NIRMALA सितम्बर-अक्टूबर, 2002 खण्डः XIV अंकः 9 व 10 UNIVERSAL PURE RELIGION चैतन्य लहरी हि ० ा ... आपकी माँ का नाम बड़ा शक्तिशाली है। आपको पता होना चाहिए यह अन्य सब नामों से शक्तिशाली है। सबसे शक्तिशाली मंत्र है । किन्तु आपको जानना चाहिए इसे कैसे उच्चारण करना चाहिए। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी र DHARMA VAHSIN EXPE चै तन्य लहरी खंड 9 व 10 सितभ्बर XIV अं क अक्टू बर 2002 म ३[ जन्म दिवस पूजा - निर्मल धाम, दिल्ली, 21.03.2002 १ अभिनन्दन समारोह - निर्मल धाम, दिल्ली, 23.03.2002 11 जन कार्यक्रम रामलीला मैदान, दिल्ली, 24.03.2002 23 होली पूजा - पालम विहार, गुड़गाँव, 28.03.2002 25 गुड़ी पड़वा पूजा पालम विहार, गुड़गाँव, 13.04.2002 २५ सहस्रार पूजा - कबैला, 06.05.2002 39 श्री हनुमान पूजा - मई, 1989 चै तन्य लहरी प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर ए. मुनीरका विहार, नई दिल्ली - 110067 162 - मुद्रक प्रिंटो-ओ-ग्राफिक्स नई दिल्ली सदस्यता के लिए कृपया इस पते पर लिखें :- श्री ओ.पी. चान्दना 463 (G-11) ऋषि नगर, रानी बाग, दिल्ली - 110034 फोन : (011)7013464 एन सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पते पर भेजें : चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी - 17. कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली 110016 जन्म दिवस पूजा निर्मल धाम, दिल्ली, 21.03.2002 (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) आप इसको महसूस कर सकते हैं। इसको जान सकते हैं कि ये प्यार, परमात्मा का प्यार, परमात्मा की शक्ति सिर्फ प्यार है और प्यार ही की शक्ति है जो कार्यान्वित होती है। हम लोग इसे समझ नहीं पाते। किसी से नफरत करना, किसी के प्रति दुष्ट भाव रखना, किसी से झगड़ा करना, ये तो बहुत ही गिरी हुई बात है। आप तो सहजयोगी हैं, आपके मन में सिर्फ प्यार के और कुछ भी नहीं होना चाहिए। अपने देश में आजकल जो री ेदि आफत मची है, इसको देखते हुए मैं देख रही हूँ कि ये सारे प्यार की समझ में नहीं आता है कि धर्म के नाम पर महिमा कैसे फैल गई, कहाँ से कहाँ पहुँच इतना प्रकाण्ड रौरव इंसान ने क्यों खड़ा गई. कितने लोगों तक, इसकी खबर ही कर दिया? इसकी क्या जरूरत थी? एक नही है! किन्तु इसका पूरा शास्त्र समझ में चीज़ शुरु होती है फिर इसकी प्रतिक्रिया आ गया। प्यार का भी कोई शास्त्र हो आती है और प्रतिक्रिया शुरुआत की एक सकता है? प्यार का कोई शास्त्र नहीं । क्रिया से भी बढ़कर होती है इस तरह से प्यार जो है एक महामण्डल की तरह सब परमात्मा का जो भी आपको अनुभव है वो दूर छाया हुआ है। इसका एहसास हमें कम होता जाता है। अब समझने की कोशिश नहीं, उसे हम जानते नहीं। लेकिन परमात्मा करना चाहिए कि हम प्यार को कैसे बढ़ावा का प्यार, ये तो सारे दूर, सारी सृष्टि में, दे सकते हैं, प्यार को हम कैसे दिखा सारे संसार में, हरेक देश में फैला हुआ है। सकते आपके आत्मसाक्षात्कार होने के बाद ही सकते हैं? हैं और उसको हम कैसे पनपा सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 से ही बच्चों को समझाया जाए सबसे पहले तो हमें अपने बच्चों की है। बचपन ओर ध्यान देना चाहिए। हम अपने बच्चों कि तुम मुसलमान हो या तुम हिन्दू हो या को क्या सिखा रहे हैं? उसको किसी ने तुम फलाना हो, या तुम ढिकाना हो, इससे गर एक थप्पड़ मारी तो क्या हम कहते हैं बच्चे को यही समझ में नहीं आता है कि जाकर उसे मारो, उल्टे अगर आप उसे देखने में तो मैं इन्हीं के जैसा हूँ । मेरा समझाएं कि कोई बात नहीं, नाक, नक्श, मुँह तो सब तो वही है, फिर नासमझ है, उसने तुम्हें इस तरह से क्यों समझा रहे मारा तो ठीक हो जाएगा। वो फिर से दोस्ती पा! है, इस तरह से मुझे ये क्यों लोग करते हैं? तो ये कर ले गा। क्यों कि बच्चे घृणा, और ये जो सारी बातें हैं, अबोध होता है। एक पल में वो ठीक हो लालच, ये सब हमारे अन्दर की दुष्ट जाएगा हैं और ये प्रवृत्तियाँ हमको जो कि बेटे देखो तुमको वो मारता है, ये बुरी आती हैं वो सहजयोग से नष्ट हो जानी बात है, फिर तुम भी बुरी बात मत करो। चाहिएं, पूर्णतया जानी चाहिए। तभी आपको का हृदय जो है बहुत सरल, फिर उसको गर समझाया जाए प्रवृत्तियाँ बच्चा समझ जाएगा कि मार पीट अच्छी समझ में आएगा कि चीज नहीं है ये बचपन से ही चीज़ बननी हम क्या हैं? परमात्मा क्या है, और अभिनन्दन समारोह श निर्मल धाम, दिल्ली, 23.03.2002 का (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) जन्म दिवस का उत्सव मेरे लिए अत्यन्त उलझन से भरा होता है क्योंकि अत्यन्त अन्य लोग आपसे प्रेम करते हैं या नहीं। सामान्य व्यक्ति के रूप में मेरा जन्म हुआ उस चीज़ को आप देखते ही नहीं हैं। आप और सदैव मैं सर्वसाधारण ही बनी रही । केवल उस प्रेम से बहने वाले आनन्द को पैसे की मुझे कोई समझ नहीं, घृणा को मैं देखते हैं। प्रेम का यह अथाह सागर है। नहीं समझती, लालच मेरी समझ से परे यह आप सबके पास है। एक बार जब है। इन सब चीज़ों के विषय में मैं अत्यन्त आप सहजयोग में प्रवेश करते हैं तो आप सीधी हूँ। इस सब के बावजूद भी आप सब जान जाते हैं कि आप सहस्रार में प्रवेश लोग आए और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया। कर गए हैं और सहस्रार ही सारे सत्य का ये आपकी अपनी उपलब्धि है. अपनी शुद्ध स्रोत है । आप इस बात की चिन्ता नहीं करते कि इच्छा के कारण ही आपने ये उपलब्धि पाई। आजकल जन्म लेने वाले बच्चों में मैं उस व्यक्ति के विषय में सत्य का आपको देखती हूँ कि बहुत सी आत्मसाक्षात्कारी ज्ञान होता है। आप पता लगा लेते हैं कि आत्माएं हैं। अतः मैं सोचती हूँ कि यह सब वह व्यक्ति अच्छा है या बुरा। ये कठिन घटित होने का यही समय हैं, मेरे जीवनकाल कार्य है परन्तु यदि आप उससे प्रेम करते में ही यह घटित होना था मैं सोचती हूँ हैं तो तुरन्त जान जाते हैं कि उस व्यक्ति कि सबका अपना भाग्य है, पहले श्री राम में कमी क्या है और खूबी क्या है? परन्तु आए फिर श्री कृष्ण आए फिर ईसा-मसीह अपने प्रेम के कारण आप अपने और उस अवतरित हुए और बाद में अन्य लोग। व्यक्ति के या अपने और अन्य लोगों के आप यदि किसी से प्रेम करते हैं तो था। मे रा समय बीच सारे वातावरण को अपने प्रेम से वो उनका समय आत्मसाक्षात्कार देने का है। परन्तु मैं कहूँगी आच्छादित कर लेते हैं। आसानी से आप कि आप सब लोगों ने अत्यन्त हृदय से कमियों को नहीं देखते। आपके लिए ऐसा और प्रेम से आत्मसाक्षात्कार लिया है तथा करना बहुत कठिन है। अपनी शक्तियों का उपयोग आप अन्य लोगों को परिवर्तित करने के लिए और ने धोखा दिया। परन्तु मुझे इस चीज़ का उन्हें अपना प्रेम देने के लिए कर रहे हैं। विवेक ही नहीं है कि धोखा देने का अर्थ लोग कहते हैं कि मुझे बहुत बार लोगों सितम्बर-अक्टूबर 2002 4 चैतन्य लहरी खंड़-XIV अंक 9 व 10 क्या है और किस प्रकार लोग धोखा देतें कर सकते हैं । तो भी ठीक है लोग सभी हैं। कई बार मुझे बताया जाता है कि लोग कुछ करते हैं। परंतु जब आपको प्रेम प्राप्त मेरी बुराई कर रहे हैं, हाँ वो ऐसा कर रहे होता है तब आप सन्तुष्ट हो जाते हैं। इन हैं। मैं देख सकती हूँ कि वे मेरे विषय में उल्टी-सीधी बातें कर रहे हैं, कोई बात नहीं। इससे मुझे कोई अन्तर नहीं पड़ता। चिन्ता नहीं करते कि अन्य लोग आपके वो यदि मेरी बुराई करते हैं तो भी कोई साथ क्या कर रहे हैं, आपका क्या लाभ चीज़ों की आप चिन्ता नहीं करते। अंतः आप सन्तुष्ट होते हैं। इस बात की बात नहीं। परन्तु ये अभिनन्दन समारोह उठा रहे हैं, आपको कितना कष्ट दे रहे हैं मेरे लिए निश्चित रूप से बहुत उलझन या कितनी सुविधाएं दे रहे हैं। अपने आपसे पूर्ण है क्योंकि, जैसे वो सोचते हैं, मैंने ऐसा जो भी सुविधाएं आपको मिलती हैं वे स्वतः कोई विशेष कार्य नहीं किया है । विशेष हैं। चीज़ तो वो होती है कि जो भी क्षमता आपमें है वो यदि गतिशील हो उठे तब हृदय को प्रतिबिम्बित करता है, इसमें कोई बात होती है-जैसे प्रेम। मेरे अन्दर अथाह सन्देह नहीं मैं नहीं सोचती कि मेरे लिए प्रेम है. मैं नहीं जानती इसके विषय में क्या ये कोई बहुत बड़ी उपलब्धि है, नहीं है । कहूँ! ये कार्य करता है. गतिशील हो उठता क्योंकि मैं आपको बताना चाहूँगी कि ये है और सभी लोग प्रेम को मानते हैं । आप चाहे जितने महान हों, जितने सुना है कि श्रीमाताजी का ये स्वप्न है. बुद्धिमान हों, जितना चाहे धन कमाते हों, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं । मेरा कोई स्वप्न चाहे जो भी हों, ये सब चीज़ें इतनी महत्वपूर्ण नहीं हैं। महत्वपूर्ण बात तो आपको प्रेम चाहती हूँ। मेरी तो साधारण सी इच्छा है किया जाना है । मैंने इसका कोई सिद्धांत कि सभी लोग प्रेम करें और ये पावन प्रेम नहीं बनाया है और न ही मैं ये कहूँगी कि आपके जीवन को परिवर्तित कर देगा, पूरे आपको ये सीखना चाहिए। परन्तु यह विश्व को परिवर्तित कर देगा । इसके विषय यह अभिनन्दन समारोह आदि आपके सब चीजें कभी भी मेरा स्वप्न न थीं। मैंने नहीं है। ये बात मैं आपको स्पष्ट बता देना अत्यन्त मूल बात है और यही सहायक में कोई सन्देह नहीं है। आप सब लोगों में होती है । अतः सहस्रार में रहते हुए यदि आप प्रेम जाना चाहिए क्योंकि आपका सहस्रार खुल लहरियों को बहते हुए देखते हैं, हो सकता चुका है। अतः सभी सहजयोगियों के लिए है कुछ लोग इस का अनुचित लाभ उठाएं, यह घटना अत्यन्त-अत्यन्त स्वाभाविक होनी परन्तु कोई बात नहीं इससे कोई अन्तर चाहिए। उदाहरण के रूप में, मैं जानती हूँ नहीं पड़ता। कुछ लोग आपको भ्रमित भी कि कभी-कभी लोग बहुत अभद्र होते हैं, अत्यन्त स्वाभाविक रूप से ये घटित हो 1 सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 उनके कुछ नियमाचरण हैं बाद वे अन्य लोगों पर बहुत ही क्रोधित हो नहीं। बनावटी रूप से आप ये नहीं कह जाते हैं। कुछ लोगों के पास पदवियाँ हैं सकते कि "मैं आनन्दित हूँ।" यह तो एक और उन पदवियों का उपयोग के अन्य और उसके बास्तव में कौन आनंदित हैं और कौन प्रकार की अन्तर्जात, सहज-स्वाभाविक लोगों पर क्रोध करने के लिए, उनके पीछे भावना होनी चाहिए। पड़ने के लिए और उन्हें सताने के लिए करते हैं, और चीजें इसी प्रकार चलती सुन्दर-सुन्दर भावनाओं का सागर हैं । ये रहती हैं। परन्तु उन्होंने वास्तविकता को सागर जब आपको समृद्ध करता है तब नहीं समझा, उन्होंने वास्तविकता को भुला आपको किसी चीज़़ की चिन्ता नहीं रह दिया है। आप केवल प्रेम करें, शुद्ध प्रेम, जाती। और फिर वास्तविकता को देखें। तब आप समझते हैं कि हाँ वह यही कर रहा है, इस मामले में मैं बहुत अकुशल हूँ। मैं समझ ही अंतः आप भावनाओं का सागर हैं, आप भली-भांति जानते हैं कि पैसे के कारण से वह कर रहा है, इस बात को नहीं पाती। मैं पैसा गिन भी नहीं पाती। तो आप जान जाते हैं। परन्तु इसके विषय में क्या? मेरा कहने से अभिप्राय है कि यह चिन्तित नहीं होते कि "क्यों वह मेरी तरह मेरी कमी है परन्तु कोई बात नहीं । से कर रहा है, क्यों वह तुम्हें कष्ट दे रहा है और शनैः शनैः सभी कुछ शान्त हो जाता दूसरों का प्रेम महसूस कर सकते हैं? क्या है। सभी कुछ अपने आपमें ही समाप्त हो आप दूसरों का माधुर्य महसूस कर सकते आवश्यकता इस बात की है कि "क्या आप हैं?" किसी छोटे बच्चे को देखकर आपको जाता है। मैंने देखा है कि बहुत से लोग मेरी कितना अच्छा लगता है! इसी प्रकार क्या बुराई करते हैं, मेरे विरोध में सभी प्रकार आपके मन में अन्य लोगों के लिए भी ऐसी के कार्य करते हैं । तो क्या हुआ? उन्हें जो ही भावनाएं आती हैं 'या क्या आपको लगता चाहे करने दो। ये उनका कार्य है, उन्हें है कि वो लोग भी बच्चों की तरह से हैं? करने दो परन्तु आप जानते हैं कि इससे क्या वो भी बच्चों की तरह से अबोध हैं?' मुझे कोई परेशानी नहीं होती। मैं सोचती हूँ यहाँ पर मैं सुझाव दूंगी कि अबोधिता ही कि वो अपनी ही शैली का कोई कार्य कर प्रेम का लक्षण है। रहे हैं। परन्तु इससे क्या प्राप्त होता है? आनन्द तो केवल शुद्ध प्रेम से ही प्राप्त को जान जाएगा। आप यदि बहुत चतुर होता है। आपमें यदि शुद्ध प्रेम नहीं है तो बहुत बुद्धिमान हैं तो आप मुड़कर उत्तर दे आप आनन्द नहीं प्राप्त कर सकते। आनन्द सकते हैं लोगों को उनकी त्रुटियाँ बता की केवल बातें करना-मैं जानती हूँ कि सकते हैं । ये सब कार्य आप कर सकते कोई भी अबोध व्यक्ति प्रेम की तकनीक सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 6 हैं। परन्तु ये कोई तरीका नहीं है। आपमें हैं। परन्तु अब भी मुझे विश्वास है कि वो यदि प्रेम है तो बिना कुछ कहे आप लोगों को सुधार सकते हैं क्योंकि प्रेम महानतम जाना चाहिए। परन्तु मान लो यदि वे चालाकी विवेक है। ये आपको सभी उचित विधियाँ करने का प्रयत्न करते हैं तो जिस प्रकार प्रदान करता है। सभी कुछ कार्यान्वित से उनका पर्दाफ़ाश होता है उससे आपको करता है और तब लोग कहते हैं, "श्रीमाताजी ये तो चमत्कार है, ये सब कैसे घटित खुलती है वह अत्यन्त हैरानी की बात है। हुआ!" नहीं, नहीं ये चमत्कार नहीं है। ये दुबई में हमारे एक सहजयोगी हैं उन्होंने तो सर्वसाधारण चीज है ही ढंग से कार्यान्वित की है प्रेम निज्जीव आत्मसाक्षात्कार देने का कोई लाभ नहीं। नहीं है। यह निर्जीव सागर नहीं है । यह मैंने कहा, "क्यों?" तो उन्होंने मुझे समाज केवल सोचता ही नहीं है कार्य भी करता है के उच्च, आध्यात्मिक एवं स्वींकृत लोगों के ठीक हो जाएंगे। उन्हें एक अवसर दिया हैरानी होगी। जिस प्रकार उनकी पोल जो प्रेम ने अपने मुझे बताया इन बड़े-बड़े लोगो को और अत्यन्त सुन्दर रूप से कार्य करता नाम बताए। कहने लगा, "मैं ने उन्हें है। कभी-कभी तो मुझे इसकी कार्य शैली आत्मसाक्षात्कार दिया था तो उनकी पोल पर आश्चर्य होता है हम इसे चमत्कार खुल गई। मैं नहीं जानता, मैंने ऐसा कुछ कहते हैं आदि-आदि। परन्तु ये चमत्कार नही कहा, फिर भी उनकी पोल खुल गई! एक अन्य व्यक्ति जिसको उसने क्योंकि परमात्मा आपको प्रेम करते हैं आत्मसाक्षात्कार दिया उसका भी बहुत बड़ा नाम था. वह बहुत सारे इनाम प्राप्त कर तथाकथित चमत्कार। वे कुछ भी कर सकते चुका था। उसकी भी पोल खुल गई! एक अन्य व्यक्ति, जिसे उसने आत्मसाक्षात्कार सहजयोग अपनाएं और सच्चे सहजयोगी दिया, वह शान्ति पुरस्कार से अलंकृत था; उसकी पोल खुल गई और उसके विषय में नहीं है ये तो प्रेम है। इसलिए वो आपको चमत्कार देते हैं। हैं क्योंकि परमात्मा चाहते हैं कि आप बनें। अतः प्रेम के सभी कार्यों को आप समाचारों में बहुत कुछ छपा। चमत्कार मान लेते हैं, ऐसा नहीं है। लोग क्यों कहते हैं "श्रीमाताजी ये आपकी शैली अपने प्रेम के कारण उन्हें आत्मसाक्षात्कार है।" प्रश्न ये नहीं है। प्रश्न तो प्रेम का है। देता है परन्तु प्रेम इस प्रकार से कार्य मान लो मैं सभी को बहुत प्रेम करती हूँ करता है कि वे अनावृत हो जाते हैं! आप सभी पर बहुत विश्वास करती हूँ। आरम्भ किसी की भी पोल नहीं खोलना चाहते, में मैं किसी पर अविश्वास नहीं करती। आप तो केवल इतना चाहते हैं कि किसी परन्तु ये लोग हैं कि डूब रहे हैं, डूब रहे तरह से लोग सहजयोग में आ जाएं। कार्य अब होता क्या है कि ये, व्यक्ति तो अ । सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 स्थितियों का सामना आपको करना पड़ेगा। ये स्वतः होता है। आप यदि ऐसी स्थिति में करते रहना ठीक है। कहने लगा "श्रीमाताजी मैं नहीं सोचता कि अब मैं किसी को आत्मसाक्षात्कार दूँगा। मैंने कहा, "आप बने रहेंगे जो शान्त है, आनन्ददायी है, आत्मसाक्षात्कार देते चले जाओ, परमात्मा प्रेममय है, तो आप ठीक रहेंगे, आध्यात्मिकता अगर यही चाहते हैं कि उस व्यक्ति की में आगे बढ़ेंगे। परन्तु यदि आप इस स्थान पोल खुल जाए तो उस व्यक्ति की पोल को छोड़ना चाहेंगे तो आप छोड़ सकते खुल ही जाएगी। व्यक्ति में यदि कोई इसमें कोई कुछ नहीं कर सकता। यह बुराई है तो उसका पर्दाफ़ाश हो ही जाएगा। स्थान तो दुर्ग की तरह से था या एकान्त मान लो आत्मसाक्षात्कार लेने के पश्चात् स्थान की तरह जो कि बहुत ही सुखकर किसी व्यक्ति की दुर्घटना हो जाती है. था, जहाँ आपका चित्त स्थिर रहता। परन्तु उसकी रक्षा की जाएगी, परन्तु दुर्घटना हो आप चित्त से बाहर जाना चाहते हैं। आप सकती है। इसका क्या कारण है? क्यों, चित्त से बाहर चले गए है। यही कारण है क्यों उसके साथ वो दुर्घटना घटी? क्योंकि कि बहुत से सहजयोगी ये बात नहीं समझ वो सहजयोग के लिए कुछ नहीं करता, वो पाते कि क्यों लोग सहजयोग में स्थापित बहुत ही महत्वाकांक्षी है। कोई व्यक्ति जो नहीं हो पाते। बीमार है, सहजयोग से वह ठीक जो जाता है और जो इतना बीमार नहीं है उसकी कोई लाभ नहीं क्योंकि ये बुद्धि, ये मानवीय स्थिति खराब हो जाती है! ये वास्तविकता बुद्धि बहुत उच्च स्तरीय नहीं है। सर्वोंत्तम हैं अतः अपनी बुद्धि का उपयोग करने का है उसकी रक्षा की जा रही है - ये बात तो ये है कि आप अपनी आत्मा के प्रेम सहजयोग की एक बात है, आप चाहे सबसे में बँध जाएं - प्रेम जो कि दिव्य है. पोषक खराब सहजयोगी हों, आपकी रक्षा की है और आपकी देखभाल करता है। परन्तु जाती है, इसमें कोई सन्देह नहीं । परन्तु हमें इस बात का ज्ञान नहीं है कि अपनी यदि आप वैसे ही बने रहते हैं, हर समय देखभाल किस प्रकार करें । हम ये भी नहीं यदि आप सहज के विरुद्ध जाने का प्रयत्न जानते कि स्वयं को प्रेम किस प्रकार करना करते हैं और असहज हो जाते हैं तब आप है। हम इस व्यक्ति से प्रेम करते हैं, उस व्यक्ति से प्रेम करते हैं, परन्तु स्वयं से प्रेम बहुत बुरी तरह से कष्ट उठाते हैं। ये अत्यन्त साधारण बात है कि आप करने के विषय में क्या है? लोग सोचते हैं यदि एक स्थान पर खड़े हैं, एक स्थान पर स्वयं से प्रेम करना स्वार्थ है, नहीं ऐसा जमे हुए हैं, जो कि अत्यन्त शान्त है, नहीं है आत्मा को जानना प्रेम है। आपको आनन्ददायी है, फिर भी आप वहाँ से यदि आत्मा का ज्ञान है तो आपको प्रेम का निकलना चाह रहे हैं! अतः बाहर की सभी ज्ञान है, आप प्रेम के सागर में कूद पड़ेंे! सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 है जो मैं आपको बता रही जो चाहे करो। ये छोटे बच्चे की तरह है । ये मेरा अनुभव हूँ। स्वयं पर बस दृष्टि रखें अन्तर्वलोकन ये गलत रास्ते पर जा रहा है, कोई बात बहुत सुगम है - "क्या मेरे अन्दर प्रेम है, नहीं जाने दो| क्या मैं प्रेम से परिपूर्ण हूँ?" थोड़ा सा प्रेम है थोड़ा सा नहीं है। प्रेम बहुत अधिक वेश भूषा आप पहनें आप अत्यन्त भाग्यशाली चाहे जैसी इन सारी चीज़ों के बावजूद जैसे हम हैं कि आप सहस्रार पर पहुँच गए तथा बन्धनयुक्त भी हो सकता है। अपने देश को प्रेम करते हैं, भारत को। सहजयोग का आपको पूरा ज्ञान है। परन्तु अपने देश से यदि हम प्रेम करते हैं तो हम सहजयोग का अभ्यास किए बिना आप इसे सोच सकते है कि भारत की सभी चीजें कार्यान्वित नहीं कर सकते क्योंकि अभ्यास अच्छी हैं। देश की कमियों के विषय में से ही आपको अपनी आत्मा का ज्ञान होता कभी बात नहीं करेंगे। कोई यदि भारत है। आप जब ध्यान धारणा करते हैं तो विरोधी बात करेंगे तो हम उनसे घृणा अपनी आत्मा को पहचानते हैं। तब आप करेंगे। सभी के साथ ऐसा है। आप अपने प्रेम से सरावोर हो जाते हैं। परन्तु अब देश से प्रेम करते हैं अपने माता-पिता से यहाँ बैठे हुए आप सोचने लगते हैं वह प्रेम करते हैं, किसी से भी प्रेम करते हैं व्यक्ति बहुत खराब है. मैं उससे घृणा करता परन्तु ये सीमित प्रेम है, बन्धन-युक्त प्रेम हूँ-ये, वो। इसी प्रकार से सारे मूर्खता पूर्ण है। प्रेम तो खुला होना चाहिए. तभी आप विचार आपके मस्तिष्क में आते हैं। या देख पाएंगे कि अपने देश के मामले में आप सोचते अपने सम्बन्धों के मामले में आपकी स्थिति मुझे फलाँ कार अवश्य खरीदनी है, क्या है आपको हर चीज़ का ज्ञान हो आदि -आदि जाएगा| आपको किसी को हानि पहुँचाने प्रेम नहीं करते। आप जब वास्तव में प्रेम की आवश्यकता नहीं है, किसी को कुछ करते हैं तब जिस भी चीज़ की आपको कहने की आवश्यकता नहीं है, किसी से आवश्यकता होती है आपको मिल जाती लड़ने-झगड़ने की आवश्यकता नहीं। इसके है, जिस भी चीज़ की आप इच्छा करते हैं बिना ही आप सब जान जाएँगे क्योंकि प्रेम वह आपको मिल जाती है। सर्वप्रथम स्वयं ज्ञान प्रदान करता है-किसी व्यक्ति के से आपको प्रेम करना है। परन्तु ये प्रेम विषय में पूर्ण ज्ञान। आप व्यक्ति के विषय शुद्ध प्रेम होना चाहिए। इसके परिणाम-स्वरूप में जान जाते हैं कि उसके इरादे क्या हैं आप अपने आपको स्वच्छ कर लेंगे । और वह कर क्या रहा है। परन्तु आप बुरा कभी-कभी आप अपने स्वभाव से, प्रकृति नहीं मानते क्योंकि उससे आप प्रेम करते से, अपने व्यक्तित्व से अत्यन्त एकरूप हो हैं इसलिए आप बुरा नहीं मानते। ठीक है, जाते हैं परन्तु उस प्रेम में डूबकर आप हैं मैं ये गहना खरीद लूँ' या । ऐसा जब होता है तो आप सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 महसूस करते हैं कि ये प्रेम नहीं है यह महसूस करते हैं कि आप प्रेम की बुलन्दियों प्रेमान्धता है। प्रेम आपको अपने विषय में पूरी समझ प्रेम में यदि पावनता नहीं है तो आप उसे पर हैं और उस प्रेम का आनन्द लेते हैं। देता है। 'मैं क्या हूँ? मेरी समस्याएं क्या प्रेम का आनन्द नहीं ले सकते। हैं। क्यों मैं समस्याएं पैदा करता हूँ? क्यों मैं समस्याओं में फॅसता हूँ?" आप सिर में सहस्रार में स्थिित इस सागर को आश्चर्यचकित हों गे कि प्रेम में इतना खोजें जिसे आप का हृदय परिपूर्ण कर शक्तिशाली प्रकाश है कि यह सत्य है और रहा है। क्या आपको इस बात का ज्ञान है अतः मैं आपसे प्रार्थना करूंगी कि आपके कि हृदय और सहस्रार का परस्पर गहन ज्ञान है। यद्यपि मैं ये नहीं जानती कि इस विश्व सम्बन्ध है? शैली इस प्रकार से है कि में क्या मैं उन लोगों को दोष दूँ जो किसी व्यक्ति का मस्तिष्क यदि ठीक नहीं आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं या उनको जो है तो हृदय भी ठीक नहीं होगा और यदि पूर्ण आत्मसाक्षात्कारी हैं, मैं ऐसा कुछ नहीं हृदय ठीक नहीं है तो मस्तिष्क भी ठीक करुंगी क्योंकि उन लोगों के जीवन में तो नहीं होगा। परन्तु मस्तिष्क का प्रभाव हृदय प्रकाश है ही नहीं। वो न तो स्वयं सकते हैं और न अन्य लोगों को तो उन्हें को देख पर बहुत अधिक है। | लोग कहते हैं कि वंशाणु (Genes) खराब दोष देने का क्या लाभ है? इस जाति को, हैं आदि-आदि। ऐसा कुछ भी नहीं है उस जाति को, इस देश को, उस देश को सहजयोग में आने के पश्चात् आपके जीन्स दोष देने का क्या लाभ है? ये प्रेम तो बदल जाते हैं, आप बदल जाते हैं, आपका शाश्वत है। इसने किसी विशेष प्रकार, विशेष सभी कुछ बदल जाता है। अतः आप का शैली से कुछ नहीं लेना देना। यह सर्वव्यापक मस्तिष्क प्रकाश से परिपूर्ण है इसके सिवा है, सर्वत्र यह फैल रहा है। मैं चाहती हूँ कि इसमें कुछ भी नहीं । आपका हृदय प्रकाश से परिपूर्ण है और हर समय आप विनोद एवं प्रेम से ओत-प्रोत हैं। निःसन्देह स्थिति आपने यह आप इसका आनन्द लें। आपके सम्मुख मैं एक उदाहरण दूंगी। एक दादी और पोते का। उनका सम्बन्ध- कम हर रोज भिन्न होती है परन्तु से कम भारत में मैं जानती हूँ - गहन प्रेम स्थिति प्राप्त कर ली है अतः इसका आनन्द का होता है। बच्चे के लिए दादी और दादी लें। के लिए बच्चा सर्वस्व होता है। प्रेम करते हैं । चाहे जो पोता करे या चाहे ईर्ष्या और स्पर्धा सभी प्रकार की चीज़ें छूट जो दादी करे सभी कुछ उचित है। प्रेम जाती हैं । परन्तु आपके मस्तिष्क में यदि आनन्द का यह गहन अनुभव है। आप बेवकूफियों का जंगल है तो सभी प्रकार के तब जाति प्रणालियाँ, रुढ़िवाद, लोग, वे परस्पर सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 10 जानवर इसमें घुस आएंगे स्वयं को प्रेम से स्वच्छ करें, प्रेम से पावन करें, हर पीछे न कोई लोभ होना चाहिए, न ही स्थिति को, हर चीज को प्रेम से देखें और योजना। यह तो सागर की उस लहर की आप आश्चर्यचकित होंगे कि अब रौब न तरह से है जो हर तट को छूती है और जमाना, नियंत्रण न करना, घृणा न करना प्रेम का हर्षनाद करती है। तब लहरें वापिस बुरी बात न बोलना, आपके लिए कितना चली जाती हैं। निरन्तर ये लहरें बहती सुगम हो जाएगा! यह अत्यन्त सुधारक रहती हैं और निरन्तर, अथक कार्यरत रहती चीज़ है। प्रेम अत्यन्त सुधारक है अत्यन्त हैं। आनन्ददायी है। आपको स्वयं पर हैरानीं होगी कि किस प्रकार आप कार्यों का होकर इस कार्य को करना अत्यन्त कठिन प्रबन्धन कर रहे हैं! मैं ऐसे बहुत से लोगों था परन्तु मेरे लिए ऐसा नहीं है। जो भी को जानती हूँ। एक सहजयोगी था जो कुछ हुआ, जितना भी लोगों ने मुझे कष्ट अपने चाचा से बिल्कुल बात नहीं किया दिया, परन्तु मैं इस प्रेम के बहाव में ये करता था, कहता था कि 'मैं उससे घृणा कार्य करती रही। जहाँ भी सम्भव हो पाया, करता हॅँ। 'परन्तु क्यों मैं नहीं जानता जब भी सम्भव हो पाया, मैं गई। मेरा क्यों परन्तु मैं उससे घृणा करता हूँ। एक स्वास्थ्य चाहे जैसा भी था, कभी मैंने उसकी बार वह रेसकोर्स में गया और अपने चाचा चिन्ता नहीं की और आप सबका मैंने अत्यन्त को आते देखा। दौंड़कर उसने उसे गले आनन्द लिया। मैंने आनन्द लिया। एक दो लगा लिया। चाचा देखने लगे कि अब ये लोग यदि बहुत खराब भी निकले तो भी ऐसा कहना कितना अच्छा है? इसके मैं जानती हूँ कि कलियुग में अवतरित क्या चाहता है? ये ऐसा क्यों कर रहा है? कोई बात नहीं। जब आप मेरे प्रेम के ये सब क्या है? उसके मन में केवल एक विषय में ये बातें करते हैं तो मेरी आँखों में ही प्रश्न था कि यह मुझसे प्रेम क्यों करना आँसू आ जाते हैं। मेरी समझ में नहीं चाहता है? इस बात को बह न समझ आता कि इसके अतिरिक्त मैं क्या कहूँ। सका। परन्तु वह सहजयोगी उसे समझा कहने से मेरा अभिप्राय ये है कि मैं चाहूँगी न सका कि वह सहजयोगी बन गया है। कि आप सब लोग भी ऐसा ही करें, इसमें चाचा ने पूछा, 'अब तुम्हें क्या चाहिए? उतरें और ऐसा जीवन प्राप्त करें जहाँ कहने लगा, 'कुछ भी नहीं मैं तो बस तुम्हें आप अपने प्रेम में ही तैरते रहें । प्रेम करता हूँ। परमात्मा आपको धन्य करें। जन कार्यक्रम रामलीला मैदान, दिल्ली, 24.03.2002 (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) ३ वो सबके अंदर है और स्थित है। उसके अंदर रंग, जाति-पाति कोई भेद नहीं। हर इंसान में है। जानवर में भी है। आपको आश्चर्य होगा कि जानवर प्यार बहुत समझते हैं। इंसान से भी ज्यादा जानवर समझते हैं प्यार क्या चीज़ है। अगर अपनी उत्क्रान्ति में बढ़ रहे हैं, अपने ा तो हम लोग बाकई Evolution में बढ़ रहे हैं तो हमारे अंदर प्यार का बड़ा जबरदस्त प्रकाश होना चाहिए। अगर प्यार आ जाए तो हमारे सारे प्रश्न जो हैं, जो मानव जाति के लिए पहाड़ सत्य को खोजने वाले आप सभी जैसे खड़े हैं, एक दम खत्म हो जाऐँ। साधकों को हमारा प्रणाम। प्यार की हमने व्याख्याऐं अनेक की हैं पर उसकी कोई व्याख्या नहीं कर सकता वो है प्रेम। यही प्रेम जो है यही प्रभु की क्योंकि वो एक सागर है। हमारे अंदर बसा हुआ एक महान सागर है और उसको समझते हैं, लेकिन प्रेम एक शब्द नहीं है। भोगना भी हमारे ही नसीब में है। उसकी प्यार एक शक्ति है और उसका भण्डार लहरें भी हमीं ज्ञात कर सकते हैं। हमारे हमारे ही अंदर है। हम सभी उस प्यार से ही लिए वह है। दूसरा चाहे उसे समझे या भरे हैं। कभी-कभी उसका अनुभव हमकों न समझे लेकिन हमारे लिए वो एक बहुत आता है । हमको अनुभव आता है कभी कि बड़ी अदभूत शक्ति है। शक्ति कहने से जब हमारी माँ हमको दिखती है तो हमें लोग सोचते हैं कि कोई मानो प्रलंयकारी अनुभव आता है। लेकिन वो क्षणिक है और चीज है। वो शान्ति देती है, वो आनंद देती कभी-कभी वो स्वार्थी होता है। पर जिस है। वो देती है और दुनिया के सारे जिस चीज़ की आज हर जगह कमी है, भक्ति है बहुत लोग जिस बात को शब्द ा सुख प्यार की मैं बात कर रही हूँ वो है आत्मा प्रश्न समाप्त कर देगी अगर संसार इस का अपना प्रादुर्भाव, आत्मा का अपना प्रकाश। प्यार में लिपट जाए। ये प्यार जो हमारे सितम्बर-अक्टूबर 2002 12 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 साथ साल दर साल अंदर ही छिपा बैठा अंदर आखिर इतना पैसा है, इतनी चीजे हैं है, अंदर ही कुम्हला रहा है, उस पर तो भी आखिर ये दुःखी क्यों है? अब पता अनेक आवरण हैं। सबसे बढ़ा आवरण है चला कि इन पर दुनियाँ भर की आफतें कि हम अपने को बहुत बड़ी चीज़ समझते आई, दुनियाँ भर की परेशानियाँ आई । हैं। आप स्वयं प्यार हैं, इससे बढ़कर आप क्या हो सकते हैं? इससे आप कौन सी पैसा होते हुए भी उन पर इतनी आफतें बड़ी हस्ति हो सकते हैं कि आप प्यार हैं क्यों आई हैं। सो आजकल के जमाने में और प्यार ही हैं और कुछ नहीं हैं! ऐसी नई-नई आफतें आई हैं पहले नहीं होती आपमें शक्ति है जो सबको शान्त कर सके, थीं इतनी जितनी आज हैं गर आपके सबको स्वच्छ कर सके. सबके अंदर आनंद पास बहुत पैसा है तो न जाने कितने चोर भर सके। दुनिया भर के कोई से भी प्रश्न आपके पास दौड़ेगें, न जाने कितने ठग हों, कोई सा भी प्रश्न हो, उसके पीछे क्या लग जाएगें, न जाने कितने छुरा लेकर है? द्वेष, नाराज़गी, अहंकार आदि बड़े-बड़े आपके पीछे दौडेंगे न जाने क्या-क्या राक्षस बसे हैं और इसमें मनुष्य न जाने आफतें होगीं । सो पैसे से आदमी सुखी हो कुछ समझ में नहीं आता कि इतना क्या मज़ा उठाता है, कौन सा उसे उत्साह नहीं सकता। आप देख लीजिए क्योंकि प्राप्त होता है, पर वो समझ ही नहीं पाता पैसे होने पर भी मनुष्य की लालच खत्म अपने को कि मैं क्या हूँ। मेरे पास भण्डारा नहीं होती। उसको लगत्ता है कि आज ये है जिस चीज़ का तो मैं क्यों दर-दर में, है तो कल वो होना चाहिए। वो है, तो वो गली-गली में भीख माँगता फिरूँ? जो चीज़ होना चाहिए। उसकी लालच खत्म ही नहीं मेरे अंदर में उमड़ रही है उसको छोड़कर होती उस पैसे से क्योंकि उस पैसे में क्यों मैं ऐसी-ऐसी चीज़ों के पीछे दौड़ता समाधान देने की शक्ति नहीं। गर आपके हूँ? गलत दिमाग और गलत विचारधारा से किसी को दे दें। गरीबों को बाँट दें, उनका ऐसा होता है। बहुत से लोगों को लगता है दुःख हल्का करें। तब आपको समाधान कि दुनिया में गर आपके पास पैसा हो तो मिलेगा नहीं तो पैसे का कोई अर्थ नहीं । पास पैसा है तो समाधान इसमें है कि वो आप बहुत बड़े आदमी हो। मैंने आज तक जो पैसा आप बाँट नहीं सकते वो पैसा किसी भी पैसे वाले को सुखी नहीं देखा। लक्ष्मी हो ही नहीं सकता। लक्ष्मी तत्व् में मेरे पास जितने पैसे वाले आते हैं उनकी मैंने आपसे बताया है एक हाथ से देना शक्ल से ही पता चल जाता है कि ये कोई और दूसरे हाथ से आश्रय। तो दूसरों को बड़े भारी दुःखी आदमी हैं और ये पता गर आप आश्रय दे रहे हैं, अपने पैसे के चलता है कि ये कोई करोड़पति हैं। इसके साथ तो आपको आनंद आएगा ग़र आप सितम्बर-अक्टूबर 2002 13 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 दुनिया की भलाई कर रहे हैं अपने पैसे से से होता है ऐसे सुन्दर तरीके होते हैं पैसे तो उस पैसे से आपको आनंद आएगा देने के लेने के नहीं, देने के और उसमें गुर वही पैसे आप संभाल-संभाल कर रखें, कभी-कभी इतना आनंद आता है कि उतना उसका पहाड़ बनाएँ और उस पर बैठ आनंद लाखों खर्चने से भी नहीं आता। जाएँ, कोई भी आपके शक्ल में उसकी तो बात है कि मनुष्य कभी-कभी सिर्फ खुशी नज़र नहीं आएगी। ऐसे लोगों को अपनी शोहरत के लिए पैसे देता है। ये बहुत लोग जानते हैं और हँसते हैं उन कोई खास बात नहीं। पर तो भी वो बेहतर पर। देखते हैं कि ये आदमी इस तरह से है बनिस्वत इसके कि सारा पैसा अपने जा रहा है ये कर रहा है। पर अब करें पास पड़ा रहे। क्या? जब तक उसको अपनी अक्ल नहीं आएगी वो कभी समझेगा ही नहीं । वो कि वो सत्ता कमाए। सत्ता क्यों कमाए? सम्हलेगा नहीं और उस पैसे का आनंद सत्ता में क्या है? आपकी अपने ऊपर तो अब दूसरी बात है इंसान को शौक है नहीं उठाएगा। आज पैसा आया तो कोई सत्ता है नहीं। दुनिया भर में आप सत्ता और नई चीज़ में चला गया और पैसा करना चाहते हैं! माने हमारी बड़ी भारी Position हो जाए। सत्ता हो जाए, सब आया तो वो और किसी आदत में चला गया। मनुष्य के पास पैसा आते ही न जाने लोग हमारे को सैल्यूट मारें। इसमें कौन वो बाहर की गन्दी -गन्दी बातें सीखने लग जाता है। ऐसी कोई चीज होगी ना पैसे में उतरते हैं तो कोई उनकी ओर देखता भी जिससे आदमी खराब ही क्यों सीखता है? नहीं । कोई उनको पूछता भी नहीं और वो शराब क्यों पीता है? औरतों के पीछे क्यों बड़े दुःखी हो जाते हैं कि एक जमाने में तो भागता है? पैसा आते ही साथ ऐसी कौन मेरे सामने दौड़ते थे अब मेरे पीछे भी नहीं सी बात होती है कि वह बिगड़ता