वैतन्य लाहरी ি ले ०) छी र १ र ल र मिन्वर ग्वंड अंक नान - নन n2 এন 0 न 1A. Rx सार्वजनिक प्रवचन, दिल्ली-24.3.2003 २ 3 उद्घाटन-विश्व निर्मल प्रेम आश्रम- 27.3.2003 7 ध्यान का महत्व - 12.1975 पाने के बाद - 25.11.1973 20 श्रीमाताजी का परामर्श - 27.5.1976 31 34 सहस्रार दिवस, बम्बई 5.5.1983 0 महिलाओं से बातचीत - जनवरी 1984 42 े ि ২ चै त न य ल ह री प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर ए. मुनीरका विहार, नई दिल्ली 162 110067 मुद्रक अमरनाथ प्रेस प्रा. लिमिटेड डब्ल्यू एच एस 2/47, कीर्ति नगर औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली-15 फोन : 25921159, 55458062 सदस्यता के लिए कृपया इस पते पर लिखें :- श्री ओ. पी. चान्दना एन - 463 (जी-11) दिल्ली , ऋषि नगर, रानी बाग 110034 फोन : 27031889 E-mail: chaitanyalahiri@indiatimes.com सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पते पर भेजें : चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी-17, कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली 110016 सहजयोगी : एक आदर्श हिन्दुस्तानी परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का सार्वजनिक कार्यक्रम पर प्रवचन जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम, नई दिल्ली, 24.3.2003 आप लोगों का ये हार्दिक स्वागत देखकर के हृदय अंदर एक नई रोशनी आ गई कोई समझ भी नहीं आनंद से भर आता है और समझ में नहीं आ रहा है कि सकता, कोई मान भी नहीं सकता कि ऐसा घटित हो क्या कहूँ और क्या न कहूँ! आपसे आज के मौके पर सकता है, पर हो गया। सर्वजाति और सर्वतरह के लोग जिन्होनें इसे प्राप्त किया है, उसके लिए काई वर्ग विशेष क्या कहना चाहिए और क्या बताना चाहिए, ये ही समझ नहीं, कोई ऊँच-नीच नहीं। पता नहीं, हिन्दुस्तान में ही में नहीं आता है क्योंकि आप लोग अधिकतर सहजयोगी हैं और जो नहीं हैं वो भी हो ही जायेंगे हर बार ऐसा ही होता है। नहीं बल्कि बाहर भी हज़ारों लोग इसकों प्राप्त कर गए हैं और हमें बहुत से लोगों को ये देना होगा। अपने देश जीवन में सहजयोग प्राप्त होना एक जमाने में बड़ी कठिन चीज़ थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब तो बहुत की जो समस्याएं थीं वे सब इससे नष्ट हो जाएंगी। जिस जिस ने इसे प्राप्त किया है उनकी सारी समस्याएं दूर हो गईं। नई दृष्टि पा ली उन्होंने और ऐसा संयोग है कि सहज में ही आपकी कुण्डलिनी जागृत हो सकती है। सहज में ही आप उस स्थान को प्राप्त कर सकते हैं जो इसको पा कर के वो लोग भी अब कार्यान्वित हैं। हम तो सिर्फ इतना जानते हैं कि ये कार्य होना था और वो कहा जाता है कि आप ही के अन्दर आत्मा का वास है और आप ही के अंदर वो चमत्कार होना चाहिए जिससे हो गया। पर इस कदर उसमें प्रबलता आ जाएगी, ये आपको अपनी आत्मा से परिचित किया जा सके। ये कभी सोचा भी न था। सिर्फ इतना ही कहना है कि जिन लोगों ने इसे प्राप्त किया है वो इसे अपने पास छिपा कर चीज़ एक जमाने में बड़ी कठिन थी। हजारों वर्षों की तपस्चर्या जंगलों में घूमना, ऋषियों-मुनियों की सेवा, न रखें, औरों में भी बांटे, औरों को भी दें। देने से और उसके फलस्वरूप कुछ लोग, बहुत कुछ लोग, इसे प्राप्त भी आनन्द बढ़ेगा। देने से इसका आनन्द और भी करते थे। पर आजकल एसा ज़माना आ गया है कि गर को ये गति नहीं मिली तो न जाने वो किस ठौर द्विगुणित हो जाएगा। इसमें कोई शंका नहीं है। ये अपने पास रखने की चीज़ नहीं है। बांटने की चीज़ है । बांटने मनुष्य उतरेगा, उसका क्या हाल होगा? शायद इसीलिए इस से ही इसका मज़ा आएगा। आशा है आप सब लोग इसे कलियुग में भी यह सहजयोग इतना गतिमान है। इसमें तो आप लोगों का भी योगदान है। हजारों बांट कर इसका आनन्द उठाएंगे। हमने तो बहुत वर्ष मेहनत की है, हिन्दुस्तान में और सहजयोगी हो गए और सब लोग आपको खुद पार करा बाहर भी। इतनी मेहनत की है। अब उससे भी ज्यादा सकते हैं। ये कितना बड़ा कार्य हो गया है, क्योंकि मेरे अकेले के बस का इतना था क्या? लेकिन इसको संवारा आप लोगों को करना होगा। तभी इस दुनिया का अज्ञान नष्ट होगा बड़े भारी अज्ञान में डूबा है। आज यहां गड़बड़ है तो कल वहां गड़बड़ है। इसको ठीक करने के लिए आप को भी सज्य हो जाना चाहिए। और जिन्होंने इसको प्राप्त किया है उनको इसे और भी फैलाना चाहिए, बढ़ाना चाहिए, देना चाहिए। किसी भी बहाने से है आपने, इसको उठाया है आपने और इसके लिए मेहनत की है आपने। मैं आपको कितना धन्यवाद दूँ ये मैं नहीं समझ पाती। कितनी बड़ी बात है कि इस दुनिया में हजारों लोग नवीन जीवन को प्राप्त कर गए और उनके चैतन्य तहरी खण्ड -XV अक : 9 एव 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 4 आर्त. क्षुब्ध नहीं होना। आप शांत मत बैठिए। कोई ऐसी विधा नहीं है कि आप इसे फैला नहीं सकते। इसमें जितनी शक्ति दें वो ही आपके अंदर कार्यान्वित होगी और उसी से आप लोगों को प्लावित करेंगे। हमारे लिए उसको इन्होंने महायोग के चरम सीमा तक पहुँचा दिया है मुझे खुद आश्चर्य होता है कि इतने सर्वसाधारण लोग हैं और इस कदर जानते हैं और समझते हैं। बहुत से लोग तो अनपढ़ हैं! पर इतने होशियार और इतने समझदार हैं तो दिल्ली में इतना कार्य होना बहुत बड़ी चीज़ है। याद कि बड़ा आश्चर्य होता है कि किस तरह ये सब समझ बना गए और ये किस तरह इस कार्य को करते हैं । है जब हम दिल्ली में शुरु शुरु में आए थे तो लोगों को कोई समझ ही नहीं थी और हमारे लिए वो अब समझ के अनुसार ही चलते थे। धीरे-धीरे समर्थ और धीरे-धीरे उन्होंने हरेक चीज़ का संतुलन प्राप्त किया। अनुभव से अब भी हमें कुछ और मोर्च निकालने होंगे। एक तो हमें देशभक्ति की बात करनी चाहिए। देश-भक्ति जरूरी आनी चाहिए। देश के इतिहास में क्या-क्या हुआ और कितने लोगों ने अपना सर्वस्व त्याग किया इन सबके बारे में बहुत जरूरी है कि आप को जानकारी होनी चाहिए और उसके वारे में आप लोगों को बातचीत करनी चाहिए। ये महान देश है, यहां बड़े-बड़े महान लोग हो वो समझ गए कि मनुष्य के अन्दर क्या दुर्बलता है, क्या तकलीफ है। और इसके लिए वो धोरे-धीरे शिक्षित हो गए। इतना सहजयोगियों के पास ज्ञान आ गया। वड़़े ज्ञानी हो गए। लोग बताते हैं कि माँ इनके अंदर इतना ज्ञान कहाँ से आया? अंदर से ही आया है इनके अंदर। गए। लेकिन कुछ ऐसी हमारे उपर अवकृपा हुई। विदेशों से हमारे उपर इतने लोग आए। उनके कारण हम लोग इनके अंदर ही ये ज्ञान आ ग़या है और कहाँ से आया है? इस प्रकार अपने ही अंदर जो परमतत्व आत्मा का हैं, उसका ये प्रादुर्भाव है, वो प्रकटीकरण है जिससे लोग दिल खोलकर सबसे कुछ बात कर न सके। लेकिन जरूरी है कि अब बताया जाए। परदेस में भी लोगों ने जानते हैं कि सच क्या हैं और आगे क्या है? हमसे बताया कि हिन्दुस्तान में क्या-क्या ज्यादती हुई है। इसका जितना बन पड़ा, हमने हरेक चीज़ को समझाया और मतलब ये नहीं कि आप उन लोगों से नफरत करें या देखती हूँ कि लोग बड़े आसानी से इसको आत्मसात दुष्टता करें, पर ये है कि आप समझ लें कि किस करते हैं। देहातों में भी, जहाँ लोग खास पढ़े-लिखे नहीं तकलीफ से यहाँ पर लोग गुज़रे हैं। क्या क्या आफतें ले हैं, उन्होंने भी सहजयोग इतने अच्छे से सीखा, इतना कर उन्होंने जिन्दगी काटी है। अगर आप इस चीज़ को अच्छे से समझा और इतना अच्छे से समझाते हैं कि मैं समझ लें तो आपको पता होगा कि हमारा देश कितना खुद हैरान हूँ इनके तौर-तरीके देख करके । दिल्ली वालों ने तो कमाल की हुई है। यहाँ कोई जब आप को पता होगा तो आपको भी अपने देश पर झगड़ा नहीं, कोई आफत नहीं, कोई आपस में किसी बड़ा गर्व होगा और आप भी सोचेंगे कि क्या महान देश तरह का कोई मन-मुटाव नहीं। बहुत खुले दिमाग के है। फिर अपने देश की संस्कृति बहुत ऊँची है। ऐसी लोग हैं और इनके साथ जितना हमसे बन पड़ा हमने संस्कृति कोई भी देश में नहीं है। मैं तो इतने देशों में घूमी महान है और कितने बडे बवंडर से निकला है। उसका समय बिताया था। अब तो नहीं इतना होता। और देखती हूँ। इस संस्कृति में सबकी इज्जत करना, सबको प्यार करना और देश को प्यार करना और बड़े-बड़े, बड़े-बड़े इनके आदर्श हैं, उन आदर्शों पर चलना। उनको भुला कर हूँ कि ये लोग इतने होशियार हो गए। आपके हाथ से काम करके ये समझ गए हैं कि सहजयोग क्या है और चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 5 हैं। सहजयोगियों को ये शोभा नहीं देता। और सहजयोगी करते भी नहीं, मुझे मालूम है। पर औरों को भी बताना हमारा कोई फायदा नहीं। यही नहीं, पर इन्हीं को हमको और देशों में फैलाना है। हमारे देश के बारे में जो जो गलतफहमियाँ हैं वो हट जाएंगी और हम सबको बता चाहिए कि हमारी चीज़ में किस कदर इस देश में देशाभिमान है, स्वयं का अभिमान है और हर तरह के सकते हैं कि हमारा देश कितना महान है। हम लोगों की अच्छाईयां जो हैं, सामने आनी चाहिएं। उससे लोग समझ हर तरह के आदर्श जीवन की रेखाएं हैं। पर धीरे-धीरे, जाएंगे कि हमारा देश कितना महान है। आप लोगों से मेरा ख्याल है, ये बात आ जाएगी। अब सहजयोगी इतने इतना ही कहना है कि आप अपने देश के प्रति अत्यंत हो गए हैं, इतने ज्यादा हो गए हैं कि मुझे ज्यादा बताने श्रद्धामय रहें और उन लोगों के लिए जिन्होंने देश के की जरूरत नहीं। वो लोग स्वयं ही इसको कर लेंगे। लि मुझे आपसे गर कुछ कहना है तो ये कि आप गर लिए इतना त्याग किया, जो सच्चाई पर खड़े रहे और सहजयोगी हैं तो आपके जीवन की पद्धति भी वैसी होनी चाहिए और दूसरे आप की जीवन प्रणाली भी वैसी होनी जिन्होंने सच्चाई के लिए अपने प्राण तक दे दिए। ऐसे सब पीर-महात्मा लोगों को, आप लोगों को जानना चाहिए जैसे एक आदर्श हिन्दुस्तानी की होती है। उसके लिए ये बात नहीं कि आप कौन से धर्म के हैं, एक ही जाति के हैं या... बात है कि आप हिन्दुस्तानी हैं और हिन्दुस्तानी का धर्म ये है कि वो...हिन्दुस्तान की शोभा चाहिए। सहजयोग का मतलब यह नहीं है कि आप सिर्फ इस देश की जो महानता है वो आप जानें पर इस देश की जो परम्पराएं हैं इसको भी समझें और यहाँ की संस्कृति को भी आप अपनाएं। आजकल तो ऐसा जमाना चला है कि हम लोग बने और उसी में रममाण रहे। यहाँ के हर चीज़ में विदेशी, परदेसी चीज़ों को पसंद करने लग गए हैं और आपको ध्यान देना चाहिए। यहाँ का संगीत, यहाँ की उन्हीं के रास्ते पर चल पड़े हैं। इससे कितना नुकसान कला, यहाँ की शिल्पकला और Architecture आदि सभी चीज़ें इतनी बढ़िया थीं । अब तो कुछ भी नहीं बन पातीं। चलो न भी बने पर उनको समझना तो चाहिए। हुआ है हम लोगों का? इससे कितनी परेशानी उठाई है? अपने देश की महानता और उसके गौरव को समझें और वही हमारे जीवन में भी और औरों के जीवन में भी उनको देखना तो चाहिए। ये बात हिन्दुस्तानियों में आनी चाहिए। पता होना चाहिए कि इस देश में कितना महान कार्य हो चुका है और हम भी कुछ ऐसे कार्य करें जिससे इस देश की शोभा बढ़े। न जाने कितनी चीजें ऐसी हैं कि जो सहजयोगियों के लिए करनी होंगी, और करते हैं । देखना चाहिए। ये तो कमाल की परम्पराएं हैं। उससे दूर भागने से हम सत्य से दूर भाग रहे हैं। हम लोग सत्य पर खड़े रहे और इसीलिए हमें काफी विपत्तियां उठानी पड़ी. ये तो माननी चाहिए बात। पर जो आदमी सत्य पर टिका है, वो तो अमर है। उसके लिए कुछ अच्छा नहीं उनका जीवन बहुत सुन्दर हो गया हैं। घर-बाहर हर कुछ बुरा नहीं। सबसे बड़ी बात ये है कि वो वंदनीय है, जगह, और लोग बहुत तारीफ करते हैं कि सहजयोगियों वो पूजनीय है. और उसके जैसे बनना एक बड़ी भारी का जीवन इतना सुन्दर कैसे हो गया एक तो आत्मा का बात है। ऐसे हज़ारों चरित्र इस देश में हो गए। लेकिन आशीर्वाद और दूसरे वो सूक्ष्म दृष्टि जिससे आप अच्छाई हम लोग अभी अपने देश को पहचानते नहीं और उसके को पहचानते हैं, अच्छाई को जानते हैं। जब तक बो आभूषण बनने की जगह हम दूसरे देशों की नकलें करते दूष्टि नहीं आएगी तब तक आप सहजयोगी नहीं है। he चेतन्य तहरी खण्ड -४V अक : 9 एव 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 6 ्र ह१० दाम कहने को तो बहुत कुछ है पर मैं सोच रही थी कि आज कहिए आँख बंद करके कि श्री माता जी हमको कृपया आत्म साक्षात्कार दीजिए। धोरे, अंदर ही अंदर, बाहर नहीं। अब देखिए कि आपके हाथ में (आँख बंद रखिए) ठण्डी-ठण्डी हवा तो नहीं आ रहीं या गरम गरम बहुत से लोग ऐसे भी आए हैं जिन्होंने अपना आत्म ही देखा नहीं। उनके लिए जरूरी है कि उसका भी एक सत्र कराया जाये। आप लोग स्रब मेरी ओर इस तरह हाथ करके बैठिए। बात मत करिये शान्तिपूर्वक। हाँ. और आँख बंद कर लें। दोनों हाथ मेरे तरफ और आँख बंद करिए। और अब भी आ रही होगी। गर आ रही हो तो हमारी ओर सीधा हाथ करें और बाँया हाथ सर पर रख कर देखें कि आपके सर से आ रही है ठण्डी-ठणडी हवा। सबको अनन्त आशीर्वाद है हमारा। ाम उद्घाटन समारोह ( NGO) विश्व निर्मल प्रेम आश्रम, ग्रेटर नोएडा, 27.03.2003 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन मांगने का। मैंने कहा कि भाई तुमको मांगना पड़े तो पता चले। औरतों के प्रति एक अत्यन्त उदासीन प्रवृत्ति जो अपने देश में आ गई है मुझे उससे तो रोना ही आता था। और इसीलिए मैंने यह ठान लिया था कि इनके रहन-सहन का. इनक खान-पान का, इन बेचारी औरतों का कुछ न कुछ इलाज तो करना चाहिए। वो लोग रास्तों में भीख मांगती हैं, हर तरह का काम करती हैं, उनको मैंने घर में बुलाया, उनसे बातचीत करी तो कोई कारण नज़र नहीं आता। आदमियों को कोई औरत अच्छी लग गई उसकी (पत्नी) छुट्टी करो, दूसरा कुछ बहाना करके औरत को घर से निकाल दो। पता नहीं क्यों? औरत एक महान जीवन है, उसी से सारा संसार खडा होता है। उसी से आप लोग मुझे हिन्दी में बोलने की आज्ञा दं। अपने देश में जो अनेक प्रश्न हैं, उसमें सबसे बड़ा प्रश्न है कि यहां पर औरतों को और आदमियों को अलग-अलग तरीके से देखा जाता है पता नहीं ये कैसे आया, क्योंकि अपने शास्त्रों में ता लिखा नहीं हैं शास्त्रों में कि: है। कहते | यत्र पूज्यन्ते ना्या--नारियां जहां पूजनीय होती है तत्र रमन्ते देवता 'तो पता नहीं कैसे हमारे देश में इस तरह की स्थिति सम्पन्न हुई है, इससे औरतों के प्रति कोई भी आदर नहीं है। विशेषत: मेरा विवाह यू.पी. में हुआ और मैं देखकर हैरान हुई कि यू.पी. में घरेलू औरतों का कोई स्थान ही नहीं है। उनमें और नौकरानियों में कोई अपने देश में हजारों बाल-बच्चे इस संसार में आते हैं। पर उनके प्रति इस तरह बेकद्री से लोग पेश आते हैं कि सहते-सहते औरत भी पागल हो जाए। पर नहीं, वो अपने बच्चों की वजह से बड़े हिम्मत से जीती हैं। लेकिन करे क्या उसके पास और खाने का जरिया नहीं कोई तरीका नहीं, तो वो क्या करें, कहां जाए, किससे भीख मांगे? कोई उनको दरवाज़े में भी खड़ा नहीं करता। फर्क नहीं है। यह इस प्रकार क्यों हुआ और क्यों हो रहा है? क्योंकि लोग उस ओर जागृत नहीं है और कभी-कभी देख कर तो रोना आता है। जिस तरह से औरतों को छला है, घर से निकाल दिया, कोई वजह नहीं, यूही घर से निकाल दिया और ऐसे बहुत सारे हमने जीवन में अनुभव लिए और जिसकी बजह से अत्यन्त व्यथित हो गए। समझ में नहीं आता था कि इस तरह से क्यों औरतों को इसका कोई इलाज मुझे दिखाई नहीं दिया। इसीलिए मैंने है, सताया जा रहा है और इनके रहने की भी व्यवस्था नहीं। जब घर से निकल गई तो उनको देखने वाला भी कोई बहुत सोचा कि सबसे वड़ा काम, अगर कुछ तो इन औरतों के लिए कोई स्थान बना देना है मैंने यही सोचा कि यहां आ करके वो सीख लेगी, कुछ न कुछ काम सीख लेंगी। इसके अलावा यह लोग मालिश करना सीख सकती हैं, इसके अलावा यह लोग छोटे-छोटे अपने होटल जैसे बना सकती हैं। पर उनकी सहायता करने के लिए कोई चाहिए, कोई स्थान चाहिए, और उनको समझाने के लिए कोई चाहिए। इसी ख्याल से मैंने यह आश्रम बनाया है और इसमें सभी के प्यार को ललकारा है, सारे विश्व के प्यार को ललकारा है कि सब लोग प्यार से इसे देखें। इन बिचारी औरतों का कोई दोष नहीं नहीं है। बाल बच्चे ले करके निकल आई थी बेचारी। वो लोग तो हैं निराश्रित पर बच्चों को भी बिल्कुल बुरी तरह से निकाल देते हैं। यह अपने यहाँ की व्यवस्था किस तरह से बदल सकती है। इसका कोई इलाज है या नहीं? मैंने बहुत बार सोचा कि इसके बारे में लिखना चाहिए, पर लिखने से कुछ नहीं होगा। इसके लिए कोई व्यवस्थित रूप से कोई इन्तजाम करना होगा, कोई व्यवस्था करनी होगी, और एक तरह से बड़ा दिल कचोटता था ऐसी अनेक-अनेक औरतें देखी हमने जो आज रास्ते पर भीख मांग रही हैं लोगों ने बताया कि अच्छा तरीका है भीख पता बैतन्य लहरी खण्ड -XV अक :9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 8 हैं, वो जो दर-दर में भीख मांग रही हैं इसका उत्तरदायित्व हमारे समाज का है। बहुत दुख होता है, एक औरत के नाते मुझे बहुत रोना आता था देख-देख के और यह जब बनने लगा तो मैंने कहा कि किसी तरह से यह पूरा हो जाए। और इसमें मेहनत करी काफी, इसका डिजाइन भी हमने बनाया। इसकी विशेषता यह है कि इसमें जो अपने आप पिछाड़ी गई हैं। उसमें से कुछ तो घर से निकल खड़ी हो गई और भीख मांग रही हैं। और कुछ ऐसी भी है जो घर में ही रोती रहती हैं और किसी तरह से अपना जीवन काट रही हैं। पता नहीं समाज में इसके प्रति अभी, खासकर इधर, खासकर अपने यू.पो. में, इध र ध्यान नहीं गया। महाराष्ट्र में एक बात अच्छी हुई, वहां आपको सफेद रंग दिख रहा है यह खराब होने वाला दो-तीन समाज सुधारक निकले। उन समाज सुधारकों ने बहुत कार्य किया। उनकी वजह से वहां पर यूनिवर्सिटीज बन गईं। औरतों को बहुत अच्छा शिक्षण मिला और लोग देखने लगे कि औरतों में भी बहुत गुण अब यह हमने स्कूल तो बनाया है और आप लोगों से यही बिनती है कि आप लोग हमें बताएं कि इसमें हम क्या कर सकते हैं । कौन-सी, कौन-सी शिक्षा हम दे नहीं। एक अजीबो गरीब तरीके से बनाया है, यह इटली में मैने सीखा था। इटली में मैंने सीखा था कि ऐसा रंग बनाना चाहिए कि जो छूटे न और मुझे इसका मालूम है (तकनीक) और उसको इस्तेमाल करने से देखिए कितना सुन्दर सफेद रंग बन गया। यह कभी खराब नहीं होगा, कितना भी इस पर पानी आ जाए. कुछ हो जाए, कभी हैं। सकते हैं। ऐसे हम लोगों ने तो बहुत सोच लिया है। पर तो भी आप सूध्य है, आप हमारे पास खबर भेजें कि खराब नहीं होगा। यह मैने एक experiment की तरह मे, लेकिन यह चीज है बड़ी अच्छी। क्योंकि अपने देश ता नहीं क्यों इस तरह के लोग चीज़ नहीं बनाते। और और क्या-क्या हम इन औरतों के लिए कर सकते हैं। इस तरह की चीज़ बनाना कोई मुश्किल. नहीं। मैने परदेस में हमने देखा वहां कायदा-कानून ऐसा है कि कोई कितनों से कहा कि आप इसको इस्तेमाल करें, सो यही भी औरतों को इस तरह से सता नहीं सकता। ऐसी उनकी बात हुई कि कौन करे तवालत, कौन करे यह आफत। दुर्दशा नहीं है। यह अपने ही देश की विशेषता है जहां इसमें कोई तवालत नहीं है, कोई आफत नहीं है। पर पर कि औरतों की दुर्दशा होती है। परदेस में हम बहुत भारत देश में एक और प्रथा चल पड़ी है कि जैसे चले साल रहे, जाते-आते रहे तो यह फर्क मुझे मालूम हुआ। वैसे चलने दो। फिर आप क्या बात कर सकते हैं। यहां बड़ा महसूस हुआ कि यहा पर देखिए कि एक औरत एक से एक विद्वान हो गए, संस्कृत के पंडित हो गए, की कोई कीमत ही नहीं है, वही बच्चे पैदा करती हैं, डतना ज्ञान दे गए, पर लोगों को इसका बिल्कुल अंदाज वही संवारती है। और भारतीय नारी तो वैसे भी बड़ी नहीं है। वो जानते नहीं कि कितने महान देश में आप सुन्दर होती हैं, बहुत कार्यक्षम, बहुत दक्ष और बहुत ही पैदा हुए हैं और इसके अंदर कितना ज्ञान दे गए। यही ज्यादा मोहब्बत वाली होती है। यहाँ की माताएं तो मशहूर औरतों को आप बिल्कुल कुछ नहीं समझते, औरतों को हैं पर हमारे यहां उनके लिए कोई प्रेम- आदर नहीं। पता तो बिल्कुल जैसे कोई भिखारियों जैसे रखा जाता है। पति नहीं ऐसा क्यों? हाँ वहाँ जरूर है औरतों ने ही अपना जो है वो शराब पियेगा और बीवी को मारेंगा, और मारेगा मंच बनाया हुआ है। उन्होंने अपने लिए यह सब यह नहीं तो भी उसको कुछ सहुलियत नहीं है, कोई स्थापित कर लिया है । और इस देश में उनका पूछने सुविधा नहीं बेचारी को। वो किसी तरह से भी रह लेगी। वाला कोई नहीं। इसी ख्याल से हमने यह छोटा सा हाँ अगर कोई रईस की लड़की होगी तो ठीक है, नहीं आश्रम बनाया है कि इस आश्रम में जो लोग आएं तो बहुत सताते हैं। और इस तरह से कितनी ही औरतें लड़कियां-औरतं, उनको दे दिया जाए ज्ञान, अपने पांव चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 9 ेर पर खड़ा होना और सहज-योग भी उसके साथ। गर वो अपनी जिन्दगी काट सकें। वो भी इन्सान हैं, वो कोई इसको प्राप्त कर लें तो वो बहुत अभिमान के साथ और गौरव के साथ रह सकती हैं। यहीं आश्रम में हम बहुत सी इंडस्ट्रीज़ भी बना सकते हैं. बहुत जानवर तो नहीं है। वो भी इन्सान हैं और इन्सान- की पदवी उनको देना यह नितान्त आवश्यक बात है। गर हम यह बात नहीं समझेंगे, पहले तो अपने घर-द्वार से शुरु से खाने पीने की चीजें बना सकते हैं, और बहुत से उच्च तरह का शिक्षण करें, वहीं से देखें कि क्या से क्या चल रहा है। हमने तो बहुत नज़दीकी से देखा है और सिवाए रोने के और कोई मार्ग नहीं था। भी दिया जा सकता है। यह तो देखा जाएगा कि किन औरतों में इसकी क्षमता है, कितनी औरतें इसमें उठ-खड़ी होती हैं कभी-कभी हमने देखा है कि ऐसी ही जगहों से जहां पर औरतों को कुचला गया है, बड़े-बड़े स्थानों में औरतें उठ खड़ी हुई। पर हमको उनकी मदद करनी होगी, हमें देखना होगा क्योंकि जो हो रहा है वो अपने मैं जान करके हिन्दी में बोल रही हूँ क्योंकि परदेसी लोग हैं, इनके सामने अपने देश की औरतों की निन्दा कैसे करें? इन लोगों को देश के प्रति बहुत अभिमान है । जब भी आते हैं तो पहले सर को जमीन में छू करके अभिनन्दन करते हैं। इतना मानते हैं कि मैं आपसे बता नहीं सकती। मैंने इनको कभी नहीं कहा। अपने ही समाज के लिए बहुत हानिकारक है, और बड़ी दुष्टता की निशानी है। उस तरफ हमारा ध्यान ही नहीं है, पता नहीं कैसे? उधर ध्यान देना बहुत जरूरी है। और यह जो औरतों की तरफ हमारा, कहना चाहिए कि, उनके लिए जो हमारे हृदय में जो श्रद्धा होनी चाहिए वो नहीं है। बिल्कुल नहीं है और हम बुरी तरह से उनको सताते भी हैं, पीटते भी हैं, बात-बात में मारते भी हैं। ऐसी -ऐसी मेरे पास कहानियाँ हैं कि मैं उनको अभी गर सुनाऊं तो आप रो पड़ियेगा। मैं बहुत रो चुकी हूँ अब चाहती हूँ कि कुछ न कुछ मार्ग ढूंढा जाए और इसलिए यह छोटा सा प्रयास किया है । इसको बढ़ा भी सकते हैं बाद में और फिर यहाँ से जो औरतें ठीक हो कर जायेंगी, जो यहाँ से, कहना चाहिए कि, परिपक्व हो कर जायेंगी, वो कुछ न अपनी जिन्दगी में करेंगी इतना ही नहीं वो अपने विचार से, अपनी ही श्रद्धा से यह समझते हैं कि यह तो नन्दन वन है और उनको अभी यहाँ की दुर्दशा का पता नहीं है इसलिए मैं नहीं चाहती कि इनको पता चले, अपने देश की बुराई करने में क्या रखा है? पर जो बुराई है उसे निकालना चाहिए, उसको हटाना चाहिए। यही बात में आप सब से कह रही हूँ। वहां औरतों का मान होने का कोई विशेष कारण तो है नहीं, पर वहाँ के कायदे-कानून ऐसे बन गए थे कि कोई भी औरत कहीं पड़ी हो, कैसी भी हो, कहीं हो, उसकी बेइज्ज़ती नहीं होती इसलिए हमें भी चाहिए कि हम भी समझें कि यह बहुत बड़ी बात है कि हम भी अपनी औरतों का मान करें और उनके प्रति श्रद्धा रखें। हमने तो इतनी भयंकर चीजें देखी हैं कि विश्वास नहीं होता कि कोई इन्सान दूसरे कुछ को संभाल सकती हैं। अपने बच्चों को भी संभाल सकती इन्सान को इस तरह से छल सकता है, सता सकता है परेशान कर सकता है। एक अजीब ही तरह की गुलामी हम तो अंग्रेज़ों की गुलामी से तो छुटकारा पा गए हैं और बाइज्जत अपनी जिन्दगी निभा सकती हैं। यह बहुत जरूरी है। उनको कितना भी आप शिक्षण दीजिए, कुछ दीजिए, घर में उनकी अगर इज्जत होती नहीं तो वो क्या करेंगी बेचारी। उनकी पढ़ाई-लिखाई की यदि इज्जत नहीं होती तो वह क्या करेगी? इसलिए कोशिश यही करनी है कि इनको इस लायक बना दिया जाए, इन औरतों में यह आ जाए हुनर कि वो स्वाभिमान के साथ है। लेकिन हमारे समाज में जो इस तरह की गुलामी है उससे छुटकारा पाना बहुत जरूरी है। हमारे देश की महिलाएं, मेरे ख्याल से कम से कम 70 फीसदी है और बाकी आदमी लोग हैं, इतना होते हुए भी आदमियों में बड़ा चैतन्म लहरी खण्ड XV अक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 10 घमंड है। अपने को पता नहीं क्या समझते हैं और सोचते हैं कि हम चाहे जो भी कर लें वह ठीक हो जाएगा ऐसा नहीं है। एक औरत भी स्त्री है एक समाज का बड़ा भारी घटक है। उनके साथ जो भी आप ज्यादती करिएगा उसका फल आपको और आपके बच्चों को भोगना ही पड़ेगा। अब हम लोग देखते हैं कि हमारे बच्चे भी खराब हो रहे हैं क्योंकि उन पर नियंत्रण कौन करे, माँ को तो मुहब्बत इज्जत से रखेंगे यह दुर्दशा मुझे नए तरीके से क्या बताना है। जो है सो है। पर आप लोग अपने व्यक्तिगत जीवन में देखें कि आपके यहाँ औरतों का क्या हाल है। आपकी माँ, बहनों का क्या हाल है। और उसके बाद समाज की ओर दुृष्टि करें। यह ठीक हो जाने से आपका देश बहुत उन्नति पर पहुँच जाएगा, बहुत ऊँचा उठ जाएगा| जहाँ पर औरत निर्देश करती हैं और कोई अधिकार नहीं और बाप को फुर्सत नहीं, तो बच्चों संभालती हैं वहाँ पर बड़े महान-महान लोग हो गए। पर को ठीक कौन करेगा. और कौन देखेगा? यह तो घर-घर यहाँ जिस तरह से घटित हो रहा है, इस छोटे से प्रयास की कहानी है। मैंने तो देखा है कि यू.पी में देखिए कि से आशा है, मुझे आशा है, कि कुछ तो हालात ठीक कॉलेज में जाने वाले लड़के दिन-दहाड़े कॉलेज से छुट्टी होएंगे। इतने दिन से मैं जिस चीज़ के लिए रोती रही पा करके और किसी भी रेलगाड़ी में चढ़ जाएगें और पूरेशान थी, उसकी ओर सबका ध्यान जाए और सब वहां लूट- खसीट करेंगे और उनकी माँ लोग करेंगी क्या? वो तो कुछ बोल नहीं सकती। उनको तो कोई सुनता ही लोग उस ओर देखें । सहजयोग से आप आत्मा को प्राप्त होते हैं, आप नहीं। इस चीज़ को बदलना नहीं चाहिए और अपने घर आत्मा को जानते हैं, पर सबके तरफ आपकी जो दृष्टि की जो औरतें हैं उनकी सामाजिक व्यवस्था उसकी है उसमें करुणा होनी चाहिए। आत्मा को प्राप्त करके उन्नति करनी चाहिए और उसकी ओर विचार करना आपके अन्दर करुणा नहीं हुई तो क्या फायदा? करुणा होनी चाहिए और उस करुणा में आप देखिए, चारों तरफ वो अपने घर में जब शुरू होगा तो और भी जगह हो आप देखकर परेशान हो जाएंगे कि यह माँएं और बहनें जाएगा। मुझे इसके लिए नितान्त-नितान्त तकलीफ होती किस दुष्चक्र में फंस गई हैं इसके लिए आपसे विनती है। हम तो क्या बताएं आपको, सब बेकार है। सहन नहीं है मेरी कि आप आस-पास आंख घुमा कर देखिए, होता। जब यह इमारत बनने को हुई हमने कहा कुछ भी घर-बाहर देखिए और औरतों की जो स्थिति बनाई हुई है करो, पैसा-वैसा हम दे देंगे, बिल्डिंग बनाओ किसी तरह उसे व्यवस्थित करने का प्रयत्न करें । हमने तो छोटा सा चाहिए। से और जब यह बिल्डिंग बन गई तो मुझे बड़ी खुशी एक प्रयास किया है पर आप लोग बहुत कुछ कर सकते हुई। किसी तरह से कम से कम ऐसी एक चीज बनी है, हैं इसलिए मैं आप सबसे बिनती करती हूँ कि जैसा ऐसी एक चीज़ बन गई कि जिससे औरतों की तरफ ध्यान आकर्षित होगा। और लोग उनको कुछ तो उनकी अपनी बहनों को प्यार करें आप मुझे प्यार करते हैं ऐसा ही आप अपनी माँ को और अनन्त आशीर्वाद। ध्यान क्यों करना चाहिए प्रभादेवी, बम्बई, 1 फरवरी, 1975 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन सहजयोग में सबसे आवश्यक बात ये है, कि इसमें आखिर बात क्या है? ये lime बचा कर भागे- भागे आप अग्रसर होने के लिये बढ़ने के लिये आपको ध्यान करना वहां क्यों जा रहे हैं? तो कहने लगे "वहां एक special पड़ेगा। ध्यान बहुत जरूरी है। आप और चाहे कुछ भी dinner है (विशेष भोज) वो मुझे attend करना है, न करें लेकिन अगर आप ध्यान में स्थित रहें, तो और उसके बाद वहां पर Ball (Dance) है"। Time सहजयोग में प्रगति हो सकती है। आप बचा किसलिये रहे हैं? जैसे कि मैंने आपसे कहा था कि एक ये नया रास्ता हर समय, आप ये सोच लीजिये कि जो हाथ में घडी है। नया आयाम है, dimension है;B नई चीज है जिसमें बंधी है, ये सहजयोग के लिए और 'ध्यान' के लिये है। आप कूद पड़े है। आपके अचेतन मन में, उस महान और सहजयोग के ही कार्य के लिये बांधी हुई है, मैंने सागर में आप उतर गए हैं, बात तो सही है। लेकिन उसी लिये बाँधी है, नहीं तो मैं कभी भी नहीं बाँधती। जिस आदमी का पूरा ही समय सहजयोग में बीतता है, उसको जरूरी नहीं कि आप घर का काम न करें। ये इसकी गहराई में अगर उतरना है, तो आप को ध्यान करना पड़ेगा। मैं बहुत से लोगों से ऐसा भी सुनती हूँ कि "माता जी, जरूरी नहीं कि आप दफ्तर का काम न करें; सारा ही कार्य आप करें पर 'ध्यान में करे', ध्यानावस्थित होकर के ध्यान के लिए हमको time (समय) नहीं मिलता है।" कार्य हो सकता है क्योंकि आप को ध्यान में उतार दिया आज का जो आधुनिक मानव है, modern man है, उसके पास घड़ी रहती है, हर समय time बचाने के, है। हरेक काम करते वक्त आप निर्विचार हो सकते हैं। लिये, लेकिन वो ये नहीं जानता है कि वो time किस और निर्विचार होते ही उस काम की सुन्दरता, उसका चीज के लिए बचा रहा है? उसने घड़ी बनाई है वो 'सम्पूर्ण' ज्ञान और उसका सारा आनन्द आप को मिलने सहजयोग के लिये बनाई है, ये वो जानता नहीं है। लग जाता है। समझने की बात है, ये लोग समझते नहीं हैं। इसलिये एक साहब मुझ से कहने लगे कि "मुझे लंदन जाना बहुत जरूरी है। और इसी Plane (हवाई जहाज) से ध्यान के लिये अलग से time नहीं मिलता है, जाना ही है और किसी तरह मेरा टिकट बुक होना ही शुरु हो जाता है। लेकिन जब इसका मजा आने लगता है, तब आपको आश्चर्य होगा कि नींद बहुत कम हो जाती झगड़ा चाहिये और कुछ कर दीजिये आप, और Air-India वालों से कह दीजिये और कुछ कर दीजिये...।" मैंने है और आप ध्यान में चले जाते हैं। निद्रा में भी आप सोचेंगे कि आप ध्यान में जा रहे हैं । कोई भी चीज छोड़ने कहा ऐसी कौन-सी आफत है? आप लंदन क्यों जाना चाहते हैं? ऐसी कौन सी आफत है? क्या विशेष कार्य की या कम करने की नहीं। लेकिन हमारी जो महत्वपूर्ण चीजें हैं-जिसे हम महत्वपूर्ण समझते हैं, वो बिल्कुल ही आप वहां करने वाले हैं? कौन सी चीज है? कहने लगे '| must go there, I have to save time" (मुझे महत्वपूर्ण नहीं रह जातीं। और जिसको हम बिल्कुल ही जरूरी जाना है, मुझे समय बचाना है) "time is very विशेष समझते नहीं हैं, वो हमारे लिये 'बहुत कुछ' हो important" (समय बहुत मूल्यवान है). मैंन कहा जाता है। दअ चंतन्य सहरी छण्ड xV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 12 द सय ध्यान करने के लिये एक छोटी सी चौज आपको चाहिये या नहीं। ये तो आप जानते हैं कि क्षण-क्षण आप याद रखनी चाहिये, कि जिस चीज पर ध्यान का आलाप उसे पा रहे हैं; और हर क्षण उसे आप खो भी रहे हैं। छेड़ा जाएगा, जिस वीणा पर ये सुन्दर गीत बजने वाला है, वो साफ होनी चाहिये। आप वो वीणा नहीं हैं, आप ये हरेक क्षण कितना महत्वपूर्ण है, इसे आप देखिये। कौन-सी छोड़ने की बात, कौन-सी पकड़ने की बात कोई भी ऐसी बात मैंने आप से आज तक तो की नहीं वो आलाप भी नहीं हैं, लेकिन आप उसको सुनने वाले है और उसको बजाने वाले हैं आप उसके मालिक हैं। होगी। लेकिन ये आपका भ्रम है। आपका मन आपको इसलिये अगर बो वीणा कुछ बेसुरी हो, उसके अगर तार जंग खा जाएं, या उसके कुछ तार टूट जाएं, तो आपको जरूरी है कि उसको ठीक कर लेना चाहिये अगर वो ठीक नहीं हैं, तो आपके जीवन में माधुर्य नहीं है। आप भ्रम में डाले दे रहा है। तो तुम क्या घर गृहस्थी छोड़ दोगी? मैंने घर-गृहस्थी छोड़ी है जो आपसे मैं घर-गृहस्थी छोड़ने को कहती हैँ? आप जानते हैं कि आपसे कहीं अधिक मैं मेहनत करती हूँ। लेकिन मैं थकती नहीं हूँ में वो सुन्दरता नहीं आ सकती, आप में एक अजीब तरह क्योंकि मेरे आनन्द का स्रोत आप लोग हैं। जब आपको ) देख लेती हूँ, बस खुश हो जाती हूँ। तबीयत सारी का चिड़चिड़ापन, अजीब तरह की रुक्षिता (dryness और विचलितता दृष्टिगत होगी। बाग-बाग हो जाती है। एक सहजयोगी को एकदम निश्चित मति से ध्यान में बैठना, देखना, बहुत बड़ी चीज हो जाती है मेरे लिये। और बही मैं देखती हूँ कि कुछ सहजयोगी गहराई से | जिस चीज का महत्व है, उधर दृष्टि रखिये। आप को पूरी तरह से मैं ये नहीं कहती कि चौबीसों घण्टे इसमें आप यहीं बैठे रहिये! जहाँ भी बैठे हैं, वहां वैठे रहिये-ये अन्दर चले जा रहे हैं और कुछ सहजयोगी बहुत मतलब है मेरा। जहाँ भी जमे हैं वहाँ जमे रहिये, अपने विचलित हैं। ये नहीं में कहती कि सभी लोग उतनी दशा स्थान पर, अपने सिंहासन पर। कुछ लोग इसीलिये प्रगति करते हैं और कुछ लोग नहीं करते। शारीरिक बीमारियां आप लोगों की, बहुतों की ठीक हो गई हैं। बहुतों के पास बीमारियां नहीं हैं में पहुँच सकते हैं या नहीं। लेकिन जो कुछ भी बन पड़े वो इस जीवन में करना ही चाहिये। उपार्जन का जितना भी समय है, वो इसी में बिताना चाहिये। और जो कुछ लेकिन अभी भी मानसिक प्रश्न है । भी मिल सके, सभी इसी में मिलना चाहिये बाकी कुछ हो या नहीं। सब बातें भूल जाइए। हर इन्सान इसका पाने का अधिकतर लोगों को मैं ये देखती हूँ, इधर-उधर की अधिकारी है। आपका जन्मसिद्ध हक है, क्योंकि ये पचासों बातें करेंगे, लेकिन ध्यान की बात अपने मनशुद्धि 'सहज' है, आप ही के साथ पैदा हुआ है। लेकिन ध्यान की बात, अपने अन्दर के आनन्द को उभारने की बात करना ही होगा और वो भी समष्टि में लेकिन उसको कितने लोग. आप लोगों में से करते हैं? "इसने ये कहा, organise करने की आप लोग इतनी चिन्ता न करें। उसकी व्यवस्था करने की आप इतनी चिन्ता नहीं करें। वो कार्य हो रहा है, वो हो भी जाएगा। क्या हर्ज है अगर दस आदमी ज्यादा आएं चाहे दस आदमी कम। हजार बेकार के लोग रखने से दस ही कायदे के आदमी हों सो उसने वो कहा, ऐसा हो गया, ऐसा नहीं करना चाहिए शथरा वैसा नहीं करना चाहिये था " -ये क्या सहजयोगी को शोभनीय होगा? जब आपके पास निर्विचार की इतनी बड़ी सम्पत्ति है, तो क्या उसको पूरी तरह से उघाड़ देना चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 13 देवता यहां जागृत हैं। लेकिन बहुत जरूरी है कि इन जागृत देवताओं का कहीं भी अपमान न हो। इन को ही संभाल के और जतन से रखना चाहिये। इनकी पूजा होनी चाहिये। अपने हाथ ऐसे होने चाहियें कि पूजनीय ही सहजयोग के लिये 'विशेष चीज' है। आप उनमें से बनिये जो दस 'अच्छे' आदमी हैं। जो बहुत ऐसे लोग हैं, जो सहजयोग का कार्य अत्यंत प्रेम से करते हैं और उसमें मजा उठा रहे हैं, उसमें बह रहे हैं, उसमें अग्रसर हैं, और एक अग्रिम श्रेणी में जाकर के खड़े हो जाते हैं। जैसे कि हिमालय संसार में सबसे ऊँचा है। उसकी ओर सबकी दृष्टि रहती है। ऐसे ही आप बनें। आप ही में आप हिमालय बन सकते हैं और आप देख हों। लोग ये सोचे कि ये हाथ हैं या गंगा की धारा! गंगा ही की धारा बहे। जिस वजह से गंगा पावन हुई वही (वाइब्रेशन) चैतन्य, आपके अन्दर से बह रहे हैं। जिस चैतन्य शक्ति से सारी सृष्टि चल रही है, वही आपके अन्दर से बह रही है, ये आप जानते हैं। फिर जिन हाथों से, जिन पांव से ये चीज बह रही सकते हैं कि दुनिया आप की ओर ऑख उठा कर कहे कि बनूँ तो मैं इस आदमी जैसा बनूँ जो सहजयोग में इतना ऊँचा उठ गया ये अन्दर का उठना होता है, बाहर का नहीं। और मैं सबके बारे में जानती हूँ कौन कहाँ तक पहुँच रहा है। है, उसको 'अत्यन्त पवित्र' रखना चाहिये। मेरा मतलब धोने-धवाने से नहीं है। इसमें जो भी आप काम करें, अत्यन्त सुन्दरता से, सुगमता से और 'प्रेम' से होना आप ही अपनी रुकावट हैं। और कोई आप की चाहिये। 'सबसे बड़ी' चीज 'प्रेम' है। ध्यान में गति करना, यही आपका कार्य है, और कुछ रुकावट नहीं कर सकता। कोई भी दुनिया का आदमी भी आपका कार्य नहीं है, बाकी सब हो रहा है। और आप पर मन्त्र-तन्त्र आदि 'कोई' चीज़ नहीं डाल सकता। आप ही अपने साथ अगर खराबी न करें और पहचाने रहें आप में से अगर कोई भी जब ये सोचने लगेगा कि कि कौन आदमी कैसी बातें करता है, आप खुद ही समझ मैं ये कार्य करता हूँ और वो कार्य करता हूँ, तब लेंगे कि इस आदमी में कोई न कोई दुष्टता आ गई है, तभी वो ऐसी बातें कर रहा है, नहीं तो ऐसी बात ही न करता वो। जैसे गलत बात वो कर रहा है, इसमें कोई न कोई खराबी है। उसमें साथ देने की कोई जरूरत नहीं। फिर चाहे वो आपका पति ही हो, चाहे आपकी वो पत्नी आप जानते हैं कि मैं अपनी माया छोड़ती हूँ और बहुतों ने उस पर काफी चोट खाई है। वो मैं करूंगी। पहले ही मैंने आप से बता दिया है, कि कभी भी नहीं सोचना है कि मैं ये काम करता हूँ या वो काम करता हूँ। "हो रहा है।" जैसे "ये जा रहा है और आ रहा है।" अब सब तरह से अकर्म में-जैसे कि सूर्य ये नहीं कहता कि हो। उससे लड़ाई-झगड़ा करने की उलझने की 'कोई' मैं आपको प्रकाश देता हूँ।"