चैनन्य लहरी (२ १ कि ० रभ स ३१ हु 6ा पाध मार्च - अप्रैल, 2004 खंड : XVI अंक : 3 व 4 श्री महाशिवरात्री पूजा, पुणे , 15-2-2004 गुरु पूर्णिमा, लन्दन, 29-7-1980 6. 18 सहजयोगियों को श्रीमाताजी का परामर्श सर सी. पी. श्रीवास्तव का भाषण, मुम्बई, 26-12-1980 28 ना कविता लेखन श्रीमाताजी का वरदान 33 क्य এ। 36 चक्रों का वर्णन दिल्ली, 3-1-1978 ा 2. बगैर आत्मसाक्षात्कार के कल्याण नहीं हो सकता। कठिन है। 'कल्याण' माने हर तरह से साफल्य, हर तरह से प्लावित होना, हर तरह से अलंकृत होना। जब आशीर्वाद में कोई कहता है कि तुम्हारा "कल्याण' हो तो क्या होना चाहिए? क्या होता है? ये कल्याण क्या है? यह वहीं कल्याण है जिसको हम 'आत्मसाक्षात्कार कहते हैं। बगैर आत्मसाक्षात्कार ति ८ के कल्याण नहीं हो सकता। उसकी समझ भी नहीं आ सकती और उसको आत्मसात भी नहीं किया जा सकता। ये सब चीजें एक साथ कल्याणमय होती हैं और जिसकी वजह से मनुष्य अपने को अत्यन्त सुखी, अत्यन्त तेजरवी समझता है। इस कल्याणमार्ग के लिए आपको जो करना पड़ा वो कर दिया, जो मेहनत करनी थी सो कर ली. जो विश्वास धरने थे वो धर लिए। लेकिन जब कल्याण ने मन्त्र का मार्ग अब मिल गया, जब आपको गुरु दे दिया कि आपका कल्याण हो जाए तो क्या चीज़ घटित होगी? आपके अन्दर सबसे बड़ी चीज समाधान। इसके बाद कुछ खोजना नहीं। अब आप स्वयं भी गुरु हो गए। अब आपको कुछ विशेष प्राप्त होने वाला नहीं है। किन्तु इस समाधान का जो आशीर्वाद है उसको आप महसूस कर सकेंगे उसको आप जान सकेंगे और उसमें आप रममाण हो सकेंगे। पहले तो देखिए, सबसे को सारे देवताओं से, बडी चीज है शारीरिक-शारीरिक तकलीफें, शारीरिक देवियों से ऊँचा माना जाता है। वास्तविक ये गुरु दुर्बलता इस कल्याण के मार्ग से साफ हो जाएंगी। कौन हैं? इसमें सबसे ज्यादा कौन-सी शक्ति आपकी शारीरिक तकलीफें खत्म हो जाएंगी। यह संचरित है । ये गुरु तत्व जो है, यही शिव है। शिव नहीं हुई तो सोचना है कि अभी कल्याण नहीं स्वरूप जो शक्ति है उसी को हमें गुरु की शक्ति हुआ उसके बाद आपकी मानसिक दुर्बलताएं जो समझना चाहिए क्योंकि जब आप गुरु की शक्ति हैं वो भी कल्याण में सब खत्म हो जानी चाहिएं। प्राप्त करते है और आपके अन्दर बह शक्ति प्लावित जो दुर्बलता आपके अन्दर मानसिक है, जिसके कारण आप पूरी तरह से खिल नहीं पाते, वो शक्ति इसमें है और आप इसको जव प्राप्त करते जिसको यह शक्ति प्राप्त होती है उसको यह समझ हैं तो आपका वाकई कल्याण हो जाता है, माने आप पार हो जाते हैं। इसमें भी श्री महादेव जी "कल्याण' का मतलब छोटे शब्दों में देना बड़ा सहायक हैं। जब आपकी कुण्डलिनी आपके सहस्रार महाशिवरात्रि पूजा (पुणे 15-02-2004) आज हम लोग यहाँ गुरु की पूजा करने के लिए उपस्थित हुए हैं। गुरु होती है तब आप स्वयं भी गुरु हो जाते हैं। पर कार्य जो इस शक्ति का है वो है आपका 'कल्याण'। लेना चाहिए कि अब उसका कल्याण' हो गया| अन ३ को छेदती है सो वहाँ महादेव बैठे हुए हैं । इसीलिए मनुष्य जब प्राप्त करता है तो उसका सारा शरीर उनको महादेव कहते हैं। देवों में देव महादेव होते रोमांचित हो जाता है । माने किसी अद्वितीय शक्ति हैं। इस कल्याण मार्ग में और बहुत सी शक्ति भी जिससे वो सारी दुनिया की परेशानियाँ उपलब्धियाँ हैं। इसमें सबसे बड़ी उपलब्धि है उथल पुथल असन्तुलन, सब से ऊपर उठकर एक शान्ति, मानसिक शान्ति शारीरिक शान्ति और सन्तुलन में विचरण करते हैं। इसलिए इस शक्ति सबसे बढ़कर सांसारिक शान्ति। संसार की अनेक को प्राप्त करने के लिए लोग बहुत कोशिश करते व्याधियाँ हैं, अनेक तकलीफें हैं! वो सब इसको हैं। और वो दूसरे मनुष्य से, मानव से ही इसे प्राप्त ने उनको आलिंगन किया हो। और उनके अन्दर ये पाकर, इस कल्याण को पाकर खत्म हो जाती हैं। करते हैं जो स्वयं भगवान स्वरूप हो जाता है और उसका अस्तित्व ही नहीं रहता है ऐसे लोग आप जो स्वयं ही इस चीज को प्राप्त किए हुए देख सकते हैं दुनिया में होते हैं जो कि इस हैं। प्रवचन (अंग्रेजी से अनुवादित) ये ऐसा विषय है जिसे केवल हिन्दी भाषা में कल्याण की शक्ति को प्राप्त करके आराम से अपने स्थानापन्न होकर के ध्यानस्थ हो जाते हैं। ही वर्णन किया जा सकता है। इसमें बताया गया है यही कल्याण है जिससे मनुष्य में पूरी तरह का कि गुरु पद किसी अन्य व्यक्ति से ही प्राप्त किया सन्तुलन आ जाता है। और वो सन्तुलन पाने के लिए आपको सिर्फ गुरु शरण लेनी चाहिए। गुरु के शक्ति होनी चाहिए, आरम्म में मानसिक शान्ति की शरण जाने से आपमें वो सन्तुलन आ जाएगा कि शक्ति तथा सभी सांसारिक, मानसिक तथा शारीरिक आपको ऐसा लगेगा कि आपने सब कुछ पा लिया, समस्याओं पर विजय पाने कि शक्ति। गुरु के अब और कुछ पाने का नहीं। इस प्रकार का आशीर्वाद तथा अपने मानसिक सन्तुलन से आप सन्तुलन एक विलक्षण शक्ति देता है। और वो इन समस्याओं का समाधान कर सकते हैं जब शक्ति, मैं उसे प्रेम की शक्ति कहती हूँ, जिसे आप स्वयं गुरु बन जाते हैं तो आप में भी अन्य जा सकता है परन्तु स्वयं उस व्यक्ति में भी यह बाद आपको भी यही शक्ति प्राप्त होती है। गुरु बनने के लिए व्यक्ति को प्रयत् नहीं करना चाहिए। ऐसा करना व्यवहारिक नहीं है। गुरु बनने का यदि आप प्रयत्न करेंगे तो आप कभी गुरु बिना मांगे, बिना प्रयत्न किए, यह स्थिति स्वतः आप में आनी चाहिए। ध्यान' ही इस स्थिति को प्राप्त करने का एकमात्र मार्ग है। ध्यान अर्थात Meditation। केवल नहीं बन पाएंगे। ध्यान करें, कुछ मांगे नहीं। ध्यान ही आपको वह शरीर यन्त्र प्रदान करता है की महान शक्ति को धारण कर १ि जो गुरु सके। और तब स्वतः आप यह शक्ति अन्य लोगों को भी देते हैं। इसके लिए आपको परिश्रम नहीं करना पड़ता। आपकी उपस्थिति मात्र से ही लोगों को पूर्ण सन्तोष की यह शक्ति प्राप्त हो जाती है तथा आपको और अन्य लोगों को मोक्ष मिल जाता है। इस प्रकार उत्थान यात्रा के मार्ग की सभी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं और स्वर्गीय शान्ति एवं आनन्द लोगों को आशीर्वादित करने को शक्ति आ जाती के आशीर्वाद में आप शराबोर हो जाते हैं। इसी है। आशीर्वाद देने की इस शक्ति से आप बहुत से कारण से इसे कैवल्य' कहा गया है अर्थात केवल लोगों को गुरु बना सकते है। एक बार जब कोई आशीर्वाद। इसके लिए कोई अन्य शब्द नहीं बनाया गुरु बन जाता है और उसमें शक्ति होती है तो यह जा सकता। इसका वर्णन करने का कोई अन्य मार्ग अत्यन्त तुष्टेदायी और श्रेयस्कर होती है व्यक्ति नहीं है। आपने इसी स्थिति में उन्नत होना है। आप में इतना संतोष होता है कि उसे किसी चीज की जानते हैं कि आप उस अवस्था में हैं। यह इतनी आवश्यकता नही रहती। यह श्री शिव की शक्ति उच्चावस्था है कि एक बार इसमें पहुँचने के पश्चात् है। आपने देखा है कि श्री शिव के पास बहुत मांगने के जैसा कुछ नहीं रह जाता। आप इतने अधिक कपड़े नहीं हैं। वे कोई श्रंगार नहीं करते, हर संतुष्ट हो जाते हैं। इस विशिष्ट शक्त के विषय में समय ध्यान अवस्था में बैठे रहते हैं। किसी चीज़ मैं लगातार बोल सकती हूँ। अतः कृपया मैंने जो की उन्हें आवश्यकता नहीं रहती। अपने आप में वे कुछ कहा है उस पर ध्यान लगाएं। आप सबमें ये इतने संतुष्ट हैं कि उन्हें किसी चीज़ की चाहत नहीं अवस्था प्राप्त करने की योग्यता है पूर्ण शान्ति एवं है। यदि आपका कोई गुरु है जो उस स्तर का है आनन्द की अवस्था प्राप्त करने की। और योग्य है तो आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के परमात्मा आपको धन्य करें। सहजयोगियों को परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का परामर्श गुरु पूर्णिमा लंदन, 29 जुलाई 1980 ( अंग्रेजी से अनुवादित ) आज आपने अपने गुरु, जो कि आपकी माँ है कि गुरू उच्चकोटि का आत्म-साक्षात्कारी तथा अत्यन्त उन्नत (Evolved) व्यक्ति हो, सन्यासी या इस पूजा का आयोजन क्यों किया गया जंगलवासी होना आवश्यक नहीं है। सम्राट भी गुरु हो सकता है। व्यक्ति के जीवन की बाह्य अभिव्यक्तियों का कोई विशेष महत्व नहीं है, आप भी हैं, की पूजा का आयोजन किया है । है? व्यक्ति को समझना चाहिए कि हर शिष्य के लिए अपने गुरु की पूजा करना अत्यन्त महत्वपूर्ण किस पद पर है, इन सांसारिक पदवियों का भी है। परन्तु गुरु को भी सच्चा गुरु होना आवश्यक है, गुरुत्व के लिए कोई विशेष महत्व नहीं है। आवश्यक ऐसा गुरु नहीं जो अपने शिष्यों का अनुचित लाभ उठाता हो या जिसे परमात्मा द्वारा अधिकार न करना है। दिया गया हो। पूजा का आयोजन किया गया है क्योंकि आप लोगों को श्री ईसा-मसीह के कायदे अधिनियम (Statutes) आत्म-सात करने होंगे आइए कानूनों की दीक्षा दी गई है। आपको बताया गया देखते हैं कि ये धर्मादेश हैं क्या? पहला धर्मादेश है, बात तो परमात्मा (Lord) के धर्मादेशों को आत्म-सात में पुनः कह रही हूँ कि आपको ये "आप किसी को हानि न पहुॅँचाएं" (You do not do है कि मानव के धर्म क्या हैं? इसके लिए वास्तव में आपको गुरु की आवश्यकता नहीं है, केवल पुस्तक पढ़कर आप ईसामसीह के अधिनियमों को जान ये जाने, चोट पहुँचाते हैं कि वे किसी को चोट सकते हैं। परन्तु गुरु को ये देखना होता है कि आप पहुँचा रहे हैं । यदि आप साँप के समीप जाएंगे तो इन पर चलते भी हैं कि नहीं। इन अधिनियमों पर वह काटेगा। बिच्छू का कार्य डंक मारना है। परन्तु चलना चाहिए, इन्हें अपने जीवन में लाया जाना मानव को चाहिए कि किसी को हानि नहीं पहुँचाए । harm to anyone) यह प्रथम नियम है। पशु बिना 1 चाहिए। परन्तु गुरु, एक सुधारक शक्ति, के बिना मानव सुधार कर सकता है हानि नहीं पहुँचा सकता। ऐसा कर पाना कठिन है, ईसा-मसीह के नियमों परन्तु अहिंसा का ये सिद्धान्त उस सीमा तक ले का अनुसरण करना कठिन है क्योंकि मानवीय जाया गया जहाँ वास्तविकता समाप्त हो गई। चेतना और परमेश्वरी चेतना के मध्य बहुत दूरी है और इस दूरी को केवल ऐसा गुरु पाट सकता है मत करो' तो लोग कहने लगे कि हम मच्छरों और जो स्वयं पूर्ण हो। आज पूर्णिमा है अर्थात पूर्ण चन्द्र है। केवल पूर्ण-व्यक्तित्व गुरु ही इन अधिनियमों के विषय में खटमलों से हिंसा नहीं की जाती। किसी चीज़ को बात कर सकता है तथा अपनी सूझ-बूझ के स्तर मूर्खता की सीमा तक ले जाना वास्तविकता नहीं हो पर अपने शिष्यों को उन्नत कर सकता है ताकि वे सकती। सर्वप्रथम तो हमें उस व्यक्ति को हानि नहीं इन धर्मादेशों को आत्म-सात कर सकें। इस खाई पहुँचानी चाहिए जो परमात्मा के मार्ग पर चल रहा को पाटने के लिए गुरु होता है। अत: ये आवश्यक है, जो आत्म-साक्षात्कारी है। उसमें कुछ गलतियाँ बहुत उदाहरण के रूप में जब ये कहा गया कि हिंसा खटमलों के साथ हिंसा नहीं करेंगे कुछ लोग ऐसे धर्मों का अनुसरण कर रहे हैं जिनमें मच्छरों और मार्च - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड - XVI अंक 3-4 भी हो सकती हैं। हो सकता है उसे सुधार की Awareness) हम इसे देख पाए कि यही सत्य है। आचश्यकता है क्योंकि अभी तक कोई भी पूर्ण नहीं परन्तु इसके विषय में पूरी तरह से विश्वस्त हो है, अतः किसी को हानि न पहुँचाएं, सदैव सहायता जाएं। इसके लिए सर्वप्रथम अपने को परखें, अन्यथा करने का प्रयत्न करें दूसरे कोई जो सत्य-साधक हो सकता है कि आप आसुरी प्रवृत्तियों (Evil) के है वह गलत भी हो सकता है। हो सकता है वह हाथों में खेल रहे हों। सहजयोग शुरु करने वाले गलत गुरुओं के पास गया हो और उसने गलत कई लोगों के साथ आरम्भ में ऐसा होता है अतः कार्य किए हों, उसके लिए हृदय में करुणा भाव सावधान रहें. विश्वास रखें कि आप 'सल्य' बता रहे रखें क्योंकि किसी जमाने में आप भी गलत कार्य हैं कुछ अन्य नहीं. तथा सत्य को आपने पूरी तरह करते रहे होंगे। कभी आप भी भटके होंगे। अतः से महसूस कर लिया है। जिन लोगो को चैतन्य आपमें सहानुभूति होनी चाहिए, इसलिए सहज में लहरियाँ महसूस नहीं हुई हैं उन्हें सहजयोग के आने से पूर्व आपने गलतियाँ की भी तो एक प्रकार विषय में नहीं बोलना चाहिए। यह अधिकार उन्हें से यह अच्छा है क्योंकि अब आपके हृदय में उनके नहीं है। उन्हें चैतन्य लहरियाँ प्राप्त करनी होंगी। लिए सहानुभूति होगी। तो किसी भी प्रकार से अपने अन्दर पूरी तरह से चैतन्य को आत्म सात आपको मानव को हानि नहीं पहुँचानी चाहिए, उनके करना होगा केवल तभी वे कह सकते हैं, "हाँ हमने प्रति शारीरिक हिंसा नहीं करनी चाहिए और न ही महसूस किया है ।" इस आधुनिक काल में उन्हें भावनात्मक कष्ट देनें चाहिए. सुधारने के लिए सहजयोगियों के करने के लिए यह महत्वपूर्ण कार्य यदि कुछ करना पड़े तो किसी सीमा तक ठीक है। है- उद्घोष करना कि उन्होंने सत्य पा लिया है यह दूसरा धर्मादेश ये है कि आपको अपने पैरों भाग बहुत दुर्बल है जिस भी प्रकार से आप चाहें पर खड़ा होना है और समझना है कि यहाँ पर आप सत्य' की घोषणा कर सकते हैं आप पुस्तकें सत्य के सामंजस्य में हैं, सत्य के साक्षी हैं तथा लिख सकते हैं, मित्रों-सम्बन्धियों तथा सभी से 'सत्य' को आपने देखा है। आप जानते हैं कि सत्य बातचीत करके उन्हें बता सकते हैं कि अब यही ा क्या है और असत्य से आप समझौता नहीं कर सत्त्य है कि आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर सकते। ये कार्य आप नहीं कर सकते। ऐसा करने चुके हैं. कि परमात्मा की कृपा का आशीर्वाद आपको के लिए आपको किसी को चोट पहुँचाने की प्राप्त हो गया है, कि आप आत्म साक्षात्कारी हैं आवश्यकता नहीं है, आपने तो बस इसकी घोषणा तथा सर्वव्यापी परमेश्वरी शक्ति (Divine Power) करनी है। खड़े होकर आपने कहना है कि आपने को आपने महसूस कर लिया है, कि आप अन्य सत्य को देखा है, यही सत्य है। इसी से आपको लोगों को आत्म-साक्षात्कार दे सकते हैं। ये बात एकरूप होना है ताकि लोग सत्य का प्रकाश आपके आपने अन्य लोगों को बतानी है और समझाना है अन्दर देख सकें और इसे स्वीकार कर सकें। कि आपके सत्य को स्वीकार करने से किसी भी प्रकार आप सत्य में कुछ जोड़ नहीं रहे, आप अपने नहीं है कि आप सच्चे बनें, यही सत्य हमने देखा है को अलंकृत कर रहे हैं। सत्य का आनन्द लेने के तथा परमात्मा के यही आदेश हैं और इस प्रकार ये लिए भी व्यक्ति को साहस की आवश्यकता है। हो कार्यान्वित होते हैं। चैतन्य चेतना (Vibratory सकता है कि कभी लोग आप पर हँसें, आपका यह अन्य लोगों को भाषण देने की बात मार्च - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -४VI अक : 3 मजाक बनाएं, आपको दण्डित करें। परन्तु इसकी गुरु सिद्धान्त को, गुरु तत्व' को प्रकट करेंगे। चिन्ता आपको नहीं होनी चाहिए क्योंकि आपका आपको सच्चा होना चाहिए। प्रथम बात ये है कि सम्बन्ध धर्मादेशों से है परमात्मा की कृपा से है। आपको सत्य को जानना है. इसका साक्षी होना है इस तरह का दृढ़ योग (Connection) जब आपका और इसका उद्घोष करना है। हो जाएगा तब आपको इस बात की चिन्ता नहीं करनी चाहिए कि लोग क्या कहते हैं और इसके विकसित करना है वह हैं निर्लिप्तता' । शनैः शनैः ये विषय में उन्हें क्या कहना चाहिए। आपको खड़े हो गुण आप अपने अन्दर विकसित कर लेते हैं क्योंकि जाना है, सत्य से स्वयं को अलंकृत करना है और आप ये बात जान जाते हैं कि अपने अन्दर निर्लिप्तता लोगों से बातचीत करनी है। तब लोग समझ जाएंगे विकसित किए बिना आपको चैतन्य-लहरियों पूरी कि आपने सत्य को प्राप्त कर लिया है। अधिकार तरह से नहीं आ रहीं। सभी प्रकार की निर्लिप्तता के साथ सत्य के विषय में जब आप लोगों के विकसित करनी होगी कहने से अभिप्राय ये है कि सम्मुख बोलेंगे तो वे जान जाएंगे कि आपने सत्य आपकी प्राथमिकताऍँ ही बदल जाएँगी। एक बार प्राप्त कर लिया है। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति तथा जब आपका चित्त आत्मा पर स्थापित हो जाएगा तो एक सामान्य व्यक्ति में मूलतः यही अन्तर है कि महत्वहीन चीजों की पकड़ स्वतः ही घटने लगेगी। आत्मासाक्षात्कारी व्यक्ति दुखों तथा परमात्मा से उदाहरण के लिए आपके माता-पिता और बहन विरह की बात नहीं करता, वह कहता है, "अब मुझे भाई हैं। भारत में ये बहुत बड़ी समस्या है। यहाँ ये प्राप्त हो गया है ये सत्य है।" जैसे ईसा-मसीह (लन्दन) नहीं। पर आप लोग कुछ अधिक ही ने कहा था, "मैं ही प्रकाश हूँ, मैं ही मार्ग हूँ।" निर्लिप्त हैं । परन्तु भारत में लोग अपने बच्चों के कोई अन्य व्यक्ति भी ये बात कह सकता है। परन्तु मोह में बहुत अधिक फॅसे हुए हैं। "ये मेरा बेटा है, आप इसे समझ सकते हैं कि इस तरह की कही हुई और बाकी सब यतीम हैं? केवल आपके बेटे और बात सत्य नहीं है आपके हृदय से, आत्म विश्वास बेटी ही वास्तव में बच्चे हैं।" मेरी बेटी, अपने बेटे के से तथा पूरी सूझ-बूझ से जब सत्य निकलेगा तो लिए तो मुझे करना ही होगा, मेरे पिता, मेरी माँ। दो लोग समझ जाएँगे कि यही पूर्ण सत्य है। तब सभी तरह की लिप्साएँ हैं- एक तो मोह है - कि आप प्रकार के असत्य त्याग दिए जाएँगे कोई यदि बुरा उनके लिए ये करना चाहते हैं, वो करना चाहते हैं, मानता है तो कोई बात नहीं क्योंकि सत्य बात उन्हें सम्पति देना चाहते हैं. उनका बीमा कराना कहकर आप उनकी रक्षा कर रहे हैं, आप उन्हें हानि चाहते हैं आदि-आदि। नहीं पहुँचा रहे। परन्तु ये सब ठीक प्रकार से कहा जाना चाहिए. उथले-पन से नहीं । प्रेमपूर्वक समझाते यहाँ पर है। आप अपने पिता से घृणा करते हैं. हुए आप उन्हें बताएँ कि गलत क्या है. उस समय अपनी माँ से घृणा करते हैं, सभी से घृणा करते हैं. की प्रतीक्षा करें जब आप अत्यन्त विश्वास के साथ दोनों प्रकार की लिप्साएँ एक सी है। अतः गहन उन्हें बता सकें लोगों को बताएँ, "यह चीज़ गलत निर्लिप्तता विकसित होनी आवश्यक है। निर्लिप्तता है, ये गलत है. आप ये बात नहीं जानते, हमने भी ये है कि आप ही अपने पिता हैं, आप ही अपनी माँ यही कार्य किया था । इस प्रकार से आप अपने हैं आप ही अपने सभी कृछ हैं। आपकी आत्मा ही तीसरा गुण जो सहजयोगी ने अपने अन्दर और दूसरी एक अन्य प्रकार की है जैसे मार्च अप्रैल, 2004 XVI 3 वैतन्य लडरी खण्ड XVI अक 3-4 आपके लिए सभी कुछ है। केवल अपनी आत्मा का बाकी का पृथ्वी माँ में लौट जाता है ये किसी एक आनन्द आपने लेना है तभी आप उनके प्रति हिस्से से लिप्त नहीं होता। मान लो ये रस जाकर निर्लिप्त होते हैं और उनका बास्तव में भला करते किसी एक फल से लिप्त हो जाए तो क्या होगा? हैं। क्योंकि नि्लिप्त होकर ही आपको उनकी पूरी फल की मृत्यु हो जाएगी और पेड की भी। निर्लिप्तता तरह से जानकारी होती है और आप ये भी जान आपके प्रेम को, प्रेम के प्रसार को गति प्रदान करती जाते हैं कि क्या करना है। उदाहरण के तौर पर है। लोगों को कुछ शौक होते हैं। मनुष्य हमेशा किसी न किसी चीज के लिए पागल होता है। ये कोई भी भौतिक चीजें तब तक मूल्यहीन हैं जब तक उनके चीज हो सकती है। व्यक्ति को समझना है कि पीछे कोई भावना न हो। उदाहरण के रूप में जो केवल एक ही धुन होनी चाहिए-आत्मा में स्थापित साड़ी आज मैंने पहनी हुई है वो गुरु दिवस होना, पूरी तरह से आत्मा में स्थापित होना, बाकी (गुरुपूर्णिमा) के लिए लाई गई थी। परन्तु उनके सब लगाव समाप्त हो जाएंगे क्योंकि आत्मा सर्वोच्च पास और कोई साड़ी न थी । उस दिन उन्होंने पूजा आनन्दप्रदायी चीज़ है। ये अत्यन्त पोषक है और के लिए एक साड़ी खरीदनी चाही। मैंने कहा "आप और अब भौतिक चींजों की बात करें। का लोग यदि विवश करते हैं तो मैं ले लूंगी परन्तु वह सुन्दरतम। साड़ी मैंने आज पहन ली। केवल ये बताने के लिए कि ये लोग इतनी श्रद्धा और प्रेम से ये साड़ी खरीदकर लाए थे कि दिवस पर माँ हल्के रंग अतः अन्य सभी चीजें छूट जाती हैं और आप केवल उसका आनन्द उठाते हैं जो पूर्ण आनन्द का स्रोत है। आप अपनी आत्मा से लिप्त हो जाते हैं और निर्लिप्तता कार्यान्वित हो उठती है। कभी-कभी निर्लिप्तता को रूखेपन की अनुमति (लाइसेंस) मान लिया जाता है। परन्तु ऐसा करना गुरु की साड़ी पहनना पसन्द करेंगी।-सफेद रेशम का शुद्ध रंग-पूर्ण निर्लिप्तता परन्तु सफेद रंग में सारे रंग मिश्रित हैं केवल तभी यह श्वेत बनता है. इसमें हास्यास्पद है। हर सुन्दर चीज़ को गंदा करना मानव का गुण हैं। वास्तव में वही व्यक्ति सबसे चाहिए-आपको भी सफेद बनना है. बर्फ से भी सुन्दर है जो निर्लिप्त है तथा अत्यन्त प्रेममय है, जो सफेद। निर्लिप्तता पावनता है, अबोधिता है, और प्रेम है। फूलों को देखें वे निर्लिप्त हैं । कल उनकी अबोधिता एक ऐसा प्रकाश है, एक ऐसा प्रकाश जो हो जानी है उन्होंने जीवित नहीं रहना परन्तु सारी गंदगी के प्रति आपकी आखें बन्द कर देता इतना संतुलन और एकता है! यही होना मृत्यु हर क्षण वो जीवित रहते हैं और आपको सुगन्ध देते हैं । (गंदगी देखने की क्षमता समाप्त कर देता है) हैं। पेड़़ किसी चीज़ से लिप्त नहीं हैं, कल उनकी आप ये भी न देख पाएँगे कि कोई गलत नीयत से मृत्यु हो जाएगी, परन्तु कोई बात नहीं। कोई भी आया है कोई व्यक्ति चोरी करने की नीयत से जब उनके पास अ:ता है तो वे उसे छाया देते हैं, आपके पास आता है उसे भी आप कहेंगे आइए फल देते हैं। लिप्सा का अर्थ है प्रेम की मृत्यु, प्रेम आपको क्या चाहिए ।" आप उसे चाय आदि पेश की पूरी तरह से मृत्यु ही लिप्सा है। उदाहरण के करेंगे, उसके बाद यदि वह कहता है, "मैं तुम्हें रूप में पेड़ के अन्दर जड़ों से जीवनजल उठता है। लूटने आया हूँ।" "ठीक है अगर आप लूटना चाहते सभी हिस्सों में जाता है, फूलों में, फलों में, और हो तो लूट लो ।" तो वह आपको बिल्कुल भी न मार्थ - अप्रैल, 2004 10 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अक : 3-4 लूटेगा। तो यही अबोधिता है जिसे व्यक्ति ने अपने किसी को हानि नहीं पहुँचानी-अहिंसा। किसी की अन्दर विकसित करना है और यह कार्य केवल हत्या न करना। इसका अर्थ ये भी नहीं है कि निर्लिप्तता के माध्यम से किया जा सकता है, आपने मांस नहीं खाना या मछली आदि नहीं निर्लिप्तता चित्त से होती है अपने चित्त को किसी खानी। ये सब बेवकूफी है। निःसन्देह आपको भोजन भी चीज में न फसने दें, किसी भी प्रकार के आदि के पीछे नहीं दौड़ना, इस बात में कोई सन्देह कर्मकाण्डों में भी नहीं। कहें, हमने श्रीमाताजी के नहीं । आपको हत्या नहीं करनी का अर्थ ये है कि चरण नहीं धोए हैं, ठीक है कोई बात नहीं। आप आपने मानव हत्या नहीं करनी, THOUSHALT NOT मुझे प्रेम करते हैं हीक है। कुछ गलतियाँ हो भी KILL' अतः पहली बात किसी को हानि न पहुँचाना जाएँ तो भी कोई बात नहीं। निराकार क्षेत्र को यदि है। आप देखें तो यह कंबल प्रेम है। यह एक कदम आगे बढ़ना है जैसे दोड़ लगाते हुए कोई व्यक्ति सत्य को प्राप्त कर लिया है आपने इसका साक्ष्य मुझ तक पहुँचने से एक कदम पहले गिर जाए और (Testimony) बनना है। कहे माँ मुझे खेद है मैं आप तक पहुंचने से पहले गिर गया, मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। परन्तु से मैने निर्लिप्तता के बारे में बताया, किसी एक माँ आप देखें कि किस प्रकार मैंने आपको साष्टौँग व्यक्ति से लिप्त नहीं होना चाहिए क्योंकि वो हमारा दूसरी बात इस बात का ज्ञान है कि आपने तीसरे र्थान पर निर्लिप्तता है जिस प्रकार सम्बन्धी आदि है। सार्वभामिक प्रेम की भावना प्रणाम किया निर्लिप्तता तो काव्य की तरह से है। अतः गुरु बनने के लिए व्यक्ति को निर्लिप्तता विकसित करनी चाहिए तथा किसी से घृणा नहीं विकसित करनी होती है और निर्लिप्तता का अर्थ करनी चाहिए। यह निकृष्ट प्रकार की लिप्सा है । मैं सन्यास बिल्कुल नहीं है और न ही ऐसा कुछ और। घृणा करता हूँ' शब्द ही सहजयोगियों के मुँह पर कभी-कभी विश्व के सम्मुख घोषणा करने के लिएनहीं आना चाहिए। इसे दण्डक कहते हैं ये आदेश व्यक्ति को ऐसे वस्त्र पहनने पड़ते हैं क्योंकि यदि (Statutes) है। किसी से घृणा करने का अधिकार आपको थोड़े समय में कोई कार्य समापन करना हो आपको नहीं है चाहे वह राक्षस ही क्यों न हो, बेहतर तो ईसा-मसीह की तरह से गहन आचरण अपनाना होगा कि उनसे घृणा न करें उन्हें अवसर दें। पड़ता है या हम कह सकते हैं, आदिशंकराचार्य की तरह । इन सभी लोगों का जीवन बहुत छोटा था है. नैतिकता पूर्वक जीवनयापन करना (To Lead a और इस संक्षिप्त जीवन में इन लोगों को इतने Moral Life) ये धर्मादेश सभी गुरुओं ने दिए थे महान कार्य करने थे कि इन्हें वास्तव में फौज की सुकरात से लेकर मोजिज, इब्राहम, दत्तात्रेय, जनक, वर्दी की तरह से वस्त्र अपनाने पड़े। ये वस्त्र इन्होंने गुरुनानक और मोहम्मद साहब तक और सौ वर्ष पूर्व किसी को प्रभावित करने के लिए नहीं पहने थे । श्री साईनाथ तक। सभी ने कहा कि नैतिक जीवन आजकल लोग सन्यासियों के बस्त्र इसलिए पहनते यापन करें। किसी ने भी नहीं कहा, कि आप विवाह हैं कि इनसे वे लोगों को प्रभावित कर सकें कि वे न करें, अपनी पत्नी से बात न करें या पत्नी से निर्लिप्त हैं परन्तु उनके कारनामे बिल्कुल विपरीत सम्बन्ध न रखें। यह सब मूर्खता है। नैतिक जीवन होते हैं। तो पहली बात हमें समझनी चाहिए कि हमें बिताएँ । आप यदि अविवाहित युवा हैं तो अपनी ईसा-मसीह द्वारा दिया गया चौथा घर्मादेश मार्थ - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड - XVI अक 3-4 11 दृष्टि पृथ्वी पर रखें, पृथ्वी माँ आपको अबोधिता देखें । टकटकी बाँधकर लोगों को न देखें। ऐसा प्रदान करती है। पाश्चात्यजीवन में अधिकतर भ्रम करना तो बाधाओं के हाथ में खेलना है। पूरा समाज 1. और समस्याएं इसलिए पनप उठी हैं क्योंकि उन्होंने ही बाधाग्रस्त है। सभी आसुरी शव्तियों को खुला नैतिकता को त्याग फेंका है और नैतिकता को छोड़ दिया गया है और मैं सोचती हूँ कि जिस बाधित हैं वे बास्तविकता को देख प्रकार लोग भूत- समाज का आधार मानना उनके लिए अत्यन्त कठिन है। यह बिल्कुल उल्टा है। परन्तु आपको भी नहीं सकते। कहने को वो इसाई हैं (ईसा-मसीह यह कार्य करना होगा पहिए को एक बार पूरी के अनुयायी) चित्त का ध्यान रखा जाना चाहिए। ये तरह से उलटना होगा आरम्भ में समाज में इन कार्य अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि चित्त ने ही पावन रिश्तों को स्थापित करने के लिए बहुत कुछ प्रकाशमय होना है। किया गया। कुछ कायदे कानून हैं जो कार्य करते हैं जैसे रसायनों के नियम भौतिक विज्ञान के लोगों को हैँसने दें और कहने दें, ये बड़े अजीबो नियम जो रसायन तथा भौतिक शास्त्र में कार्य गरीब लोग हैं। परन्तु हमें अपने धर्मपरायण होने पर करते हैं। मानवीय नियमाचरण भी हैं जिन्हें व्यक्ति गर्व है, इसके लिए हम लज्जित नहीं है धर्मपरायणता को समझना चाहिए-परस्पर सम्बन्ध । सम्बन्धों की का यह महत्वपूर्ण भाग है। जो लोग इसका अनुसरण उत्कृष्टता, सम्बन्धों की पावनता को समझा जाना नहीं करते उनकी चैतन्य लहरियाँ बहुत तेज़ी से आवश्यक है। केवल तभी आप सफल वैवाहिक जीवन बिता सकते हैं जो कि आधार है (Thou Shalt अतः हमें समझना है कि नैतिकता क्या है समाप्त हो जाएँगी। अब गुरु के विषय में गुरु को परिग्रह नहीं not Commit Adultery) पति-पत्नी के अतिरिक्त करना चाहिए, चीजें एकत्र नहीं करनी चाहिएं। यदि आप किसी अन्य से सम्बन्ध नहीं बनाएंगे । वह कुछ इक्ट्ठा करता भी है तो वह केवल ईसा-मसीह ने ये कहा, क्योंकि शायद वे आधुनिक आवश्यकता को पूरा करने के लिए होना चाहिए। लोगों को समझते थे कि वे इस कार्य के लिए भी गुरु को चाहिए कि अपनी एकत्र की हुई सारी चीजें अपना मस्तिष्क चलाएँगे। ईसा-मसीह ने कहा, बाँट दे। उसके पास टिकट संग्रह आदि चीज़ों के "आपकी दृष्टि भी अपवित्र नहीं होनी चाहिए Thou संग्रह नहीं होने चाहिएं। जो भी कुछ उपयोगी एवं shall not have adulterous eyes" । उन दिनों में ये सुन्दर है, जो भी कुछ प्रसन्नता एवं आनन्ददायक है, सोचना कितना महान स्वप्न था। भारत में होते हुए जो आँखों को सुख देता है, ऐसी चीजें एकत्र की मैं भी इस बात को न समझ सकी। यहाँ आने के जानी चाहिए। उसके पास ऐसी चीजें होनी चाहिए पश्चात ही मैं देख पाई कि इसका अर्थ क्या है। ये जिनका उनके जीवन में प्रतीकात्मक महत्व (Symbolic 1 क दृष्टि की भूत-बाधा है, भूत-बाधा। ये आनन्द Importance) हो। ऐसी प्रतीकात्मकता हो जो ये विहीन तथा निकृष्टतम आचरण है चित्त पूरी तरह दर्शाये कि वह व्यक्ति धार्मिक है । अधार्मिक जीवन से भ्रमित हो जाता है। गरिमा समाप्त हो जाती है। की प्रतीकात्मक चीजों का संग्रह उसे नहीं करना दृष्टि स्थिर होनी चाहिए। स्थिरता पूर्वक यदि आप चाहिए। जो भी वस्त्र वह पहनता है, जो भी कुछ दर्शाता है बह सब धार्मिकता का प्रतिनिधित्व करने वाले होने चाहिएं। यहाँ की स्थिति का ज्ञान तो हमें किसी की ओर देखें तो बो ये समझ लें कि सहज योग आपमें बसा हुआ है प्रेम, सम्मान एवं गारिमापूर्वक मार्य - जप्रैल, 2004 12 भैतन्य लहरी खण्ड - XVI अक : 3-4 नहीं है परन्तु भारत में जब हम लोग छोटे थे तो हमें इस महिला को देना चाहती हैँं। त्योहार के दिन हम सभी प्रकार का संगीत सुनने की आज्ञा न थी। कोई बड़ों को इस प्रकार का उपहार दे सकते हैं वह भी गन्दी चीजें, कोई भी गन्दे वृत्तचित्र (Documentary) (बहू) कहने लगी, देखने की आज्ञा न थी, कोई भी अपवित्र चीज़, जिससे गन्दी लहरियाँ आती हों वो आपके पास भी साड़ियाँ आपके पास थी आपने सभी दे डाली नहीं होनी चाहिए। कोई चीज यदि आपके पास है हैं" मैने कहा, "मुझे देने की इच्छा होती है. मैं इसे भी तो आपको सोचना चाहिए कि वह आप किसे दे दे डालूंगी।" रसोई में हम इनके बारे में बातचीत सकते हैं अर्थात अपनी उदारता की अभिव्यक्ति कर रहे थे. मैंने कहा, तुम क्यों मुझे रोक रही हो, करने के लिए ही आपको संग्रह करना चाहिए। इस मामले में मैं किसी की राय नहीं लूंगी उसी सहजयोगी को समुद्र की तरह से उदार होना समय दरवाजे की घण्टी बजी और एक भद्र पुरुष चाहिए। कंजूस सहजयोगी' की तो मैं कल्पना भी आया, वह अफ्रीका से मेरे लिए तीन बिलकुल वैसी नहीं कर सकती। ये तो ऐसे होगा जैसे प्रकाश में साड़ियाँ लेकर आया था जैसी एक साड़ी मेरे पास अंधेरे का मिश्रण कर दिया गया हो। सहजयोग में बची थी। क्योंकि अफ्रीका जाने वाली एक महिला "आपके पास केवल एक ही साड़ी बची है. आप वह भी क्यों दे देना चाहती हैं? जितनी 1 को मैंने कुछ रेशम की साड़ियाँ दीं थी तो उसने कंजूसी की आज्ञा नहीं है। किसी व्यक्ति का मस्तिष्क यदि इस बात सोचा कि वह मुझे कुछ साड़ियाँ उपहार के रूप में पर जाता है कि मैं कितना पैसा बचा सकता हूँ, भेजे और उसने ये साड़ियों मुझे भेजी थीं। आप कितनी मेहनत बचा सकता हूँ- पैसा तथा परिश्रम बीचों-बीच खड़े हैं एक दरवाजे से आ रहा है, एक बचाने के बहुत से तरीके हैं तथा अन्य लोगों को दरवाजे से जा रहा है यह सारी गतिविधि देखना धोखा देने के या यहाँ-वहाँ कुछ चीजों में पैसा बहुत अच्छा लगाता है यह अत्यन्त दिलचस्प है। बनाने के भी बहुत से तरीके है, परन्तु यह सय सहजयोग के विरोध में है ये आपको पतन की ओर ले जाएँगे। अपनी उदारता का आनन्द लें। इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते लन्दन में तीस कितनी ही बार मैं आपको उदारता के विषय में बता इसके अतिरिक्त जिस प्रकार आप देते हैं उसका भावनात्मक पक्ष इतना सुन्दर है कि आप साल से विवाहित एक महिला से मैं मिली. अचानक चुकी हूँ। मुझे याद है कि एक बार विदेश से लाई उसने कहा, "क्या संयोग है।" मैंने कहा, "क्यों?" हुई एक साड़ी मैं उपहार में देना चाहती थी। भारत उसने कहा, में लोग बाहर से लाई गई चीज़ों को पसन्द करते आपने मेरे विवाह पर दिया था मैंने बही पहना हुआ हैं यद्यपि मेरी समझ में नहीं आता कि वे इस प्रकार है और आज ही आपसे मेरी मुलाकत हुई है! इस की नाईलॉन की साड़ियाँ क्यों पसन्द करते हैं। एक मुलाकत से सारा नाटक बदल गया। छोटा सा महिला ने कहा, मेरे पास कोई विदेशी साड़ी नहीं है उपहार देने पर भी ऐसा होता है । सहजयोग में देने ऐसी साड़ी यदि मुझे मिल जाए तो मुझे बहुत अच्छा की ये महानतम कला हमें सीखनी चाहिए। दुनियावी लगेगा मेरे पास केवल एक ऐसी साड़ी बची थी, चीजें त्याग दें, जैसे आप यदि किसी के जन्मोत्सव क्योंकि मुझे देने में बहुत आनन्द आता है, तो मैंने पर जाएँ तो एक कार्ड भेजें, 'आपका हार्दिक अपनी एक भतीजी बहू को कहा, कि मैं ये साड़ी धन्यवाद और इस प्रकार इस उत्सव को अधिक "आज के दिन जो मोतियों का हार मार्च - अप्रैल 2004 चैत्तन्य लहरी खण्ड - XVI अंक 3-4 13 गहन महत्व का अवसर बना दें। हमें देखना है कि धारण करें, जिसे आप सोचते हों अच्छा और गरिमामय किस प्रकार हम अपने प्रेम के प्रतीक विकसित है। इस प्रकार के वस्त्र आपकी सुरुचि तथा व्यक्तित्व करते हैं। चैतन्य लहरियों से परिपूर्ण चीजें जब को दर्शाएँगे। आपको वही वस्त्र पहनने चाहिएं जो आप किसी को देंगे तो वह जान जाएगा कि यह क्या है? सहजयोगियों के प्रति उदारता में कभी जो बड़े अटपटे लगते हैं और जिनमें व्यक्ति विदूषक कमी न आने दें । शनैः शनैः आप हैरान होंगे कि लगता है, ऐसे वस्त्र न पहनें । विदूषकों जैसी चीजें छोटी-छोटी चीज़ों के माध्यम से किस प्रकार आप अनावश्यक है और तड़क-भड़क वाली चीज़ें भी। लोगों के हृदय जीतते हैं, मानों उन वस्तुओं में से सादे सुन्दर वस्त्र पहनने चाहिएं जो आपको गरिमा चैतन्य लहरियाँ प्रभावित होती हैं और उनके लिएप्रदान कर सकें। वास्तव में पूर्व के लोगों का ये कार्य करती हैं। तत्पश्चात्, सहजयोगी के लिए मानना है कि परमात्मा ने हमें सुन्दर शरीर दिया है आवश्यक है कि ऐसी वस्तुएं इस्तेमाल करे जो तथा इसे मानव सृजित सुन्दर चीज़ों से सजाया प्राकृतिक स्वभाव की हैं। बनावट को त्याग दें। जाना चाहिए ताकि शरीर का सम्मान हो, इसकी अधिक स्वाभाविक बनें। कहने से मेरा अभिप्राय ये नहीं है कि पेड़ों की जड़ों को निकाल कर खाने साड़ियाँ पहनती हैं। साड़ियाँ उनकी मनोदशा तथा लगे या कच्ची मछलियाँ खाएं। मेरा ये अभिप्राय शरीर की पूजा तथा सम्मान को अभिव्यक्ति करती नहीं है। चीज़ों की अति में जाने से बचें परन्तु हैं । वस्त्र ऐसे होने चाहिएं जिनका उपयोग भी हो अधिक प्राकृतिक जीवन बिताने का प्रयत्न करें । प्राकृतिक अर्थात लोग जान जाएँ कि आपमें मिथ्या अभिमान नहीं है कुछ लोग आवाराग्दों की तरह नहीं लगते। प्रकृति की तरह से वस्त्रों में भी से वस्त्र धारण करते हैं ताकि अधिक लोगों का विविधता होनी चाहिए । हर मनुष्य भिन्न व्यक्ति ध्यान आकर्षित कर सकें। मैं देखती हूँ कि कुछ लगना चाहिए। पूजा आदि के लिए यदि एक ही लोग अपने बाल रंगते हैं। आपको सहज व्यक्ति जैसे वस्त्र पहन लिए जाऐं तो कोई बात नहीं ताकि होना चाहिए। आपका आचरण अत्यन्त स्वाभाविक आपका चित्त वैचित्र्य पर न जाऐ परन्तु आम जीवन होना चाहिए। विवेकहीन लोगों को ये बात बड़ी में आपको सामान्य व्यक्ति होना है आप सभी हास्यास्पद प्रतीत हो सकती है। सहजयोग में गृहस्थ हैं किसी को कुछ त्यागने की आवश्यकता विवेक का बहुत महत्व है। हर समय आपको विवेक नहीं। आप लोगों को मैं कुमकुम लगाकर सड़कों बनाए रखना होगा। प्राकृतिक का अर्थ है कि पर जाने का परामर्श भी नहीं देती। आपको सामान्य आपको स्वाभाविक वेश-भूषा पहननी चाहिए जो व्यक्ति होना है जिसकी ओर कोई अंगुली न उठा आप पर फबे। उदाहरण के रूप में इस जलवायु में सके। आपको हास्यास्पद या अटपटे वस्त्र नहीं श्री राम की तरह से वस्त्र पहनने का कोई लाभ पहननें। आपको सामान्य व्यक्ति की तरह से वस्त्र नहीं है, वे तो शरीर के ऊपरी हिस्से में कोई वस्त्र धारण करने हैं, सहजयोग में सामान्य होना अत्यन्त पहनते ही नहीं थे। जिस भी देश के आप वासी हैं आवश्यक है । उसके हिसाब से और अवसर के अनुरूप वस्त्र आप पर फबते हैं । काई के रंग के वस्त्र, लम्बे सूट पूजा हो। उदाहरण के तौर पर भारतीय महिलाएँ और गरिमामय हों सभी सहजयोगियों को एक से बस्त्र पहनने की आवश्यकता नहीं है, ये मुझे अच्छे इसके बाद हमें समझना है कि जाति, रंग मैतन्य लहरी खण्ड मार्च - अप्रैल, 2004 - ४VI अक 3- 4 XVI Sm 14 और भिन्न धर्मों के आधार पर हमें भेद-भाव आदि के लिए इस तरह की बेवकूफी, जाति तथा समाज- से ऊपर उठ जाना चाहिए। यदि आप इसाई हैं तो बन्धन नहीं है। भी आपका पुनर्जन्म चर्च में तो नहीं होगा, आप चर्च से सम्बन्धित नहीं है। परमात्मा का धन्यवाद अन्यथा भी प्रजातिवाद की मूर्खता बनी हुई है। ये बात मेरी वहाँ की सारी प्रेतआत्माएँ तुरन्त आपको पकड़ लेतीं। परन्तु ये सब संस्कार काफी देर तक चलेंगे। काला, परमात्मा को रंगों में भी वैचित्र्य बनाना था। किसी भी नई चीज़ को स्वीकार करने के लिए आपको किसने बताया कि आप ही सबसे अधिक आपको नया जन्म लेना होगा, आपको पुनर्जन्म सुन्दर व्यक्ति हैं? हो सकता है कि यहाँ या होलीवुड लेना होगा। और अब आपका पुनर्जन्म हो गया है। के कुछ बाजारों के हिसाब से ये बात ठीक है। अब आप धर्मातीत हैं अर्थात किसी धर्मविशेष का परन्तु परमात्मा के साम्राज्य में इन तथाकथित अनुसरण करने की आपको आवश्यकता नहीं है। सुन्दर लोगों को, जो सात पतियों से विवाह करती सभी धर्मो का मार्ग आपके लिए खुला है आपने सभी धर्मों का सार तत्व ग्रहण करना है। किसी भी जाएगा। उन सबको नर्क में डाला जाएगा सौन्दर्य धार्मिक व्यक्ति की निन्दा या अपमान आपने नहीं हृदय का होता है चमकने और दिखाई देने वाली करना, ऐसा करना अपराध है। सहजयोग में ये शक्ल का नहीं । हो सकता है कि लोगों को इस बात बहुत बड़ा अपराध है। आप जानते हैं कि ये कौन की जानकारी हो इसलिए वे धूप में चेहरे को तपाने है। जाति-पाति के आधार पर अपना आंकलन नहीं के लिए चल पड़ते हैं। मै नहीं समझ पाती! वे अच्छी किया जाना चाहिए। आप चीनी (Chinese) हो या किसी अन्य समूह के. आप कुछ भी हों, मानव होने किया जा रहा है। कुछ लोगों को काले बाल पसन्द के नाते हमें इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि हम है; कुछ को लाल। कहने से मेरा अभिप्राय ये है कि सब एक ही प्रकार से हँसते हैं, एक ही प्रकार से सभी रंगों के बाल होने चाहिए! एक ही रंग के बाल मुस्कराते हैं. सबका एक ही तरीका होता है। हमारे आपको क्यों पसन्द आते हैं ये बात मैं नहीं समझ मस्तिष्क में समाज द्वारा बनाए हुए बन्धनों के सकतीं। पसन्द ना पसन्द नाम की कोई चीज नहीं कारण कुछ लोग छूत हैं और कुछ लोग अछूत। है परमात्मा ने जो भी कुछ बनाया भारतीय समाज में ये सब है | भयानका भारत में है आप निर्णय करने वाले कौन हैं कि ये मुझे ब्राह्मण-वाद ने सब कुछ पूरी तरह नष्ट कर दिया पसन्द है ये मुझे पसन्द नहीं। मैं', ये मैं कौन है ? है। आपको ऐसा उदाहरणों से सीखना चाहिए कि ये श्रीमान अहं हैं जिसे ये समाज बिगाड़ रहा है, जो श्रीव्यास कौन थे गीता के लेखक व्यास कौन थे? आपको सिखाता है कि आपको सिगार कैसे पीनी है, वो एक मछुआरिन के नाजायज़ पुत्र थे। गीता के सुबह से शाम तक उल्टे सीधे कार्य कैसे करने हैं । पश्चिम में इतनी शिक्षा आदि के बावजूद समझ में नहीं आती। कोई व्यक्ति गोरा हो या हैं, प्रवेश नहीं दिया हैं सभी- प्रकार के दुष्कर्म करती तरह से जानते हैं फिर भी बहुत अधिक दिखावा है सब सुन्दर इस महान लेखक को जान-बूझ कर इस प्रकार ये सारा प्रशिक्षण गन्दगी मानकर त्याग दिया जाना का जन्म दिया गया। गीता पाठी सभी ब्राह्मणों से चाहिए और देखना चाहिए कि परमात्मा ने तो हमें आप पूछे की व्यास कौन थे। ब्राह्मण तो वो होते हैं अपने बच्चों के रूप में बनाया है ये कितनी सुन्दर जो भात्कारी हैं और आत्मासाक्षात्कारी लोगों बात है? क्यों आप उसे अपने गन्दे विचारों से गन्दा मार्थ - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड - XVI अंक : 3-4 15 करना चाहते हैं ? "मुझे ये पसन्द है और ये नहीं है आपकी गरिमा का वज़न आपके आचरण का बज़न, का सारा भद्दापन मूर्खता है। केवल एक ही शब्द आपकी श्रद्धा का वजन तथा आपका प्रकाश। होना चाहिए मैं प्रेम करता हूँ । ये याद रखने की क्षुद्रता एवं मिथ्याभिमान से आप गुरु नहीं बन जाते। आवश्यकता नहीं है कि अंग्रेजों ने भारतीयों के साथ घटियापन, अभद्रभाषा-गन्देमजाक, गुस्सा, क्रोध आदि क्या किया या जर्मन लोगों ने यहूदियों के साथ से पूरी तरह मुक्त होना आवश्यक है। जुबान और क्या किया सभी - कुछ भूल जाएँ । ऐसा करने वाले गरिमा के माधुर्य का भार प्रदर्शित करें, यह उसी सभी लोग मर चुके हैं, समाप्त हो चुके हैं। हम सन्त तरह से लोगों को आकर्षित करेगा जिस तरह से हैं। ये धर्मादेश (Statutes) हैं जो मैंने आपको रस से परिपूर्ण पुष्प चहुँ ओर की मधुमक्खियों को बताए है और जिनको आपने आत्म-सात करना है। आकर्षित करता है। आप भी इसी प्रकार से लोगों आज मैं आपको गुरु बनने का अधिकार को आकर्षित करेंगे। इस पर गर्व महसूस करें. लोगों ताकि आपके चरित्र, आपके व्यक्तित्व, के प्रति करुणामय एवं सेवा भाव से परिपूर्ण हों। अब संक्षिप्त में मुझे ये बताना है कि आपने देती हूँ आपके जीवन में सहजयोग के तौर तरीके तथा प्रकाश की अभिव्यक्ति के माध्यम से लोग आपका स्वयं ये कार्य किस प्रकार करना है। आपको अपना अनुसरण कर सकें और उनके हृदय में ईसा-मसीह भवसागर अच्छी तरह से कार्यान्वित करना है । तो द्वारा दिए गए धर्मादेश स्थापित हों और आप उन्हें ये जान लें कि यदि आपका कोई गलत गुरु रहा हो मुक्त कर सकें। उनका उद्घार करें क्योंकि आपको तो आपका भवसागर पकड़ता है अपने गुरु के बारे मोक्ष प्राप्त हो चुका है। आप ही मेरी वाहिकाएँ में पूरा ज्ञान प्राप्त करें, उसके चरित्र को जानने का ( Channels) हैं, वाहिकाओं के माध्यम के बिना प्रयत्न करें। ये कार्य कुछ कठिन है क्योंकि आपके सर्वव्यापी शक्ति अपना कार्य नहीं कर सकती, यही गुरु तो भ्रान्ति रूप हैं। वे महामाया हैं, उनके विषय विधि है। आप यदि सूर्य को देखें तो इसका प्रकाश में जानना आसान नही है। सामान्य तरीके से वे भी किरणों के माध्यम से फैलता है, आपके हृदय से आचरण करती हैं और कभी-कभी तो आप भ्रमित भी रक्त घमनियों के माध्यम से प्रभावित होता है, हो जाते हैं। परन्तु आप देखें कि वो छोटी- छोटी धमनियाँ सूक्ष्म होती चली जाती हैं । आप ही वो चीज़ों में किस प्रकार अचरण करती हैं, किस प्रकार धमनियाँ हैं जिनके माध्यम से मेरा प्रेम-रक्त लोगों उनके चरित्र एवं प्रेम की अभिव्यक्ति होती है! तक प्रवाहित होगा। धमनियाँ ही यदि टूटी हुई होंगी उनकी क्षमा को याद रखने का प्रयत्न करें। आपको तो लोगों तक रक्त न पहुँच पाएगा। इसी लिए आप इस बात का भी ज्ञान होना चाहिए कि आपको ऐसा महत्वपूर्ण हैं । जितने विशाल आप होंगे धरमनियाँ भी गुरु प्राप्त हुआ है जैसा बहुत से साधकों ने पाने की उतनी ही विशाल हो जाएँगी तभी आप इच्छा की होगी, जो सभी गुरुओं का अधिकाधिक लोगों तक पहुँच पाएंँगे। यही कारण है विष्णु और महेश की इच्छा भी ऐसा ही गुरु पाने कि आप बहुत अधिक जिम्मेदार हैं। गुरु शब्द का की है। उन सबको आपसे ईर्ष्या होती होगी। 