ही जाता दौड़ते ये ऐसी कौन सी बात है। सत्ता के है, बिगड़ता ही जाता है, बिगड़ता ही जाता पीछे में लोग जाते हैं। एक साहब से मैंने सा सुख है? अंत में यही लोग जब सत्ता से है। या तो वह जेल में चला जाएगा, या पूछा तुम पैसा क्यों खाते हो? तुमने सत्ता सर्वनाश हो जाएगा। यही पैसा जो आपको पाई है तो उससे कुछ अच्छा काम करो। शोभा दे सकता है वह आपके सर्वनाश का कुछ लोगों की मदद करो । तो तुम सत्ता में कारण बन जाता है। प्यार के संगति से आकर के ऐसे गलत काम क्यों कर रहे आप यही सोचते रहते हैं कि किसको क्या हो? पैसे क्यों कमा रहे हो? झूठ क्यों दिया जाए। उसको किस तरह से सुशोभित बोलते हो? तो उन्होंने कहा मैंने इतनी किया जाए? उसको किस तरह से प्यार जताया जाए? और बड़े-बड़े सुन्दर तरीके मैंने कहा, "तुमने ये लागत लगाई क्यों?" लागत लगाई, वो तो मुझे निकालनी है। तो सितम्बर-अक्टूबर 2002 14 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 इसलिए क्योंकि आप जीतने वाले नहीं थे। आज अमर हो गया है। नहीं तो बेकार के आप अगर ऐसे ही खड़े हो जाएँ तो कोई लोगों को कौन जानता है। बेकार के, नहीं वोट देता। तो इसलिए आपने पैसे जिन्होंने अपनी सत्ता में सबको तकलीफ लगाए कि इस पैसे से मैं जीत जाऊँ। तो दी, गलत-गलत काम करे। थोड़े ही दिन जब तक आप लोगों को पैसा देते रहें में उन पर भी लोग उंगलियाँ उठाने लग तब-तक लोग समझेंगे कि आप किसी जाएँगे इस तरह के लोग संसार में, मैं काम के हैं या कोई गलत काम करने मानती हूँ, बहुत कम हैं। इसलिए क्योंकि लग जाएं तो लोग खुश होंगे ये वास्तविक हम लोग बहुत चालाक हैं। अपने को बात है। मैं कोई नई बात नहीं कह रही होशियार समझते हैं। हूँ। ये रोज़मर्रा हम देखते हैं। पर वही आदमी, जब उसकी सत्ता खत्म हो जाती चकारी करते हैं । चकमा देते हैं, पैसा है तो कोई उसे पूछता भी नहीं। कोई उसे बनाते हैं । इस तरह की झूठी बातें करते देखता भी नहीं। कोई उसे जानता भी हैं। उनका क्या हाल होता है वो मुझे बताने नहीं। कोई उसका मित्र भी नहीं होता। तो की कोई जरूरत नहीं है तो ये सब करने बहुत तीसरे तरह के लोग होते हैं जो चोरी क्या फायदा। सारी जिन्दगी अपनी सत्ता में की जरूरत क्या है? किसके लिए आप फँसे रहे। सारी जिन्दगी अपनी सत्ता के कर रहे हैं ? कोई कहे गा कि हमारे घमण्ड में फॅसे रहे और आज आप कहाँ बाल-बच्चों के लिए कर रहे हैं। कल यही हैं? और अब आपको क्या मिला? ये मैं बाल-बच्चे आपको जूते लगाएँगे कि नहीं? नहीं कहती कि आखिरी दम तक हर आदमी आपका मान क्यों करेंगे? आपमें कोई चरित्र को उसके प्यार की शक्ति से कुछ लाभ नहीं तो आपका मान कौन करेगा? आपको होता ही है पर सबसे बड़ी चीज़ है जो कौन देखेगा? ये समझने की बात है कि ये आदमी प्रेम करता है और उसके बाद में सब व्यर्थ की लालसाएँ हैं और ये आपको उसके प्यार की जिसके ऊपर छाया पड़ती आपसे दूर रखती हैं। आप अपने प्यार को है, जिसने उसका उपयोग किया हो, जिसने समझिये। आपकी जिन्दगी में कोई ऐसे भी उसका दर्शन किया हो, जिसने भी इंसान आए जिन्होंने आपको प्यार दिया हो, उसका जलवा देखा है, वो पुश्त-दर-पुश्त उनको आप जिन्दगी भर नहीं भूल सकते याद रखा जाता है। याद ही की बात नहीं चाहे उन्होंने पैसा नहीं दिया; कुछ नहीं पर वो ही जलवा दूसरों में भी आता है दिया। पर उनका प्यार, प्यार जरूर याद और दूसरे भी अच्छा काम करने लग जाते रहेगा और आप याद करेंगे कि इन्होंने मेरी हैं और दूसरे भी उसी की तरह होने का ओर बहुत प्यार से देखा। मेरी ओर बहुत प्रयत्न करते हैं । ऐसे ही आदमियों का नाम प्यार का हाथ बढ़ाया था । ये समझने की सितम्बर-अक्टूबर 2002 15 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 बात है कि हम रोज़ देखते हैं। कोई नई घिनौनी बात है। ऐसा घिनौना काम करना बात तो नहीं, कोई इतिहास की बात तो हमारे संस्कृति में मान्य नहीं है। हमारी नहीं, कि कोई किताबों में लिखी बात नहीं। संस्कृति बड़ी ऊँची है भारतीय संस्कृति कुछ बाईबल पढ़ने की ज़रूरत नहीं, कुरान एक दिन सारे संसार का मार्गदर्शन कर को जानने की जरूरत नहीं । ये रोज़ की सकती है पर हमी अपनी संस्कृति को बात है। जब ये बात हम देख रहे हैं तो छोड़ कर के बैठे हैं! हर तरह से लज्जाशील हम किसलिए तलवार लेकर निकले हैं? रहना चाहिए। ऐसे बताया जाता है कि ऐसे हमारे अंदर जो बहुत सारी विकृतियाँ औरतों को लज्जाशील रहना चाहिए। ऐसा हैं वो इस तरह से बाहर आती हैं। मैं है कि बाहर से सीख करके लोग ऐसे कहूँगी कि ईमानदारी की बात है कि कितने कपड़े पहनने लग गए कि जिसमें लज्जा लोग हमारे देश में, जैसे कोई छूत की को तिलांजली दे दी गई । लज्जा- वज्जा बीमारी लग रही है, पैसा खाते हैं। किसी कुछ नहीं। अरे भाई देवी के लिए कहा से पूछो, "ये कौन हैं?" ये पैसा खाते हैं। गया है "लज्जारूपेण संस्थिता।" आपके "वो कौन हैं?" वो पैसा खाते हैं। जिसको अंदर अगर देवत्व है तो आप लज्जाशील देखो वो ही पैसा खाता है। और कोई रहेंगे। आप बेशरम जैसे कपड़े नहीं पहनेंगे। उनका वर्णन ही नहीं। ये ही बताया जाता कि ये पैसा खा रहा है, वो पैसा खा रहा घूमते हैं आप तो आप में देवत्व नहीं है। है। अरे खाना वाना नहीं खाते, पैसा ही तो किसी ने कहा कि हनुमान जी तो नहीं खाते हैं? ऐसे लोगों को भी आप देखिए कि कपड़े पहनते हैं। तो क्या आप हनुमान जी | आप बेशरम जैसे नहीं घूमेंगे। और अगर अंत में उनका क्या हाल होता है। एक बार हैं? ये भी कोई Explaination है कि हनुमान हम ऐसे ही गए थे वहाँ बहुत भीड़ थी तो जी नहीं पहनते तो हम भी नहीं पहनते। कुछ लोग थे बेचारे सीधे-साधे। उन्होंने अब हनुमान जी को क्या पहनने की ज़रूरत नाक पर ऐसे हाथ रख लिया। मुँह पर थी? भई तुम लोग इंसान हो और तुम इस हाथ रख लिया। बात क्या है? वो बोले, ये देश के वासी हो। तुमको क्या ज़रूरत साथ जा रहे हैं न, इन्होंने बहुत देश का कि हनुमान जी जैसे हम कपड़े नहीं पहनेंगे। पैसा खाया है। मैंने कहा आप लोगों ने बाकी देखिए तो सब लोग पहनते हैं। ऐसा नाक मुँह क्यों बंद करे हैं। कहने लगे कि कोई है जो कपड़े ठीक से नहीं पहनता तो इनको सूँघने से हम लोग भी वैसे ही हो हनुमान जी का उदाहरण ले लिया। महावीर जाएँगे। ऐसा हमें डर लगता है। अरे ये जी का, महावीर जी एक बार अपने ही बात बड़ी घिनौनी है। हमारे संस्कृति के हिसाब से ये बड़ी ने उनकी परीक्षा लेनी चाही। तो उनसे जा प्रांगण में ध्यान कर रहे थे तो श्री कृष्ण जी सितम्बर-अक्टूबर 2002 16 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 कर कहा श्री कृष्ण जी ने कि "तुम मुझे लज्जा होती है। पर इंसान में लज्जा न हो अपना कपड़ा दे दो " और उनका कपड़ा और बड़े अपने को समझते हैं, हम बड़े आधा फट गया था, तो भी वो ध्यान में थे। Modern हैं और ये हैं वो हैं। अरे भई अगर "ये आधा भी हमको दे दो।" उन्होंने दे लज्जा नहीं है तो देवी तत्व से तो आप दिया। और फिर चले गए अपने शयन ग्रह हट गए। देवी तत्व में कहा जाता है कि में, अपने सोने की जगह में, जा कर अपने "लज्जारूपेण संस्थिता।" इसलिए कभी कपड़े-वपड़े बदल लिए। वो एक छोटा सा - कभी उसका अतिक्रमण भी कर देते हैं। बच्चा बन के आए थे वो ठीक है। वो चले होता है कभी-कभी। वो नहीं करना चाहिए। गए। अब देखिए कि उनके Statues बना अब आप घूँघट निकालो, बुका पहनो। इसकी रहे हैं। इतने गंदे लोग हैं, इनको कोई शर्म कोई ज़रूरत नहीं है जो चीज़ लज्जाशील नहीं। इस तरह से महावीर जी का अपमान है वो उसकी आँखों में है उसको जरूरी करते हैं। ये तो हमारे यहाँ गलत बात है नहीं कि ये ढोंगपना करे इसकी कोई कि जो गलत चीज़ है, उसी को ले करके ज़रूरत नहीं। पर मनुष्य में भी अतिक्रमण चलेंगे। उसको फट से पकड़ लेगे और कर जाए। मनुष्य में क्या है कि किस तरह उसी को ले कर के दिखाएँगे, सौ बार। से वो एक दम से इस तरह से विक्षिप्त हो मैं कहती हूँ कि कुछ अक्ल रखो। ऐसे जाता है? कुछ बताना समझ में नहीं आता कहीं होता है? बिल्कुल शुरूआत में बताते कि क्या बताऍँ । कुछ भी चीज़ ले लों, हैं कि आदम और हव्वा। उसमें से हव्वा उसको विक्षिप्त कर देना। ठीक है स्त्री में को जब पता चला उसको जब अनुभूति लज्जा होना। और लज्जा उसके अंदर की हुई कि हमें आगे का जानना है वो जो चीज़ है उसके अंदर में स्थित है ये देवी साँप था वो स्वयं साक्षात् कुण्डलिनी थी। तत्व- हरेक स्त्री में, हरेक पुरूष में । लज्जा उसने जब बताया कि तुमको ज्ञान का एक देवी तत्व है। ऐसा कहते ही साथ वो फल प्राप्त करना है तब उसी वक्त उनको गए और चलो अब पर्दे लगाओ, ये करो वो ये ज्ञान हुआ कि हम ऐसे नंगे घूम नहीं करो, घूंघट निकालो । अरे भई ये अंदर की सकते हैं जानवरों जैसे। हमें कुछ पहनना चीज़ है। स्त्री के अंदर की चीज़ है । चाहिए। फौरन उन्होंने पत्तियों से अपने लज्जारूपेण संस्थिता। और उसमें अनेक कपड़े बनाये और पहन लिए। सर्वप्रथम ये बातें निहित हैं अब जैसे छोटी सी बात है ज्ञान होना चाहिए कि हम इंसान हैं जानवर अपने दोनों कंधों में दो चक्र हैं । Right में नहीं। हम जानवर जैसे नहीं रह सकते। श्री चक्र है और Left में 'ललिता' चक्र है। हालाँकि कुछ-कुछ जानवर इंसान से भी ये हम सिद्ध कर सकते हैं । आप उसको अच्छे होते हैं मैं मानती हूँ पर उनको भी खोले फिरोगे तो नुकसान होगा आपको । सितम्बर-अक्टूबर 2002 17 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 होना ही है । किस तरह का नुकसान होगा शरमाऐंगे। लेकिन अंदर से प्यार । प्यार ही वो मैं बताना नहीं चाहती। कभी विस्तारपूर्वक उनका जीवन और प्यार उनके जीवन का बताऊँगी, पर क्यों ऐसा करते हो? क्या सार । दूसरा उनको किसी चीज़ से कोई ज़रूरत है? पर पुरूष में ज़रूरी नहीं। नहीं। आप उनको कोई और चीज दे दीजिए पुरूष में ये बात नहीं। उनमें ये दोनों चक्र वो समझ नहीं पाएँगे इसमें क्या विशेषता बिल्कुल पूर्णतया खुले हुए हैं पर स्त्री के है। पर उनकी माँ को हटा लीजिए या लिए क्योंकि वह शक्तिशाली है उसके लिए उनकी नानी से हटा लीजिए तो बड़ा बुरा जरूरी है उसे ढकना। अब ये समझने की हाल हो जाएगा। ये केस वजह से होता बात है इसमें कोई दकियानूसीपने की बात है। ये इतना छोटा सा बच्चा ये चीज़ कैसे नहीं। जिस चीज़ में आप दकियानूसी हैं वो जानता है और हम लोग क्यों नहीं जान बेवकूफी है। लेकिन जिस चीज में आप पाते? हम लोग ये क्यों नहीं जान पाते कि सतर्क हैं वो चीज ठीक है। सो सबसे बड़ी ये चीज़ इस बच्चे में इतनी प्रगल्भ है, चीज़ है कि प्यार में मनुष्य एकदम सतर्क इतनी developed है और हम लोग जो होता है। कहीं कुछ हो गया उसे पता चल अपने को बड़े भारी विद्वान समझते हैं जाता है। कहीं कुछ हो गया उसे समझ में हममें क्यों नहीं? क्योंकि विद्वता जो है वो आ जाता है । कहीं कुछ बात हो जाती है अंधेरे में हम विद्वान हैं अंधेरे के. उजाले वो परेशान। कहीं कोई औरत है, बेचारी के नहीं। हमें ये नहीं मालूम कि कौन सी उसने आत्महत्या कर ली। तो एक मुझे चीज़ हमें आह्लादित करती है। कौन सी लड़की मिली। मैंने कहा तुम क्यों परेशान चीज़ हमें आडोलित करती है। कौन सी हो। कहने लगी उसने आत्महत्या क्यों चीज़ से हमें सुख प्राप्त होता है और दूसरों की। छोटी सी लड़की 10 साल की मैंने को समाज को किस चीज़ से सुख मिलेगा कहा तुमसे किसने बताया। किसी ने बताया इस चीज़ को हम समझते नहीं। हम लोगों नहीं मैंने अखबार में पढ़ा कि उसने ने अपनी बना ली हैं प्रणालियां कि भाई आत्महत्या कर ली। अब ये जो खिंचाव ऐसे अवदान पहनो तो मिलेगा। किसी अनभिज्ञ इंसान से, unknown आदमी से हो, ये क्या बात है। और छोटे बच्चों में में मालाऐं पहन के घूमो, ये करो वो करो । ये होता है। बात ये है-बच्चे जो हैं तो हम बहुत बड़े आदमी हो गए। हमारी सुख अब बड़े आदमी हो गए, गले में, कण्ठ बहुत बहुत ही ज्यादा निष्पाप, innocent. दुनिया पूजा करेगी हमें बहुत बड़ा वो निष्पापिता में, स्वच्छता में उनको खसोटता समझेगी। लेकिन ये अपने से भी धोखा है, उनको दिखता है। गलत काम ये नहीं देना है और लोगों को भी धोखा देना है। होना चाहिए। वो रूठेंगे आपसे, वो आपसे गुर आपको अपने को धोखा देना है तो देते सितम्बर-अक्टूबर 2002 18 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 रहिए। अंत में उसका फल आप पाइयेगा। हम बह गए। दुनिया भर की चीज़े होती ही दुनिया समझ जाएगी कि आप कितने गहरे रहती हैं। चलती ही रहती हैं। उसकी गर पानी में हैं। सबसे बड़ी चीज़ है कि जो ऐसी बात किस बात से आपको आनंद आपका धन आपके अंदर प्यार का सागर आएगा ये देखना चाहिए। जब आप आनंद है उसको आप प्राप्त कीजिए । सहजयोग का यही कार्य है सहजयोग कोई कहे कि मुझे बड़ा आनंद आ रहा है आपकी कुण्डलिनी जागृत करता है । तो ये कोई कहने की बात तो नहीं है ये तो कुण्डलिनी आपके जीवन का पूरा छाप है । होने की बात है। पर जब ये घटित होता है उसको उठा करके और सहस्रार में बैठाना। तो कुछ कहना नहीं पड़ता। अपने आप ही सहस्रार आडोलित हो जाता है, प्रकाशित दिखाई देता है। आपका जीवन ही प्रज्जवलित हो जाता है और उससे आपको आनंद के हो जाता है और आपके जीवन से हजारों सागर का अनुभव होता है। आप देखते हैं लोग उसे प्राप्त करते हैं। आनंद प्राप्त कि आप आनंद का सागर हो गए। फिर करते हैं। आज सहजयोग में आप लोग आप देखते हैं कि आप प्यार का सागर हो आए और यहाँ आकर आपने भी उस चीज गए। आपको आश्चर्य होता है कि आप तो को पा लिया। आपका भी संबंध हो गया ऐसे कभी थे नहीं। आप ऐसे कैसे हो गए Connection हो गया। अब इसको जमाए अरे आप थे आप को मालुम नहीं था। रखो और उसका आनंद उठाओ। उसके अब कृण्डलिनी ने आपका संबंध कर दिया। अब ये देखिए। इसका संबंध ये जो चारों माँ अभी मैं पार तो हो गया पर मुझे खुशी ओर फैली हुई बिजली की शक्ति है उससे ही नहीं होती। ये तो ऐसा ही है कि हो गया | अब देखने को तो इतना छोटा Connection कुछ कम है। मा मैं पार तो का अनुभव करेंगे, उसी से आनंद आएगा । आगे बाकी सब चीज़े तुच्छ है। कोई लिखेगा 1 सा लग रहा है। पर इसका संबंध होते ही हो गया पर अभी मेरे घर में पैसा नहीं साथ बिजली क्रियान्वित हो गई। ऐसे ही आया। इसका मतलब आप पार नहीं हुए। कुण्डलिनी का संबंध होते ही आप कार्यान्वित ऐसे बकवास जितने लोग करते हैं उनकी हो जाते हैं। जिन सहजयोगियों ने सहज जो चिट्टियाँ आती हैं वो मैं बंद करके को पाया है मैं कहुँगी इसको सहज से रखती हूँ और उनसे कहती हैं कि तुम पाया है। और पाया क्या है, वो प्यार का ज़रा थोड़ा और अभी try करो। जब आदमी सागर जो हमारे मस्तिष्क में, जो हमारे पार हो जाता है तो वो बदल ही जाता है। मि सहस्रार में क्या कहना चाहिए, दबा हुआ है उसकी इन्सानी मोहब्बत प्यार में बदल वो आज खुल गया। उसका संबंध हमारा जाती है। वो एक दूसरा ही प्राणी हो जाता हो गया और वो बह गया। उसके प्रवाह में है। उनकी शक्ल ही बदल जाती है। कुछ सितम्बर-अक्टूबर 2002 19 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 देखते ही बनता है। अभी एक साहब आये से आप गलत रास्तै पे जाते हैं। स्वयं को थे इंग्लैण्ड से, बड़े मरीज, बीमार, मरीगल्ले नष्ट करने का Selidestructive काम करते लग रहे थे। अभी आए मैंने पहचाना नहीं। हैं। तो क्या फायदा ऐसे अहंकार से कि आपने पहचाना नहीं। मैंने नहीं पहचाना जिससे आप अपने ही को नष्ट करते हैं? भाई, तुम कौन हो? मैं वो हूँ। और कह उसका बोलना अलग, चलना अलग, ढाल कर पैर पर गिर गए। मेरे भी ऑँखों से अलग। और उस अहंकार में वो किसी से आँसू आ गए। जो आदमी अपने मरने के मिलते नहीं। किसी से उनका पटता नहीं। दिन गिन रहा था आज उसका ये हाल हो, वो अपने अलग रहते हैं। मुझे ये आदमी पसंद नहीं। मुझे वो आदमी पसंद नहीं। वो गया। और ये अहंकार की जो बीमारी है इसका कभी भी किसी भी तरह से सम्मिलित नहीं तो नाम लेते ही गला सूख जाता है। ऐसा होते कभी भी वो दूसरों की बात नहीं ये पागलपन है। ऐसा ये स्वंय को नष्ट सुनते। अपनी सुनाते रहते हैं। ऐसे अहंकारी करने वाला एक राक्षस है जो कि आपको आदमी का जीवन माने मरने से भी बदतर। एकदम खत्म कर देगा और आप उसको एक साहब मैं, जानती थी, बड़े अहंकारी Justify करते रहते हैं । उसको आप कहते थे बहुत बड़े आदमी थे। पार्लियामेंट में थे हैं ठीक है ठीक है। इसलिए मैंने किया जाने कहाँ-कहाँ। पर जब वे मरे हैं तो उसलिए मैंने किया। किस लिए किया हो चार आदमी उनको उठाने के लिए नहीं सो सिर्फ तुम्हारे अंदर अहंकार भरा है । मिले चार आदमी तो उनको किराए पर अहंकार इंसान में भरना तो इतना खराब है कि उससे खराब तो मैं सोचती हूँ कि लाश को उठाओ| ऐसे अहंकार से क्या कोई चीज़ हो ही नहीं सकती। मैं कोई फायदा कि मरते वक्त वहाँ पर चार आदमी विशेष हैँ मेरा ऐसा है। और फिर उससे भी नहीं थे और कोई रिश्तेदार भी नहीं । जब वो देखता है कि मुझे कुछ लाभ नहीं कोई मिलने वाला भी नहीं । कोई कहने हुआ। लोग मुझे देखते भी नहीं। कोई मुझे वाला भी नहीं । इंसान से मानो उठ गए पूछता भी नहीं। तब वो ठीक होते हैं। वो और उनका मानो कुत्ता था वो भी नहीं फ़ायदा क्या? पूरी तरह से आपने अपना वहाँ खड़ा हुआ चार आदमी बुलाने पड़े कि भाई इनकी । मैंने कहा भई हद हो गई नुकसान कर लिया। उसके बाद आप इस आदमी ने ऐसा कौन सा पाप कर्म अहंकार, इसको कहते हैं ठीक करना। हर किया सिवाय इसके कि उसमें बहुत अहंकार एक चीज़ से अहंकार चढ़ता है। पैसा हो था इस अहंकार में उनकी यह दशा हो तो, सत्ता हो तो, और भी कोई चीज़ हो तो गई कि मरते वक्त उनको कोई उठाने अहंकार चढ़ता है। और फिर उसी अहंकार वाला भी नहीं! श्र ) जन कार्यक्रम रामलीला मैदान, 24.03.2002 (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का अंग्रेजी प्रवचन) मैं प्रेम के विषय में बहुत कुछ बता चुकी ये क्या लाभ होगा। भारत में आप यदि किसी निर्धन के घर हूँ परन्तु मुझे सब हिन्दी में बताना पड़ा। परन्तु प्रेम के विषय की अभिव्यक्ति हिन्दी में भी जाएंगे तो वो आपसे बैठने के लिए में ही बेहतर होती है। आप देखते हैं कि कहेगा, दूध आदि पेय आपको पेश करेगा। प्रेम करने की क्षमता भारत में बहुत अधिक उनके हृदय बहुत विशाल हैं। आजकल है। अपने प्रेम के सहारे लोग जीवन बिता हम लोग भी बहुत धन लोलुप होते चले जा लेते हैं। लोग एक दूसरे को अपने प्रेम के रहे हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं इस देश में माध्यम से समझते हैं । निःसन्देह पश्चिमी बहुत अधिक धन नहीं है इसीलिए लोगों में संस्कृति में रंगे भारतीयों में इस गुण का प्रेम करने की क्षमता बनी हुई है। इस बात अभाव है। पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित पर आपने ध्यान दिया होगा आप सब भारतीय के मन में तो अपने देश के लिए लोग आजकल यहाँ हैं, आप देखते हैं कि भी प्रेम नहीं है। अपने देश को प्रेम करने भारतीय कितने प्रेममय हैं परन्तु आधुनिक वाले बहुत से लोग हैं। हमारे यहाँ भी ऐसे भारतीय ऐसे नहीं है। आधुनिक भारतीय बहुत से लोग हैं। कुल मिलाकर भारतीय तो आप लोगों का मुकाबला करते हैं। मैं लोग अत्यन्त प्रेममय हैं। आप यदि किसी उनके विषय में कुछ नहीं कह सकती। के घर पर जाएं तो वो आपसे प्रेम करते हैं परन्तु पारंपरिक लोग. भारतीय संस्कृति में आपको खाना आदि खिलाकर वो बहुत विश्वास करने वाले वृद्ध लोग अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। घर में यदि कुछ उपलब्ध प्रेममय हैं। यही कारण है कि तीन सौ वर्ष न हो तो वो तुरन्त बाहर से लाते हैं। वे के अंग्रेजी साम्राज्य के बाद भी हम जीवित अपने मित्रों को बताते हैं. टेलिफोन करते हैं और हमने अपनी संस्कृति को बनाया हैं। अतिथि की वो सेवा करते हैं । यह हुआ है। देश के प्रति उनके प्रेम के कारण प्रेम- भाव पूरे विश्व में अन्यंत्र कहीं नहीं है । ही ये सब संभव कहीं भी नहीं । अतिथि की सेवा में प्रायः आपको कहीं अन्य नहीं मिलेंगे । किसी गाँव लोगों को विश्वास ही नहीं है। अन्य देशों में या कहीं अन्यंत्र आप जाएं तो लोग में कहीं भी आप जाएं, लोगों का नज़रिया आपकी सहायता करने का प्रयत्न करेंगे। अत्यन्त लेखे जोखे वाला होता है कि इससे आपके विदेशी होने के कारण वे आपका है । ऐसे प्रेममय लोग सितम्बर अक्टूबर 2002 21 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 सम्मान करेंगे विदेशी या विदेश से आया उन्होंने सब कुछ लौटा दिया। अतः विदेशी व्यक्ति हमारे लिए सम्मानजनक होता है। हमारे लिए सम्मानजनक होते हैं, प्रेम के । परंतु पश्चिम में मैंने ये बात कहीं योग्य पुकारने या निमंत्रित करने के उनके आपको तौर-तरीके अत्यन्त सम्मानजनक होंगे। भी नहीं देखी। नि:संदेह सहजयोगी इस विदेशियों के प्रति यहाँ के लोग अत्यन्त मामले में भिन्न हैं । पश्चिमी देशों में विदेशियों पर शक किया जाता सम्मान दर्शाते हैं। परन्तु विदेशों में किसी अन्य देश से है। अत्यन्त आश्चर्य की बात है कि ईसामसीह के देश आए हुए व्यक्ति को बहुत तुच्छ माना जाता है। आप यदि विदेशी हैं तो आप उनकी दृष्टि में बहुत में इस प्रकार का स्वभाव व संस्कृति कैसे आई! उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य तो प्रेम था । फिर क्यों उन्हें मानने वाले पश्चिमी तुच्छ हैं। ओ ह, विदेशी हैं. ठीक है! परन्तु यहाँ पर विदेशियों के साथ देशों में इस प्रकार की संस्कृति पनपी, मैं नहीं समझ पाती। ऐसा व्यवहार नहीं होता। यहाँ पर लोग उनके आपकी सराहना करें गे , समझेंगे और आपको प्रेम करेंगे। अपने प्रेम को वो अभिव्यक्त करेंगे। मैंने कभी किसी अपराध माना जाता है अब आप लोग सहजयोगी को विदेश में अपमानित होते यहाँ आए हैं, आप सहजयोगी हैं, आप उन्हें हुए या कष्ट उठाते हुए नहीं देखा। वे ऐसा ये सब सिखाएं। उन्हें केवल प्रेम एवं नहीं करते एक बार ऐसा हुआ कि चोरी करुणामय ही नहीं होना विदेशों से आए हो गई और चोर कैमरे आदि ले गए । तो लोगों की भावनाओं को भी समझना है। मैंने उनसे कहा, कि वो विदेशी हैं आपके निर्धन देशों से आए लोगों की देखभाल भी विषय में क्या सोचेंगे। छोटे-छोटे बच्चों ने करनी है। इस चीज़ का इतना प्रसार होना ये कार्य किया था मेरी बात को सुनकर चाहिए कि हम निर्धन लोगों की सहायता में सम्बन्धों की अभि आपको -व्यक्ति में किसी को प्रे म करना सितम्बर-अक्टूबर 2002 22 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 जुट जाएं और कष्टों से घिरे लोगों को प्रेम धर्म के प्रचार के लिए धन दिया करते थे। करने लगे ये गुण सभी विदेशियों में पनपना आपको केवल इसलिए लोगों की सहायता आवश्यक है, विशेष रूप से सहजयोगियों करनी चाहिए क्योंकि उन्हें सहायता की में कि वे उन लोगों के प्रति अपने हृदय में आवश्यकता है। हो सकता है कि अगले प्रेम विकसित करें जिनके पास वो सब जन्म में आपको भी सहायता की आवश्यकता नहीं है जो हमारे पास है मैं आपको पड़े। अतः बेहतर होगा कि इस प्रकार की कुछ बताना चाहूँगी कि आस्ट्रिया से आई एक उदारता, प्रेम और सूझ बूझ को अपना लें महिला से मिलकर मुझे बहुत प्रसन्नता और सभी मानवीय समस्याओं को समझें। हुई। वह यतीमखाना शुरु करना चाहती मैं आपको बताती हूँ कि हमारी सारी थीं। कहने लगी, "श्रीमाताजी हमें भी अवश्य समस्याएं, विश्व की सभी समस्याएं सच्चे 1 कुछ करना चाहिए।" मुझे बहुत प्रसन्नता प्रेम से सुलझाई जा सकती हैं। इन सभी हुई मैंने उससे कहा कि चिन्ता मत करो मैं समस्याओं का समाधान हो सकता है चाहे तुम्हें सभी कुछ दूंगी। मैं तुम्हें भूमि दूंगी ये भारत की समस्याएं हों या अन्य देशों और भवन भी बना कर दूंगी तुम्हें केवल ये की। केवल प्रेम की कमी है । अतः अनाथालय चलाना है। कहने लगी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करें; आत्मसाक्षात्कार श्रीमाताजी हम तो इस कार्य के लिए 80 प्राप्त करके, चाहे इस बात को आप माने लाख रुपये एकत्र कर चुके हैं। हे परमात्मा, या न माने, आप प्रेम सागर में उतर जाएंगे। तुमने किस प्रकार इतना धन एकत्र कर लिया? सभी से ये धन एकत्र किया गया। परमात्मा आपको धन्य करे। मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। अन्यथा लोग ईसाई होली पूजा पालम विहार, गुड़गाँव, 28.03.2002 (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) श्री कृष्ण के समय में, द्वापर में, वो मरा, और वो आग में से निकल आया चाहते थे कि उनसे पूर्व अवतरित विष्णु जी साफ। ये बड़ी भारी एक घटना है जिससे के अवतरण, श्री राम द्वारा अपनाई गई लोग समझ गये कि पाप करना, दुष्टता मर्यादाएं तथा त्याग के बाहुल्य को सन्तुलित करना, बुराई करना गलत बात है क्योंकि किया जाए। श्री राम की मर्यादाओं से वो जल गयी उसको वरदान था कि वो आग में जल नहीं सकती। ऐसी प्रथा है समाज जो है वो बहुत शांत तो हो गया लेकिन उसमें कोई उल्लास नहीं रहा, आनंद इसलिए हम होली को यह करते हैं। अपने नहीं रहा। इसलिए उन्होंने सोचा कि एक यहाँ जो कुछ भी ऐसी बनी हुई चीजें हैं ऐसा पर्व होना चाहिए जिसमें आदमी मुक्त इसमें बड़ी सत्यता है। समझने की यह कंठ से हंसे, खुश हो जाये, आनंदित हो बात है कि हम लोग यदि बदमाशियां करें, जाये। और वहीं हर एक चीज़ का जो किसी को खराब कहें, दूसरों को परेशान परिहास होता है उसी तरह से उस दिन करें, तंग करें तो ये सब राक्षसी प्रवृत्तियाँ होली का भी आगमन होना ही था। परन्तु हैं और Right sided लोगों में आ जाती हैं लोगों ने बहुत खराब तरीके से होली का राक्षसी प्रवृत्तियाँ । इसलिए ऐसे कोई भी त्यौहार मनाया और इसका नाम बदनाम मन में विचार आये तो उससे दूर भागना किया। यहाँ तक कि मैंने इनसे कहा-मैं चाहिए और उसको मान्यता नहीं देनी तो होली नहीं खेलती। चाहिए। हमको सबके प्रति प्रेम बनाकर पर इसका जो इतिहास है वो ये है कि रखना चाहिए। यह खास चीज़ है। इसको एक राक्षसी थी, होलिका, और प्रहलाद की गर समझ लें तो अच्छा है नहीं तो सब वो बहन थी और प्रहलाद का पिता उसे लोग होलिका हो जायेंगे, सब राक्षस हो बहुत सताता था। उसको (होलिका) वरदान जायेंगे अब Right sided लोगों में आ था कि वो जलती नहीं है। उन्होंने कहा कि जाती हैं। बड़ा भारी एक Lesson है इसमें इस लड़के को फेंक दो आग में और कि वो तो बेचारा एक छोटा सा बालक था, होलिका तो जलेगी नहीं। होलिका उसे उसको तो कुछ नहीं हुआ। उसको परमात्मा लेकर आग में कूद पड़ी। पर आश्चर्य की ने बचा लिया और ये औरत जल गयी बात है कि वो जल गयी और प्रहलाद नहीं जिसको वरदान था कि वो जल ही नहीं सितम्बर-अक्टूबर 2002 24 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 पाएगी तपस्या से उसने वरदान प्राप्त किया हैं जिससे ऐसा कोई भी आदमी आपको था, वो जल गयी और ये नहीं जला! उससे सताने की कोशिश करे तो भी आप प्रहलाद ये तात्पर्य होता है कि आदमी को भी के जैसे बच जाएंगे| आपको कोई कष्ट इंसान को यह सोचना चाहिए कि यह सब नहीं होगा आप बहुत Protection में हैं । चीजें जो हमारे अंदर आती भी हैं? ये सब ऐसी कोई भी चीज़ आपको नष्ट नहीं कर विध्वंसक हैं और इसको छोड़ देना चाहिए। सकती। इसलिए किसी के प्रति घृणा या सबके प्रति उदार प्रेम से रहना चाहिए। कोई नाराजगी, ये नहीं होनी चाहिए। सबके झगड़े करेंगे, मारा पीटी करेंगे, सब कुछ तरफ ये सोचना चाहिए कि बेचारा कितना होता है पर ये कोई बड़ी अच्छी चीजें नहीं बेकार है, इस तरह की इसके अंदर बातें हैं, राक्षसी प्रवृत्तियाँ हैं और राक्षसी प्रवृत्तियों हैं और इसको ठीक करना चाहिए। उसके में हमको नहीं उतरना चाहिए क्योंकि हम प्रति यदि क्षमाशील हो जाएं तो ठीक हो लोग सहजयोगी हैं। ये एक विशेष स्वरूप सकता है। इसका एक बड़ा भारी उदाहरण के लोग हैं जो दुनिया को बदलने के लिए प्रह्लाद आये हैं, दुनिया को सुधारने के लिए आये और उसने पिता को चुनौती दे दी। उसका हैं और उस तरफ ध्यान देना चाहिए। हम पिता राक्षस था पर देखिए कि वो तो बच लोग बहुत ऊँचे हैं, इन सबसे बहुत ऊँचे हैं गया और पिता की मृत्यु हो गयी | तो मृत्यु और इससे दुनिया को बचाना चाहिए। की बात नहीं है अपना भी पतन हो जाता आजकल ये बहुत ज्यादा फैल गया है। है, हम लोग जो गलत सलत बात सोचते इसलिए ये जो घिनोनी बातें हैं ये कहनी हैं, अपना बहुत पतन होता हैं। इसलिए चाहिएं, जो आततायी बातें हैं जिससे कि कभी भी किसी के प्रति घृणा या उसके आप दूसरों पे हावी रहते हैं, दूसरों को प्रति द्वेश भाव हो तो उसको निकाल देना सताना चाहते हैं, कुछ कहना चाहते हैं चाहिए। ये होली का आपके लिए संदेश गुन्दी बातें ये सारी बातें सहजयोग में करने है । की को ई जरूरत नहीं। आप स्वयं शक्तिशाली हैं आपके अंदर ऐसी शक्तियाँ तत है जो कि छोटा सा लड़का था परमात्मा आपको धन्य करें। fut) आ गुड़ी पड़वा पूजा पालम विहार, गुड़गाँव, 13.04.2002 (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) हम लोग जो मनाते हैं गुड़ी पड़वा ऐसा भी तिथियां हैं वो मानते हैं। एक तारीख हर एक जगह है, साउथ में भी है। हर ऐसी जरूर है जो सूर्य के रूप से होता है। जगह ये त्यौहार मनाया जाता है। जो सूर्य जब दक्षिणायण से उत्तरायण में आता सम्वत शुरु हुआ है और जो शालीवाहान ने है उस दिन जरूर हम एक त्यौहार मानते भी सम्वत शुरु किया वो सब एक ही दिन हैं। वो सारे देश में वही दिन माना जाता पड़ते हैं। वो आज का ही दिन है और सारे है। अब जो है, चन्द्रमा के हिसाब से, देश में उसको माना जाता है। उसी के ज्योतिष शास्त्र भी हमारे यहाँ चन्द्रमा के हिसाब से सब हमारी तिथियां और सब हिसाब से चलता है। ज्योतिष में भी चन्द्रमा हमारी तारीखें बनायी जाती हैं खास करके की स्थिति देखी जाती है। कहाँ है, क्या है। त्यौहार। और हम लोग चन्द्रमा के कैलेंडर उसी के अनुसार ज्योतिष शास्त्र बनाया पर चलते हैं। विदेशी लोग जो हैं वो सूर्य जाता है । और इसीलिए जो पहले हमारा के कैलेंडर पर चलते हैं इसलिए उनकी कैलेंडर बनाया गया जिसको कि हम लोग तारीख कभी बदलती नहीं है अपने यहाँ हर एक त्यौहार हमेशा चन्द्र की स्थिति पर होता है और इसलिए हमारे पर निर्भर हैं, जिन लोगों को अपनी तिथि यहाँ की तारीख भी बदलती है और का पता नहीं होगा वो समझ नहीं पाएंगे कहते हैं शालीवाहन-शक वो भी सब चन्द्रमा पर बना हुआ है। सारी तिथियां भी चन्द्रमा अलग-अलग दिन वही त्यौहार होता है, कि क्यों अलग-अलग तिथि पे ये त्यौहार इस प्रकार चन्द्रमा का जो है हम लोग आते हैं। बहुत मान करते हैं और उसके अनुसार जो अपनी सब तिथियां मानते हैं। उसका वो जो भी हो हमें सोचना चाहिए कि चन्द्रमा का इतना महत्व हम लोगों ने किया कारण ये है कि चन्द्रमा का असर मनुष्य उसका कारण यह है कि चन्द्रमा से जो पर ज़्यादा होता है, सूर्य का नहीं होता और हमारे ऊपर असर आते हैं उसके बारे में चन्द्रमा के साथ जो और ग्रह है उनका भी हम सतर्क रहे। चन्द्रमा से सबसे बड़ा असर मनुष्य पर होता है। इसलिए चन्द्रमा असर ये आता है कि हमारी Left Side उस को ही हम लोग मानते हैं और उसी के पर आधारित है इसके बारे में बहुत कम अनुसार हम अपने जो भी त्यौहार हैं, जो लोग जानते हैं, और ये जो Left Side हमारे सितम्बर-अक्टूबर 2002 26 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 अंदर आ गयी है जिसका कि हम लोगों ने चलता है, पर यह बात सही नहीं है। विशेष रूप से जतन किया हुआ है, इस हमको चन्द्रमा की स्थिति ज़रूर देखनी देश ने माना हुआ है, उसकी वजह यह है चाहिए कि आज क्या स्थिति है कल क्या कि इसके परिणाम हमारे ऊपर मानसिक स्थिति है? आज कौन सा असर आएगा? हैं, Left Side में जो असर आते हैं वो यह बड़ा गहन विषय है जिसके बारे में मानसिक हैं। बौद्धिक नहीं हैं, मानसिक हैं, जानना चाहिए और अपने देश में इसके उसको हम कंट्रोल नहीं कर सकते। जो ऊपर बड़ा विचार किया जाए। मानसिक तकलीफें हैं उसको हम कंट्रोल नहीं कर सकते। चन्द्रमा के जो असर हैं जाता है वो नववर्ष है इसलिए और चन्द्रमा उसको हम कंट्रोल नहीं कर सकते। इसलिए का आगमन है इसलिए भी आज का दिन चन्द्रमा की तिथि देखी जाती है। जैसे माना जाता है। इस दिन जो गुड़ी-पड़वा अमावस्या चन्द्रमा की होगी या पूर्णिमा होगी कहते हैं जिसको कि एक लोटे के अन्दर तो गर किसी आदमी में मिर्गी की बीमारी एक पताका लगाके और पताके का डंडा हो या इस तरह की मानसिक तकलीफ हो वो जो लोटा होता है उसमें लगा देते हैं. तो बहुत बढ़ जाएगी। उस वक्त में एकदम यह जो लोटा होता है यह Represent दिखाई देगा कि इनको असर आया है करता है कुण्डलिनी को और उसमें समर्पित पूर्णिमा का या इन पर असर आया है होकर के किया हुआ है। शालीवाहन लोग अमावस्या का, इसलिए हम लोग इस तरफ जो थे वो देवी भक्त थे और कहा जाता था बहुत संवेदनशील हैं कि चन्द्रमा कहाँ है कि ये देवी को शाल देते थे। पर वो कौन सी तिथि में हैं, इसका Calculation