पैतन्य लहरी त् ६ ल० गा वि ३ या मब हौ मई - जून, 2004 क टि २ं দ০ हैि ७ इस अंक में 8 ईसामसीह पूजा - 25.12.03 गणपति पुले क 5 संक्रान्ति पूजा - 14.01.04 पुणे 6 सतोगुण की प्राप्ति 17.05.80 14 अहं पर विजय पाकर आप स्वयं को कैसे पहचाने-डालिस हिल 18.11.79 20 आनन्द 24 हमारी प्राथमिकताएं क्या हैं 26 त्रिगुण 3.2.78 दिल्ली ड चै त - य ल ह री प्रकाशक निर्मल इन्फोसिस एवं टेकनोलोजीज़ प्रा. लि. मुख्य कार्यालय : प्लाट न. 8, चन्द्रगुप्त हाऊसिंग सोसाइटी, होटल ग्रेस के पीछे, पॉड रोड, कोठरुड पुणे 411 029 मुद्रक अमरनाथ प्रस प्रा. लि. 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क्या विशेष बात है कि सूर्य अगर उत्तर आज्ञा बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं जिसको हमें समझना में आ गया तो हम लोगों को उसमें इतनी खुशी चाहिए कि इस पर ईसामसीह का स्थान हैं और क्यों होती है? बात ये है कि सूर्य से ही हमारे सब ईसामसीह ने एक ही चीज़ बताई थी- सबको क्षमा कार्य जो हैं प्रणीत होते हैं। अंधेरे में, रात्रि में हम करना चाहिए। क्षमा करना बहुत जरूरी चीज़ है। लोग निद्रावस्था में रहते हैं लेकिन जब सूर्य उदित अब वो कैसे किया जाए? लोग बहुत से कहते हैं होता है उसके बाद ही हमारे सारे कार्य चलते हैं। कि हमने तो कर दिया पर होता नही है। क्षमा के इसलिए इस कार्य को प्रभावित करने वाली जो लिए जरूरी है कि सबको क्षमनस्य होना चाहिए चीज है, वो है सूर्य और वो क्योंकि हमारे कक्ष में और सोचना चाहिए कि जिसे जो करना था बो आ जाती है तो हम इसको बहुत मानने लगते हैं। भोगेगा, हमको क्या करना है! जिसने जो कहा था सबसे बड़ी बात तो ये है कि बाकि सारे त्योहार वो खुद उसको इस्तेमाल होगा हमको इसमें क्यों चन्द्रमा को ध्यान में रख कर होते हैं और सिर्फ पड़ना है? इस तरह से निरीक्षता आ जाए और आप यही एक त्योहार ऐसा है कि जो हम सूर्य के क्षमा कर दें सबको तो आज्ञा चक्र ठीक हो जाएगा| आधार पे लेते हैं। ऐसे हमारे यहाँ सूर्यनारायण की आज्ञा चक्र ठीक होने से जो बहुत बड़ी रुकावट भी बहुत महति ( महत्व ) है और लोग सूर्यनारायण हमारे उत्थान में है, जो कुण्डलिनी को रोकती है वो को मानते हुए गंगाजी पर जा कर नहाते हैं और है आज्ञा और इसके लिए हमें क्षमा करना आना अनेक तरह के अनुष्ठान करते हैं। पर सबसे महत्वपूर्ण यही एक दिन है। अब हम लोगों को यह दुःख दिया, किसने क्या तकलीफ दी। उसकी तय करना पड़ता है कि इस दिन क्या करना जगह ये सोचना चाहिए कि हमें क्षमा करना है. चाहिए? इस विशेष दिन को क्या कार्य करना उसको हमने क्षमा कर दिया और क्षमा करने से चाहिए? सूर्य का नमस्कार हो गया, सूर्य को अर्ध्य एकदम से, आपको हैरानी होगी कि कुण्डलिनी दे दिया और सूर्य के प्रति अपनी कृतज्ञता हम झट से ऊपर चढ़ जाएगी। हमको तो अपनी लोगों ने सम्बोधित की। किन्तु क्या विशेष अब कर कुण्डलिनी को चढ़ाना है और उसके लिए हमें सकते हैं? विशेष कर सहजयोगी, क्या कर सकते ज़रूरी क्या है कि गुस्सा हम करें? गुस्सा करना हैं? आज्ञा चक्र पे सूर्य का स्थान है, आप लोग मनुष्य का स्वभाव है, परमात्मा का नहीं, मनुष्य का जानते हैं और आज्ञा चक्र से आप आगे की सोच स्वभाव है। इसलिए हमें गुस्से को रोकना चाहिए सोचते हैं। तो आज्ञा चक्र को ठीक करना बहुत और उसकी जगह 'क्षमा, क्षमा, क्षमा' ऐसे तीन बार जरूरी है क्योंकि ये सूर्य को प्रभावित करता है । इसके लिए आज्ञा पर जो महत्व है वो ये है कि आज्ञा पर हमारे जो ग्रह हैं उनके अनुसार हम लोग 1 चाहिए। हर समय हम सोचते रहते हैं किसने क्या | कहने से आज्ञा चक्र ठीक हो जाता है। सबको अनन्त आशीर्वाद सतोगुण की प्राप्ति 17.05.1980 (अनुवादित) (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ) बनने के विषय में जब आप सोचते हैं तो कुछ के साथ क्या घटित हुआ। क्या आप ध्यान कर बनने की तैयारी हो जाती है और जब आप यह सके? ध्यान करने के लिए आपको समय मिला या समझ जाते हैं कि अहँ और प्रतिअह आप पर सवार नहीं? इस कार्य को कुछ इस प्रकार से करे जैसे हैं तो चैतन्य-चेतना द्वारा इनका सूक्ष्म निरीक्षण आप किसी परीक्षा की तैयारी कर रहे हों, वैसे ही कर। लिखलें। क्या मैं प्रातःकाल उठा? क्या में उठ चित्त (attention) दो प्रकार का होता है। पहला पाया? अपने मध्य, बायें या दायें ओर की किसी भी जो निरन्तर कार्यरत है-सहजयोगियों में यह दिन- विशेष गतिविधि के अनुभव को अवश्य लिखें ताकि चर्या की चीज है । दूसरा आपातकालीन चित्त अपने मस्तिष्क पर दृष्टि रख सकें। डायरी लिखना (ermergency attention) है । मैं सोचती हूँ कि बहुत अच्छी बात है। सभी सहजयोगियों को रोजमर्रा के अनुभवों की डायरी अवश्य लिखनी चाहिए। आपको यदि ये पता होगा कि आपने डायरी लिखनी है तो अपने हैं। वास्तविक चीज़ों को किस प्रकार आप महत्व मस्तिष्क को एकदम चुस्त रखेंगे। भूत या भविष्य देते हैं और अवास्तविक को कतई महत्व नहीं देते। के विषय में जब भी कोई विशेष विचार प्राप्त हों तो डायरी लिखना, मेरे विचार से मनुष्य के लिए आप देखेंगे कि किस प्रकार आपके विचार बदले हैं। किस प्रकार नई प्राथमिकृताएं स्थापित हो रही उन्हें लिख लें। इस प्रकार आपके पास दो डायरियां अत्यन्त व्यवहारिक कार्य है। कुछ समय पश्चात होनी चाहिएं। निरन्तर देखने के लिए आपको कुछ डायरियाँ ऐतिहासिक महत्व की वस्तुएं बन अपना मस्तिष्क कुछ तथ्यों पर लगाना पड़ेगा। जाएंगी। लोग जानना चाहेंगे कि आप सबने क्या पहली बात, जैसे मैंने कहा, यह है कि यदि आप लिखा डायरी रखेंगे तो जान जाएंगे कि घटित हुई सभी अत्यन्त सच्चाई और सूझबूझ के साथ सोने से पूर्व महत्वपूर्ण चीजों को आपने याद रखना है। इस कुछ पंक्तियाँ लिखें। हैं। पाखण्ड या धोखा करने के लिए नहीं, हमें देखना है कि हमारे साथ अहँ और प्रति अह प्रकार आपका चित्त चुस्त हो जाएगा और सभी चीजों के प्रति आप सावधान रहेंगे चित्त के चुस्त कि समस्याएं हैं । प्रतिअह बाई ओर से है- कर लेने पर, आप हैरान होगें, कितनी नई चीजें अन्धकार, तमोगुण और हमारा भूत काल है। बाईं आपको सूझती हैं-अत्यन्त प्रतिभाशाली विचार, जीवन ओर की बाधाओं से ग्रस्त लोगों को सन्तुलन में के चमत्कार, परमात्मा के सौंदर्य और मंगलमयता आने के लिए भविष्य के बारे में सोचना चाहिए। के विचार, उनकी महानता, करुणा और आशीर्वाद |। आलसी व्यक्ति को चाहिए कि काम करने की दो पंक्तियाँ भी यदि प्रतिदिन लिखेंगे तो किस आदत डाले। अपने मस्तिष्क को भविष्य की योजनाएं प्रकार कार्यान्वित करेंगे? ऐसा करने मात्र से आपका बनाने में लगादें। क्या करूं, कहाँ जाऊं, किस मस्तिष्क निरन्तर अन्तःस्थित होता चला जाएगा|। प्रकार कार्य करू? इस प्रकार बाई ओर के खिचाव मानव की यही कार्यशैली है। डायरी में आप ये भी लिख सकते हैं कि आप पाएंगे। से बच कर शनैः शनैः आप स्वयं को संतुलित कर य पतलि मई चैतन्य लहरी जून, 2004 किसी व्यक्ति की दाई ओर यदि बहुत अधिक अवस्था में हैं तो आप जागते हुए स्वप्न देखेंगे गतिशील हो उठे तो तामसिकता द्वारा सन्तुलन ओह! फलां व्यक्ति की इतनी मान्यता है. फलां की नहीं करना चाहिए। मध्य का इस्तेमाल करना इतनी मान्यता है। मानो आप सर्वोत्तम हों। आप चाहिए । कोई यदि बहुत अधिक मेहनती है तो उसे जानते हैं कि ये मानव स्वभाव है। वह व्यक्ति ऐसा चाहिए कि साक्षीभाव विकसित करे कोई कार्य है, वह ऐसा है। समाज में यह बहुत बड़ी खराबी है, करें, निर्विचार चेतना में रहते हुए साक्षी-भाव से यह बहुत बुरा हो रहा है। हम उस सीमा तक भी इस कार्य को करें चाहे जो भी आप कर रहे हों, जा सकते है कि वह गुरु बहुत बुरा है, वह विक्षिप्त कहें कि मैं कुछ नहीं कर रहा। आत्मसाक्षात्कार के है। इस प्रकार बहुत कुछ चल रहा है। यह आपको पश्चात आप ऐसा कर सकते हैं-निर्विचार चेतना में कितना प्रभावित कर रहा है? इससे आपका कितना स्थापित हो कर अपना कार्य आरम्भ कर सकते हैं। सुधार हुआ? बस सोचना और विश्लेषण ही चल अतः बाईं ओर की समस्याओं का समाधान दाई रहा है। यह तामसी शैली है, बैठे बैठे विश्लेषण ओर को गतिशील करके होता है और दाई ओर की करते रहना तामसी शैली है। दूसरी चीज़ तब होती है जब आप दूसरी ओर 'रजोगुण' और क्रिया पर आते हैं। उस स्थिति में आपका चित्त उस मध्य में 'सत्वगुण। परन्तु ये तीनों गुणों का अस्तित्व कार्य पर होता है जो आप कर रहे होते हैं। इसे है। यह स्थिति आपने प्राप्त नहीं करनी। कल मैं कहीं ओर जाने की आज्ञा नहीं होती, अन्यथा ये आपसे बताऊंगी कि इसमें आगे किस प्रकार बढ़ना चित्त किसी भी व्यर्थ की बात की ओर जाता है और है। पता लगाने के बाद, कि आपका कौन सा पक्ष आपकी समझ में ये नहीं आता कि ये सभी उल्टे- कमजोर है, अपनी जीवनशैली की योजना बनाएं। सीधे विचार कहाँ से आ रहे हैं। अतः कुछ करना आरंभ करें। आप चाहें तो पेड़-पौधे लगा राकते हैं। समस्याओं का समाधान मध्य में स्थापित होने से। बाईं ओर तमोगुण है, दाई ओर उदाहरण के रूप में यदि आप अत्यन्त आलसी स्वाभाव है, सुबह सवेरे उठ नहीं पाते, रात को अतः कुछ करना आरंभ करें। आप चाहें तो पेड़- आपको बहुत नींद सताती है. आपमें चुस्ती का पौधे लगा सकते हैं, चाहें तो खाना बना सकते हैं अभाव है, तो सोचें कि आपको क्या करना है? या कोई और कार्य कर सकते हैं। काम करना किस प्रकार आप प्रातः उठ पाएंगे? पूजा का विचार आरंभ करें। इससे आपको सहायता मिलेगी। परंतु भी अच्छा है, घर का भी कुछ ऐसा कार्य करें जिसे कार्य करने से आपका अहं बढ़ सकता है। अहंभाव आप क्रिया कहते हैं। क्रिया-शील बनें। सहजयोग जब भी बढ़ने लगे तो स्वयं से कहें कि श्रीमन् आप ये कार्य नहीं कर रहे हैं, ये कार्य आप नहीं कर रहे में तथा रोजमर्रा के जीवन में क्रियाशीलता लाएं। इस प्रकार आपका स्वभाव पहले रजोगुणी बनेगा हैं। ये बात यदि आप स्वयं को सुझाते रहेंगे तो और फिर आप सतोगुण की ओर बढ़ेंगे, अर्थात हर आपमें अहं नहीं बढ़ेगा और जो बातें आपको तथा चीज़ को साक्षी-भाव से देखेंगे। सत्वगुण तक पहुँच कर, जहाँ आप मध्य में होते हैं-आपको कमरा साफ किया है, कोई आकर इसे गंदा कर देखना होगा कि किस सीमा तक आपका गलत देता है तो स्वाभाविक रूप से आपको क्रोध आएगा आंकलन हुआ है? मान लो बाईं ओर की पहली क्योंकि आप सोचते हैं कि "मैंने कमरा साफ किया अन्य लोगों को कष्ट देती हैं- जैसे मानलो आपने चैतन्य लहरी मई जून, 2004 ৪ था।" या तो आप कमरा साफ न करें और करें तो यहाँ के (Europe) लोगों को ये बात समझानी इस बात के लिए तैयार रहें कि इसे गंदा तो होना बहुत कठिन है क्योंकि इनके सिर पर तो अहं सवार ही है अन्यथा साफ करने की आवश्यकता क्यों है। परंतु भारत में इसे अभद्रता माना जाता है। ये पड़ती। कमरा साफ है तो भी ठीक है और साफ बात आपको भारत जाने पर ही पता लगेगी। आप नहीं है तो भी ठीक है। सत्वगुण की अवस्था में महसूस करेंगे कि ऐसा कहना अभद्रता है किस पहुँचने के लिए इस प्रकार का दृष्टिकोण अपनाएं प्रकार कह सकते हैं कि, 'मैं अत्यंत सुख से हूँ। सत्त्वगुण पर पहुँच कर आप स्वीकार करने लगते ऐसा कहना अभद्रता है । वहां के लोग ऐसा कभी हैं। अत्यंत विनम्र हो जाते हैं। आपका व्यक्तित्व नहीं कहते। 'मुझे पसन्द है', तो क्या? ये शब्द अत्यंत कोमल हो जाता है। तब आप ये नहीं उपयोग नहीं किए जाने चाहिएं। यदि आप सतोगुणीं सोचते कि "ओह! मुझे ये पसंद नहीं है। ये गलत हैं तो आप ऐसा कुछ नहीं कहते। आप पूछते हैं. था, ऐसा नहीं होना चाहिए था। सत्त्व गुण की 'क्या आपको पसन्द है? क्या यह सुखकर है? क्या अवस्था में आपमें ये सब चीजें नहीं आतीं। आप आप इसे लेना पसन्द करेगें?' आप ही की ओर से इन्हें देखने लगते हैं। उसी समय आप देख लेते हैं. चित्त जाता है। क्या आप इस बात को समझ "ठीक है, कोई बात नहीं। आप समझ जाते हैं। पाए? व्यक्ति को यही शैली विकसित करनी चाहिए। इसके विपरीत सतोगुणी होते हुए भी यदि आपमें केवल तभी आप सतोगुणीं हैं अन्यथा आप अभी भी अहंभाव आता है तो आपको कष्ट होता है। क्या अहम् के झूले पर सवार हैं। किसी भी चीज को आप इस बात को समझ पाए? आप यदि सतोगुणी हैं तो आपको अपने अहं पर शर्म आती है। उदाहरण मै, आप कौन हैं? सर्वप्रथम प्रश्न पूछें कि आप के रूप में आपको ये कहते हुए भी संकोच होगा कौन हैं परमात्मा यदि ये कहें कि 'मुझे पसन्द कि 'ये मेरी कार है।' या ये कहते हुए कि 'आपने नहीं है तो मेरी समझ में आता है। परन्तु आपका पूरा देखकर आप कहते हैं कि यह मुझे पसन्द नहीं है। मेरा कालीन गंदा कर दिया। भारत में कोई भी यह कहना मेरी समझ में नहीं आता। आखिरकार ऐसा नहीं कहेगा। मैं आपको बताती हैँ कि ऐसा आप पृथ्वी पर किस प्रकार अवतरित हुए? किस प्रकार आपको मानव जन्म प्राप्त हुआ? किस प्रकार आपको ये सभी बस्तुएं प्राप्त हुई? अब आप इस कहना अभद्र व्यवहार माना जाता है, पूर्णतः अभद्र व्यवहार। कोई यदि आपके घर पर आए और उससे कालीन गंदा हो जाए तो लोग कहेंगे 'कोई प्रकार सोचें, मैं कौन हूँ? मैं तो कुछ भी नहीं । बात नहीं, होने दो' कालीन यदि जल भी जाए तब भी लोग कहेंगे कि 'आपको आँच तो नहीं आई?' लेना चाहिए कि वह कुछ भी नहीं । उसके होने या न वो कभी नहीं कहेंगे कि आपने मेरा कालीन जला होने का परमात्मा को कोई फर्क नहीं पड़ता । आपको दिया या कुछ और बिगाड़ दिया। ऐसा कहना यदि ये बात समझ में आ जाए तब किसी भी कार्य को अभद्रता मानी जाती है। जैसे यदि कोई सोया हुआ करते हुए आप सोचते है कि मैं इसे इसलिए कर रहा हो और कोई शोर मचा दे तो जागने पर वह व्यक्ति हैँ क्योंकि मैं करना चाहता हूँ और इस प्रकार आप कहेगा कि मुझे तो उठना ही था। उठकर वह सतोगुण पर पहुँच जाते हैं। परन्तु प्रायः ऐसा होता पूछेगा, 'आपको किसी चीज़ की आवश्यकता है?' कोई यदि अपने को कुछ समझता है तो उसे नान नहीं है होता इसके विपरीत है। उदाहरण के रूप मई - जून, 2004 चैतन्य लहरी में कोई व्यक्ति कुछ कार्य कर रहा है, अचानक उसका बहुत से दृष्टिकोण हैं। कार्य करते हुए व्यक्ति सोचता दिल दुखता है या वो सोचता है कि जो भी उसने है कि मैं ही क्यों इस कार्य को कर रहा हूँ और तो किया वह अच्छा नहीं है, लोग इसकी सराहना नहीं कोई नहीं करता? और वह भी उन्हीं लोगों की स्थिति करेंगे, यह अच्छे स्तर का नहीं है इसकी प्रक्रिया में चला जाता है। कार्य न करने वाले लोग भी यह उस व्यक्ति पर केवल यही नहीं होती, वह सतोगुण नहीं सोचते कि यह व्यक्ति सारा कार्य कर रहा है, की स्थिति प्राप्त करने के प्रयत्न को छोड़ देता है मुझे भी कुछ करना चाहिए। इसी चीज का यह दूसरा परन्तु उसका तमोगुण