जनवरी-फरवरी, 2003 खण्डः XV अंकः 1 व 2 ১৯ PURS चैतन्य लहरी R৫N৯Cdent ुा क का रस ं) आपको मेरे प्रति पूर्णतः समर्पित होना होगा। सहजयोग के प्रति नहीं, मेरे प्रति । सहजयोग तो मात्र मेरा एक पक्ष है। सभी कुछ छोड़कर आपको समर्पित होना होगा। परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी HARMA *ERICION चै तन्य लहरी जनवरी अंक ख ड - फरवरी 1 व ४V 2003 रा 1. आदिशक्ति पूजा, 23-05-2002 11. गुरु पूजा, 21-07-2002 22. गुरु पूर्णिमा, 24-07-2002 26. श्री कृष्ण पूजा, 18-08-2002 38. परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी द्वारा श्रीमान दामले को मराठी में लिखे गए एक पुराने पत्र का अनुवाद । 42. होली पूजा, 29-03-1983 53. प्रार्थना पत्र 54. सहजयोग कार्यक्रम हेतु 'अनुभव' 56. सहज -कृपा (एक अनुभव) 59. सहजयोग प्रसार का आनन्द 66. श्री माताजी इस्तम्बूल में, इस्तम्बूल जन कार्यक्रम, 23-04-2002 69. धूल-कण 70. पर्वत ে चै तन्य लहरी प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर 162 - ए. मुनीरका विहार, नई दिल्ली 110067 मुद्रक प्रिंटो-ओ-ग्राफिक्स नई दिल्ली सदस्यता के लिए कृपया इस पते पर लिखें :- श्री ओ.पी. चान्दना एन - 463 (G-11) ऋषि नगर, रानी बाग, दिल्ली - 110034 फोन (011) 7013464 सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पते पर भेजें : चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी - 17. कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली - 110016 आदिशक्ति पूजा 23-5-2002, कबैला परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ड हृि शाभ छ बरम आज का दिन आप सबके लिए जिन लोगों का भी दाईं ओर से उत्थान बिल्कुल ही भिन्न प्रकार का है क्योंकि हुआ वे सब खो गए। ग्रन्थों से उन्हें गायत्री यह आदिशक्ति की पूजा है और मन्त्र मिल गया परन्तु इसके विषय में भी आदिशक्ति पूर्ण हैं। ये केवल बायाँ ही वे न जानते थे कि यह क्या है? वो तो नहीं है, जिसके विषय में आप सब जानते बस इसे स्मरण कर लिया करते थे। उन्हें हैं। आप सब केवल बाईं ओर को ही इसका वास्तविक अर्थ भी न पता था जानते हैं, बाईं ओर को, श्री गणेश से और इस प्रकार से वो दाईं ओर को चले लेकर भिन्न चक्रों में उत्थान के माध्यम गए और संभवतः आज्ञा पर जा फँसे। से। आरम्भ में मैं आपको दाएँ पक्ष के परन्तु वे आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के विषय में नहीं बताना चाहती थी क्योंकि लिए प्रयत्नशील थे उन्हें वचन दिया जनवरी-फरवरी 2003 2 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 गया था कि यदि तुम दाएं पक्ष को ठीक परन्तु सहस्रार में किस प्रकार प्रवेश किया कर लोगे तो आत्म-साक्षात्कार के अन्तिम जाए यह समस्या बनी हुई थी। तान्त्रिक लक्ष्य तक पहुँच जाओगे। परन्तु वहाँ तक कोई भी न पहुँच उन्होनें काली विद्या विकसित कर ली पाया। अधिकतर भयानक क्रोध की स्थिति में चले गए, अन्य लोगों को श्राप देने उन्हें नष्ट करने के भयानक क्रोधी स्वभाव में वे स्वभाव के बन गए, अत्यन्त क्रोधी स्वभाव चले गए। दाईं ओर के उनके झुकाव के के। वो बहुत अधिक महत्वाकांक्षी और कारण उन्होंने ये सारी चीजें सीखीं। उनमें कुण्डलिनी की जागृति नहीं थी अधिक की हत्या करने लगे शाप देने में वे बहुत से अधिक उन्हें आज्ञा चक्र तक पहुँचा कुशल थे, हमेशा सबसे आगे होते थे, दिया गया था। तब वे पूर्णान्धकार की सबको पीछे धकेल कर उनके अधिकारों भिन्न अवस्थाओं में जा फंसे। ये सारी का हनन करते थे। उन्हें बहुत ही पुस्तकें बिना सोच के लिखी गई थीं । महत्वाकांक्षी तथा शक्तिशाली माना जाता लोग बाईं ओर से ऊपर को गए और अर्थात बाईं ओर को विकसित कर लिया । तो दाई ओर के लोग अत्यन्त क्रोधी आक्रामक हो गए और शाप देकर लोगों दाई ओर से उत्थान प्राप्त कर लेना सुगम था। तो ब्राह्मण और क्षत्रिय लोगों ने नहीं है कुण्डलिनी को जागृत कर लेना आक्रामकता को अपना लिया और इस ही सुगम है। कुण्डलिनी सीधे ही व्यक्ति आक्रामक स्वभाव के कारण निःसन्देह वे को सभी चक्रों के मध्य में ले जाती है । लोग अत्यन्त शक्तिशाली बन गए। पूरे आज्ञा के स्तर तक लाती है और फिर विश्व पर उन्होनें अपना सिक्का जमा लिया आज्ञा का भेदन करके सहस्रार को पार और उन्हें अत्यन्त शक्तिशाली तथा तेजस्वी माना जाने लगा। परन्तु वास्तव में वे ऐसे जहाँ से ये भेदन करती है न थे क्योंकि वो तो अत्यन्त क्रुद्ध स्वभाव करती है । ब्रह्मरन्ध्र, उसका क्या महत्व हैं? इसके विषय में के थे। क्रोधी स्वभाव के लोग किसी भी मैंने आपको कभी नहीं बताया। परन्तु, प्रकार से आध्यात्मिक नहीं हो सकते। अब मैं सोचती हूँ कि आपमें से अधिकतर के लिए वह समय आ गया है। बचपन में आध्यात्मिकता प्राप्त हो जाएगी चिन्ता मत तालू अस्थि क्षेत्र में बच्चे का तालू होता है करो, चलते रहो और सातों चक्रों का जो सदैव धड़कता रहता है। यह इसलिए वर्णन दाईं ओर को किया गया उनके धड़कता है कि आत्मा ने इस क्षेत्र से प्रवेश किया था। जब यह बन्द होता है ये पूरा ब्रह्माण्ड है या हम कह सकते हैं तो आत्मा हृदय में स्थापित हो जाती है। कि पूरा अन्तरिक्ष है। स्वाहाः नाभि चक्र अब आप आत्माभिमुखी व्यक्ति हो गए हैं पर अग्नि में आहुति देना है, स्वधा दी गई अतः उन्हें कहा गया कि तुम्हें अनुसार भुः, भूर्वः - भुः ये पृथ्वी है, भूवः जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-४V अंक 1 व 2 3. आहति का अपने अन्दर अवशोषण करना के थे किस प्रकार इन्हें सामान्य बनाया हृदय। मन के जाए और मध्य मार्ग पर लाया जाए? एक पक्ष, जैसा मैंने आपको बताया, भुः, भूर्वः, स्वाहाः, स्वधा अर्थात आहुति थी। ये कार्य तपः ये गुरुतत्व द्वारा किया जाता था। इसके तप है । तप में ईसा मसीह मध्य में होते हैं बाद मनः और जनः है अर्थात सामूहिकता। आज्ञा के बाईं ओर को जैन मत था और ये लोग सामूहिक हो जाते हैं, इसमें कोई दाईं ओर को ईसाई धर्म। वास्तव में ये सन्देह नहीं हैं, क्योंकि वे अत्यन्त उत्थान के पथ नहीं थे। ये तो शक्तिशाली हैं और बहुत से लोग उनके सत्य-साधकों की ऊर्जा के निकास द्वार साथ हैं। आक्रान्ताओं के लिए आक्रान्त स्वभाव से लोगों के साथ युद्ध करके वे है इसके बाद मन बाद विशुद्धि का स्थान है अर्थात जनः सामूहिकता, लोग, लोगों के पास जाना जनः है। तत्पश्चात् आज्ञा है थे। भारत में युगों तक ऐसा होता रहा। उन पर अत्याचार कर रहे थे। सभी गुरुओं, साधुओं और तपस्वियों, सबने ऐसा ही किया। वे कहाँ पहुँचे। ये तपस्वी में इस प्रकार की पीढ़ी आई और समाप्त वो लोग थे लो लोगों को शाप दे सकते हो गई, युद्ध लड़े गए और बहुत से लोग थे, किसी को भी अभिशप्त कर सकते मृत्यु के घाट उतार दिए गए । हिटलर थे। अपने एक कटाक्ष से वे किसी का वध अत्याचार की पराकाष्ठा थी। मानवता की कर सकते थे, किसी को जला सकते थे । उन्होनें कभी चिन्ता नहीं कि अतः ऐसे दाईं ओर की सभी शक्तियाँ उनके पास लोग आज्ञा तक पहुँच गए। आज्ञा पर थीं। परन्तु दाईं ओर की इन शक्तियों के उन्होनें ईसा-मसीह की हत्या की। साथ वे कहाँ पहुँचे? मुझे कहना चाहिए ईसा-मसीह को उन्होनें नष्ट कर दिया। कि वे नर्क में पहुँच गए। वहाँ किसी को मध्य मार्ग से आए हुए बहुत से महान भी आत्म-साक्षात्कार प्राप्त नहीं हुआ। भारत के पुरातन ग्रन्थों को पढ़ें। यूनान, से कुछ सन्त तो अवतरण थे परन्तु उन्हें मिश्र, इंग्लैण्ड और जर्मन लोगों के विषय भी नष्ट कर दिया गया श्री राम के में पढ़े। सभी आक्रामक थे। कैथोलिक समय से यह सब हुआ। ये सब कुछ लोग तथा रोमन भी सभी आक्रामक थे घटित हुआ। एक के बाद एक अनगिनत तथा अन्य देशों की भूमि एवं सम्पत्तियों राक्षस आए और उन्होनें विश्व की शान्त पर कब्जा कर रहे थे। ये सब अत्यन्त संस्कृति को नष्ट किया। आक्रामक थे और उन्हें विश्वास था कि अन्य लोगों की हत्या करनी चाहिए। ये करने वाले, अत्यन्त आक्रामक लोग कह अत्यन्त अपमान जनक तथा क्रोधी स्वभाव सकते हैं ये आक्रामकता आई और बहुत जैसा कि आप जानते हैं, इतिहास सन्तों को उन्होनें समाप्त कर दिया इनमें हम उन्हें अत्यन्त अहंकारी, दिखावा जनवरी-फरवरी 2003 4 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 ही वेग के साथ आईं, एक के बाद एक पहुँच गए जहाँ वे पूर्णतः राषक्षस बन गए। करके आई । यह एक सीमा तक पहुँची। बिना इस बात को महसूस किए हुए कि जब-जब भी लोगों ने प्रतिक्रिया की उनकी मानव राक्षस नहीं है ये लोग राक्षस बन हत्या कर दी गई, उन्हें नष्ट कर दिया गए । उनके गुरु भी ऐसे ही थे, इसके गया। इतने भयानक लोगों को सृजन कर अतिरिक्त कुछ नहीं । परन्तु उन्होनें तो दिया गया था! अवतरणों को भी नहीं छोड़ा, उन्हें भी ये सभी लोग अत्यन्त आक्रामक एवं सताया, सभी अवतरणों को सताया गया। विनाशशील थे आज भी ये स्वभाव हमारे जिस प्रकार से इन अवतरणों ने अपनी अन्दर है, विशेषरूप से कुछ लोगों में रक्षा की वह वास्तव में प्रशंसनीय था। क्योंकि वे आक्रामक स्वभाव के हैं दाईं परन्तु इन परिस्थितियों में वे कोई विशेष ओर के सभी लोगों को ये समस्या थी - परिणाम न दे सके । क्रोध, आक्रामकता तथा अन्य लोगों पर नियंत्रण करना। इनका विकास रूक गया था कुण्डलिनी का अध्ययन करना ताकि और आध्यात्मिक उन्नति न हो पाई । वे मैं कुण्डलिनी उठाने के काबिल हो सकूं । आध्यात्मिकता प्राप्त करना चाहते थे परन्तु मैं जानती थी कि मैं इसी कार्य के लिए अतः पहला कार्य जो मैंने किया वह इस प्रकार के आचरण के कारण आई हूँ किसी अन्य कार्य के लिए नहीं। आध्यात्मिकता उनसे भाग गई। हमारे यहाँ केवल लोगों की कुण्डलिनी उठानें के बहुत से अवतरण हुए परन्तु उनकी हत्या लिए ताकि वो मध्य मार्ग पर आ जाए, न कर दी गई उन्हें क्रूसारोपित कर दिया दाएँ को जाएं न बाएँ को परन्तु मैंने गया और समाप्त कर दिया गया। सामान्य आपको केवल बाईं ओर का ज्ञान तथा मानव की रक्षा की कोई संभावना न थी। कुण्डलिनी उठाने के विषय में ही बताया। एक दुष्ट व्यक्ति आया और उसने पूरे कुण्डलिनी उठाने के माध्यम से आपने विश्व को नष्ट कर दिया। एक हिटलर अपना सहस्ार भेदन किया और आया और उसने सभी लोगों को सभी वास्तविकता के सच्चे आनन्द के क्षेत्र में देशों को और राष्ट्रों को चोट पहुँचाई प्रवेश कर गए। आपके सभी दुर्गुण समाप्त और हम सब समाप्त हो गए। यह सब होने लगे। मध्य-मार्ग पर सर्वप्रथम मूलाधार केवल दाईं ओर (आक्रामकता की ओर ) आया मध्य-मार्ग पर मूलाधार को जागृत झुकाव के कारण था जिसे लोगों ने कर लेने से आप लोग अत्यन्त पवित्र हो आध्यात्मिकता प्राप्ति का सुगम मार्ग माना गए, आपमें वासना समाप्त हो गई, आपका था। परन्तु वास्तव में ऐसा न था। अतः इन दुष्ट लोगों ने सारी सीमाएं अत्यन्त पावन व्यक्ति बन गए। जब तक लाँघ डाली और एक ऐसी अवस्था पर ऐसा नहीं हो जाता आप सहजयोग में हल्कापन चला गया और आप अत्यन्त, जनवरी-फरवरी 2003 5 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 नहीं रह सकते। आप लम्पट और चुलबुले किस प्रकार लोगों पर रौब जमाना है और नहीं हो सकते, ऐसे व्यक्ति नहीं हो सकते किस प्रकार असहिष्णु होना है। जो दूसरों का धन हड़पना चाहता हैं। अत्यन्त आक्रामक व्यक्ति भी सहजयोग में स्तर तक गए। स्वाधिष्ठान में ऊँचा उठने नहीं रह सकता। इस प्रकार वे स्वाधिष्ठान के उच्चतम के कारण सृजनात्मक लोगों में सृजन करने - यश अर्जन अतः ऐसे सभी लोगों को सहजयोग की आक्रामकता जाग उठी से बाहर फेंक दिया गया और जब उन्हें करने के लिए सभी प्रकार की अटपटी बाहर फेंक दिया गया तो, मैं कहना चाहूँगी, और गन्दी चीजों का सृजन करने की वे अपने दाँत दिखा रहे थे। अपना बाहर आक्रामकता। फैंका जाना उन्हें अच्छा नहीं लगा। परन्तु अब उनमें से कुछ लोग इस बात को स्वाधिष्ठान से प्राप्त हुई। उन लोगों को समझते हैं कि उन्होनें गलतियाँ की हैं। अतः पहली चीज ये है कि आप करना चाहते थे उन्हें ये चीज़ दाएँ अपने अन्दर पावित्र्य-विवेक (Sense of स्वाधिष्ठान से प्राप्त हुई। Chastity) विकसित करें। उसका सम्मान करें और उसका आनन्द लें। आपके पर लोग धन कमाने के लिए निकल पड़े, मूलाधार जागृत होने के पश्चात् ही यह लक्ष्मी नहीं, धन कमाने के लिए. किसी भी घटित हो पाया है बाईं ओर का यह प्रकार से धन कमाने के लिए निकल पड़े । पहला चक्र हैं जहाँ आपके अन्दर श्री उन्होनें पूरे विश्व को धोखा दिया। जो गणेश विराजमान हैं। तो ये एक अन्य चीज़ है जो हमें जो नाम कमाना चाहते थे या पद हासिल नाभि चक्र तीसरा चक्र है इस चक्र धन उन्होनें इस प्रकार एकत्र किया उससे परन्तु दाईं ओर को भी हमारे अन्दर सभी प्रकार के दुष्कर्म किए। या तो उन्होनें देवी-देवता विद्यमान हैं । कमियों को दूर धोखाधड़ी की या वे आक्रामक हो गए । करने के लिए हर चक्र पर देवता भारत जैसे बाईं ओर के देशों में धोखाधड़ी विराजमान हैं। श्री गणेश क्योंकि मध्य में बहुत थी और दाईं ओर के देशों में हैं इसीलिए हमें उनके शक्तिशाली पावित्र्य आक्रामकता थी। मध्य स्वाधिष्ठान पर जब का आशीष प्राप्त हुआ और हम पावनता हम होते हैं तब हमारे अन्दर सृजनात्मकता के सौन्दर्य, पावनता की शक्ति को समझने होती हैं - अत्यन्त सुन्दर, अत्यन्त गहनता लगे। इस प्रकार से हमने अपने दाईं ओर पूर्ण आध्यात्मिक कला का सृजन । ये सारे के दोषों को समाप्त किया। दाई ओर युद्ध गुण समाप्त हो गए और लोग अवतरणों करने के लिए, हत्या के लिए और क्रोध को भी बुरी आदतों से पूर्ण दर्शाने लगे। के लिए थी। इन लोगों के लिए शान्ति न इस उन्नति के साथ सभी प्रकार की गन्दगी थी। ये केवल इतना ही जानते थे कि भी आई । जनवरी-फरवरी 2003 6 चैतन्य लहरी खंड-xV अंक 1 व 2 इसके बाद जैसा मैंने आपको बताया का चक्र है। उनमें न पितृत्व था और न नाभि चक्र है नाभि चक्र पर लोग धन के ही मातृत्व। ये लोग इतने स्वार्थी, स्वयं पीछे पड़ गए। बाईं ओर के लोग धन सीमित (Self Centred) तथा रौबीले थे बना रहे थे और दाई ओर के धन के जिन्होनें अपने बच्चों को बाहर निकाल कारण आक्रामक हो गए थे। धन कमाने दिया। यह हृदय चक्र था। बाले लोगों ने सोचा कि वे विश्व के शिखर पर हैं जिसने धन प्राप्त कर लिया वह उसे विशुद्धि चक्र कहते हैं। विशुद्धि चक्र सोचने लगा कि मुझसे श्रेष्ठ कोई भी नहीं पर लोगों ने पूरे विश्व पर कब्ज़ा करना है इस तरह की सोच ने उन्हें समाप्त चाहा तत्पश्चात् सामूहिकता का चक्र आया । पूरे विश्व को उन्होनें अपना साम्राज्य बनाना चाहा ताकि वे सम्राट बन सकें। कर दिया। यह सोच उन्हें समाप्त कर रही हैं और उन्हें उस बिन्दु तक ले जाएगी जहाँ वे इस बात को समझ सकेंगे कि धन विनाश के लिए नहीं है। धन तो निर्माण के लिए है, देश के निर्माण के लिए, मानव में शान्ति, प्रेम, सहयोग तथा सभी प्रकार के अच्छे गुणों के निर्माण के लिए । उन्होनें साम्राज्य बनाए और इस प्रकार से अमानवीय व्यवहार किए जो कर पाना मानव के लिए असंभव है। मैं कहना चाहूँगी कि ये लोग वास्तव में राक्षस थे ये राक्षसी 1 गुण आज भी बने हुए हैं इन लोगों के आचरण से और सारे कार-व्यवहार से तत्पश्चात् यही आक्रामक लोग माँ के चक्र आप देख सकते हैं कि ये किस प्रकार पर आए और यहाँ तो माताएँ भी भयानक अन्य लोगों से व्यवहार करते हैं, उनसे थीं जिन्होंने अपने बच्चों पर तथा अन्य किस प्रकार का आचरण करते हैं और सभी लोगों पर रौब जमाने का प्रयत्न ऐसे लोगों का सृजन करते हैं जो आक्रामक किया अपने बच्चों पर वे कुछ भी बलिदान हैं और आध्यात्मिकता विरोधी हैं। इन न कर सकीं । हमारे यहाँ बहुत सी महिलाएँ लोगों के कारण यह विश्व दोतरफा बन आईं जो अपने पतियों और बच्चों के प्रति गया जिसमें ऐसे लोग हैं जो आक्रामक हैं बहुत आक्रामक थीं। यहाँ तक कि पुरुषों और दूसरों को कष्ट देते हैं यह दो में भी पितृत्व भाव मृत होकर समाप्त हो तरफा विश्व आज भी है, परन्तु बहुत कम है। इसका श्रेय सामूहिक सूझ-बूझ को गया है। जब मैं पृथ्वी पर अवतरित हुई तो जाता है। बहुत सी अच्छी संस्थाओं की सभी लोग ऐसे ही थे। इनके कारण मुझे स्थापना की गई परन्तु वे भी कुछ विशेष सदमा पहुँचा। ये कैसे मानव हैं! इनके कार्य नहीं कर रही हैं। लक्ष्य प्राप्ति में वे लिए मैं क्या करूँगी? किस प्रकार मैं इनकी कुछ खास सफल नहीं हैं क्योंकि इनके कुण्डलिनी जागृत करूँगी? ये तो नाभि उच्च पदारूढ़ लोग ही सभी कुछ नियंत्रित चक्र पर ही खो गए हैं। परन्तु अब यह माँ कर रहे हैं। परन्तु नियंत्रण किसका? वो जनवरी-फरवरी 2003 7 चैतन्य लहरी खंड-xV अंक 1 व 2 स्वयं को नियंत्रित नहीं करते अन्य लोगों है कि जो लोग आध्यात्मिक भी हैं और को नियंत्रित करते हैं। उनके आचरण ने जिन्होनें महान बुलन्दियाँ प्राप्त कर ली हैं इस चक्र के सारे कार्य को ही बिगाड़ उन्हें तनिक सी भी चिन्ता नहीं है कि दिया है। अपने आप यदि सामूहिक रूप से आध्यात्मिकता का आनन्द लेने के लिए वे आप चहुँ ओर देखें तो सर्वत्र युद्ध हो रहे लोग पूजाओं में आते हैं अधिक से अधिक हैं, लड़ाईयाँ हो रही हैं, मार काट हो रही आध्यात्मिकता प्राप्त करते हैं। परन्तु अन्य है और विनाश हो रहा है । यह कैसे हो लोगों को परिवर्तित करने के लिए उन्होनें सकता है? इस विश्व में अब बहुत से कोई सामूहिक कार्य नहीं किया। कुछ आध्यात्मिक लोग हैं। कारण ये है कि लोग, एक दो लोग कार्य कर रहे हैं, बस। आध्यात्मिक लोग अत्यन्त मौन हो गए हैं बाकी सब मजे में हैं और इस प्रकार से और अपने आध्यात्मिक जीवन का भरपूर आनन्द उठा रहे हैं कि लोग उन्हें महान आनन्द ले रहे हैं। ये अत्यन्त निश्चेष्ट एवं आत्माएँ और अच्छे लोग मानते हैं। शान्त हो गए हैं परन्तु इस प्रकार से शान्ति नहीं आ सकती। आपको गतिशील अन्तर्वलोकन करके देखें कि आपने कितना होना होगा और इस विश्व में शान्ति लानी सामूहिक कार्य किया है। आप कितने लोगों होगी। इसके लिए आपको कुछ न कुछ को लाए हैं। किसके साथ आप बातचीत करना होगा अपनी उन्नति से हम लोग करते हैं, कितने लोगों को आपने सहजयोग बहुत संतुष्ट हैं परन्तु हमें यह देखने की के विषय में बताया है? केवल इतने से चिन्ता नहीं है कि अन्य लोगों ने क्या लोग यहाँ हैं। ईसा-मसीह के केवल बारह उन्नति की है, वे कहाँ तक पहुँचे हैं, हम शिष्य थे, वे आप सबसे कहीं अधिक उनसे कहाँ मिल सकते हैं और किस प्रकार गतिशील (Dynamic) थे उन्हे परिवर्तित कर सकते हैं? अपने स्तर पर मैं बहुत सी चीजें परिवर्तित कर सकती (क्रियाशक्ति) का उपयोग करें जब आप हूँ, परन्तु आप लोगों ने अपने स्तर परलोग दाईं ओर का उपयोग करेंगे तो कितने लोगों को परिवर्तित किया है? आपने प्रगतिशील लोगों का सृजन होगा जोकि क्या किया है? ये बात देखी जानी है। बीमार, रोगी अत्यन्त मौन और निष्क्रिय अभी भी आप आज्ञा पर अपने अहंकार में लोग न होंगे ऐसे लोगों का सृजन रहते हैं और अपनी ही शान्ति से अत्यन्त सहजयोग का लक्ष्य न था। सहजयोग का क्या किया जाना चाहिए! अपनी मैं चाहूँ गी कि आप लोग अतः अब आप लोग दाई ओर लक्ष्य परिवर्तित करना है बहुत से लोगों प्रसन्न हैं। आज यह सबसे बड़ी विपत्ति है को परिवर्तित करना। जो लोग ये कार्य जिसका सामना आज यह विश्व कर रहा कर रहे हैं, मेरा आर्शीवाद उनके साथ है। जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 परन्तु जो स्वयं तक सीमित हैं, वह कोई सहजयोगिनियाँ बनाना है परन्तु ऐसा अच्छी बात नहीं है। आपके देश में कितने नहीं हो रहा मैं देखती हूँ कि ऐसा नहीं हो लोगों ने सहजयोग अपनाया। पता लगाएं रहा है । क्रियाशक्ति (Right Side) के कितने लोगों पर आपने सहजयोग उपयोग का अभाव है। आपको क्रियाशील कार्यान्वित किया है । होना पड़ेगा। आपको कुछ नहीं होगा। कोई आपको मार नहीं सकता, कोई अतः आप का योग अधूरा है। यह बाईं ओर का अधूरा योग है जिसमें आप आपको परेशान नहीं कर सकता, कोई बहुत, प्रेममय हैं, बहुत करुणामय हैं। ऐसे आपको गिरफ्तार नहीं कर सकता। ये हैं, वैसे हैं आप आक्रामक हो जाऐें। परन्तु मेरा वायदा है। आपमें शक्तियाँ हैं परन्तु मैंने ये भी देखा है कि लोग लीडर बनना यदि आप इनका उपयोग नहीं करते तो चाहते हैं। वे कुछ बहुत बड़ी चीज़ बनना आप ऐसे ही हो जाएंगे यही कारण है चाहते हैं। परन्तु आपने कितने लोगों को कि हम निष्चेष्टता के स्तर पर आ गए हैं। आत्म- साक्षात्कार दिया है, कितने लोगों हमें ये बात समझनी होगी कि हमें अपनी से सहजयोग की बातचीत की है? मैंने क्रियाशीलता का उपयोग करना होगा। देखा है कि हवाई जहाज पर जाते हुए, क्रियाशीलता का बहुत महत्व है। गलियों में चलते हुए लोग सहजयोग की बात करते हैं परन्तु यहाँ पर हम सहजयोग विषय में बताऊँगी, आपमें कौन-कौन सी को अपनी महानता के लिए और स्वयं को शक्तियाँ हैं । आप लोग चाहे जो करें आप समझने के लिए उपयोग कर रहे हैं तामसिक प्रवृत्ति (Left Sided) नहीं हो सहजयोग आपको इसलिए नहीं दिया सकते। अतः पूरी सूझ- बूझ के साथ उचित गया यह आपको इसलिए दिया गया है दिशा में आप अपनी क्रियाशीलता (Right कि आप बहुत सारे लो गों को Side) का उपयोग करें, हिटलरों की तरह आत्म-साक्षात्कार दें। युवाओं से, युवा पीढ़ी से निरंकुश नियंत्रक बन कर नहीं । से मेरी प्रार्थना है कि अपनी सहज शक्तियों सहजयोगियों में हिटलर भी हुए, परन्तु को बेकार की चीजों में वैसे नष्ट न करें अब आप लोगों के लिए समय आ गया है जैसे पुराने लोगों ने किया। अच्छा होगा कि अब आप पूर्वकालीन सन्तों से भी कि आप आगे बढ़े। सहजयोग की बातचीत आगे कुछ करें ताकि सहजयोग कार्यान्वित करें और सहजयोग को फैलाएं। इन लोगों हो सके। इसे स्वयं तक सीमित न रखें। की रुचि स्कूल चलाने में, अनाश्रितों की अपने परिवार, अपने बच्चों और अपने देखभाल करने में तथा ऐसे ही अन्य कार्यों आनन्द के लिए इसे सीमित न करें। को करने में है यह आपका कार्य नहीं सहजयोग इस कार्य के लिए नहीं है। यह है। आपका कार्य बहुत से सहजयोगी और तो पूरे विश्व को परिवर्तित करने के लिए अगली बार मैं आपको दाईं ओर के जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 है आपको इसके बारे में सोचना होगा । है कि वे आज्ञा चक्र पर सबको क्षमा करें आप क्या कर रहे हैं, आप क्या हैं और परन्तु इसका अर्थ ये नहीं है कि आप सहजयोग से आपने क्या उपलब्धियाँ प्राप्त लोगों को गलत कार्य करते चले जाने की की हैं? इसके बाद हम आज्ञा पर आते हैं। चाहते हैं इसलिए झगड़ा न करना, कुछ आज्ञा पार करने पर सहजयोगी ऐसे बन न कहना, इन चीजों से दूर रहना, बस गए कि वे कुछ भी सहन कर सकते हैं, क्षमा कर देना, बहुत आसान है । नहीं। कोई भी कष्ट उठा सकते हैं। हम ऐसा जाकर उस व्यक्ति से बात करें और उसे नहीं चाहते, हम तो अन्य लोगों की तकलीफें ब्रताएं कि ये गलत है। आपको इसका और उनकी आक्रामकता दूर करना चाहते सामना करना पड़ेगा। यदि आप इसका आज्ञा दे दें। आप क्योंकि क्षमा करना हैं। हमारे पास उस प्रकार की व्यवस्था सामना नहीं कर सकते तो आप बेकार नहीं है वैसी सूझ-बूझ हमारे पास नहीं हैं किसी भी अन्य साधारण व्यक्ति की है यदि ये कार्यान्वित हो जाता है तो तरह से हैं। आपके आत्म-साक्षात्कार प्राप्त आप बिल्कुल भिन्न प्रकार के व्यक्ति बन करने का क्या लाभ हुआ। जाएंगे। अतः हम सन्तों जैसे बन गए हैं, इतना ही काफी नहीं हैं कि हमारे अन्दर जैसे सन्त अपने आश्रम के हॉल के चैतन्य है कि हम ठीक ठाक हैं तथा लोगों सभागारों में बैठे रहते हैं वैसे ही बन गए को रोगमुक्त कर सकते हैं। यही अन्तिम हैं, उससे आगे कुछ नहीं। अतः बिना किसी आक्रामकता के फैलाना है, आपको जनता में जाना है । हम यदि कुछ सकारात्मक कार्य करने का इस मामले में सामूहिक होकर आपको प्रयत्न करें तो बेहतर होगा मैं जानती हूँ सहजयोग फैलाना है। विश्वभर में इतने कि आपमें से कुछ लोग अभी भी बहुत अधिक सहजयोगियों के होते हुए भी हमने आक्रामक हैं और दिखावा करते हैं । ये कोई विशेष उन्नती नहीं की है । अतः अब बात में जानती हूँ। परन्तु यदि सामूहिक आप ही लोगों ने इसकी योजना बनानी रूप से कार्य करने की इच्छा आप में जाग है कि आप क्या करना चाहते हैं, किस जाए तो आप जान जाएंगे कि आपमें क्या प्रकार से इस कार्य को करना चाहते हैं, कमियाँ हैं। अभी भी आपके व्यक्तित्व में किस प्रकार से सहजयोग फैलाना चाहते क्या अभाव हैं। ये बहुत महत्वपूर्ण हैं। हैं? ये बहुत महत्वपूर्ण है। आप लोग आज्ञा चक्र पर बहुत से सहजयोगी सहजयोग की बात-चीत करने और भजन लड़खड़ा जाते हैं। मैं नहीं जानती कि गाने में बहुत कुशल हैं परन्तु बहुत सारे उन्हें क्या हो जाता है? मैंने उन्हें बताया लोगों को सहजयोग में लाने के पक्के अतः अब हमें यह समझना है कि शब्द नहीं हैं। नहीं आपको सहजयोग जनवरी-फरवरी 2003 10 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 प्रभावों के बिना ये सब चीजें व्यर्थ हैं । तुर्की जैसे छोटे से देश में पच्चीस हजार सहजयोगी हैं। इसके विषय में की है कि सहजयोगी मुर्दों सम हैं। क्या आपको क्या कहना है? वे सब मुसलमान आप ऐसे ही हैं? मुझ जैसे अकेले व्यक्ति हैं। पच्चीस हजार मुसलमानों का ने इतना सारा कार्य कर डाला तो आप सहजयोगी बनना! जबकि अन्य किसी भी लोग क्यों नहीं कर सकते? क्या अपने देश में यह संख्या बहुत कम है। वो लोग देश में आपने इसे सर्वत्र कार्यान्वित किया बहुत धनी नहीं हैं परन्तु वो अपने है इसके बारे में सोचें। जब तक आप इस आत्म-साक्षात्कार की तथा अन्य लोगों कार्य को नहीं करते आप संपूर्ण नहीं हैं को आत्म-साक्षात्कार देने की चिन्ता करते आप अधूरे हैं और आदिशक्ति की शक्तियों हैं। आश्चर्य की बात है किस प्रकार यह को आपने पूरी तरह से नहीं समझा है। कार्यान्वित हुआ, किस प्रकार ये फैला! अपनी समस्याओं, अपने शत्रुओं, आदिशक्ति के रूप में मेरी पूजा करने के अपनी शक्तियों के विषय में सोचने के लिए आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है। स्थान पर अन्य लोगों को शक्ति देकर यह अर्ध-निष्क्रियता नहीं है, नहीं। यदि उन्हें सहजयोगी बनाने के विषय में सोचें । ये कार्यान्वित नहीं होता तो क्या लाभ है? ऐसा करना बहुत आवश्यक है। आप यदि तब यह किसी अन्य एहसास की तरह से सहस्रार में हैं तो आपके पास ये सब है, इसका कोई महत्व नहीं? आपने शक्तियाँ हैं। सहस्रार में होकर भी यदि सहजयोग को केवल फैलाना ही नहीं है प सहजयोगी नहीं फैलाते तो लोगों को परिवर्तित करना है और उन्हें गतिशील शक्ति के साथ कार्य करें। बहुत से लोगों ने मुझसे शिकायत इसीलिए मैं आपको बता रही हूँ कि आ आत्म-साक्षात्कार लेने का क्या लाभ हैं? महसूस करवाना है। केवल अपने लिए? ऐसा करना अत्यन्त स्वार्थ-पन है। अतः मैं कहूँगी कि अपनी पूर्ण शक्तियाँ मैं आपको देती हूँ परन्तु गरिमा, अपना यश, अपना नाम फैलाने के समझने का प्रयत्न करें, ठीक हैं? अपना पूर्ण आशीष, पूर्ण प्रेम और स्थान पर, कृपा करके, सहजयोग में अधिक से अधिक लोगों को लाएँ । अत्यन्त आप सबका हार्दिक धन्यवाद । गुरु पूजा रविवार 21 जुलाई 2002, कबैला, इटली परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन भारत में सभी लोग मॉनसून की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इसके विषय में वो हम सब गुरुपूजा उत्सव मना रहे हैं और बहुत चिन्तित हैं क्योंकि वहां बारिश उन सब महान गुरुओं को स्मरण कर रहे बिल्कुल नहीं है । अतः मैं बारिश को बन्धन दे रही थी और बारिश यहां हो गई। अब दूरदर्शन पर उन्होनें बताया है आज महान दिन है क्योंकि आज हैं जो पृथ्वी पर सत्य के विषय में बताने के लिए अवतरित हुए। ०ी ब हु त से अवतरित हुए और अपने अपने स्तर कर गु रु कि भारत में वर्षा होने वाली है। परन्तु वर्षा पहले इटली में हुई। मुझे बताया गया था कि इटली में भी आपको वर्षा पर मानव को यह समझाने का जी जान से प्रयत्न कि किया आध्यात्मिकता क्या है। परन्तु इतनी विषमता है कि लोग इस बात को कभी भी नहीं समझे कि आध्यात्मिकता हमारे लिए अत्यन्त की बहुत जरूरत है। पहली वर्षा कुछ दिन पूर्व हुई और अब ये दूसरी वर्षा है। हमारी शक्तियों को समझने की आवश्यक है तथा समस्या बनी हुई है। परन्तु वर्षा इतनी करुणामय है कि यह उचित समय पर हमें परमात्मा के प्रेम को सर्वव्यापी शक्ति कार्य करती है। वर्षा के आज्ञाकारी स्वभाव से एकाकारिता प्राप्त करनी है । और तुरन्त कार्य करने पर मैं हैरान हूँ । उन्होंने अपने सारे प्रयत्न गलत दिशा 1 जनवरी-फरवरी 2003 12 चैतन्य लहरी खंड-xV अंक 1 व 2 में ही किए निःसन्देह मानव बहुत अधिक यह केवल रोगमुक्त ही नहीं कर सकती बुद्धिमान था, पशुओं से कहीं अधिक और पूर्ण सक्षम भी है। यह केवल इतना ही उसने खोज आरम्भ कर दी-सत्य की नहीं बताती कि आप बीमार है और आपको नहीं, एक प्रकार से अपनी मुक्ति की खोज समस्या है परन्तु आपको रोगमुक्त करने या मेरी समझ में नहीं आता कि क्या में भी सक्षम है यही कारण है कि भारत कहूँ-अपनी उन्नति की खोज। और इस में अग्नि की पूजा की जाती थी, प्रकाश दिशा में यह भूल गए कि सर्वप्रथम उन्हें की पूजा की जाती थी। सबसे पहले अग्नि आध्यात्मिकता की खोज करनी होगी की पूजा की जाती थी। संभवत वो जान क्योंकि आध्यात्मिकता महत्वपूर्ण है। गए थे कि अग्नि सब कुछ जानती है । ती अतः आन्तरिक इन सभी तत्वों की थी । एक बाईं ओर से और दूसरी दाईं आन्तरिक चेतना के विषय में वो जानते ओर से। भारत में, न जाने क्यों, लोग थे और इन्हीं कारणों से वे इसकी पूजा जंगलों में चले गए और सन्त बन गए। वो करते थे। पूजा से पूर्व इन तत्वों के देवी लोग दाईं ओर की तपस्या कर रहे थे देवताओं का आह्वान किया जाता था कि अर्थात एक के बाद एक पंच तत्वों में वो पूजा की साक्षी बनें। परन्तु यह सब पेंठना और पंच तत्वों पर स्वामित्व प्राप्त दांई ओर की गतिविधी (कर्मकाण्ड) बन गई। बांई ओर के बिना दांया पक्ष अत्यन्त हमारे सम्मुख दो प्रकार की यात्राएं करना। निःसन्देह इसमें सच्चाई है। आपने भयानक होता है आपमें यदि दांया पक्ष देखा है कि किस प्रकार दीपक (बादलों (कार्यान्वयन शक्ति) नहीं है तो भी यह की गर्जन) आपको यह बताता है कि अत्यन्त भयानक बात है। परन्तु सर्वप्रथम आपकी स्थिति क्या है। मोमबत्ती की आपको अपने बांए पक्ष (भक्ति पक्ष) को ज्योति आपको बता सकती है कि आप विकसित करना होगा। आरम्भ में भूतबाधित हैं या नहीं। क्या आप इसकी सहजयोग में भी हमने यही किया। कल्पना कर सकते हैं? मोमबत्ती को इतना अधिक ज्ञान है! मान लो आपको हृदय ही बांया पक्ष (भावना पक्ष) है। हम इतना चक्र की समस्या है, आपको हृदय रोग है, ही कह सकते हैं कि देवी का आशीर्वाद तो मोमबत्ती इसे दर्शाएगी और यदि आप जिसका वर्णन देवी महात्म्य में किया गया मोमबत्ती के प्रकाश से अपना इलाज करें है कि देवी आपके अन्दर भिन्न रूपों में तो आप स्वयं को रोगमुक्त कर सकते हैं। विराजमान है। आपके अन्दर वह श्रद्धारूप 1 बेंबेस करुणा, प्रेम सबके लिए सौहार्द भाव अतः यह इतनी संवेदनशील है कि में विराजमान है, निद्रारूप में विराजमान जनवरी-फरवरी 2003 13 चैतन्य लहरी खंड-xV अंक 1 व 2 है। आपके अन्दर वो भ्रान्तिरूप में विराजती बहुत गम्भीर चीज़ है अपनी बुद्धि द्वारा, हैं। बांई ओर की बहुत सी चीजें हैं। अपनी सोचने की शक्ति द्वारा आपका जिनका वर्णन पहले ही किया जा चुका अहम् उस सीमा तक जा सकता है जहाँ है। जब मैंने आपको सहजयोग के विषय यह आपके लिए ही समस्या खड़ी कर में बताया था तो मैं आपके बाएं पक्ष को दें। बहुत दृढ़ करना चाहती थी। जिन लोगों ने दाएं पक्ष (राजसी परिणाम स्वरूप बहुत से रोग हो सकते हैं तरीके) अपनाए वो अत्यन्त आक्रामक हो जो पूर्णतया लाइलाज हैं। दाईं ओर के गए और उन्होनें पंच तत्वों के सार पर कुछ लोग तो रक्त कैंसर के शिकार हो स्वामित्व प्राप्त कर लिया। यहाँ तक तो सकते हैं। रक्त कैंसर का हमने इलाज ठीक है परन्तु ये लोग अत्यन्त क्रोधी स्वभाव किया है परन्तु ठीक होने के पश्चात् भी के हो गए। इतने क्रोधी स्वभाव के कि ये आप वैसी ही आक्रामकता की ओर लौट लोगों को शापित करने लगे। अत्यन्त सकते हैं क्योंकि आप सोचते है मैं ठीक कठोर बातें वे लोगों से कहते तथा हूँ। ऐसे लोग सदैव अन्य लोगों में दोष सर्वव्यापकता पर वे विश्वास न करते। खोजते हैं, कि फलां व्यक्ति अच्छा नहीं इतनी भयानक चीज को उन्होनें अपना है, वह हानि पहुँचा रहा है। ये लोग दूसरों लिया था। हमने देखा है कि इस समस्या के के दोष तो देख सकते हैं परन्तु अपने भारतीय शास्त्रों में बहुत सी घटनाओं दोष इन्हें दिखाई नहीं देते। उनका चित्त में आप देख सकते हैं कि लोग शाप दे बाहर की ओर होता है अपने आप पर देते हैं और यह बात आम थी। गुरु लोग नहीं। कभी वे यह नहीं देखते कि उनमे किसी को भी इसलिए शाप दे दिया करते क्या दोष है। वे तो बस अन्य लोगों के थे क्योंकि उनमें करुणा और प्रेम का दोष देखने में लगे रहते हैं। किस प्रकार अभाव था और आक्रामकता की शक्ति के से वे आक्रामकता की भयानक सीढ़ी पर लिए उनके पास और कुछ न था। परन्तु चढ रहे हैं जो उन्हें भयानक रोगो में अब हमने देखा कि जो लोग आक्रामक है. ढकेल सकती है। भक्ति बिना जो दाईं ओर का मार्ग पकड़ते हैं, परमात्मा के आशीर्वाद के बिना जो रक्त कैंसर रोग है । इससे यदि आपने चलते हैं वे वास्तव में राक्षस बन सकते हैं छुटकारा प्राप्त कर लिया तो अन्य प्रकार और मानवता के लिए बहुत बड़ा खतरा की समस्याएँ है। आजकल अल्जाइमर बन सकते हैं (बादलों का गर्जन) । यह (Alzheimer's) नामक एक प्रसिद्ध रोग जैसा मैंने आपको बताया, सर्वप्रथम जनवरी-फरवरी 2003 14 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 है। यह भी दाए पक्ष के बाहुल्य करते रहते हैं। परन्तु अपनी आक्रामक (आक्रामकता) के परिणाम स्वरूप हैं। आपमें गतिविधियों के कारण आप अत्यन्त सफल यदि भक्ति न हो, वांछित विनम्रता न हो, हो सकते हैं। हिटलर इसकी पराकाष्ठा देवी का आशीर्वाद आपको प्राप्त न हो तो था। इस प्रकार से लोग अत्यन्त क्रूर तरीके आप इन भयानक रोगों के शिकार हो अपनाते चले जाते हैं। सकते हैं जो केवल प्राण लेवा ही नहीं है आजकल, मैं सोचती हूँ, कुछ लोग अपनी आक्रामकता के कारण सर्वत्र शासन परन्तु अन्य लोगों के लिए भी हानिकारक हैं। कर रहे हैं। बांई ओर (विनम्रता) को उपयोग अतः आक्रामकता द्वारा आपका करने वाले लोगों का अभाव हैं। और जब उत्थान नहीं होता कहते हैं कि आप जब भी अपने भक्ति पक्ष का उपयोग बहुत बड़े तपस्वी बन सकते हैं जो दूसरों उन्होंने किया तो वे सन्त कहलाए। आप को शाप दे सकें, उन्हें कष्टों में डाल सकें सब लोगों के पास भी भक्ति पक्ष की और सोंचें कि यह बहुत बड़ी शक्ति है। शक्तियां हैं। आप मे से कुछ लोगों में यह बहुत बड़ी शक्ति नहीं है। ऐसा थोड़ी सी आक्रामकता भी है। परन्तु कोई बिल्कुल भी नहीं है क्योंकि आप अन्य बात नहीं। शक्तियों द्वारा दबे हुए नहीं होते, नकारात्मक शक्तियों द्वारा, परन्तु वास्तव स्वामित्व पा लिया है। आपमें कुण्डलिनी में आपकी अपनी शक्ति ही आपका जीवन जागृत भी हो गई है। परमात्मा से आपकी ले लेती है। मैं कहूंगी कि आपने बांए पक्ष पर एकाकारिता है। अब आप दांई ओर, अतः कुण्डलिनी जब उठ जाए तो गतिशीलता की ओर, आ सकते हैं। और सर्वोत्तम मार्ग भक्ति की ओर (Left Side) इस पक्ष के विषय में जान सकते है, इस चले जाना है, बिना दूसरों की आलोचना की अभिव्यक्ति करने का प्रयत्न कर सकते किए, बिना उनकी बुराई किए, परन्तु अपने है। अन्य लोगों पर स्वामित्व जमाकर ही अन्दर अवलोकन करते हुए कि मुझमें क्या आप इसकी अभिव्यक्ति नहीं कर सके । कमी है। यह खोजने का प्रयत्न करें कि स्वयं पर स्वामित्व बनाकर भी आप ऐसा आपका क्या आदर्श है। इसका आरम्भ कर सकते हैं आत्म निरीक्षण द्वारा और तो अपने महत्व से है कि 'मैं अत्यन्त अपने द्वेषों को देखने से भी आप ऐसा महत्वपूर्ण व्यक्ति हूँ और इस नजरिये से कर सकते हैं। आपका आचरण ऐसा क्यों आप सभी को कष्ट देते चले जाते हैं हैं? क्यों आप दूसरे लोगों को कष्ट देते सभी को सताते रहते हैं। ऐसा सभी कुछ है? क्यों उन पर प्रभुत्व जमाते हैं? मैंने जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 15 देखा है कि ऐसे लोग सदैव आयोजन कार्य कर रहे हैं? हमारी शैली क्या है?' एवम् प्रबन्धन करते हैं, ये करते हैं वो एक बार जब आप जान लें कि आपकी करते हैं। अपना आयोजन करने के स्थान शैली तामसिक है (Left Sided) तो आप पर वे अन्य लोगों को आयोजित करते हैं। क्रियाशीलता (Right Side) अपनाकर ये चीजें जटिल हो जाती हैं। आपमें यदि शक्ति प्राप्त कर लें -दाईं ओर की शक्ति। प्रेम है, आपमें यदि भक्ति है तो आप एक भिन्न तरीके से अन्य लोगों पर प्रभुत्व बाईं ओर की कुशलता के माध्यम से प्राप्त दाईं ओर की शक्तियां क्या हैं जिन्हें बनाए रख सकते हैं। आवश्यक नहीं कि किया जा सकता है? इस दिशा में कुछ क्रूरता द्वारा या किसी को सता कर आप महान गुरु अपना प्रभुत्व बनाएं, यह कार्य आप अपने से एक थे। वे एक देश के राजा थे, प्रेम में भी कर सकते हैं आप प्रभुत्व शासक थे-अत्यन्त प्रसिद्ध शासक। परन्तु हो गए हैं। राजा जनक उनमें जमाना ही नहीं चाहेंगे क्योंकि प्रेम, उदारता अत्यन्त उदार होते हुए भी वे महान सम्राट और विशाल हृदय के सम्मुख लोग स्वतः थे, उन दिनों के महान राजा। अपनी ही झुक जाते हैं। अतः सर्वप्रथम आप अपने अन्दर यह व्यवहार के लिए वे प्रसिद्ध थे। राजा जनक सारे गुण विकसित करें। यह बाईं ओर में यह सभी गुण थे। कोई भी चीज़ उन्हें का कार्य है कि आपको अत्यन्त शान्त परेशान न कर सकती थी। लोग इस होना चाहिए। अन्य लोगों से प्रेम करना बात को न समझ पाते थे कि बड़े से बड़े चाहिए । उनके प्रति उदार होना चाहिए आप करुणामय बनके देखें, कि यह आपको जाते हैं। वो राजा थे अत्यन्त शानों शौकत क्या प्रदान करता है। कुछ लोग देखे हैं से रहते थे, बहुत से आभूषण धारण करते जो अत्यन्त अभद्र हैं। किसी के साथ भी थे, बहुत से रथवाहन उनके पास थे, फिर वह अभद्र व्यवहार कर सकते हैं। यह भी न जाने उनमे क्या चीज़ महान थी। उनका स्वभाव है जिसे उन्होनें अपनी क्योंकि कोई भी चीज उनपर हावी न विनम्रता (Left Side) से नियन्त्रित करना थी। भौतिकता से वे इतने निर्लिप्त थे । है। अभद्रता सन्त का गुण नहीं है। सन्ति सभी कुछ होते हुए भी वे अत्यन्त निर्लिप्त तो अत्यन्त शान्त होता है और अन्य लोगों थे जिस व्यक्ति ने अपने बांए पक्ष पर के प्रति कभी अभद्र नहीं होता। निष्पक्षता, स्पष्टवादिता तथा प्रजा से अपने । सन्त भी उनके सम्मुख क्यों नतमस्तक हो स्वामित्व प्राप्त कर लिया हो और अब अतः प्रथम कार्य अन्तर्अवलोकन है। राजा हो ऐसे व्यक्ति का वह बहुत अच्छा हम कहां गलत हैं? हम कौन से गलत उदाहरण है। राजा जनक ऐसे ही व्यक्ति जनवरी-फरवरी 2003 16 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 थे। अवतरण के रूप में उनका सम्मान करते 1. इसी प्रकार से हमारे यहाँ, बाद में, है। इसका कारण यह है कि अवतरण ऐसे बहुत से लोग हुए जो अत्यन्त होते हुए भी अपनी शक्तियाँ अन्य लोगों वैभवशाली थे, राजाओं की तरह को प्रदान करने में उन्होनें अपना सर्वस्व शक्तिशाली थे। परन्तु अन्दर से वे पूर्णतः लगा दिया। वे जगह जगह गए सुविधाएँ दिव्य व्यक्ति थे, कोई भी चीज उन्हें न होते हुए भी जगह जगह जाकर उन्होनें डांवाडोल न कर सकती थी। कोई भी लोगों को बचाने का प्रयत्न किया। चीज़ उनमें महानता या गर्व की भावना न पैदा कर सकती थी। उनके लिए कोई भी अर्थ यह हुआ कि सहजयोगी भी क्रियाशील पद कोई भी शक्ति इतनी महान न थी । (Right Sided) हो सकते हैं, परन्तु मानव के लिए यह पूर्ण उद्धार है कि अब ईसा-मसीह की तरह से। अन्यथा दाईं आप आत्म-साक्षात्कारी लोग हैं। आपको तरफ गतिशील होकर वे आयोजन करेंगे, करुणा, प्रेम और सूझ-बूझ से परिपूर्ण सभी प्रकार के कार्य करेंगे और फिर दाई होना चाहिए और ये सब गुण ठीक प्रकार ओर की समस्याओं के शिकार हो जाएंगे। से अभिव्यक्त होने चाहिएं। यह दाईं ओर की गतिविधि थी । इसीलिए मैं चाहती हूँ कि आप आक्रामकता से बचें। परन्तु एक बार जब आप बाई उदाहरण के रूप में