हैतन्य वाहरी हाय क वंड YV अंक् YW अंक : ? 7 त 8 स bo00000 oo00000000000 0000000cc ध्यान-धरणा-1976 श्री सदाशिव पूजा 8. सहजयोग द्वारा स्वस्थ परिवार तथा समाज 15 20 दूरदर्शन साक्षात्कार 26 तिहाड़ जेल में सहजयोग हमारा लक्ष्य-श्रीमातीजी 5-10-1983 27 मकर संक्रांति पूजा-4.1.1983 40 ा चै त = य ल ह री प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर 162 - ए. मुनीरका विहार, नई दिल्ली 110067 मुद्रक अमरनाथ प्रेस प्रा. लिमिटेड डब्ल्यू एच एस 2/47, कीर्ति नगर औद्योगिक. क्षेत्र, फोन : 25921159, 55458062 नई दिल्ली-15 सदस्यता के लिए कृपया इस पते पर लिखें :- श्री ओ. पी. चान्दना एन - 463 (जी-11) दिल्ली ऋषि नगर, रानी बाग 110034 फीन : 9810414910 सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पते पर भेजें चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी-17, कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली 110016 ध्यान-धारणा नई दिल्ली 1976 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन जब आप कहते हैं कि मैं ध्यान कर रहा हूँ तो हम ध्यान कर नहीं सकते. ध्यान में हो सकते हैं । हमारा यह कहना कि हम ध्यान करेंगे अर्थहीन है, इसका अर्थ यह है कि आप सर्वव्यापी शक्ति (universal being) से क्रम परिवर्तन करते हुए हमें ध्यान में होना पड़ेगा। आप या तो घर के अन्दर हो सकते हैं या बाहर। घर के अन्दर होते हुए आप चल रहे हैं परन्तु आप स्वयं गतिमान नहीं हैं। आप यह नहीं कह सकते हैं कि मैं घर से बाहर हूँ या तो स्वयं को उन चीजों के वजन से मुक्त कर रहे आप यदि घर से बाहर हैं तब आप यह नहीं कह हैं जो आपकी गति में बाधक हैं। जब आप ध्यान करते हैं तो स्वयं को निर्विचार चेतना में रहने दें। सकते हैं कि मैं घर के अन्दर हूँ। इसी प्रकार आप उस स्थिति में अचेतन, स्वयं चैतन्य. आपका दायित्व जीवन के तीन आयामों (three dimentions) में चल रहे हैं-भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक। सम्भाल लेगा और आप चैतन्य की शक्ति से चलने आप अपने अन्दर नहीं हैं। आप यदि अपने अन्दर लगेंगे। अचेतन कार्यान्वित होगा और आपको वहां लें हैं तो इसका अर्थ यह है कि आप निर्विचार चेतना जाएगा जहां आपको जाना चाहिए। हर समय आप (समाधि) में हैं ऐसी परिस्थिति में जब आप होते निर्विचार चेतना में बने रहें, निर्विचार चेतना कि रहने का प्रयतल करें, इस बात को हैं तब सर्वत्र विद्यमान होते हैं क्योंकि यह वह बिन्दु स्थिति में बने है, वह स्थान है जहां आप वास्तव में सार्वभौमिक समझे कि अब आप परमात्मा के साम्राज्य में हैं और होते े हैं, वहां से आप स्त्रोत ( Principal) से, उसकी गति, उसका प्रवन्ध, उसकी चेतना, आपकी शक्ति से जुड़े होते हैं। उस शक्ति से जो हर पदार्थ देखभाल करेगी। जब आप अन्य लोगों को चैतन्य दे रहे होते हैं। के जरे-जरें में, हर भावनात्मक विचार में, हर योजना में और विश्व के हर विचार में प्रवेश कर मैंने पाया है कि तब भी आप निर्विचार चेतना में सकती है। इस सुन्दर पृथ्वी का सृजन करने वाले नहीं होते हैं। आप यदि निर्विचार चेतना की स्थिति में चैतन्य देंगे तो आप पर कोई पकड़ नहीं आएगी। सभी तत्वों में आप व्याप्त हो सकते हैं, आप अर्कश क्योंकि यह सभी बाधाएं (entities) जो आपमें और तेष में प्रवेश कर सकते हैं, ध्वनि में प्रवेश कर सकते हैं परन्तु आपकी गति बहुत धीमी होती है। प्रवेश करती हैं. जो भौतिक समस्याएं आपके सम्मुख to चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 8 जुलाई एवं अगस्त 2003 आती हैं वो तो केवल तभी आती हैं जब आप उन तथा झूठी आन्तरिक लिप्साओं के कारण जो जख्म तीन आयामों में होते हैं। सहजयोग के माध्यम से हमने स्वयं को दिए हैं उन्हें हमें ठीक करना है आप ने अपने अस्तित्व (आत्मा) के द्वार खोल लिए हमारा पूरा चित्त अपनी दुर्बलताओं पर होना चाहिए हैं। आप अपने साम्राज्य से बाहर आ जाते हैं और अपनी उपलब्धियों पर नहीं। हमें कभी इस बात का पुन: वहां जा कर स्थापित हो जाते हैं। कोई बात ज्ञान हो कि हमारी दुर्बलताएं क्या हैं तो बेहतर होगा, नहीं, आप को इसके विषय में न तो अधिक निराश तब हम बेहतर तरीके से तैर सकेंगे। मान लो कि होना है न ही हतोत्साहित। आप जानते हैं कि हजारों जहाज में सुराख है और उससे पानी अन्दर आ रहा वर्षों तक कठोर परिश्रम करने के पश्चात ही है । तो जहाज के पूरे नाविकों, कार्य करने वालों तथा साधक स्वयं को स्वयं से पृथक नहीं कर पाये। कप्तान का ध्यान भी उसी सुराख पर होगा जिससे केवल आप लोग, सहजयोगी, जिन का सृजन श्री पानी अन्दर आ रहा है। उनका चित्त और कहीं नहीं गणेश की तरह से किया गया है, केवल वही इस होगा। इसी प्रकार से आप सब को सावधान रहना तरह से बने हैं कि वो अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार है। दे सकें। सहजयोगी के पतन के बहुत से रास्ते हैं यह बात आप यदि पकड़े हुए हों तो भी आपने देखा है मैंने देखी है। नि:सन्देह भूतकाल पर भी नियन्त्रण कि आपमें शक्तियाँ हैं। आप जब महसूस करते हैं पाया जा सकता हैं। वर्तमान में भी लोगों पर भूतकाल कि आपको चैतन्य लहरियाँ नहीं आ रहीं तब भी के साये कार्य करते हैं । उदाहरण के रूप में जब आप जानते हैं कि आपमें शक्तियाँ हैं और आप आप समूह में होते हैं तो एक दूसरे से लिप्त होते अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार दे रहे हैं, आपकी हैं। किसी भी सम्बन्ध के कारण जो लोग किसी से उपस्थिति में लोगों को आत्मसाक्षात्कार मिल जाता लिप्त हैं उन्हें जाने देना चाहिए। इस प्रकार की है। परन्तु आपको पूरी तरह से वह शक्ति बनना लिप्सा उनके व्यक्तिगत उत्थान प्राप्ति में सहायक होगा। मान लो आपकी कार में कोई खराबी है.परन्तु नहीं होगी। यद्यपि वाद-संवाद से तथा वैसे भी आप जब तक वह चल रही है तो ठीक है। हमें इसकी सामूहिक रूप से जुड़े हैं, फिर भी हर आदमी मरम्मत करनी है। अपनी मूर्खताओं, कामुकता, लोभ व्यक्तिगत रूप से उत्थान कर रहा है । उत्थान %3: चैतन्य लहरों खण्ड -XV खष्ड : 7 एवं ৪ जुनाई एवं अगस्त 2003 व्यक्तिगत है पूर्णतया व्यक्तिगत। अतः व्यक्ति चाहे ऊब जाते हैं, यह भी अस्थाई स्थिति हो सकती है। आपका बेटा, भाई , बहन, पत्नि या मित्र हो आपको परन्तु यदि आप इसी स्थिति में बने रहते हैं, इस याद रखना है कि उसके उत्थान के लिए आप भाव को बनाए रखते हैं तो इसका अर्थ यह हुआ जिम्मेदार नहीं हैं। उत्थान प्राप्ति में आप उनकी कि आप स्वयं को बन्धन में डाल रहे हैं अर्थात आप निर्विचार चेतना की स्थिति में नहीं हैं, अभी सहायता नहीं कर सकते, केवल माँ (श्री माताजी) कृपा और उनकी अपनी इच्छा तथा तीनों आयामों तक बीते हुए समय में हैं। भूतकाल या दृढ़ बन्धन की बद्धता को त्यागने के लिए किये गये प्रयत्न ही अपने सिर पर बना रहे हैं। वर्तमान में सभी चीजें उनके सहायक होंगे। नि:स्सार हैं। सभी नश्वर चीजें नि:स्सार हैं। वर्तमान अत: इस प्रकार का कोई विचार यदि आता है की स्थिति में केवल शाश्वत रह जाता है बाकी सभी तो आप समझ लें कि अभी तक आपने पूरी तरह कुछ छुट जाता है। यह बहती हुई नदी की तरह से से निर्विचार चेतना की स्थिति प्राप्त नहीं की है और है जो कहीं नहीं रुकती। परन्तु यह बहती हुई नदी इसी कारण से आपको ऐसी समस्याएं है जो शाश्वत हैं और बाकी की सभी चीजें परिवर्तनशील तीन-आयामी हैं। हैं। आप यदि शाश्वत तल पर बने रहेंगे तो सभी कभी-कभी सहजयोगी को लगेगा कि उसके मन नश्वर परिवर्तित होकर छूट जाएगा, लुप्त हो जाएगा में कोई भावना है। यह भावना उदासी या निराशा की और अस्तित्वहीन हो जाएगा। हमें अपना गौरव, भावना होगी और वह व्यक्ति स्वयं से या अन्य अपना सार तत्व समझना होंगा। सर्वप्रथम तथा सर्वप्रमुख लोगों से ऊब जायेगा। दोनों ही बातें एक जैसी हैं। तत्व यह है कि सहजयोगी चुने हुए लोग हैं, वो ऐसे मैंने देखा है कि कुछ सहजयोगी दूसरे सहजयोगियों लोग हैं जिन्हें परमात्मा ने है। चुना दिल्ली शहर में हजारों लोग हैं। विश्व भर में से बहुत ही उदासीन होते हैं। हमेशा बने रहने वाली कोई उदासी नहीं होनी चाहिए। हो सकता है कुछ बहुत से लोग जनसंख्या के बाहुल्य के कारण कष्ट देर के लिए आप में उदासी का भाव आ जाए, यहां उठा रहे हैं परन्तु सहजयोगी बहुत ही कम लोग हैं। तक ठीक हैं क्योंकि यह अस्थाई अवस्था है जो जब आपको चुना गया है तो सर्वप्रथम आपने इस समाप्त हो जाएगी। कभी-कभी आप स्वयं से भी बात को महसूस करना है कि आप ही लोग नींव बैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 8 जुलाई एव अगस्त 2003 हो, आप ही लोग वो पत्थर हो जिन्हें लगाया जायेगा। प्राप्ति के लिए हृदय से की जाए तो यह स्वीकार अतः आपको दूढ होना होगा और धैर्यवान भी की जाएगी। केवल इसकी याचना करें बाकि सब इसलिए यह आवश्यक है कि आप लोग जो अभी कुछ स्वत: घटित हो जाएगा। अपने भूतकाल या तक संख्या में बहुत कम हैं, जो आरम्भिक दीपक भविष्य कि आकांक्षाओं के कारण सभी सहजयोगियों हैं और जिन्होंने विश्व में प्रकाश-दीप जलाने हैं, को समस्याएं हैं। सहजयोग में यदि आपको समस्या उन्हें अनन्त दिव्य प्रेम की शक्ति तथा उस सार्वभौमिक है तो आप समस्या का समाधान करने की विधि भी शक्ति का आनन्द लेना होगा जो वास्वत में आप हैं। तो जानते हैं। ध्यान-धारणा के अतिरिक्त भी बहुत से तरीके हैं। ये विधियां आप भली-भांति जानते हैं। यही ध्यान-धारणा है। अत: जब सहजयोगी मुझसे पूछते हैं कि ध्यान आपको इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि चक्र क्या हैं, कुण्डलिनी कहाँ है। किसी चक् की बाधा के लिए क्या करें तो मेरा उत्तर होता है कि आप निर्विचार चेतना में चले जाएं, केवल इतना ही, उस के कारण यदि कुण्डलिनी रुकी हुई हैं तो हमें समय कुछ और न करें। ऐसा नहीं कि आप लक्ष्य निरुल्साहित नहीं हो जाना चाहिए। मान लो आपकी की ओर बढ़ रहे हैं या अचेतन (unconcious) कार रास्ते में रुक जाती है तो निराश होने का क्या आप पर नियन्त्रण कर रहा है। केवल इतना ही नहीं लाभ है? आपको इसकी तकनीक सीखनी चाहिए। इसके साथ-साथ आप पहली बार प्रकृति में अपने आपको अच्छा तकनीशियन बनना होगा केवल तभी चहूँ ओर तथा उन लोगों में जो आपसे सदा-सर्वदा आप गाड़ी को अच्छी तरह से चला सकेंगे अतः से जुड़े हुए हैं, दिव्य चैतन्य प्रवाहित कर रहे हैं। सहजयोग की सभी विधियां भली प्रकार सीख कर परन्तु हमें जिस बात की आदत पड़ी हुई है वह यह उनमें कुशलता प्राप्त करनी आवश्यक है। अन्य है कि हमें इसके विषय में कुछ करना है और इस लोगों को साक्षात्कार देने से, उनकी तथा अपनी आदत के कारण हम कुछ न कुछ करना शुरु कर गलतियाँ सुधारने से आप सहजयोग में कुशलता देते हैं। ध्यान तो अत्यन्त सहजमार्ग है। प्राप्त कर सकते हैं। निरुत्साहित होने की कोई बात नहीं है। कुन्ठा तत्पश्चात् हम प्रार्थना करते हैं, पूजाएं करते हैं। प्रार्थना यदि पूर्ण समर्पण तथा शाश्वत अवस्था की सबसे बुरी चीज़ है। निराश होकर यदि आप स्वयं चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 8 जुलाई एवं अगस्त 2003 पर नाराज हो जाते हैं तो समस्या खड़ी हो सकती है। बाहर की ओर चित्त यदि हो तो इसका कोई महत्व आपको स्वयं पर हंसना होगा और बिगडी हुई नहीं है। अपनी मशीनरी (शरीरतन्त्र) पर हंसना होगा। स्वयं "जिस प्रकार आप मुझे रखेंगे मैं वैसे ही रहूँगी, को यदि आप यह शरीर ही मान बैठेंगे तो कहीं के और, आप लोग हैरान होंगे कि, सभी कुछ ठीक नहीं रहेंगे। आप न तो चक्र हैं न भिन्न नाड़ी तन्त्र, प्रकार से होगा। कभी-कभी आप को लगता है कि आप तो चेतना हैं। आप शक्ति हैं, आप ही कुण्डलिनी मुझे फलाँ स्थान पर पहुँचना चाहिए, फलाँ भजन हैं। अत: चीजों की बिगड़ी हुई दशा की चिन्ता गाया जाना चाहिए, यह कार्य हो जाने चाहिएं. और आपको नहीं करनी। चीजें (चक्र आदि) यदि ठीक कई बार जब यह कार्य नहीं होते, कई बार जब नहीं हैं तो इस समस्या का समाधान आप कर सकते आपकी इच्छाएं पूरी नहीं होतीं तो परमात्मा की हैं। इच्छा मान कर इसे स्वीकार कर लेना चाहिए। अभी-अभी बत्तियां बुझ गई थी बिजली फेल परमात्मा की यही इच्छा है, ठीक है, यही परमात्मा होने के कारण यदि बत्तियाँ बुझी हैं तो आप दूसरा की इच्छा है। हो अब आप परमात्मा की इच्छा से एकरूप फ्यूज़ लगा सकते हैं, यह सारा कार्य कर सकते हैं। इसी प्रकार आपके चक्र यदि बिगड़े हुए हैं तो गए हैं। पूरे विश्व को परमात्मा की इच्छा बताने उनकी चिन्ता करने कि कोई आवश्यकता नहीं है। के लिए आप यहां पर हैं। इस अवस्था में भी केवल चिन्ता करना और स्वयं को निराश कर यदि आप अपनी इच्छाएं करने लगते हैं और लेना सहज के प्रति गलत दृष्टिकोण हैं। दूसरे शब्दों अपने विषय में अपनी ही धारणाएं बनाने लगते बनेंगे। में सहज का अर्थ है: सुगम-मार्ग। सहज का अर्थ है हैं तो कब आप परमात्मा की इच्छा सहज हो जाना अर्थात् जैसे मैं कहती हूँ। 'आप जैसे यह 'मैं भाव' जाना चाहिए। यही ध्यान- धारणा है जहां आप मैं' नहीं रहते, 'तुम' बन चाहें मुझे रखें।' जैसे शान्ता ने कहा है। इस प्रकार का दृष्टिकोण आपके चित्त को अन्दर ले जाता है जाते हो । क्योंकि चित्त यदि बाहर की ओर है तो व्यर्थ है । परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। ति ho श्री सदाशिव पूजा पुणे 16-03-2003 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन क्षमा करते हैं उसी परिपाक से या कहना चाहिए ( अनुवादित) आज़ हम श्री शिव-सदाशिव की पूजा करेंगे। अतिशयता से फिर वो इस संसार को नष्ट भी कर उनका गुण यह है कि वे क्षमा की मूर्ति हैं। उनके सकते हैं। तो पहले तो हमें उनकी क्षमाशीलता से लोग सीखनी चाहिए। किस कदर क्षमाशील, छोटी-छोटी क्षमा के गुण के कारण ही हममें से बहुत चीजों को लेकर के हम झगडा करते हैं, छोटी-छोटी आज जीवित है अन्यथा ये विश्व नष्ट हो गया होता। 1 से लोग खत्म हो गए होते क्योंकि मानव की बातों पर हम झगड़ा करते हैं। पर यह किस कदर बहुत ा स्थिति को तो आप जानते ही हैं। मनुष्य की समझ क्षमाशील हैं और क्षमा करते-करते उस चरम सीमा में ही नहीं आता कि उचित क्या है और अनुचित पर पहुँच जाते हैं जहां से इनके अन्दर यह नष्ट क्या है। इसके अतिरिक्त वे क्षमा भी नहीं कर पाते करने वाली शक्ति जागृत होती है। इसी से वो अपने को नष्ट भी कर सकते हैं, इस सारे व्रह्मांड को नष्ट और गलतियों पर गलतियाँ करते चले जाते हैं। परन्तु अन्य लोगों को क्षमा नहीं कर सकते। श्री सदाशिव कर सकते हैं जो भी कुछ सृष्टि बनाई गई वो सारी नष्ट हो सकती है। इसलिए हम लोगों को याद से हमने यही गुण सीखना है। रखना चाहिए कि गर हम क्षमा करना नहीं सीखेंगे, (हिन्दी प्रवचन) आज हम लोग श्री सदाशिव की पूजा करने वाले गर हमारे अन्दर क्षमाशीलता नहीं आएगी तो हमारे अन्दर एक दिन बहुत ज्यादा नष्ट करने की शक्ति हैं। इनका विशेष स्वभाव यह है कि इनकी क्षमाशीलता इतनी ज्यादा है कि उससे कोई इन्सान मुकाबला आ जाएगी। हम ही लोग अपने ही लोगों को नष्ट नहीं कर सकता। हर हमारी गलतियों को वो, माफ करेंगे। इसलिए हर समय दक्ष रहना चाहिए, पता लगाना चाहिए, नजर रखनी चाहिए कि हम बेकार में करते हैं वो अगर न करते तो यह दुनिया खत्म हो सकती थी क्योंकि उनके अन्दर वो भी शक्ति है तो लोगों पर नाराज नहीं होते, बेकार में हम दूसरों जिससे वो इस सृष्टि को नष्ट कर सकते हैं इतने के साथ दुष्टता तो नहीं करते? किसी भी हालत में आपको अधिकार नहीं है कि आप किसी पर नाराज़ भी यह शक्ति उनके यहां जागृत क्षमाशील होते हुए है और बढती ही रहती है। इसी शक्ति से जिससे वो हों। जब शिव नहीं होते तो आप क्यों होते हैं? चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 8 जुलाई एवं अगस्त 2003 लेकिन इन्सान बहुत ज्यादा बहुत ज्यादा नाराज नहीं कर सकता। उसका स्वभाव ही ऐसा होता है होता है, इतने तो कोई जानवर भी नहीं होते, कोई कि उसमें ही बहता जाता है और उसमें वो सन्तोष करता है कि मैंने बड़ी अच्छी सबको सजा दी, सब वजह न हो तो जानवर कुछ नहीं कहते। इसी प्रकार जब हम छोटी-छोटी बातों पर बिगड़ते हैं तो याद पे मैं बिगड़ा, सबसे मैं नाराज हो गया! यहां तक कि रखना चाहिए कि एक शक्ति है शिव की, वो भी अनेक देशों में यह प्रश्न है। एक देश दूसरे देश से हमारे अन्दर कार्यान्वित है। और वो यही है कि हम चिढ़ गया। अगर एक ही आदमी चिढता है तो सारे उस देश के लोग लग गये। उद्धार के लिए कोई जब दूसरों पर बात-बात पे बिगड़ते हैं, बात-बात में नहीं मिलेगा-उद्धार के लिए कोई देश के लोग नहीं नाराज होते हैं, उनकी कोई चीज हम क्षमा नहीं कर मिलेंगे, सिर्फ मारने पीटने के लिए और बिगड़ने के सकते तो फिर ऐसे इन्सान कहाँ पहुँच सकते हैं। जहां-जहां बड़े युद्ध हुए, जहां-जहां बड़ी आफतें लिए फौरन लोग खड़े हो जाएंगे! यह सबसे बड़ा आई, वहां पर यही कारण रहा है कि मानव जाति कमाल है। गर किसी से कहो कि हमें यहां उद्धार करना है तो कहेंगे अच्छा आप करिए, हम देखते हैं को दमन किया गया है, नष्ट किया गया है। यह शक्ति पहले ही से आ जाती है, बगैर कोई कारण और वहीं गर कोई आदमी हाथ में कोई आयुध लेके के मनुष्य मनुष्य को ही नष्ट करता है। हर जगह, दौड़े तो कहेंगे कि हमें भी दो हम भी मारेंगे यह उसकी यह प्रक्रिया क्यों होती है और कैसे होती है मनुष्य की तबीयत समझ में नहीं आती। किसी को यह बात हम लोगों को सोचना नहीं। यही सोचना है मारने पीटने में और किसी को तंग करने में और कि हम तो ऐसे क्षुद्र और निम्न स्तर के कार्य में किसी पे गुस्सा करने में मनुष्य को इस कदर क्या उलझते तो नहीं। अपने जीवन में हम जितने शान्त सुख मिलता है? पर अब देख लीजिए रास्ते पे रहें, शान्तिपूर्वक हर एक चीज का हल निकालें, जाते-जाते देखा कि एकदम भीड़ लग गई-क्या उतने ही हमारे भी जीवन में शान्ति फैल सकती है, हुआ? कुछ झगड़ा हो गया। तो आप वहां क्या कर हमारा भी जीवन शान्तिमय हो सकता है। किन्तु रहे हैं? कोई तो कहेंगे-हम भी उसमें शामिल हैं प्रश्न यह है कि मनुष्य अपने ऊपर ही कोई दावा और कोई तो कहेंगे कि हम देख रहे हैं। यह हमारे नहीं रख सकता, अपने को कन्ट्रोल (Control) अन्दर जो प्रकृति में एक अजीब सी चीज़ आई हुई ho चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं B जुलाई एवं अगस्त 2003 10 है, यह हमारे अन्दर से निकालने वाला एक ही है, लोगों की संख्या बहुत कम है। मैं कहना ये चाह रही हूँ कि श्री शिव की पूजा करते हुए हमें यह वो हैं शिव शंकर। इनकी आराधना से, इनको पूजने से और इनको मानने से-हृदय से, मनुष्य का क्रोध, समझना आवश्यक है कि वे क्षमा की मूर्ती हैं। वे गुस्सा नष्ट हो जाता है। आश्चर्य कि बात है कि क्षमा करते हैं हर अपराध को इतने प्रेम पूर्वक कृष्ण ने भी सबसे बड़ा दोष मनुष्य का क्रोध क्षमा करते हैं जैसे व्यक्ति अपने बच्चों को क्षमा करते है । वे क्षमा करते हैं क्रुद्ध नहीं होते। छोटी-छोटी -क्रोधापि जायते - क्रोध के साथ में यह सब चीज़ें जागृत होती हैं। अपने यहां तो लोग बड़े गर्व से बातों पर वे भड़कते नहीं। हम लोगों में कुछ पूर्वाग्रह कहेंगे - मुझे बड़ा गुस्सा आया उसपे, में बहुत (Prejudices) भी हैं उदाहरण के रूप में भारत नाराज़ हो गया उसपे-इसमें कोई मनुष्यता मुझे तो में महिला का कुछ बोलना लोगों को अच्छा नहीं दिखाई नहीं देती। पर यह बड़ी साधारण सी बात है लगता। उनके अनुसार महिला को नहीं बोलना कि गुस्सा हो जाना, छोटी-छोटी बात पर कोई न चाहिए। पुरुष बोल सकता है महिला नहीं। पीटने का कोई बहाने ढूंढ लेना और गुस्सा हो जाना। फिर जब हेक तो उन्हें दिया ही नहीं जाता । पुरुष चाहे तो यह सामूहिक हो जाता है गुस्सा, उस सामूहिक गुस्से महिला की हत्या कर दे और महिला को पुरुष को से बड़ी बहुत सारी बातें हो जाती हैं। युद्ध हो जाते पीटने का भी अधिकार नहीं है। भारत में अच्छी हैं, बहुत सारे घर उजड़ जाते हैं, बहुत सारी कुटुम्ब पत्नी और अच्छी महिला को आंकने के लिए यही व्यवस्था खत्म हो जाती है। दिन-ब-दिन में देखती मापदण्ड है। वह कल्पना कर सकती हैं कि किस हूँ कि बजाय इसके कि मनुष्य का गुस्सा कम हो प्रकार पुरुष विनाश की ओर जा रहा है। इस प्रकार वो बढ़ता ही जा रहा है और बड़े गर्व से कहेंगे के दिए गए अधिकार भयानक है और पूरे समाज जाए, कि हमें तो बड़ा गुस्सा आया, हम तो बड़े गुस्से के लिए विध्वंसकारी हैं। विदेशों में भी मैंने ऐसा ही देखा है। वहां भी लोग अपनी पत्नियों को पीटते हैं. वाले हैं। ( अंग्रेजी प्रवचन) उनकी हत्या कर देते हैं। न जाने क्या-क्या करते हैं! मैं जानती हूँ कि आप चाहते हैं कि मैं केवल क्योंकि उन्होंने किसी महिला से विवाह किया है अंग्रेजी भाषा में बोलू परन्तु अंग्रेजी समझने वाले इसलिए सोचते हैं कि उन्हें सभी अधिकार हैं. चैतन्य लहरी खण्ड -४V खण्ड :7 एवं 8 जुलाई एव अगन्त 2003 अपनी पत्नियों से सभी प्रकार की अच्छाई की देखा कि कई बार मनुष्य पशुओं से भी बदतर होते आशा का अधिकार है चाहे उनमें कोई भी अच्छाई हैं। विना किसी कारण के बो भड़क जाता है। उनसे न हो! वे अपनी पत्नियों को सताते ही चले जाते हैं। वे बेकार के पूछा जाए कि आप क्यों क्रोधित हैं तो इतना ही नहीं स्कूलों में अध्यापक विद्यार्थियों के बहाने बनाएंगे। साथ बहुत ही बुरा व्यवहार करते हैं। बच्चे भी उनसे शान्ति का आनन्द लेने के लिए आप इस विश्व यह व्यवहार सीख लेते हैं और इस प्रकार से दूसरों में आए हैं। बिना शान्ति के आप आनन्दित नहीं हो को सताने और कष्ट देने की परम्परा चलती रहती सकते। यदि आप शान्ति नहीं प्रदान कर सकते तो अतः जब जब भी आप कहें कि मुझे बहुत किस प्रकार आनन्दित हो सकते हैं? परन्तु जिस अपमानजनक तरीके से लोग व्यवहार करते हैं उस क्रोध आता है, तो स्वयं को बताएं कि मैं गलत मार्ग पर जा रहा हूँ। मैने बहुत बार आप लोगों को पर हैरानी होती है। न जाने वे अपने को क्या समझते बताया है कि अपने क्रोध की डींग हाकना सवसे हैं। ये बात समझ पाना कठिन है कि वे अन्य लोगों बुरी बात है। यह तो अपने पापों की शेखी बघारना को इतना घटिया क्यों समझते हैं। छोटी-छोटी चीजों है। ये कार्य पाप हैं। शराबी, पागल और विक्षिप्त पर सन्तुलन खो बैठना समझ में नहीं आता। ऐसे लोग यदि ऐसा करें तो समझ में आता है परन्तु लोग वास्तव में कायर होते हैं। जीवन में यदि उन्हें अन्यथा बहुत हो संवेदनशील व्यक्ति यदि आक्रामक किसी समस्या का सामना करने का अवसर आ जाए हो तो बहुत ही खतरनाक बात है। ये कहना कठिन तो वे पीछे हट जाते हैं। आगे नहीं बढ़ पाते। यह है कि ये दुर्गुण आपमें कहाँ से आते हैं क्योंकि बहुत बड़ी त्रासदी है। कद ( हिन्दी प्रवचन किसी भी दिव्य व्यक्तित्व मनुष्य को बिना किसी हमारे देश में भी लोग गुस्सेवाले आदमी को कारण के क्रोधित होते हुए नहीं देखा गया। ऐसे लोग यदि क्रुद्ध हुए भी तो बहुत बड़े कारण से जिससे पहचानते हैं। बस्ती में उसका नाम हो गया गुस्सेवाला। विनाश ही होने वाला हो| परन्तु उनके ऐसा करने ये गुस्सेला है, ये गुस्साडा की धारणा मैं समझ सकती हूँ। उन्हें यह विश्व उसके होते हैं और ऐसे आदमी से दूर ही रहना और मानव की देखभाल करनी है। मैंने चाहते हैं। ठीक हैं, किसी ने गलती कर भी दी, उसे चलाना है चैतन्य तहरी ख्ड -४V खण्ड : 7 एवं ৪ जुलाई एवं अगर्त 2003 12 माफ कर दीजिये किसी ने कुछ ऐसा काम भी कर कहना चाहिए था कि इसको कि हमारा पैसा आप दे दिया है जो नहीं करना चाहिए, उसे भी माफ कर दीजिए, आप दे देते, आप ऐसा काम करते क्या? दीजिये, क्योंक कल आप ऐसा काम करें- "आप" फिर आप क्यों चाहते हैं कि वो दूसरा आदमी जो करे तो आप किस की सजा लेंगे? कौन आपको हैं वो कह दे कि इसको इतना कम पैसा दे दीजिए। सजा देगा? इसलिए ये ही समझ लीजिये कि हम सारी अच्छाई आप दूसरों से उम्मीद रखते हैं, सारी सहजयोगियों को बिल्कुल भी अधिकार नहीं कि बुराई जो है उसको आप माफ ही नहीं कर सकते। हम किसी को सजा दें और उनको शिक्षा दें । बहुत और जो कोई करता है तो उसके लिए आप सोचते से लोग तो मैंने देखा बड़े खोपड़ी पर जमा हो जाते हैं कि इसका तो सर्वनाश होना चाहिए। जब तक हैं। मनुष्य पार नहीं होता तब तक वो यह भी नहीं देख शिवजी को जिसने मान लिया वो असली पार है, सकता कि बो क्या है अन्दर, इन्सान है कि जानवर, शिवजी का स्वभाव जिसके अन्दर आ गया वही यह भी नहीं समझ सकता। में कहूँगी कि जानवर है और उसके प्रोटेक्शन के लिए भी शिवजी हैं । जो भी बेकार में कभी नाराज़ नहीं होता जब तक कि आदमी सीधा, सरल स्वभाव से ही है उसको उसको छेड़ो नहीं कोई, वो बेकार में उबलते नहीं घबराने की कोई बात ही नहीं है उसको सम्भालने रहता। उसमें शिवजी का अंश काफी है पर मनुष्य वाले शिव शंकर हैं, उसको देखने वाले शिव शंकर में कोई-कोई मनुष्य में तो यह पूरी तरह नष्ट हो हैं। तो इस वजह से आपको उसमें इतना प्रश्न क्या चुका है। वो तो सोचते हैं कि हज़ारों लोगों को नष्ट है? क्यों आप किसी से नाराज़ होते हैं? अजीब- अजीब करने का हमको अधिकार है। एक तो हिटलर बाते हैं, कोई साहब कहने लगे कि साहब में तो साहब हो गए उन्होंने न जाने कितने लोगों को मार बहुत नाराज़ हूँ इस आदमी से। मैंने कहा, क्या हुआ डाला? वो एक छोटा सा बच्चा तो नहीं पैदा कर भई? कहने लगे इन्होंने हमारे बाप का सब पैसा ले सकते और इतने लोगों को उन्होंने मार डाला। क्या सोचकर के, अपने को वो क्या सोचते थे ? और जिन लिया और हमको कुछ नहीं मिला। तो मैंने कहा ये लोगों को मारा है उनकी फैमिलीज़ नष्ट हो गई, सारे तो आपके बाप को देखना था, पैसा ले लिया तो ले लिया, आप क्यों बिगड़ रहे हो? कहने लगे इसने देश खराब हो गए तो वो अपने को क्या समझते थे जुलाई एवं अगस्त 2003 13 चैतन्य लहरी खण्ड -४V खण्ड : 7 एव B लाट साहब। इस प्रकार के दो चार तो निकलते ही छोड़ दीजिए उनकी शक्ल नहीं देखना चाहते लोग। हैं पर आप को तो इनका उदाहरण नहीं लेना इस तरह का चरित्र आपको अपना नहीं बनाना चाहिए। आपके लिए ठीक है, आप सहजयोगी हैं चाहिए। यह समझ लीजिए कि आपके नाराज स्वभाव इसलिए आपको क्षमा करना चाहिए। बड़े तबीयत से हो सकता है कि लोग आप से डरें और डर के के जो लोग होते हैं वो क्षमा करते हैं, उनकी मारे बहुत से काम करें, पर जो काम डर के साथ क्षमाशीलता बहुत जबरदस्त होती है और यही बात होता है उसमें क्या मज़ा? उसमें क्या विशेषता है? है हमारे शिव शंकर में। इसलिए उनको सबसे उंचा एक सोचने की बात है कि आपने कितने लोग भगवान मानते हैं। स्वयं के लिए उनको कुछ नहीं दुनिया में जोड़े हैं अब तक और कितने लोगों को चाहिए। कुछ भी कपड़े पहन लेंगे, नहीं तो बदन में नष्ट कर दिया, कितने लोगों से झगड़ा हो गया? राख लगा लेंगे, कैसी भी स्थिति हो रह लेंगे। उनको कोई-कोई लोग होते हैं उनका तो धर्म है झगड़ा कोई चीज़ की जरूरत नहीं है। पर अगर कोई करना, उठे-बैठे झगड़ा करना। कोई तो भी उनके आदमी किसी के साथ बहुत ज्यादती करता है तो अन्दर एक लालसा होती है, सर्वेरे इस से झगड़ा अन्त में वो ही उसका नाश कर देते हैं। जितनी क्षमा हुआ, दिन में उससे झगड़ा हुआ, शाम को उससे की शक्ति उनमें है उतनी ही उनमें नष्ट करने की झगड़ा हुआ। ऐसा स्वभाव जिस आदमी का हो जाए शक्ति है। इसका कारण क्या है? कारण यह है कि उससे तो लोग भागते हैं, वे अगर सामने से आते मनुष्य उनको देखकर यह समझ ले कि गर आप दिखाई देंगे तो लोग मुड़ जायेंगे दूसरे रास्ते से, इससे किसी के साथ बहुत ज्यादती करेंगे तो आपका प्रेम नहीं बढ़ सकता सहजयोग तो पूरा प्रेम का ठिकाना हो जायेगा। अब ये सब लोग गए कहाँ? कार्य है। इसमें देखिए बड़े-बड़े उदाहरण इसामसीह बड़े-बड़े आए थे रथी-महारथी, इन्होंने इतने धन्धे ने सूली पे चढ़ कर कहा था कि हे प्रभु, "इनको करे और ये गए कहाँ? इनका बड़ा नाम था। बहुतों क्षमा कर दो, क्योंकि यह नहीं जानते कि ये क्या को मारा, बहुतों को खत्म किया, बहुत से देश के कर रहे हैं।" इसी प्रकार गर हमारे अन्दर क्षमाशीलता देश खत्म कर दिए। आज वो हैं कहां? उनका कोई आ जाएगी तो हम भी शिवजी का, क्या कहना फोटो भी नहीं लगाता, उनका पुतला तो खड़ा करना चाहिए कि, शिकजी के सामर्थ्य को प्राप्त करेंगे तम ho बैतन्म्र लहरी खण्ड XV खण्ड :7 एव ৪ जलाई एवं अगस्त 2003 14 ि६ ु उनके गुणों को प्राप्त करेंगे। गुस्सा थमना, नाराज़ न अर्थ नहीं लगता। शिवजी के आज पूजन में आप होना, ये तो कोई खास चीज़ नहीं। और इसलिए लोग सब अपने मन में संकल्प करें कि हम गुस्सा आज के दिन सबको हमको विचार करना चाहिए नहीं करेंगे. चाहे कुछ हो जाए हम गुस्सा नहीं करेंगे। कि हम लोग किस कदर दूसरों पर हावी रहते हैं गुस्सा का कोई उपयोग ही नहीं तो क्यों गुस्सा करते और दूसरों को नष्ट करना चाहते हैं? खासकर हमारे हो? अपनी तबीयत खराब होती है। इसलिए आज देश में तो म्दों ने बहुत जुल्म ढाया औरतों पर! और सब लोग शिवजी को याद करें और उनके गुणों को अब भी कर रहे हैं। उसमें सहजयोगियों को नहीं प्राप्त होने की कोशिश करें। फंसना चाहिए, ये बेकार की चीज़ है इसका कोई अनन्त आशीर्वाद। सहजयोग प्रणाली द्वारा स्वस्थ समाज एवं परिवार की स्थापना निल्या ए. वोलोग्डीना ( सदस्य विज्ञान एवम् कला की पेट्रोवेस्किया अकादमी ) रूस पृथ्वी, परिवार- इन शब्दों की गहनता अगम्य है। समस्याएं उत्पन्न कर ली हैं। इस कठिन स्थिति से पृथ्वी पूरी मानवता का घर है। मानवता हमारे इस छुटकारा पाने का क्या कोई मार्ग है? हाँ है। ये मार्ग है सहजयोग का ज्ञान। सहजयोग उपग्रह का विशाल परिवार है। ये दोनों कथन अटल संस्थापिका श्रीमति निर्मला श्रीवास्तव ने मानवता के सत्य हैं। पृथ्वी पर रहने वाले सभी लोग यदि इस सत्य प्रति अथाह प्रेम पूर्वक इतने सहजरूप से इस ज्ञान का वर्णन किया है कि हर व्यक्ति आसानी से यह को महसूस करें तो तुरन्त बहुत सी समस्याओं का समाधान हो जाएगा। दुर्भाग्यवश अब हमारे इस समझ सके कि किस प्रकार सहजयोग विधियों से आत्मोद्धार, अच्छी सेहत एवम् उपग्रह पर बमों के धमाके और युद्ध किए जा रहे आत्म ज्ञान, हैं। लोग एक दूसरे की हत्या करते हैं। भूख, आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकता है। अपनी पुस्तक अनावश्यक भोजन तथा अन्य हास्यास्पद पदार्थो के 'META MODERN ERA' (परा आधुनिक युग) उपयोग से लोगों की मृत्यु होती है। हममें से बहुत में श्रीमति श्रीवास्तव प्रश्न करती हैं कि यदि दो से यह सत्य स्वीकार नहीं करते कि एक मानव मनुष्यों का विवाह अपने लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर दूसरे मानव का भाई है। व्यक्ति एक पराकाष्ठा से सकता तो किस प्रकार लोग प्रसन्नतामय जीवन की दूसरी पराकाष्ठा पर भागता रहता है। पृथ्वी की आशा कर सकते हैं? परन्तु सहजयोग प्रणाली द्वारा व्यक्ति प्रूर्ण विश्वास समस्याओं का समाधान खोजे बिना, इसके सौन्दर्य का ज्ञान प्राप्त किए बिना लोग बाह्य अंतरिक्ष की के साथ स्वस्थ परिवार एवं समाज की रचना कर ओर दौड़ रहे हैं । मानव हित के लिए प्रकृति द्वारा सकता है। सहजयोग के व्यवहारिक ज्ञान के मानवीय गतिविधियों पर उपयोग के परिणामों को सभी शोध दिए गए उपहारों का उपयोग किए बिना लोग कृत्रिम सत्य ठहराते हैं। भिन्न शहरों तथा विश्व के भिन्न पदार्थों का उत्पादन करने लगे हैं इन कार्यो द्वारा व्यक्ति अपने लिए खुशहाली तो आश्वस्त नहीं कर देशों में हुए सामाजिक शोधों में मानवीय जीवन पर पाया परन्तु अपने लिए, मानव स्वास्थ्य के लिए तथा सहजयोग ध्यान धारणा के प्रभाव के सकारात्मक पूरी पृथ्वी के लिए खतरे जैसी बहुत सी नई परिणाम हम देख सकते हैं सर्वप्रथम व्यक्ति स्वयं जुलाई एवं अगस्त 2003 16 चैतन्य लहरी खण्ड -XV ण्ड :7 एव B इसे सीखता है, स्वयं को स्वस्थ बनाता है और सृजनात्मक गतिविधियां प्रदायक निर्मल विद्या (Pure Knowledge) उसके परिवर्तित होने के पश्चात् उसके इर्द-गिर्द की सन्तोष एवम् उदारता सभी चीजें परिवर्तित हो जाती हैं। पारिवारिक सम्बन्ध. (Contentment & generosity) सामूहिकता के पारस्परिक सम्बन्ध, बेहतर हो जाते आत्मविश्वास, आनन्द एवं शान्ति । यहां तक की सहजयोगियों के बगीचों में लगाए (Confidence, joy & peace) गए वृक्ष अधिक तथा उत्तम फल उगाने लगते हैं। युक्ति संगत तथा साक्षी भाव होना तो किस प्रकार स्वस्थ परिवार एवं समाज का (Dimplomacy & Detachment) सृजन किया जाए। परिवार क्या है? एक गलत प्रेम एवम् क्षमाशीलता धारणा लोगों के मस्तिष्क में समाई हुई है कि पति, पत्नी और बच्चे परिवार हैं। परिवार वह है जिसमें (Love & Forgiveness) दन विश्व की हर चीज में लयबद्ध एकरूपता व्यक्ति दूसरों के अन्दर अपनी आवृत्ति करे, दूसरों (Harmonious Union) का सम्पूरक बने-दूसरों में अपने गुण देखे। जहां सामूहिक चेतना की शक्ति कुण्डलिनी की जागृति अनावश्यक चीजों के लिए कोई किसी अन्य सदस्य को क्षुब्ध नहीं करता । परिवार ऐसा ही होना चाहिए। द्वारा मानव में स्वतः ही ये तत्व जागृत हो जाते हैं । इन तत्वों में स्थापित व्यक्ति लयबद्ध हो जाता है इस स्थिति को कैसे प्राप्त किया जाए? इसका उत्तर और अपने चहूँ ओर शान्ति एवम् लयबद्धता स्थापित सहजयोग में हैं। चहूँ ओर शान्ति एवम् सुस्थिरता देखने के लिए कर सकता है। दूसरे स्थान पर परिवार के सृजन तथा देखभाल आवश्यक है कि व्यक्ति अपने अन्दर लयबद्धता स्थापित करे। सहजयोग अभ्यास द्वारा ऐसा कर पाना के लिए पुरुष तथा महिला की भूमिका को निश्चित कर लेना आवश्यक है। सहजयोग प्रणाली का अध्ययन सम्भव है। सातों आध्यात्मिक और चारित्रिक सिद्धान्तों की मूल शक्तियाँ मानव शरीर में स्थापित सात चक्रों करते हुए मनुष्य पुरुष एवं महिला अधिकारों की में निहित हैं जैसे:- समानता के भ्रामक तत्व को देख सकता है। क्योंकि सहजयोग में बाएं और दाएं अनुकम्पियों (Left & पावित्र्य (Chastity ) श चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 8 जुलाई एवं अगस्त 2003 17 Right Sympathetic Nervous System) की अमर हो गए और कुछ कालचक्र में खो गए। सभी ठोस परिभाषा वर्णित है। बायाँ अनुकम्पी नाड़ी तन्त्र ने आत्मोत्थान के लिए प्राय: एकांत में तपस्या की (Left Sympathetic) भूतकाल का मार्ग है और थी। आध्यात्मिक तथा चारित्रिक तत्वों को उन्होंने इसमें मातृत्व के मादा गुण हैं और दायाँ अनुकम्पी अपने अन्दर महसूस किया, परन्तु समाज ने उन्हें मान्यता नहीं दी क्योंकि एकांत में तपस्या करना (Right Sympathetic) भविष्य का नाड़ी तन्त्र है जिसमें पौरुषेय (Male) गुण निहित हैं। बहुत ही दुष्कर कार्य है। परन्तु हम सब ऐसे समय व्यक्ति तुरन्त जान सकता है कि भूत एवम् पर पृथ्वी पर हैं जब सभी मानव सामूहिक रूप से भविष्य एक समान नहीं हो सकते। वे तुल्य हैं आत्मसाक्षात्मकार पा सकते हैं। अत: हमें पुरुष और स्त्री के लिए सम्मानमय समरूप स्थान निश्चित कर (They are equivalent not equal) इसी प्रकार लेना चाहिए। पुरुष एवं महिला भी तुल्य हैं। परिवार एवं समाज में क) मानव का भविष्य बनाने के लिए अनुकूल वे तुल्य हैं। सहजयोग स्वस्थ समाज का मार्ग है। समाज एक परिवार है। सामाजिक लयबद्धता के स्थितियाँ बनाना, मनुष्य को अत्यन्त सावधानीपूर्वक लिए हमें पारिवारिक लयबद्धता आश्वस्त करनी मार्ग पर लाना, ताकि जीवन-आधार-प्रणाली के होगी बहुत से शोधों द्वारा प्रमाणित हो चुका है कि माध्यम से वह चल सके। इसके लिए उनके ऊपर सहजयोग ध्यान धारणा का अभ्यास करने वाले किसी भी प्रकार का दबाव नहीं पड़ना चाहिए और लोगों में स्वास्थ्य सुधार हो जाता है, पारिवारिक छोटी छोटी बातों के लिए उन्हें परेशान नहीं किया सम्बन्ध सुधर जाते हैं और सामाजिक रूप से वे जाना चाहिए। इस प्रकार से दाएं नाड़ी तंत्र के लयबद्ध हो जाते हैं। परन्तु इस परिवर्तन की गति प्रतिनिधियों की, भविष्य मार्ग के प्रतिनिधियों की, बहुत धीमी है और इसलिए समाज में भी यह आयु को लम्बा किया जा सकेगा क्योंकि आजकल हैं। परिवर्तन अत्यन्त धीमी गति से लाया जा सकता है। हम लोग जनसंख्या की समस्या में फंसे हुए प्राचीन काल में बहुत से लोगों को बोध प्राप्त सरकारी काम काज करने की उम्र को 60 वर्ष से हुआ और बहुत से ऐसे ऋषि मुनि हुए जिन्होंने बहुत बढ़ाने के मामले पर तर्क वितर्क चल रहे हैं परन्तु की औसत आयु 60 वर्ष से कम है। से महान कार्य किए। उनमें से कुछ तो इतिहास में रूस में मनुष्य चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं ৪ जुलाई एवं अगस्त 2003 18 दो बच्चों की माँ, नाती नातिनों की नानी माँ होते हुए क्या किया जाए? ख) महिला का पूर्ण सम्मान होना चाहिए क्योंकि भी, अपनी सारी व्यस्तताओं के बावजूद, भी पृथ्वी वही परिवार तथा समाज को बनाने तथा उसका के सभी लोगों को इतना सुन्दर ज्ञान दे पाई इन पालन पोषण करने की जिम्मेदार है। पति के धन भाषणों के आरम्भ से ही यह बताया जाता है कि को ठीक प्रकार से खर्च करने का दायित्व महिला महिला ही परिवार का हित आश्वस्त कर सकती है। का होना चाहिए। यदि परिवार में ऐसे नियम होते तो ऐसे अनुभव दर्शाते हैं कि परिवार में लयबद्धता व्यर्थ की चीजें खरीदकर घर में न भरी जाती। आती है जो आगे जाकर स्वस्थ समाज का आश्वासन दाएं नाड़ी तंत्र का निश्चित लक्ष्य होता है परन्तु है। सहज परिवारों में पले बच्चे मां बाप के उच्च अपने मित्रों के इस बात की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए कि बहुत चरित्र के उदाहरण पर चलते हुए सी चीजों के मामले में भविष्य भूतकाल पर निर्भर लिए उदाहरण बन गए। शिक्षा खेलकूद, कला तथा है। व्यक्ति को भावनात्मक शक्ति की आवश्यकता सृजनात्मक कार्यं में उनकी उपलब्धियां सामान्य होती है और इसलिए महिलाओं में पतियों तथा परिवार के बच्चों से कहीं अधिक होती हैं। परिवार के अन्य सदस्यों के प्रति प्रेमभाव होना आज जब हमारे देश में तथा पूरे विश्व में चाहिए। उन्हें चाहिए कि घर में अत्यन्त प्रेममय दुर्घटनाएं, प्राकृतिक प्रकोप तथा विध्वंस हजारों जीवन नष्ट कर रहे हैं, जबकि नशे की आदतें, शराब, वातावरण पैदा करें। सहजयोग में बहुत सी सूक्ष्म बातें हैं जिन पर वेश्यावृत्ति, अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद तथा भिन्न प्रकार चलने से हम वास्तविक रूप में स्वस्थ परिवार और के भयानक लोभ मानव की सुरक्षा को चुनौती दे रहे हैं, अब तर्क वितर्क करने का समय नहीं रह गया समाज का सृजन कर सकते हैं। करैलियन गणतन्त्र के सहजयोग पाठशाला में कि, 'करू या न करूं' (To be or not to be)l पहला पाठ सहजयोग संस्थापिका श्रीमति निर्मला अच्छाई को होने दो और यह अच्छाई सहजयोग की दी गई शिक्षाओं को शिक्षाओं में निहित है। ये हमें स्वस्थ एवं लयबद्ध श्रीवास्तव की प्रणाली पर सूक्ष्म समर्पित है। इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित परिवार का रूप देगी। सीमाओं (Borders) की किया गया है कि श्रीमति निर्मला श्रीवास्तव पत्नी, हमें आवश्यकता नहीं है। जब हम सब एक हैं तो चेतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एव ৪ जुलाई एवं अगस्त 2003 19 तारों की बाढ़ के पीछे छुपकर एक दूसरे से क्यों के हमारी सहायता करेगी। चैतन्य की भाषा संभी के लिए एक है। अब ये समझने का समय है कि हम छुपना है? बाह्य रूप में हम सब समान नहीं है। परन्तु सभी अपने घर, पृथ्वी ग्रह, में केवल एक परिवार हैं। मनुष्यों में एक ही प्रकार का नाड़ी तंत्र है। सहजयोग स्वस्थ समाज और पृथ्वी ग्रह के सभी मनुष्यों को द्वारा प्राप्त चैतन्य-चेतना बिना शाब्दिक अभिव्यक्ति एक सूत्र में बांधने का एकमात्र मार्ग सहजयोग है। श्री माँ के चरण चांदनी से धवल श्री माँ के चरण, प सुरक्षित उपवन से सजे श्री माँ के चरण, तेज से भरे, सोने से खरे श्री माँ के चरण, कमल पल्लवों से कोमल गंगा जल से निर्मल श्री माँ के चरण, समुद्र से गहरे आकाश से निरभ्र श्री माँ के चरण, चन्द्रमा की निर्मलता, तारों की चंचलता. प्रवाहित करें. श्री माँ के चरण, सहजियों के मन को लुभाते त मोक्ष प्राप्ति कराते मोक्षदा के चरण, चांदनी से धवल श्री माँ के चरण। श्री माताजी का टी.वी. साक्षात्कार 14.03,2003 हैं, गाते भी हैं कुछ करते नहीं। पर ये लोग प्रश्न यह उठता है कि मनुष्य का चमात्थान और संपूर्ण कल्याण किसमें निर्भर है? श्री कृष्ण ने कहा जिनको कुछ मालूम ही नहीं इस मामले में, आध्यात्म है 'योगक्षेम वहम्यम्' यानि ईश्वर के योग में मनुष्य के बारे में मालूम ही नहीं, वो सोचते हैं कि Truth का संपूर्ण कल्याण निहित है। परन्तु हम यह देखते कहां है। उसको खोजना चाहिए और उनकी बडी जबरदस्त खोज है और वो खोज इतनी गहरी है कि हैं कि Technical advancement के साथ-साथ हमारी आज की पीढ़ी आध्यात्म से दूर होती जा रही Russia जैसा देष आप सोचिए कि जहां मुझे है। बिल्कुल उम्मीद नहीं थी कि आध्यात्म चलेगा श्रीमाताजी : हाँ, यह बात तो सही है कि इतने आध्यात्मिक लोग बढ़िया क्योंकि उनके आध्यात्म के प्रति रुचि कम हो सकती है जब आप ऊपर बड़े जुल्म हुए हैं । इस जुल्म में वो अंदर ही Technology में बहुत ज्यादा होते हैं। पर जिस अंदर बढ़ते रहे। उनको भगवान-कुछ मालूम ही देश में Technology बहुत ज्यादा बढ़ गयी है, मैं नहीं। उनको आध्यात्म शब्द मालूम ही नहीं। कुछ देखती हूँ, वहीं बहुत ज्यादा लोग आध्यात्म की ओर नहीं। पर अंदर ही अंदर बड़े गहरे हो गए और बढ़ रहे हैं क्योंकि उससे आनंद नहीं है, उससे शांति आध्यात्म पाकर कहां से कहां पहुँच गये। वो ज्यादा नहीं आती, उससे समाधान नहीं आता। अब हमारे अधिकारी हो गये। अब ये नहीं में कह सकती कि सहज योग में जो लोग आए हुए हैं वो ज्यादातर उन वहां की औरतों को बहुत ज्यादा Freedom थी या देशों के हैं, अपने देश के तो हैं ही, पर उन देशों किस वजह से, पर सर्वसंगष्टी से यही एक उत्पन्न के हैं और बड़े गहरे हैं, जिन्होंने Technology हुआ है कि उनके अंदर खोज बहुत-आंतरिक खोज की चर्म-सीमा लांघ ली है। और वो कहते हैं कि और उसको प्राप्त करने के लिए वो कुछ भी कर इसमें रखा क्या है? कोई चीज़ नहीं है खास और सकते थे और जब वो मिल जाता तो ऐसे गहरे उतरते, क्योंकि अंदर गहराई है। अपने देश में तो उनकी जो रुझान है, उनकी जो खोज है-वो बड़ी गहन है। और बहुत ही सरल है । हमारे यहां सब आध्यात्म की ही बात की जाती रही। इसके सिवा गुरुओं ने बताया है कि अंदर की चीज खोजो। अंदर कुछ नहीं। सब कहते इसे खाजो-मतलब सब गुरुओं को पाये बगैर होता नहीं। पर जो लोग यह कहते भी ने यही बात कही। हम लोग गुरुओं को, जब वो रहे ho चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं ৪ जुललाई एव अगस्त 2003 21 तो सताया होगा पर अब जब वो चले गये तो मानते लिए। उसके बाद हम वहाँ पहुँचे तो वो हैरान हो हैं, उनकी बातें पढ़ते हैं सब कुछ जानते हैं पर गये कि ये तो अनुभूति देती हैं और पैसे बगैरह में करने को तैयार नहीं। कोई Interest नहीं। उससे ये लोग बड़े ही हमसे ु ड प्रश्न :आज अगुरु और कुगुरु के बढ़ते प्रभाव नजदीक आ गये। कयोंकि छल कपट करके ये लोग में लोग अपनी धन दौलत के साथ-साथ अपनी जो करते हैं बातें. और इस तरह से लांगों को नैतिकता भी विसर्जित करते जा रहे हैं। साथ ही बेवकूफ बनाते हैं आध्यात्म में.. वो कितने दिन तक चल सकते हैं? लेकिन हमारे साथ जो एक बार आध्यात्म ज्ञान को आज एक बहुत ही Attractive Pattern पर एक वस्तु के रूप में विश्व में बेचने जुड़ गये सो जुड़ गये अब 30 साल से ये कार्य हम कर रहे हैं और ये लोग बहुत ही गहरे चले गये। का प्रयास काफी विस्तृत रूप से किया जा रहा है जिसके कारण जन-साधारण भ्रमित और पथभ्रष्ट हो इस खीज में बहुत गहरे चले गये दूसरे ये कि जाते हैं। ऐसी विषम परिस्थितियों में सहजयोग द्वारा इनको घर से, समाज से प्यार का आभास ही नहीं। मानव जीवन में संपूर्ण बदलाव (Total तो मुझे देखकर के उन्हें वो प्यार मिलने लगा। उस प्यार से वो प्लावित हो गये और एकदम बदल गये। Transformation) लाना कैसे संभव है? इतने बदल गये कि अब आप सोचिए कि जर्मनी के श्रीमाताजी : विदेश मैं इसलिए जाती हूँ कि बहां के लोगों को खोज है और इस खोज में ही वो लोग लोग हैं वो इतने प्यारें हो गये हैं, इतने स्व्रीट डूबे हुए हैं। इतने लोग खोज रहे हैं और वहां इस (Sweet) हो गये हैं और इतने दिल खोलकर के पर बहुत लिखा भी गया है। हमारे जो किताबें हैं बात अपनी कहते हैं। और उनको बड़ी लज्जा आतीं उसको भी उन लोगों ने भाषांतरित कर लिया है कि हमारे देश में ये सब ऐसी गलत बातें हुई। न Translate करके पढ़ भी लिया है । आश्चर्य की जाने कितने देशों में हम कार्य कर रहे हैं - ये सब बीत है कि संस्कृत भी पढ़ते हैं। इतना कुछ मालूम सहजयोगी बताएंगे कि 86 Nations में हो रहा है है उन लोगों को। फिर यहां से कुछ गलत किस्म के यह कार्य। तो हम तो इतने देशों में गये नहीं। होता गुरु पहुँच गये वहाँ। उन्होंने उनको पढ़ाता शुरु कर क्या है कि एक आदमी पार हो गया बो सीख गया। दिया। तो वो चीज़ मिली नहीं। पैसे-वैसे बहुत ले एक साल में वो Expert हो जाता है। फिर वो कहीं जुलाई एवं अगस्त 2003 चैतन्य लहरी खण्ड XV खण्ड : 7 एवं 8 22 गया। फिर वो औरों को बताता है इस तरह से ये मानते। किसी देश को बंधन नहीं मानते। किसी चीज creed को, किसी race को हम बंधन नहीं मानते। बहुत बढ़ रही है। और इतनी बढ़ गयी है कि समझ में नहीं आता कि हम कैसे इन सब देशों में किसी भी चीज का बंधन नहीं। जा सकते हैं। पर वो लोग आते हैं जहां भी हमारे मनुष्य को मनुष्य मानते हैं और सारे धमों का हम आदर करते हैं। पर धर्मों का और धर्म तत्वों Programme होते हैं तो ऐसे देशों में जैसे Benin है। एक देश है उसका नाम है Ivory Coast, का, न कि उसके जो भी परिहास कर दिये धरमों के। और इस तरह से जिस भी धर्म में लोग होंगे वो जहां कि बिल्कुल बेचारे मुसलमान हो गये थे इसलिए मैंने पूछा कि तुम लोग मुसलमान क्यों हो सब इसमें कूदते हैं और वो सोचते हैं कि हमें एक गये थे तो कहने लगे हमने French लोगो को देखा असली धर्म मिल गया है। उनमें बिल्कुल नैतिकता नहीं, इसलिए हम मुसलमान आज तक सब बड़े बड़े अवतरण हो गये, साधु संत हो गये, सब हो गये। उन्होंने आध्यात्म की बात हो गये अब वो सब सहजयोगी हो गये इस तरह से हर जगह सहजयोगी बहुत ज्यादा बढ़ रहे हैं। और की पर वो अनुभूति नहीं दे पाये थे। बगैर अनुभूति जो लोग Fundamentalists लोगों से तंग हैं वो के जब मनुष्य किसी चीज को प्राप्त करता है तो भी आना चाहते हैं सहजयोग में इस तरह से जैसे उसमें उसको विश्वास ही नहीं होता। कि सब चीजों से त्रस्त जो लोग हैं दूसरे जो खोज कुछ ऐसा काम तो हमने किया नहीं। सिर्फ ये रहे हैं - ऐसे बड़े बड़े समूह आ गये हैं और इन्होंने कि हमने इस चीज की खोज लगाई कि गर ये कार्य पहले ही ऐसे कुछ groups बना लिए कि वो अनुभूति का, गर सामाजिक तरह से, ( en-masse) के groups आ गये। तो उसमें मुझे कुछ कर सकें तो इसका असर ज्यादा अच्छा होगा। कोई groups दिक्कत हुई नहीं क्योंकि सब कुछ पहले ही इन सी भी चीज़ एक व्यक्तिगत रूप से अगर आप पाते लोगों के मन में थी और उसका जो आदर्श था वो हैं - समझ लीजिए आपने Electricity की खोज शायद इन लोगों ने मुझमें पाया। और वो सब मेरी लगाई और उसको जब तक समाज के लिए उपयोग ओर आ गये और इसको प्राप्त किया। विशेषता में नहीं आयेगी तो वो व्यर्थ है । इसी प्रकार हमने यह सहजयोग की यह है कि हम धर्म को बंधन नहीं सोचा कि जो हमें उपलब्धि सहजयोग के बारे में हुई चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : ? एवं 8 जुलाई एवं अगस्त 2003 23 थी वो सामाजिक होना चाहिए, आमास, सार्वजनिक कि कलियुग में इस साल आपके यहां सहजयोग शुरु होने वाला है। और उस सहजयोग के शुरु होने होना चाहिए। कहना चाहिए यह बिल्कुल सामूहिक (Collective) है । उसके लिए जरूर हमने थोड़ी से लोगों के जो भ्रमिष्ट बातें हैं या जो गलत रास्ते पर चले गये हैं या जो कलियुग के चक्कर में आ सी मेहनत करी। हमने मनुष्य की जो है अलग-अलग गतिविधियाँ देखीं और उसके चक्रों पर ध्यान दिया गये हैं वो सब बच जायेंगे और उनकी कुण्डलिनी और देखा कि क्या बात है, क्यों नहीं हो सकता। जागृत हो जायेगी। यहां तक उसमें लिखा है कि उसके बाद वो जब हमने जान लिया कि इसमें अस्पतालों की कोई जरूरत नहीं होगी। बहुत कुछ क्या-क्या आचरण हैं, मानव में कौन सी-कौन सी बातें उसमें लिखी हुयी हैं। तो यह तो विधि है। यह आचरण हैं, जब वो हमने समझ लिया तो उसको समय आना पड़ता है और ये समय आया है। किस तरह से पार करना चाहिए ये भी हमने प्रयत्न कलियुग में यही खास बात है कि भ्रांति इसमें किया उसका और 1970 मई में हमने एक ऐसे मनुष्य में आती है और भ्रांति की ही वजह से वो आदमी को देखा कि जो लोगों को भ्रांति में डाल खोजता है। जब अंधेरे में पूरी तरह से भ्रांत हो जाता रहा था। तब हमने तय कर लिया कि ये अब हमें है तो खोजता है और यह समय है। इस समय में ही करना चाहिए। तो उससे हमको इसकी जो प्रणाली यह होने वाला है। सहजयोग से बहुतों की बीमारियां है, उसकी उपलब्धि हुई। उससे अब ये होता है कि ठीक हो जाती हैं क्योंकि यह जो चक्र हैं हमारे अंदर आमास Realisation देना अब बहुत आसान है। इसी से हमारा शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और ये विधि लिखित है कि इस कलियुग में यह आध्यात्मिक सम्बंध है। जब हमारी कुण्डलिनी जागृत कार्य होने वाला है और इसकी सम्पन्नता भी होनी हो जाती है तो इन चक्रों को वो प्लावित करती है, है। ये हमारे यहां पहले से सब वर्णित है और वो जो Nourish करती है। उसके कारण उन चक्रों में जो है लिखा हुआ, वही हो रहा है। तो पहले तो समाज बीमारियां हैं वो ठीक हो जाती हैं और उसके को यह तैयारी होनी चाहिए कि वो खोजे। अलावा ऐसी बीमारियां कि जिनको हम बोलते हैं आपके यहां नाड़ी-ग्रंथ नाम का एक ग्रंथ है ठीक नहीं हो सकती जैसे Cancer है। सहजयोग में लोगों का Cancer ठीक हो गया| भृगु-मुनी का, जिसमें उन्होंने साफ-साफ लिखा প चैतान्य लारों खण्ड -X४ खण्ड 17 ए 8 जुलाई एव अगस्त 2003 24 Blood Cancer ठीक हो गया। बहुत कुछ हो खुद ही जागृत होकर के ठीक कर देती है। अनुभूति गया। यहा तक कि AIDS भी ठीक हो गया। पर होते ही मनुष्य समझने लग जाता है। अनुभूति किस AIDS के जो मरीज है वे अपने को. बड़े अहंकारी चीज से होती है कि आपकी आत्मा का प्रकाश वो सोचते हैं कि हमने बडा भारी पराक्रम किया आपके हृदय में आ गया। आपके हृदय में आत्मा हुआ है, हम Martyr हैं और उनको तो समझाना का प्रकाश आने से उस प्रकाश में हम देखते हैं कि मुश्किल है। हमने 5 आदमी ठीक किए फिर छोड़ कौन सी चीज हमारे लिए दुर्गति लायेंगी और कौन सी चीज हमारे लिए सद्गति लायेगी। जैसे कि करक दिया। और एक है Alzheimer की बीमारी। ये लोग आपके यहां भी प्रकाश है, आप देख सकते हैं। जो बहुत ज्यादा जीवन में दूसरों पे हावी रहते हैं, अंधेरा होगा तो समझ नहीं पाते। तो उस प्रकाश में Control करते रहते हैं, उनको कभी-कभी हो मनुष्य स्वयं ही बदलता है। मैं किसी से कुछ नहीं जाता है और वो मरने से पहले ही उनकी एक कहती। ऐसा मैं कहती ही नहीं कि तुम यह छोड़ो. यह करो। आपको आश्चर्य होगा कि हमारे सहजयोग side, brain की मर जाती है शायद.और दूसरी side है बो चलती है जो बड़ी aggressive बहुत में कोई drugs नहीं लेता, कोई शराब नहीं पीता, ज्यादा आतताई और बहुत ज्यादा कहना चाहिए कोई गलत काम नहीं करता । 99% कहना चाहिए - violent है। इसलिए कभी-कभी बो एक दम हो कोई गलत काम नहीं। इतनी शादियां होती हैं, सब जाते हैं-left sided हम उनको कहते हैं जिनमें कि बहुत सुंदर सुचारू रूप से चलती हैं। प्यारे-प्यारे बिल्कुल cabbage के जैसे। और फिर जब वो बच्चे होते हैं। सब एकदम से जो वर्णन है कि ऐसा जागृत होते हैं तो उनकी right side चल पड़ती है साम्राज्य आने वाला है। वो वास्तव ही में परमात्मा तो वो गालियां बकते हैं. ऐसा करते हैं। एक ये का साम्राज्य है। और उसमें कोई भी तरह की बीमारी ऐसी है कि जिसको हमने हाथ नहीं लगाया। कड़वाहट या तकलीफ नहीं। एक तरह मनुष्य बड़ा पर जैसे drugs आपके ठीक हो जाती है। हम तो ही सामूहिक हो जाता है। जैसे कि एक बूंद सागर किसी को कुछ कहते ही - क्या करना हैं क्या नहीं में गिर जाए। जो कबीर ने कहा हुआ है कि सागर करना। अपने आप ठीक हो जाता है। कुण्डलिनी में गिर जाए - वही एकाकारिता आ जाती है यह he ज्ट heo चतन्य लहरी खण्ड XV खण्ड :7 एवं ৪ जुलाई एवं अगस्त 2003 25 कर प्० कोि ार िं तो होने का ही है - का, evolution नहीं। में ता यह कहूँगी कि सबका अपने अदर हमारा उत्क्रांति evolution Ta का चर्म स्थान हैं। ये हमें प्राप्त होना हैं। इसीलिए सत्य को खोजना चाहिए। उसके बगैर काई मार्ग आज तक जो कुछ भी हमारी प्रगति हुई है. जो-जो नहीं है। जब तक आप अपने अंदर बसे हुए सत्य गुरु लोगों ने, जो-जो हमारे अवतरणों ने जो-जो को नहीं खोजते तब तक असत्य के रास्ते पर हमारे प्रेषितों ने और इन लोगों ने जो काम किया है चलते हैं और इसी से यह सब चीजें होती हैं। उसको फलद्रूप होना है। तो यह समय आना है, जब आप सत्य में आ जाते हैं तो आपको कोई जैसे बीज है, पहले लगाइये-उसमें मूली आयेगी, विधि विधान नहीं चाहिए। आप अच्छा ही कार्य फिर पेड़ आयेगा, फिर फूल आयेंगे-फिर फल करते हैं। इसलिए सत्य की खोज सबको करनी आयेंगे। इसी तरह से मैं इसको Bloossom चाहिए और अब प्रप्त भी कर सकते हैं। यही मैं Time कहती हूँ। इस वक्त इतने फूल खिले चाहती हूँ कि सब लोग विशेषकर आदमी लोग सत्य हुए हैं बस उनको फल बनाना कोई मुश्किल काम को खोजे | तिहाड़ जेल पत्रिका से 13 जून 2002 सहजयोग ध्यान धारणा का लक्ष्य, मूल ध्यान को सहजयोग सीखने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। धारणा की परम्परा पर आधारित 'निर्विचार समाधि' मैंने स्वयं भी इन कक्षाओं में भाग लिया है। कि स्थिति में स्थापित होना है। निर्विचार समाधि वह आरम्भ में जब मुझे बताया गया कि श्री माताजी स्थिति है जिसमें मानव की चुस्ती तथा प्रभाव क्षमता निर्मला देवी के फोरटो से चैतन्य लहरियां प्रवाहित को कम किये बिना मस्तिष्क की अवांछित तनाव होती हैं तो में इस बात पर विश्वास न कर सका उत्पन्न करने वाली गतिविधियों को कम किया जाता परन्तु श्री आई.