SIRMALA मई - जून, 2003 खंड : XV अंक : 5 व 6 चैतन्य लहरी - PURE ा ाे ०र श ट oiHARMA VISHW UNIVERSAY RELIGION इस अंक में 1 गणेश पूजा - 18 सितंबर, 2002 (कबैला) 13 क्रिसमस पूजा - 25 दिसंबर, 2002 (गणपति पुले) 21 नववर्ष पूजा - 31 दिसंबर, 2002 (वैतरणा) 25 किंग्स्टन में पूजा - 11 जून, 1980 89 जन्म दिवस समारोह - 21 मार्च, 2003 (दिल्ली) 45 मकर संक्रांति संदेश 48 प्रेमपूर्वक-एस्टोनिया से ८ म री चै त न य ल ह प्रकाशक वी जे. नलगीरकर 162 - ए. मुनीरका विहार, नई दिल्ली 110067 मुद्रक अमरनाथ प्रैस प्रा. लिमिटेड डब्ल्यू एच एस 2/47 कीर्ति नगर औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली-15 फोन : 25921159, 55458062 सदस्यता के लिए कृपया इस पते पर लिखें :- श्री ओ.पी. चान्दना एन - 463 (G-11) ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली - 110034 फोन : 9810414910 सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पते पर भेजें : चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी-17, कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली 110016 श्री गणेश पूजा कबै ला 18 सितंबर, 2002 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज हम यहाँ श्री गणेश की पूजा करने और न ही उनका अनिष्ट कर सकती है। के लिए एकत्र हुए हैं। श्री गणेश पावित्र्य के हम पर बहुत बड़ा आर्शीवाद है कि हमारे देवता हैं। बालक रूप में जब हम जन्म लेते अन्दर पावित्र्य का सृजन किया गया है। हैं तो श्री गणेश कार्यरत होते हैं । हम किसी भी अन्य सृजन से पहले पावित्र्य की अत्यन्त अबोध होते हैं। परन्तु अबोधिता स्थापना की गई अबोध बन जाना हमारा इतना शक्तिशाली गुण है कि बच्चे हर हाल बहुत बड़ा गुण है। में जिन्दा रहते हैं, और हम उन्हें प्रेम करते हैं क्योंकि वे अबोध हैं। इसी अबोधिता के बाल्यकाल में यह आपको आनन्द प्रदान आनन्द श्री गणेश का महानतम गुण है। करते हैं। बच्चे यद्यपि बोलते नहीं है फिर भी कारण हम उनका आनन्द लेते हैं। ज्यों-ज्यों आयु बढ़ती है हमारा सहस्रार बन्द होता बेशुमार आनन्द प्रदान करते हैं। आनन्द चला जाता है और सभी प्रकार के अटपटे प्रदान करने का यह गुण श्री गणेश से आता विचार इस में प्रवेश कर जाते हैं और है। निकलते ही नहीं, वहाँ बने ही रहते हैं निकलने का नाम ही नहीं लेते। हमारे चरित्र है कि, लोग आनन्दित नहीं होते, अब भी वे पर तथा हमारे कौमार्य-विवेक पर भी गम्भीर होते हैं । वो नहीं जानते कि किस सहजयोग में आने के बाद भी मैंने देखा अबोधिता का बहुत बड़ा प्रभाव होता है। प्रकार हँसना है, किस प्रकार हर चीज का व्यक्ति यदि अबोध नहीं है तो उसे पवित्रता आनन्द लेना है। यह इस बात को दर्शाता है का ज्ञान नहीं होता कि अपवित्र होना कैसा कि उनमें अबोधिता का अभाव है। अतः यह है, चालाक होना कैसा है । अबोध व्यक्ति को बात समझ लेनी अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि यदि कोई हानि पहुँचाने का प्रयत्न करे तो यदि आप सहजयोगी हैं तो आपको श्री गणेश उसकी रक्षा करते हैं, उसकी आनन्दित रहना चाहिए तथा बच्चों की तरह देखभाल करते हैं। विश्व के बहुत से अन्य लोगों को भी आनन्द प्रदान करना अबोध लोग, यह्युपि ऐसे लोगों की संख्या चाहिए - बच्चे कितने मधुर होते हैं! चाहे बहुत कम है, कामुकता, लोभ तथा अन्य बहुत सी सांसारिक समस्याओं से निर्लिप्त कितनां आनन्द प्रदान करते हैं! आपमें यदि हो जाते हैं क्योंकि वे इतने पावन होते हैं बच्चों की अबोधिता का आनन्द लेने की कि कोई भी चीज न उन्हें बिगाड़ सकती है योग्यता नहीं है तो कोई आपकी सहायता नवजात शिशु ही क्यों न हों फिर भी वे चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 मई-जून, 2003 2. नहीं कर सकता। श्रीगणेश भी आपकी श्री गणेश का पूर्ण अभाव है। व्यक्ति में हर सहायता नहीं कर सकते क्योंकि मानव के चीज का आनन्द लेने की योग्यता होनी अन्दर एक अन्तर्जात गुण है और आपमें यदि चाहिए। अपने तथा लोगों के बच्चों का वह गुण नहीं है तो अन्य गुणों का कोई लाभ आनन्द लेने की योग्यता होनी चाहिए। यही नहीं। कुछ लोगों को भोजन बहुत अच्छा चीज दर्शाती है कि उसे श्री गणेश का लगता है, कुछ रंग पसन्द करते हैं, कुछ आशीर्वाद प्राप्त है। और बहुत सी चीजें पसन्द करते हैं। आपमें यदि श्री गणेश (अबोधिता) नहीं हैं तो आप आपकी कुण्डलिनी की देखभाल करते हैं. किसी भी चीज़ का आनन्द नहीं ले सकते। उसकी देखभाल करते हैं तथा सभी चक्रों श्रीगणेश के आशीर्वाद से ही हम वास्तव में पर उन्हीं को आशीर्वाद देना होता है। हर चीज़ का पूर्ण आनन्द ले सकते हैं। श इसके बिना तो हम चीजों को आंकने लगते सहजयोगी के रूप में आप बिल्कु ल हैं, आलोचना करने लगते है। हर चीज़ के व्य्थ हैं क्योंकि तब आप हर समय विषय में लोग बहुत से प्रश्न खड़े कर देते केवल अन्य लोगों की बुराइयां दे खते हैं हैं। किसी चीज़ को यदि आप देखते हैं और और हर समय उलझे रहते हैं । मैं कहना बह यदि आपको आनन्द प्रदान करती है तो चाहूंगी कि इस स्थिति में आप ऐसी समस्या आशा की जाती है कि आप उसका कारण में फंस जाते हैं, जिसके कारण किसी चीज बताएं। इस विश्व में बहुत से आलोचक हैं का आनन्द नहीं ले पाते। स्वभाव से ही आप जो एक दूसरे की आलोचना ही करते रहते सोचते हैं कि आप बहुत गम्भीर, परिपक्व हैं। अब आलोचक आलोचकों की ही और अनंत हैं। परन्तु आप अबोध नहीं हैं। आलोचना करते हैं । यह बहुत बड़ी समस्या ऐसा व्यक्ति हमेशा सभी के लिए सिरदर्द बन है। उनका यही कार्य है क्योंकि उनमें गणेश जाता है। परिवार में यदि एक भी व्यक्ति तत्व का अभाव है। वे अन्य लोगों की ही ऐसा हो तो लोग उससे छुटकारा पाना आलोचना करते रहते हैं, अपनी कभी भी चाहते हैं । नहीं करते। उन्हें अपनी कभी कोई सीमा नज़र नहीं आती और इस प्रकार से ऐसे चाहिए और ये गुण है दूसरों को आनन्द समाज की सृष्टि करते हैं, जो बहुत ही प्रदान करना। आप कितना आनन्द अन्य हानिकारक, भयानक होता है। ऐसे लोग लोगों को दे सकते हैं ? ऐसा व्यक्ति अपने शरीर पर फोड़े-सम या शरीर के अन्दर लिए कुछ नहीं चाहता, कभी भी नहीं कहता मवाद-सम होते हैं। आप यदि किसी चीज कि मुझे ये मिलना चाहिए. मुझे वो मिलना की सराहना नहीं कर सकते, किसी चीज चाहिए, मुझे लीडर होना चाहिए ये होना का आनन्द नहीं ले सकते तो आपके अन्दर चाहिए वो होना चाहिए। वो तो बस दूसरों श्री गणेश का सौन्दर्य यह है कि वे श्रीगणे श के आशी्वाद के बिना अतः आपमें श्रीगणेश का गुण होना चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 5 मई-जून, 2003 को आनन्द देने में ही मजा लेता है। दूसरों करने लगते हैं तो कितनी समस्याएं खड़ी हो को आनन्द देने में-विनोदशील एव्नम् सकती हैं? उदाहरण के रूप में एक व्यक्ति करुणामय बनकर दूसरों को आनन्द देने में। एक स्थान पर जन्मा है, उस स्थान के वो कभी दूसरों का अपमान करने या दिल कारण वह अपने को सर्वोत्तम समझता है. दुखाने का प्रयत्न नहीं करता। गलती से भी अपने देश को, अपने लोगों को ही सर्वोत्तम यदि वो कभी दूसरों का दिल दुखा दे तो समझता है और सोचता है कि उनमे कोई उसे इसका बहुत पछतावा होता है और सौ कमी नहीं है। इसके विपरीत व्यक्ति यदि बार दूसरों से क्षमा मांगता है । ऐसा सच्चा सहजयोगी है, जिसमें श्रीगणेश जागृत प्रसन्नचित्त व्यक्ति ही सच्चा सहजयोगी हैं तो वह व्यक्ति सभी कुछ देखता है, इसके होता है। हमें भी अपने चहुं ओर ऐसे ही पीछे छुपे हुए विनोद का आनन्द लेता है। व्यक्ति चाहिएं-जिनमें किसी के लिए घृणा सभी लोगों की कमियों को देखता है कि वो और ईष्या न हो, जो दूसरों की बुराइयां न किस चीज के पीछे पागल हैं। किस प्रकार खोजें, सभी की अच्छाइयां देखें, सभी के वो आचरण करते हैं तथा उनके व्यवहार के गुण देखें। ये न देखें कि आपकी त्वचा का पीछे छुपे मजाक को समझता है और उसका रंग कैसा है, आप गोरे हैं, काले हैं, लम्बे हैं, आनन्द लेता है। उनकी मूर्खता यह होती है ठिगने हैं- इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह संच्चाई से बचते हैं और सच्चाई को क्योंकि यह तो पूर्ण-पूर्ण आनन्द है और इस तभी देखा जा सकता है जब आप सच्चाई पूर्ण आनन्द की अवस्था में आप किसी की के साम्राज्य में हों, अन्यथा हर समय आपको आलोचना नहीं करते और न ही किसी में कमियां ही नजर आती हैं । कोई न कोई बुराइयां खोजते हैं। समस्या यह है कि इस आधुनिक युग में नजर आती है। परन्तु हर चीज के पीछे छुपे लोग अत्यन्त-अत्यन्त आधुनिक हो जाते हैं विनोद को यदि आप देख सकते हैं, केवल और अन्य लोगों की आलोचना करने में भी तभी आप ठीक हैं। उदाहरण के रूप में मैं वह बहुत आगे हैं। यही पारस्परिक सम्बन्ध कहूँगी कि मुझे ऐसे अनुभव हुए जब लोगों उन्होंने बनाए हैं कि वे एक दूसरे की ने आकर मुझे कहा कि फलां व्यक्ति ऐसा है आलोचना ही करते रहते हैं । एक अन्य दुर्गुण भी उनमें है कि वे अपने पूछती हूँ कि 'क्या आप वास्तव में ऐसे हैं? देश के लोगों से ही मेल-जोल करते हैं, उत्तर मिलता है कि 'नहीं मैं ऐसा नहीं हूँ? अपने परिवार तक ही सीमित रहते हैं । मैंने मैं कहती हूँ तो क्यों अन्य लोगों को आपमें देखा है कि इससे समस्याएं भी खड़ी होती यह कमी नजर आती है? हो सकता है सभी हैं, जिन धर्मों को हम मानते हैं उन्हीं से जुड़े लोग गलती कर रहे हों या आप गलत हों। रहते हैं। जब आप एक और दूसरे में अन्तर तब वो कहता है कि हो सकता है मुझमें ही हिलाने वाली और परेशान करने वाली चीज फंला व्यक्ति वैसा है, तो मैं सीधे उससे 3. পাঁ चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 5 मई-जून. 2003 कुछ कमी हो। इस प्रकार से आप व्यक्ति सकता है। तथा उसकी खुबियों का भी को परिवर्तित कर सकते हैं तथा उनको भी आनन्द लिया जा सकता है, तो क्यों आप जो ये सोचते हैं कि वही ठीक हैं. बाकी का बिना बात के लोगों की आवाजें बंद करें, सारा संसार बुरा है तथा उनसे घृणा करने क्यों उनकी आलोचना करें। का उन्हें अधिकार है और वो विपरीत दिशा में भी चल सकते हैं। ऐसे में होता क्या है बनाई जाए, उदाहरण के रूप में कैथोलिक्स कि व्यक्ति आनन्द का सार खो देता है। अब ऐसे लोगों से इतनी बड़ी संस्था कैसे लोग प्रोटैस्टेन्टस का विरोध करेंगे और आनन्द का तत्व या सार तो सभी चीजों प्रोटैस्टेन्ट्स कैथोलिक लोगों का, क्योंकि वो आनन्द का सोत खोजने में हैं। मान लो तो एक दूसरे से घृणा करते हैं। इसका क्या आप किसी अटपटी चीज को देखते हैं तो लाभ है? एक दूसरे को धूणा करने का क्या इसमें भी आपको विनोद का आभास होना लाभ है? केवल इस कारण की कोई चाहिए। यदि यह सुन्दर है तो इसको प्रोटैस्टैन्टस है और कोई कैथोलिक? स्वयं समझने में आपको दूसरे प्रकार की संवेदना देखें कि आपमें क्या कमी है. आप इस प्रकार होनी चाहिए। कुछ लोग अपने और दूसरों से क्यों सोचते हैं, क्यों आप चीजों को के जीवन में अर्थहीन चीज़ों का ही राग देखकर कहते हैं कि फलां व्यक्ति में क्या अलापते रहते हैं । यह बात मेरी समझ में कमी है, और फिर लड़ने के लिए झूंड बना नहीं आती। मेरे पिताजी में यह सब करने कर परस्पर लड़ते हैं। इस प्रकार के विचारों में की गहन क्षमता थी। एक बार जब में घर से कि दूसरा व्यक्ति ठीक नहीं है और तुम गई तो मैंने कहा कि मेरा भाई उस संगीतज्ञ स्वयं पूर्णतः ठीक हो, बड़े-बड़े युद्ध भी हो की प्रशंसा कर रहा था। आपका उसके सकते हैं। राष्ट्रों के स्तर पर भी मैंने यह विषय में क्या विचार है? उन्होंने कहा बात देखी है! यहां तक की सहजयोग में मैंने निःसन्देह वह संगीतज्ञ है । उसमें साहस देखा है कि मान लो कोई व्यक्त्ति भारत से बहुत है। मैंने कहा, 'क्यों? क्योंकि वो जो या किसी अन्य देश से आ रहा है तो उससे चाहे गाता चला जाता है, उसे कुछ बु्रा नहीं पूर्व अपना ही उम्मीदवार खड़ा कर दिया लगता। चाहे सभी लोग हंसते रहें, उकता जाए। ये ऐसे लगाव हैं., जिनके विषय में जाएं, परन्तु उसे इसकी बिल्कुल चिन्ता नहीं लोग सचेत नहीं हैं। परन्तु ऐसी स्थिति में मैं होती। अपनी शैली में ही वो गाता चला अपनी माया फैलाती हूँ, और जब वे ऐसे जाता है। अतः लोगों की कमियों का कार्य करते हैं, जब वे किसी एक दल का, आनन्द लेने में भी सौन्दर्य है। मैं कहना एक ही प्रकार के लोगों का, एक ही धर्म के चाहूँ गी कि यह भी एक अत्यन्त सूक्ष्म लोगों का, पक्ष लेत्ते हैं, धर्म न कहकर हम संवेदना है जिसके द्वारा व्यक्ति के दोषों का कहें कि एक ही देश का पक्ष लेते हैं तो मेरी भी उन्हें विनोद मान कर आनन्द लिया जा माया कार्य करती है। अतः सहजयोग में भी मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 यह राष्ट्र-लगाव काफी है के आप फलां पक्षधर बन जाना एक आम बात है। आप देश से हैं और उसी का पक्ष लेते हैं । इस किसी देश से यदि जुड़े हुए हैं तो आपको बात को आप नहीं समझते कि व्यक्ति चाहे चाहिए कि आप उसको सुधारें । उस जिस भी देश में हो वह सहजयोगी है। विचारधारा को सुधारें जिसका वे अनुसरण ा हमारा समाज विश्व स्तरीय है। हमारी करते हैं । इन सारी चीजों पर उनकी दृष्टि पहचान किसी एक देश से नहीं होनी चाहिए। नहीं पड़ती क्योंकि वे इस प्रकार से उनसे हमारे लोगों की अन्तर्राष्ट्रीय पहचान होनी जुड़े हुए हैं कि उन्हें उनके दोष नज़र ही चाहिए। मुझे ऐसी चीजें देखने को मिली हैं नहीं आते। वो ये देखते हैं कि अन्य लोगों में और मुझे खेद होता है कि आपने सहजयोग के क्या दोष हैं। परन्तु मैंने देखा है कि सच्चे स्वभाव को नहीं समझा। विश्वस्तरीय है, पूर्णतः विश्वस्तरीय, किसी एक कि उनके देश में क्या दोष हैं और वहां पर देश या किसी व्यक्ति विशेष से इसे कुछ नहीं क्या हो रहा है, क्या कठिनाइयां है और वहां लेना-देना। यह इतनी विश्वस्तरीय चीज है के लोग कैसे हैं । ये कितनी आश्चर्यजनक कि यदि आप इसके सूक्ष्म पक्ष को देखें तो बात है! मैं हैरान थी कि किस प्रकार से जान जाएंगे कि यह कितना आनन्ददायी है। लोगों ने मुझे बताया कि कौन से लोग एक सर्वशक्तिमान परमात्मा ने केवल एक विश्व रूप नहीं हैं और अत्यन्त सूक्ष्म रूप से बनाया है। लोगों ने चाहे संयुक्त राष्ट्र संघ स े बनाया हो, उन्होंने चाहे ये सभी कुछ बना वे इस प्रकार से विरोधी हैं । उन्होंने बताया लिया हो फिर भी वे अपने ही देश से इतने जुडे हुए हैं कि वे अपने देश को ही नहीं सुधार विश्वबंधुत्व नहीं है। एक बार जब आप सकते। मान लो आपके अपने देश में कोई विश्वस्तरीय हो जाते हैं तो आपकी भिन्न दोष है तो उसे भी वे नहीं सुधार सकते, उनकी राज्यों संबंधी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं । दृष्टि में सभी कुछ ठीक है क्योंकि उनका जन्म ये बात उनके मस्तिष्क में नहीं आती कि हम उस देश विशेष में हुआ। किसी देश को यदि सहजयोगी हैं और हमें विश्वस्तरीय बनना वो अच्छा मानते हैं तो उस सीमा तक उसकी है। हम सहजयोगी हैं। हमें किसी देश विशेष प्रंशसा किए चले जाते हैं कि वे स्वयं भी नष्ट से लिप्त नहीं होना और यदि अब भी हम हो जाते हैं और उनकी धारणा भी। अतः किसी ऐसा करते हैं तो अभी तक हमारे विश्व देश-विशेष का पक्ष-धर होने के पीछे निहित, स्तरीय व्यक्तित्व में कुछ कमी है। मजाक को देखना ही सर्वोत्तम है। इसके विषय में एक बहुत अच्छा चुटकुला है। सहजयोगियों प्रदान करते हैं । उनका व्यक्तित्व सार्व - में मैं भी इसका आनन्द लेती हूँ। मैंने देखा है कि किसी देश विशेष का सहजयो ग सहजयोगी बहुत अच्छे हैं। वे मुझे बताते हैं सहजयोग-विरोधी हैं। मैं हैरान थी कि कैसे कि श्रीमाताजी किसी भी प्रकार से उनमें ये सर्वबन्धुत्व व्यक्तित्व हमें श्री गणेश भौमिक है. सभी देशों के लिए है चाहे वह इटली हो या इंग्लैड । उनके व्यक्तित्व में भई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 श्रीगणेश के इसी गुण से लोग पावन हो अबोधिता है, पूर्ण अबोधिता। केवल इतना ही नहीं वे आनन्द प्रदायक हैं। आनन्ददायी जाते हैं क्योंकि पावनता अत्यन्त आनन्ददायी व्यक्ति को मान्यता मिलती है। ऐसा नहीं है चीज है अत्यन्त आनन्दायी। यह ऐसी चीज कि विश्व उन्हें मान्यता नहीं देता। वो नहीं है, जिसके विषय में आपको किसी को संभवतः न जानते हों कि वो सार्वभौमिक हैं। बताना पड़े या यह किसी पर लादनी पड़े या परन्तु सार्वभौमिक लोग विश्व स्तरीय किसी को नियन्त्रित करना पड़े। यह तो घटनाओं और आवश्यकताओं पर पुस्तकें आनन्द लेने की चीज है, अपनी आत्मा का लिखते हैं, अपने देश के लो गों की आनन्द और अन्य लोगों की पावनता का आलोचना कर सकते हैं, अपने समुदाय के आनन्द । श्रीगणेश का यह महान वरदान है, लोगों की आलोचना कर सकते हैं और इसी इतना महान वरदान कि आप अपनी पावनता तरह से चलते जाते हैं। परन्तु कई बार ऐसे का आनन्द लेते हैं। इस बात की चिन्ता नहीं लोग किसी अन्य समुदाय के दास भी हो करते कि दूसरा आदमी पावन है कि नहीं । सकते हैं और उसकी प्रशंसा करने का कोई यदि गलत कार्य कर रहा है या भ्रष्ट है प्रयत्न भी कर सकते हैं। अतः आपकों दास तो भी इसका प्रभाव आप पर नहीं पड़ता। नहीं होना है। किसी एक देश से लिप्त नहीं उससे आप स्वयं बिगडते नहीं। आपके पास और पावनता- होना है। तो अपनी पावनता है पूर्ण आपको आत्मरूप होना है और जिस क्षणों से भरा हुआ अपना जीवन। आजकल चीज का आनन्द आत्मा लेती है उसकी की आधुनिकशैली चरित्रहीन जीवन तथा अभिव्यक्ति करनी है। यह इस बात का पावनता के विषय में सभी प्रकार के गलत चिन्ह है कि आपके श्रीं गणेश विद्यमान हैं विचारों की ओर झुक गई है आज यदि और वही कार्यान्वित कर रहे हैं । अगुवाओं कोई व्यक्ति पावनता की बात करता है तो के लिए यह बात समझना बहुत आवश्यक है लोग सोचते हैं कि अवश्य ही वह पागल है। क्योंकि मैंने देखा है कि किस प्रकार से वे ऐसा कैसे हो सकता है? आजकल सभी अपने देश-वासियों से ही लिप्त होते हैं! कुछ हो रहा है। आप यदि देखें तो भिन्न कभी-कभी मुझे यह देखकर अत्यन्त खेद प्रकार के फैशन हैं कोई भी फैशन शुरू होता है। मुझे वास्तव में दुख होता है कि होता है तो फैलता ही चला जाता है। सभी किस प्रकार वे ऐसे हो सकते हैं! वो अब लोग उसी फैशन के बस्त्र पहनते चले किसी देश विशेष के नहीं है। अब तो वे जाएगें उनमें अपना कोई व्यक्तित्व है ही श्रीगणेश के देश के हैं जो प्रेम और आनन्द नहीं । कोई भी गलत कार्य चालू होता है तो का साम्राज्य है। व्यक्ति यदि प्रेम एवम् विशेष रूप से महिलाएं उधर को ही चल आनन्द प्रदान नहीं कर सकता तो निश्चित पड़ती हैं। महिलाओं ने तो अपने पावनता विवेक को बिल्कुल ही खो दिया है। जिस रूप से उसमें कुछ कमी है। ा मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 प्रकार से वे वस्त्र पहनती है उससे मुझे कई किया जा सकता है जब आप किसी चीज बार तो दुख पहुँचता है। ऐसी वेशभूषा को केवल उस समय पर देखें। हर समय पहनने का क्या लाभ है? क्यों नहीं आप अपनी दृष्टि को घुमाते न रहें । यह दृष्टि ठीक से वस्त्र पहन सकते? यह चीज दर्शाती दोष किसी भी प्रकार से आ सकता है है कि उनका अपना कोई चरित्र नहीं है। वो क्योंकि श्री गणेश हमारी गलतियों को भांप चाहे कहते रहें कि मैं ऐसा हूँ, मैं वैसा हूँ लेते हैं। उदाहरण के रूप में लालची लोग ये परन्तु वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं है देखना शुरु कर देते हैं कि किसने किस क्योंकि वो लोग तो अपने आसपास की प्रकार के वस्त्र पहने हुए हैं और उन्हें कैसे नकारात्मक शक्तियों के बहाव में आ जाते वस्त्र पहनने चाहिएं। लालची व्यक्ति यदि हैं। आप बच्चों को देखें। बच्चे ऐसे नहीं किसी का अच्छा घर देखता है तो सोचता है होते। उनमें अपने पावनताहीन जीवन से कि मेरे पास भी इतना ही अच्छा घर होना अन्य लोगों को प्रभावित करने की इच्छा चाहिए। परन्तु वे उस घर के सौन्दर्य को नहीं होती। किसी भी बच्चे में नहीं होती। नहीं देख पाते, उस घर के वास्तविक सार इसके विपरित बच्चे अत्यन्त चेतन होते हैं को नहीं देखते। वो तो सि्फ यही देखते और पावन व्यक्तित्व बनना चाहते हैं। 1 चले जाते हैं कि मेरे पास भी ऐसा ही घर गणेश तत्व का प्रभाव आँखों पर भी होना चाहिए। सौन्दर्य विवेक उनमे नहीं पड़ता है, ये बात में अवश्य कहना चाहूँगी। होता। उनमें तो केवल कब्जा करने की श्री गणेश आपकी आँखों के माध्यम से कार्य भावना होती है। ये भावना अत्यन्त बुरी होती करते हैं। किस प्रकार से आप किसी व्यक्ति है क्योंकि सौन्दर्य विवेक तो अत्यन्त गहन को देखते हैं, ये बात अत्यन्त महत्वपूर्ण है। मैंने देखा है कि कुछ लोग अपना दृष्टि- विकृत और आक्रामक। अतः व्यक्ति को नियंत्रण पूरी तरह से खो देते हैं और कभी चाहिए कि श्री गणेश के नजरिये से चीजों एक व्यक्ति को देखते है कभी दूसरे को, को देखे कि किस प्रकार से वह कार्य कभी तीसरे को बिना वजह के किसी न करेगा किस प्रकार से उनका उपयोग किसी को देखते चले जाना! इसका करेगा बच्चों से आप सीखें कि चीज़ों को अभिप्राय ये हुआ कि श्री गणेश का उन पर किस प्रकार देखना है और किस प्रकार कोई नियंत्रण नहीं है। इस प्रकार से उनकी कार्यान्वित करना है, ये देखकर आप हैरान आँखे भी खराब हो सकती हैं अर्थात् ऐसी होंगे कि बच्चे किस प्रकार सोचते हैं, कितने स्थिति में व्यक्ति किसी भी चीज़ विशेष पर विवेकशील हैं और कितनी विवेकपूर्ण बातें दृष्टि केन्द्रित नहीं कर पाता। तो किस करते हैं ! भाव है और कब्जा करने की भावना अत्यन्त मैं एक बच्चे से मिली। उसने मुझे प्रकार से वह उसकी गहनता में जा सकता कहा कि 'मैं चाँद को प्रेम करता हूँ मैंने है, ध्यान केन्द्रित तो केवल उसी स्थिति में कहा 'ठीक है, चाँद में क्या कमी है?' 'कुछ %23 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 वं 5 मई-जून, 2003 नहीं, परन्तु हर समय यह बादलों के पीछे ही करते हैं । निःसन्देह सब ऐसे नहीं हैं परन्तु छिपा रहता है। मैंने कहा, कि वह ऐसा क्यों अभी भी कुछ लोग इस जाल में फंसे हुए करता है? क्योंकि यह चलता बहुत अधिक हैं। ब्रह्माण्ड का सृजन करने से पूर्व श्री है। इसके कारण वह थक जाता है और उसे गणेश को स्थापित किया गया. आदिशक्ति आराम की आवश्यकता होती है। बादलों के माँ ने श्री गणेश का किया यदि श्री पीछे छिपकर वह आराम करता है। वह यदि गणेश जागृत हों तो समाज में रहना बहुत इतना अधिक न चले, शान्त रहे तो उसे ही सुगम होता है। वहां तो सर्वत्र मैत्री भाव छुपना न पड़े। कल्पना कीजिए कि इतना होगा क्योंकि ऐसे समाज में स्वामित्व भाव या छोटा सा बच्चा ये सभी कुछ देखता है! मेरा विकृत भावना नहीं होती। व्यक्तित की दृष्टि कहने का अभिप्राय ये है कि मैं हैरान हो यदि महिलाओं के लिए धन के लिए या गई. एक छोटा सा बच्चा किस प्रकार भौतिक पदार्थों के प्रति अपवित्र होगी तो जानता है कि ठीक क्या है और गलत क्या उसके अन्दर गणेश तत्व खराब हो जाएगा| है। किस प्रकार व्यवहार करना है, किस गणेश तत्व वाला व्यक्ति जानता है कि प्रकार चीज़ों को समझना है और कार्य करने आनन्द, हर चीज का आनन्द किस प्रकार का उचित तरीका क्या है! उन्हें कू छ लेना है। बो चीज मेरी है तो कोई बात नहीं, सिखाया नहीं गया, कोई बन्धन उन पर नहीं आपको तो उसके सौन्दर्य का आनन्द लेने लगाए गए कुछ नहीं, फिर भी वे जानते हैं का तरीका आना चाहिए। यही आनन्द है । सृजन कि किस प्रकार आचरण करना है। परमात्मा ये आनन्द भाव यदि व्यक्ति में हो तो उनकी हमेशा रक्षा करते हैं । मैं कई ऐसे वह बूढ़ा नहीं होता क्यों कि वह तो हर बच्चों को जानती हूँ जो बहुत ऊँचाई से गिर समय आनन्द में रहता हैं। बूढ़ा होने की गए परन्तु उन्हें कुछ नहीं हुआ। साँप और कौन सी बात है? परन्तु प्रायः ऐसा होता अन्य जहरीले जीव भी उन्हें नहीं काटतें कहते हैं कि शेर भी बच्चों को नहीं खाता। हुए, अत्यन्त स्वार्थी और कभी-कभी अत्यन्त ये सब क्या है? ये कौन सी शक्तिशाली चीज मूर्ख होते हैं। आत्मा रूप में रहते हुए आप है जिसके कारण बच्चे सुरक्षित हैं और सब कुछ करें। स्वः (Self) क्या हैं? यह उनका विकास होता है? इतने भयानक और आनन्द के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। निश्चित अपवित्र जीवों (मनुष्यों) के बीच में रहते हुए रूप से आनन्दमय व्यक्ति वही होता है जो भी बच्चे विकसित होते हैं। आज पुरुषों का आनन्द के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति महिलाओं के पीछे और महिलाओं का पुरुषों करता के पीछे दौड़ना आम बात है। । नहीं। आप तो अत्यन्त आलोचना से भरे है। ऐसा व्यक्ति अत्यन्त आनन्द प्रदायक और विनोदशील होता है। वह विश्वास नहीं होता कि स्वयं को किसी का अपमान नहीं करता और छोटी से सहजयोगी कहलाने वाले कुछ लोग भी ऐसा छोटी चीज़ में भी सौन्दर्य देखता है। मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 5 परमात्मा की सृजित सभी चीज़ें अत्यन्त बहुत अधिक बातें न बताऐं। हर समय ये त कहकर कि 'ऐसा करो, ऐसा मत करो', भी सुन्दर हैं। सभी चीज़ों का स्वभाव अत्यन्त सुन्दर है। मुझे हैरानी होती है कि बहुत कम हमें बच्चों को नियंत्रित नहीं करना चाहिए। लोग कविता लिख पाते हैं क्योंकि वो तो प्रेम ऐसा करने पर बच्चे आपकी बात को अभिव्यक्ति आदि मूर्खतापूर्ण चीज़ों का वर्णन समझेंगे ही नहीं । बच्चे यदि पावन हैं, पावन करने में ही लगे रहते हैं जो व्यक्ति को समाज में यदि उनकी परवरिश होती है तो उदास करती हैं। उदासी आत्मसाक्षात्कारी उन्हें कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। व्यक्ति का चिन्ह नहीं है। आपमें भी यदि इसीलिए मैं हमेशा कहती हूँ कि अपने बच्चों उदासी की समस्या है तो एकदम से को हमारे (सहज) स्कूल भेजें क्योंकि बच्चों सावधान हो जाएं और देखें कि क्यों आपमें का पावन होना अत्यन्त आवश्यक है। हर चीज के प्रति इस प्रकार का अटपटा पावनता का मूल्य समझना बच्चों के लिए दृष्टिकोण विकसित हो गया है? क्यों नहीं बहुत आवश्यक है। पाश्चात्य देशों का आप हर चीज का आनन्द ले सकते? आप आधुनिक समाज बच्चों की अबोधिता को एक व्यक्ति को देखते चले जाइए, दूसरे नष्ट करने वाला है बच्चों से हमें बहुत कुछ व्यक्ति को देखते चले जाइए, आप बिल्कुल सीखना है-वे कितने अबोध हैं, कितने भी आनन्द न ले पाएंगे। परन्तु बच्चों को सहज हैं! बच्चे अत्यन्त उदार होते हैं। जो आप यदि देखें तो आपको अच्छा लगेगा कुछ भी उनके पास होता है उसे अन्य लोगों बच्चों के विषय में एक चुटकुला है। एक को दे डालने में वे बिल्कुल नहीं परिवार में खाना खाने के लिए एक मेहमान हिचकिचाते। आया । बच्चे ने उसे खाते हुए देखा। कहने उनमें नहीं आता। इस गुण की आप कल्पना लगा, "माँ आपने कहा था कि वह तो घोड़े करें! किसी को यदि कोई चीज़ अच्छी की तरह से खाता है, परन्तु वह घोड़े की लगती है तो बच्चा कहता है ठीक है, आप तरह से नहीं खा रहा। अतः बच्चे अत्यन्त ले लो। बच्चे इतने अद्वितीय होते हैं, हमें सहज, सहजहृदय होते हैं और इस सहजता उनसे शिक्षा लेनी चाहिए। उनके मुस्कुराते से वे सबके दोष सुधारते हैं। बच्चों से क्या हुए चेहरे, उनका हार्दिक आनन्द हमें चीज़ों के प्रति स्वामित्व भाव कहना है, इस बात पर ध्यान दिया जाना सिखाता है कि किस प्रकार से व्यवहार बहुत महत्वपूर्ण है। बच्चों को आप ऐसी करना है। उनके माध्यम से श्री गणेश स्पष्ट कोई बात न बताएं अन्यथा वो ऐसे ढंग से चमकता है। मैं तो ये कहूंगी कि जो कहेंगे जो बहुत हास्यास्पद होगा। आरम्भ में सुन्दर-सुन्दर बातें वे करते हैं आप उन्हें ब च्चे बहुत ही आज्ञाकारी होते हैं, लिख लें। अपने बच्चों की कही हुई बातों आज्ञाकारिता उनके सहज स्वभाव के कारण को लिख लें। बहुत ही दिलचस्प कथाओं होती है । फिर भी हमें चाहिए कि बच्चों को की यह पुस्तक तैयार हो जाएगी। विश्व में मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 10 कौन से युद्ध हुए, कौन से भयानक कार्य जल्दी से उन्हें नहीं अपनाते, उन्हें इस बात हुए, उनके स्थान पर आप लिखें कि बच्चों का ज्ञान होता है कि ये बुरी बात है इसे नहीं ने आपको क्या बताया। समाज में प्रचलित किया जाना चाहिए। अपनी अबोधिता से वे फैशन की बेवकूफी में बच्चे विश्वास नहीं जानते हैं कि ये कार्य गलत है, ये नहीं करते। आप देखें कि वे सदैव कितनी करना चाहिए। कभी-कभी हो सकता है कि भली-भांति वस्त्र पहने हुए होते हैं। फैशन वों आग से खेलना चाहें या वो ऐसा कुछ की उन्हें कोई चिन्ता नहीं होती। वे स्वतन्त्र करें, परन्तु एक बार यदि वे आग से ज़रा सा विचार के होते हैं, किसी समाज के दास भी जल जाएंगे तो उसके बाद कभी उसे नहीं होते वे किसी ऐसी चीज को केवल छुएंगे नहीं। बच्चे बहुत शीघ्रता से सीखते हैं इसलिए नहीं मानते क्योंकि बाकी के लोग क्योंकि उनकी बढ़ती हुई आयु होती है । उसे मानते हैं, वे अपनी ही शैली के अनुसार वास्तव में आवश्यकता इस बात की है कि चलते हैं बहुत ही सम्मानमंय ढंग से रहते हैं. बड़े लोग भी सीखें, बच्चों की तो बढ़ती अत्यन्त गरिमामय होते हैं. उनमें पावनता आयु है. वो सीख रहे हैं । परन्तु बड़ों का विवेक अत्यन्त विकसित होता है। वो कोई क्या है? उन्हें भी सीखना होगा कि किस ऐसा वस्त्र नहीं पहनते जिससे उनके शरीर प्रकार से भला बनना है किस प्रकार सभी का नंगापन दिखाई दे या ये पता चले कि के प्रति करुणामय एवं प्रेममय होना है। उनमें कोई कमी है। कई बार हम अपने बच्चों की अनदेखी करते हैं, चाहे वह धन आता है? मैं नहीं जानती। परन्तु लोग जहां की समस्या के कारण हो या पति-पत्नी के भी जाते हैं, आलोचना करनी शुरु कर देते पारस्परिक समस्याओं के कारण हो। परन्तु हैं! बच्चे कभी आलोचना नहीं करते. बच्चों की उपेक्षा हो जाती है । एक बार यदि बच्चों की उपेक्षा हो जाए तो उनके साथ देखते। बच्चे किसी भी घर या स्थान पर कुछ भी हो सकता है। मेरे विचार से बच्चों जाते हैं तो उसका आनन्द लेने लगते हैं, को जन्म देकर उनकी उपेक्षा करना घर की सभी अच्छी चीजों की तरफ उनकी आलोचना करने का दृष्टिकोण कहां से आलोचना योग्य चीज़ों को वो कभी भी नहीं अपराध है। परिवार में, गृहस्थी में, बच्चों को मुख्य स्थान दिया जाना चाहिए और परिवार बताएंगे उनके यहां तो इतने सुन्दर श्री के सभी सदस्यों को उनकी देखभाल करनी गणेश थे, ये चीज़ थी। वो घर चाहे गन्दा चाहिए। बच्चे प्रिवार के महत्वपूर्ण सदस्य रहा हो, वहां चाहे दुर्गन्ध आ रही हो, परन्तु हैं। परिवार के मुखिया को भी उन पर बच्चों का ध्यान इस ओर नहीं जाता। उनकी चिल्लाने का कोई अधिकार नहीं है, बिल्कुल दृष्टि तो बस अच्छी-अच्छी चीजों की ओर भी नहीं। मैंने देखा है कि जिस प्रकार से होती है। आलोचना को वो नहीं अपनाते। हम बुरी आदतों को अपना लेते हैं, बच्चे अन्य चीज़ों की ओर नहीं झुकते आधुनिक दृष्टि जाती है। कहीं से वो आएंगे तो चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 मई-जून, 2003 11 समय में बच्चे जब बड़े होते हैं तो उनमें गलत चीजें प्रचलित हैं वो बातें उन्हें नहीं दी अजीबो-गरीब सोच विकसित हो जाती है। जानी चाहिएं । इनसे बच्चे बिगड़ जाते हैं। मैं वे कहते हैं, मुझे ये पसंद नहीं है मुझे वो एक बच्चे से मिली और बच्चे ने कहा मुझे पसंद नहीं है और जीवन के विषय में उनमे कार चाहिए, मर्सिडीज़ कार। इस बात को अजीबो-गरीब धारणाएं बन जाती हैं। इनसे सुनकर मुझे बहुत हैरानी हुई। ये धन उन्हें बचाने का प्रयत्न करना चाहिए, क्योंकि लोलुपता भी बच्चों में बचपन से ही आ आजकल समाज इतनी तीव्र गति से आगे जाती है। बच्चों के सम्मुख यदि आप धन जा रहा है । दूरदर्शन है तथा अन्य बहुत से लोलुप बातें करेंगे तो बच्चे भी बही सब कुछ प्रकार के विज्ञापन उपकरण तथा बहुत सी सीख जाएंगे और ऐसी ही बातें करने लगेंगे चीजें हैं जो बच्चों के लिए हितकर नहीं है। और भी बहुत सी चीजें हैं जिनसे हमें बच्चों इस तरह के विज्ञापन तथा दूरदर्शन को बचाना चाहिए। उन चीज़ों से जो उन्हें कार्यक्रम बच्चों को नहीं देखने चाहिए। बच्चे धन लोलुप बनाती हैं। यदि आत्म साक्षात्कारी हैं तो ये सब चीजें देखनी उन्हें अच्छी ही नहीं लगती। हिंसा सर्वत्र आपको ऐसे लोग मिलते है जिन्होंने तथा बेवकूफी भरे दृश्य उन्हें अच्छे नहीं गैर-कानूनी धंधों से बेशुमार दौलत एकत्र लगते । ये बात मैंने देखी है परन्तु कर ली माता-पिता बच्चों के सामने बैठकर इन्हीं आवश्यकता नहीं है। परन्तु अब भी