में पतन हो जाता है वह पक्ष है। कुछ लोगों का यह दृष्टिकोण है कि यह कहता है ठीक है, अब मैं इसे करूंगा ही नहीं, आराम व्यक्ति कार्य कर रहा है तो करने दो। यह शैली तो से सोऊंगा। बाकी लोगों को कर लेने दो। मुझे ही क्यों करना है? तो रजोगुण से जो शिक्षण आपको किसी रेस्त्रां में जाते हैं. बिल देने के लिए एक व्यक्ति प्राप्त होता है वह व्यर्थ चला जाता है। रजोगुण की अपना पर्स निकालता है और दूसरा अपनी नजरें स्थिति में होना आपके प्रशिक्षण का समय है। आप दूसरी ओर घुमा लेता है। ऐसा करना नीचता है। कोई कार्य कर रहे हैं। प्रशिक्षण के समय में आपने केवल एक बात सीखनी है कि मध्य में किस प्रकार आपने भुगत्तान कर दिया तो कर दिया, समाप्त। आना है। शेव करने के लिए आपको पानी की यह सोचना न शुरु कर दें कि क्यों मैने भुगतान आवश्यकता पड़ती है। पानी के बिना आप शेव नहीं किया। व्यक्ति को प्रयत्न करना चाहिए। सभी कार्य कर सकते इसी प्रकार सतोगुण तक पहुंचने के किए जाने हैं। इनके लिए आगे बढ़े। हृदय से लिए रजोगुण की आवश्यकता है आप यदि कोई कार्यों को करें चिन्ता न करें कि अन्य लोग तो कार्य नहीं करते तो सतोगुण तक नहीं पहुंच सकते। कार्य कर ही नहीं रहे। आनन्द के लिए कार्य को अतः आप जो भी कार्य कर रहे हैं स्वयं साक्षी भाव करें, सूझबूझ से ये समझ कर कि यह प्रशिक्षण तक पहुंचने का प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए कर रहे काल हैं। जब आप कार्य करेंगे तो आनन्द प्राप्त हैं। अब आपको यह बात समझ में आई? इसलिए होगा दूसरे व्यक्ति की अपेक्षा आप बेहतर प्रशिक्षित आप कार्य नहीं कर रहे क्योंकि आपको यह पसन्द हैं। दूसरे व्यक्ति की अपेक्षा आप उच्च दर्जे पर हैं। है या किसी चीज विशेष की आदत है, इसलिए कर अतः हमें उच्च दर्जे पर होना है इसके लिए यह रहे हैं क्योंकि आप गहनता में जाना चाहते हैं। इसलिए प्रशिक्षण चल रहा है । इस प्रकार से हम इस तैयारी आप कार्य कर रहे हैं कि आप सीख सकें कि शान्त को पूर्ण विस्तार पूर्वक व्यवहारिकता में ला सकते हैं कैसे होना है, शान्ति पूर्ण व्यवहार किस प्रकार करना और देख सकते हैं कि अपने अहम् और प्रतिअहम् है, तथा यह देखने के लिए कि आप कितने शान्त हैं। का कार्यान्वयन हम किस प्रकार करते हैं। आज और भी अधम है। इन चीज़ों से बचना चाहिए। आप सभी को आगे आना चाहिए और एक बार जब एक बार जब आप ऐसा करने लगेंगे तो, आप हैरान सुबह ही मैने आपको बताया था कि आपका विवेक होगें कि, किसी भी स्थिति में वह कार्य आपको बोझ इस बात को भली भांति आत्मसात कर ले। ठीक नहीं लगेगा। परन्तु ऐसा होता नहीं है, लोगों को है। आप द्वारा किए गए हर कार्य पर आपके यदि यह लगता है कि उनके द्वारा किया गया कार्य प्रशिक्षण की मोहर लगी होनी चाहिए। मान लो प्रभावशाली नहीं है तो वे तमोगुण में चले जाते हैं। आपको मीलों गाड़ी चलानी पड़ती है तो आप की चैतन्य लहरी मई जून, 2004 10 सबूरी की परीक्षा होती है। आप ही सभी कुछ कर अपने लिए आप स्वयं जिम्मेवार हैं। उदाहरण के सकते हैं। हेलिकोप्टर से यदि आपको छंलाग लगानी हो तरह से हैं । अब आप सोचें की मैं माँ हूँ-एक ही या पैराशूट से कूदना हो तो आप बार-बार इसका व्यक्तित्व दूसरा श्रीमान डान या किंग या काई अभ्यास करते हैं. बार-बार छलागें लगाते हैं अपनी और आपके दो व्यक्तित्व हैं। तो माताजी के टांगे तुडवाते हैं, हाथ तुड़वाते हैं. सभी कुछ करते सामने यदि आप स्वयं से कह रहे हैं कि मैं ठीक हैं, जब तक आप इस कार्य में कुशल नहीं हो नहीं हूँ, तो माताजी उभर कर आपके सम्मुख आएं जाते। आप मेरी बात को समझ रहे हैं न। गाड़ी और पूछे कि यह कहने से आपका क्या अभिप्राय चलाने में भी आप ऐसा ही करते हैं जब तक आप है? आपको ऐसा क्यों कहना चाहिए? क्या खराबी रूप में आप किसी से पूछे या कहें कि मैं माँ की कुशलता प्राप्त नहीं कर लेते। क्या यह ठीक नहीं है? है? इन बादलों को अपने अन्दर आते हुए देखने के बाह्य है तब चित्त आपकी आत्मा की ओर जाने लिए किस प्रकार हम अपना पूर्ण विश्लेषण करते लगता है अर्थात माताजी की ओर, और आप वही हैं? किस प्रकार यह बादल हमारे अन्दर आ रहे बनने लगते हैं। और हृदय के माध्यम से हैं? अपने भिन्न चक्रों के विषय में पता लगाएं। हम करने लगते हैं। अतः आत्मा को आत्मा से सन्तुष्ट कौन से चक्रों पर पकड़ रहे हैं? इस प्रकार से चित्त किया जाना चाहिए। इसके बीच में कुछ भी नहीं निरन्तर चक्रों पर स्थापित हो जाएगा| हमारी चैतन्य लहरियां ठीक हैं या नहीं? क्या हमें चैतन्य ही आपको सन्तुष्ट करना है। एक अज्ञान है और लहरियां आ रही हैं? यदि नहीं आ रहीं तो कौन से दूसर ज्ञान। अब स्वयं को माता जी के या, ये कहें चक्रों पर हमें पकड़ है? कौन सी पकड़ हैं? मुझे कि, आत्मा के रूप में देखने का प्रयत्न कीजिए। अपनी कुंडलिनी उठानी चाहिए और देखना चाहिए आप कह सकते हैं कि मात्र एक नाटक है। मात्र कि पकड़ कहा हैं। मैं ध्यान करता हूँ या नहीं? इतना सोचें कि आप एक आत्मा हैं तो स्वयं को यदि मैं ध्यान करता हूँ तो क्या ऊंघते हुए ध्यान किस प्रकार सम्बोधित करेंगे? आइये देखते हैं। इस करता हूँ या वास्तव में ध्यान में होता हूँ? क्या मैं बात को आप इस प्रकार से लें कि मान लो आप मेरे वास्तव में ध्यान महसूस करता हूँ या नहीं? क्या मैं सिंहासन पर बैठते हैं और साथ-साथ मेरे सम्मुख चुस्त होता हूँ या नहीं? ये सारी चीजें मेहनत, भी बैठते हैं। इस प्रकार आप यहां वहां बैठे निष्ठा से पूरी तरह से और सच्चाई से कार्यान्वित ऐसी स्थिति धारण कर लें और अब स्वयं को नाटक की जानी चाहिए। यह सारी प्रक्रिया आपके अन्दर के पात्र के रूप में सम्बोधित करें, "तो बाला आप है-आत्मन्येवा आत्मनः जायते। आप देखें कि यह कैसी है?" बाला उत्तर देती है. 'बेहतर। बड़ा अजीब सम्बन्ध है कि आत्मा से ही आत्मा सन्तुष्ट होती है! आपको स्वयं से ही सन्तुष्ट होना शनैः बाला लुप्त हो जाएगी। ठीक है? परन्तु अब भी चाहिए, और कोई नहीं है। माताजी का कोई यदि आपकी चिपकन बाला से है तो वह इस भ्रम सम्बन्ध नहीं है। किसी और का भी कार्य नहीं है। में पनपेगी। ये बात जब आप स्वयं से कहने लगते हैं जोकि महसूस है। इस ह्वैत व्यक्तित्व में केवल आप हैं और आपने हैं। हुए अब अगर आप माताजी से एकरूप हैं तो शनैः স चैतन्य लहरी मई - जून 2004 11 आपको चाहिए कि स्वयं को इस प्रकार उछलना शुरु कर दे और कहे कि मैं ही मैं हूँ तो सम्बोधित करें मानो आप ही माताजी हैं । यह यह अहकार है। नाटक है, ड्रामा है। शीशे के सम्मुख बैठकर अपने बाह्य (शरीर) को देखें। आप जो चाहे हों, चाहे श्री इसका उल्लघंन नहीं कर सकते। इसको आपने डान ही क्यों न हों, आप यहां बैठे हैं। अब श्रीडान दूसरे डान को सम्बोधित कर रहे हैं। उसे एक प्रकार की होनी चाहिए। परन्तु यदि आप केवल भूमिका ले लेने दो कि "मैं आत्मा हूँ। वो कहेगा, "मै यही बनना चाहेंगे तो यही बन जाएंगे, वो नहीं। आत्मा हूँ और शाश्वत हूँ। मैं ऐसा हूँ। कोई मुझे क्योंकि आप यह नहीं बन सकते। क्या आप मेरी नष्ट नहीं कर सकता। मैं सर्वों परि हूँ। मैं बात को समझे? अतः इसे करते हुए भी शीशे के आत्मसाक्षात्कारी हूँ। मैं जानता हूँ कि आत्मा क्या सम्मुख बैठकर यदि आप स्वयं से कहते हैं कि आप है। तुम क्या बोल रहे हो? और इस प्रकार से वो आत्मा हैं, जो कि विराट का अंग-प्रत्यंग है. तथा चीज दब जाएगी, नीचे चली जाएगी। इस प्रकार आपकी गति आरम्भ होती है। ऐसा केवल तभी गिर चुके हैं तो आपको यह जान लेना चाहिए कि संभव है जब आप सतोगुणी बन जाएं। आप यदि बूंद रूप में आप सागर में गिर चुके हैं इस प्रकार सतोगुणी नहीं हैं, अहम् आपमें बना हुआ है-मैं ये से आप सागर बने हैं। यह अवस्था (समझ) यदि हूँ-और ऐसी स्थिति में यदि आप गुरु बन जाते हैं नहीं आई तो यह कहना अति होगी कि आप सागर तो नोट छापना (धन एकत्र करना) शुरु कर देगे। सर्वप्रथम अहम् को नीचे लाना आवश्यक है। सावधान होना चाहिए- जहाँ तक स्वयं से बर्ताव अहम् यदि अब भी बना हुआ है तो आप अंहकार करने का कार्य है उसमें पूर्णतः स्थिर होना चाहिए। का रूप धारण कर लेंगे आत्मा नहीं बनेंगे। अतः क्योंकि आप जानते हैं कि किस प्रकार यह बुद्धि सर्वप्रथम इस यात्रा को सतोगुण के मध्य में लाना आपको धोखा दे सकती है। होगा यही कारण है कि मैं कहती हूँ कि कोई भी कार्य करते हुए, बातचीत करते हुए आपको ज्ञान होना चाहिए कि जो कुछ भी कर रही है आपकी आत्मा कर रही है। इस प्रकार से आप अपनी जीतने के लिए अपनी भाषा एवं शैली को परिवर्तित आत्मा को कार्यभार दे देते हैं। सभी अवस्थाओं में आप बात को समझें। आप बात को समझ लें तो इसमें विलीन करना है और इनको इसमें चाल इस आप सागर हैं क्योंकि बूंद रूप में आप सागर में हैं। अतः व्यक्ति को अत्यन्त स्थिर एवं अतः स्वयं का आंकलन करते अत्यंत-अत्यंत | हुए सावधान रहें। यह अवश्य जान लें कि सर्वप्रथम आपको अपने अहम् को जीतना है अहम् को करना होगा तृतीय पुरुष (Third Person) में बात जब आत्मा प्रभारी होती है तब आप कहते हैं कि करें। यह बहुत अच्छा तरीका है। अपने बारे में जब अब मैं आत्मा हूँ। उदाहरण के रूप में मान लो आप बात करते हैं तो कहें 'ये माताजी मेरी बात आपके पास एक प्रधानमंत्री है, एक उपप्रधानमंत्री है नहीं सुनेंगी, ये माताजी ऐसा नहीं करेंगी'। अब और एक मंत्री है, ठीक है। अब यदि आपकी आत्मा देखें कि इससे क्या होता है। ये माताजी आपको प्रधानमंत्री है और मंत्री को ही प्रधानमंत्री बनना है कुछ बताएंगी। एक बार जब आप इस माताजी को तो पहले वह उपप्रधानमंत्री बनेगा उसके पश्चात् ही स्वयं से अलग करने लगेंगे तो यह अहम् लुप्त हो प्रधानमंत्री बन सकता है। यदि यह व्यक्ति जाएगा क्या आप समझे? जैसे आप कह सकते हैं परन्तु चैतन्य लहरी मई - जून 2004 12 कि यह बाला ऐसा है। वो नहीं सुनेगा तो जो भी सच्चा बाला आपमें बचा है वही ठीक है। इस प्रकार की पकड़ किसको है। परन्तु आपको यदि यह से अपने अहम् से आप मुक्त हो जाते हैं और अपने पकड़ है तो आप एकदम से इस बात को स्वीकार चक्रों को समझने लगते हैं। कौन से चक्र पर पकड़ करें। यदि आप स्वीकार नहीं करते तो आपके रहे हैं, कहां पकड़ आ रही है, क्यों पकड़ आ रही नम्बर कम हो जाते हैं, यह अच्छी कला नहीं हैं। मैं है? वास्तव में अहम् से मुक्ति पा लेना आपके लिए ठीक नहीं हूं, मैं नहीं जानता... यह अच्छी कला आसान हो जाएगा तब आप देखें कि सहज-योगी नहीं है आपको बताना होगा कि कौन पकड़ रहा क्या करते हैं। कहने से अभिप्राय यह है, और आप है। परीक्षा में पास होने के लिए तब आप अधिक जानते है, कि मैं सभी के और हर चीज के विषय चित्त लगाएंगे। यह मात्र परीक्षा है। क्यों? क्योंकि में जानती हैँ। मुझे यह पूछने की आवश्यकता नहीं कल आपने आत्मसाक्षात्कार देना है. कल आपको है कि सच्चाई क्या है फिर भी मैं क्यों पूछती हूँ? गुरु बनना है। यह सभी चीजे बतानी हैं अतः यह चीजों के विषय में अपना पूर्ण अनजानपना दिखाती प्रशिक्षण का समय है। यह सब बातें पूछ कर मैं हूँ। लोग सोचते हैं कि वास्तव में अब कभी नहीं आपको प्रशिक्षित कर रही हूँ। परन्तु मैंने देखा है पकड़ूंगा। मैं यदि जानना चाहूं कि पकड़ कहां है कि लोगों में इसका भी अंहकार हो जाता है। जब तो मैं पता लगा सकता हूँ परन्तु मैं ऐसा करना नहीं मैं लोगों से पूछती हैूँ कि मुझे बताओ कि मुझे कहा चाहता। तब मैं कहती हैं, ठीक है, मैं तुम्हें बताऊगी पकड़ है तो इस बात पर भी उन्हें अहम् हो जाता कि पकड़ कहाँ है। ऐसे मौके पर व्यक्ति का है । आपने अत्यंत मूर्खातापूर्ण बात कही, सभी को दृष्टिकोण यह भी हो सकता है कि मुझे बता देना स्पष्ट देखना चाहिए। अतः बच्चों की तरह से सहज चाहिए, नहीं तो माताजी को पता कैसे चलेगा? व्यक्तित्व बनें। बच्चे आते हैं, यह चीज देखते हैं, वो कितनी अजीब बात है। दूसरे लोग ऐसा भी सोच चीज़ देखते हैं, समाप्त। मैं कहूंगी कि वह अथक सकते है कि मैं जानता हूँ कि वे (माताजी) कहां कार्य करते हैं । उन्हें इस बात की चिन्ता नहीं होती पकड़ रही हैं और यह बात मुझे बता देनी चाहिए। कि कुछ कहना, कुछ दिखावा करना है-कुछ नहीं । माताजी भी इस बात को जानती है परन्तु वह मेरी वो जो देखते हैं, वो कह देते हैं। यह सभी दिखावा परीक्षा ले रही हैं। मुझे सावधान रहना चाहिए । इस बाजी लोग करते हैं । वह कहते हैं, हो सकता है मैं अवस्था में लोग गलतियां करते हैं। मैं जब उनसे पूछती हूँ कि वह कहां पकड़ रहे यद्यपि ठीक होती है फिर भी वे अपने पर विश्वास हैं तों कहते है कि मैं बाएं हृदय पर पकड़ रहा हूँ नहीं कर पाते। बच्चे पूर्ण विश्वस्त होते हैं, उनसे परन्तु पकड़ बहुत मामूली है-हो गया सब खत्म। कुछ भी पूछिए वो तुरन्त बताते हैं कि ऐसा-ऐसा आपको बहुत कम अंक मिले, इस प्रकार 'आप कम है। परन्तु आप यदि किसी से पूछें कि यह चीज नम्बर लेते हैं। खैर कुछ तो आपको मिल ही जाता कौन से रंग की है. तो वो उत्तर देंगें या तो हरी या है क्योंकि आप ईमानदार हैं। जो भी हो मान लो लाल। जैसे हमारे यहां एक वृद्ध व्यक्ति था, ज्यादा किसी को हृदय की पकड़ नहीं है और आपको वृद्ध नहीं, मेरी आयु का था। उसे मेरे घर पर आना ईमानदारी है। तब मैं आपको बताऊंगी कि हृदय द 1 1 काई ही पकड़ रहा हूँ या कुछ ऐसा हो। उनकी संवेदना हृदय आ रहा है तो आप कहेंगे हृदय। यह था, तो उसने मुझे फोन किया, कहने लगा कि मैं मई ा चैतन्य लहरी 13 जून, 2004 ना आपके घर आना चाहता हूँ, किस प्रकार आऊ? बिन्दु पर विपरीत दिशा में मुड़ती हैं। तो दाईं नाड़ी मैंने कहा यह स्थान आक्सटैंड है। आप यहां आ बाई ओर को तथा बाई नाड़ी दाई ओर को चलायमान सकते है। परन्तु यदि टैक्सी न मिली तो कठिनाई होती है। यह दोनों नाडियां हँसा चक्र पर मुडती होगी। अतः Hertz Green आ जाओ। उसने पूछा हैं- । कहाँ? मैंने उत्तर दिया Hertz Green । वह कहने आपको या दाई ओर की समस्याए होती है या बाई लगा Hertz Blue? मेरी समझ में नहीं आया कि ओर की। बहुत से लोग सर्दी वरगैरह की वज़ह से वह हरे को नीला किस प्रकार कह रहा था। भी हँसा चक्र पर पकड़ते हैं। सर्दी को करने की बार-बार समझाने के उपरान्त भी उसकी समझ में मैंने आपको बहुत सी विधियां बताई हैं। बाईं ओर नहीं आ रहा था। तब मैंने उससे कहा कि पत्ते का की कमी के कारण यदि हँसा चक्र की पकड़ हो कौन सा रंग होता है कहने लगा नीला। ग्रेगार तब आप क्या करेंगे. बताएं। वहीं मौजूद था। मैंने कहा देखो अब यह पत्ते का रंग नीला बता रहा है। उसने फोन उठाया और ओर जाती हैं। अतः आपको महाकाली या ईडा उससे कहा कि तुम Hertz