NIRMALA खण्डः XIV अंकः 7 व 8 जुलाई-अगस्त, 2002 चैतन्य लहरी PURE सि सामूहिकता हमारे उत्थान का मूलाधार है यदि आप ध्यान केन्द्र पर नहीं आते हैं। यदि आप सामूहिक नहीं हैं, यदि आप परस्पर मिलते-जुलते नहीं तो आप अंगुली से कटे नाखून की तरह हैं और परमात्मा को आपसे कुछ नहीं लेना-देना। परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी OHARMA VMHSIA RELIGION UNIVERSA यी WW ८ ान ल ४ रु স ह] ती निर्मला देवी जी के 79वे जन ण अं क चै तन्य लहरी ख जु लाई 7 व 8 XIV 2002 अगस्त न् नव वर्ष पूजा, कालवे, 31-12-2001 1- 5- महा शिव रात्रि पूजा, पुणे, 17-3-2002 त पल 17- जन्म दिवस पूजा, दिल्ली, 21-3-2002 26- श्रीमाताजी की दुल्हनों को सीख, 23-9-2001 29- श्रीमाताजी की दुल्हों को सीख, 23-9-2001 35- पूर्ण समर्पण एकमेव पथ, 31-7-1982 50- जन कार्यक्रम, नोएडा, 18-3-1989 चै तन्य लहरी प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर 162 - ए, मुनीरका विहार, नई दिल्ली 110067 मुद्रक प्रिंटो-ओ- ग्राफिक्स नई दिल्ली सदस्यता के लिए कृपया इस पते पर लिखें :- श्री ओ.पी. चान्दना 463 (G-11) ऋषि नगर, रानी बाग, दिल्ली एन 110034 फोन : (011) 7013464 सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पते पर भेजें : चैतन्य लहरी म सहजयोग मंदिर सी - 17. कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली - 110016 नव-वर्ष पूजा कालवे, 31.12.2001 (परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन देर हो गई और आप लोगों की प्रेम की आप कर रहे हैं कि सिर्फ इस शक्ति को शक्ति मुझे खींच के लाई है यहाँ । कुछ तो अपने लिए, अपने बच्चों के लिए आप आपकी माँ की तबियत ठीक नहीं है और इस्तेमाल करें? ये बहुत जरूरी है क्योंकि इच्छा शक्ति जबरदस्त है। उसी के बुते मैंने देखा है कि पार होने पर भी लोगों में दोष रह जाता है। पूर्णता आनी चाहिए। पर चल रहा है। मैं चाहती हूँ आप लोगों की भी इच्छा जब तक आप दूसरों से संबंधित हो कर शक्ति जबरदस्त हो जाए। इस मामले में के सहजयोग का कार्य न करें, आपको आपने क्या किया वो खुद ही सोचना चाहिए। पता ही नहीं चलेगा कि आप के अंदर अपनी ओर नजर करके देखें कि आपने कौन से दोष रह गए हैं। यहाँ तक कि इसमें कौन सी मेहनत की? आप ध्यान लोग आते हैं और पैसा बनाते हैं। ऐसे करते हैं, ध्यान में आप गहनता लाएँ और बहुत से लोग हैं जो सहजयोग में आने के सोचिए कि आप एक संत हैं। और आपको बाद पैसा बनाते हैं बाद में जरूर वो खुल क्या करना चाहिए? माँ ने आपको संत जाते हैं, दिखाई देता है और बेकार परेशानी बना दिया है। अब आपको आगे क्या करना होती है। सो फायदा क्या? चाहिए? अपनी दुरुस्ती तो करनी है। इसमें कोई शक नहीं। आगे आपको क्या करना आप यहाँ धर्म बाँधने आये हैं। और धर्म को चाहिए? अपनी दुरुस्ती आप करिए, पर मानना चाहिए। और बंबई शहर में हमने उसके बाद जब वो फलीभूत हो गई और सुना है कि अनेक तरह के अधर्म चल पड़े जब पूर्णत्व को आप पहुँच गए, तब आप हैं जो 20-25 साल पहले यहाँ बिल्कुल क्या कर रहे हैं? तब भी आप सिर्फ ध्यान नहीं थे एक तो आजकल के सिनेमा जो में जाते हैं या प्रोग्राम में जाते हैं और वहीं बन रहे हैं, उसकी शुद्धता बहुत कम है। तक चलता है इसके आगे क्या किया? ऐसे सिनेमा देखना ही नहीं चाहिए। आप आपको ये दान मिला है आपकी आत्मा के इतने लोग ऐसे सिनेमा न देखें तो वो आधार से। आत्मा ने आपको पुनर्जन्म दिया, सिनेमा चलेंगे ही नहीं और वैसे चल भी तो आप इससे आगे क्या कर रहे हैं, ये नहीं रहे हैं। पर जो गन्दे सिनेमा होएंगे वो आपको देखना चाहिए। कौन सी प्रगति लोगों को पसन्द नहीं। लोग चाहते हैं कि आप यहाँ पैसा कमाने नहीं आए हैं । ा श्रीक चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व ৪ जुलाई-अगस्त 2002 2 अच्छे ऐसे सिनेमा बनें कि जिसको कुृट्म्ब ओर नज़र करें और नज़र से देखें कि आपके अंदर अभी तक कौन से दोष बचे जा कर देख सके। एक ये बात हो गई। और भी अत्यंत हैं। इसी को हम कहते हैं कि आप अपनी मलेच्छ गन्दे तरीके से लोग गन्दी -गन्दी चीजें पढ़ते हैं। आप लोग नहीं। आप लोग उससे जो दोष हैं वे पूरी तरह से नष्ट हो पढ़ते नहीं हैं। मैं मानती हूँ। पर अखबार जाएँगे। क्या फायदा है इन दोषों को रखने में सफाई करो। निर्मल तत्व अपने अंदर लाएं। भी बहुत अश्लील चीजें लिखी जाती हैं। से। उससे किसी को आज तक फायदा सो सबसे पहले अपने को निर्मल कर लेना नहीं हुआ। अधिकतर लोग तो जेल ही चाहिए । सबसे बहुत है लोगों में कि उनकी आँखें चारों तरफ दौड़ने लगती हैं। जिनकी थूकते हैं। इसलिए आप लोगों से मुझे ऑँखे इधर-उधर दौड़ती हैं वो सहजयोगी बताना है एक ही बात कि आप दूसरों के ही नहीं। आँखे स्तब्ध, निश्चल होनी चले गए और जो नहीं गए हैं उन पर लोग हैं दोषों की तरफ मत देखिए । अपने दोषों चाहिएं। ये पहली पहचान है। गर अब भी की तरफ देखिए और देखिए कि आप में आँखें इसकी तरफ, उसकी तरफ ऐसे दौड़ती क्या दोष है। गुस्सा आप में आता है? आप हैं तो इसे कहना चाहिए, अभी आप के अब भी आँख में लालसा है? और सहजयोगी नहीं। आपको Attraction है सब चीज़ों के लिए? दूसरे लालच। आप में अगर अब भी ये खरीदें, वो खरीदें, ये लाएँ वो लाएँ । ये लालच बाकी है तो आप सहजयोगी नहीं सबसे ज्यादा अमेरीका में था लेकिन हो सकते। और ये लालच एक दिन खुल America एक दम बड़े भारी आधात से दब जाएगी। पहली चीज़ है लालच छूटनी गया पागल जैसे ये खरीद, वो खरीद। चाहिए । इसके घर जा, उसके घर जा। हाँ अगर पर श्री कृष्ण ने तो कहा है कि पहली खरीदना ही है तो ऐसी चीज खरीदो जो चीज़ है गुस्सा छूटना चाहिए। जब तक हाथ से बनी हो। जिसमें कल्पना हो, जिसमें गुस्सा आपको आए तो सोचना चाहिए कि आपकी सृजन शक्ति दिखाई दे। ऐसे लोग आप अभी सहजयोगी नहीं हैं। हमें गुस्सा होते देखा नहीं। सब लोग कहते हैं, उसको कोई नहीं खरीदता। फालतू की हैं कि माँ आप तो गुस्सा होते ही नहीं और चीजे खरीदते हैं। इन फालतू की चीज़ों से कभी-कभी ऐसी बातें हो जाती कि उस न तो आपका भला होगा और न ही उन पर किसी को भी गुस्सा आ जाए, मैं कहती लोगों का जो इतनी अच्छी चीजें बनाते हैं। हूँ, क्या फायदा? गुस्से से कोई फायदा हरेक चीज़ में अगर आप कलात्मक हो नहीं । बेचारे जो इतनी बढ़िया-बढिया चीजें बनाते किसी ने जाऐं। घर में हरेक चीज़ जो आए वो आज बताना मुझे ये है कि आप अपनी कलात्मक होनी चाहिए। पचासों बर्तन रखेंगे चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 पर एक कायदे का बर्तन नहीं। कारीगरों अपने यहाँ बगीचा लगा लिया। मतलब से ये जो बनी हुई चीजें हैं. उनका संगोपन सौन्दर्य दृष्टि सबसे पहले सहजयोगियों में होना चाहिए, अगर आप सहजयोंगी हैं बेकार की चीजें आप खरीदते रहते हैं, घर के अंदर भरी हुई हैं आजकल क्योंकि जिनका कोई अर्थ नहीं। यहाँ तक मैंने बाजार हैं । बाज़ार में जाते हैं वहाँ कुछ देखा है कि औरतें साड़ियाँ खरीदेंगी। साड़ियों खरीदते हैं। ऐसी जितनी भी चीजें हैं, उठा पर साड़ियाँ और एक भी साड़ी कायदे की कर होली कर दीजिए बेकार की चीजों नहीं। अजीब-अजीब, उसमें क्या-क्या बना की। प्लास्टिक का आजकल इतना हो देते हैं भूतों जैसी चीज़। अच्छी सुन्दर और गया है कि गिलास भी ढूँढना हो तो वो कल्पना से भरी हुई आप दो साड़ियाँ रखें, प्लास्टिक। अरे ये तो बहुत ज्यादती है मैं बनिस्बत आप 50 साड़ियाँ लें। अपने देश तो प्लास्टिक इस्तेमाल नहीं कर सकती। में अभी भी कलात्मकता का Appreciation प्लास्टिक की साड़ियाँ हो गई। प्लास्टिक है। उसको जानना है उसको समझना है। का ये हो गया इतना उपयोग प्लास्टिक मैं देखती हैँं जब घरों में जाओ तो अजीब का आ गया है कि उससे आदमी बीमार जैसे रंग लगे हुए हैं। भूत जैसी Deco- पड़ने का बड़ा अंदेशा है। बच्चे मरते हैं। सी चीें । आनी चाहिए । फालतू की बहुत 1 भूत ration ! आप लोग सहजयोगी हैं। आप को इस्तेमाल नहीं करें जहाँ तक हो सके। समझना चाहिए कि कौन सी चीज सौन्दर्य पर आजकल सभी चीज में प्लास्टिक आ पूर्ण है । और सौन्दर्य को समझना चाहिए । गया है। खासकर बम्बई में तो बड़ी मुश्किल तभी आप अपने जीवन को भी सुन्दर है कि यहाँ तक कि सोफा सैट भी प्लास्टिक बनाऐंगे। कि जो आदमी आपसे मिले या का बनाते हैं बैठना है तो प्लास्टिक में. औरत आप से मिले वो ये कहे कि बहुत ही पहनना तो प्लास्टिक, चलना तो प्लास्टिक बढ़िया आदमी है। बहुत ही सुन्दर है। और अब थोड़े दिन में मोटरें भी प्लास्टिक जिस तरह से आप अपने को सौन्दर्य से की बनाएँगे सो आपका प्लास्टिक से कोई सजाएगें इसी तरह से आप उसके वातावरण मतलब नहीं। आप सहजयोगी हैं। मैं ये और घरों को सौन्दर्य से सजाएगें यह नहीं कहती कि आप चोगा पहन के घूमो । पहली पहचान है। अगर सहजयोगी भूत ये नहीं है सजहयोग में । कायदे के कपडे जैसा घूमता हो तो वो किस काम का। पहनिए। कारयदे से रहें। कोई ऐसी बात कायदे से कपड़े पहनना, कायदे से बातचीत नहीं है कि जिससे आप साधू बाबा दिखाई करना, कायदे से सबसे व्यवहार करना, दें। कोई ढोंगबाज़ी नहीं। पर जो चीज सुन्दर-सुन्दर चीज़ों से अपने घर को आपके लिए हितकारी नहीं वो नहीं इस्तेमाल सजाना फूलों से भी सजा सकते हैं । करनी चाहिए। उससे दूर रहना चाहिए सब कुछ है। तो जहाँ तक हो सके प्लास्टिक आ जुलाई-अगस्त 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व ৪ और बच्चों को भी बचाना चाहिए। दूसरी बात सहजयोग में मैंने देखा कि अब जिस दशा में आप आएँ अब आप उस सब लोग चाहते हैं कि मैं उनके घर जाऊँ। समाधान को प्राप्त हों और देखें कि आप आप क्यों नहीं समझते कि मैं आपके घर जो भी कर रहे हैं उससे आपको समाधान आऊँ, ऐसा आपने क्या किया? या फिर मिलें। जिसको देखो वही हमारे घर आना चाहता है! मैं कहीं भी जाती हैँ मुझे आराम से सहजयोग बढ़ाएँ। आप बहुत समाधानी हो रहने नहीं देते। आपने अभी कुछ भी नहीं जाएँगे आपको यह नहीं लगेगा कि माँ के किया है । आपको जान सकती हूँ। मैं चाहती हूँ कि आप सहजयोग में कार्यरत हों और सामने सारी चीजें रखें। माँ के सामने खड़े आप किसी भी तरह से ये इच्छा बनी रहें । अधिकतर मैंने ऐसा देखा है कि जो रहने दीजिए और ये सोचिए कि अभी लोग बहुत आगे-आगे करते हैं वो या तो आपकी औकात क्या है? आप क्या चाहते बेईमान होते हैं और या तो वो चोर होते हैं? ऐसी क्यों चाहत करें जिससे आपकी हैं। जो लोग दिल से साफ हैं और जो माँ को तकलीफ हो। ऐसे क्यों काम करना प्यार में रत है वो अपने प्यार में मग्न रहते हैं। अब मैं चाहती हूँ कि अब ये समय आ जैसे हम कहीं से आए, आकर सामने खड़े हो गए। ऐसा नहीं करिए। समाधान, अगर सहजयोग में नहीं आया तो आप बेकार हैं। मेहरबानी करें क्योंकि मुझसे तो सब गया है कि आप लोग अब मेरे ऊपर जहाँ भी हैं, माँ हमारे साथ हैं, इस प्रकार Vibrations आप खींचते हो और अगर एक समाधानी वृत्ति होनी चाहिए। उसी से आप लोग ठीक नहीं हैं तो मेरी तबियत आपकी प्रगति होगी जिस चीज़ की दुनिया खराब हो जाती है । इसलिए आप को में प्रगति होती है, वो सब कुछ समाधान में बिल्कुल ये निश्चय कर लेना चाहिए कि रत है। जब आप समाधानी नहीं और पूरे हम ऐसे बनें कि जिससे माँ जो हैं वो खुश समय आप दबते रहें सबके सामने तो हो जाएं और फिर उससे जो है दुनिया उससे क्या फायदा? समाधान से जहाँ आप बदल जाए। आज बहुत देर तक लोग बैठे हैं वहीं माँ है ऐसा जब आपको महसूस रहे, कुछ गए भी होंगे पहचान ये ही है होगा तभी माना जाएगा कि आप सहजयोगी कि आप यहाँ बैठे हैं। शान्ति में बैठे हैं । हैं। जहाँ बैठे हैं, सामने आना, स्टेज पर पहले तो धूम धड़ाका सब लोग इतनी चढ़ना, इसकी ज़रुरत नहीं किसी समाधानी जोर-जोर से चिल्लाते थे, बोलते थे । अब आदमी को। हमें सबके बारे में मालूम है शांत बैठे पर समाधान ऐसी चीज़ है कि जिससे कमाल ही चीज़ है। गहराई में आप मुझे पा सकते हैं और मैं हैं। ये मेरे लिए तो बहुत ही परमात्मा आपको धन्य करें। शिव पूजा पुणे, 17.3.2002 (परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) मे स आज हम यहाँ शिव पूजा करने के लिए प्रतीकात्मक रूप में कहते हैं। परन्तु एकत्रित हुए हैं। केवल पवित्र हृदय लोग कहना चाहूंगी कि पशु परमेश्वरी शक्ति को ही शिव पूजा करने के अधिकारी हैं। अपवित्र मानव से कहीं बेहतर समझते हैं क्योंकि हृदय लोगों को शिव पूजा करने का उनका हृदय अत्यन्त शुद्ध होता है। जो भी अधिकार नहीं होता। शिवरात्रि का यह सहज जीवन शैली प्रकृति उनमें बनाती है वे उसी सिद्धान्त है। कल जैसे आपने देखा यहाँ पर शिवलिंगों होती हैं न कोई दुर्भाव। ये सारी तुच्छ के ऊपर भयानक सर्प दिखाए गए थे । भावनाएं उनमें नहीं होती प्रकृति के अनुरूप इसका महत्व ये है कि जो लोग पवित्र वो सब कुछ किए चले जाते हैं। हृदय के हैं जिनमें और लोगों के प्रति प्रेम है, सर्प रूप में शिव की शक्तियाँ सदैव कि वह कितना प्रेम कर सकता है और उनकी रक्षा करती हैं। ऐसा हम केवल कितनी क्षमा मानव की प्रेमशक्ति ऐसी है मैं कोई ईष्ष्षा हैं। उनमें न से काम चलातें परन्तु मानव का केवल एक ही गुण है जुलाई-अगस्त 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व ৪ ট श्री शिव के विषय में सोचे उन्होंने कभी जिसके द्वारा वे सारी नकारात्मक शक्तियों पर विजय प्राप्त कर सकता है वह ये धन के विषय में नहीं सोचा, कभी धन की आसानी से देख सकता है कि इन दुर्गुणों इच्छा नहीं की, कभी उन्होंने दिखावा नहीं को अपने अन्दर बनाए रखना अच्छा नहीं किया शिव और शक्ति में अन्तर है। है और मानव इस बात को समझता है कि उनके पूर्ण दृष्टिकोण में। पूर्ण स्वतन्त्र इस प्रकार के अमानवीय व्यवहारों में फँसे व्यक्तित्व होने के कारण शिव किसी चीज रहना अच्छी बात नहीं है। इन चीज़ों में की चिन्ता नहीं करते। लोग यदि गलत फँसे रहने की उन्हें कोई मजबूरी नहीं है कार्य कर रहे हों तो वो उन्हें नष्ट कर देंगे उन्हें ऐसा करने के लिए कहा भी नहीं समाप्त! उन्हें ठीक करने की, सुधारने की जाता। परन्तु अचानक वो ऐसी चीज़ों की श्री शिव को कोई इच्छा नहीं है । वे ऐसे तरफ आकर्षित हो जाते हैं जिनमें घृणा, किसी चक्कर में नहीं पड़ते परन्तु शक्ति ईष्ष्या एवं लालच है। आप ध्यान दें कि श्री शिव किस प्रकार सभी मानव उनके बच्चे हैं। पूरा ब्रह्माण्ड रहते हैं। वे हिमालय में रहते हैं । आप देखें उनकी सन्तान है। उन्होंने ही इसका सृजन कि वो क्या पहनते हैं, वो क्या खाते हैं। किया है। अतः उनका चिन्तित होना उन्हें किसी भी चीज़ की आवश्यकता नहीं स्वाभाविक है। मूर्खतापूर्ण तुच्छ कार्यों में है क्योंकि वो अपने आप में पूर्ण हैं सम्पन्न फँसने वाले लोग उन्हें पसन्द नहीं। हैं। श्री शिव का व्यक्तित्व ऐसा है। जब आप श्री शिव की पूजा करते हैं तो अपने फॅसना शुरु किया। अपनी शक्ति बढाने के हृदय में झाँककर देखा करें कि मेरे अन्दर लिए मनुष्य एक देश से दूसरे देश गए। वो कैसी भावनाएं हैं। किस प्रकार के दुर्भाव सारी सत्ता कहाँ गई? समाप्त हो गई । मैंने अपने हृदय में पाले हुए हैं । बहुत ह के लिए ऐसा करना आवश्यक हैं क्योंकि सर्वप्रथम मानव ने सत्तालोलुपता में उसके पश्चात् उन्होंने अपनी ये कार्यशैली आजकल भारत में लालच का प्राबल्य अन्य लोगों को दे दी और अब लोगों का | लोग अत्यन्त तुच्छ एवं घटिया बन गए निर्लज्जता पूर्वक लालची होना आम बात हैं। ये सोच पाना भी असम्भव है कि उनके हो गई है श्री शिव ही उनका समाधान है लिए पैसा ही सभी कुछ है वास्तव में यह ऐसे सभी लोग नष्ट हो जाऐंगे। पहले भारतीय संस्कृति नहीं है, किसी भी प्रकार उनका पर्दाफाश होगा और फिर उन्हें नष्ट से नहीं। परन्तु कुछ लोगों ने इस दुर्गुण किया जाएगा पूरी तरह से। को अपना लिया है। संभवतः उन्होंने यह विदेशों से प्राप्त किया है और अब इसका करते हैं । केवल उस व्यक्ति का जिसका श्री शिव उच्च चरित्र व्यक्ति का सम्मान चरित्र उच्च है कोई यदि दुष्वरित्र है या इतना प्रचार है कि धन ही श्रेष्ठतम है। প चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 चरित्रहीनता में फँसा हुआ है तो शिव उसे सहजयोगियों पर भी, यदि वे सहजयोग के क्षमा नहीं करेंगे। अतः शक्ति सृजन करती नियमों का पालन नहीं करते। आपके जीवन हैं, सुरक्षा प्रदान करती हैं, देखभाल करती के हर कार्य को देख रहे हैं । आप किस और पोषण करती हैं। परन्तु श्री शिव तो प्रकार से आचरण करते हैं, क्या करते हैं. नष्ट करने के लिए ही बैठे हुए हैं। ऐसा आपका धर्म क्या है, वह ये सब कुछ देखते करना, इस प्रकार का विनाश बहुत आवश्यक हैं। बहुत से सन्तों ने आपको चेतावनी दी है। शक्ति अपनी विनाशकारी शक्तियों को है, बहुत से अवतरणों ने आपको चेतावनी नहीं दर्शातीं । हो सकता है वे कुछ राक्षसों दी है परन्तु यदि आप उनकी बात को नहीं का वध कर दें। परन्तु श्री शिव तो एक के सुनते तो शिव बिल्कुल नहीं सुनेंगे। वे किसी की बात नहीं सुनते। वे जब नाराज़ बाद एक राष्ट्र को नष्ट कर सकते हैं। सर्वप्रथम जो अहं उनमें है उसे कौन हैं तो नाराज़ हैं। चाहे जो भी हो उन्हें ये नष्ट करेगा? वही शिव आपके सहस्रार में समझाना बहुत कठिन होता है कि इस हैं। सहस्रार में वो विराजमान हैं। सभी व्यक्ति को क्षमा कर दें, ये ठीक है। इसे चीज़ों के शिखर पर, इस बात को याद रखें। उस दिन मैं आकाशवाणी के एक आप इस बात की कल्पना कर सकते हैं? संवाददाता से मिली वह अत्यन्त मूर्ख था और बहुत ही कटुता पूर्वक बोल रहा था। नहीं करते तो व्यक्ति का अन्त हो जाता मैंने उसके एकादश रुद्र को देखा, "हे है। कुछ सीमा तक तो हो सकता है कि वे परमात्मा!" मैंने कहा, यह तो कष्ट में क्षमा करें परन्तु उसके पश्चात् स्थिति अत्यन्त फँसने वाला है।" एकादश क्या है? यह दुष्कर हो जाती है। शिव की ग्यारह शक्तियाँ हैं। ये यहाँ पर (मस्तक) एकत्र होती हैं और सभी प्रकार को महसूस ही नहीं करते कि श्री शिव क्या के रोग, जिनमें कैंसर सबसे खराब है, हैं। दक्षिणी भारत में दो प्रकार के भक्त हैं लाती हैं। मैं जानती थी कि ये व्यक्ति बहुत शिव भक्त और विष्णु भक्त। वो परस्पर कठिनाई में फँसने वाला है । वह सहजयोगी लड़ रहे हैं । आजकल तो ये लड़ाई बहुत भी नहीं है किस प्रकार से मैं उसे बताऊं? कम है। विष्णु का कार्य आपको आत्म कोई भी उसे कैसे बताता? परन्तु ये सब साक्षात्कार देना, मानव को मोक्ष देना, उसका क्षमा कर दें। क्षमा उनका मूल गुण है क्या क्षमा उनका मूल गुण है परन्तु यदि वे क्षमा परन्तु मुझे लगता है कि लोग इस बात उत्थान करना है परन्तु यदि आप अच्छाई एकादश रुद्र के कारण हुआ। ये सब श्री शिव की ग्यारह शक्तियाँ है को और धर्म को छोड़ दें तो श्री शिव जिनका भली-भांति वर्णन किया गया है । आपके जीवन में प्रवेश करते हैं । हमें ये ये सभी लोगों पर कार्य करने लगती हैं। बात समझनी चाहिए कि हम उनकी शक्तियों चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 य 8 जुलाई-अगस्त 2002 8 हैं, उन्हीं की शक्तियों से बने चिन्ता किए बिना लोग सभी कुछ कर रहे से घिरे हुए हैं। केवल शक्ति (देवी) आपकी रक्षा हैं । यह प्रकोप श्री शिव से आता है । हुए करती है । लेकिन कुछ सीमा तक, वे भी शिव की इच्छा के विरुद्ध नहीं जा सकर्ती, इनकी अवहेलना नहीं कर सकतीं। आजकल आप देखते हैं कि बहुत से निःसन्देह आपको आश्रय देने के लिए. लोग राजनीति में आ रहे हैं। ये सब पैसा आपको सहायता देने के लिए. आपकी रक्षा बनाने के धंधे हैं। ये राजनीति नहीं है। ये करने के लिए मैं यहाँ हूँ। परन्तु मैं भी श्री सभी लोग पैसा बनाने में जुटे हुए हैं। वे शिव की आज्ञा के विरुद्ध, उनसे परे नहीं समाज का हित नहीं करते, किसी भी तरह जा सकती। श्री शिव की शक्ति, उनकी से नहीं करते। या तो वो भय की स्थिति में सत्ता ऐसी है । उनकी पूजा करने का अर्थ होते हैं या असंयम की इस प्रकार से वो है अच्छाई की पूजा करना। ये अच्छाई आचरण करते हैं मानो परमात्मा का उन्हें करुणा, प्रेम, क्षमा या कुछ भी हो सकती है भय ही न हो, अपने पर परमात्मा की दृष्टि श्री शिव को केवल भले लोग अच्छे लगते का उन्हें भय ही नहीं होता सम्भवतः उन्हें यद्यपि आप सब मेरे बच्चे हैं फिर भी मैं आपको चेतावनी देती हूँ कि सावधान रहें। अपने हर कदम को ठीक से जाँचें परखें। हैं और उन्हीं की वो रक्षा करेंगे। इस बात का ज्ञान ही नहीं है श्री शिव की दृष्टि सदैव उन पर होती है । श्री शिव उदाहरण के रूप में कुछ लोग अत्यंत सत्ता लोलुप हैं। कुछ धन लोलुप हैं और सभी को देख रहे हैं चाहे आप आस्ट्रेलियन कुछ सत्ता लोलुप। सत्ता लोलुप लोगों का हों, या अंग्रेज़ हों या भारतीय आप चाहे लक्ष्य भी कई बार पैसा बनाना होता है। वो जिस धर्म का अनुसरण करें वो आपको सहज में नहीं रहेंगे वे निकाल दिए जाऐँगे। देख रहे हैं । ये बात व्यक्ति को समझ लेनी वो ऐसी बुराइयाँ करते हैं, और फिर आकर चाहिए और जब ये बात आप समझ लेंगे क्षमा मांगेंगे और कहेंगे श्रीमाताजी कृपा तो आप स्वीकार कर लेंगे कि आपको भले करके हमें क्षमा कर दें, हमसे ये गलती हो तथा धार्मिक बनना है। आपको उच्च चरित्र गई ऐसा कुछ भी करने का प्रयत्न न का व्यक्ति होना है। क्यों लोग उच्च चरित्र करें निःसन्देह मैं तो आपको क्षमा करती की बात करते हैं। इस बात को समझने हूँ। परन्तु श्री शिव क्षमा नहीं करेंगे, वे क्षमा का प्रयत्न करें जब लोगों का विश्वास ही नहीं करेंगे वे आपको दण्ड देंगे और तब आप मेरे पास आकर कहेंगे श्रीमाताजी लोग सभी प्रकार के कार्य कर रहे हैं, आप हमारी रक्षा कीजिए!" ये कार्य बहुत शराब पी रहे हैं, पैसे का खेल खेल रहे हैं । कठिन है क्योंकि श्री शिव के शिकंजे ा। इसमें नहीं है तो इन दिनों ये मूर्खता है। बहुत परमात्मा के भय के बिना, उनके दण्ड की कठोर हैं। परन्तु श्री शिव अत्यन्त क्षमाशील चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 देव भी हैं। वो आपके क्षमा करते हैं । मेरे कारण से भी वो आपको से अपराधों को और सभी एकादश के कारण हैं। सभी भूत बाधाएं भी इसी के कारण हैं। उस दिन मैं किसी से मिली वह बहुत बहुत क्षमा करते हैं। परन्तु यदि आप अपराध किए चले जाएँ तो कुछ समय बाद जब वो ही पकड़ा हुआ था। उस पर एकादश बागडोर अपने हाथ में लेते हैं तो न कोई गतिशील था। मैंने पाया वह किसी चीज़ से बुरी तरह प्रभावित था। मैं उसका नाम क्षमा होती है न बचाव। मैं आपको डराना नहीं चाहती, मैं आपको नहीं लेना चाहती परन्तु हमने देखा है कि सत्य बताना चाहती हैूँ। यही सत्य है। ये चीजें ठीक नहीं हैं। सभी धर्मों में लोग आप लोगों को सज्जन बनने का प्रयत्न मूर्खता पूर्ण धारणाएं फैला रहे हैं। इसके करना चाहिए। आपको वास्तव में उच्च विषय में यदि आपको विवेक नहीं है तो चरित्र मानव बनने का प्रयत्न करना है। कोई आपकी सहायता नहीं कर सकता। मुझे बताया गया है कि सहजयोग में भी आपमें इस बात का पूर्ण विवेक होना चाहिए कुछ लोग अनाधिकृत रूप से पैसा कि क्या ठीक है और क्या गलत। केवल इधर-उधर करने में लगे हुए हैं । उनमें से तभी शिव आपके साथ हैं। परन्तु यदि आप कुछ बहुत ही दुष्चरित्र पीछे दौडते हैं, लड़कियों को ताकते हैं, अवश्य कहूँगी कि ये आत्मघातक हैं। यह सभी प्रकार की बुराईयाँ करते हैं। इन्हीं विनाशकारी आत्मा श्री शिव की शक्ति है। चीजों ने पश्चिम के लोगों को नष्ट किया यहाँ आत्मा से हमारा अभिप्राय शिव की है। हमारे भारतीय लोग भी उनसे यही सब शक्ति है। लड़कियों के ऐसी मूर्खतापूर्ण चीज़ों में फँसेंगे तो, मैं हैं वे बहुत सी विधियों से वे विनाश करते हैं । चाहिए। यदि हम अपना सम्मान नहीं करते, व्यक्ति का सम्मान समाप्त हो सकता है, सीख रहे हैं। हमें अपना सम्मान करना दुर्व्यवहार करने का प्रयत्न करते हैं तो स्वास्थ्य खराब हो सकता है, उसका वैभव कुछ नहीं हो सकेगा । आपकी कुण्डलिनी समाप्त हो सकता है और जब तक वह को उठाकर मैं आपकी सहायता कर सकती पूर्णतः नष्ट होकर उसका बोरी बिस्तर नहीं हूँ परन्तु यदि आप बहुत अधिक गर्त में बँध जाता तब तक उसके साथ कुछ भी चले जाते है तो एकादश रुद्र पकड़ जाएगा, घटित हो सकता है। मैं ऐसे लोगों को इसमें कोई संदेह नहीं है । आपके मस्तक जानती हूँ जो मृत्युशय्या पर पड़े हुए भी पर ये बहुत बड़ी रुकावट बनाई गई है, पैसों की बातें करने लगते हैं। कितना धन एकादश रुद्र । और आजकल यह अत्यन्त उसे मिलना चाहिए? किस प्रकार उन्हें ये गतिशील है, अत्यन्त प्रभावशाली है । जितने धन मिलेगा आदि-आदि। परमात्मा या आत्मसाक्षात्कार की बात करने के स्थान भी रोग उत्पन्न हो रहे हैं ये सब असाध्य हैं चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 10 पर वे इस प्रकार की बात करते हैं। ये है कि श्री शिव को प्रसन्न करने के गुण आम बात है। आप यदि श्री शिव को देखें स्वयं में विकसित करें। अभी तक आपमें तो उनके पास कुछ भी नहीं हैं । उन्हें बहुत अधिक इच्छाएं हैं, बहुत अधिक किसी चीज़ की आवश्यकता भी नहीं है लालसाएं हैं ये सब अनावश्यक हैं। नि:ःसन्देह समर्पण आदि के रूप में आप जो भी कुछ मैं चाहती हूँ कि आप सब अच्छी तरह से उन्हें दें वे इसे स्वीकार नहीं करते ये सब सुन्दरता पूर्वक जीवनयापन करें-जंगलों में वे शक्ति को दे देते हैं "आपकी जो जाकर हिप्पियों की तरह से व्यवहार करके मूर्खतापूर्वक नहीं। आपके हृदयों से भौतिक इच्छा हो इसका करें।" आपके हित के लिए, आपकी प्रसन्नता चीजों के प्रति लिप्सा समाप्त होना भी के लिए वे (शक्ति) ही सभी कुछ कार्यान्वित आवश्यक बात है। शिव-भक्त न तो धन कर रही हैं । शिव को कोई चिन्ता नहीं। की चिन्ता करते हैं और न ही उन्हें इसका इस स्थिति में आपको श्री शिव को प्रसन्न ज्ञान होता है वो तो अत्यन्त उदार होते करना होगा वो आपको प्रसन्न करने का हैं। अत्यन्त उदार। जिस प्रकार से प्रयत्न नहीं करेंगे, आपको जी जान से शिव-भक्त कार्य करता है लोग कहते हैं। उन्हें रिझाना होगा। श्री शिव का व्यक्तित्व कि वह मूर्ख है। परन्तु मैं ऐसा नहीं सोचती । अत्यन्त जटिल है। कुरान में अल्लाह या शिव-भक्त की यह पहचान नहीं है। शिव शिव के विषय में अलग से नहीं लिखा गया भक्त की पहचान तो यह है कि उसे पैसे उनमें कोई भेद नहीं किया गया क्योंकि में कोई दिलचस्पी नहीं होती। वह अत्यन्त हजरत मोहम्मद साहब ने जिन लोगों को उदार होता है आप उससे कुछ भी माँगे समझाना था वो सब अशिक्षित व अज्ञानी वह तुरन्त दे देगा। लोग थे। इसलिए उन्होंने ये सारी बारीकियाँ नहीं लिखीं कि परमात्मा के भिन्न रूप हैं अपने उद्यान में ध्यान-धारणा के लिए गए इसलिए वे केवल अल्लाह को जानते हैं और भिखारी के रूप में श्री कृष्ण (श्री फिर भी वो कोई ऐसा कार्य नहीं करते विष्णु) उनके सम्मुख आए और बोले "देखो, जिससे कार्यो और नौकरियों के कारण मेरे पास वस्त्र नहीं हैं तुम्हारे पास यह श्री महावीर ऐसे ही थे एक बार महावीर ऊँच-नीच का भेद प्रकट हो। इस बात से वस्त्र हैं। ये आधा वस्त्र तुम मुझे क्यों नहीं मैं सहमत हूँ कि श्री शक्ति ही प्रेम करती दे देते?" श्री महावीर ने कहा, "ठीक है, बहुत जल्दी नाराज़ भी हो आप ये वस्त्र ले लो, पूरा ही वस्त्र ले लो । उन्होंने कहा कि मेरा घर समीप है और मैं वे हैं परन्तु जाती हैं और जब नाराज़ हो जाएं तो उन्हें सम्भालना बहुत कठिन होता है। आप लोग घर जाकर वस्त्र पहन लूंगा। उन्होंने नग्नता सहजयोगी हैं इसलिए मुझे आपको बताना नहीं दर्शाई, पत्तों से स्वयं को ढककर वे जुलाई-अगस्त 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व ৪ 11 चले गए। परन्तु इन जैनियों को यदि आप आनन्द-भोक्ता हैं और हर सहज चीज देखें तो ये श्री महावीर के बड़े-बड़े पुतले का, हृदय से भेंट की हुई वस्तुओं का वे बनाते हैं जिनमें उन्हें नग्न दर्शाया जाता आनन्द लेते हैं । कोई भी अभिव्यक्ति जो है। मेरा कहने से अभिप्राय है कि यह हृदय से की गई है, वो उसका आनन्द लेंगे। मानव- मस्तिष्क की विकृति है हमें ये वो बन्धनों में फँसे हुए नहीं हैं कि ये चीज बात समझनी चाहिए कि श्री महावीर ने आधुनिक होनी चाहिए, ऐसी होनी चाहिए, ऐसा क्यों किया वे ऐसे निर्लिप्त थे कि वैसी होनी चाहिए। वे बन्धनमुक्त हैं। मानव अपना सर्वस्व दे डालने में उन्हें कोई बुराई की तरह से वे ये नहीं सोचते कि हमें हर नजर नहीं आती थी ये सब उन्होंने दिखावे चीज अत्यन्त सावधानी पूर्वक बनानी चाहिए के लिए नहीं किया, उदारता के कारण जो पूरी-पूरी आ जाए चाहे कला हो या किया ये सब लोग नहीं समझते। ये जैनी बिल्कुल भी उदार नहीं हैं । अतः इन महान अवतरणों के गुणों को कलाकार को हतोत्साहित करने का प्रयत्न परन्तु कुछ अन्य चीज़ चाहे, इसे किसी ने कितने ही हृदय पूर्वक बनाया हो, मनुष्य उस समझा नहीं जा सकता क्योंकि एक प्रकार करता है। मैंने ऐसे लोग देखे हैं जो इस प्रकार से बन्धनों में फँसे हुए हैं परन्तु श्री शिव के का भ्रम बना ही रहता है। उदाहरण के लिए श्री शिव सदैव बहुत कम वस्त्र पहनते -बहुत ही कम और वो खाते क्या है? साथ कोई भी बन्धन नहीं है। यही कारण कोई नहीं जानता, उनकी इच्छा क्या है है कि उन्हें मस्तमौला कहा जाता है । आपके और वे चाहते क्या हैं ये बात भी कोई नहीं मस्तिष्क में यदि किसी भी प्रकार का कोई जानता। महान संगीतज्ञ उनके सम्मुख गाते बन्धन है तो आप शिव भक्त नहीं हैं। ये हैं, ठीक है। कोई विक्षिप्त व्यक्ति उनके बात ठीक है कि आप को ठीक से वस्त्र सम्मुख गाता है तो भी ठीक है। उन्हें पहनने चाहिएं. सभी कुछ ठीक से करना इससे कोई लेना-देना नहीं। इस बात की चाहिए । परन्तु आपमें ये बन्धन नहीं होना उन्हें कोई चिन्ता नहीं कि राग कैसा है चाहिए कि यदि मैंने ऐसा नहीं किया तो मैं और इसके स्वर क्या हैं, यह ठीक भी है या जाति से बाहर हो जाऊंगा या मुझे फैशन नहीं। वो इन सब चीजों से ऊपर हैं। जिन में पिछड़ा हुआ मान लिया जाएगा। स्वीकार औपचारिकताओं में हम फँसे हुए हैं वे इन न कर पाना लोगों के लिए कठिन कार्य औपचारिकताओं से ऊपर हैं। वे साक्षात है। आजकल सभी प्रकार के फैशन पनप आध्यात्मिकता हैं अन्य चीजों से ऊपर हैं। रहे हैं मैं उनसे पूछती हूँ, "यह क्या है? ये आप चाहे संगीतकार हैं या कलाकार या फैशन है।" क्या परमात्मा इस फैशन के क कुछ अन्य, वो इसका आनन्द लेंगे वो पीछे हैं या कोई देवी-देवता आपको ये चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 12 फैशन बता रहे हैं? फैशन आज आता है हमें समझ लेना चाहिए की श्री शिव सबसे गरीब देवता हैं। वे किसी प्रकार के अलंकार और कल चला जाता है। अतः मेरे कहने का अभिप्राय ये है कि नहीं धारण करते और न ही इस प्रकार का यदि आप शिव की भक्ति करना चाहते हैं कुछ पहनते हैं। अपने शरीर को बिना इन तो आपको बन्धन मुक्त होना होगा। आप सब चीजों के भी बनाए रखते हैं। वे आनन्द लोग सहस्रार की दुनिया में रह रहे हैं। अब यदि किसी ने ठीक से वस्त्र नहीं पहने की प्रतिमूर्ति हैं। पूर्ण आनन्द का अवतरण। अतः आनन्द शिव भक्त का एक अन्य हुए तो बस समाप्त! किसी ने बहुत ही गुण होना चाहिए। हर चीज़ का उनको दिखावे वाले वस्त्र पहने हैं तो समाप्त। आनन्द लेना चाहिए। जो भी कुछ आप मानव में सभी की आलोचना करने की देखते हैं, जिस किसी को भी आप देखते शक्ति है किसी की आलोचना करना कोई हैं, आप केवल इतना कर सकते हैं कि विशेष बात नहीं है अपनी चैतन्य-लहरियों आलोचना करने का मानवीय गुण त्याग पर यदि आप इसे परखें तो आप इसे दें अन्य लोगों की आलोचना करना छोड़ समझ जाऐँगे परन्तु लोग चैतन्य-लहरियों दें जैसे कोई अंग्रेज़ यदि किसी भारतीय पर नहीं देखते क्योंकि उनका तो सोचना घर में जाएगा तो वो कहेगा, "हमें ये ये है कि ये फैशन नहीं है, वो फैशन नहीं पसन्द नहीं है।" "हाँ, क्या, आपको क्या है। आप मुझे बताएं कि श्री शिव का क्या आया" फैशन है? क्या वो भी कोई फैशन करते कहना ही आपकी शक्ति के विरुद्ध है । हैं? आप जो चाहे उन्हें भेंट करें वो प्रसन्न और मान लो कोई अमरीकन किसी अंग्रेज हो जाते हैं। खाने के लिए जो चाहे आप के घर जाएगा तो कहेगा मुझे ये पसन्द उन्हें भेंट करें वो खा लेते हैं। वे प्रशंसा की नहीं है, ये आम बात है। सभी लोग कहते शक्ति से परिपूर्ण हैं क्योंकि वे आनन्द की हैं मुझे ये पसन्द नहीं है, मुझे वो पसन्द प्रतिमूर्ति हैं। वे साक्षात शान्ति और आनन्द नहीं है। ये कहने वाले आप कौन हैं कि हैं। आप यदि शिवभक्त हैं तो आपमें इस मुझे ये पसन्द नहीं है, या मुझे ये पसन्द पसन्द नहीं है?" "हमें कालीन पुसन्द नहीं मुझे पसन्द नहीं आया ये बात 1 प्रकार का कोई बन्धन नहीं होना चाहिए। है? लोगों को इस बात का ज्ञान नहीं है कि प्रायः मैं अत्यन्त सादी साड़ियाँ पहनती हूँ ऐसी बातें कहकर वो ये दर्शाते हैं कि उनमें अत्यन्त सादी परन्तु लोग सोचते हैं कि मैं शिव तत्व नहीं हैं। अत्यन्त निर्धन महिला हूँ। मैं निर्धन हू क्योंकि मैं धन की चिन्ता नहीं करती। धन नहीं सकता तो उसके छड़ी या वहंगियां की मुझे बिल्कुल भी परवाह नहीं है। अतः उठाने में औचित्य यदि वह कहे कोई व्यक्ति यदि अपनी टाँगों पर चल है परन्तु जुलाई-अगस्त 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 13 कि मुझे वह व्यक्ति इसलिए पसन्द नहीं है शिव भक्त को शोभा नहीं देती। शिव भक्त क्योंकि वह छड़ी लेकर नहीं चलता तो को तो आनन्दातिरेक में डूबा हुआ होना इससे पता चलता है कि वह कितना चाहिए । बालों की शैली के बारे में, वेश- भूषा अहंकारी व्यक्ति है। वो स्वयं तो छड़ी का के बारे में बहुत ज्यादा सावधानी मेरी समझ उपयोग कर रहा है परन्तु किसी भी में नहीं आती। इन सब चीजों से उनको लोकतांत्रिक देश में क्या वह नियम बनाना क्या लाभ होता है? कुछ भी नहीं। क्या वे चाहता है कि सब छड़ी पकड़ कर चलें? लोकप्रिय हो जाते हैं? और इस प्रकार की यह कार्य बहुत कठिन है। पश्चिम में ये उथली लोकप्रियता का क्या लाभ है? आपमें सम्मान होना चाहिए। अपने आम बात है कि इस प्रकार का टोप पहनना है, इस प्रकार के वस्त्र पहनने हैं, या इस अस्तित्व का सम्मान। केवल मानव होने प्रकार का चुर्रट लेकर चलना है। ये सभी का ही नहीं सहजयोगी होने का भी सम्मान बन्धन है। आजकल महिलाओं ने होना चाहिए। आप सहजयोगी हैं। हम अजीबो-गरीब केश शैलियाँ बना ली हैं। शिव भक्त हैं, हमें इन चीज़ों की बिल्कुल क्योंकि वो अपने बालों में वे तेल नहीं भी चिन्ता नहीं करनी है। चाहे जो भी हो डालती, बालों में वे किसी प्रकार की चिकनाई शिव हमारे अन्दर विद्यमान हैं और हमारे नहीं चाहती। उन्हें अगर किसी से मिलने अन्दर विद्यमान उनकी शक्ति कुण्डलिनी जाना हो तो पहले वे अपने बालों को के तेज से हम तेजस्वी हैं। आपने चाहे धोएंगी। मैं नहीं सोचती कि ऐसा करना कितने अच्छे वस्त्र पहनें हों या जो भी हों अच्छा लगता है। निःसन्देह मैं ये भी नहीं यदि आपकी चैतन्य लहरियाँ खराब हैं तो कहती कि आप के चेहरे पर या कानों पर बाकी सब चीजें व्यर्थ हैं । लोगों को यदि आप उनकी चैतन्य लहरियों से नहीं परख सकते तो उनके अटपटे वस्त्र और मूंछें जीवन में एक अन्य चीज़ भी है कि हम व्यर्थ हैं। सहजयोग में आपके भी बहुत सा तेल लगा हुआ हो। परन्तु ये सब करना इतना आवश्यक क्यों है? मूल्य अपने तक ही सीमित हैं, हम लोगों को सहज होने चाहिए। मैंने लोगों को देखा है. प्रभावित करना चाहते हैं। मैं जो भी वस्त्र "मुझे उनका घर पसन्द नहीं है, मुझे ये पहनँ उससे अन्य लोग प्रभावित हों । मान पसन्द नहीं है मुझे वो पसन्द नहीं है। 