उनमें सब चीजों को देखते हैं और आनन्द लेते लोभ है और वो धन लोलुप हैं! मैं आपको हैं। बच्चे भी क्योंकि बहां बैठे होते हैं बताती हैँ कि ये सब पागलपन है. वास्तविक इसलिए धीरे-धीरे यह सब भी उनके दिमाग पागलपन। एक मनुष्य चाहता है कि उसके में घर करने लगता है। परन्तु प्रायः बच्चों को पास पच्चीस कारें हों क्या वो अकेला हिंसा, मार-धाड़ आदि नहीं सुहाते। अतः हमें बच्चों से बहुत कुछ सीखना कि उसके पास पच्चीस हवाई जहाज हों । होता है क्योंकि वो अबोध हैं, पवित्र हैं । इनका वह क्या करेगा? चे चीजें प्राप्त करने उनके इन गुणों का सम्मान होना चाहिए. के लिए वह धोखाधड़ी करता है, लोगों को बच्चों को पीटने वाले, उन्हें चोट पहुंचाने कष्ट देता है, दूसरों के धन पर कब्ज़ा करता वाले और उनकी हर इच्छा पूरी करने वाले है आदि-आदि। ये सब कुकृत्य करने से लोग मुझे अच्छे नहीं लगते। बच्चों को अच्छा है कि व्यक्ति गरीब ही बना रहे। तो उनके पाबित्र्य में ही रहने देना चाहिए। उन्हें आजकल जिस मार्ग पर लोग चल रहे हैं वह अच्छी अच्छी बाते समझाई जानी चाहिएं, गलत है यह दाई ओर का-आक्रामकता- पावित्र्य और सदाचार के लिए उनका का मार्ग है। यही कहना चाहूंगी कि हम सम्मान होना चाहिए। समाज में जितनी सहजयोग को श्री गणेश से आरम्भ आज के समाज में ये समस्या है कि है । ये सब करने की कोई 1 पच्चीस कारों में बैठेगा? व्यक्ति चाहता है the वैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 मई-जून, 2003 12 काम अत ४ पाई करते हैं जो कि बाईं ओर विराजमान हैं उचित मार्ग दर्शन, आवश्यक प्रेम एवं दाईं ओर नहीं। पहले अपनी बाईं ओर सहायता उन्हें प्राप्त हुई हो तो बच्चे को विकसित करें फिर दाईं ओर को अत्यन्त-अत्यन्त भले एवं सुन्दर बन जाते आएं। आप लोग ठीक हैं इसलिए हमने हैं सभी सहजयोगियों को मैं ऐसे ही स्वभाव सहजयोग को पूर्णतः श्रीगणेश के अनुसार के शिशु या बालक प्राप्त करने का आशीर्वाद बनाया है उनके विराजमान होते ही आप देती हूँ और कहती हैँ कि वे अपने बच्चों की पूर्णतः ठीक हो जाते हैं और विवेक के भली-भांति देखभाल करें ऐसा करना बहुत अभाव के कारण कोई समस्या आपमें नहीं आवश्यक है क्योंकि यही बच्चे कल के रहती। श्री गणेश के जागृत होते ही आप सहजयोगी हैं । उनमें सभी सुन्दर गुण होने भली-भांति जान जाते हैं कि किस प्रकार चाहिएं। आप लोग एक अन्य ही प्रकार के आचरण करना है और किस प्रकार जीवन वातावरण से आए हैं परन्तु बच्चे अबोधिता बिताना है। तब आप कामुकता, लोभ, आदि की देन हैं । अतः वे अत्यन्त पावन हैं । मुर्खतापूर्ण चीजों को नहीं अपनाते जिनके उनकी पावनता का सम्मान और सुरक्षा पीछे लोग पगलाए हुए हैं। बड़े होकर लोग किसी भी मूर्खता के पीछे दौड़ पड़ते हैं लोग बच्चों के महत्व को और उनमें परन्तु बचपन में ही यदि उ न पर श्रीगणेश के गुण को विकसित करने के अच्छी-अच्छी चीजों का प्रभाव पड़ा हो, महत्व को समझेंगे । संस्कारमय पारिवारिक जीवन, अच्छी विद्या, किया जाना आवश्यक है । आशा है कि आप तिन आपका बहुत-बहुत धन्यवाद! क्रिसमस पूजा 25.12.02, गणपति पुले परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आप सबको क्रिसमस की मं गल उन्हें एक ऐसे पालने में डाला गया जिसमें कामनाएं। सूखी घास बिछी हुई थी। अन्त में उन्होंने मसीह आपके आज्ञा चक्र पर विराजमान हैं। अपना जीवन सूली पर चढ़कर बलिदान कर सहजयोग के अनुसार ईसा- उनका पूरा जीवन एक साक्षात्कारी व्यक्ति दिया। उनका पूरा जीवन बलिदान की के गुणों का वर्णन है। अपने पूरे जीवन में कहानी है क्योंकि उनके अन्दर शक्ति उन्होंने दर्शाया कि व्यक्ति लालची और थी-वो शक्ति कि वो कुछ भी बलिदान कर कामुक नहीं होना चाहिए। विश्व भर के लोग सकते थे। उन्होंने अपना जीवन ही बलिदान जिस प्रकार से लालची हैं उससे वास्तव में कर दिया। अतः आप ये समझ सकते हैं कि दुख होता है। बचपन से ही हमारे बच्चे ईसामसीह की महानता उनके महान किसी न किसी चीज की मांग करने में लगे आध्यात्मिक व्यक्तित्व की देन थी। उन्हीं महान ईसामसीह की विश्व भर में पूजा होती रहते हैं । पूर्ण सन्तोष ही व्यक्ति को वह संतुलन, वह शान्ति प्रदान कर सकता है है, विशेष रूप से पश्चिमी देशों में । परन्तु जिसको प्राप्त करने के पश्चात व्यक्ति जिस प्रकार वो भौतिक पदार्थों के पीछे भौतिक चीजों के पीछे भागना छोड़ देता है। दौड़ते हैं इस पर आप हैरान होंगे उनके आजकल भारत भी पश्चिम के पीछे चल पूरे कारखाने उनके द्वारा बनाई गई वस्तुओं पड़ा है और उन्हें भी हर समय भौतिक की कहानियों के बल पर चलते हैं। फिर भी पदार्थों की जरूरत होती है। अमरीका में किस प्रकार से लोग अपने वैभव की शेखी अब यह दुर्घटना होने के पश्चात् लोग बघारते हैं स्वयं को इसाई दर्शाने के लिए आध्यात्मिकता की ओर बढ़ रहे हैं। वे अपने गले में क्रूस पहनते हैं । जिस क्रूस आध्यात्मिकता की ओर वो इसलिए आ रहे पर ईसा-मसीह को सूली चढ़ाया गया था हैं क्योंकि वो ऐसा महसूस करते हैं कि उन्हें उस चिन्ह को तो कभी गले में पहना ही कहीं भी संतोष प्राप्त नहीं हुआ। नहीं जाना चाहिए। परन्तु पाखण्ड से लोग ईसामसीह के महान जीवन से हमें बहुत अपनी कमियों को छिपाने का प्रयत्न करते कुछ सीखना है। सर्वप्रथम तो उनका जन्म हैं । इस प्रकार से वे ईसा के बिल्कुल उल्ट ही एक बहुत छोटी सी झोपड़ी में हुआ जैसे हैं। केवल पुरुष ही नहीं उनकी पत्नियां और आपमें से अधिकतर लोग जब यहां आते हैं बच्चे भी अत्यन्त लोभी हैं। उन्हें ये चाहिए तो वे बहुत संतुष्ट होते हैं। जन्म के बाद वो चाहिए। अब भारत भी इसी पागल दौड़ मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 14 में फंस गया है। वो क्या मांगते हैं? वो जन्म हुआ और निर्धन मान कर ही उन्हें (भारतीय) सोचते हैं कि ये सारी चीजें अपने क्रूसारोपित कर दिया गया | अतः धन के पास एकत्र कर लेने से वो अत्यन्त सुखी हो पीछे दौड़ने वाले लोग किसी भी प्रकार से जाएंगे। वास्तविकता ये नहीं है हर समय ईसाई नहीं हैं, वो तो ईसा के समीप भी नहीं लोग चीजों के पीछे दौड़ते रहते हैं और जो है। यह सोच कर मैं अत्यन्त प्रसन्न एवं भी कुछ उन्हें प्राप्त होता है उसका वो आनन्दित हूँ कि उन्होंने गरीबों और आनन्द नहीं ले सकते। आश्चर्य की बात हैं जरूरतमंद लोगों की मदद की। क्योंकि कि अमरीका जैसे देश में जहां बिल्कुल भी उन्होंने उनकी समस्याओं को समझा, उन्हें भ्रष्टाचार न था फिर भी वहां पर लोगों ने महसूस किया। सभी प्रकार के रोगियों तथा बेशुमार पैसा बनाया, और वो ईसा मसीह के दलितों की उन्होंने सहायता की। परन्तु अनुयायी कहलाते हैं ! ये बात मेरी समझ से आज का विश्व इतनी मूर्खता पर उतर आया परे है। किसी समय भारत अत्यन्त सन्त देश है कि आज सक्षम देश अन्य देशों को था जहां सन्तों का सम्मान होता था। परन्तु परस्पर युद्ध करने में सहायता करते हैं। युद्ध आज भारत लोभ के इतने गहरे गड़ढे में करने के लिए वे ईसाइयत की सृष्टि करते गिर गया है कि लोगों को समझ पाना हैं। इस देश में ईसाई-मत क्या कर रहा है? अंसभव हो गया है। कहा जा सकता हैं कि बहुत से लोगों को ईसाई बना कर अपनी वो ईसा-मसीह के अनुयायी नहीं हैं। आपको इसाई कहने वाले भारतीयों की सुना है कि किस प्रकार धर्म -परिवर्तन करके स्थिति तो सबसे खराब है। अपने शक्ति बढ़ा रहा है। भिन्न स्थानों से मैंने | उन्होंने सभी वे ईसाई बना रहे हैं! ईसा ने तो एक भी प्रकार की पश्चिमी देशों की बुराइयां और व्यक्ति का धर्म परिवर्तन नहीं किया! उन्होंने लालच अपना लिया है । फिर भी वे स्वयं को लोगों का उसी प्रकार अन्तर्परिवर्तन करना इसाई कहते हैं। परन्तु ईसा मसीह ने चाहा जैसा आप सब का हुआ है-धर्म दर्शाया है कि संसार में आपको किसी चीज परिवर्तन या जन्म-चिन्ह परिवर्तन करके की आवश्यकता नहीं है। वे इतने महान नहीं। व्यक्ति और इतने महान अवतरण थे। सर्वत्र उनका सम्मान हुआ क्योंकि उनमें बलिदान ये तीसरे दर्जे के बेकार लोग क्या पा लेंगे? की महानतम शक्ति थी। इसलिए नहीं कि कभी-कभी तो मुझे अपने बारे में चिन्ता हो उनके पास कोई बड़ी कार थी या बड़ा घर जाती हैं कि कहीं मेरे अनुयायी और बच्चे भी था, परन्तु इस लिए कि वे अत्यन्त विनम्र कोई सहज विरोधी कार्य न करने लगें-कोई थे। उनका जीवन इतना महान था कि आज भी ऐसा कार्य जो सहज मर्यादाओं के विरुद्ध भी वे लोगों के हृदय पर शासन करते हैं हो। सहज नियमों में से एक है दीन- चाहे अत्यन्त निर्धन व्यक्ति के रूप में उनका दुखियों की सहायता करना-उन लोगों की धन तथा कामुकता के पीछे दौड़ने वाले প चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 मई-जून, 2003 15 जिन्होंने अभी तक आत्म साक्षात्कार नहीं कि हमें व्यापार नहीं करना चाहिए या धन प्राप्त किया है। हमें वो नहीं करना जो विश्व नहीं कमाना चाहिए। आप ये कार्य कर कर रहा है कि उन्हीं लोगों की मदद की सकते हैं । परन्तु ये सब करते हुए आपने जाए जो बर्बाद हो चुके हों। इस देश को याद रखना है कि 'किसके लिए आप ये सब तथा पुरे विश्व को यदि आप बचाना चाहते कर रहे हैं? इसका आप क्या करेंगे? वास्तव हैं तो आपको ईसा मसीह की तरह बनना में आप ये पता लगाएं कि पूरे वर्ष में आपने होगा। अपने अन्दर बलिदान की भावना अपनी चीज़ों में से कोई एक क्या किसी को विकसित करें । यह 1 भावना अत्यन्त दी है। मैं ये नहीं कहती कि आप सूली पर चढ़ जाएं। नहीं ये कहना आपसे बहुत शक्तिशाली होनी चाहिए क्योंकि आप सब आत्मसाक्षात्कारी हैं। यह भावना विकसित अधिक आशा करना होगा, परन्तु अपने करने का प्रयत्न करें दूसरों की सहायता सुख-सुविधा का एक थोड़ा सा हिस्सा तो करने की भावना। अपने जीवन में मैं ऐसे आप अन्य लोगों के लिए कुर्बान कर सकते बहुत से लोगों से मिली हूँ जो सदैव हैं। अभाव-ग्रस्त लोगों को देने के लिए उद्यत थे। परन्तु इतने महान स्वभाव के लोगों को होगा अत्यन्त करुणा एवं प्रेममय । आपमें कभी कोई इनाम नहीं मिला। फिर भी यदि यदि ये गुण नहीं है तो आप सहजयोगी नहीं उन्हें किसी की सहायता का अवसर मिलता है करुणा एवं प्रेममय होना पहली सहजयोगियों को अत्यन्त करुणामय होना तो वे बहुत खुश होते। इस देश के लिए आवश्यकता है तथा अपने आस-पास की जहां स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए असंख्य लोगों समस्याओं को स मझकर अधिक से ने अपने जीवन बलिदान कर दिए. यह अधिक लोगों की सहायता करना। परन्तु अत्यन्त खेद की बात है। आज यहां क्या हो वास्तविकता ये नहीं है सहजयोगी भी अपने रहा है? आज यहां के शासक गण या उनके जीवन के मूल्य को नहीं समझते । बच्चे धन बटोरने में लगे हुए हैं। इस देश में, सहजयोगी भी उसी मार्ग पर चल रहे हैं जहां लोगों में इतना बलिदान भाव था, यह जिस पर ईसा मसीह चले थे। वे आत्म स्थिति क्यों आई? वो वास्तव में नेता थे। साक्षात्कारी हैं इस बात का अहसास उनमें परन्तु आपमें से कितने लोग उन जैसे हैं? होना ही चाहिए। अन्य लोगों के प्रति उनमें आपमें से कितने अपने धन में से किसी की वही भावना होनी चाहिए । अन्य लोगों से सहायता के लिए कुछ दे सकते हैं? किसी उनका तारतम्य होना चाहिए और अपने की सहायता के लिए आप क्या करेंगे ? खेद अन्दर उन्हें ईसा मसीह के बलिदान का भी की बात है कि ईसाई राष्ट्र कभी भी ईसा के सदा अहसास होना चाहिए। हमारी आज्ञा दिखाए मार्ग पर नहीं चले और हम भी उन्हीं को सुधारने के लिए हमारे अहं को दूर जैसे बनते चले जा रहे हैं ! मैं ये नहीं कहती करने के लिए, अहं से लड़ने के लिए किस चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व ও मई-जून, 2003 16 प्रकार उन्होंने अपना जीवन बलिदान कर मुसलमान संप्रदाय में तो स्थिति बदतर है। दिया! फिर भी हममें इतना अहंकार है! जो मैंने सोचा कि कम से कम मुझे कुछ तो ऐसा भी बलिदान उन्होंने किया वह सब व्यर्थं है, करना चाहिए कि जिससे मैं लोगों का ध्यान इसे लोग समझते ही नहीं और न ही वे उनके दुर्भाग्य और उनकी समस्याओं की ईसामसीह के जीवन और उनके चरित्र को ओर आकर्षित कर सक ताकि अपने पैरों पर खड़े होकर वे जीवन में वापिस आ सकें । हम सब आत्मसाक्षात्कारी लोगों के लिए यह मेरे विचार से सभी सहजयोगियों का ये है कि जाकर चहूँ ओर देखें कि किसको सहायता की आवश्यकता है। केवल आत्मसात करते हैं। ये बहुत बुरी बात है। बहुत बड़ा संदेश है, हमारे सम्मुख यह बहुत कर्तव्य महान उदाहरण है। बहुत से कार्य करने शेष हैं। मेरा हृदय अपने लिए धन कमाने के लिए, केवल अपने सदैव जरूरतमंद लोगों के साथ होता है लिए पैसा कमाने के लिए ही न जिए, दूसरों और इसी लक्ष्य के लिए मैंने बहुत सी की सहायता करने का प्रयत्न करें। उन लोगों की सहायता करें जिनकी वास्तव में भली-भांति जानते हैं। हाल ही में मैंने सहायता की जा सकती है ताकि वो कह कि दिल्ली में निरात्रित महिलाओं और बच्चों के सहजयोगियों ने ये कार्य किया हैं । जो भी लिए कुछ आरम्भ किया है उसके लिए धन मेरे पास है उससे मैं ये कार्य करने अधिकतर पैसा मैंने स्वयं दिया है। परन्तु वाली हूँ। परन्तु मेरी इच्छा है कि आप भी कार्य को पूर्ण करने के समय मैंने सोचा कि उनके लिए कुछ करने का प्रयत् करें। ये देश दो वर्गों में बंटा हुआ है। एक सहजयोगियों से कहा जाए कि वे धन का धना्य लोग हैं और दूसरे अत्यन्त निर्धन। योगदान दें। उन्होंने योगदान दिया। दिल्ली ये निर्धन लोग मेरे हृदय को पीड़ा से भर के सहजयोगियों को मैं मुबारकबाद देती हूँ देते हैं। मेरा हृदय पीड़ा से कराह उठता है। कि उन्होंने अन्य सहजयोगियों को मार्ग मेरी समझ में नहीं आता कि किस प्रकार दिखलाया मैं हैरान थी कि इतनी बड़ी उनकी सहायता करूं क्योंकि ये जाति इतनी विशाल है परन्तु यदि आप लोग ये फैसला प्रकार जुटा पाए! हम ये नहीं देख पाते कि कर लें तो आप चहूँ ओर जाकर इन निर्धन हमारे देश में महिलाएं किस प्रकार कष्ट लोगों की सहायता करने के उपाय खोज उठा रही हैं. किस प्रकार निरा्रित महिलाएं सकते हैं। उन लोगों को आपकी सहायता कष्ट उठा रही हैं। बिना उनके किसी दोष की आवश्यकता है और आपमें सहायता के पति उन्हें त्याग देते हैं। इसी प्रकार से करने की क्षमता है। महालक्ष्मी के आशीर्वाद पति की किसी भी सनक के कारण उन्हें से आप सब सक्षम हैं। अतः गरीबों की सहायता करने का प्रयत्न करें। घोर कष्टों संस्थाएं आरम्भ की हैं। आप इस बात को इसको समापन करने के लिए क्यों न संस्था के लिए इतना सारा धन वे किस बच्चों समेत सड़कों पर छोड़ दिया जाता है । मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 17 में फंसे हुए लोगों की सहायता करने का लिए अत्यन्त आनन्द का दिन है । ईसा प्रयत्न करें मैं जानती हूँ कि वे सहजयोगी मसीह के जीवन को जब मैं देखती हूँ तो नहीं है उनके सहजयोगी बनने की आशा न मुझे लगता है कि यह बहुत अल्पायु था। करें। वे सहजयोगी नहीं बन सकते। ईसा उनका जीवन कष्टों से कितना परिपूर्ण था? मसीह के समय कितने लोग सहजयोगी थे? गरीबी के कारण नहीं, नहीं! उस घृणा और कितने लोग ऐसे थे जो मानवीय समस्याओं उन दुखों के कारण जो उन्हें दिए गए । को समझ सके? परन्तु ईसा ने ये कार्य गरीबी की उन्होंने चिन्ता नहीं की। इसके किया और लोगों के पापों के बदले अपने विषय में उन्होंने कभी कुछ नहीं लिखा । जीवन को बलिदान कर दिया। क्या आप वास्तव में जो बात उन्हें बुरी लगी, वह थी इसकी कल्पना कर सकते हैं! आज का दिन हालात का इस तरह से बिगड़ा हुआ होना अत्यन्त हर्ष पूर्वक उनका जन्मदिवस मनाने और लोगों को इस प्रकार से सताया जाना। का है। उनका जन्म तथा जीवन कितना इस समस्या का समाधान करने की पूरी अजीब था? कोई भी मानव इस प्रकार का जिम्मेदारी उन्होंने अपने ऊपर ले ली। जीवन न चाहेगा परन्तु आप सब लोगों को उन्होंने ईसाई बनाए और वो क्या कर रहे उनके जीवन के सार को समझना चाहिए। लोभ के पीछे दौड़ना पागलपन है। लालच का कोई अन्त नहीं। लालची हमेशा लालची उनके महान कार्य के वैभव से इसका कोई ही बने रहते हैं, हमेशा वो धन दौलत ये, वो सम्बन्ध नहीं। आज जब हम सब उनका मांगते ही रहते हैं । हैं? केवल मूर्खतापूर्ण कार्य-मूर्खतापूर्ण। ये सब अर्थहीन है। ईसामसीह के जीवन और जन्मदिन मना रहे हैं तो हमें चाहिए कि क्यों न अन्य लोगों को देखा जाए कि उनकी बलिदान क्षमता तथा उनकी प्रेम उन्हें किस चीज की आवश्यकता है? हम क्षमता का उत्सव मनाएं । लोग जो कि सामूहिक चेतना में हैं, हमें समझना चाहिए कि लोगों की क्या लोग बन गए हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं है। आवश्यकता है और हम उनके लिए क्या कर परन्तु अभी भी मुझे लगता है कि उनमें सकते हैं । मैं जानती हूँ कि विज्ञापन के इस लालच बना हुआ है। लालच का कोई अन्त आधुनिक युग में ऐसा करना कठिन कार्य नहीं । मैं आपको बताना चाहूंगी कि मैंने ऐसे है परन्तु हम सहजयोगी हैं। हमें सामान्य लोगों को देखा है जो धन के पीछे पागल व्यक्ति बनना है। इन सब चीज़ों का सामना हैं जैसे अमरीका में मैने पाया कि संस्थाओं हमने संतों की तरह से करना है और अपनी के मुखिया, निगम पार्षद तथा ऐसे लोग विशेष शक्तियों द्वारा इन सभी बाधाओं को जिनके पास पच्चीस हवाई जहाज सहजयोगी अब बहुत अच्छे और प्रेममय और पचास से भी अधिक कारें हैं, वो भी लालची समाप्त करना है। आज का दिन मेरे लिए और आप सबके हैं! क्या वो पचास कारों में यात्रा करेंगे? नारक चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 मई-जून, 2003 18 किस प्रकार बो इन सब गाड़ियों में घूमेंगे? सुख-सुविधा, सुख-सुविधा । मानव को क्या वे एक पैर एक गाड़ी में रखेंगे और समझना इतना कठिन है! एक बार जब वो दूसरा दूसरी में? फिर भी उनके पास इतनी लोभ के मार्ग पर चल पड़ते हैं तो किसी भी गाड़ियां हैं। इस प्रकार का पागलपन बना सीमा तक गिर सकते हैं। बलिदान तो लोग हुआ है। वो कहते हैं कि अब कहने को कुछ जानते ही नहीं। मैंने देखा है जब गांधीजी ने भी नहीं है क्योंकि सभी कुछ जब्त कर लिया लोगों को बलिदान के लिए कहा तो सारी गया है। इस प्रकार के स्वभाव के लोगों के महिलाओं ने अपने गहने दे डाले, अपने साथ क्या किया जाए? क्या पच्चीस हवाई जीवन दे डाले । लोग जेलों में गए, स्वतंत्रता जहाज और पचास कारें रखना पागलपन प्राप्त करने के लिए सभी प्रकार के कार्य नहीं है? और उन्हें अपनी महानता का कोई किए परन्तु उन्हें किस प्रकार की स्वतंत्रता अन्त नहीं दिखाई पड़ता! वो लोग इतने प्राप्त हुई? एकदम से विश्व भर के सारे ठग मूर्ख हैं। मर जाने के पश्चात् ये समाप्त हो जाएगा। हमेशा वे किसी न किसी बन गए। जिस देश में सभी कुछ महान तथा चीज़ के पीछे लड़ते रहते हैं। अमरीका की श्रेष्ट हो और वो सारी चीजें व्यर्थ हो रही हों सब यही चौधरी बन बैठे विश्व के सारे चोर अधिकारी उस देश के विषय में आप क्या कहेंगे? क्या यह अजीब बात है। अतः आप लोगों को यह समझ होना आप उदार व्यक्ति है? स्वयं से प्रश्न करें, आवश्यक है कि लालच हमें कहा लें क्या आपने अन्य लोगों की सहायता करने जाएगा। ऐसी भी घटनाएं है कि एक युवा का प्रयत्न किया? लड़की ने एक अत्यन्त वृद्ध व्यक्ति से विवाह किया और जब वो वृद्ध व्यक्ति मरा तो कि उन्होंने अत्यन्त निर्धनता में अपना जीवन अपना सारा धन इस युवा महिला के लिए बिताया बो सम्राटों के सम्राट थे फिर भी वो छोड़ दिया। वृद्ध के बेटे ने आकर मुकदमा यूनान में गरीबी में रहे और पापी लोगों के किया कि मैं उनका पुत्र हूँ और उनका पूरा लिए निरंतर कार्य करते रहे, उन लोगों के धन इस महिला को कैसे दिया जा सकता लिए कार्य करते रहे जो कठिनाई में थे। है? युवा महिला को खरबों डालर मिले थे केवल एक व्यक्ति ने ये सब किया। अब फिर भी वह बेटों को कुछ देना न चाहती आप लोगों की संख्या तो बहुत है आपको थी। न्यायालय में उसने दलील पेश की कि भी कुछ करना होगा, आपको इन पार्षदों की उसने वृद्ध व्यक्ति के लिए इतना बलिदान तरह से नहीं होना परन्तु ईसामसीह की किया है, इतना कुछ किया है, अतः उसका तरह से कार्य करने के लिए आपको अपनी पूरा धन उसे मिलना चाहिए। लोग इतने कमाई का कुछ हिस्सा, अपनी सुख- निर्लज्ज हैं कि पैसा मांगते हुए उन्हें लज्जा सुविधाओं का कुछ हिस्सा, अपने देश हित नहीं आती! हर समय सुख-सुविधा, के लिए बलिदान करना होगा. क्योंकि आप ईसा मसीह के जीवन से हमें समझना है मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 19 इनके अनुसार देश से प्रेम करना भी पाप सहजयोगी हैं, साधारण व्यक्ति नहीं हैं। आपको आत्मसाक्षात्कार मिल चुका है। यह है। उन्होंने ऐसा किया और जब वो वापिस आप क्या कर रहे हैं? क्या आप सबसे धन आए और नागपुर के मेयर बने तो वही लोग उनके महान प्रशंसक थे। मैं उन सहजयोगियों की कहानियां सुनना उन्होंने मेरे पिताजी की शोभा यात्रा चाहती हूं जो जन-जन को अपना प्रेम एवं निकाली। इस पर मेरे पिताजी मुस्कराए और कहा, इस मूर्खता को देखो। ये कार्य अत्यन्त मुझे खेद है कि आज ईसामसीह के मूर्खतापूर्ण है और इस प्रकार की लोलुपता जन्मोत्सव के दिन मुझे उनके जीवन के तथा मूर्खता रोकी जानी चाहिए। लोग धन विषय में बताना पड़ा जो कि बहुत ही और पदवियों के पीछे भागते हैं। ये पागल कष्टदायक है। हमें ये बात समझनी होगी दौड़ बहुत ही बुरी चीज है। कुछ लोग, सारे नहीं, ऐसा करते हैं। परन्तु को अपने जीवन में इतनी सहजयोगियों में भी मैंने पाया है कि लोग मांग रहे हैं या सबको अपना प्रेम दे रहे हैं? ईसाई करुणा बांट रहे हैं। | कि इतने महान व्यक्ति को इतने महान सहजयोगी सहजयोगी समस्याओं का सामना करना पड़ा। अपने ही अत्यन्त धन लोलुप हैं और वो सहजयोग में लोगों ने उनका अनुचित लाभ उठाया। मुझे भी पैसा बनाते हैं। पैसे के मामले में मैं भी सहजयोगियों से इस बात का अनुभव अत्यन्त नादान हूँ। पैसा मेरी समझ में ही हुआ। सहजयोग से वो रोगमुक्त हो गए फिर नहीं आता । अतः वे लोग मुझे ठगते हैं। भी उन्होंने मुझे कष्ट देने का प्रयत्न किया। ठीक है, कोई बात नहीं। और लगातार वर्षों सभी लोग जानते हैं कि उन्होंने सहजयोग तक वे मुझे बेवकूफ बनाते रहते हैं। ठीक है, में धन बटोरने का प्रयत्न किया। उनके जीवन के मूल्य इतने घटिया हैं कि आप ये चाहिए? ये समस्या है कि यदि आप सावधान नहीं कह सकते कि वो आत्मसाक्षअत्कारी हैं। नहीं हैं और यदि आप धन लोलुप नहीं हैं तो अतः हमें सोचना चाहिए कि किस प्रकार हम अन्य लोगों की सहायता कर सकते हैं, ठगने दो, जो चाहे करने दो परन्तु मैं ऐसा किसके लिए क्या कर सकते हैं। ईसा मसीह स्वभाव नहीं बना सकती कि मैं पैसे की के जीवन से यह गुण व्यक्ति को सीखना खातिर लोगों के पीछे दौड़ती रहूँ। ऐसा चाहिए। मेरा जन्म ईसाई परिवार में हुआ कार्य मैं नहीं कर सकती! जो भी हिसाब परन्तु मैंने पाया कि ईसाई लोग अत्यन्त किताब आप मुझे दिखाते हैं मैं उसे स्वीकार तुच्छ एवं मलिन हैं। हर समय वो एक दूसरे कर लेती हूँ, जो भी हिसाब आप भेजते के खिलाफ योजनाएं बनाते रहते हैं तथा उसे मैं स्वीकार कर लेती हूँ। वो लोग नहीं अत्यन्त ही धन लोलुप हैं। मेरे पिताजी जब जानते कि ऐसा करना गलत है और जेल गए तो हमें चर्च से निकाल दिया गया । क्या किया जाए? और मुझे पैसा क्यों अन्य लोग आपको ठगेंगे मैंने कहा, उन्हें पापमय। अगर उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं প मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 20 है तो मैं कुछ नहीं कर सकती। वे सब नष्ट समस्या ठीक हो जाएगी । मैं जानती हूं हो जाएंगे, ऐसे सभी लोग नष्ट हो जाएंगे। कि सहजयोगियों में बहुत से लोग बढ़ ये बात मैं जानती हूँ। परन्तु यदि वे स्वयं बढ़कर आगे आते हैं, हर समय आगे हैं, हूँ इस बात को महसूस नहीं करते तो क्या आने के लिए प्रयत्न शील रहते किया जाए? सहजयोग से पैसा बनाना, क्या किसलिए? आपको क्या चाहिए? वे हर आप इसकी कल्पना कर सकते हैं? इतना समय मूर्खों की तरह से अपने को आगे मूर्खतापूर्ण कार्य करना? ये आम बात है लाने का प्रयत्न करते हैं । अतः जिस प्रकार से ईसामसीह संतुष्ट परन्तु बहुत बुरी है । मैं चाहती हूँ कि आप सब धन से थे, उसी संतुष्टि का अहसास अपने ऊपर उठ जाएं । संसार की सभी भौतिक अन्दर करने के लिए आपको ध्यान चीज़ों से ऊपर उठ जाएं । आप यदि धारणा करनी होगी और अन्तर्वलोकन ऐसा करेंगे तो कभी मूर्ख नहीं बनें गे, द्वारा जानना होगा कि क्या आप संतुष्ट कभी आपको कठिनाइयां नहीं होगीं है? अपने जीवन में आपको अत्यन्त अतः इस प्रकार के मूर्खतापूर्ण कार्यों में संतुष्ट होना होगा अन्यथआ सहजयोग में भागीदार न बनें ये परमात्मा का कार्य है होने का कोई लाभ नहीं। आत्म- और इससे आपको पैसा नहीं बनाना, किसी साक्षात्कार प्राप्त करना भी व्यर्थ है। मैं भी प्रकार से नहीं । ईसामसीह के जीवन से हृदय से आपको आशीर्वाद देती हूँ कि आप हमें सीखना है कि अत्यन्त सामान्य व्यक्ति ईसामसीह के चरित्र को अपना भविष्य माने के रूप में जन्म लेकर भी उन्होंने बहुत और विश्व की समस्याओं को समझें। पूरे महान कार्य किए हमारी आज्ञा को ठीक विश्व की समस्याओं को अपनी समस्या करने के लिए उन्होंने पूर्ण प्रयत्न किया। समझें। आज भी यदि आप उनके विषय में सोचेंगे तो आपकी आज्ञा ठीक हो जाएगी, आज्ञा की परमात्मा आपको आशीर्वादित करें नव वर्ष पूजा वैतरणा संगीत अकादमी, 31.12.2002 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन क इतनी बड़ी संख्या में कार्यक्रम के लिए बुद्धिमान तथा विद्वान व्यक्ति थे परन्तु आए आप सब लोगों को देखकर मैं बहुत उन्होंने सर्वसाधारण लोगों की ओर ध्यान प्रसन्न हूँ। वास्तव में मैंने ये जमीन 25 वर्ष दिया. उनकी देखभाल की और उनमें संगीत पहले खरीदी थी। परन्तु इस पर मैं कुछ न कर सकी क्योंकि इस पर बहुत सारी मैंने निर्णय किया कि कला और संगीत के आपत्तियाँ थीं, आदि-आदि। परन्तु किसी तरह से मैंने इसकी योजना बनाई और अब लिए मैं ये स्थान समर्पित कर दूं। ये देखकर ये सब कार्यान्वित हो गया है। आप सब मुझे प्रसन्नता हो रही है कि मेरा ये विचार लोगों को यहां देखकर मुझे प्रसन्नता हो रही फलीभूत हो गया है । काश कि आप लोगों है कि इतनी कठिनाइयों का सामना करने को प्रसन्न करने के लिए आज मेरा भाई भी के पश्चात् आज मेरे सम्मुख मेरी पूजा के यहां होता! वो अत्यन्त प्रेम एवं करुणामय कार्यक्रम में भाग लेने के लिए इतने सारे व्यक्ति था। मैंने देखा कि वो कभी किसी से सहजयोगी उपस्थित हैं। यहां पर मुझे अपने भाई बाबा की याद की बहुत अच्छी तस्वीर मेरे सम्मुख पेश की। आती है जिन्होंनें भारतीय संगीत, शास्त्रीय परन्तु इस विषय में कोई भी क्या कर सकता ৪ कला को बढ़ावा दिया। इसी विचार के साथ प्रचार-प्रसार के उनके लक्ष्य की प्राप्ति के नाराज़ नहीं हुए। सदा उन्होंने सभी लोगों संगीत तथा सभी प्रकार की कलाओं के है? प्रचार -प्रसार के लिए जी तोड़ परिश्रम किया जो भी कुछ वो कर सके उन्होंने परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (मराठी से अनुवादित) किया। खेद की बात है कि आज बो आप सबको देखने के लिए यहाँ हमारे बीच में नहीं हैं। बिना किसी पारितोषिक की आशा लड़ने में वे बहुत अच्छे हैं। आप जो चाहे किए उन्होंने अथक कार्य किया बहुत उनके लिए कर लें परन्तु उनकी खोपड़ी में अच्छा होगा कि आप उन्हें अपना आदर्श कुछ भी नहीं बैठता। उनमें सूझ-बूझ बिल्कुल माने और उन्हीं की तरह से सभी कुछ नहीं है, हमेशा लड़ने को तैयार रहते हैं. कार्यान्वित करें उनकी एक अन्य खूबी थी तलवारों से लड़ने के लिए भी आपके जो मैं जानती हूँ कि उन्होंने कभी दिखावा झगड़ालू स्वभाव से मैं तंग आ चुकी हूँ। इस करने का प्रयत्न नहीं किया वे अत्यन्त सुन्दर भवन का निर्माण हमारे शास्त्रीय संगीत महाराष्ट्र की ये विशेषता है लड़ना। मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 द 6 22 के लिए किया गया है इस मामले को लेकर कार्य किया। नागपुर के लोग बहुत चुस्त हैं. भी इन्होंने कई बार झगड़ा किया। मुझे लगा उन्होंने उनकी सहायता की । परन्तु कोई भी ये कि क्यों इस भवन का निर्माण सहाराष्ट्र में बात नहीं समझता कि सहजयोग को समझना किया जाए? महाराष्ट्र के इन लोगों के लिए है और साधु बनना है। बहुत ही घटिया स्तर कुछ करना बेकार है। किसी न किसी बात को पर लोग सोचते हैं कि किसी भी तरह से पैसा लेकर उन्होंने लड़ना ही है. शर्म लिहाज तो है बनाना है कैसे आप सहजयोगी हो सकते हैं ? ही नहीं । बैठने को यदि उन्हें स्थान नहीं व्यक्ति को महसूस करना चाहिए कि मै मिलता तो हम क्या कर सकते हैं? बिल्कुल भी आत्मसाक्षात्कारी हूँं, माँ ने मेरे लिए इतना कार्य परिपक्वता नहीं है? मेरी समझ में नहीं आता किया है अतः हमें भी अच्छी स्थिति प्राप्त इन झगड़ालू लोगों में संगीत किस प्रकार है? करनी चाहिए। अतः आज निश्चय कीजिए कि झगडा नहीं करना है और न ही धन का लोभ 1 उनका झगड़ा इतना बढ़ गया है कि मैं तग आ गई हूँ। हर आदमी किसी न किसी बात की करना है। धन के लालच ने महाराष्ट्र में शिकायत कर रहा है। सहजयोग में आकर भी सहजयोंग कार्य कठिन कर दिया है। महाराष्ट्र क्या आपको शांति प्राप्त नहीं हुई? महान सन्तों में मैने बहुत परिश्रम किया और यहां पर मुझे और साधुओं ने इस देश में इतना अधिक ज्ञान सभी प्रकार के अनुभव हुए। कृपा करके दिया परन्तु हमारे झगड़ालू स्वभाव को दूर महसूस करें कि आप सहजयोगी हैं और करने के लिए इसका भी कोई प्रभाव न पड़ा। गरिमापूर्वक जीवन-यापन करें सहजयोगी अपने नाम पर भी वो लड़ेंगे, मूर्खतापूर्ण होने पर गर्व महसूस करें सहजयोग में झगड़ा आचरण करते रहेंगे! मैं नहीं जानती कि करने की कौन सी बात है? क्या ये राजनीतिक महाराष्ट्र से ये मूर्खता कब दूर होगी? सभा है जिसमें आप शिकायत करें कि मुझे शान्ति-पूर्ण जीवन तथा सारी चीज़ों को शान्ति बैठने का स्थान नहीं मिला या मैं कुछ देख नहीं पूर्वक आत्म सात करना वो नहीं जानते। सका? मैं कुछ भी कहना नहीं चाहती थी, एकदम से चिल्लाने लगते हैं। हमारे विदेशी परन्तु आप लोगों को देखने के पश्चात् मेरे सहजयोगी कहते हैं क्या ये असभ्य लोग हैं? सामने और कोई रास्ता न रह गया, और मुझे नहीं, नहीं ये बहुत पढ़े-लिखे हैं, परन्तु बहुत कहना ही पड़ा। अब अगर कोई परस्पर लड़ता झगड़ालू हैं। किस बात के लिए वे लड़ते हैं, ये है तो उसे सहजयोग से बाहर कर दिया वही जानते हैं। कृपा करके सहजयोग में तो जाएगा| किसी के भी साथ यदि आप प्रेमपूर्वक लड़िए नहीं। थोड़े से शान्त हो जाइए। इसका नहीं रह सकते तो सहजयोग में रहने का क्या प्रयत्न कीजिए हम परिवर्तित होना चाहते हैं. क्या ये बात ठीक नहीं है? लोगों में दोष देखने हुए आप भी कभी किसी पर बिगड़ें नहीं। के स्थान पर ये देखें की आपमें क्या दोष हैं। किस प्रकार आप सभी लोगों की प्रशंसा बाबा-मामा ने महाराष्ट्र में, नागपुर में बहुत 1 लाभ है। बाबामामा कभी किसी से नाराज नहीं करेंगे। मैं सोचती रहती हूं कि किस प्रकार मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-४V अंक 5 च 5 23 सभी लोग ऐसी अच्छी अवस्था प्राप्त कर आपने एक दूसरे का सिर तोडना है तो बेहतर सकेंगे? अत्यन्त प्रेम पूर्वक बाबा मामा सभी होगा कि आप संगीत न सीखें । अतः कृपया लोगों को साथ लाए, चाहे वो कोई भी हो। वे संगीत के साथ-साथ जीवन संगीत को भी अत्यन्त निःस्वार्थ व्यक्ति थे कभी वो मेरी कार अपने रोज़मर्रा के आचरण में लाएं। जीवन में नहीं बैठते थे, कभी मेरे धर नहीं आते थे। संगीत को आचरण में लाए बिना इस कार्यक्रम बड़ी सूझ-बूझ वाले थे। वो भी महाराष्ट्र के थे का उद्देश्य पूर्ण न होगा। शपथ लें कि कोई लेकिन आक्रामक बिल्कुल न थे इतने महान जो भी चाहे कहता रहे, आपको प्रतिक्रिया व्यक्ति के कार्य को आप लोग अपने हाथों में नहीं करनी। दूसरी समस्या उल्टे-सीधे ले रहे हैं तो कम से कम कुछ उनके गुणों को तरीके से धन कमाना है। यह समस्या बहुत भी अपनाएं। संगीत तथा कला को बढ़ावा देने अधिक बढ़ गई है। मैं इससे तंग आ चुकी हूँ। के लिए हमने इस मंदिर की रचना की है । लोग सहजयोग में भी पैसा बनाते हैं। आप आपके बच्चे इस क्षेत्र में उन्नति करें उन्हें लोग परिवर्तित होंगे या नहीं? महत्वपूर्ण चीज संगीत की समझ होनी चाहिए। इन विदेशी संगीत का हमारे जीवन में प्रवेश करना है। लोगों को आपके संगीत की समझ है और जीवन में लय और रागदारी लाने के स्थान पर आपको नहीं, क्या