वैनन्य खाधरी रम न ० जनवरी - फरवरी 2004 II अंक 1 त 2 उवंत 3 श्रीमाताजी का एक पत्र, 17 अगस्त 1978 5 श्री कृष्ण पूजा - प्रतिष्ठान, पुणे, 10 अगर्त, 2003 9 श्री गणेश पूजा - कबेला, 13.9.2003 । ज्ञानेश्वरी से भविष्यवाणियों, बोर्डी, 12.2.1984 18 निर्मल विद्या 20 मैं ही आदिशक्ति हूँ। न्यूयार्क, 30.9.1981 क 3 श्री माताजी का प्रवचन, बम्बई, 20.1.1975 40 श्री माताजी के कथन এ अहं एवं प्रतिअह, 18.12.1978 42 श्री माताजी का प्रवचन-ब्रिटेन, 15.1f.1979 ाभ मा चै त - य ल ह री प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर ए. मुनीरका विहार, नई दिल्ली 110067 162 मुद्रक अमरनाथ प्रेस प्रा. लिमिटेड डब्ल्यू एच एस 2/47. कीर्ति नगर औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली 15 फोन 25921159. 55458062. के लिए कृपया इस पते पर लिखें :- श्री ओ. पी. चान्दना संदस्यता 463 ( जी-11), ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली एन 110034 फोन : 27031889 E-mail : chaitanyalahiri@indiatimes.com सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पते पर भेजें : चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी-17, कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली 110016 बैतन्य लहरी खप्ड -४V) अक 1 एव 2 जनयरी एवं फरवरी 2004 नावी का ए क पतर inशी ता Mataji Nirmala Devi Srivastava 17b Ru4.1१४ अनेकानिक अआशि्ोद अत्नत प्रेमाने ५ा०विलेल्या शरवी व्रवाie्या ३ली । व्या शर्टी भ२/२। d/- 5/२ आहे कारव ते पोणी जोरदार चथा ५2) पेमन्यि धोलक आहे / ७41011 S%61 112खी बांदली ६ /e आदे व अत्यना कामल &1ला S%६ // এ1५ है/। reh 6 ते थे मग नम२६॥-य स्थान स्थापित केलो जासे rरी मानवा यी स्रेम संवेदन शली इवकी |স সে ২//- २।ल। সাय औह। ৯ भी झाली कभी झली आहे कि. रासखी बांधने ही Sक थाl क e4 &ाली आहे । ज२ /६-या ओ लावा मराल । तर 4 २ । थ1121*% का पी लो निवि. भानवी परम्परा शुष्छ नौ किर्णीव होऊा प२ म्परा प्क मुन्हर ६२ जलात योग्यांनस्या धन्धनोकित्य आ्ी संभार!ल ेपणो त्यास्या क - ध.न14 संभारल आन्ही रापी 7च थाच्या 9-छाल र जम ওaला आहे। १५गेप्ले त्याचपा -nidlu) P=5Trees5 ते ०६/ 1वरत अहोत । आम्ही P:sireles5 ते०हा टमच्या्य /-५ नाव२त अशात सौरे का 1e raलकून आहे। *ा/६ अबव्ा अ/६ ২০व২ /-च मतन्य लही खण्ड -xVI अंक 1 एवं 2 जनवरी एवं फरवरी 2004 २ा२ठी बराबर का हिलरी मेागतेल लागत तेसहज २ा२८ लरेी chi ति a चा रकन कडेबीन | क स)मोहेल मु ५5) लि त्या म मागण असल ते लिहल। मो ग्यांना ९~+ ते लिखम | शमं मागन जस ल ५ू० M(লि मनरी प्रशनो उतमआहे कारण तय्डी {२०१ सर्वाची अयी से। S। 1६ । काना-ध हुल्क लेहर ६े. आदकना खडु्क लेहसे ि +१हेज। ४per alroh अ६ 1ले ६। ॐगदी काढ़ेसा कु ब। वताकक णणय/ / अध । देखा सर ३६० तl सुय ाही| । / trik Hlo ১৫০{ 2२ बोणोना मेठा आहे। त्याकयशो { ५०स आ। २॥ २1२) ५ूनल्वा च मागवो कराव| मोठे मठ Hव बाद्यले ५ािजेल 11 प्रा मोठे श्राठ H*1म बार्यल क [र|म] dolcol ५जे) न्यन लेशमो उंच जश क ৯ सद्ज धारय। ले पी ५ । ल६lन सहान गोष् सेंद्ज 2े| 2या 54 पतल न९मा to गोष्टींच ५ज। ल६ान सहान ५ा६ कार्थ नय । अলুन पुष्कळ काबी जधृ आले य-त न्ट क आपले चन्ल w21d) ১ेलीर লयोगयानी प्रगतो केलीआर न्यानी कार्यसत काले पाकजे/ नवণীन 2 Cetes 3ee लोकांचे रीम मिवारक आलने हिके/य ७ 4राम्य आहे/ज्या २ सहनयोग्यां vert2 HE414 ५.ली) आरि क२ 1४-d ्यामा ५/१/व जन ५ | तe/ ५) ५। रिनेत १/. स | ल)%/ पा।१4त नेधले गेले पाहिने । পে। ५२मे श्थप्रश्री कडे ६ धतासर्व राहनयााना ्धना ६ाे वचल 15 পা ना र ४/१ (সथी संदैव का०बण करणारी काहट निर्ल। 00/ +२०११४ ०1/ै | *পে{ ुद न. श्री क ष्ण पूजा प्रतिष्ठान, पुणे, 10-8-2003 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन हम लोगों को अब यह सोचना है कि सहजयोग तो ऐसा गुण है कि हम बालक बन जाते हैं। बालक बहुत फैल गया और किनारे किनारे पर भी लोग यानि अबोधिता, भोलापन और उस भोलेपन से हमें सहजयोग को बहुत मानते हैं। लेकिन जब तक अपने अन्दर देखना चाहिए और उसी से अपने को ढकना है। अब वो भोलापन बड़ा प्यारा होता है हमारे अन्दर सहजयोग पूरी तरह से व्यवस्थित रूप से प्रकटित नहीं होगा तब तक जैसा लोग सहजयोग आप अगर, आप बच्चों को देखें उनसे जो प्यार को मानते हैं मानेगें नहीं। इसलिए जरूरत है कि करते हैं वो इसलिए कि वो भोले हैं । वो चालाकी हम कोशिश करें कि अपने अन्दर झांकें। यही क ष्ण नहीं जानते, अपना महत्व नहीं जानते, कुछ भी नहीं का चरित्र है कि हम अपने अन्दर झांके और देखें जानते। क्या जानते हैं? वो जानते यह हैं कि सब कि हमारे अन्दर खुद कौन सी, कौन सी ऐसी चीज़े कोई लोग हमारे हैं। ये हमारे भाई बहन और सब हैं जो हमें दुविधा में डाल देती हैं। इसका पता कुछ हैं। लेकिन ये किस तरह से उन्होंने जाना, यह लगाना चाहिए। हमें अपने तरफ देखना चाहिए. प्रश्न है बच्चों ने जिस तरह से जाना उसी तरह से अपने अन्दर देखना चाहिए और वो कोई कठिन हमने भी भुला दिया कि हम भी एक भोले बालक हैं बात नहीं है। जब हम अपनी शक्ल देखना चाहते और एक भोलापन हमारे अन्दर है । बहुत से सहजयोगी हैं तो हम शीशे में देखते हैं। उसी प्रकार जब हमें ऐसे हैं जो आते हैं वो बहुत कपट चालाकी दिखाने। अपनी आत्मा के दर्शन करने होते हैं तो हमें देखना कोई आते हैं और सोचते हैं कि हम बहुत होशियार हैं। कोई आते हैं और सोचते है कि हम माँ को सिद्ध बहुत से सहजयोगियों ने कहा माँ यह कैसे देखा कर देंगे। मुझे सिद्ध करने से क्या फायदा। मुझे तो जाएगा कि हमारे अन्दर क्या है, और हम कैसे हैं? मालूम ही है सब कुछ। तो आपको यह करना उसके लिए जरूरी है कि मनुष्य पहले स्वयं ही चाहिए कि अपनी ओर नज़र करें। और अपने बहुत नम्र हो जाए क्योंकि अगर आपमें नम्रता नहीं भोलेपन को पहचाने। वो कहाँ है, कैसा है. और बड़ा होगी तो आप अपने ही विचार लेकर बैठे रहेंगे। तो मजेदार है ऐसा सोचना चाहिए। अब क ष्ण की जो क ष्ण के जीवन में पहले दिखाया गया कि एक बात है वो यही है कि बचपन में तो वो एकदम भोले छोटे लड़के के जैसे वो थे। बिलकुल जैसा शिशु थे और बड़े होने पर उन्होंने गीता समझाई जो बहुत होता है, बिलकुल ही अज्ञानी, वैसे वो थे। वो अपने गहन है। ये कैसे हुआ कि मनुष्य उसमें बढ़ गया । को कुछ समझते नहीं थे अपनी माँ के सहारे वो इसी प्रकार हम भी सहज में बढ़ सकते हैं। हमने पाया है लेकिन उसमें अभी तक हम चाहिए कि हमारे अन्दर वो कैसे देखा जाता है। ह बढ़ना चाहते थे। इसी प्रकार आप लोगों को भी अपने अन्दर देखते वक्त यह सोचना चाहिए कि बढ़े नहीं। और बढ़ने के लिए चाहिए कि अपने बारे हम एक शिशु बालक है। क ष्ण ने बार बार कहा, में जो ख्यालात हैं उसको छोड़ दें। पहले तो बच्चे लेकिन जीसस क्राइसट ने भी कहा हम एक छोटे जैसा स्वभाव होना चाहिए। अब ऐसा किसी को कहें बालक बने। बालक की जो सुबोध स्वभाव की कि बच्चे जैसा स्वभाव बुनाओं तो बहुत ही कठिन छाया है वो हमको दिखनी चाहिए कि हम क्या बालक जैसी बातें करते हैं? हमारे अन्दर कौन सा छोड़ कर आप बच्चे बन जाओ। लेकिन बच्चों के बात है। ऐसा तो नहीं कर सकते कि जो है उसे नग क जनयरी एवं फरवरी 2004 वैतन्य लहरी खण्ड XVI अंक : 1 एवं 2 रम साथ रहकर, बच्चों के प्रति एक आस्था रखकर, में बहते नहीं है। हम अपने को उससे अलग समझते उनकी बातों को देखकर आप बहुत फर्क कर हैं पर ऐसी बात नहीं है। अगर हम समझ लें कि सकते हैं, और बदल सकते हैं सारी चीजें अपने हमारे अन्दर जो यह प्रवाह है, जो हमें ऐसे रास्ते पर अन्दर की तो सबसे पहले तो जानना चाहिए कि ले जाता है कि जहां हम अपने ही को नहीं पहचान हमारे अन्दर जैसे जैसे हम बड़े होने लगे बहुत से सकते तो फिर आदमी अन्दर की तरफ मुड़ सकता दोष समा गए हैं उन दोषों को कैसे निकालना है अब कहने से कि तुम अन्दर की तरफ जाओ, चाहिए? कैसे-कैसे दोष हमारे अन्दर आए हैं ध्यान करो, अपने अन्दर की बहुत सी बातें निकालो, इसको अगर हम सोचें नहीं और उधर ध्यान दें तो सब कहने को तो कह देंगे पर उससे नहीं होगा। हम उसको ठीक कर सकते हैं ध्यान ऐसे देना है इसलिए प्यार करने में कि जैसे हम किसी से जोर, घ ष्टता से बात करें या और हमारे पास ऐसे साधन हैं जैसे क ष्ण का ध्यान प्रयत्नशील रहना चाहिए। हम किसी की ताड़ना करना चाहते हैं या हम करना। क ष्ण के ध्यान से हमारे अन्दर की सफाई सोचते रहते हैं कि दूसरे आदमी को हम कैसे ठीक हो जाती है। पर हम उल्टे हैं और क ष्ण के ध्यान करें जब हमारा चित्त दूसरों पर जाता है तभी में, हम यह सोचते हैं कि हम दूसरों के दोष देखते हम अपने से अलग हट जाते हैं। क्योंकि हमें खुद हैं। जब हम के ष्ण का दोष देखते है तो हमें दिखाई ठीक होना है इसलिए दूसरों के बारे में सोचने से देता है पर हमें अपना दोष नहीं दिखाई देता। यह क्या फायदा? तो सबसे पहले हमे अपने बारे में ही हमारे साथ बहुत ज्यादती है कि हम अपने दोष नहीं से द ष्टिपात करना चाहिए, देखना चाहिए। पर वो सब देख सकते। क ष्ण के दोष तो देख लेंगे। बहुत हो रहा है और वो बताया हमने। बो तो सहजयोगियों लोग हैं. मैंने देखा है कि किताबें लिखी हैं उन्होंने में घटित भी हो रहा है। क्योंकि अन्दर यह कुण्डलिनी कि क ष्ण में क्या क्या दोष थे क्या गलत कार्य जाग त होती है और वो सब रास्तों में दिखा देती है। किए? उनको कैसे रहना चाहिए था? अपने बारे में अब रही बात यह कि हम किस तरह से जो वो नहीं जानते लेकिन जब अपने बारे में भी सोचते मलिनता है उसको ठीक करे पहली तो बात यह हैं और जब देखा जाता है, तो कभी भी यह द. ष्टि है कि दूसरों के दोष देखने की जो हमारी द ष्टि है नहीं होती कि हमारे अन्दर यह द्रोष है और यह उसको बदल दें, क्योंकि चही दोष हमारे अन्दर भी चला जाना चाहिए। तो हम दूसरों के दोषों पर कि 1 हैं। तो दूसरों के दोष देखने से पहले हमारे अन्दर जाकर अटक जाते है। यही हमको करना क्या दोष हैं यह देखना चाहिए। अगर यह देखना अपने अन्दर क्या दोष है उसे देखा जाए। क ष्ण से हमें आ जाए तो बहुत कुछ अपने आप ठीक हो बढ़कर मैं कोई योगी मानती नहीं हूं क्योंकि उन्होंने जाएगा कोई साधु सन्तों का क्या है कि वो यह रारता बताया कि तुम अपने अन्दर की गलतियाँ अपने अन्दर के ही दोष देखते हैं और अपने ही को देखो। अपने अन्दर के दोष देखो। यह बहुत बड़ी सोचते हैं कि ऐसे क्यों हो गए हम? ऐसी कड़वी बात है। उन्होंने सिर्फ कह दिया और करने वाले बात हम क्यों कहते है। ऐसी झूठी वात क्यों कहते बहुत कम हैं। अगर दूसरों के दोष देख लीजिए तो हैं? तो ये अपने को देखने का एक प्रवाह है। सबको याद है। सबको मालूम है अपने दोष बहुत कम लोगों को समझ में आते हैं। इसलिए वो ठीक ज्यादातर हम उसको मानते नहीं हैं और उस प्रवाह जंनवरी एवं फारवरी 2004 रयरी 2004 चैतन्य लहरी अक -XVI अक : 1 एवं 2 नहीं हो पातें। अपने दोषों से परिचित होना चाहिए । घटित नहीं होता। उसकी क्या वजह हैं? क्यों हम हंसना चाहिए अपने ऊपर कि हम क्या दोष कर रहे अपने को नहीं देख पाते? बीच में पर्दा क्या है? पर्दा हैं। हमारे अन्दर क्या दोष है। ये हमें सोचना यही कि अहंकार आदि जो दुर्गुण हैं वो खड़े हो जाते हैं और उन दोषों को हम देख नहीं पाते। जिनको देखना चाहिए। यह बहुत ज़रूरी चीज़ है। तो होता क्या है कि चित्त हमारे ऊपर नहीं आपने आज की पूजा रखी, मैं बहुत खुश हो गई कि रहता। दूसरों के दोषों पर जाता है और उससे क ष्य की पूजा हो जाएगी तो अन्दर से बहुत से विचलित हो जाते हैं हम लोग और समझ नहीं पाते लोग साफ हो जाएँगे। क्योंकि यह क ष्ण का कार्य कि अरे ये तो हमारे ही दोष थे। इम क्यों दूसरों के है। वो खुद ही इसे करेंगे। पर अगर आप उधर दोष देख रहे थे उससे क्या हमारे दोष ठीक हो रुचि दिखाएं कि आप चाहते हैं कि आपकी पूरी जाएंगे? विलकुल नहीं हो सकते धीरे धीरे जब तरह से सफाई हो जाए। आप जानते नहीं कि यह बात समझ में आ जाएगी तो मनुष्य दूसरों के कितना गहन हमारे यहाँ का यह प्रश्न है। इस प्रश्न दोषों पर लक्षित नहीं होगा अपने ही दोषों को को ठीक करने के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ी। देखकर हैरान होगा कि हमने कितने सारे ये राक्षस लोग पहले तो सब कुछ करते थे. गुरु के आदेशों पाल रखे हैं अपने अन्दर। हमारे मन के अन्दर पर बहुत कुछ करते थे बेचारे, पर गहनता नहीं आती थी। अब आप तो सहजयोगी हैं आपके लिए चाहिए। बजाय इसके कि हम और लोगों के दोष देखें। कितनी कितनी गन्दी बातें हम सोचते रहते हैं। जब यह सफाई शुरु होती है तो मनुष्य विशेष रूप मुश्किल नहीं होनी चाहिए। तो मैं यही कहूंगी कि धारण करता है। और वह रूप ये है कि उसके अपने अन्दर झाँकना सीखिये। चड़ा मजा आएगा। अन्दर शक्तियों आ जाती हैं और उस शक्ति से वह अभी तक तो ठीक थे पर अभी पता नहीं क्यों इस अनेक कार्य कर सकता है इसलिए नहीं कि तरह से करने लग गए आप अपनी तरफ नजर । ये कैसा चलता है मामला। तो बड़ा मज़ा उसका अहकार बढ़े पर इसलिए कि उसकी सफाई करिये होगी। अगर उससे सफाई हो गयी तो अपनी आएगा आप देखकर हसेंगे और कहेंगे वाह क्या सफाई का काम हो गया। तो दोष देखने से हम कहने। अपनी सफाई करते हैं और उन दोषों को छोड़ देते जागेगा। यही क ध्ण की बाल लीला है। जब यह हैं पर यह कॅसे हो, क्योंकि दोष देखना तो भोलेपन से आप साफ होंगे, इसी से नहा लेंगे तो मुश्किल नहीं है, पर उससे छूटना मुश्कल है। आपकी नजर बहुत Steady हो जाएगी । अपने आप इसलिए उसका देखना जो है बो रूक्ष्म होना चाहिए अपने को आप समझने लगेंगे असल में दोष हमारे और बारीक होना चाहिए और उस तरफ नजर ही अन्दर हैं। दूसरों के दोष देखने से हमारे कैसे जानी चाहिए। उससे बहुत कुछ सफाई हो जाएगी। ठीक होंगे? एक सादा सा प्रश्न है-अगर हमारी आज का जो पर्व है उसमें श्री क ष्ण का जो संदेश साड़ी पर कुछ गिरा है कि और हम इसे हटाते नहीं है वह यह है कि आप अपने अन्दर झाँको और और दूसरों को बुरा कहते चले जाएंगे तो इतनी देखो। यह श्री क ध्ण ने कहा है। लोगों को मुश्किल लगता है। वो होता नहीं है। नहीं करते। किसी को समझ में अगर बात न आई म फिर एक तरह का भोलापन आपके अन्दर 1 अकल तो है हमारे पास। मर वो अकल हम इस्तेमाल पर वो करना जनवरी एवं फरवरी 2004 वैतत्य लहरी खण्ड-XVI खण्ड । एवं 2 हि ह० की कि आपका दिमाग कहाँ चल रहा है? अब कहाँ घूम हो तो वो प्रश्न पूछ सकते हैं । चित्त अन्दर जाता है। अब देखिए अपना रहा है? धीरे-धीरे आपकी सफाई हो जाएगी। आज चित्त जा रहा है अन्दर, पर हम डरते ही रहते हैं। का दिन बैसे ही बड़ा महत्वपूर्ण है कि श्री क ष्ण का पर अब अपने आप होना चाहिए। चित्त को आदत अवतार जो है इसने बहुत हमारी सफाई की है और हो जाएगी कि वो आप अन्दर जाएगा। मैं जानती हूँ कि आप लोगों के खूब प्रश्न है। और कुण्डलिनी के जागरण में मैं देखती हूँ हैं, खूब उलझने हैं इसमें कोई शक नहीं। लेकिन बो कप्ण के आशीर्वाद से बहुत सुन्दर चल रहा है । बहुत क्षुद्र है, उसका कोई अर्थ नहीं लगता उससे आप लोग ज़रा अपनी और ध्यान दें। एक तो अपने उपर उठने की बात होती है हमेशा, पर लोग कहते से नाराज़ नहीं होना और दूसरों से नाराज़ नहीं है कि माँ कैसे उठा जाए। ध्यान से । ध्यान में आप होना। बड़ा आनन्द आएगा यही क ब्ण की पूजा अपने ऊपर ध्यान करते है । अपने ही को देखना है है। बड़ी मदद की है। उनके आने से बहुत फर्क हो गया স श्री गणेश पूजा कबैला, 13-9-2003 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (श्रीमाताजी बच्चों को मंच पर आकर जानकारी होनी चाहिए। मैं बहुत से ऐसे बच्ध बैठने के लिए बुलाती हैं) देखती हैँ जो अत्यन्त सदाचारी हैं, सहज हैं और अब हम नन्हें बच्चों के सम्मुख हैं। यही ऐसे भी हैं जिन्हें इस बात का ज्ञान ही नहीं कि बच्चे अवतरण हैं। यही उत्थान प्राप्ति में मानव वे क्या कर रहे हैं। अतः बड़े लोगों का ये कर्तव्य है जाति का नेत त्व करेंगे। मानवता की देखभाल की कि अपने महत्व, आत्मसम्मान की समझ बच्चों के जानी चाहिए। बच्चे कल की मानव जाति हैं और मस्तिष्क में भर दें। जिन सहजयोगियों पर अपने हम आज के हैं। अनुसरण करने के लिए हम उन्हें छोटे भाई-बहनों की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी क्या दे रहे हैं? उनके जीवन का लक्ष्य क्या है? ये हैं उन्हें भी मैं यही कहूंगी। हमारे सहजयोगी परिवार कहना अत्यन्त-अत्यन्त कठिन है परन्तु सहजयोग में सभी प्रकार के लोग तथा सभी प्रकार के व्यवहार से वे मर्यादित ढंग से चलेंगे, मर्यादित व्यवहार हैं। निःसंदेह उनमे एक जुटता (Regimentation) करेंगे। बहुसंख्या में सहजयोगी बनने से सभी कुछ और एक समानता (Uniformity) नहीं होनी चाहिए। परन्तु उनकी भिन्नता में भी सौन्दर्य होना चाहिए। बड़े सहजयोगियों का ये कर्तव्य है एक दूसरे के साथ परस्पर सामंजस्य की सुन्दर कुछ भिन्न हो जाएगा। परन्तु कि उनकी देखभाल करें, उनका चारित्रिक स्तर बेहतर हो, उनके जीवन बेहतर हों ताकि वे आपके जीवन का अनुसरण करके वास्तव में अच्छे लिए हम क्या करें? इस लक्ष्य को प्राप्त करने के सहजयोगी बन सकें। ये बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है । लिए बड़ी आयु के लोग क्या करें। उनके (बच्चों) सम्भवतः हमें इसका एहसास नही है। इस बात को जीवन में हमारा-ठोस योगदान क्या है? सर्वप्रथम हम नहीं समझते, परन्तु ये नन्हें शिशु महान आत्माओं तो हमने उन्हें बताना है कि श्री गणेश कौन हैं की प्रतिमूर्ति हैं और इनका पालन पोषण भी उन्हीं तथा उनके कौन से हैं, वे किसका प्रतिनिधित्व के रूप में किया जाना चाहिए। वैसे ही इनका करते हैं? वे किसका प्रतिनिधित्व करते हैं और सम्मान होना चाहिए और अत्यन्त सावधानी से इन्हें उनके गुण क्या है। एक बार जब वो इस बात को प्रेम किया जाना चाहिए। ये बात समझ लेनी समझने लगेंगे कि यद्यपि वे छोटे से बालक हैं फिर आवश्यक है। हमारे बड़ी आयु के लोगों की समस्या भी इतने उदार करुणामय एवं क्षमाशील हैं-तो वे ये है कि हम बच्चों को ध्यान देने योग्य परवाह आश्चर्य चकित हो जाएंगे क्योंकि वो भी अभी नन्हें करने योग्य और उन्हें समझने योग्य नहीं मानते, बालक हैं तथा वे इसी प्रकार के जीवन को अपना हम सोचते हैं कि हम स्वयं बहुत अधिक विवेकशील लेंगे। एवं अच्छे हैं तथा हमें अपनी शक्ति इन छोटे बच्चों पर नष्ट नहीं करनी चाहिए। बड़ी आयु के लोगों के अच्छे एवं विवेकशील हैं, कूछ शरारती हैं और कुछ साथ ये कठिनाई है। परन्तु आज जब हम श्री गणेश की पूजा रहे हैं। जो भी हो आखिरकार वे बच्चे हैं। हमें करने के लिए बैठे हुए हैं तो हमें जान लेना चाहिए उनकी देखभाल और सम्मान करना चाहिए और श्री ये बच्चे श्री गणेश के अवतरण हैं। तथा इनकी ओर गणेश के विषय में उन्हें पूरी तरह से समझाना उचित ध्यान दिया जाना चाहिए, उनकी हमें उचित चाहिए। मेरा विचार है कि सभी लोग अपने-अपने प्रव त्ति होनी चाहिए। परन्तु समस्या ये है कि ऐसा बनने के गुण मैं देखती हूँ कि यहाँ पर कुछ बच्चे अत्यन्त इस बात को नहीं समझते कि यहाँ पर हम क्या कर कमी मा जनवरी एवं फरवरी 2004 पैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 10 घर में श्री गणेश की एक मूर्ति-स्थापित करें ताकि बच्चे इसे देखें और पूछे कि "ये कौन हैं?" "ये कोई भी ये न सोचे कि आप बड़े हैं, मौन रह सकते क्या कर रहे हैं?" आप हैरान होंगे कि किस प्रकार हैं और मौन पूर्वक बैठे रह सकते हैं। बड़े तो आप बच्चे आपको समझते हैं, किस प्रकार श्री गणेश के केवल तभी हैं जब आप श्री गणेश के गुणों को गुणों को समझते हैं. और किस प्रकार उन्हें कार्यान्वित आत्म-सात कर सकें। मैंने देखा है लोगों कि करते हैं। आप सबके लिए ये आवश्यक है कि बड़ी हो जाती है परन्तु उनमें पावित्र्य एवं ईमानदारी अपने घर में श्री गणेश की एक मूर्ति लगाऐं ताकि के सहज गुण भी नहीं होते, उनमे ये गुण नहीं हैं, ये आप अपने बच्चों से बता सकें कि 'आपको भी इन्हीं गुण वो अपने में ला भी नहीं सकते क्योंकि इन गुणों की तरह से बनना है। कहने से मेरा अभिप्राय ये है कि आपमें से आयु में उन्हें कोई महत्त्व ही नजर नहीं आता। तो मैं यह अब श्री गणेश के गुण क्या है? बच्चों को आप पर छोड़ती हैँ कि अपने अन्दर आप श्री गणेश पावित्र्य (Chastity) समझ नहीं आएगा क्योंकि वो को खोजें मैं बच्चों के सहचार्य का आनन्द इसलिए अभी बहुत छोटे हैं इसलिए ये सभी गुण नहीं समझ लेती हूँ क्योंकि वे अबोध हैं. और सहज हृदय हैं, पाएंगे परन्तु एक गुण उनकी समझ में आ जाएगा बच्चे मुझे बहुत अच्छे लगते हैं । कि ईमानदार होना है। ईमानदारी। शनैः शनैः आप देखेंगे कि सभी असाध्य नहीं। इसके विपरीत, आप समझ लें कि वे बच्चे ठीक हो जाएँगे और ये सब इस प्रकार से कहीं अधिक प्रेम, कहीं अधिक सूझ-बूझ और कहीं कार्यान्वित हो जाएगा। आप जानते हैं कि वो मेरे अधिक विकास के अधिकारी हैं। मुझे आशा है कि भाषण को नहीं समझ सकते और न ही ये समझ आपकी आयु तक पहुँचने तक वे महान सहजयोगी सकते हैं कि मैं क्या कह रही हूँ। परन्तु एक बात निश्चित है कि अन्दर यदि कोई बाधाएँ बड़ी आयु के लोगों की भयानक मूर्खताओं को मुझे (Possessions) होंगी तो वो इन्हें दर्शाएंगे, भली झेलना पड़ा। परन्तु इन बच्चों में ये मूर्खताएँ नहीं भांती दर्शाएंगे-क्योंकि वे अत्यन्त अबोध है, अत्यन्त होंगी, वे अत्यन्त सहज और प्रेम को समझने वाले सहज हैं और उनकी अबोधिता उन्हें सच्चाई का बोध कराने में सहायक होगी। अतः बच्चों की शरारतों से डरें, घबराएं बन जाएँगे, हमारे कार्य के महत्व को आप समझेंगे। होंगे। मैं कहूंगी कि हम इन बच्चों को यहाँ से मुझे आशा है कि आप सब अपने बच्चों की बाहर जाने दें, कोई एक व्यक्ति बाहर जाकर उनपर देखभाल करते हैं, उचित प्रकार से उनका पथ नज़र रखे ताकि आप शान्त हो सकें (कोई भी नहीं प्रदर्शन करते है और उन्हें सूझ-बूझ के उस स्तर उठता और बच्चे भी शान्त होकर मंच पर बैठे रहते तक लाते हैं जहाँ वे समझ सकें कि उनकी स्थिति हैं), इन्हें कौन लेकर जाएगा। क्या है, उनमें कौन से होने चाहियें और कौन से गुणों से उनका सम्मान होगा? आप हैरान होंगे लाऐं है तो मुझे दे सकते हैं। बच्चे श्रीमाताजी को कि उन बच्चों का आचरण अन्य बच्चों के आचरण फुल देना आरम्भ करते हैं। श्री माताजी बार-बार को भी बदल देगा। आप मुझे फूल दे सकते है, आप यदे फूल गुण उन्हें धन्यवाद-धन्यवाद कहती हैं। ज्ञानेश्वरी वर्णित भविष्यवाणियाँ बोर्डी जम 12-2-1984 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन अपने विवाहों को सफल बनाना आप सब आनन्द लेने लगेंगी। आप अच्छी माताएं, अच्छी लोगों की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। पुरुषों से भी पत्नियाँ एवम् ज़िम्मेदार सहजयोगिनियाँ बनने का कहीं अधिक ये जिम्मेदारी आपकी है। आपको इस प्रयत्न करें विवाह के पश्चात् जो महिलाऐं अपमे प्रकार आचरण करना है कि अपने अन्दर आप ऐसा पतियों को सहजयोग से दूर करने का प्रयत्न मात त्व एवं अनुशासन उत्पन्न कर सकें जो आप करतीं हैं वो वास्तव में अत्यन्त अभिशप्त हैं। दूसरों चाहती हैं कि आपके बच्चे आत्मसात करें और जो से अत्यन्त मधुरता-पूर्वक बातचीत करें। जो भी आपके पति में भी हो। आपने देखा है कि आपकी कुछ आपने कहना है उसके बारे में अत्यन्त सावधान माँ (श्रीमाताजी) कभी - कभी एक ही स्थान पर होना चाहिए। आपको ज़िम्मेदार होना होगा आप लगातार नौ-दस घण्टों तक बैठी रहती हैं उस अत्यन्त विशिष्ट लोग हैं कि आपका विवाह सहजयोग स्थान से हिलती भी नहीं। परन्तु मैने देखा है कि में हुआ है। 'मुझे आशा है कि यह बात आप हमेशा लोग एक स्थान पर दो घण्टे भी लगातार नहीं बैठ अपने मस्तिष्क में रखेंगी। सकते चाहे वे ध्यान-धारणा ही क्यों न कर रहे हों। गौरी पूजा वो उठ खड़े होते हैं, सबका ध्यान भंग करते हैं और फिर वापिस आते हैं। यह दर्शाता है कि हममें अनुशासन की कमी है तथा हमारे माता-पिता ने हमें अनुशासन नहीं सिखाया और न ही हमने स्वयं की कोई भूमिका नहीं। ध्यान धारणा करने के को अनुशासित किया। अतः पहली चीज़ ये है कि समय आपका शरीर आपका दास होना चाहिए। आपको अपने स्वभाव को पूर्णतः अनुशासित करना 'यशं' का अर्थ हैं यश तथा रूपं अर्थात होगा। यह इस बात का चिन्ह है कि आप ही लोग मंगलमय-व्यक्तित्व। सहजयोग की पूर्ण भाषावली प थ्वी माँ के प्रतिनिधि हैं जिनमें विशेष विवेक है । संघटित (Integrated) है । जब आप कहते हैं आप सबको अत्यन्त-सावधान रहना होगा कि जो सफलता' तो इसका अर्थ है प्रतिष्ठा' जो कि भी कुछ आप करेंगे बह पूरे परिवार तथा पूर्ण सहजयोग प्रणाली में प्रतिबिम्बित होगा। जब आपके व्यक्ति 'यशस्वी' नहीं होते। संस्कृत भाषा में शब्दों विवाह हो जाते हैं तो यह समझने का प्रयत्न करें के अर्थ कुछ भिन्न ही होते हैं। तथाकथित सफलता कि आप प थ्वी माँ हैं और आपने देना ही देना है यदि आपने प्राप्त कर भी ली, मान लो कोई व्यक्ति क्योंकि आपके अन्दर शक्तियाँ हैं, अतः आप दे मंत्री बन गया, सभी व्यवहारिक कार्यों के लिए वह सकती हैं। इतनी अधिक शक्तियाँ आपमें होने के अंग्रेज़ी भाषा के अनुसार सफल माना जाएगा। गौरी की अपनी ही शक्ति है, इसमें शिव धर्मपरायणता पूर्वक प्राप्त की गई है सभी सफल कारण आपको देना ही है। इसका अर्थ ये हुआ कि परन्तु संस्कृत भाषा में यश' शब्द का अर्थ है एक प्रकार से आप उत्तम हैं कि आप दे सकती हैं। प्रतिष्ठा की प्राप्ति, धर्मपरायणता के माध्यम से इस कार्य में आपका अहं आपके आड़े नहीं आना कमाई हुई प्रतिष्ठा - चारित्रिक प्रतिष्ठा। आवश्यक चाहिए। ताकि आप ये न कहें कि 'मै क्यों करूं? नहीं कि ऐसा व्यक्ति "मैं क्यों यह कार्य करूं? तब आप इस स्त्रीत्व का के रूप में या प्रधानमंत्री के रूप में बहुत सफल हो। बहुत वैभवशाली हो या मंत्री र जनवरी एवं फरयरी 2004 एवं 2 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 12 उसके पास ऐसी सफलता हो जो उसे महान विश्व को नष्ट कर देंगी। अतः हर समय आपने प्रतिष्ठा प्रदान करे जैसे सन्त की प्रतिष्ठा । अतः हमें सहजयोग में उपयोग होने वाले सभी शब्दों को समझ लेनी आवश्यक है। उन्हें अपने पतियों को समझना चाहिए। अब रूपं शब्द का अर्थ है प्रसन्न रखना है। उन्हें प्रसन्न रखना है। महिलाओं को भी यह बात 1 कश्मीर त्रिपुरेश्वरी अर्थात सहस्रार । सौन्दर्य न होकर वो सौन्दर्य है जो मंगलमय हो, हिमालय, आप जानते हैं, सहस्रार है और कश्मीर जिससे आशीष प्राप्त हो सके। ऐसी मुखाक ति जो हिमालय पर स्थित है। 'त्रिपुर शब्द के दो अर्थ आशीषदायी हो, अशुभ विचार देने वाली न हो। हैं - एक तो यह कि उन्होंने त्रिपुर नामक भयानक अर्थ सौन्दर्य परन्तु सहजयोग में इसका अर्थ शारीरिक अतः यह संघटित भाषावली है। इसके एक शब्द के कई-कई अर्थ निकलते हैं। इसलिए भ्रमित नहीं होना चाहिए क्योंकि सौन्दर्य का अर्थ तो सिनेमा अभिनेत्री जैसा होना भी होता है परन्तु वह सौन्दर्य राक्षस का वध किया था और त्रिपुर का दूसरा है त्रिलोक, प थ्वी. आकाश और पाताल 'त्रिपुरसुन्दरी' हैं । कहने से मेरा अभिप्राय यह है कि सौन्दर्य शब्द भ्रामक है, इसका संघटन होना आवश्यक नहीं है। सौन्दर्य का अर्थ तड़क-भड़क नहीं है, है वे स्वर्ग के द्वार खोलती हैं क्योंकि स्वर्ग में ही आप आनन्द ले सकते हैं। 'पश्य' अर्थात वो आशीष इसका अर्थ है आशीषदायी होना, मंगलमय होना। जो आप प्राप्त करने वाले हैं इस शब्द का उपयोग मेरे लिए किया गया है। आपको जो मिलने वाला है वह है माँ का दूध' । आगे वह कहता है कि आप मुक्तानन्द का अर्थ है कि देवी मुझे योग का वरदान, योग का आनन्द, पूर्ण मुक्ति का आनंद प्रदान करती हैं। मुक्ति अर्थात पूर्ण निर्वाण-निर्वाण का लोग जो परस्पर आत्मा से जुड़े हुए है - यह सारा आनन्द । वे ही मोक्ष का द्वार खोलने वाली हैं, वही वर्तमान तथा भूतकाल में सहजयोग का वर्णन है। इस समय पर जो घटित होने वाला है उसे आप प्राप्त करेंगे। आप हैरान होंगे कि अत्यन्त मुझे आत्मसाक्षात्कार की भिक्षा प्रदान करेंगी, भिक्षा की याचना करना। अत्यन्त विनम्रता पूर्वक याचना करने का यही तरीका है। क पया मुझे सुन्दरता पूर्वक यह वर्णन किया गया है कि आप सब लोग ब्रह्माण्ड में एक रूप हो जाएँगे। यज्ञों से अत्यन्त विनम्र तरीका है। जैसे एक भिखारी कहता तथा आप द्वारा किए गए हवनों से ब्रह्माण्ड की है मैं आपसे भिक्षा माँगता हूँ, क पा करके मुझे आत्मा संतुष्ट हो जाएगी। यह बात कितनी उपयुक्त है। उन्होंने यह बात तीन सौ वर्ष पूर्व कही थी तब, आत्मसाक्षात्कार की भिक्षा दीजिए। मॉँगने का यह आत्मसाक्षात्कार दीजिए। मैं आपके द्वारे पर भिखारी हूँ। वे ही नाटक की प्रस्तावना देती हैं, मूक अभिनय हमसे संतुष्ट होकर आप हमें अपने आशीर्वाद का वाले नाटक में सारे सूत्र उनके हाथ में हैं। वही सूत्रधार' हैं। सारे सूत्र उन्हीं के हाथ में हैं। सारे सूत्र, सारी रस्सियाँ उन्ही के हाथ में होती हैं फिर भी वे हमसे सारा नाटक करवाती हैं। उनकी यही मित्रता स्थापित हो जाएगी। अज्ञानी लोगों को ज्ञान क्षीर प्रदान करें। उस समय सभी आसूरी शक्तियाँ तथा आसुरी नियम नष्ट हो जाएँगे तथा लो ग धर्मपरायणता अपना लेंगे। तब लोगों में आत्मिक का प्रकाश प्राप्त हो जाएगा। पूरे ब्रह्माण्ड को प्रकाश शैली है। ये बात सत्य है। इस बात पर हम सहमत हैं। आप यदि उन्हें प्रसन्न नहीं रखेंगे तो वे पूरे नज़र आ जाएगा एक ब्रह्माण्डीय धर्म का सूर्य जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 13 दिखाई दे जाएगा। उनकी सभी इच्छाऐं पूर्ण हो अन्य लोगों को पैगम्बर बनाने की शक्तियाँ होंगी। जाएँगी, ऐसे सभी मुनष्यों की। जब आप उनसे परन्तु सहजयोगी बनने के बाद भी हमें इस बात का (देवी) मिलेंगे तो आशीर्वादों की और, निःसंदेह, एहसास नहीं होता कि हम क्या हैं? इतनी अच्छी चैतन्य की झड़ी लग जाएगी। जब आप उनसे अवस्था पाकर भी हम मूल्यहीन चीज़ों के विषय में मिलेंगे-वह 'मैं हूँ.. (तालियों की गड़गडाहट) । चिन्तित रहते हैं । इन सब मूल्यहीन तथा नश्वर यह सहजयोगियों का वर्णन है। आप इसे अवश्य सुनें। हजारों की संख्या में वे जंगल की तरह से, नहीं है, यदि आप सोचते रहें तो आप मात्र अपनी विशाल पेड़ों वाले चलते फिरते जंगलों की तरह से, शक्ति नष्ट कर रहे हैं। इस प्रकार अब आप अपना आशीष प्रदायी पेड़ों की तरह से वे लोग होंगे। जीवन नष्ट कर रहे हैं क्योंकि अब आप वो बन चुके चीजों के विषय में, जिनका कोई आध्यात्मिक मूल्य 'कल्पतरु' वह पेड़ होता है जो आपको मनोकामना हैं जिसका वर्णन महान सन्तों ने किया है - अम त प्रदान करता है। वे चलते-फिरते जंगलों सम होंगे के बोलते-चालते सागर - अम त के सागर। वो अम त अर्थात आप लोग उन्हीं सम महान हैं। आप नहीं जो हम जानते हैं। यह आध्यात्मिक आशीर्वाद उन्हीं चलते फिरते महान पेड़ों जैसे हैं जो दूसरों का अम त है। जब आप वह बन गए हैं तो अपने को आशीर्वाद देते हैं और उनकी मनोकामना प्रदान विषय में आपसे क्या आशा की जाती है। इसका करते हैं। वो लोग अब आप ही हैं बोलते हुए पता लगएं, स्वयं पता लगाएँ, अन्तरअवलोकन करें जीवन्त अम त के सागर, 'जीवन अम त के सागर'। कि अपने बारे में मुझसे क्या आशा की जाती है और आप वही बोलते चालते जीवन्त अम त के सागर इस दिशा में मैं क्या कर रहा हूँ? मैं एक व्यर्थ की चीज़ के लिए चिन्तित हूँ, दूसरी व्यर्थ की चीज़ के लिए चिन्तित हूँ, और मुझे होना चाहिए आध्यात्मिक समुद्र है। समुद्र के अन्दर के होंगे। जैसे यहाँ ये पेड़ों को देखें। 'सागर' इस प्रकार से बात करता है कि अम त का सागर! मुझे तो कल्पतरुओं का जंगल इससे अम त प्रवाहित होता है, आशीष रूपी अम त। होना चाहिए, उन व क्षों का जो लोगों को वरदान देते आप ही वही लोग हैं आप ही दाग रहित चन्द्र की हैं, महान विजयें प्रदान करते हैं । परन्तु मैं क्या कर तरह से होंगे पूर्ण स्वच्छ, बेदाग, कलंक रहित-पूर्णतः रहा हूँ? मेरा तो चित्त भी ऐसा नहीं है जो परमेश्वरी कलंक रहित। ताप रहित सूर्य की तरह से। वो ऊर्जा को आत्मसात कर सके! चित्त ऐसा होना लोग आप ही हैं ऐसे लोग जो धर्मपरायण हो जाएँगे तथा धर्म और सत्य जिनका आधार होगा। सकू। परन्तु ऐसा होने के स्थान पर मेरा चित्त तो वो सब परस्पर जुड़े हुए होंगे। पूर्ण विश्व में वे गलत चीजों पर है और मैं कर क्या रहा हूँ? अपने परस्पर जुड़े हुए होंगे। उस आरम्भ के साथ, हम महाराष्ट्र के गुण की अभिव्यक्ति करने की योग्यता मुझमें नहीं महान सन्तों को जानते हैं। ज्ञानेश्वर जी उनमे से महानतम थे वे भविष्य द ष्टा थे जिन्होंने आप लोगों युगों के बाद मैंने जन्म लिया है । बहुत बार मेरा के विषय में भविष्यवाणी की और बताया कि जन्म हुआ । मैं सन्त था और हमेशा परमात्मा की परमात्मा के बन्दे पैगम्बर बन जाएंगे तथा उनमें खोज में भटकता रहा, हमेशा मैं इस खोज में आ चाहिए कि मैं परमात्मा की इच्छा को आत्मसात कर (उत्थान के) लिए मैं क्या करता हूँ? क्या उस विशेष है? उस उच्चतम गुण की। मैं जिस रूप में अब हूँ | पैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 जनवरी एवं फरवरी 2004 14 एकरूपता पूर्वक प थ्वी मॉाँ से जुड़ नहीं जाते तो म त पेड़ की तरह से आपका भी पतन हो जाएगा। अंतः ये समझ लेना अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि आप महान को लिए मैं घूम रहा हूँ। यह बात जब आप समझ हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं। ये पेड़ महान हैं, संघर्ष जाएँगे तब आप ये जान जाएँगे कि आज हमारी करके ये उन्नत हुए हैं परन्तु आपका चित्त कहाँ इस अन्तर्राष्ट्रीय गोष्ठी के अवसर पर इसका क्या हैं? आप यहाँ किस लिए हैं? आवश्यकता किस महत्व है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आप सभी परस्पर चीज़ की है? उत्थान में बाधक चीजों से चिपके सम्बन्धित है किसी अन्य से आपका कोई सम्बन्ध रहने की? उन चीजों से चिपके रहने की जो हमेशा भटकता रहा और इस जीवन में जब ये महान कार्य करने के लिए मेरा जन्म हुआ है एक बार फिर मैं उन्हीं मूर्खताओं में फँस गया हूँ। उन्हीं मूर्खताओं नहीं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आप एक दूसरे से आपके विरूद्ध होती हैं। सम्बन्धित हैं और ये सम्बन्ध गहन मित्रता के उत्थान मार्ग में हमारे लिए सबसे बड़ी सम्बन्ध है। इसमें पक्षपात, कामुकता, लोभ आदि बाधा हमारा मूर्खतापूर्ण अहम् है। यह बात हमें का कोई स्थान नहीं होता ये केवल मित्रता है यह समझ लेनी है कि अहम् हमारे अन्दर सबसे बड़ी शुद्ध मित्रता है और हम वहीं हैं। तो ये कहना । रुकावट है। हमें इसके चंगुल से निकलना होगा उचित होगा कि यह केवल प्रेम है, स्नेह है, अच्छाई कुण्डलिनी को भी इन्ही पेड़़ों की तरह से उठना है और यह केवल माधुर्य है परन्तु आपको समझ होगा परन्तु हम सबमें, अधिकतर लोगों में अहम् लेना होगा कि आपने उस स्तर तक उठना है । ये सबसे बड़ी बाधा है। यह बहुत तरीकों से दिखाई पेड़ वातावरण से, पूर्ण वातावरण से लम्बा संघर्ष देता है जीवन की सभी उपलब्धियाँ प्रदान करने करने के बाद इस स्तर तक पहुँचे हैं । प थ्वी माँ, वाली प थ्वी माँ से ही हम लड़ते हैं। आप प थ्वी माँ जिससे ये जुड़े हुए हैं, की सहायता के अतिरिक्त ये की ही देन हैं। उसने ही आपका स जन किया है, अपने ही बलबूते पर उन्नत हुए हैं। अतः आप लोगों आपको बनाया है, उन्हीं की क पा से आप उन्नत हुए को समझ लेना चाहिए कि स्वयं से लड़कर इस हैं परन्तु आप उसी से लड़ रहे हैं और उसी के बात का पता लगाएँ कि आपमें क्या कमी है तथा विरूद्ध कार्य कर रहे हैं! यह गलत है। आप किस प्रकार चलेंगे? एक बार जब आप उन्नत होने लगेंगे सर्वप्रथम देखें कि आपका चित्त कहाँ है? सूर्य आपकी सहायता करेगा, प्रक ति आपकी सहायता चित्त की गति ऐसी होनी चाहिए कि यह बाह्य रूप करेगी। परन्तु आपको अपनी तुच्छता से, अपने से उन्नत हो और आंतरिक रूप से माँ (श्री माताजी) स्वाथ्थों से, अपने बन्धनों से और विशेषरूप से अपने के प्रति पूर्ण सम्मान पूर्वक जुड़ा रहे। जो लोग ये अहम् से अपर उठने की द ढ़ इच्छा होनी आवश्यक कार्य नहीं कर सकते वो लोग व्यर्थ हैं जिस पेड़ है । जब हम आपकी तारीफ करते हैं तो आपको ने मज़बूती से प थ्वी माँ को पकड़ा नहीं है वह गिर फूल कर कुप्पा नहीं हो जाना। मान लो कि मैं जाएगा कहने से अभिप्राय यह है बहुत बड़ा करता है वैसा ही उसे फल प्राप्त होता है। प थ्वी माँ पेड़ बन जाएगा तो इसका अर्थ ये नहीं है कि पेड़ ने इससे कुछ नहीं लेना-देना। प थ्वी माँ का ये बड़ा हो गया है । आप संभी को संघर्ष करके वह है और यदि आप पूर्ण निष्ठा एवं निरन्तर विशालता प्राप्त करनी होगी परन्तु उसके लिए स्वयं को उन्नत करें। कि जैसा वह कहती हूँ कि आप एक छोटे पेड़ हैं जो विशेष गुण जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 15 आपको अपने में श्री ज्ञानेश्वर, तुकाराम तथा रामदास अभिव्यक्ति करती है। अतः पूर्ण सूझ-बूझ से आन्तरिक जैसे सन्तों के विकसित करने होंगे उन्होने उत्क्रान्ति प्राप्त करनी है । तब मुझे आपको किसी के कभी मुझे नहीं देखा, बिना मेरे दर्शन किए ही मैने विषय में बताना नहीं पड़ेगा | तब आप पर इन उनका पोषण किया परन्तु उन्होंने अपनी महानता बेवकूफी भरी बातों और बकबक का कोई प्रभाव न से ही स्वयं को पोषित किया आपको भी वैसा ही होगा आपमें से कुछ लोग बुद्धिवादी हैं, बुद्धिवादियों महान होना होगा इसकी अपेक्षा आप तो अपने में हर चीज़ को बौद्धिक रूप देने की बुरी आदत विषय में मिथ्या विचारों, क त्रिमताओं, हास्यास्पद होती है। परमात्मा की