वो दे रहा है।" क्योंकि वो जरूरत नहीं। वो अपने आप ही ठीक हो जाएगा। इतना ही नहीं आप ये भी जानते हैं कि आपमें कोई एकतानता में परमात्मा से, इतनी प्रचण्ड शक्ति को अपने खराबी आ जाए तो आप किस तरह से उसे हाथ चला अन्दर से बहा रहा है। ऐसे ही आपके अन्दर से 'अति' कर भी ठीक कर सकते हैं. क्योंकि आपके हाथ के अन्दर ही वो चीजें बह रही हैं। असल में आपकी सूक्ष्म शक्तियां बह रही हैं क्योंकि आप एक सूक्ष्म मशीन हैं। आप सूर्य जैसी मशीन नहीं हैं, आप एक "विशेष" मशीन हैं, जो बहुत ही सूक्ष्म है, जिसके अन्दर से बहने वाली ये सुन्दर धाराएं एक अजीब तरह की अनुभूति देंगी उँगलियों में ही ये सब जो भी देवता मैंने बताए हैं ये जागृत हैं, इन पाँचों उँगलियों में और इस हथेली में, सारे चैतन्य लहरी खण्ड XV अक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 14 ही, लेकिन दूसरों के भी अन्दर। उनके छोटे-छोटे यंत्र हैं. मशीनें हैं, उनको एकदम से प्रेमपूर्वक ठीक कर देंगे । उसमें समा जाएगा। अब अगर वो नहीं है तो उसमें पानी डालने से क्या फायदा, वो तो सब पानी निकल जाएगा। अपनी गहराई आप ध्यान से बढ़ाते हैं। ध्यान पर स्थित ये जो शक्ति है, ये फ्रेम की शक्ति है। इस चीज़ का वर्णन कंसे करूं में आप से? इस मशीन को ठीक करना है, तो आप किसी भी चीज से रगड़-मगड़ कर के ठीक कर दें, कोई आप screw (पेच) लगा दें, तो ठीक हो जाएगा। लेकिन मनुष्य की मशीन जो है वो प्रेम से ठीक होती है। उसको बहुत ज़ख्मी पाया है। बहुत जख्म हैं उसके अन्दर में बहुत दुखी है मानव। उसके जख्मों को होइये। ध्यान में जाइये। ध्यान में जो विचार आ रहे हैं उनकी ओर देखते ही आप निर्विचार हो जाएंगे| निर्विचार होते ही उस अचेतन मन में 'अचेतन', सुप्त चेतन नहीं कहेंगे-अचेतन मन में अपनी चेतना के सहित आप जाएंगे। आपकी चेतना, आपकी consciousness खत्म नहीं होती। वहाँ आप चेतना को जानेंगे ये पहली मर्तबा इंसान के शरीर के अन्दर हुआ है, कि आप अपना भी शरीर जानते हैं और दूसरों का भी जानते हैं और दूसरों के बारे में आप सामूहिक चेतना से जानते हैं कि इसके प्रेम की दवा से आपको ठीक करना है। जो आपके अन्दर से बह रहा है, ये वाइब्रेशन सिर्फ "प्रेम" है। जिस दिन आपकी प्रेम की धारा टूट जाती हैं, जाते हैं। वाइब्रेशन रुक अन्दर क्या हो रहा है। बहुत से लोग मुझसे कहते हैं "माता जी हमको बाधा हो गई। हमारे हाथ से वाइब्रेशन बंद हो गए।" आपके इसका महत्व अभी बहुत कम लोग जानते हैं। क्योंकि सब लोग मुझसे कहते हैं कि "माता जी, सबसे अगर आप रुपया लें, तो सब लोग समझेंगे क्योंकि लोग पैसों को बहुत मानते हैं " पैसा एक भूत है। पैसा लेने से अगर आप इसका महत्व समझें तो बेहतर है कि आप न ही समझें। कोई भी पैसा देने से इसका महत्व आप अन्दर से प्रेम की धारा टूट गई। प्रेम का पल्ला पकड़ा रहे, सिर्फ प्रेम का-वाइब्रेशन बहते रहेंगे। क्योंकि ये ही प्रेम परमात्मा का जो है, वही बहे जा रहा है। और वही बह रहा है। नहीं समझ सकते। अपने को ही पूरी तरह से देना होगा । इतनी अद्भुत अनुभूति है, इतना अद्भुत समां आया और वो देने में कितना मिलने वाला है। जो आप सात गुने हुआ है। क्या ये सब व्यर्थ हो जाएगा क्योंकि आपने खड़े हुए हैं वो तो एकदम साक्षात मिल जाएगा| ध्यान में समष्टि रूप में ही आप को आना होगा. ये इसमें पूरी लगन से मेरा साथ नहीं दिया? हरेक बात आप खुद भी जान सकते हैं, और न जानने पर मैं भी आपसे हरेक बात बताने के लिए हमेशा तैयार रहती हूँ। लेकिन थोड़ा-सा इसमें एक आप से सुझाव देने का है, कि आप इसके अधिकारी तो हैं या नहीं, इसे जरूरी है चाहें महीने में एक बार ही आएं. लेकिन जहाँ सात लोग बैठते हैं, वहीं बैठ कर ध्यान करना चाहिये। चाहे आप अपना एक छोटा ग्रुप बना लें जहाँ आप हफ्ते में एक बार मिल सकें और एक बार बड़े ग्रुप में मिलें। क्योंकि मैंने आपसे बताया था कि ये "विराट" का कार्य सोच लोजिये। क्योंकि आप मेरे ध्यान में आते हैं-जैसे मराठी में बहुत से लोग कहते हैं,-"जमून आले" इससे है। आप अधिकारी 'नहीं' होते। आप अधिकारी इसलिये होते हैं, कि आपके अन्दर वो गहराई आ गई। जैसे एक गागर है जितनी गहरी होगी, उतना पानी जैसे शरीर का एक-एक अंग-प्रत्यंग जो है, उसको जागना है। जितना जागृत होता जाएगा, वैसे-वैसे दीप चंतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एव 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 15 बनाया हुआ है, उन्होंने मुझे दीक्षा दी।" मैने कहा दीक्षा क्या दी? ये हिलने की दीक्षा दी? कहने लगे कि "मैंने जलते जाएंगे। आप लोग जो घर में बहुत भी ध्यान करते रहें, मेरे आने के बाद आप जानते हैं, कि आप लोगों ने सोलह साल में बीमारियाँ उठाई, मेरी नौकरी चली गई, ये हो गया, वो हो गया|" मैंने कहा तुम्हारे अक्ल नहीं आई? पाया कि कुछ प्रगति नहीं हुई। लेकिन यहाँ छ:-सात आदमी जो रोज आते थे और ध्यान करते थे, उन्होंने बहुत अगर तुम्हारे गुरु हैं, तो तुमको ये सब होना नहीं चाहिये। कितने रुपये दिये? " अभी तक 5-6 हजार रुपये दे प्रगति कर ली । ध्यान में अगर आप की आँखें फडक रही हों, तो समझ लेना चाहिये कि आज्ञा चक्र पर कोई चोट हो रही चुका हूँ centre को।" मैंने कहा अच्छा 5-6 हजार है। उसमें बुरा मानने की कोई बात नहीं है अपना आज्ञा रुपये देकर के सारी बीमारियाँ तुमने अच्छे से मोल ले लीं। फिर उसके भूत-वो जो भागवत् साहब थे उनको चक्र अगर खराब है तो उसे ठीक कर लेना चाहिये। जुते मारे और वो जो उनका centre था, उसको भी जूते क्योंकि आपका आनन्द कम होता है। आपका शरीर अगर हिल रहा हो ध्यान में, और आप मारे तब उनका हाथ ठहरा और वो ठीक हो गए-ये तो आराम से बैठ नहीं सक रहे हों, तो समझ लेना चाहिये आप ही के सामने सब हुआ था, बहुत से लोग वहाँ थे। लोगों से साफ-साफ बात कर लेनी चाहिए कि आपके मूलाधार पर ही चोट हो गई है ये और भी dangerous situation (खतरनाक परिस्थिति) हो जाती मूलाधार पर जब चोट हो जाती है, उसका भी इलाज करा लेना चाहिये। वो भी लोग जानते हैं, किस तरह से आपके कोई न कोई गुरु हैं, आपक अन्दर कोई न कोई बाधा है। कोई न कोई गड़बड़ है, उसमें कोई बुरा मानने की बात नहीं। मूलाधार चक्र को ठीक करना चाहिये। जानने को तो आप लोग मेरे लैक्चर सुन-सुन के सब शास्त्र जान लें, लेकिन मैं देखती हूँ कि जो लोग थोड़े ही दिन पहले आए हैं, वो आप लोगों से कभी-कभी बहुत जोरों में जल्दी आगे बढ़ जाते हैं। क्योंकि ये पढ़ाने-लिखाने की बात है ही नहीं। लेकिन मैं देखती हैँ कि एक को जरा सी भी बाधा पकड़ रही हो तो दूसरा बाधा वाला बराबर, उसके साथ में खड़ा हो जाएगा लाइन से वहाँ खिंच जाते हैं एक साथ। और पता हो जाता है ये सारे बाधा वाले साथ बैठे हैं। असल में ऐसा बैठना नहीं चाहिये। सब को अलग-अलग बैठना चाहिये, अधिकतर; आप के हाथ अगर थरथरा रहे हैं, कंपकंपा रहे हैं, जैसे कि कोई ग्रुप बना लेते हैं। "बहुत" गलत बात है। तो भी समझ लेना चाहिये कि कुछ न कुछ आपके अन्दर बहुत बड़ी खराबी हो गई है। उसमें जूते मारने का इलाज सबसे अच्छा हैं कल एक साहब आपने देखा होगा कि वहाँ कहने लगे कि "माता जी, मैं वहाँ एकदम जड़ हो गया।" फिर मेरे सामने आकर यूँ-यूँ करने लगे। उनसे मैंने जैसे कि ठाणे वाले आए तो ठाणे वाले साथ बैठ गए, फलाने आए-ऐसा नहीं। अलग-अलग बैठिये। बहुत जरूरी है। सब इकट्ठे होकर मत बैठिये। दूसरी बात ये है कि जैसे कोई बुड्ढे हैं, उम्र में ज्यादा हैं, बुजुर्ग हैं, कुछ बीच के हैं, कुछ छोटे हैं। छोटे बच्चों पूछा कि तुम्हारे गुरु कौन हैं? तो कहने लगे कि "एक को तो ऐसी कोई विशेष बात नहीं है लेकिन जो बीच के हैं. भागवत् सा. हैं पूना में " तो मैंने कहा वो क्या करते हैं? और ये लोग हैं, ये सब अलग-अलग बैठें। जो वृद्ध हैं, तो कहने लगे कि "उन्होंने एक spiritual centre वो जवान लोगों के साथ बैठे। जो जवान हैं वो बूढों के का चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 16 साथ बैठें। चार पाँच जवान इकट्ठे हो जाएँ तो भी आपस में बताना है और इसी को आपस में जानना है। और बाकी सब व्यर्थ है। बाकी सब चीजों में मौन ही आफत हो जाएगी। और चार-पाँच बूढ़े इकट्ठे हो जाएँ तो भी आफत हो जाएगी। आप देख लीजिए; होता है! बेहतर चीज है। जब इस तरह के सहजयोगी हो जायेंगे जवानी और बुढ़ापे की जो समझ है, दोनों बाँटने की तो बड़ा अन्तर हो जाएगा। "बहुत बड़ा अन्तर"। चीज़ है वो भी सामूहिक चेतना में आप बाँट सकते हैं। बड़ों को समझदारी चाहिए, wisdom चाहिये; जरूरी जिससे प्रतिबिंब पड़ता है तो एकदम 'साफ' चीज होनी सहजयोग का प्रतिबिंब आपसे फैलने वाला है। और हैं। "बहुत" wise होना चाहिये। बड़प्पन चाहिये, बड़ा चाहिये। और उसकी प्रतिबिंबित होने की शक्ति अगर दिल चाहिये। और छोटों को मानना चाहिये, बड़ों को पूरी तरह से जाग उठे तब कोई भी मुश्किल नहीं रह मानना चाहिये। और छोटों में activity (कार्यवाही) जाती। सहजयोग और किसी चीज़ से नहीं-किसी भी ज्यादा होनी चाहिये, बड़ों से। बड़े आदरणीय हों तो चीज़ से नहीं - आप बड़े-बड़े organisations (संगठन) कर दीजिये, आप बड़े-बड़े मंत्र-जागरण कर दीजिये, और गाने हो जाएं और music (संगीत) हो जाए-इससे नहीं होने वाला। इन सब चीजों से कुछ भी नहीं होने उनका आदर होगा। पर बड़ों को आदरणीय होना चाहिये और छोटों को बड़ों का आदर करना चाहिये। अनादर तो वैसे भी एक सहजयोगी का दूसरे सहजयोगी वाला है। से करना नहीं, क्योंकि आप लोग सब देवता स्वरूप हैं। ये सब आप ध्यान में समझ सकते हैं। आपसी बातों से, दूसरों के बारे में आंतरिकता से अगर आप सोचें तो आप मैंने तो इतने कभी पार लोग देखे नहीं जितने आज देख रही हूँ। ये अहो भाग्य है हमारा कि ऐसे मैं देख रही हूँ। किसी भी युग में इतने पार लोग, मेरी दृष्टि के सामने फौरन समझ लेंगे कि " अरे भई उनका तो ये आज्ञा चक्र नहीं रहे। ये "परम्" भाग्य की बात है। लेकिन जैसा कि मैं कहती हूँ कि modern time पकड़ा है, इसीलिये ऐसा हो रहा है।" " अरे भई उनका तो हृदय चक्र पकड़ा है, इसीलिये ऐसा हो रहा है। " "इसीलिये स्वर ठीक से नहीं निकल रहे हैं" आपको (आधुनिक युग) में पूरे साधु कोई नहीं हैं। आप ही लोग पहले बहुत बड़े साधु थे और संसार में रमे हुए नहीं थे, नहीं लगेगा। " बुरा लेकिन बुरा लगना, यही "बहुत बड़ी" बाधा है। मेरी बुरा" नहीं लगेगा। दूसरों को भी जंगलों में रहते थे। आज आप ने संसार ले लिया है और भी बात का लोग बुरा मानते हैं तब फिर औरों का क्या संसार में आप रमे हुए हैं। लेकिन अपनी करेंगे। मेरी कोई भी बात का बुरा नहीं मानना चाहिये। मैं ही क्या मज़ा आ जाएगा! इस गंगा-जमुना में ही एक आपके बिल्कुल हित के ही लिये सारा काम करती हूँ, सरस्वती बहना शुरु हो जाएगी। साधुता में उतरते ध्यान में जाते वक्त किसी भी तरह की बाहर की ये आप जानते हैं। कोई भी बात की चर्चा होते वक्त ये आवाज आपको भूल जाती है। अगर कान में भी आप उंगली डालें और सहस्रार अगर आपका पूरी तरह से खुला हुआ है- तो इसकी पहचान है-पूरी तरह से आप देखना चाहिये कि हम सिर्फ यही चर्चा कर रहे हैं न कि 'हमारी कुण्डलिनी कहाँ है, 'हम कहाँ जा रहे हैं, कैसे उठ रहे हैं'। बाकी सब चर्चाएं व्यर्थ हैं । 'हम धर्म में ऑँख कान को बंद कर लें, आप सुन सकते हैं। इसीलिये कहाँ तक जागृत हो गए हैं। हम कितना पा गए हैं, कितना आनन्द परमात्मा का लूट रहे हैं', ये ही अनुभव जो वो लड़के आए थे, जो सुनते नहीं थे, उनको सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 17 चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सुगंध ही देती है। किसी को भी तकलीफ या दुख देना नहीं चाहिये। हाँ, कभी-कभी लोग उनकी मूर्खता की थोड़ा-थोड़ा सुनाई देने लग गया। अगर आपका सहस्रार खुल जाए, तो limbic area में-डाक्टर लोग सब जानते हैं कि वहाँ पर subtle वजह से किसी चीज़ को दुख मान लेते हैं-वो ठीक है। points होते हैं, subtle centres (सूक्ष्म केन्द्र) होते पर अपनी तरफ से आप निश्चित हो करके कभी भी हैं, उनको excite करने से वही काम होता है, जो नाक, किसी को दुख या तकलीफ नहीं देना चाहिए। कान, मुँह और सब अपने शारीरिक जितने भी organs ( अंग) हैं, उससे होता है। उसी सहस्रार को हम जागृत आपके पास तो innocence का switch हेै नहीं। मैंने देखा था कि देखें आप लोगों ने ऐसा. कोई switch कर लेते हैं जो सारे शरीर को यहाँ संभाले हुए हैं और बनाया है। अगर हो तो बैसे innocence का switch आपको सारे ही-जैसे सुगंध है-हरेक चीज़, नाक की दबा लीजिये तो आप देखेंगे कि आपका आज्ञा चक्र कोई जरूरत नहीं है आपको। फिर आप श्वास भी यहाँ एकदम "साफ" हो जाएगा। पर innocence का switch से ले सकते हैं। सारा का सारा ही शरीर अगर भ्रष्ट हो आप लोगों के पास है नहीं; दया का switch है नहीं, जाए तो भी आप यहाँ से सब काम कर सकते हैं। लेकिन शांति का switch है नहीं। ये सब switches आपके (भ्रष्ट) होता नहीं। शरीर तो आपका खिलते ही जा रहा अन्दर अभी तक लगे नहीं हैं। पहले आप सब अपने है। शरीर तो सुन्दर होते ही जा रहा है। बीमारियाँ तो भाग ही गई हैं। वो तो सब चीज ठीक हो ही गई। कोई देवता जगा दीजिये, अन्दर में जो बैठे हुए हैं, फिर उसके बाद एक-एक सारे सब के switch भी लग जाएंगे। थोड़ा-बहुत हो भी जाते हैं, तो ठीक हो जाते हैं। ध्यान में बढ़ने के लिए एक गुण बहुत जरूरी है। बहुत ही जरूरी है। उसको कहते हैं innocence- पर सबसे आसान innocence का switch लगाना है, क्योंकि हम लोग एक बार बहुत innocent थे जब हम लोग पैदा हुए थे, जब छोटे थे। छोटे बच्चों के साथ रहने से innocence आता है। उनकी बातें याद करने से भोलापन, स्वच्छ, एक छोटे बच्चों जैसा- innocent child, इसीलिये आपने देखा है कि छोटे बच्चे फट-से बहुत innocence आता है। जो लोग innocent हो पार हो जाते हैं। चालाक लोग, cunning लोग, अपने को जो बहुत होशियार समझते हैं, बस उनकी परमात्मा जाते हैं, वो परमात्मा के राज्य के अधिकारी हो जाते हैं । ध्यान में सिर्फ आप ही अपनी ओर विचार करें कि मेरा मन इस वक्त में कौन-सी चालाकी में लग रहा है की तो इच्छा नहीं होती, बस अपनी होशियारी दिखाते रहते हैं, वो नहीं पाते। "पूर्णतया" innocent होना इधर-उधर। महामूर्खता का कार्य कर रहा है। इतना बस देखते ही आप "निर्विचार"- "निर्विचारिता"-यही चाहिये। innocence है। देना भी, किसी को तकलीफ देना भी किसी को दुख आप लोग अब जब ध्यान में जाएंगे, बहुत देर तक innocence के "विरोध" में है। इतनी भरी हुई खोपडियों 44 ध्यान नहीं करेंगे हम लोग। लेकिन ध्यान में जाते वक्त के ऊपर बैठ करके क्या हम innocent हो सकते हैं? किसी के हृदय में चोट लगे, वो आदमी innocent नहीं आप सिर्फ ये देखें कि आप का कौन-सा चक्र पकड़ हो सकता। innocent का मतलब ही ये होता है कि रहा है। क्योंकि आप लोग जो पार हो चुके हैं आप को फूल की जैसे खिली हुई चीज़ जो सिर्फ दुनिया को अच्छी तरह से मालूम है। उंगलियों पर आपको जान चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 18 पड़ेगा, कौन-सी उंगली थोड़ी-सी जल रही है। जो भी अंदर ही की बात करें। अपने-अपने चक्रों को साफ करिये। उसमें 'कोई आपकी उंगली जल रही है, उस पर आप बंधन डाल लें तो वो छूट जाएगी। अगर आपकी उंगलियां ज्यादा ही शर्म की बात नहीं है। जिसके-जिसके चक्र पकडे हैं वो जल रही हों तो हाथ झटक लीजिये, वो छूट जाएगा, आप जानते हैं। बंधन डाल दीजिये। बाहरी चीज़ है बिल्कुल हिम्मत से सारी सफाई करके और नीचे डाल दें। जिसके भी हाथ जल रहे हैं, निकाल लेकिन निर्विचारिता की ओर रहें और चित्त जो है दें हमारे भी हाथ जल रहे हैं-निकालियेगा नहीं तो क्या सहस्रार की ओर रखें। और जो लोग आज नए आए हैं उनको भी देखना होगा कि वो पार हुए हैं या नहीं। उनको करियेगा? बैठ भी नहीं सकते। और भी तरीके आप जानते हैं बहुत सारे, ध्यान में क्या खराबी है, उनको क्या तकलीफ है, वो निकाल देंगे। ये सारी तकलीफ जो है, बाह्य है। अपने को सफाई करने के। इसमें कोई बुराई की बात नहीं है, अगर मैं किसी से कह देँ कि आप पानी में पैर डाल कर बैठिये और इस तरह से निकालिये। इसमें कौन-सी ये भी एक बड़ा भारी समर्पण है जहाँ शक्ति दोनों side (तरफ) से आती है left and right sympathetic बुराई की बात है? इसमें क्या बुरा मानने की बात है? nervous system का जो यहाँ ये expression है, कितना पागलपन है, किस बात पर लोग बुरा मान जाते उस रास्ते से। और इसके बीच में ही सुषुम्ना नाड़ी है। हैं? वो सोचते हैं "माता जी ने क्या कह दिया।" आप क्या कोई बड़े भारी saint (सन्त) हैं? यानि बड़े-बड़े ऐसा करते ही सुषुम्ना नाड़ी अन्दर चलना शुरु हो जाती है। लेकिन ये जागृत होनी चाहिये। अगर ये जागृत नहीं saint तक ये काम करते हैं, आपको पता नहीं है। जैसे मैंने कबीर दास जी के लिये कहा कि "दास है, इसका मतलब सुषुम्ना चल नहीं रही है। और जागृत का मतलब ये है कि आपके अन्दर सारी उंगलियों में से कबीर जतन से ओढ़ी" कबीर दास भी अपने लिये कहते हैं कि "मैंने जतन से ओढ़ी भई"-जो कि इतने बड़े थे फिर आपको इसमें धीरे-धीरे ठण्डी-ठण्डी ऐसी हवा आने लगेगी। अगर आपके अन्दर ऐसी ठण्डी-ठण्डी हवा जा रही है; पूरी बुरा मानने की कौन-सी महापुरुष तरह से आप 'निर्विचार' हैं उस 'तरण्य में' ध्यान में हैं बात है? जरा-सा किसी से कहा कि भई मटका लेकर आओ. तो आप बढ़ रहे हैं, आगे आप चले जा रहे हैं। जैसे कि आप aeroplane में बैठते हैं, आपको पता नहीं आप तो बुरा मान गए; फिर इतना बड़ा-बड़ा मटका लेकर आते हैं! कहाँ जा रहे हैं, लेकिन आप कहीं पहुँच जाते हैं। जब तक हम यहाँ पर हैं, ये जरूरी है कि जो सहजयोगी आप लोग हैं, ज्यादा इसमें part (हिस्सा) लें हैं अपने बारे में उसको " बेकार' की बातें, 'मूर्खों' जैसी अपनी जो कल्पनाएं त्याग" दीजिये।"बचकानापन " और आगे बढें। और जाने के बाद भी अपना समष्टी-रूप है, बचपना नहीं। child-like होना चाहिये childish नहीं। खराब न करें। आपसी बेकार की बातें बोलने पर आप कुछ न कुछ दंड देखेंगे। जिसने भी कोई सहजयोग के सिवाय, अन्दर की बात के सिवाय बाहर की बात जरा भी अब हम लोग ध्यान में जाएंगे। मैंने जैसे कहा है पहले अपने को प्रेम से भर लो। आप जानते हैं मैं आपकी माँ हूँ। पूर्णतया आप इसे जानें कि मैं आपकी माँ करी, उसको दंड। बाहर की कोई भी बात नहीं करनी। चैतन्य लहरी खण्ड ४V अक :3 एव 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2008 19 ंसा शाल म य िम ाम आा यड मुझे माधुर्य दो, मिठास दो।" जो भी उनसे मांगोगे, वो तुम्हें देगा। और कुछ नहीं हूँ। और माँ होने का मतलब होता है कि सम्पूर्ण दो।". security है, संरक्षण है। कोई भी चीज़ गड़बड़-शडबड़ नहीं होने वाली। आप मेरी ओर हाथ करिये। और मांगो। अपने लिये ही मांगो।... मुझे अपने चरण धीरे-धीरे से आँख बन्द करके और अपने विचारों की में समा लो।" ओर देखिये, आप निर्विचार हो जाएंगे। आपको कुछ समा लो। करने का है ही नहीं। आप जैसे ही निर्विचार हो जाएंगे, वैसे ही आप अन्दर जाएंगे। "मेरी बूँद को अपने सागर में "जो भी कुछ मेरे अन्दर अशुद्ध है, उसे निकाल दो।" परमात्मा से जो कुछ भी प्रार्थना में कहोगे, वही पहले अपने से इतना बता दो कि आज से निश्चय होगा। .." मुझे विशाल करो। मुझे समझदार करो। हो कि किसी को कोई सी भी चोट मैं नहीं पहुँचाऊंगा। तुम्हारी समझ मुझे दो। तुम्हारा ज्ञान मुझे बताओ। "सारे संसार का कल्याण हो, सारे संसार का हित हो। और सब को प्रभु तुम क्षमा कर दो, जिन्होंने मुझे चोट पहुँचाई हो। और मुझे क्षमा करो क्योंकि मैंने दुनिया में सारे संसार में प्रेम का राज्य हो। उसके लिये मेरा दीप बहुत लोगों पर चोट की है। आप जो भी कहेंगे वही परमात्मा आपके साथ दो। उसमें ये हृदय खपने दो । " करेगा। आप उससे कहेंगे कि "प्रभु शांति दो", तो तुम्हें शांति देगा। लेकिन आप मांगते नहीं हैं शांति| "संतोष मांगें जो कुछ भी सुन्दर है वही मांगो तो मिलेगा। तुम दो", तो वो तुम्हें संतोष देगा, तो वो मांगते नहीं हैं। " मेरे अंदर सुन्दर चरित्र दो" तो वो चरित्र देगा। अब प्रार्थना का अर्थ है, क्योंकि आपका connection तो क्या वो नहीं देगा? जलने दो। उसमें ये शरीर मिटने दो। उसमें ये मन लगने सुन्दर से सुन्दर बातें सोच करके उस परमात्मा से असुन्दर मांगते हो तो भी वो दे देता है। बेकार मांगते हो तो भी वो दे ही देता है। लेकिन जो असली है उसे मांगो, में4 यूँ ही ऊपरी तरह से नहीं, "अन्दर से", आंतरिक हो हो गया है परमात्मा से।........ करके मांगो। मेरे अन्दर प्रेम दो। सारे संसार के लिये प्रेम पाने के बाद ४. ११ ( सात चक्रों का वर्णन) परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन दिनांक 25.11.73 आपको कुछ भी नहीं करने का है सहज में हो जाता है सहज शब्द का अर्थ रोजमर्रा भाषा में सहज माने आसान। लेकिन सहज शब्द जहाँ से आया वो 'सह' और परमेश्वर की आशीर्वाद की वाणी को सुनना है और कुछ भी नहीं करना है। बस यहीं तक देखते देखते आप अपने में ही विभोर हो जाइए। अब सिर्फ देखने का होता है ज' के साथ मिले हुए सहज से आया। माने आसान है मतलब जो हमारे साथ जो पैदा हुई आँख है, हमारे साथ जो पैदा हुई वो हमारी नाक है, इसका हमें कुछ देखना नहीं पड़ता। इस कारण इसमें कोई भी प्रतिबिम्ब पूरा नहीं पड़ता। अगर कोई ऐसा सरोबर हो कि जिसमें अन्दर कोई भी लहर उठ नहीं रही तो उसके चारों तरफ फैला हुआ उसका सौन्दर्य, पूरा का पूरा अन्दर प्रतिविम्बित होता है कुछ करने का सवाल ही नहीं उठता। शरीर के स्वास्थ्य के लिए भी आपको अब बहुत कुछ नहीं करना जैसे कि आज तक आप बहुत से योग-आसन आदि करते हों तो बहुत योगासन आदि करने की जरूरत नहीं, एक आध हल्का योगासन करें तो कोई हर्ज नहीं लेकिन अधिकतर अपने शरीर का बहुत ख्याल रखें, इसी शरीर में उस परमात्मा का वास है, इसकी इज्जत, इसके साथ कोई भी इतना ही नहीं सब पूरा तादात्म्य होता है, इसी तरह से ज्यादती करने की जरूरत नहीं। हाँ शराब आदि चीजों से जब आप किसी भी सुन्दर दृश्य को देखेंगे, परमात्मा की ग़र आप अपना छुटकारा करना चाहते हैं तो बहुत आसान है अब आप कोई भी चीज का निश्चय कर लें वो काम रचना की और दृष्टि करेंगे आप निर्वचार हो जाएंगे निर्विचार होते ही उसके अन्दर की जो आनन्द-शक्ति है हो जाएगा। आपमें conditioning नहीं आएगी, ग़र आपने तय बो आपके अन्दर पूरी प्रतिविम्बित होगी इतना ही नहीं कर लिया है कि हमने शराब नहीं पीना है तो छूट जाएगी आप ने उसमें पूरी तरह से तादात्म्य पा लिया है। इसी तरह से अनेक विधि परमात्मा ने आपके लिए श्रृंगार शराब। शराब इन्सान इसलिए पीता है कि अपने से भागना चाहता है, एक शराब के सिवाय और कोई भी चीज ऐसी नहीं जिसके लिए मैं मना कर रही हूँ। लेकिन शराब जरूर ऐसी चीज है क्योंकि वो आपकी चेतना को सजाए हैं, अत्यन्त सौन्दर्य चारों तरफ फैला हुआ है। उस सौन्दर्य के सूत्र में उतरने से ही आपके अन्दर आनन्द की उत्पत्ति हो जाती है। इस आनन्द को आप देखने के लिए ही पैदा हुए हैं, अपने को बेकार में दुखी बनाने के लिए खराब कर देती है। शराब की ओर देखते साथ शराब छूट नहीं। जाती है क्योंकि आप स्वयं को इतना प्यार करने लगे हैं, अपने आप इतना मज़ा आ जाएगा। रर आपमें से किसी को जेल हो जाए तो आष कहेंगे कि वाह भई यह तो बड़ा अच्छा हुआ वहाँ बैठकर ध्यान करेंगे। मनुष्य अपनी ही मौज में ऐसा रहेगा कि उसको फिर शराब- वराब की इस तरह से बहुत से लोगों ने पूछा है हमें अब आगे क्या करना है। अब क्या करना होगा सिर्फ देखना होगा जब आप सिनेमा देखने जाते हैं एक दर्शक की दृष्टि से तो आप सोचते हैं कि हमें क्या करना है, देखना ही है, देखते ही रहना है, आवागमन देखना है, पेड़ों का बढ़ना वो कहाँ, सिंगरेट भी अपने आप छूट जाती है कुछ कहने देखना है, चिडियों का चहचहाना देखना है। हरेक चीज़ की जरूरत नहीं। अपने आप ही सब कुछ छूट जाता है। हमारे यहाँ तो बम्बई में ये हालत है कि माचिस नहीं तो की मंगल पवित्रपूर्ण मधुर मुस्कान हर चीज़ में लहलहाती 15 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 21 चैतन्य लहरी खण्ड -४V अंक : 9 एवं 10 अपने घर से ले जानी पड़ती है धूपबत्ती जलाने के लिए, मद, मत्सर आदि सब चीजें जो हैं इस विषय की एक अपनी एक खेल है, उसे आप देखिए। उसका एक खेल कोई भी सिगरेट नहीं पीता। बड़े-बड़े सिगरेट पीने वाले पता नहीं कैसे सिगरेट छोड़ दी! कुछ लोग तो रम्मी है उसे आप देखते रहिए। आप दूर रहें आप दूर से इसे खेलते थे वो कहते हैं कि वो रम्मी हमारी छूट गई। उसमे देखते रहें। क्योंकि आप पहले बाहर थे, वो नहीं रहे और मज़ा आ गया, ज़िन्दगी में मज़ा आएगा, इन्सान में मजा अब आप अन्दर हैं। सहज में यही करना है कि अपने को अन्दर रखना है बाहर नहीं। दूसरों से बात करते आएगा, उनके problems में भी मज़ा आएगा, उनके वक्त अन्दर रहें, माने निर्विचार। किसी से भी बात साथ जूझने में मज़ा आएगा। अब आप इन्सान के साथ करें, किसी से भी कुछ कहना हो तो पहले निर्विचार हो एक होना चाहिए। अब ये भी ख्याल रखना चाहिए अब हमें जुझना नहीं हैं। अब वो नहीं रहे जो पहले थे, जाएं। निर्विचार होते ही आप उनके अन्दर उतर जाते हैं। फौरन उनका भी रंग बदल जाएगा और आपका तो बदला एकदम बदल गए। अब दूसरे हमारे साथ बदले नहीं, इनकी ओर देखना है। उसमें घबराने की कोई बात नहीं हुआ है ही। गर आप भी बाहर से वैसे आ जाएं तो हो क्योंकि आप भी तो वैसे ही थे। बहुत से लोग सोचते हैं सकता है आपको वो पनपा दे। अभी आप अन्दर बाहर हो सकते हैं क्योंकि वजह यह है कि अभी अभी कहीं कि हम बड़ी भारी position के हैं, बड़ी उनकी position खोपड़ी पर चढ़ी है । कोई सोचते हैं हम पैसे अन्दर आप पहुँचे हैं, जैसे कि आप traffic में से गुज़र वाले हैं कोई सोचते हैं बड़े भारी धार्मिक आदमी हैं। कर आ रहे हैं और आपको पहाड़ी पर बिठा दिया है, सोचने दीजिए। सब पागल हैं, उनकी तरफ देखिए ही लेकिन आपको traffic की आदत हो गई है तो आपका नहीं। सब पागलखाने में अपने को बहुत अक्लमंद ख्याल बनता है अरे मैं तो traffic में हूँ। फिर आप देखिए कि मैं कहाँ खड़ा हूँ, पता हो जाएगा कि आप समझते हैं। जब उस पागलखाने में आप थे आप भी यही सोचा करते थे वो सब पागलपन की बातें हैं। एक दम कहाँ खड़े हैं। यही Self Realization है। पहली जो चीज़ है कि संसार का सारा सौन्दर्य आपमें तादातम्य है। आप जानिए, यह नई चीज है। पर बड़ी अद्भुत, वो शक्ति आ गई। अब आपमें ऐसी शक्ति आ गई विश्वसनीय, कोई विश्वास ही नहीं करता है पर है बात, जिसके कारण आप कोई सी भी बात सोचेंगे, उस सोच ऐसा ही कुछ है। आपको खुद ही लगने लगा कि आप विचार का आप पर असर नहीं आता। जैसे कि कोई साक्षी हैं। घर में कोई बीमार पड़ जाए, अब सारा घर से जो सारी मिथ्या चीजें हैं धीरे-धीरे छूट जाएंगी। जब आप जान जाएंगे कि सत्य क्या है। अब आपके अन्दर आदमी कहे कि मुझे गुस्सा नहीं करना तो बड़े अपने से दौड़ेगा, आफत करेगा। कोई झूठ, कोई सच, कुछ नहीं, पूछो अरे पागल ज़रा गुस्सा तो करो। आप शीशे के कुछ करने की ज़रूरत नहीं। आप अपने को देखिए, सामने खड़े होकर अपने को कहो ज़रा गुस्सा तो करो। आपको बराबर सूझेगा कि आपको क्या करना हँसी आएगी । जब भी आप गुस्सा करिएगा अन्दर से आपको जो मन में आए वो करिए आपके मन में आए हँसते ही रहिएगा आपको पूरी समय हँसी ही आती है। सर पर हाथ रखिए, सर पर हाथ रखिए पैर पकड़ने का गुस्से में आप लपटिएगा नहीं। लपट जाते हैं, किसी भी है चीज़ में आप लपट नहीं सकते। सभी चीज़ काम, क्रोध सबके लिए आ रहा है. उसको आप करें। मन है, पैर पकडिए। जो भी आपके मन में आ रहा सितम्बर एवं अक्टूबर 2009 22 चैतन्य नहरी खण्ड XV अंक : 9 एवं 10 दूसरी चीज है सत्य। सत्य बोलें या झूठ बोलें। झूठ क्या है, सत्य क्या है? बहुत सा सत्य जो होता है मनुष्य नए सिरे से आप गीता पढ़ें, नए सिरे से आप बाइबल पढे, उसमें आप देखिएगा कि हरेक बात की पुष्टि देने वाली चीजें उसमें हैं। लेकिन आप स्वयं पुष्ट हैं आपको कोई जरूरत नहीं कि कोई आपको support करता रहे, सहारा दे। आप स्वयं अपने सहारे पर खड़े होना जैसे ही शुरू कर देंगे एक दम प्रकाशवान हो जाएंगे। इसमें कोई का बनाया हुआ होता है। मनुष्य का बनाया हुआ सत्य कोई सत्य नहीं है। बहुत बार बहुत सा जो झूठ दिखाई देता है वो महासत्य होता है, इसलिए उसका निर्णय आप मत कीजिए। आप सिर्फ बोलिए। आप अपनी निर्विचारिता पर बोलें। आप अपनी स्थिति पर बोलें। लोगों से डंके शर्माने की बात नहीं, इसमें कुछ घवराने की बात नहीं। की चोट पर कहना पड़ेगा कि हाँ यह ठीक है. यही हमारे यहाँ ऐसे लोग देखे जाते हैं जो एकमेव घर के सत्य है, यही होना चाहिए इसमें डरने की कोई बात नहीं। दिखने के लिए शायद वो लोगों को झूठ लगे. लोग अन्दर एक आदमी होता है वो फिर किसी से बात कहता नहीं. अन्दर छिपा के रखता है बाइबल में कहा जाता है कि दिया नीचे नहीं रखा जाता, टेबल के नीचे नहीं दिया रखा जाता है, किसी ऊँचे स्थान पर दिया रखना चाहिए। गर आप वाकई दीपक हो गए हैं तो ऊँचे स्थान पर बैठकर के सवको प्रकाश दें, सब धर्मों का प्रकाश यही आप पर हँस भी सकते हैं। हम पूना में गए थे वहाँ कुछ ऐसे महामूर्ख लोग थे ये लोग तो हाथ को ऐसे-ऐसे श्रीमाताजी कर रही थीं तो बो सबको मिसमराइज़ कर रही हैं। उनसे एक साहब ने उन्होंने पेपर में कहीं निकाला कि सवाल पूछा, वहाँ पर कि उनको क्या जरूरत पड़ी है। आप चाहे किसी भी धर्म में हों, आप उठा के देख मिसमराइज करने की? क्या उनको कोई धंधा नहीं? लीजिए। आप सिक्खों के धर्म को मानते हैं आप उठाकर देख लीजिए. अगर ये कहीं पर भी ये बात न लिखी हो, गर झूठ बात कही है-आप किसी भी धर्म की किताब कहने लगे हम तो मिसमराइज हो नहीं सकते, कहने लगे आप हो ही नहीं सकते उनके तरह का मिसमराइज होना पड़ेंगा। इतने तरह-तरह के लोग हैं दुनिया में जिनको देख लीजिए। आपकी पुष्टि के लिए बड़े-बड़े लोगों ने लिख रखा समझ नहीं है। क्योंकि आपके अन्दर ये चैतन्य आ गया, 1. आपके अन्दर ये बह रहा है, आपने इसे देखा हुआ है, है आप श्लोक के श्लोक कह सकते हैं, आप कुरान इसकी पुष्टि की आपको जरूरत है, लेकिन आपने की आयात की आयात कह सकते हैं। इसी चीज़ की गवाही देते हैं चाहे उसे यहाँ पर हम लोग, जिसे spiritual कहते हैं अंग्रेजी में, जिसको हम लोग आध्यात्मिक कहते हैं संस्कृत में, और जिसे वो लोग रूहानी कहते हैं। नाम बदल देने से जो सत्य है वो एक ही है। और सबको ये मालूम है आप लोगों को कि सत्य तेजस्विता नहीं पाई। यही आपमें और बड़े-बड़े साधु सन्तों में यही अन्तर है। आपने वो तेजस्विता अभी पाई नहीं जो प्रखर होती है, जो अपनी शक्ति पर अटूट खड़ी रहती है, जो डरती नहीं, ये कहने के लिए कि यही सत्य है बाकी सब असत्य है और मिथ्या है । वो क्राइस्ट जैसे क्या है। तो सत्य की भी कोई व्याख्या तो हो नहीं सकती। आदमी के अन्दर, वो कृष्ण के अन्दर और बहुत बड़े-बड़े सन्त साधुओं में ये चीज पाई जाती है। वो आप आदिशंकराचार्य में पाइए। इसकी पुष्टि के लिए आप उनकी किताबें पढ़िए। अब नए सिरे से सागर की क्या व्याख्या है? लेकिन क्षण-क्षण में आप देखेंगे कि सत्य ये है, मिथ्या ये है, सत्य ये है, मिथ्या से आप पढ़िए. अब ये है। आपकी vibration से आप जानेंगे वाइब्रेशन सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 23 चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 इसे, आप तोल पाइएगा इससे आप समझ पाइएगा,जहाँ आज सर्वेरे बताया था, इसका आप पड़ताला लीजिए। पॉँव में पूरे चक्र बने हैं। मनुष्य बहुत बड़ी चीज़ है, बहुत vibration आ रहे हैं वही पर सत्य है। आप पत्थर में भी. मिट्टी में भी हरेक में आप vibration देखेंगे। कोई बड़ी चीज़ है। ऐसे हज़ारों उसके सामने यंत्र फैंक दिए गर आदमी है उसके चार-पाँच चक्र पकड़े हैं उससे जाएं, उसका यंत्र परमात्मा ने इतना सुन्दर बनाया है। बस उलझने की कोई ज़रूरत नहीं है। कठिन आदमी है. उसकी विजली चमकाने की बात है। वो भी चमक गई, अब क्या रह गया? रह यही गया कि बहुत कुछ हैं आपके बस का नहीं। आपको फौरन आपके हाथ पर गर्म-गर्म आ जाएगा। भागिए वहाँ से कुछ दिनों के लिए, बाद में वो भागेगा। वो खुद ही जलेगा। जिससे भी लेकिन अब दीप लेकर सब जुट जाना होगा और देखना होगा क्या है। क्योंकि बहुत कुछ है। थोड़ा सा एक दिया जला दिया और उसको लेकर बैठे हैं! बैठने की बात नहीं आपको गर्म-गर्म vibrations आए, छोड़ दीजिए। ये अपनी बात नहीं; ये रूहानी बात है। यहाँ पर कोई नहीं, अंधेरा है। रोशनी और अंधेरे का युद्ध पूरी समय चल रहा और आप देखिएगा कहाँ तो दूसरों के मन में, दूसरों के अंतस में, दूसरों के अंतस में जब आप देखिएगा तब आप जानिएगा कि क्या है इसलिए यहाँ पर एक है। आपके दीप इतने सारे जल गए, सारा ही वातावरण organisation की भी बात सोची गई है। हमारे एक बदल सकता है गर कुछ दीप और जल जाएं। इसलिए अनन्त जीवन नाम की संस्था है, बम्बई में चली है। इसमें अपने दीप को जलाकर रखना चाहिए, अपनी vibrations हम कोई Membership नहीं रखते हैं, जो realized को हमेशा तोलते रहना चाहिए। हमारे फोटो से vibrations हर समय आती है, उसके कभी रुकते नहीं। आप हमारे होगा वो member है, realized लोग भी थोड़े से वो फोटो की ओर अपना हाथ किया करिए। गर आपके ढलक जाते हैं। फिर से realized होते हैं, कुछ आते हैं किसी भी उंगली पर देखा कि जिस जगह भी आपको ऊपर से फिर सड़क जाते हैं। ऐसे आपमें भी आधे अधूरे vibrations जलते हुए नजर आ रहे हैं उन सब चीजों कुछ होंगे. कुछ पूरे होंगे, बिल्कुल चलेंगे। पीछे हमने का अर्थ होता है। जैसे आप जानते हैं ये मणिपुर चक्र बोस साहब से request किया था, आप उन्हीं को है और ये आपका विशुद्धि चक्र है और ये आपका आज्ञा chairman बना लीजिए जैसा भी करना चाहें कर लीजिए, उनके पास हम ठहरेंगे और आपका घर भी, चक्र है, ये आपका स्वाधिष्ठान चक्र है और ये आपका मूलाधार चक्र है, और बीचों बीच यहाँ पर आपके हाथ के बीचों-बीच सहस्रार है, पूरा गोल। किसी के भी, आपका पता यहाँ भी पास ही है। वो क्या है? 10 नंबर, किंग जार्ज एवेन्यू. ये आपका घर है, और फोन नंबर भी आपसे ले लीजिए। उनके पास हम फोटो वगैरा सब भेज किसी ने आकर आपको बता दिया कि फलाने की देंगे, लेकिन आप बहुत बड़े काम में व्यस्त रहते हैं, समय तबियत खराब है, हम चाहते हैं कि आप उसके लिए पर आप लोग आ जाइएगा और आपको शुक्रवार का प्रार्थना करें। कुछ करने की जरूरत नहीं। जो चक्र उनका खराब हो उसको आप यूं करके धो लीजिए उनको बहुत दिवस वहुत अच्छा है। उस दिन आप लोग अपना meditation का कार्यक्रम रखें। हम वहीं से चित्त से फायदा हो जाएगा। यहीं बैठे आपकी उंगलियों के इशारे पर सब चीज़ आपको देख रहे हैं। परमात्मा के बहुत से प्रतीक रूप आपने सुने होंगे जैसे गणेश जी हैं, उनके मूषक वाहन चलने वाली है। आपके attention पर दिव्यत्व है, मैंने चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 24 हैं और सबके वाहन आपने सुने हैं। आपका वाहन सिर्फ छोड़ा नहीं काम जो आप कर नहीं सकते। अब बस ये चित्त है, आप चित्तारूढ़, चित्त पे रहें । क्या कमाल है आपकी? आप चित्त पुर अपने बैठे हुए हैं, जहाँ चित्त जाए वहीं काम बन जाए। और इसकी इतनी कमाल है, है कि हमारे बीच में बड़ा परदा है इस परदे को चाक सी करना आ जाए, काम बन जाएगा। इस पर्द का ही चाक होना मुश्किल हो जाता है। बहरहाल आप पार हो गए यहाँ बैठे-बैठे आप अपनी सत्ता निकालिए। यूँ करके तो पहले अपना तो परदा चाक हो जाए। अब हमारा और ठीक कीजिए सब। आपका बीच का अन्तर जितने जल्दी छूट जाए उतना ही काम बड़ा जबरदस्त है। इस चीज़ में अन्त में जो सबसे बड़ी बात है वो है प्रेम। हमें प्रेम के साथ तादात्म्य करना जिसको भी देखा है कि वो सता रहा है, परेशान कर रहा है, किसी भी आदमी जिसके लिए भी आप सोचते हैं अपने सहस्रार पर ला करके उसको ठीक कीजिए। बीच में ब्रह्म्ध्र है. आपको आश्चर्य होगा कि उनकी है। जब हम किसी के साथ बात करते हैं तो हम पहले ही सोच लेते हैं कि इसे प्रेम ही करें। ये सारा ही प्रेम काफी हालत ठीक हो गयी। बहुत दुष्ट, महादुष्ट जो अभी इन्होंने गाया था कि दु:शासन बैठे हैं और सन्त बैठे है इसमें आप कुछ गड़बड़ कर ही नहीं सकते। जैसे लोग हमसे कहते हैं कि आप हरेक को देखो तो Realization दे रहा है। अमेरिका में खासकर लोगों को बड़ी परेशानी है, कि लोग उसको बुरी चीज़ के लिए भी इस्तेमाल कर हैं, बिल्कुल बैठे हैं। सबके ऊपर में हम लोग बैठे-बैठे सर्वरे यही धन्धा करते रहते हैं कि उनको सुबुद्धि दो। इस सकते हैं। मैंने कहा क्या बुरा करेंगे? किसी की जागृति तरह से ये प्यार का चक्कर है, बैठे-बैठे यहाँ से प्यार का करेंगे, किसी को पार ही करेंगे या किसी को ठीक करेंगे। चक्कर घुमाने से उधर आदमी ठीक हो जाता है क्योंकि प्यार से आप किसी का बुरा कर ही नहीं सकते। आप नफरत से कितनी ज्यादा शक्तिशाली है प्यार की बात। ही सोचिए जिस आदमी को आप प्यार करते हैं आप बहुत शक्तिशाली है, समुद्र की जैसे थाह होती है। समुद्र उसका बुरा कभी कर सकते हैं ? प्यार की पहचान ही ये कितना बढ़ जाए उसकी थाह बढ़ती ही रहती है। ऐसी है कि वो कभी किसी का अहित सोच ही नहीं सकता। है! कितनी भी नफरत बढ़ जाए संसार की और प्यार जो जो कुछ भी होगा वो हितकारी होगा, वो जाएगा कहाँ? है उससे भी ज्यादा बढ़ते रहेगा और नहीं बढ़ेगा तो संसार हित ही होगा। नष्ट हो जाएगा। आप अपनी जिम्मेदारी को अभी समझ बस अपनी इज्जत खुद ही करनी होगी। बस अगर नहीं पाए कि एक नया ज़माना जमाने की बात है। नए अपनी जैसे जैसे इज्जत करनी शुरू कर दी वैसे-वैसे लोग, नया Dimension, एक नया आयाम जिसको आप समझ सकते हैं, सिर्फ vibrations से आप समझ सकते आपकी स्थापना अन्दर हो गई। क्योंकि ये मन्दिर है और हैं। कोई और नहीं समझ सकता। अभी जो सिद्धेश्वरी इस मन्दिर की जितनी भी आपने इज्जत करी हुई है बाई गा रहीं थी उनकी हालत खराब थी, कल इतनी उतना ही उसके अन्दर परमात्मा का प्रकाश है। आप प्रेम खराब थी कि घबरा-घबरा कर मेरे पास पहुँची। से तादात्म्य पा सकते हैं। एकदम आप प्रेम से एकाकार Operation करना है और ये करना है, वो करना है, ऐसा है, वैसा है। हमने हाथ रखा और आज वो गाने लग हो सकते हैं, बिल्कुल एक स्वरूप हो सकते हैं आपके अन्दर से शुद्ध प्रेम ही बह सकता है जो स्वयं साक्षात् चैतन्य है, वही सत्य भी है, वही सौन्दर्य भी। इस सबके गई। आप लोग सब ये काम कर सकते हैं। कोई ऐसा मैंने चैतन्य लहरी खण्ड XV अंक 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 25 साथ एकाकार आप एकदम हो सकते हैं। निर्विचारिता में ही vibrations होगा। माने सिर्फ पवित्रता के बिल्कुल आप बैठें। लेकिन निर्विचारिता तभी आती है जबकि पुँज हैं। क्योंकि He is an eternal child, अनन्त के बालक हैं। उनके जैसा बालक संसार में मिलना मुश्किल आप इसको यहाँ से तो निकल गए हैं, यहाँ पर आ गए हैं। इस दशा में आप खड़े हैं कि आप निर्विचार हैं। है। सिर्फ पावित्र्य ही पावित्र्य है, उनका सारा प्यार ही आपका Brain था वो सोचता था, अब Brain से पवित्रता है और उस पावित्र्य की वजह से आपके आपको निकालकर के सहस्रार तोड़कर के आपको यहाँ ले आए हैं। अब यहाँ आप जब पहुँच जाइए, इस जगह मूलाधार चक्र पर, चक्र पर, मूलाधार पर तो माँ बैठी हुई हैं, उनको बिठाया है। इसका मतलब ये है कि sex के मामले में आपको एक छोटे से बच्चे जैसा होना होगा। पर आप हाथ रखकर देख सकते हैं, जो Realized हैं देखिए आपको लगेगा इस जगह अर्धबिन्दु में, जो लोग इसका अर्थ ये नहीं कि sex का life में कोई स्थान नहीं। Realized हैं उनको महसूस होगा, जो लोग Realized नहीं हैं उनको महसूस नहीं होगा। लग रहा है? धीरे-धीरे ऊपर नीचे करें, ऊपर नीचे करें। जरा नीचे, इससे ऊपर इसका अर्थ ये है कि sex के मामले में जब आप धर्म में उतरते हैं उस वक्त अपने sex के प्रति विचार में अर्धबिन्दु की दशा है, उससे ऊपर में बिन्दु हैं, उसके जैसे बालक के अबोध होते हैं वैसे होने चाहिएं। इसका अर्थ ये है। गणेश तक पहुँचना बहुत कठिन बात है, ऊपर में बलय है। सब कुछ जो भी सृष्टि करने में बनाया बहुत कठिन बात है क्योंकि बड़ी पवित्र आत्मा हैं। और गया था वो सब कुछ मनुष्य के अन्दर में बना दिया। उनका प्रकाश चारों तरफ फैल रहा है। उसके अन्दर जाने पहले वलय, उसके बाद बिन्दु, इसके बाद अर्धबिन्दु उसके बाद में ये। फिर सारी कुण्डलिनी की रचना। पूरी कुण्डलिनी को बना दिया है और वो जो आदि कुण्डलिनी के लिए हमें बहुत ही स्वच्छ होना पड़ता है तभी हम उसके अन्दर उतरते हैं नहीं तो वो और उनकी माँ के सिवाय वहाँ कोई बैठता नहीं। है वो ही आपके अन्दर में लपक करके आ गई और आपकी कुण्डलिनी बन गई। आदि कुण्डलिनी बनाने के लिए पहले कुछ लोगों को बिठाया गया था, शुरुआत करने के लिए किसी को बिठाना पड़ता है। पहले उन्होंने गणेश जी को बिठाया। आदिशक्ति ने सिर्फ एक चक्र के उसके बाद दूसरा चक्र लेकर के वो जब आए तब उन्होंने ब्रह्मदेव की रचना करी, किन्तु वो उन्होंने करी उल्टे ढंग से। पहले उन्होंने श्री विष्णु को पैदा किया। उसकी वजह ये कि पहले , Creation करने से पहले ही एक पालनकत्ता पहले ही बना दिया। इसलिए नाभि चक्र से हमें भी अपनी माँ से ही पहले पैदा किया जाता है। साथ श्री गणेश जी को बिठाया, एक गणेश, एक ही चक्र के साथ श्री गणेश । गणेश जी क्या हैं? सिर्फ पावित्र्य, सिर्फ पावित्र्य। और फिर इस पिता स्वरूप बाप को बनाने के बाद क्योंकि पहले बाप बना दिया उन्होंने और उसके बाद आप इसी को सोचिए हमारे शरीर के ऊपर कुछ दिनों तक यदि आप नहाए धोए नहीं और मैल है। आप सोच उनकी नाभि से श्री ब्रह्मदेव की रचना हुई। बिल्कुल हुआ, ऐसे ही हुआ जैसे खूँटै बिठाए जाते हैं, इसी तरह लीजिए यहां पर भी vibrations है और यहाँ भी vibrations हैं, और उसको निकालकर के हम इकट्ठा से हुआ। इसमें झूठ कुछ नहीं, आप खुद देख सकते हैं कर दें तो जो जड़ तत्व जो है उसके अन्दर vibrations ये बात। अब भवसागर बन गया, भवसागर की तैयारी हो चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 26 कैसे अन्धकार में आप हैं? मोहम्मद साहब की जो गयी, सारा void तैयार हो गया, Vagus Nerve और Aortic Plexus चारों तरफ भवसागर के, उसके अन्दर लड़की थी फातिमा, वो वही थी जो कि जनक की से बहने वाला प्यार, creation उसी में फँस गई। प्यारलड़की थी। किससे झगड़ा कर रहे हो ये सोचो तो। और नानक की जो नानकी थी वो वही थी जो जानकी है। है प्यार, और उसके बीच में creation है । अब इस उसके बाद हमारे शिरडी के साईं बाबा, वो भी आदि गुरु हैं। आदि गुरु हैं चारों तरफ से लिपटा हुआ है। All pervading power थे, सबके ही गुरु हैं, मेरे भी यही भवसागर को लॉँघने की बहुत जरूरत है। लेकिन सबसे पहले दिन जो मैंने आपसे बताया था, जो ईश्वर और गुरु इन्होंने ही मुझे सब धन्धा सिखाया, जन्म जन्मांतर सिखाते उनकी शक्ति, जो ईश्वर है वो हमारे हृदय में आत्मास्वरूप रहे। अन्त में मुझ ही को आकर ये काम करना पड़ा। ये उन्होंने भी नहीं किया और इस जन्म में मुझी को वो गुरु स्थान में बिठा रहे हैं कि मैं गुरु बनू। अजीब सी हालत बैठे हैं। इसलिए जैसे ही बच्चा जन्मता है, जन्मता नहीं जब माँ के उदर में ही होता है तभी साक्षीस्वरूप ईश्वर है! एक जमाना ऐसा था कि किसी स्त्री को कोई गुरु मानने को तैयार नहीं था। कलियुग में माँ के सिवाय काम नहीं है, पुरुषों के बूते का काम नहीं है। प्रखरता से काम में आ जाते हैं और एक flame, जैसे अंगूठा है एक flame, के