चैतन्य लहन्री ्घ खंड : XV अक : 11 व 12 नवम्बर - दिसम्बर, 2003 प्रितय ाय] गुरूपूजा, कबेला, 13 जुलाई, 2003 3 श्रीमाताजी की पेरिस यात्रा 4 विवाह की छप्पनवीं वर्षगांठ - 7. अप्रैल, 2003 7 10 श्रीमाताजी का एक पत्र- 2अगस्त, 2003 0 ईसा मसीह पूजा, लंदन, 10.12.1979 । श्रीमाताजी का प्रवचन-बम्बई, 27 मई, 1978 25 सत-चित्त-आनन्द- 37 15 फरवरी, 1977, नई दिल्ली ा घ म भि री चै त - य ल ह प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर 162 - ए, मुनीरका विहार, नई दिल्ली 110067 मुद्रक अमरनाथ प्रेस प्रा. लिमिटेड डब्ल्यू एच एस 2/47, कीर्ति नगर औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली 15 फोन : 25921159, 55458062 सदस्यता के लिए कृपया इस पते पर लिखें :- श्री ओ. पी. चान्दना 463 (जी-11) ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली 110034 फोन : 27031889 E-mail : chaitanyalahiri@indiatimes.com सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पतं पर भेजें : चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी-17, कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली ।व0016 गुरु पूजा कबैला, 13 जुलाई 2003 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन जहाँ भी हमारी कोई जिम्मेदारी हो और वहाँ पर हम उपस्थित न हों तो हम विचलित हो जाते हैं । परमात्मा का शुक्र है कि यहाँ पर बहुत कम बच्चे हैं, उनमें से अधिकतर जा चुक हैं परन्तु जिस प्रकार से हम चिन्ता करते हैं और उत्सुक होते हैं. हम सब भी बच्चे ही हैं। आज मैं आप सबको कहना चाहूँगी कि नव वर्ष का आरम्भ हो गया है और इस नव वर्ष में हमारे सम्मुख एक नया प्रस्ताव होना चाहिए। लोगों के लिए यह प्रस्ताव समझ पाना अत्यन्त कठिन होगा कि हम लोग किसी अन्य के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। हम कंवल अपने हैं और स्वयं में ही लीन रहते हैं। यह बहुत कठिन है । जिन लोगों के बच्चे नहीं हैं वो एक प्रकार से ८ अत्यन्त प्रसन्न हैं परन्तु जिनके बच्चे हैं, जिनके कन्धों पर कुछ जिम्मेदारियाँ हैं. जिनके कुछ उत्तरदायित्व हैं, वो अब भी हवा में लटके (डांवाडोल) हुए हैं। मैं अवश्य ये बात कहूँगी कि ये लोग सहजयोग के कहीं समीप भी नहीं आए। हम स्वयं ही अपनी मुख्य ज़िम्मेदारी हैं। स्वयं को समझना और स्वयं पर निर्भर होना ही हमारी मुख्य जिम्मेदारी है। ये बहुत आज की पूजा मेरे लिए बहुत महान पूजा है बड़ी जिम्मेदारी है क्योंकि अब हमारे बहुत बड़े क्योंकि अचानक मुझे पता चला कि मेरी नातिन की उत्सव होंगे और हो सकता है कि हमें ये महसूस हो बेटी गुम है और इस कारण मैं विचलित हो गई। कि हम इनमें खो गए हैं कृपया यह याद रखने का मुझे देखें, मैं आदिशक्ति हूँ, तो नातिन की बेटी के प्रयत्न करें कि आपने स्वयं को कभी नहीं भुलाना। खो जाने पर मुझे विचलित क्यों होना चाहिए! यह हमेशा याद रखना है कि आप विद्यमान हैं। मैं यह मानव स्वभाव है और मैंने महसूस किया कि यह संदेश आपको देना चाहती थी, मुझे आशा है कि आप इसके विषय में सोचेंगे। स्वभाव हम सबमें है। परमात्मा आप सबको धन्य करें । र श्री माताजी की पैरिस यात्रा शनिवार, 02 अगस्त, 2003 पिछले सप्ताह श्रीमाताजी के अचानक पैरिस आ बिखेरती हुई श्रीमाताजी जब पहुँचीं तो प्रथम शब्द जाने के आनन्द का संक्षिप्त वर्णन हम यहाँ कर रहे जो उन्होंने कहे वो इस प्रकार थे : "आप लोगों की 24 घण्टों से भी कम समय की पूर्व सूचना इच्छा इतनी तीव्र थी कि मुझे यहाँ आना ही पड़ा! पाकर भी प्रांस के सहजयोगियों ने श्री आदिशक्ति उन्होंने पुष्प स्वीकार किए। तत्पश्चात् उन्हें प्रतीक्षा के स्वागत की तैयारी पूर्ण की। सर सी. पी. श्रीवास्तव करती हुई कार में बिठाया गया, जिसके द्वारा वै के साथ मुम्बई जाते हुए उन्होंने पैरिस में रुकना था। होटल पहुँची। प्राय: श्रीमाताजी बुधवार के दिन यात्रा नहीं करती इसलिए हमें दोहरा आशीर्वाद प्राप्त हुआ, कारण हम सब चिन्तित थे और समझ न पा रहे थे श्रीमाताजी के स्वास्थ्य के विषय में अफवाहों क क्योंकि मिलान से आई उनकी उड़ान मंगलवार शाम कि हमें क्या करना होगा। मस्तिष्क से सोचने पर को पैरिस पहुँची थी और उनके साक्षात् में 36 घण्टे हमें ये लगता था कि श्रीमाताजी थरकी हुई होंगी और उपस्थित रहने का शुभ अवसर हमें प्राप्त हो गया उन्हें निरंतर आराम की आवश्यकता होगी। संभवत: था कुछ वर्ष पूर्व रोएसी वायु पतन ( Roissy Air इस ठहराव के दौरान वे अपने कमरे से बाहर ही न Port) स्थित हिल्टन होटल के स्मरणीय अनुभव के आएं किसी भी प्रकार से उन्हें परेशान नहीं किया आधार पर एक बार फिर हमने बहीं पर श्रीमाताजी जाना चाहिए। परन्तु श्रीमहामाया ने क्षण भर में हमारे और सर सी.पी. का स्वागत करने के लिए तीन ये सब बन्धन और चिन्ताएं छिन्त-भिन्न कर दीं । कमरों का एक सैट (suite) चुनने का निर्णय उनकी कान्ति ऊर्जा एवं गरिमा हमें चैतन्य के किया। तैयारी के लिए कंवल कुछ ही घण्टे बाकी संसार में उड़ा कर ले गई। उस संसार में जहाँ समय थे। अत: योगियों एवं योगिनियों ने निर्विचार समाधि की गति रुक जाती है और जहाँ सभी कुछ संभव में रहते हुए कमरों की सफाई, उन्हें चैतन्यित करने है । फ्रांस की शुष्क ग्रीष्म ऋतु की असहनीय गर्मी और सजाने के लिए जी-जान लगा दी | के मुकाबले में बुंधवार के सूर्यादय होते ही अत्यन्त श्रीमाताजी का विमान पहुँचने के समय से आधा सुखद मौसम बन गया। आकाश का रंग नीला हो घण्टा पूर्व लगभग साढ़े आठ बजे सायं, होटल के गया| श्रीमाताजी खरीददारी के लिए बाहर जाने को कमरों को ठीक-ठाक करने वाले सहजयोगियों की सहमत हो गई। तेजी से तैयारी की गई, और दोपहर टीम ने श्रीमाताजी के शयनक्ष, स्नानागार, बैठने का के तुरन्त पश्चात् दो गाड़ियाँ पैरिस के सुप्रसिद्ध कमरा आदि को सजाने का कार्य पूर्ण किया और विपणन केन्द्र प्लेस वेनडोम (Place Vandome) ध्यान में बैठकर धड़कते दिलों से श्रीमाताजी के की ओर रवाना हो गई। श्रीमाताजी ने अपने तथा अपने परिवार की आगमन की प्रतीक्षा करने लगे। वायु पतन पर वो सब साँभाग्यशाली सहजयोगी महिलाओं के लिए साड़ियों का कपड़ा चुना। वहाँ एकत्र हुए जो छुट्टी मनाने के लिए बाहर नहीं गए पर उपस्थित योगियों का कहना था कि श्रीमाताजी थे और शहर में मौजूद थे तेजांमय चेहरे से मुस्कान को खरीददारी करते हुए देखकर उनके नाभिचक्र नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 5 चैतन्य लहरी खण्ड -४V अंक : 1.1 एव 12 पूरी तरह से खुल गए हैं। सूक्ष्म स्तर पर हमने पैरिस हों फिर भी इतने कूटनीतिक हैं कि उनके लिखने और फ्रांस देश के लिए श्रीमाताजी की कृपा को का कभी कोई परिणाम नहीं हुआ। तब सर सी. पी. महसूस किया क्योंकि फ्रांस देश में उदारता का ने कूटनीतिज्ञों के बारे में एक चुटकुला सुनाया कि बिल्कुल महत्व नहीं है। बहुत हिम्मत करके माजिद किस प्रकार वे कहते हैं, "एक ओर तो ऐसा है और श्री माताजी को फ्रेंच सामूहिकता की ओर से वो दूसरी ओर ऐसा है। परिणामस्वरूप अब लोग ऐसे साड़ियाँ भेंट करने में सफल हुआ। उस देश के कूटनीतिकों की प्रतीक्षा करते हैं जो केवल एक हाथ लिए यह बहुत बड़ा वरदान था जो बहुत बार पर हों। आदिशक्ति के विरुद्ध खड़ा हुआ। श्रीमाताजी ने कहा, कि वे इसी क्षेत्र में कुछ होटल वापिस आते हुए श्रीमाताजी ने कार में ज़मीन खरीदने के विषय में सोच रही हैं जिस पर थोड़ा सा आराम किया और वहाँ पहुँचकर एक बार होटल बनाकर वो फ्रैंच लोगों को दिखाएंगी कि वास्तव में सुविधाएं क्या होती हैं। ज्यों ही हमारी बाई खाना खाने के पश्चात् उन्होंने एक योगी से पूछा कि विशुद्धियां पकड़ने लगीं कि हमने कैसा होटल ले सभी सहजयोगी कहाँ हैं। उसने उत्तर दिया कि सभी लिया कि श्रीमाताजी प्रसन्न नहीं हैं तभी श्रीमाताजी फिर वे आनन्द एवं ऊर्जा से परिपूर्ण थीं। रात का लोग मोंटफर्मेल (Montfermeil) मुख्य आश्रम में ने ये कहकर हमें शान्त किया कि होटल बड़ी ध्यान कर रहे हैं । माजिद ने सुझाया कि अगली सुविधाजनक स्थान पर स्थिित है तथा हमारे परस्पर सुबह सभी लोग उन्हें विदा करने के लिए आ मिलने के लिए तथा सहजयोग के लिए ये बहुत सकते हैं। परन्तु श्रीमाताजी तभी योगियों से मिलना अच्छा स्थान है। जो दो सहजयोगी उसी होटल में काम करते हैं, वे शीघ्र ही वहाँ सहज कार्य क्रम चाहती थीं। तुरन्त फोन किए गए और एक कार भेजी गई आरम्भ करेंगे। ताकि अधिक से अधिक सहजयोगियों को लाया जा श्रीमाताजी ने हमें आशीर्वाद दिया और हमने सके। परन्तु पलक भर में ही होटल में उपस्थित हम विदा ली तथा श्रीमाताजी अपने कमरे में आराम ही करने चले गए । परन्तु अभी रात जवान थी! कुछ लोगों को श्रीमाताजी के हॉल कमरे में बुलाया गया। प्रवचन देने के लिए वे हमारा इन्तज़ार कर रही थीं। क्षणों के बाद श्रीमाताजी ने माजिद को सुझाया कि फ्रांस तथा विदेशों के लगभग बीस योगी वहाँ बाहर कार पर घूमने के लिए चलें। रात के लगभग ग्यारह बजे थे। जिन योगियों के पास कारें थी, इस उपस्थित थे। श्रीमाताजी ने होटल में मूल सुविधाओं की कमी समाचार को सुनकर उन्होंने अपनी कारों की चाबियाँ के बारे में कहा कि सारा फर्नीचर कैसा है तथा संभालीं और जिनके पास कारें न थीं वे उपलब्ध होटल की प्रसिद्धि के बावजूद भी वहां कोई मूल सीटों पर लपके। सहजयोगियों की पाँच कारें नीले सुविधा नहीं दी जाती। उन्होंने हमें होटल प्रशासन रंग की 'प्युगोट-607' के पीछे चलने को तैयार हो को हमारी असन्तुष्टि के विषय में लिखने को कहा। गईं, कोई न जानता था कि कहाँ जाना है। अपनी गाड़ी में बैठकर श्रीमाताजी ने पूछा, " तो उन्होंने कहा कि सर सी. पी., चाहे वे सन्तुष्ट न भी चतन्य लहरी खण्ड XV अक नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 6 :11 एवं 12 कहाँ चलें?" गाडी चला रहे क्रिस्टीन और माजिद ने पक्ति में खड़े थे। अन्दर जाकर श्रीमाताजी और सर परस्पर बात की। बुधवार रात के ग्यारह बजे रोएसी सी.पी. ने खाना खाया। रात्रि का ये अन्त न था हवाई अड्डे से कहाँ जाया जाए। क्रिस्टीन को यहाँ क्योंकि अगला कार्यक्रम एक हिन्दी फिल्म थी जो से पन्द्रह मिनट की दूरी पर जमींदारी किस्म के एक प्रात: चार पाँच बजे तक चली। होटल का अंदाजा था क्योंकि हमने श्रीमाताजी के लिए होटल खोजते हुए इंटरनेट पर होटलों की सूची वाली सुन्दर सफेद साड़ी में दमकते हुए. हमेशा की अगली सुबह लाल, तोतई फूलों की कढ़ाई तरह से तरोताज़ा, श्रीमाताजी ने साढ़े सात बजे चाय खोजी थी। थोड़ी देर चलने के बाद कारों का समूह होटल ली। दो सौ किलो से भी ज्यादा सामान हवाई अड्डे की ड्राइव लेन में पहुँचा। होटल की लॉबी में प्रवेश पर जा चुका था जिसके वजन के कारण माजिद करते ही श्रीमाताजी की दृष्टि वहाँ प्रदर्शित की गई थोड़ा सा परेशान था क्योंकि केवल चार व्यक्तियों ने प्राचीन वस्तुओं पर पड़ी। स्वागत कक्ष पर स्वागती यात्रा करनी थी। परन्तु चैतन्य की कृपा के कारण (Receptionist) ने बताया कि वा सब चीज़ें सभी कुछ सहजता से हो गया क्योंकि जाँचने वाले बिकाऊ हैं परन्तु वह उन अल्मारियों की चावियाँ न क्लर्क को ये चिन्ता थी कि सारे बैगों पर अच्छी खोज सकी। कुछ देर खोजने के बाद चाबियाँ मिल तरह से लेबल लगे तथा यात्री का नाम लिखा जाए । गई और श्रीमाताजी ने उसमें रखी कई चीज़ों को गौर वह इतनी व्यस्त थी कि वह बैगों की संख्या और से देखा। कुछ अन्य अल्मारियाँ भी खुली हुई थीं उनके बजन के बारे में भूल गई। और सभी सहजयोगियों तथा होटल कर्मचारियों के शीघ्र ही श्रीमाताजी और सर सी.पी. हवाई अड्डे आश्चर्य एवं खुशी का ठिकाना न रहा जबव श्रीमाताजी पर आ गए। सर सी. पी. ने कहा कि उनकी पैरिस ने उनमे से कुछ वस्तुएं खरीदीं। श्रीमाताजी ने अपने होटल वाफ्सि जाने का बात होगी श्रीमाताजी सभी उपस्थित लोगों की ओर निर्णय किया जहाँ पर श्रीमाताजी का संदेश पाकर देखकर मुस्काई और आनन्दमयी उदासी से हमारे अब तक बहुत से सहजयोगी एकत्र हो गए थे। हृदय भर गए। वे जा रही हैं, परन्तु वे आई तो श्रीमाताजी के कमरों के बाहर बरामदों में वो सब हैं! यात्रा को केवल 'स्मरणीय भर कहना अत्यन्त छोटी परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के विवाह की छप्पनवीं वर्षगांठ सोफिया कॉलेज सभागार, मुम्बई 7 अप्रैल, 2003 सायं 6.30 बजे छोटे-छोटे सुनहरी सितारों की चित्रकारी वाली श्री ईसामसीह के रूप में आया। एक-एक युगल लाल रंग की साड़ी पहने परम पूज्य श्रीमाताजी मंच पर आकर जब परमेश्वरी माँ के सम्मुख प्रणाम हमेशा की तरह से अत्यन्त सुन्दर एवम् स्वस्थ करने के लिए झुका तो वह अद्वितीय दृश्य था। प्रतीत हो रही थीं। उनके दैदीप्यमान मुख से किरणें फूट पड़ रही थीं। जिस सिंहासन पर श्री माताजी गुलाम अली खान, विश्व विख्यात शास्त्रीय संगीतज्ञ, विराजमान थीं उसे प्रायः बेलापुर अस्पताल में रखा ने अत्यन्त आनन्दपूर्वक देवी के भिन्न रूपों में जाता है। श्री माताजी को भेंट करने के लिए बहुत श्रीमाताजी का स्तुति गायन किया। रोकने पर भी बो से लोग फूल लेकर आए थे उनमें से कुछ फूलों स्वयं को रोक ना पा रहे थे बार-बार वो हम सब को मंच सजाने के लिए उपयोग किया गया| पूरे उपस्थित लोगों को गायन में अपना साथ देने के भारतवर्ष से इस समारोह में भाग लेने के लिए लोग लिए उत्साहित कर रहे थे यह अत्यन्त दिव्य शाम आए थे जिनमें से कुछ उस शाम के लिए समारोह थी। में विमान द्वारा पहुंचे थे। कुछ विदेशी लोग भी वहाँ उपस्थित थे परन्तु मुम्बई एवम् महाराष्ट्र के सहजयोगियों पी. और श्री माताजी ने मिल कर काटा और बाद में सहज संगीतज्ञों ने मधुर गीत सुनाए। श्री मुस्तफा एक बहुत बड़ा केक लाया गया जिसे सर सी. सभी उपस्थित लोगों को प्रसाद के रूप में दिया की संख्या सबसे अधिक थी। सर्वप्रथम श्री माताजी का स्वागत करने के लिए गया। मुम्बई की सात महिलाओं ने उनकी आरती उतारी। तत्पश्चात् स्थानीय सहजयोग केन्द्रों के बच्चों ने प्रतिनिधियों तथा कुछ विदेशी सहजयोगियों ने अपने जोड़ों में आकर श्री माताजी तथा सर सी. पी. को देश तथा राज्यों के प्रतिनिधियों के रूप में मंच पर पुष्प अर्पण किए। हर युगल किसी देवता और आकर श्री माताजी को पुष्प भेंट किए। श्री माताजी उसकी शक्ति के परिधान में था। अन्त में भारत के भिन्न राज्यों से आए सहज के वहाँ से जाने के पश्चात् एक हजार के लगभग वहाँ उपस्थित हम सब लोगों को, कॉलेज के बरगीचें में, अत्यन्त स्वादिष्ट प्रसाद-भोजन करवाया गया। इसके पश्चात् एक युवक श्री माताजी के सम्मुख आया, उसने शरीर पर विभूति (राख) मली हुई थी और भगवान शिव की पारम्परिक शैली में उसके बाल बन्धे हुए थे। सफेद साड़ी पहने, हाथ में वीणा उठाए, सौन्दर्य मूर्ति एक लड़की श्री सरस्वती के रूप में श्री माताजी के सम्मुख उपस्थित हुई तथा मेरे मामले में यह कथन बिल्कुल सत्य है। मैं एक अन्य व्यक्ति जिसने सफेद चोगा पहना हुआ ब्रह्माण्ड का सबसे भाग्यशाली व्यक्ति हूँ। आपकी था नकली दाढ़ी और लम्बे बाल लगाए हुए थे, बो श्रीमाताजी अद्वितीय पत्नी, माँ, दादी और अब सर सी.पी. श्रीवास्तव साहब का भाषण कहा जाता है कि जोड़े स्वर्ग में बनाए जाते हैं, चैतन्य लहरो खण्ड -XV.अक : 11 एवं 12 नेवम्बर एवं दिसम्बर 2003 8 परदादी हैं। अत्यन्त स्वादिष्ट खाना खिलाकर और अपने जन्मदिवस के अवसर पर उन्होंने सहजयोगी हर समय मेरी देखभाल करके बीते हुए इन 56 सालों में इन्होंने मुझे बिगाड़ दिया है। इन्हीं की कहा कि आपमें से हर एक यदि एक सौ नए उदारता के कारण मैं अपने दफ्तर में कठोर परिश्रम सहजयोगी बना दे तो यह विश्व एक बिल्कुल भिन्न कर पाया, परन्तु घर आने पर मुझे सभी कुछ विश्व बन जाएगा। मैं आपको बताना चाहता हूँ कि बनाने के लिए आपका आह्वान किया था। उन्होंने ल यह केवल बातें नहीं हैं। यह अत्यन्त आवश्यक है, अत्यन्त आनन्दमय प्राप्त हुआ। मेरे सभी सम्बन्धियों के प्रति वे अत्यन्त करुणामय इस विश्व में यह हमारी अत्यन्त गहन आवश्यकता हैं। आप हैरान होंगे कि जब भी सम्बन्धी हमारे घर पर है हमारे सम्मुख केवल दो विकल्प हैं जो अत्यन्त आते तो वे उनकी इस प्रकार देखभाल करतीं जैसे स्पष्ट है या तो हम मानवता को बचाने के पथ पर अपनी बेटियों की देखभाल कर रही हों। कभी उन्होंने चल पड़ें या इसे नष्ट करने के पृथ पर। वे एक बच्चे और दूसरे जो परिवार उन्होंने दिया है-दोनों बेटियां अत्यन्त अतिरिक्त कोई अन्य शक्ति नहीं जिसे मैं जानता हूँ। हैं-कल्पना यहां हमारे साथ हैं। पिछले 56 ये उत्तर दक्षिण, पूर्व, पश्चिम को समीप ला रही हैं, बच्चे में भेदभाव नहीं किया । (श्रीमाताजी) विश्व की एक मात्र शक्ति हैं। इनके अद्भुत सालों में उन्होंने ( श्रीमाताजी) मेरे लिए इतना कुछ उनका समन्वय कर रही किया है कि मैं उनका धन्यवादी हूँ। परन्तु इससे अपने श्रोताओं को, कहीं अन्यत्र, जैसा मैंने कहा था जहाजरानी के ये निर्देश हैं, परन्तु ये निर्देश मानवता को विभाजित करने के लिए नहीं हैं। अधिक धन्यवाद में उन्हें उस के लिए देना चाहता हूँ जो उन्होंने विश्व के लिए किया है । उन्होंने नई मानवता का सृजन किया इन्होंने वो कार्य कर दिखाया जो कोई अन्य न कर सका। जिन जातियाँ, सभी रंगों और सभी धर्मों के लोगों को एक लोगों के विषय में मैं जानता हूँ या जिनके विषय में किया है। किसी ऐसे व्यक्ति का नाम क्या आप बता मैंने पढ़ा है उनमें से कोई भी ऐसा कार्य न कर सका-हजारों की संख्या में देवदूतों (Angels) का लोगों को विभाजित करने में लगे हुए हैं। सभी कहते सृजन करना, ऐसे लोगों का जो अच्छाई, पावित्र्य और विश्व-बंधुत्व की धारणा के सूत्र में बंधे हुए इसकी कल्पना कर सकते हैं? क्या परमात्मा भी दो हैं। मानवता एक हैं। उन्होंने सभी मान्यताओं, सभी सकते हैं जो आज यह कार्य कर रहा है। सभी, हैं, "मेरा ईश्वर (God) सर्वोत्तम है।" क्या आप हो सकते हैं? क्या दो सर्वशक्तिशाली परमात्मा हो आप जानते हैं आज के विश्व में सर्वत्र परस्पर सकते हैं? दो सर्वशक्तिशाली परमात्मा नहीं हो विरोध है। किसी भी समाचार पत्र को आप पढ़ें, सकते और वे ही (श्रीमाताजी) उनका एक मात्र आपको लगता कि चहुँ ओर समस्याएं ही समस्याएं अवतरण हैं। हैं। ा है परन्तु केवल एक विश्व ऐसा है-उनका विश्व-जो यहाँ बैठा हुआ है. सुन्दर है. पवित्र है, शुद्ध है और परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन जो मानवता का भविष्य है। हृदय से मैं आप सबका धन्यवाद करना चाहती तन् तहरी ड ४४ अक :11 एक 12 नवस्बर एव दिसम्बर 2003 9 और परस्पर प्रेम फैलाया। हमारी मानवीय समस्या हूँ कि इतने प्रेम पूर्वक आप यह वर्षगांठ मनाने के लिए यहाँ आए। धन्यवाद देने के अतिरिक्त में कूछ यह है कि हमें इस बात का ज्ञान नहीं है कि हम क नहीं कर सकती। वास्तव में किस प्रकार से आप परस्पर किस प्रकार प्रेम करें। अगर हम यह बात लोगों ने मेरे तुच्छ से कार्य की सराहना की है! यह समझ पाते तो यह 'प्रेम' की महत्ता हमारी समझ में तो केवल प्रेम का कार्य है। प्रेम मानव का महानतम आ जाती। वास्तव में हम प्रेम का आनन्द लेते हैं। है। प्रेम यदि आपमें विकसित हो जाए तो बाकी आपको कुछ भी बलिदान नहीं करना पड़ता। कुछ गुण सब भूल जाता है क्योंकि प्रेम का तो अपना ही पारितोषिक है और यही ईनाम यहां पर है। में इसे आप इसका आनन्द लें। यह पारस्परिक है। दूसरों देख सकती हूँ। मैं कुछ विशेष नहीं हूँ सिवाय इसके कि मैं सभी है कि आपके कुछ अनुभव अच्छे न रहे हों। परन्तु से प्रेम करती हूँ। मैं सोचती हूँ कि किसी की भी अधिकतर मनुष्यों में परस्पर प्रेम करने का स्वभाव भी देना नहीं पडता। सभी कुछ विद्यमान है और TAFIT को प्रेम देने में आपको आनन्द आता है। हो सकता की जाए क्योंकि मैंने लोगों को सभी होता है। प्रेम परस्पर बांटा जाना चाहिए और इसका भत्त्सना न समस्याओं से, संकीर्ण विचारधाराओं से, उबरकर आनन्द लिया जाना चाहिए। मैंने इसका आनन्द विशाल क्षेत्र में आते हुए देखा है जहां पर उनमें प्रेम लिया है और आप लोगों ने भी इसका आनन्द लिया प्रदान करने की योग्यता आ जाती है। मैं यह अवश्य है। इसीलिए मैंने कहा है कि ऐसा करना जारी रखें कहूँगी कि मेरा जो विश्वास था उसने भली- भांति और अपने प्रेम को सर्वत्र फैला दें। कार्य किया है । यह देखकर मुझे अत्यन्त हर्ष हो रहा है कि आपमें से इतने सारे लोगों ने प्रेम को समझा परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। मैं आपके साथ विद्यमान हँ हर क्षण श्रीमाताजी का संदेश माताजी निर्मला देवी प्रतिष्ठान एन.डी.ए. रोड; पोस्ट बाक्स नं. 2 पुणे-411023 दिनांक 2 अगस्त 2003 मेरे प्रिय बच्चों, उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका के सहजयोगियों, कान्ना जोहारी में आगामी कृष्ण पूजा के लिए आपका निमंत्रण पाकर में प्रसन्न हूँ। आजकल में भारत में पुणे प्रतिष्ठान में हूँ तथा इस समय में यात्रा न कर पाऊगी। परन्तु हर क्षण में आप सबके साथ विद्यमान हूँ। मैं जानती हूँ कि विश्व के सभी सहजयोगी श्रीकृष्ण प्रदत्त नैतिक, आध्यात्मिक एवं चारित्रिक मूल्यों का पूर्ण सम्मान करते हैं । इस समय पर आपने सहजयोग प्रचार के लिए अपने प्रयत्नों को तेज करने का पुनः दूढ़ निश्चय करना है। प्रेम एवं आशीर्वाद के साथ 'माताजी निर्मला देवी चम श्री ईसामसीह पूजा कैक्सटन हॉल, लन्दन (इंग्लैंड), 10-12-1979 ( अंग्रेज़ी से अनुवादित) आत्मसाक्षात्कार को बनाए रखने के मार्ग में आने वाली अन्तर्निहित कठिनाईयां आज का दिन हमारे लिए यह स्मरण करने का के लिए यंह बात अत्यन्त कष्टकर है और उन्हें है कि ईसामसीह ने पृथ्वी पर मानव के रूप में जन्म खेद होता है कि जो अवतरण हमें बचाने के लिए लिया। वे पृथ्वी पर अवतरित हुए और उनके आया उसे इन परिस्थितियों में रखा गया। क्यों नहीं, सम्मुख मानव के अन्दर मानवीय चेतना प्रज्जवलित परमात्मा ने, उन्हें कुछ अच्छे हालात प्रदान किये? मानव को यह समझाना कि वे परन्तु ऐसे लोगों की इस बात से कोई फ़र्क नहीं यह शरीर नहीं हैं, वे आत्मा हैं। ईसामसीह का पड़ता, कि चाहे वो सूखी घास पर लेटे रहें या उनके करने का कार्य था - पुनर्जन्म ही उनका सन्देश था अर्थातू आप अपनी अस्तबल में या किसी भी और स्थान पर, लिए सभी कुछ समान है क्योंकि इन भौतिक चीजों आत्मा हैं यह शरीर नहीं। अपने पुनर्जन्म द्वारा उन्होंने का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वो इतने दर्शाया कि किस प्रकार वे आत्मा के साम्राज्य तक निर्लिप्त होते हैं तथा पूर्णतः आनन्द में बने रहते हैं। उन्नत हो पाए, अपनी वास्तविक स्थिति तक। क्योंकि वे 'प्रणव' थे, वे ब्रह्मा थे - वे ब्रह्मा थे, महाविष्णु वे अपने स्वामी होते हैं। कोई अन्य चीज़ उन पर थे, जैसे मैंने उनके जन्म के विषय में आपको स्वामित्व नहीं जमा सकती है। कोई पदार्थ उन पर हावी नहीं हो सकता। किसी भी प्रकार की सुख-सुविधा बताया है। परन्तु वे पृथ्वी पर मानव रूप में अवतरित उन पर स्वामित्व नहीं जमा सकती। अपने अंदर ही हुए। एक अन्य चीज़ उन्होंने दर्शानी चाही कि आत्मा वे पूर्ण सुख के स्वामी होते हैं। सभी सुख उन्होंने का धन तथा सत्ता से कोई लेना देना नहीं। यह अपने अन्दर ही प्राप्त किये होते हैं। ऐसे लोग सर्वशक्तिमान है तथा सर्वव्याप्त है। परन्तु उनका अत्यन्त सन्तुष्ट स्वभाव होते हैं और यही कारण है जन्म एक अस्तबल में हुआ, वे किसी राजा के यहां कि वे सम्राट हैं, उन्हें बादशाह कहा जाता है। वो नहीं जन्मे, एक सर्वसाधारण व्यक्ति के यहां जन्मे-एक बादशाह नहीं जो पदार्थों के पीछे दौड़ते रहते हैं या बढई के यहां । क्योंकि आप यदि राजा हैं, जैसे जीवन की सुख सुविधाएं खोजते रहते हैं। कहने से मेरा अभिप्राय यह है कि आपके पास हिन्दी भाषा में कहा गया है 'बादशाह' हैं तो आप से बड़ा कुछ भी नहीं है। क्या यह बात ठीक नहीं यदि सुख-सुविधाएं हैं तो ठीक है और यदि नहीं हैं है? इसका अर्थ यह है कि आप से ऊंचा कुछ भी तो भी ठीक है, कोई अन्तर नहीं पड़ता। जब में कोई भी चीज आपको अलंकृत नहीं कर लैटिन अमेरिका गई तो बहुत से लोगों ने कहा कि सकती (आपके रुतबे को नहीं बढ़ा सकती), आप 'हम यह नहीं समझ सकते कि ईसामसीह का जन्म जो हैं, आप सर्वोच्च हैं। आप के लिए सारी सांसारिक गरीब व्यक्ति के रूप में क्यों हुआ।' एक बार फिर चीजें सूखे घास सम हैं, तृणवत हैं। नहीं यह मानवीय धारणा है। मानव परमात्मा को चलाना ईसामसीह को घास पर सुलाया गया। कुछ लोगों चाहता है, 'सम्राट के महल में जन्म लेना'-आप नवश्दर एवं दिसम्बर 2003 12 XV अंक : 11 एवं 12. चैहन्य लहरी ण्ड - परमात्मा को इसकी आज्ञा नहीं दे सकते। परमात्मा रूप से हमें बचाने के लिए वो यहां थे। उनके बहुत के विपय में भी हमारी अपनी धारणाएं हैं। क्यों वह से पक्ष हैं। मैं कहना चाहूँगी कि बो इस पृथ्वी पर निर्धन व्यक्ति वने, क्यों वह असहाय हो? परन्तु केवल मानव को बचाने के लिए ही नहीं आए, ईसामसीह ने कभी भी नहीं दर्शाया कि वह असहाय उनके और भी बहुत से पक्ष थे। यह एक अन्य पक्ष हैं। वे आपके सभी राजा-महाराजाओं से तथा राजनीतिज्ञों है। मानव ने मांग की थी कि उसकी रक्षा होनी से कहीं अधिक प्रगल्भ (dynamic) थे। उन्हें चाहिए। क्यों? क्यों उनकी, उन सभी की रक्षा होनी किसी का भय न था। जो भी कुछ उन्होंने कहना था चाहिए? उन्होंने परमात्मा के लिए क्या किया है? किस प्रकार आप परमात्मा से मांग कर सकते हैं कि वह उन्होंने कहा। उन्हें न तो क्रूसारोपित होने का भय था और न ही किसी अन्य तथाकथित दण्ड वह हमारी रक्षा करें? क्या आप ये मांग कर सकते का। आप जानते हैं कि मानव में ही जीवन के इस है? क्या आप ऐसा कर सकते हैं? आप यह मांग प्रकार के विचार हैं और यह विचार वह परमात्मा नहीं कर सकते। जैसा आप देख रहे हैं वे विशुद्धि पर भी लादना चाहता है और प्रयतल करता है कि और सहस्रार के बीच का मार्ग बनाने के लिए परमात्मा भी उसकी इन धारणाओं का अनुकरण अवतरित हुए आदिपुरुष (primordial being) करें। परमात्मा आपकी धारणा नहीं है। वो धारणा विराट के आज्ञा चक्र में। इसी द्वार (आज्ञा) को विल्कुल भी नहीं है। आप लोग भी कहते हैं कि खोलने के लिए वे अवतरित हुए। विकास प्रणाली में धारणा तो आखिरकार धारणा ही है, वास्तविकता हर एक अवतरण हमारे अन्दर का एक द्वार खोलने, नहीं। यह बात मैने हाल ही में पता लगाई है। ये एक मार्ग बनाने या हमारी चेतना को ज्योतिर्मय करने एक अन्य मिथक (myth) है जो लोगों के मस्तिष्क के लिए आया। अत: ईसामसीह विशेष रूप से हमारे में समाई हुई हैं कि धारणा तो धारणा ही है। ठीक अन्दर बने उस छोटे से द्वार को खोलने के लिए है, माताजी कहती हैं तो ठीक है। तो क्या! परन्तु आए जिसे हमारे अहं और प्रतिअहं ने संकीर्ण कर यह भी एक धारणा है क्योंकि धारणा एक विचार दिया है। अहं और प्रतिअहं हमारी विचारप्रणाली के है और आपको विचार के स्तर से एक ऊंचे उपफल (byproduct) हैं कुछ विचार भूतकाल स्तर पर उठना है - निर्विचार चेतना के स्तर पर से सम्बन्धित होते हैं और कुछ भविष्य के विचार जहां आपमें कोई विचार नहीं होता, जहां आप होते हैं। वे इसी दूरी को समाप्त करने के लिए, इसे विचार के मध्य में होते हैं अर्थात् जहां एक पाटने के लिए, अवतरित हुए और इसी लक्ष्य प्राप्ति विचार उठता है और गिरता है और इसके बीच के लिए उन्होंने, अपने शरीर का बलिदान दे दिया। में कुछ स्थान होता है। फिर दूसरा विचार उठता है और गिरता है। आप इन दोनों विचारों के चौज हो सकती है परन्तु ऐसे अवतरणों के लिए इस मध्य में होते हैं जिसे हम 'विलम्ब' कहते हैं आपके लिए यह अत्यन्त खेद एवम् पछतावे की प्रकार का कोई खेद या पछतावा नहीं होता। यह एक लीला है कि उन्होंने इस तरह की भूमिका निभानी वह समय जब आप रुकते हैं। तब आप ईसामसीह को समझ पायेंगे। आंशिक है, इसलिए मेरी समझ में नहीं आता कि क्यों आप चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक :11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 13 लोग उन्हें इतना ढीला-ढाला, दुखी व्यक्ति के रूप लगते हैं. यह बात मेरी समझ में नहीं आती। में दर्शाना चाहते हैं! वो कभी दुखी नहीं थे । ऐसे लोग कभी भी इस प्रकार से दुखी नहीं हो सकते पृथ्वी पर अवतरित हुआ वह अत्यन्त आनन्ददायी जैसे आप होते हैं। यह एक अन्य धारणा है कि है। इसलिए हम सबके लिए, पूरे ब्रह्माण्ड के लिए ईसामसीह को ढीले-ढाले, सूखे हुए. भूख से पीड़ित क्रिसमस महान आनन्द का त्यौहार होना चाहिए हड्डियों का ढांचा-जिनकी एक एक हड्डी को क्योंकि ईसामसीह हमारे लिए वो प्रकाश ले कर परमात्मा का यह बालक जो शिश् रूप में इस - इस प्रकार का व्यक्ति होना आए जिससे हम जान सकते हैं कि कोई ऐसा गिना जा सकता हो चाहिए। मैं आपको बताती हूँ कि ऐसा सोचना अस्तित्व भी है जिसे हम परमात्मा कहते हैं; कोई भयानक है। अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक वे तो ऐसा है जो इस अंधकार को दूर करेगा। यह सदैव आनन्दमय व्यक्ति थे। वे प्रसन्नता एवम् पहली शुरुआत थी। अतः हम सब के लिए आनन्द की प्रतिमूर्ति थे जो आपके अन्तः स्थित आवश्यक है कि हम आनन्दित, प्रसन्न और आनन्द के स्रोत, हृदय में बसी आपकी आत्मा को शान्त हों तथा किसी भी घटना को उतनी गम्भीरता क ज्योतिर्मय करके आपको आनन्दमय बनाना चाहते से न लें जितनी गम्भीरता से उसे हम लेते हैं। थे, प्रसन्नता का प्रकाश आपको देना चाहते थे दिव्य जीवन आपको गम्भीर नहीं बनाता क्योंकि यह विश्व में वो केवल आपको बचाने और प्रसन्नता को सब तो मात्र लीला है, यह माया है| जो कर्मकांड प्रदान करने ही के लिए नहीं आए, आपको आनन्द लोग करते हैं, सभी तथाकथित धार्मिक लोगों में मैंने प्रदान करने के लिए भी वो अवतरित हुए क्योंकि देखा है कि धर्म के नाम पर वे बहुत गम्भीर हैं। अज्ञान, अंधकार में फंसे हुए अपनी मूर्खताओं से धार्मिक व्यक्ति से तो हँसी फूट पड़ती है। उसकी मनुष्य व्यर्थ में स्वयं को पीट रहा है और नष्ट कर रहा है। शराबखानों तथा कष्टों में फंसने के लिए आनन्द को छिपाए तथा व्यर्थ में गम्भीर लोगों को किसी ने आपसे नहीं कहा, यह भी नहीं कहा कि देखने पर किस प्रकार अपनी हंसी को नियन्त्रित घुड़दौड़ पर जाकर दिवालिए हो जाओ। कुगुरूओं के करे। कहने से अभिप्राय यह है कि कोई मर नहीं पास जाकर कष्टों में फंसने के लिए किसी ने गया है। जिस प्रकार से लोग बातें करते हैं उससे आपसे नहीं कहा। परन्तु स्वेच्छा से आप अपना कई बार तो यह समझ नहीं आता कि अपने साथ विनाश खोजते हैं। उषाकाल में खिले हुए फूल की वो क्या करें। ईसामसीह जैसे व्यक्ति को उदास तरह से आपको प्रसन्नता प्रदान करने के लिए वे करने के लिए संसार में कुछ भी नहीं है। आप यदि अवतरित हुए। स्वयं को प्रसन्नता एवम् आनन्द देने वास्तव में उन पर विश्वास करते हैं तो सर्वप्रथम के लिए आप किसी बालक को देखें । मैं समझ में नहीं आता कि किस प्रकार से वो अपने तो, कम कृपया यह मूर्खता भरी उदासी, खीज, मुंह लटका से कम स्वयम् को जानती हूँ, अटपटे लोगों के कर बैठना, चिड़चिड़ापन, किसी से बात न करना विषय में नहीं जानती। कहने से मेरा अभिप्राय यह तथा मौन, नीरसता को त्याग दें। ईसामसीह को है कि इन लोगों को फूल भी कांटों की तरह से समझने का यह तरीका ठीक नहीं है। आप देखें कि मवा्बर एवं दिसम्बर 2003 14 चंतन्य लहरी खण्ड XV. अक : 11 एवं 2 किस प्रकार जा कर उन्होंने जनता से बातचीत की! आप उनका जन्मदिवस समारोह मना सकते हैं। वे किस प्रकार चहुँ और के लोगों के सम्मुख उन्होंने अपने हृदय को खोला और किस प्रकार उन्हें हुए क्योंकि जिस बिन्दु तक आपकी चेतना पहुँच आपकी चेतना को ज्योतिर्मय करने के लिए अवतरित प्रसन्नता प्रदान करने का प्रयत्न किया! उन्होंने कहा चुकी हैं इसका वे सम्मान करते थे। परन्तु आप इसे कि आपको पुनर्जन्म लेना होगा. अर्थात् उन्होंने यह ( चेतना) नीचे लाने का प्रयत्न कर रहे हैं । उन्हें कार्य करना था तथा किसी न किसी समय आपने समझने का क्या यही तरीका है? इसे प्राप्त करना है। उन्होंने वचन दिया है कि आपको वास्तव में पुनर्जन्म लेना होगा अर्थात् उन्होंने (Baptism ) होगा, आपको पुनर्जन्म लेना होगा यह कार्य करना था तथा किसी न किसी समय और अब सहजयोग में यह वचन पूर्ण किया जा रहा उन्होंने वचन दिया है कि आपका बपतिज्म ी आपने इसे प्राप्त करना है। उन्होंने वचन दिया है कि है। अत: आय आनन्दित आपको वास्तव में पुनर्जन्म लेना होगा। ईसामसीह पर पुनः इंसामसीह ने आपके ही अन्दर जन्म लिया हों कि आपके आज्ञा चक्र को हमारे अन्दर जन्म लेना है। मैं नहीं जानती इस है। वे वहां पर विराजमान हैं और आप जानते बात से ईसाई लोग क्या समझते हैं। किस प्रकार किस प्रकार उनसे सहायता मांगनी है। यही मुख्य आप द्विज (Born again) बनते हैं? वपतिज्य चीज है जो व्यक्ति ने समझनी है, कि वह समय आ ( Baptism) के कर्मकांड द्वारा नहीं। धर्मबिद्यालय गया है, धर्मग्रंथों में जिसका वचन दिया गया है, वह से आकर कोई व्यक्ति आपकी ईसाई नहीं बना सकता। जैसे हमारे यहाँ भारत में कुछ वैतनिक ही नहीं परन्तु विश्वभर के सभी धर्मग्रन्थों में। आज ब्राह्मण हैं. जैसे आपकं यहां भी कुछ वैतनिक लोग समय आ गया है जब आपने केवल कुण्डलिनी हैं जो सारा दिन शराब पीते हैं और खाते रहते हैं जागृति द्वारा ईसाई, ब्राह्मण एवम् पीर बनना है। और स्वयं को परमात्मा द्वारा अधिकृत व्यक्ति बताते इसके बिना कोई अन्य मार्ग नहीं। प्राप्त करने का समय आ गया है-केवल बाईवल में आपके अन्तिम निर्णय का समय अभी है। कंवल हैं। परमात्मा से अधिकार प्राप्त किये बिमा अधिकारी बने बिना आप आनन्द प्रदान नहीं कर सकते। यही कुण्डलिनी जागृति के माध्यम से परमात्मा आपका कारण है कि मैंने इन सब लोगों को देखा है। इन आंकलन करेंगे अन्यथा वो किस प्रकार आपको तथाकथित पंडितों और पादरियों को, जो परमात्मा आंक सकते हैं। आप किसी व्यक्ति के बारे में द्वारा अधिकृत न होने के कारण अत्यन्त गम्भीर हैं, सोचते हैं, कोई व्यक्ति अन्दर आता है और अन्दर ईसामसीह के जन्मदिवस पर भी गांव से आया कोई उसका निर्णय करने के लिए कोई बैठा हुआ है। व्यक्ति यदि देखे तो उसे लगेगा जैसे शवयात्रा हो। कैसे? यह देखकर कि आप कितने हज्जामों के पास समारोह समाप्ति के पश्चात जब आप घर जाते हैं तो गए या आप कितने उपहार लाए या आपने कितने किस प्रकार से आप उत्सव मनाते हैं। मैं नहीं मंगलकामना कार्ड भेजे। कितने लोगों को आपने जानती क्यों? परन्तु लोग शैम्पेन (Champagne) ऐसी चीजें भेजी जो आपको नहीं भाती थीं। यह पीते हैं। ईसामसीह का अपमान करके किस प्रकार तरीका नहीं है। या ये कि कितने मूल्य पर आपने चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 15 ये चीजें खरीदीं, जिस प्रकार हम करते हैं। कौन से जीते हैं इससे भी आपका आंकलन नहीं किया तरीके से परमात्मा हमारा आंकलन करेंगे? लोग जाता। लोकहित में आपने कौन से कार्य किए हैं या कहते हैं कि सतही रूप से यह आंकलन नहीं होता कितना धन. आपने दान दिया है इससे भी नहीं। तो हमने कितनी गहनता प्राप्त की है? आईए देखें आपने यदि बहुत अधिक धन दान दिया है तो कि इस गहनता में हम कहा तक जा सकते हैं। किसी न किसी प्रकार से आपके अहं का कद बढ़ ज्यादा से ज्यादा हम उस बिन्दु तक पहुँचते हैं जहां जाएगा और यह आपको आपके स्तर से नीचे ले पर एक बार फिर धारणा बन जाते हैं। अत: जो भी जाएगा, समुद्री जहाज से भी ज्यादा नीचे। व्यक्तित्व गहनता हमें प्राप्त हुई है वो केवल तार्किकता ( ra- आंकलन का यह बिल्कुल भिन्न तरीका है। हम tionality) तक ही पहुँचती है धारणा के विन्दु देख सकते हैं कि