द ष्टि में बुद्धिवाद कुछ भी धारणाओं आदि में ही जिए जा रहे है। उन सारी नहीं है क्योंकि परमात्मा ने ही उसका स जन किया गुण मूर्खताओं से चिपके हुए हैं जो आपने अपने है। अतः आपको सावधान रहना होगा। पालन - पोषण, राष्ट्रीयता, पढ़ाई-लिखाई, गुरुओं कुछ लोग अत्यन्त भावुक होते हैं और तथा मानसिक प्रक्षेपणों के माध्यम से एकत्र की हैं। अत्यन्त भावुकता पूर्वक अपनी अभिव्यक्ति करने का इन दुर्गं के साथ तो हम सभी सहजयोगियों के प्रयत्न करते हैं। आपको उन धारणाओं से बाहर लिए अत्यन्त ही भयानक साबित हो सकते हैं और आना होगा और समझना होगा कि जीवन की भावनाओं की बहुत भयानक भूमिका हो सकती है। बोर्डी में हमने बहुत से विवाह करने का व्यवहार ऐसा होगा जो हमारे, किसी अन्य की नहीं, निर्णय किया है यह बहत अच्छी और मंगलमय अवतरण (पद) को शोभा दे। इस समय पर हमारा बात है। इतने सारे विवाह होंगे इसकी मुझें बहुत अवतरित होना जिसकी भविष्यवाणी और वर्णन प्रसन्नता है कि इतने सारे विवाह हो रहे हैं । यह इसका प्रभाव सामूहिकता पर भी पड़ सकता है। अतः आज हमें शपथ लेनी होगी कि हमारा किया गया है, यह भविष्यवाणी बहुत समय पूर्व की बहुत ही शुभ है क्योंकि विवाह को परमात्मा का गई थी। अगर हम ये समझ लें कि हम उसी लक्ष्य आशीर्वाद प्राप्त होता है। आप लोग विशेष हैं क्योंकि के लिए प थ्वी पर आए हैं तो हम वास्तव में स्वयं को इन विवाहों के लिए मैं आपके सम्मुख बैठी हूँ। सभी प्रचलित मूर्खताओं से प थक कर लेंगे और इन इनका बतंगड़ न बनाएँ। छिछोरे बनकर समस्याएँ न पेड़ों की तरह से आकाश की ओर उठने का प्रयत्न खड़ी करें यह 'ब्रह्मएक्य' विवाह हैं, जिस स्थिति में करेंगे। उत्थान-विरोधी गतिविधियों में किसी अन्य व्यक्ति आत्मा से एकरूपता महसूस करता है, सहजयोगी का अनुसरण आपको नहीं करना चाहिए। सर्वव्यापी शक्ति से तादात्मय होता है। यह समझने कोई यदि किसी प्रकार का भूत बनाने की या आपको यह कहकर कि वह आपको कुछ ऊँचा या बड़ी बात सिखा सकता है, या कोई अन्य तकनीक गुणों का सम्मान करें कोई यदि उच्च दर्जे का | का प्रयत्न करें। ये विवाह संतों के मध्य हो रहे हैं. सामान्य लोगों के बीच नहीं। व्यक्ति के आन्तरिक बता सकता है और इस प्रकार यदि कोई प्रभावित सहजयोगी. है तो उसका सम्मान होना चाहिए, उसे करने का प्रयत्न करे तो आप उस पर विश्वास न प्रेम किया जाना चाहिए। बाह्य गुणों को अधिक करें। महत्व नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि बाह्य गुण तो सर्वप्रथम ये बात समझ लें कि सहजयोग मात्र मूर्खता होते हैं। विवाह के पश्चात् पति-पत्नी आन्तरिक उत्क्रान्ति है जो बाहर की ओर अपनी को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए क्योंकि | चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अक : 1 एवं 2 जनवरी एवं फरवरी 2004 16 आप लोग सन्त है-उच्च दर्जें के सन्त जैसा मैने इन्होंने हासिल की है. वो इस वातावरण से लड़ आपको बताया आपमें महान सम्भावनाएँ छुपी हुई कर, झगड़ कर, बाहर आकर, अपना सर ऊँचा उठा हैं। उस बात का पहले से ही वर्णन किया गया है कर के। जो लोग अपना सर दुनियाई चीज़ों के कि अपनी स्थिति में स्थापित होने से ही आपकी लिए, क त्रिम चीजों के लिए, बाह्य चीज़ों के लिए झुका लेते हैं वो कैसे उसे पा सकते हैं? या जो महानता स्थापित होगी आप महान बन सकेंगे। अब मैं हिन्दी में थोड़ा सा आपको बताना अपना चित्त इस धरती माँ से हटा लेते हैं वो तो मर चाहती हूँ कि सहजयोग में हम लोग अब ये नहीं ही जाएँगे इसलिए हर सहजयोगी का ये कर्तव्य जानते कि हमारे बारे में हजारों वर्ष पहले ये बताया है, ये पूरी तरह से कर्तव्य है कि वो जाने कि सारी गया था कि ऐसे महान लोग संसार में आयेंगे और दुनिया आपकी तरफ आँख लगाए बैठी हुई है और पहाड़ के पहाड़, ऐसे बड़े-बड़े व क्षों के बड़े-बड़े आप अपने गौरव को पहचानें। अरण्य संसार में घूमेंगे, जो बोलते हुए, चलते हुए, दुनिया को उनकी इच्छाओं की पूर्ति के कल्पतरु और यह घटित होने की आशा कर रहा है। पूरे जैसे उनके आशीर्वाद देंगे और एक-एक व्यक्ति में विश्व में इसकी घोषणा हो चुकी है परन्तु हम कहाँ जैसे सागर उमड़ते हैं, जिसमें की अम त बोलता है है? हमारी उन्नति बहुत धीमी है। छोटी छोटी ऐसे सागर, ऐसे सूरज होंगे-चमकते हुए सूरज भौतिक, सांसारिक, सतही एवं बनावटी मूर्खता पूर्ण जिनके अन्दर कोई भी अग्नि नहीं, ऐसे चन्द्रमा चीजों की हम चिन्ता करते हैं। पूरा विश्व इसकी जिनके ऊपर कोई कलंक नहीं। ये आपके वर्णन घोषणा कर चुका है। अतः व्यक्ति को समझना है। हजारों वर्ष पहले ज्ञानेश्वर जी ने किए कि कितना आज आप लोग यहाँ इस अन्तर्राष्ट्रीय गोष्ठी में मुझे आपका महत्व उन्होंने बताया, कि कितना जरूरी वचन देने के लिए आए हैं। है-सारी दुनिया के लिए। सारी दुनिया के लिए विश्व आपकी उन्नति को देख रहा है पूरा 1 आप लोग यहाँ मुझे वचन देने आए हैं इस अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार (संगोष्ठी) पर कि माँ एक आशा है। पूरा विश्व इस घटना के घटित होने की आप जितनी मेहनत करते हो उसी तरह से हम आशा कर रहा है कि ऐसे लोग प थ्वी पर अवतरित भी मेहनत करेंगे। हों जिनके विषय में वर्णन किया गया है। इस पूजा में आए सभी लोग आयु में मुझसे छोटे हैं। आप सभी लोगों को मुझे वचन देना होगा कि श्रीमातीजी हम भी उसी जोश तथा उसी तल्लीनता से सहजकार्य करेगें जिस प्रकार आप इस तरह से हो रहा है, और हो गया है । लेकिन अभी इसकी प्रगति, मेरे विचार से, बहुत धीमी है। इसकी प्रगति बहुत धीमी है । प्रगति आपकी वजह से धीमी हो जाती है। ऐसी जगह करती हैं तथा स्वयं को स्थापित करने का प्रयत्न चित्त आपका जाता है जहाँ हम अपने को गिरा लेते करेंगें। स्वयं को हम शान्त करेंगे। हम बोलते बहुत अधिक हैं, बातें बहुत अधिक हैं परन्तु करते कुछ भी नहीं । आन्तरिक मौन द्वारा अपनी शक्ति के हरास को बचानें का प्रयत्न करें । हैं। अपना चित्त इस पेड़ का जैसा इस प थ्वी से पूरी तरह से निगड़ित है. ऐसा आपको अपनी माँ के साथ निगड़ित करना चाहिए और उसकी जो ऊँचाई है, उसके ओर द ष्टि होनी चाहिए। ये ऊँचाई जो भी उस शान्तिमय गौरव में अपने को उतारें। लम जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 17 अपने बारे में पूरी कल्पना होनी चाहिए कि आप हैं से भरे हुए लोगों में से इस अम त का संचार कैसे क्या। आपको पूरा ज्ञान होना चाहिए कि आप क्या कर सकते हैं? आपको विशाल हृदय महान व्यक्ति हैं? इस बात की आपको समझ होनी किस लक्ष्य को लेने के लिए आप चले थे और एक बार पुनः महान है। परन्तु आप तो अपने इसकी प्राप्ति के लिए क्या किया। यह इस प्रकार वातावरण से प्रभावित हैं। अतः अपने और समय के कार्यान्वित नहीं होगा। सभी कुछ अच्छा है। भविष्य महत्व को समझने का प्रयत्न करें। यह समय अपनी चाहिए कि होना होगा आप सब द्विज (Born Again ) है जो | 1 बहुत आनन्दमय प्रतीत होता है। हर चीज़ बहुत पूजा करने का है, परन्तु पूजा के योग्य भी होना अच्छी प्रतीत होती है। परन्तु सबसे बड़ी चीज़ तो होगा आप समझते हैं कि अच्छे वस्त्र पहनने से या आपकी माँ की आशा है कि आप पूरे विश्व का किसी प्रकार का दिखावा करने से हम पूजनीय बन उद्धार करेगें। इस बात की ओर ध्यान दें ये सोचे जाते हैं तो यह बात ठीक नहीं है। हमें स्वयं के लिए कि आपने यह कार्य करना है आप ही लोग चलते, पूजनीय होना चाहिए। जो भी कुछ हम कुर रहे हैं बोलते, घुमते, परमेश्वरी प्रेम के जंगल हैं, वह उसमें सन्तों की गरिमा, सौन्दर्य, प्रेम तथा महानता | | ऋतम्भरा प्रज्ञा हैं। मुझे आशा है के आप इस बात होनी चाहिए, महान सन्तों की, साधारण लोगों की को समझेंगे कि आज अत्यन्त महत्वपूर्ण दिन है और नहीं। वास्तव में इसका वर्णन किया जा रहा है । मुझे कार्यान्वित होता है तो सम्भवतः अगले सत्र तक हम पूजा की है। काश हमारे यहां ज्ञानेश्वर जी जैसे बड़ी उपलब्धि प्राप्त कर लें। आप सबसे मेरी यही विनती है कि निष्ठा आप लोग मेरे शरीर से बाहर हैं। अत: उन्होने लगता है कि यह सत्र यदि ठीक प्रकार ज्ञानेश्वर जी ने अपनी कविता में वास्तव में आपकी लोग होते। परन्तु वे सब मेरे शरीर में स्थापित हैं। बहुत पूर्वक ध्यान धारणा करें। आज हमें पूजा करनी है। (सन्तों ने) जो कुछ कहा है उसे आपने पूर्ण करना इस समय एक बहुत बड़ा स्रोत खोला जाना है। है केवल इतना ही नहीं ज्ञानेश्वर जी ने जो कुछ परन्तु इसका प्रवाह लोगों में होना चाहिए। परन्तु भी कहा था वह सत्य है। मिथ्या अंहकार, मूर्खता तथा छोटे - छोटे पागलपनों परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। निर्मल विद्या क सारे परमेश्वरी कार्य, क्षमा करना भी, जो हम करते हैं वे सब एक विशिष्ट शक्ति द्वारा करते शक्ति है, 'अबोधिता' की शक्ति, इसे 'अबोधिता आपकी आज्ञा का पालन करती है। परन्तु यह गणेश (innocence) कहा जाता हैं। पूरी शक्ति, क्योंकि यह अबोधिता है अतः अबोधिता कार्यभार सम्भालकर हैं। जब आप कहते हैं. "श्री माता जी, हमें क्षमा कर दीजिए।" जिस तकनीक से मैं आपको क्षमा करती हूँ वह 'निर्मल विद्या' है। जिस तकनीक से मैं सभी कुछ चलाती है। इस प्रकार से यह कार्यान्वित आपको प्रेम करती हूँ वह भी निर्मल विद्या है । जिस होती है। तकनीक से मैं आपको प्रेम करती हैँ बह भी निर्मल विद्या है। जिस तकनीक से सभी मन्त्रों की और पराशक्ति कहलाती है 'शक्ति से परे । तत्पश्चात् अभिव्यक्ति होती है तथा वे प्रभावशाली होते हैं वह ये मध्यमा आदि बन जाती है। जब यह बाई विशुद्धि भी 'निर्मल विद्या' है । तत्पश्चात् यह उन्नत होती चली जाती है पर आती है तो व्यक्ति में दोष भाव आ जाता है। " अपनी दोष भावना के कारण आप कहते हैं कि चीजें "निर्मला' अर्थात् पावन, विद्या का अर्थ है ज्ञान। निर्मल विद्या इस तकनीक का पावनतम बड़ी कठिन हैं। बाई विशुद्धि गणेश शक्ति की पकड़ ज्ञान है। यह छल्लों (Loops) का स जन करती है। होती है गणेश माधुर्य हैं। श्री गणेश को देखने मात्र यह शक्ति छल्लों का स जन करती है तथा कई से ही ये कौतुक, यह पावन प्रेरणा बहने लगती है। भिन्न आकारों की रचना करती है जिनके द्वारा यह गतिशील होती है और सभी आवांछित एवं अपवित्र बाई विशुद्धि पर अबोधिता कठोर हो जाती है। अतः तत्वों को खदेड़ कर अपनी शक्ति से स्वयं को बाई विशुद्धि की पकड़ को दूर करने के लिए आप परिपूर्ण कर लेती है। ये एक तकनीक है. 'दिव्य सबको तकनीक जिसको मैं आपके सम्मुख शायद पूरी आपकी भाषा अत्यन्त मधुर होनी चाहिए। विशेष तरह से वर्णन न कर सकूं क्योंकि आपका यन्त्र रूप से पुरुषों को चाहिए कि अपनी पत्नियों से बहुत (शरीर) अभी तक ये कार्य नहीं करता-आपके पास मधुर बोलें। यह माधुर्य आपकी बाई विशुद्धि को ठीक वैसा यन्त्र नहीं है । उनके बारे में सोचने मात्र से ही आप प्रसन्न हो जाते हैं। मधुर शब्द उपयोग करने चाहिएं। सबके प्रति मीठा बोलें। मीठे शब्द खोजने करेगा। हमेशा बहुत आप देखिए कि ये कितनी सूक्ष्म है! 'निर्मल का प्रयत्न करते रहें । मधुर शब्द, दोष भाव को विद्या' उच्चारण मात्र से आप इस शक्ति को, पूरी सुधारने का सर्वोत्तम उपाय हैं। क्योंकि यदि आप चीज़ को, पूरी तकनीक को निमंत्रण देते हैं कि वह किसी को कठोर शब्द कहते हैं तो हो सकता है कि आकर आपकी देखभाल करे और यह आपकी आप आदतवश ऐसा कर रहे हों या इससे आपको देखभाल करती है, आपको चिन्ता नहीं करनी पड़ती। प्रसन्नता मिलती हो। तुरन्त ज्योंही आप कठोर शब्द किसी भी सरकार में या विश्व में, कहीं अन्यत्र, ऐसा बोलते हैं उसके तुरन्त बाद आप कहते हैं कि. "हे घटित नहीं होता। आप सरकार का आहान करें परमात्मा, मैंने यह क्या कह दिया!" यह सबसे बड़ा और सभी कुछ कार्यशील हो उठे, पूरे ब्रह्माण्ड में, दोष है । व्यक्ति को सदैव मधुर शंब्द खोजने का पूरी स ष्टि में। इस तकनीक को निर्मल विद्या कहते प्रयत्न करते रहना चाहिए। जिस प्रकार यह पक्षी हैं। एक बार इसके प्रति समर्पित होकर यदि इसमें चहचहा रहे हैं इसी प्रकार आपको भी सभी चीजों के | कुशलता प्राप्त कर लीजिए तो यह पूरी तरह से स्वर सीखने चाहिए जिनके द्वारा आप लोगों को चैतन्य लहरी खण्ड XVI ज नवरी एवं पारदरी 2004 : 1 एव 2 एच 2 19 प्रसन्न कर सके। ऐसा करना बहुत आवश्यक है। विकास अत्यन्त सुन्दर है । इस प्रकार से हमारी अन्यथा यदि आपकी बाई विशुद्धि की पकड़ बहुत इच्छा ही आत्मा बन जाती है. आपकी इच्छा और अधिक बढ़ गई तो आपमें बातचीत करने की ऐसी आत्मा एकरूप हो जाते हैं । परन्तु कभी-कभी यह विधि उन्नत हो जाएगी जिससे आपके होंठ बाई बाधा बहुत बुरी हो सकती है। आपने देखा है कि ओर को खिंच जाएँगे। तत्पश्चात् प्रसार (चैतन्य) ऊपर को जाने कठोर बोलते हैं तो उन्हें यह बात समझ लेनी चाहिए लगता है, आज्ञा चक्र में, जहाँ गणेश शक्ति क्षमा की कि यह आप नहीं बोल रहे । कौन बोल रहा है? नहीं, महानतम शक्ति बन जाती है। इसके बाद यह क्योंकि आप आत्मा हैं और आत्मा कोई भी कठोर मस्तिष्क क्षेत्र में प्रवेश करती है जहाँ गणेश शक्ति या विध्वसक बात नहीं बोल सकता। किसी को सुध सूर्य से ऊपर जाती है। प्रतिअहम् प्रकट होता है रने के लिए यदि बहुत आवश्यक हो तभी वह कुछ और यह चन्द्र की शक्ति है और यह चन्द्र आत्मा कठोर कहेगा परन्तु आप इसकी (सुधारने की) है। आत्मा बनकर यह सदाशिव के सिर पर बैठ ज़िम्मेदारी न लें. यह कार्य कोई अन्य कर देगा। जाती है। यह वही शक्ति है। गणेश शक्ति का पूर्ण जिन लोगों में बाई विशुद्धि की पकड़ है वो जब परमात्मा आपको आशीर्वादित करें. मैं ही आदिशक्ति हूँ न्यूयार्क, 30-09-1981 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ग्रन्थों में इस बात का वर्णन है कि ईसामसीह पड़े। अत: अब उन्हें चाहिए कि ईसामसीह को न को सूली पर चढ़ाने वाले लोग पुनर्जन्म लेते रहते हैं नकारें । परमेश्वरी शक्ति की प्रतिमूर्ति को आप और बार-बार क्रूसा रोपण करते हैं। क्रसा रोपण नकार नहीं सकते ईसाई लोग गलत हो सकते हैं। (crucifixion) ईसामसीह का संदेश नहींी है यही उन्होंने यदि आपको सताया है तो आप उन्हें क्षमा कारण है कि क्रास पहनने वाले लोग मुझे पसन्द कर दो। वे भी तो आप ही जैसे हैं धर्मान्ध, नहीं हैं। मै उन्हें देख भी नहीं पाती। क्रास उनका धर्मान्ध, धर्मान्ध। वो चाहे इसाई है या मुसलमान सन्देश नहीं है। निःसन्देह यदि क्रास पहना हुआ हो हैं, सभी लोग अन्य लोगों जैसे हैं। मुझे कोई तो बुरी आत्माएं दौड़ जाती हैं। परन्तु यह एक अन्तर नहीं दिखाई देता। कट्टर, अज्ञानी और धर्मान्ध । असहनीय घटना की याद दिलाता रहता है। उनकी उन लोगो को क्षमा कर दें। (Matthew-lI) मैथ्यु-I के माँ में सभी शक्तियों थी। वे महालक्ष्मी थीं। उनमें दूसरे अध्याय में ईसामसीह ने स्वयं कहा था कि भी ग्यारह शक्तियाँ थी-ग्यारह विध्वंसक शक्तियाँ। आप मुझे पुकारेंगे-ईसा, ईसा. ईसा. परन्तु में आपको आप इसकी कल्पना कर सकते हैं। क्रूसारोपित होते नही पहचानूँगा कि आप कौन हैं । हम लोग जो ईसा भी उनमे यह शक्तियां विद्यमान थीं। परन्तु का नाम लेते हैं वे ईसा के स्वनियुक्त प्रतिवक्ता हैं। हुए बिना कोई विध्वंस किए वे क्रूसारोपित हो गए। इस हम ही लोग ईसामसीह के अधिकारी बनते हैं। ऐसे सभी लोगों पर अभियोंग चलाया जाएगा और जिस बात का उन्होंने ध्यान रखा। अब लोग प्रश्न कर सकते हैं, "ईसामसीह प्रकार उन्होंने ईसा-मसीह के मामलों को सम्भाला पुनर्जीचित किस प्रकार हुए?" सर्वप्रथम तो लोगों ने है, उन्हें नर्क में धकेला जाएगा। उनमें से कुछ लोग "निष्कलक गर्भाधारण' (Immaculate conception) सच्चे हैं क्योंकि उन्हें इस बात का ज्ञान ही नहीं कि पर भी एतराजं किया कहने का अभिप्राय है कि लोगों की हर चीज़ पर एतराज है। ईसामसीह आत्म साक्षात्कार प्राप्त करना होगा उन्हें मानव नहीं थे वे परमेश्वरी शक्ति थे। मैं लोगों को अपने हृदय में धारण करती हूँ। आप को समझना चाहिए। उन्हें चाहिए कि अपने हृदय में जानते हैं कि अपनी कुण्डलिनी को उपयोग करके ईसा-मसीह को जाग त करें। मैं तुम्हें अपने हृदय मे स्थान देती हूैँ और फिर हृदय से ही आपको जन्म देती हैं । जिस प्रकार से आपको कहा था कि आपको पुनर्जन्म लेना होगा, कि मुझे दूसरा जन्म प्राप्त हुआ है इसी प्रकार से ईसामसीह आपके हृदय में जन्म लेना होगा अब हृदय चक्र भी निष्कलंक थे। उनकी माँ नें उन्हें हृदय में धारण यहाँ पर है और यहीं पर भी (हृदय, सहस्रार) । किया और फिर अपने गर्भ में और तत्पश्चात् उन्हें क्योंकि हृदय को तालूरन्ध पर स्थापित चक्र (सहस्रार) जन्म दिया। ईसामसीह पर सन्देह करना और ही नियन्त्रित करता है और जब उन्होंने यह कहा उनके विरुद्ध बातें करना आसान है क्योंकि अब वे कि आपको उन्हें अपने हृदय में स्थापित करना म थ्वी पर नहीं हैं यहूदियों को सबक लेना चाहिए। होगा तब उन्होंने यही बात कही थी कि आपको एक बार उन्हें नकार कर यहूदियों को कष्ट भुगतने अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना होगा। सारी बात बनावटी है। वे सच्चे हैं, परन्तु उन्हें ये आप आत्म- साक्षात्कार मॉगना चाहिए तथा ईसा-मसीह मै आपको बता रही थी कि ईसामसीह ने चैतन्य लहरी सण्ड -XVI अंक : जनवरी एवं फरवरी 2004 1 एवं 2 21 बहुत से देशों के लोग जिनमें आपके देश तथा नष्ट करने का लक्ष्य पूरा करने का, क्योंकि के लोग भी थे, भारत गए, परन्तु उन्होंने ये कभी अपने फरेब, मिथ्याचार द्वारा उन्होंने आपको अपनी नहीं बताया कि ईसामसीह के रूप में महाविष्णु ही पकड़ में लिया है। परमात्मा के ये तथाकथित बन्दे अवतरित हुए थे पुराणों में पहले से वर्णित है कि उनके मिथ्याचार से प्रभावित हैं। अब देखिए कि वे ही आधार हैं। एक बार कुण्डलिनी द्वारा जाग त इस सभागार में यदि कोई कुगुरु होता तो ये किए जाने पर आपके सभी कर्मफल समाप्त हो खचाखच भर गया होता, सड़क पर जाम लग गया जाएँगे, इन लोगों ने जाकर कभी नहीं बताया। अतः होता। परन्तु मैने देखा है कि केवल यहीं नहीं, कहीं भारतीय लोग कर्म के सिद्धान्त को लेकर गए और भी कोई सच्चा गुरु यदि होगा तो कार्य बहुत ही ये आपको कर्म सिखाने के लिए यहाँ आए। धीमे से आरम्भ होगा नि:सन्देह किसी स्थान के गुरु आश्चर्य की बात है कि आप इन मूर्खतापूर्ण सिद्धान्तों लोग यदि अत्यन्त सहज और संवेदनशील हैं तो को कैसे स्वीकार करते हैं! जैसे ये लोग कहते हैं बात दूसरी है परन्तु शहरों के लोग वास्तविकता के अपने दुष्कर्मों के कारण आपको कष्ट उठाने होंगे। प्रति इतने संवेदनहीन हैं तथा आसुरी प्रव त्ति के प्रति फिर ये कहते हैं कि संतुलन से चलें और संतुलित इतने संवेदनशील कि जिस प्रकार वे असुरों के रहें। यदि आपको एक अति में जाना है या दूसरी सानिध्य में आते हैं तथा वास्तविकता से परे होते हैं, में तो ये लोग क्या कर रहे हैं? ये लोग काहे के उस पर आश्चर्य होता है। आप क्योंकि अवास्तविकता में फँसे हुए हैं. अतः आपको वास्तविकता में आना होगा भाषण दे रहे हैं? जब ये कुछ कर ही नहीं सकते तो इन्हें अपने मुँह बन्द रखने चाहिएं। ये आपको आत्म अतः साक्षात्कार नहीं दे सकते, उस स्थिति से आपको आपको समझना होगा कि आपको आत्मा बनना है, बचा नहीं सकते तो बेहतर होगा कि ये कष्ट भुगतें । ये क्यों कहते हैं, कि आपको कष्ट उठाने चाहिए? चेतना में अभी तक प्रकाशमान नहीं है। इसी आत्मा उन्हें ऐसा क्यों कहना चाहिए? क्योंकि आपको का वर्णन किया गया है इससे पूर्व चर्चों में कभी आत्मा जो कि आपके मध्य नाड़ी तंत्र पर, आपकी इसकी बात नहीं की गई थी परन्तु आज पहली बार मैं चर्च में ईसा-मसीह की बात कर रही हूँ और कष्ट भुगतते देखकर उन्हें आनन्द आता है। आनन्द लेने के लिए वे चाहते हैं कि आप लोग कष्ट उठाए। बहुत सारे लोग जो इन भयानक गुरुओं के शिष्य मुझे आज प्रसन्नता है कि चर्च में भी इसकी स्थापना थे, जिन्होंने कहा कि अपने कर्मों के फलस्वरूप हो पाएगी और जब लोग यहाँ आएँगे तो, मुझे आशा आपको कष्ट उठाने होंगे, इन लोगों ने मुझे बताया है, उन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाएगा। यहाँ कि उन्होंने इन गुरुओं को उनका मज़ाक उड़ाते कुछ न कुछ कार्यान्वित हो जाएगा और लोगों को जाग ति प्राप्त हो जाएगी। क्योंकि मेरे सम्मुख बहुत हुए, उन पर हँसते हुए देखा है। इन्होंने मुझे इन गुरुओं के फोटो भी दिखाए जिनमें अपने गुरूओं के से सन्त बैठे हैं, सम्भवतः इस चर्च में एक दिन ऐसा शरीर और मन से कष्ट उठाते हुए इन मूर्ख आएगा जब यह कार्यान्वित हो जाएगा तथा लोग सम्मुख शिष्यों पर ये लोग मज़ाक कर रहे हैं। इस प्रकार ये दोहरा लाभ उठाते हैं, एक तो धन और सत्ता का आत्म-साक्षात्कार प्राप्त कर लेंगे | ईसा-मसीह का जीवन केवल तीन चार लाभ और दूसरा आप लोगों की हत्या करने का वर्ष का था, इससे अधिक उन्हें जीवित रहने ही नहीं जनवरी एवं फरवरी 2004 भैतन्य लहरी खण्ड -४V। अक: 1 एवं 2 22 दिया गया। जो भी सम्भव था वह किया गया Gland) को देखती है तथा दूसरी प्रतिअहं को परन्तु लोग इतने मूर्ख हैं, इतने मूर्ख हैं कि आप नियन्त्रित करने वाली शंकु रूप ग्रन्थि (Pineal उनसे बात भी नहीं कर सकते और इन्हीं लोगों ने Gland) को देखती है। परन्तु इनमें दोनों ओर जाने उनकी हत्या कर दी, वे इनसे बात भी नहीं कर की क्षमता होती है। मान लो व्यक्ति अतिचेतन हो सके और इस प्रकार से उनके जीवन का अन्त हो जाता है और बहुत अधिक सोचने लगता है, भविष्य गया परन्तु अपने छोटे से जीवन में वे कितनी बड़ी के विषय में कि आकाश गंगाएँ क्या हैं. हमें इसके चिंगारी थे. कितनी बड़ीं चिंगारी! जिस प्रकार से विषय में पता लगाना चाहिए, सितारों के विषय में लोगों ने उनसे व्यवहार किया वह अत्यन्त न शंस पता लगाना चाहिए। इन सभी चीजों के बारे में या था। ये बात में अवश्य कहूँगी कि धर्म -प्रचारक भविष्य के विषय में, जैसे ज्योतिष शास्त्र और स्वयं, मैथ्यू आदि भी इतने बुद्धिवादी थे, इतने भविष्यवाणियों के विषय में ये सब भविष्यवाद है। बुद्धिवादी कि वे निष्कंलक गर्मधारण की धारणा को स्वीकार ही नहीं कर सके। अत्यन्त ही कठिन योजनाएँ बनाते हैं और प्रायः ये योजनाएँ असफल व्यक्ति, इसके विषय में वह बाद विवाद किया करता था। उसने कहा, "कि यदि कोई कुआरी बहुत अधिक है तथा यह व्यक्ति को इस ओर बहुत बच्चे को जन्म दे तो कोई भी व्यक्ति यह कहने से दूर तक धकेल सकता है। मैंने यह इस ओर दर्शाया नहीं चूकेगा कि यह ईश निन्दा है, अत्यन्त गैर है परन्तु यह दिशा परिवर्तन कर लेता है अह कानूनी है और इसके विषय में बात भी नहीं की इधर (बायीं आज्ञा चक्र) पर आ जाता है और जानी चाहिए। भयानक व्यक्ति, एक से बढ़कर एक, प्रतिअहं दाई आज्ञा पर आ जाता है। यहाँ पर हम बड़े ही अजीब ढंग से उन्होंने इस बात को लिया तीन आयाम नहीं दर्शा सकते श्रे। अत: आज्ञा चक्र क्योंकि वो अतिचेतन (Supraconscious) व्यक्ति के पीछे से यहाँ तक प्रतिअह है और यहाँ से यहाँ थे। उन्होंने बहुत से असुरों की भाषा बोलनी कर दी बाइबल का वह भाग गलत है जिसमें बो ओर फैलने पर यह अतिचेतन क्षेत्र में चला जाता है लोग है जो आत्म-साक्षात्कारी नहीं है। वायु भाग और यहाँ आ जाता है। अति चेतन क्षेत्र व्यक्ति को (Wind Part) ठीक है परन्तु मैंने देखा है कि बहुत स्वप्न स्थिति (Visions), द ष्टि अम (Halucinations) से लोग मेरे कार्यक्रम में आते हैं, आत्म-साक्षात्कार और L.S.D. का प्रभाव देता है। तब व्यक्ति किसी आप में से अधिकतर लोग भविष्यवादी हैं । आप हो जाती हैं। परन्तु योजनाएँ बनाना और सोचना शुरु तक अहं। अत: अहं इस ओर फैलता है तथा इस प्राप्त करने के लिए आते हैं, कुछ क्षणों के लिए उन्हें म तक प्राणी की आँखों से देखने लगता है, किसी चैतन्य लहरियों (The Wind) महसूस होती हैं। ऐसे प्राणी की आँखों से जो अत्यन्त महत्वाकांक्षी परन्तु तुरन्त वे वहाँ से चले जाते हैं और अति चेतन हो। उदाहरण के रूप में आपको हिटलर तथा हो जाते हैं। अब हम देखेंगे कि अतिचेतन अस्तित्व क्या मिल सकता है। व्यक्ति को रंग दिखाई देने लगते होता है और अतिचेतन प्रवेश क्या होता है? आप हैं परिमल (Auras) दिखाई पड़ सकते हैं। ऐसे में देखें कि यहाँ (आज्ञा चक्र) दो पंखुड़ियों हैं। एक व्यक्ति को समझ जाना चाहिए कि ये परिमल हमें अहं को नियन्त्रित करने वाली पीयूष ग्रन्थि (Pituitary तभी दिखाई देते हैं जब हम अपने अस्तित्व से परे किसी प्रकार के भयानक राजाओं का द ष्टि भ्रम जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एकं 2 23 पाँच तत्वों को ही जिम्मेदार मानते हैं। इन्हें 'कोष' हटने लगते हैं, विघटित (Disintegrate) होने लगते है। इस प्रकार से हम अपने से परे होता हुआ कुछ कहा जाता है। मेरे विचार से इन्हें दर्शाने का कोई देखने लगते हैं। सहजयोग में परिमल (Auras) उपाय नहीं है परन्तु यह कोष है जिनका स जन देखना अच्छा चिन्ह नहीं है। व्यक्ति यदि परिमल देखता है तो हमें उसे स्वाधिष्ठान, नाभि) । ये भौतिक शब्द हैं । ये सब उसकी पूर्व परिस्थिति में वापस लाना पड़ता है भौतिक शब्द हैं। चौथा, पाँचवा, छठा और सातवां क्योंकि आपको वर्तमान में रहना हैं, भविष्य में नहीं। व्यक्ति विघटित हो जाता है। यदि परिमल का अन्दर हृदय के समीप परिमल बनाते हैं । ये हृदय फोटो लेने वाली कोई मशीन हो, परिमल का फोटो के समीप परिमल बनाते रहते हैं परन्तु आत्मसाक्षात्कार ले ने वाले एक व्यक्ति से मैने बात की, प्राप्त होते ही ये सब परिमल एक रूप हो जाते हैं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पशचात् व्यक्ति ये सब विलय होकर एकरूप हो जाते हैं और यही किसी भी प्रकार के परिमल नहीं देख सकता आत्मा है इस प्रकार आप कह सकते है कि आत्मा क्योंकि वह संघटित हो जाता है । व्यक्ति यदि जब अस्थिर अवस्था में विद्यमान होती है तो आप विघटित अवस्था में हो तो वह परिमल (Auras) सात चक्रों से परिमल प्राप्त करते हैं परन्तु जब यह देखने लगता है, जैसे कैंसर रोगी को परिमल स्थिर (संघटित) हो जाती है तो आप एक रूप हो दिखाई देंगे. शराबी को परिमल दिखाई देंगे- जाते हैं और सभी परिमल भी एक परिमल का रूप अजीबो गरीब किस्म के परिमल। सामान्य व्यक्ति धारण कर लेते हैं। अतः संघटन (एक रूपता) को यदि परिमल दिखाई भी देंगे तो वह इतने सहजयोग का लक्ष्य है क्योंकि मैं सोचती हूँ कि मैंने अटपटे नहीं होंगे, परन्तु यदि आप पूर्णतः संघटित आपको बता दिया है कि आप भी विघटित व्यक्ति हैं तो परिमल दिखाई दे ही नहीं सकते। प्रकाश में की तरह से अवचेतन (Subconscious) क्षेत्र में जा यदि अस्थिरता (Aberrattion) न हो तो इसका सकते हैं । अवचेतन ्षेत्र हमारे बाई ओर है। यदि अर्थ है कि प्रकाश अच्छा है प्रकाश में अस्थिरता आप सामूहिक अवचेतन क्षेत्र मे चले गए तो आप का अर्थ है प्रकाश की गुणवत्ता अच्छी न होना । कैंसर रोग के शिकार भी हो सकते हैं । सामूहिक प्रकाश के सातों रंगों को केन्द्रित होकर संघटित अवचेतन क्षेत्र में चले जाने पर आपको हृदयघात, होना आवश्यक है। ये रंग यदि समपार्श्वीय शक्कर रोग या ऐसा ही कुछ और भी हो सकता है। 1 पहला, दूसरा तथा तीसरा चक्र करते हैं। (मूलाधार, चक्र बाहर की ओर परिमल नहीं बनाते हैं। ये हमारे पत बहुत से लोगों का ये मानना है कि अधिक (Prismatic) हो और रंग यदि अलग अलग नजर आ रहे हों तो ये संघटित (एक रूप) नहीं होते शक्कर खाने से शक्कर रोग हो जाता है ये बात सारे रंग यदि एक रूप होंगे तो आपको सात रंग सत्य नहीं है। शक्कर के कारण शक्कर रोग नहीं नजर नहीं आएगें इसी प्रकार से परिमल देखने होता, बहुत अधिक सोचने से शक्कर रोग हो जाता वाला व्यक्ति भी संघटित नहीं होता ये सारे परिमल हमें इसलिए दिखाई देते हैं होता। भारतीय किसानों को कभी शक्कर रोग नहीं क्योंकि हमारी रचना सात तत्वों से हुई है। परन्तु होता, वो तो ये भी नहीं जानते कि ये रोग है क्या? राजसिक प्रव ति के लोग मानव रचना के केवल आप लोग क्योंकि बहुत अधिक सोचते हैं, बहुत है। जो लोग अधिक नहीं सोचते उन्हें ये रोग नहीं जनवरी एवं फरवरी 2004 वैतन्य लहरी खण्ड XVI अक : 1 एवं 2 वम 24 अधिक कार्य करते हैं तो यह चक्र (दायाँ- एक विचार उठता है और गिरता है। इस क्रिया के स्वाधिष्ठान) बहुत अधिक गतिमान हो जाता है। यह बीच में (विचार का उठना और गिरना) अन्तर होता मस्तिष्क के लिए पोषण भी बनाता है। मस्तिष्क के है। इस स्थान को 'विलम्ब' कहते हैं। कोई भी कोषों को यह परिवर्तित करता है इसके लिए यह विचार जो उठता है वह स्वतः गिरता भी है। एक चर्बी में से नए कोष (cells) बनाता है। बहुत अधिक कार्यभार बढ़ने पर यह अपने सारे कार्यों को वह 'वर्तमान' है विचार या तो अहं से उठते हैं या नहीं कर पाता और इस तरह से अग्नाश्य तो प्रतिअहं से और भूत में चले जाते हैं। बीच का (Pancreas), प्लीहा (Spleen) की अनदेखी हो, जाती है। अग्नाश्य को जब पूरा पोषण प्राप्त नहीं एक भूत (Past)। बीच का स्थान वर्तमान (Present) होता तो व्यक्ति को शक्कर (Diabetes) रोग हो बढ़ाया जाना चाहिए। जाता है, यह शक्कर खाने से नहीं होता। निःसन्देह शक्कर की भी भूमिका है क्योंकि शक्कर ही चर्बी में तो आज्ञाचक्र और अधिक खुलता है तथा आप परिवर्तित होती है। शक्कर यदि खाई ही नहीं जाए निर्विचार चेतना में चले जाते हैं, निर्विचार-चेतन हो तो इसके लिए कार्य दुगुना हो जाता है । परन्तु यदि जाते हैं, वर्तमान में आ जाते हैं जहाँ कोई विचार व्यक्ति में शक्कर हो तो यह उसे चर्बी में परिवर्तित नहीं होता। ये विचार ही हमारे और हमारे स जनकर्ता करता है और मस्तिष्क के लिए उपयोगी बनाता है। (परमात्मा) के बीच की बाधा हैं। उदाहरण के रूप आप यदि बहुत अधिक सोचते हैं और शक्कर नहीं में मान लो आप वहाँ रखे सुन्दर पत्थर को देख रहे विचार और दूसरे विचार के बीच का जो स्थान है स्थान वर्तमान है। एक भविष्य (Future ) है और विलम्ब (वर्तमान) की अवस्था जब बढ़ती है | लेते तो इस चक्र का कार्य दुगुना हो जाता है। हैं या किसी अन्य चीज को अब यदि आप सोचने परन्तु यदि शक्कर लेते हैं और सोचते बिल्कुल नहीं लगे कि, "अरे! ये तो मनुष्य जैसा प्रतीत होता है. तो भी समस्या बन जाती है क्योंकि उस स्थिति में राक्षस जैसा या देवता जैसा" उस समय आपके अन्दर विचार होता है। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होने स्वाधिष्ठान को बहुत अधिक शक्कर को चर्बी में परिवर्तित करना पड़ता है। आप देखें कि इसे बहुत के पश्चात् आप केवल देखते हैं और उसके स जनकर्ता अधिक कार्य दिया गया है, अतः संतुलन का अभाव ने या कलाकार ने जो आनन्द उसमें भरा है वह पूरी है। तो व्यक्ति को समझना है कि बहुत कोई अन्य विचार नहीं होता, कोई लहर नहीं होती, अधिक शक्कर अच्छी नहीं परन्तु शक्कर लेना किसी तरह की हलचल नहीं होती, झील की तरह आवश्यक है तथा अपने विचारों का रोकना भी बहुत से आप पूर्णतः शान्त होते हैं, सभी कुछ इसके आवश्यक है किस प्रकार आप अपने विचारों को इर्दगिर्द है। सारी स ष्टि इसमें आ जाती है, पूरी तरह रोक सकते हैं? केवल आज्ञा चक्र से ऊपर उठने के से प्रतिबिम्बित हो जाती है तथा आप निर्विचारिता, पश्चात् । आज्ञा का ये बिन्दु बहुत महत्वपूर्ण है जिसे निर्विचार-समाधि कहते हैं, का आनन्द लेते क्योंकि इसी से विचार रुकते हैं। ये बात आपको हैं। जब आपमें कोई विचार नहीं होता, पूर्णतः जान लेनी चाहिए। इस प्रकार से आपके विचार निर्विचार होते हैं तो परमात्मा की स ष्टि का पूरा शान्त होते हैं इसमें विचार उठते हैं और गिरते हैं, आनन्द लेने लगते हैं, उसके आनन्द में मस्त रहते तरह से आपके अन्दर भर जाता है क्योंकि आपमें जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 25 हैं। बीच में कोई बाधा नहीं रहती। अतः निर्विचार राजनीतिक नियन्त्रण नहीं है। हिटलर भी ईसा-मसीह चेतना की अवस्था केवल तभी प्राप्त होती है जब की आलोचना कर सकता है, कोई भी ईसामसीह कुण्डलिनी आज्ञा चक्र को पार करती है। यह की आलोंचना कर सकता है और उस स्तुति की दोहरा कार्य करती है-पहले स्थान पर तो यह आलोचना कर सकता है। चुनौती देने वाले आप हैं निर्विचार चेतना प्रदान करती है और दूसरे स्थान कौन? ईसामसीह को चुनौती देने वाले आप कौन पर सहस्रार का भेदन करके यह व्यक्ति को परमात्मा होते हैं? उनके मुकाबले में अपनी अवस्था को समझे की क पा (परम-चैतन्य) से भर देती है। चैतन्य बिना किस प्रकार आप उन्हें चुनौती देते हैं। ये बात प्रवाह जब होता है तो व्यक्ति शान्ति की अवस्था में मेरी समझ में नहीं आती। परन्तु ऐसा करना लोगों चला जाता है, उसके चक्र भी शान्त हो जाते हैं। के लिए आम बात है। अहं के कारण वे ऐसा करते चक्र तनाव की अवस्था में होते हैं परन्तु जब चैतन्य प्रवाह होता है तो ये अपनी सामान्य स्थिति में चले निक ष्टतम बात मैंने देखी है कि अनियंत्रित अहं के जाते हैं। तो एक प्रकार विस्तारीकरण होता है तथा कारण आप परमात्मा को चुनौती देते हैं, ईसामसीह आज्ञा चक्र पर निर्विचार चेतना स्थापित होने लगती को चुनौती देते हैं और हर उस चीज़ को चुनौती है। 1 हैं। अहं व्यक्ति को सिरज़ोर बनाता है और ये देते हैं जिसका उन्हें बिल्कुल भी ज्ञान नहीं। आप का मस्तिष्क सीमित है। यह अत्यन्त येशु-स्तुति (Lord's Prayer) आज्ञा चक्र का मन्त्र है आज्ञा चक्र के दो पहलू होते हं सीमित मार्ग है। अपने इस मस्तिष्क का आप कुछ और क्षम। 