'वज न है गुरुत्वाकर्षण, गुरु 1 गुरु है। ब्रह्मा अर्थ अर्थात परन्तु ये गुरु अत्यन्त भ्रान्ति रूप है। अपने गुरुत्वाकर्षण। अपने वज़न का गुरुत्वाकर्षण आपमें भवसागर को सुधारें और कहें कि श्रीमाताजी आप होना आवश्यक है अर्थात आपके चरित्र का वजन, हमारी गुरु हैं। इस भय के कारण गुरु के लिए चैतन्य लहरी खण्ड - XVI अक : 3-4 मार्च - अप्रैल, 2004 16 आवश्यक सम्मान स्थापित नहीं हो पाता। अपने करती है और छोटी छोटी चीजें आपको सिखाती हूं। अन्दर जब तक आप गुरु के प्रति वह श्रद्धा एवं क्योंकि अभी तक आप बच्चे हैं। इसी प्रकार से आपको भी याद रखना है गुरुतत्व स्थापित नहीं हो पाएगा। कोई छूट नहीं ली कि जब आप अन्य लोगों से सहजयोग के विषय में जानी चाहिए। मैं स्वयं आपको यह सब बता रही हूँ बात करते हैं तो वे हर समय आपको देखेंगे और परन्तु मैं अत्यन्त भ्रान्तिरूप हैं। अगले ही क्षण में जानने का प्रयत्न करेंगे कि किस सीमा तक आप आपको हँसा कर सब भुला देती हूैँ क्योंकि मैं यह सहजयोग में हैं। जिस प्रकार मैं आपको समझती हूँ आप उनको समझने का प्रयत्न करें। जिस प्रकार मैं पूर्ण स्वतन्त्रता को मैं आपसे इस प्रकार खेलती आपको प्रेम करती हूँ आप उन्हें प्रेम करने का प्रयत्न कि क्षण-क्षण आप भूल जांए कि मैं आपकी गुरु करें। निःसेन्दह में आपसे प्रेम करती हैूँ मैं निर्मल हूँ। निःसन्देह मैं प्रेम से परे हूँ। बिलकुल ही भिन्न सम्मान स्थापित नहीं कर लेते तब तक आपका 1 सब करने की आपकी स्वतन्त्रता को परख रही हैं हूँ । तो सर्वप्रथम अपने गुरु के बारे में ज्ञान प्राप्त करें, उन्हें अपने हृदय में स्थापित करें। मेरा अवस्था। इन परिस्थितियों में आपकी स्थिति बहुत अभिप्राय है कि काश मुझे भी ऐसा ही गुरु मिला उत्तम है क्योंकि कोई भी अन्य गुरु इस सीमा तक नहीं जाता। इसके अतिरिक्त मैं सभी शक्तियों का मुक्त। मै जो भी कार्य करूं वह मेरे लिए पाप नहीं स्रोत हूँ। आप सभी शक्तियाँ मुझसे प्राप्त कर सकते हैं, जो भी आपको पसन्द हों मैं इच्छाविहीन होता! वे इच्छा एवं दोष विहीन हैं। पूर्णतः पाप है चाहे मैं किसी का वध करूं या कोई षड़यन्त्र ह हैँ करू या कुछ और। मैं जो आपको बता रही हूँ परन्तु जो भी इच्छा आप करेंगे वो पूर्ण होगी मेरे बास्तव में ये सच्चाई है। मैं जो चाहे करू मैं पाप बारे में भी आपको इच्छा करनी होगी इस बात को से ऊपर हूँ। फिर भी मैं इस बात का ध्यान रखती देखें इस ओर देखें कि मैं आपसे कितनी जुड़ी हुई हूँ कि आपकी उपस्थिति में ऐसा कार्य करूँ जो मुझे हूँ। आप जब तक मेरे सुन्दर स्वास्थ्य की कामना करते देख कर आप भी करने लगे। आपका गुरु नहीं करते मेरा स्वास्थ्य खराब ही रहेगा। इस सीमा सर्वोत्तम है इसमें कोई सन्देह नहीं। परन्तु आपको तक मैं आपसे जुड़ी हुई हूँ। परन्तु मेरे लिए क्या बुरा ये भी जान लेना चाहिए कि आपमें वों सर्वोत्तम स्वास्थ्य क्या अच्छा स्वास्थ्य! इन सुन्दर परिस्थितियों शक्तियों नहीं हैं। मैं इन सब चीजों से ऊपर हूँ। मैं में आपको बहुत अच्छी अवस्था तक उन्नत होना ये भी नहीं जानती कि प्रलोभन होता क्या है, कुछ चाहिए। गुरु बनने में आपके सम्मुख कोई समस्या नहीं। मैं तो बस कार्य करती हूँ। जो भी मुझे पसन्द नहीं होनी चाहिए। भवसागर को स्थिर करना होगा । हो या जो मेरी मौज में आए। परन्तु इन सब चीजों सर्वप्रथम आपको अपने गुरु को समझना होगा क्योंकि वो सभी चक्रों पर विराजमान हैं। कल्पना के बावजूद भी मैंने अपने आपको अत्यन्त सामान्य बना लिया है ताकि आपके सम्मुख मैं इस प्रकार से करें आपका गुरु कितना महान है! इससे आपमें आत्म विश्वास आएगा और इतने शक्तिशाली गुरु होते हैं। मेरे लिए कोई धर्मादेश नहीं है मैं धर्मादेश के कारण ही सभी लोग अत्यन्त आसानी से बनाती हैँ। आप ही के कारण मैं ये सारा कार्य आत्म साक्षात्कार पा सकते हैं। किसी धनी व्यक्ति पेश हो सक कि आप समझ जाएँ कि धर्मादेश क्या मार्च - अप्रैल, 2004 यैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 3-4 17 के पास यदि आप भिक्षा लेने जाएँ तो वो आपको दो कि आपकी गुरु बड़े महान लोगों की माँ थीं। यह कौड़ियाँ भी नहीं देगा। क्योंकि आपकी गुरु इतनी विचार मात्र ही आपके गुरुतत्व को स्थापित कर शक्तिशाली हैं इसलिए आपको शक्तियों इतनी देगा। मेरे कितने महान बेटे थे! कितने महान आसानी से मिल रही हैं अतः आपको इसके विषय व्यक्तित्व! शब्दों से उनका वर्णन नहीं किया जा में प्रसन्न होना चाहिए अत्यन्त प्रसन्न एवं प्रफुल्लित सकता। एक के बाद एक महान बेटे हुए और आप कि आपको ये शक्तियाँ प्राप्त हो गई हैं। कम से भी उसी परम्परा में से हैं, मेरे शिष्य । उन्हें अपना कम जो लोग सहजयोग में है वै ये बात अच्छी तरह आदर्श बनाए रखें। उनका अनुसरण करें, उनके से जानते हैं। जो लोग पहली बार मेरा प्रवचन विषय में पढ़ें, उन्हें समझें कि उन्होंने क्या कहा है सुनने के लिए आए हैं, हो सकता है वो लोग थोड़े किस प्रकार उन्होंने ये ऊँचाइयाँ प्राप्त कीं, उन्हें से उलझन में हों। परन्तु आप सभी लोग भलीभाति जानते हैं। 1 पहचानें, उनका सम्मान करे। इसमें आपका गुरु तत्व स्थापित हो जाएगा। अपनी गुरु शक्ति को समझने के लिए सर्वप्रथम आपको ये जानना है कि आपकी गुरु उन पर गर्व करें। लोगों की बातें भ्रमित न कौन है - साक्षात आदिशक्ति'। 'हे परमात्मा'! ये हों क्योंकि हम तो सारी जनता को अपनी ओर बहुत बड़ी बात है। तब अपने भवसागर को स्थापित खींचने वाले हैं ! सर्वप्रथम हमें अपना बजन तथा करें। गुरु किसी अन्य के सम्मुख अपना सिर नहीं गुरुत्वाकर्षण स्थापित कर लेना चाहिए। जिस प्रकार झुकाता। विशेष रूप से मेरे शिष्य - किसी बुजुर्ग सम्बन्धी के सम्मुख आप अपना सिर इसी प्रकार हमने भी सभी को अपनी ओर खींचना झुका सकते हैं। इनके अतिरिक्त वो किसी अन्य के है। आज आप सबने अपनी आत्मा से वायदा करना अपने अन्दर ये सारे धर्मादेश स्थापित करें, सुनकर माँ, बहन या पृथ्वी माँ सभी कुछ अपनी ओर खींचती रहती हैं सम्मुख सिर नहीं झुकाते। दूसरे आपके लिए ये जानना आवश्यक है गर्व हो। है कि आप ऐसे गुरु बनेंगे जिन पर आपकी माँ को परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। त सहजयोगियों को परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का परामर्श दिल्ली, 11-3-1981 ( अंग्रेजी प्रवचन से अनुवादित ) र उस दिन मैंने आपको बताया था कि है, "क्या मुझे श्री गणेश के इस फोटो की पूजा चैतन्य लहरियां ब्रह्मशक्ति के अतिरिक्त कुछ भी करनी चाहिए या नहीं?" सर्वप्रथम हमें देखना चाहिए नहीं-ब्रह्मा की शक्ति। ब्रह्मा की शक्ति वह शक्ति कि इसमें चैतन्य लहरियाँ आ रही हैं या नहीं? मान है जो सृजन करती है. इच्छा करती है, उत्क्रान्ति लो आप एक घर लेते हैं. तो आपको अवश्य देखना करती है तथा आपको जीवन्त-शक्ति प्रदान करती चाहिए कि घर से चैतन्य आ रहा है या नहीं। हम है। यही शक्ति हमें जीवन्त शक्ति प्रदान करती है। सुख-सुविधा को देखते हैं, अन्य चीज़ों को देखते हैं. इम यह भी देखते है कि वहाँ पर आने वाले अन्य शक्ति क्या अब ये समझना सुगम नहीं है की मृत्त है और जीवन्त शंक्ति क्या है। जीवन्त शक्ति को लोगों के लिए ये स्थान ठीक है या नहीं, परन्तु समझना अत्यन्त सुगम है। कोई पशु या हम कह चैतन्य लहरियों के नजरिये से उस घर को नहीं सकते हैं एक छोटा सा कीड़ा जीवन्त शक्ति है। देखते। अब जो भी कुछ हम करते हैं उसे चैतन्य इच्छानुसार ये अपने को घुमा सकता है, किसी चेतना के दृष्टी-कोण से सोचना आवश्यक है. खतरे से अपनी रक्षा कर सकता है। ये जितना चाहे अर्थात जीवन्त चीजों पर कार्य करने वाली चेतना छोटे आकार का हो परन्तु जीवन्त होने के कारण के दृष्टिकोण से। जैसे हम कह सकते हैं कि पेड़ ये अपनी रक्षा कर सकता है। परन्तु कोई भी मृत की जड़ के सिरे का तन्तु जीवन्त चीज है। बेशक चीज़ अपने आप हिलडुल नहीं सकती। जहाँ तक इस में सोचने की शक्ति नहीं है. परन्तु जीवन्त स्व (Self) का प्रश्न है वह तत्व इस में नहीं होता। शक्ति स्वयं इसका पथ प्रदर्शन करती है। अतः इसे जीवन्त शक्ति होने के नाते अब हमें यह इस बात का ज्ञान है कि जीवन्त शक्ति के साथ पता लगाने का प्रयत्न करना चाहिए कि, "क्या हम किस प्रकार चलना है, इस के साथ किस प्रकार जीवन्त शक्ति बननें वाले हैं या जीवन विहीन " रहना हैं और इसके साथ चलने के लिए इसमें इस विश्व में रहते हुए हम अपनी सुख सुविधाओं के विलीन होने के लिए. इसकी योजनाओं को किस विषय में सोचने लगते हैं कि हमें कहाँ रहना है और प्रकार समझना है। क्या करना है। जब हम इन चीजों के विषय में सोचते हैं तो हम मृत चीजों के विषय में सोच रहे प्राप्त है। एक बार जब आपको आत्मक्षात्कार मिल होते हैं । परन्तु मानव को निर्णय लेने की स्वतन्त्रता परन्तु जीवन्त कार्य करने के लक्ष्य से जब जाता है तो आपको जीवन्त शक्ति प्राप्त हो जाती हम कोई स्थान, कोई आश्रम प्राप्त करने के विषय है इसी जीवन्त शक्ति को आप महसूस करते हैं। में सोचते हैं तब हम उस स्थान को जीवन प्रदान करते हैं । सारी जीवन विहीन चीजों से उस वातावरण अन्य सभी चीजों कों ज्योतिर्मय अवस्था में बनाये की सृष्टि की जानी चाहिए सृजन करने के लिए । अब यह अत्यन्त सूक्ष्म बात है जिसे बहुत है। कम लोग समझते हैं। उदाहरण के रूप में कोई व्यक्ति मेरे पास श्री गणेश का फोटो लाकर पूछता विचार प्रदान करती हैं। उदाहरण के रूप में इस अंतः अपने शरीर मस्तिष्क, अहं, प्रतिअहम् तथा जीवन्त शक्ति का रखने के लिए इस जीवन्त शक्ति की योजनाओं को समझकर इस का उपयोग करना आपने सीखना अधिकतर समस्याओं के विषय में यह आपको मार्च - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड XVI अंक 3-4 19 देश में विशेष रूप से दिल्ली में, आप लोगों को बाई कि इनमें बहुत अधिक न उलझा जाए। आपको नामी की पकड़ होती है, दाएं स्वाधिष्ठान की भी यदि यह चीज मिल जाए तो ठीक है और न मिल ि पकड़ होती है और इसके बाद हुृदय और आज्ञा की जाए तो भी ठीक है । अधिक से अधिक चीजों के पकड़ होती है। यह चक्र हमारे अस्तित्व को देखते साथ भी आप रह सकते हैं और कम से कम चीजें हैं। अतः हमें चाहिए कि बाई ओर से देखना आरम्भ पाकर भी। परन्तु अपनी भौतिक ( मृत) चीजों को करें कि क्या होता है? बाई ओर समस्या का आरम्भ बाएं तब हमारा चित्त इन्हीं मृत (भौतिक) चीज़ों की ओर स्वाधिष्ठान से होता है क्योंकि ये पहला चक्र है जो ही जाता है। इस प्रकार से हम अपने अवचेतन में हमारे अन्दर नकारात्मकता प्रवाहित करने लगता चले जाते हैं और फिर सामूहिकअवचेतन में । फिर है। वास्तव में बाएं स्वाधिष्ठान के शासक श्री गणेश यह पकड़ ऊपर की ओर बाई नाभि पर चली जाती हैं। क्योंकि श्री गणेश ही जीवन का आरम्भ हैं तथा है और बाई नाभि की पकड़ से हम भौतिक पदार्थो जीवन और के बीच की कड़ी हैं अतः श्री के लिए पगला जाते है। उदाहरण के लिए घड़ी, गणेश ही सन्तुलन प्रदान करते हैं, आपको वह विवेक, वह सूझबूझ प्रदान करते हैं जिसके द्वारा से इसका कोई लेना देना नहीं है । उदाहरण के आप समझ पाते हैं कि किस सीमा तक जाना है लिए आप यह नहीं कह सकते कि किस समय फूल जब बायां स्वाधिष्ठान पकड़ता है तो आप उन लोगों फल बन जाएगा। अतः घड़ी या समय को जीवन्त के पास जाना शुरु कर देते हैं जो ऐसी चीज़ों का शक्ति से कोई लेना देना नहीं है। यह सब मानव वचन आपको देते हैं जैसे "मैं आपको यह दूंगा, मैं रचित चीजे हैं जैसे घड़ी, समय भी मानव का ही आपको वह दूंगा, ऐसा हो जाएगा, आपके साथ वैसा बनाया हुआ है आज यहाँ पर कुछ समय है परन्तु घटित हो जाएगा। परन्तु आपकी अपनी गलत इच्छाओं के कारण भी आपमें यह बाई ओर की भारत में चार बजे हैं तो इंग्लैंड में समय वही नहीं पकड़ आ सकती है। उदाहरण के रूप में हम है। अतः समय महत्वहीन है। आप कब पहुँचते हैं, किसी गलत चीज की इच्छा कर सकते हैं, सोच कब जाते हैं, कितनी बार कार्य करते हैं, यह सब सकते हैं कि यह मृत चीज हमें मिल जानी चाहिए महत्वहीन है। या इसी प्रकार की कोई विशेष बात सोच सकते हैं। मान लो किसी को रैफ्रीजरेटर चाहिए और वह उसी इसकी न तो कोई समय-सीमा हैं और न ही कोई के बारे में ही सोचता रहता है। वह सोचता है कि उसके पास फ्रिज होना ही चाहिए। उसे फ्रिज के इसका हिसाब नहीं लगा सकते । यदि हम ये पास जाना चाहिए क्योंकि उसे फ्रिज चाहिए। वह समझते कि यह जीवन्त शक्ति है जो स्वचालित है उसे मिलना ही चाहिए। फ्रिज उसे क्यों चाहिए? और जो हमारे भौतिक विचारों की तनिक भी परवाह क्योंकि वह सोचता है कि इससे उसे अधिक नहीं करती तो हम भौतिकता (Dead) से मुक्त हो सुविधा मिलेगी। परन्तु फ्रिज लाने के बाद उसे पता जाते हैं। तो हमारा चित्त हर समय भौतिक (Dead ) चलता है कि वास्तविकता यह नहीं है। अतः सभी पदार्थों की तरफ है। हमें क्या प्राप्त करना चाहिए, भौतिक चीजों को देखने का सर्वोत्तम उपाय यह हैं क्या पा लेना चाहिए. हमारी आवश्यकता क्या है? जब हम बढ़ाने लगते है तो यह बहुत बुरी बात है। मृत्यु जीवन्त नहीं है। जीवन्तता हैं यह समय। समय मृत जा |ा इंग्लैड में कुछ और है। आप यदि कहते हैं कि र क्यों कि जीवन्त शक्ति असीम है इसलिए दूरी सीमा है। जिस प्रकार ये कार्य करती है आप अप्रैल 2004 मार्च - 20 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अक 3 - 4 हर समय हम इस नश्वर शरीर की चिंता में लगे रहते हैं। प्रकार से एक बार जब आप करने लगते है तो पुनः आप मृत स्थिति में आ जाते हैं क्योंकि जीवन्त आत्मा की आवश्यकताओं को हम नहीं शक्ति कभी किसी को दोषी नहीं ठहराती। नहीं, ये देखले। आत्मा की आवश्यकता को देखने से आप कभी ऐसा नहीं करती। यह स्वतः उन्नत होती चली बाई ओर की समस्याओं पर कायू पा सकते हैं, आप जाती है, देखती है कि किस ओर को चलना है, इस अपनी आत्मा की देखभाल करने लगते हैं जिससे ओर या उस ओर। यह स्वयं को कोसती नहीं है। आप जान पाते हैं कि आपको चैतन्य लहरियाँ आने किसी चीज के प्रति यह आक्रामक नहीं होती, मध्य में बने रहने का विवेक इसमें होता है। इस प्रकार चैतन्य लहरियाँ आती हैं, यदि यह प्रसन्न नहीं है तो अपना चित्त मृत चीजों से हटा कर आपको बाई ओर ं। इतनी की समस्याएं दूर कर लेनी चाहिएं। जब आप बाई साधारण सी बात है! आपको यदि बाई ओर की ओर को हों तो आपको चाहिए की मध्य में रहते हुए कोई बीमारी या समस्या है तो इसे संतुलित करनें देखें। जो चीज़ आप देखना चाहते हैं, उसे नहीं के लिए आप अपना चित्त भविष्य पर डालें । परन्तु देखते और अन्ततः इनसे पलायन करने के लिए हर मैं जब भविष्य पर चित्त डालने के लिए कहती हूँ तो समय स्वयं को दोष देने लगते हैं और दुःखी रहते है इस प्रकार बाई ओर की समस्याओं का परिणाम है और मिथ्या है। इसी प्रकार भविष्य भी मिथ्या है. अत्यन्त खिन्नता की अवस्था में चले जाना है। बाई इसका कोई अस्तित्व नहीं। दोनों ही काल एक सम ओर के लगावों का यही अन्तिम परिणाम है। अन्ततः (मिथ्या) हैं, चाहे आप बाएं को जाएं या दाएं को आप सोचने लगते हैं कि आप किसी काम के नहीं, चाहिए था. वैसा लगी हैं। आप की आत्मा यदि प्रसन्न है तो आपको आपको चैतन्य लहरियाँ नहीं मिलर्ती लोग भविष्य पर ही अड़ जाते हैं। क्योंकि मृत मृत (तामसिकता में या राजसिकता में) आप चाहे अवचेतन मन में जाएं (Subconcious Mind) या अतिचेतन कर लेना चाहिए था। मन (Supra-concious Mind) में । दोनों ही चीजें बैकार हैं। आपको ऐसा कर लेना अब इस समय इस पर काबू पाने के लिए एक सी हैं। अतः भूतकाल में जाने का कोई लाभ आपको प्राप्त हुए आशीर्वाद गिनने होंगे जो आरशीवाद नहीं। परन्तु यदि आप भूतकाल में बहुत अधिक हैं आपको प्राप्त हुए हैं उन्हें एक एक करके गिनिए। तो भविष्य के विषय में सोचना बेहतर होगा ताकि आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है। पिछले आप थोड़ा सा मध्य (Centre) की ओर जा सकें। हजारों वर्षों में कितने लोगों ने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त परन्तु आप मनुष्यों के लिए ये कर पाना मुश्किल किया? आपको चैतन्य लहरियाँ प्राप्त हो गई है। है । इतनी सदियों मे कितने लोगों को चैतन्य लहरियाँ अब एक अन्य समस्या का आरम्भ तब प्राप्त हुई? जेन (Zen) ग्रन्थों में लिखा हुआ है कि होता है जब हममें किसी चीज़ के विषय में दोष भाव आ.जाता है । जब बाई विशुद्धि पकड़ जाती है तब हममें दोष भाव आ जाता है। "मुझे ऐसा नहीं करना लोगों को आत्मसाक्षात्कार मिला? आप एक बात चाहिए था।" तब आप कहने लगते हैं, "मैं अत्यन्त अवश्य सोचें कि इतने सारे साक्षात्कारी लोग हैं जो दुःखी हूँ, मैं बहुत दोषी हूँ। इस प्रकार आप स्वयं को एक ही भाषा और एक ही जुबान बोलते हैं। आप कोसने लगते हैं। ये एक अन्य मूर्खता है । इस शुक्रगुजार हों कि आप सभी कुछ जान सकते हैं। आठ शताब्दियों में कुल मिलाकर 26 कश्यप (आत्मसाक्षात्कारी) हुए। बुद्ध के पश्चात् भी कितने की मार्च - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -xVI अंक : 3- 4 21 तार सहजयोग में आपमें बहुत विशाल इच्छा होनी चाहिए कि हम सब आत्मसाक्षात्कार को पा लें। जितना भी अधिक से अधिक हो सके अधिक से अधिक लोगों की रक्षा करने का प्रयत्न हमें करना चाहिए। जहाँ तक हो सके हम अपने को सुधारें । हम स्वयं को सुधार सकते है तथा बहुत प्राप्त कर सकते हैं । बाई ओर से भी विचार आ सकते हैं। मान लो आपके सिर में कुछ भूत हैं. तो वे आपमें विचार पैदा कर सकते हैं कि "ओह, आप बेकार हैं या परन्तु यदि आपको बाई ओर की पकड़ हो तो आप भूतकाल में चले जाते हैं और कहते हैं, "हे परमात्मा! मैं इतना बेकार हूँ, नहीं। मैं इतना बैकार, निकम्मा हूँ कि अब भी मुझे पकड़ है। जैसा आप जानते हैं कि जिन लोगों को बांई ओर की पकड़ रहती है वे सदा शिकायत करते रहते हैं और छोटे-छोटे कष्टों की शिकायत करते रहते हैं। अब इसी के मुकाबले एक अन्य पक्ष है। मैं यदि आपसे कहूं कि दूसरी ओर भी जाएं तो वह अत्यन्त भयानक खेल होगा। उदाहरण के रूप मैं किसी काम का से आशीर्वाद में हमारे जीवन में बहुत से बन्धन हैं । आप देखें, किसी काम के नहीं ।" ऐसे में अपने दाएं हाथ से सर्वप्रथम हमारी इच्छाएं हैं, हमारी इच्छा है कि अपनी दाई ओर को उठाएं और बाई को नीचे शानदार सहजयोगी बने, महान गुरु बने या कुछ गिराएं। ऐसा हम क्यों करते है? क्योंकि अपनी दाई महान चीज बन जाएं। हमारी यह भी इच्छा होती ओर से आप कृपा प्राप्त करते है और बाई ओर को है कि हमारे बहुत से शिष्य हों जो हमारे चरण छुएं कम करते हैं । जिन लोगों को बाई ओर की समस्या और हम महान गुरु कहलाएं। अंतः सहजयोग में कुछ चीजों की मनाही विधि यह है कि जब भी आपको ऐसे विचार आएं कि है कि न कोई किसी के चरण छुए और न कोई आप किसी काम के नहीं आदि आदि तो स्वयं को, सहजयोगी किसी को चरण छूने दे । सभी अपने नाम को जूते मारना बेहतर होगा जाकर सहजयोगियों के लिए यह बहुत बड़ा बन्धन है कोई किसी के पैर न छुए और न ही किसी को प्रसन्न हूं, मुझे सभी कुछ प्राप्त हो गया है। अपने चरण छूने के लिए कहे, चाहे आपमें कितने भी गुण हों। चरण छूने वाले लोगों की चैतन्य ओर प्रायः आपको स्वाधिष्ठान की पकड़ आती है। लहरियाँ समाप्त हो जाएंगी और जो लोग प्रणाम यह सोचने के कारण होता है। यह दूसरी तरह की करवाते हैं उनका भी हृदय चक्र पकड़ जाएगा। सोच आपको दाएं स्वाधिष्ठान की पकड़ देती है। अतः सहजयोग के विषय में भी इस प्रकार के जो विचार चाहे बाएं से आए या दाएं से इनसे आपको बन्धन हममें हैं उन्हें दूर किया जाना चाहिए। हम सब सामूहिक रूप से उन्नत हो रहे आता है जब दोनों पक्ष (बायां और दायां) प्रभावित हैं। हम एक ही व्यक्तित्व के अंग प्रत्यंग हैं, न कोई हों कुछ भूत आपको विचार देते हैं कि आप बेकार ऊँचा है और न कोई नीचा। इससे अलग यदि हैं या फिर आप स्वयं को बहुत महान चीज मान कोई सोचता है तो बड़ी तेजी से उसका पतन हो लेते हैं या समझ लेते हैं। इससे स्थिति अत्यन्त जाएगा यह बाई ओर के बन्धन हैं जिनमें लोग डावांडोल हो जाती है और भ्रम उत्पन्न होने लगता बहुत अधिक लड़खड़ाते हैं। सहजयोग में बहुत है। अधिक इच्छाएं त्याग दी जानी चाहिएं । 1 है वे इस विधि को अपना कर देखें। एक अन्य परमात्मा की स्तुति गाएं और कहं "मैं अत्यन्त दूसरी चीज दाई ओर के विषय में हैं, दाई जिगर की समस्या होगी। सबसे बुरा प्रभाव तो तब अतः व्यक्ति को समझ लेना चाहिए कि श्रीए . मार्च अप्रेल, 2004 चैतन् लहरी खण्ड =XVI अक : 3 - 22 सहजयोग में आपको एक तेजधार, एक मध्य बिन्दु का या ये सोचने का कि मैं महान हूँ या तुच्छ हूँ विकसित हो रहा है जिससे आपको न तो बाई और कोई लाभ नहीं है। अब तो केवल ये देखें कि घोड़ा जाना है न दाई तरफ। ये इतनी सूक्ष्म चीज है कि कहाँ जा रहा है। आप घोड़े की पीठ पर बैठे हैं, यदि आप तामसिक प्रवृत्ति हैं तो आवश्यक नहीं कि स्वयं घोड़ा नहीं हैं। आत्मसाक्षात्कार से पूर्व आप आप तामसिक ही बने रहें। कल हो सकता है. आप घोड़ा होते हैं। जहाँ वो आप को ले जाता है आप राजसिक प्रवृत्ति बन जाएं। निःसन्देह कल आप चले जाते हैं। घोड़े को जहाँ घास नजर आती है राजसिक समस्याओं के साथ आएंगे। अतः सन्तुलन घोड़ा वहीं रुक जाता है। घोड़ा कभी कभी किसी सीखना आवश्यक है, वैसे ही जैसे साइकिल सीखते को दुलत्ती भी मारना चाहता है और वह ऐसा करता हुए करते हैं। आप इस ओर भी गिर सकते हैं उस है अब आप घोड़े से बाहर आ गए हैं और सवार ओर भी। साइकिल चलानी आप कब सीखते हैं आपको पता होना चाहिए कि किस प्रकार ये चीजें आप यदि मुझसे पुछे तो मैं कहूंगी कि जब आप आपको मूर्ख बनाती रहीं। आपके अन्दर ये सभी साइकिल चलाते है तभी सीखते हैं अत: सहजयोग इच्छाएं प्राचीन तथा युगों पुरानी हैं। आप देखें कि में भी संतुलित होने के लिए आपको स्वयं को आक्रामकता, कर्म जो आप कर रहे हैं, भी प्राचीन सावधानी से देखना पड़ेगा कि आप किंधर जा रहे है । ऐसा करने से आपको ये मिल जाएगा या बो हैं। यदि बायें को जा रहे हैं तो दायें को आ जाएं, मिल जाएगा। बहुत से लोग कहते हैं, "श्रीमाताजी यदि दायें को जा रहे हैं तो बाएं को आ जाएं। और हम यह कार्य कर रहे हैं, सहजयोग के लिए हम फिर मध्य में आयें। स्वयं को अलग कर लीजिए, इतना कार्य कर रहे हैं फिर भी हमें कोई उपलब्धि हर समय स्वयं को निर्लिप्त कर लीजिए। न अपनी प्राप्त नहीं हुई।" क्या करें? कुछ नहीं कर सकते! अलोचना करनी है, न किसी के प्रति आक्रामक होना है और न ही किसी की आलोचना करनी है। यह युक्ति स्वयं को देखने के लिए उपयोग करनी कभी उन्नति नहीं कर सकते हृदय प्रकाश का है। केवल देखें और अपना पथ प्रदर्शन करें। पथ स्रोत है, यह ब्रह्म शक्ति का सोत है। यह आत्मा का प्रदर्शन भटक जाने से बहुत भिन्न है। यही सिंहांसन है । इूदय वास्तविकता है । मानलो कोई मृत चीज़ है। इसे तो आप उन्नत कैसे हो सकते हैं? यदि मैं फेंकू तो यह फेंके हुए स्थान पर गिरेगी। परन्तु यदि मैं किसी जीवन्त चीज को फेंकूं तो यह है। सहजयोग से आपमें यह परिवर्तन आना चाहिए। ठीक उसी स्थान पर नहीं गिरेगी। अतः जीवन्त आपको उस बिन्दु तक परिपक्व होना चाहिए जहाँ शव्ति जानती है कि स्वयं का पथ प्रदर्शन किस आप यह समझ सकें कि क्या चुनना है यही बनकर घोड़े पर बैठे है। अब आप सवार है अंतः अब आप स्वयं पता लगाएं कि आपमें क्या कमी है? हृदय चक्र यदि पकड़ता है तो ऐसे लोग में यदि जीवन्त शक्ति नहीं होगी आपको ज्ञान होना चाहिए कि क्या चुनना प्रकार करना है। इसी प्रकार से आप भी अपन थ उन्नति है। तब आपको न तो श्रीमाताजी से कुछ प्रदर्शन करना सीख जाएंगें ऐसा करना यदि आप पूछना पड़ता है न किसी अन्य से। यह विकास सीख लेते हैं तब आप सहजयोग में कुशल हो जाते आपमें होना चाहिए कि. "मै जो कर रहा हूँ उसका हैं। मुझे पूरा ज्ञान होना चाहिए मुझे पता होना चाहिए किसी भी प्रकार से अपनी भत्त्सना करने कि क्या ठीक है। इसे ठीक करने की विधि का मार्च अप्रैल, 2004 पैतन्य लहरी खण्ड -XV1 अंक : 3-4 23 ज्ञान भी मुझे होना चाहिए।" इस 'मैं' की समझ परमात्मा ने जो आपको दिया है वो आप अन्य लोगों मुझे होनी चाहिए कि ये आत्मा है अहम् नहीं। अब को दे सकते हैं और उन्हें आनन्दित कर सकते हैं । अहम् या प्रतिअहम् का अस्तित्व नहीं बचा। आत्मा आप यदि ऐसा सोचे तो आपके दोनों पक्ष (बायां ही आपका पथ प्रदर्शन करती है। आत्मसाक्षात्कारी और दायां) एक दम से ठीक हों जाएंगे और दिव्य बच्चों को आप देखें, वे ऐसे ही प्रश्न पूछते हैं वी चैतन्य लहरियों से आप परिपूर्ण हो जाएंगे। जानते हैं कि पकड़ा हुआ कौन है. वो जानते हैं कि हिन्दी प्रवचन किसका मुह बन्द करना हैं और किससे बहस करनी है। पकड़े लोगों से उन्हें कोई हमदर्दी नहीं होती। बो तो बस देखते हैं। कोई यदि आता हैं तो वो मुझे बताते हैं, "श्रीमाताजी ये व्यक्ति चाहिये। विराजिये, आसन पर विराजिये। आसन हुए अब हिन्दी में बतायें। आपको विराजना पकड़ा हुआ है।" मात्र इतना ही। कोई अन्य व्यक्ति पर बैठकर भीख मांग रहे हैं, रो रहे हैं। आसन पर आता है तो एकदम से वे कहते हैं, "ये ठीक है।" बैठकर पागलपन कर रहे हैं! इनका किया क्या बस। मात्र इसकी घोषणा करते हैं । न वे किसी जाये? अरे भई, आसन पर विराजो। आप राजा चीज की चिन्ता करते हैं और न वे किसी से घृणा साहब हैं बैठिये, और अपनी पाँचों इन्द्रियों को आप करते है। भयकर बाधा वाला कोई व्यक्ति यदि आज्ञा दीजिए, "जनाब आप अब ऐसे चलिए, बहुत आता है तो वे कहते हैं, "बेहतर होगा कि आप चले हो गया| अब ये ठीक है, अब वो ठीक है, हाँ बहुत समझ लिया आपको " जब आप इस तरह से पहाड़ की चोटी पर जब आप पहुँच जाते हैं (Command) कमाण्ड में अपने को करेंगे, जब तो सड़क पर चलने वाले वाहनों की चिन्ता की आप अपने को पूरी तरह कण्ट्रोल (Control) में कोई आवश्यकता नहीं। अभी तक आप चोटी पर करेंगे, तभी तो आप अच्छे सहजयोगी नहीं तो जाएं", उस व्यक्ति के प्रति बिना किसी दुर्भाव के। हुए। नहीं पहुंचे, इसीलिए चिन्तित हैं कि मैं चढ़ता हूँ। ये आपके मन (Mind) ने कहा, "चलो इधर". आप सब मिथक (Myth) हैं। आपके मस्तिष्क पर मानसिक बोलते हैं, "माताजी, क्या करूं, इतना मन को साया। ये वास्तविकता है कि आप पहाड़ की चोटी रोकता हूँ, पर मन इधर जाता है।" फिर मन क्या पर पहुँच गए हैं। परन्तु आपको पूर्ण विश्वास नहीं है? मन तो एक (Living force) जीवन्त शक्ति है, है, पूर्ण विश्वास का अभाव है। वो जाएगा ही। मन तो उसी जगह जाएगा, जहाँ जाना है । हमारी जो इन्द्रियां हैं, वो जागृत हो जाती परमात्मा ही आनन्द भोक्ता हैं। आप आनन्द नहीं उठा सकते। आप तो केवल परमात्मा का हैं और फिर हम इधर-उधर जाना ही नहीं चाहेंगे आनन्द ले सकते हैं। यही महानतम आनन्द है, ये और बहुत सी चीजें छोडते चले जायेंगे। महसूस करना कि परमात्मा ने आपके लिए क्या सृजन किया है, मानवीय चेतना में परमात्मा ने रखना चाहिए; अपने हृदय को स्वच्छ रखना। जिन आपको कितना सुन्दर जीवन दिया है! इसी के लोगों का हृदय स्वच्छ रहता है, उनको समस्या द्वारा आप जान सकते हैं कि बो आपको कितना प्रेम (Problem) कम होती है। इसका मतलब यह नहीं करते हैं और आपके लिए उन्होंने कितना कार्य है, कि आप लोग गंदी बातें सोचते रहते हैं। स्वच्छ किया है वे ही आपको इस स्तर पर लाए हैं इन सब चीजों में हमको एक ही ध्यान । हृदय का मतलब है, समर्पण । सहजयोग में अगर मार्च - अप्रैल, 2004 24 चैतन्य लहरी खण्ड-XVI अक : 3 समर्पण में कमी हो जाय या कोई समझे कि मैं फिर आप अपने को ( order) आदेश देंगे। हमेशा कोई विशेष हूँ, तो उस आदमी में (Growth) 3rd Person में। जो आदमी पार होता है बो कभी प्रगति नहीं हो सकती। उसके लिए कोई पढ़ें-लिखे 1st Person (प्रथम पुरुष) में बात नहीं करता, नहीं चाहिएं, कोई विशेष रूप के नहीं चाहिएं। "मुझे यह नहीं हुआ, मुझे कोई अनुभूति वहां बैठिये।" बच्चे भी ज्यादातर ऐसा ही करते हैं नहीं हुई-तो दोष आपका है या सहजयोग का? 3rd Person में बात करते हैं," ये निर्मला अब जाने लोग तो कभी कभी इस तरह से मुझसे बातें करते वाली नहीं है। ये यहीं बैठी रहेगी " सहजयोगियों है जैकि मैने ठेका ही ले रखा है या मेरे पास को भी इसी तरह बात करनी चाहिये। अपनी जो आपने कोई रुपया पैसा जमा किया हुआ है कि माँ, इच्छाएं हैं, अपने जो ideas (विचार) है, या और हम तो आपके पास पच्चीस साल से आ रहे हैं।" कोई ideas, जैसे सत्ता के ideas, इत्यादि, ये सब पच्चीस क्या. तीस साल तक: बूढ़े होने तक भी कोई छोड़कर हमें यह सोचना चाहिए कि हम सहजयोग काम नहीं होने वाला। इसलिए अगर यह नहीं हो के लिए क्या कर रहे हैं और क्या करना है। रहा है, इसका मतलब है कि आपमें कोई न कोई कमी है। लेकिन जैसे ही आप अपने को अपने से परदेस में बहुत ज्यादा हैं। वो लोग कभी मुझसे हटाना शुरु करेंगे, आपको अपने दोष बड़ी ही आकर यह नहीं कहते कि मेरे बाप के दादा के जल्दी दिखाई देंगे और जैसे ही दिखाई देंगे, वैसे चाचा के सगे भाई का फलाना फलाना बीमार है ही आप पुरी तरह से विराजिये, जैसे कोई राजा उनको आप ठीक कर दें कभी भी अपनी Material साहब हैं; अपने सिंहासन पर बैठे हैं। आपको अगर difficulties या Problems नहीं कहते हैं। हालांकि, सुनाई दिया कि हमारे प्रजाजन, कुछ गड़बड़ कर आप पार जल्दी होते हैं, वो लोग बिचारे अपनी रहे हैं; तो कहिए, "चुप रहिये, ऐसा नहीं करने का गलतियों की वजह से ज्यादा समय लेते हैं। पार है। यह नहीं कि ऐसा करो, वैसा करो ।" अपने को आप जल्दी होते हैं पर आपको उसकी कीमत नहीं, पूरी तरह (Command) कमाण्ड में जो आदमी वो जो पार देर से होते हैं, उनको उसकी कीमत है कर लेता है. वही शक्तिशाली है । मिसाल के तौर पर लोगों की बातचीत लें। आँखों में ही देखिये, कितनी एकाग्रता हैं । एक एक लोग जब बात करते हैं यानी हमसे भी बातचीत शब्द को अगर मैं हिन्दी में बोल रही हूँ एक एक करने में ख्याल ही नहीं रहता कि किससे बात कर शब्द को अगर मैं हिन्दीं में बोल रही हूँ, पूरे हमेशा 3rd Person में बात करते हैं. वहां चलिये, सा अभी भी हिन्दुस्तान में ये चीजें कम हैं, उनको तरीका मालूम है, क्या चीज है । उनकी ऐसी बात करते हैं कि बड़ा आश्चर्य सा ध्यान से सुनते हैं। हालांकि भाषा नहीं समझते होता है। उनको अन्दाज नहीं रह जाता कि हमें लेकिन उसमें कैसे वाइब्रेशन (Vibrations) निकल क्या कहना चाहिये, क्या नहीं कहना चाहिए। हमारी रहे हैं, हाथ में कैसे (vibrations) पूरा चित्त रहता जबान पर भी काबू होना चाहिए। यह काबू भी तभी है। होता है, जब आप अपने को अपने से हटे देखेंगे। दिया है। वो कोई चीज नहीं सोचते कि भई यह भी रहें अब इन्होंने अपना जीवन ही सहजयोग को दे कर लेंगे, वो भी कर लेंगे। तभी आप गहरे उतरेंगे । यह जबान है न, उसे ठीक रखना पड़ता है। धीरे धीरे आपकी नई आदतें हो जायेंगी, जीवन सहजयोग को देने से ही आप पनपते हैं, यह नए तरीके बन जायेंगे, नया अन्दाज बन जायेगा भी बात है उसमें आपका कुछ लेना देना तो है चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अक : 3 - 4 मार्थ अप्रैल, 2004 25 कुर नहीं। कोई आपको कमी नहीं हो जाती। सारा क्षेम को भोगना चाहिये, वही जो सबको भोगने वाला है। अगर उसको भोगना शुरु कर दिया तो फिर आपके अन्दर आ जाता है। सारा जीवन ही सहजयोग को दे देना हमें और क्या भोगने की जरूरत है उसका ही चाहिये। एक-एक क्षण सहजयोग को देना चाहिये। सुख भोगें परमात्मा ने क्या-क्या सृष्टि रची है, इसका मतलब है living spontaneously । कहों से कितना सुन्दर सारा संसार बनाया है, कितनी सारी आयेगी spontaneity? है। हमारे अन्दर हर समय जो जीवन्त शक्ति है, अन्दर ये शक्ति परमात्मा ने दी है। अब आप अपनी उससे। और सब बातों को सोचना ही नहीं चाहिये। आत्मा को पा सकते हैं, दूसरे की आत्मा को पहचान वैसे भी आप कभी भोग नहीं सकते। भोगने सकते हैं । कितनी अनन्त कृपा परमात्मा की हमारे वाला सिर्फ परमात्मा है। आपको गलतफहमी है कि ऊपर है। बस यही सोच-सोच कर अपने अन्दर आप भोग रहे हैं। आप भोग ही नहीं सकते। भोगने फूलिये! इस तरह से जब आप परमात्मा को भोगना वाला परमात्मा है और वही रचयिता है और आप तो शुरु करेंगे तो आप देखेंगे कि आपका heart (हृदय) सिर्फ बीच में हैं। जिस तरह पाइप (Pipe) होते हैं, बहुत बड़ा हो जाता है। ऐसा लगेगा कि सारी सृष्टि उसी तरह आप हैं। अगर थोड़ा भोग ही सकते हैं, उस हृदय (heart ) में समा गई है। तो एक चीज भोग सकते हैं वह है परमात्मा जिसे आपसे अनन्त प्रेम है। बस, यही एक सत्य है परमात्मा को भोगना करें। बाकी सब चीजों का जिससे आप पूरी तरह से आनन्दित रह सकते हैं, भोग आप छोड़ कर परमात्मा का भोग करें और पुलकित रह सकते हैं, पुलकित रह सकते हैं। बाकी उसका आनन्द उठायें कि आपको परमात्मा ने क्या किसी भी चीज से आपको आनन्द नहीं मिल क्या दिया। क्या क्या चीजें दी हैं? हर जगह इसका सकता, किसी भी चीज को भोगने वाला सिर्फ वही आनन्द उठाना शुरु कर दीजिये आप देखेंगे कि है। बात यह है कि आपको आज कुछ चाहिये में प्रगति इसी तरह से होगी । वो ला दिया, फिर भी आप खुश नहीं। कल फिर आपको वो living force से आती चीजें हमें दी हैं! हम सहजयोगी हो गये हैं हमारे लि आज का मेरा आपको सन्देश है-आप शुरु आपका चित्त एक दम स्थिर हो जायेगा सहजयोग हर मिनट में हमें क्या मिला। इतना मिल कुछ चाहिये, कल दूसरी चीज ला दी, फिर गया, इतना मिल गया, ऐसे कहते हुए चलिये, नहीं तीसरी चीज ला दी, फिर भी खुश नहीं । आप कभी तो आपके complaints कभी नहीं खत्म होने वाले भी सांसारिक चीजों से खुश नहीं हो सकते। भोगने वाला सिर्फ परमात्मा है, इसलिये वाला सबको चाहिए कि हम उसको भोगें हमको परमात्मा और आप का aggression भी कभी खत्म नहीं होने परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। सहजयोग महायोग क्यों है सहजयोग महायोग क्यों है? मानव इतिहास जाता है, इन्हें प्राप्त करता है, प्राप्त करता है और में यह पहली बार घटित हुआ है कि बिना किसी पुनः संचारित करता है। दूसरे व्यक्ति से आते हुए मानसिक, शारीरिक या भावनात्मक प्रयत्न के मनुष्य इन चैतन्य लहरियों को हम महसूस कर सकते है। शीतल चैतन्य लहरियों का अनुभव कर सके। इस यह बात अत्यन्त अविश्वसनीय प्रतीत होती है परन्तु अवस्था में व्यक्ति पूर्णतः शान्त होता है और उसका यदि हमारे मस्तिष्क का सृजन इन्ही तंरगों से हुआ मस्तिष्क विचार मुक्त होता है। अपने अन्दर पूरी है तो ऐसा होना ही था अन्य लोगों को देने से ही तरह से मौन (शान्त) स्थिति में होते हुए भी वह पूरी ये चैतन्य लहरियाँ प्रवाहित होती हैं क्योंकि इनका तरह चुस्त होता है और घटित होने वाली चीजों के स्र्रोत सामूहिकता को-पूर्ण को-चाहता है। सहजयोग प्रति चेतन। उसकी पाँचों कर्म-इन्द्रियाँ कार्य शील में व्यक्ति (अकेले) व्यष्टि में साधना करके बहुत होती हैं। बाल सुलभ उस व्यक्ति के सभी कार्य उन्नति नहीं कर सकता। आदान प्रदान सहजयोग में आवश्यक है-भौतिक वस्तुओं का नहीं चैंतन्य स्वतः होते हैं। व्यक्ति वर्तमान क्षण में होता है, जो कि लहरियों का । एकमात्र वास्तविकता है यही सहजयो ग है-महायोग। परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी की है और पिछले चार वर्षों से सूक्ष्मतरंग (Microwave पृथ्वी पर अवतरित आदिशक्ति का अवतरण हैं। Antenna) एन्टीना में कार्यरत हूँ। जब मैं सहजयोग उनके सम्मुख याचना करने मात्र से व्यक्ति को में आया तो मुझे गुरुओं, धर्म, यहाँ तक की परमात्मा आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाता है, वह ज्योर्तिमय में भी विल्कुल विश्वास न था। मैं पूरी तरह से हो उठता है। सहजयो ग महायोग है क्यों कि के सम्मुख मुझे यह चैतन्य लहरियाँ महसूस होने मैने दूरसंचार में M.Sc. की उपाधि प्राप्त वैज्ञानिक था। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् मनुष्य अपनी लगीं। शक्की मिजाज होने के कारण, पहले तो मैने आत्मा को चेतन अवस्था में महसूस कर सकता है सोचा कि ये शीतल वायु खिडकियों से आ रही है, और उसके हाथों से शीतल चैतन्य लहरियाँ बहनें तत्पश्चात् मुझे लगा कि ये कोई युक्ति या सम्मोहन लगती हैं तथा वास्तविकता का ज्ञान उसे हो जाता है परन्तु मैं पूर्णतः चुस्त और चेतन था। वहाँ कुछ है। चैतन्य लहरियाँ विद्युत चुम्बकीय तरंगों की तरह भी परिवर्तन नहीं हुआ था सिवाय इसके की मैरे से होती हैं। हृदय स्थित आत्मा जिनका स्रोत है। हाथों से चैतन्य लहरियों बहनें लगीं थी। इससे पूर्व एक स्टेशन से ये संचारित होती हैं और एक कभी भी अपने जीवन में मैंने इतनी शन्ति और एन्टीना इन्हें ग्रहण करके दूरदर्शन उपकरण तक चुस्ती अनुभव नहीं की थी। भेजता है। इन तरंगों को हम माप सकते हैं। ये विद्युत चुम्बकीय लहरें केवल त्रिआयामी होती हैं शैली का ज्ञान मैंने अपनी पढ़ाई के दौरान प्राप्त जबकि सहजयोग में प्राप्त होने वाली चैतन्य लहरियाँ किया था पानी के तालाब में यदि पत्थर फेंकें तो बहुआयामी होती हैं-इनमें भावनात्मक मानसिक जिस तरह से लहरें अपनी धुरी से आगे की ओर एवम शारीरिक शक्तियाँ मिश्रित होती हैं। ये सर्वव्यापी जाती हैं उसी प्रकार ये विद्युत चुम्बकीय तरंगे भी हैं। मनुष्य भी इन्हें पाकर एन्टीना की तरह से बन अपने सरोत से निकल कर सारी बाधाओं को दुर विद्युत चुम्बकीय तरंगों तथा उनकी कार्य मार्च -अप्रैल, 2004 मितल्य लहरी खण्ड - XVI अक 3- 4 27 करती हुई चहूँ ओर बढ़ती हैं। रडार में भी टकरा परमात्मा को समझने का एक मात्र मार्ग किसी कर आने वाली इन्ही तरंगों को पकड़ने का सिद्धांत घटना के माध्यम से उसे अनुभव करना है या विवेक कार्य करता है क्योंकि ये तरंगें रडार की ओर आने बुद्धि के माध्यम से उसे जानना है। वाली चीज़ की उपस्थिति तथा स्थिति को बताती हैं। इन विद्युत चुम्बकीय तरंगों का वास्तविक हैं। चैतन्य लहरियों की शक्ति की तुलना में ये चैतन्य लहरियाँ वास्तव में शक्तिशाली आकार-प्रकार एक रहस्य है। केवल इतना कहा अन्तरिक्षयान प्रणाली कहीं भी नहीं ठहरती। ये तो जा सकता है कि विद्युत चार्ज द्वारा ये उत्पन्न होती चैतन्य लहरियों का एक छोटा सा रूप है क्योंकि हैं और इनका प्रभाव जाना जा सकता है। वास्तव चैतन्य लहरियाँ पूरे ब्रह्माण्ड में पेंठ जाती हैं. हम इन में इनका वर्णन नहीं किया जा सकता। अपने कार्य का अनुभव करते हैं, इच्छा अनुरूप चलाते हैं, इनका में से आती हुई इन विद्युत चुम्बकीय तरंगों की आनन्द लेते हैं और अन्य लोगों को रोग मुक्त करने दूर शक्ति को मैं एक मीटर द्वारा माप सकता हूँ तथा के लिए इनका उपयोग कर सकते हैं। ये चैतन्य तरंग-पथ-प्रदर्शन के माध्यम से मनचाही दिशा में लहरियाँ जब बहने लगती हैं तो हम अपने अन्दर भेज सकता हूँ। टेलीफोन पर भी बात करते हुए हम मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक पक्षों को ठीक विद्युत चुम्बकीय तरंगों का इस्तेमाल करते हैं । यहाँ पर मैं आश्चर्य चकित था कि मेरे सारी समस्याओं का मूल कारण ही हमारा मध्यमार्ग अन्दर यही सारी प्रक्रिया घटित हो रही थी। मैं पर न होना है, हम या तो भावनात्मक पक्ष में होते बास्तव में एन्टीना था जो इन तरंगों को महसूस कर हैं या मानसिक या शारीरिक। सकता था तथा मेरी अंगुलियोँ मीटर की तरह से कार्य कर रही थीं। मैं यह ऊर्जा प्राप्त कर रहा था सन्तुलन करने लगते हैं या इसके लिए प्रयत्न करते और इसे इच्छा अनुरूप चला रहा था। मेरे लिए ये हैं तो हमारा अहम् हमें एक ओर या दूसरी ओर ले बात अविश्वसनीय और आश्चर्यकर थी। वैज्ञानिक होने के नाते मैंने अपने मस्तिष्क सकते। एक क्षण हम प्रसन्न होते हैं और तरंगित का उपयोग किया और सोचा कि क्यों मेरे हाथों में एवम सशक्त परन्तु अगले ही क्षण निराशा से ये शीतल लहरियाँ महसूस हो रही हैं? क्या मेरे परिपूर्ण, चिन्तित या क्रोधित और इस प्रकार हमारी अन्दर ऐसा कुछ है जो सहजयोग के सत्य को सारी शक्तियाँ किसी न किसी प्रकार नष्ट होती पहचानता है और शीतल लहरियों के रूप में अपनी रहती हैं। जब भी हम असन्तुलित स्थिति में होते हैं अभिव्यक्ति करता है? अगर इसका सम्बन्ध परमात्मा तो कैंसर जैसे कई भयानक रोग हमें हो सकते हैं। से है तो निश्चित रूप से मैं इसे अपने मस्तिष्क के सहजयोग में आने के पश्चात् जब हमारे अन्दर माध्यम से नहीं समझ सकँगा क्योंकि परमात्मा ने चैतन्य लहरियाँ बहने लगती हैं तो ये मध्य मार्ग पर ही तो मेरे मस्तिष्क का सृजन किया है। एक आने में हमारी मदद करती हैं । वैज्ञानिक होने के नाते यदि मैं किसी रोबोट की करके सन्तुलित अवस्था प्राप्त कर सकते हैं। हमारी सहजयोग तकनीक द्वारा जब हम अपना जा रहा होता है। स्थिर होकर हम इसे देख नहीं रचना करू तो बह रोबोट किसी भी प्रकार से शेष भाग पृष्ठ संख्या 32 पर मुझे-अपने रचयिता को समझ नहीं सकता। अतः . पव सर सी० पी० श्रीवास्तव का भाषण (26 दिसम्बर 1980 मुम्बई) ( अंग्रेजी से अनुवादित ) 26 दिसम्बर 1980 को बम्बई तथा विदेशों से आए सहजयोगियों ने सर सी० पी० श्रीवास्तव के लगातार तीसरी बार समुद्रवर्ती सलाहकार संस्था के महासचिव (Secretary General of IMCO) बनने पर उनका गर्म जोशी से स्वागत किया। उत्तर देते हुए इस अवसर पर सर सी० पी० श्रीवास्तव ने उनका अभारी ही नहीं हूँ मुझे उन पर अत्यन्त गर्व भी है। क्यों मुझे उन पर गर्व है? उन पर मुझे इसलिए गर्व है कि एक ऐसे समय पर, चाहे बह पूर्व हो, पश्चिम हो, उत्तर हो या दक्षिण हो, विश्व पीड़ित है सर्वत्र, बेचैनी खिन्नता और निराशा की भावना है पूरे विश्व के लोग ये जानना चाहते हैं कि विश्व-निर्मल- धर्म के हम लोग विश्व सहजयोग परिवार के प्रिय सदस्यो! किस प्रकार शन्ति एवम् सुख से रह लेते हैं? विश्व मेरे और मेरे कार्य के विषय में जितनी उदारता के सभी विचारशील लोगों के सम्मुख यह प्रश्न है पूर्वक आपने कहा है तथा आप लोगों का स्नेह व और इसका कोई उत्तर तो अवश्य होगा क्योंकि हम प्रेम पाने के लिए मैं जो कुछ भी कर पाया और जो सबने एक साथ रहना है उत्तर वास्तव में यह है प कहा:- कुछ कृपा आप लोगों ने की, यह मेरे लिए अत्यन्त कि चाहे जिस भी देश से हम सम्बन्धित हों, हम सब सम्मानमय है। इससे मैं अभीभूत हूँ। आप लोगों ने एक ही विश्व परिवार के सदस्य हैं। हमें यदि स्मरण कहा कि अपनी पत्नी, आपकी माताजी को सहजयोग है तो जिस ब्रह्माण्ड के विषय में हम जानते हैं कार्य करने की आज्ञा देकर मैंने बहुत बड़ा त्याग उसके केवल एक ही उपग्रह पर जीवन है। यह किया है। मैं आपको बताना चाहता हूँ कि ये उपग्रह हमारा है । हम लोग अत्यन्त सौभाग्यशाली हैं यलिदान नहीं है. ये तो महान सम्मान है लगभग कि परमात्मा ने हमें सर्वोत्तम बनाया है यह अपने एक तिहाई सदी (34 वर्ष) पूर्व जब हमारा विवाह आप में एक महान आशीर्वाद है और हमें चाहिए कि तो हमारा परिवार बना, एक छोटा सा परिवार । कम से कम कुछ ऐसा करें कि सच्चे भाई बहनों की हुआ तभी हमने मिलकर निर्णय किया कि अपनी दोनों तरह से मिलकर हम लोग रह सकें। यह केवल बेटियों का पालन पोषण करना हमारा प्रथम कर्तव्य जुबानी जमा खर्च न होकर हार्दिक प्रेम हो। इस होगा। हम इस बात पर भी सहमत हुए कि बेटियों अवस्था तक पहुंचना अत्यन्त आवश्यक है। मुझे का विवाह करने के पश्चात् वे (श्रीमाताजी) मानव लगता है कि अब विश्व एक नई क्रान्ति के लिए कल्याण के लिए जितना भी हो सकेगा समय देंगी। तैयार है। उन्नीसवीं शताब्दी में औद्योगिक क्रान्ति हमारे बच्चे जब बड़े हो रहे थे तो उन्होंने पूर्ण हुई जिससे बहुत से देशों में आर्थिक वैभव आया समर्पण पूर्वक उनके पालन पोषण में अपना समय और जिसने अन्य देशों को भी वैभवशाली बनाया। लगाया और मेरी भी जी जान से सेवा की। उनके परन्तु यही सब काफी नहीं है। मानव के लिए सहारे और देखभाल के बिना सरकार द्वारा सौंपी भौतिक समृद्धि आवश्यक है परन्तु यह अन्तिम लक्ष्य गई जिम्मेदारी को पूरी तरह से निभा पाना मेरे लिए नहीं है। भौतिक समृद्धि के अतिरिक्त भी मानव के सम्भव न होता। मैं उनका हृदय से अभारी हूँ। प्राप्त करने के परन्तु आज मैं ये कहना चाहता हूँ लिए बहुत कुछ है - 'आध्यात्मिक कि मैं केवल लक्ष्य'। केवल आध्यात्मिक उपलब्धियों, आध्यात्मिक सार्च - अप्रैल, 2004 चैत्तन्य लहरी खण्ड -XVI अंक 3-4 29 तुष्टि के माध्यम से ही सच्ची खुशी प्राप्त की जा विरोध का सामना करना पड़ेगा तथा एकरूपता सकती है। कोई चिंगारी होनी आवश्यक है जो एवम् सदभावना आपको न मिल पाएगी। परस्पर चमक उठे। और आप लोगों के सम्मुख तो इस शन्ति पूर्वक रहने के लिए ये दोनों नितान्त आवश्यक प्रकाश का स्रोत है 'ये महिला' (श्रीमाताजी)! अतः हैं। जब मैं कहता हूँ कि मै कोई त्याग नहीं कर रहा तो निःसन्देह मैं स्वयं को आप ही का एक हिस्सा अतः वे (श्रीमाताजी) आपका अध्याल्मिक पथ-प्रदर्शन कर रही हैं और निः:संशय मैं भी उन्हीं मानता हूँ। इस प्रयत्न का एक छोटा सा अंश। मुझे हजारों लोगों में से एक हूँ जो उनके प्रशंसक हैं उनपर तथा उनके इस कार्य पर गर्व है । इसके अतिरिक्त भी मैं आपको कुछ बताना हैं उसके लिए सभी प्रकार से मेरा पूर्ण समर्थन उन्हें चाहूँगा। हाल ही में मुझे एक अद्वितीय अनुभव प्राप्त है। मेरे विचार से समर्थन शब्द ठीक नहीं है हुआ। वे अत्यन्त व्यस्त व्यक्ति हैं और बिना किसी क्योंकि उन्हें किसी के समर्थन की आवश्यकता नहीं धृष्टता के. यदि मैं कहूँ कि मैं भी अपने कार्य में है । आशा है आप मुझे क्षमा करेंगें क्योंकि मैं दो बहुत व्यस्त हूँ, फिर भी एक शाम लन्दन के इसी भागों में बंटा हुआ हूँ। मेरे लिए ये भूल पाना कठिन प्रकार के एक उत्सव में उन्होंनें मुझे आमन्त्रित है कि मै उनका पति हैं, अतः मेरी अभिव्यक्ति के किया। वहाँ पर मैंने एक अन्य सहजयोगी परिवार लिए मुझे क्षमा करें क्यॉंकि उनका पति होने के नाते को देखा - सहजयोगी और सहजयोगिनियों को। मैंने ये शब्द उपयोग किया था मेरी इच्छा है कि उनकी भाव भंगिमाएं कितनी सुन्दर थी! कितनी आप सब ये बात समझ लें कि. जो कार्य वो कर रही आन्तरिक शन्ति का भाव उनमें था, सामूहिकता की हैं वह मानव मात्र के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है । कितनी भावना उनमे थी! मुझ पर इसका बहुत गहन वास्तव में, मेरे विचार से, विश्व भर में पुरुषों और प्रमाव पड़ा । मैने महसूस किया कि भिन्न देशों से महिलाओं के उत्थान से ही हम अपने सृष्टा आए हुए इन दुस्साहसी व्यक्तियों के इस परिवार सर्वशक्तिमान परमात्मा के योग्य बन सकेंगे। का अन्तर्परिवर्तन कर दिया गया है, उन्हें एक ही लक्ष्य बाले परिवार के सूत्र में पिरो दिया गया है। संस्था (IMO) जिस संस्था में कार्य करने का सौभाग्य उनका सम्मान करते है तथा जो कार्य वह कर रही मत अब अन्तरराष्ट्रीय समुद्रवर्ती सलाहकार उन्हें इस बात का अहसास हो गया है कि हम एक मुझे प्राप्त है, उसमें मेरे पुनर्चयन के विषय में जो ही परिवार के सदस्य हैं। सभी आध्यकत्मिकता के शब्द कहे गए हैं उनके लिए मैं आभारी हूँ। ये विकास के लिए एक दूसरे की सहायता करने के अत्यन्त सुखकर थे। सम्भवतः आप लोग जानते हैं लिए उत्सुक थे। यह कितना चमत्कारिक कार्य है? कि मेरा चुनाव सर्वसम्मति से था इस बात का मैं सोचता हूँ कि आज विश्व को किसी अन्य चीज वर्णन मैं केवल एक वजह