'मुझे लो कि लोग प्रभावित हुए तो क्या? कोई पसन्द नहीं है' ये वाक्य निषिद्ध है । साँप यदि आपके समीप से निकला तो सहजयोगियों को ये वाक्य त्याग देना चाहिए, आपको काट लेगा चाहे आपने कोई भी आपको यदि कोई चीज़ पसन्द नहीं है तो वस्त्र पहने हों या आपका सम्बन्ध किसी आप सहजयोगी नहीं हैं। अब मान लो भी देश से हो। इस प्रकार की पहचान कोई व्यक्ति सहज-विरोधी है परन्तु ये | हुए चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 14 कहने से आपको क्या लाभ है कि मुझे तब तक आप इसमें लगे रहें। परन्तु अपनी पसन्द नहीं है? यह तो अपनी शक्त को आध्यात्मिक शक्तियों का आनन्द लेने के बर्बाद करना है। इसके कारण सहजयोग लिए आपको कुछ चीजें सीखनी होंगी और में मैंने देखा है लोगों ने मेरे लिए बहुत सी उनमें से एक है अपने इस बन्धन से मुक्ति समस्याएँ खड़ी कर दी, केवल इसलिए पाना-मुझे पसन्द नहीं है या मुझे पसन्द क्योंकि वे स्वयं तक सीमित हैं। ये व्यक्ति है। यह वाक्य आपकी जबान से चला खराब है, वह महिला खराब है, वह ऐसा जाना चाहिए। पसन्द और नापसन्द केवल है, वह वैसा है। कई बार मुझे आश्चर्य सीमित दृष्टि वाले लोगों की होती है। होता है क्योंकि जब वो लोग मेरे पास आते आपको सराहना करनी सीखनी चाहिए। हैं तो मैं हैरान होती हैँ कि वो तो बहुत आपकी सराहना करने की शक्ति इस बात अच्छे लोग हैं! परन्तु कुछ लोग अपने तक को दर्शाएगी कि आध्यात्मिक रूप से आप ही सीमित हैं। मैंने ऐसे भी लोग देखे हैं जो कितने समृद्ध हैं और आपकी अवलोकन सहज सभाओं में आने की, पूजाओं में आने शक्ति यह दर्शाएगी कि आप कितना की भी चिन्ता नहीं करते। कुल मिलाकर अवलोकन करते हैं । उदाहरण के रूप में ग्याहरह पूजाएं होती हैं परन्तु वे नहीं आते। कुछ लोग आकर मुझे बताते हैं, "वह महिला इसलिए कि वे व्यस्त हैं कम से कम एक मुझे अच्छी नहीं लगी, उसने बड़ी अजीब पूजा पर तो उन्हें आ जाना चाहिए। जो सी साड़ी पहनी हुई थी।" यह सब क्या लोग शिव भक्त हैं उन्हें पूजाओं के अतिरिक्त है? "मुझे वह पसन्द नहीं आई क्योंकि किसी चीज़ का आनन्द नहीं आता, किसी उसने अपना हाथ अपने सिर पर रखा भी चीज़ का नहीं। उनका पूर्ण अस्तित्व ही हुआ था | " तो क्या हुआ? क्योंकि लोगों के शिव भक्ति से सराबोर होता है। उनके विषय में आपकी अपनी कल्पनाएं हैं और लिए केवल वही कार्य महत्वपूर्णतम है। सहजयोग में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो आपकी कल्पना अनुरूप नहीं हैं तो वे यहाँ पैसा बना रहे हैं। ये अत्यन्त गलत है, आपको अच्छे नहीं लगते। कोई भी चाहे ार आप चाहते हैं कि लोग वैसे हों । यदि वे अत्यन्त गलत है, अत्यन्त गलत है। आपको पसन्द हो या न हो वह परिवर्तित सहजयोग आपको पुण्य और आशीर्वाद देने होने वाला नहीं है। तो क्यों अपनी शक्ति के लिए है। ये बात यदि आपके मस्तििष्क को बर्बाद करना है? कई बार ऐसे संगीतकार में नहीं है तो अच्छा होगा आप सहजयोग होते हैं जो बहुत अच्छे नहीं होते मुझे छोड़ दें। आप अत्यन्त आसानी से कोई भी याद है कि एक बार घर जाकर मैंने अपने व्यापार या उल्टा-सीधा कार्य कर सकते पिताजी से पूछा था, "ये संगीतकार कैसा हैं। जब तक आप जेल में नहीं चले जाते गाता है?" उन्होंने उत्तर दिया, "वह बहुत जुलाई-अगस्त 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 15 सी साहसी " मैंने कहा, हो जाते हैं । सहजयोगी के रूप में भी आप साहसी है, "क्यों, क्या हुआ?" कहने लगे, "वो बिना गैर जिम्मेदार बन जाते हैं । किसी चिन्ता के गाता है और कभी-कभी बहुत सहजयोग आपकी सबसे पहली और तो बेसुरा भी हो जाता है। कई बार उसे सर्वोपरि ज़िम्मेदारी है । आपको इस बात ताल का भी ध्यान नहीं रहता, परन्तु कोई का ज्ञान होना चाहिए कि ये कार्य क्या है? बात नहीं इसके बावजूद भी वह गाता ये अत्यन्त महान कार्य है-पूरे विश्व को रहता है। वह बहुत साहसी है, बहुत ही परिवर्तित करना हिम्मतवाला है। तो मैंने देखा कि वे इस आज इस वृद्धावस्था में भी मैं यही सोचती प्रकार से सराहना किया करते थे। इस हूँ। यदि मेरा ये स्वप्न है तो आपका व्यक्ति ने जब गाना शुरू किया तो शुरू से दृष्टिकोण क्या होना चाहिए? आप सब ही वह ऐसे ही गा रहा था परन्तु मेरे लोगों को जी जान से सहजयोग प्रचार पिताजी वाह, वाह करके उसे उत्साहित प्रसार में लग जाना चाहिए। मैं आपको कर रहे थे मैंने अपने पिताजी में ये गुण कायाकल्प करने के लिए. और अधिक देखे हैं, किस प्रकार से वह सहन किया शक्ति देने के लिए इन पूजाओं में बुलाती करते थे-केवल सहन ही नहीं करते थे, हूँ परन्तु यदि इसे महान आशीर्बाद समझकर सराहना भी करते थे। सभी प्रकार की आप घर पर ही बैठे रहते हैं तो इसका चीजों की सराहना किया करते थे। कोई लाभ नहीं । सहजयोग आपको अवश्य सहजयोगियों में यदि सराहना करने का फैलाना चाहिए। यह गुण हो तो उन्हें भी हर चीज़ का आनन्द आएगा। परन्तु आप लोग अपने सिर्फ 200 सहजयोगी हैं तो तो मुझे बहुत आनन्द का गला घोट देते हैं। क्या आपको हैरानी हुई। ये कैसे हो सकता है। पहली मेरा यही स्वप्न है। जब उन्होंने मुझे बताया कि लखनऊ में इस बात का ज्ञान है? यहाँ पर आप भिन्न बार मैं जब लखनऊ गई थी तो वहाँ 3000 प्रकार के लोग हैं भिन्न वेशभूषाएं हैं, भिन्न सहजयोगी थे और तब किसी सभागार परिवार हैं और आप भिन्न देशों से आदि का भी प्रबन्ध न था। अचानक इतने सम्बन्धित हैं। मेरे लिए आप सहजयोगियों, सारे लोग चले गए, क्या आप इस बात की मेरे बच्चों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं, कल्पना कर सकते हैं! ये कैसे हो सकता केवल इतना ही। आपके वस्त्रों से, आपकी है बालों की शैली से मैं आपका आँकलन नहीं तो आप झूठ बोल रहे हैं या आप बेकार करती। ये सभी आधुनिक चीजें बन्धनों में हैं । फँसाने वाली हैं। इस प्रकार से ये आपको बन्धनग्रस्त करती है कि आप गैर ज़िम्मेदार सभी सहजयोगियों की प्रथम जिम्मेदारी 1 कि वहाँ केवल 200 सहजयोंगी हों या अतः सहजयोग का प्रचार-प्रसार करना चतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 16 है। आपने कितने लोगों को आत्म-साक्षात्कार विश्वविद्यालयों में युवा लोगों के पास जाना दिया? कहाँ पर आपने सहजयोग की बात होगा यदि हिप्पी मत फैल सकता है तो की। मैंने देखा है कि हवाई जहाज में यात्रा सहजयोग क्यों नहीं फैल सकता? हिप्पी करते भी कोई यदि मेरे साथ बैठा हो मत जंगल की आग की तरह से फैला तो हुए तो वह मेरे सम्मुख अपनी गुरु की प्रशंसा सहजयोग क्यों नहीं? के पुल बाँध देता है । निर्लज्जता पूर्वक खुल्लम-खुल्ला इन भयानक गुरुओं की चेतावनी देनी है-सावधान हो जाएं । आपको बात करता है और आप लोग सहजयोग यदि आत्म साक्षात्कार मिल गया है तो की बात करते हुए भी शर्माते हैं। जब तक आपकी जिम्मेदारी भी है, अन्य लोगों को जन कार्यक्रम न हों, कोई विशेष कार्यक्रम आत्म साक्षात्कार देना और सहजयोग का न हों, आप सहजयोग की बात नहीं करते। प्रचार करना। इन सभी चीज़ों के विषय में मुझे आपको दूसरे आपके पास सहजयोग के लिए समय आप लोग यदि यह कार्य नहीं कर सकते तो परमात्मा ही आपकी रक्षा करें। भी नहीं है। आप सब व्यस्त लोग हैं। अतः आप यदि श्री शिव की भक्ति करना इसके आगे मुझे कुछ नहीं कहना। "आपको चाहते हैं, उनका आशीर्वाद, उनकी सुरक्षा अन्तर्वलोकन करना होगा मैंने सहजयोग चाहते हैं तो आपको उच्च स्तर का के लिए क्या किया, सहजयोग से मैंने क्या सहजयोगी बनना होगा इस चीज़ का पाया?" मुझे विश्वास है कि इस शिव पता तब लगेगा जब आप जी जान से के पश्चात् आप स्वयं को शिव तत्व के सहजयोग प्रचार के लिए निकल पड़ेंगे। मैं प्रति समर्पित कर देंगे। शिव तत्व कभी बहुत प्रसन्न हूँ कि आस्ट्रेलिया में सहजयोग उत्तेजित नहीं होता, यह अत्यन्त प्रचण्ड बहुत फैला है। मैं नहीं जानती वहाँ क्या है। बहुत ही शक्तिशाली है । आपको समर्पित हुआ, आस्ट्रेलिया जैसे दूर-दराज देश में। होना है इसके सम्मुख नतमस्तक होना आरम्भ में तो वहाँ कुछ परेशानियाँ हुई है। अन्य सभी कार्यों से, सभी गतिविधियों परन्तु अब वहाँ सहजयोग फैल गया है । से यह कहीं उच्च है। आस्ट्रिया में भी सहजयोग फैला है और इटली में भी। वैसे सहजयोग फैलता ही कि वे आपको आशीर्वाद दें, अपना पूर्ण पूजा ह इसी के साथ मैं श्री शिव से कहती हूँ नही, क्या कारण है? इसका कारण ये है आशीर्वाद ताकि आप सब लोग भी श्री शिव में परिवर्तित हो जाएं। कि अगुआगण पूरी तरह से प्रयतलनशील के व्यक्तित्व नहीं हैं। इंग्लैण्ड में मैं उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम सभी दिशाओं में गई परन्तु वहाँ परमात्मा आपको धन्य करें। पर बहुत ही कम सहजयोगी हैं। आपको जन्म दिवस पूजा निर्मल धाम, दिल्ली, 21.3.2002 (परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) न मैं इन्हें प्रेम के विषय में बता रही हूँ, तक चाहें इस घृणा को तर्कसंगत ठहराते सर्वशक्मािन परमात्मा के सर्वव्यापी प्रेम के रहें । हमारा देश जो कि अत्यन्त परिपक्व विषय में उन्होंने ही सारा सृजन किया है एवं शान्तिप्रिय देश माना जाता है यहाँ भी पूरा वातावरण बनाया है प्रेम की पूर्ण ऐसे लोग हुए हैं जिनका मार-धाड़ और भावना दी है। परन्तु यह उन्हीं लोगों के हत्या में ही विश्वास था । इसे मार दो, उसे लिए है जो बच्चों की तरह से अबोध हैं। मार दो। अतः इन चीजों में विश्वास न यदि आप घृणा में परिपक्व हैं तो कोई करने वाले इस देश में भी लोग बहुत आपकी रक्षा नहीं कर सकता। अपनी घृणा पूराने समय से भिन्न प्रकार की हिंसा को न्यायोचित ठहराने के लिए आपके पास करते चले आ रहे हैं। परन्तु मूलतः हम अनगिनत तर्क मिल जाएंगे। जिस सीमा शान्तिप्रिय लोग हैं क्योंकि शान्ति के बिना चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 18 उत्क्रान्ति हो ही नहीं सकती। पूर्ण शान्ति का बँटवारा हुआ था जिसमें बहुत से लोगों का होना आवश्यक है। आपके हृदय में को जान और माल गँवाने पड़े थे ये सब यदि शान्ति है, आपके चहूँ ओर यदि शान्ति मैंने स्वयं देखा है! ऐसी स्थिति में लोग है, केवल तभी आप सुन्दर राष्ट्र के रूप में किसी को क्षमा कर पाने में असमर्थ थे। अतः क्षमा अन्य लोगों के दुःख और के कारण नही। परन्तु आपके हृदय में तकलीफों को समझने का बहुत अच्छा यदि पूर्ण शान्ति है तभी न केवल आप मार्ग है परन्तु ये गुण आपको अपने अन्दर भयमुक्त होते हैं परन्तु आपके अन्दर से विकसित करना होगा क्रोधित और प्रतिशोध शान्ति भी प्रसारित होती है। ऐसा व्यक्ति की भावना से परिपूर्ण की अपेक्षा आप यदि शान्ति प्रसारित करता है। उसके पास अपने अन्दर वो शान्ति विकसित कर लें, जाने वाले हर व्यक्ति को शान्ति प्राप्त परमेश्वरी प्रेम के माध्यम से यदि आप वो होती है और उसमें शान्ति की भावना आ मानसिक शान्ति प्राप्त कर लें तो आपको कुछ और करने की आवश्यकता नहीं होगी । आप सभी सहजयोगी हैं आपको आत्म यही शान्ति आपके हृदय में है इसे महसूस साक्षात्कार मिल चुका है अर्थात आपकी करें आप शान्त व्यक्ति हैं जल्दी से उत्तेजित आत्मा प्रेम एवं चैतन्य लहरियों का प्रसार होने वाले व्यक्ति नहीं। अपने क्रोध के लिए करने लगी है। आप जहाँ भी होंगे शान्तिमय या लोगों का मिजाज़ बिगाड़ने के लिए चैतन्य लहरियों का प्रसार करेंगे शान्ति आप कोई सफाई नहीं देंगे, आप ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे। आप इस क्रोध और मूर्खतापूर्ण करने की विधियाँ खोज निकालेंगे कि प्रतिशोध से ऊपर उठ सकते हैं । जो लोग आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं उन्हें उन्नत हो सकते हैं, किसी भय या दबाव जाती है। का आप सृजन करेंगे शान्ति का सृजन वातावरण में शान्ति किस प्रकार स्थापित करनी है। हमारा इस प्रकार से उन्नत समझा पाना कठिन है क्योंकि उनसे यदि होना महत्वपूर्ण है कि हम शान्ति का सृजन मैं बात करूंगी तो उन्हें अच्छा न लगेगा । करें, अन्य लोगों को शान्ति प्रदान करें और वो यदि आत्मसाक्षात्कार ले लें केवल तभी हम उनसे बातचीत कर सकते हैं । अतः सर्वोत्तम कार्य यह है कि सहजयोग इसका उदाहरण बन जाएं। मुझे विश्वास नहीं होता कि दिल्ली में भी इतनी अधिक संख्या में लोग साक्षात्कारी को फैलाएं। इसे सर्वत्र, सिखों में, मुसलमानों हो सकते हैं। मैंने कभी इसकी आशा न में और इसाईयों में तथा विशेष रूप से की थी। आरम्भ में तो मुझे तब तक प्रतीक्षा हिन्दुओं में फैलाएं क्योंकि आज कल मुझे करनी पड़ी जब तक लोगों में मेरे कार्य को लगता है हिन्दू लोगों ने भी अपने देश तथा समझने का विवेक न आ गया क्योंकि देश इसकी संस्कृति की समझ पर पकड़ खो चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 19 दी है। यही कारण है कि वो प्रतिशोध लेते लेना-देना? निश्चित रूप से मैं इस बात हैं। इस प्रकार का प्रतिशोध मेरी समझ में को जान सकती हूँ और आप सब जान नहीं आता। परन्तु क्या किया जाए? लोग सकते हैं कि बाबरी मस्जिद ही वह स्थान उस स्तर तक पहुँच गए हैं, उस अधम था जहाँ श्री राम का जन्म हुआ। स्तर पर, जहाँ वे बहुत सी चीजें नहीं समझ पाते। उदाहरण के रूप में लोग नहीं चाहते बनने से किसी को क्या कष्ट हो सकता कि एक स्थान विशेष पर श्री राम का है? कहने से मेरा अभिप्राय है कि यह तो मन्दिर बने। इसका कारण उनका केवल सम्मान और भावनाओं का प्रश्न है। सहजयोगी न होना है। मैं उन्हें बता सकती मैं श्री राम का नाम लेती हूँ , सभी लोग वहाँ यदि मन्दिर बन जाए तो लोगों को क्या परेशानी हो सकती है। वहाँ मन्दिर उनका नाम लेते हैं क्योंकि इससे अत्यन्त हूँ क़ि यह वही स्थान है जहाँ श्री राम का जन्म हुआ हमें उनके अवतरण को पूर्ण सुख और शान्ति मिलती है परन्तु जिस सम्मान देना चाहिए। यदि वही उनका प्रकार से लोग इस चीज़ को देखते हैं यह जन्म-स्थल है तो हम इस तथ्य को अत्यन्त कठिन कार्य है आप उनसे बात चैतन्य-लहरियों पर महसूस कर सकते नहीं कर सकते। हैं। तो क्यों इस वास्तविकता, इस सच्चाई को नकारें? केवल इसलिए की आप इस रहे हैं कि कश्मीर में मोहम्मद साहब का कार्य को नहीं चाहते। उन लोगों से एक बाल है। अब किसी ने कह दिया बात-चीत करना बहुत कठिन है। हमारे लिए समझने की बात ये है कि जानते हैं? ये निर्णय करने का आपका क्या बाबर ने हमारे लिए क्या किया? बाबर मापदण्ड है कि ये बाल किसका है? आप कौन था? बाबर एक विदेशी था जिसने हैरान होंगे कि मैं जब कश्मीर गई थी तो अब वे एक अन्य मूर्खता की बात कर कि यह बाल उनका नहीं है। आप कैसे इस स्थान को बनाया तक नहीं। नहीं, हम कार से कही जा रहे थे। अचानक उसने नहीं बनाया ये तो उसकी सेना के मुझे बहुत तेज चैतन्य लहरियाँ महसूस किसी अधिकारी ने किया था और इसीलिए हुई तब मैंने चालक से पूछा, "तुम कार इसे बाबरी मस्जिद कहा जाता है। परन्तु आइए देखते हैं कि इन श्रीमान कहने लगा, क्यों? "क्योंकि मैं जाना चाहती बाबर के साथ क्या हुआ? उनकी मृत्यु हो हूँ।" वह कहने लगा, "ये एक पुरानी सड़क गई। परन्तु आए वो विदेश से ही थे। वो है और बहुत थोड़े से लोग यहाँ पर रहते तो भारतीय भी नहीं थे तो भी कोई बात हैं" "कोई बात नहीं। आप गाड़ी ले चलो।" नहीं। परन्तु उस स्थान से उनका क्या वह उस स्थान के समीप पहुँचता गया। को इस और क्यों नहीं ले चलते?" वह সtc चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 20 वहाँ पर मुसलमानों के कुछ घर थे हमने स्थान है। किसी तरह से । मैं नहीं जानती, उन्हें बुलाया और उनसे पूछा, "यहाँ क्या हो सकता है किसी ने उन्हें बताया हो, मैं हो रहा है?" उन्होंने उत्तर दिया, "यह नहीं जानती उन्हें किस प्रकार पता चला हजरत बल है।" नाम से ही इतनी शान्ति परन्तु चैतन्य लहरियों का ज्ञान तो उन्हें प्राप्त होती है । यह मोहम्मद साहब का एक नहीं है। अभी तक मुझे ऐसे बहुत से हिन्दू नहीं मिले हैं जिनमें चैतन्य-लहरियाँ हों-मेरा बाल था। अब हिन्दू मोहम्मद साहब के विषय में कहने का अभिप्राय इन धर्मान्ध लोगों से नहीं जानना चाहते और मुसलमान श्री राम है। उन्हें कभी चैतन्य लहरियाँ नहीं आतीं। के विषय में। यह आश्चर्य की बात है मैं हैरान होती थी कि किस प्रकार उन्हें सबने अपनी दुकानें खोली हुई हैं और पता चला कि यह श्री राम की जन्मभूमि अपनी-अपनी चीजें बेच रहे हैं उन्हें इस है। हो सकता बात की समझ नहीं है कि जो वो बेच रहे इसका पता चल गया हो। परन्तु इससे वे हैं अन्य लोग भी वही बेच रहे हैं। उदाहरण कुछ प्रमाणित नहीं कर सकते। यदि वो के तौर पर वो अल्लाह का नाम लेते हैं। आत्मसाक्षात्कारी होते, यदि हमारे उच्च अल्लाह कौन हैं? सहजयोग के अनुसार न्यायालय के न्यायाधीश साक्षात्कारी होते. अल्लाह श्री विष्णु के अतिरिक्त कोई अन्य यदि हमारा मंत्रीमण्डल साक्षात्कारी होता नहीं और श्री विष्णु ही श्री राम के रूप में तो उनसे बात की जा सकती थी। परन्तु अवतरित हुए। अतः जिस अल्लाह की वे वे सब, मैं क्या कहूँ, पूरी तरह से बाधित है किसी तरह से उन्हें कु बात करते हैं वे स्वयं श्री राम हैं। इस बात लोग है। किस प्रकार उन्हें बताया जाए कि को केवल एक सहजयोगी ही समझ सकता ये झगड़ा सिर्फ मूर्खता है! वहाँ श्री राम का है। मैं जब इसके विषय में बात कर रही हूँ मन्दिर बनाया जाना बिल्कुल ठीक हैं । आप यदि अपने हाथ फैलाएं तो ये जानकर आप है रान होंगे कि कितनी अच्छी सर्वप्रथम उन सबको आत्म-साक्षात्कार लेना चैतन्य-लहरियाँ बह रही हैं क्योंकि श्री होगा। राम ही अल्लाह हैं । अपनी मूर्खता के कारण आप उन्हीं का अपमान करने का प्रयत्न देखें कि आत्मसाक्षात्कारी लोग पर्याप्त मात्रा आप जो चाहे कहते रहें । समस्या ये है कि अभी, जब हम ये बात कर रहे हैं, आप में नहीं है। आप सब आत्मसाक्षात्कारी हैं। कर रहे हैं। अतः यह मोहम्मद साहब के शिष्यों की अभी कोई मुझसे बता रहा था कि वह मूर्खता है या हिन्दुओं की। हिन्दू भी इस व्यक्ति जो महन्तों को आत्मसाक्षात्कार दे बात को नहीं समझ रहे हैं। किसी तरह से रहा था, महन्त वो लोग होते हैं जिन्हें सन्त उन्हें यह ज्ञान है कि यह श्री राम का जन्म समझा जाता है, कि जब उन महन्तों को चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 21 यह आम बात है। बहुत से लोगों ने पर्दाफाश हो गया उसकी समझ में नहीं मुझे बताया, "हमने एक पादरी को आत्म साक्षात्कार मिल गया तो उनका आ रहा था कि वह उनका क्या करें? कहीं आत्मसाक्षात्कार दिया, उसका पर्दाफाश हो भी ऐसा घटित हो सकता है चाहे वो इसाई गया।" "अर्थात क्या हुआ?" "श्रीमाताजी, चर्च हो या यहूदी हों। सर्वत्र आपको ये उसकी पोल खुल गई। उसे कैद में डाल समस्या मिले गी। आप यदि उन्हें दिया गया ।" "अरे! यह तो ज्यादती है। आत्मसाक्षात्कार देंगे तो उनका प्दाफ़ाश आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् वह हो जाएगा। अतः उन लोगों को परेशान जेल चला गया!" करने का क्या लाभ है जिनकी श्रद्धा इन महन्तों में है और जो इन्हें बहुत महान नहीं हो सकते। प्रेम में तो आपको पावन समझते हैं। इन लोगों को केवल चैतन्य व्यक्तित्व होना होगा। स्वयं को पवित्र करने लहरियों के माध्यम से ही समझा जा सकता के लिए संघर्ष करें। आपको परिवर्तित होना है। परन्तु प्रेम के वशीभूत होकर मैं उन्हें है। अब भी यदि आपको क्रोध आता है, बता नहीं सकती कि आप लोग अब भी यदि आप में लालच है, अब भी आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं। श्री राम या मोहम्मद यदि आप में ये दोष बने हुए हैं तो प्रेम अंतः यह समस्या है। प्रेम में आप पाखण्डी साहब के विषय में बातें करना आपका कार्यान्वित नहीं होगा। यह कार्य न करेगा । काम नहीं है। वे आपसे अब समस्या अज्ञानियों तथा ज्ञानवान हमें पावनता का मूल्य समझना होगा। क्यों लोगों में है। पहले इनकी दूरी बहुत अधिक मैं बच्चों से प्रेम करती हूँ? क्योंकि वे थी। कोई एक व्यक्ति आत्मसाक्षात्कारी हुआ करता था, तो लोग उसे पत्थर मारा करते नहीं है। जैसे हमारे देश में भ्रष्टाचार महामारी थे, पीटते थे तथा सभी प्रकार से सताते की तरह से फैलने लगा है - महामारी की थे। अब आप लोग बहुत बड़ी संख्या में हैं। तरह से। यह साधारण बात नहीं है। किसी इस अवस्था में भी आप यदि कोई प्रदर्शन को भी आप देखें, हर तीसरे व्यक्ति को करें तो कोई आपको नहीं सुनेगा। मैं आपसे भ्रष्टाचार का रोग लगा हुआ है! क्यों? एक ही प्रार्थना करूंगी अधिक से अधिक क्योंकि सभी धन- लोलुप हैं। ठीक है। परन्तु लोगों को आत्मसाक्षात्कार दें-इन तथाकथित उस पैसे से वो करते क्या हैं? उनकी आध्यात्मिक लोगों को नहीं, सर्वसाधारण समझ में नहीं आता कि इसे किस तरह से लोगोंको-क्योंकि इन तथाकथित आध्यात्मिक छुपाएं । इस धन को वे किसी मटके आदि लोगों का तो पर्दाफाश हो जाता है, इन्हें में डाल देते हैं और अन्ततः यह सारा धन किसी को भी दिव्य प्रेम करने से पूर्व परे हैं। बहुत अबोध (निश्छल) हैं। उनमें ये सब दोष | खो जाता है। ऐसा यदि न भी तो वे साक्षात्कार देने का क्या लाभ है? हुआ चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 22 पकड़े जाते हैं। यह सब बातें महत्वपूर्ण पूरे विश्व को अपने पाश में बांध ले। यह नहीं हैं। महत्वपूर्ण बात तो यह है कि यह शक्ति है, यह कार्यरत है । आपको तो लालच होना ही क्यों चाहिए? धनवान लोग केवल इसका माध्यम बनना होगा, ऐसे निर्धन लोगों की अपेक्षा कहीं अधिक लालची व्यक्ति जो इस प्रेम का संचार कर सकें। हैं क्योंकि निर्धनों को परमात्मा का कुछ तो प्रेम के इस खज़ाने पर आपका पूर्ण अधिकार डर है! धनबान अत्यंत लोभी हैं। वे सदैव किसी न किसी चीज़ के पीछे दौड़ते रहते मैं देखती हूँ कि यहाँ भी लोग धन की भाषा ह । में सोचते हैं । धन प्रेम का दुश्मन है मैं है । इसे आप सर्वत्र फैला सकते हैं। परन्तु हैं। इस दौड़ का कोई अन्त नहीं है आश्चर्य की बात है कि हमारे इस देश में आपको विश्वास पूर्वक बताती हूँ कि यदि भी यह रोग लग गया है! इसी रोग के अब भी आपका रूझान धन की ओर है तो कारण, कुछ लोग सहजयोग को व्यापार आप कभी सहजयोंग में उन्नति नहीं कर बना रहे हैं और सहजयोग से धन एकत्र सकते मैं मानती हूँ कि मैं निराश हूँ। मेरी कर रहे है। यह लालच आपके विकृत दायें पक्ष (Right समझ में नहीं आता कि किस प्रकार चीजों Side) की देन है और आप इसे न्यायोचित में रुचि लूं। इसमें रुचि लेने वाला क्या है? ठहराने लगते हैं। दायीं और की विकृतियों लोग मुझ पर हँसते हैं कि "आप को सीधी-सीधी सी चीज़ों का भी ज्ञान नहीं है, आप रुपये गिनना भी नहीं जानतीं? मैंने में प्रेम का कोई स्थान नहीं है। अब ये लालच इस सीमा तक बढ़ गया है कि पूरा देश इससे नष्ट हो रहा है। इस कहा, "मैं जानती हूँ।" मैं आपको वैसे ही प्रकार हम कभी उन्नत नहीं हो सकते। बता सकती हूँ कि कितना पैसा है, पर इस दोष के रहते हम कोई भी उपलब्धि इसमें मेरी कोई रुचि नहीं है। दिलचस्पी नहीं पा सकते। आप यदि अपने देश को लेने के लिए बहुत सी अन्य चीजें हैं । आप प्रेम करते हैं, देश प्रेम यदि आपके हृदय में बच्चों को देखें, अच्छे-अच्छे लोगों को देखें । है तो कभी भी आप लालच नहीं करेंगे। विश्व में बहुत से अच्छे लोग हैं, सुन्दर परन्तु उस प्रेम का अभाव है। वे प्रेम करते लोग हैं, सुन्दर चीजें हैं। बेकार की चीजों हैं मेरी समझ में नहीं आता कि वो किसे पर क्यों चित्त बर्बाद करना है? ये तो आती प्रेम करते हैं! अपने बच्चों से वे इस प्रकार जाती रहती हैं । परन्तु आकर्षकतम चीज़ प्रेम करते हैं कि उस प्रेम से बच्चों का भी तो यहाँ विद्यमान है। जीवन ही नष्ट कर देते हैं! मेरे विचार से भारत में स्थिति सबसे प्रेम की कोई सीमा नहीं होती। प्रेम तो खराब है लोग कहते हैं भारत सबसे भ्रष्ट असीम होना चाहिए। इतना असीम प्रेम कि देश है, परन्तु मैं नहीं जानती। मैंने कभी चैतन्य लहरी खंड-XIV अक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 23 ऐसा कुछ नहीं देखा। व्यक्ति को सच्चा होना चाहिए। आज जैसे अवसर पर यह है? देखें, हर समय वे क्या सोचते हैं-किस सोचना अत्यन्त शुभकर है कि आपके लिए प्रकार यह फैशन किया जाए? फैशन, क्योंकि धन का कोई मूल्य नहीं है यह मूल्यहीन आपके पास यदि धन नहीं है तो आप वो है और आपको आश्चर्य होगा कि आपको धन की कभी कमी न होगी कभी नहीं । इतनी आम बात हो गए हैं कि सभी लोग सहजयोग में आपने यह स्थिति प्राप्त करनी फैशन के पीछे भटक रहे हैं । फैशन तक है कि धन का कोई मूल्य नहीं। धन में यदि वे नहीं पहुँच पाते तो वो सोचते हैं कि कोई रुचि नहीं । आपका वैभव तो इस बात उनमें कोई कमी है। परन्तु आप लोगों पर में है कि आप कितने लोगों को सहजयोग यह बात लागू नहीं होती क्योंकि आप में लाए, कितने लोगों को सहजयोग का सहजयोगी हैं। आनन्द प्रदान किया आपने इसे खरीदा नहीं था। किसी ने भी सहजयोग को खरीदना आपने क्या करना है? ऐसे लोगों पर दया नहीं है। यह तो सर्वत्र निःशुल्क प्रसारित करें। उनका तिरस्कार न करें, उन पर है। ये आनन्ददायी है। धन से इसके दया करें उन्हें बतायें कि "तुम क्या कर आत्महत्या क्यों करते? उनका क्या लाभ फैशन नहीं कर सकते। आजकल फैशन आप यह सब घटित होते देखते हैं, अब रहे हो? क्यों अपना समय बर्बाद कर रहे अलिरिक्त आप क्या पाने की आशा करते हैं? कुछ नहीं। धन से तो केवल सिर दर्द, हो? आत्मसाक्षात्कार रूपी जीवन के भय और सभी प्रकार की समस्याएं आती महानतम लक्ष्य को पाने का, आपके लिए हैं। अतः हमारे सहजयोग के समानान्तर चीजों के पीछे दौड़ रहे हैं? यह चूहा दौड़ स्वतन्त्र जीवन, पूर्ण स्वतन्त्रता एवं आनन्द दौड़ने के लिए आपको कौन विवश करता होना चाहिए। किसी चीज़ की चिन्ता न है?" हो। धन पर कुछ भी निर्भर नहीं। मैंने अत्यन्त निर्धन अवस्था में रहने वाले लोगों और लोग इसके विषय में सोच रहे हैं । को भी अत्यन्त प्रसन्न एवं आनन्दित देखा परन्तु आप ही वह लोग हैं जो समाधान दे है। और जिन लोगों के पास बेशुमार दौलत है, विशेषतः विदेशों में, उन्हें उदासी और पर कार्यन्वित कर सकते हैं । खिन्नता से पीड़ित पाया है वहाँ बड़ी अजीब स्थिति है। वहाँ लोग आत्महत्या ऐसे लोग देखे हैं जिनके पास कुछ नहीं । कर लेते हैं क्यों? यदि धन ही सब कुछ वे आध्यात्मिक भी नहीं हैं। वे आत्मसाक्षात्कार होता तो इन वैभवशाली देशों के लोग भी नहीं दे सकते, कुछ भी नहीं दे सकते। यह सर्वोत्तम समय है क्यों आप व्यर्थ की मेरे विचार से सर्वत्र यह पराकाष्टा है सकते हैं। आप इसे बहुत ही विस्तृत स्तर कहने से मेरा अभिप्राय ये है कि मैंने चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 24 परन्तु क्योंकि वे सामाजिक कार्य कर रहे और अधिक अभिव्यक्ति करें, अन्य लोगों हैं, इसलिए वे प्रसिद्ध हैं । सामाजिक कार्य से कार-व्यवहार करते हुए उस प्रेम की क्या है? गरीबों आदि की देखभाल करना अभिव्यक्ति करें। इस प्रकार से अपना प्रेम या ऐसा ही कोई और कार्य । जब आपका अभिव्यक्त करें कि अन्य लोगों को इससे प्रेम, जो कि इतना महान है. प्रभावशाली है, खुशी मिले। इसके विषय में विचार किया कार्य करने लगता है तो आप में यह भाव जाना चाहिए। आप यदि सच्चे सहजयोगी आता है कि आप कुछ करें। ऐसी स्थिति हैं तो किस प्रकार परस्पर झगड़ सकते हैं? जब आएगी तो, आप हैरान होंगे, किस यदि वो सहजयोगी हैं तो किस प्रकार आप प्रकार लोग सहजयोग को समझते हैं! अभी तक सहजयोग ठीक है, लोग बहुत सहजयोगी हैं तो कैसे आप धोखा दे सकते अच्छे हैं, बढिया कुछ है। परन्तु इसका प्रभाव दिखाई पड़ना आपकी रुचि नहीं होनी चाहिए। ऐसा होने चाहिए, आपके प्रेम का प्रभाव लोगों को का अर्थ ये होगा कि आपका समाधान हो दिखाई देना चाहिए। सर्वप्रथम क्षमा आपको क्षमा करना है। लोग अत्यन्त मूर्ख आप निर्मल हैं। कोई आपको छू नहीं सकता। हैं। अभी मैंने आपको बताया है कि लोग कितने मूर्ख हैं! अतः किसी चीज की चिन्ता अपने प्रति आपमें सम्मान भाव होना चाहिए। उनका अपमान कर सकते हैं? आप यदि हैं. सन्त-सुलभ हैं, सभी हैं? यह सम्भव नहीं है। इन चीज़ों में है। गया है, आप स्वच्छ हो गए हैं और अब इस प्रकार का दृष्टिकोण होना चाहिए। करने की आवश्यकता नहीं है। आप यदि आपकी भूमिका क्या है? आपका पद क्या विवेकशील व्यक्ति हैं तो विवेक पूर्वक हर है? आप को ज्ञान होना चाहिए कि आप चीज को परखें तथा फैशन आदि के शिकंजे आत्मसाक्षात्कारी हैं और आत्मसाक्षात्कारी में न फसे। समूह बिल्कुल न बनाएं। इसकी व्यक्ति के रूप में अपने कर्त्तव्यों का ज्ञान कोई आवश्यकता नहीं है। हम सहजयोगी आपको होना चाहिए। अन्य पागलों की हैं। हम आत्म- निर्भर हैं। हमें किसी चीज़ तरह आप चूहा-दौड़ नहीं दौड़ रहे और न की आवश्यकता नहीं। आप यदि एक हैं तो ही किसी प्रकार की प्रतियोगिता में भाग ले हम सब ठीक हैं। आप यदि बहुत से हैं तो रहे हैं। आप प्रतिस्पर्धा में भाग नहीं ले रहे । भी हम ठीक हैं। अब आप लोग जान लें कि आपने एक उन्नत हो रहे हैं। मैं जानती हूँ कि किस अत्यन्त उच्चावस्था पा ली है। परमात्मा के उस प्रेम को, उस अनन्त प्रेम सर्वप्रथम आपको इस आशीर्वाद के योग्य को छ is आप तो बस अपने प्रेम तथा आशीर्वाद से आपने प्रकार आशीर्वाद कार्य करता है। परन्तु लिया है । बनना होगा अन्यथा कोई सहायता नहीं ू अतः अपनी दिन-चर्या में उस प्रेम की कर सकता। केवल आपका प्रेममय स्वभाव चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 25 सहायक हो सकता है। इसी लिए ईसा सहायता करें तो, मुझे पूर्ण विश्वास है, मसीह ने कहा था कि परमात्मा के साम्राज्य सहजयोंग बहुत से ऐसे कार्य कर सकता में प्रवेश करने के लिए आपको बाल-सुलभ है जो हम अभी तक नहीं कर पाये । होना पड़ेगा। बच्चे कितने अबोध, कितने सहज होते हैं! छोटी-छोटी चीजों से वो क्या कहा है। इसके विषय में सोचें । आपको रीझ जाते हैं। उन्हें किसी विशेष चीज़ की अन्तर्अवलोकन की आश्यकता है. सूझ-बूझ आवश्यकता नहीं होती। कितनी आश्चर्य की आवश्यकता है। "सहजयोगी के रूप में की बात है कि किस प्रकार हमारा प्रेम, जो मैंने अपने जीवन में क्या किया ?" तब आप कि दिव्य प्रेम से ज्योतित है, पूरे विश्व को जान पाएंगे कि आप बहुत कुछ कर सकते परिवर्तित कर सकता है! किस प्रकार मुझे हैं-बहुत कुछ। यही सब कार्य होते हैं। अब घर पहुँच कर आप सोचें कि मैंने 1 यह विचार आया और किस प्रकार ये समृद्ध परमात्मा आपको धन्य करें । हुआ? इस कार्य में यदि आप सब मेरी परम् पूज्य श्रीमाताजी की दुल्हनों को सीख गणेश पूजा (कबैला, इटली, 23.9.2001) आज आप विवाह करने जा रही हैं। मैं आपको केवल इतना बताना चाहूँगी कि भी तो ऐसी हो सकती हैं। सहजयोग में आपने सम्भव है सभी कुछ सम्भव है क्योंकि आप कार्य अत्यन्त सूझ-बूझ के साथ विवाह के लिए हमने आपको चुना है और हमें आशा है कि आप इस विवाह को बहुत करना है। विवाहित महिला के रूप में सहजयोग ही सफल तथा आनन्ददायी बनाएंगी। में अपनी भूमिका को समझ लेना अत्यन्त आवश्यक है। कुछ अजीबोगरीब महिलाएं हैं। महिला ने ही विवाह को सफल बनाना हमारे यहाँ आई जिन्होंने विवाह केवल है । किसी व्यक्ति विशेष से यदि आप विवाह इसलिए किया क्योंकि वे विवाह करना नहीं करना चाहतीं तो आप इसके लिए चाहती थीं और अन्ततः उनके विवाह सफल इन्कार कर सकती हैं। परन्तु अब जब न हो सके । ऐसी महिलाएं मेरे लिए इतनी आप विवाह कर रही हैं तो कृपा करके कष्टकर हैं कि मेरी समझ में नहीं आता सहजयोगिनी दुल्हन के नज़रिए से सोचिए। कि विवाह करने से पूर्व वे इस बात को सहजयोग का नाम ऊँचा करना आपकी समझ क्यों नहीं लेतीं कि उन्हें क्या करना ज़िम्मेदारी है। सामाजिक घटना के रूप में होगा। सहजयोग में आपको सफल विवाह करने आपका विवाह इसलिए कर रहे हैं कि आप चाहिएं। ये कोई सर्वसाधारण विवाह नहीं सहजयोगिनी हैं, विवेकशील महिला हैं और | सहज विवाह किसी भी तरह से बलिदान आप सहजयोग को गौरव प्रदान करेंगी। नहीं है यह तो आनन्द से परिपूर्ण सूझ बूझ महिलाओं की जिम्मेदारी बहुत अधिक हम आपका विवाह नहीं कर रहे। हम मैं यहाँ बताना चाहूँगी कि अब तक सफल हुए है-99%। अब है। आपको बहुत से कष्ट भी झेलने पड़ 99% विवाह सकते हैं, हो सकता है कि किसी की आपका ये नया समूह विवाह के लिए आया स्थिति पैसे के मामले में अच्छी न हो। ये है और देखना है कि यह किस प्रकार भी हो सकता है कि किसी पुरूष के पास कार्यान्वित होता है । ठीक-ठाक पैसा हो फिर भी इस मामले में आपका ध्यान न रख रहा हो, आपको पैसा हैं, कोई विशेष छवि यदि आपने अपने न देता हो या बहुत ही रोबीला हो। ये सब मस्तिष्क में बनाई हुए है तो उसे निकाल आपके मस्तिष्क में यदि कोई धारणाएं चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 27 दें हमने वास्तविकता के अनुरूप चलना गलत फहमियों के विषय में अपने पति से है और देखना है कि वास्तविकता काल्पनिक बता सकती हैं परन्तु इसके लिए आप में विचार नहीं होती। इस बात से न तो विशेष आकर्षण और विशेष सूझ-बूझ का आपको झटका लगना चाहिए और न ही होना आवश्यक है । मैं आपको अपने जीवन का एक उदाहरण