ये लज्जाजनक नहीं है? हमें हम तो केवल लड़ते ही रहते हैं । दूसरों का संगीत की बिल्कुल भी समझ नहीं हैं, क्या लाभ बुरा सोचना और अपने स्वार्थ पर दृष्टि रखना है? आप चाहे इस अकादमी के विद्यार्थी न भी बुरी बात है। हो तो भी आपको संगीत की समझ होनी चाहिए। ताल और राग के मूल ज्ञान के बिना परन्तु आज से यहां पर केवल सूझ बूझ वाले आप संगीत का आनन्द नहीं ले सकते। मेरा करुणामय लोगों को ही लाया जाएगा जो अन्य দ्थ भूल जाएं कि भूतकाल में क्या घटित हुआ। अनुरोध है कि आप सब झगड़ालू स्वभाव त्याग सभी लोगों को प्रेमपूर्वक परस्पर समीप ला कर अपने अन्दर अच्छाई विकसित करें। सकें । सहजयोग का यही कार्य है मुझे कभी-कभी लगता है कि बंजर भूमि में बीज डालकर आप कुछ प्राप्त नहीं कर सकते। परन्तु अब सहजयोग में बड़ी संख्या में लोग आ जाने के कारण चीजें कुछ सुधरी हैं। अतः यहाँ पर और कहने को तो बात ये है कि अब संगीत केवल संगीत सीखने के लिए नहीं आएं, सहज गर शुरू हो जाए तो संगीतमय माने क्या? तौर-तरीकों से आचरण करना भी सीखें । माने मनुष्य की जो बहुत उच्छृरवल स्थिति परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (हिन्दी) नसीब से मुझे हिन्दी भाषा भी आती है सहज की महानता को समझे अन्यथा यह सब है उसकों ठीक करना है उसको तालबद्ध बेकार है। आस-पास बहुत से अन्य संगीत करना है, उसको व्यवस्थित करना है। वो विद्यालय हैं। इनमें संगीत सीखकर यदि जब तक नहीं होगा तो फायदा क्या? आप मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 24 लोग, और दूसरे लोगों में क्या फर्क है? आप लोग भी लड़ाई झगड़ा ही करते रहते हैं तो आ जाएगी। अगर आपके अन्दर ये नहीं आया आप समझ लें तो आपको भी अपनी प्रतिष्ठा तो बेकार है। ऐसे पचासों बना दे समान तो उसमें क्या फायदा? सबसे बड़ी बात ये है कि अपने मन में प्रेम, क्या फायदा? छोटी-छोटी चीजों के लिए श्रद्धा और भक्ति बढ़ानी चाहिए । जिससे, लड़ना, झगड़ना, ये आप लोगों को शोभा नहीं आपको भी शांति मिलेगी और सबको भी शांति देता। आप तो अब साधु-सन्त हो गए। बहुत मिलेगी। और बगैर शान्ति के संगीत का कोई ऊँची चीज हो गए, बहुत ऊंची। उसका आप अर्थ नहीं। आज जिस बाबा मामा के विचार से अहसास ही नहीं करते उसको आप समझते ये सुन्दर इमारत बनाई है और जिससे कि हम नहीं कि हम साधु-सन्त हैं। आप सोचते हैं हम चाहते हैं लोगों में संगीत आ जाए, उन लोगों भी वही रास्ते पर भिखारी हैं जो पहले थे। में शान्तिमय वातावरण आ जाए। आज दुनिया आज मैं कह रही थी कि आप सबको विशेष को सिर्फ शान्ति की जरूरत है। बाकी सब आशीर्वाद देती हूँ कि आप सब लोग संगीतमय होते हुए भी बेकार है। हम लोग कितने शान्त हो जाएं। हैं, वो देखना चाहिए। और इस शान्ति का असर जब इस देश में नहीं तो किस देश में होगा? सब लोगों का कहना ये है कि भारत वर्ष (अंग्रेजी से अनुवादित) आज मैं आप सबको आशीर्वाद देना जो है ये शान्ति का दूत है। अब ऐसे तो दिखाई चाहती हूं कि आप सब पूर्णतया संगीमय, नहीं देता। लड़ाई-झगड़े आपस में मारा मारी, लय से परिपूर्ण और अन्य लोगों को पता नहीं क्या कहा जाए? तो जो लोग संगीत प्रसन्नता प्रदान करने वाले स्वभाव के हो सीखना चाहते हैं उनके अपने हृदय में भी जाएं, झगड़ालू स्वभाव के नहीं। जैसा आपने संगीत होना चाहिए। हृदय में भी विचार करना देखा है पाश्चात्य संगीत गलत दिशा की चाहिए। पैसों के पीछे में भागना, औरतों के ओर चल पड़ा है, गलत दिशा में बढ़ रहा पीछे में भागना और सब गलत सलत काम है। मैं नहीं चाहती कि आप उसके जाल में करना, ये एक संगीतकार को शोभा नहीं देता मेरा अनन्त आशीर्वाद है कि ये संस्था हो जाएगा, परन्तु सहज में आने के पश्चात् प्रफुल्लित हो। इसमें आने वाले लोग संगीत भी क्योंकि ये विनाशकारी है, यदि आपमें सीखें और अपना जीवन संगीतमय करें। आशा वही विनाशकारी धारणाएं बनी रहती हैं तो है कि मेरी इच्छाएं पूरी करोगे। जब भी तुम्हें किस प्रकार से कोई आपकी सहायता कर गुस्सा आता है, जब भी तुम नाराज़ होते हो सकता है? मुझे आशा है कि आप मेरे जब भी तुम शिकायत करते हो तो अपने को आदरशों को पूर्ण करेंगे बता लिया करो कि मैं सहजयोगी हूँ। मैं चीज और हूँ, माँ ने मुझे कहां से कहां बनाया । ये गर । फंसे । मैं ये भी जानती हूँ कि ये सब लुप्त परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। किंगस्टन में पूजा 11.6.1980 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ाम निःसन्देह एक शक्ति है जिसे 'कुण्डलिनी आज हम यहां पर स्वयं के विषय में जानने के लिए एकत्र हुए हैं ज्ञान यदि कहा जाता है। इसके बारे में बहुत लोगों ने पुस्तकों तक ही सीमित होता तो किसी बताया है क्योंकि हजारों वर्ष पूर्व प्राचीन व्यक्ति का ये कहना कि वह स्वयं के विषय पुस्तकों में भी इसके बारे में लिखा गया था । में जानता है कहां तक हमें उचित लगता? ईसा मसीह ने भी कहा है कि आपको ये बात केवल हमारे मानसिक स्तर तक ही पुनर्जन्म लेना होगा। आपको दीक्षा स्नान जाती और अपने मस्तिष्क की सूझ-बूझ से (Baptism) करना होगा, धर्म के ठेकेदारों के ही हम इसे समझ पाते। मानसिक सूझ-बूझ माध्यम से नहीं। परन्तु 'जॉन द बैपटिस्ट' हमें तर्कसंगति से तथा बुद्धि से प्राप्त होती (John The Baptist) जैसे किसी परमात्मा है जो कि अपने आप में अत्यन्त सीमित द्वारा अधीकृत व्यक्ति द्वारा । यह शक्ति चीज है। अतः हम एक अन्य प्रकार की आपके अन्दर सुप्तावस्था में है लेकिन सभी समझ में प्रवेश कर जाते हैं जो कि अपने लोग इसके विषय में अलग-अलग ढंग से आपमें ही अत्यन्त सीमित है। उदाहरण के लिखते हैं। परन्तु इस पर बहुत कम लोग रूप में, मै यदि आपसे कहूँ हमारे अन्दर एकमत हैं और इस कारण से व्यक्ति को आत्मा है, जिसका निवास हमारे हृदय में है एक अन्य भ्रम का सामना करना पड़ता है तथा हमारे अन्दर एक शक्ति है जो हमेशा कि हमारे अन्दर एक शक्ति सुप्तावस्था में आपको पुनर्जन्म देने की प्रतीक्षा करती रहती विद्यमान है, जिसके विषय में कुछ लोग है, ये बात यदि मैं आपसे कहूँ तो आप मेरी कहते हैं कि ये हमें बिजली के झटके देती बात को केवल अपने मस्तिष्क से समझेंगे। है. कुछ कहते हैं इसकी जागृति पर व्यक्ति ये सब बातें तो बहुत पहले से कही जा रही मेंढक की तरह से उछलने लगता है और हैं, इनमें क्या नवीनता है? ज्यादा से ज्यादा कुछ कहते हैं कि कुण्डलिनी जागृति के बाद मैं इन्हें आधुनिक फैशन के अनुसार पेश कर व्यक्ति हवा में उछलने लगता है। इतनी भ्रम सकती हूँ। अत्यन्त बौद्धिक रूप से पेश कर की स्थिति बना दी गई हैं। आप लोग सकती हूँ। परन्तु इस प्रकार भी आप बुद्धि साधक हैं युग-युगान्तरों से साधक हैं। के जाल में फंस जाएंगे और बैठकर इसका युग-युगान्तरों से आप खोज रहे हैं। आप विश्लेषण करने लगेंगे परन्तु पहुंचेंगे कहीं सच्चे साधक हैं परन्तु अपनी साधना में आप भी नहीं । नहीं जानते कि आप कहां जाएं, किस चीज मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 26 की आशा करें। और इस प्रकार आप भली-भांति जानते हैं। जिन लोगों नें ये समस्याओं में फंस जाते हैं। उस दिन जब मै स्विटज़रलैण्ड गई तो की चोटी) के सिरे पर खड़े हुए हैं, उन्हें मेरा एक आयोजक बच्चा कहने लगा कि नीचे की खाई नजर नहीं आई है ऐसे लोग श्रीमाताजी यहां के लोग भारतीय गुरुओं पर आगे आकर आपको लुभाते हैं और इस संदेह करते हैं । मुझे इस बात पर प्रसन्नता बात नहीं समझी वो अब भी चट्टान (पर्वत करते हैं। मैं प्रकार बेशुमार धन एकत्र है। वास्तव में मैं इससे बहुत प्रसन्न हूँ। कम महसू स करती हूँ कि यह अत्यन्त से कम यहां के लोगों ने इन गुरुओं के लज्जाजनक कार्य है परन्तु इसका अर्थ यह विषय में सोचना तो शुरू किया यहां के भी नहीं कि वास्तविकता है ही नहीं । यदि लोगों को भ्रम में फंसाया गया और धोखा वास्तविकता न होती तो उसकी नकल कैसे दिया गया। परन्तु अब उनका भ्रम पूरी तरह होती? यदि फूल न होते तो आप प्लास्टिक टूट गया है और परमात्मा के विषय में बताने के फूल किस प्रकार बना पाते? अतः आपको वाले ऐरे गैरे पर विश्वास कर लेना अब यदि कोई गलत लोग मिले हों तो आपको उनके लिए असंभव है। अतः पहला विषय चाहिए कि सच्चे लोगों को खोजने का जिस पर वो चाहता था कि मैं लोगों को प्रयत्न करें सच्चे लोगों को खोजते हुए बताऊँ वह था गुरुओं के रहस्यों का आपको अत्यन्त सावधान रहना होगा कि हम पर्दा-फाश करना। यह अत्यन्त ही सच्चाई के सिवाए किसी अन्य चीज को चुनौतीपूर्ण विषय है। परन्तु इस विषय पर स्वीकार नहीं करेंगे परन्तु आपको सम्मोहित मैंने वर्ष 1970 में भारत में और 1973 में भी किया जा सकता है। सच्चाई का ज्ञान अमेरिका में बताया था, परन्तु मेरी यह बात आपको न होने के कारण आपकी बुद्धि को किसी को भी अच्छी नहीं लगी। लोग कहने छला भी जा सकता है। कोई संस्कृत भाषा लगे क्यों आप किसी की आलोचना करती में कुछ श्लोक बोलता है और आप सम्मोहित हैं। असत्य-असत्य है और वास्तविकता हो जाते हैं मानों संस्कृत भाषा कोई अद्भुत बास्तविकता। यहां उपस्थित कुछ लोगों के चीज हो! उदाहरण के रूप में कुछ शिष्य माध्यम से आपको पता चल जाएगा कि जो गुरुओं के पास गए तो उन्हें ऐसे ऐसे किस प्रकार आपको भ्रम में फसाया गया धन ऐंठने के लिए आपको किस प्रकार धोखा बताएं तो वे हंस-हंस कर दोहरे हो जाएंगे। दिया गया आप यह बात नहीं समझते जैसे-एक मंत्र दिय गया 'ठिंगा', ये मंत्र आप क्योंकि आप इससे ऊपर उठ चुके हैं। किसी भारतीय को बताएं तो वह हंसेगा| । मंत्र दिए गए जिन्हें यदि आप भारतीयों को साधना का स्थान आपके लिए धन से ऊपर परन्तु इन लोगों ने इस प्रकार के अर्थहीन है, आप जानते हैं कि धन आपको आनन्द मूर्खतापूर्ण मंत्र के लिए तीन सौ पाउण्ड खर्चे नहीं दे सकता। इस बात को आप थे। एक ऐसे शब्द के लिए जो मंत्र हो ही मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 27 सकता। मंत्र के लिए गु रु की के लिए आपको कोई अन्य चीज पकड़नी नहीं आवश्यकता ही क्यों है? मंत्रों का भी एक होगी। आपको यदि कोई ऐसी चीज प्राप्त हो विज्ञान है, परन्तु इसको बिना समझे हम जाए जो इनसे कहीं अधिक बहुमूल्य हो, मंत्रों के पीछे दौड़ पड़ते हैं क्योंकि ये लोग कहीं अधिक गतिशील हो, आनन्दप्रदायक (कुगुरु) आपसे ऐसा ही चाहते हैं। क्योंकि हो, जो आपमें सुरक्षा का भाव स्थापित कर उन्हें आपसे धन जो ऐंठना है। इतनी सहज सके, तब आप इन सब मूर्खतापूर्ण चीज़ों को देखें कि किस प्रकार ये त्याग देंगे। परन्तु सी बात है। उन लोगों का तो ये एक उद्यम है। हो सकता है आपने अपनी साधना के कार्यान्वित होगा! किसी भयानक गुरु का लिए सभी दे दिया हो क्योंकि आप ये एक शिष्य मेरे पास आया। इस भद्र पुरुष बात जानते हैं कि भौतिक पदार्थ तथा धन को उस कुगुरु ने पूर्णतः परेशान कर दिया आपको कहीं भी नहीं पहुंचाएंगे। इससे भी था, समाप्त कर दिया था। यह व्यक्ति केवल आगे आप चीज़ों को जान चुके हैं। आपकी परिचय भाषण दिया करता था। मैं नहीं मूल्य प्रणाली (सूझ-बूझ) भिन्न है । परन्तु जानती कि वो इस समय यहां है या नहीं जिन लोगों की मूल्य प्रणाली आपसे भिन्न है परन्तु उसने बताया कि श्रीमाताजी, इसी कुछ बो आपका नाजायज़ फायदा उठा सकते हैं। हॉल में जहां आप भाषण दे रही हैं, उन अतः स्वाभाविक प्रतिक्रिया, मैं समझ सकती प्रारंभिक भाषणों के लिए तीन सौ लोग आया हूँ, ऐसी ही होनी चाहिए। परन्तु सच्चाई भी है जो आपके अन्दर. कहेंगे? क्या ये बात स्पष्ट नहीं है? वह विद्यमान है । आपके अन्दर आत्मा है जिसको कुगुरु एक जाना पहचाना व्यक्ति है जो यदि एक बार खोज लिया जाए तो आपको भाषण देने के लिए तथा पाठ्यक्रम बताने के अपना पूर्णत्व मिल जाता है। जो आपको लिए आपसे धन लेता है? उसने बहुत से बताता है कि आपको अत्यन्त शान्त एवं लोगों को नष्ट कर दिया है। ये बात भी मधुर व्यक्ति होना चाहिए। आपको ये बताना वैसी ही हुई जैसे मैं अभी लोगों को कि आप अपने इच्छाओं के, काम और लोभ शराबखाने में जाते हुए देख रही थी । वहां से के स्वामी बन जाएं तथा ये षड्रिपु किसी भी नशे में चूर कुछ लोग बाहर आते हैं तथा प्रकार से आपको नियंत्रित न करें, अत्यन्त अन्य लोग उनकी दशा को दे खकर करते थे। ऐसे लोगों के विषय में आप क्या | हास्यास्पद बात है। यह तो आपको एक बड़ा शराबखाने के प्रति आकर्षित होते हैं! सा भाषण देने जैसी बात है जो कि अर्थहीन कभी-कभी तो मानव स्वभाव को समझ पाना है। इन सारे दुर्गुणों को आपने स्वयं कसकर असंभव होता है। सच्चाई यदि आपके सामने पकड़ा है, इतनी मजबूत पकड़ के होते हुए प्रकट हो जाए तो आप उसे सूली पर चढ़ा किस प्रकार आप इनसे मुक्ति पाएंगे? देते हैं। इन सब बातों की व्याख्या आप कैसे सामान्य बुद्धि की बात है इनसे मुक्ति पाने करेंगे? सत्य को स्वीकार करना ही आपकी मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 28 गरिमा है । सत्य में क्या आप कुछ और देखते हैं कि वह किस प्रकार आपका जोड़ना चाहते हैं? मान लो मैंने हीरों का हार आँकलन करेंगे। ये कहना बहुत आसान है ं पहना हुआ है यह मुझे सजाएगा, हीरों को कि हम परमात्मा पर विश्वास नहीं करते। ये नहीं। परन्तु यह (सत्य) हमें अलंकृत करने कहना बहुत ही आसान है कि हम सरकार वाली लाखों चीजों से भी कहीं अधिक (परमात्मा) को नहीं मानते परन्तु यदि आप दैदीप्यमान है। इस बात को यदि आप कोई गलत कार्य करें तो आपको पता चल स्वीकार करते हैं तो आप गरिमामय हो जाता है कि सरकार कार्यरत है। इसी प्रकार सकते हैं, इसके विषय में सोचे । इन बाह्य चीज़ों से तथा इनके लुभावने परमात्मा को नहीं मानते, परमात्मा अत्यन्त और छल पूर्ण तौर-तरीकों से हम सम्मोहित करुणामय हैं, प्रेममय और दयालु हैं, कि हो जाते हैं। मैं आपको केवल इतनी ही बात उन्होंने हमें स्वयं का ज्ञान प्राप्त करने की बता सकती हूँ। इसी प्रकार से इन कुगुरुओं स्वतंत्रता दी है। परमात्मा पर हम विश्वास ने अब तक सारा कार्य किया है और एक के करते हैं और उस पर हम अपना अधिकार ये कहना भी बहुत आसान है कि हम बाद एक उनका ये सम्मोहन अग्नि की तरह मान बैठते हैं। परमात्मा ने हमें अमीबा से से फैलता रहा है । आप उनसे पूछे कि आपको क्या प्राप्त चहुँ ओर इतने सुन्दर विश्व का सृजन किया हुआ है? उत्तर होगा हमसे ये बात मत पूछो है, ये सभी कार्य किए हैं । परन्तु उसके इस मानव स्थिति तक विकसित किया है. हम अत्यन्त प्रसन्न लोग हैं। परन्तु तीन निर्णय का अब हमें सामना करना होगा। दिनों के बाद आपको पता चलता है कि इस उसका निर्णय ऐसा नहीं है जिस प्रकार हम व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली। हम अभी तक समझते हैं कि वह एक न्यायाधीश की तरह भी नहीं जानते कि मानव के इतिहास में यह से बैठा हुआ है, बारी-बारी आपको बुलाता अत्यन्त महत्पूर्ण तथा भयानक समय है। है, वहां पर आपका एक वकील है। परमात्मा अन्तिम निर्णय आरम्भ हो चुका है। आज हम ने तो अत्यन्त सूक्ष्म ढंग से आपके अन्दर अन्तिम निर्णय का सामना कर रहे हैं। इस निर्णायक शक्तियाँ स्थापित कर दी हैं। बात का हमें ज्ञान नहीं है कि सभी शैतानी मानव की विकास प्रक्रिया में उन्होंने ये सब शक्तियाँ, भेड़ की खाल पहने भेडिए. कार्यान्वित किया है कितनी सुन्दरता से आपको आकर्षित करने के लिए अवतरित हो मानव को अमीबा से मानव अवस्था तक गए हैं आपको चाहिए कि बैठकर केवल विकसित करते हुए उन्होंने ये कार्य किया सच्चाई को पहचाने। इसका आरम्भ हो गया है । बहुत से पशुओं को विकास प्रक्रिया से विशाल पशुओं के परिवारों में से केवल हाथी ही बचा । इन है। यह बात सत्य है इसका आरम्भ हो गया निकाल फेंका गया। है। आइए अब परमात्मा के दृष्टिकोण से वर्षों में बहुत से पशु बच गए और बहुत से मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 29 एक-एक करके नष्ट हो गए। इसी प्रकार के स्थान दण्डाधिकारियों की तरह से हैं। ये से बहुत ज्यादा आक्रामक मनुष्यों की नस्लें लोग आपके मस्तिष्क में विराजमान हैं। भी समाप्त होती चली गई इतिहास को कुण्डलिनी का प्रकाश जब इन चक्रों पर आप देख सकते हैं। कहने से अभिप्राय ये है पड़ता है और ये चक्र आलोकित होते हैं तब कि आज के युग में आप किसी को अपनी आपमें भी आपकी अंगुलियों के सिरों पर सात बीवियों की हत्या करते हुए नहीं पाते। आत्मा के प्रकाश की अभिव्यक्ति होती है। कहने से अभिप्राय है कि ऐसा करना असंभव आपकी अंगुलियों के सिरे संवेदनशील हो है। हिटलर जैसा व्यक्ति आया और समाप्त उठते हैं । आपकी अंगुलियों की संवेदना है कि आपके अन्दर के कौन से चक्र हो गया। जो भी दूसरों पर सत्ता जमाने या बताती उन्हें नियंत्रित करने के लिए आया वह प्रभावित हैं। कुण्डलिनी जागृत होकर समाप्त हो गया। दूसरों पर सत्ता जमाने के तालुक्षेत्र (ब्रह्मरन्ध्र) तक आती है, उस स्थान विचार समाप्त हो जाते हैं। लोग उन पर तक जो बाल-अवस्था में अस्थिविहीन होता लज्जित होते हैं तथा मानव में संतुलन एवं है। तालू की हड्डी को ये बेंधती है वास्तव शान्ति के महत्व को स्वीकार करने वाले नए में ये तालू अस्थि का छेदन करती है। जिस विचार जन्म लेते हैं। परन्तु क्या आप वास्तव में अपने अन्दर को आप देख सकते हैं कि कूण्डलिनी आन्तरिक शान्ति चाहते हैं? यदि हम वास्तव जागृत होने पर तालू बच्चे के तालू की तरह में आन्तरिक शान्ति चाहते हैं तो इसकी से थोड़ा सा नीचे को चला जाता है। पहले व्यक्ति के सिर पर कम बाल हों उसके तालू प्राप्ति के लिए हम क्या कर रहे हैं? वास्तव ये धड़कता है। इस धड़कन को आप अपनी में आँकलन शुरू हो चुका है और आँखों से देख सकते हैं । कुण्डलिनी की आपका आँकलन करने के लिए परमात्मा धड़कन को आप त्रिकोणाकार पावन अस्थि ने न्यायाधीशों का एक समूह आपके में भी देख सकते हैं । कृण्डलिनी जब उठती अन्दर बिठा दिया है सभी न्यायाधीश, है तो इसकी गति को आप कुछ लोगों की वहाँ बैठे हुए हैं। ईसामसीह ने कहा था रीढ़ पर देख सकते हैं । व्यकि्ति की स्थिति जो लोग मेरे विरुद्ध नहीं हैं वे मेरे साथ हैं। यदि प्रथम दर्जे की हो या यूँ कहें कि ये न्यायाधीश ही वे लोग हैं और यही आपके वायुयान प्रथम दर्जे का हो तो उसका अन्दर स्थापित हैं। आपकी मेरूरज्जु (रीढ़) उतार-चढ़ाव (कार्यशैली) भी प्रथम दर्जे का तथा आपके मस्तिष्क में बनाए गए चक्रों में ही होता है । ऐसी अच्छी स्थिति वाले व्यक्ति ये विद्यमान हैं । मुझे खेद है कि यहाँ पर में कोई बाधा नहीं होती कुण्डलिनी को हमारे पास सूक्ष्म शरीर तंत्र का नक्शा नहीं है ऊपर चढ़ते हुए आप देख नहीं सकते। जिस पर आपको ये न्यायाधीश दिखाए जा उदाहरण के रूप में मैं जब यहां आई तो सकें। ये अत्यन्त रुचिकर है और इन सब मार्ग में यातायात की कोई समस्या न थी ग गिल्दी चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 मई-जून, 2003 30 और हम बड़ी ही शान्ति से यहां आ गए। हुआ फिर भी उन्होंने कह दिया कि हमें किसी ने हमें देखा तक नहीं। परन्तु अनुभव हो गया है और फिर वे गायब हो यातायात की समस्या यदि होती तो हम कहीं गए। आपको स्वयं से इस प्रकार व्यवहार न कहीं अटक गए होते। इसी प्रकार से नहीं करना। स्वयं को प्रेम करना है। अपनी किसी व्यक्ति के चक्रों में यदि समस्या हो तो साधना का सम्मान करना है और अपने लक्ष्य कुण्डलिनी भी रुक रुक कर उठती है और को प्राप्त करना है। माँ के नाते मेरा ये दिखाई पड़ती है। इसे आप अपनी आँखों से बताना आवश्यक है कि यह अत्यन्त गम्भीर देख सकते हैं। तो इस प्रकार होती है मामला है। यहाँ कोई गुरु व्यापार नहीं हो कुण्डलिनी की जागृति । ऐसी नहीं, जैसे रहा। आपको अपना आत्म-साक्षातकार प्राप्त कुछ लोग कहते हैं कि व्यक्ति मेढक की करना है। ये आपको प्राप्त करना है ये तरह से उछलने लगता है अब हमें अपने मस्तिष्क का उपयोग करना है आधुनिक जन्में हैं और इसे प्राप्त कर सकते हैं । काल में मस्तिष्क का ठीक ठाक होना आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के लिए ही आवश्यक है। क्या हम मेंढक बनने वाले हैं? आपने इस समय पर जन्म लिया है क्योंकि सौभाग्य की बात है कि आप इस समय पर आप युग-युगान्तरों के साधक हैं जैसा मैंने एक बार मानव बनने के पश्चात् क्या हम पक्षी बनने वाले हैं? मनोविज्ञान जैसे आपके आपको बताया था ये बात भारत के एक विज्ञान भी इस बात पर विश्वास करते हैं कि शास्त्र 'नल आख्यान में वर्णित है। नल ने, सामूहिक चेतना प्राप्त करने के लिए आपको जिसे कलि ने बहुत सताया था, एक बार अचेतन में प्रवेश करना होगा ये वैज्ञानिक लोग अब इस बात को स्पष्ट कह रहे हैं। जा रहा है कि अब कलि का शासन है । अतः हमें इस प्रकार की बात को स्वीकार कलि वो आसुरी शक्ति है, जो सारे भ्रमों को कर लेना चाहिए कि हमें सामूहिक चेतना जन्म देकर लोगों को भ्रमित करता है। में प्रवेश करना है। इसलिए नहीं कि मैं उसने नल को भी भ्रमित कर दिया. जिसके ऐसा कह रही हूँ या अन्य व्यक्ति ऐसा कह कारण नल का अपनी पत्नी से बिछोह हो रहा है। ये घटना तो आपके अन्दर घटित गया नल ने जब कलि को पकड़ा तो होनी चाहिए। उस दिन मैं हैम्पस्टेड (Hampstead) में हमेशा के लिए तुम्हें मिटा दूंगा ताकि आगे थी मुझे इस बात का पता चल जाता है कि कभी भी तुम लोगों को भ्रमित न कर सको। " किसके साथ क्या घटित हो रहा है। कुछ कलि ने उत्तर दिया ठीक है, तुम मेरा बध लोगों को चैतन्य लहरियाँ आ गई, उन्होंने कर सकते हों, ये बात मैं स्वीकार करता हूँ । अपने हाथों पर शीतल लहरियों का अनुभव परन्तु वध करने से पूर्व मेरा महत्व जान लो किया, परन्तु कुछ लोगों को ये अनुभव नहीं मेरा भी कुछ महत्व है।" नल ने कहा, कलि को पकड़ लिया। आजकल ये कहा उससे कहा, "अब मैं तुम्हारा बध कर दूंगा. श्म मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 31 "तुम्हारा क्या महत्व हो सकता है? तुम तो रहे हैं। वे साधू स्वभाव हैं। बनावटी जीवन लोगों के मस्तिष्क भ्रमित करते हो, तुम्हारा के मजाक को वे स्पष्ट देख सकते हैं । वे क्या महत्व हो सकता है?" उसने उत्तर जानते हैं कि ये सब हास्यास्पद परन्तु दिया कि जब मेरा साम्राज्य होगा अर्थात आध उन्हें वास्तविकता का ज्ञान नहीं है। अब पुनिक युग भ्रमित करेगा। ये सारी बातें अब ठीक जाएगा आपके महान देश में ये कार्यान्वित साबित हो रही हैं। हम इसी प्रकार की बातें हो चुका है, अब तो, मैं कहूँगी कि कम से करते हैं, कहते हैं, "हो सकता है ये बात कम एक हजार लोग भली -भांति इसमें हैं, ठीक हो, हो सकता है गलत हो, हो सकता जिन्होंने इसे समझ लिया है। कम से कम है यह अच्छा हो, हो सकता है यह बुरा हो। तीन सौ लोग ऐसे हैं जो भिन्न स्थानों पर ये वो समय है जब पृथ्वी पर भ्रम का राज्य इसे कार्यान्वित कर रहे हैं। होगा यही कलियुग है-आधुनिक काल । आधुनिक काल- जिसमें पर्वतों और की मुझे प्रसन्नता है जहां पर सम्राट की दरी-कंदराओं में परमात्मा को खोजने वाले ताजपोशी का पत्थर रखा गया था। इस में वह (कलि) लोगों के मस्तिष्क समय आ गया है और यह कार्यान्वित हो किंग्स्टन नामक इस प्राचीन नगर में आने महान संत एव साधक सव साधारण स्थान में अवश्य कोई विशेषता रही होगी गृहस्थियों में पृथ्वी पर लौट आएंगे और परन्तु वास्तविकता के प्रति लोगों की हैं-सर्वत्र, केवल सत्य को प्राप्त करेंगे। इसी भ्रम काल में ही संवेदना समाप्त हो गई साधकों को सत्य का दिव्य दर्शन होगा वे इसी देश में ही नहीं। भारत में तो यह स्वयं सत्य बन जाएंगे उन्हें उनका स्थिति और भी अधिक है। ये बात सुनकर आत्मासाक्षात्कार प्राप्त हो जाएगा ये आप हैरान होंगे कि वहां के सभी लोग सुनकर नल अपने बदले की भावना और परिष्कृत बनने का प्रयत्न कर रहे हैं ! क्रोध को भूल गया और ये भी भूल गया कि विकसित बनने का प्रयत्न कर रहे हैं, उन्हें उसके साथ कलि ने क्या किया था। नल ने इस बात का ज्ञान नहीं है कि इस विकास कहा, "कि इस गुण के कारण मैं तुम्हें क्षमा से आपको क्या प्राप्त हुआ। कोई जब उन्हें करता हूँ क्योंकि मैं उन साधकों का सम्मान वास्तविकता बताता है तो उन्हें विश्वास नहीं करता हॅू। इस सामूहिक हित के लिए अपनी होता वे समझते हैं कि आप आनन्द ले रहे व्यक्तिगत समस्याओं को छोड़ता हूँ। केवल हैं परन्तु उनसे झूठ बता रहे हैं । विकसित कलियुग में ही सत्ययुग का सूर्य उदय होकर वे भी आनन्द ले सकते हैं । होगा। अतः ये समझना अत्यन्त आवश्यक है कि सत्य का संसार, दिव्य प्रकाश का युग लक्ष्य क्या है? लक्ष्य प्राप्ति के लिए आने वाला है और जंगलों में सत्य की खोज कुण्डलिनी आपके अन्दर स्थापित कर दी करने वाले संत अब इस संसार में जन्म ले गई है। परन्तु मैं कहूँगी कि कुण्डलिनी बहुत প পg मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 वे 6 32 बड़ी न्यायाधीश है, पूरे ब्रह्माण्ड में उन जैसा सुप्तावस्था में विद्यमान है और जागृत होने न्यायाधीश आपको नहीं प्राप्त हो सकता के अवसर की प्रतीक्षा कर रही है। बीज के क्योंकि वे आपकी अपनी माँ हैं। वे निर्वाज्य अंकुरण की तरह से जब इसका अंकुरण हैं अर्थात देती ही रहती हैं। आपसे किसी होता है, जब ये ऊपर को उठती हैं तब कोई भी चीज की आशा नहीं करतीं। उनकी एक ऐंसा व्यक्ति होना चाहिए जो आपकी ही इच्छा होती है कि आप अपने वैभव को देखभाल कर सके, आपका मार्गदर्शन कर प्राप्त करें। इसके अतिरिक्त वे आपसे कुछ सके । को ई ऐसा व्यक्ति जो आपकी भी नहीं चाहतीं कि आप स्वयं को पहचान अंगुलियों पर होने वाली संवेदना का कूट लें, अपने पूर्णत्व को पा लें। वे आपसे केवल ( इतना ही चाहती हैं। आपके साथ बार-बार सके कि अपनी अंगुलियों पर जो आप जन्मी वे आपकी माँ हैं। अपने लिए, अपने महसूस कर रहे हैं उसका ये अर्थ है। उत्थान के मार्ग में आपने जो समस्याएं खड़ी इसके बिना आपको अपने आश्रय स्थल की हैं, वे सब उन पर अंकित हैं। आपके (moorings) समझ न आएंगे। आप ये न विषय में वे सभी कुछ जानती हैं और इस समझ पाएंगे कि आप कहां जा रहे हैं और मामले में आपका आँकलन भी करती हैं कि इस प्रकार से अज्ञान के जाल में फंसने की कितनी गंभीरता से आप अपना उत्थान संभावना बनी रहेगी। ये भी हो सकता है कि चाहते हैं। वे पूरी गंभीरता से आपको वहां रहते हुए भी आपको अधिक ज्ञान न जानती हैं। ऊपर उठते हुए उन पर सभी प्राप्त हो सके। अतः वे चाहती हैं कि कोई चिन्ह दिखाई देते हैं । चे दर्शाती आपमें क्या कमी है। परन्तु वे आपकी अपनी ये आवश्यक है कि अचेतन किसी अन्य हैं, उनसे अधिक आपका अपना कोई भी व्यक्ति के माध्यम से बात करे और वह नहीं है। वे आपकी मित्र हैं और वे आपको माध्यम भी ऐसा होना चाहिए जिसका स्वभाव आँकती भी हैं ताकि आपको सर्वोत्तम कुण्डलिनी जैसा हो। जो लोग आपसे पैसा उपलब्धि प्राप्त हो सके। बे ये भी जानती हैं बनाते हैं, कि आपके लिए सर्वोत्तम क्या है। बच्चा मझधार आपको छोड़ देते हैं. उन्हें किस बिजली के सॉकेट में यदि उंगली डालना चाहे तो माँ उसे रोकती है परन्तु बच्चा माँ चोर हैं जो आपके दरवाजे पर खड़े अवसर की बात नहीं सुनता, बिगड़ जाता है और वो की प्रतीक्षा में हैं कि कब आपको पकड़ें। उसके हाथ को सॉकेट से हटा देती है। उन लोगों का अब ऑकलन शुरू हो चुका क्योंकि वो उससे प्रेम करती है, उसका प्रेम है. उन्हें त्यागा जा रहा है, जेल भेजा जा पावन है जिसमें व्यक्ति प्रेम के पात्र से कुछ रहा है और वो चाहते हैं कि अधिक से आशा नहीं करता। ऐसी शक्ति आपके अन्दर अधिक लोग उनके साथ हों । (Decode) खोल सके अर्थात आपको ये बता हैं कि व्यक्ति उनका प्रतिनिधि (Mouthpiece) बने । , आपका दुरुपयोग करते हैं, बीच प्रकार से गुरु कहा जा सकता है? वो तो मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 33 कुण्डलिनी, जब जागृत होती है तो शक्ति परमात्मा की इच्छा है, उस परमात्मा सर्वप्रथम यह आपको शारीरिक चैन देती है, की जो सर्व - शक्तिमान है, जिन्होंने हमें वास्तव में ये आपको शारीरिक चैन देती है हमारी स्वतंत्रता प्रदान की है। यह शक्ति और इस प्रकार से फल के रूप में और (कुण्डलिनी) परमात्मा को चुनौती नहीं देगी। उपफल के रूप में आपको सुन्दर स्वास्थ्य उनकी शक्ति, उनकी ताकत, हमारी प्राप्त हो जाता है। उदाहरण के रूप में स्वतंत्रता का विरोध नहीं करेगी। उनकी कुण्डलिनी जागृति के बिना कैंसर रोग को इच्छा कुण्डलिनी के रूप में आपके अन्दर ठीक नहीं किया जा सकता, ये बात मैं विद्यमान है और यही इच्छा जागृत होकर बताती चली आ रही हूँ। डाक्टरों को भी जब आपके अन्दर उठती है । यह आपको कैंसर हो जाता है तो वो मेरे पास आते हैं आलोकित करती है, विवश नहीं करती. और ठीक हो जाते हैं। परन्तु मैं यहां पर आपसे आपकी स्वतंत्रता नहीं छीनती, ये कैंसर रोगियों को ठीक करने के लिए नहीं आपको प्रकाश प्रदान करती है ताकि आप बैठी हूँ। सहजयोगियों को भी कैंसर रोगियों देख सकें। आपको इस विश्व में रहने की में कोई दिलचस्पी नहीं है। आपको यदि स्वतंत्रता है, कोई आपको विवश नहीं करता आत्म-साक्षात्कार प्राप्त हो गया, जो लोग कि आप यहाँ बैठें, वहां बैठें, ऐसे चलें वैसे यहां बैठे हुए हैं इनमें से अधिकतर को कुछ चलें। किसी भी बात के लिए आपको विवश न कुछ शारीरिक या मानसिक रोग था । नहीं किया जाता। आपको एक आलोकित इनमें से कुछ तो मिर्गी-रोगी भी थे और स्थान दे दिया जाता है, जिससे आप अपनी कुछ को गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं थीं । कुछ स्वंतत्रता को बेहतर ढंग से, अधिक को रक्त कैंसर था तथा कुछ अन्य शारीरिक सूझ-बूझ से उपयोग करें । आप क्योंकि रोगों से पीड़ित थे परमात्मा के दिव्य प्रेम, आलोकित होते हैं इसलिए देख सकते हैं । उनकी इच्छा (कुण्डलिनी) से आपको इन आपको इस बात का ज्ञान होता है कि क्या सब समस्याओं का सामना करना होता है। स्वीकार करना है क्या नहीं करना। | कुण्डलिनी परमात्मा की इच्छा की प्रतिनिधि | करुणा एवं प्रेम के सागर की इच्छा की। होना है। जब तक आप आलोकित नहीं हो पहली आवश्यकता आपका आलोकित परमात्मा यह साम्राज्य आपको अर्पित करना जाते तब तक आप भ्रम में फंसे रहते हैं और चाहते हैं, आपको इस साम्राज्य का चीजों को देख नहीं सकते। निर्णय आपकी पर छोड़ दिया जाता है तो राजकुमार बनाना चाहते हैं। यह अत्यन्त स्वतंत्रता गंभीर बात है और इस पर हमें ध्यान देना कुण्डलिनी आपको रोगमुक्त करती है, चाहिए । इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि आपको सुधारती है और सभी आशीष निर्णय होना है तथा हमारे अन्दर ऐसी शक्ति आपको देती है । भौतिक चिन्ताओं से विद्यमान हैं जो हमारा आँकलन करेगी। यह आपको मुक्ति देती है। जैसे मैंने देखा है कि | পঁ चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 मई-जून. 2003 34 आत्मसाक्षात्कार के पश्चात लो गों की अन्दर विद्यमान है। इसके विरुद्ध चाहे जो भौतिक समस्याओं का समाधान हो जाता है । आप करते रहें यह बनी रहती है। कुछ ऐसा नहीं है कि बों श्रीमान फोर्ड या उन्हीं लोगों की कुण्डलिनी को मैंने देखा है कि जैसे धनबान बन गए हैं परन्तु व्यक्ति का वह कितनी घायल अवस्था में होती है! दर्द दृष्टिकोण ही बदल जाता है और उसकी और पीड़ा के निशान कुण्डलिनी पर बने हुए भौतिक समस्याओं का समाधान हो जाता है। होते हैं और दर्द से कराहती हुई वह अपनी हां क्योंकि इसके लिए भी हमारे अन्दर चक्र करवटें बदलती है। फिर भी वह बनी रहती हैं है। आपकी पारिवारिक समस्याओं का है और उस क्षण की प्रतीक्षा करती है समाधान हो जाता है, पति-पत्नी की जिसके लिए उसे वहां स्थापित किया गया समस्याओं का समाधान हो जाता है ताकि है। ऐसा आशीर्वाद आपको कहां प्राप्त हो आप स्वतंत्र हों जाएं। जो समस्याएं आपको सकता है? यह सब आपके अन्दर विद्यमान चिन्तित करती हैं उनकी पकड़ ढीली पड़ है और इसे कार्यान्वित होना है । परन्तु जाती है। आप इन चीज़ों को अधिक आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के बाद भी लोग स्वतंत्रता पूर्वक देख सकते हैं कि क्या गायब हो जाते हैं। पाश्चात्य देशों में जो चुनना है और जीवन में कौन सा मार्ग विकास हुआ है उसकी क्या आप कल्पना कर सकते हैं? आप लोग तीन कदम आगे अपनाना है। आपको ये सब रियायतें, लाभ तथा संभव चलते हैं और चार कदम पीछ ! लोगों पर सहायता प्रदान करने के पश्चात आपका वास्तव में आपको हैरानी होगी मैं समझ आँकलन किया जाता है। क्या इतने उदार नहीं पाती कि पाश्चात्य