परन्तु सहायता दी तथा गुरु रूप में वाल्मीकि का समी का कोई न कोई बहाना था। कोई भी बहुत सम्मान किया वास्तव में शालीवाहनों मरना न चाहता था। अन्ततः बाल्मीकि खड़े के गुरु थे। वे नीरा नदी के तट पर रहते हो गए और उन्हें अहसास हुआ कि अब थे। यहीं हमने कुछ भूमि भी खरीदी है । तक वे गलत कार्य कर रहे थे। नारद ने यहाँ के लोग परमात्मा से डरने वाले हैं पाने में असमर्थता जताते हुए नारद ने कहा तथा सन्तों का सम्मान करते हैं। उन्हें उन्हें 'राम' नाम जपने को कहा। राम कह कि मैं केवल 'मरा, मरा' कह सकता हूँ। सच्चे सन्तों का भी ज्ञान है। मुझे आशा है तेजी से 'मरा-मरा कहने पर यह राम - राम कि आप इस बात को समझेंगे कि जब हम बन जाता है। नारद ने कहा कि इससे आत्मा के सुख के विषय में सोचते हैं तो काम नहीं चलेगा अपने पापों के प्रायश्चित पूरा जीवन आत्मा के प्रकाश से मर जाता स्वरूप तुम्हें तपस्या करनी होगी। अत: वह है और हमारा पूरा दृष्टिकोण ही प्रकाश एक पहाड़ पर तपस्या के लिए बैठ गया रजित हो उठता है। केवल इतना ही नहीं, यह पर्वत बाद में वाल्मीकि-पर्वत कहलाया। अपने सदगुणों पर हमें पूर्ण विश्वास हो उसके शरीर को दीमक खा गई, केवल जाता है और हम इनका आनन्द लेने लगते गर्दन बच गई। उसकी तपस्या को देखकर हैं, यद्यपि इस संस्कृति में बहुत अधिक श्री विष्णु वहाँ प्रकट हुए और दीमक के चालाकी या बनावट नहीं है। वे सौ बार प्रकोप से मुक्त कर बाल्मीकि को आत्म- साक्षात्कार प्रदान किया। दीमक को संस्कृत हैं कहते हैं। प्रायः तो वे अपने हाथ भी भाषा में वाल्मी कहते हैं। इसीलिए वे नहीं जोड़ते-विशेष रूप से महिलाएं-और वाल्मीकि कहलाए । 1 'धन्यवाद' नहीं कहते और न ही 'मुझे खेद न ही बार-बार 'नमस्कार' कहते हैं। केवल परमात्मा के सम्मुख वे अपने हाथ जोड़ते हैं। बाद में निष्कासित हो कर सीताजी वहाँ आई। अंतः रामायण का एक अत्यन्त परमात्मा आपको धन्य करें। तचति श्रीरामपुर में पूजा 21.12.89 (परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) यह बात महत्वहीन है बात नहीं कह रही, ध्यान के गहन आनन्द कि आप मुझे क्या देते हैं। यह भी महत्व को आपने अपने अन्दर स्थापित करना हीन है कि वायदे कितने किए गए। महत्वपूर्ण है जब आपके अन्दर यह आनन्द उमड़ बात तो यह है कि आपने कितने लोगों को पड़ता है, आपको खुशियों से भर देता है आत्मसाक्षात्कार दिया तथा. दूसरे, आप कैसे और आप यह भी नहीं जान पाते कि आप हैं? क्या आपकी उत्क्रान्ति हुई? क्या आप खुश क्यों हैं-बस उस खुशी का आनन्द वास्तव में स्वतन्त्र हो गए हैं? क्या आप उठाते रहते हैं। बन्धनमुक्त हो गए हैं? क्या अहं से छुटकारा इसके अतिरिक्त व्यक्ति को कहना एवं सामूहिक व्यक्तित्व बन गए हैं? अन्त कि मैं वास्तव में सहजयोगी बन गया हूँ। अवलोकन द्वारा अपने अन्दर झांकने का इस अवस्था को आप अन्य लोगों से बाँटना चाहते हैं-इसे अपने तक सीमित नहीं करना चाहते। इसके लिए आप कठिन परिश्रम पाकर आप अत्यन्त विनम्र, सुन्दर, करुणामय प्रश्न अत्यन्त महत्वपूर्ण है। कार यदि ठीक न हो तो हम उसे चला करेंगे तथा हर सम्भव प्रयत्न करेंगे। आपका नहीं सकते। इसी प्रकार बिना आन्तरिक मस्तिष्क सोचेगा कि किस प्रकार इसका स्थिति को ठीक किए आप उत्क्रान्ति नहीं पा प्रचार - प्रसार करूं, किस प्रकार अन्य लोगों सकते। यह वास्तविकता है। अतः हमारा हर को सहजयोग ढूँ? बिना अन्य लोगों को हाल में आनन्दित रहना ही इस बात को इसके विषय में बताए आप खुश न हो दर्शाता है कि हमने कितना कुछ प्राप्त कर सकेंगे अतः पहले आप पूंजीवादी बन जाएं लिया है। प्याला यदि छोटा है तो बहुत कम और बाद में साम्यवादी बनें। आनन्द इसमें भर सकता है, परन्तु यदि यह समुद्र सम विशाल है तो आनन्द की नदियाँ इसमें समा सकती हैं। अतः आनन्द की, आनन्द लिया। दूसरी बात यह कि अब मनोरंजन की नहीं, बाहुल्यता ही मेरा हमारे मस्तिष्क में क्या है। बाहर की ओर अभिप्राय है। मैं उथले-हल्के मनोरंजन की सहजयोग का विस्तार हम किस प्रकार प्रथम बात तो यह है कि हमने कितना পা चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 40 करने वाले हैं? पहले प्रकाश को सुधरना स्वयं को थोंपना है बस चेतना पा लें, यही होगा तब स्वतः ही यह प्रकाश प्रसारित सुन्दर कार्य व्यक्ति ने करना है। एक अन्य होगा। हमारे परस्पर सम्बन्ध क्या हैं? हमें बात जो मैं आपको बता रही हैूँ, वह अत्यन्त झुंड नहीं बनाने। कुछ लोगों की बहुत महत्वपूर्ण है । भारत में रहते हुए आपको अधिक गर्दन हिलाने की आदत बन गई चाहिए कि बालों में अच्छी तरह कंघी करें, हैं। भजन गाते हुए वे अपनी गर्दन तथा अन्यथा लोग समझते है कि आप भिखारी शरीर हिलाते हैं। शरीर के साथ ही गर्दन हैं । भिखारियों के बाल ऐसे होते हैं। कृपा हिलनी चाहिए। मेरे फोटो के सम्मुख बैठ करके तेल लगाएं और बालों को ठीक से कर ध्यान से पूर्व आप स्वयं को देखें कि रखें। अपने मस्तक पर आपको गर्व होना मुझ में क्या विकार हैं-तब ध्यान में जाएं। चाहिए। यहाँ एकादश है। अपने एकादश से आपको पूरे विश्व से युद्ध करना है । 1 1 आज आते हुए मैंने कहा कि यह गलत अतः ध्यान पूर्वक अपने मस्तक को खुला मार्ग है। उन्होंने पूछा "श्री माताजी, आप रखें तथा बालों में तेल लगा कर कंघी कैसे जानती हैं? बस मैं जानती हूँ। आप करें। रात को बालों में यदि आप तेल डालें पता लगाएं। हर चीज़ जानने के लिए जरूरी तो आपको आराम मिलेगा जिगर के रोगियों नहीं कि इसके विषय में आप पूरी जानकारी के लिए अत्यन्त हितकर है। उन्हें अवश्य प्राप्त करें परन्तु यह इस बात का चिन्ह है सिर में तेल डालना चाहिए क्योंकि वे पहले कि आप अति-चेतन हो गए हैं हर चीज़ से ही शुष्क हो चुके हैं। उनके बाल खुश्क के विषय में चेतन होना। यह ऐसे नहीं है होते है, बढ़ते नहीं। शीघ्र ही वे गंजे हो कि यहाँ बैठ कर आप कहें "यह अत्यन्त जाते हैं । सुन्दर है या यह बहुत श्रेष्ठ है।" बात ऐसी नहीं है। न सत्यापित करें न आलोचना करें, परन्तु आप कितना जानते हैं-इस को दर्शाना है। हमारे कार्यान्वन तथा शैली बात को वातावरण में महसूस करें। क्योंकि से सहज संस्कृति की झलक मिलेगी। हमारे पास बहुत बड़ा मस्तिष्क है-हमारे सिर में दो पिंड हैं। यह केवल एक मस्तिष्क नहीं इसके दो पिंड हैं और जब चेतना आपका चित्त कहाँ है? हर समय चित्त आपको प्रकाश देने लगती है तब आप को चित्त पर रखें । पूछें, 'श्रीमान चित्त अपने अन्दर सभी कुछ समझने लगते हैं, आप कहाँ खो गए हैं? इस प्रकार आपका फिर भी आप मौन होते हैं। न तो आपने कार्य हों जाएगा। दावे करने हैं न छल-कपट और न ही अभिव्यक्ति द्वारा आपने सहज संस्कृति त यह भी जांचने का प्रयत्न करें कि परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। पेरू झील कैम्प कैलिफोर्निया नं 1ि की ---------------------- 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-0.txt IRMALA मईजून, 2002 खंड : XIV अंक : 5 व6 PURE चैतन्य लहरी परमात्मा को इस बात की चिन्ता नहीं कि आप कितने धनवान है या कितने निर्धन वो तो केवल इतना खते हैं कि आप आध्यात्मिक रूप से कितने वैभवशाली हैं उन्हें आपकी उच्च शिक्षा, उच्च उपाधियों तथ लंकरणों से कुछ लेना-देना नहीं। वो तो केवल इतना देखते है कि आप कितने पावन एवं अबोध हैं। परम पूज्य माताजी NOIDAN DHARMA VHSIA UNIVERSAL 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-1.txt े क दिवाली पूजा 1 लॉस एंजलिस 18.11.2001 11 क्रिसमस पूजा - गणपतिपुले 25.12.2001 21 मकर संक्रान्ति पूजा पालम विहार 13.4.2002 ४ गणेश पूजा 8.8.1989 37 औरंगाबाद पूजा 19.12.1989 ३७ श्रीरामपुर पूजा - 21.12.1989 शर 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-2.txt हं दिवाली पूजा ा लॉस एंजलिस 18.11.2001 (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) समझ न होने के कारण ही वह ऐसा करता आज का दिन अत्यंत मंगलमय है क्योंकि आज असुर का दमन हो गया है। है सत्य को प्राप्त करने का ज्ञान ऐसे आसुरी शक्तियाँ दो कारणों से अपनी व्यक्ति में नहीं होता फिर भी वह स्वयं को म शक्ति सर्वत्र फैलाती हैं :- पहला कारण है अत्यन्त ज्ञानवान मानता है। यह सब होने आप में ज्ञान का अभाव। ऑँखें बन्द करके के बावजूद भी बहुत से ऐसे दल थे, बहुत आप गलत चीज़ों का अनुसरण करते चले से मूर्ख लोग थे जो अज्ञानता के कारण जाते हैं और सोचते हैं कि आप शक्त्तिशाली पूरी तरह नष्ट हो रहे थे। सहज में आने हैं। यह भ्रम केवल समस्याएं ही नहीं खड़ी वाले आप लोगों को पूर्ण ज्ञान है यह ज्ञान करता, पूर्ण विनाश भी करता है। नि:सन्देह अत्यन्त-अत्यन्त सूक्ष्म है, यह सतही ज्ञान हमने एक बहुत बड़ी चुनौती का सामना नहीं है। यह बहुत सूक्ष्म है। परन्तु इसका किया परन्तु सुगमता से इसका समाधान ज्ञान न होने के कारण लोग अज्ञान का गलत मार्ग अपना लेते हैं और अच्छे कार्य आधारित थी तथा समस्या खड़ी करना करने वालों का विरोध करते हैं। परन्तु इसका उद्देश्य था। किसी लक्ष्य को लेकर परमात्मा की शक्ति सर्वोपरि है। उसी महान यह समस्या बनाई गई थी परन्तु कोई भी शक्ति के अस्तित्व के प्रमाणित करने के इस बात की कल्पना न कर सकता था लिए ही यह सारा नाटक खेला गया है। इतनी सुगमता से और इतने कम समय में यह अत्यन्त अच्छी तरह से कार्यान्वित हुआ इसका समाधान हो जाएगा। मेरी इच्छा थी है और आप सब सहज योगियों के लिए कि दिवाली से पूर्व इस पर काबू पा लिया यह बहुत महान उपलब्धि है कि आप यह नाटक देख सकते हैं। बहुत से तथा-कथित सफल लोग इस नाटक को नहीं देख सकते, अज्ञानता के कारण भी लोग बहुत से परन्तु आप इसे देख सकते हैं क्योंकि आप कार्य करते हैं। किसी भी तथा-कथित धर्म तो मात्र दर्शक हैं। पूरा विश्व यद्यपि इसका या ऐसी किसी भी चीज़ का जब कोई अंग-प्रत्यंग है, आप इससे बाहर हैं और अनुसरण करता है तो सत्य के विषय में इसे स्पष्ट देख सकते हैं। जो भी कुछ 1 कर लिया। यह गलत सिद्धांतों पर जाए और मैंने ऐसा कर दिया है। 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-3.txt मई-जून 2002 2 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 घटित हुआ है उस पर किसी को विश्वास होती है। परन्तु हम मानवों में ये शक्ति नहीं होता-कि यह दिवाली से पूर्व समाप्त नहीं होती कोई व्यक्ति यदि अपराधी है हो जाएगा। तो यह सब इसी प्रकार होता तो कुत्ता उस पर भौंकेगा या उस पर है-मूर्खता का यह सृजन-और हम भी झपटकर उसे गिरा देगा । वो सभी ऐसे कभी-कभी सोचते हैं कि यह मूर्खतापूर्ण कार्य करते हैं जो सामान्यतः वे नहीं करते चीज़ अन्य लोगों को प्रभावित करेगी। किस प्रकार कुत्तों में ये गुण विकसित हो प्रभावित करना महत्वपूर्ण नहीं। इन हारे गया है कि कौन चोर है और कौन नहीं । हुए लोगों को यदि आप देखें तो उन्होंने हम मनुष्यों में उच्च चेतना है और हम कौन सी छाप छोड़ी हैं? विश्व को प्रभावित बहुत सी चीजों के विषय में सोचते हैं, पशु करने के लिए वे वहाँ थे, यह दर्शाने के इन सब चीजों के विषय में नहीं सोच लिए कि वे महान योद्धा तथा लड़ाके हैं। सकते हम अपना खाना पकाते हैं पशु परन्तु उन्होंने क्या छाप छोड़ी? वे नहीं पकाते। मुझे तो कई बार ऐसा लगता आत्मसाक्षात्कारी हों या न हों फिर भी देख है कि हम अपना मस्तिष्क भी पकाते हैं। सकते हैं कि यह चमत्कार है। घटनाओं जिस प्रकार लोग व्यवहार करते हैं और अपने अहं के कारण सत्य से कन्नी काटने TI का इस प्रकार घटित होना चमत्कार है। का प्रयत्न करते हैं उस पर मुझे हैरानी होती है । क अब नया पक्ष आरम्भ हो गया है। आप होगे ुम सब के सम्मुख खुली चुनौती है कि लोगों को आत्मसाक्षात्कार दें। अब लोग इतने अज्ञानी नहीं हैं, वे इतने अभिशप्त नहीं हैं । नाटक था परन्तु आप इसका ठीक से अब मैं उन्हें परिवर्तित हुए पाती हूँ। सत्य अध्ययन करें और स्वयं पर लागू करके ये के प्रति उनका दृष्टिकोण बदल गया है देखें कि कहीं आप भी इस नाटक के और अब वे समझ गए हैं कि जिन अनुभवों अंग-प्रत्यंग तो नहीं । इसके लिए आपको में से वे गुजरे हैं सत्य उससे परे हैं। यह ऊँचा उठना होगा, और ऊँचा उठना होगा, बहुत आवश्यक है क्योंकि यदि मानव किसी अपने अहं प्रति अहं और अपने बन्धनों से बात को सत्य मान ले तो वह उसी में फँस ऊँचा और वहाँ से स्वयं को देखना होगा । जाता है। चाहे जो भी हो वो उसी में फँसा आपको स्वयं देखना होगा कि यह क्या है। रहता है। वो ये परखने का भी प्रयत्न नहीं क्यों मैं यह सब कार्य कर रहा हूँ क्यों मेरा करता कि यह सत्य है या नहीं। पशु इस चित्त ऐसा है, मेरे बाधित होने का क्या बात को समझ सकते हैं क्योंकि उनके कारण है - मेरी नासमझी का क्या कारण अन्दर बुराई को सूँघने की अन्तर्जात शक्ति है, क्यों मैं गलत चीजों को स्वीकार करता जो कुछ भी घटित हुआ ये सब एक 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-4.txt मई-जून 2002 3 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 हूँ? एक बार जब आप इसे देखने लगेंगे कार्य करेगा। तब आपकी वास्तविक शक्तियाँ और अपने अन्दर निहित मूर्खता को यदि जाग उठेंगी-आत्म साक्षात्कार देने की आप तनिक सा भी देख लेंगे तब आप उन आपकी शक्तियाँ, अपने देश की तथा पूरे लोगों को भी क्षमा कर सकेंगे जिनकी बुद्धि विश्व की समस्याओं को समझने की आपकी को भ्रमित कर दिया गया है-पूर्णतः भ्रमित शक्तियाँ जब आपको ये महसूस हो जाएगा तथा इसी भ्रम के प्रभाव में जिन्होंने सभी कि आप ही इन गलत चीजों से लड़ने वाले कार्य किए हैं। स्थिति के अनुसार अब आप सिपाही हैं, इनको समाप्त करने की अन्य सब लोगों से ऊँचे उठ चुके हैं और जिम्मेदारी आपकी है तो चीजें कार्यान्वित उन सब से अधिक चेतन हैं। अतः आपको हो जाएंगी। सभी कार्य आप परमेश्वरी यह बात समझनी होगी, केवल तभी आप शक्ति पर नहीं छोड़ सकते। आपको उनके सभी अपराधों को क्षमा कर सकेंगे। अपनी दिव्य शक्तियों का उपयोग करना जो लोग वास्तव में खराब हैं उनके होगा और इस कार्य को करना होगा लिए चिन्तित होना आपका कार्य नहीं क्योंकि आप ही परमात्मा के सिपाही है । उन्हें नष्ट करना परमेश्वरी शक्ति हैं। निःसन्देह इस सुन्दर विचार के साथ का कार्य है । परन्तु आपको स्वयं को ही आप अपना शुद्धीकरण करने लगते हैं। देखना है और स्वयं पता लगाना है कि आपको सभी रहस्य जानने की कोई क्या आपमें अभी तक भी ऐसे कुछ विचार आवश्यकता नहीं है कि क्या घटित हो रहा हैं। कहने से अभिप्राय है कि आप है और कैसे घटित हो रहा है, वो कैसे | बचे हुए दर्पण को अच्छी तरह से साफ करें ताकि कार्य कर रहे हैं, ये आपका कार्य नहीं है। अपनी वास्तविकता को ठीक से देख सकें। आप एक सिपाही हैं, आपको तो बस युद्ध प्रयत्न करें, देखें और इसे साफ करने की करना है, अपनी तथा अन्य लोगों की कोशिश करें स्वयं को शुद्ध करना बहुत अज्ञानता से युद्ध क्योंकि सिपाहियों में जब ही महत्वपूर्ण है । अहं भाव आ जाता है तो प्रायः वो असफल हो जाते हैं और असफल होने पर उनके ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने बहुत से मस्तिष्क में अन्य बाधाएं आ जाती हैं। गलत कार्य किए हैं, मुझे उन पर दया बाधाएं नहीं होनी चाहिएं, आपको आगे बढ़ते आती है। उन्होंने गलत कार्य किए हैं। ये जाना है। अब आपके सम्मुख कोई भी देखना उनकी जिम्मेदारी है कि वो क्या करते रहे और क्यों करते रहे। ये सब सम्मुख अभी भी कुछ ऐसी समस्याएं हैं दुष्कर्म करने की क्या आवश्यकता थी? ये जिन पर हम काबू नहीं पा सकते। लोगों सारा अन्तर्वलोकन बहुत अच्छी तरह से की चेतना की उत्क्रान्ति सुगम कार्य नहीं बाधा नहीं है। ये बात मिथ्या है कि हमारे 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-5.