से कर रहा हूँ कि ऐसे की अपेक्षा इसकी कहीं अधिक आवश्यकता है। बहुत से मामले हैं कि जिनके कारण विश्व बंट किसी भी अन्य चीज़ की अपेक्षा इस देश को जाता है। बहुत ही कम विषयों पर विश्व सरकारें इसकी बहुत आवश्यकता है। यह अन्तपरिवर्तन है एक मत होती हैं मेरे पुनर्चयन पर यदि वे सहमत व्यक्ति का आन्तरिक उत्थान, जो कि अत्यन्त हुए-चाहे वह सोवियत गणतंत्र हो, अमेरिका हो. आवश्यक है। ये उत्थान यदि नहीं होता तो आपको बर्तानिया हो, विकसित देश हों. चीन हो या पकिस्तान, मार्य - अप्रैल, 2004 पैतन्य लहरी खण्ड - XVI अक 3-4 30 सभी एक विशेष सिद्धांत को मान्यता देने के लिए गातिविधियों के बीच कार्यशैली सिद्धान्त समन्वयन सहमत हुए हैं और एक प्रकार से उनसे (श्रीमाताजी) हुआ है संयुक्तराष्ट्र प्रणाली में मेरी बहुत छोटी सी प्राप्त हुआ सहजयोग संदेश मेरे माध्यम से सब जिम्मेदारी है। परन्तु जहाँ तक हो सके ये मेरा लोगों को दिया जा रहा था। संस्था के सदस्य देशों कर्तव्य है और सदा मेरा प्रयत्न रहा है कि विश्व को मैं जो संदेश देता हूँ वह ये हैं कि हम समूहों में समाज की एक अत्यन्त उन्नत सिद्धान्त के माध्यम बंटे हुए नहीं है। झुंड बनाने में मेरा विश्वास नहीं है, से-आध्यात्मिक विधि से-सेवा की जाए। विदेशों परस्पर विरोध में मेरा विश्वास नहीं है। मैं नहीं से आए हुए मित्रों का, भारतीय होने के नाते, मैं मानता कि युद्ध से संसार चल सकता है, मैं नहीं हृदय से स्वागत करता हूँ। यहाँ आकार नववर्ष का मानता कि विकसित देशों से लड़कर विकासशील दिन इस देश में बिताकर आपने मुझे महान सम्मान विश्व विकसित हो सकता है मेरा विश्वास है. मैं प्रदान किया है इस अवसर पर मैं वर्ष 1981 के ा वास्तव में सत्य पूर्वक मानता हूँ कि हम सब परस्पर लिए आप सबको मंगलकामनाएं देता हैँ और कामना एक होकर सहयोग मार्ग से साथ-साथ चल सकेंगें। करता हूँ कि सहजयोग निरन्तर बढ़ता चला जाए मैं यही संदेश सदैव देता हूँ।" यह सहजयोग का तथा पूरे विश्व को चेतना के, स्नेह एवम् प्रेम केवल एक पक्ष है। परन्तु यही सन्देश है जो मैं सम्बन्धों के एक नए स्तर पर उन्नत कर सके तथा संस्था को देता हूँ कि इसमें कार्य करना मेरा उन्हें महसूस करवा सके कि मानव का जन्म महान सौभाग्य है तथा इस बात की मुझे प्रसन्नता एवम् सन्तोष है कि संयुक्तराष्ट्र प्रणाली की समुद्रवर्ती करने के लिए नहीं। उसका लक्ष्य आध्यात्मिक, संस्था की प्रतिनिधि सरकारें इस दश्शन को मानती बहुत ऊँचा जीवन है। इन शब्दों से आपकी सफलता, हैं और स्वीकार करती हैं कि परस्पर मिलकर कार्य प्रसन्नता और सुख शन्ति के लिए मैं प्रार्थना करता करने से समुद्रवर्ती गातिविधियों में काम करने वाले हूँ और एक बार फिर आपको धन्यवाद देता हूँ। विश्व के लोग आगे बढ़ सकते हैं। इससे सभी को सभी वक्ताओं ने मेरे विषय में सम्मान जनक शब्द सन्तोष होगा सर्वसम्मति से मेरा पुनर्चयन करके बोले मै उनका ( श्रीमाताजी) भी धन्यवादी हूँ कि उन्होंनें मेरा और मेरे देश का सम्मान किया है । मुझे आश्रय देकर वो मेरे लिए इतना कुछ कर रही परन्तु मै सोचता हूँ कि इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र हैं। प्रणाली का पथ प्रदर्शन करने वाले इस सिद्धान्त का उन्होंने सम्मान किया है इस प्रकार एक ओर तो सहजयोग तथा दूसरी ओर संयुक्तराष्ट्र की ा लक्ष्यों के लिए हुआ है. सर्वसाधारण जीवन यापन आप सबका हार्दिक धन्यवाद (निर्मल योग 1981) बाइबल से कथन ओ३म आमीन तथां सृष्टि की उत्पत्ति चैतन्य लहरियों के विषय में : "मैं ही वह जीवन्त भोजन हूँ जो स्वर्ग से श्रीमाताजी के विषय में : (Luke 13.8.) पृथ्वी पर आया। जो भी इस भोजन को खाएगा बह -पुत्रो अमर हो जाएगा विश्व के जीवन के लिए जो भोजन के सभी अपराध क्षमा हो जाएंगे और उनके द्वारा की गई ईश निन्दा को भी क्षमा कर दिया जाएगा। (John 6.5) परन्तु आदिशवित (Holy Spirit) के निन्दक के लिए "कोई यदि प्यासा है तो वह मेरे पास आए कोई क्षमा नहीं है। उसका अपराध दोष तो कभी "मैं आपसे सत्य कहता हूँ कि मानव- मैं दूँगा बह मेरा अपना मॉस (Flesh) हैं। और जलपान करे जिसे मुझ पर वेश्वास है, जैसा समाप्त नहीं होता, सदैव बना रहता है धर्म - ग्रंथों में लिखा है, "उसके हृदय से जीवन्त जल की सरिता बह निकलेगी।" क (Make 3.28) "मानव पुत्र के विरोध मे कोई यदि कुछ (John 7.37) कहेगा तो उसे भी क्षमा कर दिया जाएगा परन्तु आदिशक्ति के विरोध में बोलने वाले को क्षमा नहीं रताट आज्ञाचक्र के विषय में : "संकीर्ण द्वार से प्रवेश करने के लिए संघर्ष करें। क्योंकि, मैं आपको बताता हूँ कि बहुत से लोग इस द्धार से प्रवेश करने के लिए साधना करेंगे मिलेगी।" (Mathew 12.32) "अभी भी आपको बताने के लिए मेरे पास बहुत सी बाते हैं परन्तु उन्हें सहन करने की योग्यता आप में (Luke 13.24) नहीं है। जब सत्यआत्मा अवतरित होंगी तो वे इस "मै ही द्वार हूँ। कोई यदि मुझेसे प्रवेश " परन्तु वे सफल न होगे।" सत्य को समझने में आपका मार्ग दर्शन करेंगी। करेगा तो उसकी रक्षा होगी, वह अन्दर बाहर आ (John 16.12) मैने ये सब बाते शी जा सकेगा तथा उसे चरागाह (मोक्ष) मिल जाएगी" 'आप के साथ होते हुए मार्ग दर्शक आदिशक्ति को आपको बताई हैं जब परमपिता परमात्मा मेरे नाम पर भेजेंगे तो वे (John 10.9) परन्तु कुण्डलिनी के विषय में : "परमात्मा के साम्राज्य की तुलना मैं किससे सभी चीजों का ज्ञान आपको सिखायेंगी और जो भी करूं? यह उस खमीरे (Leaven) की तरह से है कुछ मैंने आपको बताया है उसे आपके स्मृतिपटल जिसे लेकर महिला गुंथे हुए आटे की तीन तहों के पर लायेंगी। बीच में तब तक रखती है जब तक आटा खमीरा न (John 14.25) हो जाए। विराट में सहजयोगियों की सामूहिक चेतना के परमात्मा का साम्राज्य कैसा है? और इस विषय में :- की तुलना मैं किस से करूं? यह सरसों के उस दाने जैसा है जिसे लेकर कोई व्यक्ति अपने बाग में पिता (परमात्मा) में स्थित हूँ और आप मुझ ऊगा लेता है। अंकुरित होकर यह दाना पेड़ बन तथा मैं आप में स्थिित हूँ"। "उस दिन आप जान जाएंगे कि मैं अपने में हैं जाता है, और वायु-मार्ग में उड़ने वाले पक्षी उसकी डालियों में घोंसले बना लेते हैं। (John 14.18) "हे। परमपिता जो गौरव आपने मुझे प्रदान आट मार्थ - अप्रैल, 2004 पैतन्य लहरी खण्ड -XVI अक :3 - 4 32 किया था वो मैंने इनको दे दिया है ताकि वे भी वैसे जिस प्रकार आपने मुझ से प्रेम किया है।" ही एकरूप हो जाऐं जैसे हम हैं, मैं उनमें हूँ और आप मुझ में है, ताकि वे पुर्णतया एकरूप हो सकें, ताकि ये विश्व जान जाए कि आपने मुझे भेजा है श्री आदिशक्ति भगवती माताजी श्री निर्मला देव्यै और उनसे भी आपने उसी तरह से प्रेम किया है नमो नमः । (John 17:22) ॐ त्वमेव साक्षात श्री भेरी जीसज़ साक्षात संकलन-ग्रैगोर डी कल्बरमैटन (निर्मल योग 1981) (पृष्ठ संख्या 27 का शेष भाग...) सहजयोग पूर्णतः निशुल्क है क्योंकि चैतन्य घर में रहती हैं फिर भी सभी कुछ छोड़कर हमें लहरियाँ ही भौतिक पदार्थों का सृजन करती है, आत्मसाक्षात्कार तथा चैतन्य चेतना प्रदान करने के किस प्रकार हम इन्हें खरीद सकते हैं? चैतन्य लिए वे आती हैं ताकि हम अपनी दिव्य शक्तियों को लहरियाँ तो प्रेम का प्रवाह है अतः सभी सच्चे पहचान सकें। साधकों को इन्हें अत्यन्त गम्भीरता पूर्वक लेना चाहिए। इनकी प्राप्ति के लिए न तो कोई तकनीक मानसिक और भावनात्मक संवेदनाओं से परे है, यह यह दिव्य प्रेम का योग है जो शारीरिक पावन है, आत्मा का प्रेम है जो चैतन्य लहरियों के है और न कोई रहस्यमय मन्त्र । श्रीमाताजी कौन है? वे एक कूटनीतिज्ञ की माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति करता है। इसी कारण पत्नी हैं जो इस देश में सरकारी कर्तव्यों के कारण से यह महायोग कहलाता है। आई हैं। गुरु नहीं। महारानी की तरह से वे अपने 1 हरि जयराम सहजयोग आश्रम 44 चैलशम रोड लन्दन (निर्मल योग - 1981) कविता लेखन श्रीमाताजी का वरदान "मानव मस्तिष्क में एक ऐसा आयाम है जो पशुओं में नहीं होता - मानसिक या भावनात्मक योगी कवियों के लिए बहुत उपयुक्त है क्योंकि उन्हें आयाम जिसके द्वारा हम प्रेम को समझते हैं। हम इसका कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं प्राप्त होता। ये समझ पाते हैं कि किस प्रकार प्रेम प्राप्त करना अधिकतर आधुनिक कविताएं छन्दमुक्त शैली में है और किस प्रकार लौटाना है। हम समझते हैं कि लिखी जाती हैं बिना दोहे बनाए या लय का में करता है। छन्द के बन्धनी से मुक्त कविता नए काव्य को किस तरह से लेना है और किस प्रकार प्रबन्ध किए शब्द-प्रवचन से ही उनमें स्वाभाविक लय विकसित हो जाती है। छन्द-मुक्त कविता कल के जाज़ ( Jazz) शैली के बहुत करीब है-एक ऐसा स्वाभाविक ढाँचा जिसमें स्वरों, शब्दों तथा भक्ति की अभिव्यक्ति के रूप में कविता अर्थो का अनौपचारिक सम्बन्ध स्वीकार्य होता हैं। लेखन में किसी पहेली या किसी पुष्प की लिए संभव है। कविता में भावनाएं छुपी होती हैं चित्रकारी करने का आनन्दमय दृष्टिकोण होना लय. संगीत एवं चैतन्य लहरियों के प्रति खुलेपन आवश्यक है। व्यक्ति का चित्त अन्दर कुण्डलिनी की संवेदना निहित होती है। सर्व-व्याप्त देवी पर होता है परन्तु साथ ही साथ उसकी संवेदना प्रतीक्षा करती हैं। हमें केवल अपना चित्त इस ओर साक्षी रूप में हाथ से किए जाने वाले कार्य के साथ लगाना होता है तथा लिखने की इच्छा मात्र करनी होती हैं। अत्यन्त दिलचस्प बात है कि लिखते समय जितना अधिक निर्लिप्त आप होंगे उतनी ही व्यक्ति की भक्ति सीधी हो सकती है जैसे सशक्त पावन भावनाएं परमात्मा (श्रीमाताजी) आपको उसका सृजन करना है।" (अहं और प्रतिअहं पर श्रीमाताजी की वार्ता के कुछ अश-1977) लिखना एक ऐसा आनन्द है जो हर सहजयोगी के होती है। श्रीमाताजी के किसी विशेष पक्ष को सामने रखकर भेजेंगी। लिखी गई, या प्रकृति के सौन्दर्य को सामने रखकर "अपने ही ढंग से सोचें कि हम सहजयोग या आत्मा को प्रतिबिम्बित करने वाली जीवन की के लिए क्या कर सकते हैं । हर चीज़ में आप सहजयोग के लिए क्या कर सकते हैं। हर चीज़ में उत्कृष्ट पाश्चात्य् काव्य प्रायः बाई ओर के आप सहज देख सकते हैं। आपको विचार प्राप्त हो जाएंगे। उन्हें आपने प्रसारित करना हैं। इन्हें लिख आधारित जीवन की कलात्मकता से जुड़ी होता है। डालें. अपनी कविता लिखें। आप सभी बहुत कुछ कर सकते हैं अब बर्वाद करने के लिए समय नहीं घटनाओं को सामने रखकर लिखी गई कविताऐं । उदासीन स्वभाव का वर्णन करती है तथा कष्ट पर खोए प्रेम, त्रासदी तथा विरह को पार्चात्य कलाकृतियों में एतिहासिक पहचान मिली है। विषय है। क्या? वस्तु और मूलभूत जटिल है फिर भी इसमें दिव्य प्रेरणा का अभाव है। आश्चर्य की बात नहीं है कि स्कूल में पढ़ते हुए (अलीबाग 1988) दाँचे में यद्यपि ये काव्य बहुत "अपने विचारों को लिखें, अपनी कविता लिखें माँ के ये शब्द हमें बताने हैं कि हम सबके हममें से अधिकतर इस काव्य को नहीं समझ पाए । अन्दर कविता विद्यमान है तथा लेखन का ये कार्य सच्चा काव्य आत्मा की अभिव्यक्ति लयपुर्ण शब्दों तुच्छ नहीं है। यह तो ऐसी चीज़ है जो सहजयोग मार्थ - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 3 - 4 XVI 3 34 कण की तरह से छोटी बनना चाहती हॅूँ। यह कण की गहनता से उत्पन्न होती है। "आप अत्यन्त सुन्दर व्यक्ति बन जाते सर्वत्र जाता है। उड़कर चाहे तो सम्राट के सिर पर हैं-सौन्दर्य विवेक आपमें आ जाता है। अचानक बैठ सकता है और चाहे तो किसी के चरणों में गिर आप महान कवि बन सकते हैं।"(सत्चित्त आनन्द फरवरी 1977) बिना योजना बनाए या सोचे विचारे स्वतः सुगन्धमय हो, पौष्टिक हो, ज्योति प्रदायक हो। हृदय से लिखी गई कविता ही उत्कृष्ट होती है। प्रायः प्रकृति के किसी भी पक्ष पर (जैसे आकाश, मैंने यह सुन्दर कविता लिखी थी-धूल का कण फूल या समुद्र) चित्त डालना ही कविता लेखन के बनना। इतने समय बाद भी मुझे वह कविता अच्छी लिए पर्याप्त उत्प्रेरक (Catalyst) है । श्रीमाताजी तरह से याद है कि मुझे धूल का कण बनना चाहिए अपने बचपन का एक अत्यन्त दिलचस्प उदाहरण ताकि लोगों के अन्दर प्रवेश कर सक । धूल का देती हैं जिससे उनका स्वाभाविक सृजनात्मक गुण कण बन जाना बहुत बड़ी बात है। प्रतिबिम्बित होता है। सकता है। कहीं भी जाकर यह बैठ सकता है। परन्तु में धूल का ऐसा कण बनना चाहती हैं जो मुझे याद है कि जब मैं सात वर्ष की थी तो जिस भी चीज़ को आप छुएं वो जीवन्त हो उठे। जो भी आप महसूस करें वह सुगन्धमय हो। ऐसा बनना बहुत बड़ी बात है। ये मेरी इच्छा थी जो अवश्य पूर्ण होगी उस युवा आयु में भी मुझे धूल का कण बनने का विचार था और आज आपसे बात श्री सरस्वती पूजा-धुलिया-1983 आज हम धुलिया (Dhulia) में पूजा करेंगे धुलिया का अर्थ है धूल'। मुझे याद है कि बचपन में मैंने एक कविता लिखी थी जो अत्यन्त रुचिकर थी। मैं नहीं जानती ये कविता अब कहाँ है परन्तु इसमें मैंने कहा-मैं हवा के संग उड़ने वाले धूल के करते हुए मुझे ये बात याद आई कि मैं धूल का कण बनना चाहती थी इस स्थान (धुलिया) का यही महत्व है। एक सहजयोगिनी का अनुभव (निर्मल योग 1981) मुम्बई मार्च 1981 जय श्रीमाताजी, 30 नवम्बर 1980 को टूटे मेरे कूल्हे (Hip) की हड्डी का अनुभव मैं लिख रही हैूं। मेरे डाक्टर ने मुझे बताया कि 6 महीनों तक अब मैं बिना छड़ी के चल न पाऊगी। परन्तु शल्य क्रिया (Operation) के पांचवे दिन हमारी प्रिय परम पूजनीय श्रीमाताजी अस्पताल में मुझे देखने आई। श्रीमाताजी की कृपा और चैतन्य लहरियों से मैंने अगाघ शक्ति का अनुभव किया। इतनी तीव्र चैतन्य लहरियाँ मुझसे बहने लगीं कि पन्द्रह दिनों के अन्दर ही मैं बिना छड़ी के चलने लगी। यह वास्तविकता देखकर मेरा डाक्टर आश्चर्यचकित हो गया और पूज्य श्रीमाताजी से मिलने के लिए उत्सुक हो उठा| वह श्रीमाताजी के पास आया और उनसे आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया। मेरी प्रार्थना है कि अधिक से अधिक लोग सहजयोग में आएें और परमपूज्य श्रीमाताजी से आशीर्वाद प्राप्त करें। देवी रूप में वे पृथ्वी पर अवतरित हुई हैं। आशीर्वाद से परिपूर्ण महान माँ के चरण कमलों का सानिध्य प्राप्त करने वाले हम प्रेम एवम् सब अत्यन्त सौभाग्यशाली लोग है। जय श्रीमाताजी पलि श्रीमति मेहतन्ये भा सहजयोग, कुण्डलिनी और चक्र (मूलाधार व नाभि चक्र) गुरुतत्व - दिल्ली 3-1-78 सहज क्या होता है? बहुतों को मालूम भी गोल चीज़ लाती हूँ और उसमें एक डंडा जोड़ती हूँ है आपमें से। नानक साहब ने बड़ी मेहनत की है तो कोई भी पूछेगा कि यह सब क्या कर रही हो? और सहज पर बहुत कुछ लिखा है। आप लोगों को किस के लिए कर रही हो? कोई भी इंजीनियर से बड़ा वरदान है उनका यहाँ पर, लेकिन उनको कोई पूछे कि वो अगर कोई बैठकर चीज बनाता है तो जानता नहीं समझता नहीं। सहज का मतलब होता किसी न किसी काम के लिए, किसी utility के लिए है सहज सह' माने साथ, 'ज' माने पैदा हुआ, आप ही बनाता है। कोई पागल आदमी होगा जो बैठे हुए ही के साथ पैदा हुआ। ये योग का अधिकार आपके यूं ही जोड़कर बैठा रहे। कोई भी समझदार आदमी साथ पैदा हुआ है, हर एक मनुष्य को इसका किसी न किसी कारण से बनाता हैं। तो परमात्मा ने अधिकार है कि आप इस योग को प्राप्त करें। मनुष्य को किसी न किसी कारण वश बनाया| लेकिन आप मनुष्य हों तब, गर आप जानवर हो गए लेकिन ये सब बनाने के बाद भी जब तक इसको मैं हैं तो इस अधिकार से आप च्युत हो जाते हैं, गर मेन से नहीं जोडूंगी तब तक ये useless हो जाता आप दानव हो गए हैं तो भी इस अधिकार से आप है, इसका कोई काम नहीं रह जाता। ये बिल्कुल च्युत हो जाते हैं। गर आप मनुष्य हैं साधारण तरह व्यर्थ की चीज़ हैं । इसको इस्तमाल करने से कोई से तो आपको अधिकार है कि इस योग को आप फायदा नहीं क्योंकि इसमें से कनेक्शन ही नहीं प्राप्त करें। यही एक योग है बाकी कोई योग नहीं हुआ है। ये साधारण समझदारी की बाते हैं, बिल्कुल है। बाकी जितने भी योग हैं वे सब इसकी तैयारियाँ commonsense जिसे कहते हैं। कोई इसको बड़ा पढ़ने लिखने की ज़रुरत नहीं है। कोई भी आदमी सहजयोग के और दूसरे माने हम ये भी गर देहात से आए और वो कहे कि भई येlight कैसे लगाते हैं कि सहज माने सरल effortless, जलती है? तो आप कहेंगे कि चलो भई वो जो बटन हैं। spontaneous | अकस्मात घटित होने वाली चीज़ है उसको दबाओ तो ight जल जाएगी। तो शुरु है क्योंकि ये एक जीवन्त घटना है। जैसे आपका देखकर अवाक रह जाएगा कि भई ये कैसे हुआ! जन्म होना, जैसे आपका माँ के गर्भ में रहना, जैसा बड़ी कमाल की चीज है! ऐसा तो हो ही नहीं पेड़ों का फूलों से लद जाना, फलों में परिवर्तित सकता। पर देखता है तो उसे लगता है कि भई ऐसे होना, उसी प्रकार ये बड़ी भारी सहज घटना है ही हुआ। इसी प्रकार कुण्डलिनी का भी है कि spontaneous, natural नैसर्गिक घटना है और ये वाकई बटन दबाने से खड़ी होती है । इसमें कोई घटना जो है मनुष्य की उत्क्रान्ति की चरम सीमा शंका नहीं । परन्तु इसके पीछे में बड़ी भारी है। मनुष्य जानवर से परमात्मा ने बनाया आप engineering लगी हुई है। इसके पीछे में कितनी जानते है! मनुष्य क्यों बनाया गया अमीबा से? प्रश्न engineering लगी है? सदियों की इसमें मेहनत करना चाहिए सब Scientist को बैठकर के कि लगी हुई है। पहले तो electricity का किसी ने पता आखिर क्या वजह है? समझ लीजिए मैं दो चार लगाया फिर उसको ये किया, फिर वो किया, फिर कलपुर्जे इक्ट्ठे करती हूँ और एक इस तरह की उसको वहन किया, फिर उसके बाद यहाँ लाया, अटमा मार्च अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड - XVI अंक : 3 - 4 37 फिर Tubelights बर्नी, फिर ये सब बना आप तो दुनिया भर की चीज़ माने ये कि आप जागरण ही जानते हैं कितना लम्बा चौड़ा इसके पीछे में काम नहीं कराओ, इसकी जागृति नहीं कराओ ऐसे ही मर किया गया। इसी प्रकार आपके अन्दर में जो जाओ और इन राक्षसों के हाथ में आओ। क्योंकि कुण्डलिनी हैं सहज आपको ज़रूर मिल गई है परजागृति हो जाएगी तो आप पहचानना शुरु कर देंगे इसका मतलब ये नहीं कि इस पे काम किया नहीं की कौन भूत है, कौन राक्षस है और कौन सन्त है। गया ये आपकी पेशानी पर भी बहुत काम किया गया है., इस पेशानी को भी बड़ी शान से बनाया इतनी उल्टी सीधी बातें बताते हैं कि कुण्डलिनी क्योंकि इनके पेट पर पैर आएगा। इसलिए तुमको गया। मनुष्य ने जब अपनी गर्दन ऊपर उठाई तब उसकी ये पेशानी जगी इसीलिए कहा जाता है कि आदमी तो मुझे कहने लगा कि मेंढक जैसे उड़ते सिर को किसी के सामने झुकाना नहीं क्योंकि ये हैं। मैंनें उनसे कहा कि भई ये कैसे जाना? उन्होंने पेशानी बहुत मेहनत से बनायी गयी है, मनुष्य बहुत कहा कि भई हमारे गुरु ने किताब में लिखा है। मेहनत से बनाया गया है और मनुष्य क्या है? और इतनी बड़ी किताब है। उसका जो गुरु है उसने असल में अन्दर क्या बनी हुई Engineering है? वो लिखी हुई है। उसमें लिखा हुआ है कि आप मेंढक ये है। मेरा तो विचार अपना ये रहता है कि भई पहले ight जला लो उसके बाद Engineering कहा जाए? अब आप लोग यहाँ देख रहे हैं कितनों समझाती रहूंगी क्योंकि Engineering जो है वो की जागृति हुई है और होती रही है, और हजारों की बड़ी सिरदर्द की चीज़ है । कोई लोग तो बोर भी हो हुई है। कोई भी मेंढक जैसे कूदा? ये बच्चे हँस रहे जाएंगे। इसलिए मैंने कहा पहले पार कर दूं तो मेरी है क्योंकि ये पार भी है और इनके हाथ में Vibrations बातचीत का मज़ा उठाते हुए आप सुन भी लीजिएगा। भी हैं. ये जानते हैं क्या चीज़ है? बिल्कुल हँसने की नहीं तो बोर भी हो जाते हैं। मैं खुद ही बोर हो बात है इस तरह की जो ऊट पटॉग सब बातें जाती हैं समझाते समझाते। तो कुण्डलिनी जो है वो theories चल चुकी हैं इससे कुछ भी नहीं होता क्या चीज़ है? ये भी समझ लो। जो कुण्डलिनी के रही बात ये कि कुण्डलिनी अत्यन्त सूक्ष्म चीज है। बारे में दुनिया भर की बातें दुनिया में लोगों ने फैला आपको अपनी सूक्ष्मता में उतारती हैं इसंलिए जो रखी है वो कैसी गलत हैं वो भी मैं धीरे-धीरे इसी चीज़ अति सूक्ष्म है उसके लिए भी आपको अति में समझा दूंगी। तो उसके साथ-साथ ये भी समझ सूक्ष्मता में उतरना चाहिए क्योंकि हम लोग बहुत लो कि ये लोग अज्ञानी हैं और अज्ञान में ऐसा कार्य जड़ता में रहते हैं। सुबह से शाम materialism के करते हैं। कृण्डलिनी के जागरण के बाद क्या होता है वो मैं कल आपको बताऊँगी और इसकी पहचान कि हम लोग developing बहुत कर रहे हैं, रजोगुण जागरण में आप कूदते हैं और छलांगे मारते हैं। एक जैसे उड़ते हैं। सोचिए बात! इन लोगों को क्या बीच में पनपते रहते हैं। आजकल तो आप जानते हैं क्या है? कैसे पहचानना चाहिए कि आदमी की हमको बहुत सतर्क रहना चाहिए। किसी चीज़ में कुण्डलिनी जागृत है या नहीं? यानि कि यहाँ तक उलझे नहीं, देखते रहें नाटक मात्र। और वो हो ये लोग कहते हैं कि कुण्डलिनी के जागरण के बाद सकता है। कोई आदमी जीवित ही नहीं रहता। यहाँ से लेकर पर बहुत चले पड़े हैं। इन सब कारणों की वजह से सहजयोग में दिल्ली में बहुत लोग आते हैं मार्च - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड - XV1 अक : 3-4 38 पार भी हो जाते है। उनमें से पच्चीस फीसदी लोग उत्क्रान्ति की है, जो मैंनें कहा Mains में लगने की सहजयोग में असली उतरते हैं बाकी जो हैं वो फिर बात है, ये जो मैं आपको कहती हूँ आप लोग उड़ जाते हैं। और इसी तरह से चलते रहता है computer के जैसे है। जब तक computer को क्योंकि मैंने आपसे कहा हैं सहजयोग में पार होने आप main से नहीं लगाइएगा तब तक आपका की क्रिया तो घटित हो सकती है, छू भी सकते हैं computer कुछ बोलेगा नहीं। उसी प्रकार मनुष्य आप। लेकिन उसको बिठाना पड़ता है जैसे कि जाति का है अब देखिए अब ठीक है? अब इसमें Motor तो start कर देते हैं हम लेकिन motor को जो कुण्डलिनी दिखाई है ये माँ के गर्भ में जब बच्चा चलाना पड़ता है।Start करने के बाद वो थोड़ी देर होता है तभी अन्दर प्रवेश करती है। लेकिन यहीं खड़ खड़ खड़ खड़ करेगी फिर वहीं रुक जाएगी। नहीं प्रवेश करती ऊपर से यहाँ जहाँ बच्चे का तालु लेकिन आप मोटर को जब तक चलाना नहीं जानेंगे होता है, जिसे हम fontanel Bone कहते हैं वहाँ से उसके कलपुर्जे नहीं जानिएगा, उसको चलाइगा ये देखा न आपने ये जो त्रिकोणाकार बना है वो नहीं, जब तक आप जानिएगा ही नहीं कि आपके Brain है आपका । मनुष्य ही का Brain त्रिकोणाकार अन्दर कोई गति भी हुई है, मोटर खड़ी है तो खड़ी हो जाता है, जानवर का flat होता है। मनुष्य का है। उसके अन्दर गति होनी फड़ती हैं। अब सब लोग मेरी ओर ऐसे हाथ करके उतर के और यहाँ बैठ जाती हैं और इसके अलावा बैठिए। मैं आपको कुण्डलिनी क्या चीज़ है वो ये जो दोनों शक्तियाँ हैं. ये दोनों शक्तियाँ Right समझा देती हूँ। ये आपके आगे एक नक्शा है, ये भी Side और Left Side, ये दो नाड़ियाँ होती हैं ईडा एक बड़े भारी सहजयोगी ने बनाया है और दो और पिंगला - ये दो नाड़ियाँ होती हैं ईड़ा left की Deaf and Dumb लड़कों से बोलता किया हुआ और वो right की पिंगला अब गर इसको Science है। बहुत साधारण है म्युन्सिपैलिटि टीचर हैं वो से समझाएं तो ये समझ लीजिए कि अपने अन्दर उन्होंने बनाया हुआ है बड़े प्रेम से। देखिए कितना एक स्वचालित संस्था है जो हमारे हृदय को चलाती त्रिकोणाकार होता है। तो ऊपर से कुण्डलिनी नीचे सुन्दर चित्र है। इनका idea है कि इस तरह से है हमारे अन्दर अन्न का पाचन करती है माने हमें इसके बनाने से, इसके reflections से ही लोगों उसको digest कराती हैं, जो Automatically हमारे की जागृति होनी चाहिए। और बड़े कमाल किए हैं शरीर के अन्दर होती रहती हैं क्रियाएं, जैसे हमारी जितने भी उन्होंने colour लगाए हैं मेरे पैर से छुआ श्वसन क्रिया है, जो श्वास लेने की क्रिया है उसको करके, vibrate करा करके बड़ी मेहनत से बनाया जो कराती रहती है उसको हम Autonomous है। ये भी बहुत ज़रूरी होता है (आप लोग भी, ऐसा nervous system कहते हैं लेकिन अब किसी से है आपको कुछ दिखाई नहीं दे रहा? जिनको नहीं पूछा जाए कि Auto माने स्वयं चालित जो चीज़ है दिखाई दे रहा है वो इस तरफ आ जाएं थोड़ा सा, वो क्या है? ये स्वयं कौन है? तो कोई भी इसका 1 आजाइए और इधर आ जाइए। क्योंकि समझने की जवाब नहीं दे सकता। कोई भी डॉक्टर। डॉक्टर तो चीज़ है)। आगे इसमें जो त्रिकोणाकार अस्थि में ये ये कहेगा कि हम इसको स्वयंचालित कहते हैं । कह जो देख रहे हैं यही कुण्डलिनी है। मनुष्य जब माँ देने से नहीं है, explanation नहीं हैं उनके पास । के गर्भ में रहता है यह अवस्था पुर्नजन्म की है, जो ये जो स्वयं चालित संस्था है इसमें दो तरह चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक - 3 -4 मार्य - अप्रैल 2004 39 की संस्था होती है। उसको एक को तो नहीं है ऐसे तो। तो जब है ही नहीं तो बताओ हम parasympathetic कहते हैं औ र एक को कैसे करें? आप गुर कहीं पढ़ कर आएं कि गुलाब sympathetic कहते हैं। यही जो ऊपर से जो यहाँ के फूल का रंग नीला होता है और फिर कहें कि तक दिखाई हुई है, बीच की चीज़ है। ये अपने रीढ़ साहब ये तो गुलाब का फूल नहीं क्योंकि इसका रंग की हड्डी में सूक्ष्म स्वरूप में रहकर के और नीला नहीं तो ऐसे लोगों को क्या कहा जाए, ऐसे parasympathetic को चलाती है और ये जो दोनों लोगों को कौन सी बात समझाई जाए? कि उन्होंने संस्थाएं हैं ये left and Right sympathetic कहा है। आप उनको जानते नहीं? आपने किताब nervous system को चलाती हैं। पर ये मैने खरीदी, कितने में? दो रुपये में। फिर। मैंने पढ़ी. आपको सूक्ष्म नाड़ियाँ बताई, ये बाहर में Gross में उसमें ये लिखा है माताजी, फिर आप ऐसे क्यों कह ये नाड़ियाँ हैं। अब मुझे तो आश्चर्य है कि उस रहे हैं? अब क्या मैं आपसे कहूं कि वो झूठा आदमी आदमी ने इतनी बड़ी किताब रखी हुई हैं कुण्डलिनी है? कहूँ तो आप मुझे डंडा लेकर मारने दौड़ेंगे। पर वो क्या कहता है कि पेट में, पेट में होती है क्योंकि आप फौरन उसके फौरन वकील बन जाते कुण्डलिनी। जिन्होंने अपनी आँख से देखी है वो ये हैं। आपने किताब क्या पढ़ ली, आपके पास किताब बता सकते हैं की त्रिकोणाकार अस्थि में होती है। क्या आ गई, आप फौरन उस किताब वाले के अब इस तरह की उसने गर किताब लिख दी और वकील बन जाते हैं और मेरी जान को लग जाते हैं इतनी बड़ी बात लिख दी तो उससे अब कौन कि माँ ऐसा तो है नहीं। आप ऐसे ही बोल रही हैं! झगड़ा करने जाए? उसको मरे भी अब काफी दिन यानि मैं झूठी हो जाती हूँ । वो सच्चा हो जाता है हो गए हैं। अभी जिन्दा भी ऐसे बैठे हुए हैं कि वो क्या किसी गुरुको आपने बनाया? गुरु महाराज ने कुण्डलिनी के बारे में 1760 बातें बताते रहते हैं। जो भी कहा वो आपके लिए सत्य हो गया! भई लेकिन वैसी बात है नहीं। असल में जो है सो है उसने आपको कुछ किया, उसने आपको पार किया? असत्य। कोई किसी के लिख देने से क्या होता है? उसने आपके साथ क्या किया? कुछ नहीं, बो तो कोई चाहे हजारों किताबें लिख सकता है। असत्य सात मंजिल पर बैठते हैं और मुझे नाम दे दिया। बहुत कुछ लिखा गया है आप जान लीजिए जो मैंने कहा जिसने तुम्हें नाम दिया उसने तुम्हारा कुछ कुछ लिखा गया है वो सब कुरान नहीं है, सब देखा कि नहीं? माँ मुझको तो Heart Attack आ पुराण भी नहीं है और बाइबल, गीता भी नहीं है जो रहा है इसीलिए मैं आपके पास आया हूँ। मैंने कहा कुछ लिखा गया है उसमें बहुत कुछ झूठ है। यहाँ उसी को क्यों नहीं कहते, तुम अब मेरे पास काहे तक कि हमारे शास्त्रों में भी लोगों ने झूठ घुसेडने को आए हो? वो आपको देखता भी नहीं कि आपको की कोशिश की क्योंकि झूठ जो होता है वो हमेशा Heart Attack आ रहा है कि तुमको कोई बीमारी है, आक्रमण करता है, आप जानते हैं सब कुछ। और तुमको कोई तकलीफ है। ऐसे गुरु को लेकर के इस वजह से अपनी आँख से देखो जो आपमें क्या उसका अचार डालना है? और ये ऐसे अनेक घटित हो, जो घटना हो, उसे जानो। पढ़ लिखकर गुरु हैं जिनके शिष्यों को Heart Attack आ रहे हैं! क्योंकि आपने दो रुपये देकर उसको खरीद लिया। के आप कहीं से कुछ पढ़ कर आए, तो कुण्डलिनी अरे जब गुरु रख के उससे Heart Attack आते हैं. मार्च -अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खाण्ड -XVI अक : 3-4 40 उससे तंदरुस्ती चौपटाती है, आपका दिमाग खराब हुए हो? लेकिन इसलिए कि Conscious Keeper होता है, आपकी बीबी पगलाती है, घर में सब चौपट है, क्योंकि ये तो अभी राक्षस नहीं हुए न । ये सोचते है, यहाँ कोई लक्ष्मी जी का स्थान ठीक नहीं, तो हैं हम इतने गन्दे काम कर रहे हैं, क्राइस्ट ने तो ये ऐसे गुरु का क्या अचार डालने का है? आप उसके सब काम नहीं किया और हम ये सब धन्धे कर रहे पीछे में क्यों लगे हुए हो? उसने क्या दिया? हजारों हैं iberations के नाम पर तो कोई न कोई गुरु लोग दौड़ रहे हैं इसलिए हम भी दौड़ रहे हैं । अरे बना लो तो उसका Certificate लेकर जाएंगे यो सब गधे हैं तो आप भी गधे होएंगे? ये भी एक गुरु बैठा रहेगा नर्क में और ये भी उसके पीछे चले सोचने की बात होती है मनुष्य को सोचना चाहिए जाएंगे गुरु ऐसे अच्छा लगते हैं लोगों को कि जो कि हम क्यों इसे गुरु मान रहे हैं? दूसरा मानता है कहे तुम बड़े अच्छे आदमी हो, आ-हा-हा-हा! माने हम क्यों माने? हमें भगवान ने स्वतन्त्रता दी कोई नहीं, बस पर्स ज़रा इधर रख दो। तुम्हारी बीवी है और हमने अपनी स्वतन्त्रता में ये जानना है। तुमसे संभलती नहीं तो उसको भी इधर भेज दो मैं बहुत से ऐसे गुरु हैं जैसे वो ट्रांस वाले महाराज हैं, सब तुम्हारे काम कर दूंगा। ऐसे भी गुरु लोग हैं वो आपको एक नाम दे देते हैं कि आप भूत (Past) दुनिया में जो कहते हैं अपना जो भी पैसा धन में चले जाते हैं। आपको लगता है आप बड़े भारी संम्पति है तुम्हारे पास, सब आश्रम को दे दो और आदमी हो गए! किसी भूत का नाम दे दिया आप वहाँ पर पहुँच जाओ। ऐसे दूसरों के पैसों पर आपको, आप भूत का नाम लेने से हो जाते है, ठीक नजर रखने वाले गुरु कैसे हो सकते हैं? पहली है आप बहुत बड़े आदमी हो गए शराब आप पिओ, चीज़ पैसे से। और आपको भी अच्छे लगते हैं ऐसे औरतें आप रखो, खाना जो खाओ, जैसे भी सताओ, गुरु क्योंकि आप बहुत पैसे वाले हैं, दिल्ली वाले हैं! दूसरों को पीड़ित करो, aggression करो, कुछ भी काफी दोनों हाथ से पैसा कमाते हैं। कुछ करो! व । 1 लोग अपने Negative भी पैसा कमा लेते हैं. Under the बस, आप तो साधू बाबा हो गए। फलाने table और उसका भी इन्तजाम होता है। गुरु भी गुरु ने चार औरतें रखीं, मैंने दस रखीं तो क्या हो पाल लिया है. उसका भी इन्तजाम है । चलो भई गया? उसका धर्म से, मनुष्य से, उसके Human गुरु भी अपने हैं तो अपन ने अपना अगला जन्म भी Elements से, कोई भी सम्बन्ध गुरु का नहीं ठीक कर लिया और ये जन्म भी अपना ठीक है रहता । ये अजीब तमाशा है! और आदमी इसको हमारे गुरु तो कुछ कहते नहीं, बड़े शरीफ आदमी मानता है! उसको ऐसे गुरु बड़े अच्छे लगते हैं । हैं। हमारे यहाँ एक आदमी है. तुम तो सुने हो उसका नाम। वो अंग्रेज लोग उसके चरणों में लोट रहे हैं! के पास सिंगापुर में कुछ मैंने कहा अरे भई तुमको काहे को चाहिए? तुमने तो हमको बचाओ। मैंने कहा क्या हुआ? कहने लगे अब सब कर दिया तमाशा । तुम उसके गुरुघंटाल हो, तो हमारे गुरु ने हमारी लुटिया डुबो दी। मैंने कहा उससे क्या सीखोगे? ये Sex की बातें? तुम उससे क्यों? कहने लगे वो तो जाकर बैठे हैं स्विटज़रलैण्ड। क्या सीखने वाले हो? तुम्हारे से वो सीखे, ऐसे तुम लोग होशियार हो। तुम क्या उसके गुरुपना लगाए हमारा सब माल पकड़ा गया। मैंने कहा बहुत अच्छा जकार्ता में हमें एक और गुरु मिले। जकाता सिन्धी लोग आए। माताजी मैंने कहा अच्छा। हम यहाँ स्मरगलिंग करते थे, मार्च - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -४VI अक 3 -4 41. हुआ। अब मत करो। कहने लगे नहीं, हमारे तो गुरु में डाला था। पाँच मिनट में देखने लग गई। ने कहा ऐसा करो और हमको कुछ तरीके भी बताए वास्तविकता है सुब्रमन्यम ने सिर्फ कहा था कि मैं और अब वो स्विटज़रलैण्ड बैठे हैं। तो ऐसे गुरुजो तुमको Drive करके पहुँचा देता हूँ। तो Driver पालना चाहते हैं. उनका यहाँ स्थान नहीं है, सीधा बनकर आए थे। तो वो तो पार हो गए और ये हिसाब, मैं हाथ जोड़ती हूँ। मेरे पास दो ही शिष्य रहें इसमें कोई हर्जा साहब को भी हमने काफी मेहनत करी। उसके बाद नहीं। जिसको सत्य चाहिए वो यहाँ आएं। पहलीउनको चक्कर पड़ गया! मैंने कहा भई तुमको हीरा चीज़, जिनको सत्य नहीं चाहिए. जो असत्य के ढूंढना है. मोती ढूंढना है? क्या चाहिए? हीरे मोती पीछे भागना चाहते है, वो मेहरबानी से तशरीफ ले के लिए गर तुमको करना है तो नौकरी छोड़ो और जाएं। लेकिन आप गर सत्य खोज रहे हैं तो मैं तुमको मिल जाएगा हीरा मोती। दूसरे को इधर मेहनत करने के लिए तैयार हूँ। और सब कुछ लाकर रखो, डकैती करो। चोरी-छिपे करो, वो भी करने को तैयार हूँ। उसी की प्रतिष्ठा होती है जो अच्छा है। जादू वाले के पास काहे को जा रहे हो? सत्य पर खड़ा होता है। परमात्मा ऐसे आदमी से उसकी शक्ल से नज़र नहीं आ रहा बो कैसा कभी नहीं, कभी नहीं खुश हो सकते जो आदमी आदमी है? सुना नहीं मेरा। अभी वो बता रहे थे कि ऊपर एक और पीछे एक बात करता है;B दोंगी पना अब मर रही है वो जवान लड़की है। 35 वर्ष से और ये सब चीजें यहाँ चलने नहीं वाली। जो ज्यादा उसकी उम्र नहीं होगी। वो मर रही है। लड़की भी ठीक हो गई। उसके बाद एक D.I.G. वास्तविक में अपना उद्धार चाहता है और कल्याण उसका गला घुट रहा है! अब चलो माँ उसको चाहता है उसके लिए हम हाजिस हैं उसकी हरेक बचाने! बताओ मैं क्या करूं? तुम सबको छोड़कर सेवा करने के लिए । क्योंकि हम आपकी माँ हैं हम उसको बचाने जाऊं? Heart Attack आ जाते हैं आपसे झूठ नहीं बोलेंगे। आपकी किसी भी झूठ बात लोगों को ये सोचना चाहिए कि तुम्हारे गुरु क्या को हम Support नहीं करेंगे आप बुरा नहीं मानना। अत्यन्त प्रेम से हम तुमसे कहेंगे, तुमको दुख नहीं तो पहले ही जान लेते हैं, पहचान लेते हैं। जो देंगे, अपमान नहीं करेंगे। लेकिन हम जो बात कहेंगे तुम्हारी कुण्डलिनी खराब कर दे. जो तुम्हारे इस उसको तुमको सुनना पड़ेगा। इस शर्त हम पार मार्ग को अवरुद्ध कर दे वो गुरु कैसा? जिसकी कराएंगे और आगे चलाएंगे और तुमको पार होकर वजह से तुम पार नहीं हो सकते, तो भी उसको के और दुनिया को देना पड़ेगा। जैसे कोई दीप छोड़ेंगे नहीं, उसको पकड़े रहेंगे, पकड़े रहेंगे, पकड़े जलता है तो कोई उसको पलंग के नीचे नहीं रख रहेंगे! अभी यही 132 लड़के लड़कियाँ लंदन में मेरे देता वो बुझ जाएगा. उसको ऑक्सीजन में जलना चाहिए। इसी प्रकार जो पार हो जाता है उसको हो गया माताजी, पता नहीं क्या Biockage हो दूसरों को देना पड़ेगा। अभी जैसे, अभी एक किस्सा गया? समझ में नहीं आता। उनके भी इलाज हैं । सुना रहे थे कि एक औरत आई थी तो लेकर के मोहम्मद साहब ने बहुत इलाज बताये हैं ऐसे दुष्टों आए मेरे पास में तो पाँच मिनट में उसकी आँखें के, नानक साहब ने भी बताए और वही इलाज से ठीक हो गई। बो अन्धी हो गई थी. उसको हॉस्पिटल ठीक हुए कर रहे हैं? और गर किसी का हो असल गुरु बो 1 पास आए और बोलते हैं हमारे सिर में Blockage 1 हैं सब | और तुम लोग भी समझ लो कि मार्च - अप्रैल, 2 चैतन लहरी खण्ड -XVI अंक : 3-4 004 42 सत्य चाहना है, असलियत चाहना है, पार होना है, हमको अपनी हस्ती को जानना है, हमारे अन्दर जो आन्ध्र प्रदेश के लिए अभी कल ही किसी ने सवाल छिपी हुई सम्पदा हैं उसको हमको Release करना पुछा-आन्ध्र प्रदेश में गई थी चार साल पहले, मेरे है । उनके शिष्यों को देखो। उनको शिष्यों से चार टेप्स हैं, उन्हे आप सुन लीजिए, आए थे जो देखना चाहिए, इनके जो शिष्य हैं क्या वो धर्माचरण मुझे ले गए थे, आए थे कल और अभी आएंगे थोड़ी कर रहे हैं? उन को देखो क्या वो शरीफ आदमी देर में उनसे पूछ लीजिए मैने उनसे कहा कि यहाँ हैं? एक कहते हैं हमारी तो बस ध्यान लगा रहता तम्बाकू मत तुम चलाओ। गुरु गोविन्द जी एक बार है सारा। मैंने कहा क्या? तीन-तीन घण्टे हम बैठे तम्बाकू के खेत में गए थे तो उनका घोड़ा उल्टा रहते हैं। मैने कहा बिल्कुल आलसीपना के धंधे। दौड़ा। पूछ लो किसी से, किसी ने पढ़ा हो तो किसी औरत को बड़ा अच्छा है। मुझे अगर धन्घा तम्बाकू के वहाँ पर खेत के खेत लगे हुए हैं जैसे नहीं करना है तो मेरे गुरु ने दीक्षा दे दी है, बैठी है कोई Tulip लग जाती है लंदन में, और सब बड़ी तीन-तीन घण्टे। बच्चे मेरे रो रहे हैं, पति उसके बड़ी मोटरें लेकर के मुझे लेने आए। मुझे आए बगैर खाना खाए दफ्तर चले गए। धंधा निकाला हँसी मैंने कहा इससे अच्छा तो बैलगाड़ी में आते हुआ है मेरे गुरु बस मैं बैठा हुआ हूँ| निष्क्रियता अगर धर्म का के लिए वहाँ से वो लोग तम्बाकू भेजते हैं। कितना लक्षण होता तो ये श्री कृष्ण हाथ में सुदर्शन चक्र पाप इनके पुश्तन पुश्त पड़ा होगा! अरे बाप रे! अरे लेकर यहाँ क्यों आए थे? बैठते कहीं निष्क्रिय बन बाप रे! मैने कहा कि इसको उखाड़ कर फेक दो के जंगल में जाकर के। शादी भी करेंगे और बीवी तो कहने लगे कि हम क्या करें? मैंने कहा कि यहाँ बच्चे उनको नहीं संभालेंगे। ये कोई धर्म का लक्षण पर कपास लगाओ, यहाँ का कपास बहुत बढ़िया होता है? और ये कहने लगे हमारे गुरु ने हमें दीक्षा होगा, तुम लगाओ एक दो ने सुना, बाकी सब तो दी है, 'ये नहीं खाओ, वो नहीं खाओ, ऐसा नहीं मुझसे इतने नाराज़ हो गए कि मुझे चिट्ठी भी नहीं करो, वैसा नहीं करो। हाँ शराब जरूरी चीज़ है, भेजी। माताजी बहुत खराब हैं और हमारे ऐसा कह शराब के लिए इसीलिए मना किया हुआ है। शराब, रही हैं. वैसा कह रही हैं। ठीक है अब हालत सिगरेट के लिए इसलिए मना किया गया है क्योंकि, आप जानते हैं, सिगरेट से कैंसर हो जाता है वो था कि समुद्र आप पर खौलेगा एक दिन। समुद्र विरोध में है बिल्कुल राक्षसी है. विश्वास करो । ने मुझे दीक्षा दे दी, नाम दे दिया, लेकिन कुछ धर्म लेकर के आते। सारी दुनिया भर देखिए। सारे खेत भर गए पानी से। मैंने यही कहा व सब क्या पागल थे जिन्होंने मना किया है? शराब क्या है? साक्षात पिता स्वरूप है। आपको सिखाता जरूर मना किया है शराब इसलिए मना करा हुआ है, गुरु है, साक्षात गुरु है आपको सिखाता है और है, कि शराब आपके चेतना के विरोध में पड़ता है, गुरु के विरोध मैं बैठती है शराब और सिगरेट । Consciousness के विरोध में पड़ता है शराब के पीने से आपकी Consciousness विचलित हो बुरी है वो है जुगाड़। अभी हमारे एक सहजयोगिनी जाती है। आपका Liver खराब हो जाता है । Liver है उनके अड़ोस पड़ोस में सब ताश खेलते हैं। में आपका चित्त है और चित्त खराब होते ही आपकी औरतों को तो चक्कर हो गया, सवेरे से उठे, कॉफी Realisation खत्म हो जाएगी। ये मनुष्य धर्म के पार्टी शुरू हुई, ताश चलने लगे। अब उसके हाथ में इसलिए मना किया है। और तीसरी चीज जो बहुत भार्च - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड - 43 XV अक 3 - 4 एक फोड़ा आ गया । मेरे पास आई बोली माताजी लगता है। जिस नानक ने इस बड़ी धरती पर जन्म इसको ठीक करो। मैने कहा एक दो दिन तो इससे लिया, दत्तात्रेय का साक्षात् अवतरण जो हुआ, नहीं बोलेंगे बेचारी से, बहुत दर्द होता है, ये करो, वो उनके जीते जी तो इतना सताया उनको कि बस रे करो। देखो तुम ताश खेलती हो? कहने लगी हाँ। बस और अब जब वो मर गए तो पंजाबी बनकर और पैसे भी लगाती हो? कहने लगी हाँ। Promise और उनकी जान लो सब लोग! उनको जिस चीज करो कि कभी नहीं छुओगी ताश। खेलो ताश, ताश से अत्यन्त ग्लानि होएगी वही सारे कार्य आप लोग खेलने में कोई हर्ज नहीं। लेकिन गर पैसे पर उतरे करते जाओगे तो क्या कहा जाएगा? जो अपने पिता तो गए क्योंकि ये मनोरंजन का व्यवधान है । गर स्वरूप, जिन्होंने अपने लिए इस संसार में जन्म किसी चीज़ से आप मनोरंजन करते हैं तो इसमें लेकर के. मनुष्य का जन्म लेना कोई आसान थोड़े आप पैसे के कम्पीटीशन से मनोरंजन करते है तो ही हैं. इतनी मेहनत की, उनके साथ कितनी हम आपने अपने चित्त को विक्षब्ध कर लिया । सीधा लोग ज्यादती कर रहे है? हिसाब है समझने का, अब हम हैं आपके साथ, मजे से बैठे हैं, आप हमारे मित्र हैं जैसे ही आपमें मित्रता किस चीज़ को मैं मना कर रही हूँ। क्योंकि मैं माँ अब आप लोगों को मैंने ये बताया है कि पैसे के दम पर आई, मित्रता खत्म हो जाती होती है कि नहीं होती है? कोई भी कैसा भी हो, देंगे तो मैं कहूंगी बेटे इसमें हाथ मत दो और सच बात है कि नहीं? कोई सा भी अच्छा Relation आपको समझना चाहिए कि माँ का दिल जितना Ship तोड़ना करना हो तो पैसे का झगड़ा खड़ा टूटता है आपका अपने लिए नहीं टूट सकता। करो, फौरन हो जाएगा। जब तक आप पैसे का इसलिए मेरी बात का कोई भी बुरा नहीं मानना। झगड़ा खड़ा नहीं करोगे तब तक आपकी मित्रता तुम्हारे हित के लिए, तुम्हारे कल्याण के लिए एक बनी रहती है। सूक्ष्म में यही बात होती है। इसलिए मोँ ही मेहनत कर सकती है । इतने लोग realised गर ताश भी खेलना हैं और दोस्ती के लिए खेल रहे souls हैं दुनिया में तुमको नहीं मालूम। इतने गुरु हो तो खेलो। बड़े दुश्मन हो सकते हैं न, इससे हैं, सब जंगल में बैठे हैं और हिमालय में बैठे हैं। बढ़कर दुश्मनी और कोई नहीं हो सकती। कितनों मेरे से मिलने आते हैं, मैं कहती हूँ क्या कर रहे हैं की आहे, कितनों का शाप । छोटे-छोटे बच्चे घर में वहाँ बैठकर के? तुम लोगों को मैं क्या करूं? वहाँ छोड़कर के औरतें अपनी ताश खेल रही हैं। काहे तुम्हारे को मैं क्या मर्तबान में भरकर रख दूं? क्या को माँ बनी, नशेड़ी बन जाती! जंगल में बैठकर के करूं? तुम वहाँ पर बैठे हो, क्या करूं तुमको। कहने सब नशेड़ियाँ खेलती। आपस में इन बच्चों के लगे माँ बारह साल तुम मेहनत करो, फिर आएंगे। ऊपर में माँ बनकर आने को किसने कहा था ये बड़े खराब लोग होते हैं । हम तो नहीं आने वाले? आपसे? फिर उनके बच्चे भी नशेड़े बने? आदमी किसी को उनके पास भेजो तो टाँगे वाँगें तोड देते लोग भी नशेड़े, शराबी गंजेडू। मैं क्या करने यहाँ हैं। कहते हैं, बड़े जालिम लोग हैं, बड़े बेकार लोग आई हूँ? दिल्ली में बहुत ज्यादा इसका जोर चला हैं, उनको कुछ नहीं हो सकता, इनको मरने दो। हुआ है। पंजाबी लोग तो सोचते हैं जब तक वे ताश ऐसे कहते हैं। तुम्हीं हो, तुम्हारे अन्दर इतनी हिम्मत नहीं खेलेंगे वो पंजाब ही के नहीं हैं। बड़ा दुःख है, तुम्हारे अन्दर ही इतना प्यार है इनके लिए जो है। हूँ मैं मना करूंगी। गर आप बिजली में अपना हाथ मार्च - अप्रैल, 2004 घैतन्य लहरी खण्ड -XVI अक3-4 44 इतनी मेहनत कर रही हो। हम लोग के बस का । realization होना है इसकी ज़रूरत तो थी ही नहीं। जो आया है उसी को मारने लग गए। डंडा लेकिन आज एतिहासिक समय आ गया है । लेकर के उसके पीछे पड़ गए। अब यही पण्डितों एतिहासिक समय आना पड़ता है। Historical Time ने, जो मंदिरों में बैठकर के तुम्हारे पैसे खा रहे हैं, जिसको कहते हैं वो आ गया है जब Time आ ककि ा इन्होंने मरवाया कितनों को। और ये जो पोप बने जाता है तभी फूल भी फलते हैं, जब Time आता है घूम रहे हैं इन्होंने ही क्राइस्ट को क्रूसीफाई किया तभी बहार आती है। इसी प्रकार समझ लीजिए और अब भी कर रहे हैं । इन लोगों के पैरों में जा पहले एक ही दो फूल खिलते थे, आज अनेक फूल रहे हो, ये क्या कर्म करेंगे? सवा रुपये की श्रद्धा पर खिलने का समय आ गया है। उसकी जरूरत थी, चलने वाले लोगों के पास जाने की क्या जरूरत आपको वचन दिए थे और जबकि एक आदमी पार है? बहुत सी अनाधिकार बातें होती हैं। क्या बताऊं, होता था तो उसको पकड़कर मारते थे क्योंकि जो देखी हैं। पता नहीं कब लोगों की आँखे उसकी बात समझ में नहीं आती थी, लेकिन आज खुलेगी? कबीर इतना कह गए, अखण्ड पाठ रखा जब आप हज़ार आदमी पार हो जाएंगे तो सबको है सब लोग वहाँ बैठे हैं अखण्ड पाठ में । अरे उनकी बात समझ में आ जाएगी। अब ये कुण्डलिनी क्या है? इसके बारे में उसकी तरफ चित्त देकर सुनो। कोई सुनने वाला अभी तक इतना किसी ने खोलकर बताया नहीं। नहीं। इस तरह की चित्त करने से कैसे तुम लोग क्राइस्ट ने कहा ।