एस. बन्सल नामक एक सहजयोगी ने मुझे यह समझाया और मैंने पानी पैर क्रिया आदि है। माताजी श्री निर्मला देवी की फोटो से प्रवाहित को किया, श्री माताजी से प्रार्थना की कि मेरे शरीर होने वाली चैतन्य लहरियां कुन्डलिनी की जागृति को पवित्र कर दें। तब एक सप्ताह के पश्चात् मुझे करती हैं और इन चैतन्य लहरियों की शक्ति मानव अपने हाथों की हथेलियों पर चैतन्य लहरियों का अनुभव हुआ, शारीरिक गतिविधियों में काफी परिवर्तन शरीर के भिन्न हिस्सों पर बने और उनकी देखभाल करने वाले चक्रों का पोषण करती हैं। सभी चक्र हुए और मुझे शरीर में अधिक शक्ति का एहसास यदि पूर्णतः सन्तुलित हो जाएं तो किसी भी प्रकार हुआ। दिन में दो बार पन्द्रह मिनट नियमित रूप से में की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं नहीं हो सकती और ध्यान धारणा करते रहने से मुझे सिर के तालुभाग सिर के तालूभाग पर शीतल चैतन्य लहरिया अनुभव शीतल चैतन्य लहरियों का अनुभव हुआ जिससे निर्विचार समाधि की अवस्था मुझे मिलने लगी। इस की जा सकती हैं जो अन्ततः निर्विचार समाधि प्रदान अवस्था का आम आदमी विश्वास नहीं कर सकता करती हैं। सहजयोग का यह प्रशिक्षण नि:शुल्क दिया जाता परन्तु यह चमत्कारिक वास्तविकता मैंने सहजयोग में है और सहजयोगी कार्यकर्त्ता नियमित रूप से जेल अनुभव की। यह संस्था भिन्न जेलों में कार्यक्रम कर रही है. में अभियुक्तों, सजायाफ्तों तथा अधिकारियों को सहजयोग सिखाते हैं। तिहाड़ जेल के अधिकारी इन और बन्दियों सहित अधिकारी वर्ग भी इनका लाभ सेवाओं का लाभ उठा रहे हैं और जेल के बंदियों उठा रहा है। यहां हमारा क्या लक्ष्य है परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन 05.10.1983 आज में आपसे कुछ चीजों के विषय में सीधे उनसे आपको सीखना है। कितनी तेजी से? उनसे बात करने वाली हूँ कि किस तरह मैं आप लोगों के मुझे कुछ भी कहना नहीं पड़ता। अपने अंदर से ही माध्यम से सभी कुछ भली-भांति संभालती रही हूँ। वे आत्म अनुशासित हैं। उनसे मुझे कुछ भी नहीं मेरे पास समय का अभाव है। आप जानते हैं कि बताना पड़ता। वे अत्यन्त व्यवस्थित हैं और बहुत आपका तो केवल एक कार्यक्रम होता है और मेरे परिश्रम कर रहे हैं। इसकी आप कल्पना भी नहीं तीन-तीन, चार-चार कार्यक्रम होते हैं। इनके लिए मैं कर सकते। आप लोग कुछ भी नहीं कर रहे। आप परिश्रम करती रही हूँ। मेंने आपको बताया था यदि अपनी देखभाल कर लें तो आपने क्या किया? बहुत कि महाराष्ट्र में सहजयोग बहुत बड़ा आन्दोलन आप अपना सामान उठाते हैं बसों में डालते हैं. नीचे उतरते हैं और फिर सो जाते हैं । उनके मुकाबले बनने वाला है और हमें बहुत तेजी से कार्य करना होगा। आपको समझना है कि हम इस कार्यक्रम के में आप क्या काम कर रहे हैं? इस कार्य में कोई लिए महाराष्ट्र में क्यों आए हैं। आप यहां क्यों आए चुस्ती नहीं है। मुझे लगता है कि वो लोग भी इस बात को देख रहे हैं कि आप लोग आलसी प्रवृत्ति हैं? इस बात को लोग ठीक से नहीं समझते। इस सीधी सी बात की भी कुछ लोगों में समझ नहीं है। हैं या आपमें से कुछ लोग नशेड़ी हैं। यह सब क्या आप लोगों में से कुछ लोग अफवाहें फैलाने वाले है? पूरी तरह से यह इतना अजीब लगता है मानो हैं। वो नहीं समझते कि यहां पर वो क्यों आए हैं। यह यात्रा एक ठेका हो। बसों पर चढ़ना और सहजयोग की कुछ चीजें सीखने के लिए वो यहां आयोजन करना अच्छा नहीं है। कुछ लोग तो रौब हैं। आपके पास यदि कोई आश्रम नहीं होगा तो भी देते हैं। ये सब पूर्णत: हास्यास्पद है। आए आप दूसरे लोगों को साथ मिल-जुल कर रहना मेरे विचार से कुछ लोग सहजयोग को वैसे ही किस प्रकार सीखेंगे? एक प्रकार से हमें अत्यन्त (Lethargic) तंदराजनक समझते हैं जैसे नशे सहज ढंग से चलना चाहिए तथा सहज ढंग से आदि लेना-नशे जिनसे आप तन्द्रा में चले जाते हैं। चलते हुए चुस्त किस प्रकार रहना है। अब देखें कि किसी को यह कहने की आवश्यकता क्यों होनी महाराष्ट्र के लोग कैसे चलते हैं। उनकी ओर देखें, चाहिए कि बसों में चढ़ो? क्यों आप स्वयं बसों में ह हम्क प बउ जुलाई एवं अगस्त 2003 चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 28 नहीं चढ़ते ? सभी लोग स्वयं को आयोजित करें। वारेन का कहना है कि वे अब आयोजन नहीं कर स्वयं बसों में चढ़े। सभी कुछ सीखें। अन्यथा यह सकते कौन यह कार्य करना चाहेगा? हम देखना सब व्यर्थ है। यह व्यर्थ है और पतन की ओर जाना चाहते हैं कि कौन शिकायत कर रहा है। वे सभी मर्यादाओं को लांघ रहे थे। अब उनहें यह कार्य है। आप यहां भ्रमण करने के लिए नहीं आए हैं। संभालने दो। व्यवहार करने का यह कोई तरीका यह बात आपको समझ लेनी चाहिए कि यहां पर नहीं है। आपको स्वयं को अनुशासित करना है। आपके लिए विभाग कार्यरत नहीं है। जरा सा आराम आपने अनुशासन सीखना है। आप बहुत सी चीजों को अधिकार मान बैठे हैं। जब निक ने ऐसा करने आपको मिलता है और आप भावसमाधि (Trance) में चले जाते हैं। समझ लेना चाहिए कि बहुत का प्रयत्न किया तो आपने देखा कि उसके साथ अधिक भौतिकवाद आपको अहं की अवस्था तक क्या हुआ। अब वे लिन्डा के घर में आराम से रह ले आया है। यह सहजयोग के लिए और आपके रहे हैं परन्तु मैं देख रही हूँ कि वहां भी लोग ऐसा लिए बहुत बड़ा सिरदर्द है। आप बहुत अधिक ही करते हैं । क्योंकि वहां रहते हुए उन्हें अनुशासन भौतिक वादी हैं और पदार्थ (Matter) सदैव आत्मा की कोई आवश्यकता नहीं होती और न ही उन्हें पर हावी होने का प्रयत्न करता है तथा आपकी बताने के लिए वहां कोई होता है। यह आलसीपन आत्मा इसके नियंत्रण में चली जाती है। परिणामस्वरूप नहीं है। सहजयोग अत्यन्त चुस्त दुरुस्त चीज है आप तन्द्रा-भाव में चले जाते हैं। तब कोई भी आप चुस्त लोग हैं। इन (महाराष्ट्र के) लोगों की व्यक्ति यदि आपको चुस्ती करने के लिए कहता है ओर देखें। वे कितने चुस्त हैं। प्रात: 5.30 बजे वे उठ जाते हैं और अपने कार्य करते हैं। आप देखें तो आप सोचते हैं कि आप पर रोब जमाया जा रहा है। यह सब विवेकहीनता है, जो मेरी समझ में नहीं कि वे किस प्रकार से आयोजन करते हैं। आप आती। अब वारेन कह रहे हैं कि वे और अधिक कल्पना भी नहीं कर सकते जितना वो आयोजन आयोजन नहीं करना चाहते। आपमें से कौन इस करते हैं। इन दूर दराज के स्थानों पर भी, इतनी कार्य को करना चाहेगा? जो लोग शिकायत कर रहे कठिन परिस्थितियों में भी, वे आयोजन कर रहे हैं। थे वे अपने हाथ उठाएं। इस कार्य को संभाल लें। और हम क्या कर रहे हैं? केवल सोच भर रहे हैं चैतन्य सहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं B जुलाई एवं अगस्त 2003 29 कि हमने अनुबन्ध किया हुआ है और यात्री की इसकी कल्पना कर सकते हैं? वो रात को आपके लिए खाना बनाते हैं। कार्यक्रम के बाद में यहां आते तरह से हमें सभी चीज यहीं बैठे मिल जानी चाहिए। हैं और आपके लिए खाना बनाते हैं। जो लोग मेरे अब वारेन ने सेवानिवृत्ति ले ली है। उनके कार्य को कौन करना चाहेगा? मुझे देखने दें। जो लोग शिकायत साथ होते हैं वो इस बात को जानते हैं वो खाना बनाते हैं और यह सब लोग युवा लड़के हैं फिर भी कर रहे थे क्या मैं उन्हों को यह कार्य दे दूं? ये क्या हो रहा है? मेरी तो समझ में नहीं आता। एक प्रातः 5.30 बजे उठकर सारी चीजों का आयोजन है और बाकी सारे उसके करते हैं। उनकी ओर देखें। उनसे सीखें । गुणों में आदमी मजाक शुरू करता साथ चल पड़ते हैं। यह बात विल्कुल गलत है। ये आप लोग उनसे किसी भी प्रकार अच्छे नहीं हैं। कोई पर्यटन नहीं है। बेहतर होगा कि वायस चले यह बात आपको समझ लेनी चाहिए। आपमें अहं जाएं। आपने जो पैसा मुझे दिया है वह सब मैं लौटा और पराचेतना के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। आप दूंगी और आप वापस चले जाएं। यहां पर आप समझते हैं कि आप महान हैं। आप इतने महान नहीं सहजयोग सीखने के लिए आए हैं, कि चुस्त कैसे हैं। यह बात आपको मुझे स्पष्ट बतानी है यह अहं होना है। आपकी माँ इस उम्र में भी कितना कार्य आपको नीचे लाना होगा। भौतिक विकास ने आपको करती हैं? पूरी तरह नष्ट कर दिया है। यहां पर आप हजारों मैं 60 वर्ष की हो गई हूँ मैं कितना कार्य कर लोगों को हाथ उठाते हुए देखते हैं यहां के लोगों रही हूँ, इस चीज को देखें। मैं आपकी आदर्श हूँ या को देखें। क्या हम उस संस्कृति को पूरी तरह से महारानी ऐलिजाबेथ? कौन आपका आदर्श है? कहने भूल सकते हैं जिसने पश्चिमी मानव को नष्ट कर का अभिप्राय है कि आपको यह समझ में ही नहीं दिया है? आप लोग ही नींव के पत्थर हैं। आप क्या आता है कि आप यहां क्यों आएं हैं। एक व्यक्ति हैं? क्या आप सन्त नहीं हैं? क्या यह बात ठीक है मजाक शुरू करता दूसरा इसे चलाता है और आप नहीं है? एक सन्त किस प्रकार रहता है? रामदास सब इस तरह से बातें करने लगते हैं यह बिल्कुल स्वामी की ओर देखें। असंभव स्थिति है। इन (भारतीय) लोगों को मुझे क्या अब आप महसूस करते हैं कि आप एक बार भी कुछ बताना नहीं पड़ता। क्या आप महालक्ष्मी गए। ये एक पीठ है, कुण्डलिनी के बहुत जुलाई एवं अगस्त 2003 चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 8 30 से पीठों में से एक। ये पीठ पूरे ब्रह्माण्ड में बने हुए अपनी आत्मा से और स्वयं को साधने से प्रेम हैं। क्या आपने ये बात समझी? आप लोग अपनी करते? सभी कुछ आप यू हीं छोड़कर चले गए। सुख-सुविधा के विषय में देख रहे हैं या अपनी चार कमरों को ताला नहीं लगाया और केवल एक आत्मा की देखभाल कर रहे हैं? आप क्या कर रहे लड़की वहां पर रखवाली के लिए थी। जरा देखें हैं? क्या आप यह बात समझ पाए कि मन्दिर इसी कि वह कितनी चुस्त है। जिस प्रकार से वह कार्य के लिए बना है? आपको यह बात समझ देखभाल करती है, दस अंग्रेज लड़कियां भी नहीं आई? अब मैं चाहती हूँ कि आप एक अन्य मन्दिर कर सकतीं। हर छोटी से छोटी चीज को वह जानती देखें और इसके पश्चात् एक अन्य। यह आसान है मैं केवल अंग्रेजों की बात नहीं कह रही, आप है। कृपा करके इस समस्या कार्य नहीं है। कोई भी पर्यटक इन मंदिरों में नहीं सब में एक सी समस्या गया है। वास्तव में किसी भी विदेशी को इन मंदिरों से मुक्ति पा लें तथा पश्चिम को भूल जाएं। आपने महान कार्य करने है। जहां तक हो सकता है। में जाने की आज्ञा न थी। आज आप क्योंकि सन्त आपकी देखभाल कर रही हूँ। आपको अपनी देखभाल हैं इसलिए आपको इसकी आज्ञा है। सुख-सुविधाओं की बात करना आदि-आदि। वहां पर आपको कौन खुद करनी है। जिस प्रकार आप चल रहे हैं वो मेरी से सुख मिलते हैं? मेरे विचार से तो पश्चिमी देश समझ में बिल्कुल नहीं आता। क्या है, अनुबंध है? अधिक बहुत अत्यन्त कष्ट-कर हैं। आत्मा का सुख तो वहाँ है ही जो लोग पहली बार आए हैं, वो तो नहीं। मुझे तो वहां अत्यन्त कष्टकर प्रतीत होता है। कष्टकर हैं, क्योंकि इससे पूर्व इन्होंने यह सब कभी । कहने से मेरा अभिप्राय है कि जो लोग हर आदमी शराब पी रहा है। हर आदमी मूर्खतापूर्ण नहीं देखा व्यवहार कर रहा है. सभी इतने भौतिकवादी हैं. वापिस जाना चाहते हैं वो जा सकते हैं। कल मैं इतने भौतिकतावादी भयंकर। परमात्मा के लिए अपने आपको पैसे लौटा दूंगी। आप वापिस चले जाएं। को बहुत बड़ी चीज न समझें। मैं आपको यह कहते राहुरी तो इससे भी खराब होगी। मानो पहली बार हुए नहीं सुनना चाहती कि कोई व्यक्ति आप पर आपको होटल मिला हो। आहा-हा-हा! मैं। नहीं रौब झाड़ रहा है या मर्यादाओं का उल्लंघन कर रहा जानती कि किस प्रकार आप को सुख की अनुभूति है। सहज का अर्थ आलस्य नहीं है। क्यों नहीं आप होगी आपको स्नान-गृह चाहिएं। अपने आपको जुलाई एवं अगस्त 2003 चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 8 31 स्नान गृह से जोड़ लें और सर्वत्र स्नान घर को लिए लोगों ने इसको गलत समझा। परन्तु यह सब क्या हो घूमें। आप जानते हैं कि इंग्लैण्ड में मैं किस प्रकार रहा है? क्यों नहीं आप रोज प्रात: 5 बजे उठते? में रहती हूँ। वहां पर मेरा घर कैसा है और स्नान गृह आपसे कहीं अधिक कार्य करती हूँ। आप जानते हैं कैसे हैं। फिर भी मैंने कभी शिकायत नहीं की। इन कि आज यहां कौन से कार्यक्रम हैं। यहां पर पूजा है। आपको किसी के चक्र नहीं चलाने पड़़ते । क्या चीज़ों के विषय में मैंने कभी नहीं सोचा। कभी नहीं। मेरे लिए तो आत्मा ही सर्वोपरि है। अपने को बहुत आपको ऐसा करना पड़ता है? पर्वतों जैसी कुण्डलिनी कुछ न समझें। कृपा करें। यह लोग सभी चीज़ों का आपको नहीं उठानी पड़ती। क्या आपको उठानी है? हजारों वर्षों के बाद भी वहां पत्थर ही प्रबंध कर रहे हैं। यह पूजा के लिए सभी प्रबंध कर पड़ती पत्थर हैं। मुझे यह सब करना पड़ता है। मुझे अपने रहे हैं। सभी चीजों का प्रबंध हो रहा है उनकी ओर विषय में बताने की आवश्यकता नहीं है। इस देखें। ये कहीं हमें समस्या न समझें? कल आपको तुल्जापुर नामक स्थान पर जाना है। कार्यक्रम के बाद मुझे बुद्धि-जीवियों से बात करनी यह विठ्ठल का, विशुद्धि का बहुत बड़ा स्थान है है तत्पश्चात् संवाददाता सम्मेलन है। संवाददाता जिसे आपने देखना है। इसके लिए आपको तुल्जापुर सम्मेलन के पश्चात् 6 बजे एक बहुत बड़ी सभा है। जाना होगा। पश्चिम के लोग बेचैन हैं, यही कारण ये लोग सुख-सुविधाओं के अतिरिक्त कुछ बात है कि विट्ठल पश्चिम में प्रकट नहीं हुए। उन्हें भी नहीं करते। यह अपनी आत्मा को गुलाम बनाने के वहां अच्छा नहीं लगता। पत्थरों पर कौन मन्दिर अतिरिक्त कुछ भी नहीं। ऐसा करना आत्मा को बनाता, क्या ये लोग बना पाते? क्या आप सोचते हैं गुलाम बनाना है। आत्मा दास बन जाती है। आप इन चीजों से मुक्त हो जाएं। यह सब मूर्खता है। जन्म कि वो हनुमान को समझ लेते? इन रामदासजी को देखें। ये किस प्रकार रहते थे? शिवाजी जैसा व्यक्ति जन्मान्तरों से आप साधक हैं, सन्त हैं। इन चीजों से भी यहां रहा। शिवाजी यहां रहे। वो राजा थे कहने मुक्ति पा लें। इनसे पूर्णतः मुक्त हो जाएं। ये लोग से मेरा अभिप्राय है कि मैं तुम्हें किसी परीक्षा में अत्यन्त चुस्त हैं- अत्यन्त चुस्त। इनका मूलाधार नहीं डाल रही। आपको ठंड में नहीं सुलाना चाहती अव्वल दर्जे का है। आप इसे देखें तो सही। सुबह थी और न ही कोई कष्ट देना चाहती थी। आप सवेरे पांच बजे स्नान करके तैयार हो जाते हैं और जुलाई एवं अगस्त 2003 32 चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 8 परन्तु ऐसे सभी सहजयोग से बाहर चले जायेंगे मेरी उसके बाद वो तैयार हैं। आप हर समय क्या सोचते 131 रहते हैं? आप आलसी हैं। आपको देखकर लोग इस बात को निश्चित जान लें कि ये सब बाहर हो मुझे बताते हैं कि आपमें से कुछ लोग नशा भी जायेंगे। आप लोगों को सहजयोग चाहिए या नहीं? यह मुख्य बात है। तब आपको सुख-सुविधाओं की करते हैं। यही कारण है कि उन्हें लगता है कि आप चिन्ता क्यों करनी है? आपमें से कुछ लोग इतने आलसी हैं। आपको बताने के लिए क्या बाकी है? आप दूर-दूर स्थानों से पहली बार यहां आए हैं। फ्रैंकफर्ट अपनी बस में भी नहीं चढ़ सकते। यह बात उनकी के लोग बिल्कुल ठीक हैं, टोरंटो के लोग बिल्कुल समझ में नहीं आती। पांच मिनट में वो सारी चीज़ों ठीक हैं। मेरा कहने का अभिप्राय यह है कि सभी का आयोजन कर लेते हैं। पांच मिनट में। क्या आप को बलिदान देना होगा तो क्यों नहीं अन्य लोग भी इसकी कल्पना कर सकते हैं? कार्यक्रम के बाद ऐसा ही करते? आप कृपा करके मुझे प्रसन्न करने का प्रयत्न करें। हम यहीं तक सीमित नहीं होना वह वहां आते हैं। खाना पकाते हैं और उस समय चाहते। अब वारेन यह कार्य त्यागना चाहते हैं। हर मैं भी वहां उपस्थित थी। आप बहुत अधिक मत सोचें। बहुत अधिक आदमी कहने लगता है कि वह बहुत रौब देते हैं। सोचना आपको आलसी प्रवृत्ति बना देता है। बस परन्तु क्यों? आप क्या हैं? इससे बेहतर कुछ अन्य हैं? पाने की योग्यता आपमें नहीं है। क्या आप चुस्त मात्र इतना ही। बहुत अधिक सोचना अच्छा नहीं है। सोचना भौतिकतावाद की ही एक शैली है। यह पत्थरों की तरह से आपके मूलाधार लटके हुए है। सूक्ष्म भौतिकतावाद है। सोचने में क्या रखा है? हर समय आप सोचते रहते हैं सोचते रहते हैं। क्या? अपने मूलाधारों को साफ करें। निर्विचार अवस्था में चले जाएं। सोचने की प्रवृत्ति से सहजयोग में मुझे अपना आदर्श बनाएं। मेरी ओर मुक्त हो जाएं। यहां पर एक भूत है, एक उपद्रवी व्यक्ति। मैं उन सबको अच्छी तरह जानती हूँ। मैं देखें। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि कुछ लोग नहीं जानती कि किस लिए यहां है! और ये लोग मुझ पर दया करते हैं। मैं कठोर परिश्रम कर रही हूँ लोगों से भी परिचय करवाते हैं। यह सब इस बात को आप जानते हैं। अब आपको आगे जाना दूसरे है। हम इंग्लैंड जाएंगे। अब सब लोग चले जायेंगे। चलता रहता है, चलता रहता है, चलता रहता है। चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं ৪ जुलाई एवं अगस्त 2003 33 परन्तु मेरे बारे में क्या है? मैं तो काम करती रहती बहुत शानदार है। क्या शानदार है? यही इसका सूक्ष्म हूँ, करती रहती हूँ, करती रहती हूँ। इसका एकमात्र पक्ष है। दृष्य की शान्ति को महसूस करने के लिए होगा। सूक्ष्मता कारण यह है कि मेरा मूलाधार बहुत अच्छा है। आपको सूक्ष्म व्यक्ति बनना को महसूस आज्ञा अच्छी है, सहस्त्रार शानदार है। मैं न बहुत करें। इसके पीछे छिपे संगीत और सुगन्ध को अधिक बोलती हूँ और न सोचती हूँ। आप भी न महसूस करें। मैं यदि आपकी आदर्श हूँ तो मैं तो बोलें तो बेहतर होगा। मेरे विचार से एक दूसरे से अत्यन्त शान्ति महसूस करती हूँ। स्पष्ट बात यदि बात करना बन्द कर दें तो बेहतर होगा। यह सर्वोत्तम बोलूं तो मैं नहीं जानती कि कब मैं इस स्थिति से उपाय है जो कार्यान्वित होगा। सभी प्रकार की व्यर्थ निकलूगी। मैं इसे बनवास कहती हूँ। बनवास यानि की बातें आप बोलते हैं। आपके पास कोई भी महान जंगल में रहना। मुझे लगता है कि यह उपद्रवी एवं उत्कृष्ट बात कहने को नहीं है। परमात्मा के निरंकुश तथा अहंकारी, भयानक लोगों का जंगल है, विषय में बात करें। आत्मा के विषय में बात करें। उन लोगों का जो परस्पर बातचीत करना भी नहीं आपके अन्दर शान्ति होनी चाहिए। आप यदि शान्त जानते। मेरे विचार से यह बनवास है जो बारह वर्ष होंगे तो आनन्द उठाएंगे। पूरा वातारण शान्त है। स्थान के बाद समाप्त होता है। वास्तविक बनवास। परन्तु की शान्ति आप क्यों नहीं देखते। अत्यन्त सुख अब मुझे आप लोगों से कुछ आशा होती है। अब सुविधा वाले स्थान पर भी यह शान्ति उपलब्ध नहीं इस तरह की बात नहीं करनी है। अपने मस्तिष्क होती। वहां पर बस शान्ति नहीं होती। इस शान्ति को बिल्कुल बन्द कर लें । कोई भी इस प्रकार की बात अनुभव करें। आप सन्त हैं, अपनी शान्ति का नहीं करेगा। यह बातें परमात्मा विरोधी हैं। माया को अनुभव करें। आपके हृदय शान्ति को अनुभव कर देखें। व्यक्तिगत बन जाएं अर्थात ध्यान में बैठ जाएं, सकते हैं। वैभव ने आपको नष्ट कर दिया है। यह बातचीत न करें। ध्यान में स्थापित हो जाएं। आप अभिशाप है। यह अभिशाप है। अतः स्थान की लोग आयोजन आदि खोजने में लगे रहते हैं, मेरी तो शान्ति को महसूस करें। यह अत्यन्त शान्त स्थान है। समझ में नहीं आता कि मामला क्या है। स्वयं को अपने अन्दर शान्ति को महसूस करें। हृदय में इन चीज़ों में से निकाल लें। इससे पूरी तरह से कितनी शान्ति है? आप लोग कहते हैं अच्छा है, निकल आएं। यह बेवकूफी अब और नहीं होनी बुलाई एवं अगस्त 2003 चैतन्् लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं ৪ 34 चाहिए। अगले वर्ष से ऐसे लोगों को यहां आना भी आया हूँ। अपने सत्य स्वभाव को देखें और नहीं चाहिए। मेरी प्रार्थना है कि जिन लोगों ने समझें कि मैं एक साधक हूँ। आप अन्य लोगों की शिकायत की वो यहां न आएं। जेनी को देखें। वह तरह से नहीं हैं। परन्तु आपका पुराना स्वभाव वुद्ध है । यहां आने के लिए उसने अपना सभी कुछ आपके मस्तिष्क में अभी भी बना हुआ है। अभी भी आप इसी नजरिबे से सोचते हैं। यह बात बेच दिया। जब भी मैं उससे पूछती हूँ तो वह कहती आपको समझ लेनी चाहिए कि आयोजन करने वाले है कि मैं प्रसन्न नहीं हूँ। आप किसी भी चीज का आनन्द नहीं उठा पाएंगे क्योंकि आप सूक्ष्म नहीं हैं। लोगों को आपने कभी भी चुनौती नहीं देनी। इससे सूक्ष्म स्थानों का भी आनन्द आप नहीं उठा पाते मुझे दुख पहुँचता है। कभी ऐसा न करें। वो कुछ कार्य तो कर रहा है। आप तो कुछ नहीं कर रहे हैं? आपका ध्यान कहां है? आपका चित्त कहां है? क्या यह अन्दर है? क्या यह आपके अन्दर है? मुझ दूसरे व्यक्ति की आलोचना करने का आपको क्या पर विश्वास करें कि जिन स्थानों पर आप आए हैं अधिकार है? आप कौन सा कार्य कर रहे हैं? क्या यह स्थान अत्यन्त शान्तिदायक हैं। परन्तु आपके आप किसी चीज के लिए जिम्मेदार हैं? अपने मस्तिष्क आपको यह बात स्वीकार करने की आज्ञा कपड़ों तक की जिम्मेदारी क्या आप पर है? वहीं व्यक्ति तो सभी कार्य कर रहा है। उसी की आलोचना नहीं देंगे। यह मस्तिष्क, यह भयानक अहंकार कभी करना आपको अच्छा लगता है। यह तो ऐसा हुआ भी इसका आनन्द उठाने की आज्ञा नहीं देगा। अत: आप इससे मुक्ति पा लें। ठीक है? कृपा करके ऐसा जैसे कोई ऐरा- गैरा नत्थू खैरा मेरी आलोचना करने करें। मैं चाहती हूँ कि आप आनन्द उठाएं। आनन्द लगे कि तुम ऐसा क्यों नहीं करती? तुम वैसा क्यों उठाने के लिए ही मैं आपको यहां लाई हूँ। किसी नहीं करतीं? यह बिल्कुल वैसी ही स्थिति है। आप की आलोचना न करें। किसी प्रकार की सुख कोई कार्य नहीं कर रहे। बड़े आराम से अन्य लोगों सुविधा के लालच से मुक्ति पा लें। आपको की आलोचना कर रहे हैं । क्यों? किसलिए? आप पृथ्वी पर सोना होगा। पृथ्वी पर सोना बहुत सोचते हैं कि आपने अपना खर्चा दे दिया है। परन्तु अच्छा है। अपनी आत्मा को महसूस करें। देखें आपने कुछ अधिक पैसा भी नहीं दिया। आप जानते कि मैं साधक हूँ और साधना के लिए यहां हैं कि आपकी यात्रा के लिए मैं कितना पैसा खर्चती जुलाई एवं अगस्त 2003 चतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एव 8 35 हूँ और कितना अधिक सामान आप लेकर आते हैं? मैंने कितना पैसा खर्चा? तो आप इस नजरिये से इन स्थानों पर कितनी बड़ी समस्याएं हैं? पैसा सोचना बन्द कर दें। क्या आप मेरा पैसा मुझे लौटा खर्चकर के भी आपको कुछ नहीं मिलता। मैं देंगे? आपमें से कोई भी? तो क्यों इस प्रकार की आपको सुविधाएं देने के लिए यहां नहीं आई हूँ। मूर्खतापूर्ण बातें करनी हैं। मानो ये पर्यटन विभाग यह बात आप जान लें। मैंने स्पष्ट शब्दों में आपको कार्य कर रहा हो, जिसे आपने पैसा दिया है और बता दिया था। मैंने इन्हें कहा भी था कि 80 से अब आप इसमें दोष निकाल रहे हैं। यह गन्दी ज्यादा लोग न ले जाएं। बड़ी असंभव स्थिति है। आदतें बिल्कुल त्याग दें। चाहे कोई आपको पीट भी यहां तो बसे भी नहीं मिलतीं। यह राज्य परिवहन दे तो भी आपने शिकायत नहीं करनी। चाहे पिटाई हो जाए फिर भी इस अवस्था में बने रहें। पिटाई भी की बसें हैं। बड़ी कठिनाई से उन्होंने दो बसें दीं। उनके अपने ही यात्री होते हैं। उन्हें बहुत बलिदान कई बार अच्छी होती है। यह बहुत सी समस्याओं करना पड़ता है। इस बार में यह यात्रा करना हो नहीं का निदान करती है। यदि कोई अन्य आपकी पिटाई चाहती थी। आप लोगों के साथ मैं आना ही नहीं न करें तो स्वयं अपनी पिटाई करें। यही सर्वोत्तम चाहती थी मैंने आपको बताया था कि कभी-कभी मार्ग है। आप सभी लोग ऐसे नहीं हैं। आपमें से बाम आपको पैसा खर्च करना होगा, कभी कम और अधिकतर लोग बहुत अच्छे हैं और मैं जानती हूं कि कभी काफी ज्यादा। जितना हम सोचते हैं उससे आप आनन्द ले रहे हैं। कुछ थोड़े से लोग अधिक। कई बार कम पैसा खर्च होता है। जो भी भूतबाधित हैं। वही सारी समस्या खड़ी कर रहे हैं । पैसा बचेगा वह सहजयोग को चला जाएगा। मुझे वह यह भूतबाधित स्वभाव अन्य लोगों को भी दे आपका पैसा नहीं चाहिए। मैं तो अपना बहुत सा रहे हैं। उनसे सावधान रहें। ऐसे लोगों को बाहर धन खर्च कर चुकी हूँ। मेरा बैंक खाली हो गया है । निकाल दें। आप ऐसा कुछ न करें। यह सब बन्द अत: इस प्रकार की बातें क्यों करनी हैं? आप यह कर दें। ठीक हैं? हममें आत्मानुशासन होना चाहिए। इन लोगों की ओर देखें। इन्हें कोई समस्या नहीं नहीं सोचते कि माँ कितना खर्च करती हैं। यह बात आप कभी नहीं सोचते। क्या आप नहीं जानते हैं कि है। बिल्कुल कोई समस्या नहीं है। इनमें इतना प्रेम है और इतनी आयोजन शक्ति है। तीन बजे यह सब पुर्तगाल में क्या हुआ। आप जानते हैं कि इंग्लैण्ड में जुलाई एवं अगस्त 2003 36 चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं ৪ साथ शराबियों को ले आई हूँ जो अपने आप अपनी यहां मिल रहे थे सभा खत्म होने के बाद यह वापिस आए और फिर बारह घंटे के लिए काम में बस में चढ़ उतर नहीं सकते तो उन्हें आघात लगेगा। जुट गए। यह इंजीनियर हैं, डाक्टर हैं। इनमें से सभी में यह नहीं कर सकता, मैं वो नहीं कर सकता! कम से कम स्नातक हैं। कम से कम स्नातक। यह आपको सभी कुछ करना होगा यह वचन आपको बात सत्य है कि इंग्लैण्ड में सफाई कर्मचारी को भी देना है कि सभी कार्य हम स्वयं करेंगे। हम सभी. इन लोगों से अधिक पैसा मिलता है। परन्तु इससे यहां तक कि मैं भी ठीक है? परमात्मा आपको मानने की कोई क्या? क्या वो पैसा ये लोग अपने स्नान गृहों में ले धन्य करें। अत: इसके बारे में बुरा जाएंगे। यह सब व्यर्थ के विचार आपको त्यागने बात नहीं, आपमें से अधिकतर लोग ठीक हैं। होंगे। यह दुनिया अलग है। वह दुनिया अलग है। अधिकतर लोग आनन्द ले रहे हैं। परन्तु अभी भी आपको स्वयं को इस दुनिया में ठीक से स्थापित कुछ मूर्ख लोग हैं, उनकी बात आप न सुनें। सुने ही नहीं। आप यदि ऐसे व्यक्ति की बात नहीं सुनेंगे तो, करना होगा। मैं आपको बता रही हूँ कि आपका व्यवहार मेरे आपको हैरानी होगी, कि वह व्यक्ति सुधरेंगे। इस लिए कष्टकर है। एक भी व्यक्ति यदि ऐसा होता है प्रकार आप उसका हित करेंगे। किसी को भी इस तो उससे भी मुझे कष्ट होता है। ऐसी बात करने तरह से बात नहीं करनी चाहिए। किसी को भी वाले किसी की न सुनें। उसका मुंह बन्द कर दें। नहीं। यह मूर्खता है। परमात्मा आपको आशीर्वादित आपमें से अधिकतर बहुत अच्छे हैं। थोडे से लोग करें। इसी चुस्ती के साथ आइये पूजा के लिए बैठें। ही अजीबो-गरीब हैं। उनका मुंह बन्द कर दें। यही सहजयोग में आपको चुस्त होना है, आलसी नहीं। 