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 4 है। लगता है कि इसके लिए पार-पथ की परन्तु यह अडोल खड़ी रहता है। इसका दूरी बहुत कम है। परन्तु वास्तविकता यह कारण ये है कि यह बहुत दृढ़तापूर्वक नहीं है, बात ऐसी नहीं है कुछ लोगों को बना है इसी प्रकार सहजयोग भी बहुत आज्ञा के बन्धनों से निकालना कभी-कभी दृढ़ता-पूर्वक बनाया गया है, कोई इसे कठिन कार्य होता है । मैं देखती हूं न तो नष्ट कर सकता है और न ही बहुत कि इस बिन्दू पर आकर आपमें से कुछ तोड़-मरोड़ सकता है। सभी को यही कार्य लोग असफल हो जाते हैं। लोगों करना है। उदाहरण के रूप में कुछ ने आकर मुझे बताया कि आपके सहजयोगी अन्तर्वलोकन इस स्थिति से उबरने ऐसे हैं, वैसे हैं, बहुत दिखावा करते हैं। का सर्वोत्तम उपाय है जब आपको मैंने कहा, "वास्तव में? मुझे यकीन नहीं ऐसा प्रतीत हो कि आप हमेशा ठीक हैं होता कि वो ऐसे हो सकते हैं! मैंने कहा, तो अन्तर्वलोकन करना सर्वोत्तम है । कि जो भी व्यक्ति ऐसा है उससे मैं क्या मैं सभी कुछ ठीक-ठीक कर रहा हूँ मिलना चाहूँगी तो वो कहने लगे नहीं, या नहीं, क्या मैं अपनी उत्क्रान्ति के लिए आप स्वयं पता लगा सकती हैं कि वो कौन कार्य कर रहा हूँ। भ्रम की स्थिति ऐसी हैं और क्यों इस तरह का व्यवहार करते होती है कि आप सोचते हैं कि आप ठीक हैं। मैंने उत्तर दिया मैं स्वयं तो सब कार्य कर रहे हैं। हमारे सहजयोग में कुछ जानती हूँ, परन्तु मैं चाहती हूँ आगे आते हैं, ये कार्य कि आप लोग ये समझें कि अन्य लोगों करते हैं, वो कार्य करते हैं। परन्तु ये के दोष खोजना बहुत सुगम है और सब कार्य करने के पीछे उनका उद्देश्य बहुत अच्छा भी लगता है परन्तु आप क्या है? कार्य करने में उनका उद्देश्य अपने अन्दर के दोषों को देखें । कौन केवल इतना होता है कि लोग उन्हें सी चीजें हमें भ्रमित कर रही हैं? देखें कि वो कार्य कर रहे हैं। वास्तव में अपनी चेतना को बेहतर बनाने का हमारा उद्देश्य अपने अन्दर की वास्तविकता यह सर्वोत्तम उपाय है। जैसे कार में लोग बहुत कुछ को देख पाना होना चाहिए। आपको देखना जाते हुए आपको सड़क का ज्ञान होना चाहिए कि आपके अन्दर क्या समस्या है । चाहिए, आपको ये पता होना चाहिए यह बात आप अच्छी तरह से समझ सकते कि आप कैसे गाड़ी चला रहे हैं। आपको हैं कि आप अपने तथा अन्य लोगों के लिए देखना चाहिए कि कौन सी समस्याएं हैं। सहायक रहें। उदाहरण के रूप में एक परन्तु ऐसा करने की अपेक्षा यदि आप बहुत बड़ा भवन है, उसके आस-पास के अपने को बहुत बड़ा तूफान समझते हैं तो सारे भवन भूचाल में धराशायी हो जाते हैं ठीक न होगा । 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-6.txt मई-जून 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 5 आज का दिन बहुत बड़े उत्सव का आप फँसे रहेंगे तो अपने दोषों को न जान दिन है। मैं कहना चाहूँगी कि दिवाली का पाएंगे। उत्सव मनाना अत्यन्त-अत्यन्त आनन्ददायी है। परन्तु ये आनन्द केवल हमारे लिए ही नहीं है, यह पूरे विश्व के लिए है। हमें पूरे क्या है? हमें पूरे विश्व को शान्तिमय बनाना विश्व के लिए कार्य करना हैं अपने है। निःसन्देह स्वयं को परिवर्तित करना लिए, अपनी नौकरियों के लिए, धनार्जन बहुत महान बात है परन्तु अन्य लोगों को के लिए हमने कार्य किया परन्तु अन्य परिवर्तित करने से भी हम विश्व की सारी लोगों के लिए आप क्या कर रहे हैं? समस्याओं का अन्त कर सकते हैं। विश्व अपने अन्दर झाँककर ये देखना बहुत के सभी लोग यदि अच्छे बन जाएं और आवश्यक है। सहजयोग में केवल ऐसे सहजयोगी बन जाएं तो आप कल्पना करें ही लोग उपयोगी हो सकते हैं क्योंकि कि ये विश्व कैसा हो जाएगा! मेरे उस अब, आखिरकार हमारे जीवन का लक्ष्य उनके अन्दर करुणा एवं स्नेह-भाव होतास्वप्न के बारे में सोचें कि हमें सभी लोगों है और वे अन्य लोगों के हित के लिए कुछ का हृदय परिवर्तन करना है। ये कार्य हम करते हैं। किसी के लिए कुछ करना अत्यन्त आनन्ददायी होता है। दीप जब जलता है बना सकते हैं । बिना परिवर्तित ये लोग तो आपको प्रकाश देने के लिए अपने शरीर प्रकाशविहीन दीपक सम हैं लोगों में यदि को जलाता है। ऐसे लोग हमें सिखाते हैं परिवर्तित होने की संभावना है तो हमें सभी कि अपनी उच्च चेतना का आनन्द लेने के तरीके, सभी विविधाँ उन्हें परिवर्तित करने लिए हमें स्वयं भी कुछ करना चाहिए। मुझे के लिए अपनानी चाहिएं। मुझे विश्वास है पूर्ण विश्वास है कि यह सब कार्यान्वित कि अत्यन्त शीघ्र ऐसा दिन आएगा जब होगा इस प्रकाश को स्थिर तथा उत्साहपूर्ण आप कहेंगे श्रीमाताजी अब हम बिल्कुल बनाने के लिए भी मैं प्रयत्न कर रही हूँ ये सुरक्षित हैं। हो रहा है। आप लोग अपने कुम्भ भरने के लिए उत्सुक हैं, आप ऐसा कर सकते हैं । मेरे चिन्ता करने से आपका कोई भला न के विषय में न सोचे। अब आप इन पर होगा। अपनी वास्तविक तस्वीर यदि आप काबू पा चुके हैं। अपना आनन्द लें स्वयं देखना चाहेंगे तो भी उसमें आपको रुकावट पर विश्वास करें और इसे कार्यान्वित करें। होगी सर्वप्रथम आप स्वयं से मोह त्याग मुझे विश्वास है कि शीघ्र ही अत्यन्त तेजी कर सकते हैं। सभी लोगों को हम अच्छा हुए 1 बीते हुए समय तथा उसकी समस्याओं से यह घटित होगा। आपकी भी यही इच्छा दें। अन्यथा आप कभी ये न जान पाएंगे कि आपमें क्या दोष हैं। स्वयं से मोह में यदि है। इसे कार्यान्वित करने की विधियाँ आपके 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-7.txt मई-जून 2002 6 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 पास हैं, इसे करने की जिज्ञासा भी आपमें दीपों की आवश्यकता है। अपने दीप से हैं। हमारी मुख्य चिन्ता यही होनी चाहिए आपको अन्य दीप प्रज्जवलित करने होंगे। कि 'किस प्रकार मैं इस व्यक्ति को परिवर्तित ये किसी भी दीपक को प्रज्जवलित कर कर सकता हूँ?" हर परिचित को आप सकता है। अतः किसी भी कीमत पर, किसी परिवर्तित कर सकते हैं। आप एक व्यक्ति भी स्थान पर इस कार्य को करें। मैं कुछ को सहज के विषय में बताएं तो दूसरा सहजयोगियों से मिली और उनसे पूछा कि व्यक्ति भी इसका अनुसरण करने लगता तुमने क्या किया है? वो कहने लगे कुछ है- जैसे आज जब हम हवाई अड्डे पर नहीं, हमने कुछ भी नहीं किया। क्यों? आए तो बहुत से लोगों ने मेरी ओर अपने आपने यदि कुछ भी नहीं किया तो आपका हाथ फैलाए हुए थे। मैंने "ये लोग आत्म-साक्षात्कार पाने का क्या लाभ हैं? कौन हैं? वे सहजयोगी नहीं थे ऐसा आप किसी को आत्म-साक्षात्कार नहीं देना करते हुए उन्होंने किसी को देखा होगा, ये चाहते, किसी से आप सहजयोग की बात बात मैं उनसे पूछ न सकी। परन्तु सभी ने नहीं करना चाहते, ऐसा करने में आपको बताया कि अपने हाथों पर वे शीतल लहरियाँ शर्म आती है! कृुछ अन्य-सहजयोंगियों से महसूस कर रहे हैं। इसके विषय में कवे कुछ मैं मिली तो उन्होंने कहा, कि श्रीमाताजी भी न जानते थे, कुण्डलिनी के विषय में वे हम अभी आपके कार्यक्रम से लौटे हैं । कुछ भी न जानते थे, कुछ भी नहीं। फिर आपको इतना विलम्ब कैसे हो गया? क्योंकि ये शीतल लहरियाँ क्यों आ रही हैं? हमने हमें बताया गया कि बम्ब का खतरा है। तो केवल अपने विचार उन्हें बताने हैं और आप बाहर प्रतीक्षा कर रहे थे? हाँ । कितने पूछा उन पर नाराज़ होने के स्थान पर अपना लोग? हम सभी हजारों लोग वहाँ प्रतीक्षा प्रेम उन्हें देना है। उन्हें अवसर प्रदान करना कर रहे थे और वहां कोई बम्ब न था। जब बहुत अच्छी बात है। आप आश्चर्य-चकित उन्होंने कहा कि यहाँ कोई बम्ब नहीं है तब होंगे कि परिवर्तित होने के लिए वे कितने हम अन्दर गए और हमें आत्मसाक्षात्कार उत्सुक हैं। बनावटी चीजें जो उनके पास मिला। परन्तु आप तो आत्म-साक्षात्कारी उनसे वे तंग आ चुके हैं। आप हैरान लोग थे नहीं, हमें ऐसा एहसास था कि हमें होंगे कि कितने लोग आपसे आत्म- कुछ समय प्रतीक्षा करनी है। परन्तु अब साक्षात्कार लेने की प्रतीक्षा कर रहे हैं! हमें पूर्ण विश्वास है कोई हमें हानि नहीं उन्हें भी दिवाली मनाने और दिवाली का पहुँचा सकता, कष्ट नहीं दे सकता, हम पर आनन्द लेने का अवसर प्रदान करें केवल काबू नहीं पा सकता। हम स्वयं ही स्वयं एक दीप से आप दिवाली नहीं मना सकतें दिवाली मनाने के लिए आपको बहुत से कि सहजयोग में अन्तर्वलोकन बहुत । को हानि पहुँचाते हैं। अतः मैं पुनः कहूंगी 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-8.txt त मई-जून 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 महत्वपूर्ण है। प्रकाश आपके अन्दर है, आपको पिताजी बीमार हैं आदि-आदि। ये सारे सम्बन्ध तो आपकी हत्या करने के लिए हैं। अतः न कोई आपका भाई है न बहन, इसकी देखभाल करनी है। बहुत से लोगों के मुँह से जब मैंने सुना केवल सहजयोगी आपके भाई-बहन है । कि उन्हें दिवाली का आशीर्वाद प्राप्त हुआ अब आपके कुछ चरचेरे-ममेरे भाई बहन हैं है तो मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। कल यहाँ तो होने दें, उनकी चिन्ता करना आपका जो वर्षा हुई वह कितनी समय पर थी । कार्य नहीं है । यहाँ आने से पहले मुझे कुछ विश्व के इतिहास में ऐसा कभी कभी घटित पत्र मिले जिनमें लिखा था कि किसी के नहीं हुआ। तो कल ही क्यों ये वर्षा हुई चर्चेरे ममेरे भाई बहन का चरचेरा ममेरा और आपको एक नया अनुभव देने का भाई-बहन बीमार है तो मैंने उस महिला से प्रयत्न किया? आज ऐसा समय है कि प्रकृति पूछा कि क्यों आप इन चचेरे-ममेरे भाई- भी जानती है, और हमें भी जानना चाहिए, बहनों के बारे में लिखती रहती हैं? तो कि यह विशेष कार्य का समय है। मुझे जो कहती है, श्रीमाताजी मैं सहजयोग फैलाने पत्र मिलते हैं प्रायः उनमें बीमारी के विषय का प्रयत्न कर रही हूं। ये लोग यदि ठीक में लिखा होता है या सहजयोगियों के हो जाएंगे तो सहजयोग में आ जाएगें ।" माता-पिता या सम्बन्धियों की बीमारी के सहजयोग फैलाने का हमारा ये कोई तरीका बारे में, कुछ पत्र टूटी हुई शादियों के नहीं है ये तो एक प्रकार के विज्ञापन हैं विषय में बताते हैं। सभी प्रकार की बेवकूफियों कि आप पहले किसी को रोगमुक्त करें के विषय में लोग लिखते हैं। इसका कारण और तब वे सहजयोग में आए। हमें ऐसे ये हैं कि या तो ये लिखने वाले आत्म - लोगों की आवश्यकता नहीं है। मैं कभी साक्षात्कारी नहीं हैं या अधकचरे हैं। अन्यथा किसी को दुख नहीं पहुँचाना चाहती परन्तु वे सोचते कि क्यों हमें श्रीमाताजी को इसके मैं आपको सुधारना चाहती हूँ। सूझ-बूझ विषय में लिखना है हम स्वयं इस कार्य और विवेक देना चाहती हूँ। आप सहजयोगी को कर सकते हैं । ऐसी चीजे लिखने की किसलिए हैं? अपने सभी सम्बन्धियों आदि अपेक्षा व्यक्ति को लिखना चाहिए कि उसने को ठीक करने के लिए? हो सकता है वो कौन सी उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं, किस अपनी गलतियों आदि के लिए बीमार हों प्रकार ये उपलब्धियाँ पाई हैं, किस प्रकार ऐसे सब लोगों पर चित्त देने की अपेक्षा अन्य लोगों का प्रेम प्राप्त किया है. छोटे-छोटे आप स्वयं पर चित्त डालें और अपने उत्थान गाँवों में किस प्रकार सहजयोग कार्यान्वित पर चित्त डालें। आपको अपना सम्मान करना किया है। ऐसा लिखना ये लिखने से कहीं होगा आप यदि उनके सम्बन्धी हैं तो भी अच्छा है कि 'मेरे माताजी बीमार हैं, 'मेरे ये आपकी ज़िम्मेदारी नहीं है। विवेक इस 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-9.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 8 बात को समझने में हैं कि हम यहाँ पर उनसे मेरा क्या सम्बन्ध हैं? वे सहजयोगी उच्च कोटि का विशेष कार्य करने के लिए नहीं है। मैं केवल सहजयोगियों के लिए आए हैं। परन्तु ऐसा होता नहीं और ये जिम्मेदार हूँ। जब वो सहजयोगी नहीं है लोग लिखने में लगे रहते हैं । तो क्यों आप मुझे कष्ट देते हैं? ये बात ा एक महिला का सहजयोग में विवाह आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करना आवश्यक है। हुआ। उसने मुझे पत्र लिखा कि आठ या जो लोग आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना चाहते नौ महीने पहले उसका तलाक हो गया है। हैं आप उन्हें आत्म-साक्षात्कार दें और ठीक सभी लोग अब मुझे कह रहे हैं तुमने सहजयोग में विवाह किया और उधर भटकने वाले, सभी प्रकार के उल्टे सहजयोग की आलोचना कर रहे हैं। मैंने सीधे कार्य करने वालों के पीछे पड़े रहते कहा, "सहजयोग में विवाह करने के लिए हैं। आपके इस प्रकार के कार्यों से चिढ़ उसे किसने कहा था, मैंने तो नहीं कहा। चढ़ती है और परेशानी होती है । इन लोगों तो अब विवाह ही उसके लिए मुख्य चीज से मेरा कोई सम्बन्ध नहीं। आपको भी बन गया है कि मेरे परिवार के सभी लोग उनकी चिन्ता छोड़ देनी चाहिए। आपको ऐसा कर रहे हैं । उन्होंने सहजयोग के यह देखना होगा कि ये बातें बनाने वालें लिए क्या किया है? उसके विवाह समस्या लोग सहजयोग में आ सकें और आप उन्हें यदि ठीक नहीं होती तो वो लोग कहेंगे बताएं कि बो क्योंकि सहजयोग में नहीं हैं, सहजयोग में कुछ कमी है। उन्हें कहने इसी कारण उन्हें सारी समस्याएं हैं। दो। हमने ऐसा कोई वचन नहीं दिया। मैं सहजयोग में न होने के कारण ही उनके हमेशा तुमसे कहती हैँ कि अपनी माँ पिता, साथ ये सारी समस्याएं हैं। हम सब ठीक ये, वो के बारे में मुझे न लिखा करें। आप हैं बहुत अच्छे हैं। सहजयोग क्योंकि सबके यदि उन्हें ठीक करना नहीं जानते हैं तो लिए खुला हैं सभी प्रकार के लोग यहाँ सहजयोग छोड़ दें। आप स्वयं उन्हें ठीक आते हैं। कर सकते हैं, स्वयं इस कार्य को कर सकते है, परन्तु प्रतिदिन आप लोग मुझे इतने सारे पत्र लिख भेजते हैं! मैं उनसे आप स्वयं को वचन दें कि 'मैं उन पूछती हूँ कि क्या तुम्हारे पिता सहजयोग लोगों पर अपनी शक्ति बर्बाद नहीं में हैं? नहीं, श्रीमाताजी। न कोई भाई सहज में है और न कोई और परिवार का सदस्य। तो क्यों उनके बारे में मुझसे पूछते हैं। समझ पाना असंभव है। सहजयोग में कि क्यों से स्थापित करें। परन्तु आप लोग इधर- 1 आज दिवाली के दिन मैं चाहूंगी कि करूंगा जो सहजयोग में नही हैं ऐसा करना बहुत आवश्यक है क्योंकि हर समय चित्त व्यर्थ में गलत चीज़ों पर ही बना 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-10.