'हं' का अर्थ है मै हूँ (अहं) और क्षम नहीं कर सकते आपको इससे परे जाना होगा अर्थात क्षमा', मैं क्षमा करता हूँ। आज्ञा चक्र यदि कोई व्यक्ति ऐसा चाहिए जो आपको अन्तरिक्ष पकड़ रहा है और आप महसूस करते हैं कि आपके अन्दर अहं है तो आपको कहना चाहिए, "मैं क्षमा आत्मा बनना है। केवल आत्मा से साक्षात्कार प्राप्त करता हूँ।" (Iforgive) हमारे अन्दर यदि प्रतिअहं करके ही परमात्मा से आपका सम्बन्ध जुड़ सकता हो तो हमें कहना चाहिए, "मैं हूँ, मैं हूँ". (I am, I am)। तो 'हं और 'क्षम' बीज मन्त्र हैं प्रार्थना के, यही कारण है कि आपको आत्मा बनना होगा ये बीज हैं-येशु प्रार्थना के। हैं-हं में धकेल दे. वहाँ आपको जाना होगा। आपको है। उससे पूर्व आप परमात्मा से जुड़े हुए नहीं होते। क्योंकि आत्मा ही यह योग है, परमात्मा से जोड़ने लोग ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि येशु वाली तार इसके अतिरिक्त परमात्मा से जुड़ने का कुछ प्रार्थना ठीक नहीं है। मै पूछती हूँ 'आप हैं कौन? कोई अन्य मार्ग नहीं है आप यदि स्वयं को भ्रम में इसके बारे में आपको क्या ज्ञान है? हर आदमी रखना चाहते हैं तो आगे बढ़ते जाएँ। परन्तु दूसरे को चुनौती दे रहा है। आप क्या जानते हैं? आपको बता रही हूँ कि केवल यही सत्य है और इसे आपको क्या अधिकार है? परन्तु कष्ट ये है कि न तो आप खरीद सकते हैं और न ही इसके लिए मैं धन दे सकते हैं. न इसकी माँग कर सकते हैं। आप परमात्मा और धर्म के साथ जो जैसा चाहे कर सकता है। व्यक्ति को चाहे कुछ भी पता न हो स्वयं इसे कार्यान्वित भी नहीं कर सकते। पूर्णतः अज्ञानी हो फिर भी वह सोचता है कि उसे पूरा अधिकार है क्योंकि इस कार्य पर कोई आवश्यक है या कोई साक्षात्कारी व्यक्ति ही आपको परमात्मा की क पा-वर्षा आप पर होनी जनवरी एवं फरवरी 2004 बैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 26 रंग आत्मसाक्षात्कार दे सकता है। आपको ईसामसीह रंगों के शोले, एक से दूसरे की ओर जाते हुए और इनकी संख्या एक हज़ार है। चिकित्सक लोग कहते हैं कि यह संख्या एक हज़ार न हो कर के नौ के विषय में बताना होगा। एक बार मैं लगातार सात दिनों तक ईसामसीह के विषय में बोली थी, इसका कोई अन्त नहीं है। उनका अवतरण इतना महान सौ बानवे (992) है। इन मूर्ख लोगों के इस विषय था कि मेरी समझ में नहीं आता कि उनके विषय में पर विवाद करने की बात को सोचें! परन्तु यह नहीं क्या कहूँ। उनके बारे में सभी कुछ बता चुकी हूँ। जानते कि यह संख्या एक हजार है तथा इन्हें यहाँ लन्दन में हमारे से टेप हैं, आप ये मंगवा स्थापित किया गया है तालु क्षेत्र के चहूँ ओर सातों सकते हैं। वहां पर हम एक केन्द्र स्थापित करने चक्र हैं । आप इस चित्र में देखें ये आज्ञा चक्र है, वाले हैं। हर्मन ने अपना स्थान इस कार्य के लिए देने की पेशकश की है । यह टेप हम वहां पर भेज देंगे। ये तीन सौ टेप हम लन्दन ले आए हैं. इन्हें आपका स्वाधिष्ठान यदि पकड़ रहा है तो आप इसे आप सुन सकते हैं और स्वयं देख सकते हैं। ये अपने अन्दर महसूस कर सकते हैं, इसके भारीपन सभी टेप बहुत अच्छे हैं, वास्तव में ये मूलमन्त्र हैं। को स्वाधिष्ठान की पकड़ होने पर आपको शक्कर मंन्त्रों को ये कार्यान्वित करते हैं और इन्हें सुनते हुए रोग भी हो सकता है। मैं इसका एक उदाहरण देती आप अपने चक्रों और नाड़ियों को खोल सकते हैं। हूँ। मधुमेह के रोगी कुछ समय पश्चात् अन्धे हो बहुत इसके ठीक पीछे मूलाधार है, इसे घेरे हुए (कनपट्याँ) स्वाधिष्ठान है। मूलाधार के चहुँ ओर स्वाधिष्ठान है। अब अन्तिम बात जो अत्यन्त उलंझन वाली है और जाते हैं। उनकी ऑखों की शक्ति समाप्त हो जाती जिसके विषय में वह पहले ही आपको बता चुका है, है क्योंकि ये रोग मूलाधार चक्र द्वारा नियन्त्रित मुझे यहाँ आना था और मेरे विचार से यही संघटन द क-तन्त्रिका (Optic Nerve ) को हानि पहुंचाता (Integration) है। इसका अन्तिम लक्ष्य सातों चक्रों है। इसे हम पीछे का आज्ञा चक्र (Back Agya) का संघटन (एकरूप हो जाना) है तालु कहलाने कहते हैं। पीछे की ओर मध्य में स्वाधिष्ठान चक्र है। वाले इस क्षेत्र के चहूँ ओर ये सातों चक्र है। इसमें आपको एक सुराख महसूस मस्तिष्क को यदि आप कलियों के रूप में कारटें तो है और इसके चहूँ ओर स्वाधिष्ठान चक्र है इसके आपको यह कमल की तरह से दिखाई देगा। ये बाद विशुद्धि चक्र है जो विराट है। विशुद्धि चक्र आप देख सकते हैं कि ये ऐसा प्रतीत होगा मानों यहाँ है। जब भी आपको जुकाम आदि हो जाता है 1 होगा जो मूलाधार सहस्रदल कमल हो। परन्तु (चित्र में) इसका रंग तो यहाँ पर कष्ट होता है। परन्तु यहाँ बाम आदि ठीक नहीं है। आप लोगों को नीले रंग (Pastel कुछ लगा लेने से सुखद महसूस होता है। विशुद्धि colours) बहुत अच्छे लगते हैं, चित्र में भी इन्हीं का उपयोग किया गया है परन्तु हम कह सकते हैं भी यदि आपको कोई समस्या हो तो भी यहाँ पर इसी प्रकार की एक हज़ार पंखुड़ियाँ सहस्रार कमल बहुत बड़ी रुकावट महसूस होती है। अब इसके में है। बाइबल में कहा गया है कि, "मैं आपके पीछे की ओर नाभी चक्र है। नाभी के बाँया और सम्मुख शोलों की जुबान में प्रकट हूँगा।" यही दाँया दो पहलू हैं, जैसे चित्र में दिखाया है-बाई शोले सहस्रार में दिखाई पड़ते हैं परन्तु ये काफी और दाई नाभी । मैं नहीं जानती कि मैंने आपको बड़े होते हैं और जीवन्त दिखाई पड़ते हैं। भिन्न बायें-दायें के बारे में बताया है या नहीं, यह आप चक्र आपके गले से जुड़ा हुआ है। सामूहिकता से जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 27 पुस्तक में देख सकते हैं। कभी-कभी आपको उसका रक्त पी लेते हैं जिसके बदले में उसे कुछ लगता है कि नाभी यहाँ पर (गुरु चक्र के पास) है। पैसे मिल जाते है यह बात आज भी सत्य है। इस कुछ लोगों को ऐसा इसलिए महसूस होता है प्रकार के मूर्खतापूर्ण शाकाहार की कल्पना आप क्योंकि उन्हें गुरु-बाधा होती है। नाभी के चहूँ ओर करें। क्या मैं मुर्गियों को साक्षात्कार दूंगी, जरा भवसागर (void) है, इसे एकादश रुद्र भी कहते हैं। सोचें, या खटमलों को? भवसागर गोलाकार रूप में है तथा बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यहीं से गुरु- वाधा महसूस होती है । नहीं खाना चाहिए जो आपसे बड़े पशुओं का हो, यह व्यक्ति यदि किसी गलत गुरु के पास जाता है तो हानिकारक होता है। परन्तु अपने से छोटे पशुओं आप लोग मानव हैं, आप को ऐसा मांस उसे यह समस्या हो सकती है। ये महान नियन्त्रक का मांस आप खा सकते हैं। उसे खाने में कोई है जिसमें विध्वंस की ग्यारह शक्तियाँ हैं। ऐसे नुकसान नहीं । परन्तु इस प्रकार का शाकाहार! किसी व्यक्ति से यदि आपका पाला पड़े तो उसे पशुओं को कोई हानि न पहुचाएँ? परन्तु वे लोग भगा दें । तब वह आपको कोई सलाह न देगा। ऐसे किसी को हानि पहुंचाने से बाज नहीं आते। इस व्यक्ति न तो आत्मसाक्षात्कार दे पाएँगे और न मामले में जैन लोग सबसे आगे हैं, खून चूसने वालों मोक्ष। जो लोग आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं उन्हें छोड़ की तरह से, धन के लिए वे किसी की जान लेने से दिया जाएगा उद्धार तो अन्तिम चीज है । अभी नहीं चूकते। शिकारी की तरह से पैसे के लिए वे उसकी माँग न करें अन्य लोगों को बचाने के लिए किसी का भी शिकार कर सकते हैं परन्तु मुर्गा या कुछ और समय दें। क्योंकि वो न तो कोई प्रश्न लहसुन वे बिलकुल नहीं खाएंगे? आप जानते हैं कि पूछेंगे और न ही अधिक समय देंगे। बह समय तो लहसुन हृदय के लिए बहुत अच्छा है परन्तु वो सभी आसुरी शक्तियों के लिए पूर्ण विध्वंस का लहसुन नहीं खाएंगे। हृदय के लिए ये गुणकारी है समय होगा तो यहाँ पर एकादश है। कुगुरु यदि जिन लोगों की रक्तपेशियाँ कठोर हो जाने का भय यहाँ पर हो तो एकादश कुपित हो जाते हैं। एक हो उनके लिए लहसुन अत्यन्त लाभकारी है तथा बात समझ ली जानी चाहिए कि इनसे आसानी से उनके लिए जिन्हें रक्तसंचार (circulation) की मुक्ति पाई जा सकती है। श्रीराम के दो पुत्र सूर्य समस्या हो या जो जुकाम रोग से पीड़ित हों वो भी और चन्द्र की शक्तियों से परिपूर्ण थे, वो भी यहाँ यदि लहसुन इस्तेमाल करें तो अच्छा है। जिन स्थापित किए गए हैं सूर्य के रूप में बुद्ध और लोगों को हमेशा जुकाम रहता है अगर वो नियमित महावीर के रूप मे चन्द्र यहाँ स्थापित किए गए हैं। रूप से लहसुन इस्तेमाल करें, रात को अपने दाँतों जब प थ्वी पर आए तो बुद्ध ने अहिंसा की बात की पर ब्रश करें तो उनकी दशा बहुत बेहतर हो और लोगों ने समझा कि वे मुर्गों और खटमलों के जाएगी। तो यह सात चक्र हैं। तालु अस्थि पर प्रति अहिंसा की बात कर रहे हैं। जैन कहलाने वाले हृदय चक्र है। कल्पना करें यदि यह वह चक्र है तो 1 बा अनुयायी, भारत में एक भयानक जाति है, जो इतने विकट रूप से शाकाहारी है कि वे धन के लालच में मैं कहाँ रहती हूँ? कहने से अभिप्राय यह है कि कुल मिला किसी ब्राहमण को लाते हैं और झोंपड़े में सारे गाँव कर सात चक्र हैं और मैं बुलबुले की तरह से हूँ। के खटमल उस पर छुड़वा देते है। ये खटमल परन्तु मैं आपके हृदय में हूँं। अतः सहजयोग की जनवरी एवं फरवरी 2004 ैतना लहरी रण्ड -४VI अंक 1 एवं 2 28 कुंजी ये है कि आप मुझे पहचाने। आप यदि मुझे कर सकती। इस मामले में मैं वास्तव में कुछ नहीं पहचान नहीं सकते तो सहजयोग में आप उन्नति कर सकती। एक दिन मुझे बहुत निराशा हुई। नहीं कर सकते। यह बात मैं नि:संकोच स्वीकार वास्तव में एक बार लोगों का स्वभाव देखकर मुझे करती हूँ । अपने पहले भाषण में मैं यह सब नहीं बहुत निराशा हुई और मैने सोचा इन सब को भूल बताती परन्तु अब मुझे कहना है कि क पा करके मुझे जाऊँ। अचानक मैंने अपना फोटो देखा, अपनी पहचानें। आप की माँ के रूप में मेरी यह प्रार्थना है आँखों को देखकर मैंने कहा, "निर्मला, तुम तो कि आप लोग मुझे पहचाने, आपने मुझे कुछ देना करुणा हो, तुम करुणा हो, इसमें तुम कुछ कर नहीं नहीं है, मुझसे बस लेते चले जाऐँं। परन्तु मुझे है।" मुझे पहचाने अवश्य। आप यदि मुझे नकारते रहेंगे तो यह कार्यान्वित करना ही होगा, मैं इसका अर्थ नहीं । ये हमेशा ढका जानती हैँ। कभी-कभी तो यह बहुत ही कठिन रहेगा। यही कारण है कि अन्त में आप कहते है कि लगता है परन्तु मुझे यह करना है कुछ लोग प्रश्न श्री. माता जी. मुझे मेरा आत्मसाक्षात्कार दीजिए, करते हैं, "माँ आप ही ने क्यों करना है?" मैंने क्योंकि मै प थ्वी पर आपको आत्मसाक्षात्कार देने के कहा," आप क्यों नहीं करते?" ये तो बहुत अच्छा लिए ही अवतरित हुई हूँ। मेरा यही कार्य है और ये विचार है मेरे साथ आएँ। मैं बहुत कुछ कर चुकी कार्य सभी कार्यों से कठिन है। लोगों से बातचीत हूँ। निव त्त हो जाना मेरे लिए बहुत अच्छा होगा। करना, उन्हें इसके बारे में बताना बहुत कठिन है । इस कार्य के लिए मेरे पति आपको पैन्शन देंगे वे ऐसा ब्यक्ति खोज सकती। तुम्हारे पास कोई विकल्प नहीं हृदय (सहस्रार) खुलेगा र वो तो हर समय विरोध में खड़े होते हैं, इतने बहुत खुश होंगे कि मैंने कोई आक्रामक हैं कि झगड़ने लगते हैं। यह इतना लिया है जो अब मेरा स्थान ले सकेगा। परन्तु अभी अक तज्ञता पूर्ण कार्य है जिसे माँ के अतिरिक्त कोई तक मुझे कोई ऐसा व्यक्ति मिला नहीं है काश आप मेरा र्थान ले सकते! यह बहुत अच्छा विचार नहीं कर सकता। आप को ही ये कार्य करना होगा। आप के अतिरिक्त केवल माँ (आदिशविति) है । यह कार्य कर सकती है। ईसामसीह यदि प थ्वी पर होते तो अपनी ग्यारह एकादश शक्तियों से उन्होंने (निष्कलंक-Immaculate) है अर्थात जिसमें पावन सभी कुछ समाप्त कर दिया होता। श्री क ष्ण को करने की शक्ति है। यह देवी का नाम भी है मेरा अगर ये कार्य करने के लिए कहा गया होता तो मूल नाम ललिता है जोकि आदिशक्ति का नाम है। उन्होंने भी अपनी संहारक शक्तियों का उपयोग यह आदि माँ का नाम है। परन्तु मानव बन कर इन किया होता। परन्तु सभी विचारों का समन्वय और सभी चक्रों के साथ मुझे कार्य करना है। उदाहरण मानव स्वभाव को समझ कर सन्तुलन स्थापित के रूप में पिछले तीन दिनों से, आप नहीं जानते, करने के लिए केवल माँ की ही आवश्यकता है। मेरे अन्दर से कितना चैतन्य प्रवाह हो रहा है। यह यही कारण है कि कभी-कभी लोग मेरे बहुत करीब बात आप वारेन और अन्य लोगों से पूछ सकते हैं। आने लगते हैं, मेरा लाभ उठाने लगते हैं या मेरे प्रति मैंने उनसे कहा कि मेरी कुछ चैतन्य लहरियां ले अमर्यादित होने लगते हैं, ऐसा करना गलत है मैं लें उन्होंने इसका प्रयत्न किया परन्तु मुझे छू नही जो भी हूँं हूँ। मैं केवल प्रेम हूँ, इसमें मैं कुछ नहीं पाए। उन्होंने सिर पर हाथ रखने का प्रयत्न किया निर्मला शब्द का अर्थ ही मल रहित जनवरी एवं फरवरी 2004 पैतनय लहरी खण्ड -४VI अक: 1 एमं 2 29 परन्तु ऐसा न कर पाए। उनकी समझ में यह नहीं सोचती। मैं सोचती हूँ कि आप महान साधक हैं आया कि किस प्रकार मुझे छुएं। मेरें शरीर से जिन्होंने इस समय पर जन्म लिया है । आपको मेरे इतना चैतन्य प्रवाहित हो रहा था। इस मानव शरीर लिए कार्य करना होगा मैं यह बात अवश्य कहूँगी पर इतना वजन लेकर चलना इतना सुगम कार्य कि पश्चिम के सहजयोगियों में जो परिवर्तन आए नहीं है। मानव की तरह दिखाई पड़ना, मानव की हैं, वो भारतीय लोग भी नहीं पा सकते, यद्यपि उन्हें तरह कार्य करना, मानव की तरह आचरण करना ऐसे देश में जन्म लेने का सौभाग्य प्राप्त था जहाँ ताकि सामन्जस्य बना रहे! अवतरण की आवश्यकता चित्त विक्षिप्त नहीं होता चित्त ठीक स्थिति में बना क्यों है? इसलिए कि सामन्जस्य बना रहे क्योंकि रहता है, अतः वहाँ कार्य कसना सुगम है। यहाँ यह अचेतन (लुप्त शक्ति) तो आपसे बात नहीं कर कार्य कठिन है । सहजयोग यहाँ के लोगों को सकती। स्वप्नों में जो भी कुछ आप देखते हैं वह आकर्षित नहीं करता फिर भी आप लोग महान हैं। बाद में अवचेतन क्षेत्र (subconscious area) से आप लोग सन्त बन सकते हैं जो लोग यहाँ पर है आपके सम्मुख वापस आता है। सभी विचार। आपमें उन्हें जान लेना चाहिए कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त इनका भण्डार है। इतना भ्रम है कि आप कुछ करने का और अन्य लोगों को साक्षात्कार देने का निर्णय नहीं कर पाते। अतः आदिशक्ति को मानव यह महानतम अवसर है। सर्वप्रथम आप स्वयं ठीक रूप में प थ्वी पर अवतरित होना पड़ा और अत्यन्त हो जाएँ तब आप दूसरों को भी ज्योतिर्मय कर चतुराई पूर्वक आपको सब कुछ बताना पड़ा। पूरा सकेंगे। विवेक सहजयोग के लिए प्रथम आवश्यकता जीवन अंग्रेजी भाषा का ज्ञान न था। अत: मुझे पहली बार मैंने अंग्रेजी सीखी । अभी भी मुझे अमेरिकन हैं तब आप इस परिणाम पर पहुंचेगे और समझेंगे अंग्रेजी नहीं आती। मुझे आशा है कि यहाँ की कि सहजयोग ही विश्व की सभी समस्याओं का यात्राओं के दौरान मैं और सीख पाऊँगी । मेरा समाधान है. सारी समस्याओं का समाधान है। यह स्वप्न है, यह इच्छा है कि आप लोग उदाहरण के लिए पूंजीचाद और साम्यवाद आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लें। बाइबल तथा अन्य (Capitalism and Communism) को लें। मैं धर्म ग्रन्थों में इसके व्रिषय में वर्णन है। आदिशंकराचार्य पूंजीवादी हूँ क्योंकि मेरे पास सभी शक्तियाँ हैं परन्तु जिन्होंने मेरा पूर्ण वर्णन किया है उनकी पुस्तक में मैं साम्यवादी भी हैं क्योंकि बिना आप को दिए मैं कुछ यह स्पष्ट वर्णित है। बहुत सुन्दर ढंग से उन्होंने इसका आनन्द नहीं ले सकती। ये सिलसिला मेरा वर्णन किया है। भारतीय इसे सुगमता से है मुझे कुछ करना नहीं पड़ता क्योंकि मेरे सोचने समझ सकते हैं। यद्यपि शहरों में मेरे बहुत शिष्य मात्र से सब कार्यान्वित हो जाता है । ये सब ऐसा ही नहीं हैं लोग मेरे अवतरण के विषय में जानते है। राजनीतिक समस्याएँ, आर्थिक समस्याएँ, सभी चालू परन्तु हैं और समझते हैं कि मै यहाँ हूँ। अधिकतर लोग समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। श्री इसके विषय में जानते हैं। परन्तु वह यह नहीं क ष्ण ने कहा था योग क्षेम वहान्यम्'। योग प्राप्त समझ सकते कि मैं अमेरिका क्यों आई हूँ। वो करने के पश्चात् आपको क्षेम भी प्राप्त हो जाएगा। कहते हैं कि आप यहाँ क्यों आई हैं। यहाँ के लोग उन्होंने सार निकाल दिया है। बो ये भी तो कह आपको स्वीकार नहीं करेंगे परन्तु मैं ऐसा नहीं सकते थे, क्षेम योग वहान्यम, परन्तु उन्होंने ऐसा जनवरी एय परबरी 2004 चेत्य लहरी खण्ड-XV अंक । एय 2 30 स ेि नहीं कहा। उन्होंने कहा योग क्षेम वहाम्यम, पहले व्यवहार कुशलता नहीं है। बेहतर होगा कि आप योग को प्राप्त करें, जुड़ जाएँ, आत्मा से एकरूप हो मुझे पहचाने और फिर मैं आपको बताऊँ। ईसामसीह जाएँ तब आप पर ये सारी क पा हो जाएगी। भौतिक को सूली पर चढ़ा दिया गया, सभी लोगों को कष्ट दिये गये। मैं नहीं चाहती कि मेरे काम में कोई वैभव, लक्ष्मी, का भी एक चक्र है जो कार्य करता है और जो भी सहजयोगी मेरी शरण में आए है उन रुकावट आए क्योंकि आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति से पूर्व पर भौतिक वैभव का आशीरष भी आता है चाहे वह आपको कुछ बताने का कोई लाभ नहीं । श्री मान फोर्ड की अति की सीमा तक न हो। इतना आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् ही आपको बताना बेहतर होगा कि. "मैं ही आदिशक्ति हूँ (Holyghost) सहजयोगियों को हर कोण से और अत्यन्त समन्वित निःसन्देह में ही आदिशक्ति हैं, वो शक्ति जिसके विषय में ईसामसीह ने कहा था। "मैंने इन्हें बताया अतः समन्वयन अन्तिम सन्देश है कि आप कि इससे पूर्व मंच से मैने कभी यह बात नहीं जो भी अताई। इनके विवश करने पर मुझे यह बात कहनी वैभव तो सिरदर्द है परन्तु सन्तुलित रूप से रूप से क्षेम प्राप्त होता है। पूर्णतः समन्वित हो जाएें, एकरूप हो जाएँ। कुछ आप करें 'मनसा वाचा कर्मणा (with heart, पड़ी । "श्री माताजी, एक बार आप अवश्य कहें । mind and body ) एकरूप हो कर करें। एक ही मैंने कहा मैं अमेरिका में इसकी धोषणा करूंगी। तो अरितत्व में आत्मा में आप पूर्णतः एकरूप हैं। आज 'मैं घोषणा करती हूँ कि मैं ही आदिशक्ति हैं, मैं ही वह पावन आत्मा हूँ जो आपको परमात्मा आप सब को आशीर्वादित करें। प्रीयः में अपने विषय में नहीं बताया करती। आत्मसाक्षात्कार प्रदान करने के लिए अवतरित परन्तु आज ज्योही मैं आई इन्होंने मुझे अपने बारे में हुई है। बताने के लिए विवश किया ऐसा करना व्यवहार कुशलती नहीं है। अपने विषय में कुछ भी कहना परमात्मा आपको धन्य करें परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन बम्बई-20-01-1975 कलयुग में क्षमा के सिवाए और कोई भी राक्षस है। आपके चित्त में घुसे हुए हैं । बात समझ बड़ा साधन नहीं है। और जितनी क्षमा की शक्ति में आई? अगर कोई साधु ही सिर्फ हो तो ठीक है। होगी उतने ही आप शक्ति शाली होंगे सबको क्षमा 'परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्क ताम् । साधु कर दें। क्षमा वही कर सकता है जो बड़ा होता है। के साथ एक दुष्ट बैठा हुआ है तो बहुत ही प्रेम से छोटा आदमी क्या क्षमा करेगा? आज मैंने सवेरे अलग हटाना पड़ेगा कि नहीं? कितना कठिन काम कहा था कि धर्म को जाने, आपके अन्दर जो धर्म है? आप साधुता में खड़े हैं या आप दुष्टता में खड़े है उसको जानें। धर्म में खड़े हैं, जो आदमी धर्म में खड़ा है उसकी कितनी शक्ति होती है! तो धर्म को में खड़े हैं और कोई दुष्टता चिपक रही है तो जाने। हा कितना सुन्दर हम धर्म में खड़े हैं, जो उसको हटा सकते हैं। लेकिन आज ऐसे शुद्ध जीव अधर्म में खड़ा है वह तो अधर्मी है। उसका हमारा कितने हैं संसार में बताईए। Degree का फर्क है कोई मुकाबला नहीं है। वह तो अधर्म में खड़ा है। और जो लोग सधुता की ओर जा रहे हैं वे लोग हम तो धर्म में खड़े हुए है, हमारा तरीका ही और साधुता को बटोरें। उनको उन लोगों से मतलब नहीं है। जो धर्म में खड़ा है उसका तरीका ही और होता रखना चाहिए जो असाधु हैं यह आप पर निर्भर करता है। अगर आप साधुता है जो असाधु हैं, जो चोर हैं, बिलन्दर हैं, उनका हमसे क्या मुकाबला? वे चोर ही हैं और हम वो नहीं हो सकते, वे यह नहीं हो ह हैं, जो अधर्म में होता है उसका कुछ और होता है । धर्मवाले से अधर्म वाले का मेल जोड़ हो नहीं सकता। हमें यहाँ तकलीफें हो रही हैं, सकते हमसे उनका कोई मुकाबला है? यह हो ही परेशानी हो रही है लेकिन हम तो अपने धर्म पर नहीं सकता। वह तो दूसरी line पर चल रहा है, हम खड़े हैं न। यह सबसे बड़ी बात है। अपनी तो दूसरी line पर चल रहे हैं पर धर्म में ही जागना हुए शक्ति को अन्दर जानो जो सिर्फ धर्म स्वरूप है। सहजयोग का लक्षण है और कोई लक्षण नहीं और धर्म कुछ नहीं सिर्फ प्रेम है और जब प्रेम ही है सहजयोंग का। सीधा हिसाब किताब है। सब कुछ है तो क्षमा उसका एक अंग है कितना सहजयोग का इन सब चीजों से बिलकुल भी कौन जुल्म कर सकता है, देखते हैं हमारे प्रेम के सम्बन्ध नहीं है अपने धर्म में जागना है, अपने आगे। कितना कौन दुष्टता कर सकता है, कौन कितना घर का भेदी होगा, कौन कितनी तकलीफें देगा, कौन कितना परेशान करेगा, करने दो। प्यार के आगे सब चीज़ झुक जाती है। यही एक तरीका फिराने में आदीगतियां primordial movements है जो कलयुग में बैठता है। और तो मेरी समझ में हैं। यह सारे जो में आपको बता रही हूँ, primordial कुछ नहीं आता। अगर आप सोचते हो कोई पुराने तरीके आप इस्तेमाल कर सकते हो तो यह हो नहीं शुद्ध तरह से चीज़ का प्रवाह होना। अन्दर से अगर सकता। इसका एक कारण है आप लोग जान लीजिए, मैंने पहले भी बताया और मैं फिर बता रही तो उसमें थोड़ा mixed ही घूम रहा है । क्षमा के हूँ, कि पूर्णतया साधु और पूर्णतया सन्त संसार में सिवाय शुद्धता अन्दर नहीं आती और जब शुद्धता नहीं है। हर एक सन्त साधुओं में भी एक एक आएगी तो प्रकाश धर्म का फैलेगा शुद्ध निर्मल। | प्रकाश को पाना है अपने को जानना है कोई कहता है माताजी क्या करें। चक्रों को ऐसा चढ़ाएँ। अंगुली ऐसे घुमाएँ कि वैसा करें। सारे यह घुमाने जो बनाई गई। लेकिन उसका अर्थ तभी होगा कि mixed चीज प्रवाहित है तो जब आप हाथ घुमाते है cw sक : : ख्ं जनवरी एवं फरवरी 2004 32 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 अतः जिसके पास धर्म है उसको प्रकाश में आना अच्छी है आज । आपकी भी स्थिति बहुत अच्छी है। होगा, बोलना होगा, बताना होगा लेकिन उसके हर लेकिन अपने ही साथ छल कपट नहीं करो। अपने व्यवहार में उसको सोचना चाहिए कि धर्म ही साथ छल कपट नहीं करो। सीधा हिसाब है। दिखाई दे रहा है कि अधर्म दिखाई दे रहा है। सहजयोग के साथ आप जो भी कर रहे हैं वे आप इससे पहले, अगर realization से पहले आपको अपने ही साथ कर रहे हैं। हिसाब यह जोड़ खुद यह Lecture देती तो बहुत गलत काम हो जाता है लीजिए। हाँ अब यह प्रश्न बहुत बार हो जाता है क्योंकि conditioning होता है। और यही बात है Adminstration में ऐसा प्रश्न होता है कि क्या कि सारे psychologist ने धर्म को खत्म कर दिया करें? यह ठीक है कि नहीं, और इतना आसान कि, और बता दिया कि जितने भी धर्म है, यह सिखाते इतना आसान है कि कोई भी decision लेने से हैं कि यह नहीं करो, वह नहीं करो । इससे पहले निर्विचारिता में जाओ। अपने आप जो decision conditioning mind की होती है। ठीक बात है। सामने आ जाए वह करिये। कभी गलत हो ही नहीं लेकिन अब यह नहीं होने वाला है। अब आप जो भी सकता। पर decision निर्विचारिता में Spontaneous चाहे अपने मन से कर सकते हैं। There will be होगा और विचार में अगर आप ने कर लिए तो वह no conditioning at all. क्योंकि ego और super- biased होगा क्योंकि उसमें आपका ego और जो कुछ दिया है, धर्म खुद ही उठ रहा है। आप नहीं उठा भी संसार है. आपने जो कुछ भी लौकिक कमाया है रहे। उसका मार्ग आप ने है और जो भी वह आपके पीछे में खड़ा रहेगा। लेकिन निर्विचारिता लौकिक जाना है आप ने, जो भी लौकिक जाना है, में करियेगा तो कभी न होएगा, अलौकिक होगा, संसार में ऐसा वैसा है उससे आप अलौकिक को चमत्कारी होगा चमत्कारी होगा क्योंकि हिन्दी में तोल नहीं सकते। अलौकिक का मूल्य उससे आप चमत्कारी का अर्थ होता है बड़ा ऊँचा और मराठी में नहीं जोड़ सकते। अलौकिक की बात मैं कर रही होता है चमत्कारी का अर्ीब । एक चमत्कारी होगा हूँ। आप लोग लौकिकता से उसको देख रहे हैं । मराठी वाला और एक होगा हिन्दी वाला। जब बात लौकिकता के तीन dimensions खत्म हो गये अलौकिकता की हो रही है तो लौकिकता के जितने चौथे dimension में जिसको ढूंढना है, गहराई से, भी आपके बने हुए मत हैं, preconceived ideas of 1 के बीच में आपका चित्त लाकर खड़ा कर superego दोनों काम करते हैं। आपका ego चुना | गम्भीरता से, चौथे dimension में चलने की बातचीत human beings cannot be God. He has his मैं कर रही हूँ। लौकिक चीज़ों से आप अलौकिक own standing, his own being. आप लोग चाहेंगे चीजों का मूल्यांकन नहीं कर सकते। क्या सताया कि भगवान हमारे जैसा हो जाए। यह तो वही चीज लोगों ने? कुछ भी नहीं सताया। हम तो कहते हैं हो गई कि भगवान दो चार रुपए दे दो, उधर मैं कि हम तो बिलकुल आराम से हैं। जैसे हमने लगा देता हूँ आपका। वह एक level हो जाएगा। अपनी तकलीफें देखी हैं, जैसे जैसे लोग हमने देखे वह अपना जैसे है प्रकाशित करेगा, आप अपने मार्ग हैं कि उनके लिए जोड़े से गालियाँ नहीं मिलेंगी को खोलते जाइए। अपने धर्म को अपने अन्दर आपको जोड़े से उनका वर्णन नहीं मिलेगा ऐसे जानिए अपने धर्म को जानना बहुत ज़रूरी है । ऐसे महादुष्ट थे। लेकिन समाज की स्थिति बहुत कितनी सुन्दर चीज़ है अन्दर में इस नश्वर देह के जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अक : 1 एवं 2 33 अन्दर कितनी अनश्वर चीज बह रही है। जैसे कि जाएंगे, evolution stage में जैसे chimpanze को गंगा, यमुना और सरस्वती, तीनों के संगम की यह लोग जानते हैं कि वह missing link था । Evolution धारा है इसलिए जो मिटने वाला है, जो लौकिक में वही लोग साधारण में से चुने जाएंगे। बहुत ही normal होना चाहिए। जो बड़े बड़े दण्डे सन्यासी रहे हैं ये कही भी नहीं पहुँचने वाले आप देख लीजिए सब missing link हो जाने वाले हैं बड़े-बड़े लोगों के बस का नहीं, dynamic, और जो बड़े बड़े पदभूषित हैं वे भी कहीं नहीं पहुँचने absolutely dynamic| जब चिन्ता, भय क्रोध, वाले कितनों को Realization दिया हमने, राजे servility, slavishness, inferiority, सारे महाराजे, secretaries, सब अपने पद पर बैठे हुए complexes झड़ झुड़ करके, बो तो अपनी शान में हैं। किसी को लगता है कि हमारे अन्दर दीप कहीं जला? चिट्टियाँ मुझे लिखते हैं मुझे बड़ा इतना म दु है, इतना में दु है कि किस तरह से अन्दर आनन्द आ रहा है। कोई कुछ करने की सोचता है चला जाता है कि पता ही नहीं चलता। जैसे झर के कि हमने लिया, किसी और को भी बाँटें अपना विशेष स्थान जब होता है तो अपने को भी विशेष होना पड़ता है। इसी साधारण सामान्य में से ही असामान्य निकलने वाला है वही निखरने वाला आदमी हैं हम कैसे चुने गए? ordinary आदमियों है धीरे-धीरे अॅपकी सब समझ आ जाएगा कि यह में से ही चुने जाएंगे और यह जितने भी महामूर्ख है इनसे कौन बात करे। हैं बड़े भारी extraordinary आदमी आपको दुनिया में दिखाई डॉक्टर, क्या करा जाऐ? महामूर्ख हैं; अपने को क्या देते हैं कि यह बड़े बड़े पदभूषित हैं, यह सब करना है? ज़िन्दगी बिता दी इन्होंने कुछ नहीं किया missing link हो जाएंगे कल। हमेशा ऐसा हुआ। सब चूल्हे में गया, अपने को क्या करना Evolution की हर एक stage में ऐसा ही हुआ है स्थान बहुत ऊँचा है। और इस चीज़ का कोई है उससे इस चीज़ को नहीं जान सकते। एक क्षण निर्विचारिता में जाकर के आप किसी भी चीज़ का बने घूम decision ले लें। आप ऐसे decision लेंगे कि कुछ बोलेगा न अन्दर। और उँसकी अपनी नम्रता है, वह चाँदनी अन्दर उतर आई हो। और जब आप चुने गए है तो आपका महत्व बहुत ज्यादा है। आप सोचते हैं कि हम तो ordinary अपना अगर आप देखें। जो बहुत ऊँचे mamoth हुए हैं education नहीं हो सकता। आपका कोई जो बहुत physically developed हुए हैं खत्म हो education नहीं हो सकता कि मैं आप को बैठकर चुके। They are missing links। हाथी उनमें से के educate करूँ। ABCD सिखाऊँ। यह रोज बच गऐ, जो बीच के थे इसी तरह जो mentally बहुत developed हुए उनमें से कह सकते हैं कि fox वह missing link में गया और उससे बढ़कर कि सहजयोग में आप समष्टि में हैं। व्यक्ति में नहीं कुछ लोग हैं। लेकिन उसमें से कुत्ता बच गया, कुत्ता बच गया। इसी तरह मनुष्य में जो साधारण अब गगनगढ़ महाराज हैं बड़े हैं। आप लोगों में से ही उठेगा। हमेशा उठता रहा साधारण में से अनुभव से आपको देखना पड़ता है। आज सवेरे मैंने बहुत पते की बात बताई हैं, आप समष्टि में हैं। यह point आप जान लीजिए। बहुत से बहुत बड़े, बहुत ऊँचे हैं मान लिया। 21 हजार और so called असाधारण हैं three dimension में, वर्ष झकमारी उन्होंने, खुद कहा उन्होंने। 21 हज़ार वह कुछ नहीं करने वाले वे missing link हो बार जन्म लिया और परमात्मा के चरणों में गिरे रहे चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 जनवरी एवं फरवरी 2004 34 और जंगलों में रहे तब जाकर ये vibrations मिले है, जो गिरने का है वह गिरते जाता है। दोनों एक उनको और आज तुमको खट से क्यों मिल गए ही साथ चलता है जीवन ऐसा ही पनपता है। भई? क्योंकि यह एक नया संसार है. एक नई बात जिसको झड़ने का है वह जीवन अपना ही उसको है। यह विराट के शरीर के रोम-रोम आप लोग हो गिरा देगा । उसको मरने का है, खत्म करने का है गए हैं। यह एक symbolic आदमी बना दिया। हो वह कर देगा। लेकिन उसका भी storing time है गया। उनकी बात भूलिए। आप सब समष्टि रूप में उसका storing का इन्तजाम है। वो भी जाते हैं, हैं। आपमें से जो भी आदमी समष्टि से हटना और कुछ कुछ तो ऐसे जाते हैं कि वहाँ से लौटकर चाहता है वह पहले जान ले कि वह cancer बन नहीं आते। पशु योनी से मनुष्य बने और क्या जाएगा और खत्म हो जाएगा। कोई बुरा नहीं है, फायदा है कि मनुष्य होने के बाद आप जाकर कीड़े आप में से कोई अच्छा नहीं है। यह अंगुली दुखती बन गए? आप का competition सब धर्म में होगा। 1 है है इसको दबाइए. यह हाथ दुखता इस हाथ से हम क्या धर्म में हैं या नहीं? अपने बारे में यह सोचें इसको दबाइए। आप सब आपस में जुड़े हुए हैं। और दूसरों के बारे में यह सोचें कि वो कितना धर्म आपको मालूम है आप सब आपस में जुड़े हैं। जब में है। हम कितने धर्म में हैं और वो कितने धर्म में आप आपनी बाधाएँ share करते हैं तो आप अपना हैं। और अगर वो अर्धम में हैं तो वो क्यों है? उसका धर्म क्यों नहीं share करते? बाधा तो आप फट से कौन सा चक्र पकड़ा है? चक्र की पकड़ की वजह, पकड़ लेते हैं, धर्म क्यों नहीं पकड़ते? क्या वज़ह उसमें कोई और बात नहीं है। निरपेक्षिता से देखिए । है? सारी वजह ये है कि अभी हम चढ़ रहे हैं। छोटे सिर्फ चक्र पकड़ा है न । अरे निकाल देंगे चक्र हैं, बड़े हो रहे हैं। छोटे बच्चे है; पहले थोड़ा जलेंगे, उसका भी, अगर बैठे बैठे उसके प्रति सब इच्छा पहले थोड़ा गिरेंगे, एक दिन जब बड़े होंगे तो अपनी करते हैं । अगर बहुत ही गई बीती चीज़ है तो अंग्रुलियाँ पकड़ करके हजारों को चलाएँगे। छोटे छोड़िए उसको, cancer हो गया। छोड़िये उसको, हो अभी आप। ठगे जाआगे तो कोई हर्ज नहीं। दफना दीजिए । लेकिन जिसके प्रति आपको भोलेपन में रहें । लेकिन जो ठग रहे हैं और वह सहानभूति है, जिसका आपको लगता है कि वह अपने को बहुत अकलमन्द समझ रहे हैं तो उनको ठीक होगा, उसका कुछ हाल ठीक कर सकते हैं, पता होना चाहिए कि cancer बन के निकाल दिए उसके आपके पास हैं तरीके। यह primrodial जाओगे। वह एक मार्ग और भी है जहाँ जो जाता है फिर लौटता नहीं है। नर्क का भी एक मार्ग है, आपस में share करिए, आपस के चक्र बढ़ाइए, बुरा movements हैं, उनसे आप उनको ठीक करिए। उस रास्ते पर बहुत से लोग चलते हैं, उनको पता नहीं मानिए । बिलकुल भी नहीं बुरा मानना चाहिए । ही नहीं. वे सोचते हैं माताजी के सामने आओ, जिस आदमी ने बुरा मानना जाना है वह उतना ही उनके पाँव छुओ, उनके पाँव धोओ। हो गये बड़े गलत होगा जो दूसरे को दुःखी करता है। बुरा सन्त। वह भी एक मार्ग चल रहा है, साथ ही साथ मानना और दुःखी करना दोनों ही एक चीज़ हैं, एक सब चल रहा है। जब फूल खिलता है तो कली का ही क्रिया के दो अंग हैं। इसलिए बिलकुल भी बुरा जो कुछ गिरना है वह गिर जाता है और उसमें से नहीं मानना चाहिए। अगर कोई कहता है कि चक्र सुगन्ध आती है। जो कुछ पनपने का है बह पनपता पकड़ा है तो उपकार मानना चाहिए भईया तूने जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -४VI अंक : 1 एवं 2 35 पहचाना, मैंने नहीं। अगर कोई कह दे कि तुम्हारे और हृदय ही से सारा कार्य हम करते हैं और हृदय अन्दर में यहाँ से सॉप काट रहा है तो तुम उसका से ही सम्बन्ध है, तुम्हारा मेरा। इसलिए पहले हृदय उपकार मानते हो। जिसका चक्र खराब हुआ है तो चक्र को पूर्णतया आप लोग साफ करें हम अपनी उसको भी उपकार मानना चाहिए कि यह मेरा चक्र तरह से चीज़ सोचते हैं कि यह ऐसी चीज़ है। हृदय पकड़ा है इसको निकाल दे भई, तू साफ कर दे। की तरह क्यों नहीं? कितना प्रेम हमने दिया? दूसरों कभी बुरा नहीं मानना चाहिए। हालांकि और संसार को हमने कितना प्रेम दिया, दूसरों को कितनी से तो आप बड़े हैं ही क्योकिं आपकी vibrations तकलीफ दी। मुझे देसाई की चिट्ठी आई, उनके हैं, और दुनियाँ में कितने लोगों को आ रही हैं। लिए लिखा उन्होंने कि मेरी wife की बड़े मदद इतना बड़ा Pope है, उसके भी नहीं है । मैंने देखा करते हैं। मुझे बड़ी खुशी हुई. बाग बाग हो गई मेरी है । बड़े बड़े लोगों से आप बड़े हैं लेकिन हैं तो अभी तबीयत यह सुन कर के। तेरे देसाई की बड़ी बच्चे ही न। सहजयोग में बच्चे हैं। Pope के पास helpless चिट्ठी आई, मेरे wife को ऐसे हुआ। मैंने तो है ही नहीं vibrations। बड़े बड़े जो बने है, कहा, इतने लोगों को मैंने पार किया, यह दिया वो 1 हुए जिनके आगे दुनिया झुकती है और यह शंकाराचार्य, दिया, वो बेचारी मर कैसे रही है? मुझे क्या ज़रूरत और ये है, वो हैं, उनके किसी के vibrations हैं है? London से उसे वहाँ vibrations भेजी। क्या, मालूम नहीं। और तुम लोग तो जाग ति भी देते बात-बात पर आपस में मदद करें, आपस में प्रेम हो और पार भी कराते हो। और सबकी कुण्डलिनियाँ करें। ऐसे बन्धन में इक्कठे हो जाएंगे हम लोग कि अंगुलियों पर फिरा रहे हो । कितनी बड़ी बात है! जैसे एक ही शरीर है विराट का और उसके सहस्रार गणेश जी के सिवाए कोई नहीं कर सकता था पे विराज मान हैं आप लोग. विराट के सहस्रार पर पहले । इसलिए गणेश जी के हाथ में वह होता है न बिठाया है आप लोगों को और क्या कर रहे हैं 1 1. छोटा सा सांप, बह इसका symbolic है कि वह पागल? विराट पुरुष के सहस्रार पे एक हज़ार सबकी कुण्डलिनी घुमाते थे अब तुम्हारे कम से आदमी बिठाने के हैं और देखने को बड़ी बात कम एक तो हाथ में आ गया है कि कुण्डलिनी तो लगती है। हाँ हाथ में vibrations कितने के आए चढ़ा सकते हैी सबकी! पर लौकिक से बनता नहीं। हैं? आए हैं न? कुण्डलिनी को समझते हैं? उसमे तो वह अलौकिक है. उसका कुछ ठिकाना नहीं है। कोई शंका नहीं आप लोगों को। हमारा क्या, खेती तोड़-फोड़ कर देता है। जितना वो नाजुक है, कर दी है, देखेंगे। सारी दुनिया के लोग करें मुझे जितना वो प्रेममय है उतना ही बो संहारी है। वो तो समझ नहीं आता कि तुम लोग छोटी छोटी चीज़ के अपने तरीके से चलने वाले हैं। आप अपने तरीके से लिए यह नहीं हुआ, वो नहीं हुआ ? अरे, यह नहीं सिर्फ इतना करिए। कहाँ है हृदय चक्र? सबसे हुआ, वो नहीं हुआ, क्या होता है? तुम लोग कौन सी पहले हृदय चक्र को ठीक करिए। हमारा हृदय line में चले जा रहे हो और सोच क्या रहे हो? अब साफ है या नहीं? हमारे मन में किसी के प्रति यहाँ से अगर आपको दिल्ली जाना है तो आप क्रोध है क्या? हमारे मन में किसी के प्रति कोई सोचिएगा कि वहाँ आटे का भाव क्या है? लेकिन आशंका है क्या? अपने हृदय से पूछे। सबसे बड़ी आप को जाना है जहाँ आटा वाटा कुछ नहीं चीज़ है क्योंकि हृदय control करता है brain को चलता। धर्म चलता है। वहाँ धर्म का भाव क्या है चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक जनवरी एवं फरवरी 2004 1 एवं 2 36 यह जानना है। आटे दाल का भाव जानने की क्या रहा है? Now you are growing younger and जरूरत है धर्मिक लोगों को ? वहाँ क्या धर्म younger. I am worried about you. She is है, वहाँ क्या है, यह जानने की जगह वहाँ पर कौन getting younger and younger. Isn't, हॅ जो सा politics पक रहा है? वह चीज़ है यह आप बोलते हैं वह सर के अन्दर से जा रहा है? दिल के जानते हैं। अगर आपके अन्दर vibrations नहीं है अन्दर से जा रहा है? दिल के अन्दर से जाना तो बात अलग है। आप जानते हैं। लेकिन यह चाहिए। सर से जाएगा तो argument करेंगे। बहना बहुत ही कम चीज़ है, अभी तो कुछ हुआ ही उसका dogma बनेगा दिल से जाने दीजिए प्रकाश नहीं, अभी तो बच्चे हैं आप। आपकी एक साल की होएगा प्रेम का मजा उठाना है तो दिल से जाईये । भी साल गिरह मनाने को मैं तैयार नहीं हूँ। अभी तो हृदय चक्र को ही sacred heart कहते हैं। Christian सिर्फ जबरदस्ती का राम राम हुआ है आप अपनी लोग जो कहते हैं sacred heart वही हृदय चक्र है ओर देखिए कि मैं कुछ बदला कि नहीं, मुझमें कुछ और उसमें भवानी का, दुर्गा का स्थान रखा हुआ है। अन्तर आया कि नहीं? मेरे अन्दर कुछ शान्ति आई और बहुत बड़ा स्थान है उसका। दुर्गा को समझना कि नहीं? मेरे अन्दर कुछ हुआ? सिर्फ सुषुम्ना की आपके बस का नहीं है। यह जितने भी राक्षस हैं वो जो अति सूक्ष्म नाड़ी है उसमें से खींचकर निकाला भी उसी के बच्चे हैं जो कुछ भी संसार है उसी का है हमने आपको एक ही बारीक line पर बिल्कुल ही है उनको जिन्होंने मारा, तुम्हारे प्यार के पीछे खींचा है, जो की कहना चाहिए कि बाल के बराबर और उनका नाश किया वह उस माँ की ही शक्ति है। सुषुम्ना खुद ही इतनी मोटी है, देखा जाए तो है । अपने ही हाथों को खींचना बहुत मुश्किल हो और वह एक के ऊपर एक चार परते हैं। लेकिन जाता है अपने हाथ से अपने को injection देना इसी vibrations से लोगों की तबीयत ठीक हो रही बहुत मुश्किल हो जाता है. फिर अपने ही बच्चों को है। यह ठीक हो रहा है। एक आई थी Lady मारना दूसरे बच्चों को बचाने के लिए उससे भी उसका तो चेहरा एकदम अलग दिखाई दिया। वह कठिन बात है। लेकिन वह मारना भी एक बड़ी कहने लगी मेरा तो asthama एकदम ठीक हो शक्ति का कार्य है। क्षमा का कार्य है, एक बहुत गया है। यह कौन सी बड़ी बात है। वह ठीक हो बड़ी क्षमा का कार्य है। लेकिन कलयुग में आप गया, वह ठीक हो गया, ये कौन सी बड़ी बात है? लोगों को कोई भवानी बनने की जरूरत नहीं है। इसमें रखा क्या है? cancer ठीक हो गया, इसमें शान्त हो जाइये । अत्यन्त शान्त हो जाइये। अत्यन्त कौन सी बड़ी बात है। यह तो होना ही था घर में शान्त हो जाइए । आपकी शान्ति ही हमारे कार्य को अगर बिजली जल गई तो दिखाई देने ही लगेगा । बढ़ाएगी। आप मान लीजिए की लोग कहेंगे सहजयोग कम से कम । अगर बिजली जली तो जली कि नहीं में हमने ऐसे ऐसे लोग हमने देखें है कि जो क्रोध के जली? कम से कम दिखाई तो देगी सब चीज़। बिलकुल वो थे, servilty के पुतले थे, बिलकुल दबे उसमें कोई विशेष बात नहीं हुई। लेकिन बिजली हुए लोग थे। अजीब अभिनव वो आदमी थे आप ही जलने के कारण आपमें कौन सा ज्ञान आया, आपने लोग हमारे सहारे हैं और कौन है? आप ही से लोग कौन सा New dimension देखा, आपने कौन सी कहें बढ़िया आदमी है, first class. तबीयत का बड़ा चीज़ नई करी। यह विशेषता है। हाँ, कैसा? चल है हर चीज से wide है । हो रहा है, काफी हो रहा लीब जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 37 है। पहले से बहुत फर्क आ गया है। लेकिन जोरों क्योंकि स्वतन्त्रता नहीं है। और राक्षस लोगों को करके-आ देखिए, उनके वो कैसे आपस में जुट में हो सकता है। अब सब आपके ऊपर है जैसे इसको हा-हा! क्या मजा आ रहा है! इसका गला घोटा, उसको मार डाला, उसकी हालत खराब । सन्तों का सोचे, आपस में समझें, दूसरों की बात सुनें, शान्ति पूर्वक दूसरों को समझें, दूसरों को महसूस करें । गुट जब बनेगा तो सोचिए क्या होगा? सन्तों का गुट है। तादात्मय पाएं, दूसरों के साथ, जैसे यह हाथ इस कभी बना नहीं है। यह पहली मरतबा हुआ हाथ को जानता है। इस हाथ से यह brain भी सन्तों की सन्तता छूट जाएगी तो फायदा क्या ऐसे जानता है और हृदय भी जानता है, और सब चीज़ गुट का? सन्त के सारे ही लक्षण अपने अन्दर से एक साथ चल रही है integrated, ऐसे ही आप दिखने चाहिए। marathi... मैं कह रही हैूँ लाल सबको integrated होना पड़ेगा। तभी वह हजार साहब, कि आप लोगों की meeting थी, पहले वह हाथ तैयार होंगे जो मनुष्य रूपेण इस्तेमाल किए कर लीजिए फिर पूजन करिए। क्योंकि जब चढ़ जाएँगे। वही हज़ार हाथ जो सहस्रार में हैं। वो जाएगा न फिर हम कुछ बोल नहीं पाएंगे। आप मनुष्यों से ही निकलेंगे, वह भी सर्वसाधारण, कोई लोगों की meeting में जो कार्यवाही होती है, बड़े बड़े ऋषि मुनि नहीं चाहिए उसके लिए की बैठा कार्यवाही के लायक रह नहीं जाएंगे। हो गया अब लिए चक्रों पर। जो बड़े बड़े लोग हैं वह तो चक्रों आप बता दीजिए कोई problem है क्या, बिलकुल पर बैठे मनुष्य से निकलने वाले हैं। marathi... हॅ। घर में पूजन करिए इत्मिनान से। यह जितना भी गोबर है ही सफाई पहले। मैं कह कर रही हूँ कि आपस में उसको लपेट कर साफ करके फेंक आएंगे फिर नहलाना शुरू करो vibrations से । Mrs. Lal आप बातचीत होगी। बताएं क्या क्या problem है । अगर दीजिए, ये आपको दें पहले