मनुष्यों ने किस प्रकार ईसामसीह तक, उससे आगे हम नहीं पहुँच सकते। तो किस का आंकलन किया और परमात्मा ने किस प्रकार। प्रकार हमारा आंकलन किया जाए? लोग जब वे आए और सूखी घास पर उन्हें रखा गया मानो वे चिकित्सक के पास जाते हैं तो वह किस प्रकार किसी पंख की तरह हों। उनकी इस तकलीफ को उनका रोग निदान करता है? उसके पास यन्त्र होते उनकी माँ ने भी कभी महसूस नहीं किया । इसी हैं और वह इस कार्य को करता है। अन्दर प्रकाश प्रकार से जिन लोगों ने अपने आचरण से कभी डाल कर स्वयं देखता है और फिर कहता है कि अन्य लोगों को नहीं सताया या कभी किसी पर स्थिति यह है। अब आपकी आध्यात्मिकता किस क्रोधित नहीं हुए, इस आंकलन में उन्हें प्रथम दर्जा प्रकार जांची जाएगी? बीज को किस प्रकार जांचा दिया जाएगा। जाता है? इसके अंकुरण द्वारा। बीज का जब आप कुण्डलिनी जागृति के मार्ग में भी कुछ अंतर्निहित करते हैं और इसकी अंकुरण शक्ति को दोष हैं। आपके पूर्व क्मों के कारण कुण्डलिनी के अंकुरण देखते हैं तब आप जान जाते हैं कि बौज अच्छा है अन्दर निहित कुछ दोष हैं। इस जीवन में आप कौन या बुरा। इसी प्रकार जिस तरह से आपका अंकुरण से कर्म करते रहे, जो चीज़ें केवल धारणा मात्र थीं हाता है, जिस प्रकार से आपको आत्मसाक्षात्कार उन्हें आपने वास्तविकता मान लिया क्योंकि आपको प्राप्त होता है, जिस प्रकार आप इसे बनाए रखते हैं पूर्ण (Absolute) का ज्ञान न था। ऐसी स्थिति में जो और इसका सम्मान करते हैं उसी से आपको जांचा भी कुछ आप करते रहे उसका उद्भव अन्धकार से जाता है। आपको जांचने का यही तरीका है। किस हुआ अन्धकार में जो कार्य आपने किया उसमें प्रकार के कपड़े आप पहनते हैं, कपड़ों का रंग अन्धकार का अंश होना ही है। आत्मसाक्षात्कार मिलान आप किस प्रकार करते हैं या आप कौन से प्राप्त किये बिना यदि आपने घोषणा की है कि आप हज्जामों के पास जाते हैं, इससे नहीं। आप कौन से महान सन्त हैं, ये हैं, वो हैं तो आपके लिए कोई पदों पर आरूढ़ हैं, कितने बड़े राजनीतिज्ञ या अवसर नहीं है। यदि आप यह सोचते हैं कि आप अफसरशाह बन गए हैं, किस प्रकार के घर आपने दिव्य व्यक्तित्व हैं या आत्मसाक्षात्कारी हैं तो आपको हैं या किस प्रकार के नोबल पुरस्कार आपने कोई अवसर नहीं। सभी पुजारियों (सभी धर्मों के) बनवाए नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 15 घैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक 11 एवं 12 को सबसे अन्त में आत्मसाक्षात्कार मिलेगा। रामायण भी हैं और इन दोनों के मध्य के लोग भी हैं। में बाल्मिकी ने एक बहुत ही रोचक कहानी कहीं श्रेष्ठ लोग बहुत कम हैं । ऐसे लोग जन्म से है। एक कुत्ते से पूछा गया कि अपने अगले जन्म में आत्मसाक्षात्कारी होते हैं। मेरें उनकी समस्या वह क्या बनना चाहेगा? कुत्ते ने उत्तर दिया मुझे कुछ अधिक नहीं है। परन्तु हमें उन लोगों को सम्भालना भी बना देना परन्तु मठाधीश नहीं बनाना पुजारी है जो मध्य में हैं। बो अच्छाई की ओर बढ़ना चाहते नहीं बनाना। चाहे जो कुछ बना देना परन्तु कहीं हैं परन्तु कोई बाधा उन्हें पकड़े हुए है। ऐसे लोगों पुजारी नहीं बना देना। कुत्ते के अन्दर उस विवेक की कुण्डलिनी में अन्त्निर्हित कुछ दोष होते हैं। की कल्पना कीजिए! मैं यह भी नहीं कह रही हूँ जिन्हें समझ लेना हमारे लिए आवश्यक है। कि सभी पुजारी ऐसे ही होते हैं। हो सकता है कि कुछ लोग सच्चे भी हों, कुछ पुजारी वास्तव में अस्वस्थ होना है। विशेष रूप से इस देश (इंग्लैंड) आत्मसाक्षात्कारी हो सकते हैं-परमात्मा द्वारा अधिकृत। में लोग जुकाम आदि कष्टों से पीड़ित हैं। इसका परन्तु मुझे विश्वास है कि आम जनता उन्हें स्वीकार कारण वहाँ के जल में चूना (Calcium) का नहीं करती। इस बात का मुझे विश्वास है। मैंने बाहुल्य है। इसी प्रकार से देश विशेष-स्थान विशेष आपका इतिहास देखा है और पाया है कि उन्हें ऐसे के अनुसार यह समस्याएं हैं। जैसे हमारे देश में सम्मुख सर्वप्रथम अस्वस्थ शरीर-शारीरिक रूप से |मा सभी लोगों द्वारा दुत्कारा गया तथा सताया गया। हमारी कुछ अन्य समस्याएं हैं, आपके देशों में कुछ अन्य समस्याएं हैं। जिस देश में व्यक्ति का जन्म परन्तु अब उचित-अनुचित को जाँचने का समय आ अब आप किसी को सूली पर नहीं चढ़ा होता है उसके अनुरूप शारीरिक समस्याएं होती हैं। आप में से अधिकतर लोगों ने किसी देश विशेष में गया सकते। आप ऐसा नहीं कर सकते। हर व्यक्ति का आंकलन कुण्डलिनी की जागृति के माध्यम से जन्म लेने का निर्णय किया है। इसी कारण से आप हैं कि लोग उस देश से इस प्रकार से जुड़े हुए होगा। अब आपको जान लेना चाहिए कि मानव की आपको उसमें कोई दोष ही नजर नहीं आता। हर तीन श्रेणियां हैं। मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं देश में कुछ विशेषता है जिसके कारण व्यक्ति को किस प्रकार से यह बात शुरु करू ताकि आपको स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं आती हैं। अत: सहजयोगी सदमा न पहुंचे। एक तो हमारे जैसे मनुष्य हैं। इसे होने के नाते व्यक्ति को समझना चाहिाए कि स्वास्थ्य अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। यह शरीर परमात्मा का मन्दिर 'नर योनि' कहा जाता है। दूसरी श्रेणी 'देव योनि' हैं वो लोग जो है। अत: आपको अपने स्वास्थ्य की देखभाल करनी जन्मजात साधक हैं या आत्मसाक्षात्कारी हैं। और तीसरी श्रेणी के लोग 'राक्षस' हैं इन्हें गण उठती है तो पहली घटित होने वाली घटना होगी। आप यह भी जानते हैं कि जब कुण्डलिनी भी कहा जाता है। परन्तु हम कह सकते हैं कि आपके स्वास्थ्य का ठीक हो जाना है। क्योंकि मनुष्यों का एक वर्ग राक्षस है, ऐसे लोग जों असुर आपका पराअनुकम्पी (Parasympathetic) हैं। अत: संसार में असुर लोग भी हैं, श्रेष्ठ लोग तंत्र कार्यान्वित हो जाता है। पराअनुकम्पी, व्यक्ति नवम्बर एव दिसम्बर 2003 17 चंन्य लहरो खुण्ड XV अंक : 11 एवं 12 आप लोगों को ठीक कर सकते हैं। यह न को ज्योति प्रदान करता है जिसका प्रवाह अनुकम्पी तंत्र (Sympathetic) में होता है समझें कि आप कोई महान चिकित्सक हैं और तथा व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा हो जाता है। लोगों को ठीक करना आपका कर्त्तव्य है। नहीं, इसके विषय में आज मैं बहुत विस्तार से नहीं आप ऐसे नहीं हैं। आप आध्यात्मिकता हितेषी हैं बताऊगी क्योंकि समय का अभाव है। परन्तु यदि जिसके उपफल स्वरूप साधक के शरीर में भी सुधार होता है। क्योंकि यदि इस शरीर में ईसामसीह आप किसी पुस्तक को पढ़ेंगे-मैंने बहुत अधिक पुस्तके नहीं लिखी हैं-परन्तु यदि आप मेरे प्रवचनो को जागृत होना है, परमात्मा ने इस शरीर में आना को सुनेंगे और जो लिखे हुए हैं उन्हें पढ़ेंगे तो आप है तो शरीर को शुद्ध होना ही चाहिए। यह कार्य जान जाएंगे कि किस प्रकार कुण्डलिनी अधिकतर कुण्डलिनी करती है। परन्तु अस्पतालों की तरह से यह कोई अलग कार्य नहीं है। मैं ऐसे लोगों को रोगों को ठीक करने में सहायक होती है-सिवाय उन रोगों के जिन्हें मानवीय तत्व बढ़ावा देते हैं-जैसे जानती हूँ जो रोग मुक्त करने की शक्ति के कारण किडनी रोग। गुर्दा रोग के एक रोगी का इलाज भी पगला गए और नियमपूर्वक अस्पतालों में जाने लगे सहजयोग द्वारा हो चुका है। नि:सन्देह हम गुर्दा रोग तथा अस्पतालों में ही उनका अन्त हो गया। उन्होंने का इलाज कर सकते हैं परन्तु व्यक्ति यदि एक बार कार्यक्रमों में भी आना छोड दिया। वो मुझे मिलने मशीन (डायलिसिस) पर चला जाए तो कोशिश भी ना आते। करने के बाद भी उसे रोग मुक्त नहीं किया जा है सकता। उसका जीवन बढ़ाया जा सकता परन्तु व्याधि पूरी तरह से रोगमुबत नहीं किया जा सकता है। परन्तु रोग दूर करना किसी भी प्रकार से आपका शारीरिक रोगों की व्याधि है। शारीरिक रोग के कार्य नहीं है, यह बात आपको याद रखनी है। कोई कारण भी आपको इतना नीचे नहीं गिर जाना चाहिए। भी सहजयोगी लोगों के रोग ठीक करने में न लग आपको यदि कोई समस्या भी है तो उसे भूल जाएं. जाए। रोगी मेरे फोटो का उपयोग कर सकते हैं शनै: शनैः आप ठीक हो जाएंगे। कुछ लोगों को ठीक परन्तु आपको रोग दूर करने के कार्य में नहीं लग होने में समय लगता है। मुख्य बात तो अपनी तो यह परमात्मा की सबसे बड़ी बाधा है। यह जाना है क्योंकि इसका अर्थ यह है कि आप स्वयं आत्मा को प्राप्त करना है। अत: हमेशा यही न को बहुत बड़ा परोपकारी मान बैठे हैं। मैंने देखा है कहते रहें, "श्रीमाताजी, मुझे ठीक कर दीजिए, कि जो भी सहजयोगी रोग दूर करने के कार्य में लग मुझे ठीक कर दीजिए, मुझे ठीक कर दीजिए। ' श्रीमाताजी, मुझे गए उनके लिए यह कार्य पागलपन बन गया और आप मात्र इतना कहें , वो लोग भूल गए कि उन्हें भी कोई पकड़ हो गई आध्यात्मिक जीवन में बनाए रखिए।" आप स्वतः है तथा कुछ कष्ट हो गया है। परन्तु वह स्वयं को ही ठीक हो जाएंगे। हो सकता है कुछ लोगों को ठीक नहीं करते और अन्ततः, मैं देखती हूँ. कि बो ठीक होने में समय लगे परन्तु आप तो जीवन भर सहज से बाहर चले जाते हैं। परन्तु मेरे फोटो से बीमार रहे, तो ठीक होने में भी यदि कुछ समय लग चंतन्य लहरी खण्ड -४V अंक : 11 एवं 12 तवम्बर एवं दिसम्बर 2003 18 जाए तो कोई बात नहीं। भिन्न रोगों को ठीक करने की विधियाँ जो हमने बताई हैं उनके अनुसार कार्य आत्मा पर होना चाहिए। चित्त आपकी आत्मा करें। इस देश (लंदन) में विशेष रूप से जिगर तथा पर होना चाहिए क्योंकि चित्त ही भिन्न दिशाओं जाड़ों की समस्या है। इन सभी चीजों का हमारे पास में दौड़ता है और उलझ जाता है। आप इसे इलाज है जिसे अपने शरीर के प्रति कर्त्तव्य मान कार्यान्वित होने दें और यह कार्यान्वित हो स्वास्थ्य महत्वपूर्ण है, परन्तु आपका चित्त कर, इस मन्दिर के प्रति कर्त्तव्य मान कर हमें जाएगा। कार्यान्वित करना होगा। आपके जीवन का यही अन्तिम लक्ष्य नहीं होना चाहिए। घर की सफाई की अकर्मन्यता दूसरी बाधा जो मैं महसूस करती हूँ उसे अकर्मन्यता भूल जाना चाहिए। आप मुझसे पूछ सकते हैं कि कहा जाता है अर्थात् व्यक्ति के अन्दर कार्यान्वित सफाई क्यों करनी हैं? जब मैं ऑक्सटेड में थी तो करने की इच्छा का अभाव होना। नि:सन्देह जो लोग मैंने देखा और हैरान हुई कि सभी लोग हर चीज को बेकार हैं और जो आत्मसाक्षात्कार नहीं पाना चाहते तरह से यह तो एक छोटा सा कार्य है जिसे करके चमकाते थे, बगिया को भी बहुत अच्छी तरह से उन्हें भूल जाएं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के रखा जाता था। हर चीज़ को चमका कर रखा जाता पश्चात भी लोगों के अन्दर एक समस्या है कि वो था फिर भी उनके घर में चूहा तक नहीं घुसता था। इसे कार्यान्वित नहीं करना चाहते। सहज रूप से महीनों तक उनके घर में आते या घर से बाहर यदि कहा जाए तो वे आलसी हैं। हैरानी की बात है निकलते मुझे कोई दिखाई नहीं देता था। दोनों कि इस देश में आलस्य बहुत अधिक है। उस दिन पति-पत्नि सफाई के विषय में बहुत ही सावधान मैंने एक फिल्म देखी जिसमें दर्शाया गया था कि थे। मैं नहीं जानती कि सफाई-स्वच्छता आदि के आपके यहां से लोग जर्मनी गए और वहाँ के एक विषय में इतनी सावधानी किस लिए? यहाँ तक कि चालकविहीन वायुयान बनाने बाले कारखाने को पति-पत्नि एक दूसरे से भी बात नहीं करते थे, यह उड़ा दिया। उन लोगों ने कुछ बहुत ही ज्यादा कर सब मैंने देखा। हमारे घर के अतिरिक्त वहाँ सात दिया ताकि हमारे बच्चे भविष्य में अच्छी तरह से और घर थे सभी लोग हैरान थे कि हमारे घर पर रह सकें परन्तु सहजयोग में हमें बहुत ही सावधान क्या रहना होगा। लोग जब सहजयोग में आते हैं तो क्या आपका घर सबके लिए खुला है?' मैंने कहा."हाँ, होता हैं? उन्हें आत्मसाक्षात्कार मिल जाता है, शीतल यह घर सबके लिए खुला है।" उनकी समझ में चैतन्य लहरियाँ प्राप्त हो जाती हैं जो बाद में समाप्त इतने लोग कैसे आते हैं। उन्होंने पूछा कि नहीं आया कि हमें क्या समस्या है। कोई भी हो जाती हैं। इसका कारण यह है कि वो इसे चमकाई हुई और स्वच्छ चीजों को नहीं देखेगा। इस कार्यान्वित ही नहों करना चाहते। अकर्मन्यता एक प्रकार हम भी उस सीमा तक नहीं जाते जहाँ पर अन्य खतरा है। चैतन्य लहरियाँ जब चली जाती हैं यह वास्तविक सहजयांग बन जाए जो कि परमात्मा तो एक साल के बाद वो वापिस आते हैं और कहते के लिए महत्वपूर्णतम है। श्रीमाताजी, हमें इस पर विश्वास नहीं है, परन्तु चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 19 मेरे पेट में कुछ दर्द है, क्या आप इसे ठीक कर बीमारी है जो फैलती है। मान लो. पति-पत्नी हैं देंगी?" सहजयोग की सभी शक्तियों से लैस होने के और पत्नी इसी प्रकार ( अकर्मन्य) है । अपनी पत्नी स्थान पर आप बेकार व्यक्ति बन जाते हैं और यहां को उठाने के स्थान पर पति, विशेष रूप से पश्चिमी आ कर मेरा समय बर्बाद करते हैं। यह सभी देशों में पत्नी के सम्मुख घुटने टेक देता है। भारत शक्तियां आपके अन्दर विद्यमान हैं। यह आपकी में इसका बिल्कुल उलट है। क्योंकि वहाँ पर पति सम्पत्ति है। यह आपकी आत्मा की सम्पत्ति है जो बहुत ही ज्यादा रौबीले हैं तो वहाँ पत्नियाँ पतियों के आपके अन्दर आपकी देखभाल कर रही है। निश्चित सम्मुख झुक जाती हैं। होता क्या है कि जिन दो रूप से यह अपनी अभिव्यक्ति करेगी । परन्तु जिन लोगों ने प्राप्त किया हुआ है वो भी उसे खो देते -हैं। बाधाओं को आप स्वीकार कर लेते हैं उनके कारण यदि उनमें से एक जो साक्षात्कार की दृढ़ अवस्था यह अपनी अभिव्यक्ति नहीं कर पाती। हम कह में होता यदि वह अपनी इच्छाशक्ति का उपयोग करता कि ' नहीं, मैं इसे देखूंगा, देखने के लिए मेरे नहीं होने देती। बिना यह जाने, बिना यह समझे कि देखने दीजिए, मुझे स्वयं को एक अवसर देने दीजिए' तो दोनों बहुत अच्छे है, चैतन्य लहरियाँ क्या हैं और किस प्रकार यह आत्मसाक्षात्कारी होते। वे यदि इसे स्वीकार करते तो कार्यान्वित होती हैं, लोग कहते हैं," ओह! यह बहुत यह कार्यान्वित होता और वह दूसरी सीढ़ी तक पहुँच जाते। हर चीज़ तीव्र गति से उड़ने वाले नहीं करना चाहते। ज्योंही कुण्डलिनी उठती है, वायुयान की तरह से नहीं हो सकती कि यहाँ आप ज्योंही प्रकाश अन्दर आता है, आंखें बंद होने से पूर्व यान में बैठे और अगले क्षण चाँद पर पहुँच जाएं। सकते हैं कि यह अकर्मन्यता है जो इसे कार्यान्वित पास दृष्टि है, मुझे सहजयोग क्या है, किस प्रकार इसका उपयोग करना बड़ी बात है", क्योंकि वो बास्तविकता का सामना आप यदि चाँद पर भी हैं तब भी आपके अन्दर ही आप देखते हैं कि अचानक प्रकाश अन्दर आ जाता है और तब आप आंखें खोलना ही नहीं चाहते तीसरी प्रकार का खतरा शुरु हो सकता है। क्योंकि आपके लिए यह बहुत ही बड़ी बात होती संशय है क्योंकि अब तक आप सोए हुए थे। यदि आप थोड़ी सी आंखें खोल भी लें तो भी, हे परमात्मा! यह संशय कहलाता है अर्थात् सन्देह करना। मेरी आप प्रकाश का सामना नहीं करना चाहते क्योंकि समझ में नहीं आता कि सन्देह रूपी पागलपन का आप तो उस अवस्था से एकरूप हैं, आप अपनी आंखें खोलना ही नहीं चाहते। कुण्डलिनी आपकी यहाँ पर आए हुए आप लोगों का न जाने कितना आँखें खोलना चाहती है इसमें कोई सन्देह नहीं प्रतिशत अगले दिन इस वक्तव्य के साथ नहीं आया वर्णन किस प्रकार किया जाए। उदाहरण के लिए, परन्तु आप पुन: अपनी आँखें बन्द कर लेते हैं। तो कि,"अभी मुझे सन्देह है।" क्या यह विवेक का अकर्मन्यता के सम्मुख झुक जाने के लिए आप चिन्ह है? आप किस चीज़ पर सन्देह कर रहे हैं। स्वतन्त्र हैं। अब यह सामूहिक भी हो सकती है। मैं अब तक आपने क्या प्राप्त कर लिया है? यह आपको इतना बता सकती हूँ कि यह बहुत बड़ी सन्देह कहां से आता है? यह आपके 'श्रीमान %3D चैतन्य तहरो खाड -XV अक : 11 एवं 12 नवभ्बर एवं दिसम्बर 2003 20 अहम्' कि देन है जिसके विषय में मैंने एक भाषण को उठते हुए, धड़कते हुए और सहस्रार तोड़ते हुए के बाद दूसरा भाषण दिया है । यही 'श्रीमान अहम्' देखेंगे। फिर भी बो बैठ जाएंगे ओर कहेंगे कि,"मुझे है।" अब आप हैं कौन? आप कहाँ तक इस पर सन्देह कर रहे हैं क्योंकि वो नहीं चाहते कि सन्देह आप पूर्ण (Absolute) को पा लें। अपने अहम् पहुँचे हैं? क्यों आप सन्देह कर रहे हैं? किस चीज़ के साथ आप एकरूप हैं और आप भी इसे खोजना पर आप सन्देह कर रहे हैं? अपने विषय में आपने नहीं चाहते क्योंकि हर समय यही श्रीमान अहम्' क्या जाना है। इस बिन्दु पर आकर आप विनम्र हो आपके जीवन का पथ-प्रदर्शन करते रहे हैं। अब जाएँ। अपने हृदय में विनम्र हो कर कहें ,"मैंने स्वयं आप शक करना चाहते हैं। किस पर शक? आप को नहीं जाना है, मुझे स्वयं का ज्ञान प्राप्त करना है, का सन्देह क्या है? आपको शीतल चैतन्य लहरियाँ अभी तक मुझे स्वयं का ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ है, महसूस होती हैं तो ठीक है. बैठ जाइए। यह तो वैसे होगा जैसे विश्वविद्यालय में प्रवेश लेकर कोई व्यक्ति उपकरण (शरीर तन्त्र) से मैं सन्देह कर रहा हूँ?" वहाँ बैठ जाए और अध्यापक कहे"यह चित्र कुण्डलिनी जागृति में यहीं सबसे बड़ी बाधा है कि (Diagram) है, यह मैं आपको देता हूँ" और वह जागृति के बाद भी 'संशय' बना रहता है। विद्यार्थी उठ कर कहे कि, "हमें इस पर सन्देह है।" तो बिचारा अध्यापक क्या कहे? परन्तु वहाँ पर विद्यार्थी ऐसा नहीं करते क्योंकि उन्होंने फीस दी हुई होती है, उसके लिए धन खर्चा होता है। चाहे यह कारण हम हर समय लड़खड़ाते रहते हैं। हर समय मुझे पूर्ण (Absolute) प्राप्त नहीं हुआ है कौन से प्रमाद चौथी बाधा को हम प्रमाद कह सकते हैं। इसके बैवकूफी भरे प्रश्न करते हैं। कहने से अभिप्राय यह है कि मान लो आप सड़क पर चल रहे हैं और भयानक नाटक हो, उवाऊ हो, फिर भी हम इसे सीखते हैं क्योंकि हमने इसके लिए पैसा खर्चा है | हम इसे सीखते हैं 'आखिरकार हमने इस पर पैसा आपको यूरोपियन तरीके से गाड़ी चलाने की आदत खर्चा है, क्या किया जाए?' परन्तु सहजयोग के लिएह आप पैसा भी नहीं दे सकते। मैंने लोगों को सभी परन्तु लन्दन में तो आपको पकड़ लिया जाएगा। प्रकार की मूर्खता करते हुए देखा है लोग कई-कई इसी प्रकार से आप अभी तंक यूरोपियन शैली में गुरुओं को स्वीकार करते हैं। कोई गुरु कहता है," मैं तुम्हें उड़ना सिखाऊंगा।" इस बात के लिए वो पूरी बेहतरी इसी बात में है कि लन्दन के लोगों की तरह से तैयार होते हैं। इसके लिए वो धन देते हैं शैली को अपना लें और वहां कोे आवश्यक नियमों और जरा भी सन्देह नहीं करते कि ऐसी घोषणा करने वाला व्यक्ति क्या स्वयं भी कभी उड़ा है? यह मुख्य बात है। फिर आप इसके अनुरूप नहीं क्या आपने कहीं उसे उड़ते हुए देखा है? कृपा चलना चाहते। तो प्रमादरूपी दुर्गुण का उद्य इसलिए करके उसे उड़ने के लिए कहें तो सही। वे कुण्डलिनी होता है क्योंकि यहां पर आने वाले सभी लोगों के को उठते हुए देखेंगे. अपनी आँखों से वे कुण्डलिनी तो सदैव आप गलत दिशा में ही गाड़ी मोडेंगे। गाड़ी चला रहे थे. अब आप लन्दन में हैं, तो का पालन करें। परन्तु आप इसमें सन्देह कर रहे हैं। लिए कुण्डलिनी की जागृति निः शुल्क है, सभी चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 21 लोगों के लिए, चाहे, नरक में रहे हों या स्वर्ग में, या वो पूरे विश्व को बताते हैं और यह कहते हुए कि चाहे उन्होंने दुनिया के सभी दुष्कर्म किए हों। परन्तु हम सहज-योग को दोष देते हैं अपने अन्दर स्वतः चैतन्य ठीक नहीं है', सभी पर रौब डालते हैं घटित होने वाली इस घटना को हम दोष देते हैं, जबकि वास्तव में उन्हें चैतन्य लहरियों पर स्वामित्व इस चीज़ का चैतन्य ठीक नहीं है', 'उस चीज़ का कभी स्वयं को दोष नहीं देते कि, नहीं मैंने ही यह नहीं होता। अब मुझे सावधान होना पड़ेगा। किसी गलती की होगी। ठीक है, कोई बात नहीं। मैं यदि गुरु की तरह से मैं बात नहीं कर सकती। इसलिए गलती करता हूँ तो इन्हें ठीक भी करूंगा, ठीक है। मैं कहती हूँ कि ठीक है आप स्वयं को बन्धन दे नि:सन्देह श्रीमाताजी क्षमा करती है, परन्तु कई बार लें और अपने हाथ मेरी ओर करके देखें। किसी मेरी क्षमा भी बेकार होती है, क्योंकि जब तक आप तरह से यदि उन्हें पता चल जाए कि मैं जान गई हूँ अपने अन्दर यह महसूस नहीं करते कि मैंने यह कि वो झूठ बोल रहे हैं तो बस वो तो समाप्त हो गलती की तब तक आप इस मार्ग पर जाने के स्थान गया। अत: उनका झूठ भी मुझे स्वयं तक रखना पर दूसरे मार्ग पर जाने लगते हैं। आप उस मार्ग पर पड़ता है। इस बारे में में बहुत सावधान हूँ क्योंकि चले गए हैं तो सड़क पर चलने का नियम समझना में जानती हूँ कि वो लाग भयानक फिसलन पर खड़े होगा अतः प्रमाद रूपी बाधा होने के पश्चात् हमारे हुए हैं। किसी चीज़़ को कहने की मेरी शैली चाहे अन्दर एक अन्य अंतर्निहित समस्या खड़ी हो जाती रूखी ना हो फिर भी वो चीज़ घटित हो सकती है। है। जिसे कहते हैं: अत: व्यक्ति को यह बात समझ लेनी है कि सत्य भ्रमदर्शन, अर्थात दृष्टि भ्रम। हमें भ्रमदर्शन होने पर डटे रहने में ही हमारा हित है। अपने विषय में लगता है, विशेष रूप से उन लोगों को जो LSD हमारे जो विचार हैं उनसे हमें बहकना नहीं चाहिए। तथा अन्य इस प्रकार के नशे लेते हैं। वो मुझे नहीं देखते। कभी-कभी तो उन्हें केवल प्रकाश दिखाई विषयचित्त देता है या इसी प्रकार का भूत या भविष्य, या कोई एक अन्य बाधा जो व्यक्ति में आ जाती है वह और भ्रम। वे इसी प्रकार कोई अन्य भ्रम देख सकते है 'विषयचित्त'। इस स्थिति में हमारा चित्त उन हैं। आप यदि मुझे स्वप्न में देखते हैं तो ठीक है या पदार्थों की ओर आकर्षित होता है जो आत्मसाक्षात्कार स्वप्न में यदि किसी और चीज़ को देखते हैं तो से पूर्व हमें रुचिकर थे, जिन पर पहले हमारा चित्त ठीक है। परन्तु यदि आप भ्रम दर्शन करना शुरु कर होता था। मान लो आपका चित्त क्रिकेट की ओर देते हैं तो आपमें भ्रम विकसित हो जाता है। इसकी आकर्षित थी। ठीक है, परन्तु आप को यह रोग नहीं सबसे बड़ी कमी यह है कि लोग इसके बारे में झूठ होना चाहिए। मेरा कहने से अभिप्राय यह है कि बोलने लगते हैं। मैं सभी के विषय में जानती हूँ। क्रिकेट का अर्थ यह नहीं है कि आप क्रिकेट का भ्रम दर्शन यदि शुरु हो जाता है तो यह चैतन्य बल्ला ही बन जाएं तथा क्या आप किसी अन्य लहरियों के लिए बहुत भयानक होता है। कुछ लोगों चीज़ के लिए बिल्कुल बेकार हैं, सभी व्यावहारिक को स्वयं पर पूर्ण विश्वास है यह बात मैं देखती हूँ। कार्यों के लिए क्या आप मर चुके हैं। किसी भी नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 22 चैन-्य लहरी खण्ड XV अंक । एवं 12 : 11 चीज के प्रति पागल आकर्षण आप के चित्त को कार्य किया। मैं जानती हूँ कि सभी लोग अब उससे नाराज हैं परन्तु मैं नाराज़ नहीं हूँ क्योंकि उसने जो भी कुछ किया भूतबाधित हो कर किया। कोई नहीं अत्यन्त गलत अवस्था में ले जाता है। अत: यह सहजयोगियों के लिए ठीक नहीं है। आज का प्रवचन मुख्यत: सहजयोगियों के लिए जानता कि भूतवाधित अवस्था में व्यक्ति कौन सा है। मैं बता रही हूँ कि आत्मसाक्षात्कार को बनाए पागलपन कर बैठे। कहने से अभिप्राय यह है कि रखने के मार्ग में हमारे सम्मुख कौन सी अन्तर्निहित ऐसे लोगों को तो पागलखाने पहुँच जाना चाहिए कठिनाईयाँ हैं। इन्हें समझ लेना बहुत ही आवश्यक परन्तु सहजयोग के कारण वो उस स्थान पर स्थिर है। इन कठिनाईयों के अतिरिक्त दो अन्य बहुत बड़े नहीं हुए हैं जहाँ उन्हें होना चाहिए। दो अन्य स्थितियाँ हैं जिनमें कुण्डलिनी ऊपर खतरे, जिन के कारण हम कष्ट उठाते हैं, वो को उठती है और फिर नीचे गिर जाती है। मनुष्य निम्नलिखित हैं। एक तो लोग भूतबाधित हो जाते हैं अन्दर यह अन्तनिर्हित भय है । बहुत से लोगों ने और उनके मस्तिष्क में बहुत सी धारणाएँ भर जाती मुझसे पूछा," श्रीमाताजी, आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर वा भजन गाने लगते हैं आदि-आदि। यह चीजें लेने के पश्चात् क्या यह स्थिति बनी रहती है?" मुझे उलझन में डाल देती हैं, मेरी समझ में नहीं यह स्थिति बनी रहती है। इसका कुछ अंश बना आता कि क्या कहा जाए। उनके माध्यम से बोलता रहता है। कभी तो इसको बहुत थोड़ा हिस्सा बना हुआ असुर मुझे दिखाई देता है। परन्तु मेरी समझ में रहता है और कभी पूरी की पूरी कुण्डलिनी वापिस नहीं आता कि किस प्रकार उन्हें बताया जाए कि खिंच जाती है। यह वापिस खिंच जाती है। जब ऐसा 'कृपा करके बन्द कर दीजिए।' मेरी स्तुति वो लोग होता है तब आप कहेंगे," हमें संदेह होने लगा है।' गाते हैं फिर भी मुझे पता होता है कि बास्तर्व में यह यह कहाँ लिखा हुआ है कि आपका उत्थान होगा क्या है। पर वे लोग मेरे पास आते हैं और कहते और आप उस उच्च स्थिति में स्थायी रूप से स्थापित हो जाएंगे चाहे आप के अन्दर कोई भी यहाँ से यदि नहीं मानते हैं कि उन्हें यह ज्ञान कहाँ से मिलता है। मुझे भारत जाना हो तो भी मुझे रोग-अवरोधी इन टीकाकरण कराना होगा पासपोर्ट लेना होगा, साक्षात्कार हैं" श्रीमाताजी, हम आपको एक भजन सुनाएंगे।" ठीक है। मैं कुछ नहीं कह सकती क्योंकि वो लोग कमियाँ रही हों। क्या यह संभव है? उनके अन्दर यह कार्य कोई अन्य कर रहा है। देना होगा। और जब आपको परमात्मा के साम्राज्य में सभी समस्याओं के कारण आप भूत बाधित हो जाते । उस दिन कोई व्यक्ति मेरे पास आया और कहने प्रवेश करना लगा " श्रीमाताजी, मुझे स्वयं पर बहुत विश्वास होता केवल जाँचा ही नहीं जाएगा यदि आपको कुछ चला जा रहा है।" वास्तव में दूढ़ विश्वास, तथा मैं कृपा अंक दे कर यान में बिठा दिया गया है तो हो है तब भी तो आपका जाँचा जाएगा। ा. कोई बहुत बड़ा कार्य करना चाहता हूँ।" और उसने सकता है कि आपको उतरने के लिए कह दिया वो कार्य किया। पहले तो उसने अपने अन्दर वो जाए। कुछ लोगों के साथ ऐसा होता है कि उनकी वाधा आते हुए देखी और फिर बड़े जोर शोर से कुण्डलिनी नीचे को गिर जाती है। यह बहुत ही he चतन्य लहरी खण्ड XV अक़ : 11 एक 12 नवन्बर एवं दिसम्बर 2009 23. भयानक चिन्ह है। यह समस्या गलत गुरुओं के नहीं हो जाता-यह मेरी जिम्मेदारी नहीं है, यह तो कारणे, गलत स्थानों पर जाने के कारण मृत आत्माओं एक अवस्था है-जिसमें आपके हाथों के इशारे से तक पहुँचने तथा काला जादू करने के कारण होती कुण्डलिनी उठेगी। जब तक आप इस अवस्था को है। जो लोग अवतरण नहीं हैं उनके सम्मुख सिर प्राप्त नहीं कर लेते तब तक कृपा करके इसे झुकाने से, गलत प्रकार के देवताओं की पूजा करने कार्यान्वित करने में लगे रहें. आलसी न बने। से, गलत प्रकार के कर्मकांड करने से, गलत समय आपको अपने चहूँ ओर देखना है, लोगों से मिलना पर व्रत रखने से, व्रत, कर्मकान्डों तथा चक्रों का है, उनसे बातचीत करनी है। जितना अधिक आप मतलब न समझने से और पूर्ण सहजयोग की इसके बारे में बतायेंगे, जितना अधिक आप इसे सम्यकता को न समझ पाने के कारण यह समस्या करेंगे, जितना अधिक आप इसे देंगे उतना ही होती है। कुछ लोगों में, आपने देखा है कि कुण्डलिनी अधिक यह प्रवाहित होगा। जितना अधिक आप उठती है और तुरन्त गिर जाती है। यह अत्यन्त अपने घर पर बैठकर सोचेंगे, यह "ओह! मैं घर पर पूजा कर रहा हूँ", तो कुछ नहीं होगा। यह निष्क्रिय होता चला जाएगा। आपको इसे अन्य लोगों को देना यह है कि आपको लगने लगता है कि आप होगा। अधिक से अधिक लोगों को आत्मसाक्षात्कार परमात्मा बन गए या किसी अवतरण सम बन गए। देना होगा, हजारों लोग इसे प्राप्त करेंगे। अतः यह भयानक बात है। वास्तव में यह कष्टकर भी है। अन्तिम खतरा, जिसका ज्ञान आपको होना चाहिए, यह बहुत बड़ा खतरा है। तब आप कानून को अपने समझ लेना आवश्यक है कि आपको इस बात से हाथों में लेने लगते हैं. दूसरे लोगों पर हुक्म चलाने धोखा नहीं खाना कि ब्रह्मांड की सभी शक्तियां लगते हैं तथा बहुत ही अनियन्त्रिता से कार्य करने आपमें प्रकट हो गई हैं। इन शक्तियों की अभिव्यक्ति लगते हैं तथा अपने आपसे अत्यन्त संतुष्ट हो जाते जब आपमें होगी तब आप इनके विषय में जान पायेंगे। आप कल्पना करें कि सूर्य कहे "मैं सूर्य हैं। यह बहुत बड़ा खतरा है। विनम्रता एक मात्र मार्ग है जिससे आप जान हूँ।" क्या वो कहता है कि मैं सूर्य हूँ? कहने को सकते हैं कि आपके सम्मुख विशाल सागर है। ठीक क्या है? आप जा कर यदि सूर्य से पूछे," क्या आप है कि आप नाव पर सवार हो गए हैं परन्तु आपने सूर्य हैं?" तो वो कहेगा," हाँ मैं ही सूर्य हूँ, इस बहुत कुछ सीखना है, बहुत कुछ समझना है तथा विषय में मैं क्या करूँ?" यह इतनी सहज चीज़ है अभी आपने अपने चित्त की ओर ध्यान देना है, कि आप अत्यंत सहज व्यक्ति बन जाते हैं, पूर्णत ः अपनी चेतना की ओर ध्यान देना है। है और न ही कोई अभी आपने सहज़। न तो इसमें कोई छुपाव इस प्रकार से कार्य करना है कि आप वास्तव में जटिलता, आप वही हैं। कोई आपसे अटपटा प्रश्न स्वयं को पूर्ण सहज-योगी के रूप में स्थापित कर पूछता है तो आप कहते हैं,"इसमें पूछने वाली सकें, जिससे की सामूहिकता आपके अस्तित्व का कौन-सी बात है?" यह सत्य है। मेरा अर्थ यह है अंग-प्रत्यंग बन जाए और आपमें किसी भी प्रकार कि मैं आत्मसाक्षात्कारी हूँ। मैं आत्मसाक्षात्कारी हूँ। के संशय न रह जाएं| जब तक आपमें यह धटित इससे क्या फर्क पड़ता है?" इस सूझ-बूझ से हमें नकम्बर एवं दिसम्बर 2003 24 चैतन्त्र तहरी खण्ड -४V अक : 11 शार भाट र बा ं सहज-योग में जाना है मैं कहूँगी कि जिस चमत्कारिक समझ ले कि आप भी ऐसा ही कर सकते हैं। अत: ढंग से यह कार्य कर रहा है उससे मैं हैरान हूँ और आप सावधान रहें। सावधान रहें। यरह कार्यान्वित हो रहा है । आप लोग इसे अपने अतः आज जब हम ईसा-मसीह के जीवन की अन्दर स्थापित कर सकते हैं। अब आपमें से कुछ लोग तो परिधि रेखा (किनारे पर) खड़े हैं । उन्हें हम किनारे पर रखते हैं, यह बात आप अच्छी तरह से जानते हैं। कुछ लोग मध्य महान घटना का उत्सव मना रहे हैं तब हमें जान लेना चाहिए कि ईसा-मसीह हमारे अन्दर उत्पन्न हो गए हैं तथा अन्त्तनिहित है । आपको वैधलहैम जाने की कोई बैथलहैम (Beihlehem) हमारे में आ जाते हैं और कुछ बहुत थाडे से, अन्दर वाले आवश्यकता नहीं। यह हमारे अन्दर स्थित है। वृत्त में (मध्य-बिन्दु) पर है सभी लोग ऐसी स्थिति ईंसा-मसीह वहाँ हैं और हमने उनकी देखभाल में है जहां से परिधि रेखा से उन्हें बाहर किया जा करनी है। वे 'अभी बालक हैं, आपने उनका सम्मान सकता है। तब आपकी समझ में नहीं आता कि करना है सहजयोगी ने ऐसा व्यवहार क्यों किया। किसी वास्तव में प्रकाश बढ़ता हैं और लोग मान लेते हैं और उनकी देखभाल करनी हैं। अत: सहजयोगी को यदि आप एसा व्यवहार करते हुए कि आप आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति हैं । कोई भी संदेह देखें, परिधि की बाह्य रेखा पर जाते हुए देखें तो नहीं करेगा कि आप आत्मसाक्षात्कारी हैं। परमात्मा आपको धन्य करें। तितदाजी सहज जीवन कैसा हो व ध्यान कैसे करें भारतीय विद्या भवन, बम्बई, 27.5.1976 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आपसे दादर में मैंने बताया था कि सहजयोग में जो कुछ भी शौक हैं, वो गिरते जाते हैं, अनुभूतियाँ पहले किस प्रकार से निर्विचार की समाधि लगती गिरती जाती हैं और नई अनुभूतियों की ओर आपकी है। तदात्म्य के बाद आदमी को सामीप्य हो सकता दृष्टि जाती है। या इस प्रकार समझें कि एक मनुष्य को है और उसके बाद सालोक्य हो सकता है। लेकिन गाने में रुचि नहीं है और किसी तरह से उसको गाने में तदात्म्य को प्राप्त करते ही मनुष्य का interest रुचि हो गई-शास्त्रीय संगीत में उसे रुचि हो गई, तब (रुचि) ही बदल जाता है। फिर उसे कोई सी भी अशास्त्रीय संगीत की महफिल तदात्म्य को पाते ही साथ, मनुष्य की अनुभूति हो, वहाँ मजा नहीं आने वाला। के कारण, वो सालोक्य और सामीप्य की ओर उतरना नहीं चाहता। माने ये कि जब आपके हाथ में चाहिये। और वास्तविक, बाकी और जो भी आदतें चैतन्य की लहरियाँ बहने लग गई और जब आप हैं या जो कुछ भी शौक हैं वो तो आपके अन्दर को दूसरों की कुण्डलिनी समझने लग गई और जब धीरे-धीरे आते हैं, प्रयत्न पूर्वक आती हैं। इसके आप दूसरों की कुण्डलिनी को उठा सकें तब कारण वो रुचि आपके अन्दर बहुत अच्छी तरह से उसका चित्त इसी ओर जाता है कि दूसरों की चिपक जाती है। हालांकि सहजयोग से आपके कुण्डलिनी देखें और अपनी कुण्डलिनी को समझें। अपने चक्रों के प्रति जागरूक रहे और दूसरे के भी (चेतना) में, एक नई चेतना में आये हुए हैं, आपको चक्रों को समझता रहे। उसी प्रकार सहजयोग में आपकी हालत हो जानी अन्दर क्रान्ति हो गई है - आप एक नये awareness बाइब्रेशन (vibrations) समझ में आते हैं, आपको अगर आप आकाश की ओर देखियेगा, बादल हों दूसरों की कुण्डलिनी दिखाई देती है, आप में से तब भी देखें, आपको दिखाई देगा कि अनेक तरह बहुत लोग जागृत भी कर सकते हैं । आप बहुत-से की कुण्डलिनी आपको दिखाई देगी। क्योंकि अब लोग पार भी कर सकते हैं। हजारों लोगों को आपने आपका चित्त कुण्डलिनी पर गया है, आपको ठीक भी किया है नई शक्ति में आपने पदार्पण कुण्डलिनी के बारे में जो कुछ भी जानना है, जो किया है और इससे आप प्लावित हैं। कुछ भी देखना है, जो कुछ सामीप्य है, वो जान पड़ेगा। कुण्डलिनी के बारे में interest जो है वो गया है कि आपने कोई भी प्रयत्न नहीं किया । बगैर बढ़ जाता है। बाकी के interest अपने आप ही लेकिन यह सब करने में एक ही बात का दोष रह प्रयत्न के ही सब स्वयं हो गया। इसके ही कारण हो है। लुप्त हो जाते हैं। ऐसा ही समझ लीजिये कि आप जब बचपन को छोड़कर जवानी में आ जाते हैं, तो आपकी जवानी के जो interest हैं आपकी नौकरी, धन्धा, बीवी-बच्चे- बहुत-से लोग जो कि सहज-योग में वाइब्रेशन पा भी लेते हैं, ऊंचे उठ भी जाते हैं, तो भी उनका चित्त सकता परमात्मा की ओर, आत्मा की ओर, कुण्डलिनी की ओर नहीं रहता है और अब भी वो चित्त बार-बार. है उसी में आपका interest आ जाता आपके बाकी के गलत जगह पर जाता रहता है। चैतन्य लहरी खण्ड -XV अक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 26 आपने पूछा था कि पाने के बाद क्या करना है? पानी में बैठना चाहिये। आप लोगों को यह आदत पाने के बाद देना ही होता है, यह बहुत परम लगे इसलिये मैं जबरदस्ती बैठती हूँ कभी-कभी कि आवश्यक चीज़ है कि पाने के बाद देना ही होगा। चलो मैं भी पानी में बैठती हूँ तो मेरे सहज योगी नहीं तो पाने का कोई अर्थ ही नहीं। बैठेंगे। यह आदत बहुत ही अच्छी है। एक पाँच मिनट पानी में सब सहजयोगियों को और देने के वक्त में एक बात-सिर्फ एक छोटी सी बात-याद रखनी है कि जिस शरीर से, जिस मन बैठना चाहिये। फोटो के सामने दीप जलाकर के, से, जिस बुद्धि से, माने इस पूरे व्यक्तत्व से. आप कुमकुम वरोरह लगाकर के. अपने दोनों हाथ रख इतनी जो अनुपम चीज़ दे रहे हैं, वो स्वयं भी बहुत कर, दोनों पैर पानी में रखकर सब सहजयोगियों को सुन्दर होनी चाहिये। आपका शरीर स्वच्छ होना बैठना चाहिये। आपके आधे से ज्यादा problem चाहिये। शरीर के अन्दर कोई बीमारी नहीं होनी solve (समस्यायें हल) हो जायेंगे, अगर आप यह तात चाहिये। अगर आपको कोई बीमारी है-बहुत-से करें। चाहे कुछ हो जाये आपके लिये पांच मिनट सहजयोगियों के ऐंसा भी होगा कि उनके अन्दर कुछ मुश्किल नहीं हैं । सोने से फहले पानी में सबको कोई शारीरिक बीमारी है-तो सहजयोग से पहले तो बैठना चाहिये। इससे आपको जो है, आधे से ज्यादा वो कहते होंगे कि 'साहब, मुझे यह बीमारी ठीक पकड़ना खत्म हो जायेगा। सर्वरे के time (समय) में जल्दी उठना चाहिये। होनी चाहिये, वो बीमारी ठीक होना चाहिये।' लेकिन सहजयोग के बाद में इनका चित्त नहीं रहेगा बीमारी हम लोगों का सहजयोग दिन का काम है, रात का की ओर। जो हो 'अरे हो जायेगा ठीक, चलो सब नहीं, इसलिये रात को जल्दी सोना चाहिये। 