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 9 रहता है। आपमें यदि थोड़ी सी भी बुद्धि है सक्रिय हैं और कुछ अन्य केवल आलोचना तो आपको समझना चाहिए कि अब आप करने में ही सक्रिय हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है बहुत उच्च कोटि के आध्यात्मिक लोगों से कि ये सब आपने कार्यान्वित करना है सम्बन्धित हैं ऐसे लोग संसार में बहुत कम क्योंकि यह वर्ष महान उपलब्धियों तथा हैं इन लोगों की संख्या बहुत कम है। सफलता का है। परन्तु यदि आप मूर्खतापूर्ण आप लोगों को चाहिए कि जी जान से कार्य करने लगेंगे तो कुछ भी कार्यान्वित न प्रयत्न करें कि अधिक से अधिक लोगों में होगा नि:सन्देह, मैं ये नहीं कहती कि इसे प्राप्त करने की जिज्ञासा हो। आप हमारे यहाँ अच्छे सहजयोगी नहीं है। ऐसे लोगों को बताएं कि आप इस स्थिति को लोग हमारे यहाँ हैं। हमारे यहाँ ऐसे सिपाही पा चुके हैं और वो भी इसे पा सकते हैं। हैं, उनके पास सभी प्रकार के शस्त्र हैं. व्यर्थ की चीज़ों की चिन्ता न करें आपको सभी कुछ है। परन्तु हमें और अधिक इस बात का ज्ञान होना आवश्यक है कि सहजयोगियों की आवश्यकता है क्योंकि आप एक विशेष प्रजाति हैं, विशेष प्रकार के हमें यह कार्य सामूहिक रूप से कार्यान्वित सिपाही हैं जिन्हें सहज कार्य करने के लिए करना है। अतः योजना बनाएं कि हमें क्या प्रशिक्षित किया गया है अतः अपने करना चाहिए । सम्बन्धियों, भाइयों और बहनों पर शक्ति बर्बाद करना आपके हित में नहीं है। ये बात समझी जानी आवश्यक है कि आप में बहुत बड़ा वाद-विवाद हुआ था। हम न अपनी शक्ति को संभाल कर रखें । हाल ही में इस्लामिक आचरण के बारे तो ईसाई हैं, न मुसलमान हैं न हिन्दु। हम किसलिए? सहजयोगियों के लिए । कोई भी इनमें से कुछ भी नहीं हैं क्योंकि ये कहकर व्यक्ति जो सहजयोगी है या सहजयोगी कि मैं सहजयोगी हूँ परन्तु ईसाई हूँ, आप बनना चाहता है उसकी आप सहायता करें। स्वयं को में नहीं बाँध सकते। आपको जो लोग सहजयोग में स्थापित हो चुके हैं वह तुच्छता छोड़नी होगी आप पूर्णतः उनकी आप सहायता करें। क्योंकि हम सहजयोगी हैं और किसी भी प्रकार की लोग एक- व्यक्तित्व हैं और परमात्मा के मूर्खतापूर्ण चीज़ से आपका कोई सम्बन्ध इस एक व्यक्तिव के हम सब भिन्न हाथ नहीं है। मैंने देखा है कि बहुत से मुसलमान हैं। अतः आप लोगों में इस एकाकारिता का लोग सहजयोग में आते हैं परन्तु उनमें से तुच्छता स्थापित होना आवश्यक है। इस एकरूपता बहुत कम ही वास्तविक सहजयोगी बन पाते हैं। वो आते हैं, मेरा प्रवचन सुनते हैं आदि-आदि। परन्तु उनमें से बहुत कम ही लोग तो अत्यन्त सच्चे सहजयोगी हैं । सहजयोगी बनने के को अन्य लोग भी देख सकें । सहजयोग में कुछ 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-11.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 10 पश्चात् आप अपनी जाति, तथाकथित धर्म अधकचरे लोगों का कोई लाभ नहीं, उनकी में दोष खोजने लगते हैं और यदि आप ओर ज्यादा ध्यान न दें। वो अधिक ध्यान वास्तव में उससे प्रेम करते हैं तो उसे योग्य नहीं है ये बात समझ ली जानी सुधारने का प्रयत्न करते हैं अन्यथा इसे चाहिए कि आपको न तो वैसा बनना है न छोड़ देते हैं। विशेष कार्य को करने के वैसे मित्र बनाने हैं। उन्हें आप सहजयोगी लिए आप विशेष लोग हैं । छोटी-छोटी भी न बनाएं। सहजयोगी ऐसा चरित्रवान मूर्खतापूर्ण चीज़ों पर आप अपनी शक्ति सिपाही है जो सत्य के लिए लड़ता है। बर्बाद नहीं कर सकते। ये बात आपको ऐसा व्यक्तित्व जब आप प्राप्त कर लेंगे तो समझ लेनी चाहिए। 1 सर्वत्र प्रकाश हो जाएगा। दिवाली के दिन Whe आज मैं आप सब लोगों कों हृदय से इस दिवाली के दिन आपको ये बात आशीर्वाद देती हूँ। मैं चाहती हूं कि आप समझनी है कि परमात्मा का प्रकाश बनकर स्वयं का सम्मान करें और समझें कि इस चहुँ ओर फैलने के लिए आपको स्वयं को संस्था में या ये कहें सहजयोग के इस जलाना होगा परन्तु इसके लिए भी अति आन्दोलन में आपकी क्या स्थिति है और में नहीं जाना है। कुछ लोग आकर मुझे किस तरह से आप इसे कार्यान्वित कर रहे बताते है कि श्रीमाताजी हमने अपने हैं। चित्त को व्यर्थ की सभी सांसारिक माता-पिता को त्याग दिया है, ये त्याग चीज़ों से हटाकर आत्मा पर लाया जाना दिया हैं, वो त्याग दिया है फिर भी हम चाहिए । मैं कहूँगी कि यह अत्यन्त गतिशील ठीक नहीं हैं मैंने उनसे पूछा कि ये सब शक्ति बन जाएगी और अगले वर्ष जब मैं त्यागने की क्या ज़रूरत है? किसी चीज़ यहाँ आऊंगी तो स्थिति बिल्कुल भिन्न होगी। को यदि आपने पकड़ रखा हो तब तो आप हमें परमात्मा के सभी सुन्दर आशीष प्राप्त इसे त्यागें, और ये भी स्वतः ही समाप्त हो हो जाएंगे यह कार्य हमें सामूहिक रूप से जाती हैं। नहीं, हम अपने परिवार से, अत्यन्त सूझबूझ के साथ करना होगा। माता-पिता से, देश से बहुत लिप्त थे अब हमने बहुत कुछ छोड़ दिया है। ऐसे चा परमात्मा आपको धन्य करें। त पा 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-12.txt +ै क्रिसमस पूजा पत गणपतिपुले - 25.12.2001 ला (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) ाी उतने साटे सहजयोगियों सत्य है क्या? सत्य ये है कि आप आत्मा हैं को ईसा मसीह की पूजा में उपस्थित देखकर और आपको आत्मा बनना है उन्होंने ही बहुत अच्छा लग रहा है। ईसाई-धर्म विश्व पुनर्जन्म की, आत्म-साक्षात्कार की बात में चहूँ ओर फैल गया है और ऐसे बहुत से की। परन्तु लोग उनकी कही हुई बातों को तथाकथित ईसाई हैं जो कहते हैं कि वे भूल गए हैं कि उन्हें क्या प्राप्त करना है। ईसा मसीह का अनुसरण करते हैं। मैं नहीं कितनी अजीब बात है कि ऐसे महान लोग जानती किस प्रकार! ईसा मसीह परम चैतन्य पृथ्वी पर अवतरित हुए और हमारे उत्थान का अवतरण थे, वो ओंकार थे । वे श्री के लिए आवश्यक धर्म सृजन किया मेरी गणेश थे और उन्हें मानने वाले लोगों को समझ में नहीं आता कि अपने इन गुरुओं बिल्कुल भिन्न व्यक्ति बनना होगा परन्तु की शिक्षाओं के बावजूद भी लोग किस जिस प्रकार सभी धर्मों में होता है, लोग प्रकार मूर्ख बन गए है! यह सारी धन बेतरतीब उल्टी दिशा में चल पड़ते हैं, लोलुपता है। केवल इतना ही नहीं यह सत्य पर आधारित नहीं है। मेरे विचार से यह इस धर्म का दूसरा क्रूसारोपण है । ईसा मसीह के जीवन का सारतत्व उनकी कोई भी ऐसा धर्म नहीं है जो वास्तव में निर्लिप्तता और बलिदान था। जो व्यक्ति बनाए गए सिद्धान्तों पर चलता हो। मैं नहीं निर्लिप्त होता है उसके लिए बलिदान जैसा समझ पाती कि किस प्रकार थोड़े से पैसे कुछ नहीं होता, वह तो अपने जीवन को या बतंगड़ बनाने के लिए ये लोग सत्य को नाटक की तरह से मानता है। इतना महान तोड़-मरोड़ देते हैं। ईसा मसीह के नाम व्यक्ति पृथ्वी पर अवतरित हुआ और इस पर इस प्रकार के कर्मकाण्ड हो रहे हैं । बिल्कुल उल्टी दिशा में। 1. तथाकथित ईसाई धर्म की सृष्टि की । और यद्यपि बहुत बार ये लड़खड़ाए हैं और ये युद्धों में तथा सभी प्रकार के पाखण्डों में विश्व पर इनके कुप्रभावों का अनुभव भी उलझ गया है! आप लोगों को यह बात उन्हें है। प्रतिक्रिया हमारी समझ में नहीं समझ आ रही है। वे सत्य के समर्थक थे आती कि क्यों इस प्रकार की गोल-मोल और ईसाई लोग तो ये भी नहीं जानते कि चीजें आ जाती हैं और लोग उन्हें स्वीकार 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-13.txt मई-जून 2002 12 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 कर लेते हैं? किसी भी धर्म को लें। इन लोग पढ़े-लिखे हैं परन्तु वो भी लोगों पर दिनों पता नहीं इस्लाम किन चीजों की शासन करने के विचार में खोए हुए हैं । बात कर रहा है! मोहम्मद साहब के जीवन परमात्मा के नाम पर और आध्यात्मिकता में दो महत्वपूर्ण चीजें हैं-पहली मिराज के नाम पर ऐसे कार्य करना लज्जा जनक कहलाती है। ये कुण्डलिनी जागृति के है। अतिरिक्त कुछ भी नहीं। ये बात बिल्कुल स्पष्ट है । दूसरे उन्होंने जेहाद की बात की। जेहाद अर्थात अपने अंदर की सत्य क्या है? उन्हें सही आध्यात्मिकता के अब उन्हें ये बताना हमारा कर्तव्य है कि बुराइयों को समाप्त करना, आपने बुरे पथ पर लाना हमारा कर्तव्य है क्योंकि वो स्वभाव को समाप्त करना, षड्रिपुओं का वध करना। इसका अर्थ भी खोए हुए हैं, हिन्दु भी खोए हुए हैं. वे ये नहीं है कि मुसलमान बनकर अपना सभी खोए हुए हैं। उन्हें बिल्कुल भी समझ वध कर लें। ये तो बेवकूफी भरी बात है । नहीं है कि उनके धर्मों ने क्या सिखाया है क्या आप इसलिए मुसलमान बने हैं कि और उनका कर्तव्य क्या है। अन्ततः ईसा आप अपने आपको मार लें, वध कर लें? मसीह को क्रूसारोपित कर दिया गया | आप इसे कर्म काण्ड कहते हुए उन लोगों का देख सकते हैं । नभी खोए हुए हैं. ईसाई भी खोए हुए है, मुसलमान अपने मानना है कि ऐसा करने से वह जन्नत में जाएंगे, स्वर्ग में जाएंगे। किस प्रकार आप स्वर्ग में जा सकते हैं? मुसलमान होकर भी भी सत्य को स्थापित करने का प्रयत्न आप धार्मिक नहीं हैं, बिल्कुल भी नहीं हैं । किया गया, असत्य ने इसे समाप्त कर इन पापी लोगों की हत्या करके किस प्रकार डालने का प्रयत्न किया लोग सत्य को आप स्वर्ग में जा सकते हैं जहाँ आपको सहन न कर पाए । हमारे सामने सुकरात जन्नत का आनन्द मिलेगा? इसका कोई का उदाहरण है। उनकी हत्या करने की औचित्य नहीं है परन्तु सर्व प्रथम तो इन मौलाना लोगों ने अपनी पढ़ाई-लिखाई छोड़ हत्या कर दी। इस प्रकार हम जानते हैं कि दी है, अपनी पढ़ाई-लिखाई को छोड़ दिया धर्म के लिए जो भी लोग मूलभूत थे उन्हें है, अपनी पढ़ाई-लिखाई को समाप्त कर समाप्त किया जा रहा है क्योंकि लोग सत्य दिया है। वे स्वयं को बिल्कुल भी शिक्षित नहीं चाहते। वे इसी धर्म को मानते हैं नहीं करते। अतः उन्हें इस बात का बिल्कुल क्योंकि इसके माध्यम से वे लोगों पर सत्ता भी ज्ञान नहीं है कि विश्व में वे कहाँ खड़े प्राप्त कर सकते हैं । उन्होंने धर्म बना दिए हैं। उनकी स्थिति क्या है? कुछ थोड़े से हैं। मिराज कुण्डलिनी की जागृति है और अतः आप देख सकते हैं कि जब-जब क्या आवश्यकता थी? परन्तु लोगों ने उनकी 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-14.txt मई-जून 2002 13 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 वो कहते हैं कि मिराज़ कभी घटित ही नहीं भारत इन मुसलमानों के कारण प्रदूषित हो हो सकती। बहुत अच्छा! आपमें से बहुत चुका है और दक्षिणी कट्टर पंथी हिन्दुओं से लोगों ने आत्मसाक्षात्कार पाया है। आपको के कारण। सभी प्रकार के कर्मकाण्ड, बुरे कुरान वर्णित चैतन्य- लहरियाँ व शीतल से बुरे भी, दक्षिणी भारत की महिला पर हवा प्राप्त हो गई हैं। परन्तु ये बात थोपे जाते हैं। महिला के बाल मुँडवाकर मुसलमानों को कौन समझा सकता है । उससे मन्दिर की परिक्रमा कराई जाती है, उस पर जल डाला जाता है और वो आप यदि कोई बात बताएंगे तो वे आपका गला काट देगे, बस जेहाद शुरु कर देंगे । लड़खड़ाती है. सीधे से चल नहीं पाती। ये तो आज इस आधुनिक समय में भी वे सब होते हुए मैंने स्वयं देखा है। इतने मूर्खतापूर्ण कार्य कर रहे हैं । हम देखते हैं कि लोग सभी मर्यादाओं, धर्म की सभी सीमाओं को पार कर गए हैं। इसके अतिरिक्त हमारे यहाँ सती प्रथा है अर्थात पति की मृत्यु के पश्चात् पत्नी की हत्या कर डालना। कोई भी ये बात मैं अमरीका गई तो हैरान थी कि किस नहीं समझ सकता कि धर्म की सारी प्रकार उन लोगों ने चारित्रिक मूल्यों को जिम्मेंदारी महिलाओं पर ही क्यों डाल दी भुला दिया है! उनमें चरित्र विवेक बिल्कुल गई है पुरुषों पर क्यों नहीं? परन्तु एक भी नहीं है। चरित्र को वो बाजार में बेच रहे बात अच्छी हो गई है कि अब आप बहुत हैं, इससे पैसा बना रहे हैं। इसके विपरित सी चीजें सुधार सकते हैं। मैंने अपने जीवन मुसलमानों की एक कौम 'वहाबी' कहते हैं काल में बहुत सी चीजें सुधारीं मैं हैरान कि महिलाएं ही पुरुषों के चरित्र को बिगाड़ती थी कि किस प्रकार मैं यह सब कार्य कर हैं, इसलिए उन्हें पर्दे में रखा जाना चाहिए। सकी! परन्तु इन मुसलमानों को, इस्लाम उन्हें आवरण में रखा जाना चाहिए । पंथियों को सुधारा नहीं जा सकता। अपनी अफगानिस्तान में जो भी महिलाएं सफेद महिलाओं के साथ ये इतने भयानक कृत्य चप्पल पहनती थीं उन्हें पीटा जाता था, करते हैं और यदि आप उनकी सहायता उनकी हत्या कर दी जाती थी भारत में करने का प्रयत्न करें तो वह भी असंभव है। भी, विशेष रूप से उत्तरी भारत में, बहुत से उदाहरण के लिए संसार में अकेली रह रही लोगों ने मुस्लिम संस्कृति अपना ली है । महिलाओं के लिए मैंने एक संस्था आरंभ उत्तरी भारत में वास्तव में महिलाओं के की- उन महिलाओं के लिए जिनके बच्चे थे साथ दुर्व्यवहार किया जाता है। मेरा विवाह जो यतीमों की तरह से थे मुझ हैरानी हुई भी उत्तरी भारत में हुआ अतः मैं जानती हूँ कि इन महिलाओं में से अधिकतर मुसलमान कि वहाँ पर पुरुष कितने क्रूर हैं। उत्तरी थीं, और इनके आठ-आठ, दस-दस बच्चे 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-15.txt मई-जून 2002 14 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 थे और इनके लिए हमें अब अनाथालय भी प्रसन्नता हुई। वह कहने लगा, "मैं सहजयोग बनाना पड़ेगा। अपने धर्म से वे इन्हीं चीजों में आऊंगा, परन्तु मैं शराब पीना नहीं छोड़ का सृजन कर रही हैं। विधवा महिलाओं के सकता।" मैने पूछा, "क्यों? क्योंकि बाइबल लिए हिन्दुओं में भी अजीब प्रथा है। विधवा में लिखा है आपको शराब पीनी चाहिए"। महिला के प्रति उनका व्यवहार अति क्रूर "अच्छा", मैं तो जानती ही न थी!" ये कैसे होता है। वे इन विधवा महिलाओं को वृंदावन हो सकता है? ईसा मसीह कैसे कह सकते में रहने के लिए विवश करते हैं। मुझे हैं कि आपको शराब पीनी चाहिए? वे केवल बताया गया कि इन महिलाओं को प्रतिदिन आत्म साक्षात्कारी ही न थे वे तो स्वयं एक रुपया दिया जाता है। इस देश में एक आत्म- साक्षात्कार थे। वह कहने लगा, रुपये में कोई किस प्रकार जीवित रह सकता है? ये लोग बहुत से भिखारियों और बात कही है। कहाँ? वे एक विवाहोत्सव पर भिखारिनों का सृजन कर रहे हैं। अगर गए थे बिल्कुल ठीक। उस विवाह में यही धर्म है तो बेहतर है कि इसे न अपनाया उन्होंने लोगों के लिए शराब बनाई। उन्होंने आप जो चाहे कहती रहें, ईसा-मसीह ने ये जाए। ये सब काफी हो चुका-ब्राह्मणवाद बिल्कुल शराब नहीं बनाई। वे वहाँ गए के माध्यम से सभी प्रकार के कर्म काण्ड। ये ब्राह्मण बिल्कुल किसी काम के नहीं। और इतने थोड़े समय में उन्होंने पानी में अपना हाथ डाला और पानी का स्वाद अंगूरों के रस जैसा हो गया हिब्रू भाषा में धर्म सिखाने वाले लोगों को बहुत अंगूरों के रस को भी वाइन करते हैं। मैंने उच्च-स्तर का होना चाहिए। सहजयोग में कहा कि मैं भी यह कार्य कर सकती हूं यह दल-दल के अतिरिक्त कुछ भी नहीं परन्तु इसका अर्थ ये नहीं है कि मैं लोगों और इस दल-दल में फँसने वाला व्यक्ति का शराब पीना पसन्द करती हूँ। ऐसी समाप्त हो जाएगा। लोगों से आपने ये बात बेवकूफी भरी बात कौन कह सकता है? बतानी है कि वो क्या कर रहे हैं? सभी ाम महत्वपूर्ण चीज़ तो चेतना है। चेतना ही बुराइयों के लिए ये लोग धर्म का उपयोग कर रहे हैं जैसे इंग्लैण्ड में किसी की मृत्यु महत्वपूर्ण है और इसी को यदि आप बिगाड़ हो जाए तो लोग शैम्पेन पीते हैं, किसी के देंगे, खराब कर देंगे तो किस प्रकार आप संस्कार के लिए जाते हुए भी वे शैम्पेन सहजयोगी हो सकते हैं? उनको समझा पाना पीएंगे मैं हैरान थी कि ऐसे समय पर भी कठिन था कि आप शराब न पीएं। भारत में वे शैम्पेन पीते हैं और इसे धार्मिक कहते भी शराब पीना आम बात हो गई है। शराब हैं! सारे पादरी लोग भी शराब पीते हैं । पीना ईसाई धर्म के विरुद्ध है, हिन्दू धर्म के एक पादरी सहजयोग में आया, मुझे बहुत विरुद्ध है, इस्लाम के विरुद्ध है। कुरान में श्री 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-16.txt मई-जून 2002 15 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 5 यद्यपि लिखा हुआ है कि शराब न पीएं परन्तु कई बार तो मैं हैरान होती हूँ कि इतने वे सब लोग शराब पीते है और उस धर्म अच्छा कार्य करने वाले लोग किस प्रकार को मानने के स्थान पर बहुत बड़े पापी बन से इतने विनम्र और भले हैं? किस प्रकार गए हैं क्या ईसा मसीह ने उनसे यही बनने उन्होंने ये उपलब्धि प्राप्त की है ये बात मैं की अपेक्षा की थी। आपको पावन व्यक्ति नहीं समझ सकती। नि:सन्देह कुछ लोग बनना होगा आपको 'निर्मल तत्व' प्राप्त धन लोलुप और सत्ता लोलुप भी हैं परन्तु इन चीज़ों से आनन्द नहीं मिलता। आपके करना होगा। यही सत्य है। अन्दर सत्य का प्रकाश ही आनन्द का मैंने आपको शालिवाहन के विषय में स्त्रोत है। आप सबने इस आनन्द का अनुभव एक कहानी भी बताई थी । वो कश्मीर में किया है, परन्तु अब मुझे ये कहना है कि ये ईसा मसीह से मिले और उनसे उनका अनुभव आपने अन्य लोगों को भी देना है। और उनके देश का नाम पूछा। ईसा मसीह ये केवल आपके लिए ही नहीं है । अधिक ने उत्तर दिया, कि मैं एक ऐसे देश से से अधिक लोगों को ये आनन्द अनुभव आया हूँ जहाँ लोग मलेच्छ हैं। मलेच्छ कराएं। परन्तु आपमें से कितने लोग इस अर्थात गन्दगी की इच्छा करने वाले। शालिवाहन ने उनसे कहा, "क्यों नहीं आप करते हैं? सिख जाति के लोग भी हैं, वे वहाँ जाकर उन लोगों को निर्मल तत्वं सहजयोग में आए परन्तु कहने लगे हम सिखाते?" वही निर्मल तत्वं आपको प्राप्त देवी की पूजा नहीं कर सकते। मैंने हो गया है यह आपको पावन करता है, पूछा, "क्यों?" आश्चर्य की बात है! क्योंकि आपकी बाधाओं को दूर करता है, आपको श्री गुरुनानक देव ने देवी की बात की है। कार्य को करते हैं? कितने लोग ये कार्य आनन्द, प्रसन्नता एवं सत्य प्रदान करता अपनी पुस्तक के पहले वाक्य में उन्होंने है। आपको यही माँगना चाहिए । अन्यथा लिखा, 'आद्या। आद्या आदिशक्ति हैं इसके सब अंधकार है। आपको प्रकाश नज़र नही बावजूद भी यदि मूर्खतापूर्वक सिख लोग आता चाहे आप ईसाई हों, हिन्दु हों, ऐसी बातें कहें! क्यों उन्होंने चण्डीगढ़ नाम रखा? वे भी मूर्ख हैं। वास्तव में तुलना मुसलमान हों या कोई अन्य। आपको सत्य का प्रकाश नहीं प्राप्त हो सकता । यही की कोई बात नहीं। सत्य का प्रकाश आपको प्राप्त करना है। उसके पश्चात् आपने क्या करना है? यह प्रकाश आपने अन्य लोगों को देना है, आपने आपने जीवन की ये सभी मूर्खताएं त्याग अन्य लोगों को परिवर्तित करना है। इस दी हैं या अभी भी आप इनके बन्धन में फॅसे दिशा में आपने बहुत परिश्रम किया है। हुए हैं? ये बात अत्यन्त महत्वपूर्ण है। जब अब आपको ये समझना है कि क्या 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-17.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 16 तक आप इन्ही बन्धनों पर अडे रहेंगे तो आप कौन होते हैं? आध्यात्मिकता के विषय समस्या बनी रहेगी। सहजयोग करता है। मैं आश्चर्य चकित थी कि अमरीका कि आध्यात्मिक या आध्यात्मिक रूप से में तीन सौ सहजयोगी थे, उन्हें कुछ भी सशक्त व्यक्ति के साथ क्या घटित हो सकता बहुत कुछ में आप क्या जानते हैं? आप क्या जानते हैं नहीं हुआ। उनमें से कुछ उस गगन चुम्बी है? क्या चीज़ इसे कार्यान्वित कर सकती इमारत में थे और कुछ सड़क पर थे। वे है? मानव के विषय में जो भी ज्ञान हमें है सभी लोग वहाँ पर थे परन्तु किसी को भी उसके आधार पर हम निष्कर्ष निकालने लगते हानि नहीं पहुँची। कुछ ने बताया कि अन्दर हैं और ये निष्कर्ष प्रायः गलत होते हैं। अपने किसी ने उनसे कहा, कि यहाँ से भाग जीवन में देखें। सहजयोगियों के जीवन में जाओ और हम दूसरी दिशा में दौड़ने लगे। बहुत से चमत्कार होते हैं। मैंने किसी से कुछ को दौड़ने में देर हुई। मैं नहीं समझ पाई इन तीनों को किस प्रकार से देरी हो संकलित कर दो। वह कहने लगा कि एक गई? परन्तु ये आसुरी लोग जो पूरे विश्व महीने के अन्दर चमत्कारों के जितने पत्र को नष्ट करने की सोच रहे हैं उनमें भी उसे आए वो उसके सिर से भी ऊँचे पहुँच कहा कि इन चमत्कारों को एक पुस्तक में सुधार हो रहा है। यही कारण है कि मैं गए। तब मैंने उसे कहा कि इस कार्य को अमेरिका गई और उन्हें बताया कि यह युद्ध छोड़ दो। परन्तु बुद्धिवादी लोगों को समझा दिवाली तक समाप्त हो जाएगा और ऐसा पाना कठिन है । ये सारी बातें उनकी खोपड़ी ही हुआ। ये सोचना कितनी बड़ी मूर्खता है में डाल पाना असंभव है। कि वे परमात्मा की सृष्टि को इस प्रकार से नष्ट कर सकते हैं । ऐसा करने वाले वो कौन हैं? विश्व को नष्ट करने का अधिकार जो लोग जिज्ञासु हैं हमें उन पर चित्त देना उन्होंने किस प्रकार प्राप्त किया है? परन्तु चाहिए । भारत में तो अब सहजयोग जेलों में यही मानवीय मूर्खताएं हैं । 1. अतः हमें हर सभव प्रयत्न करना चाहिए। भी पहुँच गया है। स्कूलों में तथा सर्वत्र सहजयोग फैल गया है। हाल ही में किसी ने ईसा मसीह पृथ्वी पर अवतरित हुए। उन्होंने मुझे बताया कि एक कैथोलिक चर्च में भी लोग काफी समय तक कार्य किया परन्तु उन्हें सहजयोग कर रहे हैं । मैं नहीं जानती कि क्रूसारोपित होना था तो वो हो गए। क्रूसारोपण किस प्रकार उन्हें सहजयोग स्वीकार करने हमारा गौरव नहीं है। उनका पुनर्जन्म के लिए सहमत किया है। परन्तु इसी प्रकार (Resurrection) ही गौरवमय है। निःसन्देह सहजयोग फैल रहा है । आप सब लोगों को उनका पुनर्जन्म हुआ। ये कहना कि ये सब व्यक्तिगत रूप से सभी जगह जाकर इसके असंभव है उचित न होगा ऐसा कहने वाले विषय में बातचीत करनी है और इसे कार्यान्वित 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-18.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 17 करना है। परन्तु सहजयोगी हैं। एक बार मैं हवाई जहाज से जा रही थी। आत्म विश्वास की कमी है। बहुत ही कम मेरे पास बैठी महिला के शरीर से बहुत ही लोग बाहर निकलकर इस कार्य को करते गर्मी निकल रही थी। मैंने उनसे पूछा कि हैं। इटली और आस्ट्रेलिया में मैंने देखा बहुत ही शर्मीले करें। मैं सोचती हूँ कि सहजयोगियों में उसका गुरु कौन है? उसने मुझे नाम बताया। मैं हैरान थी कि उसे आध्यात्मिकता का बिल्कुूल भी ज्ञान न था फिर भी ऐसे लोगों के बड़े-बड़े घर है, बड़े-बड़े मन्दिर हैं, सभी कुछ है। वह महिला अपने इस गुरु की प्रशंसा किए चली जा रही थी! मैंने सोचा कि यह अत्यन्त निर्लज्ज है उसके अपने अन्दर कुछ शरीर से इतनी गर्मी निकल रही थी और फिर भी वो अपने गुरु की बातें किए चली जा रही थी! परन्तु सहजयोगी ऐसा नहीं करते। मैं हैरान थी कि सहजयोगी क्यों नहीं सहजयोग के विषय में बात करते? उस दिन मैं किसी के कि सहजयोग का बहुत प्रचार हुआ है क्योंकि उन लोगों में ये दृढ़-विश्वास है कि जो हमें प्राप्त हुआ है वह हमें अन्य लोगों को भी देना है। हमें यह अन्य लोगों में भी बाँटना है । ईसा-मसीह के जीवन से हमें उनके बलिदान के विषय में समझना है । अपराधियों की तरह से इस प्रकार क्रूसारोपित हो जाना बहुत बड़ा बलिदान है परन्तु उन्होंने ऐसा किया। नहीं है उसके इसी प्रकार से आप लोग भी जब सहजयोग का कार्य करते हैं तो आपको ये साथ बाज़ार गई। मेरे साथ एक सहजयोगी नहीं सोचना चाहिए कि मेरे दादा का क्या भी था। मैं हैरान थी कि वह उन्हें मेरे विषय में होगा या मेरी दादी का क्या होगा? मेरे बताने लगा और आत्म-साक्षात्कार देने लगा। कहने से अभिप्राय है कि जितने भी पत्र उन लोगों को इससे बहुत प्रसन्नता हुई। कहीं मुझे मिलते हैं, वे सब इन्हीं चीज़ों से भरे भी आप जाएं अपने पड़ोस में अपने बाजार में, होते हैं। ये बड़ी अजीब बात है लोग सर्वत्र आपको सहजयोग के विषय में बताना केवल अपने संबन्धियों के विषय में ही चाहिए। जिस तरह से ईसाई लोग आनन्द चिन्तित हैं । विश्व भर में आपके जो गान (Carols) गाते हैं वैसे ही आपको भी सम्बन्धी हैं उनकी आपको कोई चिन्ता नहीं । भजन गाने चाहिएं और इसके माध्यम से हमें आप तो केवल अपनी पत्नी और बच्चे के सहजयोग बताना होगा हम इतने संकोचशील बारे में चिन्तित हैं मुझे केवल इसी प्रकार क्यों हैं? इतनी अधिक शर्म से सहजयोग का के ही पत्र मिलते हैं । कोई भी ये नहीं हित न होगा। अतः कृपा करके अन्य लोगों लिखता कि उसने कितने लोगों को आत्म-साक्षात्कार दिया। कभी कोई नहीं लिखता कि सहजयोग प्रचार - प्रसार में आपमें शक्तियाँ हैं। अपने पर भरोसा उन्होंने किस प्रकार सफलता प्राप्त की। को आत्म-साक्षात्कार देने का प्रयत्न करें। 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-19.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 8 मई-जून 2002 18 कोई भी नहीं लिखता कितने आश्चर्य की यदि 40 होते हैं तो लड़कियाँ 120 या 150 बात है! आपको यही बात बतानी है। मुझे होती हैं। तो किनसे हम उन लड़कियों का आशा है कि आप सब लोग सहजयोग विवाह करें? इस बात को आप सोचें। परन्तु प्रचार के महत्त्व को समझते हैं । सहजयोग ये लड़कियाँ शिकायत भरे पत्र लिखती हैं प्रचार यदि आप नहीं करते तो आप पूर्णतः व्यर्थ हैं। जिस प्रकार यहाँ पर बहुत सी कुछ नहीं कर सकते, उनकी कोई सहायता ज्योतियाँ जली हुई हैं वैसी ही मेरे लिए नहीं कर सकते अतः आप बाहर जाकर महानतम चीज़ विश्व भर में अधिक से अपनी इच्छानुसार कहीं भी विवाह कर लें या अधिक सहजयोगियों का होना है । आप शांति से प्रतीक्षा करें और अपना जीवन यदि इस विश्व को परिवर्तित दरना चाहते हैं, कठिनाई और अशान्तिमय प्रकार की शिकायतें कि मेरा विवाह हो जाना व्यर्थ जीवन, जो लोग जी रहे हैं, उनसे चाहिए था, अभी तक मेरा विवाह नहीं हुआ, यदि आपने बचना हैं तो आपको उन आदि को सुनना बहुत कठिन है। विवाह लोगों की रक्षा करनी होगी, उन्हें कभी भी हमारी प्राथमिकता न थी. फिर भी उबारना होगा। ये आपका कार्य है । सहजयोग में विवाह की आज्ञा दी गई। परन्तु सहजयोग के लिए आपने यही दक्षिणा अब सभी के लिए यह मुख्य कार्य बन गया देनी है। सहजयोग को केवल स्वयं तक है । या तो उनका विवाह नहीं होता और यदि सीमित न करें, अपने तक इसे सीमित न विवाह हो गया तो वो प्रसन्न नहीं हैं और करें, अपने तक इसे सीमित न करें। कि हमने चार बार आवेदन किया है। हम सहजयोग को समर्पित कर दें। उनकी इस यदि उनका तलाक हो गया है तो उनका पुनर्विवाह होना चाहिए। सभी प्रकार की चीजें और जटिलताएं नहीं हूँ। सहजयोग इन चीज़ों के लिए नहीं बना। आपका विवाह यदि सफल नहीं है तो जो पत्र मुझे मिलते हैं उन्हें यदि आप पढ़ेंगे तो आपको अत्यन्त निराशा होगी । मुझे जो पत्र आते हैं उनमें लोग लिखते हैं कि मैं जिनके लिए मैं तैयार शादी करना चाहता हूँ। ठीक है। बहुत सी यह मेरा काम नहीं है। यदि चीजें ऐसे ही लड़कियाँ है जो कहती हैं कि हम चार वर्षों चलती रहीं तो हमें विवाह बन्द करने पड़ेंगे । से सहजयोग में विवाह के लिए आवेदन कर मैं नहीं चाहती कि आप लोग मुझे इनके रहे हैं परन्तु हमारा विवाह नहीं हुआ। पहली विषय में लिखें इनसे पता चलता है कि हम बात तो ये है कि आपको पता होना चाहिए सहजयोग में कितने उथले हैं आप क्यों न कि पुरुषों की अपेक्षा महिला प्रार्थियों की मुझे ये लिखें कि आपने कितने लोगों को संख्या बहुत अधिक है। निःसन्देह वो बहुत आत्म साक्षात्कार दिया है? आपके ऐसा लिखने अच्छी हैं परन्तु आवेदन करने वाले लड़के से मुझे प्रसन्नता मिलेगी. इसकी अपेक्षा कि 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-20.txt मई-जून 2002 19 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 आप अपनी पत्नी या किसी अन्य की शिकायत कार्य तो केवल ये है कि आपने कितने लोगों मुझसे करें। ये सब मेरा कार्य नहीं है। हमने को आत्म- साक्षात्कार दिया। यह अत्यन्त आपका विवाह कर दिया अब इसे निभाना कठिन कार्य है क्योंकि लोगों ने सभी महान आपका कार्य है परन्तु सहजयोग की ये अवतरणों, सूफियों और सन्तों के सिद्धवान्तों समस्या है। सभी धर्मों में बहुत से गलत को बिल्कुल गड़बड़ कर दिया है परन्तु कार्य होते रहे। परन्तु मैं सोचती हूँ कि आप लोग तो, कम से कम ऐसा न करें। सहजयोग में विवाह ही एकमात्र