Blue आ जाओ। कहने लगा कि श्रीमाताजी कम-से-कम यह तकलीफ यह मंत्र कहें क्योंकि आपको दाई ओर की पकड़ नहीं होगी। वो आएगा ही नहीं। इतना भ्रमित आ रही है व्यक्ति था। नीले और हरे रंग में ही भ्रमित था । ऊँ त्वमेव साक्षात श्री ईड़ा नाड़ी स्वामिनी साक्षात् आप भी इससे लड़ रहे हैं। यही सत्य है। यह श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमोः नमः देखने के लिए चित्त का चौकन्ना होना आवश्यक है तीन बार इस मंत्र को कहें । कि हम भ्रमित तो नहीं है। यदि भ्रमित हैं तो अपने चक्रों को ठीक करके भ्रम को करें। आइये सभी ओर की पकड़ है या ज़िगर की समस्या है, ऐसी चक्रों का एक छोटा सा प्ररीक्षण करते हैं। आपको स्थिति में आप क्या करेंगे, प्रकाश का उपयोग मेरे प्रश्नों का उत्तर देना है। यदि हँसा चक्र पकड़ रहा हो तो वहां क्या कुछ और। आपको सूर्य नाडी की-दाई ओर की करना चाहिए? प्रश्न का उत्तर दीजिए । हँसा चक्र पकड़ रहा है तो हमें क्या करना करने के लिए आपको कोई ठंडी चीज इस्तेमाल चाहिए। -हँसा चक्र पकड़ रहा हो तो आपको कहना है: होगा-आपको 'चँद्र' का मंत्र लेना होगा दाई ओर ऊँ त्वमेव साक्षात् श्री हंसा चक्र स्वामिनी साक्षात् को यदि गरमी है तो 'चॅँद्र' का मंत्र लेने से यह श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमोः शान्त हो जाएगी। यदि बाईं ओर की पकड़ है तो आज्ञा से नीचे। आज्ञा के नीचे हॅसा चक्र है दूर यह ईडा नाडी है, जो बाई ओर से आकर दाई नाड़ी स्वामिनी का मंत्र लेना होगा। अभी आप लोग एक अन्य चीज़ है, मान लो आपको दाई दूर करेंगे. सूर्य की किरणों का उपयोग करेगें या समस्या है या पकड़ है। इसकी गरमी को दूर करनी होगी। ऐसे समय पर आपको कहना सूर्य' का नाम लेने से यह दूर हो जाएगी। मान लो नमः अपनी उंगलियां चक्र पर रख कर तीन बार मंत्र आपको भूत बाधा है तो जाकर धूप में बैठ जाएं। कहें । सारे भूत भाग जाएंगे। सूर्य से भूत भागते हैं। परन्तु इस चक्र पर क्या होता है? दोनों नाड़ियाँ 'ह' यदि आप अंहकारी हैं तो जाकर चाँदनी में बैठें, हो और ठ', ईडा और पिंगला यहां पर आकर मिलती सकता है आप थोड़े से पगला जाएं। (सभी लोग हैं और विपरीत दिशा की ओर मुड़ती हैं और इस हँसते हैं)। अहं पर विजय पाकर आप स्वयं को कैसे पहचानें (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) डालिस हिल 18 नवंबर 1979 (हिन्दी रूपान्तर) एक ऐसी घटना जिसके माध्यम से परमात्मा की को इसके गंतव्य तक पहुँचाना है जहाँ तक मेरा सृष्टि पूर्णता को प्राप्त करेगी और अपना अर्थ प्रश्न है अब मुझे और कुछ नहीं करना। मैं कर समझेगी। ये इतनी महान बात है। ये इतनी महान चुकी हूँ। अब आपने इसे प्राप्त करना है इसमें परिवर्तित करना है। ये घटना है। संभवतः ये बात हम महसूस नहीं करते। परन्तु जब हम कहते हैं कि हम सहजयोगी हैं तो आपका कार्य है, इसीलिए यह गंभीर मामला है। हमें इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि सहजयोगी होने के लिए आपका कितना सामंजस्य सहजयोग की समस्या के कारण हम अत्यन्त विघटित के सत्य से होना चाहिए तथा इतनी सारी (Disintegrated) हैं । परमात्मा से हमारा योग असामंजस्यताएं, जो हमारे साथ चिपकी हुई हैं (Connection) कभी ठीक प्रकार से स्थापित नहीं इनसे छुटकारा पाना होगा। लोग इसे बलिदान है। जैसे मैंने कहा कि यह यंत्र (माइक) यदि पाँच कहते हैं। मैं नहीं सोचती कि यह बलिदान है। भागों में बँटा हुआ हो और पाँचों भाग एक दूसरे से आप यदि ये सोचते हैं कि आपके मार्ग में कोई झगड़ रहे हों तो आप इस यंत्र से कुछ भी कार्य उतरना है और सभी कुछ | दूसरी बात जो मैं हमेशा कहती रही हूँ कि अहं रुकावट है तो उस बाधा को दूर करने का प्रयत्न नहीं कर सकते। चाहे यह अपने ऊर्जा स्रोत से करते हैं। इसी प्रकार से अपनी बाधाओं से जब जुडा हुआ ही क्यों न हो। इसी प्रकार से अब भी आप मुक्त हो जाते हैं तो ये बात आपको समझ में यदि आप लोगों में सामंजस्य नहीं है तो योग की आ जाएगी। वाधाएं आपके मार्ग में खड़ी हैं और बह अवस्था आप नहीं पा सकते। उदाहरण के रूप आपकी उन्नति को रोक रही हैं अतः इन सारी में मैंने देखा है कि लोग यहाँ सहजयोग के लिए असामंजर्यताओं को अपने मस्तिष्क से पूरी तरह आते हैं। परन्तु उनके लिए अन्य आकर्षण एवं अन्य वाहर निकाल फेंकें और अपनी आत्मा से एकरूप प्राथमिकताएं होती हैं तथा अन्य बहुत सी चीजें हो जाएं, असामंजस्यताओं से नहीं । मेरे विचार से यहाँ के लोगों में भी यह एक के लिए वे अपना सारा समय बर्बाद करते रहते हैं समस्या है। जब भी मुझे कोई शिकायत मिलती है और फिर कहते हैं कि 'श्रीमाताजी सहजयोग में या ऐसा कुछ और होता है तो मैं समझ लेती हूँ। हमारी उन्नति नहीं हो रही। जैसे पहले श्री तो मैं समझ लेती हूँ कि सहजयोग के विषय में वेणुगोपालन ने बताया कि यदि आप निश्चय कर लें उनके लिए अत्यन्त महत्व पूर्ण होती हैं उन चीजों समझ का स्तर अभी तक पूरा नहीं है यह बहुत कि 'हमें सर्वप्रथम सहजयोग करना है बाकी सभी वड़ा कार्य है और यदि आप लोगों ने ही इसे करना चीजें गौण हैं, केवल तभी आपके अन्दर वास्तव में है तो आपको बहुत उन्नत होना होगा आप लोगों सहजयोग स्थापित होगा तभी हम उच्च स्तर के को ही यदि इसके लिए संघर्ष करना है तो इसे पूरी कुछ सहजयोगी प्राप्त कर सकेंगे । मैं जानती हूँ कि ह से समझना होगा और ये भी जानना होगा कि कुछ लोग मध्यम दर्जे के भी होंगे, कुछ विल्कुल आ कहाँ खड़े हैं और स्वयं को कितना सुधारना बेकार होंगे और कुछ पूरी तरह से बाहर फेंक दिए है । व्योंकि आप ही लोग हैं जिन्होंने सहजयोग जाएंगे। मैं ये भी जानती हूँ कि यहाँ पर सभी प्रकार रैतन्य लहरी मई - जून 2004 15 के लोग आएंगे। बड़ी बाधा होती है। अत्यन्त कठिन प्रतीत होता है। अब आप लोगों ने निर्णय करना है कि आप हर रामय उनको सन्तुष्ट करने के लिए उनके किस स्थान पर है? किस सीमा तक आप जाएंगे? अहम की सराहना करनी पड़ती है ताकि वे रास्ते अन्य सहजयोगियों की छोटी-छोटी तुच्छ चीजों पर आ जाएं या समझ जाएं। यही कारण है कि के विषय में यदि आपने अपना समय व्यर्थ करना बहां पर उन्नति कम हो जाती है। है तो आपका विघटन बढ़ जाएगा। आप अकेले पड़ जाएंगे क्योंकि इस प्रकार के सभी निर्णय अहं के और उनकी पत्नी सभी प्रकार के उल्टे-सीधें गुरुओं जहा तक श्री वेणुगोपालन का सबाल है तो ये माध्यम से ही होते हैं। ये मुझे पसन्द नहीं हैं, मैं के पास गए। कशोकि भारत में भी ये एक अन्य ऐसा नहीं करता, ऐसा मुझे दिखाई नहीं देता प्रकार की अंतिशायता है कि हमें सभी संतों का आदि-आदि। किसी प्रकार से यदि आप अपने अहं सम्मान करना चाहिए। परन्तु इस प्रकार के संत की कार्यशैली को देख लें तो इससे मुक्ति पा सकते झूठ-मूठ के संत हैं केवल झूठ-मूठ के ही नहीं कार्य आपने करना है। अहं से लड़ाई नहीं उनमें से हैं। यहीं कुछ तो राक्षस हैं वो खुद तो अपने मुँह करनी। मैं ये कभी भी नहीं कहती कि अहं से से कहेंगे नहीं कि 'हम राक्षस हैं। वो लोग ये नहीं लड़ाई करो, मैं ये कहती है कि समर्पण करो, यही कहते कि हम राक्षस हैं और न ही अपने असली 1 एक मात्र उपाय है जिससे आपका अहं दूर हो रूप में सामने आते हैं। वे सीधे-सच्चे साधक उनके पास आते हैं, अपना हृदय उन्हें समर्पित करते हैं, सकता है। यही कारण है कि पश्चिमी देशों में आध्यात्मिक सभी कुछ करते हैं और अन्त में उन्हें पता चलता विकास भारत से कम है, ये बात आपने देखी है। है कि वे तो राक्षस हैं। जब उन्हें पता चलता है कि श्री वेणुगोपालन जी को ही लो। वो प्रशंसनीय हैं। ये राक्षस हैं तब वे हैरान हो जाते हैं। बापिस आकर यो एक ऐसे आदमी हैं जो सराहनीय कार्य कर रहे वे किसी अन्य गुरु के पास जाते हैं और फिर किसी हैं। भारत में वे एक अत्यन्त ऊंचे पद पर नियुक्त अन्य के पास। परन्तु वों इस हानि की पूर्ति कर लेते हैं। यहां पर मैंने देखा है कि कोई बर्तन धोने वाला है क्योंकि उन्हें ये पता चल जाता है कि हानि हो व्यक्ति भी सहजयोग में आता है तो उसका भी गई है तथा सत्य का भी ज्ञान हो जाता है और ये अहम् इतना बडा होता है। हमारे (भारत के) भी जान जाते हैं कि उन्हें किस चीज़ की आशा प्रधानमंत्री का भी अहम् इतना अधिक नहीं होता करनी चाहिए। उस देश का ये आशीर्वाद है कि जितना उसका है। वो बात करता है कि "मैं ये लोगों को पता चल जाता है कि किस चीज़ की कार्य नहीं करता आदि आदि। जिस प्रकार लोग आशा करनी चाहिए। उन जैसे अच्छे किसम के बाते करते हैं मुझे हैरानी होती है। मानो हर आदमी लोग किसी ऐसे व्यक्ति के पास नहीं जाने चाहिएँ इंग्लैड का सम्राट बन गया हो! जब लोग यहां आएं जो चमत्कार दिखाते हो या इन्द्रियार्थवाद दर्शाते तो आपको बताना चाहिए कि 'व्यर्थ की बहस हैं ऐसे लोगों के पास न जाकर ये साधक सूक्ष्म करके श्रीमाताजी की शक्ति को बर्बाद न करो। लोगों के पास जाते हैं जो वहुत वालाक हैं, जो एक यहां पर सभी लोग अपना कोई अन्त नहीं समझते। प्रकार का दिखावा करते हैं और कहते हैं-नहीं पहली बार जब वो आते हैं तब भी उनमें यह बहुत नहीं, इस मार्ग रो तुभ चतम उपलब्धि प्राप्त कर चैतन्य लहरी मई - जून, 2004 16 सकते हो। भारत के अधिकतर सहजयोगियों को करें, तुच्छ चीज़ों पर या दूसरे लोगों के दोष ढूंढने भी इन चीजों से निकलना पड़ा। गाँवों के या कुछ में । जिलों के लोगों के अतिरिक्त अधिकतर शहरी लोग किसी न किसी गुरु के कुछ होने के बावजूद सम्मुख दिया है। मैंने उन्हें बताया है कि आपने इन लोगों कोई भी समस्या नहीं आईं। आप उन्हें किसी भी की जूतामार क्रिया ( Shoe Beating) करनी है। काम के लिए कहो वो कहते है, 'ठीक है। मेरी प्रतिदिन सुबह वे (वेणुगोपालन) एक घण्टे तक समझ में नहीं आता ये सब कैसे कार्यान्वित होता साधना करते हैं चाहे कितने भी व्यस्त हों। यहाँ पर है। आप सब लोग दिल्ली में रहे हैं। आपने देखा तो लोग सुबह उठने के नाम से ही नाराज़ हो जाते होगा कि वहां पर कितने सारे लोग हैं, कभी कोई है कहने से अभिप्राय ये है कि ऐसे सुस्त लोगों समस्या नहीं आई। क्या आपने कभी किसी को का कोई क्या करे! ये अत्यन्त कठिन कार्य है। मैं यही सोचती हूँ कि हमें समझना चाहिए कि हुए देखा? ऐसा कुछ भी नहीं है। पश्चिम में हमारी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है क्योंकि यह कार्य लन्दन में ही होना है आरम्भ में इसे दोष मढ़ते रहना, विवेक का चिन्ह नहीं है। दोनों ही लन्दन में ही घटित होना है और इसलिए आप चीजें गलत हैं सर्वोत्तम बात तो विवेकशीलता की लोगों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। आपने अपना ओर बढ़ना और स्वयं देखना है कि हम और सहजयोग का बार-बार मूल्यांकन करना और अधिकाधिक विवेकशील बन रहे हैं आपमें से कुछ समझना है कि अहम् और निःसन्देह प्रतिअहं भी लोग वास्तव में बहुत उन्नत हैं और कुछ लोग आपको सुस्त करता है। ऊपर-नीचे होते रहते हैं तथा कुछ अन्य अभी बहुत है। मैं आपको बता देँ कि अहं ही मुख्य समस्या ही निम्न-स्तर पर हैं। अतः हम सबको एक साथ है। परन्तु मैं किसी से ये नहीं कह सकती कि ये चलना होगा किसी एक व्यक्ति ने यदि कुछ पा आपका अहं है। ऐसा कहने पर तो वो उछलकर लिया तो सहजयोग को इसका कोई लाभ नहीं। मेरे सिर पर आएगा परन्तु अपने अहं को देखने जैसा मैंने आपको बताया, सामूहिक उन्नति ही का प्रयत्न करें कि यह किस प्रकार आपको पथभ्रष्ट कार्य को करेगी और आप सबने सामूहिक रूप से कर रहा है। आप क्योंकि अपने लिए आनन्द खोज इसे कार्यान्वित करना है। कितनी मधुर बात है कि रहे हैं अपनी ही संपदा को खोज रहे हैं। आपकी आज विश्व-भर में आपके भाई-बहन हैं। जब आप अपनी ही छुपी हुई संपदा को आप युगों से खोज वहां जाएंगे तो वे पूर्ण हृदय से आपका स्वागत रहे हैं। इसी संपदा को मैंने आपके सम्मुख अनावृत करेंगे जिस प्रकार आपने पूर्ण हृदय से यहाँ उनका करना है। कोई व्यक्ति यदि आपको उच्चतम चीज़ स्वागत किया। परन्तु हम सबको इतना उन्नत देने का प्रयत्न कर रहा हो तो उससे बहस करने होना होगा, उस बिन्दु तक आना होगा, जहां हम की क्या आवश्यकता है? ये तो शक्ति को बर्बाद अत्यन्त प्रेम से खुले दिल से बिना किसी चिन्ता या करना है। इन चीज़ों पर अपनी शक्ति बर्बाद नहीं भय के एक दूसरे का सामना कर सकें और कह वो दिली कैम्प का आयोजन करते हैं । उन्होंने पास गए परन्तु इतना सब ही हमारी पुस्तकें छपने का प्रबन्ध किया है, सभी भी उन्होंने सब कुछ छोड़ कुछ अत्यन्त सुचारु रूप से किया है। मेरे शिकायत करते हुए, झगड़ते हुए या परस्पर लड़ते हर समय दूसरों में दोष ढूँढते रहना, दूसरों को परन्तु अह मुख्य समस्या चैतन्य लहरी मई - जून, 2004 17 सकें कि वे हमारे भाई हैं और हम उनके भाई हैं लिए यह अत्यन्त विनम्र दृष्टिकोण है इसकी बूँदें अपने मस्तिष्क में इस प्रकार बरसने दें कि ये तथा हमें उनसे प्रेम करना है। ऐसा तभी सम्भव हो सकता है जब हम भयमुक्त मस्तिष्क को पूरी तरह से आच्छादित कर ले। इस हों क्योंकि इसका दूसरा पक्ष ये है कि अहं के साथ शाश्वत आशीर्वाद को अपने अन्दर आने दें। मैं भय भी जुड़ा रहता है. क्योंकि यह दूसरों पर बहुत ही उत्सुक हूँ। स्वयं को तुच्छ व्यक्ति न आक्रमण करता है और ये भी जानता है कि अन्य बनाएं अपनी कल्पना को विस्तृत करें, अपने विचारों लोग भी आक्रमण कर सकते हैं। अतः इस विषय को विशाल बनाएं क्योंकि अब आपका सम्बंध बहुत में भी सोचना होगा कि इससे हमें किसी प्रकार का विशाल चीज़ से है, विशालतम से, आद्य लाभ नहीं होगा। कभी अपना तिरस्कार न करें । (Primordial ) से, उच्चतम से, विराट से है। आप आत सन्त हैं, ये बात आपको समझनी होगी। विश्व यदि अपने महत्व को महसूस करेंगे तो इसे कार्यान्वित में आप ही लोग आत्मसाक्षात्कारी हैं। कितने लोग कर लेंगे । | ऐसे हैं जो कुण्डलिनी उठा सकते हैं, कितने लोग समझते हैं कि चैतन्य लहरियाँ क्या हैं? गुरु पूजा के दिन मैं आपको बताने वाली हूँ कि घण्टे सोता है फिर भी अपनी साधना नहीं छोड़ता, आपने क्या उपलब्धियाँ प्राप्त की और आपके अन्दर पूरी नींद यदि ले सके तो ठीक है। प्रातःकाल एक अब कितनी शक्तियाँ विकसित हो चुकी हैं और घण्टे की साधना अवश्य होनी चाहिए। चाहे जैसे कार्य कर रही हैं। सहजयोग के माध्यम से किस भी हो वह ये साधना करता है। परन्तु नींद का प्रकार आपके चक्र जागृत हो गए हैं वो जैसे क्या? अपने सभी जन्मों में हम सोते ही रहे हैं। कहते है, 'हाँ, ये घटित हो गया है। परन्तु आप आपको स्वयं को सुधारना होगा, ऊपर उठना होगा। इसके विषय में आप क्या कर रहे हैं? किसी भी अपनी उत्क्रान्ति