OHAR मार्च -अप्रैल, 2003 खण्डः XV अंक: 3 व 4 PURT चैतन्य लहरी ल त ३० सहजयोग आपकी पहली और सर्वोपरि जिम्मेदारी है । आपको इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि ये कार्य क्या है ये अत्यन्त महान कार्य है - पूरे विश्व को परिवर्तित मेरा यही स्वप्न है। करना परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी ১৫D। मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 क 1- श्री गणेश पूजा, फ्रैंकफर्ट जर्मनी, 2002 6- श्री माताजी की दूल्हों से बातचीत, कबैला, 15-09-2002 10- श्री माताजी की दुल्हनों को सीख, कबैला, 15-09-2002 15- नवरात्रि पूजा, लॉस एंजलिस, 27-10-2002 30- दिवाली पूजा, लॉस एंजलिस, 03-11-2002 39- श्री माताजी का एक पत्र, 1982 42- सूर्यसम आत्मा, 18-06-1983 चै तन्य लहरी प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर 162 - ए, मुनीरका विहार, नई दिल्ली - 110067 हि त मुद्रक प्रिंटो-ओ - ग्राफिक्स नई दिल्ली न सदस्यता के लिए कृपया इस पते पर लिखें : श्री ओ.पी. चान्दना 463 (G-11) ऋषि नगर, रानी बाग, दिल्ली एन 110034 फोन : (011) 27013464 सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पते पर भेजें : चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी - 17, कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली - 110016 श्री गणेश पूजा फ्रैंकफर्ट जर्मनी, सितम्बर 2002 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन च ाबा े कि ४ এই M। इतने समय के पश्चात् यहां वापस आना बहुत ही सुखद है। जब जब भी मैं आई आप सभी लोग यहां एकत्र हुए। यह सभागार काफी विशाल है। यहीं पर हम एकत्र हुए थे और इस प्रकार से सहजयोग चलने लगा। जर्मनी और आस्ट्रिया के लोगों के लिए यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यहीं लोग युद्ध में सम्मिलित थे और अब आप लोग मेरे साथ युद्ध में हैं। हमें युद्ध लड़ना है, आसुरी शक्तियों से युद्ध करना है। आप जानते हैं कि विश्व कैसा है। हमें इससे युद्ध करना है और इसे अज्ञानता मुक्त करना है। इस कार्य के लिए आप बहुत बड़ी सहायता हैं क्योंकि हमें मानव का परिवर्तन करना है ताकि मानव शीघ्रातिशीघ्र अच्छें बन सकें। एक बार यदि वे आत्म-साक्षात्कार ले लें तो परिवर्तन घटित होने लगेगा । अब इंग्लैंड और इटली में भी ये लोग गलियों में जाकर आत्म-साक्षात्कार दे रहे मार्च-अप्रैल 2003 2 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 हैं। गलियों में आत्म-साक्षात्कार दे रहे हैं का प्रयत्न करते हैं ऐसे सभी कार्य वो और हजारों लोग आत्म- साक्षात्कारी हो करते हैं, अतः आपको उनसे कुछ नहीं गए हैं यह बहुत बड़ी बात है क्योंकि लेना-देना, उनसे दूर रहें क्योंकि अब एक बार जब आपको आत्म-साक्षात्कार आप सब लोगों का शुद्धिकरण कर दिया वो | जो लोग शुद्ध हो गए जाते हैं। तब सारे सद्गुण आपमें आ कीचड़ से लथपथ लोगों में घुलते-मिलते जाने चाहिएं। आपमें यदि कोई बुराई हो नहीं । क्या स्वच्छ लोग ऐसा करते है? अतः अपने मस्तिष्क में अवश्य इतना विवेक यह सर्वत्र इतना तेजी से फैल रहा बनाए रखें कि सहजयोग को अन्य चीज़ों है और सभी देशों में फैलना भी चाहिए । से किसी भी कीमत पर नहीं मिलाना। आपको लड़ने झगड़ने की आवश्यकता बहुत समय से मैं ये बताने का प्रयत्न कर नहीं हैं क्योंकि आपको दैवी सहायता रही हूँ कि स्वयं को इनसे अलग बनाए प्राप्त हो गई है यह दैवी सहायता आपको रखें, परन्तु कई बार लोग ऐसा नहीं करते प्राप्त हो जाता है तो आप आत्मा बन गया है। भी तो वह भी चली जाएगी। हर समय । और यह और बहुत कष्ट उठाते हैं। हर समय प्राप्त है हमारे चहूँ ओर सभी प्रकार की बात समझी जानी चाहिए कि परमात्मा हमें इसलिए सहायता करते हैं कि हम आसुरी और शैतानी शक्तियाँ हैं। मैं नहीं मानव को अन्तर्परिवर्तन करके महानता जानती कि वो क्या कर रही हैं परन्तु की ओर ले जाएं। हम ऐसे ही हैं। यहाँ पर हम इसलिए किया, कोई हित नहीं किया, बिल्कुल आए है कि आपके पास एक स्थान होना कोई हित नहीं किया। ज़रा देखें कि इन चाहिए, सहजयोग के लिए एक आश्रम दिनों क्या हो रहा है - सभी प्रकार की होना चाहिए। वहाँ पर मैं सहजयोगियों लड़ाईयाँ-झगड़ें और हत्याएँ यही सब हो के अतिरिक्त किसी को भी नहीं चाहती रहा है । अतः आपको ये जान लेना क्योंकि हम नहीं जानते कि लोग कितने आवश्यक है कि हम अत्यन्त भयानक गन्दे हैं, वो कितनी गन्दगी करते हैं! आप कलियुग में है जिसका हमने सामूहिक कल्पना भी नहीं कर सकते कि वो किस रूप से मुकाबला करना है। बच्चों को सीमा तक जा सकते हैं और वास्तव में देखें, वे कितने सामूहिक हैं। आप सबको आपको हानि पहुँचा सकते हैं। वे केवल भी सामूहिक होना पड़ेगा। सभी को प्रेम नकारात्मक ही नहीं हैं बल्कि कभी-कभी करना आवश्यक हैं, आस-पास के सभी तो वो शैतान बन जाते हैं और आपके सहजयोगियों को। उनके दोष ढूँढने की बच्चों को, आपके परिवारों को नष्ट करने कोशिश न करें, उनसे झगड़ने का प्रयत्न उन्होंने लोगों का कोई हित तो नहीं श् मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 न करें, क्योंकि मैं जो कार्य कर रही हूँ करें ध्यान धारणा द्वारा आप जान जाएगें वह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। मैं लोगों में अन्तर्परिवर्तन करने का आनन्द किस प्रकार लेना है। यह स्थिति कि सहजयोग का, चैतन्य लहरियों का, प्रयत्न कर रही हूँ ताकि वे अच्छे और होनी ही चाहिए। मानसिक गतिविधि भले बन सकें उनसे कुछ लेने के लिए समाप्त होनी आवश्यक है। दूसरों को नहीं, उन्हें कुछ देने के लिए ताकि वे आयोजित करने का प्रयत्न छोड़ दें। अन्य अच्छे लोग बन जाएं। हमारे यहाँ अत्यन्त लोगों को भाषण देने का प्रयत्न न करें, अच्छे और भले लोग होना आवश्यक है परन्तु जो कुछ भी आप करते हैं उसका ऐसे लोग जो न तो घृणा करते हैं और न अन्तरअवलोकन करें। स्वयं देखें कि आपमें जिनमें किसी प्रकार का लालच है। लोग क्या कमी है और आप कौन-कौन से पागलों की तरह से लालची हैं। जहाँ गलत कार्य कर रहे हैं। लोग धन कमा सकते थे वहाँ उन्होंने सभी को धोखा देकर पैसा बनाया और आप यदि शान्त नहीं होगें तो हम आपको इस कारण से अब उनके बच्चे कष्ट दूर भेज देगें मैं नहीं चाहती कि तुम्ें उठाएंगे। अंतः आप सबके विषय में मेरी दूर भेजा जाए। ठीक है?) (बच्चो कृप्या शान्त रहो। ठीक है? यहाँ भी आप देखें, ये बच्चे जर्मन इच्छा है क्योंकि आप ही लोग इस महान युद्ध में मेरी सहायता कर सकते हैं असुरों हैं। अतः स्वाभाविक रूप से ये जानते हैं के साथ युद्ध में। स्वभाव से ही ये लोग कि हल्ला किस तरह मचाना है । इसीलिए दुष्ट हैं और वो आपको बर्बाद करना मैंने उन्हें यहां बुलाया था। अब वे बहुत चाहते हैं उनके हाथों में खिलौना न बनें, अच्छे बच्चे बन जाएंगे बहुत ही अच्छे मज़बूत बनें। आप पृथ्वी पर भौतिक चीजें बच्चे। आप ऐसे ही बनेंगे न? आदि एकत्र करने के लिए नहीं आए हैं। आप तो यहाँ उच्च दर्जे के सहजयोगी कुछ नहीं है। अच्छा बन जाना ही काफी बनने के लिए आए हैं। केवल शान्त हो जाना ही सभी नहीं है। आपको अन्य लोगों को भी अच्छा एक अन्य बात यह है कि यदि आप बनाना है। अन्य लोगों को सुन्दर व्यक्ति अपने अन्दर आनन्द अनुभव नहीं करते, बनाना है अपने चित्त से और अपने कार्य आपमें यदि आनन्द का अभाव है, तो से हमें पूरे विश्व का सौन्दर्यकरण करना आप अन्य लोगों को कष्ट देंगे। अतः है। अब समस्या यह है कि सहजयोग में आपके लिए सर्वोत्तम उपाय यह है कि आने के पश्चात् भी लोग गलत चीजें आप ध्यान-धारणा करें, आलोचना न करें, अपना लेते हैं। ऐसे किसी व्यक्ति को अपना मस्तिष्क न लगाए, परन्तु ध्यान बढ़ावा न दें। इसके विपरीत उसे समझाएं मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 कि सहजयोग सामूहिक गतिविधि है । प्रयत्न किया परन्तु कुछ भी कार्यान्वित हमारा व्यक्तिगत कुछ भी नहीं है। हमें नहीं हुआ। आप जानते हैं कि आत्म- गतिशील रहना है और हर समय मिल साक्षात्कार किस प्रकार दिया जाता है। कर रहना है सामूहिक होना अत्यन्त अपनी कुण्डलिनी की सहायता से हम महत्वपूर्ण है तथा उस सामूहिक जीवन सभी कुछ कार्यान्वित कर रहे हैं । आप का आनन्द लेना भी। मिलकर रहने का यह भी जानते हैं कि क्या करना है। आनन्द यदि आप अनुभव कर सकते हैं आप आत्म-साक्षात्कार देना जानते हैं। तो आपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त कर चैतन्य लहरियाँ पहचानना जानते हैं। सभी लिया है। क्योंकि ऐसी स्थिति प्राप्त करने कुछ एकदम से आपमें होने लगता है। के पश्चात् आप अन्य लोगों को भी अपने तब आप तुरन्त महसूस करते हैं कि अभी साथ मिलाएंगे और आत्मा होने का आनन्द तक आप जो भी कुछ कर रहे थे वह उन्हें भी प्रदान करेंगे। एक बार जब वे मानवता के लिए बहुत ही हानिकारक आत्मा बन जाते हैं तो सभी कुछ परिवर्तित था। अब मैं आप लोगों पर सभी कुछ होने लगता है। सामूहिक रूप से यदि छोड़ती हूँ। आप सभी इतने विवेकशील आप मिल कर रहते हैं और सारे कार्य और इतने अच्छे लोग हैं। आप सभी करते हैं. तो बड़ी तेजी से आपका उत्थान सहजयोग में आए हैं मैं जब- जब भी होता है। जो लोग पृथक होने की बातें यहाँ आई आप सभी यहाँ उपस्थित थे। करते हैं वह पागलपन है। ऐसी बातों को मुझे प्रसन्नता है कि आज सभी देश यहाँ बिल्कुल न सुनें। बेहतर होगा कि इन्हें हैं। पता लगते ही तुरन्त आप यहाँ आ नियन्त्रित करें कभी-कभी हमें एकजुट गए। आप लोग कितना मुझे प्रेम करते हैं! होना पड़ता है। हम एक-दूसरे से अलग वास्तव में यह प्रशंसनीय बात है। आप नहीं हो सकते। ऐसे सभी प्रयत्नों को सभी लोगों ने अपना प्रेम दर्शाया है । पता नष्ट कर दिया जाएगा। आप लोग देखें नहीं आप सब लोग कहां कहां से आए कि विश्व में चीजें किस प्रकार चल रही हैं? मैं इतने कम समय के लिए यहाँ आई हैं, किस प्रकार सभी कुछ कार्यान्वित हो हूँ। अतः परमात्मा आपको आशीर्वादित रहा है? आधुनिक कार्य के सौन्दर्य को आप बात हमेशा अपने मस्तिष्क में रखें कि समझे। आप एक ऐसे समय पर अवतरित अब आप ने पूरे विश्व को भले और हुए हैं जब आपका अन्तर्परिवर्तन हो सकता आध्यात्मिक लोगों के विश्व में परिवर्तित है। ऐसे समय पर आप जन्में हैं, जब आप करना है। अतः यह आपकी जिम्मेदारी आत्मा बन सकते हैं सभी ने इसका है । इसके लिए आपको क्या करना है, करें और आपको विवेक प्राप्त हो। यह मार्च-अप्रैल 2003 5 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 यह बात आप जान जाएगें। आप सभी प्राप्त कर सकते है। ऐसा करना बहुत को बहुत जिम्मेदार बनना है बहुत ही आवश्यक है। और यही बताने के लिए मैं जिम्मेदार लोग और यह समझने का प्रयत्न आई हूँ कि कृपा करके समर्पित होने का करना है कि आप सहजयोग के लिए प्रयत्न करें । जहाँ तक समर्पण का प्रश्न है मैं क्या कर रहे हैं। आजकल बहुत से नए चेहरे नज़र आते हैं, इन्हें देखकर मैं बहुत यह नहीं कह सकती कि किस प्रकार प्रसन्न हूँ। निःसन्देह मैं बहुत से आस्ट्रियन आप स्वयं को विवश करें। परन्तु आप लोगों से मिली, जर्मन लोगों से मैं पहले निर्विचार समाधि में चले जाएं। निर्विचार मिल चुकी हूँ। परन्तु अब मुझे बहुत से समाधि की अवस्था में आप ध्यान करें अन्य देशों के लोग भी नज़र आते हैं । और तब, मुझे विश्वास है, अपने पूरे प्रेम इनकी सहायता करके आपने बहुत ही और आशीष के साथ, मुझे विश्वास है, मधुर कार्य किया है। समर्पण ही महत्वपूर्ण कार्य है। लोगों ही नहीं होगें अन्य लोगों को भी परिवर्तित के साथ यही समस्या है। वे स्वयं को करके इस भले कार्य को करने की प्रेरणा सहजयोग के प्रति समर्पित नहीं कर पाते। देंगे। आप सब में यह गुण है। इसे अपने यही आपका जीवन है। अच्छाई का यही अन्दर और विकसित करें तथा यह देखने सबसे सुन्दर इनाम है। अतः आप लोग का प्रयत्न करें कि जीवन में परिवर्तित समर्पित होने का प्रयत्न करें और, आप होने के लिए कितने अन्य लोगों की आपने हैरान होगें कि, समर्पण मात्र से आप पूर्ण सहायता की है। आप समर्पित हो जाएंगे। केवल समर्पित आनन्द और पूर्ण प्रसन्नता एवं शान्ति आपका बहुत बहुत धन्यवाद। श्री माताजी की दूल्हों से बातचीत न ्ि ्ल कबैला, 15-09-2002 री भा मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ कि आप सबने सहजयोग में विवाह करने का निश्चय किया है। परन्तु अब आप पर कुछ जिम्मेदारियाँ भी आ जाएंगी। यह विवाह अन्य विवाहों की तरह नहीं है कि आज आप विवाह करें और कल तलाक ले लें। यहां ऐसा कुछ भी नहीं है सहजयोग में आप इसलिए विवाह करते हैं क्योंकि हम सहजयोग को दृढ़ करना चाहते हैं। आपकी पत्नी होगी जो आपकी देखभाल करेगी, आपके प्रति करुणा एवं प्रेममय होगी क्योंकि वह सहजयोगिनी है आपको भी उसके प्रति सुहृद होना है। उस पर प्रभुत्व जमाने का प्रयत्न न करें। अपने विचार उस पर थोंपने का प्रयत्न न करें। देखें कि वह क्या चाहती है। आपको इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि किस प्रकार पत्नी से प्रेम करना है इसके बिना विवाह संभव न होगा। सहजयोग में एक बार यदि आप तलाक ले लेते हैं तो दुबारा हम आपका विवाह २ मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 7 नहीं करेंगे अब हमने इस बात का निर्णय यदि आप नहीं कर सकते तो आपको कर लिया है। या किसी भी प्रकार से अविवाहित ही रहना चाहिए. विवाह करना यदि आप अपनी पत्नी को त्याग देते हैं ही नहीं चाहिए। आप यदि विवाह कर या छोड़ देते हैं या इस विवाह के विषय रहे हैं तो अपनी पत्नी की जिम्मेदारी ले में कोई गैर जिम्मेदाराना कार्य करते हैं रहे हैं। वह किसी की बेटी है और उसका तो आपके लिए सहजयोग में कोई स्थान पिता अपनी बेटी आपको दे रहा है । न रहेगा। तो अभी एक बार ही निश्चय कर लें कि अब आप विवाह कर रहे हैं। व्यवहार बहुत अच्छा रहा है। अब आप यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। हम चाहते लोगों में भी यह विवेक एवं सूझ-बूझ हैं कि सहजयोग विवाह सफल हों और होनी चाहिए कि आप यहां पर सहजयोगी आप सब अत्यन्त प्रसन्न विवाहित जीवन बच्चे उत्पन्न करने के लिए आए हैं ताकि का आनन्द लें। प्रभुत्व जमाने, नियन्त्रण सहजयोग की सहायता हो सके । क्योंकि करने का कोई लाभ नहीं है। एक-दूसरे हमारा लक्ष्य विश्व को परिवर्तित करना के साहचर्य का आनन्द उठाना है क्योंकि आपकी पत्नी भी सहजयोगिनी है और के विषय में यदि आपकी सूझ-बूझ निम्न आप भी सहजयोगी हैं। आप यदि स्तरीय है तो इससे काम न चलेगा। अतः सहजयोगी न होते तो हम आपका विवाह मुझे आपसे अत्यन्त विनम्र एवं सम्मानमय न करते। हम प्रबुद्ध लोग हैं, उच्च चेतना अनुरोध करना है कि यदि आप सहजयोग के लोग हैं। हमारा जीवन आध्यात्मिक के वैवाहिक जीवन में प्रवेश कर रहे हैं तो है। अपने जीवन में हमें दर्शाना है कि आपको अपनी जिम्मेदारी की समझ अभी तक सहजयोग में लड़कों का है। संसार का उद्धार करना होगा। विवाह किस प्रकार हम उन लोगों से भिन्न आवश्यक है। यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी आचरण करते हैं जो सदैव लड़ते रहते हैं है, यह जिम्मेदारी पूरे विश्व के लिए है. और सभी कुछ बिगाड़ने में लगे रहते हैं क्योंकि हमें पूरे विश्व को परिवर्तित करना ताकि आपके अत्यन्त अच्छे बच्चे हों। है यदि आप अपने देश के या अन्य आप उनकी तथा उनके परिवार की देशों के पतियों की तरह से व्यवहार देख-भाल कर सकें, यह आपका पहला करेगें तो सहजयोग में विवाह करने का कार्य है। निःसंदेह आपमें से कुछ लोग क्या लाभ होगा, तब तो आप बाहर जा अपने कार्य में बहुत व्यस्त होगें, यह ठीक कर अच्छा सा विवाह करें। परन्तु यदि है, परन्तु पत्नी को प्रेम करना, उसकी आप सहजयोग में विवाह कर रहे हैं तो देखभाल करना और बच्चों की देखभाल आपको यह समझ लेना आवश्यक है कि करना भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है । ऐसा यह भयानक आसुरी शक्तियों, अन्याय मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 ৪ तथा कुप्रबन्धन के विरुद्ध भयानक जंग बातचीत करें और उसे बताएं, 'ठीक है, है हम एक अत्यन्त सुन्दर विश्व का आओ बैठों। आपा खोने या क्रोधित होने सृजन करना चाहते हैं और इस सुन्दर की कोई आवश्यकता नहीं है। किसी भी विश्व को बनाने के लिए हमें ऐसे लोगों प्रकार का उदाहरण देना ठीक नहीं होता, की आवश्यकता है जो बहुत सुन्दर हों इससे कोई भी लाभ न होगा। मैं देखना और जो सभी का सम्मान करते हों। चाहती हूँ कि आप सब अपनी पत्नियों के अतः बार-बार मेरा आपसे यही अनुरोध प्रति कितने नेक हैं, परन्तु मैं यह भी नहीं है कि आप लोग अत्यन्त भले, विनम्र एवं कहती कि आप उन्हें बिगाड़ दें। ऐसा सम्मानमय पति बनें। अन्य लोगों का बिल्कुल न करें, मैंने उनसे भी बता दिया अनुसरण न करें। मुझें बड़ी अजीबो-गरीब है। उनकी आदतें न बिगाड़ें, उन्हें भी बातें सुनने को मिलती हैं, मैं हैरान थी सहजयोग के शुभ रास्तों पर चलने दें कि सहजयोग में विवाह करके लोग ऐसे और सहजयोग के अच्छे कार्यकर्त्ता बनने किस प्रकार बन सकते है! हमें पता चला दें। वो बहुत अच्छी माताएं बनेंगी और कि वो पगला गए थे और पागलों की ऐसे बच्चों को जन्म देंगी जिनकी हमें तरह से आचरण कर रहे थे। अतः आवश्यकता है जो इस विश्व को पूरी आक्रामकता आदि चीज़ों की आज्ञा नहीं तरह से परिवर्तित कर देगें अतः मुझे है। इस लड़की से आप पूरे विश्व के हित आशा है कि आप यदि मुझसे सहमत हैं के लिए विवाह कर रहे हैं, केवल अपने तो ठीक है और यदि नहीं हैं तो अब भी बच्चों के और अपने परिवार के लिए आप इस विवाह को छोड़ सकते हैं । मैं नहीं। पूरे विश्व के सम्मुख आपको यह इस बात का बुरा नहीं मानूंगी, परन्तु दर्शाना होगा कि आप अत्यन्त विवेकशील, विवाह के पश्चात् यदि आप दुर्व्यवहार बुद्धिमान और विकसित व्यक्ति है यह करते हैं या अपनी पत्नी को तलाक देते अविकसित लोगों का व्यवहार नहीं है। हैं तो सहजयोग में आपके लिए कोई अतः यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप स्थान न होगा। हम यहां आपको बने दर्शाएं कि आप अत्यन्त परिपक्व व्यक्ति रहने नहीं की आज्ञा न देंगे । हैं, अत्यन्त ज्योतिर्मय हैं और पूरे विश्व को ज्योतिर्मय बना सकते हैं। पत्नी क्योंकि किसी अन्य परिवार, नहीं वह हाथ उठाएं। धन्यवाद। धन्यवाद । या हो सकता है कि अन्य देश से आ यह जानकर मैं बहुत प्रसन्न हुई। अतः रही है, इसलिए सोच-समझ में अन्तर हो आपको विवेकशील बनना होगा और अपनी सकता है। अतः उसे समझाएं, उससे पत्नी को बताना होग, 'देखो चीजें इस क्या आप सबको मेरी बात स्वीकार है? ठीक है जिसे भी मेरी बात स्वीकार मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 प्रकार से हैं, ऐसे है।' उन्हें यह बाते सम्मान करेगी, आपको सम्मानमय व्यक्ति समझने दें कि आप विवेक में उनसे आगे बनना होगा, पत्नी के प्रति करुणामय एवं | इतना ही नहीं आप अत्यन्त विवेकशील भद्र होना होगा, मैं उन्हें बिगाड़ने के लिए हैं। आध्यात्मिक रूप से आप उन्हें समझें नहीं कह रही। कहीं यदि आपको गलती तब वे आपकी बात को सुनेंगीं वे अपने दिखाई देती है तो अपने साथ बैठाकर माता-पिता को, परिवार को, देश को, उसे बताएं कि सहजयोग दृष्टिकोण से छोड़ कर आ रही हैं । अतः उनके प्रति यह बात ठीक न होगी ठीक है इसी अत्यन्त भद्र एवं सुदृढ़ बनें और किसी भी कारण से इन बीते वर्षों में मैनें आपसे बात के लिए उन पर नाराज़ न हों। प्रतीक्षा करवाई, अब आप बड़े हो गए हैं किसी भी बात के लिए उन पर बिगड़ें और समझते हैं कि आपके जीवन का नहीं। अपने पूरे जीवन में मैं कभी क्रोधित लक्ष्य क्या है। आप सबका अत्यन्त नहीं हुई। इससे पता लगता है कि लोग धन्यवाद। परमात्मा आपको आशीर्वादित बेकार में ही नाराज होते हैं। इसकी कोई करें। देखें कि यह सार्वभौमिक है। हम आवश्यकता नहीं है, शान्त रहें। कोई चीज़ यदि आपको अच्छी नहीं लगती तो सभी सार्वभौमिक हैं और हमें अपनी चुप रहें। किसी भी प्रकार का क्रोध या सर्वव्यापी सूझ-बूझ के विवेक को दर्शाना गुस्सा न दर्शाएं । आपको दिखाना होगा है कि हम इस प्रकार विश्वभर के सभी कि आप विवेकशील एवं गरिमामय व्यक्ति देशों से आए सब लोगों का आनन्द लेते | कुछ पतियों को मैंने चिल्लाते हुए, हैं वे सभी हमारे, भाई-बहन हैं । ठीक चीजें फेंकते हुए तथा इस प्रकार के अन्य है? कार्य करते देखा है। आप यदि सम्मान के योग्य नहीं हैं तो पत्नी कैसे आपका ति आप सबका हार्दिक धन्यवाद । हुए श श्री माताजी की दुल्हनों को सीख गणेश पूजा 15 सितम्बर 2002, कबैला पत कड म ा ा लि या में विवाह के लिए उद्यत देखकर मैं बहुत आप सबको इतनी सुन्दर वेश-भूषा प्रसन्न हूँ। अपने दृष्टिकोण को ठीक रखना आवश्यक है। आप सबको अत्यन्त प्रसन्न रहना है और अपने पतियों को भी प्रसन्न रखना है। आप लोगों की प्रसन्नता ही बच्चों को भी प्रसन्नता प्रदान करेगी । अब एक बात की आप सबको चेतावनी देती हूँ कि कभी भी अपने पिछले जीवन की गलतियों के विषय में अपने पति को न बताएं। इस बारे में कोई बात नहीं होनी चाहिए, इसकी कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि अब आप सहजयोगी हैं। आप परिवर्तित लोग हैं पहले जो भी घट चुका उसके बारे में बातचीत करने की या उसे कुछ बताने की आवश्यकता नहीं हैं। वर्तमान और भविष्य की बातें करें, ठीक है? विवेकशील बनें। आपकी विवेकशीलता ही आपके वैवाहिक जीवन को सुखमय मार्च-अप्रैल 2003 11 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 बनाएगी। आप यदि विवेकहीन हैं, बुद्धिहीन महिला की सराहना नहीं कर सकता। हैं तो विवाह असफल हो जाएंगे। मैंने अतः आप लोगों को आक्रामक नहीं होना देखा है कि कुछ लड़कियां अपने पतियों चाहिए । जो भी कुछ वह कहता है उसे पर बहुत रौब झाड़ती हैं।प्रभुत्व जमाने सुनना चाहिए और सहमत होना चाहिए। की कोई आवश्यकता नहीं, पति से प्रेम करना ही प्रभुत्वशाली होना है । अतः छोटी-छोटी चीज़ों के लिए अपने पति सर्वोत्तम उपाय पति को प्रेम करना उसकी पर प्रभुत्व जमाने का प्रयत्न नहीं करना देखभाल करना तथा अन्य सभी आवश्यक चाहिए। ऐसा करना सहजयोगी का चिन्ह कार्य करना है ये दर्शाने की बिल्कुल भी नहीं है। सहजयोगिनी को तो अपने प्रेम, आवश्यकता नहीं कि आप किसी बेहतर सूझबूझ, एवं विवेक से अपने पति को समाज से हैं या बेहतर संस्कृति और जीतना है। उस पर प्रभुत्व जमाकर नहीं। बेहतर पारिवारिक पृष्ठभूमि से हैं केवल यह बात हमें समझ लेनी चाहिए कि आप स्वयं ही यह दर्शा सकती हैं कि प्रभुत्व जमाने की प्रवृत्ति के कारण बहुत आप वास्तव में अच्छी व्यक्ति हैं और से विवाह टूट गए। आपकी अच्छाई ही उसके दिल को जीतेगी। अतः केवल पत्नी ही विवाह को माता-पिता, परिवार, अपने देश से जुड़े बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार होती है और हुए हैं अब इन्हें भूल जाएं। अपने पति के मुझे ये बात स्पष्ट बतानी है कि अब भी परिवार अपने पति तथा उसके इ्द-गिर्द यदि विवाह के विषय में आप मन में सोच की चीजों से जुड़ जाएं। क्योंकि अब भी रही हैं कि आपका साथी अच्छा नहीं है यदि आप अपने परिवार के मोह में फंसी तो अभी आप पीछे हट जाएं। बाद में हुई हैं तो आप अपने संबंध बिगाड़ लेंगी। अपने पति के दोष न खोजती रहें । पुरुष इस कारण से मैंने बहुत से जोड़े दटूटते पुरुष होते हैं और महिलाएं महिलाएं, हुए देखें हैं । एक लड़की हमेशा अपने पुरुष महिलाएं नहीं हो सकते। परन्तु पिता के विषय में चिंतित रहती थी क्योंकि आप उन्हें समझा सकती हैं कि महिलाओं उसका व्यापार चौंपट हो गया था। इस का भी सम्मान होना चाहिए। ठीक है? प्रकार से उसने अपने जीवन को न्क ये सब कुछ आपको अपने आचरण से बना लिया। उसका पति कहीं चला गया दर्शाना है। आपका आचरण यदि अच्छा और उसने कुछ अन्य करना चाहा और निःसन्देह कुछ मूल चीजें हैं। अन्यथा दूसरी बात ये है कि आप अपने तो वे आपका सम्मान करेंगे। परन्तु इस प्रकार वह बीच में ही लटकी रह आपका व्यवहार यदि बचकाना है, गई उसे अपने पिता के घर वापिस आक्रामक है तो कोई भी पुरुष आक्रामक जाना पड़ा और तब उसे पता चला पिता পত। मार्च-अप्रैल 2003 12 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 चाहिए। सभी कुछ आपने अपने परिवार के घर में रहना कितना कठिन है। अंतः यह आपका घर है, आपका और पति को देना है। आपको कुछ नहीं पति है, आपने किसी अन्य पुरुष या महिला चाहिए। यही आपका सौन्दर्य हैं, यही को सहायता के लिए खोजते नहीं फिरना। आपकी सज्जा है । यही आपको सौन्दर्य आप स्वयं ही अपनी सहायता कर सकते प्रदान करेगी परन्तु यदि आप इच्छाओं हैं कुछ लड़कियों का हमें गलत के पीछे-पीछे भागते रहेंगे तो इनका कोई अनुभव हुआ है। अपने पतियों को छोड़कर अन्त नहीं, विशेष रूप से पाश्चात्य बुद्धि अपने बच्चों के साथ अपने माता-पिता के लिए। पाश्चात्य महिलाएं बहुत ही धन के घर लौट आई। क्या उनका परिवार लोलुप हैं और उन्होंने बहुत सी समस्याएं पूरा जीवन उन्हें पालेगा? कौन उनकी खड़ी की हैं। मैं नहीं जानती कि उनसे देखभाल करने वाला है? अतः अपने क्या कहूं। अतः आपको धन-लोलुप नहीं मस्तिष्क का उपयोग करें या कभी ये होना चाहिए। आपको प्रेम लोलुप होना दर्शाने की कोशिश न करें कि आप कोई चाहिए। भिन्न तरीकों से अपने प्रेम की बहुत बेहतर ऊँची या बढ़िया चीज़ हैं। अभिव्यक्ति करें, अच्छा खाना बनाकर, जो भी बात कहें उससे विनम्रता टपके। अपने पति के लिए अच्छा बिस्तर बनाकर, जितना अधिक आप विनम्र होंगी उतना बहुत घर का ठीक प्रकार से आयोजन करके ही अच्छा है। अक्खड़ स्वभाव महिलाओं और हर चीज़ भली-भांति रखकर । क्योंकि को शोभा नहीं देता। ऐसी महिला अच्छी पत्नी यदि सुव्यवस्थित नहीं होगी तो घर नहीं लगती। मैं नहीं जानती कि वह भी अव्यवस्थित ही रहेगा घर की कैसी लगती है? कभी-कभी तो वह घोड़े देखभाल करना पति का कार्य नहीं है। जैसी लगती है। अतः बेहतर हो कि आप अपने घर को और अपने कमरे को यदि विनम्र, सुहृद एवं भद्र हों और प्रमाणित आप ठीक-ठाक रखेंगी तो इसके