1will appear before you in the अखण्ड पाठ का मतलब ये होता है कि अखण्ड समझोगे भाई? और जो कुछ कहा गया है उसको tongues of flames । इसाई लोगों से जाकर पूछो करो न, उसको रटने से नहीं होता है। सब कुछ इसका क्या मतलब है? किसी को पता नहीं । कबीर कह गए हैं, सब कुछ बता गए हैं और जो सहज है दास नानक साहब ने सबने ईडा पिंगला नाड़ी, वो अनेक वर्षों से है। जय से Creation हुआ तब शून्य शिखर, सब बातें अपनी कविताओं में कह से सहजयोग है सिर्फ यही है कि आज सहजयोग डाली । वो गोपनीय रहीं। इसकी वजह ये है कि उस समय जो कुछ कहा भी था उसी के लिए जान ले डाली और खोलकर कहने और समझने के लिए भी में उतना ज्यादा मादा नहीं था। हालांकि जब उसको ठण्डा, गर्म किया गया जब उसके आपको आश्चर्य होगा कि आज वो मादा ज्यादा है। अन्दर निर्वित्ती हुई उसके बाद जब उसमें जीव मनुष्य कितना भी लगता है गिरा हुआ उसका मादा उस हद तक पहुँच गया जहाँ आपका connection उस अनादि से हो सकता है। सहज अनेक तरीके से चलता आया, जब पहले पृथ्वी बनाई गई उस पर मनुष्य जन्तु आ गए. जब मनुष्य आए. हरेक चीज़ जो सहज ही होती गई। कृष्ण का भी सहजयोग है। के जमाने में lecture देता तो कोई सुनने वाला था? रास उसका वो मटके का फोड़ना, सभी कुछ सहजयोग है। मोहम्मद साहब का सारा काम तोड़नी पड़ीं और उसमें से vibrated यमुना का है बढ़ा हुआ है ऐसे सभा में बैठकर यदि कोई कृष्ण इसलिए गोपी की लीला करनी पड़ी. उनकी गगरियाँ सहजयोग ही रहा। सब सहज ही करते आए। पानी उनकी कुण्डलिनी पर गिराना पड़ा। ये सब आज सहजयोग उस जगह पर पहुँच गया है जहाँ नाटक इसलिए किया गया क्योंकि उस समय ऐसे पर कि आपका amass, सामूहिक रूप से आप लोगों की तरह बैठ कर लोगों से बात चीत नहीं आ मार्च - अप्रैल, 2004 पैतन्य लहरी खण्ड -XVI अक 3- 4 45 की जा सकती थी। लेकिन आज आप लोग ऐसे सर्पाकर जब होता है, सर्प जब बैठता है तो सर्पाकार बैठे हैं। आप में खोज बहुत जोरों में है। इस बजह होकर के मराठी में इसको वेटोडे कहते हैं, वेटोडे से सहजयोग फलित हुआ है अनेक देशों में हुआ शब्द बहुत अच्छा है जो घूमकर के एक के ऊपर है. खासकर लन्दन में सहजयोग ने बहुत जोरों में एक चढ़ जाती है। इस तरह की चीज़़ है ये अपना पैर जमा लिया है। ये एक बात है कि अंग्रेज कुण्डलिनी। इसको Coils आप कह सकते हैं। एक थे बड़े दुष्ट, इसमें कोई शक नहीं, वो रहे होंगे पर के अन्दर एक साढ़े तीन Coils हैं । अब साढ़़े तीन उनके बच्चे बहुत अच्छे हैं, उनके बच्चे वाकई में क्यों है? तो इसका भी कारण है आप Automatic साधू हैं और उन्होंने वास्तव में बहुत गहरी खोज की watch गर देखें जो Automatic चलती है तो इसमें है जीवन में, बड़ी गहरी खोज की है । फलस्वरूप बहुत गहरी खोज की है। यहाँ तक कि अनन्त की बात है जिसकी वजह से होता है अब वे गांजा पीने लग गए। यहाँ से भेजे थे न आपने इसके details में मैं जाऊंगी तो वो एक चीज़ चल बहुत सारे गाजा पिलाने वाले उन्होंने उनको गांजा पड़ेगी। लेकिन जो भी सोचा है वो Engineering पिला दिया, ये कर दिया। सब करने के लिए तैयार First class है, उसमें कोई शंका नहीं। अब ये साढ़े थे खोज के विषय में । और इतने पढ़े लिखे हैं कि तीन की कुण्डलिनी यहाँ बिठा दी है । ये बीज का कुण्डलिनी के बारे में वे सब कुछ जानते हैं वो अंकुर है, ये बीज Premule जिसको अंगेजी में जानते है कि सही है या गलत है। जैसे उन्होंने सत्य पाया एक दम उसे पकड़ लिया। आपको बना हुआ है एक दो तीन चार इसमें चार इसके आश्चर्य होगा कि लन्दन में मेरे सिर्फ चार lecture पंखुडिया हैं। ये चक्र, इसको मूलाधार चक्र कहते उसके साढ़े तीन Coils लगाने पड़ते हैं। इसमें गणित है । कहते हैं. वो है और इसके नीचे में जो चक्र पहले से मिलाकर चार और अभी तीन सौ बढिया हुए कुल वहाँ पर सहजयोगी तैयार हैं। बढ़िया । क्योंकि त्रिकोणाकार जो जगह है माँ सबकी अपनी माँ है तैयार चीज़ थी सूखी लकड़ी होती है आग जल्दी समझ लो आपकी अपनी टेप है। जहाँ बैठी हुई है से पकड़ लेती है। अभी Airport पर कह रहे थे कि ये आपकी अपनी माँ हैं। आपके बारे में सब कुछ माँ बच्चों में एकदम से प्रज्जवलित कर दो मैंने जानती है इसलिए आपकी टेप है। हर एक की कहाँ बेटा ये गीली लकड़ी है, इसको पहले सुखाना अलग-अलग माँ है और बार-बार ये आप ही के पड़ेगा, मेहनत करनी पड़ेगी। जब धूप आएगी उसमें साथ जन्म लेती है। जहाँ जहाँ आप जन्म लेते हैं सुखाऊंगी। प्यार की धूप में जब ये सूखेंगे तब कहीं वहीं ये जन्म लेती हैं और यें जो कुण्डलिनी है जाकर ये पनपेंगे कोई आसान नहीं है। इसलिए इसको आप किसी भी तरह से छू नहीं सकते, किसी अपने को माँ के प्यार में रखें, अपने से प्यार करें भी तरह से आप जागृत नहीं कर सकते। आप सिर और सारी बात को एक खुले हुए दिमाग से सोचे । के बल खड़े हो जाइए. पढ़िए लिखिए, कुछ करिए ये कुण्डलिनी हमारे अन्दर जो है साढ़े किसी से नहीं हो सकता। 'न योगे न 'सांख्येण। तीन कुण्डलों में रहती है इसलिए इसको कुण्डलिनी सब से अच्छे तो हमारे आदिशंकराचार्य थे उन्होंने कहते हैं। कुण्डल' जो कि घुमाई हुए चीज़ है कह दिया कि योग और सांख्य से नहीं, माँकी कृपा जिसको कि हमारे यहाँ इसे सर्पाकार कहते हैं से जागेगी क्योंकि इसकी जो माँ है जब तक वो है। मूलाधार नहीं कहते, मूलाधार चक्र । और ये जो मार्च अप्रैल, 2004 46 चैत्तन्य लहरी खण्ड -XVI अका 3 - 4 । प्रतीक हैं हमारे अन्दर एक symbol हैं । किस चीज़ कभी-कभी निराकार में अर्थात माँ के प्रेम की वजह का symbol है, Inn0cence का, अबोधिता का, से कोई कोई लोग पा लेते हैं. इसलिए वो निराकारी पवित्रता का जब ये माँ ने सृष्टि बनाई पूरी तो नहीं आएगी संसार में तब तक ये जागती नहीं होते हैं, ज्यादातर निराकार की बात करते हैं। जैसे कि आप कह सकते हैं बुद्ध के बारे में हुआ। कि सृष्टि बनाने से पहले उसमें संसार में पवित्रता भरी। 1. कोई माँ होएगी. उसका बच्चा पैदा होने वाला होएगा बुद्ध एक बार थक कर बैठे थे तब स्वयं साक्षात् तो सबसे पहले हर चीज़ में हजार तरीके से सफाई आदिशक्ति ने ही उनको जागृति दी और वो पार हो करेगी बच्चे को कहीं गन्दगी न लग जाए। कैसी भी गए। तो उन्होंने ईश्वर है ही नहीं ऐसा कहा। आप माँ हो, चाहे वो अनपढ़ हो चाहे वो कुत्ती ही क्यों न जब पार हो जाते हैं तो आपको ठण्डा-ठण्डा हो, चाहे वो कोई भी माँ हो, पहले अपने बच्चे के आता है और आप पार हो जाते हैं। आप थोड़ी लिए साफ सुथरी जगह बना देगी कि मेरे बच्चे पर देखते है कि ईश्वर है या नहीं। ये तो मैं बता रही किसी का Attack नहीं आ जाए। ये उसकी ममता हूँ कि ईश्वर है या नहीं। उसकी वजह ये हैं कि की निशानी है तो उसने श्रीगणेश को बनाकर के सूक्ष्म, अतिसूक्ष्मता से जब कुण्डलिनी ऊपर को यहाँ बिठा दिया। पवित्रता को उसने बिठा दिया चढ़ती है तो अन्दर से गुजरती हुई जाती है, बाहर दरवाजे के ऊपर में और जो लोग कहते हैं Sex से का मामला उसे कुछ दिखाई नहीं देता। जब चित्त कुण्डलिनी जागृत होती है वो अपने माँ के साथ आपका अतिसूक्ष्म से अन्दर से घुसता है तो बाहर Sex करने को कह रहे हैं। कम से कम हिन्दुस्तानी का मामला दिखाई नहीं देता है। जैसे अभी आप होकर के इसको समझो। अंग्रेज तो इसको समझ हैं तो आपको क्या मालूम बाहर का? नहीं सकते। उनकी कोई माँ बहन ही नहीं गधों भी 1 1. बैंठे हुए दिल्ली आपको थोड़े ही दिखाई देगी। आप की तुम लोग तो समझो कि कोई ऐसी बात aeroplane से आएंगे तो आपको सारी दिल्ली आपको समझाए तो क्या इसको मानना चाहिए? जो दिखाई देगी। लेकिन गर आप घर के अन्दर घुसे समझाता है उसको कहो अपनी माँ के साथ रहो। हों तो आपको घर ही दिखाई देगा, उसका भी ऐसी गन्दी बातें करने की जरूरत नहीं। कितना बाहरी हिस्सा नहीं दिखाई देगा। इसी तरह से बड़ा राक्षस है, जो कहता है कि कुण्डलिनी की कुण्डलिनी जब अतिसूक्ष्म उठती है तो आपको बाहर का कोई तरीका दिखाई नहीं देता। आप ये है। जब आदमी इस तरह से गलत काम करता है, भी नहीं जानते कि ईश्वर है या नहीं है। सिर्फ कोई भी आदमी जो बहुत विषयी होता हैं और आपके अन्दर से ठण्डक-ठण्डक सी आने लग जीवन की जिसने कोई इज्ज़त दुनिया में अपनी जाती है, चैतन्य की लहरियों आने लग जाती हैं नहीं की हुई जिसने बड़े गन्दे कर्म किए है और चो और इसका effect आप देखते हैं। अब तो आपकी कुण्डलिनी की बातें करने लग जाता है तब गणेश माँ हैं यहाँ और हम एक चीज़ आपको मैं बता जी उस पर बिगड़ते हैं। और तब वो नाचना शुरु सकती हूँ, उसका proof भी दे सकती हूँ। अब ये जो मूलाधार चक्र है इसमें श्रीगणेश देखता है, आफत मचाता है। ये कुण्डलिनी में बसते हैं। श्री गणेश का मतलब ये होता है कि ये गड़बड़ करने से होता है जो सद्चरित्र है उसमें 1 जागृति जो है Sex से होती है कुछ भी नहीं होता करता है चीखना शुरु करता है, बीच में ही उठ उठ मार्च - अप्रैल, 2004 पैतन्य नहरी ण्ड -XVI अक 3-4 47 कभी कुण्डलिनी ऐसा काम नहीं करेगी वो तो मों जिसको Negative तांत्रिज्म कहते हैं, वो शुरु हो जाएगी। माने उस जगह से गणेश जी हट जाएँगे। तुम्हारे पुन्नजन्म के लिए है, वो ऐसा नहीं कार्य उस मन्दिर से गणेश जी का चित्त हट जाएगा। वो करती। पर गणेश गुस्सा हो जाते हैं। तांत्रिक लोगों निकल जाऐंगे और गणेश जी हटते ही साथ ने इसका बड़ा फायदा उठाया। हालांकि मैं ये अपवित्रता अन्दर आ जाएगी। ये दोनों देखिए । कहूंगी कि माँ बच्चे से पूरी गलती कभी नहीं कहने दोनो साइड इनकी और उनकी जुड़ी हुई हैं। Left वाली, इसी वजह से हो शायद। माँ कभी ये नहीं & Right Sympathetic Nervous System में से कहती कि Completely Condemned माँ का Left में जो कि आप देख रहे हैं, Left Side में 1 ही है तुम्हारी। वो तो वरदान के लिए है तुम्हारे, 1 पूरा यह स्वभाव होता है। मैं ये कहूंगी कि शुरु में जो Collective Subcounscious है। Right Side के गलती हुई होगी. हो सकता है। मैं अपने स्वभाव के तरफ में पूरा Collective Supra Conscious है । अनुसार कहूगी। हो सकता है कि मनुष्य ने अपने जितने मरे हुए भूत हैं उसमें जिसको मन चाहेगा वो मूलाधार चक्र पर गणेश जी को देखा होगा, उनकी आ सकता है और दुनिंया भर की आपको सिद्धियाँ सिर्फ सूण्ड ही देखी होगी तो सोचा होगा कि यही आ सकती हैं। आप घोड़े का नम्बर भी बता सकते कुण्डलिनी है और इसीलिए उन्होंने गड़बड़ करी हैं आपके हाथ में से मूर्तियाँ निकल सकती हैं. होगी। हो सकता है। इसलिए Basically, शुरु से आपके हाथ में से कुमकुम निकल सकता है और ही, बुनियादी तौर पर मनुष्य को Condemn नहीं घोड़े का नम्बर आदि वगैरा। अब मनुष्य को ऐसा किया जाता। लेकिन जब उन्होंने देखा कि इस नहीं सोचना चाहिए क्योंकि मनुष्य के पास बुद्धि है । तरह से काम करने से हमारे अन्दर कुछ-कुछ मनुष्य को ये सोचना चाहिए कि परमात्मा को क्या अजीब-अजीब सिद्धियाँ आ जाती हैं तो उन्होंने इसमें Interest हो सकता है कि हमें हीरे की अंगूठी सोचा कि यही शक्ति हो सकती है। सिद्धियाँ कैसे दे? पहली चीज़़। क्या आपको हीरे की अँगूठी आती हैं? आप जब कोई से भी चक्र पर, विशेष कर चाहिए? फिर नहीं चाहिए आपको तो फिर ली क्यों? इस चक्र पे गलत काम करते हैं, जैसे कि समझ फिर ये भी सोचना चाहिए कि ऐसे हीरे की अँगूठी लीजिए गणेश जी का मन्दिर है, तांत्रिकों ने ऐसा देने वाले ये जो लोग होते हैं वे अपने देश को सारा किया, दक्षिण में एक मन्दिर में ऐसा दिखाया है कि कल्याण क्यों नहीं कर देते? सब अमीर लोगों को, गणेश जी का अपनी माँ के साथ गंदा सम्बंध है। ये जिनके पास बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ हैं. उनको हीरा देने भी किया, तांत्रिक लोंगों ने कुछ छोड़ा नहीं । गर में क्या रखा है? इसके बारे में भी कबीर नें बहुत गणेश जी के मन्दिर के सामने या मन्दिर के अन्दर लिखा है । नानक साहब नें तो पूरा एक Chapter बैठ कर के आपने व्यभिचार किया तो पहले तो ही लिख दिया है। ये खेचरी आदि, ये शक्ल ऐसा आपके अंदर गर्मी आ जाएगी बहुत या आपके बना, अंतड़ियाँ अंदर ले लेना, आदि जो फालतू की अन्दर बहुत ज्यादा blisters आ जाऐंगे। कोई न चीजें हैं इन लोगों ने लिखा कि इससे थोड़ी भगवान कोई बहुत बड़ी तकलीफ हो जाएगी आपको। कुछ मिलता है। लेकिन इनको कौन पढ़ता है? आजकल लोग नाचने लग जायेंगे कुछ उड़ने लग जाऐंगे । तो तो लोग रजनीश को पढ़ते हैं क्योंकि भगवान का भी आपने नहीं सुना, आप करते रहे जबरदस्ती तो, नाम लेकर कैबरे डांस देखने को मिले तो कोई क्यों नार्च - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड - XVI अक : 3 -4 48 ना जाए? वो भी मुफ्त! मनुष्य की वृत्ति ऐसी हो गई लेकिन समझदारी उनमें इतनी है कहा माँ लाओ, वो है, इसलिए ऐसा हो रहा है। तो जब हम ये सोचते सब चना खा लिए आपको आश्चर्य होगा, पूछ लें हैं कि ये सिद्धि आ गई आदमी में तो हम उसके उनसे चिट्ठी लिख करके पूना में रहते हैं, उनके चरण में जाने लगते हैं जब उसके अन्दर जाने प्रोस्ट्रेट ग्लैङ का एक दम ठीक हो गए। उनको लगते है तो गणेश जी आपमें लुप्त हो जाते हैं। ऑपरेशन नहीं करना पड़ा। आदमी अगर बीचों-बीच ज्यादातर गणेश जी के लुप्त हो जाने से Prostate रहे, ज्यादा Extreme पना नहीं करे तो सब ठीक Gland की बीमारियाँ शुरू हो जाती हैं । दूसरी हो जाता है। कौन कहता है अपना इतना सिरदर्द Side ेखिए । ये तो indulgence की हम बात कर लो दुनिया भर का? मारे आफत कर लेंगे, हठयोग रहे हैं, दूसरी साइड आप देख लिजिए अभी एक में आंतड़ियाँ निकाल कर रख देंगे! उनसे पूछो। साहब आए थे आज ही, बेहद शुद्ध आदमी हैं, अभी इनको तीन साल बाद ठीक किया मैंने इनकी इन्होंने अपने यहाँ गणेश जी की पूजा रखी है तो उनकी पूरी आंतड़ियाँ ही मेरे सामने निकल उन्होंने। पूजते हैं सुबह-शाम और उनका जो है आती थीं। मारे घबड़ाहट के मैने कहा भैया दो साल मूलाधार चक्र पकड़ा है? एक साहब और हैं, हमारे तुम मेरे पास मत आना जब तेरा ये बंद होगा बड़े भारी सहयोगी हैं वो आए मेरे पास बड़े भारी तमाशा, ऐसे-ऐसे कलाटियाँ मारते थे मेरे सामने गणेश भक्त हैं, उनका Prostate Gland का ऑपरेशन कि कुछ पूछो नहीं। ये सब करने को किसने कहा होने वाला है! संकष्टि का दिन था। मैंने तो कुछ है? अरे क्या पहलवानी करनी है या सिनेमा एक्ट्रैस पूछा नहीं उनसे, कहा चना खाओ, हमारा तो चना ही प्रसाद है। आप जानते हैं। तो दूसरे साहब बहुत ज्यादा खाना भी नहीं खाना चाहिए. भूखे भी उनके साथ में थे, कहने लगे इनका तो आज नहीं मरना चाहिए। साधारण तरह से घर गृहस्थी के उपवास है। मैंने कहा संकष्टि के दिन उपवास? जैसे रहो। अभी बैठे हैं इनसे पूछिए बताएँगे इनकी किसने बताया तुमसे? कहने लगे सभी बोलते हैं । मैंने कहा सभी बोलते हैं का जरा सोचो दिमाग से किया इनकी आंतड़ियों का तभी जाकर ठीक हुए. बनना है? आराम से रहो। हाँ बहुत अति मत करो, क्या हालत थी। तीन साल इनका Treatment कि जिस दिन श्री गणेश का जन्म हुआ, जिस दिन इनकी तो हालत खराब थी। तो बहुत ज्यादा हठ पवित्रता माँ लेकर आई, उस दिन तुम लोग उपवास योग में जाने की जरुरत नहीं। हठ योग संसारिक कर रहे हो! ये उसका क्या आदर कर रहे हो कि आदमियों के लिए नहीं। हठ योग तो जंगलों में अनादर? जिस दिन कोई अपने घर बड़ा आदमी जाओ. वहाँ कोई गुरु होते है पहुँचे हुए, पहुँचे हुए आता है तो उस दिन हम कितना जश्न मनाते हैं? गुरु होना चाहिए, ये गुरुघंटाल नहीं । वो आए यहाँ, ये खिलाओ वो पिलाओ, और जिस दिन श्री गणेश उनका पेट इतना बड़ा था, हठयोग लेकर यहाँ आपके घर में आते हैं उस दिन आप उपवास करते पहुँचे। क्योंकि ये किसी गुरु के पास जाते हैं तो हैं। विचार करो, वो दिन क्या उपवास करने कुछ हाथ नहीं लगता है तो बस आसन-वासन कुछ का है या जश्न मनाने का? तो उनके दिमाग में लेकर आये और पैसे बनाये। आसन तो 110 भी आया, बड़े समझदार आदमी हैं, ब्राह्मण हैं अग्निहोत्री नहीं है हठ योग के। यम नियम, श्रत्याहार, ब्राह्मण, उनके यहाँ पहले बहुत यज्ञ वज्ञ होते थे प्रणिधान, मनन, कितनी चीजें उसमें हैं उसमें से ईश्वर मार्च - अप्रैल, 2004 बैजञन्य लहरी खण्ड -XVI अंक 3 - 4 49 एक छोटी सी चीज है चक्रों की सफाई करनी है, जानते हैं इसके भी चार Sub Plexus हैं। पर ये वो भी पता होना चाहिए कि कौनसा चक्र कहाँ Gross में बाहर हैं परन्तु ये Subtle में अन्दर में ये पकड़ा हुआ है किस प्रकार पकड़ा है, वही चीज चक्र है। जैसे है कि Subtle Prime Minister बैठे हैं मंत्रों की भी है। कि मंत्र का बोलना जो है वो भी लेकिन उनकी Secretariate बाहर काम कर रही अब आपसे कह दिया ये मंत्र जपो आज एक हैं। इसी तरह की चीज है कि Subtle में गणेश जी ओंकारवादी आये थे। अरे भाई ओंकार तो यहाँ की बैठे हुए हैं, उनके भी चार हाथ हैं, उसके भी अर्थ हैं चीज है। अब आपका पेट का चक्र पकड़ा है, आप और उनसे जो कार्यान्वित है, वह Pelvic Plexus है ओंकार-ओंकार क्या कर रहे हो? यही पकड़ जो उसके भी चार Sub Plexus हैं। सब जितने जाएगा आपका। अब किसी ने बताया कृष्ण का भी चक्र हैं इनसे चालित जो भी Plexus हैं उतने ही नाम लीजिए, सबको Cancer of Throat हो रहा है, उनके भी पंखुड़ियाँ हैं। इससे आगे आप देख रहे हैं सबको हो रहा है, सब वहाँ से आते हैं मार खाये कि मूलाधार चक्र है। मूलाधार चक्र ये जो भव हुए, माँ हमारा कैंसर ठीक करो। अब आप सोचिये सागर है अपने पेट में, अपने पेट ही में भवसागर है । वहाँ श्री कृष्ण का वास है कंठ में, Cervical यही विराट की शक्ल बनाई हुई है। इसके पेट में Plexus में। आपको मैं कितने ही नाम बता दूँ अब भी एक भवसागर है जिसमें एक चक्र है जिसे नाभि मैं उनको क्या ठीक करूँ? मैने कहा अब आश्रम 1. चक्र कहते हैं। ये भी Subtle में, पीछे की तरफ, बनाने की जगह आप एक कैंसर हास्पीटल खोल रीढ़ की हड़डी में है। लेकिन वो चालित करता है दीजिए। एक नम्बरी भिखारी, उस राजा के नाम Solar Plexus को और ये जो भवसागर है, सागर पर भीख माँगते घूमते है, कुछ शर्म नहीं आती। ये स्वरूप है । जो संसार के सारे सागर हैं इसी से सब भिखारी की जात है । हरे कृष्णा करते फिरते बनाए गए हैं और यही गुरु का तत्व है। गुरुतत्व जो हैं, सारा विशुद्धि चक्र पकड़ गया है इनका, कैंसर है ये जल तत्व है। और गुरु का तत्व है, इसमें ही उनके हो रहा है। इनका कैंसर तो सिगरेट पीने हैं दत्तात्रेय आदि गुरु हैं वो बनाए गए हैं। और वालों से भी बदतर होता है अब इनको कौन इनके दस मुख्य अवतार हुए हैं इनमें से राजा समझाए? सबकी हालत खराब हो जाएगी। एक जनक, नानक, मोहम्मद, सब एक ही तत्व के अवतार हैं। इसलिए मुसलमान और सिक्खों की लड़ाई बिल्कुल बेकार की बात है। नानक साहब तो चार-पाँच साल में Cancer of Throat के Patient हो जाऐंगे तब छोड़ेंगे। उससे ऊपर का जो चक्र है, जिसे कि नाभी चक्र यहाँ कहना चाहिए, हालांकि बीच में एक चक्र और पड़ता है। ये जो नीचे का चक्र दिखाया है जिसको कि मूलाधार चक्र कहते हैं, उसमें हमारे शरीर में जिसे Pelvic Plexus कहते है वो Control संसार में दोनों को एक करने आए थे। बाद में मुसलमान गधे हो गए और उन्होंने आफत मचा दी। और अभी भी जिस चीज को उन्होंने मनाही की थी वो दोनों ने ही, एक ही बिल्कुल एक ही चीज है, दो चीज नहीं, बिल्कुल एक चीज है और उसका होता है। अब ये Pelvic Plexus जो है ये Gross आपको प्रत्यक्ष है कि एक बार नानक साहब मक्के चीज है और उसी से हमारी जननेद्रियाँ वगैरह हैं। की तरफ में पैर करके लेटे थे तो किसी ने कहा उसमें भी चार Plexus हैं, डॉक्टर भी इस चीज को इधर मक्का है, इधर क्यों पैर किए? तो उन्होंने कहा मार्च अप्रैल 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 3-4 50 चलो इधर मैं पैर कर लँ, उधर ही मक्को आ गया। मनुष्य को गर दानव बनाना है तो उसे शराब जहाँ उनके चरण थे वहीं मक्का आ गया अगर वो दीजिए गर एक दानव बना घूम रहा है तो ऐसी मोहम्मद साहब नहीं थे तो कैसे आ गया? सोचने जगह जाने की जरूरत क्या है? और ऊपर से उस की बात है, ये इसकी पहचान है। तो ये जो हमारा पर कविता लिखते हैं। और ये मुसलमान जो अपने भवसागर है इसमें जो आदमी बहुत ज्यादा कट्टर को बहुत बड़ा मुसलमान कहलाते हैं, इनसे बढ़कर होता है जाति का, जिसमें कट्टरता होती है जाति शराब पीने वाला तो कोई है ही नहीं। सिक्खों का की, वो आदमी पार नहीं हो सकता। मानें मैं क्या हाल लन्दन में हो रहा है? शर्म आती है। वो क 1 मुसलमान, मैं हिन्दू, मैं फलाना, मैं ब्राह्मण वो पार नहीं हो सकता। ये भवसागर का Problem है और जब शराब पीने पर आते हैं तो क्या अंग्रेज और क्या इसके बीच में जो नाभि चक्र है, ये नाभि चक्र जो रशियन पियेंगे? पहले तो चोरी छिपे पीते थे अब तो है, ये हमारे धर्म की रक्षा करता है। यदा-यदा ही खुलेआम। सबसे बड़ी चीज़ है जो हमे बता गए हैं धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारते'। इसमें विष्णु और लक्ष्मीजी उसके थोड़े से भी रास्ते पर चलो वो पार हो सकता का स्थान है, लक्ष्मीनारायण का स्थान है। और है। लेकिन अब कोई शराबी कबाबी वहाँ से आए एक हेल्मेट लगाने के पीछे में मार आफत मचा दी, और मेरे ऊपर हक लगाए कि माँ हमें पार कर दो, जब-जब धर्म की ग्लानि हो जाती है तब-तब साक्षात् परमात्मा ही जन्म लेते हैं क्योंकि ये जो तो उसका क्या अधिकार है? बताइए आप। उसका कृष्ण आपने देखे हैं या जो विष्णु जी हैं यही हमारे कोई अधिकार होता है पार होने का? जब उसने सृजन तत्व के हैं यानि evolutionary हैं । इसलिए एक छोटी सी भी बात अपने पिता की नहीं सुनी तो वो जन्म लेते हैं। शिकजी ने कभी भी जन्म नहीं उसको कैसे हम पार करायें? और जब वह पार नहीं लिया। ब्रह्मदेव ने एक ही बार जन्म लिया है जो हुआ तो जाकर के मेरी बदनामी करेगा कि हाँ वो कि इस चक्र में बसते हैं और इसी से चारों तरफ तो ऐसे ही हैं, वो तो हाथ घुमाती हैं, जादू करती हैं घूम कर और उसका सम्बंध नाभि से है इसलिए मंत्र करती हैं। और आप क्या हैं? उनसे पूछना यह ब्रह्मदेव और सरस्वती का स्थान है और वो चाहिए आपने क्या किया आज तक? आपने किसे चारों तरफ घूम कर और इस भवसागर को बचाते पार किया है? आपने किसका भला किया है? हैं और मनुष्य में धर्म की स्थापना करते हैं। मनुष्य आपने किसीकी तंदरुस्त्री बढ़ाई है, किसीको ठीक के धर्म दस हैं मुख्यतः और इसलिए दस बहुत बड़े किया है, कुछ किया है? माँ को तुम बुरा बोलते हो गुरु हो गए। जैसे कि सोने का धर्म होता है. आप तुम्हारी क्या हस्ती है? लेकिन यहाँ तो जो उठा वो कहते हैं कि सोना कभी खराब नहीं होता ही बोल सकता है। किसी को भय तो है ही नहीं untarnishable है। इसी तरह मनुष्य में दस धर्म किसी के खिलाफ बोलने में अब इससे ऊपर में. होते हैं, जब इस धर्म से वह च्युत हो जाता है तो मैं अभी आपको संक्षिष्त में बता रही हूँ क्योंकि विषय वह दानव हो जाता है। गुरुओं नें बताया है कि बहुत बड़ा है। लैकिन मैं कल आपको conscious शराब नहीं पीने की क्योंकि मनुष्य अपने धर्म से और subcounscious mind पर बताऊँगी। च्युत हो जाता है। इसलिए उन्होंने मना किया है और शराब अपके धर्म के विरोध में बैठती है हृदय चक्र में श्री जगदम्बा का स्थान है, शक्ति का ये चक्र जिसे हृदय चक्र कहते हैं और मार्च - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 3-4 51 स्थान है, जो सब जगत की जननी है उसका स्थान तमाशा दुनिया में हों रहा है जरा देखो तो सही। है। क्योंकि जब-जब भवसागर में बड़े-बड़े राक्षसों क्या ये भगवान के नमूने हैं? ऐसे होते हैं भगवान के का जन्म हुआ और उन्होंने सारे जितने सात्विक लोग? अरे भगवान के लोग तो बादशाह होते हैं, लोग है उन्हें सताना शुरु कर दिया तब वो स्वंय बादशाहत होती है उनकी, उनको क्या देने वाले हो साक्षात् आकर के उनका हनन करती हैं, उनको तुम? बादशाहत ये होती है कि जमीन पर सो जाएं खत्म कर देती हैं। इसके लिए आपको देवी भागवत तो भी बादशाह हैं, चाहे महलों में रहें तो भी बादशाह पढ़ना पड़ेंगा, देवी पुराण पढ़ना पड़ेगा। फिर मार्कण्डेय जैसा कोई बड़ा गुरु नहीं हुआ, मार्कण्डेय भी बहुत कहना चाहिए भगवान का आदमी या ये जो उसका बड़ी शक्ति है, बड़ी महान शक्ति थी मार्कण्डेय भी। मुकूट लगाकर के घूमेंगे। यहाँ पर हीरे जड़ाकर के हैं, चाहे कहीं भी रहें तो भी बादशाह हैं। उसको और श्री आदि शंकराचार्य जो थे वो तो अभिभूत थे गधों में हीरे लगाने से वो कोई राजा नहीं होते? में माँ से। उन्होंने तो कुछ लिखा ही नहीं वो तो बस उनको ऐसा लगता है गधों को अपने कि दुम माँ की स्तुति ही गाते रहे सुबह शाम। गर कोई थोड़े से हीरे जड़ा लो तो दुम कट जाएगी। अच्छा शंकराचार्य को पढ़े तो उन्होंने कोई भी विवरण तो ये देवी जी का स्थान है। देवी जी जो हैं हृदय खास दिया नहीं, बस वो तो सौन्दर्य लहरी और ये चक्र में शिवजी का स्थान है हृदय में आत्मा चैतन्य लहरी, जिसे हम Vibration कहते हैं. यही स्वरूप शिवजी बसते हैं हर समय । मैं इसके लिए गाते रहे। बहुत बड़े पुत्र थे वो। अब उन्हीं के सहारे हमेशा उदाहरण देती हूँ, आजकल Modern बड़ा में आजकल बैठे हुए हैं। मैंने सुना कि वो बड़ा भारी अच्छा उदाहरण है, जिस तरह से Light छत्र सोने का बनवा रहे हैं। अब क्या कहिए? अपने छोटा सा दीप जलता रहता है गैस के या अपने गैस सिर पर है वो और अपने ऊपर में छत्र बना रहे हैं, घर में होती है देखा होगा उसमें एक छोटी सी किसी दिन गिर विर गया तो चोट ही लग जाएगी फिलिकर जलती रहती है। जैसे ही Light आ जाती उनको। मतलब गिरेगा तो मेरा नाम मत रखना, है, Light कहने से या यूँ कहिए गैस की धारा आ लेकिन बता रही हैूँ मैं आपको। कम से कम इतना जाती है, माने कुण्डलिनी ऊपर आ जाती है, इसकी उसको पकड़ लेती है। और आप की जो चारों तरफ फैहरे बीच में बैठे रहें। अब उसी में चेतना है उसमें Light आ जाती है? आपकी चेतना बैठकर विमान में वो शायद स्वर्ग जाने वाले है और अभी enlightened नहीं है, उसको किसी तरह से एक बता देना कि उनके सिर पर चोट न लगे, गिरे तो Light सब लोग उनकी पूजा में जाते हैं, खास कर जो हृदय के पास पहुँचाना चाहिए और हृदय जहाँ पर South Indian हैं इनका तो कचूमर बना रखा है। शिवजी का स्थान है असल में सदाशिव की पीठ ये मैंने एक महिला से पूछा कि भई तुम्हारा हीरे का है स्थान वो है परन्तु पीठ ये है. कुण्डलिनी जैसे ही हार कहाँ गया? बो मैंने दान में दिया। मैंने कहा यहाँ पर छु जाती है ऐसे ही हृदय आलोकित हो किसको? कहने लगी इनको। मैंने कहा अच्छा। जाता है। ये है सदाशिव का स्थान, इसे हम कहते कहने लगी इनका बन रहा है ना उसमें हीरे भी हैं की ब्रह्मरन्ध्र से ऊँचा सदाशिव का स्थान है। जैसे लगने चाहिएं। मैंने कहा उसमें हीरे लगाओ और ही कुण्डलिनी वहाँ छू लेती है आपकी चेतना आलोकित ऊपर में चार पाँच हाथी भी खड़े कर दो एक-एक हो जाती है। तभी फिर ब्रह्म आपमें स बहने लगता 1: मार्च अप्रैल, 2004 XV जफ 3-4 वित्य लहरी खप्ड 52 है। ये जो बह रहा है वो साक्षात ब्रह्म है। आप ऐसे करना चाहिए। अब वो गुस्सा काहे से होते हैं, वो हाथ करके देखिए, मैं जो भी बात कह रही हैूँ सच गुस्सा इस लिए होते हैं जब मनुष्य का चित्त आत्मा है या झूठ है? आपको फौरन Vibrations आएंगी। की ओर नहीं होता। मनुष्य है अब जो हठ योगी हैं, ये ब्रह्म आपके अन्दर से बह रहा है। ब्रह्म जो है जो आसन-बासन करते हैं, so called हठ योगी, तो रात दिन बो अपने शरीर को मारते रहते हैं। परछायी है। परमात्मा की परछायी अपने अन्दर जो शरीर की तरफ जिस आदमी का ज्यादा चित्त गया है, प्रतिबिम्ब जो है वो आत्मा स्वरूप है। परमात्मा गुस्से हो जाएंगे जो आदमी बहुत ज्यादा मेहनत सदाशिव स्वरूप मानने चाहिए क्योंकि उन्हीं के करता है और सोचता है मुझे ये भी करना चाहिए. Manifestation से बाद में आपको ब्रह्म देव और वो भी करना चाहिए. धन कमाना चाहिए घर बनाना विष्णु ये तीन aspects निकलते हैं। माने पहले तो चाहिए, घर बनाने के बाद aeroplane बनाना चाहिए, एक सदाशिव स्वरूप होता है और फिर उसके तीन aeroplane बनाने के बाद में पता नहीं क्या बनाना aspects बन जाते हैं जिसको हम कह सकते हैं चाहिए। इस तरह के जो आदमी होते हैं उनसे बड़े सदाशिव स्वरूप या शिव स्वरूप जो कि हमेशा रुष्ट हो जाते है शिव जी, इस लिए लोगों को heart attacks आते हैं क्योंकि चित्त आत्मा की ओर हैं। आज गर हमारा हृदय बन्द हो जाए तो खत्म नहीं। चित्त को आत्मा की ओर रखो, खास कर हो जाएंगे। अस्तित्व जिसे कहते हैं, existence जो आपके दिल्ली शहर में यह बहुत commmon चीज़ आत्मा का प्रकाश है और आत्मा ही परमात्मा की existence मात्र है, उनकी बजह से हम existed है। इसको मैं बहुत mild शब्दों में कहती हैं कि imbalance, उससे लोग खुश होते हैं नाराज़ नहीं सारे संसार की निर्वृत्ति करते हैं । और तीसरा होते हैं माने right side की activity ज्यादा है, वो शिव स्वरूप है। उसके बाद में जो ब्रह्म स्वरूप है वो Creator है, मतलब वो सृजन करते हैं, 1 स्वरूप जो है विष्णु जी का, वो सृजन करते हैं Evolution करते हैं। उनकी वजह से माने उक्ान्ति आप मेहनत कर रहे हैं, आराम हराम है, चलो करो, मेहनत करो. पैसा कमाओ, हमारे अन्दर धर्म बैठता है; हरेक Elements के देश का development होना चाहिए। develop धर्म बैठते हैं, हरेक सृष्टि का हरेक चीज का धर्म माने क्या चो इंग्लैण्ड जैसा चाहिए जहाँ पर की मेहनत करो, मेहनत बैठता है। आम का पेड़ लगाओ तो आम निकलेगा, 10% लोग तो suicide करते हैं 10% लोग पागल ये सब काम जो हैं इनकी सृजन शक्ति करती है। खाने में जाते हैं, 10% लोग अनाथालय में बैठे हैं 10% लोग बच्चे जो हैं वो भांग खाते हैं, इसी प्रकार 10% करते करते 1% कोई बैठ जाऐ तो वो शिवजी नाराज़ हो जाते हैं बहुत जल्दी, भोले सहयोग करते हैं। ये हालत है। वैसा आपको बनाना आदमी हैं ना, बहुत जल्दी नाराज़ हो जाते हैं, खास है यहाँ? जहाँ की एक grand mother है अपने कर के कोई जरा सी भी गलती कर दो तो बहुत grandson से शादी करती है। यें अंग्रेज अपने जल्दी गुस्से हो जाते हैं। उनको मानने के लिए तो ऊपर rule करते थे पहले, गधे कहीं के, इनको गधा कहूँ कि क्या कहूँ? ऐसे तो गधा भी नहीं करता हैं जब गुस्से हो जाते हैं। तो उनको भई गुस्सा नहीं होगा। और common चीज है grandfather, grand माने उनकी जो जिसे कहना चाहिए जो उत्क्रान्ति होती है। शिवजी का स्थान यहाँ पर है। अब | साक्षात् आदिशक्ति को उनके चरण पकड़ने पडते এ मैतन्य लहरी खणड -४VI अक, 3 - 4 मार्थ - आल 2004 53 daughter से शादी करता है. grandmother, गोबर खाने का कौन सा कारयदा है कि गोबर नहीं खाओ। एक तो मनुष्य को ऐसे ही समझ में आता grandson से शादी करती हैं। उन्हें शर्म नहीं आती London में very common सोज news है और अभी उसके कायदे के पीछे में लड़ रहे हैं वो paper में उनके वो आते रहते हैं. क्या? love letter सबेरे पेपर खोलो तो लगता है क्या गीता openly parliament में जाकर बेटी और बाप और लिखी हुई है? ये अधर्मी लोगों ने यहाँ इतने दिन बेटा और माँ. बोलो तो! अब उन गंधों से क्या लोग। ये जो कायदा है उसको मिटाओ और वो भी राज किया उस वक्त उतने गधे नहीं थे। अब बहुत ही गधे हो गए। सीखने का है? क्या development कर रहे हो बाचा? जैसे ही पैसे ज्यादा आ गए उसके पैर निकलते हैं । पहले तो शराब, जो आदमी शराब पीता है उसको तो promotion देना ही चाहिए। न उसको एक पैसा ज्यादा देना चाहिए, पैसा ज्यादा हो गया तभी तो शराब पी रहा है। गर भूखा मर रहा होता तो क्या पीता? वहाँ के Politicians, ने उनको ये अब तो liberated हो गए हैं न। वहाँ के बूढ़े तो इतने गधे हो गए, इतने गधे हो गए हैं कि सब उन्हें silly old कहते हैं वहाँ पर। और वहाँ की लड़कियाँ बड़ी होशियार है । उन्होंने नाम बनाए हुए हैं, वो उन्हें sugar daddy कुछ कहते हैं एक बूड़े को बैठा रखा है, उसका पैसा खाती रहती ैं। घूमती रहती हैं आराम से। 15 साल की चौपटाया है उनको बस क्या है? उनको तो बस है किसी तरह से बस पैसे मिल जायें, बोट मिल होशियार हो जाती हैं। 15 साल से नोचना शुरु जाये. फिर जो करना है करो। ये तुमको कायदा करती हैं. बस पैसा कमाने से मतलब। तो क्या पास करवा देगा, बस तुम हमको वोट दो। क्योंकि हुआ? चार शादी हो गई तो क्या हुआ ? और Politicians में भी वहाँ कोई धर्म तो है नहीं। तो ये है बहुत कोशिश हो रही है कि ये जो कार्यदा बना हुआ है absurd, उसको हटा देना चाहिए। बहन-भाईयों पर भी है उनके अन्दर में। अपने यहाँ गर कोई बूढ़ा होगा नहीं। वहाँ आपको आश्चर्य होगा अपनी बहन के साथ जायें London में कोई होटल में जगह नहीं पूछे हमलोग कोई काम नहीं करते। क्योंकि वहाँ के मिलेगी। बहन भाई को allowed नहीं है। ये चाहे बूढ़े जो हैं इतने गधे हैं उनके कौन चरण छुए? तो आप और औरत को ले आ सकते हैं। आपको अमरीका तो भैया, उनका नाम ही न लो। वो तो आश्चर्य हो रहा है वहाँ लोग सोचते हैं ये कैसे हिन्दुस्तान में हो रहा है? ये हो ही नहीं सकता। हैं और अभी London में भी उसका rule निकला हमने कहा हमारे यहाँ अपने भाई तो छोड़ दो, पर वहाँ London में कि उसका कायदा तुड़वाया किसी को गर भाई मान लिया तो सारा घर उसे मानता है, तुम हो कहाँ? ये तो अपने पांवों के धूल कि माँ-बाप माँ-बाप का सम्बन्ध जो बच्चों से के बराबर नहीं है, इनको तो बहुत दिन तक अपने होता है उसका जो कायदा होता है वहाँ पर वो से सीखना है। तुम्हारे अन्दर जो सहज बातें हैं वो घुसती नहीं हैं। अभी मेरे लड़कियाँ बड़ी होशियार होती हैं 13 साल से आदमी भी उनकी बात मानते हैं, बुद्धू कहीं के। बूढों को vanity हो जाती है, उनको वहाँ inferiority complex होता है, क्योंकि कोई wisdom ही नहीं भी कायदा बहाँ पास होने वाला चीज़ है, बाबा बुजुर्ग हैं, आइए. बैठिए। उनसे बगैर उनके नाना हैं। गधे कहीं के, बो तो बहाँ common वहाँ पर, वो तो छोड़ो कायदा तुड़वा रहे है वहाँ पर ना। कायदा है। अपने यहाँ ऐसा कोई कायदा नहीं। उन गधों के अन्दर में 1 পট मार्च - अप्रैल 2004। चैतनम] लहनी - XVI अंक : 3 4 54 शिष्यों की बात छोड़ो, बहुत ही सभ्य हैं, कहने लगे आप किसी ऐसे व्यक्ति या किसी अवतरण के इसका मतलब मॉँ हमारे अन्दर कोई संस्कृति नहीं। सामने जाते हैं, जिसको कि Authority है. तभी ये इसका मतलब यही हुआ बेटे। तो समझ लो। कहने कुण्डलिनी हिलती है और वो मूलाधार चक्र से लगे हमारी आँख बहुत इधर-उधर दौड़ती है कमसे कहती है कि हाँ ठीक है। तब वो release करते हैं कम इसको रोको। गणेश सब अपने साथ रखते हैं यहाँ से उसमें शक्तियाँ दोनों Side से ताकि जरा कि हे गणेश हमें पवित्र बनाओ तो मैंने कहा इसके सी Tension कम हो जाए और फिर कुण्डलिनी लिए तुम पृथ्वी पर अपनी आँख लगाकर चलो। गर उठती है धीरे-धीरे और नाभि चक्र से गुजर के तुमने अपने पृथ्वी पर ऑँख लगाई तो ठीक होंगा। हृदय चक्र से गुजर के ऊपर जाती है। हृदय चक्र आपको आश्चर्य होगा कि सिर्फ वही देख के चलते के एक Side में, इस side में मैने कहा आपसे, है, ऊपर ऑँख ही नहीं उठाते। वहाँ के जो Seeker शिवजी का स्थान है और उस Side में जबकि यहाँ है वो बड़े भारी पहुँचे हुए Seeker है वो जो एक से आपके लक्ष्मीनारायण दस अवतरण लेकर के बार कह देते हैं, अब वो कान पकड़े हुए हैं। उनका Revolve करे तब आठवें अवतरण में जब रामजी वही हो गया। बहुत हो गया कहने लगे इसका कोई का अवतरण हुआ वो स्थान उनका है। लेकिन अंधेर है । अब आप सोचिए क्राइस्ट पर Picture रामचन्द्र जी बराबर बीचौबीच में नहीं हैं वो Right निकाल रहे हैं कि क्राइस्ट का और उनकी माँ का बुरा सम्बध था मैने कहा, "हिन्दुस्तान में ये पिक्चर उनको ये भी भुला दिया गया था कि वो अवतरण नहीं चल सकती। ये तुम इधर ही चला लो ।" तो हैं क्योंकि उनको रजोगुण पर बिठाकर के उनकी वो उस पर rule लाना पड़ेगा. ये पिक्चर नहीं बनेगी मर्यादा बनानी थी कि ये मर्यादा है क्योंकि ldeal जब तक मैं जिन्दा हूँ। वो बेचारी वहाँ शरीफों का King के रूप में वो आए थे मर्यादापुरुषोत्तम। कोई मार्ग नहीं रहा। ये रजोगुण में जब आप आते इसलिए पुरुष की जो मर्यादा है वो रामचन्द्र हैं। हैं, Right Side में रजोगुण हैं. तमोगुण से उठकर और जिस मनुष्य में मर्यादा नहीं होती उसका ये रजोगुण में जब आप आते हैं, आप देख रहे हैं वीच चक्र पकड़ता है बहुत से लोग सोचते हैं अब हमें में सतोगुण है। तो बीचोंबीच रहना चाहिए। इसलिए freedom मिली तो बस मर्यादा छोड़ो। दूसरे जिस ने कहा है कि बीचोंबीच रहना चाहिए । जो मनुष्य में अपने पिता के प्रति श्रद्धा नहीं होती Side में हैं, माने रजोगुण में उनको बिठाया गया। बुद्ध मनुष्य बहुत में उतरता है वह अति में उसका ये चक्र पकड़ता है। Left heart उसका जाता है और अति में जाने के कारण ही उसमें पकड़ता है जिसको अपनी माँ के प्रति श्रद्धा नहीं है अतिक्रमण हो जाता है। अब आप समझ रहे हैं कि किस तरह से या जो अपने पिता के प्रति दुर्यवहार करता है मैंने आपको चक्रों के बारे में बताया मूलाधार चक्र उसका ये चक्र पकड़ता है. और दूसरा गर किसी ने और मूलाधार, उसमें बहुत अंतर है- मूलाधार अपने बच्चों के साथ दुर्व्यवहार किया उसका भी ये जिसमें कुण्डलिनी स्थित है और मूलाधार चक्र चक्र पकड़ता है। ये बीच वाला चक्र है वो जब जिसमें कोई नहीं जा सकता। अत्यन्त पवित्र चीज औरतों को पकड़ता है उससे Breast Cancer है उसको Information सिर्फ माँ से आती है। होता है जिसे sense of insecurity आ जाए जब एजोगुण और जिसको अपने पिता के प्रति श्रद्धा नहीं होती मार्च - अप्रैल, 2004 चेतन्य लहरी खण्ड -XVI अक 3-4 55 तीनों चक्रों में मनुष्य को जाने के बाद में शाम को फिर ये सब बताऊँगी आपको। उसके बाद शायद दिल्ली में उन लोगों ने दिल्ली में भी मेरा प्रोग्राम रखा है। आप लोग आयें, फिर उसके बाद मैं London चली जाऊँगी और फिर से आऊँगी अगले साल । जो बात मैने कही चो फिर दोहराऊँगी। Lecture सुना और उसके बाद श्री राधाकृष्ण का स्थान है। श्री राधाकृष्ण के स्थान चले गए। ऐसा नहीं करो। अपनी इज्जत करो | पर जाकर के इनका अवतरण पूरा होता है वहाँ पर अपनी सम्पदा को पाओ। अपनी सम्पदा को पाते ही 16 petals है और वहीं 16 subplexus हैं और आपका जितना physical, emotional, mental problem है, सब खत्म हो जाएगा और आप उस Portion जिससे कि लोगों को sinus आदि की दशा में पहुँच जाएँगे जिसे साक्षी स्वरूप कहते हैं । तकलीफे होती है, मुँह जबड़ा नाक आदि जो कुछ और आपके हाथ से अविरल परमात्मा की ये सब इसी से होता है अब ये बहुत जरूरी dynamic शक्ति है, बहती रहेगी। छोटी सी कहानी बताकर मैं अपना Lecture खत्म करूंगी राधाजी समझें। इसके बारे में आपको मैं कल बताऊँंगी। को मुरली से एकबार बहुत ईष्र्या हो गई तो उन्होंने और इससे ऊपर में जो है आज्ञाचक्र ये भी बहुत जाकर श्री कृष्ण से कहा कि तुम्हारे मुंह में ये मुरली जरूरी चक्र है, इसके बारे में मैं कल बताऊँगी। क्यों लगी रहती है? तो कृष्ण नें कहा कि तुम मुरली से जाकर पूछ लो। उन्होंने मुरली से जाकर पूछा इस तरह आपने देखा है कि किस प्रकार तुम्हारी क्या विशेषता है? तुम्हारी क्या Speciality सात चक्रों में से कुण्डलिनी आपो-आप उठती है। है? तो मुरली नें हंस कर कहा कि तुमको नहीं मालूम मेरी विशेषता है कि मैं सब विशेषता खो मैं खोखली हो गई हूँ। मेरे अन्दर से वह बताऊँगी कि conscious, subconscious और बहता, बजता है । इसी प्रकार आप खो जाते हैं और Collective subconscious और supraconscious इसलिए परमात्मा ने आपको बनाया है कि आप उनकी मुरली बन जाएं। आपके अन्दर से वो collective कार्यान्वित होंगे तो आप जानियेगा उसके कार्य consciousness में आप किस प्रकार जागृत होते को भी आप जानिएगा, उसकी अगम्य लीला को आप जानियेगा, उसकी सर्वव्यापी शक्ति को आप ये चक्र पकड़ता है। palpitation or breathing trouble ये सब बीमारियां होती हैं। ये तो बीमारी की बात हुई लेकिन इससे भी बहुत subtle बातें हैं। इससे ऊपर के चक्र को कल समझाऊँगी आप सब को। ये चक्र जो कंठ पीछे में यहाँ है उसे विश्द्धि चक्र कहते हैं। इसमें ि इसी से हमारे आँख-नाक ये सब माथा यहाँ का चीज़ है कि इस चक्र को खूब अच्छी तरह से इसके बाद सहस्रार है। कुण्डलिनी किस तरह से उठती है किस तरह से चलती है ये मैं परसों बताऊँगी आपको, और ये भी चुकी हूँ, और ate collective supraconscious 311 आँर supraconscious है। इस तरह से पूरी तरह मैं आपको scientifically पूरी बात समझाऊँगी। आप लोगों ने जो भी Lecture जानिएगा । ये सब, संब कुछ आपका अपना हो सुना है उसमें से स्वंय साक्षात vibration बहते रहते सकता है। बुद्धि जो आपकी है वह सीमित है, हैं इससे भी लाभ हुआ है और कल जब आप उसको थोड़ा सा कहना भैया तू जरा ठ्डी रह। आयेंगे सबैरे तो जागृति करेंगे आप लोग सीमा से पार जाने के लिए उसमें सीमित चीजें नहीं चलती इसमें असीमित में कूदना है। अत्यंत सूक्ष्म meditation पर बैठें उसके बाद थोड़ा सा जम मार्च - अप्रैल, 2004 56 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 3-4 है और सूक्ष्म चीजों के लिए अपनी बुद्धि थोड़ी सूक्ष्म काफी काबू कर लिया है । पर जड़ आपकी खोपड़ी होनी चाहिए। इर समय आपका मन लपटा रहे पर बैठ गया है। जैसे की आपमें जड़ है। जैसे बाहर और बाहरी चीजें आप सोचते रहें तो काम Electricity को आपने Manage कर लिया है. नहीं बनता। थोड़े सूक्ष्म में आ जाओ, सूक्ष्म में आते लेकिन Electricity के बगैर आपका काम नहीं ही सारे gross तो क्या, जड़ जीव-जन्तु का ऐसे चलता तो Electricity ने आपको काबू किया हुआ ही आप control कर सकते हैं। पर सूक्ष्म को पहले है। लेकिन जब अआप पार हो जाते हैं और उस दिशा पाना चाहिए, बहुत ही आसान चीज है, इसमें कोई में आप पहुँच जाते हैं जहाँ कि सारे जड़ के ऊपर मुश्किल नहीं है। मैं London में थी तो London में आप बैठे हैं तो जड़ आपके चरण छूते हैं. जो कुछ लोगों ने कहा माँ बड़ी ठण्डी है, थोड़ी गर्म कर दो। करना चाहे आप करवा सकते हैं। इसका महत्व ही तो मैने कहा अच्छा तुम्हें Summer चाहिए? कहने नहीं रहता है, फिर तो इसका Interest ही नहीं लगे हाँ। आप लोगों ने सुना होगा London में दो . रहता। तब तो मजे में आदमी अपने में ही रहता है। तीन Summer बड़े हुए हैं। अभी दिल्ली में हमारा और सबसे जो चमत्कृति परमात्मा की वो आप लोग Programme पिछले महीने होने वाला था। हमारे हैं। मानव। और फिर उसका मजा आता है जैसे सुबमण्यम साहय ने कहा माँ यहाँ बहुत ठण्डी हो अभी एक साहक वो पैर पर वो आए तो किसी ने रही है मायनस बुलाया कि देखो-देखो उनके Vibrations कसे आ 3 डिग्री Temperature हो रहा है, तो क्या करें? मैंने कहा ठीक है, अगले महीने रखें रहे हैं! ऐसे ही तुम्हारे अन्दर से सुगंध बहता रहता हम, अभी टाईम नहीं है। अगले महीने आयेंगे। तो हैं। सुबह से शाम तक उसकी सुगंध को लेते रहो उन्होंने कहा कि नहीं नहीं फरवरी तक तो बहुत और उसको पाओ, बहुत से लोग मैंने सुना कि कहने ठण्ड हो जाएगी। तो मैंने कहा अच्छा तुम रखो तो लगे माँ के पैर नहीं छुएगे तो कुछ भी नहीं कर सही। हमारे आने से एक दिन पहले ही सूर्य देवता पाएंगे। हिन्दुस्तान में माँ के पाँव क्या, मैं तो तुम्हारी शुरु हुए मेहनत करने के लिए और अभी आप लोग गुरु तो हूँ नहीं। मेरे पाँव छूने में क्या हर्ज है? गर आराम से बैठे हैं। तो ये कोई मुश्किल काम नहीं मैं तुम्हारी माँ हूँ तो मुझसे कुण्डलिनी जागृत करवा है। पहले सूक्ष्म को पायें, सूक्ष्म को पाते ही साथ में लो। ये क्या है? ये जड़ तो, वैसे ही आपने जड़ को 1 परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। ---------------------- 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-0.txt चैनन्य लहरी (२ १ कि ० रभ स ३१ हु 6ा पाध मार्च - अप्रैल, 2004 खंड : XVI अंक : 3 व 4 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-2.txt श्री महाशिवरात्री पूजा, पुणे , 15-2-2004 गुरु पूर्णिमा, लन्दन, 29-7-1980 6. 18 सहजयोगियों को श्रीमाताजी का परामर्श सर सी. पी. श्रीवास्तव का भाषण, मुम्बई, 26-12-1980 28 ना कविता लेखन श्रीमाताजी का वरदान 33 क्य এ। 36 चक्रों का वर्णन दिल्ली, 3-1-1978 ा 2. 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-3.txt बगैर आत्मसाक्षात्कार के कल्याण नहीं हो सकता। कठिन है। 