मस्तिष्क जो कि किसी न्यायाधीश की कल्पना आप कर भौतिक लाभ के विषय में इतना स्पष्ट है सकते हैं? यह हमारे अन्दर विद्यमान है । उसे क्या हो गया है! जब सहजयोग में परमात्मा ने जो कृपा हम पर की है उसके उनकी स्थिति की बात आती है तो उनका लिए हमें उनके प्रति कृतज्ञ होना पड़े गा। स्तर कभी-कभी तो निम्नतम होता है । आप परन्तु हमें इस बात का कोई अहसास ही समझ नहीं सकते कि किस प्रकार इनमें नहीं है। हम तो बस उस पर अपना पूर्ण आत्म सम्मान का पूर्ण अभाव है। भारत के अधिकार मान बैठते हैं। जो भी कुछ हमारे गाँवों के लोग एकदम से आत्मसाक्षात्कार अन्दर है उस पर अपना अधिकार मान लेते प्राप्त करते हैं और पफिर इसमें उतर जाते हैं । परमात्मा ने जो कृपा एवं करुणा हम पर हैं। उनमें किसी प्रकार की भी भटकन नहीं की है उनके लिए हम उनका धन्यवाद भी होती, बस स्थिर हो जाते हैं । मैं मानती हूँ नहीं करते। छोटी-छोटी इच्छा की प्राप्ति न कि जटिलताएं हैं परन्तु आपमें आत्म- होने पर भी हम उनका महत्व भूल जाते हैं। सम्मान होना ही चाहिए। कभी-कभी तो यह फिर भी वो विद्यमान हैं. कुण्डलिनी हमारे बात आपको चोट पहुंचाती है। शायद आप I 1 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 मई-जून, 2003 35 नहीं जानते कि इस देश में मैने सात या दृष्टिकोण है आराम कुर्सी राजनीतिज्ञों की आठ लोगों पर चार वर्ष लगातार कार्य किया तरह से यहां बैठकर वियतनाम के बारे में है। चार वर्ष, क्या आप इस बात पर विश्वास सोचना या सारे मामले के दस्तावेजों को कर सकते हैं? ये नहीं कि आपमें कोई कमी फाइल में लगाकर बन्द कर देना। परमात्मा 1 | आप साधक हैं। आप संत है जिन्होंने द्वारा चुने गए आप ही वो लोग हैं जिन्होंने इस देश में जन्म लिया है। परन्तु आपकी इसे (आत्म साक्षात्कार) प्राप्त करना है, उसे पाना है। परन्तु वास्तविकता को अपनाने के इतने चंचल और उथले क्यों हैं? गहनता से लिए आप सौ बार सोचेंगे और उल्टे सीधे क्यों नहीं आप इसे स्पर्श करते? क्यों नहीं चक्करों में फंस जाएंगे ये सब हो जाता है । इसे समझते? ये बात मुझे समझ नहीं आती इसके लिए मैं किसे दोष दूं-इन भयानक गुरुओं को या उन लोगों को जिम्होंने मैं आपका अत्यन्त सम्मान करती हूँ और आपके लिए दिखावा बनाया है या प्रेम करती हूँ क्योंकि मैं आपको जानती हूँ। आध्यात्मिकता के प्रति आपका कृत्रिम युगों से मैं आपको पहचानती हूँ। आप मेरे दृष्टिकोण इसके लिए जिम्मेदार है? जिस खोए हुए बच्चे हैं, ये बात मै जानती हूँ। प्रकार चीजें चल रही हैं उन्हें देखकर परन्तु मैं ये नहीं जानती कि किस प्रकार इसे कभी-कभी तो मैं कॉप जाती हूँ। लोग तो (आत्म साक्षात्कार) आपके अन्दर स्थापित इस पर अपना अधिकार मान लेते हैं। आज करू? कभी-कभी तो मेरी स्थिति वैसी ही हो ये आपकी जिम्मेदारी है, उन लोगों की जाती है जैसी आपकी कुण्डलिनी की है । जिन्हें साधक माना जाता है, कि वे आपको ये बता देना आवश्यक है कि इसे वास्तविकता को लोगों के सामने लाएं और प्राप्त करने की आपको बहुत जल्दी होनी उन्हें बताएं कि वे इसे देखें और प्राप्त करें । चाहिए । आपको अत्यन्त गतिशील होकर आप क्योंकि उनके साथी हैं, उनके संबंधी इस कार्य को करना है तथा लोगों से हैं, किस प्रकार आप उन्हें छोड़ सकते हैं? बातचीत करनी है और उन्हें बताना है कि चाहे आपको आत्म - साक्षात्कार मिल जाए या है सन्त-सुलभता को क्या हो गया है? आप कि क्यों आप अपना सम्मान नहीं करते? अब आपातकालीन स्थिति है। क्या आप ये आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर लें नहीं देख सकते कि विश्व में क्या हो रहा है? आप उन्हें भूलेंगे नहीं, उनके विषय में क्या आप भ्रम को नहीं देख सकते? परन्तु सोचेंगे। आत्म-साक्षात्कार मिल जाए या स्थिति को स्वीकार कर लिया जाता है। आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर लें स्थिति का यदि सामना भी करते हैं तो आप उन्हें भूलेंगे नहीं, उनके विषय में अत्यन्त बौद्धिक तरीके से। परिणाम स्वरूप सोचेंगे। आत्म-साक्षात्कार प्राप्ति की भी आप स्वयं को दोषी समझ बैठते हैं। जैसे आपको तब तक प्रसन्नता नहीं होगी जब वियतनाम के मामले में। ये बहुत अच्छा तक आपके सभी अपने तथा अज्ञान के चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 मई-जून, 2003 36 कारण खोए हुए सभी सन्त आत्म- बर्बाद करने के लिए आप इसे नहीं बचा साक्षात्कार को पा नहीं लेते। आप उनके रहे। मेरे विचार से सर्वोत्तम विज्ञापन ये होगा विषय में सोचेंगे मुझे ये कार्य आपके माध्यम से कार्यान्वित पाउण्ड बचाएं। ये भी ऐसा ही है। बर्बाद करना है। अकेले मैं ये कार्य नहीं कर करने के लिए आप इसे नहीं बचा रहे । इसे सकती। मैं यदि अकेले इसे कर सकती तो आप किसी अत्यन्त अमूल्य, अत्यन्त अहम् कोई कठिनाई न होती। परमात्मा यदि इस एवं महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए बचा रहे हैं । प्रकार से इस कार्य को कार्यान्वित कर उस उपलब्धि के लिए जिसे आप तलाश कर सकते, लोगों को आत्म साक्षात्कार दे सकते, रहे हैं। कभी-कभी मैं ये नहीं समझ पाती उन्हें स्थापित कर सकते तो सब ठीक हो कि किस प्रकार आपको गहनता के उस जाता। इस प्रकार ये कार्य न होगा क्योंकि स्तर तक बनाए रखूं। निःसन्देह इस देश में आपको स्वतंत्रता प्राप्त है। आपको स्वतंत्रता कुछ लोग उस उच्च स्तर के हैं और वे क्यों प्राप्त है? क्योंकि स्वतंत्रता के बिना अत्यन्त संतुष्ट हैं। हम नहीं जानते कि इस आप उस स्थिति तक नहीं आ सकते जिस देश में कितना कार्य हुआ है तथा परमात्मा स्थिति के द्वारा आपको उन्नत किया गया ने भी कितना कार्य किया है । उदाहरण के है। हम इस बात को महसूस नहीं करते कि रूप में मैं पहाड़ी झुकाव (Stone Hunch ) को कि 'तीन हजार पाउण्ड खर्चे और पचास देखने के लिए गई। यह पृथ्वी माँ का सृजन आज हम कहां है। कई बार तो मुझे ऐसे लगता है मानो मैं है । वहां पर आप चैतन्य लहरियाँ देख सकते दीवारों से बातें कर रही हूँ। उदाहरण के हैं, इन्हें महसूस कर सकते है । इस देश में रूप में आप लोग देखेंगे कि कई लोग भी बहुत से कार्य हुए है किंग्स्टन भी इतना घड़ियों के दास हैं। उनके पास सहज के अधिक चैतन्यमय है कि मुझे हैरानी हुई। लिए कोई समय नहीं है - ओह हम बहुत आप लोग क्या देखते हैं? कम से कम सौ व्यस्त हैं! किसलिए आप समय बचा रहे हैं? लोगों ने जानने का साहस किया, कुछ क्यों ये विचार आपमें आया? हमारे पूर्वजों ने लोगों ने पैदल चढ़ाई और उतराई की, कुछ कभी ऐसा नहीं किया। आप क्यों इस प्रकार लोग इसे पार कर गए और कुछ ने बीच में समय बचा रहे हैं? काहे के लिए? आप ही इसे छोड़ दिया। वो लोग निर्णय कर रहे 1 उत्थान के लिए समय बचा रहे हैं। शराब थे परन्तु संवेदना से उनका कोई सामीप्य न खानों तथा घुड़दौड़ आदि मूर्खता पूर्ण चीज़ों था। वास्तविकता की उनमें कोई संवेदना न के लिए नहीं। उत्थान प्राप्ति के लिए आप थी। वे इसे महसूस नहीं कर सकते शायद समय बचा रहे हैं। आप क्योंकि हीरे हैं ये कार्यान्वित हो जाए, मुझे विश्वास है ऐसा इसलिए आपको तराशा जाना आवश्यक है। हो जाएगा मैं अत्यन्त आशावादी व्यक्ति हूँ। स्वयं आपने को तराशना है। समय को आप इस बात को देख सकते हैं। वास्तव में खुद मई-जून, 2003 पैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 37 आशावाद मेरा स्वभाव है। मैं इसे मानती हूँ. ऐसा मुझे लगता है। इसी कारण से मैंने यह कार्य करेगा। आपकी तथाक थित इसके लिए बधाई दी। आपका किंग्स्टन में ः होना अच्छी बात है परन्तु देखना ये है कि यह समझने का प्रयत्न करें कि आपको इस क्षेत्र में बहने वाली चैतन्य शक्ति का स्वतंत्रता इसलिए दी गई है कि आप आत्मा आप कितना उपयोग करते हैं। मुझे आशा है बन सकें, इसलिए नहीं कि आप पशु बन कि कुछ न कुछ कार्यान्वित हो जाएगा। आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् स्वतंत्रता मार्ग में खड़ी हो जाती है । अत जाएं। मुरगे को आत्म-साक्षात्कार देने का क्या लाभ है? ये एक दूसरी बात है कि मैं आपने इसे गंरभीरता से लेना है इसे मुर्गों को आत्म साक्षात्कार दे भी पाऊंगी या कार्यान्वित करना है क्योकि इसे पाकर भी नहीं। बहुत से लोग कहते हैं कि "श्री आप अचानक सूर्य या चांद को नहीं छू माताजी मैंने बहुत से अच्छे कार्य किए हैं। मैं लेते/ और अगर चांद को छू भी लें तो भी कहती हूँ आपने कौन से भले कार्य किए क्या हो जाएगा? आप कुछ भी न समझ है?" "मैं चिकन नहीं खाता। मैं पूछती हूँ मेरे सकेंगे अतः आपको अपने अस्तित्व के कारण से आप चिकन क्यों नही खाते? कृपा सभी क्षेत्रों में प्रवेश करना होगा क्योंकि करके आप स्वयं को बचाएं। तो इस प्रकार आड़ोलन तो अंदर ही आरम्भ होगा। अपने से लोगों में सभी प्रकार के अटपटे विचार चित्त को आपने अपने अन्दर के सभी क्षेत्रों में ले जाना है अपने चित्त को स्थापित भरे हुए हैं । अतः आप साधकों के लिए ही, सुन्दर करना है इस प्रकार आपका चित्त मूर्खता जीवन बृक्ष की आप सब कलियों के लिए पूर्ण चीज़ों के शिकंजे से मुक्त हो जाएगा| ही, इस सारी सृष्टि का सृजन किया है । आपकी सभी प्राथमिकताएं परिवर्तित हो उन्होंने ही उत्थान प्राप्त करना है उन्हीं को जाएंगी। महानतम बात ये प्राप्त करना होगा उन्हीं के अन्दर पूरा जब सहस्रार को बेधती है तो व्यक्ति के ब्रह्माण्ड खिल उठा है वो लोग क्या कीड़े अन्दर आनन्द का प्रवाह चालू हो जाता है। (Worms) बनना चाहते हैं? इस बात को अपने हाथों से शीतल चैतन्य लहरियों का सोचें, इसे सोचकर देखें! परमात्मा की कृपा बहाव आप महसूस करते हैं-परम चैतन्य की से हम आत्म साक्षात्कार का कार्य करेंगे और शीतल लहरियां सर्वत्र आप इन्हें महसूस ये कार्य एक पल में भी हो सकता है। ये भी करने लगते हैं और इन्हें खोज सकते हैं । हो सकता है कि आप सबमें ये कार्य हो अब आप स्वयं को तथा अन्य लोगों को चुका हो क्योंकि आज मुझसे कुछ अधिक जाँच सकते हैं और स्वतः लोगों की सहायता ही-कुछ अधिक ही (चैतन्य बह रहा है) । कर सकते हैं । इसके लिए आपको कहीं किंग्स्टन बहुत अच्छा स्थान है। हो सकता जाना नहीं पड़ता। कोई दवाइयाँ नहीं है एक दिन ये बहुत महान स्थान बन जाए, लेनी पड़ती. कुछ नहीं करना पड़ता। ये है कि कुण्डलिनी मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 5 38 बस अपने आप में स्थापित होना पड़ता आनन्दायी है हम सब इस आनन्द की है। मोक्ष प्राप्ति में आप लोगों की मदद स्थिति में हैं और आपको भी हमारा साथ करते हैं मानो सारी मशीनरी कार्य करने देना चाहिए। ये अद्वितीय है। कष्टों के लिए लगी हो। पूरी तकनीक दूरदर्शन यंत्र की तरह से कार्य करने लगती है जिसे आप सोचता है कि क्यों ये लोग ऐसा कर रहे हैं, चालू करते हैं और सभी कुछ देखने लगते बिल्कुल वैसे ही जैसे, कोई बड़ा हाथ, हैं। आपको स्वयं पर हैरानी होती है। परन्तु परिपक्व व्यक्ति बच्चों की ओर देखता है कि आपको इसकी तकनीक का ज्ञान प्राप्त ओह' क्यों ये बच्चे अपने हाथ आग में डाल करना पड़ेगा और ये जानना पड़ेगा कि इसे रहे हैं ! किस प्रकार अपने पर और अन्य लोगों पर कार्यान्वित किया जाए। ये कार्य अत्यन्त इसमें कोई समय नहीं। साक्षात्कारी व्यक्ति परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। पत् ा me प ता का ्र ब त केर ं र जन्मदिवस समारोह 20.3.03. निर्मल धाम, दिल्ली परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज सभी लोग आपसे अंग्रेजी में बात में वे सभी लोगों की सहायता करें। तब ऐसी कर रहे हैं। शायद उन्हें लगता है अधिकतर कोई समस्या न रह जाएगी। कोई भी लोग अंग्रेजी भाषी हैं। राजनैतिक, आर्थिक या अन्य प्रकार की काश जीवन के विषय में मैं आपको कुछ समस्या न रहेगी। ये सारी समस्याएं मानव नया बता पाती जीवन चलता ही जाता है मस्तिष्क की देन है उस मस्तिष्क की जो आप चाहे अस्सी के हों या नब्बे के इससे कि अभी पूर्ण विकसित नहीं है। एक बार कोई फर्क नहीं पड़ता। देखना केवल ये यदि यह विकसित हो जाए तो फिर चिंता होता है कि सहजयोग से प्राप्त किए प्रकाश की कोई बात नहीं रहती। फिर आप दूसरे को आपने कितना उपयोग किया है। लोगों के लिए चिंतित होते हैं, अन्य लोगों सहजयोग में अब आप सब लोग ज्योतिर्मय की मृक्ति के लिए चिंता करते हैं। ऐसा हो चुके हैं आपकी कुण्डलिनियाँ ऊपर हैं स्वतः होता है। मुझे कुछ कहना नहीं पड़ता। और मैं सोचती हूं कि आपमें से अधिकतर आप लोगों ने अपने जीवन में देखा होगा कि को इस बात का ज्ञान है परन्तु इसके किस प्रकार से जीवन के प्रति दृष्टिकोण बावजूद भी, महत्वपूर्ण बात ये है कि आप परिवर्तित होता है । यह दृष्टिकोण परिवर्तन स्वयं को मानव मुक्ति के लिए समर्पित करें, ही महत्वपूर्ण है । इस कार्य में उनकी सहायता करें। लोगों की आलोचना करने या उनकी प्रताड़ना करने तथा अन्य चीजों में अत्यन्त सफल हैं। आपमें से कुछ लोग राजनीति, व्यापार के स्थान पर आपका कर्त्तेव्य ये है कि आप परन्तु जब तक आप अन्य लोगों को आत्म- उन्हें उच्च स्तर पर लाएं ताकि वे अपना साक्षात्कार नहीं देते, उन्हें अपने जैसा सम्मान करें अपने आत्म साक्षात्कार का कुशल नहीं बनाते, तब तक आप संतुष्ट सम्मान करें। ऐसा करना बहुत आवश्यक है नहीं होते। क्योंकि आरम्भिक दिनों में मैं बहुत से ऐसे सहजयोगियों से मिली और पाया कि वे सहायता होते देख मैं बहुत प्रसन्न हू। मुझे अपने साथियों तथा अन्य चीजों की कभी आशा न थी कि अपने जीवन में मैं ये आलोचना में ही लगे हुए थे । परन्तु सब देख सकूंगी। परन्तु ये कार्यान्वित हो आत्मसाक्षात्कार पा लेने के पश्चात् ये गया है, बहुत अच्छी तरह से कार्यान्वित हो उनका कर्त्तव्य बन जाता है कि मुक्ति प्राप्ति गया है। वास्तव में मैं हैरान हूं कि किस सहजयोग द्वारा इतने सारे लोगों की 1 मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 40 प्रकार चीजें कार्यान्वित हो गयी हैं। वास्तव मुक्ति का ध्वज उठाया है और तेजी से आगे में मैं हैरान हूँ कि किस प्रकार चीजें इतनी बढ़ रहे हैं। ऐसा करना बहुत सुगम है। तेजी से बढ़ीं और सहजयोग बहुत सारे देशों परन्तु आपकी अपनी क्या स्थिति है? क्या में, बहुत से लोगों के दिलों में उन्नत हुआ आप इस सब से ऊपर उठ पाए हैं? क्या और किस प्रकार उन्होंने सह ज को आप अन्य लोगों को भी उन्नत कर रहे हैं? अपनाया! लोग केवल अपने देश में ही नहीं देश के बाहर भी कार्य कर रहे हैं। हैं पूरे विश्व की समस्याओं को आप आखिरकार अब मैं हर जगह तो नहीं जा समझने लगते हैं तथा कुण्डलिनी की सकती। परन्तु इसके बावजूद भी सहजयोग जागृति द्वारा इनसे मुक्ति पा सकते हैं। मैं फैल रहा है। मेरे लिए ये बहुत बड़ी बात है- आपको बताती हूं कि यह कुण्डलिनी इतनी अत्यन्त संतोष प्रदायक। जब मुझे पता लगता है कि सहजयोग फलां देश में पहुँच बना देती है। कहावतों आदि में भिन्न प्रकार गया, दूसरे देश में पहुँच गया तो मेरी से इसका वर्णन किया गया है परन्तु हम पूरे विश्व को परिवर्तित कर सकते 1 महान चीज है कि यह मानव को सर्वश्रेष्ठ प्रसन्नता की आप कल्पना नहीं कर सकते। सहजयोगी के पास महान शक्ति होती है व्यवहारिक रूप से मुझे बताया गया है कि और ये महान शक्त ये है कि वो अन्य लोगों 43 देशों में सहजयोग जोर-शोर से जम को सहजयोगी बना सकता है । वे अन्य गया है और बहुत से अन्य देशों में छोटे लोगों को आत्मसाक्षात्कार दें। उन्हें चाहिए स्तर पर चल रहा है परन्तु ये सब सुनने कि अपनी शक्तियों का उपयोग करें और पूरे की भी मैंने कभी आशा न की थी कि यह विश्व को परिवर्तित करने का प्रयत्न करें ये नी ते जी से बढ़े गा ! इसका श्रेय मेरी इच्छा है । मैं नहीं जानती कि अपने इत सहजयोगियों को जाता है जिन्हों ने ये जीवन काल में मेरी इच्छा पूर्ण होगी या नहीं, परन्तु आप सब लोगों को भी इसी प्रकार चमत्कार कर दिखाया है। भारतीय और विदेशी लोगों की मैं आभारी निर्णय लेना चाहिए और मुझे विश्वास है कि हूँ कि उन्होंने बिना किसी की आलोचना यह सब कार्यान्वित हो जाएगा। किए, बिना किसी का अपमान किए. मानव परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। পঁ जन्मदिवस पूजा 21.3.03, निर्मल धाम, दिल्ली परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन सारे सहज योगियों को हमारे ओर से मेरे छोटे से कार्य की सराहना कर रहे हैं । पूरे अनन्त आशीर्वाद इतने बड़े तादाद में आप विश्व में सहजयोग फैल गया है और अभी भी लोग आज यहां पर हमारा जन्मदिवस मनाने आग की तरह से फैल रहा है। इससे पता के लिए पधारे। मैं किस तरह से आपको चलता है कि यह विश्व की आवश्यकता थी। धन्यवाद दें? मेरी तो समझ में नहीं आता है! लोगों को इसकी जरूरत थी। यही कारण बाहर से भी इतने लोग आये हैं और अपने कि इतने उत्साह पूर्वक लोगों ने इसे अपनाया भी देश के इतने यहाँ सम्मिलित हुए। ये है। भारत जैसे देश की बात तो मुझे समझ में देखकर के हृदय भर आता है। न जाने हमने आती है जहां आत्म- साक्षात्कार की बात कही ऐसा कौन सा अद्भुत कार्य किया है जो गई परन्तु जिन देशों में उच्च आध्यात्मिक आप लोग हमारा जन्म दिन मनाने के लिए चेतना का ज्ञान नहीं है उन देशों में भी आप यहाँ एकत्रित हुए हैं आप लोगों का हृदय लोग महान आशीर्वाद मानकर सहजयोग को भी बहुत विशाल है कि आपने आज के दिन समझें, सराहना करें और उसका आनन्द लें, ये 1 इतने दूरस्थ स्थित जगह पर आकर के हमें बात मेरी समझ में नहीं आती! मैं सोचती हूँ कि सम्मानित किया हमारे पास तो शब्द ही ये विशेष समय है जिसमें आप प्रेम एवं प्रकाश नहीं हैं कि आप लोगों से बताया जाए कि के जाल में फंस गए। स्वयं मुझे भी विश्वास इससे हम कितने आनन्द से पुलकित हो नहीं था कि जिस प्रेम का आनन्द अपने अन्तस में लिया जा सकता है उसे आप समझेंगे। गए! अंग्रेजी से अनुवादित : आध्यात्मिक सूझ-बूझ क्या है? मैं नहीं जानती मैं उन्हें ये बता रही थी कि जिस प्रकार थी कि किस प्रकार आप अपनी आत्मा को से आप लोग मेरा जन्मदिवस मना रहे हैं समझेंगे और इसका आनन्द लेंगे! इसका अर्थ उससे मुझे अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है जो ये हुआ कि आप सबमें इस महान प्रेम तथा आनन्द प्रवाहित हो रहा अभिव्यक्ति करने की विधि मैं नहीं जानती। विषय में कोई सन्देह नहीं है। किस प्रकार यह वास्तव में मैं नहीं जानती कि मैंने आप इतनी सुन्दरता पूर्वक कार्यान्वित हुआ? ये लोगों के लिए क्या किया है कि आप इतने अत्यन्त आश्चर्य की बात है? जिस प्रकार से उत्साह एवं प्रेम से इस कार्य के लिए आगे आपको आध्यात्मिक शक्तियां प्राप्त हुई हैं और आए हैं। अपने विशाल हृदय के कारण ही आप जिस प्रकार आप इनका उपयोग कर रहे हैं ये है उसकी आध्यात्मिक जागृति की योग्यता है। इसके मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 42 वास्तव में मानवीय समझ से परे की बात है। जितने भी ले सकें उन्हें जागृति देने का यही कारण है कि लोगों को विश्वास नहीं होता प्रयत्न करें वो सब भी मानव हैं जिन्होंने कि सहजयोग जैसी भी कोई चीज है तथा इस समय जन्म लिया है। अतः वो भी इसके मानव में अन्तर्जात एक शाश्वत शक्ति है जिसे अधिकारी हैं। आप उनसे मिलने का, जागृत किया जा सकता है। यह मानव की बातचीत करने का और आत्मसाक्षात्कार देने सोच से परे की बात है कि वह अपने अन्दर का प्रयत्न करें ये ज्यादा कठिन कार्य नहीं इस प्रकार की आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर है। आप सभी इस कार्य को कर सकते हैं। सकता है। न जाने आपमें से भी कितने लोग प्रत्येक सहजयोगी यदि दस पन्द्रह लोगों को इस बात को महसूस करते होंगे कि आपने जो भी आत्म-साक्षात्कार दे तो पूरा विश्व प्राप्त किया है वह महान उपलब्धि है मानव परिवर्तित हो जाएगा यही हमारी अभिलाषा विकास, मानव उत्थान और सभी प्रकार की है कि विश्व की सूझ बूझ को नई शैली में उन्नति जो हमने की है यह उन सबकी परिवर्तित कर दें, कि मानव रूप में हमें पराकाष्ठा है। निश्चित रूप से यह विश्व को शान्ति पूर्वक रहना है। बिना रंग और राष्ट्र तथा मानव की सूझ-बूझ को परिवर्तित कर के भेदभाव के हमें मानव की तरह से देगा। मिलकर रहना है मानव और पशु में केवल आज जबकि इराक का युद्ध जोरों पर यही अन्तर है। जब तक हम आध्यात्मिक चल रहा है । मैं आपसे बात कर रही हूँ। मैं नहीं हैं तब तक तो ठीक है परन्तु आप यदि नहीं जानती कि क्या कहा जाए. किस प्रकार लोगों को आध्यात्मिक बना सकें तो मुझे पूरा ये कार्यान्वित होगा परन्तु आप सबके विश्वास है सभी कुछ परिवर्तित हो जाएगा । शान्ति प्रयत्नों से इसका समाधान हो जाएगा जैसा हमने देखा है कि सहजयोग में अब और सर्वत्र शान्ति स्थापित हो जाएगी । इस सहजयोगियों बात का मुझे विश्वास है। हमें युद्ध नहीं आवश्यकता नहीं है। परस्पर वे अत्यन्त ही चाहिए, हमें तो मानव का हृदय परिवर्तित शान्त एवं भद्र हैं। को लड़ने झगड़ने की करना है अन्यथा उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता। आप सबके सम्मुख ये बहुत सहजयोग पूरे विश्व में फैले और विश्व का बड़ी चुनौती है। सबको आत्मसाक्षात्कार देने हर मानव आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करे। के इरादे को पूर्ण करने के लिए आपको आपको वचन देना होगा कि पथ-भ्रष्ट कठोर परिश्रम करना होगा केवल भाषण मानव को परिवर्तित करने के लिए आप सभी देकर या लोगों को भयभीत करके आप उन्हें कुछ करने का प्रयत्न करेंगे मुझे विश्वास है रो क नहीं सकते । आवश्यक है । मैं नहीं जानती कि कितने तो सभी लोग सहजयोगियों के रूप में लोग इसे लेने का प्रयत्न करेंगे, परन्तु शान्ति मय जीवन के मूल्य को समझेंगे । अतः आज हमें प्रार्थना करनी है कि आन्तरिक जागृति कि एक बार जब ये कार्यान्वित होने लगेगा मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 हमें गहन कार्य करना होगा क्योंकि मानव को इसकी आवश्यकता है। आज इसकी ता अत्यन्त आवश्यकता है। उचित समय पर अब हम सहयजोग करने के लिए, जहां तक सम्भव हो और जहां पर भी आवश्यकता हो सर्वत्र इसे फैलाने के लिए तैयार हैं । निःसन्देह ये कार्यान्वित होगा और वैसे भी जरूरत हो या ने हो, जब मानव में उत्थान की इच्छा होगी, मानवीय असफलताओं से ऊपर उठने की इच्छा होगी तो ये कार्य होगा। रा मैं आपको हृदय से आशीर्वाद देती हूँ, अनन्त आशीर्वाद देती हूँ कि सहजयोग का प्रचार करने एवं आत्मसाक्षात्कार देने के अपने कार्य को आप करते रहें । आपको शक्तियां प्राप्त हैं, इस बात को आप जानते हैं। केवल इन शक्तियों का उपयोग करें और लोगों को आत्म साक्षात्कार दें। मेरे पार जन्मदिवस पर यह एक वचन आपको देना होगा। ा र। आप सबको धन्यवाद । सि मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 5 44 हिन्दी प्रवचन : सहज सरल बात जो है वो सहजयोग है आज मैंने अंग्रेजी में इन लोगों को बताया और इसके लिए सब लोग तैयार हैं। आप और आपको बताने की जरुरत नहीं क्योंकि इस देश में तो सब लोग जानते ही हैं कि जाएं, हर जगह सहजयोग के लिए उपयुक्त आध्यात्मिक जीवन कितना महत्वपूर्ण है और है। इसलिए मैं चाहती हूँ कि आप लोग और लोग चाहते हैं कि आध्यात्म में उत्थान हो। पूरी तरह से कोशिश करें और अगले साल बहुत लोग प्रयत्नशील हैं। कोई हिमालय में आज से भी दुगुने लोग यहाँ आ जाएं। जाते हैं तो कोई समुद्र के पास जा कर बैठते हैं। घंटों मेहनत करते हैं, उपवास उसके लिए मैं बहुत आप से धन्यवाद कहती करते हैं। ये सब करने की जरूरत नहीं है हूँ। लेकिन जैसे कि मैंने चाहा, आप लोग सहजयोग में आते ही वो पार हो सकते हैं एक-एक आदमी सौ-सौ लोगों को पार और उनको आशीर्वाद मिल सकता है। लोगों कराइए. बस इस से ज्यादा कुछ नहीं । को समझाओ कि सर के बल खड़े होने की कोशिश करिए। एक गर निष्ठा हो तो हमारा कोई जरूरत नहीं। आपकी झोली में ही वादा रहा कि आप बहुत ही सहज और सहजयोग आ सकता है। वों विश्वास भी सरल तरीके से सौ आदमियों को पार करा नहीं करेंगे, शुरु में, कि यह इतना सहज सकते हैं साल में । और सुगम है! पर जब वो देखेंगे कि एक के बाद एक, हजारों लोग इस देश में आशीर्वाद । ये कार्य हो सकता है, जिनको ये सहजयोग में आ गए हैं। और मैं चाहती हूं भाषा नहीं आती वो भी ये कार्य कर रहे हैं, कि इस देश में सहजयोग बहुत फैलना तो आप के लिए क्या मुश्किल है? आप के चाहिए। हमारे प्रश्न, इस देश में बहुत छोटे लिए तो सब पूष्ठ भूमि तै यार है। और ओछे हैं। उनके लिए सहजयोग में साधु-सन्तों ने महन्तों ने बहुत कार्य किया है एकबार पार हो जाना ही ज़रूरी है बाद में इस देश में। इतना तो किसी भी देश में नहीं कुछ करने की जरूरत नहीं। तो अगर यहां हुआ था। इसलिए सिर्फ सोचिए कि के लोग भी, हिन्दुस्तान के, प्रयत्न करें तो हिन्दुस्तानी होने के नांते आप कितना ज्यादा बहुत आसानी से वो सहजयोग करवा सकते उत्तरदायित्व रखते हैं और कितना ज्यादा हैं और लोगों को लिए आप सबको मेरा अनन्त आशीर्वाद है हृदय से अनन्त आशीर्वाद कि आप लोग कि आपसे, एक एक आदमी से, कम से कम सफलीभूत हो जाएं। इस निश्चय में आप सौ-सौ आदमी पार हो जाएं। ऐसी कोई सफलीभूत हो जाएं। ये मेरा आशीर्वाद हृदय लोक-संख्या बढ़ी नहीं. ऐसी कोई हमारी अवगढ़ स्थिति नहीं है बहुत सहज सरल इस आशीर्वाद को पूरी तरह से आत्मसात बात है और सहज सरल बात ये है कि करेंगे और लोगों को जैसे भी हो सके समझना चाहिए कि अपने देश में सबसे जागृति पर जागृति देंगे। कहीं भी जाएं, कोई देहात में जाएं, शहर में जो आपने मेरा आदर सत्कार किया सबको अनन्त आशीर्वाद अ नन्त पार करवा सकते हैं। इस आप इसको कर सकते हैं? आप सबको मेरा LEGO से है हार्दिक है और आशा है कि आप संदेश मकर संक्रान्ति पूजा मुम्बई, 14.1.03 14 जनवरी, 2003 को हम (लगभग बीस इसकी तिथि कभी परिवर्तित नहीं होती। हर सहजयोगी) श्री माताजी की बड़ी बेटी के घर वर्ष यह चौदह जनवरी को ही मनाया जाता पर मकर संक्रान्ति पूजा के लिए एकत्र हुए, है सब्जियाँ उगाने के लिए किसानों को हमने घर की बैठक को सजाना शुरु किया वर्षा-सृष्टि करने वाले सूर्य देव पर निर्भर और दो घण्टों के पश्चात् कोई भी उसे करना पड़ता है। अतः सूर्य की पूजा करते पहंचान न सकता था। हमारे पास फूल, हुए उनसे शीतलता की प्रार्थना करते रहना फल और सब्जियां थी। (क्योंकि इसे सर्वोत्तम है । शाकम्बरी देवी पूजा भी कहते हैं) तथा हमने बाहर से एक खाना बनाने वाले का भी करने के लिए कहा और पूछा कि क्या यहाँ इसके पश्चात् श्रीमाताजी ने हमें आरती हरमोनियम उपलब्ध है (हमारे लिए अत्यन्त प्रबन्ध किया था। सायं 7.45 बजे श्रीमाताजी पधारीं। वे अटपटी स्थिति) बाद में श्रीमाताजी ने कहा वास्तव में देवी की तरह से स्वस्थ एवं कि हममें से किसी का कोई प्रश्न तो नहीं मनमोहक लग रहीं थी। उन्होंने सूर्य मार्ग के है किसी का कोई प्रश्न न था । अत्यन्त विषय में बताया तथा ये भी कि किस प्रकार सुन्दर छोटी सी पूजा हुई और प्रसाद के हम सूर्य की पूजा करें और किस प्रकार से पश्चात श्रीमाताजी ने हमें रात्रि भोज के लिए ग्रीष्म ऋतु में सूर्य हमारी रक्षा करता है। कहा जब तक हम सब लोगों ने भोजन कृषि-प्रधान देश होने के कारण भारत सूर्य नहीं कर लिया श्रीमाताजी वहीं प्रतीक्षा करती पर अत्यन्त निर्भर है। सूर्य मार्ग में बाधा होने रहीं। तत्पश्चात् श्रीमाताजी के चहूँ ओर के कारण किस प्रकार से हम लोग आक्रामक बैठकर 15-20 मिनट तक महाराष्ट्र सरकार, हो उठते हैं। संतुलित रहने का प्रयत्न करें स्थानीय मामलों पर बांतचीत करते रहे । और सूर्य देव से प्रार्थना करें कि वो आपको (क्योंकि आज ही महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री शान्त रहने में आपकी सहायता करें । परिवर्तन हुआ था) घर को साफ सुथरा श्रीमाताजी ने ये भी बताया कि मकर करके रात साढ़े दस बजे संक्रान्ति पूजा का संक्रान्ति का दिन सूर्य पर आधारित है । आनन्द लेकर हम वहां से लौटे। । प्रेमपूर्वक एस्टोनिया से एस्टोनिया बाल्टिक सागर ( ) के बंदरगाह पर स्थित है । यह अत्यन्त कोहटला (Kohta Jarve) जार्वे में सहजयोग सुन्दर छोटा सा देश है। रूस, लातीविया बढ़ने लगा। अब सहजयोग छः नगरों में और फिनलैण्ड हमारे पड़ोसी देश हैं। हमारा फैल गया है - पारनू नाव्वा कोहटला, जावे इतिहास जर्मनी, डेनमार्क, स्वीडन और रूस जोहवी तथा टेलिन। और वर्ष 1993 में पारनू (Parnu) Baltic Sea से जुड़ा हुआ हैं। इन सभी देशों में एस्टोनिया के वास्तुशिल्प. कला तथा लोगों चुनाव हुआ। चुनावों से पहले सभी की आत्मा पर भी कुछ चिन्ह छोड़े हैं। अन्य लोगों से सम्बन्धों में एस्टोनिया के हवन किया और श्रीमाताजी से प्रार्थना की लोग खुले हृदय के नहीं हैं। वे किसी को भी कि हमें एक धार्मिक राष्ट्रपति प्रदान करें। अपने दिल दिमाग में स्थान नहीं देते। अपने चुनावों के दो दौरों में किसी भी उम्मीदवार ही फार्म पर अपने परिवार के साथ वे अकेले को बहुमत न प्राप्त हुआ। विशेषज्ञ कहने रहना पसन्द करते हैं। एस्टोनिया के लोगों लगे एस्टोनिया को अगले पांच वर्ष बिना की ये विशेष तस्वीर है। एस्टोनिया की भाषा राष्ट्रपति के रहना पड़ेगा। पर आखिरकार संगीत की तरह से अत्यन्त मधुर है। अरनोल्ड रंटल (Arnold Runtel) को चुना एस्टोनिया का संगीत हमारी प्रकृति की तरह गया । से है -सागर और वायु का मिश्रण, यद्यपि इसका अर्थ है शूरवीर (Knight) । उनके चुने एस्टोनिया के भजन ऐसे नहीं है। एस्टोनिया जाने की कोई संभावना न थी। किसी को की जनसंख्या 13 लाख है जिनमें से 70% भी आशा न थी कि वे राष्ट्रपति बन जाएंगे। गैर इसाई लोग हैं। अधिकतर लोग राजधानी परन्तु सभी उम्मीदवारों में केवल बही धार्मिक टेलिन (Talinn) में रहते हैं। परन्तु सहजयोगीं व्यक्ति थे वक्त बताएगा कि कितना सही अगस्त 2001 में हमारे यहां राष्ट्रपति का सहजयोगियों ने मिलकर एस्टोनिया में एक उनके नाम का अनुवाद करें तो वहां नहीं रहते। नव्वे के दशक के आरम्भ में व्यक्ति चुना गया। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी अपने पति सर सी. पी. के साथ फिनलैण्ड से रूस इसके बहुत से उदाहरण हैं। हम तो इस कार्य जाते हुए टेलिन मार्ग से गई वर्ष 1992 में का आनन्द ही लेते रहते हैं। नवंबर में हमने फिनलैण्ड और एस्टोनिया के लोगों ने टेलिन, जोबी, नाव्वा पारनू, कुण्डा (Kunda) मिलकर के टेलिन में एक जन कार्यक्रम और सिंधि में जन कार्यक्रम किए किया परन्तु इससे भी सहजयोग भली-भांति परम चैतन्य ने यहां किस प्रकार कार्य किया प्रेम पूर्वक एस्टोनिया की सहजयोग सामूहिकता की ओर से। भिन्न नगरों में कुछ आरम्भ न हो पाया। गिने-चुने आत्मसाक्षात्कारी लोग थे। E MP ---------------------- 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-0.txt SIRMALA मई - जून, 2003 खंड : XV अंक : 5 व 6 चैतन्य लहरी - PURE ा ाे ०र श ट oiHARMA VISHW UNIVERSAY RELIGION 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-2.txt इस अंक में 1 गणेश पूजा - 18 सितंबर, 2002 (कबैला) 13 क्रिसमस पूजा - 25 दिसंबर, 2002 (गणपति पुले) 21 नववर्ष पूजा - 31 दिसंबर, 2002 (वैतरणा) 25 किंग्स्टन में पूजा - 11 जून, 1980 89 जन्म दिवस समारोह - 21 मार्च, 2003 (दिल्ली) 45 मकर संक्रांति संदेश 48 प्रेमपूर्वक-एस्टोनिया से ८ म 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-3.txt री चै त न य ल ह प्रकाशक वी जे. नलगीरकर 162 - ए. मुनीरका विहार, नई दिल्ली 110067 मुद्रक अमरनाथ प्रैस प्रा. लिमिटेड डब्ल्यू एच एस 2/47 कीर्ति नगर औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली-15 फोन : 25921159, 55458062 सदस्यता के लिए कृपया इस पते पर लिखें :- श्री ओ.