चक्र आपस में देख किसी में ज़्यादा है तो आप उसकी मदद करके उसे लीजिए फिर बाहर निकलें नहा धोकर, बाहर निकलें, ठीक कर सकते हैं। पर निर्पेक्षता रखिए । निरपेक्षता तैयार, फिर शरद मिलें, शरद की आपको सफाई आवश्यक है। आप आप नहीं है, आप निर्मल अन्दर किया। फिर उन्होंने आपके दो हाथ सफाई किये। हैं, बाहर आपे हैं। ऐसा दूसरा कोई भी है उसका सफाई करते चलिए, हो गया, सब, निर्मल हो गया भी ऐसा ही है। आप निर्पेक्षता से दूसरे के प्रति मामला। दुनिया में सब आफत मची हुई है और जाग त रहें। अगर किसी में बहुत तकलीफ दिखाई दुनिया में आपको पता नहीं क्या क्या हो रहा है । देती है तो उसे ठीक करें। बुरा न मानें । अगर criminality बिलकुल आने वाली है। आपको पता कोई आदमी बुरा मानता है तो इशारे से कहें जैसे नहीं है राक्षसों का ऐसा राज्य बना हुआ है और आप मेरे पैर पर हैं। किसी बात से आप बुरा माने राक्षस लोग ऐसी बातचीत करते हैं कि उनका आपस में गुट हो जाता है। वे ऐसे चिपक जाते है कुछ सोचना नहीं चाहिए। जैसे कोई आदमी आपस में जैसे कोई glue होता है ना । वो ऐसे बीमार होता है उस तरह तो मैं आपको इशारों में चिपक जाते हैं। और हमारे जो कार्य करते हैं वो बताऊंगी कि आप पैर पर आ गए। समझ गए सांसारिक gross सब कुछ बातचीत हो जाए। फिर हुए चला रहे है। सहस्रार में तो यह सामान्य समझ लीजिए मालूम है हमें, तो दूसरों को उसका बात बात में झट गिर गये। उधर गये, झट गिर गये कहाँ पर हैं चलो निकालो । आपस में मिलकर के tho जनवरी एवं फरवरी 2004 38 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अक : 1 एवं 2 हम लोग आपस में सफाई करते हैं। प्रश्न-माँ आपस में कोई भेद भाव दिखाई कौन कौन बड़े है? कौन जो बडे बड़े बातें करने पड़ता नहीं है। उत्तरः है नहीं। लेकिन थोड़ा बहुत वाले हैं। यह churning चला है जान बूझ करके यह होता है हम लोग पाँच कदम आगे चले और छः हम कुण्डलिनी उतारेंगे, जान बूझ कर भी। बात यह कदम पीछे, फिर पाँच कदम आगे फिर छः कदम है कि जब तक उतारेंगे नहीं, चढाएंगे नहीं, उतारेंगे पीछे। सवाल उठता है कि कितने साल बाद नहीं चढाएंगे नहीं, तब तक काम नही बनेगा जानबूझ पहुंचेंगे? वे पहुंचेंगे ही नहीं वह तो उधर ही खड़े हैं। कर उतारेंगे। अभी जितने बूढे लोग हैं उन्हें पता प्रश्न: उठते तो हैं लेकिन अखिर जो नतीजा है होना चाहिए कि लौकिकता से आप ही लोग Leader उसमें भेद भाव नहीं बीच में पर पड़ता है। श्री हैं लौकिकता से संसार में आप ही लोग बुजुर्ग हैं. माताजीः हूँ। वह भी चीज़ है जब आप अपनी आप ही बड़े हैं। इसलिए आपको और भी Better ऐसी कुण्डलिनी पकड़ के रखूँगी नीचे में कि देखूँगी awareness में उतरेंगे तो वह बिलकुल एक साथ होना चाहिए। आप लोग सब एक हो जाएं। बच्चों चलेंगे। एक साथ जैसे की इतना बड़ा समुद्र है को बताएँ, बच्चे हैं आपके, कि यह लौकिकता है। उसकी भी लहर एक साथ चलेगी। एक साथ और अलौकिकता में कोई भी उठ जावे जिसकी सबका आन्दोलन चलना चाहिए। अब यही है कि द ष्टि ऊपर में है जो पहली सीढ़ी में भी खड़ा है तो एक डण्डे से चाहे, अपने को मार लो चाहे दूसरों भी वह चढ़ जाएगा। उतरा तो भी वह बार बार चढ़ को मार लो, बेहतर है अपने को मारो। इसमे बड़ा जाएगा। जो सोच रहा है कि मैं ही बड़ी ऊँची सीढ़ी छोटा कोई है ही नहीं, इसमें कोई seniority का पर हूँ, गलत है। अन्दर में उसको सोचना चाहिए सवाल है ही नहीं। इसका reason है न आप लोग और देखना चाहिए कि हम चढे और उतरे, चढे और लौकिकता से आ रहे हैं जहाँ आपने देखा कि एक उतरे । सबका होता है। क्योंकि मंथन चला हुआ है। बड़ा होता है एक छोटा होता है एक officer होता मंथन में किसी का कोई स्थान नहीं बना हुआ, यह है एक नीचे होता है, एक राजा होता है, एक कंगला हिसाब है। सहजयोग का तरीका बिल्कुल अभिनव होता है, एक साधु होता है, फिर एक सन्यासी होता है। इसमें कुछ नहीं है सिर्फ एक वह चला हुआ है है और न कभी मंथन हुआ है। एक आदमी गगनगढ़ churning को क्या कहते हैं? मंथन है यह । मंथन महाराज सालों तक बेचारे तपस्या करते हुए जंगल चला हुआ है। एक ऊपर एक नीचे, बस मैं मंथन ही में बैठे रहे। उनसे आप लोगों का कोई लेन देन नहीं कर रही हूँ। अब मक्खन कौन चुराएगा वह देखना है इस मामले में कुछ और आपको समझा नहीं है। अकलमंद जो होगा वह मक्खन चुराएगा यह तो है, नावीण्यपूर्ण है। आज तक किसी ने किया नहीं सकूंगी। वह उनका मंथन नहीं हुआ। उन्होंने अपने चला ही हुआ है churning. खूब, कभी ठण्डा दम पर अपने को बनाया है। अकेले ने उनकी बात आएगा कभी गर्म आएगा यह चला हुआ मक्खन ऊपर आएगा, और तैर जाएगा मक्खन गणेश जी की guidance है। आपके पास माथा हल्केपन से। कोई ऊँचा नीचा है ही नहीं इसमें । पीटते हैं बहुत बार, भई इनको कैसे समझायें। तुम जिसने सोचा कि मैं ऊँचा हूँ और नीचा हूँ तो फिर एक महमाया भी बैठी हुई है, समझ लीजिए । फिर गणेश हो, बहुत बड़े हो माना, लेकिन यह बच्चे हैं है और और है। उनका guidance यह है कि जैसे की गणेश हो। यह गणेश नहीं है, बच्चे हैं सोचो तुम ला पुत चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अफ : 1 एवं 2 जनवरी एवं फरवरी 2004 39 कर ३ई अभी। और हमारे मंथन में फँसे हुए हैं बेचारे। उनके एक रहे आपस में। एक आदमी अगर ज्यादा बोले तो ठण्डे हो जाओ, ठण्डे हो जाओ, ठण्डे हो जाओ बीच का जुआ हम ही हैं और समझा रहे हैं । आपकों। एक बात सही है, चाहे व शंकराचार्य हो ठण्डा आता है न ठण्डा आना भी चाहिए गर्म या कोई, vibration के बारे में, इतनी बड़ी बात नहीं, ठण्डे हो जाओ। ठण्डापन, संजीदापन, ठण्डेपन कोई भी नहीं जानता था इतनी technicalities, को अन्दर आने दो। धर्म ठण्डा है absolute zero primordial movernents, सारे कोई नहीं जानता पर, धर्म बसता है absolute zero पर ठण्डा लोग था, चाहे आप शंकराचार्य पर डालिए या कोई और हिमालय पर जाते थे इसी लिए तुम्हें हिमालय की पर डालिए। कहीं भी नहीं लिखा है। घर यही बड़े ज़रूरत नहीं है। आष लोग अपना airconditioner बड़े जीव आए हैं संसार में । मैं आपसे बताती हूँ कि खोल दीजिए इसी वक्त। अपनी ओर सचेत रहें । 1 क्या जीव है एक एक! बाप रे बाप! दस बाहर साल अपने दोषों को देखें, चक्रों को देखें ओर दूसरों के से तैयारी हो रही है। तैयार हो जाएंगे अन्दर। तब चक्रों में मदद करें, secretly । पहले बाद में बताने तक आप लोग मेरे सब platiorm न तोड़ दीजिए, की ज़रूरत नहीं है। secretly जब आप कर सकते कुश्ती कर कर के। अगर मेरा platform ही तोड़ हैं तो क्या है? रास्ते में चलते ही चलते जब दिया तो मेरे बच्चे क्या करेंगे? संसार में इतना बड़ा खेल करने को आए है थोड़ा बहुत ठीक है । हूँ secretly करेंगे उतना पवित्र होगा. उतना ही प्रेमपूर्वक organisation कैसा है कि सब चीज अपने आप होगा। बड़ा अच्छा लगता है कोई काम secretly सहज ही ठीक हो जाएगी। जब आपस में आन्दोलन करें। जाग तियाँ हो रही हैं तो फिर क्या हैं? जितना श्रीमाताजी के कथन "सहजयोग में आने के पश्चात, सहस्रार खुलने के पश्चात् आपको इन चार चक्रों में से गुजरना होगा अर्धबिन्दु, बिन्दु, वलय और प्रदक्षिणा। इन चार चक्रों को पार करने के पश्चात् ही आप कह सकते हैं कि आप सहजयोगी बन गए है।" हैं परम पूज्य श्रीमाताजी चौदहवाँ सहसार दिवस 1983 "जैसा आप जानते हैं, उत्क्रान्ति के लिए हमारे अन्दर सात चक्र हैं और दो इनसे ऊपर हैं अत: इसी जीवन में ही इन नौ चक्रों को पार किया जाना आवश्यक है। यही आपका भाग्य (लक्ष्य) होना चाहिए।" "भारत में विशेष रूप से गणपति पुले में बहुत से लोगों ने उस ज्योंतित चेतना का अनुभव किया है जो सहसरार से परे है। परन्तु इस अवस्था का वर्णन कैसे किया जाए?" पौराणिक नाथ योगी मच्छेन्द्रनाथ ने कालज्ञान निर्णयतन्त्र के तीसरें अध्याय में इस अवस्था का वर्णन किया है : "प्रियतम (पिण्ड के अन्दर) पाँच पक्तियों के, सोलह पंक्तियों के, चौसठ कलियों वाले, सौ दल के वास्तव में सुन्दर अत्यन्त तेजोमय एक करोड़ पंखुड़ियों वाला कमल स्थित है। एक करोड़ पंखुड़ियों वाले कमल के ऊपर, तीन करोड़े पंखुडियों वाला कमल है जिसकी हर पखुडी दीप शिखा सम है। इसके ऊपर सब कुछ अपने अन्दर समेटे हुए, शाश्वत अविभाज्य, स्वतन्त्र. अजेय सर्वव्याप्त और निष्कलंक कमल है अपनी स्वेच्छा से यह स ष्टि कमल (आज्ञा) तथा सहस्तर दल का सुन्दर कमल (सहसरार) है और इसके ऊपर का स जन तथा प्रलय करता है। सभी जीवन्त तथा नि्जीव प्राणियों का वलय इसी लिंग में होता है ।" हम सबका भी यही लक्ष्य होना चाहिए... जब-जब भी आपको निराशा का एहसास हो रहा हो तो वर्तमान क्षण केवल वैसा ही होता है जैसा आप इसे बना लें-अतः सदैव प्रसन्न रहें । परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी पुणे नवरात्रि पूजा। 1988 पुणे युवाशक्ति को श्रीमाताजी का संदेश 18 मार्च, 2000 प्रतिष्ठान आप सबने जो कार्य मेरे लिए किया उसके लिए मैं अनुग हीत हैँं। आप सब यदि सहजयोग की गहनता में उन्नत हों तो मुझे अत्यन्त प्रसन्नता होगी आपमें से बहुत से लोग अच्छे सहजी हैं। आपको याद रखना है कि आपने आदर्श सहजयोगी बनना है क्योंकि आप ही ने पूरे विश्व को परिवर्तित करना है । आपकी माँ (श्रीमाताजी) आपसे यही आशा व्यर्थ है मूल्यहीन प्रतिदिन ध्यान-धारणा अवश्य करें सहजयोग में परिपक्व होने का केवल यही उपाय है। आपने सभी अभागे नशेड़ियों को भी बचाना है । अपने हृदय से प्रेम, करुणा एवं उदारता प्रसारित होने दें। करतीं हैं। मेरी केवल यही इच्छा है। बाकी है। केवल तभी आप परमात्मा के साम्राज्य में होने का आनन्द ले सकते हैं । सब कुछ परमात्मा आपको धन्य करें। श्रीट अहं और प्रतिअंह ब परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन 18-12-1978 परिवर्तन काल में मस्तिष्क को सावधानी से मानव अभी परिवर्तन की अवस्था में है। उसे थोड़ी सी छलांग और लगानी होगी तब वह पूर्वक सुरक्षित रखना तथा परमात्मा की इच्छा उस अवस्था को प्राप्त कर लेगा जिसके लिए मुक्त रखना आवश्यक है ताकि यह अपना उपयोग उसका स जन किया गया है। मानव-मस्तिष्क और कर सके और विविक का एक अन्य आयाम विकसित दो अत्यन्त विकसित अवयव है। मानव हृदय कर सके। इस लक्ष्य से अहं और प्रतिअहं प्रणाली को भी मस्तिष्क से जोड़ना चाहिए। हमारे पेट से चर्बी उठती है और सभी चक्रों की प्रतिक्रिया या प्रतिपल है. हर गतिविधि की एक में से गुजरती हुई मस्तिष्क कोषाणुओं में परिवर्तित प्रक्रिया होती है। किसी चीज़ से यदि आप इन्कार होकर मस्तिष्क को जाती है। चर्बी को मस्तिष्क करते हैं तो यह प्रतिक्रिया 'अहं' है । किसी चीज़ बनने के लिए विकसित होना होता है। अर्थात को यदि आप स्वीकार करते हैं तो ये प्रतिक्रिया मानवीय चेतना का कुछ अंश प्राप्त करने के लिए प्रतिअहं है । अहं और प्रतिअहं तालू अस्थि को पूरी मानव मस्तिष्क का एक आयाम है जो पशुओं में तरह से ढक लेते है तथा अपनी इच्छानुसार कार्य नहीं है - मानसिक या भावनात्मक आयाम। जिसे करने की स्वतन्त्रता प्रदान करने वाली सीखने के हम प्रेम के रूप में जानते हैं। हम जानते हैं कि लिए अपने मस्तिष्क का उपयोग करने वाली सर्वव्यापी हृदय का स जन किया गया ये मानव की गतिविधियों किस प्रकार प्रेम प्राप्त करना है और किस प्रकार शक्ति से आपको अलग कर देते हैं। क्योंकि यदि लौटाना है। हमें सौन्दर्य और काव्य का ज्ञान है विकास प्रक्रिया ने आगे बढ़ना है तो आपको प्रयत्न और हम ये भी जानते हैं कि इसका स जन किस करते रहना होगा अतः परमात्मा ने जो भी कुछ प्रकार करना है। मस्तिष्क स्वभाव से त्रिकोणाकार किया है वह आपके हित के लिए है। तथा समपार्शवीय (Prismatic) होता है। परमात्मा की दिव्य शक्ति की किरणें जब इसमें बहती हैं तो नहीं दिया कि आप बिगड़ जांए और समाप्त हो ये भिन्न कोणों में मुड़ जाती हैं और शक्ति के जांए। आपमें अहं का होना आवश्यक है परन्तु समान्तर चतुर्भुज के सिद्धान्त (Parallelogram) के इसके साथ आपको लड़ना नहीं। आपके अहं का अनुसार इस शक्ति का एक हिस्सा बाई और को परमात्मा के अहं से एकाकार हो जाना चाहिए। एक चला जाता है और एक दाई ओर को। इस कारण बार जब आप जाग त हो जाते हैं, एक बार जब से और भविष्य के विषय में सोच सकता आपको प्रकाश मिल जाता है तब आप ऐसा कर उन्होंने अहं और प्रतिअहं आपको इसलिए मनुष्य भूत है परन्तु पशु ऐसा नहीं कर सकते। सकते हैं । परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ब्रिटेन (यू० के०), 15-11 1979 ब्रिटन नाम ही अपने आप में अत्यन्त सुन्दर आपको इस बात का ज्ञान नहीं है कि आप क्या है। इसने पूरे देश को चमकाना है। मैं यहाँ पर खोज रहे हैं । पर एक चीज़ निश्चित है कि जिस पहले भी दो बार आ चुकी हूँ और हमेशा मुझे ऐसा प्रकार चीजें चल रही हैं उनसे आप सन्तुष्ट नहीं हैं। लगा कि यदि यहाँ पर मुझे अवसर मिला तो हम आपको उससे परे कुछ खोजना है। निःसन्देह इससे यहाँ जोर शोर से सहजयोग आरम्भ कर सकते हैं परे भी कोई चीज़ है जिसके विषय में सभी पैगम्बरों, और एक दिन यह तीर्थ स्थल बन जाएगा। ब्रिटन सभी धर्म ग्रन्थों तथा प थ्वबी पर अवतुरित हुए सभी में मिली जुली चैतन्य लहरियाँ हैं। यहाँ पर समुद्र अवतरणों ने बताया है। इस बात का भी वचन दिया है और प थ्वी माँ का भी विशेष महत्च है। परन्तु जब भी परमेश्वर अपनी अभिव्यक्ति करने लगते हैं तो जाएगा। परन्तु पहला मूल्यांकन तो आपका अपना किसी न किसी छद्म वेश में आसुरी प्रव त्तियाँ आती होगा आपको निर्णय लेना होगा कि आप परमात्मा हैं। वहाँ एकत्र होती हैं और परमेश्वरी शक्ति से को खोज रहे हैं या किसी तुच्छ चीज को आप में लग जाती हैं यही कारण है कि ब्रिटन में यदि वास्तविकता एवं सत्य को खोज रहे हैं केवल | गया है कि एक दिन आपका अपना मूल्यांकन किया युद्ध मुझे मिली जुली चैतन्य लहरियाँ महसूस हुई। तभी आपका चुनाव किया जाएगा तथा केवल तभी आप परमात्मा के साम्राज्य के नागरिक बन जाऐंगे| आइये देखें कि यह परमात्मा है कौन तथा परन्तु कुल मिलाकर यह स्थान बहुत अच्छा है तथा यहाँ सहजयोग फलफूल सकता है। इन लोगों ने आपको सहजयोग के विषय में अवश्य बताया मैं किसके विषय में बात कर रही हूँ? आरम्भ में होगा 'सह' का अर्थ है साथ और 'ज' अर्थात साथ केवल मौन था, केवल मौन। मौन जब जाग त हुआ, जन्मा हुआ। यह योग है। परमात्मा से जिस एक मौन को जाग त किया गया था। मौन "परब्रह्म" रूपता को आप खोज रहे हैं वह आपके साथ ही कहलाता है। खेद है कि मुझे संस्क त शब्द उपयोग जन्म लेती है। यह आपके अन्तःस्थित है। सभी करने पड़ रहे है, परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि सन्तों ने कहा है कि "परमात्मा को अपने अन्दर इसमें कोई खोजें"। ईसामसीह ने भी यही बात कही है। विचारों से आपको मुक्ति पा लेनी चाहिए । भारत में इसका अर्थ यह है कि आपको खोजना होगा यह लोगों ने बहुत अधिक साधना की उन्हें प्रक ति का आपका जन्मसिद्ध अधिकार है जिसे चुनौती नहीं दी मुकाबला नहीं करना पड़ा, जिस प्रकार इस सभागार जा सकती। आपको इसकी याचना करनी होगी में आते समय आज हमें करना पड़ा। वहाँ की बिना आपकी इच्छा के परमात्मा यदि मानवीय जल -वायु अत्यन्त अच्छी एवं आनन्द-प्रदायी है। हिन्दुत्व छुपा हुआ है। इस प्रकार के परन्तु चेतना की अवस्था से ही दिव्य चेतना में आपको पेड़ के नीचे बैठकर लोग साधना कर सकते हैं, परिवर्तित कर सकते तो उन्होंने यह कार्य बहुत उन्हें प्रक ति का मुकाबला करने की आवश्यकता समय पूर्व कर दिया होता। परन्तु वो ऐसा नहीं कर नहीं पड़ती। साधको के पास ध्यान-धारणा सकते। आपको अपनी स्वतन्त्रता में ही परमात्मा से करने के लिए बहुत समय था । ध्यान धारणा करते योग माँगना होगा । उपलब्धियां प्राप्त की, इस कार्य के हुए उन्होंने बहुत निःसन्देह आप साधक हैं। परन्तु शायद लिए संस्क त भाषा का उपयोग उन लोगों ने किया। जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक 43 : 1 एवं 2 तो 'परब्रह्म' या आप कह सकते हैं पूर्ण करने के लिए तथा दूसरी बेहतर बनाने के लिए। तो मौन' जाग त हो गया, बस, क्योंकि यह अपने आप तीन शक्तियाँ कार्यरत हो उठी तथा इस प्रकार इन जाग त हुआ, जिस प्रकार से हम लोग सो जाते हैं तीन शक्तियों का स जन किया गया अब, जैसा और जाग त हो जाते हैं, तत्पश्चात् यह मौन कि हम जानते है, लोगों ने बाइबल में आदिशक्ति सदाशिव' बन गया। जब 'सदाशिव' जाग त हुए (Holy Ghost) के बारे में अधिक वर्णन नहीं किया। इनका उदय होने लगा अर्थात् इनमें स जन करने बहुत से धर्म ग्रन्थ जिन्होंने परम पिता (Father) का की इच्छा हुई। उसी प्रकार से जैसे सूर्योदय के वर्णन विस्तार पूर्वक किया है वो भी आदिशक्ति माध्यम से सूर्य निकलता है, इसी प्रकार से इस (Holy Ghost) के विषय में अधिक नहीं बता पाए । इच्छा कि अभिव्यक्ति होने लगी यह इच्छा उनकी ईसा-मसीह की माँ स्वयं आदिशक्ति का अवतरण (सदाशिव) शक्ति बन गई और उनसे अलग हो थीं तथा ईसा-मसीह उनका जीवन खतरे में नहीं गई। जो कुछ भी मैं कह रही हूँ वह आपको कहानी डालना चाहते थे । उन्होंने कहा तक भी नहीं कि वे प्रतीत हो रही होगी आपको इस पर विश्वास करने (Mother Mary) आदिशक्ति का अवतरण थी, क्योंकि की कोई आवश्यकता नहीं, परन्तु मैं एक ऐसे बिन्दु यदि धर्माधिकारियों ने उनकी माँ को सूली पर चढ़ा तक पहुंचूगी जिस पर आप विश्वास कर सकेंगे दिया होता तो वो सहन न कर पाते और अपनी और इसके बाद धीरे-धीरे आप इस सिद्धान्त को विध्वंसक शक्तियों का उपयोग कर बैठते परन्तु मान लेंगें, अभी आपके लिए यह परिकल्पना मात्र है। अतः 'श्री सदशिव' की इच्छा जब शक्ति Ghost) हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि बन गई तो यह 'शक्ति' या 'महाशक्ति या परमपिता (Father) तो साक्षी मात्र हैं। वे तो नाटक आदिशक्ति' कहलाई। इस 'आदिशक्ति' ने एक को देख मात्र रहे हैं जो आदिशक्ति खेल रही हैं व्यक्तित्व धारण किया तथा अस्तित्व रूप बन आदिशक्ति की स ष्टि का के आनन्द लेते हैं। श्री गई क्यों कि कार्य को करने के लिए इन्हें सदाशिव की इच्छा के अनुरूप विश्व का स जन नाटक खेला जाना था तथा वे (Mother Mary) अपने विषय में पूर्णतः मौन रहीं। आदिशक्ति (Holy साकार रूप धारण करना आवश्यक था, ऐसा करके आदिशक्तित उन्हें रिझाने का प्रयत्न कर रही करना ही आवश्यक था। आपके हृदय में यदि हैं। इस नाटक के वे साक्षी हैं। केवल इच्छा है तो इसका कोई लाभ नहीं, इस इच्छा को हमें किसी आकार में परिवर्तित करना हमें भी प्राप्त हो गर्ह हैं, विश्व का स जन किया ये होगा, अन्यथा इच्छा तो उठती और गिरती रहेगी। शक्तियाँ इस प्रकार हैं: पहली इच्छा (महाकाली) तो श्री सदाशिव' की इच्छा आकार रूप में परिवर्तित शक्ति है, दूसरी शक्ति क्रिया ( महासरस्वती) शक्ति हुई, इसने वह अस्तित्व धारण किया जिसे बाइबल है तथा तीसरी पालन कर्ता या भरण-पोषण करने में 'HOLY GHOST' तथा संस्क त भाषा में आदिशक्ति वाली महालक्ष्मी शक्ति है। इन शक्तियों ने मानव अतः आदिशक्ति ने इन शक्तियों द्वारा जो का स जन करने के लिए कार्य किया और हम उस कहा गया है। तत्पश्चात् इस 'इच्छा' ने अपने अन्दर से अवस्था तक पहुँचे हैं जहाँ हम इसके विषय में दो अन्य शक्तियों का स जन किया-एक कार्य बातचीत कर सकते हैं। ईसा-मसीह के समय में भी जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खम्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 44 में आदिशक्ति के विषय में बात करने का जिसके अस्तित्व की चेतना आपको है परन्तु जिसके मनुष्य क्षेम न था। मछुआरों के साथ हम क्या कर सकते स्रोत तक आप अभी तक पहुँच नहीं पाए हैं। और हैं? आप बताएं कि किस प्रकार मछुआरों को इन यही कारण है कि आप खोज रहे हैं। चीज़ों (आध्यात्मिकता) के विषय में बताया जा सकता है। यह आरम्भिक तैयारी थी परन्तु आप ओर प्रेम है, आपकी इच्छा शक्ति है जिसके माध्यम जानते हैं कि इन लोगों ने कितनी गडबड़ की । से आप अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करते हैं। इतनी अधिक भ्रम की स्थिति है कि लोग उन लोगों बाई ओर जब यह इच्छा शक्ति लुप्त हो जाती है तो को समझ भी नही पाते जो स्वयं को धार्मिक कहते हम भी लुप्त है। कट्टरपंथी और धर्म का परस्पर बैर है। वो कभी एक नहीं हो सकते। ईरान में आप ये बात देख सकते हैं। आप कहीं भी देखें, जहाँ कहीं भी परमात्मा का जिसका निवास हमारे हृदय में है। लोग कट्टर दाई ओर को हमारी क्रिया शक्ति है। इन तीनों तो 'प्रेम है, परमात्मा भी प्रेम ही है परन्तु इन तथाकथित धार्मिक लोगों ने कभी भी प्रेम की पर्दा सा बना दिया है, यह पर्दा हमारे भवसागर में अभिव्यक्ति वैसे नहीं की जिस प्रकार होनी चाहिए है । हमारा ज़िगर इसका पोषण करता है और इस और न ही इन्होंने परमात्मा प्राप्ति के कार्य का बीड़ा प्रकार से तीन पर्दे हमें उस आत्मा से दूर बनाए उठाया है। परन्तु अन्य सभी कार्य ये लोग कर रहे रखते हैं। न हम आत्मा को देख सकते हैं और न हैं जैसे परोपकार का कार्य, चन्दे एकत्र करना, बड़े ही इसे महसूस कर सकते हैं। हम इसकी अभिव्यक्ति स्तर पर सस्ते दामों पर चीजों को बेचना। साधक का ये कार्य नहीं है। इन परिस्थितियों में जब हमारा सभी कुछ जानता है। गीता में इसे क्षेत्रज्ञ' कहा हमारे अन्दर तीन शक्तियाँ हैं। आपके बाई हो जाते हैं । मध्य में आत्मा है जो कि परमपिता परमात्मा या साक्षी रूप परमात्मा का प्रतिबिम्ब है। उस हैं वो कितने धार्मिक हैं? क्योंकि 'धर्म शक्तियों ने हमारे चित्त और परमात्मा के बीच एक नहीं कर सकते। हम जानते हैं कि कोई है' जो सामना उन लोगों से है जिन्होंने धर्म का आयोजन गया है, जिसे ब्रह्माण्ड की हर चीज का ज्ञान है। किया है या अनायोजन किया है तथा बनावटी लोग हम जानते हैं कि एक सर्वज्ञ (Knower) है और वह जिनसे हमारा सामना है इन सबको देखकर हम आपके विषय में सब कुछ जानता है। वह आपके वास्तव में पूर्णतः हताश हो जाते हैं हम विस्मित हो कर्मों की, आपकी साधना की, गलतियों की, आपके सभी जाते हैं और हमारी समझ में नहीं आता कि क्या अन्दर के तूफानों की तथा आप द्वारा किए गए करें क्योंकि हम लोग जन्मजात साधक हैं। साधना कर्मों की टेप-रिकार्डिंग की तरह से है और इस में, हो सकता है, हमने कुछ गलतियाँ की हों, परन्तु फीता अभिलेखक (Tape Recorder) को शरीर में हैं हम साधक इसमें कोई सन्देह नहीं है। आप लोग नीचे की ओर स्थित त्रिकोणाकार अस्थि में रखा यदि साधक न होते तो आज आप किसी रात्रि भोज गया है इसे कुण्डलिनी नाम दिया गया है। ये या बॉल न त्य (Ball Dance) में किसी अन्य स्थान हमारी इच्छा शक्ति की अवशेष शक्ति है अर्थात जब पर रंगरलियाँ मना रहे होते। परन्तु ऐसा नहीं है। इस ब्रह्माण्ड का स जन किया गया तो इच्छा की ये इन सभी चीजों से परे भी कुछ है जिसका वचन शक्ति-आदिशक्ति-पूर्ण ब्रह्माण्ड के स जन के पश्चात् दिया गया है और जिसे आप महसूस करते हैं, भी सम्पूर्ण अवस्था में ही बनी रहीं क्योंकि वे तो जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 45 सम्पूर्ण हैं। ये बात समझनी बहुत सुगम है। आप कहने से मेरा अभिप्राय ये है कि कोई आकर यदि कह सकते हैं मान लो यहाँ पर प्रकाश है और मुझसे कहे कि "क्या आप मुझे विश्वस्त कर सकती फिल्म है, पूरी फिल्म को प्रतिबिम्बित कर दिए जाने हैं कि मेरी कुण्डलिनी जाग त हो जाएगी". तो मैं के बाद भी ज्यों की त्यों बनी रहती है। इसी प्रकार कहूंगी, "नहीं श्रीमान। मुझे खेद है, हो भी सकती है स्वयं को प्रक्षेपित करने के बाद बची हुई अवशिष्ट और नहीं भी हो सकती " आप यदि बहुत अधिक शक्ति, यह कुण्डलिनी है इसका अर्थ ये हुआ कि तर्क-वितर्क नहीं करेंगे तो यह जाग त हो जाएगी। आप कुण्डलिनी के पूर्ण प्रक्षेपण हैं । वह इच्छा क्यों? तर्क-वितर्क करने से क्या होता है? शक्ति है जो अपनी अभिव्यक्ति दो शक्तियों के रूप तर्क-वितर्क करने से क्या होता है इसका में करती है: दाऍँ ओर की शक्ति जिसे क्रिया शक्ति उत्तर में अवश्य दूंगी। कहने से मेरा अर्थ ये नहीं है कहते हैं तथा मध्य शक्ति जिसे आप कुछ सीमा कि आप तर्क- वितर्क न करें। अवश्य करें क्योंकि तक विकसित कर चुके हैं और बाकी का भवसागर में जानती हूँ कि आपमें ये समस्या है तर्क-वितर्क जो अमीबा अवस्था से वर्तमान अवस्था तक करना आपका संस्कार बन चुका मानव को विकसित करने के लिए जिम्मेदार है । हमें एक प्रश्न पूछना चाहिए कि अमीबा ओर (पिंगला नाड़ी) या क्रिया शक्ति का उपयोग अवस्था से मानव अवस्था तक क्यों विकसित हुए? करते हैं, और इस प्रकार सामने के चार्ट में दिखाए मान लो मेरे पास कुछ नट, बोल्ट आदि हैं और मैं गए पीले तत्व की स ष्टि करते हैं। इसे खड़ी बोली उन्हें एकत्र करती हूँ। तब कोई भी मुझसे पूछ में श्रीमान अह कहा जाता है। जब आप बहुत सकता है, "आप ऐसा क्यों कर रही हैं?" मैं कहूंगी, अधिक सोचते हैं तो ये अहं बढ़ता चला जाता है "मैं माईक्रोफोन बना रही हैँ। परन्तु माईक्रोफोन में और इसका दबाव प्रतिअहं पर पड़ता है। प्रति अह भी यदि एक तार लगी हो तो उसे भी ऊर्जा के स्रोत का स जन हमारे बन्धनों के कारण होता है। अहं से जोड़ना पड़ेगा। बिना ऊर्जा के स्रोत से जुड़े यह और प्रतिअहं के गुब्बारे जब बहुत अधिक फूल जाते कार्य नहीं हो सकता? हमारे अन्दर भी ऐसा ही हैं तो किस प्रकार हम कुण्डलिनी को उठाएँ, क्योंकि है-ये तीन शक्तियाँ, और अवशिष्ट शक्ति, जो कि कुण्डलिनी के उपर जाने के लिए तो कोई स्थान इच्छा शक्ति है, यह बैठी हुई आपको पुनर्जन्म देने बचता ही नहीं । अहं और प्रति- अहं को भली -भांति की इच्छा रखे हुए है ये आपकी अपनी माँ है और संतुलित होना चाहिए। अतः तर्क-वितर्क के बीच में जब भी इन्हें कोई अधिकारी (साधक) दिखाई देता कुण्डलिनी जाग त नहीं हो सकती। इसलिए मैं है जिसमें इन्हें (कुण्डलिनी) उठाने की शक्ति हो कहती हूँ "ये कार्य मुझे देखने दो ।" इस समय तथा जो इन्हीं की तरह से प्रेममय हो, केवल तभी तर्क-वितर्क न करें लोगों को ये बात अच्छी ये जाग त होती है। न किसी युक्ति से, न शीषार्सन नहीं लगती। वे सोचते हैं कि उन्हें चुनौती दी जा करने से, न योगासन करने से, न किसी को पीटने रही है। अतः मैं कहती हूँं "करते रहो (तर्क-वितक)"। आदि से और न ही किसी अन्य उपाय से यह परन्तु तर्क-वितर्क करते हुए होता ये है कि विचारों जाग त हो सकती है। यह तो स्वतः घटित होने का दबाव आप पर बनता जाता है और इसी कारण वाली क्रिया है-सहज'। स्वतः ही यह उठती है। से तर्क-वितर्क करके या पुस्तकें पढ़ के आप है। कोई बात नहीं। जब आप तर्क-वितर्क करते हैं तो अपनी दाई 1 परन्तु जनवरी एवं फरयरी 2004 चैतन्य लहरी ण्ड -XVI अंक। 1 एवं 2 46 कुण्डलिनी जाग त नहीं कर सकते। इसके लिए आप धन नहीं दे सकते, धन से शक्तियों के रूप में अभिव्यक्ति की है-शीतल इसे प्राप्त करना तो बिल्कुल असम्भव है। परमात्मा लहरियों के रूप में अभिव्यक्ति की है ये सर्वव्याप्त के पास दुकान नहीं है, वें दुकानदारी करना नहीं है कुण्डलिनी जब उठती है तो सारे चक्रों में से जानते और आप उन्हें आयोजित भी नहीं कर सकते, परमात्मा को हम आयोजित नहीं कर सकते। इन केन्द्रों को (Plexuses) के रूप में जानते हैं वे हमें आयोजित करते हैं। अत: किसी भी प्रकार के और इनके नीचे ही ये सूक्ष्म चक्र होते हैं। इनके आयोजन द्वारा कुण्डलिनी जाग ति के कार्य को नहीं ज्योतिर्मय होने पर आप आत्म-साक्षात्कारी हो जाते इच्छा की शक्ति है जिसने आदिशक्ति की तीन गुजरती है और उन्हें छूती है चिकित्सा विज्ञान में हैं। इस विषय पर मैं न तो कोई भापण देती हूँ और किया जा सकता। यह तो पूरी तरह से बीज के अंकुरण सम न ही आपके मस्तिष्क को भ्रमित करती हैँ । आप है। इसे प थ्वी में डालकर थोड़ा सा जल डाल दें । स्वयं सामूहिक चेतना में आ जाते हैं। ये वास्तवीकरण मैने जैसा बताया कि मैं थोड़ा सा प्रेम जल डालती है जिसकी खोज हमें करनी चाहिए। आपके अन्दर हूँ, थोड़ा सा प्रेम जल में आपको देती हैूँ तब यह इसे घटित होना है ताकि आप परिवर्तित हो सकें | स्वतः ही अंकुरित हो जाती है । आपके अन्दर एक किसी व्यक्ति पर सहजयोगी का लेबल लगा देने से बीज है, कुछ तैयार है वह सहजयोगी नहीं बन जाता। यह इस प्रकार नहीं एक अकुरण तत्व है, सभी बस इसे घटित होना है। नाराज़ होने से ये कार्यान्वित होता। सहजयोगी को तो वास्तविक दीक्षा (Baptism) नहीं हो सकता। कुछ भी करने से यह कार्यान्वित प्राप्त करना होगा उसकी तालू अस्थि को नरम नहीं हो पाता। आपको प्रयत्न हीन होना पड़ता है। होना होगा और कुण्डलिनी को उसका भेदन करना बीज को अंकुरित करने के लिए आप कोई प्रयत्न होगा साधक केवल तभी सहजयोगी बन सकता नहीं कर सकते। किसी फूल को फल में भी आप है। परिवर्तित नहीं कर सकते। वास्तव में हम कोई विशेष कार्य नहीं करते हम तो केवल एक म त चीज कुछ आप नहीं कर सकते। यह स्वतः घटित होने को दूसरी म त चीज़ का रूप दे सकते हैं, बस। वाली चीज है और यदि आपमें ये घटना नहीं हुई है कोई भी जीवन्त कार्य हमने नहीं किया है। तो आप सहजयोगी नहीं हैं। जब तक ये घटित नहीं यह जीवन्त प्रक्रिया है और इसे सहज भाव से ही हो जाती आप साधक नहीं है। परन्तु बाल-सुलभ | आप इसकी सदस्यता नहीं ले सकते ऐसा 1 परन्तु र में घटित हो जाती हैं । परन्तु लोगों में यह पल-भर प्राप्त किया जा सकता है। इतना सहज भाव से ये जाग ति होती है। जिन लोगों ने स्वयं को हानि पहुँचाई है उनमें यह आपके सहस्रार को छूती है और आपको अपने कुण्डलिनी जाग त होने में काफी समय लगता है। हाथों में शीत्तल लहरियोँ आने लगती हैं। भारतीय वास्तव में इस देश (U.K.) में मैंने देखा है कि बहुत धर्म ग्रन्थों के अतिरिक्त, जिसमें इसे सलील- से सुन्दर, सत्य-साधक ईमानदार एवं विनम्र लोगों सलील कहा गया है, अर्थात ये शीतल चायु आपको ने जन्म लिया है। प्राचीन काल के महान साधकों लहरों की लरह से आती है। बाइबल में भी इसे को अमरीका तथा इंग्लैंड में जन्म लेने का आशीर्वाद (Cool Breeze) कहा गया है। अतः पूर्ण शक्ति ही प्राप्त हुआ है। परन्तु वे व्यग्र हो गए और अपनी जनवरी एवं फरवरी 2004 सैजन्य नहरी खण्ड -४VI अंक : । एवं 2 47 व्यग्रता में उन्होंने स्वयं को नष्ट कर दिया और इस सकते हैं कि सत्य ही को आपने प्राप्त करना है और प्रकार से आप लोगों ने अपने सारे मनोदैहिक चक्र मैने वह सत्य देना है। बिगाड़़ लिए हैं। इन चक्रों में कुछ समय समस्या बनी रहेगी। परन्तु आपको प्रयत्न करते रहना है सत्य प्रदान करना मेरा कार्य है। आप कह सकते आपने इसी के लिए जन्म लिया है । इस उत्क्रान्ति कि मुझे इसका पारितोषिक मिलता है, आपको को घटित होना है। आपने अपनी आत्मा को आत्मसाक्षात्कार देना मेरा अपना कार्य है. मुझे ये आपको मेरा एहसान नहीं मानना क्योंकि पहचानना है, अवश्य आपको इसे प्राप्त करना है। कार्य करना है। आपका कार्य हैं इसे ले लेना परन्तु अधिकार जताने से इसे नहीं पाया क्योंकि यहाँ पर आप इसी के लिए आए हैं, इसमें जा सकेगा । पहले से ही कहा गया है कि 'विनम्र आभार की कोई बात नहीं। ये तो प्रेम है केवल प्रेम । व्यक्ति ही धन्य है, उसे विनम्रता की आवश्यकता है मुझे आपसे प्रेम करना है और आपने मुझसे ये प्रेम आपके अहकार की नहीं। अगर मेरे सिर पर बैठकर आप ये कहे कि हमें आत्म-साक्षात्कार प्रसारित होता रहता है। दीजिए तो मुझे उत्तर देना होगा कि में साक्षात्कार देने वाली नहीं हूँ। इसे तो आप ही प्राप्त कर सकते पाना किस प्रकार है। परन्तु हमारा मानवीय प्रेम हैं। वैसे ही जैसे बहती हुई गंगा नदी में इतना अधिक आक्रामक है कि जब कोई कहे कि मैं प्राप्त करना है। यह तो अविरल बहता रहता है, मैं आपको केवल ये बता रही हूँ कि इसे बिल्कुल यदि आप पत्थर फेंके तो इसमें से आपको जल आपसे प्रेम करता हूँ तो हमारी समझ में ही ये नहीं नहीं मिल सकता। आपको एक घड़ा लेना होगा, आता वहाँ से हम दूर खाली घड़ा और इसे जल में डुबोना होगा स्वतः ही मुझे प्रेम करती हैं?" तो बेहतर होगा हम भाग जाएं. ये घड़ा जल से भर जाएगा। अतः आपकी याचना क्योंकि प्रेम का अर्थ है मोह (Possession)। से ही आपको पूर्ति मिलेगी और वही पूर्ति आपने मानव के प्रेम का अर्थ है नियन्त्रण करना। परन्तु खोजनी है, उसके बिना आप कभी प्रसन्न नहीं हो मेरा प्रेम मात्र प्रेम है। ये आपको शान्त करता सकते । भागते हैं, कहते हैं. "आप और एक नवचेतना कि स्थिति में आपको ले जाता निःसन्देह लंदन में भी सहजयोगी हैं परन्तु है। इस नव-चेतना में आपकी अंगुलियाँ पूर्णतः हम कीड़ी की चाल से बढ़ रहे हैं । ये वास्तविकता ज्योतिर्मय (चेतन) हो उठती हैं और आपके हाथ है। आप अन्य संस्थाओं को बढ़ता हुआ देखते हैं आपको सूचना देते हैं कि आपके और अन्य लोगों क्योंकि आप बहाँ पैसा देते हैं और राज्य के किसी के कौन से चक्र पकड़े हुए हैं । सेमिनार में मैं न किसी मन्त्री पद को पा लेते हैं या ऐसा ही कुछ आपको सहजयोग से होने वाले सभी आशीर्वादों के और हो जाता है। उनका लॉकेट पहनकर आप उस विधय में बताऊँगी। सम्भवत: ये सभी सहजयोगी भी कुगुरु के महान शिष्य कहलाते हैं। ऐसा करना आपको इसके बारे में बता सकें| बहुत सुगम है. क्या ये बात ठीक नहीं है? परन्तु सहजयोगी बनने के लिए आपको अपना सामना हैं, आपकी समस्याओं तथा प्रश्नों के विषय में मैं करना पड़़ता है, स्वयं को देखना पड़ता है और जब आपसे बात करना चाहूंगी। परन्तु इसके लिए यहुत सौन्दर्य का उदय आप में होता है मैं नहीं जानती कि आपकी क्या समस्याएं अधिक समय न लगाएं क्योंकि सहजयोगी समय के तब आप देख -x अं। । एव 2 जैतु्य लही अंक जनवरी एवं फरवरी 2004 48 े विषय में चिन्तित हो उठते हैं कारण ये है कि और इसके विषय में आरम्भ में उन्होंने भी मुझसे बहुत प्रश्न पूछे जिनकी क्योंकि ये सन्देह करने योग्य नहीं है। परन्तु फिर याद करके उन्हें लज्जा आती है दूसरे वे उत्तेजित भी यदि आपको कोई सन्देह है तो नि्टिचत रूप से हो जाते हैं कि प्रश्न करने के स्थान पर आप लोग मैं उसकी ओर ध्यान दूंगी। कभी-कभी बहुत अच्छे आत्मराक्षात्कार क्यों नहीं ले लेते। बेहतर होगा कि प्रश्न भी आते हैं। मैंने देखा है कि कुछ लोग बहुत कोई सन्देह नही होना चाहिए आप आत्मसाक्षात्कार ले ले। ऐसा करना आपके अच्छे प्रश्न करते हैं और मेरी समझ में आता है कि हाथ में है। तीसरे कभी-कभी उन्हें ऐसा लगता है उनकी समस्या क्या है? ऐसे प्रश्नों का हम स्वागत कि आप ऐसे प्रश्न पूछते हैं उनका न आपके लिए करेंगे परन्तु सन्देहग्रस्त व्यक्ति की तरह से न बैठें, कोई मूल्य है न अन्य किसी के लिए। ये भी आवश्यक है। सहजयोग यहुत बड़ा विषय है अतः एक वात आपको याद रखनी है कि और इसे पूरा वर्णन कर पाना बहुत कठिन है। यहाँ कोई भी चीज़ बिक नहीं रही, आपको इसके इसके द्वारा आप शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक लिए कुछ देना नहीं है। यह तो निरंतर बहने वाली एवम् आध्यात्मिक सामंजस्य प्राप्त कर सकते हैं चीण है । ये ऐसी चीज है जिसके विषय में बारतव क्योंकि सभी केनद्र जाग त हो उठते हैं और जीवन में विश्व का कोई व्यक्ति नहीं जानता। निरंतर बहने के चारों आयामों को प्रकाश से भर देते हैं। आपको वाली अत्यन्त सुन्दर द श्य देखा हो तो आप केवल इसो देखते है। इसी अपनी पूर्णता को खोजते हैं। ये काफी जटिल द ष्टिकोण से यदि आप आए, इसाके प्रति अपनी वाक्य है मैने इसे अत्यन्त संक्षेप में बताया है। इसके ऑँखें खोलने के लिए तभी ये कार्यान्वित होगा, विषय में यदि आपको कोई सन्देह हो तो नि:संकोच अपनी आँखें खोलें- इसे उन्मेष कहते हैं । उस सौन्दर्य के प्रति अपनी आँखें खोलें । यही आपकी आत्मा है इसके लिए आपको तैयार उहना चाहिए । आपने कभी अगर बह सुन्दर पूर्णत्व में ले जाते है जिसरो सामूहिक चेतना में आप मुझसे पूछे। मैं आपकी माँ हूँ। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। म ---------------------- 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-0.txt वैनन्य खाधरी रम न ० जनवरी - फरवरी 2004 II अंक 1 त 2 उवंत 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-2.txt 3 श्रीमाताजी का एक पत्र, 17 अगस्त 1978 5 श्री कृष्ण पूजा - प्रतिष्ठान, पुणे, 10 अगर्त, 2003 9 श्री गणेश पूजा - कबेला, 13.9.2003 । ज्ञानेश्वरी से भविष्यवाणियों, बोर्डी, 12.2.1984 18 निर्मल विद्या 20 मैं ही आदिशक्ति हूँ। न्यूयार्क, 30.9.1981 क 3 श्री माताजी का प्रवचन, बम्बई, 20.1.1975 40 श्री माताजी के कथन এ अहं एवं प्रतिअह, 18.12.1978 42 श्री माताजी का प्रवचन-ब्रिटेन, 15.1f.1979 ाभ मा 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-3.txt चै त - य ल ह री प्रकाशक वी.जे. नलगीरकर ए. मुनीरका विहार, नई दिल्ली 110067 162 मुद्रक अमरनाथ प्रेस प्रा. लिमिटेड डब्ल्यू एच एस 2/47. कीर्ति नगर औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली 15 फोन 25921159. 55458062. के लिए कृपया इस पते पर लिखें :- श्री ओ. पी. चान्दना संदस्यता 463 ( जी-11), ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली एन 110034 फोन : 27031889 E-mail : chaitanyalahiri@indiatimes.com सहज सम्बंधी अपने अनुभव, चमत्कारिक फोटोग्राफ तथा कलाकृतियाँ निम्न पते पर भेजें : चैतन्य लहरी सहजयोग मंदिर सी-17, कुतुब इन्स्टीच्यूशनल एरिया नई दिल्ली 110016 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-4.txt बैतन्य लहरी खप्ड -४V) अक 1 एव 2 जनयरी एवं फरवरी 2004 नावी का ए क पतर inशी ता Mataji Nirmala Devi Srivastava 17b Ru4.1१४ अनेकानिक अआशि्ोद अत्नत प्रेमाने ५ा०विलेल्या शरवी व्रवाie्या ३ली । व्या शर्टी भ२/२। d/- 5/२ आहे कारव ते पोणी जोरदार चथा ५2) पेमन्यि धोलक आहे / ७41011 S%61 112खी बांदली ६ /e आदे व अत्यना कामल &1ला S%६ // এ1५ है/। reh 6 ते थे मग नम२६॥