'कल्याण' माने हर तरह से साफल्य, हर तरह से प्लावित होना, हर तरह से अलंकृत होना। जब आशीर्वाद में कोई कहता है कि तुम्हारा "कल्याण' हो तो क्या होना चाहिए? क्या होता है? ये कल्याण क्या है? यह वहीं कल्याण है जिसको हम 'आत्मसाक्षात्कार कहते हैं। बगैर आत्मसाक्षात्कार ति ८ के कल्याण नहीं हो सकता। उसकी समझ भी नहीं आ सकती और उसको आत्मसात भी नहीं किया जा सकता। ये सब चीजें एक साथ कल्याणमय होती हैं और जिसकी वजह से मनुष्य अपने को अत्यन्त सुखी, अत्यन्त तेजरवी समझता है। इस कल्याणमार्ग के लिए आपको जो करना पड़ा वो कर दिया, जो मेहनत करनी थी सो कर ली. जो विश्वास धरने थे वो धर लिए। लेकिन जब कल्याण ने मन्त्र का मार्ग अब मिल गया, जब आपको गुरु दे दिया कि आपका कल्याण हो जाए तो क्या चीज़ घटित होगी? आपके अन्दर सबसे बड़ी चीज समाधान। इसके बाद कुछ खोजना नहीं। अब आप स्वयं भी गुरु हो गए। अब आपको कुछ विशेष प्राप्त होने वाला नहीं है। किन्तु इस समाधान का जो आशीर्वाद है उसको आप महसूस कर सकेंगे उसको आप जान सकेंगे और उसमें आप रममाण हो सकेंगे। पहले तो देखिए, सबसे को सारे देवताओं से, बडी चीज है शारीरिक-शारीरिक तकलीफें, शारीरिक देवियों से ऊँचा माना जाता है। वास्तविक ये गुरु दुर्बलता इस कल्याण के मार्ग से साफ हो जाएंगी। कौन हैं? इसमें सबसे ज्यादा कौन-सी शक्ति आपकी शारीरिक तकलीफें खत्म हो जाएंगी। यह संचरित है । ये गुरु तत्व जो है, यही शिव है। शिव नहीं हुई तो सोचना है कि अभी कल्याण नहीं स्वरूप जो शक्ति है उसी को हमें गुरु की शक्ति हुआ उसके बाद आपकी मानसिक दुर्बलताएं जो समझना चाहिए क्योंकि जब आप गुरु की शक्ति हैं वो भी कल्याण में सब खत्म हो जानी चाहिएं। प्राप्त करते है और आपके अन्दर बह शक्ति प्लावित जो दुर्बलता आपके अन्दर मानसिक है, जिसके कारण आप पूरी तरह से खिल नहीं पाते, वो शक्ति इसमें है और आप इसको जव प्राप्त करते जिसको यह शक्ति प्राप्त होती है उसको यह समझ हैं तो आपका वाकई कल्याण हो जाता है, माने आप पार हो जाते हैं। इसमें भी श्री महादेव जी "कल्याण' का मतलब छोटे शब्दों में देना बड़ा सहायक हैं। जब आपकी कुण्डलिनी आपके सहस्रार महाशिवरात्रि पूजा (पुणे 15-02-2004) आज हम लोग यहाँ गुरु की पूजा करने के लिए उपस्थित हुए हैं। गुरु होती है तब आप स्वयं भी गुरु हो जाते हैं। पर कार्य जो इस शक्ति का है वो है आपका 'कल्याण'। लेना चाहिए कि अब उसका कल्याण' हो गया| 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-5.txt अन ३ को छेदती है सो वहाँ महादेव बैठे हुए हैं । इसीलिए मनुष्य जब प्राप्त करता है तो उसका सारा शरीर उनको महादेव कहते हैं। देवों में देव महादेव होते रोमांचित हो जाता है । माने किसी अद्वितीय शक्ति हैं। इस कल्याण मार्ग में और बहुत सी शक्ति भी जिससे वो सारी दुनिया की परेशानियाँ उपलब्धियाँ हैं। इसमें सबसे बड़ी उपलब्धि है उथल पुथल असन्तुलन, सब से ऊपर उठकर एक शान्ति, मानसिक शान्ति शारीरिक शान्ति और सन्तुलन में विचरण करते हैं। इसलिए इस शक्ति सबसे बढ़कर सांसारिक शान्ति। संसार की अनेक को प्राप्त करने के लिए लोग बहुत कोशिश करते व्याधियाँ हैं, अनेक तकलीफें हैं! वो सब इसको हैं। और वो दूसरे मनुष्य से, मानव से ही इसे प्राप्त ने उनको आलिंगन किया हो। और उनके अन्दर ये पाकर, इस कल्याण को पाकर खत्म हो जाती हैं। करते हैं जो स्वयं भगवान स्वरूप हो जाता है और उसका अस्तित्व ही नहीं रहता है ऐसे लोग आप जो स्वयं ही इस चीज को प्राप्त किए हुए देख सकते हैं दुनिया में होते हैं जो कि इस हैं। प्रवचन (अंग्रेजी से अनुवादित) ये ऐसा विषय है जिसे केवल हिन्दी भाषা में कल्याण की शक्ति को प्राप्त करके आराम से अपने स्थानापन्न होकर के ध्यानस्थ हो जाते हैं। ही वर्णन किया जा सकता है। इसमें बताया गया है यही कल्याण है जिससे मनुष्य में पूरी तरह का कि गुरु पद किसी अन्य व्यक्ति से ही प्राप्त किया सन्तुलन आ जाता है। और वो सन्तुलन पाने के लिए आपको सिर्फ गुरु शरण लेनी चाहिए। गुरु के शक्ति होनी चाहिए, आरम्म में मानसिक शान्ति की शरण जाने से आपमें वो सन्तुलन आ जाएगा कि शक्ति तथा सभी सांसारिक, मानसिक तथा शारीरिक आपको ऐसा लगेगा कि आपने सब कुछ पा लिया, समस्याओं पर विजय पाने कि शक्ति। गुरु के अब और कुछ पाने का नहीं। इस प्रकार का आशीर्वाद तथा अपने मानसिक सन्तुलन से आप सन्तुलन एक विलक्षण शक्ति देता है। और वो इन समस्याओं का समाधान कर सकते हैं जब शक्ति, मैं उसे प्रेम की शक्ति कहती हूँ, जिसे आप स्वयं गुरु बन जाते हैं तो आप में भी अन्य जा सकता है परन्तु स्वयं उस व्यक्ति में भी यह 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-6.txt बाद आपको भी यही शक्ति प्राप्त होती है। गुरु बनने के लिए व्यक्ति को प्रयत् नहीं करना चाहिए। ऐसा करना व्यवहारिक नहीं है। गुरु बनने का यदि आप प्रयत्न करेंगे तो आप कभी गुरु बिना मांगे, बिना प्रयत्न किए, यह स्थिति स्वतः आप में आनी चाहिए। ध्यान' ही इस स्थिति को प्राप्त करने का एकमात्र मार्ग है। ध्यान अर्थात Meditation। केवल नहीं बन पाएंगे। ध्यान करें, कुछ मांगे नहीं। ध्यान ही आपको वह शरीर यन्त्र प्रदान करता है की महान शक्ति को धारण कर १ि जो गुरु सके। और तब स्वतः आप यह शक्ति अन्य लोगों को भी देते हैं। इसके लिए आपको परिश्रम नहीं करना पड़ता। आपकी उपस्थिति मात्र से ही लोगों को पूर्ण सन्तोष की यह शक्ति प्राप्त हो जाती है तथा आपको और अन्य लोगों को मोक्ष मिल जाता है। इस प्रकार उत्थान यात्रा के मार्ग की सभी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं और स्वर्गीय शान्ति एवं आनन्द लोगों को आशीर्वादित करने को शक्ति आ जाती के आशीर्वाद में आप शराबोर हो जाते हैं। इसी है। आशीर्वाद देने की इस शक्ति से आप बहुत से कारण से इसे कैवल्य' कहा गया है अर्थात केवल लोगों को गुरु बना सकते है। एक बार जब कोई आशीर्वाद। इसके लिए कोई अन्य शब्द नहीं बनाया गुरु बन जाता है और उसमें शक्ति होती है तो यह जा सकता। इसका वर्णन करने का कोई अन्य मार्ग अत्यन्त तुष्टेदायी और श्रेयस्कर होती है व्यक्ति नहीं है। आपने इसी स्थिति में उन्नत होना है। आप में इतना संतोष होता है कि उसे किसी चीज की जानते हैं कि आप उस अवस्था में हैं। यह इतनी आवश्यकता नही रहती। यह श्री शिव की शक्ति उच्चावस्था है कि एक बार इसमें पहुँचने के पश्चात् है। आपने देखा है कि श्री शिव के पास बहुत मांगने के जैसा कुछ नहीं रह जाता। आप इतने अधिक कपड़े नहीं हैं। वे कोई श्रंगार नहीं करते, हर संतुष्ट हो जाते हैं। इस विशिष्ट शक्त के विषय में समय ध्यान अवस्था में बैठे रहते हैं। किसी चीज़ मैं लगातार बोल सकती हूँ। अतः कृपया मैंने जो की उन्हें आवश्यकता नहीं रहती। अपने आप में वे कुछ कहा है उस पर ध्यान लगाएं। आप सबमें ये इतने संतुष्ट हैं कि उन्हें किसी चीज़ की चाहत नहीं अवस्था प्राप्त करने की योग्यता है पूर्ण शान्ति एवं है। यदि आपका कोई गुरु है जो उस स्तर का है आनन्द की अवस्था प्राप्त करने की। और योग्य है तो आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के परमात्मा आपको धन्य करें। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-7.txt सहजयोगियों को परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का परामर्श गुरु पूर्णिमा लंदन, 29 जुलाई 1980 ( अंग्रेजी से अनुवादित ) आज आपने अपने गुरु, जो कि आपकी माँ है कि गुरू उच्चकोटि का आत्म-साक्षात्कारी तथा अत्यन्त उन्नत (Evolved) व्यक्ति हो, सन्यासी या इस पूजा का आयोजन क्यों किया गया जंगलवासी होना आवश्यक नहीं है। सम्राट भी गुरु हो सकता है। व्यक्ति के जीवन की बाह्य अभिव्यक्तियों का कोई विशेष महत्व नहीं है, आप भी हैं, की पूजा का आयोजन किया है । है? व्यक्ति को समझना चाहिए कि हर शिष्य के लिए अपने गुरु की पूजा करना अत्यन्त महत्वपूर्ण किस पद पर है, इन सांसारिक पदवियों का भी है। परन्तु गुरु को भी सच्चा गुरु होना आवश्यक है, गुरुत्व के लिए कोई विशेष महत्व नहीं है। आवश्यक ऐसा गुरु नहीं जो अपने शिष्यों का अनुचित लाभ उठाता हो या जिसे परमात्मा द्वारा अधिकार न करना है। दिया गया हो। पूजा का आयोजन किया गया है क्योंकि आप लोगों को श्री ईसा-मसीह के कायदे अधिनियम (Statutes) आत्म-सात करने होंगे आइए कानूनों की दीक्षा दी गई है। आपको बताया गया देखते हैं कि ये धर्मादेश हैं क्या? पहला धर्मादेश है, बात तो परमात्मा (Lord) के धर्मादेशों को आत्म-सात में पुनः कह रही हूँ कि आपको ये "आप किसी को हानि न पहुॅँचाएं" (You do not do है कि मानव के धर्म क्या हैं? इसके लिए वास्तव में आपको गुरु की आवश्यकता नहीं है, केवल पुस्तक पढ़कर आप ईसामसीह के अधिनियमों को जान ये जाने, चोट पहुँचाते हैं कि वे किसी को चोट सकते हैं। परन्तु गुरु को ये देखना होता है कि आप पहुँचा रहे हैं । यदि आप साँप के समीप जाएंगे तो इन पर चलते भी हैं कि नहीं। इन अधिनियमों पर वह काटेगा। बिच्छू का कार्य डंक मारना है। परन्तु चलना चाहिए, इन्हें अपने जीवन में लाया जाना मानव को चाहिए कि किसी को हानि नहीं पहुँचाए । harm to anyone) यह प्रथम नियम है। पशु बिना 1 चाहिए। परन्तु गुरु, एक सुधारक शक्ति, के बिना मानव सुधार कर सकता है हानि नहीं पहुँचा सकता। ऐसा कर पाना कठिन है, ईसा-मसीह के नियमों परन्तु अहिंसा का ये सिद्धान्त उस सीमा तक ले का अनुसरण करना कठिन है क्योंकि मानवीय जाया गया जहाँ वास्तविकता समाप्त हो गई। चेतना और परमेश्वरी चेतना के मध्य बहुत दूरी है और इस दूरी को केवल ऐसा गुरु पाट सकता है मत करो' तो लोग कहने लगे कि हम मच्छरों और जो स्वयं पूर्ण हो। आज पूर्णिमा है अर्थात पूर्ण चन्द्र है। केवल पूर्ण-व्यक्तित्व गुरु ही इन अधिनियमों के विषय में खटमलों से हिंसा नहीं की जाती। किसी चीज़ को बात कर सकता है तथा अपनी सूझ-बूझ के स्तर मूर्खता की सीमा तक ले जाना वास्तविकता नहीं हो पर अपने शिष्यों को उन्नत कर सकता है ताकि वे सकती। सर्वप्रथम तो हमें उस व्यक्ति को हानि नहीं इन धर्मादेशों को आत्म-सात कर सकें। इस खाई पहुँचानी चाहिए जो परमात्मा के मार्ग पर चल रहा को पाटने के लिए गुरु होता है। अत: ये आवश्यक है, जो आत्म-साक्षात्कारी है। उसमें कुछ गलतियाँ बहुत उदाहरण के रूप में जब ये कहा गया कि हिंसा खटमलों के साथ हिंसा नहीं करेंगे कुछ लोग ऐसे धर्मों का अनुसरण कर रहे हैं जिनमें मच्छरों और 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-8.txt मार्च - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड - XVI अंक 3-4 भी हो सकती हैं। हो सकता है उसे सुधार की Awareness) हम इसे देख पाए कि यही सत्य है। आचश्यकता है क्योंकि अभी तक कोई भी पूर्ण नहीं परन्तु इसके विषय में पूरी तरह से विश्वस्त हो है, अतः किसी को हानि न पहुँचाएं, सदैव सहायता जाएं। इसके लिए सर्वप्रथम अपने को परखें, अन्यथा करने का प्रयत्न करें दूसरे कोई जो सत्य-साधक हो सकता है कि आप आसुरी प्रवृत्तियों (Evil) के है वह गलत भी हो सकता है। हो सकता है वह हाथों में खेल रहे हों। सहजयोग शुरु करने वाले गलत गुरुओं के पास गया हो और उसने गलत कई लोगों के साथ आरम्भ में ऐसा होता है अतः कार्य किए हों, उसके लिए हृदय में करुणा भाव सावधान रहें. विश्वास रखें कि आप 'सल्य' बता रहे रखें क्योंकि किसी जमाने में आप भी गलत कार्य हैं कुछ अन्य नहीं. तथा सत्य को आपने पूरी तरह करते रहे होंगे। कभी आप भी भटके होंगे। अतः से महसूस कर लिया है। जिन लोगो को चैतन्य आपमें सहानुभूति होनी चाहिए, इसलिए सहज में लहरियाँ महसूस नहीं हुई हैं उन्हें सहजयोग के आने से पूर्व आपने गलतियाँ की भी तो एक प्रकार विषय में नहीं बोलना चाहिए। यह अधिकार उन्हें से यह अच्छा है क्योंकि अब आपके हृदय में उनके नहीं है। उन्हें चैतन्य लहरियाँ प्राप्त करनी होंगी। लिए सहानुभूति होगी। तो किसी भी प्रकार से अपने अन्दर पूरी तरह से चैतन्य को आत्म सात आपको मानव को हानि नहीं पहुँचानी चाहिए, उनके करना होगा केवल तभी वे कह सकते हैं, "हाँ हमने प्रति शारीरिक हिंसा नहीं करनी चाहिए और न ही महसूस किया है ।" इस आधुनिक काल में उन्हें भावनात्मक कष्ट देनें चाहिए. सुधारने के लिए सहजयोगियों के करने के लिए यह महत्वपूर्ण कार्य यदि कुछ करना पड़े तो किसी सीमा तक ठीक है। है- उद्घोष करना कि उन्होंने सत्य पा लिया है यह दूसरा धर्मादेश ये है कि आपको अपने पैरों भाग बहुत दुर्बल है जिस भी प्रकार से आप चाहें पर खड़ा होना है और समझना है कि यहाँ पर आप सत्य' की घोषणा कर सकते हैं आप पुस्तकें सत्य के सामंजस्य में हैं, सत्य के साक्षी हैं तथा लिख सकते हैं, मित्रों-सम्बन्धियों तथा सभी से 'सत्य' को आपने देखा है। आप जानते हैं कि सत्य बातचीत करके उन्हें बता सकते हैं कि अब यही ा क्या है और असत्य से आप समझौता नहीं कर सत्त्य है कि आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर सकते। ये कार्य आप नहीं कर सकते। ऐसा करने चुके हैं. कि परमात्मा की कृपा का आशीर्वाद आपको के लिए आपको किसी को चोट पहुँचाने की प्राप्त हो गया है, कि आप आत्म साक्षात्कारी हैं आवश्यकता नहीं है, आपने तो बस इसकी घोषणा तथा सर्वव्यापी परमेश्वरी शक्ति (Divine Power) करनी है। खड़े होकर आपने कहना है कि आपने को आपने महसूस कर लिया है, कि आप अन्य सत्य को देखा है, यही सत्य है। इसी से आपको लोगों को आत्म-साक्षात्कार दे सकते हैं। ये बात एकरूप होना है ताकि लोग सत्य का प्रकाश आपके आपने अन्य लोगों को बतानी है और समझाना है अन्दर देख सकें और इसे स्वीकार कर सकें। कि आपके सत्य को स्वीकार करने से किसी भी प्रकार आप सत्य में कुछ जोड़ नहीं रहे, आप अपने नहीं है कि आप सच्चे बनें, यही सत्य हमने देखा है को अलंकृत कर रहे हैं। सत्य का आनन्द लेने के तथा परमात्मा के यही आदेश हैं और इस प्रकार ये लिए भी व्यक्ति को साहस की आवश्यकता है। हो कार्यान्वित होते हैं। चैतन्य चेतना (Vibratory सकता है कि कभी लोग आप पर हँसें, आपका यह अन्य लोगों को भाषण देने की बात 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-9.txt मार्च - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -४VI अक : 3 मजाक बनाएं, आपको दण्डित करें। परन्तु इसकी गुरु सिद्धान्त को, गुरु तत्व' को प्रकट करेंगे। चिन्ता आपको नहीं होनी चाहिए क्योंकि आपका आपको सच्चा होना चाहिए। प्रथम बात ये है कि सम्बन्ध धर्मादेशों से है परमात्मा की कृपा से है। आपको सत्य को जानना है. इसका साक्षी होना है इस तरह का दृढ़ योग (Connection) जब आपका और इसका उद्घोष करना है। हो जाएगा तब आपको इस बात की चिन्ता नहीं करनी चाहिए कि लोग क्या कहते हैं और इसके विकसित करना है वह हैं निर्लिप्तता' । शनैः शनैः ये विषय में उन्हें क्या कहना चाहिए। आपको खड़े हो गुण आप अपने अन्दर विकसित कर लेते हैं क्योंकि जाना है, सत्य से स्वयं को अलंकृत करना है और आप ये बात जान जाते हैं कि अपने अन्दर निर्लिप्तता लोगों से बातचीत करनी है। तब लोग समझ जाएंगे विकसित किए बिना आपको चैतन्य-लहरियों पूरी कि आपने सत्य को प्राप्त कर लिया है। अधिकार तरह से नहीं आ रहीं। सभी प्रकार की निर्लिप्तता के साथ सत्य के विषय में जब आप लोगों के विकसित करनी होगी कहने से अभिप्राय ये है कि सम्मुख बोलेंगे तो वे जान जाएंगे कि आपने सत्य आपकी प्राथमिकताऍँ ही बदल जाएँगी। एक बार प्राप्त कर लिया है। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति तथा जब आपका चित्त आत्मा पर स्थापित हो जाएगा तो एक सामान्य व्यक्ति में मूलतः यही अन्तर है कि महत्वहीन चीजों की पकड़ स्वतः ही घटने लगेगी। आत्मासाक्षात्कारी व्यक्ति दुखों तथा परमात्मा से उदाहरण के लिए आपके माता-पिता और बहन विरह की बात नहीं करता, वह कहता है, "अब मुझे भाई हैं। भारत में ये बहुत बड़ी समस्या है। यहाँ ये प्राप्त हो गया है ये सत्य है।" जैसे ईसा-मसीह (लन्दन) नहीं। पर आप लोग कुछ अधिक ही ने कहा था, "मैं ही प्रकाश हूँ, मैं ही मार्ग हूँ।" निर्लिप्त हैं । परन्तु भारत में लोग अपने बच्चों के कोई अन्य व्यक्ति भी ये बात कह सकता है। परन्तु मोह में बहुत अधिक फॅसे हुए हैं। "ये मेरा बेटा है, आप इसे समझ सकते हैं कि इस तरह की कही हुई और बाकी सब यतीम हैं? केवल आपके बेटे और बात सत्य नहीं है आपके हृदय से, आत्म विश्वास बेटी ही वास्तव में बच्चे हैं।" मेरी बेटी, अपने बेटे के से तथा पूरी सूझ-बूझ से जब सत्य निकलेगा तो लिए तो मुझे करना ही होगा, मेरे पिता, मेरी माँ। दो लोग समझ जाएँगे कि यही पूर्ण सत्य है। तब सभी तरह की लिप्साएँ हैं- एक तो मोह है - कि आप प्रकार के असत्य त्याग दिए जाएँगे कोई यदि बुरा उनके लिए ये करना चाहते हैं, वो करना चाहते हैं, मानता है तो कोई बात नहीं क्योंकि सत्य बात उन्हें सम्पति देना चाहते हैं. उनका बीमा कराना कहकर आप उनकी रक्षा कर रहे हैं, आप उन्हें हानि चाहते हैं आदि-आदि। नहीं पहुँचा रहे। परन्तु ये सब ठीक प्रकार से कहा जाना चाहिए. उथले-पन से नहीं । प्रेमपूर्वक समझाते यहाँ पर है। आप अपने पिता से घृणा करते हैं. हुए आप उन्हें बताएँ कि गलत क्या है. उस समय अपनी माँ से घृणा करते हैं, सभी से घृणा करते हैं. की प्रतीक्षा करें जब आप अत्यन्त विश्वास के साथ दोनों प्रकार की लिप्साएँ एक सी है। अतः गहन उन्हें बता सकें लोगों को बताएँ, "यह चीज़ गलत निर्लिप्तता विकसित होनी आवश्यक है। निर्लिप्तता है, ये गलत है. आप ये बात नहीं जानते, हमने भी ये है कि आप ही अपने पिता हैं, आप ही अपनी माँ यही कार्य किया था । इस प्रकार से आप अपने हैं आप ही अपने सभी कृछ हैं। आपकी आत्मा ही तीसरा गुण जो सहजयोगी ने अपने अन्दर और दूसरी एक अन्य प्रकार की है जैसे 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-10.txt मार्च अप्रैल, 2004 XVI 3 वैतन्य लडरी खण्ड XVI अक 3-4 आपके लिए सभी कुछ है। केवल अपनी आत्मा का बाकी का पृथ्वी माँ में लौट जाता है ये किसी एक आनन्द आपने लेना है तभी आप उनके प्रति हिस्से से लिप्त नहीं होता। मान लो ये रस जाकर निर्लिप्त होते हैं और उनका बास्तव में भला करते किसी एक फल से लिप्त हो जाए तो क्या होगा? हैं। क्योंकि नि्लिप्त होकर ही आपको उनकी पूरी फल की मृत्यु हो जाएगी और पेड की भी। निर्लिप्तता तरह से जानकारी होती है और आप ये भी जान आपके प्रेम को, प्रेम के प्रसार को गति प्रदान करती जाते हैं कि क्या करना है। उदाहरण के तौर पर है। लोगों को कुछ शौक होते हैं। मनुष्य हमेशा किसी न किसी चीज के लिए पागल होता है। ये कोई भी भौतिक चीजें तब तक मूल्यहीन हैं जब तक उनके चीज हो सकती है। व्यक्ति को समझना है कि पीछे कोई भावना न हो। उदाहरण के रूप में जो केवल एक ही धुन होनी चाहिए-आत्मा में स्थापित साड़ी आज मैंने पहनी हुई है वो गुरु दिवस होना, पूरी तरह से आत्मा में स्थापित होना, बाकी (गुरुपूर्णिमा) के लिए लाई गई थी। परन्तु उनके सब लगाव समाप्त हो जाएंगे क्योंकि आत्मा सर्वोच्च पास और कोई साड़ी न थी । उस दिन उन्होंने पूजा आनन्दप्रदायी चीज़ है। ये अत्यन्त पोषक है और के लिए एक साड़ी खरीदनी चाही। मैंने कहा "आप और अब भौतिक चींजों की बात करें। का लोग यदि विवश करते हैं तो मैं ले लूंगी परन्तु वह सुन्दरतम। साड़ी मैंने आज पहन ली। केवल ये बताने के लिए कि ये लोग इतनी श्रद्धा और प्रेम से ये साड़ी खरीदकर लाए थे कि दिवस पर माँ हल्के रंग अतः अन्य सभी चीजें छूट जाती हैं और आप केवल उसका आनन्द उठाते हैं जो पूर्ण आनन्द का स्रोत है। आप अपनी आत्मा से लिप्त हो जाते हैं और निर्लिप्तता कार्यान्वित हो उठती है। कभी-कभी निर्लिप्तता को रूखेपन की अनुमति (लाइसेंस) मान लिया जाता है। परन्तु ऐसा करना गुरु की साड़ी पहनना पसन्द करेंगी।-सफेद रेशम का शुद्ध रंग-पूर्ण निर्लिप्तता परन्तु सफेद रंग में सारे रंग मिश्रित हैं केवल तभी यह श्वेत बनता है. इसमें हास्यास्पद है। हर सुन्दर चीज़ को गंदा करना मानव का गुण हैं। वास्तव में वही व्यक्ति सबसे चाहिए-आपको भी सफेद बनना है. बर्फ से भी सुन्दर है जो निर्लिप्त है तथा अत्यन्त प्रेममय है, जो सफेद। निर्लिप्तता पावनता है, अबोधिता है, और प्रेम है। फूलों को देखें वे निर्लिप्त हैं । कल उनकी अबोधिता एक ऐसा प्रकाश है, एक ऐसा प्रकाश जो हो जानी है उन्होंने जीवित नहीं रहना परन्तु सारी गंदगी के प्रति आपकी आखें बन्द कर देता इतना संतुलन और एकता है! यही होना मृत्यु हर क्षण वो जीवित रहते हैं और आपको सुगन्ध देते हैं । (गंदगी देखने की क्षमता समाप्त कर देता है) हैं। पेड़़ किसी चीज़ से लिप्त नहीं हैं, कल उनकी आप ये भी न देख पाएँगे कि कोई गलत नीयत से मृत्यु हो जाएगी, परन्तु कोई बात नहीं। कोई भी आया है कोई व्यक्ति चोरी करने की नीयत से जब उनके पास अ:ता है तो वे उसे छाया देते हैं, आपके पास आता है उसे भी आप कहेंगे आइए फल देते हैं। लिप्सा का अर्थ है प्रेम की मृत्यु, प्रेम आपको क्या चाहिए ।" आप उसे चाय आदि पेश की पूरी तरह से मृत्यु ही लिप्सा है। उदाहरण के करेंगे, उसके बाद यदि वह कहता है, "मैं तुम्हें रूप में पेड़ के अन्दर जड़ों से जीवनजल उठता है। लूटने आया हूँ।" "ठीक है अगर आप लूटना चाहते सभी हिस्सों में जाता है, फूलों में, फलों में, और हो तो लूट लो ।" तो वह आपको बिल्कुल भी न 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-11.txt मार्थ - अप्रैल, 2004 10 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अक : 3-4 लूटेगा। तो यही अबोधिता है जिसे व्यक्ति ने अपने किसी को हानि नहीं पहुँचानी-अहिंसा। किसी की अन्दर विकसित करना है और यह कार्य केवल हत्या न करना। इसका अर्थ ये भी नहीं है कि निर्लिप्तता के माध्यम से किया जा सकता है, आपने मांस नहीं खाना या मछली आदि नहीं निर्लिप्तता चित्त से होती है अपने चित्त को किसी खानी। ये सब बेवकूफी है। निःसन्देह आपको भोजन भी चीज में न फसने दें, किसी भी प्रकार के आदि के पीछे नहीं दौड़ना, इस बात में कोई सन्देह कर्मकाण्डों में भी नहीं। कहें, हमने श्रीमाताजी के नहीं । आपको हत्या नहीं करनी का अर्थ ये है कि चरण नहीं धोए हैं, ठीक है कोई बात नहीं। आप आपने मानव हत्या नहीं करनी, THOUSHALT NOT मुझे प्रेम करते हैं हीक है। कुछ गलतियाँ हो भी KILL' अतः पहली बात किसी को हानि न पहुँचाना जाएँ तो भी कोई बात नहीं। निराकार क्षेत्र को यदि है। आप देखें तो यह कंबल प्रेम है। यह एक कदम आगे बढ़ना है जैसे दोड़ लगाते हुए कोई व्यक्ति सत्य को प्राप्त कर लिया है आपने इसका साक्ष्य मुझ तक पहुँचने से एक कदम पहले गिर जाए और (Testimony) बनना है। कहे माँ मुझे खेद है मैं आप तक पहुंचने से पहले गिर गया, मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। परन्तु से मैने निर्लिप्तता के बारे में बताया, किसी एक माँ आप देखें कि किस प्रकार मैंने आपको साष्टौँग व्यक्ति से लिप्त नहीं होना चाहिए क्योंकि वो हमारा दूसरी बात इस बात का ज्ञान है कि आपने तीसरे र्थान पर निर्लिप्तता है जिस प्रकार सम्बन्धी आदि है। सार्वभामिक प्रेम की भावना प्रणाम किया निर्लिप्तता तो काव्य की तरह से है। अतः गुरु बनने के लिए व्यक्ति को निर्लिप्तता विकसित करनी चाहिए तथा किसी से घृणा नहीं विकसित करनी होती है और निर्लिप्तता का अर्थ करनी चाहिए। यह निकृष्ट प्रकार की लिप्सा है । मैं सन्यास बिल्कुल नहीं है और न ही ऐसा कुछ और। घृणा करता हूँ' शब्द ही सहजयोगियों के मुँह पर कभी-कभी विश्व के सम्मुख घोषणा करने के लिएनहीं आना चाहिए। इसे दण्डक कहते हैं ये आदेश व्यक्ति को ऐसे वस्त्र पहनने पड़ते हैं क्योंकि यदि (Statutes) है। किसी से घृणा करने का अधिकार आपको थोड़े समय में कोई कार्य समापन करना हो आपको नहीं है चाहे वह राक्षस ही क्यों न हो, बेहतर तो ईसा-मसीह की तरह से गहन आचरण अपनाना होगा कि उनसे घृणा न करें उन्हें अवसर दें। पड़ता है या हम कह सकते हैं, आदिशंकराचार्य की तरह । इन सभी लोगों का जीवन बहुत छोटा था है. नैतिकता पूर्वक जीवनयापन करना (To Lead a और इस संक्षिप्त जीवन में इन लोगों को इतने Moral Life) ये धर्मादेश सभी गुरुओं ने दिए थे महान कार्य करने थे कि इन्हें वास्तव में फौज की सुकरात से लेकर मोजिज, इब्राहम, दत्तात्रेय, जनक, वर्दी की तरह से वस्त्र अपनाने पड़े। ये वस्त्र इन्होंने गुरुनानक और मोहम्मद साहब तक और सौ वर्ष पूर्व किसी को प्रभावित करने के लिए नहीं पहने थे । श्री साईनाथ तक। सभी ने कहा कि नैतिक जीवन आजकल लोग सन्यासियों के बस्त्र इसलिए पहनते यापन करें। किसी ने भी नहीं कहा, कि आप विवाह हैं कि इनसे वे लोगों को प्रभावित कर सकें कि वे न करें, अपनी पत्नी से बात न करें या पत्नी से निर्लिप्त हैं परन्तु उनके कारनामे बिल्कुल विपरीत सम्बन्ध न रखें। यह सब मूर्खता है। नैतिक जीवन होते हैं। तो पहली बात हमें समझनी चाहिए कि हमें बिताएँ । आप यदि अविवाहित युवा हैं तो अपनी ईसा-मसीह द्वारा दिया गया चौथा घर्मादेश 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-12.txt मार्थ - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड - XVI अक 3-4 11 दृष्टि पृथ्वी पर रखें, पृथ्वी माँ आपको अबोधिता देखें । टकटकी बाँधकर लोगों को न देखें। ऐसा प्रदान करती है। पाश्चात्यजीवन में अधिकतर भ्रम करना तो बाधाओं के हाथ में खेलना है। पूरा समाज 1. और समस्याएं इसलिए पनप उठी हैं क्योंकि उन्होंने ही बाधाग्रस्त है। सभी आसुरी शव्तियों को खुला नैतिकता को त्याग फेंका है और नैतिकता को छोड़ दिया गया है और मैं सोचती हूँ कि जिस बाधित हैं वे बास्तविकता को देख प्रकार लोग भूत- समाज का आधार मानना उनके लिए अत्यन्त कठिन है। यह बिल्कुल उल्टा है। परन्तु आपको भी नहीं सकते। कहने को वो इसाई हैं (ईसा-मसीह यह कार्य करना होगा पहिए को एक बार पूरी के अनुयायी) चित्त का ध्यान रखा जाना चाहिए। ये तरह से उलटना होगा आरम्भ में समाज में इन कार्य अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि चित्त ने ही पावन रिश्तों को स्थापित करने के लिए बहुत कुछ प्रकाशमय होना है। किया गया। कुछ कायदे कानून हैं जो कार्य करते हैं जैसे रसायनों के नियम भौतिक विज्ञान के लोगों को हैँसने दें और कहने दें, ये बड़े अजीबो नियम जो रसायन तथा भौतिक शास्त्र में कार्य गरीब लोग हैं। परन्तु हमें अपने धर्मपरायण होने पर करते हैं। मानवीय नियमाचरण भी हैं जिन्हें व्यक्ति गर्व है, इसके लिए हम लज्जित नहीं है धर्मपरायणता को समझना चाहिए-परस्पर सम्बन्ध । सम्बन्धों की का यह महत्वपूर्ण भाग है। जो लोग इसका अनुसरण उत्कृष्टता, सम्बन्धों की पावनता को समझा जाना नहीं करते उनकी चैतन्य लहरियाँ बहुत तेज़ी से आवश्यक है। केवल तभी आप सफल वैवाहिक जीवन बिता सकते हैं जो कि आधार है (Thou Shalt अतः हमें समझना है कि नैतिकता क्या है समाप्त हो जाएँगी। अब गुरु के विषय में गुरु को परिग्रह नहीं not Commit Adultery) पति-पत्नी के अतिरिक्त करना चाहिए, चीजें एकत्र नहीं करनी चाहिएं। यदि आप किसी अन्य से सम्बन्ध नहीं बनाएंगे । वह कुछ इक्ट्ठा करता भी है तो वह केवल ईसा-मसीह ने ये कहा, क्योंकि शायद वे आधुनिक आवश्यकता को पूरा करने के लिए होना चाहिए। लोगों को समझते थे कि वे इस कार्य के लिए भी गुरु को चाहिए कि अपनी एकत्र की हुई सारी चीजें अपना मस्तिष्क चलाएँगे। ईसा-मसीह ने कहा, बाँट दे। उसके पास टिकट संग्रह आदि चीज़ों के "आपकी दृष्टि भी अपवित्र नहीं होनी चाहिए Thou संग्रह नहीं होने चाहिएं। जो भी कुछ उपयोगी एवं shall not have adulterous eyes" । उन दिनों में ये सुन्दर है, जो भी कुछ प्रसन्नता एवं आनन्ददायक है, सोचना कितना महान स्वप्न था। भारत में होते हुए जो आँखों को सुख देता है, ऐसी चीजें एकत्र की मैं भी इस बात को न समझ सकी। यहाँ आने के जानी चाहिए। उसके पास ऐसी चीजें होनी चाहिए पश्चात ही मैं देख पाई कि इसका अर्थ क्या है। ये जिनका उनके जीवन में प्रतीकात्मक महत्व (Symbolic 1 क दृष्टि की भूत-बाधा है, भूत-बाधा। ये आनन्द Importance) हो। ऐसी प्रतीकात्मकता हो जो ये विहीन तथा निकृष्टतम आचरण है चित्त पूरी तरह दर्शाये कि वह व्यक्ति धार्मिक है । अधार्मिक जीवन से भ्रमित हो जाता है। गरिमा समाप्त हो जाती है। की प्रतीकात्मक चीजों का संग्रह उसे नहीं करना दृष्टि स्थिर होनी चाहिए। स्थिरता पूर्वक यदि आप चाहिए। जो भी वस्त्र वह पहनता है, जो भी कुछ दर्शाता है बह सब धार्मिकता का प्रतिनिधित्व करने वाले होने चाहिएं। यहाँ की स्थिति का ज्ञान तो हमें किसी की ओर देखें तो बो ये समझ लें कि सहज योग आपमें बसा हुआ है प्रेम, सम्मान एवं गारिमापूर्वक 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-13.txt मार्य - जप्रैल, 2004 12 भैतन्य लहरी खण्ड - XVI अक : 3-4 नहीं है परन्तु भारत में जब हम लोग छोटे थे तो हमें इस महिला को देना चाहती हैँं। त्योहार के दिन हम सभी प्रकार का संगीत सुनने की आज्ञा न थी। कोई बड़ों को इस प्रकार का उपहार दे सकते हैं वह भी गन्दी चीजें, कोई भी गन्दे वृत्तचित्र (Documentary) (बहू) कहने लगी, देखने की आज्ञा न थी, कोई भी अपवित्र चीज़, जिससे गन्दी लहरियाँ आती हों वो आपके पास भी साड़ियाँ आपके पास थी आपने सभी दे डाली नहीं होनी चाहिए। कोई चीज यदि आपके पास है हैं" मैने कहा, "मुझे देने की इच्छा होती है. मैं इसे भी तो आपको सोचना चाहिए कि वह आप किसे दे दे डालूंगी।" रसोई में हम इनके बारे में बातचीत सकते हैं अर्थात अपनी उदारता की अभिव्यक्ति कर रहे थे. मैंने कहा, तुम क्यों मुझे रोक रही हो, करने के लिए ही आपको संग्रह करना चाहिए। इस मामले में मैं किसी की राय नहीं लूंगी उसी सहजयोगी को समुद्र की तरह से उदार होना समय दरवाजे की घण्टी बजी और एक भद्र पुरुष चाहिए। कंजूस सहजयोगी' की तो मैं कल्पना भी आया, वह अफ्रीका से मेरे लिए तीन बिलकुल वैसी नहीं कर सकती। ये तो ऐसे होगा जैसे प्रकाश में साड़ियाँ लेकर आया था जैसी एक साड़ी मेरे पास अंधेरे का मिश्रण कर दिया गया हो। सहजयोग में बची थी। क्योंकि अफ्रीका जाने वाली एक महिला "आपके पास केवल एक ही साड़ी बची है. आप वह भी क्यों दे देना चाहती हैं? जितनी 1 को मैंने कुछ रेशम की साड़ियाँ दीं थी तो उसने कंजूसी की आज्ञा नहीं है। किसी व्यक्ति का मस्तिष्क यदि इस बात सोचा कि वह मुझे कुछ साड़ियाँ उपहार के रूप में पर जाता है कि मैं कितना पैसा बचा सकता हूँ, भेजे और उसने ये साड़ियों मुझे भेजी थीं। आप कितनी मेहनत बचा सकता हूँ- पैसा तथा परिश्रम बीचों-बीच खड़े हैं एक दरवाजे से आ रहा है, एक बचाने के बहुत से तरीके हैं तथा अन्य लोगों को दरवाजे से जा रहा है यह सारी गतिविधि देखना धोखा देने के या यहाँ-वहाँ कुछ चीजों में पैसा बहुत अच्छा लगाता है यह अत्यन्त दिलचस्प है। बनाने के भी बहुत से तरीके है, परन्तु यह सय सहजयोग के विरोध में है ये आपको पतन की ओर ले जाएँगे। अपनी उदारता का आनन्द लें। इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते लन्दन में तीस कितनी ही बार मैं आपको उदारता के विषय में बता इसके अतिरिक्त जिस प्रकार आप देते हैं उसका भावनात्मक पक्ष इतना सुन्दर है कि आप साल से विवाहित एक महिला से मैं मिली. अचानक चुकी हूँ। मुझे याद है कि एक बार विदेश से लाई उसने कहा, "क्या संयोग है।" मैंने कहा, "क्यों?" हुई एक साड़ी मैं उपहार में देना चाहती थी। भारत उसने कहा, में लोग बाहर से लाई गई चीज़ों को पसन्द करते आपने मेरे विवाह पर दिया था मैंने बही पहना हुआ हैं यद्यपि मेरी समझ में नहीं आता कि वे इस प्रकार है और आज ही आपसे मेरी मुलाकत हुई है! इस की नाईलॉन की साड़ियाँ क्यों पसन्द करते हैं। एक मुलाकत से सारा नाटक बदल गया। छोटा सा महिला ने कहा, मेरे पास कोई विदेशी साड़ी नहीं है उपहार देने पर भी ऐसा होता है । सहजयोग में देने ऐसी साड़ी यदि मुझे मिल जाए तो मुझे बहुत अच्छा की ये महानतम कला हमें सीखनी चाहिए। दुनियावी लगेगा मेरे पास केवल एक ऐसी साड़ी बची थी, चीजें त्याग दें, जैसे आप यदि किसी के जन्मोत्सव क्योंकि मुझे देने में बहुत आनन्द आता है, तो मैंने पर जाएँ तो एक कार्ड भेजें, 'आपका हार्दिक अपनी एक भतीजी बहू को कहा, कि मैं ये साड़ी धन्यवाद और इस प्रकार इस उत्सव को अधिक "आज के दिन जो मोतियों का हार 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-14.txt मार्च - अप्रैल 2004 चैत्तन्य लहरी खण्ड - XVI अंक 3-4 13 गहन महत्व का अवसर बना दें। हमें देखना है कि धारण करें, जिसे आप सोचते हों अच्छा और गरिमामय किस प्रकार हम अपने प्रेम के प्रतीक विकसित है। इस प्रकार के वस्त्र आपकी सुरुचि तथा व्यक्तित्व करते हैं। चैतन्य लहरियों से परिपूर्ण चीजें जब को दर्शाएँगे। आपको वही वस्त्र पहनने चाहिएं जो आप किसी को देंगे तो वह जान जाएगा कि यह क्या है? सहजयोगियों के प्रति उदारता में कभी जो बड़े अटपटे लगते हैं और जिनमें व्यक्ति विदूषक कमी न आने दें । शनैः शनैः आप हैरान होंगे कि लगता है, ऐसे वस्त्र न पहनें । विदूषकों जैसी चीजें छोटी-छोटी चीज़ों के माध्यम से किस प्रकार आप अनावश्यक है और तड़क-भड़क वाली चीज़ें भी। लोगों के हृदय जीतते हैं, मानों उन वस्तुओं में से सादे सुन्दर वस्त्र पहनने चाहिएं जो आपको गरिमा चैतन्य लहरियाँ प्रभावित होती हैं और उनके लिएप्रदान कर सकें। वास्तव में पूर्व के लोगों का ये कार्य करती हैं। तत्पश्चात्, सहजयोगी के लिए मानना है कि परमात्मा ने हमें सुन्दर शरीर दिया है आवश्यक है कि ऐसी वस्तुएं इस्तेमाल करे जो तथा इसे मानव सृजित सुन्दर चीज़ों से सजाया प्राकृतिक स्वभाव की हैं। बनावट को त्याग दें। जाना चाहिए ताकि शरीर का सम्मान हो, इसकी अधिक स्वाभाविक बनें। कहने से मेरा अभिप्राय ये नहीं है कि पेड़ों की जड़ों को निकाल कर खाने साड़ियाँ पहनती हैं। साड़ियाँ उनकी मनोदशा तथा लगे या कच्ची मछलियाँ खाएं। मेरा ये अभिप्राय शरीर की पूजा तथा सम्मान को अभिव्यक्ति करती नहीं है। चीज़ों की अति में जाने से बचें परन्तु हैं । वस्त्र ऐसे होने चाहिएं जिनका उपयोग भी हो अधिक प्राकृतिक जीवन बिताने का प्रयत्न करें । प्राकृतिक अर्थात लोग जान जाएँ कि आपमें मिथ्या अभिमान नहीं है कुछ लोग आवाराग्दों की तरह नहीं लगते। प्रकृति की तरह से वस्त्रों में भी से वस्त्र धारण करते हैं ताकि अधिक लोगों का विविधता होनी चाहिए । हर मनुष्य भिन्न व्यक्ति ध्यान आकर्षित कर सकें। मैं देखती हूँ कि कुछ लगना चाहिए। पूजा आदि के लिए यदि एक ही लोग अपने बाल रंगते हैं। आपको सहज व्यक्ति जैसे वस्त्र पहन लिए जाऐं तो कोई बात नहीं ताकि होना चाहिए। आपका आचरण अत्यन्त स्वाभाविक आपका चित्त वैचित्र्य पर न जाऐ परन्तु आम जीवन होना चाहिए। विवेकहीन लोगों को ये बात बड़ी में आपको सामान्य व्यक्ति होना है आप सभी हास्यास्पद प्रतीत हो सकती है। सहजयोग में गृहस्थ हैं किसी को कुछ त्यागने की आवश्यकता विवेक का बहुत महत्व है। हर समय आपको विवेक नहीं। आप लोगों को मैं कुमकुम लगाकर सड़कों बनाए रखना होगा। प्राकृतिक का अर्थ है कि पर जाने का परामर्श भी नहीं देती। आपको सामान्य आपको स्वाभाविक वेश-भूषा पहननी चाहिए जो व्यक्ति होना है जिसकी ओर कोई अंगुली न उठा आप पर फबे। उदाहरण के रूप में इस जलवायु में सके। आपको हास्यास्पद या अटपटे वस्त्र नहीं श्री राम की तरह से वस्त्र पहनने का कोई लाभ पहननें। आपको सामान्य व्यक्ति की तरह से वस्त्र नहीं है, वे तो शरीर के ऊपरी हिस्से में कोई वस्त्र धारण करने हैं, सहजयोग में सामान्य होना अत्यन्त पहनते ही नहीं थे। जिस भी देश के आप वासी हैं आवश्यक है । उसके हिसाब से और अवसर के अनुरूप वस्त्र आप पर फबते हैं । काई के रंग के वस्त्र, लम्बे सूट पूजा हो। उदाहरण के तौर पर भारतीय महिलाएँ और गरिमामय हों सभी सहजयोगियों को एक से बस्त्र पहनने की आवश्यकता नहीं है, ये मुझे अच्छे इसके बाद हमें समझना है कि जाति, रंग 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-15.txt मैतन्य लहरी खण्ड मार्च - अप्रैल, 2004 - ४VI अक 3- 4 XVI Sm 14 और भिन्न धर्मों के आधार पर हमें भेद-भाव आदि के लिए इस तरह की बेवकूफी, जाति तथा समाज- से ऊपर उठ जाना चाहिए। यदि आप इसाई हैं तो बन्धन नहीं है। भी आपका पुनर्जन्म चर्च में तो नहीं होगा, आप चर्च से सम्बन्धित नहीं है। परमात्मा का धन्यवाद अन्यथा भी प्रजातिवाद की मूर्खता बनी हुई है। ये बात मेरी वहाँ की सारी प्रेतआत्माएँ तुरन्त आपको पकड़ लेतीं। परन्तु ये सब संस्कार काफी देर तक चलेंगे। काला, परमात्मा को रंगों में भी वैचित्र्य बनाना था। किसी भी नई चीज़ को स्वीकार करने के लिए आपको किसने बताया कि आप ही सबसे अधिक आपको नया जन्म लेना होगा, आपको पुनर्जन्म सुन्दर व्यक्ति हैं? हो सकता है कि यहाँ या होलीवुड लेना होगा। और अब आपका पुनर्जन्म हो गया है। के कुछ बाजारों के हिसाब से ये बात ठीक है। अब आप धर्मातीत हैं अर्थात किसी धर्मविशेष का परन्तु परमात्मा के साम्राज्य में इन तथाकथित अनुसरण करने की आपको आवश्यकता नहीं है। सुन्दर लोगों को, जो सात पतियों से विवाह करती सभी धर्मो का मार्ग आपके लिए खुला है आपने सभी धर्मों का सार तत्व ग्रहण करना है। किसी भी जाएगा। उन सबको नर्क में डाला जाएगा सौन्दर्य धार्मिक व्यक्ति की निन्दा या अपमान आपने नहीं हृदय का होता है चमकने और दिखाई देने वाली करना, ऐसा करना अपराध है। सहजयोग में ये शक्ल का नहीं । हो सकता है कि लोगों को इस बात बहुत बड़ा अपराध है। आप जानते हैं कि ये कौन की जानकारी हो इसलिए वे धूप में चेहरे को तपाने है। जाति-पाति के आधार पर अपना आंकलन नहीं के लिए चल पड़ते हैं। मै नहीं समझ पाती! वे अच्छी किया जाना चाहिए। आप चीनी (Chinese) हो या किसी अन्य समूह के. आप कुछ भी हों, मानव होने किया जा रहा है। कुछ लोगों को काले बाल पसन्द के नाते हमें इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि हम है; कुछ को लाल। कहने से मेरा अभिप्राय ये है कि सब एक ही प्रकार से हँसते हैं, एक ही प्रकार से सभी रंगों के बाल होने चाहिए! एक ही रंग के बाल मुस्कराते हैं. सबका एक ही तरीका होता है। हमारे आपको क्यों पसन्द आते हैं ये बात मैं नहीं समझ मस्तिष्क में समाज द्वारा बनाए हुए बन्धनों के सकतीं। पसन्द ना पसन्द नाम की कोई चीज नहीं कारण कुछ लोग छूत हैं और कुछ लोग अछूत। है परमात्मा ने जो भी कुछ बनाया भारतीय समाज में ये सब है | भयानका भारत में है आप निर्णय करने वाले कौन हैं कि ये मुझे ब्राह्मण-वाद ने सब कुछ पूरी तरह नष्ट कर दिया पसन्द है ये मुझे पसन्द नहीं। मैं', ये मैं कौन है ? है। आपको ऐसा उदाहरणों से सीखना चाहिए कि ये श्रीमान अहं हैं जिसे ये समाज बिगाड़ रहा है, जो श्रीव्यास कौन थे गीता के लेखक व्यास कौन थे? आपको सिखाता है कि आपको सिगार कैसे पीनी है, वो एक मछुआरिन के नाजायज़ पुत्र थे। गीता के सुबह से शाम तक उल्टे सीधे कार्य कैसे करने हैं । पश्चिम में इतनी शिक्षा आदि के बावजूद समझ में नहीं आती। कोई व्यक्ति गोरा हो या हैं, प्रवेश नहीं दिया हैं सभी- प्रकार के दुष्कर्म करती तरह से जानते हैं फिर भी बहुत अधिक दिखावा है सब सुन्दर इस महान लेखक को जान-बूझ कर इस प्रकार ये सारा प्रशिक्षण गन्दगी मानकर त्याग दिया जाना का जन्म दिया गया। गीता पाठी सभी ब्राह्मणों से चाहिए और देखना चाहिए कि परमात्मा ने तो हमें आप पूछे की व्यास कौन थे। ब्राह्मण तो वो होते हैं अपने बच्चों के रूप में बनाया है ये कितनी सुन्दर जो भात्कारी हैं और आत्मासाक्षात्कारी लोगों बात है? क्यों आप उसे अपने गन्दे विचारों से गन्दा 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-16.txt मार्थ - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड - XVI अंक : 3-4 15 करना चाहते हैं ? "मुझे ये पसन्द है और ये नहीं है आपकी गरिमा का वज़न आपके आचरण का बज़न, का सारा भद्दापन मूर्खता है। केवल एक ही शब्द आपकी श्रद्धा का वजन तथा आपका प्रकाश। होना चाहिए मैं प्रेम करता हूँ । ये याद रखने की क्षुद्रता एवं मिथ्याभिमान से आप गुरु नहीं बन जाते। आवश्यकता नहीं है कि अंग्रेजों ने भारतीयों के साथ घटियापन, अभद्रभाषा-गन्देमजाक, गुस्सा, क्रोध आदि क्या किया या जर्मन लोगों ने यहूदियों के साथ से पूरी तरह मुक्त होना आवश्यक है। जुबान और क्या किया सभी - कुछ भूल जाएँ । ऐसा करने वाले गरिमा के माधुर्य का भार प्रदर्शित करें, यह उसी सभी लोग मर चुके हैं, समाप्त हो चुके हैं। हम सन्त तरह से लोगों को आकर्षित करेगा जिस तरह से हैं। ये धर्मादेश (Statutes) हैं जो मैंने आपको रस से परिपूर्ण पुष्प चहुँ ओर की मधुमक्खियों को बताए है और जिनको आपने आत्म-सात करना है। आकर्षित करता है। आप भी इसी प्रकार से लोगों आज मैं आपको गुरु बनने का अधिकार को आकर्षित करेंगे। इस पर गर्व महसूस करें. लोगों ताकि आपके चरित्र, आपके व्यक्तित्व, के प्रति करुणामय एवं सेवा भाव से परिपूर्ण हों। अब संक्षिप्त में मुझे ये बताना है कि आपने देती हूँ आपके जीवन में सहजयोग के तौर तरीके तथा प्रकाश की अभिव्यक्ति के माध्यम से लोग आपका स्वयं ये कार्य किस प्रकार करना है। आपको अपना अनुसरण कर सकें और उनके हृदय में ईसा-मसीह भवसागर अच्छी तरह से कार्यान्वित करना है । तो द्वारा दिए गए धर्मादेश स्थापित हों और आप उन्हें ये जान लें कि यदि आपका कोई गलत गुरु रहा हो मुक्त कर सकें। उनका उद्घार करें क्योंकि आपको तो आपका भवसागर पकड़ता है अपने गुरु के बारे मोक्ष प्राप्त हो चुका है। आप ही मेरी वाहिकाएँ में पूरा ज्ञान प्राप्त करें, उसके चरित्र को जानने का ( Channels) हैं, वाहिकाओं के माध्यम के बिना प्रयत्न करें। ये कार्य कुछ कठिन है क्योंकि आपके सर्वव्यापी शक्ति अपना कार्य नहीं कर सकती, यही गुरु तो भ्रान्ति रूप हैं। वे महामाया हैं, उनके विषय विधि है। आप यदि सूर्य को देखें तो इसका प्रकाश में जानना आसान नही है। सामान्य तरीके से वे भी किरणों के माध्यम से फैलता है, आपके हृदय से आचरण करती हैं और कभी-कभी तो आप भ्रमित भी रक्त घमनियों के माध्यम से प्रभावित होता है, हो जाते हैं। परन्तु आप देखें कि वो छोटी- छोटी धमनियाँ सूक्ष्म होती चली जाती हैं । आप ही वो चीज़ों में किस प्रकार अचरण करती हैं, किस प्रकार धमनियाँ हैं जिनके माध्यम से मेरा प्रेम-रक्त लोगों उनके चरित्र एवं प्रेम की अभिव्यक्ति होती है! तक प्रवाहित होगा। धमनियाँ ही यदि टूटी हुई होंगी उनकी क्षमा को याद रखने का प्रयत्न करें। आपको तो लोगों तक रक्त न पहुँच पाएगा। इसी लिए आप इस बात का भी ज्ञान होना चाहिए कि आपको ऐसा महत्वपूर्ण हैं । जितने विशाल आप होंगे धरमनियाँ भी गुरु प्राप्त हुआ है जैसा बहुत से साधकों ने पाने की उतनी ही विशाल हो जाएँगी तभी आप इच्छा की होगी, जो सभी गुरुओं का अधिकाधिक लोगों तक पहुँच पाएंँगे। यही कारण है विष्णु और महेश की इच्छा भी ऐसा ही गुरु पाने कि आप बहुत अधिक जिम्मेदार हैं। गुरु शब्द का की है। उन सबको आपसे ईर्ष्या होती होगी। 'वज न है गुरुत्वाकर्षण, गुरु 1 गुरु है। ब्रह्मा अर्थ अर्थात परन्तु ये गुरु अत्यन्त भ्रान्ति रूप है। अपने गुरुत्वाकर्षण। अपने वज़न का गुरुत्वाकर्षण आपमें भवसागर को सुधारें और कहें कि श्रीमाताजी आप होना आवश्यक है अर्थात आपके चरित्र का वजन, हमारी गुरु हैं। इस भय के कारण गुरु के लिए 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-17.txt चैतन्य लहरी खण्ड - XVI अक : 3-4 मार्च - अप्रैल, 2004 16 आवश्यक सम्मान स्थापित नहीं हो पाता। अपने करती है और छोटी छोटी चीजें आपको सिखाती हूं। अन्दर जब तक आप गुरु के प्रति वह श्रद्धा एवं क्योंकि अभी तक आप बच्चे हैं। इसी प्रकार से आपको भी याद रखना है गुरुतत्व स्थापित नहीं हो पाएगा। कोई छूट नहीं ली कि जब आप अन्य लोगों से सहजयोग के विषय में जानी चाहिए। मैं स्वयं आपको यह सब बता रही हूँ बात करते हैं तो वे हर समय आपको देखेंगे और परन्तु मैं अत्यन्त भ्रान्तिरूप हैं। अगले ही क्षण में जानने का प्रयत्न करेंगे कि किस सीमा तक आप आपको हँसा कर सब भुला देती हूैँ क्योंकि मैं यह सहजयोग में हैं। जिस प्रकार मैं आपको समझती हूँ आप उनको समझने का प्रयत्न करें। जिस प्रकार मैं पूर्ण स्वतन्त्रता को मैं आपसे इस प्रकार खेलती आपको प्रेम करती हूँ आप उन्हें प्रेम करने का प्रयत्न कि क्षण-क्षण आप भूल जांए कि मैं आपकी गुरु करें। निःसेन्दह में आपसे प्रेम करती हैूँ मैं निर्मल हूँ। निःसन्देह मैं प्रेम से परे हूँ। बिलकुल ही भिन्न सम्मान स्थापित नहीं कर लेते तब तक आपका 1 सब करने की आपकी स्वतन्त्रता को परख रही हैं हूँ । तो सर्वप्रथम अपने गुरु के बारे में ज्ञान प्राप्त करें, उन्हें अपने हृदय में स्थापित करें। मेरा अवस्था। इन परिस्थितियों में आपकी स्थिति बहुत अभिप्राय है कि काश मुझे भी ऐसा ही गुरु मिला उत्तम है क्योंकि कोई भी अन्य गुरु इस सीमा तक नहीं जाता। इसके अतिरिक्त मैं सभी शक्तियों का मुक्त। मै जो भी कार्य करूं वह मेरे लिए पाप नहीं स्रोत हूँ। आप सभी शक्तियाँ मुझसे प्राप्त कर सकते हैं, जो भी आपको पसन्द हों मैं इच्छाविहीन होता! वे इच्छा एवं दोष विहीन हैं। पूर्णतः पाप है चाहे मैं किसी का वध करूं या कोई षड़यन्त्र ह हैँ करू या कुछ और। मैं जो आपको बता रही हूँ परन्तु जो भी इच्छा आप करेंगे वो पूर्ण होगी मेरे बास्तव में ये सच्चाई है। मैं जो चाहे करू मैं पाप बारे में भी आपको इच्छा करनी होगी इस बात को से ऊपर हूँ। फिर भी मैं इस बात का ध्यान रखती देखें इस ओर देखें कि मैं आपसे कितनी जुड़ी हुई हूँ कि आपकी उपस्थिति में ऐसा कार्य करूँ जो मुझे हूँ। आप जब तक मेरे सुन्दर स्वास्थ्य की कामना करते देख कर आप भी करने लगे। आपका गुरु नहीं करते मेरा स्वास्थ्य खराब ही रहेगा। इस सीमा सर्वोत्तम है इसमें कोई सन्देह नहीं। परन्तु आपको तक मैं आपसे जुड़ी हुई हूँ। परन्तु मेरे लिए क्या बुरा ये भी जान लेना चाहिए कि आपमें वों सर्वोत्तम स्वास्थ्य क्या अच्छा स्वास्थ्य! इन सुन्दर परिस्थितियों शक्तियों नहीं हैं। मैं इन सब चीजों से ऊपर हूँ। मैं में आपको बहुत अच्छी अवस्था तक उन्नत होना ये भी नहीं जानती कि प्रलोभन होता क्या है, कुछ चाहिए। गुरु बनने में आपके सम्मुख कोई समस्या नहीं। मैं तो बस कार्य करती हूँ। जो भी मुझे पसन्द नहीं होनी चाहिए। भवसागर को स्थिर करना होगा । हो या जो मेरी मौज में आए। परन्तु इन सब चीजों सर्वप्रथम आपको अपने गुरु को समझना होगा क्योंकि वो सभी चक्रों पर विराजमान हैं। कल्पना के बावजूद भी मैंने अपने आपको अत्यन्त सामान्य बना लिया है ताकि आपके सम्मुख मैं इस प्रकार से करें आपका गुरु कितना महान है! इससे आपमें आत्म विश्वास आएगा और इतने शक्तिशाली गुरु होते हैं। मेरे लिए कोई धर्मादेश नहीं है मैं धर्मादेश के कारण ही सभी लोग अत्यन्त आसानी से बनाती हैँ। आप ही के कारण मैं ये सारा कार्य आत्म साक्षात्कार पा सकते हैं। किसी धनी व्यक्ति पेश हो सक कि आप समझ जाएँ कि धर्मादेश क्या 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-18.txt मार्च - अप्रैल, 2004 यैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 3-4 17 के पास यदि आप भिक्षा लेने जाएँ तो वो आपको दो कि आपकी गुरु बड़े महान लोगों की माँ थीं। यह कौड़ियाँ भी नहीं देगा। क्योंकि आपकी गुरु इतनी विचार मात्र ही आपके गुरुतत्व को स्थापित कर शक्तिशाली हैं इसलिए आपको शक्तियों इतनी देगा। मेरे कितने महान बेटे थे! कितने महान आसानी से मिल रही हैं अतः आपको इसके विषय व्यक्तित्व! शब्दों से उनका वर्णन नहीं किया जा में प्रसन्न होना चाहिए अत्यन्त प्रसन्न एवं प्रफुल्लित सकता। एक के बाद एक महान बेटे हुए और आप कि आपको ये शक्तियाँ प्राप्त हो गई हैं। कम से भी उसी परम्परा में से हैं, मेरे शिष्य । उन्हें अपना कम जो लोग सहजयोग में है वै ये बात अच्छी तरह आदर्श बनाए रखें। उनका अनुसरण करें, उनके से जानते हैं। जो लोग पहली बार मेरा प्रवचन विषय में पढ़ें, उन्हें समझें कि उन्होंने क्या कहा है सुनने के लिए आए हैं, हो सकता है वो लोग थोड़े किस प्रकार उन्होंने ये ऊँचाइयाँ प्राप्त कीं, उन्हें से उलझन में हों। परन्तु आप सभी लोग भलीभाति जानते हैं। 