समस्या है। अतः कृपा करके सोचें कि आप किसे सबसे बड़ी बात ये है कि लड़के विवाह के आत्म साक्षात्कार दे सकते हैं, किससे लिए नहीं आते क्योंकि भारत में लड़कों का आप सहजयोग की बात कर सकते हैं। विवाह बहुत आसानी से हो जाता है। उन्हें हमें फैलना है आपके अगले पत्र में. दहेज आदि भी मिल जाता है। लड़कों की मुझे आशा है, मुझे ये सुनने को मिलेगा अपेक्षा लड़कियाँ पाँच अधिक हैं। लड़के कि आपने कितने लोगों को आत्म- गुना यहाँ विवाह नहीं करना चाहते। वो सहजयोगी होते हुए भी अपने विवाह स्वयं कराएंगे। मैं नहीं समझ पाती कि सहजयोग में आकर आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चातु भी उनके लिए विवाह का इतना महत्व क्यों है? साक्षात्कार दिया। ईसा मसीह के क्रूसारोपण, उनके जन्म और उनके पृथ्वी पर अवतरण के लिए आज्ञा चक्र ही सबसे बड़ा कारण है। आप जिन्हें आत्म-साक्षात्कार देते हैं वो आज्ञा चक्र पार सबसे महत्वपूर्ण बात तो ये है कि आपने करके सहस्रार में पहुँच जाते हैं । अत: कित्तने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया। यही सहजयोग में आप सभी कुछ समझते हैं। ये आपका जीवन है कमल यदि है तो यह अवश्य खिलेगा। परन्तु इसकी सुगन्ध बिखेरना समझना अत्यन्त सहज है परन्तु आत्म सब समझना अत्यन्त सुगम है, सहजयोग को आवश्यक है। कमल का भी उत्तरदायित्व है साक्षात्कार के बाद। अतः आस-पास, चहूँ तो आप लोगों का क्यों नहीं होना चाहिए? मैं ये नहीं कह रही हूँ कि ईसा मसीह की तरह आप भी क्रूसारोपित हो जाएं, नहीं। मैं कहती हूँ कि आप अपने जीवन का आनन्द लें, शान्ति, सुस्थिरता एवं सन्तुलन प्राप्त करें। परन्तु साथ-साथ आपने सहजयोग भी फैलाना है। अब आपका यही कार्य है। आपकी नौकरी आदि अधिक महत्वपूर्ण नहीं। महत्वपूर्ण ओर जाकर आपको देखना होगा कि कितने लोगों को आप आत्म-साक्षात्कार दे सकते हैं। सभी कुछ ठीक हैं। आपका पूजा करना भी ठीक है, पूजा भी ठीक है। परन्तु सबसे आवश्यक कार्य ये हैं कि आपने कितने लोगों को आत्म साक्षात्कार दिया। मैं जानना चाहूँगी कि कितने लोगों को आपने आत्म साक्षात्कार दिया, विशेष रूप से महिलाएं। क्योंकि महिलाएं 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-21.txt मई-जून 2002 20 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 आत्म-साक्षात्कार देने में दूर्बल है। मैं जानती इतने उच्च देवता ने आज्ञा चक्र को पार कर हूँ कि वो बहुत कार्य कर सकती हैं। आखिरकार लिया वो अन्य लोगों ने क्यों नही किया? मैं भी एक महिला हूँ परन्तु सहजयोग में मैं महिलाओं को उस स्तर पर नहीं पाती। वो आपमें कितना दृढ़ संकल्प है। आपको ये बहुत कार्य कर सकती हैं परन्तु वे अपने जीवन बात समझनी चाहिए कि देवी आपकी माँग के महत्व को नहीं समझतीं। आप बहुत महत्वपूर्ण हैं। कितने लोग ऐसे आती हैं। उनका अपना ही समय है। परन्तु आज की पूजा के बाद हम देखेंगे कि करने पर नहीं आतीं, वे अपनी इच्छा से हैं जिन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ? बहुत यदि आप लोगों की संख्या अधिक हो से सूफियों को आत्म- साक्षात्कार मिला, जाए, बहुत बड़ी संख्या में लोग सन्त हो उन्होंने काव्य लिखे और बस समाप्त। बहुत जाएं और अन्य लोगों को भी आप सन्त से सन्तों ने बहुत कार्य किया, बहुत कुछ बनाएं तो हर तरह से मैं आपके साथ हूँ। लिखा। भारत में ऐसे बहुत से सन्त हुए। अन्यथा मैं आपको उपलब्ध हूँ, मैं आपके उन्होंने सभी ग्रंथ लिखे। लोग इन ग्रन्थों को साथ हूँ, आप मेरी चैतन्य-लहरियाँ प्राप्त पढ़ते हैं परन्तु कुछ भी घटित नहीं होता। कर सकते हैं मेरी पूजा भी कर सकते हैं। आपमें आत्म-साक्षात्कार देने की कला है । ये सारी चीजें आपको प्राप्त हैं, इसमें कोई आपको कुण्डलिनी का ज्ञान है. इसके विषय सन्देह नहीं परन्तु इन सब चीज़ों की में आप सभी कुछ जानते हैं। आगे बढ़े और योग्यता, इनका अधिकार भी आपको तभी लोगों से बात करें। जब मैंने सहजयोग आरम्भ तक है जब आप सहजयोग करते हैं। यदि किया तो मैं अकेली थी और मैं तो एक आप सहजयोग फैला रहे हैं और यदि आप महिला हूँ! तो अब आप लोगों का क्या है? इसे अन्य लोगों को दे रहे हैं केवल तभी आप सब लोगों के सम्मुख ये चुनौती है आपको देवी की चैतन्य लहरियाँ प्राप्त करने कि आपने कितने लोगों को आत्म साक्षात्कारी के योग्य माना जाएगा कुछ देशों में यदि बनाया। यहाँ तक कि आपके परिवार के सहयजोग इतना शक्तिशाली है तो आपके लोग भी सहजयोगी नहीं है आपकी बेटी देश में आपके पड़ोस में, आपके सम्बन्धियों और बैटा भी सहजयोगी नहीं हैं। तो ईसा में यह इतना शक्तिशाली क्यों नहीं? मसीह का महिमागान करने का क्या लाभ बहुत अतः आपको यह निर्णय करना है कि है? उनका स्तुति-गान यदि आप करते हैं अन्य लोगों को आत्म-साक्षात्कार देने के तो आपको चाहिए कि लोगों को आज्ञा से लिए आप स्वयं को समर्पित कर दें। ऊपर उठाएं। उनका स्थान हमारे अन्दर सहजयोग के विषय में बात-चीत करना कितना ऊँचा है। परन्तु आपने कभी उनका अत्यन्त आनन्ददायक है परमात्मा आपको धन्य करे। सम्मान नहीं किया कि आपके अन्दर विद्यमान श८ 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-22.txt मकर संक्रान्ति पूजा पुणे - 14.1.2002 (परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) मकर संक्रान्ति का अर्थ है संक्रमण अर्थात कुछ बदलाव लाने वाला दिन। इस दिन सूर्य का उत्तरायण शुरु होता | हमारे भारत वर्ष में सारे त्यौहार चन्द्रमा संक्रान्ति के त्यौहार का सांस्कृतिक महत्व है। भारतवर्ष में यह त्यौहार बड़े उत्साह से मनाया जाता है। अन्य देशों में भी इसे मनाया जाता है। परन्तु भारत वर्ष में इसका की स्थिति के अनुसार चलते हैं, इसलिए विशेष महत्व है। भारत वर्ष में न ज्यादा उनकी तिथि बदलती रहती है। मकर संक्रान्ति सर्दी पड़ती है और न ज्यादा गर्मी यहाँ का दिन सूर्य की स्थिति पर निर्भर है और सन्तुलित स्थिति है । भारत वर्ष पर यही कारण है कि ये पर्व हर साल चौदह आदिशक्ति की कृपा है। अन्य देशों में सन्तुलन नहीं है वहाँ पर या तो भयंकर जनवरी को ही मनाया जाता है। सर्दी होती है या भयंकर गर्मी। मकर संक्रान्ति इस बात का संकेत है कि आज से सूर्य की गर्मी बढ़ती जाएगी। सूर्य की उष्णता मानव जाति के लिए हमारे अन्दर परिवर्तन आना उचित नहीं हितकारक है। इसी उष्णता के कारण हम है। सूर्य की गर्मी के कारण यदि हमारे चल-फिर सकते हैं, बोल-चाल सकते हैं। सूर्य की गर्मी के प्रभाव से ही मनुष्य को ये बात ठीक नहीं। क्रोध करना गलत है। क्रोध आता है इसलिए इस दिन गुड़ खाया षड्रिपुओं में क्रोध सबसे खराब है हम जाता है ताकि वाणी मधुर हो जाए। प्रकृति तथा मौसम के परिवर्तन के साथ अन्दर भी गर्मी आ जाए, हमें क्रोध आए तो लोग सहजयोगी हैं, हमारी जागृति हो चुकी है, अतः हमें शान्त रहना सीखना चाहिए । सूर्य की ऊष्मा से ही पृथ्वी पर धन-- वैसे तो सहजयोगी बहुत अच्छे हैं, उन्नत धान्य, फल-सब्जियाँ बगैरा होते हैं। इस हैं। बहुत कम, तकरीबन एक प्रतिशत लोग दिन देवी को फल- सब्जियाँ इत्यादि अर्पण ही अलक्ष्मी के पीछे लगे हुए हैं। इस करके देवी का आशीर्वाद लिया जाता है। पर गुस्सा आना स्वाभाविक हैं। परन्तु आदि शक्ति के आशीर्वाद से पृथ्वी तत्व उनको सुधारना आपका काम नहीं, ये कार्य शान्त हो जाता है और मानव जाति की आदिशक्ति का है। आपको शान्त रहकर उन्नति होती है। उन्नति करनी चाहिए। सभी कार्य परमात्मा 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-23.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 8 मई-जून 2002 22 पम की कृपा से होते हैं। इस बात का हमेशा ध्यान रहना चाहिए कुछ लोग खराब होते सकते हैं। परन्तु इसके लिए आपको सूक्ष्मता हैं, पैसे को ही सब कुछ मानते हैं। ऐसे एवं चैतन्य की स्थिति में रहना होगा । लोगों का सहजयोग में कोई काम नहीं। आध्यात्मिक ज्ञान का होना आवश्यक है, बाकी परन्तु इनका इलाज आपके पास नहीं है। सारी इच्छाएं व्यर्थ हैं । हमें सांसारिक इच्छाएं आदि-शक्ति स्वयं उन्हें संभाल लेंगी। आप भी स्थिति को इसी प्रकार संभाल Ihे नहीं करनी चाहिए। सहजयोगियों को अभी बहुत दूर जाना है। उन्हें अभी बहुत से उपक्रम अमरीका के राष्ट्रपति श्री जार्ज बुश पूरे करने हैं परमात्मा सभी कार्यो को पूर्ण साहब भी मुझे मानते हैं। हाल ही में मैंने करेंगे। चिन्ता न करें, शान्त रहें । उन्हें एक पत्र लिखा और तुरन्त ही स्थिति बदल गई। जनरल मुशर्रफ में भी बदलाव सूर्य-शक्ति अर्थात आत्म विश्वास। सूर्य आया और जनरल मुशर्रफ ने श्री बुश को उष्णता है. तेज है अब यह हम पर निर्भर संक्रान्ति का अर्थ है सूर्य शक्ति। लिखे मेरे पत्रानुसार अपने देश तथा इस्लाम करता है कि इस उष्णता से दग्ध होना को संबोधित किया। अपने पत्र में जो मैंने या सूर्य के तेज से आत्म-विश्वास प्राप्त लिखा था वही सब उनके भाषण में सुनाई करना है - तेजस्वी बनना दिया। है। आप सबको अनन्त आशीर्वाद । ास प्रिय सहजयोगी/ सहजयोगिनी जय श्री माता जी, आपके पते में यदि किसी भी प्रकार का कोई परिवर्तन हो या आप कभी स्थानातंरण करें तो कृपा करके तुरन्त अपना नया पता हमें लिखें ताकि आपकी चैतन्य लहरी की प्र में आपका यदि कोई सुझाव आदि है तो उसके विषय में भी हमें लिखने में संकोच न करें। ति हम समय पर आप तक पहुँचा सकें। चैतन्य लहरी के विषय ि आपके उत्थान की मंगल कामना करते हुए। चैतन्य लहरी 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-24.txt नि जी न्द प ं श्री गणेश पूजा मर त न का प ] 8.8.1989 शरत्ल न पव प (परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) शा चतं प आज आप श्री गणेश की पूजा करने के शनैः स्मृति कार्य करने लगती है और वह लिए यहाॅ आए हैं। हर पूजा से पूर्व हम श्री गणेश की स्तुति गान करते हैं और हमारे करने लगता है। परन्तु आरम्भ में तो वह हृदय में श्री गणेश का स्थान है क्योंकि हम केवल अपने साथ घटित अच्छी. चीजों को ये बात समझ चुके हैं कि जब तक हमारी ही याद रखता है। यही कारण है कि हम अबोधिता के प्रतीक श्रीगणेश हमारे अन्दर सदैव अपने बचपन के विषय में सोचना सभी घटनाओं को स्मृति-पटल पर एकत्र जागृत नहीं हो जाते, हम परमात्मा के पसन्द करते हैं-उन चीजों के विषय में साम्राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते और वहाँ जिनका आनन्द हमने शैशवकाल में लिया रहने के लिए भी हमें श्री गणेश के आशीर्वाद था, सभी कष्टों, सभी उपद्रवों तथा उन का आनन्द लेना पड़ता है। अपने पाविन्र्य सभी कष्टों को जिनमें से हम गुजरे हैं याद को सदैव पुष्पित रखना पड़ता है। इसलिए रखने लगते हैं। इन्हें हम विस्तृत करने का हम उसकी स्तुति करते हैं और वे सुगमता से प्रसन्न हो जाते हैं । और सहजयोग में उन्हीं लोगों को याद रखते हैं जिन लोगों आने से पूर्व जो अपराध हमने किए होते हैं ने उनसे प्रेम किया हो, उन लोगों को नहीं उन्हें वे पूर्णतः भूल जाते हैं क्योंकि वे अनन्त जिन्होंने उन्हें सताया हो। सभवतः वे ऐसे प्रयत्न करते हैं। बचपन में बच्चे केवल लोगों को याद रखना ही नहीं चाहते । ऐसा बालक हैं। क० प्रतीत होता है परन्तु जब वे बड़े हो जाते आपने बच्चों को देखा है। उन्हें चाँटा हैं तब वे केवल उन्हीं को याद रखना मार दें, कभी उनसे नाराज हो जाएं, फिर चाहते हैं जिन्होंने उन्हें सताया हो, कष्ट भी वे इसे जाते हैं। वे केवल प्रेम को दिया हो । इस प्रकार वे स्वयं को दयनीय याद रखते हैं आपके द्वारा दिए गए कष्टों बना लेते है। को नहीं। बड़े हो जाने तक उन्हें कष्टकर चीजों की स्मृति नहीं रहती। बच्चा आरम्भ से ही माँ की कोख से जन्म लेने के पश्चात् अत्यन्त सूक्ष्म है-सूक्ष्मातिसूक्ष्म। सभी चीज़ों अपने कष्टों को याद नहीं रखता। शनैः में यह विद्यमान है । भौतिक पदार्थों में यह भूल परन्तु श्री गणेश का सिद्धान्त (तत्व) 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-25.txt मई-जून 2002 24 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 चैतन्य लहरियों के रूप में विद्यमान है। प्रकट होने लगते हैं लोगों के दुष्कर्मों के चैतन्य-लहरियों के बिना कोई भी पदार्थ कारण प्रकृति में भी समस्याएं उत्पन्न होने नहीं होता सभी पदार्थों में चैतन्य लहरियाँ लगती हैं। प्राकृतिक विपदाएं केवल श्री होती हैं और इन चैतन्य लहरियों को सभी गणेश का ही अभिशाप होती हैं। सामूहिक पदार्थों के अणु-परमाणुओं में देखा जा रूप से लोग जब दुष्कर्म करने लगते सकता है। अतः श्रीगणेश प्रथम देवता हैं हैं, दुराचरण करने लगते हैं तब उन्हें जिन्हें भौतिक पदार्थ में भी स्थापित किया सबक सिखाने के लिए प्राकृतिक विपदाएं जा सकता है । परिणामस्वरूप हम देख आती हैं। अपने सार के रूप में यद्यपि श्री सकते हैं कि यह तत्व सूर्य में, चाँद में, पूरे गणेश हर चीज में विद्यमान हैं, उनमें पूरे ब्रह्माण्ड में, पूरी सृष्टि में और मानव में भी विश्व को नष्ट करने की अपनी शक्ति विद्यमान है । केवल मानव ही अपने कर्मों दर्शाने की भी क्षमता है। हम श्री गणेश को के कारण अपनी अबोधिता पर आवरण सूक्ष्म अस्तित्व के रूप में मानते हैं। हम चढ़ा लेता है, अन्यथा पशु तो अबोध हैं। मानते हैं कि छोटे से चूहे की सवारी करने मानव स्वतन्त्र है, वह यदि चाहे तो अपने वाला ये देवता भी सुक्ष्म ही होगा। पावित्र्य को आच्छादित कर सकता है और श्री गणेश के लिए अपने द्वार बन्द कर सकता है और कह सकता है कि श्री गणेश हैं अपने विवेक के कारण वे सभी देवताओं का अस्तित्व ही नहीं है। मानव अपनी अबोधिता को धुँधला कर देता है। यही सीखने के लिए वे हमें विवश करते हैं । वे कारण है कि श्री गणेश के अस्तित्व को हमारे गुरु हैं या ये कहूँ कि महागुरु ैं अनदेखा करके मानव सभी प्रकार के क्योंकि वे हमें सिखाते हैं कि किस प्रकार वे जितने सूक्ष्म हैं उतने ही महान भी के शिरोमणि हैं वे विवेक के देवता हैं। कुकृत्य करता रहता है। परन्तु उसके कार्य ऐसे आचरण करना है। हम यदि उनकी होते हैं जिनसे उसके द्वारा किए गए कुकृत्यों अवमानना करने का या उनसे दुर्व्यवहार के स्वाभाविक परिणाम भी दिखाई पडते करने का प्रयत्न करेंगे तो माँ (श्रीमाताजी) हैं। जैसे व्यक्ति यदि उन कार्यों को करता भी इस कार्य को अच्छा न मानेंगी क्योंकि है जो श्री गणेश को अच्छे नहीं लगते तो वो जानती हैं कि श्री गणेश की अवमानना कुछ सीमा तक तो यह चलता है, एक करने वाले लोग माँ का भी सम्मान नहीं सीमा तक श्री गणेश