-य स्थान स्थापित केलो जासे rरी मानवा यी स्रेम संवेदन शली इवकी |স সে ২//- २।ल। সাय औह। ৯ भी झाली कभी झली आहे कि. रासखी बांधने ही Sक थाl क e4 &ाली आहे । ज२ /६-या ओ लावा मराल । तर 4 २ । थ1121*% का पी लो निवि. भानवी परम्परा शुष्छ नौ किर्णीव होऊा प२ म्परा प्क मुन्हर ६२ जलात योग्यांनस्या धन्धनोकित्य आ्ी संभार!ल ेपणो त्यास्या क - ध.न14 संभारल आन्ही रापी 7च थाच्या 9-छाल र जम ওaला आहे। १५गेप्ले त्याचपा -nidlu) P=5Trees5 ते ०६/ 1वरत अहोत । आम्ही P:sireles5 ते०हा टमच्या्य /-५ नाव२त अशात सौरे का 1e raलकून आहे। *ा/६ अबव्ा अ/६ ২০व২ /-च 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-5.txt मतन्य लही खण्ड -xVI अंक 1 एवं 2 जनवरी एवं फरवरी 2004 २ा२ठी बराबर का हिलरी मेागतेल लागत तेसहज २ा२८ लरेी chi ति a चा रकन कडेबीन | क स)मोहेल मु ५5) लि त्या म मागण असल ते लिहल। मो ग्यांना ९~+ ते लिखम | शमं मागन जस ल ५ू० M(লि मनरी प्रशनो उतमआहे कारण तय्डी {२०१ सर्वाची अयी से। S। 1६ । काना-ध हुल्क लेहर ६े. आदकना खडु्क लेहसे ि +१हेज। ४per alroh अ६ 1ले ६। ॐगदी काढ़ेसा कु ब। वताकक णणय/ / अध । देखा सर ३६० तl सुय ाही| । / trik Hlo ১৫০{ 2२ बोणोना मेठा आहे। त्याकयशो { ५०स आ। २॥ २1२) ५ूनल्वा च मागवो कराव| मोठे मठ Hव बाद्यले ५ािजेल 11 प्रा मोठे श्राठ H*1म बार्यल क [र|म] dolcol ५जे) न्यन लेशमो उंच जश क ৯ सद्ज धारय। ले पी ५ । ल६lन सहान गोष् सेंद्ज 2े| 2या 54 पतल न९मा to गोष्टींच ५ज। ल६ान सहान ५ा६ कार्थ नय । अলুन पुष्कळ काबी जधृ आले य-त न्ट क आपले चन्ल w21d) ১ेलीर লयोगयानी प्रगतो केलीआर न्यानी कार्यसत काले पाकजे/ नवণীन 2 Cetes 3ee लोकांचे रीम मिवारक आलने हिके/य ७ 4राम्य आहे/ज्या २ सहनयोग्यां vert2 HE414 ५.ली) आरि क२ 1४-d ्यामा ५/१/व जन ५ | तe/ ५) ५। रिनेत १/. स | ल)%/ पा।१4त नेधले गेले पाहिने । পে। ५२मे श्थप्रश्री कडे ६ धतासर्व राहनयााना ्धना ६ाे वचल 15 পা ना र ४/१ (সथी संदैव का०बण करणारी काहट निर्ल। 00/ +२०११४ ०1/ै | *পে{ ुद न. 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-6.txt श्री क ष्ण पूजा प्रतिष्ठान, पुणे, 10-8-2003 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन हम लोगों को अब यह सोचना है कि सहजयोग तो ऐसा गुण है कि हम बालक बन जाते हैं। बालक बहुत फैल गया और किनारे किनारे पर भी लोग यानि अबोधिता, भोलापन और उस भोलेपन से हमें सहजयोग को बहुत मानते हैं। लेकिन जब तक अपने अन्दर देखना चाहिए और उसी से अपने को ढकना है। अब वो भोलापन बड़ा प्यारा होता है हमारे अन्दर सहजयोग पूरी तरह से व्यवस्थित रूप से प्रकटित नहीं होगा तब तक जैसा लोग सहजयोग आप अगर, आप बच्चों को देखें उनसे जो प्यार को मानते हैं मानेगें नहीं। इसलिए जरूरत है कि करते हैं वो इसलिए कि वो भोले हैं । वो चालाकी हम कोशिश करें कि अपने अन्दर झांकें। यही क ष्ण नहीं जानते, अपना महत्व नहीं जानते, कुछ भी नहीं का चरित्र है कि हम अपने अन्दर झांके और देखें जानते। क्या जानते हैं? वो जानते यह हैं कि सब कि हमारे अन्दर खुद कौन सी, कौन सी ऐसी चीज़े कोई लोग हमारे हैं। ये हमारे भाई बहन और सब हैं जो हमें दुविधा में डाल देती हैं। इसका पता कुछ हैं। लेकिन ये किस तरह से उन्होंने जाना, यह लगाना चाहिए। हमें अपने तरफ देखना चाहिए. प्रश्न है बच्चों ने जिस तरह से जाना उसी तरह से अपने अन्दर देखना चाहिए और वो कोई कठिन हमने भी भुला दिया कि हम भी एक भोले बालक हैं बात नहीं है। जब हम अपनी शक्ल देखना चाहते और एक भोलापन हमारे अन्दर है । बहुत से सहजयोगी हैं तो हम शीशे में देखते हैं। उसी प्रकार जब हमें ऐसे हैं जो आते हैं वो बहुत कपट चालाकी दिखाने। अपनी आत्मा के दर्शन करने होते हैं तो हमें देखना कोई आते हैं और सोचते हैं कि हम बहुत होशियार हैं। कोई आते हैं और सोचते है कि हम माँ को सिद्ध बहुत से सहजयोगियों ने कहा माँ यह कैसे देखा कर देंगे। मुझे सिद्ध करने से क्या फायदा। मुझे तो जाएगा कि हमारे अन्दर क्या है, और हम कैसे हैं? मालूम ही है सब कुछ। तो आपको यह करना उसके लिए जरूरी है कि मनुष्य पहले स्वयं ही चाहिए कि अपनी ओर नज़र करें। और अपने बहुत नम्र हो जाए क्योंकि अगर आपमें नम्रता नहीं भोलेपन को पहचाने। वो कहाँ है, कैसा है. और बड़ा होगी तो आप अपने ही विचार लेकर बैठे रहेंगे। तो मजेदार है ऐसा सोचना चाहिए। अब क ष्ण की जो क ष्ण के जीवन में पहले दिखाया गया कि एक बात है वो यही है कि बचपन में तो वो एकदम भोले छोटे लड़के के जैसे वो थे। बिलकुल जैसा शिशु थे और बड़े होने पर उन्होंने गीता समझाई जो बहुत होता है, बिलकुल ही अज्ञानी, वैसे वो थे। वो अपने गहन है। ये कैसे हुआ कि मनुष्य उसमें बढ़ गया । को कुछ समझते नहीं थे अपनी माँ के सहारे वो इसी प्रकार हम भी सहज में बढ़ सकते हैं। हमने पाया है लेकिन उसमें अभी तक हम चाहिए कि हमारे अन्दर वो कैसे देखा जाता है। ह बढ़ना चाहते थे। इसी प्रकार आप लोगों को भी अपने अन्दर देखते वक्त यह सोचना चाहिए कि बढ़े नहीं। और बढ़ने के लिए चाहिए कि अपने बारे हम एक शिशु बालक है। क ष्ण ने बार बार कहा, में जो ख्यालात हैं उसको छोड़ दें। पहले तो बच्चे लेकिन जीसस क्राइसट ने भी कहा हम एक छोटे जैसा स्वभाव होना चाहिए। अब ऐसा किसी को कहें बालक बने। बालक की जो सुबोध स्वभाव की कि बच्चे जैसा स्वभाव बुनाओं तो बहुत ही कठिन छाया है वो हमको दिखनी चाहिए कि हम क्या बालक जैसी बातें करते हैं? हमारे अन्दर कौन सा छोड़ कर आप बच्चे बन जाओ। लेकिन बच्चों के बात है। ऐसा तो नहीं कर सकते कि जो है उसे 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-7.txt नग क जनयरी एवं फरवरी 2004 वैतन्य लहरी खण्ड XVI अंक : 1 एवं 2 रम साथ रहकर, बच्चों के प्रति एक आस्था रखकर, में बहते नहीं है। हम अपने को उससे अलग समझते उनकी बातों को देखकर आप बहुत फर्क कर हैं पर ऐसी बात नहीं है। अगर हम समझ लें कि सकते हैं, और बदल सकते हैं सारी चीजें अपने हमारे अन्दर जो यह प्रवाह है, जो हमें ऐसे रास्ते पर अन्दर की तो सबसे पहले तो जानना चाहिए कि ले जाता है कि जहां हम अपने ही को नहीं पहचान हमारे अन्दर जैसे जैसे हम बड़े होने लगे बहुत से सकते तो फिर आदमी अन्दर की तरफ मुड़ सकता दोष समा गए हैं उन दोषों को कैसे निकालना है अब कहने से कि तुम अन्दर की तरफ जाओ, चाहिए? कैसे-कैसे दोष हमारे अन्दर आए हैं ध्यान करो, अपने अन्दर की बहुत सी बातें निकालो, इसको अगर हम सोचें नहीं और उधर ध्यान दें तो सब कहने को तो कह देंगे पर उससे नहीं होगा। हम उसको ठीक कर सकते हैं ध्यान ऐसे देना है इसलिए प्यार करने में कि जैसे हम किसी से जोर, घ ष्टता से बात करें या और हमारे पास ऐसे साधन हैं जैसे क ष्ण का ध्यान प्रयत्नशील रहना चाहिए। हम किसी की ताड़ना करना चाहते हैं या हम करना। क ष्ण के ध्यान से हमारे अन्दर की सफाई सोचते रहते हैं कि दूसरे आदमी को हम कैसे ठीक हो जाती है। पर हम उल्टे हैं और क ष्ण के ध्यान करें जब हमारा चित्त दूसरों पर जाता है तभी में, हम यह सोचते हैं कि हम दूसरों के दोष देखते हम अपने से अलग हट जाते हैं। क्योंकि हमें खुद हैं। जब हम के ष्ण का दोष देखते है तो हमें दिखाई ठीक होना है इसलिए दूसरों के बारे में सोचने से देता है पर हमें अपना दोष नहीं दिखाई देता। यह क्या फायदा? तो सबसे पहले हमे अपने बारे में ही हमारे साथ बहुत ज्यादती है कि हम अपने दोष नहीं से द ष्टिपात करना चाहिए, देखना चाहिए। पर वो सब देख सकते। क ष्ण के दोष तो देख लेंगे। बहुत हो रहा है और वो बताया हमने। बो तो सहजयोगियों लोग हैं. मैंने देखा है कि किताबें लिखी हैं उन्होंने में घटित भी हो रहा है। क्योंकि अन्दर यह कुण्डलिनी कि क ष्ण में क्या क्या दोष थे क्या गलत कार्य जाग त होती है और वो सब रास्तों में दिखा देती है। किए? उनको कैसे रहना चाहिए था? अपने बारे में अब रही बात यह कि हम किस तरह से जो वो नहीं जानते लेकिन जब अपने बारे में भी सोचते मलिनता है उसको ठीक करे पहली तो बात यह हैं और जब देखा जाता है, तो कभी भी यह द. ष्टि है कि दूसरों के दोष देखने की जो हमारी द ष्टि है नहीं होती कि हमारे अन्दर यह द्रोष है और यह उसको बदल दें, क्योंकि चही दोष हमारे अन्दर भी चला जाना चाहिए। तो हम दूसरों के दोषों पर कि 1 हैं। तो दूसरों के दोष देखने से पहले हमारे अन्दर जाकर अटक जाते है। यही हमको करना क्या दोष हैं यह देखना चाहिए। अगर यह देखना अपने अन्दर क्या दोष है उसे देखा जाए। क ष्ण से हमें आ जाए तो बहुत कुछ अपने आप ठीक हो बढ़कर मैं कोई योगी मानती नहीं हूं क्योंकि उन्होंने जाएगा कोई साधु सन्तों का क्या है कि वो यह रारता बताया कि तुम अपने अन्दर की गलतियाँ अपने अन्दर के ही दोष देखते हैं और अपने ही को देखो। अपने अन्दर के दोष देखो। यह बहुत बड़ी सोचते हैं कि ऐसे क्यों हो गए हम? ऐसी कड़वी बात है। उन्होंने सिर्फ कह दिया और करने वाले बात हम क्यों कहते है। ऐसी झूठी वात क्यों कहते बहुत कम हैं। अगर दूसरों के दोष देख लीजिए तो हैं? तो ये अपने को देखने का एक प्रवाह है। सबको याद है। सबको मालूम है अपने दोष बहुत कम लोगों को समझ में आते हैं। इसलिए वो ठीक ज्यादातर हम उसको मानते नहीं हैं और उस प्रवाह 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-8.txt जंनवरी एवं फारवरी 2004 रयरी 2004 चैतन्य लहरी अक -XVI अक : 1 एवं 2 नहीं हो पातें। अपने दोषों से परिचित होना चाहिए । घटित नहीं होता। उसकी क्या वजह हैं? क्यों हम हंसना चाहिए अपने ऊपर कि हम क्या दोष कर रहे अपने को नहीं देख पाते? बीच में पर्दा क्या है? पर्दा हैं। हमारे अन्दर क्या दोष है। ये हमें सोचना यही कि अहंकार आदि जो दुर्गुण हैं वो खड़े हो जाते हैं और उन दोषों को हम देख नहीं पाते। जिनको देखना चाहिए। यह बहुत ज़रूरी चीज़ है। तो होता क्या है कि चित्त हमारे ऊपर नहीं आपने आज की पूजा रखी, मैं बहुत खुश हो गई कि रहता। दूसरों के दोषों पर जाता है और उससे क ष्य की पूजा हो जाएगी तो अन्दर से बहुत से विचलित हो जाते हैं हम लोग और समझ नहीं पाते लोग साफ हो जाएँगे। क्योंकि यह क ष्ण का कार्य कि अरे ये तो हमारे ही दोष थे। इम क्यों दूसरों के है। वो खुद ही इसे करेंगे। पर अगर आप उधर दोष देख रहे थे उससे क्या हमारे दोष ठीक हो रुचि दिखाएं कि आप चाहते हैं कि आपकी पूरी जाएंगे? विलकुल नहीं हो सकते धीरे धीरे जब तरह से सफाई हो जाए। आप जानते नहीं कि यह बात समझ में आ जाएगी तो मनुष्य दूसरों के कितना गहन हमारे यहाँ का यह प्रश्न है। इस प्रश्न दोषों पर लक्षित नहीं होगा अपने ही दोषों को को ठीक करने के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ी। देखकर हैरान होगा कि हमने कितने सारे ये राक्षस लोग पहले तो सब कुछ करते थे. गुरु के आदेशों पाल रखे हैं अपने अन्दर। हमारे मन के अन्दर पर बहुत कुछ करते थे बेचारे, पर गहनता नहीं आती थी। अब आप तो सहजयोगी हैं आपके लिए चाहिए। बजाय इसके कि हम और लोगों के दोष देखें। कितनी कितनी गन्दी बातें हम सोचते रहते हैं। जब यह सफाई शुरु होती है तो मनुष्य विशेष रूप मुश्किल नहीं होनी चाहिए। तो मैं यही कहूंगी कि धारण करता है। और वह रूप ये है कि उसके अपने अन्दर झाँकना सीखिये। चड़ा मजा आएगा। अन्दर शक्तियों आ जाती हैं और उस शक्ति से वह अभी तक तो ठीक थे पर अभी पता नहीं क्यों इस अनेक कार्य कर सकता है इसलिए नहीं कि तरह से करने लग गए आप अपनी तरफ नजर । ये कैसा चलता है मामला। तो बड़ा मज़ा उसका अहकार बढ़े पर इसलिए कि उसकी सफाई करिये होगी। अगर उससे सफाई हो गयी तो अपनी आएगा आप देखकर हसेंगे और कहेंगे वाह क्या सफाई का काम हो गया। तो दोष देखने से हम कहने। अपनी सफाई करते हैं और उन दोषों को छोड़ देते जागेगा। यही क ध्ण की बाल लीला है। जब यह हैं पर यह कॅसे हो, क्योंकि दोष देखना तो भोलेपन से आप साफ होंगे, इसी से नहा लेंगे तो मुश्किल नहीं है, पर उससे छूटना मुश्कल है। आपकी नजर बहुत Steady हो जाएगी । अपने आप इसलिए उसका देखना जो है बो रूक्ष्म होना चाहिए अपने को आप समझने लगेंगे असल में दोष हमारे और बारीक होना चाहिए और उस तरफ नजर ही अन्दर हैं। दूसरों के दोष देखने से हमारे कैसे जानी चाहिए। उससे बहुत कुछ सफाई हो जाएगी। ठीक होंगे? एक सादा सा प्रश्न है-अगर हमारी आज का जो पर्व है उसमें श्री क ष्ण का जो संदेश साड़ी पर कुछ गिरा है कि और हम इसे हटाते नहीं है वह यह है कि आप अपने अन्दर झाँको और और दूसरों को बुरा कहते चले जाएंगे तो इतनी देखो। यह श्री क ध्ण ने कहा है। लोगों को मुश्किल लगता है। वो होता नहीं है। नहीं करते। किसी को समझ में अगर बात न आई म फिर एक तरह का भोलापन आपके अन्दर 1 अकल तो है हमारे पास। मर वो अकल हम इस्तेमाल पर वो करना 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-9.txt जनवरी एवं फरवरी 2004 वैतत्य लहरी खण्ड-XVI खण्ड । एवं 2 हि ह० की कि आपका दिमाग कहाँ चल रहा है? अब कहाँ घूम हो तो वो प्रश्न पूछ सकते हैं । चित्त अन्दर जाता है। अब देखिए अपना रहा है? धीरे-धीरे आपकी सफाई हो जाएगी। आज चित्त जा रहा है अन्दर, पर हम डरते ही रहते हैं। का दिन बैसे ही बड़ा महत्वपूर्ण है कि श्री क ष्ण का पर अब अपने आप होना चाहिए। चित्त को आदत अवतार जो है इसने बहुत हमारी सफाई की है और हो जाएगी कि वो आप अन्दर जाएगा। मैं जानती हूँ कि आप लोगों के खूब प्रश्न है। और कुण्डलिनी के जागरण में मैं देखती हूँ हैं, खूब उलझने हैं इसमें कोई शक नहीं। लेकिन बो कप्ण के आशीर्वाद से बहुत सुन्दर चल रहा है । बहुत क्षुद्र है, उसका कोई अर्थ नहीं लगता उससे आप लोग ज़रा अपनी और ध्यान दें। एक तो अपने उपर उठने की बात होती है हमेशा, पर लोग कहते से नाराज़ नहीं होना और दूसरों से नाराज़ नहीं है कि माँ कैसे उठा जाए। ध्यान से । ध्यान में आप होना। बड़ा आनन्द आएगा यही क ब्ण की पूजा अपने ऊपर ध्यान करते है । अपने ही को देखना है है। बड़ी मदद की है। उनके आने से बहुत फर्क हो गया স 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-10.txt श्री गणेश पूजा कबैला, 13-9-2003 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (श्रीमाताजी बच्चों को मंच पर आकर जानकारी होनी चाहिए। मैं बहुत से ऐसे बच्ध बैठने के लिए बुलाती हैं) देखती हैँ जो अत्यन्त सदाचारी हैं, सहज हैं और अब हम नन्हें बच्चों के सम्मुख हैं। यही ऐसे भी हैं जिन्हें इस बात का ज्ञान ही नहीं कि बच्चे अवतरण हैं। यही उत्थान प्राप्ति में मानव वे क्या कर रहे हैं। अतः बड़े लोगों का ये कर्तव्य है जाति का नेत त्व करेंगे। मानवता की देखभाल की कि अपने महत्व, आत्मसम्मान की समझ बच्चों के जानी चाहिए। बच्चे कल की मानव जाति हैं और मस्तिष्क में भर दें। जिन सहजयोगियों पर अपने हम आज के हैं। अनुसरण करने के लिए हम उन्हें छोटे भाई-बहनों की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी क्या दे रहे हैं? उनके जीवन का लक्ष्य क्या है? ये हैं उन्हें भी मैं यही कहूंगी। हमारे सहजयोगी परिवार कहना अत्यन्त-अत्यन्त कठिन है परन्तु सहजयोग में सभी प्रकार के लोग तथा सभी प्रकार के व्यवहार से वे मर्यादित ढंग से चलेंगे, मर्यादित व्यवहार हैं। निःसंदेह उनमे एक जुटता (Regimentation) करेंगे। बहुसंख्या में सहजयोगी बनने से सभी कुछ और एक समानता (Uniformity) नहीं होनी चाहिए। परन्तु उनकी भिन्नता में भी सौन्दर्य होना चाहिए। बड़े सहजयोगियों का ये कर्तव्य है एक दूसरे के साथ परस्पर सामंजस्य की सुन्दर कुछ भिन्न हो जाएगा। परन्तु कि उनकी देखभाल करें, उनका चारित्रिक स्तर बेहतर हो, उनके जीवन बेहतर हों ताकि वे आपके जीवन का अनुसरण करके वास्तव में अच्छे लिए हम क्या करें? इस लक्ष्य को प्राप्त करने के सहजयोगी बन सकें। ये बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है । लिए बड़ी आयु के लोग क्या करें। उनके (बच्चों) सम्भवतः हमें इसका एहसास नही है। इस बात को जीवन में हमारा-ठोस योगदान क्या है? सर्वप्रथम हम नहीं समझते, परन्तु ये नन्हें शिशु महान आत्माओं तो हमने उन्हें बताना है कि श्री गणेश कौन हैं की प्रतिमूर्ति हैं और इनका पालन पोषण भी उन्हीं तथा उनके कौन से हैं, वे किसका प्रतिनिधित्व के रूप में किया जाना चाहिए। वैसे ही इनका करते हैं? वे किसका प्रतिनिधित्व करते हैं और सम्मान होना चाहिए और अत्यन्त सावधानी से इन्हें उनके गुण क्या है। एक बार जब वो इस बात को प्रेम किया जाना चाहिए। ये बात समझ लेनी समझने लगेंगे कि यद्यपि वे छोटे से बालक हैं फिर आवश्यक है। हमारे बड़ी आयु के लोगों की समस्या भी इतने उदार करुणामय एवं क्षमाशील हैं-तो वे ये है कि हम बच्चों को ध्यान देने योग्य परवाह आश्चर्य चकित हो जाएंगे क्योंकि वो भी अभी नन्हें करने योग्य और उन्हें समझने योग्य नहीं मानते, बालक हैं तथा वे इसी प्रकार के जीवन को अपना हम सोचते हैं कि हम स्वयं बहुत अधिक विवेकशील लेंगे। एवं अच्छे हैं तथा हमें अपनी शक्ति इन छोटे बच्चों पर नष्ट नहीं करनी चाहिए। बड़ी आयु के लोगों के अच्छे एवं विवेकशील हैं, कूछ शरारती हैं और कुछ साथ ये कठिनाई है। परन्तु आज जब हम श्री गणेश की पूजा रहे हैं। जो भी हो आखिरकार वे बच्चे हैं। हमें करने के लिए बैठे हुए हैं तो हमें जान लेना चाहिए उनकी देखभाल और सम्मान करना चाहिए और श्री ये बच्चे श्री गणेश के अवतरण हैं। तथा इनकी ओर गणेश के विषय में उन्हें पूरी तरह से समझाना उचित ध्यान दिया जाना चाहिए, उनकी हमें उचित चाहिए। मेरा विचार है कि सभी लोग अपने-अपने प्रव त्ति होनी चाहिए। परन्तु समस्या ये है कि ऐसा बनने के गुण मैं देखती हूँ कि यहाँ पर कुछ बच्चे अत्यन्त इस बात को नहीं समझते कि यहाँ पर हम क्या कर 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-11.txt कमी मा जनवरी एवं फरवरी 2004 पैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 10 घर में श्री गणेश की एक मूर्ति-स्थापित करें ताकि बच्चे इसे देखें और पूछे कि "ये कौन हैं?" "ये कोई भी ये न सोचे कि आप बड़े हैं, मौन रह सकते क्या कर रहे हैं?" आप हैरान होंगे कि किस प्रकार हैं और मौन पूर्वक बैठे रह सकते हैं। बड़े तो आप बच्चे आपको समझते हैं, किस प्रकार श्री गणेश के केवल तभी हैं जब आप श्री गणेश के गुणों को गुणों को समझते हैं. और किस प्रकार उन्हें कार्यान्वित आत्म-सात कर सकें। मैंने देखा है लोगों कि करते हैं। आप सबके लिए ये आवश्यक है कि बड़ी हो जाती है परन्तु उनमें पावित्र्य एवं ईमानदारी अपने घर में श्री गणेश की एक मूर्ति लगाऐं ताकि के सहज गुण भी नहीं होते, उनमे ये गुण नहीं हैं, ये आप अपने बच्चों से बता सकें कि 'आपको भी इन्हीं गुण वो अपने में ला भी नहीं सकते क्योंकि इन गुणों की तरह से बनना है। कहने से मेरा अभिप्राय ये है कि आपमें से आयु में उन्हें कोई महत्त्व ही नजर नहीं आता। तो मैं यह अब श्री गणेश के गुण क्या है? बच्चों को आप पर छोड़ती हैँ कि अपने अन्दर आप श्री गणेश पावित्र्य (Chastity) समझ नहीं आएगा क्योंकि वो को खोजें मैं बच्चों के सहचार्य का आनन्द इसलिए अभी बहुत छोटे हैं इसलिए ये सभी गुण नहीं समझ लेती हूँ क्योंकि वे अबोध हैं. और सहज हृदय हैं, पाएंगे परन्तु एक गुण उनकी समझ में आ जाएगा बच्चे मुझे बहुत अच्छे लगते हैं । कि ईमानदार होना है। ईमानदारी। शनैः शनैः आप देखेंगे कि सभी असाध्य नहीं। इसके विपरीत, आप समझ लें कि वे बच्चे ठीक हो जाएँगे और ये सब इस प्रकार से कहीं अधिक प्रेम, कहीं अधिक सूझ-बूझ और कहीं कार्यान्वित हो जाएगा। आप जानते हैं कि वो मेरे अधिक विकास के अधिकारी हैं। मुझे आशा है कि भाषण को नहीं समझ सकते और न ही ये समझ आपकी आयु तक पहुँचने तक वे महान सहजयोगी सकते हैं कि मैं क्या कह रही हूँ। परन्तु एक बात निश्चित है कि अन्दर यदि कोई बाधाएँ बड़ी आयु के लोगों की भयानक मूर्खताओं को मुझे (Possessions) होंगी तो वो इन्हें दर्शाएंगे, भली झेलना पड़ा। परन्तु इन बच्चों में ये मूर्खताएँ नहीं भांती दर्शाएंगे-क्योंकि वे अत्यन्त अबोध है, अत्यन्त होंगी, वे अत्यन्त सहज और प्रेम को समझने वाले सहज हैं और उनकी अबोधिता उन्हें सच्चाई का बोध कराने में सहायक होगी। अतः बच्चों की शरारतों से डरें, घबराएं बन जाएँगे, हमारे कार्य के महत्व को आप समझेंगे। होंगे। मैं कहूंगी कि हम इन बच्चों को यहाँ से मुझे आशा है कि आप सब अपने बच्चों की बाहर जाने दें, कोई एक व्यक्ति बाहर जाकर उनपर देखभाल करते हैं, उचित प्रकार से उनका पथ नज़र रखे ताकि आप शान्त हो सकें (कोई भी नहीं प्रदर्शन करते है और उन्हें सूझ-बूझ के उस स्तर उठता और बच्चे भी शान्त होकर मंच पर बैठे रहते तक लाते हैं जहाँ वे समझ सकें कि उनकी स्थिति हैं), इन्हें कौन लेकर जाएगा। क्या है, उनमें कौन से होने चाहियें और कौन से गुणों से उनका सम्मान होगा? आप हैरान होंगे लाऐं है तो मुझे दे सकते हैं। बच्चे श्रीमाताजी को कि उन बच्चों का आचरण अन्य बच्चों के आचरण फुल देना आरम्भ करते हैं। श्री माताजी बार-बार को भी बदल देगा। आप मुझे फूल दे सकते है, आप यदे फूल गुण उन्हें धन्यवाद-धन्यवाद कहती हैं। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-12.txt ज्ञानेश्वरी वर्णित भविष्यवाणियाँ बोर्डी जम 12-2-1984 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन अपने विवाहों को सफल बनाना आप सब आनन्द लेने लगेंगी। आप अच्छी माताएं, अच्छी लोगों की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। पुरुषों से भी पत्नियाँ एवम् ज़िम्मेदार सहजयोगिनियाँ बनने का कहीं अधिक ये जिम्मेदारी आपकी है। आपको इस प्रयत्न करें विवाह के पश्चात् जो महिलाऐं अपमे प्रकार आचरण करना है कि अपने अन्दर आप ऐसा पतियों को सहजयोग से दूर करने का प्रयत्न मात त्व एवं अनुशासन उत्पन्न कर सकें जो आप करतीं हैं वो वास्तव में अत्यन्त अभिशप्त हैं। दूसरों चाहती हैं कि आपके बच्चे आत्मसात करें और जो से अत्यन्त मधुरता-पूर्वक बातचीत करें। जो भी आपके पति में भी हो। आपने देखा है कि आपकी कुछ आपने कहना है उसके बारे में अत्यन्त सावधान माँ (श्रीमाताजी) कभी - कभी एक ही स्थान पर होना चाहिए। आपको ज़िम्मेदार होना होगा आप लगातार नौ-दस घण्टों तक बैठी रहती हैं उस अत्यन्त विशिष्ट लोग हैं कि आपका विवाह सहजयोग स्थान से हिलती भी नहीं। परन्तु मैने देखा है कि में हुआ है। 'मुझे आशा है कि यह बात आप हमेशा लोग एक स्थान पर दो घण्टे भी लगातार नहीं बैठ अपने मस्तिष्क में रखेंगी। सकते चाहे वे ध्यान-धारणा ही क्यों न कर रहे हों। गौरी पूजा वो उठ खड़े होते हैं, सबका ध्यान भंग करते हैं और फिर वापिस आते हैं। यह दर्शाता है कि हममें अनुशासन की कमी है तथा हमारे माता-पिता ने हमें अनुशासन नहीं सिखाया और न ही हमने स्वयं की कोई भूमिका नहीं। ध्यान धारणा करने के को अनुशासित किया। अतः पहली चीज़ ये है कि समय आपका शरीर आपका दास होना चाहिए। आपको अपने स्वभाव को पूर्णतः अनुशासित करना 'यशं' का अर्थ हैं यश तथा रूपं अर्थात होगा। यह इस बात का चिन्ह है कि आप ही लोग मंगलमय-व्यक्तित्व। सहजयोग की पूर्ण भाषावली प थ्वी माँ के प्रतिनिधि हैं जिनमें विशेष विवेक है । संघटित (Integrated) है । जब आप कहते हैं आप सबको अत्यन्त-सावधान रहना होगा कि जो सफलता' तो इसका अर्थ है प्रतिष्ठा' जो कि भी कुछ आप करेंगे बह पूरे परिवार तथा पूर्ण सहजयोग प्रणाली में प्रतिबिम्बित होगा। जब आपके व्यक्ति 'यशस्वी' नहीं होते। संस्कृत भाषा में शब्दों विवाह हो जाते हैं तो यह समझने का प्रयत्न करें के अर्थ कुछ भिन्न ही होते हैं। तथाकथित सफलता कि आप प थ्वी माँ हैं और आपने देना ही देना है यदि आपने प्राप्त कर भी ली, मान लो कोई व्यक्ति क्योंकि आपके अन्दर शक्तियाँ हैं, अतः आप दे मंत्री बन गया, सभी व्यवहारिक कार्यों के लिए वह सकती हैं। इतनी अधिक शक्तियाँ आपमें होने के अंग्रेज़ी भाषा के अनुसार सफल माना जाएगा। गौरी की अपनी ही शक्ति है, इसमें शिव धर्मपरायणता पूर्वक प्राप्त की गई है सभी सफल कारण आपको देना ही है। इसका अर्थ ये हुआ कि परन्तु संस्कृत भाषा में यश' शब्द का अर्थ है एक प्रकार से आप उत्तम हैं कि आप दे सकती हैं। प्रतिष्ठा की प्राप्ति, धर्मपरायणता के माध्यम से इस कार्य में आपका अहं आपके आड़े नहीं आना कमाई हुई प्रतिष्ठा - चारित्रिक प्रतिष्ठा। आवश्यक चाहिए। ताकि आप ये न कहें कि 'मै क्यों करूं? नहीं कि ऐसा व्यक्ति "मैं क्यों यह कार्य करूं? तब आप इस स्त्रीत्व का के रूप में या प्रधानमंत्री के रूप में बहुत सफल हो। बहुत वैभवशाली हो या मंत्री 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-13.txt र जनवरी एवं फरयरी 2004 एवं 2 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 12 उसके पास ऐसी सफलता हो जो उसे महान विश्व को नष्ट कर देंगी। अतः हर समय आपने प्रतिष्ठा प्रदान करे जैसे सन्त की प्रतिष्ठा । अतः हमें सहजयोग में उपयोग होने वाले सभी शब्दों को समझ लेनी आवश्यक है। उन्हें अपने पतियों को समझना चाहिए। अब रूपं शब्द का अर्थ है प्रसन्न रखना है। उन्हें प्रसन्न रखना है। महिलाओं को भी यह बात 1 कश्मीर त्रिपुरेश्वरी अर्थात सहस्रार । सौन्दर्य न होकर वो सौन्दर्य है जो मंगलमय हो, हिमालय, आप जानते हैं, सहस्रार है और कश्मीर जिससे आशीष प्राप्त हो सके। ऐसी मुखाक ति जो हिमालय पर स्थित है। 'त्रिपुर शब्द के दो अर्थ आशीषदायी हो, अशुभ विचार देने वाली न हो। हैं - एक तो यह कि उन्होंने त्रिपुर नामक भयानक अर्थ सौन्दर्य परन्तु सहजयोग में इसका अर्थ शारीरिक अतः यह संघटित भाषावली है। इसके एक शब्द के कई-कई अर्थ निकलते हैं। इसलिए भ्रमित नहीं होना चाहिए क्योंकि सौन्दर्य का अर्थ तो सिनेमा अभिनेत्री जैसा होना भी होता है परन्तु वह सौन्दर्य राक्षस का वध किया था और त्रिपुर का दूसरा है त्रिलोक, प थ्वी. आकाश और पाताल 'त्रिपुरसुन्दरी' हैं । कहने से मेरा अभिप्राय यह है कि सौन्दर्य शब्द भ्रामक है, इसका संघटन होना आवश्यक नहीं है। सौन्दर्य का अर्थ तड़क-भड़क नहीं है, है वे स्वर्ग के द्वार खोलती हैं क्योंकि स्वर्ग में ही आप आनन्द ले सकते हैं। 'पश्य' अर्थात वो आशीष इसका अर्थ है आशीषदायी होना, मंगलमय होना। जो आप प्राप्त करने वाले हैं इस शब्द का उपयोग मेरे लिए किया गया है। आपको जो मिलने वाला है वह है माँ का दूध' । आगे वह कहता है कि आप मुक्तानन्द का अर्थ है कि देवी मुझे योग का वरदान, योग का आनन्द, पूर्ण मुक्ति का आनंद प्रदान करती हैं। मुक्ति अर्थात पूर्ण निर्वाण-निर्वाण का लोग जो परस्पर आत्मा से जुड़े हुए है - यह सारा आनन्द । वे ही मोक्ष का द्वार खोलने वाली हैं, वही वर्तमान तथा भूतकाल में सहजयोग का वर्णन है। इस समय पर जो घटित होने वाला है उसे आप प्राप्त करेंगे। आप हैरान होंगे कि अत्यन्त मुझे आत्मसाक्षात्कार की भिक्षा प्रदान करेंगी, भिक्षा की याचना करना। अत्यन्त विनम्रता पूर्वक याचना करने का यही तरीका है। क पया मुझे सुन्दरता पूर्वक यह वर्णन किया गया है कि आप सब लोग ब्रह्माण्ड में एक रूप हो जाएँगे। यज्ञों से अत्यन्त विनम्र तरीका है। जैसे एक भिखारी कहता तथा आप द्वारा किए गए हवनों से ब्रह्माण्ड की है मैं आपसे भिक्षा माँगता हूँ, क पा करके मुझे आत्मा संतुष्ट हो जाएगी। यह बात कितनी उपयुक्त है। उन्होंने यह बात तीन सौ वर्ष पूर्व कही थी तब, आत्मसाक्षात्कार की भिक्षा दीजिए। मॉँगने का यह आत्मसाक्षात्कार दीजिए। मैं आपके द्वारे पर भिखारी हूँ। वे ही नाटक की प्रस्तावना देती हैं, मूक अभिनय हमसे संतुष्ट होकर आप हमें अपने आशीर्वाद का वाले नाटक में सारे सूत्र उनके हाथ में हैं। वही सूत्रधार' हैं। सारे सूत्र उन्हीं के हाथ में हैं। सारे सूत्र, सारी रस्सियाँ उन्ही के हाथ में होती हैं फिर भी वे हमसे सारा नाटक करवाती हैं। उनकी यही मित्रता स्थापित हो जाएगी। अज्ञानी लोगों को ज्ञान क्षीर प्रदान करें। उस समय सभी आसूरी शक्तियाँ तथा आसुरी नियम नष्ट हो जाएँगे तथा लो ग धर्मपरायणता अपना लेंगे। तब लोगों में आत्मिक का प्रकाश प्राप्त हो जाएगा। पूरे ब्रह्माण्ड को प्रकाश शैली है। ये बात सत्य है। इस बात पर हम सहमत हैं। आप यदि उन्हें प्रसन्न नहीं रखेंगे तो वे पूरे नज़र आ जाएगा एक ब्रह्माण्डीय धर्म का सूर्य 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-14.txt जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 13 दिखाई दे जाएगा। उनकी सभी इच्छाऐं पूर्ण हो अन्य लोगों को पैगम्बर बनाने की शक्तियाँ होंगी। जाएँगी, ऐसे सभी मुनष्यों की। जब आप उनसे परन्तु सहजयोगी बनने के बाद भी हमें इस बात का (देवी) मिलेंगे तो आशीर्वादों की और, निःसंदेह, एहसास नहीं होता कि हम क्या हैं? इतनी अच्छी चैतन्य की झड़ी लग जाएगी। जब आप उनसे अवस्था पाकर भी हम मूल्यहीन चीज़ों के विषय में मिलेंगे-वह 'मैं हूँ.. (तालियों की गड़गडाहट) । चिन्तित रहते हैं । इन सब मूल्यहीन तथा नश्वर यह सहजयोगियों का वर्णन है। आप इसे अवश्य सुनें। हजारों की संख्या में वे जंगल की तरह से, नहीं है, यदि आप सोचते रहें तो आप मात्र अपनी विशाल पेड़ों वाले चलते फिरते जंगलों की तरह से, शक्ति नष्ट कर रहे हैं। इस प्रकार अब आप अपना आशीष प्रदायी पेड़ों की तरह से वे लोग होंगे। जीवन नष्ट कर रहे हैं क्योंकि अब आप वो बन चुके चीजों के विषय में, जिनका कोई आध्यात्मिक मूल्य 'कल्पतरु' वह पेड़ होता है जो आपको मनोकामना हैं जिसका वर्णन महान सन्तों ने किया है - अम त प्रदान करता है। वे चलते-फिरते जंगलों सम होंगे के बोलते-चालते सागर - अम त के सागर। वो अम त अर्थात आप लोग उन्हीं सम महान हैं। आप नहीं जो हम जानते हैं। यह आध्यात्मिक आशीर्वाद उन्हीं चलते फिरते महान पेड़ों जैसे हैं जो दूसरों का अम त है। जब आप वह बन गए हैं तो अपने को आशीर्वाद देते हैं और उनकी मनोकामना प्रदान विषय में आपसे क्या आशा की जाती है। इसका करते हैं। वो लोग अब आप ही हैं बोलते हुए पता लगएं, स्वयं पता लगाएँ, अन्तरअवलोकन करें जीवन्त अम त के सागर, 'जीवन अम त के सागर'। कि अपने बारे में मुझसे क्या आशा की जाती है और आप वही बोलते चालते जीवन्त अम त के सागर इस दिशा में मैं क्या कर रहा हूँ? मैं एक व्यर्थ की चीज़ के लिए चिन्तित हूँ, दूसरी व्यर्थ की चीज़ के लिए चिन्तित हूँ, और मुझे होना चाहिए आध्यात्मिक समुद्र है। समुद्र के अन्दर के होंगे। जैसे यहाँ ये पेड़ों को देखें। 'सागर' इस प्रकार से बात करता है कि अम त का सागर! मुझे तो कल्पतरुओं का जंगल इससे अम त प्रवाहित होता है, आशीष रूपी अम त। होना चाहिए, उन व क्षों का जो लोगों को वरदान देते आप ही वही लोग हैं आप ही दाग रहित चन्द्र की हैं, महान विजयें प्रदान करते हैं । परन्तु मैं क्या कर तरह से होंगे पूर्ण स्वच्छ, बेदाग, कलंक रहित-पूर्णतः रहा हूँ? मेरा तो चित्त भी ऐसा नहीं है जो परमेश्वरी कलंक रहित। ताप रहित सूर्य की तरह से। वो ऊर्जा को आत्मसात कर सके! चित्त ऐसा होना लोग आप ही हैं ऐसे लोग जो धर्मपरायण हो जाएँगे तथा धर्म और सत्य जिनका आधार होगा। सकू। परन्तु ऐसा होने के स्थान पर मेरा चित्त तो वो सब परस्पर जुड़े हुए होंगे। पूर्ण विश्व में वे गलत चीजों पर है और मैं कर क्या रहा हूँ? अपने परस्पर जुड़े हुए होंगे। उस आरम्भ के साथ, हम महाराष्ट्र के गुण की अभिव्यक्ति करने की योग्यता मुझमें नहीं महान सन्तों को जानते हैं। ज्ञानेश्वर जी उनमे से महानतम थे वे भविष्य द ष्टा थे जिन्होंने आप लोगों युगों के बाद मैंने जन्म लिया है । बहुत बार मेरा के विषय में भविष्यवाणी की और बताया कि जन्म हुआ । मैं सन्त था और हमेशा परमात्मा की परमात्मा के बन्दे पैगम्बर बन जाएंगे तथा उनमें खोज में भटकता रहा, हमेशा मैं इस खोज में आ चाहिए कि मैं परमात्मा की इच्छा को आत्मसात कर (उत्थान के) लिए मैं क्या करता हूँ? क्या उस विशेष है? उस उच्चतम गुण की। मैं जिस रूप में अब हूँ | 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-15.txt पैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 जनवरी एवं फरवरी 2004 14 एकरूपता पूर्वक प थ्वी मॉाँ से जुड़ नहीं जाते तो म त पेड़ की तरह से आपका भी पतन हो जाएगा। अंतः ये समझ लेना अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि आप महान को लिए मैं घूम रहा हूँ। यह बात जब आप समझ हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं। ये पेड़ महान हैं, संघर्ष जाएँगे तब आप ये जान जाएँगे कि आज हमारी करके ये उन्नत हुए हैं परन्तु आपका चित्त कहाँ इस अन्तर्राष्ट्रीय गोष्ठी के अवसर पर इसका क्या हैं? आप यहाँ किस लिए हैं? आवश्यकता किस महत्व है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आप सभी परस्पर चीज़ की है? उत्थान में बाधक चीजों से चिपके सम्बन्धित है किसी अन्य से आपका कोई सम्बन्ध रहने की? उन चीजों से चिपके रहने की जो हमेशा भटकता रहा और इस जीवन में जब ये महान कार्य करने के लिए मेरा जन्म हुआ है एक बार फिर मैं उन्हीं मूर्खताओं में फँस गया हूँ। उन्हीं मूर्खताओं नहीं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आप एक दूसरे से आपके विरूद्ध होती हैं। सम्बन्धित हैं और ये सम्बन्ध गहन मित्रता के उत्थान मार्ग में हमारे लिए सबसे बड़ी सम्बन्ध है। इसमें पक्षपात, कामुकता, लोभ आदि बाधा हमारा मूर्खतापूर्ण अहम् है। यह बात हमें का कोई स्थान नहीं होता ये केवल मित्रता है यह समझ लेनी है कि अहम् हमारे अन्दर सबसे बड़ी शुद्ध मित्रता है और हम वहीं हैं। तो ये कहना । रुकावट है। हमें इसके चंगुल से निकलना होगा उचित होगा कि यह केवल प्रेम है, स्नेह है, अच्छाई कुण्डलिनी को भी इन्ही पेड़़ों की तरह से उठना है और यह केवल माधुर्य है परन्तु आपको समझ होगा परन्तु हम सबमें, अधिकतर लोगों में अहम् लेना होगा कि आपने उस स्तर तक उठना है । ये सबसे बड़ी बाधा है। यह बहुत तरीकों से दिखाई पेड़ वातावरण से, पूर्ण वातावरण से लम्बा संघर्ष देता है जीवन की सभी उपलब्धियाँ प्रदान करने करने के बाद इस स्तर तक पहुँचे हैं । प थ्वी माँ, वाली प थ्वी माँ से ही हम लड़ते हैं। आप प थ्वी माँ जिससे ये जुड़े हुए हैं, की सहायता के अतिरिक्त ये की ही देन हैं। उसने ही आपका स जन किया है, अपने ही बलबूते पर उन्नत हुए हैं। अतः आप लोगों आपको बनाया है, उन्हीं की क पा से आप उन्नत हुए को समझ लेना चाहिए कि स्वयं से लड़कर इस हैं परन्तु आप उसी से लड़ रहे हैं और उसी के बात का पता लगाएँ कि आपमें क्या कमी है तथा विरूद्ध कार्य कर रहे हैं! यह गलत है। आप किस प्रकार चलेंगे? एक बार जब आप उन्नत होने लगेंगे सर्वप्रथम देखें कि आपका चित्त कहाँ है? सूर्य आपकी सहायता करेगा, प्रक ति आपकी सहायता चित्त की गति ऐसी होनी चाहिए कि यह बाह्य रूप करेगी। परन्तु आपको अपनी तुच्छता से, अपने से उन्नत हो और आंतरिक रूप से माँ (श्री माताजी) स्वाथ्थों से, अपने बन्धनों से और विशेषरूप से अपने के प्रति पूर्ण सम्मान पूर्वक जुड़ा रहे। जो लोग ये अहम् से अपर उठने की द ढ़ इच्छा होनी आवश्यक कार्य नहीं कर सकते वो लोग व्यर्थ हैं जिस पेड़ है । जब हम आपकी तारीफ करते हैं तो आपको ने मज़बूती से प थ्वी माँ को पकड़ा नहीं है वह गिर फूल कर कुप्पा नहीं हो जाना। मान लो कि मैं जाएगा कहने से अभिप्राय यह है बहुत बड़ा करता है वैसा ही उसे फल प्राप्त होता है। प थ्वी माँ पेड़ बन जाएगा तो इसका अर्थ ये नहीं है कि पेड़ ने इससे कुछ नहीं लेना-देना। प थ्वी माँ का ये बड़ा हो गया है । आप संभी को संघर्ष करके वह है और यदि आप पूर्ण निष्ठा एवं निरन्तर विशालता प्राप्त करनी होगी परन्तु उसके लिए स्वयं को उन्नत करें। कि जैसा वह कहती हूँ कि आप एक छोटे पेड़ हैं जो विशेष गुण 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-16.txt जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 15 आपको अपने में श्री ज्ञानेश्वर, तुकाराम तथा रामदास अभिव्यक्ति करती है। अतः पूर्ण सूझ-बूझ से आन्तरिक जैसे सन्तों के विकसित करने होंगे उन्होने उत्क्रान्ति प्राप्त करनी है । तब मुझे आपको किसी के कभी मुझे नहीं देखा, बिना मेरे दर्शन किए ही मैने विषय में बताना नहीं पड़ेगा | तब आप पर इन उनका पोषण किया परन्तु उन्होंने अपनी महानता बेवकूफी भरी बातों और बकबक का कोई प्रभाव न से ही स्वयं को पोषित किया आपको भी वैसा ही होगा आपमें से कुछ लोग बुद्धिवादी हैं, बुद्धिवादियों महान होना होगा इसकी अपेक्षा आप तो अपने में हर चीज़ को बौद्धिक रूप देने की बुरी आदत विषय में मिथ्या विचारों, क त्रिमताओं, हास्यास्पद होती है। परमात्मा की द ष्टि में बुद्धिवाद कुछ भी धारणाओं आदि में ही जिए जा रहे है। उन सारी नहीं है क्योंकि परमात्मा ने ही उसका स जन किया गुण मूर्खताओं से चिपके हुए हैं जो आपने अपने है। अतः आपको सावधान रहना होगा। पालन - पोषण, राष्ट्रीयता, पढ़ाई-लिखाई, गुरुओं कुछ लोग अत्यन्त भावुक होते हैं और तथा मानसिक प्रक्षेपणों के माध्यम से एकत्र की हैं। अत्यन्त भावुकता पूर्वक अपनी अभिव्यक्ति करने का इन दुर्गं के साथ तो हम सभी सहजयोगियों के प्रयत्न करते हैं। आपको उन धारणाओं से बाहर लिए अत्यन्त ही भयानक साबित हो सकते हैं और आना होगा और समझना होगा कि जीवन की भावनाओं की बहुत भयानक भूमिका हो सकती है। बोर्डी में हमने बहुत से विवाह करने का व्यवहार ऐसा होगा जो हमारे, किसी अन्य की नहीं, निर्णय किया है यह बहत अच्छी और मंगलमय अवतरण (पद) को शोभा दे। इस समय पर हमारा बात है। इतने सारे विवाह होंगे इसकी मुझें बहुत अवतरित होना जिसकी भविष्यवाणी और वर्णन प्रसन्नता है कि इतने सारे विवाह हो रहे हैं । यह इसका प्रभाव सामूहिकता पर भी पड़ सकता है। अतः आज हमें शपथ लेनी होगी कि हमारा किया गया है, यह भविष्यवाणी बहुत समय पूर्व की बहुत ही शुभ है क्योंकि विवाह को परमात्मा का गई थी। अगर हम ये समझ लें कि हम उसी लक्ष्य आशीर्वाद प्राप्त होता है। आप लोग विशेष हैं क्योंकि के लिए प थ्वी पर आए हैं तो हम वास्तव में स्वयं को इन विवाहों के लिए मैं आपके सम्मुख बैठी हूँ। सभी प्रचलित मूर्खताओं से प थक कर लेंगे और इन इनका बतंगड़ न बनाएँ। छिछोरे बनकर समस्याएँ न पेड़ों की तरह से आकाश की ओर उठने का प्रयत्न खड़ी करें यह 'ब्रह्मएक्य' विवाह हैं, जिस स्थिति में करेंगे। उत्थान-विरोधी गतिविधियों में किसी अन्य व्यक्ति आत्मा से एकरूपता महसूस करता है, सहजयोगी का अनुसरण आपको नहीं करना चाहिए। सर्वव्यापी शक्ति से तादात्मय होता है। यह समझने कोई यदि किसी प्रकार का भूत बनाने की या आपको यह कहकर कि वह आपको कुछ ऊँचा या बड़ी बात सिखा सकता है, या कोई अन्य तकनीक गुणों का सम्मान करें कोई यदि उच्च दर्जे का | का प्रयत्न करें। ये विवाह संतों के मध्य हो रहे हैं. सामान्य लोगों के बीच नहीं। व्यक्ति के आन्तरिक बता सकता है और इस प्रकार यदि कोई प्रभावित सहजयोगी. है तो उसका सम्मान होना चाहिए, उसे करने का प्रयत्न करे तो आप उस पर विश्वास न प्रेम किया जाना चाहिए। बाह्य गुणों को अधिक करें। महत्व नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि बाह्य गुण तो सर्वप्रथम ये बात समझ लें कि सहजयोग मात्र मूर्खता होते हैं। विवाह के पश्चात् पति-पत्नी आन्तरिक उत्क्रान्ति है जो बाहर की ओर अपनी को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए क्योंकि | 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-17.