सौन्दर्य करें कि आप बहुत अच्छे स्वभाव की का आनन्द लेंगी। यह सब करने में आपको इन्सान हैं, ठीक है? एक अन्य चीज़ मैंने आप सबको करने का आनन्द लें, विशेष रूप से अपने बतानी है क्योंकि आप सब पश्चिम से हैं पति के लिए कार्य करने का छोटी-छोटी और पश्चिमी महिलाएं धन लोलुप होती चीजें उसे सुख एवं प्रसन्नता प्रदान कर हैं। अब तो भारतीय महिलाएं भी ऐसी सकती हैं क्योंकि दफ्तर ही में वह इतना बन गई हैं। उनको भी कार चाहिए., घर चाहिए, ये चाहिए, वो चाहिए। आपको आता है तो आप उसके पीछे पड़ जाती किसी भी चीज़ की आकांक्षा नहीं होनी हैं। ऐसा करना बहुत गलत है दृष्टिकोण आनन्द आएगा परिवार के लिए कार्य थक जाता है। थका थकाया जब वह घर मार्च-अप्रैल 2003 13 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 अतः गर्ममिजाज़ी महिलाओं को को इस प्रकार बदला जाना चाहिए कि, हमें कुछ नहीं चाहिए। हमारे पास सभी शोभा नहीं देती। आप यदि क्रोधी स्वभाव कुछ है। हम सहजयोगी हैं। हम पूर्णतया की हैं तो बहुत जल्दी आप बूढ़ी हो सन्तुष्ट हैं। परन्तु यदि आप मांगें करती जाएंगी, बहुत ही शीघ्र आप वृद्धा लगने चली जाएंगी तो बहुत कठिनाई होगी, लगेंगी आपमें यदि अहं है और अपने यह बात मैं आपको बता सकती हूँ। कुछ अतः सर्वोत्तम बुरा अनुभव हुआ। हाल ही में आस्ट्रिया चीज़ तो ये है कि एक नन्ही बालिका की की तीन लड़कियाँ आस्ट्रिया वापिस चली तरह व्यवहार करें। ऐसी बालिका की गईं। लज्जाजनक! आस्ट्रिया का कोई तरह जो अपने पति को प्रेम करने के व्यक्ति यहाँ है? नही? परमात्मा का शुक्र लिए, उसकी देखभाल करने के लिए है तुम आस्ट्रिया से हो? अब सावधान उसको मातृत्व प्रदान करने के लिए उसके हो जाओ। ये तीनों लड़कियाँ बच्चों के घर में आई है। आपको ये सोचना है कि साथ वापिस आ गई हैं और पति इतना आप उसकी माँ हैं और पति तो घबराया हुआ है कि हर शनिवार, इतवार कभी-कभी, बेवकूफ होते हैं। परन्तु कोई को उसे पिता के घर जाना पड़ता है। बात नहीं। अतः अपने बच्चे की तरह से आने जाने पर ही वह सारा पैसा खर्च उसकी देखभाल करें और उसके प्रति कर देता है। इसमें कोई विवेक दिखाई अत्यन्त मधुर एवं अच्छी बनी रहें । आपके नहीं देता। आप देखें कि घरेलू महिला परिवार का कोई भी सदस्य आपके पति केवल परिवार को ही नहीं उन्नत करती से महत्वपूर्ण नहीं है। यह बात अब आपके परन्तु सूझ-बूझ एवं यश भी लाती है। लिए बहुत आवश्यक है कि आपका पति अधिक कष्ट उठाने वाली कोई बात नहीं ही आपके लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। केवल सूझ-बूझ की आवश्यकता है। है विवाह की यही सहज शैली है। सहज आप यदि बुद्धिमान हैं तो कुछ घटना से बाहर आप विवाह कर सकती हैं, दस यदि हो भी जाए तो उसके प्रति आप विवाह कर सकती हैं, ये अलग बात है। अत्यन्त विवेकशील, सन्तुलित, जिम्मेदारी परन्तु सहज में ऐसा नहीं है परन्तु एक पूर्ण रवैया अपनाती हैं। जहाँ तक परिवार बार यदि आपका तलाक हो जाता हैं तो और बच्चों का संबंध है पत्नी को पति से हम पुनः आपका विवाह नहीं करते, ऐसा कहीं अधिक जिम्मेदार होना होगा परन्तु करना हमने छोड़ दिया है। ऐसा करके यदि आप गर्ममिजाज़ हैं तो परमात्मा ही हम देख चुके हैं क्योंकि इस प्रकार पतियों आपके और आपके पति के मालिक हैं। को त्यागने की आदत बन जाती है, एक आप को यदि आप बहुत बड़ी चीज़ मानती लड़कियों के साथ मुझे बहुत हैँ तो भी ऐसा ही होगा | मार्च-अप्रैल 2003 14 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 बार जब आपका विवाह हो जाता है। तो तो बच्चों का भविष्य बहुत अच्छा हो आपको विवाहित ही रहना है। यदि आपको जाएगा। मैं आपको काफी बता चुकी हूँ| तलाक लेना है तो ये बात जान लें कि हमें आपसे कुछ नहीं लेना-देना। सहजयोग मुझे आशा है कि आप इस बात को से आपको बाहर फेंक दिया जाता है । समझ गई हैं कि आप सहजयोग में विवाह हम चाहते हैं कि बहुत अच्छे विवाह हों, कर रहीं हैं और आपने सहजयोग की अच्छे बच्चे बनें और बहुत अच्छी गरिमा को बनाए रखना है क्या आप बहुत पीढ़ी आए। आप यदि अत्यन्त अच्छे, सब इस बात का वचन देती हैं? विवेकशील, बुद्धिमान एवं सुहृद माताएं हैं। परमात्मा आपको धन्य करें। पाय *ी हा ष द १ू० हे ४८ हा नवरात्रि पूजा लॉस एंजलिस, 27-10-2002 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज हम देवी की पूजा करेंगे। सर्वप्रथम उनसे बायीं ओर का कार्यक्रम नियत होता है परन्तु बाद में सहस्रार पर वे कार्य करती हैं। वे आदिशक्ति हैं। बायीं तरफ जो भी कार्य वे करती हैं, इसके विषय में लिखा हुआ है। क्योंकि वे 'समृद्धि' हैं और "विवेक' हैं और वे सुरक्षा भी प्रदान करती हैं। गणों पर जब वे अपनी शक्ति उपयोग करती हैं तब यह बात प्रकट होती है। जैसा कि हम जानते हैं गण ही आपके अन्दर के सभी प्रकार के सुधारों के लिए जिम्मेदार हैं। गण बायीं ओर से कार्य करते है । हम जानते है कि कैंसर रोग बायीं ओर की समस्या है। देवी की शक्तियों से पूर्णतः एकरूप यह गण भी बायीं तरफ ही होते हैं। देवी को उन्हें बताना नहीं पड़ता, उनका पथ प्रदर्शन नहीं करना पड़ता। उनकी संरचना ही इस प्रकार से होती है। यही गण, मैं कहना चाहूँगी, निशाना मार्च-अप्रैल 2003 16 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 लगाते हैं, रोग पर निशाना लगा कर इसे जाता है और अपने गणेश तत्व की ठीक करते हैं। गणों के माध्यम से हमने देखभाल नहीं करता। अतः देवी की पूजा बहुत से कैंसर रोगी तथा बायीं ओर के करते हुए आप श्री गणेश की भी पूजा (मनोरोगी) ठीक किए हैं। परन्तु गण किसी कर रहे हैं क्योंकि श्री गणेश उन्हीं की अन्य की बात नहीं सुनते। गणपति उनके शक्ति हैं । आपकी सुरक्षा ही श्रीमाताजी सेनापति हैं या मैं ये कहूंगी कि वे उनके की शक्तियों का मुख्य कार्य है सभी नियंत्रक हैं। अतः यदि आपके गणपति ठीक हैं की सभी प्रकार की सुरक्षा। इनका तो समस्याएं बहुत कम होती हैं। परन्तु वर्णन-देवी महात्म्यं में किया गया है यदि गणपति ठीक नहीं हैं तो सभी प्रकार और आपने इन्हें पढ़ा होगा। जो भी की समस्याएं आ कर कष्ट देंगी। ये एक सुरक्षा वो आपको प्रदान करती हैं उनका ऐसी चीज़ है जिसकी ओर मैं बहुत ध्यान वर्णन किया गया है उनकी सुरक्षा शक्ति देती हूँ कि हमें अपने अन्दर श्री गणेश इतनी महान है । यह सुरक्षा शक्ति आपको प्रकार की बाधाओं से सुरक्षा, बायीं ओर इस प्रकार की समझ प्रदान करती है कि को अवश्य ठीक रखना चाहिए। उस दिन मुझे पत्रों से भरा हुआ एक बहुत बड़ा देवी कितनी करुणामय हैं और कितनी लिफाफा मिला। इनमें लिखा था कि श्री सुरक्षादायिनी। हर समय वे आपका पथ माता जी गणों को नियंत्रित करना बहुत प्रदर्शन करती हैं। ताकि बायीं ओर की कठिन कार्य है। गणपति को सभांलना समस्याओं से आप सुरक्षित रहें। अपने भी अपने आप में बहुत कठिन कार्य है तो गणों के माध्यम से वे आपकी बायीं ओर हम क्या करें? हम हतप्रभ अवस्था में की देखभाल करती हैं। परन्तु दाईं ओर होते हैं । ऐसी स्थिति में जब आपको कोई को भी-जो लोग आक्रामक हैं - देवी मार्ग नज़र नहीं आता और गणपति के अपनी शक्तियों से उन्हें भी ठीक करती স प्रभाव पर जब आप काबू नहीं कर पाते हैं। ताकि आप सामान्य अवस्था में वापस तो आपको चाहिए कि आप ध्यान में चले आ जाएं, विनम्र हो जाएं और यह समझ जाएं। गणों को काबू करने का एकमात्र सकें कि आप देवी (श्रीमाताजी) के बालक हैं और आपको बाल सुलभ आचरण करना रास्ता ध्यान धारणा है। बच्चों का पालन पोषण तथा है। वातावरण सर्वप्रथम है। ये दोनों कार्य बहुत महत्वपूर्ण हैं। इनसे आप गणों के दाईं ओर की सभी प्रकार की जटिलताएं साथ ठीक से चल सकेंगे। लेकिन समस्या वैसे ही खड़ी हो जाएंगी जैसे दाईं ओर यह है कि मानव व्यर्थ की चीज़ों में खो की होती हैं। आजकल दांई ओर की परन्तु यदि आप अति में जाएंगे तो मार्च-अप्रैल 2003 17 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 समस्याएं बहुत ही आम बात है और मैंने नहीं मान लिया जाना चाहिए। देखा है कि लोग इन पर काबू नहीं पा सकते। इनके कारण बाद में अल्जाइमर ध्यान करें। ध्यान बहुत महत्वपूर्ण है, ध्यान (Alzhiemer) जैसे रोग हो जाते हैं । इसकी शुरुआत जिगर से होती है। का प्रश्न ही नहीं होता, इसका प्रश्न ही जिगर मुख्य बिन्दु है क्योंकि हम जिगर नहीं है। ध्यान धारणा बहुत महत्वपूर्ण है, के जाल में फॅस जाते हैं। आप यदि बहुत ध्यान किया ही जाना चाहिए क्योंकि इसी अधिक सोचते हैं, बहुत अधिक भविष्यवादी के माध्यम से ही आप चैतन्य लहरियों के हैं, आप यदि आक्रामक हैं तो जिगर समीप पहुँचते हैं या मैं कहूंगी, देवी के बिगड़ जाता है क्योंकि इन सभी कार्यों स्वभाव के समीप पहुँचते हैं। पशु भी माँ के लिए आपको ज़िगर की शक्ति का के प्रति बहुत संवेदनशील हैं, चैतन्य उपयोग करना पड़ता है। जिगर की शक्ति लहरियों के प्रति अत्यन्त संवेदनशील हैं। समाप्त होने पर आप ज़िगर-शक्ति विहीन पशु तो चैतन्य लहरियों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं और आपमें ऐसे भयानक रोग हैं परन्तु मानव की अपनी ही सूझ-बूझ और कष्ट पनप उठते हैं जिन पर आप है, अपनी ही स्वतंत्रता है, अपनी ही बुद्धि काबू नहीं पा सकते। ऐसा करना बहुत है और वे इसी के जाल में फंस जाते हैं ही कठिन होता है। निःसन्देह सहजयोग ध्यान धारणा करने चाहिएं। ध्यान करना आवश्यक है अवश्य धारणा के बिना स्वयं को ठीक रख पाने और ऐसे कार्य करते हैं जो उन्हें नहीं द्वारा बहुत से लोगों का ज़िगर ठीक हो गया है। ठीक होकर उनके ज़िगर अब जिस चीज़ की आवश्यकता है, वह हैं, बहुत ही अच्छा कार्य कर रहे हैं। परन्तु श्रद्धा और भक्ति। वहां पर इन दोनों व्यक्ति को विनम्र होकर अपने ज़िगर को चीजों का अभाव है। भारतीय सहजयोग ठीक रखने का प्रयत्न करना चाहिए तो को अपनाते हैं और इसकी गहनता में ये गण आपके शरीर के अन्दर बाईं ओर उतर जाते हैं क्योंकि वो जानते हैं कि को सुरक्षा की संरचना करते हैं जिसकी भक्ति क्या है, श्रद्धा क्या है । उनके अहं प्रतिक्रिया स्वरूप दाईं ओर को भी सुरक्षा आदि दुर्गुण समाप्त हो जाते हैं। परन्तु मिलती है परन्तु देवी का आशीर्वाद इस भक्ति का आनन्द लिया जाना चाहिए। महानतम चीज़ है, जिस प्रकार से वे मैं नहीं जानती कि किस प्रकार व्यक्ति आपकी देखभाल करती हैं, जिस प्रकार के अन्दर भक्ति का सृजन किया जाए। वे आपको प्रेम करती हैं, आपकी चिन्ता ये बात मैं नहीं कह सकती। परन्तु भक्ति करती हैं। इन सब आशीर्वादों को अधिकार में डूबे हुए लोग मैंने देखे हैं । भक्ति अतः अमेरिका जैसे देश के लिए मार्च-अप्रैल 2003 18 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 यद्यपि भावनापक्ष है फिर भी उन लोगों उन्हें पढ़े, उन्हें समझें तो आप हैरान होंगे ने महान बुलंदियाँ प्राप्त कर ली हैं। भक्ति कि किस प्रकार बिना किसी सहायता के, भाव में बहकर भी मैं नहीं जानती कि बिना किसी पथ प्रदर्शन के इतनी गहनता किस प्रकार भक्ति और श्रद्धा ने उनकी में जाकर देवी की पूजा कर पाएँ। सहायता की। इस मामले में भारतीय सर्वोत्तम हैं क्योंकि उनमें भक्ति और श्रअद्धा पूजा केवल पढ़ना या मंत्रोच्चारण मात्र नहीं है। यह तो आपके चित्त की की शक्ति है। ये पागलपन नहीं है, यहाँ गहनता है। मेरे विचार से यह आत्मा है। के लोगों की तरह से पागलपन नहीं है। आपके अन्दर यदि आत्मा जागृत हो जाए यहाँ मैंने लोगों को देखा है कि किसी न तो भक्ति पनपती है और सभी मूर्खतापूर्ण किसी धर्मान्धता में फंसकर वे पगला जाते विचारों को, उन सभी चीज़ों को जो हैं। ये पागलपन नहीं है। भक्ति तो प्रेम है आपके मस्तिष्क में घुस गई है, निकाल और प्रेम सूझ-बूझ प्रदान करता है और फेंकती हैं। केवल भक्ति विकसित करें । समझता है कि भक्ति और श्रद्धा क्या है। देवी के ये सभी गुण जो बताए गए हैं, ये अपने अन्दर भक्ति और श्रद्धा विकसित भावना पक्ष के हैं। ये सब स्मृति में हैं। किए बिना आप उन्नत नहीं हो सकते। 'स्मृति रूपेण संस्थिता'। जिन अन्य चीजों अपनी समस्याओं से छुटकारा नहीं पा का वर्णन किया गया है वे मस्तिष्क की सकते। अपने व्यक्तित्व से ऊपर नहीं उठ हैं। जब यहां भक्ति पनपती है तो इन सकते क्योंकि भक्ति को किसी पर थोपा सभी चीज़ों के प्रभाव को समाप्त करती नहीं जा सकता। किसी को पागल बनाकर है मस्तिष्क की सभी समस्याएं आप कह सकते हैं कि वो भक्ति कर निष्प्रभावित हो जाती है और आप सकता है। आपको अपने सारे गुण बनाए विवेकशील व्यक्ति बन जाते हैं । रखने होंगे, आपको विवेकशील होना होगा, आपमें होनी चाहिए, सभी गुण आशीर्वाद है इसे आप चेतना' भी कह अतः विवेक देवी का सबसे बड़ा सूझ बूझ आपमें होने चाहिएं परन्तु भक्ति का आनन्द सकते हैं, कुछ भी कह सकते हैं। ये एक भी आपमें होना चाहिए। भक्ति का ये ऐसा विवेक है जिसे प्राप्त करके आप आनन्द जब आपमें प्रवाहित होने लगता पूर्णतः दिव्य व्यक्तित्व बन जाते हैं। भक्ति है तो देवी स्वयं आपके रोम-रोम में प्रवेश के माध्यम से आपने यह विवेक प्राप्त कर जाती हैं। भारत में मैंने बहुत से करना है। परन्तु हमारे यहां भिन्न प्रकार भक्तों और सन्तों को देखा है, उन सन्तों के लोग हैं। कुछ तो अत्यन्त श्रद्धा, भक्ति को जिन्होनें बहुत बुलंदिया प्राप्त की हैं। और समर्पण से परिपूर्ण हैं परन्तु वे भटके वो लोग बहुत गहन उतर गए । आप यदि हुए हैं, यह नहीं जानते कि कहां जाएं मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 19 और किस की पूजा करें। सहजयो ग वास्तवीकरण है, आपको पागल नहीं बनना विवेकशील साक्षात्कार है। ये वास्तवीकरण है जिससे पुरुष बनें। जिस प्रकार से बीते युगों में आप जान जाते हैं कि किसकी पूजा बहुत से विवेकशील पुरुष हुए जिस प्रकार करनी है, किसके प्रति समर्पित होना है। से उन्होनें ज्ञान की चर्चा की. वह ये अन्धविश्वास नहीं है विवेकहीन भक्ति आश्चर्यचकित कर देने वाला है। जिस आपको सभी प्रकार की मूर्खताओं में फंसा प्रकार उन्होंने मानवीय चेतना और आपके सकती है। इसी के कारण बहुत से पथ उत्थान के विषय में बताया वह प्रशंसनीय तथा अन्य कुरीतियां पनपी हैं। अन्ध भक्ति था। कई बार मुझे लगता है कि उन्होनें न तो कुछ देखती है, न जानती है, न मेरे लिए क्षेत्र तैयार कर दिया समझती है। विवेक द्वारा, अपनी पूर्ण चेतना ऐसा क्षेत्र जिसके विषय में मुझे बताना द्वारा यह समझना चाहिए कि भक्ति का है। भारत में विशेषरूप से, मैं नहीं जानती, जीवन क्या है। कुण्डलिनी जागृति प्राप्त हम इतने श्रद्धामय क्यों हैं? करके हम भक्ति को समझने की, भक्ति की शक्ति जानने की महान बुलंदी पर होना चाहिए। भारत में भी पागल लोग पहुँच गए हैं। भक्ति की सबसे बड़ी शक्ति हैं, वहां पर भिन्न पंथ हैं। सभी प्रकार आपकी सुरक्षा है। यह आपकी रक्षा करती की चीज़ें हैं इसमें कोई संदेह नहीं । परन्तु है। जो लोग किसी कष्ट से, किसी समस्या वास्तव में वहां ऐसे सन्त भी हैं जिन्होंने से पीड़ित हैं वो एक-दम से पीड़ा मुक्त भलीभांति हमारा पथ प्रदर्शन किया। परन्तु हो जाते हैं क्योंकि आपके अन्दर की इस सबके बावजूद भी वहां पर लोग भक्ति आपको उचित सूझ-बूझ, स्वयं को, भटक रहे हैं। गलत-गलत कार्य कर रहे अपने वातावरण को और पूरे ब्रह्माण्ड को हैं। गलत तरह की पूजा कर रहे हैं। हाँ, समझने की शक्ति प्रदान करती है। लोग यह बात सत्य है, इसमें कोई संदेह नहीं इस प्रकार से क्यों आचरण करते है, वे है। परन्तु मैं कहूँगी कि यह भी एक ऐसे क्यों है, इन सभी प्रश्नों के उत्तर विचित्र प्रकार का पागलपन है जिसमें भक्ति के माध्यम से प्राप्त किए जा सकते विवेक का पूर्ण अभाव है। पागल और हैं। यह चेतना विहीन नहीं होनी चाहिए । सयाने व्यक्ति में अन्तर केवल इतना होता भक्ति विवेक से परिपूर्ण होनी चाहिए है कि पागल में विवेक नहीं होता। जिनमें और ऐसी भक्ति, मेरे विचार से सहजयोग यह तथाकथित विवेक होता है वो कहते के माध्यम से ही संभव है। अन्यथा जिस हैं कि हम बहुत विवेकशील हैं । ऐसे प्रकार पागलों की तरह से लोग भक्ति लोग भी बुरी तरह से गलतफहमी में हैं करते हैं यह भक्ति नहीं हो सकती। एक इसी प्रकार से सर्वत्र ऐसा ही घटित मार्च-अप्रैल 2003 20 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 क्योंकि जिस प्रकार से वे व्यवहार करते करती है और इसी के कारण आप इतने हैं, जिस प्रकार से वे गलतियां करते हैं, सारे चमत्कार घटित होते देखते हैं। आप जैसा उनका चित्त है, सभी कुछ अत्यन्त हैरान होते हैं कि ये सब किस तरह से आश्चर्यचकित कर देने वाला है। सर्वप्रथम घटित हो रहा है। 'इसकी तो हमने कभी आत्मनिरीक्षण द्वारा देखना है कि 'क्या आशा ही नहीं की थी, यह कैसे हो मैं विवेकशील हूँ? क्या मैं विवेकशील हूँ? गया? किस प्रकार यह कार्यान्वित हुआ? मैं विवेकपूर्ण कार्य कर रहा हूँ या नहीं? देवी आपमें त्रृटि सुधार भी करती है। सहजयोगियों के विषय में मुझे बहुत आप यदि चेतन हैं तो आप देखते हैं कि सी शिकायतें आती हैं। किस प्रकार वो वे आपको सुधारती हैं और बताती हैं कि ऐसे कार्य कर रहे हैं? मैं कहूँगी कि वो इस मार्ग पर मत चलो। अभी तक भक्ति और श्रद्धा की स्थिति में नहीं पहुँचे हैं। मैं ये भी कहूँगी कि पाश्चात्य रहे हैं या भावनाओं में बह रहे हैं। सभी जीवन में भी इन दोनों गुणों का अभाव क्षेत्रों में वे आपको सुधारती हैं। हम है। हमें वापस लौटना चाहिए, विकसित बीमारियों तथा अन्य प्रकार की समस्याओं होना चाहिए, उन्नत होना चाहिए। परन्तु में फंस जाते हैं, इसका कारण यह है कि अब तो पूर्वी देशों के जीवन में भी यह हममें भक्ति नहीं है। भक्ति में आपके दोनों चीजें समाप्त होती जा रही हैं। पास 'माँ कि शक्ति होती है। शक्ति का जीवन की पाश्चात्य शैली अब उनका विवेक होता है। वे (देवी) आपकी देखभाल आदर्श बन गई है एक बार जब आप करती हैं। वे आपके लिए मार्ग खोजती हैं पाश्चात्य जीवन को अपना लेते हैं तो और आपकी सहायता करती हैं। अपने " वे बताती हैं कि आप अहं में फंस श्रद्धा और भक्ति पीछे छूट जाती है क्योंकि ही विचारों में यदि आप उलझे रहते हैं वहां पर हर चीज़ को विचारों के तराजू कि मैं ठीक हूँ, मैं ऐसा कर सकता हूँ, मैं में तोला जाता है कि जीवन में क्या वैसा कर सकता हूँ तो अन्ततः आपको लाभदायक है और क्या सहायक। उनके महसूस होगा कि आप गलत हैं और दृष्टिकोण से श्रद्धा और भक्ति का कोई आपके मस्तिष्क में आपके तथा परमात्मा लाभ नहीं । इनसे कोई हित नहीं होता अधिकतर लोग आजकल ऐसा ही सोचते हैं। आप कुछ थोड़े से ही लोग हैं जिन्होंने शब्द का अर्थ है समर्पण। परन्तु मोहम्मद समझा है कि भक्ति क्या है, श्रद्धा क्या है। देवी आपको श्रद्धा एवम् भक्ति प्रदान है । परन्तु आपने देखा है कि । के विषय में बहुत बड़ी गलतफहमी थी। अतः समर्पण महत्वपूर्ण है इस्लाम साहब ने कहा था कि समर्पण से पूर्ण आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेना आवश्यक मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 21 आत्मसाक्षात्कार के बाद भी, स्थापित होने मुझे बताया गया कि एक सहजयोगी अगुवा के बाद भी लोगों को स्थापित होने में (Leader) की हत्या कर दी गई। मैंने समय लगता है एक बार स्थापित होने कहा ऐसा संभव नहीं है, और उस व्यक्ति के पश्चात् आप समझ जाते हैं कि आप की हत्या नहीं हुई थी। यह बात संभव देवी की सुरक्षा में हैं। इस बात को आप नहीं है, इस प्रकार से किसी युवा व्यक्ति प्रतिदिन देखते हैं कि किस प्रकार आपकी (सहजयोगी) की हत्या होना संभव नहीं सहायता की जाती है। बहुत से लोग ऐसे है। हैं जो सहजयोग में हैं, मेरा बहुत सम्मान करते हैं, फिर भी वे पूरी तरह से समर्पित मृत्यु होती है। परन्तु यह कहना कि नहीं हैं। तब उन्हें कष्ट होता है, कई उसकी हत्या कर दी गई, ठीक नहीं है। प्रकार की समस्याएँ उन्हें होती हैं और वो पूछते हैं, 'श्रीमाता जी, मुझे ये समस्याएं शारीरिक, मानसिक एवम् भावनात्मक क्यों हैं? मैं उन्हें कुछ नहीं बताती क्योंकि परन्तु आध्यात्मिक सुर मानव को आप कुछ बता नहीं सकते वे सुरक्षा जिसमें आप कोई गलत कार्य ही अत्यन्त आक्रामक हैं परन्तु वास्तविकता नहीं करते। आप किसी की हत्या नहीं यही है कि आप परमात्मा से एक रूप करते, किसी को कष्ट नहीं देते, किसी नहीं है। यदि आप परमात्मा से एकरूप के प्रति कटु नहीं होते। यह एक ऐसी हों तो सदैव आप पर दैवी प्रेम और स्थिति है जिसमें आप सभी प्रवेश कर करुणा की वर्षा होती रहती है और आपके सकते हैं क्योंकि आप सहजयोगी हैं। यह सभी काम अत्यन्त अच्छी तरह से और स्थिति आप प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा बिना किसी बाधा के सम्पन्न होते हैं। करने की शक्ति आपमें है क्योंकि आपमें लोग चाहे इस बात को न समझे-सम्भवतः इतनी श्रद्धा है, सूझ-बूझ है जिसके कारण यही कारण है कि उन्होंने ईसामसीह को आप सुरक्षा, उत्थान एवम् विवेक की एक सूली पर चढ़ा दिया। सभी प्रकार के विशेष स्थिति में पहुँच गए है। उल्टे सीधे कार्य उन्होंने किए ठीक है। परन्तु अब आपको चाहिए कि देवी से विवेक को परखना आवश्यक है। 'मैं यदि सुरक्षा की याचना करें क्योंकि सभी प्रकार इस कार्य को इस प्रकार से कर रहा हूँ की समस्याओं, कष्टों तथा सभी प्रकार तो क्या यह ठीक है? क्यों मैं ऐसा कर की संभव मूर्खताओं से आपकी सुरक्षा रहा हूँ? सर्वप्रथम अपने विवेक को परखें, करना ही देवी का महानतम् गुण है। बहुत सी चीजें घटित हो जाती हैं। से कार्य जो आप करते हैं वो गलत थे निःसन्देह, वृद्ध सहजयोगियों की भी - न तो यह सुरक्षा है के वल क्षा भी- आध्यात्मिक सर्वप्रथम अपने विवेक को जाँचें। ऐसा करने से आप जान जाएंगे कि बहुत मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 22 और जिन्हें किया नहीं जाना चाहिए था । जिसकी कभी आशा भी नहीं की जा परन्तु सर्वप्रथम आपका विवेक उन्नत होना सकती। अतः व्यक्ति को स्वयं को जाँचने आवश्यक है। आपको इस बात का ध्यान में अत्यन्त सावधान हो जाना चाहिए । रखना चाहिए कि आपका विवेक कार्य इसी क्रिया को मैं अन्तर्अवलोकन कहती करता है और आपकी मदद करता है। हूँ। भिन्न लोगों से व्यवहार करते हुए मैंने कल का नाटक देखा। आपने क्या आप विवेकशील थे? आपकी शैली भी इस लड़की को देखा होगा वह अति क्या थी? क्या इसमें धनलोलुपता है या संवेदनशील है और सदैव विवेकपूर्वक प्रभुता लोलुपता? अन्तर्अवलोकन द्वारा देखती है कि उचित क्या है। आप यदि आपको इन चीजों का पता लगाना है यह बात नहीं जान सकते कि अच्छा क्या और तब हैरान होगें, अत्यन्त हैरान होगें है, बुरा क्या है तो इसका अर्थ यह है कि कि परमात्मा के नाम पर भी आप गलत कार्य कर सकते हैं। परमात्मा क नाम पर आपमें विवेक का अभाव है। आप यदि यह नहीं समझते कि आपको क्या कहना आप बहुत से गलत कार्य करते चले गए चाहिए और क्या नहीं तो भी विवेक की और यही कारण है कि आज हमारे सम्मुख कमी है। परन्तु आपमें यदि विवेक है तो धर्म के नाम पर इतनी दुर्व्यवस्था है। धर्म एकदम से आप समझ जाएंगे कि गलत में तथा धर्म के विषय में बताने वाले संतों क्या है। इसके अतिरिक्त सभी प्रकार की में कोई कमी न थी। परन्तु जिस प्रकार समस्याओं से आप बचा लिए जाते हैं। से लोगों ने धर्म को समझा और इसका यह बात सत्य है। मैंने ऐसे बहुत से लोगों उपयोग किया वह गलत था क्योंकि उन को देखा है जिनकी रक्षा की गई, न लोगों में विवेक का अभाव था। विवेक केवल मृत्यु से परन्तु सभी प्रकार की एक ऐसा गुण है जो यह समझ लेना मात्र भयानक विपत्तियों से भी सभी प्रकार नहीं होता कि मैं विवेकशील हूँ। विवेक की विपत्तियों से । मैं हैरान थी कि किस तो अपना प्रभाव दिखाता है, कार्यान्वित प्रकार परमात्मा ने इन सहजयोगियों की करता है और दर्शाता है कि ठीक क्या है और गलत क्या है। सहायता की! परमात्मा एक शक्ति है जो सर्वव्यापी है। परन्तु यह शक्ति केवल उन्हीं की जो वास्तव में उच्चस्तर का आत्म सहायता करेगी जो सहजयोगी हैं, जो साक्षात्कारी है। आपमें यदि विवेक नहीं दिव्य हैं। ये उनकी सहायता नहीं करेंगी है तो जो चाहे आप करते रहें और अपने जो ऐसे हैं कभी नहीं । 