उसे क्षमा करते हैं, करते। अतः वे सम्मान के प्रतीक हैं| वे परन्तु अन्ततः वह कुकृत्य बीमारियों के रूप किसी अन्य देवता को नहीं पहचानते। वे में, शारीरिक बीमारियों के रूप में और सदाशिव को भी नहीं पहचानते, किसी अन्य महिलाओं में मानसिक रोगों के रूप में को भी वे नहीं पहचानते। वे केवल अपनी 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-26.txt मई-जून 2002 25 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 माँ का सम्मान करते हैं। अतः वे अपनी माँ समझनी चाहिए यदि श्रीगणेश विवेक के के प्रति श्रद्धा एवं पूर्ण समर्पण की शक्ति हैं दाता हैं तो मुझमें भी विवेक होना चाहिए। और यही कारण है कि वे सभी देवताओं में यदि मुझमें विवेक है तो मुझमें सन्तुलन सर्वशक्तिशाली हैं और उनकी शक्तियों को होगा और मैं बच्चों से नाराज न होऊंगा कोई भी पार नही कर सकता। और उन्हें इस प्रकार से सुधारने का प्रयत्न करुंगा जिससे वे सुधर जाएं। इसके विपरीत हमें ये बात समझनी चाहिए कि ज्यों-ज्यों यदि आप अपने बच्चों के प्रति कठोर होंगे बच्चे बढ़ते हैं उनके अन्दर श्री गणेश भी तो वे प्रतिक्रिया कर सकते हैं और भटक बढ़ते हैं। परन्तु मनुष्य होने के कारण किसी सकते हैं । आप यदि उन पर बहुत अधिक न किसी प्रकार से वे श्री गणेश को अभिभूत बन्धन लगाएंगे तो वो भी उसी प्रकार से (Over Power) करने का प्रयत्न करते हैं व्यवहार करेंगे। इसलिए सहजयोगी माता-पिताओं का ये कर्तव्य है कि निर्लिप्त भाव से अपने बच्चों की इस प्रकार देखभाल करें कि उनमें श्री सिखाएं-जैसे श्रीगणेश अपनी माँ का सम्मान गणेश स्थापित हो जाएं। बच्चे में उसका करते है वैसे ही तुम अपनी माँ का सम्मान विवेक श्रीगणेश की पहली पहचान है। बच्चा करो। अपनी माँ का अर्थ है आपकी परमेश्वरी यदि विवेकशील नहीं है, कष्टकर है, यदि माँ, आपकी अपनी माँ। अतः अपने बच्चों को एक चीज़ अवश्य ये बहुत महत्वपूर्ण वह व्यवहार करना नहीं जानता, तो इससे है। पिता यदि बच्चों को माँ का सम्मान प्रकट होता है कि वह श्रीगणेश पर आक्रमण करना न सिखाए तो बच्चा कभी ठीक नहीं कर रहा है। और आजकल, इस आधुनिक हो सकता क्योंकि इस बात में कोई सन्देह युग में, बच्चों पर निरन्तर आक्रमण हो रहा नहीं है कि अधिकार (Authority) पिता का है। लोगों के लिए यह निर्णय कर पाना हक है, परन्तु माँ का सम्मान होना आवश्यक अत्यन्त कठिन हो गया है कि किस सीमा है। माँ को भी चाहिए कि पिता का सम्मान तक बच्चों के साथ समझाएं और किस करे वर्तमान स्थिति में यदि माता-पिता परस्पर झगड़ने लगे, एक दूसरे से उचित व्यवहार न करें तो इसका कुप्रभाव बच्चे के आज का भाषण इसी चीज़ पर होगा कि गणेश तत्व पर पड़ेगा सहजयोग में ये बच्चों के श्रीगणेश तत्व के मामलों में किस बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि परमात्मा की कृपा सीमा तक न जाएं। सीमा तक हमें जाना है। यह अत्यन्त से आप सबको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो महत्वपूर्ण है क्योंकि श्री गणेश ही विवेक के चुका है अतः आपको इस बात की समझ दाता हैं। अतः माता-पिता को यह बात होनी चाहिए कि अपने बच्चों के साथ किस 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-27.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 26 सीमा तक जाना है। उन्हें विवेकशील, हो जाता है। यहाँ तक कि मृत-सम प्रतीत चरित्रवान और धर्मपरायण बनाने के लिए होने वाली पृथ्वी माँ को भी जागृत किया पहली आवश्यकता उनके विवेक को बनाए जा सकता है। आप सहजयोगी यदि पृथ्वी रखने की है। वे यदि कोई विवेकपूर्ण बात पर नंगे पाँव चलें तो यह चैतन्यित हो कहें तो आपको चाहिए कि उसकी सराहना जाती है। तब इस पृथ्वी का प्रभाव घास करें। परन्तु यह बात उन्हें उचित समय पर पर, पेड़ों पर, फूलों पर देखा जा सकता और सम्मान पूर्वक कहनी चाहिए। अतः है। सहजयोगी मुझे बताते रहे हैं कि अपने उनका अभद्र व्यवहार भी सहन नहीं किया आश्रमों में जो फूल वो उगाते हैं उनके जाना चाहिए। अर्थात जो भी प्रकाश उनमें आकार बहुत बड़े होते हैं और वो बहुत है जो भी विवेक उनमें है, प्रकाश की तरह सुगन्धमय होते हैं। लन्दन तथा इंग्लैण्ड के से उसकी अभिव्यक्ति बाहर होनी चाहिए। डेजी पुष्पों में कभी सुगन्ध न हुआ करती थी, इनका आकार भी बहुत छोटा होता अब हम आगे चलकर यह देखते हैं कि था। अब वहाँ पर ये पुष्प बहुत बड़े आकार कहाँ तक श्री गणेश कार्य करते हैं । जैसा के तथा सुगन्धी से परिपूर्ण हो गए हैं। ये मैंने कहा, कण-कण में श्री गणेश विद्यमान चमत्कार है। पहली बार जब मैंने किसी को हैं परन्तु आपको उन्हें जागृत करना होगा। बताया कि डेज़़ी पुष्प अत्यन्त सुगन्धमय हैं उदाहरण के रूप में आपने चैतन्यित जल तो उसे विश्वास न हुआ, परन्तु पुष्प की देखा है। चैतन्यित का अर्थ क्या है? चैतन्यित सुगन्धी को महसूस करके वे हैरान हो का अर्थ है कि जल में गणेश तत्व को गए। जागृत किया जा रहा है। ये जल जब आपके पेट में जाता है, ऑँखों में जाता है व इसी प्रकार गणेश तत्व जागृत होकर या कहीं अन्य आप इसे डालते हैं तो यह चीज़ों को समझता है, इनका आयोजन कार्य करता है। जिस चीज़ में आप इसे करता है. इन्हें कार्यान्वित करता है परन्तु डालते हैं वहाँ ये गणेश तत्व को जागृत गणेश तत्व यदि सुप्त हो, जागृत न हुआ करता है। आपने देखा है कि कृषि के हो तो यह कार्य नहीं करता। जागृत होकर क्षेत्र में चैतन्यित जल से चमत्कार हुए हैं यह कार्य करता है, कार्यान्वित करता है। कृषि में इन चमत्कारों को देखकर लोग जैसे एक छोटा सा बीज जब अंकुरित आश्चर्यचकित रह गए। परन्तु यह अत्यन्त होता है तो इसकी नोक पर विद्यमान छोटे साधारण बात है। एक बार जब आप बीज से कोषाणु में गणेश तत्व होता है जो में गणेश तत्व को जागृत करते हैं तो यह जागृत हो रहा होता है। ये जानता है कि दस-गुना, कभी-कभी सौ गुना शक्तिशाली पृथ्वी में किस प्रकार घूमना है, किस प्रकार श्रीक 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-28.txt मई-जून 2002 27 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 फैलना है और किस प्रकार जल के स्रोत आज्ञा चक्र की स्थिति बिगड़ी हुई होती है । तक पहुँचना है इसमें इस बात का विवेक ऐसी परिस्थितियों में गणेश तत्व भी प्रभावित होता है कि जीवित रहने और पोषण प्राप्त हो सकता है। आप यदि बहुत अधिक भौतिक वादी हैं, हर समय भौतिक पदार्थों के लिए भौतिक स्तर पर किस प्रकार वृक्ष को बढ़ने चिन्तित रहते हैं, हर समय घर की चीजों की आज्ञा देनी है। ये गणेश तत्व आज्ञा के विषय में चिन्तित रहते उनकी चक्र के स्तर पर आकर सूक्ष्मातिसूक्ष्म हो देखभाल करते रहते हैं, तब भी यह गणेश जाता है। आज्ञा चक्र पर ये जान जाता है तत्व बिगड़ सकता है । क्योंकि हर समय सका आध्यात्मिक आयाम आप इन्हीं चीजों के विषय में चिन्तित रहते (Dimension) है। जड़ के सिरे पर कार्य हैं जैसे दुकानों पर जा-जाकर आप देखते करने वाला छोटा सा गणेश तत्व का कोषाणु रहते हैं कि वहाँ पर क्या है और मुझे क्या अब आध्यात्मिकता के लिए गतिशील हो खरीदना चाहिए। आप यदि ऐसा ही करते उठता है। यही कारण है कि ध्यान करते रहेंगे तो गणेश तत्व प्रभावित रहेगा। परन्तु हुए लोग अपनी आँखें मुँद लेते हैं. अब वे यदि सौन्दर्य के लिए आप कोई चीज खरीदते किसी अन्य चीज को देखना नहीं चाहते। है, अपने घर को सजाने के लिए आप कोई उनकी इच्छा होती है कि कुण्डलिनी की चीज़ खरीदते हैं तो इसका अर्थ है अन्य ध्यान प्रक्रिया में केवल श्री गणेश ही कार्य लोगों को प्रसन्न करने के लिए आप यह कार्य कर रहे हैं। जब आप अन्य लोगों को करने के लिए किस सीमा तक जाना है। हुए कि अब करें। ध्यान के समय जब हम ऑँखें बन्द करते हैं तो ध्यान की ये शैली क्रियाशील प्रसन्न करना चाहते हैं तब यह दूसरी प्रकार होती है । नींद में स्वप्न लेते हुए किसी कार्य करता है। आपके उत्थान की गति व्यक्ति को यदि हम देखें तो हम पाएंगो कि की बढ़ाता है। ऐसा केवल तभी होता है जब आप अन्य लोगों को आनन्द देने के हर समय उसकी आँखें हिलती डुलती रहती लिए अपनी खरीदी हुई चीजों के सौन्दर्य हैं। आपके चित्त से अब यह गणेश तत्व को अन्य लोगों से बाँटने के लिए ऐसा गतिशील हो उठा है। अब भी यदि आपका चित्त सदैव एक चीज़ से दूसरी चीज़ पर, के लिए कुछ खरीद रहे हैं-मैंने हाल ही में एक स्थान से दूसरे स्थान पर भागता है तो यह प्रभावित है। विशेषरूप से यदि हम हर चीजें खरीदते हैं. उन्हें प्रसन्न करने के समय किसी पुरुष या स्त्री को ही ताकते लिए नहीं - यदि वे इस लक्ष्य से चीजें रहते हैं तब भी हमारा गणेश तत्व अशान्त खरीदते हैं तो भी गणेश तत्व विक्षुब्ध हो हो उठता है। ऐसे लोगों की कुण्डलिनी जाता है । अपने घर को सुन्दर बनाने के उठाना बहुत कठिन होता है क्योंकि उनके लिए आपको चीजें खरीदनी चाहिएं ताकि करते हैं। मान लो आप किसी को जलाने है कि लोग दूसरों को जलाने के लिए सुना 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-29.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व ৪ मई-जून 2002 28 कोई आगन्तुक यदि आपके घर में आए तो क्रियाशील होते हैं वही सुखकर होती हैं । कहे कि हमने कितनी सुन्दर चीजें देखी! वही व्यक्ति को शान्ति प्रदान कर सकती हैं। ऐसी ही कृतियाँ आपको प्रसन्नता प्रदान वस्तुओं से या पदार्थों से मोह नहीं होना करती हैं और इन्हीं की सराहना होनी चाहिए। चित्त इस बात पर होना चाहिए चाहिए। अतः श्रीगणेश आपके अन्दर उच्च कि उन्हें देखकर लोगों को कैसा लगता मूल्यों की स्थापना करते हैं और व्यक्ति के है। किस प्रकार की शान्ति और उन्हें अन्दर की अधमता, जो अधमता का आनन्द मिलता है। सौन्दर्य रूपी अपने श्रीगणेश लेती हैं, कम हो जाती है। कभी-कभी तो को वो देख सकते हैं । सुख श्रीगणेश इस अधमता को पूर्ण रूपेण नष्ट कर देते हैं। तिड यह भावना जब व्यक्ति में आ जाए तब मैं आपको मोनालिसा का उदाहरण दूंगी। हमें कहना चाहिए कि गणेश तत्व जागृत है ये भावना मातृत्व-भाव-सम होती है मोनालिसा को यदि आप देखें, मैं सोचती जिस प्रकार माँ अपने बच्चे को मधुर चीजें कि वे अभिनेत्री नहीं हैं और न ही सौन्दर्य देना चाहती है इसी प्रकार आपमें भी वात्सल्य प्रतियोगी (Beauty Contestant)। उनका है। इसे मातृत्व-भाव कहते हैं। आपमें यह मुख अत्यन्त सौम्य है. अत्यन्त मातृत्वपूर्ण, भावना होनी चाहिए कि लोग मेरे घर आएं अत्यन्त पावन। कारण ये है कि उसमें हैं तो उन्हें अत्यन्त प्रसन्न एवं आनन्दमय गणेश तत्व है. वे माँ हैं। इसकी कहानी होना चाहिए। इस प्रकार से आप महान इस प्रकार है कि इस महिला का बच्चा खो गणेश तत्व को सन्तुष्ट करते हैं। कलाकारों गया था जिसके कारण ये न कभी मुस्करा पर आपकी दृष्टि पड़ती है। कलाकार सकी न रुदन कर सकी। एक बार जब सृजनात्मक हैं। स्वाधिष्ठान के माध्यम से एक छोटा बच्चा इनके पास लाया गया पदार्थों में से वे सुन्दर चीज़ों का सृजन और उस बच्चे को इन्होंने देखा तो इनके करते हैं परन्तु स्वाधिष्ठान पर यदि श्रीगणेश मुख पर बच्चे के प्रति प्रेम की जो मुस्कान जागृत न होंगे तो बनाई गई वस्तुएं सुन्दर उभरी, उसी मुस्कार का चित्रण इस महान न होंगी आजकल आप देखते हैं कि कलाकार ने किया है यही कारण है कि कलाकार अत्यन्त विकृत और चरित्रहीन लोग निरन्तर इसकी प्रशंसा करते हैं चीज़ों का सृजन कर रहे हैं। इन कृतियों का कोई शाश्वत मूल्य नहीं होता। लोग आज इन्हें खरीदते हैं और कल इन्हें फैंक चित्र की प्रशंसा करते हैं यद्यपि माँ बच्चे के देते हैं। जिन कृतियों में सूक्ष्म गणेश- तत्व सम्बन्धों में उनकी कोई विशेष दिलचस्पी पश्चिमी देशों के लोग भी मोनालिसा के ১c 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-30.txt मई-जून 2002 29 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 नहीं है। कहीं भी आप चले जाइए माँ बच्चे सबसे अधिक आनन्ददायी सिद्धान्त है-बच्चों का विषय ही सर्वोत्तम है। फोटो दिखाऊंगी। यह माँ बच्चे का है, ईसा संगति का आनन्द लेना। क्यों? क्योंकि मसीह की माँ और उनके बच्चे का। ईसा-मसीह के जन्म के समय माँ वहाँ माधुर्य आपके हृदय में उतर जाता है। थीं माँ- बच्चे का सिद्धान्त उन्हें अपनाना तुरन्त चेहरा खिल उठता है मैंने आपको ही था। इसके बिना वह चित्र महान नहीं बताया था कि मैंने मगरमच्छ को अपने माना जाता, या आपको वास्तव में ईसामसीह अण्डे तोड़ते हुए देखा है। काश, कि उस को लेना पड़ता, जो कि स्वयं श्री गणेश समय आपने उस मगरमच्छ की आँखों को तत्व हैं। इसमें कोई संशय नहीं है । छाम मैंने उन दिनों में बनी ऐसी कोई अन्य तस्वीर नहीं देखी हैं जिनमें ये सिद्धान्त न मैं आपको एक को देखना, उनके साथ खेलना, उनकी जब आप बच्चे को देखते हैं तो उसका माे देखा होता कितनी सावधानीपूर्वक वह अपने अण्डों को तोड़ रही थी उसकी आँखें अत्यन्त सुन्दर थीं, प्रेम उन ऑँखों से फूट पड़ रहा था। आप विश्वास ही नहीं कर अपनाए गए हों। पिकासो ने भी इस सिद्धान्त सकते कि ये उसी मगरमच्छ की आँखें हैं। का उपयोग किया है। जो लोग अत्यन्त इतने आराम से बह अपने मुँह से उन आधुनिक हैं उन्हें भी लोकप्रिय होने के अण्डों को तोड़ रही थी और उनसे छोटे-छोटे लिए इस तत्व का उपयोग करना पड़ा। मगरमच्छ बाहर निकल रहे थे। उन बच्चों परन्तु लोकप्रिय होने के लिए कुछ लोगों ने को किनारे पर लाकर उन्हें अपने मुँह में श्री गणेश विरोधी सिद्धान्त का भी उपयोग डालकर अत्यन्त सावधानी पूर्वक वह मादा किया। ऐसी सारी चीजें हो गई हैं और मैं मगरमच्छ उन्हें धो रही थी आप हैरान देखती हूं कि शनैः शनैः ऐसा सब कुछ होंगे कि अपने मुँह का उपयोग वह स्नानागृह पतन के गर्त में जा रहा है। यद्यपि लोगों की तरह से कर रही थी! के चरित्र का पतन हो चुका है फिर भी वे रैमब्रेन्ट को पसन्द करते हैं और लियानार्डो को पाना चाहते हैं। वो ऐसे कलाकारों की अपने बच्चों पर कार्य करते हैं। परन्तु जब कलाकृतियाँ प्राप्त करना चाहते हैं जिनमें आप तथाकथित आधुनिक बन जाते हैं तब माँ-बच्चे का चित्रण किया गया हो। ये तुम्हारी गतिविधियाँ बड़ी अजीब होती हैं। आश्चर्य की बात है। इस बार जब मैं ऐसे भी लोग हैं जो अपने बच्चों की हत्या आस्ट्रिया गई तो मैंने कहा कि हमारे पास बहुत सुन्दर माँ और बच्चा है। तो ये सिद्धान्त मेरा कहने का अभिप्राय ये है कि ऐसे लोग अत्यन्त आनन्ददायी है। मानव के लिए यह राक्षसों से भी बदतर हैं। राक्षसों ने भी ऐसे आपको देखना चाहिए कि पशु किस प्रकार कर देते हैं, अपने बच्चों को गाली देते हैं । 