प्राप्त करने के लिए आपको आगे व्यक्ति के साथ घटित होने वाली ये महानतम बढ़ना होगा। यही आवश्यक बात है। आप यदि किसी भारतीय सहजयोगी को देखेंगे तो हैरान हो जाएंगे। वो केवल दो, तीन या चार मैं बता रही हूँ कि आप अपने स्वार्थ हैं कि ये वो महानतम घटना है जिसकी बहुत (Selfishness) को देखें। स्वयं को पहचानना ही समय पूर्व 'अन्तिम निर्णय' (Last Judgement) महानतम स्वार्थ है। आप स्वयं को यदि नहीं पहचानते कहकर भविष्यवाणी की गई थी। आप जानते हैं तो सारा स्वार्थ बेकार है। संस्कृत में इसे स्वार्थ कि यही रास्ता है। आपका आंकलन होने वाला है। कहते हैं। इसका सन्धिछेद यदि करें, ये है स्वः+अर्थ अतः आपको कठिन परिश्रम करना होगा। हमें है। स्वः अर्थात आत्मा और आत्मा का अर्थ खोजना कार्य करना होगा ठीक है कि बिना किसी प्रयत्न ही महानतम स्वार्थ है। इसका यही अर्थ है। हमें खुशी है कि वह (वेणुगोपालन) यहां पर हैं रखने के लिए, और अधिक उन्नत करने के लिए और हम भी भारत जाएंगे। अगले वर्ष हम भारत हमें पूर्ण निष्ठापूर्वक इसे कार्यान्वित करना होगा जाने की योजना बना रहे हैं और वहाँ पर दिल्ली तथा मुम्बई के बहुत से लोगों से मिलेंगे, सभी आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। वो योजना बना रहे हैं घटना है, आप ये बात जानते हैं। आप ये भी जानते के आपको ये दे दिया गया। परन्तु इसे बनाए अपने अन्तस में इसे अधिक से अधिक प्राप्त करने के लिए अपने अन्दर आत्म-सात करने के चैतन्य लहरी मई - जून, 2004 18 स्वयं के प्रति शान्त हो जाएं। मेरे प्रति नहीं स्वयं के कि किस प्रकार आपका स्वागत करना है आपके जाने पर उन्हें बहुत प्रसन्नता होगी कि लन्दन तथा प्रति मैं कह रही हूँ कि आपको शान्त होना होगा अन्य स्थानों से सहजयोगी आए। आप जानते हैं क्योंकि आपके अन्दर समस्याएं हैं। आपको स्वयं कि किस प्रकार वे आपकी देखभाल करते हैं और के प्रति सबूरी करनी होगी किसी अन्य के प्रति कितने प्रसन्न एवं आन्नदित होते हैं। हमसे बहुत सी गलतियां हुई हैं। हमें चाहिए शान्त हैं तो युगों पूर्व दिए गए वचन के अनुसार कि इन गरलतियों को समझें क्योंकि ये समस्या आपको उपलब्धि प्राप्त हो जाएगी। परन्तु इसके हमारे बहुत अधिक सोचने, बहुत अधिक पढ़ने तथा लिए आपको स्वयं से शान्त रहना सीखना होगा, बहुत अधिक प्रभुत्व जमाने के कारण है परन्तु इन स्वयं पर क्रोधित नहीं होना होगा स्वयं को दूषित चीज़ों से हम बड़ी आसानी से मुक्ति पा सकते हैं, नहीं करना होगा दूसरों के प्रति आक्रामक व्यवहार छुटकारा पा सकते हैं। स्वयं को निर्लिप्त करना नहीं करना होगा करने के लिए यह अत्यन्त होगा और अपने को संबोधित करते हुए स्वयं को सामान्य अत्यन्त सहजतम कार्य है परन्तु अपने देखना होगा, "अब श्रीमन आप कैसे है?" ऐसा यदि जटिल जीवन और जटिल विचारों के कारण हम आप कहेंगे तो तुरन्त आपका चित्त आपके अन्दर से इन चीज़ों में जकड़े गए हैं बिना किसी कठिनाई निकलकर आपके बाह्य अस्तित्व को देखेगा। जितना के अत्यन्त सुगमता से इन चीज़ों से निकला जा स्पष्ट आप स्वयं को देखेंगे उतना ही अच्छा है सकता है, फिसलकर इनसे बाहर आया जा सकता नहीं। यह मुख्य बिन्दु है। आप यदि स्वयं के प्रति आपने अपना सामना करना है। आप अपना सामना है। मैं जानती हूँ कि आप ये कार्य कर सकते हैं। नहीं करते क्योंकि ऐसा करने से आपको डर लगता है। क्योंकि आप दूसरे लोगों के प्रति आक्रामक भूल जाएं। एकदम से ये सारी समस्याएं टल रहे हैं इसीलिए आप अन्य लोगों के अपने प्रति जाएंगी। ज्यों ही आपका जीवन सीधा चलने लगेगा आक्रामक होने से घबराते हैं। परन्तु स्वयं को सारी समस्याएं खाक हो जाएंगी। आपके प्रकाश के देखने में कोई आक्रामकता नहीं होगी क्योंकि जब अतिरिक्त कुछ भी बाकी न बचेगा तथा वो लोग रह आप स्वयं को देखते हैं तो यह पूर्ण अवस्था होती है। किसी के प्रति न तो आक्रामक बनें और न ही के लिए आपके पास आते हैं। अतः मेरे पिता, मेरी बहन, मेरा भाई आदि चीजों को जाएंगे जो प्रकाश प्राप्ति आत्म-साक्षात्कार प्राप्ति 1 मैं जानती हूँ कि गुरु पूजा पर आपको बहुत कोई अन्य आपके प्रति। आप तो मात्र स्वयं को स्पष्ट देखें, यही कार्य आपने करना है। शनैः शनैः आप अपने चक्रों को देखने लगते हैं, कि स्वयं को तैयार करें। मैं कोई महान कार्य बाधाओं को देखने लगते हैं और जान जाते हैं कि करूंगी परन्तु उसके लिए मेरे सम्मुख पात्र होना आनन्द प्राप्त होगा और इससे पूर्व, मेरी प्रार्थना है, किस प्रकार ये समस्याएं उत्पन्न होती हैं। परन्तु चाहिए। अतः अपनी तैयारी करें, इसके विषय में सभी को परिणाम चाहिए! ठीक है आपको सोचें क्या आप दूसरों से प्रेम करते हैं? क्या आप शीघ्र परिणाम चाहिए। परन्तु क्या आपभी वैसे ही प्रेममय हैं? क्या आप सभी से प्रेम करते हैं? दूसरों हैं। आप यदि वैसे हैं तो आपको शीघ्र परिणाम से प्रेम करने की सोच ही अत्यन्त महान है। कहने प्राप्त होंगे और यदि आप उस स्तर के नहीं हैं तो से अभिप्राय है कि आप मुझसे पूछे क्योंकि मैं सदा तुरन्त मैतन्य लहरी मई - जून, 2004 19 यही सोचती हैँ कि मुझे कितना प्रेम करना है। आप जानती हूँ कि ऐसा हो सकता हैं जितना जल्दी ये देखते हैं कि दूसरों को देने के लिए मेरे पास घटित हो जाए बेहतर है । अब ये आपकी मर्जी पर कितना प्रेम है! ये सोचें कि अन्य लोगों से प्रेम निर्भर है कि आप क्या चुनते हैं। करना कितना महान है। आप जानते हैं कि कभी-कभी किस प्रकार से लोग मुझसे व्यवहार सुनने को मिला और वो भी क्रिसमस से पूर्व। करते हैं, भयंकर! क्या ये बात ठीक नहीं है? फिर क्रिसमस मेरे लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है इस बात भी मैं उनसे प्रेम करती हैँ, उनसे खेलने में आनन्द को आप जानते हैं। इसी प्रकार से अब हम एक लेती हूँ मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ कि इतना सुन्दर संगीत अन्य क्रिसमस मना रहे है-अपने अन्दर अवतरित इसी प्रकार आपने भी प्रेम करना है और प्रेम ही हुए 'एक नए ईसामसीह का क्रिसमस आइए वो चीज है जो कमल की तरह से आपके सम्मुख उनके आने की तैयारी करें और ये तैयारी स्वयं से सौन्दर्य-पूर्ण खिल उदेगी। कमल की पंखुड़ियाँ पलायन करके नहीं होगी, कार्यान्वित करने से जब खिलती हैं तो अत्यन्त सुन्दर सुगन्ध लगती है। इसी प्रकार से आपके हृदय भी खुल शरीर मन्दिर में यदि आत्मा को स्थापित करना है जाएंगे और प्रेम की सुगन्ध पूरे विश्व में फैल तो इसे स्वच्छ तो करना ही होगा। जाएगी। आप भी इससे सुरभित हो उठेंगे मैं सुन्दरतापूर्वक स्वच्छ करने से ये तैथारी होगी इस बहने परमात्मा आप संबको धन्य करें ज हु ४ ोभ े क कoट री) आनन्द (निर्मला योग से उद्धृत) महत्वपूर्ण देन है। शारीरिक और मानसिक समृद्धि का महत्वूपर्ण आधार 'कुण्डलिनी उत्थान प्रक्रिया ही है आध्यात्मिक मूल्यों को जन मानस में पुनः प्रतिष्ठापित करने का प्रशंसनीय प्रयास पूज्य माताजी ने सहजयोग द्वारा सम्पन्न किया है। निःसन्देह प्राणिमात्र में मानव ही सर्वश्रेष्ठ है और उसका आधार स्वयं उसका चरित्र है। इसी अपने चरित्र के कारण बह सर्वाोपरि है। जब तक उसका चरित्र उसके पास है, तब तक उसका यह गौरवपूर्ण अस्तित्व भी अक्षुण्ण है। अन्यथा उसमें एवं अन्य जीवों में कोई अन्तर नहीं होता। संसार में अब तक जितने भी चरित्रवान महापुरूष हुए हैं और संसार जिन्हें पूज्य मानता है एवं नत-मस्तक होता है उन सबने अनादि काल से ही सद्गुणों के आदर्शों की स्थापना की है। इस प्रकार उन्होंने ज्ञानी एवं बुद्धिमान देवात्माओं को बाध्य किया कि वे स्वयं चरित्रवान होकर उनके गुणों का प्रचार एवं प्रसार करें जिससे मानव समाज अपना अस्तित्व बनाये सहज योग की महत्ता प्राचीन काल, से ही रखने में सफल हो तथा शनैः-शनैः मनुष्यता की स्वीकार की गई है। उसे आत्म-साक्षात्कार का ओर अग्रसर होता रहे। चरित्र की महिमा एवं सबसे श्रेष्ठ साधन माना गया है "अयं तु परमो गरिमा अपार है। इस का सांगोपांग वर्णन कठिन धर्मः यद्योगेनात्म दर्शनम् (मनु) योग के द्वारा है । ऐसे ही देवात्मा पुण्यशीला माताजी श्री निर्मला आत्मदर्शन करना सबसे बड़ा धर्म है। सहज देवी जी हैं जो साक्षात कुण्डलिनी माता का अवतार योगान्तर्गत कुण्डलिनी जागरण विधि की दीक्षा हैं। इन्होंने अपने अनूठे सम-सामयिक आचार विचार वंदनीय माता जी द्वारा दी जाती है। जिससे साधक एवं सदव्यवहार से पूर्वजों के चारित्रिक आदर्शों तथा पल्लावित एवं कुसुमित होकर दिव्य आह्लाद प्राप्त गुणों को ग्रहण कर संसार के समक्ष एक अद्भुत करता है। मुदित प्रेरणाप्रद निश्छल आशीर्वादात्मक महान आश्चर्य प्रस्तुत किया है । प्रसाद वितरण कर अपनी अथाह अमूल्य संपदा का स्वामी बनाने में समर्थ है। समृद्ध अतीत का आकर्षण अनादिकाल से गूढ़ एवं व्यापक चिषय रहा है। एवं बीते युग की भव्यता उद्भाषित हो उठती है। विश्व का कोई भाग ऐसा नहीं जहां धर्म किसी न आधुनिक युग में समस्त विश्व के लिये सहजयोग किसी रूप में विद्यमान न हो-देश काल एं साधारणतया मानव जीवन के लिये धर्म चैतन्य लहरी मई जून, 2004 21 में अपने विचारों और अनुभवों के आधार पर विचरण करता है। मानसलोक की यही स्थिति है। अंतर्जगत परम्परागत धर्म को मान्यता प्राप्त नहीं है वे भी की अनुभूतियों के आधार पर बर्हिजगत का निर्माण व्यापक धर्म के किसी न किसी अंग को स्वीकार होता है । व्यक्ति काम क्रोध, लोभ, मोह, हानि, कर जीवन यापन करते हैं। धर्म के आरम्भ होने के लाभ जीवन, मरण, यश, अपयश से रहित शुद्ध हृदय से सुख दुःख आदि द्वन्दों में स्थिर बुद्धि वाला परिस्थितियों के अनुसार इसका वास्तविक स्वरूप बदलता रहता है। जिन लोगों के विचारों में किसी समय के बारे में भी विवाद है, परन्तु यह तथ्य भुलाया नहीं जा सकता कि समाज व्यवस्था के सिद्धि असिद्धि में समता भाव से सम्पन्न और आरंभ से पूर्व मानव की वह अवस्था किसी न किसी निष्पक्ष भाव से लोक संग्रह की भावना लेकर अपनी आत्म तुष्टि में ही व्यावहारिक जीवन का संचालन सामाजिक व्यवस्था के समय से ही मानव के समक्ष करता है, जिससे अन्तर्जगत और बाह्यजगत में आया-आज भी समाज से अलग थलग इसका किसी प्रकार का असामंजस्य न हो। वस्तुतः आत्म अस्तित्व स्वीकारा नहीं जा सकता। क्रमशः मानव ज्ञान का व्यष्टि और समष्टि रूप में ठीक निरूपण जीवन का विकास होता गया और धर्म का स्वरूप इसी आधार पर किया जा सकता है। मानव जीवन का विकास और उसके उद्देश्य की प्राप्ति इसी में का अर्थ किसी न किसी धर्म से ही लिया जाता है। संनिहित है । वर्तमान जटिल परिस्थितियों में धर्म का सामाजिक रूप निश्चित होते ही सहजयोगान्तर्गत कुण्डलिनी उत्थान की अनुपम तत्सम्बन्धी विचार कि धर्म क्या है, उठता है। इस प्रक्रिया जो माता जी श्री निर्मला देवी द्वारा अनुसंधानित एवं प्रसारित है वह धर्म की परिभाषा के रूप निश्चित हुआ जिसके अनुसार संस्कृति का अन्तर्गत है क्योंकि वे अनुप्राणित आनन्द लहरियों निर्माण हुआ। इसका सामाजिक व्यवस्था के साथ द्वारा "आत्मवेदं सर्वत्र" तथा "आत्म दीपोभव" का भी गहरा सम्बन्ध है क्योंकि धर्म, अर्थ, काम मोक्ष बोध कराती हैं। जिस प्रकार अपने घर के दीपक रूप में विद्यमान है। परन्तु स्परष्ट रूप से यह भी समाज के लिये स्पष्ट होता गया। अतः समाज विवेचन में जो धारण करे वही धर्म है"-धर्म का में इसका स्थान प्रथम है। इसकी पृष्ठभूमि व्यापक को प्रकाशित करने के पश्चात ही दूसरे के घर का है, युग के अनुसार परिस्थितियों में परिवर्तन होता दीपक जलाया जा सकता है आत्म-ज्ञान होने पर है। इन्हीं के आधार पर उस विशिष्ट युग की ही यथार्थ लोक संग्रह हो सकता है। आत्म ज्ञानी मान्यताऐं बनती हैं। स्वधर्म सिद्धि इसके पालन से पुरुष दूसरों के कल्याण के लिये प्रेरित होता है। ही सम्भव है, पर धर्म से इसका विरोध सम्भव नहीं वैयक्तिक मान्यताओं के आधार पर सत्य निरूपण (गीता) आध्यात्मिक क्षेत्र में कर्म भक्ति और ज्ञान सम्भव नहीं-यह सब सहज योग द्वारा ही सहज को सभी ने मान्यता दी है, अपने स्वभाव व अनुभव सुलभ है। मन की निरोगता ही वास्तविक निरोगता को आधार मान कर। यह ध्रुव सत्य है कि प्राणी है। जिसका शरीर बलवान एवं हृष्ट पुष्ट है परन्तु बिना अपने को वातावरण के अनुकूल बनाये रह ही मन में बुरी वासना, असद्विचार, काम क्रोध, लोभ, नहीं सकता-उसके अस्तित्व में ही खतरा पैदा हो जाना स्वाभाविक है। प्राणीमात्र आन्तरिक और स्वार्थ आदि दुर्गुण और दुष्ट विचार एवं विकार मोह, घृणा, द्वेष, वैर, हिंसा, अभिमान, कपट, ईष्ष्या, बाह्य सामंजस्य की आवश्यकतावश अपने अंर्तजगत निवास करते हैं, वह कदापि निरोग नहीं-मन का चैतन्य लहरी मई जून, 2004 22 रोगी सदा जलता रहता है। वह माताजी द्वारा जाती है और तब वह निर्मल आनन्द स्वरूप बन दर्शाये सहज योग द्वारा ही अमोध शान्ति की जाता है। इसी को अष्टांग योग में सविकल्प उपलब्धि कर सकता है। सुन्दर वही है जिसका समाधि की संज्ञा प्रदान की गई है। "तत्र शब्दार्थ हृदय सुन्दर है। इसको शुद्ध करो, एक- एक दोष ज्ञान विकल्पै संकीर्ण सवित की समाप्ति (पांतजली चुन-चुन कर निकाल बाहर करो, सद्गुणों को योग दर्शन 142) उनमें शब्द, अर्थ और ज्ञान इन ढूंढ-ढूंढ कर हृदय में बसाओ। माता जी का कथन तीनों के विकल्पों से संकीर्ण मिली हुई समाधि यह भी है कि "धरती का धन-धन नहीं सच्चा सवितर्क है इसके बाद जब साधक स्वयं ब्रह्म में धन हृदय में रहता है। उत्तम विचार और चरित्रबल तद्रूप हो जाता है तब ये शब्द अर्थ ज्ञान नहीं रहते ही परम धन है। सुख न पहुँचा सको तो दुख तो वरन केवल ब्रह्म (आत्मा) का स्वरूप ही रहता है। किसी को न दो; पृथ्वी पर से पाप का भार हल्का यही निर्विकल्प समाधि है। 