'इसके विपरीत कार्य से जितने चाहे संतुष्ट हो जाए यह ऐसे ढंग से दंडित भी कर सकती विवेक उस व्यक्ति की निशानी है है परन्तु विवेक का अंश अत्यन्त-अत्यन्त का मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 23 उसे केवल एक ही चीज़ की चिन्ता मार्गदर्शक गुण है, और जैसा आप जानते होती है-'क्या मैं विवेकशील हूँ?' परमात्मा है, श्री गणेश विवेक प्रदायक है इसलिए के आशीष का यह प्रथम चिन्ह है। जिस श्री गणेश की पूजा होनी आवश्यक है। पर परमात्मा की कृपा होती है वह व्यक्ति उचित प्रकार के पालन पोषण से विवेकशील होता है, अत्यन्त विवेकशील श्री गणेश स्थापित होते हैं क्योंकि वे और उसकी शांति से उसका विवेक विवेक दाता होने के अतिरिक्त कुछ भी झलकता है और परमेश्वरी शक्ति अपने नहीं। विवेक अन्त्तजात है, इसका आंकलन माध्यम के रूप में उस व्यक्त का उपयोग आपको नहीं करना पड़ता। हमारे अन्दर करती है और महान कार्य करती है। यह अन्न्तजात है, और अन्य गुणों की व्यक्ति स्वयं हैरान होगा है कि यह सब तरह से उन्नत भी है। कुछ लोगों में किस प्रकार घटित हुआ। महिला में भी विवेक उन्नत होने में समय लगता है यह गुण हो सकता है, पुरुष में भी हो निःसन्देह इसमें समय लगता है, परन्तु सकता है, किसी में भी यह विवेक, यह है महत्वपूर्ण है। हमारे अन्दर यह अत्यन्त एक बार जब यह उन्नत हो जाता है तो गहनता, यह स्वभाव, उन्नत हो सकता व्यक्ति अत्यन्त सहज एवम् पूर्णतः सत्य और यह अत्यन्त सुन्दर एवं अत्यन्त मार्गी बन जाता है, उसे इसका ज्ञान शक्ति-प्रदायक है। होता है और यही गुण व्यक्ति ने विकसित करना होता है कि 'मैं कहाँ तक विवेकशील देता, किसी को अभिशप्त करने का कष्ट ऐसा व्यक्ति किसी को श्राप नहीं नहीं करता फिर भी सभी कुछ कार्यान्वित हूँ?" इस विश्व में लोग एक चीज का होता है किसी से वह नाराज नहीं होता विरोध कर रहे हैं दूसरी चीज़ का विरोध फिर भी सभी कार्य होते हैं। किसी पर कर रहे है, सभी प्रकार के उल्टे -सीधे भी वह नाराज नहीं होता, बिल्कुल भी कार्य कर रहे हैं। परन्तु आपमें यदि विवेक नहीं। क्रोध तो आप ही को हानि पहुँचाता है तो इस प्रकार का कोई कार्य करने की है, ऐसी हानि जिसकी आपने कभी आशा आपको आवश्यकता नहीं है। स्वतः ही भी नहीं की होती। मानव रूप में व्यक्ति समझ जाता है कि वह विवेकशील विवेकशील बन जाने की शक्ति हममें है। युग-युगान्तरों से विवेकशील पुरुष निहित है । यह हमारे अन्दर निहित है। की प्रशंसा होती आई । ऐसे व्यक्ति को न तो अपनी धन सम्बन्धी अवस्था की और लहरियों के प्रति संवेदनशील होते न ही कोई भावात्मक पक्ष की चिन्ता हैं-अत्यन्त संवेदनशील। क्योंकि उनका होती है - कुछ नहीं। मैंने देखा है कि पशु भी चैतन्य विवेक अखण्ड होता है और उनमें कार्य मार्च-अप्रैल 2003 24 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 करता है, यद्यपि वे इसके प्रति चेतन नहीं गलत कार्य करते ही नहीं, गलत कार्य होते। पशु और मानव में अन्तर यह होताकरते ही नहीं । सदैव वे उचित मार्ग पर है कि मानव अपने विवेक के प्रति चेतन होते हैं। मैं सोचती हूँ कि सहजयोगी का होता है। केवल इतना ही अन्तर है। यही चिन्ह है और यह देवी का आशीर्वाद पशुओं में विवेक होता है परन्तु स्वचालित है। देवी की शक्ति यदि आपमें कार्य कर या ये कहें कि स्वाभाविक । परन्तु हमने रही है तो इसे कार्यान्वित करने के लिए अपने अन्दर इस विवेक को विकसित आपको विवेक प्राप्त हो जाएगा। आपने किया है, प्रयत्न से इसे प्राप्त किया है। देखा होगा कि बहुत से लोग अमेरिका किस माध्यम से? अपनी ध्यान धारणा के आ रहे थे और सभी प्रकार के कार्य कर माध्यम से, सूझ-बूझ, भक्ति और श्रद्धा रहे थे। अब वे सब गायब हो गए हैं। उन्हें किसी भी प्रकार का आश्रय नहीं के माध्यम से। अतः अपने अन्दर भक्ति के मूल्य मिलता। कहाँ चले गए हैं? वे सब समाप्त को समझना अत्यन्त आवश्यक है। सतही हो गये हैं क्योंकि वे तो धन तथा सत्ता तौर पर आप इसे नहीं छू सकते। जो लोलुप थे मैं नहीं जानती कि उनकी लोग उथले हैं कभी इसे प्राप्त न कर क्या लालसा थी परन्तु वे सब असफल सकेंगे। किसी भी व्यक्ति को आप हो गए हैं जो व्यक्ति अपने विवेक में विवेकशील पा सकते है चाहे वह आपका स्थापित है वही सन्त है, उसी को सन्त नौकर हो या बहन, चालक हो या कोई कहा जाता है। परन्तु सभी सहजयोगी भी हों, और हैरान होते हैं कि किस सन्त हो सकते हैं, विवेकशील हो सकते प्रकार यह व्यक्ति इतना विवेकशील हो हैं। कोई भी सहजयोगी ऐसा हो सकता सकता है! हो सकता है अपने पूर्व जन्म है। परन्तु यदि आपने अपना विवेक खो में उसने अपने अन्दर यह विवेक विकरसित दिया तो आप बेकार हैं। मुझे आपको यह बात बतानी है कि किया हो या गहनता में जाकर इसे प्राप्त किया हो। यह अवस्था किसी व्यक्ति आपका विवेक ही आपकी रक्षा करेगा। विशेष की नहीं है, यह अवस्था बहुत से अनजाने में आपकी सहायता करेगा। एक लोगों को भी प्राप्त हो सकती है । अतः सहजयोगी वही है जिसने रहा था । जाते-जाते अचानक उसने दूसरी सहजयोगी एक बार कार में कहीं जा विवेक प्राप्त कर लिया है। आप यह क्यों सड़क पर जाने का निर्णय कर लिया। कर रहे है? ऐसा करने की क्या हुआ ऐसा कि उस सड़क पर बहुत बड़ी आवश्यकता है? उन्हें यह सब पूछने की दुर्घटना हो गई। यदि उसने सड़क न कोई आवश्यकता नहीं। वो तो बस कोई बदली होती तो वह भी उस दुर्घटना में পाu मार्च-अप्रैल 2003 25 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 मारा जाता। इस प्रकार की बहुत सी देखीं कि लोग राक्षसी गुरुओं के पीछे घटनाएं लोगों ने मुझे सुनाई हैं कि, "श्री दौड़ रहे हैं। इसके बाद मैं वहां कभी गई माता जी, किस प्रकार हमारी रक्षा की ही नहीं । नौ वर्षों बाद मैं वहां गई। जैसा गई, किस प्रकार मौत के मुँह तक पहुँच मैंने बताया ये लोग पागल हैं किस प्रकार कर हम जीवित हैं!" आप जिंदा इसलिए ये भयानक गुरुओं का अनुसरण करते हैं हैं क्योंकि आपकी परमात्मा को आवश्यकता और किस प्रकार ये इनका विश्वास करते है। परमात्मा नहीं चाहते कि आपकी मृत्यु हैं! उनमें समझने का विवेक नहीं है कि हो जाए या आप समाप्त हो जाएं। उन्हें सत्य क्या है। यह बात अब कार्यान्वित आपकी बहुत जरूरत है। उन्हें अपना हो सकती है। अब आप देख सकते हैं कार्य करना है और आप ही उनके माध कि ऐसे (विवेकशील) लोग बहुत से हैं । यम हैं। आपमें यदि विवेक है तो परमेश्वरी कार्य को कार्यान्वित करने के लिए आप को लोगों में यह विवेक आ जाएगा तो ही सर्वोत्तम माध्यम हैं। देवी की शक्तियाँ सर्वप्रथम उनके नहीं इसमें उन्नत भी होगें परन्तु यह शरीर में विद्यमान थीं इन्हीं शक्तियों से उन्होनें असंख्य राक्षसों और असुरों का क्या करने वाले है? इससे हमें क्या प्राप्त वध किया वास्तव में देवी ने असुरों का होगा? हमारा लक्ष्य क्या है?" यह सभी वध किया परन्तु अब ऐसा करने की कोई चीजें उनके सम्मुख आनी चाहिएं. परन्तु आवश्यकता नहीं है क्योंकि आप सब प्रायः ऐसा नहीं होता। आप अवश्य उनसे लोग अब यहाँ हैं। आप सभी माध्यम हैं बातचीत करें और उन्हें बताएं कि आपके और अब यह इस प्रकार से कार्यान्वित अन्दर आत्मा विद्यमान है। आपको आत्मा होगा कि जो लोग आप को नष्ट करने बनना है सभी अवतरणों ने यही बात का प्रयत्न कर रहे हैं, विवेकशील लोगों कही है। तो क्यों न यही किया जाए, तो यह विवेक है और यदि अमेरिका वह सहजयोग में आएंगे। केवल आएंगे ही देखने का विवेक आवश्यक है कि, "हम को समाप्त करने का प्रयत्न कर रहे हैं, वे क्यों न आत्मा बन जाया जाए। सब समाप्त हो जाएगें। ऐसे लोग नष्ट हो जाएगें और यह कार्य कोई बाह्य माध्यम करेंगे कि 'हाँ, यह सच है। कहा गया है या व्यक्ति नहीं करेगा अब विवेक इस कि आत्मा बनो । वो चर्च जाते हैं, मंदिर कार्य को करेगा। विवेक सबसे बड़ा यन्त्र जाते हैं, यहां जाते हैं, वहां जाते हैं है जो इसे कार्यान्वित करेगा। क्या आप लेकिन यह नहीं समझते कि वे कर क्या जानते है कि मैं जब पहली बार अमेरिका रहे हैं, उन्हें किसी प्रकार की सुरक्षा की गई थी तो वहां इतनी भयानक चीजें आवश्यकता होती है उसे प्राप्त करने के तब वे स्वयं इस बात को महसूस मार्च-अप्रैल 2003 26 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 लिए वे जाते हैं। परन्तु यह सुरक्षा तो करती है। भारत में ऐसे बहुत से लोग उन्हें उनकी आध्यात्मिक स्थिति से प्राप्त हुए जिन्होनें बहुत भक्ति की और उनमें तथाकथित श्रद्धा भी बहुत थी। परन्तु वे होती है। जहां तक आत्मा का सबंध है आप की स्थिति क्या है (आप कहां खड़े विवेकशील नहीं थे, विवेक की वो बातें है) जिन्होंने आत्मा का आनन्द लिया है तो करते थे, सभी प्रकार की बातें करते वो कभी भी धर्म - पथ से डांवा डोल नहीं थे परन्तु वास्तव में विवेकशील न थे। होते परन्तु जिन्होनें यह आनन्द नहीं अतः विवेक तो एक अत्यन्त अन्तर्जात- लिया वो चाहे अपने आप को सहजयोगी अत्यन्त अन्तर्जात गुण है, यह सतही कहते रहें, कुछ भी कहते रहें, परन्तु वे (दिखावा मात्र) ही नहीं है। इससे प्रकट गलत हो सकते हैं। आप यदि वास्तव में होता है कि शक्ति की तरह से-यह सहजयोगी हैं तो सर्वप्रथम आपको अपने सूझ-बूझ की शक्ति है जिसे देवी की विषय में जानना है। आप यदि इस शक्ति शक्ति बल प्रदान करती है। अतः वह के माध्यम बनना चाहते हैं तो आपको विवेक की दाता हैं। देवी का यह सबसे भक्ति एवं श्रद्धा से परिपूर्ण होना होगा । बड़ा गुण है कि वे विवेक की दाता हैं । यह भक्ति और श्रद्धा अत्यन्त उत्थान प्रक्रिया के एक भाग के रूप में आनन्ददायनी है, इस बात को मैं जानती ही विवेक आता है। अब तक का जितना हूँ। यह कभी आपको थकाती नहीं, कभी भी विकास हुआ है वह देवी द्वारा ही आपको कष्ट नहीं देती। यह अत्यन्त पोषण लाया गया है ताकि आप आगे बढ़ सकें। वे आपको अत्यन्त विवेकशील व्यक्ति बना देंगी। प्रदायनी एवं सुन्दर है। परन्तु इसका उचित स्थान पर होना इसका उचित लक्ष्य एवं उचित सूझ-बूझ होना आवश्यक है। ऐसा करने के लिए आपके पास विवेक का बैठा हुआ साधु भी यदि सच्चा सन्त है होना जरूरी है। अतः यह देखने का तो उसका भी सम्मान होता है। परन्तु प्रयत्न करें कि आपमें अपेक्षित विवेक है वह यदि मूर्ख है तो मैं कुछ नहीं कर या नहीं। आप विवेकशील हैं या नहीं? सकती। वो आपको बेवकूफ बना सकता हर व्यक्ति के लिए ये जान पाना कठिन है, सभी प्रकार की चालाकियाँ आपसे होता है कि वह गलत है या ठीक क्योंकि कर सकता है परन्तु क्या वह आपका विवेक का प्रभाव तो चहूँ ओर दिखाई हित भी कर सकता है? नहीं, कुछ भी देता है अतः देवी के प्रति श्रद्धा और भक्त निश्चित रूप से आपको विवेक प्रदान मानते हैं या जिसके पथ प्रदर्शन में आप दूर दराज किसी गांव के कोने में नहीं। अतः जिस भी व्यक्ति को आप गुरु मार्च-अप्रैल 2003 27 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 चलते हैं उसमें भक्ति होनी आवश्यक है, है कि सहजयोग प्रचार आरम्भ करने से देवी की भक्ति। यह बात समझी जानी पहले कृपया स्वयं को जांच लें, देखें कि बहुत आवश्यक है। आधुनिक चीज़ें इस क्या आपमें विवेक है? यह भी देखें कि सीमा तक पहुँच गई हैं कि उनमें देवी के क्या आपको माँ (श्रीमाताजी) का आशीर्वाद प्रति बिल्कुल भी सम्मान नहीं है-बिल्कुल प्राप्त है? कहने से मेरा अभिप्राय ये है भी नहीं । लोग देवी की बात तक नहीं कि केवल विवेकशील व्यक्ति ही ये जान करते, केवल वो बातें करते हैं जिनकी सकते हैं कि उन्हें माँ का आशीर्वाद प्राप्त व्याख्या हो सकती है, जिन्हें समझा जा है या नहीं, इस बात को समझने के लिए सकता है। ईसा मसीह की बात करते हमारे पास बहुत से मार्ग हैं। सर्वप्रथम हुए भी वो देवी की बात नहीं करते! क्रूस चीज़ है ध्यान-धारणा और श्रीमाताजी पर चढ़े हुए भी ईसा मसीह ने कहा था के फोटोग्राफ के सम्मुख बैठकर अपनी सावधान-माँ' (आदिशक्ति) आने वाली चैतन्य लहरियों को महसूस करते हुए हैं।" ये कहने की उन्हें क्या आवश्यकता निष्पक्ष रूप से अपना सामना करना। थी? क्योंकि वो नहीं चाहते थे कि उनकी क्या आप आत्मसाक्षात्कारी हैं? क्या आप माँ कष्ट में फँसे । परन्तु उन्होनें कहा, वास्तव में अच्छे आत्म-साक्षात्कारी हैं? 'सावधान-माँ आने वाली हैं (Behold क्या आप वास्तव में अच्छे आत्म- The Mother) इसका अर्थ ये हुआ कि साक्षात्कारी है या नहीं। आप गहन हैं या माँ जो कि आने वाली हैं उनके लिए आप नहीं? क्या आपको चैतन्य लहरियोाँ आ यहाँ हैं। सभी ने इसकी ओर इशारा रही है या नहीं? यह सब यदि आप देख किया है और ऐसा कहा है। परन्तु अब पाएंगे तो आप जान जाएंगे कि सभी भी हम अपने अहं में, अपनी ही सूझ-बूझ महत्वकांक्षाओं से कहीं बड़ी उपलब्धि में व्यस्त हैं और उन भागते रहते हैं। सर्वप्रथम आपको सच्ची है केवल यही उपलब्धि आपको आनन्द चीज़ों का अनुसरण करना चाहिए. मिथ्या प्रदान करेगी, सभी सहजयोगियों को चीज़ों का नहीं। परन्तु इसके लिए आपको आनन्द प्रदान करेगी। इसके बिना तो विवेक की आवश्यकता होगी मेरे विचार आप भी अन्य भटकते हुए लोगों की से उसके लिए आपको बहुत अधिक विवेक तरह से एक सर्व- साधारण मानव हैं। चाहिए और चाहे आपके पास विवेक पहले अब यह सब घटित होने का समय आ आ जाए या माँ का आशीर्वाद, आप इन गया है मैं कहूँगी कि ये एक विशेष दोनों के मध्य में होते है। समर्पित एवं विवेकशील व्यक्ति बन जाना चीजों के पीछे समय है यद्यपि मेरे लिए एक बहुत बड़ा अतः मुझे आपको एक बात बतानी संघर्ष है इसमें कोई सन्देह नहीं परन्तु मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 28 कोई बात नहीं। मैं जानती हूँ कि मैंने के समूह बनाते चले जाते हैं जिन्हें इस स्वयं को ऐसी स्थितियों में डाल लिया है बात की बिल्कुल भी समझ नहीं होती जहाँ चीजें इतनी साधारण या सुगम नहीं कि सहजयोग क्या है। हैं। कोई बात नहीं, परन्तु मैं ये महसूस करती हूँ कि आप लोग मेरी सहायता व्यक्तित्व का व्यक्ति होता है। ये कहना कर सकते हैं। आपमें यदि विवेक हो तो मात्र काफी नहीं कि मैं सहजयोगी हूँ आप मेरे कार्य में सहायक हो सकते हैं। परन्तु एक अत्यन्त गहन व्यक्तित्व व्यक्ति विवेक स्वयं को परखने में है, कि आप और जिसके व्यक्तित्व की महनता अन्य कितने लोगों को प्रेम करते हैं, किस प्रकार लोग, उसके विवेक द्वारा समझें। आप उनसे प्रेम करते हैं, किस प्रकार उनसे कितना बोलते हैं, कितना चिल्लाते हैं, बातचीत करते हैं, उनसे क्या आशा करते कितना भाषण देते हैं इसका कोई महत्व हैं। ये सब हो जाना चाहिए। जाँचें अन्तर्अवलोकन करें, अन्त्अवलोकन और अन्य लोगों को प्रेम करने की क्षमता द्वारा आप ये सब देख सकते हैं। अतः ही महत्वपूर्ण है। केवल इन्हीं से ही लोग सहजयोगी के लिए आवश्यक है कि वह निर्णय कर पाते हैं कि वास्तव में आपको अन्तर्अवलोकन करे। सहजयोगी तो एक अत्यन्त गहन स्वयं को नहीं। आपकी आंतरिक शान्ति, स्थिरता श्रीमाताजी का आशीर्वाद प्राप्त है या दूसरी बात ध्यान धारणा है तथा नहीं। तो यह चीज़ अत्यन्त महत्वपूर्ण है। तीसरी चैतन्य लहरियाँ लेना। ये बहुत अमरीका में मैं इस देश की समस्याओं से महत्वपूर्ण हैं। मैं देखती हूँ कि कुछ लोग रक्षा करने के लिए आई हूँ क्योंकि ये देश कहते हैं, "श्रीमाताजी हम ऐसा नहीं करते, भयानक समस्याओं से घिर गया है और हम वैसा नहीं करते। परन्तु क्यों? आप ऐसा होना ही था क्योंकि यह बात समझने ऐसा क्यों नहीं करते? 'हम सहज कार्य के लिए इनकी आँखें बन्द थीं कि वहाँ करते हैं। सहज कार्य क्या है? यदि आप क्या गलत हो रहा है। यही अन्धता उन्हें इन मूल चीज़ों को ही नहीं करते तो उस बिन्दु तक ले आई है जहाँ वे अपने किस प्रकार से आप सहजयोगी हैं? और विनाशकारी अहं को देखने लगे हैं। धन फिर उन लोगों से भिन्न प्रकार की लोलुपता आदि ने ये दर्शाया है कि वो जटिलताएं खड़ी हो जाती हैं । वे भी इतने मूर्ख थे कि समझ बैठे कि वे अत्यन्त कष्ट उठाते हैं। मेरे विचार से व्यक्तित के वैभवशाली हैं और अपने धन से तथा पास यह समझने का विवेक होना चाहिए अन्य देशों तथा अन्य लोगों पर प्रभुत्व कि सहजयोग क्या है? लोग ये नहीं जमाकर कुछ भी कर सकते हैं। पहले समझते कि कभी-कभी तो वे ऐसे लोगों स्वयं पर नियंत्रण करें। सर्वप्रथम स्वयं चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 मार्च-अप्रैल 2003 29 को पहचाने। अन्य लोगों पर नियंत्रण सहजयोग को कार्यान्वित किया है और वे करने का क्या अर्थ है। जो लोग स्वयं पर बहुत अच्छे सहज एवं विवेकशील व्यक्ति नियंत्रण करना नहीं जानते वो सदैव दुखी हैं। मेरे लिए यह अत्यन्त आशावर्धक हैं| होते हैं, कष्टों से घिरे रहते हैं क्योंकि मैंने कभी आशा नहीं की थी कि मैं यह तो अनियंत्रित होने की प्रतिक्रिया है । इतनी अच्छी तरह से कार्यान्वित कर दूसरों पर यदि आप नियंत्रण करने का पाऊँगी, परन्तु ये कार्यान्वित हो गया है। प्रयत्न करते हैं तो इसकी प्रतिक्रिया होती सदैव आपको ये बात ध्यान रखनी है कि है इसके लिए पूर्णतः अन्तर्अवलोकन करना आपके अन्दर वो शक्ति है, आप उस होगा। इसीलिए मैं बार-बार कहती रहती शक्ति का उपयोग करें और मूर्खतापूर्ण कि अन्तर्अवलोकन करें। निःसन्देह मैं विचारों के शिकार न बनें ये भी कहूँगी कि अब बहुत अच्छे सहजयोगी उभर कर आए हैं, उन्होनें आप सबका अत्यन्त धन्यवाद। ल दिवाली पूजा लॉस एंजलिस, 03.11.2002 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन व जा न ुाम १ D১ दिवाली के पर्व पर आप सब को मेरी मंगलकामनाएं। आप सब लोगों की यहां उपस्थिति ही मेरे लिए अत्यन्त आनन्ददायी है। आपका सहजयोग अपना लेना मेरे लिए अत्यन्त सुन्दर अनुभव है। यह आपका अपना है। परन्तु आत्मा को अपना लेना कठिन है । मेरे विचार में योग की आपकी इच्छाएं पूर्ण हो रहीं है और इसी कारण से आपको आत्म साक्षात्कार आत्मा आपकी अपनी है। प्राप्त हुआ है। जैसा आप भली-भांति जानते हैं, आत्म-साक्षात्कार किसी पर लादा नहीं जा सकता। केवल आपकी इच्छा तथा समर्पण से ही यह कार्यान्वित होता है । इसके विषय में बातचीत करने का या किसी को इसका कायल करने का कोई लाभ नहीं । केवल आपकी इच्छा ही कार्यान्वित होती है, यह बात इतनी साधारण है आपके to मार्च अप्रैल 2003 31 चैतन्य लहरी खंड-xV अंक 3 व 4 एक अन्य कार्य जो आप कर सकते कार्यान्वित करती है। विश्व भर के बहुत हैं वो है अपने प्रकाश से अन्य लोगों को से लोग जिन्हें आत्म-साक्षात्कार प्राप्त है ज्योतिर्मय करना। जिस प्रकार हमने यहां वो यहां उपस्थित नहीं हैं, वो भी मुझे किया, हमने एक दीपक जलाया और याद हैं, आप सब भी उन्हें भुलाएं नहीं। उससे बाकी के सभी दीपक जला दिए। आप सभी यह कार्य कर सकते हैं हृदय के अन्दर की इच्छा शक्ति इसे उन सभी साक्षात्कारी लोगों के विषय में सोचने का आज बहुत अच्छा दिन है। क्योंकि आप सब में वह प्रकाश है। उस यही सच्ची दिवाली है-मानव को प्रबुद्ध प्रकाश से आप अन्य लोगों में ज्योति बनाना (आत्म-साक्षात्कार देना) । यह प्रज्जवलित कर सकते हैं जिससे वो भी किसी मोमबत्ती या दीपक का ज्योतित अपनी आत्मा के आनन्द को अनुभव कर करना नहीं है मानव को ज्योतित करना सकें। अब यही चीज़ देखनी है । आपने इतने सारे दीपक जलाए हैं। इसी प्रकार वे यदि ज्योतित हो जाएं तो कोई से आप भी पूरे विश्व के लिए दीपक सम भी समस्या बाकी न रह जाएगी। जो है। आपका अपना ज्योतिर्मय होना काफ़ी लोग आत्म-साक्षात्कारी नहीं होते उनसे नहीं है, आपने अन्य लोगों को भी प्रकाश समस्याएं आती हैं क्योंकि वो अंधकार में देना हैं इन्हीं दीपकों की तरह से आपने फंसे होते हैं, वो अंधेरे में टटोल रहे होते अन्य लोगों को भी प्रज्जवलित करना है। हैं और उनमें से कुछ को यह भी ज्ञान महसूस होता है कि आपने क्या प्राप्त कर नहीं होता कि वे वास्तविकता से अनभिज्ञ लिया है और तब आप अपना सम्मान करने लगते हैं और इस प्रकार आचरण है हैं। 1 एक बार जब आप सहजयोग में करते हैं जो सन्तों और पैगम्बरों को शोभा आते हैं तो ये दखने लगते हैं। आरंभ में देता है । उसके प्रकाश में आप देखने लगते हैं कि अच्छा क्या है और बुरा क्या है और फिर अत्यन्त सुन्दर स्वभाव आप विकसित कर उन फूलों सम आप खिलने लगते हैं जो लेते हैं। अपने विषय में आप कोई झूठी हर समय प्रसन्न रह कर आपको आनन्द धारणाएं लोगों को नहीं देते क्योंकि आपके प्रदान करते हैं। इसी प्रकार जब आप अन्दर तो सत्य का स्थान है। अपने विषय इस प्रकाश से ज्योतिर्मय हो जाते हैं तो में कोई भी असत्य बात कहने की आपको भटकना नहीं पड़ता सभी कुछ आवश्यकता नहीं। लोग महसूस करेंगे आपके अन्दर विद्यमान है, ज्योति को कि आप आत्म साक्षात्कारी व्यक्ति हैं। प्रज्जवलित रखें। अपने अन्तस में वह आनन्ददायी, आपकी सूक्ष्म प्रकृति एवम् वास्तविकता सार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 32 को वो महसूस करेंगे। चाहे आप भारत है। इसी प्रकार से अपने आत्म- साक्षात्कार से हों, इंग्लैंड से हों या अमेरिका से, आप से भी आप विश्व भर के हजारों लोगों सब में प्रेम एवं ज्ञान का वह सागर विद्यमान को प्रकाशवान कर सकते हैं। आप जानते है। विश्वास करें कि वह है। सर्वप्रथम हैं कि अभी तो आपने बहुत से देशों में अपने प्रेम सागर का आप आनन्द लें। प्रवेश करना है। हम इस कार्य को करेंगे, पहले आप अपने अन्दर छुपे इस प्रेम का उन देशों का पता लगाएं जहाँ अभी आनन्द लें और तब आप दूसरों के प्रेम हमनें जाना है और जहाँ हमने कार्य का भी आनन्द लें सकेंगे मुझे आपको करना है। यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि आप परस्पर प्रेम करें, आदि, आदि। स्वतः देने की योग्यता है। आपमें यह क्षमता ही आप एक दूसरे को प्रेम करते हैं, एक है- आपमें यह क्षमता है। स्वयं में विश्वस्त दूसरे को समझते हैं और परस्पर प्रकाश रहें कि आप लोगों को आत्म-साक्षात्कार फैलाते हैं। कभी-कभी आप अपने देश के, शहर किसी भी प्रकार की सहायता की के या गांव के अन्य व्यक्तियों से निराश आवश्यकता नहीं है अकेला सहजयोगी हो जाते हैं। क्योंकि उन्होंने अभी तक ही इस कार्य को कर सकता हैं। हज़ारों सर्वप्रथम, आपमें आत्म-साक्षात्कार दे सकते हैं और इसके लिए आपको आत्म-साक्षात्कार नहीं लिया। परन्तु सहजयोगी इस कार्य को कर सकते है । सर्वोत्तम बात तो इसे कार्यान्वित करना पूरे विश्व की दिवाली के लिए यह आवश्यक है। आपको यह कार्यान्वित करना होगा। है कि हम सभी लोगों को आत्म- सर्वप्रथम केवल एक वृद्ध महिला ने मुझसे साक्षात्कार दें। ऐसा करना बहुत आवश्यक आत्म-साक्षात्कार लिया और अब आप है। सहज-योग में ऐसे बहुत से लोग हैं सब यहाँ पर हैं। इसी प्रकार से आप भी जो थोड़े से निराश हैं, विशेष रूप से आत्म साक्षात्कार के कार्य को कर सकते अपने भूतकाल को लेकर। बीते हुए समय हैं। इसके लिए किसी प्रकार के को भूल जाएं, भूतकाल महत्वपूर्ण नहीं हिसाब-किताब लगाने की को ई है । वर्तमान महत्वपूर्ण है - कि इस क्षण आवश्यकता नहीं है। आपको किसी प्रकार आपने क्या करना है। भूत की आपको की तैयारी की आवश्यकता नहीं है। यह चिन्ता नहीं करनी-कि यह किया, मैंने शक्ति तो यहां है और यह कार्य करती वह किया। जो हो गया वो हो गया। अब है प्रकाश के लिए आप क्या करते हैं? भविष्य की ओर देखें। भविष्य के विषय आप केवल देखते हैं। दीपक को में आप क्या कर सकते है ।?जब आपको प्रज्जवलित करें और प्रकाश हो जाता प्रकाश प्राप्त हो जाएगा तो किसी न मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 33 किसी तरह से आप अपना मार्ग देख ओर ले जाती है इसका पता लगाएं। लेंगें! सारे अंधकार से मुक्ति पा लें और समझें कि किस सीमा तक जाना है, अमेरिका-ये इतना धनलोलुप देश है, जो किस प्रकार लोगों से मिलना है. और पूरे विश्व में फैल कर भी धन-लोलुप है किस प्रकार सहजयोग को फैलाना है। यह शक्ति तो आपके अन्दर पहले आपको लगता है कि सहजयोग से भी से ही विद्यमान है परन्तु सर्वप्रथम आपको आपको धन अर्जन करना चाहिए। कुछ इससे अपना तार जोड़ना होगा। इस लोग ऐसा नहीं सोचते फिर भी वे पैसे के सागर से यदि आप अपना तार जोड़ लेते पीछे दौड़ रहे हैं। धन एकत्र की कोई हैं तो आप निश्चित रूप से कार्य कर आवश्यकता नहीं और न ही धन में अपनी सकते हैं। अत्यन्त सुन्दर ढ़ंग से इसे सुरक्षा ढूंढने की आपकी सुरक्षा तो आपके कार्यान्वित कर सकते है, अपनी सफलता अन्दर अन्तर्जात है। अतः यह बाहय चीजें को देखकर आप आश्चर्यचकित रह पूर्णतः अनावश्यक हैं, इनसे आपकी आंखें जाएंगे। इस अंधकार से मुक्ति पा कर चकाचौंध नहीं होनी चाहिए। आपमें यदि आप हैरान होगें कि आप ज्योतिर्मय हो प्रकाश है तो ये बात आप स्पष्ट देख इस देश में, कहने से अभिप्राय और आप इससे मन्त्र मुग्ध हो जाते हैं। पा गए हैं और अपनी ज्योति से सारे अन्धकार सकते हैं, अपने जीवन में परमेश्वरी सहायता को दूर कर दें। इसके विषय में आपको को स्पष्ट देख सकते हैं कि किस प्रकार सोचना नहीं है। इस अन्धकार को निकाल परमात्मा ने जीवन की भिन्न अवस्थाओं फैंकें। परन्तु यदि आपके पास प्रकाश ही में आपकी सहायता की। नहीं है तो इसके बारे में बातचीत करने का कोई लाभ नहीं और न ही इस कार्य आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, मुझे मेरी को करने का कोई लाभ है क्योंकि बिना समस्याओं से निजात मिल गई। मुझे शत्रुओं अन्तर्प्रकाश के आपको सफलता नहीं मिल से मुक्ति मिल गई' - आदि आदि सकती। इसके विपरित आप असफल हो कि मैंने तो उनके लिए कुछ भी नहीं जाएंगे, बुरी तरह से असफल होगें और किया होता। आपके अन्दर के प्रकाश ने यह लोगों के लिए खतरनाक साबित होगा। ही आपके अन्धकार को दूर किया है इस देश में हमें बहुत से अटपटे आप यदि अन्धकार में हैं तो केवल प्रकाश अनुभव हुए परन्तु अब मैं सोचती हूँ कि ही आपके अज्ञानान्धकार को दूर कर एक एक करके वे सीख रहें हैं कि उन्हें सकता है। वास्तव में आपको इस बात ऐसा नहीं करना चाहिए था, वह गलत का ज्ञान नहीं है कि प्रकाश कितना था। कौन सी चीज़ आपको अन्धकार की शक्तिशाली है। आप यहाँ देख सकते हैं मुझे पत्र मिलते हैं कि 'श्री माताजी जब मार्च-अप्रैल 2003 34 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 कि हर ज्योति न केवल इतनी सारी नहीं हैं। क्योंकि अब आपको दृष्टि मिल ऊर्जा दे रही है बल्कि पूर्ण तस्वीर भी गई है अपने प्रकाश से आप देख सकते दिखा रही है। इसी प्रकार से आप भी है कि कहां कमी है या किसमें क्या समझ सकते हैं उदाहरण के रूप में आप अच्छाई है। आपके लिए यह ऐसा यह बात समझ सकते हैं कि अन्य व्यक्ति आशीर्वाद है कि आप धोखा नहीं खा आत्म- साक्षात्कारी है या नहीं। उसके सकते क्योंकि परमात्मा आपकी देखभाल समीप जाने की या कोई विशेष सावधानी कर रहें हैं आपका पथ प्रदर्शन कर रहे आदि बरतने की कोई आवश्यकता नहीं। हैं परमात्मा में विश्वास रखें, ऐसा करना आप तो बस जान जाएंगे कि वह आत्म- बहुत आवश्यक है, वैसे ही जैसे दीपक के साक्षात्कारी हैं या नहीं। मुझे ऐसे बहुत प्रकाश में आपका विश्वास है विश्वास से अनुभव हैं जहां मैंने जान लिया कि रखें कि परमात्मा आपको प्रकाश प्रदान लोगों को इस बात का ज्ञान ही नहीं है करेंगे, आपका पथ प्रदर्शन करेंगे, आपको कि कौन आत्म-साक्षात्कारी नहीं है। यह उचित स्थान पर ले जाएंगे और सभी आश्चर्य की बात है। आप यदि जानते हैं शुभ कार्य करेंगे । कहने से मेरा अभिप्राय कि कौन आत्म साक्षात्कारी है तो आपकी यह है कि आपके पास ऐसे बहुत से आधी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। दूसरी समस्या किसी को यह नहीं है कि लोगों ने मुझे कितने पत्र समझाना है कि उसमें कौन सा कार्य लिखे और किस प्रकार उनकी चीज़ करने की योग्यता है। यह समस्या मैं कार्यान्वित हुई। इस सबके बावजूद भी सहजयोगियों में भी पाती हूँ। वे विश्वभर हम सामूहिक हैं, एक दूसरे के प्रति प्रेममय में महान कार्य करने में सक्षम हैं। वो हैं, हम झूठ नहीं बोलते, किसी को समाप्त बहुत सी ऐसी चीज़ों