आप कह सकते है कि ईसा-मसीह एक अन्य उदाहरण और के कुशल स्वामी सहजयोगी बन जाएंगे हैं। यद्यपि वे एक अवतरण थे फिर भी तब यह अत्यन्त आवश्यक होगा कि आप लोगों के लिए क्षमा और प्रेम जितना उनके कार्यशीलता (Right Side) को अपनाकर हृदय में था वह बहुत ही अधिक था। पूर्ण आध्यात्मिक व्यक्तित्व बन जाएं । दाई परन्तु वे आध्यात्मिकता सिखाने के लिए ओर की गतिविधि क्या है? यह सामूहिकता पर्वतों पर जाया करते थे। वो समय इन है। जो आपने पा लिया है। केवल उसी का्यों के लिए बिल्कुल भी सुरक्षित न था से सन्तुष्ट न हो जाएं। यह महसूस करना क्योंकि ऐसी बातें करने वालों को लोग अत्यन्त सुगम है कि, 'ओह! हमने पसन्द न किया करते थे। ऐसे व्यक्ति से आत्म-साक्षात्कार पा लिया है, अब क्या लोग घृणा करते थे जो परमात्मा के विषय है? अब हम विश्व के शिखर पर हैं। में बताता हो (मेघगर्जन)। उनके साथ भी वास्तविकता यह नहीं है । जो व्यवहार किया गया उसे आप भली भांति जानते हैं। यद्यपि लोगों ने उन्हें बातचीत करनी होगी लोग आपका क्रूसारोपित कर दिया फिर भी हम महान आपको बाहर जाना होगा लोगों से अपमान करेंगे, आपको कष्ट देगें, सभी जनवरी-फरवरी 2003 17 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 प्रकार के कार्य करेंगे। परन्तु आप तो पहले से ही उच्च व्यक्ति हैं। आप उनकी आप अन्य लोगों को आत्म-साक्षात्कार देना आरंभ करेंगे तो आप दंग रह जाएंगे। आपके अन्दर के बहुत से गुण उभर उठेंगे क्योंकि जब आप अन्य लोगों को देखते हैं तो आपको पता चलता है कि उनके अन्दर बातें सुन सकते हैं कि वे क्या कह रहे हैं। आप उनसे कुछ पूछेंगे नहीं। ऐसे में आप चाहेंगे कि उनके प्रति आप बहुत हितकर हो जाएं। यह भी करुणा है कि आप अपने आत्म-साक्षात्कार को स्वयं तक क्या कमी है, उनकी क्या आवश्यकता है। आपने उन्हें क्या देना है और किस प्रकार सीमित नहीं रखना चाहते। इसका उपयोग आप अन्य लोगों के लिए भी करना चाहते आप उन्हें दे सकते हैं। आप कुछ भी बन सकते हैं। आप कवि बन सकते हैं, लेखक हैं ताकि वो भी आत्म-साक्षात्कार प्राप्त बन सकते हैं। आप यदि दूसरों का सामना कर सकें। यह अत्यन्त आवश्यक है। अगर कर सकते हैं तो आप कुछ भी बन सकते आपमें ऐसी भावना नहीं है, उन लोगों के हैं प्रतिक्रिया के रूप में आप में यह सब प्रति करुणा नहीं है जो आत्म-साक्षात्कारी आ जाता है ये सब गुण आपमें विकसित नहीं हैं तो आप अपने उस समय को हो जाते हैं और आप बहुत अच्छे कलाकार स्मरण करें जब आप आत्म-साक्षात्कारी बन जाते हैं। नहीं थे। ये लोग साक्षात्कारी नहीं है और यह सब घटित होना केवल तभी इस कारण से बहुत कष्ट उठा रहे हैं। संभव है जब आप अन्य लोगों से मिलें, उन पर किसी भी प्रकार का कष्ट आ उनसे सहजयोग की बात करें और उन्हें सकता है। आत्म-साक्षात्कार के विषय में बताएं । मैं अतः अब यदि आपको आत्म- जानती हूँ कि समस्याएं होंगी। यह बात साक्षात्कार प्राप्त करना है तो आपको शान्त सत्य है। ऐसे भी लोग होगें जो आपका होकर इसी में रम नहीं जाना, नहीं। ये विरोध करेंगे, आपके विरूद्ध उल्टी सीधी कोई ऐसा करना उचित नहीं है। अन्य बात करेंगे, आपकी सारी गतिविधियों को लोगों को आत्म-साक्षात्कार देने और रोकने का प्रयत्न करेंगे और आपको सभी उनकी रक्षा करने के लिए आपको जी प्रकार से कष्ट पहुँचाने के लिए प्रयत्नशील जान से लग जाना है। आत्म- साक्षात्कार होंगे। कोई बात नहीं। परन्तु आपने यह आप सबको केवल अपने लिए ही नहीं स्थिति प्राप्त करनी है, लोगों से मिलना मिला। यह आप तक सीमित नहीं है। है, उनसे बातचीत करनी है और उनसे अन्य लोगों के लिए भी है कि आप अन्य आत्म-साक्षात्कार के विषय में बताना है लोगों को भी आत्म-साक्षात्कार दें। ज्योंही आपने उनकी रक्षा करनी है। ऐसा करना ा जनवरी-फरवरी 2003 18 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 आवश्यक है। परन्तु सर्वप्रथम आपको इस उन्हें आत्म-साक्षात्कार दिया जाए? परन्तु बारें में विश्वस्त होना होगा कि आपके सर्वप्रथम और मुख्य चीज़ जो मैंने आपको अन्दर दाईं ओर के विकार नहीं हैं, अन्यथा बताई, वह आपका बाईं ओर से सुदृढ़ सभी लोग दौड़ जाएंगे। आध्यात्मिक व्यक्ति होना है। आपको यह कार्य आरंभ कर से आशा की जाती है कि वह अत्यन्त देना चाहिए क्योंकि आपको आत्म- विनम्र हो। निःसन्देह लोग उसकी विनम्रता साक्षात्कार मिल चुका है। बिना अपनी का अनुचित लाभ उठाएंगे सभी कुछ बाईं ओर को सशक्त बनाए, केवल इसलिए होगा, यह ठीक है। परन्तु यह खेल का आपको यह कार्य आरंभ करना नहीं कर एक भाग है जिसकी वह चिन्ता नहीं देना चाहिए कि आप आत्म- साक्षात्कार करता। ऐसी किसी भी चीज का वह बुरा दे सकते हैं । नहीं मानता। ऐसी कोई भी समस्या उसके सामने आए तो वह बुरा नहीं मानता क्योंकि सहज होता है जो न तो किसी चीज के करुणा उसका मुख्य गुण होता है। बांई बारे में गिला करता है, न किसी चीज़ की ओर की जागृति से करुणा का जो गुण शिकायत करता है और किसी भी हालात उसने प्राप्त किया था वह अब विस्तृत हो से समझौता कर सकता है। किसी चीज़ जाता है और वह लोगों की रक्षा करना से वह लिप्त नहीं होता। स्वतः वह साक्षी ऐसा व्यक्ति अत्यन्त विनम्र, अत्यन्त चाहता है। लोगों के पास यदि खाना न भाव हो जाता है। निर्लिप्त होने के लिए हो तो ठीक है, लोग यदि भूखों मर रहे हैं उसे कुछ करना नहीं पड़ता। ऐसे व्यक्ति तो बहुत जटिल समस्या है। परन्तु यदि के लिए आप जो चाहे करें, उसके लिए उन्हें आध्यात्मिकता नहीं प्राप्त हो रही तो जो चाहें ले आए सब ठीक हैं। निःसन्देह इस मानव जीवन का क्या लाभ है इस वह स्वीकार करेगा। परन्तु किसी भी चीज़ अवस्था तक उनका उत्थान क्यों हुआ? से उसे मोह न होगा। ऐसा निर्लिप्त व्यक्ति पशुत्व से मानवास्था तक वे विकसित सहजयोग को कार्यान्वित कर सकता है। हुए, निकृष्टतम स्थितियों से मानवास्था सभी प्रकार से सहजयोग का प्रसार कर तक, और अब यदि उन्हें आत्म-साक्षात्कार सुकता है। नहीं मिलता तो यह भूखे मरने से भी, गरीबी से भी, सभी प्रकार की दरिद्रता से भी बुरी बात है। सभी प्रकार की बीमारियों और कष्टों से भी बुरा है। तो क्यों न उन्हें आज विश्व की यह सबसे बड़ी आवश्यकता है कि हम अधिक से अधिक सहजयोगी बनाएं। परन्तु यह कार्य करने में लोगों को शर्म आती है। अत्यन्त हैरानी आत्म- साक्षात्कार देने का प्रयत्न किया की बात है! परन्तु मैंने देखा है कि जिन जाए? क्यों न आप निश्चय कर लें कि जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड़-XV अंक 1 व 2 19 लोगों के पास बिल्कुल भी सत्य नहीं हैं, महत्वपूर्ण नहीं हैं। परन्तु यदि आप ठीक जिनके बहुत ही बुरे गुरु हैं वो भी दूसरे मार्ग पर चल पड़े तो आप आश्चर्यचकित लोगों के पीछे पड़ जाते हैं, अपने झूठे रह जाएगें, आपको ऐसे बहुत से लोग विचारों का प्रसार करने का प्रयत्न करते मिलेगें जो दिल और दिमाग की शान्ति हैं परन्तु सहजयोगी, क्यों उन्हें संकोच चाहतें हैं और परमात्मा से पूर्ण एकरूपता करना चाहिए किस लिए शर्म करनी चाहिए? ये बात मेरी समझ में नहीं आती। कहें. चाहे वो गलत गुरुओं के पास गए चाहे वो स्वीकार न करें, चाहे वो न अतः इसके विषय में सबको बताएं और उन्हें सहजयोगी बनाएं हों, परन्तु इस सबके बावजूद भी वो अपने अन्दर सच्ची आध्यात्मिक शान्ति प्राप्त आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है करना चाहेंगे। आज लोगों में यह आम क्योंकि यह गुरु पूजा है। लोग कहते हैं इच्छा परन्तु उस इच्छा तक पहुँचने के कि गुरु आपको कुछ नहीं दे सकता। लिए आपको अत्यन्त सहज जीवन और परन्तु मैं आपको सीख दे सकती हूँ कि सहज व्यक्तित्व को अपनाना होगा|। आपकी दिलचस्पी यदि धन में है, है अपने हृदय विस्तृत करो, विनम्र बनो और विनम्रता पूर्वक, आक्रामकतापूर्वक नहीं, तथाकथित शक्तियों या अपनी सहजयोग को फैलाने का प्रयत्न करो। महत्वकाक्षाओं में है, तो सहजयोग कुछ यह कार्य अत्यन्त आवश्यक है। आप यदि नहीं कर सकता। परन्तु यदि आपकी ऐसा कर सकते हैं, केवल तभी आप अपने दिलचस्पी अपनी करुणा में है और आज जीवन से, जोकि आध्यात्मिक जीवन है, के विश्व को समझने में है कि ये सारी पूर्ण न्याय करेंगे। ऐसा किए बिना आप उथल-पुथल क्यों है, केवल तभी आप आध्यात्मिकता की शक्ति प्राप्त नहीं कर यह कार्य कर सकते हैं। मानव का गलत सकते। यह शक्ति पाने के लिए आपको चीज़ों को स्वीकार करना ही इस समझना होगा कि अपने विवेक के माध्यम उथल-पुथल का कारण है। हमें करना से सहजयोग को पूर्ण अवसर देना अत्यन्त यह है कि परमेश्वरी ज्ञान उन तक पहुंचा दें यह आपकी इच्छा होनी चाहिए और आवश्यक है। प्रायः मुझे जो पत्र प्राप्त होते हैं इसी इच्छा के कारण ही आपको बहुत उनमे लिखा होता है कि फलां व्यक्ति सुख प्राप्त होगा। कष्टकर है। फलां व्यक्ति ऐसा कर रहा है, कोई अन्य वैसा कर रहा है। यह सब आवश्यकताएं अत्यन्त अस्थाई हैं। भूल जाइये। ऐसे लोग सहजयोग के लिए सहजयोग को फैलाने की केवल एक इच्छा शेष सभी इच्छाएं, शेष सभी जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 20 निकल पड़ें उन्हे सहजयोग समझाएं। है। कार्य करते चले जाएं ही इतनी सुन्दर और जब-जब आप इस पर कार्य करेंगे ऐसा कर पाना सभी प्रकार से संभव है आपको प्रसन्नता एवम् आनन्द प्राप्त होंगे। और मैं सोचती हूँ कि गुरुओं के रूप में आपको किसी भी प्रकार की समस्याएं आप पूर्णता को पा लेंगे। नहीं होगी सहजयोग की महानता का यह चिन्ह है और मैं चाहती हूँ कि आप सीमित है तो आप गुरु नहीं बन सकते। सब ऐसे ही बन जाएं। सहजयोग केवल यदि आप तक ही गुरु होने का अर्थ यह भी नहीं है कि आप सहजयोग के उपदेश देते रहें, सहजयोग की बातें करते रहें या सहजयोग पर प्रवचन आज का दिन अत्यन्त महान है। क्योंकि आज हम उन सभी सन्तों के विषय में सोच रहे हैं जो पृथ्वी पर अवतरित हुए करते रहें, नहीं जो व्यक्ति अन्य लोगों और जिन्होनें हमारा पथ प्रदर्शन करने को आत्म- साक्षात्कार देता है वही गुरु का प्रयत्न किया। उन सबने क्या किया? है। आपने कितने लोगों को सभी ने पूरे विश्व में सत्य का प्रसार करने आत्म-साक्षात्कार दिया, उनकी संख्या का प्रयत्न किया। उन्होनें बहुत से कष्ट गिनने की आवश्यकता नहीं है। इसे तो उठाए, समस्याएं झेली बहुत सी समस्याएं, लहरियों की तरह से, प्रेम सागर की लहरों परन्तु सहजयोग को फैलाने के लिए और की तरह से अपने हृदय में महसूस किया परमात्मा और देवत्व के विषय में बताने जाना चाहिए। लोगों को आत्मसाक्षात्कार के लिए घोर परिश्रम किया। लेकर आध्यात्मिक आनन्द में डूबते देखना आज आप सबने भी मुझे यहाँ देना अत्यन्त सुन्दर अनुभव है। मैं चाहती हूँ है यह वचन कि जब भी कोई मानव कि आप यह कार्य करें। इसी कार्य को आपको मिलेगा तो आप उसे सहजयोग करने के लिए मैं पृथ्वी पर अवतरित हुई हूँ। के विषय में बताएंगे। ऐसा करना केवल मुझे भी बहुत से कष्ट उठाने पड़े कोई बात नहीं, इन तथाकथित कष्टों की आवश्यक ही नहीं, यह विश्व की अत्यन्त गहन आवश्यकता है। आप यदि इस बात को समझ जाएंगे कोई बात नहीं। मैं इन्हें नाटक की तरह कि आप इस समय पर, इस संसार में से देखती रही और अब यह सब समाप्त क्यों हैं और विश्व की आवश्यकता क्यों हो गया है। जब तक आप इन कृष्टों की है, तब आप तुरन्त जिम्मेदारी को समझने ओर अधिक ध्यान नहीं देते ये कष्ट अधिक लगेंगे। आप चाहे पुरुष हों या महिला, महत्वपूर्ण नहीं बन पाते। जी जान से लोगों को बताने के लिए कल आपने मोहम्मद साहब के जीवन चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 21 पर एक नाटक देखा। मेरे हृदय में सदैव किया जा रहा है। ऐसा किसी भी धर्म में उनके लिए एक दर्द था कि किस प्रकार हो सकता है। परन्तु इस्लामिक संसार में लोगों ने उन्हें गलत समझा और भटक जो हुआ वह निकृष्टतम था। यह बहुत गए। क्यों अब ये लोग गलत कार्य कर भयानक है क्योंकि परमात्मा के नाम पर रहे हैं। मुझे प्रसन्नता है कि कम से कम यह लोग कितने गलत कार्य कर रहे हैं । आप लोगों में उनकी महानता को महसूस किया है। उसे समझा है और उससे इतना मोहम्मद साहब के साथ जो हुआ वह अतः समझने का प्रयत्न करें कि उनकी नियति न थी। जो घटित हुआ सुन्दर नाटक बनाया है। मैं नहीं जानती कि किस सीमा तक वह वास्तविकता की नियति न थी। यह हम इसका प्रसार कर सकते हैं। परन्तु हम सबकी आखें खोलने वाली घटना है। यह सत्य है कि इसके लिए मोहम्मद साहब ताकि हम देखें कि सत्य को सदैव असत्य ने अपना बलिदान कर दिया। उनके बाद चुनौती देता है तथा हमें सदैव सत्य पर उनकी बेटी, नातिन और बच्चे बलि चढ़ डटे रहना चाहिए, जो चाहे परिणाम हो। गए। उनके दामाद को मौत के घाट उतार एक दिन ऐसा आएगा जब लोग महसूस दिया गया और उन्हें समाप्त करके इन करेंगे कि वो गलत मार्ग का अनुसरण लोगों ने भयानक सुन्नी मत का आरम्भ करते रहे हैं और सभी प्रकार के मूर्खतापूर्ण कार्य करते रहे हैं । कर दिया। मुझे विश्वास है कि अत्यन्त शीघ्र अब यह सुन्नी धर्म सत्य के बिल्कुल समीप ही नहीं है। यह अत्यन्त आक्रामक यह सब कार्यान्वित होगा। मेरी इच्छा यदि और क्रूर धर्म है। पर यह सर्वत्र फैलने इतनी शक्तिशाली है तो मुझे विश्वास है लगा और मोहम्मद साहब का वास्तविक कि लोग इस बात को महसूस करेंगे कि इस्लाम धर्म लुप्त होने लगा। जिन लोगों करुणामय, सुहृद तथा प्रेममय होना ही ने उनकी हत्या की थी वे इस्लाम धर्मी प्रसन्नता प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम उपाय कहलाने लगे। है। इससे आगे कुछ भी नहीं है । परमात्मा आपको आशीर्वादित करें । अंतः यह बहुत बड़ा अपराध था कि इतने महान और आध्यात्मिक व्यक्ति को स्वीकार नहीं किया गया और जिस व्यक्ति ने उनकी हत्या की उसे अब स्वीकार गुरु पूर्णिमा 24-07-2002, कबैला लीग्रे परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन जिस' प्रकार से आप लोगों ने ये आत्म-साक्षात्कार नहीं दिया। ये बहुत पता लगाया है कि चास्तव में गुरु पूर्णिमा बड़ा अन्तर है। आत्म साक्षात्कारी आत्माओं आज है यह बहुत दिलचस्प है। पूर्णिमा के रूप में उनका जन्म हुआ और वे सूफी के दिन पूरा चाँद होता है। मैं इसके विषय में जानती थी बन गए भिन्न नामों से उन्हें पुकारा गया। परन्तु सहजयोगियों की सुविधा के लिए हमें शुक्रवार, शनिवार, इतवार ही कार्यक्रम का आयोजन करना होता है। इस बार, मेरे विचार से यह पूजा दो दिन पहले हुई। को ई बात नहीं, चाँ द उन्हें परन्तु आत्म-साक्षात्कार नहीं दिया गया। वो जन्म से ही आत्म-साक्षात्कारी थे और आत्म-साक्षात्कार के कारण ही उनमें बहुत अधिक ज्ञान था जिसे उन्होनें अन्य लोगों को देने का प्रयत्न आखिरकार हमारे लिए और हम चाँद के लिए हैं। अतः जैसी गलतियाँ विश्व किया। वे चक्रों के विषय में सभी में चल रही हैं वैसी इसमें कुछ भी नहीं हैं । गुरु तत्व के विषय में मैं आपको बहुत कुछ बता चुकी हूँ और गुरु तत्व वाले लोग जो पृथ्वी पर अवरतरित कुछ जानते थे। हर चीज़ का उन्हें ज्ञान था। पूर्व जन्मों की उपलब्धियों के कारण ही ये ज्ञान उन्हें प्राप्त था। संभवतः उनमें हुए वे जन्मजात आत्म-साक्षात्कारी थे से कुछ महान गुरुओं के शिष्य रहे हों। मैं परन्तु उन्होने किसी अन्य को नहीं जानती कि उन्हें इस बात का पूरा चैतन्य लहरी खंड-XV अक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 23 ज्ञान किस प्रकार था जोकि आत्म- व्यक्ति के साथ क्या घटित होता है। साक्षात्कार क्या होता हैं और आत्म- आप सबके लिए ये बहु त बड़ा साक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् हमें रहस्योदघाटन है और सहजयोग के लिए क्या उपलब्धियाँ प्राप्त होती हैं। बहुत बड़ी सहायता। आप लोग आत्म- मेरे विचार में, मोहम्मद साहब ही साक्षात्कारी हैं क्योंकि आप चैतन्य लहरियों ऐसे व्यक्ति थे जिन्होनें मिरज की बात को महसूस कर सकते हैं दूसरे उन्होनें की। मिरज अर्थात् कुण्डलिनी के माध्यम इस बात का भी स्पष्ट वर्णन किया कि से उत्थान। निःसन्देह भारत में सन्तों ने आप कैसे बन गए हैं। इसके बारे में बातचीत की। परन्तु किसी अन्य देश में गुरुओं ने इतने स्पष्ट रूप से सन्त, एक से बढ़कर एक। जो भी कुछ नहीं कहा कि मिरज नाम की भी कोई उन्होनें कहा वह अत्यन्त असाधारण है, चीज़ है। इतना ही नहीं मोहम्मद साहब अत्यन्त श्रेष्ठ। परन्तु वास्तव में मनुष्य, मैं ने केवल मिरज की ही बात नहीं की सोचती हूँ कि हम अत्यन्त गूँगे हैं। मानव भारत में बहुत से सन्त हुए बहुत से उन्होनें यह भी बताया कि पुनर्जन्म के ने कभी इस बात को महसूस नहीं किया समय आपके हाथ बोलेंगे। उन्होनें दो बातें कहीं कि हमारे यहाँ इतने सारे सन्त हुए। तुर्की पहली यह कि जब आपको में भी, जहाँ पर सुन्नी धर्म हैं, वहाँ भी आत्म-साक्षात्कार प्राप्त होगा तो आपके बहुत से सूफी हुए, विश्वभर में बहुत से हाथ बोलेंगे। यह कहना बहुत बड़ी बात सूफी हुए, आत्म-साक्षात्कारी लोग हुए। है क्योंकि इस प्रकार आप समझ सकते हैं ये लोग अवतरण तो न थे परन्तु जन्मजात विश्वस्त हो सकते हैं कि आपको आत्म-साक्षात्कारी थे। अतः उनकी आत्म-साक्षात्कार प्राप्त हो गया है। उन्होनें व्याख्याएं और बताई हुई हर बात बहुत आत्म-साक्षात्कार की यह पहचान बताई। अच्छी हैं क्योंकि वे मानव थे और उन्होनें मिरज (कुण्डलिनी) के विषय में दूसरी बहुत सी अच्छी बातें कहीं ताकि मानव बात जो उन्होनें बताई वह यह थी कि समझ सके। कोई अवतरण जब कुछ कहता हैं तो वह बहुत ऊँची बात करता है। इस सफेद घोड़ा कुण्डलिनी के अतिरिक्त नहीं है। उन्होंने कुण्डलिनी शब्द का उपयोग नहीं किया परन्तु इसे सफेद घोड़ा कुछ नए उन्नत मानव ने आत्म-साक्षात्कार को प्राप्त करके जिन बहुत से तथ्यों के विषय में बताया वे वास्तव में असाधारण हैं। कहा। सर्वप्रथम तो उनमें से अधिकतर लोग अतः वे ऐसे व्यक्ति थे जो जानते थे कि आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करते हुए कावि थे - भारत में कबीर हुए हैं। हम चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 24 नहीं जानते कि उनका जन्म किस प्रकार किए चले जा रहे हैं विश्वास नहीं होता हुआ, कहों हुआ उसके माता-पिता कौन कि वो किस प्रकार ऐसा कर रहे हैं। थे? ये सारी बातें बिल्कुल भी स्पष्ट नहीं इतनी क्रूरता! किसी भी योगी या महात्मा हैं। इसके बावजूद भी उनकी कविताओं का पहला गुण यह होता है कि उसमें को यदि देखें तो पता चलता है कि वे क्रूरता बिल्कुल भी नहीं होती। वे अपने अत्यन्त महान थे, महान सहजयोगी थे जीवन बलिदान कर देंगे, कुछ भी कर और जिस प्रकार से उन्होनें चीज़ों का देंगे परन्तु किसी के प्रति क्रूर न होंगे। जो वर्णन किया वह अत्यन्त रुचिकर है। अपनी लोग परमात्मा और धर्म के नाम पर क्रूर कविता में उन्होनें बहुत ये मूलभूत सत्य हैं वे किसी भी प्रकार से धार्मिक नहीं हैं। उजागर किए, उनके विषय में बताया वे धर्म की यही विकृति है हम यदि सहजयोग किसी धर्म विशेष से संबंधित न थे जब से जुड़े हुए हैं तो हम सबको यह बात उनकी मृत्यु हुई तो हिन्दु और मुसलमान समझनी चाहिए। करुणा, माधुर्य, सुहृदयता परस्पर लड़ गए, "इनके शरीर का हम और प्रेम हमारे मुख्य गुण होने चाहिएं । क्या करें?" और कहते हैं कि उनके शरीर आपके अन्दर यदि ये गुण नहीं हैं तो से जब चादर हटाई गई तो वहाँ पर कुछ आप सहजयोगी नहीं हैं। हम एक भिन्न फूल मिले, दो तरह के फूल एक हिन्दुओं वंश हैं, भिन्न व्यक्तित्व हैं जोकि के लिए, एक मुसलमानों के लिए । तो इस आत्म साक्षात्कारी हैं और जो इन मूर्खतापूर्ण प्रकार से उन्होनें लोगों की मूर्खतापूर्ण धारणाओं से ऊपर हैं तथा जिनमें चैतन्य हैं। जैसा मैंने कहा अब आप इसका लड़ाई का समाधान किया। सहजयोग में हम किसी बेतुके धर्म प्रचार-प्रसार करें क्योंकि मैं पृथ्वी पर से सम्बन्धित नहीं हैं हम एक ही धर्म से इसलिए अवतरित हुई हूँ कि लोग मोक्ष संबंधित हैं - विश्व निर्मला धर्म। बाकी के प्राप्त कर लें, आत्म-साक्षात्कार पा लें। सभी धर्मों की मूर्खताओं को हमें त्याग जब तक मोक्ष में विश्वास करने वाले देना चाहिए क्योंकि आज जैसे आप देखते लोग इसे प्राप्त नहीं कर लेते मैं प्रसन्न हैं सभी धार्मिक समूह एक दूसरे से लड़ नहीं हो पाऊँगी। रहे हैं, एक दूसरे को मार रहे हैं, समाप्त करने में लगे हुए हैं। यह कोई तरीका करते हैं परन्तु जिन्हें आत्म-साक्षात्कार नहीं हैं धार्मिक व्यक्ति को ऐसा नहीं होना प्राप्त नहीं हुआ। आपको कार्य करना है चाहिए। परन्तु वे परस्पर हत्या किए चले और आप हैरान होंगे कि आपको ऐसे जा रहे हैं। सभी प्रकार के भयानक कृत्य लोग मिलेंगे जो आत्म-साक्षात्कार पाने ऐसे बहुत से लोग हैं जो विश्वास जनवरी-फरवरी 2003 25 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 के लिए बहुत उत्सुक हैं। आज गुरू पूर्णिमा नहीं किया गया है लोग इसके विषय में दिवस पर यह कार्यान्वित होगा आज नहीं जानते ये हैरानी की बात है, जबकि का दिन बहुत शुभ है। मैं आपको विशेष शक्ति का वरदान लोग जानते हैं। अतः हमने इस कार्य को देती हूँ कि आप अन्य लोगों को अपने आचरण से, अपनी सूझ-बूझ से सभी प्रकार के भयानक गुरुओं के बारे में आत्म-साक्षात्कार दे सकें, अपनी ही अपने जीवन आचरणों से करना है। ताकि समस्याओं में न फँसे रहें। ये आवश्यक लोग कहें कि ये कोई विशेष लोग हैं। मैं प्रसन्न हूँ कि आज गुरु पूर्णिमा जाएगा। मुझे जितने भी पत्र प्राप्त होते हैं, का दूसरा दिन है। यह बहुत मंगलमय है उनमें से अधिकतर व्यक्तिगत समस्याओं और आप लोग इसे बहुत बड़ा वरदान के विषय में या कुछ अन्य प्रकार की समझें क्योंकि यह आपके लिए बहुत बड़ा समस्याओं के विषय में होते हैं। आपको प्रमाण- पत्र है, बहुत बड़ी उपलब्धि है कि देखना चाहिए कि आपके अन्दर क्या आप सब गुरु बनने के योग्य हो गए हैं । समस्या है, आपके अन्दर क्या घटित हो आपको यही बनना है। सहजयोग में बनना रहा है, हमारे अन्दर ये समस्याएँ क्यों महत्वपूर्ण है । बाकी सभी चीज़ें वास्तव में बनी हुई हैं, हमारा कर्त्तव्य क्या है? क्यों व्यर्थ हैं आपको बनना है मेरे विचार से मिला है? महिलाएं विशेष रूप से संकोचशील हैं वो अध्यात्मिकता का वैभव हमें क्यों प्राप्त बहुत कुछ कर सकती हैं और उन्हें चाहिए हुआ और इसका हमें क्या करना चाहिए? कि इसे कार्यान्वित करें वो बिना बात के मैं आपको बताती हूँ कि प्रतिदिन झेपती हैं। झेंपने की क्या जरूरत है? इसके विषय में सोचें कम से कम आधे लज्जालु महिला होने के कारण आप लोग घण्टे के लिए तो आप महसूस करेंगे कि सहजयोग की गतिविधियों की गहराई में आप बहुत ही समर्थ लोग हैं। सन्तों ने नहीं जातीं। आपको इसकी गहराई में इतना सारा कार्य किया, उन्होनें उतरना चाहिए। महिलाएं यदि सहजयोग कुछ लिखा, वे दुष्टों से लड़े, उन्होनें पर बोलना आरम्भ कर दें तो मेरे विचार सभी कुछ किया। आपको ऐसा भी से सहजयोग बहुत जल्दी फैलेगा । सन्तों द्वारा अधूरे छोड़े गए इस कार्य काम करना है, आपने सहजयोग को को करने के लिए मैं आपको आशीर्वादित करती हूँ। इसे पूर्ण करना आपका धर्म हैं। नहीं हैं। सारी समस्याओं का समाधान हो हमें आत्म-साक्षात्कार का बहुत कुछ नहीं करना है परन्तु आपने केवल एक ही फैलाना है। अब भी सहजयोग सर्वत्र स्वीकार परमात्मा आपको धन्य करें। श्री कृष्ण पूजा 18-8-2002, कानाजौहारी, अमेरीका परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ात कु कि आज हम श्रीकृष्ण की पूजा एक कि धार्मिकतापूर्वक किस प्रकार इस अत्यंत महान व्यक्तित्व के रूप में करेंगे। संस्कृति को विकसित किया जाए। आपके आप जानते हैं कि वे पृथ्वी पर क्यों यहां ऐसे बहुत से महान नेता हो चुके हैं अवतरित हुए। अपने विराट रूप को जिन्होनें उनका अनुसरण किया और एक स्थापित करने के लिए नहीं। परन्तु अपने प्रकार से उनकी की तथा अमेरिका एक ऐसे रूप को स्थापित करने के लिए रूपी इस नए विश्व का सृजन किया । जिसके कारण यह देश वैभवशाली बना । परन्तु दुर्भाग्यवश समय बीतने के साथ- अपने अवतरण द्वारा उन्होनें लोगों में एक साथ लोगों के मस्तिष्क से उनका रूप पूजा अत्यन्त सुन्दर मनोवृ त्ति का सृजन किया लुप्त हो गया। इसका कारण ये था कि जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 27 यहां पर उनका प्रतिनिधित्व बहुत ही गलत धार्मिकतापूर्वक बेशुमार धन कमाया । वे लोगों ने किया, उन लोगों ने जिन्हें, श्रीकृष्ण राजा के पुत्र थे जिन्होने पूरी द्वारिका के बारे में बिल्कुल समझ ही न थी। वे सोने से बनवाई। आज भी यह मौजूद है। वैभव के महान देवता थे वे जानते थे लोगों ने इसे समुद्र में खोज लिया है । कि धन दौलत को किस प्रकार उपयोग हजारों वर्ष बीत चुके हैं परन्तु अभी तक करना है और धर्मपूर्वक - अधर्म द्वारा यह विद्यमान है । केवल इसलिए क्योंकि नहीं - किस प्रकार धर्माजन करना है। हम श्रीकृष्ण से जुड़े हुए हैं यह आज भी बना हुई है इसका कारण यह है कि वे यहां के लोग उनके इन गुणों को पूर्णतः भूल गए और शनै: शनैः अपनी एसे व्यक्ति थे जो सत्य पर अडिग थे. वे शक्ति का दुरुपयोग करने लगे तथा सभी सत्य में स्थापित थे और जो भी कुछ उन्होनें किया वह सत्य के सिद्धान्तों के जैसे प्रकार के अधर्म आरंभ हो गए अनुरूप था। हर असत्य चीज को उन्होनें समाप्त करने का प्रयत्न किया। विनाशकारी धोखाधड़ी, धन हथियाना तथा बिल्कल बेकार की चीज़ों पर धन का खर्च करना। वे कुबेर हैं। उन्हें पैसे की बिल्कुल भी चीज़ों को दूर करने का प्रयत्न किया और आवश्यकता नहीं है। इस बात में बिल्कुल भी संदेह नहीं है। वे धन के देवता हैं और सत्य के माध्यम से स्वयं को स्थापित किया। वै सत्य की प्रतिमूर्ति थे, पूर्ण सत्य की और उन्होनें इस बात को सिद्ध किया कि किस प्रकार हर चीज़ में सत्य व्यापक हो सकता है। धन में ही रहते हैं। कहा जाता है कि द्वारिका में उन्होंने अपने लिए एक स्वर्ण महल बनाया, पूरा मैं उनसे बिल्कुल उलट हूँ क्योंकि मैं तो धन को समझती ही नहीं। परन्तु मेरे जीवन में उस कार्य को श्रीकृष्ण ही सोने से बना हुआ। अब यह महल समुद्र के जल में डूब गया है और कोई इस बात पर विश्वास नहीं करता कि यह बात सत्य है। परन्तु हाल ही में समुद्र के गहरे दख रहे हैं। मैं इससे बिल्कुल अनभिज्ञ जल के बीच में डूबे हुए महल को खोज है। बैंकिंग मेरी समझ में नहीं आती. धन लिया गया है। या पैसा मेरी समझ में नहीं आता। मैं तो नोट भी नहीं गिन सकती। आपने इसके तो उनके विषय में लोगों की सारी विषय में क्या कहना है? परन्तु इन सब सोच गलत थी तथा मिथ्या थी। निश्चित चीजों की देखभाल करने के लिए श्रीकृष्ण रूप से वे एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होनें हैं और कभी मुझे धन की तथा वैभव की जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 28 कमी नहीं हुई। सभी कुछ भरपूर है। संतोष के दाता हैं। जिन लोगों के पास धन नहीं भाव द्वारा भी यह आता है। आपमें यदि होता उनकी वे देखभाल करते हैं। सत्य संतोष भाव है तो आप धन के पीछे नहीं पर चलने वाले लोगों को वे धन प्रदान दौड़ते। आपके देश में क्या हुआ? कुछ करते हैं, उन लोगों का जो सत्यमय जीवन लोगों को धन प्राप्त हो गया। थोड़ा सा धन यदि व्यक्ति को मिल जाए तो उसे लोग वैभव का आनन्द ले सकते हैं, उसके से ही का आनन्द लेते हैं। उनकी कृपा इसका स्वाद लग जाता है। वे सन्तुष्ट बिना नहीं। लोगों के पास बेशुमार धन स्वभाव के नहीं हैं अतः पागलों की तरह होता है फिर भी वे और अधिक धन की से व्यर्थ की चीज़ों पर वे धन खर्च करते इच्छा करते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि चले गए। यह मानवीय दुर्बलता है । वे धन का आनन्द नहीं लेते और अधिक मानवीय उत्थान के पश्चात्, ज्योतिर्मय धन की कामना करते हैं। क्यों? क्योंकि स्थिति तक पहुँचने के पश्चात् लोभ जैसे जो भी कुछ उनके पास है उसका वे तुच्छ दोष आपके चरित्र से दूर हो जाते आनन्द नहीं उठाते। हैं। तब आपमें लोभ शेष नहीं रह जाता और आप अत्यन्त सन्तुष्ट व्यक्ति बन परन्तु आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने जाते के पश्चात् आप देखेंगे कि जो भी धन हैं। आपके पास है उसका आप आनन्द लेंगे। धन निःसंदेह आवश्यक है। परन्तु आप इसका पूर्ण आनन्द लेंगे, पूरी तरह आपके लिए इसका महत्व बहुत अधिक से, और जो कुछ नहीं है उसके पीछे नहीं रह जाता। आप सोचते हैं कि आपको दौड़ते नहीं रहेंगे। आपके पास यदि कोई धन की आवश्यकता नहीं है फिर भी चीज नहीं है तो कोई बात नहीं। आपको धन मिल जाता है। श्रीकृष्ण ही सर्वत्र इस कार्य को करते हैं। क्या आप माताजी क्यों न हम श्रीकृष्ण की पूजा माकत बहुत बार लोगों ने मुझसे पूछा, "श्री इसकी कल्पना कर सकते हैं? वे ही यह सब कार्य कर रहे हैं, आपकी देखभाल है। आज हर व्यक्ति कुबेर बनने का कुबेर रूप में करें?" मैंने कहा, "ठीक कर रहे हैं, और धन से आपकी सहायता कर रहें हैं। जब मैंने सहजयोग का आरभ दीजिए, तब हम कुबेर की पूजा । किया तो मेरे पास एक पाई भी न थी। यही कारण है कि आज मैं इस पूजा कभी मुझे धन की समस्या नहीं लिए सहमत हुई हूँ। प्रयत्न कर रहा है। उन्हें सबक मिल लेने करेंगे के परन्तु हुई। तो कुबेर के रूप में श्रीकृष्ण ही धन 1 जनवरी-फरवरी 2003 29 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 क्योंकि अब आपने देखा है कि मनुष्य अमेरिका के लोग पिछड़े हुए थे, बौद्धिकता यदि लालची हो तो क्या होता है। व्यक्ति में नहीं परन्तु प्रतिभा में मेरे विचार में सभी प्रकार के पाप और गलत कार्य किए यहां के लोग प्रतिभा में थोडे से पिछडे चला जाता है जो आपके देश को नष्ट हुए थे अतः विदेशों से उन्हे प्रतिभावान कर सकते हैं। इतना वैभवशाली देश अब लोग प्राप्त हुए। ये लोग अत्यन्त एकाग्र गरीब हो गया है वो सारा धन कहां प्रवृत्ति थे। अतः उन्हें चीज़ों को बहुत ही चला गया? वे लोग बहुत चालाक हैं। अच्छी तरह से कार्यान्वित किया। कुशाग्र आज मुझे किसी ने बताया कि सारा धन बुद्धि लोग जो उनके पास आए उनका बीमा कम्पनियों में है। "हे परमात्मा", मैंने उन्होंने सम्मान किया। कहा, "बीमा कम्पनियां कहती हैं कि आप यह धन नहीं निकाल सकते", इसके बाद जाते हैं तो ऐसा ही होता है। सत्य के उन्होनें बताया कि उनका धन विदेशों में बने उनके बैंकों में है, आदि-आदि। मैंने कहा, "अब देखो कि ये लोग कभी इस पीछे दौड़ते रहे और अधिक धन प्राप्त बात से डरते न थे कि ये भी विपत्त में करने के लिए सभी प्रकार के उल्टे सीधे घिर जाएगें और इस तरह से ये बहुत कार्य करते रहे। सारे वर्षों तक चलाते रहे। परन्तु मुझे पूर्ण विश्वास है कि एक दिन कुबेर स्वयं उनका पर्दाफाश कर देंगे। जब आप सत्य के महत्व को भूल बिना धन व्यर्थ है। धन प्राप्त करके तो आप लोग व्यर्थ की भौतिक चीजों के उस दिन मैं लॉस वैगास (Las Vegas) द्वारा यात्रा कर रही थी। जब हम वायुपत्तन पर रुके तो बहुत से लोग अतः कुबेर की पूजा करके आज हमें धन के सत्य को स्थापित करना है। धन रहे थे मानों उनके परिवार के किसी व्यक्ति के पीछे क्या छिपा हुआ है? धन प्राप्त की मत्य हो गई हो। "क्या हुआ?" पहले वायुयान में आए। वो सब ऐसे प्रतीत हो करने का अभिप्राय क्या है? इस देश के पास पैसा था। परिणाम स्वरूप बहुत अच्छे लोग यहां कार्य करने आए और अपना सारा धन गंवा दिया है।" तो मेरी समझ में ही कुछ न आया। तब से इन्होनें मुझे बताया, "श्री माताजी", इन्होनें आपने बहुत सी प्रशंसनीय उपलब्धियां प्राप्त की। आपके यहां बहुत से ऐसे लोग आए जिन्होनें से प्रशंसनीय कार्य उछलते हैं। अगले क्षण जब इनका धन किए। मैं सोचती हूँ कि कुछ चीजों में चला जाता है तो ये रोते हैं ऐसे धन का जब इनके पास पैसा होता है तो ये बहुत चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 30 क्या लाभ है जो अस्थाई हो और इतना मूर्खता थी। हमारे देश की एक कथा है। बेकार हो? परन्तु यह मानव का स्वभाव शेख चिल्ली नामक व्यक्ति को थोड़ा सा है कि वो माया के पीछे दौड़ता ही रहता धन प्राप्त हो गया और वह माया के है और धन का भी यह गुण है कि यह चंगुल में फंस गया । उसने सोचा कि मैं आपको माया में उलझा देता है। माया बहुत कुछ कर सकता हूँ। वह लगा स्वप्न इस प्रकार की कि किसी प्रकार से आप देखने कि वह क्या कर सकता है। वह थोड़ा सा धन पा लेते हैं। उस धन से गया और जाकर कुछ अंडे खरीदे और कुछ खरीदते हैं और सोचते लगते हैं कि सोचने लगा कि, "अब इन अंडों में से पैसा होना अत्यन्त आवश्यक है ताकि छोटे-छोटे बच्चे निकलेंगे जो बड़े हो आप बहुत सी चीजें खरीद सकें, कारें जाएंगे इन्हें बेचकर मैं बहुत धनवान बन खरीद सकें, हवाई जहाज खरीद सकें जाऊँगा वह इस प्रकार से बातें कर रहा था। अपने मस्तिष्क में यही सोचते सोचते आदि आदि। जहां भी माया का खेल होता है उसे नींद आ गई और नींद में वह उन वहां आप इस पागल पैसे के पीछे दौड़ना अडों पर गिर गया। सारे अंडे टूट गए शुरु कर देते हैं जो आपको भी पागल और माया समाप्त हो गई। यह कार्य शीघ्र ही होना चाहिए, स्थिति में इन लोगों ने माया और पैसे के परन्तु यदि ऐसा नहीं होता तो व्यक्ति का मिथ्यापन को पहचान लिया है और मुझे अन्त या तो जेल में होता है या किसी बना देता है। यह अच्छी बात है कि इस ा प्रसन्नता है कि उन सबको हथकड़ियाँ अन्य विपत्ति में । लगी और उनकी सारी धन शक्ति समाप्त हो गई है। सहजयोग आपको पूर्ण दृष्टि प्रदान करता है, माया के बाद होने वाले विनाश अतः श्रीकुबेर ही यह सब चालाकियाँ की पूर्ण झलक। यह एक ऐसी आन्तरिक कर रहे थे। श्री कृष्ण अत्यन्त चालाक हैं, चीज़ है कि इसके साथ आप कुछ नहीं अत्यन्त छली व्यक्तित्व । हर कार्य के पीछे कर सकते। उनकी चालाकी होती है। धन सम्बन्धी मैं बिल्कुल भिन्न हूँ। मैंने आपको बताया था कि यह (माया) मेरी बिल्कुल समझ में नहीं आती। परन्तु यदि आप पैसे का मूल्य समझते भी हो, यदि आप यह मामलों में भी वे पहले आपको मूर्ख बनाते हैं कि धन के पीछे दौड़ो और तब आपको पता चलता है कि ऐसा करना अत्यन्त चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 31 समझते भी हो कि धन आपके लिए बहुत इन लोगों ने बहुत सारी अनावश्यक चीजें कुछ खरीद सकता है इसके बावजूद भी बहुत से तोहफे और उपहार आदि मुझे आप उसको कोई विशेष महत्व नहीं देते। दिए परन्तु आप आश्चर्यचकित होगें कि सहजयोगी की यही पहचान है। स्वभाव मुझे इससे बहुत दुविधा होती है। इन्हें से ही उसके लिए धन का कोई विशेष लेने में मुझे बहुत संकोच होता है मैं उस महत्व नहीं होता। ऐसा नहीं कि वो इसके स्थान पर पूर्णतः अनुपस्थित होती हूँ जहां पीछे दौड़ता है या कहता है कि मेरा है। पर वे किसी भी प्रकार का व्यापार करते स्वभाव से ही वह धन की परवाह नहीं हैं या किसी भी प्रकार की खरीद। इसी करता क्योंकि वह इससे ऊपर है। जो प्रकार से सहजयोगियों को अपने मस्तिष्क, व्यक्ति धन से ऊपर है वही सच्चा अपनी आत्मा पर स्थापित करने होगें और सहजयोगी है। जो इस मुर्खता में फंसा आपको अपनी आत्मा की शक्तियों का हुआ है, धन की माया में फंसा हुआ है, आनन्द लेना होगा। एक बार जब आपको वह सहजयोगी नहीं है। निःसन्देह मैंने वह आनन्द प्राप्त हो जाएगा तब आप देखा है कि अधिकतर सहजयोगी अत्यन्त लोभ के शिकार नहीं होगें। यह कार्य ईमानदार हैं, विशेषरूप से पश्चिम में। अत्यन्त सहज है फिर भी कई बार आप परन्तु भारत में एक बीमारी है। जैसे आपके इसे नहीं करते। किसी भी चीज़ पर आप यहां कुछ विषाणु (Viruses) हैं वैसे ही मोहित हो जाते हैं, वह कार भी हो सकती भारत में भी कुछ विषाणु हैं। अतः वे पैसे है और हवाई जहाज भी यह सब चीजें के पीछे दौड़े चले जा रहे हैं। उनके लिए मेरी समझ में नहीं आतीं। बहुत सारी कारें धन महत्वपूर्ण है । रखना भी सिर दर्दी है। क्या ऐसा नहीं है? परन्तु लोगों के पास बहुत-बहुत कारें हैं, वो सोचते है कि उससे लोग प्रभावित विकास प्रक्रिया में आप यदि उस अवस्था तक पहुंच जाते हैं जहां आप नाभि चक्र से ऊपर उठ जाते हैं, नाभि होते हैं तथा इस प्रकार से वो स्वयं की चक्र को पार कर लेते हैं तो पैसा अधिक कोई सीमा नहीं देखते। कुछ भी नहीं। महत्वपूर्ण नहीं रह जाता। तब धन का अधिक महत्व नहीं रह जाता। जहां तक लोग यदि प्रभावित भी हो जाएं तो उसका क्या लाभ है? आपको इससे क्या प्राप्त होता है? मेरा सम्बन्ध है मैं अपने लिए कुछ भी नहीं खरीद सकती। केवल दूसरों के लिए खरीदती हूँ। इसमें कोई सन्देह नहीं कि लिए उसकी आत्मा है किसी अन्य चीज़ सहजयोगी के पास आनन्द लेने के जनवरी-फरवरी 2003 32 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 से अधिक, किसी भी अन्य चीज़ से कहीं गई है। ऐसा किस प्रकार घटित होता है? अधिक, आनन्द लेने के लिए सहजयोगी यह तो मेरे, विचार से महालक्ष्मी का के पास उसकी आत्मा है। वह किसी भी चमत्कार हो सकता है। अन्य चीज़ का स्वामित्व नहीं चाहता। अतः मैं आपको बताना यह चाहती किसी भी अन्य चीज़ का स्वामी होना हूँ कि आपको अपनी आर्थिक स्थिति की बिल्कुल भी चिन्ता नहीं करनी चाहिए । इसका दूसरा पक्ष महालक्ष्मी है। लेखा-जोखा करने में ही न लगे रहें। ये आपके अन्दर यदि यह तत्व है - महालक्ष्मी न देखें कि बैंक में आपका कितना धन है, बहुत बड़ी सिरदर्दी है। तत्व, तो आपको कभी धन की समस्या आपने अपने पैसे का क्या करना है और नहीं होगी इसके विपरीत आपको यह उसका कहां निवेश करना है। मैंने लोगों समझ होगी कि किस प्रकार इसे रोका को धन की योजनाएं बनाते हुए पागल होते देखा है । जाए। जहां तक मेरा सम्बन्ध है मैं अपने महालक्ष्मी तत्व से परेशान हो जाती हूँ गए तो ऐसा करने की कोई आवश्यकता क्योंकि मैं नहीं जानती कि यह कहां से नहीं है सभी कुछ स्वतः होता है। किसी कार्यान्वित करता है, बिना किसी प्रयास भी अन्य रोग की तरह से लालच भी एक बार जब आप सहजयोगी हो के किस प्रकार यह कार्यान्वित करता है। आपके अन्दर विद्यमान है। जैसे अन्य रोग परन्तु स्वभाव से मुझे इसमें कोई रुचि होते हैं लालच भी वैसे ही बना हुआ है। नहीं है। मैं नहीं जानती कि इस प्रभाव जिस प्रकार सहजयोग से रोगों का इलाज (कार्य) का कारण क्या है। (Cause of हो जाता है वैसे ही लालच भी दूर हो जाता है चाहे यह कितनी ही मात्रा में हो Effect). मैं तो यह भी नहीं जानती कि लालच होता क्या है। मान लो मैं कोई छोटी सी चीज़ खरीदती हूँ, इस प्रकार की, तो यह दस गुणी कीमत पर बिक जाती है। इसकी कीमत दस गुणी बढ़ जाती है। मैं नहीं सन्तुलन (Counter Balance) करने का अत्यन्त उदार हो जाना प्रति जानती क्यों। यह आश्चर्य की बात है मैं एकमात्र उपाय है। आप यदि अत्यन्त उदार कोई छोटी सी चीज़ खरीदूंगी और मुझे होगें तो लालच दौड़ जाएगा। ऐसा करने पता चलेगा कि यह तो बहुत मंहगी हो का एक अन्य उपाय भी है। मान लो चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 33 आपके घर में आपको कोई चीज प्राप्त गुणा अधिक था। मेरे लिए इसका कोई होती है जिसे आप समझते हैं कि यह विशेष महत्व नहीं है परन्तु उसके लिए है बहुत अधिक है। इससे छुटकारा पाने के लिए नहीं, परन्तु उसे आप बोझ समझते बताई, "श्रीमाता जी ने यह वस्तु दी। माँ हैं तो ऐसी चीज़ आप किसी अन्य व्यक्ति ने मुझे यह दिया।" मैं हैरान थी । तब को दे दें। एकदम से आप सोचने लगे कि लोगों ने मुझसे पूछा, 'श्रीमाता जी आपने यह किसे दी जाए तो तुरन्त आपको याद किस प्रकार उसे यह वस्तु दी? मैंने कहा, आ जाएगा। "ओह! फलां व्यक्ति के पास "मात्र प्रेम के कारण।" उसने यह बात बहुत से लोगों को यह वस्तु नहीं है। मुझे यह चीज़ उसे दे देनी चाहिए।" आप जब उस व्यक्ति को ये चीज दे देगें तो वह अत्यन्त अनुगृहित अतः उदारता इस विश्व में जीने का होगा और आपके लिए सभी प्रकार की उदारता के महत्व को समझते हुए बहुत से लोगों ने सहजयोग अपनाया । सर्वोत्तम मार्ग है इतनी सारी चीजें इकट्टी अच्छी बातें बोलेगा। ऐसी अच्छी बातें जो प्रायः कोई भी आपके विषय में नहीं कहता। कर लेना भी तो सिरदर्दी है। बेहतर होगा कि इनसे छुटकारा पा लें, परन्तु प्रेमपूर्वक | और यह कार्य