पुरुष को। परन्तु मान लो कि उसे झटका लगता भी है तो चाहिए। आप में सूझ-बूझ की भावना होनी चाहिए। पुरुषों से आपको इसकी आशा आपके सम्मुख एक उदाहरण दूंगी। मेरे नहीं करनी चाहिए। भी आपमें सूझ-बूझ होनी दूंगी। वैसे तो मैं से उदाहरण है परन्तु बहुत पति के दफ्तर से एक व्यक्ति मुझे मिलने जहाँ तक धनार्जन का सम्बन्ध है यह आया। उसने बताया कि मैने एक बहुत पुरुषों की ज़िम्मेदारी है जिम्मेदारियाँ है परन्तु सूझ बूझ महिलाओं संस्था को छोड़कर मैंने कहीं और नौकरी की जिम्मेदारी है। उन्हें अपने पति को, कर ली थी। परन्तु पारिवारिक जीवन को तथा उससे जुड़ी मैं कभी प्रसन्न नहीं रह सकता, इसलिए मैं सभी चीज़ों को समझना होगा में सूझ-बूझ की भावना ही अच्छे परिवारों कहा था, "तुम्हारे लिए यहाँ कोई स्थान का सृजन करती है। सुखद पारिवारिक नहीं है, ये अनुशासनहीनता है जो अच्छी सम्बन्धों के लिए महिला ही सभी कुछ नहीं है। आपने ऐसा क्यों किया? आपने करती है। वे पति को समझाती हैं और दूसरी संस्था की नौकरी क्यों स्वीकार की?" अपनी सूझ-बूझ से उसकी सहायता करती उसने उत्तर दिया, "श्रीमान, अब मैं वापिस हैं। एक बार जब पतियों के मन में यह आना चाहता हूँ। इसके लिए मैं आपसे बात बैठ जाएगी कि आप विवेकशील हैं, सहजयोग की चिंता करती हैं, आप प्रार्थना करता। परन्तु पुरुषों के मस्तिष्क में गरिमामय हैं तो आपकी सभी समस्याओं यदि एक बार कुछ घुस जाए तो वे इसे का समाधान हो जाएगा। अपनी जिम्मेदारियों जल्दी से बदलते नहीं। अतः वो मेरे पास की गहन सूझ-बूझ का होना अत्यन्त आया और मुझे बताया कि मैं इसी संस्था आवश्यक है। मुझे विश्वास है कि आप सब मैं वापिस आना चाहता हूँ।" अपने पति को इस कार्य में सफल होंगे क्योंकि आप मैं भली-भांति जानती हैँ, इसलिए मैंने सहजयोगिनियाँ हैं । कभी रौब न जमाएं। कहा, "ठीक है, देखते हैं क्या हो सकता इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। आप है," मेरे पति जब वापिस आए तो मैंने यदि विवेकशील हैं तो आप गलतियों और उनसे कहा, "क्यों नहीं आप उस व्यक्ति । उनकी अन्य बड़ी गलती की थी कि आपके पति की लगता है कि वहाँ पर । महिलाओं वाषिस आना चाहता हूँ। मेरे पति ने उससे प्रार्थना करता हूँ । प्रतिदिन वह इसके लिए 1 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 28 को पुनः नौकरी में ले लेते?" "ओह, तो अब वो तुम्हारे पास भी आया था! वो बहुत एक तरीका है, उसे आपने सीखना है, समझदार है और जानता है कि उसे कहाँ उसमें कुशलता प्राप्त करनी है। इसके जाना चाहिए।" मैंने कहा, "नहीं, हो सकता माध्यम से बिना किसी को चोट पहुँचाए, हैं वो सोचता हो कि मैं आपसे कहीं अधिक बिना किसी से कटु बोले, बिना किसी से उदार हूँ।" ये बहुत बड़ी चुनौती थी। अभद्र हुए, आप सभी अच्छे कार्य कर "इसलिए वह मेरे पास आया था। आपको सकेंगे ये सब प्रबन्धन है यह विशेष भी उदार होना चाहिए।" तब उन्होंने उस चीज़ आपको सीखनी होगी तभी सारे झगड़े व्यक्ति को वापिस ले लिया। मैं ये कहना समाप्त हो पाएंगे ठीक है? चाहूँगी कि इसके बाद पूरा जीवन उसने मेरे पति की जी-जान से सहायता की। तो ऐसा ही है। हर कार्य को करने का परमात्मा आपको धन्य करें। मैं आप सबको हृदय से आशीष देती हूँ। परम् पूज्य श्रीमाताजी की दुल्हों को सीख गणेश पूजा (कबैला, इटली, 23.9.2001) मैं दुल्हनों से बात-चीत करके आई हूँ। वह क्या कर रही है। उससे पूछे? यदि वह उन्हें बताया है कि उनके कर्तव्य क्या हैं ज्यादा व्यस्त है तो उसकी सहायता करने तथा उसका अर्थ क्या है? मैंने उन्हें विशेष का प्रयत्न करें। में सोचती हूँ कि अपने रूप से बताया है कि पुरुष प्रायः थोड़े से प्रेम की अभिव्यक्ति करना पुरुषों के लिए उत्तेजित होते हैं। विवाह से भी वे उत्तेजित बहुत आवश्यक है अन्यथा आप तो बस हो जाते हैं । अतः आप लोगों को चाहिए मान लेंगे कि मैं विवाहित हूँ । ये बात नहीं कि और अधिक विवेकशील बनें और मुझे है। अतः घर लौटकर अपनी पत्नी से विश्वास है-वो लड़कियाँ बहुत ही विवेकशील अच्छी तरह बातचीत करें, उससे पूछें कि दिखाई दे रहीं थीं। फिर भी आपको ये वह क्या कर रही थी और क्या उसे किसी बात ध्यान में रखनी है कि आप सहजयोग चीज़ की आवश्यकता है। में विवाह कर रहे हैं, विवाह नहीं, सहजयोग -विवाह कर रहे हैं। ये बात बहुत महत्वपूर्ण कहें नियम है कि अपनी कमाई का सारा है। अपने विवाह को आपने अत्यन्त सफल पैसा पत्नी के पास रखा जाना चाहिए। सहजयोग में हमारी एक परम्परा या ये बनाकर दिखाना है। घर-गृहस्थी और बच्चों की ज़िम्मेदारी, खर्चना चाहिए और आपसे पूछे बिना उसे निःसन्देह-मैं इस बात से सहमत हूँ- भी पैसा नहीं खर्चना चाहिए। पैसा बहुत लड़कियों की या दुल्हनों की होती है। बड़ी समस्या है । आपको यदि पैसा चाहिए आपकी भी ज़िम्मेदारी है कि उसका तो आपको पूरा अधिकार है । यह पति-पत्नी उससे पूछे बिना आपको कोई पैसा नहीं परन्तु ध्यान रखें, उसकी उपेक्षा न करें ये कहकर दोनों की सम्पति है परन्तु पत्नी को इस कि मैं बहुत व्यस्त हूँ, इसे तर्कसंगत न बात का ज्ञान होना चाहिए कि पैसा कितना ठहराएं। अपनी पत्नी को कुछ समय आपको है । न वो आपसे पूछे बिना खर्च कर सकती देना ही होगा इस मामले में आपको है न आप उससे पूछे बिना। लापरवाही नहीं करनी चाहिए। ये पहली चीज़ है। उदाहरण के रूप में जब आप पूरी समझ होनी चाहिए कि किस प्रकार के काम से घर वापिस आते हैं तो-मैं जानती प्रेम की अभिव्यक्ति आप कर रहें हैं । आप हूँ, आप थके हुए होते हैं, परन्तु देखें कि यदि उस पर संदेह करते हैं तो गलत है यह आपसी सूझ-बूझ है। प्रेम की आपको चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व ৪ जुलाई-अगस्त 2002 30 या यदि आप ये सोचते हैं कि ये सब तो हैं। एक दूसरे के साथ बैठकर भी आप मेरा है आप यदि समझते हैं कि यह सब जीवन आनन्दमय बना सकते हैं। परस्पर तो मेरा है वह पूछने वाली कौन है तो यह बातचीत करके भी आप जीवन का आनन्द गलत है। महिलाओं का नौकरी आदि करना ले सकतें हैं। परन्तु आपको यदि यह कला मुझे पसन्द नहीं फिर भी यदि आवश्यक नहीं आती तो सम्भव है कि आपको भी होगा तो वे कार्य करेंगी। कार्यरत होने की समस्या हो, आपकी पत्नी को भी समस्या स्थिति में मैंने उनसे बताया है कि उन्हें हो। पत्नी में यदि कोई गम्भीर समस्या इस बात के प्रति सावधान रहना कि सर्वप्रथम वे गृहणियाँ हैं। हम केवल विवाह ही नहीं केवल तभी आप विवाह को तोड़ सकते हैं । करना चाहते, हम सहजयोगियों के विवाह हम इस समस्या को देखने का प्रयत्न करना चाहते हैं जिनके सुन्दर बच्चे हों करेंगे। परन्तु सामान्य स्थिति में आप ये और सुन्दर परिवार बनें। हम खूबसूरत समझने का प्रयत्न करें कि पत्नी यदि घर परिवार चाहते हैं। अतः पतियों का हावी होना या पत्नियों रूप से महत्वपूर्ण है. आपसे भी अधिक का दोनों ही गलत धारणाएं हैं। एक दूसरे महत्वपूर्ण है आपका दृष्टिकोण यदि ये हो से यदि आप प्रेम कर सकें तो यह बहुत कि दो आत्माओं के बीच-बाएं और दाएं हितकर होगा। मैं देखती हूँ कि छोटी-छोटी के बीच विवाह हुआ है एक दूसरे के प्रति चीज़ों के लिए लोग परस्पर लड़ते हैं। पूर्ण सूझ-बूझ आ जाएगी। विवाह का कपड़ों के लिए, खाने के लिए और भावनात्मक पक्ष भी है परन्तु मैं देखती हूँ छोटी-छोटी चीजों के लिए लोग परस्पर प्रायः विवाहित लोगों में भावनात्मक पक्ष की लड़ते हैं! आप यदि किसी से प्रेम करें तो समझ नहीं होती पत्नी यदि उदास है या आपका जीवन अत्यन्त सुन्दर बन जाता रो रही तो आपके प्रेम के दो शब्द, या है। यह छोटी-छोटी चीजें व्यर्थ हैं । अतः उसके प्रति प्रेम प्रदर्शन बहुत बड़ा कार्य अपनी पत्नियों को परखें नहीं, उन पर करेंगे किसी को प्रेम करने से अच्छा और हावी न हों। उन्हें यदि आपके पथ-प्रदर्शन कुछ नहीं हो सकता। की जरूरत है तो ठीक है। परन्तु यदि पति हर समय यह कहता रहे ऐसा करो, आपका विवाह नहीं हुआ है आपका विवाह वैसा करो तो वह बड़ा उबाऊ हो जाता है। प्रेम का आनन्द लेने के लिए हुआ है प्रेम हमेशा ध्यान रखें कि आप अपने और अपनी करना बहुत बड़ा आशीर्वाद है और दिव्य पत्नी के जीवन को उबाऊ न बना दें। है आप यदि प्रेम करते हैं तो आप दोष जीवन के आनन्द लेने के बहुत से तरीके नहीं खोजेंगे अपने विवाहित जीवन के का कार्य सम्भाल रही है तो वह समान १। विवाह के सर्वसाधारण अनुभव के लिए श्रीम श्री० चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 31 आनन्द लेने के उपाय आप खोजेंगे। मैंने पता लगाते हैं कि वह ठीक तो है। मैं आपको लाल बहादुर शास्त्री का कि आपने अपने विवाहित जीवन का आनन्द उदाहरण देना चाहूँगी वो अपनी पत्नी से लेना है और अकेले आप आनन्द नहीं ले बहुत प्रेम करते थे। उनकी पत्नी सर्वसाधारण सकते। अकेले आप आनन्द नहीं ले सकते। महिला थीं, पढ़ी-लिखी भी न थीं और एक अतः आपकी पत्नी आपकी साथी है, आपकी सामान्य परिवार से सम्बन्धित थीं । एक मित्र है, आपकी सभी कुछ है। इसके विषय बार मैं उनके घर पर गई प्रातः दस बजे में सुन्दर विचार बनाएं। कहने से मेरा मैं उनके घर पर थी तो लाल बहादुर अभिप्राय है कि कुछ लोग तो बहुत अधिक शास्त्री ने अपने दफ्तर से पत्नी को एक नहीं पत्र भेजा जिसमें लिखा था रोज़मर्रा की होते। अतः किसी भी चीज़ की अति नहीं तरह से मैंने स्नान आदि किया परन्तु तुम तब तक सो रही थीं। मैंने तुम्हें परेशान अपनी पत्नी के गुणों की प्रशसा करें और नहीं करना चाहा। क्योंकि तुम कल रात सोई नहीं थी इसलिए मैंने तुम्हें जगाना निःसन्देह सर्वोत्तम बात तो ये है कि नहीं चाहा। मुझे खेद है। परन्तु मैंने अभी परस्पर विश्वास करें। विवाहित लोग परस्पर तक चाय नहीं पी है। क्या मैं तुम्हारे साथ हैं और फिर अलग हो चाय पीने आ सकता हूँ? वे परस्पर इतने जाते हैं। अतः सन्देह करने की कोई बात समीप थे! देखिए ये कितना हृदयस्पर्शी है ! नहीं। विवाहित जीवन से डरने की कोई वे आए। मैं उन्हें देखकर आश्चर्यचकित आपको यहाँ ये बताने के लिए बुलाया है रोमांटिक होते हैं और कुछ बिल्कुल होनी चाहिए। सहजयोगी के रूप में आप सहजयोग के विवाह को समझें । सन्देह करने लगते बात नहीं। विवाह तो एक अत्यन्त सुन्दर थी। वे भारत के प्रधानमंत्री थे फिर भी जीवन में आपका प्रवेश है । मैं कहूँगी कि देखिए किस प्रकार वे अपनी पत्नी का आपका अपने जीवन को किसी अन्य के ध्यान रखते थे! वे घर पर आए और अपनी साथ बॉँटना सुन्दर उत्क्रान्ति बहुत से लोग इसमें असफल हो जाते हैं, रही, उनके सामने नहीं आई । मैंने सोचा क्यों? क्योंकि वो सोचते हैं वो पुरुष हैं और कि मुझे बाधा नहीं बनना चाहिए। पत्नियाँ महिलाएं। दोनों परस्पर मिलकर है। परन्तु पत्नी के साथ चाय पी। मैं घर में छिपी ये सभी छोटी-छोटी चीजें जीवन में बहुत हितकर होती हैं। यद्यपि शास्त्री जी अत्यन्त प्रसन्नता पूर्वक रह सकते हैं। मैंने देखा है कि कुछ पति बहुत अच्छे हैं अत्यन्त व्यस्त व्यक्ति थे फिर भी वे अपनी वे इतना कठोर परिश्रम करते हैं कि उनके पत्नी तथा परिवार का सदैव ध्यान रखते पास पत्नियों के लिए समय ही नहीं होता। थे मैं जब वहाँ थी तो मुझे हैरानी हुई जब फोन करके वे उनकी सुध लेते हैं। उन्होंने अपनी बेटियों से कहा कि "तुम परन्तु जुलाई-अगस्त 2002 32 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 अपने बच्चों की देखभाल स्वयं करो, मेरी दें कि कोई उसे अपमानित नहीं करेगा । पत्नी तुम्हारी नौकरानी नहीं बनी रहेगी। मैं कोई यदि आपकी पत्नी को अपमानित करे उसे आया नहीं बना सकता। तुम स्वयं तो उस समय आपको अपनी पत्नी का इस बात का ध्यान रखो।" तो बच्चों के साथ देना चाहिए। बाद में आप उस मामले मुकाबले पत्नी को क्या स्थान दिया गया! को सुलझा सकते हैं। किसी में साहस नहीं ऐसा ही होना चाहिए। इसी प्रकार से हम होना चाहिए कि आपकी पत्नी को कोई अन्य व्यक्ति के साथ रहना सीखते हैं। हर कुछ कहे। हर समय अपनी पत्नी का साथ समय यदि आप अपने ही बारे में सोचते दें क्योंकि वह एक सहजयोगिनी है। बाद रहें, "मुझे कौन से आराम मिल रहे हैं, ये में आप उससे बात करके पूछ सकते हैं ार खाना अच्छा न था" तो आप सहजयोगियों कि क्या बात है। एकान्त में ले जाकर आप की तरह से जीवन नहीं व्यतीत कर रहे । उससे पूछे. "क्या बात है, क्या हुआ?" सहजयोगी अन्य लोगों के लिए जीवित रहता है. केवल अपने लिए नहीं और इस उस पर चिल्लाना नहीं चाहिए और न ही चीज का आरम्भ उसकी पत्नी से होता है । उसकी गलतियों को सुधारना चाहिए। इतना आपकी यदि कोई समस्या है तो, नि:सन्देह, ही नहीं किसी भी पति को अपनी पत्नी पर परन्तु अन्य लोगों के सामने आपको उसका समाधान किया जा सकता हैं। आप चिल्लाना नहीं चाहिए। ये बात मेरी समझ मुझे पत्र लिख सकते हैं और हम इन में नहीं आती कि पति अपनी पत्नियों पर समस्याओं को देखेंगे। परन्तु आवश्यक बात चिल्लाए क्यों! इससे उनकी गलत परवरिश ये है कि आपमें भावनात्मक सन्तुलन होना का पता चलता है हम सभी सहजयोगी हैं चाहिए। उसकी समझ आपको होनी चाहिए। मैंने आपकी परवरिश की है। मैं आपकी माँ पत्नी यदि खिन्न है तो आप उससे पूरछे हूँ। कृपा करके कभी अपनी पत्नियों पर क्यों, क्या बात है?" हमेशा उसका साथ चिल्लाएं नहीं। कभी अपना क्रोध उन्हें न दें-हमेशा। चाहे आपकी माँ-पिता या किसी दिखाएं। मेरा कहने का अभिप्राय है इन अन्य का मामला ही क्यों न हो आप उसका सब छोटी-छोटी बातों का समाधान प्रेम साथ दें और फिर उसे बताएं उचित क्या प्रदर्शन के द्वारा ही किया जा सकता है। है। परन्तु यदि आप उसका विरोध करने जैसे आप मुझे प्रेम करते हैं वैसे ही मैं लगेंगे तो उसे समझ नहीं आएगा उसका आपको प्रेम करती हैँ। आपमें यदि कोई साथ देकर यदि आप सबको कहेंगे कि कमी होगी तो मैं आप पर चिल्लाऊंगी "हम चीज़ों को देखते हैं" और इस प्रकार नहीं, कभी नहीं । मैं क्या करूंगी, मैं इसे बड़े प्रेम से लूंगी।" आप में प्रेम एवं करुणा से यदि आप उसका आत्म सम्मान स्थापित करेंगे तो अच्छा होगा उसे विश्वस्त होने की अत्यन्त महान शक्ति है अपनी पत्नी चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 33 से यदि आप प्रेम नहीं कर सकते तो मन्द-गति से शान्तिपूर्वक सहजरूप से किससे करेंगे अपने बच्चों से या किसी जीवन में चलें। महिलाओं पर उछलें नहीं अन्य से कहीं अधिक प्रेम अपनी पत्नी को और न ही उन पर चिल्लाने लगें वास्तव करें। अपना थोड़ा सा प्रेम बाँटकर देखें में ऐसा करना उचित न होंगा । इतने वर्षों आप आश्चर्य चकित रह जाएंगे! मैंने देखा है कि छोटी-छोटी चीजों के तीन-चार मामले आए। इससे अधिक नहीं । लिए भी सहजयोगी अपनी पत्नी से नाराज़ फिर भी अपनी पत्नी का संचालन बड़े प्रेम हो जाते हैं। उदाहरण के लिए मान लें मैं से करें उससे बड़े प्रेम पूर्वक बात करें। आपकी माँ हूँ सभी कुछ हूँ। परन्तु आपकी पत्नी से इस प्रकार बात करें कि उसे पत्नी कभी पूजा में कोई गलती करती है, महसूस हो कि आप उसके पति हैं वो किसी बात को समझने का प्रयत्न नहीं आपकी पत्नी है। ये एक कला है। आप करती तो मैं बुरा नहीं मानती। बाद में उसे क्योंकि सहजयोगी हैं आपको विश्व के सम्मुख बताएं कि ये गलती थी और तुम्हें नहीं ये दर्शाना होगा कि सहजयोग के कारण करनी चाहिए थी। वे हमारी माँ हैं, तब वे आपके विवाह सफल हुए हैं। अपनी माँ या आपका सम्मान करेंगी। परन्तु आप यदि किसी अन्य के चलाए न चलें। सबसे चिल्लाएंगे तो आप दोनों में दूरी पैदा हो पहले अपनी पत्नी को सुने, देखें कि उसकी में हमारे सम्मुख इस प्रकार के केवल जाएगी परन्तु आप यदि इस प्रकार प्रेम से क्या समस्या है अन्यथा ये विवाह टूट जाएगा। उनसे बात करेंगे तो आपका पूरा जीवन जब आपका विवाह हो चुका है तो किसी परिवर्तित हो जाएगा उन्हें प्रेम करें, उनसे अन्य महिला में आपको बिल्कूल भी भट्रता पूर्वक व्यवहार करें। ऐसा करना दिलचस्पी नहीं लेनी चाहिए। आपकी पत्नी बहुत आवश्यक है। पश्चिम में मैंने विशेष सबसे पहले है। वह अन्य महिलाओं में रूप से ये बात देखी है कि लोगों को आपकी दिलचस्पी को समाप्त करती है। अपनी पत्नियों से व्यवहार करने का प्रशिक्षण इसकी कोई आवश्यकता नहीं, आपकी अपनी ही नहीं हैं। इस प्रकार का कोई प्रबन्ध ही पत्नी है, अन्य महिलाओं में क्यों आपको वहाँ नहीं है। परन्तु भारत में यह सब कुछ दिलचस्पी लेनी चाहिए? है। भारत में पति-पत्नी, जब पहली बार मिलते हैं तो बहुत बड़ा उत्सव होता है पत्नी कष्टकर है तो मुझे बताएं। ये बात और सभी कुछ अत्यन्त मधुरता पूर्वक होता देखने के लिए मैं यहाँ बैठी हुई हूँ। परन्तु है। अंतः यद्यपि सम्बन्ध तो हैं परन्तु आपने ठीक कर सकते हैं परन्तु आप यदि उन सम्बन्धों को स्थापित करना है। अत्यन्त विवेकशील नहीं हैं तो समस्याएं खड़ी हो ये सब करने के बावजूद भी यदि आपकी आप निराश न हों। चीजें सुधरेंगी, हम उन्हें जुलाई-अगस्त 2002 34 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 करें तो भी कुछ बुरा नहीं है। परन्तु आपको जाएंगी। मेरे विचार से भारतीयों के मुकाबले में हमेशा याद रखना है कि जो भी कुछ आप आप लोगों के पति बेहतर हैं इसमें कोई कर रहे हैं वह दैवी नियम के अनुसार है । शक नहीं (श्रीमाताजी साथ खड़े किसी दैवी नियम का पालन होना चाहिए और व्यक्ति से पूछती हैं क्या यहाँ पर कोई इसी प्रकार से आप अपने विवाह को सफल इंग्लैण्ड के दुल्हे भी हैं?) इंग्लैण्ड में मैंने बना सकते हैं। मैं यही सब देखने के लिए देखा है पुरुष अत्यन्त दब्बू हैं। कानून के आतुर हूँ कि इन विवाहों से आप आनन्दित कारण वे अत्यन्त विनम्र हैं वहाँ का कानून हो जाएं। यह अत्यन्त विशिष्ट चीज है इतना अजीब है और यही कारण है कि जिससे आपको परमात्मा का आशीर्वाद प्राप्त वहाँ के लोग बहुत ही भावुक हैं। वे अत्यन्त होगा और आप अपने प्रेम का आनन्द दब्बू हैं, इतने दब्बू कि कानून के कारण वे लेंगे। अपनी पत्नियों को बिगाड़ देते हैं परन्तु अब हम अन्तर्राष्ट्रीय विवाह करते हैं और इटली में वहाँ के कानून के अनुसार विवाह परमात्मा आपको धन्य करें। पूर्ण समर्पण-एकमेव काऊलेमैनोर गोष्ठी, 31.07.1982 (परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) आज मैं आपको कुछ ऐसी बातें बताने सम्मुख लमलेट हो जाते हैं। पूर्णतः धाराशायी वाली हूँ जो मुझे बहुत पहले बता देनी हो जाते हैं। सम्मोहित होकर लोग अपनी चाहिए थीं । जैसे मैंने आपको बताया है, आपका कुछ त्यागकर अपने गुरुओं के सम्मुख धन- दौलत, घर-बार, परिवार, बच्चे सभी मुझे पहचानना अत्यन्त आवश्यक है। उत्थान धाराशायी हो जाते हैं-बिना कोई प्रश्न पूछे, के लिए मुझे मान्यता देने की शर्त आवश्यक बिना कोई विवरण पूछे, बिना अपने गुरु के है, मैं इसे बदल नहीं सकती ईसा-मसीह जीवन के विषय में पूछताछ किए। ऐसे ने कहा था कि "मेरे विरुद्ध यदि कुछ कहा सभी लोग तेजी से अंधकार में, गहन गया तो उसे सहन कर लिया जाएगा, क्षमा अंधकार में, और पूर्ण विनाश की ओर चले कर दिया जाएगा परन्तु आदिशक्ति (Holy जाते हैं। परन्तु आप सब लोग सहजयोगी Ghost) के विरुद्ध कही गई कोई भी बात हैं और आपने अपना निर्माण करना है। बर्दाश्त नहीं की जाएगी (Anything against अभी तक इतने स्पष्ट शब्दों में यह बात me will be tolerated, will be forgiven but आपको बताकर मैं आपके अहं को ठेस anything against the Holy Ghost will not नही पहुँचाना चाहती थी। संभवतः पहली be.") ये बहुत बड़ी चेतावनी है। संभवतः बार मैं ये बात आपको कह रही हूँ- कि लोग इसका अर्थ नहीं समझते । आपमें से कोई भी मेरे विरुद्ध नहीं, ये बात सहजयोग के प्रति नहीं मेरे प्रति ।" सहजयोग सच है। आखिरकार आप सब मेरे बच्चे हैं, तो मात्र मेरा एक पक्ष है सभी कुछ छोड़कर मैं आपको अथाह प्रेम करती हूँ और आप आपको समर्पित होना होगा पूर्ण । यह चेतावनी तो ईसा-मसीह ने समर्पण-अन्यथा आप आगे उन्नत न हो आपको मेरे प्रति पूर्णतः समर्पित होना होगा निःसन्देह मुझे आपको दी है परन्तु हमें समझना चाहिए पाएंगे, बिना कोई प्रश्न किए, बिना कोई कि हम उतनी तेजी से उन्नति क्यों नहीं बहस किए। कर रहे जितनी हमें करनी चाहिए। पूर्ण समर्पण ही एकमेव मार्ग है जिसके लोगों को जब सम्मोहित कर लिया जाता द्वारा आप अपना उत्थान कर सकेंगे। आज भी लोगों को पकड़ हो जाती है, है तो वे धाराशायी होकर अपने गुरुओं के र जुलाई-अगस्त 2002 36 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 उन्हें समस्याएं हो जाती हैं! क्या कारण है? केवल मैं हूँ, केवल मैं हूँ जिसने आपको बहुत से लोग मुझसे पूछते हैं कि श्रीमाताजी आत्मसाक्षात्कार दिया है। परन्तु हमारी एक बार आत्म-साक्षात्कार प्राप्त हो जाने नौकरियाँ, हमारी व्यक्तिगत समस्याएं, हमारी पारिवारिक समस्याएं ही हमारी मुख्य के बाद भी क्यों हमारा पतन होता है? इसका एकमात्र कारण यह है कि समर्पण प्राथमिकताएं हो सकती हैं और समर्पण को अधूरा है। यदि पूर्ण श्रद्धा और पूर्ण समर्पण हम अन्तिम स्थान देते हैं । स्थापित नहीं यदि आप अभी तक भी मैं भ्रान्ति रूप (ILLUSIVE) हूँ-यह सत्य हुआ, नहीं समझ पाए कि मैं परमेश्वरी हूँ, यदि है-मेरा नाम महामाया है । निःसन्देह मैं आप अपेक्षित रूप से इस बात को नहीं भ्रान्तिरूप हूँ परन्तु मेरा ये भ्रान्तिरूप केवल आप लोगों को परखने के लिए है। समर्पण उत्थान का महत्वपूर्ण अग है । समझ पाए तो पतन आवश्यक है। ये बात 1 आप सब पर लागू नहीं होती। फिर भी आप यदि अपने हृदय में झाँके, अपने क्यों? क्योंकि जब भी आप भय की स्थिति मस्तिष्क में देखें तो आप जान जाएंगे कि में फँसे होते हैं, जब आपके अस्तित्व को जो समर्पण भाव, जो श्रद्धा भाव आपके खतरा होता है, ऐसे समय पर जबकि मन में ईसामसीह, श्री कृष्ण तथा अन्य आज पूरा विश्व आधार विहीन स्थिति में हैं अवतरणों के प्रति था वह मेरे प्रति नहीं है। और पूर्ण विनाश की ओर बढ़ रहा है, यह श्रीकृष्ण ने कहा थाः 'सर्वधर्माणाम् परितज्य, अत्यन्त आवश्यक हो गया है कि आप मामेकम् शरणम् ब्रज' अर्थात विश्व के सभी किसी ऐसे आधार को पकड़ लें जो आपकी धर्मों को भूलकर मेरी शरण में आ जाओ। धर्म से उनका अभिप्राय हिन्दू, सिक्ख, ईसाई साथ आपको इस अवलम्बन को पकड़े । रक्षा कर सके। पूरी शक्ति और श्रद्धा के या मुसलिम धर्म नहीं था। उनका अभिप्राय रहना होगा। आप यदि सर्वसाधारण जल में भीग रहे आश्रय (Sustenance) से था। "सभी अन्य आश्रय भूलकर पूर्णतः मेरे प्रति समर्पित हो हों तो कोई बात नहीं परन्तु यदि आप जाओ।" यह बात उन्होंने छः हजार वर्ष समुद्र में गोते खा रहे हैं और क्षण-क्षण पूर्व कही थी। आज भी ऐसे बहुत से लोग मृत्यु का भय हो और ऐसे समय एक हाथ हैं जो कहेंगे कि हमने स्वयं को पूर्णतः आपकी रक्षा के लिए बढ़े तो आपके पास श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित कर दिया है । सोचने के लिए समय नहीं होता। एक दम लेकिन आज वो हैं कहाँ? वो लोग भी, से पूरी ताकत और श्रद्धा से उस हाथ को जिन्हें मैंने आत्म-साक्षात्कार दिया है, वो पकड़ लेना आपके लिए आवश्यक हो जाता भी ऐसा कहते हैं। नि:सन्देह उनमे और है । मुझमें कोई अन्तर नहीं, परन्तु आज तो हममें जब बाधाएं होती हैं और जब हम चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 38 नकारात्मकता से घिरे होते हैं तो हमें इसका हैं। वे केवल अपने उपासकों को प्रेम करती आभास हो जाता है और हम थोड़े से है। यह भक्ति, यह समर्पण उन्माद की हड़बड़ा जाते हैं। यह ऐसा समय होता है तरह से न होकर सतत. निरन्तर, अविरल जब हम अपने आधार को कसकर पकड़ना प्रवाहित और सदैव बढ़ते हुए होने चाहिए। चाहते हैं परन्तु बाधाएं हममें ऐसे विचार अब आगे उन्नत होने का केवल यही मार्ग पैदा कर देती है जो अत्यन्त हानिकारक है। परन्तु हमारे लिए हमारी छोटी-छोटी का आरम्भ हो जाता है। ऐसी स्थिति में समस्याएं ही महत्वपूर्ण हैं किसी को घर सर्वोत्तम उपाय क्या हैं? अन्य सभी चीजों की समस्या है, किसी को महाविद्यालय में को भूल जाना ही सर्वोत्तम उपाय है। भूल प्रवेश की समस्या है और किसी ने कुछ जाएं कि आप भूतबाधित हैं या आपमें कोई और काम करना है। ये सारी चीजें श्री कृष्ण वर्णित धर्म हैं। श्रीकृष्ण ने कहा था , "सर्वधर्माणाम् परितज्य मामेकम् शरणम ब्रज' सभी धरमों को त्याग दो, इन सभी तथाकथित होते हैं। इस प्रकार एक बहुत बड़े संघर्ष बाधा है। अपनी पूरी शक्ति के साथ, जितनी भी शक्ति आपमें है, आपने मुझसे जुड़े रहना है। परन्तु हमारी समर्पण शैली अत्यन्त धर्मों को जैसे पत्नी-धर्म (पत्नी के कर्तव्य). फैशनेबल एवं आधुनिक है जिसमें सहजयोग पति - धर्म (पति के कर्तव्य) पुत्र धर्म, पिता का कोई खास महत्व नहीं होता और धर्म, नागरिक धर्म और विश्व नागरिक श्रीमाताजी तो बस प्रसंग मात्र के लिए धर्म - ये सभी धर्म पूरी तरह से त्याग दिए होती हैं। मुझे खेद है यह सब नहीं चलेगा। जाने चाहिएं। इन सबको त्यागकर आपको ये सब चीजें मुझे आपको नहीं बतानी हैं पूर्ण हृदय से समर्पित होना होगा। क्योंकि आप यदि देवी-महात्म्य पढ़ ले तो काफी है। आप यदि देवी के सहस्र नाम वही रहूंगी, न मैं घटूंगी न बढ़ंगी । मेरा पढ़ेंगे तो काफी है: कि उन्हें केवल भक्ति व्यक्तित्व शाश्वत है इस आधुनिक समय मैं जो हूँ वो हूँ, मैं सदा वही थी और द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। केवल में अपने जन्म का उपयोग करने के लिए. समर्पण द्वारा ही उन्हें पाया जा सकता है। पूर्ण विकास प्राप्त करने के लिए, और उन्हें केवल अपने भक्त-अपने उपासक परमात्मा जो कार्य आपसे करवाना चाहता प्रिय हैं। ऐसा कहीं भी नहीं लिखा कि वे है उसे कार्यान्वित करने के लिए। अब यह अच्छे वक्ताओं को, वाद-विवाद करने वालों आप पर निर्भर करता है कि आप मुझसे को, अच्छे वस्त्र धारण करने वालों को, कितना कुछ प्राप्त कर सकते है। समर्पण ठाट-बाट से रहने वालों को और अच्छी आरम्भ होते ही आप गतिशील हो उठते परिस्थितियों में रहने वालों को प्रेम करती हैं। निष्ठा पूर्वक इस स्थिति को बनाए चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8৪ जुलाई-अगस्त 2002 39 रखें ।मैं कहना चाहूंगी कि यह उपलब्धि में आपको समर्पित होना होगा स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए ध्यान धारणा एकमेव का अर्थ अहं नहीं है। यह बात व्यक्ति को मार्ग है निःसन्देह तार्किकता की दृष्टि से समझ लेनी चाहिए कि अहं के कारण आप बहुत से कार्य कर सकते हैं। बुद्धि से स्वतन्त्रता नष्ट हो जाती है, इसकी केवल आप मुझे स्वीकार कर सकते हैं, भावातिरेक हत्या ही नहीं हो जाती यह कलंकित हो में आप अपने हृदय में मुझे अपने बिल्कुल जाती है, बदसूरत हो जाती है और घिनौनी समीप महसूस कर सकते हैं। परन्तु ध्यान बन जाती हैं। सूक्ष्मतम रूप में स्वतन्त्रता धारणा के माध्यम से आपको समर्पण करना बिल्कुल अंहंकारहित होती है, इसमें बिल्कुल चाहिए। समर्पण के अतिरिक्त ध्यान धारणा कोणिकता (Angularities) नहीं होती। बांसुरी भी नहीं। यह पूर्ण समर्पण है और की तरह से उसमें पूर्ण खालीपन होता है कुछ पश्चिमी देशों के आधुनिक लोगों के लिए ताकि परमात्मा की मधुर धुन इस पर ऐसा कर पाना अत्यन्त कठिन कार्य है। अच्छी तरह से बजाई जा सके-यही पूर्ण पाश्चात्य व्यक्ति तो केवल उन्हीं लोगों के स्वतन्त्रता है. इसमें कोई लटकन नहीं होती। सम्मुख समर्पित होता है जो उसे पूरी तरह से सम्मोहित कर लें। सम्मोहित करने वाले में फँसे हुए हैं, अज्ञान के दलदल में, पाप लोगों के वे दास बन जाते हैं परन्तु अपनी के दलदल में। अज्ञान पाप को बढ़ावा देता हमें महसूस करना है कि हम दलदल स्वतन्त्रता में उनका अह आत्मा की अपेक्षा है। किस प्रकार हम इस दलदल से निकलें। अधिक शक्तिशाली होता है। यही कारण हैं जो व्यक्ति हमें इस दल-दल से खींचने कि सभी स्वतन्त्र देशों का पतन हो गया है का प्रयत्न करेगा वो भी इसमें फँस जाएगा। वहाँ अहं का प्रभुत्व है आत्मा का नहीं। दल-दल के समीप आने वाला व्यक्ति स्वतन्त्र होने के कारण वे अपने अह को दल-दल में फँस जाता है। वह भी इसी काबू नहीं कर सकते। कोई यदि उनके दलदल का अंग-प्रत्यंग बन जाता है । अहं को उलझा कर उन्हें सम्मोहित कर ले अन्य लोगों से जितनी अधिक सहायता तभी वे ठीक होते हैं, केवल तभी उनके लेने का हम प्रयत्न करेंगे उन्हें भी हम मुँह बन्द होते हैं और वे सम्मोहन करने उतना ही अधिक दल-दल की ओर घसीटेंगे वाले के सम्मुख पूरी तरह से समर्पित हो और इस दल-दल के गर्त में घँसते चले जाते हैं। जिस प्रकार से इन झूठे गुरुओं जाएंगे। ने आपको दास बनाने की कला में निपुणता अतः कुण्डलिनी के इस वृक्ष को उन्नत प्राप्त की है उससे यह बात अत्यन्त स्पष्ट होना होगा, विकसित होना होगा और इस वृक्ष से स्वयं परमात्मा, स्वयं परब्रह्म आपको अपनी पूर्ण स्वतन्त्रता में, पूर्ण स्वतन्त्रता इस दल दल से निकालेंगे। यह वृक्ष इसी है। श्रण्ट चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 40 दल-दल से निकलता है और परब्रह्म आप सहजयोग का लाभ मिलता रहता है। हमारे सबको एक-एक करके इससे निकालते आश्रम हैं जो बहुत सुन्दर हैं बहुत सस्ते ैं हैं, अपने हाथों के झूले पर बिठाकर आपको बाहर निकालते हैं। परन्तु जब आपको बहुत अच्छी सुविधा उपलब्ध है, वहाँ सभी बाहर निकाला जाता है तब यदि आपकी कुछ है। परन्तु हम यह महसूस नहीं करते पकड़ मजबूत न हुई तो आप पुनः नीचे की कि ये सारा पोषण किसलिए है, ये सारा ओर फिसल सकते हैं। आप थोड़ा सा पोषण किसलिए है, आपके उत्थान के लिए. ऊपर को आते हैं और फिर नीचे फिसल आपको पूरी तरह से दल-दल से निकालने और वहाँ खाने की तथा अन्य चीज़ों की जाते हैं। दल-दल से बाहर निकल आना के लिए। अत्यन्त आनन्ददायी है परन्तु अभी तक आपके पैर दल-दल से पूरी तरह बाहर होना होगा और श्रद्धा करनी होगी। परन्तु नहीं निकले। अभी तक आप पूर्णतः स्वच्छ हमारी अपनी सीमाएं हैं, हम चीजों को नहीं हुए। बिना पूरी तरह स्वच्छ हुए आप छिपाते हैं और चालाक बनने का प्रयत्न पूर्ण आशीर्वाद कैसे प्राप्त कर सकते हैं? करते हैं। यह भयानक स्थिति है। आप परमात्मा का पूरा आशीर्वाद मिलना और सबको अपने अन्तस में देखने का प्रयत्न परमात्मा के प्रेम-वस्त्र आपको पहनाया करना चाहिए कि अभी तक भी मुझमें ऐसा अब आपको डटे रहना होगा, समर्पित क्या है? कौन से बन्धन अभी भी आपको जाना आवश्यक है। आश्चर्य की बात है कि झूठे गुरुओं के समर्पण से दूर किए हुए हैं? कौन सी चीज पास जाने वाले अपने गुरुओं से किस आपको सीमित कर रही है, कौन सी लड़ाई, प्रकार उन पर दृढ़ श्रद्धा बनाए रखते हैं! कौन सा अहम्, कौन सा दृष्टिकोण आपको उनके समर्पण की गहनता आश्चर्यजनक अभी भी इस दल-दल में फँसाए हुए है । होती है वे दास-सम बन जाते हैं। जब कौन से मोह, कौन से सम्बन्ध? आपको तक उनका पूर्ण विनाश नहीं हो जाता वे इनसे मुक्त होना होगा इन बन्धनों से जब अपना सर्वस्व इन गुरुओं को दिए चले तक आप मुक्त नहीं हो जाते तब तक यह जाते हैं। परन्तु सहजयोग में आने पर कार्यान्वित न होगा । लोग समर्पण नहीं करते! फिर भी उनकी देखभाल की जाती है, उनका पोषण किया है। यह "अब या कभी नहीं का प्रश्न है, जाता है, उनकी बुद्धि में सुधार होता है, ईसामसीह ने भी यही बात कही है।" उन्होंने सम्बन्धों में सुधार होता है, हर तरह से वो कहा था, "आप अपनी श्रद्धा और समर्पण पहले से अच्छे हो जाते हैं, उनकी मुझे दें और बाकी सब कुछ मुझपर छोड़ परिस्थितियाँ सुधर जाती हैं, हर समय उन्हें दें मैं जानती हूँ कि श्रद्धा और समर्पण में अधपके लोगों के लिए कोई स्थान नहीं चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 41 कौन-कौन लोग उन्नत हो रहे हैं। मैंने लगते हैं और आप एक बार पुनः उसी लोगों को बहुत उन्नत होते हुए देखा है। दल-दल में जा गिरते हैं-अपने पूर्व जीवन उन्हें मुझसे मिलने की या मेरे पास आने की ईष्ष्याओं और तुच्छ जीवन के दल-दल की कोई आवश्यकता नहीं। मेरा उनके में आपको दी गई सहायता इतनी स्थूल समीप होना आवश्यक नहीं। सर्वव्याप्त शक्ति नहीं होती जिसे महसूस किया जा सके में ये सब विद्यमान है । ये सब तो मेरी आपके भाई-बहनों को प्रदान की गई जीवन शैली है जो आपके विषय में सभी सुरक्षा-भावना अत्यन्त सूक्ष्म है । गहन प्रेम कुछ जानती है। केवल अपनी भक्ति से, बना रहना चाहिए। सहजयोग में स्वार्थपरता अपनी श्रद्धा और समर्पण से आप मुझे का कोई स्थान नहीं, कंजूसी का सहजयोग में कोई स्थान नहीं। इसका बिल्कुल भी प्राप्त कर सकते हैं। आपकी दिव्य शक्तियों की पूर्ण- कोई स्थान नहीं हैं क्योंकि कंजूसी तो अभिव्यक्ति ही मेरी उपलब्धि है। यह अत्यन्त संकीर्ण बुद्धि का चिन्ह है । निःसन्देह मैं सहज है, इसे सहज बना दिया गया है। मैं आपको नहीं कहती कि आप मुझे धन दें। केवल उन्हीं लोगों से प्रसन्न होती हूँ जो परन्तु जिस प्रकार से हम धन को देखते हूँ सहज एवं अबोध हैं, जो चालाक नहीं हैं, हैं, जिस प्रकार से इससे चिपके रहते हैं; जो प्रेममय हैं, जो परस्पर स्नेह करते हैं । जिस प्रकार भौतिक वस्तुओं तथा भौतिक मुझे प्रसन्न करना अत्यन्त सुगम है। जब वैभव, भौतिक पदार्थों और भौतिक उपलब्धियों मैं आपको परस्पर प्रेम करते हुए. एक से चिपके रहते हैं यह अत्यन्त घातक है। दूसरे की प्रशंसा करते हुए, परस्पर सहायता करते हुए, सम्मान करते हुए, मिलकर हैं। उन्हीं के माध्यम से आपको भाई-बहन हँसते हुए, एक दूसरे की संगति का आनन्द प्राप्त हुए हैं। लेते देखती हैूँ तो मुझे पहली प्रसन्नता, आपकी माँ आपकी महानतम सम्पति उस भूतकाल से, उस बीते हुए जीवन से उस दल-दल से मुक्ति पा लें। ये सब पूर्ण समर्पण की स्थिति में परस्पर प्रेम अब समाप्त हो जाना चाहिए। आप करने का प्रयत्न करे क्योंकि आप सब मेरे भली-भांति जानते हैं कि किस प्रकार मेरी बच्चे हैं और मैंने अपने प्रेम से आपका प्रेम शक्ति ने आप सबकी रक्षा की। आप हुए पहला आनन्द प्राप्त होता है। सृजन किया है। मेरे प्रेम के गर्भ में आप ये भी जानते हैं कि हर क्षण किस प्रकार सब निवास करते हैं । अपने हृदय से मैंने मैंने आपकी सहायता की और जब-जब आपको ये आशीष दी है। जब मैं आप भी आपने कोई इच्छा की उसे पूर्ण करने लोगों को परस्पर लड़ते हुए देखती हैँ तो के लिए मैं आगे आई। यह, जैसा मैंने मैं परेशान हो उठती हूँ, मेरे हाथ कॉपने कहा, एक पक्ष है-पोषण। परन्तु अब आपका जुलाई-अगस्त 2002 42 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 उत्थान, आपके अन्दर से आना चाहिए। उत्थान आपके अन्दर से होना चाहिए । पूर्वक मेरा अनुसरण करते हैं वे भी ठीक इसे आपने प्राप्त करना है, केवल आपने । नहीं है इस विषय में भी धर्मान्धिता नहीं यह कार्य न तो कोई और सहजयोगी करेगा और न ही मैं । मैं तो केवल आपको सुझाव बन जाता है। इसके विषय में कोई धर्मान्धता दे सकती हूँ। केवल सुझाव ही नहीं दे नहीं है । सकती चेतावनी भी दे सकती हूँ। सभी "क्या आप समर्पित हैं?" जो लोग धर्मान्धिता होनी चाहिए । सभी कुछ पूर्णतः युक्तियुक्त जैसे कोई कहता है; "मुझे डॉक्टर के कुछ उपलब्ध है, सभी कुछ भली-भांति पास जाना है, डॉक्टर से मिलना है।" तब कार्यान्वित किया जा चुका है, मुझे सूचित धर्मान्ध व्यक्ति कह सकता है, "ओह! मैं किया जा चुका है, मुझे पहले ही सूचित डॉक्टर के पास नहीं जा रहा हूँ, मैं नहीं किया जा चुका है। आपको कहीं जाने की जा रहा हूँ क्योंकि श्रीमाताजी ने मुझसे आवश्यकता नहीं है। सभी कुछ आपके कहा कि वे मेरी रक्षा करेंगी और जब वह अन्दर विद्यमान है । आपको धन नहीं देना, बीमार पड़ जाता है तो आकर श्रीमाताजी कुछ भी नहीं देना परन्तु वह समर्पण अपने से लड़ता है, "माँ आपने मुझे बताया था में विकसित करें। कि आप मेरी देखभाल करती हैं, अब मैं आप देखें इस व्यक्ति ने मेरा साक्षात्कार बीमार क्यों पड़ गया? यह धर्मान्धता है। समर्पण क्या है? अपने अन्तस में आपको (Interview) लिया। इसने कहा कि राजनीतिज्ञ बेरोजगार लोगों का गलत ढंग कहना चाहिए, "ये श्रीमाताजी हैं, वे विद्यमान हैं वही मेरी चिकित्सका हैं। वो मेरा इलाज संचालन करने दें । परन्तु कैसे? मान लो करती हैं या नहीं, मुझे रोगमुक्त करती हैं मेरे हाथ में एक तूलिका है और मैं कोई या नहीं इसके विषय में मुझे कुछ नहीं चित्र बनाना चाहती हूँ, परन्तु मैं तूलिका कहना। 