का पता लगा सकते करने का प्रयत्न नहीं करते। इसका अर्थ अनुभव हैं। मुझे यह बताने की आवश्यकता हैं जो प्रायः सामान्य लोग नहीं लगा यह है कि हम सामान्य मानव की सकते। परन्तु सहजयोगी तुरन्त जान भावनाओं से कहीं ऊँचे हैं और ऐसा सकते हैं कि उनके सामने किस प्रकार होना उस प्रकाश के कारण है जो हमें का व्यक्ति है। यही अन्तर है। इसका प्राप्त हुआ। आप देख सकते हैं कि कहां अर्थ यह है कि आप सत्य जानते हैं-किसी पर आप लड़खड़ा रहें हैं। आप स्वयं भी स्थिति के विषय में । यह सत्य भी अपने लिए इस चीज़ को देख सकते हैं। जानते हैं कि कौन शेखी बघार रहा है इसके लिए मैं सोचती हूँ ध्यान धारणा या किसी प्रकार की कहानी कर रहा है अत्यन्त आवश्यक कार्य है। प्रतिदिन आपको ध्यान धारणा करनी या पाखंड कर रहा है। यह कार्य कठिन मार्च-अप्रैल 2003 35 चैतन्य लहरी खंड-xV अंक 3 व 4 चाहिए। जो लोग ध्यान धारणा नहीं करते सकते हैं तो आप अपना कार्य कर सकते उनका पतन होने की संभावना होती है हैं क्योंकि केवल उसी स्थिति में आप क्योंकि ध्यान धारणा तो दीपक में तेल सत्य के साथ होते हैं, वास्तविकता आनन्द डालने जैसा है। जो लोग ध्यान धारणा तथा सभी दिव्य चीज़ों के साथ होते हैं। नहीं करते वो सोचते हैं कि इसके बिना चलेगा, ऐसे लोग बहुत भयानक गलत में परिवर्तित न कर दें-न। ध्यान धारणा फहमी में हैं। उन्हें सुबह शाम ध्यान तो आपके अन्दर की शान्त स्थिति है करना होगा। वास्तव में उन्हें सभी कुछ विचारों की शान्ति और उस सागर की इतनी सुगमता से, इतने सहज में प्राप्त गहनता में जाना जो आपके अन्तस्थित हो जाता है कि उनकी समझ में ही नहीं है आप यदि ध्यान धारणा नहीं करते आता कि ध्यान धारणा कितनी आवश्यक तो अपनी स्थिति की कल्पना करें । मैं तल करते इसे उत्सव ध्यान धारणा हुए है। आप लोग नहीं, परन्तु मैं ऐसे बहुत से तुरन्त जान जाती हैँ कि कौन ध्यान करता लोगों को जानती हूँ जो आत्म-साक्षात्कार है और कौन नहीं। मेरे लिए यह कार्य लेते हैं परन्तु ध्यान धारणा नहीं करते। कठिन नहीं है। उनकी शैली ही बिल्कुल अलग है। उनका जो लोग ध्यान धारणा नहीं करते वे सदैव हिचकिचाते रहते हैं । सदैव किंकर्त्तव्यमूढ़ होते हैं। वे कुछ भी समझ स्वभाव बिल्कुल भिन्न है। ध्यान धारणा अत्यन्त सुखकर है। परमात्मा से एक रूप होने का एक अत्यन्त नहीं पाते। यही कारण है ध्यान धारणा सुन्दर उपाय। ध्यान धारणा के उस क्षण अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य है। विद्युत प्रवाह में आपकी सारी समस्याएं सुलझ जाती जब तक बना रहता है तभी तक प्रकाश हैं। आप यदि नियमित रूप से ध्यान होता है। दीपक में जब तक तेल जलता धारणा नहीं करते तो हो सकता है आपका है वह प्रकाश देता है। इसी प्रकार से प्रकाश कम हो जाए। इससे आपको पर्याप्त परमात्मा की शक्ति को निरन्तर प्रवाहित करते प्रकाश न मिले। ध्यान धारणा हुए करने के लिए ध्यान धारणा है। ध्यान अपने विषय में तथा अन्य लोगों के विषय धारणा आपके अन्दर के चिड़चिड़ेपन को कम कर देती है। केवल इतना ही नहीं, कई लोग पूछते है, "ध्यान धारणा सभी नकारात्मक विचारों को दूर कर किस प्रकार करें " कुछ भी न करें, केवल देती है। निराश करने वाली सभी चीजों निर्विचार समाधि में चले जाएं| निर्विचार को अन्दर से निकाल फेंकती है। इस समाधि में जाने का प्रयत्न करें निर्विचार प्रकार से जब निर्विचार समाधि की अवस्था समाधि की अवस्था में यदि आप जा में आप ध्यान करते हैं तो आप हैरान में पता लगाना अत्यन्त आवश्यक है। मार्च-अप्रैल 2003 36 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 होते हैं कि किस प्रकार से अन्दर और को यदि आप देखते हैं तो आप वास्तव में बाहर से आपको सहायता प्रदान की जाती इसके प्रति बिम्बक (Reflecter) बन जाते ै। यह महान शक्ति है जो कार्य करती हैं ऐसे ही कार्यान्वित होती है। मैं नहीं है-यह निर्विचार चेतना (Thoughtless जानती कि कितने समय तक आप उस स्थिति में रह पाते हैं परन्तु एक क्षण के अतः जो लोग ध्यान धारणा नहीं लिए भी यदि आप उस अवस्था को प्राप्त करते उन्हें सहजयोग के पूर्ण लाभ प्राप्त करते हैं तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि है । Awareness). नहीं होते। एक बार ध्यान धारणा द्वारा ध्यान धारणा के विषय में मैं पहले भी जब आप निर्विचार चेतना के स्तर तक बहुत कुछ बता चुकी हूँ। परन्तु आज ये पहुँच जाते हैं तो आपके साथ क्या घटेत सब जलते हुए दीपक देखकर मुझे लगता होता है? निर्विचार चेतना की अवस्था में है कि ये ध्यान मग्न हैं। ध्यान धारणा में जब आप होते हैं तो आपमें आत्मविश्वास स्थापित होने के कारण ही यह उन्नत जाग उठता है-परमेश्वरी शक्ति का पूर्ण हो रहे हैं । आत्मविश्वास। आपको इस बात का ज्ञान होता है कि आपमें यह आत्मविश्वास है । कौन सहजयोगी ध्यान धारणा करते हैं हमारे धर्मशाला स्कूल से आए बच्चों को और कौन नहीं । उन्हें यदि समस्याएं होती मैंने देखा है कि उनमें कितना आत्मविश्वास हैं तो मैं जानती हूँ कि उनकी समस्याओं है और कितनी विनम्रता । ध्यान धारणा आपको सुरक्षा प्रदान सम्बन्ध ही मुख्य चीज़ है और यह केवल करती है। यह आपको आपका वास्तविक तभी संभव है जब आप निर्विचार चेतना इसी प्रकार से मैं जानती हूँ कि का कारण क्या है। परमात्मा से आपका आत्म-साक्षात्कार तथा परमात्मा से पूर्ण में स्थापित हो जाएं। यही वह बिन्दु है योग प्रदान करती है। परमात्मा से एकतार जहां पर आपका मस्तिष्क कार्य करता है हुए बिना सहजयोग का क्या लाभ है? मैं यह सहायता देता है। इस प्रकार से वे जानती हूँ कि ध्यान धारणा करने वाले आपकी सहायता के लिए आता लोग अत्यन्त गहनता में पहुँच जाते हैं आपकी समझ में नहीं आता कि कैसे और अत्यन्त विकसित होते हैं। मैं ऐसे आपने इसे प्राप्त कर लिया। लोगों को भी जानती हूँ जो कुछ सतही (Superficial) हैं । आपकी गहनता तो प्रथम स्थिति है जो आपने प्राप्त करनी निर्विचार समाधि में ही है इस बिन्दु है तक पहुँचना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। ही आप कुछ और प्राप्त कर सकते हैं। निर्विचार चेतना में रहते हुए किसी चीज़ पहला कदम तो निर्विचार चेतना में जाना कि अतः निर्विचार समाधि की अवस्था । यह बहुत आवश्यक है। इसके पश्चात् পাঁu मार्च-अप्रैल 2003 37 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 है। निर्विचार समाधि अत्यन्त महत्वपूर्ण में किया गया है परन्तु यह इतना स्पष्ट है क्योंकि तभी बाएं और दाएं से कोई नहीं है जितना स्पष्ट रूप से मैं आपको विचार नहीं आता (न भूतकाल का और बता रही हूँ। मैं यह नहीं कहती कि न ही भविष्य काल का) और आप वर्तमान आपमें से जिन लोगों को निर्विचार चेतना में आ जाते है । आप सबने यह अवस्था प्राप्त करनी हैं-नहीं। परन्तु कृपा करके इसे प्राप्त | ऐसा नहीं है कि मैं आपसे कह रही करने का प्रयत्न करें आप सभी निर्विचार हूँ। आप सबमें यह विद्यमान है । आपने समाधी की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं। बस इसमें स्थिर होना है। निर्विचार समाधी एक पल के लिए भी यदि आप इस की स्थिति में आपने स्वयं को स्थापित अवस्था को प्राप्त कर लें तो यह भी करना है। कितनी देर के लिए-यह बात बहुत अच्छी उपलब्धि है। बाद में इसी नहीं है। मुख्य चीज़ तो यह है कि एक पल को बढ़ाते चले जाएं। बार जब आप इसे छू लेंगे तो आप इसे छूते ही चले जाएंगे। बहुत से लोग ध्यान धारणा करते हैं तो आप निर्विचार चेतना में चले जाते हैं। परन्तु उनके अन्दर विचार प्रवाह चलते और तब आपका मस्तिष्क विचलित होकर रहते हैं। ऐसे लोग निर्विचार चेतना की आपकी देखी चीज़ की गहनता में जाता स्थिति में नहीं होते ये घटित होना है इस प्रकार से आप सभी वास्तव में बहुत महत्वपूर्ण है। आपको यदि उन्नत अत्यन्त सृजनात्मक सहजयोगी बनेंगे। होना है तो निर्विचार समाधि के माध्यम से परमात्मा से जुड़ जाना बहुत ही जरूरी समाधि की इस अवस्था को आप स्थापित है। आपको कोई पैसा नहीं देना पड़ता, नहीं कर पाते। यह बात ठीक नहीं है किसी को बुलाना नहीं पड़ता-नहीं कुछ आज दिवाली के दिन में कहना चाहूॅँगी नहीं। ये तो बस कार्य करता है क्योंकि ये की स्वयं को निर्विचार समाधि से ज्योतिर्मय आपके अन्दर स्थित है विचारों के बम्ब बनायें यह कार्य कठिन नहीं है। यह दो ओर से आप पर पड़ते रहते हैं। स्थिति आप के अन्दर है। क्योंकि विचार आपके अन्दर आने वाले विचार अर्थहीन तो या तो इधर से आते है या उधर से । हैं। ये आपको पोषण नहीं प्रदान करतें । ये आप के मस्तिष्क की लहरियाँ नहीं हैं। अपने आप में ही आप एक सागर हैं तथा नहीं! ये तो आपकी प्रतिक्रियाएं हैं। परन्तु आपको निर्विचार चेतना की अवस्था प्राप्त वास्तिवकता में आप ध्यान धारणा करते करनी है। इसका वर्णन सभी महान ग्रन्थों हैं। तो आप निर्विचार चेतना में चले जाते की स्थिति प्राप्त नहीं होती वो बेकार मेरे विचार से मस्तिष्क प्रतिबिम्ब क है। किसी चीज़ को जब आप देखते हैं 1 मैं क्या देखती हूँ कि यह निर्विचार नা গc मार्च-अप्रैल 2003 38 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 है यही स्थिति प्राप्त करना आवश्यक है। अन्तर्प्रकाश तो केवल इस बात पर निर्भर और तब आपके मस्तिष्क में आने वाले करता है कि आप कहां तक निर्विचार मूर्खतापूर्ण विचार एवम् व्यर्थ विचार समाप्त चेतना में हैं। केवल तभी सभी कुछ हो जाते हैं! इन विचारों के समाप्त होने कार्यान्वित होता है क्योंकि आप ही इसके पर ही आप का उत्थान सम्भव है, केवल सागर हैं। आपके अन्दर यह अवस्था विद्यमान है। आपने तो केवल इसको यहाँ पर ऐसे बहुत से लोग हैं जो उपयोग में लाना है। यदि आप इसे उपयोग कहेंगे, "श्री माताजी हमें वह स्थिति प्राप्त में नहीं लाते तो यह कार्यान्वित नहीं नहीं होती प्रयत्न करें, इसे पाने का होती इसे उपयोग में लाएं तो आप हैरान प्रयत्न करें मैं नहीं समझती कि आप यह होंगे कि आप कितनी महानता एवम् तभी आप उन्नत होते हैं। स्थिति नहीं प्राप्त कर सकते। आप सभी प्रसन्नता के स्रोत हैं। लोग दृढ़ निश्चय कर सकते हैं कि मैं यह स्थिति प्राप्त कर सकता हूँ और तब ध्यान धारणा करते हुए निर्विचार चेतना आपको यह स्थिति प्राप्त हो जाएगी। में जाए कोई भी विचार महत्वपूर्ण नहीं इस स्थिति में न तो आपको कुछ त्यागना हैं क्योंकि विचार तो आपकी अपनी रचना है और न ही किसी चीज़ को देखना हैं। है बस ध्यान में चले जाएं और आप है तो आपको निर्विचार समाधि की अवस्था आश्चर्यचकित होंगे कि यह किस प्रकार प्राप्त करनी ही होगी-यह कम से कम अतः आज का सन्देश यह है कि परन्तु यदि आपने दिव्य रचना बनना कार्यान्वित होता है। निःसन्देह आप लोग उस स्थिति होते हैं यह अवस्था शनैः शनैः आपके आवश्यकता है। जैसे-जैसे आप उन्नत तक पहुँच चुके है, आपमें से अधिकतर अन्दर स्थापित होती है। तब आप हैरान लोग, परन्तु मैं कहूँगी कि निर्विचार समाधी होगें कि कितने जोर से सहजयोग में की स्थिति को और बढाएं। इस क्षेत्र को उन्नत होने की योग्यता आपमें आ गई और विस्तृत करें आज का दिन बहुत है। महत्वपूर्ण है क्योंकि आज दिवाली है। दिवाली प्रकाश का दिन होता है। परन्तु आपका अत्यन्त धन्यवाद । श्री माताजी का एक पत्र मार्च, 1982 _८ ১ बे |ास प्रिय श्री राहुल, मुझे दामले जी का पत्र प्राप्त हुआ जिसमें उन्होनें सभी कुछ विस्तार पूर्वक लिखा। आपका श्री गगन गढ़ महाराज से जाकर मिलना अत्यन्त विवेकशील कदम था। सहजयोग के चमत्कार के विषय में जो उन्होनें कहा वो पूर्णतः सत्य है आज तक इस महान दैवी वरदान के प्रकट न होने का वास्तविक कारण ये है कि जब-जब भी आदिशक्ति अवतरित होकर पृथ्वी पर आईं तो उन्होनें सभी चक्रों को सहस्रार के माध्यम से एकतार नहीं किया। उनके व्यक्तित्व रूपी यंत्र में संघटित पूर्ण सामंजस्य एवं एकरसता ही ये सारे आश्चर्यजनक परिणाम प्रदान कर रही है। यहाँ तक कि मैं मार्च-अप्रैल 2003 40 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 अपने आप पर हैरान हूँ। मैं सोचती हूँ कि गगन-गढ़ महाराज भी इस अद्वितीय खोज के गतिविज्ञान (Dynamics) की कल्पना नहीं कर सकते। यही कारण है कि उन्हें लगता है कि अवधूतों को दूर जंगलों में होना चाहिए तथा यह भी कि कैंसर की प्रतिक्रिया आप पर हो सकती है। आपने फड़के का कैंसर रोग दूर कर दिया है। परन्तु क्या इसकी कोई प्रतिक्रिया आप पर हुई? (चैतन्य) देने के छोर पर जब आप होते हैं तो बहाव आपसे दूसरे व्यक्ति की ओर होता है उसकी ओर से नकारात्मकता आप की ओर कैसे आ सकती है? कमल के रूप में आपको पुनर्जन्म दे दिया गया हैं और कमल वातावरण से किसी भी प्रकार की गन्दगी अपने ऊपर नहीं आने देता। बल्कि अपने सौन्दर्य और सुगन्ध से वातावरण को बेहतर बनाता है। आत्म-साक्षात्कारी व्यक्ति का भी यही चमत्कार है। क्या आप सोचते हैं कि चिकित्सक इस सत्य को स्वीकार करेंगे कि परमात्मा का साम्राज्य है। यही हमारा सृजन करता है तथा आत्मा ही हमारे स्वचालित नाड़ीतंत्र (Autonomous Nervous System) की स्वामी है, तथा आत्मा परमात्मा का प्रतिबिम्ब है आप श्री बोस, श्री दफ्तरी और श्री शर्मा का उदाहरण दे सकते हैं जिन्हें सहजयोग के माध्यम से रंग अन्धता (Colour Blindness) रोग से मुक्ति प्राप्त हुई। जो भी हो अगले वर्ष मैं अमेरीका जा रही हूँ । मेरा एक प्रिय पुत्र डाक्टर लांजेवर अब न्यूयार्क चिकित्सक संस्थान (Medical Practioners' Association of New York) का अध्यक्ष बन गया है और वह अगले वर्ष न्यूयार्क में चिकित्सा संगोष्ठी करने के लिए बहुत उत्सुक है। इतने वर्षों की हमारी दासता के कारण भारत के चिकित्सक ये भूल बैठे हैं कि हम योगभूमि पर अवतरित हुए हैं । उनके विचार दास-भावना से इतने प्रभावित हैं कि वो सोचते है कि चिकित्सा के विषय में हमारे सभी विचार मूर्खतापूर्ण हैं तथा पाश्चात्य ज्ञान अत्यन्त विवेकशील है । हृदय से मैं आपको आशीर्वादित करती हूँ कि रामा लिंगम को बहुत अच्छी चैतन्य-लहरियाँ मिल गई । उनके अन्तः स्थित श्रीराम उन्हें सर्वशक्तिमान परमात्मा के तौर-तरीकों को समझने का विवेक प्रदान करेंगे। मैं तुम्हें अपना प्रेम एवं सुरक्षा भेजती हूँ ताकि तुम चिकित्सक लोगों के अंधकार की बाधाओं को तोड़ सको । उन्हें ये समझ लेने दो कि अब समय आ गया है जब वो इस बात को स्वीकार कर लें कि विज्ञान ही सभी कुछ नहीं है विज्ञान केवल उसी चीज़ को खोजता है जिसका पहले से अस्तित्व हो और जो स्थूल दृष्टि को दिखाई देता है। चतुर्थ आयाम में उन्नत होते हुए जब हम सूक्ष्म हो जाते हैं तो सूक्ष्म अस्तित्व को सकते हैं तथा ये भी कि वाद-विवाद द्वारा दैवी प्रेम के इस कार्य को नहीं किया जा सकता। व्यक्ति को आत्म-साक्षात्कारी होना पड़ेगा। सहजयोग के माध्यम से स्वतः आत्मा और संतोष को देख मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 41 ही व्यक्ति उन्नत होगा क्योंकि यह जीवन्त प्रक्रिया है । कैंसर का सर्वोत्तम उपचार जल है अर्थात् पैरों को नदी, समुद्र या घर में फोटोग्राफ के सम्मुख बैठकर जल में डालना है (जल पैर क्रिया)। स्वच्छ करना जल का धर्म है इसलिए मानव में धर्म के जिम्मेदार देवता श्री विष्णु और दत्तात्रेय की पूजा की जानी चाहिए। रोग मुक्त होने में वे आपकी सहायता करते हैं। इसके साथ-साथ जिस चक्र में खराबी है उसके अधिशासी देवता की भी पूजा होनी चाहिए। फोटो के सम्मुख दीपक जलाकर रोगी के पैर पानी में डालकर उसे बैठा दें। अनुकम्पी नाड़ी तंत्र पर से अपने हाथ नीचे पानी की ओर लाएं। शनैः शनैः रोगी की गर्मी शान्त हो जाएगी। यदि उसे आत्म-साक्षात्कार हो जाता है तो वो रोगमुक्त हो जाएगा । इसके आगे अगले पत्र में । प्रेम पूर्वक आपकी माँ निर्मला द ता ली क या र्यसम आत्मा स् 18-06-1983 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के प्रवचन से उद्धृत इतने सारे सहजयोगियों के बीच को चमकते हुए देखने के लिए आकाश यहां आकर मैं अत्यन्त प्रसन्न एवं आनन्दित का पूर्णतः साफ होना आवश्यक है। हूँ। इनमें से बहुत से लोग नए हैं, मेरे लिए बहुत नए नहीं हैं। संभवतः मैं उन्हें जाने का प्रयत्न किया जा सकता है। हजारों वर्षों से जानती हूँ। सहजयोग में आप सबको एक विश्वास कि हम आत्मा हैं और बाकी सब साधारण सी बात समझनी होगी कि आप कुछ आच्छादन मात्र। अपने अन्तस में आत्मा हैं और जो भी कुछ आत्मा नहीं है यह निश्चय करना होगा आत्म- वो आप नहीं हैं। बहुत से तरीकों से ये बादल हटाए इनमें से सर्वप्रथम है ये मान लेना, ये साक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् यह आत्मा की तुलना हम सूर्य से कर समझ लेना अत्यन्त आसान हो जाता है सकते हैं। सूर्य बादलों से आच्छादित हो कि आप जो हैं उससे कहीं अधिक हैं, सकता है। सूर्य को ग्रहण लग सकता है। जों आपने अब तक स्वयं को समझा उससे परन्तु वह अपने स्थान पर स्थिर रहता कहीं भिन्न हैं। है। सूर्य को आप ज्योतिर्मय नहीं कर सकते। वह तो अपने आप से ही प्रकाशमान उसमें आपमें अन्धविश्वास नहीं रह जाता। है। बादलों को यदि हटा दिया जाए तो अब आपका विश्वास आपके अनुभव की आच्छादन समाप्त हो जाता है और सूर्य देन है। अतः आपकी बुद्धि को उससे एक बार फिर वातावरण में चमक उठता झगड़ा नहीं करना चाहिए, उसको चुनौती है। इसी प्रकार से हमारी आत्मा भी आपके विश्वास को चुनौती देने लगती है अज्ञानान्धकार से आच्छादित हो जाती है और आप यदि अपनी बुद्धि की बात को और यह आच्छादन जब तक रहता है सुनते हैं तो आपका पुनः पतन हो जाएगा। आप आत्मा को देख नहीं सकते। चाहे थोड़े से बादल हट भी जाएं तो भी ही वैज्ञानिक मान लेता है कि कोई सितारा तो नई अवस्था अब जो आती है नहीं देनी चाहिए। बुद्धि यदि अब भी 1 आकाश में सितारे की झलक पाते है अतः इसी प्रकार आपके भी यदि अपने आच्छादन बना रहता है। आत्मा के प्रकाश मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 43 आत्म-साक्षात्कार की झलक भर प्राप्त समाधि' कहलाती थी अर्थात् उस अवस्था हो जाए तो कम से कम आपको ये बात में उन्हें उस मूर्ति पर, उस विग्रह पर मान लेनी चाहिए कि आप भी आत्मा हैं। ध्यान कैन्द्रित करना पड़ता था - विग्रह उस अनुभव पर डटे रहें और अपने चित्त का अर्थ है ऐसी मूर्ति जिससे चैतन्य को इस सत्य पर लगाए रखें कि आप लहरियाँ निकलती हों - और तब उस आत्मा हैं । अपनी बुद्धि से कहें कि वह मूर्ति की ओर एकटक देखते हुए (त्राटक) अब आपको और अधिक धोखा न दे। अपनी कुण्डलिनी को उठाना पड़ता था । इस प्रकार आप अपनी बुद्धि के दिशा को कुण्डलिनी आज्ञा तक पहुँच जाती थी मोड़ सकते हैं। वह अब आपकी आत्मा लेकिन सहस्रार तक पहुँचना असंभव कार्य था क्योंकि यहाँ तक पहुँचने के लिए यहीं अर्थ है। विश्वास शुद्ध बुद्धि को साधक को साकार से निराकार तक जाना पड़ता है। साकार से निकलकर निराकार तक पहुँचना बहुत कठिन कार्य था तथा की खोज आरम्भ कर देगी। विश्वास का उन्नत कर देता है। साकार और निराकार अब एक बार चाहे आपने बादलों निराकार पर चित्त को टिकाना ही (जिस को होते देख लिया हो फिर भी प्रकार से कुछ मुसलमानों तथा कुछ अन्य हुए दूर अभी बादल हैं। तो बादलों को उड़ाने के लोगों ने करने का प्रयत्न किया) एक लिए आपको पवन का उपयोग करना असंभव कार्य था। होगा - आदिशक्ति की शीतल लहरियों इन परिस्थितियों में यह आवश्यक था कि निराकार (परमात्मा) साकार रूप aT (Wind of the Holy Ghost) | H14 जानते हैं कि इस शीतल पवन का लाभ धारण करें ताकि किसी भी प्रकार की उठाने के बहुत से उपाय हैं। अतः ये जटिलताएं बाकी न रह जाएं। ज्यों ही पवन किसी अन्य स्रोत से आती है। यह आप साकार पर चित्त को टिकाते हैं. स्रोत आदिशक्ति का है, आपकी अपनी आप निराकार हो जाते हैं। बिल्कुल वैसे कुण्डलिनी का है और साकार रूप में भी ही जैसे आपके सम्मुख यदि बर्फ हो और आपके सम्मुख आदि कुण्डलिनी विद्यमान आप उस पर हाथ रख दें तो यह पिघल हैं। आपसे पूर्व जो अनन्त साधक आए जाती है तथा आप इसकी शीतलता को आप उनसे कहीं अधिक सौभाग्यशाली अनुभव करने लगते हैं। हैं। क्योंकि किसी विग्रह की, किसी स्वयंभु पूजा का अर्थ मूर्ति की पूजा करने में लोगों को बहुत बड़ी समस्या होती थी। सर्वप्रथम उन्हें समस्या का समाधान हो गया है। पूजा ध्यान धारणा करनी होती थी जो 'सविकल्प एक ऐसी क्रिया है जिसके माध्यम से इस प्रकार अब इतनी सरलता से मार्च-अप्रैल 2003 44 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 आप साकार को निराकार में परिवर्तित अतः आपका कार्य और आपका एकमात्र तरीका पूजा पर चित्त को लगाना है और आपके चक्र ऊर्जा केन्द्र हैं परन्तु इसका साक्षी होना है। आप दृष्टा (Seer) उन सब पर भी शासक देवी-देवता हैं दृष्टा (Seer) शब्द के दो अर्थ हैं विराजमान हैं। उन्हें भी निराकार से एक जो देखता है, केवल देखता है और साकार बनाया गया है। जब आप पूजा वह केवल ज्ञान है। बिना किसी विचार करते हैं तो साकार पिघलकर निराकार के, बिना किसी प्रतिक्रिया के वह दृष्टा ऊर्जा का रूप धारण कर लेता है और केवल देखता है और स्वतः आत्मसात यह निराकार ऊर्जा बहने लगती है तथा करता है। जिसमें स्वतः ये सब कार्य ये शीतल चैतन्य लहरियाँ प्रवाहित करती होता है केवल वही दृष्टा (Seer) है। मेरे लिए कभी-कभी यह कठिन पड़ी हुई परतें तथा इसके विषय में अज्ञानता होता है क्योंकि आपमें और देवी-देवताओं में कुछ समानता होनी चाहिए. कुछ संतुलन पूजा के विषय में आप सोच नहीं तो होना आवश्यक है। यहाँ बैठे आप सकते। ये चीजें एक ऐसे साम्राज्य मन्त्र बोल रहे हैं, देवी-देवता जागृत हो (Realm) में घटित होती हैं जो विचारों गए हैं और आप हैं कि अपने हृदय में की सीमा से परे है आपको समझना कुछ आत्मसात करना ही नहीं चाहते। होगा कि पूजा के विषय में आप तर्क नहीं तो पूजा में देवी-देवताओं के जागृत होने ऊर्जा कर सकते हैं। हैं। और इस प्रकार से आत्मा के ऊपर दूर हो जाती है । कर सकते। अपने चक्रों पर आपने पूजा से उत्पन्न होने वाली सारी फालतू का अधिकाधिक लाभ उठाना है इसके को मुझे अपने शरीर में ही पुनः ग्रहण लिए पूरी तरह से आप पूजा पर चित्त करना पड़ता है। लगाएं और अनुभव करें कि किस प्रकार से यह शीलत पवन बह रही है । बादलों हृदय खुले रखें और साक्षी भाव से बिना अतः बेहतर होगा कि आप सब अपने सोचे को देखें पूजा को उड़ा ले जाना इस पवन का कार्य है। कुछ दिनांक 12/02/2003 बाजपुर सेवा में, जय श्री माता जी, मी मैं विगत पाँच वर्षों से सहजयोग कर रहा हूँ, सहजयोग से पूर्व और सहजयोग के बाद मैं अपने जीवन को पूर्ण परिवर्तित पाता हूँ। विद्यार्थी जीवन में ही मुझे वे सारे दोष लग चुके थे जो आज एक आम युवा को भीतर ही भीतर खोखला कर नर्क में धकेल रहे हैं। ये श्री माताजी की ही कृपा है जो आज मैं दूसरा जन्म पाया हूँ वरना न जाने कहाँ भटक चुका होता। सहजयोग आज मेरे जीवन का अंग बन चुका है। मेरा जीवन सहजयोग के बगैर शून्य है । सहजयोग ज्ञान का वो भण्डार है जिसका प्रारम्भ व अंत कहीं भी नहीं, बस अपार सागर है। मैं उत्तरांचल राज्य के उद्यमसिंह नगर जिले व बाजपुर विकास खण्ड के हरिपुरा हरसान गाँव का निवासी हूँ व वर्तमान में जूनियर हाईस्कूल (प्राइवेट) विद्या निकेतन, हरिपुरा हरसान में प्रधानाध्यापक के पद पर कार्य कर रहा हूँ। सहजयोग में कई चमत्कारों के बारे में सेमिनार व गणपति पुले में सुने किंतु जब वर्ष 2002 के शिवरात्रि के अवसर पर मैंने घर पर ही श्री माता जी की पूजा एक साधारण रूप ही में की और पूजा के बाद फोटो खींची तो श्री माता जी की फोटो पूरी तरह चैतन्य से ढकी पायी। इससे मैंने यह जाना की कि श्री माता जी अपने तुच्छ-से-तुच्छ पूजा भक्त पर भी ममता का सागर बिखेरती हैं और आशीर्वाद देती है। सच्चे मन से परमेश्वरी माँ का ध्यान किया जाये तो माँ परमानन्द देती हैं। आज मेरा जीवन हमेशा चैतन्य में व्यतीत हो रहा है और प्रयास करता रहता हूँ कि ऐसा अनुभव सभी सत्य के खोजी व्यक्तियों को हो। "जय श्री माता जी" धर्मेन्द्र सिंह बसेडा ग्राम-पो० हरिपुरा हरसान बाजपुर (उद्यमसिंह नगर ) उत्तरांचल-262401 फोन : 05949-244 338 9:00 से 4:00 बजे तक %23 ully Da00000o000 ---------------------- 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-0.txt OHAR मार्च -अप्रैल, 2003 खण्डः XV अंक: 3 व 4 PURT चैतन्य लहरी ल त ३० सहजयोग आपकी पहली और सर्वोपरि जिम्मेदारी है । आपको इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि ये कार्य क्या है ये अत्यन्त महान कार्य है - पूरे विश्व को परिवर्तित मेरा यही स्वप्न है। करना परम् पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी ১৫D। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-2.txt मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 क 1- श्री गणेश पूजा, फ्रैंकफर्ट जर्मनी, 2002 6- श्री माताजी की दूल्हों से बातचीत, कबैला, 15-09-2002 10- श्री माताजी की दुल्हनों को सीख, कबैला, 15-09-2002 15- नवरात्रि पूजा, लॉस एंजलिस, 27-10-2002 30- दिवाली पूजा, लॉस एंजलिस, 03-11-2002 39- श्री माताजी का एक पत्र, 1982 42- सूर्यसम आत्मा, 18-06-1983 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-3.txt चै तन्य लहरी प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर 162 - ए, मुनीरका विहार, नई दिल्ली - 110067 हि त मुद्रक प्रिंटो-ओ - ग्राफिक्स नई दिल्ली न सदस्यता के लिए कृपया इस पते पर लिखें : श्री ओ.