आश्चर्यजनक रूप से आनन्ददायी है कि किस प्रकार लोग पाएगें कि वो आपकी कितनी सराहना आप यदि ऐसा करते हैं तब आप जान आपकी उदारता को पसन्द करते हैं। करते हैं । अतः आपको उदार होना है, बस उदार होना है, स्वयं के प्रति नहीं अन्य लोगों के प्रति। जहां तक संभव हो उदार सामाजिक कार्य करने का प्रयत्न करें। लालच से मुक्ति पाने का एक अन्य उपाय यह है कि आप कोई सामूहिक बने। उदारता अत्यन्त प्रेम प्रदायक है, आपके प्रेम की यह एक अभिव्यक्ति है। मेरे साथ ऐसा बहुत बार घटित हुआ जब आपको बताती हूँ कि आपका लालच मैंने देखा कि जब किसी व्यक्ति को किसी मान लो आप किसी ऐसे स्थान पर जाएं जहां बहुत से गरीब लोग रहते हों, तो मैं एकदम से आप यह देखकर छूट जाएगा दंग रह जाएगें कि किस प्रकार ये लोग चीज़ की आवश्यकता है मैंने उसे अपने मस्तिष्क में रख लिया और वह चीज़ खरीद कर उस व्यक्ति को दे दी। उस क्यों मैं धन दौलत आदि की इतनी चिन्ता जीवन यापन करते हैं, किन हालात में, व्यक्ति से जो प्रेम मुझे प्राप्त हुआ वह उस चीज को खरीदने के आनन्द से हजार करता हूँ? उन लोगों को देखना आपके जनवरी-फरवरी 2003 34 चैतन्य लहरी खंड-xV अंक 1 व 2 लिए बहुत बड़ा झटका होगा। कभी-कभी आपको भी वैसा ही होना चाहिए। आपको लोग अत्यन्त दुर्दशा में रहते हुए दिखाई देते हैं। भारत में भी ऐसा है। एक उदार हैं। आजतक मुझे किसी ने भी यह बार में कोलकत्ता गई और किसी तरह से नहीं बताया कि यहां कोई कंजूस व्यक्ति मैंने देखा है कि सहजयोगी अत्यन्त मुझे उन क्षेत्रों में जाना पड़ा जहां लोग अत्यन्त दारिद्रय की अवस्था में रहते हैं। है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि एक दिन ऐसा आएगा जब हमारे बीच अत्यन्त उच्च आप हैरान होगें की बच्चे भी इसी दुर्दशा गुण सम्पन्न लोग होगें। में पल रहे थे। कई दिनों तक मैंने खाना अन्य पंथों की तरह से सहजयोग में नहीं खाया। मैं रोये ही जा रही थी। हम यह नहीं कहते कि अपने वस्त्र या मुझसे खाना भी न खाया जा रहा था। अपना परिवार त्यागकर आप जंगलों में मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए! मुझे लगा, "ये क्या है? क्यों रहे या झोपड़ियों में रहें। ऐसा कुछ भी ये लोग ऐसे है?" मैं असहाय थी और रो हम नहीं कहते। किसी भी चीज़ को त्यागने रही थी कि कभी तो मैं इनके लिए कुछ की आवश्यकता नहीं हैं। त्यागभाव तो हमारे हृदय में होना चाहिए। ये आपके व्यक्तित्व का एक हिस्सा होना चाहिए। अत्यन्त प्रशंसनीय बात है कि अपन किसी चीज को त्यागने की आवश्यकता बाल्यकाल में ही मैंने एक कुष्ट गृह नहीं हैं। आप यदि आध्यात्मिकता में दृढ़ किया, अपंग व्यक्तियों के लिए एक गृह हैं तो किसी का धन हथियाने के विषय में कर पाऊँगी। आरंभ चलाया, एक शरणार्थी गृह आरंभ किया। सभी प्रकार के कार्य किए और कभी यह आप सोचेंगे भी नहीं। इसके विपरित अपना सभी कुछ दे डालना पसन्द करेंगें। भी नहीं सोचा कि अपना सारा पैसा यदि मेरे पिता तो मुझसे भी गये गुजरे सदैव वो घर को खुला रखते थे, सारे मैं इन लोगों को दे दूंगी तो मुझे बहुत सारी चीजें त्यागनी पड़ेंगी। मुझे अपनी थ बहुत सी चीज़े बेचनी भी पड़ी क्योंकि दरवाजे वे खुला रखते थे। वो कहा करते उदार होना अत्यन्त आनन्दप्रदायक तथा थे कि यदि दरवाजे खुले होगें तो चोर प्रसन्नताप्रदायक होता है। सभी प्रकार से घर में नहीं घुसेगा। एक दिन एक चोर यह बात अत्यन्त स्पष्ट है कि आपको घर में घुस आया, और उनका ग्रामोफोन ले गया। पुराने समय में, बहुत बड़े भोंपू उदार होना चाहिए। उदारता श्रीकुबेर का गुण है। वे अत्यन्त उदार व्यक्तित्व हैं। वाला ग्रामोफोन वो ले गया। अगले दिन जनवरी-फरवरी 2003 35 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 मेरे पिताजी अत्यन्त उदास बैठे हुए थे। है कि संभवतः कुबेर को बैंकिग का ज्ञान मेरी माताजी ने जब उनसे पूछा, "आप हो। उन दिनों बैंक नहीं हुआ करते थे। हो सकता है कि हो क्योंकि जिस प्रकार उदास क्यों हैं? ग्रामोफोन के कारण?" नहीं, मैं इसलिए उदास हूँ क्योंकि मुझे से वह बैंक प्रबन्धन करता है तो मुझे लगता है कि संगीत का वह ज्ञाता केवल लगता है कि वही उन्हें चला रहे हैं। यही ग्रामोफोन ही ले गया है। रिकार्ड तो वो कारण है कि अभी तक बैंकों में कोई ले ही नहीं गया। तब मेरी माँ ने कहा, समस्या नहीं है। मैं नहीं जानती परन्तु "ठीक है, अब हम क्या करें? क्या हम वह अत्यन्त चतुर व्यक्ति है, अत्यन्त समाचार पत्रों में विज्ञापन दें कि तुम आकर रिकार्ड भी ले जाओ? बुद्धिमान अत्यन्त चुस्त क्योंकि धन व्यवहार करने वाले व्यक्ति में यह गुण होने आवश्यक हैं। यद्यपि पैसे से उन्हें बिल्कुल कहने का अभिप्राय है कि इतना सौन्दर्य उनमें था कि आज इतने वर्षाँ के मह न था, आप उनके जीवन को देखें पश्चात् मैं आपकों बता रही हूँ और आप उसका आनन्द ले रहे हैं। कितना गुरु के साथ रहे और गुउओं के झुंड उदारतापूर्ण सुन्दरचरित्र था। परन्तु धर्म चराने के लिए जंगल ले जाते थे। उनका के माध्यम से यदि आप किसी पर लागू कि उन्होनें क्या किया। बचपन में वे अपने बचपने इस प्रकार से बीता और बाद में करें कि यह त्याग दो, वो त्याग दो. तो सर्वसाधारण परिवारों के गऊएं चराने वाले यह कठिन है। त्याग तो अन्दर से होता ग्वाले, लड़कों के साथ वे खेला करते थे। है आप यदि किसी चीज से लिप्त नहीं धन के पीछे वे कभी नहीं दौड़े । वो तो हैं तो आपने इसे त्याग दिया है। यह गुण मक्खन चुराया करते थे क्योकि ये महिलाएं होना ही चाहिए और यदि आप लोग अपना मक्खन कंस के सिपाहियों को बेच अपनी उदारता और दानशीलता का दिया करती थीं। अतः मक्खन चुरा के वे खा लिया करते थे ताकि ये महिलाएं उन आनन्द लेते हैं तो उस जैसी कोई बात नहीं है। मैं ऐसे लोगों को जानती हूँ जो असुरों को ये मक्खन न दे सकें। कल्पना बहुत अमीर हैं, सभी कुछ है परन्तु उनमें कर कि इतना छोटा सा लड़का इस प्रकार उदारता का अभाव हैं। श्रीकु्ेर का यह के कार्य करता था! वास्तव में किस प्रकार वह इन लालची महिलाओं को सबक सीखा रहा था क्योंकि ये अपना मक्खन इसके अतिरिक्त लोग मुझसे कहते इन भयानक सिपाहियों को बेच देती थी। अन्य गुण है। जनवरी-फरदरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 36 सारा मक्खन उनसे चुराकर वे खुद खा हैं। वे इसमें कुछ परिवर्तन नहीं करना चाहते। वह ऐसी भयानक चीज़ें नहीं प्राप्त करना चाहते जों उन्हें जेल ले जाएं। वे जो भी कार्य उन्होनें किया उसमें इन चीजों के बारे में सोचते ही नहीं। वे जाया करते थे। उदारता की पराकाष्ठा है। पूर्ण विवेक के ऐसा क्यों नहीं करते? क्योंकि उनमें साथ, वे इतने विवेकशील थे कि अपने लज्जाशीलता बाकी है। गरीब से गरीब मामा का वध करने से भी न चुके। उनके लोगों में भी लज्जाशीलता अत्यन्त लिए सांसारिक सम्बन्धों का अधिक महत्व उच्चकोटि की है। उस समाज में वे न था। भारत में यदि आप देखें तो यहां ईमानदार व्यक्ति का बहुत सम्मान करते पर सम्बन्धों को बहुत अधिक महत्व दिया हैं और सभी बहुत ईमानदार हैं। कोई-कोई जाता है। पिता चोर है, पुत्र चोर है, पोता बेईमान भी हो सकता है परन्तु ऐसे व्यक्ति चोर है, सबके सब चोर है। क्या आप इस को कोई सम्मान नहीं करता क्योंकि वे बात की कल्पना कर सकते हैं। किसी भी आत्मसम्मान को सबसे बड़ा गुण मानते परिवार में मैंने यह नहीं देखा कि परिवार हैं। इन गरीब लोगों की आप कल्पना का एक भी सदस्य चोर है तो उसका करें। यद्यपि उन्हें दिन में एक ही बार कोई वंशज ईमानदार हो! यह बड़ी अजीब खाना पड़ ता है फिर भी उनका सी बात है। परन्तु इस प्रकार का लालच आत्मसम्मान उनके लिए सब कुछ है। उनके मस्तिष्क में घर कर जाता है और अतः इस प्रकार के मूर्खतापूर्ण लालच से वो यह नहीं सोचते कि यह महत्वपूर्ण है। मक्ति पाने का तीसरा समाधान वो केवल इतना सोचते है कि जीवन आत्मसम्मान है। क्यों आपको चोरी करनी यापन करने का केवल एक उपाय चरी चाहिए? चोरी की या किसी अन्य व्यक्ति ही है । यद्यपि भारत में अत्यन्त ईमानदार की कोई भी चीज आपको क्यों स्वीकार लोग भी हैं। करनी चाहिए? आपमें यदि आत्मसम्मान है तो आप किसी भी चीज़ को, जो आपकी मैंने देखा है कि हमारे नौकर कभी अपनी नहीं हैं, छुएंगे भी नहीं । चोरी नहीं करते कभी कुछ नहीं चुराते। इसके लिए उनके पास कोई कारण भी नहीं है। वास्तव में वे कुछ नहीं चुराते। ये क्यों नहीं वो लोग ऐसा कर सकते है आश्चर्यजनक बात है। क्यों वे चोरी नहीं जिनकी स्थिति उन नौकरों से कहीं अच्छी करते? अपने जीवन से वे अत्यन्त संतुष्ट है। मेरे विचार से उनका स्वभाव इतने यदि नौकर ऐसा कर सकते हैं तो जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 37 उच्च स्तर का है कि आत्मसम्मान ही परन्तु लोग तो सत्ता चाहते हैं, क्योंकि उनके लिए उन सभी चीज़ों से अधिक इससे उन्हें धन प्राप्त हो सकता है और महत्वपूर्ण है। यह उनके लालच को सन्तुष्ट धन से वे सत्ता प्राप्त करते हैं। क्यों? आप इसकी कल्पना कर सकते हैं? मानव की करता है। लालच की ये भी विशेषता है कि ये स्थिति क्या है? वह किस स्तर पर है? उत्थान के किस स्तर पर वे हैं? बस पैसे कभी सन्तुष्ट नहीं होता कभी भी यह शान्त नहीं होता के चक्कर गोल गोल घूमें जा रहे हैं। यह लोग किसी समय पर बहुत ही धनवान मैंने देखा है कि जो होना चाहिए। नाभि चक्र है जिसे सन्तुष्ट ा हुआ यही आपको सन्तोष प्रदान करता है। उनके लिए नरक बन गया है। बिना आपका नाभि चक्र यदि सन्तुष्ट है तो शानो शौकत के वो जी नहीं सकते फिर करते थे वो दरिद्र हो गए हैं जीवन आपने कुबेर की अवस्था प्राप्त कर ली भी उनकी समझ में यह नहीं आता कि है। ये देखना अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि यह सब व्यर्थ है। धन खो देने पर वे स्वयं आपका नाभि चक्र सन्तुष्ट है। को अत्यन्त दुःखी मानते हैं। और भी बहुत सी चीजें हैं परन्तु मेरे विचार से लोभ निकृष्टतम है। किसी प्रकार कुछ लोग ऐसे है जो धन प्राप्त करना चाहते हैं। धन प्राप्त करने के लिए से यदि इसे संभाल लिया जाए इसे इसके वो कुछ भी कर सकते है। यह बड़ी अजीब बात है। सत्ता के लिए भी ऐसा ही होता ये विश्व बहुत बड़ी सीमा तक सुधर है आपमें यदि अपनी शक्तियाँ है तो जाएगा। आप सांसारिक सत्ता के पीछे नहीं दौड़ते। स्तर पर ले आया जाए तो, मैं सोचती हूँ, परमात्मा आपको धन्य करें। श्रीट. परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी द्वारा श्रीमान दामले को मराठी में लिखे गए एक पुराने पत्र का अनुवाद । प्रिय दामले, हृदय जो कि शान्त है, परन्तु भावुक है उसकी खिचावट को भी हम समझते हैं । अनन्त आशीर्वाद, परन्तु सहस्रार की खिचावट चहुँमुखी हो आपका पत्र मिला। सहस्रार पर जाती है। वहाँ व्यक्ति एक संघटित अवस्था खिचावट महसूस करना बहुत अच्छा चिन्ह में होता है और धर्म की उस अवस्था में है क्योंकि सहस्रार के माध्यम से ही अनन्त चेतना चैतन्य के लिए, परमात्मा के प्रेम के चैतन्य किरणें मनुष्य के हृदय में पेंठती हैं लिए प्रार्थना करती है। यह सब स्वतः और अन्तर्अस्तित्व के नए द्वार खुल जाते घटित हो जाता है। यद्यपि यह आपकी हैं। परन्तु इस आशीष के सहस्रार में प्रवेश कुंडलिनी की निपुणता है फिर भी आपके करने से पूर्व इसमें खिचावट होनी चाहिए। व्यक्तित्व को चाहिए कि कुंडलिनी को चैतन्य लहरी खंड-XV अक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 39 दृढ़ करें। अपने पूर्व जन्मों में आपने यह मस्तिष्क में बिठा दिए जाते हैं। मिथ्या गुण अर्जित किए हैं। अतः यह जीवन सम्बन्ध जैसे "ये मेरे पिता हैं, ये मेरी माँ पूर्वजन्मों से महान है और मेरे कार्य को हैं, ये मेरा भाई है", आपके सिर पर लाद करने के लिए बहुत से रत्नसम व्यक्ति दिए जाते हैं। अहंकार आपमें मूर्खतापूर्ण उपलब्ध हैं। आप यह बात समझे कि विचारों को विकसित करता है जैसे, "मैं यद्यपि शारीरिक रूप से मैं यहाँ हूँ, मैं धनवान हूँ, मैं गरीब हूँ, मैं निस्सहाय हूँ या सर्वत्र हूँ। ये बात महसूस की जानी चाहिए मैं उच्च परिवार से सम्बन्धित हूँ" आदि कि यह शरीर भी मिथ्या है। इस अवस्था आपके मस्तिष्क में भर जाते है। बहुत से तक आना कठिन होता है परन्तु शनैः अफसर और राजनीतिज्ञ अहंकारी (गधे) शनैः जब इस मिथ्यापन को देख लिया बन जाते हैं। इसके अतिरिक्त प्रेम की जाए तो सहज ही में यह सत्य स्थापित आड़ में क्रोध, घृणा, सहिष्णुता, जुदाई, हो जाएगा और महान आनन्द की लहरियाँ गुम, लिप्तता तथा सामाजिक प्रतिष्ठा के आपके पूरे अस्तित्व को आच्छादित कर नाम पर अन्य प्रलोभन भी हैं। मानव अत्यन्त लेंगी। इस पत्र में मैं 'मिथ्या' की व्याख्या प्रेम के साथ जीवन की इन मिथ्या चीजों कर रही हॅूँ। यह पत्र सभी लोगों के समक्ष को पकड़ लेता है। इन दुर्गुणों से छुटकारा पढ़ा जाना चाहिए और सबको चाहिए कि पाने के लिए आप जब प्रयत्न करते हैं तो आपको प्राप्त होता है भ्रामक ज्ञान क्योंकि चित्त तो पिंगला नाड़ी पर चलता है। तब इसको भली-भांति समझें। जन्म के तुरन्त पश्चात् ही मिथ्या का आरंभ हो जाता है। आपका नाम, आप सिद्धियों तथा प्रलोभनों में फंस जाते गाँव, देश, जन्मपत्री, भविष्यवाणियां आदि है। कुंडलिनी तथा चक्रों का दर्शन भी बहुत सी चीजें आपसे जुड़ जाती हैं या अन्य लोग इन सब चीजों को आपसे जोड़ भ्रामक है क्योंकि इससे कोई लाभ नहीं होता इसके विपरीत यह हानिकारक है । देते हैं। ब्रह्मरन्ध्र यदि एक बार बन्द हो आत्मनियंत्रण तथा तपश्चर्या जो आप स्वयं जाए तो बहुत से भ्रामक विचार आपके पर लागू करते हैं यह सब आपके चित्त मस्तिष्क का हिस्सा बन जाते हैं। 'यह को सीमित करती है। इस प्रकार इनसे मेरा है या ये लोग मेरे हैं। ये मिथ्या मुक्त होने का कोई मार्ग नहीं है । विचार बाह्य वस्तुओं के समरूप हैं। इसके आत्म-साक्षात्कार से भी मिथ्या चीजें अतिरिक्त व्यक्ति अपने लिए ऐसे बन्धन एकदम से छूट नहीं जाती। शनैः शनैः यह किनारा करती हैं। दृढ विश्वास से, बना लेता है जैसे, "मेरा शरीर एवम् मन स्वस्थ होना चाहिए।" ये विचार आपके पूर्ण हृदय पूर्वक यदि आप मिथ्या को अस्वीकार करेंगें तो आपको शुद्ध रूप में जनवरी-फरवरी 2003 40 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 मानव को इतने गहन प्रयत्न के बाद आत्मा का साक्षात्कार हो जाएगा। तत्पश्चात् यह आपमें स्थापित हो जाती बनाया गया है वह यदि अपने पैरों पर है। यद्यपि वही नश्वर मानव चित्त, जोकि एक कदम चल ले तो सब सफल हो प्रेम के स्वभाव में सराबोर होता है, सत्य जिसका न कोई आदि है न अन्त है, जाता। इसीलिए मैं आपकी माँ के रूप में वास्तव में जो शिव है, मानव चित्त इसी अवतरित हुई हूँ। अपनी समस्याएँ मुझे वास्तविकता को महसूस करने के लिए पत्र में लिखकर भेजें। ध्यान में बैठें, परस्पर बना है। इस चित्त का आत्मा से एक रूप बैठ कर भी सहजयोग की बातचीत करें। होना आवश्यक है। जो चित्त मिथ्या को चित्त को हमेशा अपने अन्दर की गहनता परन्तु सभी कुछ संभव नहीं हो जाता है। त्याग कर आगे बढ़ता है वही जाने में रखा जाना चाहिए। बाह्य चीजों को अनजाने सभी बन्धनों को तोड़ता है और जहाँ तक संभव हो भूल जाएं। विश्वास अन्ततः आत्मा बन जाता है। वह न तो रखें कि हर चीज का ध्यान रखा गया है। से कभी व्याकुल होता है और न ही कभी इस कथन को प्रमाणित करने के नष्ट होता है । इच्छाओं के पीछे दौड़ने उदाहरण हैं। तब आप जो भी कुछ करेंगे वाला मानव चित्त ही अपने आन्तरिक पथ आपका चित्त आत्मा के साथ एकरूप होगा। को छोड़ देता है। यह माया (भ्रान्ति) है । पाप पुण्य के सभी बन्धन समाप्त कर इसकी सृष्टि जानबूझ कर की गई है। दिए गए हैं। सांसारिक और गैर सांसारिक इसके बिना मानव चित्त का विकास न हो चीजों का अन्तर समाप्त हो जाता है क्योंकि पाता। माया से आपको घबराना नहीं इस अन्तर की सृष्टि करने वाला भयानक चाहिए, इसे समझना चाहिए ताकि ये अन्धकार समाप्त हो गया है। सत्य ज्ञान बहुत आपका पथ प्रकाशित कर सके। बादल के प्रकाश में सभी कुछ मंगलमय हो जाता सूर्य को आच्छादित कर लेता है परन्तु है चाहे यह श्री कृष्ण द्वारा किया गया इसको प्रकट भी करता है। सूर्य तो सदैव विनाश हो या श्री ईसा का क्रूस हो। विद्यमान होता है। तो बादल का क्या व्याख्या द्वारा यह सभी बातें नहीं समझी उद्देश्य है? बादल होने के कारण आप जा सकतीं। केवल मार्गदर्शन भी सहायक लोगों में सूर्य को देखने की आकांक्षा होती न होगा चलने से ही इस पथ का ज्ञान प्राप्त हो सकेगा। | सूर्य क्षण भर के लिए चमकता है और फिर बादलों के बीच चला जाता है। बादल जब मुझे आपके पत्र मिलते हैं तो मैं लक्ष्य तय करती हूँ। कुछ समय पश्चात् यह भी आवश्यक न होगा। परन्तु वर्तमान आपकी दृष्टि को सूर्य को देखने की शक्ति और साहस देता है। जनवरी-फरवरी 2003 41 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 में सभी को अपने अनुभव तथा उन्नति लन्दन में सहस्रार दिवस मनाया गया तो लिखनी चाहिए। मैं जब आऊंगी तो हम मैंने केवल २०-२५ लोगों को ही आमंत्रित देखेंगे कि आपने विराट की कितनी नाड़ियाँ किया और आगे का कार्यक्रम तय किया। जागृत की हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि भारत की पावन भूमि पर यह कार्य आगे बढ़ेगा और जब यह पूर्णतः विकसित हो जाएगा तो सभी देशों तथा दिशाओं में इसका प्रसार होगा आज (५ मई) जब सभी को अनन्त आशीर्वाद और असीम प्रेम सदा सर्वदा आपकी माँ निर्मला होली पूजा 29-3-1983, दिल्ली परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन अग्नि का बड़ा भारी दान है, कार्य का प्रादुर्भाव और इनको किस तरह से है, क्योंकि अग्नि देवता ने होलिका को जला दें। इनको तो कोई भी जला नहीं सकता। ये तो मेरी शक्ति से परे है । तो उन्होनें विचार ये किया कि वरदान दिया था कि किसी भी हालत में तुम नहीं सक ती। और चाहे किसी भी तरह से मृत्यु आ जल अहंकार कैसा, कि इतनी बड़ी शक्ति के सामने मैं अपनी शक्ति की कौन सी बात कह कि जाए पर तुम नहीं जल सकता हूँ? मेरी ऐसी कोई सी भी शक्ति नहीं है जो इनके आगे चल सके । सकतीं । और वरदान दे कर के वे बहुत पछताए क्योंकि प्रहलाद इनकी शक्ति इतनी को गोद में लेकर के वह आग में बैठी और अग्नि देवता के सामने म् महान है। तो इनको तो मैं जला सकता ही नहीं चाहे कुछ भी कर लूँ। इस वक्त दूसरा मेरे सामने बड़ा भारी यह प्रश्न था, धर्म का प्रश्न था कि मैंने तुमको वचन दे दिया है कि मैं तुमको जलाऊंगा नहीं और अब इस वचन को मैं धर्म खड़ा है। कैसे पूर्ण कराँ? और प्रहलाद तो स्वयं साक्षात् अबोधिता हैं। स्वयं साक्षात गणेश कशमकश हुई तो उस वक्त यह सोचना तो कर्तव्य और धर्म इसमें जो जनवरी-फरवरी 2003 43 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 चाहिए कि धर्म कर्तव्य से ऊँचा है धर्म बिल्कुल Seriously सब करना चाहिए । और कर्तव्य एक सर्वसाधारण कर्तव्य से क्योंकि कर्मकाण्ड बढ़ गए और कर्मकाण्ड ऊँची चीज़ है और उससे भी ऊँची चीज़ करने में बड़ी आफत रहती है कि गर आत्मा है । यानि जो छोटा परिधि बंधा आपने इधर से उधर दीप जला दिया तो निमित्त जो हुआ कुछ भी हमारा वलय है, भगवान जी नाराज़। इधर से उधर गर Goal है, उससे जो ऊँचा Goal है, उसको आपने धूप बत्ती जला दी तो भगवान जी पाना अगर है तो इस छोटे को छोड़ना नाराज़ । अब बायें हाथ से गर आपने कुछ पड़ेगा और यही कृष्ण ने शिक्षा दी। कृष्ण कर दिया तो भी आफ्त। ने कहा कि गर आपको हित के लिए झूठ बोलना पड़े तो झूठ बोलिए। सच बोलने की बात ठीक है पर किसी ऊँची चीज़ के लिए नीची चीज़ को छोड़ना पड़ेगा। जैसे गंभीरता से धर्म करने लगे। इतने गंभीर कि कोई आदमी अगर अन्दर घर आ हो गए कि उनका आहुलाद, उनका इन सब बातों की वजह से लोगों में Conditioning आ गई और उस Conditioning की वजह से लोग बहुत जाए और किसी को मारना चाहता है, राधाजी की उल्लास सब खत्म हो गया। जो मुख्य शक्ति थी वो थी आहलाद पूछा खून करना चाहता है, तो एक तो उसकी अनाधिकार चेष्टा है। उसने आप से दायिनी। सबसे आहलाद देना, ये उनकी मुख्य शक्ति थी और इसीलिए उन्होनें "ये महाशय ऊपर हैं तो आपने कहा कि हाँ हैं। सच कहना चाहिए और सच कह होली का त्यौहार बनाया। कृष्ण आकर दिया तो वह तो उसको मार डालेगा । के जितनी भी पूजाएं थीं सबको बन्द उनकी जान बचाना ही बहुत ऊँची चीज़ करके और कहा कि अब पूजा-वूजा मत है, वह महत्वपूर्ण है। बड़ी चीज़ हैं। उस करो तुम और उस आत्मा की ओर बढ़ो बड़ी बात के लिए, बड़े ध्येय के लिए ये जिसको तुम्हें पाना है। और छोटी-छोटी छोटी जो चीज़ें हैं उनको छोड़ना पड़ेगा यही कृष्ण ने अपने जीवन में आ कर बतलाया। श्रीकृष्ण के जीवन को बहुत कम लोग समझ पाए क्योंकि उस जमाने में धर्म की यह दशा होती थी कि लोग दृष्टि रखनी चाहिए। अब जो आदमी मैं धर्म को बहुत ही ज्यादा गंभीरतापूर्वक, तो झूठ कभी बोलता नहीं साहब । बहुत उसको Serious बना कर रखते कभी-कभी ऐसा आदमी (Over) बहुत थे। सब बुद्धाचार्य थे। कि धर्म बहुत ही स्पष्टवर्ता भी हो जाता है, और अहंकार Serious चीज़ है। इसमें आदमी को में दूसरों को दुखाता भी है या नहीं तो ने । चीजों में मत खोओ। क्षुद्र चीज़ों मैं नहीं खोना है लेकिन ऊँची चीज़ की ओर अपनी जनवरी-फरवरी 2003 44 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 उसी में उसका जीवन सत्यानाश हो जाता है । ये अंदर से आने वाली एक है। सच भी क्यों बोलना, धर्म भी क्यों आहलाददायिनी शक्ति है जिसे होना करना? कर्त्तव्य क्यों करना। क्योंकि आपको चाहिए, नाकि ये लोग आजकल बजाते आत्मा होना है। और किसी भी चीज़ के फिरते हैं, हरे रामा, हरे कृष्णा । उस तरह आप इस तरह बंध्रन में फँस जाएँ और की चीजे नहीं आपमें (Seriousness) गम्भीरता आ मैंने कल कहा कि Reality और Concept । ये उसकी कापी है जो जाए। आप बुढ़ा गए। इसको बुढ़ाना कहते में बहुत अंतर है। जो असलियत दें उसमें हैं। इसमें कोई फायदा नहीं। तो धर्म जो आदमी विभोर हो कर के खुश हो जाता है वो आदमी को बिल्कुल पूरी तरह से है। उसमें कोई अश्लीलता नहीं हैं, कोई एकदम जमा देता है। जैसे lce-cream गंदगी नहीं है। उसमें कोई जानबूझ कर नहीं जम जाती, ऐसे जमा देता हे। पर के नाटककारी नहीं है। अंदर ही से आदमी शक्ति का संचार कैसे हो? उसका आनन्द खुश हो कर के आहलाद और उल्लास लोग कैसे उठाएं? तो उन्होंने रंग वगैर को महसूस करता है और वही चीज़ जो खेलना शुरु किया। रंग भी जो हैं देवी के है बाद में अनेक आधातों से दुखदायी हो रंग हैं सारे। सातों चक्रों के रंग से रंग गई सब धर्मों में इसी प्रकार हो गया । खेला जाता है। सारे चक्रों के रंग ही जैसे कि मुसलमानों में आपने देखा है कि अपने पर उडेल लो। खेलो, उल्लास, वो मारते हैं अपने आपको हाय हुसैन आहलाद, आनन्द में। गंभीरतापूर्वक बैठने हम न हुए। सुना होगा आपने। याने ये की कौन सी जरुरत है? ৬ रोने वाला धर्म, ये धर्म ही नहीं है । ग़र अगर आप परमात्मा को पाएं तो धर्म में रोना ही है तो ऐसे धर्म में काहे को खुश ऐसे तो रोना ही होता है । सो सूरदास जी गए और उनके सामने अपना दुःख पाने वाला व दुःख देने वाला धर्म रोना शुरु किया। बेचारे वे पार नहीं थे हो नहीं सकता। लेकिन ये सब धर्मों में तो राते ही रहते थे। तो रोना शुरु किया। ऐसी बातें आ गईं हिन्दु धर्म में भी आ तो वल्लभाचार्य तो साक्षात् कृष्ण ही थे, गईं माने ये कि जो आदमी बिल्कुल तो उनसे रहा नहीं गया । उन्होंने कहा, मराधल्ला हो वही बड़ा भारी साधू संत "काहे घिघियावत हो?" कि घिघियाते माना जाने लगा बिल्कुल मर्राधल्ला होना क्यों हो? अब इस घिघियाने के लिए चाहिए। उसकी हालत ये होनी चाहिए कहीं शब्द नहीं मिलेगा आपको। ये हर कि उसमें उद्विग्नता होनी चाहिए। और हो। वल्लभाचार्य के पास एक बार जाने का समय रोने की क्या जरूरत है? परमात्मा वो ऐसी दशा में होना चाहिए कि आधा के प्रेम में आदमी आनन्द विभोर हो जाता पागल आधा अच्छा। कभी उठा Dance जनवरी-फरवरी 2003 45 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 (नाच) करना शुरू कर दिया। या कभी में भी आदमी फिर एक नीचे के स्तर में रोने को बैठ गया। दुबला-पतला, हड्डियाँ, उतरने लगता है, अश्लीलता में आ जाता उसका पिचका हुआ मुँह, पचासों उसमें है। ऐसा हर एक जगह होता है। हर झुर्रियां पड़ी हुईं आँखें बिल्कुल बटन के चीज़ सड़ने सी लग. जाती है। सड़न जैसे बाहर, तंदरुस्ती चौपट और हर तरह इसीलिए आ जाती है क्योंकि उसमें की उसमें दुर्दशा। ऐसा आदमी कभी भी जीवन्तता नहीं है। गर उसमें जीवन्तता धार्मिक हो नहीं सकता। प्रसन्नचित होना हो तो वह सड़े नहीं। पर इस तरह से चाहिए। शाँत, खिली हुई तबियत, खुला जब होने लग जाता है तो वही चीज़ हुआ हृदय, और प्रकाश जैसे उसके अंदर बहुत ही गंदी और बुरी दिखाने लगती से बह रहा हो। तो होलिका दहन के बाद है। जब होली का त्यौहार महाराष्ट्र में जैसाकि मैंने कहा, आज से यह तय कर मनाया जाने लगा तो तिलक वगैरहा लोगों लें कि होली जो अब है वह दिवाली हो मे इसका बहुत विरोध किया क्योंकि इसमें जाएगी। इसका आनन्द जो है विभोर होना गाली-गलौच, गंदी गाली। क्योंकि उत्तर चाहिए। होली का आनन्द सीमित है। प्रदेश के लोगों को वहाँ भईया लोग कहते क्योंकि आप एक ही होलिका जलाते हैं। हैं मराठी में गालियां है ही नहीं। पर ये ले कि न सब जो गालियां होती है गंदी-गंदी तो ये फिर वो Collective Consciousness में बहुता है। जैसे हर सब मराठी के लोग भी वहां हिन्दी की आदमी, चाहे वो चमार हो, भंगी हो, कोई गालियां देते हैं तो इनके यहां से यही भी हो, तो जैसे हमारे खानदान में लखनऊ Import किया उन्होंने। और अधिकतर में, जहां के रहने वाले हैं, जमींदार लोग गालियां हिन्दी की ही बोलते हैं और मराठी हैं ये लोग, तो मजाल है कि जमींदार की गालियां तो कुछ होती नहीं हैं। यहां लोग बेचारे अंदर भी आ जाएं घर के। तो पारसी लोग भी बहुत गालियां देते हैं वैसे तो तुम दहलीज पर क्यों आए, ये हद और हमारे पंजाब की भी कुछ गालियां होती थी पहले तो। लेकिन होली के रोज होती हैं जो बंबई में चलती हैं सो ये चाहे कोई भी हो, मालिक हो नौकर हो गाली गलौच आदि चीज़े जो हैं ये है कि चाहे कोई भी हो, सब आपस में होली अंदर की जो भड़ास है उसको निकाल खेलते थे। यहां तक कि मालिक के कपड़े लीजिए, वगैरा कहते हैं उसको निकाल भी फाड़े तो भी कोई कुछ नहीं कहेगा। देने से अच्छा होता है। पर ये बड़ी गलत होली के रोज़। इस तरह से एक समाजवाद चीज़ है। ये कभी निकलती नहीं । ये जुबान और एक सामाजिक खुशी का त्यौहार पर चढ़ जाती हैं। हमने देखा है कि हमारे अपने देश में होता है। पर जैसे के होली Husband तो जमींदार Family के हैं। जनवरी-फरवरी 2003 46 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 सिवाय हमारे Husband को छोड़ कर हिन्दी में बोलते वक्त ठीक है सूअर किसी वहां हर आदमी जो है गाली के सिवा को कह दो तो ज्यादा से ज्यादा तय बात ही नहीं करता है। मतलब बड़ों में होगा कि बेवकूफ है। लेकिन वहां पे बहुत भी, उनको गाली देने में कुछ लगता नहीं गंदा शब्द होता है। इस तरह से जहां-जहां है। फट से गाली दे दी एक हमारे पति जिस तरह का व्यवहार है उसकी मर्यादा ऐसे हैं, वाकई में बहुत सुचारू रूप के रखते हुए आदमी को रहना चाहिए नहीं आदमी हैं। कभी मैंने उनके मुँह से गाली तो जिव्हा जो है नष्ट हो जाती है । जिव्हा नहीं सुनी, किसी के लिए। आज तक की शक्ति जो सरस्वती की है वो नष्ट हो कभी उन्हें किसी को गाली देते मैंने सुना जाती है । इसलिए भाषण में भी इसको नहीं। विशेष बात है। देखिए उनके घर में वाचालता कहते हैं वो बुरा होता है, और यदि किसी से बात करते वक्त एक दो वाचालता में भी अश्लीलता तो बहुत बुरी गाली भी नहीं दी तो वे सोचते हैं कि चीज़ है। तो एक तरह से हम लोग सुबोध उन्होंने प्रेम ही नहीं जताया। वहां तरीका घराने के हैं और सुबोध घराने के लोगों ही ये है कि दोस्त जब मिलेंगे तो पचास में एक तरह की सभ्यता (Decency) होनी पहले गाली देंगे उसके बाद फिर गले चाहिए। और उस सभ्यता को ले करके मिलेंगे सो इसी बात से फिर चढ़ जाती हम लोग गाली-गलौच से बातचीज नहीं है गाली उसका नुकसान भी बहुत होता करते। है। ये चीज़ चढ़ जाए गर जिव्हा पे तो होली मैं कुछ न कुछ गाली देनी ही चाहिए जिव्हा की शक्ति नष्ट हो जाती है । जिव्हा और नहीं दी तो आपने होली मनाई नहीं। का आदर नहीं होने से आप जो बोलते हैं और इस तरह से घर में लोग भंग भी वही झूठ होगा। जो आदमी मुँह से गाली पीते हैं। अब बहुतों ने कहा है एक दिन नहीं देता है उसके जिव्हा पे शक्ति होती भंग पीने में क्या हर्ज है माँ? एक दिन है। आप देखते हैं कि भाषण करते-करते भंग पी ले तो भंगेड़ी तो नहीं हो जाते हैं। कुछ कहना भी होता है तो मैं ठिठक पर अगर आप हमें भंग पीने को कहिए तो जाती हूँ कि कहीं ऐसा न हो कि जो बातें हम तो नहीं पीएगें भंग। इसकी वजह ये जैसे ईसा-मसीह ने कहीं थी कि सूअर के है कि हम तो पहले ही पिए हुए हैं और आगे मोती नहीं डालना चाहिए। लेकिन हमें कोई जरूरत नहीं पीने की। और अंग्रेजी में सूअर शब्द जो है गाली है, लोग इसलिए पीते हैं कि सोचते हैं कि बहुत बुरी गाली है। लेकिन मराठी मैं नहीं जो Serious लोग हैं वो ज़रा से हल्के हो है। थोड़ी सी है पर ज्यादा नहीं। अंग्रेजी जाएँ। जो Ego Oriented लोग हैं वे भंग भाषा में बोलते वक्त मैं नहीं बोलती। पी लें तो थोड़ी सी Left Movement हो का और इसलिए कहते हैं कि जनवरी-फ़रवरी 2003 47 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जाती है तो ज़रा से खिल जाते है। भंग रिवाज़ है । कुछ नहीं, सबने कहा कहाँ में बकना शुरु कर देते हैं। लेकिन भयंकर गई? तो लखनऊ में उन्होंने खबर दे दी प्रकार है भंग भी क्योंकि हमारे ससुराल कि कहाँ चली गई दुल्हन? तो कहा कि जब हम गए तो हमें क्या पता था कि भंग इन लोगों ने भंग पी हुई थी, इन लोगों से वंग पीते हैं। महाराष्ट्र में ये सब तरीके क्या हम बात करते? तो हम चले आए। नहीं हैं। महाराष्ट्र ज़रा इस मामले में तो हमने कहा सबको भंग ही पीने दीजिए । ज्यादा सभ्य है। औरतें तो भंग का नाम भी नहीं लेती । उन्हें अच्छा ही नहीं लगता को कोई जरूरत नहीं। जब चाहे तब मन यह सब । तो घर गए तो हमको क्या पता में ही भंग पी ली। भंग का जो उपयोग है था कि सब भंग पीए बैठे हैं। उन्होंने कहा कि खाना खाईए तो खाना खाने बैठे तो ऐसे ही करते हैं। मतलब ये कि कोई इतनी बड़ी थाली में कायस्थों का जैसे आदमी यदि बड़ा Ego-oriented है, Dry तरीका है इतनी बड़ी थाली में खाना शुरु है, शुष्क है, गंभीर है तो उसके लिए किया। और मैं तो जितना खाती हॅँ आप सहजयोग मैं पूर्ण व्यवस्था है कि वो अपने जानते ही हैं चलो उस दिन त्यौहार था आज्ञा चक्र को ठीक कर ले, अपने आज्ञा थोड़ा ज्यादा खा लिया। पर वो खाते ही चक्र को किसी तरह से खुलवा ले। अपने चली गई, खाते ही चली गई, खाते ही ही आज्ञा चक्र को ठीक कर लें तो वह चली गई। हमने कहा भई क्या हो गया? Left Side में काफी आ जाता है। निद्रा तो भंग वंग पीने की सहजयोगियों Left Side में जाने का है वो हम लोग कुछ समझ में ही नहीं आ रहा। वो हंसतें के समय यदि आज्ञा चक्र को घुमा करके जाएं और खाते जाएं। हमारी जेठानी जी सो जाएं तो अच्छे से निद्रा आ जाती है। विधवा थीं तो विधवाओं के लिए सब मना और अगर फिर उसे भंग की दशा से है। तो मैंने कहा ये इनको क्या हुआ है निकलना है तो फिर आज्ञा चक्र को कस जीजी? तो वो सब हंसी जाएं, कोई हर्ज ले तो फिर Right Side में आ सकता है। तो है नहीं, ऐसा कोई हर्ज नहीं है। खाते तो जब अपने ही हाथ में सारी चीज़ पड़ी जाएं और हँसी जाएं। मेरी कुछ समझ ही हुई है, सारी ही शक्ति हमारे ही में अगर में नहीं आया कि क्या हो रहा है तो समाई हुई है और जब उसका पूरा ही उन्होंने बताया कि ये सब भंग पीए हुए ज्ञान हमको मालूम है कि कौन सी Switch हैं। तो मैं वैसी उठी थाली पर से नमस्कार किस वक्त घुमाने का है तो इन बाहर की करके, हाथ धोये और अपनी अटैची उठा चीजों का अवलम्बन करने की जरूरत कर के मैं ट्रेन में बैठ गई। किसी के पैर नहीं है। तो उस वक्त में भंग हो सकता भी नहीं छुए। हमारे यहाँ पैर छूने का है Justified थी, कृष्ण के जमाने में, चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 48 कृष्ण भी पीते नहीं, खाते हैं शायद । सो रंक नहीं रह जाता । उन्होंने ये किया, लेकिन बाकी लोगों को जरूरत पड़ी क्योंकि जो Serious लोग कहाँ जा कर मिलाएगा, ये वो ही जाने ये इंसान की खासियत है कि किसको हैं उनको जरूरत थी कि भंग पीएं जिससे लेकिन होली की जो विशेषता है इसमें ये कि जो Misidentifications हैं कि हम याद रखना चाहिए कि दिवाली इसे अगर राजा साहब हैं, हम महारानी साहिब हैं, बनानी है तो इसमें Decency के साथ। हम घर के मालिक हैं, हम फलाने हैं, हम Indecent काम नहीं होना चाहिए । कैसे मेहतर से मिलें। भई मेहतर तो घर अश्लीलता बिल्कुल नहीं आनी चाहिए। झाडू लगाता है। तो उसके लिए ये कि अगर अश्लीलता आ गई तो फिर वो पहले तुम भंग पियो और फिर मेहतर होली श्री कृष्ण की नहीं । वो तो होली और तुम एक हो जाओ। भूल ही जाओ कि तुम मेहतर हो हो जाते हैं वो होली खेलते वक्त कोई सी और वह राजा है। इसलिए भंग पिलाते भी अश्लीलता न हो। यानि ऐसे जैसे कि तुम्हें होश ही न रहे कि तुम कौन सहजयोग मैं हम स्त्री पुरुष होली नहीं हो। क्योंकि इससे ldentifications बने खेलते हैं। औरतें औरतों के साथ, पुरुष हुए हैं कि तुम फलाने हैं हम ढिकाने हैं । पुरुषों के साथ सहजयोग में भाभी देवर भंग पी लिए तो सब एक ही से हैं। अब में हो सकता है। उसका भी एक नियम में हुई ऐसे लोगों की जो पार नहीं। जो पार इसी का उल्टा ऐसा है कि जब कबीर है। दास जी ने कहा कि सुरति जब चढ़ती है तब सब एक जात होते हैं। तो उन्होंने हैं वो अपने से छोटों के साथ खेल सकती सोचा कि जब तम्बाकू आदमी खाता है हैं और जो बड़े पुरुष हैं वो उनके साथ तो भी सब एक जात हो जाते हैं । तो स्त्री अगर छोटी हो तो वो होली नहीं उन्होंने तम्बाकू का नाम सुरति रख दिया। खेल सकती। या किसी भी तरह का जब हिसाब नहीं लगा पाए तो उन्होंने व्यवहार परदा होता है। उससे उलट गए आप जानते हैं कि जो औरतें बड़ी कहा कि तम्बाकू ही सुरति होएगी। क्योंकि स्त्री बड़ी हो उसके साथ पुरुष का व्यवहार जिसको तम्बाकू की तलब होती है तो वो जो है, खुला होता है। ये अपने यहाँ मान्य चाहे राजा हो तो उस वक्त में कोई गरीब होता है । इसलिए भाभी देवर में होली भी बैठा हो तो उससे कहेगा कि भई होती है । लेकिन जेठ और दुल्हन में नहीं तम्बाकू हो थोड़ी तो देओ भाई, वो मांग हो सकती। जेठ से परदा होता है। और लेता है। इसलिए उन्होंने कहा कि तम्बाकू ये कायदा आपको आश्चर्य होगा कि सारे सुरति हो सकती हैं क्योंकि इसमें राजा हिन्दुस्तान में है। और वो अपने आप ही जनवरी-फरवरी 2003 49 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 चलता है। हम लोगों के अंदर अंतर्निहित है। हमारे संस्कारों में बैठा हुआ है। क्योंकि अपने यहाँ उल्टा काम होता नहीं अधिकतर तो परिपक्व नहीं हो सकता। वो बुड्ढे भी हो जाते हैं तो भी उनमें बचकाना पन जाता ही नहीं और जो हिन्दुस्तानियों का वो कि भई जैसे इंग्लैण्ड में आप देख लीजिए संबंध भी Western लोगों से आता कि 80 साल की बुढ़िया है वो 18 साल भी कुछ वैसा ही हो जाते है। मैंने देखा है के लड़के से शादी करेगी, 80 साल की उनकी भी बूढ़ी औरतें, बड़ी-बड़ी लड़कियां बुढ़िया। उनको कोई हर्जा नहीं। अपने होएंगी वो भी वही बेवकूफी की बातें करेंगी आप कोई सोंच भी नहीं सकता कि ये जो कि लड़कियां बात करेंगी उनकी भी उचित भी है या नहीं। माने ये आपकी समझ में सूझबूझ में परिपक्वता नहीं आती बुद्धि ही नहीं ऐसे चलती। तो इधर ये तो और इस परिपक्वता को पाने के लिए सब चीज़ें होती ही नहीं । हमारे संस्कारों मनुष्य को चाहिए कि वो जो कायदे कानून की वजह से हमारे अगर बिल्कुल ही, बने हुए हैं उनको चलाए। और उसमें हमारे अंदर बैठे हुए हैं, उनकी वजह से बहुत ही आनन्द की बात है। कुछ गड़बड़़ी हम बचे हुए हैं कि भई 80 साल की कोई नहीं हो सकती। अपने समाज में कोई भी स्त्री वो तो माँ हो ही गई। उसको तो दोष नहीं आ सकता। तो होली का जो माँ मानना ही हुआ। माँ क्या हुई नानी हो यह हिस्सा है इसका सहजयोग में छोड़ गई। तो उनसे ऐसे किसी बेवकूफ के भी देना पड़ेगा, अश्लीलता का, और होली दिमाग में बात नहीं आती। कितने भी का जो प्रेम का हिस्सा है उसे अपनाना पतित आदमी के दिमाग में भी ऐसी बात चाहिए। कि बगैर भंग पीए हुए ही हम नहीं आती। और इतनी बुढ़िया औरत के सब एक हैं। यह भावना आप जानते हैं, दिमाग में भी ऐसी बातें कभी आ ही नहीं और विशेष रूप से गले मिलना चाहिए सकती। तो हमारे जो संस्कार हैं, भारतीय क्योंकि कृष्ण का सारा कार्य प्रेम का है। संस्कार, इन्हीं से हम लोग धीरे -धीरे पूरी प्रेम को पूरी तरह से लूटने के लिए उन्होंने तरह से परिपक्वता में आते हैं। वो लोग कहा है कि ये सब परमात्मा की प्रेम की परिपक्व नहीं होते उनकी उम्र हमेशा लीला है। इसमें Seriousness है ही पच्चीस ही में रहती है। उससे ऊपर नहीं नहीं । उठ पाते और हम लोग परिपक्व हो जाते हैं क्योंकि हमारे अंदर के संस्कार ऐसे हैं धारणा किया है वो कृष्ण थे इसलिए कि जो बांध लेते हैं हमें पूरी तरह से। उन्होंने कहा है सब चीज़ को लीला स्वरूप जैसे एक पेड़ है वो कायदे से अगर बढ़े देखने का है। Vibrations पर देखिए। तो परिपक्व हो जाएगा और हवा में लटके लीलाधर! और ये लीलाधर की जो लीला लीला! लीलाधर, जिसने लीला का चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 50 है उसमें अश्लीलता कहीं नहीं आएगी Serious भी होती हैँ तो नाटक ही रहता और हमारी जो संस्कृति है, सीधी सरल है। और बहुत से लोग इस बात को जान बैठी हुई हैं। इन लोगों की उल्टी खोपड़ी गए हैं इसलिए वो भी नहीं Seriously है जैसे औरतें जो हैं, बदन खोलकर घूमेंगी लेते। ये गलत बात है। और मर्द अगर हों और एकाध औरत अगर आ जाए तो फौरन वो अपने कोट के गलत - सलत हो गया हैं, राम के जीवन बटन लगाएंगे। बहुत ऊँचा, कोट के बटन की क्या जरूरत है औरतों बहुत आदर्श, गंभीर था। तो उन्होंने को ही कायदे से पल्ला लेना चाहिए। पर देखा कि अब ये सब लोग राम बनने जा इनके सभी संस्कृति उल्टी पुल्टी बैठी हुई रहे हैं तो उन्होंने कहा कि ऐसी बात है और वो कुछ बैठ ही गई है वो जमेगी नहीं । वो तो राम का कार्य राम करके अब धीरे-धीरे सहजयोग में आने से वो चले गए। अब तो लीला का समय है। लोग और जम रहे हैं। अब आप लोगों की लीलामय सम होना चाहिए। और इसीलिए जो संस्कृति है उसे कृपया आप लोग न उन्होंने सारे संसार को लीला का एक छोड़ें। सहजयोग के लिए यह बहुत महान पाठ पढ़ाया और लीला का अर्थ कभी भी चीज़ है कि आप लोग हिन्दुस्तानी भी हैं अश्लीलता या अपनी मर्यादाओं से हिलना, और आपके पास संस्कृति की एक बड़ी अपनी परम्पराओं से उतरना या अपनी भारी एक धरोहर, वस्तु है, उसको आप जो प्राचीन धारणाएँ जो बहुत सुन्दर अभी पकड़े रखें। पकड़ कर उसी पर आप जमें तक बनी हुई हैं उनको छोड़ना, ये नहीं और उसी पर आप परिपक्वता पाएं। लेकिन है । हाँ रूढ़ी आदि जो गंदी चीज़े हैं उनको इसका बिल्कुल मतलब नहीं कि आप छोड़ देना चाहिए लेकिन पवित्रता की बुड्ढाचारी बनिए या किसी तरह से आप भावनाएं जो आपस की रिश्तेदारी की हैं बहुत Serious आदमी बनें। प्रसन्नचित्त । उसको पूरी तरह से सहजयोग में हम आपकी माँ जब हँसती है तो आपने देखा मानते हैं और उसको पूरी तरह से निभाना है कि कभी-कभी तो 7 मंजिल की हँसी चाहिए। भाई -बहन के रिश्ते । कल हमारे आती है हमको सब लोग हैरान होते हैं भाई साहब आए थे। बस देखा उन्होंने कि गुरु लोग तो कभी मुस्कराते भी नहीं की हमारी बहन, उनकी आँखों से आँू है पर माँ तो हमेशा हँसती रहती हैं और बहे जा रहे थे वो कुछ और महसूस ही उनके मुख से मुस्कराहट तो कभी जाती नहीं कर रहे थे। तो ये जो परिपक्वता की ही नहीं । मैं तो एक मिनट से ज्यादा भावनाएँ हैं, प्रेम की भावनाएँ हैं इसमें Serious नहीं हो सकती हूँ और जब आदमी को चाहिए कि सहजयोग की दृष्टि तो कृष्ण ने ये चाहा कि जो कुछ भी हमने कहा कि मदों को की वजह से, राम का जीवन बहुत जनवरी-फरवरी 2003 51 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 से विचार करें। सहजयोग की दृष्टि से मना ली वो दिवालिया हो गया दिवालिया जो शोभायमान है वह होना चाहिए। तो शब्द कैसे निकला ये बताएं। कुछ-कुछ माधुर्य को लेते हुए शोभायमान करना शब्द के बड़े सुन्दर हैं उनमें से एक चाहिए । तो कोई सा भी Behaviour जो दिवालिया शब्द है कि दिवाली मनाई कि अशोभनीय है। छोटी-छोटी बातों पे आपने ठीक है, अब आप दिवालिया हो बात करना, छोटी-छोटी बातों मे उलझना, जाइये। सो हम लोगों को दिवालिया नहीं बेकार में आपस में झगड़े करना, किसी होना कोई ऐसी चीज़ नहीं करनी चाहिए भी चीज़़ की मांग करते रहना हमको ये जोकि मर्यादा से बाहर है, दिवालिया नहीं चाहिए, वो चाहिए या कोई इस तरह की होना है। जितना अपने बूते का है, उतना बातें करना ओछापन है। और ऐसे लोग करिए उससे आगे आप परमात्मा पर छोड़ सहजयोग नहीं कर सकते। एक बड़प्पन दीजिए । दिवालियापन करने की जरूरत ले करके, एक उदारता ले करके अपने नहीं । और होली में दिवानगी करने की को चलना है सो आजकी तो असल में जरूरत नहीं। कोई सा भी ऐसा कार्य पूजा जो है वो थोड़ी सी पूजा करनी नहीं करना है जो Indecent हो, जिसमें चाहती हूँ। Vibrations इतने हैं कि कोई Decorum नहीं हो, जिसमें कोई भी पूजा की विशेष आवश्यकता नहीं। और सभ्यता नहीं, न्यूनता हो। सभ्य तरीके से मंत्र वंत्र कहने की भी आवश्यकता नहीं । मंत्र भी गंभीर्य में डाल देता है आपको ध्यान रखना है कि उसमें मर्यादा मुझको। पता नहीं क्यों? तो आज क्या है। प्रसन्नचित हो कर के बस दो ही तीन बजा रहे थे, उस वक्त किसी को भी काम करना चाहिए। छोटी-छोटी चीज में जैसे कल Artist लोग +११== उठना नहीं चाहिए। किसी भी Art का मंत्रों में हम आज का खत्म करेंगे। लेकिन इतना मैं कहूँगी कि होली मान करना चाहिए। आपने बहुत बार देखा को दिवाली बनानी ही पड़ेगी और दिवाली होगा कि जब कोई Artist बजा रहा को होली। तब सहजयोग का Integration होता है तो मैं खुद जमीन पर बैठती हूँ पूरा होगा। Diwali भी प्रसन्नचित हो ताकि आप भी सीखिए । मान-पान किसका करके करनी चाहिए। दिवाली में भी लोग करना चाहिए, ये सहजयोगियों को बहुत इतना रुपया खर्च करते हैं कि दिवाली के आना चाहिए। बाद दिवालिया हो करके से शब्द दिवालिया निकला है। क्या आप Tradition है कि पैर पर हमेशा शाल मान सकते हैं कि दिवाली से शब्द रख कर बजाएगें, अगर असली Artist दिवालिया निकला हैं। जिसने दिवाली हों तो। क्योंकि हो सकता हैं कि श्रोतागण याने इसी Artist लोग भी आप देखिए, ये जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 52 में कोई बैठे हो देवी-देवता और मेरे पैर न दिखाई दें । अपने देश की इतनी होली के दिन सिर्फ होलिका दहन का बारीक-बारीक चीजें है कि मैं आपसे क्या एक मंत्र अगर आप कहें कि होलिकामर्दिनी, कहूँ। इतना सुन्दर अपने देश में यह सब ये मंत्र से आप लोग मेरा पैर धोएंगें और बना हुआ है, इतना सुन्दर कहना चाहिए बच्चों को गणेश की स्तुति तो होनी ही कि परमात्मा का अंगवस्त्र है कि कहना चाहिए इसलिए गणेश की स्तुति करके चाहिए कि उसकी गहनता और उसकी बच्चे पैर धो लें। और फिर 3 मंत्रों से मेरे बनावट में इतनी काव्यमयी सारी चीज़ पैर धो लें और कोई खास चीज़ करने की है। बहुत ही सुन्दर काव्यमयी चीज़ है, जरूरत नहीं। लेकिन हम लोग उसे नहीं समझ पाते और अपने जीवन में नहीं ला पाते तो वो जाती है। क्योंकि कृष्ण ने सब पूजाएँ बंद बहुत ही मीठी चीजें हैं। तो आज के क्योंकि फिर वो Seriousness आ सब फिर गंदगी हो जाती है। मान पान करवा करके और सिर्फ होली चालू की बात है। अब कल जेठ बैठे हुए थे करवाई। छोड़ो पूजा वूजा मत करो । हमारे रिश्ते में तो अब आप देखिए, पूरे Complete पूजा बंद कर दो। उसी तरह Lecture में मर्यादा बनी रही कि हमारे से आज हम लोगों को कृष्ण को याद जेठ, हमारे बड़े भाई बैठे हुए हैं तो उनके करते हुए सब पूजाएं बंद कर देनी चाहिएं आगे कहाँ तक हम बोल सकते हैं। अब और सिर्फ ये करना चाहिए कि आज तो हम आदिशक्ति हैं। कौन हमारे लिए उल्लास व आहुलाद का दिन है। सब जेठ और कौन हमारे लिए बड़े भाई। अपने होली मिलो क्योंकि आज होली लेकिन जब इस रिश्ते में बैठे हुए हैं तो आई है और होली की आनन्द उठाना है उनका मान पान पूरी तरह से रखना और इसकी दिवाली बनाने का मतलब चाहिए। हर रिश्ते का मान पान रखना तो मैंने आपसे बताया है कि इसकी जो चाहिए। आप कुछ भी हो जाओं। सुचारू रूप से सभ्यता को लेते हुए अत्यंत सहजयोगी भी हो गए तो भी आप मान पान को ले के चलो। ये नहीं कि उसको होली की हमें करनी चाहिए। अतः होली आप तोड़ दें। और इस तरह से जब आप को दिवाली बनाना है और दिवाली को करेंगे तो धीरे-धीरे आपकी समझ में आ होली बनाना है। कलात्मक ऐसी सुन्दर रचना नई तरह की जाएगा कि इसमें बड़ा ही माधुर्य है और आप सबको मेरा अनन्त आशीर्वाद। (तिहाड़ जेल के एक कैदी का पत्र) आदिशक्ति नमः श्री गणेशाय नमः प्रार्थना पत्र आ गए हैं। मैं आपका सदा जीवन आभारी परम पूज्य श्री आदिशक्ति साक्षात् रहूंगा और आपकी शक्ति का अनुभव सबको बताऊँगा। पूरा जीवन आपके ही श्री निर्मला देवी जी सादर हृदयी नाम में बिताऊँगा। अब बेल भरने वाला प्रणाम माँ मैं आपको लाख लाख धन्यवाद कोई नहीं है पर मुझको ये विश्वास है की करता हूँ कि आपने एक जीरो को फिर से जो काम आपके नाम से हो गया है ये हीरा बना दिया है। डूबते हुए को पार काम भी आपके नाम से शक्ति से कृपा सेवा में, श्री श्री माता जी से कर दिया है। आप स्वयं साक्षात हो जाएगा। जब आप हैं तो मैं ये जानता आदिशक्ति हैं मैं कोटी कोटी नमन व हूँ कि मेरी बेल भी भर जाएगी। आपकी बारम्बार प्रणाम करता हूँ। मैं अपने जीवन कृपा से। से निराश हो गया था की शायद ही अब आपके नाम व भक्ती में वो शक्ति है कभी इस कारागार से मैं बाहर जा सकॅँगा। परन्तु आपकी कृपा ने नामुमकिन को मुमकिन में बदल दिया है। मुझको आजीवन कि काम आसान हो जाता है। जिसके सिर ऊपर तू माता सो दुःख कैसा पावें । माँ आपसे यही विनती है कि मेरे कारावास की सज़ा हुई थी। जबकी आप स्वयं अन्तरयामी हैं, यह जानती हैं कि मैं ऊपर सदा ही अपनी कृपा का हाथ रखना। निर्दोष था और बेसहारा था। ऐसे समय पर मुझे कारागार में ही आपके नाम का शक्ति रखना ताकि मैं जीवन में कभी सहारा मिला। आपके नाम में वो दो क्षण बहकू नहीं श्रीमाता जी आपकी जय हो के ध्यान ने वो काम कर दिया है कि जय हो, जय हो। मुझको दोबारा जीवन मिल गया है एक बार मेरी बेल अप्लीकेशन हाई कोर्ट से रिजेक्कट हो गई थी दोबारा आपके नाम के सहारे लगाई तो 17/7/2002 को सदा मुझमें सहजयोग की भक्ती व सधन्यवाद, प्रार्थी। आपका बच्चा सेवक सरवेश कुमार S/o सन्तलाल जेल नं० 1 न्यू दिल्ली, तिहाड़ बिना ग्राऊन्ड के ही मेरी जमानत के आर्डर सहजयोग कार्यक्रम हेतु 'अनुभव' जय श्री निर्मला माताजी की का मकान है। मुझे नहीं पता वो कैसे जी मेरा अनुभव- मैं तिहाड़ जेल से रही हैं। आजकल का समय देखते हुए मैं आप को इसी सहजयोग' के बारे में बताना हर वक्त परेशान रहती हूँ। चाहती हूँ कि शुरु- शुरु में मैं भी सब के साथ बैठ जाती थी। जो भी करवाया जाता है कि "सब को क्षमा कर दो और जाता था मैं करती रहती। मगर एक दो खुद को भी क्षमा कर दो" प्रार्थना करें श्री बार मैंने इस क्रिया को कोई महत्व नहीं माताजी के आगे तो यह सुनकर मेरे अंदर दिया क्योंकि मुझे ऐसा लगता था कि ये एकदम हलचल हो जाती थी कि यह कैसे सब करने से कुछ नहीं होता। क्योंकि मैं हो सकता है। हमारी सारी जिंदगी किसी भगवान के आगे प्रार्थना और भी कई ने बेवजह बर्बाद कर दी, हम उस को प्रकार के यत्न किये मगर फिर भी मैं कैसे क्षमा कर सकते हैं? इसी प्रश्न को ग्यारह साल बाद एक ही केस में दुबारा लेकर मैं खड़ी हो कर पूंछने लगी उस जेल में हूँ। केस में मेन मेरा पति था। मुझे समय सहजयोग के जो सदस्य हमारे यहाँ बेवजह मेरी गोरमन्ट नौकरी की वजह से आते थे उन्होंने बड़े प्यार से मुझे समझाया 'सहजयोग में एक जगह बताया फंसाया गया था कि केस का सारा मामला कि तुम एक हफ्ता नियम से सुबह-शाम मैं अपने ऊपर ले लूं। मेरी तीन बेटियां ये सब करके देखो और हमें बताना । मैंने थीं। मैंने कोई कसूर नहीं किया था न ही कहा ठीक है। एक हफ्ता करके देख लेते उन पुलिस वाले का कहना माना। सच्चाई हैं। के मार्ग पर चल रही हूँ। इसी में मेरी नौकरी चली गई और पाँच वर्ष पहले मेरा आता मैं करती रही। मैंने अहसास किया मैं एक हफ्ते तक जितना मुझे समझ पति का स्वर्गवास हो चुका है। अब मेरी कि जब मैं श्री माता जी का ध्यान लगा बेटियां बड़ी हो चुकी है। परन्तु हाई कोर्ट कर बैठती तो मुझे अपने शरीर में कुछ लड़ने के बाद भी मैं आज जैल में हूँ। मेरी अलग से हरकत का अहसास होता है चिंता का कारण बाहर अकेली मेरी बेटियां, और मेरा मन शांत हो गया। रात दिन की न ही कोई बेटी नौकरी करती है। किराये चिंता अपने आप खत्म होने लगी और मेरे चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 55 बच्चे भी ठीक-ठाक श्रीमाता जी की कृपा दूंगी और आस-पास जो भी मुझे मिलेगा से अपनी जिंदगी जी रही है। और मैं हर उनको भी यह मार्ग दिखाऊँगी और मैं भी वक्त श्री माता जी का धन्यवाद करती हूँ। हमेशा श्री माता जी के चरण कमलों में और याद करती रहती हैूँ। अब ये केस रहूँगी। मुझे पूरा विश्वास है कि श्री माता माता जी की कृपा से सुप्रीम कोर्ट में लगा जी मुझ पर हमेशा रखेंगी। हुआ है। मुझे पूरा श्री माताजी पर विश्वास कि मुझे माता जी जल्दी यहाँ से निकाल कर मेरे बच्चों के पास ले जायेंगी मेरी सारी चिंताये हर लेगी। कृपा श्री माता जी की जय श्री माता जी की शरण में, कुन्ती चोपड़ा C.J. No. 6A मैं यहां से निकलने के बाद अपने बच्चों को भी इस सहजयोग का ज्ञान ए त सहज-कृपा (एक अनुभव) यह बात शनिवार दोपहर 2.00-2. पुलिस ले गई थी, आया। मैं सुनकर स्तब्ध 30 बजे की है, सहजयोग में आए हुए रह गया जब उसने कहा कि अभी ऐसी अभी कुछ ही समय (लगभग एक वर्ष) कोई जेल नहीं बनी जो मुझे या हमारे हुआ था। दुकान पर एक ग्राहक पुराना नांगलोई ग्रुप को अंदर करवा सके। तूने मोबाइल फोन बेचने के लिए आया (हमारा तो हमारे साथ जो करना था कर लिया मोबाइल फोन का व्यवसाय है) जिसके अब तू अपने आपको बचा सकता है तो साथ उसका चार्जर (मोबाइल चार्ज करने बचा-हम तेरी दुकान पर आ रहे हैं देखतें वाला यंत्र) नहीं लाया था। हमें लगा कि है तेरी कौन रक्षा करता है।" मैंने ऑव यह फोन चोरी का है। हमने पूछा कि देखा न ताँव सब स्टॉफ से बोला कि चार्जर कहां है? उन्होंने कहां कि चार्जर शटर डालो और भागो मैनें गाड़ी उठाई नहीं है। हमने कहा कि फिर तो यह फोन और सीधा मंदिर के लिए दौड़ पड़ा। उस कहीं से उठाया हुआ है। होते होते बहस दिन की बिक्री, सामान सब दुकार पर हो गई बात इतनी बढ़ गई कि हमने छोड़, लड़के को शटर डाल कर चाबी पुलिस को बुला लिया और चोरी का घर पर देने को कह कर, भाग गया। जब फोन बेचते हुए उन महाशय को पकड़वा आश्रम (Delhi Temple) पहुँचा तो सोनू दिया। भैया (एक सहजयोगी, अशोक विहार) मिले. बीच में विषय बदलूँगा मैं कुछ समय उनसे कहा कि भैया बड़ी Problem में से शनिवार दिल्ली मंदिर समय पर नहीं फंस गया हूँ, कृपया बंधन दे देना। उन्होंने पहुंच रहा था। इस पूरे सप्ताह मैं माँ से बंधन दिया और कहा कि Problem दूर प्रार्थना कर रहा था कि, "शनिवार को माँ हो गई मैं हँसा, मैंने सोचा कि यह दुकान पर ज्यादा ग्राहक न आएँ- मुझे Problem इतनी आसानी से नहीं हो आश्रम जल्दी पहुँचना है। मैं कुतुब मंदिर सकती। घड़ी में समय देखा सांय के 6. में लेट नहीं होना चाहता।" दूर 25 बजे थे। एक बात के लिए तो पुनः अपने विषय पर। लगभग एक श्रीमाताजी को धन्यवाद दिया कि माँ आपने घंटे पश्चात् उन महाशय का फोन, जिनको मंदिर तो समय पर पहुँचा दिया। 6.30 जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 57 मित्रों के साथ (एक मित्र का रिवाल्वर भी ले लिया) दुकान पर (दुकान सातों दिन खुलती है) चला गया। पड़ोसियों ने कहा बजे से रात्रि 9.00 बजे तक वहां मंदिर में बैठा रहा। कोई ध्यान नहीं लगा केवल एक ही चिंता सता रही थी कि इस समस्या से कैसे निपटा जाए। आश्रम से बाहर कि कल रात क्या झगड़ा हो गया था? आया, मोबाइल से अपने लड़के को (जो अभी वे आते होंगे-पुलिस को फोन करके दुकान के ऊपर बने कमरें में रहता है) बुला लो। मैंने सोचा कि पुलिस को बुलाने फोन किया कि क्या हुआ? उसने बताया का तो कोई फायदा नहीं है। कि चार-पाँच लोग एक मारुति कार में आए थे, खूब गाली-गलौच कर गए हैं, खोल कर बैठ गए और उनके आने की बोर्ड वगैरह सब तोड़ गए हैं और बोल प्रतीक्षा करने लगे 10.00 से 11.00 बजे, खैर हम प्रातः 10.00 बजे दुकान गए है कि अब तो भाग गया पर सुबह 11.00 से 12.00 बजे परन्तु वे नहीं आए। कहाँ जाएगा। कह देना कि हम सुबह अचानक 12.45 पर उनका फोन आया आएँगे-अपने आपको बचा सकता हो तो कि तेरी दुकार पर जो माता की फोटो बचा ले।" मेरी मानसिक हालत खराब लगी है ये कौन है? मैं लड़का भेज रहा हो गई घर पहुँचा और लगा सब हूँ, इनके बारे में यदि कोई किताब वगैरह सहजयोगियों को फोन करने। रात्रि है तो उसे दे देना और कभी किसी से 12.00 बजे तक सब सहजयोगियों को पंगा मत लेना। मैंने पूछा कि क्या आप फोन करता रहा। गुरुनानी जी, मेहता जी लोग नहीं आ रहे? तब उन महोदय ने (Subcentre Leaders) वगैरह सबको कहा कि 'नहीं। फोन किया और कहा कि मैं किसी मुसीबत में फंस गया हूँ कृपया बंधन दे देना। श्रीमाताजी को प्रणाम किया, धन्यवाद किया सबने कहा कि Vibrations अच्छी आ और मित्रों को सारी बातों से अवगत करा रही हैं - बंधन दे दिया- कोई चिंता की उनको जाने को कहा। लगभग 1½ घंटे बात नहीं है। लेकिन मुझे किसी की बात के पश्चात् उनके गिरोह का एक व्यक्ति का यकीन नहीं आया। मैंने कहा कि कल बड़ा सुखद क्षण था वह। मैंने आया। मैंने उससे कहा कि भइया में आप लोगों से माफी चाहता हूँ मैं, आगे से ऐसी लफड़ा तो होना ही है रोक नहीं सकता। मैं रात्रि 2.00 बजे तक कोई हरकत नहीं करूंगा मुझे ये तो बता सहज के Treatment जैसे पेपर बर्निंग, दो कि आप लोग क्यों नहीं आ रहें । तब कैन्डलिंग, फुट-सोक करता रहा। सुबह उसने कहा कि "हम लोग तेरे पास आने 4.00 बजे फिर उठ गया और फिर सारे के लिए गाड़ी में बैठ गए थे, गाड़ी स्टार्ट Treatment कर डाले । अपने पाँच-छ कर ली थी कि हमारी गाड़ी के सामने उसे तो कोई चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 58 तेरी ये श्रीमाताजी और हमारी दादी किया और धन्यवाद दिया। तुरन्त दुकान जिसको मरे हुए 20 वर्ष हो गए - आ गईं बंद करके खुशी-खुशी घर चला गया और बोली कि 'कहीं जाने की जरूरत खूब झूमते नाचते गाते (बाद में कभी नहीं हैं, यहीं बैठे रहो। खबरदार यदि किसी Centre में वे लोग नजर नहीं उसको हाथ भी लगाया तो।" हमें यह आए।) नहीं समझ में आ रहा है कि हमारी दादी तेरी रक्षा के लिए क्यों आई। 20 वर्षों में सुब बच्चों का ख्याल रखती हैं। ऐसी हैं हमारी श्रीमाताजी जो अपने आज तक कभी भी किसी को भी नज़र नहीं आईं।" जय श्रीमाताजी! जैनेन्द्र जैन मैंने उनको सहज परिचय पुस्तिका भगवान दास नगर, दिल्ली । और Centre-list दी। दण्डवत होकर दुकान के मंदिर में श्रीमाताजी को प्रणाम सहजयोग प्रसार का आनन्द (भिन्न पूजाओं के अवसर पर दिए गए प्रवचनों से उद्धृत परम पूज्य श्री माताजी के कथन) मुझे आशा है कि आप सब लोग एकांतप्रिय हो जाते हैं। उन्हें कभी क्षमा सहजयोग प्रसार के महत्व को समझते हैं। नहीं किया जाएगा क्योंकि परमात्मा ने आप यदि इसका महत्व नहीं समझते तो आपको इतना कुछ दिया है मान लो आप बिल्कुल बेकार हैं। मेरे लिए यह कोई आपको एक हीरा देता है आपको महानतम कार्य है। जिस प्रकार यहां पर इसपर गर्व होता है। इस हीरे को आप बहुत सी बत्तियाँ है वैसे ही विश्वभर में प्रदर्शन के लिए रख देते हैं। परन्तु जब बहुत से सहजयोगी होने चाहिएं। आप आपको आपकी आत्मा दे दी गई है तो यदि विश्व को परिवर्तित करना चाहते हैं इस उपलब्धि पर भी आपको गर्वित होना और व्यर्थ जीवन की उथल पुथल से यदि चाहिए और उदासीनतापूर्ण आचरण नहीं आप बचना चाहते हैं तो आपको उनकी करना चाहिए। कुछ लोग सोचते हैं, "अब रक्षा करनी होगी, उन्हें उबारना होगा। मैं कोई नौकरी नहीं करूंगा, अब मैं बाहर आपका यही कार्य है। सहजयोग के बदले नहीं जाऊंगा, घर में बैठकर ध्यान धारणा में आपको यही देना होगा। (25 दिसम्बर, 2001) कार्य करूंगा।" सहजयोग में ऐसे लोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। "मैं यह कार्य नहीं कर सकता।" "नहीं कर सकता" शब्द सहजयोगी कहलवाने वाले लोगों के आपको अंहकारी नहीं होना है, शब्दकोष से चला जाना चाहिए। गौरवशाली बनना है। आपको सहजयोगी होने पर गर्वित होना चाहिए। ऐसे समय पर जन्म लेने पर, जबकि आपको परमात्मा के कार्य की जिम्मेदारी संभालनी है. आपको एक क्षण भी बरबाद नहीं करती। मुझे गर्वित होना चाहिए कि परमात्मा ने आपको आशा है कि आप भी इसी प्रकार से अपने इस कार्य के लिए चुना। अतः सर्वप्रथम चौबिसों घंटे अपने तथा पूरे विश्व के आपकों चाहिए कि उस स्तर तक उन्नत उद्घार के लिए लगाएंगें। हो जाएं। मैं देखती हूँ कि सहजयोग में कुछ लोग अचानक उदासीन एवं (21 मार्च, 1983) मैं चौबिसों घंटे काम कर रही हूँ। (4 मई, 1985) जनवरी-फरवरी 2003 60 चैतन्य लहरी खंड-xV अंक 1 व 2 इस विश्व में हर प्राणी को कुछ न कि "हम सहजयोग को कार्यान्वित कर कुछ कार्य करना पड़ता है तो सहजयोगियों रहें हैं, अपने लिए नहीं, मानवता के हित को क्यों नहीं करना चाहिए? आपके साथ के लिए।" हमें इसकी आवश्यकता है, इतनी विशिष्ट घटना हुई है कि आपको हमें इसकी बहुत आवश्यकता है। यदि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है। तो क्यों आप केवल अपने विषय में सोचते हैं, हमें अपना चित्त बरबाद करना चाहिए? अपने परिवार के विषय में सोचते हैं, तो क्यों हमें अपनी ध्यान धारणा की उपेक्षा आपकी करुणा, आपका प्रेम बरबाद हो करनी चाहिए? क्यों? हमें उन्नत होना रहा है। क्या लाभ है? ऐसा तो लोग है। हम भिन्न लोग हैं। इस विश्व में आत्म साक्षात्कार से पहले भी करते हैं। हमारी प्रजाति बिल्कुल भिन्न है हम आत्म अपने परिवार से तथा अन्य चीजों से साक्षात्कारी लोग हैं। व्यवहारिक रूप से लिप्त हो जाने का क्या लाभ है? आपको ईसा-मसीह के समय पर साक्षात्कारी लोगों पूरे विश्व से लिप्त होना चाहिए। अब की संख्या नहीं के बराबर थी और उससे आपका सम्बन्ध पूरे विश्व से है। पूर्व भी, मुझे आश्चर्य हुआ, चीन तथा अन्य स्थानों पर एक युग ऐसा था जब चुकी है। स्वयं को सागर से एकरूप कर जैसा मैंने कहा, अब बूंद सागर बन एक गुरु एक शिष्य की परम्परा थी। आप लें। आपने यदि देखा हो तो, सागर सबसे सबके सब गुरु हैं परन्तु आप अपनी गुरू गहरा है। इतना गहरा है कि शून्य बिन्दु शक्ति का उपयोग नहीं करना चाहते। सागर से आरंभ होता है। फिर भी सागर क्यों नहीं महिलाएं भी इस शक्ति विनम्र है । निम्नतम स्तर पर यह रहता है का उपयोग करतीं? मैं देखती हूँ कि परन्तु सारी नदियां आकर इसी में गिरती सहजयोग में महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा है। आकाश को बादल भेजने का कार्य कहीं अधिक अकर्मण्य हैं। मैं स्वयं भी एक सागर ही करता है, और यही बादल वर्षा महिला हूँ। अकेले-सिर मैंने यह सारा बनकर जब बरसते हैं तो पुनः समुद्र में ही कार्य किया है तो क्यों नहीं आपको ऐसा आकर समाते हैं। पुनः उसी समुद्र में ही वे ही करना चाहिए। क्योंकि विश्वभर में वापस आ जाते हैं। लोगों का अन्तर्परिवर्तन करना बहुत ही विशाल कार्य है। परन्तु आपके लिए यह को आकर्षित कर पाएगें जो विनम्र हैं। जो अतः केवल वही लोग अधिक साधकों बहुत सुगम है। मैं यदि इस कार्य को कर लोग करुणामय हैं वही अधिक सहजयोगी सकती हूँ तो आप क्यों नहीं कर सकते। आकर्षित करेगें। शा अपना पूरा चित्त इस पर लगा दें (31 दिसम्बर, 2000) जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 61 पूर्ण हृदय से आपको समर्पित होना पृष्ठभूमि (Background) से पूरी तरह होगा 'मैं जो हूँ वही हूँ, सदा से मैं वही था से बाहर निकल आए हैं? मेरे सम्बन्ध 'मैं हमेशा वही रहूँगा' मुझे कम या अधिक दूसरों से कैसे हैं? किस प्रकार मैं नहीं होना है 'ऐसा व्यक्तित्व शाश्वत होता सहजयोगियों से बात करता हॅँ? है। अब यह आप लोगों पर निर्भर करेगा कि अपने जन्म का इस आधुनिक युग में नहीं बचा । अब आपको उठना होगा और उपयोग करने के लिए अपनी पूर्ण परिपक्वता तक उन्नत होने के लिए, और जो भी खाका (Design) परमात्मा आपके पड़ेंगें परन्तु केवल प्रयत्न करने पर ही अतः अब निष्कर्मन्यता के लिए समय जागृत होना होगा। आज वह दिन है जब मुझे आशा है कि आप निर्विकल्प में कूद माध्यम से बनवाना चाहते है, उस आप वहां रुक पाएगें, अन्यथा आप पुनः कार्यान्वित करने के लिए मेरे अन्दर से नीचे की ओर खिसक आएंगे। जो भी सम्भव हो सके आप निकालें। अतः मेरे इस प्रवचन को बार-बार निःसन्देह, विवेकपूर्वक आप बहुत से कार्य सने-पढ़ें। इसके विषय में सोचें नहीं। ये कर सकते हैं। विवेक से आप मुझे स्वीकार कर सकते हैं । भावनाओं के माध्यम से अपने हृदय में आप मुझे अपने समीप आपमें से हर एक के लिए, और स्वयं को महसूस कर सकते हैं। परन्तु यह काय पहचाने कि प्रतिदिन आप कितना आगे न सोचें कि ये किसी अन्य के लिए है । यह आपके लिए है। आप सबके लिए, केवल ध्यान-धारणा और समर्पण के माध्यम बढ़तें हैं। से होगा। 'ध्यान-धारणा समर्पण के (3 मई, 1986) भी नहीं । यह पूर्ण समर्पण अतिरिक्त कुछ है। प्रेम के इस संदेश का प्रसार आप किस प्रकार करने वाले हैं? (31 जुलाई, 1982) दो प्रकार से आप इसे कार्यान्वित अब आप कह सकते हैं, "हमें क्या कर सकते हैं। व्यक्तिगत रूप से आप करना चाहिए?" प्रतिदिन अपना सामना इसे किस प्रकार कार्यान्वित करेंगे, तथा करें, वास्तव में यह देखें कि आप अपनी सामूहिक रूप से किस प्रकार करेंगे? अतः सांसारिक चिन्ताओं पर कितना समय खर्च अगुवाओं को मेरी एक सलाह है कि जो करते हैं और अपने उत्थान को कितना भी सुझाव लोग उन्हें देते हैं उन्हें अवश्य समय देते हैं। क्या आपने अपना सभी है। स्वीकार करें। वहां आप केवल अगुवा कुछ, अपनी सभी चिन्ताएं सर्वशक्तिमान आपने एक दूसरे से सम्पर्क साधना है । परमात्मा पर छोड़ दी हैं? क्या आप अपनी किसी पर रौब नहीं जमाना। आपने किसी जनवरी-फरवरी 2003 62 चैतन्य लहरी खंड-xV अंक 1 व 2 पर हुक्म नहीं चलाना। मेरे तथा, अन्य सभी कुछ कर रही है। हम क्या कर लोगों के बीच सम्पर्क साधने वाला व्यक्ति सकते है?" नहीं, आपने यह कार्य करना है। बनना है। यह निर्लिप्तता अत्यन्त आवश्यक है अब आपने देखना है कि किस प्रकार से लोग आपको नए विचार देते हैं, आपने यह बात मैं आपको बता रही हूँ। आपने उन्हें दुत्कारना नहीं है। ये मत सोचें कि स्वयं यह कार्य करना है। ऐसा नहीं है केवल आप ही ऐसे व्यक्ति हैं जिसे विचार "श्रीमाताजी करेंगी। आखिरकार वे सभी आते हैं। अन्य लोगों से भी विचार लें। हो कुछ कर रही हैं।" यह बात ठीक है। एक सकता है कि ब्रह्माण्ड से उन्हें विचार प्रकार से यह बात ठीक है। परन्तु आप मिलते हों। वो आपको ऐसा भी बता सकते लोग माध्यम है हैं जो किया जाना चाहिए, जिसे लिखा होते हुए भी माध्यमों ने ही परिणाम दिखाने जाना चाहिए और संभाला जाना चाहिए, है, हनुमान जी की तरह से आप लोग भी "हाँ, ऐसा कहा गया था। ऐसा किया माध्यम हैं और आपको कार्य करना है। जाना चाहिए था।" और तब जो भी संभव आपने ही इस कार्य को अंजाम देना है। हो उसे करने का प्रयत्न करना चाहिए । | अतः चाहे स्रोत के श्री हनुमान की अन्य खूबी यह थी .....| सभी कार्यों को आप मुझे टेलिफोन कर सकते हैं और वो अत्यन्त द्रुत गति से करते थे ....। श्री पूछ सकते हैं। परन्तु गतिशीलता में उन्हें हनुमान जी की एक खूबी यह थी कि वे (अन्य सहजयोगियों को) लगाएं। हर अत्यन्त तीव्रगामी थे। किसी अन्य व्यक्ति के करने से पूर्व वे अपने कार्य को कर आपको यदि संदेह है तो हमेशा कि वे कालातीत थे आदमी इस कार्य में सम्मिलित है । ा डाला करते थे ....! (11 दिसम्बर, 1988) गति (Speed) त्रिफलागार (Trefalgar) जाकर नेपोलियन को पीट लेना तो बहुत अच्छा है परन्तु धर्म के क्षेत्र में मैं सोचती हूँ कि हमारे पास जो शक्तियां हैं वो सहजयोग की हैं। जैसे श्रीमाताजी के पास लोग समय के महत्व को नहीं समझते। सहजयोग का काम करने की शक्तियाँ हैं हमारे पास भी यह कार्य करने की शक्तियाँ करने की आदते हैं "ठीक है, मैं टेलिफोन है। जिस प्रकार वो कार्य करती हैं वैसे ही हमें भी वो कार्य करना है। परन्तु इस ।" यह हमारा सबसे बड़ा दुर्गुण प्रकार की मान्यताएं हैं कि, "श्रीमाताजी हम विलम्ब स्वामी है और हममें विलम्ब करुंगा, मैं पता लगाऊंगा यह हो जाएगा है...। প পাঁ जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-xV अंक 1 व 2 63 बेहतर होगा कि अत्यन्त तेजी से योजनाओं को चौपट करते रहते हैं क्योंकि तुरन्त कार्य को करें। कार्य करने का यही उनके स्थान पर हम स्वयं पिंगला नाड़ी समय है। "अगले वर्ष श्रीमाताजी हम पर दौड़ने लगते हैं। यह ठीक है। आप देखेंगे। गणपति पुले के पश्चात् हम इस वहां दौड़ रहे हैं । मैं तुम्हें ठीक कर दूंगा। पर ध्यान देंगे इसके विषय में हम बातचीत करेगें, बहस करेगें आदि।" उनके चरित्र को टालते रहते हैं और इस प्रकार हमारी तो वे हर समय हमारी योजनाओं का यह एक गुण है। हमें यह समझना है सभी योजनाएं असफल हो जाती हैं। समय कि आज जब हम श्री हनुमान का पूजा तथा अन्य अनावश्यक चीज़ों का बहुत कर रहे हैं तो हमारे अन्दर वह तीव्र ध्यान देते हैं। परन्तु सहजयोग में अपनी ओजस्विता होनी चाहिए। यह अभी होना उन्नति के समय पर हम ध्यान नहीं देते। है। इसे हम बहुत अधिक नहीं टाल सकते। पहले ही हमें बहुत देर हो चुकी है। परिणाम देखने के लिए आपको अत्यन्त द्रुतगामी होना होगा चीज़ों को लटकाते नहीं रहना होगा और न ही एक ऐसे स्तर पर लाना होगा जहां लोग छोटी-मोटी चीज़ों से सन्तुष्ट होना होगा देखना होगा कि कौन से सकारात्मक कार्य आप कर रहे हैं...। अतः आपका चित्त सामहिक रूप से तथा व्यक्तिगत रूप से कार्य पर ही होना चाहिए। इसके विषय ये भलाकर कि क्या होगा। आपको हमारे कुछ लक्ष्य होने चाहिएं. नियत समय होने चाहिएं...। आपको सहजयोग करना होगा। सहजयोग फैलाना होगा। सहजयोग को इसे देख सके.। आपको साहस करना होगा । में हम यही सब कर रहे हैं..। आप भी निर्भयतापूर्वक आगे बढ़ना होगा मेरा अभिप्राय यह है कि न तो आप जेल भेजे ऐसा करना आरंभ करें। आपमें शक्तियाँ हैं आपको सब प्राप्त हो जाएगा। सब जाएंगे और न ही क्रूसारोपित किए जाएंगे। चीज़ सुव्यवस्थित हो जाएगी। कार्य शुरु इसका विश्वास रखें कि नौकरी यदि चली कर देना चाहिए। गई तो दूसरी नौकरी मिल जाएगी और परन्तु आप यदि मनुष्यों की तरह नौकरी यदि न भी मिली तो आपको व्यवहार करते हैं तो पहले किसी चीज़ अनुदान (Dole) मिल जाएगा, ठीक है। की योजना बनाते हैं, फिर इसे खारिज अतः आपको व्यर्थ की चीजों की चिन्ता करते हैं तो इससे यह कार्यान्वित न होगा। नहीं करनी, ऐसी चीज़ों की जिनके विषय यद्यपि श्री हनुमान जी हर समय पिंगला में प्रायः मनुष्य बैठ कर चिन्ता करते हैं। नाड़ी पर दौड़ रहे हैं परन्तु वे हमारी परन्तु इस सारी चिन्ता के बावजूद भी जनवरी-फरवरी 2003 64 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जाती हैं। किसी चीज़ की आपको चिन्ता नहीं करनी, सभी कुछ संभाल लिया जाता उन्हें काम मिल जाता है। और वे नौकरियां भी करते रहते है...।" आप नहीं जानते कि आप लोग है। परन्तु यह अपने बड़प्पन का प्रचार देवदूत हैं तथा आपको यही कार्य करना करना नहीं है, ऐसा करना नहीं है। यह है, अन्य कुछ भी आवश्यक नहीं। हाँ मुझे आशा है कि आज की पूजा से आपका आन्तरिक ऊर्जा उत्पदक (Inner तो सामूहिकता को बढ़ावा देना है। उत्साह, आपका साहसिक स्वभाव आपकी पिंगला नाड़ी को प्रदोलित कर देगा (Vibrate) बिना किसी अहम् के हनुमान हैं तो प्रतिक्रिया होती है। परन्तु मेरी दृष्टि जी की तरह से अत्यन्त विनम्रतापूर्वक हम सारे कार्यों को करेगें। Dynamo) किसी भी चीज़ को जब आप देखते जब किसी चीज़ पर पड़ती है तो वह (चीज़) प्रतिक्रिया करती है। जब मैं आपकी गतिशीलता एवम् विनम्रता का ओर देखती हैँ तो आपकी कुण्डलिनी कितना अच्छा सम्मिश्रण था! इसी गुण प्रतिक्रिया करती है। मेरी दृष्टि से यह की अभिव्यक्ति आपने भी करनी है। चैतन्यित हो जाता है - कटाक्ष। मेरा हर जितना अधिक कार्य आप करते हैं उतना कटाक्ष चीजों को प्रतिक्रिया करने पर विवश ही अधिक स्वाग्रह आप करेंगे। आपको करता है तथा निरीक्षण का अर्थ यह है पता-चलेगा कि विनम्रता ही एक ऐसा कि "मैं जानती हूँ कि यह क्या है।" गुण है जो सहायता करता है। आज्ञा पालन, कार्य को अंजाम देने में आपकी में जान जाती हूँ कि व्यक्ति क्या है। सहायता करती है और तब आप विनम्र किसी चीज को देखकर मैं जान जाती हूँ होते चले जाएगें। किसी भी व्यक्ति की तरफ देखकर कि यह कैसी है - निरीक्षण । परन्तु सभी परन्तु यदि आप सोचते हैं कि "मैं कुछ स्मृति में रहता है। जैसे जब हम जा तो पहले से ही ऐसा हूँ", तो समाप्त। रहे थे तो उन्होंने कहा, "हमारे पास केवल यदि आप ये समझते हैं कि "परमात्मा ने काले पत्थर हैं। मैंने कहा नहीं हमारे पास यह कार्य किया है, परम चैतन्य ही सभी लाल पत्थर भी हैं।" उसने पूछा, "कहा? कुछ कर रहा है, मैं तो मात्र साधन हूं, क्या आप जानती हैं?" तब मैंने उन्हें तब विनम्रता आएगी और आप प्रभावशाली ठीक वही स्थान बताया जहां पर ये पत्थर माध्यम बन जाएगे...। प्राप्त किए जा सकते थे। कहने लगा, आप यदि परमात्मा का कार्य कर "श्रीमाताजी, आप कैसे जानती हैं?" मैंने रहें हैं तो आपकी सारी चिन्ताएं ले ली कहा, "आठ वर्ष पूर्व हम उधर से गुजरे थे चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 65 और मैं जानती हैँ कि वहां लाल पत्थर स्वभाव हो। तो आप हैरान होगें कि कितनी हैं।" तो जिस भी चीज़ को मैं देखती हूँ गतिशीलता से ये कार्यान्वित करता है। वह चैतन्यित हो जाती है। और मुझे पता आपकी ऊर्जा उत्पादक बनाने कि कोई लग जाता है कि उसमें क्या है और उचित आवश्कता नहीं । यह आपके अन्दर समय पर उपयोग किए जाने वाले क्या विद्यमान है। इसे कार्य करने दें। गुण हैं। (22 अप्रैल, 1984) तो यदि आपका इस प्रकार का का स नu में श्री माताजी इस्तम्बूल इस्तम्बूल जन कार्यक्रम 23 अप्रैल, 2002 (एक रिपोर्ट) 23 अप्रैल जन कार्यक्रम के दिन यहां आईं थी और मैं भी यहाँ आई हूँ, पिछले वर्ष की तरह से ही सभागार क्योंकि यहाँ के लोग बहुत अच्छे है।" खचाखच भरा हुआ था। लगभग सात हजार लोग सभागार के अन्दर थे एक को अपने विवेक का उपयोग करना चाहिए हजार योगी और लगभग छह हजार नए तथा चहूँ ओर पहले सुसभ्य कहलाने वाले साधक। सर्वप्रथम सहजयोग का संक्षिप्त फ्रांसिसी प्रभाव के शिंकजे में नहीं फंसना परिचय दिया गया और इसके बाद श्रीमाताजी का प्रवचन हुआ। पिछले वर्ष उन्होनें कहा कि तुर्कीस्तान के लोगों चाहिए । यह बात सुनकर लगभग 50 लोग के प्रवचन की तरह से ही इस बार भी श्रीमाताजी ने सूफीमत और सहजयोग में उठ कर चले गए। तत्पश्चात् श्रीमाताजी समानता पर प्रकाश डाला। आश्चर्य की ने कहा कि बिना भली-- भांति समझे लोगों बात यह थी कि इस बार श्रीमाताजी ने को कुछ नहीं करना चाहिए। श्रीमाताजी फ्रांस के लोगों को उनके खानपान, मद्यपान का इशारा कुछ विशेष कुप्रथाओं की ओर और कुछ अन्य आदतों तथा तुर्की और था। इस पर और 50 लोग चले गए। कुछ अन्य अफ्रीकन देशों पर उनके आत्म - साक्षात्कार से पूर्व श्रीमाताजी ने आवंछित प्रभाव के लिए उन्हें दोषी उपस्थित साधकों को प्रश्न पूछने का ठहराया। । अत्यन्त सहजतापूर्वक नाटककार मौलीरे (Moliere) ने इनको उन्होनें साधकों के प्रश्नों के उत्तर दिए। मूर्खता के विषय में काफी लिखा है । निरमंत्रण दिया श्रीमाताजी ने कहा कि प्रांसिसी कुछ प्रश्न इस प्रकार से थे: "कुछ फ्रांसिसी लोग आपको तथा आपके दूरदर्शन को प्रभावित करने का मैवलाना जलालेटीन रूमी (Mevlane प्रयत्न करते हैं। अतः सावधान रहें। वो Jelalettin Rumi) ने कहा है, "यदि मैं ईसा विरोधी कार्य करते है।" श्रीमाताजी रहस्यों से पर्दा हटाऊँगा तो मैं भस्म हो ने यह भी कहा कि हमें अपनी संस्कृति जाऊंगा तथा अन्य मानव भी भस्म हो को बनाए रखना है। "ईसा मसीह की माँ जाएगें।" प्रश्न : महान इस्लामिक सूफी जनवरी-फरवरी 2003 67 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 प्रश्न आपको आत्म- साक्षात्कार कहां श्रीमाताजी : यह सत्य है। उस समय तक लोग चेतन न थे। उन्होनें ईसामसीह प्राप्त हुआ? क्या आप स्वयं को पैगम्बर को क्रूसा रोपित कर दिया, मोहम्मद साहब मानती हैं? परमात्मा के समीप आपका को सताया। परन्तु मुझे इसका भय नहीं स्थान कहां हैं? है उन्हें मुझको भस्म करने दो। मुझे इसकी कोई चिन्ता नहीं है। श्रीमाताजी : मेरी चिन्ता मत कीजिए, अपनी चिन्ता कीजिए । प्रश्न : फ्रांसिसी लोगों के बारे में आपने कहा कि वे विश्व शान्ति विरोधी आया, अत्यन्त छोटा सा जिसमें जूते कार्य कर रहे हैं। क्या ये बात फ्रांस के उतारने के लिए भी नहीं कहा गया सभी लोगों पर लागू होती है? तत्पश्चात् आत्म-साक्षात्कार का सत्र श्रीमाताजी ने कहा कि दस हजार लोगों को आत्म साक्षात्कार प्राप्त हो गया है। श्रीमाताजी : निःसन्देह नहीं। अपवाद (Exception) भी है। अपवाद सभी जगह हैं। पच्चीस मिनट तक साधकों ने . अल्लाह हू कव्वाली संगीत सुनते हुए उसके प्रश्न: मृत्यु के विषय में आपके क्या साथ नृत्य करके अपने पुनःर्जन्म को विचार है? मनाया। अगले दिन सभी दूरदर्शन चैनलों ने में बात करेंगे आप सभी युवा हो मृत्यु के जन - कार्यक्रम के बहुत से दृश्यों को विषय में न सोचें, वर्तमान को सोचें वर्तमान प्रसारित किया एक को छोड़ कर सभी बहुत कुछ काम किया जाना है मृत्यु के इसके विषय में सकारात्मक थे। परन्तु ये विषय में सोचने का अर्थ है वर्तमान से सकारात्मक चैनल श्रीमाताजी के संदेश तथा चैतन्य लहरियों को फैलाने के लिए पर्याप्त न थे' । स्टार टी.वी. चैनल ने तो श्रीमाताजी : इसके बारे में हम बाद में पलायन करने का प्रयत्न करना। प्रश्न : लोग झूठ क्यों बोलते हैं? आत्म-साक्षात्कार सत्र के एक भाग का श्रीमाताजी : क्योंकि सत्य तथा सत्य की शक्ति का ज्ञान उन्हें नहीं हैं सीधा प्रसारण भी किया। 27 अप्रैल, शनिवार के दिन श्रीमाताजी ने इस्ताम्बूल प्रश्न क्या योग मस्तिष्क की शक्ति छोड़ा। योगीजन किंचित उदास हुए क्योंकि से प्राप्त किया जाता है? माँ हमें छोड़ कर जा रहीं थीं। एक चैनल श्रीमाताजी : यह मस्तिष्क से परे है का नकारात्मक प्रसारण भी उनकी उदासी आत्मा- साक्षात्कार प्राप्त करने क पश्चात् का कारण था । परन्तु आश्चर्य की बात है एक कस्टम अधिकारी ने एक आप इस बात को महसूस करेंगे। जनवरी-फरवरी 2003 68 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 सहजयोगिनी से कहा, "टी.वी. प्रसारणों था उसे भी आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने की चिंता न करें। वे (श्रीमाताजी) अत्यन्ति के लिए निमंत्रित किया गया श्रीमाताजी आध्यात्मिक व्यक्ति हैं ये बात हम जानते के दाएं हाथ के इशारे मात्र से उसे जो हैं।" हम सब हैरान थे और इससे हमारा तीव्र शीतल लहरियां प्राप्त हुईं उनसे वह खोया हुआ आनन्द लौट आया। दंग रह गया और हतप्रभ सा होकर पूछने एक अन्य आश्चर्य यह था कि इस लगा, "मुझे क्या हो रहा है?" नकारात्मक दूरदर्शन प्रसारण से प्रभावित पोलिस का मुखिया वायुपतन पर कुछ बन गया उसने पहचान लिया था कि कठिनाइयां खड़ी कर रहा श्रीमाताजी के बारे में पूछताछ कर रहा के इस तरह सभी कुछ अत्यन्त सुखकर था। वह श्रीमाताजी कौन है । लपत व ना रम धूल - कण बनना चाहती हैं सूक्ष्म धूल कण की तरह वायु के साथ चलता है जो जाता है सर्वत्र और बैठ सकता है सिर पर सम्राट के गिर सकता है या किसी के चरणों पर कहीं भी जाकर बैठ सकता है ये धूल का ऐसा कतरा बनना चाहती. हूँ में सुवासित हो जो पोषक हो जो २४ प्रबुद्धता दायक भी तथा। श्री निर्मला देवी । माता जी श्रल भाष्यान्तर) पर्वत अपनी खिड़की से एक पर्वत देखती हूं मैं किसी प्राचीन विवेकशील व्यक्ति की तरह खड़ा हुआ निरीच्छ, प्रेम से परिपूर्ण असंख्य पेड एवं पुष्प पर्वत को लूटते हैं निरन्तर, नगर चित्त उसका डोलता नहीं है। मेध कुम्म जन उडेलते हैं उस पूर असीम वर्षा जल, तो हरियाली की चादर ओढ लेता है पर्वत तूफान आये चाहे उमड़ते हुए, भरता है झील को अपने कूणा जल से, लहराते समुद्र की ओर कल-कल करती नदियाँ दौड़ती हैं उससे सूर्य करता है सष्टि बादलों की, बिठा कर उन्हें अपने पखों पर, वायु लाती है वर्षा पर्वत की ओर शाश्वत लीला है ये पर्वत देखता है जिसे, निरीच्छ, कषीभाव से । म शर छाी माताजी औी निर्मला देवी (आओरेजी से भाष्यान्तर) 3r4 ---------------------- 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-0.txt जनवरी-फरवरी, 2003 खण्डः XV अंकः 1 व 2 ১৯ PURS चैतन्य लहरी R৫N৯Cdent ुा क का रस ं) आपको मेरे प्रति पूर्णतः समर्पित होना होगा। सहजयोग के प्रति नहीं, मेरे प्रति । सहजयोग तो मात्र मेरा एक पक्ष है। सभी कुछ छोड़कर आपको समर्पित होना होगा। परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी HARMA *ERICION 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-2.txt चै तन्य लहरी जनवरी अंक ख ड - फरवरी 1 व ४V 2003 रा 1. आदिशक्ति पूजा, 23-05-2002 11. गुरु पूजा, 21-07-2002 22. गुरु पूर्णिमा, 24-07-2002 26. श्री कृष्ण पूजा, 18-08-2002 38. परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी द्वारा श्रीमान दामले को मराठी में लिखे गए एक पुराने पत्र का अनुवाद । 42. होली पूजा, 29-03-1983 53. प्रार्थना पत्र 54. सहजयोग कार्यक्रम हेतु 'अनुभव' 56. सहज -कृपा (एक अनुभव) 59. सहजयोग प्रसार का आनन्द 66. श्री माताजी इस्तम्बूल में, इस्तम्बूल जन कार्यक्रम, 23-04-2002 69. धूल-कण 70. पर्वत ে 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-3.txt चै तन्य लहरी प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर 162 - ए. मुनीरका विहार, नई दिल्ली 110067 मुद्रक प्रिंटो-ओ-ग्राफिक्स नई दिल्ली सदस्यता के लिए कृपया इस पते पर लिखें :- श्री ओ.