'सहज' का अर्थ क्या है? आलसी लोग होना? अगर लोग भूत है। प्रात:काल जल्दी उठें, ध्यान धारण करें, बसों में बैठ जाएं। आप यहां एक महीने के हम आलसी प्रवृत्ति हैं ता किस प्रकार पूरे विश्व का लिए यात्रा पर हैं। स्वयं को चुस्त करें। ठीक है? तो कार्य करेंगे? पश्चिम में आपको जितने पर्वत उठाने हैं उनकी कल्पना करें! उनके विषय में सोचे। हम इस बात का वचन दें। अब आगे राहुरी तो एक गांव है। वहां पर ग्रामीण तो यहीं थक गए हैं! हा! वहां जाकर आप क्या लोग रहते हैं। जब उन्हें पता लगेगा कि मैं अपने करेंगे? यह कार्य तो बहुत बड़ा है। मेरी समझ में चैतन्य लहरी खण्ड XV खण्ड :7 एवं 8 जुलाई एवं अगस्त 2003 37 मुझे इसकी जरूरत नहीं है। मुझे जीप की आवश्यकता नहीं आता कि इसकी तुलना किससे करूं। हिपोपोटोमस को नकेल डालने जितना कठिन! भयानक! बेहतर है और मुझे पांच जीपें मिल गई हैं। किसी अन्य के होगा कि आप स्वयं को चुस्त दुरुस्त करें। अन्यथा पास यदि पैसा आ जाए तो वह दिखावा करने के हो सकता है कि अगले वर्ष मैं आपको लाऊं ही लिए तुरन्त कार ले आएगा। यह न समझेगा कि कार नहीं। मैं इतनी परेशान हो चुकी हूँ। यही वक्त है । क्यों खरीदनी है। मैं तो खेतों में काम कर रहा हूँ। संभवत: अंतिम अवसर है। मैंने जब अंतिम अवसर यह व्यक्ति करोड़ोपति होते हुए भी बसों में जाता है और सारा कार्य करता है। क्या आपने इसके व्यापार कहा तो बहुत सी आवाजें आई-नहीं नहीं श्रीमाताज़ी। क्या आपको वास्तव में याद है कि मेरी इच्छा तो को देखा है? आप जानते हैं इनके पास कितने कमरे कत यह थी कि आप कोई भी न आएं। यह सिरदर्दी है। हैं यह कंजूस नहीं है। बहुत उदार है। किस प्रकार आप अभी तक थैला उठाए घुम रहे हैं। इसे नीचे इनकी पत्नी कार्य कर रही है, आप देखें। घर में रख दें। इनकी ओर देखें। इनका अपना घर है, पत्नी इनके पास सैंकड़ों रत्न होंगे। परन्तु यह कभी भी है, बच्चे हैं। सभी कुछ छोड़ दिया है इन्होंने। इनकी इनका दिखावा नहीं करती। कहने का अभिप्राय यह है कि आप इनसे सीखें। आपको भी अत्यन्त ओर देखें। ये नगर निगम में बहुत बड़े इंजीनियर हैं। बड़े-बड़े पुल बनाते हैं। इनकी ओर देखें। इनमें कोई अत्यन्त चुस्त होना होगा। ये छोटे-छोटे तुम्बुओं में री अहंकार है! कहीं कोई अहंकार इनमें दिखाई देता रहते हैं फिर भी सुबह-सुबह नदी पर जाकर स्नान है? इन से सीखें। यदि मेरे से भी नहीं सीखते तो कर लेते हैं और तैयार हो जाते हैं। सहजयोग में इनसे सीखें। जो व्यक्ति हमारे कार्यक्रमों का आयोजन चुस्ती सीखना बहुत आवश्यक है। रहने की शैली का अत्यन्त चुस्त दुरुस्त होनी चाहिए। यह दो चीजें कर रहा है वह करोड़पति है। क्या आप इस बात को जानते हैं? वह करोड़ोपति है। जो व्यक्ति हमें आपको मुझे देनी होंगी अन्यथा यह लोग सोचेंगे कि आपमें से आधे लोग बीमार हैं। ठीक है? अपने फार्म हाउस पर ले गया था वह भी करोड़ोपति है। क्या आपने इनमें कोई दोष देखा? मेरे नाती-नातिने सोचें मत। स्वयं को निर्विचारिता में स्थापित करें। सात भी करोड़ोपति परिवार से हैं, उनकी ओर देखें ऐसा आप सभी लोग मुझे देखें, अपने सिर झुका ले । नहीं है। मेरे पास कार नहीं है परन्तु इसलिए कि ठीक है, ठीक है। आष अपने दोषों से और मूर्खताओं या चतन् लहरी खणढ -XV सपड :7 एवं 8 जुलाई एवं स्त 2003 38 पात कः प रा. कमा ा] से छुटकारा पा चुके हैं, अहंकार से छुटकारा पा चुके हों। ऐसा करने की शक्ति आपमें है। हैं? आपमें यह बहुत बड़ी समस्या है। अहंकार इस स्थान को देखे। प्राकृतिक दृश्यों की शांति आपकी बहुत बड़ी समस्या है। कभी आपको लगे को महसूस करें। यहां के मानव की शांति को ॥ श कि आप पर रोब जमाया जा रहा है तो इसे स्वीकार महसूस करें। सभी ने यह शांति महसूस करनी है। कु कर लें। किसी को न बतायें कि वह आक्रामक है। इन चुस्त नन्हें बच्चों कि ओर देखें। हमें भी इन्हीं क्ि ड कपि यह तामसिक प्रवृत्ति है। हर आदमी दूसरे का नाम की तरह से बनना है। यह कितने प्रसन्नचित्त हैं? रख रहा है। सहजयोग में आक्रामक या तामसिक ठीक है? परमात्मा आपको धन्य करें। अत: खिन्न IF करोई नहीं रहता। आप जब आत्मा का आनन्द लेने दिखाई न दें। मेरी समझ में नहीं आती कि आप लगे तो दूसरे विश्व में पहुंच जाएंगे। उस जाहिल इतने दुखी क्यों दिखाई देते हैं? यह सोचते हैं कि संसार को भूल जाएं जिसमें आप थे। आप सभी अपना काम ठीक से नहीं कर रहे हैं या इन्हें खाना साधक हैं। मैं आपको इस देश में लेकर आई हूँ कि पसंद नहीं है। आपका दुखी और थके-थके प्रतीत आप देखें कि भौतिकवाद क्या है! इसमें लिप्त होने होना इनकी समझ नहीं आता। के लिए नहीं। इससे बाहर निकलें, इसमें लिप्त न परमात्मा आपको धन्य करें। क्ाट आ कन चेतन्य सहरी खण्ड -४V खण्ड :7 एवं 8 जुलाई एवं अगस्त 2003 39 ल अं ॐ ्ि तेपश. े ह ॐं क श्रा. कु श्रही १ पुी मु मो हु ि कूठ नि क पड । २० १ अ सीন मकर संक्रान्ति पूजा 14,01.1983 भारत में हम सूर्य की दिशा, परिक्रमा पथ, वाला रोग है। सर्वप्रथम यह शरीर में गर्मी उत्पन्न परिवर्तन का त्यौहार मनाया करते थे। इस समय पर करता है तथा इसका दूसरा अर्थ यह है कि कर्क सूर्य मकर रेखा से कर्क रेखा के क्षेत्र में प्रवेश करता (Cancer) माँ के स्थान पर है। अत: जब व्यक्ति हैं। इसके कारण इस देश में गर्मी बढ़ने लगती है। माँ के प्रति पाप करने लगता है तो कर्क रोग का आने वाली इस गर्मी का मुकाबला करने की तैयारी आरंभ हो जाता है और मेरे अवतरण के पश्चात तो यह रोग बहुत ही प्रचलित हो गया हैं क्योंकि माँ के के लिए हम थोड़ा सा गुड़ और तिल या चीनी और तिल घर के सभी लोगों को देते हैं और कहते हैं कि प्रति पाप आधुनिक युग का सबसे बड़ा पाप है। हमने यह मीठा आपको इसलिए दिया है ताकि आप अत: व्यक्ति को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि भी मीठा बोलें। गर्मी के कारण व्यक्ति में बेचैनी माँ के प्रति पाप करने से कर्क रोग तक हो सकता होती है। जब अन्दर गर्मी हो तो व्यक्ति परस्पर कटु है। इसका आरंभ गणेश तत्व से होता है। बहुत से बोलने लगता है। इस गर्मी को शान्त करने के लिए और जिगर को शान्त करने के लिए चीनी या गुड़ लोग जिन्हें श्रीगणेश की समस्या है, अन्य चीजों में दिया जाता है। यह आरामदेह तेल का कार्य करता चाहे वे बहुत अच्छे हों परन्तु यदि बाई ओर के है। यह प्रतीक मात्र है। यह प्रतीकात्मक कार्य है जो सम्बन्ध की समस्या बनी हुई है तो उन्हें बहुत 14 जनवरी को मकर सक्रान्ति के दिन किया जाता सावधान रहना चाहिए। आपके अस्तित्व में यह छेद है। यह मकर राशि का परिवर्तन है और यह सम है। इस समस्या का समाधान करने के लिए आश्चर्य की बात है कि प्राचीन काल में भारत में आप अपने अन्दर गणेश तत्व की समस्या का कैंसर को कर्क कहा जाता था और आप भी इसे समाधान कर लें जिसकी वजह से आप विकृत हुए बहुत समय पूर्व से कंसर कहते हैं। कैंसर की हैं। ये सारी विकृतियां अपने अन्दर उसी तरह से बीमारी को भी कैंसर कहा जाता है। इस रोग को सोख ली जानी चाहिएं जैसे कछुआ अपने सारे यही नाम दिया गया है। भारतीय भाषा में भी इसे अवयवों को अपने अन्दर खींच लेता है। इसी प्रकार से आपने भी इन सारी विकृतियों को सोखना है। कर्क रोग कहा जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि यह गर्मी उत्पन्न करने दाई विशुद्धि से इन पर काबू पाने का प्रयत्न नहीं चैतन्य लहरी खण्ड -XV खपड : 7 एवं 8 जुलाई एवं अगस्त 2003 करना-यह कहकर कि आप महान हैं, आप यह हैं, वे सहजयोग विशेषज्ञ बन जाते हैं और फिर उनका आप वो हैं। कुछ लोग ऐसे भी देखे जाते हैं जो पतन हो जाता है। अत: जो लोग स्वयं को बहुत इसके विषय में दिखावा करते हैं । बड़ी बड़ी प्रतीत महान सहजयोगी समझ लेते हैं उन्हें यह ज्ञात परन्तु मैं देखती हूँ कि होना चाहिए कि उनके अपने अन्दर कोई गम्भीर होने वाली बातें कहते हैं। अन्ततः उन्हें बाएं मूलाधार की समस्या बनी हुई है कमी है। पहली बात तो यह है कि सभी को सामूहिक रूप से उन्नत होना है। कोई भी दिखावा और यह अत्यन्त गंभीर बात है। अत्यन्त गम्भीर। न करने का प्रयत्न करें। मैं जानती हूँ कि कौन कहां | अत: स्वयं को धोखा न दें। जिन लोगों को बाएं मूलाधार की समस्या है उन्हें अत्यन्त सावधान रहना है ऐसे लोगो के प्रति न तो आपको ईर्ष्या करनी है। उन्हें किसी भी प्रकार के अतिचेतन (Supra चाहिए और न ही उनके प्रति कोई सम्मोहन होना Concious) आचरण या बातचीत के प्रलोभन में चाहिए। ये बात समझ लें कि आपको वास्तविकता नहीं फंसना। पूर्ण समर्पण द्वारा इसे नियंत्रित करें। में रहना है। कहें, "में कुछ नहीं जानता"। पहला मन्त्र यह है अतः बाएं मूलाधार की समस्या अत्यन्त गम्भीर कि "श्रीमाताजी मैं कुछ नहीं जानता " समर्पण है। यह संक्रामक भी हो सकता है और व्यक्ति को अपनी गिरफ्त में भी ले सकता है। पश्चिमी देशों के पूर्वक माँ को देखें। श्री गणेश को देखने का प्रयलन सहजयोगियों में सहजयोग अत्यन्त संवेदनशील विषय करें, वे कभी कोई दिखावा नहीं करते। वे तो केवल समर्पण करते हैं। "मैं कुछ नहीं जानता। श्रीमाताजी है। केवल अन्तर्विरोध के कारण बाएं मूलाधार की आदिशंकराचार्य की तरह से मैं कुछ नहीं जाता। समस्या है। अत: सावधान रहें। अपने चित्त को शुद्ध जो लोग ताक्किकतापूर्वक या मस्तिष्क के माध्यम से रखें विकृतियों को दूर बनाए रखें। अपने चक्रों की अपनी अभिव्यक्ति करने का प्रयत्न करते हैं वो स्थितियों को ठीक रखें। चक्रों की देखभाल के जानते हैं कि इस नजरिये से आप दिव्य हैं। क्योंकि पश्चात् ही किसी चीज पर बहस करनी सर्वोत्तम है । आपको अपनी देखभाल करनी होगी। खांस कौन क्षतिपूर्ण करने का एक यही मार्ग है, अत: सावधान रहें। मैं यह बात आप सबको बता रही हूँ। मैंने देखा रहा है? आपमें जरूर कोई खराबी है। आप ठीक से है कि पश्चिमी देशों में ये आम बात है। अचानक अपना चित्त नहीं दे रहे हैं। आपको अपनी देखभाल প जुलाई एवं अगस्त 2003 42 चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 8 करनी होगी। सुबह शाम सोलह बार 'अल्लाह हू हैं। ये कहना कि बहुत अधिक धूल थी आदि अकबर' कहना होगा। अपने को परखें। गले को आदि। तो आप स्वयं को इसका आदी बनाएं। यह विपरीत आप मेरे प्रवचनों के हानि पहुँचाने वाली चीजों से बचने का प्रयत्न करें। संभव है। इसके गरारे करें। कभी कभी तो लोगों को इस समस्या पर विरोध में कार्य कर रहे हैं। आप संत हैं संतों की भी गर्व होता है। जिस प्रकार वे कभी कभी आचरण तरह से व्यवहार करें। यह अत्यन्त आवश्यक है। करते हैं उस पर मुझे हैरानी होती है! व्यक्ति को अपनी देखभाल करें। क्या किसी भारतीय सहजय लज्जा आनी चाहिए। अत: कृपया अपने गले का को आपने इस प्रकार खांसते हुए देखा है? नहीं आप ध्यान रखें। मुझे परेशान न करें। मैंने आप लोगों से अपनी देखभाल नहीं करते। अवश्य अपनी देखभाल कहीं अधिक यात्राएं की हैं, इस बात को आप करें। आप अपने हाथों को भी बहुत अधिक चलाते हैं। हर समय ऐसा करते हैं। ऐसा कुछ न करें। अपने जानते हैं। मैं बहुत से कष्टों से गुजरी हूँ और इसके अतिरिक्त मैं बहुत देर से सोती हूँ और जल्दी उठती हाथों को सीधा रखें। सम्मान करें अपने हाथों को ा हूँ। ये बात भी आप जानते हैं। आपकोे गले यदि स्थिर करें। हर समय कुसमुसाना, अपने हाथों को ठीक नहीं हैं तो कृपा करके इनकी देखभाल करें। पटकना भी अच्छा नहीं है। एक बात हमने समझनी है कि हमें सहजयोग में उतरना है। इसे गम्भीरतापूर्वक कोई कमी यदि है तो ये क्या है। कुछ भूत बैठे हुए हैं। क्या ऐसा नहीं है? क्यों ये बाहर नहीं निकल कार्यान्वित करें । इसे कार्यान्वित करें। बेवकफी करने रहे? बेहतर होगा कि आप धूनी लें या कुछ और का, स्वयं से नाराज होने का कोई लाभ नहीं। हर करें। ऐसा करना बहुत आवश्यक है। आप ऐसे समय 'मैं ऐसा हूँ, मैं वैसा हूँ' कहने का भी कोई किस प्रकार हो सकते हैं? कैसे आपको भूत पकड़ लाभ नहीं। 'मैं महसूस कर सकता हॅँ।' ये सब सकते हैं? हर समय खांसते रहते हैं । इसलिए मैंने मूर्खता है। पराचेतन मूर्खता चले जा रही है । आपको धुनी दी और यह सब समाप्त हो गया मैंने सावधान हो जाएं। अपनी बेवकूफियों से अन्य लोगों आपसे कहीं अधिक कष्ट उठाया, कहीं अधिक को प्रभावित करने का प्रयत्न न करें। मैं कुछ और भी आपको बताना चाहूँगी। रुस्तम! कष्ट की स्थिति से गुजरी क्योंकि मैं आपकी कुण्डलिनी उठा रही हूँ। इस बात को आप जानते क्या आपने कहा है कि सहजयोग जानने के लिए जुलाई एवं अगस्त 2003 43 चैतन्य लहरी खुण्ड -XV ख़ण्ड : 7 एवं 8 संस्कृत सीखनी आवश्यक है। बिल्कुल भी नहीं। ताकि श्री सरस्वती आपको अपनी खोई हुई शक्ति प्रदान करें, वो शक्ति जो कि समाप्त हो चुकी है ऐसा कहना बिल्कुल गलत है। कृपया यह बात समझे कि ऐसा करने से एक बार फिर मानसिक और अब आप उसे अधिक खर्च न करें। अपनी गतिविधि आरंभ हो जाए तो कृपया ऐसा करना बन्द बाई ओर का उपयोग करें। अपनी माँ श्रीमाताजी' कर दें। क्या मैंने संस्कृत सीखने के लिए कहा है? के प्रति समर्पित हों। अच्छी माताएं बनें. अच्छी इसमें क्या है। यह सब उधार लिया हुआ है। क्या बेटिया बने। समर्पण ही एकमात्र मार्ग है। सहजयोग हुआ यदि ये आदिशंकराचार्य से लिया हुआ है के विषय में बहुत अधिक न सोचें। सहजयोग के आपका अपना नजरिया क्या हैं? आपकी अपनी बारे में चक चक - चक चक बातें करना उचित भावना क्या है? क्यों अन्य लोगों से उधार लेना है? नहीं है। ऐसा करने वाले लोग किसी भी प्रकार से अन्य लोगों से उधार लेने की अपेक्षा आप अपनी उन्नत नहीं हो पाते मैं उन्हें जानती हूँ, मैं सभी %3D भावनाएं अपनी गहनता, अपने स्रोत प्राप्त करें। जानती हूँ। सहजयोग के विषय में बहुत अधिक संस्कृत क्यों आवश्यक है। इसकी कोई आवश्यकता सोचने वाले लोगों को भी मैं जानती हूँ। मैं उन्हें नहीं है। चाहें आप शंकराचार्य के विषय में थोड़ा सा बहुत अधिक जानती हूँ। वे मेरे विषय में कुछ नहीं ज्ञान प्राप्त करें परन्तु संस्कृत के विषय में नहीं। इन जानते। मैं उनके चेहरों से जानती हूँ, चैतन्य लहरियों के विषय में भी मैं जानती हूँ विकास के विषय में चालाकियों में न फंसे। नाम आदि लेना बन्द कर दें। कृपा करके यह सब बन्द कर दें। अन्यथा आप भी में जानती हूँ। संस्कृत का ज्ञान प्राप्त करने की अतिचेतन (Supraconscious) में चले जाएंगे। बिल्कुल आवश्यकता नहीं है। अपने प्रेम और पावन यह बात में आपको बता रही हूँ। ऐसा बिल्कुल न सूझबूझ के माध्यम से अपनी माँ (श्रीमाताजी) को करें। ये सारी मानसिक गतिविधियां आप जानते हैं समझना आवश्यक है। ज्ञान की खोज में दौडना क्योंकि बाई ओर की पकड़ ही आपकी मुख्य आपको भटका देगा। इस प्रकार के कार्य करने के आप पहले से ही आदी हैं। अब आप संस्कृत का समस्या हैं। कल वो दिन है जब आपने निर्णय करना है। कल के दिन आपने सूर्य की पूजा करनी है। पूर्ण ज्ञान पाना चाहते हैं। सभी चीजों का पूर्ण ज्ञान के दिन हम सरस्वती की भी पूजा करते हैं आप पाना चाहते हैं, वेदों का पूर्ण ज्ञान पाना चाहते कल जुलाई एव अगस्त 2003 44 चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड: 7 एव 8 हैं। इस देश में ऐसे बहुत से लोग हैं जो वेदों के यह मार्ग नहीं है। कहने से मेरा अभिप्राय यह है कि रर रे मैं नहीं चाहती कि आप ऐसी चीजों के पीछे दौड़ें या ज्ञाता हैं। वे सब मेरे लिए बेकार हैं, मेरे लिए किसी काम के नहीं हैं। आओ यह सब चीजें भूल जाएं। अपने उत्थान या समर्पण के मार्ग से भटकें। समर्पण एवं उत्थान अधिक महत्वपूर्ण है। मस्तिष्क के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने की चालाकी शंकराचार्य ने जो कुछ भी कहा था उसका में न फंसे। हृदय के माध्यम से समझें और यही अनुवाद हो चुका है। आप यदि इसे देखें तो उन्होंने कारण है कि चेतना मूल में है। बायां मूलाधार हृदय है। यह अन्य लोगों के हित में है। परन्तु यह बात आत्मा की ही बात की है। यह वास्तविकता है। पाई नहीं जाती। वह अबोधिता उपलब्ध नहीं है। उस आपने मुझे जो भी नाम दिए हैं वो सब उसी का भाग है। सहजयोग भी इसी का एक भाग है। मैं जब 1 तक जाने का प्रयत्न करें। अपने अन्दर इसे जागृत करने का प्रयत्न करें तब आप हैरान होंगे कि आप आपके साथ हूँ तो आपको इन चीजों की चिन्ता करने को क्या आवश्यकता है? स्थापित होने का मुझे बेहतर समझ सकेंगे। कल ही मैंने आपको यह बताया था कि किस प्रकार इन जटिलताओं ने प्रयत्न करें, इसे अपने अन्दर स्थापित करें। परन्तु अवरोध खड़े कर दिए हैं। वे मात्र मुझे देखते हैं। इसके कारण आप तो अत्याधिक अपने मस्तिष्क लोग केवल चेहरा देखते हैं। फिर भी कभी कभी का उपयोग करने लगे हैं। अपने स्तर को स्थापित करें। बेहतर होगा कि निर्विचार बने रहें। अब आप आप इतने व्यथित होते हैं कि इसी में खो जाते हैं । कारण यह है कि आप अभी भी अपने मस्तिष्क का देखें कि खांसी कहां गई है। समाप्त। वे ( भूत) सब उपयोग कर रहे हैं। मस्तिष्क उपयोग करना सहजयोग दौड़ गए हैं। इसी प्रकार से आपको भी करना चाहिए। उन्हें भाग जाने की आज्ञा दें। तक पहुँचने का मार्ग नहीं है। अब आपके गले एक अन्य बात यह है कि आप बोलते बहुत हैं, पहले से बेहतर हैं। (अब आप खांस नहीं रहे हैं। ये ध्यान धारणा में रहें। बोलें नहीं, बोलने की कोई सारे भूत थे। अब आपको क्या हो गया है?) आप यदि संस्कृत सीखना चाहें तो बेशक सीखें। परन्तु आवश्यकता नहीं है। ध्यान धारणा में बने रहें। आप मेरे साथ हैं और मैं आपके साथ हूँ। ध्यान धारणा में यह आवश्यक नहीं है। न ही यह सहजयोग का मार्ग है। अपनी इच्छा से आप इसे सीख सकते हैं परन्तु बने रहें, ध्यान-धारणा में रहें। इससे आपको सहायता चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 8 जुलाई एवं अगस्त 2003 45 मिलेगी। ध्यान-धारणा आपकी बहुत सहायता करेगी। इंधर-उधर नहीं जाना है। आप अपना स्नान आदि रहे करेंगे और तब-तक में पूजा के लिए आ जाऊंगी। यहां पर आप अत्यन्त शांत रहें, पूर्णतिः शान्त स्वयं को एकान्त रखें। किसी से उलझें नहीं, बस और इसे महसूस करें। न कोई वाद-विवाद करें, न कोई बात करें, न अपने मस्तिष्क का उपयोग करें। शान्त रहें, बातचीत न करें इस पूजा के लिए अधि यहां पर आप अपने उत्थान के लिए अपने अन्दर काधिक शांति बनाए रखें। पहली बार सरस्वती पूजा कुछ प्राप्त करने आए हैं। ऐसा कर पाना सम्भव है। होगी। वास्तव में मैं तो एकादश पूजा करना चाहती कुछ लोग निश्चित रूप से इसे कार्यान्वित करते हैं, थी परन्तु एकादश पूजा करना सुगम कार्य नहीं है । गम्भीर रूप से कार्यान्वित करते हैं। मैं आश्चर्यचकित इसलिए मैंने सोचा कि कल के स्थान पर फिर थरी उनके दृष्टिकोण को देखकर, परन्तु कुछ लोग किसी दिन एकादश पूजा करेंगे। अभी तो हम यही कुछ भी नहीं करते। अब क्या करें? पूजा करेंगे। अब बातें नहीं करें शान्त रहें। शान्त हो जाएं और शान्त हो जाएं, शान्त हो जाएं। स्वयं से कहें, #शांत हो जाओ, सावधान हो जाओ, शान्त हो ध्यान के लिए बैठ जाएं। आप सब शान्ति से आएं। वास्तव में आपने कुछ नहीं करना है। आपने कोई जाओ।" अब कल्पना करें कि मेरे प्रवचन आरम्भ करने से पूर्व कोई भी खांस नहीं रहा था और आयोजन नहीं करना, कुछ नहीं करना। जो लोग अचानक ज्यों ही आप बैठे तो खांसने का परस्पर यहां आयोजन करने के लिए हैं उन्हें भी ध्यान मुकाबला शुरु हो गया। भूतों को काट डालो। आपके धारणा की स्थिति में रहना चाहिए। आश्चर्य की बात माध्यम से वे कैसे गतिशील हैं? मेरे सम्मुख तो है कि जो लोग आयोजन कर रहे हैं वो लोग राक्षस भी खांसने की हिम्मत नहीं करते। क्योंकि इधर-उधर दौड़े फिर रहे हैं । इस चीज का प्रवन्ध आप मेरे बच्चे हैं इसीलिए वे आपका लाभ उठा कर रहे हैं उस चीज का प्रबन्ध कर रहे हैं। यह सकते हैं। ठीक है? परेशान न हों। सब ठीक है। आसान कार्य नहीं है। आप जानते हैं इतने सारे लोगों तो कल की पूजा से पूँर्व हमें भली-भांति स्नान के भोजन की व्यवस्था करना आसान कार्य नहीं है । करना होगा चाहे जो भी हो। मैं दस बजे पूजा वे ध्यान की अवस्था में हैं। अत: आप भी स्वयं को ध्यान की अवस्था में रहें। प्रयत्न करें। स्वयं से कहें, आरम्भ करूंगी। इससे पूर्व नहीं, परन्तु आपको बाहर चैतन्य लहरो खण्ड -४४ खण्ड : 7 एवं 8 जुलाई एवं अगस्त 2003 46 'शान्त हो जाओ, मेरे मस्तिष्क शान्त हो जाओ, स्थिर सब बहुत अच्छा था। सभी लोग भली भाँति हो जाओ' यह बात अपने मस्तिष्क से कहते रहें उन्नत हो रहे हैं। आप लोगों में से सभी लोगों का और आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे कि यह सब बहुत सुधार हुआ है। परन्तु यह जानने का प्रयत्न आपके अन्दर है। जितना अधिक हो सके स्वयं को करें कि समस्या कहाँ है। सभी को व्यक्तिगत इस अवस्था में डुबोने का प्रयत्न करें। ध्यान की समस्याएं हैं। एक बिन्दु पर आकर आप इन समस्याओं को रोक लें। इन्हें रोक लें। आप ऐसा कर सकते हैं । स्थिति में यदि आप अपने मस्तिष्क को नहीं रखते तो आप अतिचेतना (Supraconscious) की यह सारी समस्याएं भूत हैं। भूतों के माध्यम यह स्थिति में भी जा सकते हैं और यह बड़ी भयानक सारी विकृतियां आती हैं। अब कुछ और व्याख्या स्थिति है। अब पहले से ठीक है? सदैव स्वयं से करने के लिए नहीं बचा है। कुछ भी नहीं बचा है। शान्ति में रहने की आशा करें। एक मिनट के लिएकिसी भी प्रकार का विचलन, सहज-योग से किसी बैठ जाएं। क्या तकलीफ है। बेहतर होगा कि बैठ भी प्रकार दूरी। किसी भी चीज की व्याख्या की जाएं, 'क्या तुम थोड़ी देर के लिए बैठ नहीं सकती? आवश्यकता नहीं है। अन्य लोगों की ओर चित्त बैठ जाओ सीधे होकर।' अपने बच्चों को भी न दें। स्वयं पर चित्त दें आप में से सभी लोग १। न कोई अधिक महान है और न कोई समझाओ, स्थिर होकर बैठों। स्थिर होकर अपने महान हैं। अन्दर शान्त होकर बस बैठ जाएं। आपको कहीं कम। अत: किसी की चिन्ता न करें। अन्य जाने की जरूरत नहीं है, कुछ बनाने की जरूरत सहज-योगियों से बहुत अधिक बातें न करें। भारत नहीं है। सभी कुछ आपके अन्दर विद्यमान है। में रहते हुए शान्त रहें । अपने देशों में जाकर इस पर बेहतर होगा शान्त होकर बैठ जाए। मस्तिष्क को बहस करने के लिए आपके पास काफी समय शान्त कर लें । यह स्थिरता स्थापित करनी होगी मैं होगा। यहां तो बस शान्त रहें । बातें, बातें, बातें! चाहती हूँ कि आप यही स्थिरता स्थापित कर लें । भारत में चकवा-चकवी नामक एक पक्षी होता बाकी सब विकृतियाँ तो पलायन है। आपकी उन्नति है। ये पक्षी चन्द्र किरणों पर जीवित रहता है। बस किरणों का रसपान किए चले जाते हैं। इसके अतिरिक्त से में प्रसन्न हूँ यह बात में कहना चाहूँगी। इस बार उन्हें किसी चीज की आवश्यकता नहीं होती। अत: सामूहिकता बहुत अच्छी है। चैतन्य लहरी खण्ड -४V खण्ड :7 एव 8 जुलाई एवं अगस्त 2003 47 अपने आप को स्थिर करें, अपने मस्तिष्क को स्थिर इसे ठीक करें। अब श्रीमाताजी से प्रार्थना करें। जोर से बोलने की आवश्यकता नहीं है बातचीत करें। कोई भी मन्त्र जो हम कहते हैं वह यदि यांत्रिकता है तो उसका कोई लाभ न होगा। आप करते हुए आपको अपने सहस्रार पर रहना चाहिए। कहते हैं 'या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता' इसके अतिरिक्त अन्य कहीं नहीं। केवल सहस्रार परन्तु आपको यह मन्त्र पूर्ण सूझबूझ तथा सावधानी पर होना है। अपने सहस्रार पर ध्यान दें। इसकी से कहना चाहिए। हम यहां पर अगाध गहनता प्राप्त स्थिति कैसी है? यह भण्डार की तरह से है। केवल करने के लिए आए हैं और आपमें से तो कुछ लोगों स्वयं को देखें, कहने से अभिप्राय यह है कि यह की यह यात्रा समाप्त होने वाली है (अब बेहतर आपका अपना सहम्रार है। दूसरों की चिन्ता छोड़ दें है)? मध्य हृदय के लिए ये ठीक है। इस क्षण केवल अपने सहस्रार की चिन्ता करें। भविष्यवादी न बनें। यहीं विद्यमान रहें। मैं जानती हूँ अत: समर्पित हो जाएं। अपने हृदय की गहराइयों कि आपके मस्तिष्क में क्या चल रहा है। अतः सोचें में समर्पित हो जाएं। मुझे वहां स्थापित कर लें। मत। समय के विषय में बिल्कुल न सोचें । स्थिर हो केवल तभी आपके सहस्रार खुलेंगे। बाकी सभी जाएं। आप स्थिर हो जाएं। आप अभी भी सोच रहे चीजों को भूल जाए। वही बने रहें। अब सहस्रार हैं। अपनी आंखे खुली रखें और मुझे देखें। अतः पहले से बेहतर है ठीक है? आप सब मेरे बच्चे हैं, आप लोग नींव हैं। अपने मस्तिष्क को शान्त करें। मेरे बेटे बेटियां हैं। यह सब श्रीगणेश की तरह से है। शान्ति कार्य कर रही है परन्तु अभी और स्थिरता हम सब पैगम्बरों की तरह से हैं। क्या हमारे अन्दर पैगम्बरों की शक्तियां हैं? यह प्रश्न पूछें और की आवश्यकता है। मस्तिष्क को स्थिर करने मात्र से ही आप अपने सारे रोगों से मुक्ति प्राप्त कर यह शक्तियां अपने अन्दर विकसित करें। श्रीमाताजी सकते हैं। केवल अपने मस्तिष्क को स्थिर मात्र क्या हम वास्तव में साक्षात्कारी लोग हैं? क्या हम करने से। आपने यह बात देखी है। ठीक है? ही मानव सभ्यता का सार तत्व हैं? क्या हम लोग इसके अतिरिक्त भी मूलाधार को ठीक करने परमात्मा की कृपा का निष्कर्ष हैं? ठीक है? बहुत अच्छा! पहले से बहुत बेहतर है। सुखमय स्थिति में का एक उपाय है। आप देखें की बिना पलक झपके आप कितनी देर देख सकते हैं। बेहतर। आ जाए। तनाव को निकल जाने दें। जुलाई एवं अगस्त 2003 चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 8 48 अब मैं सुझाव दूंगी कि आप सभी लोग अपने इच्छा करे बन्धन ले लें। यह आनन्ददायी है। आप महागणेश की आरती उतारें। आप इतना अच्छा करते ही चले जाएंगे (श्रीमाताजी की हंसी)। अन्य लोगों की चिन्ता करने से बेहतर है कि आप अपनी महसूस करेंगे कि आपको आश्चर्य होगा। महागणेश- यही गुण स्वयं में प्राप्त करना है। आपको यह बात जान चिन्ता करें। यह स्वत: कार्य कर रहा है। करते चले लेनी होगी कि यह कार्य आसान नहीं है। इस चीज जाएं। बांया स्वाधिष्ठान आ रहा है। यह स्वयं द्वारा को जब कभी भी परखती हूँ तो पाती हूँ कि हृदय स्वयं को दी जाने वाली सुरक्षा है। अपने स्वाधिष्ठान में बहुत बड़ा पहाड़ बना हुआ है। धीरे धीरे इसका को ठीक करें। इसे बन्धन दें। बांया स्वाधिष्ठान और भयंकरतम सम्मिश्रण है! बाप रे पिघल जाना आवश्यक है। यह पर्वत समाप्त होना दांयी विशुद्धि आवश्यक है। स्वयं को बन्धन दें। मैं भी स्वयं को बाप! दांयी विशुद्धि जल रही हैं! तुम बहुत अधिक बन्धन दूंगी ताकि सभी को बन्धन लग जाए। इस बोलते हो! दांयी विशुद्धि! अब इसे बन्धन दें। सुनने सारी तकनीक का ज्ञान पा लें। ठीक है? दिन के का प्रयत्न करें। बहुत अधिक न बोलें। देखिए, आप समय आप स्वयं को कितनी बार बन्धन देते हैं? मेरा रथ चलाते हैं और मेरे विचार से घोड़ों को कम से कम पांच बार बन्धन लेना चाहिए। पांच खांसना नहीं चाहिए। अन्यथा मुझे ही सारे झटके बार की नमाज अदा करें। बहुत अच्छा। देखें कि लगेंगे मुझे पहले से काफी झटके लग चुके हैं । आप अपनी कितनी देखभाल कर रहे हैं। आइये एकादश को रगड़ें, जोर से रगड़ें। अब देवी प्रसन्न की है, कल आपकी सभी बन्धन लें। यह तो ऐसा हुआ जैसे आपको हुई। यह तो आपने अपनी पूजा होगी। बताया जा रहा हो कि खाना किस प्रकार खाना है। माँ की पूजा परमात्मा आपको धन्य करें। सहज योग की यह मूल बात है। जब भी आपकी नेeट ---------------------- 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-0.txt हैतन्य वाहरी हाय क वंड YV अंक् YW अंक : ? 