सातवाहन भी कहलाए जाते थे, शुरु हमारे यहाँ इतना बारीक किया हुआ है कि क्योंकि वो सात चक्रों को मानते थे इसलिए हमारे यहाँ ग्रहण कब लगेंगे और ग्रहण की उनको, शालीवाहन, बाद में बदल गया, पर अब आज के दिन जो इतना माना में स्थिति क्या रहेगी, वह कब टूटेंगे, इतना है सातवाहन। सातवाहन से अब शालीवाहन ज्यादा हमारे यहाँ उसपर विचार किया हो गए। पर शालीवाहन का प्रतीक वही गया है और इतना हमारे अंदर उसका बनाते हैं कि गुड़ी खड़ी करेंगे। गुड़ी के ज्ञान है। इससे दिखता है कि अपने देश में माने झंडा, वो प्रतीक रूप और उसके चन्द्रमा के असर का बहुत ख़्याल किया ऊपर में एक जो लोटा होता उसका एक गया है, विचार किया गया है और उसपर आधारित उन्होंने इतनी बातें कही हुई हैं। का द्योतक है। वो कुण्डलिनी के पुजारी अब ऐसा है कि Modern Times में हम थे कुण्डलिनी को मानते थे । इसलिए लोग आ गए तो सूर्य के ही ऊपर से सब उन्होंने वो चीज़ इस तरह की बनाई है चचा Particular Shape होता है वो भी कुण्डलिनी सितम्बर-अक्टूबर 2002 27 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 और जो मानता है में खड़ी करता है, एक झंडा लगाता है। जानेंगे, हमें उसके प्रति आदर, प्रेम नहीं हो इसका कारण वही है कि वो लोग चाहते थे सकता। बहुत बड़ी-बड़ी गहरी चीज़ें हैं। कि हम इस दिन कुण्डलिनी का स्वागत पर वो गहरी चीजें हम जानते ही नहीं । करते हैं और कुण्डलिनी का विशेष रूप से कह दिया कलियुग है। ये कलियुग क्यों है, वो ऐसी गुड़ी अपने घर तक हम लोग अपने देश के बारे में नहीं प्रदर्शन करते थे। लोगों को पता ही नहीं कैसे आया? इसका क्या मतलब है? ये सब कि ऐसा क्यों करते हैं, करते ही जा रहे हम लोग जानते नहीं हैं, सिर्फ सुन-सुन हैं। कोई चीज़ करते रहते हैं। पर पूछना के बातें करते हैं, पर इसकी बड़ी भारी तो चाहिए कि ऐसा क्यों! यह क्या चीज़ है । कहानी है कलियुग की, परिक्षित राजा के क्योंकि वो सातवाहन थे, सातवाहन को Time की। वो कोई जानता ही नहीं, कोई मानते थे और कुण्डलिनी के रक्षक थे, पढ़ता ही नहीं । सब बेकार की चीजें पढ़ते कुण्डलिनी की पूजा करते थे इसलिए रहते हैं । ज़्यादा से ज्यादा कभी हो तो उन्होंने इस तरह से अपना नववर्ष शुरु रामायण पढ़ लेंगे पर इसके पीछे में जो किया। नववर्ष में उन्होंने ये दयोतक मतलब संदेश है या इसके पीछे में जो शास्त्र है, ऐसा मनाया कि एक लोटा हो और उसके उसके बारे में कोई जानता नहीं । नीचे ये झंडा, ये गुड़ी लगाई जाए। यहाँ इस चीज़ को इतना मानते नहीं और कोई जानें, हमारे देश की जो सभ्यता है वो तो हम सहजयोगियों को चाहिए कि हम जानता भी नहीं है। पर सम्वत सर भी जो कहाँ से आयी और किस तरह से हम इस छपता है या विक्रम, वो भी आज ही से स्थिति में पहुँचे, ये जानना चाहिए, क्योंकि शुरु हुआ है। हो सकता है दोनों के साल उसको जाने बगैर हमारे अंदर यही परदेसी अलग हों पर दिन यही है। ये भी इसी दिमाग आ जाएगा और उससे अहंकार अमावस्या को मानते हैं और वो भी इसी और ये सब चीजें आ जाएंगी । बेहतर है अमावस्या को मानते हैं। तो इस तरह से कि समझ लें कि हमारे अंदर जो ये चीजें ये जो गुड़ी पाड़वा है, ये जो चीज़ है ये हैं वो कहाँ से आयी हैं उसका क्या महात्म्य दोनों में माना जाता है। अमावस्या नहीं है। ये हम क्यों करते हैं? बस यूं अपना होती, प्रथमा जिसको कहते हैं पहला दिन, करते हैं सब लोग, तो हम भी करते हैं। ये वो है आज, इसीलिए आज चन्द्रमा वगैरह बात ठीक नहीं, उसको समझ लेना चाहिए। कुछ नहीं। आज आकाश में, पूरा अंधेरा यही मैं चाहती हूँ कि सब सहजयोगी इसको है। पर हम लोगों को जानना चाहिए कि समझ लें, जान लें। ग़र हमारे पास Time हमारे देश के अंदर ये क्यों होता है और होता तो हम सब लिख देते पर हमारे पास उसके अंदर उसकी क्या विशेषता है। जब Time नहीं है। आप लोग इसको पढ़ सकते सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 28 हैं और जान सकते हैं। अपने यहाँ सारी क्योंकि विदेशी भाषा जो है या विदेशी जो किताबें हैं। हिन्दुस्तान में हिन्दी भाषा में कुछ भी ज्ञान है वो बहुत ही ज्यादा इतनी किताबें हैं, कोई ये किताबें पढ़ता ही Superficial कहलाती है । इसलिए आप लोग नहीं। सारी दिल्ली में ही मिलती हैं। मैंने तो दिल्ली में ही खरीदीं थी। तो इनके बारे है, मैंने वहीं से बहुत सी किताबें खरीदीं, में जानना चाहिए, जो पौराणिक है जो सुन्दर है दुकान, उसी दुकान से बहुत सी कहने को पौराण हैं लेकिन उसमें बहुत सी किताबें लाई थी, बहुत सस्ती मिलती हैं । फायदे की बातें हैं जो समझ लेने से हम पैसा नहीं लगता। पर Time चाहिए पढ़ने समझ सकते हैं कि भारतवर्ष के नीव में के लिए। फालतू चीजें हम पढ़ते रहते हैं, क्या चीज़ है। हम लोग हिन्दुस्तानी क्यों फालतू सिनेमा देखते रहते हैं, फालतू News सबसे श्रेष्ठ माने जाते हैं? मतलब सामाजिक पढ़ते रहते हैं, पर जो हमारा अध्ययन होना रूप से न हों पर सांस्कृतिक रूप से हम चाहिए वो बहुत गहन और ऐसी चीजों पे लोग बहुत श्रेष्ठ माने जाते हैं। और दूसरा होना चाहिए जो हमारे पास बहुत सालों से ये कि धर्म में कैसी स्थापना करना चाहिए, आयी है। आज का दिन बड़ा शुभ है। वैसे, धर्म क्या है बहुत कुछ गहरी बातें लिखी मेरी इतनी तबीयत अच्छी नहीं थी पर मैंने हुई हैं। मैं चाहती हूँ कि आप लोग कुछ कहा कि ऐसे शुभ अवसर पे क्या करें, इसका अध्ययन करें, पढ़े तो एक नई पूजा में तो जाना ही है। दिशा आप लोगों को मिल सकती है । कोशिश करें कि आपके यहाँ सस्ता साहित्य अनंत आशीर्वाद सहस्रार पूजा कबैला, 06.05.2002 (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) कल की रात पूर्णतया अंधेरी रात थी। ही खराब हो गई है। लोग, अपने मस्तिष्क- इसे अमावस्या कहते हैं। इसके साथ क्षेत्र (Limbic Area) को अत्यन्त संवेदनशील शुक्ल-पक्ष (Moonlit Phase) का आरम्भ बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं। अत्यन्त हुआ है। आज हम उस पर्व को मनाने के उदासी से भरे उपन्यास, उदासी से भरी लिए यहाँ एकत्र हुए हैं जब सहस्रार खोला विचारधाराएं और अत्यन्त उदास संगीत गया था। आपने यह फोटो में भी देखा है । आदि जैसे मूर्खतापूर्ण यूनानी त्रासदी । इन से वास्तव में यह मेरे मस्तिष्क का चित्र था सारी चीजों का उद्भव मध्यकालीन युग जिसमें दर्शाया गया कि सहस्रार किस प्रकार है और अब ये इस नवयुग तक आ पहुँची खोला गया। अब मस्तिष्क के प्रकाश का हैं मस्तिष्क क्षेत्र पर आकर व्यक्ति की भी फोटो लिया जा सकता है। आधुनिक स्थिति बिल्कुल बेकार थी जिसने उसे काल की यह महान उपलब्धि है। आधुनिक अत्यन्त उदासीन बना दिया। ऐसी स्थिति काल में ऐसी बहुत सी चीजें आई है जिनसे में विपत्तियों से बचने के लिए व्यक्ति शराब परमात्मा के मस्तिष्क को प्रमाणित किया आदि की लत में फँस जाता है। आज इस जा सकता है, मेरे विषय में भी यह प्रमाण आधुनिक युग में लोग अत्यन्त गतिशील दे सकता है। यह आपको विश्वस्त कर सकता है कि मैं क्या हूँ। ऐसा होना बहुत सक्रियता का आरम्भ हुआ और उसके आवश्यक है क्योंकि आधुनिक काल में इस साथ-साथ मस्तिष्क भी अत्याधिक सक्रिय अवतरण का पहचाना जाना महत्वपूर्ण है। हो उठा। पहले की उदासीन स्थिति के इसका पूरी तरह से पहचाना जाना। सभी साथ-साथ ये अत्याधिक सक्रियता की दूसरी सहजयोगियों के लिए ये शर्त है। आइए अब देखते हैं कि आधुनिक मानव के लिए लोग नशे-सेवन करने लगे और के मस्तिष्क में क्या चल रहा है। आज के उन्होंने भयानक संगीत अपना लिया। इस मनुष्य के मस्तिष्क में यदि हम झाँके तो प्रकार से लोगों ने अपने सहस्रार क्षेत्र पता चलता है कि सहस्रार पर आक्रमण हो (Limbic Area) को संवेदनहीन कर लिया। रहा है। बहुत समय से ये आक्रमण चल जो नशा आरम्भ में मात्र स्फूर्तिप्रद होता था रहा है परन्तु आज के युग में स्थिति बहुत बाद में उसी को बहुत अधिक मात्रा में लेने (Over active) हो गए हैं। अत्याधिक अति में चला गया। अतः इसे शान्त करने सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 30 की आवश्यकता पड़ने लगी। और फिर ये दरवाजे के कारण कुण्डलिनी उनके सिर नशे अत्यन्त तीव्र स्तर के होते हैं। इस में दबाव बनाती है जिसे वे समझ नहीं पाते तरह से चलता रहा और अब हम जानते और उसे तनाव (Tension) की संज्ञा दे हैं कि लोग सोचते हैं कि वे केवल इन देते हैं । बास्तव में कुण्डलिनी स्वयं को नशों से ही जीवित रह सकते हैं । क्यों? बाहर निकालने का प्रयत्न कर रही होती उस तनाव के कारण जिसके बारे में वो है परन्तु यह निकल नहीं पाती। हमेशा बात करते हैं। आधुनिक काल में एक ऐसी स्थिति खड़ी हो गई है जिसे हम भी लोग यदि अपने सहस्र को ठीक नहीं तनाव (Tension) कहते हैं। पहले ये तनाव करते तब भी उन्हें तनाव हो सकता है। न हुआ करता थे। लोग कभी तनाव की यद्यपि सहस्रार को वर्ष पूर्व खोल बात न करते थे। अब सभी लोग कहते हैं दिया गया था फिर भी हमे अपने सहस्रार आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेने के पश्चात् बहुत मैं तनाव में हूँ। आप मुझे तनाव दे रहे हैं। को स्वच्छ करने के लिए कुछ कार्य करने होंगे। पहला कार्य सहस्रार का भेदन है। | ये तनाव हैं क्या? ये तनाव मेरे अवतरण के कारण है एक बार जब इसका भेदन हो जाता है, क्योंकि मस्तिष्क क्षेत्र मेरे विषय में जानना ब्रह्मरन्त्र खुल जाता है तब हम परमात्मा के चाहता है और ज्यों-ज्यों सहज योग बढ़ चैतन्य को महसूस करने लगते हैं और यह रहा है लोगों में कुण्डलिनी उठने का प्रयत्न चैतन्य हमारे ईडा और पिंगला मार्गों को कर रही है। क्योंकि आप लोग माध्यम भी प्रभावित करने लगता है। यह चैतन्य, बनते हैं, जहाँ भी आप जाते हैं कुण्डलिनी नहीं, जो कि चहुँ ओर व्याप्त है चैतन्य-लहरियों का सृजन करते हैं और हमारे बाएं और दाएं अनुकंपियों को शान्त ये चैतन्य लहरियाँ सन्देश के रूप में करता है, और इसके कारण हमारे चक्र कुण्डलिनी को चुनौती देती हैं और खुलते हैं और कुण्डलिनी के अधिक से परिणामस्वरूप कुछ लोगों में कुण्डलिनी अधिक तन्तु इन चक्रों का भेदन करने उठ जाती है । हो सकता है कि सहस्रार लगते हैं। यही कारण है कि मैं सदैव सहजयोगियों वापिस खिंच जाए क्योंकि उनमें कुण्डलिनी से कहती हूँ कि अवश्य ध्यान धारणा करें। की पहचान नहीं है. उसके प्रति श्रद्धा नहीं आपका सहस्रार यदि ठीक है तो आपके | अतः जब-जब भी आप कुछ करते हैं सभी चक्र ठीक होंगे। क्योंकि आप जानते तो कुण्डलिनी उठती है और आपको दबाव हैं कि सहस्रार स्थित चक्रों की पीठ ही इन देती है क्योंकि आपका सहस्रार खुला हुआ चक्रों के नियंत्रण केन्द्र हैं जो मस्तिष्क में नहीं है। यह दरवाजा बन्द है इस बन्द तालु क्षेत्र के ईर्द-गिर्द विद्यमान है। अतः तक न उठे या सहस्रार तक उठकर भी ये सितम्बर-अक्टूबर 2002 31 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10। यदि आपका सहस्रार स्वच्छ है तो सभी आप जब कहते हैं कि आप मुझे अपने कुछ अत्यन्त भिन्न प्रकार से घटित होगा। हृदय में बिठाते हैं तो वास्तव में आप किस प्रकार सहस्रार को ठीक रखा अपने सहस्रार में बिठाते हैं क्योंकि, जैसा जाए ये बहुत बड़ी समस्या है। इसके विषय कि आप जानते हैं, यहाँ पर ब्रह्मरन्ध्र है । ये में लोग हमेशा मुझसे पूछते हैं। आप जानते तालू अस्थि क्षेत्र है जिसमें पीठ हैं, वह हैं मैं सहस्रार में विराजती हूँ। सहस्र दल केन्द्र जो हृदय का नियंत्रण करता है. जो कमल में मैं अवतरित हुई हूँ इसीलिए मैं मुझे कि सदाशिव का स्थान है या आप कह सकते हैं शिव का इसका भेदन भी कर सकती हूँ। आज जिस रूप में आप स्थान है तो जब आप क मुझे अपने हृदय में स्थापित करते हैं तब मुझे देखते हैं उसके विषय में कहा आप मुझे बास्तव में सहस्रार में बिठाते हैं। अतः श्री शिव को गया है सहसारे महामाया। अंतः यह भ्रान्ति या भ्रम की हृदय से ब्रह्मरन्ध्र में या ब्रह्मरन्ध्र से हृदय स्थिति है जो आपके में लाने में दो तरह के लोगों को समस्या लिए हमेशा बनी रहती है। ये अत्यन्त कुछ लोग जो हृदय से बहुत संवेदनशील हैं जैसे हम देखते हैं इटली के लोग हृदय से आती है। भ्रामक है। इसे ऐसा ही होना था क्योंकि यदि मेरे अन्दर से सभी प्रकाश निकल रहे होते या जिस तरह से कल आपने सहस्रार को देखा संवेदनशील हैं । मुझे देखते ही पहला कार्य जिसमें चारों ओर से निराकार रंग फूट रहे जो वे करते हैं वह है अपने हाथों को हृदय थे और प्रकाश निकल रहा था, तो आप पर रख लेना और यही सब कुछ है। मेरा सामना न कर पाते, मुझे सहन न कर आरम्भ में मुझे अपने हृदय में महसूस पाते। करना बहुत सुगम है। अब आप कह सकते अब इस सहस्रार की देखभाल आपने हैं कि ये किस प्रकार करें? आपको भी मुझे करनी है। ये आपकी माँ का मन्दिर है । वैसे ही प्रेम करना होगा जैसे मैं आपको सितम्बर-अक्टूबर 2002 32 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 इस प्रेम में कोई शर्त नहीं होती, इसमें होगा क्योंकि आप मेरे अन्दर हैं और किसी कोई अवरोध नहीं होता, जो किसी प्रकार अन्य को ये उपदेश नहीं दे सकते कि प्रेम की राहत नहीं माँगता । जो किसी प्रकार किस प्रकार करना है। प्रेम अन्तः स्थित की वापिसी नहीं चाहता, जो निर्वाज्य है। है। आपके हृदय को खोलते ही प्रेम की परन्तु बन्धन बहुत हैं। सर्वप्रथम बन्धन की समस्या तब आती है जब आप सोचते हैं अब इसमें रूकावट क्या है? आइए इस कि यह कारण मुझे किसी से घृणा करने चीज़ को देखें। सर्वप्रथम बन्धन हैं पश्चमी के लिए विवश करता है या मैं फलों व्यक्ति देशों में प्रेम की अभिव्यक्ति को वास्तव में से प्रेम नहीं कर सकता क्योंकि उसके पाप माना जाता है। किसी से ये कहने में लिए ये शर्त है। परन्तु एक-एक करके इन कारणों को यदि आप देखें तो ये हास्यास्पद करती हूैँ। आपको परस्पर भी प्रेम करना अभिव्यक्ति होती है। भी समय लगता है कि में तुम्हें प्रेम करता हूँ (I Love You) । परन्तु मैं तुमसे घृणा हैं इन्हें सुगम बनाने के लिए मैं चाहूँगी कि करता हूँ (IHate You) कहना वहाँ बहुत आप बन्धनों के विषय में अच्छी तरह से आसान है। कोई बच्चा भी कहता चला समझें। एक बार मैंने अत्यन्त दिलचस्प जाएगा मैं तुमसे घृणा करता हूँ, मैं तुमसे लेख पढ़ा - घृणा करता हूँ, मैं तुमसे घृणा करता हैूँ। (Who Kiled the Romance ?) लेखक ने किसी से भी घृणा करना अपराध है अतः ये बताया कि ये कार्य हज्जाम (Hair Dresser) 'रोमांस की हत्या किसने की' कहना कि मैं तुमसे घृणा करता हूँ पाप का ने किया। मैं हैरान थी कि किस प्रकार वह कार्य है व्यक्ति को निरन्तर कहना चाहिए रोमांस को हज्जामों से जोड़ रहा था । "कि मैं तुमसे प्रेम करता हूँ। जो व्यक्ति लोग क्योंकि हज्जामों के पास जाया करते आपको इतना प्रिय है उससे यही कहना हैं और एक व्यक्ति को विशेष प्रकार की चाहिए। जिसने आपका कोई हित किया है शैली पसन्द है, वह हमेशा कहता कि मुझे उस व्यक्ति से आपको प्रेम करना चाहिए। बालों की इसी शैली से प्रेम है। मान लो परन्तु साक्षात् आदिशक्ति ने जब आपको उसकी पत्नी या मंगेतर किसी अन्य प्रकार पुनर्जन्म प्रदान किया है तो उन्हें प्रेम करना के बाल बनवा ले, क्योंकि रोज नई-नई तो आपके लिए सुगमतम होना चाहिए। चीजें आ रही हैं, तो तुरन्त पति कहेगा, जब वो कहती हैं कि मैंने सभी लोगों को तुम्हारे बालों की शैली के कारण मैं तुमसे अपने शरीर के अन्दर स्थान दिया है तब नफरत करता हूँ। क्योंकि उसे तो एक ही बो परस्पर प्रेम करना और भी सुगम हो प्रकार की बालों की शैली परसन्द है और जाना चाहिए। अतः इसी प्रेम के माध्यम से इसी के कारण वह उससे प्रेम करता सहस्र्रार की सभी बाधाएं दूर होती हैं । परन्तु प्रेमिका या पत्नी को बालों की कोई सितम्बर-अक्टूबर 2002 33 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 अन्य शैली पसन्द है तो आप उससे घृणा करते हैं क्योंकि उस व्यक्ति के पास धन करते हैं, आप कहते हैं कि ये मुझे पसन्द का प्राचुर्य है निःसन्देह वह व्यक्ति आपको नहीं है। मुझे पसन्द है या मुझे पसन्द नहीं अपना धन नहीं देगा। परन्तु आप उसको है कहना ही इस बात का चिन्ह है कि इसलिए प्रेम करते हैं क्योंकि उसके पास अभी तक बहुत अधिक बन्धन बाकी हैं। बहुत पैसा है या उसके पास एक अच्छी आप भली भांति बाल बनाएं, ठीक से वस्त्र गाड़ी है या वह बहुत अच्छे वस्त्र पहनता पहनें परन्तु आपके बाहर आते ही अचानक है आदि-आदि। तो व्यक्ति में इस प्रकार यदि लोग कहें, "ओह, मुझे इससे घृणा है! की धारणाएं प्रेम की हत्या है. प्रेम की यदि ये कहने वाले आप कौन हैं? किसी से भी हत्या हो जाएगी तो आनन्द समाप्त हो ये कहने का अधिकार हमें क्यों है? न्यायालय जाएगा प्रेम के बिना आनन्द प्राप्त नहीं ने आपको इसका न्यायाधीश नहीं नियुक्त किया जा सकता। मैं कहती हूँ कि प्रेम एवं किया तो क्यों किसी को चोट पहुँचाने के आनन्द एक ही चीज़ है । केवल तभी यह लिए हम कहते हैं मैं इससे घृणा करता हूँ। सूक्ष्मातिसूक्ष्म होता चला जाता है। तभी इसके विपरीत आपको कहना चाहिए कि आप अपने बच्चों से प्रेम करने लगते हैं, ये ये शैली ठीक है मुझे पसन्द है परन्तु तुम आम बात है। मेरा कहने से अभिप्राय है इससे भी बेहतर शैली अपना सकती हो। कि कुछ लोग अपने बच्चों से भी प्रेम नहीं प्रेम का यही चिन्ह है। प्रेम में आप चाहते करते सभी प्रकार के लोग हैं परन्तु वे कि वह व्यक्ति इस प्रकार की वेशभूषा कहते चले जाएंगे ये मेरा बच्चा है, ये मेरा पहने जो आकर्षक हो परन्तु लोगों को बच्चा है। ये भी प्रेम की मृत्यु है। जैसा मैंने देखने का यह अत्यन्त स्थूल तरीका है। आपको पहले भी बताया है पेड़ का रस तत्पश्चात् हम किसी व्यक्ति को देखने ऊपर को उठता है, सभी पत्तों में जाता है. जाते हैं कि वह कितना बुद्धिमान है. कितना फलों में जाता है, अन्य सभी हिस्सों में चुस्त है, कितना योग सिद्ध है, कितना जाता है और फिर वापिस आ जाता है । आकर्षक है? आकर्षक एक अन्य शब्द है जो अत्यन्त किसी विशेष भाग से या किसी एक फूल भ्रामक है। मस्तिष्क के कुछ इस प्रकार के से लिप्त हो जाए, क्योंकि यह अधिक सुन्दर बन्धन होते हैं कि आप सोचते हैं कि उस है, तो पूरा पेड़ मर जाएगा और फूल भी शैली विशेष वाला व्यक्ति ही प्रेम करने मर जाएगा तो यह प्रेम की मृत्यु है। अतः योग्य होता है या कुछ लोग बिल्कुल प्रेम नहीं जिसमें कोई चिपकन न हो, मोह न हो । करते फिर भी वो दर्शाते हैं कि हम प्रेम जब-जब भी मैं ये बात कहती हूँ तो लोग इसमें लिप्तता नहीं होती। रस यदि पेड़ के य है। आपका प्रेम उससे केवल बाह्य आपको इस प्रकार का प्रेम करना चाहिए श सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 34 पूछते हैं ऐसा किस प्रकार किया जाए? पुस्तक पढ़ रही थी, किसी अंग्रेज ने इसकी आत्मा का प्रेम ऐसा है। परन्तु बन्धन ग्रस्त बहुत सुन्दर प्रस्तावना लिखी थी, परिचय मस्तिष्क का प्रेम बिल्कुल भिन्न होता है । लिखा था उसने कहा था कि पश्चिम में बन्धन ग्रस्त मस्तिष्क सीमित रूप से प्रेम सृजनात्मकता की हत्या कर दी गई है। कर सकता है क्योंकि ये बन्धनों में फँसा तो उसने एक भारतीय आलोचक से पूछा कि क्या आप अपने कवियों की आलोचना हुआ है। हमारे अन्दर विद्यमान अहं प्रेम का कट्टर नहीं करते हैं। क्या आपके यहाँ आलोचक दुश्मन है। अहं हमारे सिर के शिखर पर नहीं हैं? "हाँ, हाँ हमारे यहाँ आलोचक हैं गुब्बारे की तरह से है और यही सभी प्रकार जो आलोचना करते हैं।" वो क्या आलोचना के तनाव का कारण है। इस प्रकार के करते हैं? "वो इस बात की आलोचना बन्धन, जैसे मान लो वो कोई कालीन करते हैं कि इस बार हमारे यहाँ बारिश देखते हैं और उनके मस्तिष्क के अनुसार नहीं हुई जिसके कारण बहुत सी समस्याएँ ये अच्छा नहीं है। तो वो एकदम से बोलेंगे, उत्पन्न हो गई। वो कहने लगा, "नहीं, ये कैसा कालीन है या कुछ और। इस नहीं, नहीं हम कवियों की बात कर रहे हैं, क्या वे कवियों की आलोचना करते हैं, क्या के प्रकार तुच्छ बन्धन या कुछ उच्च स्तर के बन्धन कि आप अपने देश से प्रेम करते वे कलाकारों की आलोचना करते हैं?" वह हैं क्योंकि मेरा देश सर्वोत्तम है चाहे वहाँ व्यक्ति बोला, "क्या ये सब चीजें आलोचना पर लोगों की हत्या ही की जा रही हो, के लिए हैं? इनका तो सृजन किया गया चाहे वह विश्व शान्ति को ही क्यों न नष्ट है! सृष्टा ने जो भी महसूस किया उसका कर रहा हो, परन्तु सब ठीक है क्योंकि मैं उसने सृजन किया परन्तु यदि उसने एक देश विशेष से सम्बन्धित हूँ इसलिए कोई अभद्र चीज़ लिखी है तो निश्चित रूप यही सर्वोत्तम है। हम अपने देश की आलोचना से वह हमें पसन्द नहीं आती। यदि किसी कभी नहीं कर सकते और न ही देशवासियों चीज़ का स्वच्छ मस्तिष्क से सृजन किया की। और ये चीज़ दिनोंदिन सूक्ष्म होती गया हो तो आप उसकी आलोचना नहीं जाती है। परन्तु बुद्धि पक्षा तो बहुत ही करते?" उसने उत्तर दिया, "नहीं, क्योंकि खराब है। बुद्धि से यदि एक बार आपने हम इतना अच्छा सृजन नहीं कर सकते समझ लिया कि फलां चीज़ ठीक है तो तो हमें आलोचना करने का क्या अधिकार इस विषय में आपको कोई भी समझा नहीं है?" अत्यन्त बुद्धिमत्ता पूर्वक अपनी बुद्धि सकता क्योंकि इसे आपने अपने मस्तिष्क के माध्यम से समझा है। ये अत्यन्त आश्चर्य लिए हमारे यहाँ नियम संहिता है. कला के की बात है। मैं रविन्द्रनाथ द्वारा रचित लिए और सभी प्रकार के सृजन के लिए । से हमने ये सब किया है, सभी चीज़़ के सितम्बर-अक्टूबर 2002 35 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 हमें ये कालीन पसन्द नहीं है, क्यों? क्योंकि हम नहीं कर सकते। यद्यपि रैमब्रैन्ट को ये हमारी मानसिक सूझ-बूझ को अच्छा भी अपने जीवन में बहुत से कष्ट उठाने नहीं लगता, ये नियम संहिता के अनुकूल पड़े होंगे। आप जानते हैं किस-किस ने नहीं है और उसके ढाँचे में ये पूरा नहीं कष्ट उठाए, इन सभी कलाकारों ने बहुत बैठता। इसलिए ये हमें पसन्द नहीं है । कष्ट उठाए। यहाँ तक कि माइकल एंजेलो क्या आप इस प्रकार का एक इंच भी बना को भी कष्ट उठाने पड़े। केवल धन की सकते हैं? ये अहं व्यक्ति को अनाधिकार कमी के कारण ही नहीं । वैसे भी उन्हें सक्रियता देता है। ये अनाधिकार है अनाधिकार चेष्टा । आलोचना करने का आपको कोई ये आलेचना छोड़ दी है। मैं एक कलाकार अधिकार नहीं। आप कुछ भी नहीं कर से मिली जिसने बहुत सा कला कार्य किया सकते तो आपको आलोचना करने का क्या है। मैंने उससे कहा, "आप मुझे अपनी अधिकार है? बेहतर होगा कि चीजों की कलाकृतियाँ दिखाते क्यों नहीं। उसने उत्तर सराहना करें और स्वयं इस बात को समझें दिया, "नहीं, मैं ये सब दिखाना नहीं चाहता, कि आलोचना करने का अधिकार आपको ये सब मैंने अपने लिए बनाया है। मैंने नहीं है। इसकी योग्यता आपमें नहीं है। कहा, "मैं ये कलाकृतियाँ देखना चाहूँगी, जब आपमें इसकी योग्यता ही नहीं है तो मैंने इनको देखा सभी कृतियाँ बहुत सुन्दर आपको आलोचना क्यों करनी चाहिए। थीं! तब उसने कहा कि वह अपनी आपको ये बात भी समझ लेनी चाहिए कि कलाकृतियों का प्रदर्शन क्यों नहीं करता। आप अहं के दास हैं। आपका अहं एवं कहने लगा, "लोग केवल उनकी आलोचना मस्तिष्क आपको जो भी कुछ करने के करेंगे " ये सारा सृजन मैंने अपनी खुशी लिए कहता है आप करते हैं। ये तथाकथित के लिए किया है। लोग मेरे सृजन का बुद्धि आपको एक बिन्दू तक ले आती है। सारा आनन्द नष्ट कर देंगे तो यह एक एक विशेष नियम तक और तब आपका ये मूल चीज़ है जो हमें नहीं करनी चाहिए। अहं एक जातिविशेष, देश विशेष या विचारधारा विशेष का सामूहिक अहं बन अपने भाई-बहनों की आलोचना करें, अपने जाता है। ऐसा सामूहिक रूप से होता है देश की आलोचना करें, अपनी सभी आदतों और तब लोग कहते हैं ये कोई कला नहीं की आलोचना करें, और स्वयं पर हँसें | है । और यही कारण है कि आज आप यदि स्वयं पर हँसना जानते हैं तो कला-विशारद लोग नहीं निकल रहे । आज हम रैमब्रैन्ट पैदा नहीं कर पा रहे हैं। ऐसा किसी अन्य की सृजनात्मकता के मार्ग में बहुत कष्ट उठाने पड़े। आलोचना, आलोचना, आलोचना। मैं सोचती हूँ कि अब लोगों ने अच्छा होगा कि अपनी आलोचना करें. आप किसी पर एतराज़ नहीं करेंगे, न ही सितम्बर-अक्टूबर 2002 36 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 बाधा बनेंगे। तो अहं के कारण आप दरार आदि हो! कभी-कभी इस चीज की अधिकार विहीन हो जाते हैं। किसी भी बहुत कमी होती हो। मुझे लगता है कि चीज़ की आप आलोचना कर सकते हैं । उनके कुछ पेच ढीले हो गए हैं, कभी-कभी आप सोचते हैं कि ऐसा करने का आपको तो वो विदूषकों की तरह व्यवहार करते अधिकार है। व्यक्ति को स्वयं से पूछना हैं हम कुछ ऐसे लोगों को जानते हैं कि चाहिए कि किसने मुझे ऐसा करने का उनका कुछ नहीं हो सकता अन्यथा वे अधिकार दिया? कैसे मैं किसी की आलोचना बहुत बुद्धिमान हैं, बहुत तेज हैं, परन्तु कर सकता हूँ? निःसन्देह अब आप लॉग सजहयोग में वो उस स्तर तक नहीं आ सन्त हैं, आप इस बात को जान जाते हैं सकते जहाँ ये कहा जा सके कि उन्नति कि कौन पकड़े हुए हैं, किसकी चैतन्य सम्भव है । कल्पना करें की पृथ्वी माँ कभी लहरियाँ खराब हैं और किसके साथ समस्या सूर्य की तरह से गर्म थी उस स्थिति में है। यह सब आप जान लेंगे। ये बन्धन नहीं उन्नति असम्भव थी या यदि वह चन्द्रमा हैं। आप ऐसा अपने अहं के कारण नहीं की तरह से ठण्डी होती तो भी उन्नति करते। इन सब चीजों को तो आप अपनी संभव न होती। उन्नति के लिए तो इसका अंगुलियों के सिरों पर महसूस कर रहे हैं। मध्य में आना आवश्यक था जहाँ दोनों ही वास्तव में यही आपके अन्दर की संवेदना गुण (सर्दी और गर्मी) उचित मात्रा में होते। है. यही बोध है जिसे आप जानते हैं तो इसी प्रकार मानव को भी संयम रखना आपको क्या करना चाहिए? अपने प्रेम में चाहिए। संतुलन बनाए रखना चाहिए। और यदि संभव हो तो आपको उस व्यक्ति को समझना चाहिए कि उसे अति की सीमा बताना चाहिए कि आपमें यह दोष है। तक नहीं जाना। यह सन्तुलन आप केवल अच्छा होगा कि सुधार कर लें। ऐसे ढंग से तभी सीख सकते हैं जब आप किसी से 1 बताएं कि वह बात को समझ ले, ऐसा न प्रेम करते हैं। हो कि उसकी स्थिति और भी खराब हो जाए। यदि ऐसा होता है तो आपको उससे कई बार कुछ लोगों को सहजयोग छोड़ने प्रेम नहीं है। सभी को उन्नत होने का के लिए कहना पड़ता है। ऐसा भी उनसे आप जानते हैं कि सहजयोग में हमें प्रेम के कारण होता है क्योंकि सहजयोग अवसर दे। सहजयोग में बहुत से ऐसे लोग हैं जो से बाहर किए जाने पर वो सुधरते हैं । मैंने अत्यन्त, अत्यन्त अच्छे हैं। इसमें कोई सन्देह देखा है कि ये लोग बहुत तेजी से सुधरते ं। परन्तु ऐसे भी कुछ लोग हैं जिनके हैं। परन्तु सहजयोग समाज के अन्दर रहते नहीं विषय में हम कह सकते हैं कि वो बहुत हुए वे अत्यन्त उपद्रवी बन जाते हैं और कठिन हैं। उनके खोपड़े में मानो कोई इस उपद्रव को सामूहिक बनाने का प्रयत्न 1 सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 37 करते हैं क्योंकि उनका अहं कार्य करता है आप दृढ़ करना चाहते हैं इसलिए मेरे प्रति या हो सकता है उनके बन्धन कार्य करते अपना प्रेम करने के लिए मेरे प्रति अपने हैं। जो भी हो, वे उपद्रव करना चाहते हैं। हृदय की भावनाओं को प्रकट करने के अतः हमें उनसे कहना पड़ता है कि कृपा लिए आप मुझे पुष्प अर्पित करते हैं। प्रेम करके अब कुछ समय के लिए बाहर हो की ये भावनाएं इतनी आसानी से अभिव्यक्त जाओ। उस व्यक्ति में यदि उस उपद्रवी हो सकती हैं कि दूसरा व्यक्ति ये जान प्रवृत्ति को समाप्त करना है तो उसका निष्कपट होना आवश्यक है। वह उपद्रवी नहीं हो सकता और तर्क दृष्टि से भी यदि यदि ये बात देख सकें कि मस्तिष्क को तो ये देखें कि किसी व्यक्ति को यदि इस संदेह करना ही है । मस्तिष्क को संदेह जाता है कि प्रेम क्या है? प्रेम ही सहस्रार की पूर्ण शक्ति है। आप करना ही है अपने मस्तिष्क एवं बुद्धि के प्रकार से समझाया जाए तो उसे भी अच्छा लगेगा कि उसे बाहर जाने के लिए कहने माध्यम से सहजयोग की शक्तियों का का क्या कारण है? परन्तु इस चीज़ को सत्यापन करने के पश्चात् आप एक ऐसे अत्यन्त ही वीभत्स रूप से कष्टकर माना बिन्दू तक पहुँचते हैं जहाँ आप समझ को मैं जानती हूँ। जाते हैं कि विश्लेषण और संश्लेषण जाता है। इस बात परन्तु आपको पूर्ण धैर्य एवं सूझ-बूझ दर्शानी (Analysing and Synthesizing) करने का होगी। एक प्रेम से ओत प्रोत व्यक्ति की कोई लाभ नहीं है। ये सब बेकार हैं । तरह से लोगों से बातचीत करनी होगी। प्रेम ही महत्वपूर्ण है, सहजप्रेम। अतः प्रेम में इतनी शक्ति है कि कोई भी ऐसा आत्मसाक्षात्कार से पूर्व जिस मस्तिष्क का कार्य नहीं करेगा जिससे ये अहसास हो प्रयोग विश्लेषण व आलोचना के लिए होता कि वे प्रेम नहीं करते। 