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-31.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 30 गणेश तत्व के सूक्ष्म पक्ष को यदि हम देखें तो इसकी अभिव्यक्ति हमारी आँखों में होती है। मैं जब किसी चीज को देखती हूँ तो आनन्ददायी पदार्थ के रूप में इसे देखती हूँ, केवल आनन्दायी चीज़ के रूप में कोई चीज़ यदि मैं खरीदती हूँ तो मेरे मन में ये कार्य नहीं किए होंगें, पिशाचों ने भी नहीं किए होंगे। गण हैरान हैं कि किस प्रकार के जीव पैदा हो गए हैं, ये कहाँ से आ गए हैं? इनमें अपने बच्चों के लिए भी प्रेम नहीं है, ये अपने बच्चों की हत्या कर सकते हैं उनके हाथ तोड़ सकते हैं! अतः अपने बच्चे के प्रति आपका प्रेम अत्यन्त आवश्यक है। परन्तु भावना होती है कि फलां व्यक्ति के लिए मैं सहजयोगी होने के नाते हमारा प्रेम केवल ये चीज़ खरीदूं, उसे अच्छी लगेगी । मैं अपने बच्चों तक ही सीमित नहीं होना चाहिए। जानती हूँ कि किसको क्या अच्छा लगता दूसरी बात ये है कि हमें अपने प्रेम को है। इसलिए मैं उसके लिए वही चीज़ सीमाबद्ध करना चाहिए और ये सीमा खरीदती हूँ। परिवार के लिए कुछ खरीदते है-हितैषिता। क्या ये मेरे बच्चे के हित में हुए भी मैं इसी प्रकार सोचती हूँ। मैंने अभी होगा, क्या मैं अपने बच्चे को बिगाड़ रहा हूँ, एक घर बनाया है जिसमें मैं ये सारी चीजें, क्या मैं अपने बच्चे को बहुत ज्यादा प्रोत्साहन आपके दिए हुए सारे उपहार अजायबघर दे रहा हूँ, क्या मैं अपने बच्चे के हाथों खेल की तरह से रखूंगी। सभी ग्रामीणों से मैं रहा हूँ, या मैं अपने बच्चे को ठीक से चला कहूंगी कि आकर उस अजायबघर को देखें। रहा हूँ? शैशवकाल में माता-पिता को ही उन्होंने कभी इस तरह की चीजें नहीं देखी अपने बच्चों को चलाना होता है। उन्हें बच्चों हैं और न ही वे स्विटज़रलैण्ड और इंग्लैण्ड को प्रशिक्षित करना होता और बच्चों को भी की यात्रा कर सकते हैं। इसलिए मैं ये घर आज्ञाकारी बनकर उनकी बात को सुनना इस प्रकार से बना रही हूँ कि ग्रामीण लोग, चाहिए। परन्तु आजकल बच्चे आज्ञाकारी जिन्होंने इतनी सुन्दर चीजें पहले कभी नहीं हैं क्योंकि वो जानते हैं कि माता-पिता नहीं देखीं, आकर इन्हें देख सकें। ही परस्पर आज्ञाकारी नहीं है। पूरा समाज भारत में आम लोगों के मन में ईर्ष्या नहीं होती ईष्या की भावना तो नए ही इस तरह का बन गया है कि बच्चे माता-पिता को परेशान करते रहते हैं और वो ऐसे ही बन जाते हैं। परन्तु कोई बात भौतिकतावादी लोगों में उत्पन्न हो गई है। नहीं, आप लोग सहजयोगी हैं आपने अपने अन्यथा वो हमेशा यही कहते हैं कि कितनी बच्चों का इस प्रकार पोषण करना है कि वो अच्छी चीज़ है! कितनी सुन्दर है! जैसे आज्ञाकारी हों, विवेकशील, संवेदनशील हों। उस दिन आप लोग पुणे में सहजयोग के उन्हें वैसा ही प्रेम दें जैसे मगरमच्छ अपने भजन गा रहे थे। वास्तव में आप लोगों ने बच्चों को देता है। भारतीय संगीत पर बहुत अच्छी पकड़ बना চ F a 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-32.txt मई-जून 2002 31 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 ली है । जब आप लोग गा रहे थे तो वहाँ हमारे पास है शायद वीडियों नहीं है। आप पर कुशल संगीतज्ञ भी बैठे हुए थे। वो सभी इसे लें और देखें कि किस प्रकार मेरे नाट्य कला में भी सिद्धहस्त थे तथा भारत बच्चों की सराहना की गई और किस प्रकार के सुप्रसिद्ध कलाकार थे उन्होंने मुझसे उन्होंने संगीत गाया सभी सुप्रसिद्ध प्रार्थना की कि श्री माताजी हम आपका संगीतकार बैठकर इस प्रकार उनकी जन्मदिवस मनाना चाहते हैं। मैंने कहा. "ये सराहना कर रहे थे मानो संगीत गायन बहुत कठिन बात है क्योंकि वह स्थान करते हुए छोटे-छोटे बच्चों की सराहना बहुत दूर है। नहीं, नहीं हम आ जाएंगे । पूरी रात और पूरा दिन उन्होंने सफर किया और प्रातः पाँच बजे वो पहुँचे। तीन या चार बजे प्रातः अपना नाटक समाप्त करके मधुर आवाज से मातृत्व का सुख मिलता पूरा दिन उन्होंने यात्रा की और बैलगाँव से है। आप देखें कि ये बच्चे कितना मधुर गा लगभग पाँच बजे पहुँचे। छः साढ़े छ: बजे रहे हैं। सुप्रसिद्ध कलाकार भी जब आप उनका कार्यक्रम था, वो तैयार हुए और लोगों को इसी प्रकार गाते हुए देखते हैं तो शानदार मंच संचालन किया उन्होंने कहा उन्हें भी इसी आनन्द का एहसास होता है कि हम लज्जित हैं हम सोचा करते थे कि कि किस प्रकार ये बच्चे, ये लोग इतना हम महाराष्ट्रियन लोग संगीत और तालों में अच्छा गा सकते हैं! किस प्रकार उन्हें अत्यन्त कुशल हैं, परन्तु जिस प्रकार से इतना ज्ञान प्राप्त हुआ! उस प्रशंसा ने, उस इन विदेशी कलाकारों ने हमारा संगीत गान मधुर भावना ने अत्यन्त सुन्दर वातावरण किया है हमें लज्जा आ रही है। इतनी की सृष्टि की महान कलाकारों ने भी ये अच्छी तरह से हम भी नहीं गा सकते। नहीं कहा कि "ये क्या संगीत है? कुछ भी यद्यपि हम उनका संगीत नहीं गा सकते नहीं है।" उन लोगों ने भी इस बात की परन्तु उन्होंने हमारे भजन गाए हम सबको सराहना की कि भारतीय संगीत का इन बहुत लज्जा तथा उलझन हुई कि किस लोगों को बिल्कुल ज्ञान न था फिर भी ये प्रकार उन्होंने इतना अच्छा गाया! उनकी इतना अच्छा गा रहे हैं। उस सराहना में इतनी सराहना हुई कि मुझे भी उलझन मातृत्व, पितृत्व और वात्सल्य भाव था जिसने हुई। लोगों ने कहा, कि ये कैसे हो गया स्थिति को अत्यन्त सुन्दर बना दिया| है? उनके गुरु ने क्या कर दिया है? ऐसा कौन सा जादू कर दिया है कि ये इतना अच्छा गा रहे हैं। सराहना ने सब पर जादू मैनुहिन के साथ बजाना पड़े तो उनके कर दिया। मेरे ख्याल से उसका ऑडियोटेप सम्मुख वह एक बच्चा है परन्तु मैने देखा कर रहे हों। ड वास्तव में बात ये थी कि वात्सल्यपूर्ण टी रवि-शंकर जैसे व्यक्ति को यदि यहूदी 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-33.txt वैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 32 है कि रविशंकर उसकी देखभाल करते हैं, यदि आधुनिकता के नज़रिए से देखें तो उसे संभालते हैं, हर समय वे उसकी देखभाल लोग कहते हैं कि इनका व्यक्तित्व उभरने करते हैं और उसका संचालन करते हैं। दो, इन्हें स्वतन्त्र होने दो। इसलिए माता- संगीत में हमने ये भी देखा है कि पिता अपने बच्चों की देखभाल उस प्रकार तबला-वादक जब किसी बड़े संगीतकार से नहीं करते जिस प्रकार से उन्हें करनी के सम्मुख बैठता है तो उससे प्रार्थना करता चाहिए, कि ये मेरा बेटा है और मुझमें है कि मुझे संभालना, हमेशा अपने अन्दर प्रतिभा है यह प्रतिभा मुझे उसमें भी जागृत करनी होगी ताकि वह उन्नत हो सके। वात्सल्य की भावना लिए हुए! इसी पुत्र के माध्यम से मेरा अस्तित्व शाश्वत् जीवन में भी परस्पर मधुर सम्बन्ध बनाए बना रह सकेगा। अतः व्यक्तिगत अस्तित्व रखने के लिए ये चीजें आवश्यक हैं। जो की ये भावना कि घर से चले जाओ, जो लोग हमारे से छोटे हैं, जो सुस्थापित नहीं चाहे करो, अपने पैरों पर खड़े होओ, ठीक हैं, जो बहुत प्रतिभावान नहीं हैं या जिन्हें नहीं है जीवन एक निरन्तर प्रक्रिया है, सहजयोग का अच्छा ज्ञान नहीं है। तथा यह केवल अपने टॉँगों पर खड़ा होना ही जो सहजयोग में नए हैं, हमें पिता या माता नहीं है । व्यक्ति को हर समय पूर्ण से जुड़े रूप से उनकी देखभाल करनी चाहिए। वे रहना है जब तक आप पूर्ण से जुड़े लोग अभी कुशल नहीं है। हमारे अन्दर नहीं रहते आप अबोधिता की सामूहिकता गणेश तत्व है, हमें चाहिए कि उनके गणेश (Collectivity of Innocence) को नहीं तत्व को भी उत्साहित करें। आत्मतत्व या समझ सकते। उच्च अवस्था को प्राप्त करने के लिए वे हम पर निर्भर हो सकें| नि्ड गुरु तत्व पूर्णतः गणेश तत्व से बँधा किसी का बच्चा, किसी अन्य व्यक्ति की है। गुरु हे अबोधिता की सामूहिकता को देखकर कई बार मुझे बहुत प्रसन्नता होती है कि में यदि गणेश तत्व नहीं होगा गोद में अत्यन्त प्रेम से बैठा होता है. मानो तो वह अत्यन्त भयंकर हो उठेगा और फिर वह उसका अपना पिता हो । बच्चे का आकर कोई भी उसके साथ न रहना चाहेगा आपकी गोदी में बैठ जाना, बिना यह जाने लोग उससे दूर दौड़ जाएंगे। सच्चा गुरु कि ये मेरा पिता नहीं है! परन्तु इस बात यद्यपि अपने शिष्यों को दण्डित करता है, की चेतना उसे नहीं होती। यह चेतना मेरे उन पर क्रोधित होता है परन्तु मूलतः वह और मेरे अपने की भावना को फैलाती है सोचता है ये मेरी सन्तान हैं और मैं इन्हें कि यह मेरा है, यह तेरा है और यह आपको विकसित कर रहा हूँ, बना रहा हूँ। परन्तु एक एहसास प्रदान करती है कि अब हम 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-34.txt मई-जून 2002 33 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 5 माध्यम हैं, यंत्र हैं, गणेश तत्व को अभिव्यक्त क्रूर नहीं होना कोई ऐसा कार्य नहीं करना करने का साधन हैं। गणेश तत्व अर्थात जिससे अन्य लोगों का अपमान हो, ताकि चैतन्य को अभिव्यक्त करने का। आपके मधुर सम्बन्ध बने रहें। अतः चैतन्य लहरियाँ, जिनके विषय में अतः परमात्मा और आपके बीच सम्बन्ध आप हमेशा पूछते रहते हैं, श्रीगणेश या गणेश तत्व के माध्यम से ही होते हैं। जब ओंकार के अतिरिक्त कुछ भी नहीं और आपका सम्बन्ध परमात्मा से बन जाता है जब स्थिति ऐसी होती है तो केवल वात्सल्य तो चैतन्य-लहरियों बहती हैं और तब वही की भावना रह जाती है। माँ और बच्चे के सम्बन्ध आपके द्वारा किए गए हर कार्य में बीच प्रेम की भावना, यही भावना चैतन्य - फैल जाता है। आपको देखना चाहिए कि लहरियाँ है । माँ और बच्चे के बीच की दूरी ही चैतन्य-लहरियाँ हैं। व्यक्ति को यही चैतन्य-लहरियाँ हों । केवल वही चीजें अच्छी होती हैं जिनमें महसूस करना है कि वह अभी तक बच्चा है और माँ भी हैं जो बच्चे का पोषण कर रही हैं, उसे सारी शक्तियाँ दे रही हैं, प्रेम के विषय में कुछ महत्वपूर्ण बातें बताऊंगी। कर रही हैं। बच्चे की सीमाओं को देखते ये सर्वव्यापक शक्ति चैतन्य लहरियों के हुए उसकी देखभाल कर रही हैं। बच्चे का अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। परम चैतन्य- सारा माधुर्य और उसके विवेक को समझा चैतन्य लहरियों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं जाना चाहिए। यही चैतन्य- लहरियाँ हैं। है इसमें सारी पहचान, सभी सम्बन्ध समाप्त इसके सूक्ष्म-पक्ष को यदि आप देखें तो हो जाते हैं। माता-पिता के सम्बन्ध सभी आपको पता चलेगा कि यह केवल मेरा समाप्त हो जाते हैं, कुछ भी नहीं रहता, बच्चा ही नहीं है, यह सीमा बद्ध नहीं है केवल चैतन्य लहरियाँ, केवल सूक्ष्म वात्सल्य क्योंकि यह शाश्वत् है, सर्वत्र है। आप इस रह जाता है। केवल चैतन्य लहरियों से ही पर अधिकार नहीं कर सकते। पश्चिमी हर चीज का उद्गम है और यह अपने देशों के लोग जिस प्रकार चीज़ों को लेते हैं आपमें ही समाई हुई है। जैसे हम कह उनसे हम भारतीयों को बहुत कुछ सीखना सकते हैं कि सूर्य की किरणे निकलती हैं. है। हमें स्वीकार करना है कि सुन्दर चीज़ों क्लोरोफिल बनाने का प्रयत्न करती हैं। को संभालने के कौन से तरीके हैं, किस परन्तु आप सूर्य का मुकाबला उससे नहीं प्रकार सुन्दर तत्वों की देखभाल करनी है कर सकते या हम कह सकते हैं कि सागर और किस प्रकार सुन्दर सम्बन्धों का से मेघ निकलते हैं और पृथ्वी माँ का पोषण प्रबन्धन करना है आपको कठोर नहीं होना, करते हैं । उनकी भी तुलना नहीं की जा पत आज मैं आपको इस सर्वव्यापक शक्ति 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-35.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 34 सकती। हर चीज़ परम-चैतन्य में निहित रही हूँ। इसके बाद हम जल को देखते है। हैं, झील के अन्दर हम जल को देखते हैं। जल वहाँ है और सूर्य के कारण हम पल अतः हम कह सकते हैं कि ज्ञान के जल को देख सकते हैं। तत्पश्चात् मान लो अतिरिक्त कुछ नहीं, सत्य के अतिरिक्त हम मृगतृष्णा को देखते हैं और मान लेते कुछ भी नहीं, प्रकाश के अतिरिक्त कुछ भी हैं यह जल है और इसके पीछे दौड़ते नहीं। परन्तु जब इसकी तहें (Folds) है । परन्तु ये सभी कुछ सूर्य का खेल है. निकलते हैं और इस चैतन्य की तहों में हम चाहे ये मृगतृष्णा हो, चाहे ये जल हो, या ये फँस जाते हैं तब अज्ञान में फँस जाते हैं। सूर्य हो। परन्तु अज्ञान नाम की कोई चीज़ नहीं है. इसका कोई अस्तित्व ही नहीं है जैसे अंधेरा है तो इसका कारण है प्रकाश नहीं करता है और हम अपनी चेतना में खो है। प्रकाश के आते ही अंधेरा समाप्त हो जाते है कि हम परम-चैतन्य हैं। इस प्रकार जाता है, इसका कोई अस्तित्व ही नहीं ि हि व इसी प्रकार से ये परम-चैतन्य कार्य खेल शुरु होता है। रहता। अंतः अज्ञानता का कोई अस्तित्व नहीं है। परन्तु लोग इस सागर की लहरों में फँसकर खो जाते हैं। इस प्रकार हम वहाँ बैठे हुए थे और वर्षा होने लगी ये एक चीज़ को भली-भांति समझ लेते हैं कि हम परम चैतन्य है, परम-चैतन्य से कर सकती हूँ वर्षा हुई। कुछ लोग स्वयं बने हैं, हर समय परम-चैतन्य से घिरे कुछ हैं। परन्तु कभी-कभी हम इसकी तहों ही देर बाद वर्षा पूजा के स्थान से हटकर (Folds) में खो जाते हैं, क्यों? क्यों पीछे की ओर चली गई। जहाँ हम बैठे हुए हम इन तहों में खो जाते हैं? अपनी थे वहाँ वर्षा न हो रही थी तत्पश्चात् ऐसा अचेतनता के कारण चेतनता का जैसे कल की पूजा से पहले दिन हम साबित करने के लिए कि मैं वर्षा को नियंत्रित को ढक रहे थे। मैंने बन्धन दिया और हुए हुआ कि घने बादलों के बीच से सूर्य निकला आना आवश्यक है कि हम परम-चैतन्य और चारों तरफ घूप छा गई इसी प्रकार के ही अंग-प्रत्यंग हैं। इस सारी प्रक्रिया से आपको परम-चैतन्य की शक्तियों के को चिद्विलास कहते हैं। ये विलास प्रति चेतन होना होगा । हैं। परमात्मा के चित्त का लीलामय आनन्द लेना। अब आप पूछेंगे ये कैसे हो सकता है? उदाहरण के रूप में हम सूर्य गतिशील करते हैं। मान लो के आप समुद्र को देखते हैं। मैं इसी की एक उपमा दे में है और हर समय समुद्र आपको प्रभावित जब आप बन्धन देते हैं तो चैतन्य को 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-36.