जैसे दिखाई देते हैं। ये left hand side हृदय में हैं। बहुत लोग confusion में डाल देते हैं उनके हृदय चलने वाला नहीं है, माँ का प्यार ही क्योंकि इतना ज्यादा कि हृदय चक्र में हैं। हृदय चक्र में नहीं वो हृदय में हैं। पहले ही से दबाव और tension संसार में आ गया कि आत्मा स्वरूप एक flame जैसे रहते हैं। उसकी वजह आदमी टूट जाएगा जिस दिन और प्रखरता में उतरेगा. हृदय चक्र में क्यों नहीं क्योंकि वह कुण्डलिनी के जाने का मार्ग है, हृदय चक्र, जो बीचों बीच है और ये और टूट ही जाएगा। इसलिए प्यार के बगैर कोई इलाज एक तरफ left में रहते हैं। राम शब्द रा- माने energy और म माने, महेश, जो ईश्वर अपने हृदय में बैठे हैं। रा जब म से मिल जाता है तभी राम हो जाता है। इसे नहीं था। इसलिए हमी को आज गुरु पद पर आना पड़ा। सब स्वीकार्य है लेकिन हम तो जानते ही नहीं थे गुरु कैसा होता है। गुरु में तो Distance रह जाता है वो माँ में कोई Distance नहीं रहता है। बच्चे माँ की खोपड़ी भवसागर में फँसे लोगों को बाहर निकालने के लिए कोई पर बैठे रहते हैं। इसलिए आप लोग भी देखिएगा हमसे आप बहुत liberty लीजिए और मज़ा आता है। पूरे न कोई व्यवस्था करनी पड़ी। इसलिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ये बड़ी अजीब सी हस्ती बनाई है। इन तीनों की freedom से आप हमारे साथ रहिए। न आपको हमारे धर्म पर स्थापना कर दी गई, दत्तात्रेय ने और यही आदि गुरु और हमेशा गुरुरूप रहे हैं। इन्होंने अनेक बार संसार साथ कोई भय लगेगा न आपको कोई घबराहट होगी। कोई परेशानी नहीं। कोई भी बात हो बेधड़क आकर आप में जन्म लिया। उनका जन्म राजा जनक के रूप में हुआ जो आदिशक्ति के पिता स्वरूप थे उसके बाद उनका हमसे बताइगा, कोई सा भी problem हो आप हमसे झगड़िएगा सब होगा, कहिएगा। आप हमसे लड़िएगा, जन्म ईरान में हुआ था जोरास्टर के रूप में, मच्छिंदरनाथ भी वही, मोहम्मद साहब भी वही, नानक साहब भी जैसे अपनी माँ के साथ, वही होती है जिससे हम वही। किसका झगड़ा किसके साथ लगा हुआ है? बिल्कुल freely बैठे हैं पूरे freedom की जरूरत थी इसी वजह से। धर्म की चर्चा खुलेआम करने की जरूरत सोचिए। सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 27 चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 से आपको निकालने के लिए। पूर्णतया वो मानव थे। यहाँ तक बाहरी features में आप देखिए तो वो पूर्णतया थी। गुप्त कुछ भी नहीं है, कुछ भी गुप्त नहीं है, एक दशा में जाकर सब उघाड़ कर ही जाना है। पूरा उघाड़ना मानव थे कि मनुष्य उनको जाने। उस वक्त भी दो चार पूरा तत्व उघाड़कर कहने की जो बात है। लेकिन हो गया। हरेक बात हर मौके पर नहीं कही जाती। पूरी ही लोग थे वो पार हो गए इसमें कोई शक नहीं लेकिन बहुत ज्यादा नहीं हो पाए। बात अब हम आप लोगों से कह रहे हैं ये हम Realized लोगों से कह रहे हैं जो non-realized हैं उसके बाद छ: सात हजार साल पहले श्री कृष्ण Gi non-realized उनके लिए शंका ही है। जो realized लोग हैं उनके लिए कुछ इसका मतलब है पर इससे भी ऊँची दशा पर आए। शिवजी तो आप जानते हैं उनके साथ-साथ हैं ही। लेकिन श्रीकृष्ण के आने से पहले आदिकाल से ही जब भवसागर से लोग पार होना चाहते थे तब उन भक्तों को पहुँचने पर आप साक्षात् हो जाते हैं। उसके बाद भवसागर बड़ी आफत आती थी, वो जब भी meditation में को पार करने के लिए जो गुरु की स्थापना हुई उस पर बैठते थे उनको सताया जाता था तब आदिशक्ति अपने भी बहुत कुछ काम किया गया कि गुरु किसी तरह से सम्पूर्ण रूप में प्रकट हुई और उन्होंने 108 बार अवतार इस भवसागर से मनुष्य को पार कर देगा। कुछ काम बने लिया। इसको आप जानते ही होंगे। देवी महात्मय आप कुछ नहीं बने, बहुत से लोग हो गए। वो ही आज मदद कर रहे हैं वो चिरंजीव हैं। जैसे कि जैन धर्म में बहुत पढ़ें, मेरी बात आप समझ जायेंगे। देवी रूप वो संसार आई और उन्होंने आकर के लोगों को पहचाना। लेकिन तब वो सिर्फ देवी स्वरूप आई थीं उनको कोई माया बीच में नहीं थी इस वजह से मनुष्य तारण नहीं पा सकता, उनकी सिर्फ Protection ही जिसे कहना से चिरंजीव हैं, जैन धर्म के संस्थापक महावीर और बुद्ध की माँ एक थी और आदिशक्ति के ही पेट से दोनों पैदा हुए। इसलिए उनका पहला ही रिश्ता आप समझ लीजिए कि वो कहाँ पैदा हुए और फिर कितने बार फिर पैदा हुए लेकिन सब के लिए ही experimental था, चाहिए बचाव ही हो सकता है लेकिन तारण नहीं हो सबने ही experiment किए, कभी इस दशा में कभी सकता। महिषासुर को मारा, शुम्भ-निशुम्भ को मारा बहुतों को मारा। उस दशा में, कभी इस तरफ ले जाकर कि किसी तरह जो राक्षस सताते थे, जो Negative लोग थे, जो से मनुष्य भवसागर से पार हो जाए। थोड़े बहुत हो जाते थे, चिरंजीव हो जाते थे लेकिन amass जिसे कहना सताते थे भक्तों को उनको सबको मारा। लेकिन उनसे चाहिए इतने लोगों को पार करना कलियुग में ही हो उनका तारण नहीं हुआ क्योंकि वो पूर्णतया Human नहीं थे। जितने चक्र थे, तो चार चक्र पर हृदय चक्र सकता है। इसके बाद रामचन्द्र जी संसार में आए, वो भी आता है इसलिए उनके सामने चार ही पड़़ते थे इसलिए इसीलिए वो बिल्कुल ही मानव हो गए थे. एकदम मानव राधा का जन्म हुआ सीताजी के बाद श्री राधा का जन्म हुआ। जो बहुत ही Human, विशुद्धि चक्र पर पाँचवें है। हो गए थे, उनको तो भुला दिया गया था कि तुम अवतार हो। वो एक दम ही अपने को भुलाकर कोे आप इस माया बहुत ही Human और प्रेम चक्र पर उनका स्थान का संगीत उन्होंने गाया। कहते हैं कि जब कंस को मारा में पड़कर एक दम ही अपने को भुला करके आए और था श्री कृष्ण ने, अपना मामा था, तब भी राधा जी को मानव ही बनकर इस संसार में बो जिए हैं इस भवसागर सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 28 चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 हैं और अपने पति के साथ में आती हैं तब शांत होती बुला कर लाए थे। राधा 'रा' माने फिर वही energy' ध T' माने धारने वाली। राधा ही की धारा हो जाती है हैं, लेकिन जब अकेली आती हैं तब वो भयानक होती आपके अन्दर। जो शैवाइट लोग हैं वो शिवजी को मानते हैं। और तब से यहाँ का स्थान साक्षात् भगवती का है। हैं, वो भी एक दिन अकृष्ण थे। कृष्ण अन्तर नहीं सिवाय इसके कि शिव जो हैं ईश्वर स्थिति और शिव में कोई सहस्रार का स्थान साक्षात् भगवती का है। ये स्वयं इसे तोड़कर इसमें सातों चक्र पूरे होते हैं इसीलिए माया भी सात पर्े की है। और इसकी पहचान मुश्किल बहुत मुश्किल है। में अपने हृदय में स्थान बनाए हैं, और श्री कृष्ण विशुद्धि चक्र में, उनको 16 कला कहते हैं वैसे अपने अन्दर 16 पूरा का पूरा उसका Human बिल्कुल Human चक्र पूरा हो जाता है। सातों चक्र का। Plaxuses होते हैं, आश्चर्य की बात है विशुद्धि चक्र आपको क्या करना चाहिए किस तरह से अपनी जिसकी कि 16 कलाएं हैं वहाँ पर श्रीकृष्ण का वास है। और उनकी शक्ति राधा थी जो बाद में दो में बंट गई जो साधना पूरी करनी चाहिए। ये तो मैंने थोड़े में बता दिया। रुकमणी और राधा बनकर के एक वृंदावन में और एक लेकिन Methodically इसे बताया जाए तो इस तरह से समझिए इसका कोई समय तो होता नहीं, हर समय आप द्वारिका में। बहुत ही Human । निर्विचारिता में रहिए जैसे इस वक्त आप निर्विचार बैठे उसके बाद श्री कृष्ण का एक ही पुत्र था जो प्रणव हैं। जब विचार करिए निर्विचारिता में जाइए। अब इसके स्वरूप था। जरा सोचिए साक्षात् ओम् स्वरूप वो था। उसने यहाँ अवतार लिया। उसका नाम जीसस क्राइस्ट है और बाद में Thoughtless awareness के बाद में Doubt- उसकी 'मेरी' माँ थी आज्ञा चक्र पर वो आए। आज्ञा चक्र less awareness आती है। अब आपको शंकाएं खडी होंगी। इसके बाद Second stage में आदमी Doubt- पर आते ही वहाँ पर ego और superego दोनों का सामना होता है। आप देखिए कि आपका आज्ञा चक्र जो है Pineal less awareness में आता है। अब शंकाएं होंगी। ये ठीक है या नहीं, माताजी ने ये कहा ये बात ठीक नहीं Body ( शकु रूप) और Pituitary Body (पीयुष ग्रंथी) को control करता है। बिल्कुल Scientific बात है। है। ऐसा कैसे हो सकता है? ये हुआ या नहीं, हम पार इसलिए आपके आज्ञा चक्र पर भूत सिर्फ उन्होंने निकाले हुए कि नहीं? इस तरह की शंकाएं। ये शंका का निर्मूलन ऐसा होगा जब आप अपने स्थान पर आसन्न होंगे माने क्योंकि Super ego में भूत बैठते हैं और Ego में भी भूत बैठ सकते हैं क्योंकि ईडा और पिंगला दोनों वहीं-खत्म कि हमने आपको तो सिंहासन दे दिया लेकिन आपको शंका है कि ये सिंहासन है या नहीं, हम बैठे हैं ये ठीक होते हैं। उसी ने इस पर हाथ रखा। पहले वैसे तो नानक है या नहीं? तो आप देख लीजिए आप अपने हाथ से देख लीजिए कि कितनी अट्वितीय चीज़ आपके हाथ से जी के जमाने में भी हुआ था। हर समय ये भूत वाले आते रहते थे। Enticement करते रहते थे ये होता था लेकिन उनकी तो गर्दन ही काट दी। कृष्ण में तो संहार शक्ति जा रही है और लोगों को जब आप इसी हाथ से छूकर के ठीक करेंगे, आपको जब इनके अनुभव धीरे-धीरे की। तो आज्ञा चक्र पर ईसा-मसीह का नाम है। और महालक्ष्मी जिनकी हम इतनी स्तुति गाते हैं, उनको किसी ने कहीं वर्णित नहीं किया कि वहाँ कहाँ हैं, वो है कमाल आने लग जाएंगे तो आपके Doubt तब धीरे-धीरे कम होने लग जाएंगे। माने ये कि हमने आपकी नाव बना दी स्वयं 'मेरी' हैं। ये जब भी अपने बच्चे के साथ आती तैयार कर दी, अब तैयार होने के बाद इसको, नाव को, चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 29 आया कि इसके मैं क्यों पाँव छुऊं? कुण्डलिनी ओंधी पानी में छोड़ना चाहिए लहरों से लड़ना चाहिए, तब पता होगा कि ये नाव है या नहीं। हो सकता है लकड़ी ही बैठी हुई है अरे पार तो होता कम से कम, उसके पाँव छूने चाहिएं। पाँव उसी के छूने चाहिए जो अपने से ऊँचा हो। आखिर किस चीज़़ के लिए? तुम तो सब जानते हो उसका शास्त्र, जानते हो, सब कुछ जानते हो। इतनी तेजस्विता तुममें आ गई तुमने उसके पाँव कैसे हो। लेकिन लकड़ी की नाव बन गई कि नहीं, बन गई, ये पानी में गिरे बगैर नहीं पता चलेगा। इसलिए इसको, नाव को छोड़ देना चाहिए और लहरों पर छोड़ना चाहिए और देखना चाहिए। लहरों के थपेड़े जब बैठेंगे और तो भी जब नाव नहीं डूबेगी तो पता हो जाएगा नहीं, हाँ हो छुए? Egolessness ये ही आता है। आप लोग इतने गया है, मामला कुछ। अभी तो doubts ही आएंगे थोड़े साधारण तरीके से रहिए कि कोई विश्वास नहीं कर से, क्योंकि मनुष्य अपने को बहुत ऊँचा समझता है। एक सकता कि आप पार हैं। आदमी Egoless हो जाता है। साहब थे हमारे यहाँ, तो वो गए वहाँ एक स्वामी जी बैठे एकदम Egoless । उसको लगता ही रहता है कि ये हुए हैं, हजारों आदमी वहाँ आते हैं खाते हैं पीते हैं। वो झण्डा लगाकर वहाँ बैठे हैं। अब ये महाशय हमारे साथ अमेरिका गए हुए थे ऐसे इशारे पर वो कुछ करते थे। आप भी कर सकते हैं, यूं करिए, किसी-किसी की कैसे हो सकता है। कुछ भी करे उसको लगता है। ऐसे कैसे हो सकता है। लेकिन हो गया है, आपके अन्दर बात हुई, अगर हो गई तो ये सोचना चाहिए कि गर हुई है तो हमारे लिए क्यों हुई, इस दिल्ली में हम कितने लोग ये कुण्डलिनी रास्ते-रास्ते यूं ही उठा सकते हैं, यूं करिए। यूं रहते हैं। इशारे पर यहाँ बैठे बैठे ही किसी की कुण्डलिनी चाहे आखिर हमीं क्यों विशेष रूप से पार हुए? कोई न उठा करके आप मज़ा देखिए क्या होता है! आप किसी कोई कारण होगा पूर्व जन्म के, जन्म जन्मातर की आपकी खोज है, जन्म जन्मांतर का आपका हक है। आप लोग साधु, बड़े-बड़े साधु लोग हैं, आपको क्या पता? आप गर साधु नहीं होते तो क्या आपको हम पार की भी आप उंगलियों पर आपके कुण्डलिनी घूमेगी। आपके क्या आपके हाथ से जो बह रहा है उसी के सहारे होगा। वो ऐसे तीन-तीन सौ लोगों की अमेरिकन लोगों की कुण्डलिनी उठाते थे वो साधू जी थे वहाँ बहुत कराते। हम क्या करते गर पत्थर को हम पार कराते। हजारों लोग आते हैं, हम, आपने देखा, नहीं पार करा से लोग गए। तो ये भी चले गए तो जब गए तो हमें तो सब पता हो ही जाता है कहाँ कौन भटक रहे हैं। जब पाते। आप ही लोग लोग पार हो गए, कोई न कोई कुछ लौट के आए तो हमने कहा आपने उनके पाँव क्यों छुए? बात तो है ही। लेकिन ये आपके अन्दर आएगी नहीं कहने लगे सब छू रहे थे हम ने भी छुए। जो अपने से बात, बैठेगी नहीं, क्योंकि आप अपने को सोचिएगा कि बड़ा हो उसके पाँव छूने चाहिए। आपने क्यों किया ? ऐसे कैसे हो सकते है? Egoless हैं इस वजह से ये कहने लगे सब छू रहे थे तो हमने भी छू लिए। हमने Problem आ जाता है। ये सहजयोग की Egolessness कहा उनका हाल क्या था? कुण्डलिनी का क्या हाल है? है। बहुत ही साधारण तरीके से। न तो आप कपड़ों में वो पार हो गए? कहने लगे वो पार तो नहीं हैं और कोई बदल करने वाले हैं, न तो किसी चीज़़ में लेकिन कुण्डलिनी, वो तो ओंधी बैठी है। मैंने कहा तुम्हारे उंगली अन्दर से आप देखते जाइएगा कि शान्ति आ गयी, अब के इशारे पर हजारों ऐसे उठते हैं और तुम्हें ख्याल नहीं क्यों उलझ रहे हो? बातचीत में बोलने में हरेक चीज़ से चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक :9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 30 आप Realized आदमी होंगे कि हाँ यह Realized है। जानिए। कोई तकलीफ होगी अचानक आप देखिएगा कि और फिर माहिर, होशयार हो जाएंगे क्योंकि आप जानेंगे इनमें से कोई आदमी पहुँच जाएगा अचानक। क्योंकि देवता कि इनका ये ऐसे ही बोलेंगे, इनका ये घूम रहा है, उनका आपके ऊपर मॅडराते हैं। एकदम से कोई आदमी सोचे जरा ये घूम रहा है। बो उधर बक-बक कर रहे हैं ये इधर ऐसे-ऐसे कर रहे हैं, चलो इनको ठण्डा करें। थोड़ी देर देखें उनका क्या हाल है? कहने लगे मुझे पता नहीं मैं कैसे चला आया? मैं आ रहा था रास्ते से, मैंने कहा ऊपर जाएं, में देखा महाशय जी ठण्डे हो गए हैं। कोई लोग आते हैं चला आया। काम आपका बन गया। एक्सीडेंट आपके होने वाले नहीं, देवता आप पर मंडरा रहे हैं। आपमें से एक भी हमसे झगड़ा वगड़ा करने, ये लोग पीछे से उनकी आदमी गर ऐसी जगह है जहाँ एक्सीडेंट हो रहा है तो सब कुण्डलिनीयाँ घुमा-घुमा कर उनको ठण्डा करते हैं, थोड़ी बच जाएंगे, आपकी वजह से। बहुत-बहुत कुछ होगा। आप देर में चुपचाप बैठे। बहुत Tricks करते हैं। एक साहब देखते रहें, रोज़ लिखते रहें, आपकी कुण्डलिनी की जागरणा, बहुत झगड़ा कर रहे थे। इतने उनका Time वो बता रहे उसका घूमना फिरना देखते रहें । उसमें परेशान हीने की कोई थे आज एक किस्सा, एक साहब झगड़ा कर रहे थे बात नहीं। उठेगी, कभी यहाँ गुदगुदी करेगी, कभी यहाँ उनका Time आ गया तिल खाने का। तो अच्छा लाओ चढ़ेगी, कभी यहाँ आलौकित करेगी, कभी यहाँ आलौकित देखें तुम्हारी तिल, हाथ में रखकर उसमें Vibrations दे करेगी। उस सब चीज़ से आपकी जो चेतना है वो बँधी है, दिया, खाओ। खाते साथ ध्यान में खट से चले गए। वो प्रकाशित होएगी और संसार में वो आन्दोलित होएगी। अभी यहाँ आप बैठे हुए हैं आपको पता नहीं कि हज़ारों किसी ने ज्यादा परेशान किया तो पानी में जरा सा हाथ डालकर वाल करके पिला दीजिए पानी, काम खत्म। करोड़ों रश्मियाँ आपकी यहाँ बह रही हैं। आप देख लीजिएगा चैतन्य अन्दर में एकदम से पनप जाएंगे। लेकिन आप सभी अभी आप बच्चे हैं। अभी-अभी आप पैदा हुए हैं कि दिल्ली का वातावरण बदल जाएगा। देख लीजिए हम छोटा बच्चा बड़ी जल्दी बीमार होता है, बड़ी जल्दी एक ही बार कलकत्ते गए थे कलकत्ते का वातावरण देखा आपने कैसा है? तभी हमने कहा था कलकत्ते का वातावरण आप पकड़ लेते हैं। अपने स्थान से आप बड़ी जल्दी गिर जाएंगे। स्थान को पकड़े रहें, स्थान से हटें नहीं। बदल जाएगा आठ दिन कलकत्ते में रहे, वातावरण बदल डावांडोल आदमी को नहीं रहना है। अपने स्थान पर जमे गया। लोगों के दिमाग जरा ठण्डा हो गया। आज महाराष्ट्र में रहें क्योंकि चीज एसी मिली हुई है कि आदमी डांवाडोल सबसे अच्छा चल रहा है। वजह है इसकी। कितने ही लोग हो ही जाएगा। ये आपको मैं बता रही हूँ। इसीलिए संघ शक्ति होनी चाहिए। ये लोग हैं आपस में Realized हो गए महाराष्ट्र के, अब दिल्ली स्टेट को जाना है । और सारे संसार की कुण्डलिनी भारत-वर्ष में बैठी हुई है वो भी देख लीजिए, क्या कमाल है? भारतवर्ष में ही सारे आकर के माताजी मेरा सिर पकड़ गया। निकाल दीजिए। विश्व की कुण्डलिनी बैठी हुई है और भारत वर्ष हमारा ठीक आपस में, अरे भई कमर में ही, आज्ञा चक्र में कहीं जहाँ पर भी है वहाँ निकाल दो। आपस में ऐसे ही बातें करते रहते हैं। हो जाए सारा संसार ही ठीक हो जाए। और उसका सहस्रार अब यही आपके सव भाई बहन हैं यही सब प्रेम की एक नई दुनिया है। ये आपके रिश्तेदार हैं इनको सबको आप भी यहीं बैठा हुआ है और इसलिए मुझे हजारों हिन्दुस्तानी ऐसे चाहिएं जो Realization दे पायें । परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का परामर्श मुम्बई 27.05.1976 ( मराठी से अनुवादित) मैंने आपको बताया था कि सहजयोग में आप किस अनुभवों की ओर जाता है। या इसे इस तरह से समझने प्रकार निर्विचार चेतना को प्राप्त करते हैं। आत्मा से का प्रयत्न करें; मान लो एक व्यक्ति की रुचि संगीत में एकरूपता (तदात्मय) प्राप्त करने के पश्चात् व्यक्ति है किसी भी प्रकार से उसकी रुचि संगीत में है-शास्त्रीय परमात्मा का सामीप्य तथा सालोक्य प्राप्त कर सकता है। संगीत में। तब वह किसी अन्य संगीत का आनन्द नहीं ले पाएगा चाहे वह गैर-शास्त्रीय संगीत की सभा ही क्यों परन्तु आत्मा का तदात्म्य (एकरूपता) प्राप्त करने पर व्यक्ति की रुचियाँ ही परिवर्तित हो जाती न हो। सहजयोग में आपकी स्थिति भी बिल्कुल ऐसी ही होनी चाहिए। जहाँ तक आपकी अन्य आदतों तथा केवल आत्मा से एकाकारिता प्राप्त करने मात्र से, इसका अनुभव प्राप्त करने के पश्चात व्यक्ति में सालोक्य और सामीप्य की अवस्था में जाने की इच्छा नहीं होती। रुचियों का सम्बन्ध है उनकी वास्तविकता यह है कि इसका अर्थ यह है कि जब आपके हाथों में चैतन्य उन्हें जान बूझकर शनै: शनै: विकसित किया गया है। लहरियाँ बहने लगती हैं और जब आप अन्य लोगों की अत: ये रुचियाँ गहन रूप से आपके अन्दर बनी हुई हैं। कुण्डलिनी को महसूस करते हैं, उनकी कुण्डलिनी को सहजयोग आपके अन्दर पूर्ण परिवर्तन लाया है। आप उठाने लगते हैं तो आपका चित्त दूसरे साधकों की एक नई चेतना की अवस्था में आ गए हैं, अन्य लोगों कुण्डलिनी को देखने और अपनी कुण्डलिनी को समझने की चैतन्य लहरियाँ और कुण्डलिनी को महसूस कर में लग जाता है। अपने चक्रों के प्रति आप सावधान हो सकते हैं, बहुत से लोगों को आत्म साक्षात्कार दे सकते जाते हैं और अन्य लोगों के चक्रों को भी समझते हैं। हैं। बहुत से लोगों को रोगमुक्त किया है । एक नई शक्ति आप यदि आकाश की ओर देखें तो वहाँ विद्यमान में आप प्रवेश कर सकते हैं और यही शक्ति आपके बादलों के बावजूद भी आपको बहुत सी प्रकार की कुण्डलिनीयाँ दिखाई देंगी। क्योंकि अब आपका चित्त कुण्डलिनी पर चला गया गया है तो जो भी कुछ आप कुण्डलिनी के बारे में जानना चाहते हैं, जो भी कुछ देखना चाहते हैं, जो भी इच्छाएं आपके अन्दर हैं वो सब अन्दर संचारित है। परन्तु यह सब करते हुए एक कमी रह गई है कि आपने कोई भी प्रयत्न नहीं किया, फिर भी बिना किसी प्रयत्न के सभी कुछ घटित हो गया है। सम्भवत: यही कारण है कि यद्यपि बहुत से लोगों को सहज-योग में चैतन्य लहरियाँ प्राप्त हो जाती हैं और वे एक स्तर तक आपके सम्मुख प्रकट होंगी। कुण्डलिनी में आपकी दिलचस्पी बढ़ती है और अन्य सभी चीज़ों में घटती है। उन्नत भी हो जाते हैं, परन्तु उनका चित्त परमात्मा, आत्मा इस बात को इस तरह से समझने का प्रयत् करें; जैसे एवं कुण्डलिनी पर कभी भी स्थापित नहीं हो पाता तथा आप बचपन को छोड़कर युवा अवस्था में प्रवेश करते हैं बार-बार गलत चीज़ों की ओर दौड़ता है। तो आपमें युवा आयु की रुचियाँ होती हैं। उदाहरण के रूप में आपकी नौकरी, व्यापार, परिवार आदि। अब आप केवल इन्हीं चीजों में दिलचस्पी लेते हैं और बाल्यावस्था की सभी दिलचस्पियाँ छूट जाती हैं, पुराने अनुभव धुंधले पड़ जाते हैं और आपका चित्त नए बात-केवल एक बात-मस्तिष्क में रखनी आवश्यक है आपने पूछा था," आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् क्या करें?" प्राप्त करने के पश्चात् आप आत्मसाक्षात्कार दें। प्राप्त करने के पश्चात् देना अत्यन्त आवश्यक है अन्यथा प्राप्त करना अर्थहीन है। तथा देते हुए एक संग बैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9वं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 32 "कि शरीर, मन और बुद्धि-अर्थात् जिसके माध्यम से आप इतनी अद्वितीय चीज़ दे रहे हैं. वह अपने आपमें अत्यन्त सुन्दर होनी चाहिए। आपका के लिए बैठना कठिन नहीं हैं। रात को सोने से पूर्व सभी को यह क्रिया करनी आवश्यक है । इससे आपकी आधी से ज्यादा समस्याएँ ठीक हो जाएंगी| हम लोगों के अन्दर बहुत सी बुरी प्रवृत्तियाँ बनी हुई हैं, बहुत सी अन्धकारमय प्रवृत्तियाँ हमारे अन्दर बनी हुई हैं जिन्हें हम नकारात्मकता का नाम देते हैं। पूरी ताकत से वे हमें प्रभावित करने का प्रयत्न करती है । उनके "पूर्ण व्यक्तित्व' अन्तस अत्यन्त स्वच्छ होना चाहिए।" इंसमें कोई रोग नहीं होना चाहिए, आपमें यदि कोई रोग है-सम्भवत: कुछ सहजयोगियों में रोग होंगे। सहज-योग में आने से पूर्व आपको अवश्य चिन्ता होती होगी और आप इच्छा करते होंगे कि किसी भी तरह से बीमारियाँ ठीक हो नियन्त्रण में रहना शैतान के नियन्त्रण में रहना है। आप जाएं। परन्तु आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् आपको चित्त बीमारियों पर नहीं होना चाहिए और आपको कहना चाहिए, "यह ठीक हो जाएगी, कोई बात नहीं।" परन्तु यह गलत है। आपको जो भी समस्या हैं, चाहे वह छोटी यदि चाहें तो शैतान बन सकते हैं और चाहें तो भगवान। यदि आप शैतान बनना चाहते हैं तो उस कार्य के लिए मैं आपकी गुरु नहीं हूँ। यदि आप भगवान बनना चाहते हैं तो मैं आपकी गुरु हूँ। शैतान बनने से स्वयं को बचाएँ। ध्यान देने योग्य पहली बात यह है कि पूर्णमासी और अमावस्या की रातों में हमेशा आपके बाएँ और दाएँ पक्ष सी है, रोग प्रभावित स्थान पर अपना हाथ रखकर आप इस रोग को ठीक कर सकते हैं। अपने शारीरिंक पक्ष को को प्रभावित होने का भय होता है। विशेष रूप से इन दो आप अत्यन्त स्वच्छ रख सकते हैं। जो भी हो आप लोगों के लिए मैंने एक इलाज बताया दिनों में-अमावस्या और पूर्णमासी-आपको चाहिए कि रात को जल्दी सो जाएँ। खाना खाने के पश्चात फोटोग्राफ है। जैसे मैंने बताया है आपमें से हर एक प्रात: उठने के पश्चात् स्नानागार में जाकर स्वयं को स्वच्छ करें। कम को प्रणाम करें, ध्यान करें और सहस्रार पर चित्त को रखें से कम पाँच मिनट के लिए पानी पैर क्रिया करना तथा बन्धन ले कर सो जाएँ। इस का अर्थ यह है कि भी सहजयोगियों के लिए अत्यन्त आवश्यक है। जिस क्षण आप अपने चित्त को सहम्रार पर ले जाते हैं आप चाहे जितने उन्नत हों, चाहे आपको बिल्कुल पकड़ उसी क्षण आप अचेतन में चले जाते हैं । उस स्थिति में ना आती हो, फिर भी कम से कम पाँच मिनट के लिए स्वयं को बन्धन दें तो आपको सुरक्षा प्राप्त हो जाती है। आप पानी पैर क्रिया अवश्य करें। कभी-कभी तो मैं विशेष रूप से इन दो रातों को। अमावस्या की रात को स्वयं भी यह क्रिया करती हूँ (यद्यपि मेरे लिए ऐसा आपको श्री शिव का ध्यान करना चाहिए। श्री शिव का ध्यान करने के पश्चात आपको सोना चाहिए-अर्थात करना आवश्यक नहीं है) ताकि सहजयोगी भी इस है। क्रिया को अपना लें। यह बहुत अच्छी आदत सभी सहजयोगियों को चाहिए कि कम से कम पाँच मिनट के लिए पानी पैर क्रिया करें। सभी को चाहिए कि मेरे फोटो के सम्मुख दीपक जलाएँ, कुमकुम लगाएं और नमक वाले पानी में पैर डाल कर फोटोग्राफ के सम्मुख आत्मा का ध्यान करने के पश्चात-और स्वयं को उनके प्रति समर्पित करना चाहिए। पूर्णमासी की रात्रि को आपको चाहिए कि श्रीराम का ध्यान करें और सुरक्षा की कृपा करने के लिए स्वयं को उनके प्रति समर्पित करना चाहिए। रामचन्द्र शब्द का अर्थ है 'सृजनात्मकता '। अपनी सारी सृजनात्मक शक्तियाँ पूरी तरह से उन्हें समर्पित कर दें । इस प्रकार से इन दो रातों को आपको अपनी विशेष रूप से देखभाल करनी चाहिए। अपने हाथ खोल कर इस प्रकार से बैठ जाएँ। आप यदि ऐसा करते हैं तो आपकी आधी समस्याएँ तो स्वत: ही सुलझ जाएंगी। आप चाहे जितने व्यस्त हों, पाँच मिनट सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 33 बैतम्य तहरी खण्ड -XV अक : 9 एम 10 सावधान रहना चाहिए। कभी भी व्यक्ति को हृदय चक्र की समस्या हो सकती है। अपने हृदय चक्र को अवश्य शुद्ध रखें। शुक्ल पक्ष (Lunar fortnight) सप्तमी और नवमी को आपको मेरा विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह बात स्मरण रहे कि इन दो दिनों में आपको मेरा विशेष आशीर्वाद मिलता है। कुछ ऐसा प्रबन्ध करें कि इन दिनों परन्तु बहुत से लोगों में हृदय ही नहीं होता। वे इतने शुष्क व्यक्तित्व होते हैं चाहते हुए भी आप ऐसे लोगों के लिए कुछ नहीं कर सकते। फिर भी यदि वे आपसे प्रार्थना करें तो उन्हें सलाह दें कि हठयोग को छोड़ दें, भिन्न कार्यों के बोझ से स्वयं को मुक्त करें, अन्य लोगों से प्रेम करना सीखें। यदि वे एक दम से किसी मनुष्य को प्रेम नहीं कर सकते तो पहले पालतु पशुओं से प्रेम करें। आपको चाहिए कि सभी से प्रेम करें। बच्चों से प्रेम करें। उनके प्रति निर्दयी न बनें। वास्तव में किसी से भी नाइन्साफी न करें, किसी को हानि न पहुँचाएं, कोई भी बच्चों को पीटे नहीं, पीटने की मुद्रा में आप अच्छी तरह से ध्यान-धारणा करें। इस प्रकार से आपको चाहिए कि स्वयं को सुरक्षित करें। जब भी घर से बाहर जाना हो तो स्वयं को बन्धन दें, हमेशा बन्धन में रहें। किसी ऐसे व्यक्ति से यदि आपका सामना हो जिसे तुरन्त बन्धन ले लें चाहे यह आज्ञा की पकड़ हो तो बन्धन चित्त से ही क्यों न लेना पड़े। आज्ञा की पकड़ वाले व्यक्ति से वाद-विवाद न करें। ऐसा करना मूर्खता है। किसी भूत से क्या आप वाद-विवाद कर सकते हैं? विशुद्धि की पकड़ वाले व्यक्ति से भी वाद-विवाद में कभी अपना हाथ ना उठाएं, किसी पर क्रोधित ना हों। न करें। सहस्रार से पकड़े हुए व्यक्ति के पास कभी न जाएँ, उससे कोई सम्बन्ध न रखें उसे बताएँ कि पहले अपने सहस्रार को ठीक करो। उसे यह बताने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि 'आपका विशेष रूप से सहजयोगियों को तो कभी नाराज़ होना ही नहीं चाहिए। विना नाराज़ हुए अत्यन्त विवेक एवम् युक्तिपूर्वक उन्हें सुधारना चाहिए कभी नाराज़ न हो । यह सब बातें मेंने इसलिए बताई हैं ताकि आप अपने शरीर यन्त्र को स्वच्छ कर सकें और कुछ आदर्श रखें। आपका लक्ष्य यदि ऊँचा होगा और आपमें यदि उत्थान सहस्रार पकड़ा हुआ है इसे ठीक करें।' सहस्रार स्वच्छ रखा जाना चाहिए। किसी को यदि सहसार पर पकड़ आने लगे तो उसे चाहिए कि तुरन्त अन्य सहजयोगियों से प्रार्थना करें कि कुछ करें और मेरा सहस्ार ठीक कर दें।' की इच्छा होगी तभी आपका उत्थान होगा। नीचे की ओर सहसार की पकड़ बाला व्यक्ति यदि आप से बात करता है तो उसे बता दिया जाना चाहिए कि वह आपका दुश्मन कभी न देखें। हर कदम पर, हर स्थान पर मैं आपके साथ हूँ है. शत्रु है। जब तक यह पकड़ बनी हुई है तब तक सर्वत्र। कहीं भी आप चले जाएं, हर स्थान पर मैं उससे बात नहीं की जानी चाहिए । जहाँ तक हृदय की पकड़ वाले व्यक्ति का सम्बन्ध प्रकार से, दिल-दिमाग से। जब भी आप मुझे याद है तो आपको चाहिए कि उसकी सहायता करें। जहाँ तक करेंगे तो अपनी पूरी शक्तियों के साथ मैं आपके सम्भव हो उसके हृदय को बन्धन दें। श्री माताजी के पास हूँगी यह मेरा वचन है। जो लोग नर्क में जाना फोटोग्राफ के सम्मुख बैठा कर उसका एक हाथ हृदय चाहते हैं उन्हें मैं नीचे की ओर ढकेल रही हूँ। अत: पर रखवाएँ। हृदय चक्र के विपय में आपको बहुत सावधान रहें और ऊपर को देखें। आपके साथ हूँ-पूर्णतया व्यक्तिगत रूप से, हर सहस्रार दिवस 5 मई 1983 गोरई क्रीक, बम्बई परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन द आप सबकी ओर से मैं बम्बई के सहजयोगी व्यवस्थापक सहस्रार खुल गया है, उस पर भी ये चार चक्रों में जिन्होंने यह इन्तज़ामात किये हैं, उनके लिये धन्यवाद | आपको जाना है-अर्धविन्दु, बिन्दु, वलय और प्रदक्षिणा का देती हूँ, और मेरी तरफ से भी मैं अनेक धन्यवाद देती हूँ। इन चार चक्रों के बाद कह सकते हैं कि हम लोग उन्होंने बहुत सुन्दर जगह हम लोगों के लिए ढूंढ रखी है। सहजयोगी हो गए। और दूसरी तरह से भी आप देखें, तो हमारे अन्दर चौदह स्थितियाँ, सहस्रार तक पहुँचने पर भी हैं। अगर ये भी एक परमात्मा की देन है कि इस वक्त जिस चीज के बारे में मैं बोलने वाली थी, उन्हीं पेड़ों के नीचे बैठकर उसको बिभाजित किया जाए तो सात चक्र इड़ा नाड़ी पर सहस्रार की बात हो रही है। चौदह वर्ष पूर्व कहना चाहिये या जिसे तेरह वर्ष हो गए और अब चौदहवाँ वर्ष चल पड़ा है, यह महान् कार्य और सात पिंगला नाड़ी पर हैं। मनुष्य जब चढ़ता है, तो वो सीधे नहीं चढ़ता। वो संसार में हुआ था, जबकि सहस्रार खोला गया। इसके बारे पहले lefit (बायें) में आता है, फिर right (दायें) में में मैने अनेक बार आपसे हर सहस्ार दिन पर बताया जाता है, फिर left में आता है, फिर right में जाता है। हुआ है कि क्या हुआ था, किस तरह से घटना हुई, क्यों और कुण्डलिनी जो है, वो भी जब चढ़ती है तो इन दोनों में विभाजित होती हुई चढ़ती है। इसकी वजह ये है कि मैं आपको अगर समझाऊँ कि दो रस्सी और दोनों रस्सियाँ की गई और इसका महात्म्य क्या है। लेकिन चौदहवाँ जन्म दिन एक बहुत बड़ी चीज़ है। क्योंकि मेनुष्य चौदह स्तर पर रहता है, और जिस दिन इस प्रकार नीचे उतरते वक्त या ऊपर चढ़ते बक्त भी दो चौदह स्तर वो लाँघ जाता है, तो वो फिर पूरी तरह से सहजयोगी हो जाता है। इसलिये आज़ सहजयोग भी सहजयोगी हो गया। अवगुण्ठन लेती हैं। जब दो अवगुण्ठन लेती हैं. तो उसके left और right इस प्रकार से, पहले left और फिर right, दोनों के अवगुण्ठन होने से, फिर right वाली अपने अन्दर इस प्रकार परमात्मा ने चौदह स्तर बनाए right को आ जाती है, eit वाली left को चली जाती हैं। अगर आप गिनिये, सीधे तरीके से, तो भी अपने है। आप अगर इसको देखें, तो मैं आपको दिखा सकती हूँ। समझ लीजिये इस तरह से आया। अब इसने एक अन्दर आप जानते हैं सात चक्र हैं, एक साथ अपने आप। उसके अलावा और दो चक्र जो हैं, उसके बारे में आप लोग बातचीत ज्यादा नहीं करते, वों हैं 'चन्द्र' का चक्कर लिया, और दूसरे चक्कर लेने में फिर आ गई चक्र और 'सूर्य' का चक्र। फिर एक हँसा चक्र है, इस इसी तरफ। इस तरफ से आया, इस ने एक चक्कर प्रकार तीन चक्र और आ गए। तो, सात और तीन-दस। लिया, फिर दूसरा चक्कर लिया. फिर इस तरफ। इस उसके ऊपर और चार चक्र हैं। सहसरार से ऊपर और प्रकार दो अवगुण्ठन उसमें होते जाते हैं। इसलिये आपकी जब कुण्डलिनी चढ़ती है तो चक्र पर आपको दिखाई देता है, किं left पकड़ा है या right, क्योंकि कुण्डलिनो चार चक्र हैं। और उन चक्रों के बारे में भी मैंने आपसे , ऐसे बताया था-अर्घबिन्दु, विन्दु., वलय और प्रदक्षिणा चार चक्र हैं। सहजयोग के बाद भी, जब कि आपका तो एक है। फिर आपको एक ही चक्र पर दोनों चीज़ चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 35 दिखाई देती हैं। इस प्रकार आप देखें कि left पकड़ा है है। नमक होता है। ईसा मसीह ने कहा था कि 'तुम संसार के नमक हो।' माने हर चीज़ में आप घुस सकते हो, 'हर या right पकड़ा तो इस प्रकार हमारे अन्दर left और right, अगर चीज़' में आप स्वाद दे सकते हो। नमक हो'-नमक के दोनों का विभाजन किया जाए, एक चक्र का, तो सात बगैर इन्सान जी नहीं सकता। जो हम ये प्राण- शक्ति दूनी चौदह। वैसे ही हमारे अन्दर चौदह स्थितियाँ तो अन्दर लेते हैं, अगर हमारे अन्दर नमक न हो तो वो प्राण-शक्ति भी कुछ कार्य नहीं कर सकती। ये catalyst पहले ही cross (पार) करनी पड़ती हैं, जब आप सहस्रार तक पहुँचते हैं और अगर इसको आप समझ लें (कार्य-साधक) है और ये नमक जो है, ये हमें जीने कि सात ये, और ऊपर के सात-इस तरह भी तो चौदह का, संसार में रहने का, प्रपन्च में रहने की पूर्ण व्यवस्था का एक मार्ग बना। नमक करता है। अगर मनुष्य में नमक न हो, तो वो किसी इसलिये, 'चौदह' चीज़ जो हैं वो कुण्डलिनी शास्त्र बहुत महत्वपूर्ण है बहुत महत्वपूर्ण। बहुत महत्वपूर्ण चीज़ है। और जब तक हम इस चीज़ को पूरी तरह से न समझ लें, कि इन चौदह चीज़ों से जब हम परे उठेंगे, तभी हम सहजयोग के पूरी तरह से अधिकारी हैं । हमको काम का इन्सान नहीं। लेकिन परमात्मा की तरफ जब ये चीज उठती है तो वो सब नमक को नीचे ही छोड़ देती है-'सब' चीज़ छूट जाती है। और जब इन पेड़ों पर सूर्य की रोशनी पड़ती है, और सूर्य की रोशनी पड़ने पर जब इसके पत्तों का रस और सारे पेड़ का रस, ऊपर की ओर में आगे बढ़ते ही रहना चाहिए और उसमें पूरी तरह से रजते खिंच आता है-क्योंकि evaporation होना (भाप बनता रहना पड़ेगा। रजना, विराजना-ये शब्द आपके सामने पहले बार भी मैंने बहुत कहे हैं लेकिन आज के दिन विशेषकर के, हम लोगों को समझना चाहिए कि सहस्रार है; तब इसमें से जो, इस तने में से जो यही पानी ऊपर बहता है-वो 'सब' कुछ छोड़कर के, उन चौदह चीजों को लाँघ करके, ऊपर जाकर के, श्रीफल बनता है। वही श्रीफल आप हैं। और देवी को श्रीफल जरूर के दिन रजना, विराजना क्या है। अब आप यहाँ बैठे हैं, ये पेड़ों को आप देखिये। ये पेड श्रीफल का है। नारियल को 'श्रीफल' कहा जाता देना होता है। श्रीफल दिये बगैर पूजा सम्पन्न नहीं होती। श्रीफल भी एक अजीब तरह से बना हुआ है। दुनिया में ऐसा कोई सा भी फल नहीं, जैसे श्रीफल है। उसका है। श्रीफल, जो नारियल है इसके बारे में आपने कभी सोचा या नहीं, पता नहीं। लेकिन बड़े सोचने की चीज़ कोई-सा भी हिस्सा बेकार नहीं जाता। इसका एक-एक हिस्सा इस्तेमाल होता है। इसके पत्तों से लेकर हर चीज़ इस्तेमाल होती है और श्रीफल का भी-हर एक चीज़ इस्तेमाल होती है। आप देखें कि श्रीफल भी मनुष्य के सहस्रार जैसा है। है-'इसे श्रीफल क्यों कहते हैं?' के किनारे होता है. और कहीं होता नहीं। ये समुद्र सबसे अच्छा जो ये फल होता है, के किनारे । समुद्र वजह ये है कि समुद्र जो है, ये 'धर्म ' है। जहाँ धर्म होगा, वहीं श्रीफल फलता है। जहाँ धर्म नहीं होगा, वहाँ श्रीफल नहीं होगा। लेकिन समुद्र के अन्दर 'सभी' चीजें जैसे बाल अपने हैं, इस तरह से श्रीफल के भी बाल हैं। 'यही श्रीफल है।' इसमें बाल होते हैं ऊपर में, इसके बसी रहती हैं। हर तरह की सफाई, गन्दगी हर चीज़ protection (रक्षा) के लिये। मृत्यु से protection हमें इसमें होती है। ये पानी भी 'नमक' से भरा होता है। इसमें बालों से मिलता है। इस लिये बालों का बड़ा महान् मान चैतन्य लहरी खण्ड XV अंक :9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 36 किया गया है-बाल बहुत महान् हैं, और बड़ी शक्तिशाली बाद हम आत्मा के सहारे कार्य करते हैं। आत्मा, चीज़ हैं क्योंकि आपको protect करते हैं। इनसे आपकी realization से पहले, हृद्य में ही विराजमान है, रक्षा होती है। और इसके अन्दर जो हमारे जो cranial बिल्कुल अलग-'क्षेत्रज्ञ' बना हुआ. देखते रहने वाला। bones हैं, जो हड्डियां हैं, वो भी आप देखते हैं कि श्रीफल के अन्दर में बहुत कड़ा-सा इस तरह का एक उसका काम, वो जैसा भी है, देखने का मात्र वो करता रहता है। लेकिन उसका प्रकाश हमारे चित्त में नहीं है 1. ऊपर से आवरण होता है। उसके बाद हमारे अन्दर grey वो हमसे अलग है वो हमारे चित्त में नहीं है। matier और white matter ऐसी दो चीजें हमारे अन्दर Realization के बाद तो हमारे चित्त में आ जाता है. होती हैं। श्रीफल में भी आप देखें-white matter और पहले, पहले चित्त में आता है। और चित्त आप जानते tmatter....... और उसके अन्दर पानी होता है grey , जो हमारे में cerebrospinal fluid होता है। उसके प्रकाश सत्य में आ जाता है, क्योंकि हमारा जो मस्तिष्क हैं कि void (भवसागर) में बसा है। उसके बाद उसका अन्दर भी पानी होता है-वो limbic area होता है। है, उसमें प्रकाश आ जाने से हम सत्य को जानते हैं। तो ये साक्षात् श्रीफल जो है, ये ही हमारा-अगर इनके लिये ये फल हैं, तो हमारे लिये ये फल है । जो हमारा जानते-माने ये नहीं कि बुद्धि से जानते हैं पर साक्षात् में जानते हैं कि ये है 'सत्य'। उसके बाद उसका प्रकाश brain ( मस्तिष्क) है, ये हमारी सारी उत्क्ान्ति का फल हृदय में दिखाई देता है। हृदय प्रगाढ-हृदय बढ़ने लग है। आज तक जितना हमारा evolution (उत्क्रान्ति) जाता है, 'विशाल' होने लगता है, उसकी आनन्द की हुआ है-जो amoeba (एक कोशिकीय जन्तु) से आज शक्ति बढ़ने लगती है इसलिये 'सच्चिदानंद'-सत, चित्त हम इन्सान बने हैं, वो सब हमने इस brain के फल और आनन्द-सत् मस्तिष्क में, चित्तू हमारे धर्म में और स्वरूप पाया है। ये जो brain है, ये सब कुछ-जो कुछ आनन्द हमारी आत्मा में-प्रकाशित होने लगता है। उसका इस brain से। इसी में सब तरह की प्रकाश पहले धीरे-धीरे फैलता है, ये आप सब जानते हमने पाया है शक्तियाँ, सब तरह का इसी में सब पाया हुआ धन हैं। उसका प्रकाश धीरे-धीरे बढ़ता है, सूक्ष्म चीज़ होती संचित है। में हे, पहले बहुत सूक्ष्म क्योंकि हम जिस स्थूल व्यवस्था रहते हैं, उस व्यवस्था में उस सूक्ष्म को पकड़ना कठिन हो जाता है। धीरे-धीरे वो पकड़ आ जाती है। उसके बाद अब इस हृदय के अन्दर जो आत्मा विराजती है, और उसका जो प्रकाश हमारे अन्दर सहजयोग के बाद सात परतों में फैलता है, दोनों तरफ से, वो तभी हो सकता है, आप बढ़ने लग जाते हैं, अग्रसर होते हैं। सहस्रार का एक जब आदमी का सहस्रार खुला हो। अभी तक हम इस पर्दा खुलने से ही कुण्डलिनी ऊपर आ जाती है लेकिन दिमाग से वो ही काम करते हैं। आत्म-साक्षात्कार से उसका प्रकाश चारों तरफ जब तक नहीं फैलेगा, 'सिर्फ पहले, सिवाय इसके कि हम अहंकार और super-ego ऊपर कुण्डलिनी आ जाने से आप ने सदाशिव के पीठ (प्रति-अहंकार) इन दोनों के माध्यम से जो कार्य करना को नमस्कार कर दिया, आप के अन्दर की आत्मा का वो करते हैं। अहंकार और प्रतिअहंकार, या आप प्रकाश धुँधला-धुंधला बहने लगा लेकिन अभी इस कहिये 'मन' और 'अहंकार'-इन दोनों के सहारे हम सारे मस्तिष्क में वो पूरा खिला नहीं। कार्य करते हैं । लेकिन realization (साक्षात्कार) के अब आश्चर्य की बात है कि आप अगर मस्तिष्क से hos चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 37 इसको फैलाना चाहें तो नहीं फैला सकते। अपना मस्तिष्क है, वही हृदय हो जाता है। जो आप सोचते हैं, वही और अपना हृदय-इसका अब बड़ा सन्तुलन दिखाना होगा। आपको तो पता ही है, कि जब आप अपने बुद्धि आपके हृदय में है, और जो कुछ आपके हृदय में है, तो कोई वही आप सोचते हैं। ऐसी जब गति हो जाए से बहुत ज्यादा काम करते हैं, तो heart-failure भी तरह की आशंका, कोई भी तरह का अविश्वास, ( हृदय-गति रुकना) हो जाता है और जब आप heart किसी भी तरह का भय, कोई-सी भी चीज़ नहीं रहती। जैसे आदमी को भय लगता है, तो उसे क्या करते हैं? (हृदय) से बहुत ज्यादा काम करते हैं, ता आपका brain ( मस्तिष्क) फेल हो जाता है। इनका एक सम्बन्ध उसे brain से सिखाते हैं, देखो भाई, भय करने की कोई बात नहीं। देखो तुम तो बेकार चीज से डर रहे थे; 'ये बना ही हुआ है, पहले से बना हुआ है। बहुत गहन सम्बन्ध है और उस गहन सम्बन्ध की वजह से, जिस देखो, प्रकाश लेकर।' फिर वो अपनी बुद्धि से तो समझ बक्त आप पार हो जाते हैं, इसका सम्बन्ध और भी गहन लेता है, पर फिर डरता है। होना पड़ता सम्बन्ध बहुत ही घना होना चाहिये। जिस वक्त ये पूरा लेकिन जब दोनों चीज़ एक हो जाती है-आप इस है। हृदय और इस brain (मस्तिष्क) का बात को समझने की कोशिश कीजिये-कि जिस मस्तिष्क integrate (एक) हो जाता है, तब चित्त आपका जो से आप सोचते हैं, जो आपके मन को समझाता है और है, पूर्णतया परमेश्वर-स्वरूप हो जाता है। सम्भालता है, वही आपका मन अगर हो जाए; यानि, ऐसा ही कहा जाता है हठ योग में भी कि 'मन' और समझ लीजिये कि ऐसा कोई instrument (यन्त्र) हो अहंकार' दोनों का लय हो जाता है।' लेकिन ऐसी बात कि जिसमें accelerator (गति बढ़ाने वाला) और करने से तो किसी की समझ ही में नहीं आयेगा, 'इसका brake (रोकने वाला), दोनों automatic (स्वचालित) लय कैसे होगा?' मन और अहंकार का, तो लोग वो मन के पीछे लगे रहते हैं, अहंकार के पीछे लगे रहते हैं। हों, और दोनों 'एक' हों-जब चाहे तो वो brake बन जाए, और जब चाहे तो वो accelerator हो जाए-और अहंकार को मारते रहो तो मन बढ़ जाता है। मन को वो सब जानता है। मारते रहो तो अहंकार बढ़ जाता है। उनके समझ ही में ऐसी जब दशा आ जाए, तो आप पूरे गुरु हो गये। नहीं आता, कि ये पागलपन क्या है। ये किस तरह से ऐसी दशा हमको आनी चाहिये। अभी तक आप लोग जाए? मन और अहंकार दोनों को किस तरह से जीता काफी उन्नति कर गए हैं, काफी ऊँचे स्तर पर पहुँच गए हैं। जरूर अब आपको कहना चाहिए कि अब आप श्रीफल हो गये हैं लेकिन मैं हमेशा आगे की बात जाए? उसका एक ही द्वार है-'आज्ञा-चक्र'। आज्ञा-चक्र पर काम करने से मन और अहंकार जो हैं, उसका पूरी इसलिये करती हूँ कि इस पेड़ पर अगर चढ़ना हो, तो तरह से लय हो जाता है। और वो लय होते ही हृदय और क्या आपने देखा है, कि किस तरह से लोग चढ़ते हैं? ये जो brain है, इनमें पूरा 'सामंजस्य' पहले आ जाता अगर एक आदमी को चढ़ाकर देखिये तो आप समझ जाएँगे कि वो एक डोर बाँध लेता है चारों तरफ अपने, है-concord I लेकिन एकता नहीं आती। 