पी. चान्दना एन - 463 (G-11) ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली - 110034 फोन : 9810414910 सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पते पर भेजें : चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी-17, कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली 110016 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-4.txt श्री गणेश पूजा कबै ला 18 सितंबर, 2002 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज हम यहाँ श्री गणेश की पूजा करने और न ही उनका अनिष्ट कर सकती है। के लिए एकत्र हुए हैं। श्री गणेश पावित्र्य के हम पर बहुत बड़ा आर्शीवाद है कि हमारे देवता हैं। बालक रूप में जब हम जन्म लेते अन्दर पावित्र्य का सृजन किया गया है। हैं तो श्री गणेश कार्यरत होते हैं । हम किसी भी अन्य सृजन से पहले पावित्र्य की अत्यन्त अबोध होते हैं। परन्तु अबोधिता स्थापना की गई अबोध बन जाना हमारा इतना शक्तिशाली गुण है कि बच्चे हर हाल बहुत बड़ा गुण है। में जिन्दा रहते हैं, और हम उन्हें प्रेम करते हैं क्योंकि वे अबोध हैं। इसी अबोधिता के बाल्यकाल में यह आपको आनन्द प्रदान आनन्द श्री गणेश का महानतम गुण है। करते हैं। बच्चे यद्यपि बोलते नहीं है फिर भी कारण हम उनका आनन्द लेते हैं। ज्यों-ज्यों आयु बढ़ती है हमारा सहस्रार बन्द होता बेशुमार आनन्द प्रदान करते हैं। आनन्द चला जाता है और सभी प्रकार के अटपटे प्रदान करने का यह गुण श्री गणेश से आता विचार इस में प्रवेश कर जाते हैं और है। निकलते ही नहीं, वहाँ बने ही रहते हैं निकलने का नाम ही नहीं लेते। हमारे चरित्र है कि, लोग आनन्दित नहीं होते, अब भी वे पर तथा हमारे कौमार्य-विवेक पर भी गम्भीर होते हैं । वो नहीं जानते कि किस सहजयोग में आने के बाद भी मैंने देखा अबोधिता का बहुत बड़ा प्रभाव होता है। प्रकार हँसना है, किस प्रकार हर चीज का व्यक्ति यदि अबोध नहीं है तो उसे पवित्रता आनन्द लेना है। यह इस बात को दर्शाता है का ज्ञान नहीं होता कि अपवित्र होना कैसा कि उनमें अबोधिता का अभाव है। अतः यह है, चालाक होना कैसा है । अबोध व्यक्ति को बात समझ लेनी अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि यदि कोई हानि पहुँचाने का प्रयत्न करे तो यदि आप सहजयोगी हैं तो आपको श्री गणेश उसकी रक्षा करते हैं, उसकी आनन्दित रहना चाहिए तथा बच्चों की तरह देखभाल करते हैं। विश्व के बहुत से अन्य लोगों को भी आनन्द प्रदान करना अबोध लोग, यह्युपि ऐसे लोगों की संख्या चाहिए - बच्चे कितने मधुर होते हैं! चाहे बहुत कम है, कामुकता, लोभ तथा अन्य बहुत सी सांसारिक समस्याओं से निर्लिप्त कितनां आनन्द प्रदान करते हैं! आपमें यदि हो जाते हैं क्योंकि वे इतने पावन होते हैं बच्चों की अबोधिता का आनन्द लेने की कि कोई भी चीज न उन्हें बिगाड़ सकती है योग्यता नहीं है तो कोई आपकी सहायता नवजात शिशु ही क्यों न हों फिर भी वे 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-5.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 मई-जून, 2003 2. नहीं कर सकता। श्रीगणेश भी आपकी श्री गणेश का पूर्ण अभाव है। व्यक्ति में हर सहायता नहीं कर सकते क्योंकि मानव के चीज का आनन्द लेने की योग्यता होनी अन्दर एक अन्तर्जात गुण है और आपमें यदि चाहिए। अपने तथा लोगों के बच्चों का वह गुण नहीं है तो अन्य गुणों का कोई लाभ आनन्द लेने की योग्यता होनी चाहिए। यही नहीं। कुछ लोगों को भोजन बहुत अच्छा चीज दर्शाती है कि उसे श्री गणेश का लगता है, कुछ रंग पसन्द करते हैं, कुछ आशीर्वाद प्राप्त है। और बहुत सी चीजें पसन्द करते हैं। आपमें यदि श्री गणेश (अबोधिता) नहीं हैं तो आप आपकी कुण्डलिनी की देखभाल करते हैं. किसी भी चीज़ का आनन्द नहीं ले सकते। उसकी देखभाल करते हैं तथा सभी चक्रों श्रीगणेश के आशीर्वाद से ही हम वास्तव में पर उन्हीं को आशीर्वाद देना होता है। हर चीज़ का पूर्ण आनन्द ले सकते हैं। श इसके बिना तो हम चीजों को आंकने लगते सहजयोगी के रूप में आप बिल्कु ल हैं, आलोचना करने लगते है। हर चीज़ के व्य्थ हैं क्योंकि तब आप हर समय विषय में लोग बहुत से प्रश्न खड़े कर देते केवल अन्य लोगों की बुराइयां दे खते हैं हैं। किसी चीज़ को यदि आप देखते हैं और और हर समय उलझे रहते हैं । मैं कहना बह यदि आपको आनन्द प्रदान करती है तो चाहूंगी कि इस स्थिति में आप ऐसी समस्या आशा की जाती है कि आप उसका कारण में फंस जाते हैं, जिसके कारण किसी चीज बताएं। इस विश्व में बहुत से आलोचक हैं का आनन्द नहीं ले पाते। स्वभाव से ही आप जो एक दूसरे की आलोचना ही करते रहते सोचते हैं कि आप बहुत गम्भीर, परिपक्व हैं। अब आलोचक आलोचकों की ही और अनंत हैं। परन्तु आप अबोध नहीं हैं। आलोचना करते हैं । यह बहुत बड़ी समस्या ऐसा व्यक्ति हमेशा सभी के लिए सिरदर्द बन है। उनका यही कार्य है क्योंकि उनमें गणेश जाता है। परिवार में यदि एक भी व्यक्ति तत्व का अभाव है। वे अन्य लोगों की ही ऐसा हो तो लोग उससे छुटकारा पाना आलोचना करते रहते हैं, अपनी कभी भी चाहते हैं । नहीं करते। उन्हें अपनी कभी कोई सीमा नज़र नहीं आती और इस प्रकार से ऐसे चाहिए और ये गुण है दूसरों को आनन्द समाज की सृष्टि करते हैं, जो बहुत ही प्रदान करना। आप कितना आनन्द अन्य हानिकारक, भयानक होता है। ऐसे लोग लोगों को दे सकते हैं ? ऐसा व्यक्ति अपने शरीर पर फोड़े-सम या शरीर के अन्दर लिए कुछ नहीं चाहता, कभी भी नहीं कहता मवाद-सम होते हैं। आप यदि किसी चीज कि मुझे ये मिलना चाहिए. मुझे वो मिलना की सराहना नहीं कर सकते, किसी चीज चाहिए, मुझे लीडर होना चाहिए ये होना का आनन्द नहीं ले सकते तो आपके अन्दर चाहिए वो होना चाहिए। वो तो बस दूसरों श्री गणेश का सौन्दर्य यह है कि वे श्रीगणे श के आशी्वाद के बिना अतः आपमें श्रीगणेश का गुण होना 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-6.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 5 मई-जून, 2003 को आनन्द देने में ही मजा लेता है। दूसरों करने लगते हैं तो कितनी समस्याएं खड़ी हो को आनन्द देने में-विनोदशील एव्नम् सकती हैं? उदाहरण के रूप में एक व्यक्ति करुणामय बनकर दूसरों को आनन्द देने में। एक स्थान पर जन्मा है, उस स्थान के वो कभी दूसरों का अपमान करने या दिल कारण वह अपने को सर्वोत्तम समझता है. दुखाने का प्रयत्न नहीं करता। गलती से भी अपने देश को, अपने लोगों को ही सर्वोत्तम यदि वो कभी दूसरों का दिल दुखा दे तो समझता है और सोचता है कि उनमे कोई उसे इसका बहुत पछतावा होता है और सौ कमी नहीं है। इसके विपरीत व्यक्ति यदि बार दूसरों से क्षमा मांगता है । ऐसा सच्चा सहजयोगी है, जिसमें श्रीगणेश जागृत प्रसन्नचित्त व्यक्ति ही सच्चा सहजयोगी हैं तो वह व्यक्ति सभी कुछ देखता है, इसके होता है। हमें भी अपने चहुं ओर ऐसे ही पीछे छुपे हुए विनोद का आनन्द लेता है। व्यक्ति चाहिएं-जिनमें किसी के लिए घृणा सभी लोगों की कमियों को देखता है कि वो और ईष्या न हो, जो दूसरों की बुराइयां न किस चीज के पीछे पागल हैं। किस प्रकार खोजें, सभी की अच्छाइयां देखें, सभी के वो आचरण करते हैं तथा उनके व्यवहार के गुण देखें। ये न देखें कि आपकी त्वचा का पीछे छुपे मजाक को समझता है और उसका रंग कैसा है, आप गोरे हैं, काले हैं, लम्बे हैं, आनन्द लेता है। उनकी मूर्खता यह होती है ठिगने हैं- इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह संच्चाई से बचते हैं और सच्चाई को क्योंकि यह तो पूर्ण-पूर्ण आनन्द है और इस तभी देखा जा सकता है जब आप सच्चाई पूर्ण आनन्द की अवस्था में आप किसी की के साम्राज्य में हों, अन्यथा हर समय आपको आलोचना नहीं करते और न ही किसी में कमियां ही नजर आती हैं । कोई न कोई बुराइयां खोजते हैं। समस्या यह है कि इस आधुनिक युग में नजर आती है। परन्तु हर चीज के पीछे छुपे लोग अत्यन्त-अत्यन्त आधुनिक हो जाते हैं विनोद को यदि आप देख सकते हैं, केवल और अन्य लोगों की आलोचना करने में भी तभी आप ठीक हैं। उदाहरण के रूप में मैं वह बहुत आगे हैं। यही पारस्परिक सम्बन्ध कहूँगी कि मुझे ऐसे अनुभव हुए जब लोगों उन्होंने बनाए हैं कि वे एक दूसरे की ने आकर मुझे कहा कि फलां व्यक्ति ऐसा है आलोचना ही करते रहते हैं । एक अन्य दुर्गुण भी उनमें है कि वे अपने पूछती हूँ कि 'क्या आप वास्तव में ऐसे हैं? देश के लोगों से ही मेल-जोल करते हैं, उत्तर मिलता है कि 'नहीं मैं ऐसा नहीं हूँ? अपने परिवार तक ही सीमित रहते हैं । मैंने मैं कहती हूँ तो क्यों अन्य लोगों को आपमें देखा है कि इससे समस्याएं भी खड़ी होती यह कमी नजर आती है? हो सकता है सभी हैं, जिन धर्मों को हम मानते हैं उन्हीं से जुड़े लोग गलती कर रहे हों या आप गलत हों। रहते हैं। जब आप एक और दूसरे में अन्तर तब वो कहता है कि हो सकता है मुझमें ही हिलाने वाली और परेशान करने वाली चीज फंला व्यक्ति वैसा है, तो मैं सीधे उससे 3. পাঁ 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-7.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 5 मई-जून. 2003 कुछ कमी हो। इस प्रकार से आप व्यक्ति सकता है। तथा उसकी खुबियों का भी को परिवर्तित कर सकते हैं तथा उनको भी आनन्द लिया जा सकता है, तो क्यों आप जो ये सोचते हैं कि वही ठीक हैं. बाकी का बिना बात के लोगों की आवाजें बंद करें, सारा संसार बुरा है तथा उनसे घृणा करने क्यों उनकी आलोचना करें। का उन्हें अधिकार है और वो विपरीत दिशा में भी चल सकते हैं। ऐसे में होता क्या है बनाई जाए, उदाहरण के रूप में कैथोलिक्स कि व्यक्ति आनन्द का सार खो देता है। अब ऐसे लोगों से इतनी बड़ी संस्था कैसे लोग प्रोटैस्टेन्टस का विरोध करेंगे और आनन्द का तत्व या सार तो सभी चीजों प्रोटैस्टेन्ट्स कैथोलिक लोगों का, क्योंकि वो आनन्द का सोत खोजने में हैं। मान लो तो एक दूसरे से घृणा करते हैं। इसका क्या आप किसी अटपटी चीज को देखते हैं तो लाभ है? एक दूसरे को धूणा करने का क्या इसमें भी आपको विनोद का आभास होना लाभ है? केवल इस कारण की कोई चाहिए। यदि यह सुन्दर है तो इसको प्रोटैस्टैन्टस है और कोई कैथोलिक? स्वयं समझने में आपको दूसरे प्रकार की संवेदना देखें कि आपमें क्या कमी है. आप इस प्रकार होनी चाहिए। कुछ लोग अपने और दूसरों से क्यों सोचते हैं, क्यों आप चीजों को के जीवन में अर्थहीन चीज़ों का ही राग देखकर कहते हैं कि फलां व्यक्ति में क्या अलापते रहते हैं । यह बात मेरी समझ में कमी है, और फिर लड़ने के लिए झूंड बना नहीं आती। मेरे पिताजी में यह सब करने कर परस्पर लड़ते हैं। इस प्रकार के विचारों में की गहन क्षमता थी। एक बार जब में घर से कि दूसरा व्यक्ति ठीक नहीं है और तुम गई तो मैंने कहा कि मेरा भाई उस संगीतज्ञ स्वयं पूर्णतः ठीक हो, बड़े-बड़े युद्ध भी हो की प्रशंसा कर रहा था। आपका उसके सकते हैं। राष्ट्रों के स्तर पर भी मैंने यह विषय में क्या विचार है? उन्होंने कहा बात देखी है! यहां तक की सहजयोग में मैंने निःसन्देह वह संगीतज्ञ है । उसमें साहस देखा है कि मान लो कोई व्यक्त्ति भारत से बहुत है। मैंने कहा, 'क्यों? क्योंकि वो जो या किसी अन्य देश से आ रहा है तो उससे चाहे गाता चला जाता है, उसे कुछ बु्रा नहीं पूर्व अपना ही उम्मीदवार खड़ा कर दिया लगता। चाहे सभी लोग हंसते रहें, उकता जाए। ये ऐसे लगाव हैं., जिनके विषय में जाएं, परन्तु उसे इसकी बिल्कुल चिन्ता नहीं लोग सचेत नहीं हैं। परन्तु ऐसी स्थिति में मैं होती। अपनी शैली में ही वो गाता चला अपनी माया फैलाती हूँ, और जब वे ऐसे जाता है। अतः लोगों की कमियों का कार्य करते हैं, जब वे किसी एक दल का, आनन्द लेने में भी सौन्दर्य है। मैं कहना एक ही प्रकार के लोगों का, एक ही धर्म के चाहूँ गी कि यह भी एक अत्यन्त सूक्ष्म लोगों का, पक्ष लेत्ते हैं, धर्म न कहकर हम संवेदना है जिसके द्वारा व्यक्ति के दोषों का कहें कि एक ही देश का पक्ष लेते हैं तो मेरी भी उन्हें विनोद मान कर आनन्द लिया जा माया कार्य करती है। अतः सहजयोग में भी 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-8.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 यह राष्ट्र-लगाव काफी है के आप फलां पक्षधर बन जाना एक आम बात है। आप देश से हैं और उसी का पक्ष लेते हैं । इस किसी देश से यदि जुड़े हुए हैं तो आपको बात को आप नहीं समझते कि व्यक्ति चाहे चाहिए कि आप उसको सुधारें । उस जिस भी देश में हो वह सहजयोगी है। विचारधारा को सुधारें जिसका वे अनुसरण ा हमारा समाज विश्व स्तरीय है। हमारी करते हैं । इन सारी चीजों पर उनकी दृष्टि पहचान किसी एक देश से नहीं होनी चाहिए। नहीं पड़ती क्योंकि वे इस प्रकार से उनसे हमारे लोगों की अन्तर्राष्ट्रीय पहचान होनी जुड़े हुए हैं कि उन्हें उनके दोष नज़र ही चाहिए। मुझे ऐसी चीजें देखने को मिली हैं नहीं आते। वो ये देखते हैं कि अन्य लोगों में और मुझे खेद होता है कि आपने सहजयोग के क्या दोष हैं। परन्तु मैंने देखा है कि सच्चे स्वभाव को नहीं समझा। विश्वस्तरीय है, पूर्णतः विश्वस्तरीय, किसी एक कि उनके देश में क्या दोष हैं और वहां पर देश या किसी व्यक्ति विशेष से इसे कुछ नहीं क्या हो रहा है, क्या कठिनाइयां है और वहां लेना-देना। यह इतनी विश्वस्तरीय चीज है के लोग कैसे हैं । ये कितनी आश्चर्यजनक कि यदि आप इसके सूक्ष्म पक्ष को देखें तो बात है! मैं हैरान थी कि किस प्रकार से जान जाएंगे कि यह कितना आनन्ददायी है। लोगों ने मुझे बताया कि कौन से लोग एक सर्वशक्तिमान परमात्मा ने केवल एक विश्व रूप नहीं हैं और अत्यन्त सूक्ष्म रूप से बनाया है। लोगों ने चाहे संयुक्त राष्ट्र संघ स े बनाया हो, उन्होंने चाहे ये सभी कुछ बना वे इस प्रकार से विरोधी हैं । उन्होंने बताया लिया हो फिर भी वे अपने ही देश से इतने जुडे हुए हैं कि वे अपने देश को ही नहीं सुधार विश्वबंधुत्व नहीं है। एक बार जब आप सकते। मान लो आपके अपने देश में कोई विश्वस्तरीय हो जाते हैं तो आपकी भिन्न दोष है तो उसे भी वे नहीं सुधार सकते, उनकी राज्यों संबंधी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं । दृष्टि में सभी कुछ ठीक है क्योंकि उनका जन्म ये बात उनके मस्तिष्क में नहीं आती कि हम उस देश विशेष में हुआ। किसी देश को यदि सहजयोगी हैं और हमें विश्वस्तरीय बनना वो अच्छा मानते हैं तो उस सीमा तक उसकी है। हम सहजयोगी हैं। हमें किसी देश विशेष प्रंशसा किए चले जाते हैं कि वे स्वयं भी नष्ट से लिप्त नहीं होना और यदि अब भी हम हो जाते हैं और उनकी धारणा भी। अतः किसी ऐसा करते हैं तो अभी तक हमारे विश्व देश-विशेष का पक्ष-धर होने के पीछे निहित, स्तरीय व्यक्तित्व में कुछ कमी है। मजाक को देखना ही सर्वोत्तम है। इसके विषय में एक बहुत अच्छा चुटकुला है। सहजयोगियों प्रदान करते हैं । उनका व्यक्तित्व सार्व - में मैं भी इसका आनन्द लेती हूँ। मैंने देखा है कि किसी देश विशेष का सहजयो ग सहजयोगी बहुत अच्छे हैं। वे मुझे बताते हैं सहजयोग-विरोधी हैं। मैं हैरान थी कि कैसे कि श्रीमाताजी किसी भी प्रकार से उनमें ये सर्वबन्धुत्व व्यक्तित्व हमें श्री गणेश भौमिक है. सभी देशों के लिए है चाहे वह इटली हो या इंग्लैड । उनके व्यक्तित्व में 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-9.txt भई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 श्रीगणेश के इसी गुण से लोग पावन हो अबोधिता है, पूर्ण अबोधिता। केवल इतना ही नहीं वे आनन्द प्रदायक हैं। आनन्ददायी जाते हैं क्योंकि पावनता अत्यन्त आनन्ददायी व्यक्ति को मान्यता मिलती है। ऐसा नहीं है चीज है अत्यन्त आनन्दायी। यह ऐसी चीज कि विश्व उन्हें मान्यता नहीं देता। वो नहीं है, जिसके विषय में आपको किसी को संभवतः न जानते हों कि वो सार्वभौमिक हैं। बताना पड़े या यह किसी पर लादनी पड़े या परन्तु सार्वभौमिक लोग विश्व स्तरीय किसी को नियन्त्रित करना पड़े। यह तो घटनाओं और आवश्यकताओं पर पुस्तकें आनन्द लेने की चीज है, अपनी आत्मा का लिखते हैं, अपने देश के लो गों की आनन्द और अन्य लोगों की पावनता का आलोचना कर सकते हैं, अपने समुदाय के आनन्द । श्रीगणेश का यह महान वरदान है, लोगों की आलोचना कर सकते हैं और इसी इतना महान वरदान कि आप अपनी पावनता तरह से चलते जाते हैं। परन्तु कई बार ऐसे का आनन्द लेते हैं। इस बात की चिन्ता नहीं लोग किसी अन्य समुदाय के दास भी हो करते कि दूसरा आदमी पावन है कि नहीं । सकते हैं और उसकी प्रशंसा करने का कोई यदि गलत कार्य कर रहा है या भ्रष्ट है प्रयत्न भी कर सकते हैं। अतः आपकों दास तो भी इसका प्रभाव आप पर नहीं पड़ता। नहीं होना है। किसी एक देश से लिप्त नहीं उससे आप स्वयं बिगडते नहीं। आपके पास और पावनता- होना है। तो अपनी पावनता है पूर्ण आपको आत्मरूप होना है और जिस क्षणों से भरा हुआ अपना जीवन। आजकल चीज का आनन्द आत्मा लेती है उसकी की आधुनिकशैली चरित्रहीन जीवन तथा अभिव्यक्ति करनी है। यह इस बात का पावनता के विषय में सभी प्रकार के गलत चिन्ह है कि आपके श्रीं गणेश विद्यमान हैं विचारों की ओर झुक गई है आज यदि और वही कार्यान्वित कर रहे हैं । अगुवाओं कोई व्यक्ति पावनता की बात करता है तो के लिए यह बात समझना बहुत आवश्यक है लोग सोचते हैं कि अवश्य ही वह पागल है। क्योंकि मैंने देखा है कि किस प्रकार से वे ऐसा कैसे हो सकता है? आजकल सभी अपने देश-वासियों से ही लिप्त होते हैं! कुछ हो रहा है। आप यदि देखें तो भिन्न कभी-कभी मुझे यह देखकर अत्यन्त खेद प्रकार के फैशन हैं कोई भी फैशन शुरू होता है। मुझे वास्तव में दुख होता है कि होता है तो फैलता ही चला जाता है। सभी किस प्रकार वे ऐसे हो सकते हैं! वो अब लोग उसी फैशन के बस्त्र पहनते चले किसी देश विशेष के नहीं है। अब तो वे जाएगें उनमें अपना कोई व्यक्तित्व है ही श्रीगणेश के देश के हैं जो प्रेम और आनन्द नहीं । कोई भी गलत कार्य चालू होता है तो का साम्राज्य है। व्यक्ति यदि प्रेम एवम् विशेष रूप से महिलाएं उधर को ही चल आनन्द प्रदान नहीं कर सकता तो निश्चित पड़ती हैं। महिलाओं ने तो अपने पावनता विवेक को बिल्कुल ही खो दिया है। जिस रूप से उसमें कुछ कमी है। ा 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-10.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 प्रकार से वे वस्त्र पहनती है उससे मुझे कई किया जा सकता है जब आप किसी चीज बार तो दुख पहुँचता है। ऐसी वेशभूषा को केवल उस समय पर देखें। हर समय पहनने का क्या लाभ है? क्यों नहीं आप अपनी दृष्टि को घुमाते न रहें । यह दृष्टि ठीक से वस्त्र पहन सकते? यह चीज दर्शाती दोष किसी भी प्रकार से आ सकता है है कि उनका अपना कोई चरित्र नहीं है। वो क्योंकि श्री गणेश हमारी गलतियों को भांप चाहे कहते रहें कि मैं ऐसा हूँ, मैं वैसा हूँ लेते हैं। उदाहरण के रूप में लालची लोग ये परन्तु वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं है देखना शुरु कर देते हैं कि किसने किस क्योंकि वो लोग तो अपने आसपास की प्रकार के वस्त्र पहने हुए हैं और उन्हें कैसे नकारात्मक शक्तियों के बहाव में आ जाते वस्त्र पहनने चाहिएं। लालची व्यक्ति यदि हैं। आप बच्चों को देखें। बच्चे ऐसे नहीं किसी का अच्छा घर देखता है तो सोचता है होते। उनमें अपने पावनताहीन जीवन से कि मेरे पास भी इतना ही अच्छा घर होना अन्य लोगों को प्रभावित करने की इच्छा चाहिए। परन्तु वे उस घर के सौन्दर्य को नहीं होती। किसी भी बच्चे में नहीं होती। नहीं देख पाते, उस घर के वास्तविक सार इसके विपरित बच्चे अत्यन्त चेतन होते हैं को नहीं देखते। वो तो सि्फ यही देखते और पावन व्यक्तित्व बनना चाहते हैं। 1 चले जाते हैं कि मेरे पास भी ऐसा ही घर गणेश तत्व का प्रभाव आँखों पर भी होना चाहिए। सौन्दर्य विवेक उनमे नहीं पड़ता है, ये बात में अवश्य कहना चाहूँगी। होता। उनमें तो केवल कब्जा करने की श्री गणेश आपकी आँखों के माध्यम से कार्य भावना होती है। ये भावना अत्यन्त बुरी होती करते हैं। किस प्रकार से आप किसी व्यक्ति है क्योंकि सौन्दर्य विवेक तो अत्यन्त गहन को देखते हैं, ये बात अत्यन्त महत्वपूर्ण है। मैंने देखा है कि कुछ लोग अपना दृष्टि- विकृत और आक्रामक। अतः व्यक्ति को नियंत्रण पूरी तरह से खो देते हैं और कभी चाहिए कि श्री गणेश के नजरिये से चीजों एक व्यक्ति को देखते है कभी दूसरे को, को देखे कि किस प्रकार से वह कार्य कभी तीसरे को बिना वजह के किसी न करेगा किस प्रकार से उनका उपयोग किसी को देखते चले जाना! इसका करेगा बच्चों से आप सीखें कि चीज़ों को अभिप्राय ये हुआ कि श्री गणेश का उन पर किस प्रकार देखना है और किस प्रकार कोई नियंत्रण नहीं है। इस प्रकार से उनकी कार्यान्वित करना है, ये देखकर आप हैरान आँखे भी खराब हो सकती हैं अर्थात् ऐसी होंगे कि बच्चे किस प्रकार सोचते हैं, कितने स्थिति में व्यक्ति किसी भी चीज़ विशेष पर विवेकशील हैं और कितनी विवेकपूर्ण बातें दृष्टि केन्द्रित नहीं कर पाता। तो किस करते हैं ! भाव है और कब्जा करने की भावना अत्यन्त मैं एक बच्चे से मिली। उसने मुझे प्रकार से वह उसकी गहनता में जा सकता कहा कि 'मैं चाँद को प्रेम करता हूँ मैंने है, ध्यान केन्द्रित तो केवल उसी स्थिति में कहा 'ठीक है, चाँद में क्या कमी है?' 'कुछ %23 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-11.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 वं 5 मई-जून, 2003 नहीं, परन्तु हर समय यह बादलों के पीछे ही करते हैं । निःसन्देह सब ऐसे नहीं हैं परन्तु छिपा रहता है। मैंने कहा, कि वह ऐसा क्यों अभी भी कुछ लोग इस जाल में फंसे हुए करता है? क्योंकि यह चलता बहुत अधिक हैं। ब्रह्माण्ड का सृजन करने से पूर्व श्री है। इसके कारण वह थक जाता है और उसे गणेश को स्थापित किया गया. आदिशक्ति आराम की आवश्यकता होती है। बादलों के माँ ने श्री गणेश का किया यदि श्री पीछे छिपकर वह आराम करता है। वह यदि गणेश जागृत हों तो समाज में रहना बहुत इतना अधिक न चले, शान्त रहे तो उसे ही सुगम होता है। वहां तो सर्वत्र मैत्री भाव छुपना न पड़े। कल्पना कीजिए कि इतना होगा क्योंकि ऐसे समाज में स्वामित्व भाव या छोटा सा बच्चा ये सभी कुछ देखता है! मेरा विकृत भावना नहीं होती। व्यक्तित की दृष्टि कहने का अभिप्राय ये है कि मैं हैरान हो यदि महिलाओं के लिए धन के लिए या गई. एक छोटा सा बच्चा किस प्रकार भौतिक पदार्थों के प्रति अपवित्र होगी तो जानता है कि ठीक क्या है और गलत क्या उसके अन्दर गणेश तत्व खराब हो जाएगा| है। किस प्रकार व्यवहार करना है, किस गणेश तत्व वाला व्यक्ति जानता है कि प्रकार चीज़ों को समझना है और कार्य करने आनन्द, हर चीज का आनन्द किस प्रकार का उचित तरीका क्या है! उन्हें कू छ लेना है। बो चीज मेरी है तो कोई बात नहीं, सिखाया नहीं गया, कोई बन्धन उन पर नहीं आपको तो उसके सौन्दर्य का आनन्द लेने लगाए गए कुछ नहीं, फिर भी वे जानते हैं का तरीका आना चाहिए। यही आनन्द है । सृजन कि किस प्रकार आचरण करना है। परमात्मा ये आनन्द भाव यदि व्यक्ति में हो तो उनकी हमेशा रक्षा करते हैं । मैं कई ऐसे वह बूढ़ा नहीं होता क्यों कि वह तो हर बच्चों को जानती हूँ जो बहुत ऊँचाई से गिर समय आनन्द में रहता हैं। बूढ़ा होने की गए परन्तु उन्हें कुछ नहीं हुआ। साँप और कौन सी बात है? परन्तु प्रायः ऐसा होता अन्य जहरीले जीव भी उन्हें नहीं काटतें कहते हैं कि शेर भी बच्चों को नहीं खाता। हुए, अत्यन्त स्वार्थी और कभी-कभी अत्यन्त ये सब क्या है? ये कौन सी शक्तिशाली चीज मूर्ख होते हैं। आत्मा रूप में रहते हुए आप है जिसके कारण बच्चे सुरक्षित हैं और सब कुछ करें। स्वः (Self) क्या हैं? यह उनका विकास होता है? इतने भयानक और आनन्द के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। निश्चित अपवित्र जीवों (मनुष्यों) के बीच में रहते हुए रूप से आनन्दमय व्यक्ति वही होता है जो भी बच्चे विकसित होते हैं। आज पुरुषों का आनन्द के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति महिलाओं के पीछे और महिलाओं का पुरुषों करता के पीछे दौड़ना आम बात है। । नहीं। आप तो अत्यन्त आलोचना से भरे है। ऐसा व्यक्ति अत्यन्त आनन्द प्रदायक और विनोदशील होता है। वह विश्वास नहीं होता कि स्वयं को किसी का अपमान नहीं करता और छोटी से सहजयोगी कहलाने वाले कुछ लोग भी ऐसा छोटी चीज़ में भी सौन्दर्य देखता है। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-12.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 5 परमात्मा की सृजित सभी चीज़ें अत्यन्त बहुत अधिक बातें न बताऐं। हर समय ये त कहकर कि 'ऐसा करो, ऐसा मत करो', भी सुन्दर हैं। सभी चीज़ों का स्वभाव अत्यन्त सुन्दर है। मुझे हैरानी होती है कि बहुत कम हमें बच्चों को नियंत्रित नहीं करना चाहिए। लोग कविता लिख पाते हैं क्योंकि वो तो प्रेम ऐसा करने पर बच्चे आपकी बात को अभिव्यक्ति आदि मूर्खतापूर्ण चीज़ों का वर्णन समझेंगे ही नहीं । बच्चे यदि पावन हैं, पावन करने में ही लगे रहते हैं जो व्यक्ति को समाज में यदि उनकी परवरिश होती है तो उदास करती हैं। उदासी आत्मसाक्षात्कारी उन्हें कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। व्यक्ति का चिन्ह नहीं है। आपमें भी यदि इसीलिए मैं हमेशा कहती हूँ कि अपने बच्चों उदासी की समस्या है तो एकदम से को हमारे (सहज) स्कूल भेजें क्योंकि बच्चों सावधान हो जाएं और देखें कि क्यों आपमें का पावन होना अत्यन्त आवश्यक है। हर चीज के प्रति इस प्रकार का अटपटा पावनता का मूल्य समझना बच्चों के लिए दृष्टिकोण विकसित हो गया है? क्यों नहीं बहुत आवश्यक है। पाश्चात्य देशों का आप हर चीज का आनन्द ले सकते? आप आधुनिक समाज बच्चों की अबोधिता को एक व्यक्ति को देखते चले जाइए, दूसरे नष्ट करने वाला है बच्चों से हमें बहुत कुछ व्यक्ति को देखते चले जाइए, आप बिल्कुल सीखना है-वे कितने अबोध हैं, कितने भी आनन्द न ले पाएंगे। परन्तु बच्चों को सहज हैं! बच्चे अत्यन्त उदार होते हैं। जो आप यदि देखें तो आपको अच्छा लगेगा कुछ भी उनके पास होता है उसे अन्य लोगों बच्चों के विषय में एक चुटकुला है। एक को दे डालने में वे बिल्कुल नहीं परिवार में खाना खाने के लिए एक मेहमान हिचकिचाते। आया । बच्चे ने उसे खाते हुए देखा। कहने उनमें नहीं आता। इस गुण की आप कल्पना लगा, "माँ आपने कहा था कि वह तो घोड़े करें! किसी को यदि कोई चीज़ अच्छी की तरह से खाता है, परन्तु वह घोड़े की लगती है तो बच्चा कहता है ठीक है, आप तरह से नहीं खा रहा। अतः बच्चे अत्यन्त ले लो। बच्चे इतने अद्वितीय होते हैं, हमें सहज, सहजहृदय होते हैं और इस सहजता उनसे शिक्षा लेनी चाहिए। उनके मुस्कुराते से वे सबके दोष सुधारते हैं। बच्चों से क्या हुए चेहरे, उनका हार्दिक आनन्द हमें चीज़ों के प्रति स्वामित्व भाव कहना है, इस बात पर ध्यान दिया जाना सिखाता है कि किस प्रकार से व्यवहार बहुत महत्वपूर्ण है। बच्चों को आप ऐसी करना है। उनके माध्यम से श्री गणेश स्पष्ट कोई बात न बताएं अन्यथा वो ऐसे ढंग से चमकता है। मैं तो ये कहूंगी कि जो कहेंगे जो बहुत हास्यास्पद होगा। आरम्भ में सुन्दर-सुन्दर बातें वे करते हैं आप उन्हें ब च्चे बहुत ही आज्ञाकारी होते हैं, लिख लें। अपने बच्चों की कही हुई बातों आज्ञाकारिता उनके सहज स्वभाव के कारण को लिख लें। बहुत ही दिलचस्प कथाओं होती है । फिर भी हमें चाहिए कि बच्चों को की यह पुस्तक तैयार हो जाएगी। विश्व में 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-13.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 10 कौन से युद्ध हुए, कौन से भयानक कार्य जल्दी से उन्हें नहीं अपनाते, उन्हें इस बात हुए, उनके स्थान पर आप लिखें कि बच्चों का ज्ञान होता है कि ये बुरी बात है इसे नहीं ने आपको क्या बताया। समाज में प्रचलित किया जाना चाहिए। अपनी अबोधिता से वे फैशन की बेवकूफी में बच्चे विश्वास नहीं जानते हैं कि ये कार्य गलत है, ये नहीं करते। आप देखें कि वे सदैव कितनी करना चाहिए। कभी-कभी हो सकता है कि भली-भांति वस्त्र पहने हुए होते हैं। फैशन वों आग से खेलना चाहें या वो ऐसा कुछ की उन्हें कोई चिन्ता नहीं होती। वे स्वतन्त्र करें, परन्तु एक बार यदि वे आग से ज़रा सा विचार के होते हैं, किसी समाज के दास भी जल जाएंगे तो उसके बाद कभी उसे नहीं होते वे किसी ऐसी चीज को केवल छुएंगे नहीं। बच्चे बहुत शीघ्रता से सीखते हैं इसलिए नहीं मानते क्योंकि बाकी के लोग क्योंकि उनकी बढ़ती हुई आयु होती है । उसे मानते हैं, वे अपनी ही शैली के अनुसार वास्तव में आवश्यकता इस बात की है कि चलते हैं बहुत ही सम्मानमंय ढंग से रहते हैं. बड़े लोग भी सीखें, बच्चों की तो बढ़ती अत्यन्त गरिमामय होते हैं. उनमें पावनता आयु है. वो सीख रहे हैं । परन्तु बड़ों का विवेक अत्यन्त विकसित होता है। वो कोई क्या है? उन्हें भी सीखना होगा कि किस ऐसा वस्त्र नहीं पहनते जिससे उनके शरीर प्रकार से भला बनना है किस प्रकार सभी का नंगापन दिखाई दे या ये पता चले कि के प्रति करुणामय एवं प्रेममय होना है। उनमें कोई कमी है। कई बार हम अपने बच्चों की अनदेखी करते हैं, चाहे वह धन आता है? मैं नहीं जानती। परन्तु लोग जहां की समस्या के कारण हो या पति-पत्नी के भी जाते हैं, आलोचना करनी शुरु कर देते पारस्परिक समस्याओं के कारण हो। परन्तु हैं! बच्चे कभी आलोचना नहीं करते. बच्चों की उपेक्षा हो जाती है । एक बार यदि बच्चों की उपेक्षा हो जाए तो उनके साथ देखते। बच्चे किसी भी घर या स्थान पर कुछ भी हो सकता है। मेरे विचार से बच्चों जाते हैं तो उसका आनन्द लेने लगते हैं, को जन्म देकर उनकी उपेक्षा करना घर की सभी अच्छी चीजों की तरफ उनकी आलोचना करने का दृष्टिकोण कहां से आलोचना योग्य चीज़ों को वो कभी भी नहीं अपराध है। परिवार में, गृहस्थी में, बच्चों को मुख्य स्थान दिया जाना चाहिए और परिवार बताएंगे उनके यहां तो इतने सुन्दर श्री के सभी सदस्यों को उनकी देखभाल करनी गणेश थे, ये चीज़ थी। वो घर चाहे गन्दा चाहिए। बच्चे प्रिवार के महत्वपूर्ण सदस्य रहा हो, वहां चाहे दुर्गन्ध आ रही हो, परन्तु हैं। परिवार के मुखिया को भी उन पर बच्चों का ध्यान इस ओर नहीं जाता। उनकी चिल्लाने का कोई अधिकार नहीं है, बिल्कुल दृष्टि तो बस अच्छी-अच्छी चीजों की ओर भी नहीं। मैंने देखा है कि जिस प्रकार से होती है। आलोचना को वो नहीं अपनाते। हम बुरी आदतों को अपना लेते हैं, बच्चे अन्य चीज़ों की ओर नहीं झुकते आधुनिक दृष्टि जाती है। कहीं से वो आएंगे तो 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-14.