7 त 8 स 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-1.txt bo00000 oo00000000000 0000000cc 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-2.txt ध्यान-धरणा-1976 श्री सदाशिव पूजा 8. सहजयोग द्वारा स्वस्थ परिवार तथा समाज 15 20 दूरदर्शन साक्षात्कार 26 तिहाड़ जेल में सहजयोग हमारा लक्ष्य-श्रीमातीजी 5-10-1983 27 मकर संक्रांति पूजा-4.1.1983 40 ा 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-3.txt चै त = य ल ह री प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर 162 - ए. मुनीरका विहार, नई दिल्ली 110067 मुद्रक अमरनाथ प्रेस प्रा. लिमिटेड डब्ल्यू एच एस 2/47, कीर्ति नगर औद्योगिक. क्षेत्र, फोन : 25921159, 55458062 नई दिल्ली-15 सदस्यता के लिए कृपया इस पते पर लिखें :- श्री ओ. पी. चान्दना एन - 463 (जी-11) दिल्ली ऋषि नगर, रानी बाग 110034 फीन : 9810414910 सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पते पर भेजें चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी-17, कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली 110016 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-4.txt ध्यान-धारणा नई दिल्ली 1976 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन जब आप कहते हैं कि मैं ध्यान कर रहा हूँ तो हम ध्यान कर नहीं सकते. ध्यान में हो सकते हैं । हमारा यह कहना कि हम ध्यान करेंगे अर्थहीन है, इसका अर्थ यह है कि आप सर्वव्यापी शक्ति (universal being) से क्रम परिवर्तन करते हुए हमें ध्यान में होना पड़ेगा। आप या तो घर के अन्दर हो सकते हैं या बाहर। घर के अन्दर होते हुए आप चल रहे हैं परन्तु आप स्वयं गतिमान नहीं हैं। आप यह नहीं कह सकते हैं कि मैं घर से बाहर हूँ या तो स्वयं को उन चीजों के वजन से मुक्त कर रहे आप यदि घर से बाहर हैं तब आप यह नहीं कह हैं जो आपकी गति में बाधक हैं। जब आप ध्यान करते हैं तो स्वयं को निर्विचार चेतना में रहने दें। सकते हैं कि मैं घर के अन्दर हूँ। इसी प्रकार आप उस स्थिति में अचेतन, स्वयं चैतन्य. आपका दायित्व जीवन के तीन आयामों (three dimentions) में चल रहे हैं-भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक। सम्भाल लेगा और आप चैतन्य की शक्ति से चलने आप अपने अन्दर नहीं हैं। आप यदि अपने अन्दर लगेंगे। अचेतन कार्यान्वित होगा और आपको वहां लें हैं तो इसका अर्थ यह है कि आप निर्विचार चेतना जाएगा जहां आपको जाना चाहिए। हर समय आप (समाधि) में हैं ऐसी परिस्थिति में जब आप होते निर्विचार चेतना में बने रहें, निर्विचार चेतना कि रहने का प्रयतल करें, इस बात को हैं तब सर्वत्र विद्यमान होते हैं क्योंकि यह वह बिन्दु स्थिति में बने है, वह स्थान है जहां आप वास्तव में सार्वभौमिक समझे कि अब आप परमात्मा के साम्राज्य में हैं और होते े हैं, वहां से आप स्त्रोत ( Principal) से, उसकी गति, उसका प्रवन्ध, उसकी चेतना, आपकी शक्ति से जुड़े होते हैं। उस शक्ति से जो हर पदार्थ देखभाल करेगी। जब आप अन्य लोगों को चैतन्य दे रहे होते हैं। के जरे-जरें में, हर भावनात्मक विचार में, हर योजना में और विश्व के हर विचार में प्रवेश कर मैंने पाया है कि तब भी आप निर्विचार चेतना में सकती है। इस सुन्दर पृथ्वी का सृजन करने वाले नहीं होते हैं। आप यदि निर्विचार चेतना की स्थिति में चैतन्य देंगे तो आप पर कोई पकड़ नहीं आएगी। सभी तत्वों में आप व्याप्त हो सकते हैं, आप अर्कश क्योंकि यह सभी बाधाएं (entities) जो आपमें और तेष में प्रवेश कर सकते हैं, ध्वनि में प्रवेश कर सकते हैं परन्तु आपकी गति बहुत धीमी होती है। प्रवेश करती हैं. जो भौतिक समस्याएं आपके सम्मुख to 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-5.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 8 जुलाई एवं अगस्त 2003 आती हैं वो तो केवल तभी आती हैं जब आप उन तथा झूठी आन्तरिक लिप्साओं के कारण जो जख्म तीन आयामों में होते हैं। सहजयोग के माध्यम से हमने स्वयं को दिए हैं उन्हें हमें ठीक करना है आप ने अपने अस्तित्व (आत्मा) के द्वार खोल लिए हमारा पूरा चित्त अपनी दुर्बलताओं पर होना चाहिए हैं। आप अपने साम्राज्य से बाहर आ जाते हैं और अपनी उपलब्धियों पर नहीं। हमें कभी इस बात का पुन: वहां जा कर स्थापित हो जाते हैं। कोई बात ज्ञान हो कि हमारी दुर्बलताएं क्या हैं तो बेहतर होगा, नहीं, आप को इसके विषय में न तो अधिक निराश तब हम बेहतर तरीके से तैर सकेंगे। मान लो कि होना है न ही हतोत्साहित। आप जानते हैं कि हजारों जहाज में सुराख है और उससे पानी अन्दर आ रहा वर्षों तक कठोर परिश्रम करने के पश्चात ही है । तो जहाज के पूरे नाविकों, कार्य करने वालों तथा साधक स्वयं को स्वयं से पृथक नहीं कर पाये। कप्तान का ध्यान भी उसी सुराख पर होगा जिससे केवल आप लोग, सहजयोगी, जिन का सृजन श्री पानी अन्दर आ रहा है। उनका चित्त और कहीं नहीं गणेश की तरह से किया गया है, केवल वही इस होगा। इसी प्रकार से आप सब को सावधान रहना तरह से बने हैं कि वो अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार है। दे सकें। सहजयोगी के पतन के बहुत से रास्ते हैं यह बात आप यदि पकड़े हुए हों तो भी आपने देखा है मैंने देखी है। नि:सन्देह भूतकाल पर भी नियन्त्रण कि आपमें शक्तियाँ हैं। आप जब महसूस करते हैं पाया जा सकता हैं। वर्तमान में भी लोगों पर भूतकाल कि आपको चैतन्य लहरियाँ नहीं आ रहीं तब भी के साये कार्य करते हैं । उदाहरण के रूप में जब आप जानते हैं कि आपमें शक्तियाँ हैं और आप आप समूह में होते हैं तो एक दूसरे से लिप्त होते अन्य लोगों को आत्मसाक्षात्कार दे रहे हैं, आपकी हैं। किसी भी सम्बन्ध के कारण जो लोग किसी से उपस्थिति में लोगों को आत्मसाक्षात्कार मिल जाता लिप्त हैं उन्हें जाने देना चाहिए। इस प्रकार की है। परन्तु आपको पूरी तरह से वह शक्ति बनना लिप्सा उनके व्यक्तिगत उत्थान प्राप्ति में सहायक होगा। मान लो आपकी कार में कोई खराबी है.परन्तु नहीं होगी। यद्यपि वाद-संवाद से तथा वैसे भी आप जब तक वह चल रही है तो ठीक है। हमें इसकी सामूहिक रूप से जुड़े हैं, फिर भी हर आदमी मरम्मत करनी है। अपनी मूर्खताओं, कामुकता, लोभ व्यक्तिगत रूप से उत्थान कर रहा है । उत्थान %3: 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-6.txt चैतन्य लहरों खण्ड -XV खष्ड : 7 एवं ৪ जुनाई एवं अगस्त 2003 व्यक्तिगत है पूर्णतया व्यक्तिगत। अतः व्यक्ति चाहे ऊब जाते हैं, यह भी अस्थाई स्थिति हो सकती है। आपका बेटा, भाई , बहन, पत्नि या मित्र हो आपको परन्तु यदि आप इसी स्थिति में बने रहते हैं, इस याद रखना है कि उसके उत्थान के लिए आप भाव को बनाए रखते हैं तो इसका अर्थ यह हुआ जिम्मेदार नहीं हैं। उत्थान प्राप्ति में आप उनकी कि आप स्वयं को बन्धन में डाल रहे हैं अर्थात आप निर्विचार चेतना की स्थिति में नहीं हैं, अभी सहायता नहीं कर सकते, केवल माँ (श्री माताजी) कृपा और उनकी अपनी इच्छा तथा तीनों आयामों तक बीते हुए समय में हैं। भूतकाल या दृढ़ बन्धन की बद्धता को त्यागने के लिए किये गये प्रयत्न ही अपने सिर पर बना रहे हैं। वर्तमान में सभी चीजें उनके सहायक होंगे। नि:स्सार हैं। सभी नश्वर चीजें नि:स्सार हैं। वर्तमान अत: इस प्रकार का कोई विचार यदि आता है की स्थिति में केवल शाश्वत रह जाता है बाकी सभी तो आप समझ लें कि अभी तक आपने पूरी तरह कुछ छुट जाता है। यह बहती हुई नदी की तरह से से निर्विचार चेतना की स्थिति प्राप्त नहीं की है और है जो कहीं नहीं रुकती। परन्तु यह बहती हुई नदी इसी कारण से आपको ऐसी समस्याएं है जो शाश्वत हैं और बाकी की सभी चीजें परिवर्तनशील तीन-आयामी हैं। हैं। आप यदि शाश्वत तल पर बने रहेंगे तो सभी कभी-कभी सहजयोगी को लगेगा कि उसके मन नश्वर परिवर्तित होकर छूट जाएगा, लुप्त हो जाएगा में कोई भावना है। यह भावना उदासी या निराशा की और अस्तित्वहीन हो जाएगा। हमें अपना गौरव, भावना होगी और वह व्यक्ति स्वयं से या अन्य अपना सार तत्व समझना होंगा। सर्वप्रथम तथा सर्वप्रमुख लोगों से ऊब जायेगा। दोनों ही बातें एक जैसी हैं। तत्व यह है कि सहजयोगी चुने हुए लोग हैं, वो ऐसे मैंने देखा है कि कुछ सहजयोगी दूसरे सहजयोगियों लोग हैं जिन्हें परमात्मा ने है। चुना दिल्ली शहर में हजारों लोग हैं। विश्व भर में से बहुत ही उदासीन होते हैं। हमेशा बने रहने वाली कोई उदासी नहीं होनी चाहिए। हो सकता है कुछ बहुत से लोग जनसंख्या के बाहुल्य के कारण कष्ट देर के लिए आप में उदासी का भाव आ जाए, यहां उठा रहे हैं परन्तु सहजयोगी बहुत ही कम लोग हैं। तक ठीक हैं क्योंकि यह अस्थाई अवस्था है जो जब आपको चुना गया है तो सर्वप्रथम आपने इस समाप्त हो जाएगी। कभी-कभी आप स्वयं से भी बात को महसूस करना है कि आप ही लोग नींव 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-7.txt बैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 8 जुलाई एव अगस्त 2003 हो, आप ही लोग वो पत्थर हो जिन्हें लगाया जायेगा। प्राप्ति के लिए हृदय से की जाए तो यह स्वीकार अतः आपको दूढ होना होगा और धैर्यवान भी की जाएगी। केवल इसकी याचना करें बाकि सब इसलिए यह आवश्यक है कि आप लोग जो अभी कुछ स्वत: घटित हो जाएगा। अपने भूतकाल या तक संख्या में बहुत कम हैं, जो आरम्भिक दीपक भविष्य कि आकांक्षाओं के कारण सभी सहजयोगियों हैं और जिन्होंने विश्व में प्रकाश-दीप जलाने हैं, को समस्याएं हैं। सहजयोग में यदि आपको समस्या उन्हें अनन्त दिव्य प्रेम की शक्ति तथा उस सार्वभौमिक है तो आप समस्या का समाधान करने की विधि भी शक्ति का आनन्द लेना होगा जो वास्वत में आप हैं। तो जानते हैं। ध्यान-धारणा के अतिरिक्त भी बहुत से तरीके हैं। ये विधियां आप भली-भांति जानते हैं। यही ध्यान-धारणा है। अत: जब सहजयोगी मुझसे पूछते हैं कि ध्यान आपको इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि चक्र क्या हैं, कुण्डलिनी कहाँ है। किसी चक् की बाधा के लिए क्या करें तो मेरा उत्तर होता है कि आप निर्विचार चेतना में चले जाएं, केवल इतना ही, उस के कारण यदि कुण्डलिनी रुकी हुई हैं तो हमें समय कुछ और न करें। ऐसा नहीं कि आप लक्ष्य निरुल्साहित नहीं हो जाना चाहिए। मान लो आपकी की ओर बढ़ रहे हैं या अचेतन (unconcious) कार रास्ते में रुक जाती है तो निराश होने का क्या आप पर नियन्त्रण कर रहा है। केवल इतना ही नहीं लाभ है? आपको इसकी तकनीक सीखनी चाहिए। इसके साथ-साथ आप पहली बार प्रकृति में अपने आपको अच्छा तकनीशियन बनना होगा केवल तभी चहूँ ओर तथा उन लोगों में जो आपसे सदा-सर्वदा आप गाड़ी को अच्छी तरह से चला सकेंगे अतः से जुड़े हुए हैं, दिव्य चैतन्य प्रवाहित कर रहे हैं। सहजयोग की सभी विधियां भली प्रकार सीख कर परन्तु हमें जिस बात की आदत पड़ी हुई है वह यह उनमें कुशलता प्राप्त करनी आवश्यक है। अन्य है कि हमें इसके विषय में कुछ करना है और इस लोगों को साक्षात्कार देने से, उनकी तथा अपनी आदत के कारण हम कुछ न कुछ करना शुरु कर गलतियाँ सुधारने से आप सहजयोग में कुशलता देते हैं। ध्यान तो अत्यन्त सहजमार्ग है। प्राप्त कर सकते हैं। निरुत्साहित होने की कोई बात नहीं है। कुन्ठा तत्पश्चात् हम प्रार्थना करते हैं, पूजाएं करते हैं। प्रार्थना यदि पूर्ण समर्पण तथा शाश्वत अवस्था की सबसे बुरी चीज़ है। निराश होकर यदि आप स्वयं 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-8.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 8 जुलाई एवं अगस्त 2003 पर नाराज हो जाते हैं तो समस्या खड़ी हो सकती है। बाहर की ओर चित्त यदि हो तो इसका कोई महत्व आपको स्वयं पर हंसना होगा और बिगडी हुई नहीं है। अपनी मशीनरी (शरीरतन्त्र) पर हंसना होगा। स्वयं "जिस प्रकार आप मुझे रखेंगे मैं वैसे ही रहूँगी, को यदि आप यह शरीर ही मान बैठेंगे तो कहीं के और, आप लोग हैरान होंगे कि, सभी कुछ ठीक नहीं रहेंगे। आप न तो चक्र हैं न भिन्न नाड़ी तन्त्र, प्रकार से होगा। कभी-कभी आप को लगता है कि आप तो चेतना हैं। आप शक्ति हैं, आप ही कुण्डलिनी मुझे फलाँ स्थान पर पहुँचना चाहिए, फलाँ भजन हैं। अत: चीजों की बिगड़ी हुई दशा की चिन्ता गाया जाना चाहिए, यह कार्य हो जाने चाहिएं. और आपको नहीं करनी। चीजें (चक्र आदि) यदि ठीक कई बार जब यह कार्य नहीं होते, कई बार जब नहीं हैं तो इस समस्या का समाधान आप कर सकते आपकी इच्छाएं पूरी नहीं होतीं तो परमात्मा की हैं। इच्छा मान कर इसे स्वीकार कर लेना चाहिए। अभी-अभी बत्तियां बुझ गई थी बिजली फेल परमात्मा की यही इच्छा है, ठीक है, यही परमात्मा होने के कारण यदि बत्तियाँ बुझी हैं तो आप दूसरा की इच्छा है। हो अब आप परमात्मा की इच्छा से एकरूप फ्यूज़ लगा सकते हैं, यह सारा कार्य कर सकते हैं। इसी प्रकार आपके चक्र यदि बिगड़े हुए हैं तो गए हैं। पूरे विश्व को परमात्मा की इच्छा बताने उनकी चिन्ता करने कि कोई आवश्यकता नहीं है। के लिए आप यहां पर हैं। इस अवस्था में भी केवल चिन्ता करना और स्वयं को निराश कर यदि आप अपनी इच्छाएं करने लगते हैं और लेना सहज के प्रति गलत दृष्टिकोण हैं। दूसरे शब्दों अपने विषय में अपनी ही धारणाएं बनाने लगते बनेंगे। में सहज का अर्थ है: सुगम-मार्ग। सहज का अर्थ है हैं तो कब आप परमात्मा की इच्छा सहज हो जाना अर्थात् जैसे मैं कहती हूँ। 'आप जैसे यह 'मैं भाव' जाना चाहिए। यही ध्यान- धारणा है जहां आप मैं' नहीं रहते, 'तुम' बन चाहें मुझे रखें।' जैसे शान्ता ने कहा है। इस प्रकार का दृष्टिकोण आपके चित्त को अन्दर ले जाता है जाते हो । क्योंकि चित्त यदि बाहर की ओर है तो व्यर्थ है । परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। ति ho 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-9.txt श्री सदाशिव पूजा पुणे 16-03-2003 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन क्षमा करते हैं उसी परिपाक से या कहना चाहिए ( अनुवादित) आज़ हम श्री शिव-सदाशिव की पूजा करेंगे। अतिशयता से फिर वो इस संसार को नष्ट भी कर उनका गुण यह है कि वे क्षमा की मूर्ति हैं। उनके सकते हैं। तो पहले तो हमें उनकी क्षमाशीलता से लोग सीखनी चाहिए। किस कदर क्षमाशील, छोटी-छोटी क्षमा के गुण के कारण ही हममें से बहुत चीजों को लेकर के हम झगडा करते हैं, छोटी-छोटी आज जीवित है अन्यथा ये विश्व नष्ट हो गया होता। 1 से लोग खत्म हो गए होते क्योंकि मानव की बातों पर हम झगड़ा करते हैं। पर यह किस कदर बहुत ा स्थिति को तो आप जानते ही हैं। मनुष्य की समझ क्षमाशील हैं और क्षमा करते-करते उस चरम सीमा में ही नहीं आता कि उचित क्या है और अनुचित पर पहुँच जाते हैं जहां से इनके अन्दर यह नष्ट क्या है। इसके अतिरिक्त वे क्षमा भी नहीं कर पाते करने वाली शक्ति जागृत होती है। इसी से वो अपने को नष्ट भी कर सकते हैं, इस सारे व्रह्मांड को नष्ट और गलतियों पर गलतियाँ करते चले जाते हैं। परन्तु अन्य लोगों को क्षमा नहीं कर सकते। श्री सदाशिव कर सकते हैं जो भी कुछ सृष्टि बनाई गई वो सारी नष्ट हो सकती है। इसलिए हम लोगों को याद से हमने यही गुण सीखना है। रखना चाहिए कि गर हम क्षमा करना नहीं सीखेंगे, (हिन्दी प्रवचन) आज हम लोग श्री सदाशिव की पूजा करने वाले गर हमारे अन्दर क्षमाशीलता नहीं आएगी तो हमारे अन्दर एक दिन बहुत ज्यादा नष्ट करने की शक्ति हैं। इनका विशेष स्वभाव यह है कि इनकी क्षमाशीलता इतनी ज्यादा है कि उससे कोई इन्सान मुकाबला आ जाएगी। हम ही लोग अपने ही लोगों को नष्ट नहीं कर सकता। हर हमारी गलतियों को वो, माफ करेंगे। इसलिए हर समय दक्ष रहना चाहिए, पता लगाना चाहिए, नजर रखनी चाहिए कि हम बेकार में करते हैं वो अगर न करते तो यह दुनिया खत्म हो सकती थी क्योंकि उनके अन्दर वो भी शक्ति है तो लोगों पर नाराज नहीं होते, बेकार में हम दूसरों जिससे वो इस सृष्टि को नष्ट कर सकते हैं इतने के साथ दुष्टता तो नहीं करते? किसी भी हालत में आपको अधिकार नहीं है कि आप किसी पर नाराज़ भी यह शक्ति उनके यहां जागृत क्षमाशील होते हुए है और बढती ही रहती है। इसी शक्ति से जिससे वो हों। जब शिव नहीं होते तो आप क्यों होते हैं? 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-10.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 8 जुलाई एवं अगस्त 2003 लेकिन इन्सान बहुत ज्यादा बहुत ज्यादा नाराज नहीं कर सकता। उसका स्वभाव ही ऐसा होता है होता है, इतने तो कोई जानवर भी नहीं होते, कोई कि उसमें ही बहता जाता है और उसमें वो सन्तोष करता है कि मैंने बड़ी अच्छी सबको सजा दी, सब वजह न हो तो जानवर कुछ नहीं कहते। इसी प्रकार जब हम छोटी-छोटी बातों पर बिगड़ते हैं तो याद पे मैं बिगड़ा, सबसे मैं नाराज हो गया! यहां तक कि रखना चाहिए कि एक शक्ति है शिव की, वो भी अनेक देशों में यह प्रश्न है। एक देश दूसरे देश से हमारे अन्दर कार्यान्वित है। और वो यही है कि हम चिढ़ गया। अगर एक ही आदमी चिढता है तो सारे उस देश के लोग लग गये। उद्धार के लिए कोई जब दूसरों पर बात-बात पे बिगड़ते हैं, बात-बात में नहीं मिलेगा-उद्धार के लिए कोई देश के लोग नहीं नाराज होते हैं, उनकी कोई चीज हम क्षमा नहीं कर मिलेंगे, सिर्फ मारने पीटने के लिए और बिगड़ने के सकते तो फिर ऐसे इन्सान कहाँ पहुँच सकते हैं। जहां-जहां बड़े युद्ध हुए, जहां-जहां बड़ी आफतें लिए फौरन लोग खड़े हो जाएंगे! यह सबसे बड़ा आई, वहां पर यही कारण रहा है कि मानव जाति कमाल है। गर किसी से कहो कि हमें यहां उद्धार करना है तो कहेंगे अच्छा आप करिए, हम देखते हैं को दमन किया गया है, नष्ट किया गया है। यह शक्ति पहले ही से आ जाती है, बगैर कोई कारण और वहीं गर कोई आदमी हाथ में कोई आयुध लेके के मनुष्य मनुष्य को ही नष्ट करता है। हर जगह, दौड़े तो कहेंगे कि हमें भी दो हम भी मारेंगे यह उसकी यह प्रक्रिया क्यों होती है और कैसे होती है मनुष्य की तबीयत समझ में नहीं आती। किसी को यह बात हम लोगों को सोचना नहीं। यही सोचना है मारने पीटने में और किसी को तंग करने में और कि हम तो ऐसे क्षुद्र और निम्न स्तर के कार्य में किसी पे गुस्सा करने में मनुष्य को इस कदर क्या उलझते तो नहीं। अपने जीवन में हम जितने शान्त सुख मिलता है? पर अब देख लीजिए रास्ते पे रहें, शान्तिपूर्वक हर एक चीज का हल निकालें, जाते-जाते देखा कि एकदम भीड़ लग गई-क्या उतने ही हमारे भी जीवन में शान्ति फैल सकती है, हुआ? कुछ झगड़ा हो गया। तो आप वहां क्या कर हमारा भी जीवन शान्तिमय हो सकता है। किन्तु रहे हैं? कोई तो कहेंगे-हम भी उसमें शामिल हैं प्रश्न यह है कि मनुष्य अपने ऊपर ही कोई दावा और कोई तो कहेंगे कि हम देख रहे हैं। यह हमारे नहीं रख सकता, अपने को कन्ट्रोल (Control) अन्दर जो प्रकृति में एक अजीब सी चीज़ आई हुई ho 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-11.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं B जुलाई एवं अगस्त 2003 10 है, यह हमारे अन्दर से निकालने वाला एक ही है, लोगों की संख्या बहुत कम है। मैं कहना ये चाह रही हूँ कि श्री शिव की पूजा करते हुए हमें यह वो हैं शिव शंकर। इनकी आराधना से, इनको पूजने से और इनको मानने से-हृदय से, मनुष्य का क्रोध, समझना आवश्यक है कि वे क्षमा की मूर्ती हैं। वे गुस्सा नष्ट हो जाता है। आश्चर्य कि बात है कि क्षमा करते हैं हर अपराध को इतने प्रेम पूर्वक कृष्ण ने भी सबसे बड़ा दोष मनुष्य का क्रोध क्षमा करते हैं जैसे व्यक्ति अपने बच्चों को क्षमा करते है । वे क्षमा करते हैं क्रुद्ध नहीं होते। छोटी-छोटी -क्रोधापि जायते - क्रोध के साथ में यह सब चीज़ें जागृत होती हैं। अपने यहां तो लोग बड़े गर्व से बातों पर वे भड़कते नहीं। हम लोगों में कुछ पूर्वाग्रह कहेंगे - मुझे बड़ा गुस्सा आया उसपे, में बहुत (Prejudices) भी हैं उदाहरण के रूप में भारत नाराज़ हो गया उसपे-इसमें कोई मनुष्यता मुझे तो में महिला का कुछ बोलना लोगों को अच्छा नहीं दिखाई नहीं देती। पर यह बड़ी साधारण सी बात है लगता। उनके अनुसार महिला को नहीं बोलना कि गुस्सा हो जाना, छोटी-छोटी बात पर कोई न चाहिए। पुरुष बोल सकता है महिला नहीं। पीटने का कोई बहाने ढूंढ लेना और गुस्सा हो जाना। फिर जब हेक तो उन्हें दिया ही नहीं जाता । पुरुष चाहे तो यह सामूहिक हो जाता है गुस्सा, उस सामूहिक गुस्से महिला की हत्या कर दे और महिला को पुरुष को से बड़ी बहुत सारी बातें हो जाती हैं। युद्ध हो जाते पीटने का भी अधिकार नहीं है। भारत में अच्छी हैं, बहुत सारे घर उजड़ जाते हैं, बहुत सारी कुटुम्ब पत्नी और अच्छी महिला को आंकने के लिए यही व्यवस्था खत्म हो जाती है। दिन-ब-दिन में देखती मापदण्ड है। वह कल्पना कर सकती हैं कि किस हूँ कि बजाय इसके कि मनुष्य का गुस्सा कम हो प्रकार पुरुष विनाश की ओर जा रहा है। इस प्रकार वो बढ़ता ही जा रहा है और बड़े गर्व से कहेंगे के दिए गए अधिकार भयानक है और पूरे समाज जाए, कि हमें तो बड़ा गुस्सा आया, हम तो बड़े गुस्से के लिए विध्वंसकारी हैं। विदेशों में भी मैंने ऐसा ही देखा है। वहां भी लोग अपनी पत्नियों को पीटते हैं. वाले हैं। ( अंग्रेजी प्रवचन) उनकी हत्या कर देते हैं। न जाने क्या-क्या करते हैं! मैं जानती हूँ कि आप चाहते हैं कि मैं केवल क्योंकि उन्होंने किसी महिला से विवाह किया है अंग्रेजी भाषा में बोलू परन्तु अंग्रेजी समझने वाले इसलिए सोचते हैं कि उन्हें सभी अधिकार हैं. 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-12.txt चैतन्य लहरी खण्ड -४V खण्ड :7 एवं 8 जुलाई एव अगन्त 2003 अपनी पत्नियों से सभी प्रकार की अच्छाई की देखा कि कई बार मनुष्य पशुओं से भी बदतर होते आशा का अधिकार है चाहे उनमें कोई भी अच्छाई हैं। विना किसी कारण के बो भड़क जाता है। उनसे न हो! वे अपनी पत्नियों को सताते ही चले जाते हैं। वे बेकार के पूछा जाए कि आप क्यों क्रोधित हैं तो इतना ही नहीं स्कूलों में अध्यापक विद्यार्थियों के बहाने बनाएंगे। साथ बहुत ही बुरा व्यवहार करते हैं। बच्चे भी उनसे शान्ति का आनन्द लेने के लिए आप इस विश्व यह व्यवहार सीख लेते हैं और इस प्रकार से दूसरों में आए हैं। बिना शान्ति के आप आनन्दित नहीं हो को सताने और कष्ट देने की परम्परा चलती रहती सकते। यदि आप शान्ति नहीं प्रदान कर सकते तो अतः जब जब भी आप कहें कि मुझे बहुत किस प्रकार आनन्दित हो सकते हैं? परन्तु जिस अपमानजनक तरीके से लोग व्यवहार करते हैं उस क्रोध आता है, तो स्वयं को बताएं कि मैं गलत मार्ग पर जा रहा हूँ। मैने बहुत बार आप लोगों को पर हैरानी होती है। न जाने वे अपने को क्या समझते बताया है कि अपने क्रोध की डींग हाकना सवसे हैं। ये बात समझ पाना कठिन है कि वे अन्य लोगों बुरी बात है। यह तो अपने पापों की शेखी बघारना को इतना घटिया क्यों समझते हैं। छोटी-छोटी चीजों है। ये कार्य पाप हैं। शराबी, पागल और विक्षिप्त पर सन्तुलन खो बैठना समझ में नहीं आता। ऐसे लोग यदि ऐसा करें तो समझ में आता है परन्तु लोग वास्तव में कायर होते हैं। जीवन में यदि उन्हें अन्यथा बहुत हो संवेदनशील व्यक्ति यदि आक्रामक किसी समस्या का सामना करने का अवसर आ जाए हो तो बहुत ही खतरनाक बात है। ये कहना कठिन तो वे पीछे हट जाते हैं। आगे नहीं बढ़ पाते। यह है कि ये दुर्गुण आपमें कहाँ से आते हैं क्योंकि बहुत बड़ी त्रासदी है। कद ( हिन्दी प्रवचन किसी भी दिव्य व्यक्तित्व मनुष्य को बिना किसी हमारे देश में भी लोग गुस्सेवाले आदमी को कारण के क्रोधित होते हुए नहीं देखा गया। ऐसे लोग यदि क्रुद्ध हुए भी तो बहुत बड़े कारण से जिससे पहचानते हैं। बस्ती में उसका नाम हो गया गुस्सेवाला। विनाश ही होने वाला हो| परन्तु उनके ऐसा करने ये गुस्सेला है, ये गुस्साडा की धारणा मैं समझ सकती हूँ। उन्हें यह विश्व उसके होते हैं और ऐसे आदमी से दूर ही रहना और मानव की देखभाल करनी है। मैंने चाहते हैं। ठीक हैं, किसी ने गलती कर भी दी, उसे चलाना है 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-13.txt चैतन्य तहरी ख्ड -४V खण्ड : 7 एवं ৪ जुलाई एवं अगर्त 2003 12 माफ कर दीजिये किसी ने कुछ ऐसा काम भी कर कहना चाहिए था कि इसको कि हमारा पैसा आप दे दिया है जो नहीं करना चाहिए, उसे भी माफ कर दीजिए, आप दे देते, आप ऐसा काम करते क्या? दीजिये, क्योंक कल आप ऐसा काम करें- "आप" फिर आप क्यों चाहते हैं कि वो दूसरा आदमी जो करे तो आप किस की सजा लेंगे? कौन आपको हैं वो कह दे कि इसको इतना कम पैसा दे दीजिए। सजा देगा? इसलिए ये ही समझ लीजिये कि हम सारी अच्छाई आप दूसरों से उम्मीद रखते हैं, सारी सहजयोगियों को बिल्कुल भी अधिकार नहीं कि बुराई जो है उसको आप माफ ही नहीं कर सकते। हम किसी को सजा दें और उनको शिक्षा दें । बहुत और जो कोई करता है तो उसके लिए आप सोचते से लोग तो मैंने देखा बड़े खोपड़ी पर जमा हो जाते हैं कि इसका तो सर्वनाश होना चाहिए। जब तक हैं। मनुष्य पार नहीं होता तब तक वो यह भी नहीं देख शिवजी को जिसने मान लिया वो असली पार है, सकता कि बो क्या है अन्दर, इन्सान है कि जानवर, शिवजी का स्वभाव जिसके अन्दर आ गया वही यह भी नहीं समझ सकता। में कहूँगी कि जानवर है और उसके प्रोटेक्शन के लिए भी शिवजी हैं । जो भी बेकार में कभी नाराज़ नहीं होता जब तक कि आदमी सीधा, सरल स्वभाव से ही है उसको उसको छेड़ो नहीं कोई, वो बेकार में उबलते नहीं घबराने की कोई बात ही नहीं है उसको सम्भालने रहता। उसमें शिवजी का अंश काफी है पर मनुष्य वाले शिव शंकर हैं, उसको देखने वाले शिव शंकर में कोई-कोई मनुष्य में तो यह पूरी तरह नष्ट हो हैं। तो इस वजह से आपको उसमें इतना प्रश्न क्या चुका है। वो तो सोचते हैं कि हज़ारों लोगों को नष्ट है? क्यों आप किसी से नाराज़ होते हैं? अजीब- अजीब करने का हमको अधिकार है। एक तो हिटलर बाते हैं, कोई साहब कहने लगे कि साहब में तो साहब हो गए उन्होंने न जाने कितने लोगों को मार बहुत नाराज़ हूँ इस आदमी से। मैंने कहा, क्या हुआ डाला? वो एक छोटा सा बच्चा तो नहीं पैदा कर भई? कहने लगे इन्होंने हमारे बाप का सब पैसा ले सकते और इतने लोगों को उन्होंने मार डाला। क्या सोचकर के, अपने को वो क्या सोचते थे ? और जिन लिया और हमको कुछ नहीं मिला। तो मैंने कहा ये लोगों को मारा है उनकी फैमिलीज़ नष्ट हो गई, सारे तो आपके बाप को देखना था, पैसा ले लिया तो ले लिया, आप क्यों बिगड़ रहे हो? कहने लगे इसने देश खराब हो गए तो वो अपने को क्या समझते थे 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-14.txt जुलाई एवं अगस्त 2003 13 चैतन्य लहरी खण्ड -४V खण्ड : 7 एव B लाट साहब। इस प्रकार के दो चार तो निकलते ही छोड़ दीजिए उनकी शक्ल नहीं देखना चाहते लोग। हैं पर आप को तो इनका उदाहरण नहीं लेना इस तरह का चरित्र आपको अपना नहीं बनाना चाहिए। आपके लिए ठीक है, आप सहजयोगी हैं चाहिए। यह समझ लीजिए कि आपके नाराज स्वभाव इसलिए आपको क्षमा करना चाहिए। बड़े तबीयत से हो सकता है कि लोग आप से डरें और डर के के जो लोग होते हैं वो क्षमा करते हैं, उनकी मारे बहुत से काम करें, पर जो काम डर के साथ क्षमाशीलता बहुत जबरदस्त होती है और यही बात होता है उसमें क्या मज़ा? उसमें क्या विशेषता है? है हमारे शिव शंकर में। इसलिए उनको सबसे उंचा एक सोचने की बात है कि आपने कितने लोग भगवान मानते हैं। स्वयं के लिए उनको कुछ नहीं दुनिया में जोड़े हैं अब तक और कितने लोगों को चाहिए। कुछ भी कपड़े पहन लेंगे, नहीं तो बदन में नष्ट कर दिया, कितने लोगों से झगड़ा हो गया? राख लगा लेंगे, कैसी भी स्थिति हो रह लेंगे। उनको कोई-कोई लोग होते हैं उनका तो धर्म है झगड़ा कोई चीज़ की जरूरत नहीं है। पर अगर कोई करना, उठे-बैठे झगड़ा करना। कोई तो भी उनके आदमी किसी के साथ बहुत ज्यादती करता है तो अन्दर एक लालसा होती है, सर्वेरे इस से झगड़ा अन्त में वो ही उसका नाश कर देते हैं। जितनी क्षमा हुआ, दिन में उससे झगड़ा हुआ, शाम को उससे की शक्ति उनमें है उतनी ही उनमें नष्ट करने की झगड़ा हुआ। ऐसा स्वभाव जिस आदमी का हो जाए शक्ति है। इसका कारण क्या है? कारण यह है कि उससे तो लोग भागते हैं, वे अगर सामने से आते मनुष्य उनको देखकर यह समझ ले कि गर आप दिखाई देंगे तो लोग मुड़ जायेंगे दूसरे रास्ते से, इससे किसी के साथ बहुत ज्यादती करेंगे तो आपका प्रेम नहीं बढ़ सकता सहजयोग तो पूरा प्रेम का ठिकाना हो जायेगा। अब ये सब लोग गए कहाँ? कार्य है। इसमें देखिए बड़े-बड़े उदाहरण इसामसीह बड़े-बड़े आए थे रथी-महारथी, इन्होंने इतने धन्धे ने सूली पे चढ़ कर कहा था कि हे प्रभु, "इनको करे और ये गए कहाँ? इनका बड़ा नाम था। बहुतों क्षमा कर दो, क्योंकि यह नहीं जानते कि ये क्या को मारा, बहुतों को खत्म किया, बहुत से देश के कर रहे हैं।" इसी प्रकार गर हमारे अन्दर क्षमाशीलता देश खत्म कर दिए। आज वो हैं कहां? उनका कोई आ जाएगी तो हम भी शिवजी का, क्या कहना फोटो भी नहीं लगाता, उनका पुतला तो खड़ा करना चाहिए कि, शिकजी के सामर्थ्य को प्राप्त करेंगे तम ho 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-15.txt बैतन्म्र लहरी खण्ड XV खण्ड :7 एव ৪ जलाई एवं अगस्त 2003 14 ि६ ु उनके गुणों को प्राप्त करेंगे। गुस्सा थमना, नाराज़ न अर्थ नहीं लगता। शिवजी के आज पूजन में आप होना, ये तो कोई खास चीज़ नहीं। और इसलिए लोग सब अपने मन में संकल्प करें कि हम गुस्सा आज के दिन सबको हमको विचार करना चाहिए नहीं करेंगे. चाहे कुछ हो जाए हम गुस्सा नहीं करेंगे। कि हम लोग किस कदर दूसरों पर हावी रहते हैं गुस्सा का कोई उपयोग ही नहीं तो क्यों गुस्सा करते और दूसरों को नष्ट करना चाहते हैं? खासकर हमारे हो? अपनी तबीयत खराब होती है। इसलिए आज देश में तो म्दों ने बहुत जुल्म ढाया औरतों पर! और सब लोग शिवजी को याद करें और उनके गुणों को अब भी कर रहे हैं। उसमें सहजयोगियों को नहीं प्राप्त होने की कोशिश करें। फंसना चाहिए, ये बेकार की चीज़ है इसका कोई अनन्त आशीर्वाद। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-16.txt सहजयोग प्रणाली द्वारा स्वस्थ समाज एवं परिवार की स्थापना निल्या ए. वोलोग्डीना ( सदस्य विज्ञान एवम् कला की पेट्रोवेस्किया अकादमी ) रूस पृथ्वी, परिवार- इन शब्दों की गहनता अगम्य है। समस्याएं उत्पन्न कर ली हैं। इस कठिन स्थिति से पृथ्वी पूरी मानवता का घर है। मानवता हमारे इस छुटकारा पाने का क्या कोई मार्ग है? हाँ है। ये मार्ग है सहजयोग का ज्ञान। सहजयोग उपग्रह का विशाल परिवार है। ये दोनों कथन अटल संस्थापिका श्रीमति निर्मला श्रीवास्तव ने मानवता के सत्य हैं। पृथ्वी पर रहने वाले सभी लोग यदि इस सत्य प्रति अथाह प्रेम पूर्वक इतने सहजरूप से इस ज्ञान का वर्णन किया है कि हर व्यक्ति आसानी से यह को महसूस करें तो तुरन्त बहुत सी समस्याओं का समाधान हो जाएगा। दुर्भाग्यवश अब हमारे इस समझ सके कि किस प्रकार सहजयोग विधियों से आत्मोद्धार, अच्छी सेहत एवम् उपग्रह पर बमों के धमाके और युद्ध किए जा रहे आत्म ज्ञान, हैं। लोग एक दूसरे की हत्या करते हैं। भूख, आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकता है। अपनी पुस्तक अनावश्यक भोजन तथा अन्य हास्यास्पद पदार्थो के 'META MODERN ERA' (परा आधुनिक युग) उपयोग से लोगों की मृत्यु होती है। हममें से बहुत में श्रीमति श्रीवास्तव प्रश्न करती हैं कि यदि दो से यह सत्य स्वीकार नहीं करते कि एक मानव मनुष्यों का विवाह अपने लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर दूसरे मानव का भाई है। व्यक्ति एक पराकाष्ठा से सकता तो किस प्रकार लोग प्रसन्नतामय जीवन की दूसरी पराकाष्ठा पर भागता रहता है। पृथ्वी की आशा कर सकते हैं? परन्तु सहजयोग प्रणाली द्वारा व्यक्ति प्रूर्ण विश्वास समस्याओं का समाधान खोजे बिना, इसके सौन्दर्य का ज्ञान प्राप्त किए बिना लोग बाह्य अंतरिक्ष की के साथ स्वस्थ परिवार एवं समाज की रचना कर ओर दौड़ रहे हैं । मानव हित के लिए प्रकृति द्वारा सकता है। सहजयोग के व्यवहारिक ज्ञान के मानवीय गतिविधियों पर उपयोग के परिणामों को सभी शोध दिए गए उपहारों का उपयोग किए बिना लोग कृत्रिम सत्य ठहराते हैं। भिन्न शहरों तथा विश्व के भिन्न पदार्थों का उत्पादन करने लगे हैं इन कार्यो द्वारा व्यक्ति अपने लिए खुशहाली तो आश्वस्त नहीं कर देशों में हुए सामाजिक शोधों में मानवीय जीवन पर पाया परन्तु अपने लिए, मानव स्वास्थ्य के लिए तथा सहजयोग ध्यान धारणा के प्रभाव के सकारात्मक पूरी पृथ्वी के लिए खतरे जैसी बहुत सी नई परिणाम हम देख सकते हैं सर्वप्रथम व्यक्ति स्वयं 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-17.txt जुलाई एवं अगस्त 2003 16 चैतन्य लहरी खण्ड -XV ण्ड :7 एव B इसे सीखता है, स्वयं को स्वस्थ बनाता है और सृजनात्मक गतिविधियां प्रदायक निर्मल विद्या (Pure Knowledge) उसके परिवर्तित होने के पश्चात् उसके इर्द-गिर्द की सन्तोष एवम् उदारता सभी चीजें परिवर्तित हो जाती हैं। पारिवारिक सम्बन्ध. (Contentment & generosity) सामूहिकता के पारस्परिक सम्बन्ध, बेहतर हो जाते आत्मविश्वास, आनन्द एवं शान्ति । यहां तक की सहजयोगियों के बगीचों में लगाए (Confidence, joy & peace) गए वृक्ष अधिक तथा उत्तम फल उगाने लगते हैं। युक्ति संगत तथा साक्षी भाव होना तो किस प्रकार स्वस्थ परिवार एवं समाज का (Dimplomacy & Detachment) सृजन किया जाए। परिवार क्या है? एक गलत प्रेम एवम् क्षमाशीलता धारणा लोगों के मस्तिष्क में समाई हुई है कि पति, पत्नी और बच्चे परिवार हैं। परिवार वह है जिसमें (Love & Forgiveness) दन विश्व की हर चीज में लयबद्ध एकरूपता व्यक्ति दूसरों के अन्दर अपनी आवृत्ति करे, दूसरों (Harmonious Union) का सम्पूरक बने-दूसरों में अपने गुण देखे। जहां सामूहिक चेतना की शक्ति कुण्डलिनी की जागृति अनावश्यक चीजों के लिए कोई किसी अन्य सदस्य को क्षुब्ध नहीं करता । परिवार ऐसा ही होना चाहिए। द्वारा मानव में स्वतः ही ये तत्व जागृत हो जाते हैं । इन तत्वों में स्थापित व्यक्ति लयबद्ध हो जाता है इस स्थिति को कैसे प्राप्त किया जाए? इसका उत्तर और अपने चहूँ ओर शान्ति एवम् लयबद्धता स्थापित सहजयोग में हैं। चहूँ ओर शान्ति एवम् सुस्थिरता देखने के लिए कर सकता है। दूसरे स्थान पर परिवार के सृजन तथा देखभाल आवश्यक है कि व्यक्ति अपने अन्दर लयबद्धता स्थापित करे। सहजयोग अभ्यास द्वारा ऐसा कर पाना के लिए पुरुष तथा महिला की भूमिका को निश्चित कर लेना आवश्यक है। सहजयोग प्रणाली का अध्ययन सम्भव है। सातों आध्यात्मिक और चारित्रिक सिद्धान्तों की मूल शक्तियाँ मानव शरीर में स्थापित सात चक्रों करते हुए मनुष्य पुरुष एवं महिला अधिकारों की में निहित हैं जैसे:- समानता के भ्रामक तत्व को देख सकता है। क्योंकि सहजयोग में बाएं और दाएं अनुकम्पियों (Left & पावित्र्य (Chastity ) श 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-18.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 8 जुलाई एवं अगस्त 2003 17 Right Sympathetic Nervous System) की अमर हो गए और कुछ कालचक्र में खो गए। सभी ठोस परिभाषा वर्णित है। बायाँ अनुकम्पी नाड़ी तन्त्र ने आत्मोत्थान के लिए प्राय: एकांत में तपस्या की (Left Sympathetic) भूतकाल का मार्ग है और थी। आध्यात्मिक तथा चारित्रिक तत्वों को उन्होंने इसमें मातृत्व के मादा गुण हैं और दायाँ अनुकम्पी अपने अन्दर महसूस किया, परन्तु समाज ने उन्हें मान्यता नहीं दी क्योंकि एकांत में तपस्या करना (Right Sympathetic) भविष्य का नाड़ी तन्त्र है जिसमें पौरुषेय (Male) गुण निहित हैं। बहुत ही दुष्कर कार्य है। परन्तु हम सब ऐसे समय व्यक्ति तुरन्त जान सकता है कि भूत एवम् पर पृथ्वी पर हैं जब सभी मानव सामूहिक रूप से भविष्य एक समान नहीं हो सकते। वे तुल्य हैं आत्मसाक्षात्मकार पा सकते हैं। अत: हमें पुरुष और स्त्री के लिए सम्मानमय समरूप स्थान निश्चित कर (They are equivalent not equal) इसी प्रकार लेना चाहिए। पुरुष एवं महिला भी तुल्य हैं। परिवार एवं समाज में क) मानव का भविष्य बनाने के लिए अनुकूल वे तुल्य हैं। सहजयोग स्वस्थ समाज का मार्ग है। समाज एक परिवार है। सामाजिक लयबद्धता के स्थितियाँ बनाना, मनुष्य को अत्यन्त सावधानीपूर्वक लिए हमें पारिवारिक लयबद्धता आश्वस्त करनी मार्ग पर लाना, ताकि जीवन-आधार-प्रणाली के होगी बहुत से शोधों द्वारा प्रमाणित हो चुका है कि माध्यम से वह चल सके। इसके लिए उनके ऊपर सहजयोग ध्यान धारणा का अभ्यास करने वाले किसी भी प्रकार का दबाव नहीं पड़ना चाहिए और लोगों में स्वास्थ्य सुधार हो जाता है, पारिवारिक छोटी छोटी बातों के लिए उन्हें परेशान नहीं किया सम्बन्ध सुधर जाते हैं और सामाजिक रूप से वे जाना चाहिए। इस प्रकार से दाएं नाड़ी तंत्र के लयबद्ध हो जाते हैं। परन्तु इस परिवर्तन की गति प्रतिनिधियों की, भविष्य मार्ग के प्रतिनिधियों की, बहुत धीमी है और इसलिए समाज में भी यह आयु को लम्बा किया जा सकेगा क्योंकि आजकल हैं। परिवर्तन अत्यन्त धीमी गति से लाया जा सकता है। हम लोग जनसंख्या की समस्या में फंसे हुए प्राचीन काल में बहुत से लोगों को बोध प्राप्त सरकारी काम काज करने की उम्र को 60 वर्ष से हुआ और बहुत से ऐसे ऋषि मुनि हुए जिन्होंने बहुत बढ़ाने के मामले पर तर्क वितर्क चल रहे हैं परन्तु की औसत आयु 60 वर्ष से कम है। से महान कार्य किए। उनमें से कुछ तो इतिहास में रूस में मनुष्य 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-19.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं ৪ जुलाई एवं अगस्त 2003 18 दो बच्चों की माँ, नाती नातिनों की नानी माँ होते हुए क्या किया जाए? ख) महिला का पूर्ण सम्मान होना चाहिए क्योंकि भी, अपनी सारी व्यस्तताओं के बावजूद, भी पृथ्वी वही परिवार तथा समाज को बनाने तथा उसका के सभी लोगों को इतना सुन्दर ज्ञान दे पाई इन पालन पोषण करने की जिम्मेदार है। पति के धन भाषणों के आरम्भ से ही यह बताया जाता है कि को ठीक प्रकार से खर्च करने का दायित्व महिला महिला ही परिवार का हित आश्वस्त कर सकती है। का होना चाहिए। यदि परिवार में ऐसे नियम होते तो ऐसे अनुभव दर्शाते हैं कि परिवार में लयबद्धता व्यर्थ की चीजें खरीदकर घर में न भरी जाती। आती है जो आगे जाकर स्वस्थ समाज का आश्वासन दाएं नाड़ी तंत्र का निश्चित लक्ष्य होता है परन्तु है। सहज परिवारों में पले बच्चे मां बाप के उच्च अपने मित्रों के इस बात की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए कि बहुत चरित्र के उदाहरण पर चलते हुए सी चीजों के मामले में भविष्य भूतकाल पर निर्भर लिए उदाहरण बन गए। शिक्षा खेलकूद, कला तथा है। व्यक्ति को भावनात्मक शक्ति की आवश्यकता सृजनात्मक कार्यं में उनकी उपलब्धियां सामान्य होती है और इसलिए महिलाओं में पतियों तथा परिवार के बच्चों से कहीं अधिक होती हैं। परिवार के अन्य सदस्यों के प्रति प्रेमभाव होना आज जब हमारे देश में तथा पूरे विश्व में चाहिए। उन्हें चाहिए कि घर में अत्यन्त प्रेममय दुर्घटनाएं, प्राकृतिक प्रकोप तथा विध्वंस हजारों जीवन नष्ट कर रहे हैं, जबकि नशे की आदतें, शराब, वातावरण पैदा करें। सहजयोग में बहुत सी सूक्ष्म बातें हैं जिन पर वेश्यावृत्ति, अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद तथा भिन्न प्रकार चलने से हम वास्तविक रूप में स्वस्थ परिवार और के भयानक लोभ मानव की सुरक्षा को चुनौती दे रहे हैं, अब तर्क वितर्क करने का समय नहीं रह गया समाज का सृजन कर सकते हैं। करैलियन गणतन्त्र के सहजयोग पाठशाला में कि, 'करू या न करूं' (To be or not to be)l पहला पाठ सहजयोग संस्थापिका श्रीमति निर्मला अच्छाई को होने दो और यह अच्छाई सहजयोग की दी गई शिक्षाओं को शिक्षाओं में निहित है। ये हमें स्वस्थ एवं लयबद्ध श्रीवास्तव की प्रणाली पर सूक्ष्म समर्पित है। इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित परिवार का रूप देगी। सीमाओं (Borders) की किया गया है कि श्रीमति निर्मला श्रीवास्तव पत्नी, हमें आवश्यकता नहीं है। जब हम सब एक हैं तो 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-20.txt चेतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एव ৪ जुलाई एवं अगस्त 2003 19 तारों की बाढ़ के पीछे छुपकर एक दूसरे से क्यों के हमारी सहायता करेगी। चैतन्य की भाषा संभी के लिए एक है। अब ये समझने का समय है कि हम छुपना है? बाह्य रूप में हम सब समान नहीं है। परन्तु सभी अपने घर, पृथ्वी ग्रह, में केवल एक परिवार हैं। मनुष्यों में एक ही प्रकार का नाड़ी तंत्र है। सहजयोग स्वस्थ समाज और पृथ्वी ग्रह के सभी मनुष्यों को द्वारा प्राप्त चैतन्य-चेतना बिना शाब्दिक अभिव्यक्ति एक सूत्र में बांधने का एकमात्र मार्ग सहजयोग है। श्री माँ के चरण चांदनी से धवल श्री माँ के चरण, प सुरक्षित उपवन से सजे श्री माँ के चरण, तेज से भरे, सोने से खरे श्री माँ के चरण, कमल पल्लवों से कोमल गंगा जल से निर्मल श्री माँ के चरण, समुद्र से गहरे आकाश से निरभ्र श्री माँ के चरण, चन्द्रमा की निर्मलता, तारों की चंचलता. प्रवाहित करें. श्री माँ के चरण, सहजियों के मन को लुभाते त मोक्ष प्राप्ति कराते मोक्षदा के चरण, चांदनी से धवल श्री माँ के चरण। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-21.txt श्री माताजी का टी.वी. साक्षात्कार 14.03,2003 हैं, गाते भी हैं कुछ करते नहीं। पर ये लोग प्रश्न यह उठता है कि मनुष्य का चमात्थान और संपूर्ण कल्याण किसमें निर्भर है? श्री कृष्ण ने कहा जिनको कुछ मालूम ही नहीं इस मामले में, आध्यात्म है 'योगक्षेम वहम्यम्' यानि ईश्वर के योग में मनुष्य के बारे में मालूम ही नहीं, वो सोचते हैं कि Truth का संपूर्ण कल्याण निहित है। परन्तु हम यह देखते कहां है। उसको खोजना चाहिए और उनकी बडी जबरदस्त खोज है और वो खोज इतनी गहरी है कि हैं कि Technical advancement के साथ-साथ हमारी आज की पीढ़ी आध्यात्म से दूर होती जा रही Russia जैसा देष आप सोचिए कि जहां मुझे है। बिल्कुल उम्मीद नहीं थी कि आध्यात्म चलेगा श्रीमाताजी : हाँ, यह बात तो सही है कि इतने आध्यात्मिक लोग बढ़िया क्योंकि उनके आध्यात्म के प्रति रुचि कम हो सकती है जब आप ऊपर बड़े जुल्म हुए हैं । इस जुल्म में वो अंदर ही Technology में बहुत ज्यादा होते हैं। पर जिस अंदर बढ़ते रहे। उनको भगवान-कुछ मालूम ही देश में Technology बहुत ज्यादा बढ़ गयी है, मैं नहीं। उनको आध्यात्म शब्द मालूम ही नहीं। कुछ देखती हूँ, वहीं बहुत ज्यादा लोग आध्यात्म की ओर नहीं। पर अंदर ही अंदर बड़े गहरे हो गए और बढ़ रहे हैं क्योंकि उससे आनंद नहीं है, उससे शांति आध्यात्म पाकर कहां से कहां पहुँच गये। वो ज्यादा नहीं आती, उससे समाधान नहीं आता। अब हमारे अधिकारी हो गये। अब ये नहीं में कह सकती कि सहज योग में जो लोग आए हुए हैं वो ज्यादातर उन वहां की औरतों को बहुत ज्यादा Freedom थी या देशों के हैं, अपने देश के तो हैं ही, पर उन देशों किस वजह से, पर सर्वसंगष्टी से यही एक उत्पन्न के हैं और बड़े गहरे हैं, जिन्होंने Technology हुआ है कि उनके अंदर खोज बहुत-आंतरिक खोज की चर्म-सीमा लांघ ली है। और वो कहते हैं कि और उसको प्राप्त करने के लिए वो कुछ भी कर इसमें रखा क्या है? कोई चीज़ नहीं है खास और सकते थे और जब वो मिल जाता तो ऐसे गहरे उतरते, क्योंकि अंदर गहराई है। अपने देश में तो उनकी जो रुझान है, उनकी जो खोज है-वो बड़ी गहन है। और बहुत ही सरल है । हमारे यहां सब आध्यात्म की ही बात की जाती रही। इसके सिवा गुरुओं ने बताया है कि अंदर की चीज खोजो। अंदर कुछ नहीं। सब कहते इसे खाजो-मतलब सब गुरुओं को पाये बगैर होता नहीं। पर जो लोग यह कहते भी ने यही बात कही। हम लोग गुरुओं को, जब वो रहे ho 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-22.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं ৪ जुललाई एव अगस्त 2003 21 तो सताया होगा पर अब जब वो चले गये तो मानते लिए। उसके बाद हम वहाँ पहुँचे तो वो हैरान हो हैं, उनकी बातें पढ़ते हैं सब कुछ जानते हैं पर गये कि ये तो अनुभूति देती हैं और पैसे बगैरह में करने को तैयार नहीं। कोई Interest नहीं। उससे ये लोग बड़े ही हमसे ु ड प्रश्न :आज अगुरु और कुगुरु के बढ़ते प्रभाव नजदीक आ गये। कयोंकि छल कपट करके ये लोग में लोग अपनी धन दौलत के साथ-साथ अपनी जो करते हैं बातें. और इस तरह से लांगों को नैतिकता भी विसर्जित करते जा रहे हैं। साथ ही बेवकूफ बनाते हैं आध्यात्म में.. वो कितने दिन तक चल सकते हैं? लेकिन हमारे साथ जो एक बार आध्यात्म ज्ञान को आज एक बहुत ही Attractive Pattern पर एक वस्तु के रूप में विश्व में बेचने जुड़ गये सो जुड़ गये अब 30 साल से ये कार्य हम कर रहे हैं और ये लोग बहुत ही गहरे चले गये। का प्रयास काफी विस्तृत रूप से किया जा रहा है जिसके कारण जन-साधारण भ्रमित और पथभ्रष्ट हो इस खीज में बहुत गहरे चले गये दूसरे ये कि जाते हैं। ऐसी विषम परिस्थितियों में सहजयोग द्वारा इनको घर से, समाज से प्यार का आभास ही नहीं। मानव जीवन में संपूर्ण बदलाव (Total तो मुझे देखकर के उन्हें वो प्यार मिलने लगा। उस प्यार से वो प्लावित हो गये और एकदम बदल गये। Transformation) लाना कैसे संभव है? इतने बदल गये कि अब आप सोचिए कि जर्मनी के श्रीमाताजी : विदेश मैं इसलिए जाती हूँ कि बहां के लोगों को खोज है और इस खोज में ही वो लोग लोग हैं वो इतने प्यारें हो गये हैं, इतने स्व्रीट डूबे हुए हैं। इतने लोग खोज रहे हैं और वहां इस (Sweet) हो गये हैं और इतने दिल खोलकर के पर बहुत लिखा भी गया है। हमारे जो किताबें हैं बात अपनी कहते हैं। और उनको बड़ी लज्जा आतीं उसको भी उन लोगों ने भाषांतरित कर लिया है कि हमारे देश में ये सब ऐसी गलत बातें हुई। न Translate करके पढ़ भी लिया है । आश्चर्य की जाने कितने देशों में हम कार्य कर रहे हैं - ये सब बीत है कि संस्कृत भी पढ़ते हैं। इतना कुछ मालूम सहजयोगी बताएंगे कि 86 Nations में हो रहा है है उन लोगों को। फिर यहां से कुछ गलत किस्म के यह कार्य। तो हम तो इतने देशों में गये नहीं। होता गुरु पहुँच गये वहाँ। उन्होंने उनको पढ़ाता शुरु कर क्या है कि एक आदमी पार हो गया बो सीख गया। दिया। तो वो चीज़ मिली नहीं। पैसे-वैसे बहुत ले एक साल में वो Expert हो जाता है। फिर वो कहीं 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-23.txt जुलाई एवं अगस्त 2003 चैतन्य लहरी खण्ड XV खण्ड : 7 एवं 8 22 गया। फिर वो औरों को बताता है इस तरह से ये मानते। किसी देश को बंधन नहीं मानते। किसी चीज creed को, किसी race को हम बंधन नहीं मानते। बहुत बढ़ रही है। और इतनी बढ़ गयी है कि समझ में नहीं आता कि हम कैसे इन सब देशों में किसी भी चीज का बंधन नहीं। जा सकते हैं। पर वो लोग आते हैं जहां भी हमारे मनुष्य को मनुष्य मानते हैं और सारे धमों का हम आदर करते हैं। पर धर्मों का और धर्म तत्वों Programme होते हैं तो ऐसे देशों में जैसे Benin है। एक देश है उसका नाम है Ivory Coast, का, न कि उसके जो भी परिहास कर दिये धरमों के। और इस तरह से जिस भी धर्म में लोग होंगे वो जहां कि बिल्कुल बेचारे मुसलमान हो गये थे इसलिए मैंने पूछा कि तुम लोग मुसलमान क्यों हो सब इसमें कूदते हैं और वो सोचते हैं कि हमें एक गये थे तो कहने लगे हमने French लोगो को देखा असली धर्म मिल गया है। उनमें बिल्कुल नैतिकता नहीं, इसलिए हम मुसलमान आज तक सब बड़े बड़े अवतरण हो गये, साधु संत हो गये, सब हो गये। उन्होंने आध्यात्म की बात हो गये अब वो सब सहजयोगी हो गये इस तरह से हर जगह सहजयोगी बहुत ज्यादा बढ़ रहे हैं। और की पर वो अनुभूति नहीं दे पाये थे। बगैर अनुभूति जो लोग Fundamentalists लोगों से तंग हैं वो के जब मनुष्य किसी चीज को प्राप्त करता है तो भी आना चाहते हैं सहजयोग में इस तरह से जैसे उसमें उसको विश्वास ही नहीं होता। कि सब चीजों से त्रस्त जो लोग हैं दूसरे जो खोज कुछ ऐसा काम तो हमने किया नहीं। सिर्फ ये रहे हैं - ऐसे बड़े बड़े समूह आ गये हैं और इन्होंने कि हमने इस चीज की खोज लगाई कि गर ये कार्य पहले ही ऐसे कुछ groups बना लिए कि वो अनुभूति का, गर सामाजिक तरह से, ( en-masse) के groups आ गये। तो उसमें मुझे कुछ कर सकें तो इसका असर ज्यादा अच्छा होगा। कोई groups दिक्कत हुई नहीं क्योंकि सब कुछ पहले ही इन सी भी चीज़ एक व्यक्तिगत रूप से अगर आप पाते लोगों के मन में थी और उसका जो आदर्श था वो हैं - समझ लीजिए आपने Electricity की खोज शायद इन लोगों ने मुझमें पाया। और वो सब मेरी लगाई और उसको जब तक समाज के लिए उपयोग ओर आ गये और इसको प्राप्त किया। विशेषता में नहीं आयेगी तो वो व्यर्थ है । इसी प्रकार हमने यह सहजयोग की यह है कि हम धर्म को बंधन नहीं सोचा कि जो हमें उपलब्धि सहजयोग के बारे में हुई 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-24.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : ? एवं 8 जुलाई एवं अगस्त 2003 23 थी वो सामाजिक होना चाहिए, आमास, सार्वजनिक कि कलियुग में इस साल आपके यहां सहजयोग शुरु होने वाला है। और उस सहजयोग के शुरु होने होना चाहिए। कहना चाहिए यह बिल्कुल सामूहिक (Collective) है । उसके लिए जरूर हमने थोड़ी से लोगों के जो भ्रमिष्ट बातें हैं या जो गलत रास्ते पर चले गये हैं या जो कलियुग के चक्कर में आ सी मेहनत करी। हमने मनुष्य की जो है अलग-अलग गतिविधियाँ देखीं और उसके चक्रों पर ध्यान दिया गये हैं वो सब बच जायेंगे और उनकी कुण्डलिनी और देखा कि क्या बात है, क्यों नहीं हो सकता। जागृत हो जायेगी। यहां तक उसमें लिखा है कि उसके बाद वो जब हमने जान लिया कि इसमें अस्पतालों की कोई जरूरत नहीं होगी। बहुत कुछ क्या-क्या आचरण हैं, मानव में कौन सी-कौन सी बातें उसमें लिखी हुयी हैं। तो यह तो विधि है। यह आचरण हैं, जब वो हमने समझ लिया तो उसको समय आना पड़ता है और ये समय आया है। किस तरह से पार करना चाहिए ये भी हमने प्रयत्न कलियुग में यही खास बात है कि भ्रांति इसमें किया उसका और 1970 मई में हमने एक ऐसे मनुष्य में आती है और भ्रांति की ही वजह से वो आदमी को देखा कि जो लोगों को भ्रांति में डाल खोजता है। जब अंधेरे में पूरी तरह से भ्रांत हो जाता रहा था। तब हमने तय कर लिया कि ये अब हमें है तो खोजता है और यह समय है। इस समय में ही करना चाहिए। तो उससे हमको इसकी जो प्रणाली यह होने वाला है। सहजयोग से बहुतों की बीमारियां है, उसकी उपलब्धि हुई। उससे अब ये होता है कि ठीक हो जाती हैं क्योंकि यह जो चक्र हैं हमारे अंदर आमास Realisation देना अब बहुत आसान है। इसी से हमारा शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और ये विधि लिखित है कि इस कलियुग में यह आध्यात्मिक सम्बंध है। जब हमारी कुण्डलिनी जागृत कार्य होने वाला है और इसकी सम्पन्नता भी होनी हो जाती है तो इन चक्रों को वो प्लावित करती है, है। ये हमारे यहां पहले से सब वर्णित है और वो जो Nourish करती है। उसके कारण उन चक्रों में जो है लिखा हुआ, वही हो रहा है। तो पहले तो समाज बीमारियां हैं वो ठीक हो जाती हैं और उसके को यह तैयारी होनी चाहिए कि वो खोजे। अलावा ऐसी बीमारियां कि जिनको हम बोलते हैं आपके यहां नाड़ी-ग्रंथ नाम का एक ग्रंथ है ठीक नहीं हो सकती जैसे Cancer है। सहजयोग में लोगों का Cancer ठीक हो गया| भृगु-मुनी का, जिसमें उन्होंने साफ-साफ लिखा প 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-25.txt चैतान्य लारों खण्ड -X४ खण्ड 17 ए 8 जुलाई एव अगस्त 2003 24 Blood Cancer ठीक हो गया। बहुत कुछ हो खुद ही जागृत होकर के ठीक कर देती है। अनुभूति गया। यहा तक कि AIDS भी ठीक हो गया। पर होते ही मनुष्य समझने लग जाता है। अनुभूति किस AIDS के जो मरीज है वे अपने को. बड़े अहंकारी चीज से होती है कि आपकी आत्मा का प्रकाश वो सोचते हैं कि हमने बडा भारी पराक्रम किया आपके हृदय में आ गया। आपके हृदय में आत्मा हुआ है, हम Martyr हैं और उनको तो समझाना का प्रकाश आने से उस प्रकाश में हम देखते हैं कि मुश्किल है। हमने 5 आदमी ठीक किए फिर छोड़ कौन सी चीज हमारे लिए दुर्गति लायेंगी और कौन सी चीज हमारे लिए सद्गति लायेगी। जैसे कि करक दिया। और एक है Alzheimer की बीमारी। ये लोग आपके यहां भी प्रकाश है, आप देख सकते हैं। जो बहुत ज्यादा जीवन में दूसरों पे हावी रहते हैं, अंधेरा होगा तो समझ नहीं पाते। तो उस प्रकाश में Control करते रहते हैं, उनको कभी-कभी हो मनुष्य स्वयं ही बदलता है। मैं किसी से कुछ नहीं जाता है और वो मरने से पहले ही उनकी एक कहती। ऐसा मैं कहती ही नहीं कि तुम यह छोड़ो. यह करो। आपको आश्चर्य होगा कि हमारे सहजयोग side, brain की मर जाती है शायद.और दूसरी side है बो चलती है जो बड़ी aggressive बहुत में कोई drugs नहीं लेता, कोई शराब नहीं पीता, ज्यादा आतताई और बहुत ज्यादा कहना चाहिए कोई गलत काम नहीं करता । 99% कहना चाहिए - violent है। इसलिए कभी-कभी बो एक दम हो कोई गलत काम नहीं। इतनी शादियां होती हैं, सब जाते हैं-left sided हम उनको कहते हैं जिनमें कि बहुत सुंदर सुचारू रूप से चलती हैं। प्यारे-प्यारे बिल्कुल cabbage के जैसे। और फिर जब वो बच्चे होते हैं। सब एकदम से जो वर्णन है कि ऐसा जागृत होते हैं तो उनकी right side चल पड़ती है साम्राज्य आने वाला है। वो वास्तव ही में परमात्मा तो वो गालियां बकते हैं. ऐसा करते हैं। एक ये का साम्राज्य है। और उसमें कोई भी तरह की बीमारी ऐसी है कि जिसको हमने हाथ नहीं लगाया। कड़वाहट या तकलीफ नहीं। एक तरह मनुष्य बड़ा पर जैसे drugs आपके ठीक हो जाती है। हम तो ही सामूहिक हो जाता है। जैसे कि एक बूंद सागर किसी को कुछ कहते ही - क्या करना हैं क्या नहीं में गिर जाए। जो कबीर ने कहा हुआ है कि सागर करना। अपने आप ठीक हो जाता है। कुण्डलिनी में गिर जाए - वही एकाकारिता आ जाती है यह he ज्ट heo 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-26.txt चतन्य लहरी खण्ड XV खण्ड :7 एवं ৪ जुलाई एवं अगस्त 2003 25 कर प्० कोि ार िं तो होने का ही है - का, evolution नहीं। में ता यह कहूँगी कि सबका अपने अदर हमारा उत्क्रांति evolution Ta का चर्म स्थान हैं। ये हमें प्राप्त होना हैं। इसीलिए सत्य को खोजना चाहिए। उसके बगैर काई मार्ग आज तक जो कुछ भी हमारी प्रगति हुई है. जो-जो नहीं है। जब तक आप अपने अंदर बसे हुए सत्य गुरु लोगों ने, जो-जो हमारे अवतरणों ने जो-जो को नहीं खोजते तब तक असत्य के रास्ते पर हमारे प्रेषितों ने और इन लोगों ने जो काम किया है चलते हैं और इसी से यह सब चीजें होती हैं। उसको फलद्रूप होना है। तो यह समय आना है, जब आप सत्य में आ जाते हैं तो आपको कोई जैसे बीज है, पहले लगाइये-उसमें मूली आयेगी, विधि विधान नहीं चाहिए। आप अच्छा ही कार्य फिर पेड़ आयेगा, फिर फूल आयेंगे-फिर फल करते हैं। इसलिए सत्य की खोज सबको करनी आयेंगे। इसी तरह से मैं इसको Bloossom चाहिए और अब प्रप्त भी कर सकते हैं। यही मैं Time कहती हूँ। इस वक्त इतने फूल खिले चाहती हूँ कि सब लोग विशेषकर आदमी लोग सत्य हुए हैं बस उनको फल बनाना कोई मुश्किल काम को खोजे | 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-27.txt तिहाड़ जेल पत्रिका से 13 जून 2002 सहजयोग ध्यान धारणा का लक्ष्य, मूल ध्यान को सहजयोग सीखने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। धारणा की परम्परा पर आधारित 'निर्विचार समाधि' मैंने स्वयं भी इन कक्षाओं में भाग लिया है। कि स्थिति में स्थापित होना है। निर्विचार समाधि वह आरम्भ में जब मुझे बताया गया कि श्री माताजी स्थिति है जिसमें मानव की चुस्ती तथा प्रभाव क्षमता निर्मला देवी के फोरटो से चैतन्य लहरियां प्रवाहित को कम किये बिना मस्तिष्क की अवांछित तनाव होती हैं तो में इस बात पर विश्वास न कर सका उत्पन्न करने वाली गतिविधियों को कम किया जाता परन्तु श्री आई.