'इस एकता को ही, हम को पाना है।' तो आपका जो हृदय है, और उस डोर को ऊपर फँसाते जाता है। वो डोर जब वही सहस्रार हो जाता है, और आपका जो सहस्रार ऊपर फॅस जाता है, तो उस पर वो चढ़ता है। इसी तरह चैतन्य लहरी खण्ड XV अक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 38। से अपनी डोर को ऊँची फँसाते जाना है। और यही जब है; 'न तो हम श्रीफल बन सकते हैं'। वृक्ष को बहुत अच्छे से देखना चाहिये और समझना चाहिये। सहजयोग आप वृक्ष से बहुत अच्छे से सीख पर ज्यादातर हम डोर को नीचे ही फँसाते रहते हैं। सकते हैं । बड़ा भारी ये आपके लिये गुरु है। जैसे कि आप सीख लेंगे, तभी आपका चढ़ना बहुत जल्दी हो सकेगा। जब हम वृक्ष की ओर देखते हैं, तो पहले देखना चाहिये कि ये अपनी जड़ों को कैसे बैठाता है पहले अपनी जड़ को ये सम्भाल लेता है और जड़ को सम्भालने के लिये सहजयोग में जाने के बाद भी डोर हम नीचे की तरफ फँसाते हैं, और कहते हैं कि 'माँ हमारी तो कोई प्रगति नहीं हुई।' अब होगी कैसे? जब तुम डोर ही उल्टी तरफ फँसा कर नीचे उतरने की व्यवस्था करते हो! जिस वक्त ये क्या करता है। जड़ में घुसा जाता है। ये हमारा धर्म है, नीचे उतरना है, तो फिर डोर को फँसाने की भी जरूरत ये हमारा चित्त है-'इसमें' ये घुसा चला जाता है और उसी चित्त से वो खींचता है, उस सर्वव्यापी शक्ति को। नहीं। आप जरा-सी ढील दे दीजिये, ढर-ढर-ढर आप नीचे चले आएंगे। वह तो इन्तजाम से बना हुआ है-नीचे ये तो उल्टा पेड़ है, ऐसा कहिये तो ठीक है। उस आने का। ऊपर चढ़ने का इन्तजाम बनाना पड़ता है। तो सर्वव्यापी शक्ति को ये जड खींचने लग जाता है, और कुछ बनने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। और जो इसको खींचने के बाद में आखिर उसको खींच कर करना पाया है, उसे खोने के लिए कोई मेहनत की जरूरत क्या है? फिर उसकी नज़र ऊपर जाती है और इसी नहीं-आप सीधे चले आइये ज़मीन पर; उसमें कोई तो प्रकार वो श्रीफल बना हुआ है। प्रश्न खड़ा नहीं होता। इसको अगर आप समझ लें, इस बात को, तो अत्यन्त प्रिय है और इसी सहस्रार को समर्पण करना आपका सहस्रार भी इसी श्रीफल जैसा है। माँ को आप जान लेंगे कि 'नज़र अपनी हमेशा ऊँची रखें। चाहिये। अनेक लोगों ने कल मुझसे कहा कि 'माँ, हाथ अगर कोई सी भी सीढ़ी पर आप खड़े हैं, लेकिन आप में तो ठण्डा आता है, पैर में भी ठण्डा आता है, पर यहाँ की नज़़र ऊँची है, तो वो आदमी 'उस' आदमी से नहीं आता।' वहाँ कौन बैठा हुआ है? बस इसको जान ऊँचा है 'जो' ऊपर खड़े होकर भी नज़र नीची रखता लेना चाहिये, यहाँ से ठण्डक आ जाएगी। और वहाँ जो बैठे हुए हैं, वो सारे ही चीज़ों का फल है। इसीलिये कभी-कभी बड़े पुराने सहज योगी भी 'धक' से नीचे चले आते हैं। लोग बताते हैं कि 'माँ हैं। इस पेड़ की जो नीचे गड़ी हुई जड़ें हैं, वो भी उसी ये तो बड़े पुराने सहजयोगी थे इतने साल से आपके से जन्मी हैं। इसकी जो तना है, इसकी जो मेहनत है, साथ रहे, ये किया, वो किया पर नज़र तो उनकी हमेशा इसका जो evolution ( उत्क्रान्ति) है, यह 'सब' कुछ नीची रही! तो मैं क्या करू? अगर नज़र नीचे रखी तो अन्त में जाकर के वो फल बना। उस फल में सब कुछ वो चले आये नीचे नज़र हमेशा ऊपर रखनी चाहिए। निहित है। फिर से आप उस फल को ज़मीन में डाल अब जिसे भी फल को देखना है तो नज़र आपकी ऊपर। दीजिये, फिर से वही सारी चीज निकल आएगी। 'वो इनकी भी नज़र ऊपर है। इन सबकी नजर ऊपर है, क्योंकि बगैर नजर ऊपर किये हुए वो जानते हैं कि सबका अर्थ वही है; वो सबका अन्त वही है। सारे संसार में जो कुछ भी आज तक परमात्मा का कार्य हुआ है, जो न हम सूर्य को पा सकते हैं, न ही ये कार्य हो सकता भी उन्होंने कार्य किया है, उसका सारा समग्र-स्वरूप, सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 39 चतन्य सहरी खण्ड -XV अंक :9 एवं 10 फल-स्वरूप आज का हमारा यह महायोग हैं। और (स्तर) का है। उस पर वो चलते हैं। लेकिन आपका उसकी स्वामिनी कौन है? आप जानते हैं। तो ऐसे शुभ level अलग है। आप अपने level से रहिये दूसरों की समय पर आप लोग पैदा हुए हैं, ऐसे शुभ अवसर में आकर के आपने ये प्राप्त किया है। सो धन्य समझना ओर अधिकतर जब आप देखते हैं तो दया-दृष्टि से, क्योंकि यह बेचारे क्या हैं, इनका क्या होने वाला है? यह कहाँ जायेंगे इनकी समझ में नहीं आता, इनकी गति ही क्या है? यह कौन-से मार्ग में पहुँचने वाले हैं? इसको चाहिए और इस श्रीफल स्वरूप होकर के और समर्पित होना चाहिये। पेड़ से तभी फल हटाया जाता है जब वो परिपक्व समझ करके और आप लोग यह समझें कि इनको अगर होता है, नहीं तो बेकार है। पकने से पहले वो माँ को नहीं दिया जाता। इसलिये परिपक्वता आनी चाहिये। है- समझाया जाए। लेकिन अगर यह लोग परवाह न करें समझाने से समझ आ जाये सहजयोग, तो बहुत अच्छा तो इनके आगे सर फोड़ने से कोई फायदा नहीं। अपने बचपना छोड़ देना चाहिए। जब तक बचपना रहेगा, आप पेड़ से चिपके रहेंगे लेकिन समर्पण के लिये पेड़ पर श्रीफल को फोड़ने से कोई फायदा नहीं। इसको बचाकर रखें। इसका कार्य बहुत ऊँचा है। इसको बड़ी ऊँची चीज के लिये आपने पाया हुआ है और उसी ऊँचे स्तर पर इसे रखें और उसी सम्पन्न चिपका हुआ फल किस काम का? उस पेड़ से हटाकर के जो अगर वो समर्पित हो तभी माना जाता है कि पूजा सम्पन्न हुई। इसलिये सहजयोग को समझने के लिये एक बड़ा भारी आपके सामने प्रतीक रूप से स्वयं साक्षात् अद्भुत स्थिति को प्राप्त होने पर ही आप अपने को धन्य श्रीफल ही खड़ा हुआ है। यह बड़ी मेहरबानी हो गई कि आज यहाँ पर हम लोग सब एकत्रित हुए और इस महान् समझ सकते हैं। इसलिये हमको व्यर्थ चीज़ों के लिये अपनी खोपड़ी फोड़ने की कोई जरूरत नहीं। किसी से समारोह में इन सब पेड़ों ने भी हमारा साथ दिया है। यह argue (बहस) करने की जरूरत नहीं। पर अपनी स्थिति को वनाये रखना चाहिए। नीचे उतरना नहीं भी सारी बातों से नादित हैं, यह भी स्पन्दित हैं और यह चाहिए। जब तक यह नहीं होगा तब तक सहजयोग का भी सुन रहे हैं; उसी ताल पर यह भी नाच रहे हैं। यह पूरा-पूरा आप में जो कुछ समर्पण पाना था वो नहीं इसी प्रकार आप लोगों के भी श्रीफल हैं. उसको पूरी पाया जो कुछ अपनाना था, वो नहीं पाया। जो कुछ तरह से परिपक्व करना है उसको परिपक्व करने का growth (वृद्धि) थी वो नहीं पाई। जो आपकी पूरी तरह एक ही तरीका है कि अपने हृदय से सामंजस्य बनायें। से सरदारगिरी पूरी उन्नति होने की थी, वो नहीं हुई और हृदय से एकाकार होने की चीज है। हृदय में और आप गलतफ़हमी में फँस गये। इसलिये किसी भी मिथ्या चीज पर आप यह न सोचे कि हम कोई बड़े भारी सहजयोगी हो गये या कुछ हो गये। जब आप बहुत बड़े हो जाते हैं तो आप झुक जाते हैं, आप झुक जाते हैं। देखिये, इन तीन पेड़ों की ओर, हवा उल्टी तरफ बह भी समझ रहे हैं कि बात क्या है। मस्तिष्क में कोई भी अन्तर नहीं है। हृदय से इच्छा करते हैं और मस्तिष्क से उसकी पूर्ति करते हैं। दोनों चीजें जब एकाकार हो जायेंगी तभी आपको पूरा लाभ होगा। अब सर्वसाधारण लोगों के लिये सहजयोग एक बड़ी secret (रहस्यमयी) बात है। उनकी समझ में नहीं आने वाली-क्योंकि उनका जीवन ही रोज मर्रा का उसी level रही है। वास्तव में तो पेड़ों को इस तरफ झुक जाना चाहिये जबकि हवा इस तरफ बह रही है। लेकिन पेड़ चैतन्य लहरी खण्ड ४V अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अव्टूबर 2003 40 किस तरफ झुके जा रहे हैं? आप लोगों ने कभी mark तो छोड़ो पहले पैर के, नहीं तो कैसे ले जाऊंगा. मैं?' किया है कि सारे पेड़ों की दिशा उधर है क्यों? वहाँ से पैर में बड़े-बड़े आप ने लोड बाँध दिये तो उनको कटवा तो हवा आकर के उसको धकेले जा रही है फिर तो भी ही देना अच्छा है और नहीं कटवा सकते तो कम-से-कम पेड़ उसी तरफ क्यों झुक रहे हैं? और अगर ये हवा न चले तो न जाने और कितने ये लोग झुक जायें। क्योंकि ये करो कि उनसे परे रहो । इस तरह की चीजें जो-जो आपने पैर में बाँध रखी हैं, उसे एकदम तोड़-ताड़ कर ये जानते हैं कि सबको देने वाला "वो" है। उसके प्रति ऊपर उठ जाओ| कहना चाहिये, आपको जो करना है करिये लेकिन हम से कोई मतलब नहीं क्योंकि और एसे ही कितनी बाधायें हैं और यह फालतू की बाधायें लगा नतमस्तक होकर के वो झुक रहे हैं और 'वो' देने वाला जो है, वो है "धर्म"। हमारे अन्दर जो धर्म है जब वो पूरी तरह से जागृत होगा, पूरी तरह से कार्यान्वित होगा, तभी और पौष्टिक लेने से कोई फायदा नहीं। श्रीफल इतने मीठे, होंगे। फिर तो आपके जोवन से ही संसार आपको हमारे अन्दर के जिस तरह से ये पेड़ देखिये, इतना भारी फल उसको सुन्दर उठा लेते हैं-ऊपर! कितना भारी होता है यह फल, इसके अन्दर पानी होता है। इस फल को उसने अपने ऊपर जानेगा और किसी चीज़ से नहीं जानेगा, आप लोग कैसे हैं। ि उठाया है। इसी प्रकार आपको भी इस सर को उठाना है अब चौदह बार आप इसका जन्मदिन, इस सहम्रार और इस सर को उठाते वक्त ये याद रखना चाहिंए कि का मना रहे हैं और न जाने कितने साल और इसका सर को नत मस्तक होना चाहिये, समुद्र की ओर। समुद्र मनाएंगे। लेकिन जो भी आपने इस सहस्रार का जन्मदिन जो है, ये धर्म का लक्षण है। इसको धर्म की ओर मनाया उसी के साथ-साथ आपका भी सहस्रार खुल रहा नतमस्तक होना चाहिए। बहुत-से सहजयोगी यह समझते है और बढ़ रहा है। ही नहीं हैं कि जब तक हम 'धर्म' में पूरी तरह नहीं कोई भी तरह का compromise (समझौता) करना, कोई भी तरह की बातों में अपने को ढील दे देना, उतरते, हम सहजयोगी हो ही नहीं सकते। हर तरह की गलतियाँ करते रहते हैं जैसे बहुत-से लोग हैं. तम्बाकू खाते हैं, सिगरेट पीते हैं, शराब पीते हैं, ये सब करते रहते सहजयोगियों को शोभा नहीं देता। जो आदमी सहजयोंगी है उसको वीरस्वपूर्ण अपना मार्ग आगे बढ़ाना चाहिये। हैं और फ़िर कहते हैं हमारी सहज योग में प्रगति नहीं कितनी भी रुकावटे आयें, घर वाले हैं family वाले हैं. ह ये हैं, वो हैं, तमाशे हैं, इनका कोई मतलब नहीं। ये सब लगे हैं। हुई।' तो होगी कैसे? आप अपने ही पीछे हाथ धो करके सहजयोग के कुछ छोटे-छोटे नियम हैं, बहुत simple आपके हो चुके हज़ार बार। इस जन्म में आपको पाने का है और आपके पाने से और लोग पा गये तो उनका धन्य (सादे) हैं-इसके लिये आपको शक्ति मिली है वो पूरी तरह से आप अपने आचरण में व्यवहार में लायें। और हैं, उनकी भाग्य है। नहीं पा गये ती क्या आप, क्या सबसे बड़ी चीज़ जो इनके (पेड़ों के) झुकाव में है वो उनको अपने हाथ से पकड़कर ऊपर ले जाओगे? यह तो ऐसा हो गया कि आप समुद्र में जायें और अपने पैर में नतमस्तक होना, और उस प्रेम को अपने अन्दर से दर्शित बड़े-बड़े पत्थर जोड़ लें और कहें कि 'समुद्र, देखों, मुझे तो तैराकर ले जाओ।' समुद्र कहेगा कि 'भई! ये पत्थर करना। जो कुछ आपने परमात्मा से पाया, उस प्रेम को परमात्मा को समर्पित करते हुए याद रखना चाहिए कि सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 41 चैतन्य लहरीं खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 एक ही शक्ति है जिसे हम कह सकते हैं ' प्रेम' और प्रेम ही से सब आकारित होने से सब चीज़ सुन्दर, सुडौल सबके प्रति प्रेम हो। अन्त में यही कहना चाहिये कि जिस मस्तष्क में, जिस सहस्रार में प्रेम नहीं हो, वहाँ हमारा वास नहीं और व्यवस्थित हो सकती है। जो सिर्फ शुष्क विचार हैं है। सिर्फ दिमाग में प्रेम ही की बात आनी चाहिये कि उसमें कोई अर्थ नहीं। और शुष्क विचार तो आप जानते प्रेम के लक्षण में क्या करना है। गहराई से सोचें, तो मैं फिर वही कह रही हूँ कि दिल को कैसे हम प्रेम में ला ही हैं, वो सिर्फ अहंकार से आता है और जो मन से आने वाली चीज़ है वो दूसरी-ऊपर से जरूरी उसको खूबसूरती ला देती है लेकिन अन्दर से खोखली है। इसलिए एक सकते हैं। यही सोचना चाहिये कि क्या ये मैं प्रेम में कर रहा हूँ? ये क्या प्रेम में बात हो रही है? सारी चीज़ मैं चीज़ गन्दी होती है लेकिन शुष्क होती है, दूसरी चीज़ प्रेम में कर रहा हूँ? ये सब कुछ बोलना मेरा, करना-धरना सुन्दर होती है लेकिन नीरस होती है, पूर्णतया खोखली क्या प्रेम में हो रहा है? किसी को मार-पीट भी सकते होती है। एक नीरस है, तो दूसरी खोखली । दोनों चीजों का सामंजस्य इस तरह से बैठ ही नहीं सकता क्योंकि हैं आप प्रेम में इसमें हर्ज नहीं। अगर झूठ बात हो तो मार सकते हैं-कोई हर्ज नहीं। लेकिन यह क्या प्रेम में हो एक दूसरे के विरोध में है । रहा है? देवी ने इतने राक्षसों को मारा, वो भी प्रेम में ही लेकिन Realization (आत्म-साक्षात्कार) के बाद मारा। उन से भी प्रेम किया, उससे वो ज्यादा कहीं, और में, सहजयोग में आने के बाद में सारे विरोध छूटकर के जो चीज़ विरोधात्मक लगती है, वो ऐसा लगता है कि भी राक्षस के महाराक्षस न बन जायें और अपने भक्तों को प्रेम की वजह से, उनको बचाने के लिये, उनको मारा। वो एक ही चीज़ के दो अंग हैं। और यह आपके अन्दर उस अनन्त शक्ति में भी प्रेम का ही भाव है जिससे हो जाना चाहिये। जिस दिन ये चीज़ घटित होगी, तब हमें मानना पड़ेगा कि हमने अपने सहस्रार का 14वाँ उनका हित हो वही प्रेम है। तो क्या आप इस तरह का प्रेम कर रहे हैं कि जिससे जन्मदिन पूरी तरह से मनाया। उनका हित हो? यह सोचना है। और अगर कर रहे हैं तो परमात्मा आप सबको सुखी रखे और इस शुभ अवसर पर हमारी ओर से और सारे देवताओं की ओर से, आपने वो चीज़ पा ली जो मैं कह रही थी कि सामंजस्य आना चाहिए। तो वो सामंजस्य आपके अन्दर आ गया। परमात्मा की ओर से आप सब को अनन्त आशीर्वाद। श्रीमाताजी की महिलाओं से बातचीत जनवरी 1984 महिलाओं को वह सब करने की आवश्यकता नहीं है हैं। अत: हम कहते हैं कि 'अब बसन्त का समय आ करते हैं अन्यथा उनकी शक्ति पूर्णतया बर्बाद जो गया है 'Blossom time has now come', इस पुरुष हो जाएगी। इस कुम्भ युग में कुण्डलिनी उत्थान के लिए समय पर कुण्डलिनी को उठना है और इस प्रकार पूरी तैयारी कर दी गई है ताकि बाँए और दाँए का मिलन प्रज्जवलित करना है कि पूरे विश्व की पूर्णता घटित हो हो, उनमें सन्तुलन आए तथा आप लोग प्रज्जवलित- सके। यह सहज बात है। क्या अब आप इसे समझ पाए? ज्योतिर्मय बन जाएं यह हमारे अस्तित्व का प्रश्न था ताकि पूरे ज्ञान को उचित सूझ-बूझ से परस्पर बाँटा जाए। अब देखिए कि किस प्रकार स्वयं पृथ्वी माँ की सृष्टि हुई। यह अत्यन्त साधारण चीज़ है। सर्वप्रथम ऊर्जा की अत: पुरुषों और महिलाओं में कोई स्पर्धा नहीं है, उनकी कार्य शैली भिन्न है आप जब इस बात को समझ जाएँगे केवल तभी इस प्रकार कि क्रांति घटित हो सकेगी परन्तु जो कि विद्रोह नहीं बन पाएगी वास्तव में महिलाएँ आज-कल पुरुषों के विरुद्ध विद्रोह कर रही हैं यह मूर्खता है। यह ऐसा सिरदर्द हैं जैसे आप किसी चीज़ का सृजन करते हैं उसे विकसित होने का अवसर देते हैं और गतिविधि का प्रवाह आरम्भ हुआ। यह शक्ति मिश्रित शक्ति है. ठीक है। तत्पश्चात् यह मिश्रित शक्ति चहूँ ओर परिक्रमा में चली गई और जब इसने पिण्ड रूप कोई दूसरा आता है, जिसे यह कार्य पूर्ण करना होता है. धारेण किया तो तुमुल-नाद (Big-bang) हुआ। अब यह एक पुरुषोचित (मर्दाना) (Manly) कार्य है, या मुझे कहना चाहिए, यह मर्दाना शैली है क्योंकि अभी परन्तु वह विद्रोह कर उठता है। अत: क्रांति तो घटित होती है परन्तु यह क्रांति तभी सम्भव है जब हम यह तक पृथ्वी माँ का सृजन नहीं हुआ था। अत: ये समझ लें कि कार्य का कौन सा भाग बाकी है, कौन सा छोटे-छोटे पिण्ड गोल-गोल परिक्रमा में घूमते रहे औरकार्य होना शेष है क्या आप मुझे ठीक से समझ रहे हैं? गोल गति में घूमते हुए इन्होंने गोलाकार धारण किया इन गोल पिण्डों में से एक कार्य विशेष के लिए धरा माँ को हमारी कुण्डलिनी की जागृति। इस कार्य के लिए आप तो कार्य का वह भाग अव करना हैं - आत्मसाक्षात्कार, चुना गया। पृथ्वी माँ पर जल में से जीवन का उदय के मादा गुण (Feminine Qualities) आपकी मदद हुआ कार्बन का प्रवेश हुआ। सभी शक्तियों ने सहायता करेंगे, आपके मर्दांना गुण नहीं। अत: पुरुषों को चाहिए की और मानव का सृजन हुआ। तत्पश्चात् मानव अपने कि आक्रामकता (Aggressiveness) त्याग दें। वैसे समाज को सुधारने के लिए निकला और अपने अहम् के भी क्योंकि अब वो सहजयोगी हैं, उन्हें मादा गुण माध्यम से जो भी बन पाया उसने किया। अब यह सब (विनम्रता) अपनानी होगी। परन्तु यह मादा गुण परस्पर हो चुका है। मानव अपना कार्य कर चुका हैं और अब झगड़ना नहीं है। महिलाएँ यदि परस्पर लड़ती हैं तो वे महिलाएँ नहीं हैं। आप देखें, महिलाओं को कहा जाता वह अनुदान (Doie) का आनन्द ले रहा है। अब महिलाओं ने अपना कार्य पूर्ण करना है और मिल कर आगे बढ़ना है। महिलाएँ, या हम कह सकते हैं कुण्डलिनी, इतने वर्षो तक आराम फरमा रही थी और है कि 'आप किसी काम की नहीं।' तो अब वो यह दर्शाने के प्रयत्न कर रही हैं 'नहीं, हम भी ठीक हैं। आप ने ( पुरुष) यदि एक कौवा खाया है तो हम तीन कौवे खाएँगी।' समय की प्रतीक्षा कर रही थी। क्या यह बात ठीक नहीं चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 43 अब सूझ-बूझ तथा विवेकशील सोच यह होगी कि, "हमें जीवन की इस प्रथा तथा शैली को बदलने के लिए क्या करना होगा? यहाँ पर क्या दोष हैं?" परिवर्तन विन्दु है। फैशन से-" तो ठीक है, अगर तुम ऐसे हो तो ठीक है।" समाप्त। ईसा-मसीह ने इस सीमा तक क्षमा दर्शायी थी, अब वे इस कुण्डल को परिवर्तन प्रदान कर रहे हैं और आप मानवों के अन्दर ये जो मादा गुण है (क्षमा शीलता) उत्थान किसी भी प्रकार से विद्रोह नहीं है। आ गया लोगों के मन में यह गलत धारणा है। ऐसा नहीं है कि आप मुझे चोट मारो और मैं आपको चोट मारूँ तथा विकसित होनी आवश्यक है। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि आप महिलाओं की तरह से चलना शुरु कर दें या दोलक (Pendulum) कि तरह से एक दूसरे को चोट मारते चले जाएं। यह धमाके की तरह से नहीं है कि पतली कमर बनाने लगें। क्योंकि यह एक अन्य मूर्खता है। उन्हें 'माँ सम' होना हैं, पिता सम नहीं, माँ सम। एक आज आप ने मुसलमान के रूप में जन्म लिया, कल दूसरे के प्रति व्यवहार में आपके अन्दर 'वह करुणा यहूदी के रूप में और फिर हिन्दू के रूप में-यह दोलक वह कोमलता' होनी चाहिए। नि:संदेह यह शक्ति त्रुटि सुधार भी करती है, कभी-कभी नाराज भी हो जाती है। माँ को भी कई बार, बच्चे यदि नहीं है। यह कुण्डलाकार गति हैं। अत: जब-जब भी आप कोई उत्थान प्राप्त करते हैं तो पहले से ऊँचे स्थान पर पहुँच जाते हैं। अत: उत्थान की गति कुण्डलाकार है। अपने व्यवहार में सुधार न करें तो माँ (आदि शक्ति) को भी कभी-कभी नाराज़ होना पड़ता है, क्रोधित होना क्या आप मेरी इस बात को समझ पाए? अपने अस्तित्व की उच्चतम स्थिति पाने के लिए हमें पड़ता है। कई बार उसे चिल्लाना पड़ता है, दण्ड देना क्या करना चाहिए? इसके लिए यह समझना चाहिए कि पड़ता है और कई बार विनाश भी करना पड़ता है। यह बात ठीक है, परन्तु ऐसा कभी कभी होता है। हमेशा इस बिन्दु से उस बिन्दु तक पहुँचने के लिए हमारी चाल दोलक जैसी न होकर कुण्डलाकार (घुमावदार) होती है। नहीं। अत: व्यक्ति को यह स्वीकार करना होगा कि माँ की कुण्डल के रूप में चलने के लिए व्यक्ति को एक अन्य तरह से बनने के लिए उसमें सहन-शक्ति आवश्यक प्रकार की शक्ति का उपयोग करना पड़ता है। अभी तक जो भी शक्ति आप उपयोग करते रहे हैं, उसमें दूसरे है-आधार (धारण करने वाला) सभी चीज़ों का आधार। वो सभी चीजें ले लेती है, चैतन्य लहरियों को भी सोख और यह प्रकार की शक्ति के गुण लाने होंगे महिलाओं के मादा गुण हैं। परन्तु आज मादा महिलाएँ हैं लेती है। अब आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेने के बाद, कहाँ? मैं महिलाओं की तरह से वस्त्र पहनती हूँ परन्तु पहली बार आप उन्हें वो लौटा सकते हैं जो आपने उनसे इतना ही काफी नहीं है। अन्दर से, हृदय से, क्या उनमें लिया है। उनके बनाए हुए पेड़ों को आप चैतन्य लहरियाँ कोमल मादा-हृदय है? ईसा-मसीह ने यह चीज़ अपने दे सकते हैं और उन्हें सुन्दर बना सकते हैं। किसी भी पुष्प को आप अधिक सुन्दर बना सकते हैं जो भी कुछ जीवन में दर्शायी थी। उन्होंने क्षमा की। केवल महिला ही क्षमा कर सकती है, पुरुष क्षमा नहीं कर सकता क्योंकि आपने पृथ्वी माँ से प्राप्त किया है वह आप लौटा सकते वो तो स्वभाव से ही आक्रामक होता है। वह किस प्रकार हैं, क्योंकि पृथ्वी माँ अब आपके अन्दर जागृत हो गई है। अत: जो भी कुछ आपने उनसे प्राप्त किया है वह सब उन्हें लौटा दें, अन्य लोगों को दें - 'उदारता, हृदय की से क्षमा कर सकता है? श्रीकृष्ण ने कभी भी किसी को क्षमा नहीं किया। वो तो वध कर दिया करते थे। शाही चैतन्य लहरी खण्ड -४V अक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 44 विशालता, श्रेष्ठता, क्षमाशीलता, प्रेम, स्नेह और प्रेम के है कुछ बातें वास्तव में बहुत मधुर होती हैं आप बहुत कारण सभी कुछ सहन करना।' शिशु की रक्षा करने के से मधुर शब्द कह सकते हैं जैसे 'आपको ठंड तो नहीं करेगी-अपने लग रही?' ग्रश्न पूछने का यह बहुत मधुर लिए माँ खुद भूखी रह जाएगी, सभी कुछ तरीका है। बच्चे के प्रति माँ का इतना समर्पण होता है, वही माँ यह बहुत साधारण बात है। इस बात को आप देख सकते वास्तव में सच्ची माँ है। कहने से मेरा अभिप्राय यह है हैं परन्तु मैंने यह देखा है कि लोगों को इतनी सी बात कि आज कल जो माताएं आप देखते हैं, वो न तो माताएं कहने में भी कठिनाई होती है। अन्य लोगों के सुख-सुविधाओं हैं और न ही महिलाएं। मैं जो कह रही हूँ वही माँ की को देखना, मान लो कोई व्यक्ति बैठा है उसे पानी सच्ची प्रतिमा है और आपके सम्मुख एक ऐसी प्रतिमा चाहिए। आपको चाहिए कि दौड़ कर उसे पानी दें। विद्यमान है । आप चाहे, पुरुष हो या महिलाएं. सहजयोगियों 'ओह! इतनी आशा करना तो बहुत ज्यादती है। हे के रूप में आपने अपने अन्दर यह गुण विकसित करने परमात्मा! आपने पानी दिया!' 'मैं आपका नौकर नहीं हैं। अपने अन्दर आपने प्रेम, स्नेह एवं करुणा रूपी हूँ-तुरन्त यह प्रश्न मस्तिष्क में उठता हैं। यहाँ वहाँ कुछ नई चेतना विकसित करनी है। क्रोधित होना, आपा कर देना, कुछ सोचना, बाज़ार जाकर कुछ खोजना। ओह! यह चीज़ मुझे उसके लिए ले जानी चाहिए। ऐसा कर देना चाहिए। मैंने कुछ बच्चों को देखा है जो सदैव यही सोचते रहते हैं कि अपने मित्रों के लिए क्या खरीद खो देना, लोगों पर चिल्लाना आदि से आपको कोई लाभ न होगा। आप यदि पूर्ण की सहायता करना चाहते हैं, पूर्ण विकास चाहते हैं तो स्वयं को विनम्र बनाने का प्रयत्न करें, स्वयं पर नाराज़ हों कि आप क्रोधित होते लें?' 'मेरे मित्र के लिए यह चीज़़ बहुत अच्छी है। उसे ऐसी चीजें बहुत पसन्द हैं।' यह सभी छोटी-छोटी बातें हैं और दूसरों के प्रति इतने क्रूर हैं। मर्दानगी के अवाछित विकास के कारण ही सारी समस्या उत्पन्न हुई है।' यह बहुत आवश्यक हैं। एक दूसरे के लिए यह सभी छोटे-छोटे कार्य करें। कभी-कभी ऐसी छोटी-छोटी एक ऐसे बिन्दु पर पहुँचता है, इतने कष्टकर बिन्दु तक चीजें जैसे जब आप प्रात: काल उठते हैं तो देखते हैं कि यह पहुँचता है कि अब इसे नीचे आना ही चाहिए, हर सहजयोगी, हर व्यक्ति के लिए आपके मन में प्रेम होना कोई व्यक्ति सोया हुआ है, उसका कम्बल एक तरफ चाहिए। पड़ा है और सराहना दूसरी तरफ। उसको देखना एक माँ नए साधकों के साथ किस प्रकार से व्यवहार करें? सर्वप्रथम आपको भद्र, विनम्र, मधुर एवम् सुखकर होने के विषय में सोचना चाहिए। इसके विषय में सोचे और इसके तरीके खोज निकालें। शाम को बैठकर लिख का कार्य है। किसी भय के कारण नहीं, मात्र प्रेम के कारण उसे देखें। यदि ठंड है और किसी सहजयोगी के बटन खुले हुए हैं तो आप उसे बन्द कर सकते हैं । छोटी-छोटी चीज़ें हैं जो आप जानते हैं। महिलाएं भी बहुत से मधुर कार्य कर सकती हैं। ऐसे कार्य जिनसे पुरुष प्रसन्न हो जाते हैं। परन्तु आजकल लेना बहुत अच्छा होगा कि 'आज मैंने कितनी मधुर बातें कहीं? जिस प्रकार से प्राय: हम मधुर बातें करते हैं वैसे महिलाओं में यह विवेक समाप्त हो गया है। लड़ना-झगड़ना नहीं है। यह सोचना है कि कौन से मधुर कार्य आप कर सकते हैं। अहम् पर नियन्त्रण पाने के लिए, सहजयोगी नहीं-' आज आप बहुत सुन्दर लग रही हैं' आदि-आदि। सतही बातें नहीं, इन बातों से अहम् को बढ़ावा मिलता बैतन्य लहरी खण्ड XV अंक :9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्ट्बर 2003 45 बनने के लिए, किस सीमा तक आप सहजयोग के सत्य आपके अन्दर वास्तव में सहजयोग स्थापित हो पाएगा। अब यह आम पर निर्भर करता है कि आप कौन सा से एकरूप हैं? यह आप पर निर्भर करता है कि आप इसे कितना प्राप्त करेंगे, कितना आत्मसात करेंगे। आप ही स्थान लेते हैं और किस स्तर तक पहुँचते हैं। यदि आप ने सभी कुछ परिवर्तित करना है यह आपका कार्य है इसलिए यह गम्भीर मामला है। अन्य सहजयोगियों के विषय में, छोटी-छोटी अनावश्यक चीजों को सोचने में ही अपना सारा समय बर्वाद कर रहे हैं तो आपका विधटन (Disintegralion) और अधिक दूसरी बात मैं हमेशा कहती रही हूँ कि अहम् की बढ़ जाएगा, आप इससे और भी दूर चले जाएंगे। क्योंकि समस्या के कारण हम अत्यन्त अवखन्डित (Disintegrated) रहे हैं हम इतने अवखन्डित रहे हैं यह सभी निर्णय आपके अहम् द्वारा लिए गए हैं। कि परमात्मा से हमारा सम्बन्ध कभी भी पूर्णत: स्थापित उदाहरण के रूप में आपका कहना कि, "मुझे यह पसन्द जैसा मैंने बताया कि जिस यन्त्र के माध्यम से नहीं है, मैं बो नहीं करता, मैं यह नहीं देखता, नहीं हुआ। में बात कर रही हैूँ (माईक) अगर यह पाँच हिस्सों में बंट जाए और इसके पाँचों भाग परस्पर लड़ने लगे तो इसके माध्यम से आप कुछ भी नहीं कर सकते हैं चाहे यह अपने स्रोत से जुड़ा हुआ ही क्यों न हो। इसी प्रकार से यदि आप अब भी अवखन्डित हैं तो आप को योग आदि-आदि।' किसी तरह से यदि आप अपने अहम् को कार्य करते हुए देख लें तो आप इससे मुक्ति प्राप्त कर सकेंगे और यही कार्य व्यक्ति ने करना है-अहम् से झगड़ना नहीं है। मैं कभी नहीं कहती कि अहम् से लड़ाई करें। इसे समर्पित कर दें केवल इसी तरीके से आपका अहम् जा प्राप्त नही हो सकता। सकता है। हमारे यहाँ कुछ बहुत उच्च स्तर के सहजयोगी होंगे। झूठे सन्तों का सम्मान न करें उनकी जूता पिटाई करें। प्रात: काल उठ कर ध्यान धारणा करें। यहाँ (इंग्लैंड) पर तो लोग प्रात: उठने के लिए ही एतराज करते हैं । इस मैं यह भी जानती हूँ कि कुछ मध्यम दर्ज के होंगे, कुछ बेकार होंगे और कुछ को बाहर फेंक दिया जाएगा सभी प्रकार के सहजयोगी हमारे यहाँ होंगे यह बात मैं जानती हूँ। अब आपने स्वयं यह निर्णय करना है कि आप कौन तरह की धीमी गति वाले लोगों के साथ आप क्या करेंगे? से दर्जे में आते हैं। आप देखिए, ऐसा कर पाना अत्यन्त कठिन है और मैं उदाहरण के रूप में मैंने देखा है कि लोग यहाँ यह सोचती हूँ कि हमें यह समझ लेना आवश्यक है कि सहजयोग के लिए आते हैं परन्तु उनकी रुचियाँ और पश्चिम में हमारे सम्मुख बहुत बड़ी जिम्मेदारी है । यह प्राथमिकताएँ अन्य चीजों में होती हैं और वही उनके घटना लन्दन में ही होनी थी इसका आरम्भ इंग्लैंड में ही लिए महत्वपूर्ण हैं। उन्हीं के लिए वे सारा समय बर्बाद होना था इसलिए आप लोगों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी श्रीमाताजी, है। आपको अपना तथा सहजयोग का बार-बार मूल्यांकन कर देते हैं और फिर कहते हैं कि. सहजयोग में हमारी उन्नति ठीक प्रकार से नहीं हो रही करना होगा और यह जान लेना होगा कि आपका अहम् है।" आप यदि निर्णय करें, (जैसे मिस्टर वेणुगोपालन तथा प्रतिअहम् ही आपकी गति को रोक रहा है, इसमें आपको बता चुके हैं) कि 'हमें सर्वप्रथम सहजयोग कोई सन्देह नहीं। करना है बाकी सबकुछ बाद की बातें हैं' केवल तभी परन्तु अहम् मुख्य समस्या है। मैं आपको बता देना चैतत्य तहरों खण्ड -XV अंक :9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 46 चाहती हूँ कि अहम् ही मुख्य समस्या है मैं किसी को नहीं कह सकती कि यह आपका अहम् है परन्तु बलपूर्वक सबने इसे कार्यान्वित करना है आज विश्व भर में आपके भाई बहन हैं। पूर्ण हृदय से जब आप समझ जाएंगे तो वो भी वैसे ही पूर्ण हृदय से अत्यन्त मधुर बात है कि क्योंकि ऐसा करने पर तो वे मेरे सिर पर कूद पड़ेगे। परन्तु अहम् को देखने का प्रयत्न करें। देखें कि किस आपका स्वागत करेंगे। परन्तु हमें एक ऐसे स्तर तक तरह से यह विचलित कर रहा है। आप अपने आनन्द को खोज रहे हैं। यह आपका अपना है परन्तु आपसे छुपा हुआ है और आप इसे युगों से खोज रहे हैं। अब इसी पहुँचना होगा जहाँ हम पूर्ण प्रेम. स्पष्टवादिता से परिपूर्ण होकर विना किसी की चिन्ता किए या उससे डरे एक दूसरे का सामना कर सकें और कह सके कि ये हमारे है। जो व्यक्ति आपको भाई हैं और हम इनके, तथा हमें इनसे प्रेम करना है। का रहस्य मेंने समाप्त करना आपको सहजयोग में अपने भाई बहनों से प्रेम करना महानतम चीज़ देने का प्रयत्न कर रहा है उससे बहस करने का क्या लाभ है? यह तो अपनी शक्ति को बर्बाद है। ऐसा तभी सम्भव हो सकता है जब हम भय मुक्त हो जाएँ। क्योंकि इसका अन्य पक्ष भी है कि अहम् के साथ भय भी जुड़े होते हैं। अहंकारी अन्य लोगों को उत्पीड़ित करना है। मूर्खतापूर्ण चीजों तथा दूसरों के दोष खोजने में अपनी शक्ति बरबाद न करें। अब श्री वेणुगोपालन हमारी पुस्तक की छपाई आदि का बहुत ही शान्तिपूर्वक प्रबन्ध कर रहे थे कोई समस्या मेरे सम्मुख नहीं आई । आपने दिल्ली के कैम्प देखे हैं. करता है और यह भी जानता है कि दूसरे लोग भी उसका उत्पीडन कर सकते हैं अत: इस बात को हमें सोचना है कि उत्पीड़न से हमें कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। कभी अपना तिरस्कार न करें। आप सन्त हैं यह बात आपको समझनी है। इस विश्व में आप ही साक्षात्कारी लोग हैं। यह किस प्रकार कार्य करते हैं। आपने देखा है कि वहाँ कार्य करने के लिए कितने अधिक लोग होते हैं! कभी कोई समस्या नहीं होती। आपने किसी को शिकायत करते कितने लोग हैं जो कुण्डलिनी उठा सकते हैं? चैतन्य लहरियों को समझने वाले कितने लोग हैं? हुए, लड़ाई झगड़ा करते हुए देखा है? इस प्रकार का गुरु पूजा पर मैं आपको बताऊँगी कि आपने क्या उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं और आपके अन्दर कौन सी कुछ भी नहीं हुआ। हर समय दूसरों के दोष खोजना या स्वयं को दोष देते रहना, विवेक का चिन्ह नहीं है। दोनों ही बातें गलत हैं। सर्वोत्तम बात तो अधिक से अधिक शक्तियाँ जागृत हो गई हैं जो कार्यरत हैं। सहजयोग के हैं। विवेक को प्राप्त करना और स्वयं यह देखना है कि हम माध्यम से किस प्रकार आपके चक्र जागृत हो गए अधिक से अधिक बुद्धिमान बन रहे हैं। आपमें से कुछ हाँ ऐसा घटित हुआ है। लेकिन आप इसके विषय में क्या लोग वास्तव में बहुत उन्नत हैं और कुछ ऊपर नीचे चलते रहते हैं तथा कुछ लोग अभी तक भी अत्यन्त कर रहे हैं? आप जानते हैं कि किसी के साथ घटित हो सकने वाली यह महानतम चीज है। आप यह भी जानते निम्न स्तर पर है। कि बहुत समय पूर्व की गई भविष्यवाणियों में अत: हम सबको मिलकर चलना होगा। किसी ने इस महानतम घटना को 'अन्तिम निर्णय' (The Last यदि कुछ प्राप्त कर लिया है तो सहजयोग को इसका Judgement) का नाम दिया गया। आप जानते हैं कि कोई लाभ नहीं है। मैंने आपको वताया है कि यह एक यही मार्ग हैं जिसके द्वारा आपको जांचा जाएगा। सामूहिक चीज़ है जिसे कार्यान्वित होना है और आप अत: हमें कठोर परिश्रम करना है। हमें कार्य करना है। सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 47 चैतन्य तहरी खण्ड -XV अक :9 एव 10 बिना किसी प्रयत्न के यह आपको प्रदान किया गया को स्पष्ट देखें, यही आपका कार्य है। शनै: शनै: आप अपने चक्रों को देखने लगेंगे, अपनी ठीक है, परन्तु इसको बनाए रखने के लिए, उच्च स्तर पर ले जाने के लिए हमें सत्यनिष्ठा पूर्वक इसे कार्यान्वित समस्याओ को देखने लगेंगे। आप जानते हैं कि यह सब परन्तु सभी लोग तुरन्त शनै: शनै: विकसित होता है। करना होगा। इसे अधिक से अधिक प्राप्त करने के लिए, अपने अन्दर इसे आत्मसात् करने के लिए यही विनम्र परिणाम चाहते हैं। आपके अन्दर यदि धैर्य नहीं है, मेरे दृष्टिकोण है। अपने मस्तिष्क पर इसे इस प्रकार छा जाने प्रति नहीं, अपने प्रति । मैं कह रही हूँ कि आपको ध दें कि मस्तिष्क पूर्णत: आच्छादित हो जाए ढक जाए। र्यवान् होना है क्योंकि आपमें समस्या बनी हुई हैं, अत: इस शाश्वत आशीर्वाद को अपने अन्दर आने दें। इसके आपको अपने आपमें धैर्यवान होना होगा, किसी अन्य के पड साथ नहीं। यह मुख्य बात है। आप यदि स्वयं के प्रति लिए में पूरी तरह उत्सुक हूँ। स्वयं को तुच्छ न बनाएं। अपने स्वप्न को विशाल बनाएं, अपने विचारों को उच्च शान्त हैं तो आपको बहुत समय पूर्व दिए गए वचन बनाएं क्योंकि अब आप महानतम चीज़ से सम्बन्धित हैं, अनादि से, सर्वोच्च से तथा विराट से। अपने महत्व को अनुसार वह उपलब्ध प्राप्त हो जाएगी। परन्तु स्वयं से शान्त होना आपको सीखना होगा, स्वयं से क्रोधित होना नहीं। स्वयं का तिरस्कार करना नहीं। दूसरों पर अपनी जब आप महसूस करेंगे तो आप इसे कार्यान्वित करेंगे। निश्चित रूप से हमारे अन्दर कुछ चीजें गलत हो गई हैं। यह बात हम जानते हैं, उन चीजों को हमें समझना खीज़ उतारना नहीं। ऐसा करना वहुत सुगम कार्य है। परन्तु आपके जटिल जीवन और जटिल कार्य के कारण आप अन्य चीज़ों में फंस गए हैं, इनसे आसानी से मुक्ति चाहिए क्योंकि यह सब कठिनाइयाँ हमारे बहुत अधिक सोचने, बहुत अधिक पढ़ने तथा बहुत अधिक रोबीले पाई जा सकती है और बिना किसी कठिनाई के इनसे स्वभाव के कारण हैं। परन्तु हम इनसे मुक्ति पा सकते हैं। बचा जा सकता है। मैं जानती हूँ आप ऐसा कर सकते स्वयं से निर्लिप्त होकर, स्वयं को देखने से तथा स्वयं हैं। अत: मेरे पिता, मेरी बहन, मेरा भाई जैसी चीज़ों को को सम्बोधित करने से-" अब श्रीमन् आप कैसे हैं"? यह भूल जाएं, यह सभी समस्याएँ बिना किसी देरी के भस्म हो जाएंगी। ज्यों ही आपका जीवन सीधी दिशा में कार्य कर पाना सम्भव हैं। जब आप ऐसे कहेंगे तो तुरन्त आपका चित्त आपके अन्दर से, आपके वाह्य अस्तित्व चलेगा, सभी बुराइयाँ भस्म हो जाएंगी। आपके प्रकाश को देखने में लग जाएगा, ऐसा करना अत्यन्त आवश्यक के सिवाए कुछ भी बाकी न रह जाएगा तथा उन लोगों के सिवाए जो आपके पास प्रकाश प्राप्त करने के लिए है। जितना स्पष्ट आप स्वयं को देखेंगे उतना ही बेहतर है, आपने स्वयं का सामना करना है। परन्तु आप अपना आते हैं। मैं जानती हूँ कि गुरु पूजा का दिन आपके लिए महान दिवस होगा और इससे पूर्व. मेरा अनुरोध है कि आप स्वयं को तैयार करें हो सकता कुछ महान कार्य करू। परन्तु इसको लेने वाला कोई उचित व्यक्ति भी तो होना चाहिए। अतः आप स्वयं को तैयार करें। इसके विषय में सोचें कि क्या आप अन्य लोगों से प्रेम सामना नहीं करना चाहते क्योंकि स्वय का सामना करने से आप घबराते हैं । क्योंकि आप लोगों का उत्पीड़न करते रहे हैं, इसीलिए उत्पीड़ित होने से घबराते हैं। तब कोई उत्पीड़न न होगा क्योंकि जिस स्थिति में आप स्वयं को देखते हैं वह पुर्णता की स्थिति होगी। न किसी को हैं मैं उत्पीड़ित करें, और न ही किसी से उत्पीड़ित हों स्वयं चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अवटूबर 2003 48 त कु करी म क साम करते हैं? क्या आप ग्रेम मार्ग में हैं? क्या आप सभी को सुगन्ध फैल जाएगी। आपके अन्दर यह जागृत हो जाएगा। मैं जानती हूँ ऐसा बटित हो सकता है। जितना प्रेम करते हैं? यह सोचना मात्र ही बहुत बड़ी चीज है कि आप अन्य लोगों को प्रेम करते हैं। आप मेरे से पूंछे जल्दी यह घटित हो जाए उतना ही बेहतर है। इच्छा आपकी अपनी है, आपने ही इसकी इच्छा करनी है। क्योंकि मैं हमेशा यही सोचती हूँ कि मुझे अन्य लोगों से कितना प्रेम है। मुझमें इतना प्रेम है कि मैं सदा इसे देती में बहुत प्रसन्न हूँ कि क्रिसमस से पूर्व इतना सुन्दर रहती हूँ। कल्पना करे कि अन्य लोगां से प्रेम करना भजन सुना। आप यह बात जानते हैं। इसी प्रकार से हम कितना महान है। आप जानते हैं कि लोग मुझसे इस प्रकार व्यवहार करते हैं । अविश्वसनीय! क्या ऐसा नहीं है? फिर भी मैं उन्हें प्रेम करती हैँ और उनसे खेलना मुझे अच्छा लगता है। जिस प्रकार मैं प्रेम करती हूँ उसी अब एक अन्य क्रिसमस मनाएंगे। अपने अन्दर उत्पन्त हुए ईसा-मसीह का जन्म दिवस मनाएंगे। उनके आगमन के लिए हमें तैयारी करनी है, यह तैयारो स्वयं से दौड़कर नहीं होगी : मूर्खतापूर्ण चीज़ों से फंसने से नहीं होगी। इसे कार्यान्वित करने से होगी स्वयं को शुद्ध करने से प्रकार आपको प्रेम करना चाहिए। प्रेम ऐसी चीज़़ है जो कमल की तरह से अपने होंगी। इस शरीररूपी मंदिर में यदि आत्मा को स्थापित सौन्दर्य को फैलाता है : अपनी पंखुड़ियों को खोलता है करना है तो इसका शुद्धिकरण आवश्यक है। और मधुर सुगन्ध बहने लगती है। इसी प्रकार आपके हृदय भी खुल उठेगे और विश्व भर में आपके प्रेम की परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। ाम oe ---------------------- 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-0.txt वैतन्य लाहरी ি ले ०) छी र १ र ल र मिन्वर ग्वंड अंक नान - নन n2 এন 0 न 1A. 