6 बजे ठीक है। ये बात गलत है आपको कोई-सी भी सोने की बात नहीं कह रही मैं, लेकिन करीबन 10 ज़रा-सी भी तकलीफ हो जाये आप फौरन वहाँ हाथ वजे तक सबको सो जाना चाहिये। 10 बजे के बाद रखें, अपनी तबियत ठीक कर सकते हैं। अपनी सोने की कोई बात नहीं। सवेरे जल्दी उठना चाहिये। सवेरे के time में जल्दी उठकर के, नहा धोकर physical side (शारीरिक भाग) बहुत साफ रख करने की जरूरत के ध्यान करना चाहिये। सवेरे ध्यान में बैठना सकते हैं। बहुत ज्यादा उसमें कुछ नहीं। स्नान करना, स्वच्छता से रहना और अपनी चाहिये। जैसे कि हमारे यहाँ हम लोग सवेरे उठ करके अपना मुँह धोते हैं और सालों से धोते आ रहे physical side ठीक करना। लेकिन इसके लिए मैंने एक चीज का कहा है, हैं. हर साल धोते हैं, जिन्दगी भर धोते रहे, उसी जैसे कहते हैं कि सवेरे सबको bathroom (शौच) तरह हर मनुष्य को सवेरे उठकर के-सहज योगी जाना चाहिये, शरीर साफ करना चाहिये सहज को चाहिये कि वो ध्यान करे। यह आदत लगाने की योगियों के लिये सोने से पहले पानी में बैठना पांच बात है। लेकिन मैंने देखा है कि कई लोग. चार बजे मिनट अत्यन्त आवश्यक है। वो चाहे कोई भी हो। या पांच बजे उठना उनको बहुत मुश्किल होता है। आप बड़े पहुँचे हुए हो, आप कहें 'हमें नहीं उसका कारण एक है। मनुष्य को मैंने बहुत study पकड़ता'-इससे मतलब नहीं है। आपको 5 मिनट ( अध्ययन ) किया है, उसकी बारीक चीज़ें बहुत चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 27 समझी हैं। बड़ा मजा आता है उसको study करने ( आज्ञा) लेकर के बैठें। वात-बात में क्षमा माँगनी पड़ती है। सो, उस में मुझे। वो अपने साथ किस तरह से भागता है, वो अपने साथ ही किस तरह से arguments (दलीलें) वक्त भी क्षमा माँगकर कि 'हमसे अगर कोई गलती देता है, वो देखने लायक चीज है, मनुष्य की। हो तो उसे माफी करके, ध्यान में आप हमें उतारिये।' अपनी ही नाक कटाने के लिये खुद ही वो इस तरह की प्रार्थना करके। जिन्हों से हमने बैर explanations (सफाई), खुद ही कसे देता रहता किया है, सबको माफ कर देते हैं और हमने अगर है। वो इस प्रकार कभी-कभी होता है, कि जैसे किसी से बैर किया है, उसके लिये तुम हमें माफ "हम तो सवेरे जल्दी उठ ही नहीं सकते, माँ! भई! कितने बजे सोते हो रात को? "बारह बजे, पर और आप ध्यान में जायें आँख बन्द करके आत्मा कर दो। अत्यन्त पवित्र भावना मन में लाकर के मैने तय किया था कि चार बजे उठूंगा। " हो ही नहीं की ओर ध्यान करें। सकता। लेकिन एक दिन आप जल्दी सोयें और एक दिन आप उठें, हर हालत में, तो आप जल्दी सो ही नहीं होता। यह सवाल पूछना बहुत गलत बात जायेंगे, आप जग नहीं सकते। दो दिन आप ऐसा कर है। आप चाहे पाँच मिनट करिये चाहे दस लीजिये, शरीर ऐसा है, उसको आदत लग जायेगी। मिनट करिये। पाँच -दस मिनट एकाग्रता से आप सर्वरे जल्दी उठने से, सवेरे के time में ध्यान करें। अब कितने मिनट करें? इससे कोई मतलब receptivity (ग्रहण-शक्ति) ज्यादा होती है मनुष्य की। और इतना ही नहीं, उस वक्त में संसार में नतमस्तक होकर के आप ध्यान करें। पर ध्यान करने से पहले-इसको समझ लें-ध्यान बहुत अत्यन्त सुन्दर प्रकार से चैतन्य भरा रहता है। करने से पहले, जहां बैठ रहे हैं, उस आसन में तो शरीर की दृष्टि से मैंने आपको बताया और बन्धन दें। अपने को बन्धन दें, अपने शरीर को बन्धन दें। सात मर्तबा अपने शरीर को बन्धन दें। अब ध्यान कैसे करना है, सोचें! ध्यान कैसे स्थान को बन्धन दें, फोटो को बन्धन दें। वो तो हो दूसरा यह कि सर्वरे उठकर ध्यान करना। करना-सवेरे उठकर? गया mechanical (यन्त्रवत्) बाहर करने का क्योंकि बड़े ही नत-मस्तक होकर के, अपने को हृदय में नत कर लें। पहली चीज है नत करना। Humble कुछ लोग तो यूँ-यूँ कर लेते हैं, हो गया काम खत्म। ऐसी बात नहीं है। down yourself (स्वयं को नम्र करें) । किसी ने यह सोच लिया कि मैंने बहुत पा में बैठे हैं, अत्यन्त श्रद्धा से और मौन रहकर के लिया, या मैं बहुत बड़ा भारी कोई सन्त, साधु और बन्धन दें उस वक्त में, ऐसे नहीं जैसे पूजा में हूँ, महात्मा हूँ, तो समझ लीजिये तो वो गया-सहज योग से गया| अत्यन्त नम्रतापूर्वक अपने हृदय की तरह से नहीं। विचारपूर्वक अत्यन्त श्रद्धा से जिस तरह से पूजा लोग कहते हैं कि 'भई ये ले आ, वो ले आ', इस और उसके बाद अपने मन को बन्धन दें। अब आर ध्यान करके, नत-मस्तक होकर, फोटों के मन कहां होता है? किसी ने आज तक मुझ से नहीं सामने दोनों हाथ करके, शान्तिपूर्वक permission नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 28 चैतन्य लहरी खण्ड -४V अंक : 11 एवं 12 पूछा कि 'माँ, मन कहा होता है? मन यहां होता है, और चित्त जो है, सहस्रार की ओर ले जाकर यहां उसकी शुरूआत है-माने विशुद्धि चक्र और आत्मा की ओर समर्पित हों। विचारपूर्वक, आत्मा आज्ञा चक्र को बहुत अच्छी तरह बन्धन दें। की ओर समर्पित हों । और यह विचार करें कि 'प्रभु! हम तेरे ही आत्म तत्व की essence (सार) क्या है? आत्म तत्व जो है, वो पवित्रता है-पूरी निर्मल बन्धन में रहें, हम पर कोई बुरा असर ने आए। अत्यन्त नत-मस्तक होकर। और उस बक्त में यह पवित्रता कहिये। उसकी ओर नजर करें। बो पूर्णतया सोचकर कि हम साक्षी हैं और सब चीज से हम अलिप्त है। किसी भी चीज में लिप्त नहीं है । जो अलग हटकर के, हम निर्मल हैं, उस चीज से, हम भी चीज आपसे लिपटी हुई है, उसी के कारण उससे अछूते हैं। सब चीज से अपने को हटा करके आप आत्मा से हैं। आत्म-तत्व का विचार करें। और यह आत्म-तत्व प्रेम है। अनेक बार दूर और आप बैठ रहे हैं। आप ऐसा प्रयत्न रोज करें। आपको इसी की इसका विचार करें। यह बहुत बड़ा विचार है-आत्म एक प्रकार से आदत लग जायेगी। अत्यन्त श्रद्धा तत्व प्रेम है। बहुत अनेक धर्म संसार में संस्थापित हुये हैं। पूर्वक ध्यान करें। सवेरे के समय, चाहे दस मिनट, चाहे आध घण्टे-उसका कुछ फ्क नहीं पड़ता। लेकिन उसमें प्रेम की व्याख्या कोई कर नहीं पाया। ध्यान करते. वक्त में कुछ हाथ ऊपर नीचे मत उसके कारण उसके अनेक विपर्यास हो गये हैं। प्रेम करिये। ध्यान करते वक्त सिर्फ फोटो की ओर की व्याख्या हो नहीं पाती। लेकिन प्रेम वही शक्ति दृष्टि रखते रखते आँखें बन्द कर लें और कोई है जो आपके हाथ से बह रही है। वही चेतना हाथ-पैर घुमाने की जरूरत नहीं। उस वक्त है जिसे लोग चेतना के नाम से जानते हैं लेकिन कोई-सा भी चक्र जो खराब हो, उस चक्र की यह नहीं जानते कि यह प्रेम है। चेतना को हम ऐसी ओर दृष्टि करने से ही वो चक्र ठीक हो जायेगा शक्ति समझ लेते हैं जैसे बिजली और पंखा है। क्योंकि उस वक्त मैंने कहा है, receptivity नहीं, आत्म-तत्व प्रेम है। यह शब्द 'प्रेम' कहते ही साथ आपके अनेक (ग्रहण शक्ति) ज्यादा रहती है, सर्वेरे के time बन्धने टूट जायेंगे। जितना झूठ है, असत्य है, वह (समय) में। पहले तो अपने चक्र वगैरह शुद्ध हो गये प्रेम के विरोध में है। आप किसी को अगर डांटते इसके बाद अपने आत्म-तत्व पर विचार करें या भी हैं और उसको सत्य बता रहे हैं तो आप प्रेम अपने आप पर। आत्मा की ओर चित्त ले जायें। कर रहे हैं । आप स्वयं प्रेम हैं। इसलिये प्रेम-तत्व आत्मा कहाँ होती है? किसी ने मुझ से यह नहीं पर आप विचार करते ही आप आत्म-तत्व में उतर सकते हैं। पूछा आज तक कि "माँ, आत्मा कहाँ होती है?" आत्मा हमारे हृदय में होती है, लेकिन उसकी ध्यान में कोई सा भी विशेष विचार नहीं लेने का (पीठ) seat जो है यहाँ सहस्रार के ऊपर है। तो है। लेकिन आप यह कह सकते हैं कि "मैं, वही इसलिये मैंने कहा था कि हृदय में नत मस्तक हों प्रेम तत्व हूँ, मैं वही आत्म-तत्व हूँ, मैं वही प्रभु चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंके : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 29 की शक्ति हूँ।" आप इसे कह सकते हैं । इस तरह रहना चाहिये, माने अपने को पूरे समय देखते रहिये। से दो-तीन बार कहते ही आप आशीर्वादित समझ लीजिये, हमारे माथे में कोई चीज लग गई तो होयेंगे। क्योंकि आप सत्य कह रहे हैं, आपके आप बतायेंगे कि "माताजी. आपके सिर में कुछ अन्दर से वाइब्रेशन (vibrations) जोर से लगा है, उसे पोंछ लीजिये।" इसी प्रकार आप अपने को देखते रहें कि 'देखिये हमारे यहाँ यह चीज़ लग चलने लगेंगे। अब रोजमर्रा के जीवन में क्या-क्या करना गई है, इसको हम पांछ लेते हैं।" चाहिये? रोजमर्रा के जीवन में आपका जीवन उज्ज्वल रोजमर्रा के जीवन में आपको पता होना चाहिये होना चाहिये। आपके मुख में कान्ति आनी चाहिये | कि आपके अन्दर शक्ति प्रेम-तत्व की है। आप जो आपके व्यवहार में सुन्दरता आनी चाहिये। आपको भी कार्य कर रहे हैं, क्या प्रेम में कर रहे हैं? या प्रेममय होना चाहिये। ऊँट के, जैसे आप अगर दिखाने के लिये कर रहे हैं कि आप बड़े भारी बिल्कुल ही रसहीन हो तो आप सहजयोगी नहीं हैं सहजयोगी हैं? हम भी किसी को कोई बात कहते यह आपको पता होना चाहिये। जवरदस्ती के आप या डांटते हैं तो हम देखते हैं कि दूसरे दिन वो सहजयोगी बने हैं, वह भी हम आपको चला रहे हैं आकर के सहजयोगियों में बैठ करके हमें गालियां इसलिये आप बैठे हुए हैं नहीं तो हमें आप माफ देते हैं और उसके बाद कहते हैं कि हमारे वाइब्रेशन कर दें और आप सहजयोग में न आयें। एक दिन क्यों चले गये! तो इस तरह की अगर आप मूर्खता आप खुद ही निकल जायेंगे। इस तरह के लोग. करते हों तो बेहतर है कि आप लोग सहजयोग में न जिनमें प्रेम नहीं है, जो अपने को सोचते हैं कि हम बड़े बढ़िया आदमी हैं और बड़े कमाल के आदमी ही आयें। सहजयोग में वही आदमी आ सकता है और हैं, और ये हैं, वो हैं, वो बिल्कुल सहज योग के चल सकता है जो कुछ लेना चाहता है। उसको देने लिये व्यर्थ हैं ऐसे लोगों को चाहिये कि जायें, दूसरे का कोई अधिकार नहीं है, उसे लेना ही है हमसे गुरुओं के जूते खायें और वहाँ रहें । यहाँ पर सहजयोग में आप परमात्मा के एक वह अगर देना चाहेगा, उसकी शक्ति जब वो हो जायेगी, तो बहुत ही बढ़िया चीज हो जायेगी, लेकिन instrument (यन्त्र) बनने आ रहे हैं। अत्यन्त आप तभी दे पाते हैं, जब आप ले पाते हैं। इसलिये नम्रता आपके अन्दर होनी चाहिये, अत्यन्त नम्रता। पहले लेना सीखिये । हमारे अन्दर क्या दोष है? रोज आपको घमण्ड छोड़ना चाहिये। लोग कहते हैं कि के जीवन में हम यह देखते चलें कि हम क्या चौज सन्यास लेना चाहिये। मैं कहती हूँ कि पहले घमण्ड दे रहे हैं? हम प्रेम दे रहे हैं? क्या हम स्वयं साक्षात् से आप सन्यास लीजिये। क्रोध से आप सन्यास प्रेम में खड़े हैं? हम सबसे लड़ते हैं, सबसे झगड़ा लीजिये। कपड़ों से नहीं लीजिये । कपड़े उतार करते हैं. सबको परेशान करते हैं और हम सोचते हैं देने से कोई सन्यास नहीं होता है। सन्यास का कि हम सहजयोगी हैं। इस तरह की गलतफहमी में अर्थ होता है कि अपने क्रोध, काम, मोह, मद, नहीं रहना। अपने साथ पूर्णतया दर्पण के रूप में मत्सर आदि पट्-रिपुओं से सन्यास लेने को ही चैतन्य लहरी खुण्ड -XV अंक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 30 सन्यास कहते हैं-सन्यस्त। दूसरे सन्यास की चले गये और फिर उसका दुष्परिणाम हमेशा बातचीत नहीं है। तो, अपने रोज के व्यवहार में अत्यन्त शान्ति से, कि जिन्होंने जब से सहजयोग से पार हुए हैं तब से सबसे प्रेम से व्यवहार करें। अपने बाल बच्चे, उनको एक बीमारी नहीं आई। महा बीमार थे. घरवाले, इन सबसे सहजयोग की बातचीत करें। उनको कभी बीमारी नहीं आई। एक बार भी वह सहजयोग का विवरण करें। अपने दोस्त बदल लीजिये, डाक्टर की सीढ़ी नहीं चढ़े। कभी उनको कोई आयेगा। यहां पर ऐसे लोग हैं, अभी बैठे हुए हैं, अपना उठना-बैठना बदल लीजिये। 'ये' आपके तकलीफ नहीं हुई। उन्होंने एक दवा नहीं ली, जब रिश्तेदार हैं, 'ये' आपके सगे हैं इन्हीं से बातचीत से वह सहजयोग में आये। बुड्ढे भी हैं उनमें से करें। और "ये" लोग आपको बतायेंगे वकि हम लोग कुछ लोग, जो हमेशा डाक्टर के पास जाते थे और एक नई ही दुनिया में आ गये हैं और हमारे पास अस्पतालों में घूमा करते थे, वो कभी भी नहीं गये। एक नये वाइब्रेशन्स (चैतन्य लहरियाँ) हैं। ऐसे यहां पर बहुत-से, अनेक उदाहरण हैं। इतना ही जब भी आप सफर करें, कहीं बाहर जायें, नहीं, उन्होंने दूसरों का भी भला किया। किसी गाँव में जाना है, तो बता रहे थे -अभी राहुरी से आये हैं-कि हम अपने साथ में जैसे सब लोग लिये, एक सहजयोगी के लिए आवश्यक है, वो लेकर चलते हैं सब चीजें अपनी traveling (सफर) करते रहे, इस वजह से वो ठीक हैं। आपस में की, वैसे हम अपने साथ में थोड़ा-सा "तीर्थ"-वो मिलते रहे। आपस में सब तुम डाक्टर हो और सब मेरे पैर के पानी को "तीर्थ" कहते हैं-"तीर्थ" और patient (रोगी) हो। और डाक्टर लोग आपस में कुमकुम और यह सब vibraled (वाइब्रेटेड) लेकर फीस नहीं लेते, उस प्रकार तुम आपस में फीस नहीं हम चलते हैं। रास्ते में कोई आदमी बीमार दिखाई लेते आपस में freatment (इलाज) करो, आपस दिया-चलो उसकी "तीर्थ " पिला दिया। कोई आदमी ने धर्म की चर्चा की, उसे फोटो दिखा दिया कि ये किसी ने कहा कि आपका सहस्रार पकड़ा है। "तब माताजी' हैं और तुम चाहो तो तुमको पार कर तो बड़ी शर्म की बात हो गई। वो तो हमारे विरोध सकते हैं। जहाँ जो आदमी मिल जाये। वह अपने में बैठ जायेगी बात। तो मैंने उससे कहा कि भई है भी स्वास्थ्य के कि जो इसका कारण यह कुछ क में पूछ लो और इसमें बुरा मानने की कोई बात नहीं। - साथ रखे रहते हैं-"चलिये हम आपको कुमकुम सहस्रार ठीक कर दो, पता नहीं कैसे आदमी के लगा देते हैं, देखिये आपको कैसा लगता है। ये साथ मैं बैठ गया । ' हमारी "माताजी" हैं।" पूरे समय दिमाग इधर-उधर दौड़ता रहता है कि सहजयोग को किस तरह से चाहिये जो सहजयोग की बुराई करता है। सहस्ार अपने जीवन में प्लावित कर सकते हैं। उसी समय फौरन पकड़ जायेगा ऐसा आदमी अगर बोले तो आप देखिये कि आप बहुत गहरे उतर सकते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं कि सहजयोग में तुम दूर बैठो। हमको तुम से मतलब नहीं और तुम सिर्फ ऐसे आते हैं, जैसे मन्दिर में आये और हमारे से बात मत करो, बस। हमको अपना कोई किसी ऐसे आदमी के साथ कभी नहीं बैठना कान बन्द कर लो और ऐसे आदमी से कहों कि सवम्बर एवं दिसम्बर 2003 31 चंतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 11 एवं 12 बुरा नहीं करना। आप कौन होते हैं हमसे बात करने हैं-चाहें तो आप एक हफ्ते में भी खत्म कर सकते वाले? आप यहां माताजी की वजह से हमसे मिले हैं। एक बार निश्चय मात्र करना है. एक क्षण-तो भी हैं, आप चुप रहिये। ऐसा जो भी आदमी बात करे खत्म हो जायेगा। अपने जीवन को कुछ विशेष करना है, एक बार तो 'बस, बस, बस' करिये। आपका सहस्रार पकड़ेंगा, फिर एक-एक चक्र पकड़ेंगे, फिर थोड़े दिन में इतना निश्चय कर लेने से ही सहजयोग का लाभ आयेंगे कि "माताजी, मुझे कैन्सर हो गया " और कैन्सर की बीमारी जो है वो तो बिल्कुल सहस्रार की बीमारी है-पक्की, समझ लीजिये। कैन्सर से मेरे पैर पर आकर। शरणागति मन से होनी अगर बचना है तो अपना सहस्रार साफ रखिये। चाहिये । बहुत- से लोग पैर पर आते हैं, शरणागति सहस्रार जिन लोगों ने पकड़ना शुरु कर दिया तो बिल्कुल नहीं होती। शरणागत होना चाहिये। कैन्सर की शुरुआत हो गई, मैं आपको बता रही हूँ। अगर शरणागत रहे अन्दर से, पूर्णतया शरणागत सहस्रार हमेशा साफ रखो, और हो सकता है, आज रहें, तो पूर्णतया अत्यन्त हो सकता है, ये आप जानते हैं । शरणागति होनी चाहिये। जरूरी नहीं है कि , आपके अन्दर कुण्डलिनी जो नहीं तो कल, आध साल बाद आपको पता होगा कि है, सीधे आत्म-तत्व पर टिकी रहेगी, जैसे कि एक दीप की लौ रहती है उस तरह से एक भी साहब हमको कैंसर हो गया। flickering (ड्िलमिलाना, कभी मन्द कभी तीव्र होना) नहीं होता, लेकिन शरणागत रहें । शरणागत रहने में आनन्द है, उसी में सुख की तो क्यों न अभी से अपने को स्वास्थ्यपूर्ण रखें। और इतना ही नहीं, सहजयोग का कार्य करें, जिस के कारण हम परमात्मा के राज्य में बैठे हैं। और जब कल संसार में उन लोगों को चुना जायेगा, जो प्राप्ति है, उसी में परमात्मा की प्राप्ति है। परमात्मा के हैं उनमें से आप लोग श्रेष्ठतम लोग होंगे। क्यों न ऐसा कार्य करें जिससे यह व्यर्थ का योग। इसको समझें और इसमें रत रहें। जितना आप बहुत अनुपम, विशेष (unique) चीज हैं, सहज उसमें तदात्म्य पायेंगे और उतना ही आपका आत्म-तत्व समय हम बर्बाद कर रहे हैं-इसके घर जायें, रिश्तेदार चमक सकता है। के घर खाना खायें, फलां के घर घुसो, उसकी बुराई करो-छोड़-छाड़ करके और अपने मार्ग को ठीक बनायें और ऐसा जीवन बनायें कि संसार में उन कोई चीज महत्वपूर्ण नहीं है सिवाय इसके कि आप स्वयं प्रकाश बनें। और जिनको बेकार की बातें सूझती हैं उनके लिये बेहतर है कि वो उस चीज लोगों का नाम हो। सबको यह सोचना चाहिये। कोई यह न सोचे कि 'भई अब तो मेरी उम्र ही को छोड़ दें, उनकी बात नहीं है। अब आखिरी बात बताऊँगी। उसको बहुत समझ क्या रह गई है, अब तो क्या कर सकता हूँ?' सो बात नहीं है। आप मरेंगे ही नहीं। आप मरते हैं, फिर के और विचारपूर्वक करें। आप पैदा होते हैं। फिर आप मरेंगे, फिर आप पैदा हमारे अन्दर स्वयं ही दुष्ट प्रवृत्तियां हैं। हमारे ही अन्दर स्वयं बहुत-सी काली प्रवृत्तियाँ हैं जिसे होयेंगे। यह चक्कर चलते रहेंगे। तो क्यों न एक साल के अन्दर सभी चीज को खत्म कर सकते negativity (निगेटिविटी) कहते हैं। वो जोर बांधती चवन्य लहरी खण्ड XV अक : 11 एक 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 32 हैं। उनके कब्जे में आना अपने को शैतान बनाना है, जिसमें आप ध्यान अपना पूरा करें। सामूहिक ध्यान आप चाहें तो शैतान बन सकते हैं और आप चाहें तो उसी जगह करना जहां मेरा पैर पड़ा हुआ है, जो परमात्मा बन सकते हैं। शैतान अगर बनना है तो चीज शुद्ध हो चुकी है। सामूहिक ध्यान अपने घर बात दूसरी है। उसके लिये मैं गुरु नहीं हूँ। भगवान में भी किसी के साथ बैठकर मत करिये। अपने बनना है तो उसके लिये मैं गुरु हूँ। लेकिन शैतान से रिश्तेदारों के साथ भी वैठ करके सामूहिक ता ध्यान नहीं करना चाहिये। जिस जगह मैंने कहा बचना चाहिये। पहली चीज है कि अमावस्या की रात या पूर्णिमा है वहीं सामूहिक ध्यान करना है। और बैठकर की रात left और right side दोनों तरफ में आपके सहजयोग की चर्चा भी बहुत देर तक ऐसी जगह dangers (खतरे) होते हैं। दो दिन विशेष कर, नहीं करनी चाहिये जहां मेरा पैर पड़ा नहीं क्योंकि अमावस्या की रात्रि को और पूर्णिमा की रात्रि को वहां तुम्हारे अन्दर के भूत आकर बोलने लगेंगे और बहुत जल्दी सो जाना चाहिये। भोजन करके. नत हों आपस में झगड़ा शुरु हो जायेगा क्योंकि तुम लोग अब भी भूतों के कब्जे से बचे हुए लोग नहीं हो। के, ध्यान करके, चित्त सहस्रार में डालकर, बन्धन डाल के सो जाना चाहिये। मतलब चित्त सहस्रार में कहा से भूत आता है, यह समझ में नहीं आता। और जाते ही आप अचेतन (unconscious) में चले भूत सारे काम करता है। गये। वहां अपने को बन्धन में डाल दिया, आप बच इस तरह से अपनी रक्षा करने की बात है। और गये-दो रात्रि को विशेष रूप से, और जिस दिन जब कभी भी आप बाहर जायें, कहीं भी घर से अमावस्या की रात्रि हो उस दिन, विशेष कर अमावस्या बाहर जायें तो अपने को पूर्णतया बन्धन में रखें। के दिन. आपको शिवजी का ध्यान करना चाहिये। बन्धन में रखें, हर समय बन्धन रखें। देखा कि शिवजी का ध्यान करके उन के हवाले अपने को किसी का आज्ञा चक्र पकड़ा है, चित्त से ही चाहे करके सोना चाहिये-आत्म तत्व पर। और पूर्णिमा के बन्धन डाल दीजिये। जिस आदमी का आज्ञा चक्र दिन आपको श्री रामचन्द्रजी का ध्यान करना चाहिये। पकड़ा है, उससे कभी भी argument (विवाद) म।। उनके ऊपर अपनी नैया छोड़कर। रामचन्द्रजी का नहीं करना चाहिये। यह तो बेवकूपफी की बात है, मतलब है क्या-creativity (सृजन शक्ति)। अपनी जिसका आज्ञा चक्र पकड़ा है, तो क्या भूत से आप जो creative powers ( रचनात्मक शक्तियाँ) हैं argument कर सकते हैं? उससे argument नहीं उनको पूर्णतया समर्पित करके, और आपको रहना करना चाहिये जिसका भी आज्ञा चक्र पकड़ा है-पहली ज rour चाहिये। इन दो दिन अपने को विशेष रूप से बचाना चीज। चाहिये। जिसका विशुद्धि चक्र पकड़ा है. उससे भी हालांकि, सप्तमी और नवमी दो दिन विशेषकर argument नहीं करना चाहिये। जिसका सहस्रार आपके ऊपर हमारा आशीर्वाद रहता है। सप्तमी और पकड़ा है, उसके तो दरवाजे पर भी खड़ा नहीं होना नवमी के दिन उसका ख्याल रखना। सप्तमी और चाहिये। उससे कोई मतलब ही नहीं होना चाहिये नवमी के दिन जरूर कोई ऐसा आयोजन करना आपको कह दो, "अपना सहस्रार ठीक करो भाई।" नवम्बर एवं दिसम्बर 2008 33 चैतन्य लहरी खण्ड XV अक :11 एव 12 उससे कहने में कोई हर्ज नहीं कि "तुम्हारा सहस्रार को अपने बच्चों को कभी हाथ से मारना नहीं है। उसे ठीक करों। हाथ नहीं उठना है, किसी को मारना नहीं है। किसी ो।" सहस्रार साफ पकड़ा हुआ है, रखना चाहिये। अगर किसी को सहस्रार पकड़ा लगे से भी क्रोध नहीं करना है। सहजयोगी को तो क्रोध तो फीरन जाकर कहना चाहिये कि, "मेरा सहस्रार करना ही नहीं है। उसको बुद्धिमानी से हर चीज को उतार दो तुम लोग किसी तरह।" सहस्रार किसी का ऐसा सूझ-सुधार लेना चाहिए कि क्रोध न दौखे पकड़ा हो और वह आप से बातचीत करे कुछ, तो उसे कभी भी क्रोध करना नहीं। कहना चाहिये, "तू मेरा दुश्मन है।" उस आदमी से बिल्कुल उस वक्त तक बात नहीं करनी जब तक चाहिये? उसकी भी आप प्रार्थना करें। उसका विचार रोजमर्रा का जीवन सहजयोगी का कैसा होना है। समझ आ जाएगा। मैंने अनेक तरह से आपको उसका सहस्रार पकड़ा अब रही हृदय चक्र की बात। जिस मनुष्य का बताया है। हृदय चक्र पकड़ा है उसकी मदद करनी चाहिये। जहां तक बन सके तो उसके हृदय पर बन्धन आदि जो संस्था है उसके लिए आठ दस आदमी मिलकर उसी प्रकार से हमारी जो "अनन्त-जीवन" की डालना, अपने हृदय पर हाथ रखना, मां की फोटो के क्या करने का है उस पर विचार करें। आप सब की ओर उसको ले जाना। हृदय चक्र का ख्याल तो लोग अपना सहयोग उसमें दें और सब मदद करें। जरूर रखना चाहिये, क्योंकि कभी-कभी हृदय चक्र अभी जिन लोगों ने अपने नाम हमारे पास दिये नहीं में हो सकता है दूसरे को जरा परेशानी हो। हृदय हैं. जिनके नाम लिखे नहीं हैं तो अपने पते प्रधान चक्र में जरूर मदद करनी चाहिये। पर बहुत-से साहब के पास भेज दें और हम Quarterly एक लोगों के हृदय नहीं होता personalities (व्यक्तित्व) होते हैं। ऐसे dry लोगों वो सब छपेंगे इसके अलावा तुम लोग भी अगर के लिए आप कुछ भी नहीं कर सकते। आप चाहें अपने अनुभव कुछ लिखो तो वो अनुभव उसमें भी उनका कुछ ठीक करना, तो भी आप कुछ नहीं छापे जायेंगे। सारे all India के जितने भी अनुभव कर सकते। पर, वो अगर आपके पास आयें, और लोगों के आते हैं, वो हर बार उसमें थोड़े बहुत छापे आपसे कुछ कहें तो पहले उनको कहना चाहिये कि जायेंगे। उसमें अपने अनुभव लिखते जायें अगर "हठ योग छोड़िये, आप दुनिया भर के काम छोडिये आप लोग कोई अच्छा लेख सहजयोग पर लिखकर और थोड़ा प्यार करना सीखिये। पहले कुते, बिल्लियों भेजें तो वो भी इसमें छाप दिया से प्यार करिये अगर इन्सान से नहीं होता, फिर एक यहां पर Ouarterly ले रहे हैं, उसमें अंग्रेजी में इन्सान से घ्यार करिये।" खुद भी सब से प्यार कुछ छपा रहेगा, कुछ मराठी में, कुछ हिन्दी में और करिये, बच्चों से प्यार करिये, बच्चों से ज्यादती मत कुछ गुजराती में इस प्रकार की Quarterly हम करिये। किसी से भी ज्यादती मत करिये। किसी के लिख रहे हैं । बन पड़़े तो सब हिन्दी और मराठी साथ भी आप दुष्टता मत करिये, किसी को, बच्चों और गुजराती. इस सभी का एक साथ शुरू करेंगे या को तो कभी मारना नहीं है। किसी भी सहजयोगीं फिर धीरे धीरे करेंगे। सहजयोग में हर चोीज धीरे धीरे । बहुत dry ( शुष्क) शुरु करने वाले हैं, उसमें मेरे पत्रों, सन्देश, लेक्चर जायेगा। इस प्रकार चैतन्य लहरौं खण्ड -X५ अंक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 34 होती है। उसको आप contribute करें। उसको जो उसको full freedom ( पूर्ण स्वतन्त्रता) है, चाहे तो कुछ भी पैसा देना है, दें और उसका जो कुछ भी वो Hell (नर्क) में जाए जहन्नुम में जाए और चाहे लाभ आपको उठाना है, उठायें। उसमें प्रश्न करें तो वो परमात्मा के पास जाए पूर्ण freedom मैंने आपको दे रखी है। जिसे चाहे नरक में उतरे, तो मैं और प्रश्न वहां पूछे, उसका जवाब मैं बहां एक साथ दूंगी। Quarterly पहले शुरु कर रहे हैं। फिर कहती हूँ कि भैया दो कदम और जल्दी उतर Monthly हो जायेगी। फिर हम लोग उसे Weekly जाओ, जिससे हमारा छुटकारा हो सके। यह भी कर लेंगे। फिर Daily भी हो सकेगी। अभी बहरहाल व्यवस्था में कर दूंगी। अगर आपको नरक में हम लोग Quarterly कर रहे हैं। और जो भी तुम जाना है, तो भी व्यवस्था हो सकती है और लोगों का कोई प्रश्न हो, कोई तकलीफ हो, उसके अगर आपको परमात्मा के चरणों में उतरना है, बारे में आप एक चिट्ठी प्रधान साहब के पास भेज वो भी व्यवस्था हो सकती है। इसलिये जो लोग दें। मुझे ज्यादा चिट्ठी नहीं दें। मेरे पास time बहुत मुझे परेशान करते हैं और तंग करते हैं, मुझे बहुत कम है और फिर माँ ने चिट्ठी नहीं लिखी, एक को जिन्होंने सताया है, ऐसे सब लोगों से मेरा कहना है चिट्ठी लिखी "मला लिहिली त्यानां नाहीं लिहिली कि मैंने बहुत patiently (धैर्यं से) सबसे deal (मुझको लिखी, उनको नहीं लिखी) ", इस तरह (व्यवहार) किया है और अब अगर किसी ने मुझे की कोई भी उल्लूपने की बात जो आदमी करता है, सताया है और तकलीफ दी तो मैं उससे कह दूंगी ऐसे आदमी के लिये सहजयोग नहीं है। आपको पता होना चाहिये कि माँ सबको एक से चले जाइये| फिर वो दो चार लात मारते हैं, जैसा ही प्यार करती है। किसी कारण से नहीं इधर-उधर निकलते वक्त में हरेक अपने गुण दिखाते लिखती है। कभी तुमको लिखा, कभी नहीं लिखा। रहते हैं उनके सबके गुण दिखते हैं, लेकिन जो भी कभी-कभी तो उनको नहीं लिखती हूँ जिनको मैं है, आपको यह चाहिये कि आप अपना भला सोचें। का कि अब आपका हमारा सम्बन्ध नहीं है, आप यहां अत्यन्त सोचती हूँ कि वो बुरा नहीं मानेंगे। और बुरा वो अगर नरक की ओर जा रहे हैं, तो आपको, मानने वाले लोगों की अब मैं परवाह नहीं करने उनकी गाड़ी में बैठने की कोई जरूरत नहीं है। होंगे; * आपके लिये सहजयोग नहीं है" और छोड़िये तर वाली। मैंने बहुत परवाह कर ली और उससे लाभ यह हुआ कि वो दुष्ट तो दुष्ट ही रहे, वो ठीक नहीं उनको। अपना भला करें। किसी से भी वादविवाद हुए, हमें ही नुकसान होता रहा। जिस पर भी मैंने करने की जरूरत नहीं है। जो जैसा है वैसा ही सोचा कि इस आदमी से ठीक से रहती रहूँ, चलिये रहेगा । बहुत मुश्किल से बदलेंगे बो लोग, क्योंकि कल ठीक हो जायेगा, पर नहीं, वो दुष्ट ही बने रहे। बो दुष्ट हैं। जो अच्छे आदमी होते हैं वो गलती वो तो जरा भी अपना transformation (परिवर्तन) करते हैं पर जल्दी समझ जाते हैं। जो बुरे आदमी नहीं किया। तकलीफ हमें ही होती रही, क्योंकि मैंने होते हैं उन का बदलना असम्भव-सी बात है, यह तय कर लिया है कि किसी भी मनुष्य का संहार में समझ गई हूँ। मैंने बहुत कोशिशें की हैं। मैंने नहीं होगा, किसी भी मनुष्य को मैं यातना नहीं दूंगी। बहुत कुछ किया है, लेकिन जो जैसा है, वैसा ही है। नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 35 चंत्य लहरों खण्ड -XV अंक : 11 एयं 12 उसको आप बदल ही नहीं सकते। उसको अक्ल ही की मुझसे टिकट ले ले. मैं देने को तैयार हूँ और नहीं आने वाली। इसलिये ऐसे लोगों से भिड़ने या जिसको परमात्मा के राज्य में आना है, उसका बोलने की जरूरत नहीं और इस वजह से आप से टिकट भी मैं दे सकती हूँ। टिकट बाबू तो हर एक मुझे यह विनती, कहना है कि आप लोग किसी जगह का टिकट दे ही सकता है। लेकिन टिकट प्रकार के ऐंसे लोगों से कोई भी सम्बन्ध न रखें। बाबू ये तो बतायेगा कि "भाई. एक तरफ तुम गये धीरे-धीरे यह सब आप छट जायेंगे। क्योंकि वो यहाँ तो वहाँ derailment हो रहा है (गाड़ी पटरी से पर इसलिये हैं कि आपकी जो भी साधना है उसको उतरी है ) और वहाँ जाते ही तुम्हारी गाड़ी जो है, टूट नष्ट करें। ऐसे लोगों से बचकर रहें, उनसे रक्षा करें। जायेगी फिर there is no return from there (वहाँ अपनी रक्षा उनसे करें। आप सहजयोग में वाइब्रेशन से आप वापस आ नहीं सकते)। Return ticket (वापसी टिकट) नहीं है। तो, इसलिये में यह जरूर च (चैतन्य लहरियाँ) पायें। एक साहब अभी मकान हमें दे रहे थे। उनके बता रही थी-नरक के बारे में मुझे ज्यादा बताना नहीं र है, नरक तो आप खुद ही जानते हैं क्या चीज है । इसलिये मैंने आपको हिसाब किताब बताया जाके बताया कि ये माताजी के ध्यान में तो बदमाश है कि चीज अपनी साफ रखो और रास्ता लोग हैं और ऐसा है, वैसा है। अब इनको मैंने पार अपना ऊपर का देखो, नीचे नहीं। ऊपर नजर कर दिया है, वाइब्रेशन आ गये। पर उस पर रखोगे तो ऊपर चढ़ोगे। नीचे नहीं देखो। ऊपर और हर कदम, हर हम आपको घर नहीं दे सकते, क्यों कि हमको एक जगह आपके साथ हम खड़े हैं। हर जगह। कहीं साहब ने कहा है। " तो मैंने कहा "उनको ही घर दे पर भी आप रहें । कहीं पर भी रहो, हर जगह दो।" रोज फोन करता है, रोज फोन करता है कि हम आपके साथ हैं-'काया, मन, वाचा'-पूर्णतया। माताजी खरीद लो, मुझसे गलती हो गई' मैंने यह हमारा promise (वचन) है लेकिन जिस कहा "देखी, अब तो उसी को ही बेचो। पूरी freedom को नरक में जाना है, उसको भी हम खींच रहे (स्वतन्त्रता) है।" बेचारा अब वह रो रहा है कि हैं नीचे की तरफ। इसलिये बचकर रहो और पास में गई। उनको हमने पार कर दिया। पार होने के बाद उनके पास एक साहब गये ऐसे ही। उन्होंने विश्वास कर लिया। तो उन्होंने कहा कि "माताजी . चढ़ना है, ऊपर जाना है। 'माताजी से नाराज हैं।' मेंने कहा,"मैं नाराज-वाराज ऊपर का रास्ता देखो, नीचे का नहीं। मुझ नहीं, अब तुम उसको बेचो जिसने आकर तुम्हं अब में जा रही हूँ लन्दन। आने के बाद देखें कि हर एक आदमी कम से कम दस लोगों को पार पढ़ाया था।" इसलिये, ऐसे जो अक्लमन्द लोग हैं, उनके लिए करे आप में से बहुत से ऐसे हैं औरों को बुलाए, बेहतर है कि अपने को अगर नरक में जाना है तो उनसे खुले आम बातचीत करे, शर्मायें नहीं। सहजयोग सीधे टिकट कटाकर चले जायें, मैं आपको टिकट के बारे में बताए कि यह चीज़ कितनी सत्य है, नरक का भी दे सकती हूँ। सब मेरे ही हिसाब इसमें कितना सत्य-धर्म है, इसमें कितनी वास्तविक किताब हैं। जिसको भी ऐसी इच्छा है नरक में जाने चीज़ है। और लोगों को इकट्ठा करें, जहां-जहां एव दिसम्बर 2003 36 नवम्बर चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 11 एवं 12 ला ग्यच्क क जा ३० हि ु मिलें उनसे बातचीत करें। फोटो सब लोग लें और करें और उसके द्वारा अपने को सम्पत्तिशाली करें। दस-दस फोटो हर एक आदमी दस घर पहुँचाये। यह ही बड़ा अच्छा तरीका है कि हर एक आदमी आशीर्वाद आपके साथ है। मेरा हृदय, मन, परमात्मा आप सबको सुखी रखें। मेरा पूर्ण contribute करके दस फोटो खरीदे और दस फोटो शरीर हर समय आप ही की सेवा में संलग्न है। दस घर में पहुंचाये ऐसे घर में जहां पर कि फोटो वो एक पल भी आप से दूर नहीं। जब भी आप के प्रति श्रद्धा हो, जहां पूजा हो सके, जहां लोग मुझे सिर्फ आँख बन्द करके याद कर लें उसी सहजयोग को मान सकें। इस प्रकार से करने से ही वक्त मैं पूर्णशक्ति लेकर के "शंख, चक्र, गदा, सहजयोग फैल सकता है। असल में हम बहुत पद्म, गरुड़ लई धाये", एक क्षण भी विलम्ब नहीं लगेगा। लेकिन आपको मेरा होना पड़ेगा। ये ज्यादा publicity (प्रचार) नहीं करना चाहते क्योंकि जब भी publicity करती हैं तो गन्दे लोग आकर जरूरी है। अगर आप मेरे हैं तो एक क्षण भी जल्दी चिपक जाते हैं। और जो अच्छे लोग होते हैं मुझे नहीं लगेगा, मैं आपके पास आ जाऊँगी। वो मिलते ही नहीं। इसलिये बेहतर यह है कि इसी तरह से आप लोग सहजयोग की पूरी तरह से सेवा सम्मति से रहो। सम्मति से रहो ॥ सबको परमात्मा सुखी रखे और सुबुद्धिध दे। सत्-चित्त-आनन्द परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन नई दिल्ली, 15 फरवरी 1977 क्या सभी लोग मेरी हिन्दी समझ सकते हैं? यदि भाषा में आप इसके विषय में बात कर सकते हैं। मैं अंग्रेजी में बोलू तो क्या आप लोग समझ पायेंगे? यह योग का महान देश है। आप को आश्चर्य होगा मैं अंग्रेज़ी के विरुद्ध नहीं हूँ, परन्तु आत्मा की भाषा कि इस भूमि का ज़रा-जरा चैतन्य से परिपूर्ण है । . तो संस्कृत हैं। इन लोगों ने (अंग्रेज) कभी आत्मा जब हम पश्चिमी देशों की बातों को स्वीकार करने की चिन्ता नहीं की। अत: हमें किसी ऐसी भाषा का लगेंगे तो अपना सभी कुछ, जो कि इतना महान है, उपयोग करना होंगा जो आत्मा के विषय में बता खो दंगे। नि:सन्देह यह समाप्त तो नहीं होगा परन्तु सके, अंग्रेजी भाषा काफी नहीं है। उनके पास वो अपने लक्ष्य के लिए हम इसका उपयोग भी न कर अनुभव नहीं है क्योंकि वो अब तक कभी गहनता पायेंगे। एक ओर तो हमें उस सारे ज्ञान की अवज्ञा में गए ही नहीं हम लोग अत्यन्त प्राचीन हैं। करनी पड़ती है और दूसरी ओर विदेशी बाह्य चीजों परमात्मा को जानना हमारी संस्कृति रही है। सभी की जो कि सारगर्भित भी नहीं है। उनका ज्ञान समग्र कुछ संस्कृत में आया। क्योंकि तो चैतन्य लहरियों का सृजन करती है। कुण्डलिनी आपसे अनुरोध करूंगी कि थोड़ी सी हिन्दी भाषा विशेष प्रकार के स्वरों का सृजन करती है जो कि भी सीखें। मेरे एक अंग्रेजी प्रवचन का मराठी में भिन्न चक्रों पर देवनागरी स्वर होते हैं। कभी यदि अनुवाद किया गया है और यह कितनी जबरदस्त मुझे समय मिला तो मैं आपको इनके विषय में चीज़ थी! और अंग्रेजी में यह इतना घटिया था! हो बताऊंगी। आप जब संस्कृत भाषा या देवनागरी में सकता है मेरी अंग्रेजी बहुत कमज़ोर हो, हो सकता मन्त्रोच्चारण करते हैं केवल तभी इन्हें बेहतर रूप से है! जागृत कर सकते हैं। चाहे आप संस्कृत न सीखें परन्तु हिन्दी सीखने का प्रयत्न अवश्य करें क्योंकि बार फिर मुझे संस्कृत शब्द उपयोग करने पड़ रहे स्वर विज्ञान सम्पन्न होने के कारण इसमें स्वर हैं हैं सत-चित्त-आनन्द पराचेतना हैं - सर्वव्याप्त शक्ति। और स्वरों का चैतन्य प्रदायक प्रभाव होता है। इस चित्त चेतना है| इस क्षण आप लोग चेतन हैं और भाषा को सीखने का प्रयत्न करें। हिन्दी मेरी मातृभाषा मुझे सुन रहे हैं। हर क्षण आप लोग चेतन हैं परन्तु नहीं है, मेरी मातृभाषा तो मराठी है। मैं हिन्दी बोलती वह क्षण मृत हो कर भूत बनता जा रहा है। हर क्षण हूँ क्योंकि मैं इसके महत्व को जानती हूँ। मुझे थोड़ी सी अंग्रेज़ी भी आती है। अत: बेहतर होगा कि आप आप लोग चेतन हैं र लोग कम से कम हिन्दी तो सीख लें। कहने से मेरा उठता है और फिर इसका पतन होता है। विचार को अभिप्राय यह है कि बोलने के हिसाब से मराठी मेरे उठते हुए आप देख सकते हैं परन्तु इसको गिरते लिए उपयुक्त है, बंगाली मुझे थोड़ी बहुत आती है। हुए आप नहीं देख सकते। इन विचारों के वीच की तमिल, तेलगु या इस योग भूमि की किसी अन्य दूरी 'विलम्ब कुण्डलिनी चलती है नहीं है। इसमें सभी कुछ समाहित नहीं है। अत: मैं हम सत्-चित्त-आनन्द की बात कर रहे थे। एक भविष्य से वर्तमान की ओर आ रहा है। इस क्षण और मुझे सुन रहे हैं विचार कहलाती है। कुछ समय के लिए u ना नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 38 चैतन्य तहरी खण्ड -४V अक : 11 एन 12 यदि आप रुक सकें (विचारों को रोक सकें) तो सकता है कि कुण्डलिनी बिल्कुल उठे ही नहीं। आप चेतन मस्तिष्क को पहुँच जाते हैं और वहीं परन्तु जिन साधकों में कुण्डलिनी आज्ञा चक्र द्वार सत्-चित्त-आनन्द का अस्तित्व है। आप कह सकते पार कर लेती है तो व्यक्ति निर्विचार समाधि की अवस्था में चला जाता है। निर्विचार चेतना की इस कि सत्-चित्त-आनन्द मस्तिष्क की एक दशा है या मस्तिष्क की वह अवस्था है जहां कोई अवस्था से आपको कुछ शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं। विचार नहीं होता, फिर भी आप चेतन, निर्विचार उदाहरण के लिए मान लो आप गवर्नर बन गए. का होते हैं। यह प्रथम अवस्था है जिसमें आप जाते गवर्नर की कुछ शक्तियाँ आपको मिल जाती हैं। हैं, पराचेतन अवस्था में। इसी प्रकार से आपको भी कुछ शक्तियाँ प्राप्त हो कुछ लाग सोच सकते हैं कि आत्म-साक्षात्कार जाती हैं। परन्तु इस अवस्था में कुण्डलिनी को छोड़ द्वारा व्यक्ति को ऐसी अवस्था प्राप्त हो जानी चाहिए देना ठीक नहीं है क्योंकि कुण्डलिनी एक ओर को जो आदिशंकराचार्य को प्राप्त हुई थी। परन्तु यह या दूसरी ओर को (बाएं या दाएं) जा सकती है सम्भव नहीं है। कुछ साधकों के साथ ऐसा हो और इस प्रकार से अतिचेतन (Supra-conscious) सकता है परन्तु सब के साथ ऐसा होना असम्भव है । में या सामूहिक अवचेतन (Collective-sub निर्विचार होना आपकी प्रथम अवस्था है। आप conscious) में प्रवेश कर सकती है। ये वो अवस्था निर्विचार चेतना में चले जाते हैं। ऐसा तभी घटित है जिसमें प्रायः सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। छोटी-मोटी होता है जब आप आज्ञा चक्र से उपर चले जाते हैं सिद्धियाँ नहीं, उच्च कोटि की सिद्धियाँ। अर्थात् मस्तिष्क क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। जब आपका उदाहरण के रूप में, कुण्डलिनी यदि अतिचेतन चित् 'सत्' (सत्य) बिन्दु को छू लेता है तब में चली जाए तो व्यक्ति को भविष्यवाणियाँ करने वास्तविकता मिथ्या से अलग हो जाती है। आप का की सिद्धि मिल जाती है। कुण्डलिनी यदि सामूहिक व्यक्तित्व दोहरा हो जाता है। इस अवस्था में आप अवचेतन में चली जाए तो बीते हुए समय को ऐसा अलग होने लगते हैं। इसी प्रकार से वास्तविकता का व्यक्ति देखने लगता है। ऐसा व्यक्ति जब मेरे पास आरम्भ होता है। यह वो अवस्था है जब आप कह आता है तो वह देख पाता है कि अपने पूर्व जन्मों सकते हैं कि कुण्डलिनी केवल जागृत हुई है। भिन्न में मैं कौन थी, उन्हें कायल नहीं करना पड़ता। यह अवस्थाएं जिस प्रकार से घटित होती हैं उनको भूत-बाधित होने जैसा ही हैं। नशाखोर तथा शराबी है और अब भी परमात्मा को समझना हमारे लिए आवश्यक है। मैं अत्यन्त विस्तृत व्यक्ति यदि भला तस्वीर आप के सम्मुख रख रही हूँ परन्तु सामान्यत: खोज रहा है तो वह मुझे भिन्न रूपों में देखता है। अधिकतर लोगों की कुण्डलिनी एक दम से सहस्रार वह मेरा भूतकाल देख सकता है और मुझसे बहुत पर चली जाती है, कुछ लोगों में यह नहीं भी जाती, ही प्रभावित हो सकता है। वह जान जाएगा कि मैं समय लेती है या तो यह स्वाधिष्ठान में रुक जाती कौन थी लोग सोचते हैं कि भूतकाल हमेशा वर्तमान है या नाभी पर, अधिक ऊपर नहीं जाती। कई बार से महान होता है क्योंकि भूतकाल आज की अपेक्षा ये अनहद् चक्र में फंस जाती है और ऐसा भी हो कहीं महान है, यद्यपि इससे पूर्व मैंने कभी किसी चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 39 को आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया। इस प्रकार की चीजें आत्मा की ओर आकर्षित होता है। चित्त, जैसा मैंने जब वह देखता है तब वह मेरे प्रति आकर्षित हो आपको बताया है, गैस के दीपक में टिमटिमाते जाता है। ऐसा उन लोगों के साथ होता है जो प्रकाश की तरह होता है और कुण्डलिनी उसमें गैस अतिचेतन की अवस्था में होते हैं और उनका झुकाव है जो आत्मा को छू लेती है तथा आत्मा का प्रकाश बाई ओर को होता है अर्थात् भूतकाल की ओर। जो मध्य नाड़ी तन्त्र पर फैल जाता है। बाह्य आवरण में लोग आक्रामक प्रवृत्ति के होते हैं (दाईं ओर के) वे चित्त का अर्थ है ध्यान- तत्व ( attention part)। मुझे प्रकाश के रूप में देख सकते हैं। पाँचों तत्व उन्हें दिखाई देते हैं। झरने या हिमशैल ( lceberg) और आप अपने हाथों पर चैतन्य लहरियाँ महसूस के रूप में वो मुझे देखते हैं। वे तन्मात्रा अर्थात् करते हैं तथा अन्य लोगों की चैतन्य लहरियां भी इस स्थिति में कुण्डलिनी ब्रह्मरन्ध्र को खोलती है पँच-तत्वों के कारणात्मक सार को देखने लगते हैं। महसूस कर सकते हैं क्योंकि अब आप ऐसा होने पर वे कायल हो जाते हैं क्योंकि ऐसा 'सामूहिक-चेतन' (collective conscious) हो जाते व्यक्ति मेरे विषय में जब विश्वस्त हो जाता है तो हैं। सत्-चित्त-आनन्द में से अभी भी आप 'चित्त' उसका विश्वास आप लोगों की अपेक्षा कहीं अधिक मात्र को छू पाते हैं। इस प्रकार आप चित्त भाग को होता है। बहुत से तान्त्रिक जानते हैं कि मैं कौन हूँ। महसूस करने लगते हैं जो कि अब सामूहिक चेतन वो मुझसे डरते हैं और मेरे विषय में बात नहीं करते होने लगता है अर्थात आप सत्-चित्त-आनन्द रूपी हैं। एक साधारण नौकरानी मेरे कार्यक्रम में आई, सागर में गिर जाते हैं जहाँ आपको केवल उसको दौरा आया और वह संस्कृत बोलने लगी तथा सामूहिक-चेतना महसूस होती है। इसका अर्थ यह है पन्द्रह श्लोकों में मेरा पूरा वर्णन किया पहली बार कि आप अन्य लोगों की कुण्डलिनी को महसूस किसी ने मेरे बारे में इस तरह वर्णन किया था क्योंकि इससे पूर्व मैंने कभी अपने विषय में कुछ कर सकते हैं। कल एक अन्य व्यक्ति आया था, आपने देखा, नहीं कहा था। और इस प्रकार इसका आरम्भ हुआ। वह मुझसे बहस कर रहा था कि हमारे अन्दर अत: इस स्थिति में आपकी कुण्डलिनी को स्थगित बुद्धि (Suspended Intelligence) होती छोड़ना मुझे अच्छा नहीं लगेगा क्योंकि आप, लोगों है, परन्तु मैंने केवल इतना पूछा,"कि यह स्थगित को रोगमुक्त कर सकते हैं तथा रोग ठीक करने का बुद्धि क्या है? मुझे इसका ज्ञान नहीं है।" तब मेंने कार्य तब भी हो सकता है जब आपकी कुण्डलिनी उसे बताया वह कहने लगा," मैं तुर्यावस्था में हूँ।" मस्तिष्क क्षेत्र के अन्दर हो। सदैव मेरी यह इच्छा मैंने कहा," आप यदि तुर्या-अवस्था में हैं तो आप होती है कि कुण्डलिनी ब्रह्मरन्ध्र से बाहर आए। उस अवस्था में आपको चैतन्य लहरियाँ आने लगती हैं। हैं बिना इसके आप स्वयं को प्रमाण पत्र नहीं दे परन्तु इस अवस्था में (कुण्डलिनी का मस्तिष्क क्षेत्र सकते । परन्तु क्या आप दूसरे व्यक्ति की कुण्डलिनी में होना) आप 'चित्त' मात्र होते हैं, आप केवल को महसूस कर सकते हैं ?" कहने लगा 'नहीं'। तब 'सत्' बिन्दु को छू पाते हैं। केवल आपका चित्त मैंने उससे पूछा," तो किस प्रकार आप तुर्या में हो अन्य व्यक्ति की कुण्डलिनी को महसूस कर सकते नम्बर एवं दिसम्बर 2003 40 चतन्द लहरी खण्ड -XV अंक :11 एवं 12 अवस्था। आप 'सत्' को छू लेते हैं अर्थात आप वास्तविकता को देखने सकते हैं?" तु्या में जब आप जाते हैं अर्थात इस स्तर से जब आप यार होते हैं तब आपको दूसरे लगते हैं यद्यपि चैतन्य के व्यक्ति की कुण्डलिनी की जानकारी हो जानी चाहिए। प्रवाह को आप महसूस करने लगते हैं। इस समय अब आपने देखा है कि यहाँ पर बहुत से लोग हैं। आय कहने लगते हैं कि यह आ रहा है, यह जा रहा बहुत से लोग हैं जो दूसरों की कुण्डलिनी को है। अभी-अभी आपने कहा था कि यह आ रहा है महसूस कर सकते हैं और वो सभी एक हो बात आपने यह नहीं कहा कि मैं इसे प्राप्त कर रहा हूँ. कहते हैं तथा एक ही भाषा बोलते हैं चाहे वह मैं दे रहा हूँ। अग्रेजी में, हिन्दी में या किसी अन्य भाषा में बोलें। परन्तु अब भी अहं (Ego) और प्रतिअहं वे एक ही चीज कहते हैं-यह चक्र पकड़ रहा है, (Superego ) पूर्णतः सन्तुलित नहीं हुए। वो अब वह चक्र पकड़ रहा है। ऐसा इसलिए होता है भी बने हुए हैं परन्तु आपका चित्त उन्नत हुआ है क्योंकि आप अपनी कुण्डलिनी को देखने लगते हैं और इसे आप महसूस कर सकते हैं। इस सामूहिक और उसके द्वारा अन्य लोगों की कुण्डलिनी को भी। चेतना से आप लोगों को रोगमुक्त कर सकते हैं और आपकी भाषा से 'में' चला जाता है। अपनी अंगुलियों पर आप महसूस कर सकते हैं कि उन्हें आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं। और जैसा मैंने क्या घटित हो रहा है। आप केवल 'चित्त' को आपको बताया विश्व में कहीं पर भी विद्यमान महसूस करते हैं, इसके 'आनन्द' को नहीं। पहली किसी भी व्यक्ति की कुण्डलिनी को महसूस कर अवस्था में चित्त के द्वारा दूसरे व्यक्ति की कुण्डलिनी सकते हैं और उसके चक्रों को ठीक कर सकते हैं । की महसूस करना तथा दूसरे व्यक्ति की कुण्डलिनी यहीं पर बैठे हुए आप दूसरे व्यक्ति की स्थिति के को उठाना है। कुछ समय पश्चातू मेरे फोटो की विषय में बता सकते हैं। आपका चित्त जहाँ भी जाता सहायता से आप किसी भी साधक को आत्मसाक्षात्कार है, कार्य करता है, और इस प्रकार आपका चित्त दे सकते हैं। परन्तु अभी भी आप 'आनन्द' की ब्रह्माण्डीय (universal) हो जाता है। आपके चित्त स्थिति तक नहीं पहुँचे। आरम्भ में आप केवल रूपी बूंद 'सत्-चित्त-आनन्द' रूपी सागर से एकरूप अपने हाथों पर शीतल लहरियाँ महसूस करते हैं । हो जाती है | मेरी बात को बहुत ध्यानपूर्वक सुनें क्योंंकि इस निर्विचार होते हैं । 'निर्विचार चेतना' कों आप महूसस अवस्था में बहुत से लोग बेध्याने हो जाते हैं और आपको शान्ति का अहसास होता है और आप करते हैं परन्तु इस अवस्था में भी अभी 'आनन्द' प्रभावशाली तो केवल चित्त ही होता है। मैं आपको की अनुभूति नहीं हुई। मैंने हजारों मनुष्यों और अपने एक शिष्य के बारे में बताऊंगी जो यहाँ पर उनकी समस्याओं का अध्ययन किया है और जानती इंग्लैंड से आया था। एक दिन बैठा हुआ वह अपने हूँ कि वास्तविकता क्या है। परन्तु कुछ ऐसे लोग भी पिताजी के बारे में सोच रहा था, अचानक उसकी हैं, यद्यपि वो बहुत कम हैं. जो अन्तिम अवस्था तक तर्जनी ( Index) ऊगली यर जलन हुई। उसने अपने पिताजी को फोन किया तो उसकी माँ ने पहुँच गए हैं। इस प्रकार प्रथम अवस्था पर जब आप आते हैं तो यह चित्त की अवस्था होती है, चेतना की बताया कि उसके पिताजी का स्वास्थ्य ठीक न था। नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 41 चैतन्य लहरी खण्ड -४V अंक : 11 एवं 12 उसे गले का रोग था इस लड़के ने अपनी अंगुली प्रदान कर रही हैं? बहुत सी अप्रत्यक्ष महत्वपूर्ण पर कुछ किया और उसके पिता ठीक हो गए। अब घटनाएँ घटित हो रही हैं। वह सोच सकता है कि वह शक्तिशाली है, एक बार जब आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो आदि-आदि। परन्तु बात यह नहीं है। इस प्रकार से जाता है तो 'चिरंजीवी' (Deities) आपके सम्मुख वह नहीं सोच सकता क्योंकि उसका सहस्रार खुल समर्पित हो जाते हैं। वे आपको देखते हैं। अब आप चुका है। उसने केवल इतना कहा, "श्रीमाताजी, मैंने उनकी जिम्मेदारी हैं। आपके अन्दर सभी देवी देवता ऐसा महसूस किया और इस प्रकार किया, तथा मेरे जागृत हो गए हैं। देवी-देवताओं के विरुद्ध यदि आप पिताजी ठीक हो गए।" व्यक्ति ऐसा कभी नहीं कोई कार्य करते हैं तो कवे तुरन्त आपको हानि कहता कि 'मैंने' यह किया। 'मैं' चली जाती है। पहुँचाएंगे। कोई साक्षात्कारी व्यक्ति यदि किसी ऐसे आप कभी नहीं कहते 'मैंने' यह कार्य किया परन्तु स्थान पर जाता है जो देखने योग्य नहीं है, महसूस आप कहेंगे," श्रीमाताजी, आज मेरी आज्ञा पकड़ रही करने योग्य नहीं है या जो अच्छा स्थान नहीं है, या है," " श्रीमाताजी, मेरा हृदय पकड़ रहा है।" ये लोग यदि वह किसी कुगुरु के पास जाता है तो तुरन्त आ कर अपने विषय में इस प्रकार से बात करते हैं । उसे गर्मी महसूस होने लगेगी। फिर भी यदि वह आज्ञा पकड़ने का अर्थ यह है कि आप पगला वहाँ से भाग नहीं निकलता, यदि वह वहाँ जाता जाएंगे। परन्तु व्यक्ति को यह बात बुरी नहीं लगती रहता है तो उसकी चैतन्य लहरियाँ समाप्त हो क्योंकि वह इससे लिप्त नहीं है। वह अपनी आत्मा जाएंगी और वह किसी भी अन्य सर्वसाधारण व्यक्ति से जुड़ा हुआ है। अत: आत्म-रूप में वह कहता है की तरह से हो जाएगा। आरम्भ में यह अत्यन्त अस्थायी स्थिति में होता कि यह चक्र पकड़ा हुआ है, वह चक्र पकड़ा हुआ है। कर्क रोग (Cancer) से पीडित व्यक्ति को है । यहाँ पर मैं यह कहूँगी कि अभी भी अरुचि इसका पता नहीं होता परन्तु आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति इतनी अधिक नहीं होती कि व्यक्ति इसे स्वीकार न का चित्त उसे बता देगा कि फलां-फलां चक्रों की करे। क्योंकि यदि इसे आप स्वीकार कर लें तो आप स्थिति ठीक नहीं है और इतने चक्रों की स्थिति के पूर्णतया आत्मसाक्षात्कारी हो जाते हैं। यदि आप इसे कर्क रोग। उसे स्वीकार नहीं करते तो आपको थोड़ी सी शारीरिक ठीक ना होने का अर्थ है चिकित्सक के पास नहीं जाना पड़ता, वह स्वयं रोग समस्या हो सकती है। हो सकता है कि आप अपनी निदान (Diagnose) कर सकता है। चिकित्सक अंगुलियों को हानि पहुंचा लें या यहाँ-वहाँ कहीं की तरह से वह निदान करके यह नहीं कहेगा कि आपको जलन हो जाए। परन्तु यदि आपको इन आपको हृदय का कैंसर है या गले का, वह कहेगा शारीरिक संवेदनाओं का भय न होगा और आप कि आपके चक्र पकड़े हुए हैं, बाई ओर के, या दाई इनकी चिन्ता छोड़ देंगे तो आप ऊँचे उठने लगेंगे। मैंने आपको पहले ही बताया है कि 'चिरंजीवी' ओर के। चैतन्य लहरियाँ कहाँ से आ रही हैं, कहाँ तक आपका पथ-प्रदर्शन और आपकी देखभाल करने यह पहुँच रही है और ऐसे चक्रों की गहन समझ लगते हैं। रेलगाड़ी में यदि एक भी आत्मसाक्षात्कारी चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 42 मिलने के व्यक्ति हो तो यह दुर्घटनाग्रस्त नहीं हो सकती और ठहरे हुए थे, एक सज्जन व्यक्ति मुझसे यदि दुर्घटना हो भी जाए तो इसमें किसी की मृत्यु लिए नहीं होगी कोई चल रहा हो और घटित होने वाली कोई दुर्घटना उसे किए। अन्य सहजयोगी दूसरे कमरों में थे सभी दौडे आया। वह आत्मसाक्षात्कारी तो न था पर आत्मसाक्षात्कारी यदि सड़क पर महान पूर्व सम्पदा सन्त था। उसने मेरे चरण स्पर्श दिखाई दे तो तुरन्त उसका चित्त वहाँ चला जाता है चले आए। मैंने पूछा," आप क्यों आए हैं?" उन्होंने और दुर्घटना टल जाती है। उसका चित्त आशीर्वादित उत्तर दिया हमारे अन्दर तेजी से चैतन्य बहने लगा, है, यह बात किसी वैज्ञानिक को समझ नहीं आ इसलिए हम यहां आए हैं।" वह व्यक्ति मेरे चरणों सकती। अभी-अभी मुझसे किसी ने पूछा था में था और बाकी सब लोग वहां ठहरे हुए थे। मैंने कि"अन्तः स्थित परमात्मा यदि उसका पथ-प्रदर्शन कहा,"न तो यह मुझे छोड़ रहा है और न आप लोग कर रहे हैं तो वह स्वयं तो कुछ भी नहीं कर यहां से जा रहे हो।" 15 मिनट तक वह व्यक्ति मेरे सकता।" ऐसा नहीं है। अन्तः स्थित देवी-देवता तो चरणामृत का आनन्द लेता रहा और उससे प्रवाहित उसी के अंग-प्रत्यंग हैं। आप कह सकते हैं कि होने वाले अमृत तथा सुगन्ध का आनन्द वहां मस्तिष्क मेरा पथ-प्रदर्शन कर रहा है इसलिए मैं उपस्थित अन्य लोग लेते रहे। कुछ अन्य नहीं कर सकता। आप स्वयं देख सकते हैं कि देवी-देवता तो आपके आन्तरिक हिस्से हैं। शुरूकर देते हैं। इस प्रकार की भावनाएं होती हैं। अत: आप अन्य लोगों का आनन्द लेना भी इस प्रकार आप 'निर्विचारिता' या 'समाधि' का तब आत्मा के साथ क्या है? जब आप आत्मा (Self) से एकरूप हो जाते हैं तब आप निर्लिप्त आनन्द लेते हैं। 'समाधि' का अर्थ 'अचेतन होना व्यक्तित्व हो जाते हैं, तब आपमें 'स्व' (''ness) नहीं है, इस स्थिति में तो अचेतन भी चेतन हो जाता है। ब्रह्माण्डीय 'अचेतन' भी 'चेतन' हो जाता है। तो की भावना नहीं रहती। हर समय आप कहते हैं," यह हो रहा है, यह घटित हो रहा है, यह बह रहा है ।" यह पहली अवस्था है। ऐसी बहुत सी अवस्थाएं हैं। स्वयं को आप तृतीय पुरुष (third person) की और बहुत सी चीजें घटित होती हैं। मान लो अपने तरह से देखने लगते हैं। स्वयं को आप 'मैं' से नहीं पूर्व जन्म में आप काफी ज्योति-पूजा कर रहे थे तो जोड़ते, ऐसा होता है। आप देख सकते हैं कि यह आप मेरी चैतन्य लहरियों को आते जाते देख पायेंगे। लोग किस प्रकार से कार्य करते हैं । यदि आप देवी-पूजा करते रहे हैं तो देवी-प्रणाम सा आनन्द (joy) की भी एक भूमिका है। प्राय: कुछ कर सकते हैं। उसे आप देख भी सकते हैं । आप देखते हैं कि कोई व्यक्ति यदि आत्मसाक्षात्कारी आत्मसाक्षात्कार से पूर्व यदि आपको ऐसा कुछ नजर है और टेढ़ा नहीं है तो उसके इर्द गिर्द बहुत से आता है तो इसका अर्थ ये है कि आप भूत-बाधित सहजयोगी एकत्र हो जाते हैं। कोई साधक यदि हैं और कोई आपको विचार भेज रहा है । परन्तु आत्मसाक्षात्कार के बाद यदि आप कुछ देखने लगते महान आत्मा है और वो यदि मेरे चरणों पर प्रणाम करता है तो अन्य सहजयोगी उसका बहुत आनन्द हैं तो इसका कुछ अर्थ है। इस प्रकार पुष्प का लेते हैं। एक बार हम कलकत्ता के एक होटल में निरन्तर विकास प्रकट होने लगता है। चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 11 एव 12 नबम्बर एवं दिसम्बर 2003 43 दूसरी अवस्था में आप 'निर्विकल्प' हो जाते हैं, क्रम परिवर्तन को आप समझ सकते हैं। आप कह जहां कोई विकल्प नहीं होता। आज दिल्ली में बहुत सकते हैं कि संगीत शिक्षा के प्रथम वर्ष में आप कम ऐसे सहजयोगी हैं। सर्वप्रथम तो स्वभाव से ही केवल सात स्वरों तथा अन्य स्वरों और साधारण राग वो लोग विकल्पी हैं। इसका कारण ये है कि पूरा सीख सकते हैं परन्तु जब आप सूक्ष्म एवं उन्नत हो वातावरण ही विकल्प वाला है। आप यदि कुछ जाते हैं तब संगीत रचना के सारे सूक्ष्म रहस्यों को कहेंगे तो दूसरा व्यक्ति कुछ और कहकर आपको जान जाते हैं। नीचे खींच लेगा। तो पूरा वातावरण ही इतना विकल्पी पलटि निर्विकल्प अवस्था में किसी भी व्यक्ति की ओर है कि अभी तक आप सहजयोग में स्थापित नहीं हो हाथ करने की आवश्यकता नहीं होती, बैठने मात्र से पाये हैं। परन्तु दिल्ली में भी हमारे पास बहुत से ही आप जान जाते हैं कि वो कहाँ है और क्या महान सहजयोगी हैं। आप पूछ सकते हैं कि घटित हो रहा है और कहाँ पकड़ रहा है, समस्या 'निर्विकल्प' किस प्रकार हों? मान लो आप पानी में क्या है, सामूहिक समस्याएं क्या हैं? सहजयोग और हैं और डूबने से भयभीत हैं। अत: आपको उठाकर कुण्डलिनी के विषय में आपको कोई संदेह नहीं नाव में डाल लिया जाता है। अब आपको डूबने का भय नहीं रह जाता तथा दृढ़ता पूर्वक अब आप इस पर प्रयोग करने लगते हैं और इसका उपयोग स्थापित हो सकते हैं। रहता, संदेह बिल्कुल समाप्त हो जाते हैं तब आप करते हैं। कुण्डलिनी पर स्वामित्व होने लगता है। आपको दृढ़ता पूर्वक स्थापित होना होगा, तभी इस अवस्था में 'चित्त'-चेतना सूक्ष्म हो जाती है । आप कुछ शक्तियाँ प्राप्त कर सकते हैं-आपकी कोई व्यक्ति मेरे पास बैठा हुआ था और बाहर बैठे कुण्डलिनी गतिमान होने लगती है। बम्बई में हमारे सहजयोगी जानते थे कि उस भद्र पुरुष को यहाँ ऐसे कुछ लोग हैं जिनकी कृण्डलिनी कम से आत्म-साक्षात्कार मिलने वाला है। वे जानते थे कि श्रीमाताजी आत्मसाक्षात्कार देने वाली हैं। सहजयोगी कम एक फुट ऊँची निकलती है। वे अत्यन्त उन्नत लोग हैं। निर्विकल्प अवस्था में सामूहिक चेतना ऐसे समय पर अत्यन्त प्रसन्न होते हैं तथा छोटी-छोटी सूक्ष्मातिसूक्ष्म वास्तविकता स्पष्ट होने लगती है, तब आप गहन हैं और शान से रहते हैं। वे तुनकमिजाज नहीं होते हो जाती है । उस अवस्था में, जब चीजों के विषय में शिकवे नहीं करते। वे मस्त होते महत्व की चीज़ों को समझ सकते हैं। उदाहरण के उनका चित्त सूक्ष्म में होता है। रूप में आप कुण्डलिनी की कार्यशैली को समझने बाहर के दुनियावी मामलों के लिए उनके पास लगते हैं। आप समझ सकते हैं कि यह किस प्रकार समय नहीं होता। यही कारण है कि उनका चित्त भेदन करती है, किस प्रकार कार्यान्वयन करती है, सदैव सूक्ष्म पर होता है। वो चिंतित नहीं होते, ऐसे अपने हाथों से आप इससे प्रयोग कर सकते हैं और लोग संतुष्ट आत्माएं होते हैं। यही लोग सहज के इच्छानुसार इसे चला सकते हैं। आप लोगों को रोग स्तम्भ बनेंगे। कोई जब ऐसे लोगों को देखता है. ऐसे मुक्त कर सकते हैं और भिन्न प्रकार से कुण्डलिनी परिवर्तित व्यक्ति को तो उन्हें चोट पहुँचती है। "इस की कार्यशैली को दर्शा सकते हैं। कुण्डलिनी के व्यक्ति को देखो ये कितना महान है । पहले तो यह चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2008 44 बहुत खराब था किस प्रकार यह परिवर्तित हुआ है, ही प्रयत्न क्यों न करे। ईसामसीह को भी अपने हाथ देखो किस प्रकार इसका का्यापलट हुआ है!" इस में हंटर उठाकर लोगों को भगाना पड़ा। यदि आप अवस्था में; निर्विकल्प अवस्था में चैतन्य लहरियाँ निर्विकल्प अवस्था में हैं तो आपको क्रोध करने का बहती हैं और बिल्कुल प्रश्न नहीं रह जाता। परन्तु अधिकार है क्योंकि आवश्यकता पड़ने पर आपको ऐसा व्यक्ति यदि किसी को दुर्व्यवहार करता देख ले आवाज़ उठाने का अधिकार प्रदान किया गया है। मैं तो बह क्रोध से भर जाता है और इसे सहन नहीं सारे आयुध उपयोग करती हूँ, ये सब आयुध होते हैं कर पाता। ईसामसीह ने कहा है," इन सबको क्षमा और मुझे उनका उपयोग करना पड़ता है, उनका कर दो क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे उपयोग करने से आप मुझे रोक नहीं सकते। मैं यही हैं"। परन्तु मान लो कि उनकी (ईसामसीह) माँ की बात कहती हैँ कि पढ़ने मात्र से लोग चीज़ों को शान में कोई अपराध किया होता तो वो उन्हें समझ नहीं पाते। शांतिपूर्वक बैठा हुआ, सब लोगों बिल्कुल क्षमा न कर पाते। बाइबल में लिखा हुआ द्वारा सताया जाने वाला व्यक्ति ही आत्मसाक्षात्कारी कि आदिशक्ति (Holy Ghost) के विरुद्ध कुछ कहलाता है-ऐसा समझना निहायत मूर्खता है। किस भी सहन नहीं किया जाएगा। और Holy Ghost प्रकार आप ऐसे व्यक्ति से ईष्ष्या करने का साहस उनकी माँ थी और वो आदिशक्ति हैं। इसलिए आप अपनी श्रीमाताजी और सहजयोग के विरुद्ध कुछ भी देवी का द्वेष सहन करना होगा। ये कहना बिल्कुल सहन नहीं कर सकते और आपको एकदम भयंकर गलत है कि आत्म-साक्षात्कारी व्यक्ति को कतई क्रोध आता है। ऐसे लोगों में संहार शक्ति पनप जाती क्रोध नहीं करना चाहिए। है। कहा जाता है कि ऐसे व्यक्ति को जब कोई हानि कर सकते हैं। क्या आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति को जिन ऋषियों के बारे में मैंने बताया है या वो पहुँचाने का प्रयत्न करता है तो वह उसे माँ के प्रति सब जिन्होंने मेरे बारे में वर्णन किया है तथा जिनके अपनी भक्ति से धराशाही कर देता है। हमारी एक नाम मैंने आपको बताए हैं, वे सब निर्विकल्प स्थिति धारणा है कि आत्मसाक्षात्कारी लोगों को कभी से ऊपर थे। परन्तु वे भी उग्र स्वभाव के थे। ये क्रोधित नहीं होना चाहिए। यह बिल्कुल गलत धारणा है। तब आप कहेंगे" श्रीकृष्ण ने ज़रासंध का वध क्यों किया, कंस का वध क्यों किया। कृष्ण की राक्षस उनके समीप नहीं फटक सकता और यदि हिंसा को आप कैसे उचित ठहराते हैं देवी. जिन्होंने कोई चला जाए तो वे उनहें फंदा डालकर पेड़ से अवतरित होकर क्रोध में बेशुमार राक्षसों का वध किया उसका स्पष्टीकरण आप कैसे करते हैं। भयंकर जाने के लिए कभी नहीं कहती। नि:संदैह वो बड़े क्रोध में आकर वे राक्षसों का वध किया करती थीं। शिव का क्रोध, उसका स्पष्टीकरण आप कैसे देते जानते हैं और मेरे चरण कमलों में नतमस्तक होते है? ये मूर्खतापूर्ण धारणा है कि उन्हें कभी क्रोधित हैं मेरे लिए वे बच्चों की तरह से अबोध हैं और नहीं होना चाहिए, चाहे कोई उनकी हत्या करने का सहज हैं। श्रीगणेश सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं यदि सन्त पाखण्ड सहन नहीं कर सकते लेकिन मैं सहन कर सकती हूँ, मुझे सहन करना पड़ता है। कोई लटका देते हैं। इसीलिए मैं किसी बाबाजी के पास ऊँचे लोग हैं आप लोगों से बेहतर हैं। मुझे भली-भांति গ चैलन्य लहरी खपड -XV अंक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2008 45 वे (श्रीगणेश) नाराज़ हो जाएं तो उन्हें संभालना उत्तेजक करने वाले वस्त्र पहने हुए देख लूँ या ऐसा आसान नहीं है। श्री शिव के क्रोध को संभालना कुछ और देख लू या अपने पति के साथ मुझे श्रीगणेश के क्रोध को संभालने से कहीं आसान है। पार्टियों में या कैबरे आदि में जाना पड़़े तो तुरन्त उनसे सावधान रहें। यही कारण है कि कुण्डलिनी मुझे मितली होने लगती है मानो मैं नर्क में हूँ, विशेष जागृति प्राप्त करते हुए आपको जलन महसूस होती रूप से तब जब हम वहाँ मुख्य अतिथि होते हैं। मैं हैं और आप उछल-कुद करने लगते हैं। यह सब उनका जीवन कष्टकर बना देती हूँ क्योंकि जब मैं श्रीगणेश के करोध के कारण होता है। किसी भी अधनंगी महिलाओं को देखती हूँ तो मेरे पेट में कुछ प्रकार से यदि आपने उनका अपमान किया है, या हो जाता है। अब बात ये है कि मैं अपने पेट का उनकी माँ (आदिशक्ति) का अ किया है तो क्या करू क्योंकि इसमें तो धर्म उत्पन्न हो चुका है। पमान उन्हें भयंकर क्रोध आ जाता है। अतः पेट स्वयं ही 'धर्म' बन जाता है। इस अवस्था यह बात सत्य है कि निर्विकल्प स्थिति प्राप्त में चीजों की सूक्ष्म शैली आरम्भ हो जाती है। कर लेने पर श्रीगणेश वास्तव में जागृत हो जाते हैं। आपका मूलाधार ही पावनता की मूर्ति बन जाता है ऐसा व्यक्ति किसी महिला से सम्मोहित नहीं होता यह इन सब चीजों को सहन ही नहीं कर सकता। अपनी पत्नी के अतिरिक्त किसी अन्य महिला के आपको उन्हें बताना नहीं पड़ता। ऐसी महिलाओं में लिए उसमें कोई प्रलोभन नहीं रहेगा। अपनी पत्नी आपको कोई दिलचस्पी नहीं रह जाती। वे न तो के साथ वह सम्मानमय पति की तरह से जीवन-यापन चोंचले बाजी करते हैं और न ही इन चीजों में उन्हें करेगा क्योंकि पति-पत्नी विवाह के सूत्र में बंधे होते कोई दिलचस्पी रह जाती है । ऐसे वस्त्र पहनने में हैं। | अन्यथा वह एक पावन गृहस्थ होता है। उसमें उनकी कोई दिलचस्पी नहीं रहती जो अन्य पुरुषों शराब, धूम्रपान आदि के लिए कोई आकर्षण नहीं या महिलाओं को वहुत आकर्षित करें। अत्यन होता। वह तो प्रलोभनों से ऊपर होता है। निर्विकल्प सहज व्यक्ति की तरह से वे आचरण करते हैं । वे व्यक्ति में कोई प्रलोभन नहीं हो सकता। एक व्यक्ति गरिमामय सहजता में चले जाते हैं। अचानक वे अत्यन्त सृजनात्मक हो जाते हैं। मुम्बई में एक मेरे पास आया और उसने मुझे बतीया कि वह आत्मसाक्षात्कारी था। मैंने कहा, "एसा कैसे हो सज्जन हैं जिन्हें निर्विकल्प अवस्था प्राप्त हो गई है। सकता है? आप यदि आत्मसाक्षात्कारी हैं तो क्यों जब उनके पास कोई नौकरी नहीं थी तो वो मेरे पास आपको इन चीज़ों की आदत है? आप ऐसा कर ही आए। मैंने उनसे कहा,"क्यों नहीं आप गृह सज्जा नहीं सकते " मैंने कभी कुछ नहीं लिया। एक बार कार्य शुरू कर देते? क्यों नहीं आप गृह सज्जा कार्य मेरे डाक्टर ने दवाई के रूप में मुझे थोड़ी सी ब्रांडी आरंभ कर लेते?" वह कहने लगा," कि उसे लकड़ी दी थी। मैं नहीं जानती कि मुझे उसने वह ब्रांडी मुझे देनी चाही, परन्तु उसके कारण लकड़ी का भेद भी वह नहीं जानता। मैंने कहा, अब मुझे खून की उल्टियाँ हो गई क्योंकि मेरा पेट ही आप निर्विकल्प में हैं। अत: यह कार्य शुरु कर धार्मिक और पवित्र है। मैं यदि किसी महिला को लें।" बिना बताए क्यों का बिल्कुल ज्ञान नहीं है, एक लकड़ी से दूसरी Phot चैतन्य लहरी खण्ड XV अंक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 46 आज वह अत्यन्त वैभवशाली है। व्यक्ति गतिशील आप सूक्ष्म चैतन्य लहरियाँ महसूस कर सकते हैं हो उठता है क्योंकि वह प्रकृति के सौन्दर्य को देखने चाहे वह धर्म में हों या कहीं और। क्या हम कह लगता है। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति में सौन्दर्यबोध सकते हैं कि अष्ट विनायक जीवन्त देवता हैं? ( Aesthetic Sense) जागृत हो जाती है। हर चीज़ आपने कैसे जाना? ज्योतिर्लिंग जीवन्त हैं ये बात में वह सौन्दर्य देखने लगता है। बातचीत करने की आप कैसे जानेंगे? जब तक आप सारी महान कला सुधर जाती है। आपके हाथों की गति तथा आत्माओं की एकरूपता को जान नहीं लेंगे किस आपकी शैली सुधर जाती है। आप अत्यन्त सुन्दर प्रकार आप उन्हें परखेंगे? अतः आत्म-साक्षात्कार हो जाते हैं। आपमें सौन्दर्य बोध आ जाता हैं। प्राप्त कर लेना आवश्यक है। मेरे पिताजी ने मुझे अचानक व्यक्ति महान कवि बन जाता है। हमारे यही बताया था। मुझे कहना चाहिए कि वही मेरे यहाँ दो ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने सुन्दर कविताएं प्रथम गुरु थे। वे आत्मसाक्षात्कारी थे। उन्होंने मुझे लिखी हैं। आप यदि चित्रकार हैं तो महान चित्रकार बताया कि वास्तविकताओं आदि के बारे में बात बन सकते हैं चित्रकारी और सौन्दर्य के विषय में करने का कोई लाभ नहीं क्योंकि इस प्रकार तो तुम आपको नई धारणाएं प्राप्त हो सकती हैं। आपको एक अन्य बाइबल या गीता का सृजन कर दोगी। संगीत अच्छी तरह से समझ आने लगता है. चाहे तुम कोई व्यवहारिक कार्य करो। कोई सामूहिक शास्त्रीय संगीत का ज्ञान आपको न हो फिर भी तरीका खोजो| मैं जानती थी कि मेरा लक्ष्य यही है। संगीत की सूक्ष्मता को आप समझने लगते हैं। अत: मैं सभी लोगों की कुण्डलिनी पर कार्य करती शास्त्रीय संगीत से आपको ज्ञान होने लगता है कि रही तथा उनकी गलतियों के कारण खोजने के लिए आपकी आत्मा के लिए सर्वोत्तम क्या है? उस क्रमपरिवर्तन (Permutations & combinations) अवस्था में आत्मा हर चौज को परखने लगती है। खोजती रही। आप हैरान होंगे कि बहुत से लोगों को ऐसे व्यक्ति को यदि आप नाटक या चित्रकारी का कभी इस बात का पता ही नहीं चला कि वे तिर्णायक बना दें तो वह विल्कुल सही-सही निर्णय निर्विचार समाधि में हैं। उन्हें कभी पता नहीं चला देगा कि अच्छा क्या है और बुरा क्या है। उसके कि वे महान उन्नत आत्माएं हैं । उन्हें अगर इस बात निर्णय को यदि आप विश्व भर के आलोचकों के का पता होता तो वो बहुत सी. ऐसी बातें न बताते सम्मुख रखेंगे तो- वो लोग बताएंगे कि यह निर्णय जिन्होंने आपको बन्धनों में फैँसा दिया है। उन्होंने सर्वोत्तम है। आप उनसे पूछेंगे कि"उसको यह ज्ञान कहा सच बोलो'। सत्य कौन बोलेगा। उन्हें इस बात कैसे आता है?" क्योंकि वह चैतन्य लहरियों द्वारा का ज्ञान न था कि मानव क्या है? वे अवतरण हैं, तथा हर चीज़ से पूर्ण एकरूपता द्वारा यह महसूस महान व्यक्ति हैं। मानव का उन्हें अधिक ज्ञान न था और न ही वे ये जानते थे कि मानव कितना चालाक कर सकता है। ऐसे व्यक्ति को आप यदि किसी देवी-देवता की होता है और किस प्रकार परस्पर विरोधी! सूक्ष्म मूर्ति दें और उससे पूछे कि क्या ये मूर्ति ठीक है या मानव स्तर पर वे न आ सकते थे इसके लिए उन्हें गलत तो वह कह सकता है कि यह ठीक नहीं है। मानव रूप में आत्मानुभूति लेनी आवश्यक थी जैसे नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 47 चेतन्य तहरी खण्ड -४V अक : 11 एवं 12 अन मैंने की है। इसीलिए मैंने मानव प्रवृत्ति को समझा है सत्-चित्त-आनन्द अवस्था। परमात्म साक्षात्कार वह परन्तु नि:सन्देह मैं भी बहुत सी चीजें नहीं समझी। अवस्था है जो गौतम बुद्ध तथा श्री महावीर ने प्राप्त अवस्था में जाते हैं तो की थी तथा वे हमारे मस्तिष्क में स्थापित हो गए। ईसामसीह भी वहाँ हैं। ये दोनों अवतराण नहीं हैं। जब आप निर्विकल्प आनन्द आपके अन्दर स्थापित होने लगता है। जब भी आप नगरों को देखते हैं, किसी सुन्दर तस्वीर या मानव रूप में उन्होंने जन्म लिया। श्री सीताजी की दृश्यों को देखते हैं तो तुरन्त आनन्द का एक तीव्र कोख से लव-कुश के रूप में उन्होंने जन्म लिया बहाव आप अपने अन्दर होता हुआ पाते हैं। ये तत्पश्चात् वे बुद्ध और महावीर के रूप में जन्में तथा परमात्मा की कृपा है कि आप इसी में रम गए हैं एक बार फिर आदिशक्ति ही उनकी माँ थीं। इसके मानो गंगा आपके अन्दर बह रही हो और आप बाद हसन, हुसैन के रूप में फातिमा बी की कोख इसमें पूर्णत: निमन्न हैं आपकी 'चेतना' ही 'आनन्द' से जन्में। ये दोनों ऐसे मील के पत्थर हैं जिनके माध्यम से आप जान सकते हैं कि मानव कितनी बन जाती है। ोकि ऊँचाई तक जा सकता है। आज वो अवतरणों सम बास्तव में आप समझ जाते हैं कि अभी-तक हमने 'सर्वव्यापी शक्ति' को जाना ही न था हैं। अन्य शैली के व्यक्तित्व भी हैं जैसे चिरंजीवी. परन्तु अब हमें उसका ज्ञान हो गया है। इसे हम अपनी उंगलियों पर आते हुए महसूस कर सकते भैरव, गणेश। ये सब अवतरण हैं। श्री हनुमान बाद हैं। ये वास्तविकता है कि हमारे चहूँ ओर जो में देवदूत गेब्रील के रूप में प्रकट हुए तथा भैरवनाथ चैतन्य है वह सोचता है, समझता है, आयोजन सेंट माइकल के रूप में नाम भिन्न-भिन्न हैं परन्तु करता है और प्रेम करता है। ज्ञान के एक भाग व्यक्तित्व वही हैं। देवी भी अवतरित हुईं, इसके के रूप में आप ये सब जान जाते हैं। तब विषय में कोई सन्देह नहीं है। वैज्ञानिक इस बात को हृदय' से 'आनन्द' प्रवाहित होने लगता है। नहीं समझेंगे परन्तु सहजयोगी इसे समझ सकते हैं अन्ततः आप 'आनन्द' में 'विलय' प्राप्त करते क्योंकि वे तुरन्त उनकी चैतन्य लहरियाँ महसूस कर सकते हैं और प्रश्न पूछ सकते हैं मेरे बारे में भी हैं। यही तड़पन है विलय की। इस स्थिति में पूर्ण आत्मसाक्षात्कार घटित होता है। इस अवस्था में आप प्रश्न पूछ सकते हैं इससे आपको चैतन्य आप सुर्य, चन्द्र तथा सभी तत्वों (पंचतत्वों ) लहरियाँ प्राप्त होंगी । परन्तु इसके लिए कम से कम को नियंत्रित कर सकते हैं । आपके अन्दर देवताओं को जागृत होना होगा और हाँ (God कहनी होगी। आपको साक्षात्कार प्राप्त हो या नहीं इससे ऊपर परमात्म-साक्षात्कार है। Realisation) इसकी भी तीन अवस्थाएं हैं। परन्तु उत्तर आपको निश्चित रूप से प्राप्त होगा। अभी-अभी मैंने इसके विषय में बताया था, परमात्मा आपको धन्य करें। RE ---------------------- 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-0.txt चैतन्य लहन्री ्घ खंड : XV अक : 11 व 12 नवम्बर - दिसम्बर, 2003 प्रितय ाय] 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-2.txt गुरूपूजा, कबेला, 13 जुलाई, 2003 3 श्रीमाताजी की पेरिस यात्रा 4 विवाह की छप्पनवीं वर्षगांठ - 7. अप्रैल, 2003 7 10 श्रीमाताजी का एक पत्र- 2अगस्त, 2003 0 ईसा मसीह पूजा, लंदन, 10.12.1979 । श्रीमाताजी का प्रवचन-बम्बई, 27 मई, 1978 25 सत-चित्त-आनन्द- 37 15 फरवरी, 1977, नई दिल्ली ा घ म भि 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-3.txt री चै त - य ल ह प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर 162 - ए, मुनीरका विहार, नई दिल्ली 110067 मुद्रक अमरनाथ प्रेस प्रा. लिमिटेड डब्ल्यू एच एस 2/47, कीर्ति नगर औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली 15 फोन : 25921159, 55458062 सदस्यता के लिए कृपया इस पते पर लिखें :- श्री ओ. पी. चान्दना 463 (जी-11) ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली 110034 फोन : 27031889 E-mail : chaitanyalahiri@indiatimes.com सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पतं पर भेजें : चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी-17, कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली ।व0016 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-4.txt गुरु पूजा कबैला, 13 जुलाई 2003 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन जहाँ भी हमारी कोई जिम्मेदारी हो और वहाँ पर हम उपस्थित न हों तो हम विचलित हो जाते हैं । परमात्मा का शुक्र है कि यहाँ पर बहुत कम बच्चे हैं, उनमें से अधिकतर जा चुक हैं परन्तु जिस प्रकार से हम चिन्ता करते हैं और उत्सुक होते हैं. हम सब भी बच्चे ही हैं। आज मैं आप सबको कहना चाहूँगी कि नव वर्ष का आरम्भ हो गया है और इस नव वर्ष में हमारे सम्मुख एक नया प्रस्ताव होना चाहिए। लोगों के लिए यह प्रस्ताव समझ पाना अत्यन्त कठिन होगा कि हम लोग किसी अन्य के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। हम कंवल अपने हैं और स्वयं में ही लीन रहते हैं। यह बहुत कठिन है । जिन लोगों के बच्चे नहीं हैं वो एक प्रकार से ८ अत्यन्त प्रसन्न हैं परन्तु जिनके बच्चे हैं, जिनके कन्धों पर कुछ जिम्मेदारियाँ हैं. जिनके कुछ उत्तरदायित्व हैं, वो अब भी हवा में लटके (डांवाडोल) हुए हैं। मैं अवश्य ये बात कहूँगी कि ये लोग सहजयोग के कहीं समीप भी नहीं आए। हम स्वयं ही अपनी मुख्य ज़िम्मेदारी हैं। स्वयं को समझना और स्वयं पर निर्भर होना ही हमारी मुख्य जिम्मेदारी है। ये बहुत आज की पूजा मेरे लिए बहुत महान पूजा है बड़ी जिम्मेदारी है क्योंकि अब हमारे बहुत बड़े क्योंकि अचानक मुझे पता चला कि मेरी नातिन की उत्सव होंगे और हो सकता है कि हमें ये महसूस हो बेटी गुम है और इस कारण मैं विचलित हो गई। कि हम इनमें खो गए हैं कृपया यह याद रखने का मुझे देखें, मैं आदिशक्ति हूँ, तो नातिन की बेटी के प्रयत्न करें कि आपने स्वयं को कभी नहीं भुलाना। खो जाने पर मुझे विचलित क्यों होना चाहिए! यह हमेशा याद रखना है कि आप विद्यमान हैं। मैं यह मानव स्वभाव है और मैंने महसूस किया कि यह संदेश आपको देना चाहती थी, मुझे आशा है कि आप इसके विषय में सोचेंगे। स्वभाव हम सबमें है। परमात्मा आप सबको धन्य करें । र 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-5.txt श्री माताजी की पैरिस यात्रा शनिवार, 02 अगस्त, 2003 पिछले सप्ताह श्रीमाताजी के अचानक पैरिस आ बिखेरती हुई श्रीमाताजी जब पहुँचीं तो प्रथम शब्द जाने के आनन्द का संक्षिप्त वर्णन हम यहाँ कर रहे जो उन्होंने कहे वो इस प्रकार थे : "आप लोगों की 24 घण्टों से भी कम समय की पूर्व सूचना इच्छा इतनी तीव्र थी कि मुझे यहाँ आना ही पड़ा! पाकर भी प्रांस के सहजयोगियों ने श्री आदिशक्ति उन्होंने पुष्प स्वीकार किए। तत्पश्चात् उन्हें प्रतीक्षा के स्वागत की तैयारी पूर्ण की। सर सी. पी. श्रीवास्तव करती हुई कार में बिठाया गया, जिसके द्वारा वै के साथ मुम्बई जाते हुए उन्होंने पैरिस में रुकना था। होटल पहुँची। प्राय: श्रीमाताजी बुधवार के दिन यात्रा नहीं करती इसलिए हमें दोहरा आशीर्वाद प्राप्त हुआ, कारण हम सब चिन्तित थे और समझ न पा रहे थे श्रीमाताजी के स्वास्थ्य के विषय में अफवाहों क क्योंकि मिलान से आई उनकी उड़ान मंगलवार शाम कि हमें क्या करना होगा। मस्तिष्क से सोचने पर को पैरिस पहुँची थी और उनके साक्षात् में 36 घण्टे हमें ये लगता था कि श्रीमाताजी थरकी हुई होंगी और उपस्थित रहने का शुभ अवसर हमें प्राप्त हो गया उन्हें निरंतर आराम की आवश्यकता होगी। संभवत: था कुछ वर्ष पूर्व रोएसी वायु पतन ( Roissy Air इस ठहराव के दौरान वे अपने कमरे से बाहर ही न Port) स्थित हिल्टन होटल के स्मरणीय अनुभव के आएं किसी भी प्रकार से उन्हें परेशान नहीं किया आधार पर एक बार फिर हमने बहीं पर श्रीमाताजी जाना चाहिए। परन्तु श्रीमहामाया ने क्षण भर में हमारे और सर सी.पी. का स्वागत करने के लिए तीन ये सब बन्धन और चिन्ताएं छिन्त-भिन्न कर दीं । कमरों का एक सैट (suite) चुनने का निर्णय उनकी कान्ति ऊर्जा एवं गरिमा हमें चैतन्य के किया। तैयारी के लिए कंवल कुछ ही घण्टे बाकी संसार में उड़ा कर ले गई। उस संसार में जहाँ समय थे। अत: योगियों एवं योगिनियों ने निर्विचार समाधि की गति रुक जाती है और जहाँ सभी कुछ संभव में रहते हुए कमरों की सफाई, उन्हें चैतन्यित करने है । फ्रांस की शुष्क ग्रीष्म ऋतु की असहनीय गर्मी और सजाने के लिए जी-जान लगा दी | के मुकाबले में बुंधवार के सूर्यादय होते ही अत्यन्त श्रीमाताजी का विमान पहुँचने के समय से आधा सुखद मौसम बन गया। आकाश का रंग नीला हो घण्टा पूर्व लगभग साढ़े आठ बजे सायं, होटल के गया| श्रीमाताजी खरीददारी के लिए बाहर जाने को कमरों को ठीक-ठाक करने वाले सहजयोगियों की सहमत हो गई। तेजी से तैयारी की गई, और दोपहर टीम ने श्रीमाताजी के शयनक्ष, स्नानागार, बैठने का के तुरन्त पश्चात् दो गाड़ियाँ पैरिस के सुप्रसिद्ध कमरा आदि को सजाने का कार्य पूर्ण किया और विपणन केन्द्र प्लेस वेनडोम (Place Vandome) ध्यान में बैठकर धड़कते दिलों से श्रीमाताजी के की ओर रवाना हो गई। श्रीमाताजी ने अपने तथा अपने परिवार की आगमन की प्रतीक्षा करने लगे। वायु पतन पर वो सब साँभाग्यशाली सहजयोगी महिलाओं के लिए साड़ियों का कपड़ा चुना। वहाँ एकत्र हुए जो छुट्टी मनाने के लिए बाहर नहीं गए पर उपस्थित योगियों का कहना था कि श्रीमाताजी थे और शहर में मौजूद थे तेजांमय चेहरे से मुस्कान को खरीददारी करते हुए देखकर उनके नाभिचक्र 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-6.txt नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 5 चैतन्य लहरी खण्ड -४V अंक : 1.1 एव 12 पूरी तरह से खुल गए हैं। सूक्ष्म स्तर पर हमने पैरिस हों फिर भी इतने कूटनीतिक हैं कि उनके लिखने और फ्रांस देश के लिए श्रीमाताजी की कृपा को का कभी कोई परिणाम नहीं हुआ। तब सर सी. पी. महसूस किया क्योंकि फ्रांस देश में उदारता का ने कूटनीतिज्ञों के बारे में एक चुटकुला सुनाया कि बिल्कुल महत्व नहीं है। बहुत हिम्मत करके माजिद किस प्रकार वे कहते हैं, "एक ओर तो ऐसा है और श्री माताजी को फ्रेंच सामूहिकता की ओर से वो दूसरी ओर ऐसा है। परिणामस्वरूप अब लोग ऐसे साड़ियाँ भेंट करने में सफल हुआ। उस देश के कूटनीतिकों की प्रतीक्षा करते हैं जो केवल एक हाथ लिए यह बहुत बड़ा वरदान था जो बहुत बार पर हों। आदिशक्ति के विरुद्ध खड़ा हुआ। श्रीमाताजी ने कहा, कि वे इसी क्षेत्र में कुछ होटल वापिस आते हुए श्रीमाताजी ने कार में ज़मीन खरीदने के विषय में सोच रही हैं जिस पर थोड़ा सा आराम किया और वहाँ पहुँचकर एक बार होटल बनाकर वो फ्रैंच लोगों को दिखाएंगी कि वास्तव में सुविधाएं क्या होती हैं। ज्यों ही हमारी बाई खाना खाने के पश्चात् उन्होंने एक योगी से पूछा कि विशुद्धियां पकड़ने लगीं कि हमने कैसा होटल ले सभी सहजयोगी कहाँ हैं। उसने उत्तर दिया कि सभी लिया कि श्रीमाताजी प्रसन्न नहीं हैं तभी श्रीमाताजी फिर वे आनन्द एवं ऊर्जा से परिपूर्ण थीं। रात का लोग मोंटफर्मेल (Montfermeil) मुख्य आश्रम में ने ये कहकर हमें शान्त किया कि होटल बड़ी ध्यान कर रहे हैं । माजिद ने सुझाया कि अगली सुविधाजनक स्थान पर स्थिित है तथा हमारे परस्पर सुबह सभी लोग उन्हें विदा करने के लिए आ मिलने के लिए तथा सहजयोग के लिए ये बहुत सकते हैं। परन्तु श्रीमाताजी तभी योगियों से मिलना अच्छा स्थान है। जो दो सहजयोगी उसी होटल में काम करते हैं, वे शीघ्र ही वहाँ सहज कार्य क्रम चाहती थीं। तुरन्त फोन किए गए और एक कार भेजी गई आरम्भ करेंगे। ताकि अधिक से अधिक सहजयोगियों को लाया जा श्रीमाताजी ने हमें आशीर्वाद दिया और हमने सके। परन्तु पलक भर में ही होटल में उपस्थित हम विदा ली तथा श्रीमाताजी अपने कमरे में आराम ही करने चले गए । परन्तु अभी रात जवान थी! कुछ लोगों को श्रीमाताजी के हॉल कमरे में बुलाया गया। प्रवचन देने के लिए वे हमारा इन्तज़ार कर रही थीं। क्षणों के बाद श्रीमाताजी ने माजिद को सुझाया कि फ्रांस तथा विदेशों के लगभग बीस योगी वहाँ बाहर कार पर घूमने के लिए चलें। रात के लगभग ग्यारह बजे थे। जिन योगियों के पास कारें थी, इस उपस्थित थे। श्रीमाताजी ने होटल में मूल सुविधाओं की कमी समाचार को सुनकर उन्होंने अपनी कारों की चाबियाँ के बारे में कहा कि सारा फर्नीचर कैसा है तथा संभालीं और जिनके पास कारें न थीं वे उपलब्ध होटल की प्रसिद्धि के बावजूद भी वहां कोई मूल सीटों पर लपके। सहजयोगियों की पाँच कारें नीले सुविधा नहीं दी जाती। उन्होंने हमें होटल प्रशासन रंग की 'प्युगोट-607' के पीछे चलने को तैयार हो को हमारी असन्तुष्टि के विषय में लिखने को कहा। गईं, कोई न जानता था कि कहाँ जाना है। अपनी गाड़ी में बैठकर श्रीमाताजी ने पूछा, " तो उन्होंने कहा कि सर सी. पी., चाहे वे सन्तुष्ट न भी 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-7.txt चतन्य लहरी खण्ड XV अक नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 6 :11 एवं 12 कहाँ चलें?" गाडी चला रहे क्रिस्टीन और माजिद ने पक्ति में खड़े थे। अन्दर जाकर श्रीमाताजी और सर परस्पर बात की। बुधवार रात के ग्यारह बजे रोएसी सी.पी. ने खाना खाया। रात्रि का ये अन्त न था हवाई अड्डे से कहाँ जाया जाए। क्रिस्टीन को यहाँ क्योंकि अगला कार्यक्रम एक हिन्दी फिल्म थी जो से पन्द्रह मिनट की दूरी पर जमींदारी किस्म के एक प्रात: चार पाँच बजे तक चली। होटल का अंदाजा था क्योंकि हमने श्रीमाताजी के लिए होटल खोजते हुए इंटरनेट पर होटलों की सूची वाली सुन्दर सफेद साड़ी में दमकते हुए. हमेशा की अगली सुबह लाल, तोतई फूलों की कढ़ाई तरह से तरोताज़ा, श्रीमाताजी ने साढ़े सात बजे चाय खोजी थी। थोड़ी देर चलने के बाद कारों का समूह होटल ली। दो सौ किलो से भी ज्यादा सामान हवाई अड्डे की ड्राइव लेन में पहुँचा। होटल की लॉबी में प्रवेश पर जा चुका था जिसके वजन के कारण माजिद करते ही श्रीमाताजी की दृष्टि वहाँ प्रदर्शित की गई थोड़ा सा परेशान था क्योंकि केवल चार व्यक्तियों ने प्राचीन वस्तुओं पर पड़ी। स्वागत कक्ष पर स्वागती यात्रा करनी थी। परन्तु चैतन्य की कृपा के कारण (Receptionist) ने बताया कि वा सब चीज़ें सभी कुछ सहजता से हो गया क्योंकि जाँचने वाले बिकाऊ हैं परन्तु वह उन अल्मारियों की चावियाँ न क्लर्क को ये चिन्ता थी कि सारे बैगों पर अच्छी खोज सकी। कुछ देर खोजने के बाद चाबियाँ मिल तरह से लेबल लगे तथा यात्री का नाम लिखा जाए । गई और श्रीमाताजी ने उसमें रखी कई चीज़ों को गौर वह इतनी व्यस्त थी कि वह बैगों की संख्या और से देखा। कुछ अन्य अल्मारियाँ भी खुली हुई थीं उनके बजन के बारे में भूल गई। और सभी सहजयोगियों तथा होटल कर्मचारियों के शीघ्र ही श्रीमाताजी और सर सी.पी. हवाई अड्डे आश्चर्य एवं खुशी का ठिकाना न रहा जबव श्रीमाताजी पर आ गए। सर सी. पी. ने कहा कि उनकी पैरिस ने उनमे से कुछ वस्तुएं खरीदीं। श्रीमाताजी ने अपने होटल वाफ्सि जाने का बात होगी श्रीमाताजी सभी उपस्थित लोगों की ओर निर्णय किया जहाँ पर श्रीमाताजी का संदेश पाकर देखकर मुस्काई और आनन्दमयी उदासी से हमारे अब तक बहुत से सहजयोगी एकत्र हो गए थे। हृदय भर गए। वे जा रही हैं, परन्तु वे आई तो श्रीमाताजी के कमरों के बाहर बरामदों में वो सब हैं! यात्रा को केवल 'स्मरणीय भर कहना अत्यन्त छोटी 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-8.txt परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के विवाह की छप्पनवीं वर्षगांठ सोफिया कॉलेज सभागार, मुम्बई 7 अप्रैल, 2003 सायं 6.30 बजे छोटे-छोटे सुनहरी सितारों की चित्रकारी वाली श्री ईसामसीह के रूप में आया। एक-एक युगल लाल रंग की साड़ी पहने परम पूज्य श्रीमाताजी मंच पर आकर जब परमेश्वरी माँ के सम्मुख प्रणाम हमेशा की तरह से अत्यन्त सुन्दर एवम् स्वस्थ करने के लिए झुका तो वह अद्वितीय दृश्य था। प्रतीत हो रही थीं। उनके दैदीप्यमान मुख से किरणें फूट पड़ रही थीं। जिस सिंहासन पर श्री माताजी गुलाम अली खान, विश्व विख्यात शास्त्रीय संगीतज्ञ, विराजमान थीं उसे प्रायः बेलापुर अस्पताल में रखा ने अत्यन्त आनन्दपूर्वक देवी के भिन्न रूपों में जाता है। श्री माताजी को भेंट करने के लिए बहुत श्रीमाताजी का स्तुति गायन किया। रोकने पर भी बो से लोग फूल लेकर आए थे उनमें से कुछ फूलों स्वयं को रोक ना पा रहे थे बार-बार वो हम सब को मंच सजाने के लिए उपयोग किया गया| पूरे उपस्थित लोगों को गायन में अपना साथ देने के भारतवर्ष से इस समारोह में भाग लेने के लिए लोग लिए उत्साहित कर रहे थे यह अत्यन्त दिव्य शाम आए थे जिनमें से कुछ उस शाम के लिए समारोह थी। में विमान द्वारा पहुंचे थे। कुछ विदेशी लोग भी वहाँ उपस्थित थे परन्तु मुम्बई एवम् महाराष्ट्र के सहजयोगियों पी. और श्री माताजी ने मिल कर काटा और बाद में सहज संगीतज्ञों ने मधुर गीत सुनाए। श्री मुस्तफा एक बहुत बड़ा केक लाया गया जिसे सर सी. सभी उपस्थित लोगों को प्रसाद के रूप में दिया की संख्या सबसे अधिक थी। सर्वप्रथम श्री माताजी का स्वागत करने के लिए गया। मुम्बई की सात महिलाओं ने उनकी आरती उतारी। तत्पश्चात् स्थानीय सहजयोग केन्द्रों के बच्चों ने प्रतिनिधियों तथा कुछ विदेशी सहजयोगियों ने अपने जोड़ों में आकर श्री माताजी तथा सर सी. पी. को देश तथा राज्यों के प्रतिनिधियों के रूप में मंच पर पुष्प अर्पण किए। हर युगल किसी देवता और आकर श्री माताजी को पुष्प भेंट किए। श्री माताजी उसकी शक्ति के परिधान में था। अन्त में भारत के भिन्न राज्यों से आए सहज के वहाँ से जाने के पश्चात् एक हजार के लगभग वहाँ उपस्थित हम सब लोगों को, कॉलेज के बरगीचें में, अत्यन्त स्वादिष्ट प्रसाद-भोजन करवाया गया। इसके पश्चात् एक युवक श्री माताजी के सम्मुख आया, उसने शरीर पर विभूति (राख) मली हुई थी और भगवान शिव की पारम्परिक शैली में उसके बाल बन्धे हुए थे। सफेद साड़ी पहने, हाथ में वीणा उठाए, सौन्दर्य मूर्ति एक लड़की श्री सरस्वती के रूप में श्री माताजी के सम्मुख उपस्थित हुई तथा मेरे मामले में यह कथन बिल्कुल सत्य है। मैं एक अन्य व्यक्ति जिसने सफेद चोगा पहना हुआ ब्रह्माण्ड का सबसे भाग्यशाली व्यक्ति हूँ। आपकी था नकली दाढ़ी और लम्बे बाल लगाए हुए थे, बो श्रीमाताजी अद्वितीय पत्नी, माँ, दादी और अब सर सी.पी. श्रीवास्तव साहब का भाषण कहा जाता है कि जोड़े स्वर्ग में बनाए जाते हैं, 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-9.txt चैतन्य लहरो खण्ड -XV.अक : 11 एवं 12 नेवम्बर एवं दिसम्बर 2003 8 परदादी हैं। अत्यन्त स्वादिष्ट खाना खिलाकर और अपने जन्मदिवस के अवसर पर उन्होंने सहजयोगी हर समय मेरी देखभाल करके बीते हुए इन 56 सालों में इन्होंने मुझे बिगाड़ दिया है। इन्हीं की कहा कि आपमें से हर एक यदि एक सौ नए उदारता के कारण मैं अपने दफ्तर में कठोर परिश्रम सहजयोगी बना दे तो यह विश्व एक बिल्कुल भिन्न कर पाया, परन्तु घर आने पर मुझे सभी कुछ विश्व बन जाएगा। मैं आपको बताना चाहता हूँ कि बनाने के लिए आपका आह्वान किया था। उन्होंने ल यह केवल बातें नहीं हैं। यह अत्यन्त आवश्यक है, अत्यन्त आनन्दमय प्राप्त हुआ। मेरे सभी सम्बन्धियों के प्रति वे अत्यन्त करुणामय इस विश्व में यह हमारी अत्यन्त गहन आवश्यकता हैं। आप हैरान होंगे कि जब भी सम्बन्धी हमारे घर पर है हमारे सम्मुख केवल दो विकल्प हैं जो अत्यन्त आते तो वे उनकी इस प्रकार देखभाल करतीं जैसे स्पष्ट है या तो हम मानवता को बचाने के पथ पर अपनी बेटियों की देखभाल कर रही हों। कभी उन्होंने चल पड़ें या इसे नष्ट करने के पृथ पर। वे एक बच्चे और दूसरे जो परिवार उन्होंने दिया है-दोनों बेटियां अत्यन्त अतिरिक्त कोई अन्य शक्ति नहीं जिसे मैं जानता हूँ। हैं-कल्पना यहां हमारे साथ हैं। पिछले 56 ये उत्तर दक्षिण, पूर्व, पश्चिम को समीप ला रही हैं, बच्चे में भेदभाव नहीं किया । (श्रीमाताजी) विश्व की एक मात्र शक्ति हैं। इनके अद्भुत सालों में उन्होंने ( श्रीमाताजी) मेरे लिए इतना कुछ उनका समन्वय कर रही किया है कि मैं उनका धन्यवादी हूँ। परन्तु इससे अपने श्रोताओं को, कहीं अन्यत्र, जैसा मैंने कहा था जहाजरानी के ये निर्देश हैं, परन्तु ये निर्देश मानवता को विभाजित करने के लिए नहीं हैं। अधिक धन्यवाद में उन्हें उस के लिए देना चाहता हूँ जो उन्होंने विश्व के लिए किया है । उन्होंने नई मानवता का सृजन किया इन्होंने वो कार्य कर दिखाया जो कोई अन्य न कर सका। जिन जातियाँ, सभी रंगों और सभी धर्मों के लोगों को एक लोगों के विषय में मैं जानता हूँ या जिनके विषय में किया है। किसी ऐसे व्यक्ति का नाम क्या आप बता मैंने पढ़ा है उनमें से कोई भी ऐसा कार्य न कर सका-हजारों की संख्या में देवदूतों (Angels) का लोगों को विभाजित करने में लगे हुए हैं। सभी कहते सृजन करना, ऐसे लोगों का जो अच्छाई, पावित्र्य और विश्व-बंधुत्व की धारणा के सूत्र में बंधे हुए इसकी कल्पना कर सकते हैं? क्या परमात्मा भी दो हैं। मानवता एक हैं। उन्होंने सभी मान्यताओं, सभी सकते हैं जो आज यह कार्य कर रहा है। सभी, हैं, "मेरा ईश्वर (God) सर्वोत्तम है।" क्या आप हो सकते हैं? क्या दो सर्वशक्तिशाली परमात्मा हो आप जानते हैं आज के विश्व में सर्वत्र परस्पर सकते हैं? दो सर्वशक्तिशाली परमात्मा नहीं हो विरोध है। किसी भी समाचार पत्र को आप पढ़ें, सकते और वे ही (श्रीमाताजी) उनका एक मात्र आपको लगता कि चहुँ ओर समस्याएं ही समस्याएं अवतरण हैं। हैं। ा है परन्तु केवल एक विश्व ऐसा है-उनका विश्व-जो यहाँ बैठा हुआ है. सुन्दर है. पवित्र है, शुद्ध है और परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन जो मानवता का भविष्य है। हृदय से मैं आप सबका धन्यवाद करना चाहती 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-10.txt तन् तहरी ड ४४ अक :11 एक 12 नवस्बर एव दिसम्बर 2003 9 और परस्पर प्रेम फैलाया। हमारी मानवीय समस्या हूँ कि इतने प्रेम पूर्वक आप यह वर्षगांठ मनाने के लिए यहाँ आए। धन्यवाद देने के अतिरिक्त में कूछ यह है कि हमें इस बात का ज्ञान नहीं है कि हम क नहीं कर सकती। वास्तव में किस प्रकार से आप परस्पर किस प्रकार प्रेम करें। अगर हम यह बात लोगों ने मेरे तुच्छ से कार्य की सराहना की है! यह समझ पाते तो यह 'प्रेम' की महत्ता हमारी समझ में तो केवल प्रेम का कार्य है। प्रेम मानव का महानतम आ जाती। वास्तव में हम प्रेम का आनन्द लेते हैं। है। प्रेम यदि आपमें विकसित हो जाए तो बाकी आपको कुछ भी बलिदान नहीं करना पड़ता। कुछ गुण सब भूल जाता है क्योंकि प्रेम का तो अपना ही पारितोषिक है और यही ईनाम यहां पर है। में इसे आप इसका आनन्द लें। यह पारस्परिक है। दूसरों देख सकती हूँ। मैं कुछ विशेष नहीं हूँ सिवाय इसके कि मैं सभी है कि आपके कुछ अनुभव अच्छे न रहे हों। परन्तु से प्रेम करती हूँ। मैं सोचती हूँ कि किसी की भी अधिकतर मनुष्यों में परस्पर प्रेम करने का स्वभाव भी देना नहीं पडता। सभी कुछ विद्यमान है और TAFIT को प्रेम देने में आपको आनन्द आता है। हो सकता की जाए क्योंकि मैंने लोगों को सभी होता है। प्रेम परस्पर बांटा जाना चाहिए और इसका भत्त्सना न समस्याओं से, संकीर्ण विचारधाराओं से, उबरकर आनन्द लिया जाना चाहिए। मैंने इसका आनन्द विशाल क्षेत्र में आते हुए देखा है जहां पर उनमें प्रेम लिया है और आप लोगों ने भी इसका आनन्द लिया प्रदान करने की योग्यता आ जाती है। मैं यह अवश्य है। इसीलिए मैंने कहा है कि ऐसा करना जारी रखें कहूँगी कि मेरा जो विश्वास था उसने भली- भांति और अपने प्रेम को सर्वत्र फैला दें। कार्य किया है । यह देखकर मुझे अत्यन्त हर्ष हो रहा है कि आपमें से इतने सारे लोगों ने प्रेम को समझा परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-11.txt मैं आपके साथ विद्यमान हँ हर क्षण श्रीमाताजी का संदेश माताजी निर्मला देवी प्रतिष्ठान एन.डी.ए. रोड; पोस्ट बाक्स नं. 2 पुणे-411023 दिनांक 2 अगस्त 2003 मेरे प्रिय बच्चों, उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका के सहजयोगियों, कान्ना जोहारी में आगामी कृष्ण पूजा के लिए आपका निमंत्रण पाकर में प्रसन्न हूँ। आजकल में भारत में पुणे प्रतिष्ठान में हूँ तथा इस समय में यात्रा न कर पाऊगी। परन्तु हर क्षण में आप सबके साथ विद्यमान हूँ। मैं जानती हूँ कि विश्व के सभी सहजयोगी श्रीकृष्ण प्रदत्त नैतिक, आध्यात्मिक एवं चारित्रिक मूल्यों का पूर्ण सम्मान करते हैं । इस समय पर आपने सहजयोग प्रचार के लिए अपने प्रयत्नों को तेज करने का पुनः दूढ़ निश्चय करना है। प्रेम एवं आशीर्वाद के साथ 'माताजी निर्मला देवी चम 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-12.txt श्री ईसामसीह पूजा कैक्सटन हॉल, लन्दन (इंग्लैंड), 10-12-1979 ( अंग्रेज़ी से अनुवादित) आत्मसाक्षात्कार को बनाए रखने के मार्ग में आने वाली अन्तर्निहित कठिनाईयां आज का दिन हमारे लिए यह स्मरण करने का के लिए यंह बात अत्यन्त कष्टकर है और उन्हें है कि ईसामसीह ने पृथ्वी पर मानव के रूप में जन्म खेद होता है कि जो अवतरण हमें बचाने के लिए लिया। वे पृथ्वी पर अवतरित हुए और उनके आया उसे इन परिस्थितियों में रखा गया। क्यों नहीं, सम्मुख मानव के अन्दर मानवीय चेतना प्रज्जवलित परमात्मा ने, उन्हें कुछ अच्छे हालात प्रदान किये? मानव को यह समझाना कि वे परन्तु ऐसे लोगों की इस बात से कोई फ़र्क नहीं यह शरीर नहीं हैं, वे आत्मा हैं। ईसामसीह का पड़ता, कि चाहे वो सूखी घास पर लेटे रहें या उनके करने का कार्य था - पुनर्जन्म ही उनका सन्देश था अर्थातू आप अपनी अस्तबल में या किसी भी और स्थान पर, लिए सभी कुछ समान है क्योंकि इन भौतिक चीजों आत्मा हैं यह शरीर नहीं। अपने पुनर्जन्म द्वारा उन्होंने का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वो इतने दर्शाया कि किस प्रकार वे आत्मा के साम्राज्य तक निर्लिप्त होते हैं तथा पूर्णतः आनन्द में बने रहते हैं। उन्नत हो पाए, अपनी वास्तविक स्थिति तक। क्योंकि वे 'प्रणव' थे, वे ब्रह्मा थे - वे ब्रह्मा थे, महाविष्णु वे अपने स्वामी होते हैं। कोई अन्य चीज़ उन पर थे, जैसे मैंने उनके जन्म के विषय में आपको स्वामित्व नहीं जमा सकती है। कोई पदार्थ उन पर हावी नहीं हो सकता। किसी भी प्रकार की सुख-सुविधा बताया है। परन्तु वे पृथ्वी पर मानव रूप में अवतरित उन पर स्वामित्व नहीं जमा सकती। अपने अंदर ही हुए। एक अन्य चीज़ उन्होंने दर्शानी चाही कि आत्मा वे पूर्ण सुख के स्वामी होते हैं। सभी सुख उन्होंने का धन तथा सत्ता से कोई लेना देना नहीं। यह अपने अन्दर ही प्राप्त किये होते हैं। ऐसे लोग सर्वशक्तिमान है तथा सर्वव्याप्त है। परन्तु उनका अत्यन्त सन्तुष्ट स्वभाव होते हैं और यही कारण है जन्म एक अस्तबल में हुआ, वे किसी राजा के यहां कि वे सम्राट हैं, उन्हें बादशाह कहा जाता है। वो नहीं जन्मे, एक सर्वसाधारण व्यक्ति के यहां जन्मे-एक बादशाह नहीं जो पदार्थों के पीछे दौड़ते रहते हैं या बढई के यहां । क्योंकि आप यदि राजा हैं, जैसे जीवन की सुख सुविधाएं खोजते रहते हैं। कहने से मेरा अभिप्राय यह है कि आपके पास हिन्दी भाषा में कहा गया है 'बादशाह' हैं तो आप से बड़ा कुछ भी नहीं है। क्या यह बात ठीक नहीं यदि सुख-सुविधाएं हैं तो ठीक है और यदि नहीं हैं है? इसका अर्थ यह है कि आप से ऊंचा कुछ भी तो भी ठीक है, कोई अन्तर नहीं पड़ता। जब में कोई भी चीज आपको अलंकृत नहीं कर लैटिन अमेरिका गई तो बहुत से लोगों ने कहा कि सकती (आपके रुतबे को नहीं बढ़ा सकती), आप 'हम यह नहीं समझ सकते कि ईसामसीह का जन्म जो हैं, आप सर्वोच्च हैं। आप के लिए सारी सांसारिक गरीब व्यक्ति के रूप में क्यों हुआ।' एक बार फिर चीजें सूखे घास सम हैं, तृणवत हैं। नहीं यह मानवीय धारणा है। मानव परमात्मा को चलाना ईसामसीह को घास पर सुलाया गया। कुछ लोगों चाहता है, 'सम्राट के महल में जन्म लेना'-आप 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-13.txt नवश्दर एवं दिसम्बर 2003 12 XV अंक : 11 एवं 12. चैहन्य लहरी ण्ड - परमात्मा को इसकी आज्ञा नहीं दे सकते। परमात्मा रूप से हमें बचाने के लिए वो यहां थे। उनके बहुत के विपय में भी हमारी अपनी धारणाएं हैं। क्यों वह से पक्ष हैं। मैं कहना चाहूँगी कि बो इस पृथ्वी पर निर्धन व्यक्ति वने, क्यों वह असहाय हो? परन्तु केवल मानव को बचाने के लिए ही नहीं आए, ईसामसीह ने कभी भी नहीं दर्शाया कि वह असहाय उनके और भी बहुत से पक्ष थे। यह एक अन्य पक्ष हैं। वे आपके सभी राजा-महाराजाओं से तथा राजनीतिज्ञों है। मानव ने मांग की थी कि उसकी रक्षा होनी से कहीं अधिक प्रगल्भ (dynamic) थे। उन्हें चाहिए। क्यों? क्यों उनकी, उन सभी की रक्षा होनी किसी का भय न था। जो भी कुछ उन्होंने कहना था चाहिए? उन्होंने परमात्मा के लिए क्या किया है? किस प्रकार आप परमात्मा से मांग कर सकते हैं कि वह उन्होंने कहा। उन्हें न तो क्रूसारोपित होने का भय था और न ही किसी अन्य तथाकथित दण्ड वह हमारी रक्षा करें? क्या आप ये मांग कर सकते का। आप जानते हैं कि मानव में ही जीवन के इस है? क्या आप ऐसा कर सकते हैं? आप यह मांग प्रकार के विचार हैं और यह विचार वह परमात्मा नहीं कर सकते। जैसा आप देख रहे हैं वे विशुद्धि पर भी लादना चाहता है और प्रयतल करता है कि और सहस्रार के बीच का मार्ग बनाने के लिए परमात्मा भी उसकी इन धारणाओं का अनुकरण अवतरित हुए आदिपुरुष (primordial being) करें। परमात्मा आपकी धारणा नहीं है। वो धारणा विराट के आज्ञा चक्र में। इसी द्वार (आज्ञा) को विल्कुल भी नहीं है। आप लोग भी कहते हैं कि खोलने के लिए वे अवतरित हुए। विकास प्रणाली में धारणा तो आखिरकार धारणा ही है, वास्तविकता हर एक अवतरण हमारे अन्दर का एक द्वार खोलने, नहीं। यह बात मैने हाल ही में पता लगाई है। ये एक मार्ग बनाने या हमारी चेतना को ज्योतिर्मय करने एक अन्य मिथक (myth) है जो लोगों के मस्तिष्क के लिए आया। अत: ईसामसीह विशेष रूप से हमारे में समाई हुई हैं कि धारणा तो धारणा ही है। ठीक अन्दर बने उस छोटे से द्वार को खोलने के लिए है, माताजी कहती हैं तो ठीक है। तो क्या! परन्तु आए जिसे हमारे अहं और प्रतिअहं ने संकीर्ण कर यह भी एक धारणा है क्योंकि धारणा एक विचार दिया है। अहं और प्रतिअहं हमारी विचारप्रणाली के है और आपको विचार के स्तर से एक ऊंचे उपफल (byproduct) हैं कुछ विचार भूतकाल स्तर पर उठना है - निर्विचार चेतना के स्तर पर से सम्बन्धित होते हैं और कुछ भविष्य के विचार जहां आपमें कोई विचार नहीं होता, जहां आप होते हैं। वे इसी दूरी को समाप्त करने के लिए, इसे विचार के मध्य में होते हैं अर्थात् जहां एक पाटने के लिए, अवतरित हुए और इसी लक्ष्य प्राप्ति विचार उठता है और गिरता है और इसके बीच के लिए उन्होंने, अपने शरीर का बलिदान दे दिया। में कुछ स्थान होता है। फिर दूसरा विचार उठता है और गिरता है। आप इन दोनों विचारों के चौज हो सकती है परन्तु ऐसे अवतरणों के लिए इस मध्य में होते हैं जिसे हम 'विलम्ब' कहते हैं आपके लिए यह अत्यन्त खेद एवम् पछतावे की प्रकार का कोई खेद या पछतावा नहीं होता। यह एक लीला है कि उन्होंने इस तरह की भूमिका निभानी वह समय जब आप रुकते हैं। तब आप ईसामसीह को समझ पायेंगे। आंशिक है, इसलिए मेरी समझ में नहीं आता कि क्यों आप 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-14.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक :11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 13 लोग उन्हें इतना ढीला-ढाला, दुखी व्यक्ति के रूप लगते हैं. यह बात मेरी समझ में नहीं आती। में दर्शाना चाहते हैं! वो कभी दुखी नहीं थे । ऐसे लोग कभी भी इस प्रकार से दुखी नहीं हो सकते पृथ्वी पर अवतरित हुआ वह अत्यन्त आनन्ददायी जैसे आप होते हैं। यह एक अन्य धारणा है कि है। इसलिए हम सबके लिए, पूरे ब्रह्माण्ड के लिए ईसामसीह को ढीले-ढाले, सूखे हुए. भूख से पीड़ित क्रिसमस महान आनन्द का त्यौहार होना चाहिए हड्डियों का ढांचा-जिनकी एक एक हड्डी को क्योंकि ईसामसीह हमारे लिए वो प्रकाश ले कर परमात्मा का यह बालक जो शिश् रूप में इस - इस प्रकार का व्यक्ति होना आए जिससे हम जान सकते हैं कि कोई ऐसा गिना जा सकता हो चाहिए। मैं आपको बताती हूँ कि ऐसा सोचना अस्तित्व भी है जिसे हम परमात्मा कहते हैं; कोई भयानक है। अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक वे तो ऐसा है जो इस अंधकार को दूर करेगा। यह सदैव आनन्दमय व्यक्ति थे। वे प्रसन्नता एवम् पहली शुरुआत थी। अतः हम सब के लिए आनन्द की प्रतिमूर्ति थे जो आपके अन्तः स्थित आवश्यक है कि हम आनन्दित, प्रसन्न और आनन्द के स्रोत, हृदय में बसी आपकी आत्मा को शान्त हों तथा किसी भी घटना को उतनी गम्भीरता क ज्योतिर्मय करके आपको आनन्दमय बनाना चाहते से न लें जितनी गम्भीरता से उसे हम लेते हैं। थे, प्रसन्नता का प्रकाश आपको देना चाहते थे दिव्य जीवन आपको गम्भीर नहीं बनाता क्योंकि यह विश्व में वो केवल आपको बचाने और प्रसन्नता को सब तो मात्र लीला है, यह माया है| जो कर्मकांड प्रदान करने ही के लिए नहीं आए, आपको आनन्द लोग करते हैं, सभी तथाकथित धार्मिक लोगों में मैंने प्रदान करने के लिए भी वो अवतरित हुए क्योंकि देखा है कि धर्म के नाम पर वे बहुत गम्भीर हैं। अज्ञान, अंधकार में फंसे हुए अपनी मूर्खताओं से धार्मिक व्यक्ति से तो हँसी फूट पड़ती है। उसकी मनुष्य व्यर्थ में स्वयं को पीट रहा है और नष्ट कर रहा है। शराबखानों तथा कष्टों में फंसने के लिए आनन्द को छिपाए तथा व्यर्थ में गम्भीर लोगों को किसी ने आपसे नहीं कहा, यह भी नहीं कहा कि देखने पर किस प्रकार अपनी हंसी को नियन्त्रित घुड़दौड़ पर जाकर दिवालिए हो जाओ। कुगुरूओं के करे। कहने से अभिप्राय यह है कि कोई मर नहीं पास जाकर कष्टों में फंसने के लिए किसी ने गया है। जिस प्रकार से लोग बातें करते हैं उससे आपसे नहीं कहा। परन्तु स्वेच्छा से आप अपना कई बार तो यह समझ नहीं आता कि अपने साथ विनाश खोजते हैं। उषाकाल में खिले हुए फूल की वो क्या करें। ईसामसीह जैसे व्यक्ति को उदास तरह से आपको प्रसन्नता प्रदान करने के लिए वे करने के लिए संसार में कुछ भी नहीं है। आप यदि अवतरित हुए। स्वयं को प्रसन्नता एवम् आनन्द देने वास्तव में उन पर विश्वास करते हैं तो सर्वप्रथम के लिए आप किसी बालक को देखें । मैं समझ में नहीं आता कि किस प्रकार से वो अपने तो, कम कृपया यह मूर्खता भरी उदासी, खीज, मुंह लटका से कम स्वयम् को जानती हूँ, अटपटे लोगों के कर बैठना, चिड़चिड़ापन, किसी से बात न करना विषय में नहीं जानती। कहने से मेरा अभिप्राय यह तथा मौन, नीरसता को त्याग दें। ईसामसीह को है कि इन लोगों को फूल भी कांटों की तरह से समझने का यह तरीका ठीक नहीं है। आप देखें कि 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-15.txt मवा्बर एवं दिसम्बर 2003 14 चंतन्य लहरी खण्ड XV. अक : 11 एवं 2 किस प्रकार जा कर उन्होंने जनता से बातचीत की! आप उनका जन्मदिवस समारोह मना सकते हैं। वे किस प्रकार चहुँ और के लोगों के सम्मुख उन्होंने अपने हृदय को खोला और किस प्रकार उन्हें हुए क्योंकि जिस बिन्दु तक आपकी चेतना पहुँच आपकी चेतना को ज्योतिर्मय करने के लिए अवतरित प्रसन्नता प्रदान करने का प्रयत्न किया! उन्होंने कहा चुकी हैं इसका वे सम्मान करते थे। परन्तु आप इसे कि आपको पुनर्जन्म लेना होगा. अर्थात् उन्होंने यह ( चेतना) नीचे लाने का प्रयत्न कर रहे हैं । उन्हें कार्य करना था तथा किसी न किसी समय आपने समझने का क्या यही तरीका है? इसे प्राप्त करना है। उन्होंने वचन दिया है कि आपको वास्तव में पुनर्जन्म लेना होगा अर्थात् उन्होंने (Baptism ) होगा, आपको पुनर्जन्म लेना होगा यह कार्य करना था तथा किसी न किसी समय और अब सहजयोग में यह वचन पूर्ण किया जा रहा उन्होंने वचन दिया है कि आपका बपतिज्म ी आपने इसे प्राप्त करना है। उन्होंने वचन दिया है कि है। अत: आय आनन्दित आपको वास्तव में पुनर्जन्म लेना होगा। ईसामसीह पर पुनः इंसामसीह ने आपके ही अन्दर जन्म लिया हों कि आपके आज्ञा चक्र को हमारे अन्दर जन्म लेना है। मैं नहीं जानती इस है। वे वहां पर विराजमान हैं और आप जानते बात से ईसाई लोग क्या समझते हैं। किस प्रकार किस प्रकार उनसे सहायता मांगनी है। यही मुख्य आप द्विज (Born again) बनते हैं? वपतिज्य चीज है जो व्यक्ति ने समझनी है, कि वह समय आ ( Baptism) के कर्मकांड द्वारा नहीं। धर्मबिद्यालय गया है, धर्मग्रंथों में जिसका वचन दिया गया है, वह से आकर कोई व्यक्ति आपकी ईसाई नहीं बना सकता। जैसे हमारे यहाँ भारत में कुछ वैतनिक ही नहीं परन्तु विश्वभर के सभी धर्मग्रन्थों में। आज ब्राह्मण हैं. जैसे आपकं यहां भी कुछ वैतनिक लोग समय आ गया है जब आपने केवल कुण्डलिनी हैं जो सारा दिन शराब पीते हैं और खाते रहते हैं जागृति द्वारा ईसाई, ब्राह्मण एवम् पीर बनना है। और स्वयं को परमात्मा द्वारा अधिकृत व्यक्ति बताते इसके बिना कोई अन्य मार्ग नहीं। प्राप्त करने का समय आ गया है-केवल बाईवल में आपके अन्तिम निर्णय का समय अभी है। कंवल हैं। परमात्मा से अधिकार प्राप्त किये बिमा अधिकारी बने बिना आप आनन्द प्रदान नहीं कर सकते। यही कुण्डलिनी जागृति के माध्यम से परमात्मा आपका कारण है कि मैंने इन सब लोगों को देखा है। इन आंकलन करेंगे अन्यथा वो किस प्रकार आपको तथाकथित पंडितों और पादरियों को, जो परमात्मा आंक सकते हैं। आप किसी व्यक्ति के बारे में द्वारा अधिकृत न होने के कारण अत्यन्त गम्भीर हैं, सोचते हैं, कोई व्यक्ति अन्दर आता है और अन्दर ईसामसीह के जन्मदिवस पर भी गांव से आया कोई उसका निर्णय करने के लिए कोई बैठा हुआ है। व्यक्ति यदि देखे तो उसे लगेगा जैसे शवयात्रा हो। कैसे? यह देखकर कि आप कितने हज्जामों के पास समारोह समाप्ति के पश्चात जब आप घर जाते हैं तो गए या आप कितने उपहार लाए या आपने कितने किस प्रकार से आप उत्सव मनाते हैं। मैं नहीं मंगलकामना कार्ड भेजे। कितने लोगों को आपने जानती क्यों? परन्तु लोग शैम्पेन (Champagne) ऐसी चीजें भेजी जो आपको नहीं भाती थीं। यह पीते हैं। ईसामसीह का अपमान करके किस प्रकार तरीका नहीं है। या ये कि कितने मूल्य पर आपने 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-16.