'स्मृति परिशुद्धो स्वरूप न कर सको तो पापमय जीवन बिता कर उसके शून्येवार्थ निर्मासा निवर्तको' (पा. यो. दर्शन 1143) भार को मत बढ़ाओ। जीवन को निर्मल, सादा, शब्द और प्रतीति की स्मृति भली भांति लुप्त हो स्पष्ट, सरल, श्रद्धायुक्त आनन्दमय बनाओ और जाने पर अपने रूप से शून्य के सदृश केवल ध्येय विवेक को सदैव साथ रखो क्योंकि एक सच्चिदानन्द मात्र के स्वरूप को प्रत्यक्ष कराने वाली चित्त की धन निर्गुण निराकार ब्रह्म के सिवा और कुछ भी स्थिति ही निर्विवतर्क समाधि है । इस समाधि नहीं है। अतः उस आनन्दमय ब्रह्म का मन से वितंडावाद के चक्कर में न पड़ कर सन्त कबीर जी कुण्डलिनी योग द्वारा इस प्रकार मनन का अभ्यास कहते हैं कि "साधो सहज समाधि भली है" जो करना कि पूर्ण आनन्द, अचल आनन्द, ध्रुव आनन्द, नित्य आनन्द, आचार आनन्द, अचिन्त्य आनन्द, नियम आदि कठिन साधनाओं के फेर में एक सहज योग द्वारा ही सम्भव है। अष्टांग योग के यम ज्ञानस्वरूप आनन्द, परम आनन्द, महान आनन्द गृहस्थ को पड़ना उचित नहीं जान पड़ता। बस एक आनन्द के अतिरिक्त भी न हो-ब्रह्म ध्येय है, बुद्धि की वृत्ति ध्यान है और साधक ध्याता चेतन चर अचर सब में ब्रह्म का ही स्वरूप है। हृदय है। ध्यान करने पर बुद्धि तन्मय होकर तद्रूप हो प्रदीप को प्रज्वलित कर जीवन सफल करने में ही जाती है तब यह त्रिपुटी नहीं रहती एकमात्र ब्रह्म भलाई है । सर्व खल्विदं ब्रह्म (छान्दोग्यपनिषद 31411) जड़ कुछ ही रह जाता है और साधक की ब्रह्म में स्थिति हो आनन्द स्वरूप मिश्र हमारी प्राथमिकताएं क्या हैं? जब हमें आत्म-साक्षात्कार प्राप्त होता है तब श्रीमाताजी में पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास प्रदान करने के अपने अस्तित्व में घटित हुए आन्तरिक परिवर्तन का लिए होती है और उसी स्थिति को दृढ़ करने के ज्ञान हमें नहीं होता। हमें बस इतना महसूस होता लिए ये आशीर्वाद हमें मिलते हैं । ये आशीर्वाद हैं कि किसी सुन्दर और नई चीज़ ने हमें परिवर्तित सहजयोग में हमारे स्थायित्व की नीवें हैं। परन्तु कर दिया है। उन्नत होकर हम देखते हैं कि हमारे इन आशीर्वादों को हम साक्षी भाव से नहीं देखते परिवर्तन के अनुरूप किस प्रकार विश्व परिवर्तित और जब ये बढ़ते हैं तो हम इन्हें अपने अहं का एक होता हैं, हमें अच्छी नौकरियाँ मिल जाती है, अच्छे हिस्सा बना लेते हैं और इनके घट जाने या लुप्त हो मित्र मिल जाते हैं, अधिक शान्ति व चैन प्राप्त होता जाने की स्थिति में हम बाई ओर को या भ्रम के ग्त है। इन सारे आन्तरिक और बाह्य परिवर्तनों को हम में चले जाते हैं। अपनी प्राथमिकताओं को यदि हम देवी के आशीर्वाद के रूप में देखते हैं। ये आशीर्वाद नहीं देखते तो दैवी आशीर्वादों को साक्षी भाव से बढ़ते चले जाते हैं और इनकी अभिव्यक्ति के विशेष कभी नहीं देख सकते। हर सहजयोगी की ये रूप से बाह्य अभिव्यक्तियों के जैसे अच्छा स्वास्थ्य, प्राथमिकता होनी चाहिए कि वह इन आशीर्वादों को भावनात्मक सफलता और व्यवसायिक सफलता महसूस करे, प्राप्त करे और इनका पोषण करे। यह आदि के हम आदी हो जाते हैं। परन्तु जब भी इन कार्य हृदय से होना चाहिए. मस्तिष्क से नहीं अभिव्यक्तियों की संख्या में कमी आ जाती है या अन्यथा हमें लगता है कि क्योंकि हम अपने पति. कुछ समय के लिए ये रुक जाती हैं, जब हम माँ या बहन को सहजयोग में नहीं ला पाए अतः बीमार हो जाते हैं या किसी और तरह की तकलीफ हम सहजयोग में असफल रहे। ये इसलिए होता है हमें हो जाती हैं तब हम हैरान होते हैं कि हमारे क्योंकि हम सोचते हैं कि सुखमय पारिवारिक साथ ये सब क्यों हुआ? हमने ऐसा क्या किया है. जीवन ही हर सहजयोगी का लक्ष्य, अधिकार एवं तब या तो इम सहजयोग को दोष देने लगते हैं या पारितोषिक हैं । इस प्रकार के दृष्टिकोण के होते हममें दोष-भाव आ जाते हैं। इस दोष भावना के हुए हम कभी भी उन्नत नहीं हो सकते। इस कारण हमारे हृदय में असुरक्षा की भावना जागृत अवस्था को हमें पार करना होगा, इससे ऊँचा होती हैं जिसके कारण आन्तरिक आनन्द लुप्त हो उठना होगा आत्मा को महानतम आशीर्वाद के रूप में देखना ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। लेकिन इतने जल्दी और इतनी बार ऐसा क्यों आत्मा ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए । होता है? क्योंकि हम ये नहीं देखते कि हमारी आत्माभिव्यक्ति की प्राथमिकता ही हमारी प्राथमिकता प्राथमिकताएं कहाँ हैं। इन आशीर्वादों को अपने होनी चाहिए। अपनी हृदयाभिव्यक्ति हृदय के हृदय में आत्मसात करने के लिए सर्वप्रथम हमें माध्यम से कार्य करना, आत्मा के प्रकाश से चालित इनका साक्षी होना चाहिए। इस साक्षी अवस्था में होना और परम प्रिय श्रीमाताजी की से ज्योतिर्मय हम समझ पाते हैं कि ये बाहरी आशीर्वाद ही होना ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। आत्मा को यदि हम प्राथमिकता बना लें तो यही उपलब्धियाँ हैं। वास्तव में हमारी आन्तरिक आत्मा द्वारा ज्योतित सारे आनन्द के हम स्वतः ही उत्क्रान्ति तो हमें अपनी आत्मा में तथा परम पूज्य साक्षी बन जाते हैं। आत्मा ही पूर्ण आशीर्वाद है अतः जाता है कृपा सहजयोग का लक्ष्य है या आध्यात्मिक उन्नति की चैतन्य] लहरी मई - 25 सून, 2004 इस पूर्ण आशीर्वाद को अपने हृदय में महसूस होनी चाहिए। सर्व शक्तिमान परमात्मा के बच्चों के करना तथा क्यों और कैसे' जैसे प्रश्नों को भूल रूप में चुने जाने के अर्थ को क्या हम महसूस करते जाना ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। सभी को हैं? हमें किस चीज़ का भय है? कौन हम पर (सहजयोगियों) पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त होता है। जिस आक्रमण कर सकता है? कोई नहीं कर सकता दिन व्यक्ति की आत्मा का योग आदिशव्त्ति से हो यदि हम श्रीमाताजी द्वारा दी गई सुरक्षा को महसूस जाता है, जिस दिन बुँद सागर में जा गिरती हैं उस करते हैं तो सब मिथ्या है. खेल है, नाटक हैं। दिन से सभी को श्रीमाताजी के प्रेम का पूर्ण आशीर्वाद मिल जाता है और समान रूप से सबकी के नाम की पूर्णतः खुले दिल से, पूर्ण आनन्द से देखभाल होती है। अतः अपनी आशीर्वादित आत्मा, अपने पूरे प्रेम से और शक्ति से उदघोषणा हमने जो कि शाश्वत है, पूर्ण है, दिव्य स्रोत, को महसूस करनी है। उनके नाम की उद्घोषणा करना मात्र करना सभी की प्राथमिकता होनी चाहिए इस ही महानतम आशीर्वाद है और अद्वितीय आनन्द । महानतम आशीर्वाद के प्रति जागरूक होना, उसके माध्यम से परमेश्वरी से जुड़े रहना ही एकमात्र चित्त को प्रशिक्षित करना होगा तथा साक्षी भाव को प्राथमिकता है, परमेश्वरी माँ से योग हो जाने के दृढ़ करना होगा आत्मा के आनन्द और इसके मैं इससे भी आगे जाने की धृष्टता करूंगा। देवी TI अपनी प्राथमिकताओं को देखने के लिए अपने बाद आत्मा को कुछ और नहीं चाहिए, क्योंकि अब महत्व को खोजने में चित्त हमारी सहायता करेगा उसे सब कुछ मिल गया, सभी आशीर्वाद उसे प्राप्त चित्त का ज्योतिर्मय होना जब हमारी प्राथमिकताओं हो गए। अब तो वह पूर्ण आशीर्वाद का प्रतिनिधि को स्थापित करेगा तो हम उस अवस्था को प्राप्त बन गया अपनी आत्मा को तथा परमेश्वरी माँ के करेंगे जहाँ न कोई संदेह होगा न प्रश्न होंगे न प्रति उसके प्रेम को समझना तथा आदिशव्ति माँ के उत्तर होंगे। जहाँ हम अपने हृदय को खोलकर बालक होने के महान आनन्द तथा गौरव को उसके माध्यम से परमेश्वरी माँ (Divine Mother) समझना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। परमात्मा के गौरव को देख सकेंगे। के परिवार से सम्बंधित होने के आनन्द को अपने A.de. Kalbermatten (निर्मला योगा- 1981 से उद्धृत) में महसूस करना ही हमारी मुख्य प्राथमिकता हृदय त्रिगुण (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) 3.2.1978 दिल्ली जिस शक्ति को आप इस्तेमाल कर रहे हैं उसे चल रहा है, माताजी थोड़ा म्यूजिक कर दें? हमने Refill कर लेते हैं हम। Modern बीमारी एक और है जिसे हम Tension कहते हैं। Tension' मुझे तो Vibrations चलते रहते हैं आप Receive करते Tension आ गया, पहले किसी को Tension नहीं रहिए। अब उन्होंने ज़रा लम्बा चौड़ा कर दिया जरा कहा कर दो भाई। ऐसे ही बैठेगें आराम से। हमारे आता थी। तब तो Tension आना ही हुआ कि आप Music, तो लोग कहने लगे अब जरा जल्दी खत्म निकले पुरानी दिल्ली से माताजी के Programme में जाने के लिए। अब 6.30 बजे पहुँचना ही चाहिए, मेरा Lecture सुनने का है पर मेरी तो आज तबियत पहले सीट पर बैठना ही चाहिए। देर से जाएंगे, नहीं कर रही। अपने तो तबीयत से चलते करो, जल्दी खत्म करो मैंने कहा क्यों भई तुमको कोई हर्ज नहीं, देर से भी आ सकते हैं। वो समय Temperamental आदमी हैं, अभी आज तो भई आप के आने का था आप आ गए। कोई बात नहीं। तबीयत हो नहीं रही। तो म्यूजिक ही सुनने दो, तुम ऐसी कौन सी आफत मची हुई हैं? भाई मुझे कहाँ भी सुनो मेरे साथ आराम से क्यों नहीं सुनते? जाने का है और आपको कहाँ जाने का है? आराम अच्छा म्यूज़िक चल रहा है, भई सुनो। ऐसी कौन से बैठेंगे दो चार बातें करेंगे, चलो हो गया सहजयोग सी आफत आई है? मेरे तो चल ही रहे हैं Vibrations, पूरा। कौन सी आफत मचाने की चीज है? कोई मैं चाहे भाषण देऊं, चाहे नहीं देऊं, वो तो चल ही नहीं। इतने सरल सहज आराम से बैठिए वैसे ही रहे हैं। हर समय कार्यान्वित हैं एक क्षण भी नहीं आप को सहजयोग प्राप्त होगा। रुक रहे। अरे Lecture ही में क्या रखा है वो मेरी मैं देखती हैँं कि सहजयोग में भी लोग इस तरह से Planning करते हैं। मुझे आती है बड़ी भला म्यूज़्कि चल रहा है, बीच में आप क्यों चिल्ला हँसी। जैसे आप ये कहें कि दो दिन बाद यहाँ पर रहे हैं? हम लोगों को आदत ही पड़ गई है। ये फल लगेगा तो मैं मान जाऊं। दो दिन बाद 5 बजे आदतें छूटती नहीं। आराम से पाँच मिनट बैठकर कर 6 मिनट पर यहाँ पर फल लगेगा इस फूल में, के हम लोग किसी से कभी बात नहीं करते। कोई ये अगर आप कह दें और करके दिखा दें तो मैं गर अपने यहाँ दोस्त आया तो कहेंगे चल भई तेरे समझ में ही नहीं आया। सब शान्ति से बैठें। अच्छा मान जाऊं। जो लोग जितना Planning करके को खाना खिलाऊं। बीवी घर के अन्दर खाना यहाँ पर आते हैं उतना उनकी कुण्डलिनी नहीं जागृत होती। सहज समाधि लागो, सहज लगती कुछ भी नहीं हो तो T.V. चला लेंगे। सब लोग T. V. है। सहज माने बिल्कुल साधारण तरीके से। ऐसे देखो। अरे भई आपस में कुछ आदान-प्रदान करो, ही जो लोग होते है उनको ही मिलती है। अब कुछ बातचीत करो बनाएगी, आप बैठे हुए बहाँ पर Politics झाड़ेंगे। काहे मार-धाड़ किए हो भाई? ऐसी कौन सी आफत आ गई? अभी मुम्बई में एक Programme बैठे हैं? आपस में अनजाने ही आप चले जाते हैं। आपने बुलाया है दोस्त को, आप T.V. लगा कर ये फिर दोस्ती नहीं होती, दोस्ती किससे है आपको? हो रहा था तो एक साहब ने कहा चलो भई Music मई - जून, 2004 चैतन्य लहरी 27 कोई दौस्त ही नहीं है आपका। दोस्ती तो तब नहीं, कोई Friendship नहीं, कोई पहचान नहीं, आती है जब आपस में कोई मज़ा उठाया जाए। कुछ नहीं। नानी के घर आप जाइए वहाँ पर नानी दोस्ती उसे कहते हैं। आजकल दोस्ती का मतलब कहेंगी कि तू मेरे Telephone के दो पैसे दे, तब तू घर में पैर रखना। तुमने उस दिन टेलिफोन किया था, उसके पैसे नहीं दिए थे, पहले उसके दो पैसे दे, है कि Business आ गया, नहीं तो फिर ताश खेलो, ताश खेलने बैठ गए। तब तक भी ठीक है। फिर रुपया लगाया, काम खत्म । ताश में आप सारी चीज़ यही हो गई। इस तरह के artificial रुपया लगाइए. जिसने ताश में रुपया लगा लिया जीवन में भी imbalance आ जाता है क्योंकि artificiality के साथ रहना पड़ता है । किसी के घर काम खत्म । अब हमने ये कहा कि आप balance में रहिये। जाइए साहब खाने पर बुलाते हैं, 8.00 बजे के गर Balance में रहने का तरीका ये है कि आप जरा 8.30 बज गए तो मार चीखना शुरू कर दिया। क्या बैठिए, ज़रा देखिए, मजा देखिए । सवेरे सूरज अपने घर खाने को नहीं मिलता है क्या? देर हो उगता है, आकाश में देखिए कितने सुन्दर रंग आते गई तो कौन आफत आ गई? आ गए 8.30 आए हैं? यू ही चला जाता है। शाम को सूरज डूबता है चाहे 9.00 बजे आए क्या हुआ? आओ बैठो आराम इतने सुन्दर रंग उगते हैं, सब वैसे ही चला जाता करो। Punctuality काहे के लिये चाहिए इतनी है कितने ही फूल खिलते हैं कितनी ही बहार ज्यादा? जरूरत से ज्यादा Punctuality करने की आती हैं, कितने ही रंग बदलते हैं, ऐसे ही सारा जरूरत नहीं। हाँ Punctuality एक चीज़ में होनी काम चला जाता है। कितने ही लोग मिलते हैं चाहिए कि अपने अन्दर जो परमात्मा का call सबसे मिलते हैं और बगैर मिले ही लोग चले जाते है उसकी ओर Punctuality होनी चाहिए। हैं बिल्कुल अजनबी। कभी जाना ही नहीं! कोई मर इस वक्त परमात्मा ने हमें याद किया है गया तो उसके लिए फूल भेज दिया, चलो हो गया फौरन ध्यान में चले जाएं। Vibrations आ काम खत्म । जहाँ सबसे ज्यादा रजोगुण हो गया रहें हैं फौरन ध्यान में चले जाएं। उस मामले है वहाँ तो ये हालत है कि कोई मरता है, बाप भी में नहीं है Punctuality हमारे अन्दर। इससे मरता है तो पेपर में आ जाता है कि भई मर गए। क्या होगा, Punctuality से हुआ क्या? यही suicide वो बाप पहले से ही पैसे दे जाते हैं कि गर मैं मर जिन देशों ने Punctuality बहुत रखी उन्होंने क्या जाऊँगा तो मेरा एक सूट सिला देना नया, मेरे को प्राप्त किया? Punctuality से लोग आत्महत्या करते पहना देना और वहाँ लिखा जाता है कि फलानी हैं, आत्महत्या का भी time लिखते हैं। हमारे यहाँ तारीख को आप देख लीजिए उनकी Body पर | वो Punctuality पहले होती थी। इस तरह से कि हम दिखा देते हैं, देखो भई उनको सूट सिला दिया, पंचांग देखकर के Punctuality बनाते हैं। ये महूर्त अब ये मर गए। सब लोग आते हैं, उसमें एक-एक अच्छा है, इस मुहूर्त पर ये कार्य करने से अच्छा है। फूल चढ़ा दिया, चले गए अपने घर। तो ये वहाँ उसमें तो कुछ तो आपने Consult किया Superior हालत है। कोई आदान प्रदान नहीं, कोई दोस्ती power को । परमात्मा से कुछ लेन-देन को चैतन्य लहरी मई - जून, 2004 28 Consult किया, लेकिन ये जो बिल्कुल हमारी इस चीज़ को कभी भी मैं बाह्य, इस तरह से दैनंदिन इस तरह की Punctuality और इस तरह छोटे-छोटे घरोंदों में विश्वास नहीं करती। न ही मैं उन भ्रमों में विश्वास करती हूँ जो बिल्कुल ही मनुष्यों ने बनाए हैं। ये बिल्कुल ही बेकार के हैं । जाएंगे, घबरा जाएंगे। वही सवेरे उठना, वही दाढ़ी इन सब चीजों को तोड़ फोड़कर के ही अपने बनाना, वही मुँह धोना वही दफ्तर जाना, वही सहजयोग पनपा है। लेकिन धर्म का मतलब ये है का हम लोगों का बिल्कुल यांत्रिक जीवन हो गया है इस जीवन से आप लोग ऊब जाएंगें, परेशान हो आदतें। फिर वही घर पर आना, फिर वही बातें। कि हमारे अन्दर जो Sustenance power है, हमारे अन्दर जो बसी हुई innate धर्म है, हमारे अन्दर आप लोग घबरा जाएंगें। घबराहट से फिर शुरू क्या होगा? वही चीज़ जो वहां हो रही है गांजा, एक- एक अंग-प्रत्यंग में जो बनाया गया है, उसको जागृत करना चाहिए। इसके बारे में मैंने आपसे कल बताया था कि अनेक धर्म हैं। उसमें से एक, LSD और उससे भी नहीं तो हमेशा बेहोश रहना। मतलब पलायनवाद, भागो, इस दुनिया में जीने की क्या ज़रूरत हैं? जब मनुष्य जीवन में बोर हो जाता आपको आश्चर्य होगा, कि सबसे बड़ा धर्म ये है कि है