'मैं केवल उन्हीं को पहचानता हूँ, नहीं चला सकती। तूलिका कोणीय है और किसी अन्य को नहीं पहचानता।" ये बात अत्यन्त युक्तियुक्त है। तर्क ये है कि माँ से संचालन करते हैं। परमात्मा को अपना कष्टकर है। इसे चला पाना कठिन है या कष्टदायक है। ये अत्यन्त भद्दी एवं घिनौनी सर्वशक्तिशाली हैं और इस बात को आप है। किस प्रकार आप इसे उपयोग कर जानते हैं, ये सत्य है। यदि वे सर्वशक्तिशाली सकते हैं? हैं तो वो मुझे रोगमुक्त करेंगी। परन्तु यदि "समर्पण, अपनी सारी कोणीयता अपनी वे मुझे ठीक नहीं करती तो ये उनकी सारी समस्याओं, अपनी सारी बाधाओं से इच्छा है, उनकी शक्ति है वो यदि मुझे ठीक करना चाहेंगी तो ठीक कर देंगी। मुक्ति पाने का सुगमतम उपाय है।" अब अपने अन्दर झाँककर देखें कि और यदि वे मुझे ठीक नहीं करना चाहती चैतन्य-लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 43 तो किस प्रकार मैं अपनी इच्छा उनपर शक्तिशाली। उन्होंने अपने को इस थोप सकता हूँ?" श्री गणेश के समर्पण की तरह से-जब मनुष्य की तरह से कष्ट सहन करवाए। ये उनकी माँ ने कहा, "ठीक है आप दोनों बहुत बड़ी बात थी। आपमें सर्वनाश करने भाइयों में से-कार्तिकेय और श्री गणेश - की शक्तियाँ हों फिर भी अपने पुत्र का जो भी पहले पृथ्वी की परिक्रमा करेगा बलिदान करवा देना! आज्ञा चक्र का सृजन उसे इनाम मिलेगा।" अब बेचारे श्री गणेश करना बहुत ही सूक्ष्म कार्य था। पुत्र प्रकार से बलिदान करवा दिया, उन्हें सामान्य इसका क्या अर्थ है? क्या इसका अर्थ ये का वाहन तो छोटा सा मूषक था। परन्तु उनके पास विवेक का चातुर्य था। दूसरी है कि उनके समर्पण में कोई कमी थी? ओर कार्तिकेय के पास वेग पूर्वक उड़ने इसके विपरीत उन्हें तो ईसा मसीह पर, वाला मोर वाहन था। श्री गणेश ने मोर की उनके समर्पण पर पूर्ण विश्वास था कि वे ओर देखा और कहा, "मेरी माँ से महान उन्हें बलिदान के लिए कह सकती हैं। कौन है? वे आदिशक्ति हैं। ये पृथ्वी उनका आप अपनी माँ से कुछ भी करने की आशा क्या मुकाबला कर सकती है? पृथ्वी का करते हैं-ऐसे भी लोग हैं जो कहते हैं "माँ सृजन किसने किया है? मेरी माँ ने ही मैं यह शोध प्रबन्ध (Thesis) दे रहा हूँ मुझे पृथ्वी को बनाया है सूर्य का सृजन किसने उपाधि मिल जानी चाहिए। ठीक है बन्धन किया है? मेरी माँ ने ही सूर्य का सृजन दो आपको उपाधि मिल जाएगी "श्रीमाताजी किया है। मेरी माँ से महान कौन है? कोई मैं ये कार्य करना चाह रहा हूँ, ठीक है भी नहीं । क्यों न मैं अपनी माँ की परिक्रमा करुं? पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करने की पाने का प्रयास कर रहा हूँ, ठीक है तुम आप ये कर लो । श्रीमाताजी मैं ये नौकरी क्या आवश्यकता है? इससे पूर्व की कार्तिकेय इसे पा लो। पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटते अपने हाथों में इनाम लेकर श्रीगणेश बैठे हुए थे। का समर्पण ईसा मसीह सम है किसी का ये सब समझने का विवेक उन्हें उनकी भी नहीं, यह बात सत्य है अबोधिता ने प्रदान किया था-यही बात एक अन्य उपाय भी है। कितने लोगों ै। ईसा मसीह बड़े भाई क्यों हैं? क्योंकि उन जैसा कोई भी नहीं। उन्होंने सब कुछ युक्तियुक्त है-अत्यन्त युक्तियुक्त और ये भी युक्तियुक्त है कि श्रीमाताजी मेरे दर्द सहन किया को मुझसे भी अधिक महसूस करती हैं । अपनी माँ के लिए ईसा-मसीह के थे उनकी माँ ने उनसे भी अधिक कष्ट क्रूसारोपित होने के विषय में आपका क्या कहना है? वे स्वयं महालक्ष्मी थीं, इतनी तथा उच्च जीवन के लिए वे उन कष्टों में सारे भयानक कष्ट सहन किए - क्योंकि वे अपनी माँ के अंग-प्रत्यंग उठाए । महान लक्ष्य, महान प्रसन्नता, महान चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 44 से गुजरीं। परन्तु ये झूठे लोग इन सभी के पहिए बनने के लिए ।" बातों का लाभ उठा सकते हैं। जब ये लोगों को दुख देते हैं तो उन्हें कहते हैं मुकाबला करना होगा और बलिदान देना "आखिरकार आपको ये कष्ट उठाने ही होगा- और ये बलिदान आपके लिए तुच्छ हैं। देखें किस प्रकार से ये चीजों को घुमाते हैं! "आपको कष्ट उठाने ही होंगे, नहीं लेती। देना इसका गुण है अतः आप आपको कष्ट उठाने हैं, बिना कष्ट उठाए बलिदान नहीं करते, मात्र देते हैं। आप ही लोगों को अग्रिम मोर्चे पर है क्योंकि आत्मा तो केवल देती है, बलिदान सर्वप्रथम माँ को प्रसव पीड़ा होती है। ठीक हैं। उसे सभी प्रकार के कष्ट होते आप आरम्भ ही नहीं कर सकते।" यह अत्यन्त सूक्ष्म सूझ-बूझ है, अत्यन्त सूक्ष्म । यह इस बात को स्पष्ट कर देगी कि है। ठीक है। परन्तु बच्चा जब बड़ा हो सहजयोग में पहले आपका पोषण किया जाता है तो माँ को उस पर गर्व होता है. को जाता है, आपका लालन-पालन किया जाता माँ को पुत्र पर गर्व होता है और है, आपको प्रशिक्षित किया जाता है. ठीक माँ पर। एक साथ खड़े होकर वे लड़ाई किया जाता है। उसके पश्चात् जो भी कुछ लड़ते हैं। ऐसा होना तभी सम्भव है जब आप करते हैं जो भी कष्ट आप उठाते हैं आप पूर्ण समर्पण और सहजयोगी के रूप वो आपके लिए कष्ट नहीं होते क्योंकि में भविष्य के जीवन की तैयारी को स्वीकार आप आत्मा बन चुके होते है: पुत्र करेंगे। एक ऐसा जीवन जो बाहर से संघर्षं और समस्याओं से भरा हुआ दिखाई देता है परन्तु अन्दर से अत्यन्त सन्तुष्टि दायक है। नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आरम्भ में जब सहजयोगी मेरे पास वायु उड़ा सकती है न अग्नि जला सकती हैं। आत्मा किसी भी तरह से नष्ट नहीं की जा सकती। आप वही आत्मा है। अब बैहना भी बड़ा बलिदान माना जाता था। आते थे तो पृथ्वी पर बैठना भी वो बहुत बड़ा बलिदान मानते थे। जूते उतार कर आपका पोषण हो चुका है, आप उन्नत हो कल के कार्यक्रम से तीन लोग उठकर चुके हैं पोषित हो चुके हैं। सहजयोगियों को देखते हैं तो कहते हैं कि ये पुष्प-सम वे कितने आत्मविश्वास पूर्ण कितने लोग जब चले गए क्योंकि जूते उतारने के लिए कहा गया था। मानों कोई उनका सिर गंजा कर रहा हो! वे उठकर चले गए। सहजयोग में हमें किसलिए विकसित बढ़ने के लिए, अपने पैरों पर खड़े होने के लिए, महान माँ के महान बच्चों की तरह। हैं। उनके चेहरे तेजोमय हैं। होना है। आगे हैं! सम्मानजनक और कितने सुन्दर "परमात्मा के रथ परन्तु किसलिए? গ चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 45 कार्य अत्यन्त कठिन है । यह कार्य यदि ठीक ही जाएंगे तो हम उन्हें वापिस (सहजयोग) मध्यम दर्जे के लोगों के लिए ले आएंगे आप ये सब मुझ पर छोड़ दें । नहीं है। डरे हुए, भीरू, अक्खड, धृष्ट लोग उनकी ओर न तो अपना चित्त दें न ही यह कार्य नहीं कर सकते। उनमें ये कार्य उनके लिए प्रयत्न करें स्वयं आपको उन्नत करने का क्षेम नहीं है । अतः ध्यानधारणा में पूर्ण समर्पण का कर लिया है, इससे पोषण प्राप्त किया है अभ्यास होना अत्यन्त आवश्यक है। अतः और अब आप उन्नत हो गए हैं किसलिए? भौतिक पदार्थों के लिए जो भी कार्य आप अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए । आज मैं होना होगा आप साधक थे, आपने प्राप्त कोब अब कर रहे हैं वह आपके हित में नहीं। जिस प्रकार आपका सामना कर रही हैूँ पहले तो आप नन्हें बच्चे थे, बहुत छोटे आपको भी अन्य लोगों का सामना करना थे। अब आपका सामूहिक अस्तित्व है । है। कोई भी कार्य आप अपने लिए नहीं कर रहे। उस सामूहिक व्यक्ति के लिए कर किसी से सहजयोग की बात ही न करें। रहे हैं। उस विराट की चेतना प्राप्त करने कुछ लोग सोचते हैं कि मौन रहना ही के लिए आप उन्नत हो रहे हैं यही, यही समर्पण का एकमात्र मार्ग है आपको केवल पूर्णत्व आपने प्राप्त करना है। आपकी ध्यान-धारणा में रहना है। परन्तु अभी नौकरियाँ, आपका पैसा या आपका धन, आपको इस मौन से बाहर निकलना है । आपकी पत्नी, आपके पति, आपके बच्चे, सभी देशों को या सभी राष्ट्रों को. सभी समर्पण का अर्थ ये नहीं है कि आप माताएं, सम्बन्धी ये सब मोह अब समाप्त लोगों को, सर्वत्र, ये महान संदेश दें कि हो गए हैं अब आप सबको सहजयोग की पुनरुत्थान या पुनर्जन्म का समय आ गया जिम्मेदारी उठानी होगी आप सभी समर्थ है यही वह समय है और आप सब लोगों और इसीलिए आपका पालन किया गया में यह कार्य करने की योग्यता है । कोई यदि इस कार्य के लिए आपका भी आपकी क्षमता है वैसे कार्य करें पूर्ण मज़ाक उड़ाता है तो सूझबूझ और विवेक समर्पण से आप इसे प्राप्त करेंगे। समर्पण के साथ कार्य करने का प्रयत्न करें । व्यक्तिगत पसन्द और नापसन्द बलिदान ट टी है। जैसे भी आपको अच्छा लगे, जितनी ही एकमात्र चीज़ है। पूर्ण समर्पण आगे उन्नत होने का एकमेव कर दिए जाने चाहिएं। "मुझे ये पसन्द है. मार्ग है कुछ सहजयोगी अधपके हैं। हमें मुझे वो पसन्द है, त्याग दिए जाने चाहिए । उन्हें छोड़ देना होगा हम उन्हें अपने ऐसा कहने का ये अभिप्राय भी नहीं है कि साथ नहीं रख सकते। उनके प्रति सहानुभूति आप मशीनसम बन जाएं। नहीं। परन्तु मैं नहीं रखनी, उसका कोई लाभ नहीं। वो का दासत्व त्याग दिया जाना आवश्यक चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 46 है। आदतों की गुलामी का त्याग भी लिए आपको अपने बाएं या दाएं के विकारों आवश्यक है। आप हैरान होंगे कि एक बार को नहीं कोसना। कुछ भी नहीं - आप समर्पित हो जाने के पश्चात् आप बहुत बस इससे मुक्ति पा लें। इस बात पर दृढ़ कम खाने लगेंगे, कई बार तो आप बिल्कुल रहें। आपकी देखभाल करने के लिए साक्षात कुछ न खाएंगे, आपको भोजन की याद परब्रह्म आए हैं दृढ़ता से उन्हें पकड़े ही न रहेगी। आपको ये भी याद न रहेगा रखें । मृत्यु को भी वापिस जाना होगा, इन कि आपने क्या खाया है। आप ये भी याद छोटी-छोटी चीज़ों की तो बात ही क्या है। न रख सकेंगे कि आप कहाँ सोए थे और भी आपकी माँ का नाम अत्यन्त शक्तिशाली हैं कि अन्य सभी नामों से कैसे। आपका यह जीवन दूरबीन की तरह है आप जानते होगा - विस्तृत होता हुआ। अपने स्वप्नों यह नाम कहीं शक्तिशाली है, यह अत्यन्त का आप स्वयं सृजन करेंगे उन्हें पूर्ण करेंगे शक्तिशाली मंत्र है। परन्तु आपको इस उनमें सन्तुष्ट होगे। आप अत्यन्त सामान्य बात का ज्ञान होना चाहिए कि किस प्रकार एवं साधारण दिखाई पड़ते हैं, परन्तु वास्तव ये मंत्र लेना हैं। अत्यन्त समर्पण पूर्वक में आप ऐसे नहीं। पूर्ण समर्पण में पूर्ण आपको यह नाम लेना है, किसी अन्य नाम श्रद्धा के साथ आपने अब ये कार्य करना की तरह नहीं । है-केवल अपने हित के लिए, केवल व्यक्तिगत उपलब्धियाँ प्राप्त करने के लिए नाम लेते हुए लोग अपने कान पकड़ते हैं- आप जानते हैं कि भारत में गुरु का नहीं। वह सब अब समाप्त हो गया है गुरु का नाम लेने के लिए। अर्थात, "नाम अब आपने माया के दल-दल से मुक्त लेते हुए यदि मुझसे कोई गलती हुई हो तो होने के लिए दृढ़ भूमि पर खड़े होने के मुझे क्षमा कर दीजिए"-कान पकड़ने का लिए और ऊँची आवाज़ में अपने परम ये अर्थ हैं। ये मंत्र अत्यन्त शक्तिशाली मंत्र पिता की स्तुतिगान करने के लिए कार्य है आपको यदि आवश्यकता है तो समर्पण की, समर्पण रूपी प्रध्वंसक (Dynamite) करना है। भ्रमजाल में फॅसे लोग क्या संगीत दे की। आज मैंने आपको बताया था कि अब सकते हैं? वे कौन से गीत गा सकते हैं, इंग्लैण्ड के सभी डेज़ी फूल सुगन्धमय हो कौन सी सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं, तथा गए हैं। वह महिला इस बात पर विश्वास अन्य लोगों की वे क्या सहायता कर सकते न कर सकी कहने लगी "मुझे इस बात हैं? आपको इससे पूर्णतः बाहर आना होगा । मैंने तो सदा यही महसूस किया कि डेजी इसके लिए निरन्तर विवेक की आवश्यकता पुष्पों में सुगन्ध का पूर्ण अभाव है और ये है- निरन्तर विवेक की । हर पल इसके अत्यन्त अजीब गरन्ध वाले फूल हैं।" मैंने का कभी ज्ञान न होगा इसके विपरीत चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 47 कहा, "ये डेज़़ी फूल हैं जाकर इन्हें सूंघो।" से चौकन्ना, तैयार और समर्पित रहना है। उसने जब ये पुष्प सूंघे तो आश्चर्यचकित यह बात मैं सिर्फ आप लोगों से कर सकती रह गई! आश्चर्यचकित! कितनी सूक्ष्म बात हूँ, उन लोगों से नहीं जो केक्सटन सभागार है! आज डेजी पुष्प इंग्लैण्ड के सर्वाधिक सुगन्धित पुष्प हैं। मात्र नाम का प्रभाव है! अधपके हैं, कुछ बिल्कुल नए हैं, भोले भाले इसका अर्थ है निष्कलंका अर्थात निर्मला अर्थात 'मलविहीन'। ये मल क्या है? यह यहाँ जिस प्रकार से आज आप मेरे सम्मुख भ्रम है। बिना किसी भ्रम के । नि: अर्थात है मैं आपसे वैसे ही स्पष्ट बता देना चाहती पूर्णतः सहस्रार का आनन्द हमेशा से निरानन्द हूँ जिस प्रकार से श्री कृष्ण ने अर्जुन को कहलाता है। युगों-युगों से इसे निरानन्द बताया था । या निर्मलानन्द कहते हैं। यह आनन्द ऐसा सर्व धर्माणाम परितज्य मामेकम शरणम आनन्द है जिसका आप क्रूसारोपित होकर व्रज । भी आनन्द लेते हैं। ये ऐसा आनन्द है कि विषपान करके भी आप इसका मजा उठाते का अर्थ है जिसने पुनर्जन्म प्राप्त कर (Caxton Hall) आते हैं। उनमें से कुछ हैं और कुछ पूर्णतः तीसरे दर्जे के। परन्तु इसके अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं । ब्रज 1 है, मृत्युशय्या पर भी आप इसका आनन्द लिया है। अत्यन्त अत्यन्त सुदृढ़ व्यक्तित्व । उठाते हैं। इसे निर्मलानन्द कहते हैं। अतः जब आप सुदृढ़ हो जाएं तो अवश्य समर्पित दूसरी अवस्था के लिए तैयार हो जाएं। हो जाएं, जब आप कुशल हो जाएं तो मुझे आप मोर्चे पर है। ही कम समय अवश्य समर्पित हो जाएं । की आवश्यकता है वास्तव में मुझे निरन्तर विवेक तथा समर्पण वाले लोगों की मिलेगी और महान लक्ष्य प्राप्ति में भी यह बहुत इससे भ्रम मुक्त होने में आपको सहायता आवश्यकता है। निरन्तर। क्षण भर के लिए सहायक होगा। कोई भी नहीं समझता कि भी यह विवेक एवं श्रद्धा डांवाडोल नहीं "क्यों श्रीमाताजी मेरी सहायता करने का होनी चाहिए। केवल तभी हम तेजी से प्रयत्न कर रही हैं ?" वो सोचते हैं कि वे उन्नत हो सकेंगे और युद्ध के मैदान में बहुत उदार हैं। मैं उदार नहीं हूँ। मुझमें आगे बढ़ सकेंगे संभवतः अब तक आपको सहजबुद्धि का प्राचुर्य हैं क्योंकि आप लोग नकारात्मकता की सूक्ष्मताओं का ज्ञान हो ही परमात्मा के आनन्द की अभिव्यक्ति गया होगा और इस बात का भी कि किस पृथ्वी पर करने के योग्य हैं. आप ही वह प्रकार से परमात्मा के कार्य को नष्ट करने बासुरियाँ हैं जो परमात्मा की मधुर धुनों को के लिए वे अपनी शक्तियों का उपयोग ब्रजाएंगी, परमात्मा आपका उपयोग करेंगे करती हैं। निःसन्देह नकारात्मक शक्तियाँ और आपका संचालन करेंगे। मैं यह सब सीमित हैं। इनके विरुद्ध आपने किस प्रकार आपको कुशल बनाने के लिए कर रही हूँ चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 48 ताकि आप परमात्मा के सुन्दरतम माध्यम अत्यन्त सूक्ष्म, अत्यन्त गहन, अत्यन्त बन सकें, उचित माध्यम बन सकें मैं नहीं प्रभावशाली अत्यन्त गतिशील, निरन्तर एवं जानती कि आप इस बात को समझते भी शाश्वत् चीजों के प्रति हम समर्पित नहीं हैं या नहीं कि वह जीवन कितना मधुर, होते। उनके प्रति समर्पित होने के विषय में कितना सुन्दर होगा-समर्पण का जीवन, हम सोच भी नहीं सकते पर्वत सम दिखाई सूझ-बूझ से परिपूर्ण, अत्यन्त युक्तियुक्त । देने वाले किसी भी विशालकाय व्यक्ति के पूर्णतः समर्पित, पूरा पोषण प्राप्त करते हुए सम्मुख जो हमें सताने के लिए आता हो, और उच्च लक्ष्य के लिए इसे समर्पित जो हिटलर की तरह से हो, जो कुगुरु हो, करते हुए। बिल्कुल वैसे ही जैसे पत्ते हम समर्पित हो सकते हैं परन्तु अपने उच्च लक्ष्य के लिए सूर्य की किरणों से सूक्ष्म अस्तित्व के सम्मुख पोषण प्राप्त करके भिन्न रंगों को प्राप्त अपनी आँखों से देख नहीं सकते, कानों से करते हैं ताकि मानव इनका उपयोग कर जो सुनाई नहीं देता, अणु बम की तरह से सके। कोई भी चीज़ इसके लिए कार्यान्वित जिसका प्रभाव अत्यन्त शक्तिशाली है होती है परन्तु इतना निःस्वार्थ, इतना विस्तृत, समर्पित होना हमारे लिए कठिन है । बिना जिसे आप विखण्डित हुए अणु सर्वत्र होता है परन्तु इतना महान गतिशील लक्ष्य! आप सागर बन जाते हैं, चाँद बन जाते विखण्डित होने पर यह इतना गतिशील हो हैं, सूर्य बन जाते हैं, पृथ्वी बन जाते हैं, उठता है कि आप इसे स्वीकार कर लेते आप आकाश बन जाते हैं, महा व्योम बन हैं। तब यह ऊर्जा की अत्यन्त गतिशील जाते हैं सभी सितारे और ब्रह्माण्ड बनकर आप चित्त ब्रह्माण्ड की सूक्ष्मता में प्रवेश कर और आप आत्मा बन जाते हैं। शक्ति बन जाता है। अब क्योंकि आपका उनका कार्य संभाल लेते हैं। यह इतनी गया है अतः और अधिक गहनता में उतरते महान चीज़ है! क्योंकि आप अपने तत्व पर जाएं। जड़ को जल के स्रोत तक ले जाने पड़े हैं। इसी प्रकार आप सभी के वाली पृथ्वी उस स्रोत की तरह से ही है । कूद तत्व पर पहुँच सकते हैं । परन्तु उस तत्व आपकी कुण्डलिनी भी आदिकुण्डलिनी की के प्रति समर्पित रहें क्योंकि मैं ही इन तरह से है और परब्रह्म इसकी शक्ति हैं । ये सब चीजें आत्म-साक्षात्कार क पश्चात् सबका तत्व हूँ। मैं ही तत्व हूँ - 'तत्वमयः' । मैं ही तत्व हूँ अपने तत्व से जुड़े रहें। परिपक्वता प्राप्त करने के बाद समझ मैं कुण्डलिनी हूँ , मैं ही सार त्व हूँ। आएंगी । इससे पूर्व इन्हें समझ पाना असंभव हम केवल उसी चीज के समर्पण को समझते है। यही कारण है कि पिछले आठ वर्षों में हैं जो स्थूल रूप से बड़ी दिखाई देती है, मैंने आपसे ये सारी बातें नहीं कहीं। आपके जो स्थूल रूप में दिखाई देती है। परन्तु साथ मेरा व्यवहार अत्यन्त मधुर एवं उत्साह चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8৪ जुलाई-अगस्त 2002 49 बढ़ाने वाला था। सदैव मैंने आपको यही के योग्य है। अब यह दूसरी. अवस्था है महसूस करवाया कि आप मुझ पर एहसान जहाँ पर आपने निकल पड़ना (Sailout) है, कर रहे हैं। ये कोई आसान कार्य नहीं है । जब आपको जहाज और समुद्र का पूर्ण इन सभी धारणाओं से परे आप अपनी ज्ञान है। पूर्ण स्वतन्त्रता और विवेक के आत्मा (Spirit) बन गए हैं, जिम्मेदार बनने साथ आपने अपने लंगर खोल देने हैं । के लिए, वह बनने के लिए जिसके लिए बिना आँधी, तूफानों और चक्रवातों से डरे, क्योंकि अब आपको सारा ज्ञान है। पार आप बने है, अब आप तैयार हैं। जैसे समुद्री जहाज को बनाकर समुद्र करते जाना आपका कार्य है। में लाया जाता है, उसे परखा जाता है और देखा जाता है कि यह अब समुद्र में तैरने परमात्मा आपको धन्य करें। जन कार्यक्रम नोएडा, 18.3.89 (परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) राम सत्य को खोजने वाले सभी साधकों को की उत्कण्ठा बिल्कुल जाहिर है. और आप हमारा प्रणाम्। सब से पहले, तो बड़े दुःख की इच्छा यही है कि हम सत्य को प्राप्त की बात है कि इतनी देर से आना हुआ। करें। और Aeroplane में इतनी देरी हो गई और आप लोग इतनी उत्कण्ठा से, इतनी सबूरी सत्य जैसा है, वैसा ही है । अगर हम चाहें के साथ, सब लोग यहाँ बैठे हुए हैं और कि हम उसे बदल दें, तो उसे बदल नहीं हम वहाँ से, असहाय माँ, जो सोच रही थी सकते और अगर हम चाहें कि अपनी बुद्धि कि किस तरह से वहाँ पहुँच जाए। आप से या मन से कोई एक धारणा बना कर लोगों को देख कर ऐसा लगता है, कि ये उसे सत्य कहें तो वह सत्य नहीं हो सकता। दुनिया बदलने के दिन आ ही गए हैं, आप तो सत्य क्या है? सत्य एक है कि 'हम सत्य के बारे में एक बात कहनी है कि fic. चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 51 सब आत्मा हैं। 'हम आत्मा स्वरूप हैं। ऐसी कुछ विचित्र हो जाती हैं कि हमारे इतनी यहाँ सुन्दरता से सजावट की है बच्चे पूछते हैं, कि ये सब करने से क्या और इतने यहाँ दीप जलाए हुए हैं जिन्होंने फायदा हुआ? आप इतना सब कुछ करते प्रकाश किया है जिससे हम एक-दूसरे को हैं, लेकिन आप को तो कोई अन्तर नहीं देख रहे हैं और जान रहे हैं । पर अगर हुआ। और कोई आदमी चाहे हिन्दु हो, यहाँ अज्ञान का अंधकार हो, अंधियारा छाया चाहे मुसलमान हो, चाहे ईसाई हो, चाहे हो, और हम उस अज्ञान में खोए हुए सिख हो, हर जाति का, हर धर्म का आदमी, हुआ हैं, तो एक ही बात जाननी चाहिए कि हम हर प्रकार का पाप कर सकता है। इर सब प्रकाशमय हो सकते हैं और हमारे तरह का गुनाह कर सकता है, ये कैसी अन्दर भी दीप जल सकता है। और ये बात है? अगर हम लोग धार्मिक हैं, और दीप हम बहुत आसानी से प्रज्जवलित कर हमारे अन्दर अगर धर्म है. तो हमसे गुनाह सकते हैं, जला सकते हैं, और उसका कैसे होता है? उजाला सारे संसार में हम फैला सकते हैं। लेकिन हम देखते हैं कि जो बड़े-बड़े साधु संत हो गए हैं, जिनके हमारे सामने आज तक परमात्मा के नाम पर बड़ी इतने उदाहरण हैं. वो लोग कभी गलत मेहनत की गई है। परमात्मा के विश्वास नहीं करते। और वो लोग गलत लोगों के पर ही हम लोग जुटे रहे हैं। ये बात और सामने झुकते भी नहीं। आप यहाँ औलिया किसी देश में नहीं, जो हमारे देश में है, कि निजामुद्दीन साहब के बारे में जानते हैं । कितनी भी विपत्ति आए, कितनी भी तकलीफ शाह ने कहा था, अगर तू मेरे आगे झुकेगा हुई, तो हम सोचते रहे कि एक दिन ऐसा नहीं तो मैं तेरी गर्दन उड़ा दूँगा। वो झुके आएगा, कि परमात्मा हमें जरूर रास्ता नहीं और कहा, मैं परमात्मा के सामने दिखाएगा और हम उस स्वर्ण दिन की राह झुकता हूँ। और आप आगे भी जानते हैं देखते रहे जहाँ हम अपने मोक्ष को प्राप्त कि उसके बाद उसी शाह की ही गर्दन करें। हमें सिर्फ अपने अज्ञान से मोक्ष मिला उड़ गई। सो इस तरह के जो साधु-सन्त 1 और ये अज्ञान हमारे अन्दर तरह-तरह इतने हिम्मत के साथ और इतने सूझ-बूझ की चीजों से आ बसा है। जैसे कि बचपन के साथ किसी बात को कहते थे उनकी से कोई बात बताई जाती है, चार लोगों से कौन सी अहमियत थी, उनमें कौन सी सुनते हैं, या हम किसी एक धर्म में पैदा हो खास बात थी, जो वो हम लोगों से इतने गए, तो उस धर्म की बातें जो चल पड़ी, बड़े और ऊपर एक ऐसी दशा में थे, जहाँ वही हमारे लिए विशेष हो जाती हैं । और उनको कोई भी चीज़ ऐसे प्रतीत ही नहीं वो हर जगह अलग-अलग रूप लेकर, होती थी जो सत्य को छोड़कर अपनाएं। चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 52 वो अटूट अपने विश्वासों पर पूरी तरह से करेंगे? या आप कुरान पढ़ने के बाद ऐसा खड़े थे, क्योंकि उनके विश्वास अन्धे नहीं कह सकते हैं कि अब हम इसके बाद कोई थे, जो विश्वास थे वो जानते थे कि ये बात गुनाह नहीं करेंगे या गुरु ग्रन्थ साहिब को सत्य है और आज जबकि हम अपनी पढने के बाद ऐसा कह सकते हैं कि अब आत्मा को खोज रहे हैं तो उसके प्रकाश में हम कोई गुनाह नहीं करेंगे तो इन महान ये जान जाएंगे कि ये जो सत्य है वो किताबों में जो लिखा है, वो एक लिखी हुई ओत्मा के प्रकाश में ही जाना जा सकता चीज़ हो गई, वो हमारे अन्दर में है। जो है। कुछ भी है, वो बाहर है. और उसमें अगर हर एक धर्म, संसार का हर एक धर्म, हम सोच लें कि इनको पढ़ने मात्र से ही अगर आप थोड़ा सा जान लें, तो समझ हम ठीक हो जाएँगे, तो ये हमारी गलत लेंगे कि तत्व में हर एक धर्म एक है। और धारणा है सिर्फ ये जान लेना चाहिए कि हर एक धर्म में एक ही बात बताई गई है इसका बोध होना चाहिए यानि अपनी नसों कि हमें नश्वर चीजों को छोड़ कर के जो में आपको जानना चाहिए, चारों तरफ फैली चिरंजीव, जो अनन्त चीज़ है उसे लेना ये परमात्मा की शक्ति है। ऐसा कहा जाता चाहिए। हम लोग बहुत बार सांसारिक है तो देखने में क्या हर्ज है? अगर आप बातों में इस तरह से लिपट जाते हैं कि साईंस वाले हैं तो इसे आप देखिए कि ये इस चीज़ को भूल जाते हैं. कि जो नश्वर कौन सी शक्ति है, जिसे आप प्राप्त कर चीजें हैं वो जहाँ तक हैं, वहाँ ठीक हैं। सकते हैं? ये जो शक्ति हमारे अन्दर है, ये लेकिन इसमें अतिशयता करने से हमारा शक्ति जिसे कि हम जानते हैं, वो भी अगर सर्वनाश हो जाता है, क्योंकि वो ही स्वयं हम कहें कि आप के अन्दर सुप्तावस्था में नाशमय है। अन्त में हमारा भी नाश उससे है, तो क्या हर्ज है, कि हम इसको पूरी हो जाता है। लेकिन इस सब को जानने तरह से प्राप्त कर लें। क्योंकि अगर ये के लिए हमारे अन्दर ज्ञान होना चाहिए । हमारी ही शक्ति है और इससे हमें ही ज्ञान का मतलब ये नहीं कि पढ़ना लिखना। बोध होने वाला है, और इससे हम ही बहुत बहुत से लोग हैं जो हमको बताते हैं कि ऊँचे उठ जाने वाले हैं, तो फिर क्यों न हम हम तो रोज शिवलीला- अमृत पढ़ते हैं, इस चीज़ को पूरी तरह से अपना लें और और हम रोज़ एक पूरा उसका अध्याय इस पर पूरी मात करके जाने कि यह पूरा करते हैं। लेकिन आपके अंदर उससे चीज़ है क्या जिसे परम चैतन्य कहते हैं? को ई परिवर्त न हुआ? क्या आप शिवलीला-अमृत पढ़ने के बाद ऐसा कह लेक्चर इन लोगों ने रखा, तो उन लोगों ने सकते हैं कि अब आप कोई गुनाह नहीं आकर बताया कि हम आपको नहीं मानते एक दिन ऐसा हुआ था कि हमारा कोई जुलाई-अगस्त 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 53 क्योंकि आप ब्राह्मण नहीं हैं। तो हम तो न कोई बात सबके बीच में एक सी मालूम कुछ बोले नहीं। सब लोगों ने कहा, कि पड़ रही है तब फिर कहने लगे, कि माँ ठीक है, लैक्चर तो पेपर में दे दिया है। ये चीज़ क्या है? मैंने कहा, बेटे, ये तो अगर आप मानते नहीं हैं तो ठीक है, हम परम् चैतन्य है जो तुम्हें भी हिला रहा है ऐसा करते हैं कि इसे कैन्सल तो कर देंगे, और उनको भी हिला रहा है । लेकिन तुम लेकिन हम आपका नाम दे देंगे कि इन्होंने इस को प्राप्त करो। जब तुम ब्रह्म को ऐसे-ऐसे मना कर दिया। कहने लगे नहीं, जानोगे तभी तुम सोचना कि तुम द्विज हो ऐसे नहीं। तो ठीक है, वहाँ प्रोग्राम हुआ गए, मतलब तुम्हारा फिर से जन्म हो लेकिन इन्होंने मुझे आगे की कोई बात गया झूठ-मूठ से अपने सिर पर लेबल नहीं बताई। न जाने लै क्चर में लगा लेने से आप खुश नहीं होते, उसे बोलते-बोलते, मैंने कहा, कि जो सोचते हैं कुछ प्रमाण नहीं मिलता। लेकिन जो कि जिन्होंने ब्रह्म तत्त्व को जाना है, वो साधु होता है, जो असली सद्गुरू होता है, हमारे सामने आ जाएँ। तो आठ दस आदमी उसके लिए प्रमाण की क्या जरूरत है? आकर खड़े हो गए हमारे सामने । मैंने संस्कृत में कहा जाता है, कि कस्तूरी अगर कहा, बैठ जाइए, बैठ जाइए। बैठने के कहीं है, तो उसके लिए थोड़े ही कसम बाद मैंने कहा, अच्छा आप मेरी ओर हाथ लेनी पड़ती है, कि ये कस्तूरी है । वो तो ए। तो उनके हाथ लगे थरथराने। उसकी सुगन्ध, अपने आप ही ज्ञान करा कीजिए तो मैंने कहा, देखिए आप के हाथ थरथरा देती है कि ये कस्तूरी है। इसी प्रकार रहे हैं, वो कहने लगे, रुकिए-रुकिए माँ, आप के अन्दर जो शक्तियाँ हैं, जब तक हम मान गए आप शक्ति हैं, इससे हमारे उसका प्रादुर्भाव नहीं होगा, जब तक उसका हाथ थरथरा रहे हैं, मैने कहा, ये बात नहीं प्रकाश फैलेगा नहीं, सिर्फ कहने से क्या | औरों के नहीं थरथरा रहे। कहने लगे आप विश्वास कर लेंगे, या कोई भी विश्वास नहीं, इन लोगों के कैसे थरथरा रहे हैं। कर लेगा, कि आप बहुत बड़ी आत्मा हैं? मैंने कहा, जाकर पूछिए, ये लोग कौन हैं? या आप बहुत बड़े धार्मिक हैं? या आप तो उन लोगों ने बताया, कि हम तो ठाणे ऐसा कोई जीव हैं, जो बहुत ही पूर्व जन्म के पागलखाने से आए हैं क्योंकि ठाणे का की सूझ-बूझ के साथ, इतनी पुण्यवान एक पागल ठीक हो गया, इसलिए डाक्टर आत्मा है। हमें वहाँ से ले आए। हम तो सर्टिफाईड पागल हैं तब इनके दिमाग में बात आई पुण्यवान नहीं होता। दूसरी बात ये भी कि सर्टिफाईड पागल के भी हाथ हिल रहे कही जाती है. कि कर्म करने से मनु हैं और हमारे भी हाथ हिल रहे हैं, तो कोई स्वच्छ हो जाता है । मैंने कहा, मनुष्य कर्म इस तरह के लेबल लगा लेने से, कोई चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 54 क्या करता है? जब तक आपके अन्दर ये वैसा किया, मैंने इतने उपवास किए, फिर भावना है, कि आप कर्म कर रहे हैं, तब मैंने सन्यास ले लिया, मैंने बीवी बच्चे छोड़ तक आप स्वच्छ हैं ही नहीं। आपके अन्दर दिए। मैंने कहा था आपसे? आपने क्यों अहंकार बैठा हुआ है। और वो अहंकार जो किए? अगर आप ये सब चीज न भी है, यही आप को बता रहा है, कि आप ये करते तो भी आप आत्म साक्षात्कार को कर्म कर रहे हैं, आप वो कर्म कर रहे हैं । प्राप्त होते। ये ही बात है, कि हम कुछ भी पर बास्तव में हम लोग कर्म क्या करते हैं? नहीं कर सकते। ये जीवन क्रिया है। ये कोई चीज़ मर गई, कोई पेड़ मर गया तो अपने आप घटित होती है। और हर मानव उससे फर्नीचर बना लिया, या कोई पत्थर का ये जन्मसिद्ध अधिकार है कि वो इस जो मरे हुए थे उन्हें लाकर आपने कोई योग को प्राप्त करे। भगवान ने आपको मकानात खड़ा कर लिया। तो आपने क्या मनुष्य किस लिए बनाया? आधा अधूरा बड़ा भारी काम कर लिया? मरे से मरी छोड़ देने के लिए? इस अज्ञान में गोते चीज़। आपने कोई जिन्दा काम किया है? लगाने के लिए? ऐसा तो नहीं हो सकता। सहजयोग के बाद जब आप पार हो जाते वो तो परमात्मा परम दयालु हैं। वो क्या हैं, तो आपके हाथों से कुंडलिनी उठती है । आप को इस तरह से छोड़ देंगे? एक बहुत बड़े साधु थे और बड़े मशहूर थे। तो वो मुझ से कहने लगे. माँ, आप इन संसार नष्ट होने वाला है अरे जिसने ये सब लोगों को मोक्ष क्यों दे रही हैं? इनको संसार बनाया, वह इतना बलिष्ठ और समर्थ क्यों इतनी शक्तियाँ दे रही हैं? मैने कहा, है। बो क्या इस संसार को नष्ट होने देगा? साहिब, हम क्यों दे रहे हैं, ये तो आप कभी भी नहीं और इसलिए जान लीजिए, हमसे मत पूछिए, लेकिन हम दे जरूर रहे कि आप लोगों में से ही, वो बलिष्ठ लोग हैं। और ये सोचिए. कि हमारी मर्जी, जिसे तैयार हो जाएँगे, जो सारे संसार को बदल चाहें दें, आप हमारे ऊपर जबरदस्ती करने सकते हैं और सारी दुनिया में आनन्द ला वाले कौन होते हैं? वो कहने लगे, हमने तो सकते हैं । आज बहुत देर हो गई है, इतनी मेहनत की, हमने इतना किया। क्यों इसलिए की मेहनत, मैंने कहा था? मेहनत करने मैंने सोचा है कि मैं 16 तारीख को फिर की जरूरत नहीं है अगर आपने मेहनत नोएडा आऊँगी और इतनी देर रहूँगी। की, तो ये मत कहिए, मैंने ऐसा किया, मैंने 1 बहुत से लोग सोचते हैं कि अब सारा मैं कोई बड़ा लेक्चर नहीं दूँगी पर ---------------------- 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-0.txt NIRMALA खण्डः XIV अंकः 7 व 8 जुलाई-अगस्त, 2002 चैतन्य लहरी PURE सि सामूहिकता हमारे उत्थान का मूलाधार है यदि आप ध्यान केन्द्र पर नहीं आते हैं। यदि आप सामूहिक नहीं हैं, यदि आप परस्पर मिलते-जुलते नहीं तो आप अंगुली से कटे नाखून की तरह हैं और परमात्मा को आपसे कुछ नहीं लेना-देना। परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी OHARMA VMHSIA RELIGION UNIVERSA 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-1.txt यी WW ८ ान ल ४ रु স ह] ती निर्मला देवी जी के 79वे जन ण 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-2.txt अं क चै तन्य लहरी ख जु लाई 7 व 8 XIV 2002 अगस्त न् नव वर्ष पूजा, कालवे, 31-12-2001 1- 5- महा शिव रात्रि पूजा, पुणे, 17-3-2002 त पल 17- जन्म दिवस पूजा, दिल्ली, 21-3-2002 26- श्रीमाताजी की दुल्हनों को सीख, 23-9-2001 29- श्रीमाताजी की दुल्हों को सीख, 23-9-2001 35- पूर्ण समर्पण एकमेव पथ, 31-7-1982 50- जन कार्यक्रम, नोएडा, 18-3-1989 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-3.txt चै तन्य लहरी प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर 162 - ए, मुनीरका विहार, नई दिल्ली 110067 मुद्रक प्रिंटो-ओ- ग्राफिक्स नई दिल्ली सदस्यता के लिए कृपया इस पते पर लिखें :- श्री ओ.