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 15 ये चीजें खरीदीं, जिस प्रकार हम करते हैं। कौन से जीते हैं इससे भी आपका आंकलन नहीं किया तरीके से परमात्मा हमारा आंकलन करेंगे? लोग जाता। लोकहित में आपने कौन से कार्य किए हैं या कहते हैं कि सतही रूप से यह आंकलन नहीं होता कितना धन. आपने दान दिया है इससे भी नहीं। तो हमने कितनी गहनता प्राप्त की है? आईए देखें आपने यदि बहुत अधिक धन दान दिया है तो कि इस गहनता में हम कहा तक जा सकते हैं। किसी न किसी प्रकार से आपके अहं का कद बढ़ ज्यादा से ज्यादा हम उस बिन्दु तक पहुँचते हैं जहां जाएगा और यह आपको आपके स्तर से नीचे ले पर एक बार फिर धारणा बन जाते हैं। अत: जो भी जाएगा, समुद्री जहाज से भी ज्यादा नीचे। व्यक्तित्व गहनता हमें प्राप्त हुई है वो केवल तार्किकता ( ra- आंकलन का यह बिल्कुल भिन्न तरीका है। हम tionality) तक ही पहुँचती है धारणा के विन्दु देख सकते हैं कि मनुष्यों ने किस प्रकार ईसामसीह तक, उससे आगे हम नहीं पहुँच सकते। तो किस का आंकलन किया और परमात्मा ने किस प्रकार। प्रकार हमारा आंकलन किया जाए? लोग जब वे आए और सूखी घास पर उन्हें रखा गया मानो वे चिकित्सक के पास जाते हैं तो वह किस प्रकार किसी पंख की तरह हों। उनकी इस तकलीफ को उनका रोग निदान करता है? उसके पास यन्त्र होते उनकी माँ ने भी कभी महसूस नहीं किया । इसी हैं और वह इस कार्य को करता है। अन्दर प्रकाश प्रकार से जिन लोगों ने अपने आचरण से कभी डाल कर स्वयं देखता है और फिर कहता है कि अन्य लोगों को नहीं सताया या कभी किसी पर स्थिति यह है। अब आपकी आध्यात्मिकता किस क्रोधित नहीं हुए, इस आंकलन में उन्हें प्रथम दर्जा प्रकार जांची जाएगी? बीज को किस प्रकार जांचा दिया जाएगा। जाता है? इसके अंकुरण द्वारा। बीज का जब आप कुण्डलिनी जागृति के मार्ग में भी कुछ अंतर्निहित करते हैं और इसकी अंकुरण शक्ति को दोष हैं। आपके पूर्व क्मों के कारण कुण्डलिनी के अंकुरण देखते हैं तब आप जान जाते हैं कि बौज अच्छा है अन्दर निहित कुछ दोष हैं। इस जीवन में आप कौन या बुरा। इसी प्रकार जिस तरह से आपका अंकुरण से कर्म करते रहे, जो चीज़ें केवल धारणा मात्र थीं हाता है, जिस प्रकार से आपको आत्मसाक्षात्कार उन्हें आपने वास्तविकता मान लिया क्योंकि आपको प्राप्त होता है, जिस प्रकार आप इसे बनाए रखते हैं पूर्ण (Absolute) का ज्ञान न था। ऐसी स्थिति में जो और इसका सम्मान करते हैं उसी से आपको जांचा भी कुछ आप करते रहे उसका उद्भव अन्धकार से जाता है। आपको जांचने का यही तरीका है। किस हुआ अन्धकार में जो कार्य आपने किया उसमें प्रकार के कपड़े आप पहनते हैं, कपड़ों का रंग अन्धकार का अंश होना ही है। आत्मसाक्षात्कार मिलान आप किस प्रकार करते हैं या आप कौन से प्राप्त किये बिना यदि आपने घोषणा की है कि आप हज्जामों के पास जाते हैं, इससे नहीं। आप कौन से महान सन्त हैं, ये हैं, वो हैं तो आपके लिए कोई पदों पर आरूढ़ हैं, कितने बड़े राजनीतिज्ञ या अवसर नहीं है। यदि आप यह सोचते हैं कि आप अफसरशाह बन गए हैं, किस प्रकार के घर आपने दिव्य व्यक्तित्व हैं या आत्मसाक्षात्कारी हैं तो आपको हैं या किस प्रकार के नोबल पुरस्कार आपने कोई अवसर नहीं। सभी पुजारियों (सभी धर्मों के) बनवाए 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-17.txt नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 15 घैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक 11 एवं 12 को सबसे अन्त में आत्मसाक्षात्कार मिलेगा। रामायण भी हैं और इन दोनों के मध्य के लोग भी हैं। में बाल्मिकी ने एक बहुत ही रोचक कहानी कहीं श्रेष्ठ लोग बहुत कम हैं । ऐसे लोग जन्म से है। एक कुत्ते से पूछा गया कि अपने अगले जन्म में आत्मसाक्षात्कारी होते हैं। मेरें उनकी समस्या वह क्या बनना चाहेगा? कुत्ते ने उत्तर दिया मुझे कुछ अधिक नहीं है। परन्तु हमें उन लोगों को सम्भालना भी बना देना परन्तु मठाधीश नहीं बनाना पुजारी है जो मध्य में हैं। बो अच्छाई की ओर बढ़ना चाहते नहीं बनाना। चाहे जो कुछ बना देना परन्तु कहीं हैं परन्तु कोई बाधा उन्हें पकड़े हुए है। ऐसे लोगों पुजारी नहीं बना देना। कुत्ते के अन्दर उस विवेक की कुण्डलिनी में अन्त्निर्हित कुछ दोष होते हैं। की कल्पना कीजिए! मैं यह भी नहीं कह रही हूँ जिन्हें समझ लेना हमारे लिए आवश्यक है। कि सभी पुजारी ऐसे ही होते हैं। हो सकता है कि कुछ लोग सच्चे भी हों, कुछ पुजारी वास्तव में अस्वस्थ होना है। विशेष रूप से इस देश (इंग्लैंड) आत्मसाक्षात्कारी हो सकते हैं-परमात्मा द्वारा अधिकृत। में लोग जुकाम आदि कष्टों से पीड़ित हैं। इसका परन्तु मुझे विश्वास है कि आम जनता उन्हें स्वीकार कारण वहाँ के जल में चूना (Calcium) का नहीं करती। इस बात का मुझे विश्वास है। मैंने बाहुल्य है। इसी प्रकार से देश विशेष-स्थान विशेष आपका इतिहास देखा है और पाया है कि उन्हें ऐसे के अनुसार यह समस्याएं हैं। जैसे हमारे देश में सम्मुख सर्वप्रथम अस्वस्थ शरीर-शारीरिक रूप से |मा सभी लोगों द्वारा दुत्कारा गया तथा सताया गया। हमारी कुछ अन्य समस्याएं हैं, आपके देशों में कुछ अन्य समस्याएं हैं। जिस देश में व्यक्ति का जन्म परन्तु अब उचित-अनुचित को जाँचने का समय आ अब आप किसी को सूली पर नहीं चढ़ा होता है उसके अनुरूप शारीरिक समस्याएं होती हैं। आप में से अधिकतर लोगों ने किसी देश विशेष में गया सकते। आप ऐसा नहीं कर सकते। हर व्यक्ति का आंकलन कुण्डलिनी की जागृति के माध्यम से जन्म लेने का निर्णय किया है। इसी कारण से आप हैं कि लोग उस देश से इस प्रकार से जुड़े हुए होगा। अब आपको जान लेना चाहिए कि मानव की आपको उसमें कोई दोष ही नजर नहीं आता। हर तीन श्रेणियां हैं। मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं देश में कुछ विशेषता है जिसके कारण व्यक्ति को किस प्रकार से यह बात शुरु करू ताकि आपको स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं आती हैं। अत: सहजयोगी सदमा न पहुंचे। एक तो हमारे जैसे मनुष्य हैं। इसे होने के नाते व्यक्ति को समझना चाहिाए कि स्वास्थ्य अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। यह शरीर परमात्मा का मन्दिर 'नर योनि' कहा जाता है। दूसरी श्रेणी 'देव योनि' हैं वो लोग जो है। अत: आपको अपने स्वास्थ्य की देखभाल करनी जन्मजात साधक हैं या आत्मसाक्षात्कारी हैं। और तीसरी श्रेणी के लोग 'राक्षस' हैं इन्हें गण उठती है तो पहली घटित होने वाली घटना होगी। आप यह भी जानते हैं कि जब कुण्डलिनी भी कहा जाता है। परन्तु हम कह सकते हैं कि आपके स्वास्थ्य का ठीक हो जाना है। क्योंकि मनुष्यों का एक वर्ग राक्षस है, ऐसे लोग जों असुर आपका पराअनुकम्पी (Parasympathetic) हैं। अत: संसार में असुर लोग भी हैं, श्रेष्ठ लोग तंत्र कार्यान्वित हो जाता है। पराअनुकम्पी, व्यक्ति 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-18.txt नवम्बर एव दिसम्बर 2003 17 चंन्य लहरो खुण्ड XV अंक : 11 एवं 12 आप लोगों को ठीक कर सकते हैं। यह न को ज्योति प्रदान करता है जिसका प्रवाह अनुकम्पी तंत्र (Sympathetic) में होता है समझें कि आप कोई महान चिकित्सक हैं और तथा व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा हो जाता है। लोगों को ठीक करना आपका कर्त्तव्य है। नहीं, इसके विषय में आज मैं बहुत विस्तार से नहीं आप ऐसे नहीं हैं। आप आध्यात्मिकता हितेषी हैं बताऊगी क्योंकि समय का अभाव है। परन्तु यदि जिसके उपफल स्वरूप साधक के शरीर में भी सुधार होता है। क्योंकि यदि इस शरीर में ईसामसीह आप किसी पुस्तक को पढ़ेंगे-मैंने बहुत अधिक पुस्तके नहीं लिखी हैं-परन्तु यदि आप मेरे प्रवचनो को जागृत होना है, परमात्मा ने इस शरीर में आना को सुनेंगे और जो लिखे हुए हैं उन्हें पढ़ेंगे तो आप है तो शरीर को शुद्ध होना ही चाहिए। यह कार्य जान जाएंगे कि किस प्रकार कुण्डलिनी अधिकतर कुण्डलिनी करती है। परन्तु अस्पतालों की तरह से यह कोई अलग कार्य नहीं है। मैं ऐसे लोगों को रोगों को ठीक करने में सहायक होती है-सिवाय उन रोगों के जिन्हें मानवीय तत्व बढ़ावा देते हैं-जैसे जानती हूँ जो रोग मुक्त करने की शक्ति के कारण किडनी रोग। गुर्दा रोग के एक रोगी का इलाज भी पगला गए और नियमपूर्वक अस्पतालों में जाने लगे सहजयोग द्वारा हो चुका है। नि:सन्देह हम गुर्दा रोग तथा अस्पतालों में ही उनका अन्त हो गया। उन्होंने का इलाज कर सकते हैं परन्तु व्यक्ति यदि एक बार कार्यक्रमों में भी आना छोड दिया। वो मुझे मिलने मशीन (डायलिसिस) पर चला जाए तो कोशिश भी ना आते। करने के बाद भी उसे रोग मुक्त नहीं किया जा है सकता। उसका जीवन बढ़ाया जा सकता परन्तु व्याधि पूरी तरह से रोगमुबत नहीं किया जा सकता है। परन्तु रोग दूर करना किसी भी प्रकार से आपका शारीरिक रोगों की व्याधि है। शारीरिक रोग के कार्य नहीं है, यह बात आपको याद रखनी है। कोई कारण भी आपको इतना नीचे नहीं गिर जाना चाहिए। भी सहजयोगी लोगों के रोग ठीक करने में न लग आपको यदि कोई समस्या भी है तो उसे भूल जाएं. जाए। रोगी मेरे फोटो का उपयोग कर सकते हैं शनै: शनैः आप ठीक हो जाएंगे। कुछ लोगों को ठीक परन्तु आपको रोग दूर करने के कार्य में नहीं लग होने में समय लगता है। मुख्य बात तो अपनी तो यह परमात्मा की सबसे बड़ी बाधा है। यह जाना है क्योंकि इसका अर्थ यह है कि आप स्वयं आत्मा को प्राप्त करना है। अत: हमेशा यही न को बहुत बड़ा परोपकारी मान बैठे हैं। मैंने देखा है कहते रहें, "श्रीमाताजी, मुझे ठीक कर दीजिए, कि जो भी सहजयोगी रोग दूर करने के कार्य में लग मुझे ठीक कर दीजिए, मुझे ठीक कर दीजिए। ' श्रीमाताजी, मुझे गए उनके लिए यह कार्य पागलपन बन गया और आप मात्र इतना कहें , वो लोग भूल गए कि उन्हें भी कोई पकड़ हो गई आध्यात्मिक जीवन में बनाए रखिए।" आप स्वतः है तथा कुछ कष्ट हो गया है। परन्तु वह स्वयं को ही ठीक हो जाएंगे। हो सकता है कुछ लोगों को ठीक नहीं करते और अन्ततः, मैं देखती हूँ. कि बो ठीक होने में समय लगे परन्तु आप तो जीवन भर सहज से बाहर चले जाते हैं। परन्तु मेरे फोटो से बीमार रहे, तो ठीक होने में भी यदि कुछ समय लग 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-19.txt चंतन्य लहरी खण्ड -४V अंक : 11 एवं 12 तवम्बर एवं दिसम्बर 2003 18 जाए तो कोई बात नहीं। भिन्न रोगों को ठीक करने की विधियाँ जो हमने बताई हैं उनके अनुसार कार्य आत्मा पर होना चाहिए। चित्त आपकी आत्मा करें। इस देश (लंदन) में विशेष रूप से जिगर तथा पर होना चाहिए क्योंकि चित्त ही भिन्न दिशाओं जाड़ों की समस्या है। इन सभी चीजों का हमारे पास में दौड़ता है और उलझ जाता है। आप इसे इलाज है जिसे अपने शरीर के प्रति कर्त्तव्य मान कार्यान्वित होने दें और यह कार्यान्वित हो स्वास्थ्य महत्वपूर्ण है, परन्तु आपका चित्त कर, इस मन्दिर के प्रति कर्त्तव्य मान कर हमें जाएगा। कार्यान्वित करना होगा। आपके जीवन का यही अन्तिम लक्ष्य नहीं होना चाहिए। घर की सफाई की अकर्मन्यता दूसरी बाधा जो मैं महसूस करती हूँ उसे अकर्मन्यता भूल जाना चाहिए। आप मुझसे पूछ सकते हैं कि कहा जाता है अर्थात् व्यक्ति के अन्दर कार्यान्वित सफाई क्यों करनी हैं? जब मैं ऑक्सटेड में थी तो करने की इच्छा का अभाव होना। नि:सन्देह जो लोग मैंने देखा और हैरान हुई कि सभी लोग हर चीज को बेकार हैं और जो आत्मसाक्षात्कार नहीं पाना चाहते तरह से यह तो एक छोटा सा कार्य है जिसे करके चमकाते थे, बगिया को भी बहुत अच्छी तरह से उन्हें भूल जाएं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के रखा जाता था। हर चीज़ को चमका कर रखा जाता पश्चात भी लोगों के अन्दर एक समस्या है कि वो था फिर भी उनके घर में चूहा तक नहीं घुसता था। इसे कार्यान्वित नहीं करना चाहते। सहज रूप से महीनों तक उनके घर में आते या घर से बाहर यदि कहा जाए तो वे आलसी हैं। हैरानी की बात है निकलते मुझे कोई दिखाई नहीं देता था। दोनों कि इस देश में आलस्य बहुत अधिक है। उस दिन पति-पत्नि सफाई के विषय में बहुत ही सावधान मैंने एक फिल्म देखी जिसमें दर्शाया गया था कि थे। मैं नहीं जानती कि सफाई-स्वच्छता आदि के आपके यहां से लोग जर्मनी गए और वहाँ के एक विषय में इतनी सावधानी किस लिए? यहाँ तक कि चालकविहीन वायुयान बनाने बाले कारखाने को पति-पत्नि एक दूसरे से भी बात नहीं करते थे, यह उड़ा दिया। उन लोगों ने कुछ बहुत ही ज्यादा कर सब मैंने देखा। हमारे घर के अतिरिक्त वहाँ सात दिया ताकि हमारे बच्चे भविष्य में अच्छी तरह से और घर थे सभी लोग हैरान थे कि हमारे घर पर रह सकें परन्तु सहजयोग में हमें बहुत ही सावधान क्या रहना होगा। लोग जब सहजयोग में आते हैं तो क्या आपका घर सबके लिए खुला है?' मैंने कहा."हाँ, होता हैं? उन्हें आत्मसाक्षात्कार मिल जाता है, शीतल यह घर सबके लिए खुला है।" उनकी समझ में चैतन्य लहरियाँ प्राप्त हो जाती हैं जो बाद में समाप्त इतने लोग कैसे आते हैं। उन्होंने पूछा कि नहीं आया कि हमें क्या समस्या है। कोई भी हो जाती हैं। इसका कारण यह है कि वो इसे चमकाई हुई और स्वच्छ चीजों को नहीं देखेगा। इस कार्यान्वित ही नहों करना चाहते। अकर्मन्यता एक प्रकार हम भी उस सीमा तक नहीं जाते जहाँ पर अन्य खतरा है। चैतन्य लहरियाँ जब चली जाती हैं यह वास्तविक सहजयांग बन जाए जो कि परमात्मा तो एक साल के बाद वो वापिस आते हैं और कहते के लिए महत्वपूर्णतम है। श्रीमाताजी, हमें इस पर विश्वास नहीं है, परन्तु 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-20.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 19 मेरे पेट में कुछ दर्द है, क्या आप इसे ठीक कर बीमारी है जो फैलती है। मान लो. पति-पत्नी हैं देंगी?" सहजयोग की सभी शक्तियों से लैस होने के और पत्नी इसी प्रकार ( अकर्मन्य) है । अपनी पत्नी स्थान पर आप बेकार व्यक्ति बन जाते हैं और यहां को उठाने के स्थान पर पति, विशेष रूप से पश्चिमी आ कर मेरा समय बर्बाद करते हैं। यह सभी देशों में पत्नी के सम्मुख घुटने टेक देता है। भारत शक्तियां आपके अन्दर विद्यमान हैं। यह आपकी में इसका बिल्कुल उलट है। क्योंकि वहाँ पर पति सम्पत्ति है। यह आपकी आत्मा की सम्पत्ति है जो बहुत ही ज्यादा रौबीले हैं तो वहाँ पत्नियाँ पतियों के आपके अन्दर आपकी देखभाल कर रही है। निश्चित सम्मुख झुक जाती हैं। होता क्या है कि जिन दो रूप से यह अपनी अभिव्यक्ति करेगी । परन्तु जिन लोगों ने प्राप्त किया हुआ है वो भी उसे खो देते -हैं। बाधाओं को आप स्वीकार कर लेते हैं उनके कारण यदि उनमें से एक जो साक्षात्कार की दृढ़ अवस्था यह अपनी अभिव्यक्ति नहीं कर पाती। हम कह में होता यदि वह अपनी इच्छाशक्ति का उपयोग करता कि ' नहीं, मैं इसे देखूंगा, देखने के लिए मेरे नहीं होने देती। बिना यह जाने, बिना यह समझे कि देखने दीजिए, मुझे स्वयं को एक अवसर देने दीजिए' तो दोनों बहुत अच्छे है, चैतन्य लहरियाँ क्या हैं और किस प्रकार यह आत्मसाक्षात्कारी होते। वे यदि इसे स्वीकार करते तो कार्यान्वित होती हैं, लोग कहते हैं," ओह! यह बहुत यह कार्यान्वित होता और वह दूसरी सीढ़ी तक पहुँच जाते। हर चीज़ तीव्र गति से उड़ने वाले नहीं करना चाहते। ज्योंही कुण्डलिनी उठती है, वायुयान की तरह से नहीं हो सकती कि यहाँ आप ज्योंही प्रकाश अन्दर आता है, आंखें बंद होने से पूर्व यान में बैठे और अगले क्षण चाँद पर पहुँच जाएं। सकते हैं कि यह अकर्मन्यता है जो इसे कार्यान्वित पास दृष्टि है, मुझे सहजयोग क्या है, किस प्रकार इसका उपयोग करना बड़ी बात है", क्योंकि वो बास्तविकता का सामना आप यदि चाँद पर भी हैं तब भी आपके अन्दर ही आप देखते हैं कि अचानक प्रकाश अन्दर आ जाता है और तब आप आंखें खोलना ही नहीं चाहते तीसरी प्रकार का खतरा शुरु हो सकता है। क्योंकि आपके लिए यह बहुत ही बड़ी बात होती संशय है क्योंकि अब तक आप सोए हुए थे। यदि आप थोड़ी सी आंखें खोल भी लें तो भी, हे परमात्मा! यह संशय कहलाता है अर्थात् सन्देह करना। मेरी आप प्रकाश का सामना नहीं करना चाहते क्योंकि समझ में नहीं आता कि सन्देह रूपी पागलपन का आप तो उस अवस्था से एकरूप हैं, आप अपनी आंखें खोलना ही नहीं चाहते। कुण्डलिनी आपकी यहाँ पर आए हुए आप लोगों का न जाने कितना आँखें खोलना चाहती है इसमें कोई सन्देह नहीं प्रतिशत अगले दिन इस वक्तव्य के साथ नहीं आया वर्णन किस प्रकार किया जाए। उदाहरण के लिए, परन्तु आप पुन: अपनी आँखें बन्द कर लेते हैं। तो कि,"अभी मुझे सन्देह है।" क्या यह विवेक का अकर्मन्यता के सम्मुख झुक जाने के लिए आप चिन्ह है? आप किस चीज़ पर सन्देह कर रहे हैं। स्वतन्त्र हैं। अब यह सामूहिक भी हो सकती है। मैं अब तक आपने क्या प्राप्त कर लिया है? यह आपको इतना बता सकती हूँ कि यह बहुत बड़ी सन्देह कहां से आता है? यह आपके 'श्रीमान %3D 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-21.txt चैतन्य तहरो खाड -XV अक : 11 एवं 12 नवभ्बर एवं दिसम्बर 2003 20 अहम्' कि देन है जिसके विषय में मैंने एक भाषण को उठते हुए, धड़कते हुए और सहस्रार तोड़ते हुए के बाद दूसरा भाषण दिया है । यही 'श्रीमान अहम्' देखेंगे। फिर भी बो बैठ जाएंगे ओर कहेंगे कि,"मुझे है।" अब आप हैं कौन? आप कहाँ तक इस पर सन्देह कर रहे हैं क्योंकि वो नहीं चाहते कि सन्देह आप पूर्ण (Absolute) को पा लें। अपने अहम् पहुँचे हैं? क्यों आप सन्देह कर रहे हैं? किस चीज़ के साथ आप एकरूप हैं और आप भी इसे खोजना पर आप सन्देह कर रहे हैं? अपने विषय में आपने नहीं चाहते क्योंकि हर समय यही श्रीमान अहम्' क्या जाना है। इस बिन्दु पर आकर आप विनम्र हो आपके जीवन का पथ-प्रदर्शन करते रहे हैं। अब जाएँ। अपने हृदय में विनम्र हो कर कहें ,"मैंने स्वयं आप शक करना चाहते हैं। किस पर शक? आप को नहीं जाना है, मुझे स्वयं का ज्ञान प्राप्त करना है, का सन्देह क्या है? आपको शीतल चैतन्य लहरियाँ अभी तक मुझे स्वयं का ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ है, महसूस होती हैं तो ठीक है. बैठ जाइए। यह तो वैसे होगा जैसे विश्वविद्यालय में प्रवेश लेकर कोई व्यक्ति उपकरण (शरीर तन्त्र) से मैं सन्देह कर रहा हूँ?" वहाँ बैठ जाए और अध्यापक कहे"यह चित्र कुण्डलिनी जागृति में यहीं सबसे बड़ी बाधा है कि (Diagram) है, यह मैं आपको देता हूँ" और वह जागृति के बाद भी 'संशय' बना रहता है। विद्यार्थी उठ कर कहे कि, "हमें इस पर सन्देह है।" तो बिचारा अध्यापक क्या कहे? परन्तु वहाँ पर विद्यार्थी ऐसा नहीं करते क्योंकि उन्होंने फीस दी हुई होती है, उसके लिए धन खर्चा होता है। चाहे यह कारण हम हर समय लड़खड़ाते रहते हैं। हर समय मुझे पूर्ण (Absolute) प्राप्त नहीं हुआ है कौन से प्रमाद चौथी बाधा को हम प्रमाद कह सकते हैं। इसके बैवकूफी भरे प्रश्न करते हैं। कहने से अभिप्राय यह है कि मान लो आप सड़क पर चल रहे हैं और भयानक नाटक हो, उवाऊ हो, फिर भी हम इसे सीखते हैं क्योंकि हमने इसके लिए पैसा खर्चा है | हम इसे सीखते हैं 'आखिरकार हमने इस पर पैसा आपको यूरोपियन तरीके से गाड़ी चलाने की आदत खर्चा है, क्या किया जाए?' परन्तु सहजयोग के लिएह आप पैसा भी नहीं दे सकते। मैंने लोगों को सभी परन्तु लन्दन में तो आपको पकड़ लिया जाएगा। प्रकार की मूर्खता करते हुए देखा है लोग कई-कई इसी प्रकार से आप अभी तंक यूरोपियन शैली में गुरुओं को स्वीकार करते हैं। कोई गुरु कहता है," मैं तुम्हें उड़ना सिखाऊंगा।" इस बात के लिए वो पूरी बेहतरी इसी बात में है कि लन्दन के लोगों की तरह से तैयार होते हैं। इसके लिए वो धन देते हैं शैली को अपना लें और वहां कोे आवश्यक नियमों और जरा भी सन्देह नहीं करते कि ऐसी घोषणा करने वाला व्यक्ति क्या स्वयं भी कभी उड़ा है? यह मुख्य बात है। फिर आप इसके अनुरूप नहीं क्या आपने कहीं उसे उड़ते हुए देखा है? कृपा चलना चाहते। तो प्रमादरूपी दुर्गुण का उद्य इसलिए करके उसे उड़ने के लिए कहें तो सही। वे कुण्डलिनी होता है क्योंकि यहां पर आने वाले सभी लोगों के को उठते हुए देखेंगे. अपनी आँखों से वे कुण्डलिनी तो सदैव आप गलत दिशा में ही गाड़ी मोडेंगे। गाड़ी चला रहे थे. अब आप लन्दन में हैं, तो का पालन करें। परन्तु आप इसमें सन्देह कर रहे हैं। लिए कुण्डलिनी की जागृति निः शुल्क है, सभी 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-22.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 21 लोगों के लिए, चाहे, नरक में रहे हों या स्वर्ग में, या वो पूरे विश्व को बताते हैं और यह कहते हुए कि चाहे उन्होंने दुनिया के सभी दुष्कर्म किए हों। परन्तु हम सहज-योग को दोष देते हैं अपने अन्दर स्वतः चैतन्य ठीक नहीं है', सभी पर रौब डालते हैं घटित होने वाली इस घटना को हम दोष देते हैं, जबकि वास्तव में उन्हें चैतन्य लहरियों पर स्वामित्व इस चीज़ का चैतन्य ठीक नहीं है', 'उस चीज़ का कभी स्वयं को दोष नहीं देते कि, नहीं मैंने ही यह नहीं होता। अब मुझे सावधान होना पड़ेगा। किसी गलती की होगी। ठीक है, कोई बात नहीं। मैं यदि गुरु की तरह से मैं बात नहीं कर सकती। इसलिए गलती करता हूँ तो इन्हें ठीक भी करूंगा, ठीक है। मैं कहती हूँ कि ठीक है आप स्वयं को बन्धन दे नि:सन्देह श्रीमाताजी क्षमा करती है, परन्तु कई बार लें और अपने हाथ मेरी ओर करके देखें। किसी मेरी क्षमा भी बेकार होती है, क्योंकि जब तक आप तरह से यदि उन्हें पता चल जाए कि मैं जान गई हूँ अपने अन्दर यह महसूस नहीं करते कि मैंने यह कि वो झूठ बोल रहे हैं तो बस वो तो समाप्त हो गलती की तब तक आप इस मार्ग पर जाने के स्थान गया। अत: उनका झूठ भी मुझे स्वयं तक रखना पर दूसरे मार्ग पर जाने लगते हैं। आप उस मार्ग पर पड़ता है। इस बारे में में बहुत सावधान हूँ क्योंकि चले गए हैं तो सड़क पर चलने का नियम समझना में जानती हूँ कि वो लाग भयानक फिसलन पर खड़े होगा अतः प्रमाद रूपी बाधा होने के पश्चात् हमारे हुए हैं। किसी चीज़़ को कहने की मेरी शैली चाहे अन्दर एक अन्य अंतर्निहित समस्या खड़ी हो जाती रूखी ना हो फिर भी वो चीज़ घटित हो सकती है। है। जिसे कहते हैं: अत: व्यक्ति को यह बात समझ लेनी है कि सत्य भ्रमदर्शन, अर्थात दृष्टि भ्रम। हमें भ्रमदर्शन होने पर डटे रहने में ही हमारा हित है। अपने विषय में लगता है, विशेष रूप से उन लोगों को जो LSD हमारे जो विचार हैं उनसे हमें बहकना नहीं चाहिए। तथा अन्य इस प्रकार के नशे लेते हैं। वो मुझे नहीं देखते। कभी-कभी तो उन्हें केवल प्रकाश दिखाई विषयचित्त देता है या इसी प्रकार का भूत या भविष्य, या कोई एक अन्य बाधा जो व्यक्ति में आ जाती है वह और भ्रम। वे इसी प्रकार कोई अन्य भ्रम देख सकते है 'विषयचित्त'। इस स्थिति में हमारा चित्त उन हैं। आप यदि मुझे स्वप्न में देखते हैं तो ठीक है या पदार्थों की ओर आकर्षित होता है जो आत्मसाक्षात्कार स्वप्न में यदि किसी और चीज़ को देखते हैं तो से पूर्व हमें रुचिकर थे, जिन पर पहले हमारा चित्त ठीक है। परन्तु यदि आप भ्रम दर्शन करना शुरु कर होता था। मान लो आपका चित्त क्रिकेट की ओर देते हैं तो आपमें भ्रम विकसित हो जाता है। इसकी आकर्षित थी। ठीक है, परन्तु आप को यह रोग नहीं सबसे बड़ी कमी यह है कि लोग इसके बारे में झूठ होना चाहिए। मेरा कहने से अभिप्राय यह है कि बोलने लगते हैं। मैं सभी के विषय में जानती हूँ। क्रिकेट का अर्थ यह नहीं है कि आप क्रिकेट का भ्रम दर्शन यदि शुरु हो जाता है तो यह चैतन्य बल्ला ही बन जाएं तथा क्या आप किसी अन्य लहरियों के लिए बहुत भयानक होता है। कुछ लोगों चीज़ के लिए बिल्कुल बेकार हैं, सभी व्यावहारिक को स्वयं पर पूर्ण विश्वास है यह बात मैं देखती हूँ। कार्यों के लिए क्या आप मर चुके हैं। किसी भी 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-23.txt नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 22 चैन-्य लहरी खण्ड XV अंक । एवं 12 : 11 चीज के प्रति पागल आकर्षण आप के चित्त को कार्य किया। मैं जानती हूँ कि सभी लोग अब उससे नाराज हैं परन्तु मैं नाराज़ नहीं हूँ क्योंकि उसने जो भी कुछ किया भूतबाधित हो कर किया। कोई नहीं अत्यन्त गलत अवस्था में ले जाता है। अत: यह सहजयोगियों के लिए ठीक नहीं है। आज का प्रवचन मुख्यत: सहजयोगियों के लिए जानता कि भूतवाधित अवस्था में व्यक्ति कौन सा है। मैं बता रही हूँ कि आत्मसाक्षात्कार को बनाए पागलपन कर बैठे। कहने से अभिप्राय यह है कि रखने के मार्ग में हमारे सम्मुख कौन सी अन्तर्निहित ऐसे लोगों को तो पागलखाने पहुँच जाना चाहिए कठिनाईयाँ हैं। इन्हें समझ लेना बहुत ही आवश्यक परन्तु सहजयोग के कारण वो उस स्थान पर स्थिर है। इन कठिनाईयों के अतिरिक्त दो अन्य बहुत बड़े नहीं हुए हैं जहाँ उन्हें होना चाहिए। दो अन्य स्थितियाँ हैं जिनमें कुण्डलिनी ऊपर खतरे, जिन के कारण हम कष्ट उठाते हैं, वो को उठती है और फिर नीचे गिर जाती है। मनुष्य निम्नलिखित हैं। एक तो लोग भूतबाधित हो जाते हैं अन्दर यह अन्तनिर्हित भय है । बहुत से लोगों ने और उनके मस्तिष्क में बहुत सी धारणाएँ भर जाती मुझसे पूछा," श्रीमाताजी, आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर वा भजन गाने लगते हैं आदि-आदि। यह चीजें लेने के पश्चात् क्या यह स्थिति बनी रहती है?" मुझे उलझन में डाल देती हैं, मेरी समझ में नहीं यह स्थिति बनी रहती है। इसका कुछ अंश बना आता कि क्या कहा जाए। उनके माध्यम से बोलता रहता है। कभी तो इसको बहुत थोड़ा हिस्सा बना हुआ असुर मुझे दिखाई देता है। परन्तु मेरी समझ में रहता है और कभी पूरी की पूरी कुण्डलिनी वापिस नहीं आता कि किस प्रकार उन्हें बताया जाए कि खिंच जाती है। यह वापिस खिंच जाती है। जब ऐसा 'कृपा करके बन्द कर दीजिए।' मेरी स्तुति वो लोग होता है तब आप कहेंगे," हमें संदेह होने लगा है।' गाते हैं फिर भी मुझे पता होता है कि बास्तर्व में यह यह कहाँ लिखा हुआ है कि आपका उत्थान होगा क्या है। पर वे लोग मेरे पास आते हैं और कहते और आप उस उच्च स्थिति में स्थायी रूप से स्थापित हो जाएंगे चाहे आप के अन्दर कोई भी यहाँ से यदि नहीं मानते हैं कि उन्हें यह ज्ञान कहाँ से मिलता है। मुझे भारत जाना हो तो भी मुझे रोग-अवरोधी इन टीकाकरण कराना होगा पासपोर्ट लेना होगा, साक्षात्कार हैं" श्रीमाताजी, हम आपको एक भजन सुनाएंगे।" ठीक है। मैं कुछ नहीं कह सकती क्योंकि वो लोग कमियाँ रही हों। क्या यह संभव है? उनके अन्दर यह कार्य कोई अन्य कर रहा है। देना होगा। और जब आपको परमात्मा के साम्राज्य में सभी समस्याओं के कारण आप भूत बाधित हो जाते । उस दिन कोई व्यक्ति मेरे पास आया और कहने प्रवेश करना लगा " श्रीमाताजी, मुझे स्वयं पर बहुत विश्वास होता केवल जाँचा ही नहीं जाएगा यदि आपको कुछ चला जा रहा है।" वास्तव में दूढ़ विश्वास, तथा मैं कृपा अंक दे कर यान में बिठा दिया गया है तो हो है तब भी तो आपका जाँचा जाएगा। ा. कोई बहुत बड़ा कार्य करना चाहता हूँ।" और उसने सकता है कि आपको उतरने के लिए कह दिया वो कार्य किया। पहले तो उसने अपने अन्दर वो जाए। कुछ लोगों के साथ ऐसा होता है कि उनकी वाधा आते हुए देखी और फिर बड़े जोर शोर से कुण्डलिनी नीचे को गिर जाती है। यह बहुत ही he 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-24.txt चतन्य लहरी खण्ड XV अक़ : 11 एक 12 नवन्बर एवं दिसम्बर 2009 23. भयानक चिन्ह है। यह समस्या गलत गुरुओं के नहीं हो जाता-यह मेरी जिम्मेदारी नहीं है, यह तो कारणे, गलत स्थानों पर जाने के कारण मृत आत्माओं एक अवस्था है-जिसमें आपके हाथों के इशारे से तक पहुँचने तथा काला जादू करने के कारण होती कुण्डलिनी उठेगी। जब तक आप इस अवस्था को है। जो लोग अवतरण नहीं हैं उनके सम्मुख सिर प्राप्त नहीं कर लेते तब तक कृपा करके इसे झुकाने से, गलत प्रकार के देवताओं की पूजा करने कार्यान्वित करने में लगे रहें. आलसी न बने। से, गलत प्रकार के कर्मकांड करने से, गलत समय आपको अपने चहूँ ओर देखना है, लोगों से मिलना पर व्रत रखने से, व्रत, कर्मकान्डों तथा चक्रों का है, उनसे बातचीत करनी है। जितना अधिक आप मतलब न समझने से और पूर्ण सहजयोग की इसके बारे में बतायेंगे, जितना अधिक आप इसे सम्यकता को न समझ पाने के कारण यह समस्या करेंगे, जितना अधिक आप इसे देंगे उतना ही होती है। कुछ लोगों में, आपने देखा है कि कुण्डलिनी अधिक यह प्रवाहित होगा। जितना अधिक आप उठती है और तुरन्त गिर जाती है। यह अत्यन्त अपने घर पर बैठकर सोचेंगे, यह "ओह! मैं घर पर पूजा कर रहा हूँ", तो कुछ नहीं होगा। यह निष्क्रिय होता चला जाएगा। आपको इसे अन्य लोगों को देना यह है कि आपको लगने लगता है कि आप होगा। अधिक से अधिक लोगों को आत्मसाक्षात्कार परमात्मा बन गए या किसी अवतरण सम बन गए। देना होगा, हजारों लोग इसे प्राप्त करेंगे। अतः यह भयानक बात है। वास्तव में यह कष्टकर भी है। अन्तिम खतरा, जिसका ज्ञान आपको होना चाहिए, यह बहुत बड़ा खतरा है। तब आप कानून को अपने समझ लेना आवश्यक है कि आपको इस बात से हाथों में लेने लगते हैं. दूसरे लोगों पर हुक्म चलाने धोखा नहीं खाना कि ब्रह्मांड की सभी शक्तियां लगते हैं तथा बहुत ही अनियन्त्रिता से कार्य करने आपमें प्रकट हो गई हैं। इन शक्तियों की अभिव्यक्ति लगते हैं तथा अपने आपसे अत्यन्त संतुष्ट हो जाते जब आपमें होगी तब आप इनके विषय में जान पायेंगे। आप कल्पना करें कि सूर्य कहे "मैं सूर्य हैं। यह बहुत बड़ा खतरा है। विनम्रता एक मात्र मार्ग है जिससे आप जान हूँ।" क्या वो कहता है कि मैं सूर्य हूँ? कहने को सकते हैं कि आपके सम्मुख विशाल सागर है। ठीक क्या है? आप जा कर यदि सूर्य से पूछे," क्या आप है कि आप नाव पर सवार हो गए हैं परन्तु आपने सूर्य हैं?" तो वो कहेगा," हाँ मैं ही सूर्य हूँ, इस बहुत कुछ सीखना है, बहुत कुछ समझना है तथा विषय में मैं क्या करूँ?" यह इतनी सहज चीज़ है अभी आपने अपने चित्त की ओर ध्यान देना है, कि आप अत्यंत सहज व्यक्ति बन जाते हैं, पूर्णत ः अपनी चेतना की ओर ध्यान देना है। है और न ही कोई अभी आपने सहज़। न तो इसमें कोई छुपाव इस प्रकार से कार्य करना है कि आप वास्तव में जटिलता, आप वही हैं। कोई आपसे अटपटा प्रश्न स्वयं को पूर्ण सहज-योगी के रूप में स्थापित कर पूछता है तो आप कहते हैं,"इसमें पूछने वाली सकें, जिससे की सामूहिकता आपके अस्तित्व का कौन-सी बात है?" यह सत्य है। मेरा अर्थ यह है अंग-प्रत्यंग बन जाए और आपमें किसी भी प्रकार कि मैं आत्मसाक्षात्कारी हूँ। मैं आत्मसाक्षात्कारी हूँ। के संशय न रह जाएं| जब तक आपमें यह धटित इससे क्या फर्क पड़ता है?" इस सूझ-बूझ से हमें 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-25.txt नकम्बर एवं दिसम्बर 2003 24 चैतन्त्र तहरी खण्ड -४V अक : 11 शार भाट र बा ं सहज-योग में जाना है मैं कहूँगी कि जिस चमत्कारिक समझ ले कि आप भी ऐसा ही कर सकते हैं। अत: ढंग से यह कार्य कर रहा है उससे मैं हैरान हूँ और आप सावधान रहें। सावधान रहें। यरह कार्यान्वित हो रहा है । आप लोग इसे अपने अतः आज जब हम ईसा-मसीह के जीवन की अन्दर स्थापित कर सकते हैं। अब आपमें से कुछ लोग तो परिधि रेखा (किनारे पर) खड़े हैं । उन्हें हम किनारे पर रखते हैं, यह बात आप अच्छी तरह से जानते हैं। कुछ लोग मध्य महान घटना का उत्सव मना रहे हैं तब हमें जान लेना चाहिए कि ईसा-मसीह हमारे अन्दर उत्पन्न हो गए हैं तथा अन्त्तनिहित है । आपको वैधलहैम जाने की कोई बैथलहैम (Beihlehem) हमारे में आ जाते हैं और कुछ बहुत थाडे से, अन्दर वाले आवश्यकता नहीं। यह हमारे अन्दर स्थित है। वृत्त में (मध्य-बिन्दु) पर है सभी लोग ऐसी स्थिति ईंसा-मसीह वहाँ हैं और हमने उनकी देखभाल में है जहां से परिधि रेखा से उन्हें बाहर किया जा करनी है। वे 'अभी बालक हैं, आपने उनका सम्मान सकता है। तब आपकी समझ में नहीं आता कि करना है सहजयोगी ने ऐसा व्यवहार क्यों किया। किसी वास्तव में प्रकाश बढ़ता हैं और लोग मान लेते हैं और उनकी देखभाल करनी हैं। अत: सहजयोगी को यदि आप एसा व्यवहार करते हुए कि आप आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति हैं । कोई भी संदेह देखें, परिधि की बाह्य रेखा पर जाते हुए देखें तो नहीं करेगा कि आप आत्मसाक्षात्कारी हैं। परमात्मा आपको धन्य करें। तितदाजी 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-26.txt सहज जीवन कैसा हो व ध्यान कैसे करें भारतीय विद्या भवन, बम्बई, 27.5.1976 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आपसे दादर में मैंने बताया था कि सहजयोग में जो कुछ भी शौक हैं, वो गिरते जाते हैं, अनुभूतियाँ पहले किस प्रकार से निर्विचार की समाधि लगती गिरती जाती हैं और नई अनुभूतियों की ओर आपकी है। तदात्म्य के बाद आदमी को सामीप्य हो सकता दृष्टि जाती है। या इस प्रकार समझें कि एक मनुष्य को है और उसके बाद सालोक्य हो सकता है। लेकिन गाने में रुचि नहीं है और किसी तरह से उसको गाने में तदात्म्य को प्राप्त करते ही मनुष्य का interest रुचि हो गई-शास्त्रीय संगीत में उसे रुचि हो गई, तब (रुचि) ही बदल जाता है। फिर उसे कोई सी भी अशास्त्रीय संगीत की महफिल तदात्म्य को पाते ही साथ, मनुष्य की अनुभूति हो, वहाँ मजा नहीं आने वाला। के कारण, वो सालोक्य और सामीप्य की ओर उतरना नहीं चाहता। माने ये कि जब आपके हाथ में चाहिये। और वास्तविक, बाकी और जो भी आदतें चैतन्य की लहरियाँ बहने लग गई और जब आप हैं या जो कुछ भी शौक हैं वो तो आपके अन्दर को दूसरों की कुण्डलिनी समझने लग गई और जब धीरे-धीरे आते हैं, प्रयत्न पूर्वक आती हैं। इसके आप दूसरों की कुण्डलिनी को उठा सकें तब कारण वो रुचि आपके अन्दर बहुत अच्छी तरह से उसका चित्त इसी ओर जाता है कि दूसरों की चिपक जाती है। हालांकि सहजयोग से आपके कुण्डलिनी देखें और अपनी कुण्डलिनी को समझें। अपने चक्रों के प्रति जागरूक रहे और दूसरे के भी (चेतना) में, एक नई चेतना में आये हुए हैं, आपको चक्रों को समझता रहे। उसी प्रकार सहजयोग में आपकी हालत हो जानी अन्दर क्रान्ति हो गई है - आप एक नये awareness बाइब्रेशन (vibrations) समझ में आते हैं, आपको अगर आप आकाश की ओर देखियेगा, बादल हों दूसरों की कुण्डलिनी दिखाई देती है, आप में से तब भी देखें, आपको दिखाई देगा कि अनेक तरह बहुत लोग जागृत भी कर सकते हैं । आप बहुत-से की कुण्डलिनी आपको दिखाई देगी। क्योंकि अब लोग पार भी कर सकते हैं। हजारों लोगों को आपने आपका चित्त कुण्डलिनी पर गया है, आपको ठीक भी किया है नई शक्ति में आपने पदार्पण कुण्डलिनी के बारे में जो कुछ भी जानना है, जो किया है और इससे आप प्लावित हैं। कुछ भी देखना है, जो कुछ सामीप्य है, वो जान पड़ेगा। कुण्डलिनी के बारे में interest जो है वो गया है कि आपने कोई भी प्रयत्न नहीं किया । बगैर बढ़ जाता है। बाकी के interest अपने आप ही लेकिन यह सब करने में एक ही बात का दोष रह प्रयत्न के ही सब स्वयं हो गया। इसके ही कारण हो है। लुप्त हो जाते हैं। ऐसा ही समझ लीजिये कि आप जब बचपन को छोड़कर जवानी में आ जाते हैं, तो आपकी जवानी के जो interest हैं आपकी नौकरी, धन्धा, बीवी-बच्चे- बहुत-से लोग जो कि सहज-योग में वाइब्रेशन पा भी लेते हैं, ऊंचे उठ भी जाते हैं, तो भी उनका चित्त सकता परमात्मा की ओर, आत्मा की ओर, कुण्डलिनी की ओर नहीं रहता है और अब भी वो चित्त बार-बार. है उसी में आपका interest आ जाता आपके बाकी के गलत जगह पर जाता रहता है। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-27.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 26 आपने पूछा था कि पाने के बाद क्या करना है? पानी में बैठना चाहिये। आप लोगों को यह आदत पाने के बाद देना ही होता है, यह बहुत परम लगे इसलिये मैं जबरदस्ती बैठती हूँ कभी-कभी कि आवश्यक चीज़ है कि पाने के बाद देना ही होगा। चलो मैं भी पानी में बैठती हूँ तो मेरे सहज योगी नहीं तो पाने का कोई अर्थ ही नहीं। बैठेंगे। यह आदत बहुत ही अच्छी है। एक पाँच मिनट पानी में सब सहजयोगियों को और देने के वक्त में एक बात-सिर्फ एक छोटी सी बात-याद रखनी है कि जिस शरीर से, जिस मन बैठना चाहिये। फोटो के सामने दीप जलाकर के, से, जिस बुद्धि से, माने इस पूरे व्यक्तत्व से. आप कुमकुम वरोरह लगाकर के. अपने दोनों हाथ रख इतनी जो अनुपम चीज़ दे रहे हैं, वो स्वयं भी बहुत कर, दोनों पैर पानी में रखकर सब सहजयोगियों को सुन्दर होनी चाहिये। आपका शरीर स्वच्छ होना बैठना चाहिये। आपके आधे से ज्यादा problem चाहिये। शरीर के अन्दर कोई बीमारी नहीं होनी solve (समस्यायें हल) हो जायेंगे, अगर आप यह तात चाहिये। अगर आपको कोई बीमारी है-बहुत-से करें। चाहे कुछ हो जाये आपके लिये पांच मिनट सहजयोगियों के ऐंसा भी होगा कि उनके अन्दर कुछ मुश्किल नहीं हैं । सोने से फहले पानी में सबको कोई शारीरिक बीमारी है-तो सहजयोग से पहले तो बैठना चाहिये। इससे आपको जो है, आधे से ज्यादा वो कहते होंगे कि 'साहब, मुझे यह बीमारी ठीक पकड़ना खत्म हो जायेगा। सर्वरे के time (समय) में जल्दी उठना चाहिये। होनी चाहिये, वो बीमारी ठीक होना चाहिये।' लेकिन सहजयोग के बाद में इनका चित्त नहीं रहेगा बीमारी हम लोगों का सहजयोग दिन का काम है, रात का की ओर। जो हो 'अरे हो जायेगा ठीक, चलो सब नहीं, इसलिये रात को जल्दी सोना चाहिये। 