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-1.txt Rx 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-2.txt सार्वजनिक प्रवचन, दिल्ली-24.3.2003 २ 3 उद्घाटन-विश्व निर्मल प्रेम आश्रम- 27.3.2003 7 ध्यान का महत्व - 12.1975 पाने के बाद - 25.11.1973 20 श्रीमाताजी का परामर्श - 27.5.1976 31 34 सहस्रार दिवस, बम्बई 5.5.1983 0 महिलाओं से बातचीत - जनवरी 1984 42 े ि ২ 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-3.txt चै त न य ल ह री प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर ए. मुनीरका विहार, नई दिल्ली 162 110067 मुद्रक अमरनाथ प्रेस प्रा. लिमिटेड डब्ल्यू एच एस 2/47, कीर्ति नगर औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली-15 फोन : 25921159, 55458062 सदस्यता के लिए कृपया इस पते पर लिखें :- श्री ओ. पी. चान्दना एन - 463 (जी-11) दिल्ली , ऋषि नगर, रानी बाग 110034 फोन : 27031889 E-mail: chaitanyalahiri@indiatimes.com सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पते पर भेजें : चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी-17, कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली 110016 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-4.txt सहजयोगी : एक आदर्श हिन्दुस्तानी परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का सार्वजनिक कार्यक्रम पर प्रवचन जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम, नई दिल्ली, 24.3.2003 आप लोगों का ये हार्दिक स्वागत देखकर के हृदय अंदर एक नई रोशनी आ गई कोई समझ भी नहीं आनंद से भर आता है और समझ में नहीं आ रहा है कि सकता, कोई मान भी नहीं सकता कि ऐसा घटित हो क्या कहूँ और क्या न कहूँ! आपसे आज के मौके पर सकता है, पर हो गया। सर्वजाति और सर्वतरह के लोग जिन्होनें इसे प्राप्त किया है, उसके लिए काई वर्ग विशेष क्या कहना चाहिए और क्या बताना चाहिए, ये ही समझ नहीं, कोई ऊँच-नीच नहीं। पता नहीं, हिन्दुस्तान में ही में नहीं आता है क्योंकि आप लोग अधिकतर सहजयोगी हैं और जो नहीं हैं वो भी हो ही जायेंगे हर बार ऐसा ही होता है। नहीं बल्कि बाहर भी हज़ारों लोग इसकों प्राप्त कर गए हैं और हमें बहुत से लोगों को ये देना होगा। अपने देश जीवन में सहजयोग प्राप्त होना एक जमाने में बड़ी कठिन चीज़ थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब तो बहुत की जो समस्याएं थीं वे सब इससे नष्ट हो जाएंगी। जिस जिस ने इसे प्राप्त किया है उनकी सारी समस्याएं दूर हो गईं। नई दृष्टि पा ली उन्होंने और ऐसा संयोग है कि सहज में ही आपकी कुण्डलिनी जागृत हो सकती है। सहज में ही आप उस स्थान को प्राप्त कर सकते हैं जो इसको पा कर के वो लोग भी अब कार्यान्वित हैं। हम तो सिर्फ इतना जानते हैं कि ये कार्य होना था और वो कहा जाता है कि आप ही के अन्दर आत्मा का वास है और आप ही के अंदर वो चमत्कार होना चाहिए जिससे हो गया। पर इस कदर उसमें प्रबलता आ जाएगी, ये आपको अपनी आत्मा से परिचित किया जा सके। ये कभी सोचा भी न था। सिर्फ इतना ही कहना है कि जिन लोगों ने इसे प्राप्त किया है वो इसे अपने पास छिपा कर चीज़ एक जमाने में बड़ी कठिन थी। हजारों वर्षों की तपस्चर्या जंगलों में घूमना, ऋषियों-मुनियों की सेवा, न रखें, औरों में भी बांटे, औरों को भी दें। देने से और उसके फलस्वरूप कुछ लोग, बहुत कुछ लोग, इसे प्राप्त भी आनन्द बढ़ेगा। देने से इसका आनन्द और भी करते थे। पर आजकल एसा ज़माना आ गया है कि गर को ये गति नहीं मिली तो न जाने वो किस ठौर द्विगुणित हो जाएगा। इसमें कोई शंका नहीं है। ये अपने पास रखने की चीज़ नहीं है। बांटने की चीज़ है । बांटने मनुष्य उतरेगा, उसका क्या हाल होगा? शायद इसीलिए इस से ही इसका मज़ा आएगा। आशा है आप सब लोग इसे कलियुग में भी यह सहजयोग इतना गतिमान है। इसमें तो आप लोगों का भी योगदान है। हजारों बांट कर इसका आनन्द उठाएंगे। हमने तो बहुत वर्ष मेहनत की है, हिन्दुस्तान में और सहजयोगी हो गए और सब लोग आपको खुद पार करा बाहर भी। इतनी मेहनत की है। अब उससे भी ज्यादा सकते हैं। ये कितना बड़ा कार्य हो गया है, क्योंकि मेरे अकेले के बस का इतना था क्या? लेकिन इसको संवारा आप लोगों को करना होगा। तभी इस दुनिया का अज्ञान नष्ट होगा बड़े भारी अज्ञान में डूबा है। आज यहां गड़बड़ है तो कल वहां गड़बड़ है। इसको ठीक करने के लिए आप को भी सज्य हो जाना चाहिए। और जिन्होंने इसको प्राप्त किया है उनको इसे और भी फैलाना चाहिए, बढ़ाना चाहिए, देना चाहिए। किसी भी बहाने से है आपने, इसको उठाया है आपने और इसके लिए मेहनत की है आपने। मैं आपको कितना धन्यवाद दूँ ये मैं नहीं समझ पाती। कितनी बड़ी बात है कि इस दुनिया में हजारों लोग नवीन जीवन को प्राप्त कर गए और उनके 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-5.txt चैतन्य तहरी खण्ड -XV अक : 9 एव 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 4 आर्त. क्षुब्ध नहीं होना। आप शांत मत बैठिए। कोई ऐसी विधा नहीं है कि आप इसे फैला नहीं सकते। इसमें जितनी शक्ति दें वो ही आपके अंदर कार्यान्वित होगी और उसी से आप लोगों को प्लावित करेंगे। हमारे लिए उसको इन्होंने महायोग के चरम सीमा तक पहुँचा दिया है मुझे खुद आश्चर्य होता है कि इतने सर्वसाधारण लोग हैं और इस कदर जानते हैं और समझते हैं। बहुत से लोग तो अनपढ़ हैं! पर इतने होशियार और इतने समझदार हैं तो दिल्ली में इतना कार्य होना बहुत बड़ी चीज़ है। याद कि बड़ा आश्चर्य होता है कि किस तरह ये सब समझ बना गए और ये किस तरह इस कार्य को करते हैं । है जब हम दिल्ली में शुरु शुरु में आए थे तो लोगों को कोई समझ ही नहीं थी और हमारे लिए वो अब समझ के अनुसार ही चलते थे। धीरे-धीरे समर्थ और धीरे-धीरे उन्होंने हरेक चीज़ का संतुलन प्राप्त किया। अनुभव से अब भी हमें कुछ और मोर्च निकालने होंगे। एक तो हमें देशभक्ति की बात करनी चाहिए। देश-भक्ति जरूरी आनी चाहिए। देश के इतिहास में क्या-क्या हुआ और कितने लोगों ने अपना सर्वस्व त्याग किया इन सबके बारे में बहुत जरूरी है कि आप को जानकारी होनी चाहिए और उसके वारे में आप लोगों को बातचीत करनी चाहिए। ये महान देश है, यहां बड़े-बड़े महान लोग हो वो समझ गए कि मनुष्य के अन्दर क्या दुर्बलता है, क्या तकलीफ है। और इसके लिए वो धोरे-धीरे शिक्षित हो गए। इतना सहजयोगियों के पास ज्ञान आ गया। वड़़े ज्ञानी हो गए। लोग बताते हैं कि माँ इनके अंदर इतना ज्ञान कहाँ से आया? अंदर से ही आया है इनके अंदर। गए। लेकिन कुछ ऐसी हमारे उपर अवकृपा हुई। विदेशों से हमारे उपर इतने लोग आए। उनके कारण हम लोग इनके अंदर ही ये ज्ञान आ ग़या है और कहाँ से आया है? इस प्रकार अपने ही अंदर जो परमतत्व आत्मा का हैं, उसका ये प्रादुर्भाव है, वो प्रकटीकरण है जिससे लोग दिल खोलकर सबसे कुछ बात कर न सके। लेकिन जरूरी है कि अब बताया जाए। परदेस में भी लोगों ने जानते हैं कि सच क्या हैं और आगे क्या है? हमसे बताया कि हिन्दुस्तान में क्या-क्या ज्यादती हुई है। इसका जितना बन पड़ा, हमने हरेक चीज़ को समझाया और मतलब ये नहीं कि आप उन लोगों से नफरत करें या देखती हूँ कि लोग बड़े आसानी से इसको आत्मसात दुष्टता करें, पर ये है कि आप समझ लें कि किस करते हैं। देहातों में भी, जहाँ लोग खास पढ़े-लिखे नहीं तकलीफ से यहाँ पर लोग गुज़रे हैं। क्या क्या आफतें ले हैं, उन्होंने भी सहजयोग इतने अच्छे से सीखा, इतना कर उन्होंने जिन्दगी काटी है। अगर आप इस चीज़ को अच्छे से समझा और इतना अच्छे से समझाते हैं कि मैं समझ लें तो आपको पता होगा कि हमारा देश कितना खुद हैरान हूँ इनके तौर-तरीके देख करके । दिल्ली वालों ने तो कमाल की हुई है। यहाँ कोई जब आप को पता होगा तो आपको भी अपने देश पर झगड़ा नहीं, कोई आफत नहीं, कोई आपस में किसी बड़ा गर्व होगा और आप भी सोचेंगे कि क्या महान देश तरह का कोई मन-मुटाव नहीं। बहुत खुले दिमाग के है। फिर अपने देश की संस्कृति बहुत ऊँची है। ऐसी लोग हैं और इनके साथ जितना हमसे बन पड़ा हमने संस्कृति कोई भी देश में नहीं है। मैं तो इतने देशों में घूमी महान है और कितने बडे बवंडर से निकला है। उसका समय बिताया था। अब तो नहीं इतना होता। और देखती हूँ। इस संस्कृति में सबकी इज्जत करना, सबको प्यार करना और देश को प्यार करना और बड़े-बड़े, बड़े-बड़े इनके आदर्श हैं, उन आदर्शों पर चलना। उनको भुला कर हूँ कि ये लोग इतने होशियार हो गए। आपके हाथ से काम करके ये समझ गए हैं कि सहजयोग क्या है और 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-6.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 5 हैं। सहजयोगियों को ये शोभा नहीं देता। और सहजयोगी करते भी नहीं, मुझे मालूम है। पर औरों को भी बताना हमारा कोई फायदा नहीं। यही नहीं, पर इन्हीं को हमको और देशों में फैलाना है। हमारे देश के बारे में जो जो गलतफहमियाँ हैं वो हट जाएंगी और हम सबको बता चाहिए कि हमारी चीज़ में किस कदर इस देश में देशाभिमान है, स्वयं का अभिमान है और हर तरह के सकते हैं कि हमारा देश कितना महान है। हम लोगों की अच्छाईयां जो हैं, सामने आनी चाहिएं। उससे लोग समझ हर तरह के आदर्श जीवन की रेखाएं हैं। पर धीरे-धीरे, जाएंगे कि हमारा देश कितना महान है। आप लोगों से मेरा ख्याल है, ये बात आ जाएगी। अब सहजयोगी इतने इतना ही कहना है कि आप अपने देश के प्रति अत्यंत हो गए हैं, इतने ज्यादा हो गए हैं कि मुझे ज्यादा बताने श्रद्धामय रहें और उन लोगों के लिए जिन्होंने देश के की जरूरत नहीं। वो लोग स्वयं ही इसको कर लेंगे। लि मुझे आपसे गर कुछ कहना है तो ये कि आप गर लिए इतना त्याग किया, जो सच्चाई पर खड़े रहे और सहजयोगी हैं तो आपके जीवन की पद्धति भी वैसी होनी चाहिए और दूसरे आप की जीवन प्रणाली भी वैसी होनी जिन्होंने सच्चाई के लिए अपने प्राण तक दे दिए। ऐसे सब पीर-महात्मा लोगों को, आप लोगों को जानना चाहिए जैसे एक आदर्श हिन्दुस्तानी की होती है। उसके लिए ये बात नहीं कि आप कौन से धर्म के हैं, एक ही जाति के हैं या... बात है कि आप हिन्दुस्तानी हैं और हिन्दुस्तानी का धर्म ये है कि वो...हिन्दुस्तान की शोभा चाहिए। सहजयोग का मतलब यह नहीं है कि आप सिर्फ इस देश की जो महानता है वो आप जानें पर इस देश की जो परम्पराएं हैं इसको भी समझें और यहाँ की संस्कृति को भी आप अपनाएं। आजकल तो ऐसा जमाना चला है कि हम लोग बने और उसी में रममाण रहे। यहाँ के हर चीज़ में विदेशी, परदेसी चीज़ों को पसंद करने लग गए हैं और आपको ध्यान देना चाहिए। यहाँ का संगीत, यहाँ की उन्हीं के रास्ते पर चल पड़े हैं। इससे कितना नुकसान कला, यहाँ की शिल्पकला और Architecture आदि सभी चीज़ें इतनी बढ़िया थीं । अब तो कुछ भी नहीं बन पातीं। चलो न भी बने पर उनको समझना तो चाहिए। हुआ है हम लोगों का? इससे कितनी परेशानी उठाई है? अपने देश की महानता और उसके गौरव को समझें और वही हमारे जीवन में भी और औरों के जीवन में भी उनको देखना तो चाहिए। ये बात हिन्दुस्तानियों में आनी चाहिए। पता होना चाहिए कि इस देश में कितना महान कार्य हो चुका है और हम भी कुछ ऐसे कार्य करें जिससे इस देश की शोभा बढ़े। न जाने कितनी चीजें ऐसी हैं कि जो सहजयोगियों के लिए करनी होंगी, और करते हैं । देखना चाहिए। ये तो कमाल की परम्पराएं हैं। उससे दूर भागने से हम सत्य से दूर भाग रहे हैं। हम लोग सत्य पर खड़े रहे और इसीलिए हमें काफी विपत्तियां उठानी पड़ी. ये तो माननी चाहिए बात। पर जो आदमी सत्य पर टिका है, वो तो अमर है। उसके लिए कुछ अच्छा नहीं उनका जीवन बहुत सुन्दर हो गया हैं। घर-बाहर हर कुछ बुरा नहीं। सबसे बड़ी बात ये है कि वो वंदनीय है, जगह, और लोग बहुत तारीफ करते हैं कि सहजयोगियों वो पूजनीय है. और उसके जैसे बनना एक बड़ी भारी का जीवन इतना सुन्दर कैसे हो गया एक तो आत्मा का बात है। ऐसे हज़ारों चरित्र इस देश में हो गए। लेकिन आशीर्वाद और दूसरे वो सूक्ष्म दृष्टि जिससे आप अच्छाई हम लोग अभी अपने देश को पहचानते नहीं और उसके को पहचानते हैं, अच्छाई को जानते हैं। जब तक बो आभूषण बनने की जगह हम दूसरे देशों की नकलें करते दूष्टि नहीं आएगी तब तक आप सहजयोगी नहीं है। he 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-7.txt चेतन्य तहरी खण्ड -४V अक : 9 एव 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 6 ्र ह१० दाम कहने को तो बहुत कुछ है पर मैं सोच रही थी कि आज कहिए आँख बंद करके कि श्री माता जी हमको कृपया आत्म साक्षात्कार दीजिए। धोरे, अंदर ही अंदर, बाहर नहीं। अब देखिए कि आपके हाथ में (आँख बंद रखिए) ठण्डी-ठण्डी हवा तो नहीं आ रहीं या गरम गरम बहुत से लोग ऐसे भी आए हैं जिन्होंने अपना आत्म ही देखा नहीं। उनके लिए जरूरी है कि उसका भी एक सत्र कराया जाये। आप लोग स्रब मेरी ओर इस तरह हाथ करके बैठिए। बात मत करिये शान्तिपूर्वक। हाँ. और आँख बंद कर लें। दोनों हाथ मेरे तरफ और आँख बंद करिए। और अब भी आ रही होगी। गर आ रही हो तो हमारी ओर सीधा हाथ करें और बाँया हाथ सर पर रख कर देखें कि आपके सर से आ रही है ठण्डी-ठणडी हवा। सबको अनन्त आशीर्वाद है हमारा। ाम 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-8.txt उद्घाटन समारोह ( NGO) विश्व निर्मल प्रेम आश्रम, ग्रेटर नोएडा, 27.03.2003 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन मांगने का। मैंने कहा कि भाई तुमको मांगना पड़े तो पता चले। औरतों के प्रति एक अत्यन्त उदासीन प्रवृत्ति जो अपने देश में आ गई है मुझे उससे तो रोना ही आता था। और इसीलिए मैंने यह ठान लिया था कि इनके रहन-सहन का. इनक खान-पान का, इन बेचारी औरतों का कुछ न कुछ इलाज तो करना चाहिए। वो लोग रास्तों में भीख मांगती हैं, हर तरह का काम करती हैं, उनको मैंने घर में बुलाया, उनसे बातचीत करी तो कोई कारण नज़र नहीं आता। आदमियों को कोई औरत अच्छी लग गई उसकी (पत्नी) छुट्टी करो, दूसरा कुछ बहाना करके औरत को घर से निकाल दो। पता नहीं क्यों? औरत एक महान जीवन है, उसी से सारा संसार खडा होता है। उसी से आप लोग मुझे हिन्दी में बोलने की आज्ञा दं। अपने देश में जो अनेक प्रश्न हैं, उसमें सबसे बड़ा प्रश्न है कि यहां पर औरतों को और आदमियों को अलग-अलग तरीके से देखा जाता है पता नहीं ये कैसे आया, क्योंकि अपने शास्त्रों में ता लिखा नहीं हैं शास्त्रों में कि: है। कहते | यत्र पूज्यन्ते ना्या--नारियां जहां पूजनीय होती है तत्र रमन्ते देवता 'तो पता नहीं कैसे हमारे देश में इस तरह की स्थिति सम्पन्न हुई है, इससे औरतों के प्रति कोई भी आदर नहीं है। विशेषत: मेरा विवाह यू.पी. में हुआ और मैं देखकर हैरान हुई कि यू.पी. में घरेलू औरतों का कोई स्थान ही नहीं है। उनमें और नौकरानियों में कोई अपने देश में हजारों बाल-बच्चे इस संसार में आते हैं। पर उनके प्रति इस तरह बेकद्री से लोग पेश आते हैं कि सहते-सहते औरत भी पागल हो जाए। पर नहीं, वो अपने बच्चों की वजह से बड़े हिम्मत से जीती हैं। लेकिन करे क्या उसके पास और खाने का जरिया नहीं कोई तरीका नहीं, तो वो क्या करें, कहां जाए, किससे भीख मांगे? कोई उनको दरवाज़े में भी खड़ा नहीं करता। फर्क नहीं है। यह इस प्रकार क्यों हुआ और क्यों हो रहा है? क्योंकि लोग उस ओर जागृत नहीं है और कभी-कभी देख कर तो रोना आता है। जिस तरह से औरतों को छला है, घर से निकाल दिया, कोई वजह नहीं, यूही घर से निकाल दिया और ऐसे बहुत सारे हमने जीवन में अनुभव लिए और जिसकी बजह से अत्यन्त व्यथित हो गए। समझ में नहीं आता था कि इस तरह से क्यों औरतों को इसका कोई इलाज मुझे दिखाई नहीं दिया। इसीलिए मैंने है, सताया जा रहा है और इनके रहने की भी व्यवस्था नहीं। जब घर से निकल गई तो उनको देखने वाला भी कोई बहुत सोचा कि सबसे वड़ा काम, अगर कुछ तो इन औरतों के लिए कोई स्थान बना देना है मैंने यही सोचा कि यहां आ करके वो सीख लेगी, कुछ न कुछ काम सीख लेंगी। इसके अलावा यह लोग मालिश करना सीख सकती हैं, इसके अलावा यह लोग छोटे-छोटे अपने होटल जैसे बना सकती हैं। पर उनकी सहायता करने के लिए कोई चाहिए, कोई स्थान चाहिए, और उनको समझाने के लिए कोई चाहिए। इसी ख्याल से मैंने यह आश्रम बनाया है और इसमें सभी के प्यार को ललकारा है, सारे विश्व के प्यार को ललकारा है कि सब लोग प्यार से इसे देखें। इन बिचारी औरतों का कोई दोष नहीं नहीं है। बाल बच्चे ले करके निकल आई थी बेचारी। वो लोग तो हैं निराश्रित पर बच्चों को भी बिल्कुल बुरी तरह से निकाल देते हैं। यह अपने यहाँ की व्यवस्था किस तरह से बदल सकती है। इसका कोई इलाज है या नहीं? मैंने बहुत बार सोचा कि इसके बारे में लिखना चाहिए, पर लिखने से कुछ नहीं होगा। इसके लिए कोई व्यवस्थित रूप से कोई इन्तजाम करना होगा, कोई व्यवस्था करनी होगी, और एक तरह से बड़ा दिल कचोटता था ऐसी अनेक-अनेक औरतें देखी हमने जो आज रास्ते पर भीख मांग रही हैं लोगों ने बताया कि अच्छा तरीका है भीख 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-9.txt पता बैतन्य लहरी खण्ड -XV अक :9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 8 हैं, वो जो दर-दर में भीख मांग रही हैं इसका उत्तरदायित्व हमारे समाज का है। बहुत दुख होता है, एक औरत के नाते मुझे बहुत रोना आता था देख-देख के और यह जब बनने लगा तो मैंने कहा कि किसी तरह से यह पूरा हो जाए। और इसमें मेहनत करी काफी, इसका डिजाइन भी हमने बनाया। इसकी विशेषता यह है कि इसमें जो अपने आप पिछाड़ी गई हैं। उसमें से कुछ तो घर से निकल खड़ी हो गई और भीख मांग रही हैं। और कुछ ऐसी भी है जो घर में ही रोती रहती हैं और किसी तरह से अपना जीवन काट रही हैं। पता नहीं समाज में इसके प्रति अभी, खासकर इधर, खासकर अपने यू.पो. में, इध र ध्यान नहीं गया। महाराष्ट्र में एक बात अच्छी हुई, वहां आपको सफेद रंग दिख रहा है यह खराब होने वाला दो-तीन समाज सुधारक निकले। उन समाज सुधारकों ने बहुत कार्य किया। उनकी वजह से वहां पर यूनिवर्सिटीज बन गईं। औरतों को बहुत अच्छा शिक्षण मिला और लोग देखने लगे कि औरतों में भी बहुत गुण अब यह हमने स्कूल तो बनाया है और आप लोगों से यही बिनती है कि आप लोग हमें बताएं कि इसमें हम क्या कर सकते हैं । कौन-सी, कौन-सी शिक्षा हम दे नहीं। एक अजीबो गरीब तरीके से बनाया है, यह इटली में मैने सीखा था। इटली में मैंने सीखा था कि ऐसा रंग बनाना चाहिए कि जो छूटे न और मुझे इसका मालूम है (तकनीक) और उसको इस्तेमाल करने से देखिए कितना सुन्दर सफेद रंग बन गया। यह कभी खराब नहीं होगा, कितना भी इस पर पानी आ जाए. कुछ हो जाए, कभी हैं। सकते हैं। ऐसे हम लोगों ने तो बहुत सोच लिया है। पर तो भी आप सूध्य है, आप हमारे पास खबर भेजें कि खराब नहीं होगा। यह मैने एक experiment की तरह मे, लेकिन यह चीज है बड़ी अच्छी। क्योंकि अपने देश ता नहीं क्यों इस तरह के लोग चीज़ नहीं बनाते। और और क्या-क्या हम इन औरतों के लिए कर सकते हैं। इस तरह की चीज़ बनाना कोई मुश्किल. नहीं। मैने परदेस में हमने देखा वहां कायदा-कानून ऐसा है कि कोई कितनों से कहा कि आप इसको इस्तेमाल करें, सो यही भी औरतों को इस तरह से सता नहीं सकता। ऐसी उनकी बात हुई कि कौन करे तवालत, कौन करे यह आफत। दुर्दशा नहीं है। यह अपने ही देश की विशेषता है जहां इसमें कोई तवालत नहीं है, कोई आफत नहीं है। पर पर कि औरतों की दुर्दशा होती है। परदेस में हम बहुत भारत देश में एक और प्रथा चल पड़ी है कि जैसे चले साल रहे, जाते-आते रहे तो यह फर्क मुझे मालूम हुआ। वैसे चलने दो। फिर आप क्या बात कर सकते हैं। यहां बड़ा महसूस हुआ कि यहा पर देखिए कि एक औरत एक से एक विद्वान हो गए, संस्कृत के पंडित हो गए, की कोई कीमत ही नहीं है, वही बच्चे पैदा करती हैं, डतना ज्ञान दे गए, पर लोगों को इसका बिल्कुल अंदाज वही संवारती है। और भारतीय नारी तो वैसे भी बड़ी नहीं है। वो जानते नहीं कि कितने महान देश में आप सुन्दर होती हैं, बहुत कार्यक्षम, बहुत दक्ष और बहुत ही पैदा हुए हैं और इसके अंदर कितना ज्ञान दे गए। यही ज्यादा मोहब्बत वाली होती है। यहाँ की माताएं तो मशहूर औरतों को आप बिल्कुल कुछ नहीं समझते, औरतों को हैं पर हमारे यहां उनके लिए कोई प्रेम- आदर नहीं। पता तो बिल्कुल जैसे कोई भिखारियों जैसे रखा जाता है। पति नहीं ऐसा क्यों? हाँ वहाँ जरूर है औरतों ने ही अपना जो है वो शराब पियेगा और बीवी को मारेंगा, और मारेगा मंच बनाया हुआ है। उन्होंने अपने लिए यह सब यह नहीं तो भी उसको कुछ सहुलियत नहीं है, कोई स्थापित कर लिया है । और इस देश में उनका पूछने सुविधा नहीं बेचारी को। वो किसी तरह से भी रह लेगी। वाला कोई नहीं। इसी ख्याल से हमने यह छोटा सा हाँ अगर कोई रईस की लड़की होगी तो ठीक है, नहीं आश्रम बनाया है कि इस आश्रम में जो लोग आएं तो बहुत सताते हैं। और इस तरह से कितनी ही औरतें लड़कियां-औरतं, उनको दे दिया जाए ज्ञान, अपने पांव 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-10.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 9 ेर पर खड़ा होना और सहज-योग भी उसके साथ। गर वो अपनी जिन्दगी काट सकें। वो भी इन्सान हैं, वो कोई इसको प्राप्त कर लें तो वो बहुत अभिमान के साथ और गौरव के साथ रह सकती हैं। यहीं आश्रम में हम बहुत सी इंडस्ट्रीज़ भी बना सकते हैं. बहुत जानवर तो नहीं है। वो भी इन्सान हैं और इन्सान- की पदवी उनको देना यह नितान्त आवश्यक बात है। गर हम यह बात नहीं समझेंगे, पहले तो अपने घर-द्वार से शुरु से खाने पीने की चीजें बना सकते हैं, और बहुत से उच्च तरह का शिक्षण करें, वहीं से देखें कि क्या से क्या चल रहा है। हमने तो बहुत नज़दीकी से देखा है और सिवाए रोने के और कोई मार्ग नहीं था। भी दिया जा सकता है। यह तो देखा जाएगा कि किन औरतों में इसकी क्षमता है, कितनी औरतें इसमें उठ-खड़ी होती हैं कभी-कभी हमने देखा है कि ऐसी ही जगहों से जहां पर औरतों को कुचला गया है, बड़े-बड़े स्थानों में औरतें उठ खड़ी हुई। पर हमको उनकी मदद करनी होगी, हमें देखना होगा क्योंकि जो हो रहा है वो अपने मैं जान करके हिन्दी में बोल रही हूँ क्योंकि परदेसी लोग हैं, इनके सामने अपने देश की औरतों की निन्दा कैसे करें? इन लोगों को देश के प्रति बहुत अभिमान है । जब भी आते हैं तो पहले सर को जमीन में छू करके अभिनन्दन करते हैं। इतना मानते हैं कि मैं आपसे बता नहीं सकती। मैंने इनको कभी नहीं कहा। अपने ही समाज के लिए बहुत हानिकारक है, और बड़ी दुष्टता की निशानी है। उस तरफ हमारा ध्यान ही नहीं है, पता नहीं कैसे? उधर ध्यान देना बहुत जरूरी है। और यह जो औरतों की तरफ हमारा, कहना चाहिए कि, उनके लिए जो हमारे हृदय में जो श्रद्धा होनी चाहिए वो नहीं है। बिल्कुल नहीं है और हम बुरी तरह से उनको सताते भी हैं, पीटते भी हैं, बात-बात में मारते भी हैं। ऐसी -ऐसी मेरे पास कहानियाँ हैं कि मैं उनको अभी गर सुनाऊं तो आप रो पड़ियेगा। मैं बहुत रो चुकी हूँ अब चाहती हूँ कि कुछ न कुछ मार्ग ढूंढा जाए और इसलिए यह छोटा सा प्रयास किया है । इसको बढ़ा भी सकते हैं बाद में और फिर यहाँ से जो औरतें ठीक हो कर जायेंगी, जो यहाँ से, कहना चाहिए कि, परिपक्व हो कर जायेंगी, वो कुछ न अपनी जिन्दगी में करेंगी इतना ही नहीं वो अपने विचार से, अपनी ही श्रद्धा से यह समझते हैं कि यह तो नन्दन वन है और उनको अभी यहाँ की दुर्दशा का पता नहीं है इसलिए मैं नहीं चाहती कि इनको पता चले, अपने देश की बुराई करने में क्या रखा है? पर जो बुराई है उसे निकालना चाहिए, उसको हटाना चाहिए। यही बात में आप सब से कह रही हूँ। वहां औरतों का मान होने का कोई विशेष कारण तो है नहीं, पर वहाँ के कायदे-कानून ऐसे बन गए थे कि कोई भी औरत कहीं पड़ी हो, कैसी भी हो, कहीं हो, उसकी बेइज्ज़ती नहीं होती इसलिए हमें भी चाहिए कि हम भी समझें कि यह बहुत बड़ी बात है कि हम भी अपनी औरतों का मान करें और उनके प्रति श्रद्धा रखें। हमने तो इतनी भयंकर चीजें देखी हैं कि विश्वास नहीं होता कि कोई इन्सान दूसरे कुछ को संभाल सकती हैं। अपने बच्चों को भी संभाल सकती इन्सान को इस तरह से छल सकता है, सता सकता है परेशान कर सकता है। एक अजीब ही तरह की गुलामी हम तो अंग्रेज़ों की गुलामी से तो छुटकारा पा गए हैं और बाइज्जत अपनी जिन्दगी निभा सकती हैं। यह बहुत जरूरी है। उनको कितना भी आप शिक्षण दीजिए, कुछ दीजिए, घर में उनकी अगर इज्जत होती नहीं तो वो क्या करेंगी बेचारी। उनकी पढ़ाई-लिखाई की यदि इज्जत नहीं होती तो वह क्या करेगी? इसलिए कोशिश यही करनी है कि इनको इस लायक बना दिया जाए, इन औरतों में यह आ जाए हुनर कि वो स्वाभिमान के साथ है। लेकिन हमारे समाज में जो इस तरह की गुलामी है उससे छुटकारा पाना बहुत जरूरी है। हमारे देश की महिलाएं, मेरे ख्याल से कम से कम 70 फीसदी है और बाकी आदमी लोग हैं, इतना होते हुए भी आदमियों में बड़ा 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-11.txt चैतन्म लहरी खण्ड XV अक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 10 घमंड है। अपने को पता नहीं क्या समझते हैं और सोचते हैं कि हम चाहे जो भी कर लें वह ठीक हो जाएगा ऐसा नहीं है। एक औरत भी स्त्री है एक समाज का बड़ा भारी घटक है। उनके साथ जो भी आप ज्यादती करिएगा उसका फल आपको और आपके बच्चों को भोगना ही पड़ेगा। अब हम लोग देखते हैं कि हमारे बच्चे भी खराब हो रहे हैं क्योंकि उन पर नियंत्रण कौन करे, माँ को तो मुहब्बत इज्जत से रखेंगे यह दुर्दशा मुझे नए तरीके से क्या बताना है। जो है सो है। पर आप लोग अपने व्यक्तिगत जीवन में देखें कि आपके यहाँ औरतों का क्या हाल है। आपकी माँ, बहनों का क्या हाल है। और उसके बाद समाज की ओर दुृष्टि करें। यह ठीक हो जाने से आपका देश बहुत उन्नति पर पहुँच जाएगा, बहुत ऊँचा उठ जाएगा| जहाँ पर औरत निर्देश करती हैं और कोई अधिकार नहीं और बाप को फुर्सत नहीं, तो बच्चों संभालती हैं वहाँ पर बड़े महान-महान लोग हो गए। पर को ठीक कौन करेगा. और कौन देखेगा? यह तो घर-घर यहाँ जिस तरह से घटित हो रहा है, इस छोटे से प्रयास की कहानी है। मैंने तो देखा है कि यू.पी में देखिए कि से आशा है, मुझे आशा है, कि कुछ तो हालात ठीक कॉलेज में जाने वाले लड़के दिन-दहाड़े कॉलेज से छुट्टी होएंगे। इतने दिन से मैं जिस चीज़ के लिए रोती रही पा करके और किसी भी रेलगाड़ी में चढ़ जाएगें और पूरेशान थी, उसकी ओर सबका ध्यान जाए और सब वहां लूट- खसीट करेंगे और उनकी माँ लोग करेंगी क्या? वो तो कुछ बोल नहीं सकती। उनको तो कोई सुनता ही लोग उस ओर देखें । सहजयोग से आप आत्मा को प्राप्त होते हैं, आप नहीं। इस चीज़ को बदलना नहीं चाहिए और अपने घर आत्मा को जानते हैं, पर सबके तरफ आपकी जो दृष्टि की जो औरतें हैं उनकी सामाजिक व्यवस्था उसकी है उसमें करुणा होनी चाहिए। आत्मा को प्राप्त करके उन्नति करनी चाहिए और उसकी ओर विचार करना आपके अन्दर करुणा नहीं हुई तो क्या फायदा? करुणा होनी चाहिए और उस करुणा में आप देखिए, चारों तरफ वो अपने घर में जब शुरू होगा तो और भी जगह हो आप देखकर परेशान हो जाएंगे कि यह माँएं और बहनें जाएगा। मुझे इसके लिए नितान्त-नितान्त तकलीफ होती किस दुष्चक्र में फंस गई हैं इसके लिए आपसे विनती है। हम तो क्या बताएं आपको, सब बेकार है। सहन नहीं है मेरी कि आप आस-पास आंख घुमा कर देखिए, होता। जब यह इमारत बनने को हुई हमने कहा कुछ भी घर-बाहर देखिए और औरतों की जो स्थिति बनाई हुई है करो, पैसा-वैसा हम दे देंगे, बिल्डिंग बनाओ किसी तरह उसे व्यवस्थित करने का प्रयत्न करें । हमने तो छोटा सा चाहिए। से और जब यह बिल्डिंग बन गई तो मुझे बड़ी खुशी एक प्रयास किया है पर आप लोग बहुत कुछ कर सकते हुई। किसी तरह से कम से कम ऐसी एक चीज बनी है, हैं इसलिए मैं आप सबसे बिनती करती हूँ कि जैसा ऐसी एक चीज़ बन गई कि जिससे औरतों की तरफ ध्यान आकर्षित होगा। और लोग उनको कुछ तो उनकी अपनी बहनों को प्यार करें आप मुझे प्यार करते हैं ऐसा ही आप अपनी माँ को और अनन्त आशीर्वाद। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-12.txt ध्यान क्यों करना चाहिए प्रभादेवी, बम्बई, 1 फरवरी, 1975 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन सहजयोग में सबसे आवश्यक बात ये है, कि इसमें आखिर बात क्या है? ये lime बचा कर भागे- भागे आप अग्रसर होने के लिये बढ़ने के लिये आपको ध्यान करना वहां क्यों जा रहे हैं? तो कहने लगे "वहां एक special पड़ेगा। ध्यान बहुत जरूरी है। आप और चाहे कुछ भी dinner है (विशेष भोज) वो मुझे attend करना है, न करें लेकिन अगर आप ध्यान में स्थित रहें, तो और उसके बाद वहां पर Ball (Dance) है"। Time सहजयोग में प्रगति हो सकती है। आप बचा किसलिये रहे हैं? जैसे कि मैंने आपसे कहा था कि एक ये नया रास्ता हर समय, आप ये सोच लीजिये कि जो हाथ में घडी है। नया आयाम है, dimension है;B नई चीज है जिसमें बंधी है, ये सहजयोग के लिए और 'ध्यान' के लिये है। आप कूद पड़े है। आपके अचेतन मन में, उस महान और सहजयोग के ही कार्य के लिये बांधी हुई है, मैंने सागर में आप उतर गए हैं, बात तो सही है। लेकिन उसी लिये बाँधी है, नहीं तो मैं कभी भी नहीं बाँधती। जिस आदमी का पूरा ही समय सहजयोग में बीतता है, उसको जरूरी नहीं कि आप घर का काम न करें। ये इसकी गहराई में अगर उतरना है, तो आप को ध्यान करना पड़ेगा। मैं बहुत से लोगों से ऐसा भी सुनती हूँ कि "माता जी, जरूरी नहीं कि आप दफ्तर का काम न करें; सारा ही कार्य आप करें पर 'ध्यान में करे', ध्यानावस्थित होकर के ध्यान के लिए हमको time (समय) नहीं मिलता है।" कार्य हो सकता है क्योंकि आप को ध्यान में उतार दिया आज का जो आधुनिक मानव है, modern man है, उसके पास घड़ी रहती है, हर समय time बचाने के, है। हरेक काम करते वक्त आप निर्विचार हो सकते हैं। लिये, लेकिन वो ये नहीं जानता है कि वो time किस और निर्विचार होते ही उस काम की सुन्दरता, उसका चीज के लिए बचा रहा है? उसने घड़ी बनाई है वो 'सम्पूर्ण' ज्ञान और उसका सारा आनन्द आप को मिलने सहजयोग के लिये बनाई है, ये वो जानता नहीं है। लग जाता है। समझने की बात है, ये लोग समझते नहीं हैं। इसलिये एक साहब मुझ से कहने लगे कि "मुझे लंदन जाना बहुत जरूरी है। और इसी Plane (हवाई जहाज) से ध्यान के लिये अलग से time नहीं मिलता है, जाना ही है और किसी तरह मेरा टिकट बुक होना ही शुरु हो जाता है। लेकिन जब इसका मजा आने लगता है, तब आपको आश्चर्य होगा कि नींद बहुत कम हो जाती झगड़ा चाहिये और कुछ कर दीजिये आप, और Air-India वालों से कह दीजिये और कुछ कर दीजिये...।" मैंने है और आप ध्यान में चले जाते हैं। निद्रा में भी आप सोचेंगे कि आप ध्यान में जा रहे हैं । कोई भी चीज छोड़ने कहा ऐसी कौन-सी आफत है? आप लंदन क्यों जाना चाहते हैं? ऐसी कौन सी आफत है? क्या विशेष कार्य की या कम करने की नहीं। लेकिन हमारी जो महत्वपूर्ण चीजें हैं-जिसे हम महत्वपूर्ण समझते हैं, वो बिल्कुल ही आप वहां करने वाले हैं? कौन सी चीज है? कहने लगे '| must go there, I have to save time" (मुझे महत्वपूर्ण नहीं रह जातीं। और जिसको हम बिल्कुल ही जरूरी जाना है, मुझे समय बचाना है) "time is very विशेष समझते नहीं हैं, वो हमारे लिये 'बहुत कुछ' हो important" (समय बहुत मूल्यवान है). मैंन कहा जाता है। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-13.txt दअ चंतन्य सहरी छण्ड xV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 12 द सय ध्यान करने के लिये एक छोटी सी चौज आपको चाहिये या नहीं। ये तो आप जानते हैं कि क्षण-क्षण आप याद रखनी चाहिये, कि जिस चीज पर ध्यान का आलाप उसे पा रहे हैं; और हर क्षण उसे आप खो भी रहे हैं। छेड़ा जाएगा, जिस वीणा पर ये सुन्दर गीत बजने वाला है, वो साफ होनी चाहिये। आप वो वीणा नहीं हैं, आप ये हरेक क्षण कितना महत्वपूर्ण है, इसे आप देखिये। कौन-सी छोड़ने की बात, कौन-सी पकड़ने की बात कोई भी ऐसी बात मैंने आप से आज तक तो की नहीं वो आलाप भी नहीं हैं, लेकिन आप उसको सुनने वाले है और उसको बजाने वाले हैं आप उसके मालिक हैं। होगी। लेकिन ये आपका भ्रम है। आपका मन आपको इसलिये अगर बो वीणा कुछ बेसुरी हो, उसके अगर तार जंग खा जाएं, या उसके कुछ तार टूट जाएं, तो आपको जरूरी है कि उसको ठीक कर लेना चाहिये अगर वो ठीक नहीं हैं, तो आपके जीवन में माधुर्य नहीं है। आप भ्रम में डाले दे रहा है। तो तुम क्या घर गृहस्थी छोड़ दोगी? मैंने घर-गृहस्थी छोड़ी है जो आपसे मैं घर-गृहस्थी छोड़ने को कहती हैँ? आप जानते हैं कि आपसे कहीं अधिक मैं मेहनत करती हूँ। लेकिन मैं थकती नहीं हूँ में वो सुन्दरता नहीं आ सकती, आप में एक अजीब तरह क्योंकि मेरे आनन्द का स्रोत आप लोग हैं। जब आपको ) देख लेती हूँ, बस खुश हो जाती हूँ। तबीयत सारी का चिड़चिड़ापन, अजीब तरह की रुक्षिता (dryness और विचलितता दृष्टिगत होगी। बाग-बाग हो जाती है। एक सहजयोगी को एकदम निश्चित मति से ध्यान में बैठना, देखना, बहुत बड़ी चीज हो जाती है मेरे लिये। और बही मैं देखती हूँ कि कुछ सहजयोगी गहराई से | जिस चीज का महत्व है, उधर दृष्टि रखिये। आप को पूरी तरह से मैं ये नहीं कहती कि चौबीसों घण्टे इसमें आप यहीं बैठे रहिये! जहाँ भी बैठे हैं, वहां वैठे रहिये-ये अन्दर चले जा रहे हैं और कुछ सहजयोगी बहुत मतलब है मेरा। जहाँ भी जमे हैं वहाँ जमे रहिये, अपने विचलित हैं। ये नहीं में कहती कि सभी लोग उतनी दशा स्थान पर, अपने सिंहासन पर। कुछ लोग इसीलिये प्रगति करते हैं और कुछ लोग नहीं करते। शारीरिक बीमारियां आप लोगों की, बहुतों की ठीक हो गई हैं। बहुतों के पास बीमारियां नहीं हैं में पहुँच सकते हैं या नहीं। लेकिन जो कुछ भी बन पड़े वो इस जीवन में करना ही चाहिये। उपार्जन का जितना भी समय है, वो इसी में बिताना चाहिये। और जो कुछ लेकिन अभी भी मानसिक प्रश्न है । भी मिल सके, सभी इसी में मिलना चाहिये बाकी कुछ हो या नहीं। सब बातें भूल जाइए। हर इन्सान इसका पाने का अधिकतर लोगों को मैं ये देखती हूँ, इधर-उधर की अधिकारी है। आपका जन्मसिद्ध हक है, क्योंकि ये पचासों बातें करेंगे, लेकिन ध्यान की बात अपने मनशुद्धि 'सहज' है, आप ही के साथ पैदा हुआ है। लेकिन ध्यान की बात, अपने अन्दर के आनन्द को उभारने की बात करना ही होगा और वो भी समष्टि में लेकिन उसको कितने लोग. आप लोगों में से करते हैं? "इसने ये कहा, organise करने की आप लोग इतनी चिन्ता न करें। उसकी व्यवस्था करने की आप इतनी चिन्ता नहीं करें। वो कार्य हो रहा है, वो हो भी जाएगा। क्या हर्ज है अगर दस आदमी ज्यादा आएं चाहे दस आदमी कम। हजार बेकार के लोग रखने से दस ही कायदे के आदमी हों सो उसने वो कहा, ऐसा हो गया, ऐसा नहीं करना चाहिए शथरा वैसा नहीं करना चाहिये था " -ये क्या सहजयोगी को शोभनीय होगा? जब आपके पास निर्विचार की इतनी बड़ी सम्पत्ति है, तो क्या उसको पूरी तरह से उघाड़ देना 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-14.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 13 देवता यहां जागृत हैं। लेकिन बहुत जरूरी है कि इन जागृत देवताओं का कहीं भी अपमान न हो। इन को ही संभाल के और जतन से रखना चाहिये। इनकी पूजा होनी चाहिये। अपने हाथ ऐसे होने चाहियें कि पूजनीय ही सहजयोग के लिये 'विशेष चीज' है। आप उनमें से बनिये जो दस 'अच्छे' आदमी हैं। जो बहुत ऐसे लोग हैं, जो सहजयोग का कार्य अत्यंत प्रेम से करते हैं और उसमें मजा उठा रहे हैं, उसमें बह रहे हैं, उसमें अग्रसर हैं, और एक अग्रिम श्रेणी में जाकर के खड़े हो जाते हैं। जैसे कि हिमालय संसार में सबसे ऊँचा है। उसकी ओर सबकी दृष्टि रहती है। ऐसे ही आप बनें। आप ही में आप हिमालय बन सकते हैं और आप देख हों। लोग ये सोचे कि ये हाथ हैं या गंगा की धारा! गंगा ही की धारा बहे। जिस वजह से गंगा पावन हुई वही (वाइब्रेशन) चैतन्य, आपके अन्दर से बह रहे हैं। जिस चैतन्य शक्ति से सारी सृष्टि चल रही है, वही आपके अन्दर से बह रही है, ये आप जानते हैं। फिर जिन हाथों से, जिन पांव से ये चीज बह रही सकते हैं कि दुनिया आप की ओर ऑख उठा कर कहे कि बनूँ तो मैं इस आदमी जैसा बनूँ जो सहजयोग में इतना ऊँचा उठ गया ये अन्दर का उठना होता है, बाहर का नहीं। और मैं सबके बारे में जानती हूँ कौन कहाँ तक पहुँच रहा है। है, उसको 'अत्यन्त पवित्र' रखना चाहिये। मेरा मतलब धोने-धवाने से नहीं है। इसमें जो भी आप काम करें, अत्यन्त सुन्दरता से, सुगमता से और 'प्रेम' से होना आप ही अपनी रुकावट हैं। और कोई आप की चाहिये। 'सबसे बड़ी' चीज 'प्रेम' है। ध्यान में गति करना, यही आपका कार्य है, और कुछ रुकावट नहीं कर सकता। कोई भी दुनिया का आदमी भी आपका कार्य नहीं है, बाकी सब हो रहा है। और आप पर मन्त्र-तन्त्र आदि 'कोई' चीज़ नहीं डाल सकता। आप ही अपने साथ अगर खराबी न करें और पहचाने रहें आप में से अगर कोई भी जब ये सोचने लगेगा कि कि कौन आदमी कैसी बातें करता है, आप खुद ही समझ मैं ये कार्य करता हूँ और वो कार्य करता हूँ, तब लेंगे कि इस आदमी में कोई न कोई दुष्टता आ गई है, तभी वो ऐसी बातें कर रहा है, नहीं तो ऐसी बात ही न करता वो। जैसे गलत बात वो कर रहा है, इसमें कोई न कोई खराबी है। उसमें साथ देने की कोई जरूरत नहीं। फिर चाहे वो आपका पति ही हो, चाहे आपकी वो पत्नी आप जानते हैं कि मैं अपनी माया छोड़ती हूँ और बहुतों ने उस पर काफी चोट खाई है। वो मैं करूंगी। पहले ही मैंने आप से बता दिया है, कि कभी भी नहीं सोचना है कि मैं ये काम करता हूँ या वो काम करता हूँ। "हो रहा है।" जैसे "ये जा रहा है और आ रहा है।" अब सब तरह से अकर्म में-जैसे कि सूर्य ये नहीं कहता कि हो। उससे लड़ाई-झगड़ा करने की उलझने की 'कोई' मैं आपको प्रकाश देता हूँ।"