एस. बन्सल नामक एक सहजयोगी ने मुझे यह समझाया और मैंने पानी पैर क्रिया आदि है। माताजी श्री निर्मला देवी की फोटो से प्रवाहित को किया, श्री माताजी से प्रार्थना की कि मेरे शरीर होने वाली चैतन्य लहरियां कुन्डलिनी की जागृति को पवित्र कर दें। तब एक सप्ताह के पश्चात् मुझे करती हैं और इन चैतन्य लहरियों की शक्ति मानव अपने हाथों की हथेलियों पर चैतन्य लहरियों का अनुभव हुआ, शारीरिक गतिविधियों में काफी परिवर्तन शरीर के भिन्न हिस्सों पर बने और उनकी देखभाल करने वाले चक्रों का पोषण करती हैं। सभी चक्र हुए और मुझे शरीर में अधिक शक्ति का एहसास यदि पूर्णतः सन्तुलित हो जाएं तो किसी भी प्रकार हुआ। दिन में दो बार पन्द्रह मिनट नियमित रूप से में की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं नहीं हो सकती और ध्यान धारणा करते रहने से मुझे सिर के तालुभाग सिर के तालूभाग पर शीतल चैतन्य लहरिया अनुभव शीतल चैतन्य लहरियों का अनुभव हुआ जिससे निर्विचार समाधि की अवस्था मुझे मिलने लगी। इस की जा सकती हैं जो अन्ततः निर्विचार समाधि प्रदान अवस्था का आम आदमी विश्वास नहीं कर सकता करती हैं। सहजयोग का यह प्रशिक्षण नि:शुल्क दिया जाता परन्तु यह चमत्कारिक वास्तविकता मैंने सहजयोग में है और सहजयोगी कार्यकर्त्ता नियमित रूप से जेल अनुभव की। यह संस्था भिन्न जेलों में कार्यक्रम कर रही है. में अभियुक्तों, सजायाफ्तों तथा अधिकारियों को सहजयोग सिखाते हैं। तिहाड़ जेल के अधिकारी इन और बन्दियों सहित अधिकारी वर्ग भी इनका लाभ सेवाओं का लाभ उठा रहे हैं और जेल के बंदियों उठा रहा है। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-28.txt यहां हमारा क्या लक्ष्य है परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन 05.10.1983 आज में आपसे कुछ चीजों के विषय में सीधे उनसे आपको सीखना है। कितनी तेजी से? उनसे बात करने वाली हूँ कि किस तरह मैं आप लोगों के मुझे कुछ भी कहना नहीं पड़ता। अपने अंदर से ही माध्यम से सभी कुछ भली-भांति संभालती रही हूँ। वे आत्म अनुशासित हैं। उनसे मुझे कुछ भी नहीं मेरे पास समय का अभाव है। आप जानते हैं कि बताना पड़ता। वे अत्यन्त व्यवस्थित हैं और बहुत आपका तो केवल एक कार्यक्रम होता है और मेरे परिश्रम कर रहे हैं। इसकी आप कल्पना भी नहीं तीन-तीन, चार-चार कार्यक्रम होते हैं। इनके लिए मैं कर सकते। आप लोग कुछ भी नहीं कर रहे। आप परिश्रम करती रही हूँ। मेंने आपको बताया था यदि अपनी देखभाल कर लें तो आपने क्या किया? बहुत कि महाराष्ट्र में सहजयोग बहुत बड़ा आन्दोलन आप अपना सामान उठाते हैं बसों में डालते हैं. नीचे उतरते हैं और फिर सो जाते हैं । उनके मुकाबले बनने वाला है और हमें बहुत तेजी से कार्य करना होगा। आपको समझना है कि हम इस कार्यक्रम के में आप क्या काम कर रहे हैं? इस कार्य में कोई लिए महाराष्ट्र में क्यों आए हैं। आप यहां क्यों आए चुस्ती नहीं है। मुझे लगता है कि वो लोग भी इस बात को देख रहे हैं कि आप लोग आलसी प्रवृत्ति हैं? इस बात को लोग ठीक से नहीं समझते। इस सीधी सी बात की भी कुछ लोगों में समझ नहीं है। हैं या आपमें से कुछ लोग नशेड़ी हैं। यह सब क्या आप लोगों में से कुछ लोग अफवाहें फैलाने वाले है? पूरी तरह से यह इतना अजीब लगता है मानो हैं। वो नहीं समझते कि यहां पर वो क्यों आए हैं। यह यात्रा एक ठेका हो। बसों पर चढ़ना और सहजयोग की कुछ चीजें सीखने के लिए वो यहां आयोजन करना अच्छा नहीं है। कुछ लोग तो रौब हैं। आपके पास यदि कोई आश्रम नहीं होगा तो भी देते हैं। ये सब पूर्णत: हास्यास्पद है। आए आप दूसरे लोगों को साथ मिल-जुल कर रहना मेरे विचार से कुछ लोग सहजयोग को वैसे ही किस प्रकार सीखेंगे? एक प्रकार से हमें अत्यन्त (Lethargic) तंदराजनक समझते हैं जैसे नशे सहज ढंग से चलना चाहिए तथा सहज ढंग से आदि लेना-नशे जिनसे आप तन्द्रा में चले जाते हैं। चलते हुए चुस्त किस प्रकार रहना है। अब देखें कि किसी को यह कहने की आवश्यकता क्यों होनी महाराष्ट्र के लोग कैसे चलते हैं। उनकी ओर देखें, चाहिए कि बसों में चढ़ो? क्यों आप स्वयं बसों में 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-29.txt ह हम्क प बउ जुलाई एवं अगस्त 2003 चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 28 नहीं चढ़ते ? सभी लोग स्वयं को आयोजित करें। वारेन का कहना है कि वे अब आयोजन नहीं कर स्वयं बसों में चढ़े। सभी कुछ सीखें। अन्यथा यह सकते कौन यह कार्य करना चाहेगा? हम देखना सब व्यर्थ है। यह व्यर्थ है और पतन की ओर जाना चाहते हैं कि कौन शिकायत कर रहा है। वे सभी मर्यादाओं को लांघ रहे थे। अब उनहें यह कार्य है। आप यहां भ्रमण करने के लिए नहीं आए हैं। संभालने दो। व्यवहार करने का यह कोई तरीका यह बात आपको समझ लेनी चाहिए कि यहां पर नहीं है। आपको स्वयं को अनुशासित करना है। आपके लिए विभाग कार्यरत नहीं है। जरा सा आराम आपने अनुशासन सीखना है। आप बहुत सी चीजों को अधिकार मान बैठे हैं। जब निक ने ऐसा करने आपको मिलता है और आप भावसमाधि (Trance) में चले जाते हैं। समझ लेना चाहिए कि बहुत का प्रयत्न किया तो आपने देखा कि उसके साथ अधिक भौतिकवाद आपको अहं की अवस्था तक क्या हुआ। अब वे लिन्डा के घर में आराम से रह ले आया है। यह सहजयोग के लिए और आपके रहे हैं परन्तु मैं देख रही हूँ कि वहां भी लोग ऐसा लिए बहुत बड़ा सिरदर्द है। आप बहुत अधिक ही करते हैं । क्योंकि वहां रहते हुए उन्हें अनुशासन भौतिक वादी हैं और पदार्थ (Matter) सदैव आत्मा की कोई आवश्यकता नहीं होती और न ही उन्हें पर हावी होने का प्रयत्न करता है तथा आपकी बताने के लिए वहां कोई होता है। यह आलसीपन आत्मा इसके नियंत्रण में चली जाती है। परिणामस्वरूप नहीं है। सहजयोग अत्यन्त चुस्त दुरुस्त चीज है आप तन्द्रा-भाव में चले जाते हैं। तब कोई भी आप चुस्त लोग हैं। इन (महाराष्ट्र के) लोगों की व्यक्ति यदि आपको चुस्ती करने के लिए कहता है ओर देखें। वे कितने चुस्त हैं। प्रात: 5.30 बजे वे उठ जाते हैं और अपने कार्य करते हैं। आप देखें तो आप सोचते हैं कि आप पर रोब जमाया जा रहा है। यह सब विवेकहीनता है, जो मेरी समझ में नहीं कि वे किस प्रकार से आयोजन करते हैं। आप आती। अब वारेन कह रहे हैं कि वे और अधिक कल्पना भी नहीं कर सकते जितना वो आयोजन आयोजन नहीं करना चाहते। आपमें से कौन इस करते हैं। इन दूर दराज के स्थानों पर भी, इतनी कार्य को करना चाहेगा? जो लोग शिकायत कर रहे कठिन परिस्थितियों में भी, वे आयोजन कर रहे हैं। थे वे अपने हाथ उठाएं। इस कार्य को संभाल लें। और हम क्या कर रहे हैं? केवल सोच भर रहे हैं 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-30.txt चैतन्य सहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं B जुलाई एवं अगस्त 2003 29 कि हमने अनुबन्ध किया हुआ है और यात्री की इसकी कल्पना कर सकते हैं? वो रात को आपके लिए खाना बनाते हैं। कार्यक्रम के बाद में यहां आते तरह से हमें सभी चीज यहीं बैठे मिल जानी चाहिए। हैं और आपके लिए खाना बनाते हैं। जो लोग मेरे अब वारेन ने सेवानिवृत्ति ले ली है। उनके कार्य को कौन करना चाहेगा? मुझे देखने दें। जो लोग शिकायत साथ होते हैं वो इस बात को जानते हैं वो खाना बनाते हैं और यह सब लोग युवा लड़के हैं फिर भी कर रहे थे क्या मैं उन्हों को यह कार्य दे दूं? ये क्या हो रहा है? मेरी तो समझ में नहीं आता। एक प्रातः 5.30 बजे उठकर सारी चीजों का आयोजन है और बाकी सारे उसके करते हैं। उनकी ओर देखें। उनसे सीखें । गुणों में आदमी मजाक शुरू करता साथ चल पड़ते हैं। यह बात विल्कुल गलत है। ये आप लोग उनसे किसी भी प्रकार अच्छे नहीं हैं। कोई पर्यटन नहीं है। बेहतर होगा कि वायस चले यह बात आपको समझ लेनी चाहिए। आपमें अहं जाएं। आपने जो पैसा मुझे दिया है वह सब मैं लौटा और पराचेतना के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। आप दूंगी और आप वापस चले जाएं। यहां पर आप समझते हैं कि आप महान हैं। आप इतने महान नहीं सहजयोग सीखने के लिए आए हैं, कि चुस्त कैसे हैं। यह बात आपको मुझे स्पष्ट बतानी है यह अहं होना है। आपकी माँ इस उम्र में भी कितना कार्य आपको नीचे लाना होगा। भौतिक विकास ने आपको करती हैं? पूरी तरह नष्ट कर दिया है। यहां पर आप हजारों मैं 60 वर्ष की हो गई हूँ मैं कितना कार्य कर लोगों को हाथ उठाते हुए देखते हैं यहां के लोगों रही हूँ, इस चीज को देखें। मैं आपकी आदर्श हूँ या को देखें। क्या हम उस संस्कृति को पूरी तरह से महारानी ऐलिजाबेथ? कौन आपका आदर्श है? कहने भूल सकते हैं जिसने पश्चिमी मानव को नष्ट कर का अभिप्राय है कि आपको यह समझ में ही नहीं दिया है? आप लोग ही नींव के पत्थर हैं। आप क्या आता है कि आप यहां क्यों आएं हैं। एक व्यक्ति हैं? क्या आप सन्त नहीं हैं? क्या यह बात ठीक है मजाक शुरू करता दूसरा इसे चलाता है और आप नहीं है? एक सन्त किस प्रकार रहता है? रामदास सब इस तरह से बातें करने लगते हैं यह बिल्कुल स्वामी की ओर देखें। असंभव स्थिति है। इन (भारतीय) लोगों को मुझे क्या अब आप महसूस करते हैं कि आप एक बार भी कुछ बताना नहीं पड़ता। क्या आप महालक्ष्मी गए। ये एक पीठ है, कुण्डलिनी के बहुत 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-31.txt जुलाई एवं अगस्त 2003 चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 8 30 से पीठों में से एक। ये पीठ पूरे ब्रह्माण्ड में बने हुए अपनी आत्मा से और स्वयं को साधने से प्रेम हैं। क्या आपने ये बात समझी? आप लोग अपनी करते? सभी कुछ आप यू हीं छोड़कर चले गए। सुख-सुविधा के विषय में देख रहे हैं या अपनी चार कमरों को ताला नहीं लगाया और केवल एक आत्मा की देखभाल कर रहे हैं? आप क्या कर रहे लड़की वहां पर रखवाली के लिए थी। जरा देखें हैं? क्या आप यह बात समझ पाए कि मन्दिर इसी कि वह कितनी चुस्त है। जिस प्रकार से वह कार्य के लिए बना है? आपको यह बात समझ देखभाल करती है, दस अंग्रेज लड़कियां भी नहीं आई? अब मैं चाहती हूँ कि आप एक अन्य मन्दिर कर सकतीं। हर छोटी से छोटी चीज को वह जानती देखें और इसके पश्चात् एक अन्य। यह आसान है मैं केवल अंग्रेजों की बात नहीं कह रही, आप है। कृपा करके इस समस्या कार्य नहीं है। कोई भी पर्यटक इन मंदिरों में नहीं सब में एक सी समस्या गया है। वास्तव में किसी भी विदेशी को इन मंदिरों से मुक्ति पा लें तथा पश्चिम को भूल जाएं। आपने महान कार्य करने है। जहां तक हो सकता है। में जाने की आज्ञा न थी। आज आप क्योंकि सन्त आपकी देखभाल कर रही हूँ। आपको अपनी देखभाल हैं इसलिए आपको इसकी आज्ञा है। सुख-सुविधाओं की बात करना आदि-आदि। वहां पर आपको कौन खुद करनी है। जिस प्रकार आप चल रहे हैं वो मेरी से सुख मिलते हैं? मेरे विचार से तो पश्चिमी देश समझ में बिल्कुल नहीं आता। क्या है, अनुबंध है? अधिक बहुत अत्यन्त कष्ट-कर हैं। आत्मा का सुख तो वहाँ है ही जो लोग पहली बार आए हैं, वो तो नहीं। मुझे तो वहां अत्यन्त कष्टकर प्रतीत होता है। कष्टकर हैं, क्योंकि इससे पूर्व इन्होंने यह सब कभी । कहने से मेरा अभिप्राय है कि जो लोग हर आदमी शराब पी रहा है। हर आदमी मूर्खतापूर्ण नहीं देखा व्यवहार कर रहा है. सभी इतने भौतिकवादी हैं. वापिस जाना चाहते हैं वो जा सकते हैं। कल मैं इतने भौतिकतावादी भयंकर। परमात्मा के लिए अपने आपको पैसे लौटा दूंगी। आप वापिस चले जाएं। को बहुत बड़ी चीज न समझें। मैं आपको यह कहते राहुरी तो इससे भी खराब होगी। मानो पहली बार हुए नहीं सुनना चाहती कि कोई व्यक्ति आप पर आपको होटल मिला हो। आहा-हा-हा! मैं। नहीं रौब झाड़ रहा है या मर्यादाओं का उल्लंघन कर रहा जानती कि किस प्रकार आप को सुख की अनुभूति है। सहज का अर्थ आलस्य नहीं है। क्यों नहीं आप होगी आपको स्नान-गृह चाहिएं। अपने आपको 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-32.txt जुलाई एवं अगस्त 2003 चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 8 31 स्नान गृह से जोड़ लें और सर्वत्र स्नान घर को लिए लोगों ने इसको गलत समझा। परन्तु यह सब क्या हो घूमें। आप जानते हैं कि इंग्लैण्ड में मैं किस प्रकार रहा है? क्यों नहीं आप रोज प्रात: 5 बजे उठते? में रहती हूँ। वहां पर मेरा घर कैसा है और स्नान गृह आपसे कहीं अधिक कार्य करती हूँ। आप जानते हैं कैसे हैं। फिर भी मैंने कभी शिकायत नहीं की। इन कि आज यहां कौन से कार्यक्रम हैं। यहां पर पूजा है। आपको किसी के चक्र नहीं चलाने पड़़ते । क्या चीज़ों के विषय में मैंने कभी नहीं सोचा। कभी नहीं। मेरे लिए तो आत्मा ही सर्वोपरि है। अपने को बहुत आपको ऐसा करना पड़ता है? पर्वतों जैसी कुण्डलिनी कुछ न समझें। कृपा करें। यह लोग सभी चीज़ों का आपको नहीं उठानी पड़ती। क्या आपको उठानी है? हजारों वर्षों के बाद भी वहां पत्थर ही प्रबंध कर रहे हैं। यह पूजा के लिए सभी प्रबंध कर पड़ती पत्थर हैं। मुझे यह सब करना पड़ता है। मुझे अपने रहे हैं। सभी चीजों का प्रबंध हो रहा है उनकी ओर विषय में बताने की आवश्यकता नहीं है। इस देखें। ये कहीं हमें समस्या न समझें? कल आपको तुल्जापुर नामक स्थान पर जाना है। कार्यक्रम के बाद मुझे बुद्धि-जीवियों से बात करनी यह विठ्ठल का, विशुद्धि का बहुत बड़ा स्थान है है तत्पश्चात् संवाददाता सम्मेलन है। संवाददाता जिसे आपने देखना है। इसके लिए आपको तुल्जापुर सम्मेलन के पश्चात् 6 बजे एक बहुत बड़ी सभा है। जाना होगा। पश्चिम के लोग बेचैन हैं, यही कारण ये लोग सुख-सुविधाओं के अतिरिक्त कुछ बात है कि विट्ठल पश्चिम में प्रकट नहीं हुए। उन्हें भी नहीं करते। यह अपनी आत्मा को गुलाम बनाने के वहां अच्छा नहीं लगता। पत्थरों पर कौन मन्दिर अतिरिक्त कुछ भी नहीं। ऐसा करना आत्मा को बनाता, क्या ये लोग बना पाते? क्या आप सोचते हैं गुलाम बनाना है। आत्मा दास बन जाती है। आप इन चीजों से मुक्त हो जाएं। यह सब मूर्खता है। जन्म कि वो हनुमान को समझ लेते? इन रामदासजी को देखें। ये किस प्रकार रहते थे? शिवाजी जैसा व्यक्ति जन्मान्तरों से आप साधक हैं, सन्त हैं। इन चीजों से भी यहां रहा। शिवाजी यहां रहे। वो राजा थे कहने मुक्ति पा लें। इनसे पूर्णतः मुक्त हो जाएं। ये लोग से मेरा अभिप्राय है कि मैं तुम्हें किसी परीक्षा में अत्यन्त चुस्त हैं- अत्यन्त चुस्त। इनका मूलाधार नहीं डाल रही। आपको ठंड में नहीं सुलाना चाहती अव्वल दर्जे का है। आप इसे देखें तो सही। सुबह थी और न ही कोई कष्ट देना चाहती थी। आप सवेरे पांच बजे स्नान करके तैयार हो जाते हैं और 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-33.txt जुलाई एवं अगस्त 2003 32 चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 8 परन्तु ऐसे सभी सहजयोग से बाहर चले जायेंगे मेरी उसके बाद वो तैयार हैं। आप हर समय क्या सोचते 131 रहते हैं? आप आलसी हैं। आपको देखकर लोग इस बात को निश्चित जान लें कि ये सब बाहर हो मुझे बताते हैं कि आपमें से कुछ लोग नशा भी जायेंगे। आप लोगों को सहजयोग चाहिए या नहीं? यह मुख्य बात है। तब आपको सुख-सुविधाओं की करते हैं। यही कारण है कि उन्हें लगता है कि आप चिन्ता क्यों करनी है? आपमें से कुछ लोग इतने आलसी हैं। आपको बताने के लिए क्या बाकी है? आप दूर-दूर स्थानों से पहली बार यहां आए हैं। फ्रैंकफर्ट अपनी बस में भी नहीं चढ़ सकते। यह बात उनकी के लोग बिल्कुल ठीक हैं, टोरंटो के लोग बिल्कुल समझ में नहीं आती। पांच मिनट में वो सारी चीज़ों ठीक हैं। मेरा कहने का अभिप्राय यह है कि सभी का आयोजन कर लेते हैं। पांच मिनट में। क्या आप को बलिदान देना होगा तो क्यों नहीं अन्य लोग भी इसकी कल्पना कर सकते हैं? कार्यक्रम के बाद ऐसा ही करते? आप कृपा करके मुझे प्रसन्न करने का प्रयत्न करें। हम यहीं तक सीमित नहीं होना वह वहां आते हैं। खाना पकाते हैं और उस समय चाहते। अब वारेन यह कार्य त्यागना चाहते हैं। हर मैं भी वहां उपस्थित थी। आप बहुत अधिक मत सोचें। बहुत अधिक आदमी कहने लगता है कि वह बहुत रौब देते हैं। सोचना आपको आलसी प्रवृत्ति बना देता है। बस परन्तु क्यों? आप क्या हैं? इससे बेहतर कुछ अन्य हैं? पाने की योग्यता आपमें नहीं है। क्या आप चुस्त मात्र इतना ही। बहुत अधिक सोचना अच्छा नहीं है। सोचना भौतिकतावाद की ही एक शैली है। यह पत्थरों की तरह से आपके मूलाधार लटके हुए है। सूक्ष्म भौतिकतावाद है। सोचने में क्या रखा है? हर समय आप सोचते रहते हैं सोचते रहते हैं। क्या? अपने मूलाधारों को साफ करें। निर्विचार अवस्था में चले जाएं। सोचने की प्रवृत्ति से सहजयोग में मुझे अपना आदर्श बनाएं। मेरी ओर मुक्त हो जाएं। यहां पर एक भूत है, एक उपद्रवी व्यक्ति। मैं उन सबको अच्छी तरह जानती हूँ। मैं देखें। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि कुछ लोग नहीं जानती कि किस लिए यहां है! और ये लोग मुझ पर दया करते हैं। मैं कठोर परिश्रम कर रही हूँ लोगों से भी परिचय करवाते हैं। यह सब इस बात को आप जानते हैं। अब आपको आगे जाना दूसरे है। हम इंग्लैंड जाएंगे। अब सब लोग चले जायेंगे। चलता रहता है, चलता रहता है, चलता रहता है। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-34.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं ৪ जुलाई एवं अगस्त 2003 33 परन्तु मेरे बारे में क्या है? मैं तो काम करती रहती बहुत शानदार है। क्या शानदार है? यही इसका सूक्ष्म हूँ, करती रहती हूँ, करती रहती हूँ। इसका एकमात्र पक्ष है। दृष्य की शान्ति को महसूस करने के लिए होगा। सूक्ष्मता कारण यह है कि मेरा मूलाधार बहुत अच्छा है। आपको सूक्ष्म व्यक्ति बनना को महसूस आज्ञा अच्छी है, सहस्त्रार शानदार है। मैं न बहुत करें। इसके पीछे छिपे संगीत और सुगन्ध को अधिक बोलती हूँ और न सोचती हूँ। आप भी न महसूस करें। मैं यदि आपकी आदर्श हूँ तो मैं तो बोलें तो बेहतर होगा। मेरे विचार से एक दूसरे से अत्यन्त शान्ति महसूस करती हूँ। स्पष्ट बात यदि बात करना बन्द कर दें तो बेहतर होगा। यह सर्वोत्तम बोलूं तो मैं नहीं जानती कि कब मैं इस स्थिति से उपाय है जो कार्यान्वित होगा। सभी प्रकार की व्यर्थ निकलूगी। मैं इसे बनवास कहती हूँ। बनवास यानि की बातें आप बोलते हैं। आपके पास कोई भी महान जंगल में रहना। मुझे लगता है कि यह उपद्रवी एवं उत्कृष्ट बात कहने को नहीं है। परमात्मा के निरंकुश तथा अहंकारी, भयानक लोगों का जंगल है, विषय में बात करें। आत्मा के विषय में बात करें। उन लोगों का जो परस्पर बातचीत करना भी नहीं आपके अन्दर शान्ति होनी चाहिए। आप यदि शान्त जानते। मेरे विचार से यह बनवास है जो बारह वर्ष होंगे तो आनन्द उठाएंगे। पूरा वातारण शान्त है। स्थान के बाद समाप्त होता है। वास्तविक बनवास। परन्तु की शान्ति आप क्यों नहीं देखते। अत्यन्त सुख अब मुझे आप लोगों से कुछ आशा होती है। अब सुविधा वाले स्थान पर भी यह शान्ति उपलब्ध नहीं इस तरह की बात नहीं करनी है। अपने मस्तिष्क होती। वहां पर बस शान्ति नहीं होती। इस शान्ति को बिल्कुल बन्द कर लें । कोई भी इस प्रकार की बात अनुभव करें। आप सन्त हैं, अपनी शान्ति का नहीं करेगा। यह बातें परमात्मा विरोधी हैं। माया को अनुभव करें। आपके हृदय शान्ति को अनुभव कर देखें। व्यक्तिगत बन जाएं अर्थात ध्यान में बैठ जाएं, सकते हैं। वैभव ने आपको नष्ट कर दिया है। यह बातचीत न करें। ध्यान में स्थापित हो जाएं। आप अभिशाप है। यह अभिशाप है। अतः स्थान की लोग आयोजन आदि खोजने में लगे रहते हैं, मेरी तो शान्ति को महसूस करें। यह अत्यन्त शान्त स्थान है। समझ में नहीं आता कि मामला क्या है। स्वयं को अपने अन्दर शान्ति को महसूस करें। हृदय में इन चीज़ों में से निकाल लें। इससे पूरी तरह से कितनी शान्ति है? आप लोग कहते हैं अच्छा है, निकल आएं। यह बेवकूफी अब और नहीं होनी 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-35.txt बुलाई एवं अगस्त 2003 चैतन्् लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं ৪ 34 चाहिए। अगले वर्ष से ऐसे लोगों को यहां आना भी आया हूँ। अपने सत्य स्वभाव को देखें और नहीं चाहिए। मेरी प्रार्थना है कि जिन लोगों ने समझें कि मैं एक साधक हूँ। आप अन्य लोगों की शिकायत की वो यहां न आएं। जेनी को देखें। वह तरह से नहीं हैं। परन्तु आपका पुराना स्वभाव वुद्ध है । यहां आने के लिए उसने अपना सभी कुछ आपके मस्तिष्क में अभी भी बना हुआ है। अभी भी आप इसी नजरिबे से सोचते हैं। यह बात बेच दिया। जब भी मैं उससे पूछती हूँ तो वह कहती आपको समझ लेनी चाहिए कि आयोजन करने वाले है कि मैं प्रसन्न नहीं हूँ। आप किसी भी चीज का आनन्द नहीं उठा पाएंगे क्योंकि आप सूक्ष्म नहीं हैं। लोगों को आपने कभी भी चुनौती नहीं देनी। इससे सूक्ष्म स्थानों का भी आनन्द आप नहीं उठा पाते मुझे दुख पहुँचता है। कभी ऐसा न करें। वो कुछ कार्य तो कर रहा है। आप तो कुछ नहीं कर रहे हैं? आपका ध्यान कहां है? आपका चित्त कहां है? क्या यह अन्दर है? क्या यह आपके अन्दर है? मुझ दूसरे व्यक्ति की आलोचना करने का आपको क्या पर विश्वास करें कि जिन स्थानों पर आप आए हैं अधिकार है? आप कौन सा कार्य कर रहे हैं? क्या यह स्थान अत्यन्त शान्तिदायक हैं। परन्तु आपके आप किसी चीज के लिए जिम्मेदार हैं? अपने मस्तिष्क आपको यह बात स्वीकार करने की आज्ञा कपड़ों तक की जिम्मेदारी क्या आप पर है? वहीं व्यक्ति तो सभी कार्य कर रहा है। उसी की आलोचना नहीं देंगे। यह मस्तिष्क, यह भयानक अहंकार कभी करना आपको अच्छा लगता है। यह तो ऐसा हुआ भी इसका आनन्द उठाने की आज्ञा नहीं देगा। अत: आप इससे मुक्ति पा लें। ठीक है? कृपा करके ऐसा जैसे कोई ऐरा- गैरा नत्थू खैरा मेरी आलोचना करने करें। मैं चाहती हूँ कि आप आनन्द उठाएं। आनन्द लगे कि तुम ऐसा क्यों नहीं करती? तुम वैसा क्यों उठाने के लिए ही मैं आपको यहां लाई हूँ। किसी नहीं करतीं? यह बिल्कुल वैसी ही स्थिति है। आप की आलोचना न करें। किसी प्रकार की सुख कोई कार्य नहीं कर रहे। बड़े आराम से अन्य लोगों सुविधा के लालच से मुक्ति पा लें। आपको की आलोचना कर रहे हैं । क्यों? किसलिए? आप पृथ्वी पर सोना होगा। पृथ्वी पर सोना बहुत सोचते हैं कि आपने अपना खर्चा दे दिया है। परन्तु अच्छा है। अपनी आत्मा को महसूस करें। देखें आपने कुछ अधिक पैसा भी नहीं दिया। आप जानते कि मैं साधक हूँ और साधना के लिए यहां हैं कि आपकी यात्रा के लिए मैं कितना पैसा खर्चती 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-36.txt जुलाई एवं अगस्त 2003 चतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एव 8 35 हूँ और कितना अधिक सामान आप लेकर आते हैं? मैंने कितना पैसा खर्चा? तो आप इस नजरिये से इन स्थानों पर कितनी बड़ी समस्याएं हैं? पैसा सोचना बन्द कर दें। क्या आप मेरा पैसा मुझे लौटा खर्चकर के भी आपको कुछ नहीं मिलता। मैं देंगे? आपमें से कोई भी? तो क्यों इस प्रकार की आपको सुविधाएं देने के लिए यहां नहीं आई हूँ। मूर्खतापूर्ण बातें करनी हैं। मानो ये पर्यटन विभाग यह बात आप जान लें। मैंने स्पष्ट शब्दों में आपको कार्य कर रहा हो, जिसे आपने पैसा दिया है और बता दिया था। मैंने इन्हें कहा भी था कि 80 से अब आप इसमें दोष निकाल रहे हैं। यह गन्दी ज्यादा लोग न ले जाएं। बड़ी असंभव स्थिति है। आदतें बिल्कुल त्याग दें। चाहे कोई आपको पीट भी यहां तो बसे भी नहीं मिलतीं। यह राज्य परिवहन दे तो भी आपने शिकायत नहीं करनी। चाहे पिटाई हो जाए फिर भी इस अवस्था में बने रहें। पिटाई भी की बसें हैं। बड़ी कठिनाई से उन्होंने दो बसें दीं। उनके अपने ही यात्री होते हैं। उन्हें बहुत बलिदान कई बार अच्छी होती है। यह बहुत सी समस्याओं करना पड़ता है। इस बार में यह यात्रा करना हो नहीं का निदान करती है। यदि कोई अन्य आपकी पिटाई चाहती थी। आप लोगों के साथ मैं आना ही नहीं न करें तो स्वयं अपनी पिटाई करें। यही सर्वोत्तम चाहती थी मैंने आपको बताया था कि कभी-कभी मार्ग है। आप सभी लोग ऐसे नहीं हैं। आपमें से बाम आपको पैसा खर्च करना होगा, कभी कम और अधिकतर लोग बहुत अच्छे हैं और मैं जानती हूं कि कभी काफी ज्यादा। जितना हम सोचते हैं उससे आप आनन्द ले रहे हैं। कुछ थोड़े से लोग अधिक। कई बार कम पैसा खर्च होता है। जो भी भूतबाधित हैं। वही सारी समस्या खड़ी कर रहे हैं । पैसा बचेगा वह सहजयोग को चला जाएगा। मुझे वह यह भूतबाधित स्वभाव अन्य लोगों को भी दे आपका पैसा नहीं चाहिए। मैं तो अपना बहुत सा रहे हैं। उनसे सावधान रहें। ऐसे लोगों को बाहर धन खर्च कर चुकी हूँ। मेरा बैंक खाली हो गया है । निकाल दें। आप ऐसा कुछ न करें। यह सब बन्द अत: इस प्रकार की बातें क्यों करनी हैं? आप यह कर दें। ठीक हैं? हममें आत्मानुशासन होना चाहिए। इन लोगों की ओर देखें। इन्हें कोई समस्या नहीं नहीं सोचते कि माँ कितना खर्च करती हैं। यह बात आप कभी नहीं सोचते। क्या आप नहीं जानते हैं कि है। बिल्कुल कोई समस्या नहीं है। इनमें इतना प्रेम है और इतनी आयोजन शक्ति है। तीन बजे यह सब पुर्तगाल में क्या हुआ। आप जानते हैं कि इंग्लैण्ड में 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-37.txt जुलाई एवं अगस्त 2003 36 चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं ৪ साथ शराबियों को ले आई हूँ जो अपने आप अपनी यहां मिल रहे थे सभा खत्म होने के बाद यह वापिस आए और फिर बारह घंटे के लिए काम में बस में चढ़ उतर नहीं सकते तो उन्हें आघात लगेगा। जुट गए। यह इंजीनियर हैं, डाक्टर हैं। इनमें से सभी में यह नहीं कर सकता, मैं वो नहीं कर सकता! कम से कम स्नातक हैं। कम से कम स्नातक। यह आपको सभी कुछ करना होगा यह वचन आपको बात सत्य है कि इंग्लैण्ड में सफाई कर्मचारी को भी देना है कि सभी कार्य हम स्वयं करेंगे। हम सभी. इन लोगों से अधिक पैसा मिलता है। परन्तु इससे यहां तक कि मैं भी ठीक है? परमात्मा आपको मानने की कोई क्या? क्या वो पैसा ये लोग अपने स्नान गृहों में ले धन्य करें। अत: इसके बारे में बुरा जाएंगे। यह सब व्यर्थ के विचार आपको त्यागने बात नहीं, आपमें से अधिकतर लोग ठीक हैं। होंगे। यह दुनिया अलग है। वह दुनिया अलग है। अधिकतर लोग आनन्द ले रहे हैं। परन्तु अभी भी आपको स्वयं को इस दुनिया में ठीक से स्थापित कुछ मूर्ख लोग हैं, उनकी बात आप न सुनें। सुने ही नहीं। आप यदि ऐसे व्यक्ति की बात नहीं सुनेंगे तो, करना होगा। मैं आपको बता रही हूँ कि आपका व्यवहार मेरे आपको हैरानी होगी, कि वह व्यक्ति सुधरेंगे। इस लिए कष्टकर है। एक भी व्यक्ति यदि ऐसा होता है प्रकार आप उसका हित करेंगे। किसी को भी इस तो उससे भी मुझे कष्ट होता है। ऐसी बात करने तरह से बात नहीं करनी चाहिए। किसी को भी वाले किसी की न सुनें। उसका मुंह बन्द कर दें। नहीं। यह मूर्खता है। परमात्मा आपको आशीर्वादित आपमें से अधिकतर बहुत अच्छे हैं। थोडे से लोग करें। इसी चुस्ती के साथ आइये पूजा के लिए बैठें। ही अजीबो-गरीब हैं। उनका मुंह बन्द कर दें। यही सहजयोग में आपको चुस्त होना है, आलसी नहीं। 