पी. चान्दना 463 (G-11) ऋषि नगर, रानी बाग, दिल्ली एन 110034 फोन : (011) 7013464 सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पते पर भेजें : चैतन्य लहरी म सहजयोग मंदिर सी - 17. कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली - 110016 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-4.txt नव-वर्ष पूजा कालवे, 31.12.2001 (परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन देर हो गई और आप लोगों की प्रेम की आप कर रहे हैं कि सिर्फ इस शक्ति को शक्ति मुझे खींच के लाई है यहाँ । कुछ तो अपने लिए, अपने बच्चों के लिए आप आपकी माँ की तबियत ठीक नहीं है और इस्तेमाल करें? ये बहुत जरूरी है क्योंकि इच्छा शक्ति जबरदस्त है। उसी के बुते मैंने देखा है कि पार होने पर भी लोगों में दोष रह जाता है। पूर्णता आनी चाहिए। पर चल रहा है। मैं चाहती हूँ आप लोगों की भी इच्छा जब तक आप दूसरों से संबंधित हो कर शक्ति जबरदस्त हो जाए। इस मामले में के सहजयोग का कार्य न करें, आपको आपने क्या किया वो खुद ही सोचना चाहिए। पता ही नहीं चलेगा कि आप के अंदर अपनी ओर नजर करके देखें कि आपने कौन से दोष रह गए हैं। यहाँ तक कि इसमें कौन सी मेहनत की? आप ध्यान लोग आते हैं और पैसा बनाते हैं। ऐसे करते हैं, ध्यान में आप गहनता लाएँ और बहुत से लोग हैं जो सहजयोग में आने के सोचिए कि आप एक संत हैं। और आपको बाद पैसा बनाते हैं बाद में जरूर वो खुल क्या करना चाहिए? माँ ने आपको संत जाते हैं, दिखाई देता है और बेकार परेशानी बना दिया है। अब आपको आगे क्या करना होती है। सो फायदा क्या? चाहिए? अपनी दुरुस्ती तो करनी है। इसमें कोई शक नहीं। आगे आपको क्या करना आप यहाँ धर्म बाँधने आये हैं। और धर्म को चाहिए? अपनी दुरुस्ती आप करिए, पर मानना चाहिए। और बंबई शहर में हमने उसके बाद जब वो फलीभूत हो गई और सुना है कि अनेक तरह के अधर्म चल पड़े जब पूर्णत्व को आप पहुँच गए, तब आप हैं जो 20-25 साल पहले यहाँ बिल्कुल क्या कर रहे हैं? तब भी आप सिर्फ ध्यान नहीं थे एक तो आजकल के सिनेमा जो में जाते हैं या प्रोग्राम में जाते हैं और वहीं बन रहे हैं, उसकी शुद्धता बहुत कम है। तक चलता है इसके आगे क्या किया? ऐसे सिनेमा देखना ही नहीं चाहिए। आप आपको ये दान मिला है आपकी आत्मा के इतने लोग ऐसे सिनेमा न देखें तो वो आधार से। आत्मा ने आपको पुनर्जन्म दिया, सिनेमा चलेंगे ही नहीं और वैसे चल भी तो आप इससे आगे क्या कर रहे हैं, ये नहीं रहे हैं। पर जो गन्दे सिनेमा होएंगे वो आपको देखना चाहिए। कौन सी प्रगति लोगों को पसन्द नहीं। लोग चाहते हैं कि आप यहाँ पैसा कमाने नहीं आए हैं । ा श्रीक 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-5.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व ৪ जुलाई-अगस्त 2002 2 अच्छे ऐसे सिनेमा बनें कि जिसको कुृट्म्ब ओर नज़र करें और नज़र से देखें कि आपके अंदर अभी तक कौन से दोष बचे जा कर देख सके। एक ये बात हो गई। और भी अत्यंत हैं। इसी को हम कहते हैं कि आप अपनी मलेच्छ गन्दे तरीके से लोग गन्दी -गन्दी चीजें पढ़ते हैं। आप लोग नहीं। आप लोग उससे जो दोष हैं वे पूरी तरह से नष्ट हो पढ़ते नहीं हैं। मैं मानती हूँ। पर अखबार जाएँगे। क्या फायदा है इन दोषों को रखने में सफाई करो। निर्मल तत्व अपने अंदर लाएं। भी बहुत अश्लील चीजें लिखी जाती हैं। से। उससे किसी को आज तक फायदा सो सबसे पहले अपने को निर्मल कर लेना नहीं हुआ। अधिकतर लोग तो जेल ही चाहिए । सबसे बहुत है लोगों में कि उनकी आँखें चारों तरफ दौड़ने लगती हैं। जिनकी थूकते हैं। इसलिए आप लोगों से मुझे ऑँखे इधर-उधर दौड़ती हैं वो सहजयोगी बताना है एक ही बात कि आप दूसरों के ही नहीं। आँखे स्तब्ध, निश्चल होनी चले गए और जो नहीं गए हैं उन पर लोग हैं दोषों की तरफ मत देखिए । अपने दोषों चाहिएं। ये पहली पहचान है। गर अब भी की तरफ देखिए और देखिए कि आप में आँखें इसकी तरफ, उसकी तरफ ऐसे दौड़ती क्या दोष है। गुस्सा आप में आता है? आप हैं तो इसे कहना चाहिए, अभी आप के अब भी आँख में लालसा है? और सहजयोगी नहीं। आपको Attraction है सब चीज़ों के लिए? दूसरे लालच। आप में अगर अब भी ये खरीदें, वो खरीदें, ये लाएँ वो लाएँ । ये लालच बाकी है तो आप सहजयोगी नहीं सबसे ज्यादा अमेरीका में था लेकिन हो सकते। और ये लालच एक दिन खुल America एक दम बड़े भारी आधात से दब जाएगी। पहली चीज़ है लालच छूटनी गया पागल जैसे ये खरीद, वो खरीद। चाहिए । इसके घर जा, उसके घर जा। हाँ अगर पर श्री कृष्ण ने तो कहा है कि पहली खरीदना ही है तो ऐसी चीज खरीदो जो चीज़ है गुस्सा छूटना चाहिए। जब तक हाथ से बनी हो। जिसमें कल्पना हो, जिसमें गुस्सा आपको आए तो सोचना चाहिए कि आपकी सृजन शक्ति दिखाई दे। ऐसे लोग आप अभी सहजयोगी नहीं हैं। हमें गुस्सा होते देखा नहीं। सब लोग कहते हैं, उसको कोई नहीं खरीदता। फालतू की हैं कि माँ आप तो गुस्सा होते ही नहीं और चीजे खरीदते हैं। इन फालतू की चीज़ों से कभी-कभी ऐसी बातें हो जाती कि उस न तो आपका भला होगा और न ही उन पर किसी को भी गुस्सा आ जाए, मैं कहती लोगों का जो इतनी अच्छी चीजें बनाते हैं। हूँ, क्या फायदा? गुस्से से कोई फायदा हरेक चीज़ में अगर आप कलात्मक हो नहीं । बेचारे जो इतनी बढ़िया-बढिया चीजें बनाते किसी ने जाऐं। घर में हरेक चीज़ जो आए वो आज बताना मुझे ये है कि आप अपनी कलात्मक होनी चाहिए। पचासों बर्तन रखेंगे 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-6.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 पर एक कायदे का बर्तन नहीं। कारीगरों अपने यहाँ बगीचा लगा लिया। मतलब से ये जो बनी हुई चीजें हैं. उनका संगोपन सौन्दर्य दृष्टि सबसे पहले सहजयोगियों में होना चाहिए, अगर आप सहजयोंगी हैं बेकार की चीजें आप खरीदते रहते हैं, घर के अंदर भरी हुई हैं आजकल क्योंकि जिनका कोई अर्थ नहीं। यहाँ तक मैंने बाजार हैं । बाज़ार में जाते हैं वहाँ कुछ देखा है कि औरतें साड़ियाँ खरीदेंगी। साड़ियों खरीदते हैं। ऐसी जितनी भी चीजें हैं, उठा पर साड़ियाँ और एक भी साड़ी कायदे की कर होली कर दीजिए बेकार की चीजों नहीं। अजीब-अजीब, उसमें क्या-क्या बना की। प्लास्टिक का आजकल इतना हो देते हैं भूतों जैसी चीज़। अच्छी सुन्दर और गया है कि गिलास भी ढूँढना हो तो वो कल्पना से भरी हुई आप दो साड़ियाँ रखें, प्लास्टिक। अरे ये तो बहुत ज्यादती है मैं बनिस्बत आप 50 साड़ियाँ लें। अपने देश तो प्लास्टिक इस्तेमाल नहीं कर सकती। में अभी भी कलात्मकता का Appreciation प्लास्टिक की साड़ियाँ हो गई। प्लास्टिक है। उसको जानना है उसको समझना है। का ये हो गया इतना उपयोग प्लास्टिक मैं देखती हैँं जब घरों में जाओ तो अजीब का आ गया है कि उससे आदमी बीमार जैसे रंग लगे हुए हैं। भूत जैसी Deco- पड़ने का बड़ा अंदेशा है। बच्चे मरते हैं। सी चीें । आनी चाहिए । फालतू की बहुत 1 भूत ration ! आप लोग सहजयोगी हैं। आप को इस्तेमाल नहीं करें जहाँ तक हो सके। समझना चाहिए कि कौन सी चीज सौन्दर्य पर आजकल सभी चीज में प्लास्टिक आ पूर्ण है । और सौन्दर्य को समझना चाहिए । गया है। खासकर बम्बई में तो बड़ी मुश्किल तभी आप अपने जीवन को भी सुन्दर है कि यहाँ तक कि सोफा सैट भी प्लास्टिक बनाऐंगे। कि जो आदमी आपसे मिले या का बनाते हैं बैठना है तो प्लास्टिक में. औरत आप से मिले वो ये कहे कि बहुत ही पहनना तो प्लास्टिक, चलना तो प्लास्टिक बढ़िया आदमी है। बहुत ही सुन्दर है। और अब थोड़े दिन में मोटरें भी प्लास्टिक जिस तरह से आप अपने को सौन्दर्य से की बनाएँगे सो आपका प्लास्टिक से कोई सजाएगें इसी तरह से आप उसके वातावरण मतलब नहीं। आप सहजयोगी हैं। मैं ये और घरों को सौन्दर्य से सजाएगें यह नहीं कहती कि आप चोगा पहन के घूमो । पहली पहचान है। अगर सहजयोगी भूत ये नहीं है सजहयोग में । कायदे के कपडे जैसा घूमता हो तो वो किस काम का। पहनिए। कारयदे से रहें। कोई ऐसी बात कायदे से कपड़े पहनना, कायदे से बातचीत नहीं है कि जिससे आप साधू बाबा दिखाई करना, कायदे से सबसे व्यवहार करना, दें। कोई ढोंगबाज़ी नहीं। पर जो चीज सुन्दर-सुन्दर चीज़ों से अपने घर को आपके लिए हितकारी नहीं वो नहीं इस्तेमाल सजाना फूलों से भी सजा सकते हैं । करनी चाहिए। उससे दूर रहना चाहिए सब कुछ है। तो जहाँ तक हो सके प्लास्टिक आ 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-7.txt जुलाई-अगस्त 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व ৪ और बच्चों को भी बचाना चाहिए। दूसरी बात सहजयोग में मैंने देखा कि अब जिस दशा में आप आएँ अब आप उस सब लोग चाहते हैं कि मैं उनके घर जाऊँ। समाधान को प्राप्त हों और देखें कि आप आप क्यों नहीं समझते कि मैं आपके घर जो भी कर रहे हैं उससे आपको समाधान आऊँ, ऐसा आपने क्या किया? या फिर मिलें। जिसको देखो वही हमारे घर आना चाहता है! मैं कहीं भी जाती हैँ मुझे आराम से सहजयोग बढ़ाएँ। आप बहुत समाधानी हो रहने नहीं देते। आपने अभी कुछ भी नहीं जाएँगे आपको यह नहीं लगेगा कि माँ के किया है । आपको जान सकती हूँ। मैं चाहती हूँ कि आप सहजयोग में कार्यरत हों और सामने सारी चीजें रखें। माँ के सामने खड़े आप किसी भी तरह से ये इच्छा बनी रहें । अधिकतर मैंने ऐसा देखा है कि जो रहने दीजिए और ये सोचिए कि अभी लोग बहुत आगे-आगे करते हैं वो या तो आपकी औकात क्या है? आप क्या चाहते बेईमान होते हैं और या तो वो चोर होते हैं? ऐसी क्यों चाहत करें जिससे आपकी हैं। जो लोग दिल से साफ हैं और जो माँ को तकलीफ हो। ऐसे क्यों काम करना प्यार में रत है वो अपने प्यार में मग्न रहते हैं। अब मैं चाहती हूँ कि अब ये समय आ जैसे हम कहीं से आए, आकर सामने खड़े हो गए। ऐसा नहीं करिए। समाधान, अगर सहजयोग में नहीं आया तो आप बेकार हैं। मेहरबानी करें क्योंकि मुझसे तो सब गया है कि आप लोग अब मेरे ऊपर जहाँ भी हैं, माँ हमारे साथ हैं, इस प्रकार Vibrations आप खींचते हो और अगर एक समाधानी वृत्ति होनी चाहिए। उसी से आप लोग ठीक नहीं हैं तो मेरी तबियत आपकी प्रगति होगी जिस चीज़ की दुनिया खराब हो जाती है । इसलिए आप को में प्रगति होती है, वो सब कुछ समाधान में बिल्कुल ये निश्चय कर लेना चाहिए कि रत है। जब आप समाधानी नहीं और पूरे हम ऐसे बनें कि जिससे माँ जो हैं वो खुश समय आप दबते रहें सबके सामने तो हो जाएं और फिर उससे जो है दुनिया उससे क्या फायदा? समाधान से जहाँ आप बदल जाए। आज बहुत देर तक लोग बैठे हैं वहीं माँ है ऐसा जब आपको महसूस रहे, कुछ गए भी होंगे पहचान ये ही है होगा तभी माना जाएगा कि आप सहजयोगी कि आप यहाँ बैठे हैं। शान्ति में बैठे हैं । हैं। जहाँ बैठे हैं, सामने आना, स्टेज पर पहले तो धूम धड़ाका सब लोग इतनी चढ़ना, इसकी ज़रुरत नहीं किसी समाधानी जोर-जोर से चिल्लाते थे, बोलते थे । अब आदमी को। हमें सबके बारे में मालूम है शांत बैठे पर समाधान ऐसी चीज़ है कि जिससे कमाल ही चीज़ है। गहराई में आप मुझे पा सकते हैं और मैं हैं। ये मेरे लिए तो बहुत ही परमात्मा आपको धन्य करें। 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-8.txt शिव पूजा पुणे, 17.3.2002 (परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) मे स आज हम यहाँ शिव पूजा करने के लिए प्रतीकात्मक रूप में कहते हैं। परन्तु एकत्रित हुए हैं। केवल पवित्र हृदय लोग कहना चाहूंगी कि पशु परमेश्वरी शक्ति को ही शिव पूजा करने के अधिकारी हैं। अपवित्र मानव से कहीं बेहतर समझते हैं क्योंकि हृदय लोगों को शिव पूजा करने का उनका हृदय अत्यन्त शुद्ध होता है। जो भी अधिकार नहीं होता। शिवरात्रि का यह सहज जीवन शैली प्रकृति उनमें बनाती है वे उसी सिद्धान्त है। कल जैसे आपने देखा यहाँ पर शिवलिंगों होती हैं न कोई दुर्भाव। ये सारी तुच्छ के ऊपर भयानक सर्प दिखाए गए थे । भावनाएं उनमें नहीं होती प्रकृति के अनुरूप इसका महत्व ये है कि जो लोग पवित्र वो सब कुछ किए चले जाते हैं। हृदय के हैं जिनमें और लोगों के प्रति प्रेम है, सर्प रूप में शिव की शक्तियाँ सदैव कि वह कितना प्रेम कर सकता है और उनकी रक्षा करती हैं। ऐसा हम केवल कितनी क्षमा मानव की प्रेमशक्ति ऐसी है मैं कोई ईष्ष्षा हैं। उनमें न से काम चलातें परन्तु मानव का केवल एक ही गुण है 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-9.txt जुलाई-अगस्त 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व ৪ ট श्री शिव के विषय में सोचे उन्होंने कभी जिसके द्वारा वे सारी नकारात्मक शक्तियों पर विजय प्राप्त कर सकता है वह ये धन के विषय में नहीं सोचा, कभी धन की आसानी से देख सकता है कि इन दुर्गुणों इच्छा नहीं की, कभी उन्होंने दिखावा नहीं को अपने अन्दर बनाए रखना अच्छा नहीं किया शिव और शक्ति में अन्तर है। है और मानव इस बात को समझता है कि उनके पूर्ण दृष्टिकोण में। पूर्ण स्वतन्त्र इस प्रकार के अमानवीय व्यवहारों में फँसे व्यक्तित्व होने के कारण शिव किसी चीज रहना अच्छी बात नहीं है। इन चीज़ों में की चिन्ता नहीं करते। लोग यदि गलत फँसे रहने की उन्हें कोई मजबूरी नहीं है कार्य कर रहे हों तो वो उन्हें नष्ट कर देंगे उन्हें ऐसा करने के लिए कहा भी नहीं समाप्त! उन्हें ठीक करने की, सुधारने की जाता। परन्तु अचानक वो ऐसी चीज़ों की श्री शिव को कोई इच्छा नहीं है । वे ऐसे तरफ आकर्षित हो जाते हैं जिनमें घृणा, किसी चक्कर में नहीं पड़ते परन्तु शक्ति ईष्ष्या एवं लालच है। आप ध्यान दें कि श्री शिव किस प्रकार सभी मानव उनके बच्चे हैं। पूरा ब्रह्माण्ड रहते हैं। वे हिमालय में रहते हैं । आप देखें उनकी सन्तान है। उन्होंने ही इसका सृजन कि वो क्या पहनते हैं, वो क्या खाते हैं। किया है। अतः उनका चिन्तित होना उन्हें किसी भी चीज़ की आवश्यकता नहीं स्वाभाविक है। मूर्खतापूर्ण तुच्छ कार्यों में है क्योंकि वो अपने आप में पूर्ण हैं सम्पन्न फँसने वाले लोग उन्हें पसन्द नहीं। हैं। श्री शिव का व्यक्तित्व ऐसा है। जब आप श्री शिव की पूजा करते हैं तो अपने फॅसना शुरु किया। अपनी शक्ति बढाने के हृदय में झाँककर देखा करें कि मेरे अन्दर लिए मनुष्य एक देश से दूसरे देश गए। वो कैसी भावनाएं हैं। किस प्रकार के दुर्भाव सारी सत्ता कहाँ गई? समाप्त हो गई । मैंने अपने हृदय में पाले हुए हैं । बहुत ह के लिए ऐसा करना आवश्यक हैं क्योंकि सर्वप्रथम मानव ने सत्तालोलुपता में उसके पश्चात् उन्होंने अपनी ये कार्यशैली आजकल भारत में लालच का प्राबल्य अन्य लोगों को दे दी और अब लोगों का | लोग अत्यन्त तुच्छ एवं घटिया बन गए निर्लज्जता पूर्वक लालची होना आम बात हैं। ये सोच पाना भी असम्भव है कि उनके हो गई है श्री शिव ही उनका समाधान है लिए पैसा ही सभी कुछ है वास्तव में यह ऐसे सभी लोग नष्ट हो जाऐंगे। पहले भारतीय संस्कृति नहीं है, किसी भी प्रकार उनका पर्दाफाश होगा और फिर उन्हें नष्ट से नहीं। परन्तु कुछ लोगों ने इस दुर्गुण किया जाएगा पूरी तरह से। को अपना लिया है। संभवतः उन्होंने यह विदेशों से प्राप्त किया है और अब इसका करते हैं । केवल उस व्यक्ति का जिसका श्री शिव उच्च चरित्र व्यक्ति का सम्मान चरित्र उच्च है कोई यदि दुष्वरित्र है या इतना प्रचार है कि धन ही श्रेष्ठतम है। প 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-10.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 चरित्रहीनता में फँसा हुआ है तो शिव उसे सहजयोगियों पर भी, यदि वे सहजयोग के क्षमा नहीं करेंगे। अतः शक्ति सृजन करती नियमों का पालन नहीं करते। आपके जीवन हैं, सुरक्षा प्रदान करती हैं, देखभाल करती के हर कार्य को देख रहे हैं । आप किस और पोषण करती हैं। परन्तु श्री शिव तो प्रकार से आचरण करते हैं, क्या करते हैं. नष्ट करने के लिए ही बैठे हुए हैं। ऐसा आपका धर्म क्या है, वह ये सब कुछ देखते करना, इस प्रकार का विनाश बहुत आवश्यक हैं। बहुत से सन्तों ने आपको चेतावनी दी है। शक्ति अपनी विनाशकारी शक्तियों को है, बहुत से अवतरणों ने आपको चेतावनी नहीं दर्शातीं । हो सकता है वे कुछ राक्षसों दी है परन्तु यदि आप उनकी बात को नहीं का वध कर दें। परन्तु श्री शिव तो एक के सुनते तो शिव बिल्कुल नहीं सुनेंगे। वे किसी की बात नहीं सुनते। वे जब नाराज़ बाद एक राष्ट्र को नष्ट कर सकते हैं। सर्वप्रथम जो अहं उनमें है उसे कौन हैं तो नाराज़ हैं। चाहे जो भी हो उन्हें ये नष्ट करेगा? वही शिव आपके सहस्रार में समझाना बहुत कठिन होता है कि इस हैं। सहस्रार में वो विराजमान हैं। सभी व्यक्ति को क्षमा कर दें, ये ठीक है। इसे चीज़ों के शिखर पर, इस बात को याद रखें। उस दिन मैं आकाशवाणी के एक आप इस बात की कल्पना कर सकते हैं? संवाददाता से मिली वह अत्यन्त मूर्ख था और बहुत ही कटुता पूर्वक बोल रहा था। नहीं करते तो व्यक्ति का अन्त हो जाता मैंने उसके एकादश रुद्र को देखा, "हे है। कुछ सीमा तक तो हो सकता है कि वे परमात्मा!" मैंने कहा, यह तो कष्ट में क्षमा करें परन्तु उसके पश्चात् स्थिति अत्यन्त फँसने वाला है।" एकादश क्या है? यह दुष्कर हो जाती है। शिव की ग्यारह शक्तियाँ हैं। ये यहाँ पर (मस्तक) एकत्र होती हैं और सभी प्रकार को महसूस ही नहीं करते कि श्री शिव क्या के रोग, जिनमें कैंसर सबसे खराब है, हैं। दक्षिणी भारत में दो प्रकार के भक्त हैं लाती हैं। मैं जानती थी कि ये व्यक्ति बहुत शिव भक्त और विष्णु भक्त। वो परस्पर कठिनाई में फँसने वाला है । वह सहजयोगी लड़ रहे हैं । आजकल तो ये लड़ाई बहुत भी नहीं है किस प्रकार से मैं उसे बताऊं? कम है। विष्णु का कार्य आपको आत्म कोई भी उसे कैसे बताता? परन्तु ये सब साक्षात्कार देना, मानव को मोक्ष देना, उसका क्षमा कर दें। क्षमा उनका मूल गुण है क्या क्षमा उनका मूल गुण है परन्तु यदि वे क्षमा परन्तु मुझे लगता है कि लोग इस बात उत्थान करना है परन्तु यदि आप अच्छाई एकादश रुद्र के कारण हुआ। ये सब श्री शिव की ग्यारह शक्तियाँ है को और धर्म को छोड़ दें तो श्री शिव जिनका भली-भांति वर्णन किया गया है । आपके जीवन में प्रवेश करते हैं । हमें ये ये सभी लोगों पर कार्य करने लगती हैं। बात समझनी चाहिए कि हम उनकी शक्तियों 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-11.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 य 8 जुलाई-अगस्त 2002 8 हैं, उन्हीं की शक्तियों से बने चिन्ता किए बिना लोग सभी कुछ कर रहे से घिरे हुए हैं। केवल शक्ति (देवी) आपकी रक्षा हैं । यह प्रकोप श्री शिव से आता है । हुए करती है । लेकिन कुछ सीमा तक, वे भी शिव की इच्छा के विरुद्ध नहीं जा सकर्ती, इनकी अवहेलना नहीं कर सकतीं। आजकल आप देखते हैं कि बहुत से निःसन्देह आपको आश्रय देने के लिए. लोग राजनीति में आ रहे हैं। ये सब पैसा आपको सहायता देने के लिए. आपकी रक्षा बनाने के धंधे हैं। ये राजनीति नहीं है। ये करने के लिए मैं यहाँ हूँ। परन्तु मैं भी श्री सभी लोग पैसा बनाने में जुटे हुए हैं। वे शिव की आज्ञा के विरुद्ध, उनसे परे नहीं समाज का हित नहीं करते, किसी भी तरह जा सकती। श्री शिव की शक्ति, उनकी से नहीं करते। या तो वो भय की स्थिति में सत्ता ऐसी है । उनकी पूजा करने का अर्थ होते हैं या असंयम की इस प्रकार से वो है अच्छाई की पूजा करना। ये अच्छाई आचरण करते हैं मानो परमात्मा का उन्हें करुणा, प्रेम, क्षमा या कुछ भी हो सकती है भय ही न हो, अपने पर परमात्मा की दृष्टि श्री शिव को केवल भले लोग अच्छे लगते का उन्हें भय ही नहीं होता सम्भवतः उन्हें यद्यपि आप सब मेरे बच्चे हैं फिर भी मैं आपको चेतावनी देती हूँ कि सावधान रहें। अपने हर कदम को ठीक से जाँचें परखें। हैं और उन्हीं की वो रक्षा करेंगे। इस बात का ज्ञान ही नहीं है श्री शिव की दृष्टि सदैव उन पर होती है । श्री शिव उदाहरण के रूप में कुछ लोग अत्यंत सत्ता लोलुप हैं। कुछ धन लोलुप हैं और सभी को देख रहे हैं चाहे आप आस्ट्रेलियन कुछ सत्ता लोलुप। सत्ता लोलुप लोगों का हों, या अंग्रेज़ हों या भारतीय आप चाहे लक्ष्य भी कई बार पैसा बनाना होता है। वो जिस धर्म का अनुसरण करें वो आपको सहज में नहीं रहेंगे वे निकाल दिए जाऐँगे। देख रहे हैं । ये बात व्यक्ति को समझ लेनी वो ऐसी बुराइयाँ करते हैं, और फिर आकर चाहिए और जब ये बात आप समझ लेंगे क्षमा मांगेंगे और कहेंगे श्रीमाताजी कृपा तो आप स्वीकार कर लेंगे कि आपको भले करके हमें क्षमा कर दें, हमसे ये गलती हो तथा धार्मिक बनना है। आपको उच्च चरित्र गई ऐसा कुछ भी करने का प्रयत्न न का व्यक्ति होना है। क्यों लोग उच्च चरित्र करें निःसन्देह मैं तो आपको क्षमा करती की बात करते हैं। इस बात को समझने हूँ। परन्तु श्री शिव क्षमा नहीं करेंगे, वे क्षमा का प्रयत्न करें जब लोगों का विश्वास ही नहीं करेंगे वे आपको दण्ड देंगे और तब आप मेरे पास आकर कहेंगे श्रीमाताजी लोग सभी प्रकार के कार्य कर रहे हैं, आप हमारी रक्षा कीजिए!" ये कार्य बहुत शराब पी रहे हैं, पैसे का खेल खेल रहे हैं । कठिन है क्योंकि श्री शिव के शिकंजे ा। इसमें नहीं है तो इन दिनों ये मूर्खता है। बहुत परमात्मा के भय के बिना, उनके दण्ड की कठोर हैं। परन्तु श्री शिव अत्यन्त क्षमाशील 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-12.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 देव भी हैं। वो आपके क्षमा करते हैं । मेरे कारण से भी वो आपको से अपराधों को और सभी एकादश के कारण हैं। सभी भूत बाधाएं भी इसी के कारण हैं। उस दिन मैं किसी से मिली वह बहुत बहुत क्षमा करते हैं। परन्तु यदि आप अपराध किए चले जाएँ तो कुछ समय बाद जब वो ही पकड़ा हुआ था। उस पर एकादश बागडोर अपने हाथ में लेते हैं तो न कोई गतिशील था। मैंने पाया वह किसी चीज़ से बुरी तरह प्रभावित था। मैं उसका नाम क्षमा होती है न बचाव। मैं आपको डराना नहीं चाहती, मैं आपको नहीं लेना चाहती परन्तु हमने देखा है कि सत्य बताना चाहती हैूँ। यही सत्य है। ये चीजें ठीक नहीं हैं। सभी धर्मों में लोग आप लोगों को सज्जन बनने का प्रयत्न मूर्खता पूर्ण धारणाएं फैला रहे हैं। इसके करना चाहिए। आपको वास्तव में उच्च विषय में यदि आपको विवेक नहीं है तो चरित्र मानव बनने का प्रयत्न करना है। कोई आपकी सहायता नहीं कर सकता। मुझे बताया गया है कि सहजयोग में भी आपमें इस बात का पूर्ण विवेक होना चाहिए कुछ लोग अनाधिकृत रूप से पैसा कि क्या ठीक है और क्या गलत। केवल इधर-उधर करने में लगे हुए हैं । उनमें से तभी शिव आपके साथ हैं। परन्तु यदि आप कुछ बहुत ही दुष्चरित्र पीछे दौडते हैं, लड़कियों को ताकते हैं, अवश्य कहूँगी कि ये आत्मघातक हैं। यह सभी प्रकार की बुराईयाँ करते हैं। इन्हीं विनाशकारी आत्मा श्री शिव की शक्ति है। चीजों ने पश्चिम के लोगों को नष्ट किया यहाँ आत्मा से हमारा अभिप्राय शिव की है। हमारे भारतीय लोग भी उनसे यही सब शक्ति है। लड़कियों के ऐसी मूर्खतापूर्ण चीज़ों में फँसेंगे तो, मैं हैं वे बहुत सी विधियों से वे विनाश करते हैं । चाहिए। यदि हम अपना सम्मान नहीं करते, व्यक्ति का सम्मान समाप्त हो सकता है, सीख रहे हैं। हमें अपना सम्मान करना दुर्व्यवहार करने का प्रयत्न करते हैं तो स्वास्थ्य खराब हो सकता है, उसका वैभव कुछ नहीं हो सकेगा । आपकी कुण्डलिनी समाप्त हो सकता है और जब तक वह को उठाकर मैं आपकी सहायता कर सकती पूर्णतः नष्ट होकर उसका बोरी बिस्तर नहीं हूँ परन्तु यदि आप बहुत अधिक गर्त में बँध जाता तब तक उसके साथ कुछ भी चले जाते है तो एकादश रुद्र पकड़ जाएगा, घटित हो सकता है। मैं ऐसे लोगों को इसमें कोई संदेह नहीं है । आपके मस्तक जानती हूँ जो मृत्युशय्या पर पड़े हुए भी पर ये बहुत बड़ी रुकावट बनाई गई है, पैसों की बातें करने लगते हैं। कितना धन एकादश रुद्र । और आजकल यह अत्यन्त उसे मिलना चाहिए? किस प्रकार उन्हें ये गतिशील है, अत्यन्त प्रभावशाली है । जितने धन मिलेगा आदि-आदि। परमात्मा या आत्मसाक्षात्कार की बात करने के स्थान भी रोग उत्पन्न हो रहे हैं ये सब असाध्य हैं 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-13.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 10 पर वे इस प्रकार की बात करते हैं। ये है कि श्री शिव को प्रसन्न करने के गुण आम बात है। आप यदि श्री शिव को देखें स्वयं में विकसित करें। अभी तक आपमें तो उनके पास कुछ भी नहीं हैं । उन्हें बहुत अधिक इच्छाएं हैं, बहुत अधिक किसी चीज़ की आवश्यकता भी नहीं है लालसाएं हैं ये सब अनावश्यक हैं। नि:ःसन्देह समर्पण आदि के रूप में आप जो भी कुछ मैं चाहती हूँ कि आप सब अच्छी तरह से उन्हें दें वे इसे स्वीकार नहीं करते ये सब सुन्दरता पूर्वक जीवनयापन करें-जंगलों में वे शक्ति को दे देते हैं "आपकी जो जाकर हिप्पियों की तरह से व्यवहार करके मूर्खतापूर्वक नहीं। आपके हृदयों से भौतिक इच्छा हो इसका करें।" आपके हित के लिए, आपकी प्रसन्नता चीजों के प्रति लिप्सा समाप्त होना भी के लिए वे (शक्ति) ही सभी कुछ कार्यान्वित आवश्यक बात है। शिव-भक्त न तो धन कर रही हैं । शिव को कोई चिन्ता नहीं। की चिन्ता करते हैं और न ही उन्हें इसका इस स्थिति में आपको श्री शिव को प्रसन्न ज्ञान होता है वो तो अत्यन्त उदार होते करना होगा वो आपको प्रसन्न करने का हैं। अत्यन्त उदार। जिस प्रकार से प्रयत्न नहीं करेंगे, आपको जी जान से शिव-भक्त कार्य करता है लोग कहते हैं। उन्हें रिझाना होगा। श्री शिव का व्यक्तित्व कि वह मूर्ख है। परन्तु मैं ऐसा नहीं सोचती । अत्यन्त जटिल है। कुरान में अल्लाह या शिव-भक्त की यह पहचान नहीं है। शिव शिव के विषय में अलग से नहीं लिखा गया भक्त की पहचान तो यह है कि उसे पैसे उनमें कोई भेद नहीं किया गया क्योंकि में कोई दिलचस्पी नहीं होती। वह अत्यन्त हजरत मोहम्मद साहब ने जिन लोगों को उदार होता है आप उससे कुछ भी माँगे समझाना था वो सब अशिक्षित व अज्ञानी वह तुरन्त दे देगा। लोग थे। इसलिए उन्होंने ये सारी बारीकियाँ नहीं लिखीं कि परमात्मा के भिन्न रूप हैं अपने उद्यान में ध्यान-धारणा के लिए गए इसलिए वे केवल अल्लाह को जानते हैं और भिखारी के रूप में श्री कृष्ण (श्री फिर भी वो कोई ऐसा कार्य नहीं करते विष्णु) उनके सम्मुख आए और बोले "देखो, जिससे कार्यो और नौकरियों के कारण मेरे पास वस्त्र नहीं हैं तुम्हारे पास यह श्री महावीर ऐसे ही थे एक बार महावीर ऊँच-नीच का भेद प्रकट हो। इस बात से वस्त्र हैं। ये आधा वस्त्र तुम मुझे क्यों नहीं मैं सहमत हूँ कि श्री शक्ति ही प्रेम करती दे देते?" श्री महावीर ने कहा, "ठीक है, बहुत जल्दी नाराज़ भी हो आप ये वस्त्र ले लो, पूरा ही वस्त्र ले लो । उन्होंने कहा कि मेरा घर समीप है और मैं वे हैं परन्तु जाती हैं और जब नाराज़ हो जाएं तो उन्हें सम्भालना बहुत कठिन होता है। आप लोग घर जाकर वस्त्र पहन लूंगा। उन्होंने नग्नता सहजयोगी हैं इसलिए मुझे आपको बताना नहीं दर्शाई, पत्तों से स्वयं को ढककर वे 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-14.txt जुलाई-अगस्त 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व ৪ 11 चले गए। परन्तु इन जैनियों को यदि आप आनन्द-भोक्ता हैं और हर सहज चीज देखें तो ये श्री महावीर के बड़े-बड़े पुतले का, हृदय से भेंट की हुई वस्तुओं का वे बनाते हैं जिनमें उन्हें नग्न दर्शाया जाता आनन्द लेते हैं । कोई भी अभिव्यक्ति जो है। मेरा कहने से अभिप्राय है कि यह हृदय से की गई है, वो उसका आनन्द लेंगे। मानव- मस्तिष्क की विकृति है हमें ये वो बन्धनों में फँसे हुए नहीं हैं कि ये चीज बात समझनी चाहिए कि श्री महावीर ने आधुनिक होनी चाहिए, ऐसी होनी चाहिए, ऐसा क्यों किया वे ऐसे निर्लिप्त थे कि वैसी होनी चाहिए। वे बन्धनमुक्त हैं। मानव अपना सर्वस्व दे डालने में उन्हें कोई बुराई की तरह से वे ये नहीं सोचते कि हमें हर नजर नहीं आती थी ये सब उन्होंने दिखावे चीज अत्यन्त सावधानी पूर्वक बनानी चाहिए के लिए नहीं किया, उदारता के कारण जो पूरी-पूरी आ जाए चाहे कला हो या किया ये सब लोग नहीं समझते। ये जैनी बिल्कुल भी उदार नहीं हैं । अतः इन महान अवतरणों के गुणों को कलाकार को हतोत्साहित करने का प्रयत्न परन्तु कुछ अन्य चीज़ चाहे, इसे किसी ने कितने ही हृदय पूर्वक बनाया हो, मनुष्य उस समझा नहीं जा सकता क्योंकि एक प्रकार करता है। मैंने ऐसे लोग देखे हैं जो इस प्रकार से बन्धनों में फँसे हुए हैं परन्तु श्री शिव के का भ्रम बना ही रहता है। उदाहरण के लिए श्री शिव सदैव बहुत कम वस्त्र पहनते -बहुत ही कम और वो खाते क्या है? साथ कोई भी बन्धन नहीं है। यही कारण कोई नहीं जानता, उनकी इच्छा क्या है है कि उन्हें मस्तमौला कहा जाता है । आपके और वे चाहते क्या हैं ये बात भी कोई नहीं मस्तिष्क में यदि किसी भी प्रकार का कोई जानता। महान संगीतज्ञ उनके सम्मुख गाते बन्धन है तो आप शिव भक्त नहीं हैं। ये हैं, ठीक है। कोई विक्षिप्त व्यक्ति उनके बात ठीक है कि आप को ठीक से वस्त्र सम्मुख गाता है तो भी ठीक है। उन्हें पहनने चाहिएं. सभी कुछ ठीक से करना इससे कोई लेना-देना नहीं। इस बात की चाहिए । परन्तु आपमें ये बन्धन नहीं होना उन्हें कोई चिन्ता नहीं कि राग कैसा है चाहिए कि यदि मैंने ऐसा नहीं किया तो मैं और इसके स्वर क्या हैं, यह ठीक भी है या जाति से बाहर हो जाऊंगा या मुझे फैशन नहीं। वो इन सब चीजों से ऊपर हैं। जिन में पिछड़ा हुआ मान लिया जाएगा। स्वीकार औपचारिकताओं में हम फँसे हुए हैं वे इन न कर पाना लोगों के लिए कठिन कार्य औपचारिकताओं से ऊपर हैं। वे साक्षात है। आजकल सभी प्रकार के फैशन पनप आध्यात्मिकता हैं अन्य चीजों से ऊपर हैं। रहे हैं मैं उनसे पूछती हूँ, "यह क्या है? ये आप चाहे संगीतकार हैं या कलाकार या फैशन है।" क्या परमात्मा इस फैशन के क कुछ अन्य, वो इसका आनन्द लेंगे वो पीछे हैं या कोई देवी-देवता आपको ये 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-15.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 12 फैशन बता रहे हैं? फैशन आज आता है हमें समझ लेना चाहिए की श्री शिव सबसे गरीब देवता हैं। वे किसी प्रकार के अलंकार और कल चला जाता है। अतः मेरे कहने का अभिप्राय ये है कि नहीं धारण करते और न ही इस प्रकार का यदि आप शिव की भक्ति करना चाहते हैं कुछ पहनते हैं। अपने शरीर को बिना इन तो आपको बन्धन मुक्त होना होगा। आप सब चीजों के भी बनाए रखते हैं। वे आनन्द लोग सहस्रार की दुनिया में रह रहे हैं। अब यदि किसी ने ठीक से वस्त्र नहीं पहने की प्रतिमूर्ति हैं। पूर्ण आनन्द का अवतरण। अतः आनन्द शिव भक्त का एक अन्य हुए तो बस समाप्त! किसी ने बहुत ही गुण होना चाहिए। हर चीज़ का उनको दिखावे वाले वस्त्र पहने हैं तो समाप्त। आनन्द लेना चाहिए। जो भी कुछ आप मानव में सभी की आलोचना करने की देखते हैं, जिस किसी को भी आप देखते शक्ति है किसी की आलोचना करना कोई हैं, आप केवल इतना कर सकते हैं कि विशेष बात नहीं है अपनी चैतन्य-लहरियों आलोचना करने का मानवीय गुण त्याग पर यदि आप इसे परखें तो आप इसे दें अन्य लोगों की आलोचना करना छोड़ समझ जाऐँगे परन्तु लोग चैतन्य-लहरियों दें जैसे कोई अंग्रेज़ यदि किसी भारतीय पर नहीं देखते क्योंकि उनका तो सोचना घर में जाएगा तो वो कहेगा, "हमें ये ये है कि ये फैशन नहीं है, वो फैशन नहीं पसन्द नहीं है।" "हाँ, क्या, आपको क्या है। आप मुझे बताएं कि श्री शिव का क्या आया" फैशन है? क्या वो भी कोई फैशन करते कहना ही आपकी शक्ति के विरुद्ध है । हैं? आप जो चाहे उन्हें भेंट करें वो प्रसन्न और मान लो कोई अमरीकन किसी अंग्रेज हो जाते हैं। खाने के लिए जो चाहे आप के घर जाएगा तो कहेगा मुझे ये पसन्द उन्हें भेंट करें वो खा लेते हैं। वे प्रशंसा की नहीं है, ये आम बात है। सभी लोग कहते शक्ति से परिपूर्ण हैं क्योंकि वे आनन्द की हैं मुझे ये पसन्द नहीं है, मुझे वो पसन्द प्रतिमूर्ति हैं। वे साक्षात शान्ति और आनन्द नहीं है। ये कहने वाले आप कौन हैं कि हैं। आप यदि शिवभक्त हैं तो आपमें इस मुझे ये पसन्द नहीं है, या मुझे ये पसन्द पसन्द नहीं है?" "हमें कालीन पुसन्द नहीं मुझे पसन्द नहीं आया ये बात 1 प्रकार का कोई बन्धन नहीं होना चाहिए। है? लोगों को इस बात का ज्ञान नहीं है कि प्रायः मैं अत्यन्त सादी साड़ियाँ पहनती हूँ ऐसी बातें कहकर वो ये दर्शाते हैं कि उनमें अत्यन्त सादी परन्तु लोग सोचते हैं कि मैं शिव तत्व नहीं हैं। अत्यन्त निर्धन महिला हूँ। मैं निर्धन हू क्योंकि मैं धन की चिन्ता नहीं करती। धन नहीं सकता तो उसके छड़ी या वहंगियां की मुझे बिल्कुल भी परवाह नहीं है। अतः उठाने में औचित्य यदि वह कहे कोई व्यक्ति यदि अपनी टाँगों पर चल है परन्तु 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-16.txt जुलाई-अगस्त 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 13 कि मुझे वह व्यक्ति इसलिए पसन्द नहीं है शिव भक्त को शोभा नहीं देती। शिव भक्त क्योंकि वह छड़ी लेकर नहीं चलता तो को तो आनन्दातिरेक में डूबा हुआ होना इससे पता चलता है कि वह कितना चाहिए । बालों की शैली के बारे में, वेश- भूषा अहंकारी व्यक्ति है। वो स्वयं तो छड़ी का के बारे में बहुत ज्यादा सावधानी मेरी समझ उपयोग कर रहा है परन्तु किसी भी में नहीं आती। इन सब चीजों से उनको लोकतांत्रिक देश में क्या वह नियम बनाना क्या लाभ होता है? कुछ भी नहीं। क्या वे चाहता है कि सब छड़ी पकड़ कर चलें? लोकप्रिय हो जाते हैं? और इस प्रकार की यह कार्य बहुत कठिन है। पश्चिम में ये उथली लोकप्रियता का क्या लाभ है? आपमें सम्मान होना चाहिए। अपने आम बात है कि इस प्रकार का टोप पहनना है, इस प्रकार के वस्त्र पहनने हैं, या इस अस्तित्व का सम्मान। केवल मानव होने प्रकार का चुर्रट लेकर चलना है। ये सभी का ही नहीं सहजयोगी होने का भी सम्मान बन्धन है। आजकल महिलाओं ने होना चाहिए। आप सहजयोगी हैं। हम अजीबो-गरीब केश शैलियाँ बना ली हैं। शिव भक्त हैं, हमें इन चीज़ों की बिल्कुल क्योंकि वो अपने बालों में वे तेल नहीं भी चिन्ता नहीं करनी है। चाहे जो भी हो डालती, बालों में वे किसी प्रकार की चिकनाई शिव हमारे अन्दर विद्यमान हैं और हमारे नहीं चाहती। उन्हें अगर किसी से मिलने अन्दर विद्यमान उनकी शक्ति कुण्डलिनी जाना हो तो पहले वे अपने बालों को के तेज से हम तेजस्वी हैं। आपने चाहे धोएंगी। मैं नहीं सोचती कि ऐसा करना कितने अच्छे वस्त्र पहनें हों या जो भी हों अच्छा लगता है। निःसन्देह मैं ये भी नहीं यदि आपकी चैतन्य लहरियाँ खराब हैं तो कहती कि आप के चेहरे पर या कानों पर बाकी सब चीजें व्यर्थ हैं । लोगों को यदि आप उनकी चैतन्य लहरियों से नहीं परख सकते तो उनके अटपटे वस्त्र और मूंछें जीवन में एक अन्य चीज़ भी है कि हम व्यर्थ हैं। सहजयोग में आपके भी बहुत सा तेल लगा हुआ हो। परन्तु ये सब करना इतना आवश्यक क्यों है? मूल्य अपने तक ही सीमित हैं, हम लोगों को सहज होने चाहिए। मैंने लोगों को देखा है. प्रभावित करना चाहते हैं। मैं जो भी वस्त्र "मुझे उनका घर पसन्द नहीं है, मुझे ये पहनँ उससे अन्य लोग प्रभावित हों । मान पसन्द नहीं है मुझे वो पसन्द नहीं है। 