पी. चान्दना एन - 463 (G-11) ऋषि नगर, रानी बाग, दिल्ली - 110034 फोन (011) 7013464 सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पते पर भेजें : चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी - 17. कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली - 110016 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-4.txt आदिशक्ति पूजा 23-5-2002, कबैला परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ड हृि शाभ छ बरम आज का दिन आप सबके लिए जिन लोगों का भी दाईं ओर से उत्थान बिल्कुल ही भिन्न प्रकार का है क्योंकि हुआ वे सब खो गए। ग्रन्थों से उन्हें गायत्री यह आदिशक्ति की पूजा है और मन्त्र मिल गया परन्तु इसके विषय में भी आदिशक्ति पूर्ण हैं। ये केवल बायाँ ही वे न जानते थे कि यह क्या है? वो तो नहीं है, जिसके विषय में आप सब जानते बस इसे स्मरण कर लिया करते थे। उन्हें हैं। आप सब केवल बाईं ओर को ही इसका वास्तविक अर्थ भी न पता था जानते हैं, बाईं ओर को, श्री गणेश से और इस प्रकार से वो दाईं ओर को चले लेकर भिन्न चक्रों में उत्थान के माध्यम गए और संभवतः आज्ञा पर जा फँसे। से। आरम्भ में मैं आपको दाएँ पक्ष के परन्तु वे आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के विषय में नहीं बताना चाहती थी क्योंकि लिए प्रयत्नशील थे उन्हें वचन दिया 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-5.txt जनवरी-फरवरी 2003 2 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 गया था कि यदि तुम दाएं पक्ष को ठीक परन्तु सहस्रार में किस प्रकार प्रवेश किया कर लोगे तो आत्म-साक्षात्कार के अन्तिम जाए यह समस्या बनी हुई थी। तान्त्रिक लक्ष्य तक पहुँच जाओगे। परन्तु वहाँ तक कोई भी न पहुँच उन्होनें काली विद्या विकसित कर ली पाया। अधिकतर भयानक क्रोध की स्थिति में चले गए, अन्य लोगों को श्राप देने उन्हें नष्ट करने के भयानक क्रोधी स्वभाव में वे स्वभाव के बन गए, अत्यन्त क्रोधी स्वभाव चले गए। दाईं ओर के उनके झुकाव के के। वो बहुत अधिक महत्वाकांक्षी और कारण उन्होंने ये सारी चीजें सीखीं। उनमें कुण्डलिनी की जागृति नहीं थी अधिक की हत्या करने लगे शाप देने में वे बहुत से अधिक उन्हें आज्ञा चक्र तक पहुँचा कुशल थे, हमेशा सबसे आगे होते थे, दिया गया था। तब वे पूर्णान्धकार की सबको पीछे धकेल कर उनके अधिकारों भिन्न अवस्थाओं में जा फंसे। ये सारी का हनन करते थे। उन्हें बहुत ही पुस्तकें बिना सोच के लिखी गई थीं । महत्वाकांक्षी तथा शक्तिशाली माना जाता लोग बाईं ओर से ऊपर को गए और अर्थात बाईं ओर को विकसित कर लिया । तो दाई ओर के लोग अत्यन्त क्रोधी आक्रामक हो गए और शाप देकर लोगों दाई ओर से उत्थान प्राप्त कर लेना सुगम था। तो ब्राह्मण और क्षत्रिय लोगों ने नहीं है कुण्डलिनी को जागृत कर लेना आक्रामकता को अपना लिया और इस ही सुगम है। कुण्डलिनी सीधे ही व्यक्ति आक्रामक स्वभाव के कारण निःसन्देह वे को सभी चक्रों के मध्य में ले जाती है । लोग अत्यन्त शक्तिशाली बन गए। पूरे आज्ञा के स्तर तक लाती है और फिर विश्व पर उन्होनें अपना सिक्का जमा लिया आज्ञा का भेदन करके सहस्रार को पार और उन्हें अत्यन्त शक्तिशाली तथा तेजस्वी माना जाने लगा। परन्तु वास्तव में वे ऐसे जहाँ से ये भेदन करती है न थे क्योंकि वो तो अत्यन्त क्रुद्ध स्वभाव करती है । ब्रह्मरन्ध्र, उसका क्या महत्व हैं? इसके विषय में के थे। क्रोधी स्वभाव के लोग किसी भी मैंने आपको कभी नहीं बताया। परन्तु, प्रकार से आध्यात्मिक नहीं हो सकते। अब मैं सोचती हूँ कि आपमें से अधिकतर के लिए वह समय आ गया है। बचपन में आध्यात्मिकता प्राप्त हो जाएगी चिन्ता मत तालू अस्थि क्षेत्र में बच्चे का तालू होता है करो, चलते रहो और सातों चक्रों का जो सदैव धड़कता रहता है। यह इसलिए वर्णन दाईं ओर को किया गया उनके धड़कता है कि आत्मा ने इस क्षेत्र से प्रवेश किया था। जब यह बन्द होता है ये पूरा ब्रह्माण्ड है या हम कह सकते हैं तो आत्मा हृदय में स्थापित हो जाती है। कि पूरा अन्तरिक्ष है। स्वाहाः नाभि चक्र अब आप आत्माभिमुखी व्यक्ति हो गए हैं पर अग्नि में आहुति देना है, स्वधा दी गई अतः उन्हें कहा गया कि तुम्हें अनुसार भुः, भूर्वः - भुः ये पृथ्वी है, भूवः 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-6.txt जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-४V अंक 1 व 2 3. आहति का अपने अन्दर अवशोषण करना के थे किस प्रकार इन्हें सामान्य बनाया हृदय। मन के जाए और मध्य मार्ग पर लाया जाए? एक पक्ष, जैसा मैंने आपको बताया, भुः, भूर्वः, स्वाहाः, स्वधा अर्थात आहुति थी। ये कार्य तपः ये गुरुतत्व द्वारा किया जाता था। इसके तप है । तप में ईसा मसीह मध्य में होते हैं बाद मनः और जनः है अर्थात सामूहिकता। आज्ञा के बाईं ओर को जैन मत था और ये लोग सामूहिक हो जाते हैं, इसमें कोई दाईं ओर को ईसाई धर्म। वास्तव में ये सन्देह नहीं हैं, क्योंकि वे अत्यन्त उत्थान के पथ नहीं थे। ये तो शक्तिशाली हैं और बहुत से लोग उनके सत्य-साधकों की ऊर्जा के निकास द्वार साथ हैं। आक्रान्ताओं के लिए आक्रान्त स्वभाव से लोगों के साथ युद्ध करके वे है इसके बाद मन बाद विशुद्धि का स्थान है अर्थात जनः सामूहिकता, लोग, लोगों के पास जाना जनः है। तत्पश्चात् आज्ञा है थे। भारत में युगों तक ऐसा होता रहा। उन पर अत्याचार कर रहे थे। सभी गुरुओं, साधुओं और तपस्वियों, सबने ऐसा ही किया। वे कहाँ पहुँचे। ये तपस्वी में इस प्रकार की पीढ़ी आई और समाप्त वो लोग थे लो लोगों को शाप दे सकते हो गई, युद्ध लड़े गए और बहुत से लोग थे, किसी को भी अभिशप्त कर सकते मृत्यु के घाट उतार दिए गए । हिटलर थे। अपने एक कटाक्ष से वे किसी का वध अत्याचार की पराकाष्ठा थी। मानवता की कर सकते थे, किसी को जला सकते थे । उन्होनें कभी चिन्ता नहीं कि अतः ऐसे दाईं ओर की सभी शक्तियाँ उनके पास लोग आज्ञा तक पहुँच गए। आज्ञा पर थीं। परन्तु दाईं ओर की इन शक्तियों के उन्होनें ईसा-मसीह की हत्या की। साथ वे कहाँ पहुँचे? मुझे कहना चाहिए ईसा-मसीह को उन्होनें नष्ट कर दिया। कि वे नर्क में पहुँच गए। वहाँ किसी को मध्य मार्ग से आए हुए बहुत से महान भी आत्म-साक्षात्कार प्राप्त नहीं हुआ। भारत के पुरातन ग्रन्थों को पढ़ें। यूनान, से कुछ सन्त तो अवतरण थे परन्तु उन्हें मिश्र, इंग्लैण्ड और जर्मन लोगों के विषय भी नष्ट कर दिया गया श्री राम के में पढ़े। सभी आक्रामक थे। कैथोलिक समय से यह सब हुआ। ये सब कुछ लोग तथा रोमन भी सभी आक्रामक थे घटित हुआ। एक के बाद एक अनगिनत तथा अन्य देशों की भूमि एवं सम्पत्तियों राक्षस आए और उन्होनें विश्व की शान्त पर कब्जा कर रहे थे। ये सब अत्यन्त संस्कृति को नष्ट किया। आक्रामक थे और उन्हें विश्वास था कि अन्य लोगों की हत्या करनी चाहिए। ये करने वाले, अत्यन्त आक्रामक लोग कह अत्यन्त अपमान जनक तथा क्रोधी स्वभाव सकते हैं ये आक्रामकता आई और बहुत जैसा कि आप जानते हैं, इतिहास सन्तों को उन्होनें समाप्त कर दिया इनमें हम उन्हें अत्यन्त अहंकारी, दिखावा 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-7.txt जनवरी-फरवरी 2003 4 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 ही वेग के साथ आईं, एक के बाद एक पहुँच गए जहाँ वे पूर्णतः राषक्षस बन गए। करके आई । यह एक सीमा तक पहुँची। बिना इस बात को महसूस किए हुए कि जब-जब भी लोगों ने प्रतिक्रिया की उनकी मानव राक्षस नहीं है ये लोग राक्षस बन हत्या कर दी गई, उन्हें नष्ट कर दिया गए । उनके गुरु भी ऐसे ही थे, इसके गया। इतने भयानक लोगों को सृजन कर अतिरिक्त कुछ नहीं । परन्तु उन्होनें तो दिया गया था! अवतरणों को भी नहीं छोड़ा, उन्हें भी ये सभी लोग अत्यन्त आक्रामक एवं सताया, सभी अवतरणों को सताया गया। विनाशशील थे आज भी ये स्वभाव हमारे जिस प्रकार से इन अवतरणों ने अपनी अन्दर है, विशेषरूप से कुछ लोगों में रक्षा की वह वास्तव में प्रशंसनीय था। क्योंकि वे आक्रामक स्वभाव के हैं दाईं परन्तु इन परिस्थितियों में वे कोई विशेष ओर के सभी लोगों को ये समस्या थी - परिणाम न दे सके । क्रोध, आक्रामकता तथा अन्य लोगों पर नियंत्रण करना। इनका विकास रूक गया था कुण्डलिनी का अध्ययन करना ताकि और आध्यात्मिक उन्नति न हो पाई । वे मैं कुण्डलिनी उठाने के काबिल हो सकूं । आध्यात्मिकता प्राप्त करना चाहते थे परन्तु मैं जानती थी कि मैं इसी कार्य के लिए अतः पहला कार्य जो मैंने किया वह इस प्रकार के आचरण के कारण आई हूँ किसी अन्य कार्य के लिए नहीं। आध्यात्मिकता उनसे भाग गई। हमारे यहाँ केवल लोगों की कुण्डलिनी उठानें के बहुत से अवतरण हुए परन्तु उनकी हत्या लिए ताकि वो मध्य मार्ग पर आ जाए, न कर दी गई उन्हें क्रूसारोपित कर दिया दाएँ को जाएं न बाएँ को परन्तु मैंने गया और समाप्त कर दिया गया। सामान्य आपको केवल बाईं ओर का ज्ञान तथा मानव की रक्षा की कोई संभावना न थी। कुण्डलिनी उठाने के विषय में ही बताया। एक दुष्ट व्यक्ति आया और उसने पूरे कुण्डलिनी उठाने के माध्यम से आपने विश्व को नष्ट कर दिया। एक हिटलर अपना सहस्ार भेदन किया और आया और उसने सभी लोगों को सभी वास्तविकता के सच्चे आनन्द के क्षेत्र में देशों को और राष्ट्रों को चोट पहुँचाई प्रवेश कर गए। आपके सभी दुर्गुण समाप्त और हम सब समाप्त हो गए। यह सब होने लगे। मध्य-मार्ग पर सर्वप्रथम मूलाधार केवल दाईं ओर (आक्रामकता की ओर ) आया मध्य-मार्ग पर मूलाधार को जागृत झुकाव के कारण था जिसे लोगों ने कर लेने से आप लोग अत्यन्त पवित्र हो आध्यात्मिकता प्राप्ति का सुगम मार्ग माना गए, आपमें वासना समाप्त हो गई, आपका था। परन्तु वास्तव में ऐसा न था। अतः इन दुष्ट लोगों ने सारी सीमाएं अत्यन्त पावन व्यक्ति बन गए। जब तक लाँघ डाली और एक ऐसी अवस्था पर ऐसा नहीं हो जाता आप सहजयोग में हल्कापन चला गया और आप अत्यन्त, 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-8.txt जनवरी-फरवरी 2003 5 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 नहीं रह सकते। आप लम्पट और चुलबुले किस प्रकार लोगों पर रौब जमाना है और नहीं हो सकते, ऐसे व्यक्ति नहीं हो सकते किस प्रकार असहिष्णु होना है। जो दूसरों का धन हड़पना चाहता हैं। अत्यन्त आक्रामक व्यक्ति भी सहजयोग में स्तर तक गए। स्वाधिष्ठान में ऊँचा उठने नहीं रह सकता। इस प्रकार वे स्वाधिष्ठान के उच्चतम के कारण सृजनात्मक लोगों में सृजन करने - यश अर्जन अतः ऐसे सभी लोगों को सहजयोग की आक्रामकता जाग उठी से बाहर फेंक दिया गया और जब उन्हें करने के लिए सभी प्रकार की अटपटी बाहर फेंक दिया गया तो, मैं कहना चाहूँगी, और गन्दी चीजों का सृजन करने की वे अपने दाँत दिखा रहे थे। अपना बाहर आक्रामकता। फैंका जाना उन्हें अच्छा नहीं लगा। परन्तु अब उनमें से कुछ लोग इस बात को स्वाधिष्ठान से प्राप्त हुई। उन लोगों को समझते हैं कि उन्होनें गलतियाँ की हैं। अतः पहली चीज ये है कि आप करना चाहते थे उन्हें ये चीज़ दाएँ अपने अन्दर पावित्र्य-विवेक (Sense of स्वाधिष्ठान से प्राप्त हुई। Chastity) विकसित करें। उसका सम्मान करें और उसका आनन्द लें। आपके पर लोग धन कमाने के लिए निकल पड़े, मूलाधार जागृत होने के पश्चात् ही यह लक्ष्मी नहीं, धन कमाने के लिए. किसी भी घटित हो पाया है बाईं ओर का यह प्रकार से धन कमाने के लिए निकल पड़े । पहला चक्र हैं जहाँ आपके अन्दर श्री उन्होनें पूरे विश्व को धोखा दिया। जो गणेश विराजमान हैं। तो ये एक अन्य चीज़ है जो हमें जो नाम कमाना चाहते थे या पद हासिल नाभि चक्र तीसरा चक्र है इस चक्र धन उन्होनें इस प्रकार एकत्र किया उससे परन्तु दाईं ओर को भी हमारे अन्दर सभी प्रकार के दुष्कर्म किए। या तो उन्होनें देवी-देवता विद्यमान हैं । कमियों को दूर धोखाधड़ी की या वे आक्रामक हो गए । करने के लिए हर चक्र पर देवता भारत जैसे बाईं ओर के देशों में धोखाधड़ी विराजमान हैं। श्री गणेश क्योंकि मध्य में बहुत थी और दाईं ओर के देशों में हैं इसीलिए हमें उनके शक्तिशाली पावित्र्य आक्रामकता थी। मध्य स्वाधिष्ठान पर जब का आशीष प्राप्त हुआ और हम पावनता हम होते हैं तब हमारे अन्दर सृजनात्मकता के सौन्दर्य, पावनता की शक्ति को समझने होती हैं - अत्यन्त सुन्दर, अत्यन्त गहनता लगे। इस प्रकार से हमने अपने दाईं ओर पूर्ण आध्यात्मिक कला का सृजन । ये सारे के दोषों को समाप्त किया। दाई ओर युद्ध गुण समाप्त हो गए और लोग अवतरणों करने के लिए, हत्या के लिए और क्रोध को भी बुरी आदतों से पूर्ण दर्शाने लगे। के लिए थी। इन लोगों के लिए शान्ति न इस उन्नति के साथ सभी प्रकार की गन्दगी थी। ये केवल इतना ही जानते थे कि भी आई । 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-9.txt जनवरी-फरवरी 2003 6 चैतन्य लहरी खंड-xV अंक 1 व 2 इसके बाद जैसा मैंने आपको बताया का चक्र है। उनमें न पितृत्व था और न नाभि चक्र है नाभि चक्र पर लोग धन के ही मातृत्व। ये लोग इतने स्वार्थी, स्वयं पीछे पड़ गए। बाईं ओर के लोग धन सीमित (Self Centred) तथा रौबीले थे बना रहे थे और दाई ओर के धन के जिन्होनें अपने बच्चों को बाहर निकाल कारण आक्रामक हो गए थे। धन कमाने दिया। यह हृदय चक्र था। बाले लोगों ने सोचा कि वे विश्व के शिखर पर हैं जिसने धन प्राप्त कर लिया वह उसे विशुद्धि चक्र कहते हैं। विशुद्धि चक्र सोचने लगा कि मुझसे श्रेष्ठ कोई भी नहीं पर लोगों ने पूरे विश्व पर कब्ज़ा करना है इस तरह की सोच ने उन्हें समाप्त चाहा तत्पश्चात् सामूहिकता का चक्र आया । पूरे विश्व को उन्होनें अपना साम्राज्य बनाना चाहा ताकि वे सम्राट बन सकें। कर दिया। यह सोच उन्हें समाप्त कर रही हैं और उन्हें उस बिन्दु तक ले जाएगी जहाँ वे इस बात को समझ सकेंगे कि धन विनाश के लिए नहीं है। धन तो निर्माण के लिए है, देश के निर्माण के लिए, मानव में शान्ति, प्रेम, सहयोग तथा सभी प्रकार के अच्छे गुणों के निर्माण के लिए । उन्होनें साम्राज्य बनाए और इस प्रकार से अमानवीय व्यवहार किए जो कर पाना मानव के लिए असंभव है। मैं कहना चाहूँगी कि ये लोग वास्तव में राक्षस थे ये राक्षसी 1 गुण आज भी बने हुए हैं इन लोगों के आचरण से और सारे कार-व्यवहार से तत्पश्चात् यही आक्रामक लोग माँ के चक्र आप देख सकते हैं कि ये किस प्रकार पर आए और यहाँ तो माताएँ भी भयानक अन्य लोगों से व्यवहार करते हैं, उनसे थीं जिन्होंने अपने बच्चों पर तथा अन्य किस प्रकार का आचरण करते हैं और सभी लोगों पर रौब जमाने का प्रयत्न ऐसे लोगों का सृजन करते हैं जो आक्रामक किया अपने बच्चों पर वे कुछ भी बलिदान हैं और आध्यात्मिकता विरोधी हैं। इन न कर सकीं । हमारे यहाँ बहुत सी महिलाएँ लोगों के कारण यह विश्व दोतरफा बन आईं जो अपने पतियों और बच्चों के प्रति गया जिसमें ऐसे लोग हैं जो आक्रामक हैं बहुत आक्रामक थीं। यहाँ तक कि पुरुषों और दूसरों को कष्ट देते हैं यह दो में भी पितृत्व भाव मृत होकर समाप्त हो तरफा विश्व आज भी है, परन्तु बहुत कम है। इसका श्रेय सामूहिक सूझ-बूझ को गया है। जब मैं पृथ्वी पर अवतरित हुई तो जाता है। बहुत सी अच्छी संस्थाओं की सभी लोग ऐसे ही थे। इनके कारण मुझे स्थापना की गई परन्तु वे भी कुछ विशेष सदमा पहुँचा। ये कैसे मानव हैं! इनके कार्य नहीं कर रही हैं। लक्ष्य प्राप्ति में वे लिए मैं क्या करूँगी? किस प्रकार मैं इनकी कुछ खास सफल नहीं हैं क्योंकि इनके कुण्डलिनी जागृत करूँगी? ये तो नाभि उच्च पदारूढ़ लोग ही सभी कुछ नियंत्रित चक्र पर ही खो गए हैं। परन्तु अब यह माँ कर रहे हैं। परन्तु नियंत्रण किसका? वो 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-10.txt जनवरी-फरवरी 2003 7 चैतन्य लहरी खंड-xV अंक 1 व 2 स्वयं को नियंत्रित नहीं करते अन्य लोगों है कि जो लोग आध्यात्मिक भी हैं और को नियंत्रित करते हैं। उनके आचरण ने जिन्होनें महान बुलन्दियाँ प्राप्त कर ली हैं इस चक्र के सारे कार्य को ही बिगाड़ उन्हें तनिक सी भी चिन्ता नहीं है कि दिया है। अपने आप यदि सामूहिक रूप से आध्यात्मिकता का आनन्द लेने के लिए वे आप चहुँ ओर देखें तो सर्वत्र युद्ध हो रहे लोग पूजाओं में आते हैं अधिक से अधिक हैं, लड़ाईयाँ हो रही हैं, मार काट हो रही आध्यात्मिकता प्राप्त करते हैं। परन्तु अन्य है और विनाश हो रहा है । यह कैसे हो लोगों को परिवर्तित करने के लिए उन्होनें सकता है? इस विश्व में अब बहुत से कोई सामूहिक कार्य नहीं किया। कुछ आध्यात्मिक लोग हैं। कारण ये है कि लोग, एक दो लोग कार्य कर रहे हैं, बस। आध्यात्मिक लोग अत्यन्त मौन हो गए हैं बाकी सब मजे में हैं और इस प्रकार से और अपने आध्यात्मिक जीवन का भरपूर आनन्द उठा रहे हैं कि लोग उन्हें महान आनन्द ले रहे हैं। ये अत्यन्त निश्चेष्ट एवं आत्माएँ और अच्छे लोग मानते हैं। शान्त हो गए हैं परन्तु इस प्रकार से शान्ति नहीं आ सकती। आपको गतिशील अन्तर्वलोकन करके देखें कि आपने कितना होना होगा और इस विश्व में शान्ति लानी सामूहिक कार्य किया है। आप कितने लोगों होगी। इसके लिए आपको कुछ न कुछ को लाए हैं। किसके साथ आप बातचीत करना होगा अपनी उन्नति से हम लोग करते हैं, कितने लोगों को आपने सहजयोग बहुत संतुष्ट हैं परन्तु हमें यह देखने की के विषय में बताया है? केवल इतने से चिन्ता नहीं है कि अन्य लोगों ने क्या लोग यहाँ हैं। ईसा-मसीह के केवल बारह उन्नति की है, वे कहाँ तक पहुँचे हैं, हम शिष्य थे, वे आप सबसे कहीं अधिक उनसे कहाँ मिल सकते हैं और किस प्रकार गतिशील (Dynamic) थे उन्हे परिवर्तित कर सकते हैं? अपने स्तर पर मैं बहुत सी चीजें परिवर्तित कर सकती (क्रियाशक्ति) का उपयोग करें जब आप हूँ, परन्तु आप लोगों ने अपने स्तर परलोग दाईं ओर का उपयोग करेंगे तो कितने लोगों को परिवर्तित किया है? आपने प्रगतिशील लोगों का सृजन होगा जोकि क्या किया है? ये बात देखी जानी है। बीमार, रोगी अत्यन्त मौन और निष्क्रिय अभी भी आप आज्ञा पर अपने अहंकार में लोग न होंगे ऐसे लोगों का सृजन रहते हैं और अपनी ही शान्ति से अत्यन्त सहजयोग का लक्ष्य न था। सहजयोग का क्या किया जाना चाहिए! अपनी मैं चाहूँ गी कि आप लोग अतः अब आप लोग दाई ओर लक्ष्य परिवर्तित करना है बहुत से लोगों प्रसन्न हैं। आज यह सबसे बड़ी विपत्ति है को परिवर्तित करना। जो लोग ये कार्य जिसका सामना आज यह विश्व कर रहा कर रहे हैं, मेरा आर्शीवाद उनके साथ है। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-11.txt जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 परन्तु जो स्वयं तक सीमित हैं, वह कोई सहजयोगिनियाँ बनाना है परन्तु ऐसा अच्छी बात नहीं है। आपके देश में कितने नहीं हो रहा मैं देखती हूँ कि ऐसा नहीं हो लोगों ने सहजयोग अपनाया। पता लगाएं रहा है । क्रियाशक्ति (Right Side) के कितने लोगों पर आपने सहजयोग उपयोग का अभाव है। आपको क्रियाशील कार्यान्वित किया है । होना पड़ेगा। आपको कुछ नहीं होगा। कोई आपको मार नहीं सकता, कोई अतः आप का योग अधूरा है। यह बाईं ओर का अधूरा योग है जिसमें आप आपको परेशान नहीं कर सकता, कोई बहुत, प्रेममय हैं, बहुत करुणामय हैं। ऐसे आपको गिरफ्तार नहीं कर सकता। ये हैं, वैसे हैं आप आक्रामक हो जाऐें। परन्तु मेरा वायदा है। आपमें शक्तियाँ हैं परन्तु मैंने ये भी देखा है कि लोग लीडर बनना यदि आप इनका उपयोग नहीं करते तो चाहते हैं। वे कुछ बहुत बड़ी चीज़ बनना आप ऐसे ही हो जाएंगे यही कारण है चाहते हैं। परन्तु आपने कितने लोगों को कि हम निष्चेष्टता के स्तर पर आ गए हैं। आत्म- साक्षात्कार दिया है, कितने लोगों हमें ये बात समझनी होगी कि हमें अपनी से सहजयोग की बातचीत की है? मैंने क्रियाशीलता का उपयोग करना होगा। देखा है कि हवाई जहाज पर जाते हुए, क्रियाशीलता का बहुत महत्व है। गलियों में चलते हुए लोग सहजयोग की बात करते हैं परन्तु यहाँ पर हम सहजयोग विषय में बताऊँगी, आपमें कौन-कौन सी को अपनी महानता के लिए और स्वयं को शक्तियाँ हैं । आप लोग चाहे जो करें आप समझने के लिए उपयोग कर रहे हैं तामसिक प्रवृत्ति (Left Sided) नहीं हो सहजयोग आपको इसलिए नहीं दिया सकते। अतः पूरी सूझ- बूझ के साथ उचित गया यह आपको इसलिए दिया गया है दिशा में आप अपनी क्रियाशीलता (Right कि आप बहुत सारे लो गों को Side) का उपयोग करें, हिटलरों की तरह आत्म-साक्षात्कार दें। युवाओं से, युवा पीढ़ी से निरंकुश नियंत्रक बन कर नहीं । से मेरी प्रार्थना है कि अपनी सहज शक्तियों सहजयोगियों में हिटलर भी हुए, परन्तु को बेकार की चीजों में वैसे नष्ट न करें अब आप लोगों के लिए समय आ गया है जैसे पुराने लोगों ने किया। अच्छा होगा कि अब आप पूर्वकालीन सन्तों से भी कि आप आगे बढ़े। सहजयोग की बातचीत आगे कुछ करें ताकि सहजयोग कार्यान्वित करें और सहजयोग को फैलाएं। इन लोगों हो सके। इसे स्वयं तक सीमित न रखें। की रुचि स्कूल चलाने में, अनाश्रितों की अपने परिवार, अपने बच्चों और अपने देखभाल करने में तथा ऐसे ही अन्य कार्यों आनन्द के लिए इसे सीमित न करें। को करने में है यह आपका कार्य नहीं सहजयोग इस कार्य के लिए नहीं है। यह है। आपका कार्य बहुत से सहजयोगी और तो पूरे विश्व को परिवर्तित करने के लिए अगली बार मैं आपको दाईं ओर के 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-12.txt जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 है आपको इसके बारे में सोचना होगा । है कि वे आज्ञा चक्र पर सबको क्षमा करें आप क्या कर रहे हैं, आप क्या हैं और परन्तु इसका अर्थ ये नहीं है कि आप सहजयोग से आपने क्या उपलब्धियाँ प्राप्त लोगों को गलत कार्य करते चले जाने की की हैं? इसके बाद हम आज्ञा पर आते हैं। चाहते हैं इसलिए झगड़ा न करना, कुछ आज्ञा पार करने पर सहजयोगी ऐसे बन न कहना, इन चीजों से दूर रहना, बस गए कि वे कुछ भी सहन कर सकते हैं, क्षमा कर देना, बहुत आसान है । नहीं। कोई भी कष्ट उठा सकते हैं। हम ऐसा जाकर उस व्यक्ति से बात करें और उसे नहीं चाहते, हम तो अन्य लोगों की तकलीफें ब्रताएं कि ये गलत है। आपको इसका और उनकी आक्रामकता दूर करना चाहते सामना करना पड़ेगा। यदि आप इसका आज्ञा दे दें। आप क्योंकि क्षमा करना हैं। हमारे पास उस प्रकार की व्यवस्था सामना नहीं कर सकते तो आप बेकार नहीं है वैसी सूझ-बूझ हमारे पास नहीं हैं किसी भी अन्य साधारण व्यक्ति की है यदि ये कार्यान्वित हो जाता है तो तरह से हैं। आपके आत्म-साक्षात्कार प्राप्त आप बिल्कुल भिन्न प्रकार के व्यक्ति बन करने का क्या लाभ हुआ। जाएंगे। अतः हम सन्तों जैसे बन गए हैं, इतना ही काफी नहीं हैं कि हमारे अन्दर जैसे सन्त अपने आश्रम के हॉल के चैतन्य है कि हम ठीक ठाक हैं तथा लोगों सभागारों में बैठे रहते हैं वैसे ही बन गए को रोगमुक्त कर सकते हैं। यही अन्तिम हैं, उससे आगे कुछ नहीं। अतः बिना किसी आक्रामकता के फैलाना है, आपको जनता में जाना है । हम यदि कुछ सकारात्मक कार्य करने का इस मामले में सामूहिक होकर आपको प्रयत्न करें तो बेहतर होगा मैं जानती हूँ सहजयोग फैलाना है। विश्वभर में इतने कि आपमें से कुछ लोग अभी भी बहुत अधिक सहजयोगियों के होते हुए भी हमने आक्रामक हैं और दिखावा करते हैं । ये कोई विशेष उन्नती नहीं की है । अतः अब बात में जानती हूँ। परन्तु यदि सामूहिक आप ही लोगों ने इसकी योजना बनानी रूप से कार्य करने की इच्छा आप में जाग है कि आप क्या करना चाहते हैं, किस जाए तो आप जान जाएंगे कि आपमें क्या प्रकार से इस कार्य को करना चाहते हैं, कमियाँ हैं। अभी भी आपके व्यक्तित्व में किस प्रकार से सहजयोग फैलाना चाहते क्या अभाव हैं। ये बहुत महत्वपूर्ण हैं। हैं? ये बहुत महत्वपूर्ण है। आप लोग आज्ञा चक्र पर बहुत से सहजयोगी सहजयोग की बात-चीत करने और भजन लड़खड़ा जाते हैं। मैं नहीं जानती कि गाने में बहुत कुशल हैं परन्तु बहुत सारे उन्हें क्या हो जाता है? मैंने उन्हें बताया लोगों को सहजयोग में लाने के पक्के अतः अब हमें यह समझना है कि शब्द नहीं हैं। नहीं आपको सहजयोग 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-13.txt जनवरी-फरवरी 2003 10 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 प्रभावों के बिना ये सब चीजें व्यर्थ हैं । तुर्की जैसे छोटे से देश में पच्चीस हजार सहजयोगी हैं। इसके विषय में की है कि सहजयोगी मुर्दों सम हैं। क्या आपको क्या कहना है? वे सब मुसलमान आप ऐसे ही हैं? मुझ जैसे अकेले व्यक्ति हैं। पच्चीस हजार मुसलमानों का ने इतना सारा कार्य कर डाला तो आप सहजयोगी बनना! जबकि अन्य किसी भी लोग क्यों नहीं कर सकते? क्या अपने देश में यह संख्या बहुत कम है। वो लोग देश में आपने इसे सर्वत्र कार्यान्वित किया बहुत धनी नहीं हैं परन्तु वो अपने है इसके बारे में सोचें। जब तक आप इस आत्म-साक्षात्कार की तथा अन्य लोगों कार्य को नहीं करते आप संपूर्ण नहीं हैं को आत्म-साक्षात्कार देने की चिन्ता करते आप अधूरे हैं और आदिशक्ति की शक्तियों हैं। आश्चर्य की बात है किस प्रकार यह को आपने पूरी तरह से नहीं समझा है। कार्यान्वित हुआ, किस प्रकार ये फैला! अपनी समस्याओं, अपने शत्रुओं, आदिशक्ति के रूप में मेरी पूजा करने के अपनी शक्तियों के विषय में सोचने के लिए आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है। स्थान पर अन्य लोगों को शक्ति देकर यह अर्ध-निष्क्रियता नहीं है, नहीं। यदि उन्हें सहजयोगी बनाने के विषय में सोचें । ये कार्यान्वित नहीं होता तो क्या लाभ है? ऐसा करना बहुत आवश्यक है। आप यदि तब यह किसी अन्य एहसास की तरह से सहस्रार में हैं तो आपके पास ये सब है, इसका कोई महत्व नहीं? आपने शक्तियाँ हैं। सहस्रार में होकर भी यदि सहजयोग को केवल फैलाना ही नहीं है प सहजयोगी नहीं फैलाते तो लोगों को परिवर्तित करना है और उन्हें गतिशील शक्ति के साथ कार्य करें। बहुत से लोगों ने मुझसे शिकायत इसीलिए मैं आपको बता रही हूँ कि आ आत्म-साक्षात्कार लेने का क्या लाभ हैं? महसूस करवाना है। केवल अपने लिए? ऐसा करना अत्यन्त स्वार्थ-पन है। अतः मैं कहूँगी कि अपनी पूर्ण शक्तियाँ मैं आपको देती हूँ परन्तु गरिमा, अपना यश, अपना नाम फैलाने के समझने का प्रयत्न करें, ठीक हैं? अपना पूर्ण आशीष, पूर्ण प्रेम और स्थान पर, कृपा करके, सहजयोग में अधिक से अधिक लोगों को लाएँ । अत्यन्त आप सबका हार्दिक धन्यवाद । 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-14.txt गुरु पूजा रविवार 21 जुलाई 2002, कबैला, इटली परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन भारत में सभी लोग मॉनसून की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इसके विषय में वो हम सब गुरुपूजा उत्सव मना रहे हैं और बहुत चिन्तित हैं क्योंकि वहां बारिश उन सब महान गुरुओं को स्मरण कर रहे बिल्कुल नहीं है । अतः मैं बारिश को बन्धन दे रही थी और बारिश यहां हो गई। अब दूरदर्शन पर उन्होनें बताया है आज महान दिन है क्योंकि आज हैं जो पृथ्वी पर सत्य के विषय में बताने के लिए अवतरित हुए। ०ी ब हु त से अवतरित हुए और अपने अपने स्तर कर गु रु कि भारत में वर्षा होने वाली है। परन्तु वर्षा पहले इटली में हुई। मुझे बताया गया था कि इटली में भी आपको वर्षा पर मानव को यह समझाने का जी जान से प्रयत्न कि किया आध्यात्मिकता क्या है। परन्तु इतनी विषमता है कि लोग इस बात को कभी भी नहीं समझे कि आध्यात्मिकता हमारे लिए अत्यन्त की बहुत जरूरत है। पहली वर्षा कुछ दिन पूर्व हुई और अब ये दूसरी वर्षा है। हमारी शक्तियों को समझने की आवश्यक है तथा समस्या बनी हुई है। परन्तु वर्षा इतनी करुणामय है कि यह उचित समय पर हमें परमात्मा के प्रेम को सर्वव्यापी शक्ति कार्य करती है। वर्षा के आज्ञाकारी स्वभाव से एकाकारिता प्राप्त करनी है । और तुरन्त कार्य करने पर मैं हैरान हूँ । उन्होंने अपने सारे प्रयत्न गलत दिशा 1 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-15.txt जनवरी-फरवरी 2003 12 चैतन्य लहरी खंड-xV अंक 1 व 2 में ही किए निःसन्देह मानव बहुत अधिक यह केवल रोगमुक्त ही नहीं कर सकती बुद्धिमान था, पशुओं से कहीं अधिक और पूर्ण सक्षम भी है। यह केवल इतना ही उसने खोज आरम्भ कर दी-सत्य की नहीं बताती कि आप बीमार है और आपको नहीं, एक प्रकार से अपनी मुक्ति की खोज समस्या है परन्तु आपको रोगमुक्त करने या मेरी समझ में नहीं आता कि क्या में भी सक्षम है यही कारण है कि भारत कहूँ-अपनी उन्नति की खोज। और इस में अग्नि की पूजा की जाती थी, प्रकाश दिशा में यह भूल गए कि सर्वप्रथम उन्हें की पूजा की जाती थी। सबसे पहले अग्नि आध्यात्मिकता की खोज करनी होगी की पूजा की जाती थी। संभवत वो जान क्योंकि आध्यात्मिकता महत्वपूर्ण है। गए थे कि अग्नि सब कुछ जानती है । ती अतः आन्तरिक इन सभी तत्वों की थी । एक बाईं ओर से और दूसरी दाईं आन्तरिक चेतना के विषय में वो जानते ओर से। भारत में, न जाने क्यों, लोग थे और इन्हीं कारणों से वे इसकी पूजा जंगलों में चले गए और सन्त बन गए। वो करते थे। पूजा से पूर्व इन तत्वों के देवी लोग दाईं ओर की तपस्या कर रहे थे देवताओं का आह्वान किया जाता था कि अर्थात एक के बाद एक पंच तत्वों में वो पूजा की साक्षी बनें। परन्तु यह सब पेंठना और पंच तत्वों पर स्वामित्व प्राप्त दांई ओर की गतिविधी (कर्मकाण्ड) बन गई। बांई ओर के बिना दांया पक्ष अत्यन्त हमारे सम्मुख दो प्रकार की यात्राएं करना। निःसन्देह इसमें सच्चाई है। आपने भयानक होता है आपमें यदि दांया पक्ष देखा है कि किस प्रकार दीपक (बादलों (कार्यान्वयन शक्ति) नहीं है तो भी यह की गर्जन) आपको यह बताता है कि अत्यन्त भयानक बात है। परन्तु सर्वप्रथम आपकी स्थिति क्या है। मोमबत्ती की आपको अपने बांए पक्ष (भक्ति पक्ष) को ज्योति आपको बता सकती है कि आप विकसित करना होगा। आरम्भ में भूतबाधित हैं या नहीं। क्या आप इसकी सहजयोग में भी हमने यही किया। कल्पना कर सकते हैं? मोमबत्ती को इतना अधिक ज्ञान है! मान लो आपको हृदय ही बांया पक्ष (भावना पक्ष) है। हम इतना चक्र की समस्या है, आपको हृदय रोग है, ही कह सकते हैं कि देवी का आशीर्वाद तो मोमबत्ती इसे दर्शाएगी और यदि आप जिसका वर्णन देवी महात्म्य में किया गया मोमबत्ती के प्रकाश से अपना इलाज करें है कि देवी आपके अन्दर भिन्न रूपों में तो आप स्वयं को रोगमुक्त कर सकते हैं। विराजमान है। आपके अन्दर वह श्रद्धारूप 1 बेंबेस करुणा, प्रेम सबके लिए सौहार्द भाव अतः यह इतनी संवेदनशील है कि में विराजमान है, निद्रारूप में विराजमान 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-16.txt जनवरी-फरवरी 2003 13 चैतन्य लहरी खंड-xV अंक 1 व 2 है। आपके अन्दर वो भ्रान्तिरूप में विराजती बहुत गम्भीर चीज़ है अपनी बुद्धि द्वारा, हैं। बांई ओर की बहुत सी चीजें हैं। अपनी सोचने की शक्ति द्वारा आपका जिनका वर्णन पहले ही किया जा चुका अहम् उस सीमा तक जा सकता है जहाँ है। जब मैंने आपको सहजयोग के विषय यह आपके लिए ही समस्या खड़ी कर में बताया था तो मैं आपके बाएं पक्ष को दें। बहुत दृढ़ करना चाहती थी। जिन लोगों ने दाएं पक्ष (राजसी परिणाम स्वरूप बहुत से रोग हो सकते हैं तरीके) अपनाए वो अत्यन्त आक्रामक हो जो पूर्णतया लाइलाज हैं। दाईं ओर के गए और उन्होनें पंच तत्वों के सार पर कुछ लोग तो रक्त कैंसर के शिकार हो स्वामित्व प्राप्त कर लिया। यहाँ तक तो सकते हैं। रक्त कैंसर का हमने इलाज ठीक है परन्तु ये लोग अत्यन्त क्रोधी स्वभाव किया है परन्तु ठीक होने के पश्चात् भी के हो गए। इतने क्रोधी स्वभाव के कि ये आप वैसी ही आक्रामकता की ओर लौट लोगों को शापित करने लगे। अत्यन्त सकते हैं क्योंकि आप सोचते है मैं ठीक कठोर बातें वे लोगों से कहते तथा हूँ। ऐसे लोग सदैव अन्य लोगों में दोष सर्वव्यापकता पर वे विश्वास न करते। खोजते हैं, कि फलां व्यक्ति अच्छा नहीं इतनी भयानक चीज को उन्होनें अपना है, वह हानि पहुँचा रहा है। ये लोग दूसरों लिया था। हमने देखा है कि इस समस्या के के दोष तो देख सकते हैं परन्तु अपने भारतीय शास्त्रों में बहुत सी घटनाओं दोष इन्हें दिखाई नहीं देते। उनका चित्त में आप देख सकते हैं कि लोग शाप दे बाहर की ओर होता है अपने आप पर देते हैं और यह बात आम थी। गुरु लोग नहीं। कभी वे यह नहीं देखते कि उनमे किसी को भी इसलिए शाप दे दिया करते क्या दोष है। वे तो बस अन्य लोगों के थे क्योंकि उनमें करुणा और प्रेम का दोष देखने में लगे रहते हैं। किस प्रकार अभाव था और आक्रामकता की शक्ति के से वे आक्रामकता की भयानक सीढ़ी पर लिए उनके पास और कुछ न था। परन्तु चढ रहे हैं जो उन्हें भयानक रोगो में अब हमने देखा कि जो लोग आक्रामक है. ढकेल सकती है। भक्ति बिना जो दाईं ओर का मार्ग पकड़ते हैं, परमात्मा के आशीर्वाद के बिना जो रक्त कैंसर रोग है । इससे यदि आपने चलते हैं वे वास्तव में राक्षस बन सकते हैं छुटकारा प्राप्त कर लिया तो अन्य प्रकार और मानवता के लिए बहुत बड़ा खतरा की समस्याएँ है। आजकल अल्जाइमर बन सकते हैं (बादलों का गर्जन) । यह (Alzheimer's) नामक एक प्रसिद्ध रोग जैसा मैंने आपको बताया, सर्वप्रथम 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-17.txt जनवरी-फरवरी 2003 14 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 है। यह भी दाए पक्ष के बाहुल्य करते रहते हैं। परन्तु अपनी आक्रामक (आक्रामकता) के परिणाम स्वरूप हैं। आपमें गतिविधियों के कारण आप अत्यन्त सफल यदि भक्ति न हो, वांछित विनम्रता न हो, हो सकते हैं। हिटलर इसकी पराकाष्ठा देवी का आशीर्वाद आपको प्राप्त न हो तो था। इस प्रकार से लोग अत्यन्त क्रूर तरीके आप इन भयानक रोगों के शिकार हो अपनाते चले जाते हैं। सकते हैं जो केवल प्राण लेवा ही नहीं है आजकल, मैं सोचती हूँ, कुछ लोग अपनी आक्रामकता के कारण सर्वत्र शासन परन्तु अन्य लोगों के लिए भी हानिकारक हैं। कर रहे हैं। बांई ओर (विनम्रता) को उपयोग अतः आक्रामकता द्वारा आपका करने वाले लोगों का अभाव हैं। और जब उत्थान नहीं होता कहते हैं कि आप जब भी अपने भक्ति पक्ष का उपयोग बहुत बड़े तपस्वी बन सकते हैं जो दूसरों उन्होंने किया तो वे सन्त कहलाए। आप को शाप दे सकें, उन्हें कष्टों में डाल सकें सब लोगों के पास भी भक्ति पक्ष की और सोंचें कि यह बहुत बड़ी शक्ति है। शक्तियां हैं। आप मे से कुछ लोगों में यह बहुत बड़ी शक्ति नहीं है। ऐसा थोड़ी सी आक्रामकता भी है। परन्तु कोई बिल्कुल भी नहीं है क्योंकि आप अन्य बात नहीं। शक्तियों द्वारा दबे हुए नहीं होते, नकारात्मक शक्तियों द्वारा, परन्तु वास्तव स्वामित्व पा लिया है। आपमें कुण्डलिनी में आपकी अपनी शक्ति ही आपका जीवन जागृत भी हो गई है। परमात्मा से आपकी ले लेती है। मैं कहूंगी कि आपने बांए पक्ष पर एकाकारिता है। अब आप दांई ओर, अतः कुण्डलिनी जब उठ जाए तो गतिशीलता की ओर, आ सकते हैं। और सर्वोत्तम मार्ग भक्ति की ओर (Left Side) इस पक्ष के विषय में जान सकते है, इस चले जाना है, बिना दूसरों की आलोचना की अभिव्यक्ति करने का प्रयत्न कर सकते किए, बिना उनकी बुराई किए, परन्तु अपने है। अन्य लोगों पर स्वामित्व जमाकर ही अन्दर अवलोकन करते हुए कि मुझमें क्या आप इसकी अभिव्यक्ति नहीं कर सके । कमी है। यह खोजने का प्रयत्न करें कि स्वयं पर स्वामित्व बनाकर भी आप ऐसा आपका क्या आदर्श है। इसका आरम्भ कर सकते हैं आत्म निरीक्षण द्वारा और तो अपने महत्व से है कि 'मैं अत्यन्त अपने द्वेषों को देखने से भी आप ऐसा महत्वपूर्ण व्यक्ति हूँ और इस नजरिये से कर सकते हैं। आपका आचरण ऐसा क्यों आप सभी को कष्ट देते चले जाते हैं हैं? क्यों आप दूसरे लोगों को कष्ट देते सभी को सताते रहते हैं। ऐसा सभी कुछ है? क्यों उन पर प्रभुत्व जमाते हैं? मैंने 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-18.txt जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 15 देखा है कि ऐसे लोग सदैव आयोजन कार्य कर रहे हैं? हमारी शैली क्या है?' एवम् प्रबन्धन करते हैं, ये करते हैं वो एक बार जब आप जान लें कि आपकी करते हैं। अपना आयोजन करने के स्थान शैली तामसिक है (Left Sided) तो आप पर वे अन्य लोगों को आयोजित करते हैं। क्रियाशीलता (Right Side) अपनाकर ये चीजें जटिल हो जाती हैं। आपमें यदि शक्ति प्राप्त कर लें -दाईं ओर की शक्ति। प्रेम है, आपमें यदि भक्ति है तो आप एक भिन्न तरीके से अन्य लोगों पर प्रभुत्व बाईं ओर की कुशलता के माध्यम से प्राप्त दाईं ओर की शक्तियां क्या हैं जिन्हें बनाए रख सकते हैं। आवश्यक नहीं कि किया जा सकता है? इस दिशा में कुछ क्रूरता द्वारा या किसी को सता कर आप महान गुरु अपना प्रभुत्व बनाएं, यह कार्य आप अपने से एक थे। वे एक देश के राजा थे, प्रेम में भी कर सकते हैं आप प्रभुत्व शासक थे-अत्यन्त प्रसिद्ध शासक। परन्तु हो गए हैं। राजा जनक उनमें जमाना ही नहीं चाहेंगे क्योंकि प्रेम, उदारता अत्यन्त उदार होते हुए भी वे महान सम्राट और विशाल हृदय के सम्मुख लोग स्वतः थे, उन दिनों के महान राजा। अपनी ही झुक जाते हैं। अतः सर्वप्रथम आप अपने अन्दर यह व्यवहार के लिए वे प्रसिद्ध थे। राजा जनक सारे गुण विकसित करें। यह बाईं ओर में यह सभी गुण थे। कोई भी चीज़ उन्हें का कार्य है कि आपको अत्यन्त शान्त परेशान न कर सकती थी। लोग इस होना चाहिए। अन्य लोगों से प्रेम करना बात को न समझ पाते थे कि बड़े से बड़े चाहिए । उनके प्रति उदार होना चाहिए आप करुणामय बनके देखें, कि यह आपको जाते हैं। वो राजा थे अत्यन्त शानों शौकत क्या प्रदान करता है। कुछ लोग देखे हैं से रहते थे, बहुत से आभूषण धारण करते जो अत्यन्त अभद्र हैं। किसी के साथ भी थे, बहुत से रथवाहन उनके पास थे, फिर वह अभद्र व्यवहार कर सकते हैं। यह भी न जाने उनमे क्या चीज़ महान थी। उनका स्वभाव है जिसे उन्होनें अपनी क्योंकि कोई भी चीज उनपर हावी न विनम्रता (Left Side) से नियन्त्रित करना थी। भौतिकता से वे इतने निर्लिप्त थे । है। अभद्रता सन्त का गुण नहीं है। सन्ति सभी कुछ होते हुए भी वे अत्यन्त निर्लिप्त तो अत्यन्त शान्त होता है और अन्य लोगों थे जिस व्यक्ति ने अपने बांए पक्ष पर के प्रति कभी अभद्र नहीं होता। निष्पक्षता, स्पष्टवादिता तथा प्रजा से अपने । सन्त भी उनके सम्मुख क्यों नतमस्तक हो स्वामित्व प्राप्त कर लिया हो और अब अतः प्रथम कार्य अन्तर्अवलोकन है। राजा हो ऐसे व्यक्ति का वह बहुत अच्छा हम कहां गलत हैं? हम कौन से गलत उदाहरण है। राजा जनक ऐसे ही व्यक्ति 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-19.txt जनवरी-फरवरी 2003 16 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 थे। अवतरण के रूप में उनका सम्मान करते 1. इसी प्रकार से हमारे यहाँ, बाद में, है। इसका कारण यह है कि अवतरण ऐसे बहुत से लोग हुए जो अत्यन्त होते हुए भी अपनी शक्तियाँ अन्य लोगों वैभवशाली थे, राजाओं की तरह को प्रदान करने में उन्होनें अपना सर्वस्व शक्तिशाली थे। परन्तु अन्दर से वे पूर्णतः लगा दिया। वे जगह जगह गए सुविधाएँ दिव्य व्यक्ति थे, कोई भी चीज उन्हें न होते हुए भी जगह जगह जाकर उन्होनें डांवाडोल न कर सकती थी। कोई भी लोगों को बचाने का प्रयत्न किया। चीज़ उनमें महानता या गर्व की भावना न पैदा कर सकती थी। उनके लिए कोई भी अर्थ यह हुआ कि सहजयोगी भी क्रियाशील पद कोई भी शक्ति इतनी महान न थी । (Right Sided) हो सकते हैं, परन्तु मानव के लिए यह पूर्ण उद्धार है कि अब ईसा-मसीह की तरह से। अन्यथा दाईं आप आत्म-साक्षात्कारी लोग हैं। आपको तरफ गतिशील होकर वे आयोजन करेंगे, करुणा, प्रेम और सूझ-बूझ से परिपूर्ण सभी प्रकार के कार्य करेंगे और फिर दाई होना चाहिए और ये सब गुण ठीक प्रकार ओर की समस्याओं के शिकार हो जाएंगे। से अभिव्यक्त होने चाहिएं। यह दाईं ओर की गतिविधि थी । इसीलिए मैं चाहती हूँ कि आप आक्रामकता से बचें। परन्तु एक बार जब आप बाई उदाहरण के रूप में आप कह सकते है कि ईसा-मसीह एक अन्य उदाहरण और के कुशल स्वामी सहजयोगी बन जाएंगे हैं। यद्यपि वे एक अवतरण थे फिर भी तब यह अत्यन्त आवश्यक होगा कि आप लोगों के लिए क्षमा और प्रेम जितना उनके कार्यशीलता (Right Side) को अपनाकर हृदय में था वह बहुत ही अधिक था। पूर्ण आध्यात्मिक व्यक्तित्व बन जाएं । दाई परन्तु वे आध्यात्मिकता सिखाने के लिए ओर की गतिविधि क्या है? यह सामूहिकता पर्वतों पर जाया करते थे। वो समय इन है। जो आपने पा लिया है। केवल उसी का्यों के लिए बिल्कुल भी सुरक्षित न था से सन्तुष्ट न हो जाएं। यह महसूस करना क्योंकि ऐसी बातें करने वालों को लोग अत्यन्त सुगम है कि, 'ओह! हमने पसन्द न किया करते थे। ऐसे व्यक्ति से आत्म-साक्षात्कार पा लिया है, अब क्या लोग घृणा करते थे जो परमात्मा के विषय है? अब हम विश्व के शिखर पर हैं। में बताता हो (मेघगर्जन)। उनके साथ भी वास्तविकता यह नहीं है । जो व्यवहार किया गया उसे आप भली भांति जानते हैं। यद्यपि लोगों ने उन्हें बातचीत करनी होगी लोग आपका क्रूसारोपित कर दिया फिर भी हम महान आपको बाहर जाना होगा लोगों से अपमान करेंगे, आपको कष्ट देगें, सभी 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-20.txt