1 पहचानें, उनका सम्मान करे। इसमें आपका गुरु तत्व स्थापित हो जाएगा। अपनी गुरु शक्ति को समझने के लिए सर्वप्रथम आपको ये जानना है कि आपकी गुरु उन पर गर्व करें। लोगों की बातें भ्रमित न कौन है - साक्षात आदिशक्ति'। 'हे परमात्मा'! ये हों क्योंकि हम तो सारी जनता को अपनी ओर बहुत बड़ी बात है। तब अपने भवसागर को स्थापित खींचने वाले हैं ! सर्वप्रथम हमें अपना बजन तथा करें। गुरु किसी अन्य के सम्मुख अपना सिर नहीं गुरुत्वाकर्षण स्थापित कर लेना चाहिए। जिस प्रकार झुकाता। विशेष रूप से मेरे शिष्य - किसी बुजुर्ग सम्बन्धी के सम्मुख आप अपना सिर इसी प्रकार हमने भी सभी को अपनी ओर खींचना झुका सकते हैं। इनके अतिरिक्त वो किसी अन्य के है। आज आप सबने अपनी आत्मा से वायदा करना अपने अन्दर ये सारे धर्मादेश स्थापित करें, सुनकर माँ, बहन या पृथ्वी माँ सभी कुछ अपनी ओर खींचती रहती हैं सम्मुख सिर नहीं झुकाते। दूसरे आपके लिए ये जानना आवश्यक है गर्व हो। है कि आप ऐसे गुरु बनेंगे जिन पर आपकी माँ को परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। त 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-19.txt सहजयोगियों को परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का परामर्श दिल्ली, 11-3-1981 ( अंग्रेजी प्रवचन से अनुवादित ) र उस दिन मैंने आपको बताया था कि है, "क्या मुझे श्री गणेश के इस फोटो की पूजा चैतन्य लहरियां ब्रह्मशक्ति के अतिरिक्त कुछ भी करनी चाहिए या नहीं?" सर्वप्रथम हमें देखना चाहिए नहीं-ब्रह्मा की शक्ति। ब्रह्मा की शक्ति वह शक्ति कि इसमें चैतन्य लहरियाँ आ रही हैं या नहीं? मान है जो सृजन करती है. इच्छा करती है, उत्क्रान्ति लो आप एक घर लेते हैं. तो आपको अवश्य देखना करती है तथा आपको जीवन्त-शक्ति प्रदान करती चाहिए कि घर से चैतन्य आ रहा है या नहीं। हम है। यही शक्ति हमें जीवन्त शक्ति प्रदान करती है। सुख-सुविधा को देखते हैं, अन्य चीज़ों को देखते हैं. इम यह भी देखते है कि वहाँ पर आने वाले अन्य शक्ति क्या अब ये समझना सुगम नहीं है की मृत्त है और जीवन्त शंक्ति क्या है। जीवन्त शक्ति को लोगों के लिए ये स्थान ठीक है या नहीं, परन्तु समझना अत्यन्त सुगम है। कोई पशु या हम कह चैतन्य लहरियों के नजरिये से उस घर को नहीं सकते हैं एक छोटा सा कीड़ा जीवन्त शक्ति है। देखते। अब जो भी कुछ हम करते हैं उसे चैतन्य इच्छानुसार ये अपने को घुमा सकता है, किसी चेतना के दृष्टी-कोण से सोचना आवश्यक है. खतरे से अपनी रक्षा कर सकता है। ये जितना चाहे अर्थात जीवन्त चीजों पर कार्य करने वाली चेतना छोटे आकार का हो परन्तु जीवन्त होने के कारण के दृष्टिकोण से। जैसे हम कह सकते हैं कि पेड़ ये अपनी रक्षा कर सकता है। परन्तु कोई भी मृत की जड़ के सिरे का तन्तु जीवन्त चीज है। बेशक चीज़ अपने आप हिलडुल नहीं सकती। जहाँ तक इस में सोचने की शक्ति नहीं है. परन्तु जीवन्त स्व (Self) का प्रश्न है वह तत्व इस में नहीं होता। शक्ति स्वयं इसका पथ प्रदर्शन करती है। अतः इसे जीवन्त शक्ति होने के नाते अब हमें यह इस बात का ज्ञान है कि जीवन्त शक्ति के साथ पता लगाने का प्रयत्न करना चाहिए कि, "क्या हम किस प्रकार चलना है, इस के साथ किस प्रकार जीवन्त शक्ति बननें वाले हैं या जीवन विहीन " रहना हैं और इसके साथ चलने के लिए इसमें इस विश्व में रहते हुए हम अपनी सुख सुविधाओं के विलीन होने के लिए. इसकी योजनाओं को किस विषय में सोचने लगते हैं कि हमें कहाँ रहना है और प्रकार समझना है। क्या करना है। जब हम इन चीजों के विषय में सोचते हैं तो हम मृत चीजों के विषय में सोच रहे प्राप्त है। एक बार जब आपको आत्मक्षात्कार मिल होते हैं । परन्तु मानव को निर्णय लेने की स्वतन्त्रता परन्तु जीवन्त कार्य करने के लक्ष्य से जब जाता है तो आपको जीवन्त शक्ति प्राप्त हो जाती हम कोई स्थान, कोई आश्रम प्राप्त करने के विषय है इसी जीवन्त शक्ति को आप महसूस करते हैं। में सोचते हैं तब हम उस स्थान को जीवन प्रदान करते हैं । सारी जीवन विहीन चीजों से उस वातावरण अन्य सभी चीजों कों ज्योतिर्मय अवस्था में बनाये की सृष्टि की जानी चाहिए सृजन करने के लिए । अब यह अत्यन्त सूक्ष्म बात है जिसे बहुत है। कम लोग समझते हैं। उदाहरण के रूप में कोई व्यक्ति मेरे पास श्री गणेश का फोटो लाकर पूछता विचार प्रदान करती हैं। उदाहरण के रूप में इस अंतः अपने शरीर मस्तिष्क, अहं, प्रतिअहम् तथा जीवन्त शक्ति का रखने के लिए इस जीवन्त शक्ति की योजनाओं को समझकर इस का उपयोग करना आपने सीखना अधिकतर समस्याओं के विषय में यह आपको 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-20.txt मार्च - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड XVI अंक 3-4 19 देश में विशेष रूप से दिल्ली में, आप लोगों को बाई कि इनमें बहुत अधिक न उलझा जाए। आपको नामी की पकड़ होती है, दाएं स्वाधिष्ठान की भी यदि यह चीज मिल जाए तो ठीक है और न मिल ि पकड़ होती है और इसके बाद हुृदय और आज्ञा की जाए तो भी ठीक है । अधिक से अधिक चीजों के पकड़ होती है। यह चक्र हमारे अस्तित्व को देखते साथ भी आप रह सकते हैं और कम से कम चीजें हैं। अतः हमें चाहिए कि बाई ओर से देखना आरम्भ पाकर भी। परन्तु अपनी भौतिक ( मृत) चीजों को करें कि क्या होता है? बाई ओर समस्या का आरम्भ बाएं तब हमारा चित्त इन्हीं मृत (भौतिक) चीज़ों की ओर स्वाधिष्ठान से होता है क्योंकि ये पहला चक्र है जो ही जाता है। इस प्रकार से हम अपने अवचेतन में हमारे अन्दर नकारात्मकता प्रवाहित करने लगता चले जाते हैं और फिर सामूहिकअवचेतन में । फिर है। वास्तव में बाएं स्वाधिष्ठान के शासक श्री गणेश यह पकड़ ऊपर की ओर बाई नाभि पर चली जाती हैं। क्योंकि श्री गणेश ही जीवन का आरम्भ हैं तथा है और बाई नाभि की पकड़ से हम भौतिक पदार्थो जीवन और के बीच की कड़ी हैं अतः श्री के लिए पगला जाते है। उदाहरण के लिए घड़ी, गणेश ही सन्तुलन प्रदान करते हैं, आपको वह विवेक, वह सूझबूझ प्रदान करते हैं जिसके द्वारा से इसका कोई लेना देना नहीं है । उदाहरण के आप समझ पाते हैं कि किस सीमा तक जाना है लिए आप यह नहीं कह सकते कि किस समय फूल जब बायां स्वाधिष्ठान पकड़ता है तो आप उन लोगों फल बन जाएगा। अतः घड़ी या समय को जीवन्त के पास जाना शुरु कर देते हैं जो ऐसी चीज़ों का शक्ति से कोई लेना देना नहीं है। यह सब मानव वचन आपको देते हैं जैसे "मैं आपको यह दूंगा, मैं रचित चीजे हैं जैसे घड़ी, समय भी मानव का ही आपको वह दूंगा, ऐसा हो जाएगा, आपके साथ वैसा बनाया हुआ है आज यहाँ पर कुछ समय है परन्तु घटित हो जाएगा। परन्तु आपकी अपनी गलत इच्छाओं के कारण भी आपमें यह बाई ओर की भारत में चार बजे हैं तो इंग्लैंड में समय वही नहीं पकड़ आ सकती है। उदाहरण के रूप में हम है। अतः समय महत्वहीन है। आप कब पहुँचते हैं, किसी गलत चीज की इच्छा कर सकते हैं, सोच कब जाते हैं, कितनी बार कार्य करते हैं, यह सब सकते हैं कि यह मृत चीज हमें मिल जानी चाहिए महत्वहीन है। या इसी प्रकार की कोई विशेष बात सोच सकते हैं। मान लो किसी को रैफ्रीजरेटर चाहिए और वह उसी इसकी न तो कोई समय-सीमा हैं और न ही कोई के बारे में ही सोचता रहता है। वह सोचता है कि उसके पास फ्रिज होना ही चाहिए। उसे फ्रिज के इसका हिसाब नहीं लगा सकते । यदि हम ये पास जाना चाहिए क्योंकि उसे फ्रिज चाहिए। वह समझते कि यह जीवन्त शक्ति है जो स्वचालित है उसे मिलना ही चाहिए। फ्रिज उसे क्यों चाहिए? और जो हमारे भौतिक विचारों की तनिक भी परवाह क्योंकि वह सोचता है कि इससे उसे अधिक नहीं करती तो हम भौतिकता (Dead) से मुक्त हो सुविधा मिलेगी। परन्तु फ्रिज लाने के बाद उसे पता जाते हैं। तो हमारा चित्त हर समय भौतिक (Dead ) चलता है कि वास्तविकता यह नहीं है। अतः सभी पदार्थों की तरफ है। हमें क्या प्राप्त करना चाहिए, भौतिक चीजों को देखने का सर्वोत्तम उपाय यह हैं क्या पा लेना चाहिए. हमारी आवश्यकता क्या है? जब हम बढ़ाने लगते है तो यह बहुत बुरी बात है। मृत्यु जीवन्त नहीं है। जीवन्तता हैं यह समय। समय मृत जा |ा इंग्लैड में कुछ और है। आप यदि कहते हैं कि र क्यों कि जीवन्त शक्ति असीम है इसलिए दूरी सीमा है। जिस प्रकार ये कार्य करती है आप 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-21.txt अप्रैल 2004 मार्च - 20 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अक 3 - 4 हर समय हम इस नश्वर शरीर की चिंता में लगे रहते हैं। प्रकार से एक बार जब आप करने लगते है तो पुनः आप मृत स्थिति में आ जाते हैं क्योंकि जीवन्त आत्मा की आवश्यकताओं को हम नहीं शक्ति कभी किसी को दोषी नहीं ठहराती। नहीं, ये देखले। आत्मा की आवश्यकता को देखने से आप कभी ऐसा नहीं करती। यह स्वतः उन्नत होती चली बाई ओर की समस्याओं पर कायू पा सकते हैं, आप जाती है, देखती है कि किस ओर को चलना है, इस अपनी आत्मा की देखभाल करने लगते हैं जिससे ओर या उस ओर। यह स्वयं को कोसती नहीं है। आप जान पाते हैं कि आपको चैतन्य लहरियाँ आने किसी चीज के प्रति यह आक्रामक नहीं होती, मध्य में बने रहने का विवेक इसमें होता है। इस प्रकार चैतन्य लहरियाँ आती हैं, यदि यह प्रसन्न नहीं है तो अपना चित्त मृत चीजों से हटा कर आपको बाई ओर ं। इतनी की समस्याएं दूर कर लेनी चाहिएं। जब आप बाई साधारण सी बात है! आपको यदि बाई ओर की ओर को हों तो आपको चाहिए की मध्य में रहते हुए कोई बीमारी या समस्या है तो इसे संतुलित करनें देखें। जो चीज़ आप देखना चाहते हैं, उसे नहीं के लिए आप अपना चित्त भविष्य पर डालें । परन्तु देखते और अन्ततः इनसे पलायन करने के लिए हर मैं जब भविष्य पर चित्त डालने के लिए कहती हूँ तो समय स्वयं को दोष देने लगते हैं और दुःखी रहते है इस प्रकार बाई ओर की समस्याओं का परिणाम है और मिथ्या है। इसी प्रकार भविष्य भी मिथ्या है. अत्यन्त खिन्नता की अवस्था में चले जाना है। बाई इसका कोई अस्तित्व नहीं। दोनों ही काल एक सम ओर के लगावों का यही अन्तिम परिणाम है। अन्ततः (मिथ्या) हैं, चाहे आप बाएं को जाएं या दाएं को आप सोचने लगते हैं कि आप किसी काम के नहीं, चाहिए था. वैसा लगी हैं। आप की आत्मा यदि प्रसन्न है तो आपको आपको चैतन्य लहरियाँ नहीं मिलर्ती लोग भविष्य पर ही अड़ जाते हैं। क्योंकि मृत मृत (तामसिकता में या राजसिकता में) आप चाहे अवचेतन मन में जाएं (Subconcious Mind) या अतिचेतन कर लेना चाहिए था। मन (Supra-concious Mind) में । दोनों ही चीजें बैकार हैं। आपको ऐसा कर लेना अब इस समय इस पर काबू पाने के लिए एक सी हैं। अतः भूतकाल में जाने का कोई लाभ आपको प्राप्त हुए आशीर्वाद गिनने होंगे जो आरशीवाद नहीं। परन्तु यदि आप भूतकाल में बहुत अधिक हैं आपको प्राप्त हुए हैं उन्हें एक एक करके गिनिए। तो भविष्य के विषय में सोचना बेहतर होगा ताकि आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है। पिछले आप थोड़ा सा मध्य (Centre) की ओर जा सकें। हजारों वर्षों में कितने लोगों ने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त परन्तु आप मनुष्यों के लिए ये कर पाना मुश्किल किया? आपको चैतन्य लहरियाँ प्राप्त हो गई है। है । इतनी सदियों मे कितने लोगों को चैतन्य लहरियाँ अब एक अन्य समस्या का आरम्भ तब प्राप्त हुई? जेन (Zen) ग्रन्थों में लिखा हुआ है कि होता है जब हममें किसी चीज़ के विषय में दोष भाव आ.जाता है । जब बाई विशुद्धि पकड़ जाती है तब हममें दोष भाव आ जाता है। "मुझे ऐसा नहीं करना लोगों को आत्मसाक्षात्कार मिला? आप एक बात चाहिए था।" तब आप कहने लगते हैं, "मैं अत्यन्त अवश्य सोचें कि इतने सारे साक्षात्कारी लोग हैं जो दुःखी हूँ, मैं बहुत दोषी हूँ। इस प्रकार आप स्वयं को एक ही भाषा और एक ही जुबान बोलते हैं। आप कोसने लगते हैं। ये एक अन्य मूर्खता है । इस शुक्रगुजार हों कि आप सभी कुछ जान सकते हैं। आठ शताब्दियों में कुल मिलाकर 26 कश्यप (आत्मसाक्षात्कारी) हुए। बुद्ध के पश्चात् भी कितने की 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-22.txt मार्च - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -xVI अंक : 3- 4 21 तार सहजयोग में आपमें बहुत विशाल इच्छा होनी चाहिए कि हम सब आत्मसाक्षात्कार को पा लें। जितना भी अधिक से अधिक हो सके अधिक से अधिक लोगों की रक्षा करने का प्रयत्न हमें करना चाहिए। जहाँ तक हो सके हम अपने को सुधारें । हम स्वयं को सुधार सकते है तथा बहुत प्राप्त कर सकते हैं । बाई ओर से भी विचार आ सकते हैं। मान लो आपके सिर में कुछ भूत हैं. तो वे आपमें विचार पैदा कर सकते हैं कि "ओह, आप बेकार हैं या परन्तु यदि आपको बाई ओर की पकड़ हो तो आप भूतकाल में चले जाते हैं और कहते हैं, "हे परमात्मा! मैं इतना बेकार हूँ, नहीं। मैं इतना बैकार, निकम्मा हूँ कि अब भी मुझे पकड़ है। जैसा आप जानते हैं कि जिन लोगों को बांई ओर की पकड़ रहती है वे सदा शिकायत करते रहते हैं और छोटे-छोटे कष्टों की शिकायत करते रहते हैं। अब इसी के मुकाबले एक अन्य पक्ष है। मैं यदि आपसे कहूं कि दूसरी ओर भी जाएं तो वह अत्यन्त भयानक खेल होगा। उदाहरण के रूप मैं किसी काम का से आशीर्वाद में हमारे जीवन में बहुत से बन्धन हैं । आप देखें, किसी काम के नहीं ।" ऐसे में अपने दाएं हाथ से सर्वप्रथम हमारी इच्छाएं हैं, हमारी इच्छा है कि अपनी दाई ओर को उठाएं और बाई को नीचे शानदार सहजयोगी बने, महान गुरु बने या कुछ गिराएं। ऐसा हम क्यों करते है? क्योंकि अपनी दाई महान चीज बन जाएं। हमारी यह भी इच्छा होती ओर से आप कृपा प्राप्त करते है और बाई ओर को है कि हमारे बहुत से शिष्य हों जो हमारे चरण छुएं कम करते हैं । जिन लोगों को बाई ओर की समस्या और हम महान गुरु कहलाएं। अंतः सहजयोग में कुछ चीजों की मनाही विधि यह है कि जब भी आपको ऐसे विचार आएं कि है कि न कोई किसी के चरण छुए और न कोई आप किसी काम के नहीं आदि आदि तो स्वयं को, सहजयोगी किसी को चरण छूने दे । सभी अपने नाम को जूते मारना बेहतर होगा जाकर सहजयोगियों के लिए यह बहुत बड़ा बन्धन है कोई किसी के पैर न छुए और न ही किसी को प्रसन्न हूं, मुझे सभी कुछ प्राप्त हो गया है। अपने चरण छूने के लिए कहे, चाहे आपमें कितने भी गुण हों। चरण छूने वाले लोगों की चैतन्य ओर प्रायः आपको स्वाधिष्ठान की पकड़ आती है। लहरियाँ समाप्त हो जाएंगी और जो लोग प्रणाम यह सोचने के कारण होता है। यह दूसरी तरह की करवाते हैं उनका भी हृदय चक्र पकड़ जाएगा। सोच आपको दाएं स्वाधिष्ठान की पकड़ देती है। अतः सहजयोग के विषय में भी इस प्रकार के जो विचार चाहे बाएं से आए या दाएं से इनसे आपको बन्धन हममें हैं उन्हें दूर किया जाना चाहिए। हम सब सामूहिक रूप से उन्नत हो रहे आता है जब दोनों पक्ष (बायां और दायां) प्रभावित हैं। हम एक ही व्यक्तित्व के अंग प्रत्यंग हैं, न कोई हों कुछ भूत आपको विचार देते हैं कि आप बेकार ऊँचा है और न कोई नीचा। इससे अलग यदि हैं या फिर आप स्वयं को बहुत महान चीज मान कोई सोचता है तो बड़ी तेजी से उसका पतन हो लेते हैं या समझ लेते हैं। इससे स्थिति अत्यन्त जाएगा यह बाई ओर के बन्धन हैं जिनमें लोग डावांडोल हो जाती है और भ्रम उत्पन्न होने लगता बहुत अधिक लड़खड़ाते हैं। सहजयोग में बहुत है। अधिक इच्छाएं त्याग दी जानी चाहिएं । 1 है वे इस विधि को अपना कर देखें। एक अन्य परमात्मा की स्तुति गाएं और कहं "मैं अत्यन्त दूसरी चीज दाई ओर के विषय में हैं, दाई जिगर की समस्या होगी। सबसे बुरा प्रभाव तो तब अतः व्यक्ति को समझ लेना चाहिए कि श्रीए . 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-23.txt मार्च अप्रेल, 2004 चैतन् लहरी खण्ड =XVI अक : 3 - 22 सहजयोग में आपको एक तेजधार, एक मध्य बिन्दु का या ये सोचने का कि मैं महान हूँ या तुच्छ हूँ विकसित हो रहा है जिससे आपको न तो बाई और कोई लाभ नहीं है। अब तो केवल ये देखें कि घोड़ा जाना है न दाई तरफ। ये इतनी सूक्ष्म चीज है कि कहाँ जा रहा है। आप घोड़े की पीठ पर बैठे हैं, यदि आप तामसिक प्रवृत्ति हैं तो आवश्यक नहीं कि स्वयं घोड़ा नहीं हैं। आत्मसाक्षात्कार से पूर्व आप आप तामसिक ही बने रहें। कल हो सकता है. आप घोड़ा होते हैं। जहाँ वो आप को ले जाता है आप राजसिक प्रवृत्ति बन जाएं। निःसन्देह कल आप चले जाते हैं। घोड़े को जहाँ घास नजर आती है राजसिक समस्याओं के साथ आएंगे। अतः सन्तुलन घोड़ा वहीं रुक जाता है। घोड़ा कभी कभी किसी सीखना आवश्यक है, वैसे ही जैसे साइकिल सीखते को दुलत्ती भी मारना चाहता है और वह ऐसा करता हुए करते हैं। आप इस ओर भी गिर सकते हैं उस है अब आप घोड़े से बाहर आ गए हैं और सवार ओर भी। साइकिल चलानी आप कब सीखते हैं आपको पता होना चाहिए कि किस प्रकार ये चीजें आप यदि मुझसे पुछे तो मैं कहूंगी कि जब आप आपको मूर्ख बनाती रहीं। आपके अन्दर ये सभी साइकिल चलाते है तभी सीखते हैं अत: सहजयोग इच्छाएं प्राचीन तथा युगों पुरानी हैं। आप देखें कि में भी संतुलित होने के लिए आपको स्वयं को आक्रामकता, कर्म जो आप कर रहे हैं, भी प्राचीन सावधानी से देखना पड़ेगा कि आप किंधर जा रहे है । ऐसा करने से आपको ये मिल जाएगा या बो हैं। यदि बायें को जा रहे हैं तो दायें को आ जाएं, मिल जाएगा। बहुत से लोग कहते हैं, "श्रीमाताजी यदि दायें को जा रहे हैं तो बाएं को आ जाएं। और हम यह कार्य कर रहे हैं, सहजयोग के लिए हम फिर मध्य में आयें। स्वयं को अलग कर लीजिए, इतना कार्य कर रहे हैं फिर भी हमें कोई उपलब्धि हर समय स्वयं को निर्लिप्त कर लीजिए। न अपनी प्राप्त नहीं हुई।" क्या करें? कुछ नहीं कर सकते! अलोचना करनी है, न किसी के प्रति आक्रामक होना है और न ही किसी की आलोचना करनी है। यह युक्ति स्वयं को देखने के लिए उपयोग करनी कभी उन्नति नहीं कर सकते हृदय प्रकाश का है। केवल देखें और अपना पथ प्रदर्शन करें। पथ स्रोत है, यह ब्रह्म शक्ति का सोत है। यह आत्मा का प्रदर्शन भटक जाने से बहुत भिन्न है। यही सिंहांसन है । इूदय वास्तविकता है । मानलो कोई मृत चीज़ है। इसे तो आप उन्नत कैसे हो सकते हैं? यदि मैं फेंकू तो यह फेंके हुए स्थान पर गिरेगी। परन्तु यदि मैं किसी जीवन्त चीज को फेंकूं तो यह है। सहजयोग से आपमें यह परिवर्तन आना चाहिए। ठीक उसी स्थान पर नहीं गिरेगी। अतः जीवन्त आपको उस बिन्दु तक परिपक्व होना चाहिए जहाँ शव्ति जानती है कि स्वयं का पथ प्रदर्शन किस आप यह समझ सकें कि क्या चुनना है यही बनकर घोड़े पर बैठे है। अब आप सवार है अंतः अब आप स्वयं पता लगाएं कि आपमें क्या कमी है? हृदय चक्र यदि पकड़ता है तो ऐसे लोग में यदि जीवन्त शक्ति नहीं होगी आपको ज्ञान होना चाहिए कि क्या चुनना प्रकार करना है। इसी प्रकार से आप भी अपन थ उन्नति है। तब आपको न तो श्रीमाताजी से कुछ प्रदर्शन करना सीख जाएंगें ऐसा करना यदि आप पूछना पड़ता है न किसी अन्य से। यह विकास सीख लेते हैं तब आप सहजयोग में कुशल हो जाते आपमें होना चाहिए कि. "मै जो कर रहा हूँ उसका हैं। मुझे पूरा ज्ञान होना चाहिए मुझे पता होना चाहिए किसी भी प्रकार से अपनी भत्त्सना करने कि क्या ठीक है। इसे ठीक करने की विधि का 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-24.txt मार्च अप्रैल, 2004 पैतन्य लहरी खण्ड -XV1 अंक : 3-4 23 ज्ञान भी मुझे होना चाहिए।" इस 'मैं' की समझ परमात्मा ने जो आपको दिया है वो आप अन्य लोगों मुझे होनी चाहिए कि ये आत्मा है अहम् नहीं। अब को दे सकते हैं और उन्हें आनन्दित कर सकते हैं । अहम् या प्रतिअहम् का अस्तित्व नहीं बचा। आत्मा आप यदि ऐसा सोचे तो आपके दोनों पक्ष (बायां ही आपका पथ प्रदर्शन करती है। आत्मसाक्षात्कारी और दायां) एक दम से ठीक हों जाएंगे और दिव्य बच्चों को आप देखें, वे ऐसे ही प्रश्न पूछते हैं वी चैतन्य लहरियों से आप परिपूर्ण हो जाएंगे। जानते हैं कि पकड़ा हुआ कौन है. वो जानते हैं कि हिन्दी प्रवचन किसका मुह बन्द करना हैं और किससे बहस करनी है। पकड़े लोगों से उन्हें कोई हमदर्दी नहीं होती। बो तो बस देखते हैं। कोई यदि आता हैं तो वो मुझे बताते हैं, "श्रीमाताजी ये व्यक्ति चाहिये। विराजिये, आसन पर विराजिये। आसन हुए अब हिन्दी में बतायें। आपको विराजना पकड़ा हुआ है।" मात्र इतना ही। कोई अन्य व्यक्ति पर बैठकर भीख मांग रहे हैं, रो रहे हैं। आसन पर आता है तो एकदम से वे कहते हैं, "ये ठीक है।" बैठकर पागलपन कर रहे हैं! इनका किया क्या बस। मात्र इसकी घोषणा करते हैं । न वे किसी जाये? अरे भई, आसन पर विराजो। आप राजा चीज की चिन्ता करते हैं और न वे किसी से घृणा साहब हैं बैठिये, और अपनी पाँचों इन्द्रियों को आप करते है। भयकर बाधा वाला कोई व्यक्ति यदि आज्ञा दीजिए, "जनाब आप अब ऐसे चलिए, बहुत आता है तो वे कहते हैं, "बेहतर होगा कि आप चले हो गया| अब ये ठीक है, अब वो ठीक है, हाँ बहुत समझ लिया आपको " जब आप इस तरह से पहाड़ की चोटी पर जब आप पहुँच जाते हैं (Command) कमाण्ड में अपने को करेंगे, जब तो सड़क पर चलने वाले वाहनों की चिन्ता की आप अपने को पूरी तरह कण्ट्रोल (Control) में कोई आवश्यकता नहीं। अभी तक आप चोटी पर करेंगे, तभी तो आप अच्छे सहजयोगी नहीं तो जाएं", उस व्यक्ति के प्रति बिना किसी दुर्भाव के। हुए। नहीं पहुंचे, इसीलिए चिन्तित हैं कि मैं चढ़ता हूँ। ये आपके मन (Mind) ने कहा, "चलो इधर". आप सब मिथक (Myth) हैं। आपके मस्तिष्क पर मानसिक बोलते हैं, "माताजी, क्या करूं, इतना मन को साया। ये वास्तविकता है कि आप पहाड़ की चोटी रोकता हूँ, पर मन इधर जाता है।" फिर मन क्या पर पहुँच गए हैं। परन्तु आपको पूर्ण विश्वास नहीं है? मन तो एक (Living force) जीवन्त शक्ति है, है, पूर्ण विश्वास का अभाव है। वो जाएगा ही। मन तो उसी जगह जाएगा, जहाँ जाना है । हमारी जो इन्द्रियां हैं, वो जागृत हो जाती परमात्मा ही आनन्द भोक्ता हैं। आप आनन्द नहीं उठा सकते। आप तो केवल परमात्मा का हैं और फिर हम इधर-उधर जाना ही नहीं चाहेंगे आनन्द ले सकते हैं। यही महानतम आनन्द है, ये और बहुत सी चीजें छोडते चले जायेंगे। महसूस करना कि परमात्मा ने आपके लिए क्या सृजन किया है, मानवीय चेतना में परमात्मा ने रखना चाहिए; अपने हृदय को स्वच्छ रखना। जिन आपको कितना सुन्दर जीवन दिया है! इसी के लोगों का हृदय स्वच्छ रहता है, उनको समस्या द्वारा आप जान सकते हैं कि बो आपको कितना प्रेम (Problem) कम होती है। इसका मतलब यह नहीं करते हैं और आपके लिए उन्होंने कितना कार्य है, कि आप लोग गंदी बातें सोचते रहते हैं। स्वच्छ किया है वे ही आपको इस स्तर पर लाए हैं इन सब चीजों में हमको एक ही ध्यान । हृदय का मतलब है, समर्पण । सहजयोग में अगर 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-25.txt मार्च - अप्रैल, 2004 24 चैतन्य लहरी खण्ड-XVI अक : 3 समर्पण में कमी हो जाय या कोई समझे कि मैं फिर आप अपने को ( order) आदेश देंगे। हमेशा कोई विशेष हूँ, तो उस आदमी में (Growth) 3rd Person में। जो आदमी पार होता है बो कभी प्रगति नहीं हो सकती। उसके लिए कोई पढ़ें-लिखे 1st Person (प्रथम पुरुष) में बात नहीं करता, नहीं चाहिएं, कोई विशेष रूप के नहीं चाहिएं। "मुझे यह नहीं हुआ, मुझे कोई अनुभूति वहां बैठिये।" बच्चे भी ज्यादातर ऐसा ही करते हैं नहीं हुई-तो दोष आपका है या सहजयोग का? 3rd Person में बात करते हैं," ये निर्मला अब जाने लोग तो कभी कभी इस तरह से मुझसे बातें करते वाली नहीं है। ये यहीं बैठी रहेगी " सहजयोगियों है जैकि मैने ठेका ही ले रखा है या मेरे पास को भी इसी तरह बात करनी चाहिये। अपनी जो आपने कोई रुपया पैसा जमा किया हुआ है कि माँ, इच्छाएं हैं, अपने जो ideas (विचार) है, या और हम तो आपके पास पच्चीस साल से आ रहे हैं।" कोई ideas, जैसे सत्ता के ideas, इत्यादि, ये सब पच्चीस क्या. तीस साल तक: बूढ़े होने तक भी कोई छोड़कर हमें यह सोचना चाहिए कि हम सहजयोग काम नहीं होने वाला। इसलिए अगर यह नहीं हो के लिए क्या कर रहे हैं और क्या करना है। रहा है, इसका मतलब है कि आपमें कोई न कोई कमी है। लेकिन जैसे ही आप अपने को अपने से परदेस में बहुत ज्यादा हैं। वो लोग कभी मुझसे हटाना शुरु करेंगे, आपको अपने दोष बड़ी ही आकर यह नहीं कहते कि मेरे बाप के दादा के जल्दी दिखाई देंगे और जैसे ही दिखाई देंगे, वैसे चाचा के सगे भाई का फलाना फलाना बीमार है ही आप पुरी तरह से विराजिये, जैसे कोई राजा उनको आप ठीक कर दें कभी भी अपनी Material साहब हैं; अपने सिंहासन पर बैठे हैं। आपको अगर difficulties या Problems नहीं कहते हैं। हालांकि, सुनाई दिया कि हमारे प्रजाजन, कुछ गड़बड़ कर आप पार जल्दी होते हैं, वो लोग बिचारे अपनी रहे हैं; तो कहिए, "चुप रहिये, ऐसा नहीं करने का गलतियों की वजह से ज्यादा समय लेते हैं। पार है। यह नहीं कि ऐसा करो, वैसा करो ।" अपने को आप जल्दी होते हैं पर आपको उसकी कीमत नहीं, पूरी तरह (Command) कमाण्ड में जो आदमी वो जो पार देर से होते हैं, उनको उसकी कीमत है कर लेता है. वही शक्तिशाली है । मिसाल के तौर पर लोगों की बातचीत लें। आँखों में ही देखिये, कितनी एकाग्रता हैं । एक एक लोग जब बात करते हैं यानी हमसे भी बातचीत शब्द को अगर मैं हिन्दी में बोल रही हूँ एक एक करने में ख्याल ही नहीं रहता कि किससे बात कर शब्द को अगर मैं हिन्दीं में बोल रही हूँ, पूरे हमेशा 3rd Person में बात करते हैं. वहां चलिये, सा अभी भी हिन्दुस्तान में ये चीजें कम हैं, उनको तरीका मालूम है, क्या चीज है । उनकी ऐसी बात करते हैं कि बड़ा आश्चर्य सा ध्यान से सुनते हैं। हालांकि भाषा नहीं समझते होता है। उनको अन्दाज नहीं रह जाता कि हमें लेकिन उसमें कैसे वाइब्रेशन (Vibrations) निकल क्या कहना चाहिये, क्या नहीं कहना चाहिए। हमारी रहे हैं, हाथ में कैसे (vibrations) पूरा चित्त रहता जबान पर भी काबू होना चाहिए। यह काबू भी तभी है। होता है, जब आप अपने को अपने से हटे देखेंगे। दिया है। वो कोई चीज नहीं सोचते कि भई यह भी रहें अब इन्होंने अपना जीवन ही सहजयोग को दे कर लेंगे, वो भी कर लेंगे। तभी आप गहरे उतरेंगे । यह जबान है न, उसे ठीक रखना पड़ता है। धीरे धीरे आपकी नई आदतें हो जायेंगी, जीवन सहजयोग को देने से ही आप पनपते हैं, यह नए तरीके बन जायेंगे, नया अन्दाज बन जायेगा भी बात है उसमें आपका कुछ लेना देना तो है 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-26.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अक : 3 - 4 मार्थ अप्रैल, 2004 25 कुर नहीं। कोई आपको कमी नहीं हो जाती। सारा क्षेम को भोगना चाहिये, वही जो सबको भोगने वाला है। अगर उसको भोगना शुरु कर दिया तो फिर आपके अन्दर आ जाता है। सारा जीवन ही सहजयोग को दे देना हमें और क्या भोगने की जरूरत है उसका ही चाहिये। एक-एक क्षण सहजयोग को देना चाहिये। सुख भोगें परमात्मा ने क्या-क्या सृष्टि रची है, इसका मतलब है living spontaneously । कहों से कितना सुन्दर सारा संसार बनाया है, कितनी सारी आयेगी spontaneity? है। हमारे अन्दर हर समय जो जीवन्त शक्ति है, अन्दर ये शक्ति परमात्मा ने दी है। अब आप अपनी उससे। और सब बातों को सोचना ही नहीं चाहिये। आत्मा को पा सकते हैं, दूसरे की आत्मा को पहचान वैसे भी आप कभी भोग नहीं सकते। भोगने सकते हैं । कितनी अनन्त कृपा परमात्मा की हमारे वाला सिर्फ परमात्मा है। आपको गलतफहमी है कि ऊपर है। बस यही सोच-सोच कर अपने अन्दर आप भोग रहे हैं। आप भोग ही नहीं सकते। भोगने फूलिये! इस तरह से जब आप परमात्मा को भोगना वाला परमात्मा है और वही रचयिता है और आप तो शुरु करेंगे तो आप देखेंगे कि आपका heart (हृदय) सिर्फ बीच में हैं। जिस तरह पाइप (Pipe) होते हैं, बहुत बड़ा हो जाता है। ऐसा लगेगा कि सारी सृष्टि उसी तरह आप हैं। अगर थोड़ा भोग ही सकते हैं, उस हृदय (heart ) में समा गई है। तो एक चीज भोग सकते हैं वह है परमात्मा जिसे आपसे अनन्त प्रेम है। बस, यही एक सत्य है परमात्मा को भोगना करें। बाकी सब चीजों का जिससे आप पूरी तरह से आनन्दित रह सकते हैं, भोग आप छोड़ कर परमात्मा का भोग करें और पुलकित रह सकते हैं, पुलकित रह सकते हैं। बाकी उसका आनन्द उठायें कि आपको परमात्मा ने क्या किसी भी चीज से आपको आनन्द नहीं मिल क्या दिया। क्या क्या चीजें दी हैं? हर जगह इसका सकता, किसी भी चीज को भोगने वाला सिर्फ वही आनन्द उठाना शुरु कर दीजिये आप देखेंगे कि है। बात यह है कि आपको आज कुछ चाहिये में प्रगति इसी तरह से होगी । वो ला दिया, फिर भी आप खुश नहीं। कल फिर आपको वो living force से आती चीजें हमें दी हैं! हम सहजयोगी हो गये हैं हमारे लि आज का मेरा आपको सन्देश है-आप शुरु आपका चित्त एक दम स्थिर हो जायेगा सहजयोग हर मिनट में हमें क्या मिला। इतना मिल कुछ चाहिये, कल दूसरी चीज ला दी, फिर गया, इतना मिल गया, ऐसे कहते हुए चलिये, नहीं तीसरी चीज ला दी, फिर भी खुश नहीं । आप कभी तो आपके complaints कभी नहीं खत्म होने वाले भी सांसारिक चीजों से खुश नहीं हो सकते। भोगने वाला सिर्फ परमात्मा है, इसलिये वाला सबको चाहिए कि हम उसको भोगें हमको परमात्मा और आप का aggression भी कभी खत्म नहीं होने परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-27.txt सहजयोग महायोग क्यों है सहजयोग महायोग क्यों है? मानव इतिहास जाता है, इन्हें प्राप्त करता है, प्राप्त करता है और में यह पहली बार घटित हुआ है कि बिना किसी पुनः संचारित करता है। दूसरे व्यक्ति से आते हुए मानसिक, शारीरिक या भावनात्मक प्रयत्न के मनुष्य इन चैतन्य लहरियों को हम महसूस कर सकते है। शीतल चैतन्य लहरियों का अनुभव कर सके। इस यह बात अत्यन्त अविश्वसनीय प्रतीत होती है परन्तु अवस्था में व्यक्ति पूर्णतः शान्त होता है और उसका यदि हमारे मस्तिष्क का सृजन इन्ही तंरगों से हुआ मस्तिष्क विचार मुक्त होता है। अपने अन्दर पूरी है तो ऐसा होना ही था अन्य लोगों को देने से ही तरह से मौन (शान्त) स्थिति में होते हुए भी वह पूरी ये चैतन्य लहरियाँ प्रवाहित होती हैं क्योंकि इनका तरह चुस्त होता है और घटित होने वाली चीजों के स्र्रोत सामूहिकता को-पूर्ण को-चाहता है। सहजयोग प्रति चेतन। उसकी पाँचों कर्म-इन्द्रियाँ कार्य शील में व्यक्ति (अकेले) व्यष्टि में साधना करके बहुत होती हैं। बाल सुलभ उस व्यक्ति के सभी कार्य उन्नति नहीं कर सकता। आदान प्रदान सहजयोग में आवश्यक है-भौतिक वस्तुओं का नहीं चैंतन्य स्वतः होते हैं। व्यक्ति वर्तमान क्षण में होता है, जो कि लहरियों का । एकमात्र वास्तविकता है यही सहजयो ग है-महायोग। परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी की है और पिछले चार वर्षों से सूक्ष्मतरंग (Microwave पृथ्वी पर अवतरित आदिशक्ति का अवतरण हैं। Antenna) एन्टीना में कार्यरत हूँ। जब मैं सहजयोग उनके सम्मुख याचना करने मात्र से व्यक्ति को में आया तो मुझे गुरुओं, धर्म, यहाँ तक की परमात्मा आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाता है, वह ज्योर्तिमय में भी विल्कुल विश्वास न था। मैं पूरी तरह से हो उठता है। सहजयो ग महायोग है क्यों कि के सम्मुख मुझे यह चैतन्य लहरियाँ महसूस होने मैने दूरसंचार में M.Sc. की उपाधि प्राप्त वैज्ञानिक था। परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् मनुष्य अपनी लगीं। शक्की मिजाज होने के कारण, पहले तो मैने आत्मा को चेतन अवस्था में महसूस कर सकता है सोचा कि ये शीतल वायु खिडकियों से आ रही है, और उसके हाथों से शीतल चैतन्य लहरियाँ बहनें तत्पश्चात् मुझे लगा कि ये कोई युक्ति या सम्मोहन लगती हैं तथा वास्तविकता का ज्ञान उसे हो जाता है परन्तु मैं पूर्णतः चुस्त और चेतन था। वहाँ कुछ है। चैतन्य लहरियाँ विद्युत चुम्बकीय तरंगों की तरह भी परिवर्तन नहीं हुआ था सिवाय इसके की मैरे से होती हैं। हृदय स्थित आत्मा जिनका स्रोत है। हाथों से चैतन्य लहरियों बहनें लगीं थी। इससे पूर्व एक स्टेशन से ये संचारित होती हैं और एक कभी भी अपने जीवन में मैंने इतनी शन्ति और एन्टीना इन्हें ग्रहण करके दूरदर्शन उपकरण तक चुस्ती अनुभव नहीं की थी। भेजता है। इन तरंगों को हम माप सकते हैं। ये विद्युत चुम्बकीय लहरें केवल त्रिआयामी होती हैं शैली का ज्ञान मैंने अपनी पढ़ाई के दौरान प्राप्त जबकि सहजयोग में प्राप्त होने वाली चैतन्य लहरियाँ किया था पानी के तालाब में यदि पत्थर फेंकें तो बहुआयामी होती हैं-इनमें भावनात्मक मानसिक जिस तरह से लहरें अपनी धुरी से आगे की ओर एवम शारीरिक शक्तियाँ मिश्रित होती हैं। ये सर्वव्यापी जाती हैं उसी प्रकार ये विद्युत चुम्बकीय तरंगे भी हैं। मनुष्य भी इन्हें पाकर एन्टीना की तरह से बन अपने सरोत से निकल कर सारी बाधाओं को दुर विद्युत चुम्बकीय तरंगों तथा उनकी कार्य 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-28.txt मार्च -अप्रैल, 2004 मितल्य लहरी खण्ड - XVI अक 3- 4 27 करती हुई चहूँ ओर बढ़ती हैं। रडार में भी टकरा परमात्मा को समझने का एक मात्र मार्ग किसी कर आने वाली इन्ही तरंगों को पकड़ने का सिद्धांत घटना के माध्यम से उसे अनुभव करना है या विवेक कार्य करता है क्योंकि ये तरंगें रडार की ओर आने बुद्धि के माध्यम से उसे जानना है। वाली चीज़ की उपस्थिति तथा स्थिति को बताती हैं। इन विद्युत चुम्बकीय तरंगों का वास्तविक हैं। चैतन्य लहरियों की शक्ति की तुलना में ये चैतन्य लहरियाँ वास्तव में शक्तिशाली आकार-प्रकार एक रहस्य है। केवल इतना कहा अन्तरिक्षयान प्रणाली कहीं भी नहीं ठहरती। ये तो जा सकता है कि विद्युत चार्ज द्वारा ये उत्पन्न होती चैतन्य लहरियों का एक छोटा सा रूप है क्योंकि हैं और इनका प्रभाव जाना जा सकता है। वास्तव चैतन्य लहरियाँ पूरे ब्रह्माण्ड में पेंठ जाती हैं. हम इन में इनका वर्णन नहीं किया जा सकता। अपने कार्य का अनुभव करते हैं, इच्छा अनुरूप चलाते हैं, इनका में से आती हुई इन विद्युत चुम्बकीय तरंगों की आनन्द लेते हैं और अन्य लोगों को रोग मुक्त करने दूर शक्ति को मैं एक मीटर द्वारा माप सकता हूँ तथा के लिए इनका उपयोग कर सकते हैं। ये चैतन्य तरंग-पथ-प्रदर्शन के माध्यम से मनचाही दिशा में लहरियाँ जब बहने लगती हैं तो हम अपने अन्दर भेज सकता हूँ। टेलीफोन पर भी बात करते हुए हम मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक पक्षों को ठीक विद्युत चुम्बकीय तरंगों का इस्तेमाल करते हैं । यहाँ पर मैं आश्चर्य चकित था कि मेरे सारी समस्याओं का मूल कारण ही हमारा मध्यमार्ग अन्दर यही सारी प्रक्रिया घटित हो रही थी। मैं पर न होना है, हम या तो भावनात्मक पक्ष में होते बास्तव में एन्टीना था जो इन तरंगों को महसूस कर हैं या मानसिक या शारीरिक। सकता था तथा मेरी अंगुलियोँ मीटर की तरह से कार्य कर रही थीं। मैं यह ऊर्जा प्राप्त कर रहा था सन्तुलन करने लगते हैं या इसके लिए प्रयत्न करते और इसे इच्छा अनुरूप चला रहा था। मेरे लिए ये हैं तो हमारा अहम् हमें एक ओर या दूसरी ओर ले बात अविश्वसनीय और आश्चर्यकर थी। वैज्ञानिक होने के नाते मैंने अपने मस्तिष्क सकते। एक क्षण हम प्रसन्न होते हैं और तरंगित का उपयोग किया और सोचा कि क्यों मेरे हाथों में एवम सशक्त परन्तु अगले ही क्षण निराशा से ये शीतल लहरियाँ महसूस हो रही हैं? क्या मेरे परिपूर्ण, चिन्तित या क्रोधित और इस प्रकार हमारी अन्दर ऐसा कुछ है जो सहजयोग के सत्य को सारी शक्तियाँ किसी न किसी प्रकार नष्ट होती पहचानता है और शीतल लहरियों के रूप में अपनी रहती हैं। जब भी हम असन्तुलित स्थिति में होते हैं अभिव्यक्ति करता है? अगर इसका सम्बन्ध परमात्मा तो कैंसर जैसे कई भयानक रोग हमें हो सकते हैं। से है तो निश्चित रूप से मैं इसे अपने मस्तिष्क के सहजयोग में आने के पश्चात् जब हमारे अन्दर माध्यम से नहीं समझ सकँगा क्योंकि परमात्मा ने चैतन्य लहरियाँ बहने लगती हैं तो ये मध्य मार्ग पर ही तो मेरे मस्तिष्क का सृजन किया है। एक आने में हमारी मदद करती हैं । वैज्ञानिक होने के नाते यदि मैं किसी रोबोट की करके सन्तुलित अवस्था प्राप्त कर सकते हैं। हमारी सहजयोग तकनीक द्वारा जब हम अपना जा रहा होता है। स्थिर होकर हम इसे देख नहीं रचना करू तो बह रोबोट किसी भी प्रकार से शेष भाग पृष्ठ संख्या 32 पर मुझे-अपने रचयिता को समझ नहीं सकता। अतः . पव 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-29.txt सर सी० पी० श्रीवास्तव का भाषण (26 दिसम्बर 1980 मुम्बई) ( अंग्रेजी से अनुवादित ) 26 दिसम्बर 1980 को बम्बई तथा विदेशों से आए सहजयोगियों ने सर सी० पी० श्रीवास्तव के लगातार तीसरी बार समुद्रवर्ती सलाहकार संस्था के महासचिव (Secretary General of IMCO) बनने पर उनका गर्म जोशी से स्वागत किया। उत्तर देते हुए इस अवसर पर सर सी० पी० श्रीवास्तव ने उनका अभारी ही नहीं हूँ मुझे उन पर अत्यन्त गर्व भी है। क्यों मुझे उन पर गर्व है? उन पर मुझे इसलिए गर्व है कि एक ऐसे समय पर, चाहे बह पूर्व हो, पश्चिम हो, उत्तर हो या दक्षिण हो, विश्व पीड़ित है सर्वत्र, बेचैनी खिन्नता और निराशा की भावना है पूरे विश्व के लोग ये जानना चाहते हैं कि विश्व-निर्मल- धर्म के हम लोग विश्व सहजयोग परिवार के प्रिय सदस्यो! किस प्रकार शन्ति एवम् सुख से रह लेते हैं? विश्व मेरे और मेरे कार्य के विषय में जितनी उदारता के सभी विचारशील लोगों के सम्मुख यह प्रश्न है पूर्वक आपने कहा है तथा आप लोगों का स्नेह व और इसका कोई उत्तर तो अवश्य होगा क्योंकि हम प्रेम पाने के लिए मैं जो कुछ भी कर पाया और जो सबने एक साथ रहना है उत्तर वास्तव में यह है प कहा:- कुछ कृपा आप लोगों ने की, यह मेरे लिए अत्यन्त कि चाहे जिस भी देश से हम सम्बन्धित हों, हम सब सम्मानमय है। इससे मैं अभीभूत हूँ। आप लोगों ने एक ही विश्व परिवार के सदस्य हैं। हमें यदि स्मरण कहा कि अपनी पत्नी, आपकी माताजी को सहजयोग है तो जिस ब्रह्माण्ड के विषय में हम जानते हैं कार्य करने की आज्ञा देकर मैंने बहुत बड़ा त्याग उसके केवल एक ही उपग्रह पर जीवन है। यह किया है। मैं आपको बताना चाहता हूँ कि ये उपग्रह हमारा है । हम लोग अत्यन्त सौभाग्यशाली हैं यलिदान नहीं है. ये तो महान सम्मान है लगभग कि परमात्मा ने हमें सर्वोत्तम बनाया है यह अपने एक तिहाई सदी (34 वर्ष) पूर्व जब हमारा विवाह आप में एक महान आशीर्वाद है और हमें चाहिए कि तो हमारा परिवार बना, एक छोटा सा परिवार । कम से कम कुछ ऐसा करें कि सच्चे भाई बहनों की हुआ तभी हमने मिलकर निर्णय किया कि अपनी दोनों तरह से मिलकर हम लोग रह सकें। यह केवल बेटियों का पालन पोषण करना हमारा प्रथम कर्तव्य जुबानी जमा खर्च न होकर हार्दिक प्रेम हो। इस होगा। हम इस बात पर भी सहमत हुए कि बेटियों अवस्था तक पहुंचना अत्यन्त आवश्यक है। मुझे का विवाह करने के पश्चात् वे (श्रीमाताजी) मानव लगता है कि अब विश्व एक नई क्रान्ति के लिए कल्याण के लिए जितना भी हो सकेगा समय देंगी। तैयार है। उन्नीसवीं शताब्दी में औद्योगिक क्रान्ति हमारे बच्चे जब बड़े हो रहे थे तो उन्होंने पूर्ण हुई जिससे बहुत से देशों में आर्थिक वैभव आया समर्पण पूर्वक उनके पालन पोषण में अपना समय और जिसने अन्य देशों को भी वैभवशाली बनाया। लगाया और मेरी भी जी जान से सेवा की। उनके परन्तु यही सब काफी नहीं है। मानव के लिए सहारे और देखभाल के बिना सरकार द्वारा सौंपी भौतिक समृद्धि आवश्यक है परन्तु यह अन्तिम लक्ष्य गई जिम्मेदारी को पूरी तरह से निभा पाना मेरे लिए नहीं है। भौतिक समृद्धि के अतिरिक्त भी मानव के सम्भव न होता। मैं उनका हृदय से अभारी हूँ। प्राप्त करने के परन्तु आज मैं ये कहना चाहता हूँ लिए बहुत कुछ है - 'आध्यात्मिक कि मैं केवल लक्ष्य'। केवल आध्यात्मिक उपलब्धियों, आध्यात्मिक 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-30.txt सार्च - अप्रैल, 2004 चैत्तन्य लहरी खण्ड -XVI अंक 3-4 29 तुष्टि के माध्यम से ही सच्ची खुशी प्राप्त की जा विरोध का सामना करना पड़ेगा तथा एकरूपता सकती है। कोई चिंगारी होनी आवश्यक है जो एवम् सदभावना आपको न मिल पाएगी। परस्पर चमक उठे। और आप लोगों के सम्मुख तो इस शन्ति पूर्वक रहने के लिए ये दोनों नितान्त आवश्यक प्रकाश का स्रोत है 'ये महिला' (श्रीमाताजी)! अतः हैं। जब मैं कहता हूँ कि मै कोई त्याग नहीं कर रहा तो निःसन्देह मैं स्वयं को आप ही का एक हिस्सा अतः वे (श्रीमाताजी) आपका अध्याल्मिक पथ-प्रदर्शन कर रही हैं और निः:संशय मैं भी उन्हीं मानता हूँ। इस प्रयत्न का एक छोटा सा अंश। मुझे हजारों लोगों में से एक हूँ जो उनके प्रशंसक हैं उनपर तथा उनके इस कार्य पर गर्व है । इसके अतिरिक्त भी मैं आपको कुछ बताना हैं उसके लिए सभी प्रकार से मेरा पूर्ण समर्थन उन्हें चाहूँगा। हाल ही में मुझे एक अद्वितीय अनुभव प्राप्त है। मेरे विचार से समर्थन शब्द ठीक नहीं है हुआ। वे अत्यन्त व्यस्त व्यक्ति हैं और बिना किसी क्योंकि उन्हें किसी के समर्थन की आवश्यकता नहीं धृष्टता के. यदि मैं कहूँ कि मैं भी अपने कार्य में है । आशा है आप मुझे क्षमा करेंगें क्योंकि मैं दो बहुत व्यस्त हूँ, फिर भी एक शाम लन्दन के इसी भागों में बंटा हुआ हूँ। मेरे लिए ये भूल पाना कठिन प्रकार के एक उत्सव में उन्होंनें मुझे आमन्त्रित है कि मै उनका पति हैं, अतः मेरी अभिव्यक्ति के किया। वहाँ पर मैंने एक अन्य सहजयोगी परिवार लिए मुझे क्षमा करें क्यॉंकि उनका पति होने के नाते को देखा - सहजयोगी और सहजयोगिनियों को। मैंने ये शब्द उपयोग किया था मेरी इच्छा है कि उनकी भाव भंगिमाएं कितनी सुन्दर थी! कितनी आप सब ये बात समझ लें कि. जो कार्य वो कर रही आन्तरिक शन्ति का भाव उनमें था, सामूहिकता की हैं वह मानव मात्र के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है । कितनी भावना उनमे थी! मुझ पर इसका बहुत गहन वास्तव में, मेरे विचार से, विश्व भर में पुरुषों और प्रमाव पड़ा । मैने महसूस किया कि भिन्न देशों से महिलाओं के उत्थान से ही हम अपने सृष्टा आए हुए इन दुस्साहसी व्यक्तियों के इस परिवार सर्वशक्तिमान परमात्मा के योग्य बन सकेंगे। का अन्तर्परिवर्तन कर दिया गया है, उन्हें एक ही लक्ष्य बाले परिवार के सूत्र में पिरो दिया गया है। संस्था (IMO) जिस संस्था में कार्य करने का सौभाग्य उनका सम्मान करते है तथा जो कार्य वह कर रही मत अब अन्तरराष्ट्रीय समुद्रवर्ती सलाहकार उन्हें इस बात का अहसास हो गया है कि हम एक मुझे प्राप्त है, उसमें मेरे पुनर्चयन के विषय में जो ही परिवार के सदस्य हैं। सभी आध्यकत्मिकता के शब्द कहे गए हैं उनके लिए मैं आभारी हूँ। ये विकास के लिए एक दूसरे की सहायता करने के अत्यन्त सुखकर थे। सम्भवतः आप लोग जानते हैं लिए उत्सुक थे। यह कितना चमत्कारिक कार्य है? कि मेरा चुनाव सर्वसम्मति से था इस बात का मैं