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अक : 1 एवं 2 जनवरी एवं फरवरी 2004 16 आप लोग सन्त है-उच्च दर्जें के सन्त जैसा मैने इन्होंने हासिल की है. वो इस वातावरण से लड़ आपको बताया आपमें महान सम्भावनाएँ छुपी हुई कर, झगड़ कर, बाहर आकर, अपना सर ऊँचा उठा हैं। उस बात का पहले से ही वर्णन किया गया है कर के। जो लोग अपना सर दुनियाई चीज़ों के कि अपनी स्थिति में स्थापित होने से ही आपकी लिए, क त्रिम चीजों के लिए, बाह्य चीज़ों के लिए झुका लेते हैं वो कैसे उसे पा सकते हैं? या जो महानता स्थापित होगी आप महान बन सकेंगे। अब मैं हिन्दी में थोड़ा सा आपको बताना अपना चित्त इस धरती माँ से हटा लेते हैं वो तो मर चाहती हूँ कि सहजयोग में हम लोग अब ये नहीं ही जाएँगे इसलिए हर सहजयोगी का ये कर्तव्य जानते कि हमारे बारे में हजारों वर्ष पहले ये बताया है, ये पूरी तरह से कर्तव्य है कि वो जाने कि सारी गया था कि ऐसे महान लोग संसार में आयेंगे और दुनिया आपकी तरफ आँख लगाए बैठी हुई है और पहाड़ के पहाड़, ऐसे बड़े-बड़े व क्षों के बड़े-बड़े आप अपने गौरव को पहचानें। अरण्य संसार में घूमेंगे, जो बोलते हुए, चलते हुए, दुनिया को उनकी इच्छाओं की पूर्ति के कल्पतरु और यह घटित होने की आशा कर रहा है। पूरे जैसे उनके आशीर्वाद देंगे और एक-एक व्यक्ति में विश्व में इसकी घोषणा हो चुकी है परन्तु हम कहाँ जैसे सागर उमड़ते हैं, जिसमें की अम त बोलता है है? हमारी उन्नति बहुत धीमी है। छोटी छोटी ऐसे सागर, ऐसे सूरज होंगे-चमकते हुए सूरज भौतिक, सांसारिक, सतही एवं बनावटी मूर्खता पूर्ण जिनके अन्दर कोई भी अग्नि नहीं, ऐसे चन्द्रमा चीजों की हम चिन्ता करते हैं। पूरा विश्व इसकी जिनके ऊपर कोई कलंक नहीं। ये आपके वर्णन घोषणा कर चुका है। अतः व्यक्ति को समझना है। हजारों वर्ष पहले ज्ञानेश्वर जी ने किए कि कितना आज आप लोग यहाँ इस अन्तर्राष्ट्रीय गोष्ठी में मुझे आपका महत्व उन्होंने बताया, कि कितना जरूरी वचन देने के लिए आए हैं। है-सारी दुनिया के लिए। सारी दुनिया के लिए विश्व आपकी उन्नति को देख रहा है पूरा 1 आप लोग यहाँ मुझे वचन देने आए हैं इस अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार (संगोष्ठी) पर कि माँ एक आशा है। पूरा विश्व इस घटना के घटित होने की आप जितनी मेहनत करते हो उसी तरह से हम आशा कर रहा है कि ऐसे लोग प थ्वी पर अवतरित भी मेहनत करेंगे। हों जिनके विषय में वर्णन किया गया है। इस पूजा में आए सभी लोग आयु में मुझसे छोटे हैं। आप सभी लोगों को मुझे वचन देना होगा कि श्रीमातीजी हम भी उसी जोश तथा उसी तल्लीनता से सहजकार्य करेगें जिस प्रकार आप इस तरह से हो रहा है, और हो गया है । लेकिन अभी इसकी प्रगति, मेरे विचार से, बहुत धीमी है। इसकी प्रगति बहुत धीमी है । प्रगति आपकी वजह से धीमी हो जाती है। ऐसी जगह करती हैं तथा स्वयं को स्थापित करने का प्रयत्न चित्त आपका जाता है जहाँ हम अपने को गिरा लेते करेंगें। स्वयं को हम शान्त करेंगे। हम बोलते बहुत अधिक हैं, बातें बहुत अधिक हैं परन्तु करते कुछ भी नहीं । आन्तरिक मौन द्वारा अपनी शक्ति के हरास को बचानें का प्रयत्न करें । हैं। अपना चित्त इस पेड़ का जैसा इस प थ्वी से पूरी तरह से निगड़ित है. ऐसा आपको अपनी माँ के साथ निगड़ित करना चाहिए और उसकी जो ऊँचाई है, उसके ओर द ष्टि होनी चाहिए। ये ऊँचाई जो भी उस शान्तिमय गौरव में अपने को उतारें। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-18.txt लम जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 17 अपने बारे में पूरी कल्पना होनी चाहिए कि आप हैं से भरे हुए लोगों में से इस अम त का संचार कैसे क्या। आपको पूरा ज्ञान होना चाहिए कि आप क्या कर सकते हैं? आपको विशाल हृदय महान व्यक्ति हैं? इस बात की आपको समझ होनी किस लक्ष्य को लेने के लिए आप चले थे और एक बार पुनः महान है। परन्तु आप तो अपने इसकी प्राप्ति के लिए क्या किया। यह इस प्रकार वातावरण से प्रभावित हैं। अतः अपने और समय के कार्यान्वित नहीं होगा। सभी कुछ अच्छा है। भविष्य महत्व को समझने का प्रयत्न करें। यह समय अपनी चाहिए कि होना होगा आप सब द्विज (Born Again ) है जो | 1 बहुत आनन्दमय प्रतीत होता है। हर चीज़ बहुत पूजा करने का है, परन्तु पूजा के योग्य भी होना अच्छी प्रतीत होती है। परन्तु सबसे बड़ी चीज़ तो होगा आप समझते हैं कि अच्छे वस्त्र पहनने से या आपकी माँ की आशा है कि आप पूरे विश्व का किसी प्रकार का दिखावा करने से हम पूजनीय बन उद्धार करेगें। इस बात की ओर ध्यान दें ये सोचे जाते हैं तो यह बात ठीक नहीं है। हमें स्वयं के लिए कि आपने यह कार्य करना है आप ही लोग चलते, पूजनीय होना चाहिए। जो भी कुछ हम कुर रहे हैं बोलते, घुमते, परमेश्वरी प्रेम के जंगल हैं, वह उसमें सन्तों की गरिमा, सौन्दर्य, प्रेम तथा महानता | | ऋतम्भरा प्रज्ञा हैं। मुझे आशा है के आप इस बात होनी चाहिए, महान सन्तों की, साधारण लोगों की को समझेंगे कि आज अत्यन्त महत्वपूर्ण दिन है और नहीं। वास्तव में इसका वर्णन किया जा रहा है । मुझे कार्यान्वित होता है तो सम्भवतः अगले सत्र तक हम पूजा की है। काश हमारे यहां ज्ञानेश्वर जी जैसे बड़ी उपलब्धि प्राप्त कर लें। आप सबसे मेरी यही विनती है कि निष्ठा आप लोग मेरे शरीर से बाहर हैं। अत: उन्होने लगता है कि यह सत्र यदि ठीक प्रकार ज्ञानेश्वर जी ने अपनी कविता में वास्तव में आपकी लोग होते। परन्तु वे सब मेरे शरीर में स्थापित हैं। बहुत पूर्वक ध्यान धारणा करें। आज हमें पूजा करनी है। (सन्तों ने) जो कुछ कहा है उसे आपने पूर्ण करना इस समय एक बहुत बड़ा स्रोत खोला जाना है। है केवल इतना ही नहीं ज्ञानेश्वर जी ने जो कुछ परन्तु इसका प्रवाह लोगों में होना चाहिए। परन्तु भी कहा था वह सत्य है। मिथ्या अंहकार, मूर्खता तथा छोटे - छोटे पागलपनों परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-19.txt निर्मल विद्या क सारे परमेश्वरी कार्य, क्षमा करना भी, जो हम करते हैं वे सब एक विशिष्ट शक्ति द्वारा करते शक्ति है, 'अबोधिता' की शक्ति, इसे 'अबोधिता आपकी आज्ञा का पालन करती है। परन्तु यह गणेश (innocence) कहा जाता हैं। पूरी शक्ति, क्योंकि यह अबोधिता है अतः अबोधिता कार्यभार सम्भालकर हैं। जब आप कहते हैं. "श्री माता जी, हमें क्षमा कर दीजिए।" जिस तकनीक से मैं आपको क्षमा करती हूँ वह 'निर्मल विद्या' है। जिस तकनीक से मैं सभी कुछ चलाती है। इस प्रकार से यह कार्यान्वित आपको प्रेम करती हूँ वह भी निर्मल विद्या है । जिस होती है। तकनीक से मैं आपको प्रेम करती हैँ बह भी निर्मल विद्या है। जिस तकनीक से सभी मन्त्रों की और पराशक्ति कहलाती है 'शक्ति से परे । तत्पश्चात् अभिव्यक्ति होती है तथा वे प्रभावशाली होते हैं वह ये मध्यमा आदि बन जाती है। जब यह बाई विशुद्धि भी 'निर्मल विद्या' है । तत्पश्चात् यह उन्नत होती चली जाती है पर आती है तो व्यक्ति में दोष भाव आ जाता है। " अपनी दोष भावना के कारण आप कहते हैं कि चीजें "निर्मला' अर्थात् पावन, विद्या का अर्थ है ज्ञान। निर्मल विद्या इस तकनीक का पावनतम बड़ी कठिन हैं। बाई विशुद्धि गणेश शक्ति की पकड़ ज्ञान है। यह छल्लों (Loops) का स जन करती है। होती है गणेश माधुर्य हैं। श्री गणेश को देखने मात्र यह शक्ति छल्लों का स जन करती है तथा कई से ही ये कौतुक, यह पावन प्रेरणा बहने लगती है। भिन्न आकारों की रचना करती है जिनके द्वारा यह गतिशील होती है और सभी आवांछित एवं अपवित्र बाई विशुद्धि पर अबोधिता कठोर हो जाती है। अतः तत्वों को खदेड़ कर अपनी शक्ति से स्वयं को बाई विशुद्धि की पकड़ को दूर करने के लिए आप परिपूर्ण कर लेती है। ये एक तकनीक है. 'दिव्य सबको तकनीक जिसको मैं आपके सम्मुख शायद पूरी आपकी भाषा अत्यन्त मधुर होनी चाहिए। विशेष तरह से वर्णन न कर सकूं क्योंकि आपका यन्त्र रूप से पुरुषों को चाहिए कि अपनी पत्नियों से बहुत (शरीर) अभी तक ये कार्य नहीं करता-आपके पास मधुर बोलें। यह माधुर्य आपकी बाई विशुद्धि को ठीक वैसा यन्त्र नहीं है । उनके बारे में सोचने मात्र से ही आप प्रसन्न हो जाते हैं। मधुर शब्द उपयोग करने चाहिएं। सबके प्रति मीठा बोलें। मीठे शब्द खोजने करेगा। हमेशा बहुत आप देखिए कि ये कितनी सूक्ष्म है! 'निर्मल का प्रयत्न करते रहें । मधुर शब्द, दोष भाव को विद्या' उच्चारण मात्र से आप इस शक्ति को, पूरी सुधारने का सर्वोत्तम उपाय हैं। क्योंकि यदि आप चीज़ को, पूरी तकनीक को निमंत्रण देते हैं कि वह किसी को कठोर शब्द कहते हैं तो हो सकता है कि आकर आपकी देखभाल करे और यह आपकी आप आदतवश ऐसा कर रहे हों या इससे आपको देखभाल करती है, आपको चिन्ता नहीं करनी पड़ती। प्रसन्नता मिलती हो। तुरन्त ज्योंही आप कठोर शब्द किसी भी सरकार में या विश्व में, कहीं अन्यत्र, ऐसा बोलते हैं उसके तुरन्त बाद आप कहते हैं कि. "हे घटित नहीं होता। आप सरकार का आहान करें परमात्मा, मैंने यह क्या कह दिया!" यह सबसे बड़ा और सभी कुछ कार्यशील हो उठे, पूरे ब्रह्माण्ड में, दोष है । व्यक्ति को सदैव मधुर शंब्द खोजने का पूरी स ष्टि में। इस तकनीक को निर्मल विद्या कहते प्रयत्न करते रहना चाहिए। जिस प्रकार यह पक्षी हैं। एक बार इसके प्रति समर्पित होकर यदि इसमें चहचहा रहे हैं इसी प्रकार आपको भी सभी चीजों के | कुशलता प्राप्त कर लीजिए तो यह पूरी तरह से स्वर सीखने चाहिए जिनके द्वारा आप लोगों को 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-20.txt चैतन्य लहरी खण्ड XVI ज नवरी एवं पारदरी 2004 : 1 एव 2 एच 2 19 प्रसन्न कर सके। ऐसा करना बहुत आवश्यक है। विकास अत्यन्त सुन्दर है । इस प्रकार से हमारी अन्यथा यदि आपकी बाई विशुद्धि की पकड़ बहुत इच्छा ही आत्मा बन जाती है. आपकी इच्छा और अधिक बढ़ गई तो आपमें बातचीत करने की ऐसी आत्मा एकरूप हो जाते हैं । परन्तु कभी-कभी यह विधि उन्नत हो जाएगी जिससे आपके होंठ बाई बाधा बहुत बुरी हो सकती है। आपने देखा है कि ओर को खिंच जाएँगे। तत्पश्चात् प्रसार (चैतन्य) ऊपर को जाने कठोर बोलते हैं तो उन्हें यह बात समझ लेनी चाहिए लगता है, आज्ञा चक्र में, जहाँ गणेश शक्ति क्षमा की कि यह आप नहीं बोल रहे । कौन बोल रहा है? नहीं, महानतम शक्ति बन जाती है। इसके बाद यह क्योंकि आप आत्मा हैं और आत्मा कोई भी कठोर मस्तिष्क क्षेत्र में प्रवेश करती है जहाँ गणेश शक्ति या विध्वसक बात नहीं बोल सकता। किसी को सुध सूर्य से ऊपर जाती है। प्रतिअहम् प्रकट होता है रने के लिए यदि बहुत आवश्यक हो तभी वह कुछ और यह चन्द्र की शक्ति है और यह चन्द्र आत्मा कठोर कहेगा परन्तु आप इसकी (सुधारने की) है। आत्मा बनकर यह सदाशिव के सिर पर बैठ ज़िम्मेदारी न लें. यह कार्य कोई अन्य कर देगा। जाती है। यह वही शक्ति है। गणेश शक्ति का पूर्ण जिन लोगों में बाई विशुद्धि की पकड़ है वो जब परमात्मा आपको आशीर्वादित करें. 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-21.txt मैं ही आदिशक्ति हूँ न्यूयार्क, 30-09-1981 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ग्रन्थों में इस बात का वर्णन है कि ईसामसीह पड़े। अत: अब उन्हें चाहिए कि ईसामसीह को न को सूली पर चढ़ाने वाले लोग पुनर्जन्म लेते रहते हैं नकारें । परमेश्वरी शक्ति की प्रतिमूर्ति को आप और बार-बार क्रूसा रोपण करते हैं। क्रसा रोपण नकार नहीं सकते ईसाई लोग गलत हो सकते हैं। (crucifixion) ईसामसीह का संदेश नहींी है यही उन्होंने यदि आपको सताया है तो आप उन्हें क्षमा कारण है कि क्रास पहनने वाले लोग मुझे पसन्द कर दो। वे भी तो आप ही जैसे हैं धर्मान्ध, नहीं हैं। मै उन्हें देख भी नहीं पाती। क्रास उनका धर्मान्ध, धर्मान्ध। वो चाहे इसाई है या मुसलमान सन्देश नहीं है। निःसन्देह यदि क्रास पहना हुआ हो हैं, सभी लोग अन्य लोगों जैसे हैं। मुझे कोई तो बुरी आत्माएं दौड़ जाती हैं। परन्तु यह एक अन्तर नहीं दिखाई देता। कट्टर, अज्ञानी और धर्मान्ध । असहनीय घटना की याद दिलाता रहता है। उनकी उन लोगो को क्षमा कर दें। (Matthew-lI) मैथ्यु-I के माँ में सभी शक्तियों थी। वे महालक्ष्मी थीं। उनमें दूसरे अध्याय में ईसामसीह ने स्वयं कहा था कि भी ग्यारह शक्तियाँ थी-ग्यारह विध्वंसक शक्तियाँ। आप मुझे पुकारेंगे-ईसा, ईसा. ईसा. परन्तु में आपको आप इसकी कल्पना कर सकते हैं। क्रूसारोपित होते नही पहचानूँगा कि आप कौन हैं । हम लोग जो ईसा भी उनमे यह शक्तियां विद्यमान थीं। परन्तु का नाम लेते हैं वे ईसा के स्वनियुक्त प्रतिवक्ता हैं। हुए बिना कोई विध्वंस किए वे क्रूसारोपित हो गए। इस हम ही लोग ईसामसीह के अधिकारी बनते हैं। ऐसे सभी लोगों पर अभियोंग चलाया जाएगा और जिस बात का उन्होंने ध्यान रखा। अब लोग प्रश्न कर सकते हैं, "ईसामसीह प्रकार उन्होंने ईसा-मसीह के मामलों को सम्भाला पुनर्जीचित किस प्रकार हुए?" सर्वप्रथम तो लोगों ने है, उन्हें नर्क में धकेला जाएगा। उनमें से कुछ लोग "निष्कलक गर्भाधारण' (Immaculate conception) सच्चे हैं क्योंकि उन्हें इस बात का ज्ञान ही नहीं कि पर भी एतराजं किया कहने का अभिप्राय है कि लोगों की हर चीज़ पर एतराज है। ईसामसीह आत्म साक्षात्कार प्राप्त करना होगा उन्हें मानव नहीं थे वे परमेश्वरी शक्ति थे। मैं लोगों को अपने हृदय में धारण करती हूँ। आप को समझना चाहिए। उन्हें चाहिए कि अपने हृदय में जानते हैं कि अपनी कुण्डलिनी को उपयोग करके ईसा-मसीह को जाग त करें। मैं तुम्हें अपने हृदय मे स्थान देती हूैँ और फिर हृदय से ही आपको जन्म देती हैं । जिस प्रकार से आपको कहा था कि आपको पुनर्जन्म लेना होगा, कि मुझे दूसरा जन्म प्राप्त हुआ है इसी प्रकार से ईसामसीह आपके हृदय में जन्म लेना होगा अब हृदय चक्र भी निष्कलंक थे। उनकी माँ नें उन्हें हृदय में धारण यहाँ पर है और यहीं पर भी (हृदय, सहस्रार) । किया और फिर अपने गर्भ में और तत्पश्चात् उन्हें क्योंकि हृदय को तालूरन्ध पर स्थापित चक्र (सहस्रार) जन्म दिया। ईसामसीह पर सन्देह करना और ही नियन्त्रित करता है और जब उन्होंने यह कहा उनके विरुद्ध बातें करना आसान है क्योंकि अब वे कि आपको उन्हें अपने हृदय में स्थापित करना म थ्वी पर नहीं हैं यहूदियों को सबक लेना चाहिए। होगा तब उन्होंने यही बात कही थी कि आपको एक बार उन्हें नकार कर यहूदियों को कष्ट भुगतने अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना होगा। सारी बात बनावटी है। वे सच्चे हैं, परन्तु उन्हें ये आप आत्म- साक्षात्कार मॉगना चाहिए तथा ईसा-मसीह मै आपको बता रही थी कि ईसामसीह ने 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-22.txt चैतन्य लहरी सण्ड -XVI अंक : जनवरी एवं फरवरी 2004 1 एवं 2 21 बहुत से देशों के लोग जिनमें आपके देश तथा नष्ट करने का लक्ष्य पूरा करने का, क्योंकि के लोग भी थे, भारत गए, परन्तु उन्होंने ये कभी अपने फरेब, मिथ्याचार द्वारा उन्होंने आपको अपनी नहीं बताया कि ईसामसीह के रूप में महाविष्णु ही पकड़ में लिया है। परमात्मा के ये तथाकथित बन्दे अवतरित हुए थे पुराणों में पहले से वर्णित है कि उनके मिथ्याचार से प्रभावित हैं। अब देखिए कि वे ही आधार हैं। एक बार कुण्डलिनी द्वारा जाग त इस सभागार में यदि कोई कुगुरु होता तो ये किए जाने पर आपके सभी कर्मफल समाप्त हो खचाखच भर गया होता, सड़क पर जाम लग गया जाएँगे, इन लोगों ने जाकर कभी नहीं बताया। अतः होता। परन्तु मैने देखा है कि केवल यहीं नहीं, कहीं भारतीय लोग कर्म के सिद्धान्त को लेकर गए और भी कोई सच्चा गुरु यदि होगा तो कार्य बहुत ही ये आपको कर्म सिखाने के लिए यहाँ आए। धीमे से आरम्भ होगा नि:सन्देह किसी स्थान के गुरु आश्चर्य की बात है कि आप इन मूर्खतापूर्ण सिद्धान्तों लोग यदि अत्यन्त सहज और संवेदनशील हैं तो को कैसे स्वीकार करते हैं! जैसे ये लोग कहते हैं बात दूसरी है परन्तु शहरों के लोग वास्तविकता के अपने दुष्कर्मों के कारण आपको कष्ट उठाने होंगे। प्रति इतने संवेदनहीन हैं तथा आसुरी प्रव त्ति के प्रति फिर ये कहते हैं कि संतुलन से चलें और संतुलित इतने संवेदनशील कि जिस प्रकार वे असुरों के रहें। यदि आपको एक अति में जाना है या दूसरी सानिध्य में आते हैं तथा वास्तविकता से परे होते हैं, में तो ये लोग क्या कर रहे हैं? ये लोग काहे के उस पर आश्चर्य होता है। आप क्योंकि अवास्तविकता में फँसे हुए हैं. अतः आपको वास्तविकता में आना होगा भाषण दे रहे हैं? जब ये कुछ कर ही नहीं सकते तो इन्हें अपने मुँह बन्द रखने चाहिएं। ये आपको आत्म अतः साक्षात्कार नहीं दे सकते, उस स्थिति से आपको आपको समझना होगा कि आपको आत्मा बनना है, बचा नहीं सकते तो बेहतर होगा कि ये कष्ट भुगतें । ये क्यों कहते हैं, कि आपको कष्ट उठाने चाहिए? चेतना में अभी तक प्रकाशमान नहीं है। इसी आत्मा उन्हें ऐसा क्यों कहना चाहिए? क्योंकि आपको का वर्णन किया गया है इससे पूर्व चर्चों में कभी आत्मा जो कि आपके मध्य नाड़ी तंत्र पर, आपकी इसकी बात नहीं की गई थी परन्तु आज पहली बार मैं चर्च में ईसा-मसीह की बात कर रही हूँ और कष्ट भुगतते देखकर उन्हें आनन्द आता है। आनन्द लेने के लिए वे चाहते हैं कि आप लोग कष्ट उठाए। बहुत सारे लोग जो इन भयानक गुरुओं के शिष्य मुझे आज प्रसन्नता है कि चर्च में भी इसकी स्थापना थे, जिन्होंने कहा कि अपने कर्मों के फलस्वरूप हो पाएगी और जब लोग यहाँ आएँगे तो, मुझे आशा आपको कष्ट उठाने होंगे, इन लोगों ने मुझे बताया है, उन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाएगा। यहाँ कि उन्होंने इन गुरुओं को उनका मज़ाक उड़ाते कुछ न कुछ कार्यान्वित हो जाएगा और लोगों को जाग ति प्राप्त हो जाएगी। क्योंकि मेरे सम्मुख बहुत हुए, उन पर हँसते हुए देखा है। इन्होंने मुझे इन गुरुओं के फोटो भी दिखाए जिनमें अपने गुरूओं के से सन्त बैठे हैं, सम्भवतः इस चर्च में एक दिन ऐसा शरीर और मन से कष्ट उठाते हुए इन मूर्ख आएगा जब यह कार्यान्वित हो जाएगा तथा लोग सम्मुख शिष्यों पर ये लोग मज़ाक कर रहे हैं। इस प्रकार ये दोहरा लाभ उठाते हैं, एक तो धन और सत्ता का आत्म-साक्षात्कार प्राप्त कर लेंगे | ईसा-मसीह का जीवन केवल तीन चार लाभ और दूसरा आप लोगों की हत्या करने का वर्ष का था, इससे अधिक उन्हें जीवित रहने ही नहीं 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-23.txt जनवरी एवं फरवरी 2004 भैतन्य लहरी खण्ड -४V। अक: 1 एवं 2 22 दिया गया। जो भी सम्भव था वह किया गया Gland) को देखती है तथा दूसरी प्रतिअहं को परन्तु लोग इतने मूर्ख हैं, इतने मूर्ख हैं कि आप नियन्त्रित करने वाली शंकु रूप ग्रन्थि (Pineal उनसे बात भी नहीं कर सकते और इन्हीं लोगों ने Gland) को देखती है। परन्तु इनमें दोनों ओर जाने उनकी हत्या कर दी, वे इनसे बात भी नहीं कर की क्षमता होती है। मान लो व्यक्ति अतिचेतन हो सके और इस प्रकार से उनके जीवन का अन्त हो जाता है और बहुत अधिक सोचने लगता है, भविष्य गया परन्तु अपने छोटे से जीवन में वे कितनी बड़ी के विषय में कि आकाश गंगाएँ क्या हैं. हमें इसके चिंगारी थे. कितनी बड़ीं चिंगारी! जिस प्रकार से विषय में पता लगाना चाहिए, सितारों के विषय में लोगों ने उनसे व्यवहार किया वह अत्यन्त न शंस पता लगाना चाहिए। इन सभी चीजों के बारे में या था। ये बात में अवश्य कहूँगी कि धर्म -प्रचारक भविष्य के विषय में, जैसे ज्योतिष शास्त्र और स्वयं, मैथ्यू आदि भी इतने बुद्धिवादी थे, इतने भविष्यवाणियों के विषय में ये सब भविष्यवाद है। बुद्धिवादी कि वे निष्कंलक गर्मधारण की धारणा को स्वीकार ही नहीं कर सके। अत्यन्त ही कठिन योजनाएँ बनाते हैं और प्रायः ये योजनाएँ असफल व्यक्ति, इसके विषय में वह बाद विवाद किया करता था। उसने कहा, "कि यदि कोई कुआरी बहुत अधिक है तथा यह व्यक्ति को इस ओर बहुत बच्चे को जन्म दे तो कोई भी व्यक्ति यह कहने से दूर तक धकेल सकता है। मैंने यह इस ओर दर्शाया नहीं चूकेगा कि यह ईश निन्दा है, अत्यन्त गैर है परन्तु यह दिशा परिवर्तन कर लेता है अह कानूनी है और इसके विषय में बात भी नहीं की इधर (बायीं आज्ञा चक्र) पर आ जाता है और जानी चाहिए। भयानक व्यक्ति, एक से बढ़कर एक, प्रतिअहं दाई आज्ञा पर आ जाता है। यहाँ पर हम बड़े ही अजीब ढंग से उन्होंने इस बात को लिया तीन आयाम नहीं दर्शा सकते श्रे। अत: आज्ञा चक्र क्योंकि वो अतिचेतन (Supraconscious) व्यक्ति के पीछे से यहाँ तक प्रतिअह है और यहाँ से यहाँ थे। उन्होंने बहुत से असुरों की भाषा बोलनी कर दी बाइबल का वह भाग गलत है जिसमें बो ओर फैलने पर यह अतिचेतन क्षेत्र में चला जाता है लोग है जो आत्म-साक्षात्कारी नहीं है। वायु भाग और यहाँ आ जाता है। अति चेतन क्षेत्र व्यक्ति को (Wind Part) ठीक है परन्तु मैंने देखा है कि बहुत स्वप्न स्थिति (Visions), द ष्टि अम (Halucinations) से लोग मेरे कार्यक्रम में आते हैं, आत्म-साक्षात्कार और L.S.D. का प्रभाव देता है। तब व्यक्ति किसी आप में से अधिकतर लोग भविष्यवादी हैं । आप हो जाती हैं। परन्तु योजनाएँ बनाना और सोचना शुरु तक अहं। अत: अहं इस ओर फैलता है तथा इस प्राप्त करने के लिए आते हैं, कुछ क्षणों के लिए उन्हें म तक प्राणी की आँखों से देखने लगता है, किसी चैतन्य लहरियों (The Wind) महसूस होती हैं। ऐसे प्राणी की आँखों से जो अत्यन्त महत्वाकांक्षी परन्तु तुरन्त वे वहाँ से चले जाते हैं और अति चेतन हो। उदाहरण के रूप में आपको हिटलर तथा हो जाते हैं। अब हम देखेंगे कि अतिचेतन अस्तित्व क्या मिल सकता है। व्यक्ति को रंग दिखाई देने लगते होता है और अतिचेतन प्रवेश क्या होता है? आप हैं परिमल (Auras) दिखाई पड़ सकते हैं। ऐसे में देखें कि यहाँ (आज्ञा चक्र) दो पंखुड़ियों हैं। एक व्यक्ति को समझ जाना चाहिए कि ये परिमल हमें अहं को नियन्त्रित करने वाली पीयूष ग्रन्थि (Pituitary तभी दिखाई देते हैं जब हम अपने अस्तित्व से परे किसी प्रकार के भयानक राजाओं का द ष्टि भ्रम 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-24.txt जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एकं 2 23 पाँच तत्वों को ही जिम्मेदार मानते हैं। इन्हें 'कोष' हटने लगते हैं, विघटित (Disintegrate) होने लगते है। इस प्रकार से हम अपने से परे होता हुआ कुछ कहा जाता है। मेरे विचार से इन्हें दर्शाने का कोई देखने लगते हैं। सहजयोग में परिमल (Auras) उपाय नहीं है परन्तु यह कोष है जिनका स जन देखना अच्छा चिन्ह नहीं है। व्यक्ति यदि परिमल देखता है तो हमें उसे स्वाधिष्ठान, नाभि) । ये भौतिक शब्द हैं । ये सब उसकी पूर्व परिस्थिति में वापस लाना पड़ता है भौतिक शब्द हैं। चौथा, पाँचवा, छठा और सातवां क्योंकि आपको वर्तमान में रहना हैं, भविष्य में नहीं। व्यक्ति विघटित हो जाता है। यदि परिमल का अन्दर हृदय के समीप परिमल बनाते हैं । ये हृदय फोटो लेने वाली कोई मशीन हो, परिमल का फोटो के समीप परिमल बनाते रहते हैं परन्तु आत्मसाक्षात्कार ले ने वाले एक व्यक्ति से मैने बात की, प्राप्त होते ही ये सब परिमल एक रूप हो जाते हैं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पशचात् व्यक्ति ये सब विलय होकर एकरूप हो जाते हैं और यही किसी भी प्रकार के परिमल नहीं देख सकता आत्मा है इस प्रकार आप कह सकते है कि आत्मा क्योंकि वह संघटित हो जाता है । व्यक्ति यदि जब अस्थिर अवस्था में विद्यमान होती है तो आप विघटित अवस्था में हो तो वह परिमल (Auras) सात चक्रों से परिमल प्राप्त करते हैं परन्तु जब यह देखने लगता है, जैसे कैंसर रोगी को परिमल स्थिर (संघटित) हो जाती है तो आप एक रूप हो दिखाई देंगे. शराबी को परिमल दिखाई देंगे- जाते हैं और सभी परिमल भी एक परिमल का रूप अजीबो गरीब किस्म के परिमल। सामान्य व्यक्ति धारण कर लेते हैं। अतः संघटन (एक रूपता) को यदि परिमल दिखाई भी देंगे तो वह इतने सहजयोग का लक्ष्य है क्योंकि मैं सोचती हूँ कि मैंने अटपटे नहीं होंगे, परन्तु यदि आप पूर्णतः संघटित आपको बता दिया है कि आप भी विघटित व्यक्ति हैं तो परिमल दिखाई दे ही नहीं सकते। प्रकाश में की तरह से अवचेतन (Subconscious) क्षेत्र में जा यदि अस्थिरता (Aberrattion) न हो तो इसका सकते हैं । अवचेतन ्षेत्र हमारे बाई ओर है। यदि अर्थ है कि प्रकाश अच्छा है प्रकाश में अस्थिरता आप सामूहिक अवचेतन क्षेत्र मे चले गए तो आप का अर्थ है प्रकाश की गुणवत्ता अच्छी न होना । कैंसर रोग के शिकार भी हो सकते हैं । सामूहिक प्रकाश के सातों रंगों को केन्द्रित होकर संघटित अवचेतन क्षेत्र में चले जाने पर आपको हृदयघात, होना आवश्यक है। ये रंग यदि समपार्श्वीय शक्कर रोग या ऐसा ही कुछ और भी हो सकता है। 1 पहला, दूसरा तथा तीसरा चक्र करते हैं। (मूलाधार, चक्र बाहर की ओर परिमल नहीं बनाते हैं। ये हमारे पत बहुत से लोगों का ये मानना है कि अधिक (Prismatic) हो और रंग यदि अलग अलग नजर आ रहे हों तो ये संघटित (एक रूप) नहीं होते शक्कर खाने से शक्कर रोग हो जाता है ये बात सारे रंग यदि एक रूप होंगे तो आपको सात रंग सत्य नहीं है। शक्कर के कारण शक्कर रोग नहीं नजर नहीं आएगें इसी प्रकार से परिमल देखने होता, बहुत अधिक सोचने से शक्कर रोग हो जाता वाला व्यक्ति भी संघटित नहीं होता ये सारे परिमल हमें इसलिए दिखाई देते हैं होता। भारतीय किसानों को कभी शक्कर रोग नहीं क्योंकि हमारी रचना सात तत्वों से हुई है। परन्तु होता, वो तो ये भी नहीं जानते कि ये रोग है क्या? राजसिक प्रव ति के लोग मानव रचना के केवल आप लोग क्योंकि बहुत अधिक सोचते हैं, बहुत है। जो लोग अधिक नहीं सोचते उन्हें ये रोग नहीं 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-25.txt जनवरी एवं फरवरी 2004 वैतन्य लहरी खण्ड XVI अक : 1 एवं 2 वम 24 अधिक कार्य करते हैं तो यह चक्र (दायाँ- एक विचार उठता है और गिरता है। इस क्रिया के स्वाधिष्ठान) बहुत अधिक गतिमान हो जाता है। यह बीच में (विचार का उठना और गिरना) अन्तर होता मस्तिष्क के लिए पोषण भी बनाता है। मस्तिष्क के है। इस स्थान को 'विलम्ब' कहते हैं। कोई भी कोषों को यह परिवर्तित करता है इसके लिए यह विचार जो उठता है वह स्वतः गिरता भी है। एक चर्बी में से नए कोष (cells) बनाता है। बहुत अधिक कार्यभार बढ़ने पर यह अपने सारे कार्यों को वह 'वर्तमान' है विचार या तो अहं से उठते हैं या नहीं कर पाता और इस तरह से अग्नाश्य तो प्रतिअहं से और भूत में चले जाते हैं। बीच का (Pancreas), प्लीहा (Spleen) की अनदेखी हो, जाती है। अग्नाश्य को जब पूरा पोषण प्राप्त नहीं एक भूत (Past)। बीच का स्थान वर्तमान (Present) होता तो व्यक्ति को शक्कर (Diabetes) रोग हो बढ़ाया जाना चाहिए। जाता है, यह शक्कर खाने से नहीं होता। निःसन्देह शक्कर की भी भूमिका है क्योंकि शक्कर ही चर्बी में तो आज्ञाचक्र और अधिक खुलता है तथा आप परिवर्तित होती है। शक्कर यदि खाई ही नहीं जाए निर्विचार चेतना में चले जाते हैं, निर्विचार-चेतन हो तो इसके लिए कार्य दुगुना हो जाता है । परन्तु यदि जाते हैं, वर्तमान में आ जाते हैं जहाँ कोई विचार व्यक्ति में शक्कर हो तो यह उसे चर्बी में परिवर्तित नहीं होता। ये विचार ही हमारे और हमारे स जनकर्ता करता है और मस्तिष्क के लिए उपयोगी बनाता है। (परमात्मा) के बीच की बाधा हैं। उदाहरण के रूप आप यदि बहुत अधिक सोचते हैं और शक्कर नहीं में मान लो आप वहाँ रखे सुन्दर पत्थर को देख रहे विचार और दूसरे विचार के बीच का जो स्थान है स्थान वर्तमान है। एक भविष्य (Future ) है और विलम्ब (वर्तमान) की अवस्था जब बढ़ती है | लेते तो इस चक्र का कार्य दुगुना हो जाता है। हैं या किसी अन्य चीज को अब यदि आप सोचने परन्तु यदि शक्कर लेते हैं और सोचते बिल्कुल नहीं लगे कि, "अरे! ये तो मनुष्य जैसा प्रतीत होता है. तो भी समस्या बन जाती है क्योंकि उस स्थिति में राक्षस जैसा या देवता जैसा" उस समय आपके अन्दर विचार होता है। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होने स्वाधिष्ठान को बहुत अधिक शक्कर को चर्बी में परिवर्तित करना पड़ता है। आप देखें कि इसे बहुत के पश्चात् आप केवल देखते हैं और उसके स जनकर्ता अधिक कार्य दिया गया है, अतः संतुलन का अभाव ने या कलाकार ने जो आनन्द उसमें भरा है वह पूरी है। तो व्यक्ति को समझना है कि बहुत कोई अन्य विचार नहीं होता, कोई लहर नहीं होती, अधिक शक्कर अच्छी नहीं परन्तु शक्कर लेना किसी तरह की हलचल नहीं होती, झील की तरह आवश्यक है तथा अपने विचारों का रोकना भी बहुत से आप पूर्णतः शान्त होते हैं, सभी कुछ इसके आवश्यक है किस प्रकार आप अपने विचारों को इर्दगिर्द है। सारी स ष्टि इसमें आ जाती है, पूरी तरह रोक सकते हैं? केवल आज्ञा चक्र से ऊपर उठने के से प्रतिबिम्बित हो जाती है तथा आप निर्विचारिता, पश्चात् । आज्ञा का ये बिन्दु बहुत महत्वपूर्ण है जिसे निर्विचार-समाधि कहते हैं, का आनन्द लेते क्योंकि इसी से विचार रुकते हैं। ये बात आपको हैं। जब आपमें कोई विचार नहीं होता, पूर्णतः जान लेनी चाहिए। इस प्रकार से आपके विचार निर्विचार होते हैं तो परमात्मा की स ष्टि का पूरा शान्त होते हैं इसमें विचार उठते हैं और गिरते हैं, आनन्द लेने लगते हैं, उसके आनन्द में मस्त रहते तरह से आपके अन्दर भर जाता है क्योंकि आपमें 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-26.txt जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 25 हैं। बीच में कोई बाधा नहीं रहती। अतः निर्विचार राजनीतिक नियन्त्रण नहीं है। हिटलर भी ईसा-मसीह चेतना की अवस्था केवल तभी प्राप्त होती है जब की आलोचना कर सकता है, कोई भी ईसामसीह कुण्डलिनी आज्ञा चक्र को पार करती है। यह की आलोंचना कर सकता है और उस स्तुति की दोहरा कार्य करती है-पहले स्थान पर तो यह आलोचना कर सकता है। चुनौती देने वाले आप हैं निर्विचार चेतना प्रदान करती है और दूसरे स्थान कौन? ईसामसीह को चुनौती देने वाले आप कौन पर सहस्रार का भेदन करके यह व्यक्ति को परमात्मा होते हैं? उनके मुकाबले में अपनी अवस्था को समझे की क पा (परम-चैतन्य) से भर देती है। चैतन्य बिना किस प्रकार आप उन्हें चुनौती देते हैं। ये बात प्रवाह जब होता है तो व्यक्ति शान्ति की अवस्था में मेरी समझ में नहीं आती। परन्तु ऐसा करना लोगों चला जाता है, उसके चक्र भी शान्त हो जाते हैं। के लिए आम बात है। अहं के कारण वे ऐसा करते चक्र तनाव की अवस्था में होते हैं परन्तु जब चैतन्य प्रवाह होता है तो ये अपनी सामान्य स्थिति में चले निक ष्टतम बात मैंने देखी है कि अनियंत्रित अहं के जाते हैं। तो एक प्रकार विस्तारीकरण होता है तथा कारण आप परमात्मा को चुनौती देते हैं, ईसामसीह आज्ञा चक्र पर निर्विचार चेतना स्थापित होने लगती को चुनौती देते हैं और हर उस चीज़ को चुनौती है। 1 हैं। अहं व्यक्ति को सिरज़ोर बनाता है और ये देते हैं जिसका उन्हें बिल्कुल भी ज्ञान नहीं। आप का मस्तिष्क सीमित है। यह अत्यन्त येशु-स्तुति (Lord's Prayer) आज्ञा चक्र का मन्त्र है आज्ञा चक्र के दो पहलू होते हं सीमित मार्ग है। अपने इस मस्तिष्क का आप कुछ और क्षम। 