जनवरी-फरवरी 2003 17 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 प्रकार के कार्य करेंगे। परन्तु आप तो पहले से ही उच्च व्यक्ति हैं। आप उनकी आप अन्य लोगों को आत्म-साक्षात्कार देना आरंभ करेंगे तो आप दंग रह जाएंगे। आपके अन्दर के बहुत से गुण उभर उठेंगे क्योंकि जब आप अन्य लोगों को देखते हैं तो आपको पता चलता है कि उनके अन्दर बातें सुन सकते हैं कि वे क्या कह रहे हैं। आप उनसे कुछ पूछेंगे नहीं। ऐसे में आप चाहेंगे कि उनके प्रति आप बहुत हितकर हो जाएं। यह भी करुणा है कि आप अपने आत्म-साक्षात्कार को स्वयं तक क्या कमी है, उनकी क्या आवश्यकता है। आपने उन्हें क्या देना है और किस प्रकार सीमित नहीं रखना चाहते। इसका उपयोग आप अन्य लोगों के लिए भी करना चाहते आप उन्हें दे सकते हैं। आप कुछ भी बन सकते हैं। आप कवि बन सकते हैं, लेखक हैं ताकि वो भी आत्म-साक्षात्कार प्राप्त बन सकते हैं। आप यदि दूसरों का सामना कर सकें। यह अत्यन्त आवश्यक है। अगर कर सकते हैं तो आप कुछ भी बन सकते आपमें ऐसी भावना नहीं है, उन लोगों के हैं प्रतिक्रिया के रूप में आप में यह सब प्रति करुणा नहीं है जो आत्म-साक्षात्कारी आ जाता है ये सब गुण आपमें विकसित नहीं हैं तो आप अपने उस समय को हो जाते हैं और आप बहुत अच्छे कलाकार स्मरण करें जब आप आत्म-साक्षात्कारी बन जाते हैं। नहीं थे। ये लोग साक्षात्कारी नहीं है और यह सब घटित होना केवल तभी इस कारण से बहुत कष्ट उठा रहे हैं। संभव है जब आप अन्य लोगों से मिलें, उन पर किसी भी प्रकार का कष्ट आ उनसे सहजयोग की बात करें और उन्हें सकता है। आत्म-साक्षात्कार के विषय में बताएं । मैं अतः अब यदि आपको आत्म- जानती हूँ कि समस्याएं होंगी। यह बात साक्षात्कार प्राप्त करना है तो आपको शान्त सत्य है। ऐसे भी लोग होगें जो आपका होकर इसी में रम नहीं जाना, नहीं। ये विरोध करेंगे, आपके विरूद्ध उल्टी सीधी कोई ऐसा करना उचित नहीं है। अन्य बात करेंगे, आपकी सारी गतिविधियों को लोगों को आत्म-साक्षात्कार देने और रोकने का प्रयत्न करेंगे और आपको सभी उनकी रक्षा करने के लिए आपको जी प्रकार से कष्ट पहुँचाने के लिए प्रयत्नशील जान से लग जाना है। आत्म- साक्षात्कार होंगे। कोई बात नहीं। परन्तु आपने यह आप सबको केवल अपने लिए ही नहीं स्थिति प्राप्त करनी है, लोगों से मिलना मिला। यह आप तक सीमित नहीं है। है, उनसे बातचीत करनी है और उनसे अन्य लोगों के लिए भी है कि आप अन्य आत्म-साक्षात्कार के विषय में बताना है लोगों को भी आत्म-साक्षात्कार दें। ज्योंही आपने उनकी रक्षा करनी है। ऐसा करना ा 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-21.txt जनवरी-फरवरी 2003 18 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 आवश्यक है। परन्तु सर्वप्रथम आपको इस उन्हें आत्म-साक्षात्कार दिया जाए? परन्तु बारें में विश्वस्त होना होगा कि आपके सर्वप्रथम और मुख्य चीज़ जो मैंने आपको अन्दर दाईं ओर के विकार नहीं हैं, अन्यथा बताई, वह आपका बाईं ओर से सुदृढ़ सभी लोग दौड़ जाएंगे। आध्यात्मिक व्यक्ति होना है। आपको यह कार्य आरंभ कर से आशा की जाती है कि वह अत्यन्त देना चाहिए क्योंकि आपको आत्म- विनम्र हो। निःसन्देह लोग उसकी विनम्रता साक्षात्कार मिल चुका है। बिना अपनी का अनुचित लाभ उठाएंगे सभी कुछ बाईं ओर को सशक्त बनाए, केवल इसलिए होगा, यह ठीक है। परन्तु यह खेल का आपको यह कार्य आरंभ करना नहीं कर एक भाग है जिसकी वह चिन्ता नहीं देना चाहिए कि आप आत्म- साक्षात्कार करता। ऐसी किसी भी चीज का वह बुरा दे सकते हैं । नहीं मानता। ऐसी कोई भी समस्या उसके सामने आए तो वह बुरा नहीं मानता क्योंकि सहज होता है जो न तो किसी चीज के करुणा उसका मुख्य गुण होता है। बांई बारे में गिला करता है, न किसी चीज़ की ओर की जागृति से करुणा का जो गुण शिकायत करता है और किसी भी हालात उसने प्राप्त किया था वह अब विस्तृत हो से समझौता कर सकता है। किसी चीज़ जाता है और वह लोगों की रक्षा करना से वह लिप्त नहीं होता। स्वतः वह साक्षी ऐसा व्यक्ति अत्यन्त विनम्र, अत्यन्त चाहता है। लोगों के पास यदि खाना न भाव हो जाता है। निर्लिप्त होने के लिए हो तो ठीक है, लोग यदि भूखों मर रहे हैं उसे कुछ करना नहीं पड़ता। ऐसे व्यक्ति तो बहुत जटिल समस्या है। परन्तु यदि के लिए आप जो चाहे करें, उसके लिए उन्हें आध्यात्मिकता नहीं प्राप्त हो रही तो जो चाहें ले आए सब ठीक हैं। निःसन्देह इस मानव जीवन का क्या लाभ है इस वह स्वीकार करेगा। परन्तु किसी भी चीज़ अवस्था तक उनका उत्थान क्यों हुआ? से उसे मोह न होगा। ऐसा निर्लिप्त व्यक्ति पशुत्व से मानवास्था तक वे विकसित सहजयोग को कार्यान्वित कर सकता है। हुए, निकृष्टतम स्थितियों से मानवास्था सभी प्रकार से सहजयोग का प्रसार कर तक, और अब यदि उन्हें आत्म-साक्षात्कार सुकता है। नहीं मिलता तो यह भूखे मरने से भी, गरीबी से भी, सभी प्रकार की दरिद्रता से भी बुरी बात है। सभी प्रकार की बीमारियों और कष्टों से भी बुरा है। तो क्यों न उन्हें आज विश्व की यह सबसे बड़ी आवश्यकता है कि हम अधिक से अधिक सहजयोगी बनाएं। परन्तु यह कार्य करने में लोगों को शर्म आती है। अत्यन्त हैरानी आत्म- साक्षात्कार देने का प्रयत्न किया की बात है! परन्तु मैंने देखा है कि जिन जाए? क्यों न आप निश्चय कर लें कि 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-22.txt जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड़-XV अंक 1 व 2 19 लोगों के पास बिल्कुल भी सत्य नहीं हैं, महत्वपूर्ण नहीं हैं। परन्तु यदि आप ठीक जिनके बहुत ही बुरे गुरु हैं वो भी दूसरे मार्ग पर चल पड़े तो आप आश्चर्यचकित लोगों के पीछे पड़ जाते हैं, अपने झूठे रह जाएगें, आपको ऐसे बहुत से लोग विचारों का प्रसार करने का प्रयत्न करते मिलेगें जो दिल और दिमाग की शान्ति हैं परन्तु सहजयोगी, क्यों उन्हें संकोच चाहतें हैं और परमात्मा से पूर्ण एकरूपता करना चाहिए किस लिए शर्म करनी चाहिए? ये बात मेरी समझ में नहीं आती। कहें. चाहे वो गलत गुरुओं के पास गए चाहे वो स्वीकार न करें, चाहे वो न अतः इसके विषय में सबको बताएं और उन्हें सहजयोगी बनाएं हों, परन्तु इस सबके बावजूद भी वो अपने अन्दर सच्ची आध्यात्मिक शान्ति प्राप्त आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है करना चाहेंगे। आज लोगों में यह आम क्योंकि यह गुरु पूजा है। लोग कहते हैं इच्छा परन्तु उस इच्छा तक पहुँचने के कि गुरु आपको कुछ नहीं दे सकता। लिए आपको अत्यन्त सहज जीवन और परन्तु मैं आपको सीख दे सकती हूँ कि सहज व्यक्तित्व को अपनाना होगा|। आपकी दिलचस्पी यदि धन में है, है अपने हृदय विस्तृत करो, विनम्र बनो और विनम्रता पूर्वक, आक्रामकतापूर्वक नहीं, तथाकथित शक्तियों या अपनी सहजयोग को फैलाने का प्रयत्न करो। महत्वकाक्षाओं में है, तो सहजयोग कुछ यह कार्य अत्यन्त आवश्यक है। आप यदि नहीं कर सकता। परन्तु यदि आपकी ऐसा कर सकते हैं, केवल तभी आप अपने दिलचस्पी अपनी करुणा में है और आज जीवन से, जोकि आध्यात्मिक जीवन है, के विश्व को समझने में है कि ये सारी पूर्ण न्याय करेंगे। ऐसा किए बिना आप उथल-पुथल क्यों है, केवल तभी आप आध्यात्मिकता की शक्ति प्राप्त नहीं कर यह कार्य कर सकते हैं। मानव का गलत सकते। यह शक्ति पाने के लिए आपको चीज़ों को स्वीकार करना ही इस समझना होगा कि अपने विवेक के माध्यम उथल-पुथल का कारण है। हमें करना से सहजयोग को पूर्ण अवसर देना अत्यन्त यह है कि परमेश्वरी ज्ञान उन तक पहुंचा दें यह आपकी इच्छा होनी चाहिए और आवश्यक है। प्रायः मुझे जो पत्र प्राप्त होते हैं इसी इच्छा के कारण ही आपको बहुत उनमे लिखा होता है कि फलां व्यक्ति सुख प्राप्त होगा। कष्टकर है। फलां व्यक्ति ऐसा कर रहा है, कोई अन्य वैसा कर रहा है। यह सब आवश्यकताएं अत्यन्त अस्थाई हैं। भूल जाइये। ऐसे लोग सहजयोग के लिए सहजयोग को फैलाने की केवल एक इच्छा शेष सभी इच्छाएं, शेष सभी 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-23.txt जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 20 निकल पड़ें उन्हे सहजयोग समझाएं। है। कार्य करते चले जाएं ही इतनी सुन्दर और जब-जब आप इस पर कार्य करेंगे ऐसा कर पाना सभी प्रकार से संभव है आपको प्रसन्नता एवम् आनन्द प्राप्त होंगे। और मैं सोचती हूँ कि गुरुओं के रूप में आपको किसी भी प्रकार की समस्याएं आप पूर्णता को पा लेंगे। नहीं होगी सहजयोग की महानता का यह चिन्ह है और मैं चाहती हूँ कि आप सीमित है तो आप गुरु नहीं बन सकते। सब ऐसे ही बन जाएं। सहजयोग केवल यदि आप तक ही गुरु होने का अर्थ यह भी नहीं है कि आप सहजयोग के उपदेश देते रहें, सहजयोग की बातें करते रहें या सहजयोग पर प्रवचन आज का दिन अत्यन्त महान है। क्योंकि आज हम उन सभी सन्तों के विषय में सोच रहे हैं जो पृथ्वी पर अवतरित हुए करते रहें, नहीं जो व्यक्ति अन्य लोगों और जिन्होनें हमारा पथ प्रदर्शन करने को आत्म- साक्षात्कार देता है वही गुरु का प्रयत्न किया। उन सबने क्या किया? है। आपने कितने लोगों को सभी ने पूरे विश्व में सत्य का प्रसार करने आत्म-साक्षात्कार दिया, उनकी संख्या का प्रयत्न किया। उन्होनें बहुत से कष्ट गिनने की आवश्यकता नहीं है। इसे तो उठाए, समस्याएं झेली बहुत सी समस्याएं, लहरियों की तरह से, प्रेम सागर की लहरों परन्तु सहजयोग को फैलाने के लिए और की तरह से अपने हृदय में महसूस किया परमात्मा और देवत्व के विषय में बताने जाना चाहिए। लोगों को आत्मसाक्षात्कार के लिए घोर परिश्रम किया। लेकर आध्यात्मिक आनन्द में डूबते देखना आज आप सबने भी मुझे यहाँ देना अत्यन्त सुन्दर अनुभव है। मैं चाहती हूँ है यह वचन कि जब भी कोई मानव कि आप यह कार्य करें। इसी कार्य को आपको मिलेगा तो आप उसे सहजयोग करने के लिए मैं पृथ्वी पर अवतरित हुई हूँ। के विषय में बताएंगे। ऐसा करना केवल मुझे भी बहुत से कष्ट उठाने पड़े कोई बात नहीं, इन तथाकथित कष्टों की आवश्यक ही नहीं, यह विश्व की अत्यन्त गहन आवश्यकता है। आप यदि इस बात को समझ जाएंगे कोई बात नहीं। मैं इन्हें नाटक की तरह कि आप इस समय पर, इस संसार में से देखती रही और अब यह सब समाप्त क्यों हैं और विश्व की आवश्यकता क्यों हो गया है। जब तक आप इन कृष्टों की है, तब आप तुरन्त जिम्मेदारी को समझने ओर अधिक ध्यान नहीं देते ये कष्ट अधिक लगेंगे। आप चाहे पुरुष हों या महिला, महत्वपूर्ण नहीं बन पाते। जी जान से लोगों को बताने के लिए कल आपने मोहम्मद साहब के जीवन 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-24.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 21 पर एक नाटक देखा। मेरे हृदय में सदैव किया जा रहा है। ऐसा किसी भी धर्म में उनके लिए एक दर्द था कि किस प्रकार हो सकता है। परन्तु इस्लामिक संसार में लोगों ने उन्हें गलत समझा और भटक जो हुआ वह निकृष्टतम था। यह बहुत गए। क्यों अब ये लोग गलत कार्य कर भयानक है क्योंकि परमात्मा के नाम पर रहे हैं। मुझे प्रसन्नता है कि कम से कम यह लोग कितने गलत कार्य कर रहे हैं । आप लोगों में उनकी महानता को महसूस किया है। उसे समझा है और उससे इतना मोहम्मद साहब के साथ जो हुआ वह अतः समझने का प्रयत्न करें कि उनकी नियति न थी। जो घटित हुआ सुन्दर नाटक बनाया है। मैं नहीं जानती कि किस सीमा तक वह वास्तविकता की नियति न थी। यह हम इसका प्रसार कर सकते हैं। परन्तु हम सबकी आखें खोलने वाली घटना है। यह सत्य है कि इसके लिए मोहम्मद साहब ताकि हम देखें कि सत्य को सदैव असत्य ने अपना बलिदान कर दिया। उनके बाद चुनौती देता है तथा हमें सदैव सत्य पर उनकी बेटी, नातिन और बच्चे बलि चढ़ डटे रहना चाहिए, जो चाहे परिणाम हो। गए। उनके दामाद को मौत के घाट उतार एक दिन ऐसा आएगा जब लोग महसूस दिया गया और उन्हें समाप्त करके इन करेंगे कि वो गलत मार्ग का अनुसरण लोगों ने भयानक सुन्नी मत का आरम्भ करते रहे हैं और सभी प्रकार के मूर्खतापूर्ण कार्य करते रहे हैं । कर दिया। मुझे विश्वास है कि अत्यन्त शीघ्र अब यह सुन्नी धर्म सत्य के बिल्कुल समीप ही नहीं है। यह अत्यन्त आक्रामक यह सब कार्यान्वित होगा। मेरी इच्छा यदि और क्रूर धर्म है। पर यह सर्वत्र फैलने इतनी शक्तिशाली है तो मुझे विश्वास है लगा और मोहम्मद साहब का वास्तविक कि लोग इस बात को महसूस करेंगे कि इस्लाम धर्म लुप्त होने लगा। जिन लोगों करुणामय, सुहृद तथा प्रेममय होना ही ने उनकी हत्या की थी वे इस्लाम धर्मी प्रसन्नता प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम उपाय कहलाने लगे। है। इससे आगे कुछ भी नहीं है । परमात्मा आपको आशीर्वादित करें । अंतः यह बहुत बड़ा अपराध था कि इतने महान और आध्यात्मिक व्यक्ति को स्वीकार नहीं किया गया और जिस व्यक्ति ने उनकी हत्या की उसे अब स्वीकार 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-25.txt गुरु पूर्णिमा 24-07-2002, कबैला लीग्रे परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन जिस' प्रकार से आप लोगों ने ये आत्म-साक्षात्कार नहीं दिया। ये बहुत पता लगाया है कि चास्तव में गुरु पूर्णिमा बड़ा अन्तर है। आत्म साक्षात्कारी आत्माओं आज है यह बहुत दिलचस्प है। पूर्णिमा के रूप में उनका जन्म हुआ और वे सूफी के दिन पूरा चाँद होता है। मैं इसके विषय में जानती थी बन गए भिन्न नामों से उन्हें पुकारा गया। परन्तु सहजयोगियों की सुविधा के लिए हमें शुक्रवार, शनिवार, इतवार ही कार्यक्रम का आयोजन करना होता है। इस बार, मेरे विचार से यह पूजा दो दिन पहले हुई। को ई बात नहीं, चाँ द उन्हें परन्तु आत्म-साक्षात्कार नहीं दिया गया। वो जन्म से ही आत्म-साक्षात्कारी थे और आत्म-साक्षात्कार के कारण ही उनमें बहुत अधिक ज्ञान था जिसे उन्होनें अन्य लोगों को देने का प्रयत्न आखिरकार हमारे लिए और हम चाँद के लिए हैं। अतः जैसी गलतियाँ विश्व किया। वे चक्रों के विषय में सभी में चल रही हैं वैसी इसमें कुछ भी नहीं हैं । गुरु तत्व के विषय में मैं आपको बहुत कुछ बता चुकी हूँ और गुरु तत्व वाले लोग जो पृथ्वी पर अवरतरित कुछ जानते थे। हर चीज़ का उन्हें ज्ञान था। पूर्व जन्मों की उपलब्धियों के कारण ही ये ज्ञान उन्हें प्राप्त था। संभवतः उनमें हुए वे जन्मजात आत्म-साक्षात्कारी थे से कुछ महान गुरुओं के शिष्य रहे हों। मैं परन्तु उन्होने किसी अन्य को नहीं जानती कि उन्हें इस बात का पूरा 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-26.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 23 ज्ञान किस प्रकार था जोकि आत्म- व्यक्ति के साथ क्या घटित होता है। साक्षात्कार क्या होता हैं और आत्म- आप सबके लिए ये बहु त बड़ा साक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् हमें रहस्योदघाटन है और सहजयोग के लिए क्या उपलब्धियाँ प्राप्त होती हैं। बहुत बड़ी सहायता। आप लोग आत्म- मेरे विचार में, मोहम्मद साहब ही साक्षात्कारी हैं क्योंकि आप चैतन्य लहरियों ऐसे व्यक्ति थे जिन्होनें मिरज की बात को महसूस कर सकते हैं दूसरे उन्होनें की। मिरज अर्थात् कुण्डलिनी के माध्यम इस बात का भी स्पष्ट वर्णन किया कि से उत्थान। निःसन्देह भारत में सन्तों ने आप कैसे बन गए हैं। इसके बारे में बातचीत की। परन्तु किसी अन्य देश में गुरुओं ने इतने स्पष्ट रूप से सन्त, एक से बढ़कर एक। जो भी कुछ नहीं कहा कि मिरज नाम की भी कोई उन्होनें कहा वह अत्यन्त असाधारण है, चीज़ है। इतना ही नहीं मोहम्मद साहब अत्यन्त श्रेष्ठ। परन्तु वास्तव में मनुष्य, मैं ने केवल मिरज की ही बात नहीं की सोचती हूँ कि हम अत्यन्त गूँगे हैं। मानव भारत में बहुत से सन्त हुए बहुत से उन्होनें यह भी बताया कि पुनर्जन्म के ने कभी इस बात को महसूस नहीं किया समय आपके हाथ बोलेंगे। उन्होनें दो बातें कहीं कि हमारे यहाँ इतने सारे सन्त हुए। तुर्की पहली यह कि जब आपको में भी, जहाँ पर सुन्नी धर्म हैं, वहाँ भी आत्म-साक्षात्कार प्राप्त होगा तो आपके बहुत से सूफी हुए, विश्वभर में बहुत से हाथ बोलेंगे। यह कहना बहुत बड़ी बात सूफी हुए, आत्म-साक्षात्कारी लोग हुए। है क्योंकि इस प्रकार आप समझ सकते हैं ये लोग अवतरण तो न थे परन्तु जन्मजात विश्वस्त हो सकते हैं कि आपको आत्म-साक्षात्कारी थे। अतः उनकी आत्म-साक्षात्कार प्राप्त हो गया है। उन्होनें व्याख्याएं और बताई हुई हर बात बहुत आत्म-साक्षात्कार की यह पहचान बताई। अच्छी हैं क्योंकि वे मानव थे और उन्होनें मिरज (कुण्डलिनी) के विषय में दूसरी बहुत सी अच्छी बातें कहीं ताकि मानव बात जो उन्होनें बताई वह यह थी कि समझ सके। कोई अवतरण जब कुछ कहता हैं तो वह बहुत ऊँची बात करता है। इस सफेद घोड़ा कुण्डलिनी के अतिरिक्त नहीं है। उन्होंने कुण्डलिनी शब्द का उपयोग नहीं किया परन्तु इसे सफेद घोड़ा कुछ नए उन्नत मानव ने आत्म-साक्षात्कार को प्राप्त करके जिन बहुत से तथ्यों के विषय में बताया वे वास्तव में असाधारण हैं। कहा। सर्वप्रथम तो उनमें से अधिकतर लोग अतः वे ऐसे व्यक्ति थे जो जानते थे कि आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करते हुए कावि थे - भारत में कबीर हुए हैं। हम 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-27.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 24 नहीं जानते कि उनका जन्म किस प्रकार किए चले जा रहे हैं विश्वास नहीं होता हुआ, कहों हुआ उसके माता-पिता कौन कि वो किस प्रकार ऐसा कर रहे हैं। थे? ये सारी बातें बिल्कुल भी स्पष्ट नहीं इतनी क्रूरता! किसी भी योगी या महात्मा हैं। इसके बावजूद भी उनकी कविताओं का पहला गुण यह होता है कि उसमें को यदि देखें तो पता चलता है कि वे क्रूरता बिल्कुल भी नहीं होती। वे अपने अत्यन्त महान थे, महान सहजयोगी थे जीवन बलिदान कर देंगे, कुछ भी कर और जिस प्रकार से उन्होनें चीज़ों का देंगे परन्तु किसी के प्रति क्रूर न होंगे। जो वर्णन किया वह अत्यन्त रुचिकर है। अपनी लोग परमात्मा और धर्म के नाम पर क्रूर कविता में उन्होनें बहुत ये मूलभूत सत्य हैं वे किसी भी प्रकार से धार्मिक नहीं हैं। उजागर किए, उनके विषय में बताया वे धर्म की यही विकृति है हम यदि सहजयोग किसी धर्म विशेष से संबंधित न थे जब से जुड़े हुए हैं तो हम सबको यह बात उनकी मृत्यु हुई तो हिन्दु और मुसलमान समझनी चाहिए। करुणा, माधुर्य, सुहृदयता परस्पर लड़ गए, "इनके शरीर का हम और प्रेम हमारे मुख्य गुण होने चाहिएं । क्या करें?" और कहते हैं कि उनके शरीर आपके अन्दर यदि ये गुण नहीं हैं तो से जब चादर हटाई गई तो वहाँ पर कुछ आप सहजयोगी नहीं हैं। हम एक भिन्न फूल मिले, दो तरह के फूल एक हिन्दुओं वंश हैं, भिन्न व्यक्तित्व हैं जोकि के लिए, एक मुसलमानों के लिए । तो इस आत्म साक्षात्कारी हैं और जो इन मूर्खतापूर्ण प्रकार से उन्होनें लोगों की मूर्खतापूर्ण धारणाओं से ऊपर हैं तथा जिनमें चैतन्य हैं। जैसा मैंने कहा अब आप इसका लड़ाई का समाधान किया। सहजयोग में हम किसी बेतुके धर्म प्रचार-प्रसार करें क्योंकि मैं पृथ्वी पर से सम्बन्धित नहीं हैं हम एक ही धर्म से इसलिए अवतरित हुई हूँ कि लोग मोक्ष संबंधित हैं - विश्व निर्मला धर्म। बाकी के प्राप्त कर लें, आत्म-साक्षात्कार पा लें। सभी धर्मों की मूर्खताओं को हमें त्याग जब तक मोक्ष में विश्वास करने वाले देना चाहिए क्योंकि आज जैसे आप देखते लोग इसे प्राप्त नहीं कर लेते मैं प्रसन्न हैं सभी धार्मिक समूह एक दूसरे से लड़ नहीं हो पाऊँगी। रहे हैं, एक दूसरे को मार रहे हैं, समाप्त करने में लगे हुए हैं। यह कोई तरीका करते हैं परन्तु जिन्हें आत्म-साक्षात्कार नहीं हैं धार्मिक व्यक्ति को ऐसा नहीं होना प्राप्त नहीं हुआ। आपको कार्य करना है चाहिए। परन्तु वे परस्पर हत्या किए चले और आप हैरान होंगे कि आपको ऐसे जा रहे हैं। सभी प्रकार के भयानक कृत्य लोग मिलेंगे जो आत्म-साक्षात्कार पाने ऐसे बहुत से लोग हैं जो विश्वास 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-28.txt जनवरी-फरवरी 2003 25 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 के लिए बहुत उत्सुक हैं। आज गुरू पूर्णिमा नहीं किया गया है लोग इसके विषय में दिवस पर यह कार्यान्वित होगा आज नहीं जानते ये हैरानी की बात है, जबकि का दिन बहुत शुभ है। मैं आपको विशेष शक्ति का वरदान लोग जानते हैं। अतः हमने इस कार्य को देती हूँ कि आप अन्य लोगों को अपने आचरण से, अपनी सूझ-बूझ से सभी प्रकार के भयानक गुरुओं के बारे में आत्म-साक्षात्कार दे सकें, अपनी ही अपने जीवन आचरणों से करना है। ताकि समस्याओं में न फँसे रहें। ये आवश्यक लोग कहें कि ये कोई विशेष लोग हैं। मैं प्रसन्न हूँ कि आज गुरु पूर्णिमा जाएगा। मुझे जितने भी पत्र प्राप्त होते हैं, का दूसरा दिन है। यह बहुत मंगलमय है उनमें से अधिकतर व्यक्तिगत समस्याओं और आप लोग इसे बहुत बड़ा वरदान के विषय में या कुछ अन्य प्रकार की समझें क्योंकि यह आपके लिए बहुत बड़ा समस्याओं के विषय में होते हैं। आपको प्रमाण- पत्र है, बहुत बड़ी उपलब्धि है कि देखना चाहिए कि आपके अन्दर क्या आप सब गुरु बनने के योग्य हो गए हैं । समस्या है, आपके अन्दर क्या घटित हो आपको यही बनना है। सहजयोग में बनना रहा है, हमारे अन्दर ये समस्याएँ क्यों महत्वपूर्ण है । बाकी सभी चीज़ें वास्तव में बनी हुई हैं, हमारा कर्त्तव्य क्या है? क्यों व्यर्थ हैं आपको बनना है मेरे विचार से मिला है? महिलाएं विशेष रूप से संकोचशील हैं वो अध्यात्मिकता का वैभव हमें क्यों प्राप्त बहुत कुछ कर सकती हैं और उन्हें चाहिए हुआ और इसका हमें क्या करना चाहिए? कि इसे कार्यान्वित करें वो बिना बात के मैं आपको बताती हूँ कि प्रतिदिन झेपती हैं। झेंपने की क्या जरूरत है? इसके विषय में सोचें कम से कम आधे लज्जालु महिला होने के कारण आप लोग घण्टे के लिए तो आप महसूस करेंगे कि सहजयोग की गतिविधियों की गहराई में आप बहुत ही समर्थ लोग हैं। सन्तों ने नहीं जातीं। आपको इसकी गहराई में इतना सारा कार्य किया, उन्होनें उतरना चाहिए। महिलाएं यदि सहजयोग कुछ लिखा, वे दुष्टों से लड़े, उन्होनें पर बोलना आरम्भ कर दें तो मेरे विचार सभी कुछ किया। आपको ऐसा भी से सहजयोग बहुत जल्दी फैलेगा । सन्तों द्वारा अधूरे छोड़े गए इस कार्य काम करना है, आपने सहजयोग को को करने के लिए मैं आपको आशीर्वादित करती हूँ। इसे पूर्ण करना आपका धर्म हैं। नहीं हैं। सारी समस्याओं का समाधान हो हमें आत्म-साक्षात्कार का बहुत कुछ नहीं करना है परन्तु आपने केवल एक ही फैलाना है। अब भी सहजयोग सर्वत्र स्वीकार परमात्मा आपको धन्य करें। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-29.txt श्री कृष्ण पूजा 18-8-2002, कानाजौहारी, अमेरीका परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ात कु कि आज हम श्रीकृष्ण की पूजा एक कि धार्मिकतापूर्वक किस प्रकार इस अत्यंत महान व्यक्तित्व के रूप में करेंगे। संस्कृति को विकसित किया जाए। आपके आप जानते हैं कि वे पृथ्वी पर क्यों यहां ऐसे बहुत से महान नेता हो चुके हैं अवतरित हुए। अपने विराट रूप को जिन्होनें उनका अनुसरण किया और एक स्थापित करने के लिए नहीं। परन्तु अपने प्रकार से उनकी की तथा अमेरिका एक ऐसे रूप को स्थापित करने के लिए रूपी इस नए विश्व का सृजन किया । जिसके कारण यह देश वैभवशाली बना । परन्तु दुर्भाग्यवश समय बीतने के साथ- अपने अवतरण द्वारा उन्होनें लोगों में एक साथ लोगों के मस्तिष्क से उनका रूप पूजा अत्यन्त सुन्दर मनोवृ त्ति का सृजन किया लुप्त हो गया। इसका कारण ये था कि 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-30.txt जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 27 यहां पर उनका प्रतिनिधित्व बहुत ही गलत धार्मिकतापूर्वक बेशुमार धन कमाया । वे लोगों ने किया, उन लोगों ने जिन्हें, श्रीकृष्ण राजा के पुत्र थे जिन्होने पूरी द्वारिका के बारे में बिल्कुल समझ ही न थी। वे सोने से बनवाई। आज भी यह मौजूद है। वैभव के महान देवता थे वे जानते थे लोगों ने इसे समुद्र में खोज लिया है । कि धन दौलत को किस प्रकार उपयोग हजारों वर्ष बीत चुके हैं परन्तु अभी तक करना है और धर्मपूर्वक - अधर्म द्वारा यह विद्यमान है । केवल इसलिए क्योंकि नहीं - किस प्रकार धर्माजन करना है। हम श्रीकृष्ण से जुड़े हुए हैं यह आज भी बना हुई है इसका कारण यह है कि वे यहां के लोग उनके इन गुणों को पूर्णतः भूल गए और शनै: शनैः अपनी एसे व्यक्ति थे जो सत्य पर अडिग थे. वे शक्ति का दुरुपयोग करने लगे तथा सभी सत्य में स्थापित थे और जो भी कुछ उन्होनें किया वह सत्य के सिद्धान्तों के जैसे प्रकार के अधर्म आरंभ हो गए अनुरूप था। हर असत्य चीज को उन्होनें समाप्त करने का प्रयत्न किया। विनाशकारी धोखाधड़ी, धन हथियाना तथा बिल्कल बेकार की चीज़ों पर धन का खर्च करना। वे कुबेर हैं। उन्हें पैसे की बिल्कुल भी चीज़ों को दूर करने का प्रयत्न किया और आवश्यकता नहीं है। इस बात में बिल्कुल भी संदेह नहीं है। वे धन के देवता हैं और सत्य के माध्यम से स्वयं को स्थापित किया। वै सत्य की प्रतिमूर्ति थे, पूर्ण सत्य की और उन्होनें इस बात को सिद्ध किया कि किस प्रकार हर चीज़ में सत्य व्यापक हो सकता है। धन में ही रहते हैं। कहा जाता है कि द्वारिका में उन्होंने अपने लिए एक स्वर्ण महल बनाया, पूरा मैं उनसे बिल्कुल उलट हूँ क्योंकि मैं तो धन को समझती ही नहीं। परन्तु मेरे जीवन में उस कार्य को श्रीकृष्ण ही सोने से बना हुआ। अब यह महल समुद्र के जल में डूब गया है और कोई इस बात पर विश्वास नहीं करता कि यह बात सत्य है। परन्तु हाल ही में समुद्र के गहरे दख रहे हैं। मैं इससे बिल्कुल अनभिज्ञ जल के बीच में डूबे हुए महल को खोज है। बैंकिंग मेरी समझ में नहीं आती. धन लिया गया है। या पैसा मेरी समझ में नहीं आता। मैं तो नोट भी नहीं गिन सकती। आपने इसके तो उनके विषय में लोगों की सारी विषय में क्या कहना है? परन्तु इन सब सोच गलत थी तथा मिथ्या थी। निश्चित चीजों की देखभाल करने के लिए श्रीकृष्ण रूप से वे एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होनें हैं और कभी मुझे धन की तथा वैभव की 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-31.txt जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 28 कमी नहीं हुई। सभी कुछ भरपूर है। संतोष के दाता हैं। जिन लोगों के पास धन नहीं भाव द्वारा भी यह आता है। आपमें यदि होता उनकी वे देखभाल करते हैं। सत्य संतोष भाव है तो आप धन के पीछे नहीं पर चलने वाले लोगों को वे धन प्रदान दौड़ते। आपके देश में क्या हुआ? कुछ करते हैं, उन लोगों का जो सत्यमय जीवन लोगों को धन प्राप्त हो गया। थोड़ा सा धन यदि व्यक्ति को मिल जाए तो उसे लोग वैभव का आनन्द ले सकते हैं, उसके से ही का आनन्द लेते हैं। उनकी कृपा इसका स्वाद लग जाता है। वे सन्तुष्ट बिना नहीं। लोगों के पास बेशुमार धन स्वभाव के नहीं हैं अतः पागलों की तरह होता है फिर भी वे और अधिक धन की से व्यर्थ की चीज़ों पर वे धन खर्च करते इच्छा करते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि चले गए। यह मानवीय दुर्बलता है । वे धन का आनन्द नहीं लेते और अधिक मानवीय उत्थान के पश्चात्, ज्योतिर्मय धन की कामना करते हैं। क्यों? क्योंकि स्थिति तक पहुँचने के पश्चात् लोभ जैसे जो भी कुछ उनके पास है उसका वे तुच्छ दोष आपके चरित्र से दूर हो जाते आनन्द नहीं उठाते। हैं। तब आपमें लोभ शेष नहीं रह जाता और आप अत्यन्त सन्तुष्ट व्यक्ति बन परन्तु आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने जाते के पश्चात् आप देखेंगे कि जो भी धन हैं। आपके पास है उसका आप आनन्द लेंगे। धन निःसंदेह आवश्यक है। परन्तु आप इसका पूर्ण आनन्द लेंगे, पूरी तरह आपके लिए इसका महत्व बहुत अधिक से, और जो कुछ नहीं है उसके पीछे नहीं रह जाता। आप सोचते हैं कि आपको दौड़ते नहीं रहेंगे। आपके पास यदि कोई धन की आवश्यकता नहीं है फिर भी चीज नहीं है तो कोई बात नहीं। आपको धन मिल जाता है। श्रीकृष्ण ही सर्वत्र इस कार्य को करते हैं। क्या आप माताजी क्यों न हम श्रीकृष्ण की पूजा माकत बहुत बार लोगों ने मुझसे पूछा, "श्री इसकी कल्पना कर सकते हैं? वे ही यह सब कार्य कर रहे हैं, आपकी देखभाल है। आज हर व्यक्ति कुबेर बनने का कुबेर रूप में करें?" मैंने कहा, "ठीक कर रहे हैं, और धन से आपकी सहायता कर रहें हैं। जब मैंने सहजयोग का आरभ दीजिए, तब हम कुबेर की पूजा । किया तो मेरे पास एक पाई भी न थी। यही कारण है कि आज मैं इस पूजा कभी मुझे धन की समस्या नहीं लिए सहमत हुई हूँ। प्रयत्न कर रहा है। उन्हें सबक मिल लेने करेंगे के परन्तु हुई। तो कुबेर के रूप में श्रीकृष्ण ही धन 1 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-32.txt जनवरी-फरवरी 2003 29 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 क्योंकि अब आपने देखा है कि मनुष्य अमेरिका के लोग पिछड़े हुए थे, बौद्धिकता यदि लालची हो तो क्या होता है। व्यक्ति में नहीं परन्तु प्रतिभा में मेरे विचार में सभी प्रकार के पाप और गलत कार्य किए यहां के लोग प्रतिभा में थोडे से पिछडे चला जाता है जो आपके देश को नष्ट हुए थे अतः विदेशों से उन्हे प्रतिभावान कर सकते हैं। इतना वैभवशाली देश अब लोग प्राप्त हुए। ये लोग अत्यन्त एकाग्र गरीब हो गया है वो सारा धन कहां प्रवृत्ति थे। अतः उन्हें चीज़ों को बहुत ही चला गया? वे लोग बहुत चालाक हैं। अच्छी तरह से कार्यान्वित किया। कुशाग्र आज मुझे किसी ने बताया कि सारा धन बुद्धि लोग जो उनके पास आए उनका बीमा कम्पनियों में है। "हे परमात्मा", मैंने उन्होंने सम्मान किया। कहा, "बीमा कम्पनियां कहती हैं कि आप यह धन नहीं निकाल सकते", इसके बाद जाते हैं तो ऐसा ही होता है। सत्य के उन्होनें बताया कि उनका धन विदेशों में बने उनके बैंकों में है, आदि-आदि। मैंने कहा, "अब देखो कि ये लोग कभी इस पीछे दौड़ते रहे और अधिक धन प्राप्त बात से डरते न थे कि ये भी विपत्त में करने के लिए सभी प्रकार के उल्टे सीधे घिर जाएगें और इस तरह से ये बहुत कार्य करते रहे। सारे वर्षों तक चलाते रहे। परन्तु मुझे पूर्ण विश्वास है कि एक दिन कुबेर स्वयं उनका पर्दाफाश कर देंगे। जब आप सत्य के महत्व को भूल बिना धन व्यर्थ है। धन प्राप्त करके तो आप लोग व्यर्थ की भौतिक चीजों के उस दिन मैं लॉस वैगास (Las Vegas) द्वारा यात्रा कर रही थी। जब हम वायुपत्तन पर रुके तो बहुत से लोग अतः कुबेर की पूजा करके आज हमें धन के सत्य को स्थापित करना है। धन रहे थे मानों उनके परिवार के किसी व्यक्ति के पीछे क्या छिपा हुआ है? धन प्राप्त की मत्य हो गई हो। "क्या हुआ?" पहले वायुयान में आए। वो सब ऐसे प्रतीत हो करने का अभिप्राय क्या है? इस देश के पास पैसा था। परिणाम स्वरूप बहुत अच्छे लोग यहां कार्य करने आए और अपना सारा धन गंवा दिया है।" तो मेरी समझ में ही कुछ न आया। तब से इन्होनें मुझे बताया, "श्री माताजी", इन्होनें आपने बहुत सी प्रशंसनीय उपलब्धियां प्राप्त की। आपके यहां बहुत से ऐसे लोग आए जिन्होनें से प्रशंसनीय कार्य उछलते हैं। अगले क्षण जब इनका धन किए। मैं सोचती हूँ कि कुछ चीजों में चला जाता है तो ये रोते हैं ऐसे धन का जब इनके पास पैसा होता है तो ये बहुत 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-33.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 30 क्या लाभ है जो अस्थाई हो और इतना मूर्खता थी। हमारे देश की एक कथा है। बेकार हो? परन्तु यह मानव का स्वभाव शेख चिल्ली नामक व्यक्ति को थोड़ा सा है कि वो माया के पीछे दौड़ता ही रहता धन प्राप्त हो गया और वह माया के है और धन का भी यह गुण है कि यह चंगुल में फंस गया । उसने सोचा कि मैं आपको माया में उलझा देता है। माया बहुत कुछ कर सकता हूँ। वह लगा स्वप्न इस प्रकार की कि किसी प्रकार से आप देखने कि वह क्या कर सकता है। वह थोड़ा सा धन पा लेते हैं। उस धन से गया और जाकर कुछ अंडे खरीदे और कुछ खरीदते हैं और सोचते लगते हैं कि सोचने लगा कि, "अब इन अंडों में से पैसा होना अत्यन्त आवश्यक है ताकि छोटे-छोटे बच्चे निकलेंगे जो बड़े हो आप बहुत सी चीजें खरीद सकें, कारें जाएंगे इन्हें बेचकर मैं बहुत धनवान बन खरीद सकें, हवाई जहाज खरीद सकें जाऊँगा वह इस प्रकार से बातें कर रहा था। अपने मस्तिष्क में यही सोचते सोचते आदि आदि। जहां भी माया का खेल होता है उसे नींद आ गई और नींद में वह उन वहां आप इस पागल पैसे के पीछे दौड़ना अडों पर गिर गया। सारे अंडे टूट गए शुरु कर देते हैं जो आपको भी पागल और माया समाप्त हो गई। यह कार्य शीघ्र ही होना चाहिए, स्थिति में इन लोगों ने माया और पैसे के परन्तु यदि ऐसा नहीं होता तो व्यक्ति का मिथ्यापन को पहचान लिया है और मुझे अन्त या तो जेल में होता है या किसी बना देता है। यह अच्छी बात है कि इस ा प्रसन्नता है कि उन सबको हथकड़ियाँ अन्य विपत्ति में । लगी और उनकी सारी धन शक्ति समाप्त हो गई है। सहजयोग आपको पूर्ण दृष्टि प्रदान करता है, माया के बाद होने वाले विनाश अतः श्रीकुबेर ही यह सब चालाकियाँ की पूर्ण झलक। यह एक ऐसी आन्तरिक कर रहे थे। श्री कृष्ण अत्यन्त चालाक हैं, चीज़ है कि इसके साथ आप कुछ नहीं अत्यन्त छली व्यक्तित्व । हर कार्य के पीछे कर सकते। उनकी चालाकी होती है। धन सम्बन्धी मैं बिल्कुल भिन्न हूँ। मैंने आपको बताया था कि यह (माया) मेरी बिल्कुल समझ में नहीं आती। परन्तु यदि आप पैसे का मूल्य समझते भी हो, यदि आप यह मामलों में भी वे पहले आपको मूर्ख बनाते हैं कि धन के पीछे दौड़ो और तब आपको पता चलता है कि ऐसा करना अत्यन्त 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-34.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 31 समझते भी हो कि धन आपके लिए बहुत इन लोगों ने बहुत सारी अनावश्यक चीजें कुछ खरीद सकता है इसके बावजूद भी बहुत से तोहफे और उपहार आदि मुझे आप उसको कोई विशेष महत्व नहीं देते। दिए परन्तु आप आश्चर्यचकित होगें कि सहजयोगी की यही पहचान है। स्वभाव मुझे इससे बहुत दुविधा होती है। इन्हें से ही उसके लिए धन का कोई विशेष लेने में मुझे बहुत संकोच होता है मैं उस महत्व नहीं होता। ऐसा नहीं कि वो इसके स्थान पर पूर्णतः अनुपस्थित होती हूँ जहां पीछे दौड़ता है या कहता है कि मेरा है। पर वे किसी भी प्रकार का व्यापार करते स्वभाव से ही वह धन की परवाह नहीं हैं या किसी भी प्रकार की खरीद। इसी करता क्योंकि वह इससे ऊपर है। जो प्रकार से सहजयोगियों को अपने मस्तिष्क, व्यक्ति धन से ऊपर है वही सच्चा अपनी आत्मा पर स्थापित करने होगें और सहजयोगी है। जो इस मुर्खता में फंसा आपको अपनी आत्मा की शक्तियों का हुआ है, धन की माया में फंसा हुआ है, आनन्द लेना होगा। एक बार जब आपको वह सहजयोगी नहीं है। निःसन्देह मैंने वह आनन्द प्राप्त हो जाएगा तब आप देखा है कि अधिकतर सहजयोगी अत्यन्त लोभ के शिकार नहीं होगें। यह कार्य ईमानदार हैं, विशेषरूप से पश्चिम में। अत्यन्त सहज है फिर भी कई बार आप परन्तु भारत में एक बीमारी है। जैसे आपके इसे नहीं करते। किसी भी चीज़ पर आप यहां कुछ विषाणु (Viruses) हैं वैसे ही मोहित हो जाते हैं, वह कार भी हो सकती भारत में भी कुछ विषाणु हैं। अतः वे पैसे है और हवाई जहाज भी यह सब चीजें के पीछे दौड़े चले जा रहे हैं। उनके लिए मेरी समझ में नहीं आतीं। बहुत सारी कारें धन महत्वपूर्ण है । रखना भी सिर दर्दी है। क्या ऐसा नहीं है? परन्तु लोगों के पास बहुत-बहुत कारें हैं, वो सोचते है कि उससे लोग प्रभावित विकास प्रक्रिया में आप यदि उस अवस्था तक पहुंच जाते हैं जहां आप नाभि चक्र से ऊपर उठ जाते हैं, नाभि होते हैं तथा इस प्रकार से वो स्वयं की चक्र को पार कर लेते हैं तो पैसा अधिक कोई सीमा नहीं देखते। कुछ भी नहीं। महत्वपूर्ण नहीं रह जाता। तब धन का अधिक महत्व नहीं रह जाता। जहां तक लोग यदि प्रभावित भी हो जाएं तो उसका क्या लाभ है? आपको इससे क्या प्राप्त होता है? मेरा सम्बन्ध है मैं अपने लिए कुछ भी नहीं खरीद सकती। केवल दूसरों के लिए खरीदती हूँ। इसमें कोई सन्देह नहीं कि लिए उसकी आत्मा है किसी अन्य चीज़ सहजयोगी के पास आनन्द लेने के 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-35.txt जनवरी-फरवरी 2003 32 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 से अधिक, किसी भी अन्य चीज़ से कहीं गई है। ऐसा किस प्रकार घटित होता है? अधिक, आनन्द लेने के लिए सहजयोगी यह तो मेरे, विचार से महालक्ष्मी का के पास उसकी आत्मा है। वह किसी भी चमत्कार हो सकता है। अन्य चीज़ का स्वामित्व नहीं चाहता। अतः मैं आपको बताना यह चाहती किसी भी अन्य चीज़ का स्वामी होना हूँ कि आपको अपनी आर्थिक स्थिति की बिल्कुल भी चिन्ता नहीं करनी चाहिए । इसका दूसरा पक्ष महालक्ष्मी है। लेखा-जोखा करने में ही न लगे रहें। ये आपके अन्दर यदि यह तत्व है - महालक्ष्मी न देखें कि बैंक में आपका कितना धन है, बहुत बड़ी सिरदर्दी है। तत्व, तो आपको कभी धन की समस्या आपने अपने पैसे का क्या करना है और नहीं होगी इसके विपरीत आपको यह उसका कहां निवेश करना है। मैंने लोगों समझ होगी कि किस प्रकार इसे रोका को धन की योजनाएं बनाते हुए पागल होते देखा है । जाए। जहां तक मेरा सम्बन्ध है मैं अपने महालक्ष्मी तत्व से परेशान हो जाती हूँ गए तो ऐसा करने की कोई आवश्यकता क्योंकि मैं नहीं जानती कि यह कहां से नहीं है सभी कुछ स्वतः होता है। किसी कार्यान्वित करता है, बिना किसी प्रयास भी अन्य रोग की तरह से लालच भी एक बार जब आप सहजयोगी हो के किस प्रकार यह कार्यान्वित करता है। आपके अन्दर विद्यमान है। जैसे अन्य रोग परन्तु स्वभाव से मुझे इसमें कोई रुचि होते हैं लालच भी वैसे ही बना हुआ है। नहीं है। मैं नहीं जानती कि इस प्रभाव जिस प्रकार सहजयोग से रोगों का इलाज (कार्य) का कारण क्या है। (Cause of हो जाता है वैसे ही लालच भी दूर हो जाता है चाहे यह कितनी ही मात्रा में हो Effect). मैं तो यह भी नहीं जानती कि लालच होता क्या है। मान लो मैं कोई छोटी सी चीज़ खरीदती हूँ, इस प्रकार की, तो यह दस गुणी कीमत पर बिक जाती है। इसकी कीमत दस गुणी बढ़ जाती है। मैं नहीं सन्तुलन (Counter Balance) करने का अत्यन्त उदार हो जाना प्रति जानती क्यों। यह आश्चर्य की बात है मैं एकमात्र उपाय है। आप यदि अत्यन्त उदार कोई छोटी सी चीज़ खरीदूंगी और मुझे होगें तो लालच दौड़ जाएगा। ऐसा करने पता चलेगा कि यह तो बहुत मंहगी हो का एक अन्य उपाय भी है। मान लो 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-36.