'सहज' का अर्थ क्या है? आलसी लोग होना? अगर लोग भूत है। प्रात:काल जल्दी उठें, ध्यान धारण करें, बसों में बैठ जाएं। आप यहां एक महीने के हम आलसी प्रवृत्ति हैं ता किस प्रकार पूरे विश्व का लिए यात्रा पर हैं। स्वयं को चुस्त करें। ठीक है? तो कार्य करेंगे? पश्चिम में आपको जितने पर्वत उठाने हैं उनकी कल्पना करें! उनके विषय में सोचे। हम इस बात का वचन दें। अब आगे राहुरी तो एक गांव है। वहां पर ग्रामीण तो यहीं थक गए हैं! हा! वहां जाकर आप क्या लोग रहते हैं। जब उन्हें पता लगेगा कि मैं अपने करेंगे? यह कार्य तो बहुत बड़ा है। मेरी समझ में 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-38.txt चैतन्य लहरी खण्ड XV खण्ड :7 एवं 8 जुलाई एवं अगस्त 2003 37 मुझे इसकी जरूरत नहीं है। मुझे जीप की आवश्यकता नहीं आता कि इसकी तुलना किससे करूं। हिपोपोटोमस को नकेल डालने जितना कठिन! भयानक! बेहतर है और मुझे पांच जीपें मिल गई हैं। किसी अन्य के होगा कि आप स्वयं को चुस्त दुरुस्त करें। अन्यथा पास यदि पैसा आ जाए तो वह दिखावा करने के हो सकता है कि अगले वर्ष मैं आपको लाऊं ही लिए तुरन्त कार ले आएगा। यह न समझेगा कि कार नहीं। मैं इतनी परेशान हो चुकी हूँ। यही वक्त है । क्यों खरीदनी है। मैं तो खेतों में काम कर रहा हूँ। संभवत: अंतिम अवसर है। मैंने जब अंतिम अवसर यह व्यक्ति करोड़ोपति होते हुए भी बसों में जाता है और सारा कार्य करता है। क्या आपने इसके व्यापार कहा तो बहुत सी आवाजें आई-नहीं नहीं श्रीमाताज़ी। क्या आपको वास्तव में याद है कि मेरी इच्छा तो को देखा है? आप जानते हैं इनके पास कितने कमरे कत यह थी कि आप कोई भी न आएं। यह सिरदर्दी है। हैं यह कंजूस नहीं है। बहुत उदार है। किस प्रकार आप अभी तक थैला उठाए घुम रहे हैं। इसे नीचे इनकी पत्नी कार्य कर रही है, आप देखें। घर में रख दें। इनकी ओर देखें। इनका अपना घर है, पत्नी इनके पास सैंकड़ों रत्न होंगे। परन्तु यह कभी भी है, बच्चे हैं। सभी कुछ छोड़ दिया है इन्होंने। इनकी इनका दिखावा नहीं करती। कहने का अभिप्राय यह है कि आप इनसे सीखें। आपको भी अत्यन्त ओर देखें। ये नगर निगम में बहुत बड़े इंजीनियर हैं। बड़े-बड़े पुल बनाते हैं। इनकी ओर देखें। इनमें कोई अत्यन्त चुस्त होना होगा। ये छोटे-छोटे तुम्बुओं में री अहंकार है! कहीं कोई अहंकार इनमें दिखाई देता रहते हैं फिर भी सुबह-सुबह नदी पर जाकर स्नान है? इन से सीखें। यदि मेरे से भी नहीं सीखते तो कर लेते हैं और तैयार हो जाते हैं। सहजयोग में इनसे सीखें। जो व्यक्ति हमारे कार्यक्रमों का आयोजन चुस्ती सीखना बहुत आवश्यक है। रहने की शैली का अत्यन्त चुस्त दुरुस्त होनी चाहिए। यह दो चीजें कर रहा है वह करोड़पति है। क्या आप इस बात को जानते हैं? वह करोड़ोपति है। जो व्यक्ति हमें आपको मुझे देनी होंगी अन्यथा यह लोग सोचेंगे कि आपमें से आधे लोग बीमार हैं। ठीक है? अपने फार्म हाउस पर ले गया था वह भी करोड़ोपति है। क्या आपने इनमें कोई दोष देखा? मेरे नाती-नातिने सोचें मत। स्वयं को निर्विचारिता में स्थापित करें। सात भी करोड़ोपति परिवार से हैं, उनकी ओर देखें ऐसा आप सभी लोग मुझे देखें, अपने सिर झुका ले । नहीं है। मेरे पास कार नहीं है परन्तु इसलिए कि ठीक है, ठीक है। आष अपने दोषों से और मूर्खताओं या 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-39.txt चतन् लहरी खणढ -XV सपड :7 एवं 8 जुलाई एवं स्त 2003 38 पात कः प रा. कमा ा] से छुटकारा पा चुके हैं, अहंकार से छुटकारा पा चुके हों। ऐसा करने की शक्ति आपमें है। हैं? आपमें यह बहुत बड़ी समस्या है। अहंकार इस स्थान को देखे। प्राकृतिक दृश्यों की शांति आपकी बहुत बड़ी समस्या है। कभी आपको लगे को महसूस करें। यहां के मानव की शांति को ॥ श कि आप पर रोब जमाया जा रहा है तो इसे स्वीकार महसूस करें। सभी ने यह शांति महसूस करनी है। कु कर लें। किसी को न बतायें कि वह आक्रामक है। इन चुस्त नन्हें बच्चों कि ओर देखें। हमें भी इन्हीं क्ि ड कपि यह तामसिक प्रवृत्ति है। हर आदमी दूसरे का नाम की तरह से बनना है। यह कितने प्रसन्नचित्त हैं? रख रहा है। सहजयोग में आक्रामक या तामसिक ठीक है? परमात्मा आपको धन्य करें। अत: खिन्न IF करोई नहीं रहता। आप जब आत्मा का आनन्द लेने दिखाई न दें। मेरी समझ में नहीं आती कि आप लगे तो दूसरे विश्व में पहुंच जाएंगे। उस जाहिल इतने दुखी क्यों दिखाई देते हैं? यह सोचते हैं कि संसार को भूल जाएं जिसमें आप थे। आप सभी अपना काम ठीक से नहीं कर रहे हैं या इन्हें खाना साधक हैं। मैं आपको इस देश में लेकर आई हूँ कि पसंद नहीं है। आपका दुखी और थके-थके प्रतीत आप देखें कि भौतिकवाद क्या है! इसमें लिप्त होने होना इनकी समझ नहीं आता। के लिए नहीं। इससे बाहर निकलें, इसमें लिप्त न परमात्मा आपको धन्य करें। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-40.txt क्ाट आ कन चेतन्य सहरी खण्ड -४V खण्ड :7 एवं 8 जुलाई एवं अगस्त 2003 39 ल अं ॐ ्ि तेपश. े ह ॐं क श्रा. कु श्रही १ पुी मु मो हु ि कूठ नि क पड । २० १ अ सीন 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-41.txt मकर संक्रान्ति पूजा 14,01.1983 भारत में हम सूर्य की दिशा, परिक्रमा पथ, वाला रोग है। सर्वप्रथम यह शरीर में गर्मी उत्पन्न परिवर्तन का त्यौहार मनाया करते थे। इस समय पर करता है तथा इसका दूसरा अर्थ यह है कि कर्क सूर्य मकर रेखा से कर्क रेखा के क्षेत्र में प्रवेश करता (Cancer) माँ के स्थान पर है। अत: जब व्यक्ति हैं। इसके कारण इस देश में गर्मी बढ़ने लगती है। माँ के प्रति पाप करने लगता है तो कर्क रोग का आने वाली इस गर्मी का मुकाबला करने की तैयारी आरंभ हो जाता है और मेरे अवतरण के पश्चात तो यह रोग बहुत ही प्रचलित हो गया हैं क्योंकि माँ के के लिए हम थोड़ा सा गुड़ और तिल या चीनी और तिल घर के सभी लोगों को देते हैं और कहते हैं कि प्रति पाप आधुनिक युग का सबसे बड़ा पाप है। हमने यह मीठा आपको इसलिए दिया है ताकि आप अत: व्यक्ति को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि भी मीठा बोलें। गर्मी के कारण व्यक्ति में बेचैनी माँ के प्रति पाप करने से कर्क रोग तक हो सकता होती है। जब अन्दर गर्मी हो तो व्यक्ति परस्पर कटु है। इसका आरंभ गणेश तत्व से होता है। बहुत से बोलने लगता है। इस गर्मी को शान्त करने के लिए और जिगर को शान्त करने के लिए चीनी या गुड़ लोग जिन्हें श्रीगणेश की समस्या है, अन्य चीजों में दिया जाता है। यह आरामदेह तेल का कार्य करता चाहे वे बहुत अच्छे हों परन्तु यदि बाई ओर के है। यह प्रतीक मात्र है। यह प्रतीकात्मक कार्य है जो सम्बन्ध की समस्या बनी हुई है तो उन्हें बहुत 14 जनवरी को मकर सक्रान्ति के दिन किया जाता सावधान रहना चाहिए। आपके अस्तित्व में यह छेद है। यह मकर राशि का परिवर्तन है और यह सम है। इस समस्या का समाधान करने के लिए आश्चर्य की बात है कि प्राचीन काल में भारत में आप अपने अन्दर गणेश तत्व की समस्या का कैंसर को कर्क कहा जाता था और आप भी इसे समाधान कर लें जिसकी वजह से आप विकृत हुए बहुत समय पूर्व से कंसर कहते हैं। कैंसर की हैं। ये सारी विकृतियां अपने अन्दर उसी तरह से बीमारी को भी कैंसर कहा जाता है। इस रोग को सोख ली जानी चाहिएं जैसे कछुआ अपने सारे यही नाम दिया गया है। भारतीय भाषा में भी इसे अवयवों को अपने अन्दर खींच लेता है। इसी प्रकार से आपने भी इन सारी विकृतियों को सोखना है। कर्क रोग कहा जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि यह गर्मी उत्पन्न करने दाई विशुद्धि से इन पर काबू पाने का प्रयत्न नहीं 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-42.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV खपड : 7 एवं 8 जुलाई एवं अगस्त 2003 करना-यह कहकर कि आप महान हैं, आप यह हैं, वे सहजयोग विशेषज्ञ बन जाते हैं और फिर उनका आप वो हैं। कुछ लोग ऐसे भी देखे जाते हैं जो पतन हो जाता है। अत: जो लोग स्वयं को बहुत इसके विषय में दिखावा करते हैं । बड़ी बड़ी प्रतीत महान सहजयोगी समझ लेते हैं उन्हें यह ज्ञात परन्तु मैं देखती हूँ कि होना चाहिए कि उनके अपने अन्दर कोई गम्भीर होने वाली बातें कहते हैं। अन्ततः उन्हें बाएं मूलाधार की समस्या बनी हुई है कमी है। पहली बात तो यह है कि सभी को सामूहिक रूप से उन्नत होना है। कोई भी दिखावा और यह अत्यन्त गंभीर बात है। अत्यन्त गम्भीर। न करने का प्रयत्न करें। मैं जानती हूँ कि कौन कहां | अत: स्वयं को धोखा न दें। जिन लोगों को बाएं मूलाधार की समस्या है उन्हें अत्यन्त सावधान रहना है ऐसे लोगो के प्रति न तो आपको ईर्ष्या करनी है। उन्हें किसी भी प्रकार के अतिचेतन (Supra चाहिए और न ही उनके प्रति कोई सम्मोहन होना Concious) आचरण या बातचीत के प्रलोभन में चाहिए। ये बात समझ लें कि आपको वास्तविकता नहीं फंसना। पूर्ण समर्पण द्वारा इसे नियंत्रित करें। में रहना है। कहें, "में कुछ नहीं जानता"। पहला मन्त्र यह है अतः बाएं मूलाधार की समस्या अत्यन्त गम्भीर कि "श्रीमाताजी मैं कुछ नहीं जानता " समर्पण है। यह संक्रामक भी हो सकता है और व्यक्ति को अपनी गिरफ्त में भी ले सकता है। पश्चिमी देशों के पूर्वक माँ को देखें। श्री गणेश को देखने का प्रयलन सहजयोगियों में सहजयोग अत्यन्त संवेदनशील विषय करें, वे कभी कोई दिखावा नहीं करते। वे तो केवल समर्पण करते हैं। "मैं कुछ नहीं जानता। श्रीमाताजी है। केवल अन्तर्विरोध के कारण बाएं मूलाधार की आदिशंकराचार्य की तरह से मैं कुछ नहीं जाता। समस्या है। अत: सावधान रहें। अपने चित्त को शुद्ध जो लोग ताक्किकतापूर्वक या मस्तिष्क के माध्यम से रखें विकृतियों को दूर बनाए रखें। अपने चक्रों की अपनी अभिव्यक्ति करने का प्रयत्न करते हैं वो स्थितियों को ठीक रखें। चक्रों की देखभाल के जानते हैं कि इस नजरिये से आप दिव्य हैं। क्योंकि पश्चात् ही किसी चीज पर बहस करनी सर्वोत्तम है । आपको अपनी देखभाल करनी होगी। खांस कौन क्षतिपूर्ण करने का एक यही मार्ग है, अत: सावधान रहें। मैं यह बात आप सबको बता रही हूँ। मैंने देखा रहा है? आपमें जरूर कोई खराबी है। आप ठीक से है कि पश्चिमी देशों में ये आम बात है। अचानक अपना चित्त नहीं दे रहे हैं। आपको अपनी देखभाल প 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-43.txt जुलाई एवं अगस्त 2003 42 चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 8 करनी होगी। सुबह शाम सोलह बार 'अल्लाह हू हैं। ये कहना कि बहुत अधिक धूल थी आदि अकबर' कहना होगा। अपने को परखें। गले को आदि। तो आप स्वयं को इसका आदी बनाएं। यह विपरीत आप मेरे प्रवचनों के हानि पहुँचाने वाली चीजों से बचने का प्रयत्न करें। संभव है। इसके गरारे करें। कभी कभी तो लोगों को इस समस्या पर विरोध में कार्य कर रहे हैं। आप संत हैं संतों की भी गर्व होता है। जिस प्रकार वे कभी कभी आचरण तरह से व्यवहार करें। यह अत्यन्त आवश्यक है। करते हैं उस पर मुझे हैरानी होती है! व्यक्ति को अपनी देखभाल करें। क्या किसी भारतीय सहजय लज्जा आनी चाहिए। अत: कृपया अपने गले का को आपने इस प्रकार खांसते हुए देखा है? नहीं आप ध्यान रखें। मुझे परेशान न करें। मैंने आप लोगों से अपनी देखभाल नहीं करते। अवश्य अपनी देखभाल कहीं अधिक यात्राएं की हैं, इस बात को आप करें। आप अपने हाथों को भी बहुत अधिक चलाते हैं। हर समय ऐसा करते हैं। ऐसा कुछ न करें। अपने जानते हैं। मैं बहुत से कष्टों से गुजरी हूँ और इसके अतिरिक्त मैं बहुत देर से सोती हूँ और जल्दी उठती हाथों को सीधा रखें। सम्मान करें अपने हाथों को ा हूँ। ये बात भी आप जानते हैं। आपकोे गले यदि स्थिर करें। हर समय कुसमुसाना, अपने हाथों को ठीक नहीं हैं तो कृपा करके इनकी देखभाल करें। पटकना भी अच्छा नहीं है। एक बात हमने समझनी है कि हमें सहजयोग में उतरना है। इसे गम्भीरतापूर्वक कोई कमी यदि है तो ये क्या है। कुछ भूत बैठे हुए हैं। क्या ऐसा नहीं है? क्यों ये बाहर नहीं निकल कार्यान्वित करें । इसे कार्यान्वित करें। बेवकफी करने रहे? बेहतर होगा कि आप धूनी लें या कुछ और का, स्वयं से नाराज होने का कोई लाभ नहीं। हर करें। ऐसा करना बहुत आवश्यक है। आप ऐसे समय 'मैं ऐसा हूँ, मैं वैसा हूँ' कहने का भी कोई किस प्रकार हो सकते हैं? कैसे आपको भूत पकड़ लाभ नहीं। 'मैं महसूस कर सकता हॅँ।' ये सब सकते हैं? हर समय खांसते रहते हैं । इसलिए मैंने मूर्खता है। पराचेतन मूर्खता चले जा रही है । आपको धुनी दी और यह सब समाप्त हो गया मैंने सावधान हो जाएं। अपनी बेवकूफियों से अन्य लोगों आपसे कहीं अधिक कष्ट उठाया, कहीं अधिक को प्रभावित करने का प्रयत्न न करें। मैं कुछ और भी आपको बताना चाहूँगी। रुस्तम! कष्ट की स्थिति से गुजरी क्योंकि मैं आपकी कुण्डलिनी उठा रही हूँ। इस बात को आप जानते क्या आपने कहा है कि सहजयोग जानने के लिए 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-44.txt जुलाई एवं अगस्त 2003 43 चैतन्य लहरी खुण्ड -XV ख़ण्ड : 7 एवं 8 संस्कृत सीखनी आवश्यक है। बिल्कुल भी नहीं। ताकि श्री सरस्वती आपको अपनी खोई हुई शक्ति प्रदान करें, वो शक्ति जो कि समाप्त हो चुकी है ऐसा कहना बिल्कुल गलत है। कृपया यह बात समझे कि ऐसा करने से एक बार फिर मानसिक और अब आप उसे अधिक खर्च न करें। अपनी गतिविधि आरंभ हो जाए तो कृपया ऐसा करना बन्द बाई ओर का उपयोग करें। अपनी माँ श्रीमाताजी' कर दें। क्या मैंने संस्कृत सीखने के लिए कहा है? के प्रति समर्पित हों। अच्छी माताएं बनें. अच्छी इसमें क्या है। यह सब उधार लिया हुआ है। क्या बेटिया बने। समर्पण ही एकमात्र मार्ग है। सहजयोग हुआ यदि ये आदिशंकराचार्य से लिया हुआ है के विषय में बहुत अधिक न सोचें। सहजयोग के आपका अपना नजरिया क्या हैं? आपकी अपनी बारे में चक चक - चक चक बातें करना उचित भावना क्या है? क्यों अन्य लोगों से उधार लेना है? नहीं है। ऐसा करने वाले लोग किसी भी प्रकार से अन्य लोगों से उधार लेने की अपेक्षा आप अपनी उन्नत नहीं हो पाते मैं उन्हें जानती हूँ, मैं सभी %3D भावनाएं अपनी गहनता, अपने स्रोत प्राप्त करें। जानती हूँ। सहजयोग के विषय में बहुत अधिक संस्कृत क्यों आवश्यक है। इसकी कोई आवश्यकता सोचने वाले लोगों को भी मैं जानती हूँ। मैं उन्हें नहीं है। चाहें आप शंकराचार्य के विषय में थोड़ा सा बहुत अधिक जानती हूँ। वे मेरे विषय में कुछ नहीं ज्ञान प्राप्त करें परन्तु संस्कृत के विषय में नहीं। इन जानते। मैं उनके चेहरों से जानती हूँ, चैतन्य लहरियों के विषय में भी मैं जानती हूँ विकास के विषय में चालाकियों में न फंसे। नाम आदि लेना बन्द कर दें। कृपा करके यह सब बन्द कर दें। अन्यथा आप भी में जानती हूँ। संस्कृत का ज्ञान प्राप्त करने की अतिचेतन (Supraconscious) में चले जाएंगे। बिल्कुल आवश्यकता नहीं है। अपने प्रेम और पावन यह बात में आपको बता रही हूँ। ऐसा बिल्कुल न सूझबूझ के माध्यम से अपनी माँ (श्रीमाताजी) को करें। ये सारी मानसिक गतिविधियां आप जानते हैं समझना आवश्यक है। ज्ञान की खोज में दौडना क्योंकि बाई ओर की पकड़ ही आपकी मुख्य आपको भटका देगा। इस प्रकार के कार्य करने के आप पहले से ही आदी हैं। अब आप संस्कृत का समस्या हैं। कल वो दिन है जब आपने निर्णय करना है। कल के दिन आपने सूर्य की पूजा करनी है। पूर्ण ज्ञान पाना चाहते हैं। सभी चीजों का पूर्ण ज्ञान के दिन हम सरस्वती की भी पूजा करते हैं आप पाना चाहते हैं, वेदों का पूर्ण ज्ञान पाना चाहते कल 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-45.txt जुलाई एव अगस्त 2003 44 चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड: 7 एव 8 हैं। इस देश में ऐसे बहुत से लोग हैं जो वेदों के यह मार्ग नहीं है। कहने से मेरा अभिप्राय यह है कि रर रे मैं नहीं चाहती कि आप ऐसी चीजों के पीछे दौड़ें या ज्ञाता हैं। वे सब मेरे लिए बेकार हैं, मेरे लिए किसी काम के नहीं हैं। आओ यह सब चीजें भूल जाएं। अपने उत्थान या समर्पण के मार्ग से भटकें। समर्पण एवं उत्थान अधिक महत्वपूर्ण है। मस्तिष्क के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने की चालाकी शंकराचार्य ने जो कुछ भी कहा था उसका में न फंसे। हृदय के माध्यम से समझें और यही अनुवाद हो चुका है। आप यदि इसे देखें तो उन्होंने कारण है कि चेतना मूल में है। बायां मूलाधार हृदय है। यह अन्य लोगों के हित में है। परन्तु यह बात आत्मा की ही बात की है। यह वास्तविकता है। पाई नहीं जाती। वह अबोधिता उपलब्ध नहीं है। उस आपने मुझे जो भी नाम दिए हैं वो सब उसी का भाग है। सहजयोग भी इसी का एक भाग है। मैं जब 1 तक जाने का प्रयत्न करें। अपने अन्दर इसे जागृत करने का प्रयत्न करें तब आप हैरान होंगे कि आप आपके साथ हूँ तो आपको इन चीजों की चिन्ता करने को क्या आवश्यकता है? स्थापित होने का मुझे बेहतर समझ सकेंगे। कल ही मैंने आपको यह बताया था कि किस प्रकार इन जटिलताओं ने प्रयत्न करें, इसे अपने अन्दर स्थापित करें। परन्तु अवरोध खड़े कर दिए हैं। वे मात्र मुझे देखते हैं। इसके कारण आप तो अत्याधिक अपने मस्तिष्क लोग केवल चेहरा देखते हैं। फिर भी कभी कभी का उपयोग करने लगे हैं। अपने स्तर को स्थापित करें। बेहतर होगा कि निर्विचार बने रहें। अब आप आप इतने व्यथित होते हैं कि इसी में खो जाते हैं । कारण यह है कि आप अभी भी अपने मस्तिष्क का देखें कि खांसी कहां गई है। समाप्त। वे ( भूत) सब उपयोग कर रहे हैं। मस्तिष्क उपयोग करना सहजयोग दौड़ गए हैं। इसी प्रकार से आपको भी करना चाहिए। उन्हें भाग जाने की आज्ञा दें। तक पहुँचने का मार्ग नहीं है। अब आपके गले एक अन्य बात यह है कि आप बोलते बहुत हैं, पहले से बेहतर हैं। (अब आप खांस नहीं रहे हैं। ये ध्यान धारणा में रहें। बोलें नहीं, बोलने की कोई सारे भूत थे। अब आपको क्या हो गया है?) आप यदि संस्कृत सीखना चाहें तो बेशक सीखें। परन्तु आवश्यकता नहीं है। ध्यान धारणा में बने रहें। आप मेरे साथ हैं और मैं आपके साथ हूँ। ध्यान धारणा में यह आवश्यक नहीं है। न ही यह सहजयोग का मार्ग है। अपनी इच्छा से आप इसे सीख सकते हैं परन्तु बने रहें, ध्यान-धारणा में रहें। इससे आपको सहायता 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-46.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 8 जुलाई एवं अगस्त 2003 45 मिलेगी। ध्यान-धारणा आपकी बहुत सहायता करेगी। इंधर-उधर नहीं जाना है। आप अपना स्नान आदि रहे करेंगे और तब-तक में पूजा के लिए आ जाऊंगी। यहां पर आप अत्यन्त शांत रहें, पूर्णतिः शान्त स्वयं को एकान्त रखें। किसी से उलझें नहीं, बस और इसे महसूस करें। न कोई वाद-विवाद करें, न कोई बात करें, न अपने मस्तिष्क का उपयोग करें। शान्त रहें, बातचीत न करें इस पूजा के लिए अधि यहां पर आप अपने उत्थान के लिए अपने अन्दर काधिक शांति बनाए रखें। पहली बार सरस्वती पूजा कुछ प्राप्त करने आए हैं। ऐसा कर पाना सम्भव है। होगी। वास्तव में मैं तो एकादश पूजा करना चाहती कुछ लोग निश्चित रूप से इसे कार्यान्वित करते हैं, थी परन्तु एकादश पूजा करना सुगम कार्य नहीं है । गम्भीर रूप से कार्यान्वित करते हैं। मैं आश्चर्यचकित इसलिए मैंने सोचा कि कल के स्थान पर फिर थरी उनके दृष्टिकोण को देखकर, परन्तु कुछ लोग किसी दिन एकादश पूजा करेंगे। अभी तो हम यही कुछ भी नहीं करते। अब क्या करें? पूजा करेंगे। अब बातें नहीं करें शान्त रहें। शान्त हो जाएं और शान्त हो जाएं, शान्त हो जाएं। स्वयं से कहें, #शांत हो जाओ, सावधान हो जाओ, शान्त हो ध्यान के लिए बैठ जाएं। आप सब शान्ति से आएं। वास्तव में आपने कुछ नहीं करना है। आपने कोई जाओ।" अब कल्पना करें कि मेरे प्रवचन आरम्भ करने से पूर्व कोई भी खांस नहीं रहा था और आयोजन नहीं करना, कुछ नहीं करना। जो लोग अचानक ज्यों ही आप बैठे तो खांसने का परस्पर यहां आयोजन करने के लिए हैं उन्हें भी ध्यान मुकाबला शुरु हो गया। भूतों को काट डालो। आपके धारणा की स्थिति में रहना चाहिए। आश्चर्य की बात माध्यम से वे कैसे गतिशील हैं? मेरे सम्मुख तो है कि जो लोग आयोजन कर रहे हैं वो लोग राक्षस भी खांसने की हिम्मत नहीं करते। क्योंकि इधर-उधर दौड़े फिर रहे हैं । इस चीज का प्रवन्ध आप मेरे बच्चे हैं इसीलिए वे आपका लाभ उठा कर रहे हैं उस चीज का प्रबन्ध कर रहे हैं। यह सकते हैं। ठीक है? परेशान न हों। सब ठीक है। आसान कार्य नहीं है। आप जानते हैं इतने सारे लोगों तो कल की पूजा से पूँर्व हमें भली-भांति स्नान के भोजन की व्यवस्था करना आसान कार्य नहीं है । करना होगा चाहे जो भी हो। मैं दस बजे पूजा वे ध्यान की अवस्था में हैं। अत: आप भी स्वयं को ध्यान की अवस्था में रहें। प्रयत्न करें। स्वयं से कहें, आरम्भ करूंगी। इससे पूर्व नहीं, परन्तु आपको बाहर 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-47.txt चैतन्य लहरो खण्ड -४४ खण्ड : 7 एवं 8 जुलाई एवं अगस्त 2003 46 'शान्त हो जाओ, मेरे मस्तिष्क शान्त हो जाओ, स्थिर सब बहुत अच्छा था। सभी लोग भली भाँति हो जाओ' यह बात अपने मस्तिष्क से कहते रहें उन्नत हो रहे हैं। आप लोगों में से सभी लोगों का और आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे कि यह सब बहुत सुधार हुआ है। परन्तु यह जानने का प्रयत्न आपके अन्दर है। जितना अधिक हो सके स्वयं को करें कि समस्या कहाँ है। सभी को व्यक्तिगत इस अवस्था में डुबोने का प्रयत्न करें। ध्यान की समस्याएं हैं। एक बिन्दु पर आकर आप इन समस्याओं को रोक लें। इन्हें रोक लें। आप ऐसा कर सकते हैं । स्थिति में यदि आप अपने मस्तिष्क को नहीं रखते तो आप अतिचेतना (Supraconscious) की यह सारी समस्याएं भूत हैं। भूतों के माध्यम यह स्थिति में भी जा सकते हैं और यह बड़ी भयानक सारी विकृतियां आती हैं। अब कुछ और व्याख्या स्थिति है। अब पहले से ठीक है? सदैव स्वयं से करने के लिए नहीं बचा है। कुछ भी नहीं बचा है। शान्ति में रहने की आशा करें। एक मिनट के लिएकिसी भी प्रकार का विचलन, सहज-योग से किसी बैठ जाएं। क्या तकलीफ है। बेहतर होगा कि बैठ भी प्रकार दूरी। किसी भी चीज की व्याख्या की जाएं, 'क्या तुम थोड़ी देर के लिए बैठ नहीं सकती? आवश्यकता नहीं है। अन्य लोगों की ओर चित्त बैठ जाओ सीधे होकर।' अपने बच्चों को भी न दें। स्वयं पर चित्त दें आप में से सभी लोग १। न कोई अधिक महान है और न कोई समझाओ, स्थिर होकर बैठों। स्थिर होकर अपने महान हैं। अन्दर शान्त होकर बस बैठ जाएं। आपको कहीं कम। अत: किसी की चिन्ता न करें। अन्य जाने की जरूरत नहीं है, कुछ बनाने की जरूरत सहज-योगियों से बहुत अधिक बातें न करें। भारत नहीं है। सभी कुछ आपके अन्दर विद्यमान है। में रहते हुए शान्त रहें । अपने देशों में जाकर इस पर बेहतर होगा शान्त होकर बैठ जाए। मस्तिष्क को बहस करने के लिए आपके पास काफी समय शान्त कर लें । यह स्थिरता स्थापित करनी होगी मैं होगा। यहां तो बस शान्त रहें । बातें, बातें, बातें! चाहती हूँ कि आप यही स्थिरता स्थापित कर लें । भारत में चकवा-चकवी नामक एक पक्षी होता बाकी सब विकृतियाँ तो पलायन है। आपकी उन्नति है। ये पक्षी चन्द्र किरणों पर जीवित रहता है। बस किरणों का रसपान किए चले जाते हैं। इसके अतिरिक्त से में प्रसन्न हूँ यह बात में कहना चाहूँगी। इस बार उन्हें किसी चीज की आवश्यकता नहीं होती। अत: सामूहिकता बहुत अच्छी है। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-48.txt चैतन्य लहरी खण्ड -४V खण्ड :7 एव 8 जुलाई एवं अगस्त 2003 47 अपने आप को स्थिर करें, अपने मस्तिष्क को स्थिर इसे ठीक करें। अब श्रीमाताजी से प्रार्थना करें। जोर से बोलने की आवश्यकता नहीं है बातचीत करें। कोई भी मन्त्र जो हम कहते हैं वह यदि यांत्रिकता है तो उसका कोई लाभ न होगा। आप करते हुए आपको अपने सहस्रार पर रहना चाहिए। कहते हैं 'या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता' इसके अतिरिक्त अन्य कहीं नहीं। केवल सहस्रार परन्तु आपको यह मन्त्र पूर्ण सूझबूझ तथा सावधानी पर होना है। अपने सहस्रार पर ध्यान दें। इसकी से कहना चाहिए। हम यहां पर अगाध गहनता प्राप्त स्थिति कैसी है? यह भण्डार की तरह से है। केवल करने के लिए आए हैं और आपमें से तो कुछ लोगों स्वयं को देखें, कहने से अभिप्राय यह है कि यह की यह यात्रा समाप्त होने वाली है (अब बेहतर आपका अपना सहम्रार है। दूसरों की चिन्ता छोड़ दें है)? मध्य हृदय के लिए ये ठीक है। इस क्षण केवल अपने सहस्रार की चिन्ता करें। भविष्यवादी न बनें। यहीं विद्यमान रहें। मैं जानती हूँ अत: समर्पित हो जाएं। अपने हृदय की गहराइयों कि आपके मस्तिष्क में क्या चल रहा है। अतः सोचें में समर्पित हो जाएं। मुझे वहां स्थापित कर लें। मत। समय के विषय में बिल्कुल न सोचें । स्थिर हो केवल तभी आपके सहस्रार खुलेंगे। बाकी सभी जाएं। आप स्थिर हो जाएं। आप अभी भी सोच रहे चीजों को भूल जाए। वही बने रहें। अब सहस्रार हैं। अपनी आंखे खुली रखें और मुझे देखें। अतः पहले से बेहतर है ठीक है? आप सब मेरे बच्चे हैं, आप लोग नींव हैं। अपने मस्तिष्क को शान्त करें। मेरे बेटे बेटियां हैं। यह सब श्रीगणेश की तरह से है। शान्ति कार्य कर रही है परन्तु अभी और स्थिरता हम सब पैगम्बरों की तरह से हैं। क्या हमारे अन्दर पैगम्बरों की शक्तियां हैं? यह प्रश्न पूछें और की आवश्यकता है। मस्तिष्क को स्थिर करने मात्र से ही आप अपने सारे रोगों से मुक्ति प्राप्त कर यह शक्तियां अपने अन्दर विकसित करें। श्रीमाताजी सकते हैं। केवल अपने मस्तिष्क को स्थिर मात्र क्या हम वास्तव में साक्षात्कारी लोग हैं? क्या हम करने से। आपने यह बात देखी है। ठीक है? ही मानव सभ्यता का सार तत्व हैं? क्या हम लोग इसके अतिरिक्त भी मूलाधार को ठीक करने परमात्मा की कृपा का निष्कर्ष हैं? ठीक है? बहुत अच्छा! पहले से बहुत बेहतर है। सुखमय स्थिति में का एक उपाय है। आप देखें की बिना पलक झपके आप कितनी देर देख सकते हैं। बेहतर। आ जाए। तनाव को निकल जाने दें। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-49.txt जुलाई एवं अगस्त 2003 चैतन्य लहरी खण्ड -XV खण्ड : 7 एवं 8 48 अब मैं सुझाव दूंगी कि आप सभी लोग अपने इच्छा करे बन्धन ले लें। यह आनन्ददायी है। आप महागणेश की आरती उतारें। आप इतना अच्छा करते ही चले जाएंगे (श्रीमाताजी की हंसी)। अन्य लोगों की चिन्ता करने से बेहतर है कि आप अपनी महसूस करेंगे कि आपको आश्चर्य होगा। महागणेश- यही गुण स्वयं में प्राप्त करना है। आपको यह बात जान चिन्ता करें। यह स्वत: कार्य कर रहा है। करते चले लेनी होगी कि यह कार्य आसान नहीं है। इस चीज जाएं। बांया स्वाधिष्ठान आ रहा है। यह स्वयं द्वारा को जब कभी भी परखती हूँ तो पाती हूँ कि हृदय स्वयं को दी जाने वाली सुरक्षा है। अपने स्वाधिष्ठान में बहुत बड़ा पहाड़ बना हुआ है। धीरे धीरे इसका को ठीक करें। इसे बन्धन दें। बांया स्वाधिष्ठान और भयंकरतम सम्मिश्रण है! बाप रे पिघल जाना आवश्यक है। यह पर्वत समाप्त होना दांयी विशुद्धि आवश्यक है। स्वयं को बन्धन दें। मैं भी स्वयं को बाप! दांयी विशुद्धि जल रही हैं! तुम बहुत अधिक बन्धन दूंगी ताकि सभी को बन्धन लग जाए। इस बोलते हो! दांयी विशुद्धि! अब इसे बन्धन दें। सुनने सारी तकनीक का ज्ञान पा लें। ठीक है? दिन के का प्रयत्न करें। बहुत अधिक न बोलें। देखिए, आप समय आप स्वयं को कितनी बार बन्धन देते हैं? मेरा रथ चलाते हैं और मेरे विचार से घोड़ों को कम से कम पांच बार बन्धन लेना चाहिए। पांच खांसना नहीं चाहिए। अन्यथा मुझे ही सारे झटके बार की नमाज अदा करें। बहुत अच्छा। देखें कि लगेंगे मुझे पहले से काफी झटके लग चुके हैं । आप अपनी कितनी देखभाल कर रहे हैं। आइये एकादश को रगड़ें, जोर से रगड़ें। अब देवी प्रसन्न की है, कल आपकी सभी बन्धन लें। यह तो ऐसा हुआ जैसे आपको हुई। यह तो आपने अपनी पूजा होगी। बताया जा रहा हो कि खाना किस प्रकार खाना है। माँ की पूजा परमात्मा आपको धन्य करें। सहज योग की यह मूल बात है। जब भी आपकी नेeट