1 प्रेम अत्यन्त था, सभी मूर्खतापूर्ण कार्यों के लिए होता शक्तिशाली है। यह लोगों को इतनी सुन्दरता था, अब वह प्रेम करना चाहता है। इसकी पूर्वक बाँधता है कि हर व्यक्ति कुछ न कुछ करना चाहता है। उदाहरण के रूप प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी न करें उस में आप मुझे पुष्पार्पण करना चाहते हैं क्योंकि स्थिति तक व्यक्ति को पहुँचना है । तब आप जानते हैं फूलों से मुझे प्रेम है। अतः व्यक्ति केवल प्रेम करता है, केवल प्रेम को ये दर्शाने के लिए कि श्रीमाताजी "हम जानता है क्योंकि इसने प्रेम की शक्ति को आपसे प्रेम करते हैं," आप मुझे पुष्पार्पण पहचान लिया है । आप तर्कसंगत परिणाम करते हैं मैं जानती हूँ कि आप मुझे प्रेम तक पहुँच जाते हैं और आदिशंकराचार्य करते हैं। परन्तु इस प्रेम को आप सुदृढ़ की तरह से आपको भी सत्य दिखाई देता करना चाहते हैं। मेरे अन्दर अपने प्रेम को है, जो उन्होंने 'विवेक चूड़ामणि' तथा अन्य पराकाष्ठा है जिस बिन्दु पर मस्तिष्क केवल सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 38 ग्रन्थों में लिखा। इस सत्य को उन्होंने गया है हमें अपनी ध्यान धारणा के माध्यम प्रकट किया। उन्होंने केवल 'माँ (आदिशक्ति) से, अपनी सूझ-बूझ से, स्वयं तथा अन्य का स्तुतिगान किया, समाप्त। एक बार लोगों को समझकर सहस्रार को पुनः खोलना जब आप उस स्तर पर पहुँच जाते हैं तब है। तार्किकता द्वारा इस बिन्दु तक पहुँचने आप कह सकते हैं आप निर्विकल्प हैं क्योंकि की अब कोई संभावना नहीं रह गई है। अब कोई विकल्प रह ही नहीं गया। अब आपके मस्तिष्क में कोई सन्देह रहा ही सागर में कूद पड़े हैं। समाप्त । एक बार नहीं क्योंकि आप प्रेम करते हैं और प्रेम में जब आप प्रेम के सागर में कूद पड़ेंगे तो सन्देह का कोई स्थान नहीं है, कोई प्रश्न कुछ भी करने को न रह जाएगा। उसकी ही नहीं है । ये सब चीजें तो तभी होती हैं हर लहर का आनन्द लिया जाना चाहिए। जब आप सन्देह करते हैं । जब आप प्रेम इसके हर रंग का आनन्द लिया जाना करते हैं तो सन्देह नहीं करते, तब आप चाहिए, इसके हर स्पर्श का आनन्द लिया मात्र प्रेम करते हैं । क्योंकि प्रेम का आप जाना चाहिए। तर्क-संगति द्वारा व्यक्ति आनन्द लेते हैं इसीलिए प्रेम आनन्द है को केवल यही सीखना है कि सहजयोग हम इसके अंत तक पहुँच चुके हैं, प्रेम के प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं और आनन्द प्रेम है। बहुत समय के पश्चात् सहस्रार खोला परमात्मा आपको धन्य करें श्री हनुमान पूजा मई, 1989 (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) आज अत्यन्त आनन्द का दिवस है। शब्द देवदूत का अर्थ है परमात्मा के लगता है पूरा वातावरण ही इस आनन्द से राजदूत। आप लोग भी वही है आप सब उल्लसित है मानो सारे देवदूत संगीत गा देवदूत हैं । फर्क सिर्फ इतना है कि आप रहे हों, विशेष रूप से श्री हनुमान जी। श्री लोग इस सत्य को नहीं जानते जबकि हनुमान भी देवदूत हैं। देवदूतों का जन्म उन्हें बचपन से ही इस बात का ज्ञान था। विशेष रूप से होता है क्योंकि वे देवदूत हैं जब आपको इस बात का ज्ञान हो जाएगा मानव नहीं। जन्म से ही वे दिव्य गुण कि आप देवदूत हैं तब आपके दिव्य गुण सम्पन्न होते हैं। अब आप सब लोग भी आपमें चमक उठेंगे और आप हैरान होंगे मानव से देवदूत बन गए हैं। यह सहजयोग की कि किसी भी कीमत पर सत्य पर डटे बहुत बड़ी उपलब्धि है । देवदूतों के रहने का गुण अत्यन्त सुगमतापूर्वक कायम जन्मजात दिव्य उनके शैशव काल में रखा जा सकता है। इसके लिए आपको ही दिखाई देने लगते हैं । सर्वप्रथम तो वे असत्य के सम्मुख घबराते दिए गए हैं और परमात्मा की ओर से नहीं उन्हें इस बात की चिन्ता नहीं होती आपको विशेष सुरक्षा प्रदान की गई है कि कि उनके विषय में लोग क्या कहेंगे और यदि आप सत्य पर डटे रहेंगे, धर्म परायणता जीवन में उन्हें क्या हानि होगी सत्य ही पर डटे रहेंगे, धर्म पर खड़े रहेंगे तो उनका जीवन होता है सत्य ही उनकी आपको सभी प्रकार की सुरक्षा दी जाएगी। प्राण वायु है। किसी अन्य चीज़ का उनके देवदूतों को इस बात का ज्ञान होता है, लिए कोई महत्व नहीं होता देवदूत का इस बात के प्रति वे विश्वस्त होते हैं, इस यह प्रथम महान गुण है सत्य को स्थापित बारे में उन्हें कोई संदेह नहीं होता, वे करने के लिए, उसकी रक्षा करने के लिए पूर्णतः विश्वस्त होते हैं। परन्तु आप लोग और सत्य पर चलने वाले लोगों की सुरक्षा नहीं हैं अब भी कई बार आप सोचते हैं के लिए वे किसी भी सीमा तक जा सकते कि हो सकता है और नहीं भी हो सकता हैं। देवदूत संख्या में बहुत हैं और सर्वत्र और यही शैली चलती रहती है। मुझ पर फैले हैं। हमारे बाई ओर गण है और विश्वास करें कि आप देवदूत हैं आपमें गुण अधिकार दिया गया है, विशेष आशीर्वाद हुए दाई और देवदूत। संस्कृत भाषा के इस सारी शक्तियाँ हैं। आपके पास वो सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 40 अधिकार हैं जो मानव के पास नहीं होते। हैं में महान शक्तियाँ हैं, उनमें महान सामर्थ्य ये विशेषताएं देवदूतों की हैं सन्तों में ये है। उन शक्तियों का उपयोग करने का नहीं होती। सन्तों के साथ चालबाज़ी की उन्हें पूर्ण अधिकार है। अपनी शक्तियों के जा सकती है उन्हें सताया जा सकता है। प्रति वे पूर्णतः सजग है। अत्यन्त विनोदशीलता अवतरणों के साथ भी ये सब हो सकता पूर्वक वे सभी कार्य करते हैं। और अपनी है। अवतरण इन सब चीजों को स्वीकार शक्तियों का उपयोग करते हैं । जैसे उन्होंने करते हैं वो चाहते हैं कि वो ये सभी पूरी लंका को जला दिया और अपने इस तफस्याएं कर लें ताकि अपने जीवन काल कृत्य पर हँसते रहे। फिर उन्होंने अपनी में ही वो कुछ ऐसा घटित कर सकें जिसके पूँछ को लंबा करके बहुत से राक्षसों की द्वारा अधिक जोर-शोर से उनकी अभिव्यक्ति गर्दने लपेट लीं। वे उनसे खिलवाड कर हो। यदि रावण न होता तो रामायण न रहे थे राक्षसों को पूँछ में बाँधकर वे हवा होती और यदि कंस न होता तो श्री कृष्ण में उड़ जाते और राक्षस हवा में झूल रहे न होते। अत: अवतरण समस्याओं को अपने होते। यह देवदूतों की विनोदशीलता है ऊपर ले लेते हैं और असुरों से युद्ध भी क्योंकि वे अत्यन्त आत्मविश्वस्त होते हैं. कर सकते हैं। कभी-कभी तो ऐसा लगता पूर्ण चेतन होते हैं और अपने व्यक्तित्व से है कि वे कष्ट उठाते हैं परन्तु वास्तव में अपनी शक्तियों से और अपने आपसे पूर्णतः ऐसा नहीं है । देवदूतों की एक विशेष श्रेणी है। वे स्वयं पर समस्याओं को लिए बिना ही उनका ही नहीं कि मैंने तुम्हें देवदूत बना दिया है! समाधान कर देते हैं। सन्तों और अवतरणों मैंने आपको सन्त नहीं बनाया, देवदूत बनाया के सम्मुख यदि कोई समस्या हो तो देवदूत है। आपकी हमेशा रक्षा की जाती है। मैं इसका समाधान कर लेते हैं कई बार केवल देवदूत ही बना सकती हूँ सन्त उन्हें कहना पड़ता है कि अभी आप इस नहीं। सन्त तो अपने प्रयत्नों से बनते हैं। मामले में मत कूदो। हम मंच पर कार्य कर श्री गणेश, कार्तिकेय और श्री हनुमान रहे हैं। जब आपको कहेंगे तभी आप इसमें आना बाहर दरवाजे पर पूरी तैयारी की को भी इसी प्रकार इसी शैली में बनाया स्थिति में वे खड़े रहते हैं । कार्य करने के गया लिए आतुर। वो निश्चित संख्या में होते हैं बारे में मैं जो कहती हैं वह सत्य है। भिन्न और आप उन पर पूरी तरह से निर्भर कर प्रकार के बन्धन आपके माध्यम से कार्य सकते हैं। उदाहरण के रूप में श्री हनुमान जी, जिन्हें आप देवदूत के रूप में जानते आप ये नहीं जानते कि किस प्रकार अपने एक-रूप होते हैं। यहाँ पर सहजयोगी कई बार तो समझते तो बिना किसी प्रयास के बने हैं। आप लोगों है। समझने का प्रयत्न करें कि आपके करते हैं। यद्यपि आप सन्त हैं फिर भी सितम्बर-अक्टूबर 2002 41 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 पंख फैलाने हैं। फिर भी कई बार मैं महसूस हर समय लोगों को यही अंगुली दिखाएं करती हैँ कि पुनर्जन्म हो चुका है और ये ताकि वे आपकी अंगूठी देख सकें। अतः सब देवदूत बन गए हैं, इनके पंख हैं परन्तु सांसारिक जीवन में जो भी संपदा या छोटे पक्षी होने के कारण इन्हें अभी उड़ना शक्तियाँ हमारे पास होती हैं, उदाहरण के सीखना है। सहजयोग में जो अनुभव आपको रूप में कोई व्यक्ति यदि उच्च पद पर है कुछ प्राप्त हुआ उससे आपको आत्मविश्वास प्राप्त तो इस बात को आप तुरन्त उसकी नाक होता है। कल जैसे आप लोग गा रहे थे। या होंठों से जान सकते हैं, जिस प्रकार चमत्कार प्रतिदिन, चमत्कार चहुं ओर वह नाक चढ़ाता है, मुँह बिचकाता है। (Miracles Every Day, Miracle Around परन्तु आपको जो शक्तियाँ प्राप्त हैं जो You) ये चमत्कार देवदूत करते हैं और वैभव प्राप्त है उनकी अभिव्यक्ति करने में इस प्रकार आपको विश्वास कराने का प्रयत्न उनके विषय में बातचीत करने में उनका करते हैं कि आप भी हममें से एक है, उपयोग करने में आप लोग घबराते हैं। केवल हमारे साथी बन जाएं। जब यहाँ पर बहुत से देवदूत हुए है के होते हुए पूरा इंग्लैण्ड पल भर में तो क्यों न हम इस विश्व को परिवर्तित आत्मसाक्षात्कार पा लेगा, परन्तु हम अब करने के विषय में सोचें। आप लोगों में भी ये जानने का प्रयत्न कर रहे हैं कि हम देवदूतों से भी बढ़कर एक गुण है, देवदूत क्या हैं? श्री हनुमान जी को कोई समस्या किसी की कुण्डलिनी नहीं उठा सकते। वे न थी क्योंकि अपने शैशव काल से ही वे ये कार्य नहीं कर सकते। उन्हें इस बात जानते थे कि वे देवदूत हैं और उन्हें की चिन्ता भी नहीं है। वो तो केवल वध देवदत का कार्य करना है परन्तु हमारा करने के लिए, जलाने के लिए, दबाने के जन्म मानव की तरह से हुआ है और अब आप कल्पना करें कि इतने सारे देवदूतों हैं बैठे लिए तथा आस-पास उपस्थित सभी दुष्टों को हटाने के लिए यहाँ हैं। वो किसी को से गतिशील होना हमें कठिन प्रतीत होता परिवर्तित नहीं कर सकते। अतः परमात्मा है। आपके तो विचार, सामूहिक विचार, के साम्राज्य में आपका अधिकार उनसे भी यहाँ तक कि आपके व्यक्तिगत विचार भी बढ़कर है । आप लोगों की कुण्डलिनी उठा शक्तिशाली हैं। आपका चित्त भी शक्तिशाली हम देवदूत बने हैं। अन्य देवदूतों की तरह सकते हैं और उन्हें आत्मसाक्षात्कार द है। हो सकता है कि भय के कारण या सकते हैं परन्तु मानव के बन्धन अभी भी अपने पूर्व बन्धनों के कारण या अपने अहं बने के कारण, जो कि अभी तक आपसे चिपका है। उदाहरण के रूप में उस दिन हुए मैंने एक अंगूठी पहनी हुई थी। मेरी बेटी ने हुआ है, अब भी आप गलत चीजों में फँसे मुझे छेड़ना शुरु कर दिया कि अब आप हुए हैं और आपकी शक्ति और गतिशीलता चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 सितम्बर-अक्टूबर 2002 42 होनी चाहिए कि हम अपने अन्दर से उन्नत हम बहुत सी चीज़ों को दोष दे सकते हो रहे हैं। परन्तु यदि हम अपनी अभिव्यक्त हैं, जैसे किसी देश पर अकर्मण्यता, किसी नहीं करते, अपने गुणों का प्रदर्शन नहीं पर अहं का दोष दे सकते हैं। परन्तु अब करते, अपने जीवन में, अपने कार्यों में, आपका कोई भी देश नहीं रहा। अब आप अपने उद्देश्य में और जीवन के लक्ष्य में लोग परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर इनका उपयोग नहीं करते तो न तो गए हैं। आप एक ऐसे देश में हैं जिसकी सहजयोग फैलेगा और न हीं आपकी सहायता कोई परिसीमा नहीं। ये सारे बन्धन जो करेगा। जिस प्रकार का कार्य आपने करना अभी तक आप में चिपके हुए हैं इनका है उसमें कोई समस्या नहीं है। मेरे सम्मुख नहीं हैं। आपको ही इन्हें आपको परेशान कर सकना चाहिए समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा। और न ही अपना कार्य करने में इन्हें किसी से भी जाकर आप जैसे चाहें बात करें। उन्हें खुशी-खुशी आपको सुनना होगा चाहिए। आप कल्पना करें कि किस प्रकार और यदि वो आपको नहीं भी सुनेंगे तो भी गैब्रिल के रूप में श्री हनुमान जी मारिया वो आपका कुछ बिगाड़ नहीं सकते आपको के पास बताने के लिए गए कि एक बच्चा, कोई हानि नहीं पहुँचा सकते। आपको ये जो कि अवतरण है, विश्वरक्षक (Saviour) बहुत बड़ी सुरक्षा प्राप्त है, आपके कार्य में वह तुम्हारी कोख से जन्म लेगा वह वो बाधा नहीं डाल सकते। सहजयोग में कुँवारी युवती थी। उस समय के बन्धनों से आने का ये अभिप्राय नहीं है कि हमें क्या परिपूर्ण समाज में एक कुँवारी लड़की को लाभ हुए, हमें क्या प्राप्त हुआ? उन लोगों यह समाचार बताना बहुत ही भयावह कार्य को देखें जो आपको ये कहते हैं कि आपने था परन्तु उन्होंने इस को किया क्योंकि सहजयोग के लिए इतना कुछ किया परन्तु मुझे ये कार्य करना है तो इसे मैं करूँगा। इसने आपको क्या प्रदान किया? इसने ये यदि आदेश है तो मैं ये कार्य करूँगा आपको आत्मसाक्षात्कार दिया, इसने आपको क्योंकि वे जानते थे कि आदेश का पालन देवदूत का पद प्रदान किया कहने से करना उनका स्वभाव है यह उनकी अन्तर्प्वृत्ति मेरा अभिप्राय है कि आप कोई अन्य कार्य | इस पर वे कोई सन्देह नहीं करेंगे न करके देखें क्या उससे आपको देवदूत का ही इसका नाप तोल करेंगे। एक बार उन्हें पद प्राप्त हो सकता है? किसी और कार्य यदि ये कह दिया गया तो वे इसे पूरा से आपको ये पद प्राप्त नहीं हो सकता, यह पद तो सहजयोग ने आपको दिया है । अतः हमारे अन्दर एक विशेष सूझ-बूझ अथ आपको और क्या चाहिए? इससे पूर्व अभिव्यक्त नहीं हो रही। 1 हैं. आपके सम्मुख आप पर कोई प्रभाव नहीं होना चाहिए न समस्याएँ रँं आपके सम्मुख बाधा बनकर खड़ा होना करेंगे। सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 43 ऐसा होना कभी संभव न था मुझ पर केवल एक ही बच्चे को ढकते? नहीं, वो विश्वास करें । यह असंभव स्थिति है किसी तो ब्रह्माण्डीय अस्तित्व हैं। अतः हर बच्चे भी प्रकार से यदि ये पद प्राप्त करना संभव के साथ आपने वैसे ही प्रेम करना है, होता तो ज्ञानेश्वर जी को इतनी छोटी उसकी वैसे ही देखभाल करनी है जेसे में समाधि न लेनी पड़ती और न ही आप अपने बच्चों की करते हैं । इसके आयु कबीर साहब को ये कहना पड़ता, "हे अतिरिक्त और भी लिप्साएं होती हैं जैसे परमात्मा कैसे समझाऊँ सब जग अन्धा। स्वामित्व, पदवी तथा नौकरी आदि का तो आपके अन्दर वो सूक्ष्म शक्ति है जिसके मोह। मेरे पास इस बात का ज्ञान नहीं है द्वारा बिना किसी को बताए आप उसकी कि अन्य लोगों के पास क्या है। मैं तो जब कुण्डलिनी पर कार्य कर सकते हैं। परन्तु आप लोगों को प्रेम से स्टेशन पर आते हुए ध्यान में जब आप बैठते हैं तो अपने हृदय देखती हूँ तो सागर की तरह से मेरा हृदय में इस बात को स्वीकार करें कि मैं देवदूत उमड़ पड़ता है और लहरों की तरह से हूँ और देवदूत होने के नाते, मेरे अन्दर परमात्मा के अलावा किसी से भी मोह नहीं जाना होता है तो समुद्र की लहरों की है । मोह सी किस्मों के हैं फिर भी मैंने जाता है। ये वैसे ही है जैसे चन्द्रमा के उछलता है। जब आपको छोड़कर मुझे तरह से एक बार फिर ये पीछे को हट बहुत देखा है कि सहजयोग में लोगों के मोह सौन्दर्य को देखकर सागर उमड़ता है, ऐसे हैं कि यदि विवाह हो गया तो उन्हें चन्द्रमा के आनन्द में, उसके प्रेम में तब अपनी पत्नियों से मोह हो जाएगा। पत्नियों मैं प्रेम को देखती हूँ - वो प्रेम जो आपको के मोह के कारण बहुत से सहजयोगियों पक्षी के घोंसले में दिखाई देता है जहाँ वह का पतन हो गया| बच्चों से मोह के कारण अपने नन्हें बच्चों की चोंच में चोंच डालकर भी बहुत से लोग सहजयोग से चले जाऐंगे। कल जैसे मैंने आपको बताया था कि पूरे से है। यही प्रेम आप आकाश में देखते हैं संसार के सहजयोगी बच्चे आप ही के और यही अपने हृदय में देखते हैं और बच्चे हैं, आप ही उनके माता-पिता हैं इसकी व्याख्या आनन्द के विशाल सागर खाना खिलाता है। यह प्रेम सागर की तरह आपका बच्चा सोया हुआ है, यदि आप के रूप में कर सकते हैं जो आपके अन्दर केवल उसे ही ढकते हैं तो ठीक नहीं है से बह रहा है। आपको चाहिए कि सभी बच्चों को ढकें। जो भी बच्चे सोए हुए हैं सभी की आपने का आनन्द लेने की क्षमता आपको नहीं देखभाल करनी है। कल्पना कीजिए कि देतीं। आप यदि तट पर खड़े रहेंगे तो यदि हनुमान जी वहाँ होते तो क्या वे सागर का आनन्द किस प्रकार लेंगे? आपको परन्तु लिप्साएं उस आनन्द के सागर सितम्बर-अक्टूबर 2002 44 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 समुद्र में कूदना होगा परन्तु आपने तो कर दिया! ये सब मूर्खतापूर्ण विचार किसी अपने लंगर अन्य चीजों में डाले हुए हैं विकृत अहंकारी से ही आ सकते हैं। अहंकार इसलिए आप सागर में कूद ही नहीं सकते। इतना भ्रष्ट है जब आपको अपना कोई आप जानते हैं कि आप कितने सुरक्षित हैं अन्त दिखाई नहीं देता, सोचते हैं कि मैं ही आपको तैरना भी आता है और आप शार्क सब कुछ हूँ मैं सब कुछ जानता हूँ यह रूपी बाधाओं को भी समाप्त करना जानते रीति-रिवाज सर्वोत्तम है या यह कालीन हैं। आपका एकमात्र कटाक्ष आपके इस सबसे अच्छा है, मैं, मैं, मैं। परन्तु आप हैं कार्य के लिए काफी है। परन्तु क्योंकि आप कौन? आपसे किसने कहा कि आप इसे अपनी शक्ति के प्रति चेतन नहीं हैं इसलिए पसन्द करें या न करें आप के चले ये गतिशील नहीं है। निश्चित रूप से यही जाते हैं कि मुझे ये पसन्द नहीं है मुझे वो मामला है। मैंने देखा है कि लोगों को पसन्द नहीं है। जीवन में छोटा सा पद मिल जाता है तो वो उसकी भी शेखी मारने लगते हैं-मैं बनता चला जाता है । मैं कहूँगी कि कुछ फलां आदमी से मिला, मैं उस व्यक्तित से मिला और, ऐसा-ऐसा हुआ। ऐसे व्यक्ति प्रकार के नियमों पर चल रहे हैं । ये नियम पर आपका जी हँसने को करता है। परन्तु उनके अहं की देन हैं और कलाकार लोग आपको सहजयोग प्राप्त हुआ है जिसके इनके अनुरूप चलते हैं। उदाहरण के रूप सा दूसरी ओर अहंकारी व्यक्ति सदैव दास देशों में जाकर मैंने देखा कि दो विशेष द्वारा आप उन्नत हुए है आपका पोषण में कोई कलाकार आनन्द के लिए कोई कृति बनाता है परन्तु सभी लोग उसकी आलोचना करेंगे और ये आलोचना ऐसी होती है मुझे ये पसन्द नहीं है यह रंग हुआ है और आप महान बन गए हैं । इन चीजों में व्यक्ति को श्री हनुमान के पदचिन्हों पर चलना चाहिए। उन्होंने सोचा कि सूर्य बहुत अहंकारी है, कभी-कभी तो अच्छा नहीं है, वह रंग अच्छा नहीं है और ये लोगों को जलाने का प्रयत्न करता है, पेशावर लोग ऐसा करते हैं! उन्हें पैंसिल इसकी गर्मी इतनी अधिक होती है। सूर्य से एक रेखा भी खींचनी नहीं आती, ठीक की पूजा करने वाले लोग भी अहंकारी होते से वे एक रेखा भी नहीं खींच सकते हैं, हैं। उनमें इतना अहंकार होता है कि यदि चित्रकारी की तो बात ही क्या है! परन्तु आप उनकी भाषा और उनके रीति-रिवाज तुरन्त ये कह उठेंगे कि मैं सोंचता हूँ के अनुसार एक भी गलत शब्द कहें तो ऐसा-ऐसा होना चाहिए। इन शोधों तथा आपने छुरी गलत हाथों में दे दी सब समाप्त। आप संसार के सबसे निकृष्ट कहने से मेरा अभिप्राय ये है कि कला का व्यक्ति बन गए, आपने बहुत बड़ा अपराध सम्बन्ध आपके हृदय से है, मस्तिष्क से सिद्धान्तो की उन्होंने पुस्तकें लिख ली हैं । सितम्बर-अक्टूबर 2002 45 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 नहीं। ऐसा करके आपने बहुत से कलाकारों उल्लास का पूर्ण अभाव है वे लोग आनन्दित की हत्या कर दी है और सभी चित्रकारों हो ही नहीं सकते, इससे उन्हें भय आता को ये सोचना पड़ता है कि इसके विषय में है। मैं नहीं जानती कि आपने इस ओर लोग क्या कहेंगे। परिणामस्वरूप हास्यास्पद ध्यान दिया है या नहीं परन्तु जो लोग चीज़े पनपती हैं जिनमें सूक्ष्म अभिव्यक्ति अज़ायबघर देखने जाते हैं या प्रदर्शनियाँ नहीं होती। ये बात समझी जानी चाहिए। देखने जाते हैं वे सोचते है कि वे कोई हमारा अहं इसका कारण है जिसने हमारे दिव्य व्यक्ति हैं और अपनी आज्ञा के विचारों की सभी अच्छी एवं स्वाभाविक माध्यम से वे हर चीज़ का आँकलन कर जीवंत उन्नति को दबा दिया है। ये उन्नति सकते हैं । हनुमान जी ने इसी चीज़ को पूरी तरह खा डालना चाहा था। आज्ञा की चाहे कला के क्षेत्र में हो या हमारे जीवन में हो। मेरे विचार से ये सारे संदूषण सुई जो बाएं-दाएं जाती रहती है और जो (Contamination) या पर्यावरण सम्बन्धी आपको अपने अहं की मूर्खतापूर्ण अभिव्यक्ति समस्याओं में सबसे बुरी समस्या है। मानव करने को विवश करती है इसे सभी ने मस्तिष्क ने इन दम घोटू क्षेत्रों का सृजन नियंत्रित करने का प्रयत्न किया और खा किया है जहाँ कोई भी अपनी अभिव्यक्ति डालने का प्रयत्न किया वैसे ही जैसे शायद नहीं कर सकता और जहाँ पर अहंकारी मैं भूतों को खाती हूँ हनुमान जी इस सूर्य लोगों का प्रभुत्व है। द्वारा लिखी गई है। उस व्यक्ति से यदि आप मिलें तो आपकी इच्छा करती है कि आवश्यक है कि उसमें अहंकार नहीं होना समुद्र में कूद पड़ें। तो लिखी हुई सारी चाहिए। कुछ सहजयोगी कहते हैं कि चीजें बाइबल नहीं होती और जो इनके श्रीमाताजी मैं सहजयोग का बहुत अधिक लेखक हैं उनसे आप बिना डंडा लिए मिल कार्य नहीं करना चाहता क्योंकि इससे मेरा े पुस्तक फलां व्यक्ति को खा रहे थे । परन्तु देवदूत के लिए यह जान लेना नहीं सकते अतः वस्त्रों में, बच्चों के साथ अहं बढ़ जाएगा। मैं नहीं चाहता कि मेरा सम्बन्धों में, अध्यापक के साथ या किसी अहं बढ़ जाए परन्तु आप अपने अहं को अन्य के साथ सम्बन्धों में जो भी अभिव्यक्ति नष्ट क्यों करना चाहते हैं, किसलिए? सहज होती है वह इन नियमों के अनुरूप होनी कार्यों के लिए न! कितनी दोष पूर्ण स्थिति चाहिए। बार-बार आपको कहना होगा है कि हम कहते हैं कि हम स्वयं को पीछे 1. धन्यवाद', 'मुझे खेद है। अतः हमें इतना रखना चाहते हैं कि कहीं हमारा अहं न बढ़ अधिक बनावटी अभिव्यक्तियों में धकेल दिया जाए! आप केवल अपने बारे में सोच रहे हैं गया है कि मुझे विश्वास है कि कुछ समय तो सहजयोग का क्या होगा। अतः आजकल पश्चात् कला का सृजन होगा ही नहीं। नजरिया ये है कि बचकर चलना ही बेहतर श्र सितम्बर-अक्टूबर 2002 46 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 । है क्यों कि सहजयोग में कुछ अत्यन्त पृथ्वी माँ में हैं, जो बीज में है मैं यहाँ पर अहंकारी, आक्रामक तथा दिखावा करने आदिशक्ति के रूप में नहीं हूँ, मैं यहाँ माँ वाले लोग थे जिन्हें पतन के गर्त में जाना रूप में हूँ। पावनी माँ के रूप में मैंने पड़ा। तो अब मुझे लगता है कि सहजयोग उनका पथ प्रदर्शन किया है । आप कह में एक अन्य नजरिया आरम्भ हो गया है सकते हैं कि मैं पृथ्वी माँ की तरह से हूँ कि बचकर रहना ही अच्छा है। इन दोनों जो बीज का अंकुरण करती है । नज़रियों के बीच सहजयोग खो जाएगा। यदि आप जानते हैं कि आप देवदूत हैं तो जो आप में आ सकती है कि आपके अन्दर आप में अहंकार न होगा जिसे भी इस विद्यमान शक्तियाँ कुण्डलिनी के अन्तर्जात तो एक अन्य विरक्ति (Detachment) बात का ज्ञान है वो जानता है कि कार्य स्वभाव के कारण ज्योतिर्मय हो उठी हैं। करना तो स्वभाव वश हैं। जैसे आज मेरे आप स्वयं शक्तिशाली हैं तथा मैंने तो पति प्रशंसा करते हुए मुझे कह रहे थे कि आपको केवल इसके विषय में बताया है । तुम्ही ने यह सब किया 'नहीं, मैंने कुछ नहीं किया। आप कैसे रही हूँ कि आप ऐसे हैं। मैं कैसे इसका कह सकती हैं कि आपने यह कार्य नहीं श्रेय ले सकती हूँ? अतः विरक्त होकर किया? मैंने कहा कि 'यह तो उनमें अन्तर्जात आप समझ सकते हैं कि हमारे अन्दर जो है।' देखो, यदि बीज को पृथ्वी माँ में डाल शक्तियाँ विद्यमान हैं, वो सहजयोग के लिए दिया जाए तो यह अंकुरित हो जाता है। हैं जैसे श्रीमाताजी की शक्तियाँ सहजयोग इसी प्रकार उनमें भी कुण्डलिनी अन्तर्जात का कार्य करने के लिए हैं। हमारी शक्तियाँ है-यह भी प्रस्फुटित हो जाती है। तो किस सहजयोग का कार्य करने के लिए हैं। प्रकार मैं इसका श्रेय ले लूं? कहने लगे जिस प्रकार श्रीमाताजी कार्य करती हैं हमें क्या यह पृथ्वी माँ ने किया है? मैंने कहा भी करना चाहिए। परन्तु इस प्रकार के नहीं उनमें अन्तर्जात पृथ्वी माँ के गुण ने मोह हैं माँ हीं सब कर रही हैं, हम क्या यह कार्य किया है कहने लगे, तो किसने कर सकते हैं? नहीं, आपको कार्य करना यह सारा कार्य किया है? मैंने कहा, 'यह है। यह बहुत बड़ा मोहभंग है जो मैं कहने आदिशक्ति ने किया है । ठीक है, परन्तु का प्रयत्न कर रही हूँ कि आपको स्वयं आदिशक्ति ने सहजयोग नहीं बनाया है। यह कार्य करना है । ऐसा नहीं कि 'माँ ही उन्होंने सभी में उन शक्तियों का सृजन सब करेंगी वे ही सभी कुछ कर रही हैं। किया है जो कार्यान्वित होती हैं. परन्तु यह ठीक है, एक प्रकार से यह बात ठीक सहजयोग नहीं होता सहजयोग उन है परन्तु आप ही माध्यम हैं। विद्युत यहाँ अन्तर्जात गुणों से कार्यान्वित होता है जो सब कुछ कर रही है, परन्तु इस यन्त्र को है। मैंने कहा शीशे में आप स्वयं देखें, मैं आपको बता सितम्बर-अक्टूबर 2002 47 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 भी कार्य करना होगा तो स्रोत के होते हुए है- ठीक है, हम फोन करेंगे, मैं पता भी परिणाम तक तो यन्त्र ही पहुँचाता है। लगाऊँगा, सब हो जाएगा। यह हमारी हनुमान की तरह से आप भी माध्यम हैं, बहुत बड़ी कमी है। यह गुण हमें श्री आप को कार्य करना होगा, कार्य सम्पन्न हनुमान से सीखना है श्री राम सीता के करना होगा यह अत्यन्त गतिशील चीज़ है जो हमें प्राप्त करनी चाहिए। पास संदेश भेजना चाहते थे। उन्होंने अपनी अंगूठी दी। हनुमान ने उस कार्य को इतने हनुमान जी का एक अन्य गुण यह था वेग पूर्वक किया कि स्वयं श्री राम भी कि वे अत्यन्त चुस्त थे और वे समय से शायद न कर पाते। फिर संजीवनी की परे (कालातीत) थे। सूर्य को ही यदि आप निगल लें तो समय कहाँ रह गया? वे लाने के लिए हनुमान को भेजा गया। समय से परे थे इसीलिए सभी कार्यो को वे संजीवनी की पहचान करने में समय बर्बाद तेजी से किया करते थे। उदाहरण के रूप में पिछले सोलह वर्षों से हम सहजयोग की सहजयोगी कहेंगे-श्रीमाताजी अगले वर्ष इसे एक पुस्तक तैयार कर रहे हैं। इस पर देखेंगे। गणपति पुले में इसके बारे में सोचेंगे! काम चल रहा है, चल रहा है! इसके वहाँ इस पर बातचीत करेंगे-आदि-आदि। अतिरिक्त हम सहजयोग में रोग मुक्त हुए उनके चरित्र के विषय में हमें यह बात लोगों के अनुभवों को रिकार्ड कर रहे हैं, समझनी है । वो भी चल ही रहा है! बहुत अच्छा कार्य है। और हम सहजयोग प्रचार के लिए रहे हैं, हमें अपने अन्दर वह वेद-चातुर्य आवश्यकता पड़ी। एक पहाड़ से संजीवनी न करके वो पूरा पर्वत ही उठा लाए! परन्तु आज जब हम हनुमान जी की पूजा कर लाना चाहिए। यह अभी होना है, हम इसे रूस जाने की तैयारी कर रहे हैं-बस कर रहे हैं! सभी असुर वहाँ पहुँच गए हैं परन्तु टाल नहीं सकते। पहले ही बहुत देर हो देवदूत बड़ी शान्ति से तैयारी कर रहे हैं! चुकी है। जिन नन्हीं बालिकाओं को मैंने तो जी का एक गुण यह था कि फ्रॉक, पहने देखा था वे अब विवाह योग्य हनुमान वे बहुत वेगशील थे किसी अन्य के कार्य युवतियाँ बन गई हैं। मैं सोचती हूँ, सारी करने से पूर्व वो कार्य कर डालते थे । उम्र मैं सहजयोगियों के विवाह ही करती उनका मुकाबला न हो सकता था। युद्ध रहूँगी। लक्ष्य तक पहुँचने के लिए आपको करके जीतना, नेपोलियन को पराजित करना वेगवान होना होगा लटकाते नहीं रहना ठीक है। परन्तु धर्म के क्षेत्र में, सहजयोग होगा और न ही इधर-उधर की बातों से के मैदान में, मुझे लगता है, लोग समय के संतुष्ट होना होगा। देखना होगा की लक्ष्य महत्व को नहीं समझते। कार्य को लटकाने के लिए हम क्या कर रहे हैं। अच्छा है कि में हम कुशल हैं, देर करना हमारी आदत बच्चे बड़े हो गए हैं, उन्होंने बहुत अच्छा सितम्बर-अक्टूबर 2002 48 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 नाटक खेला था। यह सब बहुत अच्छा था, इसे न करेगा। कोई अन्य इस कार्य (उत्थान) मैंने इसका बहुत आनन्द उठाया। परन्तु को न करेगा, यह आप ही को करना है। करने योग्य कार्य तो बाकी है। अतः चित्त कहने से अभिप्राय ये है कि न आपको रेल मुख्य कार्य पर होना चाहिए। यही हमें चलानी है न वायुयान, न आपको प्रशासन करना है। मुझे प्रसन्नता हुई कि अमरीका चलाने हैं न राजनीति करनी है. आपको से वीडियो फिल्म बनाने का सुझाव आया तो बस सहजयोग करना है, सहजयोग हैं, फैलाना है-इसे उस स्तर पर लाना है परन्तु बाधाए भी हैं कि धन कहाँ से आएगा? क्या होगा? आप कार्य आरम्भ कर जहाँ लोग इसे देख सकें। अठारह वर्ष दें, धन मिल जाएगा। आपमें शक्तियाँ हैं बीत चुके हैं, अब उन्नीसवाँ वर्ष है। आज हर चीज़ का उचित प्रबंध हो जाएगा, आप हनुमान पूजा का पहला दिवस है। मैं कहूँगी, ु तो करें। परन्तु मनुष्यों की तरह से कि आपको साहस करना होगा-सामूहिक शुरु यदि पहले आप सोचेंगे, योजना बनाएंगे रूप में और व्यक्तिगत रूप में भूल जाना फिर उन्हें खारिज करेंगे तो कुछ भी होगा कि परिणाम क्या होगा कहने का कार्यान्वित न होगा। अभिप्राय है कि आप जेल नहीं जाएंगे, हनुमानजी यद्यपि हर समय पिंगला नाड़ी विश्वस्त रहें कि आपको क्रूसारोपित नहीं पर दौड़ते रहते हैं, वे हमारी सारी योजनाओं किया जाएगा आपकी नौकरी यदि चली को धराशायी कर देते हैं क्योंकि उनके गई तो दूसरी नौकरी आपको मिल जाएगी स्थान पर हम पिंगला पर दौड़ने लगते हैं। और न भी मिली तो कुछ अन्य साधन मिल वो कहते हैं, ठीक है, तुम इस पर दौड़ जाएगा अतः आपको इन सब व्यर्थ की रहे हो मैं तुम्हें ठीक कर दूँगा वे सदैव चीज़ों की चिन्ता नहीं करनी जिनके विषय आपकी योजनाओं को बिगाड़ देते हैं। इस में मानव करते हैं । परन्तु इस के बावजूद प्रकार हमारी सभी योजनाएं असफल हो भी उन्हें काम मिलता है. वे नौकरियाँ करते जाती हैं। हम समय के बारे में, महत्वहीन हैं और किस प्रकार इनसे बंधे हैं! मैं चीजों के बारे में चिन्तित होते हैं परन्तु सहजयोग में हमारी उत्क्रान्ति के समय की किस प्रकार लोग अपने कार्य से बंधे हुए हमें कोई चिन्ता नहीं। हमारे लक्ष्य होने हैं! वे प्रातःकाल उठेंगे, ये करेंगे, वो करेंगे । चाहिएं, नियत समय होना चाहिए कि इस परंतु आप इस बात से अनभिज्ञ हैं कि समय तक हमें यह कार्य कर लेना है। आप देवदूत हैं और ये आपका कार्य है। जितनी तेजी से कार्य करेंगे उतना अच्छा अतः आपको यही कार्य करना है इसके होगा। बाकी सब चीजों का प्रबन्ध हो सकता अतिरिक्त कुछ आवश्यक नहीं। परन्तु यह आपका कार्य है, कोई अन्य हुए हैरान हूँ! मैंने अपने परिवार में देखा है कि मुझे आशा है कि आज की पूजा से बह প सितम्बर-अक्टूबर 2002 49 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 उत्साह, वह साहसी स्वभाव आपकी पिंगला यहाँ पूजा की। यह आप सबके लिए हितकर को चैतन्यित करेगा और बिना किसी अहँभाव है। आपको वास्तव में जाकर संवाददाताओं के, अत्यन्त विनम्रता पूर्वक, श्री हनुमान की से, मंत्रियों से, वेल्ज़ के राजकुमार से, तरह, आप इस कार्य को करेंगे। कल्पना सभी से मिलना होगा समितियाँ बनाएं. करें कि सीताजी ने हनुमान को सोने के सबसे मिलें और देखें कि आप क्या कर बड़े-बड़े मनकों का हार पहनने के लिए दिया। उन्होंने एक-एक करके सभी मनके करना है। परन्तु आप लोग तो सोचते हैं खोल कर देखे कहने लगे कि इनमें श्री कि मेरी माँ बीमार है, मेरा बच्चा बीमार है, सकते हैं। बुद्धि से सोचे कि हमें क्या राम तो हैं ही नहीं, मैं इनका क्या करू? मेरा वो बीमार है! आप यदि परमात्मा का सीता ने पूछा, श्री राम कहाँ हैं? हनुमान ने कार्य करें तो आपकी सभी चिन्ताएं वो ले अपना हृदय चीर कर दिखाया कि 'हनुमान लेंगे आपको चिन्ता करनी ही नहीं पड़ेगी। यहाँ हैं। श्री राम यदि आपके हृदय में हैं वो सभी चिन्ताएं सम्भाल लेंगे यह केवल तो आपको अहं हो ही नहीं सकता। कितनी स्वयं को बढ़ावा देना नहीं है, यह सामूहिकता गतिशीलता और कितनी विनम्रता का को बढ़ावा देना है । सम्मिश्रण था उनमें! आप ने भी यही प्राप्त आशा है आज आपने अपने अस्तित्व के करना है और इसकी अभिव्यक्ति भी करनी सूक्ष्म पक्ष को समझा है जो पक्ष विद्यमान है, प्रदर्शित है और जिसे मैं स्पष्ट देख है । जितना अधिक आप कार्य करेंगे उतना सकती हूँ। आप सब अपनी ध्यान-धारणा ही आप उन्नत होंगे आप पायेंगे कि केवल में इसके प्रति चेतन हो जायेंगे कि आपके विनम्रता ही कार्य करने में आपकी सहायक अन्दर क्या निहित है यही महानतम चीज़ है और आप विनम्र, और विनम्र होते चले है जो परमात्मा को प्रसन्न करेगी तथा जाएंगे। परन्तु यदि आप सोचते हैं ओह! मैं यह कार्य कर रहा हूँ तो बस समाप्त। परन्तु यदि आप मानते हैं कि आगे बढ़कर इसे कार्यान्वित करना है। कि परमात्मा आपकी देख-रेख करेंगे हनुमान रूप देवदूतों के आत्मविश्वास से आपको परमात्मा-परम चैतन्य सभी कार्यों को कर रहे हैं, मैं तो मात्र माध्यम हूँ, तो आप में विनम्रता बनी रहेगी और आप एक प्रभावशाली माध्यम भी बने रहेंगे। मेरे विचार से यहाँ यह पूजा आवश्यक पश्चिम में अहँ वास्तव में बहुत बड़ी समस्या थी, यह अत्यन्त उचित अवसर पर हुई। है न जाने पश्चिमी लोगों में भारतीयों की यह सब देवदूतों का आयोजन है कि हमने अपेक्षा इतना अधिक अहूँ क्यों होता है? परमात्मा आप सबको धन्य करें । यहाँ मुझे अहँ के विषय में बताना है । सितम्बरअक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 50 जैसा मैंने बताया, यहाँ आक्रामकता बहुत आवश्यक है। वहाँ मंगलमयता और पवित्रता अधिक है यह गति-वर्धक की तरह है । के विचार को भयानक रूप से नष्ट कर परन्तु बायाँ पक्ष (Left Side) गति नियन्त्रक दिया गया है । अतः यह देवदूत की शक्ति (Speed breaker) की तरह से है । जो हमारे अन्दर स्थापित होनी आवश्यक मूलाधार यदि नियंत्रण में नहीं है, ब्रेक यदि है। इसी शक्ति के माध्यम से हम कार्य ठीक नहीं है तो गति पर स्वाभाविक रूप करेंगे यही हमें सद्-सद्-विवेक प्रदान से नियंत्रण नहीं किया जा सकता। अतः करती है, जो कि विनम्रता का स्रोत है। मूलतः मूलाधार का नियंत्रण करना तथा इसे ठीक करना आवश्यक है। इसे ठीक में इस प्रकार कार्यान्वित होंगे कि हम करने के लिए आपको परिश्रम करना चाहिए। वास्तव में पूर्णतः आत्मविश्वस्त साक्षात्कारी ब्रेक यदि ठीक हो जाएंगे तो सहजयोग का आत्माएं बन जाएंगे, जिन्हें मैं आधुनिक युग कोई भी कार्य जब आप करेंगे. आप अहँ में के देवदूत कहती हैँ। मुझे आशी है कि आज ये दोनों गुण हम नहीं फसेंगे। अहँ अब आप पर सवार न हो परमात्मा आपको धन्य करे। पाएगा अतः पश्चिम में यह विशेष रूप से ३० ---------------------- 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-0.txt NIRMALA सितम्बर-अक्टूबर, 2002 खण्डः XIV अंकः 9 व 10 UNIVERSAL PURE RELIGION चैतन्य लहरी हि ० ा ... आपकी माँ का नाम बड़ा शक्तिशाली है। आपको पता होना चाहिए यह अन्य सब नामों से शक्तिशाली है। सबसे शक्तिशाली मंत्र है । किन्तु आपको जानना चाहिए इसे कैसे उच्चारण करना चाहिए। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी र DHARMA VAHSIN 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-1.txt EXPE 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-2.txt चै तन्य लहरी खंड 9 व 10 सितभ्बर XIV अं क अक्टू बर 2002 म ३[ जन्म दिवस पूजा - निर्मल धाम, दिल्ली, 21.03.2002 १ अभिनन्दन समारोह - निर्मल धाम, दिल्ली, 23.03.2002 11 जन कार्यक्रम रामलीला मैदान, दिल्ली, 24.03.2002 23 होली पूजा - पालम विहार, गुड़गाँव, 28.03.2002 25 गुड़ी पड़वा पूजा पालम विहार, गुड़गाँव, 13.04.2002 २५ सहस्रार पूजा - कबैला, 06.05.2002 39 श्री हनुमान पूजा - मई, 1989 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-3.txt चै तन्य लहरी प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर ए. मुनीरका विहार, नई दिल्ली - 110067 162 - मुद्रक प्रिंटो-ओ-ग्राफिक्स नई दिल्ली सदस्यता के लिए कृपया इस पते पर लिखें :- श्री ओ.