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 33 आपके घर में आपको कोई चीज प्राप्त गुणा अधिक था। मेरे लिए इसका कोई होती है जिसे आप समझते हैं कि यह विशेष महत्व नहीं है परन्तु उसके लिए है बहुत अधिक है। इससे छुटकारा पाने के लिए नहीं, परन्तु उसे आप बोझ समझते बताई, "श्रीमाता जी ने यह वस्तु दी। माँ हैं तो ऐसी चीज़ आप किसी अन्य व्यक्ति ने मुझे यह दिया।" मैं हैरान थी । तब को दे दें। एकदम से आप सोचने लगे कि लोगों ने मुझसे पूछा, 'श्रीमाता जी आपने यह किसे दी जाए तो तुरन्त आपको याद किस प्रकार उसे यह वस्तु दी? मैंने कहा, आ जाएगा। "ओह! फलां व्यक्ति के पास "मात्र प्रेम के कारण।" उसने यह बात बहुत से लोगों को यह वस्तु नहीं है। मुझे यह चीज़ उसे दे देनी चाहिए।" आप जब उस व्यक्ति को ये चीज दे देगें तो वह अत्यन्त अनुगृहित अतः उदारता इस विश्व में जीने का होगा और आपके लिए सभी प्रकार की उदारता के महत्व को समझते हुए बहुत से लोगों ने सहजयोग अपनाया । सर्वोत्तम मार्ग है इतनी सारी चीजें इकट्टी अच्छी बातें बोलेगा। ऐसी अच्छी बातें जो प्रायः कोई भी आपके विषय में नहीं कहता। कर लेना भी तो सिरदर्दी है। बेहतर होगा कि इनसे छुटकारा पा लें, परन्तु प्रेमपूर्वक | और यह कार्य आश्चर्यजनक रूप से आनन्ददायी है कि किस प्रकार लोग पाएगें कि वो आपकी कितनी सराहना आप यदि ऐसा करते हैं तब आप जान आपकी उदारता को पसन्द करते हैं। करते हैं । अतः आपको उदार होना है, बस उदार होना है, स्वयं के प्रति नहीं अन्य लोगों के प्रति। जहां तक संभव हो उदार सामाजिक कार्य करने का प्रयत्न करें। लालच से मुक्ति पाने का एक अन्य उपाय यह है कि आप कोई सामूहिक बने। उदारता अत्यन्त प्रेम प्रदायक है, आपके प्रेम की यह एक अभिव्यक्ति है। मेरे साथ ऐसा बहुत बार घटित हुआ जब आपको बताती हूँ कि आपका लालच मैंने देखा कि जब किसी व्यक्ति को किसी मान लो आप किसी ऐसे स्थान पर जाएं जहां बहुत से गरीब लोग रहते हों, तो मैं एकदम से आप यह देखकर छूट जाएगा दंग रह जाएगें कि किस प्रकार ये लोग चीज़ की आवश्यकता है मैंने उसे अपने मस्तिष्क में रख लिया और वह चीज़ खरीद कर उस व्यक्ति को दे दी। उस क्यों मैं धन दौलत आदि की इतनी चिन्ता जीवन यापन करते हैं, किन हालात में, व्यक्ति से जो प्रेम मुझे प्राप्त हुआ वह उस चीज को खरीदने के आनन्द से हजार करता हूँ? उन लोगों को देखना आपके 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-37.txt जनवरी-फरवरी 2003 34 चैतन्य लहरी खंड-xV अंक 1 व 2 लिए बहुत बड़ा झटका होगा। कभी-कभी आपको भी वैसा ही होना चाहिए। आपको लोग अत्यन्त दुर्दशा में रहते हुए दिखाई देते हैं। भारत में भी ऐसा है। एक उदार हैं। आजतक मुझे किसी ने भी यह बार में कोलकत्ता गई और किसी तरह से नहीं बताया कि यहां कोई कंजूस व्यक्ति मैंने देखा है कि सहजयोगी अत्यन्त मुझे उन क्षेत्रों में जाना पड़ा जहां लोग अत्यन्त दारिद्रय की अवस्था में रहते हैं। है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि एक दिन ऐसा आएगा जब हमारे बीच अत्यन्त उच्च आप हैरान होगें की बच्चे भी इसी दुर्दशा गुण सम्पन्न लोग होगें। में पल रहे थे। कई दिनों तक मैंने खाना अन्य पंथों की तरह से सहजयोग में नहीं खाया। मैं रोये ही जा रही थी। हम यह नहीं कहते कि अपने वस्त्र या मुझसे खाना भी न खाया जा रहा था। अपना परिवार त्यागकर आप जंगलों में मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए! मुझे लगा, "ये क्या है? क्यों रहे या झोपड़ियों में रहें। ऐसा कुछ भी ये लोग ऐसे है?" मैं असहाय थी और रो हम नहीं कहते। किसी भी चीज़ को त्यागने रही थी कि कभी तो मैं इनके लिए कुछ की आवश्यकता नहीं हैं। त्यागभाव तो हमारे हृदय में होना चाहिए। ये आपके व्यक्तित्व का एक हिस्सा होना चाहिए। अत्यन्त प्रशंसनीय बात है कि अपन किसी चीज को त्यागने की आवश्यकता बाल्यकाल में ही मैंने एक कुष्ट गृह नहीं हैं। आप यदि आध्यात्मिकता में दृढ़ किया, अपंग व्यक्तियों के लिए एक गृह हैं तो किसी का धन हथियाने के विषय में कर पाऊँगी। आरंभ चलाया, एक शरणार्थी गृह आरंभ किया। सभी प्रकार के कार्य किए और कभी यह आप सोचेंगे भी नहीं। इसके विपरित अपना सभी कुछ दे डालना पसन्द करेंगें। भी नहीं सोचा कि अपना सारा पैसा यदि मेरे पिता तो मुझसे भी गये गुजरे सदैव वो घर को खुला रखते थे, सारे मैं इन लोगों को दे दूंगी तो मुझे बहुत सारी चीजें त्यागनी पड़ेंगी। मुझे अपनी थ बहुत सी चीज़े बेचनी भी पड़ी क्योंकि दरवाजे वे खुला रखते थे। वो कहा करते उदार होना अत्यन्त आनन्दप्रदायक तथा थे कि यदि दरवाजे खुले होगें तो चोर प्रसन्नताप्रदायक होता है। सभी प्रकार से घर में नहीं घुसेगा। एक दिन एक चोर यह बात अत्यन्त स्पष्ट है कि आपको घर में घुस आया, और उनका ग्रामोफोन ले गया। पुराने समय में, बहुत बड़े भोंपू उदार होना चाहिए। उदारता श्रीकुबेर का गुण है। वे अत्यन्त उदार व्यक्तित्व हैं। वाला ग्रामोफोन वो ले गया। अगले दिन 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-38.txt जनवरी-फरवरी 2003 35 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 मेरे पिताजी अत्यन्त उदास बैठे हुए थे। है कि संभवतः कुबेर को बैंकिग का ज्ञान मेरी माताजी ने जब उनसे पूछा, "आप हो। उन दिनों बैंक नहीं हुआ करते थे। हो सकता है कि हो क्योंकि जिस प्रकार उदास क्यों हैं? ग्रामोफोन के कारण?" नहीं, मैं इसलिए उदास हूँ क्योंकि मुझे से वह बैंक प्रबन्धन करता है तो मुझे लगता है कि संगीत का वह ज्ञाता केवल लगता है कि वही उन्हें चला रहे हैं। यही ग्रामोफोन ही ले गया है। रिकार्ड तो वो कारण है कि अभी तक बैंकों में कोई ले ही नहीं गया। तब मेरी माँ ने कहा, समस्या नहीं है। मैं नहीं जानती परन्तु "ठीक है, अब हम क्या करें? क्या हम वह अत्यन्त चतुर व्यक्ति है, अत्यन्त समाचार पत्रों में विज्ञापन दें कि तुम आकर रिकार्ड भी ले जाओ? बुद्धिमान अत्यन्त चुस्त क्योंकि धन व्यवहार करने वाले व्यक्ति में यह गुण होने आवश्यक हैं। यद्यपि पैसे से उन्हें बिल्कुल कहने का अभिप्राय है कि इतना सौन्दर्य उनमें था कि आज इतने वर्षाँ के मह न था, आप उनके जीवन को देखें पश्चात् मैं आपकों बता रही हूँ और आप उसका आनन्द ले रहे हैं। कितना गुरु के साथ रहे और गुउओं के झुंड उदारतापूर्ण सुन्दरचरित्र था। परन्तु धर्म चराने के लिए जंगल ले जाते थे। उनका के माध्यम से यदि आप किसी पर लागू कि उन्होनें क्या किया। बचपन में वे अपने बचपने इस प्रकार से बीता और बाद में करें कि यह त्याग दो, वो त्याग दो. तो सर्वसाधारण परिवारों के गऊएं चराने वाले यह कठिन है। त्याग तो अन्दर से होता ग्वाले, लड़कों के साथ वे खेला करते थे। है आप यदि किसी चीज से लिप्त नहीं धन के पीछे वे कभी नहीं दौड़े । वो तो हैं तो आपने इसे त्याग दिया है। यह गुण मक्खन चुराया करते थे क्योकि ये महिलाएं होना ही चाहिए और यदि आप लोग अपना मक्खन कंस के सिपाहियों को बेच अपनी उदारता और दानशीलता का दिया करती थीं। अतः मक्खन चुरा के वे खा लिया करते थे ताकि ये महिलाएं उन आनन्द लेते हैं तो उस जैसी कोई बात नहीं है। मैं ऐसे लोगों को जानती हूँ जो असुरों को ये मक्खन न दे सकें। कल्पना बहुत अमीर हैं, सभी कुछ है परन्तु उनमें कर कि इतना छोटा सा लड़का इस प्रकार उदारता का अभाव हैं। श्रीकु्ेर का यह के कार्य करता था! वास्तव में किस प्रकार वह इन लालची महिलाओं को सबक सीखा रहा था क्योंकि ये अपना मक्खन इसके अतिरिक्त लोग मुझसे कहते इन भयानक सिपाहियों को बेच देती थी। अन्य गुण है। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-39.txt जनवरी-फरदरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 36 सारा मक्खन उनसे चुराकर वे खुद खा हैं। वे इसमें कुछ परिवर्तन नहीं करना चाहते। वह ऐसी भयानक चीज़ें नहीं प्राप्त करना चाहते जों उन्हें जेल ले जाएं। वे जो भी कार्य उन्होनें किया उसमें इन चीजों के बारे में सोचते ही नहीं। वे जाया करते थे। उदारता की पराकाष्ठा है। पूर्ण विवेक के ऐसा क्यों नहीं करते? क्योंकि उनमें साथ, वे इतने विवेकशील थे कि अपने लज्जाशीलता बाकी है। गरीब से गरीब मामा का वध करने से भी न चुके। उनके लोगों में भी लज्जाशीलता अत्यन्त लिए सांसारिक सम्बन्धों का अधिक महत्व उच्चकोटि की है। उस समाज में वे न था। भारत में यदि आप देखें तो यहां ईमानदार व्यक्ति का बहुत सम्मान करते पर सम्बन्धों को बहुत अधिक महत्व दिया हैं और सभी बहुत ईमानदार हैं। कोई-कोई जाता है। पिता चोर है, पुत्र चोर है, पोता बेईमान भी हो सकता है परन्तु ऐसे व्यक्ति चोर है, सबके सब चोर है। क्या आप इस को कोई सम्मान नहीं करता क्योंकि वे बात की कल्पना कर सकते हैं। किसी भी आत्मसम्मान को सबसे बड़ा गुण मानते परिवार में मैंने यह नहीं देखा कि परिवार हैं। इन गरीब लोगों की आप कल्पना का एक भी सदस्य चोर है तो उसका करें। यद्यपि उन्हें दिन में एक ही बार कोई वंशज ईमानदार हो! यह बड़ी अजीब खाना पड़ ता है फिर भी उनका सी बात है। परन्तु इस प्रकार का लालच आत्मसम्मान उनके लिए सब कुछ है। उनके मस्तिष्क में घर कर जाता है और अतः इस प्रकार के मूर्खतापूर्ण लालच से वो यह नहीं सोचते कि यह महत्वपूर्ण है। मक्ति पाने का तीसरा समाधान वो केवल इतना सोचते है कि जीवन आत्मसम्मान है। क्यों आपको चोरी करनी यापन करने का केवल एक उपाय चरी चाहिए? चोरी की या किसी अन्य व्यक्ति ही है । यद्यपि भारत में अत्यन्त ईमानदार की कोई भी चीज आपको क्यों स्वीकार लोग भी हैं। करनी चाहिए? आपमें यदि आत्मसम्मान है तो आप किसी भी चीज़ को, जो आपकी मैंने देखा है कि हमारे नौकर कभी अपनी नहीं हैं, छुएंगे भी नहीं । चोरी नहीं करते कभी कुछ नहीं चुराते। इसके लिए उनके पास कोई कारण भी नहीं है। वास्तव में वे कुछ नहीं चुराते। ये क्यों नहीं वो लोग ऐसा कर सकते है आश्चर्यजनक बात है। क्यों वे चोरी नहीं जिनकी स्थिति उन नौकरों से कहीं अच्छी करते? अपने जीवन से वे अत्यन्त संतुष्ट है। मेरे विचार से उनका स्वभाव इतने यदि नौकर ऐसा कर सकते हैं तो 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-40.txt जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 37 उच्च स्तर का है कि आत्मसम्मान ही परन्तु लोग तो सत्ता चाहते हैं, क्योंकि उनके लिए उन सभी चीज़ों से अधिक इससे उन्हें धन प्राप्त हो सकता है और महत्वपूर्ण है। यह उनके लालच को सन्तुष्ट धन से वे सत्ता प्राप्त करते हैं। क्यों? आप इसकी कल्पना कर सकते हैं? मानव की करता है। लालच की ये भी विशेषता है कि ये स्थिति क्या है? वह किस स्तर पर है? उत्थान के किस स्तर पर वे हैं? बस पैसे कभी सन्तुष्ट नहीं होता कभी भी यह शान्त नहीं होता के चक्कर गोल गोल घूमें जा रहे हैं। यह लोग किसी समय पर बहुत ही धनवान मैंने देखा है कि जो होना चाहिए। नाभि चक्र है जिसे सन्तुष्ट ा हुआ यही आपको सन्तोष प्रदान करता है। उनके लिए नरक बन गया है। बिना आपका नाभि चक्र यदि सन्तुष्ट है तो शानो शौकत के वो जी नहीं सकते फिर करते थे वो दरिद्र हो गए हैं जीवन आपने कुबेर की अवस्था प्राप्त कर ली भी उनकी समझ में यह नहीं आता कि है। ये देखना अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि यह सब व्यर्थ है। धन खो देने पर वे स्वयं आपका नाभि चक्र सन्तुष्ट है। को अत्यन्त दुःखी मानते हैं। और भी बहुत सी चीजें हैं परन्तु मेरे विचार से लोभ निकृष्टतम है। किसी प्रकार कुछ लोग ऐसे है जो धन प्राप्त करना चाहते हैं। धन प्राप्त करने के लिए से यदि इसे संभाल लिया जाए इसे इसके वो कुछ भी कर सकते है। यह बड़ी अजीब बात है। सत्ता के लिए भी ऐसा ही होता ये विश्व बहुत बड़ी सीमा तक सुधर है आपमें यदि अपनी शक्तियाँ है तो जाएगा। आप सांसारिक सत्ता के पीछे नहीं दौड़ते। स्तर पर ले आया जाए तो, मैं सोचती हूँ, परमात्मा आपको धन्य करें। श्रीट. 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-41.txt परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी द्वारा श्रीमान दामले को मराठी में लिखे गए एक पुराने पत्र का अनुवाद । प्रिय दामले, हृदय जो कि शान्त है, परन्तु भावुक है उसकी खिचावट को भी हम समझते हैं । अनन्त आशीर्वाद, परन्तु सहस्रार की खिचावट चहुँमुखी हो आपका पत्र मिला। सहस्रार पर जाती है। वहाँ व्यक्ति एक संघटित अवस्था खिचावट महसूस करना बहुत अच्छा चिन्ह में होता है और धर्म की उस अवस्था में है क्योंकि सहस्रार के माध्यम से ही अनन्त चेतना चैतन्य के लिए, परमात्मा के प्रेम के चैतन्य किरणें मनुष्य के हृदय में पेंठती हैं लिए प्रार्थना करती है। यह सब स्वतः और अन्तर्अस्तित्व के नए द्वार खुल जाते घटित हो जाता है। यद्यपि यह आपकी हैं। परन्तु इस आशीष के सहस्रार में प्रवेश कुंडलिनी की निपुणता है फिर भी आपके करने से पूर्व इसमें खिचावट होनी चाहिए। व्यक्तित्व को चाहिए कि कुंडलिनी को 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-42.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 39 दृढ़ करें। अपने पूर्व जन्मों में आपने यह मस्तिष्क में बिठा दिए जाते हैं। मिथ्या गुण अर्जित किए हैं। अतः यह जीवन सम्बन्ध जैसे "ये मेरे पिता हैं, ये मेरी माँ पूर्वजन्मों से महान है और मेरे कार्य को हैं, ये मेरा भाई है", आपके सिर पर लाद करने के लिए बहुत से रत्नसम व्यक्ति दिए जाते हैं। अहंकार आपमें मूर्खतापूर्ण उपलब्ध हैं। आप यह बात समझे कि विचारों को विकसित करता है जैसे, "मैं यद्यपि शारीरिक रूप से मैं यहाँ हूँ, मैं धनवान हूँ, मैं गरीब हूँ, मैं निस्सहाय हूँ या सर्वत्र हूँ। ये बात महसूस की जानी चाहिए मैं उच्च परिवार से सम्बन्धित हूँ" आदि कि यह शरीर भी मिथ्या है। इस अवस्था आपके मस्तिष्क में भर जाते है। बहुत से तक आना कठिन होता है परन्तु शनैः अफसर और राजनीतिज्ञ अहंकारी (गधे) शनैः जब इस मिथ्यापन को देख लिया बन जाते हैं। इसके अतिरिक्त प्रेम की जाए तो सहज ही में यह सत्य स्थापित आड़ में क्रोध, घृणा, सहिष्णुता, जुदाई, हो जाएगा और महान आनन्द की लहरियाँ गुम, लिप्तता तथा सामाजिक प्रतिष्ठा के आपके पूरे अस्तित्व को आच्छादित कर नाम पर अन्य प्रलोभन भी हैं। मानव अत्यन्त लेंगी। इस पत्र में मैं 'मिथ्या' की व्याख्या प्रेम के साथ जीवन की इन मिथ्या चीजों कर रही हॅूँ। यह पत्र सभी लोगों के समक्ष को पकड़ लेता है। इन दुर्गुणों से छुटकारा पढ़ा जाना चाहिए और सबको चाहिए कि पाने के लिए आप जब प्रयत्न करते हैं तो आपको प्राप्त होता है भ्रामक ज्ञान क्योंकि चित्त तो पिंगला नाड़ी पर चलता है। तब इसको भली-भांति समझें। जन्म के तुरन्त पश्चात् ही मिथ्या का आरंभ हो जाता है। आपका नाम, आप सिद्धियों तथा प्रलोभनों में फंस जाते गाँव, देश, जन्मपत्री, भविष्यवाणियां आदि है। कुंडलिनी तथा चक्रों का दर्शन भी बहुत सी चीजें आपसे जुड़ जाती हैं या अन्य लोग इन सब चीजों को आपसे जोड़ भ्रामक है क्योंकि इससे कोई लाभ नहीं होता इसके विपरीत यह हानिकारक है । देते हैं। ब्रह्मरन्ध्र यदि एक बार बन्द हो आत्मनियंत्रण तथा तपश्चर्या जो आप स्वयं जाए तो बहुत से भ्रामक विचार आपके पर लागू करते हैं यह सब आपके चित्त मस्तिष्क का हिस्सा बन जाते हैं। 'यह को सीमित करती है। इस प्रकार इनसे मेरा है या ये लोग मेरे हैं। ये मिथ्या मुक्त होने का कोई मार्ग नहीं है । विचार बाह्य वस्तुओं के समरूप हैं। इसके आत्म-साक्षात्कार से भी मिथ्या चीजें अतिरिक्त व्यक्ति अपने लिए ऐसे बन्धन एकदम से छूट नहीं जाती। शनैः शनैः यह किनारा करती हैं। दृढ विश्वास से, बना लेता है जैसे, "मेरा शरीर एवम् मन स्वस्थ होना चाहिए।" ये विचार आपके पूर्ण हृदय पूर्वक यदि आप मिथ्या को अस्वीकार करेंगें तो आपको शुद्ध रूप में 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-43.txt जनवरी-फरवरी 2003 40 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 मानव को इतने गहन प्रयत्न के बाद आत्मा का साक्षात्कार हो जाएगा। तत्पश्चात् यह आपमें स्थापित हो जाती बनाया गया है वह यदि अपने पैरों पर है। यद्यपि वही नश्वर मानव चित्त, जोकि एक कदम चल ले तो सब सफल हो प्रेम के स्वभाव में सराबोर होता है, सत्य जिसका न कोई आदि है न अन्त है, जाता। इसीलिए मैं आपकी माँ के रूप में वास्तव में जो शिव है, मानव चित्त इसी अवतरित हुई हूँ। अपनी समस्याएँ मुझे वास्तविकता को महसूस करने के लिए पत्र में लिखकर भेजें। ध्यान में बैठें, परस्पर बना है। इस चित्त का आत्मा से एक रूप बैठ कर भी सहजयोग की बातचीत करें। होना आवश्यक है। जो चित्त मिथ्या को चित्त को हमेशा अपने अन्दर की गहनता परन्तु सभी कुछ संभव नहीं हो जाता है। त्याग कर आगे बढ़ता है वही जाने में रखा जाना चाहिए। बाह्य चीजों को अनजाने सभी बन्धनों को तोड़ता है और जहाँ तक संभव हो भूल जाएं। विश्वास अन्ततः आत्मा बन जाता है। वह न तो रखें कि हर चीज का ध्यान रखा गया है। से कभी व्याकुल होता है और न ही कभी इस कथन को प्रमाणित करने के नष्ट होता है । इच्छाओं के पीछे दौड़ने उदाहरण हैं। तब आप जो भी कुछ करेंगे वाला मानव चित्त ही अपने आन्तरिक पथ आपका चित्त आत्मा के साथ एकरूप होगा। को छोड़ देता है। यह माया (भ्रान्ति) है । पाप पुण्य के सभी बन्धन समाप्त कर इसकी सृष्टि जानबूझ कर की गई है। दिए गए हैं। सांसारिक और गैर सांसारिक इसके बिना मानव चित्त का विकास न हो चीजों का अन्तर समाप्त हो जाता है क्योंकि पाता। माया से आपको घबराना नहीं इस अन्तर की सृष्टि करने वाला भयानक चाहिए, इसे समझना चाहिए ताकि ये अन्धकार समाप्त हो गया है। सत्य ज्ञान बहुत आपका पथ प्रकाशित कर सके। बादल के प्रकाश में सभी कुछ मंगलमय हो जाता सूर्य को आच्छादित कर लेता है परन्तु है चाहे यह श्री कृष्ण द्वारा किया गया इसको प्रकट भी करता है। सूर्य तो सदैव विनाश हो या श्री ईसा का क्रूस हो। विद्यमान होता है। तो बादल का क्या व्याख्या द्वारा यह सभी बातें नहीं समझी उद्देश्य है? बादल होने के कारण आप जा सकतीं। केवल मार्गदर्शन भी सहायक लोगों में सूर्य को देखने की आकांक्षा होती न होगा चलने से ही इस पथ का ज्ञान प्राप्त हो सकेगा। | सूर्य क्षण भर के लिए चमकता है और फिर बादलों के बीच चला जाता है। बादल जब मुझे आपके पत्र मिलते हैं तो मैं लक्ष्य तय करती हूँ। कुछ समय पश्चात् यह भी आवश्यक न होगा। परन्तु वर्तमान आपकी दृष्टि को सूर्य को देखने की शक्ति और साहस देता है। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-44.txt जनवरी-फरवरी 2003 41 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 में सभी को अपने अनुभव तथा उन्नति लन्दन में सहस्रार दिवस मनाया गया तो लिखनी चाहिए। मैं जब आऊंगी तो हम मैंने केवल २०-२५ लोगों को ही आमंत्रित देखेंगे कि आपने विराट की कितनी नाड़ियाँ किया और आगे का कार्यक्रम तय किया। जागृत की हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि भारत की पावन भूमि पर यह कार्य आगे बढ़ेगा और जब यह पूर्णतः विकसित हो जाएगा तो सभी देशों तथा दिशाओं में इसका प्रसार होगा आज (५ मई) जब सभी को अनन्त आशीर्वाद और असीम प्रेम सदा सर्वदा आपकी माँ निर्मला 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-45.txt होली पूजा 29-3-1983, दिल्ली परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन अग्नि का बड़ा भारी दान है, कार्य का प्रादुर्भाव और इनको किस तरह से है, क्योंकि अग्नि देवता ने होलिका को जला दें। इनको तो कोई भी जला नहीं सकता। ये तो मेरी शक्ति से परे है । तो उन्होनें विचार ये किया कि वरदान दिया था कि किसी भी हालत में तुम नहीं सक ती। और चाहे किसी भी तरह से मृत्यु आ जल अहंकार कैसा, कि इतनी बड़ी शक्ति के सामने मैं अपनी शक्ति की कौन सी बात कह कि जाए पर तुम नहीं जल सकता हूँ? मेरी ऐसी कोई सी भी शक्ति नहीं है जो इनके आगे चल सके । सकतीं । और वरदान दे कर के वे बहुत पछताए क्योंकि प्रहलाद इनकी शक्ति इतनी को गोद में लेकर के वह आग में बैठी और अग्नि देवता के सामने म् महान है। तो इनको तो मैं जला सकता ही नहीं चाहे कुछ भी कर लूँ। इस वक्त दूसरा मेरे सामने बड़ा भारी यह प्रश्न था, धर्म का प्रश्न था कि मैंने तुमको वचन दे दिया है कि मैं तुमको जलाऊंगा नहीं और अब इस वचन को मैं धर्म खड़ा है। कैसे पूर्ण कराँ? और प्रहलाद तो स्वयं साक्षात् अबोधिता हैं। स्वयं साक्षात गणेश कशमकश हुई तो उस वक्त यह सोचना तो कर्तव्य और धर्म इसमें जो 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-46.txt जनवरी-फरवरी 2003 43 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 चाहिए कि धर्म कर्तव्य से ऊँचा है धर्म बिल्कुल Seriously सब करना चाहिए । और कर्तव्य एक सर्वसाधारण कर्तव्य से क्योंकि कर्मकाण्ड बढ़ गए और कर्मकाण्ड ऊँची चीज़ है और उससे भी ऊँची चीज़ करने में बड़ी आफत रहती है कि गर आत्मा है । यानि जो छोटा परिधि बंधा आपने इधर से उधर दीप जला दिया तो निमित्त जो हुआ कुछ भी हमारा वलय है, भगवान जी नाराज़। इधर से उधर गर Goal है, उससे जो ऊँचा Goal है, उसको आपने धूप बत्ती जला दी तो भगवान जी पाना अगर है तो इस छोटे को छोड़ना नाराज़ । अब बायें हाथ से गर आपने कुछ पड़ेगा और यही कृष्ण ने शिक्षा दी। कृष्ण कर दिया तो भी आफ्त। ने कहा कि गर आपको हित के लिए झूठ बोलना पड़े तो झूठ बोलिए। सच बोलने की बात ठीक है पर किसी ऊँची चीज़ के लिए नीची चीज़ को छोड़ना पड़ेगा। जैसे गंभीरता से धर्म करने लगे। इतने गंभीर कि कोई आदमी अगर अन्दर घर आ हो गए कि उनका आहुलाद, उनका इन सब बातों की वजह से लोगों में Conditioning आ गई और उस Conditioning की वजह से लोग बहुत जाए और किसी को मारना चाहता है, राधाजी की उल्लास सब खत्म हो गया। जो मुख्य शक्ति थी वो थी आहलाद पूछा खून करना चाहता है, तो एक तो उसकी अनाधिकार चेष्टा है। उसने आप से दायिनी। सबसे आहलाद देना, ये उनकी मुख्य शक्ति थी और इसीलिए उन्होनें "ये महाशय ऊपर हैं तो आपने कहा कि हाँ हैं। सच कहना चाहिए और सच कह होली का त्यौहार बनाया। कृष्ण आकर दिया तो वह तो उसको मार डालेगा । के जितनी भी पूजाएं थीं सबको बन्द उनकी जान बचाना ही बहुत ऊँची चीज़ करके और कहा कि अब पूजा-वूजा मत है, वह महत्वपूर्ण है। बड़ी चीज़ हैं। उस करो तुम और उस आत्मा की ओर बढ़ो बड़ी बात के लिए, बड़े ध्येय के लिए ये जिसको तुम्हें पाना है। और छोटी-छोटी छोटी जो चीज़ें हैं उनको छोड़ना पड़ेगा यही कृष्ण ने अपने जीवन में आ कर बतलाया। श्रीकृष्ण के जीवन को बहुत कम लोग समझ पाए क्योंकि उस जमाने में धर्म की यह दशा होती थी कि लोग दृष्टि रखनी चाहिए। अब जो आदमी मैं धर्म को बहुत ही ज्यादा गंभीरतापूर्वक, तो झूठ कभी बोलता नहीं साहब । बहुत उसको Serious बना कर रखते कभी-कभी ऐसा आदमी (Over) बहुत थे। सब बुद्धाचार्य थे। कि धर्म बहुत ही स्पष्टवर्ता भी हो जाता है, और अहंकार Serious चीज़ है। इसमें आदमी को में दूसरों को दुखाता भी है या नहीं तो ने । चीजों में मत खोओ। क्षुद्र चीज़ों मैं नहीं खोना है लेकिन ऊँची चीज़ की ओर अपनी 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-47.txt जनवरी-फरवरी 2003 44 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 उसी में उसका जीवन सत्यानाश हो जाता है । ये अंदर से आने वाली एक है। सच भी क्यों बोलना, धर्म भी क्यों आहलाददायिनी शक्ति है जिसे होना करना? कर्त्तव्य क्यों करना। क्योंकि आपको चाहिए, नाकि ये लोग आजकल बजाते आत्मा होना है। और किसी भी चीज़ के फिरते हैं, हरे रामा, हरे कृष्णा । उस तरह आप इस तरह बंध्रन में फँस जाएँ और की चीजे नहीं आपमें (Seriousness) गम्भीरता आ मैंने कल कहा कि Reality और Concept । ये उसकी कापी है जो जाए। आप बुढ़ा गए। इसको बुढ़ाना कहते में बहुत अंतर है। जो असलियत दें उसमें हैं। इसमें कोई फायदा नहीं। तो धर्म जो आदमी विभोर हो कर के खुश हो जाता है वो आदमी को बिल्कुल पूरी तरह से है। उसमें कोई अश्लीलता नहीं हैं, कोई एकदम जमा देता है। जैसे lce-cream गंदगी नहीं है। उसमें कोई जानबूझ कर नहीं जम जाती, ऐसे जमा देता हे। पर के नाटककारी नहीं है। अंदर ही से आदमी शक्ति का संचार कैसे हो? उसका आनन्द खुश हो कर के आहलाद और उल्लास लोग कैसे उठाएं? तो उन्होंने रंग वगैर को महसूस करता है और वही चीज़ जो खेलना शुरु किया। रंग भी जो हैं देवी के है बाद में अनेक आधातों से दुखदायी हो रंग हैं सारे। सातों चक्रों के रंग से रंग गई सब धर्मों में इसी प्रकार हो गया । खेला जाता है। सारे चक्रों के रंग ही जैसे कि मुसलमानों में आपने देखा है कि अपने पर उडेल लो। खेलो, उल्लास, वो मारते हैं अपने आपको हाय हुसैन आहलाद, आनन्द में। गंभीरतापूर्वक बैठने हम न हुए। सुना होगा आपने। याने ये की कौन सी जरुरत है? ৬ रोने वाला धर्म, ये धर्म ही नहीं है । ग़र अगर आप परमात्मा को पाएं तो धर्म में रोना ही है तो ऐसे धर्म में काहे को खुश ऐसे तो रोना ही होता है । सो सूरदास जी गए और उनके सामने अपना दुःख पाने वाला व दुःख देने वाला धर्म रोना शुरु किया। बेचारे वे पार नहीं थे हो नहीं सकता। लेकिन ये सब धर्मों में तो राते ही रहते थे। तो रोना शुरु किया। ऐसी बातें आ गईं हिन्दु धर्म में भी आ तो वल्लभाचार्य तो साक्षात् कृष्ण ही थे, गईं माने ये कि जो आदमी बिल्कुल तो उनसे रहा नहीं गया । उन्होंने कहा, मराधल्ला हो वही बड़ा भारी साधू संत "काहे घिघियावत हो?" कि घिघियाते माना जाने लगा बिल्कुल मर्राधल्ला होना क्यों हो? अब इस घिघियाने के लिए चाहिए। उसकी हालत ये होनी चाहिए कहीं शब्द नहीं मिलेगा आपको। ये हर कि उसमें उद्विग्नता होनी चाहिए। और हो। वल्लभाचार्य के पास एक बार जाने का समय रोने की क्या जरूरत है? परमात्मा वो ऐसी दशा में होना चाहिए कि आधा के प्रेम में आदमी आनन्द विभोर हो जाता पागल आधा अच्छा। कभी उठा Dance 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-48.txt जनवरी-फरवरी 2003 45 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 (नाच) करना शुरू कर दिया। या कभी में भी आदमी फिर एक नीचे के स्तर में रोने को बैठ गया। दुबला-पतला, हड्डियाँ, उतरने लगता है, अश्लीलता में आ जाता उसका पिचका हुआ मुँह, पचासों उसमें है। ऐसा हर एक जगह होता है। हर झुर्रियां पड़ी हुईं आँखें बिल्कुल बटन के चीज़ सड़ने सी लग. जाती है। सड़न जैसे बाहर, तंदरुस्ती चौपट और हर तरह इसीलिए आ जाती है क्योंकि उसमें की उसमें दुर्दशा। ऐसा आदमी कभी भी जीवन्तता नहीं है। गर उसमें जीवन्तता धार्मिक हो नहीं सकता। प्रसन्नचित होना हो तो वह सड़े नहीं। पर इस तरह से चाहिए। शाँत, खिली हुई तबियत, खुला जब होने लग जाता है तो वही चीज़ हुआ हृदय, और प्रकाश जैसे उसके अंदर बहुत ही गंदी और बुरी दिखाने लगती से बह रहा हो। तो होलिका दहन के बाद है। जब होली का त्यौहार महाराष्ट्र में जैसाकि मैंने कहा, आज से यह तय कर मनाया जाने लगा तो तिलक वगैरहा लोगों लें कि होली जो अब है वह दिवाली हो मे इसका बहुत विरोध किया क्योंकि इसमें जाएगी। इसका आनन्द जो है विभोर होना गाली-गलौच, गंदी गाली। क्योंकि उत्तर चाहिए। होली का आनन्द सीमित है। प्रदेश के लोगों को वहाँ भईया लोग कहते क्योंकि आप एक ही होलिका जलाते हैं। हैं मराठी में गालियां है ही नहीं। पर ये ले कि न सब जो गालियां होती है गंदी-गंदी तो ये फिर वो Collective Consciousness में बहुता है। जैसे हर सब मराठी के लोग भी वहां हिन्दी की आदमी, चाहे वो चमार हो, भंगी हो, कोई गालियां देते हैं तो इनके यहां से यही भी हो, तो जैसे हमारे खानदान में लखनऊ Import किया उन्होंने। और अधिकतर में, जहां के रहने वाले हैं, जमींदार लोग गालियां हिन्दी की ही बोलते हैं और मराठी हैं ये लोग, तो मजाल है कि जमींदार की गालियां तो कुछ होती नहीं हैं। यहां लोग बेचारे अंदर भी आ जाएं घर के। तो पारसी लोग भी बहुत गालियां देते हैं वैसे तो तुम दहलीज पर क्यों आए, ये हद और हमारे पंजाब की भी कुछ गालियां होती थी पहले तो। लेकिन होली के रोज होती हैं जो बंबई में चलती हैं सो ये चाहे कोई भी हो, मालिक हो नौकर हो गाली गलौच आदि चीज़े जो हैं ये है कि चाहे कोई भी हो, सब आपस में होली अंदर की जो भड़ास है उसको निकाल खेलते थे। यहां तक कि मालिक के कपड़े लीजिए, वगैरा कहते हैं उसको निकाल भी फाड़े तो भी कोई कुछ नहीं कहेगा। देने से अच्छा होता है। पर ये बड़ी गलत होली के रोज़। इस तरह से एक समाजवाद चीज़ है। ये कभी निकलती नहीं । ये जुबान और एक सामाजिक खुशी का त्यौहार पर चढ़ जाती हैं। हमने देखा है कि हमारे अपने देश में होता है। पर जैसे के होली Husband तो जमींदार Family के हैं। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-49.txt जनवरी-फरवरी 2003 46 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 सिवाय हमारे Husband को छोड़ कर हिन्दी में बोलते वक्त ठीक है सूअर किसी वहां हर आदमी जो है गाली के सिवा को कह दो तो ज्यादा से ज्यादा तय बात ही नहीं करता है। मतलब बड़ों में होगा कि बेवकूफ है। लेकिन वहां पे बहुत भी, उनको गाली देने में कुछ लगता नहीं गंदा शब्द होता है। इस तरह से जहां-जहां है। फट से गाली दे दी एक हमारे पति जिस तरह का व्यवहार है उसकी मर्यादा ऐसे हैं, वाकई में बहुत सुचारू रूप के रखते हुए आदमी को रहना चाहिए नहीं आदमी हैं। कभी मैंने उनके मुँह से गाली तो जिव्हा जो है नष्ट हो जाती है । जिव्हा नहीं सुनी, किसी के लिए। आज तक की शक्ति जो सरस्वती की है वो नष्ट हो कभी उन्हें किसी को गाली देते मैंने सुना जाती है । इसलिए भाषण में भी इसको नहीं। विशेष बात है। देखिए उनके घर में वाचालता कहते हैं वो बुरा होता है, और यदि किसी से बात करते वक्त एक दो वाचालता में भी अश्लीलता तो बहुत बुरी गाली भी नहीं दी तो वे सोचते हैं कि चीज़ है। तो एक तरह से हम लोग सुबोध उन्होंने प्रेम ही नहीं जताया। वहां तरीका घराने के हैं और सुबोध घराने के लोगों ही ये है कि दोस्त जब मिलेंगे तो पचास में एक तरह की सभ्यता (Decency) होनी पहले गाली देंगे उसके बाद फिर गले चाहिए। और उस सभ्यता को ले करके मिलेंगे सो इसी बात से फिर चढ़ जाती हम लोग गाली-गलौच से बातचीज नहीं है गाली उसका नुकसान भी बहुत होता करते। है। ये चीज़ चढ़ जाए गर जिव्हा पे तो होली मैं कुछ न कुछ गाली देनी ही चाहिए जिव्हा की शक्ति नष्ट हो जाती है । जिव्हा और नहीं दी तो आपने होली मनाई नहीं। का आदर नहीं होने से आप जो बोलते हैं और इस तरह से घर में लोग भंग भी वही झूठ होगा। जो आदमी मुँह से गाली पीते हैं। अब बहुतों ने कहा है एक दिन नहीं देता है उसके जिव्हा पे शक्ति होती भंग पीने में क्या हर्ज है माँ? एक दिन है। आप देखते हैं कि भाषण करते-करते भंग पी ले तो भंगेड़ी तो नहीं हो जाते हैं। कुछ कहना भी होता है तो मैं ठिठक पर अगर आप हमें भंग पीने को कहिए तो जाती हूँ कि कहीं ऐसा न हो कि जो बातें हम तो नहीं पीएगें भंग। इसकी वजह ये जैसे ईसा-मसीह ने कहीं थी कि सूअर के है कि हम तो पहले ही पिए हुए हैं और आगे मोती नहीं डालना चाहिए। लेकिन हमें कोई जरूरत नहीं पीने की। और अंग्रेजी में सूअर शब्द जो है गाली है, लोग इसलिए पीते हैं कि सोचते हैं कि बहुत बुरी गाली है। लेकिन मराठी मैं नहीं जो Serious लोग हैं वो ज़रा से हल्के हो है। थोड़ी सी है पर ज्यादा नहीं। अंग्रेजी जाएँ। जो Ego Oriented लोग हैं वे भंग भाषा में बोलते वक्त मैं नहीं बोलती। पी लें तो थोड़ी सी Left Movement हो का और इसलिए कहते हैं कि 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-50.txt जनवरी-फ़रवरी 2003 47 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जाती है तो ज़रा से खिल जाते है। भंग रिवाज़ है । कुछ नहीं, सबने कहा कहाँ में बकना शुरु कर देते हैं। लेकिन भयंकर गई? तो लखनऊ में उन्होंने खबर दे दी प्रकार है भंग भी क्योंकि हमारे ससुराल कि कहाँ चली गई दुल्हन? तो कहा कि जब हम गए तो हमें क्या पता था कि भंग इन लोगों ने भंग पी हुई थी, इन लोगों से वंग पीते हैं। महाराष्ट्र में ये सब तरीके क्या हम बात करते? तो हम चले आए। नहीं हैं। महाराष्ट्र ज़रा इस मामले में तो हमने कहा सबको भंग ही पीने दीजिए । ज्यादा सभ्य है। औरतें तो भंग का नाम भी नहीं लेती । उन्हें अच्छा ही नहीं लगता को कोई जरूरत नहीं। जब चाहे तब मन यह सब । तो घर गए तो हमको क्या पता में ही भंग पी ली। भंग का जो उपयोग है था कि सब भंग पीए बैठे हैं। उन्होंने कहा कि खाना खाईए तो खाना खाने बैठे तो ऐसे ही करते हैं। मतलब ये कि कोई इतनी बड़ी थाली में कायस्थों का जैसे आदमी यदि बड़ा Ego-oriented है, Dry तरीका है इतनी बड़ी थाली में खाना शुरु है, शुष्क है, गंभीर है तो उसके लिए किया। और मैं तो जितना खाती हॅँ आप सहजयोग मैं पूर्ण व्यवस्था है कि वो अपने जानते ही हैं चलो उस दिन त्यौहार था आज्ञा चक्र को ठीक कर ले, अपने आज्ञा थोड़ा ज्यादा खा लिया। पर वो खाते ही चक्र को किसी तरह से खुलवा ले। अपने चली गई, खाते ही चली गई, खाते ही ही आज्ञा चक्र को ठीक कर लें तो वह चली गई। हमने कहा भई क्या हो गया? Left Side में काफी आ जाता है। निद्रा तो भंग वंग पीने की सहजयोगियों Left Side में जाने का है वो हम लोग कुछ समझ में ही नहीं आ रहा। वो हंसतें के समय यदि आज्ञा चक्र को घुमा करके जाएं और खाते जाएं। हमारी जेठानी जी सो जाएं तो अच्छे से निद्रा आ जाती है। विधवा थीं तो विधवाओं के लिए सब मना और अगर फिर उसे भंग की दशा से है। तो मैंने कहा ये इनको क्या हुआ है निकलना है तो फिर आज्ञा चक्र को कस जीजी? तो वो सब हंसी जाएं, कोई हर्ज ले तो फिर Right Side में आ सकता है। तो है नहीं, ऐसा कोई हर्ज नहीं है। खाते तो जब अपने ही हाथ में सारी चीज़ पड़ी जाएं और हँसी जाएं। मेरी कुछ समझ ही हुई है, सारी ही शक्ति हमारे ही में अगर में नहीं आया कि क्या हो रहा है तो समाई हुई है और जब उसका पूरा ही उन्होंने बताया कि ये सब भंग पीए हुए ज्ञान हमको मालूम है कि कौन सी Switch हैं। तो मैं वैसी उठी थाली पर से नमस्कार किस वक्त घुमाने का है तो इन बाहर की करके, हाथ धोये और अपनी अटैची उठा चीजों का अवलम्बन करने की जरूरत कर के मैं ट्रेन में बैठ गई। किसी के पैर नहीं है। तो उस वक्त में भंग हो सकता भी नहीं छुए। हमारे यहाँ पैर छूने का है Justified थी, कृष्ण के जमाने में, 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-51.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 48 कृष्ण भी पीते नहीं, खाते हैं शायद । सो रंक नहीं रह जाता । उन्होंने ये किया, लेकिन बाकी लोगों को जरूरत पड़ी क्योंकि जो Serious लोग कहाँ जा कर मिलाएगा, ये वो ही जाने ये इंसान की खासियत है कि किसको हैं उनको जरूरत थी कि भंग पीएं जिससे लेकिन होली की जो विशेषता है इसमें ये कि जो Misidentifications हैं कि हम याद रखना चाहिए कि दिवाली इसे अगर राजा साहब हैं, हम महारानी साहिब हैं, बनानी है तो इसमें Decency के साथ। हम घर के मालिक हैं, हम फलाने हैं, हम Indecent काम नहीं होना चाहिए । कैसे मेहतर से मिलें। भई मेहतर तो घर अश्लीलता बिल्कुल नहीं आनी चाहिए। झाडू लगाता है। तो उसके लिए ये कि अगर अश्लीलता आ गई तो फिर वो पहले तुम भंग पियो और फिर मेहतर होली श्री कृष्ण की नहीं । वो तो होली और तुम एक हो जाओ। भूल ही जाओ कि तुम मेहतर हो हो जाते हैं वो होली खेलते वक्त कोई सी और वह राजा है। इसलिए भंग पिलाते भी अश्लीलता न हो। यानि ऐसे जैसे कि तुम्हें होश ही न रहे कि तुम कौन सहजयोग मैं हम स्त्री पुरुष होली नहीं हो। क्योंकि इससे ldentifications बने खेलते हैं। औरतें औरतों के साथ, पुरुष हुए हैं कि तुम फलाने हैं हम ढिकाने हैं । पुरुषों के साथ सहजयोग में भाभी देवर भंग पी लिए तो सब एक ही से हैं। अब में हो सकता है। उसका भी एक नियम में हुई ऐसे लोगों की जो पार नहीं। जो पार इसी का उल्टा ऐसा है कि जब कबीर है। दास जी ने कहा कि सुरति जब चढ़ती है तब सब एक जात होते हैं। तो उन्होंने हैं वो अपने से छोटों के साथ खेल सकती सोचा कि जब तम्बाकू आदमी खाता है हैं और जो बड़े पुरुष हैं वो उनके साथ तो भी सब एक जात हो जाते हैं । तो स्त्री अगर छोटी हो तो वो होली नहीं उन्होंने तम्बाकू का नाम सुरति रख दिया। खेल सकती। या किसी भी तरह का जब हिसाब नहीं लगा पाए तो उन्होंने व्यवहार परदा होता है। उससे उलट गए आप जानते हैं कि जो औरतें बड़ी कहा कि तम्बाकू ही सुरति होएगी। क्योंकि स्त्री बड़ी हो उसके साथ पुरुष का व्यवहार जिसको तम्बाकू की तलब होती है तो वो जो है, खुला होता है। ये अपने यहाँ मान्य चाहे राजा हो तो उस वक्त में कोई गरीब होता है । इसलिए भाभी देवर में होली भी बैठा हो तो उससे कहेगा कि भई होती है । लेकिन जेठ और दुल्हन में नहीं तम्बाकू हो थोड़ी तो देओ भाई, वो मांग हो सकती। जेठ से परदा होता है। और लेता है। इसलिए उन्होंने कहा कि तम्बाकू ये कायदा आपको आश्चर्य होगा कि सारे सुरति हो सकती हैं क्योंकि इसमें राजा हिन्दुस्तान में है। और वो अपने आप ही 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-52.txt जनवरी-फरवरी 2003 49 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 चलता है। हम लोगों के अंदर अंतर्निहित है। हमारे संस्कारों में बैठा हुआ है। क्योंकि अपने यहाँ उल्टा काम होता नहीं अधिकतर तो परिपक्व नहीं हो सकता। वो बुड्ढे भी हो जाते हैं तो भी उनमें बचकाना पन जाता ही नहीं और जो हिन्दुस्तानियों का वो कि भई जैसे इंग्लैण्ड में आप देख लीजिए संबंध भी Western लोगों से आता कि 80 साल की बुढ़िया है वो 18 साल भी कुछ वैसा ही हो जाते है। मैंने देखा है के लड़के से शादी करेगी, 80 साल की उनकी भी बूढ़ी औरतें, बड़ी-बड़ी लड़कियां बुढ़िया। उनको कोई हर्जा नहीं। अपने होएंगी वो भी वही बेवकूफी की बातें करेंगी आप कोई सोंच भी नहीं सकता कि ये जो कि लड़कियां बात करेंगी उनकी भी उचित भी है या नहीं। माने ये आपकी समझ में सूझबूझ में परिपक्वता नहीं आती बुद्धि ही नहीं ऐसे चलती। तो इधर ये तो और इस परिपक्वता को पाने के लिए सब चीज़ें होती ही नहीं । हमारे संस्कारों मनुष्य को चाहिए कि वो जो कायदे कानून की वजह से हमारे अगर बिल्कुल ही, बने हुए हैं उनको चलाए। और उसमें हमारे अंदर बैठे हुए हैं, उनकी वजह से बहुत ही आनन्द की बात है। कुछ गड़बड़़ी हम बचे हुए हैं कि भई 80 साल की कोई नहीं हो सकती। अपने समाज में कोई भी स्त्री वो तो माँ हो ही गई। उसको तो दोष नहीं आ सकता। तो होली का जो माँ मानना ही हुआ। माँ क्या हुई नानी हो यह हिस्सा है इसका सहजयोग में छोड़ गई। तो उनसे ऐसे किसी बेवकूफ के भी देना पड़ेगा, अश्लीलता का, और होली दिमाग में बात नहीं आती। कितने भी का जो प्रेम का हिस्सा है उसे अपनाना पतित आदमी के दिमाग में भी ऐसी बात चाहिए। कि बगैर भंग पीए हुए ही हम नहीं आती। और इतनी बुढ़िया औरत के सब एक हैं। यह भावना आप जानते हैं, दिमाग में भी ऐसी बातें कभी आ ही नहीं और विशेष रूप से गले मिलना चाहिए सकती। तो हमारे जो संस्कार हैं, भारतीय क्योंकि कृष्ण का सारा कार्य प्रेम का है। संस्कार, इन्हीं से हम लोग धीरे -धीरे पूरी प्रेम को पूरी तरह से लूटने के लिए उन्होंने तरह से परिपक्वता में आते हैं। वो लोग कहा है कि ये सब परमात्मा की प्रेम की परिपक्व नहीं होते उनकी उम्र हमेशा लीला है। इसमें Seriousness है ही पच्चीस ही में रहती है। उससे ऊपर नहीं नहीं । उठ पाते और हम लोग परिपक्व हो जाते हैं क्योंकि हमारे अंदर के संस्कार ऐसे हैं धारणा किया है वो कृष्ण थे इसलिए कि जो बांध लेते हैं हमें पूरी तरह से। उन्होंने कहा है सब चीज़ को लीला स्वरूप जैसे एक पेड़ है वो कायदे से अगर बढ़े देखने का है। Vibrations पर देखिए। तो परिपक्व हो जाएगा और हवा में लटके लीलाधर! और ये लीलाधर की जो लीला लीला! लीलाधर, जिसने लीला का 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-53.