तभी वह पलायनवादी जीवन को खोजता है। सर्वधर्म समान हैं। गाँधीजी ने कहा था बोर इसलिए होता है क्योंकि वो अपने को सर्वधर्म समानत्व मानें । उसका तत्व एक है ये मनुष्य जानता नहीं। जब वह अपने को जानता है तो समझ लेना चाहिए। पेड़ के अन्दर बहने वाली में जाती है, उसके शक्ति हर जगह जाती है, मस्ती चढ़ती है क्योंकि आप अपने अन्दर इस कदर मूल सुन्दर, इतने व्यवस्थित, इतने मधुर हैं कि फिर तने में जाती है, उसके पत्तों में भी जाती है. उसके ज़रूरत नहीं किसी की आप अपने ही साथ बैठे फूलों में जाती है और फिर वो वापिस लौटकर रहते हैं, बड़ा मज़ा आता है। जब आप अकेले होते वापिस चली आती है। कहीं भी लिपटती नहीं। इसी तरह का निर्वाज्य, इसी तरह से अलग रहने वाला हैं तब सब से अच्छे रहते हैं, बड़ा मज़ा आता है। अपने ही जीवन को देखते रहते हैं, अपने ही अन्दर जो प्रेम है और जो शक्ति है, उस शक्ति में जो एक अपने स्वर्ग को देखते रहते हैं। हाँ जब दूसरों से तत्व चारों तरफ घूम रहा है उसी प्रकार सारे ही मिलते हैं तो ये लगता है कि ये भी इस स्वर्ग में धर्मों में एक ही तत्व घूम रहा है। और वो सीधा हमारे साथी हैं। जैसे दो शराबी बैठ जाते हैं तब सादा सरल तत्व एक ही है कि जब धर्म की उन्हें मज़ा आता है, अकेला कोई पीता नहीं। इस स्थापना हमारे अन्दर हो जाती है, जब हम किसी भी धर्म के तत्व से प्लावित हो जाते हैं, उस तत्व को तरह का एक खुमार जिन्दगी भर चढ़ा रहता है। जब हम अपने अन्दर पूरी तरह से स्थापित कर लेते ऐसी बादशाहत गर पानी हो तो ऐसी बादशाहत हैं, तभी हमारा evolution हो सकता है। जैसे कि अन्दर भी आनी चाहिए। अपने अन्दर Balance लाना पड़ता है और ये धर्म से होता है। धर्म से मेरा मतलब कभी भी हिन्दु हिन्दू धर्म के लोगों को एक ही तत्व सीखना चाहिए कि सबके अन्दर एक ही आत्मा का वास है और मुसलमान से नहीं होता है, आप समझ सकते हैं जाति-पाति आदि चीजें ये जन्म से नहीं होती, ये चैतन्य लहरी मई - जून, 2004 29 सा त कर्म से होती हैं। यही तत्व हिन्दु धर्म का है और होगा। हमारे अन्दर सेवा भाव का तो बड़ा भारी इसमें दूसरा कोई सा भी तत्व नहीं खोजना है। गर आदर्श है, सबकी सेवा करनी चाहिए, इसकी सेवा इस तत्व को आपने पा लिया तो आप असली हिन्दु करो, उसकी सेव करो। अब देखिए कि शूद्र क्यों हो गए बाकी तो आप अहिन्दु हैं। चाहे वो अपने को कहा गया, ये सोचने की बात है। बड़े आश्चर्य की मुसलमान कहलाएं चाहे वो अपने को ईसाई कहलाएं। बात है कि कोई किसी की सेवा करे तो वो क्यों शूद्र एक ही शक्ति, हम लोग तो शक्ति के पुजारी हैं न, है? ये सूक्ष्म बात है। इस सूक्ष्म बात को गर आप एक ही शक्ति सब के अन्दर बसती हैं और जिस समझ लें तो आप हिन्दु धर्म को समझ लें। किसी कर्म में मनुष्य लीन होता है उसी कर्म से वो जाना की सेवा जो करे वो शूद्र है क्योंकि दूसरा कोई है जाए। माने जो ब्रह्म कर्म में लीन है वो ब्राह्मण है, ही नहीं । गर हम आपको ठीक करते हैं. आपकी जितने सहजयोगी हैं सब ब्राह्मण हैं जो ब्रह्म में मालिश करते हैं, आपका सिर ठीक करते हैं तो हम 1 लीन है वो ब्राह्मण है। जो आनन्द को सत्ता में अपने को ही ठीक कर रहे हैं असल में, क्योंकि खोजता हैं वो क्षत्रिय है और जो आनन्द को पैसे हमारा ही सिर पकडा हुआ है। आपका पकड़ा है में खोजता है वैश्य है, जो आनन्द को किसी की तो, हमारे आप अंग प्रत्यंग हैं, तो हम गर इसे ठीक सेवा में खोजता है वो शूद्र है। आपको आश्चर्य नहीं करेंगे, हमारे अंग प्रत्यंग को तो हमें ही चैतन्य लहरी मई 30 जून, 2004 तकलीफ होती है। दूसरा कोई है ही नहीं। जिसने बड़ी सूक्ष्म सी बात है। इसकी सूक्ष्मता को वो ही ये ldea ले ली कि मैं दूसरे की सेवा कर रही हूँ पकड़ सकता है जिसमें सूक्ष्म रति है इसलिए जो बहुत ही शूद्र ldea है। जिसने ये सोच लिया कि आदमी ऐसे कहता है कि मैं संसार में बड़ा उपकारी मैंने बड़े भारी अनाथालय बना लिए, मैं जाता हूँ हूँ मैं बड़ी मिठाइयाँ बाँटता हूँ और मैंने लंगर खोल गरीबों की सेवा करता हूँ। कौन हैं गरीब? आप हैं रखे हैं, वो महामूर्ख है और शूद्ध है। किसी पर भी गरीब। मुझे गरीबी इसलिए अखरती है क्योंकि ये उपकार करने का मनुष्य को कोई अधिकार नहीं मेरा ही Part and Parcel है। अगर कोई इंसान है। उपकार तो एक ही करता है, परमात्मा। वो भी संसार में गरीब है तो ये मेरे लिए insult है. मैं ही अपने ही ऊपर उपकार कर रहा है किसी दूसरे पर गरीब हूँ। इतनी बड़ी उच्च कल्पना को जब आप नहीं। जब वो अपने से नाराज़ हो जाता है तो निम्न दिशा में देखते हैं इसी लिए ऐसा होता है। तहस-नहस कर देता है। जब वो अपने से प्रसन्न कोई भी बादशाह नहीं कहता कि मैं किसी की सेवा होता है तो सब ठीक-ठाक कर देता है और जब करता हूँ। चो देता है उससे बहता है, वो सेवा नहीं किसी पर उपकार करना होता है तो वो सारे संसार करता। सेवा में एक बहुत सूक्ष्म मूर्खतापूर्ण अंहकार को उबार देता है है। किस पर उपकार आप करने जा रहे हैं? ये सब है, विराट के अंग प्रत्यंग में सारा संसार है । जैसे आपके अंग-प्रत्यंग में हैं और इसीलिए जब आप समझ लीजिए जैसे ये light है परमात्मा की, और । क्योंकि संसार भी परमात्मा ही collective consciousness में आ जाते हैं तो उसके सामने अगर विराट का चित्र है तो इससे जो आपको आश्चर्य होता है कि किसी की विशुद्धि चैतन्य बाहर आ रहा है उसी में सारा संसार है। चक्र में गर पकड़ है, गर कोई बीमार है तो आप भी अब गर इस विराट में कोई तकलीफ है तो वहाँ पकड़ते हैं। आप कहते हैं माँ इसका विशुद्धि पकड़ दिखाई देगी। गर वहाँ कोई तकलीफ है तो यहाँ रहा है, जल्दी छुड़ाओ। क्योंकि आप से रहा नहीं दिखाई देगी। उसको ठीक किए बगैर विराट ठीक जाता। वो आपका अंग-प्रत्यंग बन जाता है, कहते नहीं होने वाला और न उन्हें आराम मिलने वाला हैं माँ देखो इसका पकड़ रहा है-मतलब आपका है। ये मैं आपसे सच कहती हैँ। आपको आश्चर्य खुद पकड़ रहा है। देखिए आप कितने एकाकार होंगा एक बार मेरे पैर में लग गई चोट, तो हमारे हो जाते हैं। जैसे अब lecture की बात नहीं होती साथ एक डॉक्टर थे तो उन्होंने कहा कि माताजी कि हाँ सब धर्म एक हैं। हिन्दु मुसलमान, पारसी, मैं आपको Vibration देती हूँ। मैने कह्म अच्छा, इसाई सब एक हैं, ये कहने की बात नहीं होती। ये आओ बेटे दे दो Vibration | जैसे ही उन्होंने मेरे होता ही है। कोई भी आदमी आपके सामने आए पैर पर हाथ रखा वहाँ से धड़-धड़ Vibration आने आप कहेंगे देखिए माँ इसका ये पकड़ रहा है। लगे। मतलब जब कहीं चोट लग जाती है तो वहाँ पकड़ आपकी उंगली रही है, आप कहते हैं इसका से double Vibration आने लगती हैं। जब मैं थक पकड़ रहा है। जैसे आपने अपनी उंगली ठीक कर जाती हैं तो तिगुने treble Vibration आने लगती ली, वो भी ठीक हो गए, आप भी ठीक हो गए। ये हैं जब मैं बीमार हो जाती हैूँ तो वहाँ से ऐसे चैतन्य लहरी मई - जून, 2004 31 Vibration आएंगी जैसे आप सब लोग बीमार हों। me अब who are those? मोहम्मद साहब ने भी समझ लीजिए बहुत से लोग दिल्ली शहर में बीमार कहा है खूब कहा है, आप अगर पढ़ें उसको बहुत हैं फ्लू से, तो मुझे भी फलू हो जाएगा और उसमें से पैगम्बर आए। इन लोगों ने लगा दिया कि अब से जो Vibration निकलेंगी वो आपके फ्लू को ठीक इनके बाद कोई पैगम्बर ही नहीं आएगा। करेंगी। बो जब निकल जाएंगे तो मैं भी ठीक हो जाऊंगी। अजीब सी चीज है ये! है ऐसी चीज, path, तो कहा कि ठीक है He is the light He is क्राइस्ट ने कहा है कि । am the light I am the यही होता है। ये बड़ी सूक्ष्म चीज हैं इसे आप the path but who is the destination? Who is समझे, इसे आप देखें और इसका साक्षात्कार करें। । the beginning? भई ight, है path है उसकी और आपमें से ऐसे भी लोग हैं यहाँ जिन्होंने ये देखा है। भी तो चीज हैं, आगा-पीछा भी है उसका कृष्ण ने ऐसा ही होता है। जैसे कि समझ लीजिए अन्दर में कहा सर्व धर्माणाम् परितज्य मामेकम शरणम व्रज, antibodies तैयार होती हैं और वो बहने लग जाती तो लोग कहते हैं के अब आप सब लोग हिन्दु हो हैं। इसलिए हमारे सन्तुलन में जो हमने पहले ही जाइए। इसका मतलब ये है इतने जड़ हम लोग से कहा है सबसे बड़ी चीज है कि हमें धर्म के तत्व हैं। जिसने जो कहा उसको बड़ा ही जड़कर समझ लेने चाहिए। सर्वधर्म समान हैं। बहुत ज़रूरी दिया। हर एक तत्व को जड़ करने में मनुष्य बहुत ही होशियार हो गया है । जितनी भी सूक्ष्मता है वो चीज है। कोई भी यहाँ पर कट्टर हो, उन्होंने बड़े बनाए, कट्टरपना के नमूने बना रखे हैं हिन्दु धर्म में बड़ी अच्छाई एक ही है कि उन्होंने कोई एक खोती गई हैं। आपकों कुण्डलिनी के बारे में मैंने कल सब चक्रों मनुष्य जाति पर कोई लगाया नहीं कि ईसामसीह के बारे में बताया था। कुण्डलिनी क्या है, बो किस हैं या कोई मोहम्मद साहब ही हैं। ये एक अच्छाई तरह से उठती है कैसे चढ़ती है आदि । कुण्डलिनी हो गई, लेकिन उन्होंने सोचा कि भई जब इतने गए सूक्ष्म शक्ति है। वास्तविक सदाशिव की शक्ति तो कोई दूसरा बनाओ, उन्होंने सोचा कि जितने हमारे सिर पर सदा विराजमान रहती है और ईसाई हैं वो पार हो गए या जितने मुसलमान हैं सदाशिव की शक्ति जो है यह ब्रह्मशव्ति है अब सदाशिव कौन हैं उससे पहले की बात करें। तो उनका ठीक हो गया तो अब उसका कैसे किया जाए? तो वो कहते है कि ठीक है, नहीं हो रहा तो ऐसा ही समझ लीजिए कि सदाशिव और शक्ति ये दूसरा इलाज बनाएं। तो क्या इलाज उन्होंने बनाया, दोनों एक ही चीज़ हैं जैसे सूर्य और उसका लेकिन creation जब करने का हुआ, चीज़ से बाज नहीं आता। ईसाई लोग कहेंगे कि अनेक बार हुआ creation, एक बार नहीं अनेक बस ईसामसीह एक आए थे दुनिया में और कोई, बार हुआ, तब तक सदाशिव और शक्ति अलग हट नहीं आए। तो ईसामसीह भी काफी उनके मुँह में गए। दो अंग हो गए. शक्ति ये कार्य करती है. बातें डाल दी। लेकिन ईसा मसीह ने खुद ही कहा सदाशिव जो हैं बो साक्षी स्वरूप देखते हैं। शक्ति का कार्य है शक्ति कार्यन्वित होती है। अब हम तो जाति पाति ही बना दी। आदमी ऐसा है, किसी प्रकाश 1 e Those who are not against me are with मई चैतन्य लहरी 32 जून, 2004 र शक्ति को समझते हैं, जैसे कि समझ लीजिए, आज वो सबसे out of best हो गया है। जब ये सहजयोग यहाँ एक शक्ति आई है आपके सामने आप light हमारा इंग्लैण्ड और अमरीका से यहाँ आएगा तो देख रहे हैं। पर आप जानते हैं कि इसी light से लोग समझेंगे। हम लोगों को सीधे समझ में बात आप गैस भी चला सकते हैं, इसी light से चाहे तो नहीं आती। जब English लोग सहजयोग आपको, आप पंखा चला सकते हैं, इसी light से चाहे तो मेरे पर लिख ही रहे हैं दो आदमी एक English लिख रहे हैं एक फ्रेंच लिख रहे हैं, जब चिट्टियाँ ले के यहाँ आएंगे तब यहाँ के ladies और यहाँ के आप convert कर सकते हैं magnet में। पर आप उस शक्ति को नहीं समझ सकते जो शक्ति सारा कार्य करती है, सारा organize करती है, सब gentlemen जो हैं जो सिवाए tailcoat के बाकी cooperation करती है. integrate करती है और सब अंग्रेज हैं, वो ladies and gentlemen, क्योंकि जो प्यार करती है। आप कोई ऐसी शक्ति नहीं हिन्दुस्तानी यहाँ बहुत कम हैं। सभी वही लोग अभी समझ सकते हैं जो प्यार करती है और प्यार में ही तक हमारा guidance कर रहे हैं। इनका नाम ये सारा कार्य है प्यार से ही हरेक चीज़ जानती महाकाली, महासरस्वती, महालक्ष्मी ऐसा है। लेकिन है और सारा कार्य करती है। ऐसी शक्ति आप नहीं संस्कृत भाषा की विशेषता ये है कि एक - एक अक्षर मंत्र है। देवनागरी लिपि में एक-एक जो हम अक्षर अ+क्षर, जो क्षर नहीं है, जितना हमने अ, आ, इ. समझ सकते। उसी शक्ति की मैं बात कर रही हैूँ और वो शक्ति सारी ही शक्तियों का समूह है, उसी में electricity है, उसी में magnet है, उसी में light ई जो कुछ है वो सारा ही कुण्डलिनी में घूमने बाला हैं, उसी में सारे elements हैं। अब आप यहाँ शब्द है। वहाँ वो शब्द निकलता है। मनन में हम देखिए, ये जो हमने चित्र बनाया है विराट का, लोगों ने इन शब्दों को सीखा है और तब लिखा है। उसके सिर पर सदाशिव की शक्ति है और सदाशिव अंग्रेज लोग कहते हैं, मगर जैसा बोलते हैं ऐसा का पीठ भी है इसलिए उनकी वहाँ शक्ति है। हमने 'M' सीखा है। मगर फगर से हमारा कोई इसके तीन अंग हो जाते हैं। आप देखिए ऊपर से, मतलब नहीं है। इन्होंने जानवरों से भाषा सीखी है, हमने बताया, वहाँ से जब छूटती है तो एक ऐसे हमने मनुष्य के अन्दर बहने वाली कुण्डलिनी से आती है, एक ऐसे आती है. और एक बीच से आती भाषा सीखी है । जब कुण्डलिनी ऐसे घूमती है तो है और एक जो सदाशिव स्वयं हैं, उनका असर आवाज यूं करती है, श. श, श. यहाँ पर । ठीक है हृदय में आता है। ये जो तीन शक्तियाँ हैं इनको न? हर जगह उसके अलग-अलग शब्द हैं जैसे महालक्ष्मी महासरस्वती और महाकाली, तीन के यहाँ हूँ 'क्षं दो शब्द आते हैं। होते हैं, वो जो हम नाम से कहा जाता है। अंग्रेजी में इस का कोई जिसे ओम् करके लिखते हैं, अ जैसे जो लिखते हैं. नाम नहीं है, मैं नहीं जानती अंग्रेजी में इसे क्या जो आप जिसे लिपि में ओम् लिखते हैं वो यहाँ आप कहा जाता है। आप कहेंगे बहुत ही out of date देख सकते हैं कि यहाँ पर ओम् ही रहता है। जब कुण्डलिनी जागृत होती है तो यहाँ जब उस पर light पड़ती है तो ये जो चक्र है यहाँ पर ओम् ऐसा चीज़ है क्योंकि जो कुछ सनातन है वो अपने देश में out of date हो गया है और जो अंग्रेजों का है मई चैतन्य लहरी जून, 2004 33 ही लिखा होता है जैसा आप लिखते हैं। और जो संस्कृत भाषा का, कितनी, इसकी बुनियादें देखिए, अ आ इ ई. जो भी लिखा है आप लिखते हैं। कितनी गहरी और कितनी सूक्ष्म है? तो यह तीन, देवनागरी में संस्कृत भाषा में, वो भी हमारे अन्दर जो मैंने बताया, महाकाली, महासरस्वती, महालक्ष्मी जब कुण्डलिनी वहाँ पर आघात करती है, जिस तीन शक्तियाँ हमारे अन्दर में हैं. इनको ही ऐं री' वक्त उसके निनाद होते हैं, तब वो निनाद और हीं ऐसे कहते हैं क्योंकि इनका निनाद 'क्लीं', उसका लिखना भी घटित होता है। कितनी बारीक ऐसा होता है। र ये energy का शब्द है, जैसे चीज़ है? क्या आपकी संस्कृति है और कहाँ से राधा। र माने energy, ध माने धारने वाली। राधा, आई है! जो सारी मननों से उतरी हुई है, कोई कृष्ण का अर्थ मैंने आपसे बताया था कृषि से आता है अब कृ शब्द कृष्ण कहते साथ विशुद्धि चक्र लेकिन संस्कृत भाषा तो हमारे यहाँ पण्डितों मूर्खो एक दम असर कर जाता है। कृष्ण ही कहना और गधों की हो गई जिनको कि. उसका उच्चारण