'हं' का अर्थ है मै हूँ (अहं) और क्षम नहीं कर सकते आपको इससे परे जाना होगा अर्थात क्षमा', मैं क्षमा करता हूँ। आज्ञा चक्र यदि कोई व्यक्ति ऐसा चाहिए जो आपको अन्तरिक्ष पकड़ रहा है और आप महसूस करते हैं कि आपके अन्दर अहं है तो आपको कहना चाहिए, "मैं क्षमा आत्मा बनना है। केवल आत्मा से साक्षात्कार प्राप्त करता हूँ।" (Iforgive) हमारे अन्दर यदि प्रतिअहं करके ही परमात्मा से आपका सम्बन्ध जुड़ सकता हो तो हमें कहना चाहिए, "मैं हूँ, मैं हूँ". (I am, I am)। तो 'हं और 'क्षम' बीज मन्त्र हैं प्रार्थना के, यही कारण है कि आपको आत्मा बनना होगा ये बीज हैं-येशु प्रार्थना के। हैं-हं में धकेल दे. वहाँ आपको जाना होगा। आपको है। उससे पूर्व आप परमात्मा से जुड़े हुए नहीं होते। क्योंकि आत्मा ही यह योग है, परमात्मा से जोड़ने लोग ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि येशु वाली तार इसके अतिरिक्त परमात्मा से जुड़ने का कुछ प्रार्थना ठीक नहीं है। मै पूछती हूँ 'आप हैं कौन? कोई अन्य मार्ग नहीं है आप यदि स्वयं को भ्रम में इसके बारे में आपको क्या ज्ञान है? हर आदमी रखना चाहते हैं तो आगे बढ़ते जाएँ। परन्तु दूसरे को चुनौती दे रहा है। आप क्या जानते हैं? आपको बता रही हूँ कि केवल यही सत्य है और इसे आपको क्या अधिकार है? परन्तु कष्ट ये है कि न तो आप खरीद सकते हैं और न ही इसके लिए मैं धन दे सकते हैं. न इसकी माँग कर सकते हैं। आप परमात्मा और धर्म के साथ जो जैसा चाहे कर सकता है। व्यक्ति को चाहे कुछ भी पता न हो स्वयं इसे कार्यान्वित भी नहीं कर सकते। पूर्णतः अज्ञानी हो फिर भी वह सोचता है कि उसे पूरा अधिकार है क्योंकि इस कार्य पर कोई आवश्यक है या कोई साक्षात्कारी व्यक्ति ही आपको परमात्मा की क पा-वर्षा आप पर होनी 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-27.txt जनवरी एवं फरवरी 2004 बैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 26 रंग आत्मसाक्षात्कार दे सकता है। आपको ईसामसीह रंगों के शोले, एक से दूसरे की ओर जाते हुए और इनकी संख्या एक हज़ार है। चिकित्सक लोग कहते हैं कि यह संख्या एक हज़ार न हो कर के नौ के विषय में बताना होगा। एक बार मैं लगातार सात दिनों तक ईसामसीह के विषय में बोली थी, इसका कोई अन्त नहीं है। उनका अवतरण इतना महान सौ बानवे (992) है। इन मूर्ख लोगों के इस विषय था कि मेरी समझ में नहीं आता कि उनके विषय में पर विवाद करने की बात को सोचें! परन्तु यह नहीं क्या कहूँ। उनके बारे में सभी कुछ बता चुकी हूँ। जानते कि यह संख्या एक हजार है तथा इन्हें यहाँ लन्दन में हमारे से टेप हैं, आप ये मंगवा स्थापित किया गया है तालु क्षेत्र के चहूँ ओर सातों सकते हैं। वहां पर हम एक केन्द्र स्थापित करने चक्र हैं । आप इस चित्र में देखें ये आज्ञा चक्र है, वाले हैं। हर्मन ने अपना स्थान इस कार्य के लिए देने की पेशकश की है । यह टेप हम वहां पर भेज देंगे। ये तीन सौ टेप हम लन्दन ले आए हैं. इन्हें आपका स्वाधिष्ठान यदि पकड़ रहा है तो आप इसे आप सुन सकते हैं और स्वयं देख सकते हैं। ये अपने अन्दर महसूस कर सकते हैं, इसके भारीपन सभी टेप बहुत अच्छे हैं, वास्तव में ये मूलमन्त्र हैं। को स्वाधिष्ठान की पकड़ होने पर आपको शक्कर मंन्त्रों को ये कार्यान्वित करते हैं और इन्हें सुनते हुए रोग भी हो सकता है। मैं इसका एक उदाहरण देती आप अपने चक्रों और नाड़ियों को खोल सकते हैं। हूँ। मधुमेह के रोगी कुछ समय पश्चात् अन्धे हो बहुत इसके ठीक पीछे मूलाधार है, इसे घेरे हुए (कनपट्याँ) स्वाधिष्ठान है। मूलाधार के चहुँ ओर स्वाधिष्ठान है। अब अन्तिम बात जो अत्यन्त उलंझन वाली है और जाते हैं। उनकी ऑखों की शक्ति समाप्त हो जाती जिसके विषय में वह पहले ही आपको बता चुका है, है क्योंकि ये रोग मूलाधार चक्र द्वारा नियन्त्रित मुझे यहाँ आना था और मेरे विचार से यही संघटन द क-तन्त्रिका (Optic Nerve ) को हानि पहुंचाता (Integration) है। इसका अन्तिम लक्ष्य सातों चक्रों है। इसे हम पीछे का आज्ञा चक्र (Back Agya) का संघटन (एकरूप हो जाना) है तालु कहलाने कहते हैं। पीछे की ओर मध्य में स्वाधिष्ठान चक्र है। वाले इस क्षेत्र के चहूँ ओर ये सातों चक्र है। इसमें आपको एक सुराख महसूस मस्तिष्क को यदि आप कलियों के रूप में कारटें तो है और इसके चहूँ ओर स्वाधिष्ठान चक्र है इसके आपको यह कमल की तरह से दिखाई देगा। ये बाद विशुद्धि चक्र है जो विराट है। विशुद्धि चक्र आप देख सकते हैं कि ये ऐसा प्रतीत होगा मानों यहाँ है। जब भी आपको जुकाम आदि हो जाता है 1 होगा जो मूलाधार सहस्रदल कमल हो। परन्तु (चित्र में) इसका रंग तो यहाँ पर कष्ट होता है। परन्तु यहाँ बाम आदि ठीक नहीं है। आप लोगों को नीले रंग (Pastel कुछ लगा लेने से सुखद महसूस होता है। विशुद्धि colours) बहुत अच्छे लगते हैं, चित्र में भी इन्हीं का उपयोग किया गया है परन्तु हम कह सकते हैं भी यदि आपको कोई समस्या हो तो भी यहाँ पर इसी प्रकार की एक हज़ार पंखुड़ियाँ सहस्रार कमल बहुत बड़ी रुकावट महसूस होती है। अब इसके में है। बाइबल में कहा गया है कि, "मैं आपके पीछे की ओर नाभी चक्र है। नाभी के बाँया और सम्मुख शोलों की जुबान में प्रकट हूँगा।" यही दाँया दो पहलू हैं, जैसे चित्र में दिखाया है-बाई शोले सहस्रार में दिखाई पड़ते हैं परन्तु ये काफी और दाई नाभी । मैं नहीं जानती कि मैंने आपको बड़े होते हैं और जीवन्त दिखाई पड़ते हैं। भिन्न बायें-दायें के बारे में बताया है या नहीं, यह आप चक्र आपके गले से जुड़ा हुआ है। सामूहिकता से 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-28.txt जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 27 पुस्तक में देख सकते हैं। कभी-कभी आपको उसका रक्त पी लेते हैं जिसके बदले में उसे कुछ लगता है कि नाभी यहाँ पर (गुरु चक्र के पास) है। पैसे मिल जाते है यह बात आज भी सत्य है। इस कुछ लोगों को ऐसा इसलिए महसूस होता है प्रकार के मूर्खतापूर्ण शाकाहार की कल्पना आप क्योंकि उन्हें गुरु-बाधा होती है। नाभी के चहूँ ओर करें। क्या मैं मुर्गियों को साक्षात्कार दूंगी, जरा भवसागर (void) है, इसे एकादश रुद्र भी कहते हैं। सोचें, या खटमलों को? भवसागर गोलाकार रूप में है तथा बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यहीं से गुरु- वाधा महसूस होती है । नहीं खाना चाहिए जो आपसे बड़े पशुओं का हो, यह व्यक्ति यदि किसी गलत गुरु के पास जाता है तो हानिकारक होता है। परन्तु अपने से छोटे पशुओं आप लोग मानव हैं, आप को ऐसा मांस उसे यह समस्या हो सकती है। ये महान नियन्त्रक का मांस आप खा सकते हैं। उसे खाने में कोई है जिसमें विध्वंस की ग्यारह शक्तियाँ हैं। ऐसे नुकसान नहीं । परन्तु इस प्रकार का शाकाहार! किसी व्यक्ति से यदि आपका पाला पड़े तो उसे पशुओं को कोई हानि न पहुचाएँ? परन्तु वे लोग भगा दें । तब वह आपको कोई सलाह न देगा। ऐसे किसी को हानि पहुंचाने से बाज नहीं आते। इस व्यक्ति न तो आत्मसाक्षात्कार दे पाएँगे और न मामले में जैन लोग सबसे आगे हैं, खून चूसने वालों मोक्ष। जो लोग आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं उन्हें छोड़ की तरह से, धन के लिए वे किसी की जान लेने से दिया जाएगा उद्धार तो अन्तिम चीज है । अभी नहीं चूकते। शिकारी की तरह से पैसे के लिए वे उसकी माँग न करें अन्य लोगों को बचाने के लिए किसी का भी शिकार कर सकते हैं परन्तु मुर्गा या कुछ और समय दें। क्योंकि वो न तो कोई प्रश्न लहसुन वे बिलकुल नहीं खाएंगे? आप जानते हैं कि पूछेंगे और न ही अधिक समय देंगे। बह समय तो लहसुन हृदय के लिए बहुत अच्छा है परन्तु वो सभी आसुरी शक्तियों के लिए पूर्ण विध्वंस का लहसुन नहीं खाएंगे। हृदय के लिए ये गुणकारी है समय होगा तो यहाँ पर एकादश है। कुगुरु यदि जिन लोगों की रक्तपेशियाँ कठोर हो जाने का भय यहाँ पर हो तो एकादश कुपित हो जाते हैं। एक हो उनके लिए लहसुन अत्यन्त लाभकारी है तथा बात समझ ली जानी चाहिए कि इनसे आसानी से उनके लिए जिन्हें रक्तसंचार (circulation) की मुक्ति पाई जा सकती है। श्रीराम के दो पुत्र सूर्य समस्या हो या जो जुकाम रोग से पीड़ित हों वो भी और चन्द्र की शक्तियों से परिपूर्ण थे, वो भी यहाँ यदि लहसुन इस्तेमाल करें तो अच्छा है। जिन स्थापित किए गए हैं सूर्य के रूप में बुद्ध और लोगों को हमेशा जुकाम रहता है अगर वो नियमित महावीर के रूप मे चन्द्र यहाँ स्थापित किए गए हैं। रूप से लहसुन इस्तेमाल करें, रात को अपने दाँतों जब प थ्वी पर आए तो बुद्ध ने अहिंसा की बात की पर ब्रश करें तो उनकी दशा बहुत बेहतर हो और लोगों ने समझा कि वे मुर्गों और खटमलों के जाएगी। तो यह सात चक्र हैं। तालु अस्थि पर प्रति अहिंसा की बात कर रहे हैं। जैन कहलाने वाले हृदय चक्र है। कल्पना करें यदि यह वह चक्र है तो 1 बा अनुयायी, भारत में एक भयानक जाति है, जो इतने विकट रूप से शाकाहारी है कि वे धन के लालच में मैं कहाँ रहती हूँ? कहने से अभिप्राय यह है कि कुल मिला किसी ब्राहमण को लाते हैं और झोंपड़े में सारे गाँव कर सात चक्र हैं और मैं बुलबुले की तरह से हूँ। के खटमल उस पर छुड़वा देते है। ये खटमल परन्तु मैं आपके हृदय में हूँं। अतः सहजयोग की 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-29.txt जनवरी एवं फरवरी 2004 ैतना लहरी रण्ड -४VI अंक 1 एवं 2 28 कुंजी ये है कि आप मुझे पहचाने। आप यदि मुझे कर सकती। इस मामले में मैं वास्तव में कुछ नहीं पहचान नहीं सकते तो सहजयोग में आप उन्नति कर सकती। एक दिन मुझे बहुत निराशा हुई। नहीं कर सकते। यह बात मैं नि:संकोच स्वीकार वास्तव में एक बार लोगों का स्वभाव देखकर मुझे करती हूँ । अपने पहले भाषण में मैं यह सब नहीं बहुत निराशा हुई और मैने सोचा इन सब को भूल बताती परन्तु अब मुझे कहना है कि क पा करके मुझे जाऊँ। अचानक मैंने अपना फोटो देखा, अपनी पहचानें। आप की माँ के रूप में मेरी यह प्रार्थना है आँखों को देखकर मैंने कहा, "निर्मला, तुम तो कि आप लोग मुझे पहचाने, आपने मुझे कुछ देना करुणा हो, तुम करुणा हो, इसमें तुम कुछ कर नहीं नहीं है, मुझसे बस लेते चले जाऐँं। परन्तु मुझे है।" मुझे पहचाने अवश्य। आप यदि मुझे नकारते रहेंगे तो यह कार्यान्वित करना ही होगा, मैं इसका अर्थ नहीं । ये हमेशा ढका जानती हैँ। कभी-कभी तो यह बहुत ही कठिन रहेगा। यही कारण है कि अन्त में आप कहते है कि लगता है परन्तु मुझे यह करना है कुछ लोग प्रश्न श्री. माता जी. मुझे मेरा आत्मसाक्षात्कार दीजिए, करते हैं, "माँ आप ही ने क्यों करना है?" मैंने क्योंकि मै प थ्वी पर आपको आत्मसाक्षात्कार देने के कहा," आप क्यों नहीं करते?" ये तो बहुत अच्छा लिए ही अवतरित हुई हूँ। मेरा यही कार्य है और ये विचार है मेरे साथ आएँ। मैं बहुत कुछ कर चुकी कार्य सभी कार्यों से कठिन है। लोगों से बातचीत हूँ। निव त्त हो जाना मेरे लिए बहुत अच्छा होगा। करना, उन्हें इसके बारे में बताना बहुत कठिन है । इस कार्य के लिए मेरे पति आपको पैन्शन देंगे वे ऐसा ब्यक्ति खोज सकती। तुम्हारे पास कोई विकल्प नहीं हृदय (सहस्रार) खुलेगा र वो तो हर समय विरोध में खड़े होते हैं, इतने बहुत खुश होंगे कि मैंने कोई आक्रामक हैं कि झगड़ने लगते हैं। यह इतना लिया है जो अब मेरा स्थान ले सकेगा। परन्तु अभी अक तज्ञता पूर्ण कार्य है जिसे माँ के अतिरिक्त कोई तक मुझे कोई ऐसा व्यक्ति मिला नहीं है काश आप मेरा र्थान ले सकते! यह बहुत अच्छा विचार नहीं कर सकता। आप को ही ये कार्य करना होगा। आप के अतिरिक्त केवल माँ (आदिशविति) है । यह कार्य कर सकती है। ईसामसीह यदि प थ्वी पर होते तो अपनी ग्यारह एकादश शक्तियों से उन्होंने (निष्कलंक-Immaculate) है अर्थात जिसमें पावन सभी कुछ समाप्त कर दिया होता। श्री क ष्ण को करने की शक्ति है। यह देवी का नाम भी है मेरा अगर ये कार्य करने के लिए कहा गया होता तो मूल नाम ललिता है जोकि आदिशक्ति का नाम है। उन्होंने भी अपनी संहारक शक्तियों का उपयोग यह आदि माँ का नाम है। परन्तु मानव बन कर इन किया होता। परन्तु सभी विचारों का समन्वय और सभी चक्रों के साथ मुझे कार्य करना है। उदाहरण मानव स्वभाव को समझ कर सन्तुलन स्थापित के रूप में पिछले तीन दिनों से, आप नहीं जानते, करने के लिए केवल माँ की ही आवश्यकता है। मेरे अन्दर से कितना चैतन्य प्रवाह हो रहा है। यह यही कारण है कि कभी-कभी लोग मेरे बहुत करीब बात आप वारेन और अन्य लोगों से पूछ सकते हैं। आने लगते हैं, मेरा लाभ उठाने लगते हैं या मेरे प्रति मैंने उनसे कहा कि मेरी कुछ चैतन्य लहरियां ले अमर्यादित होने लगते हैं, ऐसा करना गलत है मैं लें उन्होंने इसका प्रयत्न किया परन्तु मुझे छू नही जो भी हूँं हूँ। मैं केवल प्रेम हूँ, इसमें मैं कुछ नहीं पाए। उन्होंने सिर पर हाथ रखने का प्रयत्न किया निर्मला शब्द का अर्थ ही मल रहित 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-30.txt जनवरी एवं फरवरी 2004 पैतनय लहरी खण्ड -४VI अक: 1 एमं 2 29 परन्तु ऐसा न कर पाए। उनकी समझ में यह नहीं सोचती। मैं सोचती हूँ कि आप महान साधक हैं आया कि किस प्रकार मुझे छुएं। मेरें शरीर से जिन्होंने इस समय पर जन्म लिया है । आपको मेरे इतना चैतन्य प्रवाहित हो रहा था। इस मानव शरीर लिए कार्य करना होगा मैं यह बात अवश्य कहूँगी पर इतना वजन लेकर चलना इतना सुगम कार्य कि पश्चिम के सहजयोगियों में जो परिवर्तन आए नहीं है। मानव की तरह दिखाई पड़ना, मानव की हैं, वो भारतीय लोग भी नहीं पा सकते, यद्यपि उन्हें तरह कार्य करना, मानव की तरह आचरण करना ऐसे देश में जन्म लेने का सौभाग्य प्राप्त था जहाँ ताकि सामन्जस्य बना रहे! अवतरण की आवश्यकता चित्त विक्षिप्त नहीं होता चित्त ठीक स्थिति में बना क्यों है? इसलिए कि सामन्जस्य बना रहे क्योंकि रहता है, अतः वहाँ कार्य कसना सुगम है। यहाँ यह अचेतन (लुप्त शक्ति) तो आपसे बात नहीं कर कार्य कठिन है । सहजयोग यहाँ के लोगों को सकती। स्वप्नों में जो भी कुछ आप देखते हैं वह आकर्षित नहीं करता फिर भी आप लोग महान हैं। बाद में अवचेतन क्षेत्र (subconscious area) से आप लोग सन्त बन सकते हैं जो लोग यहाँ पर है आपके सम्मुख वापस आता है। सभी विचार। आपमें उन्हें जान लेना चाहिए कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त इनका भण्डार है। इतना भ्रम है कि आप कुछ करने का और अन्य लोगों को साक्षात्कार देने का निर्णय नहीं कर पाते। अतः आदिशक्ति को मानव यह महानतम अवसर है। सर्वप्रथम आप स्वयं ठीक रूप में प थ्वी पर अवतरित होना पड़ा और अत्यन्त हो जाएँ तब आप दूसरों को भी ज्योतिर्मय कर चतुराई पूर्वक आपको सब कुछ बताना पड़ा। पूरा सकेंगे। विवेक सहजयोग के लिए प्रथम आवश्यकता जीवन अंग्रेजी भाषा का ज्ञान न था। अत: मुझे पहली बार मैंने अंग्रेजी सीखी । अभी भी मुझे अमेरिकन हैं तब आप इस परिणाम पर पहुंचेगे और समझेंगे अंग्रेजी नहीं आती। मुझे आशा है कि यहाँ की कि सहजयोग ही विश्व की सभी समस्याओं का यात्राओं के दौरान मैं और सीख पाऊँगी । मेरा समाधान है. सारी समस्याओं का समाधान है। यह स्वप्न है, यह इच्छा है कि आप लोग उदाहरण के लिए पूंजीचाद और साम्यवाद आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लें। बाइबल तथा अन्य (Capitalism and Communism) को लें। मैं धर्म ग्रन्थों में इसके व्रिषय में वर्णन है। आदिशंकराचार्य पूंजीवादी हूँ क्योंकि मेरे पास सभी शक्तियाँ हैं परन्तु जिन्होंने मेरा पूर्ण वर्णन किया है उनकी पुस्तक में मैं साम्यवादी भी हैं क्योंकि बिना आप को दिए मैं कुछ यह स्पष्ट वर्णित है। बहुत सुन्दर ढंग से उन्होंने इसका आनन्द नहीं ले सकती। ये सिलसिला मेरा वर्णन किया है। भारतीय इसे सुगमता से है मुझे कुछ करना नहीं पड़ता क्योंकि मेरे सोचने समझ सकते हैं। यद्यपि शहरों में मेरे बहुत शिष्य मात्र से सब कार्यान्वित हो जाता है । ये सब ऐसा ही नहीं हैं लोग मेरे अवतरण के विषय में जानते है। राजनीतिक समस्याएँ, आर्थिक समस्याएँ, सभी चालू परन्तु हैं और समझते हैं कि मै यहाँ हूँ। अधिकतर लोग समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। श्री इसके विषय में जानते हैं। परन्तु वह यह नहीं क ष्ण ने कहा था योग क्षेम वहान्यम्'। योग प्राप्त समझ सकते कि मैं अमेरिका क्यों आई हूँ। वो करने के पश्चात् आपको क्षेम भी प्राप्त हो जाएगा। कहते हैं कि आप यहाँ क्यों आई हैं। यहाँ के लोग उन्होंने सार निकाल दिया है। बो ये भी तो कह आपको स्वीकार नहीं करेंगे परन्तु मैं ऐसा नहीं सकते थे, क्षेम योग वहान्यम, परन्तु उन्होंने ऐसा 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-31.txt जनवरी एय परबरी 2004 चेत्य लहरी खण्ड-XV अंक । एय 2 30 स ेि नहीं कहा। उन्होंने कहा योग क्षेम वहाम्यम, पहले व्यवहार कुशलता नहीं है। बेहतर होगा कि आप योग को प्राप्त करें, जुड़ जाएँ, आत्मा से एकरूप हो मुझे पहचाने और फिर मैं आपको बताऊँ। ईसामसीह जाएँ तब आप पर ये सारी क पा हो जाएगी। भौतिक को सूली पर चढ़ा दिया गया, सभी लोगों को कष्ट दिये गये। मैं नहीं चाहती कि मेरे काम में कोई वैभव, लक्ष्मी, का भी एक चक्र है जो कार्य करता है और जो भी सहजयोगी मेरी शरण में आए है उन रुकावट आए क्योंकि आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति से पूर्व पर भौतिक वैभव का आशीरष भी आता है चाहे वह आपको कुछ बताने का कोई लाभ नहीं । श्री मान फोर्ड की अति की सीमा तक न हो। इतना आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् ही आपको बताना बेहतर होगा कि. "मैं ही आदिशक्ति हूँ (Holyghost) सहजयोगियों को हर कोण से और अत्यन्त समन्वित निःसन्देह में ही आदिशक्ति हैं, वो शक्ति जिसके विषय में ईसामसीह ने कहा था। "मैंने इन्हें बताया अतः समन्वयन अन्तिम सन्देश है कि आप कि इससे पूर्व मंच से मैने कभी यह बात नहीं जो भी अताई। इनके विवश करने पर मुझे यह बात कहनी वैभव तो सिरदर्द है परन्तु सन्तुलित रूप से रूप से क्षेम प्राप्त होता है। पूर्णतः समन्वित हो जाएें, एकरूप हो जाएँ। कुछ आप करें 'मनसा वाचा कर्मणा (with heart, पड़ी । "श्री माताजी, एक बार आप अवश्य कहें । mind and body ) एकरूप हो कर करें। एक ही मैंने कहा मैं अमेरिका में इसकी धोषणा करूंगी। तो अरितत्व में आत्मा में आप पूर्णतः एकरूप हैं। आज 'मैं घोषणा करती हूँ कि मैं ही आदिशक्ति हैं, मैं ही वह पावन आत्मा हूँ जो आपको परमात्मा आप सब को आशीर्वादित करें। प्रीयः में अपने विषय में नहीं बताया करती। आत्मसाक्षात्कार प्रदान करने के लिए अवतरित परन्तु आज ज्योही मैं आई इन्होंने मुझे अपने बारे में हुई है। बताने के लिए विवश किया ऐसा करना व्यवहार कुशलती नहीं है। अपने विषय में कुछ भी कहना परमात्मा आपको धन्य करें 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-32.txt परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन बम्बई-20-01-1975 कलयुग में क्षमा के सिवाए और कोई भी राक्षस है। आपके चित्त में घुसे हुए हैं । बात समझ बड़ा साधन नहीं है। और जितनी क्षमा की शक्ति में आई? अगर कोई साधु ही सिर्फ हो तो ठीक है। होगी उतने ही आप शक्ति शाली होंगे सबको क्षमा 'परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्क ताम् । साधु कर दें। क्षमा वही कर सकता है जो बड़ा होता है। के साथ एक दुष्ट बैठा हुआ है तो बहुत ही प्रेम से छोटा आदमी क्या क्षमा करेगा? आज मैंने सवेरे अलग हटाना पड़ेगा कि नहीं? कितना कठिन काम कहा था कि धर्म को जाने, आपके अन्दर जो धर्म है? आप साधुता में खड़े हैं या आप दुष्टता में खड़े है उसको जानें। धर्म में खड़े हैं, जो आदमी धर्म में खड़ा है उसकी कितनी शक्ति होती है! तो धर्म को में खड़े हैं और कोई दुष्टता चिपक रही है तो जाने। हा कितना सुन्दर हम धर्म में खड़े हैं, जो उसको हटा सकते हैं। लेकिन आज ऐसे शुद्ध जीव अधर्म में खड़ा है वह तो अधर्मी है। उसका हमारा कितने हैं संसार में बताईए। Degree का फर्क है कोई मुकाबला नहीं है। वह तो अधर्म में खड़ा है। और जो लोग सधुता की ओर जा रहे हैं वे लोग हम तो धर्म में खड़े हुए है, हमारा तरीका ही और साधुता को बटोरें। उनको उन लोगों से मतलब नहीं है। जो धर्म में खड़ा है उसका तरीका ही और होता रखना चाहिए जो असाधु हैं यह आप पर निर्भर करता है। अगर आप साधुता है जो असाधु हैं, जो चोर हैं, बिलन्दर हैं, उनका हमसे क्या मुकाबला? वे चोर ही हैं और हम वो नहीं हो सकते, वे यह नहीं हो ह हैं, जो अधर्म में होता है उसका कुछ और होता है । धर्मवाले से अधर्म वाले का मेल जोड़ हो नहीं सकता। हमें यहाँ तकलीफें हो रही हैं, सकते हमसे उनका कोई मुकाबला है? यह हो ही परेशानी हो रही है लेकिन हम तो अपने धर्म पर नहीं सकता। वह तो दूसरी line पर चल रहा है, हम खड़े हैं न। यह सबसे बड़ी बात है। अपनी तो दूसरी line पर चल रहे हैं पर धर्म में ही जागना हुए शक्ति को अन्दर जानो जो सिर्फ धर्म स्वरूप है। सहजयोग का लक्षण है और कोई लक्षण नहीं और धर्म कुछ नहीं सिर्फ प्रेम है और जब प्रेम ही है सहजयोंग का। सीधा हिसाब किताब है। सब कुछ है तो क्षमा उसका एक अंग है कितना सहजयोग का इन सब चीजों से बिलकुल भी कौन जुल्म कर सकता है, देखते हैं हमारे प्रेम के सम्बन्ध नहीं है अपने धर्म में जागना है, अपने आगे। कितना कौन दुष्टता कर सकता है, कौन कितना घर का भेदी होगा, कौन कितनी तकलीफें देगा, कौन कितना परेशान करेगा, करने दो। प्यार के आगे सब चीज़ झुक जाती है। यही एक तरीका फिराने में आदीगतियां primordial movements है जो कलयुग में बैठता है। और तो मेरी समझ में हैं। यह सारे जो में आपको बता रही हूँ, primordial कुछ नहीं आता। अगर आप सोचते हो कोई पुराने तरीके आप इस्तेमाल कर सकते हो तो यह हो नहीं शुद्ध तरह से चीज़ का प्रवाह होना। अन्दर से अगर सकता। इसका एक कारण है आप लोग जान लीजिए, मैंने पहले भी बताया और मैं फिर बता रही तो उसमें थोड़ा mixed ही घूम रहा है । क्षमा के हूँ, कि पूर्णतया साधु और पूर्णतया सन्त संसार में सिवाय शुद्धता अन्दर नहीं आती और जब शुद्धता नहीं है। हर एक सन्त साधुओं में भी एक एक आएगी तो प्रकाश धर्म का फैलेगा शुद्ध निर्मल। | प्रकाश को पाना है अपने को जानना है कोई कहता है माताजी क्या करें। चक्रों को ऐसा चढ़ाएँ। अंगुली ऐसे घुमाएँ कि वैसा करें। सारे यह घुमाने जो बनाई गई। लेकिन उसका अर्थ तभी होगा कि mixed चीज प्रवाहित है तो जब आप हाथ घुमाते है 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-33.txt cw sक : : ख्ं जनवरी एवं फरवरी 2004 32 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 अतः जिसके पास धर्म है उसको प्रकाश में आना अच्छी है आज । आपकी भी स्थिति बहुत अच्छी है। होगा, बोलना होगा, बताना होगा लेकिन उसके हर लेकिन अपने ही साथ छल कपट नहीं करो। अपने व्यवहार में उसको सोचना चाहिए कि धर्म ही साथ छल कपट नहीं करो। सीधा हिसाब है। दिखाई दे रहा है कि अधर्म दिखाई दे रहा है। सहजयोग के साथ आप जो भी कर रहे हैं वे आप इससे पहले, अगर realization से पहले आपको अपने ही साथ कर रहे हैं। हिसाब यह जोड़ खुद यह Lecture देती तो बहुत गलत काम हो जाता है लीजिए। हाँ अब यह प्रश्न बहुत बार हो जाता है क्योंकि conditioning होता है। और यही बात है Adminstration में ऐसा प्रश्न होता है कि क्या कि सारे psychologist ने धर्म को खत्म कर दिया करें? यह ठीक है कि नहीं, और इतना आसान कि, और बता दिया कि जितने भी धर्म है, यह सिखाते इतना आसान है कि कोई भी decision लेने से हैं कि यह नहीं करो, वह नहीं करो । इससे पहले निर्विचारिता में जाओ। अपने आप जो decision conditioning mind की होती है। ठीक बात है। सामने आ जाए वह करिये। कभी गलत हो ही नहीं लेकिन अब यह नहीं होने वाला है। अब आप जो भी सकता। पर decision निर्विचारिता में Spontaneous चाहे अपने मन से कर सकते हैं। There will be होगा और विचार में अगर आप ने कर लिए तो वह no conditioning at all. क्योंकि ego और super- biased होगा क्योंकि उसमें आपका ego और जो कुछ दिया है, धर्म खुद ही उठ रहा है। आप नहीं उठा भी संसार है. आपने जो कुछ भी लौकिक कमाया है रहे। उसका मार्ग आप ने है और जो भी वह आपके पीछे में खड़ा रहेगा। लेकिन निर्विचारिता लौकिक जाना है आप ने, जो भी लौकिक जाना है, में करियेगा तो कभी न होएगा, अलौकिक होगा, संसार में ऐसा वैसा है उससे आप अलौकिक को चमत्कारी होगा चमत्कारी होगा क्योंकि हिन्दी में तोल नहीं सकते। अलौकिक का मूल्य उससे आप चमत्कारी का अर्थ होता है बड़ा ऊँचा और मराठी में नहीं जोड़ सकते। अलौकिक की बात मैं कर रही होता है चमत्कारी का अर्ीब । एक चमत्कारी होगा हूँ। आप लोग लौकिकता से उसको देख रहे हैं । मराठी वाला और एक होगा हिन्दी वाला। जब बात लौकिकता के तीन dimensions खत्म हो गये अलौकिकता की हो रही है तो लौकिकता के जितने चौथे dimension में जिसको ढूंढना है, गहराई से, भी आपके बने हुए मत हैं, preconceived ideas of 1 के बीच में आपका चित्त लाकर खड़ा कर superego दोनों काम करते हैं। आपका ego चुना | गम्भीरता से, चौथे dimension में चलने की बातचीत human beings cannot be God. He has his मैं कर रही हूँ। लौकिक चीज़ों से आप अलौकिक own standing, his own being. आप लोग चाहेंगे चीजों का मूल्यांकन नहीं कर सकते। क्या सताया कि भगवान हमारे जैसा हो जाए। यह तो वही चीज लोगों ने? कुछ भी नहीं सताया। हम तो कहते हैं हो गई कि भगवान दो चार रुपए दे दो, उधर मैं कि हम तो बिलकुल आराम से हैं। जैसे हमने लगा देता हूँ आपका। वह एक level हो जाएगा। अपनी तकलीफें देखी हैं, जैसे जैसे लोग हमने देखे वह अपना जैसे है प्रकाशित करेगा, आप अपने मार्ग हैं कि उनके लिए जोड़े से गालियाँ नहीं मिलेंगी को खोलते जाइए। अपने धर्म को अपने अन्दर आपको जोड़े से उनका वर्णन नहीं मिलेगा ऐसे जानिए अपने धर्म को जानना बहुत ज़रूरी है । ऐसे महादुष्ट थे। लेकिन समाज की स्थिति बहुत कितनी सुन्दर चीज़ है अन्दर में इस नश्वर देह के 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-34.txt जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अक : 1 एवं 2 33 अन्दर कितनी अनश्वर चीज बह रही है। जैसे कि जाएंगे, evolution stage में जैसे chimpanze को गंगा, यमुना और सरस्वती, तीनों के संगम की यह लोग जानते हैं कि वह missing link था । Evolution धारा है इसलिए जो मिटने वाला है, जो लौकिक में वही लोग साधारण में से चुने जाएंगे। बहुत ही normal होना चाहिए। जो बड़े बड़े दण्डे सन्यासी रहे हैं ये कही भी नहीं पहुँचने वाले आप देख लीजिए सब missing link हो जाने वाले हैं बड़े-बड़े लोगों के बस का नहीं, dynamic, और जो बड़े बड़े पदभूषित हैं वे भी कहीं नहीं पहुँचने absolutely dynamic| जब चिन्ता, भय क्रोध, वाले कितनों को Realization दिया हमने, राजे servility, slavishness, inferiority, सारे महाराजे, secretaries, सब अपने पद पर बैठे हुए complexes झड़ झुड़ करके, बो तो अपनी शान में हैं। किसी को लगता है कि हमारे अन्दर दीप कहीं जला? चिट्टियाँ मुझे लिखते हैं मुझे बड़ा इतना म दु है, इतना में दु है कि किस तरह से अन्दर आनन्द आ रहा है। कोई कुछ करने की सोचता है चला जाता है कि पता ही नहीं चलता। जैसे झर के कि हमने लिया, किसी और को भी बाँटें अपना विशेष स्थान जब होता है तो अपने को भी विशेष होना पड़ता है। इसी साधारण सामान्य में से ही असामान्य निकलने वाला है वही निखरने वाला आदमी हैं हम कैसे चुने गए? ordinary आदमियों है धीरे-धीरे अॅपकी सब समझ आ जाएगा कि यह में से ही चुने जाएंगे और यह जितने भी महामूर्ख है इनसे कौन बात करे। हैं बड़े भारी extraordinary आदमी आपको दुनिया में दिखाई डॉक्टर, क्या करा जाऐ? महामूर्ख हैं; अपने को क्या देते हैं कि यह बड़े बड़े पदभूषित हैं, यह सब करना है? ज़िन्दगी बिता दी इन्होंने कुछ नहीं किया missing link हो जाएंगे कल। हमेशा ऐसा हुआ। सब चूल्हे में गया, अपने को क्या करना Evolution की हर एक stage में ऐसा ही हुआ है स्थान बहुत ऊँचा है। और इस चीज़ का कोई है उससे इस चीज़ को नहीं जान सकते। एक क्षण निर्विचारिता में जाकर के आप किसी भी चीज़ का बने घूम decision ले लें। आप ऐसे decision लेंगे कि कुछ बोलेगा न अन्दर। और उँसकी अपनी नम्रता है, वह चाँदनी अन्दर उतर आई हो। और जब आप चुने गए है तो आपका महत्व बहुत ज्यादा है। आप सोचते हैं कि हम तो ordinary अपना अगर आप देखें। जो बहुत ऊँचे mamoth हुए हैं education नहीं हो सकता। आपका कोई जो बहुत physically developed हुए हैं खत्म हो education नहीं हो सकता कि मैं आप को बैठकर चुके। They are missing links। हाथी उनमें से के educate करूँ। ABCD सिखाऊँ। यह रोज बच गऐ, जो बीच के थे इसी तरह जो mentally बहुत developed हुए उनमें से कह सकते हैं कि fox वह missing link में गया और उससे बढ़कर कि सहजयोग में आप समष्टि में हैं। व्यक्ति में नहीं कुछ लोग हैं। लेकिन उसमें से कुत्ता बच गया, कुत्ता बच गया। इसी तरह मनुष्य में जो साधारण अब गगनगढ़ महाराज हैं बड़े हैं। आप लोगों में से ही उठेगा। हमेशा उठता रहा साधारण में से अनुभव से आपको देखना पड़ता है। आज सवेरे मैंने बहुत पते की बात बताई हैं, आप समष्टि में हैं। यह point आप जान लीजिए। बहुत से बहुत बड़े, बहुत ऊँचे हैं मान लिया। 21 हजार और so called असाधारण हैं three dimension में, वर्ष झकमारी उन्होंने, खुद कहा उन्होंने। 21 हज़ार वह कुछ नहीं करने वाले वे missing link हो बार जन्म लिया और परमात्मा के चरणों में गिरे रहे 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-35.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 जनवरी एवं फरवरी 2004 34 और जंगलों में रहे तब जाकर ये vibrations मिले है, जो गिरने का है वह गिरते जाता है। दोनों एक उनको और आज तुमको खट से क्यों मिल गए ही साथ चलता है जीवन ऐसा ही पनपता है। भई? क्योंकि यह एक नया संसार है. एक नई बात जिसको झड़ने का है वह जीवन अपना ही उसको है। यह विराट के शरीर के रोम-रोम आप लोग हो गिरा देगा । उसको मरने का है, खत्म करने का है गए हैं। यह एक symbolic आदमी बना दिया। हो वह कर देगा। लेकिन उसका भी storing time है गया। उनकी बात भूलिए। आप सब समष्टि रूप में उसका storing का इन्तजाम है। वो भी जाते हैं, हैं। आपमें से जो भी आदमी समष्टि से हटना और कुछ कुछ तो ऐसे जाते हैं कि वहाँ से लौटकर चाहता है वह पहले जान ले कि वह cancer बन नहीं आते। पशु योनी से मनुष्य बने और क्या जाएगा और खत्म हो जाएगा। कोई बुरा नहीं है, फायदा है कि मनुष्य होने के बाद आप जाकर कीड़े आप में से कोई अच्छा नहीं है। यह अंगुली दुखती बन गए? आप का competition सब धर्म में होगा। 1 है है इसको दबाइए. यह हाथ दुखता इस हाथ से हम क्या धर्म में हैं या नहीं? अपने बारे में यह सोचें इसको दबाइए। आप सब आपस में जुड़े हुए हैं। और दूसरों के बारे में यह सोचें कि वो कितना धर्म आपको मालूम है आप सब आपस में जुड़े हैं। जब में है। हम कितने धर्म में हैं और वो कितने धर्म में आप आपनी बाधाएँ share करते हैं तो आप अपना हैं। और अगर वो अर्धम में हैं तो वो क्यों है? उसका धर्म क्यों नहीं share करते? बाधा तो आप फट से कौन सा चक्र पकड़ा है? चक्र की पकड़ की वजह, पकड़ लेते हैं, धर्म क्यों नहीं पकड़ते? क्या वज़ह उसमें कोई और बात नहीं है। निरपेक्षिता से देखिए । है? सारी वजह ये है कि अभी हम चढ़ रहे हैं। छोटे सिर्फ चक्र पकड़ा है न । अरे निकाल देंगे चक्र हैं, बड़े हो रहे हैं। छोटे बच्चे है; पहले थोड़ा जलेंगे, उसका भी, अगर बैठे बैठे उसके प्रति सब इच्छा पहले थोड़ा गिरेंगे, एक दिन जब बड़े होंगे तो अपनी करते हैं । अगर बहुत ही गई बीती चीज़ है तो अंग्रुलियाँ पकड़ करके हजारों को चलाएँगे। छोटे छोड़िए उसको, cancer हो गया। छोड़िये उसको, हो अभी आप। ठगे जाआगे तो कोई हर्ज नहीं। दफना दीजिए । लेकिन जिसके प्रति आपको भोलेपन में रहें । लेकिन जो ठग रहे हैं और वह सहानभूति है, जिसका आपको लगता है कि वह अपने को बहुत अकलमन्द समझ रहे हैं तो उनको ठीक होगा, उसका कुछ हाल ठीक कर सकते हैं, पता होना चाहिए कि cancer बन के निकाल दिए उसके आपके पास हैं तरीके। यह primrodial जाओगे। वह एक मार्ग और भी है जहाँ जो जाता है फिर लौटता नहीं है। नर्क का भी एक मार्ग है, आपस में share करिए, आपस के चक्र बढ़ाइए, बुरा movements हैं, उनसे आप उनको ठीक करिए। उस रास्ते पर बहुत से लोग चलते हैं, उनको पता नहीं मानिए । बिलकुल भी नहीं बुरा मानना चाहिए । ही नहीं. वे सोचते हैं माताजी के सामने आओ, जिस आदमी ने बुरा मानना जाना है वह उतना ही उनके पाँव छुओ, उनके पाँव धोओ। हो गये बड़े गलत होगा जो दूसरे को दुःखी करता है। बुरा सन्त। वह भी एक मार्ग चल रहा है, साथ ही साथ मानना और दुःखी करना दोनों ही एक चीज़ हैं, एक सब चल रहा है। जब फूल खिलता है तो कली का ही क्रिया के दो अंग हैं। इसलिए बिलकुल भी बुरा जो कुछ गिरना है वह गिर जाता है और उसमें से नहीं मानना चाहिए। अगर कोई कहता है कि चक्र सुगन्ध आती है। जो कुछ पनपने का है बह पनपता पकड़ा है तो उपकार मानना चाहिए भईया तूने 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-36.txt जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -४VI अंक : 1 एवं 2 35 पहचाना, मैंने नहीं। अगर कोई कह दे कि तुम्हारे और हृदय ही से सारा कार्य हम करते हैं और हृदय अन्दर में यहाँ से सॉप काट रहा है तो तुम उसका से ही सम्बन्ध है, तुम्हारा मेरा। इसलिए पहले हृदय उपकार मानते हो। जिसका चक्र खराब हुआ है तो चक्र को पूर्णतया आप लोग साफ करें हम अपनी उसको भी उपकार मानना चाहिए कि यह मेरा चक्र तरह से चीज़ सोचते हैं कि यह ऐसी चीज़ है। हृदय पकड़ा है इसको निकाल दे भई, तू साफ कर दे। की तरह क्यों नहीं? कितना प्रेम हमने दिया? दूसरों कभी बुरा नहीं मानना चाहिए। हालांकि और संसार को हमने कितना प्रेम दिया, दूसरों को कितनी से तो आप बड़े हैं ही क्योकिं आपकी vibrations तकलीफ दी। मुझे देसाई की चिट्ठी आई, उनके हैं, और दुनियाँ में कितने लोगों को आ रही हैं। लिए लिखा उन्होंने कि मेरी wife की बड़े मदद इतना बड़ा Pope है, उसके भी नहीं है । मैंने देखा करते हैं। मुझे बड़ी खुशी हुई. बाग बाग हो गई मेरी है । बड़े बड़े लोगों से आप बड़े हैं लेकिन हैं तो अभी तबीयत यह सुन कर के। तेरे देसाई की बड़ी बच्चे ही न। सहजयोग में बच्चे हैं। Pope के पास helpless चिट्ठी आई, मेरे wife को ऐसे हुआ। मैंने तो है ही नहीं vibrations। बड़े बड़े जो बने है, कहा, इतने लोगों को मैंने पार किया, यह दिया वो 1 हुए जिनके आगे दुनिया झुकती है और यह शंकाराचार्य, दिया, वो बेचारी मर कैसे रही है? मुझे क्या ज़रूरत और ये है, वो हैं, उनके किसी के vibrations हैं है? London से उसे वहाँ vibrations भेजी। क्या, मालूम नहीं। और तुम लोग तो जाग ति भी देते बात-बात पर आपस में मदद करें, आपस में प्रेम हो और पार भी कराते हो। और सबकी कुण्डलिनियाँ करें। ऐसे बन्धन में इक्कठे हो जाएंगे हम लोग कि अंगुलियों पर फिरा रहे हो । कितनी बड़ी बात है! जैसे एक ही शरीर है विराट का और उसके सहस्रार गणेश जी के सिवाए कोई नहीं कर सकता था पे विराज मान हैं आप लोग. विराट के सहस्रार पर पहले । इसलिए गणेश जी के हाथ में वह होता है न बिठाया है आप लोगों को और क्या कर रहे हैं 1 1. छोटा सा सांप, बह इसका symbolic है कि वह पागल? विराट पुरुष के सहस्रार पे एक हज़ार सबकी कुण्डलिनी घुमाते थे अब तुम्हारे कम से आदमी बिठाने के हैं और देखने को बड़ी बात कम एक तो हाथ में आ गया है कि कुण्डलिनी तो लगती है। हाँ हाथ में vibrations कितने के आए चढ़ा सकते हैी सबकी! पर लौकिक से बनता नहीं। हैं? आए हैं न? कुण्डलिनी को समझते हैं? उसमे तो वह अलौकिक है. उसका कुछ ठिकाना नहीं है। कोई शंका नहीं आप लोगों को। हमारा क्या, खेती तोड़-फोड़ कर देता है। जितना वो नाजुक है, कर दी है, देखेंगे। सारी दुनिया के लोग करें मुझे जितना वो प्रेममय है उतना ही बो संहारी है। वो तो समझ नहीं आता कि तुम लोग छोटी छोटी चीज़ के अपने तरीके से चलने वाले हैं। आप अपने तरीके से लिए यह नहीं हुआ, वो नहीं हुआ ? अरे, यह नहीं सिर्फ इतना करिए। कहाँ है हृदय चक्र? सबसे हुआ, वो नहीं हुआ, क्या होता है? तुम लोग कौन सी पहले हृदय चक्र को ठीक करिए। हमारा हृदय line में चले जा रहे हो और सोच क्या रहे हो? अब साफ है या नहीं? हमारे मन में किसी के प्रति यहाँ से अगर आपको दिल्ली जाना है तो आप क्रोध है क्या? हमारे मन में किसी के प्रति कोई सोचिएगा कि वहाँ आटे का भाव क्या है? लेकिन आशंका है क्या? अपने हृदय से पूछे। सबसे बड़ी आप को जाना है जहाँ आटा वाटा कुछ नहीं चीज़ है क्योंकि हृदय control करता है brain को चलता। धर्म चलता है। वहाँ धर्म का भाव क्या है 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-37.