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 मई-जून, 2003 11 समय में बच्चे जब बड़े होते हैं तो उनमें गलत चीजें प्रचलित हैं वो बातें उन्हें नहीं दी अजीबो-गरीब सोच विकसित हो जाती है। जानी चाहिएं । इनसे बच्चे बिगड़ जाते हैं। मैं वे कहते हैं, मुझे ये पसंद नहीं है मुझे वो एक बच्चे से मिली और बच्चे ने कहा मुझे पसंद नहीं है और जीवन के विषय में उनमे कार चाहिए, मर्सिडीज़ कार। इस बात को अजीबो-गरीब धारणाएं बन जाती हैं। इनसे सुनकर मुझे बहुत हैरानी हुई। ये धन उन्हें बचाने का प्रयत्न करना चाहिए, क्योंकि लोलुपता भी बच्चों में बचपन से ही आ आजकल समाज इतनी तीव्र गति से आगे जाती है। बच्चों के सम्मुख यदि आप धन जा रहा है । दूरदर्शन है तथा अन्य बहुत से लोलुप बातें करेंगे तो बच्चे भी बही सब कुछ प्रकार के विज्ञापन उपकरण तथा बहुत सी सीख जाएंगे और ऐसी ही बातें करने लगेंगे चीजें हैं जो बच्चों के लिए हितकर नहीं है। और भी बहुत सी चीजें हैं जिनसे हमें बच्चों इस तरह के विज्ञापन तथा दूरदर्शन को बचाना चाहिए। उन चीज़ों से जो उन्हें कार्यक्रम बच्चों को नहीं देखने चाहिए। बच्चे धन लोलुप बनाती हैं। यदि आत्म साक्षात्कारी हैं तो ये सब चीजें देखनी उन्हें अच्छी ही नहीं लगती। हिंसा सर्वत्र आपको ऐसे लोग मिलते है जिन्होंने तथा बेवकूफी भरे दृश्य उन्हें अच्छे नहीं गैर-कानूनी धंधों से बेशुमार दौलत एकत्र लगते । ये बात मैंने देखी है परन्तु कर ली माता-पिता बच्चों के सामने बैठकर इन्हीं आवश्यकता नहीं है। परन्तु अब भी उनमें सब चीजों को देखते हैं और आनन्द लेते लोभ है और वो धन लोलुप हैं! मैं आपको हैं। बच्चे भी क्योंकि बहां बैठे होते हैं बताती हैँ कि ये सब पागलपन है. वास्तविक इसलिए धीरे-धीरे यह सब भी उनके दिमाग पागलपन। एक मनुष्य चाहता है कि उसके में घर करने लगता है। परन्तु प्रायः बच्चों को पास पच्चीस कारें हों क्या वो अकेला हिंसा, मार-धाड़ आदि नहीं सुहाते। अतः हमें बच्चों से बहुत कुछ सीखना कि उसके पास पच्चीस हवाई जहाज हों । होता है क्योंकि वो अबोध हैं, पवित्र हैं । इनका वह क्या करेगा? चे चीजें प्राप्त करने उनके इन गुणों का सम्मान होना चाहिए. के लिए वह धोखाधड़ी करता है, लोगों को बच्चों को पीटने वाले, उन्हें चोट पहुंचाने कष्ट देता है, दूसरों के धन पर कब्ज़ा करता वाले और उनकी हर इच्छा पूरी करने वाले है आदि-आदि। ये सब कुकृत्य करने से लोग मुझे अच्छे नहीं लगते। बच्चों को अच्छा है कि व्यक्ति गरीब ही बना रहे। तो उनके पाबित्र्य में ही रहने देना चाहिए। उन्हें आजकल जिस मार्ग पर लोग चल रहे हैं वह अच्छी अच्छी बाते समझाई जानी चाहिएं, गलत है यह दाई ओर का-आक्रामकता- पावित्र्य और सदाचार के लिए उनका का मार्ग है। यही कहना चाहूंगी कि हम सम्मान होना चाहिए। समाज में जितनी सहजयोग को श्री गणेश से आरम्भ आज के समाज में ये समस्या है कि है । ये सब करने की कोई 1 पच्चीस कारों में बैठेगा? व्यक्ति चाहता है the 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-15.txt वैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 मई-जून, 2003 12 काम अत ४ पाई करते हैं जो कि बाईं ओर विराजमान हैं उचित मार्ग दर्शन, आवश्यक प्रेम एवं दाईं ओर नहीं। पहले अपनी बाईं ओर सहायता उन्हें प्राप्त हुई हो तो बच्चे को विकसित करें फिर दाईं ओर को अत्यन्त-अत्यन्त भले एवं सुन्दर बन जाते आएं। आप लोग ठीक हैं इसलिए हमने हैं सभी सहजयोगियों को मैं ऐसे ही स्वभाव सहजयोग को पूर्णतः श्रीगणेश के अनुसार के शिशु या बालक प्राप्त करने का आशीर्वाद बनाया है उनके विराजमान होते ही आप देती हूँ और कहती हैँ कि वे अपने बच्चों की पूर्णतः ठीक हो जाते हैं और विवेक के भली-भांति देखभाल करें ऐसा करना बहुत अभाव के कारण कोई समस्या आपमें नहीं आवश्यक है क्योंकि यही बच्चे कल के रहती। श्री गणेश के जागृत होते ही आप सहजयोगी हैं । उनमें सभी सुन्दर गुण होने भली-भांति जान जाते हैं कि किस प्रकार चाहिएं। आप लोग एक अन्य ही प्रकार के आचरण करना है और किस प्रकार जीवन वातावरण से आए हैं परन्तु बच्चे अबोधिता बिताना है। तब आप कामुकता, लोभ, आदि की देन हैं । अतः वे अत्यन्त पावन हैं । मुर्खतापूर्ण चीजों को नहीं अपनाते जिनके उनकी पावनता का सम्मान और सुरक्षा पीछे लोग पगलाए हुए हैं। बड़े होकर लोग किसी भी मूर्खता के पीछे दौड़ पड़ते हैं लोग बच्चों के महत्व को और उनमें परन्तु बचपन में ही यदि उ न पर श्रीगणेश के गुण को विकसित करने के अच्छी-अच्छी चीजों का प्रभाव पड़ा हो, महत्व को समझेंगे । संस्कारमय पारिवारिक जीवन, अच्छी विद्या, किया जाना आवश्यक है । आशा है कि आप तिन आपका बहुत-बहुत धन्यवाद! 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-16.txt क्रिसमस पूजा 25.12.02, गणपति पुले परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आप सबको क्रिसमस की मं गल उन्हें एक ऐसे पालने में डाला गया जिसमें कामनाएं। सूखी घास बिछी हुई थी। अन्त में उन्होंने मसीह आपके आज्ञा चक्र पर विराजमान हैं। अपना जीवन सूली पर चढ़कर बलिदान कर सहजयोग के अनुसार ईसा- उनका पूरा जीवन एक साक्षात्कारी व्यक्ति दिया। उनका पूरा जीवन बलिदान की के गुणों का वर्णन है। अपने पूरे जीवन में कहानी है क्योंकि उनके अन्दर शक्ति उन्होंने दर्शाया कि व्यक्ति लालची और थी-वो शक्ति कि वो कुछ भी बलिदान कर कामुक नहीं होना चाहिए। विश्व भर के लोग सकते थे। उन्होंने अपना जीवन ही बलिदान जिस प्रकार से लालची हैं उससे वास्तव में कर दिया। अतः आप ये समझ सकते हैं कि दुख होता है। बचपन से ही हमारे बच्चे ईसामसीह की महानता उनके महान किसी न किसी चीज की मांग करने में लगे आध्यात्मिक व्यक्तित्व की देन थी। उन्हीं महान ईसामसीह की विश्व भर में पूजा होती रहते हैं । पूर्ण सन्तोष ही व्यक्ति को वह संतुलन, वह शान्ति प्रदान कर सकता है है, विशेष रूप से पश्चिमी देशों में । परन्तु जिसको प्राप्त करने के पश्चात व्यक्ति जिस प्रकार वो भौतिक पदार्थों के पीछे भौतिक चीजों के पीछे भागना छोड़ देता है। दौड़ते हैं इस पर आप हैरान होंगे उनके आजकल भारत भी पश्चिम के पीछे चल पूरे कारखाने उनके द्वारा बनाई गई वस्तुओं पड़ा है और उन्हें भी हर समय भौतिक की कहानियों के बल पर चलते हैं। फिर भी पदार्थों की जरूरत होती है। अमरीका में किस प्रकार से लोग अपने वैभव की शेखी अब यह दुर्घटना होने के पश्चात् लोग बघारते हैं स्वयं को इसाई दर्शाने के लिए आध्यात्मिकता की ओर बढ़ रहे हैं। वे अपने गले में क्रूस पहनते हैं । जिस क्रूस आध्यात्मिकता की ओर वो इसलिए आ रहे पर ईसा-मसीह को सूली चढ़ाया गया था हैं क्योंकि वो ऐसा महसूस करते हैं कि उन्हें उस चिन्ह को तो कभी गले में पहना ही कहीं भी संतोष प्राप्त नहीं हुआ। नहीं जाना चाहिए। परन्तु पाखण्ड से लोग ईसामसीह के महान जीवन से हमें बहुत अपनी कमियों को छिपाने का प्रयत्न करते कुछ सीखना है। सर्वप्रथम तो उनका जन्म हैं । इस प्रकार से वे ईसा के बिल्कुल उल्ट ही एक बहुत छोटी सी झोपड़ी में हुआ जैसे हैं। केवल पुरुष ही नहीं उनकी पत्नियां और आपमें से अधिकतर लोग जब यहां आते हैं बच्चे भी अत्यन्त लोभी हैं। उन्हें ये चाहिए तो वे बहुत संतुष्ट होते हैं। जन्म के बाद वो चाहिए। अब भारत भी इसी पागल दौड़ 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-17.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 14 में फंस गया है। वो क्या मांगते हैं? वो जन्म हुआ और निर्धन मान कर ही उन्हें (भारतीय) सोचते हैं कि ये सारी चीजें अपने क्रूसारोपित कर दिया गया | अतः धन के पास एकत्र कर लेने से वो अत्यन्त सुखी हो पीछे दौड़ने वाले लोग किसी भी प्रकार से जाएंगे। वास्तविकता ये नहीं है हर समय ईसाई नहीं हैं, वो तो ईसा के समीप भी नहीं लोग चीजों के पीछे दौड़ते रहते हैं और जो है। यह सोच कर मैं अत्यन्त प्रसन्न एवं भी कुछ उन्हें प्राप्त होता है उसका वो आनन्दित हूँ कि उन्होंने गरीबों और आनन्द नहीं ले सकते। आश्चर्य की बात हैं जरूरतमंद लोगों की मदद की। क्योंकि कि अमरीका जैसे देश में जहां बिल्कुल भी उन्होंने उनकी समस्याओं को समझा, उन्हें भ्रष्टाचार न था फिर भी वहां पर लोगों ने महसूस किया। सभी प्रकार के रोगियों तथा बेशुमार पैसा बनाया, और वो ईसा मसीह के दलितों की उन्होंने सहायता की। परन्तु अनुयायी कहलाते हैं ! ये बात मेरी समझ से आज का विश्व इतनी मूर्खता पर उतर आया परे है। किसी समय भारत अत्यन्त सन्त देश है कि आज सक्षम देश अन्य देशों को था जहां सन्तों का सम्मान होता था। परन्तु परस्पर युद्ध करने में सहायता करते हैं। युद्ध आज भारत लोभ के इतने गहरे गड़ढे में करने के लिए वे ईसाइयत की सृष्टि करते गिर गया है कि लोगों को समझ पाना हैं। इस देश में ईसाई-मत क्या कर रहा है? अंसभव हो गया है। कहा जा सकता हैं कि बहुत से लोगों को ईसाई बना कर अपनी वो ईसा-मसीह के अनुयायी नहीं हैं। आपको इसाई कहने वाले भारतीयों की सुना है कि किस प्रकार धर्म -परिवर्तन करके स्थिति तो सबसे खराब है। अपने शक्ति बढ़ा रहा है। भिन्न स्थानों से मैंने | उन्होंने सभी वे ईसाई बना रहे हैं! ईसा ने तो एक भी प्रकार की पश्चिमी देशों की बुराइयां और व्यक्ति का धर्म परिवर्तन नहीं किया! उन्होंने लालच अपना लिया है । फिर भी वे स्वयं को लोगों का उसी प्रकार अन्तर्परिवर्तन करना इसाई कहते हैं। परन्तु ईसा मसीह ने चाहा जैसा आप सब का हुआ है-धर्म दर्शाया है कि संसार में आपको किसी चीज परिवर्तन या जन्म-चिन्ह परिवर्तन करके की आवश्यकता नहीं है। वे इतने महान नहीं। व्यक्ति और इतने महान अवतरण थे। सर्वत्र उनका सम्मान हुआ क्योंकि उनमें बलिदान ये तीसरे दर्जे के बेकार लोग क्या पा लेंगे? की महानतम शक्ति थी। इसलिए नहीं कि कभी-कभी तो मुझे अपने बारे में चिन्ता हो उनके पास कोई बड़ी कार थी या बड़ा घर जाती हैं कि कहीं मेरे अनुयायी और बच्चे भी था, परन्तु इस लिए कि वे अत्यन्त विनम्र कोई सहज विरोधी कार्य न करने लगें-कोई थे। उनका जीवन इतना महान था कि आज भी ऐसा कार्य जो सहज मर्यादाओं के विरुद्ध भी वे लोगों के हृदय पर शासन करते हैं हो। सहज नियमों में से एक है दीन- चाहे अत्यन्त निर्धन व्यक्ति के रूप में उनका दुखियों की सहायता करना-उन लोगों की धन तथा कामुकता के पीछे दौड़ने वाले প 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-18.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 मई-जून, 2003 15 जिन्होंने अभी तक आत्म साक्षात्कार नहीं कि हमें व्यापार नहीं करना चाहिए या धन प्राप्त किया है। हमें वो नहीं करना जो विश्व नहीं कमाना चाहिए। आप ये कार्य कर कर रहा है कि उन्हीं लोगों की मदद की सकते हैं । परन्तु ये सब करते हुए आपने जाए जो बर्बाद हो चुके हों। इस देश को याद रखना है कि 'किसके लिए आप ये सब तथा पुरे विश्व को यदि आप बचाना चाहते कर रहे हैं? इसका आप क्या करेंगे? वास्तव हैं तो आपको ईसा मसीह की तरह बनना में आप ये पता लगाएं कि पूरे वर्ष में आपने होगा। अपने अन्दर बलिदान की भावना अपनी चीज़ों में से कोई एक क्या किसी को विकसित करें । यह 1 भावना अत्यन्त दी है। मैं ये नहीं कहती कि आप सूली पर चढ़ जाएं। नहीं ये कहना आपसे बहुत शक्तिशाली होनी चाहिए क्योंकि आप सब आत्मसाक्षात्कारी हैं। यह भावना विकसित अधिक आशा करना होगा, परन्तु अपने करने का प्रयत्न करें दूसरों की सहायता सुख-सुविधा का एक थोड़ा सा हिस्सा तो करने की भावना। अपने जीवन में मैं ऐसे आप अन्य लोगों के लिए कुर्बान कर सकते बहुत से लोगों से मिली हूँ जो सदैव हैं। अभाव-ग्रस्त लोगों को देने के लिए उद्यत थे। परन्तु इतने महान स्वभाव के लोगों को होगा अत्यन्त करुणा एवं प्रेममय । आपमें कभी कोई इनाम नहीं मिला। फिर भी यदि यदि ये गुण नहीं है तो आप सहजयोगी नहीं उन्हें किसी की सहायता का अवसर मिलता है करुणा एवं प्रेममय होना पहली सहजयोगियों को अत्यन्त करुणामय होना तो वे बहुत खुश होते। इस देश के लिए आवश्यकता है तथा अपने आस-पास की जहां स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए असंख्य लोगों समस्याओं को स मझकर अधिक से ने अपने जीवन बलिदान कर दिए. यह अधिक लोगों की सहायता करना। परन्तु अत्यन्त खेद की बात है। आज यहां क्या हो वास्तविकता ये नहीं है सहजयोगी भी अपने रहा है? आज यहां के शासक गण या उनके जीवन के मूल्य को नहीं समझते । बच्चे धन बटोरने में लगे हुए हैं। इस देश में, सहजयोगी भी उसी मार्ग पर चल रहे हैं जहां लोगों में इतना बलिदान भाव था, यह जिस पर ईसा मसीह चले थे। वे आत्म स्थिति क्यों आई? वो वास्तव में नेता थे। साक्षात्कारी हैं इस बात का अहसास उनमें परन्तु आपमें से कितने लोग उन जैसे हैं? होना ही चाहिए। अन्य लोगों के प्रति उनमें आपमें से कितने अपने धन में से किसी की वही भावना होनी चाहिए । अन्य लोगों से सहायता के लिए कुछ दे सकते हैं? किसी उनका तारतम्य होना चाहिए और अपने की सहायता के लिए आप क्या करेंगे ? खेद अन्दर उन्हें ईसा मसीह के बलिदान का भी की बात है कि ईसाई राष्ट्र कभी भी ईसा के सदा अहसास होना चाहिए। हमारी आज्ञा दिखाए मार्ग पर नहीं चले और हम भी उन्हीं को सुधारने के लिए हमारे अहं को दूर जैसे बनते चले जा रहे हैं ! मैं ये नहीं कहती करने के लिए, अहं से लड़ने के लिए किस 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-19.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व ও मई-जून, 2003 16 प्रकार उन्होंने अपना जीवन बलिदान कर मुसलमान संप्रदाय में तो स्थिति बदतर है। दिया! फिर भी हममें इतना अहंकार है! जो मैंने सोचा कि कम से कम मुझे कुछ तो ऐसा भी बलिदान उन्होंने किया वह सब व्यर्थं है, करना चाहिए कि जिससे मैं लोगों का ध्यान इसे लोग समझते ही नहीं और न ही वे उनके दुर्भाग्य और उनकी समस्याओं की ईसामसीह के जीवन और उनके चरित्र को ओर आकर्षित कर सक ताकि अपने पैरों पर खड़े होकर वे जीवन में वापिस आ सकें । हम सब आत्मसाक्षात्कारी लोगों के लिए यह मेरे विचार से सभी सहजयोगियों का ये है कि जाकर चहूँ ओर देखें कि किसको सहायता की आवश्यकता है। केवल आत्मसात करते हैं। ये बहुत बुरी बात है। बहुत बड़ा संदेश है, हमारे सम्मुख यह बहुत कर्तव्य महान उदाहरण है। बहुत से कार्य करने शेष हैं। मेरा हृदय अपने लिए धन कमाने के लिए, केवल अपने सदैव जरूरतमंद लोगों के साथ होता है लिए पैसा कमाने के लिए ही न जिए, दूसरों और इसी लक्ष्य के लिए मैंने बहुत सी की सहायता करने का प्रयत्न करें। उन लोगों की सहायता करें जिनकी वास्तव में भली-भांति जानते हैं। हाल ही में मैंने सहायता की जा सकती है ताकि वो कह कि दिल्ली में निरात्रित महिलाओं और बच्चों के सहजयोगियों ने ये कार्य किया हैं । जो भी लिए कुछ आरम्भ किया है उसके लिए धन मेरे पास है उससे मैं ये कार्य करने अधिकतर पैसा मैंने स्वयं दिया है। परन्तु वाली हूँ। परन्तु मेरी इच्छा है कि आप भी कार्य को पूर्ण करने के समय मैंने सोचा कि उनके लिए कुछ करने का प्रयत् करें। ये देश दो वर्गों में बंटा हुआ है। एक सहजयोगियों से कहा जाए कि वे धन का धना्य लोग हैं और दूसरे अत्यन्त निर्धन। योगदान दें। उन्होंने योगदान दिया। दिल्ली ये निर्धन लोग मेरे हृदय को पीड़ा से भर के सहजयोगियों को मैं मुबारकबाद देती हूँ देते हैं। मेरा हृदय पीड़ा से कराह उठता है। कि उन्होंने अन्य सहजयोगियों को मार्ग मेरी समझ में नहीं आता कि किस प्रकार दिखलाया मैं हैरान थी कि इतनी बड़ी उनकी सहायता करूं क्योंकि ये जाति इतनी विशाल है परन्तु यदि आप लोग ये फैसला प्रकार जुटा पाए! हम ये नहीं देख पाते कि कर लें तो आप चहूँ ओर जाकर इन निर्धन हमारे देश में महिलाएं किस प्रकार कष्ट लोगों की सहायता करने के उपाय खोज उठा रही हैं. किस प्रकार निरा्रित महिलाएं सकते हैं। उन लोगों को आपकी सहायता कष्ट उठा रही हैं। बिना उनके किसी दोष की आवश्यकता है और आपमें सहायता के पति उन्हें त्याग देते हैं। इसी प्रकार से करने की क्षमता है। महालक्ष्मी के आशीर्वाद पति की किसी भी सनक के कारण उन्हें से आप सब सक्षम हैं। अतः गरीबों की सहायता करने का प्रयत्न करें। घोर कष्टों संस्थाएं आरम्भ की हैं। आप इस बात को इसको समापन करने के लिए क्यों न संस्था के लिए इतना सारा धन वे किस बच्चों समेत सड़कों पर छोड़ दिया जाता है । 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-20.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 17 में फंसे हुए लोगों की सहायता करने का लिए अत्यन्त आनन्द का दिन है । ईसा प्रयत्न करें मैं जानती हूँ कि वे सहजयोगी मसीह के जीवन को जब मैं देखती हूँ तो नहीं है उनके सहजयोगी बनने की आशा न मुझे लगता है कि यह बहुत अल्पायु था। करें। वे सहजयोगी नहीं बन सकते। ईसा उनका जीवन कष्टों से कितना परिपूर्ण था? मसीह के समय कितने लोग सहजयोगी थे? गरीबी के कारण नहीं, नहीं! उस घृणा और कितने लोग ऐसे थे जो मानवीय समस्याओं उन दुखों के कारण जो उन्हें दिए गए । को समझ सके? परन्तु ईसा ने ये कार्य गरीबी की उन्होंने चिन्ता नहीं की। इसके किया और लोगों के पापों के बदले अपने विषय में उन्होंने कभी कुछ नहीं लिखा । जीवन को बलिदान कर दिया। क्या आप वास्तव में जो बात उन्हें बुरी लगी, वह थी इसकी कल्पना कर सकते हैं! आज का दिन हालात का इस तरह से बिगड़ा हुआ होना अत्यन्त हर्ष पूर्वक उनका जन्मदिवस मनाने और लोगों को इस प्रकार से सताया जाना। का है। उनका जन्म तथा जीवन कितना इस समस्या का समाधान करने की पूरी अजीब था? कोई भी मानव इस प्रकार का जिम्मेदारी उन्होंने अपने ऊपर ले ली। जीवन न चाहेगा परन्तु आप सब लोगों को उन्होंने ईसाई बनाए और वो क्या कर रहे उनके जीवन के सार को समझना चाहिए। लोभ के पीछे दौड़ना पागलपन है। लालच का कोई अन्त नहीं। लालची हमेशा लालची उनके महान कार्य के वैभव से इसका कोई ही बने रहते हैं, हमेशा वो धन दौलत ये, वो सम्बन्ध नहीं। आज जब हम सब उनका मांगते ही रहते हैं । हैं? केवल मूर्खतापूर्ण कार्य-मूर्खतापूर्ण। ये सब अर्थहीन है। ईसामसीह के जीवन और जन्मदिन मना रहे हैं तो हमें चाहिए कि क्यों न अन्य लोगों को देखा जाए कि उनकी बलिदान क्षमता तथा उनकी प्रेम उन्हें किस चीज की आवश्यकता है? हम क्षमता का उत्सव मनाएं । लोग जो कि सामूहिक चेतना में हैं, हमें समझना चाहिए कि लोगों की क्या लोग बन गए हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं है। आवश्यकता है और हम उनके लिए क्या कर परन्तु अभी भी मुझे लगता है कि उनमें सकते हैं । मैं जानती हूँ कि विज्ञापन के इस लालच बना हुआ है। लालच का कोई अन्त आधुनिक युग में ऐसा करना कठिन कार्य नहीं । मैं आपको बताना चाहूंगी कि मैंने ऐसे है परन्तु हम सहजयोगी हैं। हमें सामान्य लोगों को देखा है जो धन के पीछे पागल व्यक्ति बनना है। इन सब चीज़ों का सामना हैं जैसे अमरीका में मैने पाया कि संस्थाओं हमने संतों की तरह से करना है और अपनी के मुखिया, निगम पार्षद तथा ऐसे लोग विशेष शक्तियों द्वारा इन सभी बाधाओं को जिनके पास पच्चीस हवाई जहाज सहजयोगी अब बहुत अच्छे और प्रेममय और पचास से भी अधिक कारें हैं, वो भी लालची समाप्त करना है। आज का दिन मेरे लिए और आप सबके हैं! क्या वो पचास कारों में यात्रा करेंगे? नारक 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-21.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 मई-जून, 2003 18 किस प्रकार बो इन सब गाड़ियों में घूमेंगे? सुख-सुविधा, सुख-सुविधा । मानव को क्या वे एक पैर एक गाड़ी में रखेंगे और समझना इतना कठिन है! एक बार जब वो दूसरा दूसरी में? फिर भी उनके पास इतनी लोभ के मार्ग पर चल पड़ते हैं तो किसी भी गाड़ियां हैं। इस प्रकार का पागलपन बना सीमा तक गिर सकते हैं। बलिदान तो लोग हुआ है। वो कहते हैं कि अब कहने को कुछ जानते ही नहीं। मैंने देखा है जब गांधीजी ने भी नहीं है क्योंकि सभी कुछ जब्त कर लिया लोगों को बलिदान के लिए कहा तो सारी गया है। इस प्रकार के स्वभाव के लोगों के महिलाओं ने अपने गहने दे डाले, अपने साथ क्या किया जाए? क्या पच्चीस हवाई जीवन दे डाले । लोग जेलों में गए, स्वतंत्रता जहाज और पचास कारें रखना पागलपन प्राप्त करने के लिए सभी प्रकार के कार्य नहीं है? और उन्हें अपनी महानता का कोई किए परन्तु उन्हें किस प्रकार की स्वतंत्रता अन्त नहीं दिखाई पड़ता! वो लोग इतने प्राप्त हुई? एकदम से विश्व भर के सारे ठग मूर्ख हैं। मर जाने के पश्चात् ये समाप्त हो जाएगा। हमेशा वे किसी न किसी बन गए। जिस देश में सभी कुछ महान तथा चीज़ के पीछे लड़ते रहते हैं। अमरीका की श्रेष्ट हो और वो सारी चीजें व्यर्थ हो रही हों सब यही चौधरी बन बैठे विश्व के सारे चोर अधिकारी उस देश के विषय में आप क्या कहेंगे? क्या यह अजीब बात है। अतः आप लोगों को यह समझ होना आप उदार व्यक्ति है? स्वयं से प्रश्न करें, आवश्यक है कि लालच हमें कहा लें क्या आपने अन्य लोगों की सहायता करने जाएगा। ऐसी भी घटनाएं है कि एक युवा का प्रयत्न किया? लड़की ने एक अत्यन्त वृद्ध व्यक्ति से विवाह किया और जब वो वृद्ध व्यक्ति मरा तो कि उन्होंने अत्यन्त निर्धनता में अपना जीवन अपना सारा धन इस युवा महिला के लिए बिताया बो सम्राटों के सम्राट थे फिर भी वो छोड़ दिया। वृद्ध के बेटे ने आकर मुकदमा यूनान में गरीबी में रहे और पापी लोगों के किया कि मैं उनका पुत्र हूँ और उनका पूरा लिए निरंतर कार्य करते रहे, उन लोगों के धन इस महिला को कैसे दिया जा सकता लिए कार्य करते रहे जो कठिनाई में थे। है? युवा महिला को खरबों डालर मिले थे केवल एक व्यक्ति ने ये सब किया। अब फिर भी वह बेटों को कुछ देना न चाहती आप लोगों की संख्या तो बहुत है आपको थी। न्यायालय में उसने दलील पेश की कि भी कुछ करना होगा, आपको इन पार्षदों की उसने वृद्ध व्यक्ति के लिए इतना बलिदान तरह से नहीं होना परन्तु ईसामसीह की किया है, इतना कुछ किया है, अतः उसका तरह से कार्य करने के लिए आपको अपनी पूरा धन उसे मिलना चाहिए। लोग इतने कमाई का कुछ हिस्सा, अपनी सुख- निर्लज्ज हैं कि पैसा मांगते हुए उन्हें लज्जा सुविधाओं का कुछ हिस्सा, अपने देश हित नहीं आती! हर समय सुख-सुविधा, के लिए बलिदान करना होगा. क्योंकि आप ईसा मसीह के जीवन से हमें समझना है 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-22.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 19 इनके अनुसार देश से प्रेम करना भी पाप सहजयोगी हैं, साधारण व्यक्ति नहीं हैं। आपको आत्मसाक्षात्कार मिल चुका है। यह है। उन्होंने ऐसा किया और जब वो वापिस आप क्या कर रहे हैं? क्या आप सबसे धन आए और नागपुर के मेयर बने तो वही लोग उनके महान प्रशंसक थे। मैं उन सहजयोगियों की कहानियां सुनना उन्होंने मेरे पिताजी की शोभा यात्रा चाहती हूं जो जन-जन को अपना प्रेम एवं निकाली। इस पर मेरे पिताजी मुस्कराए और कहा, इस मूर्खता को देखो। ये कार्य अत्यन्त मुझे खेद है कि आज ईसामसीह के मूर्खतापूर्ण है और इस प्रकार की लोलुपता जन्मोत्सव के दिन मुझे उनके जीवन के तथा मूर्खता रोकी जानी चाहिए। लोग धन विषय में बताना पड़ा जो कि बहुत ही और पदवियों के पीछे भागते हैं। ये पागल कष्टदायक है। हमें ये बात समझनी होगी दौड़ बहुत ही बुरी चीज है। कुछ लोग, सारे नहीं, ऐसा करते हैं। परन्तु को अपने जीवन में इतनी सहजयोगियों में भी मैंने पाया है कि लोग मांग रहे हैं या सबको अपना प्रेम दे रहे हैं? ईसाई करुणा बांट रहे हैं। | कि इतने महान व्यक्ति को इतने महान सहजयोगी सहजयोगी समस्याओं का सामना करना पड़ा। अपने ही अत्यन्त धन लोलुप हैं और वो सहजयोग में लोगों ने उनका अनुचित लाभ उठाया। मुझे भी पैसा बनाते हैं। पैसे के मामले में मैं भी सहजयोगियों से इस बात का अनुभव अत्यन्त नादान हूँ। पैसा मेरी समझ में ही हुआ। सहजयोग से वो रोगमुक्त हो गए फिर नहीं आता । अतः वे लोग मुझे ठगते हैं। भी उन्होंने मुझे कष्ट देने का प्रयत्न किया। ठीक है, कोई बात नहीं। और लगातार वर्षों सभी लोग जानते हैं कि उन्होंने सहजयोग तक वे मुझे बेवकूफ बनाते रहते हैं। ठीक है, में धन बटोरने का प्रयत्न किया। उनके जीवन के मूल्य इतने घटिया हैं कि आप ये चाहिए? ये समस्या है कि यदि आप सावधान नहीं कह सकते कि वो आत्मसाक्षअत्कारी हैं। नहीं हैं और यदि आप धन लोलुप नहीं हैं तो अतः हमें सोचना चाहिए कि किस प्रकार हम अन्य लोगों की सहायता कर सकते हैं, ठगने दो, जो चाहे करने दो परन्तु मैं ऐसा किसके लिए क्या कर सकते हैं। ईसा मसीह स्वभाव नहीं बना सकती कि मैं पैसे की के जीवन से यह गुण व्यक्ति को सीखना खातिर लोगों के पीछे दौड़ती रहूँ। ऐसा चाहिए। मेरा जन्म ईसाई परिवार में हुआ कार्य मैं नहीं कर सकती! जो भी हिसाब परन्तु मैंने पाया कि ईसाई लोग अत्यन्त किताब आप मुझे दिखाते हैं मैं उसे स्वीकार तुच्छ एवं मलिन हैं। हर समय वो एक दूसरे कर लेती हूँ, जो भी हिसाब आप भेजते के खिलाफ योजनाएं बनाते रहते हैं तथा उसे मैं स्वीकार कर लेती हूँ। वो लोग नहीं अत्यन्त ही धन लोलुप हैं। मेरे पिताजी जब जानते कि ऐसा करना गलत है और जेल गए तो हमें चर्च से निकाल दिया गया । क्या किया जाए? और मुझे पैसा क्यों अन्य लोग आपको ठगेंगे मैंने कहा, उन्हें पापमय। अगर उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं প 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-23.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 20 है तो मैं कुछ नहीं कर सकती। वे सब नष्ट समस्या ठीक हो जाएगी । मैं जानती हूं हो जाएंगे, ऐसे सभी लोग नष्ट हो जाएंगे। कि सहजयोगियों में बहुत से लोग बढ़ ये बात मैं जानती हूँ। परन्तु यदि वे स्वयं बढ़कर आगे आते हैं, हर समय आगे हैं, हूँ इस बात को महसूस नहीं करते तो क्या आने के लिए प्रयत्न शील रहते किया जाए? सहजयोग से पैसा बनाना, क्या किसलिए? आपको क्या चाहिए? वे हर आप इसकी कल्पना कर सकते हैं? इतना समय मूर्खों की तरह से अपने को आगे मूर्खतापूर्ण कार्य करना? ये आम बात है लाने का प्रयत्न करते हैं । अतः जिस प्रकार से ईसामसीह संतुष्ट परन्तु बहुत बुरी है । मैं चाहती हूँ कि आप सब धन से थे, उसी संतुष्टि का अहसास अपने ऊपर उठ जाएं । संसार की सभी भौतिक अन्दर करने के लिए आपको ध्यान चीज़ों से ऊपर उठ जाएं । आप यदि धारणा करनी होगी और अन्तर्वलोकन ऐसा करेंगे तो कभी मूर्ख नहीं बनें गे, द्वारा जानना होगा कि क्या आप संतुष्ट कभी आपको कठिनाइयां नहीं होगीं है? अपने जीवन में आपको अत्यन्त अतः इस प्रकार के मूर्खतापूर्ण कार्यों में संतुष्ट होना होगा अन्यथआ सहजयोग में भागीदार न बनें ये परमात्मा का कार्य है होने का कोई लाभ नहीं। आत्म- और इससे आपको पैसा नहीं बनाना, किसी साक्षात्कार प्राप्त करना भी व्यर्थ है। मैं भी प्रकार से नहीं । ईसामसीह के जीवन से हृदय से आपको आशीर्वाद देती हूँ कि आप हमें सीखना है कि अत्यन्त सामान्य व्यक्ति ईसामसीह के चरित्र को अपना भविष्य माने के रूप में जन्म लेकर भी उन्होंने बहुत और विश्व की समस्याओं को समझें। पूरे महान कार्य किए हमारी आज्ञा को ठीक विश्व की समस्याओं को अपनी समस्या करने के लिए उन्होंने पूर्ण प्रयत्न किया। समझें। आज भी यदि आप उनके विषय में सोचेंगे तो आपकी आज्ञा ठीक हो जाएगी, आज्ञा की परमात्मा आपको आशीर्वादित करें 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-24.txt नव वर्ष पूजा वैतरणा संगीत अकादमी, 31.12.2002 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन क इतनी बड़ी संख्या में कार्यक्रम के लिए बुद्धिमान तथा विद्वान व्यक्ति थे परन्तु आए आप सब लोगों को देखकर मैं बहुत उन्होंने सर्वसाधारण लोगों की ओर ध्यान प्रसन्न हूँ। वास्तव में मैंने ये जमीन 25 वर्ष दिया. उनकी देखभाल की और उनमें संगीत पहले खरीदी थी। परन्तु इस पर मैं कुछ न कर सकी क्योंकि इस पर बहुत सारी मैंने निर्णय किया कि कला और संगीत के आपत्तियाँ थीं, आदि-आदि। परन्तु किसी तरह से मैंने इसकी योजना बनाई और अब लिए मैं ये स्थान समर्पित कर दूं। ये देखकर ये सब कार्यान्वित हो गया है। आप सब मुझे प्रसन्नता हो रही है कि मेरा ये विचार लोगों को यहां देखकर मुझे प्रसन्नता हो रही फलीभूत हो गया है । काश कि आप लोगों है कि इतनी कठिनाइयों का सामना करने को प्रसन्न करने के लिए आज मेरा भाई भी के पश्चात् आज मेरे सम्मुख मेरी पूजा के यहां होता! वो अत्यन्त प्रेम एवं करुणामय कार्यक्रम में भाग लेने के लिए इतने सारे व्यक्ति था। मैंने देखा कि वो कभी किसी से सहजयोगी उपस्थित हैं। यहां पर मुझे अपने भाई बाबा की याद की बहुत अच्छी तस्वीर मेरे सम्मुख पेश की। आती है जिन्होंनें भारतीय संगीत, शास्त्रीय परन्तु इस विषय में कोई भी क्या कर सकता ৪ कला को बढ़ावा दिया। इसी विचार के साथ प्रचार-प्रसार के उनके लक्ष्य की प्राप्ति के नाराज़ नहीं हुए। सदा उन्होंने सभी लोगों संगीत तथा सभी प्रकार की कलाओं के है? प्रचार -प्रसार के लिए जी तोड़ परिश्रम किया जो भी कुछ वो कर सके उन्होंने परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (मराठी से अनुवादित) किया। खेद की बात है कि आज बो आप सबको देखने के लिए यहाँ हमारे बीच में नहीं हैं। बिना किसी पारितोषिक की आशा लड़ने में वे बहुत अच्छे हैं। आप जो चाहे किए उन्होंने अथक कार्य किया बहुत उनके लिए कर लें परन्तु उनकी खोपड़ी में अच्छा होगा कि आप उन्हें अपना आदर्श कुछ भी नहीं बैठता। उनमें सूझ-बूझ बिल्कुल माने और उन्हीं की तरह से सभी कुछ नहीं है, हमेशा लड़ने को तैयार रहते हैं. कार्यान्वित करें उनकी एक अन्य खूबी थी तलवारों से लड़ने के लिए भी आपके जो मैं जानती हूँ कि उन्होंने कभी दिखावा झगड़ालू स्वभाव से मैं तंग आ चुकी हूँ। इस करने का प्रयत्न नहीं किया वे अत्यन्त सुन्दर भवन का निर्माण हमारे शास्त्रीय संगीत महाराष्ट्र की ये विशेषता है लड़ना। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-25.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 द 6 22 के लिए किया गया है इस मामले को लेकर कार्य किया। नागपुर के लोग बहुत चुस्त हैं. भी इन्होंने कई बार झगड़ा किया। मुझे लगा उन्होंने उनकी सहायता की । परन्तु कोई भी ये कि क्यों इस भवन का निर्माण सहाराष्ट्र में बात नहीं समझता कि सहजयोग को समझना किया जाए? महाराष्ट्र के इन लोगों के लिए है और साधु बनना है। बहुत ही घटिया स्तर कुछ करना बेकार है। किसी न किसी बात को पर लोग सोचते हैं कि किसी भी तरह से पैसा लेकर उन्होंने लड़ना ही है. शर्म लिहाज तो है बनाना है कैसे आप सहजयोगी हो सकते हैं ? ही नहीं । बैठने को यदि उन्हें स्थान नहीं व्यक्ति को महसूस करना चाहिए कि मै मिलता तो हम क्या कर सकते हैं? बिल्कुल भी आत्मसाक्षात्कारी हूँं, माँ ने मेरे लिए इतना कार्य परिपक्वता नहीं है? मेरी समझ में नहीं आता किया है अतः हमें भी अच्छी स्थिति प्राप्त इन झगड़ालू लोगों में संगीत किस प्रकार है? करनी चाहिए। अतः आज निश्चय कीजिए कि झगडा नहीं करना है और न ही धन का लोभ 1 उनका झगड़ा इतना बढ़ गया है कि मैं तग आ गई हूँ। हर आदमी किसी न किसी बात की करना है। धन के लालच ने महाराष्ट्र में शिकायत कर रहा है। सहजयोग में आकर भी सहजयोंग कार्य कठिन कर दिया है। महाराष्ट्र क्या आपको शांति प्राप्त नहीं हुई? महान सन्तों में मैने बहुत परिश्रम किया और यहां पर मुझे और साधुओं ने इस देश में इतना अधिक ज्ञान सभी प्रकार के अनुभव हुए। कृपा करके दिया परन्तु हमारे झगड़ालू स्वभाव को दूर महसूस करें कि आप सहजयोगी हैं और करने के लिए इसका भी कोई प्रभाव न पड़ा। गरिमापूर्वक जीवन-यापन करें सहजयोगी अपने नाम पर भी वो लड़ेंगे, मूर्खतापूर्ण होने पर गर्व महसूस करें सहजयोग में झगड़ा आचरण करते रहेंगे! मैं नहीं जानती कि करने की कौन सी बात है? क्या ये राजनीतिक महाराष्ट्र से ये मूर्खता कब दूर होगी? सभा है जिसमें आप शिकायत करें कि मुझे शान्ति-पूर्ण जीवन तथा सारी चीज़ों को शान्ति बैठने का स्थान नहीं मिला या मैं कुछ देख नहीं पूर्वक आत्म सात करना वो नहीं जानते। सका? मैं कुछ भी कहना नहीं चाहती थी, एकदम से चिल्लाने लगते हैं। हमारे विदेशी परन्तु आप लोगों को देखने के पश्चात् मेरे सहजयोगी कहते हैं क्या ये असभ्य लोग हैं? सामने और कोई रास्ता न रह गया, और मुझे नहीं, नहीं ये बहुत पढ़े-लिखे हैं, परन्तु बहुत कहना ही पड़ा। अब अगर कोई परस्पर लड़ता झगड़ालू हैं। किस बात के लिए वे लड़ते हैं, ये है तो उसे सहजयोग से बाहर कर दिया वही जानते हैं। कृपा करके सहजयोग में तो जाएगा| किसी के भी साथ यदि आप प्रेमपूर्वक लड़िए नहीं। थोड़े से शान्त हो जाइए। इसका नहीं रह सकते तो सहजयोग में रहने का क्या प्रयत्न कीजिए हम परिवर्तित होना चाहते हैं. क्या ये बात ठीक नहीं है? लोगों में दोष देखने हुए आप भी कभी किसी पर बिगड़ें नहीं। के स्थान पर ये देखें की आपमें क्या दोष हैं। किस प्रकार आप सभी लोगों की प्रशंसा बाबा-मामा ने महाराष्ट्र में, नागपुर में बहुत 1 लाभ है। बाबामामा कभी किसी से नाराज नहीं करेंगे। मैं सोचती रहती हूं कि किस प्रकार 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-26.