पड़ेगा क्योंकि कृष्ण जो हैं इसका यहीं से सम्बन्ध भी नहीं आता। जो उसके तत्व को नहीं समझते! है। विशुद्धि चक्र से ही सम्बन्ध है तो कृष्ण ही हमने बाहर से सीखी हुई, Artificial चीजें नहीं हैं। ये सब अंग्रेज हैं, शैली और कीट्स उनका नाम हो सकता है। कितनी Scientific चीज़ पढ़ते हैं। ये भाषा हमारे अन्दर उत्पन्न होती है और लिखित है, ये बताइए और कितनी सूक्ष्म चीज़ है? लेकिन होती है। एक-एक अक्षर लिखने में अर्थ होता है। सहजयोग हमारा प्रेम का मार्ग है और प्रेम में इतनी ओम् कैसे बना? इस तरह से ओम् की रचना होती गहराई नहीं देखने की जरूरत। एक ही अक्षर प्रेम है. बिल्कुल ओम् ही लिखा है। मैं ऐसे अंगुली घुमा का पढ़े सो पण्डित होए। ये हमारा सहजयोग है। कोई जरूरत नहीं आप बड़े पण्डित होइए, पढ़ि पढ़ि पण्डित मूर्ख भए, जो पण्डित यहाँ आए उनसे तो रही हूँ, आपका भी आज्ञा घूम रहा है। इतनी scientific चीज़ है क्योंकि इसका सम्बन्ध Reality से है। इससे बढ़कर और कौन सी चीज़ scientific भगवान बचाए, कहने लगे कि साहब हमने गुरु ग्रंथ हो सकती है? जब तक आप संस्कृत में श्लोक नहीं साहब सारा रटा हुआ हैं। मैंने कहा अच्छा क्या कहते मेरे चक्र चलते ही नहीं हैं, आश्चर्य की बात वो ही जो आप कहते हैं वो ही कहते हैं कि मन में है! पर आप गर अंग्रेजी में कहें तो चलते हैं। सिर्फ ही खोजो आज्ञा चक्र पर ईसा- मसीह की जो उन्होंने अपनी तो खोजा नहीं न? खोजो? खोजना चाहिए। उसी लिखी है क्योंकि यहाँ ईसा-मसीह का स्थान है प्रकार हो गया कि मन्त्रं अमन्त्रं अक्षरं नास्ति, नास्ति । मैंने कहा तुमने तो रट रखा है न. तुने अंशनम्, अयोग्यः पुरुषो नास्ति योजकः सः Lord's Prayer. वो चलता है, पर इंगलिश में भी दुर्लभम्। वैसे तो हरेक चीज़ में मन्त्र है परन्तु मन्त्र क्षमा की योजना आनी चाहिए। तो कोई कोई भूत लोग उस पर उनका जो हिब्रू में उन्होंने लिखा हुआ है मूलं कहें तो चल जाता है। पर यहां पर तो भी स्वरूपपिणी, क्षमा ही शब्द कहना पड़ता हैं क्योंकि यहाँ आए हैं राक्षस लोग वो 'ऐ 'रीं क्लीं का यहाँ 'क्ष' शब्द है इसलिए क्षमा कहना चाहिए। सब आपको मन्त्र दे देंगे, ओम बोलो, क्लीं बोलो। पृछो कहने पर भी क्षमा कहना पड़ता है। इतना हमारा भई ये है क्या? कुछ नहीं बता पाएंगे। अच्छा बता मई चैतन्य लहरी - जून, 2004 34 भी दिया थोड़ा बहुत, कहीं पढ़ा-वढ़ा होगा, अब चन्द्र नाड़ी को जो कि हमारे अन्दर बसती है उसे आपका चक्र कीन सा पकड़ा हुआ है? आपको ऐं ईडा नाड़ी कहते हैं। इसमें भी बड़े घोटाले हैं. मैं "री क्लीं का उन्होंने मन्त्र दे दिया, कोई मन्त्र विद्या देखती हैँ कि इतना coniusion है, इतना confusion का बड़ा भारी शास्त्र है कि कौनसा आपका चक्र है। Right side में जो नाड़ी है उसे पिंगला नाड़ी पकड़ा हुआ है? गर आपकी left side पकड़ी हुई है कहते हैं, right side की नाड़ी जो है सूर्य नाड़ी है, तो आपको Left Side का मन्त्र देना चाहिए और Ileft side की नाड़ी जो है चन्द्र नाड़ी है। इन दोनों आपकी right side पकड़ी हुई है तो right side का का जब संतुलन आप साधते हैं तब आप बीचों-बीच देना चाहिए. वीच की पकड़ी हुई है तो बीच का आते हैं। एक extreme में कोई गए तो पैण्डुलम देना चाहिए। अब ये जो तीन आपको यहाँ दिखाई जैसे एक जगह गए तो दूसरी जगह को जाना शुरु दे रही हैं उसमें से left side महाकाली का स्थान होता है जैसे कि मैंने बताया था जहाँ रजोगुण हे। ये हमारे तमोगुण को पालती है। तमोगुण बहुत ज्यादा हो गया है विदेशों में तो उन्होंने हमारे अन्दर है। इसे चन्द्रनाड़ी भी कहते हैं। अब देखिए कि पृथ्वी की रचना भगवती ने कैसे ज्यादा बढ़ गए तो suicide शुरु हो गए और नहीं की? पहले सूर्य से कुछ हिस्सा भगवती ने निकाल तो शराब पीना, गांजा और इस तरह की चीजें लिया। उसके बाद उस हिस्से को बहुत दूर ले गई. तमोगुण में आने की शुरुआत की। जब बहुत जिससे balance आ जाए एक पैण्डुलम इधर सूर्य से बहुत दूर ले गई जिससे बो एक दम ठण्डा गया तो उधर से उधर दौड़ गया। उधर से उधर हो गया, बर्फ की तरह। फिर उसको धीरे-धीरे बीचों बीच संतुलन है, एकदम मध्य में और उसके सूर्य के पास लाई। उससे बो पिघलने लग गया, बीच में Gap है, यहीं void है, इसे void कहते हैं जेन system में अगर आप जेन पढ़ें तो उसमें पानी का प्रवाह शुरु हो गया। उसके बाद वो पूरा उसे फिर से बहुत दूर ले गई, फिर नजदीक लाकर सहजयोग है, कबीर पढ़ें तो पूरा सहजयोग है, ऐसा adjust कर दिया कि जिससे वहाँ सृष्टि हो नानक पढ़ें तो पूरा सहजयोग है कृष्ण पढ़िये तो सके. जिससे वहाँ जीव-धारणा हो सके, ये सारा पूरा सहजयोग है, राम पढिए तो पूरा सहजयोग है। ब्रह्माण्ड जो है Spiral में Move करता है Spiral क्राइस्ट पढ़ें तो पूरा सहजयोग है, कुरान पढ़ें तो में । मैं आपसे बता रही हैूँ शायद सौ साल बाद पूरा सहजयोग है। सब सहजयोग है। कहने का लोग कहेंगे वहुत सी बातें जो अभी अभी हमने कहीं ढंग शायद अलग हो जाए पर मज़ा आएगा वही। ये जो बीच का void है, ये भवसागर है और इसमें थीं वो भी अब लोग कहने लग गए हैं। उस Spiral के बराबर उस Spiral के Movement से ये होता उठने के लिए कोई सीढ़ी नहीं है समझ लीजिए कि है कि व्यविति कभी सूर्य की ओर ज्यादा होता है कभी चन्द्र की ओर ज्यादा होता है तो सूर्य नाडी सीढ़ी आधी लटक रही है और उस पर चढ़ने का और चन्द्र नाडी हमारे अन्दर दो नाड़ियाँ हैं। Right जो मार्ग है वो नीचे है कुण्डलिनी । इस कुण्डलिनी stide में जी ना़ी है उसे सूर्य नाड़ी कहते हैं और को, इस bridge को, इस gap को भरना होता है, दो ऐसी सीढ़ियां लगी हुई हैं लेकिन बीच वाली चैतन्य लहरी मई - जून 2004 35 बहुत सीधा-सरल है, कोई बहुत दूर नहीं। अब ये Super Ego कहते हैं और जो (ight side के कार्य कुण्डलिनी आपकी माँ हैं, जन्म-जन्म आपके साथ करने से होता है वो Ego होता है। जो लोग right पैदा हुई, आप ही में स्थित रहती है। मृत्यु के बाद side में कार्य करते हैं. जिन्हें रजोगुणी कहते हैं वो र कुण्डलिनी ego-oriented होते हैं, अपने Ego से कार्य करते दोनों साथ ही साथ रहते हैं। ये हर समय आपमें हैं। और ज़ो left side होता है वो Super Ego स्थित रहती हैं और यही आपके पास होता है, बहुत से आपमें psychologist होंगे तो भी जीवात्मा के साथ ऊपर में आत्मा कृण्डलिनी जो आपको समझा देंगे। जैसे कि एक बचचा Subconscious का पूरा जोखा है। है माँ की है ये गौरी है यानि ये महाकाली का एक part है। गोद में दूध पी रहा है आराम से। आनन्द में है। महाकाली का एक part है बीच की शक्ति जिसे उस वक्त उसकी माँ उसको हटाती है, तो उसका हम सृजनात्मक शक्ति या उत्क्रान्ति की शक्ति ego जागूत होता है. वो कहता है कि ये क्या कर कहते हैं या जिसे हम evolutionary शक्ति कहते दिया? माने उसको गुस्सा चढ़ता है। उसकी माँ हैं महालक्ष्मी की शक्ति कहते हैं, वो ये शक्ति नहीं उसको डॉटती है। ऐसा नहीं करना, super ego है। ये आपके subconscious की शक्ति है जो बनता है। कोई करने की इच्छा होना ego से होती अब तक आपको past हुआ, आपका कर्म हुआ. है और जब उस पर दबाव आता है वो शवित आपका ये हुआ, वो समझ-लेना चाहिए। तो super ego की होती है। हमारे अन्दर इस फ्रकार कुण्डलिनी वो चीज है, उसका हिस्सा है। जो void दो संस्थाएं बनती हैं Ego और Super Ego । एक है void के अन्दर में सरस्वती का कार्य है। क्योंकि चीज़ से तो हम कहते हैं इसको हम करके दिखाएंगे मैंने आपसे बताया था बीच का जो नाभि चक्र है और दूसरी चीज़ से हम कहते हैं कि नहीं भई ये उसमें से एक कमल का फूल निकलकर के. उसमें नहीं करो। ये हमारे बाप कह गए थे, इसमें फायदा बैठा हुआ ब्रह्मदेव सारी चीज, रचनात्मक कार्य नहीं होने वाला। अब जरूरी नहीं कि बाप अच्छा ही करता है। इसलिए इस void के अन्दर में रचनात्मक कह गए हैं, कभी अच्छा भी कहते हैं कभी कभी बुरा कार्य की शव्ति है। आप जानते हैं. ये है ये भी कह जाते हैं । इस तरह की दो शक्तियाँ हमारे रचनात्मक कार्य पाँच element के बारे में, उसी से अन्दर काम करती हैं या ऐसा समझ लीजिए कि सन भी तैयार होता हैं। मन भी इसी का एक हिस्सा एक से हमारी इच्छा शकब्ति और दूसरी से हमारी है। Existence की शक्ति है और वो कार्यान्वित रचना शक्ति। रचना शक्ति और इच्छा शक्ति गर रहने की रचानात्मक शक्ति है जब बो कार्य बराबर आ जाए या जिसे कहिए ego और super करती है तो इस तरह से, एक समझ लीजिए, कि ego जब बराबर आ जाए तो आप देख सकते हैं byproduct होता है किसी factory में, किसी कि कुण्डलिनी का उठना कितना आसान हो जाएगा प्रकार के दो byproduct निकलते हैं, एक क्योंकि सर का बोझा जो है बो एक जैसा हो byproduct जो left side से ऊपर चलता है वो जाएगा बीच में से कुण्डलिनी आसानी से निकल इस side में आ जाता है right side में। इसे जाएगी। इसीलिए संतुलन की बहुत जरूरत है। मई - जून, 2004 चैतन्य लहरी 36 आज मैं संतुलन पर ही बोल रही हूँ, बार बार हो सकते। और ये कहने पर भी लोग कहते हैं. गुणगान करके संतुलन पर आती हूँ। गर आपके नहीं हमारे गुरु बहुत अच्छे हैं। तो सोचते हैं क्या? अन्दर संतुलन नहीं है तो कुण्डलिनी जागृत होकर एकदम भूत-बाधा है. क्या? कितना भी कोई परेशान के ब्रह्मरन्ध्र से नहीं निकलती। संतुलन का establish करे, कुछ भी तकलीफें हों, सारा शरीर भी टूट जाए. बहुत जरूरी है। और उस संतुलन के लिएHeart से भी मर जाएं. तो भी माँ, हमारे गुरु बडे होना ही मैं आप लोगों से कहती हूँ कि आप left से अच्छे हैं। इसका कारण क्या है? इसका कारण right को जाएं क्योंकि ego यहाँ पर बढ़ गया है। एक ही सीधा सरल बैठता हैं कि कोई न कोई ती आपके ऊपर पकड़ है। आप सोचना ही नहीं चाहते पूरा ego है। यहाँ का balloon ego ने दबा दिया है, Super ego को नीचे तो आपसे मैं कहती हैं कि असलियत क्या है? अब ego किसी आदमी का बहुत जबरदस्त बढ़ा हुआ है. उसके अनेक तरीके हैं उठेगा और ego नीचे आ जाएगा| फिर आप आपसे मैंने पहले ही बताया है। Ego की वीमारी उठाइए फिर आप करिए, धीरे-धीरे करते करते ये ऐसी है कि बो बीमारी पता ही नहीं चलती है। गर हो जाएगा कि बीचों बीच आ जाएगा| उसके लिए आपका तमोगुण super ego ज़्यादा है, तो उसका भी मेरे ओर हाथ करना पड़ेगा नहीं तो आपके हाथ बदन टूटेगा, कि माँ मेरा यहाँ दुखता है, मेरे पैर कि आप इस तरह से ऊपर उठाइए. super ego से थोड़े ही कुछ होने वाला है। जैसे बीच में आ पकड़ गए, पता नहीं कोई कभी मेरे गर्दन में बैठ HE जाएगा तो कुण्डलिनी खट से उठकर ऊपर चली गया है, पता चलता है। पर ego तो अपने को ही जाएगी। कुूण्डलिनी सब जानती है, समझती है अपने ऊपर बिठाया होता है, घोड़े पर चलता है। आपका सब। उसको Past भालूम है आपने जो उसके पास आप जाइए तो मेरे को ही lecture देना गलतियाँ करीं, जो कुछ भी आपने अपने साथ शुरु कर देता है अभी गई थी मैं कोई मंत्रियों के ज्यादतियाँ करीं, जैसे आप किसी गुरु के पास गए, पास में उन्होंने मेरे को ही lecture देना शुरु कर कुण्डलिनी आपकी जानती है। उठेगी ही नहीं दिया, इधर आप लोगों का कोई programme होने frozen कुण्डलिनी। इसीलिए आपने देखा होगा वाला था, उसी में मैं lecture सुनती रही, मैंने कहा कि किसी ने बताया मेरे गुरु थे तो मैं सर पकड़ वाह भई वाह! रोज़ lecture देते हैं अभी इन्हें मैं ही कर बैठ जाती हैं कि गई कुण्डलिनी काम से, अब चाहिए थी lecture सुनाने के लिए? अच्छा भई तो हाथ जोड़ो इनको भैया। क्या करें? अब लोगों सुना लो। तुम्हारा भी हो जाएगा, इधर तुम लोग को ये लगता है कि माताजी क्यों गुरुओं को बुरा यहाँ बैठे रह गए मैं वहाँ ही बैठे रह गई | इसलिए कहते हैं? क्योंकि कुण्डलिनी ही उन्होंने freeze ego ऐसी चीज़ है जिसको अहंकार एक बार चढ़ कर दी तुम्हारी तो मैं क्या करूंगी? और दूसरा ये जाए उसको समझाना बहुत मुश्किल होता है। है कि आपका क्या होगा? कितना सर्वनाश है? सूक्ष्म अंहकार भी होता है, जैसे किसी ने कुछ पढ़ लिख लिया तो मेरा तो इसमें विश्वास ही नहीं बहुत आप ही सोचो कि आपका कोई उद्धार नहीं, आप सम पार नहीं कर सकते, जन्म जन्मांतर तक भी नहीं कि माताजी कुण्डलिनी उठाती है। अब साहब चैतन्य लहरी मई - जून, 2004 37 आपका विश्वास ही नहीं रहा। मैं तो विश्वास ही से लेकर के नेपोलियन से लेकर के सबने भगवान नहीं कर सकता, आपका विश्वास किसी चीज़ पर पर भाषण झाड़े, किसी ने छोड़े थोड़े ही। सब अपने हैं? आपने क्या जाना, आपने क्या देखा? आप को सोचते हैं कि उनको अधिकार है भगवान पर आइए देखिए। आपका विश्वास नहीं है या है इससे lecture देने का इनसे पूछिए, तुमको क्या मालूम क्या फर्क पड़ने वाला है भगवान को? मुझे पूर्ण हैं भगवान के बारे में तुम क्यों बोलते हो? मैंने विश्वास भगवान पर है, माने आप कहाँ के अफलातून हो गए? सृष्टि क्या अपने बनाई थी, या आपके बाप ढिकाना, मैं अमरीका गया था मैंने इतने ecture ने बनाई थी? इस पेड़ के नीचे जो बैठे हुए हो क्या दिए. मैंने इतने lecture पढ़ डाले, एक एक एक आपने बनाया? पूर्ण विश्वास परमात्मा पर है, इस एक इस तरह से एक तरह का बड़ा सूक्ष्म तरह से जो मनुष्य बातें करता है वो अति है। जिसने सारी सृष्टि की रचना की, जिसने सारा मनुष्य के Intelect पर एक aggression है, आपको संसार बनाया, आपको और आपके बच्चों को बनाया, mental feast देते हैं भगवान की बातें करने लगे, इतनी किताबें लिख डालीं, मैंने फलाना पढ़ डाला, aggression है। आप इसको समझ नहीं पाए। ये जो चीज़ संसार में जगमगा रही है, ये सब जिसकी बातें सुनने लगे आप, बड़े अच्छे बोलते हैं साहब । कृपा दृष्टि से हो रहा है उस पर आप विश्वास कर एक साहब हैं क्या भाषण देते हैं, बस सुनते ही रहे हैं, बहुत आप उपकार करते है! परमात्मा पर रहिए आप पता ही नहीं चलता है time का! अच्छा आपका विश्वास ही नहीं है तो आपसे बढ़कर मनोरंजन हो रहा है । भगवान पे बोलने का हरेक अक्लमंद कौन होगा? ये सब पागलों जैसी बाते हैं। को अधिकार नहीं, गीता पर बोलने का तो किसी मैं जब पैदा हुई तो मेरे को लगा कि मैं कौन से को अधिकार नहीं, गीता के lecture होते हैं ! पागलखाने में आ गई? फिर ये कि हाँ मैं तो सब माताजी मैं गीता के lecture में जरा जाता हूँ और कुछ जानता हूँ माताजी, हाँ मैंने पढ़ा था, सारी मॉँ आपका आज्ञा चक़् पकड़ा हुआ है। तो मैं गीता के ये किताब पढ़ के आया हूँ उसमें । अब किताब कहीं lecture में नहीं जाऊं? बेटा तुमको जो गीता भी, किसी भी छापे खाने में आप छपा दीजिए, छप समझा रहा है क्या वो पार है? पार