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक जनवरी एवं फरवरी 2004 1 एवं 2 36 यह जानना है। आटे दाल का भाव जानने की क्या रहा है? Now you are growing younger and जरूरत है धर्मिक लोगों को ? वहाँ क्या धर्म younger. I am worried about you. She is है, वहाँ क्या है, यह जानने की जगह वहाँ पर कौन getting younger and younger. Isn't, हॅ जो सा politics पक रहा है? वह चीज़ है यह आप बोलते हैं वह सर के अन्दर से जा रहा है? दिल के जानते हैं। अगर आपके अन्दर vibrations नहीं है अन्दर से जा रहा है? दिल के अन्दर से जाना तो बात अलग है। आप जानते हैं। लेकिन यह चाहिए। सर से जाएगा तो argument करेंगे। बहना बहुत ही कम चीज़ है, अभी तो कुछ हुआ ही उसका dogma बनेगा दिल से जाने दीजिए प्रकाश नहीं, अभी तो बच्चे हैं आप। आपकी एक साल की होएगा प्रेम का मजा उठाना है तो दिल से जाईये । भी साल गिरह मनाने को मैं तैयार नहीं हूँ। अभी तो हृदय चक्र को ही sacred heart कहते हैं। Christian सिर्फ जबरदस्ती का राम राम हुआ है आप अपनी लोग जो कहते हैं sacred heart वही हृदय चक्र है ओर देखिए कि मैं कुछ बदला कि नहीं, मुझमें कुछ और उसमें भवानी का, दुर्गा का स्थान रखा हुआ है। अन्तर आया कि नहीं? मेरे अन्दर कुछ शान्ति आई और बहुत बड़ा स्थान है उसका। दुर्गा को समझना कि नहीं? मेरे अन्दर कुछ हुआ? सिर्फ सुषुम्ना की आपके बस का नहीं है। यह जितने भी राक्षस हैं वो जो अति सूक्ष्म नाड़ी है उसमें से खींचकर निकाला भी उसी के बच्चे हैं जो कुछ भी संसार है उसी का है हमने आपको एक ही बारीक line पर बिल्कुल ही है उनको जिन्होंने मारा, तुम्हारे प्यार के पीछे खींचा है, जो की कहना चाहिए कि बाल के बराबर और उनका नाश किया वह उस माँ की ही शक्ति है। सुषुम्ना खुद ही इतनी मोटी है, देखा जाए तो है । अपने ही हाथों को खींचना बहुत मुश्किल हो और वह एक के ऊपर एक चार परते हैं। लेकिन जाता है अपने हाथ से अपने को injection देना इसी vibrations से लोगों की तबीयत ठीक हो रही बहुत मुश्किल हो जाता है. फिर अपने ही बच्चों को है। यह ठीक हो रहा है। एक आई थी Lady मारना दूसरे बच्चों को बचाने के लिए उससे भी उसका तो चेहरा एकदम अलग दिखाई दिया। वह कठिन बात है। लेकिन वह मारना भी एक बड़ी कहने लगी मेरा तो asthama एकदम ठीक हो शक्ति का कार्य है। क्षमा का कार्य है, एक बहुत गया है। यह कौन सी बड़ी बात है। वह ठीक हो बड़ी क्षमा का कार्य है। लेकिन कलयुग में आप गया, वह ठीक हो गया, ये कौन सी बड़ी बात है? लोगों को कोई भवानी बनने की जरूरत नहीं है। इसमें रखा क्या है? cancer ठीक हो गया, इसमें शान्त हो जाइये । अत्यन्त शान्त हो जाइये। अत्यन्त कौन सी बड़ी बात है। यह तो होना ही था घर में शान्त हो जाइए । आपकी शान्ति ही हमारे कार्य को अगर बिजली जल गई तो दिखाई देने ही लगेगा । बढ़ाएगी। आप मान लीजिए की लोग कहेंगे सहजयोग कम से कम । अगर बिजली जली तो जली कि नहीं में हमने ऐसे ऐसे लोग हमने देखें है कि जो क्रोध के जली? कम से कम दिखाई तो देगी सब चीज़। बिलकुल वो थे, servilty के पुतले थे, बिलकुल दबे उसमें कोई विशेष बात नहीं हुई। लेकिन बिजली हुए लोग थे। अजीब अभिनव वो आदमी थे आप ही जलने के कारण आपमें कौन सा ज्ञान आया, आपने लोग हमारे सहारे हैं और कौन है? आप ही से लोग कौन सा New dimension देखा, आपने कौन सी कहें बढ़िया आदमी है, first class. तबीयत का बड़ा चीज़ नई करी। यह विशेषता है। हाँ, कैसा? चल है हर चीज से wide है । हो रहा है, काफी हो रहा लीब 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-38.txt जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 37 है। पहले से बहुत फर्क आ गया है। लेकिन जोरों क्योंकि स्वतन्त्रता नहीं है। और राक्षस लोगों को करके-आ देखिए, उनके वो कैसे आपस में जुट में हो सकता है। अब सब आपके ऊपर है जैसे इसको हा-हा! क्या मजा आ रहा है! इसका गला घोटा, उसको मार डाला, उसकी हालत खराब । सन्तों का सोचे, आपस में समझें, दूसरों की बात सुनें, शान्ति पूर्वक दूसरों को समझें, दूसरों को महसूस करें । गुट जब बनेगा तो सोचिए क्या होगा? सन्तों का गुट है। तादात्मय पाएं, दूसरों के साथ, जैसे यह हाथ इस कभी बना नहीं है। यह पहली मरतबा हुआ हाथ को जानता है। इस हाथ से यह brain भी सन्तों की सन्तता छूट जाएगी तो फायदा क्या ऐसे जानता है और हृदय भी जानता है, और सब चीज़ गुट का? सन्त के सारे ही लक्षण अपने अन्दर से एक साथ चल रही है integrated, ऐसे ही आप दिखने चाहिए। marathi... मैं कह रही हैूँ लाल सबको integrated होना पड़ेगा। तभी वह हजार साहब, कि आप लोगों की meeting थी, पहले वह हाथ तैयार होंगे जो मनुष्य रूपेण इस्तेमाल किए कर लीजिए फिर पूजन करिए। क्योंकि जब चढ़ जाएँगे। वही हज़ार हाथ जो सहस्रार में हैं। वो जाएगा न फिर हम कुछ बोल नहीं पाएंगे। आप मनुष्यों से ही निकलेंगे, वह भी सर्वसाधारण, कोई लोगों की meeting में जो कार्यवाही होती है, बड़े बड़े ऋषि मुनि नहीं चाहिए उसके लिए की बैठा कार्यवाही के लायक रह नहीं जाएंगे। हो गया अब लिए चक्रों पर। जो बड़े बड़े लोग हैं वह तो चक्रों आप बता दीजिए कोई problem है क्या, बिलकुल पर बैठे मनुष्य से निकलने वाले हैं। marathi... हॅ। घर में पूजन करिए इत्मिनान से। यह जितना भी गोबर है ही सफाई पहले। मैं कह कर रही हूँ कि आपस में उसको लपेट कर साफ करके फेंक आएंगे फिर नहलाना शुरू करो vibrations से । Mrs. Lal आप बातचीत होगी। बताएं क्या क्या problem है । अगर दीजिए, ये आपको दें पहले चक्र आपस में देख किसी में ज़्यादा है तो आप उसकी मदद करके उसे लीजिए फिर बाहर निकलें नहा धोकर, बाहर निकलें, ठीक कर सकते हैं। पर निर्पेक्षता रखिए । निरपेक्षता तैयार, फिर शरद मिलें, शरद की आपको सफाई आवश्यक है। आप आप नहीं है, आप निर्मल अन्दर किया। फिर उन्होंने आपके दो हाथ सफाई किये। हैं, बाहर आपे हैं। ऐसा दूसरा कोई भी है उसका सफाई करते चलिए, हो गया, सब, निर्मल हो गया भी ऐसा ही है। आप निर्पेक्षता से दूसरे के प्रति मामला। दुनिया में सब आफत मची हुई है और जाग त रहें। अगर किसी में बहुत तकलीफ दिखाई दुनिया में आपको पता नहीं क्या क्या हो रहा है । देती है तो उसे ठीक करें। बुरा न मानें । अगर criminality बिलकुल आने वाली है। आपको पता कोई आदमी बुरा मानता है तो इशारे से कहें जैसे नहीं है राक्षसों का ऐसा राज्य बना हुआ है और आप मेरे पैर पर हैं। किसी बात से आप बुरा माने राक्षस लोग ऐसी बातचीत करते हैं कि उनका आपस में गुट हो जाता है। वे ऐसे चिपक जाते है कुछ सोचना नहीं चाहिए। जैसे कोई आदमी आपस में जैसे कोई glue होता है ना । वो ऐसे बीमार होता है उस तरह तो मैं आपको इशारों में चिपक जाते हैं। और हमारे जो कार्य करते हैं वो बताऊंगी कि आप पैर पर आ गए। समझ गए सांसारिक gross सब कुछ बातचीत हो जाए। फिर हुए चला रहे है। सहस्रार में तो यह सामान्य समझ लीजिए मालूम है हमें, तो दूसरों को उसका बात बात में झट गिर गये। उधर गये, झट गिर गये कहाँ पर हैं चलो निकालो । आपस में मिलकर के tho 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-39.txt जनवरी एवं फरवरी 2004 38 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अक : 1 एवं 2 हम लोग आपस में सफाई करते हैं। प्रश्न-माँ आपस में कोई भेद भाव दिखाई कौन कौन बड़े है? कौन जो बडे बड़े बातें करने पड़ता नहीं है। उत्तरः है नहीं। लेकिन थोड़ा बहुत वाले हैं। यह churning चला है जान बूझ करके यह होता है हम लोग पाँच कदम आगे चले और छः हम कुण्डलिनी उतारेंगे, जान बूझ कर भी। बात यह कदम पीछे, फिर पाँच कदम आगे फिर छः कदम है कि जब तक उतारेंगे नहीं, चढाएंगे नहीं, उतारेंगे पीछे। सवाल उठता है कि कितने साल बाद नहीं चढाएंगे नहीं, तब तक काम नही बनेगा जानबूझ पहुंचेंगे? वे पहुंचेंगे ही नहीं वह तो उधर ही खड़े हैं। कर उतारेंगे। अभी जितने बूढे लोग हैं उन्हें पता प्रश्न: उठते तो हैं लेकिन अखिर जो नतीजा है होना चाहिए कि लौकिकता से आप ही लोग Leader उसमें भेद भाव नहीं बीच में पर पड़ता है। श्री हैं लौकिकता से संसार में आप ही लोग बुजुर्ग हैं. माताजीः हूँ। वह भी चीज़ है जब आप अपनी आप ही बड़े हैं। इसलिए आपको और भी Better ऐसी कुण्डलिनी पकड़ के रखूँगी नीचे में कि देखूँगी awareness में उतरेंगे तो वह बिलकुल एक साथ होना चाहिए। आप लोग सब एक हो जाएं। बच्चों चलेंगे। एक साथ जैसे की इतना बड़ा समुद्र है को बताएँ, बच्चे हैं आपके, कि यह लौकिकता है। उसकी भी लहर एक साथ चलेगी। एक साथ और अलौकिकता में कोई भी उठ जावे जिसकी सबका आन्दोलन चलना चाहिए। अब यही है कि द ष्टि ऊपर में है जो पहली सीढ़ी में भी खड़ा है तो एक डण्डे से चाहे, अपने को मार लो चाहे दूसरों भी वह चढ़ जाएगा। उतरा तो भी वह बार बार चढ़ को मार लो, बेहतर है अपने को मारो। इसमे बड़ा जाएगा। जो सोच रहा है कि मैं ही बड़ी ऊँची सीढ़ी छोटा कोई है ही नहीं, इसमें कोई seniority का पर हूँ, गलत है। अन्दर में उसको सोचना चाहिए सवाल है ही नहीं। इसका reason है न आप लोग और देखना चाहिए कि हम चढे और उतरे, चढे और लौकिकता से आ रहे हैं जहाँ आपने देखा कि एक उतरे । सबका होता है। क्योंकि मंथन चला हुआ है। बड़ा होता है एक छोटा होता है एक officer होता मंथन में किसी का कोई स्थान नहीं बना हुआ, यह है एक नीचे होता है, एक राजा होता है, एक कंगला हिसाब है। सहजयोग का तरीका बिल्कुल अभिनव होता है, एक साधु होता है, फिर एक सन्यासी होता है। इसमें कुछ नहीं है सिर्फ एक वह चला हुआ है है और न कभी मंथन हुआ है। एक आदमी गगनगढ़ churning को क्या कहते हैं? मंथन है यह । मंथन महाराज सालों तक बेचारे तपस्या करते हुए जंगल चला हुआ है। एक ऊपर एक नीचे, बस मैं मंथन ही में बैठे रहे। उनसे आप लोगों का कोई लेन देन नहीं कर रही हूँ। अब मक्खन कौन चुराएगा वह देखना है इस मामले में कुछ और आपको समझा नहीं है। अकलमंद जो होगा वह मक्खन चुराएगा यह तो है, नावीण्यपूर्ण है। आज तक किसी ने किया नहीं सकूंगी। वह उनका मंथन नहीं हुआ। उन्होंने अपने चला ही हुआ है churning. खूब, कभी ठण्डा दम पर अपने को बनाया है। अकेले ने उनकी बात आएगा कभी गर्म आएगा यह चला हुआ मक्खन ऊपर आएगा, और तैर जाएगा मक्खन गणेश जी की guidance है। आपके पास माथा हल्केपन से। कोई ऊँचा नीचा है ही नहीं इसमें । पीटते हैं बहुत बार, भई इनको कैसे समझायें। तुम जिसने सोचा कि मैं ऊँचा हूँ और नीचा हूँ तो फिर एक महमाया भी बैठी हुई है, समझ लीजिए । फिर गणेश हो, बहुत बड़े हो माना, लेकिन यह बच्चे हैं है और और है। उनका guidance यह है कि जैसे की गणेश हो। यह गणेश नहीं है, बच्चे हैं सोचो तुम 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-40.txt ला पुत चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अफ : 1 एवं 2 जनवरी एवं फरवरी 2004 39 कर ३ई अभी। और हमारे मंथन में फँसे हुए हैं बेचारे। उनके एक रहे आपस में। एक आदमी अगर ज्यादा बोले तो ठण्डे हो जाओ, ठण्डे हो जाओ, ठण्डे हो जाओ बीच का जुआ हम ही हैं और समझा रहे हैं । आपकों। एक बात सही है, चाहे व शंकराचार्य हो ठण्डा आता है न ठण्डा आना भी चाहिए गर्म या कोई, vibration के बारे में, इतनी बड़ी बात नहीं, ठण्डे हो जाओ। ठण्डापन, संजीदापन, ठण्डेपन कोई भी नहीं जानता था इतनी technicalities, को अन्दर आने दो। धर्म ठण्डा है absolute zero primordial movernents, सारे कोई नहीं जानता पर, धर्म बसता है absolute zero पर ठण्डा लोग था, चाहे आप शंकराचार्य पर डालिए या कोई और हिमालय पर जाते थे इसी लिए तुम्हें हिमालय की पर डालिए। कहीं भी नहीं लिखा है। घर यही बड़े ज़रूरत नहीं है। आष लोग अपना airconditioner बड़े जीव आए हैं संसार में । मैं आपसे बताती हूँ कि खोल दीजिए इसी वक्त। अपनी ओर सचेत रहें । 1 क्या जीव है एक एक! बाप रे बाप! दस बाहर साल अपने दोषों को देखें, चक्रों को देखें ओर दूसरों के से तैयारी हो रही है। तैयार हो जाएंगे अन्दर। तब चक्रों में मदद करें, secretly । पहले बाद में बताने तक आप लोग मेरे सब platiorm न तोड़ दीजिए, की ज़रूरत नहीं है। secretly जब आप कर सकते कुश्ती कर कर के। अगर मेरा platform ही तोड़ हैं तो क्या है? रास्ते में चलते ही चलते जब दिया तो मेरे बच्चे क्या करेंगे? संसार में इतना बड़ा खेल करने को आए है थोड़ा बहुत ठीक है । हूँ secretly करेंगे उतना पवित्र होगा. उतना ही प्रेमपूर्वक organisation कैसा है कि सब चीज अपने आप होगा। बड़ा अच्छा लगता है कोई काम secretly सहज ही ठीक हो जाएगी। जब आपस में आन्दोलन करें। जाग तियाँ हो रही हैं तो फिर क्या हैं? जितना 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-41.txt श्रीमाताजी के कथन "सहजयोग में आने के पश्चात, सहस्रार खुलने के पश्चात् आपको इन चार चक्रों में से गुजरना होगा अर्धबिन्दु, बिन्दु, वलय और प्रदक्षिणा। इन चार चक्रों को पार करने के पश्चात् ही आप कह सकते हैं कि आप सहजयोगी बन गए है।" हैं परम पूज्य श्रीमाताजी चौदहवाँ सहसार दिवस 1983 "जैसा आप जानते हैं, उत्क्रान्ति के लिए हमारे अन्दर सात चक्र हैं और दो इनसे ऊपर हैं अत: इसी जीवन में ही इन नौ चक्रों को पार किया जाना आवश्यक है। यही आपका भाग्य (लक्ष्य) होना चाहिए।" "भारत में विशेष रूप से गणपति पुले में बहुत से लोगों ने उस ज्योंतित चेतना का अनुभव किया है जो सहसरार से परे है। परन्तु इस अवस्था का वर्णन कैसे किया जाए?" पौराणिक नाथ योगी मच्छेन्द्रनाथ ने कालज्ञान निर्णयतन्त्र के तीसरें अध्याय में इस अवस्था का वर्णन किया है : "प्रियतम (पिण्ड के अन्दर) पाँच पक्तियों के, सोलह पंक्तियों के, चौसठ कलियों वाले, सौ दल के वास्तव में सुन्दर अत्यन्त तेजोमय एक करोड़ पंखुड़ियों वाला कमल स्थित है। एक करोड़ पंखुड़ियों वाले कमल के ऊपर, तीन करोड़े पंखुडियों वाला कमल है जिसकी हर पखुडी दीप शिखा सम है। इसके ऊपर सब कुछ अपने अन्दर समेटे हुए, शाश्वत अविभाज्य, स्वतन्त्र. अजेय सर्वव्याप्त और निष्कलंक कमल है अपनी स्वेच्छा से यह स ष्टि कमल (आज्ञा) तथा सहस्तर दल का सुन्दर कमल (सहसरार) है और इसके ऊपर का स जन तथा प्रलय करता है। सभी जीवन्त तथा नि्जीव प्राणियों का वलय इसी लिंग में होता है ।" हम सबका भी यही लक्ष्य होना चाहिए... जब-जब भी आपको निराशा का एहसास हो रहा हो तो वर्तमान क्षण केवल वैसा ही होता है जैसा आप इसे बना लें-अतः सदैव प्रसन्न रहें । परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी पुणे नवरात्रि पूजा। 1988 पुणे युवाशक्ति को श्रीमाताजी का संदेश 18 मार्च, 2000 प्रतिष्ठान आप सबने जो कार्य मेरे लिए किया उसके लिए मैं अनुग हीत हैँं। आप सब यदि सहजयोग की गहनता में उन्नत हों तो मुझे अत्यन्त प्रसन्नता होगी आपमें से बहुत से लोग अच्छे सहजी हैं। आपको याद रखना है कि आपने आदर्श सहजयोगी बनना है क्योंकि आप ही ने पूरे विश्व को परिवर्तित करना है । आपकी माँ (श्रीमाताजी) आपसे यही आशा व्यर्थ है मूल्यहीन प्रतिदिन ध्यान-धारणा अवश्य करें सहजयोग में परिपक्व होने का केवल यही उपाय है। आपने सभी अभागे नशेड़ियों को भी बचाना है । अपने हृदय से प्रेम, करुणा एवं उदारता प्रसारित होने दें। करतीं हैं। मेरी केवल यही इच्छा है। बाकी है। केवल तभी आप परमात्मा के साम्राज्य में होने का आनन्द ले सकते हैं । सब कुछ परमात्मा आपको धन्य करें। श्रीट 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-42.txt अहं और प्रतिअंह ब परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन 18-12-1978 परिवर्तन काल में मस्तिष्क को सावधानी से मानव अभी परिवर्तन की अवस्था में है। उसे थोड़ी सी छलांग और लगानी होगी तब वह पूर्वक सुरक्षित रखना तथा परमात्मा की इच्छा उस अवस्था को प्राप्त कर लेगा जिसके लिए मुक्त रखना आवश्यक है ताकि यह अपना उपयोग उसका स जन किया गया है। मानव-मस्तिष्क और कर सके और विविक का एक अन्य आयाम विकसित दो अत्यन्त विकसित अवयव है। मानव हृदय कर सके। इस लक्ष्य से अहं और प्रतिअहं प्रणाली को भी मस्तिष्क से जोड़ना चाहिए। हमारे पेट से चर्बी उठती है और सभी चक्रों की प्रतिक्रिया या प्रतिपल है. हर गतिविधि की एक में से गुजरती हुई मस्तिष्क कोषाणुओं में परिवर्तित प्रक्रिया होती है। किसी चीज़ से यदि आप इन्कार होकर मस्तिष्क को जाती है। चर्बी को मस्तिष्क करते हैं तो यह प्रतिक्रिया 'अहं' है । किसी चीज़ बनने के लिए विकसित होना होता है। अर्थात को यदि आप स्वीकार करते हैं तो ये प्रतिक्रिया मानवीय चेतना का कुछ अंश प्राप्त करने के लिए प्रतिअहं है । अहं और प्रतिअहं तालू अस्थि को पूरी मानव मस्तिष्क का एक आयाम है जो पशुओं में तरह से ढक लेते है तथा अपनी इच्छानुसार कार्य नहीं है - मानसिक या भावनात्मक आयाम। जिसे करने की स्वतन्त्रता प्रदान करने वाली सीखने के हम प्रेम के रूप में जानते हैं। हम जानते हैं कि लिए अपने मस्तिष्क का उपयोग करने वाली सर्वव्यापी हृदय का स जन किया गया ये मानव की गतिविधियों किस प्रकार प्रेम प्राप्त करना है और किस प्रकार शक्ति से आपको अलग कर देते हैं। क्योंकि यदि लौटाना है। हमें सौन्दर्य और काव्य का ज्ञान है विकास प्रक्रिया ने आगे बढ़ना है तो आपको प्रयत्न और हम ये भी जानते हैं कि इसका स जन किस करते रहना होगा अतः परमात्मा ने जो भी कुछ प्रकार करना है। मस्तिष्क स्वभाव से त्रिकोणाकार किया है वह आपके हित के लिए है। तथा समपार्शवीय (Prismatic) होता है। परमात्मा की दिव्य शक्ति की किरणें जब इसमें बहती हैं तो नहीं दिया कि आप बिगड़ जांए और समाप्त हो ये भिन्न कोणों में मुड़ जाती हैं और शक्ति के जांए। आपमें अहं का होना आवश्यक है परन्तु समान्तर चतुर्भुज के सिद्धान्त (Parallelogram) के इसके साथ आपको लड़ना नहीं। आपके अहं का अनुसार इस शक्ति का एक हिस्सा बाई और को परमात्मा के अहं से एकाकार हो जाना चाहिए। एक चला जाता है और एक दाई ओर को। इस कारण बार जब आप जाग त हो जाते हैं, एक बार जब से और भविष्य के विषय में सोच सकता आपको प्रकाश मिल जाता है तब आप ऐसा कर उन्होंने अहं और प्रतिअहं आपको इसलिए मनुष्य भूत है परन्तु पशु ऐसा नहीं कर सकते। सकते हैं । 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-43.txt परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ब्रिटेन (यू० के०), 15-11 1979 ब्रिटन नाम ही अपने आप में अत्यन्त सुन्दर आपको इस बात का ज्ञान नहीं है कि आप क्या है। इसने पूरे देश को चमकाना है। मैं यहाँ पर खोज रहे हैं । पर एक चीज़ निश्चित है कि जिस पहले भी दो बार आ चुकी हूँ और हमेशा मुझे ऐसा प्रकार चीजें चल रही हैं उनसे आप सन्तुष्ट नहीं हैं। लगा कि यदि यहाँ पर मुझे अवसर मिला तो हम आपको उससे परे कुछ खोजना है। निःसन्देह इससे यहाँ जोर शोर से सहजयोग आरम्भ कर सकते हैं परे भी कोई चीज़ है जिसके विषय में सभी पैगम्बरों, और एक दिन यह तीर्थ स्थल बन जाएगा। ब्रिटन सभी धर्म ग्रन्थों तथा प थ्वबी पर अवतुरित हुए सभी में मिली जुली चैतन्य लहरियाँ हैं। यहाँ पर समुद्र अवतरणों ने बताया है। इस बात का भी वचन दिया है और प थ्वी माँ का भी विशेष महत्च है। परन्तु जब भी परमेश्वर अपनी अभिव्यक्ति करने लगते हैं तो जाएगा। परन्तु पहला मूल्यांकन तो आपका अपना किसी न किसी छद्म वेश में आसुरी प्रव त्तियाँ आती होगा आपको निर्णय लेना होगा कि आप परमात्मा हैं। वहाँ एकत्र होती हैं और परमेश्वरी शक्ति से को खोज रहे हैं या किसी तुच्छ चीज को आप में लग जाती हैं यही कारण है कि ब्रिटन में यदि वास्तविकता एवं सत्य को खोज रहे हैं केवल | गया है कि एक दिन आपका अपना मूल्यांकन किया युद्ध मुझे मिली जुली चैतन्य लहरियाँ महसूस हुई। तभी आपका चुनाव किया जाएगा तथा केवल तभी आप परमात्मा के साम्राज्य के नागरिक बन जाऐंगे| आइये देखें कि यह परमात्मा है कौन तथा परन्तु कुल मिलाकर यह स्थान बहुत अच्छा है तथा यहाँ सहजयोग फलफूल सकता है। इन लोगों ने आपको सहजयोग के विषय में अवश्य बताया मैं किसके विषय में बात कर रही हूँ? आरम्भ में होगा 'सह' का अर्थ है साथ और 'ज' अर्थात साथ केवल मौन था, केवल मौन। मौन जब जाग त हुआ, जन्मा हुआ। यह योग है। परमात्मा से जिस एक मौन को जाग त किया गया था। मौन "परब्रह्म" रूपता को आप खोज रहे हैं वह आपके साथ ही कहलाता है। खेद है कि मुझे संस्क त शब्द उपयोग जन्म लेती है। यह आपके अन्तःस्थित है। सभी करने पड़ रहे है, परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि सन्तों ने कहा है कि "परमात्मा को अपने अन्दर इसमें कोई खोजें"। ईसामसीह ने भी यही बात कही है। विचारों से आपको मुक्ति पा लेनी चाहिए । भारत में इसका अर्थ यह है कि आपको खोजना होगा यह लोगों ने बहुत अधिक साधना की उन्हें प्रक ति का आपका जन्मसिद्ध अधिकार है जिसे चुनौती नहीं दी मुकाबला नहीं करना पड़ा, जिस प्रकार इस सभागार जा सकती। आपको इसकी याचना करनी होगी में आते समय आज हमें करना पड़ा। वहाँ की बिना आपकी इच्छा के परमात्मा यदि मानवीय जल -वायु अत्यन्त अच्छी एवं आनन्द-प्रदायी है। हिन्दुत्व छुपा हुआ है। इस प्रकार के परन्तु चेतना की अवस्था से ही दिव्य चेतना में आपको पेड़ के नीचे बैठकर लोग साधना कर सकते हैं, परिवर्तित कर सकते तो उन्होंने यह कार्य बहुत उन्हें प्रक ति का मुकाबला करने की आवश्यकता समय पूर्व कर दिया होता। परन्तु वो ऐसा नहीं कर नहीं पड़ती। साधको के पास ध्यान-धारणा सकते। आपको अपनी स्वतन्त्रता में ही परमात्मा से करने के लिए बहुत समय था । ध्यान धारणा करते योग माँगना होगा । उपलब्धियां प्राप्त की, इस कार्य के हुए उन्होंने बहुत निःसन्देह आप साधक हैं। परन्तु शायद लिए संस्क त भाषा का उपयोग उन लोगों ने किया। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-44.txt जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक 43 : 1 एवं 2 तो 'परब्रह्म' या आप कह सकते हैं पूर्ण करने के लिए तथा दूसरी बेहतर बनाने के लिए। तो मौन' जाग त हो गया, बस, क्योंकि यह अपने आप तीन शक्तियाँ कार्यरत हो उठी तथा इस प्रकार इन जाग त हुआ, जिस प्रकार से हम लोग सो जाते हैं तीन शक्तियों का स जन किया गया अब, जैसा और जाग त हो जाते हैं, तत्पश्चात् यह मौन कि हम जानते है, लोगों ने बाइबल में आदिशक्ति सदाशिव' बन गया। जब 'सदाशिव' जाग त हुए (Holy Ghost) के बारे में अधिक वर्णन नहीं किया। इनका उदय होने लगा अर्थात् इनमें स जन करने बहुत से धर्म ग्रन्थ जिन्होंने परम पिता (Father) का की इच्छा हुई। उसी प्रकार से जैसे सूर्योदय के वर्णन विस्तार पूर्वक किया है वो भी आदिशक्ति माध्यम से सूर्य निकलता है, इसी प्रकार से इस (Holy Ghost) के विषय में अधिक नहीं बता पाए । इच्छा कि अभिव्यक्ति होने लगी यह इच्छा उनकी ईसा-मसीह की माँ स्वयं आदिशक्ति का अवतरण (सदाशिव) शक्ति बन गई और उनसे अलग हो थीं तथा ईसा-मसीह उनका जीवन खतरे में नहीं गई। जो कुछ भी मैं कह रही हूँ वह आपको कहानी डालना चाहते थे । उन्होंने कहा तक भी नहीं कि वे प्रतीत हो रही होगी आपको इस पर विश्वास करने (Mother Mary) आदिशक्ति का अवतरण थी, क्योंकि की कोई आवश्यकता नहीं, परन्तु मैं एक ऐसे बिन्दु यदि धर्माधिकारियों ने उनकी माँ को सूली पर चढ़ा तक पहुंचूगी जिस पर आप विश्वास कर सकेंगे दिया होता तो वो सहन न कर पाते और अपनी और इसके बाद धीरे-धीरे आप इस सिद्धान्त को विध्वंसक शक्तियों का उपयोग कर बैठते परन्तु मान लेंगें, अभी आपके लिए यह परिकल्पना मात्र है। अतः 'श्री सदशिव' की इच्छा जब शक्ति Ghost) हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि बन गई तो यह 'शक्ति' या 'महाशक्ति या परमपिता (Father) तो साक्षी मात्र हैं। वे तो नाटक आदिशक्ति' कहलाई। इस 'आदिशक्ति' ने एक को देख मात्र रहे हैं जो आदिशक्ति खेल रही हैं व्यक्तित्व धारण किया तथा अस्तित्व रूप बन आदिशक्ति की स ष्टि का के आनन्द लेते हैं। श्री गई क्यों कि कार्य को करने के लिए इन्हें सदाशिव की इच्छा के अनुरूप विश्व का स जन नाटक खेला जाना था तथा वे (Mother Mary) अपने विषय में पूर्णतः मौन रहीं। आदिशक्ति (Holy साकार रूप धारण करना आवश्यक था, ऐसा करके आदिशक्तित उन्हें रिझाने का प्रयत्न कर रही करना ही आवश्यक था। आपके हृदय में यदि हैं। इस नाटक के वे साक्षी हैं। केवल इच्छा है तो इसका कोई लाभ नहीं, इस इच्छा को हमें किसी आकार में परिवर्तित करना हमें भी प्राप्त हो गर्ह हैं, विश्व का स जन किया ये होगा, अन्यथा इच्छा तो उठती और गिरती रहेगी। शक्तियाँ इस प्रकार हैं: पहली इच्छा (महाकाली) तो श्री सदाशिव' की इच्छा आकार रूप में परिवर्तित शक्ति है, दूसरी शक्ति क्रिया ( महासरस्वती) शक्ति हुई, इसने वह अस्तित्व धारण किया जिसे बाइबल है तथा तीसरी पालन कर्ता या भरण-पोषण करने में 'HOLY GHOST' तथा संस्क त भाषा में आदिशक्ति वाली महालक्ष्मी शक्ति है। इन शक्तियों ने मानव अतः आदिशक्ति ने इन शक्तियों द्वारा जो का स जन करने के लिए कार्य किया और हम उस कहा गया है। तत्पश्चात् इस 'इच्छा' ने अपने अन्दर से अवस्था तक पहुँचे हैं जहाँ हम इसके विषय में दो अन्य शक्तियों का स जन किया-एक कार्य बातचीत कर सकते हैं। ईसा-मसीह के समय में भी 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-45.txt जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खम्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 44 में आदिशक्ति के विषय में बात करने का जिसके अस्तित्व की चेतना आपको है परन्तु जिसके मनुष्य क्षेम न था। मछुआरों के साथ हम क्या कर सकते स्रोत तक आप अभी तक पहुँच नहीं पाए हैं। और हैं? आप बताएं कि किस प्रकार मछुआरों को इन यही कारण है कि आप खोज रहे हैं। चीज़ों (आध्यात्मिकता) के विषय में बताया जा सकता है। यह आरम्भिक तैयारी थी परन्तु आप ओर प्रेम है, आपकी इच्छा शक्ति है जिसके माध्यम जानते हैं कि इन लोगों ने कितनी गडबड़ की । से आप अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करते हैं। इतनी अधिक भ्रम की स्थिति है कि लोग उन लोगों बाई ओर जब यह इच्छा शक्ति लुप्त हो जाती है तो को समझ भी नही पाते जो स्वयं को धार्मिक कहते हम भी लुप्त है। कट्टरपंथी और धर्म का परस्पर बैर है। वो कभी एक नहीं हो सकते। ईरान में आप ये बात देख सकते हैं। आप कहीं भी देखें, जहाँ कहीं भी परमात्मा का जिसका निवास हमारे हृदय में है। लोग कट्टर दाई ओर को हमारी क्रिया शक्ति है। इन तीनों तो 'प्रेम है, परमात्मा भी प्रेम ही है परन्तु इन तथाकथित धार्मिक लोगों ने कभी भी प्रेम की पर्दा सा बना दिया है, यह पर्दा हमारे भवसागर में अभिव्यक्ति वैसे नहीं की जिस प्रकार होनी चाहिए है । हमारा ज़िगर इसका पोषण करता है और इस और न ही इन्होंने परमात्मा प्राप्ति के कार्य का बीड़ा प्रकार से तीन पर्दे हमें उस आत्मा से दूर बनाए उठाया है। परन्तु अन्य सभी कार्य ये लोग कर रहे रखते हैं। न हम आत्मा को देख सकते हैं और न हैं जैसे परोपकार का कार्य, चन्दे एकत्र करना, बड़े ही इसे महसूस कर सकते हैं। हम इसकी अभिव्यक्ति स्तर पर सस्ते दामों पर चीजों को बेचना। साधक का ये कार्य नहीं है। इन परिस्थितियों में जब हमारा सभी कुछ जानता है। गीता में इसे क्षेत्रज्ञ' कहा हमारे अन्दर तीन शक्तियाँ हैं। आपके बाई हो जाते हैं । मध्य में आत्मा है जो कि परमपिता परमात्मा या साक्षी रूप परमात्मा का प्रतिबिम्ब है। उस हैं वो कितने धार्मिक हैं? क्योंकि 'धर्म शक्तियों ने हमारे चित्त और परमात्मा के बीच एक नहीं कर सकते। हम जानते हैं कि कोई है' जो सामना उन लोगों से है जिन्होंने धर्म का आयोजन गया है, जिसे ब्रह्माण्ड की हर चीज का ज्ञान है। किया है या अनायोजन किया है तथा बनावटी लोग हम जानते हैं कि एक सर्वज्ञ (Knower) है और वह जिनसे हमारा सामना है इन सबको देखकर हम आपके विषय में सब कुछ जानता है। वह आपके वास्तव में पूर्णतः हताश हो जाते हैं हम विस्मित हो कर्मों की, आपकी साधना की, गलतियों की, आपके सभी जाते हैं और हमारी समझ में नहीं आता कि क्या अन्दर के तूफानों की तथा आप द्वारा किए गए करें क्योंकि हम लोग जन्मजात साधक हैं। साधना कर्मों की टेप-रिकार्डिंग की तरह से है और इस में, हो सकता है, हमने कुछ गलतियाँ की हों, परन्तु फीता अभिलेखक (Tape Recorder) को शरीर में हैं हम साधक इसमें कोई सन्देह नहीं है। आप लोग नीचे की ओर स्थित त्रिकोणाकार अस्थि में रखा यदि साधक न होते तो आज आप किसी रात्रि भोज गया है इसे कुण्डलिनी नाम दिया गया है। ये या बॉल न त्य (Ball Dance) में किसी अन्य स्थान हमारी इच्छा शक्ति की अवशेष शक्ति है अर्थात जब पर रंगरलियाँ मना रहे होते। परन्तु ऐसा नहीं है। इस ब्रह्माण्ड का स जन किया गया तो इच्छा की ये इन सभी चीजों से परे भी कुछ है जिसका वचन शक्ति-आदिशक्ति-पूर्ण ब्रह्माण्ड के स जन के पश्चात् दिया गया है और जिसे आप महसूस करते हैं, भी सम्पूर्ण अवस्था में ही बनी रहीं क्योंकि वे तो 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-46.txt जनवरी एवं फरवरी 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 1 एवं 2 45 सम्पूर्ण हैं। ये बात समझनी बहुत सुगम है। आप कहने से मेरा अभिप्राय ये है कि कोई आकर यदि कह सकते हैं मान लो यहाँ पर प्रकाश है और मुझसे कहे कि "क्या आप मुझे विश्वस्त कर सकती फिल्म है, पूरी फिल्म को प्रतिबिम्बित कर दिए जाने हैं कि मेरी कुण्डलिनी जाग त हो जाएगी". तो मैं के बाद भी ज्यों की त्यों बनी रहती है। इसी प्रकार कहूंगी, "नहीं श्रीमान। मुझे खेद है, हो भी सकती है स्वयं को प्रक्षेपित करने के बाद बची हुई अवशिष्ट और नहीं भी हो सकती " आप यदि बहुत अधिक शक्ति, यह कुण्डलिनी है इसका अर्थ ये हुआ कि तर्क-वितर्क नहीं करेंगे तो यह जाग त हो जाएगी। आप कुण्डलिनी के पूर्ण प्रक्षेपण हैं । वह इच्छा क्यों? तर्क-वितर्क करने से क्या होता है? शक्ति है जो अपनी अभिव्यक्ति दो शक्तियों के रूप तर्क-वितर्क करने से क्या होता है इसका में करती है: दाऍँ ओर की शक्ति जिसे क्रिया शक्ति उत्तर में अवश्य दूंगी। कहने से मेरा अर्थ ये नहीं है कहते हैं तथा मध्य शक्ति जिसे आप कुछ सीमा कि आप तर्क- वितर्क न करें। अवश्य करें क्योंकि तक विकसित कर चुके हैं और बाकी का भवसागर में जानती हूँ कि आपमें ये समस्या है तर्क-वितर्क जो अमीबा अवस्था से वर्तमान अवस्था तक करना आपका संस्कार बन चुका मानव को विकसित करने के लिए जिम्मेदार है । हमें एक प्रश्न पूछना चाहिए कि अमीबा ओर (पिंगला नाड़ी) या क्रिया शक्ति का उपयोग अवस्था से मानव अवस्था तक क्यों विकसित हुए? करते हैं, और इस प्रकार सामने के चार्ट में दिखाए मान लो मेरे पास कुछ नट, बोल्ट आदि हैं और मैं गए पीले तत्व की स ष्टि करते हैं। इसे खड़ी बोली उन्हें एकत्र करती हूँ। तब कोई भी मुझसे पूछ में श्रीमान अह कहा जाता है। जब आप बहुत सकता है, "आप ऐसा क्यों कर रही हैं?" मैं कहूंगी, अधिक सोचते हैं तो ये अहं बढ़ता चला जाता है "मैं माईक्रोफोन बना रही हैँ। परन्तु माईक्रोफोन में और इसका दबाव प्रतिअहं पर पड़ता है। प्रति अह भी यदि एक तार लगी हो तो उसे भी ऊर्जा के स्रोत का स जन हमारे बन्धनों के कारण होता है। अहं से जोड़ना पड़ेगा। बिना ऊर्जा के स्रोत से जुड़े यह और प्रतिअहं के गुब्बारे जब बहुत अधिक फूल जाते कार्य नहीं हो सकता? हमारे अन्दर भी ऐसा ही हैं तो किस प्रकार हम कुण्डलिनी को उठाएँ, क्योंकि है-ये तीन शक्तियाँ, और अवशिष्ट शक्ति, जो कि कुण्डलिनी के उपर जाने के लिए तो कोई स्थान इच्छा शक्ति है, यह बैठी हुई आपको पुनर्जन्म देने बचता ही नहीं । अहं और प्रति- अहं को भली -भांति की इच्छा रखे हुए है ये आपकी अपनी माँ है और संतुलित होना चाहिए। अतः तर्क-वितर्क के बीच में जब भी इन्हें कोई अधिकारी (साधक) दिखाई देता कुण्डलिनी जाग त नहीं हो सकती। इसलिए मैं है जिसमें इन्हें (कुण्डलिनी) उठाने की शक्ति हो कहती हूँ "ये कार्य मुझे देखने दो ।" इस समय तथा जो इन्हीं की तरह से प्रेममय हो, केवल तभी तर्क-वितर्क न करें लोगों को ये बात अच्छी ये जाग त होती है। न किसी युक्ति से, न शीषार्सन नहीं लगती। वे सोचते हैं कि उन्हें चुनौती दी जा करने से, न योगासन करने से, न किसी को पीटने रही है। अतः मैं कहती हूँं "करते रहो (तर्क-वितक)"। आदि से और न ही किसी अन्य उपाय से यह परन्तु तर्क-वितर्क करते हुए होता ये है कि विचारों जाग त हो सकती है। यह तो स्वतः घटित होने का दबाव आप पर बनता जाता है और इसी कारण वाली क्रिया है-सहज'। स्वतः ही यह उठती है। से तर्क-वितर्क करके या पुस्तकें पढ़ के आप है। कोई बात नहीं। जब आप तर्क-वितर्क करते हैं तो अपनी दाई 1 परन्तु 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-47.txt जनवरी एवं फरयरी 2004 चैतन्य लहरी ण्ड -XVI अंक। 1 एवं 2 46 कुण्डलिनी जाग त नहीं कर सकते। इसके लिए आप धन नहीं दे सकते, धन से शक्तियों के रूप में अभिव्यक्ति की है-शीतल इसे प्राप्त करना तो बिल्कुल असम्भव है। परमात्मा लहरियों के रूप में अभिव्यक्ति की है ये सर्वव्याप्त के पास दुकान नहीं है, वें दुकानदारी करना नहीं है कुण्डलिनी जब उठती है तो सारे चक्रों में से जानते और आप उन्हें आयोजित भी नहीं कर सकते, परमात्मा को हम आयोजित नहीं कर सकते। इन केन्द्रों को (Plexuses) के रूप में जानते हैं वे हमें आयोजित करते हैं। अत: किसी भी प्रकार के और इनके नीचे ही ये सूक्ष्म चक्र होते हैं। इनके आयोजन द्वारा कुण्डलिनी जाग ति के कार्य को नहीं ज्योतिर्मय होने पर आप आत्म-साक्षात्कारी हो जाते इच्छा की शक्ति है जिसने आदिशक्ति की तीन गुजरती है और उन्हें छूती है चिकित्सा विज्ञान में हैं। इस विषय पर मैं न तो कोई भापण देती हूँ और किया जा सकता। यह तो पूरी तरह से बीज के अंकुरण सम न ही आपके मस्तिष्क को भ्रमित करती हैँ । आप है। इसे प थ्वी में डालकर थोड़ा सा जल डाल दें । स्वयं सामूहिक चेतना में आ जाते हैं। ये वास्तवीकरण मैने जैसा बताया कि मैं थोड़ा सा प्रेम जल डालती है जिसकी खोज हमें करनी चाहिए। आपके अन्दर हूँ, थोड़ा सा प्रेम जल में आपको देती हैूँ तब यह इसे घटित होना है ताकि आप परिवर्तित हो सकें | स्वतः ही अंकुरित हो जाती है । आपके अन्दर एक किसी व्यक्ति पर सहजयोगी का लेबल लगा देने से बीज है, कुछ तैयार है वह सहजयोगी नहीं बन जाता। यह इस प्रकार नहीं एक अकुरण तत्व है, सभी बस इसे घटित होना है। नाराज़ होने से ये कार्यान्वित होता। सहजयोगी को तो वास्तविक दीक्षा (Baptism) नहीं हो सकता। कुछ भी करने से यह कार्यान्वित प्राप्त करना होगा उसकी तालू अस्थि को नरम नहीं हो पाता। आपको प्रयत्न हीन होना पड़ता है। होना होगा और कुण्डलिनी को उसका भेदन करना बीज को अंकुरित करने के लिए आप कोई प्रयत्न होगा साधक केवल तभी सहजयोगी बन सकता नहीं कर सकते। किसी फूल को फल में भी आप है। परिवर्तित नहीं कर सकते। वास्तव में हम कोई विशेष कार्य नहीं करते हम तो केवल एक म त चीज कुछ आप नहीं कर सकते। यह स्वतः घटित होने को दूसरी म त चीज़ का रूप दे सकते हैं, बस। वाली चीज है और यदि आपमें ये घटना नहीं हुई है कोई भी जीवन्त कार्य हमने नहीं किया है। तो आप सहजयोगी नहीं हैं। जब तक ये घटित नहीं यह जीवन्त प्रक्रिया है और इसे सहज भाव से ही हो जाती आप साधक नहीं है। परन्तु बाल-सुलभ | आप इसकी सदस्यता नहीं ले सकते ऐसा 1 परन्तु र में घटित हो जाती हैं । परन्तु लोगों में यह पल-भर प्राप्त किया जा सकता है। इतना सहज भाव से ये जाग ति होती है। जिन लोगों ने स्वयं को हानि पहुँचाई है उनमें यह आपके सहस्रार को छूती है और आपको अपने कुण्डलिनी जाग त होने में काफी समय लगता है। हाथों में शीत्तल लहरियोँ आने लगती हैं। भारतीय वास्तव में इस देश (U.K.) में मैंने देखा है कि बहुत धर्म ग्रन्थों के अतिरिक्त, जिसमें इसे सलील- से सुन्दर, सत्य-साधक ईमानदार एवं विनम्र लोगों सलील कहा गया है, अर्थात ये शीतल चायु आपको ने जन्म लिया है। प्राचीन काल के महान साधकों लहरों की लरह से आती है। बाइबल में भी इसे को अमरीका तथा इंग्लैंड में जन्म लेने का आशीर्वाद (Cool Breeze) कहा गया है। अतः पूर्ण शक्ति ही प्राप्त हुआ है। परन्तु वे व्यग्र हो गए और अपनी 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-48.txt जनवरी एवं फरवरी 2004 सैजन्य नहरी खण्ड -४VI अंक : । एवं 2 47 व्यग्रता में उन्होंने स्वयं को नष्ट कर दिया और इस सकते हैं कि सत्य ही को आपने प्राप्त करना है और प्रकार से आप लोगों ने अपने सारे मनोदैहिक चक्र मैने वह सत्य देना है। बिगाड़़ लिए हैं। इन चक्रों में कुछ समय समस्या बनी रहेगी। परन्तु आपको प्रयत्न करते रहना है सत्य प्रदान करना मेरा कार्य है। आप कह सकते आपने इसी के लिए जन्म लिया है । इस उत्क्रान्ति कि मुझे इसका पारितोषिक मिलता है, आपको को घटित होना है। आपने अपनी आत्मा को आत्मसाक्षात्कार देना मेरा अपना कार्य है. मुझे ये आपको मेरा एहसान नहीं मानना क्योंकि पहचानना है, अवश्य आपको इसे प्राप्त करना है। कार्य करना है। आपका कार्य हैं इसे ले लेना परन्तु अधिकार जताने से इसे नहीं पाया क्योंकि यहाँ पर आप इसी के लिए आए हैं, इसमें जा सकेगा । पहले से ही कहा गया है कि 'विनम्र आभार की कोई बात नहीं। ये तो प्रेम है केवल प्रेम । व्यक्ति ही धन्य है, उसे विनम्रता की आवश्यकता है मुझे आपसे प्रेम करना है और आपने मुझसे ये प्रेम आपके अहकार की नहीं। अगर मेरे सिर पर बैठकर आप ये कहे कि हमें आत्म-साक्षात्कार प्रसारित होता रहता है। दीजिए तो मुझे उत्तर देना होगा कि में साक्षात्कार देने वाली नहीं हूँ। इसे तो आप ही प्राप्त कर सकते पाना किस प्रकार है। परन्तु हमारा मानवीय प्रेम हैं। वैसे ही जैसे बहती हुई गंगा नदी में इतना अधिक आक्रामक है कि जब कोई कहे कि मैं प्राप्त करना है। यह तो अविरल बहता रहता है, मैं आपको केवल ये बता रही हूँ कि इसे बिल्कुल यदि आप पत्थर फेंके तो इसमें से आपको जल आपसे प्रेम करता हूँ तो हमारी समझ में ही ये नहीं नहीं मिल सकता। आपको एक घड़ा लेना होगा, आता वहाँ से हम दूर खाली घड़ा और इसे जल में डुबोना होगा स्वतः ही मुझे प्रेम करती हैं?" तो बेहतर होगा हम भाग जाएं. ये घड़ा जल से भर जाएगा। अतः आपकी याचना क्योंकि प्रेम का अर्थ है मोह (Possession)। से ही आपको पूर्ति मिलेगी और वही पूर्ति आपने मानव के प्रेम का अर्थ है नियन्त्रण करना। परन्तु खोजनी है, उसके बिना आप कभी प्रसन्न नहीं हो मेरा प्रेम मात्र प्रेम है। ये आपको शान्त करता सकते । भागते हैं, कहते हैं. "आप और एक नवचेतना कि स्थिति में आपको ले जाता निःसन्देह लंदन में भी सहजयोगी हैं परन्तु है। इस नव-चेतना में आपकी अंगुलियाँ पूर्णतः हम कीड़ी की चाल से बढ़ रहे हैं । ये वास्तविकता ज्योतिर्मय (चेतन) हो उठती हैं और आपके हाथ है। आप अन्य संस्थाओं को बढ़ता हुआ देखते हैं आपको सूचना देते हैं कि आपके और अन्य लोगों क्योंकि आप बहाँ पैसा देते हैं और राज्य के किसी के कौन से चक्र पकड़े हुए हैं । सेमिनार में मैं न किसी मन्त्री पद को पा लेते हैं या ऐसा ही कुछ आपको सहजयोग से होने वाले सभी आशीर्वादों के और हो जाता है। उनका लॉकेट पहनकर आप उस विधय में बताऊँगी। सम्भवत: ये सभी सहजयोगी भी कुगुरु के महान शिष्य कहलाते हैं। ऐसा करना आपको इसके बारे में बता सकें| बहुत सुगम है. क्या ये बात ठीक नहीं है? परन्तु सहजयोगी बनने के लिए आपको अपना सामना हैं, आपकी समस्याओं तथा प्रश्नों के विषय में मैं करना पड़़ता है, स्वयं को देखना पड़ता है और जब आपसे बात करना चाहूंगी। परन्तु इसके लिए यहुत सौन्दर्य का उदय आप में होता है मैं नहीं जानती कि आपकी क्या समस्याएं अधिक समय न लगाएं क्योंकि सहजयोगी समय के तब आप देख 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-49.txt -x अं। । एव 2 जैतु्य लही अंक जनवरी एवं फरवरी 2004 48 े विषय में चिन्तित हो उठते हैं कारण ये है कि और इसके विषय में आरम्भ में उन्होंने भी मुझसे बहुत प्रश्न पूछे जिनकी क्योंकि ये सन्देह करने योग्य नहीं है। परन्तु फिर याद करके उन्हें लज्जा आती है दूसरे वे उत्तेजित भी यदि आपको कोई सन्देह है तो नि्टिचत रूप से हो जाते हैं कि प्रश्न करने के स्थान पर आप लोग मैं उसकी ओर ध्यान दूंगी। कभी-कभी बहुत अच्छे आत्मराक्षात्कार क्यों नहीं ले लेते। बेहतर होगा कि प्रश्न भी आते हैं। मैंने देखा है कि कुछ लोग बहुत कोई सन्देह नही होना चाहिए आप आत्मसाक्षात्कार ले ले। ऐसा करना आपके अच्छे प्रश्न करते हैं और मेरी समझ में आता है कि हाथ में है। तीसरे कभी-कभी उन्हें ऐसा लगता है उनकी समस्या क्या है? ऐसे प्रश्नों का हम स्वागत कि आप ऐसे प्रश्न पूछते हैं उनका न आपके लिए करेंगे परन्तु सन्देहग्रस्त व्यक्ति की तरह से न बैठें, कोई मूल्य है न अन्य किसी के लिए। ये भी आवश्यक है। सहजयोग यहुत बड़ा विषय है अतः एक वात आपको याद रखनी है कि और इसे पूरा वर्णन कर पाना बहुत कठिन है। यहाँ कोई भी चीज़ बिक नहीं रही, आपको इसके इसके द्वारा आप शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक लिए कुछ देना नहीं है। यह तो निरंतर बहने वाली एवम् आध्यात्मिक सामंजस्य प्राप्त कर सकते हैं चीण है । ये ऐसी चीज है जिसके विषय में बारतव क्योंकि सभी केनद्र जाग त हो उठते हैं और जीवन में विश्व का कोई व्यक्ति नहीं जानता। निरंतर बहने के चारों आयामों को प्रकाश से भर देते हैं। आपको वाली अत्यन्त सुन्दर द श्य देखा हो तो आप केवल इसो देखते है। इसी अपनी पूर्णता को खोजते हैं। ये काफी जटिल द ष्टिकोण से यदि आप आए, इसाके प्रति अपनी वाक्य है मैने इसे अत्यन्त संक्षेप में बताया है। इसके ऑँखें खोलने के लिए तभी ये कार्यान्वित होगा, विषय में यदि आपको कोई सन्देह हो तो नि:संकोच अपनी आँखें खोलें- इसे उन्मेष कहते हैं । उस सौन्दर्य के प्रति अपनी आँखें खोलें । यही आपकी आत्मा है इसके लिए आपको तैयार उहना चाहिए । आपने कभी अगर बह सुन्दर पूर्णत्व में ले जाते है जिसरो सामूहिक चेतना में आप मुझसे पूछे। मैं आपकी माँ हूँ। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। म