'मुझे लो कि लोग प्रभावित हुए तो क्या? कोई पसन्द नहीं है' ये वाक्य निषिद्ध है । साँप यदि आपके समीप से निकला तो सहजयोगियों को ये वाक्य त्याग देना चाहिए, आपको काट लेगा चाहे आपने कोई भी आपको यदि कोई चीज़ पसन्द नहीं है तो वस्त्र पहने हों या आपका सम्बन्ध किसी आप सहजयोगी नहीं हैं। अब मान लो भी देश से हो। इस प्रकार की पहचान कोई व्यक्ति सहज-विरोधी है परन्तु ये | हुए 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-17.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 14 कहने से आपको क्या लाभ है कि मुझे तब तक आप इसमें लगे रहें। परन्तु अपनी पसन्द नहीं है? यह तो अपनी शक्त को आध्यात्मिक शक्तियों का आनन्द लेने के बर्बाद करना है। इसके कारण सहजयोग लिए आपको कुछ चीजें सीखनी होंगी और में मैंने देखा है लोगों ने मेरे लिए बहुत सी उनमें से एक है अपने इस बन्धन से मुक्ति समस्याएँ खड़ी कर दी, केवल इसलिए पाना-मुझे पसन्द नहीं है या मुझे पसन्द क्योंकि वे स्वयं तक सीमित हैं। ये व्यक्ति है। यह वाक्य आपकी जबान से चला खराब है, वह महिला खराब है, वह ऐसा जाना चाहिए। पसन्द और नापसन्द केवल है, वह वैसा है। कई बार मुझे आश्चर्य सीमित दृष्टि वाले लोगों की होती है। होता है क्योंकि जब वो लोग मेरे पास आते आपको सराहना करनी सीखनी चाहिए। हैं तो मैं हैरान होती हैँ कि वो तो बहुत आपकी सराहना करने की शक्ति इस बात अच्छे लोग हैं! परन्तु कुछ लोग अपने तक को दर्शाएगी कि आध्यात्मिक रूप से आप ही सीमित हैं। मैंने ऐसे भी लोग देखे हैं जो कितने समृद्ध हैं और आपकी अवलोकन सहज सभाओं में आने की, पूजाओं में आने शक्ति यह दर्शाएगी कि आप कितना की भी चिन्ता नहीं करते। कुल मिलाकर अवलोकन करते हैं । उदाहरण के रूप में ग्याहरह पूजाएं होती हैं परन्तु वे नहीं आते। कुछ लोग आकर मुझे बताते हैं, "वह महिला इसलिए कि वे व्यस्त हैं कम से कम एक मुझे अच्छी नहीं लगी, उसने बड़ी अजीब पूजा पर तो उन्हें आ जाना चाहिए। जो सी साड़ी पहनी हुई थी।" यह सब क्या लोग शिव भक्त हैं उन्हें पूजाओं के अतिरिक्त है? "मुझे वह पसन्द नहीं आई क्योंकि किसी चीज़ का आनन्द नहीं आता, किसी उसने अपना हाथ अपने सिर पर रखा भी चीज़ का नहीं। उनका पूर्ण अस्तित्व ही हुआ था | " तो क्या हुआ? क्योंकि लोगों के शिव भक्ति से सराबोर होता है। उनके विषय में आपकी अपनी कल्पनाएं हैं और लिए केवल वही कार्य महत्वपूर्णतम है। सहजयोग में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो आपकी कल्पना अनुरूप नहीं हैं तो वे यहाँ पैसा बना रहे हैं। ये अत्यन्त गलत है, आपको अच्छे नहीं लगते। कोई भी चाहे ार आप चाहते हैं कि लोग वैसे हों । यदि वे अत्यन्त गलत है, अत्यन्त गलत है। आपको पसन्द हो या न हो वह परिवर्तित सहजयोग आपको पुण्य और आशीर्वाद देने होने वाला नहीं है। तो क्यों अपनी शक्ति के लिए है। ये बात यदि आपके मस्तििष्क को बर्बाद करना है? कई बार ऐसे संगीतकार में नहीं है तो अच्छा होगा आप सहजयोग होते हैं जो बहुत अच्छे नहीं होते मुझे छोड़ दें। आप अत्यन्त आसानी से कोई भी याद है कि एक बार घर जाकर मैंने अपने व्यापार या उल्टा-सीधा कार्य कर सकते पिताजी से पूछा था, "ये संगीतकार कैसा हैं। जब तक आप जेल में नहीं चले जाते गाता है?" उन्होंने उत्तर दिया, "वह बहुत 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-18.txt जुलाई-अगस्त 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 15 सी साहसी " मैंने कहा, हो जाते हैं । सहजयोगी के रूप में भी आप साहसी है, "क्यों, क्या हुआ?" कहने लगे, "वो बिना गैर जिम्मेदार बन जाते हैं । किसी चिन्ता के गाता है और कभी-कभी बहुत सहजयोग आपकी सबसे पहली और तो बेसुरा भी हो जाता है। कई बार उसे सर्वोपरि ज़िम्मेदारी है । आपको इस बात ताल का भी ध्यान नहीं रहता, परन्तु कोई का ज्ञान होना चाहिए कि ये कार्य क्या है? बात नहीं इसके बावजूद भी वह गाता ये अत्यन्त महान कार्य है-पूरे विश्व को रहता है। वह बहुत साहसी है, बहुत ही परिवर्तित करना हिम्मतवाला है। तो मैंने देखा कि वे इस आज इस वृद्धावस्था में भी मैं यही सोचती प्रकार से सराहना किया करते थे। इस हूँ। यदि मेरा ये स्वप्न है तो आपका व्यक्ति ने जब गाना शुरू किया तो शुरू से दृष्टिकोण क्या होना चाहिए? आप सब ही वह ऐसे ही गा रहा था परन्तु मेरे लोगों को जी जान से सहजयोग प्रचार पिताजी वाह, वाह करके उसे उत्साहित प्रसार में लग जाना चाहिए। मैं आपको कर रहे थे मैंने अपने पिताजी में ये गुण कायाकल्प करने के लिए. और अधिक देखे हैं, किस प्रकार से वह सहन किया शक्ति देने के लिए इन पूजाओं में बुलाती करते थे-केवल सहन ही नहीं करते थे, हूँ परन्तु यदि इसे महान आशीर्बाद समझकर सराहना भी करते थे। सभी प्रकार की आप घर पर ही बैठे रहते हैं तो इसका चीजों की सराहना किया करते थे। कोई लाभ नहीं । सहजयोग आपको अवश्य सहजयोगियों में यदि सराहना करने का फैलाना चाहिए। यह गुण हो तो उन्हें भी हर चीज़ का आनन्द आएगा। परन्तु आप लोग अपने सिर्फ 200 सहजयोगी हैं तो तो मुझे बहुत आनन्द का गला घोट देते हैं। क्या आपको हैरानी हुई। ये कैसे हो सकता है। पहली मेरा यही स्वप्न है। जब उन्होंने मुझे बताया कि लखनऊ में इस बात का ज्ञान है? यहाँ पर आप भिन्न बार मैं जब लखनऊ गई थी तो वहाँ 3000 प्रकार के लोग हैं भिन्न वेशभूषाएं हैं, भिन्न सहजयोगी थे और तब किसी सभागार परिवार हैं और आप भिन्न देशों से आदि का भी प्रबन्ध न था। अचानक इतने सम्बन्धित हैं। मेरे लिए आप सहजयोगियों, सारे लोग चले गए, क्या आप इस बात की मेरे बच्चों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं, कल्पना कर सकते हैं! ये कैसे हो सकता केवल इतना ही। आपके वस्त्रों से, आपकी है बालों की शैली से मैं आपका आँकलन नहीं तो आप झूठ बोल रहे हैं या आप बेकार करती। ये सभी आधुनिक चीजें बन्धनों में हैं । फँसाने वाली हैं। इस प्रकार से ये आपको बन्धनग्रस्त करती है कि आप गैर ज़िम्मेदार सभी सहजयोगियों की प्रथम जिम्मेदारी 1 कि वहाँ केवल 200 सहजयोंगी हों या अतः सहजयोग का प्रचार-प्रसार करना 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-19.txt चतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 16 है। आपने कितने लोगों को आत्म-साक्षात्कार विश्वविद्यालयों में युवा लोगों के पास जाना दिया? कहाँ पर आपने सहजयोग की बात होगा यदि हिप्पी मत फैल सकता है तो की। मैंने देखा है कि हवाई जहाज में यात्रा सहजयोग क्यों नहीं फैल सकता? हिप्पी करते भी कोई यदि मेरे साथ बैठा हो मत जंगल की आग की तरह से फैला तो हुए तो वह मेरे सम्मुख अपनी गुरु की प्रशंसा सहजयोग क्यों नहीं? के पुल बाँध देता है । निर्लज्जता पूर्वक खुल्लम-खुल्ला इन भयानक गुरुओं की चेतावनी देनी है-सावधान हो जाएं । आपको बात करता है और आप लोग सहजयोग यदि आत्म साक्षात्कार मिल गया है तो की बात करते हुए भी शर्माते हैं। जब तक आपकी जिम्मेदारी भी है, अन्य लोगों को जन कार्यक्रम न हों, कोई विशेष कार्यक्रम आत्म साक्षात्कार देना और सहजयोग का न हों, आप सहजयोग की बात नहीं करते। प्रचार करना। इन सभी चीज़ों के विषय में मुझे आपको दूसरे आपके पास सहजयोग के लिए समय आप लोग यदि यह कार्य नहीं कर सकते तो परमात्मा ही आपकी रक्षा करें। भी नहीं है। आप सब व्यस्त लोग हैं। अतः आप यदि श्री शिव की भक्ति करना इसके आगे मुझे कुछ नहीं कहना। "आपको चाहते हैं, उनका आशीर्वाद, उनकी सुरक्षा अन्तर्वलोकन करना होगा मैंने सहजयोग चाहते हैं तो आपको उच्च स्तर का के लिए क्या किया, सहजयोग से मैंने क्या सहजयोगी बनना होगा इस चीज़ का पाया?" मुझे विश्वास है कि इस शिव पता तब लगेगा जब आप जी जान से के पश्चात् आप स्वयं को शिव तत्व के सहजयोग प्रचार के लिए निकल पड़ेंगे। मैं प्रति समर्पित कर देंगे। शिव तत्व कभी बहुत प्रसन्न हूँ कि आस्ट्रेलिया में सहजयोग उत्तेजित नहीं होता, यह अत्यन्त प्रचण्ड बहुत फैला है। मैं नहीं जानती वहाँ क्या है। बहुत ही शक्तिशाली है । आपको समर्पित हुआ, आस्ट्रेलिया जैसे दूर-दराज देश में। होना है इसके सम्मुख नतमस्तक होना आरम्भ में तो वहाँ कुछ परेशानियाँ हुई है। अन्य सभी कार्यों से, सभी गतिविधियों परन्तु अब वहाँ सहजयोग फैल गया है । से यह कहीं उच्च है। आस्ट्रिया में भी सहजयोग फैला है और इटली में भी। वैसे सहजयोग फैलता ही कि वे आपको आशीर्वाद दें, अपना पूर्ण पूजा ह इसी के साथ मैं श्री शिव से कहती हूँ नही, क्या कारण है? इसका कारण ये है आशीर्वाद ताकि आप सब लोग भी श्री शिव में परिवर्तित हो जाएं। कि अगुआगण पूरी तरह से प्रयतलनशील के व्यक्तित्व नहीं हैं। इंग्लैण्ड में मैं उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम सभी दिशाओं में गई परन्तु वहाँ परमात्मा आपको धन्य करें। पर बहुत ही कम सहजयोगी हैं। आपको 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-20.txt जन्म दिवस पूजा निर्मल धाम, दिल्ली, 21.3.2002 (परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) न मैं इन्हें प्रेम के विषय में बता रही हूँ, तक चाहें इस घृणा को तर्कसंगत ठहराते सर्वशक्मािन परमात्मा के सर्वव्यापी प्रेम के रहें । हमारा देश जो कि अत्यन्त परिपक्व विषय में उन्होंने ही सारा सृजन किया है एवं शान्तिप्रिय देश माना जाता है यहाँ भी पूरा वातावरण बनाया है प्रेम की पूर्ण ऐसे लोग हुए हैं जिनका मार-धाड़ और भावना दी है। परन्तु यह उन्हीं लोगों के हत्या में ही विश्वास था । इसे मार दो, उसे लिए है जो बच्चों की तरह से अबोध हैं। मार दो। अतः इन चीजों में विश्वास न यदि आप घृणा में परिपक्व हैं तो कोई करने वाले इस देश में भी लोग बहुत आपकी रक्षा नहीं कर सकता। अपनी घृणा पूराने समय से भिन्न प्रकार की हिंसा को न्यायोचित ठहराने के लिए आपके पास करते चले आ रहे हैं। परन्तु मूलतः हम अनगिनत तर्क मिल जाएंगे। जिस सीमा शान्तिप्रिय लोग हैं क्योंकि शान्ति के बिना 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-21.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 18 उत्क्रान्ति हो ही नहीं सकती। पूर्ण शान्ति का बँटवारा हुआ था जिसमें बहुत से लोगों का होना आवश्यक है। आपके हृदय में को जान और माल गँवाने पड़े थे ये सब यदि शान्ति है, आपके चहूँ ओर यदि शान्ति मैंने स्वयं देखा है! ऐसी स्थिति में लोग है, केवल तभी आप सुन्दर राष्ट्र के रूप में किसी को क्षमा कर पाने में असमर्थ थे। अतः क्षमा अन्य लोगों के दुःख और के कारण नही। परन्तु आपके हृदय में तकलीफों को समझने का बहुत अच्छा यदि पूर्ण शान्ति है तभी न केवल आप मार्ग है परन्तु ये गुण आपको अपने अन्दर भयमुक्त होते हैं परन्तु आपके अन्दर से विकसित करना होगा क्रोधित और प्रतिशोध शान्ति भी प्रसारित होती है। ऐसा व्यक्ति की भावना से परिपूर्ण की अपेक्षा आप यदि शान्ति प्रसारित करता है। उसके पास अपने अन्दर वो शान्ति विकसित कर लें, जाने वाले हर व्यक्ति को शान्ति प्राप्त परमेश्वरी प्रेम के माध्यम से यदि आप वो होती है और उसमें शान्ति की भावना आ मानसिक शान्ति प्राप्त कर लें तो आपको कुछ और करने की आवश्यकता नहीं होगी । आप सभी सहजयोगी हैं आपको आत्म यही शान्ति आपके हृदय में है इसे महसूस साक्षात्कार मिल चुका है अर्थात आपकी करें आप शान्त व्यक्ति हैं जल्दी से उत्तेजित आत्मा प्रेम एवं चैतन्य लहरियों का प्रसार होने वाले व्यक्ति नहीं। अपने क्रोध के लिए करने लगी है। आप जहाँ भी होंगे शान्तिमय या लोगों का मिजाज़ बिगाड़ने के लिए चैतन्य लहरियों का प्रसार करेंगे शान्ति आप कोई सफाई नहीं देंगे, आप ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे। आप इस क्रोध और मूर्खतापूर्ण करने की विधियाँ खोज निकालेंगे कि प्रतिशोध से ऊपर उठ सकते हैं । जो लोग आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं उन्हें उन्नत हो सकते हैं, किसी भय या दबाव जाती है। का आप सृजन करेंगे शान्ति का सृजन वातावरण में शान्ति किस प्रकार स्थापित करनी है। हमारा इस प्रकार से उन्नत समझा पाना कठिन है क्योंकि उनसे यदि होना महत्वपूर्ण है कि हम शान्ति का सृजन मैं बात करूंगी तो उन्हें अच्छा न लगेगा । करें, अन्य लोगों को शान्ति प्रदान करें और वो यदि आत्मसाक्षात्कार ले लें केवल तभी हम उनसे बातचीत कर सकते हैं । अतः सर्वोत्तम कार्य यह है कि सहजयोग इसका उदाहरण बन जाएं। मुझे विश्वास नहीं होता कि दिल्ली में भी इतनी अधिक संख्या में लोग साक्षात्कारी को फैलाएं। इसे सर्वत्र, सिखों में, मुसलमानों हो सकते हैं। मैंने कभी इसकी आशा न में और इसाईयों में तथा विशेष रूप से की थी। आरम्भ में तो मुझे तब तक प्रतीक्षा हिन्दुओं में फैलाएं क्योंकि आज कल मुझे करनी पड़ी जब तक लोगों में मेरे कार्य को लगता है हिन्दू लोगों ने भी अपने देश तथा समझने का विवेक न आ गया क्योंकि देश इसकी संस्कृति की समझ पर पकड़ खो 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-22.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 19 दी है। यही कारण है कि वो प्रतिशोध लेते लेना-देना? निश्चित रूप से मैं इस बात हैं। इस प्रकार का प्रतिशोध मेरी समझ में को जान सकती हूँ और आप सब जान नहीं आता। परन्तु क्या किया जाए? लोग सकते हैं कि बाबरी मस्जिद ही वह स्थान उस स्तर तक पहुँच गए हैं, उस अधम था जहाँ श्री राम का जन्म हुआ। स्तर पर, जहाँ वे बहुत सी चीजें नहीं समझ पाते। उदाहरण के रूप में लोग नहीं चाहते बनने से किसी को क्या कष्ट हो सकता कि एक स्थान विशेष पर श्री राम का है? कहने से मेरा अभिप्राय है कि यह तो मन्दिर बने। इसका कारण उनका केवल सम्मान और भावनाओं का प्रश्न है। सहजयोगी न होना है। मैं उन्हें बता सकती मैं श्री राम का नाम लेती हूँ , सभी लोग वहाँ यदि मन्दिर बन जाए तो लोगों को क्या परेशानी हो सकती है। वहाँ मन्दिर उनका नाम लेते हैं क्योंकि इससे अत्यन्त हूँ क़ि यह वही स्थान है जहाँ श्री राम का जन्म हुआ हमें उनके अवतरण को पूर्ण सुख और शान्ति मिलती है परन्तु जिस सम्मान देना चाहिए। यदि वही उनका प्रकार से लोग इस चीज़ को देखते हैं यह जन्म-स्थल है तो हम इस तथ्य को अत्यन्त कठिन कार्य है आप उनसे बात चैतन्य-लहरियों पर महसूस कर सकते नहीं कर सकते। हैं। तो क्यों इस वास्तविकता, इस सच्चाई को नकारें? केवल इसलिए की आप इस रहे हैं कि कश्मीर में मोहम्मद साहब का कार्य को नहीं चाहते। उन लोगों से एक बाल है। अब किसी ने कह दिया बात-चीत करना बहुत कठिन है। हमारे लिए समझने की बात ये है कि जानते हैं? ये निर्णय करने का आपका क्या बाबर ने हमारे लिए क्या किया? बाबर मापदण्ड है कि ये बाल किसका है? आप कौन था? बाबर एक विदेशी था जिसने हैरान होंगे कि मैं जब कश्मीर गई थी तो अब वे एक अन्य मूर्खता की बात कर कि यह बाल उनका नहीं है। आप कैसे इस स्थान को बनाया तक नहीं। नहीं, हम कार से कही जा रहे थे। अचानक उसने नहीं बनाया ये तो उसकी सेना के मुझे बहुत तेज चैतन्य लहरियाँ महसूस किसी अधिकारी ने किया था और इसीलिए हुई तब मैंने चालक से पूछा, "तुम कार इसे बाबरी मस्जिद कहा जाता है। परन्तु आइए देखते हैं कि इन श्रीमान कहने लगा, क्यों? "क्योंकि मैं जाना चाहती बाबर के साथ क्या हुआ? उनकी मृत्यु हो हूँ।" वह कहने लगा, "ये एक पुरानी सड़क गई। परन्तु आए वो विदेश से ही थे। वो है और बहुत थोड़े से लोग यहाँ पर रहते तो भारतीय भी नहीं थे तो भी कोई बात हैं" "कोई बात नहीं। आप गाड़ी ले चलो।" नहीं। परन्तु उस स्थान से उनका क्या वह उस स्थान के समीप पहुँचता गया। को इस और क्यों नहीं ले चलते?" वह সtc 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-23.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 20 वहाँ पर मुसलमानों के कुछ घर थे हमने स्थान है। किसी तरह से । मैं नहीं जानती, उन्हें बुलाया और उनसे पूछा, "यहाँ क्या हो सकता है किसी ने उन्हें बताया हो, मैं हो रहा है?" उन्होंने उत्तर दिया, "यह नहीं जानती उन्हें किस प्रकार पता चला हजरत बल है।" नाम से ही इतनी शान्ति परन्तु चैतन्य लहरियों का ज्ञान तो उन्हें प्राप्त होती है । यह मोहम्मद साहब का एक नहीं है। अभी तक मुझे ऐसे बहुत से हिन्दू नहीं मिले हैं जिनमें चैतन्य-लहरियाँ हों-मेरा बाल था। अब हिन्दू मोहम्मद साहब के विषय में कहने का अभिप्राय इन धर्मान्ध लोगों से नहीं जानना चाहते और मुसलमान श्री राम है। उन्हें कभी चैतन्य लहरियाँ नहीं आतीं। के विषय में। यह आश्चर्य की बात है मैं हैरान होती थी कि किस प्रकार उन्हें सबने अपनी दुकानें खोली हुई हैं और पता चला कि यह श्री राम की जन्मभूमि अपनी-अपनी चीजें बेच रहे हैं उन्हें इस है। हो सकता बात की समझ नहीं है कि जो वो बेच रहे इसका पता चल गया हो। परन्तु इससे वे हैं अन्य लोग भी वही बेच रहे हैं। उदाहरण कुछ प्रमाणित नहीं कर सकते। यदि वो के तौर पर वो अल्लाह का नाम लेते हैं। आत्मसाक्षात्कारी होते, यदि हमारे उच्च अल्लाह कौन हैं? सहजयोग के अनुसार न्यायालय के न्यायाधीश साक्षात्कारी होते. अल्लाह श्री विष्णु के अतिरिक्त कोई अन्य यदि हमारा मंत्रीमण्डल साक्षात्कारी होता नहीं और श्री विष्णु ही श्री राम के रूप में तो उनसे बात की जा सकती थी। परन्तु अवतरित हुए। अतः जिस अल्लाह की वे वे सब, मैं क्या कहूँ, पूरी तरह से बाधित है किसी तरह से उन्हें कु बात करते हैं वे स्वयं श्री राम हैं। इस बात लोग है। किस प्रकार उन्हें बताया जाए कि को केवल एक सहजयोगी ही समझ सकता ये झगड़ा सिर्फ मूर्खता है! वहाँ श्री राम का है। मैं जब इसके विषय में बात कर रही हूँ मन्दिर बनाया जाना बिल्कुल ठीक हैं । आप यदि अपने हाथ फैलाएं तो ये जानकर आप है रान होंगे कि कितनी अच्छी सर्वप्रथम उन सबको आत्म-साक्षात्कार लेना चैतन्य-लहरियाँ बह रही हैं क्योंकि श्री होगा। राम ही अल्लाह हैं । अपनी मूर्खता के कारण आप उन्हीं का अपमान करने का प्रयत्न देखें कि आत्मसाक्षात्कारी लोग पर्याप्त मात्रा आप जो चाहे कहते रहें । समस्या ये है कि अभी, जब हम ये बात कर रहे हैं, आप में नहीं है। आप सब आत्मसाक्षात्कारी हैं। कर रहे हैं। अतः यह मोहम्मद साहब के शिष्यों की अभी कोई मुझसे बता रहा था कि वह मूर्खता है या हिन्दुओं की। हिन्दू भी इस व्यक्ति जो महन्तों को आत्मसाक्षात्कार दे बात को नहीं समझ रहे हैं। किसी तरह से रहा था, महन्त वो लोग होते हैं जिन्हें सन्त उन्हें यह ज्ञान है कि यह श्री राम का जन्म समझा जाता है, कि जब उन महन्तों को 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-24.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 21 यह आम बात है। बहुत से लोगों ने पर्दाफाश हो गया उसकी समझ में नहीं मुझे बताया, "हमने एक पादरी को आत्म साक्षात्कार मिल गया तो उनका आ रहा था कि वह उनका क्या करें? कहीं आत्मसाक्षात्कार दिया, उसका पर्दाफाश हो भी ऐसा घटित हो सकता है चाहे वो इसाई गया।" "अर्थात क्या हुआ?" "श्रीमाताजी, चर्च हो या यहूदी हों। सर्वत्र आपको ये उसकी पोल खुल गई। उसे कैद में डाल समस्या मिले गी। आप यदि उन्हें दिया गया ।" "अरे! यह तो ज्यादती है। आत्मसाक्षात्कार देंगे तो उनका प्दाफ़ाश आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् वह हो जाएगा। अतः उन लोगों को परेशान जेल चला गया!" करने का क्या लाभ है जिनकी श्रद्धा इन महन्तों में है और जो इन्हें बहुत महान नहीं हो सकते। प्रेम में तो आपको पावन समझते हैं। इन लोगों को केवल चैतन्य व्यक्तित्व होना होगा। स्वयं को पवित्र करने लहरियों के माध्यम से ही समझा जा सकता के लिए संघर्ष करें। आपको परिवर्तित होना है। परन्तु प्रेम के वशीभूत होकर मैं उन्हें है। अब भी यदि आपको क्रोध आता है, बता नहीं सकती कि आप लोग अब भी यदि आप में लालच है, अब भी आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं। श्री राम या मोहम्मद यदि आप में ये दोष बने हुए हैं तो प्रेम अंतः यह समस्या है। प्रेम में आप पाखण्डी साहब के विषय में बातें करना आपका कार्यान्वित नहीं होगा। यह कार्य न करेगा । काम नहीं है। वे आपसे अब समस्या अज्ञानियों तथा ज्ञानवान हमें पावनता का मूल्य समझना होगा। क्यों लोगों में है। पहले इनकी दूरी बहुत अधिक मैं बच्चों से प्रेम करती हूँ? क्योंकि वे थी। कोई एक व्यक्ति आत्मसाक्षात्कारी हुआ करता था, तो लोग उसे पत्थर मारा करते नहीं है। जैसे हमारे देश में भ्रष्टाचार महामारी थे, पीटते थे तथा सभी प्रकार से सताते की तरह से फैलने लगा है - महामारी की थे। अब आप लोग बहुत बड़ी संख्या में हैं। तरह से। यह साधारण बात नहीं है। किसी इस अवस्था में भी आप यदि कोई प्रदर्शन को भी आप देखें, हर तीसरे व्यक्ति को करें तो कोई आपको नहीं सुनेगा। मैं आपसे भ्रष्टाचार का रोग लगा हुआ है! क्यों? एक ही प्रार्थना करूंगी अधिक से अधिक क्योंकि सभी धन- लोलुप हैं। ठीक है। परन्तु लोगों को आत्मसाक्षात्कार दें-इन तथाकथित उस पैसे से वो करते क्या हैं? उनकी आध्यात्मिक लोगों को नहीं, सर्वसाधारण समझ में नहीं आता कि इसे किस तरह से लोगोंको-क्योंकि इन तथाकथित आध्यात्मिक छुपाएं । इस धन को वे किसी मटके आदि लोगों का तो पर्दाफाश हो जाता है, इन्हें में डाल देते हैं और अन्ततः यह सारा धन किसी को भी दिव्य प्रेम करने से पूर्व परे हैं। बहुत अबोध (निश्छल) हैं। उनमें ये सब दोष | खो जाता है। ऐसा यदि न भी तो वे साक्षात्कार देने का क्या लाभ है? हुआ 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-25.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 22 पकड़े जाते हैं। यह सब बातें महत्वपूर्ण पूरे विश्व को अपने पाश में बांध ले। यह नहीं हैं। महत्वपूर्ण बात तो यह है कि यह शक्ति है, यह कार्यरत है । आपको तो लालच होना ही क्यों चाहिए? धनवान लोग केवल इसका माध्यम बनना होगा, ऐसे निर्धन लोगों की अपेक्षा कहीं अधिक लालची व्यक्ति जो इस प्रेम का संचार कर सकें। हैं क्योंकि निर्धनों को परमात्मा का कुछ तो प्रेम के इस खज़ाने पर आपका पूर्ण अधिकार डर है! धनबान अत्यंत लोभी हैं। वे सदैव किसी न किसी चीज़ के पीछे दौड़ते रहते मैं देखती हूँ कि यहाँ भी लोग धन की भाषा ह । में सोचते हैं । धन प्रेम का दुश्मन है मैं है । इसे आप सर्वत्र फैला सकते हैं। परन्तु हैं। इस दौड़ का कोई अन्त नहीं है आश्चर्य की बात है कि हमारे इस देश में आपको विश्वास पूर्वक बताती हूँ कि यदि भी यह रोग लग गया है! इसी रोग के अब भी आपका रूझान धन की ओर है तो कारण, कुछ लोग सहजयोग को व्यापार आप कभी सहजयोंग में उन्नति नहीं कर बना रहे हैं और सहजयोग से धन एकत्र सकते मैं मानती हूँ कि मैं निराश हूँ। मेरी कर रहे है। यह लालच आपके विकृत दायें पक्ष (Right समझ में नहीं आता कि किस प्रकार चीजों Side) की देन है और आप इसे न्यायोचित में रुचि लूं। इसमें रुचि लेने वाला क्या है? ठहराने लगते हैं। दायीं और की विकृतियों लोग मुझ पर हँसते हैं कि "आप को सीधी-सीधी सी चीज़ों का भी ज्ञान नहीं है, आप रुपये गिनना भी नहीं जानतीं? मैंने में प्रेम का कोई स्थान नहीं है। अब ये लालच इस सीमा तक बढ़ गया है कि पूरा देश इससे नष्ट हो रहा है। इस कहा, "मैं जानती हूँ।" मैं आपको वैसे ही प्रकार हम कभी उन्नत नहीं हो सकते। बता सकती हूँ कि कितना पैसा है, पर इस दोष के रहते हम कोई भी उपलब्धि इसमें मेरी कोई रुचि नहीं है। दिलचस्पी नहीं पा सकते। आप यदि अपने देश को लेने के लिए बहुत सी अन्य चीजें हैं । आप प्रेम करते हैं, देश प्रेम यदि आपके हृदय में बच्चों को देखें, अच्छे-अच्छे लोगों को देखें । है तो कभी भी आप लालच नहीं करेंगे। विश्व में बहुत से अच्छे लोग हैं, सुन्दर परन्तु उस प्रेम का अभाव है। वे प्रेम करते लोग हैं, सुन्दर चीजें हैं। बेकार की चीजों हैं मेरी समझ में नहीं आता कि वो किसे पर क्यों चित्त बर्बाद करना है? ये तो आती प्रेम करते हैं! अपने बच्चों से वे इस प्रकार जाती रहती हैं । परन्तु आकर्षकतम चीज़ प्रेम करते हैं कि उस प्रेम से बच्चों का भी तो यहाँ विद्यमान है। जीवन ही नष्ट कर देते हैं! मेरे विचार से भारत में स्थिति सबसे प्रेम की कोई सीमा नहीं होती। प्रेम तो खराब है लोग कहते हैं भारत सबसे भ्रष्ट असीम होना चाहिए। इतना असीम प्रेम कि देश है, परन्तु मैं नहीं जानती। मैंने कभी 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-26.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 23 ऐसा कुछ नहीं देखा। व्यक्ति को सच्चा होना चाहिए। आज जैसे अवसर पर यह है? देखें, हर समय वे क्या सोचते हैं-किस सोचना अत्यन्त शुभकर है कि आपके लिए प्रकार यह फैशन किया जाए? फैशन, क्योंकि धन का कोई मूल्य नहीं है यह मूल्यहीन आपके पास यदि धन नहीं है तो आप वो है और आपको आश्चर्य होगा कि आपको धन की कभी कमी न होगी कभी नहीं । इतनी आम बात हो गए हैं कि सभी लोग सहजयोग में आपने यह स्थिति प्राप्त करनी फैशन के पीछे भटक रहे हैं । फैशन तक है कि धन का कोई मूल्य नहीं। धन में यदि वे नहीं पहुँच पाते तो वो सोचते हैं कि कोई रुचि नहीं । आपका वैभव तो इस बात उनमें कोई कमी है। परन्तु आप लोगों पर में है कि आप कितने लोगों को सहजयोग यह बात लागू नहीं होती क्योंकि आप में लाए, कितने लोगों को सहजयोग का सहजयोगी हैं। आनन्द प्रदान किया आपने इसे खरीदा नहीं था। किसी ने भी सहजयोग को खरीदना आपने क्या करना है? ऐसे लोगों पर दया नहीं है। यह तो सर्वत्र निःशुल्क प्रसारित करें। उनका तिरस्कार न करें, उन पर है। ये आनन्ददायी है। धन से इसके दया करें उन्हें बतायें कि "तुम क्या कर आत्महत्या क्यों करते? उनका क्या लाभ फैशन नहीं कर सकते। आजकल फैशन आप यह सब घटित होते देखते हैं, अब रहे हो? क्यों अपना समय बर्बाद कर रहे अलिरिक्त आप क्या पाने की आशा करते हैं? कुछ नहीं। धन से तो केवल सिर दर्द, हो? आत्मसाक्षात्कार रूपी जीवन के भय और सभी प्रकार की समस्याएं आती महानतम लक्ष्य को पाने का, आपके लिए हैं। अतः हमारे सहजयोग के समानान्तर चीजों के पीछे दौड़ रहे हैं? यह चूहा दौड़ स्वतन्त्र जीवन, पूर्ण स्वतन्त्रता एवं आनन्द दौड़ने के लिए आपको कौन विवश करता होना चाहिए। किसी चीज़ की चिन्ता न है?" हो। धन पर कुछ भी निर्भर नहीं। मैंने अत्यन्त निर्धन अवस्था में रहने वाले लोगों और लोग इसके विषय में सोच रहे हैं । को भी अत्यन्त प्रसन्न एवं आनन्दित देखा परन्तु आप ही वह लोग हैं जो समाधान दे है। और जिन लोगों के पास बेशुमार दौलत है, विशेषतः विदेशों में, उन्हें उदासी और पर कार्यन्वित कर सकते हैं । खिन्नता से पीड़ित पाया है वहाँ बड़ी अजीब स्थिति है। वहाँ लोग आत्महत्या ऐसे लोग देखे हैं जिनके पास कुछ नहीं । कर लेते हैं क्यों? यदि धन ही सब कुछ वे आध्यात्मिक भी नहीं हैं। वे आत्मसाक्षात्कार होता तो इन वैभवशाली देशों के लोग भी नहीं दे सकते, कुछ भी नहीं दे सकते। यह सर्वोत्तम समय है क्यों आप व्यर्थ की मेरे विचार से सर्वत्र यह पराकाष्टा है सकते हैं। आप इसे बहुत ही विस्तृत स्तर कहने से मेरा अभिप्राय ये है कि मैंने 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-27.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 24 परन्तु क्योंकि वे सामाजिक कार्य कर रहे और अधिक अभिव्यक्ति करें, अन्य लोगों हैं, इसलिए वे प्रसिद्ध हैं । सामाजिक कार्य से कार-व्यवहार करते हुए उस प्रेम की क्या है? गरीबों आदि की देखभाल करना अभिव्यक्ति करें। इस प्रकार से अपना प्रेम या ऐसा ही कोई और कार्य । जब आपका अभिव्यक्त करें कि अन्य लोगों को इससे प्रेम, जो कि इतना महान है. प्रभावशाली है, खुशी मिले। इसके विषय में विचार किया कार्य करने लगता है तो आप में यह भाव जाना चाहिए। आप यदि सच्चे सहजयोगी आता है कि आप कुछ करें। ऐसी स्थिति हैं तो किस प्रकार परस्पर झगड़ सकते हैं? जब आएगी तो, आप हैरान होंगे, किस यदि वो सहजयोगी हैं तो किस प्रकार आप प्रकार लोग सहजयोग को समझते हैं! अभी तक सहजयोग ठीक है, लोग बहुत सहजयोगी हैं तो कैसे आप धोखा दे सकते अच्छे हैं, बढिया कुछ है। परन्तु इसका प्रभाव दिखाई पड़ना आपकी रुचि नहीं होनी चाहिए। ऐसा होने चाहिए, आपके प्रेम का प्रभाव लोगों को का अर्थ ये होगा कि आपका समाधान हो दिखाई देना चाहिए। सर्वप्रथम क्षमा आपको क्षमा करना है। लोग अत्यन्त मूर्ख आप निर्मल हैं। कोई आपको छू नहीं सकता। हैं। अभी मैंने आपको बताया है कि लोग कितने मूर्ख हैं! अतः किसी चीज की चिन्ता अपने प्रति आपमें सम्मान भाव होना चाहिए। उनका अपमान कर सकते हैं? आप यदि हैं. सन्त-सुलभ हैं, सभी हैं? यह सम्भव नहीं है। इन चीज़ों में है। गया है, आप स्वच्छ हो गए हैं और अब इस प्रकार का दृष्टिकोण होना चाहिए। करने की आवश्यकता नहीं है। आप यदि आपकी भूमिका क्या है? आपका पद क्या विवेकशील व्यक्ति हैं तो विवेक पूर्वक हर है? आप को ज्ञान होना चाहिए कि आप चीज को परखें तथा फैशन आदि के शिकंजे आत्मसाक्षात्कारी हैं और आत्मसाक्षात्कारी में न फसे। समूह बिल्कुल न बनाएं। इसकी व्यक्ति के रूप में अपने कर्त्तव्यों का ज्ञान कोई आवश्यकता नहीं है। हम सहजयोगी आपको होना चाहिए। अन्य पागलों की हैं। हम आत्म- निर्भर हैं। हमें किसी चीज़ तरह आप चूहा-दौड़ नहीं दौड़ रहे और न की आवश्यकता नहीं। आप यदि एक हैं तो ही किसी प्रकार की प्रतियोगिता में भाग ले हम सब ठीक हैं। आप यदि बहुत से हैं तो रहे हैं। आप प्रतिस्पर्धा में भाग नहीं ले रहे । भी हम ठीक हैं। अब आप लोग जान लें कि आपने एक उन्नत हो रहे हैं। मैं जानती हूँ कि किस अत्यन्त उच्चावस्था पा ली है। परमात्मा के उस प्रेम को, उस अनन्त प्रेम सर्वप्रथम आपको इस आशीर्वाद के योग्य को छ is आप तो बस अपने प्रेम तथा आशीर्वाद से आपने प्रकार आशीर्वाद कार्य करता है। परन्तु लिया है । बनना होगा अन्यथा कोई सहायता नहीं ू अतः अपनी दिन-चर्या में उस प्रेम की कर सकता। केवल आपका प्रेममय स्वभाव 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-28.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 25 सहायक हो सकता है। इसी लिए ईसा सहायता करें तो, मुझे पूर्ण विश्वास है, मसीह ने कहा था कि परमात्मा के साम्राज्य सहजयोंग बहुत से ऐसे कार्य कर सकता में प्रवेश करने के लिए आपको बाल-सुलभ है जो हम अभी तक नहीं कर पाये । होना पड़ेगा। बच्चे कितने अबोध, कितने सहज होते हैं! छोटी-छोटी चीजों से वो क्या कहा है। इसके विषय में सोचें । आपको रीझ जाते हैं। उन्हें किसी विशेष चीज़ की अन्तर्अवलोकन की आश्यकता है. सूझ-बूझ आवश्यकता नहीं होती। कितनी आश्चर्य की आवश्यकता है। "सहजयोगी के रूप में की बात है कि किस प्रकार हमारा प्रेम, जो मैंने अपने जीवन में क्या किया ?" तब आप कि दिव्य प्रेम से ज्योतित है, पूरे विश्व को जान पाएंगे कि आप बहुत कुछ कर सकते परिवर्तित कर सकता है! किस प्रकार मुझे हैं-बहुत कुछ। यही सब कार्य होते हैं। अब घर पहुँच कर आप सोचें कि मैंने 1 यह विचार आया और किस प्रकार ये समृद्ध परमात्मा आपको धन्य करें । हुआ? इस कार्य में यदि आप सब मेरी 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-29.txt परम् पूज्य श्रीमाताजी की दुल्हनों को सीख गणेश पूजा (कबैला, इटली, 23.9.2001) आज आप विवाह करने जा रही हैं। मैं आपको केवल इतना बताना चाहूँगी कि भी तो ऐसी हो सकती हैं। सहजयोग में आपने सम्भव है सभी कुछ सम्भव है क्योंकि आप कार्य अत्यन्त सूझ-बूझ के साथ विवाह के लिए हमने आपको चुना है और हमें आशा है कि आप इस विवाह को बहुत करना है। विवाहित महिला के रूप में सहजयोग ही सफल तथा आनन्ददायी बनाएंगी। में अपनी भूमिका को समझ लेना अत्यन्त आवश्यक है। कुछ अजीबोगरीब महिलाएं हैं। महिला ने ही विवाह को सफल बनाना हमारे यहाँ आई जिन्होंने विवाह केवल है । किसी व्यक्ति विशेष से यदि आप विवाह इसलिए किया क्योंकि वे विवाह करना नहीं करना चाहतीं तो आप इसके लिए चाहती थीं और अन्ततः उनके विवाह सफल इन्कार कर सकती हैं। परन्तु अब जब न हो सके । ऐसी महिलाएं मेरे लिए इतनी आप विवाह कर रही हैं तो कृपा करके कष्टकर हैं कि मेरी समझ में नहीं आता सहजयोगिनी दुल्हन के नज़रिए से सोचिए। कि विवाह करने से पूर्व वे इस बात को सहजयोग का नाम ऊँचा करना आपकी समझ क्यों नहीं लेतीं कि उन्हें क्या करना ज़िम्मेदारी है। सामाजिक घटना के रूप में होगा। सहजयोग में आपको सफल विवाह करने आपका विवाह इसलिए कर रहे हैं कि आप चाहिएं। ये कोई सर्वसाधारण विवाह नहीं सहजयोगिनी हैं, विवेकशील महिला हैं और | सहज विवाह किसी भी तरह से बलिदान आप सहजयोग को गौरव प्रदान करेंगी। नहीं है यह तो आनन्द से परिपूर्ण सूझ बूझ महिलाओं की जिम्मेदारी बहुत अधिक हम आपका विवाह नहीं कर रहे। हम मैं यहाँ बताना चाहूँगी कि अब तक सफल हुए है-99%। अब है। आपको बहुत से कष्ट भी झेलने पड़ 99% विवाह सकते हैं, हो सकता है कि किसी की आपका ये नया समूह विवाह के लिए आया स्थिति पैसे के मामले में अच्छी न हो। ये है और देखना है कि यह किस प्रकार भी हो सकता है कि किसी पुरूष के पास कार्यान्वित होता है । ठीक-ठाक पैसा हो फिर भी इस मामले में आपका ध्यान न रख रहा हो, आपको पैसा हैं, कोई विशेष छवि यदि आपने अपने न देता हो या बहुत ही रोबीला हो। ये सब मस्तिष्क में बनाई हुए है तो उसे निकाल आपके मस्तिष्क में यदि कोई धारणाएं 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-30.