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व ৪ मई-जून 2002 35 करता रहता है। समुद्र के अन्दर आप विवेकशील हैं। विवेक के अतिरिक्त वे गतिशील नहीं हो सकते। जल से आप ये भी नहीं हैं। वे विवेक के दाता हैं। यही नहीं कह सकते कि ऐसा करो, वैसा करो। कारण है कि वे असूर विनाशक हैं। हमारी कुछ हिम परन्तु आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के रूप चेतना को उन्नत करके वही हमारे सभी में आपको शक्ति प्राप्त हो जाती है। कष्टों को दूर करते हैं। ये सत्य है कि अब आप जल से कह सकते हैं कि कष्ट नहीं रह सकते क्योंकि आप ठीक है लुप्त हो जाओ। ऐसा करो, बन्धन देते हैं और यह कार्य करता है। वैसा करो, परन्तु यह स्थिति प्राप्त करने के लिए आपको स्वामित्व प्राप्त करना होगा स्वामित्व प्राप्त करने के लिए जैसे के विषय में लिखने को कहा । अब उसका पदार्थ मानव बन जाता है और मानव को कहना है कि लोगों द्वारा भेजे गए चमत्कार पदार्थ पर स्वामित्व हासिल करना होता है. इतने अधिक हैं कि उसका एक बहुत बड़ा तभी आप पदार्थ को नियंत्रित कर सकते हैं ग्रंथ बन गया है ये तो होना ही था परन्तु मैंने किसी व्यक्ति को घटित चमत्कारों तो हम उसी पर वापिस आ जाते हैं। चैतन्य आत्म साक्षात्कार से पूर्व जो चीजें आपको चमत्कार लगती थीं अब वो चमत्कार नहीं सकते हैं, जल को नियंत्रित कर सकते हैं, रहीं। आपके लिए चमत्कार का अर्थ ही सूर्य को नियंत्रित कर सकते हैं, चन्द्रमा को समाप्त हो गया है क्योंकि अब आपमें शक्ति नियंत्रित कर सकते हैं। क्योंकि अब है और आप ये चमत्कार कर सकते हैं। हर चीज पर ये कार्य करता है। आपकी प्रतिभा बात का ज्ञान है कि समन्वय स्थापित हो पर, आपकी सूझ-बूझ पर, आपकी शिक्षा पर तथा सर्वत्र परम चैतन्य कार्य करता है। लहरियों से हम फसल को नियंत्रित कर एकरूपता स्थापित हो गई है। हमें इस चुका है। ता कुछ लड़के थे उन्होंने बताया कि श्री माताजी अतः ये सारा खेल मेरे लिए बहुत सुन्दर हम प्रश्न न हल कर पा रहे थे तो हमने है। मैं इसे देखती हूँ। अब आप सबको भी बन्धन दिए. एकदम से उस समस्या का ये समझना है कि आप आत्म-साक्षात्कारी हल सूझ गया और हमने उस प्रश्न का बन गए हैं और आपके पास भी ये शक्तियाँ उत्तर लिख लिया। सहजयोगियों के साथ हैं। जिन भी मूर्खतापूर्ण चीज़ों में आप फँसे ये सब घटित हो रहा है । हुए थे उन्हें अब आप त्याग दें। इन चीज़ों में फँसे रहने में कोई विवेक नहीं है। अब आप विवेकपूर्ण कार्य करें क्योंकि अब आपके जो आप करते हैं, आपको इस बात का अन्दर श्री गणेश जागृत हैं और वे पूर्णतः ज्ञान होना चाहिए कि परम-चैतन्य कार्य िजा अतः सभी कार्यो में, उन सभी चीजों में 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-37.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 36 करता है केवल आपको अपने विषय में सकते हैं । स्वामिर्व से ये अभिप्राय नहीं है और इसके विषय में चेतन होना आवश्यक कि आप इस पर प्रभुत्व जमा ले, परन्तु आप इसे ऐसे ही कह सकते हैं जैसे जिन्न चेतना में चले जाएं तो परम चैतन्य को कहते हैं। परन्तु कभी-कभी हम कार्य करता है, ये बात आप देख चुके परम-चैतन्य का सम्मान नहीं करते, ये हैं। परन्तु अभी भी बहुत से लोग इस बात भी अत्यन्त आश्चर्य चकित करने वाली बात को नहीं समझे हैं बहुत से लोग है। हर समय जिस प्रकार से हम कार्य यद्यपि अपनी बुद्धि से इस बात को करते है, जिस प्रकार हम व्यवहार करते हैं समझ चुके हैं परन्तु हृदय से वे इस जैसे मेरे सम्मुख बैठकर भी लोग ऑँखें मूँद सत्य को नहीं समझे और कुछ लोग चाहे लेते हैं। वो मेरी साक्षात् की पूजा करने के इसे हृदय से जानते हैं फिर भी अपने चित्त स्थान पर मेरे फोटो की पूजा करने लगते हैं। कभी-कभी जिस प्रकार से वे कुण्डलिनी को चलाते हैं, जिस प्रकार वे अपने से व अतः आपको केवल तीन चीजों में अन्य लोगों से व्यवहार करते हैं, ये आश्चर्य है, ये कार्य करता है। एक बार आप से इसे गतिशील नहीं करते। सुधार लाना है-पहली आपका हृदय, जनक होता है। ये सारी चीजें समझी जानी दूसरी आपका मस्तिष्क तीसरा आपका आवश्यक हैं क्योंकि अब हम परमात्मा के जिगर। अपने इन तीनों अवयवों को साम्राज्य में अर्थात परम चैतन्य में प्रवेश यदि आप सुधार सकें तो परम चैतन्य कर चुके हैं और इस साम्राज्य के हम गतिशील हो उठेगा परन्तु धन आदि महत्वपूर्ण नागरिक हैं । व्यक्ति यदि इस भौतिक पदार्थों पर चित्त को लगाए बात को समझ सके तो, मैं सोचती हूँ कि, रखना व्यर्थ है । परम चैतन्य आपके सहजयोग अत्यन्त सफल होगा | सभी कुछ लिए हर चीज़ की सृष्टि करेगा हो चमत्कारिक रूप से कार्यान्वित होगा, सभी सकता है ये नोटों का सृजन न करे कुछ गतिशील हो उठेगा। जिन लोगों को क्योंकि इसके पास टकसाल नहीं है, इन संभावनाओं का ज्ञान ही नहीं है वे कहाँ परन्तु यह नोटों की संभावना का सृजन पहुँच सकते हैं? उन्हें बाहर फैंक दिया अवश्य करेगा। ये बात भली-भांति समझी जाता है अर्थात अज्ञानता में, अन्धकार में। जानी आवश्यक है और इसका ज्ञान अत्यन्त परन्तु वे भी पुनः प्रकाश में लौट सकते हैं। आनन्ददायी है कि आप परम चैतन्य के प्रति चेतन हैं। और आप इसके स्वामी बन परमात्मा आपको धन्य करें। 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-38.txt ी पतलि औरंगाबाद पूजा भ् छ 19 दिसम्बर, 1989 (परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) ाम |चल मेरे जीवन में औरंगाबाद का ताकि हाथियों की नस्ल ही नष्ट कर दी विशेष महत्व है क्योंकि मेरे पूर्वज यहाँ से जाए। परन्तु श्री विष्णु जी ने बहाँ प्रकट बहुत समीप स्थित पैठन नामक स्थान से होकर मगरमच्छ का वध करके गजेन्द्र की सम्बन्धित थे पैठन का मूल नाम प्रतिष्ठान रक्षा की । वहाँ रहने वाले विशालकाय पशुओं था। महान काव्य रामायण' के सृष्टा ऋषि में से केवल गज ही बचाए जा सके। इसी वाल्मीकि यहीं इसी क्षेत्र में रहा करते थे। लिए इस स्थान को गजेन्द्र मोक्ष' तीर्थ प्रतिष्ठान या पैठन तक जाने वाले, गोदावरी कहा जाता है। के दूसरे किनारे पर शालिवाहन साम्राज्य म वाल्मीकि लोगों को लूटा करते थे। वे मछुआरे थे। एक बार जब नारद वहाँ सीताजी यहीं रहीं। उनका एक पुत्र आये तो वाल्मीकि ने उन्हें भी लूटा। नारद रूस चला गया तथा दूसरा चीन। कुश ने उससे पूछा कि क्यों वह उन्हें लूट रहा चीन गया तथा लव रूस। लव की सन्ताने है? वाल्मीकि ने उत्तर दिया - 'क्योंकि मुझे रूसी लोग स्लाव कहलाते हैं तथा कुश के अपने बच्चों, पत्नी तथा विशाल परिवार का पालन करना है परिवार में अकेला मैं ही कमाने वाला हूँ। तब नारद ने प्रश्न किया इसी क्षेत्र में विशालकाय पशुओं तथा कि 'क्या तुम्हारे बच्चे और परिवार के लोग तेज-तर्रार, बुद्धिमान एवं संवेदनशील जीवों तुम्हारे लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर में विकास के लिए गहन संघर्ष हुआ। देंगे? वाल्मीकि ने कहा "मुझे इसका पूर्ण अधिकतर विशालकाय पशु नष्ट कर दिए विश्वास है।" नारद ने उससे कहा कि तुम गए, नदी में भारी संख्या में मगरमच्छ रह मृतक सम बन जाओ। वाल्मीकि के मृत-सम गए। गज-साम्राट गजेन्द्र एक बार जब शरीर को उठा कर नारद और चार सन्त वहाँ पानी पी रहा था तो एक विशालकाय उसके घर ले गए और उसके परिवार जनों मगरमच्छ ने उस पर आक्रमण कर दिया। को बताया कि उन्हें लूटते हुए वह मारा मगरमच्छ उसे इसलिए मारना चाहता था गया। परन्तु इसे जीवित करने का एक था। चीनी वंशज कुशाण। 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-39.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 38 उपाय है । इसके स्थान पर आपमें किसी महत्वपूर्ण भाग यहाँ घटित हुआ। शालीवाहन ने राजाओं ने वाल्मीकि मन्दिर बनाने में बहुत एक को अपना जीवन देना होगा। नारद सब को समझाने का प्रयत्न किया परन्तु सहायता दी तथा गुरु रूप में वाल्मीकि का समी का कोई न कोई बहाना था। कोई भी बहुत सम्मान किया वास्तव में शालीवाहनों मरना न चाहता था। अन्ततः बाल्मीकि खड़े के गुरु थे। वे नीरा नदी के तट पर रहते हो गए और उन्हें अहसास हुआ कि अब थे। यहीं हमने कुछ भूमि भी खरीदी है । तक वे गलत कार्य कर रहे थे। नारद ने यहाँ के लोग परमात्मा से डरने वाले हैं पाने में असमर्थता जताते हुए नारद ने कहा तथा सन्तों का सम्मान करते हैं। उन्हें उन्हें 'राम' नाम जपने को कहा। राम कह कि मैं केवल 'मरा, मरा' कह सकता हूँ। सच्चे सन्तों का भी ज्ञान है। मुझे आशा है तेजी से 'मरा-मरा कहने पर यह राम - राम कि आप इस बात को समझेंगे कि जब हम बन जाता है। नारद ने कहा कि इससे आत्मा के सुख के विषय में सोचते हैं तो काम नहीं चलेगा अपने पापों के प्रायश्चित पूरा जीवन आत्मा के प्रकाश से मर जाता स्वरूप तुम्हें तपस्या करनी होगी। अत: वह है और हमारा पूरा दृष्टिकोण ही प्रकाश एक पहाड़ पर तपस्या के लिए बैठ गया रजित हो उठता है। केवल इतना ही नहीं, यह पर्वत बाद में वाल्मीकि-पर्वत कहलाया। अपने सदगुणों पर हमें पूर्ण विश्वास हो उसके शरीर को दीमक खा गई, केवल जाता है और हम इनका आनन्द लेने लगते गर्दन बच गई। उसकी तपस्या को देखकर हैं, यद्यपि इस संस्कृति में बहुत अधिक श्री विष्णु वहाँ प्रकट हुए और दीमक के चालाकी या बनावट नहीं है। वे सौ बार प्रकोप से मुक्त कर बाल्मीकि को आत्म- साक्षात्कार प्रदान किया। दीमक को संस्कृत हैं कहते हैं। प्रायः तो वे अपने हाथ भी भाषा में वाल्मी कहते हैं। इसीलिए वे नहीं जोड़ते-विशेष रूप से महिलाएं-और वाल्मीकि कहलाए । 1 'धन्यवाद' नहीं कहते और न ही 'मुझे खेद न ही बार-बार 'नमस्कार' कहते हैं। केवल परमात्मा के सम्मुख वे अपने हाथ जोड़ते हैं। बाद में निष्कासित हो कर सीताजी वहाँ आई। अंतः रामायण का एक अत्यन्त परमात्मा आपको धन्य करें। तचति 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-40.txt श्रीरामपुर में पूजा 21.12.89 (परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) यह बात महत्वहीन है बात नहीं कह रही, ध्यान के गहन आनन्द कि आप मुझे क्या देते हैं। यह भी महत्व को आपने अपने अन्दर स्थापित करना हीन है कि वायदे कितने किए गए। महत्वपूर्ण है जब आपके अन्दर यह आनन्द उमड़ बात तो यह है कि आपने कितने लोगों को पड़ता है, आपको खुशियों से भर देता है आत्मसाक्षात्कार दिया तथा. दूसरे, आप कैसे और आप यह भी नहीं जान पाते कि आप हैं? क्या आपकी उत्क्रान्ति हुई? क्या आप खुश क्यों हैं-बस उस खुशी का आनन्द वास्तव में स्वतन्त्र हो गए हैं? क्या आप उठाते रहते हैं। बन्धनमुक्त हो गए हैं? क्या अहं से छुटकारा इसके अतिरिक्त व्यक्ति को कहना एवं सामूहिक व्यक्तित्व बन गए हैं? अन्त कि मैं वास्तव में सहजयोगी बन गया हूँ। अवलोकन द्वारा अपने अन्दर झांकने का इस अवस्था को आप अन्य लोगों से बाँटना चाहते हैं-इसे अपने तक सीमित नहीं करना चाहते। इसके लिए आप कठिन परिश्रम पाकर आप अत्यन्त विनम्र, सुन्दर, करुणामय प्रश्न अत्यन्त महत्वपूर्ण है। कार यदि ठीक न हो तो हम उसे चला करेंगे तथा हर सम्भव प्रयत्न करेंगे। आपका नहीं सकते। इसी प्रकार बिना आन्तरिक मस्तिष्क सोचेगा कि किस प्रकार इसका स्थिति को ठीक किए आप उत्क्रान्ति नहीं पा प्रचार - प्रसार करूं, किस प्रकार अन्य लोगों सकते। यह वास्तविकता है। अतः हमारा हर को सहजयोग ढूँ? बिना अन्य लोगों को हाल में आनन्दित रहना ही इस बात को इसके विषय में बताए आप खुश न हो दर्शाता है कि हमने कितना कुछ प्राप्त कर सकेंगे अतः पहले आप पूंजीवादी बन जाएं लिया है। प्याला यदि छोटा है तो बहुत कम और बाद में साम्यवादी बनें। आनन्द इसमें भर सकता है, परन्तु यदि यह समुद्र सम विशाल है तो आनन्द की नदियाँ इसमें समा सकती हैं। अतः आनन्द की, आनन्द लिया। दूसरी बात यह कि अब मनोरंजन की नहीं, बाहुल्यता ही मेरा हमारे मस्तिष्क में क्या है। बाहर की ओर अभिप्राय है। मैं उथले-हल्के मनोरंजन की सहजयोग का विस्तार हम किस प्रकार प्रथम बात तो यह है कि हमने कितना পা 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-41.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 5 व 6 मई-जून 2002 40 करने वाले हैं? पहले प्रकाश को सुधरना स्वयं को थोंपना है बस चेतना पा लें, यही होगा तब स्वतः ही यह प्रकाश प्रसारित सुन्दर कार्य व्यक्ति ने करना है। एक अन्य होगा। हमारे परस्पर सम्बन्ध क्या हैं? हमें बात जो मैं आपको बता रही हैूँ, वह अत्यन्त झुंड नहीं बनाने। कुछ लोगों की बहुत महत्वपूर्ण है । भारत में रहते हुए आपको अधिक गर्दन हिलाने की आदत बन गई चाहिए कि बालों में अच्छी तरह कंघी करें, हैं। भजन गाते हुए वे अपनी गर्दन तथा अन्यथा लोग समझते है कि आप भिखारी शरीर हिलाते हैं। शरीर के साथ ही गर्दन हैं । भिखारियों के बाल ऐसे होते हैं। कृपा हिलनी चाहिए। मेरे फोटो के सम्मुख बैठ करके तेल लगाएं और बालों को ठीक से कर ध्यान से पूर्व आप स्वयं को देखें कि रखें। अपने मस्तक पर आपको गर्व होना मुझ में क्या विकार हैं-तब ध्यान में जाएं। चाहिए। यहाँ एकादश है। अपने एकादश से आपको पूरे विश्व से युद्ध करना है । 1 1 आज आते हुए मैंने कहा कि यह गलत अतः ध्यान पूर्वक अपने मस्तक को खुला मार्ग है। उन्होंने पूछा "श्री माताजी, आप रखें तथा बालों में तेल लगा कर कंघी कैसे जानती हैं? बस मैं जानती हूँ। आप करें। रात को बालों में यदि आप तेल डालें पता लगाएं। हर चीज़ जानने के लिए जरूरी तो आपको आराम मिलेगा जिगर के रोगियों नहीं कि इसके विषय में आप पूरी जानकारी के लिए अत्यन्त हितकर है। उन्हें अवश्य प्राप्त करें परन्तु यह इस बात का चिन्ह है सिर में तेल डालना चाहिए क्योंकि वे पहले कि आप अति-चेतन हो गए हैं हर चीज़ से ही शुष्क हो चुके हैं। उनके बाल खुश्क के विषय में चेतन होना। यह ऐसे नहीं है होते है, बढ़ते नहीं। शीघ्र ही वे गंजे हो कि यहाँ बैठ कर आप कहें "यह अत्यन्त जाते हैं । सुन्दर है या यह बहुत श्रेष्ठ है।" बात ऐसी नहीं है। न सत्यापित करें न आलोचना करें, परन्तु आप कितना जानते हैं-इस को दर्शाना है। हमारे कार्यान्वन तथा शैली बात को वातावरण में महसूस करें। क्योंकि से सहज संस्कृति की झलक मिलेगी। हमारे पास बहुत बड़ा मस्तिष्क है-हमारे सिर में दो पिंड हैं। यह केवल एक मस्तिष्क नहीं इसके दो पिंड हैं और जब चेतना आपका चित्त कहाँ है? हर समय चित्त आपको प्रकाश देने लगती है तब आप को चित्त पर रखें । पूछें, 'श्रीमान चित्त अपने अन्दर सभी कुछ समझने लगते हैं, आप कहाँ खो गए हैं? इस प्रकार आपका फिर भी आप मौन होते हैं। न तो आपने कार्य हों जाएगा। दावे करने हैं न छल-कपट और न ही अभिव्यक्ति द्वारा आपने सहज संस्कृति त यह भी जांचने का प्रयत्न करें कि परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-43.txt पेरू झील कैम्प कैलिफोर्निया नं 1ि की