पी. चान्दना 463 (G-11) ऋषि नगर, रानी बाग, दिल्ली एन 110034 फोन : (011) 27013464 सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पते पर भेजें : चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी - 17, कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली - 110016 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-4.txt श्री गणेश पूजा फ्रैंकफर्ट जर्मनी, सितम्बर 2002 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन च ाबा े कि ४ এই M। इतने समय के पश्चात् यहां वापस आना बहुत ही सुखद है। जब जब भी मैं आई आप सभी लोग यहां एकत्र हुए। यह सभागार काफी विशाल है। यहीं पर हम एकत्र हुए थे और इस प्रकार से सहजयोग चलने लगा। जर्मनी और आस्ट्रिया के लोगों के लिए यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यहीं लोग युद्ध में सम्मिलित थे और अब आप लोग मेरे साथ युद्ध में हैं। हमें युद्ध लड़ना है, आसुरी शक्तियों से युद्ध करना है। आप जानते हैं कि विश्व कैसा है। हमें इससे युद्ध करना है और इसे अज्ञानता मुक्त करना है। इस कार्य के लिए आप बहुत बड़ी सहायता हैं क्योंकि हमें मानव का परिवर्तन करना है ताकि मानव शीघ्रातिशीघ्र अच्छें बन सकें। एक बार यदि वे आत्म-साक्षात्कार ले लें तो परिवर्तन घटित होने लगेगा । अब इंग्लैंड और इटली में भी ये लोग गलियों में जाकर आत्म-साक्षात्कार दे रहे 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-5.txt मार्च-अप्रैल 2003 2 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 हैं। गलियों में आत्म-साक्षात्कार दे रहे हैं का प्रयत्न करते हैं ऐसे सभी कार्य वो और हजारों लोग आत्म- साक्षात्कारी हो करते हैं, अतः आपको उनसे कुछ नहीं गए हैं यह बहुत बड़ी बात है क्योंकि लेना-देना, उनसे दूर रहें क्योंकि अब एक बार जब आपको आत्म-साक्षात्कार आप सब लोगों का शुद्धिकरण कर दिया वो | जो लोग शुद्ध हो गए जाते हैं। तब सारे सद्गुण आपमें आ कीचड़ से लथपथ लोगों में घुलते-मिलते जाने चाहिएं। आपमें यदि कोई बुराई हो नहीं । क्या स्वच्छ लोग ऐसा करते है? अतः अपने मस्तिष्क में अवश्य इतना विवेक यह सर्वत्र इतना तेजी से फैल रहा बनाए रखें कि सहजयोग को अन्य चीज़ों है और सभी देशों में फैलना भी चाहिए । से किसी भी कीमत पर नहीं मिलाना। आपको लड़ने झगड़ने की आवश्यकता बहुत समय से मैं ये बताने का प्रयत्न कर नहीं हैं क्योंकि आपको दैवी सहायता रही हूँ कि स्वयं को इनसे अलग बनाए प्राप्त हो गई है यह दैवी सहायता आपको रखें, परन्तु कई बार लोग ऐसा नहीं करते प्राप्त हो जाता है तो आप आत्मा बन गया है। भी तो वह भी चली जाएगी। हर समय । और यह और बहुत कष्ट उठाते हैं। हर समय प्राप्त है हमारे चहूँ ओर सभी प्रकार की बात समझी जानी चाहिए कि परमात्मा हमें इसलिए सहायता करते हैं कि हम आसुरी और शैतानी शक्तियाँ हैं। मैं नहीं मानव को अन्तर्परिवर्तन करके महानता जानती कि वो क्या कर रही हैं परन्तु की ओर ले जाएं। हम ऐसे ही हैं। यहाँ पर हम इसलिए किया, कोई हित नहीं किया, बिल्कुल आए है कि आपके पास एक स्थान होना कोई हित नहीं किया। ज़रा देखें कि इन चाहिए, सहजयोग के लिए एक आश्रम दिनों क्या हो रहा है - सभी प्रकार की होना चाहिए। वहाँ पर मैं सहजयोगियों लड़ाईयाँ-झगड़ें और हत्याएँ यही सब हो के अतिरिक्त किसी को भी नहीं चाहती रहा है । अतः आपको ये जान लेना क्योंकि हम नहीं जानते कि लोग कितने आवश्यक है कि हम अत्यन्त भयानक गन्दे हैं, वो कितनी गन्दगी करते हैं! आप कलियुग में है जिसका हमने सामूहिक कल्पना भी नहीं कर सकते कि वो किस रूप से मुकाबला करना है। बच्चों को सीमा तक जा सकते हैं और वास्तव में देखें, वे कितने सामूहिक हैं। आप सबको आपको हानि पहुँचा सकते हैं। वे केवल भी सामूहिक होना पड़ेगा। सभी को प्रेम नकारात्मक ही नहीं हैं बल्कि कभी-कभी करना आवश्यक हैं, आस-पास के सभी तो वो शैतान बन जाते हैं और आपके सहजयोगियों को। उनके दोष ढूँढने की बच्चों को, आपके परिवारों को नष्ट करने कोशिश न करें, उनसे झगड़ने का प्रयत्न उन्होंने लोगों का कोई हित तो नहीं श् 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-6.txt मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 न करें, क्योंकि मैं जो कार्य कर रही हूँ करें ध्यान धारणा द्वारा आप जान जाएगें वह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। मैं लोगों में अन्तर्परिवर्तन करने का आनन्द किस प्रकार लेना है। यह स्थिति कि सहजयोग का, चैतन्य लहरियों का, प्रयत्न कर रही हूँ ताकि वे अच्छे और होनी ही चाहिए। मानसिक गतिविधि भले बन सकें उनसे कुछ लेने के लिए समाप्त होनी आवश्यक है। दूसरों को नहीं, उन्हें कुछ देने के लिए ताकि वे आयोजित करने का प्रयत्न छोड़ दें। अन्य अच्छे लोग बन जाएं। हमारे यहाँ अत्यन्त लोगों को भाषण देने का प्रयत्न न करें, अच्छे और भले लोग होना आवश्यक है परन्तु जो कुछ भी आप करते हैं उसका ऐसे लोग जो न तो घृणा करते हैं और न अन्तरअवलोकन करें। स्वयं देखें कि आपमें जिनमें किसी प्रकार का लालच है। लोग क्या कमी है और आप कौन-कौन से पागलों की तरह से लालची हैं। जहाँ गलत कार्य कर रहे हैं। लोग धन कमा सकते थे वहाँ उन्होंने सभी को धोखा देकर पैसा बनाया और आप यदि शान्त नहीं होगें तो हम आपको इस कारण से अब उनके बच्चे कष्ट दूर भेज देगें मैं नहीं चाहती कि तुम्ें उठाएंगे। अंतः आप सबके विषय में मेरी दूर भेजा जाए। ठीक है?) (बच्चो कृप्या शान्त रहो। ठीक है? यहाँ भी आप देखें, ये बच्चे जर्मन इच्छा है क्योंकि आप ही लोग इस महान युद्ध में मेरी सहायता कर सकते हैं असुरों हैं। अतः स्वाभाविक रूप से ये जानते हैं के साथ युद्ध में। स्वभाव से ही ये लोग कि हल्ला किस तरह मचाना है । इसीलिए दुष्ट हैं और वो आपको बर्बाद करना मैंने उन्हें यहां बुलाया था। अब वे बहुत चाहते हैं उनके हाथों में खिलौना न बनें, अच्छे बच्चे बन जाएंगे बहुत ही अच्छे मज़बूत बनें। आप पृथ्वी पर भौतिक चीजें बच्चे। आप ऐसे ही बनेंगे न? आदि एकत्र करने के लिए नहीं आए हैं। आप तो यहाँ उच्च दर्जे के सहजयोगी कुछ नहीं है। अच्छा बन जाना ही काफी बनने के लिए आए हैं। केवल शान्त हो जाना ही सभी नहीं है। आपको अन्य लोगों को भी अच्छा एक अन्य बात यह है कि यदि आप बनाना है। अन्य लोगों को सुन्दर व्यक्ति अपने अन्दर आनन्द अनुभव नहीं करते, बनाना है अपने चित्त से और अपने कार्य आपमें यदि आनन्द का अभाव है, तो से हमें पूरे विश्व का सौन्दर्यकरण करना आप अन्य लोगों को कष्ट देंगे। अतः है। अब समस्या यह है कि सहजयोग में आपके लिए सर्वोत्तम उपाय यह है कि आने के पश्चात् भी लोग गलत चीजें आप ध्यान-धारणा करें, आलोचना न करें, अपना लेते हैं। ऐसे किसी व्यक्ति को अपना मस्तिष्क न लगाए, परन्तु ध्यान बढ़ावा न दें। इसके विपरीत उसे समझाएं 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-7.txt मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 कि सहजयोग सामूहिक गतिविधि है । प्रयत्न किया परन्तु कुछ भी कार्यान्वित हमारा व्यक्तिगत कुछ भी नहीं है। हमें नहीं हुआ। आप जानते हैं कि आत्म- गतिशील रहना है और हर समय मिल साक्षात्कार किस प्रकार दिया जाता है। कर रहना है सामूहिक होना अत्यन्त अपनी कुण्डलिनी की सहायता से हम महत्वपूर्ण है तथा उस सामूहिक जीवन सभी कुछ कार्यान्वित कर रहे हैं । आप का आनन्द लेना भी। मिलकर रहने का यह भी जानते हैं कि क्या करना है। आनन्द यदि आप अनुभव कर सकते हैं आप आत्म-साक्षात्कार देना जानते हैं। तो आपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त कर चैतन्य लहरियाँ पहचानना जानते हैं। सभी लिया है। क्योंकि ऐसी स्थिति प्राप्त करने कुछ एकदम से आपमें होने लगता है। के पश्चात् आप अन्य लोगों को भी अपने तब आप तुरन्त महसूस करते हैं कि अभी साथ मिलाएंगे और आत्मा होने का आनन्द तक आप जो भी कुछ कर रहे थे वह उन्हें भी प्रदान करेंगे। एक बार जब वे मानवता के लिए बहुत ही हानिकारक आत्मा बन जाते हैं तो सभी कुछ परिवर्तित था। अब मैं आप लोगों पर सभी कुछ होने लगता है। सामूहिक रूप से यदि छोड़ती हूँ। आप सभी इतने विवेकशील आप मिल कर रहते हैं और सारे कार्य और इतने अच्छे लोग हैं। आप सभी करते हैं. तो बड़ी तेजी से आपका उत्थान सहजयोग में आए हैं मैं जब- जब भी होता है। जो लोग पृथक होने की बातें यहाँ आई आप सभी यहाँ उपस्थित थे। करते हैं वह पागलपन है। ऐसी बातों को मुझे प्रसन्नता है कि आज सभी देश यहाँ बिल्कुल न सुनें। बेहतर होगा कि इन्हें हैं। पता लगते ही तुरन्त आप यहाँ आ नियन्त्रित करें कभी-कभी हमें एकजुट गए। आप लोग कितना मुझे प्रेम करते हैं! होना पड़ता है। हम एक-दूसरे से अलग वास्तव में यह प्रशंसनीय बात है। आप नहीं हो सकते। ऐसे सभी प्रयत्नों को सभी लोगों ने अपना प्रेम दर्शाया है । पता नष्ट कर दिया जाएगा। आप लोग देखें नहीं आप सब लोग कहां कहां से आए कि विश्व में चीजें किस प्रकार चल रही हैं? मैं इतने कम समय के लिए यहाँ आई हैं, किस प्रकार सभी कुछ कार्यान्वित हो हूँ। अतः परमात्मा आपको आशीर्वादित रहा है? आधुनिक कार्य के सौन्दर्य को आप बात हमेशा अपने मस्तिष्क में रखें कि समझे। आप एक ऐसे समय पर अवतरित अब आप ने पूरे विश्व को भले और हुए हैं जब आपका अन्तर्परिवर्तन हो सकता आध्यात्मिक लोगों के विश्व में परिवर्तित है। ऐसे समय पर आप जन्में हैं, जब आप करना है। अतः यह आपकी जिम्मेदारी आत्मा बन सकते हैं सभी ने इसका है । इसके लिए आपको क्या करना है, करें और आपको विवेक प्राप्त हो। यह 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-8.txt मार्च-अप्रैल 2003 5 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 यह बात आप जान जाएगें। आप सभी प्राप्त कर सकते है। ऐसा करना बहुत को बहुत जिम्मेदार बनना है बहुत ही आवश्यक है। और यही बताने के लिए मैं जिम्मेदार लोग और यह समझने का प्रयत्न आई हूँ कि कृपा करके समर्पित होने का करना है कि आप सहजयोग के लिए प्रयत्न करें । जहाँ तक समर्पण का प्रश्न है मैं क्या कर रहे हैं। आजकल बहुत से नए चेहरे नज़र आते हैं, इन्हें देखकर मैं बहुत यह नहीं कह सकती कि किस प्रकार प्रसन्न हूँ। निःसन्देह मैं बहुत से आस्ट्रियन आप स्वयं को विवश करें। परन्तु आप लोगों से मिली, जर्मन लोगों से मैं पहले निर्विचार समाधि में चले जाएं। निर्विचार मिल चुकी हूँ। परन्तु अब मुझे बहुत से समाधि की अवस्था में आप ध्यान करें अन्य देशों के लोग भी नज़र आते हैं । और तब, मुझे विश्वास है, अपने पूरे प्रेम इनकी सहायता करके आपने बहुत ही और आशीष के साथ, मुझे विश्वास है, मधुर कार्य किया है। समर्पण ही महत्वपूर्ण कार्य है। लोगों ही नहीं होगें अन्य लोगों को भी परिवर्तित के साथ यही समस्या है। वे स्वयं को करके इस भले कार्य को करने की प्रेरणा सहजयोग के प्रति समर्पित नहीं कर पाते। देंगे। आप सब में यह गुण है। इसे अपने यही आपका जीवन है। अच्छाई का यही अन्दर और विकसित करें तथा यह देखने सबसे सुन्दर इनाम है। अतः आप लोग का प्रयत्न करें कि जीवन में परिवर्तित समर्पित होने का प्रयत्न करें और, आप होने के लिए कितने अन्य लोगों की आपने हैरान होगें कि, समर्पण मात्र से आप पूर्ण सहायता की है। आप समर्पित हो जाएंगे। केवल समर्पित आनन्द और पूर्ण प्रसन्नता एवं शान्ति आपका बहुत बहुत धन्यवाद। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-9.txt श्री माताजी की दूल्हों से बातचीत न ्ि ्ल कबैला, 15-09-2002 री भा मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ कि आप सबने सहजयोग में विवाह करने का निश्चय किया है। परन्तु अब आप पर कुछ जिम्मेदारियाँ भी आ जाएंगी। यह विवाह अन्य विवाहों की तरह नहीं है कि आज आप विवाह करें और कल तलाक ले लें। यहां ऐसा कुछ भी नहीं है सहजयोग में आप इसलिए विवाह करते हैं क्योंकि हम सहजयोग को दृढ़ करना चाहते हैं। आपकी पत्नी होगी जो आपकी देखभाल करेगी, आपके प्रति करुणा एवं प्रेममय होगी क्योंकि वह सहजयोगिनी है आपको भी उसके प्रति सुहृद होना है। उस पर प्रभुत्व जमाने का प्रयत्न न करें। अपने विचार उस पर थोंपने का प्रयत्न न करें। देखें कि वह क्या चाहती है। आपको इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि किस प्रकार पत्नी से प्रेम करना है इसके बिना विवाह संभव न होगा। सहजयोग में एक बार यदि आप तलाक ले लेते हैं तो दुबारा हम आपका विवाह २ 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-10.txt मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 7 नहीं करेंगे अब हमने इस बात का निर्णय यदि आप नहीं कर सकते तो आपको कर लिया है। या किसी भी प्रकार से अविवाहित ही रहना चाहिए. विवाह करना यदि आप अपनी पत्नी को त्याग देते हैं ही नहीं चाहिए। आप यदि विवाह कर या छोड़ देते हैं या इस विवाह के विषय रहे हैं तो अपनी पत्नी की जिम्मेदारी ले में कोई गैर जिम्मेदाराना कार्य करते हैं रहे हैं। वह किसी की बेटी है और उसका तो आपके लिए सहजयोग में कोई स्थान पिता अपनी बेटी आपको दे रहा है । न रहेगा। तो अभी एक बार ही निश्चय कर लें कि अब आप विवाह कर रहे हैं। व्यवहार बहुत अच्छा रहा है। अब आप यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। हम चाहते लोगों में भी यह विवेक एवं सूझ-बूझ हैं कि सहजयोग विवाह सफल हों और होनी चाहिए कि आप यहां पर सहजयोगी आप सब अत्यन्त प्रसन्न विवाहित जीवन बच्चे उत्पन्न करने के लिए आए हैं ताकि का आनन्द लें। प्रभुत्व जमाने, नियन्त्रण सहजयोग की सहायता हो सके । क्योंकि करने का कोई लाभ नहीं है। एक-दूसरे हमारा लक्ष्य विश्व को परिवर्तित करना के साहचर्य का आनन्द उठाना है क्योंकि आपकी पत्नी भी सहजयोगिनी है और के विषय में यदि आपकी सूझ-बूझ निम्न आप भी सहजयोगी हैं। आप यदि स्तरीय है तो इससे काम न चलेगा। अतः सहजयोगी न होते तो हम आपका विवाह मुझे आपसे अत्यन्त विनम्र एवं सम्मानमय न करते। हम प्रबुद्ध लोग हैं, उच्च चेतना अनुरोध करना है कि यदि आप सहजयोग के लोग हैं। हमारा जीवन आध्यात्मिक के वैवाहिक जीवन में प्रवेश कर रहे हैं तो है। अपने जीवन में हमें दर्शाना है कि आपको अपनी जिम्मेदारी की समझ अभी तक सहजयोग में लड़कों का है। संसार का उद्धार करना होगा। विवाह किस प्रकार हम उन लोगों से भिन्न आवश्यक है। यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी आचरण करते हैं जो सदैव लड़ते रहते हैं है, यह जिम्मेदारी पूरे विश्व के लिए है. और सभी कुछ बिगाड़ने में लगे रहते हैं क्योंकि हमें पूरे विश्व को परिवर्तित करना ताकि आपके अत्यन्त अच्छे बच्चे हों। है यदि आप अपने देश के या अन्य आप उनकी तथा उनके परिवार की देशों के पतियों की तरह से व्यवहार देख-भाल कर सकें, यह आपका पहला करेगें तो सहजयोग में विवाह करने का कार्य है। निःसंदेह आपमें से कुछ लोग क्या लाभ होगा, तब तो आप बाहर जा अपने कार्य में बहुत व्यस्त होगें, यह ठीक कर अच्छा सा विवाह करें। परन्तु यदि है, परन्तु पत्नी को प्रेम करना, उसकी आप सहजयोग में विवाह कर रहे हैं तो देखभाल करना और बच्चों की देखभाल आपको यह समझ लेना आवश्यक है कि करना भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है । ऐसा यह भयानक आसुरी शक्तियों, अन्याय 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-11.txt मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 ৪ तथा कुप्रबन्धन के विरुद्ध भयानक जंग बातचीत करें और उसे बताएं, 'ठीक है, है हम एक अत्यन्त सुन्दर विश्व का आओ बैठों। आपा खोने या क्रोधित होने सृजन करना चाहते हैं और इस सुन्दर की कोई आवश्यकता नहीं है। किसी भी विश्व को बनाने के लिए हमें ऐसे लोगों प्रकार का उदाहरण देना ठीक नहीं होता, की आवश्यकता है जो बहुत सुन्दर हों इससे कोई भी लाभ न होगा। मैं देखना और जो सभी का सम्मान करते हों। चाहती हूँ कि आप सब अपनी पत्नियों के अतः बार-बार मेरा आपसे यही अनुरोध प्रति कितने नेक हैं, परन्तु मैं यह भी नहीं है कि आप लोग अत्यन्त भले, विनम्र एवं कहती कि आप उन्हें बिगाड़ दें। ऐसा सम्मानमय पति बनें। अन्य लोगों का बिल्कुल न करें, मैंने उनसे भी बता दिया अनुसरण न करें। मुझें बड़ी अजीबो-गरीब है। उनकी आदतें न बिगाड़ें, उन्हें भी बातें सुनने को मिलती हैं, मैं हैरान थी सहजयोग के शुभ रास्तों पर चलने दें कि सहजयोग में विवाह करके लोग ऐसे और सहजयोग के अच्छे कार्यकर्त्ता बनने किस प्रकार बन सकते है! हमें पता चला दें। वो बहुत अच्छी माताएं बनेंगी और कि वो पगला गए थे और पागलों की ऐसे बच्चों को जन्म देंगी जिनकी हमें तरह से आचरण कर रहे थे। अतः आवश्यकता है जो इस विश्व को पूरी आक्रामकता आदि चीज़ों की आज्ञा नहीं तरह से परिवर्तित कर देगें अतः मुझे है। इस लड़की से आप पूरे विश्व के हित आशा है कि आप यदि मुझसे सहमत हैं के लिए विवाह कर रहे हैं, केवल अपने तो ठीक है और यदि नहीं हैं तो अब भी बच्चों के और अपने परिवार के लिए आप इस विवाह को छोड़ सकते हैं । मैं नहीं। पूरे विश्व के सम्मुख आपको यह इस बात का बुरा नहीं मानूंगी, परन्तु दर्शाना होगा कि आप अत्यन्त विवेकशील, विवाह के पश्चात् यदि आप दुर्व्यवहार बुद्धिमान और विकसित व्यक्ति है यह करते हैं या अपनी पत्नी को तलाक देते अविकसित लोगों का व्यवहार नहीं है। हैं तो सहजयोग में आपके लिए कोई अतः यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप स्थान न होगा। हम यहां आपको बने दर्शाएं कि आप अत्यन्त परिपक्व व्यक्ति रहने नहीं की आज्ञा न देंगे । हैं, अत्यन्त ज्योतिर्मय हैं और पूरे विश्व को ज्योतिर्मय बना सकते हैं। पत्नी क्योंकि किसी अन्य परिवार, नहीं वह हाथ उठाएं। धन्यवाद। धन्यवाद । या हो सकता है कि अन्य देश से आ यह जानकर मैं बहुत प्रसन्न हुई। अतः रही है, इसलिए सोच-समझ में अन्तर हो आपको विवेकशील बनना होगा और अपनी सकता है। अतः उसे समझाएं, उससे पत्नी को बताना होग, 'देखो चीजें इस क्या आप सबको मेरी बात स्वीकार है? ठीक है जिसे भी मेरी बात स्वीकार 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-12.txt मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 प्रकार से हैं, ऐसे है।' उन्हें यह बाते सम्मान करेगी, आपको सम्मानमय व्यक्ति समझने दें कि आप विवेक में उनसे आगे बनना होगा, पत्नी के प्रति करुणामय एवं | इतना ही नहीं आप अत्यन्त विवेकशील भद्र होना होगा, मैं उन्हें बिगाड़ने के लिए हैं। आध्यात्मिक रूप से आप उन्हें समझें नहीं कह रही। कहीं यदि आपको गलती तब वे आपकी बात को सुनेंगीं वे अपने दिखाई देती है तो अपने साथ बैठाकर माता-पिता को, परिवार को, देश को, उसे बताएं कि सहजयोग दृष्टिकोण से छोड़ कर आ रही हैं । अतः उनके प्रति यह बात ठीक न होगी ठीक है इसी अत्यन्त भद्र एवं सुदृढ़ बनें और किसी भी कारण से इन बीते वर्षों में मैनें आपसे बात के लिए उन पर नाराज़ न हों। प्रतीक्षा करवाई, अब आप बड़े हो गए हैं किसी भी बात के लिए उन पर बिगड़ें और समझते हैं कि आपके जीवन का नहीं। अपने पूरे जीवन में मैं कभी क्रोधित लक्ष्य क्या है। आप सबका अत्यन्त नहीं हुई। इससे पता लगता है कि लोग धन्यवाद। परमात्मा आपको आशीर्वादित बेकार में ही नाराज होते हैं। इसकी कोई करें। देखें कि यह सार्वभौमिक है। हम आवश्यकता नहीं है, शान्त रहें। कोई चीज़ यदि आपको अच्छी नहीं लगती तो सभी सार्वभौमिक हैं और हमें अपनी चुप रहें। किसी भी प्रकार का क्रोध या सर्वव्यापी सूझ-बूझ के विवेक को दर्शाना गुस्सा न दर्शाएं । आपको दिखाना होगा है कि हम इस प्रकार विश्वभर के सभी कि आप विवेकशील एवं गरिमामय व्यक्ति देशों से आए सब लोगों का आनन्द लेते | कुछ पतियों को मैंने चिल्लाते हुए, हैं वे सभी हमारे, भाई-बहन हैं । ठीक चीजें फेंकते हुए तथा इस प्रकार के अन्य है? कार्य करते देखा है। आप यदि सम्मान के योग्य नहीं हैं तो पत्नी कैसे आपका ति आप सबका हार्दिक धन्यवाद । हुए श 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-13.txt श्री माताजी की दुल्हनों को सीख गणेश पूजा 15 सितम्बर 2002, कबैला पत कड म ा ा लि या में विवाह के लिए उद्यत देखकर मैं बहुत आप सबको इतनी सुन्दर वेश-भूषा प्रसन्न हूँ। अपने दृष्टिकोण को ठीक रखना आवश्यक है। आप सबको अत्यन्त प्रसन्न रहना है और अपने पतियों को भी प्रसन्न रखना है। आप लोगों की प्रसन्नता ही बच्चों को भी प्रसन्नता प्रदान करेगी । अब एक बात की आप सबको चेतावनी देती हूँ कि कभी भी अपने पिछले जीवन की गलतियों के विषय में अपने पति को न बताएं। इस बारे में कोई बात नहीं होनी चाहिए, इसकी कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि अब आप सहजयोगी हैं। आप परिवर्तित लोग हैं पहले जो भी घट चुका उसके बारे में बातचीत करने की या उसे कुछ बताने की आवश्यकता नहीं हैं। वर्तमान और भविष्य की बातें करें, ठीक है? विवेकशील बनें। आपकी विवेकशीलता ही आपके वैवाहिक जीवन को सुखमय 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-14.txt मार्च-अप्रैल 2003 11 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 बनाएगी। आप यदि विवेकहीन हैं, बुद्धिहीन महिला की सराहना नहीं कर सकता। हैं तो विवाह असफल हो जाएंगे। मैंने अतः आप लोगों को आक्रामक नहीं होना देखा है कि कुछ लड़कियां अपने पतियों चाहिए । जो भी कुछ वह कहता है उसे पर बहुत रौब झाड़ती हैं।प्रभुत्व जमाने सुनना चाहिए और सहमत होना चाहिए। की कोई आवश्यकता नहीं, पति से प्रेम करना ही प्रभुत्वशाली होना है । अतः छोटी-छोटी चीज़ों के लिए अपने पति सर्वोत्तम उपाय पति को प्रेम करना उसकी पर प्रभुत्व जमाने का प्रयत्न नहीं करना देखभाल करना तथा अन्य सभी आवश्यक चाहिए। ऐसा करना सहजयोगी का चिन्ह कार्य करना है ये दर्शाने की बिल्कुल भी नहीं है। सहजयोगिनी को तो अपने प्रेम, आवश्यकता नहीं कि आप किसी बेहतर सूझबूझ, एवं विवेक से अपने पति को समाज से हैं या बेहतर संस्कृति और जीतना है। उस पर प्रभुत्व जमाकर नहीं। बेहतर पारिवारिक पृष्ठभूमि से हैं केवल यह बात हमें समझ लेनी चाहिए कि आप स्वयं ही यह दर्शा सकती हैं कि प्रभुत्व जमाने की प्रवृत्ति के कारण बहुत आप वास्तव में अच्छी व्यक्ति हैं और से विवाह टूट गए। आपकी अच्छाई ही उसके दिल को जीतेगी। अतः केवल पत्नी ही विवाह को माता-पिता, परिवार, अपने देश से जुड़े बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार होती है और हुए हैं अब इन्हें भूल जाएं। अपने पति के मुझे ये बात स्पष्ट बतानी है कि अब भी परिवार अपने पति तथा उसके इ्द-गिर्द यदि विवाह के विषय में आप मन में सोच की चीजों से जुड़ जाएं। क्योंकि अब भी रही हैं कि आपका साथी अच्छा नहीं है यदि आप अपने परिवार के मोह में फंसी तो अभी आप पीछे हट जाएं। बाद में हुई हैं तो आप अपने संबंध बिगाड़ लेंगी। अपने पति के दोष न खोजती रहें । पुरुष इस कारण से मैंने बहुत से जोड़े दटूटते पुरुष होते हैं और महिलाएं महिलाएं, हुए देखें हैं । एक लड़की हमेशा अपने पुरुष महिलाएं नहीं हो सकते। परन्तु पिता के विषय में चिंतित रहती थी क्योंकि आप उन्हें समझा सकती हैं कि महिलाओं उसका व्यापार चौंपट हो गया था। इस का भी सम्मान होना चाहिए। ठीक है? प्रकार से उसने अपने जीवन को न्क ये सब कुछ आपको अपने आचरण से बना लिया। उसका पति कहीं चला गया दर्शाना है। आपका आचरण यदि अच्छा और उसने कुछ अन्य करना चाहा और निःसन्देह कुछ मूल चीजें हैं। अन्यथा दूसरी बात ये है कि आप अपने तो वे आपका सम्मान करेंगे। परन्तु इस प्रकार वह बीच में ही लटकी रह आपका व्यवहार यदि बचकाना है, गई उसे अपने पिता के घर वापिस आक्रामक है तो कोई भी पुरुष आक्रामक जाना पड़ा और तब उसे पता चला पिता পত। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-15.txt मार्च-अप्रैल 2003 12 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 चाहिए। सभी कुछ आपने अपने परिवार के घर में रहना कितना कठिन है। अंतः यह आपका घर है, आपका और पति को देना है। आपको कुछ नहीं पति है, आपने किसी अन्य पुरुष या महिला चाहिए। यही आपका सौन्दर्य हैं, यही को सहायता के लिए खोजते नहीं फिरना। आपकी सज्जा है । यही आपको सौन्दर्य आप स्वयं ही अपनी सहायता कर सकते प्रदान करेगी परन्तु यदि आप इच्छाओं हैं कुछ लड़कियों का हमें गलत के पीछे-पीछे भागते रहेंगे तो इनका कोई अनुभव हुआ है। अपने पतियों को छोड़कर अन्त नहीं, विशेष रूप से पाश्चात्य बुद्धि अपने बच्चों के साथ अपने माता-पिता के लिए। पाश्चात्य महिलाएं बहुत ही धन के घर लौट आई। क्या उनका परिवार लोलुप हैं और उन्होंने बहुत सी समस्याएं पूरा जीवन उन्हें पालेगा? कौन उनकी खड़ी की हैं। मैं नहीं जानती कि उनसे देखभाल करने वाला है? अतः अपने क्या कहूं। अतः आपको धन-लोलुप नहीं मस्तिष्क का उपयोग करें या कभी ये होना चाहिए। आपको प्रेम लोलुप होना दर्शाने की कोशिश न करें कि आप कोई चाहिए। भिन्न तरीकों से अपने प्रेम की बहुत बेहतर ऊँची या बढ़िया चीज़ हैं। अभिव्यक्ति करें, अच्छा खाना बनाकर, जो भी बात कहें उससे विनम्रता टपके। अपने पति के लिए अच्छा बिस्तर बनाकर, जितना अधिक आप विनम्र होंगी उतना बहुत घर का ठीक प्रकार से आयोजन करके ही अच्छा है। अक्खड़ स्वभाव महिलाओं और हर चीज़ भली-भांति रखकर । क्योंकि को शोभा नहीं देता। ऐसी महिला अच्छी पत्नी यदि सुव्यवस्थित नहीं होगी तो घर नहीं लगती। मैं नहीं जानती कि वह भी अव्यवस्थित ही रहेगा घर की कैसी लगती है? कभी-कभी तो वह घोड़े देखभाल करना पति का कार्य नहीं है। जैसी लगती है। अतः बेहतर हो कि आप अपने घर को और अपने कमरे को यदि विनम्र, सुहृद एवं भद्र हों और प्रमाणित आप ठीक-ठाक रखेंगी तो इसके सौन्दर्य करें कि आप बहुत अच्छे स्वभाव की का आनन्द लेंगी। यह सब करने में आपको इन्सान हैं, ठीक है? एक अन्य चीज़ मैंने आप सबको करने का आनन्द लें, विशेष रूप से अपने बतानी है क्योंकि आप सब पश्चिम से हैं पति के लिए कार्य करने का छोटी-छोटी और पश्चिमी महिलाएं धन लोलुप होती चीजें उसे सुख एवं प्रसन्नता प्रदान कर हैं। अब तो भारतीय महिलाएं भी ऐसी सकती हैं क्योंकि दफ्तर ही में वह इतना बन गई हैं। उनको भी कार चाहिए., घर चाहिए, ये चाहिए, वो चाहिए। आपको आता है तो आप उसके पीछे पड़ जाती किसी भी चीज़ की आकांक्षा नहीं होनी हैं। ऐसा करना बहुत गलत है दृष्टिकोण आनन्द आएगा परिवार के लिए कार्य थक जाता है। थका थकाया जब वह घर 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-16.txt मार्च-अप्रैल 2003 13 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 अतः गर्ममिजाज़ी महिलाओं को को इस प्रकार बदला जाना चाहिए कि, हमें कुछ नहीं चाहिए। हमारे पास सभी शोभा नहीं देती। आप यदि क्रोधी स्वभाव कुछ है। हम सहजयोगी हैं। हम पूर्णतया की हैं तो बहुत जल्दी आप बूढ़ी हो सन्तुष्ट हैं। परन्तु यदि आप मांगें करती जाएंगी, बहुत ही शीघ्र आप वृद्धा लगने चली जाएंगी तो बहुत कठिनाई होगी, लगेंगी आपमें यदि अहं है और अपने यह बात मैं आपको बता सकती हूँ। कुछ अतः सर्वोत्तम बुरा अनुभव हुआ। हाल ही में आस्ट्रिया चीज़ तो ये है कि एक नन्ही बालिका की की तीन लड़कियाँ आस्ट्रिया वापिस चली तरह व्यवहार करें। ऐसी बालिका की गईं। लज्जाजनक! आस्ट्रिया का कोई तरह जो अपने पति को प्रेम करने के व्यक्ति यहाँ है? नही? परमात्मा का शुक्र लिए, उसकी देखभाल करने के लिए है तुम आस्ट्रिया से हो? अब सावधान उसको मातृत्व प्रदान करने के लिए उसके हो जाओ। ये तीनों लड़कियाँ बच्चों के घर में आई है। आपको ये सोचना है कि साथ वापिस आ गई हैं और पति इतना आप उसकी माँ हैं और पति तो घबराया हुआ है कि हर शनिवार, इतवार कभी-कभी, बेवकूफ होते हैं। परन्तु कोई को उसे पिता के घर जाना पड़ता है। बात नहीं। अतः अपने बच्चे की तरह से आने जाने पर ही वह सारा पैसा खर्च उसकी देखभाल करें और उसके प्रति कर देता है। इसमें कोई विवेक दिखाई अत्यन्त मधुर एवं अच्छी बनी रहें । आपके नहीं देता। आप देखें कि घरेलू महिला परिवार का कोई भी सदस्य आपके पति केवल परिवार को ही नहीं उन्नत करती से महत्वपूर्ण नहीं है। यह बात अब आपके परन्तु सूझ-बूझ एवं यश भी लाती है। लिए बहुत आवश्यक है कि आपका पति अधिक कष्ट उठाने वाली कोई बात नहीं ही आपके लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। केवल सूझ-बूझ की आवश्यकता है। है विवाह की यही सहज शैली है। सहज आप यदि बुद्धिमान हैं तो कुछ घटना से बाहर आप विवाह कर सकती हैं, दस यदि हो भी जाए तो उसके प्रति आप विवाह कर सकती हैं, ये अलग बात है। अत्यन्त विवेकशील, सन्तुलित, जिम्मेदारी परन्तु सहज में ऐसा नहीं है परन्तु एक पूर्ण रवैया अपनाती हैं। जहाँ तक परिवार बार यदि आपका तलाक हो जाता हैं तो और बच्चों का संबंध है पत्नी को पति से हम पुनः आपका विवाह नहीं करते, ऐसा कहीं अधिक जिम्मेदार होना होगा परन्तु करना हमने छोड़ दिया है। ऐसा करके यदि आप गर्ममिजाज़ हैं तो परमात्मा ही हम देख चुके हैं क्योंकि इस प्रकार पतियों आपके और आपके पति के मालिक हैं। को त्यागने की आदत बन जाती है, एक आप को यदि आप बहुत बड़ी चीज़ मानती लड़कियों के साथ मुझे बहुत हैँ तो भी ऐसा ही होगा | 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-17.txt मार्च-अप्रैल 2003 14 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 बार जब आपका विवाह हो जाता है। तो तो बच्चों का भविष्य बहुत अच्छा हो आपको विवाहित ही रहना है। यदि आपको जाएगा। मैं आपको काफी बता चुकी हूँ| तलाक लेना है तो ये बात जान लें कि हमें आपसे कुछ नहीं लेना-देना। सहजयोग मुझे आशा है कि आप इस बात को से आपको बाहर फेंक दिया जाता है । समझ गई हैं कि आप सहजयोग में विवाह हम चाहते हैं कि बहुत अच्छे विवाह हों, कर रहीं हैं और आपने सहजयोग की अच्छे बच्चे बनें और बहुत अच्छी गरिमा को बनाए रखना है क्या आप बहुत पीढ़ी आए। आप यदि अत्यन्त अच्छे, सब इस बात का वचन देती हैं? विवेकशील, बुद्धिमान एवं सुहृद माताएं हैं। परमात्मा आपको धन्य करें। पाय *ी हा ष 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-18.txt द १ू० हे ४८ हा नवरात्रि पूजा लॉस एंजलिस, 27-10-2002 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज हम देवी की पूजा करेंगे। सर्वप्रथम उनसे बायीं ओर का कार्यक्रम नियत होता है परन्तु बाद में सहस्रार पर वे कार्य करती हैं। वे आदिशक्ति हैं। बायीं तरफ जो भी कार्य वे करती हैं, इसके विषय में लिखा हुआ है। क्योंकि वे 'समृद्धि' हैं और "विवेक' हैं और वे सुरक्षा भी प्रदान करती हैं। गणों पर जब वे अपनी शक्ति उपयोग करती हैं तब यह बात प्रकट होती है। जैसा कि हम जानते हैं गण ही आपके अन्दर के सभी प्रकार के सुधारों के लिए जिम्मेदार हैं। गण बायीं ओर से कार्य करते है । हम जानते है कि कैंसर रोग बायीं ओर की समस्या है। देवी की शक्तियों से पूर्णतः एकरूप यह गण भी बायीं तरफ ही होते हैं। देवी को उन्हें बताना नहीं पड़ता, उनका पथ प्रदर्शन नहीं करना पड़ता। उनकी संरचना ही इस प्रकार से होती है। यही गण, मैं कहना चाहूँगी, निशाना 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-19.txt मार्च-अप्रैल 2003 16 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 लगाते हैं, रोग पर निशाना लगा कर इसे जाता है और अपने गणेश तत्व की ठीक करते हैं। गणों के माध्यम से हमने देखभाल नहीं करता। अतः देवी की पूजा बहुत से कैंसर रोगी तथा बायीं ओर के करते हुए आप श्री गणेश की भी पूजा (मनोरोगी) ठीक किए हैं। परन्तु गण किसी कर रहे हैं क्योंकि श्री गणेश उन्हीं की अन्य की बात नहीं सुनते। गणपति उनके शक्ति हैं । आपकी सुरक्षा ही श्रीमाताजी सेनापति हैं या मैं ये कहूंगी कि वे उनके की शक्तियों का मुख्य कार्य है सभी नियंत्रक हैं। अतः यदि आपके गणपति ठीक हैं की सभी प्रकार की सुरक्षा। इनका तो समस्याएं बहुत कम होती हैं। परन्तु वर्णन-देवी महात्म्यं में किया गया है यदि गणपति ठीक नहीं हैं तो सभी प्रकार और आपने इन्हें पढ़ा होगा। जो भी की समस्याएं आ कर कष्ट देंगी। ये एक सुरक्षा वो आपको प्रदान करती हैं उनका ऐसी चीज़ है जिसकी ओर मैं बहुत ध्यान वर्णन किया गया है उनकी सुरक्षा शक्ति देती हूँ कि हमें अपने अन्दर श्री गणेश इतनी महान है । यह सुरक्षा शक्ति आपको प्रकार की बाधाओं से सुरक्षा, बायीं ओर इस प्रकार की समझ प्रदान करती है कि को अवश्य ठीक रखना चाहिए। उस दिन मुझे पत्रों से भरा हुआ एक बहुत बड़ा देवी कितनी करुणामय हैं और कितनी लिफाफा मिला। इनमें लिखा था कि श्री सुरक्षादायिनी। हर समय वे आपका पथ माता जी गणों को नियंत्रित करना बहुत प्रदर्शन करती हैं। ताकि बायीं ओर की कठिन कार्य है। गणपति को सभांलना समस्याओं से आप सुरक्षित रहें। अपने भी अपने आप में बहुत कठिन कार्य है तो गणों के माध्यम से वे आपकी बायीं ओर हम क्या करें? हम हतप्रभ अवस्था में की देखभाल करती हैं। परन्तु दाईं ओर होते हैं । ऐसी स्थिति में जब आपको कोई को भी-जो लोग आक्रामक हैं - देवी मार्ग नज़र नहीं आता और गणपति के अपनी शक्तियों से उन्हें भी ठीक करती স प्रभाव पर जब आप काबू नहीं कर पाते हैं। ताकि आप सामान्य अवस्था में वापस तो आपको चाहिए कि आप ध्यान में चले आ जाएं, विनम्र हो जाएं और यह समझ जाएं। गणों को काबू करने का एकमात्र सकें कि आप देवी (श्रीमाताजी) के बालक हैं और आपको बाल सुलभ आचरण करना रास्ता ध्यान धारणा है। बच्चों का पालन पोषण तथा है। वातावरण सर्वप्रथम है। ये दोनों कार्य बहुत महत्वपूर्ण हैं। इनसे आप गणों के दाईं ओर की सभी प्रकार की जटिलताएं साथ ठीक से चल सकेंगे। लेकिन समस्या वैसे ही खड़ी हो जाएंगी जैसे दाईं ओर यह है कि मानव व्यर्थ की चीज़ों में खो की होती हैं। आजकल दांई ओर की परन्तु यदि आप अति में जाएंगे तो 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-20.txt मार्च-अप्रैल 2003 17 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 समस्याएं बहुत ही आम बात है और मैंने नहीं मान लिया जाना चाहिए। देखा है कि लोग इन पर काबू नहीं पा सकते। इनके कारण बाद में अल्जाइमर ध्यान करें। ध्यान बहुत महत्वपूर्ण है, ध्यान (Alzhiemer) जैसे रोग हो जाते हैं । इसकी शुरुआत जिगर से होती है। का प्रश्न ही नहीं होता, इसका प्रश्न ही जिगर मुख्य बिन्दु है क्योंकि हम जिगर नहीं है। ध्यान धारणा बहुत महत्वपूर्ण है, के जाल में फॅस जाते हैं। आप यदि बहुत ध्यान किया ही जाना चाहिए क्योंकि इसी अधिक सोचते हैं, बहुत अधिक भविष्यवादी के माध्यम से ही आप चैतन्य लहरियों के हैं, आप यदि आक्रामक हैं तो जिगर समीप पहुँचते हैं या मैं कहूंगी, देवी के बिगड़ जाता है क्योंकि इन सभी कार्यों स्वभाव के समीप पहुँचते हैं। पशु भी माँ के लिए आपको ज़िगर की शक्ति का के प्रति बहुत संवेदनशील हैं, चैतन्य उपयोग करना पड़ता है। जिगर की शक्ति लहरियों के प्रति अत्यन्त संवेदनशील हैं। समाप्त होने पर आप ज़िगर-शक्ति विहीन पशु तो चैतन्य लहरियों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं और आपमें ऐसे भयानक रोग हैं परन्तु मानव की अपनी ही सूझ-बूझ और कष्ट पनप उठते हैं जिन पर आप है, अपनी ही स्वतंत्रता है, अपनी ही बुद्धि काबू नहीं पा सकते। ऐसा करना बहुत है और वे इसी के जाल में फंस जाते हैं ही कठिन होता है। निःसन्देह सहजयोग ध्यान धारणा करने चाहिएं। ध्यान करना आवश्यक है अवश्य धारणा के बिना स्वयं को ठीक रख पाने और ऐसे कार्य करते हैं जो उन्हें नहीं द्वारा बहुत से लोगों का ज़िगर ठीक हो गया है। ठीक होकर उनके ज़िगर अब जिस चीज़ की आवश्यकता है, वह हैं, बहुत ही अच्छा कार्य कर रहे हैं। परन्तु श्रद्धा और भक्ति। वहां पर इन दोनों व्यक्ति को विनम्र होकर अपने ज़िगर को चीजों का अभाव है। भारतीय सहजयोग ठीक रखने का प्रयत्न करना चाहिए तो को अपनाते हैं और इसकी गहनता में ये गण आपके शरीर के अन्दर बाईं ओर उतर जाते हैं क्योंकि वो जानते हैं कि को सुरक्षा की संरचना करते हैं जिसकी भक्ति क्या है, श्रद्धा क्या है । उनके अहं प्रतिक्रिया स्वरूप दाईं ओर को भी सुरक्षा आदि दुर्गुण समाप्त हो जाते हैं। परन्तु मिलती है परन्तु देवी का आशीर्वाद इस भक्ति का आनन्द लिया जाना चाहिए। महानतम चीज़ है, जिस प्रकार से वे मैं नहीं जानती कि किस प्रकार व्यक्ति आपकी देखभाल करती हैं, जिस प्रकार के अन्दर भक्ति का सृजन किया जाए। वे आपको प्रेम करती हैं, आपकी चिन्ता ये बात मैं नहीं कह सकती। परन्तु भक्ति करती हैं। इन सब आशीर्वादों को अधिकार में डूबे हुए लोग मैंने देखे हैं । भक्ति अतः अमेरिका जैसे देश के लिए 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-21.txt मार्च-अप्रैल 2003 18 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 यद्यपि भावनापक्ष है फिर भी उन लोगों उन्हें पढ़े, उन्हें समझें तो आप हैरान होंगे ने महान बुलंदियाँ प्राप्त कर ली हैं। भक्ति कि किस प्रकार बिना किसी सहायता के, भाव में बहकर भी मैं नहीं जानती कि बिना किसी पथ प्रदर्शन के इतनी गहनता किस प्रकार भक्ति और श्रद्धा ने उनकी में जाकर देवी की पूजा कर पाएँ। सहायता की। इस मामले में भारतीय सर्वोत्तम हैं क्योंकि उनमें भक्ति और श्रअद्धा पूजा केवल पढ़ना या मंत्रोच्चारण मात्र नहीं है। यह तो आपके चित्त की की शक्ति है। ये पागलपन नहीं है, यहाँ गहनता है। मेरे विचार से यह आत्मा है। के लोगों की तरह से पागलपन नहीं है। आपके अन्दर यदि आत्मा जागृत हो जाए यहाँ मैंने लोगों को देखा है कि किसी न तो भक्ति पनपती है और सभी मूर्खतापूर्ण किसी धर्मान्धता में फंसकर वे पगला जाते विचारों को, उन सभी चीज़ों को जो हैं। ये पागलपन नहीं है। भक्ति तो प्रेम है आपके मस्तिष्क में घुस गई है, निकाल और प्रेम सूझ-बूझ प्रदान करता है और फेंकती हैं। केवल भक्ति विकसित करें । समझता है कि भक्ति और श्रद्धा क्या है। देवी के ये सभी गुण जो बताए गए हैं, ये अपने अन्दर भक्ति और श्रद्धा विकसित भावना पक्ष के हैं। ये सब स्मृति में हैं। किए बिना आप उन्नत नहीं हो सकते। 'स्मृति रूपेण संस्थिता'। जिन अन्य चीजों अपनी समस्याओं से छुटकारा नहीं पा का वर्णन किया गया है वे मस्तिष्क की सकते। अपने व्यक्तित्व से ऊपर नहीं उठ हैं। जब यहां भक्ति पनपती है तो इन सकते क्योंकि भक्ति को किसी पर थोपा सभी चीज़ों के प्रभाव को समाप्त करती नहीं जा सकता। किसी को पागल बनाकर है मस्तिष्क की सभी समस्याएं आप कह सकते हैं कि वो भक्ति कर निष्प्रभावित हो जाती है और आप सकता है। आपको अपने सारे गुण बनाए विवेकशील व्यक्ति बन जाते हैं । रखने होंगे, आपको विवेकशील होना होगा, आपमें होनी चाहिए, सभी गुण आशीर्वाद है इसे आप चेतना' भी कह अतः विवेक देवी का सबसे बड़ा सूझ बूझ आपमें होने चाहिएं परन्तु भक्ति का आनन्द सकते हैं, कुछ भी कह सकते हैं। ये एक भी आपमें होना चाहिए। भक्ति का ये ऐसा विवेक है जिसे प्राप्त करके आप आनन्द जब आपमें प्रवाहित होने लगता पूर्णतः दिव्य व्यक्तित्व बन जाते हैं। भक्ति है तो देवी स्वयं आपके रोम-रोम में प्रवेश के माध्यम से आपने यह विवेक प्राप्त कर जाती हैं। भारत में मैंने बहुत से करना है। परन्तु हमारे यहां भिन्न प्रकार भक्तों और सन्तों को देखा है, उन सन्तों के लोग हैं। कुछ तो अत्यन्त श्रद्धा, भक्ति को जिन्होनें बहुत बुलंदिया प्राप्त की हैं। और समर्पण से परिपूर्ण हैं परन्तु वे भटके वो लोग बहुत गहन उतर गए । आप यदि हुए हैं, यह नहीं जानते कि कहां जाएं 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-22.txt मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 19 और किस की पूजा करें। सहजयो ग वास्तवीकरण है, आपको पागल नहीं बनना विवेकशील साक्षात्कार है। ये वास्तवीकरण है जिससे पुरुष बनें। जिस प्रकार से बीते युगों में आप जान जाते हैं कि किसकी पूजा बहुत से विवेकशील पुरुष हुए जिस प्रकार करनी है, किसके प्रति समर्पित होना है। से उन्होनें ज्ञान की चर्चा की. वह ये अन्धविश्वास नहीं है विवेकहीन भक्ति आश्चर्यचकित कर देने वाला है। जिस आपको सभी प्रकार की मूर्खताओं में फंसा प्रकार उन्होंने मानवीय चेतना और आपके सकती है। इसी के कारण बहुत से पथ उत्थान के विषय में बताया वह प्रशंसनीय तथा अन्य कुरीतियां पनपी हैं। अन्ध भक्ति था। कई बार मुझे लगता है कि उन्होनें न तो कुछ देखती है, न जानती है, न मेरे लिए क्षेत्र तैयार कर दिया समझती है। विवेक द्वारा, अपनी पूर्ण चेतना ऐसा क्षेत्र जिसके विषय में मुझे बताना द्वारा यह समझना चाहिए कि भक्ति का है। भारत में विशेषरूप से, मैं नहीं जानती, जीवन क्या है। कुण्डलिनी जागृति प्राप्त हम इतने श्रद्धामय क्यों हैं? करके हम भक्ति को समझने की, भक्ति की शक्ति जानने की महान बुलंदी पर होना चाहिए। भारत में भी पागल लोग पहुँच गए हैं। भक्ति की सबसे बड़ी शक्ति हैं, वहां पर भिन्न पंथ हैं। सभी प्रकार आपकी सुरक्षा है। यह आपकी रक्षा करती की चीज़ें हैं इसमें कोई संदेह नहीं । परन्तु है। जो लोग किसी कष्ट से, किसी समस्या वास्तव में वहां ऐसे सन्त भी हैं जिन्होंने से पीड़ित हैं वो एक-दम से पीड़ा मुक्त भलीभांति हमारा पथ प्रदर्शन किया। परन्तु हो जाते हैं क्योंकि आपके अन्दर की इस सबके बावजूद भी वहां पर लोग भक्ति आपको उचित सूझ-बूझ, स्वयं को, भटक रहे हैं। गलत-गलत कार्य कर रहे अपने वातावरण को और पूरे ब्रह्माण्ड को हैं। गलत तरह की पूजा कर रहे हैं। हाँ, समझने की शक्ति प्रदान करती है। लोग यह बात सत्य है, इसमें कोई संदेह नहीं इस प्रकार से क्यों आचरण करते है, वे है। परन्तु मैं कहूँगी कि यह भी एक ऐसे क्यों है, इन सभी प्रश्नों के उत्तर विचित्र प्रकार का पागलपन है जिसमें भक्ति के माध्यम से प्राप्त किए जा सकते विवेक का पूर्ण अभाव है। पागल और हैं। यह चेतना विहीन नहीं होनी चाहिए । सयाने व्यक्ति में अन्तर केवल इतना होता भक्ति विवेक से परिपूर्ण होनी चाहिए है कि पागल में विवेक नहीं होता। जिनमें और ऐसी भक्ति, मेरे विचार से सहजयोग यह तथाकथित विवेक होता है वो कहते के माध्यम से ही संभव है। अन्यथा जिस हैं कि हम बहुत विवेकशील हैं । ऐसे प्रकार पागलों की तरह से लोग भक्ति लोग भी बुरी तरह से गलतफहमी में हैं करते हैं यह भक्ति नहीं हो सकती। एक इसी प्रकार से सर्वत्र ऐसा ही घटित 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-23.txt मार्च-अप्रैल 2003 20 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 क्योंकि जिस प्रकार से वे व्यवहार करते करती है और इसी के कारण आप इतने हैं, जिस प्रकार से वे गलतियां करते हैं, सारे चमत्कार घटित होते देखते हैं। आप जैसा उनका चित्त है, सभी कुछ अत्यन्त हैरान होते हैं कि ये सब किस तरह से आश्चर्यचकित कर देने वाला है। सर्वप्रथम घटित हो रहा है। 'इसकी तो हमने कभी आत्मनिरीक्षण द्वारा देखना है कि 'क्या आशा ही नहीं की थी, यह कैसे हो मैं विवेकशील हूँ? क्या मैं विवेकशील हूँ? गया? किस प्रकार यह कार्यान्वित हुआ? मैं विवेकपूर्ण कार्य कर रहा हूँ या नहीं? देवी आपमें त्रृटि सुधार भी करती है। सहजयोगियों के विषय में मुझे बहुत आप यदि चेतन हैं तो आप देखते हैं कि सी शिकायतें आती हैं। किस प्रकार वो वे आपको सुधारती हैं और बताती हैं कि ऐसे कार्य कर रहे हैं? मैं कहूँगी कि वो इस मार्ग पर मत चलो। अभी तक भक्ति और श्रद्धा की स्थिति में नहीं पहुँचे हैं। मैं ये भी कहूँगी कि पाश्चात्य रहे हैं या भावनाओं में बह रहे हैं। सभी जीवन में भी इन दोनों गुणों का अभाव क्षेत्रों में वे आपको सुधारती हैं। हम है। हमें वापस लौटना चाहिए, विकसित बीमारियों तथा अन्य प्रकार की समस्याओं होना चाहिए, उन्नत होना चाहिए। परन्तु में फंस जाते हैं, इसका कारण यह है कि अब तो पूर्वी देशों के जीवन में भी यह हममें भक्ति नहीं है। भक्ति में आपके दोनों चीजें समाप्त होती जा रही हैं। पास 'माँ कि शक्ति होती है। शक्ति का जीवन की पाश्चात्य शैली अब उनका विवेक होता है। वे (देवी) आपकी देखभाल आदर्श बन गई है एक बार जब आप करती हैं। वे आपके लिए मार्ग खोजती हैं पाश्चात्य जीवन को अपना लेते हैं तो और आपकी सहायता करती हैं। अपने " वे बताती हैं कि आप अहं में फंस श्रद्धा और भक्ति पीछे छूट जाती है क्योंकि ही विचारों में यदि आप उलझे रहते हैं वहां पर हर चीज़ को विचारों के तराजू कि मैं ठीक हूँ, मैं ऐसा कर सकता हूँ, मैं में तोला जाता है कि जीवन में क्या वैसा कर सकता हूँ तो अन्ततः आपको लाभदायक है और क्या सहायक। उनके महसूस होगा कि आप गलत हैं और दृष्टिकोण से श्रद्धा और भक्ति का कोई आपके मस्तिष्क में आपके तथा परमात्मा लाभ नहीं । इनसे कोई हित नहीं होता अधिकतर लोग आजकल ऐसा ही सोचते हैं। आप कुछ थोड़े से ही लोग हैं जिन्होंने शब्द का अर्थ है समर्पण। परन्तु मोहम्मद समझा है कि भक्ति क्या है, श्रद्धा क्या है। देवी आपको श्रद्धा एवम् भक्ति प्रदान है । परन्तु आपने देखा है कि । के विषय में बहुत बड़ी गलतफहमी थी। अतः समर्पण महत्वपूर्ण है इस्लाम साहब ने कहा था कि समर्पण से पूर्ण आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेना आवश्यक 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-24.txt मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 21 आत्मसाक्षात्कार के बाद भी, स्थापित होने मुझे बताया गया कि एक सहजयोगी अगुवा के बाद भी लोगों को स्थापित होने में (Leader) की हत्या कर दी गई। मैंने समय लगता है एक बार स्थापित होने कहा ऐसा संभव नहीं है, और उस व्यक्ति के पश्चात् आप समझ जाते हैं कि आप की हत्या नहीं हुई थी। यह बात संभव देवी की सुरक्षा में हैं। इस बात को आप नहीं है, इस प्रकार से किसी युवा व्यक्ति प्रतिदिन देखते हैं कि किस प्रकार आपकी (सहजयोगी) की हत्या होना संभव नहीं सहायता की जाती है। बहुत से लोग ऐसे है। हैं जो सहजयोग में हैं, मेरा बहुत सम्मान करते हैं, फिर भी वे पूरी तरह से समर्पित मृत्यु होती है। परन्तु यह कहना कि नहीं हैं। तब उन्हें कष्ट होता है, कई उसकी हत्या कर दी गई, ठीक नहीं है। प्रकार की समस्याएँ उन्हें होती हैं और वो पूछते हैं, 'श्रीमाता जी, मुझे ये समस्याएं शारीरिक, मानसिक एवम् भावनात्मक क्यों हैं? मैं उन्हें कुछ नहीं बताती क्योंकि परन्तु आध्यात्मिक सुर मानव को आप कुछ बता नहीं सकते वे सुरक्षा जिसमें आप कोई गलत कार्य ही अत्यन्त आक्रामक हैं परन्तु वास्तविकता नहीं करते। आप किसी की हत्या नहीं यही है कि आप परमात्मा से एक रूप करते, किसी को कष्ट नहीं देते, किसी नहीं है। यदि आप परमात्मा से एकरूप के प्रति कटु नहीं होते। यह एक ऐसी हों तो सदैव आप पर दैवी प्रेम और स्थिति है जिसमें आप सभी प्रवेश कर करुणा की वर्षा होती रहती है और आपके सकते हैं क्योंकि आप सहजयोगी हैं। यह सभी काम अत्यन्त अच्छी तरह से और स्थिति आप प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा बिना किसी बाधा के सम्पन्न होते हैं। करने की शक्ति आपमें है क्योंकि आपमें लोग चाहे इस बात को न समझे-सम्भवतः इतनी श्रद्धा है, सूझ-बूझ है जिसके कारण यही कारण है कि उन्होंने ईसामसीह को आप सुरक्षा, उत्थान एवम् विवेक की एक सूली पर चढ़ा दिया। सभी प्रकार के विशेष स्थिति में पहुँच गए है। उल्टे सीधे कार्य उन्होंने किए ठीक है। परन्तु अब आपको चाहिए कि देवी से विवेक को परखना आवश्यक है। 'मैं यदि सुरक्षा की याचना करें क्योंकि सभी प्रकार इस कार्य को इस प्रकार से कर रहा हूँ की समस्याओं, कष्टों तथा सभी प्रकार तो क्या यह ठीक है? क्यों मैं ऐसा कर की संभव मूर्खताओं से आपकी सुरक्षा रहा हूँ? सर्वप्रथम अपने विवेक को परखें, करना ही देवी का महानतम् गुण है। बहुत सी चीजें घटित हो जाती हैं। से कार्य जो आप करते हैं वो गलत थे निःसन्देह, वृद्ध सहजयोगियों की भी - न तो यह सुरक्षा है के वल क्षा भी- आध्यात्मिक सर्वप्रथम अपने विवेक को जाँचें। ऐसा करने से आप जान जाएंगे कि बहुत 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-25.txt मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 22 और जिन्हें किया नहीं जाना चाहिए था । जिसकी कभी आशा भी नहीं की जा परन्तु सर्वप्रथम आपका विवेक उन्नत होना सकती। अतः व्यक्ति को स्वयं को जाँचने आवश्यक है। आपको इस बात का ध्यान में अत्यन्त सावधान हो जाना चाहिए । रखना चाहिए कि आपका विवेक कार्य इसी क्रिया को मैं अन्तर्अवलोकन कहती करता है और आपकी मदद करता है। हूँ। भिन्न लोगों से व्यवहार करते हुए मैंने कल का नाटक देखा। आपने क्या आप विवेकशील थे? आपकी शैली भी इस लड़की को देखा होगा वह अति क्या थी? क्या इसमें धनलोलुपता है या संवेदनशील है और सदैव विवेकपूर्वक प्रभुता लोलुपता? अन्तर्अवलोकन द्वारा देखती है कि उचित क्या है। आप यदि आपको इन चीजों का पता लगाना है यह बात नहीं जान सकते कि अच्छा क्या और तब हैरान होगें, अत्यन्त हैरान होगें है, बुरा क्या है तो इसका अर्थ यह है कि कि परमात्मा के नाम पर भी आप गलत कार्य कर सकते हैं। परमात्मा क नाम पर आपमें विवेक का अभाव है। आप यदि यह नहीं समझते कि आपको क्या कहना आप बहुत से गलत कार्य करते चले गए चाहिए और क्या नहीं तो भी विवेक की और यही कारण है कि आज हमारे सम्मुख कमी है। परन्तु आपमें यदि विवेक है तो धर्म के नाम पर इतनी दुर्व्यवस्था है। धर्म एकदम से आप समझ जाएंगे कि गलत में तथा धर्म के विषय में बताने वाले संतों क्या है। इसके अतिरिक्त सभी प्रकार की में कोई कमी न थी। परन्तु जिस प्रकार समस्याओं से आप बचा लिए जाते हैं। से लोगों ने धर्म को समझा और इसका यह बात सत्य है। मैंने ऐसे बहुत से लोगों उपयोग किया वह गलत था क्योंकि उन को देखा है जिनकी रक्षा की गई, न लोगों में विवेक का अभाव था। विवेक केवल मृत्यु से परन्तु सभी प्रकार की एक ऐसा गुण है जो यह समझ लेना मात्र भयानक विपत्तियों से भी सभी प्रकार नहीं होता कि मैं विवेकशील हूँ। विवेक की विपत्तियों से । मैं हैरान थी कि किस तो अपना प्रभाव दिखाता है, कार्यान्वित प्रकार परमात्मा ने इन सहजयोगियों की करता है और दर्शाता है कि ठीक क्या है और गलत क्या है। सहायता की! परमात्मा एक शक्ति है जो सर्वव्यापी है। परन्तु यह शक्ति केवल उन्हीं की जो वास्तव में उच्चस्तर का आत्म सहायता करेगी जो सहजयोगी हैं, जो साक्षात्कारी है। आपमें यदि विवेक नहीं दिव्य हैं। ये उनकी सहायता नहीं करेंगी है तो जो चाहे आप करते रहें और अपने जो ऐसे हैं कभी नहीं । 