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-४V अंक 5 च 5 23 सभी लोग ऐसी अच्छी अवस्था प्राप्त कर आपने एक दूसरे का सिर तोडना है तो बेहतर सकेंगे? अत्यन्त प्रेम पूर्वक बाबा मामा सभी होगा कि आप संगीत न सीखें । अतः कृपया लोगों को साथ लाए, चाहे वो कोई भी हो। वे संगीत के साथ-साथ जीवन संगीत को भी अत्यन्त निःस्वार्थ व्यक्ति थे कभी वो मेरी कार अपने रोज़मर्रा के आचरण में लाएं। जीवन में नहीं बैठते थे, कभी मेरे धर नहीं आते थे। संगीत को आचरण में लाए बिना इस कार्यक्रम बड़ी सूझ-बूझ वाले थे। वो भी महाराष्ट्र के थे का उद्देश्य पूर्ण न होगा। शपथ लें कि कोई लेकिन आक्रामक बिल्कुल न थे इतने महान जो भी चाहे कहता रहे, आपको प्रतिक्रिया व्यक्ति के कार्य को आप लोग अपने हाथों में नहीं करनी। दूसरी समस्या उल्टे-सीधे ले रहे हैं तो कम से कम कुछ उनके गुणों को तरीके से धन कमाना है। यह समस्या बहुत भी अपनाएं। संगीत तथा कला को बढ़ावा देने अधिक बढ़ गई है। मैं इससे तंग आ चुकी हूँ। के लिए हमने इस मंदिर की रचना की है । लोग सहजयोग में भी पैसा बनाते हैं। आप आपके बच्चे इस क्षेत्र में उन्नति करें उन्हें लोग परिवर्तित होंगे या नहीं? महत्वपूर्ण चीज संगीत की समझ होनी चाहिए। इन विदेशी संगीत का हमारे जीवन में प्रवेश करना है। लोगों को आपके संगीत की समझ है और जीवन में लय और रागदारी लाने के स्थान पर आपको नहीं, क्या ये लज्जाजनक नहीं है? हमें हम तो केवल लड़ते ही रहते हैं । दूसरों का संगीत की बिल्कुल भी समझ नहीं हैं, क्या लाभ बुरा सोचना और अपने स्वार्थ पर दृष्टि रखना है? आप चाहे इस अकादमी के विद्यार्थी न भी बुरी बात है। हो तो भी आपको संगीत की समझ होनी चाहिए। ताल और राग के मूल ज्ञान के बिना परन्तु आज से यहां पर केवल सूझ बूझ वाले आप संगीत का आनन्द नहीं ले सकते। मेरा करुणामय लोगों को ही लाया जाएगा जो अन्य দ्थ भूल जाएं कि भूतकाल में क्या घटित हुआ। अनुरोध है कि आप सब झगड़ालू स्वभाव त्याग सभी लोगों को प्रेमपूर्वक परस्पर समीप ला कर अपने अन्दर अच्छाई विकसित करें। सकें । सहजयोग का यही कार्य है मुझे कभी-कभी लगता है कि बंजर भूमि में बीज डालकर आप कुछ प्राप्त नहीं कर सकते। परन्तु अब सहजयोग में बड़ी संख्या में लोग आ जाने के कारण चीजें कुछ सुधरी हैं। अतः यहाँ पर और कहने को तो बात ये है कि अब संगीत केवल संगीत सीखने के लिए नहीं आएं, सहज गर शुरू हो जाए तो संगीतमय माने क्या? तौर-तरीकों से आचरण करना भी सीखें । माने मनुष्य की जो बहुत उच्छृरवल स्थिति परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (हिन्दी) नसीब से मुझे हिन्दी भाषा भी आती है सहज की महानता को समझे अन्यथा यह सब है उसकों ठीक करना है उसको तालबद्ध बेकार है। आस-पास बहुत से अन्य संगीत करना है, उसको व्यवस्थित करना है। वो विद्यालय हैं। इनमें संगीत सीखकर यदि जब तक नहीं होगा तो फायदा क्या? आप 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-27.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 24 लोग, और दूसरे लोगों में क्या फर्क है? आप लोग भी लड़ाई झगड़ा ही करते रहते हैं तो आ जाएगी। अगर आपके अन्दर ये नहीं आया आप समझ लें तो आपको भी अपनी प्रतिष्ठा तो बेकार है। ऐसे पचासों बना दे समान तो उसमें क्या फायदा? सबसे बड़ी बात ये है कि अपने मन में प्रेम, क्या फायदा? छोटी-छोटी चीजों के लिए श्रद्धा और भक्ति बढ़ानी चाहिए । जिससे, लड़ना, झगड़ना, ये आप लोगों को शोभा नहीं आपको भी शांति मिलेगी और सबको भी शांति देता। आप तो अब साधु-सन्त हो गए। बहुत मिलेगी। और बगैर शान्ति के संगीत का कोई ऊँची चीज हो गए, बहुत ऊंची। उसका आप अर्थ नहीं। आज जिस बाबा मामा के विचार से अहसास ही नहीं करते उसको आप समझते ये सुन्दर इमारत बनाई है और जिससे कि हम नहीं कि हम साधु-सन्त हैं। आप सोचते हैं हम चाहते हैं लोगों में संगीत आ जाए, उन लोगों भी वही रास्ते पर भिखारी हैं जो पहले थे। में शान्तिमय वातावरण आ जाए। आज दुनिया आज मैं कह रही थी कि आप सबको विशेष को सिर्फ शान्ति की जरूरत है। बाकी सब आशीर्वाद देती हूँ कि आप सब लोग संगीतमय होते हुए भी बेकार है। हम लोग कितने शान्त हो जाएं। हैं, वो देखना चाहिए। और इस शान्ति का असर जब इस देश में नहीं तो किस देश में होगा? सब लोगों का कहना ये है कि भारत वर्ष (अंग्रेजी से अनुवादित) आज मैं आप सबको आशीर्वाद देना जो है ये शान्ति का दूत है। अब ऐसे तो दिखाई चाहती हूं कि आप सब पूर्णतया संगीमय, नहीं देता। लड़ाई-झगड़े आपस में मारा मारी, लय से परिपूर्ण और अन्य लोगों को पता नहीं क्या कहा जाए? तो जो लोग संगीत प्रसन्नता प्रदान करने वाले स्वभाव के हो सीखना चाहते हैं उनके अपने हृदय में भी जाएं, झगड़ालू स्वभाव के नहीं। जैसा आपने संगीत होना चाहिए। हृदय में भी विचार करना देखा है पाश्चात्य संगीत गलत दिशा की चाहिए। पैसों के पीछे में भागना, औरतों के ओर चल पड़ा है, गलत दिशा में बढ़ रहा पीछे में भागना और सब गलत सलत काम है। मैं नहीं चाहती कि आप उसके जाल में करना, ये एक संगीतकार को शोभा नहीं देता मेरा अनन्त आशीर्वाद है कि ये संस्था हो जाएगा, परन्तु सहज में आने के पश्चात् प्रफुल्लित हो। इसमें आने वाले लोग संगीत भी क्योंकि ये विनाशकारी है, यदि आपमें सीखें और अपना जीवन संगीतमय करें। आशा वही विनाशकारी धारणाएं बनी रहती हैं तो है कि मेरी इच्छाएं पूरी करोगे। जब भी तुम्हें किस प्रकार से कोई आपकी सहायता कर गुस्सा आता है, जब भी तुम नाराज़ होते हो सकता है? मुझे आशा है कि आप मेरे जब भी तुम शिकायत करते हो तो अपने को आदरशों को पूर्ण करेंगे बता लिया करो कि मैं सहजयोगी हूँ। मैं चीज और हूँ, माँ ने मुझे कहां से कहां बनाया । ये गर । फंसे । मैं ये भी जानती हूँ कि ये सब लुप्त परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-28.txt किंगस्टन में पूजा 11.6.1980 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ाम निःसन्देह एक शक्ति है जिसे 'कुण्डलिनी आज हम यहां पर स्वयं के विषय में जानने के लिए एकत्र हुए हैं ज्ञान यदि कहा जाता है। इसके बारे में बहुत लोगों ने पुस्तकों तक ही सीमित होता तो किसी बताया है क्योंकि हजारों वर्ष पूर्व प्राचीन व्यक्ति का ये कहना कि वह स्वयं के विषय पुस्तकों में भी इसके बारे में लिखा गया था । में जानता है कहां तक हमें उचित लगता? ईसा मसीह ने भी कहा है कि आपको ये बात केवल हमारे मानसिक स्तर तक ही पुनर्जन्म लेना होगा। आपको दीक्षा स्नान जाती और अपने मस्तिष्क की सूझ-बूझ से (Baptism) करना होगा, धर्म के ठेकेदारों के ही हम इसे समझ पाते। मानसिक सूझ-बूझ माध्यम से नहीं। परन्तु 'जॉन द बैपटिस्ट' हमें तर्कसंगति से तथा बुद्धि से प्राप्त होती (John The Baptist) जैसे किसी परमात्मा है जो कि अपने आप में अत्यन्त सीमित द्वारा अधीकृत व्यक्ति द्वारा । यह शक्ति चीज है। अतः हम एक अन्य प्रकार की आपके अन्दर सुप्तावस्था में है लेकिन सभी समझ में प्रवेश कर जाते हैं जो कि अपने लोग इसके विषय में अलग-अलग ढंग से आपमें ही अत्यन्त सीमित है। उदाहरण के लिखते हैं। परन्तु इस पर बहुत कम लोग रूप में, मै यदि आपसे कहूँ हमारे अन्दर एकमत हैं और इस कारण से व्यक्ति को आत्मा है, जिसका निवास हमारे हृदय में है एक अन्य भ्रम का सामना करना पड़ता है तथा हमारे अन्दर एक शक्ति है जो हमेशा कि हमारे अन्दर एक शक्ति सुप्तावस्था में आपको पुनर्जन्म देने की प्रतीक्षा करती रहती विद्यमान है, जिसके विषय में कुछ लोग है, ये बात यदि मैं आपसे कहूँ तो आप मेरी कहते हैं कि ये हमें बिजली के झटके देती बात को केवल अपने मस्तिष्क से समझेंगे। है. कुछ कहते हैं इसकी जागृति पर व्यक्ति ये सब बातें तो बहुत पहले से कही जा रही मेंढक की तरह से उछलने लगता है और हैं, इनमें क्या नवीनता है? ज्यादा से ज्यादा कुछ कहते हैं कि कुण्डलिनी जागृति के बाद मैं इन्हें आधुनिक फैशन के अनुसार पेश कर व्यक्ति हवा में उछलने लगता है। इतनी भ्रम सकती हूँ। अत्यन्त बौद्धिक रूप से पेश कर की स्थिति बना दी गई हैं। आप लोग सकती हूँ। परन्तु इस प्रकार भी आप बुद्धि साधक हैं युग-युगान्तरों से साधक हैं। के जाल में फंस जाएंगे और बैठकर इसका युग-युगान्तरों से आप खोज रहे हैं। आप विश्लेषण करने लगेंगे परन्तु पहुंचेंगे कहीं सच्चे साधक हैं परन्तु अपनी साधना में आप भी नहीं । नहीं जानते कि आप कहां जाएं, किस चीज 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-29.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 26 की आशा करें। और इस प्रकार आप भली-भांति जानते हैं। जिन लोगों नें ये समस्याओं में फंस जाते हैं। उस दिन जब मै स्विटज़रलैण्ड गई तो की चोटी) के सिरे पर खड़े हुए हैं, उन्हें मेरा एक आयोजक बच्चा कहने लगा कि नीचे की खाई नजर नहीं आई है ऐसे लोग श्रीमाताजी यहां के लोग भारतीय गुरुओं पर आगे आकर आपको लुभाते हैं और इस संदेह करते हैं । मुझे इस बात पर प्रसन्नता बात नहीं समझी वो अब भी चट्टान (पर्वत करते हैं। मैं प्रकार बेशुमार धन एकत्र है। वास्तव में मैं इससे बहुत प्रसन्न हूँ। कम महसू स करती हूँ कि यह अत्यन्त से कम यहां के लोगों ने इन गुरुओं के लज्जाजनक कार्य है परन्तु इसका अर्थ यह विषय में सोचना तो शुरू किया यहां के भी नहीं कि वास्तविकता है ही नहीं । यदि लोगों को भ्रम में फंसाया गया और धोखा वास्तविकता न होती तो उसकी नकल कैसे दिया गया। परन्तु अब उनका भ्रम पूरी तरह होती? यदि फूल न होते तो आप प्लास्टिक टूट गया है और परमात्मा के विषय में बताने के फूल किस प्रकार बना पाते? अतः आपको वाले ऐरे गैरे पर विश्वास कर लेना अब यदि कोई गलत लोग मिले हों तो आपको उनके लिए असंभव है। अतः पहला विषय चाहिए कि सच्चे लोगों को खोजने का जिस पर वो चाहता था कि मैं लोगों को प्रयत्न करें सच्चे लोगों को खोजते हुए बताऊँ वह था गुरुओं के रहस्यों का आपको अत्यन्त सावधान रहना होगा कि हम पर्दा-फाश करना। यह अत्यन्त ही सच्चाई के सिवाए किसी अन्य चीज को चुनौतीपूर्ण विषय है। परन्तु इस विषय पर स्वीकार नहीं करेंगे परन्तु आपको सम्मोहित मैंने वर्ष 1970 में भारत में और 1973 में भी किया जा सकता है। सच्चाई का ज्ञान अमेरिका में बताया था, परन्तु मेरी यह बात आपको न होने के कारण आपकी बुद्धि को किसी को भी अच्छी नहीं लगी। लोग कहने छला भी जा सकता है। कोई संस्कृत भाषा लगे क्यों आप किसी की आलोचना करती में कुछ श्लोक बोलता है और आप सम्मोहित हैं। असत्य-असत्य है और वास्तविकता हो जाते हैं मानों संस्कृत भाषा कोई अद्भुत बास्तविकता। यहां उपस्थित कुछ लोगों के चीज हो! उदाहरण के रूप में कुछ शिष्य माध्यम से आपको पता चल जाएगा कि जो गुरुओं के पास गए तो उन्हें ऐसे ऐसे किस प्रकार आपको भ्रम में फसाया गया धन ऐंठने के लिए आपको किस प्रकार धोखा बताएं तो वे हंस-हंस कर दोहरे हो जाएंगे। दिया गया आप यह बात नहीं समझते जैसे-एक मंत्र दिय गया 'ठिंगा', ये मंत्र आप क्योंकि आप इससे ऊपर उठ चुके हैं। किसी भारतीय को बताएं तो वह हंसेगा| । मंत्र दिए गए जिन्हें यदि आप भारतीयों को साधना का स्थान आपके लिए धन से ऊपर परन्तु इन लोगों ने इस प्रकार के अर्थहीन है, आप जानते हैं कि धन आपको आनन्द मूर्खतापूर्ण मंत्र के लिए तीन सौ पाउण्ड खर्चे नहीं दे सकता। इस बात को आप थे। एक ऐसे शब्द के लिए जो मंत्र हो ही 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-30.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 27 सकता। मंत्र के लिए गु रु की के लिए आपको कोई अन्य चीज पकड़नी नहीं आवश्यकता ही क्यों है? मंत्रों का भी एक होगी। आपको यदि कोई ऐसी चीज प्राप्त हो विज्ञान है, परन्तु इसको बिना समझे हम जाए जो इनसे कहीं अधिक बहुमूल्य हो, मंत्रों के पीछे दौड़ पड़ते हैं क्योंकि ये लोग कहीं अधिक गतिशील हो, आनन्दप्रदायक (कुगुरु) आपसे ऐसा ही चाहते हैं। क्योंकि हो, जो आपमें सुरक्षा का भाव स्थापित कर उन्हें आपसे धन जो ऐंठना है। इतनी सहज सके, तब आप इन सब मूर्खतापूर्ण चीज़ों को देखें कि किस प्रकार ये त्याग देंगे। परन्तु सी बात है। उन लोगों का तो ये एक उद्यम है। हो सकता है आपने अपनी साधना के कार्यान्वित होगा! किसी भयानक गुरु का लिए सभी दे दिया हो क्योंकि आप ये एक शिष्य मेरे पास आया। इस भद्र पुरुष बात जानते हैं कि भौतिक पदार्थ तथा धन को उस कुगुरु ने पूर्णतः परेशान कर दिया आपको कहीं भी नहीं पहुंचाएंगे। इससे भी था, समाप्त कर दिया था। यह व्यक्ति केवल आगे आप चीज़ों को जान चुके हैं। आपकी परिचय भाषण दिया करता था। मैं नहीं मूल्य प्रणाली (सूझ-बूझ) भिन्न है । परन्तु जानती कि वो इस समय यहां है या नहीं जिन लोगों की मूल्य प्रणाली आपसे भिन्न है परन्तु उसने बताया कि श्रीमाताजी, इसी कुछ बो आपका नाजायज़ फायदा उठा सकते हैं। हॉल में जहां आप भाषण दे रही हैं, उन अतः स्वाभाविक प्रतिक्रिया, मैं समझ सकती प्रारंभिक भाषणों के लिए तीन सौ लोग आया हूँ, ऐसी ही होनी चाहिए। परन्तु सच्चाई भी है जो आपके अन्दर. कहेंगे? क्या ये बात स्पष्ट नहीं है? वह विद्यमान है । आपके अन्दर आत्मा है जिसको कुगुरु एक जाना पहचाना व्यक्ति है जो यदि एक बार खोज लिया जाए तो आपको भाषण देने के लिए तथा पाठ्यक्रम बताने के अपना पूर्णत्व मिल जाता है। जो आपको लिए आपसे धन लेता है? उसने बहुत से बताता है कि आपको अत्यन्त शान्त एवं लोगों को नष्ट कर दिया है। ये बात भी मधुर व्यक्ति होना चाहिए। आपको ये बताना वैसी ही हुई जैसे मैं अभी लोगों को कि आप अपने इच्छाओं के, काम और लोभ शराबखाने में जाते हुए देख रही थी । वहां से के स्वामी बन जाएं तथा ये षड्रिपु किसी भी नशे में चूर कुछ लोग बाहर आते हैं तथा प्रकार से आपको नियंत्रित न करें, अत्यन्त अन्य लोग उनकी दशा को दे खकर करते थे। ऐसे लोगों के विषय में आप क्या | हास्यास्पद बात है। यह तो आपको एक बड़ा शराबखाने के प्रति आकर्षित होते हैं! सा भाषण देने जैसी बात है जो कि अर्थहीन कभी-कभी तो मानव स्वभाव को समझ पाना है। इन सारे दुर्गुणों को आपने स्वयं कसकर असंभव होता है। सच्चाई यदि आपके सामने पकड़ा है, इतनी मजबूत पकड़ के होते हुए प्रकट हो जाए तो आप उसे सूली पर चढ़ा किस प्रकार आप इनसे मुक्ति पाएंगे? देते हैं। इन सब बातों की व्याख्या आप कैसे सामान्य बुद्धि की बात है इनसे मुक्ति पाने करेंगे? सत्य को स्वीकार करना ही आपकी 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-31.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 28 गरिमा है । सत्य में क्या आप कुछ और देखते हैं कि वह किस प्रकार आपका जोड़ना चाहते हैं? मान लो मैंने हीरों का हार आँकलन करेंगे। ये कहना बहुत आसान है ं पहना हुआ है यह मुझे सजाएगा, हीरों को कि हम परमात्मा पर विश्वास नहीं करते। ये नहीं। परन्तु यह (सत्य) हमें अलंकृत करने कहना बहुत ही आसान है कि हम सरकार वाली लाखों चीजों से भी कहीं अधिक (परमात्मा) को नहीं मानते परन्तु यदि आप दैदीप्यमान है। इस बात को यदि आप कोई गलत कार्य करें तो आपको पता चल स्वीकार करते हैं तो आप गरिमामय हो जाता है कि सरकार कार्यरत है। इसी प्रकार सकते हैं, इसके विषय में सोचे । इन बाह्य चीज़ों से तथा इनके लुभावने परमात्मा को नहीं मानते, परमात्मा अत्यन्त और छल पूर्ण तौर-तरीकों से हम सम्मोहित करुणामय हैं, प्रेममय और दयालु हैं, कि हो जाते हैं। मैं आपको केवल इतनी ही बात उन्होंने हमें स्वयं का ज्ञान प्राप्त करने की बता सकती हूँ। इसी प्रकार से इन कुगुरुओं स्वतंत्रता दी है। परमात्मा पर हम विश्वास ने अब तक सारा कार्य किया है और एक के करते हैं और उस पर हम अपना अधिकार ये कहना भी बहुत आसान है कि हम बाद एक उनका ये सम्मोहन अग्नि की तरह मान बैठते हैं। परमात्मा ने हमें अमीबा से से फैलता रहा है । आप उनसे पूछे कि आपको क्या प्राप्त चहुँ ओर इतने सुन्दर विश्व का सृजन किया हुआ है? उत्तर होगा हमसे ये बात मत पूछो है, ये सभी कार्य किए हैं । परन्तु उसके इस मानव स्थिति तक विकसित किया है. हम अत्यन्त प्रसन्न लोग हैं। परन्तु तीन निर्णय का अब हमें सामना करना होगा। दिनों के बाद आपको पता चलता है कि इस उसका निर्णय ऐसा नहीं है जिस प्रकार हम व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली। हम अभी तक समझते हैं कि वह एक न्यायाधीश की तरह भी नहीं जानते कि मानव के इतिहास में यह से बैठा हुआ है, बारी-बारी आपको बुलाता अत्यन्त महत्पूर्ण तथा भयानक समय है। है, वहां पर आपका एक वकील है। परमात्मा अन्तिम निर्णय आरम्भ हो चुका है। आज हम ने तो अत्यन्त सूक्ष्म ढंग से आपके अन्दर अन्तिम निर्णय का सामना कर रहे हैं। इस निर्णायक शक्तियाँ स्थापित कर दी हैं। बात का हमें ज्ञान नहीं है कि सभी शैतानी मानव की विकास प्रक्रिया में उन्होंने ये सब शक्तियाँ, भेड़ की खाल पहने भेडिए. कार्यान्वित किया है कितनी सुन्दरता से आपको आकर्षित करने के लिए अवतरित हो मानव को अमीबा से मानव अवस्था तक गए हैं आपको चाहिए कि बैठकर केवल विकसित करते हुए उन्होंने ये कार्य किया सच्चाई को पहचाने। इसका आरम्भ हो गया है । बहुत से पशुओं को विकास प्रक्रिया से विशाल पशुओं के परिवारों में से केवल हाथी ही बचा । इन है। यह बात सत्य है इसका आरम्भ हो गया निकाल फेंका गया। है। आइए अब परमात्मा के दृष्टिकोण से वर्षों में बहुत से पशु बच गए और बहुत से 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-32.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 29 एक-एक करके नष्ट हो गए। इसी प्रकार के स्थान दण्डाधिकारियों की तरह से हैं। ये से बहुत ज्यादा आक्रामक मनुष्यों की नस्लें लोग आपके मस्तिष्क में विराजमान हैं। भी समाप्त होती चली गई इतिहास को कुण्डलिनी का प्रकाश जब इन चक्रों पर आप देख सकते हैं। कहने से अभिप्राय ये है पड़ता है और ये चक्र आलोकित होते हैं तब कि आज के युग में आप किसी को अपनी आपमें भी आपकी अंगुलियों के सिरों पर सात बीवियों की हत्या करते हुए नहीं पाते। आत्मा के प्रकाश की अभिव्यक्ति होती है। कहने से अभिप्राय है कि ऐसा करना असंभव आपकी अंगुलियों के सिरे संवेदनशील हो है। हिटलर जैसा व्यक्ति आया और समाप्त उठते हैं । आपकी अंगुलियों की संवेदना है कि आपके अन्दर के कौन से चक्र हो गया। जो भी दूसरों पर सत्ता जमाने या बताती उन्हें नियंत्रित करने के लिए आया वह प्रभावित हैं। कुण्डलिनी जागृत होकर समाप्त हो गया। दूसरों पर सत्ता जमाने के तालुक्षेत्र (ब्रह्मरन्ध्र) तक आती है, उस स्थान विचार समाप्त हो जाते हैं। लोग उन पर तक जो बाल-अवस्था में अस्थिविहीन होता लज्जित होते हैं तथा मानव में संतुलन एवं है। तालू की हड्डी को ये बेंधती है वास्तव शान्ति के महत्व को स्वीकार करने वाले नए में ये तालू अस्थि का छेदन करती है। जिस विचार जन्म लेते हैं। परन्तु क्या आप वास्तव में अपने अन्दर को आप देख सकते हैं कि कूण्डलिनी आन्तरिक शान्ति चाहते हैं? यदि हम वास्तव जागृत होने पर तालू बच्चे के तालू की तरह में आन्तरिक शान्ति चाहते हैं तो इसकी से थोड़ा सा नीचे को चला जाता है। पहले व्यक्ति के सिर पर कम बाल हों उसके तालू प्राप्ति के लिए हम क्या कर रहे हैं? वास्तव ये धड़कता है। इस धड़कन को आप अपनी में आँकलन शुरू हो चुका है और आँखों से देख सकते हैं । कुण्डलिनी की आपका आँकलन करने के लिए परमात्मा धड़कन को आप त्रिकोणाकार पावन अस्थि ने न्यायाधीशों का एक समूह आपके में भी देख सकते हैं । कृण्डलिनी जब उठती अन्दर बिठा दिया है सभी न्यायाधीश, है तो इसकी गति को आप कुछ लोगों की वहाँ बैठे हुए हैं। ईसामसीह ने कहा था रीढ़ पर देख सकते हैं । व्यकि्ति की स्थिति जो लोग मेरे विरुद्ध नहीं हैं वे मेरे साथ हैं। यदि प्रथम दर्जे की हो या यूँ कहें कि ये न्यायाधीश ही वे लोग हैं और यही आपके वायुयान प्रथम दर्जे का हो तो उसका अन्दर स्थापित हैं। आपकी मेरूरज्जु (रीढ़) उतार-चढ़ाव (कार्यशैली) भी प्रथम दर्जे का तथा आपके मस्तिष्क में बनाए गए चक्रों में ही होता है । ऐसी अच्छी स्थिति वाले व्यक्ति ये विद्यमान हैं । मुझे खेद है कि यहाँ पर में कोई बाधा नहीं होती कुण्डलिनी को हमारे पास सूक्ष्म शरीर तंत्र का नक्शा नहीं है ऊपर चढ़ते हुए आप देख नहीं सकते। जिस पर आपको ये न्यायाधीश दिखाए जा उदाहरण के रूप में मैं जब यहां आई तो सकें। ये अत्यन्त रुचिकर है और इन सब मार्ग में यातायात की कोई समस्या न थी ग गिल्दी 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-33.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 मई-जून, 2003 30 और हम बड़ी ही शान्ति से यहां आ गए। हुआ फिर भी उन्होंने कह दिया कि हमें किसी ने हमें देखा तक नहीं। परन्तु अनुभव हो गया है और फिर वे गायब हो यातायात की समस्या यदि होती तो हम कहीं गए। आपको स्वयं से इस प्रकार व्यवहार न कहीं अटक गए होते। इसी प्रकार से नहीं करना। स्वयं को प्रेम करना है। अपनी किसी व्यक्ति के चक्रों में यदि समस्या हो तो साधना का सम्मान करना है और अपने लक्ष्य कुण्डलिनी भी रुक रुक कर उठती है और को प्राप्त करना है। माँ के नाते मेरा ये दिखाई पड़ती है। इसे आप अपनी आँखों से बताना आवश्यक है कि यह अत्यन्त गम्भीर देख सकते हैं। तो इस प्रकार होती है मामला है। यहाँ कोई गुरु व्यापार नहीं हो कुण्डलिनी की जागृति । ऐसी नहीं, जैसे रहा। आपको अपना आत्म-साक्षातकार प्राप्त कुछ लोग कहते हैं कि व्यक्ति मेढक की करना है। ये आपको प्राप्त करना है ये तरह से उछलने लगता है अब हमें अपने मस्तिष्क का उपयोग करना है आधुनिक जन्में हैं और इसे प्राप्त कर सकते हैं । काल में मस्तिष्क का ठीक ठाक होना आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के लिए ही आवश्यक है। क्या हम मेंढक बनने वाले हैं? आपने इस समय पर जन्म लिया है क्योंकि सौभाग्य की बात है कि आप इस समय पर आप युग-युगान्तरों के साधक हैं जैसा मैंने एक बार मानव बनने के पश्चात् क्या हम पक्षी बनने वाले हैं? मनोविज्ञान जैसे आपके आपको बताया था ये बात भारत के एक विज्ञान भी इस बात पर विश्वास करते हैं कि शास्त्र 'नल आख्यान में वर्णित है। नल ने, सामूहिक चेतना प्राप्त करने के लिए आपको जिसे कलि ने बहुत सताया था, एक बार अचेतन में प्रवेश करना होगा ये वैज्ञानिक लोग अब इस बात को स्पष्ट कह रहे हैं। जा रहा है कि अब कलि का शासन है । अतः हमें इस प्रकार की बात को स्वीकार कलि वो आसुरी शक्ति है, जो सारे भ्रमों को कर लेना चाहिए कि हमें सामूहिक चेतना जन्म देकर लोगों को भ्रमित करता है। में प्रवेश करना है। इसलिए नहीं कि मैं उसने नल को भी भ्रमित कर दिया. जिसके ऐसा कह रही हूँ या अन्य व्यक्ति ऐसा कह कारण नल का अपनी पत्नी से बिछोह हो रहा है। ये घटना तो आपके अन्दर घटित गया नल ने जब कलि को पकड़ा तो होनी चाहिए। उस दिन मैं हैम्पस्टेड (Hampstead) में हमेशा के लिए तुम्हें मिटा दूंगा ताकि आगे थी मुझे इस बात का पता चल जाता है कि कभी भी तुम लोगों को भ्रमित न कर सको। " किसके साथ क्या घटित हो रहा है। कुछ कलि ने उत्तर दिया ठीक है, तुम मेरा बध लोगों को चैतन्य लहरियाँ आ गई, उन्होंने कर सकते हों, ये बात मैं स्वीकार करता हूँ । अपने हाथों पर शीतल लहरियों का अनुभव परन्तु वध करने से पूर्व मेरा महत्व जान लो किया, परन्तु कुछ लोगों को ये अनुभव नहीं मेरा भी कुछ महत्व है।" नल ने कहा, कलि को पकड़ लिया। आजकल ये कहा उससे कहा, "अब मैं तुम्हारा बध कर दूंगा. श्म 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-34.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 31 "तुम्हारा क्या महत्व हो सकता है? तुम तो रहे हैं। वे साधू स्वभाव हैं। बनावटी जीवन लोगों के मस्तिष्क भ्रमित करते हो, तुम्हारा के मजाक को वे स्पष्ट देख सकते हैं । वे क्या महत्व हो सकता है?" उसने उत्तर जानते हैं कि ये सब हास्यास्पद परन्तु दिया कि जब मेरा साम्राज्य होगा अर्थात आध उन्हें वास्तविकता का ज्ञान नहीं है। अब पुनिक युग भ्रमित करेगा। ये सारी बातें अब ठीक जाएगा आपके महान देश में ये कार्यान्वित साबित हो रही हैं। हम इसी प्रकार की बातें हो चुका है, अब तो, मैं कहूँगी कि कम से करते हैं, कहते हैं, "हो सकता है ये बात कम एक हजार लोग भली -भांति इसमें हैं, ठीक हो, हो सकता है गलत हो, हो सकता जिन्होंने इसे समझ लिया है। कम से कम है यह अच्छा हो, हो सकता है यह बुरा हो। तीन सौ लोग ऐसे हैं जो भिन्न स्थानों पर ये वो समय है जब पृथ्वी पर भ्रम का राज्य इसे कार्यान्वित कर रहे हैं। होगा यही कलियुग है-आधुनिक काल । आधुनिक काल- जिसमें पर्वतों और की मुझे प्रसन्नता है जहां पर सम्राट की दरी-कंदराओं में परमात्मा को खोजने वाले ताजपोशी का पत्थर रखा गया था। इस में वह (कलि) लोगों के मस्तिष्क समय आ गया है और यह कार्यान्वित हो किंग्स्टन नामक इस प्राचीन नगर में आने महान संत एव साधक सव साधारण स्थान में अवश्य कोई विशेषता रही होगी गृहस्थियों में पृथ्वी पर लौट आएंगे और परन्तु वास्तविकता के प्रति लोगों की हैं-सर्वत्र, केवल सत्य को प्राप्त करेंगे। इसी भ्रम काल में ही संवेदना समाप्त हो गई साधकों को सत्य का दिव्य दर्शन होगा वे इसी देश में ही नहीं। भारत में तो यह स्वयं सत्य बन जाएंगे उन्हें उनका स्थिति और भी अधिक है। ये बात सुनकर आत्मासाक्षात्कार प्राप्त हो जाएगा ये आप हैरान होंगे कि वहां के सभी लोग सुनकर नल अपने बदले की भावना और परिष्कृत बनने का प्रयत्न कर रहे हैं ! क्रोध को भूल गया और ये भी भूल गया कि विकसित बनने का प्रयत्न कर रहे हैं, उन्हें उसके साथ कलि ने क्या किया था। नल ने इस बात का ज्ञान नहीं है कि इस विकास कहा, "कि इस गुण के कारण मैं तुम्हें क्षमा से आपको क्या प्राप्त हुआ। कोई जब उन्हें करता हूँ क्योंकि मैं उन साधकों का सम्मान वास्तविकता बताता है तो उन्हें विश्वास नहीं करता हॅू। इस सामूहिक हित के लिए अपनी होता वे समझते हैं कि आप आनन्द ले रहे व्यक्तिगत समस्याओं को छोड़ता हूँ। केवल हैं परन्तु उनसे झूठ बता रहे हैं । विकसित कलियुग में ही सत्ययुग का सूर्य उदय होकर वे भी आनन्द ले सकते हैं । होगा। अतः ये समझना अत्यन्त आवश्यक है कि सत्य का संसार, दिव्य प्रकाश का युग लक्ष्य क्या है? लक्ष्य प्राप्ति के लिए आने वाला है और जंगलों में सत्य की खोज कुण्डलिनी आपके अन्दर स्थापित कर दी करने वाले संत अब इस संसार में जन्म ले गई है। परन्तु मैं कहूँगी कि कुण्डलिनी बहुत প পg 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-35.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 वे 6 32 बड़ी न्यायाधीश है, पूरे ब्रह्माण्ड में उन जैसा सुप्तावस्था में विद्यमान है और जागृत होने न्यायाधीश आपको नहीं प्राप्त हो सकता के अवसर की प्रतीक्षा कर रही है। बीज के क्योंकि वे आपकी अपनी माँ हैं। वे निर्वाज्य अंकुरण की तरह से जब इसका अंकुरण हैं अर्थात देती ही रहती हैं। आपसे किसी होता है, जब ये ऊपर को उठती हैं तब कोई भी चीज की आशा नहीं करतीं। उनकी एक ऐंसा व्यक्ति होना चाहिए जो आपकी ही इच्छा होती है कि आप अपने वैभव को देखभाल कर सके, आपका मार्गदर्शन कर प्राप्त करें। इसके अतिरिक्त वे आपसे कुछ सके । को ई ऐसा व्यक्ति जो आपकी भी नहीं चाहतीं कि आप स्वयं को पहचान अंगुलियों पर होने वाली संवेदना का कूट लें, अपने पूर्णत्व को पा लें। वे आपसे केवल ( इतना ही चाहती हैं। आपके साथ बार-बार सके कि अपनी अंगुलियों पर जो आप जन्मी वे आपकी माँ हैं। अपने लिए, अपने महसूस कर रहे हैं उसका ये अर्थ है। उत्थान के मार्ग में आपने जो समस्याएं खड़ी इसके बिना आपको अपने आश्रय स्थल की हैं, वे सब उन पर अंकित हैं। आपके (moorings) समझ न आएंगे। आप ये न विषय में वे सभी कुछ जानती हैं और इस समझ पाएंगे कि आप कहां जा रहे हैं और मामले में आपका आँकलन भी करती हैं कि इस प्रकार से अज्ञान के जाल में फंसने की कितनी गंभीरता से आप अपना उत्थान संभावना बनी रहेगी। ये भी हो सकता है कि चाहते हैं। वे पूरी गंभीरता से आपको वहां रहते हुए भी आपको अधिक ज्ञान न जानती हैं। ऊपर उठते हुए उन पर सभी प्राप्त हो सके। अतः वे चाहती हैं कि कोई चिन्ह दिखाई देते हैं । चे दर्शाती आपमें क्या कमी है। परन्तु वे आपकी अपनी ये आवश्यक है कि अचेतन किसी अन्य हैं, उनसे अधिक आपका अपना कोई भी व्यक्ति के माध्यम से बात करे और वह नहीं है। वे आपकी मित्र हैं और वे आपको माध्यम भी ऐसा होना चाहिए जिसका स्वभाव आँकती भी हैं ताकि आपको सर्वोत्तम कुण्डलिनी जैसा हो। जो लोग आपसे पैसा उपलब्धि प्राप्त हो सके। बे ये भी जानती हैं बनाते हैं, कि आपके लिए सर्वोत्तम क्या है। बच्चा मझधार आपको छोड़ देते हैं. उन्हें किस बिजली के सॉकेट में यदि उंगली डालना चाहे तो माँ उसे रोकती है परन्तु बच्चा माँ चोर हैं जो आपके दरवाजे पर खड़े अवसर की बात नहीं सुनता, बिगड़ जाता है और वो की प्रतीक्षा में हैं कि कब आपको पकड़ें। उसके हाथ को सॉकेट से हटा देती है। उन लोगों का अब ऑकलन शुरू हो चुका क्योंकि वो उससे प्रेम करती है, उसका प्रेम है. उन्हें त्यागा जा रहा है, जेल भेजा जा पावन है जिसमें व्यक्ति प्रेम के पात्र से कुछ रहा है और वो चाहते हैं कि अधिक से आशा नहीं करता। ऐसी शक्ति आपके अन्दर अधिक लोग उनके साथ हों । (Decode) खोल सके अर्थात आपको ये बता हैं कि व्यक्ति उनका प्रतिनिधि (Mouthpiece) बने । , आपका दुरुपयोग करते हैं, बीच प्रकार से गुरु कहा जा सकता है? वो तो 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-36.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 33 कुण्डलिनी, जब जागृत होती है तो शक्ति परमात्मा की इच्छा है, उस परमात्मा सर्वप्रथम यह आपको शारीरिक चैन देती है, की जो सर्व - शक्तिमान है, जिन्होंने हमें वास्तव में ये आपको शारीरिक चैन देती है हमारी स्वतंत्रता प्रदान की है। यह शक्ति और इस प्रकार से फल के रूप में और (कुण्डलिनी) परमात्मा को चुनौती नहीं देगी। उपफल के रूप में आपको सुन्दर स्वास्थ्य उनकी शक्ति, उनकी ताकत, हमारी प्राप्त हो जाता है। उदाहरण के रूप में स्वतंत्रता का विरोध नहीं करेगी। उनकी कुण्डलिनी जागृति के बिना कैंसर रोग को इच्छा कुण्डलिनी के रूप में आपके अन्दर ठीक नहीं किया जा सकता, ये बात मैं विद्यमान है और यही इच्छा जागृत होकर बताती चली आ रही हूँ। डाक्टरों को भी जब आपके अन्दर उठती है । यह आपको कैंसर हो जाता है तो वो मेरे पास आते हैं आलोकित करती है, विवश नहीं करती. और ठीक हो जाते हैं। परन्तु मैं यहां पर आपसे आपकी स्वतंत्रता नहीं छीनती, ये कैंसर रोगियों को ठीक करने के लिए नहीं आपको प्रकाश प्रदान करती है ताकि आप बैठी हूँ। सहजयोगियों को भी कैंसर रोगियों देख सकें। आपको इस विश्व में रहने की में कोई दिलचस्पी नहीं है। आपको यदि स्वतंत्रता है, कोई आपको विवश नहीं करता आत्म-साक्षात्कार प्राप्त हो गया, जो लोग कि आप यहाँ बैठें, वहां बैठें, ऐसे चलें वैसे यहां बैठे हुए हैं इनमें से अधिकतर को कुछ चलें। किसी भी बात के लिए आपको विवश न कुछ शारीरिक या मानसिक रोग था । नहीं किया जाता। आपको एक आलोकित इनमें से कुछ तो मिर्गी-रोगी भी थे और स्थान दे दिया जाता है, जिससे आप अपनी कुछ को गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं थीं । कुछ स्वंतत्रता को बेहतर ढंग से, अधिक को रक्त कैंसर था तथा कुछ अन्य शारीरिक सूझ-बूझ से उपयोग करें । आप क्योंकि रोगों से पीड़ित थे परमात्मा के दिव्य प्रेम, आलोकित होते हैं इसलिए देख सकते हैं । उनकी इच्छा (कुण्डलिनी) से आपको इन आपको इस बात का ज्ञान होता है कि क्या सब समस्याओं का सामना करना होता है। स्वीकार करना है क्या नहीं करना। | कुण्डलिनी परमात्मा की इच्छा की प्रतिनिधि | करुणा एवं प्रेम के सागर की इच्छा की। होना है। जब तक आप आलोकित नहीं हो पहली आवश्यकता आपका आलोकित परमात्मा यह साम्राज्य आपको अर्पित करना जाते तब तक आप भ्रम में फंसे रहते हैं और चाहते हैं, आपको इस साम्राज्य का चीजों को देख नहीं सकते। निर्णय आपकी पर छोड़ दिया जाता है तो राजकुमार बनाना चाहते हैं। यह अत्यन्त स्वतंत्रता गंभीर बात है और इस पर हमें ध्यान देना कुण्डलिनी आपको रोगमुक्त करती है, चाहिए । इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि आपको सुधारती है और सभी आशीष निर्णय होना है तथा हमारे अन्दर ऐसी शक्ति आपको देती है । भौतिक चिन्ताओं से विद्यमान हैं जो हमारा आँकलन करेगी। यह आपको मुक्ति देती है। जैसे मैंने देखा है कि | পঁ 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-37.