सोचता हूँ कि आज विश्व को किसी अन्य चीज वर्णन मैं केवल एक वजह से कर रहा हूँ कि ऐसे की अपेक्षा इसकी कहीं अधिक आवश्यकता है। बहुत से मामले हैं कि जिनके कारण विश्व बंट किसी भी अन्य चीज़ की अपेक्षा इस देश को जाता है। बहुत ही कम विषयों पर विश्व सरकारें इसकी बहुत आवश्यकता है। यह अन्तपरिवर्तन है एक मत होती हैं मेरे पुनर्चयन पर यदि वे सहमत व्यक्ति का आन्तरिक उत्थान, जो कि अत्यन्त हुए-चाहे वह सोवियत गणतंत्र हो, अमेरिका हो. आवश्यक है। ये उत्थान यदि नहीं होता तो आपको बर्तानिया हो, विकसित देश हों. चीन हो या पकिस्तान, 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-31.txt मार्य - अप्रैल, 2004 पैतन्य लहरी खण्ड - XVI अक 3-4 30 सभी एक विशेष सिद्धांत को मान्यता देने के लिए गातिविधियों के बीच कार्यशैली सिद्धान्त समन्वयन सहमत हुए हैं और एक प्रकार से उनसे (श्रीमाताजी) हुआ है संयुक्तराष्ट्र प्रणाली में मेरी बहुत छोटी सी प्राप्त हुआ सहजयोग संदेश मेरे माध्यम से सब जिम्मेदारी है। परन्तु जहाँ तक हो सके ये मेरा लोगों को दिया जा रहा था। संस्था के सदस्य देशों कर्तव्य है और सदा मेरा प्रयत्न रहा है कि विश्व को मैं जो संदेश देता हूँ वह ये हैं कि हम समूहों में समाज की एक अत्यन्त उन्नत सिद्धान्त के माध्यम बंटे हुए नहीं है। झुंड बनाने में मेरा विश्वास नहीं है, से-आध्यात्मिक विधि से-सेवा की जाए। विदेशों परस्पर विरोध में मेरा विश्वास नहीं है। मैं नहीं से आए हुए मित्रों का, भारतीय होने के नाते, मैं मानता कि युद्ध से संसार चल सकता है, मैं नहीं हृदय से स्वागत करता हूँ। यहाँ आकार नववर्ष का मानता कि विकसित देशों से लड़कर विकासशील दिन इस देश में बिताकर आपने मुझे महान सम्मान विश्व विकसित हो सकता है मेरा विश्वास है. मैं प्रदान किया है इस अवसर पर मैं वर्ष 1981 के ा वास्तव में सत्य पूर्वक मानता हूँ कि हम सब परस्पर लिए आप सबको मंगलकामनाएं देता हैँ और कामना एक होकर सहयोग मार्ग से साथ-साथ चल सकेंगें। करता हूँ कि सहजयोग निरन्तर बढ़ता चला जाए मैं यही संदेश सदैव देता हूँ।" यह सहजयोग का तथा पूरे विश्व को चेतना के, स्नेह एवम् प्रेम केवल एक पक्ष है। परन्तु यही सन्देश है जो मैं सम्बन्धों के एक नए स्तर पर उन्नत कर सके तथा संस्था को देता हूँ कि इसमें कार्य करना मेरा उन्हें महसूस करवा सके कि मानव का जन्म महान सौभाग्य है तथा इस बात की मुझे प्रसन्नता एवम् सन्तोष है कि संयुक्तराष्ट्र प्रणाली की समुद्रवर्ती करने के लिए नहीं। उसका लक्ष्य आध्यात्मिक, संस्था की प्रतिनिधि सरकारें इस दश्शन को मानती बहुत ऊँचा जीवन है। इन शब्दों से आपकी सफलता, हैं और स्वीकार करती हैं कि परस्पर मिलकर कार्य प्रसन्नता और सुख शन्ति के लिए मैं प्रार्थना करता करने से समुद्रवर्ती गातिविधियों में काम करने वाले हूँ और एक बार फिर आपको धन्यवाद देता हूँ। विश्व के लोग आगे बढ़ सकते हैं। इससे सभी को सभी वक्ताओं ने मेरे विषय में सम्मान जनक शब्द सन्तोष होगा सर्वसम्मति से मेरा पुनर्चयन करके बोले मै उनका ( श्रीमाताजी) भी धन्यवादी हूँ कि उन्होंनें मेरा और मेरे देश का सम्मान किया है । मुझे आश्रय देकर वो मेरे लिए इतना कुछ कर रही परन्तु मै सोचता हूँ कि इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र हैं। प्रणाली का पथ प्रदर्शन करने वाले इस सिद्धान्त का उन्होंने सम्मान किया है इस प्रकार एक ओर तो सहजयोग तथा दूसरी ओर संयुक्तराष्ट्र की ा लक्ष्यों के लिए हुआ है. सर्वसाधारण जीवन यापन आप सबका हार्दिक धन्यवाद (निर्मल योग 1981) 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-32.txt बाइबल से कथन ओ३म आमीन तथां सृष्टि की उत्पत्ति चैतन्य लहरियों के विषय में : "मैं ही वह जीवन्त भोजन हूँ जो स्वर्ग से श्रीमाताजी के विषय में : (Luke 13.8.) पृथ्वी पर आया। जो भी इस भोजन को खाएगा बह -पुत्रो अमर हो जाएगा विश्व के जीवन के लिए जो भोजन के सभी अपराध क्षमा हो जाएंगे और उनके द्वारा की गई ईश निन्दा को भी क्षमा कर दिया जाएगा। (John 6.5) परन्तु आदिशवित (Holy Spirit) के निन्दक के लिए "कोई यदि प्यासा है तो वह मेरे पास आए कोई क्षमा नहीं है। उसका अपराध दोष तो कभी "मैं आपसे सत्य कहता हूँ कि मानव- मैं दूँगा बह मेरा अपना मॉस (Flesh) हैं। और जलपान करे जिसे मुझ पर वेश्वास है, जैसा समाप्त नहीं होता, सदैव बना रहता है धर्म - ग्रंथों में लिखा है, "उसके हृदय से जीवन्त जल की सरिता बह निकलेगी।" क (Make 3.28) "मानव पुत्र के विरोध मे कोई यदि कुछ (John 7.37) कहेगा तो उसे भी क्षमा कर दिया जाएगा परन्तु आदिशक्ति के विरोध में बोलने वाले को क्षमा नहीं रताट आज्ञाचक्र के विषय में : "संकीर्ण द्वार से प्रवेश करने के लिए संघर्ष करें। क्योंकि, मैं आपको बताता हूँ कि बहुत से लोग इस द्धार से प्रवेश करने के लिए साधना करेंगे मिलेगी।" (Mathew 12.32) "अभी भी आपको बताने के लिए मेरे पास बहुत सी बाते हैं परन्तु उन्हें सहन करने की योग्यता आप में (Luke 13.24) नहीं है। जब सत्यआत्मा अवतरित होंगी तो वे इस "मै ही द्वार हूँ। कोई यदि मुझेसे प्रवेश " परन्तु वे सफल न होगे।" सत्य को समझने में आपका मार्ग दर्शन करेंगी। करेगा तो उसकी रक्षा होगी, वह अन्दर बाहर आ (John 16.12) मैने ये सब बाते शी जा सकेगा तथा उसे चरागाह (मोक्ष) मिल जाएगी" 'आप के साथ होते हुए मार्ग दर्शक आदिशक्ति को आपको बताई हैं जब परमपिता परमात्मा मेरे नाम पर भेजेंगे तो वे (John 10.9) परन्तु कुण्डलिनी के विषय में : "परमात्मा के साम्राज्य की तुलना मैं किससे सभी चीजों का ज्ञान आपको सिखायेंगी और जो भी करूं? यह उस खमीरे (Leaven) की तरह से है कुछ मैंने आपको बताया है उसे आपके स्मृतिपटल जिसे लेकर महिला गुंथे हुए आटे की तीन तहों के पर लायेंगी। बीच में तब तक रखती है जब तक आटा खमीरा न (John 14.25) हो जाए। विराट में सहजयोगियों की सामूहिक चेतना के परमात्मा का साम्राज्य कैसा है? और इस विषय में :- की तुलना मैं किस से करूं? यह सरसों के उस दाने जैसा है जिसे लेकर कोई व्यक्ति अपने बाग में पिता (परमात्मा) में स्थित हूँ और आप मुझ ऊगा लेता है। अंकुरित होकर यह दाना पेड़ बन तथा मैं आप में स्थिित हूँ"। "उस दिन आप जान जाएंगे कि मैं अपने में हैं जाता है, और वायु-मार्ग में उड़ने वाले पक्षी उसकी डालियों में घोंसले बना लेते हैं। (John 14.18) "हे। परमपिता जो गौरव आपने मुझे प्रदान आट 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-33.txt मार्थ - अप्रैल, 2004 पैतन्य लहरी खण्ड -XVI अक :3 - 4 32 किया था वो मैंने इनको दे दिया है ताकि वे भी वैसे जिस प्रकार आपने मुझ से प्रेम किया है।" ही एकरूप हो जाऐं जैसे हम हैं, मैं उनमें हूँ और आप मुझ में है, ताकि वे पुर्णतया एकरूप हो सकें, ताकि ये विश्व जान जाए कि आपने मुझे भेजा है श्री आदिशक्ति भगवती माताजी श्री निर्मला देव्यै और उनसे भी आपने उसी तरह से प्रेम किया है नमो नमः । (John 17:22) ॐ त्वमेव साक्षात श्री भेरी जीसज़ साक्षात संकलन-ग्रैगोर डी कल्बरमैटन (निर्मल योग 1981) (पृष्ठ संख्या 27 का शेष भाग...) सहजयोग पूर्णतः निशुल्क है क्योंकि चैतन्य घर में रहती हैं फिर भी सभी कुछ छोड़कर हमें लहरियाँ ही भौतिक पदार्थों का सृजन करती है, आत्मसाक्षात्कार तथा चैतन्य चेतना प्रदान करने के किस प्रकार हम इन्हें खरीद सकते हैं? चैतन्य लिए वे आती हैं ताकि हम अपनी दिव्य शक्तियों को लहरियाँ तो प्रेम का प्रवाह है अतः सभी सच्चे पहचान सकें। साधकों को इन्हें अत्यन्त गम्भीरता पूर्वक लेना चाहिए। इनकी प्राप्ति के लिए न तो कोई तकनीक मानसिक और भावनात्मक संवेदनाओं से परे है, यह यह दिव्य प्रेम का योग है जो शारीरिक पावन है, आत्मा का प्रेम है जो चैतन्य लहरियों के है और न कोई रहस्यमय मन्त्र । श्रीमाताजी कौन है? वे एक कूटनीतिज्ञ की माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति करता है। इसी कारण पत्नी हैं जो इस देश में सरकारी कर्तव्यों के कारण से यह महायोग कहलाता है। आई हैं। गुरु नहीं। महारानी की तरह से वे अपने 1 हरि जयराम सहजयोग आश्रम 44 चैलशम रोड लन्दन (निर्मल योग - 1981) 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-34.txt कविता लेखन श्रीमाताजी का वरदान "मानव मस्तिष्क में एक ऐसा आयाम है जो पशुओं में नहीं होता - मानसिक या भावनात्मक योगी कवियों के लिए बहुत उपयुक्त है क्योंकि उन्हें आयाम जिसके द्वारा हम प्रेम को समझते हैं। हम इसका कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं प्राप्त होता। ये समझ पाते हैं कि किस प्रकार प्रेम प्राप्त करना अधिकतर आधुनिक कविताएं छन्दमुक्त शैली में है और किस प्रकार लौटाना है। हम समझते हैं कि लिखी जाती हैं बिना दोहे बनाए या लय का में करता है। छन्द के बन्धनी से मुक्त कविता नए काव्य को किस तरह से लेना है और किस प्रकार प्रबन्ध किए शब्द-प्रवचन से ही उनमें स्वाभाविक लय विकसित हो जाती है। छन्द-मुक्त कविता कल के जाज़ ( Jazz) शैली के बहुत करीब है-एक ऐसा स्वाभाविक ढाँचा जिसमें स्वरों, शब्दों तथा भक्ति की अभिव्यक्ति के रूप में कविता अर्थो का अनौपचारिक सम्बन्ध स्वीकार्य होता हैं। लेखन में किसी पहेली या किसी पुष्प की लिए संभव है। कविता में भावनाएं छुपी होती हैं चित्रकारी करने का आनन्दमय दृष्टिकोण होना लय. संगीत एवं चैतन्य लहरियों के प्रति खुलेपन आवश्यक है। व्यक्ति का चित्त अन्दर कुण्डलिनी की संवेदना निहित होती है। सर्व-व्याप्त देवी पर होता है परन्तु साथ ही साथ उसकी संवेदना प्रतीक्षा करती हैं। हमें केवल अपना चित्त इस ओर साक्षी रूप में हाथ से किए जाने वाले कार्य के साथ लगाना होता है तथा लिखने की इच्छा मात्र करनी होती हैं। अत्यन्त दिलचस्प बात है कि लिखते समय जितना अधिक निर्लिप्त आप होंगे उतनी ही व्यक्ति की भक्ति सीधी हो सकती है जैसे सशक्त पावन भावनाएं परमात्मा (श्रीमाताजी) आपको उसका सृजन करना है।" (अहं और प्रतिअहं पर श्रीमाताजी की वार्ता के कुछ अश-1977) लिखना एक ऐसा आनन्द है जो हर सहजयोगी के होती है। श्रीमाताजी के किसी विशेष पक्ष को सामने रखकर भेजेंगी। लिखी गई, या प्रकृति के सौन्दर्य को सामने रखकर "अपने ही ढंग से सोचें कि हम सहजयोग या आत्मा को प्रतिबिम्बित करने वाली जीवन की के लिए क्या कर सकते हैं । हर चीज़ में आप सहजयोग के लिए क्या कर सकते हैं। हर चीज़ में उत्कृष्ट पाश्चात्य् काव्य प्रायः बाई ओर के आप सहज देख सकते हैं। आपको विचार प्राप्त हो जाएंगे। उन्हें आपने प्रसारित करना हैं। इन्हें लिख आधारित जीवन की कलात्मकता से जुड़ी होता है। डालें. अपनी कविता लिखें। आप सभी बहुत कुछ कर सकते हैं अब बर्वाद करने के लिए समय नहीं घटनाओं को सामने रखकर लिखी गई कविताऐं । उदासीन स्वभाव का वर्णन करती है तथा कष्ट पर खोए प्रेम, त्रासदी तथा विरह को पार्चात्य कलाकृतियों में एतिहासिक पहचान मिली है। विषय है। क्या? वस्तु और मूलभूत जटिल है फिर भी इसमें दिव्य प्रेरणा का अभाव है। आश्चर्य की बात नहीं है कि स्कूल में पढ़ते हुए (अलीबाग 1988) दाँचे में यद्यपि ये काव्य बहुत "अपने विचारों को लिखें, अपनी कविता लिखें माँ के ये शब्द हमें बताने हैं कि हम सबके हममें से अधिकतर इस काव्य को नहीं समझ पाए । अन्दर कविता विद्यमान है तथा लेखन का ये कार्य सच्चा काव्य आत्मा की अभिव्यक्ति लयपुर्ण शब्दों तुच्छ नहीं है। यह तो ऐसी चीज़ है जो सहजयोग 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-35.txt मार्थ - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 3 - 4 XVI 3 34 कण की तरह से छोटी बनना चाहती हॅूँ। यह कण की गहनता से उत्पन्न होती है। "आप अत्यन्त सुन्दर व्यक्ति बन जाते सर्वत्र जाता है। उड़कर चाहे तो सम्राट के सिर पर हैं-सौन्दर्य विवेक आपमें आ जाता है। अचानक बैठ सकता है और चाहे तो किसी के चरणों में गिर आप महान कवि बन सकते हैं।"(सत्चित्त आनन्द फरवरी 1977) बिना योजना बनाए या सोचे विचारे स्वतः सुगन्धमय हो, पौष्टिक हो, ज्योति प्रदायक हो। हृदय से लिखी गई कविता ही उत्कृष्ट होती है। प्रायः प्रकृति के किसी भी पक्ष पर (जैसे आकाश, मैंने यह सुन्दर कविता लिखी थी-धूल का कण फूल या समुद्र) चित्त डालना ही कविता लेखन के बनना। इतने समय बाद भी मुझे वह कविता अच्छी लिए पर्याप्त उत्प्रेरक (Catalyst) है । श्रीमाताजी तरह से याद है कि मुझे धूल का कण बनना चाहिए अपने बचपन का एक अत्यन्त दिलचस्प उदाहरण ताकि लोगों के अन्दर प्रवेश कर सक । धूल का देती हैं जिससे उनका स्वाभाविक सृजनात्मक गुण कण बन जाना बहुत बड़ी बात है। प्रतिबिम्बित होता है। सकता है। कहीं भी जाकर यह बैठ सकता है। परन्तु में धूल का ऐसा कण बनना चाहती हैं जो मुझे याद है कि जब मैं सात वर्ष की थी तो जिस भी चीज़ को आप छुएं वो जीवन्त हो उठे। जो भी आप महसूस करें वह सुगन्धमय हो। ऐसा बनना बहुत बड़ी बात है। ये मेरी इच्छा थी जो अवश्य पूर्ण होगी उस युवा आयु में भी मुझे धूल का कण बनने का विचार था और आज आपसे बात श्री सरस्वती पूजा-धुलिया-1983 आज हम धुलिया (Dhulia) में पूजा करेंगे धुलिया का अर्थ है धूल'। मुझे याद है कि बचपन में मैंने एक कविता लिखी थी जो अत्यन्त रुचिकर थी। मैं नहीं जानती ये कविता अब कहाँ है परन्तु इसमें मैंने कहा-मैं हवा के संग उड़ने वाले धूल के करते हुए मुझे ये बात याद आई कि मैं धूल का कण बनना चाहती थी इस स्थान (धुलिया) का यही महत्व है। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-36.txt एक सहजयोगिनी का अनुभव (निर्मल योग 1981) मुम्बई मार्च 1981 जय श्रीमाताजी, 30 नवम्बर 1980 को टूटे मेरे कूल्हे (Hip) की हड्डी का अनुभव मैं लिख रही हैूं। मेरे डाक्टर ने मुझे बताया कि 6 महीनों तक अब मैं बिना छड़ी के चल न पाऊगी। परन्तु शल्य क्रिया (Operation) के पांचवे दिन हमारी प्रिय परम पूजनीय श्रीमाताजी अस्पताल में मुझे देखने आई। श्रीमाताजी की कृपा और चैतन्य लहरियों से मैंने अगाघ शक्ति का अनुभव किया। इतनी तीव्र चैतन्य लहरियाँ मुझसे बहने लगीं कि पन्द्रह दिनों के अन्दर ही मैं बिना छड़ी के चलने लगी। यह वास्तविकता देखकर मेरा डाक्टर आश्चर्यचकित हो गया और पूज्य श्रीमाताजी से मिलने के लिए उत्सुक हो उठा| वह श्रीमाताजी के पास आया और उनसे आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया। मेरी प्रार्थना है कि अधिक से अधिक लोग सहजयोग में आएें और परमपूज्य श्रीमाताजी से आशीर्वाद प्राप्त करें। देवी रूप में वे पृथ्वी पर अवतरित हुई हैं। आशीर्वाद से परिपूर्ण महान माँ के चरण कमलों का सानिध्य प्राप्त करने वाले हम प्रेम एवम् सब अत्यन्त सौभाग्यशाली लोग है। जय श्रीमाताजी पलि श्रीमति मेहतन्ये भा 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-37.txt सहजयोग, कुण्डलिनी और चक्र (मूलाधार व नाभि चक्र) गुरुतत्व - दिल्ली 3-1-78 सहज क्या होता है? बहुतों को मालूम भी गोल चीज़ लाती हूँ और उसमें एक डंडा जोड़ती हूँ है आपमें से। नानक साहब ने बड़ी मेहनत की है तो कोई भी पूछेगा कि यह सब क्या कर रही हो? और सहज पर बहुत कुछ लिखा है। आप लोगों को किस के लिए कर रही हो? कोई भी इंजीनियर से बड़ा वरदान है उनका यहाँ पर, लेकिन उनको कोई पूछे कि वो अगर कोई बैठकर चीज बनाता है तो जानता नहीं समझता नहीं। सहज का मतलब होता किसी न किसी काम के लिए, किसी utility के लिए है सहज सह' माने साथ, 'ज' माने पैदा हुआ, आप ही बनाता है। कोई पागल आदमी होगा जो बैठे हुए ही के साथ पैदा हुआ। ये योग का अधिकार आपके यूं ही जोड़कर बैठा रहे। कोई भी समझदार आदमी साथ पैदा हुआ है, हर एक मनुष्य को इसका किसी न किसी कारण से बनाता हैं। तो परमात्मा ने अधिकार है कि आप इस योग को प्राप्त करें। मनुष्य को किसी न किसी कारण वश बनाया| लेकिन आप मनुष्य हों तब, गर आप जानवर हो गए लेकिन ये सब बनाने के बाद भी जब तक इसको मैं हैं तो इस अधिकार से आप च्युत हो जाते हैं, गर मेन से नहीं जोडूंगी तब तक ये useless हो जाता आप दानव हो गए हैं तो भी इस अधिकार से आप है, इसका कोई काम नहीं रह जाता। ये बिल्कुल च्युत हो जाते हैं। गर आप मनुष्य हैं साधारण तरह व्यर्थ की चीज़ हैं । इसको इस्तमाल करने से कोई से तो आपको अधिकार है कि इस योग को आप फायदा नहीं क्योंकि इसमें से कनेक्शन ही नहीं प्राप्त करें। यही एक योग है बाकी कोई योग नहीं हुआ है। ये साधारण समझदारी की बाते हैं, बिल्कुल है। बाकी जितने भी योग हैं वे सब इसकी तैयारियाँ commonsense जिसे कहते हैं। कोई इसको बड़ा पढ़ने लिखने की ज़रुरत नहीं है। कोई भी आदमी सहजयोग के और दूसरे माने हम ये भी गर देहात से आए और वो कहे कि भई येlight कैसे लगाते हैं कि सहज माने सरल effortless, जलती है? तो आप कहेंगे कि चलो भई वो जो बटन हैं। spontaneous | अकस्मात घटित होने वाली चीज़ है उसको दबाओ तो ight जल जाएगी। तो शुरु है क्योंकि ये एक जीवन्त घटना है। जैसे आपका देखकर अवाक रह जाएगा कि भई ये कैसे हुआ! जन्म होना, जैसे आपका माँ के गर्भ में रहना, जैसा बड़ी कमाल की चीज है! ऐसा तो हो ही नहीं पेड़ों का फूलों से लद जाना, फलों में परिवर्तित सकता। पर देखता है तो उसे लगता है कि भई ऐसे होना, उसी प्रकार ये बड़ी भारी सहज घटना है ही हुआ। इसी प्रकार कुण्डलिनी का भी है कि spontaneous, natural नैसर्गिक घटना है और ये वाकई बटन दबाने से खड़ी होती है । इसमें कोई घटना जो है मनुष्य की उत्क्रान्ति की चरम सीमा शंका नहीं । परन्तु इसके पीछे में बड़ी भारी है। मनुष्य जानवर से परमात्मा ने बनाया आप engineering लगी हुई है। इसके पीछे में कितनी जानते है! मनुष्य क्यों बनाया गया अमीबा से? प्रश्न engineering लगी है? सदियों की इसमें मेहनत करना चाहिए सब Scientist को बैठकर के कि लगी हुई है। पहले तो electricity का किसी ने पता आखिर क्या वजह है? समझ लीजिए मैं दो चार लगाया फिर उसको ये किया, फिर वो किया, फिर कलपुर्जे इक्ट्ठे करती हूँ और एक इस तरह की उसको वहन किया, फिर उसके बाद यहाँ लाया, अटमा 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-38.txt मार्च अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड - XVI अंक : 3 - 4 37 फिर Tubelights बर्नी, फिर ये सब बना आप तो दुनिया भर की चीज़ माने ये कि आप जागरण ही जानते हैं कितना लम्बा चौड़ा इसके पीछे में काम नहीं कराओ, इसकी जागृति नहीं कराओ ऐसे ही मर किया गया। इसी प्रकार आपके अन्दर में जो जाओ और इन राक्षसों के हाथ में आओ। क्योंकि कुण्डलिनी हैं सहज आपको ज़रूर मिल गई है परजागृति हो जाएगी तो आप पहचानना शुरु कर देंगे इसका मतलब ये नहीं कि इस पे काम किया नहीं की कौन भूत है, कौन राक्षस है और कौन सन्त है। गया ये आपकी पेशानी पर भी बहुत काम किया गया है., इस पेशानी को भी बड़ी शान से बनाया इतनी उल्टी सीधी बातें बताते हैं कि कुण्डलिनी क्योंकि इनके पेट पर पैर आएगा। इसलिए तुमको गया। मनुष्य ने जब अपनी गर्दन ऊपर उठाई तब उसकी ये पेशानी जगी इसीलिए कहा जाता है कि आदमी तो मुझे कहने लगा कि मेंढक जैसे उड़ते सिर को किसी के सामने झुकाना नहीं क्योंकि ये हैं। मैंनें उनसे कहा कि भई ये कैसे जाना? उन्होंने पेशानी बहुत मेहनत से बनायी गयी है, मनुष्य बहुत कहा कि भई हमारे गुरु ने किताब में लिखा है। मेहनत से बनाया गया है और मनुष्य क्या है? और इतनी बड़ी किताब है। उसका जो गुरु है उसने असल में अन्दर क्या बनी हुई Engineering है? वो लिखी हुई है। उसमें लिखा हुआ है कि आप मेंढक ये है। मेरा तो विचार अपना ये रहता है कि भई पहले ight जला लो उसके बाद Engineering कहा जाए? अब आप लोग यहाँ देख रहे हैं कितनों समझाती रहूंगी क्योंकि Engineering जो है वो की जागृति हुई है और होती रही है, और हजारों की बड़ी सिरदर्द की चीज़ है । कोई लोग तो बोर भी हो हुई है। कोई भी मेंढक जैसे कूदा? ये बच्चे हँस रहे जाएंगे। इसलिए मैंने कहा पहले पार कर दूं तो मेरी है क्योंकि ये पार भी है और इनके हाथ में Vibrations बातचीत का मज़ा उठाते हुए आप सुन भी लीजिएगा। भी हैं. ये जानते हैं क्या चीज़ है? बिल्कुल हँसने की नहीं तो बोर भी हो जाते हैं। मैं खुद ही बोर हो बात है इस तरह की जो ऊट पटॉग सब बातें जाती हैं समझाते समझाते। तो कुण्डलिनी जो है वो theories चल चुकी हैं इससे कुछ भी नहीं होता क्या चीज़ है? ये भी समझ लो। जो कुण्डलिनी के रही बात ये कि कुण्डलिनी अत्यन्त सूक्ष्म चीज है। बारे में दुनिया भर की बातें दुनिया में लोगों ने फैला आपको अपनी सूक्ष्मता में उतारती हैं इसंलिए जो रखी है वो कैसी गलत हैं वो भी मैं धीरे-धीरे इसी चीज़ अति सूक्ष्म है उसके लिए भी आपको अति में समझा दूंगी। तो उसके साथ-साथ ये भी समझ सूक्ष्मता में उतरना चाहिए क्योंकि हम लोग बहुत लो कि ये लोग अज्ञानी हैं और अज्ञान में ऐसा कार्य जड़ता में रहते हैं। सुबह से शाम materialism के करते हैं। कृण्डलिनी के जागरण के बाद क्या होता है वो मैं कल आपको बताऊँगी और इसकी पहचान कि हम लोग developing बहुत कर रहे हैं, रजोगुण जागरण में आप कूदते हैं और छलांगे मारते हैं। एक जैसे उड़ते हैं। सोचिए बात! इन लोगों को क्या बीच में पनपते रहते हैं। आजकल तो आप जानते हैं क्या है? कैसे पहचानना चाहिए कि आदमी की हमको बहुत सतर्क रहना चाहिए। किसी चीज़ में कुण्डलिनी जागृत है या नहीं? यानि कि यहाँ तक उलझे नहीं, देखते रहें नाटक मात्र। और वो हो ये लोग कहते हैं कि कुण्डलिनी के जागरण के बाद सकता है। कोई आदमी जीवित ही नहीं रहता। यहाँ से लेकर पर बहुत चले पड़े हैं। इन सब कारणों की वजह से सहजयोग में दिल्ली में बहुत लोग आते हैं 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-39.txt मार्च - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड - XV1 अक : 3-4 38 पार भी हो जाते है। उनमें से पच्चीस फीसदी लोग उत्क्रान्ति की है, जो मैंनें कहा Mains में लगने की सहजयोग में असली उतरते हैं बाकी जो हैं वो फिर बात है, ये जो मैं आपको कहती हूँ आप लोग उड़ जाते हैं। और इसी तरह से चलते रहता है computer के जैसे है। जब तक computer को क्योंकि मैंने आपसे कहा हैं सहजयोग में पार होने आप main से नहीं लगाइएगा तब तक आपका की क्रिया तो घटित हो सकती है, छू भी सकते हैं computer कुछ बोलेगा नहीं। उसी प्रकार मनुष्य आप। लेकिन उसको बिठाना पड़ता है जैसे कि जाति का है अब देखिए अब ठीक है? अब इसमें Motor तो start कर देते हैं हम लेकिन motor को जो कुण्डलिनी दिखाई है ये माँ के गर्भ में जब बच्चा चलाना पड़ता है।Start करने के बाद वो थोड़ी देर होता है तभी अन्दर प्रवेश करती है। लेकिन यहीं खड़ खड़ खड़ खड़ करेगी फिर वहीं रुक जाएगी। नहीं प्रवेश करती ऊपर से यहाँ जहाँ बच्चे का तालु लेकिन आप मोटर को जब तक चलाना नहीं जानेंगे होता है, जिसे हम fontanel Bone कहते हैं वहाँ से उसके कलपुर्जे नहीं जानिएगा, उसको चलाइगा ये देखा न आपने ये जो त्रिकोणाकार बना है वो नहीं, जब तक आप जानिएगा ही नहीं कि आपके Brain है आपका । मनुष्य ही का Brain त्रिकोणाकार अन्दर कोई गति भी हुई है, मोटर खड़ी है तो खड़ी हो जाता है, जानवर का flat होता है। मनुष्य का है। उसके अन्दर गति होनी फड़ती हैं। अब सब लोग मेरी ओर ऐसे हाथ करके उतर के और यहाँ बैठ जाती हैं और इसके अलावा बैठिए। मैं आपको कुण्डलिनी क्या चीज़ है वो ये जो दोनों शक्तियाँ हैं. ये दोनों शक्तियाँ Right समझा देती हूँ। ये आपके आगे एक नक्शा है, ये भी Side और Left Side, ये दो नाड़ियाँ होती हैं ईडा एक बड़े भारी सहजयोगी ने बनाया है और दो और पिंगला - ये दो नाड़ियाँ होती हैं ईड़ा left की Deaf and Dumb लड़कों से बोलता किया हुआ और वो right की पिंगला अब गर इसको Science है। बहुत साधारण है म्युन्सिपैलिटि टीचर हैं वो से समझाएं तो ये समझ लीजिए कि अपने अन्दर उन्होंने बनाया हुआ है बड़े प्रेम से। देखिए कितना एक स्वचालित संस्था है जो हमारे हृदय को चलाती त्रिकोणाकार होता है। तो ऊपर से कुण्डलिनी नीचे सुन्दर चित्र है। इनका idea है कि इस तरह से है हमारे अन्दर अन्न का पाचन करती है माने हमें इसके बनाने से, इसके reflections से ही लोगों उसको digest कराती हैं, जो Automatically हमारे की जागृति होनी चाहिए। और बड़े कमाल किए हैं शरीर के अन्दर होती रहती हैं क्रियाएं, जैसे हमारी जितने भी उन्होंने colour लगाए हैं मेरे पैर से छुआ श्वसन क्रिया है, जो श्वास लेने की क्रिया है उसको करके, vibrate करा करके बड़ी मेहनत से बनाया जो कराती रहती है उसको हम Autonomous है। ये भी बहुत ज़रूरी होता है (आप लोग भी, ऐसा nervous system कहते हैं लेकिन अब किसी से है आपको कुछ दिखाई नहीं दे रहा? जिनको नहीं पूछा जाए कि Auto माने स्वयं चालित जो चीज़ है दिखाई दे रहा है वो इस तरफ आ जाएं थोड़ा सा, वो क्या है? ये स्वयं कौन है? तो कोई भी इसका 1 आजाइए और इधर आ जाइए। क्योंकि समझने की जवाब नहीं दे सकता। कोई भी डॉक्टर। डॉक्टर तो चीज़ है)। आगे इसमें जो त्रिकोणाकार अस्थि में ये ये कहेगा कि हम इसको स्वयंचालित कहते हैं । कह जो देख रहे हैं यही कुण्डलिनी है। मनुष्य जब माँ देने से नहीं है, explanation नहीं हैं उनके पास । के गर्भ में रहता है यह अवस्था पुर्नजन्म की है, जो ये जो स्वयं चालित संस्था है इसमें दो तरह 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-40.txt चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक - 3 -4 मार्य - अप्रैल 2004 39 की संस्था होती है। उसको एक को तो नहीं है ऐसे तो। तो जब है ही नहीं तो बताओ हम parasympathetic कहते हैं औ र एक को कैसे करें? आप गुर कहीं पढ़ कर आएं कि गुलाब sympathetic कहते हैं। यही जो ऊपर से जो यहाँ के फूल का रंग नीला होता है और फिर कहें कि तक दिखाई हुई है, बीच की चीज़ है। ये अपने रीढ़ साहब ये तो गुलाब का फूल नहीं क्योंकि इसका रंग की हड्डी में सूक्ष्म स्वरूप में रहकर के और नीला नहीं तो ऐसे लोगों को क्या कहा जाए, ऐसे parasympathetic को चलाती है और ये जो दोनों लोगों को कौन सी बात समझाई जाए? कि उन्होंने संस्थाएं हैं ये left and Right sympathetic कहा है। आप उनको जानते नहीं? आपने किताब nervous system को चलाती हैं। पर ये मैने खरीदी, कितने में? दो रुपये में। फिर। मैंने पढ़ी. आपको सूक्ष्म नाड़ियाँ बताई, ये बाहर में Gross में उसमें ये लिखा है माताजी, फिर आप ऐसे क्यों कह ये नाड़ियाँ हैं। अब मुझे तो आश्चर्य है कि उस रहे हैं? अब क्या मैं आपसे कहूं कि वो झूठा आदमी आदमी ने इतनी बड़ी किताब रखी हुई हैं कुण्डलिनी है? कहूँ तो आप मुझे डंडा लेकर मारने दौड़ेंगे। पर वो क्या कहता है कि पेट में, पेट में होती है क्योंकि आप फौरन उसके फौरन वकील बन जाते कुण्डलिनी। जिन्होंने अपनी आँख से देखी है वो ये हैं। आपने किताब क्या पढ़ ली, आपके पास किताब बता सकते हैं की त्रिकोणाकार अस्थि में होती है। क्या आ गई, आप फौरन उस किताब वाले के अब इस तरह की उसने गर किताब लिख दी और वकील बन जाते हैं और मेरी जान को लग जाते हैं इतनी बड़ी बात लिख दी तो उससे अब कौन कि माँ ऐसा तो है नहीं। आप ऐसे ही बोल रही हैं! झगड़ा करने जाए? उसको मरे भी अब काफी दिन यानि मैं झूठी हो जाती हूँ । वो सच्चा हो जाता है हो गए हैं। अभी जिन्दा भी ऐसे बैठे हुए हैं कि वो क्या किसी गुरुको आपने बनाया? गुरु महाराज ने कुण्डलिनी के बारे में 1760 बातें बताते रहते हैं। जो भी कहा वो आपके लिए सत्य हो गया! भई लेकिन वैसी बात है नहीं। असल में जो है सो है उसने आपको कुछ किया, उसने आपको पार किया? असत्य। कोई किसी के लिख देने से क्या होता है? उसने आपके साथ क्या किया? कुछ नहीं, बो तो कोई चाहे हजारों किताबें लिख सकता है। असत्य सात मंजिल पर बैठते हैं और मुझे नाम दे दिया। बहुत कुछ लिखा गया है आप जान लीजिए जो मैंने कहा जिसने तुम्हें नाम दिया उसने तुम्हारा कुछ कुछ लिखा गया है वो सब कुरान नहीं है, सब देखा कि नहीं? माँ मुझको तो Heart Attack आ पुराण भी नहीं है और बाइबल, गीता भी नहीं है जो रहा है इसीलिए मैं आपके पास आया हूँ। मैंने कहा कुछ लिखा गया है उसमें बहुत कुछ झूठ है। यहाँ उसी को क्यों नहीं कहते, तुम अब मेरे पास काहे तक कि हमारे शास्त्रों में भी लोगों ने झूठ घुसेडने को आए हो? वो आपको देखता भी नहीं कि आपको की कोशिश की क्योंकि झूठ जो होता है वो हमेशा Heart Attack आ रहा है कि तुमको कोई बीमारी है, आक्रमण करता है, आप जानते हैं सब कुछ। और तुमको कोई तकलीफ है। ऐसे गुरु को लेकर के इस वजह से अपनी आँख से देखो जो आपमें क्या उसका अचार डालना है? और ये ऐसे अनेक घटित हो, जो घटना हो, उसे जानो। पढ़ लिखकर गुरु हैं जिनके शिष्यों को Heart Attack आ रहे हैं! क्योंकि आपने दो रुपये देकर उसको खरीद लिया। के आप कहीं से कुछ पढ़ कर आए, तो कुण्डलिनी अरे जब गुरु रख के उससे Heart Attack आते हैं. 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-41.txt मार्च -अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खाण्ड -XVI अक : 3-4 40 उससे तंदरुस्ती चौपटाती है, आपका दिमाग खराब हुए हो? लेकिन इसलिए कि Conscious Keeper होता है, आपकी बीबी पगलाती है, घर में सब चौपट है, क्योंकि ये तो अभी राक्षस नहीं हुए न । ये सोचते है, यहाँ कोई लक्ष्मी जी का स्थान ठीक नहीं, तो हैं हम इतने गन्दे काम कर रहे हैं, क्राइस्ट ने तो ये ऐसे गुरु का क्या अचार डालने का है? आप उसके सब काम नहीं किया और हम ये सब धन्धे कर रहे पीछे में क्यों लगे हुए हो? उसने क्या दिया? हजारों हैं iberations के नाम पर तो कोई न कोई गुरु लोग दौड़ रहे हैं इसलिए हम भी दौड़ रहे हैं । अरे बना लो तो उसका Certificate लेकर जाएंगे यो सब गधे हैं तो आप भी गधे होएंगे? ये भी एक गुरु बैठा रहेगा नर्क में और ये भी उसके पीछे चले सोचने की बात होती है मनुष्य को सोचना चाहिए जाएंगे गुरु ऐसे अच्छा लगते हैं लोगों को कि जो कि हम क्यों इसे गुरु मान रहे हैं? दूसरा मानता है कहे तुम बड़े अच्छे आदमी हो, आ-हा-हा-हा! माने हम क्यों माने? हमें भगवान ने स्वतन्त्रता दी कोई नहीं, बस पर्स ज़रा इधर रख दो। तुम्हारी बीवी है और हमने अपनी स्वतन्त्रता में ये जानना है। तुमसे संभलती नहीं तो उसको भी इधर भेज दो मैं बहुत से ऐसे गुरु हैं जैसे वो ट्रांस वाले महाराज हैं, सब तुम्हारे काम कर दूंगा। ऐसे भी गुरु लोग हैं वो आपको एक नाम दे देते हैं कि आप भूत (Past) दुनिया में जो कहते हैं अपना जो भी पैसा धन में चले जाते हैं। आपको लगता है आप बड़े भारी संम्पति है तुम्हारे पास, सब आश्रम को दे दो और आदमी हो गए! किसी भूत का नाम दे दिया आप वहाँ पर पहुँच जाओ। ऐसे दूसरों के पैसों पर आपको, आप भूत का नाम लेने से हो जाते है, ठीक नजर रखने वाले गुरु कैसे हो सकते हैं? पहली है आप बहुत बड़े आदमी हो गए शराब आप पिओ, चीज़ पैसे से। और आपको भी अच्छे लगते हैं ऐसे औरतें आप रखो, खाना जो खाओ, जैसे भी सताओ, गुरु क्योंकि आप बहुत पैसे वाले हैं, दिल्ली वाले हैं! दूसरों को पीड़ित करो, aggression करो, कुछ भी काफी दोनों हाथ से पैसा कमाते हैं। कुछ करो! व । 1 लोग अपने Negative भी पैसा कमा लेते हैं. Under the बस, आप तो साधू बाबा हो गए। फलाने table और उसका भी इन्तजाम होता है। गुरु भी गुरु ने चार औरतें रखीं, मैंने दस रखीं तो क्या हो पाल लिया है. उसका भी इन्तजाम है । चलो भई गया? उसका धर्म से, मनुष्य से, उसके Human गुरु भी अपने हैं तो अपन ने अपना अगला जन्म भी Elements से, कोई भी सम्बन्ध गुरु का नहीं ठीक कर लिया और ये जन्म भी अपना ठीक है रहता । ये अजीब तमाशा है! और आदमी इसको हमारे गुरु तो कुछ कहते नहीं, बड़े शरीफ आदमी मानता है! उसको ऐसे गुरु बड़े अच्छे लगते हैं । हैं। हमारे यहाँ एक आदमी है. तुम तो सुने हो उसका नाम। वो अंग्रेज लोग उसके चरणों में लोट रहे हैं! के पास सिंगापुर में कुछ मैंने कहा अरे भई तुमको काहे को चाहिए? तुमने तो हमको बचाओ। मैंने कहा क्या हुआ? कहने लगे अब सब कर दिया तमाशा । तुम उसके गुरुघंटाल हो, तो हमारे गुरु ने हमारी लुटिया डुबो दी। मैंने कहा उससे क्या सीखोगे? ये Sex की बातें? तुम उससे क्यों? कहने लगे वो तो जाकर बैठे हैं स्विटज़रलैण्ड। क्या सीखने वाले हो? तुम्हारे से वो सीखे, ऐसे तुम लोग होशियार हो। तुम क्या उसके गुरुपना लगाए हमारा सब माल पकड़ा गया। मैंने कहा बहुत अच्छा जकार्ता में हमें एक और गुरु मिले। जकाता सिन्धी लोग आए। माताजी मैंने कहा अच्छा। हम यहाँ स्मरगलिंग करते थे, 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-42.txt मार्च - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -४VI अक 3 -4 41. हुआ। अब मत करो। कहने लगे नहीं, हमारे तो गुरु में डाला था। पाँच मिनट में देखने लग गई। ने कहा ऐसा करो और हमको कुछ तरीके भी बताए वास्तविकता है सुब्रमन्यम ने सिर्फ कहा था कि मैं और अब वो स्विटज़रलैण्ड बैठे हैं। तो ऐसे गुरुजो तुमको Drive करके पहुँचा देता हूँ। तो Driver पालना चाहते हैं. उनका यहाँ स्थान नहीं है, सीधा बनकर आए थे। तो वो तो पार हो गए और ये हिसाब, मैं हाथ जोड़ती हूँ। मेरे पास दो ही शिष्य रहें इसमें कोई हर्जा साहब को भी हमने काफी मेहनत करी। उसके बाद नहीं। जिसको सत्य चाहिए वो यहाँ आएं। पहलीउनको चक्कर पड़ गया! मैंने कहा भई तुमको हीरा चीज़, जिनको सत्य नहीं चाहिए. जो असत्य के ढूंढना है. मोती ढूंढना है? क्या चाहिए? हीरे मोती पीछे भागना चाहते है, वो मेहरबानी से तशरीफ ले के लिए गर तुमको करना है तो नौकरी छोड़ो और जाएं। लेकिन आप गर सत्य खोज रहे हैं तो मैं तुमको मिल जाएगा हीरा मोती। दूसरे को इधर मेहनत करने के लिए तैयार हूँ। और सब कुछ लाकर रखो, डकैती करो। चोरी-छिपे करो, वो भी करने को तैयार हूँ। उसी की प्रतिष्ठा होती है जो अच्छा है। जादू वाले के पास काहे को जा रहे हो? सत्य पर खड़ा होता है। परमात्मा ऐसे आदमी से उसकी शक्ल से नज़र नहीं आ रहा बो कैसा कभी नहीं, कभी नहीं खुश हो सकते जो आदमी आदमी है? सुना नहीं मेरा। अभी वो बता रहे थे कि ऊपर एक और पीछे एक बात करता है;B दोंगी पना अब मर रही है वो जवान लड़की है। 35 वर्ष से और ये सब चीजें यहाँ चलने नहीं वाली। जो ज्यादा उसकी उम्र नहीं होगी। वो मर रही है। लड़की भी ठीक हो गई। उसके बाद एक D.I.G. वास्तविक में अपना उद्धार चाहता है और कल्याण उसका गला घुट रहा है! अब चलो माँ उसको चाहता है उसके लिए हम हाजिस हैं उसकी हरेक बचाने! बताओ मैं क्या करूं? तुम सबको छोड़कर सेवा करने के लिए । क्योंकि हम आपकी माँ हैं हम उसको बचाने जाऊं? Heart Attack आ जाते हैं आपसे झूठ नहीं बोलेंगे। आपकी किसी भी झूठ बात लोगों को ये सोचना चाहिए कि तुम्हारे गुरु क्या को हम Support नहीं करेंगे आप बुरा नहीं मानना। अत्यन्त प्रेम से हम तुमसे कहेंगे, तुमको दुख नहीं तो पहले ही जान लेते हैं, पहचान लेते हैं। जो देंगे, अपमान नहीं करेंगे। लेकिन हम जो बात कहेंगे तुम्हारी कुण्डलिनी खराब कर दे. जो तुम्हारे इस उसको तुमको सुनना पड़ेगा। इस शर्त हम पार मार्ग को अवरुद्ध कर दे वो गुरु कैसा? जिसकी कराएंगे और आगे चलाएंगे और तुमको पार होकर वजह से तुम पार नहीं हो सकते, तो भी उसको के और दुनिया को देना पड़ेगा। जैसे कोई दीप छोड़ेंगे नहीं, उसको पकड़े रहेंगे, पकड़े रहेंगे, पकड़े जलता है तो कोई उसको पलंग के नीचे नहीं रख रहेंगे! अभी यही 132 लड़के लड़कियाँ लंदन में मेरे देता वो बुझ जाएगा. उसको ऑक्सीजन में जलना चाहिए। इसी प्रकार जो पार हो जाता है उसको हो गया माताजी, पता नहीं क्या Biockage हो दूसरों को देना पड़ेगा। अभी जैसे, अभी एक किस्सा गया? समझ में नहीं आता। उनके भी इलाज हैं । सुना रहे थे कि एक औरत आई थी तो लेकर के मोहम्मद साहब ने बहुत इलाज बताये हैं ऐसे दुष्टों आए मेरे पास में तो पाँच मिनट में उसकी आँखें के, नानक साहब ने भी बताए और वही इलाज से ठीक हो गई। बो अन्धी हो गई थी. उसको हॉस्पिटल ठीक हुए कर रहे हैं? और गर किसी का हो असल गुरु बो 1 पास आए और बोलते हैं हमारे सिर में Blockage 1 हैं सब | और तुम लोग भी समझ लो कि 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-43.txt मार्च - अप्रैल, 2 चैतन लहरी खण्ड -XVI अंक : 3-4 004 42 सत्य चाहना है, असलियत चाहना है, पार होना है, हमको अपनी हस्ती को जानना है, हमारे अन्दर जो आन्ध्र प्रदेश के लिए अभी कल ही किसी ने सवाल छिपी हुई सम्पदा हैं उसको हमको Release करना पुछा-आन्ध्र प्रदेश में गई थी चार साल पहले, मेरे है । उनके शिष्यों को देखो। उनको शिष्यों से चार टेप्स हैं, उन्हे आप सुन लीजिए, आए थे जो देखना चाहिए, इनके जो शिष्य हैं क्या वो धर्माचरण मुझे ले गए थे, आए थे कल और अभी आएंगे थोड़ी कर रहे हैं? उन को देखो क्या वो शरीफ आदमी देर में उनसे पूछ लीजिए मैने उनसे कहा कि यहाँ हैं? एक कहते हैं हमारी तो बस ध्यान लगा रहता तम्बाकू मत तुम चलाओ। गुरु गोविन्द जी एक बार है सारा। मैंने कहा क्या? तीन-तीन घण्टे हम बैठे तम्बाकू के खेत में गए थे तो उनका घोड़ा उल्टा रहते हैं। मैने कहा बिल्कुल आलसीपना के धंधे। दौड़ा। पूछ लो किसी से, किसी ने पढ़ा हो तो किसी औरत को बड़ा अच्छा है। मुझे अगर धन्घा तम्बाकू के वहाँ पर खेत के खेत लगे हुए हैं जैसे नहीं करना है तो मेरे गुरु ने दीक्षा दे दी है, बैठी है कोई Tulip लग जाती है लंदन में, और सब बड़ी तीन-तीन घण्टे। बच्चे मेरे रो रहे हैं, पति उसके बड़ी मोटरें लेकर के मुझे लेने आए। मुझे आए बगैर खाना खाए दफ्तर चले गए। धंधा निकाला हँसी मैंने कहा इससे अच्छा तो बैलगाड़ी में आते हुआ है मेरे गुरु बस मैं बैठा हुआ हूँ| निष्क्रियता अगर धर्म का के लिए वहाँ से वो लोग तम्बाकू भेजते हैं। कितना लक्षण होता तो ये श्री कृष्ण हाथ में सुदर्शन चक्र पाप इनके पुश्तन पुश्त पड़ा होगा! अरे बाप रे! अरे लेकर यहाँ क्यों आए थे? बैठते कहीं निष्क्रिय बन बाप रे! मैने कहा कि इसको उखाड़ कर फेक दो के जंगल में जाकर के। शादी भी करेंगे और बीवी तो कहने लगे कि हम क्या करें? मैंने कहा कि यहाँ बच्चे उनको नहीं संभालेंगे। ये कोई धर्म का लक्षण पर कपास लगाओ, यहाँ का कपास बहुत बढ़िया होता है? और ये कहने लगे हमारे गुरु ने हमें दीक्षा होगा, तुम लगाओ एक दो ने सुना, बाकी सब तो दी है, 'ये नहीं खाओ, वो नहीं खाओ, ऐसा नहीं मुझसे इतने नाराज़ हो गए कि मुझे चिट्ठी भी नहीं करो, वैसा नहीं करो। हाँ शराब जरूरी चीज़ है, भेजी। माताजी बहुत खराब हैं और हमारे ऐसा कह शराब के लिए इसीलिए मना किया हुआ है। शराब, रही हैं. वैसा कह रही हैं। ठीक है अब हालत सिगरेट के लिए इसलिए मना किया गया है क्योंकि, आप जानते हैं, सिगरेट से कैंसर हो जाता है वो था कि समुद्र आप पर खौलेगा एक दिन। समुद्र विरोध में है बिल्कुल राक्षसी है. विश्वास करो । ने मुझे दीक्षा दे दी, नाम दे दिया, लेकिन कुछ धर्म लेकर के आते। सारी दुनिया भर देखिए। सारे खेत भर गए पानी से। मैंने यही कहा व सब क्या पागल थे जिन्होंने मना किया है? शराब क्या है? साक्षात पिता स्वरूप है। आपको सिखाता जरूर मना किया है शराब इसलिए मना करा हुआ है, गुरु है, साक्षात गुरु है आपको सिखाता है और है, कि शराब आपके चेतना के विरोध में पड़ता है, गुरु के विरोध मैं बैठती है शराब और सिगरेट । Consciousness के विरोध में पड़ता है शराब के पीने से आपकी Consciousness विचलित हो बुरी है वो है जुगाड़। अभी हमारे एक सहजयोगिनी जाती है। आपका Liver खराब हो जाता है । Liver है उनके अड़ोस पड़ोस में सब ताश खेलते हैं। में आपका चित्त है और चित्त खराब होते ही आपकी औरतों को तो चक्कर हो गया, सवेरे से उठे, कॉफी Realisation खत्म हो जाएगी। ये मनुष्य धर्म के पार्टी शुरू हुई, ताश चलने लगे। अब उसके हाथ में इसलिए मना किया है। और तीसरी चीज जो बहुत 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-44.txt भार्च - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड - 43 XV अक 3 - 4 एक फोड़ा आ गया । मेरे पास आई बोली माताजी लगता है। जिस नानक ने इस बड़ी धरती पर जन्म इसको ठीक करो। मैने कहा एक दो दिन तो इससे लिया, दत्तात्रेय का साक्षात् अवतरण जो हुआ, नहीं बोलेंगे बेचारी से, बहुत दर्द होता है, ये करो, वो उनके जीते जी तो इतना सताया उनको कि बस रे करो। देखो तुम ताश खेलती हो? कहने लगी हाँ। बस और अब जब वो मर गए तो पंजाबी बनकर और पैसे भी लगाती हो? कहने लगी हाँ। Promise और उनकी जान लो सब लोग! उनको जिस चीज करो कि कभी नहीं छुओगी ताश। खेलो ताश, ताश से अत्यन्त ग्लानि होएगी वही सारे कार्य आप लोग खेलने में कोई हर्ज नहीं। लेकिन गर पैसे पर उतरे करते जाओगे तो क्या कहा जाएगा? जो अपने पिता तो गए क्योंकि ये मनोरंजन का व्यवधान है । गर स्वरूप, जिन्होंने अपने लिए इस संसार में जन्म किसी चीज़ से आप मनोरंजन करते हैं तो इसमें लेकर के. मनुष्य का जन्म लेना कोई आसान थोड़े आप पैसे के कम्पीटीशन से मनोरंजन करते है तो ही हैं. इतनी मेहनत की, उनके साथ कितनी हम आपने अपने चित्त को विक्षब्ध कर लिया । सीधा लोग ज्यादती कर रहे है? हिसाब है समझने का, अब हम हैं आपके साथ, मजे से बैठे हैं, आप हमारे मित्र हैं जैसे ही आपमें मित्रता किस चीज़ को मैं मना कर रही हूँ। क्योंकि मैं माँ अब आप लोगों को मैंने ये बताया है कि पैसे के दम पर आई, मित्रता खत्म हो जाती होती है कि नहीं होती है? कोई भी कैसा भी हो, देंगे तो मैं कहूंगी बेटे इसमें हाथ मत दो और सच बात है कि नहीं? कोई सा भी अच्छा Relation आपको समझना चाहिए कि माँ का दिल जितना Ship तोड़ना करना हो तो पैसे का झगड़ा खड़ा टूटता है आपका अपने लिए नहीं टूट सकता। करो, फौरन हो जाएगा। जब तक आप पैसे का इसलिए मेरी बात का कोई भी बुरा नहीं मानना। झगड़ा खड़ा नहीं करोगे तब तक आपकी मित्रता तुम्हारे हित के लिए, तुम्हारे कल्याण के लिए एक बनी रहती है। सूक्ष्म में यही बात होती है। इसलिए मोँ ही मेहनत कर सकती है । इतने लोग realised गर ताश भी खेलना हैं और दोस्ती के लिए खेल रहे souls हैं दुनिया में तुमको नहीं मालूम। इतने गुरु हो तो खेलो। बड़े दुश्मन हो सकते हैं न, इससे हैं, सब जंगल में बैठे हैं और हिमालय में बैठे हैं। बढ़कर दुश्मनी और कोई नहीं हो सकती। कितनों मेरे से मिलने आते हैं, मैं कहती हूँ क्या कर रहे हैं की आहे, कितनों का शाप । छोटे-छोटे बच्चे घर में वहाँ बैठकर के? तुम लोगों को मैं क्या करूं? वहाँ छोड़कर के औरतें अपनी ताश खेल रही हैं। काहे तुम्हारे को मैं क्या मर्तबान में भरकर रख दूं? क्या को माँ बनी, नशेड़ी बन जाती! जंगल में बैठकर के करूं? तुम वहाँ पर बैठे हो, क्या करूं तुमको। कहने सब नशेड़ियाँ खेलती। आपस में इन बच्चों के लगे माँ बारह साल तुम मेहनत करो, फिर आएंगे। ऊपर में माँ बनकर आने को किसने कहा था ये बड़े खराब लोग होते हैं । हम तो नहीं आने वाले? आपसे? फिर उनके बच्चे भी नशेड़े बने? आदमी किसी को उनके पास भेजो तो टाँगे वाँगें तोड देते लोग भी नशेड़े, शराबी गंजेडू। मैं क्या करने यहाँ हैं। कहते हैं, बड़े जालिम लोग हैं, बड़े बेकार लोग आई हूँ? दिल्ली में बहुत ज्यादा इसका जोर चला हैं, उनको कुछ नहीं हो सकता, इनको मरने दो। हुआ है। पंजाबी लोग तो सोचते हैं जब तक वे ताश ऐसे कहते हैं। तुम्हीं हो, तुम्हारे अन्दर इतनी हिम्मत नहीं खेलेंगे वो पंजाब ही के नहीं हैं। बड़ा दुःख है, तुम्हारे अन्दर ही इतना प्यार है इनके लिए जो है। हूँ मैं मना करूंगी। गर आप बिजली में अपना हाथ 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-45.txt मार्च - अप्रैल, 2004 घैतन्य लहरी खण्ड -XVI अक3-4 44 इतनी मेहनत कर रही हो। हम लोग के बस का । realization होना है इसकी ज़रूरत तो थी ही नहीं। जो आया है उसी को मारने लग गए। डंडा लेकिन आज एतिहासिक समय आ गया है । लेकर के उसके पीछे पड़ गए। अब यही पण्डितों एतिहासिक समय आना पड़ता है। Historical Time ने, जो मंदिरों में बैठकर के तुम्हारे पैसे खा रहे हैं, जिसको कहते हैं वो आ गया है जब Time आ ककि ा इन्होंने मरवाया कितनों को। और ये जो पोप बने जाता है तभी फूल भी फलते हैं, जब Time आता है घूम रहे हैं इन्होंने ही क्राइस्ट को क्रूसीफाई किया तभी बहार आती है। इसी प्रकार समझ लीजिए और अब भी कर रहे हैं । इन लोगों के पैरों में जा पहले एक ही दो फूल खिलते थे, आज अनेक फूल रहे हो, ये क्या कर्म करेंगे? सवा रुपये की श्रद्धा पर खिलने का समय आ गया है। उसकी जरूरत थी, चलने वाले लोगों के पास जाने की क्या जरूरत आपको वचन दिए थे और जबकि एक आदमी पार है? बहुत सी अनाधिकार बातें होती हैं। क्या बताऊं, होता था तो उसको पकड़कर मारते थे क्योंकि जो देखी हैं। पता नहीं कब लोगों की आँखे उसकी बात समझ में नहीं आती थी, लेकिन आज खुलेगी? कबीर इतना कह गए, अखण्ड पाठ रखा जब आप हज़ार आदमी पार हो जाएंगे तो सबको है सब लोग वहाँ बैठे हैं अखण्ड पाठ में । अरे उनकी बात समझ में आ जाएगी। अब ये कुण्डलिनी क्या है? इसके बारे में उसकी तरफ चित्त देकर सुनो। कोई सुनने वाला अभी तक इतना किसी ने खोलकर बताया नहीं। नहीं। इस तरह की चित्त करने से कैसे तुम लोग क्राइस्ट ने कहा ।