6 बजे ठीक है। ये बात गलत है आपको कोई-सी भी सोने की बात नहीं कह रही मैं, लेकिन करीबन 10 ज़रा-सी भी तकलीफ हो जाये आप फौरन वहाँ हाथ वजे तक सबको सो जाना चाहिये। 10 बजे के बाद रखें, अपनी तबियत ठीक कर सकते हैं। अपनी सोने की कोई बात नहीं। सवेरे जल्दी उठना चाहिये। सवेरे के time में जल्दी उठकर के, नहा धोकर physical side (शारीरिक भाग) बहुत साफ रख करने की जरूरत के ध्यान करना चाहिये। सवेरे ध्यान में बैठना सकते हैं। बहुत ज्यादा उसमें कुछ नहीं। स्नान करना, स्वच्छता से रहना और अपनी चाहिये। जैसे कि हमारे यहाँ हम लोग सवेरे उठ करके अपना मुँह धोते हैं और सालों से धोते आ रहे physical side ठीक करना। लेकिन इसके लिए मैंने एक चीज का कहा है, हैं. हर साल धोते हैं, जिन्दगी भर धोते रहे, उसी जैसे कहते हैं कि सवेरे सबको bathroom (शौच) तरह हर मनुष्य को सवेरे उठकर के-सहज योगी जाना चाहिये, शरीर साफ करना चाहिये सहज को चाहिये कि वो ध्यान करे। यह आदत लगाने की योगियों के लिये सोने से पहले पानी में बैठना पांच बात है। लेकिन मैंने देखा है कि कई लोग. चार बजे मिनट अत्यन्त आवश्यक है। वो चाहे कोई भी हो। या पांच बजे उठना उनको बहुत मुश्किल होता है। आप बड़े पहुँचे हुए हो, आप कहें 'हमें नहीं उसका कारण एक है। मनुष्य को मैंने बहुत study पकड़ता'-इससे मतलब नहीं है। आपको 5 मिनट ( अध्ययन ) किया है, उसकी बारीक चीज़ें बहुत 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-28.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 27 समझी हैं। बड़ा मजा आता है उसको study करने ( आज्ञा) लेकर के बैठें। वात-बात में क्षमा माँगनी पड़ती है। सो, उस में मुझे। वो अपने साथ किस तरह से भागता है, वो अपने साथ ही किस तरह से arguments (दलीलें) वक्त भी क्षमा माँगकर कि 'हमसे अगर कोई गलती देता है, वो देखने लायक चीज है, मनुष्य की। हो तो उसे माफी करके, ध्यान में आप हमें उतारिये।' अपनी ही नाक कटाने के लिये खुद ही वो इस तरह की प्रार्थना करके। जिन्हों से हमने बैर explanations (सफाई), खुद ही कसे देता रहता किया है, सबको माफ कर देते हैं और हमने अगर है। वो इस प्रकार कभी-कभी होता है, कि जैसे किसी से बैर किया है, उसके लिये तुम हमें माफ "हम तो सवेरे जल्दी उठ ही नहीं सकते, माँ! भई! कितने बजे सोते हो रात को? "बारह बजे, पर और आप ध्यान में जायें आँख बन्द करके आत्मा कर दो। अत्यन्त पवित्र भावना मन में लाकर के मैने तय किया था कि चार बजे उठूंगा। " हो ही नहीं की ओर ध्यान करें। सकता। लेकिन एक दिन आप जल्दी सोयें और एक दिन आप उठें, हर हालत में, तो आप जल्दी सो ही नहीं होता। यह सवाल पूछना बहुत गलत बात जायेंगे, आप जग नहीं सकते। दो दिन आप ऐसा कर है। आप चाहे पाँच मिनट करिये चाहे दस लीजिये, शरीर ऐसा है, उसको आदत लग जायेगी। मिनट करिये। पाँच -दस मिनट एकाग्रता से आप सर्वरे जल्दी उठने से, सवेरे के time में ध्यान करें। अब कितने मिनट करें? इससे कोई मतलब receptivity (ग्रहण-शक्ति) ज्यादा होती है मनुष्य की। और इतना ही नहीं, उस वक्त में संसार में नतमस्तक होकर के आप ध्यान करें। पर ध्यान करने से पहले-इसको समझ लें-ध्यान बहुत अत्यन्त सुन्दर प्रकार से चैतन्य भरा रहता है। करने से पहले, जहां बैठ रहे हैं, उस आसन में तो शरीर की दृष्टि से मैंने आपको बताया और बन्धन दें। अपने को बन्धन दें, अपने शरीर को बन्धन दें। सात मर्तबा अपने शरीर को बन्धन दें। अब ध्यान कैसे करना है, सोचें! ध्यान कैसे स्थान को बन्धन दें, फोटो को बन्धन दें। वो तो हो दूसरा यह कि सर्वरे उठकर ध्यान करना। करना-सवेरे उठकर? गया mechanical (यन्त्रवत्) बाहर करने का क्योंकि बड़े ही नत-मस्तक होकर के, अपने को हृदय में नत कर लें। पहली चीज है नत करना। Humble कुछ लोग तो यूँ-यूँ कर लेते हैं, हो गया काम खत्म। ऐसी बात नहीं है। down yourself (स्वयं को नम्र करें) । किसी ने यह सोच लिया कि मैंने बहुत पा में बैठे हैं, अत्यन्त श्रद्धा से और मौन रहकर के लिया, या मैं बहुत बड़ा भारी कोई सन्त, साधु और बन्धन दें उस वक्त में, ऐसे नहीं जैसे पूजा में हूँ, महात्मा हूँ, तो समझ लीजिये तो वो गया-सहज योग से गया| अत्यन्त नम्रतापूर्वक अपने हृदय की तरह से नहीं। विचारपूर्वक अत्यन्त श्रद्धा से जिस तरह से पूजा लोग कहते हैं कि 'भई ये ले आ, वो ले आ', इस और उसके बाद अपने मन को बन्धन दें। अब आर ध्यान करके, नत-मस्तक होकर, फोटों के मन कहां होता है? किसी ने आज तक मुझ से नहीं सामने दोनों हाथ करके, शान्तिपूर्वक permission 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-29.txt नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 28 चैतन्य लहरी खण्ड -४V अंक : 11 एवं 12 पूछा कि 'माँ, मन कहा होता है? मन यहां होता है, और चित्त जो है, सहस्रार की ओर ले जाकर यहां उसकी शुरूआत है-माने विशुद्धि चक्र और आत्मा की ओर समर्पित हों। विचारपूर्वक, आत्मा आज्ञा चक्र को बहुत अच्छी तरह बन्धन दें। की ओर समर्पित हों । और यह विचार करें कि 'प्रभु! हम तेरे ही आत्म तत्व की essence (सार) क्या है? आत्म तत्व जो है, वो पवित्रता है-पूरी निर्मल बन्धन में रहें, हम पर कोई बुरा असर ने आए। अत्यन्त नत-मस्तक होकर। और उस बक्त में यह पवित्रता कहिये। उसकी ओर नजर करें। बो पूर्णतया सोचकर कि हम साक्षी हैं और सब चीज से हम अलिप्त है। किसी भी चीज में लिप्त नहीं है । जो अलग हटकर के, हम निर्मल हैं, उस चीज से, हम भी चीज आपसे लिपटी हुई है, उसी के कारण उससे अछूते हैं। सब चीज से अपने को हटा करके आप आत्मा से हैं। आत्म-तत्व का विचार करें। और यह आत्म-तत्व प्रेम है। अनेक बार दूर और आप बैठ रहे हैं। आप ऐसा प्रयत्न रोज करें। आपको इसी की इसका विचार करें। यह बहुत बड़ा विचार है-आत्म एक प्रकार से आदत लग जायेगी। अत्यन्त श्रद्धा तत्व प्रेम है। बहुत अनेक धर्म संसार में संस्थापित हुये हैं। पूर्वक ध्यान करें। सवेरे के समय, चाहे दस मिनट, चाहे आध घण्टे-उसका कुछ फ्क नहीं पड़ता। लेकिन उसमें प्रेम की व्याख्या कोई कर नहीं पाया। ध्यान करते. वक्त में कुछ हाथ ऊपर नीचे मत उसके कारण उसके अनेक विपर्यास हो गये हैं। प्रेम करिये। ध्यान करते वक्त सिर्फ फोटो की ओर की व्याख्या हो नहीं पाती। लेकिन प्रेम वही शक्ति दृष्टि रखते रखते आँखें बन्द कर लें और कोई है जो आपके हाथ से बह रही है। वही चेतना हाथ-पैर घुमाने की जरूरत नहीं। उस वक्त है जिसे लोग चेतना के नाम से जानते हैं लेकिन कोई-सा भी चक्र जो खराब हो, उस चक्र की यह नहीं जानते कि यह प्रेम है। चेतना को हम ऐसी ओर दृष्टि करने से ही वो चक्र ठीक हो जायेगा शक्ति समझ लेते हैं जैसे बिजली और पंखा है। क्योंकि उस वक्त मैंने कहा है, receptivity नहीं, आत्म-तत्व प्रेम है। यह शब्द 'प्रेम' कहते ही साथ आपके अनेक (ग्रहण शक्ति) ज्यादा रहती है, सर्वेरे के time बन्धने टूट जायेंगे। जितना झूठ है, असत्य है, वह (समय) में। पहले तो अपने चक्र वगैरह शुद्ध हो गये प्रेम के विरोध में है। आप किसी को अगर डांटते इसके बाद अपने आत्म-तत्व पर विचार करें या भी हैं और उसको सत्य बता रहे हैं तो आप प्रेम अपने आप पर। आत्मा की ओर चित्त ले जायें। कर रहे हैं । आप स्वयं प्रेम हैं। इसलिये प्रेम-तत्व आत्मा कहाँ होती है? किसी ने मुझ से यह नहीं पर आप विचार करते ही आप आत्म-तत्व में उतर सकते हैं। पूछा आज तक कि "माँ, आत्मा कहाँ होती है?" आत्मा हमारे हृदय में होती है, लेकिन उसकी ध्यान में कोई सा भी विशेष विचार नहीं लेने का (पीठ) seat जो है यहाँ सहस्रार के ऊपर है। तो है। लेकिन आप यह कह सकते हैं कि "मैं, वही इसलिये मैंने कहा था कि हृदय में नत मस्तक हों प्रेम तत्व हूँ, मैं वही आत्म-तत्व हूँ, मैं वही प्रभु 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-30.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंके : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 29 की शक्ति हूँ।" आप इसे कह सकते हैं । इस तरह रहना चाहिये, माने अपने को पूरे समय देखते रहिये। से दो-तीन बार कहते ही आप आशीर्वादित समझ लीजिये, हमारे माथे में कोई चीज लग गई तो होयेंगे। क्योंकि आप सत्य कह रहे हैं, आपके आप बतायेंगे कि "माताजी. आपके सिर में कुछ अन्दर से वाइब्रेशन (vibrations) जोर से लगा है, उसे पोंछ लीजिये।" इसी प्रकार आप अपने को देखते रहें कि 'देखिये हमारे यहाँ यह चीज़ लग चलने लगेंगे। अब रोजमर्रा के जीवन में क्या-क्या करना गई है, इसको हम पांछ लेते हैं।" चाहिये? रोजमर्रा के जीवन में आपका जीवन उज्ज्वल रोजमर्रा के जीवन में आपको पता होना चाहिये होना चाहिये। आपके मुख में कान्ति आनी चाहिये | कि आपके अन्दर शक्ति प्रेम-तत्व की है। आप जो आपके व्यवहार में सुन्दरता आनी चाहिये। आपको भी कार्य कर रहे हैं, क्या प्रेम में कर रहे हैं? या प्रेममय होना चाहिये। ऊँट के, जैसे आप अगर दिखाने के लिये कर रहे हैं कि आप बड़े भारी बिल्कुल ही रसहीन हो तो आप सहजयोगी नहीं हैं सहजयोगी हैं? हम भी किसी को कोई बात कहते यह आपको पता होना चाहिये। जवरदस्ती के आप या डांटते हैं तो हम देखते हैं कि दूसरे दिन वो सहजयोगी बने हैं, वह भी हम आपको चला रहे हैं आकर के सहजयोगियों में बैठ करके हमें गालियां इसलिये आप बैठे हुए हैं नहीं तो हमें आप माफ देते हैं और उसके बाद कहते हैं कि हमारे वाइब्रेशन कर दें और आप सहजयोग में न आयें। एक दिन क्यों चले गये! तो इस तरह की अगर आप मूर्खता आप खुद ही निकल जायेंगे। इस तरह के लोग. करते हों तो बेहतर है कि आप लोग सहजयोग में न जिनमें प्रेम नहीं है, जो अपने को सोचते हैं कि हम बड़े बढ़िया आदमी हैं और बड़े कमाल के आदमी ही आयें। सहजयोग में वही आदमी आ सकता है और हैं, और ये हैं, वो हैं, वो बिल्कुल सहज योग के चल सकता है जो कुछ लेना चाहता है। उसको देने लिये व्यर्थ हैं ऐसे लोगों को चाहिये कि जायें, दूसरे का कोई अधिकार नहीं है, उसे लेना ही है हमसे गुरुओं के जूते खायें और वहाँ रहें । यहाँ पर सहजयोग में आप परमात्मा के एक वह अगर देना चाहेगा, उसकी शक्ति जब वो हो जायेगी, तो बहुत ही बढ़िया चीज हो जायेगी, लेकिन instrument (यन्त्र) बनने आ रहे हैं। अत्यन्त आप तभी दे पाते हैं, जब आप ले पाते हैं। इसलिये नम्रता आपके अन्दर होनी चाहिये, अत्यन्त नम्रता। पहले लेना सीखिये । हमारे अन्दर क्या दोष है? रोज आपको घमण्ड छोड़ना चाहिये। लोग कहते हैं कि के जीवन में हम यह देखते चलें कि हम क्या चौज सन्यास लेना चाहिये। मैं कहती हूँ कि पहले घमण्ड दे रहे हैं? हम प्रेम दे रहे हैं? क्या हम स्वयं साक्षात् से आप सन्यास लीजिये। क्रोध से आप सन्यास प्रेम में खड़े हैं? हम सबसे लड़ते हैं, सबसे झगड़ा लीजिये। कपड़ों से नहीं लीजिये । कपड़े उतार करते हैं. सबको परेशान करते हैं और हम सोचते हैं देने से कोई सन्यास नहीं होता है। सन्यास का कि हम सहजयोगी हैं। इस तरह की गलतफहमी में अर्थ होता है कि अपने क्रोध, काम, मोह, मद, नहीं रहना। अपने साथ पूर्णतया दर्पण के रूप में मत्सर आदि पट्-रिपुओं से सन्यास लेने को ही 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-31.txt चैतन्य लहरी खुण्ड -XV अंक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 30 सन्यास कहते हैं-सन्यस्त। दूसरे सन्यास की चले गये और फिर उसका दुष्परिणाम हमेशा बातचीत नहीं है। तो, अपने रोज के व्यवहार में अत्यन्त शान्ति से, कि जिन्होंने जब से सहजयोग से पार हुए हैं तब से सबसे प्रेम से व्यवहार करें। अपने बाल बच्चे, उनको एक बीमारी नहीं आई। महा बीमार थे. घरवाले, इन सबसे सहजयोग की बातचीत करें। उनको कभी बीमारी नहीं आई। एक बार भी वह सहजयोग का विवरण करें। अपने दोस्त बदल लीजिये, डाक्टर की सीढ़ी नहीं चढ़े। कभी उनको कोई आयेगा। यहां पर ऐसे लोग हैं, अभी बैठे हुए हैं, अपना उठना-बैठना बदल लीजिये। 'ये' आपके तकलीफ नहीं हुई। उन्होंने एक दवा नहीं ली, जब रिश्तेदार हैं, 'ये' आपके सगे हैं इन्हीं से बातचीत से वह सहजयोग में आये। बुड्ढे भी हैं उनमें से करें। और "ये" लोग आपको बतायेंगे वकि हम लोग कुछ लोग, जो हमेशा डाक्टर के पास जाते थे और एक नई ही दुनिया में आ गये हैं और हमारे पास अस्पतालों में घूमा करते थे, वो कभी भी नहीं गये। एक नये वाइब्रेशन्स (चैतन्य लहरियाँ) हैं। ऐसे यहां पर बहुत-से, अनेक उदाहरण हैं। इतना ही जब भी आप सफर करें, कहीं बाहर जायें, नहीं, उन्होंने दूसरों का भी भला किया। किसी गाँव में जाना है, तो बता रहे थे -अभी राहुरी से आये हैं-कि हम अपने साथ में जैसे सब लोग लिये, एक सहजयोगी के लिए आवश्यक है, वो लेकर चलते हैं सब चीजें अपनी traveling (सफर) करते रहे, इस वजह से वो ठीक हैं। आपस में की, वैसे हम अपने साथ में थोड़ा-सा "तीर्थ"-वो मिलते रहे। आपस में सब तुम डाक्टर हो और सब मेरे पैर के पानी को "तीर्थ" कहते हैं-"तीर्थ" और patient (रोगी) हो। और डाक्टर लोग आपस में कुमकुम और यह सब vibraled (वाइब्रेटेड) लेकर फीस नहीं लेते, उस प्रकार तुम आपस में फीस नहीं हम चलते हैं। रास्ते में कोई आदमी बीमार दिखाई लेते आपस में freatment (इलाज) करो, आपस दिया-चलो उसकी "तीर्थ " पिला दिया। कोई आदमी ने धर्म की चर्चा की, उसे फोटो दिखा दिया कि ये किसी ने कहा कि आपका सहस्रार पकड़ा है। "तब माताजी' हैं और तुम चाहो तो तुमको पार कर तो बड़ी शर्म की बात हो गई। वो तो हमारे विरोध सकते हैं। जहाँ जो आदमी मिल जाये। वह अपने में बैठ जायेगी बात। तो मैंने उससे कहा कि भई है भी स्वास्थ्य के कि जो इसका कारण यह कुछ क में पूछ लो और इसमें बुरा मानने की कोई बात नहीं। - साथ रखे रहते हैं-"चलिये हम आपको कुमकुम सहस्रार ठीक कर दो, पता नहीं कैसे आदमी के लगा देते हैं, देखिये आपको कैसा लगता है। ये साथ मैं बैठ गया । ' हमारी "माताजी" हैं।" पूरे समय दिमाग इधर-उधर दौड़ता रहता है कि सहजयोग को किस तरह से चाहिये जो सहजयोग की बुराई करता है। सहस्ार अपने जीवन में प्लावित कर सकते हैं। उसी समय फौरन पकड़ जायेगा ऐसा आदमी अगर बोले तो आप देखिये कि आप बहुत गहरे उतर सकते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं कि सहजयोग में तुम दूर बैठो। हमको तुम से मतलब नहीं और तुम सिर्फ ऐसे आते हैं, जैसे मन्दिर में आये और हमारे से बात मत करो, बस। हमको अपना कोई किसी ऐसे आदमी के साथ कभी नहीं बैठना कान बन्द कर लो और ऐसे आदमी से कहों कि 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-32.txt सवम्बर एवं दिसम्बर 2003 31 चंतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 11 एवं 12 बुरा नहीं करना। आप कौन होते हैं हमसे बात करने हैं-चाहें तो आप एक हफ्ते में भी खत्म कर सकते वाले? आप यहां माताजी की वजह से हमसे मिले हैं। एक बार निश्चय मात्र करना है. एक क्षण-तो भी हैं, आप चुप रहिये। ऐसा जो भी आदमी बात करे खत्म हो जायेगा। अपने जीवन को कुछ विशेष करना है, एक बार तो 'बस, बस, बस' करिये। आपका सहस्रार पकड़ेंगा, फिर एक-एक चक्र पकड़ेंगे, फिर थोड़े दिन में इतना निश्चय कर लेने से ही सहजयोग का लाभ आयेंगे कि "माताजी, मुझे कैन्सर हो गया " और कैन्सर की बीमारी जो है वो तो बिल्कुल सहस्रार की बीमारी है-पक्की, समझ लीजिये। कैन्सर से मेरे पैर पर आकर। शरणागति मन से होनी अगर बचना है तो अपना सहस्रार साफ रखिये। चाहिये । बहुत- से लोग पैर पर आते हैं, शरणागति सहस्रार जिन लोगों ने पकड़ना शुरु कर दिया तो बिल्कुल नहीं होती। शरणागत होना चाहिये। कैन्सर की शुरुआत हो गई, मैं आपको बता रही हूँ। अगर शरणागत रहे अन्दर से, पूर्णतया शरणागत सहस्रार हमेशा साफ रखो, और हो सकता है, आज रहें, तो पूर्णतया अत्यन्त हो सकता है, ये आप जानते हैं । शरणागति होनी चाहिये। जरूरी नहीं है कि , आपके अन्दर कुण्डलिनी जो नहीं तो कल, आध साल बाद आपको पता होगा कि है, सीधे आत्म-तत्व पर टिकी रहेगी, जैसे कि एक दीप की लौ रहती है उस तरह से एक भी साहब हमको कैंसर हो गया। flickering (ड्िलमिलाना, कभी मन्द कभी तीव्र होना) नहीं होता, लेकिन शरणागत रहें । शरणागत रहने में आनन्द है, उसी में सुख की तो क्यों न अभी से अपने को स्वास्थ्यपूर्ण रखें। और इतना ही नहीं, सहजयोग का कार्य करें, जिस के कारण हम परमात्मा के राज्य में बैठे हैं। और जब कल संसार में उन लोगों को चुना जायेगा, जो प्राप्ति है, उसी में परमात्मा की प्राप्ति है। परमात्मा के हैं उनमें से आप लोग श्रेष्ठतम लोग होंगे। क्यों न ऐसा कार्य करें जिससे यह व्यर्थ का योग। इसको समझें और इसमें रत रहें। जितना आप बहुत अनुपम, विशेष (unique) चीज हैं, सहज उसमें तदात्म्य पायेंगे और उतना ही आपका आत्म-तत्व समय हम बर्बाद कर रहे हैं-इसके घर जायें, रिश्तेदार चमक सकता है। के घर खाना खायें, फलां के घर घुसो, उसकी बुराई करो-छोड़-छाड़ करके और अपने मार्ग को ठीक बनायें और ऐसा जीवन बनायें कि संसार में उन कोई चीज महत्वपूर्ण नहीं है सिवाय इसके कि आप स्वयं प्रकाश बनें। और जिनको बेकार की बातें सूझती हैं उनके लिये बेहतर है कि वो उस चीज लोगों का नाम हो। सबको यह सोचना चाहिये। कोई यह न सोचे कि 'भई अब तो मेरी उम्र ही को छोड़ दें, उनकी बात नहीं है। अब आखिरी बात बताऊँगी। उसको बहुत समझ क्या रह गई है, अब तो क्या कर सकता हूँ?' सो बात नहीं है। आप मरेंगे ही नहीं। आप मरते हैं, फिर के और विचारपूर्वक करें। आप पैदा होते हैं। फिर आप मरेंगे, फिर आप पैदा हमारे अन्दर स्वयं ही दुष्ट प्रवृत्तियां हैं। हमारे ही अन्दर स्वयं बहुत-सी काली प्रवृत्तियाँ हैं जिसे होयेंगे। यह चक्कर चलते रहेंगे। तो क्यों न एक साल के अन्दर सभी चीज को खत्म कर सकते negativity (निगेटिविटी) कहते हैं। वो जोर बांधती 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-33.txt चवन्य लहरी खण्ड XV अक : 11 एक 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 32 हैं। उनके कब्जे में आना अपने को शैतान बनाना है, जिसमें आप ध्यान अपना पूरा करें। सामूहिक ध्यान आप चाहें तो शैतान बन सकते हैं और आप चाहें तो उसी जगह करना जहां मेरा पैर पड़ा हुआ है, जो परमात्मा बन सकते हैं। शैतान अगर बनना है तो चीज शुद्ध हो चुकी है। सामूहिक ध्यान अपने घर बात दूसरी है। उसके लिये मैं गुरु नहीं हूँ। भगवान में भी किसी के साथ बैठकर मत करिये। अपने बनना है तो उसके लिये मैं गुरु हूँ। लेकिन शैतान से रिश्तेदारों के साथ भी वैठ करके सामूहिक ता ध्यान नहीं करना चाहिये। जिस जगह मैंने कहा बचना चाहिये। पहली चीज है कि अमावस्या की रात या पूर्णिमा है वहीं सामूहिक ध्यान करना है। और बैठकर की रात left और right side दोनों तरफ में आपके सहजयोग की चर्चा भी बहुत देर तक ऐसी जगह dangers (खतरे) होते हैं। दो दिन विशेष कर, नहीं करनी चाहिये जहां मेरा पैर पड़ा नहीं क्योंकि अमावस्या की रात्रि को और पूर्णिमा की रात्रि को वहां तुम्हारे अन्दर के भूत आकर बोलने लगेंगे और बहुत जल्दी सो जाना चाहिये। भोजन करके. नत हों आपस में झगड़ा शुरु हो जायेगा क्योंकि तुम लोग अब भी भूतों के कब्जे से बचे हुए लोग नहीं हो। के, ध्यान करके, चित्त सहस्रार में डालकर, बन्धन डाल के सो जाना चाहिये। मतलब चित्त सहस्रार में कहा से भूत आता है, यह समझ में नहीं आता। और जाते ही आप अचेतन (unconscious) में चले भूत सारे काम करता है। गये। वहां अपने को बन्धन में डाल दिया, आप बच इस तरह से अपनी रक्षा करने की बात है। और गये-दो रात्रि को विशेष रूप से, और जिस दिन जब कभी भी आप बाहर जायें, कहीं भी घर से अमावस्या की रात्रि हो उस दिन, विशेष कर अमावस्या बाहर जायें तो अपने को पूर्णतया बन्धन में रखें। के दिन. आपको शिवजी का ध्यान करना चाहिये। बन्धन में रखें, हर समय बन्धन रखें। देखा कि शिवजी का ध्यान करके उन के हवाले अपने को किसी का आज्ञा चक्र पकड़ा है, चित्त से ही चाहे करके सोना चाहिये-आत्म तत्व पर। और पूर्णिमा के बन्धन डाल दीजिये। जिस आदमी का आज्ञा चक्र दिन आपको श्री रामचन्द्रजी का ध्यान करना चाहिये। पकड़ा है, उससे कभी भी argument (विवाद) म।। उनके ऊपर अपनी नैया छोड़कर। रामचन्द्रजी का नहीं करना चाहिये। यह तो बेवकूपफी की बात है, मतलब है क्या-creativity (सृजन शक्ति)। अपनी जिसका आज्ञा चक्र पकड़ा है, तो क्या भूत से आप जो creative powers ( रचनात्मक शक्तियाँ) हैं argument कर सकते हैं? उससे argument नहीं उनको पूर्णतया समर्पित करके, और आपको रहना करना चाहिये जिसका भी आज्ञा चक्र पकड़ा है-पहली ज rour चाहिये। इन दो दिन अपने को विशेष रूप से बचाना चीज। चाहिये। जिसका विशुद्धि चक्र पकड़ा है. उससे भी हालांकि, सप्तमी और नवमी दो दिन विशेषकर argument नहीं करना चाहिये। जिसका सहस्रार आपके ऊपर हमारा आशीर्वाद रहता है। सप्तमी और पकड़ा है, उसके तो दरवाजे पर भी खड़ा नहीं होना नवमी के दिन उसका ख्याल रखना। सप्तमी और चाहिये। उससे कोई मतलब ही नहीं होना चाहिये नवमी के दिन जरूर कोई ऐसा आयोजन करना आपको कह दो, "अपना सहस्रार ठीक करो भाई।" 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-34.txt नवम्बर एवं दिसम्बर 2008 33 चैतन्य लहरी खण्ड XV अक :11 एव 12 उससे कहने में कोई हर्ज नहीं कि "तुम्हारा सहस्रार को अपने बच्चों को कभी हाथ से मारना नहीं है। उसे ठीक करों। हाथ नहीं उठना है, किसी को मारना नहीं है। किसी ो।" सहस्रार साफ पकड़ा हुआ है, रखना चाहिये। अगर किसी को सहस्रार पकड़ा लगे से भी क्रोध नहीं करना है। सहजयोगी को तो क्रोध तो फीरन जाकर कहना चाहिये कि, "मेरा सहस्रार करना ही नहीं है। उसको बुद्धिमानी से हर चीज को उतार दो तुम लोग किसी तरह।" सहस्रार किसी का ऐसा सूझ-सुधार लेना चाहिए कि क्रोध न दौखे पकड़ा हो और वह आप से बातचीत करे कुछ, तो उसे कभी भी क्रोध करना नहीं। कहना चाहिये, "तू मेरा दुश्मन है।" उस आदमी से बिल्कुल उस वक्त तक बात नहीं करनी जब तक चाहिये? उसकी भी आप प्रार्थना करें। उसका विचार रोजमर्रा का जीवन सहजयोगी का कैसा होना है। समझ आ जाएगा। मैंने अनेक तरह से आपको उसका सहस्रार पकड़ा अब रही हृदय चक्र की बात। जिस मनुष्य का बताया है। हृदय चक्र पकड़ा है उसकी मदद करनी चाहिये। जहां तक बन सके तो उसके हृदय पर बन्धन आदि जो संस्था है उसके लिए आठ दस आदमी मिलकर उसी प्रकार से हमारी जो "अनन्त-जीवन" की डालना, अपने हृदय पर हाथ रखना, मां की फोटो के क्या करने का है उस पर विचार करें। आप सब की ओर उसको ले जाना। हृदय चक्र का ख्याल तो लोग अपना सहयोग उसमें दें और सब मदद करें। जरूर रखना चाहिये, क्योंकि कभी-कभी हृदय चक्र अभी जिन लोगों ने अपने नाम हमारे पास दिये नहीं में हो सकता है दूसरे को जरा परेशानी हो। हृदय हैं. जिनके नाम लिखे नहीं हैं तो अपने पते प्रधान चक्र में जरूर मदद करनी चाहिये। पर बहुत-से साहब के पास भेज दें और हम Quarterly एक लोगों के हृदय नहीं होता personalities (व्यक्तित्व) होते हैं। ऐसे dry लोगों वो सब छपेंगे इसके अलावा तुम लोग भी अगर के लिए आप कुछ भी नहीं कर सकते। आप चाहें अपने अनुभव कुछ लिखो तो वो अनुभव उसमें भी उनका कुछ ठीक करना, तो भी आप कुछ नहीं छापे जायेंगे। सारे all India के जितने भी अनुभव कर सकते। पर, वो अगर आपके पास आयें, और लोगों के आते हैं, वो हर बार उसमें थोड़े बहुत छापे आपसे कुछ कहें तो पहले उनको कहना चाहिये कि जायेंगे। उसमें अपने अनुभव लिखते जायें अगर "हठ योग छोड़िये, आप दुनिया भर के काम छोडिये आप लोग कोई अच्छा लेख सहजयोग पर लिखकर और थोड़ा प्यार करना सीखिये। पहले कुते, बिल्लियों भेजें तो वो भी इसमें छाप दिया से प्यार करिये अगर इन्सान से नहीं होता, फिर एक यहां पर Ouarterly ले रहे हैं, उसमें अंग्रेजी में इन्सान से घ्यार करिये।" खुद भी सब से प्यार कुछ छपा रहेगा, कुछ मराठी में, कुछ हिन्दी में और करिये, बच्चों से प्यार करिये, बच्चों से ज्यादती मत कुछ गुजराती में इस प्रकार की Quarterly हम करिये। किसी से भी ज्यादती मत करिये। किसी के लिख रहे हैं । बन पड़़े तो सब हिन्दी और मराठी साथ भी आप दुष्टता मत करिये, किसी को, बच्चों और गुजराती. इस सभी का एक साथ शुरू करेंगे या को तो कभी मारना नहीं है। किसी भी सहजयोगीं फिर धीरे धीरे करेंगे। सहजयोग में हर चोीज धीरे धीरे । बहुत dry ( शुष्क) शुरु करने वाले हैं, उसमें मेरे पत्रों, सन्देश, लेक्चर जायेगा। इस प्रकार 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-35.txt चैतन्य लहरौं खण्ड -X५ अंक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 34 होती है। उसको आप contribute करें। उसको जो उसको full freedom ( पूर्ण स्वतन्त्रता) है, चाहे तो कुछ भी पैसा देना है, दें और उसका जो कुछ भी वो Hell (नर्क) में जाए जहन्नुम में जाए और चाहे लाभ आपको उठाना है, उठायें। उसमें प्रश्न करें तो वो परमात्मा के पास जाए पूर्ण freedom मैंने आपको दे रखी है। जिसे चाहे नरक में उतरे, तो मैं और प्रश्न वहां पूछे, उसका जवाब मैं बहां एक साथ दूंगी। Quarterly पहले शुरु कर रहे हैं। फिर कहती हूँ कि भैया दो कदम और जल्दी उतर Monthly हो जायेगी। फिर हम लोग उसे Weekly जाओ, जिससे हमारा छुटकारा हो सके। यह भी कर लेंगे। फिर Daily भी हो सकेगी। अभी बहरहाल व्यवस्था में कर दूंगी। अगर आपको नरक में हम लोग Quarterly कर रहे हैं। और जो भी तुम जाना है, तो भी व्यवस्था हो सकती है और लोगों का कोई प्रश्न हो, कोई तकलीफ हो, उसके अगर आपको परमात्मा के चरणों में उतरना है, बारे में आप एक चिट्ठी प्रधान साहब के पास भेज वो भी व्यवस्था हो सकती है। इसलिये जो लोग दें। मुझे ज्यादा चिट्ठी नहीं दें। मेरे पास time बहुत मुझे परेशान करते हैं और तंग करते हैं, मुझे बहुत कम है और फिर माँ ने चिट्ठी नहीं लिखी, एक को जिन्होंने सताया है, ऐसे सब लोगों से मेरा कहना है चिट्ठी लिखी "मला लिहिली त्यानां नाहीं लिहिली कि मैंने बहुत patiently (धैर्यं से) सबसे deal (मुझको लिखी, उनको नहीं लिखी) ", इस तरह (व्यवहार) किया है और अब अगर किसी ने मुझे की कोई भी उल्लूपने की बात जो आदमी करता है, सताया है और तकलीफ दी तो मैं उससे कह दूंगी ऐसे आदमी के लिये सहजयोग नहीं है। आपको पता होना चाहिये कि माँ सबको एक से चले जाइये| फिर वो दो चार लात मारते हैं, जैसा ही प्यार करती है। किसी कारण से नहीं इधर-उधर निकलते वक्त में हरेक अपने गुण दिखाते लिखती है। कभी तुमको लिखा, कभी नहीं लिखा। रहते हैं उनके सबके गुण दिखते हैं, लेकिन जो भी कभी-कभी तो उनको नहीं लिखती हूँ जिनको मैं है, आपको यह चाहिये कि आप अपना भला सोचें। का कि अब आपका हमारा सम्बन्ध नहीं है, आप यहां अत्यन्त सोचती हूँ कि वो बुरा नहीं मानेंगे। और बुरा वो अगर नरक की ओर जा रहे हैं, तो आपको, मानने वाले लोगों की अब मैं परवाह नहीं करने उनकी गाड़ी में बैठने की कोई जरूरत नहीं है। होंगे; * आपके लिये सहजयोग नहीं है" और छोड़िये तर वाली। मैंने बहुत परवाह कर ली और उससे लाभ यह हुआ कि वो दुष्ट तो दुष्ट ही रहे, वो ठीक नहीं उनको। अपना भला करें। किसी से भी वादविवाद हुए, हमें ही नुकसान होता रहा। जिस पर भी मैंने करने की जरूरत नहीं है। जो जैसा है वैसा ही सोचा कि इस आदमी से ठीक से रहती रहूँ, चलिये रहेगा । बहुत मुश्किल से बदलेंगे बो लोग, क्योंकि कल ठीक हो जायेगा, पर नहीं, वो दुष्ट ही बने रहे। बो दुष्ट हैं। जो अच्छे आदमी होते हैं वो गलती वो तो जरा भी अपना transformation (परिवर्तन) करते हैं पर जल्दी समझ जाते हैं। जो बुरे आदमी नहीं किया। तकलीफ हमें ही होती रही, क्योंकि मैंने होते हैं उन का बदलना असम्भव-सी बात है, यह तय कर लिया है कि किसी भी मनुष्य का संहार में समझ गई हूँ। मैंने बहुत कोशिशें की हैं। मैंने नहीं होगा, किसी भी मनुष्य को मैं यातना नहीं दूंगी। बहुत कुछ किया है, लेकिन जो जैसा है, वैसा ही है। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-36.txt नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 35 चंत्य लहरों खण्ड -XV अंक : 11 एयं 12 उसको आप बदल ही नहीं सकते। उसको अक्ल ही की मुझसे टिकट ले ले. मैं देने को तैयार हूँ और नहीं आने वाली। इसलिये ऐसे लोगों से भिड़ने या जिसको परमात्मा के राज्य में आना है, उसका बोलने की जरूरत नहीं और इस वजह से आप से टिकट भी मैं दे सकती हूँ। टिकट बाबू तो हर एक मुझे यह विनती, कहना है कि आप लोग किसी जगह का टिकट दे ही सकता है। लेकिन टिकट प्रकार के ऐंसे लोगों से कोई भी सम्बन्ध न रखें। बाबू ये तो बतायेगा कि "भाई. एक तरफ तुम गये धीरे-धीरे यह सब आप छट जायेंगे। क्योंकि वो यहाँ तो वहाँ derailment हो रहा है (गाड़ी पटरी से पर इसलिये हैं कि आपकी जो भी साधना है उसको उतरी है ) और वहाँ जाते ही तुम्हारी गाड़ी जो है, टूट नष्ट करें। ऐसे लोगों से बचकर रहें, उनसे रक्षा करें। जायेगी फिर there is no return from there (वहाँ अपनी रक्षा उनसे करें। आप सहजयोग में वाइब्रेशन से आप वापस आ नहीं सकते)। Return ticket (वापसी टिकट) नहीं है। तो, इसलिये में यह जरूर च (चैतन्य लहरियाँ) पायें। एक साहब अभी मकान हमें दे रहे थे। उनके बता रही थी-नरक के बारे में मुझे ज्यादा बताना नहीं र है, नरक तो आप खुद ही जानते हैं क्या चीज है । इसलिये मैंने आपको हिसाब किताब बताया जाके बताया कि ये माताजी के ध्यान में तो बदमाश है कि चीज अपनी साफ रखो और रास्ता लोग हैं और ऐसा है, वैसा है। अब इनको मैंने पार अपना ऊपर का देखो, नीचे नहीं। ऊपर नजर कर दिया है, वाइब्रेशन आ गये। पर उस पर रखोगे तो ऊपर चढ़ोगे। नीचे नहीं देखो। ऊपर और हर कदम, हर हम आपको घर नहीं दे सकते, क्यों कि हमको एक जगह आपके साथ हम खड़े हैं। हर जगह। कहीं साहब ने कहा है। " तो मैंने कहा "उनको ही घर दे पर भी आप रहें । कहीं पर भी रहो, हर जगह दो।" रोज फोन करता है, रोज फोन करता है कि हम आपके साथ हैं-'काया, मन, वाचा'-पूर्णतया। माताजी खरीद लो, मुझसे गलती हो गई' मैंने यह हमारा promise (वचन) है लेकिन जिस कहा "देखी, अब तो उसी को ही बेचो। पूरी freedom को नरक में जाना है, उसको भी हम खींच रहे (स्वतन्त्रता) है।" बेचारा अब वह रो रहा है कि हैं नीचे की तरफ। इसलिये बचकर रहो और पास में गई। उनको हमने पार कर दिया। पार होने के बाद उनके पास एक साहब गये ऐसे ही। उन्होंने विश्वास कर लिया। तो उन्होंने कहा कि "माताजी . चढ़ना है, ऊपर जाना है। 'माताजी से नाराज हैं।' मेंने कहा,"मैं नाराज-वाराज ऊपर का रास्ता देखो, नीचे का नहीं। मुझ नहीं, अब तुम उसको बेचो जिसने आकर तुम्हं अब में जा रही हूँ लन्दन। आने के बाद देखें कि हर एक आदमी कम से कम दस लोगों को पार पढ़ाया था।" इसलिये, ऐसे जो अक्लमन्द लोग हैं, उनके लिए करे आप में से बहुत से ऐसे हैं औरों को बुलाए, बेहतर है कि अपने को अगर नरक में जाना है तो उनसे खुले आम बातचीत करे, शर्मायें नहीं। सहजयोग सीधे टिकट कटाकर चले जायें, मैं आपको टिकट के बारे में बताए कि यह चीज़ कितनी सत्य है, नरक का भी दे सकती हूँ। सब मेरे ही हिसाब इसमें कितना सत्य-धर्म है, इसमें कितनी वास्तविक किताब हैं। जिसको भी ऐसी इच्छा है नरक में जाने चीज़ है। और लोगों को इकट्ठा करें, जहां-जहां 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-37.txt एव दिसम्बर 2003 36 नवम्बर चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 11 एवं 12 ला ग्यच्क क जा ३० हि ु मिलें उनसे बातचीत करें। फोटो सब लोग लें और करें और उसके द्वारा अपने को सम्पत्तिशाली करें। दस-दस फोटो हर एक आदमी दस घर पहुँचाये। यह ही बड़ा अच्छा तरीका है कि हर एक आदमी आशीर्वाद आपके साथ है। मेरा हृदय, मन, परमात्मा आप सबको सुखी रखें। मेरा पूर्ण contribute करके दस फोटो खरीदे और दस फोटो शरीर हर समय आप ही की सेवा में संलग्न है। दस घर में पहुंचाये ऐसे घर में जहां पर कि फोटो वो एक पल भी आप से दूर नहीं। जब भी आप के प्रति श्रद्धा हो, जहां पूजा हो सके, जहां लोग मुझे सिर्फ आँख बन्द करके याद कर लें उसी सहजयोग को मान सकें। इस प्रकार से करने से ही वक्त मैं पूर्णशक्ति लेकर के "शंख, चक्र, गदा, सहजयोग फैल सकता है। असल में हम बहुत पद्म, गरुड़ लई धाये", एक क्षण भी विलम्ब नहीं लगेगा। लेकिन आपको मेरा होना पड़ेगा। ये ज्यादा publicity (प्रचार) नहीं करना चाहते क्योंकि जब भी publicity करती हैं तो गन्दे लोग आकर जरूरी है। अगर आप मेरे हैं तो एक क्षण भी जल्दी चिपक जाते हैं। और जो अच्छे लोग होते हैं मुझे नहीं लगेगा, मैं आपके पास आ जाऊँगी। वो मिलते ही नहीं। इसलिये बेहतर यह है कि इसी तरह से आप लोग सहजयोग की पूरी तरह से सेवा सम्मति से रहो। सम्मति से रहो ॥ सबको परमात्मा सुखी रखे और सुबुद्धिध दे। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-38.txt सत्-चित्त-आनन्द परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन नई दिल्ली, 15 फरवरी 1977 क्या सभी लोग मेरी हिन्दी समझ सकते हैं? यदि भाषा में आप इसके विषय में बात कर सकते हैं। मैं अंग्रेजी में बोलू तो क्या आप लोग समझ पायेंगे? यह योग का महान देश है। आप को आश्चर्य होगा मैं अंग्रेज़ी के विरुद्ध नहीं हूँ, परन्तु आत्मा की भाषा कि इस भूमि का ज़रा-जरा चैतन्य से परिपूर्ण है । . तो संस्कृत हैं। इन लोगों ने (अंग्रेज) कभी आत्मा जब हम पश्चिमी देशों की बातों को स्वीकार करने की चिन्ता नहीं की। अत: हमें किसी ऐसी भाषा का लगेंगे तो अपना सभी कुछ, जो कि इतना महान है, उपयोग करना होंगा जो आत्मा के विषय में बता खो दंगे। नि:सन्देह यह समाप्त तो नहीं होगा परन्तु सके, अंग्रेजी भाषा काफी नहीं है। उनके पास वो अपने लक्ष्य के लिए हम इसका उपयोग भी न कर अनुभव नहीं है क्योंकि वो अब तक कभी गहनता पायेंगे। एक ओर तो हमें उस सारे ज्ञान की अवज्ञा में गए ही नहीं हम लोग अत्यन्त प्राचीन हैं। करनी पड़ती है और दूसरी ओर विदेशी बाह्य चीजों परमात्मा को जानना हमारी संस्कृति रही है। सभी की जो कि सारगर्भित भी नहीं है। उनका ज्ञान समग्र कुछ संस्कृत में आया। क्योंकि तो चैतन्य लहरियों का सृजन करती है। कुण्डलिनी आपसे अनुरोध करूंगी कि थोड़ी सी हिन्दी भाषा विशेष प्रकार के स्वरों का सृजन करती है जो कि भी सीखें। मेरे एक अंग्रेजी प्रवचन का मराठी में भिन्न चक्रों पर देवनागरी स्वर होते हैं। कभी यदि अनुवाद किया गया है और यह कितनी जबरदस्त मुझे समय मिला तो मैं आपको इनके विषय में चीज़ थी! और अंग्रेजी में यह इतना घटिया था! हो बताऊंगी। आप जब संस्कृत भाषा या देवनागरी में सकता है मेरी अंग्रेजी बहुत कमज़ोर हो, हो सकता मन्त्रोच्चारण करते हैं केवल तभी इन्हें बेहतर रूप से है! जागृत कर सकते हैं। चाहे आप संस्कृत न सीखें परन्तु हिन्दी सीखने का प्रयत्न अवश्य करें क्योंकि बार फिर मुझे संस्कृत शब्द उपयोग करने पड़ रहे स्वर विज्ञान सम्पन्न होने के कारण इसमें स्वर हैं हैं सत-चित्त-आनन्द पराचेतना हैं - सर्वव्याप्त शक्ति। और स्वरों का चैतन्य प्रदायक प्रभाव होता है। इस चित्त चेतना है| इस क्षण आप लोग चेतन हैं और भाषा को सीखने का प्रयत्न करें। हिन्दी मेरी मातृभाषा मुझे सुन रहे हैं। हर क्षण आप लोग चेतन हैं परन्तु नहीं है, मेरी मातृभाषा तो मराठी है। मैं हिन्दी बोलती वह क्षण मृत हो कर भूत बनता जा रहा है। हर क्षण हूँ क्योंकि मैं इसके महत्व को जानती हूँ। मुझे थोड़ी सी अंग्रेज़ी भी आती है। अत: बेहतर होगा कि आप आप लोग चेतन हैं र लोग कम से कम हिन्दी तो सीख लें। कहने से मेरा उठता है और फिर इसका पतन होता है। विचार को अभिप्राय यह है कि बोलने के हिसाब से मराठी मेरे उठते हुए आप देख सकते हैं परन्तु इसको गिरते लिए उपयुक्त है, बंगाली मुझे थोड़ी बहुत आती है। हुए आप नहीं देख सकते। इन विचारों के वीच की तमिल, तेलगु या इस योग भूमि की किसी अन्य दूरी 'विलम्ब कुण्डलिनी चलती है नहीं है। इसमें सभी कुछ समाहित नहीं है। अत: मैं हम सत्-चित्त-आनन्द की बात कर रहे थे। एक भविष्य से वर्तमान की ओर आ रहा है। इस क्षण और मुझे सुन रहे हैं विचार कहलाती है। कुछ समय के लिए u ना 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-39.txt नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 38 चैतन्य तहरी खण्ड -४V अक : 11 एन 12 यदि आप रुक सकें (विचारों को रोक सकें) तो सकता है कि कुण्डलिनी बिल्कुल उठे ही नहीं। आप चेतन मस्तिष्क को पहुँच जाते हैं और वहीं परन्तु जिन साधकों में कुण्डलिनी आज्ञा चक्र द्वार सत्-चित्त-आनन्द का अस्तित्व है। आप कह सकते पार कर लेती है तो व्यक्ति निर्विचार समाधि की अवस्था में चला जाता है। निर्विचार चेतना की इस कि सत्-चित्त-आनन्द मस्तिष्क की एक दशा है या मस्तिष्क की वह अवस्था है जहां कोई अवस्था से आपको कुछ शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं। विचार नहीं होता, फिर भी आप चेतन, निर्विचार उदाहरण के लिए मान लो आप गवर्नर बन गए. का होते हैं। यह प्रथम अवस्था है जिसमें आप जाते गवर्नर की कुछ शक्तियाँ आपको मिल जाती हैं। हैं, पराचेतन अवस्था में। इसी प्रकार से आपको भी कुछ शक्तियाँ प्राप्त हो कुछ लाग सोच सकते हैं कि आत्म-साक्षात्कार जाती हैं। परन्तु इस अवस्था में कुण्डलिनी को छोड़ द्वारा व्यक्ति को ऐसी अवस्था प्राप्त हो जानी चाहिए देना ठीक नहीं है क्योंकि कुण्डलिनी एक ओर को जो आदिशंकराचार्य को प्राप्त हुई थी। परन्तु यह या दूसरी ओर को (बाएं या दाएं) जा सकती है सम्भव नहीं है। कुछ साधकों के साथ ऐसा हो और इस प्रकार से अतिचेतन (Supra-conscious) सकता है परन्तु सब के साथ ऐसा होना असम्भव है । में या सामूहिक अवचेतन (Collective-sub निर्विचार होना आपकी प्रथम अवस्था है। आप conscious) में प्रवेश कर सकती है। ये वो अवस्था निर्विचार चेतना में चले जाते हैं। ऐसा तभी घटित है जिसमें प्रायः सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। छोटी-मोटी होता है जब आप आज्ञा चक्र से उपर चले जाते हैं सिद्धियाँ नहीं, उच्च कोटि की सिद्धियाँ। अर्थात् मस्तिष्क क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। जब आपका उदाहरण के रूप में, कुण्डलिनी यदि अतिचेतन चित् 'सत्' (सत्य) बिन्दु को छू लेता है तब में चली जाए तो व्यक्ति को भविष्यवाणियाँ करने वास्तविकता मिथ्या से अलग हो जाती है। आप का की सिद्धि मिल जाती है। कुण्डलिनी यदि सामूहिक व्यक्तित्व दोहरा हो जाता है। इस अवस्था में आप अवचेतन में चली जाए तो बीते हुए समय को ऐसा अलग होने लगते हैं। इसी प्रकार से वास्तविकता का व्यक्ति देखने लगता है। ऐसा व्यक्ति जब मेरे पास आरम्भ होता है। यह वो अवस्था है जब आप कह आता है तो वह देख पाता है कि अपने पूर्व जन्मों सकते हैं कि कुण्डलिनी केवल जागृत हुई है। भिन्न में मैं कौन थी, उन्हें कायल नहीं करना पड़ता। यह अवस्थाएं जिस प्रकार से घटित होती हैं उनको भूत-बाधित होने जैसा ही हैं। नशाखोर तथा शराबी है और अब भी परमात्मा को समझना हमारे लिए आवश्यक है। मैं अत्यन्त विस्तृत व्यक्ति यदि भला तस्वीर आप के सम्मुख रख रही हूँ परन्तु सामान्यत: खोज रहा है तो वह मुझे भिन्न रूपों में देखता है। अधिकतर लोगों की कुण्डलिनी एक दम से सहस्रार वह मेरा भूतकाल देख सकता है और मुझसे बहुत पर चली जाती है, कुछ लोगों में यह नहीं भी जाती, ही प्रभावित हो सकता है। वह जान जाएगा कि मैं समय लेती है या तो यह स्वाधिष्ठान में रुक जाती कौन थी लोग सोचते हैं कि भूतकाल हमेशा वर्तमान है या नाभी पर, अधिक ऊपर नहीं जाती। कई बार से महान होता है क्योंकि भूतकाल आज की अपेक्षा ये अनहद् चक्र में फंस जाती है और ऐसा भी हो कहीं महान है, यद्यपि इससे पूर्व मैंने कभी किसी 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-40.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 39 को आत्मसाक्षात्कार नहीं दिया। इस प्रकार की चीजें आत्मा की ओर आकर्षित होता है। चित्त, जैसा मैंने जब वह देखता है तब वह मेरे प्रति आकर्षित हो आपको बताया है, गैस के दीपक में टिमटिमाते जाता है। ऐसा उन लोगों के साथ होता है जो प्रकाश की तरह होता है और कुण्डलिनी उसमें गैस अतिचेतन की अवस्था में होते हैं और उनका झुकाव है जो आत्मा को छू लेती है तथा आत्मा का प्रकाश बाई ओर को होता है अर्थात् भूतकाल की ओर। जो मध्य नाड़ी तन्त्र पर फैल जाता है। बाह्य आवरण में लोग आक्रामक प्रवृत्ति के होते हैं (दाईं ओर के) वे चित्त का अर्थ है ध्यान- तत्व ( attention part)। मुझे प्रकाश के रूप में देख सकते हैं। पाँचों तत्व उन्हें दिखाई देते हैं। झरने या हिमशैल ( lceberg) और आप अपने हाथों पर चैतन्य लहरियाँ महसूस के रूप में वो मुझे देखते हैं। वे तन्मात्रा अर्थात् करते हैं तथा अन्य लोगों की चैतन्य लहरियां भी इस स्थिति में कुण्डलिनी ब्रह्मरन्ध्र को खोलती है पँच-तत्वों के कारणात्मक सार को देखने लगते हैं। महसूस कर सकते हैं क्योंकि अब आप ऐसा होने पर वे कायल हो जाते हैं क्योंकि ऐसा 'सामूहिक-चेतन' (collective conscious) हो जाते व्यक्ति मेरे विषय में जब विश्वस्त हो जाता है तो हैं। सत्-चित्त-आनन्द में से अभी भी आप 'चित्त' उसका विश्वास आप लोगों की अपेक्षा कहीं अधिक मात्र को छू पाते हैं। इस प्रकार आप चित्त भाग को होता है। बहुत से तान्त्रिक जानते हैं कि मैं कौन हूँ। महसूस करने लगते हैं जो कि अब सामूहिक चेतन वो मुझसे डरते हैं और मेरे विषय में बात नहीं करते होने लगता है अर्थात आप सत्-चित्त-आनन्द रूपी हैं। एक साधारण नौकरानी मेरे कार्यक्रम में आई, सागर में गिर जाते हैं जहाँ आपको केवल उसको दौरा आया और वह संस्कृत बोलने लगी तथा सामूहिक-चेतना महसूस होती है। इसका अर्थ यह है पन्द्रह श्लोकों में मेरा पूरा वर्णन किया पहली बार कि आप अन्य लोगों की कुण्डलिनी को महसूस किसी ने मेरे बारे में इस तरह वर्णन किया था क्योंकि इससे पूर्व मैंने कभी अपने विषय में कुछ कर सकते हैं। कल एक अन्य व्यक्ति आया था, आपने देखा, नहीं कहा था। और इस प्रकार इसका आरम्भ हुआ। वह मुझसे बहस कर रहा था कि हमारे अन्दर अत: इस स्थिति में आपकी कुण्डलिनी को स्थगित बुद्धि (Suspended Intelligence) होती छोड़ना मुझे अच्छा नहीं लगेगा क्योंकि आप, लोगों है, परन्तु मैंने केवल इतना पूछा,"कि यह स्थगित को रोगमुक्त कर सकते हैं तथा रोग ठीक करने का बुद्धि क्या है? मुझे इसका ज्ञान नहीं है।" तब मेंने कार्य तब भी हो सकता है जब आपकी कुण्डलिनी उसे बताया वह कहने लगा," मैं तुर्यावस्था में हूँ।" मस्तिष्क क्षेत्र के अन्दर हो। सदैव मेरी यह इच्छा मैंने कहा," आप यदि तुर्या-अवस्था में हैं तो आप होती है कि कुण्डलिनी ब्रह्मरन्ध्र से बाहर आए। उस अवस्था में आपको चैतन्य लहरियाँ आने लगती हैं। हैं बिना इसके आप स्वयं को प्रमाण पत्र नहीं दे परन्तु इस अवस्था में (कुण्डलिनी का मस्तिष्क क्षेत्र सकते । परन्तु क्या आप दूसरे व्यक्ति की कुण्डलिनी में होना) आप 'चित्त' मात्र होते हैं, आप केवल को महसूस कर सकते हैं ?" कहने लगा 'नहीं'। तब 'सत्' बिन्दु को छू पाते हैं। केवल आपका चित्त मैंने उससे पूछा," तो किस प्रकार आप तुर्या में हो अन्य व्यक्ति की कुण्डलिनी को महसूस कर सकते 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-41.txt नम्बर एवं दिसम्बर 2003 40 चतन्द लहरी खण्ड -XV अंक :11 एवं 12 अवस्था। आप 'सत्' को छू लेते हैं अर्थात आप वास्तविकता को देखने सकते हैं?" तु्या में जब आप जाते हैं अर्थात इस स्तर से जब आप यार होते हैं तब आपको दूसरे लगते हैं यद्यपि चैतन्य के व्यक्ति की कुण्डलिनी की जानकारी हो जानी चाहिए। प्रवाह को आप महसूस करने लगते हैं। इस समय अब आपने देखा है कि यहाँ पर बहुत से लोग हैं। आय कहने लगते हैं कि यह आ रहा है, यह जा रहा बहुत से लोग हैं जो दूसरों की कुण्डलिनी को है। अभी-अभी आपने कहा था कि यह आ रहा है महसूस कर सकते हैं और वो सभी एक हो बात आपने यह नहीं कहा कि मैं इसे प्राप्त कर रहा हूँ. कहते हैं तथा एक ही भाषा बोलते हैं चाहे वह मैं दे रहा हूँ। अग्रेजी में, हिन्दी में या किसी अन्य भाषा में बोलें। परन्तु अब भी अहं (Ego) और प्रतिअहं वे एक ही चीज कहते हैं-यह चक्र पकड़ रहा है, (Superego ) पूर्णतः सन्तुलित नहीं हुए। वो अब वह चक्र पकड़ रहा है। ऐसा इसलिए होता है भी बने हुए हैं परन्तु आपका चित्त उन्नत हुआ है क्योंकि आप अपनी कुण्डलिनी को देखने लगते हैं और इसे आप महसूस कर सकते हैं। इस सामूहिक और उसके द्वारा अन्य लोगों की कुण्डलिनी को भी। चेतना से आप लोगों को रोगमुक्त कर सकते हैं और आपकी भाषा से 'में' चला जाता है। अपनी अंगुलियों पर आप महसूस कर सकते हैं कि उन्हें आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं। और जैसा मैंने क्या घटित हो रहा है। आप केवल 'चित्त' को आपको बताया विश्व में कहीं पर भी विद्यमान महसूस करते हैं, इसके 'आनन्द' को नहीं। पहली किसी भी व्यक्ति की कुण्डलिनी को महसूस कर अवस्था में चित्त के द्वारा दूसरे व्यक्ति की कुण्डलिनी सकते हैं और उसके चक्रों को ठीक कर सकते हैं । की महसूस करना तथा दूसरे व्यक्ति की कुण्डलिनी यहीं पर बैठे हुए आप दूसरे व्यक्ति की स्थिति के को उठाना है। कुछ समय पश्चातू मेरे फोटो की विषय में बता सकते हैं। आपका चित्त जहाँ भी जाता सहायता से आप किसी भी साधक को आत्मसाक्षात्कार है, कार्य करता है, और इस प्रकार आपका चित्त दे सकते हैं। परन्तु अभी भी आप 'आनन्द' की ब्रह्माण्डीय (universal) हो जाता है। आपके चित्त स्थिति तक नहीं पहुँचे। आरम्भ में आप केवल रूपी बूंद 'सत्-चित्त-आनन्द' रूपी सागर से एकरूप अपने हाथों पर शीतल लहरियाँ महसूस करते हैं । हो जाती है | मेरी बात को बहुत ध्यानपूर्वक सुनें क्योंंकि इस निर्विचार होते हैं । 'निर्विचार चेतना' कों आप महूसस अवस्था में बहुत से लोग बेध्याने हो जाते हैं और आपको शान्ति का अहसास होता है और आप करते हैं परन्तु इस अवस्था में भी अभी 'आनन्द' प्रभावशाली तो केवल चित्त ही होता है। मैं आपको की अनुभूति नहीं हुई। मैंने हजारों मनुष्यों और अपने एक शिष्य के बारे में बताऊंगी जो यहाँ पर उनकी समस्याओं का अध्ययन किया है और जानती इंग्लैंड से आया था। एक दिन बैठा हुआ वह अपने हूँ कि वास्तविकता क्या है। परन्तु कुछ ऐसे लोग भी पिताजी के बारे में सोच रहा था, अचानक उसकी हैं, यद्यपि वो बहुत कम हैं. जो अन्तिम अवस्था तक तर्जनी ( Index) ऊगली यर जलन हुई। उसने अपने पिताजी को फोन किया तो उसकी माँ ने पहुँच गए हैं। इस प्रकार प्रथम अवस्था पर जब आप आते हैं तो यह चित्त की अवस्था होती है, चेतना की बताया कि उसके पिताजी का स्वास्थ्य ठीक न था। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-42.txt नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 41 चैतन्य लहरी खण्ड -४V अंक : 11 एवं 12 उसे गले का रोग था इस लड़के ने अपनी अंगुली प्रदान कर रही हैं? बहुत सी अप्रत्यक्ष महत्वपूर्ण पर कुछ किया और उसके पिता ठीक हो गए। अब घटनाएँ घटित हो रही हैं। वह सोच सकता है कि वह शक्तिशाली है, एक बार जब आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो आदि-आदि। परन्तु बात यह नहीं है। इस प्रकार से जाता है तो 'चिरंजीवी' (Deities) आपके सम्मुख वह नहीं सोच सकता क्योंकि उसका सहस्रार खुल समर्पित हो जाते हैं। वे आपको देखते हैं। अब आप चुका है। उसने केवल इतना कहा, "श्रीमाताजी, मैंने उनकी जिम्मेदारी हैं। आपके अन्दर सभी देवी देवता ऐसा महसूस किया और इस प्रकार किया, तथा मेरे जागृत हो गए हैं। देवी-देवताओं के विरुद्ध यदि आप पिताजी ठीक हो गए।" व्यक्ति ऐसा कभी नहीं कोई कार्य करते हैं तो कवे तुरन्त आपको हानि कहता कि 'मैंने' यह किया। 'मैं' चली जाती है। पहुँचाएंगे। कोई साक्षात्कारी व्यक्ति यदि किसी ऐसे आप कभी नहीं कहते 'मैंने' यह कार्य किया परन्तु स्थान पर जाता है जो देखने योग्य नहीं है, महसूस आप कहेंगे," श्रीमाताजी, आज मेरी आज्ञा पकड़ रही करने योग्य नहीं है या जो अच्छा स्थान नहीं है, या है," " श्रीमाताजी, मेरा हृदय पकड़ रहा है।" ये लोग यदि वह किसी कुगुरु के पास जाता है तो तुरन्त आ कर अपने विषय में इस प्रकार से बात करते हैं । उसे गर्मी महसूस होने लगेगी। फिर भी यदि वह आज्ञा पकड़ने का अर्थ यह है कि आप पगला वहाँ से भाग नहीं निकलता, यदि वह वहाँ जाता जाएंगे। परन्तु व्यक्ति को यह बात बुरी नहीं लगती रहता है तो उसकी चैतन्य लहरियाँ समाप्त हो क्योंकि वह इससे लिप्त नहीं है। वह अपनी आत्मा जाएंगी और वह किसी भी अन्य सर्वसाधारण व्यक्ति से जुड़ा हुआ है। अत: आत्म-रूप में वह कहता है की तरह से हो जाएगा। आरम्भ में यह अत्यन्त अस्थायी स्थिति में होता कि यह चक्र पकड़ा हुआ है, वह चक्र पकड़ा हुआ है। कर्क रोग (Cancer) से पीडित व्यक्ति को है । यहाँ पर मैं यह कहूँगी कि अभी भी अरुचि इसका पता नहीं होता परन्तु आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति इतनी अधिक नहीं होती कि व्यक्ति इसे स्वीकार न का चित्त उसे बता देगा कि फलां-फलां चक्रों की करे। क्योंकि यदि इसे आप स्वीकार कर लें तो आप स्थिति ठीक नहीं है और इतने चक्रों की स्थिति के पूर्णतया आत्मसाक्षात्कारी हो जाते हैं। यदि आप इसे कर्क रोग। उसे स्वीकार नहीं करते तो आपको थोड़ी सी शारीरिक ठीक ना होने का अर्थ है चिकित्सक के पास नहीं जाना पड़ता, वह स्वयं रोग समस्या हो सकती है। हो सकता है कि आप अपनी निदान (Diagnose) कर सकता है। चिकित्सक अंगुलियों को हानि पहुंचा लें या यहाँ-वहाँ कहीं की तरह से वह निदान करके यह नहीं कहेगा कि आपको जलन हो जाए। परन्तु यदि आपको इन आपको हृदय का कैंसर है या गले का, वह कहेगा शारीरिक संवेदनाओं का भय न होगा और आप कि आपके चक्र पकड़े हुए हैं, बाई ओर के, या दाई इनकी चिन्ता छोड़ देंगे तो आप ऊँचे उठने लगेंगे। मैंने आपको पहले ही बताया है कि 'चिरंजीवी' ओर के। चैतन्य लहरियाँ कहाँ से आ रही हैं, कहाँ तक आपका पथ-प्रदर्शन और आपकी देखभाल करने यह पहुँच रही है और ऐसे चक्रों की गहन समझ लगते हैं। रेलगाड़ी में यदि एक भी आत्मसाक्षात्कारी 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-43.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 42 मिलने के व्यक्ति हो तो यह दुर्घटनाग्रस्त नहीं हो सकती और ठहरे हुए थे, एक सज्जन व्यक्ति मुझसे यदि दुर्घटना हो भी जाए तो इसमें किसी की मृत्यु लिए नहीं होगी कोई चल रहा हो और घटित होने वाली कोई दुर्घटना उसे किए। अन्य सहजयोगी दूसरे कमरों में थे सभी दौडे आया। वह आत्मसाक्षात्कारी तो न था पर आत्मसाक्षात्कारी यदि सड़क पर महान पूर्व सम्पदा सन्त था। उसने मेरे चरण स्पर्श दिखाई दे तो तुरन्त उसका चित्त वहाँ चला जाता है चले आए। मैंने पूछा," आप क्यों आए हैं?" उन्होंने और दुर्घटना टल जाती है। उसका चित्त आशीर्वादित उत्तर दिया हमारे अन्दर तेजी से चैतन्य बहने लगा, है, यह बात किसी वैज्ञानिक को समझ नहीं आ इसलिए हम यहां आए हैं।" वह व्यक्ति मेरे चरणों सकती। अभी-अभी मुझसे किसी ने पूछा था में था और बाकी सब लोग वहां ठहरे हुए थे। मैंने कि"अन्तः स्थित परमात्मा यदि उसका पथ-प्रदर्शन कहा,"न तो यह मुझे छोड़ रहा है और न आप लोग कर रहे हैं तो वह स्वयं तो कुछ भी नहीं कर यहां से जा रहे हो।" 15 मिनट तक वह व्यक्ति मेरे सकता।" ऐसा नहीं है। अन्तः स्थित देवी-देवता तो चरणामृत का आनन्द लेता रहा और उससे प्रवाहित उसी के अंग-प्रत्यंग हैं। आप कह सकते हैं कि होने वाले अमृत तथा सुगन्ध का आनन्द वहां मस्तिष्क मेरा पथ-प्रदर्शन कर रहा है इसलिए मैं उपस्थित अन्य लोग लेते रहे। कुछ अन्य नहीं कर सकता। आप स्वयं देख सकते हैं कि देवी-देवता तो आपके आन्तरिक हिस्से हैं। शुरूकर देते हैं। इस प्रकार की भावनाएं होती हैं। अत: आप अन्य लोगों का आनन्द लेना भी इस प्रकार आप 'निर्विचारिता' या 'समाधि' का तब आत्मा के साथ क्या है? जब आप आत्मा (Self) से एकरूप हो जाते हैं तब आप निर्लिप्त आनन्द लेते हैं। 'समाधि' का अर्थ 'अचेतन होना व्यक्तित्व हो जाते हैं, तब आपमें 'स्व' (''ness) नहीं है, इस स्थिति में तो अचेतन भी चेतन हो जाता है। ब्रह्माण्डीय 'अचेतन' भी 'चेतन' हो जाता है। तो की भावना नहीं रहती। हर समय आप कहते हैं," यह हो रहा है, यह घटित हो रहा है, यह बह रहा है ।" यह पहली अवस्था है। ऐसी बहुत सी अवस्थाएं हैं। स्वयं को आप तृतीय पुरुष (third person) की और बहुत सी चीजें घटित होती हैं। मान लो अपने तरह से देखने लगते हैं। स्वयं को आप 'मैं' से नहीं पूर्व जन्म में आप काफी ज्योति-पूजा कर रहे थे तो जोड़ते, ऐसा होता है। आप देख सकते हैं कि यह आप मेरी चैतन्य लहरियों को आते जाते देख पायेंगे। लोग किस प्रकार से कार्य करते हैं । यदि आप देवी-पूजा करते रहे हैं तो देवी-प्रणाम सा आनन्द (joy) की भी एक भूमिका है। प्राय: कुछ कर सकते हैं। उसे आप देख भी सकते हैं । आप देखते हैं कि कोई व्यक्ति यदि आत्मसाक्षात्कारी आत्मसाक्षात्कार से पूर्व यदि आपको ऐसा कुछ नजर है और टेढ़ा नहीं है तो उसके इर्द गिर्द बहुत से आता है तो इसका अर्थ ये है कि आप भूत-बाधित सहजयोगी एकत्र हो जाते हैं। कोई साधक यदि हैं और कोई आपको विचार भेज रहा है । परन्तु आत्मसाक्षात्कार के बाद यदि आप कुछ देखने लगते महान आत्मा है और वो यदि मेरे चरणों पर प्रणाम करता है तो अन्य सहजयोगी उसका बहुत आनन्द हैं तो इसका कुछ अर्थ है। इस प्रकार पुष्प का लेते हैं। एक बार हम कलकत्ता के एक होटल में निरन्तर विकास प्रकट होने लगता है। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-44.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 11 एव 12 नबम्बर एवं दिसम्बर 2003 43 दूसरी अवस्था में आप 'निर्विकल्प' हो जाते हैं, क्रम परिवर्तन को आप समझ सकते हैं। आप कह जहां कोई विकल्प नहीं होता। आज दिल्ली में बहुत सकते हैं कि संगीत शिक्षा के प्रथम वर्ष में आप कम ऐसे सहजयोगी हैं। सर्वप्रथम तो स्वभाव से ही केवल सात स्वरों तथा अन्य स्वरों और साधारण राग वो लोग विकल्पी हैं। इसका कारण ये है कि पूरा सीख सकते हैं परन्तु जब आप सूक्ष्म एवं उन्नत हो वातावरण ही विकल्प वाला है। आप यदि कुछ जाते हैं तब संगीत रचना के सारे सूक्ष्म रहस्यों को कहेंगे तो दूसरा व्यक्ति कुछ और कहकर आपको जान जाते हैं। नीचे खींच लेगा। तो पूरा वातावरण ही इतना विकल्पी पलटि निर्विकल्प अवस्था में किसी भी व्यक्ति की ओर है कि अभी तक आप सहजयोग में स्थापित नहीं हो हाथ करने की आवश्यकता नहीं होती, बैठने मात्र से पाये हैं। परन्तु दिल्ली में भी हमारे पास बहुत से ही आप जान जाते हैं कि वो कहाँ है और क्या महान सहजयोगी हैं। आप पूछ सकते हैं कि घटित हो रहा है और कहाँ पकड़ रहा है, समस्या 'निर्विकल्प' किस प्रकार हों? मान लो आप पानी में क्या है, सामूहिक समस्याएं क्या हैं? सहजयोग और हैं और डूबने से भयभीत हैं। अत: आपको उठाकर कुण्डलिनी के विषय में आपको कोई संदेह नहीं नाव में डाल लिया जाता है। अब आपको डूबने का भय नहीं रह जाता तथा दृढ़ता पूर्वक अब आप इस पर प्रयोग करने लगते हैं और इसका उपयोग स्थापित हो सकते हैं। रहता, संदेह बिल्कुल समाप्त हो जाते हैं तब आप करते हैं। कुण्डलिनी पर स्वामित्व होने लगता है। आपको दृढ़ता पूर्वक स्थापित होना होगा, तभी इस अवस्था में 'चित्त'-चेतना सूक्ष्म हो जाती है । आप कुछ शक्तियाँ प्राप्त कर सकते हैं-आपकी कोई व्यक्ति मेरे पास बैठा हुआ था और बाहर बैठे कुण्डलिनी गतिमान होने लगती है। बम्बई में हमारे सहजयोगी जानते थे कि उस भद्र पुरुष को यहाँ ऐसे कुछ लोग हैं जिनकी कृण्डलिनी कम से आत्म-साक्षात्कार मिलने वाला है। वे जानते थे कि श्रीमाताजी आत्मसाक्षात्कार देने वाली हैं। सहजयोगी कम एक फुट ऊँची निकलती है। वे अत्यन्त उन्नत लोग हैं। निर्विकल्प अवस्था में सामूहिक चेतना ऐसे समय पर अत्यन्त प्रसन्न होते हैं तथा छोटी-छोटी सूक्ष्मातिसूक्ष्म वास्तविकता स्पष्ट होने लगती है, तब आप गहन हैं और शान से रहते हैं। वे तुनकमिजाज नहीं होते हो जाती है । उस अवस्था में, जब चीजों के विषय में शिकवे नहीं करते। वे मस्त होते महत्व की चीज़ों को समझ सकते हैं। उदाहरण के उनका चित्त सूक्ष्म में होता है। रूप में आप कुण्डलिनी की कार्यशैली को समझने बाहर के दुनियावी मामलों के लिए उनके पास लगते हैं। आप समझ सकते हैं कि यह किस प्रकार समय नहीं होता। यही कारण है कि उनका चित्त भेदन करती है, किस प्रकार कार्यान्वयन करती है, सदैव सूक्ष्म पर होता है। वो चिंतित नहीं होते, ऐसे अपने हाथों से आप इससे प्रयोग कर सकते हैं और लोग संतुष्ट आत्माएं होते हैं। यही लोग सहज के इच्छानुसार इसे चला सकते हैं। आप लोगों को रोग स्तम्भ बनेंगे। कोई जब ऐसे लोगों को देखता है. ऐसे मुक्त कर सकते हैं और भिन्न प्रकार से कुण्डलिनी परिवर्तित व्यक्ति को तो उन्हें चोट पहुँचती है। "इस की कार्यशैली को दर्शा सकते हैं। कुण्डलिनी के व्यक्ति को देखो ये कितना महान है । पहले तो यह 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-45.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XV अंक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2008 44 बहुत खराब था किस प्रकार यह परिवर्तित हुआ है, ही प्रयत्न क्यों न करे। ईसामसीह को भी अपने हाथ देखो किस प्रकार इसका का्यापलट हुआ है!" इस में हंटर उठाकर लोगों को भगाना पड़ा। यदि आप अवस्था में; निर्विकल्प अवस्था में चैतन्य लहरियाँ निर्विकल्प अवस्था में हैं तो आपको क्रोध करने का बहती हैं और बिल्कुल प्रश्न नहीं रह जाता। परन्तु अधिकार है क्योंकि आवश्यकता पड़ने पर आपको ऐसा व्यक्ति यदि किसी को दुर्व्यवहार करता देख ले आवाज़ उठाने का अधिकार प्रदान किया गया है। मैं तो बह क्रोध से भर जाता है और इसे सहन नहीं सारे आयुध उपयोग करती हूँ, ये सब आयुध होते हैं कर पाता। ईसामसीह ने कहा है," इन सबको क्षमा और मुझे उनका उपयोग करना पड़ता है, उनका कर दो क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे उपयोग करने से आप मुझे रोक नहीं सकते। मैं यही हैं"। परन्तु मान लो कि उनकी (ईसामसीह) माँ की बात कहती हैँ कि पढ़ने मात्र से लोग चीज़ों को शान में कोई अपराध किया होता तो वो उन्हें समझ नहीं पाते। शांतिपूर्वक बैठा हुआ, सब लोगों बिल्कुल क्षमा न कर पाते। बाइबल में लिखा हुआ द्वारा सताया जाने वाला व्यक्ति ही आत्मसाक्षात्कारी कि आदिशक्ति (Holy Ghost) के विरुद्ध कुछ कहलाता है-ऐसा समझना निहायत मूर्खता है। किस भी सहन नहीं किया जाएगा। और Holy Ghost प्रकार आप ऐसे व्यक्ति से ईष्ष्या करने का साहस उनकी माँ थी और वो आदिशक्ति हैं। इसलिए आप अपनी श्रीमाताजी और सहजयोग के विरुद्ध कुछ भी देवी का द्वेष सहन करना होगा। ये कहना बिल्कुल सहन नहीं कर सकते और आपको एकदम भयंकर गलत है कि आत्म-साक्षात्कारी व्यक्ति को कतई क्रोध आता है। ऐसे लोगों में संहार शक्ति पनप जाती क्रोध नहीं करना चाहिए। है। कहा जाता है कि ऐसे व्यक्ति को जब कोई हानि कर सकते हैं। क्या आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति को जिन ऋषियों के बारे में मैंने बताया है या वो पहुँचाने का प्रयत्न करता है तो वह उसे माँ के प्रति सब जिन्होंने मेरे बारे में वर्णन किया है तथा जिनके अपनी भक्ति से धराशाही कर देता है। हमारी एक नाम मैंने आपको बताए हैं, वे सब निर्विकल्प स्थिति धारणा है कि आत्मसाक्षात्कारी लोगों को कभी से ऊपर थे। परन्तु वे भी उग्र स्वभाव के थे। ये क्रोधित नहीं होना चाहिए। यह बिल्कुल गलत धारणा है। तब आप कहेंगे" श्रीकृष्ण ने ज़रासंध का वध क्यों किया, कंस का वध क्यों किया। कृष्ण की राक्षस उनके समीप नहीं फटक सकता और यदि हिंसा को आप कैसे उचित ठहराते हैं देवी. जिन्होंने कोई चला जाए तो वे उनहें फंदा डालकर पेड़ से अवतरित होकर क्रोध में बेशुमार राक्षसों का वध किया उसका स्पष्टीकरण आप कैसे करते हैं। भयंकर जाने के लिए कभी नहीं कहती। नि:संदैह वो बड़े क्रोध में आकर वे राक्षसों का वध किया करती थीं। शिव का क्रोध, उसका स्पष्टीकरण आप कैसे देते जानते हैं और मेरे चरण कमलों में नतमस्तक होते है? ये मूर्खतापूर्ण धारणा है कि उन्हें कभी क्रोधित हैं मेरे लिए वे बच्चों की तरह से अबोध हैं और नहीं होना चाहिए, चाहे कोई उनकी हत्या करने का सहज हैं। श्रीगणेश सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं यदि सन्त पाखण्ड सहन नहीं कर सकते लेकिन मैं सहन कर सकती हूँ, मुझे सहन करना पड़ता है। कोई लटका देते हैं। इसीलिए मैं किसी बाबाजी के पास ऊँचे लोग हैं आप लोगों से बेहतर हैं। मुझे भली-भांति গ 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-46.txt चैलन्य लहरी खपड -XV अंक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2008 45 वे (श्रीगणेश) नाराज़ हो जाएं तो उन्हें संभालना उत्तेजक करने वाले वस्त्र पहने हुए देख लूँ या ऐसा आसान नहीं है। श्री शिव के क्रोध को संभालना कुछ और देख लू या अपने पति के साथ मुझे श्रीगणेश के क्रोध को संभालने से कहीं आसान है। पार्टियों में या कैबरे आदि में जाना पड़़े तो तुरन्त उनसे सावधान रहें। यही कारण है कि कुण्डलिनी मुझे मितली होने लगती है मानो मैं नर्क में हूँ, विशेष जागृति प्राप्त करते हुए आपको जलन महसूस होती रूप से तब जब हम वहाँ मुख्य अतिथि होते हैं। मैं हैं और आप उछल-कुद करने लगते हैं। यह सब उनका जीवन कष्टकर बना देती हूँ क्योंकि जब मैं श्रीगणेश के करोध के कारण होता है। किसी भी अधनंगी महिलाओं को देखती हूँ तो मेरे पेट में कुछ प्रकार से यदि आपने उनका अपमान किया है, या हो जाता है। अब बात ये है कि मैं अपने पेट का उनकी माँ (आदिशक्ति) का अ किया है तो क्या करू क्योंकि इसमें तो धर्म उत्पन्न हो चुका है। पमान उन्हें भयंकर क्रोध आ जाता है। अतः पेट स्वयं ही 'धर्म' बन जाता है। इस अवस्था यह बात सत्य है कि निर्विकल्प स्थिति प्राप्त में चीजों की सूक्ष्म शैली आरम्भ हो जाती है। कर लेने पर श्रीगणेश वास्तव में जागृत हो जाते हैं। आपका मूलाधार ही पावनता की मूर्ति बन जाता है ऐसा व्यक्ति किसी महिला से सम्मोहित नहीं होता यह इन सब चीजों को सहन ही नहीं कर सकता। अपनी पत्नी के अतिरिक्त किसी अन्य महिला के आपको उन्हें बताना नहीं पड़ता। ऐसी महिलाओं में लिए उसमें कोई प्रलोभन नहीं रहेगा। अपनी पत्नी आपको कोई दिलचस्पी नहीं रह जाती। वे न तो के साथ वह सम्मानमय पति की तरह से जीवन-यापन चोंचले बाजी करते हैं और न ही इन चीजों में उन्हें करेगा क्योंकि पति-पत्नी विवाह के सूत्र में बंधे होते कोई दिलचस्पी रह जाती है । ऐसे वस्त्र पहनने में हैं। | अन्यथा वह एक पावन गृहस्थ होता है। उसमें उनकी कोई दिलचस्पी नहीं रहती जो अन्य पुरुषों शराब, धूम्रपान आदि के लिए कोई आकर्षण नहीं या महिलाओं को वहुत आकर्षित करें। अत्यन होता। वह तो प्रलोभनों से ऊपर होता है। निर्विकल्प सहज व्यक्ति की तरह से वे आचरण करते हैं । वे व्यक्ति में कोई प्रलोभन नहीं हो सकता। एक व्यक्ति गरिमामय सहजता में चले जाते हैं। अचानक वे अत्यन्त सृजनात्मक हो जाते हैं। मुम्बई में एक मेरे पास आया और उसने मुझे बतीया कि वह आत्मसाक्षात्कारी था। मैंने कहा, "एसा कैसे हो सज्जन हैं जिन्हें निर्विकल्प अवस्था प्राप्त हो गई है। सकता है? आप यदि आत्मसाक्षात्कारी हैं तो क्यों जब उनके पास कोई नौकरी नहीं थी तो वो मेरे पास आपको इन चीज़ों की आदत है? आप ऐसा कर ही आए। मैंने उनसे कहा,"क्यों नहीं आप गृह सज्जा नहीं सकते " मैंने कभी कुछ नहीं लिया। एक बार कार्य शुरू कर देते? क्यों नहीं आप गृह सज्जा कार्य मेरे डाक्टर ने दवाई के रूप में मुझे थोड़ी सी ब्रांडी आरंभ कर लेते?" वह कहने लगा," कि उसे लकड़ी दी थी। मैं नहीं जानती कि मुझे उसने वह ब्रांडी मुझे देनी चाही, परन्तु उसके कारण लकड़ी का भेद भी वह नहीं जानता। मैंने कहा, अब मुझे खून की उल्टियाँ हो गई क्योंकि मेरा पेट ही आप निर्विकल्प में हैं। अत: यह कार्य शुरु कर धार्मिक और पवित्र है। मैं यदि किसी महिला को लें।" बिना बताए क्यों का बिल्कुल ज्ञान नहीं है, एक लकड़ी से दूसरी Phot 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-47.txt चैतन्य लहरी खण्ड XV अंक : 11 एवं 12 नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 46 आज वह अत्यन्त वैभवशाली है। व्यक्ति गतिशील आप सूक्ष्म चैतन्य लहरियाँ महसूस कर सकते हैं हो उठता है क्योंकि वह प्रकृति के सौन्दर्य को देखने चाहे वह धर्म में हों या कहीं और। क्या हम कह लगता है। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति में सौन्दर्यबोध सकते हैं कि अष्ट विनायक जीवन्त देवता हैं? ( Aesthetic Sense) जागृत हो जाती है। हर चीज़ आपने कैसे जाना? ज्योतिर्लिंग जीवन्त हैं ये बात में वह सौन्दर्य देखने लगता है। बातचीत करने की आप कैसे जानेंगे? जब तक आप सारी महान कला सुधर जाती है। आपके हाथों की गति तथा आत्माओं की एकरूपता को जान नहीं लेंगे किस आपकी शैली सुधर जाती है। आप अत्यन्त सुन्दर प्रकार आप उन्हें परखेंगे? अतः आत्म-साक्षात्कार हो जाते हैं। आपमें सौन्दर्य बोध आ जाता हैं। प्राप्त कर लेना आवश्यक है। मेरे पिताजी ने मुझे अचानक व्यक्ति महान कवि बन जाता है। हमारे यही बताया था। मुझे कहना चाहिए कि वही मेरे यहाँ दो ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने सुन्दर कविताएं प्रथम गुरु थे। वे आत्मसाक्षात्कारी थे। उन्होंने मुझे लिखी हैं। आप यदि चित्रकार हैं तो महान चित्रकार बताया कि वास्तविकताओं आदि के बारे में बात बन सकते हैं चित्रकारी और सौन्दर्य के विषय में करने का कोई लाभ नहीं क्योंकि इस प्रकार तो तुम आपको नई धारणाएं प्राप्त हो सकती हैं। आपको एक अन्य बाइबल या गीता का सृजन कर दोगी। संगीत अच्छी तरह से समझ आने लगता है. चाहे तुम कोई व्यवहारिक कार्य करो। कोई सामूहिक शास्त्रीय संगीत का ज्ञान आपको न हो फिर भी तरीका खोजो| मैं जानती थी कि मेरा लक्ष्य यही है। संगीत की सूक्ष्मता को आप समझने लगते हैं। अत: मैं सभी लोगों की कुण्डलिनी पर कार्य करती शास्त्रीय संगीत से आपको ज्ञान होने लगता है कि रही तथा उनकी गलतियों के कारण खोजने के लिए आपकी आत्मा के लिए सर्वोत्तम क्या है? उस क्रमपरिवर्तन (Permutations & combinations) अवस्था में आत्मा हर चौज को परखने लगती है। खोजती रही। आप हैरान होंगे कि बहुत से लोगों को ऐसे व्यक्ति को यदि आप नाटक या चित्रकारी का कभी इस बात का पता ही नहीं चला कि वे तिर्णायक बना दें तो वह विल्कुल सही-सही निर्णय निर्विचार समाधि में हैं। उन्हें कभी पता नहीं चला देगा कि अच्छा क्या है और बुरा क्या है। उसके कि वे महान उन्नत आत्माएं हैं । उन्हें अगर इस बात निर्णय को यदि आप विश्व भर के आलोचकों के का पता होता तो वो बहुत सी. ऐसी बातें न बताते सम्मुख रखेंगे तो- वो लोग बताएंगे कि यह निर्णय जिन्होंने आपको बन्धनों में फैँसा दिया है। उन्होंने सर्वोत्तम है। आप उनसे पूछेंगे कि"उसको यह ज्ञान कहा सच बोलो'। सत्य कौन बोलेगा। उन्हें इस बात कैसे आता है?" क्योंकि वह चैतन्य लहरियों द्वारा का ज्ञान न था कि मानव क्या है? वे अवतरण हैं, तथा हर चीज़ से पूर्ण एकरूपता द्वारा यह महसूस महान व्यक्ति हैं। मानव का उन्हें अधिक ज्ञान न था और न ही वे ये जानते थे कि मानव कितना चालाक कर सकता है। ऐसे व्यक्ति को आप यदि किसी देवी-देवता की होता है और किस प्रकार परस्पर विरोधी! सूक्ष्म मूर्ति दें और उससे पूछे कि क्या ये मूर्ति ठीक है या मानव स्तर पर वे न आ सकते थे इसके लिए उन्हें गलत तो वह कह सकता है कि यह ठीक नहीं है। मानव रूप में आत्मानुभूति लेनी आवश्यक थी जैसे 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-48.txt नवम्बर एवं दिसम्बर 2003 47 चेतन्य तहरी खण्ड -४V अक : 11 एवं 12 अन मैंने की है। इसीलिए मैंने मानव प्रवृत्ति को समझा है सत्-चित्त-आनन्द अवस्था। परमात्म साक्षात्कार वह परन्तु नि:सन्देह मैं भी बहुत सी चीजें नहीं समझी। अवस्था है जो गौतम बुद्ध तथा श्री महावीर ने प्राप्त अवस्था में जाते हैं तो की थी तथा वे हमारे मस्तिष्क में स्थापित हो गए। ईसामसीह भी वहाँ हैं। ये दोनों अवतराण नहीं हैं। जब आप निर्विकल्प आनन्द आपके अन्दर स्थापित होने लगता है। जब भी आप नगरों को देखते हैं, किसी सुन्दर तस्वीर या मानव रूप में उन्होंने जन्म लिया। श्री सीताजी की दृश्यों को देखते हैं तो तुरन्त आनन्द का एक तीव्र कोख से लव-कुश के रूप में उन्होंने जन्म लिया बहाव आप अपने अन्दर होता हुआ पाते हैं। ये तत्पश्चात् वे बुद्ध और महावीर के रूप में जन्में तथा परमात्मा की कृपा है कि आप इसी में रम गए हैं एक बार फिर आदिशक्ति ही उनकी माँ थीं। इसके मानो गंगा आपके अन्दर बह रही हो और आप बाद हसन, हुसैन के रूप में फातिमा बी की कोख इसमें पूर्णत: निमन्न हैं आपकी 'चेतना' ही 'आनन्द' से जन्में। ये दोनों ऐसे मील के पत्थर हैं जिनके माध्यम से आप जान सकते हैं कि मानव कितनी बन जाती है। ोकि ऊँचाई तक जा सकता है। आज वो अवतरणों सम बास्तव में आप समझ जाते हैं कि अभी-तक हमने 'सर्वव्यापी शक्ति' को जाना ही न था हैं। अन्य शैली के व्यक्तित्व भी हैं जैसे चिरंजीवी. परन्तु अब हमें उसका ज्ञान हो गया है। इसे हम अपनी उंगलियों पर आते हुए महसूस कर सकते भैरव, गणेश। ये सब अवतरण हैं। श्री हनुमान बाद हैं। ये वास्तविकता है कि हमारे चहूँ ओर जो में देवदूत गेब्रील के रूप में प्रकट हुए तथा भैरवनाथ चैतन्य है वह सोचता है, समझता है, आयोजन सेंट माइकल के रूप में नाम भिन्न-भिन्न हैं परन्तु करता है और प्रेम करता है। ज्ञान के एक भाग व्यक्तित्व वही हैं। देवी भी अवतरित हुईं, इसके के रूप में आप ये सब जान जाते हैं। तब विषय में कोई सन्देह नहीं है। वैज्ञानिक इस बात को हृदय' से 'आनन्द' प्रवाहित होने लगता है। नहीं समझेंगे परन्तु सहजयोगी इसे समझ सकते हैं अन्ततः आप 'आनन्द' में 'विलय' प्राप्त करते क्योंकि वे तुरन्त उनकी चैतन्य लहरियाँ महसूस कर सकते हैं और प्रश्न पूछ सकते हैं मेरे बारे में भी हैं। यही तड़पन है विलय की। इस स्थिति में पूर्ण आत्मसाक्षात्कार घटित होता है। इस अवस्था में आप प्रश्न पूछ सकते हैं इससे आपको चैतन्य आप सुर्य, चन्द्र तथा सभी तत्वों (पंचतत्वों ) लहरियाँ प्राप्त होंगी । परन्तु इसके लिए कम से कम को नियंत्रित कर सकते हैं । आपके अन्दर देवताओं को जागृत होना होगा और हाँ (God कहनी होगी। आपको साक्षात्कार प्राप्त हो या नहीं इससे ऊपर परमात्म-साक्षात्कार है। Realisation) इसकी भी तीन अवस्थाएं हैं। परन्तु उत्तर आपको निश्चित रूप से प्राप्त होगा। अभी-अभी मैंने इसके विषय में बताया था, परमात्मा आपको धन्य करें। 2003_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-50.txt RE