वो दे रहा है।" क्योंकि वो जरूरत नहीं। वो अपने आप ही ठीक हो जाएगा। इतना ही नहीं आप ये भी जानते हैं कि आपमें कोई एकतानता में परमात्मा से, इतनी प्रचण्ड शक्ति को अपने खराबी आ जाए तो आप किस तरह से उसे हाथ चला अन्दर से बहा रहा है। ऐसे ही आपके अन्दर से 'अति' कर भी ठीक कर सकते हैं. क्योंकि आपके हाथ के अन्दर ही वो चीजें बह रही हैं। असल में आपकी सूक्ष्म शक्तियां बह रही हैं क्योंकि आप एक सूक्ष्म मशीन हैं। आप सूर्य जैसी मशीन नहीं हैं, आप एक "विशेष" मशीन हैं, जो बहुत ही सूक्ष्म है, जिसके अन्दर से बहने वाली ये सुन्दर धाराएं एक अजीब तरह की अनुभूति देंगी उँगलियों में ही ये सब जो भी देवता मैंने बताए हैं ये जागृत हैं, इन पाँचों उँगलियों में और इस हथेली में, सारे 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-15.txt चैतन्य लहरी खण्ड XV अक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 14 ही, लेकिन दूसरों के भी अन्दर। उनके छोटे-छोटे यंत्र हैं. मशीनें हैं, उनको एकदम से प्रेमपूर्वक ठीक कर देंगे । उसमें समा जाएगा। अब अगर वो नहीं है तो उसमें पानी डालने से क्या फायदा, वो तो सब पानी निकल जाएगा। अपनी गहराई आप ध्यान से बढ़ाते हैं। ध्यान पर स्थित ये जो शक्ति है, ये फ्रेम की शक्ति है। इस चीज़ का वर्णन कंसे करूं में आप से? इस मशीन को ठीक करना है, तो आप किसी भी चीज से रगड़-मगड़ कर के ठीक कर दें, कोई आप screw (पेच) लगा दें, तो ठीक हो जाएगा। लेकिन मनुष्य की मशीन जो है वो प्रेम से ठीक होती है। उसको बहुत ज़ख्मी पाया है। बहुत जख्म हैं उसके अन्दर में बहुत दुखी है मानव। उसके जख्मों को होइये। ध्यान में जाइये। ध्यान में जो विचार आ रहे हैं उनकी ओर देखते ही आप निर्विचार हो जाएंगे| निर्विचार होते ही उस अचेतन मन में 'अचेतन', सुप्त चेतन नहीं कहेंगे-अचेतन मन में अपनी चेतना के सहित आप जाएंगे। आपकी चेतना, आपकी consciousness खत्म नहीं होती। वहाँ आप चेतना को जानेंगे ये पहली मर्तबा इंसान के शरीर के अन्दर हुआ है, कि आप अपना भी शरीर जानते हैं और दूसरों का भी जानते हैं और दूसरों के बारे में आप सामूहिक चेतना से जानते हैं कि इसके प्रेम की दवा से आपको ठीक करना है। जो आपके अन्दर से बह रहा है, ये वाइब्रेशन सिर्फ "प्रेम" है। जिस दिन आपकी प्रेम की धारा टूट जाती हैं, जाते हैं। वाइब्रेशन रुक अन्दर क्या हो रहा है। बहुत से लोग मुझसे कहते हैं "माता जी हमको बाधा हो गई। हमारे हाथ से वाइब्रेशन बंद हो गए।" आपके इसका महत्व अभी बहुत कम लोग जानते हैं। क्योंकि सब लोग मुझसे कहते हैं कि "माता जी, सबसे अगर आप रुपया लें, तो सब लोग समझेंगे क्योंकि लोग पैसों को बहुत मानते हैं " पैसा एक भूत है। पैसा लेने से अगर आप इसका महत्व समझें तो बेहतर है कि आप न ही समझें। कोई भी पैसा देने से इसका महत्व आप अन्दर से प्रेम की धारा टूट गई। प्रेम का पल्ला पकड़ा रहे, सिर्फ प्रेम का-वाइब्रेशन बहते रहेंगे। क्योंकि ये ही प्रेम परमात्मा का जो है, वही बहे जा रहा है। और वही बह रहा है। नहीं समझ सकते। अपने को ही पूरी तरह से देना होगा । इतनी अद्भुत अनुभूति है, इतना अद्भुत समां आया और वो देने में कितना मिलने वाला है। जो आप सात गुने हुआ है। क्या ये सब व्यर्थ हो जाएगा क्योंकि आपने खड़े हुए हैं वो तो एकदम साक्षात मिल जाएगा| ध्यान में समष्टि रूप में ही आप को आना होगा. ये इसमें पूरी लगन से मेरा साथ नहीं दिया? हरेक बात आप खुद भी जान सकते हैं, और न जानने पर मैं भी आपसे हरेक बात बताने के लिए हमेशा तैयार रहती हूँ। लेकिन थोड़ा-सा इसमें एक आप से सुझाव देने का है, कि आप इसके अधिकारी तो हैं या नहीं, इसे जरूरी है चाहें महीने में एक बार ही आएं. लेकिन जहाँ सात लोग बैठते हैं, वहीं बैठ कर ध्यान करना चाहिये। चाहे आप अपना एक छोटा ग्रुप बना लें जहाँ आप हफ्ते में एक बार मिल सकें और एक बार बड़े ग्रुप में मिलें। क्योंकि मैंने आपसे बताया था कि ये "विराट" का कार्य सोच लोजिये। क्योंकि आप मेरे ध्यान में आते हैं-जैसे मराठी में बहुत से लोग कहते हैं,-"जमून आले" इससे है। आप अधिकारी 'नहीं' होते। आप अधिकारी इसलिये होते हैं, कि आपके अन्दर वो गहराई आ गई। जैसे एक गागर है जितनी गहरी होगी, उतना पानी जैसे शरीर का एक-एक अंग-प्रत्यंग जो है, उसको जागना है। जितना जागृत होता जाएगा, वैसे-वैसे दीप 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-16.txt चंतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एव 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 15 बनाया हुआ है, उन्होंने मुझे दीक्षा दी।" मैने कहा दीक्षा क्या दी? ये हिलने की दीक्षा दी? कहने लगे कि "मैंने जलते जाएंगे। आप लोग जो घर में बहुत भी ध्यान करते रहें, मेरे आने के बाद आप जानते हैं, कि आप लोगों ने सोलह साल में बीमारियाँ उठाई, मेरी नौकरी चली गई, ये हो गया, वो हो गया|" मैंने कहा तुम्हारे अक्ल नहीं आई? पाया कि कुछ प्रगति नहीं हुई। लेकिन यहाँ छ:-सात आदमी जो रोज आते थे और ध्यान करते थे, उन्होंने बहुत अगर तुम्हारे गुरु हैं, तो तुमको ये सब होना नहीं चाहिये। कितने रुपये दिये? " अभी तक 5-6 हजार रुपये दे प्रगति कर ली । ध्यान में अगर आप की आँखें फडक रही हों, तो समझ लेना चाहिये कि आज्ञा चक्र पर कोई चोट हो रही चुका हूँ centre को।" मैंने कहा अच्छा 5-6 हजार है। उसमें बुरा मानने की कोई बात नहीं है अपना आज्ञा रुपये देकर के सारी बीमारियाँ तुमने अच्छे से मोल ले लीं। फिर उसके भूत-वो जो भागवत् साहब थे उनको चक्र अगर खराब है तो उसे ठीक कर लेना चाहिये। जुते मारे और वो जो उनका centre था, उसको भी जूते क्योंकि आपका आनन्द कम होता है। आपका शरीर अगर हिल रहा हो ध्यान में, और आप मारे तब उनका हाथ ठहरा और वो ठीक हो गए-ये तो आराम से बैठ नहीं सक रहे हों, तो समझ लेना चाहिये आप ही के सामने सब हुआ था, बहुत से लोग वहाँ थे। लोगों से साफ-साफ बात कर लेनी चाहिए कि आपके मूलाधार पर ही चोट हो गई है ये और भी dangerous situation (खतरनाक परिस्थिति) हो जाती मूलाधार पर जब चोट हो जाती है, उसका भी इलाज करा लेना चाहिये। वो भी लोग जानते हैं, किस तरह से आपके कोई न कोई गुरु हैं, आपक अन्दर कोई न कोई बाधा है। कोई न कोई गड़बड़ है, उसमें कोई बुरा मानने की बात नहीं। मूलाधार चक्र को ठीक करना चाहिये। जानने को तो आप लोग मेरे लैक्चर सुन-सुन के सब शास्त्र जान लें, लेकिन मैं देखती हूँ कि जो लोग थोड़े ही दिन पहले आए हैं, वो आप लोगों से कभी-कभी बहुत जोरों में जल्दी आगे बढ़ जाते हैं। क्योंकि ये पढ़ाने-लिखाने की बात है ही नहीं। लेकिन मैं देखती हैँ कि एक को जरा सी भी बाधा पकड़ रही हो तो दूसरा बाधा वाला बराबर, उसके साथ में खड़ा हो जाएगा लाइन से वहाँ खिंच जाते हैं एक साथ। और पता हो जाता है ये सारे बाधा वाले साथ बैठे हैं। असल में ऐसा बैठना नहीं चाहिये। सब को अलग-अलग बैठना चाहिये, अधिकतर; आप के हाथ अगर थरथरा रहे हैं, कंपकंपा रहे हैं, जैसे कि कोई ग्रुप बना लेते हैं। "बहुत" गलत बात है। तो भी समझ लेना चाहिये कि कुछ न कुछ आपके अन्दर बहुत बड़ी खराबी हो गई है। उसमें जूते मारने का इलाज सबसे अच्छा हैं कल एक साहब आपने देखा होगा कि वहाँ कहने लगे कि "माता जी, मैं वहाँ एकदम जड़ हो गया।" फिर मेरे सामने आकर यूँ-यूँ करने लगे। उनसे मैंने जैसे कि ठाणे वाले आए तो ठाणे वाले साथ बैठ गए, फलाने आए-ऐसा नहीं। अलग-अलग बैठिये। बहुत जरूरी है। सब इकट्ठे होकर मत बैठिये। दूसरी बात ये है कि जैसे कोई बुड्ढे हैं, उम्र में ज्यादा हैं, बुजुर्ग हैं, कुछ बीच के हैं, कुछ छोटे हैं। छोटे बच्चों पूछा कि तुम्हारे गुरु कौन हैं? तो कहने लगे कि "एक को तो ऐसी कोई विशेष बात नहीं है लेकिन जो बीच के हैं. भागवत् सा. हैं पूना में " तो मैंने कहा वो क्या करते हैं? और ये लोग हैं, ये सब अलग-अलग बैठें। जो वृद्ध हैं, तो कहने लगे कि "उन्होंने एक spiritual centre वो जवान लोगों के साथ बैठे। जो जवान हैं वो बूढों के 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-17.txt का चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 16 साथ बैठें। चार पाँच जवान इकट्ठे हो जाएँ तो भी आपस में बताना है और इसी को आपस में जानना है। और बाकी सब व्यर्थ है। बाकी सब चीजों में मौन ही आफत हो जाएगी। और चार-पाँच बूढ़े इकट्ठे हो जाएँ तो भी आफत हो जाएगी। आप देख लीजिए; होता है! बेहतर चीज है। जब इस तरह के सहजयोगी हो जायेंगे जवानी और बुढ़ापे की जो समझ है, दोनों बाँटने की तो बड़ा अन्तर हो जाएगा। "बहुत बड़ा अन्तर"। चीज़ है वो भी सामूहिक चेतना में आप बाँट सकते हैं। बड़ों को समझदारी चाहिए, wisdom चाहिये; जरूरी जिससे प्रतिबिंब पड़ता है तो एकदम 'साफ' चीज होनी सहजयोग का प्रतिबिंब आपसे फैलने वाला है। और हैं। "बहुत" wise होना चाहिये। बड़प्पन चाहिये, बड़ा चाहिये। और उसकी प्रतिबिंबित होने की शक्ति अगर दिल चाहिये। और छोटों को मानना चाहिये, बड़ों को पूरी तरह से जाग उठे तब कोई भी मुश्किल नहीं रह मानना चाहिये। और छोटों में activity (कार्यवाही) जाती। सहजयोग और किसी चीज़ से नहीं-किसी भी ज्यादा होनी चाहिये, बड़ों से। बड़े आदरणीय हों तो चीज़ से नहीं - आप बड़े-बड़े organisations (संगठन) कर दीजिये, आप बड़े-बड़े मंत्र-जागरण कर दीजिये, और गाने हो जाएं और music (संगीत) हो जाए-इससे नहीं होने वाला। इन सब चीजों से कुछ भी नहीं होने उनका आदर होगा। पर बड़ों को आदरणीय होना चाहिये और छोटों को बड़ों का आदर करना चाहिये। अनादर तो वैसे भी एक सहजयोगी का दूसरे सहजयोगी वाला है। से करना नहीं, क्योंकि आप लोग सब देवता स्वरूप हैं। ये सब आप ध्यान में समझ सकते हैं। आपसी बातों से, दूसरों के बारे में आंतरिकता से अगर आप सोचें तो आप मैंने तो इतने कभी पार लोग देखे नहीं जितने आज देख रही हूँ। ये अहो भाग्य है हमारा कि ऐसे मैं देख रही हूँ। किसी भी युग में इतने पार लोग, मेरी दृष्टि के सामने फौरन समझ लेंगे कि " अरे भई उनका तो ये आज्ञा चक्र नहीं रहे। ये "परम्" भाग्य की बात है। लेकिन जैसा कि मैं कहती हूँ कि modern time पकड़ा है, इसीलिये ऐसा हो रहा है।" " अरे भई उनका तो हृदय चक्र पकड़ा है, इसीलिये ऐसा हो रहा है। " "इसीलिये स्वर ठीक से नहीं निकल रहे हैं" आपको (आधुनिक युग) में पूरे साधु कोई नहीं हैं। आप ही लोग पहले बहुत बड़े साधु थे और संसार में रमे हुए नहीं थे, नहीं लगेगा। " बुरा लेकिन बुरा लगना, यही "बहुत बड़ी" बाधा है। मेरी बुरा" नहीं लगेगा। दूसरों को भी जंगलों में रहते थे। आज आप ने संसार ले लिया है और भी बात का लोग बुरा मानते हैं तब फिर औरों का क्या संसार में आप रमे हुए हैं। लेकिन अपनी करेंगे। मेरी कोई भी बात का बुरा नहीं मानना चाहिये। मैं ही क्या मज़ा आ जाएगा! इस गंगा-जमुना में ही एक आपके बिल्कुल हित के ही लिये सारा काम करती हूँ, सरस्वती बहना शुरु हो जाएगी। साधुता में उतरते ध्यान में जाते वक्त किसी भी तरह की बाहर की ये आप जानते हैं। कोई भी बात की चर्चा होते वक्त ये आवाज आपको भूल जाती है। अगर कान में भी आप उंगली डालें और सहस्रार अगर आपका पूरी तरह से खुला हुआ है- तो इसकी पहचान है-पूरी तरह से आप देखना चाहिये कि हम सिर्फ यही चर्चा कर रहे हैं न कि 'हमारी कुण्डलिनी कहाँ है, 'हम कहाँ जा रहे हैं, कैसे उठ रहे हैं'। बाकी सब चर्चाएं व्यर्थ हैं । 'हम धर्म में ऑँख कान को बंद कर लें, आप सुन सकते हैं। इसीलिये कहाँ तक जागृत हो गए हैं। हम कितना पा गए हैं, कितना आनन्द परमात्मा का लूट रहे हैं', ये ही अनुभव जो वो लड़के आए थे, जो सुनते नहीं थे, उनको 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-18.txt सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 17 चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सुगंध ही देती है। किसी को भी तकलीफ या दुख देना नहीं चाहिये। हाँ, कभी-कभी लोग उनकी मूर्खता की थोड़ा-थोड़ा सुनाई देने लग गया। अगर आपका सहस्रार खुल जाए, तो limbic area में-डाक्टर लोग सब जानते हैं कि वहाँ पर subtle वजह से किसी चीज़ को दुख मान लेते हैं-वो ठीक है। points होते हैं, subtle centres (सूक्ष्म केन्द्र) होते पर अपनी तरफ से आप निश्चित हो करके कभी भी हैं, उनको excite करने से वही काम होता है, जो नाक, किसी को दुख या तकलीफ नहीं देना चाहिए। कान, मुँह और सब अपने शारीरिक जितने भी organs ( अंग) हैं, उससे होता है। उसी सहस्रार को हम जागृत आपके पास तो innocence का switch हेै नहीं। मैंने देखा था कि देखें आप लोगों ने ऐसा. कोई switch कर लेते हैं जो सारे शरीर को यहाँ संभाले हुए हैं और बनाया है। अगर हो तो बैसे innocence का switch आपको सारे ही-जैसे सुगंध है-हरेक चीज़, नाक की दबा लीजिये तो आप देखेंगे कि आपका आज्ञा चक्र कोई जरूरत नहीं है आपको। फिर आप श्वास भी यहाँ एकदम "साफ" हो जाएगा। पर innocence का switch से ले सकते हैं। सारा का सारा ही शरीर अगर भ्रष्ट हो आप लोगों के पास है नहीं; दया का switch है नहीं, जाए तो भी आप यहाँ से सब काम कर सकते हैं। लेकिन शांति का switch है नहीं। ये सब switches आपके (भ्रष्ट) होता नहीं। शरीर तो आपका खिलते ही जा रहा अन्दर अभी तक लगे नहीं हैं। पहले आप सब अपने है। शरीर तो सुन्दर होते ही जा रहा है। बीमारियाँ तो भाग ही गई हैं। वो तो सब चीज ठीक हो ही गई। कोई देवता जगा दीजिये, अन्दर में जो बैठे हुए हैं, फिर उसके बाद एक-एक सारे सब के switch भी लग जाएंगे। थोड़ा-बहुत हो भी जाते हैं, तो ठीक हो जाते हैं। ध्यान में बढ़ने के लिए एक गुण बहुत जरूरी है। बहुत ही जरूरी है। उसको कहते हैं innocence- पर सबसे आसान innocence का switch लगाना है, क्योंकि हम लोग एक बार बहुत innocent थे जब हम लोग पैदा हुए थे, जब छोटे थे। छोटे बच्चों के साथ रहने से innocence आता है। उनकी बातें याद करने से भोलापन, स्वच्छ, एक छोटे बच्चों जैसा- innocent child, इसीलिये आपने देखा है कि छोटे बच्चे फट-से बहुत innocence आता है। जो लोग innocent हो पार हो जाते हैं। चालाक लोग, cunning लोग, अपने को जो बहुत होशियार समझते हैं, बस उनकी परमात्मा जाते हैं, वो परमात्मा के राज्य के अधिकारी हो जाते हैं । ध्यान में सिर्फ आप ही अपनी ओर विचार करें कि मेरा मन इस वक्त में कौन-सी चालाकी में लग रहा है की तो इच्छा नहीं होती, बस अपनी होशियारी दिखाते रहते हैं, वो नहीं पाते। "पूर्णतया" innocent होना इधर-उधर। महामूर्खता का कार्य कर रहा है। इतना बस देखते ही आप "निर्विचार"- "निर्विचारिता"-यही चाहिये। innocence है। देना भी, किसी को तकलीफ देना भी किसी को दुख आप लोग अब जब ध्यान में जाएंगे, बहुत देर तक innocence के "विरोध" में है। इतनी भरी हुई खोपडियों 44 ध्यान नहीं करेंगे हम लोग। लेकिन ध्यान में जाते वक्त के ऊपर बैठ करके क्या हम innocent हो सकते हैं? किसी के हृदय में चोट लगे, वो आदमी innocent नहीं आप सिर्फ ये देखें कि आप का कौन-सा चक्र पकड़ हो सकता। innocent का मतलब ही ये होता है कि रहा है। क्योंकि आप लोग जो पार हो चुके हैं आप को फूल की जैसे खिली हुई चीज़ जो सिर्फ दुनिया को अच्छी तरह से मालूम है। उंगलियों पर आपको जान 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-19.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 18 पड़ेगा, कौन-सी उंगली थोड़ी-सी जल रही है। जो भी अंदर ही की बात करें। अपने-अपने चक्रों को साफ करिये। उसमें 'कोई आपकी उंगली जल रही है, उस पर आप बंधन डाल लें तो वो छूट जाएगी। अगर आपकी उंगलियां ज्यादा ही शर्म की बात नहीं है। जिसके-जिसके चक्र पकडे हैं वो जल रही हों तो हाथ झटक लीजिये, वो छूट जाएगा, आप जानते हैं। बंधन डाल दीजिये। बाहरी चीज़ है बिल्कुल हिम्मत से सारी सफाई करके और नीचे डाल दें। जिसके भी हाथ जल रहे हैं, निकाल लेकिन निर्विचारिता की ओर रहें और चित्त जो है दें हमारे भी हाथ जल रहे हैं-निकालियेगा नहीं तो क्या सहस्रार की ओर रखें। और जो लोग आज नए आए हैं उनको भी देखना होगा कि वो पार हुए हैं या नहीं। उनको करियेगा? बैठ भी नहीं सकते। और भी तरीके आप जानते हैं बहुत सारे, ध्यान में क्या खराबी है, उनको क्या तकलीफ है, वो निकाल देंगे। ये सारी तकलीफ जो है, बाह्य है। अपने को सफाई करने के। इसमें कोई बुराई की बात नहीं है, अगर मैं किसी से कह देँ कि आप पानी में पैर डाल कर बैठिये और इस तरह से निकालिये। इसमें कौन-सी ये भी एक बड़ा भारी समर्पण है जहाँ शक्ति दोनों side (तरफ) से आती है left and right sympathetic बुराई की बात है? इसमें क्या बुरा मानने की बात है? nervous system का जो यहाँ ये expression है, कितना पागलपन है, किस बात पर लोग बुरा मान जाते उस रास्ते से। और इसके बीच में ही सुषुम्ना नाड़ी है। हैं? वो सोचते हैं "माता जी ने क्या कह दिया।" आप क्या कोई बड़े भारी saint (सन्त) हैं? यानि बड़े-बड़े ऐसा करते ही सुषुम्ना नाड़ी अन्दर चलना शुरु हो जाती है। लेकिन ये जागृत होनी चाहिये। अगर ये जागृत नहीं saint तक ये काम करते हैं, आपको पता नहीं है। जैसे मैंने कबीर दास जी के लिये कहा कि "दास है, इसका मतलब सुषुम्ना चल नहीं रही है। और जागृत का मतलब ये है कि आपके अन्दर सारी उंगलियों में से कबीर जतन से ओढ़ी" कबीर दास भी अपने लिये कहते हैं कि "मैंने जतन से ओढ़ी भई"-जो कि इतने बड़े थे फिर आपको इसमें धीरे-धीरे ठण्डी-ठण्डी ऐसी हवा आने लगेगी। अगर आपके अन्दर ऐसी ठण्डी-ठण्डी हवा जा रही है; पूरी बुरा मानने की कौन-सी महापुरुष तरह से आप 'निर्विचार' हैं उस 'तरण्य में' ध्यान में हैं बात है? जरा-सा किसी से कहा कि भई मटका लेकर आओ. तो आप बढ़ रहे हैं, आगे आप चले जा रहे हैं। जैसे कि आप aeroplane में बैठते हैं, आपको पता नहीं आप तो बुरा मान गए; फिर इतना बड़ा-बड़ा मटका लेकर आते हैं! कहाँ जा रहे हैं, लेकिन आप कहीं पहुँच जाते हैं। जब तक हम यहाँ पर हैं, ये जरूरी है कि जो सहजयोगी आप लोग हैं, ज्यादा इसमें part (हिस्सा) लें हैं अपने बारे में उसको " बेकार' की बातें, 'मूर्खों' जैसी अपनी जो कल्पनाएं त्याग" दीजिये।"बचकानापन " और आगे बढें। और जाने के बाद भी अपना समष्टी-रूप है, बचपना नहीं। child-like होना चाहिये childish नहीं। खराब न करें। आपसी बेकार की बातें बोलने पर आप कुछ न कुछ दंड देखेंगे। जिसने भी कोई सहजयोग के सिवाय, अन्दर की बात के सिवाय बाहर की बात जरा भी अब हम लोग ध्यान में जाएंगे। मैंने जैसे कहा है पहले अपने को प्रेम से भर लो। आप जानते हैं मैं आपकी माँ हूँ। पूर्णतया आप इसे जानें कि मैं आपकी माँ करी, उसको दंड। बाहर की कोई भी बात नहीं करनी। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-20.txt चैतन्य लहरी खण्ड ४V अक :3 एव 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2008 19 ंसा शाल म य िम ाम आा यड मुझे माधुर्य दो, मिठास दो।" जो भी उनसे मांगोगे, वो तुम्हें देगा। और कुछ नहीं हूँ। और माँ होने का मतलब होता है कि सम्पूर्ण दो।". security है, संरक्षण है। कोई भी चीज़ गड़बड़-शडबड़ नहीं होने वाली। आप मेरी ओर हाथ करिये। और मांगो। अपने लिये ही मांगो।... मुझे अपने चरण धीरे-धीरे से आँख बन्द करके और अपने विचारों की में समा लो।" ओर देखिये, आप निर्विचार हो जाएंगे। आपको कुछ समा लो। करने का है ही नहीं। आप जैसे ही निर्विचार हो जाएंगे, वैसे ही आप अन्दर जाएंगे। "मेरी बूँद को अपने सागर में "जो भी कुछ मेरे अन्दर अशुद्ध है, उसे निकाल दो।" परमात्मा से जो कुछ भी प्रार्थना में कहोगे, वही पहले अपने से इतना बता दो कि आज से निश्चय होगा। .." मुझे विशाल करो। मुझे समझदार करो। हो कि किसी को कोई सी भी चोट मैं नहीं पहुँचाऊंगा। तुम्हारी समझ मुझे दो। तुम्हारा ज्ञान मुझे बताओ। "सारे संसार का कल्याण हो, सारे संसार का हित हो। और सब को प्रभु तुम क्षमा कर दो, जिन्होंने मुझे चोट पहुँचाई हो। और मुझे क्षमा करो क्योंकि मैंने दुनिया में सारे संसार में प्रेम का राज्य हो। उसके लिये मेरा दीप बहुत लोगों पर चोट की है। आप जो भी कहेंगे वही परमात्मा आपके साथ दो। उसमें ये हृदय खपने दो । " करेगा। आप उससे कहेंगे कि "प्रभु शांति दो", तो तुम्हें शांति देगा। लेकिन आप मांगते नहीं हैं शांति| "संतोष मांगें जो कुछ भी सुन्दर है वही मांगो तो मिलेगा। तुम दो", तो वो तुम्हें संतोष देगा, तो वो मांगते नहीं हैं। " मेरे अंदर सुन्दर चरित्र दो" तो वो चरित्र देगा। अब प्रार्थना का अर्थ है, क्योंकि आपका connection तो क्या वो नहीं देगा? जलने दो। उसमें ये शरीर मिटने दो। उसमें ये मन लगने सुन्दर से सुन्दर बातें सोच करके उस परमात्मा से असुन्दर मांगते हो तो भी वो दे देता है। बेकार मांगते हो तो भी वो दे ही देता है। लेकिन जो असली है उसे मांगो, में4 यूँ ही ऊपरी तरह से नहीं, "अन्दर से", आंतरिक हो हो गया है परमात्मा से।........ करके मांगो। मेरे अन्दर प्रेम दो। सारे संसार के लिये प्रेम 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-21.txt पाने के बाद ४. ११ ( सात चक्रों का वर्णन) परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन दिनांक 25.11.73 आपको कुछ भी नहीं करने का है सहज में हो जाता है सहज शब्द का अर्थ रोजमर्रा भाषा में सहज माने आसान। लेकिन सहज शब्द जहाँ से आया वो 'सह' और परमेश्वर की आशीर्वाद की वाणी को सुनना है और कुछ भी नहीं करना है। बस यहीं तक देखते देखते आप अपने में ही विभोर हो जाइए। अब सिर्फ देखने का होता है ज' के साथ मिले हुए सहज से आया। माने आसान है मतलब जो हमारे साथ जो पैदा हुई आँख है, हमारे साथ जो पैदा हुई वो हमारी नाक है, इसका हमें कुछ देखना नहीं पड़ता। इस कारण इसमें कोई भी प्रतिबिम्ब पूरा नहीं पड़ता। अगर कोई ऐसा सरोबर हो कि जिसमें अन्दर कोई भी लहर उठ नहीं रही तो उसके चारों तरफ फैला हुआ उसका सौन्दर्य, पूरा का पूरा अन्दर प्रतिविम्बित होता है कुछ करने का सवाल ही नहीं उठता। शरीर के स्वास्थ्य के लिए भी आपको अब बहुत कुछ नहीं करना जैसे कि आज तक आप बहुत से योग-आसन आदि करते हों तो बहुत योगासन आदि करने की जरूरत नहीं, एक आध हल्का योगासन करें तो कोई हर्ज नहीं लेकिन अधिकतर अपने शरीर का बहुत ख्याल रखें, इसी शरीर में उस परमात्मा का वास है, इसकी इज्जत, इसके साथ कोई भी इतना ही नहीं सब पूरा तादात्म्य होता है, इसी तरह से ज्यादती करने की जरूरत नहीं। हाँ शराब आदि चीजों से जब आप किसी भी सुन्दर दृश्य को देखेंगे, परमात्मा की ग़र आप अपना छुटकारा करना चाहते हैं तो बहुत आसान है अब आप कोई भी चीज का निश्चय कर लें वो काम रचना की और दृष्टि करेंगे आप निर्वचार हो जाएंगे निर्विचार होते ही उसके अन्दर की जो आनन्द-शक्ति है हो जाएगा। आपमें conditioning नहीं आएगी, ग़र आपने तय बो आपके अन्दर पूरी प्रतिविम्बित होगी इतना ही नहीं कर लिया है कि हमने शराब नहीं पीना है तो छूट जाएगी आप ने उसमें पूरी तरह से तादात्म्य पा लिया है। इसी तरह से अनेक विधि परमात्मा ने आपके लिए श्रृंगार शराब। शराब इन्सान इसलिए पीता है कि अपने से भागना चाहता है, एक शराब के सिवाय और कोई भी चीज ऐसी नहीं जिसके लिए मैं मना कर रही हूँ। लेकिन शराब जरूर ऐसी चीज है क्योंकि वो आपकी चेतना को सजाए हैं, अत्यन्त सौन्दर्य चारों तरफ फैला हुआ है। उस सौन्दर्य के सूत्र में उतरने से ही आपके अन्दर आनन्द की उत्पत्ति हो जाती है। इस आनन्द को आप देखने के लिए ही पैदा हुए हैं, अपने को बेकार में दुखी बनाने के लिए खराब कर देती है। शराब की ओर देखते साथ शराब छूट नहीं। जाती है क्योंकि आप स्वयं को इतना प्यार करने लगे हैं, अपने आप इतना मज़ा आ जाएगा। रर आपमें से किसी को जेल हो जाए तो आष कहेंगे कि वाह भई यह तो बड़ा अच्छा हुआ वहाँ बैठकर ध्यान करेंगे। मनुष्य अपनी ही मौज में ऐसा रहेगा कि उसको फिर शराब- वराब की इस तरह से बहुत से लोगों ने पूछा है हमें अब आगे क्या करना है। अब क्या करना होगा सिर्फ देखना होगा जब आप सिनेमा देखने जाते हैं एक दर्शक की दृष्टि से तो आप सोचते हैं कि हमें क्या करना है, देखना ही है, देखते ही रहना है, आवागमन देखना है, पेड़ों का बढ़ना वो कहाँ, सिंगरेट भी अपने आप छूट जाती है कुछ कहने देखना है, चिडियों का चहचहाना देखना है। हरेक चीज़ की जरूरत नहीं। अपने आप ही सब कुछ छूट जाता है। हमारे यहाँ तो बम्बई में ये हालत है कि माचिस नहीं तो की मंगल पवित्रपूर्ण मधुर मुस्कान हर चीज़ में लहलहाती 15 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-22.txt सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 21 चैतन्य लहरी खण्ड -४V अंक : 9 एवं 10 अपने घर से ले जानी पड़ती है धूपबत्ती जलाने के लिए, मद, मत्सर आदि सब चीजें जो हैं इस विषय की एक अपनी एक खेल है, उसे आप देखिए। उसका एक खेल कोई भी सिगरेट नहीं पीता। बड़े-बड़े सिगरेट पीने वाले पता नहीं कैसे सिगरेट छोड़ दी! कुछ लोग तो रम्मी है उसे आप देखते रहिए। आप दूर रहें आप दूर से इसे खेलते थे वो कहते हैं कि वो रम्मी हमारी छूट गई। उसमे देखते रहें। क्योंकि आप पहले बाहर थे, वो नहीं रहे और मज़ा आ गया, ज़िन्दगी में मज़ा आएगा, इन्सान में मजा अब आप अन्दर हैं। सहज में यही करना है कि अपने को अन्दर रखना है बाहर नहीं। दूसरों से बात करते आएगा, उनके problems में भी मज़ा आएगा, उनके वक्त अन्दर रहें, माने निर्विचार। किसी से भी बात साथ जूझने में मज़ा आएगा। अब आप इन्सान के साथ करें, किसी से भी कुछ कहना हो तो पहले निर्विचार हो एक होना चाहिए। अब ये भी ख्याल रखना चाहिए अब हमें जुझना नहीं हैं। अब वो नहीं रहे जो पहले थे, जाएं। निर्विचार होते ही आप उनके अन्दर उतर जाते हैं। फौरन उनका भी रंग बदल जाएगा और आपका तो बदला एकदम बदल गए। अब दूसरे हमारे साथ बदले नहीं, इनकी ओर देखना है। उसमें घबराने की कोई बात नहीं हुआ है ही। गर आप भी बाहर से वैसे आ जाएं तो हो क्योंकि आप भी तो वैसे ही थे। बहुत से लोग सोचते हैं सकता है आपको वो पनपा दे। अभी आप अन्दर बाहर हो सकते हैं क्योंकि वजह यह है कि अभी अभी कहीं कि हम बड़ी भारी position के हैं, बड़ी उनकी position खोपड़ी पर चढ़ी है । कोई सोचते हैं हम पैसे अन्दर आप पहुँचे हैं, जैसे कि आप traffic में से गुज़र वाले हैं कोई सोचते हैं बड़े भारी धार्मिक आदमी हैं। कर आ रहे हैं और आपको पहाड़ी पर बिठा दिया है, सोचने दीजिए। सब पागल हैं, उनकी तरफ देखिए ही लेकिन आपको traffic की आदत हो गई है तो आपका नहीं। सब पागलखाने में अपने को बहुत अक्लमंद ख्याल बनता है अरे मैं तो traffic में हूँ। फिर आप देखिए कि मैं कहाँ खड़ा हूँ, पता हो जाएगा कि आप समझते हैं। जब उस पागलखाने में आप थे आप भी यही सोचा करते थे वो सब पागलपन की बातें हैं। एक दम कहाँ खड़े हैं। यही Self Realization है। पहली जो चीज़ है कि संसार का सारा सौन्दर्य आपमें तादातम्य है। आप जानिए, यह नई चीज है। पर बड़ी अद्भुत, वो शक्ति आ गई। अब आपमें ऐसी शक्ति आ गई विश्वसनीय, कोई विश्वास ही नहीं करता है पर है बात, जिसके कारण आप कोई सी भी बात सोचेंगे, उस सोच ऐसा ही कुछ है। आपको खुद ही लगने लगा कि आप विचार का आप पर असर नहीं आता। जैसे कि कोई साक्षी हैं। घर में कोई बीमार पड़ जाए, अब सारा घर से जो सारी मिथ्या चीजें हैं धीरे-धीरे छूट जाएंगी। जब आप जान जाएंगे कि सत्य क्या है। अब आपके अन्दर आदमी कहे कि मुझे गुस्सा नहीं करना तो बड़े अपने से दौड़ेगा, आफत करेगा। कोई झूठ, कोई सच, कुछ नहीं, पूछो अरे पागल ज़रा गुस्सा तो करो। आप शीशे के कुछ करने की ज़रूरत नहीं। आप अपने को देखिए, सामने खड़े होकर अपने को कहो ज़रा गुस्सा तो करो। आपको बराबर सूझेगा कि आपको क्या करना हँसी आएगी । जब भी आप गुस्सा करिएगा अन्दर से आपको जो मन में आए वो करिए आपके मन में आए हँसते ही रहिएगा आपको पूरी समय हँसी ही आती है। सर पर हाथ रखिए, सर पर हाथ रखिए पैर पकड़ने का गुस्से में आप लपटिएगा नहीं। लपट जाते हैं, किसी भी है चीज़ में आप लपट नहीं सकते। सभी चीज़ काम, क्रोध सबके लिए आ रहा है. उसको आप करें। मन है, पैर पकडिए। जो भी आपके मन में आ रहा 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-23.txt सितम्बर एवं अक्टूबर 2009 22 चैतन्य नहरी खण्ड XV अंक : 9 एवं 10 दूसरी चीज है सत्य। सत्य बोलें या झूठ बोलें। झूठ क्या है, सत्य क्या है? बहुत सा सत्य जो होता है मनुष्य नए सिरे से आप गीता पढ़ें, नए सिरे से आप बाइबल पढे, उसमें आप देखिएगा कि हरेक बात की पुष्टि देने वाली चीजें उसमें हैं। लेकिन आप स्वयं पुष्ट हैं आपको कोई जरूरत नहीं कि कोई आपको support करता रहे, सहारा दे। आप स्वयं अपने सहारे पर खड़े होना जैसे ही शुरू कर देंगे एक दम प्रकाशवान हो जाएंगे। इसमें कोई का बनाया हुआ होता है। मनुष्य का बनाया हुआ सत्य कोई सत्य नहीं है। बहुत बार बहुत सा जो झूठ दिखाई देता है वो महासत्य होता है, इसलिए उसका निर्णय आप मत कीजिए। आप सिर्फ बोलिए। आप अपनी निर्विचारिता पर बोलें। आप अपनी स्थिति पर बोलें। लोगों से डंके शर्माने की बात नहीं, इसमें कुछ घवराने की बात नहीं। की चोट पर कहना पड़ेगा कि हाँ यह ठीक है. यही हमारे यहाँ ऐसे लोग देखे जाते हैं जो एकमेव घर के सत्य है, यही होना चाहिए इसमें डरने की कोई बात नहीं। दिखने के लिए शायद वो लोगों को झूठ लगे. लोग अन्दर एक आदमी होता है वो फिर किसी से बात कहता नहीं. अन्दर छिपा के रखता है बाइबल में कहा जाता है कि दिया नीचे नहीं रखा जाता, टेबल के नीचे नहीं दिया रखा जाता है, किसी ऊँचे स्थान पर दिया रखना चाहिए। गर आप वाकई दीपक हो गए हैं तो ऊँचे स्थान पर बैठकर के सवको प्रकाश दें, सब धर्मों का प्रकाश यही आप पर हँस भी सकते हैं। हम पूना में गए थे वहाँ कुछ ऐसे महामूर्ख लोग थे ये लोग तो हाथ को ऐसे-ऐसे श्रीमाताजी कर रही थीं तो बो सबको मिसमराइज़ कर रही हैं। उनसे एक साहब ने उन्होंने पेपर में कहीं निकाला कि सवाल पूछा, वहाँ पर कि उनको क्या जरूरत पड़ी है। आप चाहे किसी भी धर्म में हों, आप उठा के देख मिसमराइज करने की? क्या उनको कोई धंधा नहीं? लीजिए। आप सिक्खों के धर्म को मानते हैं आप उठाकर देख लीजिए. अगर ये कहीं पर भी ये बात न लिखी हो, गर झूठ बात कही है-आप किसी भी धर्म की किताब कहने लगे हम तो मिसमराइज हो नहीं सकते, कहने लगे आप हो ही नहीं सकते उनके तरह का मिसमराइज होना पड़ेंगा। इतने तरह-तरह के लोग हैं दुनिया में जिनको देख लीजिए। आपकी पुष्टि के लिए बड़े-बड़े लोगों ने लिख रखा समझ नहीं है। क्योंकि आपके अन्दर ये चैतन्य आ गया, 1. आपके अन्दर ये बह रहा है, आपने इसे देखा हुआ है, है आप श्लोक के श्लोक कह सकते हैं, आप कुरान इसकी पुष्टि की आपको जरूरत है, लेकिन आपने की आयात की आयात कह सकते हैं। इसी चीज़ की गवाही देते हैं चाहे उसे यहाँ पर हम लोग, जिसे spiritual कहते हैं अंग्रेजी में, जिसको हम लोग आध्यात्मिक कहते हैं संस्कृत में, और जिसे वो लोग रूहानी कहते हैं। नाम बदल देने से जो सत्य है वो एक ही है। और सबको ये मालूम है आप लोगों को कि सत्य तेजस्विता नहीं पाई। यही आपमें और बड़े-बड़े साधु सन्तों में यही अन्तर है। आपने वो तेजस्विता अभी पाई नहीं जो प्रखर होती है, जो अपनी शक्ति पर अटूट खड़ी रहती है, जो डरती नहीं, ये कहने के लिए कि यही सत्य है बाकी सब असत्य है और मिथ्या है । वो क्राइस्ट जैसे क्या है। तो सत्य की भी कोई व्याख्या तो हो नहीं सकती। आदमी के अन्दर, वो कृष्ण के अन्दर और बहुत बड़े-बड़े सन्त साधुओं में ये चीज पाई जाती है। वो आप आदिशंकराचार्य में पाइए। इसकी पुष्टि के लिए आप उनकी किताबें पढ़िए। अब नए सिरे से सागर की क्या व्याख्या है? लेकिन क्षण-क्षण में आप देखेंगे कि सत्य ये है, मिथ्या ये है, सत्य ये है, मिथ्या से आप पढ़िए. अब ये है। आपकी vibration से आप जानेंगे वाइब्रेशन 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-24.txt सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 23 चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 इसे, आप तोल पाइएगा इससे आप समझ पाइएगा,जहाँ आज सर्वेरे बताया था, इसका आप पड़ताला लीजिए। पॉँव में पूरे चक्र बने हैं। मनुष्य बहुत बड़ी चीज़ है, बहुत vibration आ रहे हैं वही पर सत्य है। आप पत्थर में भी. मिट्टी में भी हरेक में आप vibration देखेंगे। कोई बड़ी चीज़ है। ऐसे हज़ारों उसके सामने यंत्र फैंक दिए गर आदमी है उसके चार-पाँच चक्र पकड़े हैं उससे जाएं, उसका यंत्र परमात्मा ने इतना सुन्दर बनाया है। बस उलझने की कोई ज़रूरत नहीं है। कठिन आदमी है. उसकी विजली चमकाने की बात है। वो भी चमक गई, अब क्या रह गया? रह यही गया कि बहुत कुछ हैं आपके बस का नहीं। आपको फौरन आपके हाथ पर गर्म-गर्म आ जाएगा। भागिए वहाँ से कुछ दिनों के लिए, बाद में वो भागेगा। वो खुद ही जलेगा। जिससे भी लेकिन अब दीप लेकर सब जुट जाना होगा और देखना होगा क्या है। क्योंकि बहुत कुछ है। थोड़ा सा एक दिया जला दिया और उसको लेकर बैठे हैं! बैठने की बात नहीं आपको गर्म-गर्म vibrations आए, छोड़ दीजिए। ये अपनी बात नहीं; ये रूहानी बात है। यहाँ पर कोई नहीं, अंधेरा है। रोशनी और अंधेरे का युद्ध पूरी समय चल रहा और आप देखिएगा कहाँ तो दूसरों के मन में, दूसरों के अंतस में, दूसरों के अंतस में जब आप देखिएगा तब आप जानिएगा कि क्या है इसलिए यहाँ पर एक है। आपके दीप इतने सारे जल गए, सारा ही वातावरण organisation की भी बात सोची गई है। हमारे एक बदल सकता है गर कुछ दीप और जल जाएं। इसलिए अनन्त जीवन नाम की संस्था है, बम्बई में चली है। इसमें अपने दीप को जलाकर रखना चाहिए, अपनी vibrations हम कोई Membership नहीं रखते हैं, जो realized को हमेशा तोलते रहना चाहिए। हमारे फोटो से vibrations हर समय आती है, उसके कभी रुकते नहीं। आप हमारे होगा वो member है, realized लोग भी थोड़े से वो फोटो की ओर अपना हाथ किया करिए। गर आपके ढलक जाते हैं। फिर से realized होते हैं, कुछ आते हैं किसी भी उंगली पर देखा कि जिस जगह भी आपको ऊपर से फिर सड़क जाते हैं। ऐसे आपमें भी आधे अधूरे vibrations जलते हुए नजर आ रहे हैं उन सब चीजों कुछ होंगे. कुछ पूरे होंगे, बिल्कुल चलेंगे। पीछे हमने का अर्थ होता है। जैसे आप जानते हैं ये मणिपुर चक्र बोस साहब से request किया था, आप उन्हीं को है और ये आपका विशुद्धि चक्र है और ये आपका आज्ञा chairman बना लीजिए जैसा भी करना चाहें कर लीजिए, उनके पास हम ठहरेंगे और आपका घर भी, चक्र है, ये आपका स्वाधिष्ठान चक्र है और ये आपका मूलाधार चक्र है, और बीचों बीच यहाँ पर आपके हाथ के बीचों-बीच सहस्रार है, पूरा गोल। किसी के भी, आपका पता यहाँ भी पास ही है। वो क्या है? 10 नंबर, किंग जार्ज एवेन्यू. ये आपका घर है, और फोन नंबर भी आपसे ले लीजिए। उनके पास हम फोटो वगैरा सब भेज किसी ने आकर आपको बता दिया कि फलाने की देंगे, लेकिन आप बहुत बड़े काम में व्यस्त रहते हैं, समय तबियत खराब है, हम चाहते हैं कि आप उसके लिए पर आप लोग आ जाइएगा और आपको शुक्रवार का प्रार्थना करें। कुछ करने की जरूरत नहीं। जो चक्र उनका खराब हो उसको आप यूं करके धो लीजिए उनको बहुत दिवस वहुत अच्छा है। उस दिन आप लोग अपना meditation का कार्यक्रम रखें। हम वहीं से चित्त से फायदा हो जाएगा। यहीं बैठे आपकी उंगलियों के इशारे पर सब चीज़ आपको देख रहे हैं। परमात्मा के बहुत से प्रतीक रूप आपने सुने होंगे जैसे गणेश जी हैं, उनके मूषक वाहन चलने वाली है। आपके attention पर दिव्यत्व है, मैंने 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-25.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 24 हैं और सबके वाहन आपने सुने हैं। आपका वाहन सिर्फ छोड़ा नहीं काम जो आप कर नहीं सकते। अब बस ये चित्त है, आप चित्तारूढ़, चित्त पे रहें । क्या कमाल है आपकी? आप चित्त पुर अपने बैठे हुए हैं, जहाँ चित्त जाए वहीं काम बन जाए। और इसकी इतनी कमाल है, है कि हमारे बीच में बड़ा परदा है इस परदे को चाक सी करना आ जाए, काम बन जाएगा। इस पर्द का ही चाक होना मुश्किल हो जाता है। बहरहाल आप पार हो गए यहाँ बैठे-बैठे आप अपनी सत्ता निकालिए। यूँ करके तो पहले अपना तो परदा चाक हो जाए। अब हमारा और ठीक कीजिए सब। आपका बीच का अन्तर जितने जल्दी छूट जाए उतना ही काम बड़ा जबरदस्त है। इस चीज़ में अन्त में जो सबसे बड़ी बात है वो है प्रेम। हमें प्रेम के साथ तादात्म्य करना जिसको भी देखा है कि वो सता रहा है, परेशान कर रहा है, किसी भी आदमी जिसके लिए भी आप सोचते हैं अपने सहस्रार पर ला करके उसको ठीक कीजिए। बीच में ब्रह्म्ध्र है. आपको आश्चर्य होगा कि उनकी है। जब हम किसी के साथ बात करते हैं तो हम पहले ही सोच लेते हैं कि इसे प्रेम ही करें। ये सारा ही प्रेम काफी हालत ठीक हो गयी। बहुत दुष्ट, महादुष्ट जो अभी इन्होंने गाया था कि दु:शासन बैठे हैं और सन्त बैठे है इसमें आप कुछ गड़बड़ कर ही नहीं सकते। जैसे लोग हमसे कहते हैं कि आप हरेक को देखो तो Realization दे रहा है। अमेरिका में खासकर लोगों को बड़ी परेशानी है, कि लोग उसको बुरी चीज़ के लिए भी इस्तेमाल कर हैं, बिल्कुल बैठे हैं। सबके ऊपर में हम लोग बैठे-बैठे सर्वरे यही धन्धा करते रहते हैं कि उनको सुबुद्धि दो। इस सकते हैं। मैंने कहा क्या बुरा करेंगे? किसी की जागृति तरह से ये प्यार का चक्कर है, बैठे-बैठे यहाँ से प्यार का करेंगे, किसी को पार ही करेंगे या किसी को ठीक करेंगे। चक्कर घुमाने से उधर आदमी ठीक हो जाता है क्योंकि प्यार से आप किसी का बुरा कर ही नहीं सकते। आप नफरत से कितनी ज्यादा शक्तिशाली है प्यार की बात। ही सोचिए जिस आदमी को आप प्यार करते हैं आप बहुत शक्तिशाली है, समुद्र की जैसे थाह होती है। समुद्र उसका बुरा कभी कर सकते हैं ? प्यार की पहचान ही ये कितना बढ़ जाए उसकी थाह बढ़ती ही रहती है। ऐसी है कि वो कभी किसी का अहित सोच ही नहीं सकता। है! कितनी भी नफरत बढ़ जाए संसार की और प्यार जो जो कुछ भी होगा वो हितकारी होगा, वो जाएगा कहाँ? है उससे भी ज्यादा बढ़ते रहेगा और नहीं बढ़ेगा तो संसार हित ही होगा। नष्ट हो जाएगा। आप अपनी जिम्मेदारी को अभी समझ बस अपनी इज्जत खुद ही करनी होगी। बस अगर नहीं पाए कि एक नया ज़माना जमाने की बात है। नए अपनी जैसे जैसे इज्जत करनी शुरू कर दी वैसे-वैसे लोग, नया Dimension, एक नया आयाम जिसको आप समझ सकते हैं, सिर्फ vibrations से आप समझ सकते आपकी स्थापना अन्दर हो गई। क्योंकि ये मन्दिर है और हैं। कोई और नहीं समझ सकता। अभी जो सिद्धेश्वरी इस मन्दिर की जितनी भी आपने इज्जत करी हुई है बाई गा रहीं थी उनकी हालत खराब थी, कल इतनी उतना ही उसके अन्दर परमात्मा का प्रकाश है। आप प्रेम खराब थी कि घबरा-घबरा कर मेरे पास पहुँची। से तादात्म्य पा सकते हैं। एकदम आप प्रेम से एकाकार Operation करना है और ये करना है, वो करना है, ऐसा है, वैसा है। हमने हाथ रखा और आज वो गाने लग हो सकते हैं, बिल्कुल एक स्वरूप हो सकते हैं आपके अन्दर से शुद्ध प्रेम ही बह सकता है जो स्वयं साक्षात् चैतन्य है, वही सत्य भी है, वही सौन्दर्य भी। इस सबके गई। आप लोग सब ये काम कर सकते हैं। कोई ऐसा मैंने 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-26.txt चैतन्य लहरी खण्ड XV अंक 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 25 साथ एकाकार आप एकदम हो सकते हैं। निर्विचारिता में ही vibrations होगा। माने सिर्फ पवित्रता के बिल्कुल आप बैठें। लेकिन निर्विचारिता तभी आती है जबकि पुँज हैं। क्योंकि He is an eternal child, अनन्त के बालक हैं। उनके जैसा बालक संसार में मिलना मुश्किल आप इसको यहाँ से तो निकल गए हैं, यहाँ पर आ गए हैं। इस दशा में आप खड़े हैं कि आप निर्विचार हैं। है। सिर्फ पावित्र्य ही पावित्र्य है, उनका सारा प्यार ही आपका Brain था वो सोचता था, अब Brain से पवित्रता है और उस पावित्र्य की वजह से आपके आपको निकालकर के सहस्रार तोड़कर के आपको यहाँ ले आए हैं। अब यहाँ आप जब पहुँच जाइए, इस जगह मूलाधार चक्र पर, चक्र पर, मूलाधार पर तो माँ बैठी हुई हैं, उनको बिठाया है। इसका मतलब ये है कि sex के मामले में आपको एक छोटे से बच्चे जैसा होना होगा। पर आप हाथ रखकर देख सकते हैं, जो Realized हैं देखिए आपको लगेगा इस जगह अर्धबिन्दु में, जो लोग इसका अर्थ ये नहीं कि sex का life में कोई स्थान नहीं। Realized हैं उनको महसूस होगा, जो लोग Realized नहीं हैं उनको महसूस नहीं होगा। लग रहा है? धीरे-धीरे ऊपर नीचे करें, ऊपर नीचे करें। जरा नीचे, इससे ऊपर इसका अर्थ ये है कि sex के मामले में जब आप धर्म में उतरते हैं उस वक्त अपने sex के प्रति विचार में अर्धबिन्दु की दशा है, उससे ऊपर में बिन्दु हैं, उसके जैसे बालक के अबोध होते हैं वैसे होने चाहिएं। इसका अर्थ ये है। गणेश तक पहुँचना बहुत कठिन बात है, ऊपर में बलय है। सब कुछ जो भी सृष्टि करने में बनाया बहुत कठिन बात है क्योंकि बड़ी पवित्र आत्मा हैं। और गया था वो सब कुछ मनुष्य के अन्दर में बना दिया। उनका प्रकाश चारों तरफ फैल रहा है। उसके अन्दर जाने पहले वलय, उसके बाद बिन्दु, इसके बाद अर्धबिन्दु उसके बाद में ये। फिर सारी कुण्डलिनी की रचना। पूरी कुण्डलिनी को बना दिया है और वो जो आदि कुण्डलिनी के लिए हमें बहुत ही स्वच्छ होना पड़ता है तभी हम उसके अन्दर उतरते हैं नहीं तो वो और उनकी माँ के सिवाय वहाँ कोई बैठता नहीं। है वो ही आपके अन्दर में लपक करके आ गई और आपकी कुण्डलिनी बन गई। आदि कुण्डलिनी बनाने के लिए पहले कुछ लोगों को बिठाया गया था, शुरुआत करने के लिए किसी को बिठाना पड़ता है। पहले उन्होंने गणेश जी को बिठाया। आदिशक्ति ने सिर्फ एक चक्र के उसके बाद दूसरा चक्र लेकर के वो जब आए तब उन्होंने ब्रह्मदेव की रचना करी, किन्तु वो उन्होंने करी उल्टे ढंग से। पहले उन्होंने श्री विष्णु को पैदा किया। उसकी वजह ये कि पहले , Creation करने से पहले ही एक पालनकत्ता पहले ही बना दिया। इसलिए नाभि चक्र से हमें भी अपनी माँ से ही पहले पैदा किया जाता है। साथ श्री गणेश जी को बिठाया, एक गणेश, एक ही चक्र के साथ श्री गणेश । गणेश जी क्या हैं? सिर्फ पावित्र्य, सिर्फ पावित्र्य। और फिर इस पिता स्वरूप बाप को बनाने के बाद क्योंकि पहले बाप बना दिया उन्होंने और उसके बाद आप इसी को सोचिए हमारे शरीर के ऊपर कुछ दिनों तक यदि आप नहाए धोए नहीं और मैल है। आप सोच उनकी नाभि से श्री ब्रह्मदेव की रचना हुई। बिल्कुल हुआ, ऐसे ही हुआ जैसे खूँटै बिठाए जाते हैं, इसी तरह लीजिए यहां पर भी vibrations है और यहाँ भी vibrations हैं, और उसको निकालकर के हम इकट्ठा से हुआ। इसमें झूठ कुछ नहीं, आप खुद देख सकते हैं कर दें तो जो जड़ तत्व जो है उसके अन्दर vibrations ये बात। अब भवसागर बन गया, भवसागर की तैयारी हो 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-27.