पी. चान्दना 463 (G-11) ऋषि नगर, रानी बाग, दिल्ली - 110034 फोन : (011)7013464 एन सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पते पर भेजें : चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी - 17. कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली 110016 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-4.txt जन्म दिवस पूजा निर्मल धाम, दिल्ली, 21.03.2002 (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) आप इसको महसूस कर सकते हैं। इसको जान सकते हैं कि ये प्यार, परमात्मा का प्यार, परमात्मा की शक्ति सिर्फ प्यार है और प्यार ही की शक्ति है जो कार्यान्वित होती है। हम लोग इसे समझ नहीं पाते। किसी से नफरत करना, किसी के प्रति दुष्ट भाव रखना, किसी से झगड़ा करना, ये तो बहुत ही गिरी हुई बात है। आप तो सहजयोगी हैं, आपके मन में सिर्फ प्यार के और कुछ भी नहीं होना चाहिए। अपने देश में आजकल जो री ेदि आफत मची है, इसको देखते हुए मैं देख रही हूँ कि ये सारे प्यार की समझ में नहीं आता है कि धर्म के नाम पर महिमा कैसे फैल गई, कहाँ से कहाँ पहुँच इतना प्रकाण्ड रौरव इंसान ने क्यों खड़ा गई. कितने लोगों तक, इसकी खबर ही कर दिया? इसकी क्या जरूरत थी? एक नही है! किन्तु इसका पूरा शास्त्र समझ में चीज़ शुरु होती है फिर इसकी प्रतिक्रिया आ गया। प्यार का भी कोई शास्त्र हो आती है और प्रतिक्रिया शुरुआत की एक सकता है? प्यार का कोई शास्त्र नहीं । क्रिया से भी बढ़कर होती है इस तरह से प्यार जो है एक महामण्डल की तरह सब परमात्मा का जो भी आपको अनुभव है वो दूर छाया हुआ है। इसका एहसास हमें कम होता जाता है। अब समझने की कोशिश नहीं, उसे हम जानते नहीं। लेकिन परमात्मा करना चाहिए कि हम प्यार को कैसे बढ़ावा का प्यार, ये तो सारे दूर, सारी सृष्टि में, दे सकते हैं, प्यार को हम कैसे दिखा सारे संसार में, हरेक देश में फैला हुआ है। सकते आपके आत्मसाक्षात्कार होने के बाद ही सकते हैं? हैं और उसको हम कैसे पनपा 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-5.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 से ही बच्चों को समझाया जाए सबसे पहले तो हमें अपने बच्चों की है। बचपन ओर ध्यान देना चाहिए। हम अपने बच्चों कि तुम मुसलमान हो या तुम हिन्दू हो या को क्या सिखा रहे हैं? उसको किसी ने तुम फलाना हो, या तुम ढिकाना हो, इससे गर एक थप्पड़ मारी तो क्या हम कहते हैं बच्चे को यही समझ में नहीं आता है कि जाकर उसे मारो, उल्टे अगर आप उसे देखने में तो मैं इन्हीं के जैसा हूँ । मेरा समझाएं कि कोई बात नहीं, नाक, नक्श, मुँह तो सब तो वही है, फिर नासमझ है, उसने तुम्हें इस तरह से क्यों समझा रहे मारा तो ठीक हो जाएगा। वो फिर से दोस्ती पा! है, इस तरह से मुझे ये क्यों लोग करते हैं? तो ये कर ले गा। क्यों कि बच्चे घृणा, और ये जो सारी बातें हैं, अबोध होता है। एक पल में वो ठीक हो लालच, ये सब हमारे अन्दर की दुष्ट जाएगा हैं और ये प्रवृत्तियाँ हमको जो कि बेटे देखो तुमको वो मारता है, ये बुरी आती हैं वो सहजयोग से नष्ट हो जानी बात है, फिर तुम भी बुरी बात मत करो। चाहिएं, पूर्णतया जानी चाहिए। तभी आपको का हृदय जो है बहुत सरल, फिर उसको गर समझाया जाए प्रवृत्तियाँ बच्चा समझ जाएगा कि मार पीट अच्छी समझ में आएगा कि चीज नहीं है ये बचपन से ही चीज़ बननी हम क्या हैं? परमात्मा क्या है, और 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-6.txt अभिनन्दन समारोह श निर्मल धाम, दिल्ली, 23.03.2002 का (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) जन्म दिवस का उत्सव मेरे लिए अत्यन्त उलझन से भरा होता है क्योंकि अत्यन्त अन्य लोग आपसे प्रेम करते हैं या नहीं। सामान्य व्यक्ति के रूप में मेरा जन्म हुआ उस चीज़ को आप देखते ही नहीं हैं। आप और सदैव मैं सर्वसाधारण ही बनी रही । केवल उस प्रेम से बहने वाले आनन्द को पैसे की मुझे कोई समझ नहीं, घृणा को मैं देखते हैं। प्रेम का यह अथाह सागर है। नहीं समझती, लालच मेरी समझ से परे यह आप सबके पास है। एक बार जब है। इन सब चीज़ों के विषय में मैं अत्यन्त आप सहजयोग में प्रवेश करते हैं तो आप सीधी हूँ। इस सब के बावजूद भी आप सब जान जाते हैं कि आप सहस्रार में प्रवेश लोग आए और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया। कर गए हैं और सहस्रार ही सारे सत्य का ये आपकी अपनी उपलब्धि है. अपनी शुद्ध स्रोत है । आप इस बात की चिन्ता नहीं करते कि इच्छा के कारण ही आपने ये उपलब्धि पाई। आजकल जन्म लेने वाले बच्चों में मैं उस व्यक्ति के विषय में सत्य का आपको देखती हूँ कि बहुत सी आत्मसाक्षात्कारी ज्ञान होता है। आप पता लगा लेते हैं कि आत्माएं हैं। अतः मैं सोचती हूँ कि यह सब वह व्यक्ति अच्छा है या बुरा। ये कठिन घटित होने का यही समय हैं, मेरे जीवनकाल कार्य है परन्तु यदि आप उससे प्रेम करते में ही यह घटित होना था मैं सोचती हूँ हैं तो तुरन्त जान जाते हैं कि उस व्यक्ति कि सबका अपना भाग्य है, पहले श्री राम में कमी क्या है और खूबी क्या है? परन्तु आए फिर श्री कृष्ण आए फिर ईसा-मसीह अपने प्रेम के कारण आप अपने और उस अवतरित हुए और बाद में अन्य लोग। व्यक्ति के या अपने और अन्य लोगों के आप यदि किसी से प्रेम करते हैं तो था। मे रा समय बीच सारे वातावरण को अपने प्रेम से वो उनका समय आत्मसाक्षात्कार देने का है। परन्तु मैं कहूँगी आच्छादित कर लेते हैं। आसानी से आप कि आप सब लोगों ने अत्यन्त हृदय से कमियों को नहीं देखते। आपके लिए ऐसा और प्रेम से आत्मसाक्षात्कार लिया है तथा करना बहुत कठिन है। अपनी शक्तियों का उपयोग आप अन्य लोगों को परिवर्तित करने के लिए और ने धोखा दिया। परन्तु मुझे इस चीज़ का उन्हें अपना प्रेम देने के लिए कर रहे हैं। विवेक ही नहीं है कि धोखा देने का अर्थ लोग कहते हैं कि मुझे बहुत बार लोगों 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-7.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 4 चैतन्य लहरी खंड़-XIV अंक 9 व 10 क्या है और किस प्रकार लोग धोखा देतें कर सकते हैं । तो भी ठीक है लोग सभी हैं। कई बार मुझे बताया जाता है कि लोग कुछ करते हैं। परंतु जब आपको प्रेम प्राप्त मेरी बुराई कर रहे हैं, हाँ वो ऐसा कर रहे होता है तब आप सन्तुष्ट हो जाते हैं। इन हैं। मैं देख सकती हूँ कि वे मेरे विषय में उल्टी-सीधी बातें कर रहे हैं, कोई बात नहीं। इससे मुझे कोई अन्तर नहीं पड़ता। चिन्ता नहीं करते कि अन्य लोग आपके वो यदि मेरी बुराई करते हैं तो भी कोई साथ क्या कर रहे हैं, आपका क्या लाभ चीज़ों की आप चिन्ता नहीं करते। अंतः आप सन्तुष्ट होते हैं। इस बात की बात नहीं। परन्तु ये अभिनन्दन समारोह उठा रहे हैं, आपको कितना कष्ट दे रहे हैं मेरे लिए निश्चित रूप से बहुत उलझन या कितनी सुविधाएं दे रहे हैं। अपने आपसे पूर्ण है क्योंकि, जैसे वो सोचते हैं, मैंने ऐसा जो भी सुविधाएं आपको मिलती हैं वे स्वतः कोई विशेष कार्य नहीं किया है । विशेष हैं। चीज़ तो वो होती है कि जो भी क्षमता आपमें है वो यदि गतिशील हो उठे तब हृदय को प्रतिबिम्बित करता है, इसमें कोई बात होती है-जैसे प्रेम। मेरे अन्दर अथाह सन्देह नहीं मैं नहीं सोचती कि मेरे लिए प्रेम है. मैं नहीं जानती इसके विषय में क्या ये कोई बहुत बड़ी उपलब्धि है, नहीं है । कहूँ! ये कार्य करता है. गतिशील हो उठता क्योंकि मैं आपको बताना चाहूँगी कि ये है और सभी लोग प्रेम को मानते हैं । आप चाहे जितने महान हों, जितने सुना है कि श्रीमाताजी का ये स्वप्न है. बुद्धिमान हों, जितना चाहे धन कमाते हों, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं । मेरा कोई स्वप्न चाहे जो भी हों, ये सब चीज़ें इतनी महत्वपूर्ण नहीं हैं। महत्वपूर्ण बात तो आपको प्रेम चाहती हूँ। मेरी तो साधारण सी इच्छा है किया जाना है । मैंने इसका कोई सिद्धांत कि सभी लोग प्रेम करें और ये पावन प्रेम नहीं बनाया है और न ही मैं ये कहूँगी कि आपके जीवन को परिवर्तित कर देगा, पूरे आपको ये सीखना चाहिए। परन्तु यह विश्व को परिवर्तित कर देगा । इसके विषय यह अभिनन्दन समारोह आदि आपके सब चीजें कभी भी मेरा स्वप्न न थीं। मैंने नहीं है। ये बात मैं आपको स्पष्ट बता देना अत्यन्त मूल बात है और यही सहायक में कोई सन्देह नहीं है। आप सब लोगों में होती है । अतः सहस्रार में रहते हुए यदि आप प्रेम जाना चाहिए क्योंकि आपका सहस्रार खुल लहरियों को बहते हुए देखते हैं, हो सकता चुका है। अतः सभी सहजयोगियों के लिए है कुछ लोग इस का अनुचित लाभ उठाएं, यह घटना अत्यन्त-अत्यन्त स्वाभाविक होनी परन्तु कोई बात नहीं इससे कोई अन्तर चाहिए। उदाहरण के रूप में, मैं जानती हूँ नहीं पड़ता। कुछ लोग आपको भ्रमित भी कि कभी-कभी लोग बहुत अभद्र होते हैं, अत्यन्त स्वाभाविक रूप से ये घटित हो 1 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-8.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 उनके कुछ नियमाचरण हैं बाद वे अन्य लोगों पर बहुत ही क्रोधित हो नहीं। बनावटी रूप से आप ये नहीं कह जाते हैं। कुछ लोगों के पास पदवियाँ हैं सकते कि "मैं आनन्दित हूँ।" यह तो एक और उन पदवियों का उपयोग के अन्य और उसके बास्तव में कौन आनंदित हैं और कौन प्रकार की अन्तर्जात, सहज-स्वाभाविक लोगों पर क्रोध करने के लिए, उनके पीछे भावना होनी चाहिए। पड़ने के लिए और उन्हें सताने के लिए करते हैं, और चीजें इसी प्रकार चलती सुन्दर-सुन्दर भावनाओं का सागर हैं । ये रहती हैं। परन्तु उन्होंने वास्तविकता को सागर जब आपको समृद्ध करता है तब नहीं समझा, उन्होंने वास्तविकता को भुला आपको किसी चीज़़ की चिन्ता नहीं रह दिया है। आप केवल प्रेम करें, शुद्ध प्रेम, जाती। और फिर वास्तविकता को देखें। तब आप समझते हैं कि हाँ वह यही कर रहा है, इस मामले में मैं बहुत अकुशल हूँ। मैं समझ ही अंतः आप भावनाओं का सागर हैं, आप भली-भांति जानते हैं कि पैसे के कारण से वह कर रहा है, इस बात को नहीं पाती। मैं पैसा गिन भी नहीं पाती। तो आप जान जाते हैं। परन्तु इसके विषय में क्या? मेरा कहने से अभिप्राय है कि यह चिन्तित नहीं होते कि "क्यों वह मेरी तरह मेरी कमी है परन्तु कोई बात नहीं । से कर रहा है, क्यों वह तुम्हें कष्ट दे रहा है और शनैः शनैः सभी कुछ शान्त हो जाता दूसरों का प्रेम महसूस कर सकते हैं? क्या है। सभी कुछ अपने आपमें ही समाप्त हो आप दूसरों का माधुर्य महसूस कर सकते आवश्यकता इस बात की है कि "क्या आप हैं?" किसी छोटे बच्चे को देखकर आपको जाता है। मैंने देखा है कि बहुत से लोग मेरी कितना अच्छा लगता है! इसी प्रकार क्या बुराई करते हैं, मेरे विरोध में सभी प्रकार आपके मन में अन्य लोगों के लिए भी ऐसी के कार्य करते हैं । तो क्या हुआ? उन्हें जो ही भावनाएं आती हैं 'या क्या आपको लगता चाहे करने दो। ये उनका कार्य है, उन्हें है कि वो लोग भी बच्चों की तरह से हैं? करने दो परन्तु आप जानते हैं कि इससे क्या वो भी बच्चों की तरह से अबोध हैं?' मुझे कोई परेशानी नहीं होती। मैं सोचती हूँ यहाँ पर मैं सुझाव दूंगी कि अबोधिता ही कि वो अपनी ही शैली का कोई कार्य कर प्रेम का लक्षण है। रहे हैं। परन्तु इससे क्या प्राप्त होता है? आनन्द तो केवल शुद्ध प्रेम से ही प्राप्त को जान जाएगा। आप यदि बहुत चतुर होता है। आपमें यदि शुद्ध प्रेम नहीं है तो बहुत बुद्धिमान हैं तो आप मुड़कर उत्तर दे आप आनन्द नहीं प्राप्त कर सकते। आनन्द सकते हैं लोगों को उनकी त्रुटियाँ बता की केवल बातें करना-मैं जानती हूँ कि सकते हैं । ये सब कार्य आप कर सकते कोई भी अबोध व्यक्ति प्रेम की तकनीक 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-9.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 6 हैं। परन्तु ये कोई तरीका नहीं है। आपमें हैं। परन्तु अब भी मुझे विश्वास है कि वो यदि प्रेम है तो बिना कुछ कहे आप लोगों को सुधार सकते हैं क्योंकि प्रेम महानतम जाना चाहिए। परन्तु मान लो यदि वे चालाकी विवेक है। ये आपको सभी उचित विधियाँ करने का प्रयत्न करते हैं तो जिस प्रकार प्रदान करता है। सभी कुछ कार्यान्वित से उनका पर्दाफ़ाश होता है उससे आपको करता है और तब लोग कहते हैं, "श्रीमाताजी ये तो चमत्कार है, ये सब कैसे घटित खुलती है वह अत्यन्त हैरानी की बात है। हुआ!" नहीं, नहीं ये चमत्कार नहीं है। ये दुबई में हमारे एक सहजयोगी हैं उन्होंने तो सर्वसाधारण चीज है ही ढंग से कार्यान्वित की है प्रेम निज्जीव आत्मसाक्षात्कार देने का कोई लाभ नहीं। नहीं है। यह निर्जीव सागर नहीं है । यह मैंने कहा, "क्यों?" तो उन्होंने मुझे समाज केवल सोचता ही नहीं है कार्य भी करता है के उच्च, आध्यात्मिक एवं स्वींकृत लोगों के ठीक हो जाएंगे। उन्हें एक अवसर दिया हैरानी होगी। जिस प्रकार उनकी पोल जो प्रेम ने अपने मुझे बताया इन बड़े-बड़े लोगो को और अत्यन्त सुन्दर रूप से कार्य करता नाम बताए। कहने लगा, "मैं ने उन्हें है। कभी-कभी तो मुझे इसकी कार्य शैली आत्मसाक्षात्कार दिया था तो उनकी पोल पर आश्चर्य होता है हम इसे चमत्कार खुल गई। मैं नहीं जानता, मैंने ऐसा कुछ कहते हैं आदि-आदि। परन्तु ये चमत्कार नही कहा, फिर भी उनकी पोल खुल गई! एक अन्य व्यक्ति जिसको उसने क्योंकि परमात्मा आपको प्रेम करते हैं आत्मसाक्षात्कार दिया उसका भी बहुत बड़ा नाम था. वह बहुत सारे इनाम प्राप्त कर तथाकथित चमत्कार। वे कुछ भी कर सकते चुका था। उसकी भी पोल खुल गई! एक अन्य व्यक्ति, जिसे उसने आत्मसाक्षात्कार सहजयोग अपनाएं और सच्चे सहजयोगी दिया, वह शान्ति पुरस्कार से अलंकृत था; उसकी पोल खुल गई और उसके विषय में नहीं है ये तो प्रेम है। इसलिए वो आपको चमत्कार देते हैं। हैं क्योंकि परमात्मा चाहते हैं कि आप बनें। अतः प्रेम के सभी कार्यों को आप समाचारों में बहुत कुछ छपा। चमत्कार मान लेते हैं, ऐसा नहीं है। लोग क्यों कहते हैं "श्रीमाताजी ये आपकी शैली अपने प्रेम के कारण उन्हें आत्मसाक्षात्कार है।" प्रश्न ये नहीं है। प्रश्न तो प्रेम का है। देता है परन्तु प्रेम इस प्रकार से कार्य मान लो मैं सभी को बहुत प्रेम करती हूँ करता है कि वे अनावृत हो जाते हैं! आप सभी पर बहुत विश्वास करती हूँ। आरम्भ किसी की भी पोल नहीं खोलना चाहते, में मैं किसी पर अविश्वास नहीं करती। आप तो केवल इतना चाहते हैं कि किसी परन्तु ये लोग हैं कि डूब रहे हैं, डूब रहे तरह से लोग सहजयोग में आ जाएं। कार्य अब होता क्या है कि ये, व्यक्ति तो अ । 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-10.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 स्थितियों का सामना आपको करना पड़ेगा। ये स्वतः होता है। आप यदि ऐसी स्थिति में करते रहना ठीक है। कहने लगा "श्रीमाताजी मैं नहीं सोचता कि अब मैं किसी को आत्मसाक्षात्कार दूँगा। मैंने कहा, "आप बने रहेंगे जो शान्त है, आनन्ददायी है, आत्मसाक्षात्कार देते चले जाओ, परमात्मा प्रेममय है, तो आप ठीक रहेंगे, आध्यात्मिकता अगर यही चाहते हैं कि उस व्यक्ति की में आगे बढ़ेंगे। परन्तु यदि आप इस स्थान पोल खुल जाए तो उस व्यक्ति की पोल को छोड़ना चाहेंगे तो आप छोड़ सकते खुल ही जाएगी। व्यक्ति में यदि कोई इसमें कोई कुछ नहीं कर सकता। यह बुराई है तो उसका पर्दाफ़ाश हो ही जाएगा। स्थान तो दुर्ग की तरह से था या एकान्त मान लो आत्मसाक्षात्कार लेने के पश्चात् स्थान की तरह जो कि बहुत ही सुखकर किसी व्यक्ति की दुर्घटना हो जाती है. था, जहाँ आपका चित्त स्थिर रहता। परन्तु उसकी रक्षा की जाएगी, परन्तु दुर्घटना हो आप चित्त से बाहर जाना चाहते हैं। आप सकती है। इसका क्या कारण है? क्यों, चित्त से बाहर चले गए है। यही कारण है क्यों उसके साथ वो दुर्घटना घटी? क्योंकि कि बहुत से सहजयोगी ये बात नहीं समझ वो सहजयोग के लिए कुछ नहीं करता, वो पाते कि क्यों लोग सहजयोग में स्थापित बहुत ही महत्वाकांक्षी है। कोई व्यक्ति जो नहीं हो पाते। बीमार है, सहजयोग से वह ठीक जो जाता है और जो इतना बीमार नहीं है उसकी कोई लाभ नहीं क्योंकि ये बुद्धि, ये मानवीय स्थिति खराब हो जाती है! ये वास्तविकता बुद्धि बहुत उच्च स्तरीय नहीं है। सर्वोंत्तम हैं अतः अपनी बुद्धि का उपयोग करने का है उसकी रक्षा की जा रही है - ये बात तो ये है कि आप अपनी आत्मा के प्रेम सहजयोग की एक बात है, आप चाहे सबसे में बँध जाएं - प्रेम जो कि दिव्य है. पोषक खराब सहजयोगी हों, आपकी रक्षा की है और आपकी देखभाल करता है। परन्तु जाती है, इसमें कोई सन्देह नहीं । परन्तु हमें इस बात का ज्ञान नहीं है कि अपनी यदि आप वैसे ही बने रहते हैं, हर समय देखभाल किस प्रकार करें । हम ये भी नहीं यदि आप सहज के विरुद्ध जाने का प्रयत्न जानते कि स्वयं को प्रेम किस प्रकार करना करते हैं और असहज हो जाते हैं तब आप है। हम इस व्यक्ति से प्रेम करते हैं, उस व्यक्ति से प्रेम करते हैं, परन्तु स्वयं से प्रेम बहुत बुरी तरह से कष्ट उठाते हैं। ये अत्यन्त साधारण बात है कि आप करने के विषय में क्या है? लोग सोचते हैं यदि एक स्थान पर खड़े हैं, एक स्थान पर स्वयं से प्रेम करना स्वार्थ है, नहीं ऐसा जमे हुए हैं, जो कि अत्यन्त शान्त है, नहीं है आत्मा को जानना प्रेम है। आपको आनन्ददायी है, फिर भी आप वहाँ से यदि आत्मा का ज्ञान है तो आपको प्रेम का निकलना चाह रहे हैं! अतः बाहर की सभी ज्ञान है, आप प्रेम के सागर में कूद पड़ेंे! 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-11.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 है जो मैं आपको बता रही जो चाहे करो। ये छोटे बच्चे की तरह है । ये मेरा अनुभव हूँ। स्वयं पर बस दृष्टि रखें अन्तर्वलोकन ये गलत रास्ते पर जा रहा है, कोई बात बहुत सुगम है - "क्या मेरे अन्दर प्रेम है, नहीं जाने दो| क्या मैं प्रेम से परिपूर्ण हूँ?" थोड़ा सा प्रेम है थोड़ा सा नहीं है। प्रेम बहुत अधिक वेश भूषा आप पहनें आप अत्यन्त भाग्यशाली चाहे जैसी इन सारी चीज़ों के बावजूद जैसे हम हैं कि आप सहस्रार पर पहुँच गए तथा बन्धनयुक्त भी हो सकता है। अपने देश को प्रेम करते हैं, भारत को। सहजयोग का आपको पूरा ज्ञान है। परन्तु अपने देश से यदि हम प्रेम करते हैं तो हम सहजयोग का अभ्यास किए बिना आप इसे सोच सकते है कि भारत की सभी चीजें कार्यान्वित नहीं कर सकते क्योंकि अभ्यास अच्छी हैं। देश की कमियों के विषय में से ही आपको अपनी आत्मा का ज्ञान होता कभी बात नहीं करेंगे। कोई यदि भारत है। आप जब ध्यान धारणा करते हैं तो विरोधी बात करेंगे तो हम उनसे घृणा अपनी आत्मा को पहचानते हैं। तब आप करेंगे। सभी के साथ ऐसा है। आप अपने प्रेम से सरावोर हो जाते हैं। परन्तु अब देश से प्रेम करते हैं अपने माता-पिता से यहाँ बैठे हुए आप सोचने लगते हैं वह प्रेम करते हैं, किसी से भी प्रेम करते हैं व्यक्ति बहुत खराब है. मैं उससे घृणा करता परन्तु ये सीमित प्रेम है, बन्धन-युक्त प्रेम हूँ-ये, वो। इसी प्रकार से सारे मूर्खता पूर्ण है। प्रेम तो खुला होना चाहिए. तभी आप विचार आपके मस्तिष्क में आते हैं। या देख पाएंगे कि अपने देश के मामले में आप सोचते अपने सम्बन्धों के मामले में आपकी स्थिति मुझे फलाँ कार अवश्य खरीदनी है, क्या है आपको हर चीज़ का ज्ञान हो आदि -आदि जाएगा| आपको किसी को हानि पहुँचाने प्रेम नहीं करते। आप जब वास्तव में प्रेम की आवश्यकता नहीं है, किसी को कुछ करते हैं तब जिस भी चीज़ की आपको कहने की आवश्यकता नहीं है, किसी से आवश्यकता होती है आपको मिल जाती लड़ने-झगड़ने की आवश्यकता नहीं। इसके है, जिस भी चीज़ की आप इच्छा करते हैं बिना ही आप सब जान जाएँगे क्योंकि प्रेम वह आपको मिल जाती है। सर्वप्रथम स्वयं ज्ञान प्रदान करता है-किसी व्यक्ति के से आपको प्रेम करना है। परन्तु ये प्रेम विषय में पूर्ण ज्ञान। आप व्यक्ति के विषय शुद्ध प्रेम होना चाहिए। इसके परिणाम-स्वरूप में जान जाते हैं कि उसके इरादे क्या हैं आप अपने आपको स्वच्छ कर लेंगे । और वह कर क्या रहा है। परन्तु आप बुरा कभी-कभी आप अपने स्वभाव से, प्रकृति नहीं मानते क्योंकि उससे आप प्रेम करते से, अपने व्यक्तित्व से अत्यन्त एकरूप हो हैं इसलिए आप बुरा नहीं मानते। ठीक है, जाते हैं परन्तु उस प्रेम में डूबकर आप हैं मैं ये गहना खरीद लूँ' या । ऐसा जब होता है तो आप 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-12.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 महसूस करते हैं कि ये प्रेम नहीं है यह महसूस करते हैं कि आप प्रेम की बुलन्दियों प्रेमान्धता है। प्रेम आपको अपने विषय में पूरी समझ प्रेम में यदि पावनता नहीं है तो आप उसे पर हैं और उस प्रेम का आनन्द लेते हैं। देता है। 'मैं क्या हूँ? मेरी समस्याएं क्या प्रेम का आनन्द नहीं ले सकते। हैं। क्यों मैं समस्याएं पैदा करता हूँ? क्यों मैं समस्याओं में फॅसता हूँ?" आप सिर में सहस्रार में स्थिित इस सागर को आश्चर्यचकित हों गे कि प्रेम में इतना खोजें जिसे आप का हृदय परिपूर्ण कर शक्तिशाली प्रकाश है कि यह सत्य है और रहा है। क्या आपको इस बात का ज्ञान है अतः मैं आपसे प्रार्थना करूंगी कि आपके कि हृदय और सहस्रार का परस्पर गहन ज्ञान है। यद्यपि मैं ये नहीं जानती कि इस विश्व सम्बन्ध है? शैली इस प्रकार से है कि में क्या मैं उन लोगों को दोष दूँ जो किसी व्यक्ति का मस्तिष्क यदि ठीक नहीं आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं या उनको जो है तो हृदय भी ठीक नहीं होगा और यदि पूर्ण आत्मसाक्षात्कारी हैं, मैं ऐसा कुछ नहीं हृदय ठीक नहीं है तो मस्तिष्क भी ठीक करुंगी क्योंकि उन लोगों के जीवन में तो नहीं होगा। परन्तु मस्तिष्क का प्रभाव हृदय प्रकाश है ही नहीं। वो न तो स्वयं सकते हैं और न अन्य लोगों को तो उन्हें को देख पर बहुत अधिक है। | लोग कहते हैं कि वंशाणु (Genes) खराब दोष देने का क्या लाभ है? इस जाति को, हैं आदि-आदि। ऐसा कुछ भी नहीं है उस जाति को, इस देश को, उस देश को सहजयोग में आने के पश्चात् आपके जीन्स दोष देने का क्या लाभ है? ये प्रेम तो बदल जाते हैं, आप बदल जाते हैं, आपका शाश्वत है। इसने किसी विशेष प्रकार, विशेष सभी कुछ बदल जाता है। अतः आप का शैली से कुछ नहीं लेना देना। यह सर्वव्यापक मस्तिष्क प्रकाश से परिपूर्ण है इसके सिवा है, सर्वत्र यह फैल रहा है। मैं चाहती हूँ कि इसमें कुछ भी नहीं । आपका हृदय प्रकाश से परिपूर्ण है और हर समय आप विनोद एवं प्रेम से ओत-प्रोत हैं। निःसन्देह स्थिति आपने यह आप इसका आनन्द लें। आपके सम्मुख मैं एक उदाहरण दूंगी। एक दादी और पोते का। उनका सम्बन्ध- कम हर रोज भिन्न होती है परन्तु से कम भारत में मैं जानती हूँ - गहन प्रेम स्थिति प्राप्त कर ली है अतः इसका आनन्द का होता है। बच्चे के लिए दादी और दादी लें। के लिए बच्चा सर्वस्व होता है। प्रेम करते हैं । चाहे जो पोता करे या चाहे ईर्ष्या और स्पर्धा सभी प्रकार की चीज़ें छूट जो दादी करे सभी कुछ उचित है। प्रेम जाती हैं । परन्तु आपके मस्तिष्क में यदि आनन्द का यह गहन अनुभव है। आप बेवकूफियों का जंगल है तो सभी प्रकार के तब जाति प्रणालियाँ, रुढ़िवाद, लोग, वे परस्पर 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-13.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 10 जानवर इसमें घुस आएंगे स्वयं को प्रेम से स्वच्छ करें, प्रेम से पावन करें, हर पीछे न कोई लोभ होना चाहिए, न ही स्थिति को, हर चीज को प्रेम से देखें और योजना। यह तो सागर की उस लहर की आप आश्चर्यचकित होंगे कि अब रौब न तरह से है जो हर तट को छूती है और जमाना, नियंत्रण न करना, घृणा न करना प्रेम का हर्षनाद करती है। तब लहरें वापिस बुरी बात न बोलना, आपके लिए कितना चली जाती हैं। निरन्तर ये लहरें बहती सुगम हो जाएगा! यह अत्यन्त सुधारक रहती हैं और निरन्तर, अथक कार्यरत रहती चीज़ है। प्रेम अत्यन्त सुधारक है अत्यन्त हैं। आनन्ददायी है। आपको स्वयं पर हैरानीं होगी कि किस प्रकार आप कार्यों का होकर इस कार्य को करना अत्यन्त कठिन प्रबन्धन कर रहे हैं! मैं ऐसे बहुत से लोगों था परन्तु मेरे लिए ऐसा नहीं है। जो भी को जानती हूँ। एक सहजयोगी था जो कुछ हुआ, जितना भी लोगों ने मुझे कष्ट अपने चाचा से बिल्कुल बात नहीं किया दिया, परन्तु मैं इस प्रेम के बहाव में ये करता था, कहता था कि 'मैं उससे घृणा कार्य करती रही। जहाँ भी सम्भव हो पाया, करता हॅँ। 'परन्तु क्यों मैं नहीं जानता जब भी सम्भव हो पाया, मैं गई। मेरा क्यों परन्तु मैं उससे घृणा करता हूँ। एक स्वास्थ्य चाहे जैसा भी था, कभी मैंने उसकी बार वह रेसकोर्स में गया और अपने चाचा चिन्ता नहीं की और आप सबका मैंने अत्यन्त को आते देखा। दौंड़कर उसने उसे गले आनन्द लिया। मैंने आनन्द लिया। एक दो लगा लिया। चाचा देखने लगे कि अब ये लोग यदि बहुत खराब भी निकले तो भी ऐसा कहना कितना अच्छा है? इसके मैं जानती हूँ कि कलियुग में अवतरित क्या चाहता है? ये ऐसा क्यों कर रहा है? कोई बात नहीं। जब आप मेरे प्रेम के ये सब क्या है? उसके मन में केवल एक विषय में ये बातें करते हैं तो मेरी आँखों में ही प्रश्न था कि यह मुझसे प्रेम क्यों करना आँसू आ जाते हैं। मेरी समझ में नहीं चाहता है? इस बात को बह न समझ आता कि इसके अतिरिक्त मैं क्या कहूँ। सका। परन्तु वह सहजयोगी उसे समझा कहने से मेरा अभिप्राय ये है कि मैं चाहूँगी न सका कि वह सहजयोगी बन गया है। कि आप सब लोग भी ऐसा ही करें, इसमें चाचा ने पूछा, 'अब तुम्हें क्या चाहिए? उतरें और ऐसा जीवन प्राप्त करें जहाँ कहने लगा, 'कुछ भी नहीं मैं तो बस तुम्हें आप अपने प्रेम में ही तैरते रहें । प्रेम करता हूँ। परमात्मा आपको धन्य करें। 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-14.txt जन कार्यक्रम रामलीला मैदान, दिल्ली, 24.03.2002 (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) ३ वो सबके अंदर है और स्थित है। उसके अंदर रंग, जाति-पाति कोई भेद नहीं। हर इंसान में है। जानवर में भी है। आपको आश्चर्य होगा कि जानवर प्यार बहुत समझते हैं। इंसान से भी ज्यादा जानवर समझते हैं प्यार क्या चीज़ है। अगर अपनी उत्क्रान्ति में बढ़ रहे हैं, अपने ा तो हम लोग बाकई Evolution में बढ़ रहे हैं तो हमारे अंदर प्यार का बड़ा जबरदस्त प्रकाश होना चाहिए। अगर प्यार आ जाए तो हमारे सारे प्रश्न जो हैं, जो मानव जाति के लिए पहाड़ सत्य को खोजने वाले आप सभी जैसे खड़े हैं, एक दम खत्म हो जाऐँ। साधकों को हमारा प्रणाम। प्यार की हमने व्याख्याऐं अनेक की हैं पर उसकी कोई व्याख्या नहीं कर सकता वो है प्रेम। यही प्रेम जो है यही प्रभु की क्योंकि वो एक सागर है। हमारे अंदर बसा हुआ एक महान सागर है और उसको समझते हैं, लेकिन प्रेम एक शब्द नहीं है। भोगना भी हमारे ही नसीब में है। उसकी प्यार एक शक्ति है और उसका भण्डार लहरें भी हमीं ज्ञात कर सकते हैं। हमारे हमारे ही अंदर है। हम सभी उस प्यार से ही लिए वह है। दूसरा चाहे उसे समझे या भरे हैं। कभी-कभी उसका अनुभव हमकों न समझे लेकिन हमारे लिए वो एक बहुत आता है । हमको अनुभव आता है कभी कि बड़ी अदभूत शक्ति है। शक्ति कहने से जब हमारी माँ हमको दिखती है तो हमें लोग सोचते हैं कि कोई मानो प्रलंयकारी अनुभव आता है। लेकिन वो क्षणिक है और चीज है। वो शान्ति देती है, वो आनंद देती कभी-कभी वो स्वार्थी होता है। पर जिस है। वो देती है और दुनिया के सारे जिस चीज़ की आज हर जगह कमी है, भक्ति है बहुत लोग जिस बात को शब्द ा सुख प्यार की मैं बात कर रही हूँ वो है आत्मा प्रश्न समाप्त कर देगी अगर संसार इस का अपना प्रादुर्भाव, आत्मा का अपना प्रकाश। प्यार में लिपट जाए। ये प्यार जो हमारे 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-15.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 12 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 साथ साल दर साल अंदर ही छिपा बैठा अंदर आखिर इतना पैसा है, इतनी चीजे हैं है, अंदर ही कुम्हला रहा है, उस पर तो भी आखिर ये दुःखी क्यों है? अब पता अनेक आवरण हैं। सबसे बढ़ा आवरण है चला कि इन पर दुनियाँ भर की आफतें कि हम अपने को बहुत बड़ी चीज़ समझते आई, दुनियाँ भर की परेशानियाँ आई । हैं। आप स्वयं प्यार हैं, इससे बढ़कर आप क्या हो सकते हैं? इससे आप कौन सी पैसा होते हुए भी उन पर इतनी आफतें बड़ी हस्ति हो सकते हैं कि आप प्यार हैं क्यों आई हैं। सो आजकल के जमाने में और प्यार ही हैं और कुछ नहीं हैं! ऐसी नई-नई आफतें आई हैं पहले नहीं होती आपमें शक्ति है जो सबको शान्त कर सके, थीं इतनी जितनी आज हैं गर आपके सबको स्वच्छ कर सके. सबके अंदर आनंद पास बहुत पैसा है तो न जाने कितने चोर भर सके। दुनिया भर के कोई से भी प्रश्न आपके पास दौड़ेगें, न जाने कितने ठग हों, कोई सा भी प्रश्न हो, उसके पीछे क्या लग जाएगें, न जाने कितने छुरा लेकर है? द्वेष, नाराज़गी, अहंकार आदि बड़े-बड़े आपके पीछे दौडेंगे न जाने क्या-क्या राक्षस बसे हैं और इसमें मनुष्य न जाने आफतें होगीं । सो पैसे से आदमी सुखी हो कुछ समझ में नहीं आता कि इतना क्या मज़ा उठाता है, कौन सा उसे उत्साह नहीं सकता। आप देख लीजिए क्योंकि प्राप्त होता है, पर वो समझ ही नहीं पाता पैसे होने पर भी मनुष्य की लालच खत्म अपने को कि मैं क्या हूँ। मेरे पास भण्डारा नहीं होती। उसको लगत्ता है कि आज ये है जिस चीज़ का तो मैं क्यों दर-दर में, है तो कल वो होना चाहिए। वो है, तो वो गली-गली में भीख माँगता फिरूँ? जो चीज़ होना चाहिए। उसकी लालच खत्म ही नहीं मेरे अंदर में उमड़ रही है उसको छोड़कर होती उस पैसे से क्योंकि उस पैसे में क्यों मैं ऐसी-ऐसी चीज़ों के पीछे दौड़ता समाधान देने की शक्ति नहीं। गर आपके हूँ? गलत दिमाग और गलत विचारधारा से किसी को दे दें। गरीबों को बाँट दें, उनका ऐसा होता है। बहुत से लोगों को लगता है दुःख हल्का करें। तब आपको समाधान कि दुनिया में गर आपके पास पैसा हो तो मिलेगा नहीं तो पैसे का कोई अर्थ नहीं । पास पैसा है तो समाधान इसमें है कि वो आप बहुत बड़े आदमी हो। मैंने आज तक जो पैसा आप बाँट नहीं सकते वो पैसा किसी भी पैसे वाले को सुखी नहीं देखा। लक्ष्मी हो ही नहीं सकता। लक्ष्मी तत्व् में मेरे पास जितने पैसे वाले आते हैं उनकी मैंने आपसे बताया है एक हाथ से देना शक्ल से ही पता चल जाता है कि ये कोई और दूसरे हाथ से आश्रय। तो दूसरों को बड़े भारी दुःखी आदमी हैं और ये पता गर आप आश्रय दे रहे हैं, अपने पैसे के चलता है कि ये कोई करोड़पति हैं। इसके साथ तो आपको आनंद आएगा ग़र आप 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-16.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 13 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 दुनिया की भलाई कर रहे हैं अपने पैसे से से होता है ऐसे सुन्दर तरीके होते हैं पैसे तो उस पैसे से आपको आनंद आएगा देने के लेने के नहीं, देने के और उसमें गुर वही पैसे आप संभाल-संभाल कर रखें, कभी-कभी इतना आनंद आता है कि उतना उसका पहाड़ बनाएँ और उस पर बैठ आनंद लाखों खर्चने से भी नहीं आता। जाएँ, कोई भी आपके शक्ल में उसकी तो बात है कि मनुष्य कभी-कभी सिर्फ खुशी नज़र नहीं आएगी। ऐसे लोगों को अपनी शोहरत के लिए पैसे देता है। ये बहुत लोग जानते हैं और हँसते हैं उन कोई खास बात नहीं। पर तो भी वो बेहतर पर। देखते हैं कि ये आदमी इस तरह से है बनिस्वत इसके कि सारा पैसा अपने जा रहा है ये कर रहा है। पर अब करें पास पड़ा रहे। क्या? जब तक उसको अपनी अक्ल नहीं आएगी वो कभी समझेगा ही नहीं । वो कि वो सत्ता कमाए। सत्ता क्यों कमाए? सम्हलेगा नहीं और उस पैसे का आनंद सत्ता में क्या है? आपकी अपने ऊपर तो अब दूसरी बात है इंसान को शौक है नहीं उठाएगा। आज पैसा आया तो कोई सत्ता है नहीं। दुनिया भर में आप सत्ता और नई चीज़ में चला गया और पैसा करना चाहते हैं! माने हमारी बड़ी भारी Position हो जाए। सत्ता हो जाए, सब आया तो वो और किसी आदत में चला गया। मनुष्य के पास पैसा आते ही न जाने लोग हमारे को सैल्यूट मारें। इसमें कौन वो बाहर की गन्दी -गन्दी बातें सीखने लग जाता है। ऐसी कोई चीज होगी ना पैसे में उतरते हैं तो कोई उनकी ओर देखता भी जिससे आदमी खराब ही क्यों सीखता है? नहीं । कोई उनको पूछता भी नहीं और वो शराब क्यों पीता है? औरतों के पीछे क्यों बड़े दुःखी हो जाते हैं कि एक जमाने में तो भागता है? पैसा आते ही साथ ऐसी कौन मेरे सामने दौड़ते थे अब मेरे पीछे भी नहीं सी बात होती है कि वह बिगड़ता ही जाता दौड़ते ये ऐसी कौन सी बात है। सत्ता के है, बिगड़ता ही जाता है, बिगड़ता ही जाता पीछे में लोग जाते हैं। एक साहब से मैंने सा सुख है? अंत में यही लोग जब सत्ता से है। या तो वह जेल में चला जाएगा, या पूछा तुम पैसा क्यों खाते हो? तुमने सत्ता सर्वनाश हो जाएगा। यही पैसा जो आपको पाई है तो उससे कुछ अच्छा काम करो। शोभा दे सकता है वह आपके सर्वनाश का कुछ लोगों की मदद करो । तो तुम सत्ता में कारण बन जाता है। प्यार के संगति से आकर के ऐसे गलत काम क्यों कर रहे आप यही सोचते रहते हैं कि किसको क्या हो? पैसे क्यों कमा रहे हो? झूठ क्यों दिया जाए। उसको किस तरह से सुशोभित बोलते हो? तो उन्होंने कहा मैंने इतनी किया जाए? उसको किस तरह से प्यार जताया जाए? और बड़े-बड़े सुन्दर तरीके मैंने कहा, "तुमने ये लागत लगाई क्यों?" लागत लगाई, वो तो मुझे निकालनी है। तो 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-17.