1will appear before you in the अखण्ड पाठ का मतलब ये होता है कि अखण्ड समझोगे भाई? और जो कुछ कहा गया है उसको tongues of flames । इसाई लोगों से जाकर पूछो करो न, उसको रटने से नहीं होता है। सब कुछ इसका क्या मतलब है? किसी को पता नहीं । कबीर कह गए हैं, सब कुछ बता गए हैं और जो सहज है दास नानक साहब ने सबने ईडा पिंगला नाड़ी, वो अनेक वर्षों से है। जय से Creation हुआ तब शून्य शिखर, सब बातें अपनी कविताओं में कह से सहजयोग है सिर्फ यही है कि आज सहजयोग डाली । वो गोपनीय रहीं। इसकी वजह ये है कि उस समय जो कुछ कहा भी था उसी के लिए जान ले डाली और खोलकर कहने और समझने के लिए भी में उतना ज्यादा मादा नहीं था। हालांकि जब उसको ठण्डा, गर्म किया गया जब उसके आपको आश्चर्य होगा कि आज वो मादा ज्यादा है। अन्दर निर्वित्ती हुई उसके बाद जब उसमें जीव मनुष्य कितना भी लगता है गिरा हुआ उसका मादा उस हद तक पहुँच गया जहाँ आपका connection उस अनादि से हो सकता है। सहज अनेक तरीके से चलता आया, जब पहले पृथ्वी बनाई गई उस पर मनुष्य जन्तु आ गए. जब मनुष्य आए. हरेक चीज़ जो सहज ही होती गई। कृष्ण का भी सहजयोग है। के जमाने में lecture देता तो कोई सुनने वाला था? रास उसका वो मटके का फोड़ना, सभी कुछ सहजयोग है। मोहम्मद साहब का सारा काम तोड़नी पड़ीं और उसमें से vibrated यमुना का है बढ़ा हुआ है ऐसे सभा में बैठकर यदि कोई कृष्ण इसलिए गोपी की लीला करनी पड़ी. उनकी गगरियाँ सहजयोग ही रहा। सब सहज ही करते आए। पानी उनकी कुण्डलिनी पर गिराना पड़ा। ये सब आज सहजयोग उस जगह पर पहुँच गया है जहाँ नाटक इसलिए किया गया क्योंकि उस समय ऐसे पर कि आपका amass, सामूहिक रूप से आप लोगों की तरह बैठ कर लोगों से बात चीत नहीं आ 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-46.txt मार्च - अप्रैल, 2004 पैतन्य लहरी खण्ड -XVI अक 3- 4 45 की जा सकती थी। लेकिन आज आप लोग ऐसे सर्पाकर जब होता है, सर्प जब बैठता है तो सर्पाकार बैठे हैं। आप में खोज बहुत जोरों में है। इस बजह होकर के मराठी में इसको वेटोडे कहते हैं, वेटोडे से सहजयोग फलित हुआ है अनेक देशों में हुआ शब्द बहुत अच्छा है जो घूमकर के एक के ऊपर है. खासकर लन्दन में सहजयोग ने बहुत जोरों में एक चढ़ जाती है। इस तरह की चीज़़ है ये अपना पैर जमा लिया है। ये एक बात है कि अंग्रेज कुण्डलिनी। इसको Coils आप कह सकते हैं। एक थे बड़े दुष्ट, इसमें कोई शक नहीं, वो रहे होंगे पर के अन्दर एक साढ़े तीन Coils हैं । अब साढ़़े तीन उनके बच्चे बहुत अच्छे हैं, उनके बच्चे वाकई में क्यों है? तो इसका भी कारण है आप Automatic साधू हैं और उन्होंने वास्तव में बहुत गहरी खोज की watch गर देखें जो Automatic चलती है तो इसमें है जीवन में, बड़ी गहरी खोज की है । फलस्वरूप बहुत गहरी खोज की है। यहाँ तक कि अनन्त की बात है जिसकी वजह से होता है अब वे गांजा पीने लग गए। यहाँ से भेजे थे न आपने इसके details में मैं जाऊंगी तो वो एक चीज़ चल बहुत सारे गाजा पिलाने वाले उन्होंने उनको गांजा पड़ेगी। लेकिन जो भी सोचा है वो Engineering पिला दिया, ये कर दिया। सब करने के लिए तैयार First class है, उसमें कोई शंका नहीं। अब ये साढ़े थे खोज के विषय में । और इतने पढ़े लिखे हैं कि तीन की कुण्डलिनी यहाँ बिठा दी है । ये बीज का कुण्डलिनी के बारे में वे सब कुछ जानते हैं वो अंकुर है, ये बीज Premule जिसको अंगेजी में जानते है कि सही है या गलत है। जैसे उन्होंने सत्य पाया एक दम उसे पकड़ लिया। आपको बना हुआ है एक दो तीन चार इसमें चार इसके आश्चर्य होगा कि लन्दन में मेरे सिर्फ चार lecture पंखुडिया हैं। ये चक्र, इसको मूलाधार चक्र कहते उसके साढ़े तीन Coils लगाने पड़ते हैं। इसमें गणित है । कहते हैं. वो है और इसके नीचे में जो चक्र पहले से मिलाकर चार और अभी तीन सौ बढिया हुए कुल वहाँ पर सहजयोगी तैयार हैं। बढ़िया । क्योंकि त्रिकोणाकार जो जगह है माँ सबकी अपनी माँ है तैयार चीज़ थी सूखी लकड़ी होती है आग जल्दी समझ लो आपकी अपनी टेप है। जहाँ बैठी हुई है से पकड़ लेती है। अभी Airport पर कह रहे थे कि ये आपकी अपनी माँ हैं। आपके बारे में सब कुछ माँ बच्चों में एकदम से प्रज्जवलित कर दो मैंने जानती है इसलिए आपकी टेप है। हर एक की कहाँ बेटा ये गीली लकड़ी है, इसको पहले सुखाना अलग-अलग माँ है और बार-बार ये आप ही के पड़ेगा, मेहनत करनी पड़ेगी। जब धूप आएगी उसमें साथ जन्म लेती है। जहाँ जहाँ आप जन्म लेते हैं सुखाऊंगी। प्यार की धूप में जब ये सूखेंगे तब कहीं वहीं ये जन्म लेती हैं और यें जो कुण्डलिनी है जाकर ये पनपेंगे कोई आसान नहीं है। इसलिए इसको आप किसी भी तरह से छू नहीं सकते, किसी अपने को माँ के प्यार में रखें, अपने से प्यार करें भी तरह से आप जागृत नहीं कर सकते। आप सिर और सारी बात को एक खुले हुए दिमाग से सोचे । के बल खड़े हो जाइए. पढ़िए लिखिए, कुछ करिए ये कुण्डलिनी हमारे अन्दर जो है साढ़े किसी से नहीं हो सकता। 'न योगे न 'सांख्येण। तीन कुण्डलों में रहती है इसलिए इसको कुण्डलिनी सब से अच्छे तो हमारे आदिशंकराचार्य थे उन्होंने कहते हैं। कुण्डल' जो कि घुमाई हुए चीज़ है कह दिया कि योग और सांख्य से नहीं, माँकी कृपा जिसको कि हमारे यहाँ इसे सर्पाकार कहते हैं से जागेगी क्योंकि इसकी जो माँ है जब तक वो है। मूलाधार नहीं कहते, मूलाधार चक्र । और ये जो 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-47.txt मार्च अप्रैल, 2004 46 चैत्तन्य लहरी खण्ड -XVI अका 3 - 4 । प्रतीक हैं हमारे अन्दर एक symbol हैं । किस चीज़ कभी-कभी निराकार में अर्थात माँ के प्रेम की वजह का symbol है, Inn0cence का, अबोधिता का, से कोई कोई लोग पा लेते हैं. इसलिए वो निराकारी पवित्रता का जब ये माँ ने सृष्टि बनाई पूरी तो नहीं आएगी संसार में तब तक ये जागती नहीं होते हैं, ज्यादातर निराकार की बात करते हैं। जैसे कि आप कह सकते हैं बुद्ध के बारे में हुआ। कि सृष्टि बनाने से पहले उसमें संसार में पवित्रता भरी। 1. कोई माँ होएगी. उसका बच्चा पैदा होने वाला होएगा बुद्ध एक बार थक कर बैठे थे तब स्वयं साक्षात् तो सबसे पहले हर चीज़ में हजार तरीके से सफाई आदिशक्ति ने ही उनको जागृति दी और वो पार हो करेगी बच्चे को कहीं गन्दगी न लग जाए। कैसी भी गए। तो उन्होंने ईश्वर है ही नहीं ऐसा कहा। आप माँ हो, चाहे वो अनपढ़ हो चाहे वो कुत्ती ही क्यों न जब पार हो जाते हैं तो आपको ठण्डा-ठण्डा हो, चाहे वो कोई भी माँ हो, पहले अपने बच्चे के आता है और आप पार हो जाते हैं। आप थोड़ी लिए साफ सुथरी जगह बना देगी कि मेरे बच्चे पर देखते है कि ईश्वर है या नहीं। ये तो मैं बता रही किसी का Attack नहीं आ जाए। ये उसकी ममता हूँ कि ईश्वर है या नहीं। उसकी वजह ये हैं कि की निशानी है तो उसने श्रीगणेश को बनाकर के सूक्ष्म, अतिसूक्ष्मता से जब कुण्डलिनी ऊपर को यहाँ बिठा दिया। पवित्रता को उसने बिठा दिया चढ़ती है तो अन्दर से गुजरती हुई जाती है, बाहर दरवाजे के ऊपर में और जो लोग कहते हैं Sex से का मामला उसे कुछ दिखाई नहीं देता। जब चित्त कुण्डलिनी जागृत होती है वो अपने माँ के साथ आपका अतिसूक्ष्म से अन्दर से घुसता है तो बाहर Sex करने को कह रहे हैं। कम से कम हिन्दुस्तानी का मामला दिखाई नहीं देता है। जैसे अभी आप होकर के इसको समझो। अंग्रेज तो इसको समझ हैं तो आपको क्या मालूम बाहर का? नहीं सकते। उनकी कोई माँ बहन ही नहीं गधों भी 1 1. बैंठे हुए दिल्ली आपको थोड़े ही दिखाई देगी। आप की तुम लोग तो समझो कि कोई ऐसी बात aeroplane से आएंगे तो आपको सारी दिल्ली आपको समझाए तो क्या इसको मानना चाहिए? जो दिखाई देगी। लेकिन गर आप घर के अन्दर घुसे समझाता है उसको कहो अपनी माँ के साथ रहो। हों तो आपको घर ही दिखाई देगा, उसका भी ऐसी गन्दी बातें करने की जरूरत नहीं। कितना बाहरी हिस्सा नहीं दिखाई देगा। इसी तरह से बड़ा राक्षस है, जो कहता है कि कुण्डलिनी की कुण्डलिनी जब अतिसूक्ष्म उठती है तो आपको बाहर का कोई तरीका दिखाई नहीं देता। आप ये है। जब आदमी इस तरह से गलत काम करता है, भी नहीं जानते कि ईश्वर है या नहीं है। सिर्फ कोई भी आदमी जो बहुत विषयी होता हैं और आपके अन्दर से ठण्डक-ठण्डक सी आने लग जीवन की जिसने कोई इज्ज़त दुनिया में अपनी जाती है, चैतन्य की लहरियों आने लग जाती हैं नहीं की हुई जिसने बड़े गन्दे कर्म किए है और चो और इसका effect आप देखते हैं। अब तो आपकी कुण्डलिनी की बातें करने लग जाता है तब गणेश माँ हैं यहाँ और हम एक चीज़ आपको मैं बता जी उस पर बिगड़ते हैं। और तब वो नाचना शुरु सकती हूँ, उसका proof भी दे सकती हूँ। अब ये जो मूलाधार चक्र है इसमें श्रीगणेश देखता है, आफत मचाता है। ये कुण्डलिनी में बसते हैं। श्री गणेश का मतलब ये होता है कि ये गड़बड़ करने से होता है जो सद्चरित्र है उसमें 1 जागृति जो है Sex से होती है कुछ भी नहीं होता करता है चीखना शुरु करता है, बीच में ही उठ उठ 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-48.txt मार्च - अप्रैल, 2004 पैतन्य नहरी ण्ड -XVI अक 3-4 47 कभी कुण्डलिनी ऐसा काम नहीं करेगी वो तो मों जिसको Negative तांत्रिज्म कहते हैं, वो शुरु हो जाएगी। माने उस जगह से गणेश जी हट जाएँगे। तुम्हारे पुन्नजन्म के लिए है, वो ऐसा नहीं कार्य उस मन्दिर से गणेश जी का चित्त हट जाएगा। वो करती। पर गणेश गुस्सा हो जाते हैं। तांत्रिक लोगों निकल जाऐंगे और गणेश जी हटते ही साथ ने इसका बड़ा फायदा उठाया। हालांकि मैं ये अपवित्रता अन्दर आ जाएगी। ये दोनों देखिए । कहूंगी कि माँ बच्चे से पूरी गलती कभी नहीं कहने दोनो साइड इनकी और उनकी जुड़ी हुई हैं। Left वाली, इसी वजह से हो शायद। माँ कभी ये नहीं & Right Sympathetic Nervous System में से कहती कि Completely Condemned माँ का Left में जो कि आप देख रहे हैं, Left Side में 1 ही है तुम्हारी। वो तो वरदान के लिए है तुम्हारे, 1 पूरा यह स्वभाव होता है। मैं ये कहूंगी कि शुरु में जो Collective Subcounscious है। Right Side के गलती हुई होगी. हो सकता है। मैं अपने स्वभाव के तरफ में पूरा Collective Supra Conscious है । अनुसार कहूगी। हो सकता है कि मनुष्य ने अपने जितने मरे हुए भूत हैं उसमें जिसको मन चाहेगा वो मूलाधार चक्र पर गणेश जी को देखा होगा, उनकी आ सकता है और दुनिंया भर की आपको सिद्धियाँ सिर्फ सूण्ड ही देखी होगी तो सोचा होगा कि यही आ सकती हैं। आप घोड़े का नम्बर भी बता सकते कुण्डलिनी है और इसीलिए उन्होंने गड़बड़ करी हैं आपके हाथ में से मूर्तियाँ निकल सकती हैं. होगी। हो सकता है। इसलिए Basically, शुरु से आपके हाथ में से कुमकुम निकल सकता है और ही, बुनियादी तौर पर मनुष्य को Condemn नहीं घोड़े का नम्बर आदि वगैरा। अब मनुष्य को ऐसा किया जाता। लेकिन जब उन्होंने देखा कि इस नहीं सोचना चाहिए क्योंकि मनुष्य के पास बुद्धि है । तरह से काम करने से हमारे अन्दर कुछ-कुछ मनुष्य को ये सोचना चाहिए कि परमात्मा को क्या अजीब-अजीब सिद्धियाँ आ जाती हैं तो उन्होंने इसमें Interest हो सकता है कि हमें हीरे की अंगूठी सोचा कि यही शक्ति हो सकती है। सिद्धियाँ कैसे दे? पहली चीज़़। क्या आपको हीरे की अँगूठी आती हैं? आप जब कोई से भी चक्र पर, विशेष कर चाहिए? फिर नहीं चाहिए आपको तो फिर ली क्यों? इस चक्र पे गलत काम करते हैं, जैसे कि समझ फिर ये भी सोचना चाहिए कि ऐसे हीरे की अँगूठी लीजिए गणेश जी का मन्दिर है, तांत्रिकों ने ऐसा देने वाले ये जो लोग होते हैं वे अपने देश को सारा किया, दक्षिण में एक मन्दिर में ऐसा दिखाया है कि कल्याण क्यों नहीं कर देते? सब अमीर लोगों को, गणेश जी का अपनी माँ के साथ गंदा सम्बंध है। ये जिनके पास बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ हैं. उनको हीरा देने भी किया, तांत्रिक लोंगों ने कुछ छोड़ा नहीं । गर में क्या रखा है? इसके बारे में भी कबीर नें बहुत गणेश जी के मन्दिर के सामने या मन्दिर के अन्दर लिखा है । नानक साहब नें तो पूरा एक Chapter बैठ कर के आपने व्यभिचार किया तो पहले तो ही लिख दिया है। ये खेचरी आदि, ये शक्ल ऐसा आपके अंदर गर्मी आ जाएगी बहुत या आपके बना, अंतड़ियाँ अंदर ले लेना, आदि जो फालतू की अन्दर बहुत ज्यादा blisters आ जाऐंगे। कोई न चीजें हैं इन लोगों ने लिखा कि इससे थोड़ी भगवान कोई बहुत बड़ी तकलीफ हो जाएगी आपको। कुछ मिलता है। लेकिन इनको कौन पढ़ता है? आजकल लोग नाचने लग जायेंगे कुछ उड़ने लग जाऐंगे । तो तो लोग रजनीश को पढ़ते हैं क्योंकि भगवान का भी आपने नहीं सुना, आप करते रहे जबरदस्ती तो, नाम लेकर कैबरे डांस देखने को मिले तो कोई क्यों 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-49.txt नार्च - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड - XVI अक : 3 -4 48 ना जाए? वो भी मुफ्त! मनुष्य की वृत्ति ऐसी हो गई लेकिन समझदारी उनमें इतनी है कहा माँ लाओ, वो है, इसलिए ऐसा हो रहा है। तो जब हम ये सोचते सब चना खा लिए आपको आश्चर्य होगा, पूछ लें हैं कि ये सिद्धि आ गई आदमी में तो हम उसके उनसे चिट्ठी लिख करके पूना में रहते हैं, उनके चरण में जाने लगते हैं जब उसके अन्दर जाने प्रोस्ट्रेट ग्लैङ का एक दम ठीक हो गए। उनको लगते है तो गणेश जी आपमें लुप्त हो जाते हैं। ऑपरेशन नहीं करना पड़ा। आदमी अगर बीचों-बीच ज्यादातर गणेश जी के लुप्त हो जाने से Prostate रहे, ज्यादा Extreme पना नहीं करे तो सब ठीक Gland की बीमारियाँ शुरू हो जाती हैं । दूसरी हो जाता है। कौन कहता है अपना इतना सिरदर्द Side ेखिए । ये तो indulgence की हम बात कर लो दुनिया भर का? मारे आफत कर लेंगे, हठयोग रहे हैं, दूसरी साइड आप देख लिजिए अभी एक में आंतड़ियाँ निकाल कर रख देंगे! उनसे पूछो। साहब आए थे आज ही, बेहद शुद्ध आदमी हैं, अभी इनको तीन साल बाद ठीक किया मैंने इनकी इन्होंने अपने यहाँ गणेश जी की पूजा रखी है तो उनकी पूरी आंतड़ियाँ ही मेरे सामने निकल उन्होंने। पूजते हैं सुबह-शाम और उनका जो है आती थीं। मारे घबड़ाहट के मैने कहा भैया दो साल मूलाधार चक्र पकड़ा है? एक साहब और हैं, हमारे तुम मेरे पास मत आना जब तेरा ये बंद होगा बड़े भारी सहयोगी हैं वो आए मेरे पास बड़े भारी तमाशा, ऐसे-ऐसे कलाटियाँ मारते थे मेरे सामने गणेश भक्त हैं, उनका Prostate Gland का ऑपरेशन कि कुछ पूछो नहीं। ये सब करने को किसने कहा होने वाला है! संकष्टि का दिन था। मैंने तो कुछ है? अरे क्या पहलवानी करनी है या सिनेमा एक्ट्रैस पूछा नहीं उनसे, कहा चना खाओ, हमारा तो चना ही प्रसाद है। आप जानते हैं। तो दूसरे साहब बहुत ज्यादा खाना भी नहीं खाना चाहिए. भूखे भी उनके साथ में थे, कहने लगे इनका तो आज नहीं मरना चाहिए। साधारण तरह से घर गृहस्थी के उपवास है। मैंने कहा संकष्टि के दिन उपवास? जैसे रहो। अभी बैठे हैं इनसे पूछिए बताएँगे इनकी किसने बताया तुमसे? कहने लगे सभी बोलते हैं । मैंने कहा सभी बोलते हैं का जरा सोचो दिमाग से किया इनकी आंतड़ियों का तभी जाकर ठीक हुए. बनना है? आराम से रहो। हाँ बहुत अति मत करो, क्या हालत थी। तीन साल इनका Treatment कि जिस दिन श्री गणेश का जन्म हुआ, जिस दिन इनकी तो हालत खराब थी। तो बहुत ज्यादा हठ पवित्रता माँ लेकर आई, उस दिन तुम लोग उपवास योग में जाने की जरुरत नहीं। हठ योग संसारिक कर रहे हो! ये उसका क्या आदर कर रहे हो कि आदमियों के लिए नहीं। हठ योग तो जंगलों में अनादर? जिस दिन कोई अपने घर बड़ा आदमी जाओ. वहाँ कोई गुरु होते है पहुँचे हुए, पहुँचे हुए आता है तो उस दिन हम कितना जश्न मनाते हैं? गुरु होना चाहिए, ये गुरुघंटाल नहीं । वो आए यहाँ, ये खिलाओ वो पिलाओ, और जिस दिन श्री गणेश उनका पेट इतना बड़ा था, हठयोग लेकर यहाँ आपके घर में आते हैं उस दिन आप उपवास करते पहुँचे। क्योंकि ये किसी गुरु के पास जाते हैं तो हैं। विचार करो, वो दिन क्या उपवास करने कुछ हाथ नहीं लगता है तो बस आसन-वासन कुछ का है या जश्न मनाने का? तो उनके दिमाग में लेकर आये और पैसे बनाये। आसन तो 110 भी आया, बड़े समझदार आदमी हैं, ब्राह्मण हैं अग्निहोत्री नहीं है हठ योग के। यम नियम, श्रत्याहार, ब्राह्मण, उनके यहाँ पहले बहुत यज्ञ वज्ञ होते थे प्रणिधान, मनन, कितनी चीजें उसमें हैं उसमें से ईश्वर 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-50.txt मार्च - अप्रैल, 2004 बैजञन्य लहरी खण्ड -XVI अंक 3 - 4 49 एक छोटी सी चीज है चक्रों की सफाई करनी है, जानते हैं इसके भी चार Sub Plexus हैं। पर ये वो भी पता होना चाहिए कि कौनसा चक्र कहाँ Gross में बाहर हैं परन्तु ये Subtle में अन्दर में ये पकड़ा हुआ है किस प्रकार पकड़ा है, वही चीज चक्र है। जैसे है कि Subtle Prime Minister बैठे हैं मंत्रों की भी है। कि मंत्र का बोलना जो है वो भी लेकिन उनकी Secretariate बाहर काम कर रही अब आपसे कह दिया ये मंत्र जपो आज एक हैं। इसी तरह की चीज है कि Subtle में गणेश जी ओंकारवादी आये थे। अरे भाई ओंकार तो यहाँ की बैठे हुए हैं, उनके भी चार हाथ हैं, उसके भी अर्थ हैं चीज है। अब आपका पेट का चक्र पकड़ा है, आप और उनसे जो कार्यान्वित है, वह Pelvic Plexus है ओंकार-ओंकार क्या कर रहे हो? यही पकड़ जो उसके भी चार Sub Plexus हैं। सब जितने जाएगा आपका। अब किसी ने बताया कृष्ण का भी चक्र हैं इनसे चालित जो भी Plexus हैं उतने ही नाम लीजिए, सबको Cancer of Throat हो रहा है, उनके भी पंखुड़ियाँ हैं। इससे आगे आप देख रहे हैं सबको हो रहा है, सब वहाँ से आते हैं मार खाये कि मूलाधार चक्र है। मूलाधार चक्र ये जो भव हुए, माँ हमारा कैंसर ठीक करो। अब आप सोचिये सागर है अपने पेट में, अपने पेट ही में भवसागर है । वहाँ श्री कृष्ण का वास है कंठ में, Cervical यही विराट की शक्ल बनाई हुई है। इसके पेट में Plexus में। आपको मैं कितने ही नाम बता दूँ अब भी एक भवसागर है जिसमें एक चक्र है जिसे नाभि मैं उनको क्या ठीक करूँ? मैने कहा अब आश्रम 1. चक्र कहते हैं। ये भी Subtle में, पीछे की तरफ, बनाने की जगह आप एक कैंसर हास्पीटल खोल रीढ़ की हड़डी में है। लेकिन वो चालित करता है दीजिए। एक नम्बरी भिखारी, उस राजा के नाम Solar Plexus को और ये जो भवसागर है, सागर पर भीख माँगते घूमते है, कुछ शर्म नहीं आती। ये स्वरूप है । जो संसार के सारे सागर हैं इसी से सब भिखारी की जात है । हरे कृष्णा करते फिरते बनाए गए हैं और यही गुरु का तत्व है। गुरुतत्व जो हैं, सारा विशुद्धि चक्र पकड़ गया है इनका, कैंसर है ये जल तत्व है। और गुरु का तत्व है, इसमें ही उनके हो रहा है। इनका कैंसर तो सिगरेट पीने हैं दत्तात्रेय आदि गुरु हैं वो बनाए गए हैं। और वालों से भी बदतर होता है अब इनको कौन इनके दस मुख्य अवतार हुए हैं इनमें से राजा समझाए? सबकी हालत खराब हो जाएगी। एक जनक, नानक, मोहम्मद, सब एक ही तत्व के अवतार हैं। इसलिए मुसलमान और सिक्खों की लड़ाई बिल्कुल बेकार की बात है। नानक साहब तो चार-पाँच साल में Cancer of Throat के Patient हो जाऐंगे तब छोड़ेंगे। उससे ऊपर का जो चक्र है, जिसे कि नाभी चक्र यहाँ कहना चाहिए, हालांकि बीच में एक चक्र और पड़ता है। ये जो नीचे का चक्र दिखाया है जिसको कि मूलाधार चक्र कहते हैं, उसमें हमारे शरीर में जिसे Pelvic Plexus कहते है वो Control संसार में दोनों को एक करने आए थे। बाद में मुसलमान गधे हो गए और उन्होंने आफत मचा दी। और अभी भी जिस चीज को उन्होंने मनाही की थी वो दोनों ने ही, एक ही बिल्कुल एक ही चीज है, दो चीज नहीं, बिल्कुल एक चीज है और उसका होता है। अब ये Pelvic Plexus जो है ये Gross आपको प्रत्यक्ष है कि एक बार नानक साहब मक्के चीज है और उसी से हमारी जननेद्रियाँ वगैरह हैं। की तरफ में पैर करके लेटे थे तो किसी ने कहा उसमें भी चार Plexus हैं, डॉक्टर भी इस चीज को इधर मक्का है, इधर क्यों पैर किए? तो उन्होंने कहा 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-51.txt मार्च अप्रैल 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 3-4 50 चलो इधर मैं पैर कर लँ, उधर ही मक्को आ गया। मनुष्य को गर दानव बनाना है तो उसे शराब जहाँ उनके चरण थे वहीं मक्का आ गया अगर वो दीजिए गर एक दानव बना घूम रहा है तो ऐसी मोहम्मद साहब नहीं थे तो कैसे आ गया? सोचने जगह जाने की जरूरत क्या है? और ऊपर से उस की बात है, ये इसकी पहचान है। तो ये जो हमारा पर कविता लिखते हैं। और ये मुसलमान जो अपने भवसागर है इसमें जो आदमी बहुत ज्यादा कट्टर को बहुत बड़ा मुसलमान कहलाते हैं, इनसे बढ़कर होता है जाति का, जिसमें कट्टरता होती है जाति शराब पीने वाला तो कोई है ही नहीं। सिक्खों का की, वो आदमी पार नहीं हो सकता। मानें मैं क्या हाल लन्दन में हो रहा है? शर्म आती है। वो क 1 मुसलमान, मैं हिन्दू, मैं फलाना, मैं ब्राह्मण वो पार नहीं हो सकता। ये भवसागर का Problem है और जब शराब पीने पर आते हैं तो क्या अंग्रेज और क्या इसके बीच में जो नाभि चक्र है, ये नाभि चक्र जो रशियन पियेंगे? पहले तो चोरी छिपे पीते थे अब तो है, ये हमारे धर्म की रक्षा करता है। यदा-यदा ही खुलेआम। सबसे बड़ी चीज़ है जो हमे बता गए हैं धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारते'। इसमें विष्णु और लक्ष्मीजी उसके थोड़े से भी रास्ते पर चलो वो पार हो सकता का स्थान है, लक्ष्मीनारायण का स्थान है। और है। लेकिन अब कोई शराबी कबाबी वहाँ से आए एक हेल्मेट लगाने के पीछे में मार आफत मचा दी, और मेरे ऊपर हक लगाए कि माँ हमें पार कर दो, जब-जब धर्म की ग्लानि हो जाती है तब-तब साक्षात् परमात्मा ही जन्म लेते हैं क्योंकि ये जो तो उसका क्या अधिकार है? बताइए आप। उसका कृष्ण आपने देखे हैं या जो विष्णु जी हैं यही हमारे कोई अधिकार होता है पार होने का? जब उसने सृजन तत्व के हैं यानि evolutionary हैं । इसलिए एक छोटी सी भी बात अपने पिता की नहीं सुनी तो वो जन्म लेते हैं। शिकजी ने कभी भी जन्म नहीं उसको कैसे हम पार करायें? और जब वह पार नहीं लिया। ब्रह्मदेव ने एक ही बार जन्म लिया है जो हुआ तो जाकर के मेरी बदनामी करेगा कि हाँ वो कि इस चक्र में बसते हैं और इसी से चारों तरफ तो ऐसे ही हैं, वो तो हाथ घुमाती हैं, जादू करती हैं घूम कर और उसका सम्बंध नाभि से है इसलिए मंत्र करती हैं। और आप क्या हैं? उनसे पूछना यह ब्रह्मदेव और सरस्वती का स्थान है और वो चाहिए आपने क्या किया आज तक? आपने किसे चारों तरफ घूम कर और इस भवसागर को बचाते पार किया है? आपने किसका भला किया है? हैं और मनुष्य में धर्म की स्थापना करते हैं। मनुष्य आपने किसीकी तंदरुस्त्री बढ़ाई है, किसीको ठीक के धर्म दस हैं मुख्यतः और इसलिए दस बहुत बड़े किया है, कुछ किया है? माँ को तुम बुरा बोलते हो गुरु हो गए। जैसे कि सोने का धर्म होता है. आप तुम्हारी क्या हस्ती है? लेकिन यहाँ तो जो उठा वो कहते हैं कि सोना कभी खराब नहीं होता ही बोल सकता है। किसी को भय तो है ही नहीं untarnishable है। इसी तरह मनुष्य में दस धर्म किसी के खिलाफ बोलने में अब इससे ऊपर में. होते हैं, जब इस धर्म से वह च्युत हो जाता है तो मैं अभी आपको संक्षिष्त में बता रही हूँ क्योंकि विषय वह दानव हो जाता है। गुरुओं नें बताया है कि बहुत बड़ा है। लैकिन मैं कल आपको conscious शराब नहीं पीने की क्योंकि मनुष्य अपने धर्म से और subcounscious mind पर बताऊँगी। च्युत हो जाता है। इसलिए उन्होंने मना किया है और शराब अपके धर्म के विरोध में बैठती है हृदय चक्र में श्री जगदम्बा का स्थान है, शक्ति का ये चक्र जिसे हृदय चक्र कहते हैं और 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-52.txt मार्च - अप्रैल, 2004 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 3-4 51 स्थान है, जो सब जगत की जननी है उसका स्थान तमाशा दुनिया में हों रहा है जरा देखो तो सही। है। क्योंकि जब-जब भवसागर में बड़े-बड़े राक्षसों क्या ये भगवान के नमूने हैं? ऐसे होते हैं भगवान के का जन्म हुआ और उन्होंने सारे जितने सात्विक लोग? अरे भगवान के लोग तो बादशाह होते हैं, लोग है उन्हें सताना शुरु कर दिया तब वो स्वंय बादशाहत होती है उनकी, उनको क्या देने वाले हो साक्षात् आकर के उनका हनन करती हैं, उनको तुम? बादशाहत ये होती है कि जमीन पर सो जाएं खत्म कर देती हैं। इसके लिए आपको देवी भागवत तो भी बादशाह हैं, चाहे महलों में रहें तो भी बादशाह पढ़ना पड़ेंगा, देवी पुराण पढ़ना पड़ेगा। फिर मार्कण्डेय जैसा कोई बड़ा गुरु नहीं हुआ, मार्कण्डेय भी बहुत कहना चाहिए भगवान का आदमी या ये जो उसका बड़ी शक्ति है, बड़ी महान शक्ति थी मार्कण्डेय भी। मुकूट लगाकर के घूमेंगे। यहाँ पर हीरे जड़ाकर के हैं, चाहे कहीं भी रहें तो भी बादशाह हैं। उसको और श्री आदि शंकराचार्य जो थे वो तो अभिभूत थे गधों में हीरे लगाने से वो कोई राजा नहीं होते? में माँ से। उन्होंने तो कुछ लिखा ही नहीं वो तो बस उनको ऐसा लगता है गधों को अपने कि दुम माँ की स्तुति ही गाते रहे सुबह शाम। गर कोई थोड़े से हीरे जड़ा लो तो दुम कट जाएगी। अच्छा शंकराचार्य को पढ़े तो उन्होंने कोई भी विवरण तो ये देवी जी का स्थान है। देवी जी जो हैं हृदय खास दिया नहीं, बस वो तो सौन्दर्य लहरी और ये चक्र में शिवजी का स्थान है हृदय में आत्मा चैतन्य लहरी, जिसे हम Vibration कहते हैं. यही स्वरूप शिवजी बसते हैं हर समय । मैं इसके लिए गाते रहे। बहुत बड़े पुत्र थे वो। अब उन्हीं के सहारे हमेशा उदाहरण देती हूँ, आजकल Modern बड़ा में आजकल बैठे हुए हैं। मैंने सुना कि वो बड़ा भारी अच्छा उदाहरण है, जिस तरह से Light छत्र सोने का बनवा रहे हैं। अब क्या कहिए? अपने छोटा सा दीप जलता रहता है गैस के या अपने गैस सिर पर है वो और अपने ऊपर में छत्र बना रहे हैं, घर में होती है देखा होगा उसमें एक छोटी सी किसी दिन गिर विर गया तो चोट ही लग जाएगी फिलिकर जलती रहती है। जैसे ही Light आ जाती उनको। मतलब गिरेगा तो मेरा नाम मत रखना, है, Light कहने से या यूँ कहिए गैस की धारा आ लेकिन बता रही हैूँ मैं आपको। कम से कम इतना जाती है, माने कुण्डलिनी ऊपर आ जाती है, इसकी उसको पकड़ लेती है। और आप की जो चारों तरफ फैहरे बीच में बैठे रहें। अब उसी में चेतना है उसमें Light आ जाती है? आपकी चेतना बैठकर विमान में वो शायद स्वर्ग जाने वाले है और अभी enlightened नहीं है, उसको किसी तरह से एक बता देना कि उनके सिर पर चोट न लगे, गिरे तो Light सब लोग उनकी पूजा में जाते हैं, खास कर जो हृदय के पास पहुँचाना चाहिए और हृदय जहाँ पर South Indian हैं इनका तो कचूमर बना रखा है। शिवजी का स्थान है असल में सदाशिव की पीठ ये मैंने एक महिला से पूछा कि भई तुम्हारा हीरे का है स्थान वो है परन्तु पीठ ये है. कुण्डलिनी जैसे ही हार कहाँ गया? बो मैंने दान में दिया। मैंने कहा यहाँ पर छु जाती है ऐसे ही हृदय आलोकित हो किसको? कहने लगी इनको। मैंने कहा अच्छा। जाता है। ये है सदाशिव का स्थान, इसे हम कहते कहने लगी इनका बन रहा है ना उसमें हीरे भी हैं की ब्रह्मरन्ध्र से ऊँचा सदाशिव का स्थान है। जैसे लगने चाहिएं। मैंने कहा उसमें हीरे लगाओ और ही कुण्डलिनी वहाँ छू लेती है आपकी चेतना आलोकित ऊपर में चार पाँच हाथी भी खड़े कर दो एक-एक हो जाती है। तभी फिर ब्रह्म आपमें स बहने लगता 1: 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-53.txt मार्च अप्रैल, 2004 XV जफ 3-4 वित्य लहरी खप्ड 52 है। ये जो बह रहा है वो साक्षात ब्रह्म है। आप ऐसे करना चाहिए। अब वो गुस्सा काहे से होते हैं, वो हाथ करके देखिए, मैं जो भी बात कह रही हैूँ सच गुस्सा इस लिए होते हैं जब मनुष्य का चित्त आत्मा है या झूठ है? आपको फौरन Vibrations आएंगी। की ओर नहीं होता। मनुष्य है अब जो हठ योगी हैं, ये ब्रह्म आपके अन्दर से बह रहा है। ब्रह्म जो है जो आसन-बासन करते हैं, so called हठ योगी, तो रात दिन बो अपने शरीर को मारते रहते हैं। परछायी है। परमात्मा की परछायी अपने अन्दर जो शरीर की तरफ जिस आदमी का ज्यादा चित्त गया है, प्रतिबिम्ब जो है वो आत्मा स्वरूप है। परमात्मा गुस्से हो जाएंगे जो आदमी बहुत ज्यादा मेहनत सदाशिव स्वरूप मानने चाहिए क्योंकि उन्हीं के करता है और सोचता है मुझे ये भी करना चाहिए. Manifestation से बाद में आपको ब्रह्म देव और वो भी करना चाहिए. धन कमाना चाहिए घर बनाना विष्णु ये तीन aspects निकलते हैं। माने पहले तो चाहिए, घर बनाने के बाद aeroplane बनाना चाहिए, एक सदाशिव स्वरूप होता है और फिर उसके तीन aeroplane बनाने के बाद में पता नहीं क्या बनाना aspects बन जाते हैं जिसको हम कह सकते हैं चाहिए। इस तरह के जो आदमी होते हैं उनसे बड़े सदाशिव स्वरूप या शिव स्वरूप जो कि हमेशा रुष्ट हो जाते है शिव जी, इस लिए लोगों को heart attacks आते हैं क्योंकि चित्त आत्मा की ओर हैं। आज गर हमारा हृदय बन्द हो जाए तो खत्म नहीं। चित्त को आत्मा की ओर रखो, खास कर हो जाएंगे। अस्तित्व जिसे कहते हैं, existence जो आपके दिल्ली शहर में यह बहुत commmon चीज़ आत्मा का प्रकाश है और आत्मा ही परमात्मा की existence मात्र है, उनकी बजह से हम existed है। इसको मैं बहुत mild शब्दों में कहती हैं कि imbalance, उससे लोग खुश होते हैं नाराज़ नहीं सारे संसार की निर्वृत्ति करते हैं । और तीसरा होते हैं माने right side की activity ज्यादा है, वो शिव स्वरूप है। उसके बाद में जो ब्रह्म स्वरूप है वो Creator है, मतलब वो सृजन करते हैं, 1 स्वरूप जो है विष्णु जी का, वो सृजन करते हैं Evolution करते हैं। उनकी वजह से माने उक्ान्ति आप मेहनत कर रहे हैं, आराम हराम है, चलो करो, मेहनत करो. पैसा कमाओ, हमारे अन्दर धर्म बैठता है; हरेक Elements के देश का development होना चाहिए। develop धर्म बैठते हैं, हरेक सृष्टि का हरेक चीज का धर्म माने क्या चो इंग्लैण्ड जैसा चाहिए जहाँ पर की मेहनत करो, मेहनत बैठता है। आम का पेड़ लगाओ तो आम निकलेगा, 10% लोग तो suicide करते हैं 10% लोग पागल ये सब काम जो हैं इनकी सृजन शक्ति करती है। खाने में जाते हैं, 10% लोग अनाथालय में बैठे हैं 10% लोग बच्चे जो हैं वो भांग खाते हैं, इसी प्रकार 10% करते करते 1% कोई बैठ जाऐ तो वो शिवजी नाराज़ हो जाते हैं बहुत जल्दी, भोले सहयोग करते हैं। ये हालत है। वैसा आपको बनाना आदमी हैं ना, बहुत जल्दी नाराज़ हो जाते हैं, खास है यहाँ? जहाँ की एक grand mother है अपने कर के कोई जरा सी भी गलती कर दो तो बहुत grandson से शादी करती है। यें अंग्रेज अपने जल्दी गुस्से हो जाते हैं। उनको मानने के लिए तो ऊपर rule करते थे पहले, गधे कहीं के, इनको गधा कहूँ कि क्या कहूँ? ऐसे तो गधा भी नहीं करता हैं जब गुस्से हो जाते हैं। तो उनको भई गुस्सा नहीं होगा। और common चीज है grandfather, grand माने उनकी जो जिसे कहना चाहिए जो उत्क्रान्ति होती है। शिवजी का स्थान यहाँ पर है। अब | साक्षात् आदिशक्ति को उनके चरण पकड़ने पडते এ 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-54.txt मैतन्य लहरी खणड -४VI अक, 3 - 4 मार्थ - आल 2004 53 daughter से शादी करता है. grandmother, गोबर खाने का कौन सा कारयदा है कि गोबर नहीं खाओ। एक तो मनुष्य को ऐसे ही समझ में आता grandson से शादी करती हैं। उन्हें शर्म नहीं आती London में very common सोज news है और अभी उसके कायदे के पीछे में लड़ रहे हैं वो paper में उनके वो आते रहते हैं. क्या? love letter सबेरे पेपर खोलो तो लगता है क्या गीता openly parliament में जाकर बेटी और बाप और लिखी हुई है? ये अधर्मी लोगों ने यहाँ इतने दिन बेटा और माँ. बोलो तो! अब उन गंधों से क्या लोग। ये जो कायदा है उसको मिटाओ और वो भी राज किया उस वक्त उतने गधे नहीं थे। अब बहुत ही गधे हो गए। सीखने का है? क्या development कर रहे हो बाचा? जैसे ही पैसे ज्यादा आ गए उसके पैर निकलते हैं । पहले तो शराब, जो आदमी शराब पीता है उसको तो promotion देना ही चाहिए। न उसको एक पैसा ज्यादा देना चाहिए, पैसा ज्यादा हो गया तभी तो शराब पी रहा है। गर भूखा मर रहा होता तो क्या पीता? वहाँ के Politicians, ने उनको ये अब तो liberated हो गए हैं न। वहाँ के बूढ़े तो इतने गधे हो गए, इतने गधे हो गए हैं कि सब उन्हें silly old कहते हैं वहाँ पर। और वहाँ की लड़कियाँ बड़ी होशियार है । उन्होंने नाम बनाए हुए हैं, वो उन्हें sugar daddy कुछ कहते हैं एक बूड़े को बैठा रखा है, उसका पैसा खाती रहती ैं। घूमती रहती हैं आराम से। 15 साल की चौपटाया है उनको बस क्या है? उनको तो बस है किसी तरह से बस पैसे मिल जायें, बोट मिल होशियार हो जाती हैं। 15 साल से नोचना शुरु जाये. फिर जो करना है करो। ये तुमको कायदा करती हैं. बस पैसा कमाने से मतलब। तो क्या पास करवा देगा, बस तुम हमको वोट दो। क्योंकि हुआ? चार शादी हो गई तो क्या हुआ ? और Politicians में भी वहाँ कोई धर्म तो है नहीं। तो ये है बहुत कोशिश हो रही है कि ये जो कार्यदा बना हुआ है absurd, उसको हटा देना चाहिए। बहन-भाईयों पर भी है उनके अन्दर में। अपने यहाँ गर कोई बूढ़ा होगा नहीं। वहाँ आपको आश्चर्य होगा अपनी बहन के साथ जायें London में कोई होटल में जगह नहीं पूछे हमलोग कोई काम नहीं करते। क्योंकि वहाँ के मिलेगी। बहन भाई को allowed नहीं है। ये चाहे बूढ़े जो हैं इतने गधे हैं उनके कौन चरण छुए? तो आप और औरत को ले आ सकते हैं। आपको अमरीका तो भैया, उनका नाम ही न लो। वो तो आश्चर्य हो रहा है वहाँ लोग सोचते हैं ये कैसे हिन्दुस्तान में हो रहा है? ये हो ही नहीं सकता। हैं और अभी London में भी उसका rule निकला हमने कहा हमारे यहाँ अपने भाई तो छोड़ दो, पर वहाँ London में कि उसका कायदा तुड़वाया किसी को गर भाई मान लिया तो सारा घर उसे मानता है, तुम हो कहाँ? ये तो अपने पांवों के धूल कि माँ-बाप माँ-बाप का सम्बन्ध जो बच्चों से के बराबर नहीं है, इनको तो बहुत दिन तक अपने होता है उसका जो कायदा होता है वहाँ पर वो से सीखना है। तुम्हारे अन्दर जो सहज बातें हैं वो घुसती नहीं हैं। अभी मेरे लड़कियाँ बड़ी होशियार होती हैं 13 साल से आदमी भी उनकी बात मानते हैं, बुद्धू कहीं के। बूढों को vanity हो जाती है, उनको वहाँ inferiority complex होता है, क्योंकि कोई wisdom ही नहीं भी कायदा बहाँ पास होने वाला चीज़ है, बाबा बुजुर्ग हैं, आइए. बैठिए। उनसे बगैर उनके नाना हैं। गधे कहीं के, बो तो बहाँ common वहाँ पर, वो तो छोड़ो कायदा तुड़वा रहे है वहाँ पर ना। कायदा है। अपने यहाँ ऐसा कोई कायदा नहीं। उन गधों के अन्दर में 1 পট 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-55.txt मार्च - अप्रैल 2004। चैतनम] लहनी - XVI अंक : 3 4 54 शिष्यों की बात छोड़ो, बहुत ही सभ्य हैं, कहने लगे आप किसी ऐसे व्यक्ति या किसी अवतरण के इसका मतलब मॉँ हमारे अन्दर कोई संस्कृति नहीं। सामने जाते हैं, जिसको कि Authority है. तभी ये इसका मतलब यही हुआ बेटे। तो समझ लो। कहने कुण्डलिनी हिलती है और वो मूलाधार चक्र से लगे हमारी आँख बहुत इधर-उधर दौड़ती है कमसे कहती है कि हाँ ठीक है। तब वो release करते हैं कम इसको रोको। गणेश सब अपने साथ रखते हैं यहाँ से उसमें शक्तियाँ दोनों Side से ताकि जरा कि हे गणेश हमें पवित्र बनाओ तो मैंने कहा इसके सी Tension कम हो जाए और फिर कुण्डलिनी लिए तुम पृथ्वी पर अपनी आँख लगाकर चलो। गर उठती है धीरे-धीरे और नाभि चक्र से गुजर के तुमने अपने पृथ्वी पर ऑँख लगाई तो ठीक होंगा। हृदय चक्र से गुजर के ऊपर जाती है। हृदय चक्र आपको आश्चर्य होगा कि सिर्फ वही देख के चलते के एक Side में, इस side में मैने कहा आपसे, है, ऊपर ऑँख ही नहीं उठाते। वहाँ के जो Seeker शिवजी का स्थान है और उस Side में जबकि यहाँ है वो बड़े भारी पहुँचे हुए Seeker है वो जो एक से आपके लक्ष्मीनारायण दस अवतरण लेकर के बार कह देते हैं, अब वो कान पकड़े हुए हैं। उनका Revolve करे तब आठवें अवतरण में जब रामजी वही हो गया। बहुत हो गया कहने लगे इसका कोई का अवतरण हुआ वो स्थान उनका है। लेकिन अंधेर है । अब आप सोचिए क्राइस्ट पर Picture रामचन्द्र जी बराबर बीचौबीच में नहीं हैं वो Right निकाल रहे हैं कि क्राइस्ट का और उनकी माँ का बुरा सम्बध था मैने कहा, "हिन्दुस्तान में ये पिक्चर उनको ये भी भुला दिया गया था कि वो अवतरण नहीं चल सकती। ये तुम इधर ही चला लो ।" तो हैं क्योंकि उनको रजोगुण पर बिठाकर के उनकी वो उस पर rule लाना पड़ेगा. ये पिक्चर नहीं बनेगी मर्यादा बनानी थी कि ये मर्यादा है क्योंकि ldeal जब तक मैं जिन्दा हूँ। वो बेचारी वहाँ शरीफों का King के रूप में वो आए थे मर्यादापुरुषोत्तम। कोई मार्ग नहीं रहा। ये रजोगुण में जब आप आते इसलिए पुरुष की जो मर्यादा है वो रामचन्द्र हैं। हैं, Right Side में रजोगुण हैं. तमोगुण से उठकर और जिस मनुष्य में मर्यादा नहीं होती उसका ये रजोगुण में जब आप आते हैं, आप देख रहे हैं वीच चक्र पकड़ता है बहुत से लोग सोचते हैं अब हमें में सतोगुण है। तो बीचोंबीच रहना चाहिए। इसलिए freedom मिली तो बस मर्यादा छोड़ो। दूसरे जिस ने कहा है कि बीचोंबीच रहना चाहिए । जो मनुष्य में अपने पिता के प्रति श्रद्धा नहीं होती Side में हैं, माने रजोगुण में उनको बिठाया गया। बुद्ध मनुष्य बहुत में उतरता है वह अति में उसका ये चक्र पकड़ता है। Left heart उसका जाता है और अति में जाने के कारण ही उसमें पकड़ता है जिसको अपनी माँ के प्रति श्रद्धा नहीं है अतिक्रमण हो जाता है। अब आप समझ रहे हैं कि किस तरह से या जो अपने पिता के प्रति दुर्यवहार करता है मैंने आपको चक्रों के बारे में बताया मूलाधार चक्र उसका ये चक्र पकड़ता है. और दूसरा गर किसी ने और मूलाधार, उसमें बहुत अंतर है- मूलाधार अपने बच्चों के साथ दुर्व्यवहार किया उसका भी ये जिसमें कुण्डलिनी स्थित है और मूलाधार चक्र चक्र पकड़ता है। ये बीच वाला चक्र है वो जब जिसमें कोई नहीं जा सकता। अत्यन्त पवित्र चीज औरतों को पकड़ता है उससे Breast Cancer है उसको Information सिर्फ माँ से आती है। होता है जिसे sense of insecurity आ जाए जब एजोगुण और जिसको अपने पिता के प्रति श्रद्धा नहीं होती 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-56.txt मार्च - अप्रैल, 2004 चेतन्य लहरी खण्ड -XVI अक 3-4 55 तीनों चक्रों में मनुष्य को जाने के बाद में शाम को फिर ये सब बताऊँगी आपको। उसके बाद शायद दिल्ली में उन लोगों ने दिल्ली में भी मेरा प्रोग्राम रखा है। आप लोग आयें, फिर उसके बाद मैं London चली जाऊँगी और फिर से आऊँगी अगले साल । जो बात मैने कही चो फिर दोहराऊँगी। Lecture सुना और उसके बाद श्री राधाकृष्ण का स्थान है। श्री राधाकृष्ण के स्थान चले गए। ऐसा नहीं करो। अपनी इज्जत करो | पर जाकर के इनका अवतरण पूरा होता है वहाँ पर अपनी सम्पदा को पाओ। अपनी सम्पदा को पाते ही 16 petals है और वहीं 16 subplexus हैं और आपका जितना physical, emotional, mental problem है, सब खत्म हो जाएगा और आप उस Portion जिससे कि लोगों को sinus आदि की दशा में पहुँच जाएँगे जिसे साक्षी स्वरूप कहते हैं । तकलीफे होती है, मुँह जबड़ा नाक आदि जो कुछ और आपके हाथ से अविरल परमात्मा की ये सब इसी से होता है अब ये बहुत जरूरी dynamic शक्ति है, बहती रहेगी। छोटी सी कहानी बताकर मैं अपना Lecture खत्म करूंगी राधाजी समझें। इसके बारे में आपको मैं कल बताऊँंगी। को मुरली से एकबार बहुत ईष्र्या हो गई तो उन्होंने और इससे ऊपर में जो है आज्ञाचक्र ये भी बहुत जाकर श्री कृष्ण से कहा कि तुम्हारे मुंह में ये मुरली जरूरी चक्र है, इसके बारे में मैं कल बताऊँगी। क्यों लगी रहती है? तो कृष्ण नें कहा कि तुम मुरली से जाकर पूछ लो। उन्होंने मुरली से जाकर पूछा इस तरह आपने देखा है कि किस प्रकार तुम्हारी क्या विशेषता है? तुम्हारी क्या Speciality सात चक्रों में से कुण्डलिनी आपो-आप उठती है। है? तो मुरली नें हंस कर कहा कि तुमको नहीं मालूम मेरी विशेषता है कि मैं सब विशेषता खो मैं खोखली हो गई हूँ। मेरे अन्दर से वह बताऊँगी कि conscious, subconscious और बहता, बजता है । इसी प्रकार आप खो जाते हैं और Collective subconscious और supraconscious इसलिए परमात्मा ने आपको बनाया है कि आप उनकी मुरली बन जाएं। आपके अन्दर से वो collective कार्यान्वित होंगे तो आप जानियेगा उसके कार्य consciousness में आप किस प्रकार जागृत होते को भी आप जानिएगा, उसकी अगम्य लीला को आप जानियेगा, उसकी सर्वव्यापी शक्ति को आप ये चक्र पकड़ता है। palpitation or breathing trouble ये सब बीमारियां होती हैं। ये तो बीमारी की बात हुई लेकिन इससे भी बहुत subtle बातें हैं। इससे ऊपर के चक्र को कल समझाऊँगी आप सब को। ये चक्र जो कंठ पीछे में यहाँ है उसे विश्द्धि चक्र कहते हैं। इसमें ि इसी से हमारे आँख-नाक ये सब माथा यहाँ का चीज़ है कि इस चक्र को खूब अच्छी तरह से इसके बाद सहस्रार है। कुण्डलिनी किस तरह से उठती है किस तरह से चलती है ये मैं परसों बताऊँगी आपको, और ये भी चुकी हूँ, और ate collective supraconscious 311 आँर supraconscious है। इस तरह से पूरी तरह मैं आपको scientifically पूरी बात समझाऊँगी। आप लोगों ने जो भी Lecture जानिएगा । ये सब, संब कुछ आपका अपना हो सुना है उसमें से स्वंय साक्षात vibration बहते रहते सकता है। बुद्धि जो आपकी है वह सीमित है, हैं इससे भी लाभ हुआ है और कल जब आप उसको थोड़ा सा कहना भैया तू जरा ठ्डी रह। आयेंगे सबैरे तो जागृति करेंगे आप लोग सीमा से पार जाने के लिए उसमें सीमित चीजें नहीं चलती इसमें असीमित में कूदना है। अत्यंत सूक्ष्म meditation पर बैठें उसके बाद थोड़ा सा जम 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-57.txt मार्च - अप्रैल, 2004 56 चैतन्य लहरी खण्ड -XVI अंक : 3-4 है और सूक्ष्म चीजों के लिए अपनी बुद्धि थोड़ी सूक्ष्म काफी काबू कर लिया है । पर जड़ आपकी खोपड़ी होनी चाहिए। इर समय आपका मन लपटा रहे पर बैठ गया है। जैसे की आपमें जड़ है। जैसे बाहर और बाहरी चीजें आप सोचते रहें तो काम Electricity को आपने Manage कर लिया है. नहीं बनता। थोड़े सूक्ष्म में आ जाओ, सूक्ष्म में आते लेकिन Electricity के बगैर आपका काम नहीं ही सारे gross तो क्या, जड़ जीव-जन्तु का ऐसे चलता तो Electricity ने आपको काबू किया हुआ ही आप control कर सकते हैं। पर सूक्ष्म को पहले है। लेकिन जब अआप पार हो जाते हैं और उस दिशा पाना चाहिए, बहुत ही आसान चीज है, इसमें कोई में आप पहुँच जाते हैं जहाँ कि सारे जड़ के ऊपर मुश्किल नहीं है। मैं London में थी तो London में आप बैठे हैं तो जड़ आपके चरण छूते हैं. जो कुछ लोगों ने कहा माँ बड़ी ठण्डी है, थोड़ी गर्म कर दो। करना चाहे आप करवा सकते हैं। इसका महत्व ही तो मैने कहा अच्छा तुम्हें Summer चाहिए? कहने नहीं रहता है, फिर तो इसका Interest ही नहीं लगे हाँ। आप लोगों ने सुना होगा London में दो . रहता। तब तो मजे में आदमी अपने में ही रहता है। तीन Summer बड़े हुए हैं। अभी दिल्ली में हमारा और सबसे जो चमत्कृति परमात्मा की वो आप लोग Programme पिछले महीने होने वाला था। हमारे हैं। मानव। और फिर उसका मजा आता है जैसे सुबमण्यम साहय ने कहा माँ यहाँ बहुत ठण्डी हो अभी एक साहक वो पैर पर वो आए तो किसी ने रही है मायनस बुलाया कि देखो-देखो उनके Vibrations कसे आ 3 डिग्री Temperature हो रहा है, तो क्या करें? मैंने कहा ठीक है, अगले महीने रखें रहे हैं! ऐसे ही तुम्हारे अन्दर से सुगंध बहता रहता हम, अभी टाईम नहीं है। अगले महीने आयेंगे। तो हैं। सुबह से शाम तक उसकी सुगंध को लेते रहो उन्होंने कहा कि नहीं नहीं फरवरी तक तो बहुत और उसको पाओ, बहुत से लोग मैंने सुना कि कहने ठण्ड हो जाएगी। तो मैंने कहा अच्छा तुम रखो तो लगे माँ के पैर नहीं छुएगे तो कुछ भी नहीं कर सही। हमारे आने से एक दिन पहले ही सूर्य देवता पाएंगे। हिन्दुस्तान में माँ के पाँव क्या, मैं तो तुम्हारी शुरु हुए मेहनत करने के लिए और अभी आप लोग गुरु तो हूँ नहीं। मेरे पाँव छूने में क्या हर्ज है? गर आराम से बैठे हैं। तो ये कोई मुश्किल काम नहीं मैं तुम्हारी माँ हूँ तो मुझसे कुण्डलिनी जागृत करवा है। पहले सूक्ष्म को पायें, सूक्ष्म को पाते ही साथ में लो। ये क्या है? ये जड़ तो, वैसे ही आपने जड़ को 1 परमात्मा आपको आशीर्वादित करें।