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 26 कैसे अन्धकार में आप हैं? मोहम्मद साहब की जो गयी, सारा void तैयार हो गया, Vagus Nerve और Aortic Plexus चारों तरफ भवसागर के, उसके अन्दर लड़की थी फातिमा, वो वही थी जो कि जनक की से बहने वाला प्यार, creation उसी में फँस गई। प्यारलड़की थी। किससे झगड़ा कर रहे हो ये सोचो तो। और नानक की जो नानकी थी वो वही थी जो जानकी है। है प्यार, और उसके बीच में creation है । अब इस उसके बाद हमारे शिरडी के साईं बाबा, वो भी आदि गुरु हैं। आदि गुरु हैं चारों तरफ से लिपटा हुआ है। All pervading power थे, सबके ही गुरु हैं, मेरे भी यही भवसागर को लॉँघने की बहुत जरूरत है। लेकिन सबसे पहले दिन जो मैंने आपसे बताया था, जो ईश्वर और गुरु इन्होंने ही मुझे सब धन्धा सिखाया, जन्म जन्मांतर सिखाते उनकी शक्ति, जो ईश्वर है वो हमारे हृदय में आत्मास्वरूप रहे। अन्त में मुझ ही को आकर ये काम करना पड़ा। ये उन्होंने भी नहीं किया और इस जन्म में मुझी को वो गुरु स्थान में बिठा रहे हैं कि मैं गुरु बनू। अजीब सी हालत बैठे हैं। इसलिए जैसे ही बच्चा जन्मता है, जन्मता नहीं जब माँ के उदर में ही होता है तभी साक्षीस्वरूप ईश्वर है! एक जमाना ऐसा था कि किसी स्त्री को कोई गुरु मानने को तैयार नहीं था। कलियुग में माँ के सिवाय काम नहीं है, पुरुषों के बूते का काम नहीं है। प्रखरता से काम में आ जाते हैं और एक flame, जैसे अंगूठा है एक flame, के जैसे दिखाई देते हैं। ये left hand side हृदय में हैं। बहुत लोग confusion में डाल देते हैं उनके हृदय चलने वाला नहीं है, माँ का प्यार ही क्योंकि इतना ज्यादा कि हृदय चक्र में हैं। हृदय चक्र में नहीं वो हृदय में हैं। पहले ही से दबाव और tension संसार में आ गया कि आत्मा स्वरूप एक flame जैसे रहते हैं। उसकी वजह आदमी टूट जाएगा जिस दिन और प्रखरता में उतरेगा. हृदय चक्र में क्यों नहीं क्योंकि वह कुण्डलिनी के जाने का मार्ग है, हृदय चक्र, जो बीचों बीच है और ये और टूट ही जाएगा। इसलिए प्यार के बगैर कोई इलाज एक तरफ left में रहते हैं। राम शब्द रा- माने energy और म माने, महेश, जो ईश्वर अपने हृदय में बैठे हैं। रा जब म से मिल जाता है तभी राम हो जाता है। इसे नहीं था। इसलिए हमी को आज गुरु पद पर आना पड़ा। सब स्वीकार्य है लेकिन हम तो जानते ही नहीं थे गुरु कैसा होता है। गुरु में तो Distance रह जाता है वो माँ में कोई Distance नहीं रहता है। बच्चे माँ की खोपड़ी भवसागर में फँसे लोगों को बाहर निकालने के लिए कोई पर बैठे रहते हैं। इसलिए आप लोग भी देखिएगा हमसे आप बहुत liberty लीजिए और मज़ा आता है। पूरे न कोई व्यवस्था करनी पड़ी। इसलिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ये बड़ी अजीब सी हस्ती बनाई है। इन तीनों की freedom से आप हमारे साथ रहिए। न आपको हमारे धर्म पर स्थापना कर दी गई, दत्तात्रेय ने और यही आदि गुरु और हमेशा गुरुरूप रहे हैं। इन्होंने अनेक बार संसार साथ कोई भय लगेगा न आपको कोई घबराहट होगी। कोई परेशानी नहीं। कोई भी बात हो बेधड़क आकर आप में जन्म लिया। उनका जन्म राजा जनक के रूप में हुआ जो आदिशक्ति के पिता स्वरूप थे उसके बाद उनका हमसे बताइगा, कोई सा भी problem हो आप हमसे झगड़िएगा सब होगा, कहिएगा। आप हमसे लड़िएगा, जन्म ईरान में हुआ था जोरास्टर के रूप में, मच्छिंदरनाथ भी वही, मोहम्मद साहब भी वही, नानक साहब भी जैसे अपनी माँ के साथ, वही होती है जिससे हम वही। किसका झगड़ा किसके साथ लगा हुआ है? बिल्कुल freely बैठे हैं पूरे freedom की जरूरत थी इसी वजह से। धर्म की चर्चा खुलेआम करने की जरूरत सोचिए। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-28.txt सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 27 चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 से आपको निकालने के लिए। पूर्णतया वो मानव थे। यहाँ तक बाहरी features में आप देखिए तो वो पूर्णतया थी। गुप्त कुछ भी नहीं है, कुछ भी गुप्त नहीं है, एक दशा में जाकर सब उघाड़ कर ही जाना है। पूरा उघाड़ना मानव थे कि मनुष्य उनको जाने। उस वक्त भी दो चार पूरा तत्व उघाड़कर कहने की जो बात है। लेकिन हो गया। हरेक बात हर मौके पर नहीं कही जाती। पूरी ही लोग थे वो पार हो गए इसमें कोई शक नहीं लेकिन बहुत ज्यादा नहीं हो पाए। बात अब हम आप लोगों से कह रहे हैं ये हम Realized लोगों से कह रहे हैं जो non-realized हैं उसके बाद छ: सात हजार साल पहले श्री कृष्ण Gi non-realized उनके लिए शंका ही है। जो realized लोग हैं उनके लिए कुछ इसका मतलब है पर इससे भी ऊँची दशा पर आए। शिवजी तो आप जानते हैं उनके साथ-साथ हैं ही। लेकिन श्रीकृष्ण के आने से पहले आदिकाल से ही जब भवसागर से लोग पार होना चाहते थे तब उन भक्तों को पहुँचने पर आप साक्षात् हो जाते हैं। उसके बाद भवसागर बड़ी आफत आती थी, वो जब भी meditation में को पार करने के लिए जो गुरु की स्थापना हुई उस पर बैठते थे उनको सताया जाता था तब आदिशक्ति अपने भी बहुत कुछ काम किया गया कि गुरु किसी तरह से सम्पूर्ण रूप में प्रकट हुई और उन्होंने 108 बार अवतार इस भवसागर से मनुष्य को पार कर देगा। कुछ काम बने लिया। इसको आप जानते ही होंगे। देवी महात्मय आप कुछ नहीं बने, बहुत से लोग हो गए। वो ही आज मदद कर रहे हैं वो चिरंजीव हैं। जैसे कि जैन धर्म में बहुत पढ़ें, मेरी बात आप समझ जायेंगे। देवी रूप वो संसार आई और उन्होंने आकर के लोगों को पहचाना। लेकिन तब वो सिर्फ देवी स्वरूप आई थीं उनको कोई माया बीच में नहीं थी इस वजह से मनुष्य तारण नहीं पा सकता, उनकी सिर्फ Protection ही जिसे कहना से चिरंजीव हैं, जैन धर्म के संस्थापक महावीर और बुद्ध की माँ एक थी और आदिशक्ति के ही पेट से दोनों पैदा हुए। इसलिए उनका पहला ही रिश्ता आप समझ लीजिए कि वो कहाँ पैदा हुए और फिर कितने बार फिर पैदा हुए लेकिन सब के लिए ही experimental था, चाहिए बचाव ही हो सकता है लेकिन तारण नहीं हो सबने ही experiment किए, कभी इस दशा में कभी सकता। महिषासुर को मारा, शुम्भ-निशुम्भ को मारा बहुतों को मारा। उस दशा में, कभी इस तरफ ले जाकर कि किसी तरह जो राक्षस सताते थे, जो Negative लोग थे, जो से मनुष्य भवसागर से पार हो जाए। थोड़े बहुत हो जाते थे, चिरंजीव हो जाते थे लेकिन amass जिसे कहना सताते थे भक्तों को उनको सबको मारा। लेकिन उनसे चाहिए इतने लोगों को पार करना कलियुग में ही हो उनका तारण नहीं हुआ क्योंकि वो पूर्णतया Human नहीं थे। जितने चक्र थे, तो चार चक्र पर हृदय चक्र सकता है। इसके बाद रामचन्द्र जी संसार में आए, वो भी आता है इसलिए उनके सामने चार ही पड़़ते थे इसलिए इसीलिए वो बिल्कुल ही मानव हो गए थे. एकदम मानव राधा का जन्म हुआ सीताजी के बाद श्री राधा का जन्म हुआ। जो बहुत ही Human, विशुद्धि चक्र पर पाँचवें है। हो गए थे, उनको तो भुला दिया गया था कि तुम अवतार हो। वो एक दम ही अपने को भुलाकर कोे आप इस माया बहुत ही Human और प्रेम चक्र पर उनका स्थान का संगीत उन्होंने गाया। कहते हैं कि जब कंस को मारा में पड़कर एक दम ही अपने को भुला करके आए और था श्री कृष्ण ने, अपना मामा था, तब भी राधा जी को मानव ही बनकर इस संसार में बो जिए हैं इस भवसागर 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-29.txt सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 28 चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 हैं और अपने पति के साथ में आती हैं तब शांत होती बुला कर लाए थे। राधा 'रा' माने फिर वही energy' ध T' माने धारने वाली। राधा ही की धारा हो जाती है हैं, लेकिन जब अकेली आती हैं तब वो भयानक होती आपके अन्दर। जो शैवाइट लोग हैं वो शिवजी को मानते हैं। और तब से यहाँ का स्थान साक्षात् भगवती का है। हैं, वो भी एक दिन अकृष्ण थे। कृष्ण अन्तर नहीं सिवाय इसके कि शिव जो हैं ईश्वर स्थिति और शिव में कोई सहस्रार का स्थान साक्षात् भगवती का है। ये स्वयं इसे तोड़कर इसमें सातों चक्र पूरे होते हैं इसीलिए माया भी सात पर्े की है। और इसकी पहचान मुश्किल बहुत मुश्किल है। में अपने हृदय में स्थान बनाए हैं, और श्री कृष्ण विशुद्धि चक्र में, उनको 16 कला कहते हैं वैसे अपने अन्दर 16 पूरा का पूरा उसका Human बिल्कुल Human चक्र पूरा हो जाता है। सातों चक्र का। Plaxuses होते हैं, आश्चर्य की बात है विशुद्धि चक्र आपको क्या करना चाहिए किस तरह से अपनी जिसकी कि 16 कलाएं हैं वहाँ पर श्रीकृष्ण का वास है। और उनकी शक्ति राधा थी जो बाद में दो में बंट गई जो साधना पूरी करनी चाहिए। ये तो मैंने थोड़े में बता दिया। रुकमणी और राधा बनकर के एक वृंदावन में और एक लेकिन Methodically इसे बताया जाए तो इस तरह से समझिए इसका कोई समय तो होता नहीं, हर समय आप द्वारिका में। बहुत ही Human । निर्विचारिता में रहिए जैसे इस वक्त आप निर्विचार बैठे उसके बाद श्री कृष्ण का एक ही पुत्र था जो प्रणव हैं। जब विचार करिए निर्विचारिता में जाइए। अब इसके स्वरूप था। जरा सोचिए साक्षात् ओम् स्वरूप वो था। उसने यहाँ अवतार लिया। उसका नाम जीसस क्राइस्ट है और बाद में Thoughtless awareness के बाद में Doubt- उसकी 'मेरी' माँ थी आज्ञा चक्र पर वो आए। आज्ञा चक्र less awareness आती है। अब आपको शंकाएं खडी होंगी। इसके बाद Second stage में आदमी Doubt- पर आते ही वहाँ पर ego और superego दोनों का सामना होता है। आप देखिए कि आपका आज्ञा चक्र जो है Pineal less awareness में आता है। अब शंकाएं होंगी। ये ठीक है या नहीं, माताजी ने ये कहा ये बात ठीक नहीं Body ( शकु रूप) और Pituitary Body (पीयुष ग्रंथी) को control करता है। बिल्कुल Scientific बात है। है। ऐसा कैसे हो सकता है? ये हुआ या नहीं, हम पार इसलिए आपके आज्ञा चक्र पर भूत सिर्फ उन्होंने निकाले हुए कि नहीं? इस तरह की शंकाएं। ये शंका का निर्मूलन ऐसा होगा जब आप अपने स्थान पर आसन्न होंगे माने क्योंकि Super ego में भूत बैठते हैं और Ego में भी भूत बैठ सकते हैं क्योंकि ईडा और पिंगला दोनों वहीं-खत्म कि हमने आपको तो सिंहासन दे दिया लेकिन आपको शंका है कि ये सिंहासन है या नहीं, हम बैठे हैं ये ठीक होते हैं। उसी ने इस पर हाथ रखा। पहले वैसे तो नानक है या नहीं? तो आप देख लीजिए आप अपने हाथ से देख लीजिए कि कितनी अट्वितीय चीज़ आपके हाथ से जी के जमाने में भी हुआ था। हर समय ये भूत वाले आते रहते थे। Enticement करते रहते थे ये होता था लेकिन उनकी तो गर्दन ही काट दी। कृष्ण में तो संहार शक्ति जा रही है और लोगों को जब आप इसी हाथ से छूकर के ठीक करेंगे, आपको जब इनके अनुभव धीरे-धीरे की। तो आज्ञा चक्र पर ईसा-मसीह का नाम है। और महालक्ष्मी जिनकी हम इतनी स्तुति गाते हैं, उनको किसी ने कहीं वर्णित नहीं किया कि वहाँ कहाँ हैं, वो है कमाल आने लग जाएंगे तो आपके Doubt तब धीरे-धीरे कम होने लग जाएंगे। माने ये कि हमने आपकी नाव बना दी स्वयं 'मेरी' हैं। ये जब भी अपने बच्चे के साथ आती तैयार कर दी, अब तैयार होने के बाद इसको, नाव को, 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-30.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 29 आया कि इसके मैं क्यों पाँव छुऊं? कुण्डलिनी ओंधी पानी में छोड़ना चाहिए लहरों से लड़ना चाहिए, तब पता होगा कि ये नाव है या नहीं। हो सकता है लकड़ी ही बैठी हुई है अरे पार तो होता कम से कम, उसके पाँव छूने चाहिएं। पाँव उसी के छूने चाहिए जो अपने से ऊँचा हो। आखिर किस चीज़़ के लिए? तुम तो सब जानते हो उसका शास्त्र, जानते हो, सब कुछ जानते हो। इतनी तेजस्विता तुममें आ गई तुमने उसके पाँव कैसे हो। लेकिन लकड़ी की नाव बन गई कि नहीं, बन गई, ये पानी में गिरे बगैर नहीं पता चलेगा। इसलिए इसको, नाव को छोड़ देना चाहिए और लहरों पर छोड़ना चाहिए और देखना चाहिए। लहरों के थपेड़े जब बैठेंगे और तो भी जब नाव नहीं डूबेगी तो पता हो जाएगा नहीं, हाँ हो छुए? Egolessness ये ही आता है। आप लोग इतने गया है, मामला कुछ। अभी तो doubts ही आएंगे थोड़े साधारण तरीके से रहिए कि कोई विश्वास नहीं कर से, क्योंकि मनुष्य अपने को बहुत ऊँचा समझता है। एक सकता कि आप पार हैं। आदमी Egoless हो जाता है। साहब थे हमारे यहाँ, तो वो गए वहाँ एक स्वामी जी बैठे एकदम Egoless । उसको लगता ही रहता है कि ये हुए हैं, हजारों आदमी वहाँ आते हैं खाते हैं पीते हैं। वो झण्डा लगाकर वहाँ बैठे हैं। अब ये महाशय हमारे साथ अमेरिका गए हुए थे ऐसे इशारे पर वो कुछ करते थे। आप भी कर सकते हैं, यूं करिए, किसी-किसी की कैसे हो सकता है। कुछ भी करे उसको लगता है। ऐसे कैसे हो सकता है। लेकिन हो गया है, आपके अन्दर बात हुई, अगर हो गई तो ये सोचना चाहिए कि गर हुई है तो हमारे लिए क्यों हुई, इस दिल्ली में हम कितने लोग ये कुण्डलिनी रास्ते-रास्ते यूं ही उठा सकते हैं, यूं करिए। यूं रहते हैं। इशारे पर यहाँ बैठे बैठे ही किसी की कुण्डलिनी चाहे आखिर हमीं क्यों विशेष रूप से पार हुए? कोई न उठा करके आप मज़ा देखिए क्या होता है! आप किसी कोई कारण होगा पूर्व जन्म के, जन्म जन्मातर की आपकी खोज है, जन्म जन्मांतर का आपका हक है। आप लोग साधु, बड़े-बड़े साधु लोग हैं, आपको क्या पता? आप गर साधु नहीं होते तो क्या आपको हम पार की भी आप उंगलियों पर आपके कुण्डलिनी घूमेगी। आपके क्या आपके हाथ से जो बह रहा है उसी के सहारे होगा। वो ऐसे तीन-तीन सौ लोगों की अमेरिकन लोगों की कुण्डलिनी उठाते थे वो साधू जी थे वहाँ बहुत कराते। हम क्या करते गर पत्थर को हम पार कराते। हजारों लोग आते हैं, हम, आपने देखा, नहीं पार करा से लोग गए। तो ये भी चले गए तो जब गए तो हमें तो सब पता हो ही जाता है कहाँ कौन भटक रहे हैं। जब पाते। आप ही लोग लोग पार हो गए, कोई न कोई कुछ लौट के आए तो हमने कहा आपने उनके पाँव क्यों छुए? बात तो है ही। लेकिन ये आपके अन्दर आएगी नहीं कहने लगे सब छू रहे थे हम ने भी छुए। जो अपने से बात, बैठेगी नहीं, क्योंकि आप अपने को सोचिएगा कि बड़ा हो उसके पाँव छूने चाहिए। आपने क्यों किया ? ऐसे कैसे हो सकते है? Egoless हैं इस वजह से ये कहने लगे सब छू रहे थे तो हमने भी छू लिए। हमने Problem आ जाता है। ये सहजयोग की Egolessness कहा उनका हाल क्या था? कुण्डलिनी का क्या हाल है? है। बहुत ही साधारण तरीके से। न तो आप कपड़ों में वो पार हो गए? कहने लगे वो पार तो नहीं हैं और कोई बदल करने वाले हैं, न तो किसी चीज़़ में लेकिन कुण्डलिनी, वो तो ओंधी बैठी है। मैंने कहा तुम्हारे उंगली अन्दर से आप देखते जाइएगा कि शान्ति आ गयी, अब के इशारे पर हजारों ऐसे उठते हैं और तुम्हें ख्याल नहीं क्यों उलझ रहे हो? बातचीत में बोलने में हरेक चीज़ से 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-31.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक :9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 30 आप Realized आदमी होंगे कि हाँ यह Realized है। जानिए। कोई तकलीफ होगी अचानक आप देखिएगा कि और फिर माहिर, होशयार हो जाएंगे क्योंकि आप जानेंगे इनमें से कोई आदमी पहुँच जाएगा अचानक। क्योंकि देवता कि इनका ये ऐसे ही बोलेंगे, इनका ये घूम रहा है, उनका आपके ऊपर मॅडराते हैं। एकदम से कोई आदमी सोचे जरा ये घूम रहा है। बो उधर बक-बक कर रहे हैं ये इधर ऐसे-ऐसे कर रहे हैं, चलो इनको ठण्डा करें। थोड़ी देर देखें उनका क्या हाल है? कहने लगे मुझे पता नहीं मैं कैसे चला आया? मैं आ रहा था रास्ते से, मैंने कहा ऊपर जाएं, में देखा महाशय जी ठण्डे हो गए हैं। कोई लोग आते हैं चला आया। काम आपका बन गया। एक्सीडेंट आपके होने वाले नहीं, देवता आप पर मंडरा रहे हैं। आपमें से एक भी हमसे झगड़ा वगड़ा करने, ये लोग पीछे से उनकी आदमी गर ऐसी जगह है जहाँ एक्सीडेंट हो रहा है तो सब कुण्डलिनीयाँ घुमा-घुमा कर उनको ठण्डा करते हैं, थोड़ी बच जाएंगे, आपकी वजह से। बहुत-बहुत कुछ होगा। आप देर में चुपचाप बैठे। बहुत Tricks करते हैं। एक साहब देखते रहें, रोज़ लिखते रहें, आपकी कुण्डलिनी की जागरणा, बहुत झगड़ा कर रहे थे। इतने उनका Time वो बता रहे उसका घूमना फिरना देखते रहें । उसमें परेशान हीने की कोई थे आज एक किस्सा, एक साहब झगड़ा कर रहे थे बात नहीं। उठेगी, कभी यहाँ गुदगुदी करेगी, कभी यहाँ उनका Time आ गया तिल खाने का। तो अच्छा लाओ चढ़ेगी, कभी यहाँ आलौकित करेगी, कभी यहाँ आलौकित देखें तुम्हारी तिल, हाथ में रखकर उसमें Vibrations दे करेगी। उस सब चीज़ से आपकी जो चेतना है वो बँधी है, दिया, खाओ। खाते साथ ध्यान में खट से चले गए। वो प्रकाशित होएगी और संसार में वो आन्दोलित होएगी। अभी यहाँ आप बैठे हुए हैं आपको पता नहीं कि हज़ारों किसी ने ज्यादा परेशान किया तो पानी में जरा सा हाथ डालकर वाल करके पिला दीजिए पानी, काम खत्म। करोड़ों रश्मियाँ आपकी यहाँ बह रही हैं। आप देख लीजिएगा चैतन्य अन्दर में एकदम से पनप जाएंगे। लेकिन आप सभी अभी आप बच्चे हैं। अभी-अभी आप पैदा हुए हैं कि दिल्ली का वातावरण बदल जाएगा। देख लीजिए हम छोटा बच्चा बड़ी जल्दी बीमार होता है, बड़ी जल्दी एक ही बार कलकत्ते गए थे कलकत्ते का वातावरण देखा आपने कैसा है? तभी हमने कहा था कलकत्ते का वातावरण आप पकड़ लेते हैं। अपने स्थान से आप बड़ी जल्दी गिर जाएंगे। स्थान को पकड़े रहें, स्थान से हटें नहीं। बदल जाएगा आठ दिन कलकत्ते में रहे, वातावरण बदल डावांडोल आदमी को नहीं रहना है। अपने स्थान पर जमे गया। लोगों के दिमाग जरा ठण्डा हो गया। आज महाराष्ट्र में रहें क्योंकि चीज एसी मिली हुई है कि आदमी डांवाडोल सबसे अच्छा चल रहा है। वजह है इसकी। कितने ही लोग हो ही जाएगा। ये आपको मैं बता रही हूँ। इसीलिए संघ शक्ति होनी चाहिए। ये लोग हैं आपस में Realized हो गए महाराष्ट्र के, अब दिल्ली स्टेट को जाना है । और सारे संसार की कुण्डलिनी भारत-वर्ष में बैठी हुई है वो भी देख लीजिए, क्या कमाल है? भारतवर्ष में ही सारे आकर के माताजी मेरा सिर पकड़ गया। निकाल दीजिए। विश्व की कुण्डलिनी बैठी हुई है और भारत वर्ष हमारा ठीक आपस में, अरे भई कमर में ही, आज्ञा चक्र में कहीं जहाँ पर भी है वहाँ निकाल दो। आपस में ऐसे ही बातें करते रहते हैं। हो जाए सारा संसार ही ठीक हो जाए। और उसका सहस्रार अब यही आपके सव भाई बहन हैं यही सब प्रेम की एक नई दुनिया है। ये आपके रिश्तेदार हैं इनको सबको आप भी यहीं बैठा हुआ है और इसलिए मुझे हजारों हिन्दुस्तानी ऐसे चाहिएं जो Realization दे पायें । 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-32.txt परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का परामर्श मुम्बई 27.05.1976 ( मराठी से अनुवादित) मैंने आपको बताया था कि सहजयोग में आप किस अनुभवों की ओर जाता है। या इसे इस तरह से समझने प्रकार निर्विचार चेतना को प्राप्त करते हैं। आत्मा से का प्रयत्न करें; मान लो एक व्यक्ति की रुचि संगीत में एकरूपता (तदात्मय) प्राप्त करने के पश्चात् व्यक्ति है किसी भी प्रकार से उसकी रुचि संगीत में है-शास्त्रीय परमात्मा का सामीप्य तथा सालोक्य प्राप्त कर सकता है। संगीत में। तब वह किसी अन्य संगीत का आनन्द नहीं ले पाएगा चाहे वह गैर-शास्त्रीय संगीत की सभा ही क्यों परन्तु आत्मा का तदात्म्य (एकरूपता) प्राप्त करने पर व्यक्ति की रुचियाँ ही परिवर्तित हो जाती न हो। सहजयोग में आपकी स्थिति भी बिल्कुल ऐसी ही होनी चाहिए। जहाँ तक आपकी अन्य आदतों तथा केवल आत्मा से एकाकारिता प्राप्त करने मात्र से, इसका अनुभव प्राप्त करने के पश्चात व्यक्ति में सालोक्य और सामीप्य की अवस्था में जाने की इच्छा नहीं होती। रुचियों का सम्बन्ध है उनकी वास्तविकता यह है कि इसका अर्थ यह है कि जब आपके हाथों में चैतन्य उन्हें जान बूझकर शनै: शनै: विकसित किया गया है। लहरियाँ बहने लगती हैं और जब आप अन्य लोगों की अत: ये रुचियाँ गहन रूप से आपके अन्दर बनी हुई हैं। कुण्डलिनी को महसूस करते हैं, उनकी कुण्डलिनी को सहजयोग आपके अन्दर पूर्ण परिवर्तन लाया है। आप उठाने लगते हैं तो आपका चित्त दूसरे साधकों की एक नई चेतना की अवस्था में आ गए हैं, अन्य लोगों कुण्डलिनी को देखने और अपनी कुण्डलिनी को समझने की चैतन्य लहरियाँ और कुण्डलिनी को महसूस कर में लग जाता है। अपने चक्रों के प्रति आप सावधान हो सकते हैं, बहुत से लोगों को आत्म साक्षात्कार दे सकते जाते हैं और अन्य लोगों के चक्रों को भी समझते हैं। हैं। बहुत से लोगों को रोगमुक्त किया है । एक नई शक्ति आप यदि आकाश की ओर देखें तो वहाँ विद्यमान में आप प्रवेश कर सकते हैं और यही शक्ति आपके बादलों के बावजूद भी आपको बहुत सी प्रकार की कुण्डलिनीयाँ दिखाई देंगी। क्योंकि अब आपका चित्त कुण्डलिनी पर चला गया गया है तो जो भी कुछ आप कुण्डलिनी के बारे में जानना चाहते हैं, जो भी कुछ देखना चाहते हैं, जो भी इच्छाएं आपके अन्दर हैं वो सब अन्दर संचारित है। परन्तु यह सब करते हुए एक कमी रह गई है कि आपने कोई भी प्रयत्न नहीं किया, फिर भी बिना किसी प्रयत्न के सभी कुछ घटित हो गया है। सम्भवत: यही कारण है कि यद्यपि बहुत से लोगों को सहज-योग में चैतन्य लहरियाँ प्राप्त हो जाती हैं और वे एक स्तर तक आपके सम्मुख प्रकट होंगी। कुण्डलिनी में आपकी दिलचस्पी बढ़ती है और अन्य सभी चीज़ों में घटती है। उन्नत भी हो जाते हैं, परन्तु उनका चित्त परमात्मा, आत्मा इस बात को इस तरह से समझने का प्रयत् करें; जैसे एवं कुण्डलिनी पर कभी भी स्थापित नहीं हो पाता तथा आप बचपन को छोड़कर युवा अवस्था में प्रवेश करते हैं बार-बार गलत चीज़ों की ओर दौड़ता है। तो आपमें युवा आयु की रुचियाँ होती हैं। उदाहरण के रूप में आपकी नौकरी, व्यापार, परिवार आदि। अब आप केवल इन्हीं चीजों में दिलचस्पी लेते हैं और बाल्यावस्था की सभी दिलचस्पियाँ छूट जाती हैं, पुराने अनुभव धुंधले पड़ जाते हैं और आपका चित्त नए बात-केवल एक बात-मस्तिष्क में रखनी आवश्यक है आपने पूछा था," आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् क्या करें?" प्राप्त करने के पश्चात् आप आत्मसाक्षात्कार दें। प्राप्त करने के पश्चात् देना अत्यन्त आवश्यक है अन्यथा प्राप्त करना अर्थहीन है। तथा देते हुए एक 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-33.txt संग बैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9वं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 32 "कि शरीर, मन और बुद्धि-अर्थात् जिसके माध्यम से आप इतनी अद्वितीय चीज़ दे रहे हैं. वह अपने आपमें अत्यन्त सुन्दर होनी चाहिए। आपका के लिए बैठना कठिन नहीं हैं। रात को सोने से पूर्व सभी को यह क्रिया करनी आवश्यक है । इससे आपकी आधी से ज्यादा समस्याएँ ठीक हो जाएंगी| हम लोगों के अन्दर बहुत सी बुरी प्रवृत्तियाँ बनी हुई हैं, बहुत सी अन्धकारमय प्रवृत्तियाँ हमारे अन्दर बनी हुई हैं जिन्हें हम नकारात्मकता का नाम देते हैं। पूरी ताकत से वे हमें प्रभावित करने का प्रयत्न करती है । उनके "पूर्ण व्यक्तित्व' अन्तस अत्यन्त स्वच्छ होना चाहिए।" इंसमें कोई रोग नहीं होना चाहिए, आपमें यदि कोई रोग है-सम्भवत: कुछ सहजयोगियों में रोग होंगे। सहज-योग में आने से पूर्व आपको अवश्य चिन्ता होती होगी और आप इच्छा करते होंगे कि किसी भी तरह से बीमारियाँ ठीक हो नियन्त्रण में रहना शैतान के नियन्त्रण में रहना है। आप जाएं। परन्तु आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् आपको चित्त बीमारियों पर नहीं होना चाहिए और आपको कहना चाहिए, "यह ठीक हो जाएगी, कोई बात नहीं।" परन्तु यह गलत है। आपको जो भी समस्या हैं, चाहे वह छोटी यदि चाहें तो शैतान बन सकते हैं और चाहें तो भगवान। यदि आप शैतान बनना चाहते हैं तो उस कार्य के लिए मैं आपकी गुरु नहीं हूँ। यदि आप भगवान बनना चाहते हैं तो मैं आपकी गुरु हूँ। शैतान बनने से स्वयं को बचाएँ। ध्यान देने योग्य पहली बात यह है कि पूर्णमासी और अमावस्या की रातों में हमेशा आपके बाएँ और दाएँ पक्ष सी है, रोग प्रभावित स्थान पर अपना हाथ रखकर आप इस रोग को ठीक कर सकते हैं। अपने शारीरिंक पक्ष को को प्रभावित होने का भय होता है। विशेष रूप से इन दो आप अत्यन्त स्वच्छ रख सकते हैं। जो भी हो आप लोगों के लिए मैंने एक इलाज बताया दिनों में-अमावस्या और पूर्णमासी-आपको चाहिए कि रात को जल्दी सो जाएँ। खाना खाने के पश्चात फोटोग्राफ है। जैसे मैंने बताया है आपमें से हर एक प्रात: उठने के पश्चात् स्नानागार में जाकर स्वयं को स्वच्छ करें। कम को प्रणाम करें, ध्यान करें और सहस्रार पर चित्त को रखें से कम पाँच मिनट के लिए पानी पैर क्रिया करना तथा बन्धन ले कर सो जाएँ। इस का अर्थ यह है कि भी सहजयोगियों के लिए अत्यन्त आवश्यक है। जिस क्षण आप अपने चित्त को सहम्रार पर ले जाते हैं आप चाहे जितने उन्नत हों, चाहे आपको बिल्कुल पकड़ उसी क्षण आप अचेतन में चले जाते हैं । उस स्थिति में ना आती हो, फिर भी कम से कम पाँच मिनट के लिए स्वयं को बन्धन दें तो आपको सुरक्षा प्राप्त हो जाती है। आप पानी पैर क्रिया अवश्य करें। कभी-कभी तो मैं विशेष रूप से इन दो रातों को। अमावस्या की रात को स्वयं भी यह क्रिया करती हूँ (यद्यपि मेरे लिए ऐसा आपको श्री शिव का ध्यान करना चाहिए। श्री शिव का ध्यान करने के पश्चात आपको सोना चाहिए-अर्थात करना आवश्यक नहीं है) ताकि सहजयोगी भी इस है। क्रिया को अपना लें। यह बहुत अच्छी आदत सभी सहजयोगियों को चाहिए कि कम से कम पाँच मिनट के लिए पानी पैर क्रिया करें। सभी को चाहिए कि मेरे फोटो के सम्मुख दीपक जलाएँ, कुमकुम लगाएं और नमक वाले पानी में पैर डाल कर फोटोग्राफ के सम्मुख आत्मा का ध्यान करने के पश्चात-और स्वयं को उनके प्रति समर्पित करना चाहिए। पूर्णमासी की रात्रि को आपको चाहिए कि श्रीराम का ध्यान करें और सुरक्षा की कृपा करने के लिए स्वयं को उनके प्रति समर्पित करना चाहिए। रामचन्द्र शब्द का अर्थ है 'सृजनात्मकता '। अपनी सारी सृजनात्मक शक्तियाँ पूरी तरह से उन्हें समर्पित कर दें । इस प्रकार से इन दो रातों को आपको अपनी विशेष रूप से देखभाल करनी चाहिए। अपने हाथ खोल कर इस प्रकार से बैठ जाएँ। आप यदि ऐसा करते हैं तो आपकी आधी समस्याएँ तो स्वत: ही सुलझ जाएंगी। आप चाहे जितने व्यस्त हों, पाँच मिनट 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-34.txt सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 33 बैतम्य तहरी खण्ड -XV अक : 9 एम 10 सावधान रहना चाहिए। कभी भी व्यक्ति को हृदय चक्र की समस्या हो सकती है। अपने हृदय चक्र को अवश्य शुद्ध रखें। शुक्ल पक्ष (Lunar fortnight) सप्तमी और नवमी को आपको मेरा विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह बात स्मरण रहे कि इन दो दिनों में आपको मेरा विशेष आशीर्वाद मिलता है। कुछ ऐसा प्रबन्ध करें कि इन दिनों परन्तु बहुत से लोगों में हृदय ही नहीं होता। वे इतने शुष्क व्यक्तित्व होते हैं चाहते हुए भी आप ऐसे लोगों के लिए कुछ नहीं कर सकते। फिर भी यदि वे आपसे प्रार्थना करें तो उन्हें सलाह दें कि हठयोग को छोड़ दें, भिन्न कार्यों के बोझ से स्वयं को मुक्त करें, अन्य लोगों से प्रेम करना सीखें। यदि वे एक दम से किसी मनुष्य को प्रेम नहीं कर सकते तो पहले पालतु पशुओं से प्रेम करें। आपको चाहिए कि सभी से प्रेम करें। बच्चों से प्रेम करें। उनके प्रति निर्दयी न बनें। वास्तव में किसी से भी नाइन्साफी न करें, किसी को हानि न पहुँचाएं, कोई भी बच्चों को पीटे नहीं, पीटने की मुद्रा में आप अच्छी तरह से ध्यान-धारणा करें। इस प्रकार से आपको चाहिए कि स्वयं को सुरक्षित करें। जब भी घर से बाहर जाना हो तो स्वयं को बन्धन दें, हमेशा बन्धन में रहें। किसी ऐसे व्यक्ति से यदि आपका सामना हो जिसे तुरन्त बन्धन ले लें चाहे यह आज्ञा की पकड़ हो तो बन्धन चित्त से ही क्यों न लेना पड़े। आज्ञा की पकड़ वाले व्यक्ति से वाद-विवाद न करें। ऐसा करना मूर्खता है। किसी भूत से क्या आप वाद-विवाद कर सकते हैं? विशुद्धि की पकड़ वाले व्यक्ति से भी वाद-विवाद में कभी अपना हाथ ना उठाएं, किसी पर क्रोधित ना हों। न करें। सहस्रार से पकड़े हुए व्यक्ति के पास कभी न जाएँ, उससे कोई सम्बन्ध न रखें उसे बताएँ कि पहले अपने सहस्रार को ठीक करो। उसे यह बताने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि 'आपका विशेष रूप से सहजयोगियों को तो कभी नाराज़ होना ही नहीं चाहिए। विना नाराज़ हुए अत्यन्त विवेक एवम् युक्तिपूर्वक उन्हें सुधारना चाहिए कभी नाराज़ न हो । यह सब बातें मेंने इसलिए बताई हैं ताकि आप अपने शरीर यन्त्र को स्वच्छ कर सकें और कुछ आदर्श रखें। आपका लक्ष्य यदि ऊँचा होगा और आपमें यदि उत्थान सहस्रार पकड़ा हुआ है इसे ठीक करें।' सहस्रार स्वच्छ रखा जाना चाहिए। किसी को यदि सहसार पर पकड़ आने लगे तो उसे चाहिए कि तुरन्त अन्य सहजयोगियों से प्रार्थना करें कि कुछ करें और मेरा सहस्ार ठीक कर दें।' की इच्छा होगी तभी आपका उत्थान होगा। नीचे की ओर सहसार की पकड़ बाला व्यक्ति यदि आप से बात करता है तो उसे बता दिया जाना चाहिए कि वह आपका दुश्मन कभी न देखें। हर कदम पर, हर स्थान पर मैं आपके साथ हूँ है. शत्रु है। जब तक यह पकड़ बनी हुई है तब तक सर्वत्र। कहीं भी आप चले जाएं, हर स्थान पर मैं उससे बात नहीं की जानी चाहिए । जहाँ तक हृदय की पकड़ वाले व्यक्ति का सम्बन्ध प्रकार से, दिल-दिमाग से। जब भी आप मुझे याद है तो आपको चाहिए कि उसकी सहायता करें। जहाँ तक करेंगे तो अपनी पूरी शक्तियों के साथ मैं आपके सम्भव हो उसके हृदय को बन्धन दें। श्री माताजी के पास हूँगी यह मेरा वचन है। जो लोग नर्क में जाना फोटोग्राफ के सम्मुख बैठा कर उसका एक हाथ हृदय चाहते हैं उन्हें मैं नीचे की ओर ढकेल रही हूँ। अत: पर रखवाएँ। हृदय चक्र के विपय में आपको बहुत सावधान रहें और ऊपर को देखें। आपके साथ हूँ-पूर्णतया व्यक्तिगत रूप से, हर 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-35.txt सहस्रार दिवस 5 मई 1983 गोरई क्रीक, बम्बई परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन द आप सबकी ओर से मैं बम्बई के सहजयोगी व्यवस्थापक सहस्रार खुल गया है, उस पर भी ये चार चक्रों में जिन्होंने यह इन्तज़ामात किये हैं, उनके लिये धन्यवाद | आपको जाना है-अर्धविन्दु, बिन्दु, वलय और प्रदक्षिणा का देती हूँ, और मेरी तरफ से भी मैं अनेक धन्यवाद देती हूँ। इन चार चक्रों के बाद कह सकते हैं कि हम लोग उन्होंने बहुत सुन्दर जगह हम लोगों के लिए ढूंढ रखी है। सहजयोगी हो गए। और दूसरी तरह से भी आप देखें, तो हमारे अन्दर चौदह स्थितियाँ, सहस्रार तक पहुँचने पर भी हैं। अगर ये भी एक परमात्मा की देन है कि इस वक्त जिस चीज के बारे में मैं बोलने वाली थी, उन्हीं पेड़ों के नीचे बैठकर उसको बिभाजित किया जाए तो सात चक्र इड़ा नाड़ी पर सहस्रार की बात हो रही है। चौदह वर्ष पूर्व कहना चाहिये या जिसे तेरह वर्ष हो गए और अब चौदहवाँ वर्ष चल पड़ा है, यह महान् कार्य और सात पिंगला नाड़ी पर हैं। मनुष्य जब चढ़ता है, तो वो सीधे नहीं चढ़ता। वो संसार में हुआ था, जबकि सहस्रार खोला गया। इसके बारे पहले lefit (बायें) में आता है, फिर right (दायें) में में मैने अनेक बार आपसे हर सहस्ार दिन पर बताया जाता है, फिर left में आता है, फिर right में जाता है। हुआ है कि क्या हुआ था, किस तरह से घटना हुई, क्यों और कुण्डलिनी जो है, वो भी जब चढ़ती है तो इन दोनों में विभाजित होती हुई चढ़ती है। इसकी वजह ये है कि मैं आपको अगर समझाऊँ कि दो रस्सी और दोनों रस्सियाँ की गई और इसका महात्म्य क्या है। लेकिन चौदहवाँ जन्म दिन एक बहुत बड़ी चीज़ है। क्योंकि मेनुष्य चौदह स्तर पर रहता है, और जिस दिन इस प्रकार नीचे उतरते वक्त या ऊपर चढ़ते बक्त भी दो चौदह स्तर वो लाँघ जाता है, तो वो फिर पूरी तरह से सहजयोगी हो जाता है। इसलिये आज़ सहजयोग भी सहजयोगी हो गया। अवगुण्ठन लेती हैं। जब दो अवगुण्ठन लेती हैं. तो उसके left और right इस प्रकार से, पहले left और फिर right, दोनों के अवगुण्ठन होने से, फिर right वाली अपने अन्दर इस प्रकार परमात्मा ने चौदह स्तर बनाए right को आ जाती है, eit वाली left को चली जाती हैं। अगर आप गिनिये, सीधे तरीके से, तो भी अपने है। आप अगर इसको देखें, तो मैं आपको दिखा सकती हूँ। समझ लीजिये इस तरह से आया। अब इसने एक अन्दर आप जानते हैं सात चक्र हैं, एक साथ अपने आप। उसके अलावा और दो चक्र जो हैं, उसके बारे में आप लोग बातचीत ज्यादा नहीं करते, वों हैं 'चन्द्र' का चक्कर लिया, और दूसरे चक्कर लेने में फिर आ गई चक्र और 'सूर्य' का चक्र। फिर एक हँसा चक्र है, इस इसी तरफ। इस तरफ से आया, इस ने एक चक्कर प्रकार तीन चक्र और आ गए। तो, सात और तीन-दस। लिया, फिर दूसरा चक्कर लिया. फिर इस तरफ। इस उसके ऊपर और चार चक्र हैं। सहसरार से ऊपर और प्रकार दो अवगुण्ठन उसमें होते जाते हैं। इसलिये आपकी जब कुण्डलिनी चढ़ती है तो चक्र पर आपको दिखाई देता है, किं left पकड़ा है या right, क्योंकि कुण्डलिनो चार चक्र हैं। और उन चक्रों के बारे में भी मैंने आपसे , ऐसे बताया था-अर्घबिन्दु, विन्दु., वलय और प्रदक्षिणा चार चक्र हैं। सहजयोग के बाद भी, जब कि आपका तो एक है। फिर आपको एक ही चक्र पर दोनों चीज़ 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-36.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 35 दिखाई देती हैं। इस प्रकार आप देखें कि left पकड़ा है है। नमक होता है। ईसा मसीह ने कहा था कि 'तुम संसार के नमक हो।' माने हर चीज़ में आप घुस सकते हो, 'हर या right पकड़ा तो इस प्रकार हमारे अन्दर left और right, अगर चीज़' में आप स्वाद दे सकते हो। नमक हो'-नमक के दोनों का विभाजन किया जाए, एक चक्र का, तो सात बगैर इन्सान जी नहीं सकता। जो हम ये प्राण- शक्ति दूनी चौदह। वैसे ही हमारे अन्दर चौदह स्थितियाँ तो अन्दर लेते हैं, अगर हमारे अन्दर नमक न हो तो वो प्राण-शक्ति भी कुछ कार्य नहीं कर सकती। ये catalyst पहले ही cross (पार) करनी पड़ती हैं, जब आप सहस्रार तक पहुँचते हैं और अगर इसको आप समझ लें (कार्य-साधक) है और ये नमक जो है, ये हमें जीने कि सात ये, और ऊपर के सात-इस तरह भी तो चौदह का, संसार में रहने का, प्रपन्च में रहने की पूर्ण व्यवस्था का एक मार्ग बना। नमक करता है। अगर मनुष्य में नमक न हो, तो वो किसी इसलिये, 'चौदह' चीज़ जो हैं वो कुण्डलिनी शास्त्र बहुत महत्वपूर्ण है बहुत महत्वपूर्ण। बहुत महत्वपूर्ण चीज़ है। और जब तक हम इस चीज़ को पूरी तरह से न समझ लें, कि इन चौदह चीज़ों से जब हम परे उठेंगे, तभी हम सहजयोग के पूरी तरह से अधिकारी हैं । हमको काम का इन्सान नहीं। लेकिन परमात्मा की तरफ जब ये चीज उठती है तो वो सब नमक को नीचे ही छोड़ देती है-'सब' चीज़ छूट जाती है। और जब इन पेड़ों पर सूर्य की रोशनी पड़ती है, और सूर्य की रोशनी पड़ने पर जब इसके पत्तों का रस और सारे पेड़ का रस, ऊपर की ओर में आगे बढ़ते ही रहना चाहिए और उसमें पूरी तरह से रजते खिंच आता है-क्योंकि evaporation होना (भाप बनता रहना पड़ेगा। रजना, विराजना-ये शब्द आपके सामने पहले बार भी मैंने बहुत कहे हैं लेकिन आज के दिन विशेषकर के, हम लोगों को समझना चाहिए कि सहस्रार है; तब इसमें से जो, इस तने में से जो यही पानी ऊपर बहता है-वो 'सब' कुछ छोड़कर के, उन चौदह चीजों को लाँघ करके, ऊपर जाकर के, श्रीफल बनता है। वही श्रीफल आप हैं। और देवी को श्रीफल जरूर के दिन रजना, विराजना क्या है। अब आप यहाँ बैठे हैं, ये पेड़ों को आप देखिये। ये पेड श्रीफल का है। नारियल को 'श्रीफल' कहा जाता देना होता है। श्रीफल दिये बगैर पूजा सम्पन्न नहीं होती। श्रीफल भी एक अजीब तरह से बना हुआ है। दुनिया में ऐसा कोई सा भी फल नहीं, जैसे श्रीफल है। उसका है। श्रीफल, जो नारियल है इसके बारे में आपने कभी सोचा या नहीं, पता नहीं। लेकिन बड़े सोचने की चीज़ कोई-सा भी हिस्सा बेकार नहीं जाता। इसका एक-एक हिस्सा इस्तेमाल होता है। इसके पत्तों से लेकर हर चीज़ इस्तेमाल होती है और श्रीफल का भी-हर एक चीज़ इस्तेमाल होती है। आप देखें कि श्रीफल भी मनुष्य के सहस्रार जैसा है। है-'इसे श्रीफल क्यों कहते हैं?' के किनारे होता है. और कहीं होता नहीं। ये समुद्र सबसे अच्छा जो ये फल होता है, के किनारे । समुद्र वजह ये है कि समुद्र जो है, ये 'धर्म ' है। जहाँ धर्म होगा, वहीं श्रीफल फलता है। जहाँ धर्म नहीं होगा, वहाँ श्रीफल नहीं होगा। लेकिन समुद्र के अन्दर 'सभी' चीजें जैसे बाल अपने हैं, इस तरह से श्रीफल के भी बाल हैं। 'यही श्रीफल है।' इसमें बाल होते हैं ऊपर में, इसके बसी रहती हैं। हर तरह की सफाई, गन्दगी हर चीज़ protection (रक्षा) के लिये। मृत्यु से protection हमें इसमें होती है। ये पानी भी 'नमक' से भरा होता है। इसमें बालों से मिलता है। इस लिये बालों का बड़ा महान् मान 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-37.txt चैतन्य लहरी खण्ड XV अंक :9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 36 किया गया है-बाल बहुत महान् हैं, और बड़ी शक्तिशाली बाद हम आत्मा के सहारे कार्य करते हैं। आत्मा, चीज़ हैं क्योंकि आपको protect करते हैं। इनसे आपकी realization से पहले, हृद्य में ही विराजमान है, रक्षा होती है। और इसके अन्दर जो हमारे जो cranial बिल्कुल अलग-'क्षेत्रज्ञ' बना हुआ. देखते रहने वाला। bones हैं, जो हड्डियां हैं, वो भी आप देखते हैं कि श्रीफल के अन्दर में बहुत कड़ा-सा इस तरह का एक उसका काम, वो जैसा भी है, देखने का मात्र वो करता रहता है। लेकिन उसका प्रकाश हमारे चित्त में नहीं है 1. ऊपर से आवरण होता है। उसके बाद हमारे अन्दर grey वो हमसे अलग है वो हमारे चित्त में नहीं है। matier और white matter ऐसी दो चीजें हमारे अन्दर Realization के बाद तो हमारे चित्त में आ जाता है. होती हैं। श्रीफल में भी आप देखें-white matter और पहले, पहले चित्त में आता है। और चित्त आप जानते tmatter....... और उसके अन्दर पानी होता है grey , जो हमारे में cerebrospinal fluid होता है। उसके प्रकाश सत्य में आ जाता है, क्योंकि हमारा जो मस्तिष्क हैं कि void (भवसागर) में बसा है। उसके बाद उसका अन्दर भी पानी होता है-वो limbic area होता है। है, उसमें प्रकाश आ जाने से हम सत्य को जानते हैं। तो ये साक्षात् श्रीफल जो है, ये ही हमारा-अगर इनके लिये ये फल हैं, तो हमारे लिये ये फल है । जो हमारा जानते-माने ये नहीं कि बुद्धि से जानते हैं पर साक्षात् में जानते हैं कि ये है 'सत्य'। उसके बाद उसका प्रकाश brain ( मस्तिष्क) है, ये हमारी सारी उत्क्ान्ति का फल हृदय में दिखाई देता है। हृदय प्रगाढ-हृदय बढ़ने लग है। आज तक जितना हमारा evolution (उत्क्रान्ति) जाता है, 'विशाल' होने लगता है, उसकी आनन्द की हुआ है-जो amoeba (एक कोशिकीय जन्तु) से आज शक्ति बढ़ने लगती है इसलिये 'सच्चिदानंद'-सत, चित्त हम इन्सान बने हैं, वो सब हमने इस brain के फल और आनन्द-सत् मस्तिष्क में, चित्तू हमारे धर्म में और स्वरूप पाया है। ये जो brain है, ये सब कुछ-जो कुछ आनन्द हमारी आत्मा में-प्रकाशित होने लगता है। उसका इस brain से। इसी में सब तरह की प्रकाश पहले धीरे-धीरे फैलता है, ये आप सब जानते हमने पाया है शक्तियाँ, सब तरह का इसी में सब पाया हुआ धन हैं। उसका प्रकाश धीरे-धीरे बढ़ता है, सूक्ष्म चीज़ होती संचित है। में हे, पहले बहुत सूक्ष्म क्योंकि हम जिस स्थूल व्यवस्था रहते हैं, उस व्यवस्था में उस सूक्ष्म को पकड़ना कठिन हो जाता है। धीरे-धीरे वो पकड़ आ जाती है। उसके बाद अब इस हृदय के अन्दर जो आत्मा विराजती है, और उसका जो प्रकाश हमारे अन्दर सहजयोग के बाद सात परतों में फैलता है, दोनों तरफ से, वो तभी हो सकता है, आप बढ़ने लग जाते हैं, अग्रसर होते हैं। सहस्रार का एक जब आदमी का सहस्रार खुला हो। अभी तक हम इस पर्दा खुलने से ही कुण्डलिनी ऊपर आ जाती है लेकिन दिमाग से वो ही काम करते हैं। आत्म-साक्षात्कार से उसका प्रकाश चारों तरफ जब तक नहीं फैलेगा, 'सिर्फ पहले, सिवाय इसके कि हम अहंकार और super-ego ऊपर कुण्डलिनी आ जाने से आप ने सदाशिव के पीठ (प्रति-अहंकार) इन दोनों के माध्यम से जो कार्य करना को नमस्कार कर दिया, आप के अन्दर की आत्मा का वो करते हैं। अहंकार और प्रतिअहंकार, या आप प्रकाश धुँधला-धुंधला बहने लगा लेकिन अभी इस कहिये 'मन' और 'अहंकार'-इन दोनों के सहारे हम सारे मस्तिष्क में वो पूरा खिला नहीं। कार्य करते हैं । लेकिन realization (साक्षात्कार) के अब आश्चर्य की बात है कि आप अगर मस्तिष्क से hos 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-38.