'इसके विपरीत कार्य से जितने चाहे संतुष्ट हो जाए यह ऐसे ढंग से दंडित भी कर सकती विवेक उस व्यक्ति की निशानी है है परन्तु विवेक का अंश अत्यन्त-अत्यन्त का 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-26.txt मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 23 उसे केवल एक ही चीज़ की चिन्ता मार्गदर्शक गुण है, और जैसा आप जानते होती है-'क्या मैं विवेकशील हूँ?' परमात्मा है, श्री गणेश विवेक प्रदायक है इसलिए के आशीष का यह प्रथम चिन्ह है। जिस श्री गणेश की पूजा होनी आवश्यक है। पर परमात्मा की कृपा होती है वह व्यक्ति उचित प्रकार के पालन पोषण से विवेकशील होता है, अत्यन्त विवेकशील श्री गणेश स्थापित होते हैं क्योंकि वे और उसकी शांति से उसका विवेक विवेक दाता होने के अतिरिक्त कुछ भी झलकता है और परमेश्वरी शक्ति अपने नहीं। विवेक अन्त्तजात है, इसका आंकलन माध्यम के रूप में उस व्यक्त का उपयोग आपको नहीं करना पड़ता। हमारे अन्दर करती है और महान कार्य करती है। यह अन्न्तजात है, और अन्य गुणों की व्यक्ति स्वयं हैरान होगा है कि यह सब तरह से उन्नत भी है। कुछ लोगों में किस प्रकार घटित हुआ। महिला में भी विवेक उन्नत होने में समय लगता है यह गुण हो सकता है, पुरुष में भी हो निःसन्देह इसमें समय लगता है, परन्तु सकता है, किसी में भी यह विवेक, यह है महत्वपूर्ण है। हमारे अन्दर यह अत्यन्त एक बार जब यह उन्नत हो जाता है तो गहनता, यह स्वभाव, उन्नत हो सकता व्यक्ति अत्यन्त सहज एवम् पूर्णतः सत्य और यह अत्यन्त सुन्दर एवं अत्यन्त मार्गी बन जाता है, उसे इसका ज्ञान शक्ति-प्रदायक है। होता है और यही गुण व्यक्ति ने विकसित करना होता है कि 'मैं कहाँ तक विवेकशील देता, किसी को अभिशप्त करने का कष्ट ऐसा व्यक्ति किसी को श्राप नहीं नहीं करता फिर भी सभी कुछ कार्यान्वित हूँ?" इस विश्व में लोग एक चीज का होता है किसी से वह नाराज नहीं होता विरोध कर रहे हैं दूसरी चीज़ का विरोध फिर भी सभी कार्य होते हैं। किसी पर कर रहे है, सभी प्रकार के उल्टे -सीधे भी वह नाराज नहीं होता, बिल्कुल भी कार्य कर रहे हैं। परन्तु आपमें यदि विवेक नहीं। क्रोध तो आप ही को हानि पहुँचाता है तो इस प्रकार का कोई कार्य करने की है, ऐसी हानि जिसकी आपने कभी आशा आपको आवश्यकता नहीं है। स्वतः ही भी नहीं की होती। मानव रूप में व्यक्ति समझ जाता है कि वह विवेकशील विवेकशील बन जाने की शक्ति हममें है। युग-युगान्तरों से विवेकशील पुरुष निहित है । यह हमारे अन्दर निहित है। की प्रशंसा होती आई । ऐसे व्यक्ति को न तो अपनी धन सम्बन्धी अवस्था की और लहरियों के प्रति संवेदनशील होते न ही कोई भावात्मक पक्ष की चिन्ता हैं-अत्यन्त संवेदनशील। क्योंकि उनका होती है - कुछ नहीं। मैंने देखा है कि पशु भी चैतन्य विवेक अखण्ड होता है और उनमें कार्य 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-27.txt मार्च-अप्रैल 2003 24 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 करता है, यद्यपि वे इसके प्रति चेतन नहीं गलत कार्य करते ही नहीं, गलत कार्य होते। पशु और मानव में अन्तर यह होताकरते ही नहीं । सदैव वे उचित मार्ग पर है कि मानव अपने विवेक के प्रति चेतन होते हैं। मैं सोचती हूँ कि सहजयोगी का होता है। केवल इतना ही अन्तर है। यही चिन्ह है और यह देवी का आशीर्वाद पशुओं में विवेक होता है परन्तु स्वचालित है। देवी की शक्ति यदि आपमें कार्य कर या ये कहें कि स्वाभाविक । परन्तु हमने रही है तो इसे कार्यान्वित करने के लिए अपने अन्दर इस विवेक को विकसित आपको विवेक प्राप्त हो जाएगा। आपने किया है, प्रयत्न से इसे प्राप्त किया है। देखा होगा कि बहुत से लोग अमेरिका किस माध्यम से? अपनी ध्यान धारणा के आ रहे थे और सभी प्रकार के कार्य कर माध्यम से, सूझ-बूझ, भक्ति और श्रद्धा रहे थे। अब वे सब गायब हो गए हैं। उन्हें किसी भी प्रकार का आश्रय नहीं के माध्यम से। अतः अपने अन्दर भक्ति के मूल्य मिलता। कहाँ चले गए हैं? वे सब समाप्त को समझना अत्यन्त आवश्यक है। सतही हो गये हैं क्योंकि वे तो धन तथा सत्ता तौर पर आप इसे नहीं छू सकते। जो लोलुप थे मैं नहीं जानती कि उनकी लोग उथले हैं कभी इसे प्राप्त न कर क्या लालसा थी परन्तु वे सब असफल सकेंगे। किसी भी व्यक्ति को आप हो गए हैं जो व्यक्ति अपने विवेक में विवेकशील पा सकते है चाहे वह आपका स्थापित है वही सन्त है, उसी को सन्त नौकर हो या बहन, चालक हो या कोई कहा जाता है। परन्तु सभी सहजयोगी भी हों, और हैरान होते हैं कि किस सन्त हो सकते हैं, विवेकशील हो सकते प्रकार यह व्यक्ति इतना विवेकशील हो हैं। कोई भी सहजयोगी ऐसा हो सकता सकता है! हो सकता है अपने पूर्व जन्म है। परन्तु यदि आपने अपना विवेक खो में उसने अपने अन्दर यह विवेक विकरसित दिया तो आप बेकार हैं। मुझे आपको यह बात बतानी है कि किया हो या गहनता में जाकर इसे प्राप्त किया हो। यह अवस्था किसी व्यक्ति आपका विवेक ही आपकी रक्षा करेगा। विशेष की नहीं है, यह अवस्था बहुत से अनजाने में आपकी सहायता करेगा। एक लोगों को भी प्राप्त हो सकती है । अतः सहजयोगी वही है जिसने रहा था । जाते-जाते अचानक उसने दूसरी सहजयोगी एक बार कार में कहीं जा विवेक प्राप्त कर लिया है। आप यह क्यों सड़क पर जाने का निर्णय कर लिया। कर रहे है? ऐसा करने की क्या हुआ ऐसा कि उस सड़क पर बहुत बड़ी आवश्यकता है? उन्हें यह सब पूछने की दुर्घटना हो गई। यदि उसने सड़क न कोई आवश्यकता नहीं। वो तो बस कोई बदली होती तो वह भी उस दुर्घटना में পाu 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-28.txt मार्च-अप्रैल 2003 25 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 मारा जाता। इस प्रकार की बहुत सी देखीं कि लोग राक्षसी गुरुओं के पीछे घटनाएं लोगों ने मुझे सुनाई हैं कि, "श्री दौड़ रहे हैं। इसके बाद मैं वहां कभी गई माता जी, किस प्रकार हमारी रक्षा की ही नहीं । नौ वर्षों बाद मैं वहां गई। जैसा गई, किस प्रकार मौत के मुँह तक पहुँच मैंने बताया ये लोग पागल हैं किस प्रकार कर हम जीवित हैं!" आप जिंदा इसलिए ये भयानक गुरुओं का अनुसरण करते हैं हैं क्योंकि आपकी परमात्मा को आवश्यकता और किस प्रकार ये इनका विश्वास करते है। परमात्मा नहीं चाहते कि आपकी मृत्यु हैं! उनमें समझने का विवेक नहीं है कि हो जाए या आप समाप्त हो जाएं। उन्हें सत्य क्या है। यह बात अब कार्यान्वित आपकी बहुत जरूरत है। उन्हें अपना हो सकती है। अब आप देख सकते हैं कार्य करना है और आप ही उनके माध कि ऐसे (विवेकशील) लोग बहुत से हैं । यम हैं। आपमें यदि विवेक है तो परमेश्वरी कार्य को कार्यान्वित करने के लिए आप को लोगों में यह विवेक आ जाएगा तो ही सर्वोत्तम माध्यम हैं। देवी की शक्तियाँ सर्वप्रथम उनके नहीं इसमें उन्नत भी होगें परन्तु यह शरीर में विद्यमान थीं इन्हीं शक्तियों से उन्होनें असंख्य राक्षसों और असुरों का क्या करने वाले है? इससे हमें क्या प्राप्त वध किया वास्तव में देवी ने असुरों का होगा? हमारा लक्ष्य क्या है?" यह सभी वध किया परन्तु अब ऐसा करने की कोई चीजें उनके सम्मुख आनी चाहिएं. परन्तु आवश्यकता नहीं है क्योंकि आप सब प्रायः ऐसा नहीं होता। आप अवश्य उनसे लोग अब यहाँ हैं। आप सभी माध्यम हैं बातचीत करें और उन्हें बताएं कि आपके और अब यह इस प्रकार से कार्यान्वित अन्दर आत्मा विद्यमान है। आपको आत्मा होगा कि जो लोग आप को नष्ट करने बनना है सभी अवतरणों ने यही बात का प्रयत्न कर रहे हैं, विवेकशील लोगों कही है। तो क्यों न यही किया जाए, तो यह विवेक है और यदि अमेरिका वह सहजयोग में आएंगे। केवल आएंगे ही देखने का विवेक आवश्यक है कि, "हम को समाप्त करने का प्रयत्न कर रहे हैं, वे क्यों न आत्मा बन जाया जाए। सब समाप्त हो जाएगें। ऐसे लोग नष्ट हो जाएगें और यह कार्य कोई बाह्य माध्यम करेंगे कि 'हाँ, यह सच है। कहा गया है या व्यक्ति नहीं करेगा अब विवेक इस कि आत्मा बनो । वो चर्च जाते हैं, मंदिर कार्य को करेगा। विवेक सबसे बड़ा यन्त्र जाते हैं, यहां जाते हैं, वहां जाते हैं है जो इसे कार्यान्वित करेगा। क्या आप लेकिन यह नहीं समझते कि वे कर क्या जानते है कि मैं जब पहली बार अमेरिका रहे हैं, उन्हें किसी प्रकार की सुरक्षा की गई थी तो वहां इतनी भयानक चीजें आवश्यकता होती है उसे प्राप्त करने के तब वे स्वयं इस बात को महसूस 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-29.txt मार्च-अप्रैल 2003 26 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 लिए वे जाते हैं। परन्तु यह सुरक्षा तो करती है। भारत में ऐसे बहुत से लोग उन्हें उनकी आध्यात्मिक स्थिति से प्राप्त हुए जिन्होनें बहुत भक्ति की और उनमें तथाकथित श्रद्धा भी बहुत थी। परन्तु वे होती है। जहां तक आत्मा का सबंध है आप की स्थिति क्या है (आप कहां खड़े विवेकशील नहीं थे, विवेक की वो बातें है) जिन्होंने आत्मा का आनन्द लिया है तो करते थे, सभी प्रकार की बातें करते वो कभी भी धर्म - पथ से डांवा डोल नहीं थे परन्तु वास्तव में विवेकशील न थे। होते परन्तु जिन्होनें यह आनन्द नहीं अतः विवेक तो एक अत्यन्त अन्तर्जात- लिया वो चाहे अपने आप को सहजयोगी अत्यन्त अन्तर्जात गुण है, यह सतही कहते रहें, कुछ भी कहते रहें, परन्तु वे (दिखावा मात्र) ही नहीं है। इससे प्रकट गलत हो सकते हैं। आप यदि वास्तव में होता है कि शक्ति की तरह से-यह सहजयोगी हैं तो सर्वप्रथम आपको अपने सूझ-बूझ की शक्ति है जिसे देवी की विषय में जानना है। आप यदि इस शक्ति शक्ति बल प्रदान करती है। अतः वह के माध्यम बनना चाहते हैं तो आपको विवेक की दाता हैं। देवी का यह सबसे भक्ति एवं श्रद्धा से परिपूर्ण होना होगा । बड़ा गुण है कि वे विवेक की दाता हैं । यह भक्ति और श्रद्धा अत्यन्त उत्थान प्रक्रिया के एक भाग के रूप में आनन्ददायनी है, इस बात को मैं जानती ही विवेक आता है। अब तक का जितना हूँ। यह कभी आपको थकाती नहीं, कभी भी विकास हुआ है वह देवी द्वारा ही आपको कष्ट नहीं देती। यह अत्यन्त पोषण लाया गया है ताकि आप आगे बढ़ सकें। वे आपको अत्यन्त विवेकशील व्यक्ति बना देंगी। प्रदायनी एवं सुन्दर है। परन्तु इसका उचित स्थान पर होना इसका उचित लक्ष्य एवं उचित सूझ-बूझ होना आवश्यक है। ऐसा करने के लिए आपके पास विवेक का बैठा हुआ साधु भी यदि सच्चा सन्त है होना जरूरी है। अतः यह देखने का तो उसका भी सम्मान होता है। परन्तु प्रयत्न करें कि आपमें अपेक्षित विवेक है वह यदि मूर्ख है तो मैं कुछ नहीं कर या नहीं। आप विवेकशील हैं या नहीं? सकती। वो आपको बेवकूफ बना सकता हर व्यक्ति के लिए ये जान पाना कठिन है, सभी प्रकार की चालाकियाँ आपसे होता है कि वह गलत है या ठीक क्योंकि कर सकता है परन्तु क्या वह आपका विवेक का प्रभाव तो चहूँ ओर दिखाई हित भी कर सकता है? नहीं, कुछ भी देता है अतः देवी के प्रति श्रद्धा और भक्त निश्चित रूप से आपको विवेक प्रदान मानते हैं या जिसके पथ प्रदर्शन में आप दूर दराज किसी गांव के कोने में नहीं। अतः जिस भी व्यक्ति को आप गुरु 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-30.txt मार्च-अप्रैल 2003 27 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 चलते हैं उसमें भक्ति होनी आवश्यक है, है कि सहजयोग प्रचार आरम्भ करने से देवी की भक्ति। यह बात समझी जानी पहले कृपया स्वयं को जांच लें, देखें कि बहुत आवश्यक है। आधुनिक चीज़ें इस क्या आपमें विवेक है? यह भी देखें कि सीमा तक पहुँच गई हैं कि उनमें देवी के क्या आपको माँ (श्रीमाताजी) का आशीर्वाद प्रति बिल्कुल भी सम्मान नहीं है-बिल्कुल प्राप्त है? कहने से मेरा अभिप्राय ये है भी नहीं । लोग देवी की बात तक नहीं कि केवल विवेकशील व्यक्ति ही ये जान करते, केवल वो बातें करते हैं जिनकी सकते हैं कि उन्हें माँ का आशीर्वाद प्राप्त व्याख्या हो सकती है, जिन्हें समझा जा है या नहीं, इस बात को समझने के लिए सकता है। ईसा मसीह की बात करते हमारे पास बहुत से मार्ग हैं। सर्वप्रथम हुए भी वो देवी की बात नहीं करते! क्रूस चीज़ है ध्यान-धारणा और श्रीमाताजी पर चढ़े हुए भी ईसा मसीह ने कहा था के फोटोग्राफ के सम्मुख बैठकर अपनी सावधान-माँ' (आदिशक्ति) आने वाली चैतन्य लहरियों को महसूस करते हुए हैं।" ये कहने की उन्हें क्या आवश्यकता निष्पक्ष रूप से अपना सामना करना। थी? क्योंकि वो नहीं चाहते थे कि उनकी क्या आप आत्मसाक्षात्कारी हैं? क्या आप माँ कष्ट में फँसे । परन्तु उन्होनें कहा, वास्तव में अच्छे आत्म-साक्षात्कारी हैं? 'सावधान-माँ आने वाली हैं (Behold क्या आप वास्तव में अच्छे आत्म- The Mother) इसका अर्थ ये हुआ कि साक्षात्कारी है या नहीं। आप गहन हैं या माँ जो कि आने वाली हैं उनके लिए आप नहीं? क्या आपको चैतन्य लहरियोाँ आ यहाँ हैं। सभी ने इसकी ओर इशारा रही है या नहीं? यह सब यदि आप देख किया है और ऐसा कहा है। परन्तु अब पाएंगे तो आप जान जाएंगे कि सभी भी हम अपने अहं में, अपनी ही सूझ-बूझ महत्वकांक्षाओं से कहीं बड़ी उपलब्धि में व्यस्त हैं और उन भागते रहते हैं। सर्वप्रथम आपको सच्ची है केवल यही उपलब्धि आपको आनन्द चीज़ों का अनुसरण करना चाहिए. मिथ्या प्रदान करेगी, सभी सहजयोगियों को चीज़ों का नहीं। परन्तु इसके लिए आपको आनन्द प्रदान करेगी। इसके बिना तो विवेक की आवश्यकता होगी मेरे विचार आप भी अन्य भटकते हुए लोगों की से उसके लिए आपको बहुत अधिक विवेक तरह से एक सर्व- साधारण मानव हैं। चाहिए और चाहे आपके पास विवेक पहले अब यह सब घटित होने का समय आ आ जाए या माँ का आशीर्वाद, आप इन गया है मैं कहूँगी कि ये एक विशेष दोनों के मध्य में होते है। समर्पित एवं विवेकशील व्यक्ति बन जाना चीजों के पीछे समय है यद्यपि मेरे लिए एक बहुत बड़ा अतः मुझे आपको एक बात बतानी संघर्ष है इसमें कोई सन्देह नहीं परन्तु 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-31.txt मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 28 कोई बात नहीं। मैं जानती हूँ कि मैंने के समूह बनाते चले जाते हैं जिन्हें इस स्वयं को ऐसी स्थितियों में डाल लिया है बात की बिल्कुल भी समझ नहीं होती जहाँ चीजें इतनी साधारण या सुगम नहीं कि सहजयोग क्या है। हैं। कोई बात नहीं, परन्तु मैं ये महसूस करती हूँ कि आप लोग मेरी सहायता व्यक्तित्व का व्यक्ति होता है। ये कहना कर सकते हैं। आपमें यदि विवेक हो तो मात्र काफी नहीं कि मैं सहजयोगी हूँ आप मेरे कार्य में सहायक हो सकते हैं। परन्तु एक अत्यन्त गहन व्यक्तित्व व्यक्ति विवेक स्वयं को परखने में है, कि आप और जिसके व्यक्तित्व की महनता अन्य कितने लोगों को प्रेम करते हैं, किस प्रकार लोग, उसके विवेक द्वारा समझें। आप उनसे प्रेम करते हैं, किस प्रकार उनसे कितना बोलते हैं, कितना चिल्लाते हैं, बातचीत करते हैं, उनसे क्या आशा करते कितना भाषण देते हैं इसका कोई महत्व हैं। ये सब हो जाना चाहिए। जाँचें अन्तर्अवलोकन करें, अन्त्अवलोकन और अन्य लोगों को प्रेम करने की क्षमता द्वारा आप ये सब देख सकते हैं। अतः ही महत्वपूर्ण है। केवल इन्हीं से ही लोग सहजयोगी के लिए आवश्यक है कि वह निर्णय कर पाते हैं कि वास्तव में आपको अन्तर्अवलोकन करे। सहजयोगी तो एक अत्यन्त गहन स्वयं को नहीं। आपकी आंतरिक शान्ति, स्थिरता श्रीमाताजी का आशीर्वाद प्राप्त है या दूसरी बात ध्यान धारणा है तथा नहीं। तो यह चीज़ अत्यन्त महत्वपूर्ण है। तीसरी चैतन्य लहरियाँ लेना। ये बहुत अमरीका में मैं इस देश की समस्याओं से महत्वपूर्ण हैं। मैं देखती हूँ कि कुछ लोग रक्षा करने के लिए आई हूँ क्योंकि ये देश कहते हैं, "श्रीमाताजी हम ऐसा नहीं करते, भयानक समस्याओं से घिर गया है और हम वैसा नहीं करते। परन्तु क्यों? आप ऐसा होना ही था क्योंकि यह बात समझने ऐसा क्यों नहीं करते? 'हम सहज कार्य के लिए इनकी आँखें बन्द थीं कि वहाँ करते हैं। सहज कार्य क्या है? यदि आप क्या गलत हो रहा है। यही अन्धता उन्हें इन मूल चीज़ों को ही नहीं करते तो उस बिन्दु तक ले आई है जहाँ वे अपने किस प्रकार से आप सहजयोगी हैं? और विनाशकारी अहं को देखने लगे हैं। धन फिर उन लोगों से भिन्न प्रकार की लोलुपता आदि ने ये दर्शाया है कि वो जटिलताएं खड़ी हो जाती हैं । वे भी इतने मूर्ख थे कि समझ बैठे कि वे अत्यन्त कष्ट उठाते हैं। मेरे विचार से व्यक्तित के वैभवशाली हैं और अपने धन से तथा पास यह समझने का विवेक होना चाहिए अन्य देशों तथा अन्य लोगों पर प्रभुत्व कि सहजयोग क्या है? लोग ये नहीं जमाकर कुछ भी कर सकते हैं। पहले समझते कि कभी-कभी तो वे ऐसे लोगों स्वयं पर नियंत्रण करें। सर्वप्रथम स्वयं 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-32.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 मार्च-अप्रैल 2003 29 को पहचाने। अन्य लोगों पर नियंत्रण सहजयोग को कार्यान्वित किया है और वे करने का क्या अर्थ है। जो लोग स्वयं पर बहुत अच्छे सहज एवं विवेकशील व्यक्ति नियंत्रण करना नहीं जानते वो सदैव दुखी हैं। मेरे लिए यह अत्यन्त आशावर्धक हैं| होते हैं, कष्टों से घिरे रहते हैं क्योंकि मैंने कभी आशा नहीं की थी कि मैं यह तो अनियंत्रित होने की प्रतिक्रिया है । इतनी अच्छी तरह से कार्यान्वित कर दूसरों पर यदि आप नियंत्रण करने का पाऊँगी, परन्तु ये कार्यान्वित हो गया है। प्रयत्न करते हैं तो इसकी प्रतिक्रिया होती सदैव आपको ये बात ध्यान रखनी है कि है इसके लिए पूर्णतः अन्तर्अवलोकन करना आपके अन्दर वो शक्ति है, आप उस होगा। इसीलिए मैं बार-बार कहती रहती शक्ति का उपयोग करें और मूर्खतापूर्ण कि अन्तर्अवलोकन करें। निःसन्देह मैं विचारों के शिकार न बनें ये भी कहूँगी कि अब बहुत अच्छे सहजयोगी उभर कर आए हैं, उन्होनें आप सबका अत्यन्त धन्यवाद। ल 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-33.txt दिवाली पूजा लॉस एंजलिस, 03.11.2002 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन व जा न ुाम १ D১ दिवाली के पर्व पर आप सब को मेरी मंगलकामनाएं। आप सब लोगों की यहां उपस्थिति ही मेरे लिए अत्यन्त आनन्ददायी है। आपका सहजयोग अपना लेना मेरे लिए अत्यन्त सुन्दर अनुभव है। यह आपका अपना है। परन्तु आत्मा को अपना लेना कठिन है । मेरे विचार में योग की आपकी इच्छाएं पूर्ण हो रहीं है और इसी कारण से आपको आत्म साक्षात्कार आत्मा आपकी अपनी है। प्राप्त हुआ है। जैसा आप भली-भांति जानते हैं, आत्म-साक्षात्कार किसी पर लादा नहीं जा सकता। केवल आपकी इच्छा तथा समर्पण से ही यह कार्यान्वित होता है । इसके विषय में बातचीत करने का या किसी को इसका कायल करने का कोई लाभ नहीं । केवल आपकी इच्छा ही कार्यान्वित होती है, यह बात इतनी साधारण है आपके to 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-34.txt मार्च अप्रैल 2003 31 चैतन्य लहरी खंड-xV अंक 3 व 4 एक अन्य कार्य जो आप कर सकते कार्यान्वित करती है। विश्व भर के बहुत हैं वो है अपने प्रकाश से अन्य लोगों को से लोग जिन्हें आत्म-साक्षात्कार प्राप्त है ज्योतिर्मय करना। जिस प्रकार हमने यहां वो यहां उपस्थित नहीं हैं, वो भी मुझे किया, हमने एक दीपक जलाया और याद हैं, आप सब भी उन्हें भुलाएं नहीं। उससे बाकी के सभी दीपक जला दिए। आप सभी यह कार्य कर सकते हैं हृदय के अन्दर की इच्छा शक्ति इसे उन सभी साक्षात्कारी लोगों के विषय में सोचने का आज बहुत अच्छा दिन है। क्योंकि आप सब में वह प्रकाश है। उस यही सच्ची दिवाली है-मानव को प्रबुद्ध प्रकाश से आप अन्य लोगों में ज्योति बनाना (आत्म-साक्षात्कार देना) । यह प्रज्जवलित कर सकते हैं जिससे वो भी किसी मोमबत्ती या दीपक का ज्योतित अपनी आत्मा के आनन्द को अनुभव कर करना नहीं है मानव को ज्योतित करना सकें। अब यही चीज़ देखनी है । आपने इतने सारे दीपक जलाए हैं। इसी प्रकार वे यदि ज्योतित हो जाएं तो कोई से आप भी पूरे विश्व के लिए दीपक सम भी समस्या बाकी न रह जाएगी। जो है। आपका अपना ज्योतिर्मय होना काफ़ी लोग आत्म-साक्षात्कारी नहीं होते उनसे नहीं है, आपने अन्य लोगों को भी प्रकाश समस्याएं आती हैं क्योंकि वो अंधकार में देना हैं इन्हीं दीपकों की तरह से आपने फंसे होते हैं, वो अंधेरे में टटोल रहे होते अन्य लोगों को भी प्रज्जवलित करना है। हैं और उनमें से कुछ को यह भी ज्ञान महसूस होता है कि आपने क्या प्राप्त कर नहीं होता कि वे वास्तविकता से अनभिज्ञ लिया है और तब आप अपना सम्मान करने लगते हैं और इस प्रकार आचरण है हैं। 1 एक बार जब आप सहजयोग में करते हैं जो सन्तों और पैगम्बरों को शोभा आते हैं तो ये दखने लगते हैं। आरंभ में देता है । उसके प्रकाश में आप देखने लगते हैं कि अच्छा क्या है और बुरा क्या है और फिर अत्यन्त सुन्दर स्वभाव आप विकसित कर उन फूलों सम आप खिलने लगते हैं जो लेते हैं। अपने विषय में आप कोई झूठी हर समय प्रसन्न रह कर आपको आनन्द धारणाएं लोगों को नहीं देते क्योंकि आपके प्रदान करते हैं। इसी प्रकार जब आप अन्दर तो सत्य का स्थान है। अपने विषय इस प्रकाश से ज्योतिर्मय हो जाते हैं तो में कोई भी असत्य बात कहने की आपको भटकना नहीं पड़ता सभी कुछ आवश्यकता नहीं। लोग महसूस करेंगे आपके अन्दर विद्यमान है, ज्योति को कि आप आत्म साक्षात्कारी व्यक्ति हैं। प्रज्जवलित रखें। अपने अन्तस में वह आनन्ददायी, आपकी सूक्ष्म प्रकृति एवम् वास्तविकता 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-35.txt सार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 32 को वो महसूस करेंगे। चाहे आप भारत है। इसी प्रकार से अपने आत्म- साक्षात्कार से हों, इंग्लैंड से हों या अमेरिका से, आप से भी आप विश्व भर के हजारों लोगों सब में प्रेम एवं ज्ञान का वह सागर विद्यमान को प्रकाशवान कर सकते हैं। आप जानते है। विश्वास करें कि वह है। सर्वप्रथम हैं कि अभी तो आपने बहुत से देशों में अपने प्रेम सागर का आप आनन्द लें। प्रवेश करना है। हम इस कार्य को करेंगे, पहले आप अपने अन्दर छुपे इस प्रेम का उन देशों का पता लगाएं जहाँ अभी आनन्द लें और तब आप दूसरों के प्रेम हमनें जाना है और जहाँ हमने कार्य का भी आनन्द लें सकेंगे मुझे आपको करना है। यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि आप परस्पर प्रेम करें, आदि, आदि। स्वतः देने की योग्यता है। आपमें यह क्षमता ही आप एक दूसरे को प्रेम करते हैं, एक है- आपमें यह क्षमता है। स्वयं में विश्वस्त दूसरे को समझते हैं और परस्पर प्रकाश रहें कि आप लोगों को आत्म-साक्षात्कार फैलाते हैं। कभी-कभी आप अपने देश के, शहर किसी भी प्रकार की सहायता की के या गांव के अन्य व्यक्तियों से निराश आवश्यकता नहीं है अकेला सहजयोगी हो जाते हैं। क्योंकि उन्होंने अभी तक ही इस कार्य को कर सकता हैं। हज़ारों सर्वप्रथम, आपमें आत्म-साक्षात्कार दे सकते हैं और इसके लिए आपको आत्म-साक्षात्कार नहीं लिया। परन्तु सहजयोगी इस कार्य को कर सकते है । सर्वोत्तम बात तो इसे कार्यान्वित करना पूरे विश्व की दिवाली के लिए यह आवश्यक है। आपको यह कार्यान्वित करना होगा। है कि हम सभी लोगों को आत्म- सर्वप्रथम केवल एक वृद्ध महिला ने मुझसे साक्षात्कार दें। ऐसा करना बहुत आवश्यक आत्म-साक्षात्कार लिया और अब आप है। सहज-योग में ऐसे बहुत से लोग हैं सब यहाँ पर हैं। इसी प्रकार से आप भी जो थोड़े से निराश हैं, विशेष रूप से आत्म साक्षात्कार के कार्य को कर सकते अपने भूतकाल को लेकर। बीते हुए समय हैं। इसके लिए किसी प्रकार के को भूल जाएं, भूतकाल महत्वपूर्ण नहीं हिसाब-किताब लगाने की को ई है । वर्तमान महत्वपूर्ण है - कि इस क्षण आवश्यकता नहीं है। आपको किसी प्रकार आपने क्या करना है। भूत की आपको की तैयारी की आवश्यकता नहीं है। यह चिन्ता नहीं करनी-कि यह किया, मैंने शक्ति तो यहां है और यह कार्य करती वह किया। जो हो गया वो हो गया। अब है प्रकाश के लिए आप क्या करते हैं? भविष्य की ओर देखें। भविष्य के विषय आप केवल देखते हैं। दीपक को में आप क्या कर सकते है ।?जब आपको प्रज्जवलित करें और प्रकाश हो जाता प्रकाश प्राप्त हो जाएगा तो किसी न 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-36.txt मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 33 किसी तरह से आप अपना मार्ग देख ओर ले जाती है इसका पता लगाएं। लेंगें! सारे अंधकार से मुक्ति पा लें और समझें कि किस सीमा तक जाना है, अमेरिका-ये इतना धनलोलुप देश है, जो किस प्रकार लोगों से मिलना है. और पूरे विश्व में फैल कर भी धन-लोलुप है किस प्रकार सहजयोग को फैलाना है। यह शक्ति तो आपके अन्दर पहले आपको लगता है कि सहजयोग से भी से ही विद्यमान है परन्तु सर्वप्रथम आपको आपको धन अर्जन करना चाहिए। कुछ इससे अपना तार जोड़ना होगा। इस लोग ऐसा नहीं सोचते फिर भी वे पैसे के सागर से यदि आप अपना तार जोड़ लेते पीछे दौड़ रहे हैं। धन एकत्र की कोई हैं तो आप निश्चित रूप से कार्य कर आवश्यकता नहीं और न ही धन में अपनी सकते हैं। अत्यन्त सुन्दर ढ़ंग से इसे सुरक्षा ढूंढने की आपकी सुरक्षा तो आपके कार्यान्वित कर सकते है, अपनी सफलता अन्दर अन्तर्जात है। अतः यह बाहय चीजें को देखकर आप आश्चर्यचकित रह पूर्णतः अनावश्यक हैं, इनसे आपकी आंखें जाएंगे। इस अंधकार से मुक्ति पा कर चकाचौंध नहीं होनी चाहिए। आपमें यदि आप हैरान होगें कि आप ज्योतिर्मय हो प्रकाश है तो ये बात आप स्पष्ट देख इस देश में, कहने से अभिप्राय और आप इससे मन्त्र मुग्ध हो जाते हैं। पा गए हैं और अपनी ज्योति से सारे अन्धकार सकते हैं, अपने जीवन में परमेश्वरी सहायता को दूर कर दें। इसके विषय में आपको को स्पष्ट देख सकते हैं कि किस प्रकार सोचना नहीं है। इस अन्धकार को निकाल परमात्मा ने जीवन की भिन्न अवस्थाओं फैंकें। परन्तु यदि आपके पास प्रकाश ही में आपकी सहायता की। नहीं है तो इसके बारे में बातचीत करने का कोई लाभ नहीं और न ही इस कार्य आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, मुझे मेरी को करने का कोई लाभ है क्योंकि बिना समस्याओं से निजात मिल गई। मुझे शत्रुओं अन्तर्प्रकाश के आपको सफलता नहीं मिल से मुक्ति मिल गई' - आदि आदि सकती। इसके विपरित आप असफल हो कि मैंने तो उनके लिए कुछ भी नहीं जाएंगे, बुरी तरह से असफल होगें और किया होता। आपके अन्दर के प्रकाश ने यह लोगों के लिए खतरनाक साबित होगा। ही आपके अन्धकार को दूर किया है इस देश में हमें बहुत से अटपटे आप यदि अन्धकार में हैं तो केवल प्रकाश अनुभव हुए परन्तु अब मैं सोचती हूँ कि ही आपके अज्ञानान्धकार को दूर कर एक एक करके वे सीख रहें हैं कि उन्हें सकता है। वास्तव में आपको इस बात ऐसा नहीं करना चाहिए था, वह गलत का ज्ञान नहीं है कि प्रकाश कितना था। कौन सी चीज़ आपको अन्धकार की शक्तिशाली है। आप यहाँ देख सकते हैं मुझे पत्र मिलते हैं कि 'श्री माताजी जब 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-37.txt मार्च-अप्रैल 2003 34 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 कि हर ज्योति न केवल इतनी सारी नहीं हैं। क्योंकि अब आपको दृष्टि मिल ऊर्जा दे रही है बल्कि पूर्ण तस्वीर भी गई है अपने प्रकाश से आप देख सकते दिखा रही है। इसी प्रकार से आप भी है कि कहां कमी है या किसमें क्या समझ सकते हैं उदाहरण के रूप में आप अच्छाई है। आपके लिए यह ऐसा यह बात समझ सकते हैं कि अन्य व्यक्ति आशीर्वाद है कि आप धोखा नहीं खा आत्म- साक्षात्कारी है या नहीं। उसके सकते क्योंकि परमात्मा आपकी देखभाल समीप जाने की या कोई विशेष सावधानी कर रहें हैं आपका पथ प्रदर्शन कर रहे आदि बरतने की कोई आवश्यकता नहीं। हैं परमात्मा में विश्वास रखें, ऐसा करना आप तो बस जान जाएंगे कि वह आत्म- बहुत आवश्यक है, वैसे ही जैसे दीपक के साक्षात्कारी हैं या नहीं। मुझे ऐसे बहुत प्रकाश में आपका विश्वास है विश्वास से अनुभव हैं जहां मैंने जान लिया कि रखें कि परमात्मा