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 14 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 इसलिए क्योंकि आप जीतने वाले नहीं थे। आज अमर हो गया है। नहीं तो बेकार के आप अगर ऐसे ही खड़े हो जाएँ तो कोई लोगों को कौन जानता है। बेकार के, नहीं वोट देता। तो इसलिए आपने पैसे जिन्होंने अपनी सत्ता में सबको तकलीफ लगाए कि इस पैसे से मैं जीत जाऊँ। तो दी, गलत-गलत काम करे। थोड़े ही दिन जब तक आप लोगों को पैसा देते रहें में उन पर भी लोग उंगलियाँ उठाने लग तब-तक लोग समझेंगे कि आप किसी जाएँगे इस तरह के लोग संसार में, मैं काम के हैं या कोई गलत काम करने मानती हूँ, बहुत कम हैं। इसलिए क्योंकि लग जाएं तो लोग खुश होंगे ये वास्तविक हम लोग बहुत चालाक हैं। अपने को बात है। मैं कोई नई बात नहीं कह रही होशियार समझते हैं। हूँ। ये रोज़मर्रा हम देखते हैं। पर वही आदमी, जब उसकी सत्ता खत्म हो जाती चकारी करते हैं । चकमा देते हैं, पैसा है तो कोई उसे पूछता भी नहीं। कोई उसे बनाते हैं । इस तरह की झूठी बातें करते देखता भी नहीं। कोई उसे जानता भी हैं। उनका क्या हाल होता है वो मुझे बताने नहीं। कोई उसका मित्र भी नहीं होता। तो की कोई जरूरत नहीं है तो ये सब करने बहुत तीसरे तरह के लोग होते हैं जो चोरी क्या फायदा। सारी जिन्दगी अपनी सत्ता में की जरूरत क्या है? किसके लिए आप फँसे रहे। सारी जिन्दगी अपनी सत्ता के कर रहे हैं ? कोई कहे गा कि हमारे घमण्ड में फॅसे रहे और आज आप कहाँ बाल-बच्चों के लिए कर रहे हैं। कल यही हैं? और अब आपको क्या मिला? ये मैं बाल-बच्चे आपको जूते लगाएँगे कि नहीं? नहीं कहती कि आखिरी दम तक हर आदमी आपका मान क्यों करेंगे? आपमें कोई चरित्र को उसके प्यार की शक्ति से कुछ लाभ नहीं तो आपका मान कौन करेगा? आपको होता ही है पर सबसे बड़ी चीज़ है जो कौन देखेगा? ये समझने की बात है कि ये आदमी प्रेम करता है और उसके बाद में सब व्यर्थ की लालसाएँ हैं और ये आपको उसके प्यार की जिसके ऊपर छाया पड़ती आपसे दूर रखती हैं। आप अपने प्यार को है, जिसने उसका उपयोग किया हो, जिसने समझिये। आपकी जिन्दगी में कोई ऐसे भी उसका दर्शन किया हो, जिसने भी इंसान आए जिन्होंने आपको प्यार दिया हो, उसका जलवा देखा है, वो पुश्त-दर-पुश्त उनको आप जिन्दगी भर नहीं भूल सकते याद रखा जाता है। याद ही की बात नहीं चाहे उन्होंने पैसा नहीं दिया; कुछ नहीं पर वो ही जलवा दूसरों में भी आता है दिया। पर उनका प्यार, प्यार जरूर याद और दूसरे भी अच्छा काम करने लग जाते रहेगा और आप याद करेंगे कि इन्होंने मेरी हैं और दूसरे भी उसी की तरह होने का ओर बहुत प्यार से देखा। मेरी ओर बहुत प्रयत्न करते हैं । ऐसे ही आदमियों का नाम प्यार का हाथ बढ़ाया था । ये समझने की 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-18.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 15 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 बात है कि हम रोज़ देखते हैं। कोई नई घिनौनी बात है। ऐसा घिनौना काम करना बात तो नहीं, कोई इतिहास की बात तो हमारे संस्कृति में मान्य नहीं है। हमारी नहीं, कि कोई किताबों में लिखी बात नहीं। संस्कृति बड़ी ऊँची है भारतीय संस्कृति कुछ बाईबल पढ़ने की ज़रूरत नहीं, कुरान एक दिन सारे संसार का मार्गदर्शन कर को जानने की जरूरत नहीं । ये रोज़ की सकती है पर हमी अपनी संस्कृति को बात है। जब ये बात हम देख रहे हैं तो छोड़ कर के बैठे हैं! हर तरह से लज्जाशील हम किसलिए तलवार लेकर निकले हैं? रहना चाहिए। ऐसे बताया जाता है कि ऐसे हमारे अंदर जो बहुत सारी विकृतियाँ औरतों को लज्जाशील रहना चाहिए। ऐसा हैं वो इस तरह से बाहर आती हैं। मैं है कि बाहर से सीख करके लोग ऐसे कहूँगी कि ईमानदारी की बात है कि कितने कपड़े पहनने लग गए कि जिसमें लज्जा लोग हमारे देश में, जैसे कोई छूत की को तिलांजली दे दी गई । लज्जा- वज्जा बीमारी लग रही है, पैसा खाते हैं। किसी कुछ नहीं। अरे भाई देवी के लिए कहा से पूछो, "ये कौन हैं?" ये पैसा खाते हैं। गया है "लज्जारूपेण संस्थिता।" आपके "वो कौन हैं?" वो पैसा खाते हैं। जिसको अंदर अगर देवत्व है तो आप लज्जाशील देखो वो ही पैसा खाता है। और कोई रहेंगे। आप बेशरम जैसे कपड़े नहीं पहनेंगे। उनका वर्णन ही नहीं। ये ही बताया जाता कि ये पैसा खा रहा है, वो पैसा खा रहा घूमते हैं आप तो आप में देवत्व नहीं है। है। अरे खाना वाना नहीं खाते, पैसा ही तो किसी ने कहा कि हनुमान जी तो नहीं खाते हैं? ऐसे लोगों को भी आप देखिए कि कपड़े पहनते हैं। तो क्या आप हनुमान जी | आप बेशरम जैसे नहीं घूमेंगे। और अगर अंत में उनका क्या हाल होता है। एक बार हैं? ये भी कोई Explaination है कि हनुमान हम ऐसे ही गए थे वहाँ बहुत भीड़ थी तो जी नहीं पहनते तो हम भी नहीं पहनते। कुछ लोग थे बेचारे सीधे-साधे। उन्होंने अब हनुमान जी को क्या पहनने की ज़रूरत नाक पर ऐसे हाथ रख लिया। मुँह पर थी? भई तुम लोग इंसान हो और तुम इस हाथ रख लिया। बात क्या है? वो बोले, ये देश के वासी हो। तुमको क्या ज़रूरत साथ जा रहे हैं न, इन्होंने बहुत देश का कि हनुमान जी जैसे हम कपड़े नहीं पहनेंगे। पैसा खाया है। मैंने कहा आप लोगों ने बाकी देखिए तो सब लोग पहनते हैं। ऐसा नाक मुँह क्यों बंद करे हैं। कहने लगे कि कोई है जो कपड़े ठीक से नहीं पहनता तो इनको सूँघने से हम लोग भी वैसे ही हो हनुमान जी का उदाहरण ले लिया। महावीर जाएँगे। ऐसा हमें डर लगता है। अरे ये जी का, महावीर जी एक बार अपने ही बात बड़ी घिनौनी है। हमारे संस्कृति के हिसाब से ये बड़ी ने उनकी परीक्षा लेनी चाही। तो उनसे जा प्रांगण में ध्यान कर रहे थे तो श्री कृष्ण जी 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-19.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 16 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 कर कहा श्री कृष्ण जी ने कि "तुम मुझे लज्जा होती है। पर इंसान में लज्जा न हो अपना कपड़ा दे दो " और उनका कपड़ा और बड़े अपने को समझते हैं, हम बड़े आधा फट गया था, तो भी वो ध्यान में थे। Modern हैं और ये हैं वो हैं। अरे भई अगर "ये आधा भी हमको दे दो।" उन्होंने दे लज्जा नहीं है तो देवी तत्व से तो आप दिया। और फिर चले गए अपने शयन ग्रह हट गए। देवी तत्व में कहा जाता है कि में, अपने सोने की जगह में, जा कर अपने "लज्जारूपेण संस्थिता।" इसलिए कभी कपड़े-वपड़े बदल लिए। वो एक छोटा सा - कभी उसका अतिक्रमण भी कर देते हैं। बच्चा बन के आए थे वो ठीक है। वो चले होता है कभी-कभी। वो नहीं करना चाहिए। गए। अब देखिए कि उनके Statues बना अब आप घूँघट निकालो, बुका पहनो। इसकी रहे हैं। इतने गंदे लोग हैं, इनको कोई शर्म कोई ज़रूरत नहीं है जो चीज़ लज्जाशील नहीं। इस तरह से महावीर जी का अपमान है वो उसकी आँखों में है उसको जरूरी करते हैं। ये तो हमारे यहाँ गलत बात है नहीं कि ये ढोंगपना करे इसकी कोई कि जो गलत चीज़ है, उसी को ले करके ज़रूरत नहीं। पर मनुष्य में भी अतिक्रमण चलेंगे। उसको फट से पकड़ लेगे और कर जाए। मनुष्य में क्या है कि किस तरह उसी को ले कर के दिखाएँगे, सौ बार। से वो एक दम से इस तरह से विक्षिप्त हो मैं कहती हूँ कि कुछ अक्ल रखो। ऐसे जाता है? कुछ बताना समझ में नहीं आता कहीं होता है? बिल्कुल शुरूआत में बताते कि क्या बताऍँ । कुछ भी चीज़ ले लों, हैं कि आदम और हव्वा। उसमें से हव्वा उसको विक्षिप्त कर देना। ठीक है स्त्री में को जब पता चला उसको जब अनुभूति लज्जा होना। और लज्जा उसके अंदर की हुई कि हमें आगे का जानना है वो जो चीज़ है उसके अंदर में स्थित है ये देवी साँप था वो स्वयं साक्षात् कुण्डलिनी थी। तत्व- हरेक स्त्री में, हरेक पुरूष में । लज्जा उसने जब बताया कि तुमको ज्ञान का एक देवी तत्व है। ऐसा कहते ही साथ वो फल प्राप्त करना है तब उसी वक्त उनको गए और चलो अब पर्दे लगाओ, ये करो वो ये ज्ञान हुआ कि हम ऐसे नंगे घूम नहीं करो, घूंघट निकालो । अरे भई ये अंदर की सकते हैं जानवरों जैसे। हमें कुछ पहनना चीज़ है। स्त्री के अंदर की चीज़ है । चाहिए। फौरन उन्होंने पत्तियों से अपने लज्जारूपेण संस्थिता। और उसमें अनेक कपड़े बनाये और पहन लिए। सर्वप्रथम ये बातें निहित हैं अब जैसे छोटी सी बात है ज्ञान होना चाहिए कि हम इंसान हैं जानवर अपने दोनों कंधों में दो चक्र हैं । Right में नहीं। हम जानवर जैसे नहीं रह सकते। श्री चक्र है और Left में 'ललिता' चक्र है। हालाँकि कुछ-कुछ जानवर इंसान से भी ये हम सिद्ध कर सकते हैं । आप उसको अच्छे होते हैं मैं मानती हूँ पर उनको भी खोले फिरोगे तो नुकसान होगा आपको । 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-20.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 17 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 होना ही है । किस तरह का नुकसान होगा शरमाऐंगे। लेकिन अंदर से प्यार । प्यार ही वो मैं बताना नहीं चाहती। कभी विस्तारपूर्वक उनका जीवन और प्यार उनके जीवन का बताऊँगी, पर क्यों ऐसा करते हो? क्या सार । दूसरा उनको किसी चीज़ से कोई ज़रूरत है? पर पुरूष में ज़रूरी नहीं। नहीं। आप उनको कोई और चीज दे दीजिए पुरूष में ये बात नहीं। उनमें ये दोनों चक्र वो समझ नहीं पाएँगे इसमें क्या विशेषता बिल्कुल पूर्णतया खुले हुए हैं पर स्त्री के है। पर उनकी माँ को हटा लीजिए या लिए क्योंकि वह शक्तिशाली है उसके लिए उनकी नानी से हटा लीजिए तो बड़ा बुरा जरूरी है उसे ढकना। अब ये समझने की हाल हो जाएगा। ये केस वजह से होता बात है इसमें कोई दकियानूसीपने की बात है। ये इतना छोटा सा बच्चा ये चीज़ कैसे नहीं। जिस चीज़ में आप दकियानूसी हैं वो जानता है और हम लोग क्यों नहीं जान बेवकूफी है। लेकिन जिस चीज में आप पाते? हम लोग ये क्यों नहीं जान पाते कि सतर्क हैं वो चीज ठीक है। सो सबसे बड़ी ये चीज़ इस बच्चे में इतनी प्रगल्भ है, चीज़ है कि प्यार में मनुष्य एकदम सतर्क इतनी developed है और हम लोग जो होता है। कहीं कुछ हो गया उसे पता चल अपने को बड़े भारी विद्वान समझते हैं जाता है। कहीं कुछ हो गया उसे समझ में हममें क्यों नहीं? क्योंकि विद्वता जो है वो आ जाता है । कहीं कुछ बात हो जाती है अंधेरे में हम विद्वान हैं अंधेरे के. उजाले वो परेशान। कहीं कोई औरत है, बेचारी के नहीं। हमें ये नहीं मालूम कि कौन सी उसने आत्महत्या कर ली। तो एक मुझे चीज़ हमें आह्लादित करती है। कौन सी लड़की मिली। मैंने कहा तुम क्यों परेशान चीज़ हमें आडोलित करती है। कौन सी हो। कहने लगी उसने आत्महत्या क्यों चीज़ से हमें सुख प्राप्त होता है और दूसरों की। छोटी सी लड़की 10 साल की मैंने को समाज को किस चीज़ से सुख मिलेगा कहा तुमसे किसने बताया। किसी ने बताया इस चीज़ को हम समझते नहीं। हम लोगों नहीं मैंने अखबार में पढ़ा कि उसने ने अपनी बना ली हैं प्रणालियां कि भाई आत्महत्या कर ली। अब ये जो खिंचाव ऐसे अवदान पहनो तो मिलेगा। किसी अनभिज्ञ इंसान से, unknown आदमी से हो, ये क्या बात है। और छोटे बच्चों में में मालाऐं पहन के घूमो, ये करो वो करो । ये होता है। बात ये है-बच्चे जो हैं तो हम बहुत बड़े आदमी हो गए। हमारी सुख अब बड़े आदमी हो गए, गले में, कण्ठ बहुत बहुत ही ज्यादा निष्पाप, innocent. दुनिया पूजा करेगी हमें बहुत बड़ा वो निष्पापिता में, स्वच्छता में उनको खसोटता समझेगी। लेकिन ये अपने से भी धोखा है, उनको दिखता है। गलत काम ये नहीं देना है और लोगों को भी धोखा देना है। होना चाहिए। वो रूठेंगे आपसे, वो आपसे गुर आपको अपने को धोखा देना है तो देते 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-21.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 18 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 रहिए। अंत में उसका फल आप पाइयेगा। हम बह गए। दुनिया भर की चीज़े होती ही दुनिया समझ जाएगी कि आप कितने गहरे रहती हैं। चलती ही रहती हैं। उसकी गर पानी में हैं। सबसे बड़ी चीज़ है कि जो ऐसी बात किस बात से आपको आनंद आपका धन आपके अंदर प्यार का सागर आएगा ये देखना चाहिए। जब आप आनंद है उसको आप प्राप्त कीजिए । सहजयोग का यही कार्य है सहजयोग कोई कहे कि मुझे बड़ा आनंद आ रहा है आपकी कुण्डलिनी जागृत करता है । तो ये कोई कहने की बात तो नहीं है ये तो कुण्डलिनी आपके जीवन का पूरा छाप है । होने की बात है। पर जब ये घटित होता है उसको उठा करके और सहस्रार में बैठाना। तो कुछ कहना नहीं पड़ता। अपने आप ही सहस्रार आडोलित हो जाता है, प्रकाशित दिखाई देता है। आपका जीवन ही प्रज्जवलित हो जाता है और उससे आपको आनंद के हो जाता है और आपके जीवन से हजारों सागर का अनुभव होता है। आप देखते हैं लोग उसे प्राप्त करते हैं। आनंद प्राप्त कि आप आनंद का सागर हो गए। फिर करते हैं। आज सहजयोग में आप लोग आप देखते हैं कि आप प्यार का सागर हो आए और यहाँ आकर आपने भी उस चीज गए। आपको आश्चर्य होता है कि आप तो को पा लिया। आपका भी संबंध हो गया ऐसे कभी थे नहीं। आप ऐसे कैसे हो गए Connection हो गया। अब इसको जमाए अरे आप थे आप को मालुम नहीं था। रखो और उसका आनंद उठाओ। उसके अब कृण्डलिनी ने आपका संबंध कर दिया। अब ये देखिए। इसका संबंध ये जो चारों माँ अभी मैं पार तो हो गया पर मुझे खुशी ओर फैली हुई बिजली की शक्ति है उससे ही नहीं होती। ये तो ऐसा ही है कि हो गया | अब देखने को तो इतना छोटा Connection कुछ कम है। मा मैं पार तो का अनुभव करेंगे, उसी से आनंद आएगा । आगे बाकी सब चीज़े तुच्छ है। कोई लिखेगा 1 सा लग रहा है। पर इसका संबंध होते ही हो गया पर अभी मेरे घर में पैसा नहीं साथ बिजली क्रियान्वित हो गई। ऐसे ही आया। इसका मतलब आप पार नहीं हुए। कुण्डलिनी का संबंध होते ही आप कार्यान्वित ऐसे बकवास जितने लोग करते हैं उनकी हो जाते हैं। जिन सहजयोगियों ने सहज जो चिट्टियाँ आती हैं वो मैं बंद करके को पाया है मैं कहुँगी इसको सहज से रखती हूँ और उनसे कहती हैं कि तुम पाया है। और पाया क्या है, वो प्यार का ज़रा थोड़ा और अभी try करो। जब आदमी सागर जो हमारे मस्तिष्क में, जो हमारे पार हो जाता है तो वो बदल ही जाता है। मि सहस्रार में क्या कहना चाहिए, दबा हुआ है उसकी इन्सानी मोहब्बत प्यार में बदल वो आज खुल गया। उसका संबंध हमारा जाती है। वो एक दूसरा ही प्राणी हो जाता हो गया और वो बह गया। उसके प्रवाह में है। उनकी शक्ल ही बदल जाती है। कुछ 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-22.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 19 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 देखते ही बनता है। अभी एक साहब आये से आप गलत रास्तै पे जाते हैं। स्वयं को थे इंग्लैण्ड से, बड़े मरीज, बीमार, मरीगल्ले नष्ट करने का Selidestructive काम करते लग रहे थे। अभी आए मैंने पहचाना नहीं। हैं। तो क्या फायदा ऐसे अहंकार से कि आपने पहचाना नहीं। मैंने नहीं पहचाना जिससे आप अपने ही को नष्ट करते हैं? भाई, तुम कौन हो? मैं वो हूँ। और कह उसका बोलना अलग, चलना अलग, ढाल कर पैर पर गिर गए। मेरे भी ऑँखों से अलग। और उस अहंकार में वो किसी से आँसू आ गए। जो आदमी अपने मरने के मिलते नहीं। किसी से उनका पटता नहीं। दिन गिन रहा था आज उसका ये हाल हो, वो अपने अलग रहते हैं। मुझे ये आदमी पसंद नहीं। मुझे वो आदमी पसंद नहीं। वो गया। और ये अहंकार की जो बीमारी है इसका कभी भी किसी भी तरह से सम्मिलित नहीं तो नाम लेते ही गला सूख जाता है। ऐसा होते कभी भी वो दूसरों की बात नहीं ये पागलपन है। ऐसा ये स्वंय को नष्ट सुनते। अपनी सुनाते रहते हैं। ऐसे अहंकारी करने वाला एक राक्षस है जो कि आपको आदमी का जीवन माने मरने से भी बदतर। एकदम खत्म कर देगा और आप उसको एक साहब मैं, जानती थी, बड़े अहंकारी Justify करते रहते हैं । उसको आप कहते थे बहुत बड़े आदमी थे। पार्लियामेंट में थे हैं ठीक है ठीक है। इसलिए मैंने किया जाने कहाँ-कहाँ। पर जब वे मरे हैं तो उसलिए मैंने किया। किस लिए किया हो चार आदमी उनको उठाने के लिए नहीं सो सिर्फ तुम्हारे अंदर अहंकार भरा है । मिले चार आदमी तो उनको किराए पर अहंकार इंसान में भरना तो इतना खराब है कि उससे खराब तो मैं सोचती हूँ कि लाश को उठाओ| ऐसे अहंकार से क्या कोई चीज़ हो ही नहीं सकती। मैं कोई फायदा कि मरते वक्त वहाँ पर चार आदमी विशेष हैँ मेरा ऐसा है। और फिर उससे भी नहीं थे और कोई रिश्तेदार भी नहीं । जब वो देखता है कि मुझे कुछ लाभ नहीं कोई मिलने वाला भी नहीं । कोई कहने हुआ। लोग मुझे देखते भी नहीं। कोई मुझे वाला भी नहीं । इंसान से मानो उठ गए पूछता भी नहीं। तब वो ठीक होते हैं। वो और उनका मानो कुत्ता था वो भी नहीं फ़ायदा क्या? पूरी तरह से आपने अपना वहाँ खड़ा हुआ चार आदमी बुलाने पड़े कि भाई इनकी । मैंने कहा भई हद हो गई नुकसान कर लिया। उसके बाद आप इस आदमी ने ऐसा कौन सा पाप कर्म अहंकार, इसको कहते हैं ठीक करना। हर किया सिवाय इसके कि उसमें बहुत अहंकार एक चीज़ से अहंकार चढ़ता है। पैसा हो था इस अहंकार में उनकी यह दशा हो तो, सत्ता हो तो, और भी कोई चीज़ हो तो गई कि मरते वक्त उनको कोई उठाने अहंकार चढ़ता है। और फिर उसी अहंकार वाला भी नहीं! श्र ) 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-23.txt जन कार्यक्रम रामलीला मैदान, 24.03.2002 (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का अंग्रेजी प्रवचन) मैं प्रेम के विषय में बहुत कुछ बता चुकी ये क्या लाभ होगा। भारत में आप यदि किसी निर्धन के घर हूँ परन्तु मुझे सब हिन्दी में बताना पड़ा। परन्तु प्रेम के विषय की अभिव्यक्ति हिन्दी में भी जाएंगे तो वो आपसे बैठने के लिए में ही बेहतर होती है। आप देखते हैं कि कहेगा, दूध आदि पेय आपको पेश करेगा। प्रेम करने की क्षमता भारत में बहुत अधिक उनके हृदय बहुत विशाल हैं। आजकल है। अपने प्रेम के सहारे लोग जीवन बिता हम लोग भी बहुत धन लोलुप होते चले जा लेते हैं। लोग एक दूसरे को अपने प्रेम के रहे हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं इस देश में माध्यम से समझते हैं । निःसन्देह पश्चिमी बहुत अधिक धन नहीं है इसीलिए लोगों में संस्कृति में रंगे भारतीयों में इस गुण का प्रेम करने की क्षमता बनी हुई है। इस बात अभाव है। पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित पर आपने ध्यान दिया होगा आप सब भारतीय के मन में तो अपने देश के लिए लोग आजकल यहाँ हैं, आप देखते हैं कि भी प्रेम नहीं है। अपने देश को प्रेम करने भारतीय कितने प्रेममय हैं परन्तु आधुनिक वाले बहुत से लोग हैं। हमारे यहाँ भी ऐसे भारतीय ऐसे नहीं है। आधुनिक भारतीय बहुत से लोग हैं। कुल मिलाकर भारतीय तो आप लोगों का मुकाबला करते हैं। मैं लोग अत्यन्त प्रेममय हैं। आप यदि किसी उनके विषय में कुछ नहीं कह सकती। के घर पर जाएं तो वो आपसे प्रेम करते हैं परन्तु पारंपरिक लोग. भारतीय संस्कृति में आपको खाना आदि खिलाकर वो बहुत विश्वास करने वाले वृद्ध लोग अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। घर में यदि कुछ उपलब्ध प्रेममय हैं। यही कारण है कि तीन सौ वर्ष न हो तो वो तुरन्त बाहर से लाते हैं। वे के अंग्रेजी साम्राज्य के बाद भी हम जीवित अपने मित्रों को बताते हैं. टेलिफोन करते हैं और हमने अपनी संस्कृति को बनाया हैं। अतिथि की वो सेवा करते हैं । यह हुआ है। देश के प्रति उनके प्रेम के कारण प्रेम- भाव पूरे विश्व में अन्यंत्र कहीं नहीं है । ही ये सब संभव कहीं भी नहीं । अतिथि की सेवा में प्रायः आपको कहीं अन्य नहीं मिलेंगे । किसी गाँव लोगों को विश्वास ही नहीं है। अन्य देशों में या कहीं अन्यंत्र आप जाएं तो लोग में कहीं भी आप जाएं, लोगों का नज़रिया आपकी सहायता करने का प्रयत्न करेंगे। अत्यन्त लेखे जोखे वाला होता है कि इससे आपके विदेशी होने के कारण वे आपका है । ऐसे प्रेममय लोग 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-24.txt सितम्बर अक्टूबर 2002 21 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 सम्मान करेंगे विदेशी या विदेश से आया उन्होंने सब कुछ लौटा दिया। अतः विदेशी व्यक्ति हमारे लिए सम्मानजनक होता है। हमारे लिए सम्मानजनक होते हैं, प्रेम के । परंतु पश्चिम में मैंने ये बात कहीं योग्य पुकारने या निमंत्रित करने के उनके आपको तौर-तरीके अत्यन्त सम्मानजनक होंगे। भी नहीं देखी। नि:संदेह सहजयोगी इस विदेशियों के प्रति यहाँ के लोग अत्यन्त मामले में भिन्न हैं । पश्चिमी देशों में विदेशियों पर शक किया जाता सम्मान दर्शाते हैं। परन्तु विदेशों में किसी अन्य देश से है। अत्यन्त आश्चर्य की बात है कि ईसामसीह के देश आए हुए व्यक्ति को बहुत तुच्छ माना जाता है। आप यदि विदेशी हैं तो आप उनकी दृष्टि में बहुत में इस प्रकार का स्वभाव व संस्कृति कैसे आई! उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य तो प्रेम था । फिर क्यों उन्हें मानने वाले पश्चिमी तुच्छ हैं। ओ ह, विदेशी हैं. ठीक है! परन्तु यहाँ पर विदेशियों के साथ देशों में इस प्रकार की संस्कृति पनपी, मैं नहीं समझ पाती। ऐसा व्यवहार नहीं होता। यहाँ पर लोग उनके आपकी सराहना करें गे , समझेंगे और आपको प्रेम करेंगे। अपने प्रेम को वो अभिव्यक्त करेंगे। मैंने कभी किसी अपराध माना जाता है अब आप लोग सहजयोगी को विदेश में अपमानित होते यहाँ आए हैं, आप सहजयोगी हैं, आप उन्हें हुए या कष्ट उठाते हुए नहीं देखा। वे ऐसा ये सब सिखाएं। उन्हें केवल प्रेम एवं नहीं करते एक बार ऐसा हुआ कि चोरी करुणामय ही नहीं होना विदेशों से आए हो गई और चोर कैमरे आदि ले गए । तो लोगों की भावनाओं को भी समझना है। मैंने उनसे कहा, कि वो विदेशी हैं आपके निर्धन देशों से आए लोगों की देखभाल भी विषय में क्या सोचेंगे। छोटे-छोटे बच्चों ने करनी है। इस चीज़ का इतना प्रसार होना ये कार्य किया था मेरी बात को सुनकर चाहिए कि हम निर्धन लोगों की सहायता में सम्बन्धों की अभि आपको -व्यक्ति में किसी को प्रे म करना 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-25.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 22 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 जुट जाएं और कष्टों से घिरे लोगों को प्रेम धर्म के प्रचार के लिए धन दिया करते थे। करने लगे ये गुण सभी विदेशियों में पनपना आपको केवल इसलिए लोगों की सहायता आवश्यक है, विशेष रूप से सहजयोगियों करनी चाहिए क्योंकि उन्हें सहायता की में कि वे उन लोगों के प्रति अपने हृदय में आवश्यकता है। हो सकता है कि अगले प्रेम विकसित करें जिनके पास वो सब जन्म में आपको भी सहायता की आवश्यकता नहीं है जो हमारे पास है मैं आपको पड़े। अतः बेहतर होगा कि इस प्रकार की कुछ बताना चाहूँगी कि आस्ट्रिया से आई एक उदारता, प्रेम और सूझ बूझ को अपना लें महिला से मिलकर मुझे बहुत प्रसन्नता और सभी मानवीय समस्याओं को समझें। हुई। वह यतीमखाना शुरु करना चाहती मैं आपको बताती हूँ कि हमारी सारी थीं। कहने लगी, "श्रीमाताजी हमें भी अवश्य समस्याएं, विश्व की सभी समस्याएं सच्चे 1 कुछ करना चाहिए।" मुझे बहुत प्रसन्नता प्रेम से सुलझाई जा सकती हैं। इन सभी हुई मैंने उससे कहा कि चिन्ता मत करो मैं समस्याओं का समाधान हो सकता है चाहे तुम्हें सभी कुछ दूंगी। मैं तुम्हें भूमि दूंगी ये भारत की समस्याएं हों या अन्य देशों और भवन भी बना कर दूंगी तुम्हें केवल ये की। केवल प्रेम की कमी है । अतः अनाथालय चलाना है। कहने लगी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करें; आत्मसाक्षात्कार श्रीमाताजी हम तो इस कार्य के लिए 80 प्राप्त करके, चाहे इस बात को आप माने लाख रुपये एकत्र कर चुके हैं। हे परमात्मा, या न माने, आप प्रेम सागर में उतर जाएंगे। तुमने किस प्रकार इतना धन एकत्र कर लिया? सभी से ये धन एकत्र किया गया। परमात्मा आपको धन्य करे। मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। अन्यथा लोग ईसाई 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-26.txt होली पूजा पालम विहार, गुड़गाँव, 28.03.2002 (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) श्री कृष्ण के समय में, द्वापर में, वो मरा, और वो आग में से निकल आया चाहते थे कि उनसे पूर्व अवतरित विष्णु जी साफ। ये बड़ी भारी एक घटना है जिससे के अवतरण, श्री राम द्वारा अपनाई गई लोग समझ गये कि पाप करना, दुष्टता मर्यादाएं तथा त्याग के बाहुल्य को सन्तुलित करना, बुराई करना गलत बात है क्योंकि किया जाए। श्री राम की मर्यादाओं से वो जल गयी उसको वरदान था कि वो आग में जल नहीं सकती। ऐसी प्रथा है समाज जो है वो बहुत शांत तो हो गया लेकिन उसमें कोई उल्लास नहीं रहा, आनंद इसलिए हम होली को यह करते हैं। अपने नहीं रहा। इसलिए उन्होंने सोचा कि एक यहाँ जो कुछ भी ऐसी बनी हुई चीजें हैं ऐसा पर्व होना चाहिए जिसमें आदमी मुक्त इसमें बड़ी सत्यता है। समझने की यह कंठ से हंसे, खुश हो जाये, आनंदित हो बात है कि हम लोग यदि बदमाशियां करें, जाये। और वहीं हर एक चीज़ का जो किसी को खराब कहें, दूसरों को परेशान परिहास होता है उसी तरह से उस दिन करें, तंग करें तो ये सब राक्षसी प्रवृत्तियाँ होली का भी आगमन होना ही था। परन्तु हैं और Right sided लोगों में आ जाती हैं लोगों ने बहुत खराब तरीके से होली का राक्षसी प्रवृत्तियाँ । इसलिए ऐसे कोई भी त्यौहार मनाया और इसका नाम बदनाम मन में विचार आये तो उससे दूर भागना किया। यहाँ तक कि मैंने इनसे कहा-मैं चाहिए और उसको मान्यता नहीं देनी तो होली नहीं खेलती। चाहिए। हमको सबके प्रति प्रेम बनाकर पर इसका जो इतिहास है वो ये है कि रखना चाहिए। यह खास चीज़ है। इसको एक राक्षसी थी, होलिका, और प्रहलाद की गर समझ लें तो अच्छा है नहीं तो सब वो बहन थी और प्रहलाद का पिता उसे लोग होलिका हो जायेंगे, सब राक्षस हो बहुत सताता था। उसको (होलिका) वरदान जायेंगे अब Right sided लोगों में आ था कि वो जलती नहीं है। उन्होंने कहा कि जाती हैं। बड़ा भारी एक Lesson है इसमें इस लड़के को फेंक दो आग में और कि वो तो बेचारा एक छोटा सा बालक था, होलिका तो जलेगी नहीं। होलिका उसे उसको तो कुछ नहीं हुआ। उसको परमात्मा लेकर आग में कूद पड़ी। पर आश्चर्य की ने बचा लिया और ये औरत जल गयी बात है कि वो जल गयी और प्रहलाद नहीं जिसको वरदान था कि वो जल ही नहीं 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-27.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 24 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 पाएगी तपस्या से उसने वरदान प्राप्त किया हैं जिससे ऐसा कोई भी आदमी आपको था, वो जल गयी और ये नहीं जला! उससे सताने की कोशिश करे तो भी आप प्रहलाद ये तात्पर्य होता है कि आदमी को भी के जैसे बच जाएंगे| आपको कोई कष्ट इंसान को यह सोचना चाहिए कि यह सब नहीं होगा आप बहुत Protection में हैं । चीजें जो हमारे अंदर आती भी हैं? ये सब ऐसी कोई भी चीज़ आपको नष्ट नहीं कर विध्वंसक हैं और इसको छोड़ देना चाहिए। सकती। इसलिए किसी के प्रति घृणा या सबके प्रति उदार प्रेम से रहना चाहिए। कोई नाराजगी, ये नहीं होनी चाहिए। सबके झगड़े करेंगे, मारा पीटी करेंगे, सब कुछ तरफ ये सोचना चाहिए कि बेचारा कितना होता है पर ये कोई बड़ी अच्छी चीजें नहीं बेकार है, इस तरह की इसके अंदर बातें हैं, राक्षसी प्रवृत्तियाँ हैं और राक्षसी प्रवृत्तियों हैं और इसको ठीक करना चाहिए। उसके में हमको नहीं उतरना चाहिए क्योंकि हम प्रति यदि क्षमाशील हो जाएं तो ठीक हो लोग सहजयोगी हैं। ये एक विशेष स्वरूप सकता है। इसका एक बड़ा भारी उदाहरण के लोग हैं जो दुनिया को बदलने के लिए प्रह्लाद आये हैं, दुनिया को सुधारने के लिए आये और उसने पिता को चुनौती दे दी। उसका हैं और उस तरफ ध्यान देना चाहिए। हम पिता राक्षस था पर देखिए कि वो तो बच लोग बहुत ऊँचे हैं, इन सबसे बहुत ऊँचे हैं गया और पिता की मृत्यु हो गयी | तो मृत्यु और इससे दुनिया को बचाना चाहिए। की बात नहीं है अपना भी पतन हो जाता आजकल ये बहुत ज्यादा फैल गया है। है, हम लोग जो गलत सलत बात सोचते इसलिए ये जो घिनोनी बातें हैं ये कहनी हैं, अपना बहुत पतन होता हैं। इसलिए चाहिएं, जो आततायी बातें हैं जिससे कि कभी भी किसी के प्रति घृणा या उसके आप दूसरों पे हावी रहते हैं, दूसरों को प्रति द्वेश भाव हो तो उसको निकाल देना सताना चाहते हैं, कुछ कहना चाहते हैं चाहिए। ये होली का आपके लिए संदेश गुन्दी बातें ये सारी बातें सहजयोग में करने है । की को ई जरूरत नहीं। आप स्वयं शक्तिशाली हैं आपके अंदर ऐसी शक्तियाँ तत है जो कि छोटा सा लड़का था परमात्मा आपको धन्य करें। fut) आ 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-28.txt गुड़ी पड़वा पूजा पालम विहार, गुड़गाँव, 13.04.2002 (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) हम लोग जो मनाते हैं गुड़ी पड़वा ऐसा भी तिथियां हैं वो मानते हैं। एक तारीख हर एक जगह है, साउथ में भी है। हर ऐसी जरूर है जो सूर्य के रूप से होता है। जगह ये त्यौहार मनाया जाता है। जो सूर्य जब दक्षिणायण से उत्तरायण में आता सम्वत शुरु हुआ है और जो शालीवाहान ने है उस दिन जरूर हम एक त्यौहार मानते भी सम्वत शुरु किया वो सब एक ही दिन हैं। वो सारे देश में वही दिन माना जाता पड़ते हैं। वो आज का ही दिन है और सारे है। अब जो है, चन्द्रमा के हिसाब से, देश में उसको माना जाता है। उसी के ज्योतिष शास्त्र भी हमारे यहाँ चन्द्रमा के हिसाब से सब हमारी तिथियां और सब हिसाब से चलता है। ज्योतिष में भी चन्द्रमा हमारी तारीखें बनायी जाती हैं खास करके की स्थिति देखी जाती है। कहाँ है, क्या है। त्यौहार। और हम लोग चन्द्रमा के कैलेंडर उसी के अनुसार ज्योतिष शास्त्र बनाया पर चलते हैं। विदेशी लोग जो हैं वो सूर्य जाता है । और इसीलिए जो पहले हमारा के कैलेंडर पर चलते हैं इसलिए उनकी कैलेंडर बनाया गया जिसको कि हम लोग तारीख कभी बदलती नहीं है अपने यहाँ हर एक त्यौहार हमेशा चन्द्र की स्थिति पर होता है और इसलिए हमारे पर निर्भर हैं, जिन लोगों को अपनी तिथि यहाँ की तारीख भी बदलती है और का पता नहीं होगा वो समझ नहीं पाएंगे कहते हैं शालीवाहन-शक वो भी सब चन्द्रमा पर बना हुआ है। सारी तिथियां भी चन्द्रमा अलग-अलग दिन वही त्यौहार होता है, कि क्यों अलग-अलग तिथि पे ये त्यौहार इस प्रकार चन्द्रमा का जो है हम लोग आते हैं। बहुत मान करते हैं और उसके अनुसार जो अपनी सब तिथियां मानते हैं। उसका वो जो भी हो हमें सोचना चाहिए कि चन्द्रमा का इतना महत्व हम लोगों ने किया कारण ये है कि चन्द्रमा का असर मनुष्य उसका कारण यह है कि चन्द्रमा से जो पर ज़्यादा होता है, सूर्य का नहीं होता और हमारे ऊपर असर आते हैं उसके बारे में चन्द्रमा के साथ जो और ग्रह है उनका भी हम सतर्क रहे। चन्द्रमा से सबसे बड़ा असर मनुष्य पर होता है। इसलिए चन्द्रमा असर ये आता है कि हमारी Left Side उस को ही हम लोग मानते हैं और उसी के पर आधारित है इसके बारे में बहुत कम अनुसार हम अपने जो भी त्यौहार हैं, जो लोग जानते हैं, और ये जो Left Side हमारे 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-29.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 26 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 अंदर आ गयी है जिसका कि हम लोगों ने चलता है, पर यह बात सही नहीं है। विशेष रूप से जतन किया हुआ है, इस हमको चन्द्रमा की स्थिति ज़रूर देखनी देश ने माना हुआ है, उसकी वजह यह है चाहिए कि आज क्या स्थिति है कल क्या कि इसके परिणाम हमारे ऊपर मानसिक स्थिति है? आज कौन सा असर आएगा? हैं, Left Side में जो असर आते हैं वो यह बड़ा गहन विषय है जिसके बारे में मानसिक हैं। बौद्धिक नहीं हैं, मानसिक हैं, जानना चाहिए और अपने देश में इसके उसको हम कंट्रोल नहीं कर सकते। जो ऊपर बड़ा विचार किया जाए। मानसिक तकलीफें हैं उसको हम कंट्रोल नहीं कर सकते। चन्द्रमा के जो असर हैं जाता है वो नववर्ष है इसलिए और चन्द्रमा उसको हम कंट्रोल नहीं कर सकते। इसलिए का आगमन है इसलिए भी आज का दिन चन्द्रमा की तिथि देखी जाती है। जैसे माना जाता है। इस दिन जो गुड़ी-पड़वा अमावस्या चन्द्रमा की होगी या पूर्णिमा होगी कहते हैं जिसको कि एक लोटे के अन्दर तो गर किसी आदमी में मिर्गी की बीमारी एक पताका लगाके और पताके का डंडा हो या इस तरह की मानसिक तकलीफ हो वो जो लोटा होता है उसमें लगा देते हैं. तो बहुत बढ़ जाएगी। उस वक्त में एकदम यह जो लोटा होता है यह Represent दिखाई देगा कि इनको असर आया है करता है कुण्डलिनी को और उसमें समर्पित पूर्णिमा का या इन पर असर आया है होकर के किया हुआ है। शालीवाहन लोग अमावस्या का, इसलिए हम लोग इस तरफ जो थे वो देवी भक्त थे और कहा जाता था बहुत संवेदनशील हैं कि चन्द्रमा कहाँ है कि ये देवी को शाल देते थे। पर वो कौन सी तिथि में हैं, इसका Calculation सातवाहन भी कहलाए जाते थे, शुरु हमारे यहाँ इतना बारीक किया हुआ है कि क्योंकि वो सात चक्रों को मानते थे इसलिए हमारे यहाँ ग्रहण कब लगेंगे और ग्रहण की उनको, शालीवाहन, बाद में बदल गया, पर अब आज के दिन जो इतना माना में स्थिति क्या रहेगी, वह कब टूटेंगे, इतना है सातवाहन। सातवाहन से अब शालीवाहन ज्यादा हमारे यहाँ उसपर विचार किया हो गए। पर शालीवाहन का प्रतीक वही गया है और इतना हमारे अंदर उसका बनाते हैं कि गुड़ी खड़ी करेंगे। गुड़ी के ज्ञान है। इससे दिखता है कि अपने देश में माने झंडा, वो प्रतीक रूप और उसके चन्द्रमा के असर का बहुत ख़्याल किया ऊपर में एक जो लोटा होता उसका एक गया है, विचार किया गया है और उसपर आधारित उन्होंने इतनी बातें कही हुई हैं। का द्योतक है। वो कुण्डलिनी के पुजारी अब ऐसा है कि Modern Times में हम थे कुण्डलिनी को मानते थे । इसलिए लोग आ गए तो सूर्य के ही ऊपर से सब उन्होंने वो चीज़ इस तरह की बनाई है चचा Particular Shape होता है वो भी कुण्डलिनी 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-30.