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 50 है उसमें अश्लीलता कहीं नहीं आएगी Serious भी होती हैँ तो नाटक ही रहता और हमारी जो संस्कृति है, सीधी सरल है। और बहुत से लोग इस बात को जान बैठी हुई हैं। इन लोगों की उल्टी खोपड़ी गए हैं इसलिए वो भी नहीं Seriously है जैसे औरतें जो हैं, बदन खोलकर घूमेंगी लेते। ये गलत बात है। और मर्द अगर हों और एकाध औरत अगर आ जाए तो फौरन वो अपने कोट के गलत - सलत हो गया हैं, राम के जीवन बटन लगाएंगे। बहुत ऊँचा, कोट के बटन की क्या जरूरत है औरतों बहुत आदर्श, गंभीर था। तो उन्होंने को ही कायदे से पल्ला लेना चाहिए। पर देखा कि अब ये सब लोग राम बनने जा इनके सभी संस्कृति उल्टी पुल्टी बैठी हुई रहे हैं तो उन्होंने कहा कि ऐसी बात है और वो कुछ बैठ ही गई है वो जमेगी नहीं । वो तो राम का कार्य राम करके अब धीरे-धीरे सहजयोग में आने से वो चले गए। अब तो लीला का समय है। लोग और जम रहे हैं। अब आप लोगों की लीलामय सम होना चाहिए। और इसीलिए जो संस्कृति है उसे कृपया आप लोग न उन्होंने सारे संसार को लीला का एक छोड़ें। सहजयोग के लिए यह बहुत महान पाठ पढ़ाया और लीला का अर्थ कभी भी चीज़ है कि आप लोग हिन्दुस्तानी भी हैं अश्लीलता या अपनी मर्यादाओं से हिलना, और आपके पास संस्कृति की एक बड़ी अपनी परम्पराओं से उतरना या अपनी भारी एक धरोहर, वस्तु है, उसको आप जो प्राचीन धारणाएँ जो बहुत सुन्दर अभी पकड़े रखें। पकड़ कर उसी पर आप जमें तक बनी हुई हैं उनको छोड़ना, ये नहीं और उसी पर आप परिपक्वता पाएं। लेकिन है । हाँ रूढ़ी आदि जो गंदी चीज़े हैं उनको इसका बिल्कुल मतलब नहीं कि आप छोड़ देना चाहिए लेकिन पवित्रता की बुड्ढाचारी बनिए या किसी तरह से आप भावनाएं जो आपस की रिश्तेदारी की हैं बहुत Serious आदमी बनें। प्रसन्नचित्त । उसको पूरी तरह से सहजयोग में हम आपकी माँ जब हँसती है तो आपने देखा मानते हैं और उसको पूरी तरह से निभाना है कि कभी-कभी तो 7 मंजिल की हँसी चाहिए। भाई -बहन के रिश्ते । कल हमारे आती है हमको सब लोग हैरान होते हैं भाई साहब आए थे। बस देखा उन्होंने कि गुरु लोग तो कभी मुस्कराते भी नहीं की हमारी बहन, उनकी आँखों से आँू है पर माँ तो हमेशा हँसती रहती हैं और बहे जा रहे थे वो कुछ और महसूस ही उनके मुख से मुस्कराहट तो कभी जाती नहीं कर रहे थे। तो ये जो परिपक्वता की ही नहीं । मैं तो एक मिनट से ज्यादा भावनाएँ हैं, प्रेम की भावनाएँ हैं इसमें Serious नहीं हो सकती हूँ और जब आदमी को चाहिए कि सहजयोग की दृष्टि तो कृष्ण ने ये चाहा कि जो कुछ भी हमने कहा कि मदों को की वजह से, राम का जीवन बहुत 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-54.txt जनवरी-फरवरी 2003 51 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 से विचार करें। सहजयोग की दृष्टि से मना ली वो दिवालिया हो गया दिवालिया जो शोभायमान है वह होना चाहिए। तो शब्द कैसे निकला ये बताएं। कुछ-कुछ माधुर्य को लेते हुए शोभायमान करना शब्द के बड़े सुन्दर हैं उनमें से एक चाहिए । तो कोई सा भी Behaviour जो दिवालिया शब्द है कि दिवाली मनाई कि अशोभनीय है। छोटी-छोटी बातों पे आपने ठीक है, अब आप दिवालिया हो बात करना, छोटी-छोटी बातों मे उलझना, जाइये। सो हम लोगों को दिवालिया नहीं बेकार में आपस में झगड़े करना, किसी होना कोई ऐसी चीज़ नहीं करनी चाहिए भी चीज़़ की मांग करते रहना हमको ये जोकि मर्यादा से बाहर है, दिवालिया नहीं चाहिए, वो चाहिए या कोई इस तरह की होना है। जितना अपने बूते का है, उतना बातें करना ओछापन है। और ऐसे लोग करिए उससे आगे आप परमात्मा पर छोड़ सहजयोग नहीं कर सकते। एक बड़प्पन दीजिए । दिवालियापन करने की जरूरत ले करके, एक उदारता ले करके अपने नहीं । और होली में दिवानगी करने की को चलना है सो आजकी तो असल में जरूरत नहीं। कोई सा भी ऐसा कार्य पूजा जो है वो थोड़ी सी पूजा करनी नहीं करना है जो Indecent हो, जिसमें चाहती हूँ। Vibrations इतने हैं कि कोई Decorum नहीं हो, जिसमें कोई भी पूजा की विशेष आवश्यकता नहीं। और सभ्यता नहीं, न्यूनता हो। सभ्य तरीके से मंत्र वंत्र कहने की भी आवश्यकता नहीं । मंत्र भी गंभीर्य में डाल देता है आपको ध्यान रखना है कि उसमें मर्यादा मुझको। पता नहीं क्यों? तो आज क्या है। प्रसन्नचित हो कर के बस दो ही तीन बजा रहे थे, उस वक्त किसी को भी काम करना चाहिए। छोटी-छोटी चीज में जैसे कल Artist लोग +११== उठना नहीं चाहिए। किसी भी Art का मंत्रों में हम आज का खत्म करेंगे। लेकिन इतना मैं कहूँगी कि होली मान करना चाहिए। आपने बहुत बार देखा को दिवाली बनानी ही पड़ेगी और दिवाली होगा कि जब कोई Artist बजा रहा को होली। तब सहजयोग का Integration होता है तो मैं खुद जमीन पर बैठती हूँ पूरा होगा। Diwali भी प्रसन्नचित हो ताकि आप भी सीखिए । मान-पान किसका करके करनी चाहिए। दिवाली में भी लोग करना चाहिए, ये सहजयोगियों को बहुत इतना रुपया खर्च करते हैं कि दिवाली के आना चाहिए। बाद दिवालिया हो करके से शब्द दिवालिया निकला है। क्या आप Tradition है कि पैर पर हमेशा शाल मान सकते हैं कि दिवाली से शब्द रख कर बजाएगें, अगर असली Artist दिवालिया निकला हैं। जिसने दिवाली हों तो। क्योंकि हो सकता हैं कि श्रोतागण याने इसी Artist लोग भी आप देखिए, ये 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-55.txt जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 52 में कोई बैठे हो देवी-देवता और मेरे पैर न दिखाई दें । अपने देश की इतनी होली के दिन सिर्फ होलिका दहन का बारीक-बारीक चीजें है कि मैं आपसे क्या एक मंत्र अगर आप कहें कि होलिकामर्दिनी, कहूँ। इतना सुन्दर अपने देश में यह सब ये मंत्र से आप लोग मेरा पैर धोएंगें और बना हुआ है, इतना सुन्दर कहना चाहिए बच्चों को गणेश की स्तुति तो होनी ही कि परमात्मा का अंगवस्त्र है कि कहना चाहिए इसलिए गणेश की स्तुति करके चाहिए कि उसकी गहनता और उसकी बच्चे पैर धो लें। और फिर 3 मंत्रों से मेरे बनावट में इतनी काव्यमयी सारी चीज़ पैर धो लें और कोई खास चीज़ करने की है। बहुत ही सुन्दर काव्यमयी चीज़ है, जरूरत नहीं। लेकिन हम लोग उसे नहीं समझ पाते और अपने जीवन में नहीं ला पाते तो वो जाती है। क्योंकि कृष्ण ने सब पूजाएँ बंद बहुत ही मीठी चीजें हैं। तो आज के क्योंकि फिर वो Seriousness आ सब फिर गंदगी हो जाती है। मान पान करवा करके और सिर्फ होली चालू की बात है। अब कल जेठ बैठे हुए थे करवाई। छोड़ो पूजा वूजा मत करो । हमारे रिश्ते में तो अब आप देखिए, पूरे Complete पूजा बंद कर दो। उसी तरह Lecture में मर्यादा बनी रही कि हमारे से आज हम लोगों को कृष्ण को याद जेठ, हमारे बड़े भाई बैठे हुए हैं तो उनके करते हुए सब पूजाएं बंद कर देनी चाहिएं आगे कहाँ तक हम बोल सकते हैं। अब और सिर्फ ये करना चाहिए कि आज तो हम आदिशक्ति हैं। कौन हमारे लिए उल्लास व आहुलाद का दिन है। सब जेठ और कौन हमारे लिए बड़े भाई। अपने होली मिलो क्योंकि आज होली लेकिन जब इस रिश्ते में बैठे हुए हैं तो आई है और होली की आनन्द उठाना है उनका मान पान पूरी तरह से रखना और इसकी दिवाली बनाने का मतलब चाहिए। हर रिश्ते का मान पान रखना तो मैंने आपसे बताया है कि इसकी जो चाहिए। आप कुछ भी हो जाओं। सुचारू रूप से सभ्यता को लेते हुए अत्यंत सहजयोगी भी हो गए तो भी आप मान पान को ले के चलो। ये नहीं कि उसको होली की हमें करनी चाहिए। अतः होली आप तोड़ दें। और इस तरह से जब आप को दिवाली बनाना है और दिवाली को करेंगे तो धीरे-धीरे आपकी समझ में आ होली बनाना है। कलात्मक ऐसी सुन्दर रचना नई तरह की जाएगा कि इसमें बड़ा ही माधुर्य है और आप सबको मेरा अनन्त आशीर्वाद। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-56.txt (तिहाड़ जेल के एक कैदी का पत्र) आदिशक्ति नमः श्री गणेशाय नमः प्रार्थना पत्र आ गए हैं। मैं आपका सदा जीवन आभारी परम पूज्य श्री आदिशक्ति साक्षात् रहूंगा और आपकी शक्ति का अनुभव सबको बताऊँगा। पूरा जीवन आपके ही श्री निर्मला देवी जी सादर हृदयी नाम में बिताऊँगा। अब बेल भरने वाला प्रणाम माँ मैं आपको लाख लाख धन्यवाद कोई नहीं है पर मुझको ये विश्वास है की करता हूँ कि आपने एक जीरो को फिर से जो काम आपके नाम से हो गया है ये हीरा बना दिया है। डूबते हुए को पार काम भी आपके नाम से शक्ति से कृपा सेवा में, श्री श्री माता जी से कर दिया है। आप स्वयं साक्षात हो जाएगा। जब आप हैं तो मैं ये जानता आदिशक्ति हैं मैं कोटी कोटी नमन व हूँ कि मेरी बेल भी भर जाएगी। आपकी बारम्बार प्रणाम करता हूँ। मैं अपने जीवन कृपा से। से निराश हो गया था की शायद ही अब आपके नाम व भक्ती में वो शक्ति है कभी इस कारागार से मैं बाहर जा सकॅँगा। परन्तु आपकी कृपा ने नामुमकिन को मुमकिन में बदल दिया है। मुझको आजीवन कि काम आसान हो जाता है। जिसके सिर ऊपर तू माता सो दुःख कैसा पावें । माँ आपसे यही विनती है कि मेरे कारावास की सज़ा हुई थी। जबकी आप स्वयं अन्तरयामी हैं, यह जानती हैं कि मैं ऊपर सदा ही अपनी कृपा का हाथ रखना। निर्दोष था और बेसहारा था। ऐसे समय पर मुझे कारागार में ही आपके नाम का शक्ति रखना ताकि मैं जीवन में कभी सहारा मिला। आपके नाम में वो दो क्षण बहकू नहीं श्रीमाता जी आपकी जय हो के ध्यान ने वो काम कर दिया है कि जय हो, जय हो। मुझको दोबारा जीवन मिल गया है एक बार मेरी बेल अप्लीकेशन हाई कोर्ट से रिजेक्कट हो गई थी दोबारा आपके नाम के सहारे लगाई तो 17/7/2002 को सदा मुझमें सहजयोग की भक्ती व सधन्यवाद, प्रार्थी। आपका बच्चा सेवक सरवेश कुमार S/o सन्तलाल जेल नं० 1 न्यू दिल्ली, तिहाड़ बिना ग्राऊन्ड के ही मेरी जमानत के आर्डर 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-57.txt सहजयोग कार्यक्रम हेतु 'अनुभव' जय श्री निर्मला माताजी की का मकान है। मुझे नहीं पता वो कैसे जी मेरा अनुभव- मैं तिहाड़ जेल से रही हैं। आजकल का समय देखते हुए मैं आप को इसी सहजयोग' के बारे में बताना हर वक्त परेशान रहती हूँ। चाहती हूँ कि शुरु- शुरु में मैं भी सब के साथ बैठ जाती थी। जो भी करवाया जाता है कि "सब को क्षमा कर दो और जाता था मैं करती रहती। मगर एक दो खुद को भी क्षमा कर दो" प्रार्थना करें श्री बार मैंने इस क्रिया को कोई महत्व नहीं माताजी के आगे तो यह सुनकर मेरे अंदर दिया क्योंकि मुझे ऐसा लगता था कि ये एकदम हलचल हो जाती थी कि यह कैसे सब करने से कुछ नहीं होता। क्योंकि मैं हो सकता है। हमारी सारी जिंदगी किसी भगवान के आगे प्रार्थना और भी कई ने बेवजह बर्बाद कर दी, हम उस को प्रकार के यत्न किये मगर फिर भी मैं कैसे क्षमा कर सकते हैं? इसी प्रश्न को ग्यारह साल बाद एक ही केस में दुबारा लेकर मैं खड़ी हो कर पूंछने लगी उस जेल में हूँ। केस में मेन मेरा पति था। मुझे समय सहजयोग के जो सदस्य हमारे यहाँ बेवजह मेरी गोरमन्ट नौकरी की वजह से आते थे उन्होंने बड़े प्यार से मुझे समझाया 'सहजयोग में एक जगह बताया फंसाया गया था कि केस का सारा मामला कि तुम एक हफ्ता नियम से सुबह-शाम मैं अपने ऊपर ले लूं। मेरी तीन बेटियां ये सब करके देखो और हमें बताना । मैंने थीं। मैंने कोई कसूर नहीं किया था न ही कहा ठीक है। एक हफ्ता करके देख लेते उन पुलिस वाले का कहना माना। सच्चाई हैं। के मार्ग पर चल रही हूँ। इसी में मेरी नौकरी चली गई और पाँच वर्ष पहले मेरा आता मैं करती रही। मैंने अहसास किया मैं एक हफ्ते तक जितना मुझे समझ पति का स्वर्गवास हो चुका है। अब मेरी कि जब मैं श्री माता जी का ध्यान लगा बेटियां बड़ी हो चुकी है। परन्तु हाई कोर्ट कर बैठती तो मुझे अपने शरीर में कुछ लड़ने के बाद भी मैं आज जैल में हूँ। मेरी अलग से हरकत का अहसास होता है चिंता का कारण बाहर अकेली मेरी बेटियां, और मेरा मन शांत हो गया। रात दिन की न ही कोई बेटी नौकरी करती है। किराये चिंता अपने आप खत्म होने लगी और मेरे 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-58.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 55 बच्चे भी ठीक-ठाक श्रीमाता जी की कृपा दूंगी और आस-पास जो भी मुझे मिलेगा से अपनी जिंदगी जी रही है। और मैं हर उनको भी यह मार्ग दिखाऊँगी और मैं भी वक्त श्री माता जी का धन्यवाद करती हूँ। हमेशा श्री माता जी के चरण कमलों में और याद करती रहती हैूँ। अब ये केस रहूँगी। मुझे पूरा विश्वास है कि श्री माता माता जी की कृपा से सुप्रीम कोर्ट में लगा जी मुझ पर हमेशा रखेंगी। हुआ है। मुझे पूरा श्री माताजी पर विश्वास कि मुझे माता जी जल्दी यहाँ से निकाल कर मेरे बच्चों के पास ले जायेंगी मेरी सारी चिंताये हर लेगी। कृपा श्री माता जी की जय श्री माता जी की शरण में, कुन्ती चोपड़ा C.J. No. 6A मैं यहां से निकलने के बाद अपने बच्चों को भी इस सहजयोग का ज्ञान ए त 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-59.txt सहज-कृपा (एक अनुभव) यह बात शनिवार दोपहर 2.00-2. पुलिस ले गई थी, आया। मैं सुनकर स्तब्ध 30 बजे की है, सहजयोग में आए हुए रह गया जब उसने कहा कि अभी ऐसी अभी कुछ ही समय (लगभग एक वर्ष) कोई जेल नहीं बनी जो मुझे या हमारे हुआ था। दुकान पर एक ग्राहक पुराना नांगलोई ग्रुप को अंदर करवा सके। तूने मोबाइल फोन बेचने के लिए आया (हमारा तो हमारे साथ जो करना था कर लिया मोबाइल फोन का व्यवसाय है) जिसके अब तू अपने आपको बचा सकता है तो साथ उसका चार्जर (मोबाइल चार्ज करने बचा-हम तेरी दुकान पर आ रहे हैं देखतें वाला यंत्र) नहीं लाया था। हमें लगा कि है तेरी कौन रक्षा करता है।" मैंने ऑव यह फोन चोरी का है। हमने पूछा कि देखा न ताँव सब स्टॉफ से बोला कि चार्जर कहां है? उन्होंने कहां कि चार्जर शटर डालो और भागो मैनें गाड़ी उठाई नहीं है। हमने कहा कि फिर तो यह फोन और सीधा मंदिर के लिए दौड़ पड़ा। उस कहीं से उठाया हुआ है। होते होते बहस दिन की बिक्री, सामान सब दुकार पर हो गई बात इतनी बढ़ गई कि हमने छोड़, लड़के को शटर डाल कर चाबी पुलिस को बुला लिया और चोरी का घर पर देने को कह कर, भाग गया। जब फोन बेचते हुए उन महाशय को पकड़वा आश्रम (Delhi Temple) पहुँचा तो सोनू दिया। भैया (एक सहजयोगी, अशोक विहार) मिले. बीच में विषय बदलूँगा मैं कुछ समय उनसे कहा कि भैया बड़ी Problem में से शनिवार दिल्ली मंदिर समय पर नहीं फंस गया हूँ, कृपया बंधन दे देना। उन्होंने पहुंच रहा था। इस पूरे सप्ताह मैं माँ से बंधन दिया और कहा कि Problem दूर प्रार्थना कर रहा था कि, "शनिवार को माँ हो गई मैं हँसा, मैंने सोचा कि यह दुकान पर ज्यादा ग्राहक न आएँ- मुझे Problem इतनी आसानी से नहीं हो आश्रम जल्दी पहुँचना है। मैं कुतुब मंदिर सकती। घड़ी में समय देखा सांय के 6. में लेट नहीं होना चाहता।" दूर 25 बजे थे। एक बात के लिए तो पुनः अपने विषय पर। लगभग एक श्रीमाताजी को धन्यवाद दिया कि माँ आपने घंटे पश्चात् उन महाशय का फोन, जिनको मंदिर तो समय पर पहुँचा दिया। 6.30 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-60.txt जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 57 मित्रों के साथ (एक मित्र का रिवाल्वर भी ले लिया) दुकान पर (दुकान सातों दिन खुलती है) चला गया। पड़ोसियों ने कहा बजे से रात्रि 9.00 बजे तक वहां मंदिर में बैठा रहा। कोई ध्यान नहीं लगा केवल एक ही चिंता सता रही थी कि इस समस्या से कैसे निपटा जाए। आश्रम से बाहर कि कल रात क्या झगड़ा हो गया था? आया, मोबाइल से अपने लड़के को (जो अभी वे आते होंगे-पुलिस को फोन करके दुकान के ऊपर बने कमरें में रहता है) बुला लो। मैंने सोचा कि पुलिस को बुलाने फोन किया कि क्या हुआ? उसने बताया का तो कोई फायदा नहीं है। कि चार-पाँच लोग एक मारुति कार में आए थे, खूब गाली-गलौच कर गए हैं, खोल कर बैठ गए और उनके आने की बोर्ड वगैरह सब तोड़ गए हैं और बोल प्रतीक्षा करने लगे 10.00 से 11.00 बजे, खैर हम प्रातः 10.00 बजे दुकान गए है कि अब तो भाग गया पर सुबह 11.00 से 12.00 बजे परन्तु वे नहीं आए। कहाँ जाएगा। कह देना कि हम सुबह अचानक 12.45 पर उनका फोन आया आएँगे-अपने आपको बचा सकता हो तो कि तेरी दुकार पर जो माता की फोटो बचा ले।" मेरी मानसिक हालत खराब लगी है ये कौन है? मैं लड़का भेज रहा हो गई घर पहुँचा और लगा सब हूँ, इनके बारे में यदि कोई किताब वगैरह सहजयोगियों को फोन करने। रात्रि है तो उसे दे देना और कभी किसी से 12.00 बजे तक सब सहजयोगियों को पंगा मत लेना। मैंने पूछा कि क्या आप फोन करता रहा। गुरुनानी जी, मेहता जी लोग नहीं आ रहे? तब उन महोदय ने (Subcentre Leaders) वगैरह सबको कहा कि 'नहीं। फोन किया और कहा कि मैं किसी मुसीबत में फंस गया हूँ कृपया बंधन दे देना। श्रीमाताजी को प्रणाम किया, धन्यवाद किया सबने कहा कि Vibrations अच्छी आ और मित्रों को सारी बातों से अवगत करा रही हैं - बंधन दे दिया- कोई चिंता की उनको जाने को कहा। लगभग 1½ घंटे बात नहीं है। लेकिन मुझे किसी की बात के पश्चात् उनके गिरोह का एक व्यक्ति का यकीन नहीं आया। मैंने कहा कि कल बड़ा सुखद क्षण था वह। मैंने आया। मैंने उससे कहा कि भइया में आप लोगों से माफी चाहता हूँ मैं, आगे से ऐसी लफड़ा तो होना ही है रोक नहीं सकता। मैं रात्रि 2.00 बजे तक कोई हरकत नहीं करूंगा मुझे ये तो बता सहज के Treatment जैसे पेपर बर्निंग, दो कि आप लोग क्यों नहीं आ रहें । तब कैन्डलिंग, फुट-सोक करता रहा। सुबह उसने कहा कि "हम लोग तेरे पास आने 4.00 बजे फिर उठ गया और फिर सारे के लिए गाड़ी में बैठ गए थे, गाड़ी स्टार्ट Treatment कर डाले । अपने पाँच-छ कर ली थी कि हमारी गाड़ी के सामने उसे तो कोई 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-61.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 58 तेरी ये श्रीमाताजी और हमारी दादी किया और धन्यवाद दिया। तुरन्त दुकान जिसको मरे हुए 20 वर्ष हो गए - आ गईं बंद करके खुशी-खुशी घर चला गया और बोली कि 'कहीं जाने की जरूरत खूब झूमते नाचते गाते (बाद में कभी नहीं हैं, यहीं बैठे रहो। खबरदार यदि किसी Centre में वे लोग नजर नहीं उसको हाथ भी लगाया तो।" हमें यह आए।) नहीं समझ में आ रहा है कि हमारी दादी तेरी रक्षा के लिए क्यों आई। 20 वर्षों में सुब बच्चों का ख्याल रखती हैं। ऐसी हैं हमारी श्रीमाताजी जो अपने आज तक कभी भी किसी को भी नज़र नहीं आईं।" जय श्रीमाताजी! जैनेन्द्र जैन मैंने उनको सहज परिचय पुस्तिका भगवान दास नगर, दिल्ली । और Centre-list दी। दण्डवत होकर दुकान के मंदिर में श्रीमाताजी को प्रणाम 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-62.txt सहजयोग प्रसार का आनन्द (भिन्न पूजाओं के अवसर पर दिए गए प्रवचनों से उद्धृत परम पूज्य श्री माताजी के कथन) मुझे आशा है कि आप सब लोग एकांतप्रिय हो जाते हैं। उन्हें कभी क्षमा सहजयोग प्रसार के महत्व को समझते हैं। नहीं किया जाएगा क्योंकि परमात्मा ने आप यदि इसका महत्व नहीं समझते तो आपको इतना कुछ दिया है मान लो आप बिल्कुल बेकार हैं। मेरे लिए यह कोई आपको एक हीरा देता है आपको महानतम कार्य है। जिस प्रकार यहां पर इसपर गर्व होता है। इस हीरे को आप बहुत सी बत्तियाँ है वैसे ही विश्वभर में प्रदर्शन के लिए रख देते हैं। परन्तु जब बहुत से सहजयोगी होने चाहिएं। आप आपको आपकी आत्मा दे दी गई है तो यदि विश्व को परिवर्तित करना चाहते हैं इस उपलब्धि पर भी आपको गर्वित होना और व्यर्थ जीवन की उथल पुथल से यदि चाहिए और उदासीनतापूर्ण आचरण नहीं आप बचना चाहते हैं तो आपको उनकी करना चाहिए। कुछ लोग सोचते हैं, "अब रक्षा करनी होगी, उन्हें उबारना होगा। मैं कोई नौकरी नहीं करूंगा, अब मैं बाहर आपका यही कार्य है। सहजयोग के बदले नहीं जाऊंगा, घर में बैठकर ध्यान धारणा में आपको यही देना होगा। (25 दिसम्बर, 2001) कार्य करूंगा।" सहजयोग में ऐसे लोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। "मैं यह कार्य नहीं कर सकता।" "नहीं कर सकता" शब्द सहजयोगी कहलवाने वाले लोगों के आपको अंहकारी नहीं होना है, शब्दकोष से चला जाना चाहिए। गौरवशाली बनना है। आपको सहजयोगी होने पर गर्वित होना चाहिए। ऐसे समय पर जन्म लेने पर, जबकि आपको परमात्मा के कार्य की जिम्मेदारी संभालनी है. आपको एक क्षण भी बरबाद नहीं करती। मुझे गर्वित होना चाहिए कि परमात्मा ने आपको आशा है कि आप भी इसी प्रकार से अपने इस कार्य के लिए चुना। अतः सर्वप्रथम चौबिसों घंटे अपने तथा पूरे विश्व के आपकों चाहिए कि उस स्तर तक उन्नत उद्घार के लिए लगाएंगें। हो जाएं। मैं देखती हूँ कि सहजयोग में कुछ लोग अचानक उदासीन एवं (21 मार्च, 1983) मैं चौबिसों घंटे काम कर रही हूँ। (4 मई, 1985) 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-63.txt जनवरी-फरवरी 2003 60 चैतन्य लहरी खंड-xV अंक 1 व 2 इस विश्व में हर प्राणी को कुछ न कि "हम सहजयोग को कार्यान्वित कर कुछ कार्य करना पड़ता है तो सहजयोगियों रहें हैं, अपने लिए नहीं, मानवता के हित को क्यों नहीं करना चाहिए? आपके साथ के लिए।" हमें इसकी आवश्यकता है, इतनी विशिष्ट घटना हुई है कि आपको हमें इसकी बहुत आवश्यकता है। यदि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है। तो क्यों आप केवल अपने विषय में सोचते हैं, हमें अपना चित्त बरबाद करना चाहिए? अपने परिवार के विषय में सोचते हैं, तो क्यों हमें अपनी ध्यान धारणा की उपेक्षा आपकी करुणा, आपका प्रेम बरबाद हो करनी चाहिए? क्यों? हमें उन्नत होना रहा है। क्या लाभ है? ऐसा तो लोग है। हम भिन्न लोग हैं। इस विश्व में आत्म साक्षात्कार से पहले भी करते हैं। हमारी प्रजाति बिल्कुल भिन्न है हम आत्म अपने परिवार से तथा अन्य चीजों से साक्षात्कारी लोग हैं। व्यवहारिक रूप से लिप्त हो जाने का क्या लाभ है? आपको ईसा-मसीह के समय पर साक्षात्कारी लोगों पूरे विश्व से लिप्त होना चाहिए। अब की संख्या नहीं के बराबर थी और उससे आपका सम्बन्ध पूरे विश्व से है। पूर्व भी, मुझे आश्चर्य हुआ, चीन तथा अन्य स्थानों पर एक युग ऐसा था जब चुकी है। स्वयं को सागर से एकरूप कर जैसा मैंने कहा, अब बूंद सागर बन एक गुरु एक शिष्य की परम्परा थी। आप लें। आपने यदि देखा हो तो, सागर सबसे सबके सब गुरु हैं परन्तु आप अपनी गुरू गहरा है। इतना गहरा है कि शून्य बिन्दु शक्ति का उपयोग नहीं करना चाहते। सागर से आरंभ होता है। फिर भी सागर क्यों नहीं महिलाएं भी इस शक्ति विनम्र है । निम्नतम स्तर पर यह रहता है का उपयोग करतीं? मैं देखती हूँ कि परन्तु सारी नदियां आकर इसी में गिरती सहजयोग में महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा है। आकाश को बादल भेजने का कार्य कहीं अधिक अकर्मण्य हैं। मैं स्वयं भी एक सागर ही करता है, और यही बादल वर्षा महिला हूँ। अकेले-सिर मैंने यह सारा बनकर जब बरसते हैं तो पुनः समुद्र में ही कार्य किया है तो क्यों नहीं आपको ऐसा आकर समाते हैं। पुनः उसी समुद्र में ही वे ही करना चाहिए। क्योंकि विश्वभर में वापस आ जाते हैं। लोगों का अन्तर्परिवर्तन करना बहुत ही विशाल कार्य है। परन्तु आपके लिए यह को आकर्षित कर पाएगें जो विनम्र हैं। जो अतः केवल वही लोग अधिक साधकों बहुत सुगम है। मैं यदि इस कार्य को कर लोग करुणामय हैं वही अधिक सहजयोगी सकती हूँ तो आप क्यों नहीं कर सकते। आकर्षित करेगें। शा अपना पूरा चित्त इस पर लगा दें (31 दिसम्बर, 2000) 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-64.txt जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 61 पूर्ण हृदय से आपको समर्पित होना पृष्ठभूमि (Background) से पूरी तरह होगा 'मैं जो हूँ वही हूँ, सदा से मैं वही था से बाहर निकल आए हैं? मेरे सम्बन्ध 'मैं हमेशा वही रहूँगा' मुझे कम या अधिक दूसरों से कैसे हैं? किस प्रकार मैं नहीं होना है 'ऐसा व्यक्तित्व शाश्वत होता सहजयोगियों से बात करता हॅँ? है। अब यह आप लोगों पर निर्भर करेगा कि अपने जन्म का इस आधुनिक युग में नहीं बचा । अब आपको उठना होगा और उपयोग करने के लिए अपनी पूर्ण परिपक्वता तक उन्नत होने के लिए, और जो भी खाका (Design) परमात्मा आपके पड़ेंगें परन्तु केवल प्रयत्न करने पर ही अतः अब निष्कर्मन्यता के लिए समय जागृत होना होगा। आज वह दिन है जब मुझे आशा है कि आप निर्विकल्प में कूद माध्यम से बनवाना चाहते है, उस आप वहां रुक पाएगें, अन्यथा आप पुनः कार्यान्वित करने के लिए मेरे अन्दर से नीचे की ओर खिसक आएंगे। जो भी सम्भव हो सके आप निकालें। अतः मेरे इस प्रवचन को बार-बार निःसन्देह, विवेकपूर्वक आप बहुत से कार्य सने-पढ़ें। इसके विषय में सोचें नहीं। ये कर सकते हैं। विवेक से आप मुझे स्वीकार कर सकते हैं । भावनाओं के माध्यम से अपने हृदय में आप मुझे अपने समीप आपमें से हर एक के लिए, और स्वयं को महसूस कर सकते हैं। परन्तु यह काय पहचाने कि प्रतिदिन आप कितना आगे न सोचें कि ये किसी अन्य के लिए है । यह आपके लिए है। आप सबके लिए, केवल ध्यान-धारणा और समर्पण के माध्यम बढ़तें हैं। से होगा। 'ध्यान-धारणा समर्पण के (3 मई, 1986) भी नहीं । यह पूर्ण समर्पण अतिरिक्त कुछ है। प्रेम के इस संदेश का प्रसार आप किस प्रकार करने वाले हैं? (31 जुलाई, 1982) दो प्रकार से आप इसे कार्यान्वित अब आप कह सकते हैं, "हमें क्या कर सकते हैं। व्यक्तिगत रूप से आप करना चाहिए?" प्रतिदिन अपना सामना इसे किस प्रकार कार्यान्वित करेंगे, तथा करें, वास्तव में यह देखें कि आप अपनी सामूहिक रूप से किस प्रकार करेंगे? अतः सांसारिक चिन्ताओं पर कितना समय खर्च अगुवाओं को मेरी एक सलाह है कि जो करते हैं और अपने उत्थान को कितना भी सुझाव लोग उन्हें देते हैं उन्हें अवश्य समय देते हैं। क्या आपने अपना सभी है। स्वीकार करें। वहां आप केवल अगुवा कुछ, अपनी सभी चिन्ताएं सर्वशक्तिमान आपने एक दूसरे से सम्पर्क साधना है । परमात्मा पर छोड़ दी हैं? क्या आप अपनी किसी पर रौब नहीं जमाना। आपने किसी 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-65.txt जनवरी-फरवरी 2003 62 चैतन्य लहरी खंड-xV अंक 1 व 2 पर हुक्म नहीं चलाना। मेरे तथा, अन्य सभी कुछ कर रही है। हम क्या कर लोगों के बीच सम्पर्क साधने वाला व्यक्ति सकते है?" नहीं, आपने यह कार्य करना है। बनना है। यह निर्लिप्तता अत्यन्त आवश्यक है अब आपने देखना है कि किस प्रकार से लोग आपको नए विचार देते हैं, आपने यह बात मैं आपको बता रही हूँ। आपने उन्हें दुत्कारना नहीं है। ये मत सोचें कि स्वयं यह कार्य करना है। ऐसा नहीं है केवल आप ही ऐसे व्यक्ति हैं जिसे विचार "श्रीमाताजी करेंगी। आखिरकार वे सभी आते हैं। अन्य लोगों से भी विचार लें। हो कुछ कर रही हैं।" यह बात ठीक है। एक सकता है कि ब्रह्माण्ड से उन्हें विचार प्रकार से यह बात ठीक है। परन्तु आप मिलते हों। वो आपको ऐसा भी बता सकते लोग माध्यम है हैं जो किया जाना चाहिए, जिसे लिखा होते हुए भी माध्यमों ने ही परिणाम दिखाने जाना चाहिए और संभाला जाना चाहिए, है, हनुमान जी की तरह से आप लोग भी "हाँ, ऐसा कहा गया था। ऐसा किया माध्यम हैं और आपको कार्य करना है। जाना चाहिए था।" और तब जो भी संभव आपने ही इस कार्य को अंजाम देना है। हो उसे करने का प्रयत्न करना चाहिए । | अतः चाहे स्रोत के श्री हनुमान की अन्य खूबी यह थी .....| सभी कार्यों को आप मुझे टेलिफोन कर सकते हैं और वो अत्यन्त द्रुत गति से करते थे ....। श्री पूछ सकते हैं। परन्तु गतिशीलता में उन्हें हनुमान जी की एक खूबी यह थी कि वे (अन्य सहजयोगियों को) लगाएं। हर अत्यन्त तीव्रगामी थे। किसी अन्य व्यक्ति के करने से पूर्व वे अपने कार्य को कर आपको यदि संदेह है तो हमेशा कि वे कालातीत थे आदमी इस कार्य में सम्मिलित है । ा डाला करते थे ....! (11 दिसम्बर, 1988) गति (Speed) त्रिफलागार (Trefalgar) जाकर नेपोलियन को पीट लेना तो बहुत अच्छा है परन्तु धर्म के क्षेत्र में मैं सोचती हूँ कि हमारे पास जो शक्तियां हैं वो सहजयोग की हैं। जैसे श्रीमाताजी के पास लोग समय के महत्व को नहीं समझते। सहजयोग का काम करने की शक्तियाँ हैं हमारे पास भी यह कार्य करने की शक्तियाँ करने की आदते हैं "ठीक है, मैं टेलिफोन है। जिस प्रकार वो कार्य करती हैं वैसे ही हमें भी वो कार्य करना है। परन्तु इस ।" यह हमारा सबसे बड़ा दुर्गुण प्रकार की मान्यताएं हैं कि, "श्रीमाताजी हम विलम्ब स्वामी है और हममें विलम्ब करुंगा, मैं पता लगाऊंगा यह हो जाएगा है...। প পাঁ 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-66.txt जनवरी-फरवरी 2003 चैतन्य लहरी खंड-xV अंक 1 व 2 63 बेहतर होगा कि अत्यन्त तेजी से योजनाओं को चौपट करते रहते हैं क्योंकि तुरन्त कार्य को करें। कार्य करने का यही उनके स्थान पर हम स्वयं पिंगला नाड़ी समय है। "अगले वर्ष श्रीमाताजी हम पर दौड़ने लगते हैं। यह ठीक है। आप देखेंगे। गणपति पुले के पश्चात् हम इस वहां दौड़ रहे हैं । मैं तुम्हें ठीक कर दूंगा। पर ध्यान देंगे इसके विषय में हम बातचीत करेगें, बहस करेगें आदि।" उनके चरित्र को टालते रहते हैं और इस प्रकार हमारी तो वे हर समय हमारी योजनाओं का यह एक गुण है। हमें यह समझना है सभी योजनाएं असफल हो जाती हैं। समय कि आज जब हम श्री हनुमान का पूजा तथा अन्य अनावश्यक चीज़ों का बहुत कर रहे हैं तो हमारे अन्दर वह तीव्र ध्यान देते हैं। परन्तु सहजयोग में अपनी ओजस्विता होनी चाहिए। यह अभी होना उन्नति के समय पर हम ध्यान नहीं देते। है। इसे हम बहुत अधिक नहीं टाल सकते। पहले ही हमें बहुत देर हो चुकी है। परिणाम देखने के लिए आपको अत्यन्त द्रुतगामी होना होगा चीज़ों को लटकाते नहीं रहना होगा और न ही एक ऐसे स्तर पर लाना होगा जहां लोग छोटी-मोटी चीज़ों से सन्तुष्ट होना होगा देखना होगा कि कौन से सकारात्मक कार्य आप कर रहे हैं...। अतः आपका चित्त सामहिक रूप से तथा व्यक्तिगत रूप से कार्य पर ही होना चाहिए। इसके विषय ये भलाकर कि क्या होगा। आपको हमारे कुछ लक्ष्य होने चाहिएं. नियत समय होने चाहिएं...। आपको सहजयोग करना होगा। सहजयोग फैलाना होगा। सहजयोग को इसे देख सके.। आपको साहस करना होगा । में हम यही सब कर रहे हैं..। आप भी निर्भयतापूर्वक आगे बढ़ना होगा मेरा अभिप्राय यह है कि न तो आप जेल भेजे ऐसा करना आरंभ करें। आपमें शक्तियाँ हैं आपको सब प्राप्त हो जाएगा। सब जाएंगे और न ही क्रूसारोपित किए जाएंगे। चीज़ सुव्यवस्थित हो जाएगी। कार्य शुरु इसका विश्वास रखें कि नौकरी यदि चली कर देना चाहिए। गई तो दूसरी नौकरी मिल जाएगी और परन्तु आप यदि मनुष्यों की तरह नौकरी यदि न भी मिली तो आपको व्यवहार करते हैं तो पहले किसी चीज़ अनुदान (Dole) मिल जाएगा, ठीक है। की योजना बनाते हैं, फिर इसे खारिज अतः आपको व्यर्थ की चीजों की चिन्ता करते हैं तो इससे यह कार्यान्वित न होगा। नहीं करनी, ऐसी चीज़ों की जिनके विषय यद्यपि श्री हनुमान जी हर समय पिंगला में प्रायः मनुष्य बैठ कर चिन्ता करते हैं। नाड़ी पर दौड़ रहे हैं परन्तु वे हमारी परन्तु इस सारी चिन्ता के बावजूद भी 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-67.txt जनवरी-फरवरी 2003 64 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जाती हैं। किसी चीज़ की आपको चिन्ता नहीं करनी, सभी कुछ संभाल लिया जाता उन्हें काम मिल जाता है। और वे नौकरियां भी करते रहते है...।" आप नहीं जानते कि आप लोग है। परन्तु यह अपने बड़प्पन का प्रचार देवदूत हैं तथा आपको यही कार्य करना करना नहीं है, ऐसा करना नहीं है। यह है, अन्य कुछ भी आवश्यक नहीं। हाँ मुझे आशा है कि आज की पूजा से आपका आन्तरिक ऊर्जा उत्पदक (Inner तो सामूहिकता को बढ़ावा देना है। उत्साह, आपका साहसिक स्वभाव आपकी पिंगला नाड़ी को प्रदोलित कर देगा (Vibrate) बिना किसी अहम् के हनुमान हैं तो प्रतिक्रिया होती है। परन्तु मेरी दृष्टि जी की तरह से अत्यन्त विनम्रतापूर्वक हम सारे कार्यों को करेगें। Dynamo) किसी भी चीज़ को जब आप देखते जब किसी चीज़ पर पड़ती है तो वह (चीज़) प्रतिक्रिया करती है। जब मैं आपकी गतिशीलता एवम् विनम्रता का ओर देखती हैँ तो आपकी कुण्डलिनी कितना अच्छा सम्मिश्रण था! इसी गुण प्रतिक्रिया करती है। मेरी दृष्टि से यह की अभिव्यक्ति आपने भी करनी है। चैतन्यित हो जाता है - कटाक्ष। मेरा हर जितना अधिक कार्य आप करते हैं उतना कटाक्ष चीजों को प्रतिक्रिया करने पर विवश ही अधिक स्वाग्रह आप करेंगे। आपको करता है तथा निरीक्षण का अर्थ यह है पता-चलेगा कि विनम्रता ही एक ऐसा कि "मैं जानती हूँ कि यह क्या है।" गुण है जो सहायता करता है। आज्ञा पालन, कार्य को अंजाम देने में आपकी में जान जाती हूँ कि व्यक्ति क्या है। सहायता करती है और तब आप विनम्र किसी चीज को देखकर मैं जान जाती हूँ होते चले जाएगें। किसी भी व्यक्ति की तरफ देखकर कि यह कैसी है - निरीक्षण । परन्तु सभी परन्तु यदि आप सोचते हैं कि "मैं कुछ स्मृति में रहता है। जैसे जब हम जा तो पहले से ही ऐसा हूँ", तो समाप्त। रहे थे तो उन्होंने कहा, "हमारे पास केवल यदि आप ये समझते हैं कि "परमात्मा ने काले पत्थर हैं। मैंने कहा नहीं हमारे पास यह कार्य किया है, परम चैतन्य ही सभी लाल पत्थर भी हैं।" उसने पूछा, "कहा? कुछ कर रहा है, मैं तो मात्र साधन हूं, क्या आप जानती हैं?" तब मैंने उन्हें तब विनम्रता आएगी और आप प्रभावशाली ठीक वही स्थान बताया जहां पर ये पत्थर माध्यम बन जाएगे...। प्राप्त किए जा सकते थे। कहने लगा, आप यदि परमात्मा का कार्य कर "श्रीमाताजी, आप कैसे जानती हैं?" मैंने रहें हैं तो आपकी सारी चिन्ताएं ले ली कहा, "आठ वर्ष पूर्व हम उधर से गुजरे थे 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-68.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 जनवरी-फरवरी 2003 65 और मैं जानती हैँ कि वहां लाल पत्थर स्वभाव हो। तो आप हैरान होगें कि कितनी हैं।" तो जिस भी चीज़ को मैं देखती हूँ गतिशीलता से ये कार्यान्वित करता है। वह चैतन्यित हो जाती है। और मुझे पता आपकी ऊर्जा उत्पादक बनाने कि कोई लग जाता है कि उसमें क्या है और उचित आवश्कता नहीं । यह आपके अन्दर समय पर उपयोग किए जाने वाले क्या विद्यमान है। इसे कार्य करने दें। गुण हैं। (22 अप्रैल, 1984) तो यदि आपका इस प्रकार का का स नu 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-69.txt में श्री माताजी इस्तम्बूल इस्तम्बूल जन कार्यक्रम 23 अप्रैल, 2002 (एक रिपोर्ट) 23 अप्रैल जन कार्यक्रम के दिन यहां आईं थी और मैं भी यहाँ आई हूँ, पिछले वर्ष की तरह से ही सभागार क्योंकि यहाँ के लोग बहुत अच्छे है।" खचाखच भरा हुआ था। लगभग सात हजार लोग सभागार के अन्दर थे एक को अपने विवेक का उपयोग करना चाहिए हजार योगी और लगभग छह हजार नए तथा चहूँ ओर पहले सुसभ्य कहलाने वाले साधक। सर्वप्रथम सहजयोग का संक्षिप्त फ्रांसिसी प्रभाव के शिंकजे में नहीं फंसना परिचय दिया गया और इसके बाद श्रीमाताजी का प्रवचन हुआ। पिछले वर्ष उन्होनें कहा कि तुर्कीस्तान के लोगों चाहिए । यह बात सुनकर लगभग 50 लोग के प्रवचन की तरह से ही इस बार भी श्रीमाताजी ने सूफीमत और सहजयोग में उठ कर चले गए। तत्पश्चात् श्रीमाताजी समानता पर प्रकाश डाला। आश्चर्य की ने कहा कि बिना भली-- भांति समझे लोगों बात यह थी कि इस बार श्रीमाताजी ने को कुछ नहीं करना चाहिए। श्रीमाताजी फ्रांस के लोगों को उनके खानपान, मद्यपान का इशारा कुछ विशेष कुप्रथाओं की ओर और कुछ अन्य आदतों तथा तुर्की और था। इस पर और 50 लोग चले गए। कुछ अन्य अफ्रीकन देशों पर उनके आत्म - साक्षात्कार से पूर्व श्रीमाताजी ने आवंछित प्रभाव के लिए उन्हें दोषी उपस्थित साधकों को प्रश्न पूछने का ठहराया। । अत्यन्त सहजतापूर्वक नाटककार मौलीरे (Moliere) ने इनको उन्होनें साधकों के प्रश्नों के उत्तर दिए। मूर्खता के विषय में काफी लिखा है । निरमंत्रण दिया श्रीमाताजी ने कहा कि प्रांसिसी कुछ प्रश्न इस प्रकार से थे: "कुछ फ्रांसिसी लोग आपको तथा आपके दूरदर्शन को प्रभावित करने का मैवलाना जलालेटीन रूमी (Mevlane प्रयत्न करते हैं। अतः सावधान रहें। वो Jelalettin Rumi) ने कहा है, "यदि मैं ईसा विरोधी कार्य करते है।" श्रीमाताजी रहस्यों से पर्दा हटाऊँगा तो मैं भस्म हो ने यह भी कहा कि हमें अपनी संस्कृति जाऊंगा तथा अन्य मानव भी भस्म हो को बनाए रखना है। "ईसा मसीह की माँ जाएगें।" प्रश्न : महान इस्लामिक सूफी 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-70.txt जनवरी-फरवरी 2003 67 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 प्रश्न आपको आत्म- साक्षात्कार कहां श्रीमाताजी : यह सत्य है। उस समय तक लोग चेतन न थे। उन्होनें ईसामसीह प्राप्त हुआ? क्या आप स्वयं को पैगम्बर को क्रूसा रोपित कर दिया, मोहम्मद साहब मानती हैं? परमात्मा के समीप आपका को सताया। परन्तु मुझे इसका भय नहीं स्थान कहां हैं? है उन्हें मुझको भस्म करने दो। मुझे इसकी कोई चिन्ता नहीं है। श्रीमाताजी : मेरी चिन्ता मत कीजिए, अपनी चिन्ता कीजिए । प्रश्न : फ्रांसिसी लोगों के बारे में आपने कहा कि वे विश्व शान्ति विरोधी आया, अत्यन्त छोटा सा जिसमें जूते कार्य कर रहे हैं। क्या ये बात फ्रांस के उतारने के लिए भी नहीं कहा गया सभी लोगों पर लागू होती है? तत्पश्चात् आत्म-साक्षात्कार का सत्र श्रीमाताजी ने कहा कि दस हजार लोगों को आत्म साक्षात्कार प्राप्त हो गया है। श्रीमाताजी : निःसन्देह नहीं। अपवाद (Exception) भी है। अपवाद सभी जगह हैं। पच्चीस मिनट तक साधकों ने . अल्लाह हू कव्वाली संगीत सुनते हुए उसके प्रश्न: मृत्यु के विषय में आपके क्या साथ नृत्य करके अपने पुनःर्जन्म को विचार है? मनाया। अगले दिन सभी दूरदर्शन चैनलों ने में बात करेंगे आप सभी युवा हो मृत्यु के जन - कार्यक्रम के बहुत से दृश्यों को विषय में न सोचें, वर्तमान को सोचें वर्तमान प्रसारित किया एक को छोड़ कर सभी बहुत कुछ काम किया जाना है मृत्यु के इसके विषय में सकारात्मक थे। परन्तु ये विषय में सोचने का अर्थ है वर्तमान से सकारात्मक चैनल श्रीमाताजी के संदेश तथा चैतन्य लहरियों को फैलाने के लिए पर्याप्त न थे' । स्टार टी.वी. चैनल ने तो श्रीमाताजी : इसके बारे में हम बाद में पलायन करने का प्रयत्न करना। प्रश्न : लोग झूठ क्यों बोलते हैं? आत्म-साक्षात्कार सत्र के एक भाग का श्रीमाताजी : क्योंकि सत्य तथा सत्य की शक्ति का ज्ञान उन्हें नहीं हैं सीधा प्रसारण भी किया। 27 अप्रैल, शनिवार के दिन श्रीमाताजी ने इस्ताम्बूल प्रश्न क्या योग मस्तिष्क की शक्ति छोड़ा। योगीजन किंचित उदास हुए क्योंकि से प्राप्त किया जाता है? माँ हमें छोड़ कर जा रहीं थीं। एक चैनल श्रीमाताजी : यह मस्तिष्क से परे है का नकारात्मक प्रसारण भी उनकी उदासी आत्मा- साक्षात्कार प्राप्त करने क पश्चात् का कारण था । परन्तु आश्चर्य की बात है एक कस्टम अधिकारी ने एक आप इस बात को महसूस करेंगे। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-71.txt जनवरी-फरवरी 2003 68 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 1 व 2 सहजयोगिनी से कहा, "टी.वी. प्रसारणों था उसे भी आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने की चिंता न करें। वे (श्रीमाताजी) अत्यन्ति के लिए निमंत्रित किया गया श्रीमाताजी आध्यात्मिक व्यक्ति हैं ये बात हम जानते के दाएं हाथ के इशारे मात्र से उसे जो हैं।" हम सब हैरान थे और इससे हमारा तीव्र शीतल लहरियां प्राप्त हुईं उनसे वह खोया हुआ आनन्द लौट आया। दंग रह गया और हतप्रभ सा होकर पूछने एक अन्य आश्चर्य यह था कि इस लगा, "मुझे क्या हो रहा है?" नकारात्मक दूरदर्शन प्रसारण से प्रभावित पोलिस का मुखिया वायुपतन पर कुछ बन गया उसने पहचान लिया था कि कठिनाइयां खड़ी कर रहा श्रीमाताजी के बारे में पूछताछ कर रहा के इस तरह सभी कुछ अत्यन्त सुखकर था। वह श्रीमाताजी कौन है । लपत व 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-72.txt ना रम धूल - कण बनना चाहती हैं सूक्ष्म धूल कण की तरह वायु के साथ चलता है जो जाता है सर्वत्र और बैठ सकता है सिर पर सम्राट के गिर सकता है या किसी के चरणों पर कहीं भी जाकर बैठ सकता है ये धूल का ऐसा कतरा बनना चाहती. हूँ में सुवासित हो जो पोषक हो जो २४ प्रबुद्धता दायक भी तथा। श्री निर्मला देवी । माता जी श्रल भाष्यान्तर) 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-73.txt पर्वत अपनी खिड़की से एक पर्वत देखती हूं मैं किसी प्राचीन विवेकशील व्यक्ति की तरह खड़ा हुआ निरीच्छ, प्रेम से परिपूर्ण असंख्य पेड एवं पुष्प पर्वत को लूटते हैं निरन्तर, नगर चित्त उसका डोलता नहीं है। मेध कुम्म जन उडेलते हैं उस पूर असीम वर्षा जल, तो हरियाली की चादर ओढ लेता है पर्वत तूफान आये चाहे उमड़ते हुए, भरता है झील को अपने कूणा जल से, लहराते समुद्र की ओर कल-कल करती नदियाँ दौड़ती हैं उससे सूर्य करता है सष्टि बादलों की, बिठा कर उन्हें अपने पखों पर, वायु लाती है वर्षा पर्वत की ओर शाश्वत लीला है ये पर्वत देखता है जिसे, निरीच्छ, कषीभाव से । म शर छाी माताजी औी निर्मला देवी (आओरेजी से भाष्यान्तर) 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-74.txt 3r4