आपको प्रकाश प्रदान लोगों को इस बात का ज्ञान ही नहीं है करेंगे, आपका पथ प्रदर्शन करेंगे, आपको कि कौन आत्म-साक्षात्कारी नहीं है। यह उचित स्थान पर ले जाएंगे और सभी आश्चर्य की बात है। आप यदि जानते हैं शुभ कार्य करेंगे । कहने से मेरा अभिप्राय कि कौन आत्म साक्षात्कारी है तो आपकी यह है कि आपके पास ऐसे बहुत से आधी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। दूसरी समस्या किसी को यह नहीं है कि लोगों ने मुझे कितने पत्र समझाना है कि उसमें कौन सा कार्य लिखे और किस प्रकार उनकी चीज़ करने की योग्यता है। यह समस्या मैं कार्यान्वित हुई। इस सबके बावजूद भी सहजयोगियों में भी पाती हूँ। वे विश्वभर हम सामूहिक हैं, एक दूसरे के प्रति प्रेममय में महान कार्य करने में सक्षम हैं। वो हैं, हम झूठ नहीं बोलते, किसी को समाप्त बहुत सी ऐसी चीज़ों का पता लगा सकते करने का प्रयत्न नहीं करते। इसका अर्थ अनुभव हैं। मुझे यह बताने की आवश्यकता हैं जो प्रायः सामान्य लोग नहीं लगा यह है कि हम सामान्य मानव की सकते। परन्तु सहजयोगी तुरन्त जान भावनाओं से कहीं ऊँचे हैं और ऐसा सकते हैं कि उनके सामने किस प्रकार होना उस प्रकाश के कारण है जो हमें का व्यक्ति है। यही अन्तर है। इसका प्राप्त हुआ। आप देख सकते हैं कि कहां अर्थ यह है कि आप सत्य जानते हैं-किसी पर आप लड़खड़ा रहें हैं। आप स्वयं भी स्थिति के विषय में । यह सत्य भी अपने लिए इस चीज़ को देख सकते हैं। जानते हैं कि कौन शेखी बघार रहा है इसके लिए मैं सोचती हूँ ध्यान धारणा या किसी प्रकार की कहानी कर रहा है अत्यन्त आवश्यक कार्य है। प्रतिदिन आपको ध्यान धारणा करनी या पाखंड कर रहा है। यह कार्य कठिन 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-38.txt मार्च-अप्रैल 2003 35 चैतन्य लहरी खंड-xV अंक 3 व 4 चाहिए। जो लोग ध्यान धारणा नहीं करते सकते हैं तो आप अपना कार्य कर सकते उनका पतन होने की संभावना होती है हैं क्योंकि केवल उसी स्थिति में आप क्योंकि ध्यान धारणा तो दीपक में तेल सत्य के साथ होते हैं, वास्तविकता आनन्द डालने जैसा है। जो लोग ध्यान धारणा तथा सभी दिव्य चीज़ों के साथ होते हैं। नहीं करते वो सोचते हैं कि इसके बिना चलेगा, ऐसे लोग बहुत भयानक गलत में परिवर्तित न कर दें-न। ध्यान धारणा फहमी में हैं। उन्हें सुबह शाम ध्यान तो आपके अन्दर की शान्त स्थिति है करना होगा। वास्तव में उन्हें सभी कुछ विचारों की शान्ति और उस सागर की इतनी सुगमता से, इतने सहज में प्राप्त गहनता में जाना जो आपके अन्तस्थित हो जाता है कि उनकी समझ में ही नहीं है आप यदि ध्यान धारणा नहीं करते आता कि ध्यान धारणा कितनी आवश्यक तो अपनी स्थिति की कल्पना करें । मैं तल करते इसे उत्सव ध्यान धारणा हुए है। आप लोग नहीं, परन्तु मैं ऐसे बहुत से तुरन्त जान जाती हैँ कि कौन ध्यान करता लोगों को जानती हूँ जो आत्म-साक्षात्कार है और कौन नहीं। मेरे लिए यह कार्य लेते हैं परन्तु ध्यान धारणा नहीं करते। कठिन नहीं है। उनकी शैली ही बिल्कुल अलग है। उनका जो लोग ध्यान धारणा नहीं करते वे सदैव हिचकिचाते रहते हैं । सदैव किंकर्त्तव्यमूढ़ होते हैं। वे कुछ भी समझ स्वभाव बिल्कुल भिन्न है। ध्यान धारणा अत्यन्त सुखकर है। परमात्मा से एक रूप होने का एक अत्यन्त नहीं पाते। यही कारण है ध्यान धारणा सुन्दर उपाय। ध्यान धारणा के उस क्षण अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य है। विद्युत प्रवाह में आपकी सारी समस्याएं सुलझ जाती जब तक बना रहता है तभी तक प्रकाश हैं। आप यदि नियमित रूप से ध्यान होता है। दीपक में जब तक तेल जलता धारणा नहीं करते तो हो सकता है आपका है वह प्रकाश देता है। इसी प्रकार से प्रकाश कम हो जाए। इससे आपको पर्याप्त परमात्मा की शक्ति को निरन्तर प्रवाहित करते प्रकाश न मिले। ध्यान धारणा हुए करने के लिए ध्यान धारणा है। ध्यान अपने विषय में तथा अन्य लोगों के विषय धारणा आपके अन्दर के चिड़चिड़ेपन को कम कर देती है। केवल इतना ही नहीं, कई लोग पूछते है, "ध्यान धारणा सभी नकारात्मक विचारों को दूर कर किस प्रकार करें " कुछ भी न करें, केवल देती है। निराश करने वाली सभी चीजों निर्विचार समाधि में चले जाएं| निर्विचार को अन्दर से निकाल फेंकती है। इस समाधि में जाने का प्रयत्न करें निर्विचार प्रकार से जब निर्विचार समाधि की अवस्था समाधि की अवस्था में यदि आप जा में आप ध्यान करते हैं तो आप हैरान में पता लगाना अत्यन्त आवश्यक है। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-39.txt मार्च-अप्रैल 2003 36 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 होते हैं कि किस प्रकार से अन्दर और को यदि आप देखते हैं तो आप वास्तव में बाहर से आपको सहायता प्रदान की जाती इसके प्रति बिम्बक (Reflecter) बन जाते ै। यह महान शक्ति है जो कार्य करती हैं ऐसे ही कार्यान्वित होती है। मैं नहीं है-यह निर्विचार चेतना (Thoughtless जानती कि कितने समय तक आप उस स्थिति में रह पाते हैं परन्तु एक क्षण के अतः जो लोग ध्यान धारणा नहीं लिए भी यदि आप उस अवस्था को प्राप्त करते उन्हें सहजयोग के पूर्ण लाभ प्राप्त करते हैं तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि है । Awareness). नहीं होते। एक बार ध्यान धारणा द्वारा ध्यान धारणा के विषय में मैं पहले भी जब आप निर्विचार चेतना के स्तर तक बहुत कुछ बता चुकी हूँ। परन्तु आज ये पहुँच जाते हैं तो आपके साथ क्या घटेत सब जलते हुए दीपक देखकर मुझे लगता होता है? निर्विचार चेतना की अवस्था में है कि ये ध्यान मग्न हैं। ध्यान धारणा में जब आप होते हैं तो आपमें आत्मविश्वास स्थापित होने के कारण ही यह उन्नत जाग उठता है-परमेश्वरी शक्ति का पूर्ण हो रहे हैं । आत्मविश्वास। आपको इस बात का ज्ञान होता है कि आपमें यह आत्मविश्वास है । कौन सहजयोगी ध्यान धारणा करते हैं हमारे धर्मशाला स्कूल से आए बच्चों को और कौन नहीं । उन्हें यदि समस्याएं होती मैंने देखा है कि उनमें कितना आत्मविश्वास हैं तो मैं जानती हूँ कि उनकी समस्याओं है और कितनी विनम्रता । ध्यान धारणा आपको सुरक्षा प्रदान सम्बन्ध ही मुख्य चीज़ है और यह केवल करती है। यह आपको आपका वास्तविक तभी संभव है जब आप निर्विचार चेतना इसी प्रकार से मैं जानती हूँ कि का कारण क्या है। परमात्मा से आपका आत्म-साक्षात्कार तथा परमात्मा से पूर्ण में स्थापित हो जाएं। यही वह बिन्दु है योग प्रदान करती है। परमात्मा से एकतार जहां पर आपका मस्तिष्क कार्य करता है हुए बिना सहजयोग का क्या लाभ है? मैं यह सहायता देता है। इस प्रकार से वे जानती हूँ कि ध्यान धारणा करने वाले आपकी सहायता के लिए आता लोग अत्यन्त गहनता में पहुँच जाते हैं आपकी समझ में नहीं आता कि कैसे और अत्यन्त विकसित होते हैं। मैं ऐसे आपने इसे प्राप्त कर लिया। लोगों को भी जानती हूँ जो कुछ सतही (Superficial) हैं । आपकी गहनता तो प्रथम स्थिति है जो आपने प्राप्त करनी निर्विचार समाधि में ही है इस बिन्दु है तक पहुँचना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। ही आप कुछ और प्राप्त कर सकते हैं। निर्विचार चेतना में रहते हुए किसी चीज़ पहला कदम तो निर्विचार चेतना में जाना कि अतः निर्विचार समाधि की अवस्था । यह बहुत आवश्यक है। इसके पश्चात् পাঁu 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-40.txt मार्च-अप्रैल 2003 37 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 है। निर्विचार समाधि अत्यन्त महत्वपूर्ण में किया गया है परन्तु यह इतना स्पष्ट है क्योंकि तभी बाएं और दाएं से कोई नहीं है जितना स्पष्ट रूप से मैं आपको विचार नहीं आता (न भूतकाल का और बता रही हूँ। मैं यह नहीं कहती कि न ही भविष्य काल का) और आप वर्तमान आपमें से जिन लोगों को निर्विचार चेतना में आ जाते है । आप सबने यह अवस्था प्राप्त करनी हैं-नहीं। परन्तु कृपा करके इसे प्राप्त | ऐसा नहीं है कि मैं आपसे कह रही करने का प्रयत्न करें आप सभी निर्विचार हूँ। आप सबमें यह विद्यमान है । आपने समाधी की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं। बस इसमें स्थिर होना है। निर्विचार समाधी एक पल के लिए भी यदि आप इस की स्थिति में आपने स्वयं को स्थापित अवस्था को प्राप्त कर लें तो यह भी करना है। कितनी देर के लिए-यह बात बहुत अच्छी उपलब्धि है। बाद में इसी नहीं है। मुख्य चीज़ तो यह है कि एक पल को बढ़ाते चले जाएं। बार जब आप इसे छू लेंगे तो आप इसे छूते ही चले जाएंगे। बहुत से लोग ध्यान धारणा करते हैं तो आप निर्विचार चेतना में चले जाते हैं। परन्तु उनके अन्दर विचार प्रवाह चलते और तब आपका मस्तिष्क विचलित होकर रहते हैं। ऐसे लोग निर्विचार चेतना की आपकी देखी चीज़ की गहनता में जाता स्थिति में नहीं होते ये घटित होना है इस प्रकार से आप सभी वास्तव में बहुत महत्वपूर्ण है। आपको यदि उन्नत अत्यन्त सृजनात्मक सहजयोगी बनेंगे। होना है तो निर्विचार समाधि के माध्यम से परमात्मा से जुड़ जाना बहुत ही जरूरी समाधि की इस अवस्था को आप स्थापित है। आपको कोई पैसा नहीं देना पड़ता, नहीं कर पाते। यह बात ठीक नहीं है किसी को बुलाना नहीं पड़ता-नहीं कुछ आज दिवाली के दिन में कहना चाहूॅँगी नहीं। ये तो बस कार्य करता है क्योंकि ये की स्वयं को निर्विचार समाधि से ज्योतिर्मय आपके अन्दर स्थित है विचारों के बम्ब बनायें यह कार्य कठिन नहीं है। यह दो ओर से आप पर पड़ते रहते हैं। स्थिति आप के अन्दर है। क्योंकि विचार आपके अन्दर आने वाले विचार अर्थहीन तो या तो इधर से आते है या उधर से । हैं। ये आपको पोषण नहीं प्रदान करतें । ये आप के मस्तिष्क की लहरियाँ नहीं हैं। अपने आप में ही आप एक सागर हैं तथा नहीं! ये तो आपकी प्रतिक्रियाएं हैं। परन्तु आपको निर्विचार चेतना की अवस्था प्राप्त वास्तिवकता में आप ध्यान धारणा करते करनी है। इसका वर्णन सभी महान ग्रन्थों हैं। तो आप निर्विचार चेतना में चले जाते की स्थिति प्राप्त नहीं होती वो बेकार मेरे विचार से मस्तिष्क प्रतिबिम्ब क है। किसी चीज़ को जब आप देखते हैं 1 मैं क्या देखती हूँ कि यह निर्विचार नা গc 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-41.txt मार्च-अप्रैल 2003 38 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 है यही स्थिति प्राप्त करना आवश्यक है। अन्तर्प्रकाश तो केवल इस बात पर निर्भर और तब आपके मस्तिष्क में आने वाले करता है कि आप कहां तक निर्विचार मूर्खतापूर्ण विचार एवम् व्यर्थ विचार समाप्त चेतना में हैं। केवल तभी सभी कुछ हो जाते हैं! इन विचारों के समाप्त होने कार्यान्वित होता है क्योंकि आप ही इसके पर ही आप का उत्थान सम्भव है, केवल सागर हैं। आपके अन्दर यह अवस्था विद्यमान है। आपने तो केवल इसको यहाँ पर ऐसे बहुत से लोग हैं जो उपयोग में लाना है। यदि आप इसे उपयोग कहेंगे, "श्री माताजी हमें वह स्थिति प्राप्त में नहीं लाते तो यह कार्यान्वित नहीं नहीं होती प्रयत्न करें, इसे पाने का होती इसे उपयोग में लाएं तो आप हैरान प्रयत्न करें मैं नहीं समझती कि आप यह होंगे कि आप कितनी महानता एवम् तभी आप उन्नत होते हैं। स्थिति नहीं प्राप्त कर सकते। आप सभी प्रसन्नता के स्रोत हैं। लोग दृढ़ निश्चय कर सकते हैं कि मैं यह स्थिति प्राप्त कर सकता हूँ और तब ध्यान धारणा करते हुए निर्विचार चेतना आपको यह स्थिति प्राप्त हो जाएगी। में जाए कोई भी विचार महत्वपूर्ण नहीं इस स्थिति में न तो आपको कुछ त्यागना हैं क्योंकि विचार तो आपकी अपनी रचना है और न ही किसी चीज़ को देखना हैं। है बस ध्यान में चले जाएं और आप है तो आपको निर्विचार समाधि की अवस्था आश्चर्यचकित होंगे कि यह किस प्रकार प्राप्त करनी ही होगी-यह कम से कम अतः आज का सन्देश यह है कि परन्तु यदि आपने दिव्य रचना बनना कार्यान्वित होता है। निःसन्देह आप लोग उस स्थिति होते हैं यह अवस्था शनैः शनैः आपके आवश्यकता है। जैसे-जैसे आप उन्नत तक पहुँच चुके है, आपमें से अधिकतर अन्दर स्थापित होती है। तब आप हैरान लोग, परन्तु मैं कहूँगी कि निर्विचार समाधी होगें कि कितने जोर से सहजयोग में की स्थिति को और बढाएं। इस क्षेत्र को उन्नत होने की योग्यता आपमें आ गई और विस्तृत करें आज का दिन बहुत है। महत्वपूर्ण है क्योंकि आज दिवाली है। दिवाली प्रकाश का दिन होता है। परन्तु आपका अत्यन्त धन्यवाद । 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-42.txt श्री माताजी का एक पत्र मार्च, 1982 _८ ১ बे |ास प्रिय श्री राहुल, मुझे दामले जी का पत्र प्राप्त हुआ जिसमें उन्होनें सभी कुछ विस्तार पूर्वक लिखा। आपका श्री गगन गढ़ महाराज से जाकर मिलना अत्यन्त विवेकशील कदम था। सहजयोग के चमत्कार के विषय में जो उन्होनें कहा वो पूर्णतः सत्य है आज तक इस महान दैवी वरदान के प्रकट न होने का वास्तविक कारण ये है कि जब-जब भी आदिशक्ति अवतरित होकर पृथ्वी पर आईं तो उन्होनें सभी चक्रों को सहस्रार के माध्यम से एकतार नहीं किया। उनके व्यक्तित्व रूपी यंत्र में संघटित पूर्ण सामंजस्य एवं एकरसता ही ये सारे आश्चर्यजनक परिणाम प्रदान कर रही है। यहाँ तक कि मैं 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-43.txt मार्च-अप्रैल 2003 40 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 अपने आप पर हैरान हूँ। मैं सोचती हूँ कि गगन-गढ़ महाराज भी इस अद्वितीय खोज के गतिविज्ञान (Dynamics) की कल्पना नहीं कर सकते। यही कारण है कि उन्हें लगता है कि अवधूतों को दूर जंगलों में होना चाहिए तथा यह भी कि कैंसर की प्रतिक्रिया आप पर हो सकती है। आपने फड़के का कैंसर रोग दूर कर दिया है। परन्तु क्या इसकी कोई प्रतिक्रिया आप पर हुई? (चैतन्य) देने के छोर पर जब आप होते हैं तो बहाव आपसे दूसरे व्यक्ति की ओर होता है उसकी ओर से नकारात्मकता आप की ओर कैसे आ सकती है? कमल के रूप में आपको पुनर्जन्म दे दिया गया हैं और कमल वातावरण से किसी भी प्रकार की गन्दगी अपने ऊपर नहीं आने देता। बल्कि अपने सौन्दर्य और सुगन्ध से वातावरण को बेहतर बनाता है। आत्म-साक्षात्कारी व्यक्ति का भी यही चमत्कार है। क्या आप सोचते हैं कि चिकित्सक इस सत्य को स्वीकार करेंगे कि परमात्मा का साम्राज्य है। यही हमारा सृजन करता है तथा आत्मा ही हमारे स्वचालित नाड़ीतंत्र (Autonomous Nervous System) की स्वामी है, तथा आत्मा परमात्मा का प्रतिबिम्ब है आप श्री बोस, श्री दफ्तरी और श्री शर्मा का उदाहरण दे सकते हैं जिन्हें सहजयोग के माध्यम से रंग अन्धता (Colour Blindness) रोग से मुक्ति प्राप्त हुई। जो भी हो अगले वर्ष मैं अमेरीका जा रही हूँ । मेरा एक प्रिय पुत्र डाक्टर लांजेवर अब न्यूयार्क चिकित्सक संस्थान (Medical Practioners' Association of New York) का अध्यक्ष बन गया है और वह अगले वर्ष न्यूयार्क में चिकित्सा संगोष्ठी करने के लिए बहुत उत्सुक है। इतने वर्षों की हमारी दासता के कारण भारत के चिकित्सक ये भूल बैठे हैं कि हम योगभूमि पर अवतरित हुए हैं । उनके विचार दास-भावना से इतने प्रभावित हैं कि वो सोचते है कि चिकित्सा के विषय में हमारे सभी विचार मूर्खतापूर्ण हैं तथा पाश्चात्य ज्ञान अत्यन्त विवेकशील है । हृदय से मैं आपको आशीर्वादित करती हूँ कि रामा लिंगम को बहुत अच्छी चैतन्य-लहरियाँ मिल गई । उनके अन्तः स्थित श्रीराम उन्हें सर्वशक्तिमान परमात्मा के तौर-तरीकों को समझने का विवेक प्रदान करेंगे। मैं तुम्हें अपना प्रेम एवं सुरक्षा भेजती हूँ ताकि तुम चिकित्सक लोगों के अंधकार की बाधाओं को तोड़ सको । उन्हें ये समझ लेने दो कि अब समय आ गया है जब वो इस बात को स्वीकार कर लें कि विज्ञान ही सभी कुछ नहीं है विज्ञान केवल उसी चीज़ को खोजता है जिसका पहले से अस्तित्व हो और जो स्थूल दृष्टि को दिखाई देता है। चतुर्थ आयाम में उन्नत होते हुए जब हम सूक्ष्म हो जाते हैं तो सूक्ष्म अस्तित्व को सकते हैं तथा ये भी कि वाद-विवाद द्वारा दैवी प्रेम के इस कार्य को नहीं किया जा सकता। व्यक्ति को आत्म-साक्षात्कारी होना पड़ेगा। सहजयोग के माध्यम से स्वतः आत्मा और संतोष को देख 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-44.txt मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 41 ही व्यक्ति उन्नत होगा क्योंकि यह जीवन्त प्रक्रिया है । कैंसर का सर्वोत्तम उपचार जल है अर्थात् पैरों को नदी, समुद्र या घर में फोटोग्राफ के सम्मुख बैठकर जल में डालना है (जल पैर क्रिया)। स्वच्छ करना जल का धर्म है इसलिए मानव में धर्म के जिम्मेदार देवता श्री विष्णु और दत्तात्रेय की पूजा की जानी चाहिए। रोग मुक्त होने में वे आपकी सहायता करते हैं। इसके साथ-साथ जिस चक्र में खराबी है उसके अधिशासी देवता की भी पूजा होनी चाहिए। फोटो के सम्मुख दीपक जलाकर रोगी के पैर पानी में डालकर उसे बैठा दें। अनुकम्पी नाड़ी तंत्र पर से अपने हाथ नीचे पानी की ओर लाएं। शनैः शनैः रोगी की गर्मी शान्त हो जाएगी। यदि उसे आत्म-साक्षात्कार हो जाता है तो वो रोगमुक्त हो जाएगा । इसके आगे अगले पत्र में । प्रेम पूर्वक आपकी माँ निर्मला द ता ली क या 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-45.txt र्यसम आत्मा स् 18-06-1983 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के प्रवचन से उद्धृत इतने सारे सहजयोगियों के बीच को चमकते हुए देखने के लिए आकाश यहां आकर मैं अत्यन्त प्रसन्न एवं आनन्दित का पूर्णतः साफ होना आवश्यक है। हूँ। इनमें से बहुत से लोग नए हैं, मेरे लिए बहुत नए नहीं हैं। संभवतः मैं उन्हें जाने का प्रयत्न किया जा सकता है। हजारों वर्षों से जानती हूँ। सहजयोग में आप सबको एक विश्वास कि हम आत्मा हैं और बाकी सब साधारण सी बात समझनी होगी कि आप कुछ आच्छादन मात्र। अपने अन्तस में आत्मा हैं और जो भी कुछ आत्मा नहीं है यह निश्चय करना होगा आत्म- वो आप नहीं हैं। बहुत से तरीकों से ये बादल हटाए इनमें से सर्वप्रथम है ये मान लेना, ये साक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् यह आत्मा की तुलना हम सूर्य से कर समझ लेना अत्यन्त आसान हो जाता है सकते हैं। सूर्य बादलों से आच्छादित हो कि आप जो हैं उससे कहीं अधिक हैं, सकता है। सूर्य को ग्रहण लग सकता है। जों आपने अब तक स्वयं को समझा उससे परन्तु वह अपने स्थान पर स्थिर रहता कहीं भिन्न हैं। है। सूर्य को आप ज्योतिर्मय नहीं कर सकते। वह तो अपने आप से ही प्रकाशमान उसमें आपमें अन्धविश्वास नहीं रह जाता। है। बादलों को यदि हटा दिया जाए तो अब आपका विश्वास आपके अनुभव की आच्छादन समाप्त हो जाता है और सूर्य देन है। अतः आपकी बुद्धि को उससे एक बार फिर वातावरण में चमक उठता झगड़ा नहीं करना चाहिए, उसको चुनौती है। इसी प्रकार से हमारी आत्मा भी आपके विश्वास को चुनौती देने लगती है अज्ञानान्धकार से आच्छादित हो जाती है और आप यदि अपनी बुद्धि की बात को और यह आच्छादन जब तक रहता है सुनते हैं तो आपका पुनः पतन हो जाएगा। आप आत्मा को देख नहीं सकते। चाहे थोड़े से बादल हट भी जाएं तो भी ही वैज्ञानिक मान लेता है कि कोई सितारा तो नई अवस्था अब जो आती है नहीं देनी चाहिए। बुद्धि यदि अब भी 1 आकाश में सितारे की झलक पाते है अतः इसी प्रकार आपके भी यदि अपने आच्छादन बना रहता है। आत्मा के प्रकाश 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-46.txt मार्च-अप्रैल 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 43 आत्म-साक्षात्कार की झलक भर प्राप्त समाधि' कहलाती थी अर्थात् उस अवस्था हो जाए तो कम से कम आपको ये बात में उन्हें उस मूर्ति पर, उस विग्रह पर मान लेनी चाहिए कि आप भी आत्मा हैं। ध्यान कैन्द्रित करना पड़ता था - विग्रह उस अनुभव पर डटे रहें और अपने चित्त का अर्थ है ऐसी मूर्ति जिससे चैतन्य को इस सत्य पर लगाए रखें कि आप लहरियाँ निकलती हों - और तब उस आत्मा हैं । अपनी बुद्धि से कहें कि वह मूर्ति की ओर एकटक देखते हुए (त्राटक) अब आपको और अधिक धोखा न दे। अपनी कुण्डलिनी को उठाना पड़ता था । इस प्रकार आप अपनी बुद्धि के दिशा को कुण्डलिनी आज्ञा तक पहुँच जाती थी मोड़ सकते हैं। वह अब आपकी आत्मा लेकिन सहस्रार तक पहुँचना असंभव कार्य था क्योंकि यहाँ तक पहुँचने के लिए यहीं अर्थ है। विश्वास शुद्ध बुद्धि को साधक को साकार से निराकार तक जाना पड़ता है। साकार से निकलकर निराकार तक पहुँचना बहुत कठिन कार्य था तथा की खोज आरम्भ कर देगी। विश्वास का उन्नत कर देता है। साकार और निराकार अब एक बार चाहे आपने बादलों निराकार पर चित्त को टिकाना ही (जिस को होते देख लिया हो फिर भी प्रकार से कुछ मुसलमानों तथा कुछ अन्य हुए दूर अभी बादल हैं। तो बादलों को उड़ाने के लोगों ने करने का प्रयत्न किया) एक लिए आपको पवन का उपयोग करना असंभव कार्य था। होगा - आदिशक्ति की शीतल लहरियों इन परिस्थितियों में यह आवश्यक था कि निराकार (परमात्मा) साकार रूप aT (Wind of the Holy Ghost) | H14 जानते हैं कि इस शीतल पवन का लाभ धारण करें ताकि किसी भी प्रकार की उठाने के बहुत से उपाय हैं। अतः ये जटिलताएं बाकी न रह जाएं। ज्यों ही पवन किसी अन्य स्रोत से आती है। यह आप साकार पर चित्त को टिकाते हैं. स्रोत आदिशक्ति का है, आपकी अपनी आप निराकार हो जाते हैं। बिल्कुल वैसे कुण्डलिनी का है और साकार रूप में भी ही जैसे आपके सम्मुख यदि बर्फ हो और आपके सम्मुख आदि कुण्डलिनी विद्यमान आप उस पर हाथ रख दें तो यह पिघल हैं। आपसे पूर्व जो अनन्त साधक आए जाती है तथा आप इसकी शीतलता को आप उनसे कहीं अधिक सौभाग्यशाली अनुभव करने लगते हैं। हैं। क्योंकि किसी विग्रह की, किसी स्वयंभु पूजा का अर्थ मूर्ति की पूजा करने में लोगों को बहुत बड़ी समस्या होती थी। सर्वप्रथम उन्हें समस्या का समाधान हो गया है। पूजा ध्यान धारणा करनी होती थी जो 'सविकल्प एक ऐसी क्रिया है जिसके माध्यम से इस प्रकार अब इतनी सरलता से 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-47.txt मार्च-अप्रैल 2003 44 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 3 व 4 आप साकार को निराकार में परिवर्तित अतः आपका कार्य और आपका एकमात्र तरीका पूजा पर चित्त को लगाना है और आपके चक्र ऊर्जा केन्द्र हैं परन्तु इसका साक्षी होना है। आप दृष्टा (Seer) उन सब पर भी शासक देवी-देवता हैं दृष्टा (Seer) शब्द के दो अर्थ हैं विराजमान हैं। उन्हें भी निराकार से एक जो देखता है, केवल देखता है और साकार बनाया गया है। जब आप पूजा वह केवल ज्ञान है। बिना किसी विचार करते हैं तो साकार पिघलकर निराकार के, बिना किसी प्रतिक्रिया के वह दृष्टा ऊर्जा का रूप धारण कर लेता है और केवल देखता है और स्वतः आत्मसात यह निराकार ऊर्जा बहने लगती है तथा करता है। जिसमें स्वतः ये सब कार्य ये शीतल चैतन्य लहरियाँ प्रवाहित करती होता है केवल वही दृष्टा (Seer) है। मेरे लिए कभी-कभी यह कठिन पड़ी हुई परतें तथा इसके विषय में अज्ञानता होता है क्योंकि आपमें और देवी-देवताओं में कुछ समानता होनी चाहिए. कुछ संतुलन पूजा के विषय में आप सोच नहीं तो होना आवश्यक है। यहाँ बैठे आप सकते। ये चीजें एक ऐसे साम्राज्य मन्त्र बोल रहे हैं, देवी-देवता जागृत हो (Realm) में घटित होती हैं जो विचारों गए हैं और आप हैं कि अपने हृदय में की सीमा से परे है आपको समझना कुछ आत्मसात करना ही नहीं चाहते। होगा कि पूजा के विषय में आप तर्क नहीं तो पूजा में देवी-देवताओं के जागृत होने ऊर्जा कर सकते हैं। हैं। और इस प्रकार से आत्मा के ऊपर दूर हो जाती है । कर सकते। अपने चक्रों पर आपने पूजा से उत्पन्न होने वाली सारी फालतू का अधिकाधिक लाभ उठाना है इसके को मुझे अपने शरीर में ही पुनः ग्रहण लिए पूरी तरह से आप पूजा पर चित्त करना पड़ता है। लगाएं और अनुभव करें कि किस प्रकार से यह शीलत पवन बह रही है । बादलों हृदय खुले रखें और साक्षी भाव से बिना अतः बेहतर होगा कि आप सब अपने सोचे को देखें पूजा को उड़ा ले जाना इस पवन का कार्य है। कुछ 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-48.txt दिनांक 12/02/2003 बाजपुर सेवा में, जय श्री माता जी, मी मैं विगत पाँच वर्षों से सहजयोग कर रहा हूँ, सहजयोग से पूर्व और सहजयोग के बाद मैं अपने जीवन को पूर्ण परिवर्तित पाता हूँ। विद्यार्थी जीवन में ही मुझे वे सारे दोष लग चुके थे जो आज एक आम युवा को भीतर ही भीतर खोखला कर नर्क में धकेल रहे हैं। ये श्री माताजी की ही कृपा है जो आज मैं दूसरा जन्म पाया हूँ वरना न जाने कहाँ भटक चुका होता। सहजयोग आज मेरे जीवन का अंग बन चुका है। मेरा जीवन सहजयोग के बगैर शून्य है । सहजयोग ज्ञान का वो भण्डार है जिसका प्रारम्भ व अंत कहीं भी नहीं, बस अपार सागर है। मैं उत्तरांचल राज्य के उद्यमसिंह नगर जिले व बाजपुर विकास खण्ड के हरिपुरा हरसान गाँव का निवासी हूँ व वर्तमान में जूनियर हाईस्कूल (प्राइवेट) विद्या निकेतन, हरिपुरा हरसान में प्रधानाध्यापक के पद पर कार्य कर रहा हूँ। सहजयोग में कई चमत्कारों के बारे में सेमिनार व गणपति पुले में सुने किंतु जब वर्ष 2002 के शिवरात्रि के अवसर पर मैंने घर पर ही श्री माता जी की पूजा एक साधारण रूप ही में की और पूजा के बाद फोटो खींची तो श्री माता जी की फोटो पूरी तरह चैतन्य से ढकी पायी। इससे मैंने यह जाना की कि श्री माता जी अपने तुच्छ-से-तुच्छ पूजा भक्त पर भी ममता का सागर बिखेरती हैं और आशीर्वाद देती है। सच्चे मन से परमेश्वरी माँ का ध्यान किया जाये तो माँ परमानन्द देती हैं। आज मेरा जीवन हमेशा चैतन्य में व्यतीत हो रहा है और प्रयास करता रहता हूँ कि ऐसा अनुभव सभी सत्य के खोजी व्यक्तियों को हो। "जय श्री माता जी" धर्मेन्द्र सिंह बसेडा ग्राम-पो० हरिपुरा हरसान बाजपुर (उद्यमसिंह नगर ) उत्तरांचल-262401 फोन : 05949-244 338 9:00 से 4:00 बजे तक 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-49.txt %23 ully 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-50.txt Da00000o000