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 27 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 और जो मानता है में खड़ी करता है, एक झंडा लगाता है। जानेंगे, हमें उसके प्रति आदर, प्रेम नहीं हो इसका कारण वही है कि वो लोग चाहते थे सकता। बहुत बड़ी-बड़ी गहरी चीज़ें हैं। कि हम इस दिन कुण्डलिनी का स्वागत पर वो गहरी चीजें हम जानते ही नहीं । करते हैं और कुण्डलिनी का विशेष रूप से कह दिया कलियुग है। ये कलियुग क्यों है, वो ऐसी गुड़ी अपने घर तक हम लोग अपने देश के बारे में नहीं प्रदर्शन करते थे। लोगों को पता ही नहीं कैसे आया? इसका क्या मतलब है? ये सब कि ऐसा क्यों करते हैं, करते ही जा रहे हम लोग जानते नहीं हैं, सिर्फ सुन-सुन हैं। कोई चीज़ करते रहते हैं। पर पूछना के बातें करते हैं, पर इसकी बड़ी भारी तो चाहिए कि ऐसा क्यों! यह क्या चीज़ है । कहानी है कलियुग की, परिक्षित राजा के क्योंकि वो सातवाहन थे, सातवाहन को Time की। वो कोई जानता ही नहीं, कोई मानते थे और कुण्डलिनी के रक्षक थे, पढ़ता ही नहीं । सब बेकार की चीजें पढ़ते कुण्डलिनी की पूजा करते थे इसलिए रहते हैं । ज़्यादा से ज्यादा कभी हो तो उन्होंने इस तरह से अपना नववर्ष शुरु रामायण पढ़ लेंगे पर इसके पीछे में जो किया। नववर्ष में उन्होंने ये दयोतक मतलब संदेश है या इसके पीछे में जो शास्त्र है, ऐसा मनाया कि एक लोटा हो और उसके उसके बारे में कोई जानता नहीं । नीचे ये झंडा, ये गुड़ी लगाई जाए। यहाँ इस चीज़ को इतना मानते नहीं और कोई जानें, हमारे देश की जो सभ्यता है वो तो हम सहजयोगियों को चाहिए कि हम जानता भी नहीं है। पर सम्वत सर भी जो कहाँ से आयी और किस तरह से हम इस छपता है या विक्रम, वो भी आज ही से स्थिति में पहुँचे, ये जानना चाहिए, क्योंकि शुरु हुआ है। हो सकता है दोनों के साल उसको जाने बगैर हमारे अंदर यही परदेसी अलग हों पर दिन यही है। ये भी इसी दिमाग आ जाएगा और उससे अहंकार अमावस्या को मानते हैं और वो भी इसी और ये सब चीजें आ जाएंगी । बेहतर है अमावस्या को मानते हैं। तो इस तरह से कि समझ लें कि हमारे अंदर जो ये चीजें ये जो गुड़ी पाड़वा है, ये जो चीज़ है ये हैं वो कहाँ से आयी हैं उसका क्या महात्म्य दोनों में माना जाता है। अमावस्या नहीं है। ये हम क्यों करते हैं? बस यूं अपना होती, प्रथमा जिसको कहते हैं पहला दिन, करते हैं सब लोग, तो हम भी करते हैं। ये वो है आज, इसीलिए आज चन्द्रमा वगैरह बात ठीक नहीं, उसको समझ लेना चाहिए। कुछ नहीं। आज आकाश में, पूरा अंधेरा यही मैं चाहती हूँ कि सब सहजयोगी इसको है। पर हम लोगों को जानना चाहिए कि समझ लें, जान लें। ग़र हमारे पास Time हमारे देश के अंदर ये क्यों होता है और होता तो हम सब लिख देते पर हमारे पास उसके अंदर उसकी क्या विशेषता है। जब Time नहीं है। आप लोग इसको पढ़ सकते 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-31.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 28 हैं और जान सकते हैं। अपने यहाँ सारी क्योंकि विदेशी भाषा जो है या विदेशी जो किताबें हैं। हिन्दुस्तान में हिन्दी भाषा में कुछ भी ज्ञान है वो बहुत ही ज्यादा इतनी किताबें हैं, कोई ये किताबें पढ़ता ही Superficial कहलाती है । इसलिए आप लोग नहीं। सारी दिल्ली में ही मिलती हैं। मैंने तो दिल्ली में ही खरीदीं थी। तो इनके बारे है, मैंने वहीं से बहुत सी किताबें खरीदीं, में जानना चाहिए, जो पौराणिक है जो सुन्दर है दुकान, उसी दुकान से बहुत सी कहने को पौराण हैं लेकिन उसमें बहुत सी किताबें लाई थी, बहुत सस्ती मिलती हैं । फायदे की बातें हैं जो समझ लेने से हम पैसा नहीं लगता। पर Time चाहिए पढ़ने समझ सकते हैं कि भारतवर्ष के नीव में के लिए। फालतू चीजें हम पढ़ते रहते हैं, क्या चीज़ है। हम लोग हिन्दुस्तानी क्यों फालतू सिनेमा देखते रहते हैं, फालतू News सबसे श्रेष्ठ माने जाते हैं? मतलब सामाजिक पढ़ते रहते हैं, पर जो हमारा अध्ययन होना रूप से न हों पर सांस्कृतिक रूप से हम चाहिए वो बहुत गहन और ऐसी चीजों पे लोग बहुत श्रेष्ठ माने जाते हैं। और दूसरा होना चाहिए जो हमारे पास बहुत सालों से ये कि धर्म में कैसी स्थापना करना चाहिए, आयी है। आज का दिन बड़ा शुभ है। वैसे, धर्म क्या है बहुत कुछ गहरी बातें लिखी मेरी इतनी तबीयत अच्छी नहीं थी पर मैंने हुई हैं। मैं चाहती हूँ कि आप लोग कुछ कहा कि ऐसे शुभ अवसर पे क्या करें, इसका अध्ययन करें, पढ़े तो एक नई पूजा में तो जाना ही है। दिशा आप लोगों को मिल सकती है । कोशिश करें कि आपके यहाँ सस्ता साहित्य अनंत आशीर्वाद 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-32.txt सहस्रार पूजा कबैला, 06.05.2002 (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) कल की रात पूर्णतया अंधेरी रात थी। ही खराब हो गई है। लोग, अपने मस्तिष्क- इसे अमावस्या कहते हैं। इसके साथ क्षेत्र (Limbic Area) को अत्यन्त संवेदनशील शुक्ल-पक्ष (Moonlit Phase) का आरम्भ बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं। अत्यन्त हुआ है। आज हम उस पर्व को मनाने के उदासी से भरे उपन्यास, उदासी से भरी लिए यहाँ एकत्र हुए हैं जब सहस्रार खोला विचारधाराएं और अत्यन्त उदास संगीत गया था। आपने यह फोटो में भी देखा है । आदि जैसे मूर्खतापूर्ण यूनानी त्रासदी । इन से वास्तव में यह मेरे मस्तिष्क का चित्र था सारी चीजों का उद्भव मध्यकालीन युग जिसमें दर्शाया गया कि सहस्रार किस प्रकार है और अब ये इस नवयुग तक आ पहुँची खोला गया। अब मस्तिष्क के प्रकाश का हैं मस्तिष्क क्षेत्र पर आकर व्यक्ति की भी फोटो लिया जा सकता है। आधुनिक स्थिति बिल्कुल बेकार थी जिसने उसे काल की यह महान उपलब्धि है। आधुनिक अत्यन्त उदासीन बना दिया। ऐसी स्थिति काल में ऐसी बहुत सी चीजें आई है जिनसे में विपत्तियों से बचने के लिए व्यक्ति शराब परमात्मा के मस्तिष्क को प्रमाणित किया आदि की लत में फँस जाता है। आज इस जा सकता है, मेरे विषय में भी यह प्रमाण आधुनिक युग में लोग अत्यन्त गतिशील दे सकता है। यह आपको विश्वस्त कर सकता है कि मैं क्या हूँ। ऐसा होना बहुत सक्रियता का आरम्भ हुआ और उसके आवश्यक है क्योंकि आधुनिक काल में इस साथ-साथ मस्तिष्क भी अत्याधिक सक्रिय अवतरण का पहचाना जाना महत्वपूर्ण है। हो उठा। पहले की उदासीन स्थिति के इसका पूरी तरह से पहचाना जाना। सभी साथ-साथ ये अत्याधिक सक्रियता की दूसरी सहजयोगियों के लिए ये शर्त है। आइए अब देखते हैं कि आधुनिक मानव के लिए लोग नशे-सेवन करने लगे और के मस्तिष्क में क्या चल रहा है। आज के उन्होंने भयानक संगीत अपना लिया। इस मनुष्य के मस्तिष्क में यदि हम झाँके तो प्रकार से लोगों ने अपने सहस्रार क्षेत्र पता चलता है कि सहस्रार पर आक्रमण हो (Limbic Area) को संवेदनहीन कर लिया। रहा है। बहुत समय से ये आक्रमण चल जो नशा आरम्भ में मात्र स्फूर्तिप्रद होता था रहा है परन्तु आज के युग में स्थिति बहुत बाद में उसी को बहुत अधिक मात्रा में लेने (Over active) हो गए हैं। अत्याधिक अति में चला गया। अतः इसे शान्त करने 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-33.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 30 की आवश्यकता पड़ने लगी। और फिर ये दरवाजे के कारण कुण्डलिनी उनके सिर नशे अत्यन्त तीव्र स्तर के होते हैं। इस में दबाव बनाती है जिसे वे समझ नहीं पाते तरह से चलता रहा और अब हम जानते और उसे तनाव (Tension) की संज्ञा दे हैं कि लोग सोचते हैं कि वे केवल इन देते हैं । बास्तव में कुण्डलिनी स्वयं को नशों से ही जीवित रह सकते हैं । क्यों? बाहर निकालने का प्रयत्न कर रही होती उस तनाव के कारण जिसके बारे में वो है परन्तु यह निकल नहीं पाती। हमेशा बात करते हैं। आधुनिक काल में एक ऐसी स्थिति खड़ी हो गई है जिसे हम भी लोग यदि अपने सहस्र को ठीक नहीं तनाव (Tension) कहते हैं। पहले ये तनाव करते तब भी उन्हें तनाव हो सकता है। न हुआ करता थे। लोग कभी तनाव की यद्यपि सहस्रार को वर्ष पूर्व खोल बात न करते थे। अब सभी लोग कहते हैं दिया गया था फिर भी हमे अपने सहस्रार आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेने के पश्चात् बहुत मैं तनाव में हूँ। आप मुझे तनाव दे रहे हैं। को स्वच्छ करने के लिए कुछ कार्य करने होंगे। पहला कार्य सहस्रार का भेदन है। | ये तनाव हैं क्या? ये तनाव मेरे अवतरण के कारण है एक बार जब इसका भेदन हो जाता है, क्योंकि मस्तिष्क क्षेत्र मेरे विषय में जानना ब्रह्मरन्त्र खुल जाता है तब हम परमात्मा के चाहता है और ज्यों-ज्यों सहज योग बढ़ चैतन्य को महसूस करने लगते हैं और यह रहा है लोगों में कुण्डलिनी उठने का प्रयत्न चैतन्य हमारे ईडा और पिंगला मार्गों को कर रही है। क्योंकि आप लोग माध्यम भी प्रभावित करने लगता है। यह चैतन्य, बनते हैं, जहाँ भी आप जाते हैं कुण्डलिनी नहीं, जो कि चहुँ ओर व्याप्त है चैतन्य-लहरियों का सृजन करते हैं और हमारे बाएं और दाएं अनुकंपियों को शान्त ये चैतन्य लहरियाँ सन्देश के रूप में करता है, और इसके कारण हमारे चक्र कुण्डलिनी को चुनौती देती हैं और खुलते हैं और कुण्डलिनी के अधिक से परिणामस्वरूप कुछ लोगों में कुण्डलिनी अधिक तन्तु इन चक्रों का भेदन करने उठ जाती है । हो सकता है कि सहस्रार लगते हैं। यही कारण है कि मैं सदैव सहजयोगियों वापिस खिंच जाए क्योंकि उनमें कुण्डलिनी से कहती हूँ कि अवश्य ध्यान धारणा करें। की पहचान नहीं है. उसके प्रति श्रद्धा नहीं आपका सहस्रार यदि ठीक है तो आपके | अतः जब-जब भी आप कुछ करते हैं सभी चक्र ठीक होंगे। क्योंकि आप जानते तो कुण्डलिनी उठती है और आपको दबाव हैं कि सहस्रार स्थित चक्रों की पीठ ही इन देती है क्योंकि आपका सहस्रार खुला हुआ चक्रों के नियंत्रण केन्द्र हैं जो मस्तिष्क में नहीं है। यह दरवाजा बन्द है इस बन्द तालु क्षेत्र के ईर्द-गिर्द विद्यमान है। अतः तक न उठे या सहस्रार तक उठकर भी ये 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-34.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 31 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10। यदि आपका सहस्रार स्वच्छ है तो सभी आप जब कहते हैं कि आप मुझे अपने कुछ अत्यन्त भिन्न प्रकार से घटित होगा। हृदय में बिठाते हैं तो वास्तव में आप किस प्रकार सहस्रार को ठीक रखा अपने सहस्रार में बिठाते हैं क्योंकि, जैसा जाए ये बहुत बड़ी समस्या है। इसके विषय कि आप जानते हैं, यहाँ पर ब्रह्मरन्ध्र है । ये में लोग हमेशा मुझसे पूछते हैं। आप जानते तालू अस्थि क्षेत्र है जिसमें पीठ हैं, वह हैं मैं सहस्रार में विराजती हूँ। सहस्र दल केन्द्र जो हृदय का नियंत्रण करता है. जो कमल में मैं अवतरित हुई हूँ इसीलिए मैं मुझे कि सदाशिव का स्थान है या आप कह सकते हैं शिव का इसका भेदन भी कर सकती हूँ। आज जिस रूप में आप स्थान है तो जब आप क मुझे अपने हृदय में स्थापित करते हैं तब मुझे देखते हैं उसके विषय में कहा आप मुझे बास्तव में सहस्रार में बिठाते हैं। अतः श्री शिव को गया है सहसारे महामाया। अंतः यह भ्रान्ति या भ्रम की हृदय से ब्रह्मरन्ध्र में या ब्रह्मरन्ध्र से हृदय स्थिति है जो आपके में लाने में दो तरह के लोगों को समस्या लिए हमेशा बनी रहती है। ये अत्यन्त कुछ लोग जो हृदय से बहुत संवेदनशील हैं जैसे हम देखते हैं इटली के लोग हृदय से आती है। भ्रामक है। इसे ऐसा ही होना था क्योंकि यदि मेरे अन्दर से सभी प्रकाश निकल रहे होते या जिस तरह से कल आपने सहस्रार को देखा संवेदनशील हैं । मुझे देखते ही पहला कार्य जिसमें चारों ओर से निराकार रंग फूट रहे जो वे करते हैं वह है अपने हाथों को हृदय थे और प्रकाश निकल रहा था, तो आप पर रख लेना और यही सब कुछ है। मेरा सामना न कर पाते, मुझे सहन न कर आरम्भ में मुझे अपने हृदय में महसूस पाते। करना बहुत सुगम है। अब आप कह सकते अब इस सहस्रार की देखभाल आपने हैं कि ये किस प्रकार करें? आपको भी मुझे करनी है। ये आपकी माँ का मन्दिर है । वैसे ही प्रेम करना होगा जैसे मैं आपको 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-35.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 32 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 इस प्रेम में कोई शर्त नहीं होती, इसमें होगा क्योंकि आप मेरे अन्दर हैं और किसी कोई अवरोध नहीं होता, जो किसी प्रकार अन्य को ये उपदेश नहीं दे सकते कि प्रेम की राहत नहीं माँगता । जो किसी प्रकार किस प्रकार करना है। प्रेम अन्तः स्थित की वापिसी नहीं चाहता, जो निर्वाज्य है। है। आपके हृदय को खोलते ही प्रेम की परन्तु बन्धन बहुत हैं। सर्वप्रथम बन्धन की समस्या तब आती है जब आप सोचते हैं अब इसमें रूकावट क्या है? आइए इस कि यह कारण मुझे किसी से घृणा करने चीज़ को देखें। सर्वप्रथम बन्धन हैं पश्चमी के लिए विवश करता है या मैं फलों व्यक्ति देशों में प्रेम की अभिव्यक्ति को वास्तव में से प्रेम नहीं कर सकता क्योंकि उसके पाप माना जाता है। किसी से ये कहने में लिए ये शर्त है। परन्तु एक-एक करके इन कारणों को यदि आप देखें तो ये हास्यास्पद करती हूैँ। आपको परस्पर भी प्रेम करना अभिव्यक्ति होती है। भी समय लगता है कि में तुम्हें प्रेम करता हूँ (I Love You) । परन्तु मैं तुमसे घृणा हैं इन्हें सुगम बनाने के लिए मैं चाहूँगी कि करता हूँ (IHate You) कहना वहाँ बहुत आप बन्धनों के विषय में अच्छी तरह से आसान है। कोई बच्चा भी कहता चला समझें। एक बार मैंने अत्यन्त दिलचस्प जाएगा मैं तुमसे घृणा करता हूँ, मैं तुमसे लेख पढ़ा - घृणा करता हूँ, मैं तुमसे घृणा करता हैूँ। (Who Kiled the Romance ?) लेखक ने किसी से भी घृणा करना अपराध है अतः ये बताया कि ये कार्य हज्जाम (Hair Dresser) 'रोमांस की हत्या किसने की' कहना कि मैं तुमसे घृणा करता हूँ पाप का ने किया। मैं हैरान थी कि किस प्रकार वह कार्य है व्यक्ति को निरन्तर कहना चाहिए रोमांस को हज्जामों से जोड़ रहा था । "कि मैं तुमसे प्रेम करता हूँ। जो व्यक्ति लोग क्योंकि हज्जामों के पास जाया करते आपको इतना प्रिय है उससे यही कहना हैं और एक व्यक्ति को विशेष प्रकार की चाहिए। जिसने आपका कोई हित किया है शैली पसन्द है, वह हमेशा कहता कि मुझे उस व्यक्ति से आपको प्रेम करना चाहिए। बालों की इसी शैली से प्रेम है। मान लो परन्तु साक्षात् आदिशक्ति ने जब आपको उसकी पत्नी या मंगेतर किसी अन्य प्रकार पुनर्जन्म प्रदान किया है तो उन्हें प्रेम करना के बाल बनवा ले, क्योंकि रोज नई-नई तो आपके लिए सुगमतम होना चाहिए। चीजें आ रही हैं, तो तुरन्त पति कहेगा, जब वो कहती हैं कि मैंने सभी लोगों को तुम्हारे बालों की शैली के कारण मैं तुमसे अपने शरीर के अन्दर स्थान दिया है तब नफरत करता हूँ। क्योंकि उसे तो एक ही बो परस्पर प्रेम करना और भी सुगम हो प्रकार की बालों की शैली परसन्द है और जाना चाहिए। अतः इसी प्रेम के माध्यम से इसी के कारण वह उससे प्रेम करता सहस्र्रार की सभी बाधाएं दूर होती हैं । परन्तु प्रेमिका या पत्नी को बालों की कोई 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-36.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 33 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 अन्य शैली पसन्द है तो आप उससे घृणा करते हैं क्योंकि उस व्यक्ति के पास धन करते हैं, आप कहते हैं कि ये मुझे पसन्द का प्राचुर्य है निःसन्देह वह व्यक्ति आपको नहीं है। मुझे पसन्द है या मुझे पसन्द नहीं अपना धन नहीं देगा। परन्तु आप उसको है कहना ही इस बात का चिन्ह है कि इसलिए प्रेम करते हैं क्योंकि उसके पास अभी तक बहुत अधिक बन्धन बाकी हैं। बहुत पैसा है या उसके पास एक अच्छी आप भली भांति बाल बनाएं, ठीक से वस्त्र गाड़ी है या वह बहुत अच्छे वस्त्र पहनता पहनें परन्तु आपके बाहर आते ही अचानक है आदि-आदि। तो व्यक्ति में इस प्रकार यदि लोग कहें, "ओह, मुझे इससे घृणा है! की धारणाएं प्रेम की हत्या है. प्रेम की यदि ये कहने वाले आप कौन हैं? किसी से भी हत्या हो जाएगी तो आनन्द समाप्त हो ये कहने का अधिकार हमें क्यों है? न्यायालय जाएगा प्रेम के बिना आनन्द प्राप्त नहीं ने आपको इसका न्यायाधीश नहीं नियुक्त किया जा सकता। मैं कहती हूँ कि प्रेम एवं किया तो क्यों किसी को चोट पहुँचाने के आनन्द एक ही चीज़ है । केवल तभी यह लिए हम कहते हैं मैं इससे घृणा करता हूँ। सूक्ष्मातिसूक्ष्म होता चला जाता है। तभी इसके विपरीत आपको कहना चाहिए कि आप अपने बच्चों से प्रेम करने लगते हैं, ये ये शैली ठीक है मुझे पसन्द है परन्तु तुम आम बात है। मेरा कहने से अभिप्राय है इससे भी बेहतर शैली अपना सकती हो। कि कुछ लोग अपने बच्चों से भी प्रेम नहीं प्रेम का यही चिन्ह है। प्रेम में आप चाहते करते सभी प्रकार के लोग हैं परन्तु वे कि वह व्यक्ति इस प्रकार की वेशभूषा कहते चले जाएंगे ये मेरा बच्चा है, ये मेरा पहने जो आकर्षक हो परन्तु लोगों को बच्चा है। ये भी प्रेम की मृत्यु है। जैसा मैंने देखने का यह अत्यन्त स्थूल तरीका है। आपको पहले भी बताया है पेड़ का रस तत्पश्चात् हम किसी व्यक्ति को देखने ऊपर को उठता है, सभी पत्तों में जाता है. जाते हैं कि वह कितना बुद्धिमान है. कितना फलों में जाता है, अन्य सभी हिस्सों में चुस्त है, कितना योग सिद्ध है, कितना जाता है और फिर वापिस आ जाता है । आकर्षक है? आकर्षक एक अन्य शब्द है जो अत्यन्त किसी विशेष भाग से या किसी एक फूल भ्रामक है। मस्तिष्क के कुछ इस प्रकार के से लिप्त हो जाए, क्योंकि यह अधिक सुन्दर बन्धन होते हैं कि आप सोचते हैं कि उस है, तो पूरा पेड़ मर जाएगा और फूल भी शैली विशेष वाला व्यक्ति ही प्रेम करने मर जाएगा तो यह प्रेम की मृत्यु है। अतः योग्य होता है या कुछ लोग बिल्कुल प्रेम नहीं जिसमें कोई चिपकन न हो, मोह न हो । करते फिर भी वो दर्शाते हैं कि हम प्रेम जब-जब भी मैं ये बात कहती हूँ तो लोग इसमें लिप्तता नहीं होती। रस यदि पेड़ के य है। आपका प्रेम उससे केवल बाह्य आपको इस प्रकार का प्रेम करना चाहिए श 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-37.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 34 पूछते हैं ऐसा किस प्रकार किया जाए? पुस्तक पढ़ रही थी, किसी अंग्रेज ने इसकी आत्मा का प्रेम ऐसा है। परन्तु बन्धन ग्रस्त बहुत सुन्दर प्रस्तावना लिखी थी, परिचय मस्तिष्क का प्रेम बिल्कुल भिन्न होता है । लिखा था उसने कहा था कि पश्चिम में बन्धन ग्रस्त मस्तिष्क सीमित रूप से प्रेम सृजनात्मकता की हत्या कर दी गई है। कर सकता है क्योंकि ये बन्धनों में फँसा तो उसने एक भारतीय आलोचक से पूछा कि क्या आप अपने कवियों की आलोचना हुआ है। हमारे अन्दर विद्यमान अहं प्रेम का कट्टर नहीं करते हैं। क्या आपके यहाँ आलोचक दुश्मन है। अहं हमारे सिर के शिखर पर नहीं हैं? "हाँ, हाँ हमारे यहाँ आलोचक हैं गुब्बारे की तरह से है और यही सभी प्रकार जो आलोचना करते हैं।" वो क्या आलोचना के तनाव का कारण है। इस प्रकार के करते हैं? "वो इस बात की आलोचना बन्धन, जैसे मान लो वो कोई कालीन करते हैं कि इस बार हमारे यहाँ बारिश देखते हैं और उनके मस्तिष्क के अनुसार नहीं हुई जिसके कारण बहुत सी समस्याएँ ये अच्छा नहीं है। तो वो एकदम से बोलेंगे, उत्पन्न हो गई। वो कहने लगा, "नहीं, ये कैसा कालीन है या कुछ और। इस नहीं, नहीं हम कवियों की बात कर रहे हैं, क्या वे कवियों की आलोचना करते हैं, क्या के प्रकार तुच्छ बन्धन या कुछ उच्च स्तर के बन्धन कि आप अपने देश से प्रेम करते वे कलाकारों की आलोचना करते हैं?" वह हैं क्योंकि मेरा देश सर्वोत्तम है चाहे वहाँ व्यक्ति बोला, "क्या ये सब चीजें आलोचना पर लोगों की हत्या ही की जा रही हो, के लिए हैं? इनका तो सृजन किया गया चाहे वह विश्व शान्ति को ही क्यों न नष्ट है! सृष्टा ने जो भी महसूस किया उसका कर रहा हो, परन्तु सब ठीक है क्योंकि मैं उसने सृजन किया परन्तु यदि उसने एक देश विशेष से सम्बन्धित हूँ इसलिए कोई अभद्र चीज़ लिखी है तो निश्चित रूप यही सर्वोत्तम है। हम अपने देश की आलोचना से वह हमें पसन्द नहीं आती। यदि किसी कभी नहीं कर सकते और न ही देशवासियों चीज़ का स्वच्छ मस्तिष्क से सृजन किया की। और ये चीज़ दिनोंदिन सूक्ष्म होती गया हो तो आप उसकी आलोचना नहीं जाती है। परन्तु बुद्धि पक्षा तो बहुत ही करते?" उसने उत्तर दिया, "नहीं, क्योंकि खराब है। बुद्धि से यदि एक बार आपने हम इतना अच्छा सृजन नहीं कर सकते समझ लिया कि फलां चीज़ ठीक है तो तो हमें आलोचना करने का क्या अधिकार इस विषय में आपको कोई भी समझा नहीं है?" अत्यन्त बुद्धिमत्ता पूर्वक अपनी बुद्धि सकता क्योंकि इसे आपने अपने मस्तिष्क के माध्यम से समझा है। ये अत्यन्त आश्चर्य लिए हमारे यहाँ नियम संहिता है. कला के की बात है। मैं रविन्द्रनाथ द्वारा रचित लिए और सभी प्रकार के सृजन के लिए । से हमने ये सब किया है, सभी चीज़़ के 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-38.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 35 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 हमें ये कालीन पसन्द नहीं है, क्यों? क्योंकि हम नहीं कर सकते। यद्यपि रैमब्रैन्ट को ये हमारी मानसिक सूझ-बूझ को अच्छा भी अपने जीवन में बहुत से कष्ट उठाने नहीं लगता, ये नियम संहिता के अनुकूल पड़े होंगे। आप जानते हैं किस-किस ने नहीं है और उसके ढाँचे में ये पूरा नहीं कष्ट उठाए, इन सभी कलाकारों ने बहुत बैठता। इसलिए ये हमें पसन्द नहीं है । कष्ट उठाए। यहाँ तक कि माइकल एंजेलो क्या आप इस प्रकार का एक इंच भी बना को भी कष्ट उठाने पड़े। केवल धन की सकते हैं? ये अहं व्यक्ति को अनाधिकार कमी के कारण ही नहीं । वैसे भी उन्हें सक्रियता देता है। ये अनाधिकार है अनाधिकार चेष्टा । आलोचना करने का आपको कोई ये आलेचना छोड़ दी है। मैं एक कलाकार अधिकार नहीं। आप कुछ भी नहीं कर से मिली जिसने बहुत सा कला कार्य किया सकते तो आपको आलोचना करने का क्या है। मैंने उससे कहा, "आप मुझे अपनी अधिकार है? बेहतर होगा कि चीजों की कलाकृतियाँ दिखाते क्यों नहीं। उसने उत्तर सराहना करें और स्वयं इस बात को समझें दिया, "नहीं, मैं ये सब दिखाना नहीं चाहता, कि आलोचना करने का अधिकार आपको ये सब मैंने अपने लिए बनाया है। मैंने नहीं है। इसकी योग्यता आपमें नहीं है। कहा, "मैं ये कलाकृतियाँ देखना चाहूँगी, जब आपमें इसकी योग्यता ही नहीं है तो मैंने इनको देखा सभी कृतियाँ बहुत सुन्दर आपको आलोचना क्यों करनी चाहिए। थीं! तब उसने कहा कि वह अपनी आपको ये बात भी समझ लेनी चाहिए कि कलाकृतियों का प्रदर्शन क्यों नहीं करता। आप अहं के दास हैं। आपका अहं एवं कहने लगा, "लोग केवल उनकी आलोचना मस्तिष्क आपको जो भी कुछ करने के करेंगे " ये सारा सृजन मैंने अपनी खुशी लिए कहता है आप करते हैं। ये तथाकथित के लिए किया है। लोग मेरे सृजन का बुद्धि आपको एक बिन्दू तक ले आती है। सारा आनन्द नष्ट कर देंगे तो यह एक एक विशेष नियम तक और तब आपका ये मूल चीज़ है जो हमें नहीं करनी चाहिए। अहं एक जातिविशेष, देश विशेष या विचारधारा विशेष का सामूहिक अहं बन अपने भाई-बहनों की आलोचना करें, अपने जाता है। ऐसा सामूहिक रूप से होता है देश की आलोचना करें, अपनी सभी आदतों और तब लोग कहते हैं ये कोई कला नहीं की आलोचना करें, और स्वयं पर हँसें | है । और यही कारण है कि आज आप यदि स्वयं पर हँसना जानते हैं तो कला-विशारद लोग नहीं निकल रहे । आज हम रैमब्रैन्ट पैदा नहीं कर पा रहे हैं। ऐसा किसी अन्य की सृजनात्मकता के मार्ग में बहुत कष्ट उठाने पड़े। आलोचना, आलोचना, आलोचना। मैं सोचती हूँ कि अब लोगों ने अच्छा होगा कि अपनी आलोचना करें. आप किसी पर एतराज़ नहीं करेंगे, न ही 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-39.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 36 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 बाधा बनेंगे। तो अहं के कारण आप दरार आदि हो! कभी-कभी इस चीज की अधिकार विहीन हो जाते हैं। किसी भी बहुत कमी होती हो। मुझे लगता है कि चीज़ की आप आलोचना कर सकते हैं । उनके कुछ पेच ढीले हो गए हैं, कभी-कभी आप सोचते हैं कि ऐसा करने का आपको तो वो विदूषकों की तरह व्यवहार करते अधिकार है। व्यक्ति को स्वयं से पूछना हैं हम कुछ ऐसे लोगों को जानते हैं कि चाहिए कि किसने मुझे ऐसा करने का उनका कुछ नहीं हो सकता अन्यथा वे अधिकार दिया? कैसे मैं किसी की आलोचना बहुत बुद्धिमान हैं, बहुत तेज हैं, परन्तु कर सकता हूँ? निःसन्देह अब आप लॉग सजहयोग में वो उस स्तर तक नहीं आ सन्त हैं, आप इस बात को जान जाते हैं सकते जहाँ ये कहा जा सके कि उन्नति कि कौन पकड़े हुए हैं, किसकी चैतन्य सम्भव है । कल्पना करें की पृथ्वी माँ कभी लहरियाँ खराब हैं और किसके साथ समस्या सूर्य की तरह से गर्म थी उस स्थिति में है। यह सब आप जान लेंगे। ये बन्धन नहीं उन्नति असम्भव थी या यदि वह चन्द्रमा हैं। आप ऐसा अपने अहं के कारण नहीं की तरह से ठण्डी होती तो भी उन्नति करते। इन सब चीजों को तो आप अपनी संभव न होती। उन्नति के लिए तो इसका अंगुलियों के सिरों पर महसूस कर रहे हैं। मध्य में आना आवश्यक था जहाँ दोनों ही वास्तव में यही आपके अन्दर की संवेदना गुण (सर्दी और गर्मी) उचित मात्रा में होते। है. यही बोध है जिसे आप जानते हैं तो इसी प्रकार मानव को भी संयम रखना आपको क्या करना चाहिए? अपने प्रेम में चाहिए। संतुलन बनाए रखना चाहिए। और यदि संभव हो तो आपको उस व्यक्ति को समझना चाहिए कि उसे अति की सीमा बताना चाहिए कि आपमें यह दोष है। तक नहीं जाना। यह सन्तुलन आप केवल अच्छा होगा कि सुधार कर लें। ऐसे ढंग से तभी सीख सकते हैं जब आप किसी से 1 बताएं कि वह बात को समझ ले, ऐसा न प्रेम करते हैं। हो कि उसकी स्थिति और भी खराब हो जाए। यदि ऐसा होता है तो आपको उससे कई बार कुछ लोगों को सहजयोग छोड़ने प्रेम नहीं है। सभी को उन्नत होने का के लिए कहना पड़ता है। ऐसा भी उनसे आप जानते हैं कि सहजयोग में हमें प्रेम के कारण होता है क्योंकि सहजयोग अवसर दे। सहजयोग में बहुत से ऐसे लोग हैं जो से बाहर किए जाने पर वो सुधरते हैं । मैंने अत्यन्त, अत्यन्त अच्छे हैं। इसमें कोई सन्देह देखा है कि ये लोग बहुत तेजी से सुधरते ं। परन्तु ऐसे भी कुछ लोग हैं जिनके हैं। परन्तु सहजयोग समाज के अन्दर रहते नहीं विषय में हम कह सकते हैं कि वो बहुत हुए वे अत्यन्त उपद्रवी बन जाते हैं और कठिन हैं। उनके खोपड़े में मानो कोई इस उपद्रव को सामूहिक बनाने का प्रयत्न 1 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-40.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 37 करते हैं क्योंकि उनका अहं कार्य करता है आप दृढ़ करना चाहते हैं इसलिए मेरे प्रति या हो सकता है उनके बन्धन कार्य करते अपना प्रेम करने के लिए मेरे प्रति अपने हैं। जो भी हो, वे उपद्रव करना चाहते हैं। हृदय की भावनाओं को प्रकट करने के अतः हमें उनसे कहना पड़ता है कि कृपा लिए आप मुझे पुष्प अर्पित करते हैं। प्रेम करके अब कुछ समय के लिए बाहर हो की ये भावनाएं इतनी आसानी से अभिव्यक्त जाओ। उस व्यक्ति में यदि उस उपद्रवी हो सकती हैं कि दूसरा व्यक्ति ये जान प्रवृत्ति को समाप्त करना है तो उसका निष्कपट होना आवश्यक है। वह उपद्रवी नहीं हो सकता और तर्क दृष्टि से भी यदि यदि ये बात देख सकें कि मस्तिष्क को तो ये देखें कि किसी व्यक्ति को यदि इस संदेह करना ही है । मस्तिष्क को संदेह जाता है कि प्रेम क्या है? प्रेम ही सहस्रार की पूर्ण शक्ति है। आप करना ही है अपने मस्तिष्क एवं बुद्धि के प्रकार से समझाया जाए तो उसे भी अच्छा लगेगा कि उसे बाहर जाने के लिए कहने माध्यम से सहजयोग की शक्तियों का का क्या कारण है? परन्तु इस चीज़ को सत्यापन करने के पश्चात् आप एक ऐसे अत्यन्त ही वीभत्स रूप से कष्टकर माना बिन्दू तक पहुँचते हैं जहाँ आप समझ को मैं जानती हूँ। जाते हैं कि विश्लेषण और संश्लेषण जाता है। इस बात परन्तु आपको पूर्ण धैर्य एवं सूझ-बूझ दर्शानी (Analysing and Synthesizing) करने का होगी। एक प्रेम से ओत प्रोत व्यक्ति की कोई लाभ नहीं है। ये सब बेकार हैं । तरह से लोगों से बातचीत करनी होगी। प्रेम ही महत्वपूर्ण है, सहजप्रेम। अतः प्रेम में इतनी शक्ति है कि कोई भी ऐसा आत्मसाक्षात्कार से पूर्व जिस मस्तिष्क का कार्य नहीं करेगा जिससे ये अहसास हो प्रयोग विश्लेषण व आलोचना के लिए होता कि वे प्रेम नहीं करते। 1 प्रेम अत्यन्त था, सभी मूर्खतापूर्ण कार्यों के लिए होता शक्तिशाली है। यह लोगों को इतनी सुन्दरता था, अब वह प्रेम करना चाहता है। इसकी पूर्वक बाँधता है कि हर व्यक्ति कुछ न कुछ करना चाहता है। उदाहरण के रूप प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी न करें उस में आप मुझे पुष्पार्पण करना चाहते हैं क्योंकि स्थिति तक व्यक्ति को पहुँचना है । तब आप जानते हैं फूलों से मुझे प्रेम है। अतः व्यक्ति केवल प्रेम करता है, केवल प्रेम को ये दर्शाने के लिए कि श्रीमाताजी "हम जानता है क्योंकि इसने प्रेम की शक्ति को आपसे प्रेम करते हैं," आप मुझे पुष्पार्पण पहचान लिया है । आप तर्कसंगत परिणाम करते हैं मैं जानती हूँ कि आप मुझे प्रेम तक पहुँच जाते हैं और आदिशंकराचार्य करते हैं। परन्तु इस प्रेम को आप सुदृढ़ की तरह से आपको भी सत्य दिखाई देता करना चाहते हैं। मेरे अन्दर अपने प्रेम को है, जो उन्होंने 'विवेक चूड़ामणि' तथा अन्य पराकाष्ठा है जिस बिन्दु पर मस्तिष्क केवल 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-41.