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 27 दें हमने वास्तविकता के अनुरूप चलना गलत फहमियों के विषय में अपने पति से है और देखना है कि वास्तविकता काल्पनिक बता सकती हैं परन्तु इसके लिए आप में विचार नहीं होती। इस बात से न तो विशेष आकर्षण और विशेष सूझ-बूझ का आपको झटका लगना चाहिए और न ही होना आवश्यक है । मैं आपको अपने जीवन का एक उदाहरण पुरुष को। परन्तु मान लो कि उसे झटका लगता भी है तो चाहिए। आप में सूझ-बूझ की भावना होनी चाहिए। पुरुषों से आपको इसकी आशा आपके सम्मुख एक उदाहरण दूंगी। मेरे नहीं करनी चाहिए। भी आपमें सूझ-बूझ होनी दूंगी। वैसे तो मैं से उदाहरण है परन्तु बहुत पति के दफ्तर से एक व्यक्ति मुझे मिलने जहाँ तक धनार्जन का सम्बन्ध है यह आया। उसने बताया कि मैने एक बहुत पुरुषों की ज़िम्मेदारी है जिम्मेदारियाँ है परन्तु सूझ बूझ महिलाओं संस्था को छोड़कर मैंने कहीं और नौकरी की जिम्मेदारी है। उन्हें अपने पति को, कर ली थी। परन्तु पारिवारिक जीवन को तथा उससे जुड़ी मैं कभी प्रसन्न नहीं रह सकता, इसलिए मैं सभी चीज़ों को समझना होगा में सूझ-बूझ की भावना ही अच्छे परिवारों कहा था, "तुम्हारे लिए यहाँ कोई स्थान का सृजन करती है। सुखद पारिवारिक नहीं है, ये अनुशासनहीनता है जो अच्छी सम्बन्धों के लिए महिला ही सभी कुछ नहीं है। आपने ऐसा क्यों किया? आपने करती है। वे पति को समझाती हैं और दूसरी संस्था की नौकरी क्यों स्वीकार की?" अपनी सूझ-बूझ से उसकी सहायता करती उसने उत्तर दिया, "श्रीमान, अब मैं वापिस हैं। एक बार जब पतियों के मन में यह आना चाहता हूँ। इसके लिए मैं आपसे बात बैठ जाएगी कि आप विवेकशील हैं, सहजयोग की चिंता करती हैं, आप प्रार्थना करता। परन्तु पुरुषों के मस्तिष्क में गरिमामय हैं तो आपकी सभी समस्याओं यदि एक बार कुछ घुस जाए तो वे इसे का समाधान हो जाएगा। अपनी जिम्मेदारियों जल्दी से बदलते नहीं। अतः वो मेरे पास की गहन सूझ-बूझ का होना अत्यन्त आया और मुझे बताया कि मैं इसी संस्था आवश्यक है। मुझे विश्वास है कि आप सब मैं वापिस आना चाहता हूँ।" अपने पति को इस कार्य में सफल होंगे क्योंकि आप मैं भली-भांति जानती हैँ, इसलिए मैंने सहजयोगिनियाँ हैं । कभी रौब न जमाएं। कहा, "ठीक है, देखते हैं क्या हो सकता इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। आप है," मेरे पति जब वापिस आए तो मैंने यदि विवेकशील हैं तो आप गलतियों और उनसे कहा, "क्यों नहीं आप उस व्यक्ति । उनकी अन्य बड़ी गलती की थी कि आपके पति की लगता है कि वहाँ पर । महिलाओं वाषिस आना चाहता हूँ। मेरे पति ने उससे प्रार्थना करता हूँ । प्रतिदिन वह इसके लिए 1 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-31.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 28 को पुनः नौकरी में ले लेते?" "ओह, तो अब वो तुम्हारे पास भी आया था! वो बहुत एक तरीका है, उसे आपने सीखना है, समझदार है और जानता है कि उसे कहाँ उसमें कुशलता प्राप्त करनी है। इसके जाना चाहिए।" मैंने कहा, "नहीं, हो सकता माध्यम से बिना किसी को चोट पहुँचाए, हैं वो सोचता हो कि मैं आपसे कहीं अधिक बिना किसी से कटु बोले, बिना किसी से उदार हूँ।" ये बहुत बड़ी चुनौती थी। अभद्र हुए, आप सभी अच्छे कार्य कर "इसलिए वह मेरे पास आया था। आपको सकेंगे ये सब प्रबन्धन है यह विशेष भी उदार होना चाहिए।" तब उन्होंने उस चीज़ आपको सीखनी होगी तभी सारे झगड़े व्यक्ति को वापिस ले लिया। मैं ये कहना समाप्त हो पाएंगे ठीक है? चाहूँगी कि इसके बाद पूरा जीवन उसने मेरे पति की जी-जान से सहायता की। तो ऐसा ही है। हर कार्य को करने का परमात्मा आपको धन्य करें। मैं आप सबको हृदय से आशीष देती हूँ। 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-32.txt परम् पूज्य श्रीमाताजी की दुल्हों को सीख गणेश पूजा (कबैला, इटली, 23.9.2001) मैं दुल्हनों से बात-चीत करके आई हूँ। वह क्या कर रही है। उससे पूछे? यदि वह उन्हें बताया है कि उनके कर्तव्य क्या हैं ज्यादा व्यस्त है तो उसकी सहायता करने तथा उसका अर्थ क्या है? मैंने उन्हें विशेष का प्रयत्न करें। में सोचती हूँ कि अपने रूप से बताया है कि पुरुष प्रायः थोड़े से प्रेम की अभिव्यक्ति करना पुरुषों के लिए उत्तेजित होते हैं। विवाह से भी वे उत्तेजित बहुत आवश्यक है अन्यथा आप तो बस हो जाते हैं । अतः आप लोगों को चाहिए मान लेंगे कि मैं विवाहित हूँ । ये बात नहीं कि और अधिक विवेकशील बनें और मुझे है। अतः घर लौटकर अपनी पत्नी से विश्वास है-वो लड़कियाँ बहुत ही विवेकशील अच्छी तरह बातचीत करें, उससे पूछें कि दिखाई दे रहीं थीं। फिर भी आपको ये वह क्या कर रही थी और क्या उसे किसी बात ध्यान में रखनी है कि आप सहजयोग चीज़ की आवश्यकता है। में विवाह कर रहे हैं, विवाह नहीं, सहजयोग -विवाह कर रहे हैं। ये बात बहुत महत्वपूर्ण कहें नियम है कि अपनी कमाई का सारा है। अपने विवाह को आपने अत्यन्त सफल पैसा पत्नी के पास रखा जाना चाहिए। सहजयोग में हमारी एक परम्परा या ये बनाकर दिखाना है। घर-गृहस्थी और बच्चों की ज़िम्मेदारी, खर्चना चाहिए और आपसे पूछे बिना उसे निःसन्देह-मैं इस बात से सहमत हूँ- भी पैसा नहीं खर्चना चाहिए। पैसा बहुत लड़कियों की या दुल्हनों की होती है। बड़ी समस्या है । आपको यदि पैसा चाहिए आपकी भी ज़िम्मेदारी है कि उसका तो आपको पूरा अधिकार है । यह पति-पत्नी उससे पूछे बिना आपको कोई पैसा नहीं परन्तु ध्यान रखें, उसकी उपेक्षा न करें ये कहकर दोनों की सम्पति है परन्तु पत्नी को इस कि मैं बहुत व्यस्त हूँ, इसे तर्कसंगत न बात का ज्ञान होना चाहिए कि पैसा कितना ठहराएं। अपनी पत्नी को कुछ समय आपको है । न वो आपसे पूछे बिना खर्च कर सकती देना ही होगा इस मामले में आपको है न आप उससे पूछे बिना। लापरवाही नहीं करनी चाहिए। ये पहली चीज़ है। उदाहरण के रूप में जब आप पूरी समझ होनी चाहिए कि किस प्रकार के काम से घर वापिस आते हैं तो-मैं जानती प्रेम की अभिव्यक्ति आप कर रहें हैं । आप हूँ, आप थके हुए होते हैं, परन्तु देखें कि यदि उस पर संदेह करते हैं तो गलत है यह आपसी सूझ-बूझ है। प्रेम की आपको 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-33.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व ৪ जुलाई-अगस्त 2002 30 या यदि आप ये सोचते हैं कि ये सब तो हैं। एक दूसरे के साथ बैठकर भी आप मेरा है आप यदि समझते हैं कि यह सब जीवन आनन्दमय बना सकते हैं। परस्पर तो मेरा है वह पूछने वाली कौन है तो यह बातचीत करके भी आप जीवन का आनन्द गलत है। महिलाओं का नौकरी आदि करना ले सकतें हैं। परन्तु आपको यदि यह कला मुझे पसन्द नहीं फिर भी यदि आवश्यक नहीं आती तो सम्भव है कि आपको भी होगा तो वे कार्य करेंगी। कार्यरत होने की समस्या हो, आपकी पत्नी को भी समस्या स्थिति में मैंने उनसे बताया है कि उन्हें हो। पत्नी में यदि कोई गम्भीर समस्या इस बात के प्रति सावधान रहना कि सर्वप्रथम वे गृहणियाँ हैं। हम केवल विवाह ही नहीं केवल तभी आप विवाह को तोड़ सकते हैं । करना चाहते, हम सहजयोगियों के विवाह हम इस समस्या को देखने का प्रयत्न करना चाहते हैं जिनके सुन्दर बच्चे हों करेंगे। परन्तु सामान्य स्थिति में आप ये और सुन्दर परिवार बनें। हम खूबसूरत समझने का प्रयत्न करें कि पत्नी यदि घर परिवार चाहते हैं। अतः पतियों का हावी होना या पत्नियों रूप से महत्वपूर्ण है. आपसे भी अधिक का दोनों ही गलत धारणाएं हैं। एक दूसरे महत्वपूर्ण है आपका दृष्टिकोण यदि ये हो से यदि आप प्रेम कर सकें तो यह बहुत कि दो आत्माओं के बीच-बाएं और दाएं हितकर होगा। मैं देखती हूँ कि छोटी-छोटी के बीच विवाह हुआ है एक दूसरे के प्रति चीज़ों के लिए लोग परस्पर लड़ते हैं। पूर्ण सूझ-बूझ आ जाएगी। विवाह का कपड़ों के लिए, खाने के लिए और भावनात्मक पक्ष भी है परन्तु मैं देखती हूँ छोटी-छोटी चीजों के लिए लोग परस्पर प्रायः विवाहित लोगों में भावनात्मक पक्ष की लड़ते हैं! आप यदि किसी से प्रेम करें तो समझ नहीं होती पत्नी यदि उदास है या आपका जीवन अत्यन्त सुन्दर बन जाता रो रही तो आपके प्रेम के दो शब्द, या है। यह छोटी-छोटी चीजें व्यर्थ हैं । अतः उसके प्रति प्रेम प्रदर्शन बहुत बड़ा कार्य अपनी पत्नियों को परखें नहीं, उन पर करेंगे किसी को प्रेम करने से अच्छा और हावी न हों। उन्हें यदि आपके पथ-प्रदर्शन कुछ नहीं हो सकता। की जरूरत है तो ठीक है। परन्तु यदि पति हर समय यह कहता रहे ऐसा करो, आपका विवाह नहीं हुआ है आपका विवाह वैसा करो तो वह बड़ा उबाऊ हो जाता है। प्रेम का आनन्द लेने के लिए हुआ है प्रेम हमेशा ध्यान रखें कि आप अपने और अपनी करना बहुत बड़ा आशीर्वाद है और दिव्य पत्नी के जीवन को उबाऊ न बना दें। है आप यदि प्रेम करते हैं तो आप दोष जीवन के आनन्द लेने के बहुत से तरीके नहीं खोजेंगे अपने विवाहित जीवन के का कार्य सम्भाल रही है तो वह समान १। विवाह के सर्वसाधारण अनुभव के लिए श्रीम श्री० 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-34.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 31 आनन्द लेने के उपाय आप खोजेंगे। मैंने पता लगाते हैं कि वह ठीक तो है। मैं आपको लाल बहादुर शास्त्री का कि आपने अपने विवाहित जीवन का आनन्द उदाहरण देना चाहूँगी वो अपनी पत्नी से लेना है और अकेले आप आनन्द नहीं ले बहुत प्रेम करते थे। उनकी पत्नी सर्वसाधारण सकते। अकेले आप आनन्द नहीं ले सकते। महिला थीं, पढ़ी-लिखी भी न थीं और एक अतः आपकी पत्नी आपकी साथी है, आपकी सामान्य परिवार से सम्बन्धित थीं । एक मित्र है, आपकी सभी कुछ है। इसके विषय बार मैं उनके घर पर गई प्रातः दस बजे में सुन्दर विचार बनाएं। कहने से मेरा मैं उनके घर पर थी तो लाल बहादुर अभिप्राय है कि कुछ लोग तो बहुत अधिक शास्त्री ने अपने दफ्तर से पत्नी को एक नहीं पत्र भेजा जिसमें लिखा था रोज़मर्रा की होते। अतः किसी भी चीज़ की अति नहीं तरह से मैंने स्नान आदि किया परन्तु तुम तब तक सो रही थीं। मैंने तुम्हें परेशान अपनी पत्नी के गुणों की प्रशसा करें और नहीं करना चाहा। क्योंकि तुम कल रात सोई नहीं थी इसलिए मैंने तुम्हें जगाना निःसन्देह सर्वोत्तम बात तो ये है कि नहीं चाहा। मुझे खेद है। परन्तु मैंने अभी परस्पर विश्वास करें। विवाहित लोग परस्पर तक चाय नहीं पी है। क्या मैं तुम्हारे साथ हैं और फिर अलग हो चाय पीने आ सकता हूँ? वे परस्पर इतने जाते हैं। अतः सन्देह करने की कोई बात समीप थे! देखिए ये कितना हृदयस्पर्शी है ! नहीं। विवाहित जीवन से डरने की कोई वे आए। मैं उन्हें देखकर आश्चर्यचकित आपको यहाँ ये बताने के लिए बुलाया है रोमांटिक होते हैं और कुछ बिल्कुल होनी चाहिए। सहजयोगी के रूप में आप सहजयोग के विवाह को समझें । सन्देह करने लगते बात नहीं। विवाह तो एक अत्यन्त सुन्दर थी। वे भारत के प्रधानमंत्री थे फिर भी जीवन में आपका प्रवेश है । मैं कहूँगी कि देखिए किस प्रकार वे अपनी पत्नी का आपका अपने जीवन को किसी अन्य के ध्यान रखते थे! वे घर पर आए और अपनी साथ बॉँटना सुन्दर उत्क्रान्ति बहुत से लोग इसमें असफल हो जाते हैं, रही, उनके सामने नहीं आई । मैंने सोचा क्यों? क्योंकि वो सोचते हैं वो पुरुष हैं और कि मुझे बाधा नहीं बनना चाहिए। पत्नियाँ महिलाएं। दोनों परस्पर मिलकर है। परन्तु पत्नी के साथ चाय पी। मैं घर में छिपी ये सभी छोटी-छोटी चीजें जीवन में बहुत हितकर होती हैं। यद्यपि शास्त्री जी अत्यन्त प्रसन्नता पूर्वक रह सकते हैं। मैंने देखा है कि कुछ पति बहुत अच्छे हैं अत्यन्त व्यस्त व्यक्ति थे फिर भी वे अपनी वे इतना कठोर परिश्रम करते हैं कि उनके पत्नी तथा परिवार का सदैव ध्यान रखते पास पत्नियों के लिए समय ही नहीं होता। थे मैं जब वहाँ थी तो मुझे हैरानी हुई जब फोन करके वे उनकी सुध लेते हैं। उन्होंने अपनी बेटियों से कहा कि "तुम परन्तु 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-35.txt जुलाई-अगस्त 2002 32 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 अपने बच्चों की देखभाल स्वयं करो, मेरी दें कि कोई उसे अपमानित नहीं करेगा । पत्नी तुम्हारी नौकरानी नहीं बनी रहेगी। मैं कोई यदि आपकी पत्नी को अपमानित करे उसे आया नहीं बना सकता। तुम स्वयं तो उस समय आपको अपनी पत्नी का इस बात का ध्यान रखो।" तो बच्चों के साथ देना चाहिए। बाद में आप उस मामले मुकाबले पत्नी को क्या स्थान दिया गया! को सुलझा सकते हैं। किसी में साहस नहीं ऐसा ही होना चाहिए। इसी प्रकार से हम होना चाहिए कि आपकी पत्नी को कोई अन्य व्यक्ति के साथ रहना सीखते हैं। हर कुछ कहे। हर समय अपनी पत्नी का साथ समय यदि आप अपने ही बारे में सोचते दें क्योंकि वह एक सहजयोगिनी है। बाद रहें, "मुझे कौन से आराम मिल रहे हैं, ये में आप उससे बात करके पूछ सकते हैं ार खाना अच्छा न था" तो आप सहजयोगियों कि क्या बात है। एकान्त में ले जाकर आप की तरह से जीवन नहीं व्यतीत कर रहे । उससे पूछे. "क्या बात है, क्या हुआ?" सहजयोगी अन्य लोगों के लिए जीवित रहता है. केवल अपने लिए नहीं और इस उस पर चिल्लाना नहीं चाहिए और न ही चीज का आरम्भ उसकी पत्नी से होता है । उसकी गलतियों को सुधारना चाहिए। इतना आपकी यदि कोई समस्या है तो, नि:सन्देह, ही नहीं किसी भी पति को अपनी पत्नी पर परन्तु अन्य लोगों के सामने आपको उसका समाधान किया जा सकता हैं। आप चिल्लाना नहीं चाहिए। ये बात मेरी समझ मुझे पत्र लिख सकते हैं और हम इन में नहीं आती कि पति अपनी पत्नियों पर समस्याओं को देखेंगे। परन्तु आवश्यक बात चिल्लाए क्यों! इससे उनकी गलत परवरिश ये है कि आपमें भावनात्मक सन्तुलन होना का पता चलता है हम सभी सहजयोगी हैं चाहिए। उसकी समझ आपको होनी चाहिए। मैंने आपकी परवरिश की है। मैं आपकी माँ पत्नी यदि खिन्न है तो आप उससे पूरछे हूँ। कृपा करके कभी अपनी पत्नियों पर क्यों, क्या बात है?" हमेशा उसका साथ चिल्लाएं नहीं। कभी अपना क्रोध उन्हें न दें-हमेशा। चाहे आपकी माँ-पिता या किसी दिखाएं। मेरा कहने का अभिप्राय है इन अन्य का मामला ही क्यों न हो आप उसका सब छोटी-छोटी बातों का समाधान प्रेम साथ दें और फिर उसे बताएं उचित क्या प्रदर्शन के द्वारा ही किया जा सकता है। है। परन्तु यदि आप उसका विरोध करने जैसे आप मुझे प्रेम करते हैं वैसे ही मैं लगेंगे तो उसे समझ नहीं आएगा उसका आपको प्रेम करती हैँ। आपमें यदि कोई साथ देकर यदि आप सबको कहेंगे कि कमी होगी तो मैं आप पर चिल्लाऊंगी "हम चीज़ों को देखते हैं" और इस प्रकार नहीं, कभी नहीं । मैं क्या करूंगी, मैं इसे बड़े प्रेम से लूंगी।" आप में प्रेम एवं करुणा से यदि आप उसका आत्म सम्मान स्थापित करेंगे तो अच्छा होगा उसे विश्वस्त होने की अत्यन्त महान शक्ति है अपनी पत्नी 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-36.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 33 से यदि आप प्रेम नहीं कर सकते तो मन्द-गति से शान्तिपूर्वक सहजरूप से किससे करेंगे अपने बच्चों से या किसी जीवन में चलें। महिलाओं पर उछलें नहीं अन्य से कहीं अधिक प्रेम अपनी पत्नी को और न ही उन पर चिल्लाने लगें वास्तव करें। अपना थोड़ा सा प्रेम बाँटकर देखें में ऐसा करना उचित न होंगा । इतने वर्षों आप आश्चर्य चकित रह जाएंगे! मैंने देखा है कि छोटी-छोटी चीजों के तीन-चार मामले आए। इससे अधिक नहीं । लिए भी सहजयोगी अपनी पत्नी से नाराज़ फिर भी अपनी पत्नी का संचालन बड़े प्रेम हो जाते हैं। उदाहरण के लिए मान लें मैं से करें उससे बड़े प्रेम पूर्वक बात करें। आपकी माँ हूँ सभी कुछ हूँ। परन्तु आपकी पत्नी से इस प्रकार बात करें कि उसे पत्नी कभी पूजा में कोई गलती करती है, महसूस हो कि आप उसके पति हैं वो किसी बात को समझने का प्रयत्न नहीं आपकी पत्नी है। ये एक कला है। आप करती तो मैं बुरा नहीं मानती। बाद में उसे क्योंकि सहजयोगी हैं आपको विश्व के सम्मुख बताएं कि ये गलती थी और तुम्हें नहीं ये दर्शाना होगा कि सहजयोग के कारण करनी चाहिए थी। वे हमारी माँ हैं, तब वे आपके विवाह सफल हुए हैं। अपनी माँ या आपका सम्मान करेंगी। परन्तु आप यदि किसी अन्य के चलाए न चलें। सबसे चिल्लाएंगे तो आप दोनों में दूरी पैदा हो पहले अपनी पत्नी को सुने, देखें कि उसकी में हमारे सम्मुख इस प्रकार के केवल जाएगी परन्तु आप यदि इस प्रकार प्रेम से क्या समस्या है अन्यथा ये विवाह टूट जाएगा। उनसे बात करेंगे तो आपका पूरा जीवन जब आपका विवाह हो चुका है तो किसी परिवर्तित हो जाएगा उन्हें प्रेम करें, उनसे अन्य महिला में आपको बिल्कूल भी भट्रता पूर्वक व्यवहार करें। ऐसा करना दिलचस्पी नहीं लेनी चाहिए। आपकी पत्नी बहुत आवश्यक है। पश्चिम में मैंने विशेष सबसे पहले है। वह अन्य महिलाओं में रूप से ये बात देखी है कि लोगों को आपकी दिलचस्पी को समाप्त करती है। अपनी पत्नियों से व्यवहार करने का प्रशिक्षण इसकी कोई आवश्यकता नहीं, आपकी अपनी ही नहीं हैं। इस प्रकार का कोई प्रबन्ध ही पत्नी है, अन्य महिलाओं में क्यों आपको वहाँ नहीं है। परन्तु भारत में यह सब कुछ दिलचस्पी लेनी चाहिए? है। भारत में पति-पत्नी, जब पहली बार मिलते हैं तो बहुत बड़ा उत्सव होता है पत्नी कष्टकर है तो मुझे बताएं। ये बात और सभी कुछ अत्यन्त मधुरता पूर्वक होता देखने के लिए मैं यहाँ बैठी हुई हूँ। परन्तु है। अंतः यद्यपि सम्बन्ध तो हैं परन्तु आपने ठीक कर सकते हैं परन्तु आप यदि उन सम्बन्धों को स्थापित करना है। अत्यन्त विवेकशील नहीं हैं तो समस्याएं खड़ी हो ये सब करने के बावजूद भी यदि आपकी आप निराश न हों। चीजें सुधरेंगी, हम उन्हें 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-37.txt जुलाई-अगस्त 2002 34 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 करें तो भी कुछ बुरा नहीं है। परन्तु आपको जाएंगी। मेरे विचार से भारतीयों के मुकाबले में हमेशा याद रखना है कि जो भी कुछ आप आप लोगों के पति बेहतर हैं इसमें कोई कर रहे हैं वह दैवी नियम के अनुसार है । शक नहीं (श्रीमाताजी साथ खड़े किसी दैवी नियम का पालन होना चाहिए और व्यक्ति से पूछती हैं क्या यहाँ पर कोई इसी प्रकार से आप अपने विवाह को सफल इंग्लैण्ड के दुल्हे भी हैं?) इंग्लैण्ड में मैंने बना सकते हैं। मैं यही सब देखने के लिए देखा है पुरुष अत्यन्त दब्बू हैं। कानून के आतुर हूँ कि इन विवाहों से आप आनन्दित कारण वे अत्यन्त विनम्र हैं वहाँ का कानून हो जाएं। यह अत्यन्त विशिष्ट चीज है इतना अजीब है और यही कारण है कि जिससे आपको परमात्मा का आशीर्वाद प्राप्त वहाँ के लोग बहुत ही भावुक हैं। वे अत्यन्त होगा और आप अपने प्रेम का आनन्द दब्बू हैं, इतने दब्बू कि कानून के कारण वे लेंगे। अपनी पत्नियों को बिगाड़ देते हैं परन्तु अब हम अन्तर्राष्ट्रीय विवाह करते हैं और इटली में वहाँ के कानून के अनुसार विवाह परमात्मा आपको धन्य करें। 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-38.txt पूर्ण समर्पण-एकमेव काऊलेमैनोर गोष्ठी, 31.07.1982 (परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) आज मैं आपको कुछ ऐसी बातें बताने सम्मुख लमलेट हो जाते हैं। पूर्णतः धाराशायी वाली हूँ जो मुझे बहुत पहले बता देनी हो जाते हैं। सम्मोहित होकर लोग अपनी चाहिए थीं । जैसे मैंने आपको बताया है, आपका कुछ त्यागकर अपने गुरुओं के सम्मुख धन- दौलत, घर-बार, परिवार, बच्चे सभी मुझे पहचानना अत्यन्त आवश्यक है। उत्थान धाराशायी हो जाते हैं-बिना कोई प्रश्न पूछे, के लिए मुझे मान्यता देने की शर्त आवश्यक बिना कोई विवरण पूछे, बिना अपने गुरु के है, मैं इसे बदल नहीं सकती ईसा-मसीह जीवन के विषय में पूछताछ किए। ऐसे ने कहा था कि "मेरे विरुद्ध यदि कुछ कहा सभी लोग तेजी से अंधकार में, गहन गया तो उसे सहन कर लिया जाएगा, क्षमा अंधकार में, और पूर्ण विनाश की ओर चले कर दिया जाएगा परन्तु आदिशक्ति (Holy जाते हैं। परन्तु आप सब लोग सहजयोगी Ghost) के विरुद्ध कही गई कोई भी बात हैं और आपने अपना निर्माण करना है। बर्दाश्त नहीं की जाएगी (Anything against अभी तक इतने स्पष्ट शब्दों में यह बात me will be tolerated, will be forgiven but आपको बताकर मैं आपके अहं को ठेस anything against the Holy Ghost will not नही पहुँचाना चाहती थी। संभवतः पहली be.") ये बहुत बड़ी चेतावनी है। संभवतः बार मैं ये बात आपको कह रही हूँ- कि लोग इसका अर्थ नहीं समझते । आपमें से कोई भी मेरे विरुद्ध नहीं, ये बात सहजयोग के प्रति नहीं मेरे प्रति ।" सहजयोग सच है। आखिरकार आप सब मेरे बच्चे हैं, तो मात्र मेरा एक पक्ष है सभी कुछ छोड़कर मैं आपको अथाह प्रेम करती हूँ और आप आपको समर्पित होना होगा पूर्ण । यह चेतावनी तो ईसा-मसीह ने समर्पण-अन्यथा आप आगे उन्नत न हो आपको मेरे प्रति पूर्णतः समर्पित होना होगा निःसन्देह मुझे आपको दी है परन्तु हमें समझना चाहिए पाएंगे, बिना कोई प्रश्न किए, बिना कोई कि हम उतनी तेजी से उन्नति क्यों नहीं बहस किए। कर रहे जितनी हमें करनी चाहिए। पूर्ण समर्पण ही एकमेव मार्ग है जिसके लोगों को जब सम्मोहित कर लिया जाता द्वारा आप अपना उत्थान कर सकेंगे। आज भी लोगों को पकड़ हो जाती है, है तो वे धाराशायी होकर अपने गुरुओं के र 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-39.txt जुलाई-अगस्त 2002 36 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 उन्हें समस्याएं हो जाती हैं! क्या कारण है? केवल मैं हूँ, केवल मैं हूँ जिसने आपको बहुत से लोग मुझसे पूछते हैं कि श्रीमाताजी आत्मसाक्षात्कार दिया है। परन्तु हमारी एक बार आत्म-साक्षात्कार प्राप्त हो जाने नौकरियाँ, हमारी व्यक्तिगत समस्याएं, हमारी पारिवारिक समस्याएं ही हमारी मुख्य के बाद भी क्यों हमारा पतन होता है? इसका एकमात्र कारण यह है कि समर्पण प्राथमिकताएं हो सकती हैं और समर्पण को अधूरा है। यदि पूर्ण श्रद्धा और पूर्ण समर्पण हम अन्तिम स्थान देते हैं । स्थापित नहीं यदि आप अभी तक भी मैं भ्रान्ति रूप (ILLUSIVE) हूँ-यह सत्य हुआ, नहीं समझ पाए कि मैं परमेश्वरी हूँ, यदि है-मेरा नाम महामाया है । निःसन्देह मैं आप अपेक्षित रूप से इस बात को नहीं भ्रान्तिरूप हूँ परन्तु मेरा ये भ्रान्तिरूप केवल आप लोगों को परखने के लिए है। समर्पण उत्थान का महत्वपूर्ण अग है । समझ पाए तो पतन आवश्यक है। ये बात 1 आप सब पर लागू नहीं होती। फिर भी आप यदि अपने हृदय में झाँके, अपने क्यों? क्योंकि जब भी आप भय की स्थिति मस्तिष्क में देखें तो आप जान जाएंगे कि में फँसे होते हैं, जब आपके अस्तित्व को जो समर्पण भाव, जो श्रद्धा भाव आपके खतरा होता है, ऐसे समय पर जबकि मन में ईसामसीह, श्री कृष्ण तथा अन्य आज पूरा विश्व आधार विहीन स्थिति में हैं अवतरणों के प्रति था वह मेरे प्रति नहीं है। और पूर्ण विनाश की ओर बढ़ रहा है, यह श्रीकृष्ण ने कहा थाः 'सर्वधर्माणाम् परितज्य, अत्यन्त आवश्यक हो गया है कि आप मामेकम् शरणम् ब्रज' अर्थात विश्व के सभी किसी ऐसे आधार को पकड़ लें जो आपकी धर्मों को भूलकर मेरी शरण में आ जाओ। धर्म से उनका अभिप्राय हिन्दू, सिक्ख, ईसाई साथ आपको इस अवलम्बन को पकड़े । रक्षा कर सके। पूरी शक्ति और श्रद्धा के या मुसलिम धर्म नहीं था। उनका अभिप्राय रहना होगा। आप यदि सर्वसाधारण जल में भीग रहे आश्रय (Sustenance) से था। "सभी अन्य आश्रय भूलकर पूर्णतः मेरे प्रति समर्पित हो हों तो कोई बात नहीं परन्तु यदि आप जाओ।" यह बात उन्होंने छः हजार वर्ष समुद्र में गोते खा रहे हैं और क्षण-क्षण पूर्व कही थी। आज भी ऐसे बहुत से लोग मृत्यु का भय हो और ऐसे समय एक हाथ हैं जो कहेंगे कि हमने स्वयं को पूर्णतः आपकी रक्षा के लिए बढ़े तो आपके पास श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित कर दिया है । सोचने के लिए समय नहीं होता। एक दम लेकिन आज वो हैं कहाँ? वो लोग भी, से पूरी ताकत और श्रद्धा से उस हाथ को जिन्हें मैंने आत्म-साक्षात्कार दिया है, वो पकड़ लेना आपके लिए आवश्यक हो जाता भी ऐसा कहते हैं। नि:सन्देह उनमे और है । मुझमें कोई अन्तर नहीं, परन्तु आज तो हममें जब बाधाएं होती हैं और जब हम 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-41.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 38 नकारात्मकता से घिरे होते हैं तो हमें इसका हैं। वे केवल अपने उपासकों को प्रेम करती आभास हो जाता है और हम थोड़े से है। यह भक्ति, यह समर्पण उन्माद की हड़बड़ा जाते हैं। यह ऐसा समय होता है तरह से न होकर सतत. निरन्तर, अविरल जब हम अपने आधार को कसकर पकड़ना प्रवाहित और सदैव बढ़ते हुए होने चाहिए। चाहते हैं परन्तु बाधाएं हममें ऐसे विचार अब आगे उन्नत होने का केवल यही मार्ग पैदा कर देती है जो अत्यन्त हानिकारक है। परन्तु हमारे लिए हमारी छोटी-छोटी का आरम्भ हो जाता है। ऐसी स्थिति में समस्याएं ही महत्वपूर्ण हैं किसी को घर सर्वोत्तम उपाय क्या हैं? अन्य सभी चीजों की समस्या है, किसी को महाविद्यालय में को भूल जाना ही सर्वोत्तम उपाय है। भूल प्रवेश की समस्या है और किसी ने कुछ जाएं कि आप भूतबाधित हैं या आपमें कोई और काम करना है। ये सारी चीजें श्री कृष्ण वर्णित धर्म हैं। श्रीकृष्ण ने कहा था , "सर्वधर्माणाम् परितज्य मामेकम् शरणम ब्रज' सभी धरमों को त्याग दो, इन सभी तथाकथित होते हैं। इस प्रकार एक बहुत बड़े संघर्ष बाधा है। अपनी पूरी शक्ति के साथ, जितनी भी शक्ति आपमें है, आपने मुझसे जुड़े रहना है। परन्तु हमारी समर्पण शैली अत्यन्त धर्मों को जैसे पत्नी-धर्म (पत्नी के कर्तव्य). फैशनेबल एवं आधुनिक है जिसमें सहजयोग पति - धर्म (पति के कर्तव्य) पुत्र धर्म, पिता का कोई खास महत्व नहीं होता और धर्म, नागरिक धर्म और विश्व नागरिक श्रीमाताजी तो बस प्रसंग मात्र के लिए धर्म - ये सभी धर्म पूरी तरह से त्याग दिए होती हैं। मुझे खेद है यह सब नहीं चलेगा। जाने चाहिएं। इन सबको त्यागकर आपको ये सब चीजें मुझे आपको नहीं बतानी हैं पूर्ण हृदय से समर्पित होना होगा। क्योंकि आप यदि देवी-महात्म्य पढ़ ले तो काफी है। आप यदि देवी के सहस्र नाम वही रहूंगी, न मैं घटूंगी न बढ़ंगी । मेरा पढ़ेंगे तो काफी है: कि उन्हें केवल भक्ति व्यक्तित्व शाश्वत है इस आधुनिक समय मैं जो हूँ वो हूँ, मैं सदा वही थी और द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। केवल में अपने जन्म का उपयोग करने के लिए. समर्पण द्वारा ही उन्हें पाया जा सकता है। पूर्ण विकास प्राप्त करने के लिए, और उन्हें केवल अपने भक्त-अपने उपासक परमात्मा जो कार्य आपसे करवाना चाहता प्रिय हैं। ऐसा कहीं भी नहीं लिखा कि वे है उसे कार्यान्वित करने के लिए। अब यह अच्छे वक्ताओं को, वाद-विवाद करने वालों आप पर निर्भर करता है कि आप मुझसे को, अच्छे वस्त्र धारण करने वालों को, कितना कुछ प्राप्त कर सकते है। समर्पण ठाट-बाट से रहने वालों को और अच्छी आरम्भ होते ही आप गतिशील हो उठते परिस्थितियों में रहने वालों को प्रेम करती हैं। निष्ठा पूर्वक इस स्थिति को बनाए 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-42.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8৪ जुलाई-अगस्त 2002 39 रखें ।मैं कहना चाहूंगी कि यह उपलब्धि में आपको समर्पित होना होगा स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए ध्यान धारणा एकमेव का अर्थ अहं नहीं है। यह बात व्यक्ति को मार्ग है निःसन्देह तार्किकता की दृष्टि से समझ लेनी चाहिए कि अहं के कारण आप बहुत से कार्य कर सकते हैं। बुद्धि से स्वतन्त्रता नष्ट हो जाती है, इसकी केवल आप मुझे स्वीकार कर सकते हैं, भावातिरेक हत्या ही नहीं हो जाती यह कलंकित हो में आप अपने हृदय में मुझे अपने बिल्कुल जाती है, बदसूरत हो जाती है और घिनौनी समीप महसूस कर सकते हैं। परन्तु ध्यान बन जाती हैं। सूक्ष्मतम रूप में स्वतन्त्रता धारणा के माध्यम से आपको समर्पण करना बिल्कुल अंहंकारहित होती है, इसमें बिल्कुल चाहिए। समर्पण के अतिरिक्त ध्यान धारणा कोणिकता (Angularities) नहीं होती। बांसुरी भी नहीं। यह पूर्ण समर्पण है और की तरह से उसमें पूर्ण खालीपन होता है कुछ पश्चिमी देशों के आधुनिक लोगों के लिए ताकि परमात्मा की मधुर धुन इस पर ऐसा कर पाना अत्यन्त कठिन कार्य है। अच्छी तरह से बजाई जा सके-यही पूर्ण पाश्चात्य व्यक्ति तो केवल उन्हीं लोगों के स्वतन्त्रता है. इसमें कोई लटकन नहीं होती। सम्मुख समर्पित होता है जो उसे पूरी तरह से सम्मोहित कर लें। सम्मोहित करने वाले में फँसे हुए हैं, अज्ञान के दलदल में, पाप लोगों के वे दास बन जाते हैं परन्तु अपनी के दलदल में। अज्ञान पाप को बढ़ावा देता हमें महसूस करना है कि हम दलदल स्वतन्त्रता में उनका अह आत्मा की अपेक्षा है। किस प्रकार हम इस दलदल से निकलें। अधिक शक्तिशाली होता है। यही कारण हैं जो व्यक्ति हमें इस दल-दल से खींचने कि सभी स्वतन्त्र देशों का पतन हो गया है का प्रयत्न करेगा वो भी इसमें फँस जाएगा। वहाँ अहं का प्रभुत्व है आत्मा का नहीं। दल-दल के समीप आने वाला व्यक्ति स्वतन्त्र होने के कारण वे अपने अह को दल-दल में फँस जाता है। वह भी इसी काबू नहीं कर सकते। कोई यदि उनके दलदल का अंग-प्रत्यंग बन जाता है । अहं को उलझा कर उन्हें सम्मोहित कर ले अन्य लोगों से जितनी अधिक सहायता तभी वे ठीक होते हैं, केवल तभी उनके लेने का हम प्रयत्न करेंगे उन्हें भी हम मुँह बन्द होते हैं और वे सम्मोहन करने उतना ही अधिक दल-दल की ओर घसीटेंगे वाले के सम्मुख पूरी तरह से समर्पित हो और इस दल-दल के गर्त में घँसते चले जाते हैं। जिस प्रकार से इन झूठे गुरुओं जाएंगे। ने आपको दास बनाने की कला में निपुणता अतः कुण्डलिनी के इस वृक्ष को उन्नत प्राप्त की है उससे यह बात अत्यन्त स्पष्ट होना होगा, विकसित होना होगा और इस वृक्ष से स्वयं परमात्मा, स्वयं परब्रह्म आपको अपनी पूर्ण स्वतन्त्रता में, पूर्ण स्वतन्त्रता इस दल दल से निकालेंगे। यह वृक्ष इसी है। श्रण्ट 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-43.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 40 दल-दल से निकलता है और परब्रह्म आप सहजयोग का लाभ मिलता रहता है। हमारे सबको एक-एक करके इससे निकालते आश्रम हैं जो बहुत सुन्दर हैं बहुत सस्ते ैं हैं, अपने हाथों के झूले पर बिठाकर आपको बाहर निकालते हैं। परन्तु जब आपको बहुत अच्छी सुविधा उपलब्ध है, वहाँ सभी बाहर निकाला जाता है तब यदि आपकी कुछ है। परन्तु हम यह महसूस नहीं करते पकड़ मजबूत न हुई तो आप पुनः नीचे की कि ये सारा पोषण किसलिए है, ये सारा ओर फिसल सकते हैं। आप थोड़ा सा पोषण किसलिए है, आपके उत्थान के लिए. ऊपर को आते हैं और फिर नीचे फिसल आपको पूरी तरह से दल-दल से निकालने और वहाँ खाने की तथा अन्य चीज़ों की जाते हैं। दल-दल से बाहर निकल आना के लिए। अत्यन्त आनन्ददायी है परन्तु अभी तक आपके पैर दल-दल से पूरी तरह बाहर होना होगा और श्रद्धा करनी होगी। परन्तु नहीं निकले। अभी तक आप पूर्णतः स्वच्छ हमारी अपनी सीमाएं हैं, हम चीजों को नहीं हुए। बिना पूरी तरह स्वच्छ हुए आप छिपाते हैं और चालाक बनने का प्रयत्न पूर्ण आशीर्वाद कैसे प्राप्त कर सकते हैं? करते हैं। यह भयानक स्थिति है। आप परमात्मा का पूरा आशीर्वाद मिलना और सबको अपने अन्तस में देखने का प्रयत्न परमात्मा के प्रेम-वस्त्र आपको पहनाया करना चाहिए कि अभी तक भी मुझमें ऐसा अब आपको डटे रहना होगा, समर्पित क्या है? कौन से बन्धन अभी भी आपको जाना आवश्यक है। आश्चर्य की बात है कि झूठे गुरुओं के समर्पण से दूर किए हुए हैं? कौन सी चीज पास जाने वाले अपने गुरुओं से किस आपको सीमित कर रही है, कौन सी लड़ाई, प्रकार उन पर दृढ़ श्रद्धा बनाए रखते हैं! कौन सा अहम्, कौन सा दृष्टिकोण आपको उनके समर्पण की गहनता आश्चर्यजनक अभी भी इस दल-दल में फँसाए हुए है । होती है वे दास-सम बन जाते हैं। जब कौन से मोह, कौन से सम्बन्ध? आपको तक उनका पूर्ण विनाश नहीं हो जाता वे इनसे मुक्त होना होगा इन बन्धनों से जब अपना सर्वस्व इन गुरुओं को दिए चले तक आप मुक्त नहीं हो जाते तब तक यह जाते हैं। परन्तु सहजयोग में आने पर कार्यान्वित न होगा । लोग समर्पण नहीं करते! फिर भी उनकी देखभाल की जाती है, उनका पोषण किया है। यह "अब या कभी नहीं का प्रश्न है, जाता है, उनकी बुद्धि में सुधार होता है, ईसामसीह ने भी यही बात कही है।" उन्होंने सम्बन्धों में सुधार होता है, हर तरह से वो कहा था, "आप अपनी श्रद्धा और समर्पण पहले से अच्छे हो जाते हैं, उनकी मुझे दें और बाकी सब कुछ मुझपर छोड़ परिस्थितियाँ सुधर जाती हैं, हर समय उन्हें दें मैं जानती हूँ कि श्रद्धा और समर्पण में अधपके लोगों के लिए कोई स्थान नहीं 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-44.