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 मई-जून. 2003 34 आत्मसाक्षात्कार के पश्चात लो गों की अन्दर विद्यमान है। इसके विरुद्ध चाहे जो भौतिक समस्याओं का समाधान हो जाता है । आप करते रहें यह बनी रहती है। कुछ ऐसा नहीं है कि बों श्रीमान फोर्ड या उन्हीं लोगों की कुण्डलिनी को मैंने देखा है कि जैसे धनबान बन गए हैं परन्तु व्यक्ति का वह कितनी घायल अवस्था में होती है! दर्द दृष्टिकोण ही बदल जाता है और उसकी और पीड़ा के निशान कुण्डलिनी पर बने हुए भौतिक समस्याओं का समाधान हो जाता है। होते हैं और दर्द से कराहती हुई वह अपनी हां क्योंकि इसके लिए भी हमारे अन्दर चक्र करवटें बदलती है। फिर भी वह बनी रहती हैं है। आपकी पारिवारिक समस्याओं का है और उस क्षण की प्रतीक्षा करती है समाधान हो जाता है, पति-पत्नी की जिसके लिए उसे वहां स्थापित किया गया समस्याओं का समाधान हो जाता है ताकि है। ऐसा आशीर्वाद आपको कहां प्राप्त हो आप स्वतंत्र हों जाएं। जो समस्याएं आपको सकता है? यह सब आपके अन्दर विद्यमान चिन्तित करती हैं उनकी पकड़ ढीली पड़ है और इसे कार्यान्वित होना है । परन्तु जाती है। आप इन चीज़ों को अधिक आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के बाद भी लोग स्वतंत्रता पूर्वक देख सकते हैं कि क्या गायब हो जाते हैं। पाश्चात्य देशों में जो चुनना है और जीवन में कौन सा मार्ग विकास हुआ है उसकी क्या आप कल्पना कर सकते हैं? आप लोग तीन कदम आगे अपनाना है। आपको ये सब रियायतें, लाभ तथा संभव चलते हैं और चार कदम पीछ ! लोगों पर सहायता प्रदान करने के पश्चात आपका वास्तव में आपको हैरानी होगी मैं समझ आँकलन किया जाता है। क्या इतने उदार नहीं पाती कि पाश्चात्य मस्तिष्क जो कि किसी न्यायाधीश की कल्पना आप कर भौतिक लाभ के विषय में इतना स्पष्ट है सकते हैं? यह हमारे अन्दर विद्यमान है । उसे क्या हो गया है! जब सहजयोग में परमात्मा ने जो कृपा हम पर की है उसके उनकी स्थिति की बात आती है तो उनका लिए हमें उनके प्रति कृतज्ञ होना पड़े गा। स्तर कभी-कभी तो निम्नतम होता है । आप परन्तु हमें इस बात का कोई अहसास ही समझ नहीं सकते कि किस प्रकार इनमें नहीं है। हम तो बस उस पर अपना पूर्ण आत्म सम्मान का पूर्ण अभाव है। भारत के अधिकार मान बैठते हैं। जो भी कुछ हमारे गाँवों के लोग एकदम से आत्मसाक्षात्कार अन्दर है उस पर अपना अधिकार मान लेते प्राप्त करते हैं और पफिर इसमें उतर जाते हैं । परमात्मा ने जो कृपा एवं करुणा हम पर हैं। उनमें किसी प्रकार की भी भटकन नहीं की है उनके लिए हम उनका धन्यवाद भी होती, बस स्थिर हो जाते हैं । मैं मानती हूँ नहीं करते। छोटी-छोटी इच्छा की प्राप्ति न कि जटिलताएं हैं परन्तु आपमें आत्म- होने पर भी हम उनका महत्व भूल जाते हैं। सम्मान होना ही चाहिए। कभी-कभी तो यह फिर भी वो विद्यमान हैं. कुण्डलिनी हमारे बात आपको चोट पहुंचाती है। शायद आप I 1 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-38.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 मई-जून, 2003 35 नहीं जानते कि इस देश में मैने सात या दृष्टिकोण है आराम कुर्सी राजनीतिज्ञों की आठ लोगों पर चार वर्ष लगातार कार्य किया तरह से यहां बैठकर वियतनाम के बारे में है। चार वर्ष, क्या आप इस बात पर विश्वास सोचना या सारे मामले के दस्तावेजों को कर सकते हैं? ये नहीं कि आपमें कोई कमी फाइल में लगाकर बन्द कर देना। परमात्मा 1 | आप साधक हैं। आप संत है जिन्होंने द्वारा चुने गए आप ही वो लोग हैं जिन्होंने इस देश में जन्म लिया है। परन्तु आपकी इसे (आत्म साक्षात्कार) प्राप्त करना है, उसे पाना है। परन्तु वास्तविकता को अपनाने के इतने चंचल और उथले क्यों हैं? गहनता से लिए आप सौ बार सोचेंगे और उल्टे सीधे क्यों नहीं आप इसे स्पर्श करते? क्यों नहीं चक्करों में फंस जाएंगे ये सब हो जाता है । इसे समझते? ये बात मुझे समझ नहीं आती इसके लिए मैं किसे दोष दूं-इन भयानक गुरुओं को या उन लोगों को जिम्होंने मैं आपका अत्यन्त सम्मान करती हूँ और आपके लिए दिखावा बनाया है या प्रेम करती हूँ क्योंकि मैं आपको जानती हूँ। आध्यात्मिकता के प्रति आपका कृत्रिम युगों से मैं आपको पहचानती हूँ। आप मेरे दृष्टिकोण इसके लिए जिम्मेदार है? जिस खोए हुए बच्चे हैं, ये बात मै जानती हूँ। प्रकार चीजें चल रही हैं उन्हें देखकर परन्तु मैं ये नहीं जानती कि किस प्रकार इसे कभी-कभी तो मैं कॉप जाती हूँ। लोग तो (आत्म साक्षात्कार) आपके अन्दर स्थापित इस पर अपना अधिकार मान लेते हैं। आज करू? कभी-कभी तो मेरी स्थिति वैसी ही हो ये आपकी जिम्मेदारी है, उन लोगों की जाती है जैसी आपकी कुण्डलिनी की है । जिन्हें साधक माना जाता है, कि वे आपको ये बता देना आवश्यक है कि इसे वास्तविकता को लोगों के सामने लाएं और प्राप्त करने की आपको बहुत जल्दी होनी उन्हें बताएं कि वे इसे देखें और प्राप्त करें । चाहिए । आपको अत्यन्त गतिशील होकर आप क्योंकि उनके साथी हैं, उनके संबंधी इस कार्य को करना है तथा लोगों से हैं, किस प्रकार आप उन्हें छोड़ सकते हैं? बातचीत करनी है और उन्हें बताना है कि चाहे आपको आत्म - साक्षात्कार मिल जाए या है सन्त-सुलभता को क्या हो गया है? आप कि क्यों आप अपना सम्मान नहीं करते? अब आपातकालीन स्थिति है। क्या आप ये आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर लें नहीं देख सकते कि विश्व में क्या हो रहा है? आप उन्हें भूलेंगे नहीं, उनके विषय में क्या आप भ्रम को नहीं देख सकते? परन्तु सोचेंगे। आत्म-साक्षात्कार मिल जाए या स्थिति को स्वीकार कर लिया जाता है। आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर लें स्थिति का यदि सामना भी करते हैं तो आप उन्हें भूलेंगे नहीं, उनके विषय में अत्यन्त बौद्धिक तरीके से। परिणाम स्वरूप सोचेंगे। आत्म-साक्षात्कार प्राप्ति की भी आप स्वयं को दोषी समझ बैठते हैं। जैसे आपको तब तक प्रसन्नता नहीं होगी जब वियतनाम के मामले में। ये बहुत अच्छा तक आपके सभी अपने तथा अज्ञान के 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-39.txt चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 मई-जून, 2003 36 कारण खोए हुए सभी सन्त आत्म- बर्बाद करने के लिए आप इसे नहीं बचा साक्षात्कार को पा नहीं लेते। आप उनके रहे। मेरे विचार से सर्वोत्तम विज्ञापन ये होगा विषय में सोचेंगे मुझे ये कार्य आपके माध्यम से कार्यान्वित पाउण्ड बचाएं। ये भी ऐसा ही है। बर्बाद करना है। अकेले मैं ये कार्य नहीं कर करने के लिए आप इसे नहीं बचा रहे । इसे सकती। मैं यदि अकेले इसे कर सकती तो आप किसी अत्यन्त अमूल्य, अत्यन्त अहम् कोई कठिनाई न होती। परमात्मा यदि इस एवं महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए बचा रहे हैं । प्रकार से इस कार्य को कार्यान्वित कर उस उपलब्धि के लिए जिसे आप तलाश कर सकते, लोगों को आत्म साक्षात्कार दे सकते, रहे हैं। कभी-कभी मैं ये नहीं समझ पाती उन्हें स्थापित कर सकते तो सब ठीक हो कि किस प्रकार आपको गहनता के उस जाता। इस प्रकार ये कार्य न होगा क्योंकि स्तर तक बनाए रखूं। निःसन्देह इस देश में आपको स्वतंत्रता प्राप्त है। आपको स्वतंत्रता कुछ लोग उस उच्च स्तर के हैं और वे क्यों प्राप्त है? क्योंकि स्वतंत्रता के बिना अत्यन्त संतुष्ट हैं। हम नहीं जानते कि इस आप उस स्थिति तक नहीं आ सकते जिस देश में कितना कार्य हुआ है तथा परमात्मा स्थिति के द्वारा आपको उन्नत किया गया ने भी कितना कार्य किया है । उदाहरण के है। हम इस बात को महसूस नहीं करते कि रूप में मैं पहाड़ी झुकाव (Stone Hunch ) को कि 'तीन हजार पाउण्ड खर्चे और पचास देखने के लिए गई। यह पृथ्वी माँ का सृजन आज हम कहां है। कई बार तो मुझे ऐसे लगता है मानो मैं है । वहां पर आप चैतन्य लहरियाँ देख सकते दीवारों से बातें कर रही हूँ। उदाहरण के हैं, इन्हें महसूस कर सकते है । इस देश में रूप में आप लोग देखेंगे कि कई लोग भी बहुत से कार्य हुए है किंग्स्टन भी इतना घड़ियों के दास हैं। उनके पास सहज के अधिक चैतन्यमय है कि मुझे हैरानी हुई। लिए कोई समय नहीं है - ओह हम बहुत आप लोग क्या देखते हैं? कम से कम सौ व्यस्त हैं! किसलिए आप समय बचा रहे हैं? लोगों ने जानने का साहस किया, कुछ क्यों ये विचार आपमें आया? हमारे पूर्वजों ने लोगों ने पैदल चढ़ाई और उतराई की, कुछ कभी ऐसा नहीं किया। आप क्यों इस प्रकार लोग इसे पार कर गए और कुछ ने बीच में समय बचा रहे हैं? काहे के लिए? आप ही इसे छोड़ दिया। वो लोग निर्णय कर रहे 1 उत्थान के लिए समय बचा रहे हैं। शराब थे परन्तु संवेदना से उनका कोई सामीप्य न खानों तथा घुड़दौड़ आदि मूर्खता पूर्ण चीज़ों था। वास्तविकता की उनमें कोई संवेदना न के लिए नहीं। उत्थान प्राप्ति के लिए आप थी। वे इसे महसूस नहीं कर सकते शायद समय बचा रहे हैं। आप क्योंकि हीरे हैं ये कार्यान्वित हो जाए, मुझे विश्वास है ऐसा इसलिए आपको तराशा जाना आवश्यक है। हो जाएगा मैं अत्यन्त आशावादी व्यक्ति हूँ। स्वयं आपने को तराशना है। समय को आप इस बात को देख सकते हैं। वास्तव में खुद 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-40.txt मई-जून, 2003 पैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 37 आशावाद मेरा स्वभाव है। मैं इसे मानती हूँ. ऐसा मुझे लगता है। इसी कारण से मैंने यह कार्य करेगा। आपकी तथाक थित इसके लिए बधाई दी। आपका किंग्स्टन में ः होना अच्छी बात है परन्तु देखना ये है कि यह समझने का प्रयत्न करें कि आपको इस क्षेत्र में बहने वाली चैतन्य शक्ति का स्वतंत्रता इसलिए दी गई है कि आप आत्मा आप कितना उपयोग करते हैं। मुझे आशा है बन सकें, इसलिए नहीं कि आप पशु बन कि कुछ न कुछ कार्यान्वित हो जाएगा। आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् स्वतंत्रता मार्ग में खड़ी हो जाती है । अत जाएं। मुरगे को आत्म-साक्षात्कार देने का क्या लाभ है? ये एक दूसरी बात है कि मैं आपने इसे गंरभीरता से लेना है इसे मुर्गों को आत्म साक्षात्कार दे भी पाऊंगी या कार्यान्वित करना है क्योकि इसे पाकर भी नहीं। बहुत से लोग कहते हैं कि "श्री आप अचानक सूर्य या चांद को नहीं छू माताजी मैंने बहुत से अच्छे कार्य किए हैं। मैं लेते/ और अगर चांद को छू भी लें तो भी कहती हूँ आपने कौन से भले कार्य किए क्या हो जाएगा? आप कुछ भी न समझ है?" "मैं चिकन नहीं खाता। मैं पूछती हूँ मेरे सकेंगे अतः आपको अपने अस्तित्व के कारण से आप चिकन क्यों नही खाते? कृपा सभी क्षेत्रों में प्रवेश करना होगा क्योंकि करके आप स्वयं को बचाएं। तो इस प्रकार आड़ोलन तो अंदर ही आरम्भ होगा। अपने से लोगों में सभी प्रकार के अटपटे विचार चित्त को आपने अपने अन्दर के सभी क्षेत्रों में ले जाना है अपने चित्त को स्थापित भरे हुए हैं । अतः आप साधकों के लिए ही, सुन्दर करना है इस प्रकार आपका चित्त मूर्खता जीवन बृक्ष की आप सब कलियों के लिए पूर्ण चीज़ों के शिकंजे से मुक्त हो जाएगा| ही, इस सारी सृष्टि का सृजन किया है । आपकी सभी प्राथमिकताएं परिवर्तित हो उन्होंने ही उत्थान प्राप्त करना है उन्हीं को जाएंगी। महानतम बात ये प्राप्त करना होगा उन्हीं के अन्दर पूरा जब सहस्रार को बेधती है तो व्यक्ति के ब्रह्माण्ड खिल उठा है वो लोग क्या कीड़े अन्दर आनन्द का प्रवाह चालू हो जाता है। (Worms) बनना चाहते हैं? इस बात को अपने हाथों से शीतल चैतन्य लहरियों का सोचें, इसे सोचकर देखें! परमात्मा की कृपा बहाव आप महसूस करते हैं-परम चैतन्य की से हम आत्म साक्षात्कार का कार्य करेंगे और शीतल लहरियां सर्वत्र आप इन्हें महसूस ये कार्य एक पल में भी हो सकता है। ये भी करने लगते हैं और इन्हें खोज सकते हैं । हो सकता है कि आप सबमें ये कार्य हो अब आप स्वयं को तथा अन्य लोगों को चुका हो क्योंकि आज मुझसे कुछ अधिक जाँच सकते हैं और स्वतः लोगों की सहायता ही-कुछ अधिक ही (चैतन्य बह रहा है) । कर सकते हैं । इसके लिए आपको कहीं किंग्स्टन बहुत अच्छा स्थान है। हो सकता जाना नहीं पड़ता। कोई दवाइयाँ नहीं है एक दिन ये बहुत महान स्थान बन जाए, लेनी पड़ती. कुछ नहीं करना पड़ता। ये है कि कुण्डलिनी 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-41.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 5 38 बस अपने आप में स्थापित होना पड़ता आनन्दायी है हम सब इस आनन्द की है। मोक्ष प्राप्ति में आप लोगों की मदद स्थिति में हैं और आपको भी हमारा साथ करते हैं मानो सारी मशीनरी कार्य करने देना चाहिए। ये अद्वितीय है। कष्टों के लिए लगी हो। पूरी तकनीक दूरदर्शन यंत्र की तरह से कार्य करने लगती है जिसे आप सोचता है कि क्यों ये लोग ऐसा कर रहे हैं, चालू करते हैं और सभी कुछ देखने लगते बिल्कुल वैसे ही जैसे, कोई बड़ा हाथ, हैं। आपको स्वयं पर हैरानी होती है। परन्तु परिपक्व व्यक्ति बच्चों की ओर देखता है कि आपको इसकी तकनीक का ज्ञान प्राप्त ओह' क्यों ये बच्चे अपने हाथ आग में डाल करना पड़ेगा और ये जानना पड़ेगा कि इसे रहे हैं ! किस प्रकार अपने पर और अन्य लोगों पर कार्यान्वित किया जाए। ये कार्य अत्यन्त इसमें कोई समय नहीं। साक्षात्कारी व्यक्ति परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। पत् ा me प ता का ्र ब त केर ं र 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-42.txt जन्मदिवस समारोह 20.3.03. निर्मल धाम, दिल्ली परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज सभी लोग आपसे अंग्रेजी में बात में वे सभी लोगों की सहायता करें। तब ऐसी कर रहे हैं। शायद उन्हें लगता है अधिकतर कोई समस्या न रह जाएगी। कोई भी लोग अंग्रेजी भाषी हैं। राजनैतिक, आर्थिक या अन्य प्रकार की काश जीवन के विषय में मैं आपको कुछ समस्या न रहेगी। ये सारी समस्याएं मानव नया बता पाती जीवन चलता ही जाता है मस्तिष्क की देन है उस मस्तिष्क की जो आप चाहे अस्सी के हों या नब्बे के इससे कि अभी पूर्ण विकसित नहीं है। एक बार कोई फर्क नहीं पड़ता। देखना केवल ये यदि यह विकसित हो जाए तो फिर चिंता होता है कि सहजयोग से प्राप्त किए प्रकाश की कोई बात नहीं रहती। फिर आप दूसरे को आपने कितना उपयोग किया है। लोगों के लिए चिंतित होते हैं, अन्य लोगों सहजयोग में अब आप सब लोग ज्योतिर्मय की मृक्ति के लिए चिंता करते हैं। ऐसा हो चुके हैं आपकी कुण्डलिनियाँ ऊपर हैं स्वतः होता है। मुझे कुछ कहना नहीं पड़ता। और मैं सोचती हूं कि आपमें से अधिकतर आप लोगों ने अपने जीवन में देखा होगा कि को इस बात का ज्ञान है परन्तु इसके किस प्रकार से जीवन के प्रति दृष्टिकोण बावजूद भी, महत्वपूर्ण बात ये है कि आप परिवर्तित होता है । यह दृष्टिकोण परिवर्तन स्वयं को मानव मुक्ति के लिए समर्पित करें, ही महत्वपूर्ण है । इस कार्य में उनकी सहायता करें। लोगों की आलोचना करने या उनकी प्रताड़ना करने तथा अन्य चीजों में अत्यन्त सफल हैं। आपमें से कुछ लोग राजनीति, व्यापार के स्थान पर आपका कर्त्तेव्य ये है कि आप परन्तु जब तक आप अन्य लोगों को आत्म- उन्हें उच्च स्तर पर लाएं ताकि वे अपना साक्षात्कार नहीं देते, उन्हें अपने जैसा सम्मान करें अपने आत्म साक्षात्कार का कुशल नहीं बनाते, तब तक आप संतुष्ट सम्मान करें। ऐसा करना बहुत आवश्यक है नहीं होते। क्योंकि आरम्भिक दिनों में मैं बहुत से ऐसे सहजयोगियों से मिली और पाया कि वे सहायता होते देख मैं बहुत प्रसन्न हू। मुझे अपने साथियों तथा अन्य चीजों की कभी आशा न थी कि अपने जीवन में मैं ये आलोचना में ही लगे हुए थे । परन्तु सब देख सकूंगी। परन्तु ये कार्यान्वित हो आत्मसाक्षात्कार पा लेने के पश्चात् ये गया है, बहुत अच्छी तरह से कार्यान्वित हो उनका कर्त्तव्य बन जाता है कि मुक्ति प्राप्ति गया है। वास्तव में मैं हैरान हूं कि किस सहजयोग द्वारा इतने सारे लोगों की 1 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-43.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 40 प्रकार चीजें कार्यान्वित हो गयी हैं। वास्तव मुक्ति का ध्वज उठाया है और तेजी से आगे में मैं हैरान हूँ कि किस प्रकार चीजें इतनी बढ़ रहे हैं। ऐसा करना बहुत सुगम है। तेजी से बढ़ीं और सहजयोग बहुत सारे देशों परन्तु आपकी अपनी क्या स्थिति है? क्या में, बहुत से लोगों के दिलों में उन्नत हुआ आप इस सब से ऊपर उठ पाए हैं? क्या और किस प्रकार उन्होंने सह ज को आप अन्य लोगों को भी उन्नत कर रहे हैं? अपनाया! लोग केवल अपने देश में ही नहीं देश के बाहर भी कार्य कर रहे हैं। हैं पूरे विश्व की समस्याओं को आप आखिरकार अब मैं हर जगह तो नहीं जा समझने लगते हैं तथा कुण्डलिनी की सकती। परन्तु इसके बावजूद भी सहजयोग जागृति द्वारा इनसे मुक्ति पा सकते हैं। मैं फैल रहा है। मेरे लिए ये बहुत बड़ी बात है- आपको बताती हूं कि यह कुण्डलिनी इतनी अत्यन्त संतोष प्रदायक। जब मुझे पता लगता है कि सहजयोग फलां देश में पहुँच बना देती है। कहावतों आदि में भिन्न प्रकार गया, दूसरे देश में पहुँच गया तो मेरी से इसका वर्णन किया गया है परन्तु हम पूरे विश्व को परिवर्तित कर सकते 1 महान चीज है कि यह मानव को सर्वश्रेष्ठ प्रसन्नता की आप कल्पना नहीं कर सकते। सहजयोगी के पास महान शक्ति होती है व्यवहारिक रूप से मुझे बताया गया है कि और ये महान शक्त ये है कि वो अन्य लोगों 43 देशों में सहजयोग जोर-शोर से जम को सहजयोगी बना सकता है । वे अन्य गया है और बहुत से अन्य देशों में छोटे लोगों को आत्मसाक्षात्कार दें। उन्हें चाहिए स्तर पर चल रहा है परन्तु ये सब सुनने कि अपनी शक्तियों का उपयोग करें और पूरे की भी मैंने कभी आशा न की थी कि यह विश्व को परिवर्तित करने का प्रयत्न करें ये नी ते जी से बढ़े गा ! इसका श्रेय मेरी इच्छा है । मैं नहीं जानती कि अपने इत सहजयोगियों को जाता है जिन्हों ने ये जीवन काल में मेरी इच्छा पूर्ण होगी या नहीं, परन्तु आप सब लोगों को भी इसी प्रकार चमत्कार कर दिखाया है। भारतीय और विदेशी लोगों की मैं आभारी निर्णय लेना चाहिए और मुझे विश्वास है कि हूँ कि उन्होंने बिना किसी की आलोचना यह सब कार्यान्वित हो जाएगा। किए, बिना किसी का अपमान किए. मानव परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। পঁ 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-44.txt जन्मदिवस पूजा 21.3.03, निर्मल धाम, दिल्ली परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन सारे सहज योगियों को हमारे ओर से मेरे छोटे से कार्य की सराहना कर रहे हैं । पूरे अनन्त आशीर्वाद इतने बड़े तादाद में आप विश्व में सहजयोग फैल गया है और अभी भी लोग आज यहां पर हमारा जन्मदिवस मनाने आग की तरह से फैल रहा है। इससे पता के लिए पधारे। मैं किस तरह से आपको चलता है कि यह विश्व की आवश्यकता थी। धन्यवाद दें? मेरी तो समझ में नहीं आता है! लोगों को इसकी जरूरत थी। यही कारण बाहर से भी इतने लोग आये हैं और अपने कि इतने उत्साह पूर्वक लोगों ने इसे अपनाया भी देश के इतने यहाँ सम्मिलित हुए। ये है। भारत जैसे देश की बात तो मुझे समझ में देखकर के हृदय भर आता है। न जाने हमने आती है जहां आत्म- साक्षात्कार की बात कही ऐसा कौन सा अद्भुत कार्य किया है जो गई परन्तु जिन देशों में उच्च आध्यात्मिक आप लोग हमारा जन्म दिन मनाने के लिए चेतना का ज्ञान नहीं है उन देशों में भी आप यहाँ एकत्रित हुए हैं आप लोगों का हृदय लोग महान आशीर्वाद मानकर सहजयोग को भी बहुत विशाल है कि आपने आज के दिन समझें, सराहना करें और उसका आनन्द लें, ये 1 इतने दूरस्थ स्थित जगह पर आकर के हमें बात मेरी समझ में नहीं आती! मैं सोचती हूँ कि सम्मानित किया हमारे पास तो शब्द ही ये विशेष समय है जिसमें आप प्रेम एवं प्रकाश नहीं हैं कि आप लोगों से बताया जाए कि के जाल में फंस गए। स्वयं मुझे भी विश्वास इससे हम कितने आनन्द से पुलकित हो नहीं था कि जिस प्रेम का आनन्द अपने अन्तस में लिया जा सकता है उसे आप समझेंगे। गए! अंग्रेजी से अनुवादित : आध्यात्मिक सूझ-बूझ क्या है? मैं नहीं जानती मैं उन्हें ये बता रही थी कि जिस प्रकार थी कि किस प्रकार आप अपनी आत्मा को से आप लोग मेरा जन्मदिवस मना रहे हैं समझेंगे और इसका आनन्द लेंगे! इसका अर्थ उससे मुझे अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है जो ये हुआ कि आप सबमें इस महान प्रेम तथा आनन्द प्रवाहित हो रहा अभिव्यक्ति करने की विधि मैं नहीं जानती। विषय में कोई सन्देह नहीं है। किस प्रकार यह वास्तव में मैं नहीं जानती कि मैंने आप इतनी सुन्दरता पूर्वक कार्यान्वित हुआ? ये लोगों के लिए क्या किया है कि आप इतने अत्यन्त आश्चर्य की बात है? जिस प्रकार से उत्साह एवं प्रेम से इस कार्य के लिए आगे आपको आध्यात्मिक शक्तियां प्राप्त हुई हैं और आए हैं। अपने विशाल हृदय के कारण ही आप जिस प्रकार आप इनका उपयोग कर रहे हैं ये है उसकी आध्यात्मिक जागृति की योग्यता है। इसके 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-45.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 42 वास्तव में मानवीय समझ से परे की बात है। जितने भी ले सकें उन्हें जागृति देने का यही कारण है कि लोगों को विश्वास नहीं होता प्रयत्न करें वो सब भी मानव हैं जिन्होंने कि सहजयोग जैसी भी कोई चीज है तथा इस समय जन्म लिया है। अतः वो भी इसके मानव में अन्तर्जात एक शाश्वत शक्ति है जिसे अधिकारी हैं। आप उनसे मिलने का, जागृत किया जा सकता है। यह मानव की बातचीत करने का और आत्मसाक्षात्कार देने सोच से परे की बात है कि वह अपने अन्दर का प्रयत्न करें ये ज्यादा कठिन कार्य नहीं इस प्रकार की आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर है। आप सभी इस कार्य को कर सकते हैं। सकता है। न जाने आपमें से भी कितने लोग प्रत्येक सहजयोगी यदि दस पन्द्रह लोगों को इस बात को महसूस करते होंगे कि आपने जो भी आत्म-साक्षात्कार दे तो पूरा विश्व प्राप्त किया है वह महान उपलब्धि है मानव परिवर्तित हो जाएगा यही हमारी अभिलाषा विकास, मानव उत्थान और सभी प्रकार की है कि विश्व की सूझ बूझ को नई शैली में उन्नति जो हमने की है यह उन सबकी परिवर्तित कर दें, कि मानव रूप में हमें पराकाष्ठा है। निश्चित रूप से यह विश्व को शान्ति पूर्वक रहना है। बिना रंग और राष्ट्र तथा मानव की सूझ-बूझ को परिवर्तित कर के भेदभाव के हमें मानव की तरह से देगा। मिलकर रहना है मानव और पशु में केवल आज जबकि इराक का युद्ध जोरों पर यही अन्तर है। जब तक हम आध्यात्मिक चल रहा है । मैं आपसे बात कर रही हूँ। मैं नहीं हैं तब तक तो ठीक है परन्तु आप यदि नहीं जानती कि क्या कहा जाए. किस प्रकार लोगों को आध्यात्मिक बना सकें तो मुझे पूरा ये कार्यान्वित होगा परन्तु आप सबके विश्वास है सभी कुछ परिवर्तित हो जाएगा । शान्ति प्रयत्नों से इसका समाधान हो जाएगा जैसा हमने देखा है कि सहजयोग में अब और सर्वत्र शान्ति स्थापित हो जाएगी । इस सहजयोगियों बात का मुझे विश्वास है। हमें युद्ध नहीं आवश्यकता नहीं है। परस्पर वे अत्यन्त ही चाहिए, हमें तो मानव का हृदय परिवर्तित शान्त एवं भद्र हैं। को लड़ने झगड़ने की करना है अन्यथा उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता। आप सबके सम्मुख ये बहुत सहजयोग पूरे विश्व में फैले और विश्व का बड़ी चुनौती है। सबको आत्मसाक्षात्कार देने हर मानव आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करे। के इरादे को पूर्ण करने के लिए आपको आपको वचन देना होगा कि पथ-भ्रष्ट कठोर परिश्रम करना होगा केवल भाषण मानव को परिवर्तित करने के लिए आप सभी देकर या लोगों को भयभीत करके आप उन्हें कुछ करने का प्रयत्न करेंगे मुझे विश्वास है रो क नहीं सकते । आवश्यक है । मैं नहीं जानती कि कितने तो सभी लोग सहजयोगियों के रूप में लोग इसे लेने का प्रयत्न करेंगे, परन्तु शान्ति मय जीवन के मूल्य को समझेंगे । अतः आज हमें प्रार्थना करनी है कि आन्तरिक जागृति कि एक बार जब ये कार्यान्वित होने लगेगा 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-46.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 6 हमें गहन कार्य करना होगा क्योंकि मानव को इसकी आवश्यकता है। आज इसकी ता अत्यन्त आवश्यकता है। उचित समय पर अब हम सहयजोग करने के लिए, जहां तक सम्भव हो और जहां पर भी आवश्यकता हो सर्वत्र इसे फैलाने के लिए तैयार हैं । निःसन्देह ये कार्यान्वित होगा और वैसे भी जरूरत हो या ने हो, जब मानव में उत्थान की इच्छा होगी, मानवीय असफलताओं से ऊपर उठने की इच्छा होगी तो ये कार्य होगा। रा मैं आपको हृदय से आशीर्वाद देती हूँ, अनन्त आशीर्वाद देती हूँ कि सहजयोग का प्रचार करने एवं आत्मसाक्षात्कार देने के अपने कार्य को आप करते रहें । आपको शक्तियां प्राप्त हैं, इस बात को आप जानते हैं। केवल इन शक्तियों का उपयोग करें और लोगों को आत्म साक्षात्कार दें। मेरे पार जन्मदिवस पर यह एक वचन आपको देना होगा। ा र। आप सबको धन्यवाद । सि 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-47.txt मई-जून, 2003 चैतन्य लहरी खंड-XV अंक 5 व 5 44 हिन्दी प्रवचन : सहज सरल बात जो है वो सहजयोग है आज मैंने अंग्रेजी में इन लोगों को बताया और इसके लिए सब लोग तैयार हैं। आप और आपको बताने की जरुरत नहीं क्योंकि इस देश में तो सब लोग जानते ही हैं कि जाएं, हर जगह सहजयोग के लिए उपयुक्त आध्यात्मिक जीवन कितना महत्वपूर्ण है और है। इसलिए मैं चाहती हूँ कि आप लोग और लोग चाहते हैं कि आध्यात्म में उत्थान हो। पूरी तरह से कोशिश करें और अगले साल बहुत लोग प्रयत्नशील हैं। कोई हिमालय में आज से भी दुगुने लोग यहाँ आ जाएं। जाते हैं तो कोई समुद्र के पास जा कर बैठते हैं। घंटों मेहनत करते हैं, उपवास उसके लिए मैं बहुत आप से धन्यवाद कहती करते हैं। ये सब करने की जरूरत नहीं है हूँ। लेकिन जैसे कि मैंने चाहा, आप लोग सहजयोग में आते ही वो पार हो सकते हैं एक-एक आदमी सौ-सौ लोगों को पार और उनको आशीर्वाद मिल सकता है। लोगों कराइए. बस इस से ज्यादा कुछ नहीं । को समझाओ कि सर के बल खड़े होने की कोशिश करिए। एक गर निष्ठा हो तो हमारा कोई जरूरत नहीं। आपकी झोली में ही वादा रहा कि आप बहुत ही सहज और सहजयोग आ सकता है। वों विश्वास भी सरल तरीके से सौ आदमियों को पार करा नहीं करेंगे, शुरु में, कि यह इतना सहज सकते हैं साल में । और सुगम है! पर जब वो देखेंगे कि एक के बाद एक, हजारों लोग इस देश में आशीर्वाद । ये कार्य हो सकता है, जिनको ये सहजयोग में आ गए हैं। और मैं चाहती हूं भाषा नहीं आती वो भी ये कार्य कर रहे हैं, कि इस देश में सहजयोग बहुत फैलना तो आप के लिए क्या मुश्किल है? आप के चाहिए। हमारे प्रश्न, इस देश में बहुत छोटे लिए तो सब पूष्ठ भूमि तै यार है। और ओछे हैं। उनके लिए सहजयोग में साधु-सन्तों ने महन्तों ने बहुत कार्य किया है एकबार पार हो जाना ही ज़रूरी है बाद में इस देश में। इतना तो किसी भी देश में नहीं कुछ करने की जरूरत नहीं। तो अगर यहां हुआ था। इसलिए सिर्फ सोचिए कि के लोग भी, हिन्दुस्तान के, प्रयत्न करें तो हिन्दुस्तानी होने के नांते आप कितना ज्यादा बहुत आसानी से वो सहजयोग करवा सकते उत्तरदायित्व रखते हैं और कितना ज्यादा हैं और लोगों को लिए आप सबको मेरा अनन्त आशीर्वाद है हृदय से अनन्त आशीर्वाद कि आप लोग कि आपसे, एक एक आदमी से, कम से कम सफलीभूत हो जाएं। इस निश्चय में आप सौ-सौ आदमी पार हो जाएं। ऐसी कोई सफलीभूत हो जाएं। ये मेरा आशीर्वाद हृदय लोक-संख्या बढ़ी नहीं. ऐसी कोई हमारी अवगढ़ स्थिति नहीं है बहुत सहज सरल इस आशीर्वाद को पूरी तरह से आत्मसात बात है और सहज सरल बात ये है कि करेंगे और लोगों को जैसे भी हो सके समझना चाहिए कि अपने देश में सबसे जागृति पर जागृति देंगे। कहीं भी जाएं, कोई देहात में जाएं, शहर में जो आपने मेरा आदर सत्कार किया सबको अनन्त आशीर्वाद अ नन्त पार करवा सकते हैं। इस आप इसको कर सकते हैं? आप सबको मेरा LEGO से है हार्दिक है और आशा है कि आप 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-48.txt संदेश मकर संक्रान्ति पूजा मुम्बई, 14.1.03 14 जनवरी, 2003 को हम (लगभग बीस इसकी तिथि कभी परिवर्तित नहीं होती। हर सहजयोगी) श्री माताजी की बड़ी बेटी के घर वर्ष यह चौदह जनवरी को ही मनाया जाता पर मकर संक्रान्ति पूजा के लिए एकत्र हुए, है सब्जियाँ उगाने के लिए किसानों को हमने घर की बैठक को सजाना शुरु किया वर्षा-सृष्टि करने वाले सूर्य देव पर निर्भर और दो घण्टों के पश्चात् कोई भी उसे करना पड़ता है। अतः सूर्य की पूजा करते पहंचान न सकता था। हमारे पास फूल, हुए उनसे शीतलता की प्रार्थना करते रहना फल और सब्जियां थी। (क्योंकि इसे सर्वोत्तम है । शाकम्बरी देवी पूजा भी कहते हैं) तथा हमने बाहर से एक खाना बनाने वाले का भी करने के लिए कहा और पूछा कि क्या यहाँ इसके पश्चात् श्रीमाताजी ने हमें आरती हरमोनियम उपलब्ध है (हमारे लिए अत्यन्त प्रबन्ध किया था। सायं 7.45 बजे श्रीमाताजी पधारीं। वे अटपटी स्थिति) बाद में श्रीमाताजी ने कहा वास्तव में देवी की तरह से स्वस्थ एवं कि हममें से किसी का कोई प्रश्न तो नहीं मनमोहक लग रहीं थी। उन्होंने सूर्य मार्ग के है किसी का कोई प्रश्न न था । अत्यन्त विषय में बताया तथा ये भी कि किस प्रकार सुन्दर छोटी सी पूजा हुई और प्रसाद के हम सूर्य की पूजा करें और किस प्रकार से पश्चात श्रीमाताजी ने हमें रात्रि भोज के लिए ग्रीष्म ऋतु में सूर्य हमारी रक्षा करता है। कहा जब तक हम सब लोगों ने भोजन कृषि-प्रधान देश होने के कारण भारत सूर्य नहीं कर लिया श्रीमाताजी वहीं प्रतीक्षा करती पर अत्यन्त निर्भर है। सूर्य मार्ग में बाधा होने रहीं। तत्पश्चात् श्रीमाताजी के चहूँ ओर के कारण किस प्रकार से हम लोग आक्रामक बैठकर 15-20 मिनट तक महाराष्ट्र सरकार, हो उठते हैं। संतुलित रहने का प्रयत्न करें स्थानीय मामलों पर बांतचीत करते रहे । और सूर्य देव से प्रार्थना करें कि वो आपको (क्योंकि आज ही महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री शान्त रहने में आपकी सहायता करें । परिवर्तन हुआ था) घर को साफ सुथरा श्रीमाताजी ने ये भी बताया कि मकर करके रात साढ़े दस बजे संक्रान्ति पूजा का संक्रान्ति का दिन सूर्य पर आधारित है । आनन्द लेकर हम वहां से लौटे। । 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-49.txt प्रेमपूर्वक एस्टोनिया से एस्टोनिया बाल्टिक सागर ( ) के बंदरगाह पर स्थित है । यह अत्यन्त कोहटला (Kohta Jarve) जार्वे में सहजयोग सुन्दर छोटा सा देश है। रूस, लातीविया बढ़ने लगा। अब सहजयोग छः नगरों में और फिनलैण्ड हमारे पड़ोसी देश हैं। हमारा फैल गया है - पारनू नाव्वा कोहटला, जावे इतिहास जर्मनी, डेनमार्क, स्वीडन और रूस जोहवी तथा टेलिन। और वर्ष 1993 में पारनू (Parnu) Baltic Sea से जुड़ा हुआ हैं। इन सभी देशों में एस्टोनिया के वास्तुशिल्प. कला तथा लोगों चुनाव हुआ। चुनावों से पहले सभी की आत्मा पर भी कुछ चिन्ह छोड़े हैं। अन्य लोगों से सम्बन्धों में एस्टोनिया के हवन किया और श्रीमाताजी से प्रार्थना की लोग खुले हृदय के नहीं हैं। वे किसी को भी कि हमें एक धार्मिक राष्ट्रपति प्रदान करें। अपने दिल दिमाग में स्थान नहीं देते। अपने चुनावों के दो दौरों में किसी भी उम्मीदवार ही फार्म पर अपने परिवार के साथ वे अकेले को बहुमत न प्राप्त हुआ। विशेषज्ञ कहने रहना पसन्द करते हैं। एस्टोनिया के लोगों लगे एस्टोनिया को अगले पांच वर्ष बिना की ये विशेष तस्वीर है। एस्टोनिया की भाषा राष्ट्रपति के रहना पड़ेगा। पर आखिरकार संगीत की तरह से अत्यन्त मधुर है। अरनोल्ड रंटल (Arnold Runtel) को चुना एस्टोनिया का संगीत हमारी प्रकृति की तरह गया । से है -सागर और वायु का मिश्रण, यद्यपि इसका अर्थ है शूरवीर (Knight) । उनके चुने एस्टोनिया के भजन ऐसे नहीं है। एस्टोनिया जाने की कोई संभावना न थी। किसी को की जनसंख्या 13 लाख है जिनमें से 70% भी आशा न थी कि वे राष्ट्रपति बन जाएंगे। गैर इसाई लोग हैं। अधिकतर लोग राजधानी परन्तु सभी उम्मीदवारों में केवल बही धार्मिक टेलिन (Talinn) में रहते हैं। परन्तु सहजयोगीं व्यक्ति थे वक्त बताएगा कि कितना सही अगस्त 2001 में हमारे यहां राष्ट्रपति का सहजयोगियों ने मिलकर एस्टोनिया में एक उनके नाम का अनुवाद करें तो वहां नहीं रहते। नव्वे के दशक के आरम्भ में व्यक्ति चुना गया। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी अपने पति सर सी. पी. के साथ फिनलैण्ड से रूस इसके बहुत से उदाहरण हैं। हम तो इस कार्य जाते हुए टेलिन मार्ग से गई वर्ष 1992 में का आनन्द ही लेते रहते हैं। नवंबर में हमने फिनलैण्ड और एस्टोनिया के लोगों ने टेलिन, जोबी, नाव्वा पारनू, कुण्डा (Kunda) मिलकर के टेलिन में एक जन कार्यक्रम और सिंधि में जन कार्यक्रम किए किया परन्तु इससे भी सहजयोग भली-भांति परम चैतन्य ने यहां किस प्रकार कार्य किया प्रेम पूर्वक एस्टोनिया की सहजयोग सामूहिकता की ओर से। भिन्न नगरों में कुछ आरम्भ न हो पाया। गिने-चुने आत्मसाक्षात्कारी लोग थे। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-51.txt E MP