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 38 ग्रन्थों में लिखा। इस सत्य को उन्होंने गया है हमें अपनी ध्यान धारणा के माध्यम प्रकट किया। उन्होंने केवल 'माँ (आदिशक्ति) से, अपनी सूझ-बूझ से, स्वयं तथा अन्य का स्तुतिगान किया, समाप्त। एक बार लोगों को समझकर सहस्रार को पुनः खोलना जब आप उस स्तर पर पहुँच जाते हैं तब है। तार्किकता द्वारा इस बिन्दु तक पहुँचने आप कह सकते हैं आप निर्विकल्प हैं क्योंकि की अब कोई संभावना नहीं रह गई है। अब कोई विकल्प रह ही नहीं गया। अब आपके मस्तिष्क में कोई सन्देह रहा ही सागर में कूद पड़े हैं। समाप्त । एक बार नहीं क्योंकि आप प्रेम करते हैं और प्रेम में जब आप प्रेम के सागर में कूद पड़ेंगे तो सन्देह का कोई स्थान नहीं है, कोई प्रश्न कुछ भी करने को न रह जाएगा। उसकी ही नहीं है । ये सब चीजें तो तभी होती हैं हर लहर का आनन्द लिया जाना चाहिए। जब आप सन्देह करते हैं । जब आप प्रेम इसके हर रंग का आनन्द लिया जाना करते हैं तो सन्देह नहीं करते, तब आप चाहिए, इसके हर स्पर्श का आनन्द लिया मात्र प्रेम करते हैं । क्योंकि प्रेम का आप जाना चाहिए। तर्क-संगति द्वारा व्यक्ति आनन्द लेते हैं इसीलिए प्रेम आनन्द है को केवल यही सीखना है कि सहजयोग हम इसके अंत तक पहुँच चुके हैं, प्रेम के प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं और आनन्द प्रेम है। बहुत समय के पश्चात् सहस्रार खोला परमात्मा आपको धन्य करें 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-42.txt श्री हनुमान पूजा मई, 1989 (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) आज अत्यन्त आनन्द का दिवस है। शब्द देवदूत का अर्थ है परमात्मा के लगता है पूरा वातावरण ही इस आनन्द से राजदूत। आप लोग भी वही है आप सब उल्लसित है मानो सारे देवदूत संगीत गा देवदूत हैं । फर्क सिर्फ इतना है कि आप रहे हों, विशेष रूप से श्री हनुमान जी। श्री लोग इस सत्य को नहीं जानते जबकि हनुमान भी देवदूत हैं। देवदूतों का जन्म उन्हें बचपन से ही इस बात का ज्ञान था। विशेष रूप से होता है क्योंकि वे देवदूत हैं जब आपको इस बात का ज्ञान हो जाएगा मानव नहीं। जन्म से ही वे दिव्य गुण कि आप देवदूत हैं तब आपके दिव्य गुण सम्पन्न होते हैं। अब आप सब लोग भी आपमें चमक उठेंगे और आप हैरान होंगे मानव से देवदूत बन गए हैं। यह सहजयोग की कि किसी भी कीमत पर सत्य पर डटे बहुत बड़ी उपलब्धि है । देवदूतों के रहने का गुण अत्यन्त सुगमतापूर्वक कायम जन्मजात दिव्य उनके शैशव काल में रखा जा सकता है। इसके लिए आपको ही दिखाई देने लगते हैं । सर्वप्रथम तो वे असत्य के सम्मुख घबराते दिए गए हैं और परमात्मा की ओर से नहीं उन्हें इस बात की चिन्ता नहीं होती आपको विशेष सुरक्षा प्रदान की गई है कि कि उनके विषय में लोग क्या कहेंगे और यदि आप सत्य पर डटे रहेंगे, धर्म परायणता जीवन में उन्हें क्या हानि होगी सत्य ही पर डटे रहेंगे, धर्म पर खड़े रहेंगे तो उनका जीवन होता है सत्य ही उनकी आपको सभी प्रकार की सुरक्षा दी जाएगी। प्राण वायु है। किसी अन्य चीज़ का उनके देवदूतों को इस बात का ज्ञान होता है, लिए कोई महत्व नहीं होता देवदूत का इस बात के प्रति वे विश्वस्त होते हैं, इस यह प्रथम महान गुण है सत्य को स्थापित बारे में उन्हें कोई संदेह नहीं होता, वे करने के लिए, उसकी रक्षा करने के लिए पूर्णतः विश्वस्त होते हैं। परन्तु आप लोग और सत्य पर चलने वाले लोगों की सुरक्षा नहीं हैं अब भी कई बार आप सोचते हैं के लिए वे किसी भी सीमा तक जा सकते कि हो सकता है और नहीं भी हो सकता हैं। देवदूत संख्या में बहुत हैं और सर्वत्र और यही शैली चलती रहती है। मुझ पर फैले हैं। हमारे बाई ओर गण है और विश्वास करें कि आप देवदूत हैं आपमें गुण अधिकार दिया गया है, विशेष आशीर्वाद हुए दाई और देवदूत। संस्कृत भाषा के इस सारी शक्तियाँ हैं। आपके पास वो 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-43.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 40 अधिकार हैं जो मानव के पास नहीं होते। हैं में महान शक्तियाँ हैं, उनमें महान सामर्थ्य ये विशेषताएं देवदूतों की हैं सन्तों में ये है। उन शक्तियों का उपयोग करने का नहीं होती। सन्तों के साथ चालबाज़ी की उन्हें पूर्ण अधिकार है। अपनी शक्तियों के जा सकती है उन्हें सताया जा सकता है। प्रति वे पूर्णतः सजग है। अत्यन्त विनोदशीलता अवतरणों के साथ भी ये सब हो सकता पूर्वक वे सभी कार्य करते हैं। और अपनी है। अवतरण इन सब चीजों को स्वीकार शक्तियों का उपयोग करते हैं । जैसे उन्होंने करते हैं वो चाहते हैं कि वो ये सभी पूरी लंका को जला दिया और अपने इस तफस्याएं कर लें ताकि अपने जीवन काल कृत्य पर हँसते रहे। फिर उन्होंने अपनी में ही वो कुछ ऐसा घटित कर सकें जिसके पूँछ को लंबा करके बहुत से राक्षसों की द्वारा अधिक जोर-शोर से उनकी अभिव्यक्ति गर्दने लपेट लीं। वे उनसे खिलवाड कर हो। यदि रावण न होता तो रामायण न रहे थे राक्षसों को पूँछ में बाँधकर वे हवा होती और यदि कंस न होता तो श्री कृष्ण में उड़ जाते और राक्षस हवा में झूल रहे न होते। अत: अवतरण समस्याओं को अपने होते। यह देवदूतों की विनोदशीलता है ऊपर ले लेते हैं और असुरों से युद्ध भी क्योंकि वे अत्यन्त आत्मविश्वस्त होते हैं. कर सकते हैं। कभी-कभी तो ऐसा लगता पूर्ण चेतन होते हैं और अपने व्यक्तित्व से है कि वे कष्ट उठाते हैं परन्तु वास्तव में अपनी शक्तियों से और अपने आपसे पूर्णतः ऐसा नहीं है । देवदूतों की एक विशेष श्रेणी है। वे स्वयं पर समस्याओं को लिए बिना ही उनका ही नहीं कि मैंने तुम्हें देवदूत बना दिया है! समाधान कर देते हैं। सन्तों और अवतरणों मैंने आपको सन्त नहीं बनाया, देवदूत बनाया के सम्मुख यदि कोई समस्या हो तो देवदूत है। आपकी हमेशा रक्षा की जाती है। मैं इसका समाधान कर लेते हैं कई बार केवल देवदूत ही बना सकती हूँ सन्त उन्हें कहना पड़ता है कि अभी आप इस नहीं। सन्त तो अपने प्रयत्नों से बनते हैं। मामले में मत कूदो। हम मंच पर कार्य कर श्री गणेश, कार्तिकेय और श्री हनुमान रहे हैं। जब आपको कहेंगे तभी आप इसमें आना बाहर दरवाजे पर पूरी तैयारी की को भी इसी प्रकार इसी शैली में बनाया स्थिति में वे खड़े रहते हैं । कार्य करने के गया लिए आतुर। वो निश्चित संख्या में होते हैं बारे में मैं जो कहती हैं वह सत्य है। भिन्न और आप उन पर पूरी तरह से निर्भर कर प्रकार के बन्धन आपके माध्यम से कार्य सकते हैं। उदाहरण के रूप में श्री हनुमान जी, जिन्हें आप देवदूत के रूप में जानते आप ये नहीं जानते कि किस प्रकार अपने एक-रूप होते हैं। यहाँ पर सहजयोगी कई बार तो समझते तो बिना किसी प्रयास के बने हैं। आप लोगों है। समझने का प्रयत्न करें कि आपके करते हैं। यद्यपि आप सन्त हैं फिर भी 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-44.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 41 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 पंख फैलाने हैं। फिर भी कई बार मैं महसूस हर समय लोगों को यही अंगुली दिखाएं करती हैँ कि पुनर्जन्म हो चुका है और ये ताकि वे आपकी अंगूठी देख सकें। अतः सब देवदूत बन गए हैं, इनके पंख हैं परन्तु सांसारिक जीवन में जो भी संपदा या छोटे पक्षी होने के कारण इन्हें अभी उड़ना शक्तियाँ हमारे पास होती हैं, उदाहरण के सीखना है। सहजयोग में जो अनुभव आपको रूप में कोई व्यक्ति यदि उच्च पद पर है कुछ प्राप्त हुआ उससे आपको आत्मविश्वास प्राप्त तो इस बात को आप तुरन्त उसकी नाक होता है। कल जैसे आप लोग गा रहे थे। या होंठों से जान सकते हैं, जिस प्रकार चमत्कार प्रतिदिन, चमत्कार चहुं ओर वह नाक चढ़ाता है, मुँह बिचकाता है। (Miracles Every Day, Miracle Around परन्तु आपको जो शक्तियाँ प्राप्त हैं जो You) ये चमत्कार देवदूत करते हैं और वैभव प्राप्त है उनकी अभिव्यक्ति करने में इस प्रकार आपको विश्वास कराने का प्रयत्न उनके विषय में बातचीत करने में उनका करते हैं कि आप भी हममें से एक है, उपयोग करने में आप लोग घबराते हैं। केवल हमारे साथी बन जाएं। जब यहाँ पर बहुत से देवदूत हुए है के होते हुए पूरा इंग्लैण्ड पल भर में तो क्यों न हम इस विश्व को परिवर्तित आत्मसाक्षात्कार पा लेगा, परन्तु हम अब करने के विषय में सोचें। आप लोगों में भी ये जानने का प्रयत्न कर रहे हैं कि हम देवदूतों से भी बढ़कर एक गुण है, देवदूत क्या हैं? श्री हनुमान जी को कोई समस्या किसी की कुण्डलिनी नहीं उठा सकते। वे न थी क्योंकि अपने शैशव काल से ही वे ये कार्य नहीं कर सकते। उन्हें इस बात जानते थे कि वे देवदूत हैं और उन्हें की चिन्ता भी नहीं है। वो तो केवल वध देवदत का कार्य करना है परन्तु हमारा करने के लिए, जलाने के लिए, दबाने के जन्म मानव की तरह से हुआ है और अब आप कल्पना करें कि इतने सारे देवदूतों हैं बैठे लिए तथा आस-पास उपस्थित सभी दुष्टों को हटाने के लिए यहाँ हैं। वो किसी को से गतिशील होना हमें कठिन प्रतीत होता परिवर्तित नहीं कर सकते। अतः परमात्मा है। आपके तो विचार, सामूहिक विचार, के साम्राज्य में आपका अधिकार उनसे भी यहाँ तक कि आपके व्यक्तिगत विचार भी बढ़कर है । आप लोगों की कुण्डलिनी उठा शक्तिशाली हैं। आपका चित्त भी शक्तिशाली हम देवदूत बने हैं। अन्य देवदूतों की तरह सकते हैं और उन्हें आत्मसाक्षात्कार द है। हो सकता है कि भय के कारण या सकते हैं परन्तु मानव के बन्धन अभी भी अपने पूर्व बन्धनों के कारण या अपने अहं बने के कारण, जो कि अभी तक आपसे चिपका है। उदाहरण के रूप में उस दिन हुए मैंने एक अंगूठी पहनी हुई थी। मेरी बेटी ने हुआ है, अब भी आप गलत चीजों में फँसे मुझे छेड़ना शुरु कर दिया कि अब आप हुए हैं और आपकी शक्ति और गतिशीलता 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-45.txt चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 सितम्बर-अक्टूबर 2002 42 होनी चाहिए कि हम अपने अन्दर से उन्नत हम बहुत सी चीज़ों को दोष दे सकते हो रहे हैं। परन्तु यदि हम अपनी अभिव्यक्त हैं, जैसे किसी देश पर अकर्मण्यता, किसी नहीं करते, अपने गुणों का प्रदर्शन नहीं पर अहं का दोष दे सकते हैं। परन्तु अब करते, अपने जीवन में, अपने कार्यों में, आपका कोई भी देश नहीं रहा। अब आप अपने उद्देश्य में और जीवन के लक्ष्य में लोग परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर इनका उपयोग नहीं करते तो न तो गए हैं। आप एक ऐसे देश में हैं जिसकी सहजयोग फैलेगा और न हीं आपकी सहायता कोई परिसीमा नहीं। ये सारे बन्धन जो करेगा। जिस प्रकार का कार्य आपने करना अभी तक आप में चिपके हुए हैं इनका है उसमें कोई समस्या नहीं है। मेरे सम्मुख नहीं हैं। आपको ही इन्हें आपको परेशान कर सकना चाहिए समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा। और न ही अपना कार्य करने में इन्हें किसी से भी जाकर आप जैसे चाहें बात करें। उन्हें खुशी-खुशी आपको सुनना होगा चाहिए। आप कल्पना करें कि किस प्रकार और यदि वो आपको नहीं भी सुनेंगे तो भी गैब्रिल के रूप में श्री हनुमान जी मारिया वो आपका कुछ बिगाड़ नहीं सकते आपको के पास बताने के लिए गए कि एक बच्चा, कोई हानि नहीं पहुँचा सकते। आपको ये जो कि अवतरण है, विश्वरक्षक (Saviour) बहुत बड़ी सुरक्षा प्राप्त है, आपके कार्य में वह तुम्हारी कोख से जन्म लेगा वह वो बाधा नहीं डाल सकते। सहजयोग में कुँवारी युवती थी। उस समय के बन्धनों से आने का ये अभिप्राय नहीं है कि हमें क्या परिपूर्ण समाज में एक कुँवारी लड़की को लाभ हुए, हमें क्या प्राप्त हुआ? उन लोगों यह समाचार बताना बहुत ही भयावह कार्य को देखें जो आपको ये कहते हैं कि आपने था परन्तु उन्होंने इस को किया क्योंकि सहजयोग के लिए इतना कुछ किया परन्तु मुझे ये कार्य करना है तो इसे मैं करूँगा। इसने आपको क्या प्रदान किया? इसने ये यदि आदेश है तो मैं ये कार्य करूँगा आपको आत्मसाक्षात्कार दिया, इसने आपको क्योंकि वे जानते थे कि आदेश का पालन देवदूत का पद प्रदान किया कहने से करना उनका स्वभाव है यह उनकी अन्तर्प्वृत्ति मेरा अभिप्राय है कि आप कोई अन्य कार्य | इस पर वे कोई सन्देह नहीं करेंगे न करके देखें क्या उससे आपको देवदूत का ही इसका नाप तोल करेंगे। एक बार उन्हें पद प्राप्त हो सकता है? किसी और कार्य यदि ये कह दिया गया तो वे इसे पूरा से आपको ये पद प्राप्त नहीं हो सकता, यह पद तो सहजयोग ने आपको दिया है । अतः हमारे अन्दर एक विशेष सूझ-बूझ अथ आपको और क्या चाहिए? इससे पूर्व अभिव्यक्त नहीं हो रही। 1 हैं. आपके सम्मुख आप पर कोई प्रभाव नहीं होना चाहिए न समस्याएँ रँं आपके सम्मुख बाधा बनकर खड़ा होना करेंगे। 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-46.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 43 ऐसा होना कभी संभव न था मुझ पर केवल एक ही बच्चे को ढकते? नहीं, वो विश्वास करें । यह असंभव स्थिति है किसी तो ब्रह्माण्डीय अस्तित्व हैं। अतः हर बच्चे भी प्रकार से यदि ये पद प्राप्त करना संभव के साथ आपने वैसे ही प्रेम करना है, होता तो ज्ञानेश्वर जी को इतनी छोटी उसकी वैसे ही देखभाल करनी है जेसे में समाधि न लेनी पड़ती और न ही आप अपने बच्चों की करते हैं । इसके आयु कबीर साहब को ये कहना पड़ता, "हे अतिरिक्त और भी लिप्साएं होती हैं जैसे परमात्मा कैसे समझाऊँ सब जग अन्धा। स्वामित्व, पदवी तथा नौकरी आदि का तो आपके अन्दर वो सूक्ष्म शक्ति है जिसके मोह। मेरे पास इस बात का ज्ञान नहीं है द्वारा बिना किसी को बताए आप उसकी कि अन्य लोगों के पास क्या है। मैं तो जब कुण्डलिनी पर कार्य कर सकते हैं। परन्तु आप लोगों को प्रेम से स्टेशन पर आते हुए ध्यान में जब आप बैठते हैं तो अपने हृदय देखती हूँ तो सागर की तरह से मेरा हृदय में इस बात को स्वीकार करें कि मैं देवदूत उमड़ पड़ता है और लहरों की तरह से हूँ और देवदूत होने के नाते, मेरे अन्दर परमात्मा के अलावा किसी से भी मोह नहीं जाना होता है तो समुद्र की लहरों की है । मोह सी किस्मों के हैं फिर भी मैंने जाता है। ये वैसे ही है जैसे चन्द्रमा के उछलता है। जब आपको छोड़कर मुझे तरह से एक बार फिर ये पीछे को हट बहुत देखा है कि सहजयोग में लोगों के मोह सौन्दर्य को देखकर सागर उमड़ता है, ऐसे हैं कि यदि विवाह हो गया तो उन्हें चन्द्रमा के आनन्द में, उसके प्रेम में तब अपनी पत्नियों से मोह हो जाएगा। पत्नियों मैं प्रेम को देखती हूँ - वो प्रेम जो आपको के मोह के कारण बहुत से सहजयोगियों पक्षी के घोंसले में दिखाई देता है जहाँ वह का पतन हो गया| बच्चों से मोह के कारण अपने नन्हें बच्चों की चोंच में चोंच डालकर भी बहुत से लोग सहजयोग से चले जाऐंगे। कल जैसे मैंने आपको बताया था कि पूरे से है। यही प्रेम आप आकाश में देखते हैं संसार के सहजयोगी बच्चे आप ही के और यही अपने हृदय में देखते हैं और बच्चे हैं, आप ही उनके माता-पिता हैं इसकी व्याख्या आनन्द के विशाल सागर खाना खिलाता है। यह प्रेम सागर की तरह आपका बच्चा सोया हुआ है, यदि आप के रूप में कर सकते हैं जो आपके अन्दर केवल उसे ही ढकते हैं तो ठीक नहीं है से बह रहा है। आपको चाहिए कि सभी बच्चों को ढकें। जो भी बच्चे सोए हुए हैं सभी की आपने का आनन्द लेने की क्षमता आपको नहीं देखभाल करनी है। कल्पना कीजिए कि देतीं। आप यदि तट पर खड़े रहेंगे तो यदि हनुमान जी वहाँ होते तो क्या वे सागर का आनन्द किस प्रकार लेंगे? आपको परन्तु लिप्साएं उस आनन्द के सागर 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-47.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 44 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 समुद्र में कूदना होगा परन्तु आपने तो कर दिया! ये सब मूर्खतापूर्ण विचार किसी अपने लंगर अन्य चीजों में डाले हुए हैं विकृत अहंकारी से ही आ सकते हैं। अहंकार इसलिए आप सागर में कूद ही नहीं सकते। इतना भ्रष्ट है जब आपको अपना कोई आप जानते हैं कि आप कितने सुरक्षित हैं अन्त दिखाई नहीं देता, सोचते हैं कि मैं ही आपको तैरना भी आता है और आप शार्क सब कुछ हूँ मैं सब कुछ जानता हूँ यह रूपी बाधाओं को भी समाप्त करना जानते रीति-रिवाज सर्वोत्तम है या यह कालीन हैं। आपका एकमात्र कटाक्ष आपके इस सबसे अच्छा है, मैं, मैं, मैं। परन्तु आप हैं कार्य के लिए काफी है। परन्तु क्योंकि आप कौन? आपसे किसने कहा कि आप इसे अपनी शक्ति के प्रति चेतन नहीं हैं इसलिए पसन्द करें या न करें आप के चले ये गतिशील नहीं है। निश्चित रूप से यही जाते हैं कि मुझे ये पसन्द नहीं है मुझे वो मामला है। मैंने देखा है कि लोगों को पसन्द नहीं है। जीवन में छोटा सा पद मिल जाता है तो वो उसकी भी शेखी मारने लगते हैं-मैं बनता चला जाता है । मैं कहूँगी कि कुछ फलां आदमी से मिला, मैं उस व्यक्तित से मिला और, ऐसा-ऐसा हुआ। ऐसे व्यक्ति प्रकार के नियमों पर चल रहे हैं । ये नियम पर आपका जी हँसने को करता है। परन्तु उनके अहं की देन हैं और कलाकार लोग आपको सहजयोग प्राप्त हुआ है जिसके इनके अनुरूप चलते हैं। उदाहरण के रूप सा दूसरी ओर अहंकारी व्यक्ति सदैव दास देशों में जाकर मैंने देखा कि दो विशेष द्वारा आप उन्नत हुए है आपका पोषण में कोई कलाकार आनन्द के लिए कोई कृति बनाता है परन्तु सभी लोग उसकी आलोचना करेंगे और ये आलोचना ऐसी होती है मुझे ये पसन्द नहीं है यह रंग हुआ है और आप महान बन गए हैं । इन चीजों में व्यक्ति को श्री हनुमान के पदचिन्हों पर चलना चाहिए। उन्होंने सोचा कि सूर्य बहुत अहंकारी है, कभी-कभी तो अच्छा नहीं है, वह रंग अच्छा नहीं है और ये लोगों को जलाने का प्रयत्न करता है, पेशावर लोग ऐसा करते हैं! उन्हें पैंसिल इसकी गर्मी इतनी अधिक होती है। सूर्य से एक रेखा भी खींचनी नहीं आती, ठीक की पूजा करने वाले लोग भी अहंकारी होते से वे एक रेखा भी नहीं खींच सकते हैं, हैं। उनमें इतना अहंकार होता है कि यदि चित्रकारी की तो बात ही क्या है! परन्तु आप उनकी भाषा और उनके रीति-रिवाज तुरन्त ये कह उठेंगे कि मैं सोंचता हूँ के अनुसार एक भी गलत शब्द कहें तो ऐसा-ऐसा होना चाहिए। इन शोधों तथा आपने छुरी गलत हाथों में दे दी सब समाप्त। आप संसार के सबसे निकृष्ट कहने से मेरा अभिप्राय ये है कि कला का व्यक्ति बन गए, आपने बहुत बड़ा अपराध सम्बन्ध आपके हृदय से है, मस्तिष्क से सिद्धान्तो की उन्होंने पुस्तकें लिख ली हैं । 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-48.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 45 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 नहीं। ऐसा करके आपने बहुत से कलाकारों उल्लास का पूर्ण अभाव है वे लोग आनन्दित की हत्या कर दी है और सभी चित्रकारों हो ही नहीं सकते, इससे उन्हें भय आता को ये सोचना पड़ता है कि इसके विषय में है। मैं नहीं जानती कि आपने इस ओर लोग क्या कहेंगे। परिणामस्वरूप हास्यास्पद ध्यान दिया है या नहीं परन्तु जो लोग चीज़े पनपती हैं जिनमें सूक्ष्म अभिव्यक्ति अज़ायबघर देखने जाते हैं या प्रदर्शनियाँ नहीं होती। ये बात समझी जानी चाहिए। देखने जाते हैं वे सोचते है कि वे कोई हमारा अहं इसका कारण है जिसने हमारे दिव्य व्यक्ति हैं और अपनी आज्ञा के विचारों की सभी अच्छी एवं स्वाभाविक माध्यम से वे हर चीज़ का आँकलन कर जीवंत उन्नति को दबा दिया है। ये उन्नति सकते हैं । हनुमान जी ने इसी चीज़ को पूरी तरह खा डालना चाहा था। आज्ञा की चाहे कला के क्षेत्र में हो या हमारे जीवन में हो। मेरे विचार से ये सारे संदूषण सुई जो बाएं-दाएं जाती रहती है और जो (Contamination) या पर्यावरण सम्बन्धी आपको अपने अहं की मूर्खतापूर्ण अभिव्यक्ति समस्याओं में सबसे बुरी समस्या है। मानव करने को विवश करती है इसे सभी ने मस्तिष्क ने इन दम घोटू क्षेत्रों का सृजन नियंत्रित करने का प्रयत्न किया और खा किया है जहाँ कोई भी अपनी अभिव्यक्ति डालने का प्रयत्न किया वैसे ही जैसे शायद नहीं कर सकता और जहाँ पर अहंकारी मैं भूतों को खाती हूँ हनुमान जी इस सूर्य लोगों का प्रभुत्व है। द्वारा लिखी गई है। उस व्यक्ति से यदि आप मिलें तो आपकी इच्छा करती है कि आवश्यक है कि उसमें अहंकार नहीं होना समुद्र में कूद पड़ें। तो लिखी हुई सारी चाहिए। कुछ सहजयोगी कहते हैं कि चीजें बाइबल नहीं होती और जो इनके श्रीमाताजी मैं सहजयोग का बहुत अधिक लेखक हैं उनसे आप बिना डंडा लिए मिल कार्य नहीं करना चाहता क्योंकि इससे मेरा े पुस्तक फलां व्यक्ति को खा रहे थे । परन्तु देवदूत के लिए यह जान लेना नहीं सकते अतः वस्त्रों में, बच्चों के साथ अहं बढ़ जाएगा। मैं नहीं चाहता कि मेरा सम्बन्धों में, अध्यापक के साथ या किसी अहं बढ़ जाए परन्तु आप अपने अहं को अन्य के साथ सम्बन्धों में जो भी अभिव्यक्ति नष्ट क्यों करना चाहते हैं, किसलिए? सहज होती है वह इन नियमों के अनुरूप होनी कार्यों के लिए न! कितनी दोष पूर्ण स्थिति चाहिए। बार-बार आपको कहना होगा है कि हम कहते हैं कि हम स्वयं को पीछे 1. धन्यवाद', 'मुझे खेद है। अतः हमें इतना रखना चाहते हैं कि कहीं हमारा अहं न बढ़ अधिक बनावटी अभिव्यक्तियों में धकेल दिया जाए! आप केवल अपने बारे में सोच रहे हैं गया है कि मुझे विश्वास है कि कुछ समय तो सहजयोग का क्या होगा। अतः आजकल पश्चात् कला का सृजन होगा ही नहीं। नजरिया ये है कि बचकर चलना ही बेहतर श्र 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-49.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 46 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 । है क्यों कि सहजयोग में कुछ अत्यन्त पृथ्वी माँ में हैं, जो बीज में है मैं यहाँ पर अहंकारी, आक्रामक तथा दिखावा करने आदिशक्ति के रूप में नहीं हूँ, मैं यहाँ माँ वाले लोग थे जिन्हें पतन के गर्त में जाना रूप में हूँ। पावनी माँ के रूप में मैंने पड़ा। तो अब मुझे लगता है कि सहजयोग उनका पथ प्रदर्शन किया है । आप कह में एक अन्य नजरिया आरम्भ हो गया है सकते हैं कि मैं पृथ्वी माँ की तरह से हूँ कि बचकर रहना ही अच्छा है। इन दोनों जो बीज का अंकुरण करती है । नज़रियों के बीच सहजयोग खो जाएगा। यदि आप जानते हैं कि आप देवदूत हैं तो जो आप में आ सकती है कि आपके अन्दर आप में अहंकार न होगा जिसे भी इस विद्यमान शक्तियाँ कुण्डलिनी के अन्तर्जात तो एक अन्य विरक्ति (Detachment) बात का ज्ञान है वो जानता है कि कार्य स्वभाव के कारण ज्योतिर्मय हो उठी हैं। करना तो स्वभाव वश हैं। जैसे आज मेरे आप स्वयं शक्तिशाली हैं तथा मैंने तो पति प्रशंसा करते हुए मुझे कह रहे थे कि आपको केवल इसके विषय में बताया है । तुम्ही ने यह सब किया 'नहीं, मैंने कुछ नहीं किया। आप कैसे रही हूँ कि आप ऐसे हैं। मैं कैसे इसका कह सकती हैं कि आपने यह कार्य नहीं श्रेय ले सकती हूँ? अतः विरक्त होकर किया? मैंने कहा कि 'यह तो उनमें अन्तर्जात आप समझ सकते हैं कि हमारे अन्दर जो है।' देखो, यदि बीज को पृथ्वी माँ में डाल शक्तियाँ विद्यमान हैं, वो सहजयोग के लिए दिया जाए तो यह अंकुरित हो जाता है। हैं जैसे श्रीमाताजी की शक्तियाँ सहजयोग इसी प्रकार उनमें भी कुण्डलिनी अन्तर्जात का कार्य करने के लिए हैं। हमारी शक्तियाँ है-यह भी प्रस्फुटित हो जाती है। तो किस सहजयोग का कार्य करने के लिए हैं। प्रकार मैं इसका श्रेय ले लूं? कहने लगे जिस प्रकार श्रीमाताजी कार्य करती हैं हमें क्या यह पृथ्वी माँ ने किया है? मैंने कहा भी करना चाहिए। परन्तु इस प्रकार के नहीं उनमें अन्तर्जात पृथ्वी माँ के गुण ने मोह हैं माँ हीं सब कर रही हैं, हम क्या यह कार्य किया है कहने लगे, तो किसने कर सकते हैं? नहीं, आपको कार्य करना यह सारा कार्य किया है? मैंने कहा, 'यह है। यह बहुत बड़ा मोहभंग है जो मैं कहने आदिशक्ति ने किया है । ठीक है, परन्तु का प्रयत्न कर रही हूँ कि आपको स्वयं आदिशक्ति ने सहजयोग नहीं बनाया है। यह कार्य करना है । ऐसा नहीं कि 'माँ ही उन्होंने सभी में उन शक्तियों का सृजन सब करेंगी वे ही सभी कुछ कर रही हैं। किया है जो कार्यान्वित होती हैं. परन्तु यह ठीक है, एक प्रकार से यह बात ठीक सहजयोग नहीं होता सहजयोग उन है परन्तु आप ही माध्यम हैं। विद्युत यहाँ अन्तर्जात गुणों से कार्यान्वित होता है जो सब कुछ कर रही है, परन्तु इस यन्त्र को है। मैंने कहा शीशे में आप स्वयं देखें, मैं आपको बता 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-50.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 47 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 भी कार्य करना होगा तो स्रोत के होते हुए है- ठीक है, हम फोन करेंगे, मैं पता भी परिणाम तक तो यन्त्र ही पहुँचाता है। लगाऊँगा, सब हो जाएगा। यह हमारी हनुमान की तरह से आप भी माध्यम हैं, बहुत बड़ी कमी है। यह गुण हमें श्री आप को कार्य करना होगा, कार्य सम्पन्न हनुमान से सीखना है श्री राम सीता के करना होगा यह अत्यन्त गतिशील चीज़ है जो हमें प्राप्त करनी चाहिए। पास संदेश भेजना चाहते थे। उन्होंने अपनी अंगूठी दी। हनुमान ने उस कार्य को इतने हनुमान जी का एक अन्य गुण यह था वेग पूर्वक किया कि स्वयं श्री राम भी कि वे अत्यन्त चुस्त थे और वे समय से शायद न कर पाते। फिर संजीवनी की परे (कालातीत) थे। सूर्य को ही यदि आप निगल लें तो समय कहाँ रह गया? वे लाने के लिए हनुमान को भेजा गया। समय से परे थे इसीलिए सभी कार्यो को वे संजीवनी की पहचान करने में समय बर्बाद तेजी से किया करते थे। उदाहरण के रूप में पिछले सोलह वर्षों से हम सहजयोग की सहजयोगी कहेंगे-श्रीमाताजी अगले वर्ष इसे एक पुस्तक तैयार कर रहे हैं। इस पर देखेंगे। गणपति पुले में इसके बारे में सोचेंगे! काम चल रहा है, चल रहा है! इसके वहाँ इस पर बातचीत करेंगे-आदि-आदि। अतिरिक्त हम सहजयोग में रोग मुक्त हुए उनके चरित्र के विषय में हमें यह बात लोगों के अनुभवों को रिकार्ड कर रहे हैं, समझनी है । वो भी चल ही रहा है! बहुत अच्छा कार्य है। और हम सहजयोग प्रचार के लिए रहे हैं, हमें अपने अन्दर वह वेद-चातुर्य आवश्यकता पड़ी। एक पहाड़ से संजीवनी न करके वो पूरा पर्वत ही उठा लाए! परन्तु आज जब हम हनुमान जी की पूजा कर लाना चाहिए। यह अभी होना है, हम इसे रूस जाने की तैयारी कर रहे हैं-बस कर रहे हैं! सभी असुर वहाँ पहुँच गए हैं परन्तु टाल नहीं सकते। पहले ही बहुत देर हो देवदूत बड़ी शान्ति से तैयारी कर रहे हैं! चुकी है। जिन नन्हीं बालिकाओं को मैंने तो जी का एक गुण यह था कि फ्रॉक, पहने देखा था वे अब विवाह योग्य हनुमान वे बहुत वेगशील थे किसी अन्य के कार्य युवतियाँ बन गई हैं। मैं सोचती हूँ, सारी करने से पूर्व वो कार्य कर डालते थे । उम्र मैं सहजयोगियों के विवाह ही करती उनका मुकाबला न हो सकता था। युद्ध रहूँगी। लक्ष्य तक पहुँचने के लिए आपको करके जीतना, नेपोलियन को पराजित करना वेगवान होना होगा लटकाते नहीं रहना ठीक है। परन्तु धर्म के क्षेत्र में, सहजयोग होगा और न ही इधर-उधर की बातों से के मैदान में, मुझे लगता है, लोग समय के संतुष्ट होना होगा। देखना होगा की लक्ष्य महत्व को नहीं समझते। कार्य को लटकाने के लिए हम क्या कर रहे हैं। अच्छा है कि में हम कुशल हैं, देर करना हमारी आदत बच्चे बड़े हो गए हैं, उन्होंने बहुत अच्छा 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-51.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 48 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 नाटक खेला था। यह सब बहुत अच्छा था, इसे न करेगा। कोई अन्य इस कार्य (उत्थान) मैंने इसका बहुत आनन्द उठाया। परन्तु को न करेगा, यह आप ही को करना है। करने योग्य कार्य तो बाकी है। अतः चित्त कहने से अभिप्राय ये है कि न आपको रेल मुख्य कार्य पर होना चाहिए। यही हमें चलानी है न वायुयान, न आपको प्रशासन करना है। मुझे प्रसन्नता हुई कि अमरीका चलाने हैं न राजनीति करनी है. आपको से वीडियो फिल्म बनाने का सुझाव आया तो बस सहजयोग करना है, सहजयोग हैं, फैलाना है-इसे उस स्तर पर लाना है परन्तु बाधाए भी हैं कि धन कहाँ से आएगा? क्या होगा? आप कार्य आरम्भ कर जहाँ लोग इसे देख सकें। अठारह वर्ष दें, धन मिल जाएगा। आपमें शक्तियाँ हैं बीत चुके हैं, अब उन्नीसवाँ वर्ष है। आज हर चीज़ का उचित प्रबंध हो जाएगा, आप हनुमान पूजा का पहला दिवस है। मैं कहूँगी, ु तो करें। परन्तु मनुष्यों की तरह से कि आपको साहस करना होगा-सामूहिक शुरु यदि पहले आप सोचेंगे, योजना बनाएंगे रूप में और व्यक्तिगत रूप में भूल जाना फिर उन्हें खारिज करेंगे तो कुछ भी होगा कि परिणाम क्या होगा कहने का कार्यान्वित न होगा। अभिप्राय है कि आप जेल नहीं जाएंगे, हनुमानजी यद्यपि हर समय पिंगला नाड़ी विश्वस्त रहें कि आपको क्रूसारोपित नहीं पर दौड़ते रहते हैं, वे हमारी सारी योजनाओं किया जाएगा आपकी नौकरी यदि चली को धराशायी कर देते हैं क्योंकि उनके गई तो दूसरी नौकरी आपको मिल जाएगी स्थान पर हम पिंगला पर दौड़ने लगते हैं। और न भी मिली तो कुछ अन्य साधन मिल वो कहते हैं, ठीक है, तुम इस पर दौड़ जाएगा अतः आपको इन सब व्यर्थ की रहे हो मैं तुम्हें ठीक कर दूँगा वे सदैव चीज़ों की चिन्ता नहीं करनी जिनके विषय आपकी योजनाओं को बिगाड़ देते हैं। इस में मानव करते हैं । परन्तु इस के बावजूद प्रकार हमारी सभी योजनाएं असफल हो भी उन्हें काम मिलता है. वे नौकरियाँ करते जाती हैं। हम समय के बारे में, महत्वहीन हैं और किस प्रकार इनसे बंधे हैं! मैं चीजों के बारे में चिन्तित होते हैं परन्तु सहजयोग में हमारी उत्क्रान्ति के समय की किस प्रकार लोग अपने कार्य से बंधे हुए हमें कोई चिन्ता नहीं। हमारे लक्ष्य होने हैं! वे प्रातःकाल उठेंगे, ये करेंगे, वो करेंगे । चाहिएं, नियत समय होना चाहिए कि इस परंतु आप इस बात से अनभिज्ञ हैं कि समय तक हमें यह कार्य कर लेना है। आप देवदूत हैं और ये आपका कार्य है। जितनी तेजी से कार्य करेंगे उतना अच्छा अतः आपको यही कार्य करना है इसके होगा। बाकी सब चीजों का प्रबन्ध हो सकता अतिरिक्त कुछ आवश्यक नहीं। परन्तु यह आपका कार्य है, कोई अन्य हुए हैरान हूँ! मैंने अपने परिवार में देखा है कि मुझे आशा है कि आज की पूजा से बह প 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-52.txt सितम्बर-अक्टूबर 2002 49 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 उत्साह, वह साहसी स्वभाव आपकी पिंगला यहाँ पूजा की। यह आप सबके लिए हितकर को चैतन्यित करेगा और बिना किसी अहँभाव है। आपको वास्तव में जाकर संवाददाताओं के, अत्यन्त विनम्रता पूर्वक, श्री हनुमान की से, मंत्रियों से, वेल्ज़ के राजकुमार से, तरह, आप इस कार्य को करेंगे। कल्पना सभी से मिलना होगा समितियाँ बनाएं. करें कि सीताजी ने हनुमान को सोने के सबसे मिलें और देखें कि आप क्या कर बड़े-बड़े मनकों का हार पहनने के लिए दिया। उन्होंने एक-एक करके सभी मनके करना है। परन्तु आप लोग तो सोचते हैं खोल कर देखे कहने लगे कि इनमें श्री कि मेरी माँ बीमार है, मेरा बच्चा बीमार है, सकते हैं। बुद्धि से सोचे कि हमें क्या राम तो हैं ही नहीं, मैं इनका क्या करू? मेरा वो बीमार है! आप यदि परमात्मा का सीता ने पूछा, श्री राम कहाँ हैं? हनुमान ने कार्य करें तो आपकी सभी चिन्ताएं वो ले अपना हृदय चीर कर दिखाया कि 'हनुमान लेंगे आपको चिन्ता करनी ही नहीं पड़ेगी। यहाँ हैं। श्री राम यदि आपके हृदय में हैं वो सभी चिन्ताएं सम्भाल लेंगे यह केवल तो आपको अहं हो ही नहीं सकता। कितनी स्वयं को बढ़ावा देना नहीं है, यह सामूहिकता गतिशीलता और कितनी विनम्रता का को बढ़ावा देना है । सम्मिश्रण था उनमें! आप ने भी यही प्राप्त आशा है आज आपने अपने अस्तित्व के करना है और इसकी अभिव्यक्ति भी करनी सूक्ष्म पक्ष को समझा है जो पक्ष विद्यमान है, प्रदर्शित है और जिसे मैं स्पष्ट देख है । जितना अधिक आप कार्य करेंगे उतना सकती हूँ। आप सब अपनी ध्यान-धारणा ही आप उन्नत होंगे आप पायेंगे कि केवल में इसके प्रति चेतन हो जायेंगे कि आपके विनम्रता ही कार्य करने में आपकी सहायक अन्दर क्या निहित है यही महानतम चीज़ है और आप विनम्र, और विनम्र होते चले है जो परमात्मा को प्रसन्न करेगी तथा जाएंगे। परन्तु यदि आप सोचते हैं ओह! मैं यह कार्य कर रहा हूँ तो बस समाप्त। परन्तु यदि आप मानते हैं कि आगे बढ़कर इसे कार्यान्वित करना है। कि परमात्मा आपकी देख-रेख करेंगे हनुमान रूप देवदूतों के आत्मविश्वास से आपको परमात्मा-परम चैतन्य सभी कार्यों को कर रहे हैं, मैं तो मात्र माध्यम हूँ, तो आप में विनम्रता बनी रहेगी और आप एक प्रभावशाली माध्यम भी बने रहेंगे। मेरे विचार से यहाँ यह पूजा आवश्यक पश्चिम में अहँ वास्तव में बहुत बड़ी समस्या थी, यह अत्यन्त उचित अवसर पर हुई। है न जाने पश्चिमी लोगों में भारतीयों की यह सब देवदूतों का आयोजन है कि हमने अपेक्षा इतना अधिक अहूँ क्यों होता है? परमात्मा आप सबको धन्य करें । यहाँ मुझे अहँ के विषय में बताना है । 2002_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-53.txt सितम्बरअक्टूबर 2002 चैतन्य लहरी खंड-XIV अंक 9 व 10 50 जैसा मैंने बताया, यहाँ आक्रामकता बहुत आवश्यक है। वहाँ मंगलमयता और पवित्रता अधिक है यह गति-वर्धक की तरह है । के विचार को भयानक रूप से नष्ट कर परन्तु बायाँ पक्ष (Left Side) गति नियन्त्रक दिया गया है । अतः यह देवदूत की शक्ति (Speed breaker) की तरह से है । जो हमारे अन्दर स्थापित होनी आवश्यक मूलाधार यदि नियंत्रण में नहीं है, ब्रेक यदि है। इसी शक्ति के माध्यम से हम कार्य ठीक नहीं है तो गति पर स्वाभाविक रूप करेंगे यही हमें सद्-सद्-विवेक प्रदान से नियंत्रण नहीं किया जा सकता। अतः करती है, जो कि विनम्रता का स्रोत है। मूलतः मूलाधार का नियंत्रण करना तथा इसे ठीक करना आवश्यक है। इसे ठीक में इस प्रकार कार्यान्वित होंगे कि हम करने के लिए आपको परिश्रम करना चाहिए। वास्तव में पूर्णतः आत्मविश्वस्त साक्षात्कारी ब्रेक यदि ठीक हो जाएंगे तो सहजयोग का आत्माएं बन जाएंगे, जिन्हें मैं आधुनिक युग कोई भी कार्य जब आप करेंगे. आप अहँ में के देवदूत कहती हैँ। मुझे आशी है कि आज ये दोनों गुण हम नहीं फसेंगे। अहँ अब आप पर सवार न हो परमात्मा आपको धन्य करे। पाएगा अतः पश्चिम में यह विशेष रूप से ३०