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 41 कौन-कौन लोग उन्नत हो रहे हैं। मैंने लगते हैं और आप एक बार पुनः उसी लोगों को बहुत उन्नत होते हुए देखा है। दल-दल में जा गिरते हैं-अपने पूर्व जीवन उन्हें मुझसे मिलने की या मेरे पास आने की ईष्ष्याओं और तुच्छ जीवन के दल-दल की कोई आवश्यकता नहीं। मेरा उनके में आपको दी गई सहायता इतनी स्थूल समीप होना आवश्यक नहीं। सर्वव्याप्त शक्ति नहीं होती जिसे महसूस किया जा सके में ये सब विद्यमान है । ये सब तो मेरी आपके भाई-बहनों को प्रदान की गई जीवन शैली है जो आपके विषय में सभी सुरक्षा-भावना अत्यन्त सूक्ष्म है । गहन प्रेम कुछ जानती है। केवल अपनी भक्ति से, बना रहना चाहिए। सहजयोग में स्वार्थपरता अपनी श्रद्धा और समर्पण से आप मुझे का कोई स्थान नहीं, कंजूसी का सहजयोग में कोई स्थान नहीं। इसका बिल्कुल भी प्राप्त कर सकते हैं। आपकी दिव्य शक्तियों की पूर्ण- कोई स्थान नहीं हैं क्योंकि कंजूसी तो अभिव्यक्ति ही मेरी उपलब्धि है। यह अत्यन्त संकीर्ण बुद्धि का चिन्ह है । निःसन्देह मैं सहज है, इसे सहज बना दिया गया है। मैं आपको नहीं कहती कि आप मुझे धन दें। केवल उन्हीं लोगों से प्रसन्न होती हूँ जो परन्तु जिस प्रकार से हम धन को देखते हूँ सहज एवं अबोध हैं, जो चालाक नहीं हैं, हैं, जिस प्रकार से इससे चिपके रहते हैं; जो प्रेममय हैं, जो परस्पर स्नेह करते हैं । जिस प्रकार भौतिक वस्तुओं तथा भौतिक मुझे प्रसन्न करना अत्यन्त सुगम है। जब वैभव, भौतिक पदार्थों और भौतिक उपलब्धियों मैं आपको परस्पर प्रेम करते हुए. एक से चिपके रहते हैं यह अत्यन्त घातक है। दूसरे की प्रशंसा करते हुए, परस्पर सहायता करते हुए, सम्मान करते हुए, मिलकर हैं। उन्हीं के माध्यम से आपको भाई-बहन हँसते हुए, एक दूसरे की संगति का आनन्द प्राप्त हुए हैं। लेते देखती हैूँ तो मुझे पहली प्रसन्नता, आपकी माँ आपकी महानतम सम्पति उस भूतकाल से, उस बीते हुए जीवन से उस दल-दल से मुक्ति पा लें। ये सब पूर्ण समर्पण की स्थिति में परस्पर प्रेम अब समाप्त हो जाना चाहिए। आप करने का प्रयत्न करे क्योंकि आप सब मेरे भली-भांति जानते हैं कि किस प्रकार मेरी बच्चे हैं और मैंने अपने प्रेम से आपका प्रेम शक्ति ने आप सबकी रक्षा की। आप हुए पहला आनन्द प्राप्त होता है। सृजन किया है। मेरे प्रेम के गर्भ में आप ये भी जानते हैं कि हर क्षण किस प्रकार सब निवास करते हैं । अपने हृदय से मैंने मैंने आपकी सहायता की और जब-जब आपको ये आशीष दी है। जब मैं आप भी आपने कोई इच्छा की उसे पूर्ण करने लोगों को परस्पर लड़ते हुए देखती हैँ तो के लिए मैं आगे आई। यह, जैसा मैंने मैं परेशान हो उठती हूँ, मेरे हाथ कॉपने कहा, एक पक्ष है-पोषण। परन्तु अब आपका 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-45.txt जुलाई-अगस्त 2002 42 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 उत्थान, आपके अन्दर से आना चाहिए। उत्थान आपके अन्दर से होना चाहिए । पूर्वक मेरा अनुसरण करते हैं वे भी ठीक इसे आपने प्राप्त करना है, केवल आपने । नहीं है इस विषय में भी धर्मान्धिता नहीं यह कार्य न तो कोई और सहजयोगी करेगा और न ही मैं । मैं तो केवल आपको सुझाव बन जाता है। इसके विषय में कोई धर्मान्धता दे सकती हूँ। केवल सुझाव ही नहीं दे नहीं है । सकती चेतावनी भी दे सकती हूँ। सभी "क्या आप समर्पित हैं?" जो लोग धर्मान्धिता होनी चाहिए । सभी कुछ पूर्णतः युक्तियुक्त जैसे कोई कहता है; "मुझे डॉक्टर के कुछ उपलब्ध है, सभी कुछ भली-भांति पास जाना है, डॉक्टर से मिलना है।" तब कार्यान्वित किया जा चुका है, मुझे सूचित धर्मान्ध व्यक्ति कह सकता है, "ओह! मैं किया जा चुका है, मुझे पहले ही सूचित डॉक्टर के पास नहीं जा रहा हूँ, मैं नहीं किया जा चुका है। आपको कहीं जाने की जा रहा हूँ क्योंकि श्रीमाताजी ने मुझसे आवश्यकता नहीं है। सभी कुछ आपके कहा कि वे मेरी रक्षा करेंगी और जब वह अन्दर विद्यमान है । आपको धन नहीं देना, बीमार पड़ जाता है तो आकर श्रीमाताजी कुछ भी नहीं देना परन्तु वह समर्पण अपने से लड़ता है, "माँ आपने मुझे बताया था में विकसित करें। कि आप मेरी देखभाल करती हैं, अब मैं आप देखें इस व्यक्ति ने मेरा साक्षात्कार बीमार क्यों पड़ गया? यह धर्मान्धता है। समर्पण क्या है? अपने अन्तस में आपको (Interview) लिया। इसने कहा कि राजनीतिज्ञ बेरोजगार लोगों का गलत ढंग कहना चाहिए, "ये श्रीमाताजी हैं, वे विद्यमान हैं वही मेरी चिकित्सका हैं। वो मेरा इलाज संचालन करने दें । परन्तु कैसे? मान लो करती हैं या नहीं, मुझे रोगमुक्त करती हैं मेरे हाथ में एक तूलिका है और मैं कोई या नहीं इसके विषय में मुझे कुछ नहीं चित्र बनाना चाहती हूँ, परन्तु मैं तूलिका कहना। 'मैं केवल उन्हीं को पहचानता हूँ, नहीं चला सकती। तूलिका कोणीय है और किसी अन्य को नहीं पहचानता।" ये बात अत्यन्त युक्तियुक्त है। तर्क ये है कि माँ से संचालन करते हैं। परमात्मा को अपना कष्टकर है। इसे चला पाना कठिन है या कष्टदायक है। ये अत्यन्त भद्दी एवं घिनौनी सर्वशक्तिशाली हैं और इस बात को आप है। किस प्रकार आप इसे उपयोग कर जानते हैं, ये सत्य है। यदि वे सर्वशक्तिशाली सकते हैं? हैं तो वो मुझे रोगमुक्त करेंगी। परन्तु यदि "समर्पण, अपनी सारी कोणीयता अपनी वे मुझे ठीक नहीं करती तो ये उनकी सारी समस्याओं, अपनी सारी बाधाओं से इच्छा है, उनकी शक्ति है वो यदि मुझे ठीक करना चाहेंगी तो ठीक कर देंगी। मुक्ति पाने का सुगमतम उपाय है।" अब अपने अन्दर झाँककर देखें कि और यदि वे मुझे ठीक नहीं करना चाहती 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-46.txt चैतन्य-लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 43 तो किस प्रकार मैं अपनी इच्छा उनपर शक्तिशाली। उन्होंने अपने को इस थोप सकता हूँ?" श्री गणेश के समर्पण की तरह से-जब मनुष्य की तरह से कष्ट सहन करवाए। ये उनकी माँ ने कहा, "ठीक है आप दोनों बहुत बड़ी बात थी। आपमें सर्वनाश करने भाइयों में से-कार्तिकेय और श्री गणेश - की शक्तियाँ हों फिर भी अपने पुत्र का जो भी पहले पृथ्वी की परिक्रमा करेगा बलिदान करवा देना! आज्ञा चक्र का सृजन उसे इनाम मिलेगा।" अब बेचारे श्री गणेश करना बहुत ही सूक्ष्म कार्य था। पुत्र प्रकार से बलिदान करवा दिया, उन्हें सामान्य इसका क्या अर्थ है? क्या इसका अर्थ ये का वाहन तो छोटा सा मूषक था। परन्तु उनके पास विवेक का चातुर्य था। दूसरी है कि उनके समर्पण में कोई कमी थी? ओर कार्तिकेय के पास वेग पूर्वक उड़ने इसके विपरीत उन्हें तो ईसा मसीह पर, वाला मोर वाहन था। श्री गणेश ने मोर की उनके समर्पण पर पूर्ण विश्वास था कि वे ओर देखा और कहा, "मेरी माँ से महान उन्हें बलिदान के लिए कह सकती हैं। कौन है? वे आदिशक्ति हैं। ये पृथ्वी उनका आप अपनी माँ से कुछ भी करने की आशा क्या मुकाबला कर सकती है? पृथ्वी का करते हैं-ऐसे भी लोग हैं जो कहते हैं "माँ सृजन किसने किया है? मेरी माँ ने ही मैं यह शोध प्रबन्ध (Thesis) दे रहा हूँ मुझे पृथ्वी को बनाया है सूर्य का सृजन किसने उपाधि मिल जानी चाहिए। ठीक है बन्धन किया है? मेरी माँ ने ही सूर्य का सृजन दो आपको उपाधि मिल जाएगी "श्रीमाताजी किया है। मेरी माँ से महान कौन है? कोई मैं ये कार्य करना चाह रहा हूँ, ठीक है भी नहीं । क्यों न मैं अपनी माँ की परिक्रमा करुं? पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करने की पाने का प्रयास कर रहा हूँ, ठीक है तुम आप ये कर लो । श्रीमाताजी मैं ये नौकरी क्या आवश्यकता है? इससे पूर्व की कार्तिकेय इसे पा लो। पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटते अपने हाथों में इनाम लेकर श्रीगणेश बैठे हुए थे। का समर्पण ईसा मसीह सम है किसी का ये सब समझने का विवेक उन्हें उनकी भी नहीं, यह बात सत्य है अबोधिता ने प्रदान किया था-यही बात एक अन्य उपाय भी है। कितने लोगों ै। ईसा मसीह बड़े भाई क्यों हैं? क्योंकि उन जैसा कोई भी नहीं। उन्होंने सब कुछ युक्तियुक्त है-अत्यन्त युक्तियुक्त और ये भी युक्तियुक्त है कि श्रीमाताजी मेरे दर्द सहन किया को मुझसे भी अधिक महसूस करती हैं । अपनी माँ के लिए ईसा-मसीह के थे उनकी माँ ने उनसे भी अधिक कष्ट क्रूसारोपित होने के विषय में आपका क्या कहना है? वे स्वयं महालक्ष्मी थीं, इतनी तथा उच्च जीवन के लिए वे उन कष्टों में सारे भयानक कष्ट सहन किए - क्योंकि वे अपनी माँ के अंग-प्रत्यंग उठाए । महान लक्ष्य, महान प्रसन्नता, महान 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-47.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 44 से गुजरीं। परन्तु ये झूठे लोग इन सभी के पहिए बनने के लिए ।" बातों का लाभ उठा सकते हैं। जब ये लोगों को दुख देते हैं तो उन्हें कहते हैं मुकाबला करना होगा और बलिदान देना "आखिरकार आपको ये कष्ट उठाने ही होगा- और ये बलिदान आपके लिए तुच्छ हैं। देखें किस प्रकार से ये चीजों को घुमाते हैं! "आपको कष्ट उठाने ही होंगे, नहीं लेती। देना इसका गुण है अतः आप आपको कष्ट उठाने हैं, बिना कष्ट उठाए बलिदान नहीं करते, मात्र देते हैं। आप ही लोगों को अग्रिम मोर्चे पर है क्योंकि आत्मा तो केवल देती है, बलिदान सर्वप्रथम माँ को प्रसव पीड़ा होती है। ठीक हैं। उसे सभी प्रकार के कष्ट होते आप आरम्भ ही नहीं कर सकते।" यह अत्यन्त सूक्ष्म सूझ-बूझ है, अत्यन्त सूक्ष्म । यह इस बात को स्पष्ट कर देगी कि है। ठीक है। परन्तु बच्चा जब बड़ा हो सहजयोग में पहले आपका पोषण किया जाता है तो माँ को उस पर गर्व होता है. को जाता है, आपका लालन-पालन किया जाता माँ को पुत्र पर गर्व होता है और है, आपको प्रशिक्षित किया जाता है. ठीक माँ पर। एक साथ खड़े होकर वे लड़ाई किया जाता है। उसके पश्चात् जो भी कुछ लड़ते हैं। ऐसा होना तभी सम्भव है जब आप करते हैं जो भी कष्ट आप उठाते हैं आप पूर्ण समर्पण और सहजयोगी के रूप वो आपके लिए कष्ट नहीं होते क्योंकि में भविष्य के जीवन की तैयारी को स्वीकार आप आत्मा बन चुके होते है: पुत्र करेंगे। एक ऐसा जीवन जो बाहर से संघर्षं और समस्याओं से भरा हुआ दिखाई देता है परन्तु अन्दर से अत्यन्त सन्तुष्टि दायक है। नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आरम्भ में जब सहजयोगी मेरे पास वायु उड़ा सकती है न अग्नि जला सकती हैं। आत्मा किसी भी तरह से नष्ट नहीं की जा सकती। आप वही आत्मा है। अब बैहना भी बड़ा बलिदान माना जाता था। आते थे तो पृथ्वी पर बैठना भी वो बहुत बड़ा बलिदान मानते थे। जूते उतार कर आपका पोषण हो चुका है, आप उन्नत हो कल के कार्यक्रम से तीन लोग उठकर चुके हैं पोषित हो चुके हैं। सहजयोगियों को देखते हैं तो कहते हैं कि ये पुष्प-सम वे कितने आत्मविश्वास पूर्ण कितने लोग जब चले गए क्योंकि जूते उतारने के लिए कहा गया था। मानों कोई उनका सिर गंजा कर रहा हो! वे उठकर चले गए। सहजयोग में हमें किसलिए विकसित बढ़ने के लिए, अपने पैरों पर खड़े होने के लिए, महान माँ के महान बच्चों की तरह। हैं। उनके चेहरे तेजोमय हैं। होना है। आगे हैं! सम्मानजनक और कितने सुन्दर "परमात्मा के रथ परन्तु किसलिए? গ 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-48.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 45 कार्य अत्यन्त कठिन है । यह कार्य यदि ठीक ही जाएंगे तो हम उन्हें वापिस (सहजयोग) मध्यम दर्जे के लोगों के लिए ले आएंगे आप ये सब मुझ पर छोड़ दें । नहीं है। डरे हुए, भीरू, अक्खड, धृष्ट लोग उनकी ओर न तो अपना चित्त दें न ही यह कार्य नहीं कर सकते। उनमें ये कार्य उनके लिए प्रयत्न करें स्वयं आपको उन्नत करने का क्षेम नहीं है । अतः ध्यानधारणा में पूर्ण समर्पण का कर लिया है, इससे पोषण प्राप्त किया है अभ्यास होना अत्यन्त आवश्यक है। अतः और अब आप उन्नत हो गए हैं किसलिए? भौतिक पदार्थों के लिए जो भी कार्य आप अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए । आज मैं होना होगा आप साधक थे, आपने प्राप्त कोब अब कर रहे हैं वह आपके हित में नहीं। जिस प्रकार आपका सामना कर रही हैूँ पहले तो आप नन्हें बच्चे थे, बहुत छोटे आपको भी अन्य लोगों का सामना करना थे। अब आपका सामूहिक अस्तित्व है । है। कोई भी कार्य आप अपने लिए नहीं कर रहे। उस सामूहिक व्यक्ति के लिए कर किसी से सहजयोग की बात ही न करें। रहे हैं। उस विराट की चेतना प्राप्त करने कुछ लोग सोचते हैं कि मौन रहना ही के लिए आप उन्नत हो रहे हैं यही, यही समर्पण का एकमात्र मार्ग है आपको केवल पूर्णत्व आपने प्राप्त करना है। आपकी ध्यान-धारणा में रहना है। परन्तु अभी नौकरियाँ, आपका पैसा या आपका धन, आपको इस मौन से बाहर निकलना है । आपकी पत्नी, आपके पति, आपके बच्चे, सभी देशों को या सभी राष्ट्रों को. सभी समर्पण का अर्थ ये नहीं है कि आप माताएं, सम्बन्धी ये सब मोह अब समाप्त लोगों को, सर्वत्र, ये महान संदेश दें कि हो गए हैं अब आप सबको सहजयोग की पुनरुत्थान या पुनर्जन्म का समय आ गया जिम्मेदारी उठानी होगी आप सभी समर्थ है यही वह समय है और आप सब लोगों और इसीलिए आपका पालन किया गया में यह कार्य करने की योग्यता है । कोई यदि इस कार्य के लिए आपका भी आपकी क्षमता है वैसे कार्य करें पूर्ण मज़ाक उड़ाता है तो सूझबूझ और विवेक समर्पण से आप इसे प्राप्त करेंगे। समर्पण के साथ कार्य करने का प्रयत्न करें । व्यक्तिगत पसन्द और नापसन्द बलिदान ट टी है। जैसे भी आपको अच्छा लगे, जितनी ही एकमात्र चीज़ है। पूर्ण समर्पण आगे उन्नत होने का एकमेव कर दिए जाने चाहिएं। "मुझे ये पसन्द है. मार्ग है कुछ सहजयोगी अधपके हैं। हमें मुझे वो पसन्द है, त्याग दिए जाने चाहिए । उन्हें छोड़ देना होगा हम उन्हें अपने ऐसा कहने का ये अभिप्राय भी नहीं है कि साथ नहीं रख सकते। उनके प्रति सहानुभूति आप मशीनसम बन जाएं। नहीं। परन्तु मैं नहीं रखनी, उसका कोई लाभ नहीं। वो का दासत्व त्याग दिया जाना आवश्यक 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-49.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 46 है। आदतों की गुलामी का त्याग भी लिए आपको अपने बाएं या दाएं के विकारों आवश्यक है। आप हैरान होंगे कि एक बार को नहीं कोसना। कुछ भी नहीं - आप समर्पित हो जाने के पश्चात् आप बहुत बस इससे मुक्ति पा लें। इस बात पर दृढ़ कम खाने लगेंगे, कई बार तो आप बिल्कुल रहें। आपकी देखभाल करने के लिए साक्षात कुछ न खाएंगे, आपको भोजन की याद परब्रह्म आए हैं दृढ़ता से उन्हें पकड़े ही न रहेगी। आपको ये भी याद न रहेगा रखें । मृत्यु को भी वापिस जाना होगा, इन कि आपने क्या खाया है। आप ये भी याद छोटी-छोटी चीज़ों की तो बात ही क्या है। न रख सकेंगे कि आप कहाँ सोए थे और भी आपकी माँ का नाम अत्यन्त शक्तिशाली हैं कि अन्य सभी नामों से कैसे। आपका यह जीवन दूरबीन की तरह है आप जानते होगा - विस्तृत होता हुआ। अपने स्वप्नों यह नाम कहीं शक्तिशाली है, यह अत्यन्त का आप स्वयं सृजन करेंगे उन्हें पूर्ण करेंगे शक्तिशाली मंत्र है। परन्तु आपको इस उनमें सन्तुष्ट होगे। आप अत्यन्त सामान्य बात का ज्ञान होना चाहिए कि किस प्रकार एवं साधारण दिखाई पड़ते हैं, परन्तु वास्तव ये मंत्र लेना हैं। अत्यन्त समर्पण पूर्वक में आप ऐसे नहीं। पूर्ण समर्पण में पूर्ण आपको यह नाम लेना है, किसी अन्य नाम श्रद्धा के साथ आपने अब ये कार्य करना की तरह नहीं । है-केवल अपने हित के लिए, केवल व्यक्तिगत उपलब्धियाँ प्राप्त करने के लिए नाम लेते हुए लोग अपने कान पकड़ते हैं- आप जानते हैं कि भारत में गुरु का नहीं। वह सब अब समाप्त हो गया है गुरु का नाम लेने के लिए। अर्थात, "नाम अब आपने माया के दल-दल से मुक्त लेते हुए यदि मुझसे कोई गलती हुई हो तो होने के लिए दृढ़ भूमि पर खड़े होने के मुझे क्षमा कर दीजिए"-कान पकड़ने का लिए और ऊँची आवाज़ में अपने परम ये अर्थ हैं। ये मंत्र अत्यन्त शक्तिशाली मंत्र पिता की स्तुतिगान करने के लिए कार्य है आपको यदि आवश्यकता है तो समर्पण की, समर्पण रूपी प्रध्वंसक (Dynamite) करना है। भ्रमजाल में फॅसे लोग क्या संगीत दे की। आज मैंने आपको बताया था कि अब सकते हैं? वे कौन से गीत गा सकते हैं, इंग्लैण्ड के सभी डेज़ी फूल सुगन्धमय हो कौन सी सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं, तथा गए हैं। वह महिला इस बात पर विश्वास अन्य लोगों की वे क्या सहायता कर सकते न कर सकी कहने लगी "मुझे इस बात हैं? आपको इससे पूर्णतः बाहर आना होगा । मैंने तो सदा यही महसूस किया कि डेजी इसके लिए निरन्तर विवेक की आवश्यकता पुष्पों में सुगन्ध का पूर्ण अभाव है और ये है- निरन्तर विवेक की । हर पल इसके अत्यन्त अजीब गरन्ध वाले फूल हैं।" मैंने का कभी ज्ञान न होगा इसके विपरीत 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-50.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 47 कहा, "ये डेज़़ी फूल हैं जाकर इन्हें सूंघो।" से चौकन्ना, तैयार और समर्पित रहना है। उसने जब ये पुष्प सूंघे तो आश्चर्यचकित यह बात मैं सिर्फ आप लोगों से कर सकती रह गई! आश्चर्यचकित! कितनी सूक्ष्म बात हूँ, उन लोगों से नहीं जो केक्सटन सभागार है! आज डेजी पुष्प इंग्लैण्ड के सर्वाधिक सुगन्धित पुष्प हैं। मात्र नाम का प्रभाव है! अधपके हैं, कुछ बिल्कुल नए हैं, भोले भाले इसका अर्थ है निष्कलंका अर्थात निर्मला अर्थात 'मलविहीन'। ये मल क्या है? यह यहाँ जिस प्रकार से आज आप मेरे सम्मुख भ्रम है। बिना किसी भ्रम के । नि: अर्थात है मैं आपसे वैसे ही स्पष्ट बता देना चाहती पूर्णतः सहस्रार का आनन्द हमेशा से निरानन्द हूँ जिस प्रकार से श्री कृष्ण ने अर्जुन को कहलाता है। युगों-युगों से इसे निरानन्द बताया था । या निर्मलानन्द कहते हैं। यह आनन्द ऐसा सर्व धर्माणाम परितज्य मामेकम शरणम आनन्द है जिसका आप क्रूसारोपित होकर व्रज । भी आनन्द लेते हैं। ये ऐसा आनन्द है कि विषपान करके भी आप इसका मजा उठाते का अर्थ है जिसने पुनर्जन्म प्राप्त कर (Caxton Hall) आते हैं। उनमें से कुछ हैं और कुछ पूर्णतः तीसरे दर्जे के। परन्तु इसके अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं । ब्रज 1 है, मृत्युशय्या पर भी आप इसका आनन्द लिया है। अत्यन्त अत्यन्त सुदृढ़ व्यक्तित्व । उठाते हैं। इसे निर्मलानन्द कहते हैं। अतः जब आप सुदृढ़ हो जाएं तो अवश्य समर्पित दूसरी अवस्था के लिए तैयार हो जाएं। हो जाएं, जब आप कुशल हो जाएं तो मुझे आप मोर्चे पर है। ही कम समय अवश्य समर्पित हो जाएं । की आवश्यकता है वास्तव में मुझे निरन्तर विवेक तथा समर्पण वाले लोगों की मिलेगी और महान लक्ष्य प्राप्ति में भी यह बहुत इससे भ्रम मुक्त होने में आपको सहायता आवश्यकता है। निरन्तर। क्षण भर के लिए सहायक होगा। कोई भी नहीं समझता कि भी यह विवेक एवं श्रद्धा डांवाडोल नहीं "क्यों श्रीमाताजी मेरी सहायता करने का होनी चाहिए। केवल तभी हम तेजी से प्रयत्न कर रही हैं ?" वो सोचते हैं कि वे उन्नत हो सकेंगे और युद्ध के मैदान में बहुत उदार हैं। मैं उदार नहीं हूँ। मुझमें आगे बढ़ सकेंगे संभवतः अब तक आपको सहजबुद्धि का प्राचुर्य हैं क्योंकि आप लोग नकारात्मकता की सूक्ष्मताओं का ज्ञान हो ही परमात्मा के आनन्द की अभिव्यक्ति गया होगा और इस बात का भी कि किस पृथ्वी पर करने के योग्य हैं. आप ही वह प्रकार से परमात्मा के कार्य को नष्ट करने बासुरियाँ हैं जो परमात्मा की मधुर धुनों को के लिए वे अपनी शक्तियों का उपयोग ब्रजाएंगी, परमात्मा आपका उपयोग करेंगे करती हैं। निःसन्देह नकारात्मक शक्तियाँ और आपका संचालन करेंगे। मैं यह सब सीमित हैं। इनके विरुद्ध आपने किस प्रकार आपको कुशल बनाने के लिए कर रही हूँ 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-51.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 48 ताकि आप परमात्मा के सुन्दरतम माध्यम अत्यन्त सूक्ष्म, अत्यन्त गहन, अत्यन्त बन सकें, उचित माध्यम बन सकें मैं नहीं प्रभावशाली अत्यन्त गतिशील, निरन्तर एवं जानती कि आप इस बात को समझते भी शाश्वत् चीजों के प्रति हम समर्पित नहीं हैं या नहीं कि वह जीवन कितना मधुर, होते। उनके प्रति समर्पित होने के विषय में कितना सुन्दर होगा-समर्पण का जीवन, हम सोच भी नहीं सकते पर्वत सम दिखाई सूझ-बूझ से परिपूर्ण, अत्यन्त युक्तियुक्त । देने वाले किसी भी विशालकाय व्यक्ति के पूर्णतः समर्पित, पूरा पोषण प्राप्त करते हुए सम्मुख जो हमें सताने के लिए आता हो, और उच्च लक्ष्य के लिए इसे समर्पित जो हिटलर की तरह से हो, जो कुगुरु हो, करते हुए। बिल्कुल वैसे ही जैसे पत्ते हम समर्पित हो सकते हैं परन्तु अपने उच्च लक्ष्य के लिए सूर्य की किरणों से सूक्ष्म अस्तित्व के सम्मुख पोषण प्राप्त करके भिन्न रंगों को प्राप्त अपनी आँखों से देख नहीं सकते, कानों से करते हैं ताकि मानव इनका उपयोग कर जो सुनाई नहीं देता, अणु बम की तरह से सके। कोई भी चीज़ इसके लिए कार्यान्वित जिसका प्रभाव अत्यन्त शक्तिशाली है होती है परन्तु इतना निःस्वार्थ, इतना विस्तृत, समर्पित होना हमारे लिए कठिन है । बिना जिसे आप विखण्डित हुए अणु सर्वत्र होता है परन्तु इतना महान गतिशील लक्ष्य! आप सागर बन जाते हैं, चाँद बन जाते विखण्डित होने पर यह इतना गतिशील हो हैं, सूर्य बन जाते हैं, पृथ्वी बन जाते हैं, उठता है कि आप इसे स्वीकार कर लेते आप आकाश बन जाते हैं, महा व्योम बन हैं। तब यह ऊर्जा की अत्यन्त गतिशील जाते हैं सभी सितारे और ब्रह्माण्ड बनकर आप चित्त ब्रह्माण्ड की सूक्ष्मता में प्रवेश कर और आप आत्मा बन जाते हैं। शक्ति बन जाता है। अब क्योंकि आपका उनका कार्य संभाल लेते हैं। यह इतनी गया है अतः और अधिक गहनता में उतरते महान चीज़ है! क्योंकि आप अपने तत्व पर जाएं। जड़ को जल के स्रोत तक ले जाने पड़े हैं। इसी प्रकार आप सभी के वाली पृथ्वी उस स्रोत की तरह से ही है । कूद तत्व पर पहुँच सकते हैं । परन्तु उस तत्व आपकी कुण्डलिनी भी आदिकुण्डलिनी की के प्रति समर्पित रहें क्योंकि मैं ही इन तरह से है और परब्रह्म इसकी शक्ति हैं । ये सब चीजें आत्म-साक्षात्कार क पश्चात् सबका तत्व हूँ। मैं ही तत्व हूँ - 'तत्वमयः' । मैं ही तत्व हूँ अपने तत्व से जुड़े रहें। परिपक्वता प्राप्त करने के बाद समझ मैं कुण्डलिनी हूँ , मैं ही सार त्व हूँ। आएंगी । इससे पूर्व इन्हें समझ पाना असंभव हम केवल उसी चीज के समर्पण को समझते है। यही कारण है कि पिछले आठ वर्षों में हैं जो स्थूल रूप से बड़ी दिखाई देती है, मैंने आपसे ये सारी बातें नहीं कहीं। आपके जो स्थूल रूप में दिखाई देती है। परन्तु साथ मेरा व्यवहार अत्यन्त मधुर एवं उत्साह 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-52.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8৪ जुलाई-अगस्त 2002 49 बढ़ाने वाला था। सदैव मैंने आपको यही के योग्य है। अब यह दूसरी. अवस्था है महसूस करवाया कि आप मुझ पर एहसान जहाँ पर आपने निकल पड़ना (Sailout) है, कर रहे हैं। ये कोई आसान कार्य नहीं है । जब आपको जहाज और समुद्र का पूर्ण इन सभी धारणाओं से परे आप अपनी ज्ञान है। पूर्ण स्वतन्त्रता और विवेक के आत्मा (Spirit) बन गए हैं, जिम्मेदार बनने साथ आपने अपने लंगर खोल देने हैं । के लिए, वह बनने के लिए जिसके लिए बिना आँधी, तूफानों और चक्रवातों से डरे, क्योंकि अब आपको सारा ज्ञान है। पार आप बने है, अब आप तैयार हैं। जैसे समुद्री जहाज को बनाकर समुद्र करते जाना आपका कार्य है। में लाया जाता है, उसे परखा जाता है और देखा जाता है कि यह अब समुद्र में तैरने परमात्मा आपको धन्य करें। 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-53.txt जन कार्यक्रम नोएडा, 18.3.89 (परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) राम सत्य को खोजने वाले सभी साधकों को की उत्कण्ठा बिल्कुल जाहिर है. और आप हमारा प्रणाम्। सब से पहले, तो बड़े दुःख की इच्छा यही है कि हम सत्य को प्राप्त की बात है कि इतनी देर से आना हुआ। करें। और Aeroplane में इतनी देरी हो गई और आप लोग इतनी उत्कण्ठा से, इतनी सबूरी सत्य जैसा है, वैसा ही है । अगर हम चाहें के साथ, सब लोग यहाँ बैठे हुए हैं और कि हम उसे बदल दें, तो उसे बदल नहीं हम वहाँ से, असहाय माँ, जो सोच रही थी सकते और अगर हम चाहें कि अपनी बुद्धि कि किस तरह से वहाँ पहुँच जाए। आप से या मन से कोई एक धारणा बना कर लोगों को देख कर ऐसा लगता है, कि ये उसे सत्य कहें तो वह सत्य नहीं हो सकता। दुनिया बदलने के दिन आ ही गए हैं, आप तो सत्य क्या है? सत्य एक है कि 'हम सत्य के बारे में एक बात कहनी है कि fic. 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-54.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 51 सब आत्मा हैं। 'हम आत्मा स्वरूप हैं। ऐसी कुछ विचित्र हो जाती हैं कि हमारे इतनी यहाँ सुन्दरता से सजावट की है बच्चे पूछते हैं, कि ये सब करने से क्या और इतने यहाँ दीप जलाए हुए हैं जिन्होंने फायदा हुआ? आप इतना सब कुछ करते प्रकाश किया है जिससे हम एक-दूसरे को हैं, लेकिन आप को तो कोई अन्तर नहीं देख रहे हैं और जान रहे हैं । पर अगर हुआ। और कोई आदमी चाहे हिन्दु हो, यहाँ अज्ञान का अंधकार हो, अंधियारा छाया चाहे मुसलमान हो, चाहे ईसाई हो, चाहे हो, और हम उस अज्ञान में खोए हुए सिख हो, हर जाति का, हर धर्म का आदमी, हुआ हैं, तो एक ही बात जाननी चाहिए कि हम हर प्रकार का पाप कर सकता है। इर सब प्रकाशमय हो सकते हैं और हमारे तरह का गुनाह कर सकता है, ये कैसी अन्दर भी दीप जल सकता है। और ये बात है? अगर हम लोग धार्मिक हैं, और दीप हम बहुत आसानी से प्रज्जवलित कर हमारे अन्दर अगर धर्म है. तो हमसे गुनाह सकते हैं, जला सकते हैं, और उसका कैसे होता है? उजाला सारे संसार में हम फैला सकते हैं। लेकिन हम देखते हैं कि जो बड़े-बड़े साधु संत हो गए हैं, जिनके हमारे सामने आज तक परमात्मा के नाम पर बड़ी इतने उदाहरण हैं. वो लोग कभी गलत मेहनत की गई है। परमात्मा के विश्वास नहीं करते। और वो लोग गलत लोगों के पर ही हम लोग जुटे रहे हैं। ये बात और सामने झुकते भी नहीं। आप यहाँ औलिया किसी देश में नहीं, जो हमारे देश में है, कि निजामुद्दीन साहब के बारे में जानते हैं । कितनी भी विपत्ति आए, कितनी भी तकलीफ शाह ने कहा था, अगर तू मेरे आगे झुकेगा हुई, तो हम सोचते रहे कि एक दिन ऐसा नहीं तो मैं तेरी गर्दन उड़ा दूँगा। वो झुके आएगा, कि परमात्मा हमें जरूर रास्ता नहीं और कहा, मैं परमात्मा के सामने दिखाएगा और हम उस स्वर्ण दिन की राह झुकता हूँ। और आप आगे भी जानते हैं देखते रहे जहाँ हम अपने मोक्ष को प्राप्त कि उसके बाद उसी शाह की ही गर्दन करें। हमें सिर्फ अपने अज्ञान से मोक्ष मिला उड़ गई। सो इस तरह के जो साधु-सन्त 1 और ये अज्ञान हमारे अन्दर तरह-तरह इतने हिम्मत के साथ और इतने सूझ-बूझ की चीजों से आ बसा है। जैसे कि बचपन के साथ किसी बात को कहते थे उनकी से कोई बात बताई जाती है, चार लोगों से कौन सी अहमियत थी, उनमें कौन सी सुनते हैं, या हम किसी एक धर्म में पैदा हो खास बात थी, जो वो हम लोगों से इतने गए, तो उस धर्म की बातें जो चल पड़ी, बड़े और ऊपर एक ऐसी दशा में थे, जहाँ वही हमारे लिए विशेष हो जाती हैं । और उनको कोई भी चीज़ ऐसे प्रतीत ही नहीं वो हर जगह अलग-अलग रूप लेकर, होती थी जो सत्य को छोड़कर अपनाएं। 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-55.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 52 वो अटूट अपने विश्वासों पर पूरी तरह से करेंगे? या आप कुरान पढ़ने के बाद ऐसा खड़े थे, क्योंकि उनके विश्वास अन्धे नहीं कह सकते हैं कि अब हम इसके बाद कोई थे, जो विश्वास थे वो जानते थे कि ये बात गुनाह नहीं करेंगे या गुरु ग्रन्थ साहिब को सत्य है और आज जबकि हम अपनी पढने के बाद ऐसा कह सकते हैं कि अब आत्मा को खोज रहे हैं तो उसके प्रकाश में हम कोई गुनाह नहीं करेंगे तो इन महान ये जान जाएंगे कि ये जो सत्य है वो किताबों में जो लिखा है, वो एक लिखी हुई ओत्मा के प्रकाश में ही जाना जा सकता चीज़ हो गई, वो हमारे अन्दर में है। जो है। कुछ भी है, वो बाहर है. और उसमें अगर हर एक धर्म, संसार का हर एक धर्म, हम सोच लें कि इनको पढ़ने मात्र से ही अगर आप थोड़ा सा जान लें, तो समझ हम ठीक हो जाएँगे, तो ये हमारी गलत लेंगे कि तत्व में हर एक धर्म एक है। और धारणा है सिर्फ ये जान लेना चाहिए कि हर एक धर्म में एक ही बात बताई गई है इसका बोध होना चाहिए यानि अपनी नसों कि हमें नश्वर चीजों को छोड़ कर के जो में आपको जानना चाहिए, चारों तरफ फैली चिरंजीव, जो अनन्त चीज़ है उसे लेना ये परमात्मा की शक्ति है। ऐसा कहा जाता चाहिए। हम लोग बहुत बार सांसारिक है तो देखने में क्या हर्ज है? अगर आप बातों में इस तरह से लिपट जाते हैं कि साईंस वाले हैं तो इसे आप देखिए कि ये इस चीज़ को भूल जाते हैं. कि जो नश्वर कौन सी शक्ति है, जिसे आप प्राप्त कर चीजें हैं वो जहाँ तक हैं, वहाँ ठीक हैं। सकते हैं? ये जो शक्ति हमारे अन्दर है, ये लेकिन इसमें अतिशयता करने से हमारा शक्ति जिसे कि हम जानते हैं, वो भी अगर सर्वनाश हो जाता है, क्योंकि वो ही स्वयं हम कहें कि आप के अन्दर सुप्तावस्था में नाशमय है। अन्त में हमारा भी नाश उससे है, तो क्या हर्ज है, कि हम इसको पूरी हो जाता है। लेकिन इस सब को जानने तरह से प्राप्त कर लें। क्योंकि अगर ये के लिए हमारे अन्दर ज्ञान होना चाहिए । हमारी ही शक्ति है और इससे हमें ही ज्ञान का मतलब ये नहीं कि पढ़ना लिखना। बोध होने वाला है, और इससे हम ही बहुत बहुत से लोग हैं जो हमको बताते हैं कि ऊँचे उठ जाने वाले हैं, तो फिर क्यों न हम हम तो रोज शिवलीला- अमृत पढ़ते हैं, इस चीज़ को पूरी तरह से अपना लें और और हम रोज़ एक पूरा उसका अध्याय इस पर पूरी मात करके जाने कि यह पूरा करते हैं। लेकिन आपके अंदर उससे चीज़ है क्या जिसे परम चैतन्य कहते हैं? को ई परिवर्त न हुआ? क्या आप शिवलीला-अमृत पढ़ने के बाद ऐसा कह लेक्चर इन लोगों ने रखा, तो उन लोगों ने सकते हैं कि अब आप कोई गुनाह नहीं आकर बताया कि हम आपको नहीं मानते एक दिन ऐसा हुआ था कि हमारा कोई 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-56.txt जुलाई-अगस्त 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 53 क्योंकि आप ब्राह्मण नहीं हैं। तो हम तो न कोई बात सबके बीच में एक सी मालूम कुछ बोले नहीं। सब लोगों ने कहा, कि पड़ रही है तब फिर कहने लगे, कि माँ ठीक है, लैक्चर तो पेपर में दे दिया है। ये चीज़ क्या है? मैंने कहा, बेटे, ये तो अगर आप मानते नहीं हैं तो ठीक है, हम परम् चैतन्य है जो तुम्हें भी हिला रहा है ऐसा करते हैं कि इसे कैन्सल तो कर देंगे, और उनको भी हिला रहा है । लेकिन तुम लेकिन हम आपका नाम दे देंगे कि इन्होंने इस को प्राप्त करो। जब तुम ब्रह्म को ऐसे-ऐसे मना कर दिया। कहने लगे नहीं, जानोगे तभी तुम सोचना कि तुम द्विज हो ऐसे नहीं। तो ठीक है, वहाँ प्रोग्राम हुआ गए, मतलब तुम्हारा फिर से जन्म हो लेकिन इन्होंने मुझे आगे की कोई बात गया झूठ-मूठ से अपने सिर पर लेबल नहीं बताई। न जाने लै क्चर में लगा लेने से आप खुश नहीं होते, उसे बोलते-बोलते, मैंने कहा, कि जो सोचते हैं कुछ प्रमाण नहीं मिलता। लेकिन जो कि जिन्होंने ब्रह्म तत्त्व को जाना है, वो साधु होता है, जो असली सद्गुरू होता है, हमारे सामने आ जाएँ। तो आठ दस आदमी उसके लिए प्रमाण की क्या जरूरत है? आकर खड़े हो गए हमारे सामने । मैंने संस्कृत में कहा जाता है, कि कस्तूरी अगर कहा, बैठ जाइए, बैठ जाइए। बैठने के कहीं है, तो उसके लिए थोड़े ही कसम बाद मैंने कहा, अच्छा आप मेरी ओर हाथ लेनी पड़ती है, कि ये कस्तूरी है । वो तो ए। तो उनके हाथ लगे थरथराने। उसकी सुगन्ध, अपने आप ही ज्ञान करा कीजिए तो मैंने कहा, देखिए आप के हाथ थरथरा देती है कि ये कस्तूरी है। इसी प्रकार रहे हैं, वो कहने लगे, रुकिए-रुकिए माँ, आप के अन्दर जो शक्तियाँ हैं, जब तक हम मान गए आप शक्ति हैं, इससे हमारे उसका प्रादुर्भाव नहीं होगा, जब तक उसका हाथ थरथरा रहे हैं, मैने कहा, ये बात नहीं प्रकाश फैलेगा नहीं, सिर्फ कहने से क्या | औरों के नहीं थरथरा रहे। कहने लगे आप विश्वास कर लेंगे, या कोई भी विश्वास नहीं, इन लोगों के कैसे थरथरा रहे हैं। कर लेगा, कि आप बहुत बड़ी आत्मा हैं? मैंने कहा, जाकर पूछिए, ये लोग कौन हैं? या आप बहुत बड़े धार्मिक हैं? या आप तो उन लोगों ने बताया, कि हम तो ठाणे ऐसा कोई जीव हैं, जो बहुत ही पूर्व जन्म के पागलखाने से आए हैं क्योंकि ठाणे का की सूझ-बूझ के साथ, इतनी पुण्यवान एक पागल ठीक हो गया, इसलिए डाक्टर आत्मा है। हमें वहाँ से ले आए। हम तो सर्टिफाईड पागल हैं तब इनके दिमाग में बात आई पुण्यवान नहीं होता। दूसरी बात ये भी कि सर्टिफाईड पागल के भी हाथ हिल रहे कही जाती है. कि कर्म करने से मनु हैं और हमारे भी हाथ हिल रहे हैं, तो कोई स्वच्छ हो जाता है । मैंने कहा, मनुष्य कर्म इस तरह के लेबल लगा लेने से, कोई 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-57.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 7 व 8 जुलाई-अगस्त 2002 54 क्या करता है? जब तक आपके अन्दर ये वैसा किया, मैंने इतने उपवास किए, फिर भावना है, कि आप कर्म कर रहे हैं, तब मैंने सन्यास ले लिया, मैंने बीवी बच्चे छोड़ तक आप स्वच्छ हैं ही नहीं। आपके अन्दर दिए। मैंने कहा था आपसे? आपने क्यों अहंकार बैठा हुआ है। और वो अहंकार जो किए? अगर आप ये सब चीज न भी है, यही आप को बता रहा है, कि आप ये करते तो भी आप आत्म साक्षात्कार को कर्म कर रहे हैं, आप वो कर्म कर रहे हैं । प्राप्त होते। ये ही बात है, कि हम कुछ भी पर बास्तव में हम लोग कर्म क्या करते हैं? नहीं कर सकते। ये जीवन क्रिया है। ये कोई चीज़ मर गई, कोई पेड़ मर गया तो अपने आप घटित होती है। और हर मानव उससे फर्नीचर बना लिया, या कोई पत्थर का ये जन्मसिद्ध अधिकार है कि वो इस जो मरे हुए थे उन्हें लाकर आपने कोई योग को प्राप्त करे। भगवान ने आपको मकानात खड़ा कर लिया। तो आपने क्या मनुष्य किस लिए बनाया? आधा अधूरा बड़ा भारी काम कर लिया? मरे से मरी छोड़ देने के लिए? इस अज्ञान में गोते चीज़। आपने कोई जिन्दा काम किया है? लगाने के लिए? ऐसा तो नहीं हो सकता। सहजयोग के बाद जब आप पार हो जाते वो तो परमात्मा परम दयालु हैं। वो क्या हैं, तो आपके हाथों से कुंडलिनी उठती है । आप को इस तरह से छोड़ देंगे? एक बहुत बड़े साधु थे और बड़े मशहूर थे। तो वो मुझ से कहने लगे. माँ, आप इन संसार नष्ट होने वाला है अरे जिसने ये सब लोगों को मोक्ष क्यों दे रही हैं? इनको संसार बनाया, वह इतना बलिष्ठ और समर्थ क्यों इतनी शक्तियाँ दे रही हैं? मैने कहा, है। बो क्या इस संसार को नष्ट होने देगा? साहिब, हम क्यों दे रहे हैं, ये तो आप कभी भी नहीं और इसलिए जान लीजिए, हमसे मत पूछिए, लेकिन हम दे जरूर रहे कि आप लोगों में से ही, वो बलिष्ठ लोग हैं। और ये सोचिए. कि हमारी मर्जी, जिसे तैयार हो जाएँगे, जो सारे संसार को बदल चाहें दें, आप हमारे ऊपर जबरदस्ती करने सकते हैं और सारी दुनिया में आनन्द ला वाले कौन होते हैं? वो कहने लगे, हमने तो सकते हैं । आज बहुत देर हो गई है, इतनी मेहनत की, हमने इतना किया। क्यों इसलिए की मेहनत, मैंने कहा था? मेहनत करने मैंने सोचा है कि मैं 16 तारीख को फिर की जरूरत नहीं है अगर आपने मेहनत नोएडा आऊँगी और इतनी देर रहूँगी। की, तो ये मत कहिए, मैंने ऐसा किया, मैंने 1 बहुत से लोग सोचते हैं कि अब सारा मैं कोई बड़ा लेक्चर नहीं दूँगी पर