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 37 इसको फैलाना चाहें तो नहीं फैला सकते। अपना मस्तिष्क है, वही हृदय हो जाता है। जो आप सोचते हैं, वही और अपना हृदय-इसका अब बड़ा सन्तुलन दिखाना होगा। आपको तो पता ही है, कि जब आप अपने बुद्धि आपके हृदय में है, और जो कुछ आपके हृदय में है, तो कोई वही आप सोचते हैं। ऐसी जब गति हो जाए से बहुत ज्यादा काम करते हैं, तो heart-failure भी तरह की आशंका, कोई भी तरह का अविश्वास, ( हृदय-गति रुकना) हो जाता है और जब आप heart किसी भी तरह का भय, कोई-सी भी चीज़ नहीं रहती। जैसे आदमी को भय लगता है, तो उसे क्या करते हैं? (हृदय) से बहुत ज्यादा काम करते हैं, ता आपका brain ( मस्तिष्क) फेल हो जाता है। इनका एक सम्बन्ध उसे brain से सिखाते हैं, देखो भाई, भय करने की कोई बात नहीं। देखो तुम तो बेकार चीज से डर रहे थे; 'ये बना ही हुआ है, पहले से बना हुआ है। बहुत गहन सम्बन्ध है और उस गहन सम्बन्ध की वजह से, जिस देखो, प्रकाश लेकर।' फिर वो अपनी बुद्धि से तो समझ बक्त आप पार हो जाते हैं, इसका सम्बन्ध और भी गहन लेता है, पर फिर डरता है। होना पड़ता सम्बन्ध बहुत ही घना होना चाहिये। जिस वक्त ये पूरा लेकिन जब दोनों चीज़ एक हो जाती है-आप इस है। हृदय और इस brain (मस्तिष्क) का बात को समझने की कोशिश कीजिये-कि जिस मस्तिष्क integrate (एक) हो जाता है, तब चित्त आपका जो से आप सोचते हैं, जो आपके मन को समझाता है और है, पूर्णतया परमेश्वर-स्वरूप हो जाता है। सम्भालता है, वही आपका मन अगर हो जाए; यानि, ऐसा ही कहा जाता है हठ योग में भी कि 'मन' और समझ लीजिये कि ऐसा कोई instrument (यन्त्र) हो अहंकार' दोनों का लय हो जाता है।' लेकिन ऐसी बात कि जिसमें accelerator (गति बढ़ाने वाला) और करने से तो किसी की समझ ही में नहीं आयेगा, 'इसका brake (रोकने वाला), दोनों automatic (स्वचालित) लय कैसे होगा?' मन और अहंकार का, तो लोग वो मन के पीछे लगे रहते हैं, अहंकार के पीछे लगे रहते हैं। हों, और दोनों 'एक' हों-जब चाहे तो वो brake बन जाए, और जब चाहे तो वो accelerator हो जाए-और अहंकार को मारते रहो तो मन बढ़ जाता है। मन को वो सब जानता है। मारते रहो तो अहंकार बढ़ जाता है। उनके समझ ही में ऐसी जब दशा आ जाए, तो आप पूरे गुरु हो गये। नहीं आता, कि ये पागलपन क्या है। ये किस तरह से ऐसी दशा हमको आनी चाहिये। अभी तक आप लोग जाए? मन और अहंकार दोनों को किस तरह से जीता काफी उन्नति कर गए हैं, काफी ऊँचे स्तर पर पहुँच गए हैं। जरूर अब आपको कहना चाहिए कि अब आप श्रीफल हो गये हैं लेकिन मैं हमेशा आगे की बात जाए? उसका एक ही द्वार है-'आज्ञा-चक्र'। आज्ञा-चक्र पर काम करने से मन और अहंकार जो हैं, उसका पूरी इसलिये करती हूँ कि इस पेड़ पर अगर चढ़ना हो, तो तरह से लय हो जाता है। और वो लय होते ही हृदय और क्या आपने देखा है, कि किस तरह से लोग चढ़ते हैं? ये जो brain है, इनमें पूरा 'सामंजस्य' पहले आ जाता अगर एक आदमी को चढ़ाकर देखिये तो आप समझ जाएँगे कि वो एक डोर बाँध लेता है चारों तरफ अपने, है-concord I लेकिन एकता नहीं आती। 'इस एकता को ही, हम को पाना है।' तो आपका जो हृदय है, और उस डोर को ऊपर फँसाते जाता है। वो डोर जब वही सहस्रार हो जाता है, और आपका जो सहस्रार ऊपर फॅस जाता है, तो उस पर वो चढ़ता है। इसी तरह 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-39.txt चैतन्य लहरी खण्ड XV अक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 38। से अपनी डोर को ऊँची फँसाते जाना है। और यही जब है; 'न तो हम श्रीफल बन सकते हैं'। वृक्ष को बहुत अच्छे से देखना चाहिये और समझना चाहिये। सहजयोग आप वृक्ष से बहुत अच्छे से सीख पर ज्यादातर हम डोर को नीचे ही फँसाते रहते हैं। सकते हैं । बड़ा भारी ये आपके लिये गुरु है। जैसे कि आप सीख लेंगे, तभी आपका चढ़ना बहुत जल्दी हो सकेगा। जब हम वृक्ष की ओर देखते हैं, तो पहले देखना चाहिये कि ये अपनी जड़ों को कैसे बैठाता है पहले अपनी जड़ को ये सम्भाल लेता है और जड़ को सम्भालने के लिये सहजयोग में जाने के बाद भी डोर हम नीचे की तरफ फँसाते हैं, और कहते हैं कि 'माँ हमारी तो कोई प्रगति नहीं हुई।' अब होगी कैसे? जब तुम डोर ही उल्टी तरफ फँसा कर नीचे उतरने की व्यवस्था करते हो! जिस वक्त ये क्या करता है। जड़ में घुसा जाता है। ये हमारा धर्म है, नीचे उतरना है, तो फिर डोर को फँसाने की भी जरूरत ये हमारा चित्त है-'इसमें' ये घुसा चला जाता है और उसी चित्त से वो खींचता है, उस सर्वव्यापी शक्ति को। नहीं। आप जरा-सी ढील दे दीजिये, ढर-ढर-ढर आप नीचे चले आएंगे। वह तो इन्तजाम से बना हुआ है-नीचे ये तो उल्टा पेड़ है, ऐसा कहिये तो ठीक है। उस आने का। ऊपर चढ़ने का इन्तजाम बनाना पड़ता है। तो सर्वव्यापी शक्ति को ये जड खींचने लग जाता है, और कुछ बनने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। और जो इसको खींचने के बाद में आखिर उसको खींच कर करना पाया है, उसे खोने के लिए कोई मेहनत की जरूरत क्या है? फिर उसकी नज़र ऊपर जाती है और इसी नहीं-आप सीधे चले आइये ज़मीन पर; उसमें कोई तो प्रकार वो श्रीफल बना हुआ है। प्रश्न खड़ा नहीं होता। इसको अगर आप समझ लें, इस बात को, तो अत्यन्त प्रिय है और इसी सहस्रार को समर्पण करना आपका सहस्रार भी इसी श्रीफल जैसा है। माँ को आप जान लेंगे कि 'नज़र अपनी हमेशा ऊँची रखें। चाहिये। अनेक लोगों ने कल मुझसे कहा कि 'माँ, हाथ अगर कोई सी भी सीढ़ी पर आप खड़े हैं, लेकिन आप में तो ठण्डा आता है, पैर में भी ठण्डा आता है, पर यहाँ की नज़़र ऊँची है, तो वो आदमी 'उस' आदमी से नहीं आता।' वहाँ कौन बैठा हुआ है? बस इसको जान ऊँचा है 'जो' ऊपर खड़े होकर भी नज़र नीची रखता लेना चाहिये, यहाँ से ठण्डक आ जाएगी। और वहाँ जो बैठे हुए हैं, वो सारे ही चीज़ों का फल है। इसीलिये कभी-कभी बड़े पुराने सहज योगी भी 'धक' से नीचे चले आते हैं। लोग बताते हैं कि 'माँ हैं। इस पेड़ की जो नीचे गड़ी हुई जड़ें हैं, वो भी उसी ये तो बड़े पुराने सहजयोगी थे इतने साल से आपके से जन्मी हैं। इसकी जो तना है, इसकी जो मेहनत है, साथ रहे, ये किया, वो किया पर नज़र तो उनकी हमेशा इसका जो evolution ( उत्क्रान्ति) है, यह 'सब' कुछ नीची रही! तो मैं क्या करू? अगर नज़र नीचे रखी तो अन्त में जाकर के वो फल बना। उस फल में सब कुछ वो चले आये नीचे नज़र हमेशा ऊपर रखनी चाहिए। निहित है। फिर से आप उस फल को ज़मीन में डाल अब जिसे भी फल को देखना है तो नज़र आपकी ऊपर। दीजिये, फिर से वही सारी चीज निकल आएगी। 'वो इनकी भी नज़र ऊपर है। इन सबकी नजर ऊपर है, क्योंकि बगैर नजर ऊपर किये हुए वो जानते हैं कि सबका अर्थ वही है; वो सबका अन्त वही है। सारे संसार में जो कुछ भी आज तक परमात्मा का कार्य हुआ है, जो न हम सूर्य को पा सकते हैं, न ही ये कार्य हो सकता भी उन्होंने कार्य किया है, उसका सारा समग्र-स्वरूप, 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-40.txt सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 39 चतन्य सहरी खण्ड -XV अंक :9 एवं 10 फल-स्वरूप आज का हमारा यह महायोग हैं। और (स्तर) का है। उस पर वो चलते हैं। लेकिन आपका उसकी स्वामिनी कौन है? आप जानते हैं। तो ऐसे शुभ level अलग है। आप अपने level से रहिये दूसरों की समय पर आप लोग पैदा हुए हैं, ऐसे शुभ अवसर में आकर के आपने ये प्राप्त किया है। सो धन्य समझना ओर अधिकतर जब आप देखते हैं तो दया-दृष्टि से, क्योंकि यह बेचारे क्या हैं, इनका क्या होने वाला है? यह कहाँ जायेंगे इनकी समझ में नहीं आता, इनकी गति ही क्या है? यह कौन-से मार्ग में पहुँचने वाले हैं? इसको चाहिए और इस श्रीफल स्वरूप होकर के और समर्पित होना चाहिये। पेड़ से तभी फल हटाया जाता है जब वो परिपक्व समझ करके और आप लोग यह समझें कि इनको अगर होता है, नहीं तो बेकार है। पकने से पहले वो माँ को नहीं दिया जाता। इसलिये परिपक्वता आनी चाहिये। है- समझाया जाए। लेकिन अगर यह लोग परवाह न करें समझाने से समझ आ जाये सहजयोग, तो बहुत अच्छा तो इनके आगे सर फोड़ने से कोई फायदा नहीं। अपने बचपना छोड़ देना चाहिए। जब तक बचपना रहेगा, आप पेड़ से चिपके रहेंगे लेकिन समर्पण के लिये पेड़ पर श्रीफल को फोड़ने से कोई फायदा नहीं। इसको बचाकर रखें। इसका कार्य बहुत ऊँचा है। इसको बड़ी ऊँची चीज के लिये आपने पाया हुआ है और उसी ऊँचे स्तर पर इसे रखें और उसी सम्पन्न चिपका हुआ फल किस काम का? उस पेड़ से हटाकर के जो अगर वो समर्पित हो तभी माना जाता है कि पूजा सम्पन्न हुई। इसलिये सहजयोग को समझने के लिये एक बड़ा भारी आपके सामने प्रतीक रूप से स्वयं साक्षात् अद्भुत स्थिति को प्राप्त होने पर ही आप अपने को धन्य श्रीफल ही खड़ा हुआ है। यह बड़ी मेहरबानी हो गई कि आज यहाँ पर हम लोग सब एकत्रित हुए और इस महान् समझ सकते हैं। इसलिये हमको व्यर्थ चीज़ों के लिये अपनी खोपड़ी फोड़ने की कोई जरूरत नहीं। किसी से समारोह में इन सब पेड़ों ने भी हमारा साथ दिया है। यह argue (बहस) करने की जरूरत नहीं। पर अपनी स्थिति को वनाये रखना चाहिए। नीचे उतरना नहीं भी सारी बातों से नादित हैं, यह भी स्पन्दित हैं और यह चाहिए। जब तक यह नहीं होगा तब तक सहजयोग का भी सुन रहे हैं; उसी ताल पर यह भी नाच रहे हैं। यह पूरा-पूरा आप में जो कुछ समर्पण पाना था वो नहीं इसी प्रकार आप लोगों के भी श्रीफल हैं. उसको पूरी पाया जो कुछ अपनाना था, वो नहीं पाया। जो कुछ तरह से परिपक्व करना है उसको परिपक्व करने का growth (वृद्धि) थी वो नहीं पाई। जो आपकी पूरी तरह एक ही तरीका है कि अपने हृदय से सामंजस्य बनायें। से सरदारगिरी पूरी उन्नति होने की थी, वो नहीं हुई और हृदय से एकाकार होने की चीज है। हृदय में और आप गलतफ़हमी में फँस गये। इसलिये किसी भी मिथ्या चीज पर आप यह न सोचे कि हम कोई बड़े भारी सहजयोगी हो गये या कुछ हो गये। जब आप बहुत बड़े हो जाते हैं तो आप झुक जाते हैं, आप झुक जाते हैं। देखिये, इन तीन पेड़ों की ओर, हवा उल्टी तरफ बह भी समझ रहे हैं कि बात क्या है। मस्तिष्क में कोई भी अन्तर नहीं है। हृदय से इच्छा करते हैं और मस्तिष्क से उसकी पूर्ति करते हैं। दोनों चीजें जब एकाकार हो जायेंगी तभी आपको पूरा लाभ होगा। अब सर्वसाधारण लोगों के लिये सहजयोग एक बड़ी secret (रहस्यमयी) बात है। उनकी समझ में नहीं आने वाली-क्योंकि उनका जीवन ही रोज मर्रा का उसी level रही है। वास्तव में तो पेड़ों को इस तरफ झुक जाना चाहिये जबकि हवा इस तरफ बह रही है। लेकिन पेड़ 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-41.txt चैतन्य लहरी खण्ड ४V अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अव्टूबर 2003 40 किस तरफ झुके जा रहे हैं? आप लोगों ने कभी mark तो छोड़ो पहले पैर के, नहीं तो कैसे ले जाऊंगा. मैं?' किया है कि सारे पेड़ों की दिशा उधर है क्यों? वहाँ से पैर में बड़े-बड़े आप ने लोड बाँध दिये तो उनको कटवा तो हवा आकर के उसको धकेले जा रही है फिर तो भी ही देना अच्छा है और नहीं कटवा सकते तो कम-से-कम पेड़ उसी तरफ क्यों झुक रहे हैं? और अगर ये हवा न चले तो न जाने और कितने ये लोग झुक जायें। क्योंकि ये करो कि उनसे परे रहो । इस तरह की चीजें जो-जो आपने पैर में बाँध रखी हैं, उसे एकदम तोड़-ताड़ कर ये जानते हैं कि सबको देने वाला "वो" है। उसके प्रति ऊपर उठ जाओ| कहना चाहिये, आपको जो करना है करिये लेकिन हम से कोई मतलब नहीं क्योंकि और एसे ही कितनी बाधायें हैं और यह फालतू की बाधायें लगा नतमस्तक होकर के वो झुक रहे हैं और 'वो' देने वाला जो है, वो है "धर्म"। हमारे अन्दर जो धर्म है जब वो पूरी तरह से जागृत होगा, पूरी तरह से कार्यान्वित होगा, तभी और पौष्टिक लेने से कोई फायदा नहीं। श्रीफल इतने मीठे, होंगे। फिर तो आपके जोवन से ही संसार आपको हमारे अन्दर के जिस तरह से ये पेड़ देखिये, इतना भारी फल उसको सुन्दर उठा लेते हैं-ऊपर! कितना भारी होता है यह फल, इसके अन्दर पानी होता है। इस फल को उसने अपने ऊपर जानेगा और किसी चीज़ से नहीं जानेगा, आप लोग कैसे हैं। ि उठाया है। इसी प्रकार आपको भी इस सर को उठाना है अब चौदह बार आप इसका जन्मदिन, इस सहम्रार और इस सर को उठाते वक्त ये याद रखना चाहिंए कि का मना रहे हैं और न जाने कितने साल और इसका सर को नत मस्तक होना चाहिये, समुद्र की ओर। समुद्र मनाएंगे। लेकिन जो भी आपने इस सहस्रार का जन्मदिन जो है, ये धर्म का लक्षण है। इसको धर्म की ओर मनाया उसी के साथ-साथ आपका भी सहस्रार खुल रहा नतमस्तक होना चाहिए। बहुत-से सहजयोगी यह समझते है और बढ़ रहा है। ही नहीं हैं कि जब तक हम 'धर्म' में पूरी तरह नहीं कोई भी तरह का compromise (समझौता) करना, कोई भी तरह की बातों में अपने को ढील दे देना, उतरते, हम सहजयोगी हो ही नहीं सकते। हर तरह की गलतियाँ करते रहते हैं जैसे बहुत-से लोग हैं. तम्बाकू खाते हैं, सिगरेट पीते हैं, शराब पीते हैं, ये सब करते रहते सहजयोगियों को शोभा नहीं देता। जो आदमी सहजयोंगी है उसको वीरस्वपूर्ण अपना मार्ग आगे बढ़ाना चाहिये। हैं और फ़िर कहते हैं हमारी सहज योग में प्रगति नहीं कितनी भी रुकावटे आयें, घर वाले हैं family वाले हैं. ह ये हैं, वो हैं, तमाशे हैं, इनका कोई मतलब नहीं। ये सब लगे हैं। हुई।' तो होगी कैसे? आप अपने ही पीछे हाथ धो करके सहजयोग के कुछ छोटे-छोटे नियम हैं, बहुत simple आपके हो चुके हज़ार बार। इस जन्म में आपको पाने का है और आपके पाने से और लोग पा गये तो उनका धन्य (सादे) हैं-इसके लिये आपको शक्ति मिली है वो पूरी तरह से आप अपने आचरण में व्यवहार में लायें। और हैं, उनकी भाग्य है। नहीं पा गये ती क्या आप, क्या सबसे बड़ी चीज़ जो इनके (पेड़ों के) झुकाव में है वो उनको अपने हाथ से पकड़कर ऊपर ले जाओगे? यह तो ऐसा हो गया कि आप समुद्र में जायें और अपने पैर में नतमस्तक होना, और उस प्रेम को अपने अन्दर से दर्शित बड़े-बड़े पत्थर जोड़ लें और कहें कि 'समुद्र, देखों, मुझे तो तैराकर ले जाओ।' समुद्र कहेगा कि 'भई! ये पत्थर करना। जो कुछ आपने परमात्मा से पाया, उस प्रेम को परमात्मा को समर्पित करते हुए याद रखना चाहिए कि 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-42.txt सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 41 चैतन्य लहरीं खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 एक ही शक्ति है जिसे हम कह सकते हैं ' प्रेम' और प्रेम ही से सब आकारित होने से सब चीज़ सुन्दर, सुडौल सबके प्रति प्रेम हो। अन्त में यही कहना चाहिये कि जिस मस्तष्क में, जिस सहस्रार में प्रेम नहीं हो, वहाँ हमारा वास नहीं और व्यवस्थित हो सकती है। जो सिर्फ शुष्क विचार हैं है। सिर्फ दिमाग में प्रेम ही की बात आनी चाहिये कि उसमें कोई अर्थ नहीं। और शुष्क विचार तो आप जानते प्रेम के लक्षण में क्या करना है। गहराई से सोचें, तो मैं फिर वही कह रही हूँ कि दिल को कैसे हम प्रेम में ला ही हैं, वो सिर्फ अहंकार से आता है और जो मन से आने वाली चीज़ है वो दूसरी-ऊपर से जरूरी उसको खूबसूरती ला देती है लेकिन अन्दर से खोखली है। इसलिए एक सकते हैं। यही सोचना चाहिये कि क्या ये मैं प्रेम में कर रहा हूँ? ये क्या प्रेम में बात हो रही है? सारी चीज़ मैं चीज़ गन्दी होती है लेकिन शुष्क होती है, दूसरी चीज़ प्रेम में कर रहा हूँ? ये सब कुछ बोलना मेरा, करना-धरना सुन्दर होती है लेकिन नीरस होती है, पूर्णतया खोखली क्या प्रेम में हो रहा है? किसी को मार-पीट भी सकते होती है। एक नीरस है, तो दूसरी खोखली । दोनों चीजों का सामंजस्य इस तरह से बैठ ही नहीं सकता क्योंकि हैं आप प्रेम में इसमें हर्ज नहीं। अगर झूठ बात हो तो मार सकते हैं-कोई हर्ज नहीं। लेकिन यह क्या प्रेम में हो एक दूसरे के विरोध में है । रहा है? देवी ने इतने राक्षसों को मारा, वो भी प्रेम में ही लेकिन Realization (आत्म-साक्षात्कार) के बाद मारा। उन से भी प्रेम किया, उससे वो ज्यादा कहीं, और में, सहजयोग में आने के बाद में सारे विरोध छूटकर के जो चीज़ विरोधात्मक लगती है, वो ऐसा लगता है कि भी राक्षस के महाराक्षस न बन जायें और अपने भक्तों को प्रेम की वजह से, उनको बचाने के लिये, उनको मारा। वो एक ही चीज़ के दो अंग हैं। और यह आपके अन्दर उस अनन्त शक्ति में भी प्रेम का ही भाव है जिससे हो जाना चाहिये। जिस दिन ये चीज़ घटित होगी, तब हमें मानना पड़ेगा कि हमने अपने सहस्रार का 14वाँ उनका हित हो वही प्रेम है। तो क्या आप इस तरह का प्रेम कर रहे हैं कि जिससे जन्मदिन पूरी तरह से मनाया। उनका हित हो? यह सोचना है। और अगर कर रहे हैं तो परमात्मा आप सबको सुखी रखे और इस शुभ अवसर पर हमारी ओर से और सारे देवताओं की ओर से, आपने वो चीज़ पा ली जो मैं कह रही थी कि सामंजस्य आना चाहिए। तो वो सामंजस्य आपके अन्दर आ गया। परमात्मा की ओर से आप सब को अनन्त आशीर्वाद। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-43.txt श्रीमाताजी की महिलाओं से बातचीत जनवरी 1984 महिलाओं को वह सब करने की आवश्यकता नहीं है हैं। अत: हम कहते हैं कि 'अब बसन्त का समय आ करते हैं अन्यथा उनकी शक्ति पूर्णतया बर्बाद जो गया है 'Blossom time has now come', इस पुरुष हो जाएगी। इस कुम्भ युग में कुण्डलिनी उत्थान के लिए समय पर कुण्डलिनी को उठना है और इस प्रकार पूरी तैयारी कर दी गई है ताकि बाँए और दाँए का मिलन प्रज्जवलित करना है कि पूरे विश्व की पूर्णता घटित हो हो, उनमें सन्तुलन आए तथा आप लोग प्रज्जवलित- सके। यह सहज बात है। क्या अब आप इसे समझ पाए? ज्योतिर्मय बन जाएं यह हमारे अस्तित्व का प्रश्न था ताकि पूरे ज्ञान को उचित सूझ-बूझ से परस्पर बाँटा जाए। अब देखिए कि किस प्रकार स्वयं पृथ्वी माँ की सृष्टि हुई। यह अत्यन्त साधारण चीज़ है। सर्वप्रथम ऊर्जा की अत: पुरुषों और महिलाओं में कोई स्पर्धा नहीं है, उनकी कार्य शैली भिन्न है आप जब इस बात को समझ जाएँगे केवल तभी इस प्रकार कि क्रांति घटित हो सकेगी परन्तु जो कि विद्रोह नहीं बन पाएगी वास्तव में महिलाएँ आज-कल पुरुषों के विरुद्ध विद्रोह कर रही हैं यह मूर्खता है। यह ऐसा सिरदर्द हैं जैसे आप किसी चीज़ का सृजन करते हैं उसे विकसित होने का अवसर देते हैं और गतिविधि का प्रवाह आरम्भ हुआ। यह शक्ति मिश्रित शक्ति है. ठीक है। तत्पश्चात् यह मिश्रित शक्ति चहूँ ओर परिक्रमा में चली गई और जब इसने पिण्ड रूप कोई दूसरा आता है, जिसे यह कार्य पूर्ण करना होता है. धारेण किया तो तुमुल-नाद (Big-bang) हुआ। अब यह एक पुरुषोचित (मर्दाना) (Manly) कार्य है, या मुझे कहना चाहिए, यह मर्दाना शैली है क्योंकि अभी परन्तु वह विद्रोह कर उठता है। अत: क्रांति तो घटित होती है परन्तु यह क्रांति तभी सम्भव है जब हम यह तक पृथ्वी माँ का सृजन नहीं हुआ था। अत: ये समझ लें कि कार्य का कौन सा भाग बाकी है, कौन सा छोटे-छोटे पिण्ड गोल-गोल परिक्रमा में घूमते रहे औरकार्य होना शेष है क्या आप मुझे ठीक से समझ रहे हैं? गोल गति में घूमते हुए इन्होंने गोलाकार धारण किया इन गोल पिण्डों में से एक कार्य विशेष के लिए धरा माँ को हमारी कुण्डलिनी की जागृति। इस कार्य के लिए आप तो कार्य का वह भाग अव करना हैं - आत्मसाक्षात्कार, चुना गया। पृथ्वी माँ पर जल में से जीवन का उदय के मादा गुण (Feminine Qualities) आपकी मदद हुआ कार्बन का प्रवेश हुआ। सभी शक्तियों ने सहायता करेंगे, आपके मर्दांना गुण नहीं। अत: पुरुषों को चाहिए की और मानव का सृजन हुआ। तत्पश्चात् मानव अपने कि आक्रामकता (Aggressiveness) त्याग दें। वैसे समाज को सुधारने के लिए निकला और अपने अहम् के भी क्योंकि अब वो सहजयोगी हैं, उन्हें मादा गुण माध्यम से जो भी बन पाया उसने किया। अब यह सब (विनम्रता) अपनानी होगी। परन्तु यह मादा गुण परस्पर हो चुका है। मानव अपना कार्य कर चुका हैं और अब झगड़ना नहीं है। महिलाएँ यदि परस्पर लड़ती हैं तो वे महिलाएँ नहीं हैं। आप देखें, महिलाओं को कहा जाता वह अनुदान (Doie) का आनन्द ले रहा है। अब महिलाओं ने अपना कार्य पूर्ण करना है और मिल कर आगे बढ़ना है। महिलाएँ, या हम कह सकते हैं कुण्डलिनी, इतने वर्षो तक आराम फरमा रही थी और है कि 'आप किसी काम की नहीं।' तो अब वो यह दर्शाने के प्रयत्न कर रही हैं 'नहीं, हम भी ठीक हैं। आप ने ( पुरुष) यदि एक कौवा खाया है तो हम तीन कौवे खाएँगी।' समय की प्रतीक्षा कर रही थी। क्या यह बात ठीक नहीं 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-44.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 43 अब सूझ-बूझ तथा विवेकशील सोच यह होगी कि, "हमें जीवन की इस प्रथा तथा शैली को बदलने के लिए क्या करना होगा? यहाँ पर क्या दोष हैं?" परिवर्तन विन्दु है। फैशन से-" तो ठीक है, अगर तुम ऐसे हो तो ठीक है।" समाप्त। ईसा-मसीह ने इस सीमा तक क्षमा दर्शायी थी, अब वे इस कुण्डल को परिवर्तन प्रदान कर रहे हैं और आप मानवों के अन्दर ये जो मादा गुण है (क्षमा शीलता) उत्थान किसी भी प्रकार से विद्रोह नहीं है। आ गया लोगों के मन में यह गलत धारणा है। ऐसा नहीं है कि आप मुझे चोट मारो और मैं आपको चोट मारूँ तथा विकसित होनी आवश्यक है। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि आप महिलाओं की तरह से चलना शुरु कर दें या दोलक (Pendulum) कि तरह से एक दूसरे को चोट मारते चले जाएं। यह धमाके की तरह से नहीं है कि पतली कमर बनाने लगें। क्योंकि यह एक अन्य मूर्खता है। उन्हें 'माँ सम' होना हैं, पिता सम नहीं, माँ सम। एक आज आप ने मुसलमान के रूप में जन्म लिया, कल दूसरे के प्रति व्यवहार में आपके अन्दर 'वह करुणा यहूदी के रूप में और फिर हिन्दू के रूप में-यह दोलक वह कोमलता' होनी चाहिए। नि:संदेह यह शक्ति त्रुटि सुधार भी करती है, कभी-कभी नाराज भी हो जाती है। माँ को भी कई बार, बच्चे यदि नहीं है। यह कुण्डलाकार गति हैं। अत: जब-जब भी आप कोई उत्थान प्राप्त करते हैं तो पहले से ऊँचे स्थान पर पहुँच जाते हैं। अत: उत्थान की गति कुण्डलाकार है। अपने व्यवहार में सुधार न करें तो माँ (आदि शक्ति) को भी कभी-कभी नाराज़ होना पड़ता है, क्रोधित होना क्या आप मेरी इस बात को समझ पाए? अपने अस्तित्व की उच्चतम स्थिति पाने के लिए हमें पड़ता है। कई बार उसे चिल्लाना पड़ता है, दण्ड देना क्या करना चाहिए? इसके लिए यह समझना चाहिए कि पड़ता है और कई बार विनाश भी करना पड़ता है। यह बात ठीक है, परन्तु ऐसा कभी कभी होता है। हमेशा इस बिन्दु से उस बिन्दु तक पहुँचने के लिए हमारी चाल दोलक जैसी न होकर कुण्डलाकार (घुमावदार) होती है। नहीं। अत: व्यक्ति को यह स्वीकार करना होगा कि माँ की कुण्डल के रूप में चलने के लिए व्यक्ति को एक अन्य तरह से बनने के लिए उसमें सहन-शक्ति आवश्यक प्रकार की शक्ति का उपयोग करना पड़ता है। अभी तक जो भी शक्ति आप उपयोग करते रहे हैं, उसमें दूसरे है-आधार (धारण करने वाला) सभी चीज़ों का आधार। वो सभी चीजें ले लेती है, चैतन्य लहरियों को भी सोख और यह प्रकार की शक्ति के गुण लाने होंगे महिलाओं के मादा गुण हैं। परन्तु आज मादा महिलाएँ हैं लेती है। अब आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेने के बाद, कहाँ? मैं महिलाओं की तरह से वस्त्र पहनती हूँ परन्तु पहली बार आप उन्हें वो लौटा सकते हैं जो आपने उनसे इतना ही काफी नहीं है। अन्दर से, हृदय से, क्या उनमें लिया है। उनके बनाए हुए पेड़ों को आप चैतन्य लहरियाँ कोमल मादा-हृदय है? ईसा-मसीह ने यह चीज़ अपने दे सकते हैं और उन्हें सुन्दर बना सकते हैं। किसी भी पुष्प को आप अधिक सुन्दर बना सकते हैं जो भी कुछ जीवन में दर्शायी थी। उन्होंने क्षमा की। केवल महिला ही क्षमा कर सकती है, पुरुष क्षमा नहीं कर सकता क्योंकि आपने पृथ्वी माँ से प्राप्त किया है वह आप लौटा सकते वो तो स्वभाव से ही आक्रामक होता है। वह किस प्रकार हैं, क्योंकि पृथ्वी माँ अब आपके अन्दर जागृत हो गई है। अत: जो भी कुछ आपने उनसे प्राप्त किया है वह सब उन्हें लौटा दें, अन्य लोगों को दें - 'उदारता, हृदय की से क्षमा कर सकता है? श्रीकृष्ण ने कभी भी किसी को क्षमा नहीं किया। वो तो वध कर दिया करते थे। शाही 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-45.txt चैतन्य लहरी खण्ड -४V अक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 44 विशालता, श्रेष्ठता, क्षमाशीलता, प्रेम, स्नेह और प्रेम के है कुछ बातें वास्तव में बहुत मधुर होती हैं आप बहुत कारण सभी कुछ सहन करना।' शिशु की रक्षा करने के से मधुर शब्द कह सकते हैं जैसे 'आपको ठंड तो नहीं करेगी-अपने लग रही?' ग्रश्न पूछने का यह बहुत मधुर लिए माँ खुद भूखी रह जाएगी, सभी कुछ तरीका है। बच्चे के प्रति माँ का इतना समर्पण होता है, वही माँ यह बहुत साधारण बात है। इस बात को आप देख सकते वास्तव में सच्ची माँ है। कहने से मेरा अभिप्राय यह है हैं परन्तु मैंने यह देखा है कि लोगों को इतनी सी बात कि आज कल जो माताएं आप देखते हैं, वो न तो माताएं कहने में भी कठिनाई होती है। अन्य लोगों के सुख-सुविधाओं हैं और न ही महिलाएं। मैं जो कह रही हूँ वही माँ की को देखना, मान लो कोई व्यक्ति बैठा है उसे पानी सच्ची प्रतिमा है और आपके सम्मुख एक ऐसी प्रतिमा चाहिए। आपको चाहिए कि दौड़ कर उसे पानी दें। विद्यमान है । आप चाहे, पुरुष हो या महिलाएं. सहजयोगियों 'ओह! इतनी आशा करना तो बहुत ज्यादती है। हे के रूप में आपने अपने अन्दर यह गुण विकसित करने परमात्मा! आपने पानी दिया!' 'मैं आपका नौकर नहीं हैं। अपने अन्दर आपने प्रेम, स्नेह एवं करुणा रूपी हूँ-तुरन्त यह प्रश्न मस्तिष्क में उठता हैं। यहाँ वहाँ कुछ नई चेतना विकसित करनी है। क्रोधित होना, आपा कर देना, कुछ सोचना, बाज़ार जाकर कुछ खोजना। ओह! यह चीज़ मुझे उसके लिए ले जानी चाहिए। ऐसा कर देना चाहिए। मैंने कुछ बच्चों को देखा है जो सदैव यही सोचते रहते हैं कि अपने मित्रों के लिए क्या खरीद खो देना, लोगों पर चिल्लाना आदि से आपको कोई लाभ न होगा। आप यदि पूर्ण की सहायता करना चाहते हैं, पूर्ण विकास चाहते हैं तो स्वयं को विनम्र बनाने का प्रयत्न करें, स्वयं पर नाराज़ हों कि आप क्रोधित होते लें?' 'मेरे मित्र के लिए यह चीज़़ बहुत अच्छी है। उसे ऐसी चीजें बहुत पसन्द हैं।' यह सभी छोटी-छोटी बातें हैं और दूसरों के प्रति इतने क्रूर हैं। मर्दानगी के अवाछित विकास के कारण ही सारी समस्या उत्पन्न हुई है।' यह बहुत आवश्यक हैं। एक दूसरे के लिए यह सभी छोटे-छोटे कार्य करें। कभी-कभी ऐसी छोटी-छोटी एक ऐसे बिन्दु पर पहुँचता है, इतने कष्टकर बिन्दु तक चीजें जैसे जब आप प्रात: काल उठते हैं तो देखते हैं कि यह पहुँचता है कि अब इसे नीचे आना ही चाहिए, हर सहजयोगी, हर व्यक्ति के लिए आपके मन में प्रेम होना कोई व्यक्ति सोया हुआ है, उसका कम्बल एक तरफ चाहिए। पड़ा है और सराहना दूसरी तरफ। उसको देखना एक माँ नए साधकों के साथ किस प्रकार से व्यवहार करें? सर्वप्रथम आपको भद्र, विनम्र, मधुर एवम् सुखकर होने के विषय में सोचना चाहिए। इसके विषय में सोचे और इसके तरीके खोज निकालें। शाम को बैठकर लिख का कार्य है। किसी भय के कारण नहीं, मात्र प्रेम के कारण उसे देखें। यदि ठंड है और किसी सहजयोगी के बटन खुले हुए हैं तो आप उसे बन्द कर सकते हैं । छोटी-छोटी चीज़ें हैं जो आप जानते हैं। महिलाएं भी बहुत से मधुर कार्य कर सकती हैं। ऐसे कार्य जिनसे पुरुष प्रसन्न हो जाते हैं। परन्तु आजकल लेना बहुत अच्छा होगा कि 'आज मैंने कितनी मधुर बातें कहीं? जिस प्रकार से प्राय: हम मधुर बातें करते हैं वैसे महिलाओं में यह विवेक समाप्त हो गया है। लड़ना-झगड़ना नहीं है। यह सोचना है कि कौन से मधुर कार्य आप कर सकते हैं। अहम् पर नियन्त्रण पाने के लिए, सहजयोगी नहीं-' आज आप बहुत सुन्दर लग रही हैं' आदि-आदि। सतही बातें नहीं, इन बातों से अहम् को बढ़ावा मिलता 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-46.txt बैतन्य लहरी खण्ड XV अंक :9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्ट्बर 2003 45 बनने के लिए, किस सीमा तक आप सहजयोग के सत्य आपके अन्दर वास्तव में सहजयोग स्थापित हो पाएगा। अब यह आम पर निर्भर करता है कि आप कौन सा से एकरूप हैं? यह आप पर निर्भर करता है कि आप इसे कितना प्राप्त करेंगे, कितना आत्मसात करेंगे। आप ही स्थान लेते हैं और किस स्तर तक पहुँचते हैं। यदि आप ने सभी कुछ परिवर्तित करना है यह आपका कार्य है इसलिए यह गम्भीर मामला है। अन्य सहजयोगियों के विषय में, छोटी-छोटी अनावश्यक चीजों को सोचने में ही अपना सारा समय बर्वाद कर रहे हैं तो आपका विधटन (Disintegralion) और अधिक दूसरी बात मैं हमेशा कहती रही हूँ कि अहम् की बढ़ जाएगा, आप इससे और भी दूर चले जाएंगे। क्योंकि समस्या के कारण हम अत्यन्त अवखन्डित (Disintegrated) रहे हैं हम इतने अवखन्डित रहे हैं यह सभी निर्णय आपके अहम् द्वारा लिए गए हैं। कि परमात्मा से हमारा सम्बन्ध कभी भी पूर्णत: स्थापित उदाहरण के रूप में आपका कहना कि, "मुझे यह पसन्द जैसा मैंने बताया कि जिस यन्त्र के माध्यम से नहीं है, मैं बो नहीं करता, मैं यह नहीं देखता, नहीं हुआ। में बात कर रही हैूँ (माईक) अगर यह पाँच हिस्सों में बंट जाए और इसके पाँचों भाग परस्पर लड़ने लगे तो इसके माध्यम से आप कुछ भी नहीं कर सकते हैं चाहे यह अपने स्रोत से जुड़ा हुआ ही क्यों न हो। इसी प्रकार से यदि आप अब भी अवखन्डित हैं तो आप को योग आदि-आदि।' किसी तरह से यदि आप अपने अहम् को कार्य करते हुए देख लें तो आप इससे मुक्ति प्राप्त कर सकेंगे और यही कार्य व्यक्ति ने करना है-अहम् से झगड़ना नहीं है। मैं कभी नहीं कहती कि अहम् से लड़ाई करें। इसे समर्पित कर दें केवल इसी तरीके से आपका अहम् जा प्राप्त नही हो सकता। सकता है। हमारे यहाँ कुछ बहुत उच्च स्तर के सहजयोगी होंगे। झूठे सन्तों का सम्मान न करें उनकी जूता पिटाई करें। प्रात: काल उठ कर ध्यान धारणा करें। यहाँ (इंग्लैंड) पर तो लोग प्रात: उठने के लिए ही एतराज करते हैं । इस मैं यह भी जानती हूँ कि कुछ मध्यम दर्ज के होंगे, कुछ बेकार होंगे और कुछ को बाहर फेंक दिया जाएगा सभी प्रकार के सहजयोगी हमारे यहाँ होंगे यह बात मैं जानती हूँ। अब आपने स्वयं यह निर्णय करना है कि आप कौन तरह की धीमी गति वाले लोगों के साथ आप क्या करेंगे? से दर्जे में आते हैं। आप देखिए, ऐसा कर पाना अत्यन्त कठिन है और मैं उदाहरण के रूप में मैंने देखा है कि लोग यहाँ यह सोचती हूँ कि हमें यह समझ लेना आवश्यक है कि सहजयोग के लिए आते हैं परन्तु उनकी रुचियाँ और पश्चिम में हमारे सम्मुख बहुत बड़ी जिम्मेदारी है । यह प्राथमिकताएँ अन्य चीजों में होती हैं और वही उनके घटना लन्दन में ही होनी थी इसका आरम्भ इंग्लैंड में ही लिए महत्वपूर्ण हैं। उन्हीं के लिए वे सारा समय बर्बाद होना था इसलिए आप लोगों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी श्रीमाताजी, है। आपको अपना तथा सहजयोग का बार-बार मूल्यांकन कर देते हैं और फिर कहते हैं कि. सहजयोग में हमारी उन्नति ठीक प्रकार से नहीं हो रही करना होगा और यह जान लेना होगा कि आपका अहम् है।" आप यदि निर्णय करें, (जैसे मिस्टर वेणुगोपालन तथा प्रतिअहम् ही आपकी गति को रोक रहा है, इसमें आपको बता चुके हैं) कि 'हमें सर्वप्रथम सहजयोग कोई सन्देह नहीं। करना है बाकी सबकुछ बाद की बातें हैं' केवल तभी परन्तु अहम् मुख्य समस्या है। मैं आपको बता देना 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-47.txt चैतत्य तहरों खण्ड -XV अंक :9 एवं 10 सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 46 चाहती हूँ कि अहम् ही मुख्य समस्या है मैं किसी को नहीं कह सकती कि यह आपका अहम् है परन्तु बलपूर्वक सबने इसे कार्यान्वित करना है आज विश्व भर में आपके भाई बहन हैं। पूर्ण हृदय से जब आप समझ जाएंगे तो वो भी वैसे ही पूर्ण हृदय से अत्यन्त मधुर बात है कि क्योंकि ऐसा करने पर तो वे मेरे सिर पर कूद पड़ेगे। परन्तु अहम् को देखने का प्रयत्न करें। देखें कि किस आपका स्वागत करेंगे। परन्तु हमें एक ऐसे स्तर तक तरह से यह विचलित कर रहा है। आप अपने आनन्द को खोज रहे हैं। यह आपका अपना है परन्तु आपसे छुपा हुआ है और आप इसे युगों से खोज रहे हैं। अब इसी पहुँचना होगा जहाँ हम पूर्ण प्रेम. स्पष्टवादिता से परिपूर्ण होकर विना किसी की चिन्ता किए या उससे डरे एक दूसरे का सामना कर सकें और कह सके कि ये हमारे है। जो व्यक्ति आपको भाई हैं और हम इनके, तथा हमें इनसे प्रेम करना है। का रहस्य मेंने समाप्त करना आपको सहजयोग में अपने भाई बहनों से प्रेम करना महानतम चीज़ देने का प्रयत्न कर रहा है उससे बहस करने का क्या लाभ है? यह तो अपनी शक्ति को बर्बाद है। ऐसा तभी सम्भव हो सकता है जब हम भय मुक्त हो जाएँ। क्योंकि इसका अन्य पक्ष भी है कि अहम् के साथ भय भी जुड़े होते हैं। अहंकारी अन्य लोगों को उत्पीड़ित करना है। मूर्खतापूर्ण चीजों तथा दूसरों के दोष खोजने में अपनी शक्ति बरबाद न करें। अब श्री वेणुगोपालन हमारी पुस्तक की छपाई आदि का बहुत ही शान्तिपूर्वक प्रबन्ध कर रहे थे कोई समस्या मेरे सम्मुख नहीं आई । आपने दिल्ली के कैम्प देखे हैं. करता है और यह भी जानता है कि दूसरे लोग भी उसका उत्पीडन कर सकते हैं अत: इस बात को हमें सोचना है कि उत्पीड़न से हमें कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। कभी अपना तिरस्कार न करें। आप सन्त हैं यह बात आपको समझनी है। इस विश्व में आप ही साक्षात्कारी लोग हैं। यह किस प्रकार कार्य करते हैं। आपने देखा है कि वहाँ कार्य करने के लिए कितने अधिक लोग होते हैं! कभी कोई समस्या नहीं होती। आपने किसी को शिकायत करते कितने लोग हैं जो कुण्डलिनी उठा सकते हैं? चैतन्य लहरियों को समझने वाले कितने लोग हैं? हुए, लड़ाई झगड़ा करते हुए देखा है? इस प्रकार का गुरु पूजा पर मैं आपको बताऊँगी कि आपने क्या उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं और आपके अन्दर कौन सी कुछ भी नहीं हुआ। हर समय दूसरों के दोष खोजना या स्वयं को दोष देते रहना, विवेक का चिन्ह नहीं है। दोनों ही बातें गलत हैं। सर्वोत्तम बात तो अधिक से अधिक शक्तियाँ जागृत हो गई हैं जो कार्यरत हैं। सहजयोग के हैं। विवेक को प्राप्त करना और स्वयं यह देखना है कि हम माध्यम से किस प्रकार आपके चक्र जागृत हो गए अधिक से अधिक बुद्धिमान बन रहे हैं। आपमें से कुछ हाँ ऐसा घटित हुआ है। लेकिन आप इसके विषय में क्या लोग वास्तव में बहुत उन्नत हैं और कुछ ऊपर नीचे चलते रहते हैं तथा कुछ लोग अभी तक भी अत्यन्त कर रहे हैं? आप जानते हैं कि किसी के साथ घटित हो सकने वाली यह महानतम चीज है। आप यह भी जानते निम्न स्तर पर है। कि बहुत समय पूर्व की गई भविष्यवाणियों में अत: हम सबको मिलकर चलना होगा। किसी ने इस महानतम घटना को 'अन्तिम निर्णय' (The Last यदि कुछ प्राप्त कर लिया है तो सहजयोग को इसका Judgement) का नाम दिया गया। आप जानते हैं कि कोई लाभ नहीं है। मैंने आपको वताया है कि यह एक यही मार्ग हैं जिसके द्वारा आपको जांचा जाएगा। सामूहिक चीज़ है जिसे कार्यान्वित होना है और आप अत: हमें कठोर परिश्रम करना है। हमें कार्य करना है। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-48.txt सितम्बर एवं अक्टूबर 2003 47 चैतन्य तहरी खण्ड -XV अक :9 एव 10 बिना किसी प्रयत्न के यह आपको प्रदान किया गया को स्पष्ट देखें, यही आपका कार्य है। शनै: शनै: आप अपने चक्रों को देखने लगेंगे, अपनी ठीक है, परन्तु इसको बनाए रखने के लिए, उच्च स्तर पर ले जाने के लिए हमें सत्यनिष्ठा पूर्वक इसे कार्यान्वित समस्याओ को देखने लगेंगे। आप जानते हैं कि यह सब परन्तु सभी लोग तुरन्त शनै: शनै: विकसित होता है। करना होगा। इसे अधिक से अधिक प्राप्त करने के लिए, अपने अन्दर इसे आत्मसात् करने के लिए यही विनम्र परिणाम चाहते हैं। आपके अन्दर यदि धैर्य नहीं है, मेरे दृष्टिकोण है। अपने मस्तिष्क पर इसे इस प्रकार छा जाने प्रति नहीं, अपने प्रति । मैं कह रही हूँ कि आपको ध दें कि मस्तिष्क पूर्णत: आच्छादित हो जाए ढक जाए। र्यवान् होना है क्योंकि आपमें समस्या बनी हुई हैं, अत: इस शाश्वत आशीर्वाद को अपने अन्दर आने दें। इसके आपको अपने आपमें धैर्यवान होना होगा, किसी अन्य के पड साथ नहीं। यह मुख्य बात है। आप यदि स्वयं के प्रति लिए में पूरी तरह उत्सुक हूँ। स्वयं को तुच्छ न बनाएं। अपने स्वप्न को विशाल बनाएं, अपने विचारों को उच्च शान्त हैं तो आपको बहुत समय पूर्व दिए गए वचन बनाएं क्योंकि अब आप महानतम चीज़ से सम्बन्धित हैं, अनादि से, सर्वोच्च से तथा विराट से। अपने महत्व को अनुसार वह उपलब्ध प्राप्त हो जाएगी। परन्तु स्वयं से शान्त होना आपको सीखना होगा, स्वयं से क्रोधित होना नहीं। स्वयं का तिरस्कार करना नहीं। दूसरों पर अपनी जब आप महसूस करेंगे तो आप इसे कार्यान्वित करेंगे। निश्चित रूप से हमारे अन्दर कुछ चीजें गलत हो गई हैं। यह बात हम जानते हैं, उन चीजों को हमें समझना खीज़ उतारना नहीं। ऐसा करना वहुत सुगम कार्य है। परन्तु आपके जटिल जीवन और जटिल कार्य के कारण आप अन्य चीज़ों में फंस गए हैं, इनसे आसानी से मुक्ति चाहिए क्योंकि यह सब कठिनाइयाँ हमारे बहुत अधिक सोचने, बहुत अधिक पढ़ने तथा बहुत अधिक रोबीले पाई जा सकती है और बिना किसी कठिनाई के इनसे स्वभाव के कारण हैं। परन्तु हम इनसे मुक्ति पा सकते हैं। बचा जा सकता है। मैं जानती हूँ आप ऐसा कर सकते स्वयं से निर्लिप्त होकर, स्वयं को देखने से तथा स्वयं हैं। अत: मेरे पिता, मेरी बहन, मेरा भाई जैसी चीज़ों को को सम्बोधित करने से-" अब श्रीमन् आप कैसे हैं"? यह भूल जाएं, यह सभी समस्याएँ बिना किसी देरी के भस्म हो जाएंगी। ज्यों ही आपका जीवन सीधी दिशा में कार्य कर पाना सम्भव हैं। जब आप ऐसे कहेंगे तो तुरन्त आपका चित्त आपके अन्दर से, आपके वाह्य अस्तित्व चलेगा, सभी बुराइयाँ भस्म हो जाएंगी। आपके प्रकाश को देखने में लग जाएगा, ऐसा करना अत्यन्त आवश्यक के सिवाए कुछ भी बाकी न रह जाएगा तथा उन लोगों के सिवाए जो आपके पास प्रकाश प्राप्त करने के लिए है। जितना स्पष्ट आप स्वयं को देखेंगे उतना ही बेहतर है, आपने स्वयं का सामना करना है। परन्तु आप अपना आते हैं। मैं जानती हूँ कि गुरु पूजा का दिन आपके लिए महान दिवस होगा और इससे पूर्व. मेरा अनुरोध है कि आप स्वयं को तैयार करें हो सकता कुछ महान कार्य करू। परन्तु इसको लेने वाला कोई उचित व्यक्ति भी तो होना चाहिए। अतः आप स्वयं को तैयार करें। इसके विषय में सोचें कि क्या आप अन्य लोगों से प्रेम सामना नहीं करना चाहते क्योंकि स्वय का सामना करने से आप घबराते हैं । क्योंकि आप लोगों का उत्पीड़न करते रहे हैं, इसीलिए उत्पीड़ित होने से घबराते हैं। तब कोई उत्पीड़न न होगा क्योंकि जिस स्थिति में आप स्वयं को देखते हैं वह पुर्णता की स्थिति होगी। न किसी को हैं मैं उत्पीड़ित करें, और न ही किसी से उत्पीड़ित हों स्वयं 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-49.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 9 एवं 10 सितम्बर एवं अवटूबर 2003 48 त कु करी म क साम करते हैं? क्या आप ग्रेम मार्ग में हैं? क्या आप सभी को सुगन्ध फैल जाएगी। आपके अन्दर यह जागृत हो जाएगा। मैं जानती हूँ ऐसा बटित हो सकता है। जितना प्रेम करते हैं? यह सोचना मात्र ही बहुत बड़ी चीज है कि आप अन्य लोगों को प्रेम करते हैं। आप मेरे से पूंछे जल्दी यह घटित हो जाए उतना ही बेहतर है। इच्छा आपकी अपनी है, आपने ही इसकी इच्छा करनी है। क्योंकि मैं हमेशा यही सोचती हूँ कि मुझे अन्य लोगों से कितना प्रेम है। मुझमें इतना प्रेम है कि मैं सदा इसे देती में बहुत प्रसन्न हूँ कि क्रिसमस से पूर्व इतना सुन्दर रहती हूँ। कल्पना करे कि अन्य लोगां से प्रेम करना भजन सुना। आप यह बात जानते हैं। इसी प्रकार से हम कितना महान है। आप जानते हैं कि लोग मुझसे इस प्रकार व्यवहार करते हैं । अविश्वसनीय! क्या ऐसा नहीं है? फिर भी मैं उन्हें प्रेम करती हैँ और उनसे खेलना मुझे अच्छा लगता है। जिस प्रकार मैं प्रेम करती हूँ उसी अब एक अन्य क्रिसमस मनाएंगे। अपने अन्दर उत्पन्त हुए ईसा-मसीह का जन्म दिवस मनाएंगे। उनके आगमन के लिए हमें तैयारी करनी है, यह तैयारो स्वयं से दौड़कर नहीं होगी : मूर्खतापूर्ण चीज़ों से फंसने से नहीं होगी। इसे कार्यान्वित करने से होगी स्वयं को शुद्ध करने से प्रकार आपको प्रेम करना चाहिए। प्रेम ऐसी चीज़़ है जो कमल की तरह से अपने होंगी। इस शरीररूपी मंदिर में यदि आत्मा को स्थापित सौन्दर्य को फैलाता है : अपनी पंखुड़ियों को खोलता है करना है तो इसका शुद्धिकरण आवश्यक है। और मधुर सुगन्ध बहने लगती है। इसी प्रकार आपके हृदय भी खुल उठेगे और विश्व भर में आपके प्रेम की परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। ाम 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-51.txt oe