हुए बगैर जाती है। कोई भी छाप सकता है, जिसका मन हो आपको धर्म पर बोलने का या गीता पर बोलने का छाप दे और भगवान के ऊपर कोई छापे तो उसके कोई अधिकार नहीं। जो मनुष्य पार हुए बगैर कोई लिए कोई नियम नहीं है। कोई कायदा कानून नहीं सा भी lecture देता है वो ऐसा ही जैसे एक अंधा कि कोई उसको पकड़े कि भई तूने इसको क्यों आदमी आपको रास्ता बता रहा है। लेकिन धर्म में 1 छापा? और कोई कहे कि भगवान का ये हाल है अन्धा कौन है. और देखता कौन है ये जानने का भी तो हाँ भई है। वो कहे कि भगवान का वो हाल है कोई मार्ग नहीं। जो आदमी विरह में बोलता है तो है। उसका कोई ऐसा कहीं कायदा है. कोई उसका तो सुनना भी नहीं चाहिए । विरह के गीत कानून है जहाँ आदमी हाथ पकड़े कि खबरदार गाए उसको क्या सुनना? हम भी विरह में हैं, वो भी भगवान पर बोलने वाले तुम कौन होते हो? हिटलर विरह में है, इसलिए मजा आता है। जैसे सूरदास मई - चैतन्य लहरी जून 2004 38 जी हैं, सूरदास जी विरह में रोते थे तो सबको मुझे तो घिन चढ़ जाती है जिस तरह से विरह में अच्छा लगता है। ये भी अन्धे, हम भी अन्धे, सब लोग रोने लग जाते हैं गजलों में बैठकर। ये कोई अन्धे गा रहे हैं। बल्लभाचार्य जी के पास गए, मदद की लोगों की बात नहीं। ये सब तमोगुण के बल्लभाचार्य कहने लगे काहे घिधियावत हो भाई? लक्षण हैं। हर समय विरह गाना, रोते रहना, विरह जो आदमी मिलन में बैठता है उसको समझ ही की बात करना। मिलन की बात करो, मिलन में नहीं आता कि विरह की बात क्यों गा रहे हो। आओ और जब समय आ गया तो हमें विश्वास ही नहीं कि मिलन भी हो सकता है। तो रोते बैठेंगे। सबको अच्छा लगता है ऐसा भजन कि भगवान कब मिलेंगे? किसी किसी को ऐसा बेकार का झूठा पहले कहेंगे कि आओ, आओ आओ, जब आकर बक नाटक भी अच्छा लगता है। बड़ी विरह अवस्था में खड़े हुए तो कहते हैं हमें विश्वास ही नहीं होता कि सब देवदास बने बैठे हैं। देवदास काटे घास, मैं ये वो सच्चा है! ये दुनिया है इसे क्या कहा जाए? अरे कहती हैँ। इतनी कविता रुदन की और इतना पहले बुलाया क्यों, जब बुलाया है, जब आ गए तो बोलते हैं कि हमें विश्वास ही नहीं होता है कि आप विरह। हे भगवान! इनको कब बुद्धि आएगी? विरह का मजा बड़ा आता है आदमी को। इसके काव्य आ गए! अभी हमें रोने दीजिए, अभी रोने से फूर्सत होते हैं लेकिन जो मिला हुआ है, मिलन में बैठा है, नहीं उनको। जब इनका रोना खत्म होगा तब तक वो विरह के गीत कैसे गाएगा? एक सीधा हिसाब यहाँ से पसार भी हो जाएगा घण्टों बजाते रहेंगे होता है, जो मिलन में बैठा है वो विरह की बात और पुकारते रहेंगे कि प्रभु तुम आओ, प्रभु तुम कैसे कहेगा? वो कहेगा am the light, I am the आओ दर्शन दो, दर्शन दो हमको, दर्शन दो और path, वो कहेगा कि सर्व धर्माणाम परित्यज्य मामेकम् दर्शन लेकर करने का क्या है? कुछ बनना चाहिए. शरणम् ब्रज। उसके अन्दर authority होएगी। बो होना चाहिए. घटित होना चाहिए। ये तो होने की किसी के बाप से डरने वाला नहीं, किसी के सामने बात है, Becoming की बात है. हवाई बातें नहीं। घिघियाने वाला नहीं। आना हो तो आओ नहीं तो लेकिन मनुष्य बड़ा संतोष में रहता है क्योंकि वो जाओ। उसकी पहचान कबीर है उसका सबने superficial है न उसको इसी में संतोष रहता है मजाक उड़ाया सिंधुक्कड़ी भाषा करते हैं। हमारे कि कोई इनको रिझाए रखे। बैठे अपने भजन गा हां यहाँ हिन्दी भाषी लोग उसका बड़ा मजाक बनाते रहे हैं, घण्टों गा रहे हैं, घटही खोजो भाई, घटही हैं। उनके पांव के धूल के बराबर भी इनमें से कोई खोजो भाई, घटही खोजो भाई । घटही खोजो भाई, हो तो मुझे बता दीजिए। मार्कण्डेय जी के पीछे पड़ खोजने वाले कौन हैं? किसको lecture दे रहे हो गए। उनमें ये ये दोष है, उनके वाङमय में ये दोष भई? वो तो उन्होंने बताया जो खोज चुके, अब तुम है। तो इनके लिए उमरखैय्याम बहुत अच्छे हैं किसको lecture दे रहे हो? वो तो उनको बताया क्योंकि वो पिनक में अपने सब पिनक में ही लिखते हैं, अधिकतर गजलें जो सरदर्द की ये दवा ले लेना, अब तुम prescription हैं वो मैंने देखा है कि पिनक में ही लिखी हुई हैं। ही रट रहे हो सुबह से शाम तक! इससे क्या लाभ लिखते रहते हैं। ये लोग था कि तुम घट को खोजो उनसे कहा था कि मई चैतन्य लहरी जून, 2004 39 होने वाला है? इससे किसका भला हुआ है? ऐसे रहते हैं, हे राम, हे राम तो वहाँ से भगवान जी तो भजन गाने से एक भी आदमी को आपने देखा है कबके भाग गए, ये तो मुझे पता है लेकिन अब मैं कि लाभ हुआ? अन्त में वही सिर पैर ऊपर करके भी भाग जाऊंगी। कहने लगी कि इन्हें सुन-सुन नाटक करके चिल्ला रहे हैं सुबह से शाम तक। के तो मेरे कान दुख गए. अब तुम भी भाग जाना Cancer of the Throat हो जाएगा अब समय ये यहाँ से। ऐसे बेकार लोग हैं एक छोटा सा बच्चा आ गया है कि ऐसी बेकूफियाँ ज्यादा न करो, नहीं समझता है। वो गए थे लद्दाख उनके पिताजी तो बैठे हुए थे। देखिए एक छोटा 1. तो Throat Cancer हो जाएगा। बेंकार में गाते वहाँ एक लामा साहब फिरेंगे तो Cancer of the Throat हो जाएगा। सा बच्चा छ: साल का, अब सब लोग जाकर, सब किसने कहा इतने द्राविड़ी प्राणायाम करने के लोग जा-जाकर लामा साहब के पैर छू रहे थे। लिए? कि गला फाड़ फाड़ करगाओ? अरे भई अब ये तो पार हैं, इनको मालूम है कौन पार है, एक बार जब कह दिया हो गया. आ जाओ, आ ही देखा उनकी Mother ने भी पैर छुए, पिता ने भी पैर जाएंगे, इतना गला फाड़ने की और अपना विशुद्धि छुए, तो उससे रहा नहीं गया फिर वो ही शान आ चक्र इतना सत्यानाश करने की क्या ज़रूरत पड़ी गई उनकी। सामने जाकर उनके खड़ी हो गई, हुई है? मेरी समझ में नहीं आता। यहाँ पर आए, कहने लगी ये क्या सिर मुंडा के. चोगा पहन के माताजी हम ये मंत्र कहते थे कितने बार? रोज़ सबसे पैर छुआ रहे हो? पार तो हो नहीं। सबकी का कम से कम हो जाता था 108 बार। भई किसने हालत खराब, माँ बाप की। ये क्या कर दिया बच्चे कहा 108 बार कहने के लिए? एक बार कह दिया ने? ठीक तो कह रही हूँ ये क्यों पैर छुआ रहा है? हाथ जोड़ के, श्री राम तुम्हारे शरणागत हैं बस हो तुम लोग इनके पैर क्यों छूते हो? ये तो पार नहीं गया अब वो कोई आपका नौकर है जो आप सुबह है बिल्कुल भी। इन्होंने सिर्फ सिर मुंडा लिए हैं और से शाम तक आप उसको Order दे रहे हैं? अब चोगा पहन लिया है और ऐसा मुँह बना कर बैठे हैं। पूरा समय आप किसी को इस तरह करें तो उनको ऐसा मुँह भी दिखा दिया। उनको किसी का भगवान वहाँ से उठ ही जाएंगे साहब सिर दर्द हो डर नहीं । सरमुंडाने से अगर भगवान मिलते हैं तो जाता है मुझे। अब तीन से चौथी बार कोई माताजी जो ये भेड़-बकरियाँ होती हैं ये पहले भगवान के कहते हैं तो मैं कहती हैँ भई क्या चाहिए आपको? पास पहुँचती। कबीर का Sense of humour जो आप ही सोचिए भगवान की position में जाकर, था वो कमाल का था। और ये रोने की हद् इतनी क्या आपको कोई 108 मर्तबा पूरा समय पुकारता पहुँच गई है इन लोगों की कि अब वो हसन हुसैन रहे तो कहेंगे भई चुप भी कर। हमारी grand मर गए तो उसके लिए चिल्ला रहे हैं। एक आफत daughter थी हम गए थे वहाँ बिहार में, Realized मचाए हुए हैं, साहब ऐसी रोनी सूरत देख के जी Soul है बड़ी मज़ेदार जीव है । होगी कोई पाँच छः साल की, कहने लगी नानी बस यहाँ तो बहुत गड़ भाग जाए। ये कहाँ रोने पीटने वाले लोग? इतने तो बड़ हो गया, मन्दिर में ये सब लोग रात-दिन गाते जानवर भी नहीं रोते, कोई नहीं रोता इतना। ये तो घबराता है। कोई आने वाला हो भगवान तो वो भी मई चैतन्य लहरी 40 जून, 2004 मनुष्य का एक अजीब तरीका है, रोने लग गए तो भी ब्राह्मण कहे चढ़ा दो, चलो ठीक है जितनी श्रद्धा रोने ही लग जाए। अच्छा वो हुआ, उससे भी जब हो ब्राह्मण को दे दो। ब्राह्मणों की तो यहाँ agency हुई। सबसे तो कमाल ये है कि जब मेरी शादी हुई, जब मेरी शादी हुई यू.पी. में तो हम घर पर गए. तो चैन नहीं आया तो जिस दिन भगवान का जन्म होएगा उसी दिन उपवास करेंगे इससे बढ़कर और किसी का क्या अपमान करेंगे। इससे बढ़कर आपको आश्चर्य होगा, कि शादी में श्राद्धयोग गा और किसी का क्या अपमान होएगा? आप समझ रहे थे! वही मंत्र गा रहे थे! मारे हँसी के मेरी तो लीजिए आपके घर में कोई आदमी आया, कहने हालत खराब और पेट में बल पड़ गया। अब जाऊं तो जाऊं कहाँ? मैं घर की बहू, नई नई, मारे हँसते हँसते मैंने कहा भई मुझे तो नींद आ रही है। तो उन्होंने कहा इतने शुभ मुहूर्त पर तुम कहाँ सोने जा लगा मैं तो आज खाना नहीं खा रहा हूँ। वो कहेगा भई मैं जा रहा हूँ अपने घर। गर किसी आदमी को आपको भगाना हो घर से तो आप कह दें 'मैं आज खाना नहीं खा रहा हूँ। उसने कहा अच्छा मैं रही हो? मैंने कहा मैं करू क्या? क्यों हँसी आ रही जाता हूँ होटल, सीधा हिसाब। आपके घर में कृष्ण है? मैं उनको कहूँ तो कहूँ कैसे कि सब उनको का जन्म हुआ राम का जन्म हुआ तो भी उपवास थोड़े बहुत वही पितृ पक्ष के थोड़े बहुत मन्त्र मालूम करो। ये कौन सा तरीका है? इससे बढ़कर अपमान थे, वही बोले जा रहे हैं। मैं कहूँ कि ये क्या तमाशा का और कौन सा तरीका है? कल मैं आपके घर में है कि इनको तो कोई श्लोक भी मालूम नहीं? आऊं, समझ लीजिए श्रीमाताजी आपके घर में आते ब्राह्मण हैं और हमारे घर में खानदानी चले आ रहे हैं, मेरा तो उपवास है, तो भैया मेरे को काहे को हैं? तो मैंने कहा इनसे कौन बात करे अब? इन्होंने बुलाया? जब कोई ऐसे आते हैं, ऐसे जन्म होते हैं खानदानी ऐसे ही शादियाँ लगाई होंगी, उनको बड़े तो उस बक्त जश्न मनाना चाहिए, खुशियाँ बरतन भी मिले हुए हैं, उनको गैया भी मिल जाती मनानी चाहिएं, सबको खाना खिलाना चाहिए। गणेश जी को मोदक पसंद हैं तो मोदक बाँटिए। है। तो उनके घर में गैया ही गैया हो गई हैं और ह इस तरह के धर्म की चीजें बनी हैं इस तरह से उस दिन उपवास करेंगे! और जिस दिन नरक rituals बने हैं! हम लोग क्या सोचते हैं कि पीछा चतुर्दशी है, उस दिन सवेरे चार बजे उठकर नहा करके खाने को बैठेंगे। बताइए सब उल्टी चीजें एक गैया देना और एक कपड़ा देना हमें और एक छुड़ाओ। श्राद्ध हुआ तो उसने कहा कि भई देखो समझ में नहीं आती। ये किसने सिखाई? ये हमारी ब्राह्मणी को साड़ी दे दो, तुम्हारी माँ पहनेगी। ब्राह्मणों ने बेवकूफ बनाया है या तो ये राक्षसों के आपने सोचा, ठीक है इससे पीछा छुड़ाओ, गैया तो धंधे हैं । मेरी तो ये समझ में नहीं आता है कि ये बहुत मुश्किल है इसे साड़ी ही दे दो। कोई ये नहीं उल्टी बातें कहाँ से आ गईं अपने यू.पी. में? और सोचता है कि हम जो कर रहे हैं उसमें हमारा क्या North में तो और भी चौपट हाल है, इतना चौपट हृदय है? क्या करना है, क्या देना है, धर्म में क्या हाल है कि कोई पढ़ा लिखा तो है नहीं यहाँ चीज़ है उसको जानना चाहिए। किस तरह की संस्कृत वंस्कृत। किसी को समझ तो है नहीं, जो बात है? कोई इस तरह से बात को सोचता नहीं है 1 मई - जून 2004 चैतन्य लहरी और इसीलिए ये हमारे अन्दर उसका संतुलन नहीं कि आये यहाँ, जैसे वो ये कि Nescafe फट बैठता। बस काम चालू, काम चालू, चलते रहो, काफी बन गई, वैसे माँ आप कुण्डलिनी तो जागृत चलाते रहो किसी तरह से। कोई हाँ हाँ भई कैसे करती है, वो तो मैं करती हूैँ। जेट कुण्डलिनी का हो अच्छे हो, बैठो, हाँ ठीक ठीक है। उसके बाद वो Set जरूर करती हूँ पर खींचती भी वैसे ही हूँ। है गए, मालूम पड़ा बड़ा बदमाश है ये। इसने फलाने ना सही बात? आप खो भी देते हैं अपनी Vibrations के घर चोरी की थी, उसने इतना रुपया मारा था। को इसके बारे में जेन System में लिखा हुआ है फिर आए अच्छा पान खा लो भाई। रात-दिन उसको सपोरी कहते हैं कि आदमी जैसा कोई बॉल के जैसा होता है, ऊपर जाता है नीचे आता है, ऐसे ही डॉवा डोल चलता है। ये, वो होता है। इसलिए मनुष्य इसी तरह Superficialy रहता रहेगा गहराई उसके अन्दर उतरती नहीं है, और इसीलिए तो कुण्डलिनी जागृत होती नहीं है धर्म के मामले में भी अपने चक्रों को संभालना पड़ता है। अपने को नहीं, search के मागले गें भी। परमात्मा को गहराई में उतरना पड़ता है, अपना जीवन गहरा खोजने के मामले में भी। जैसे अमेरिका में गुरु बनाना पड़ता है, अब आप पूरा अपना जीवन जो है Shoping होता है वैसे यहाँ भी गुरु Shoping फालतू चीजों में बर्बाद करेंगे सुबह से शाम तक। होता है। नहीं मैं सिर्फ गया था, मैंने देखा, मैंने अब करना ही पड़ता है. वया करें, दुनिया ऐसी है, चरण छुए, दर्शन हुए, प्रसाद मांगा, दर्शन करने उसके लिए करना पड़ता है और आपके पास सगय गया था माँ मैं तो वहाँ पर। वो दर्शन में उन्होंने भी नहीं कि अपने में गहराई उतराए और परमात्या आपके अन्दर में भूत रख दिए होंगे? मैं तो दर्शन के साम्राज्य में बैठे रहें। तो ठीक है आप जिस चीज़ के लिए गया था पर ये कुण्डलिनी तो उठ नहीं की चाहत करेंगे वही होगा, आप जो करना चाहेंगे रही बाबा, मैं क्या करूं? उनको क्या? ये तो बड़ी वहीं होगा। अपना समय ऐसे ही बवद आप कर गेहरी सूक्ष्म चीज़ है कुण्डलिनी का उठाना और लीजिए ऐसे ही आपने हजारों जिन्दिगयाँ कार्ी, कुण्डलिनी का ऊपर चढ़ना भी अति सूक्ष्म चीज़ है और एक कट जाएगी, लेकिन ये वाली ज़रा गुश्किल गर आपने इसकी संभाल नहीं करी, गर आपने रहेगा मामला दयोंकि फिर पता होगा बड़ी गलती तर अपना विचार इतना सूक्ष्म नहीं रखा तो चीज़ तो कर गए, सत्य को मना करते करते जो Peal रात्य दब गई न अब भी पार होने के बाद भी आप आ गया उसको भी मना कर गए। वो तो देखना तो देखिएगा कि आपके Vibrations खो जाएंगे, ये तो चाहिए न, समझना तो चाहिए । उसको पाने के बाद है ही बात आपको बता दें। लोग कहते हैं गाताजी जो आदमी खो देता है तव तो समझना चाहिए कि दीजिए, तो Permanent दीजिए, क्यों साहब आपने उनके लिए ये व्यर्थ ही हुआ । दिल्ली शहर की ये History है, ये कहना मुझे क्या Permanent दिया है? मैं आपको क्यों दूं Pemanent? मैं तो नहीं देने वाली मैं तो चाहिए कि हर समय काफी लोग पार हो जाते हैं महामाया हूँ। सीधा हिसाब। आप Permanent पर पर जमते नहीं। जमने वाले बहुत ही कग लोग होते बैठिए तो मैं भी Permanent दूंगी और आप ऐसे हैं। हर कार्यक्रम के बाद एक दो आदमी वच जाते दतन्य लहरी मई - जून 2004 42 ९ ते रा र हे है। इस प्रकार तीन चार साल से हम आ रहे हैं, सच बात है। बहुत लोगों को होने का समय आ कुल मिला करके गर आप देखिए तो जो रोज़ के गया है और ये है ही ऐसी चीज़ कि इतिहास की आने वाले आदमी हैं, जो उत्तरे हैं, जो कुण्डलिनी दृष्टि से ही वो समय आ गया था कि जहाँ बहुत को मास्टर कर चुके. ज्यादा से ज्यादा दस या लोग उसे पाएं। हालांकि बहुत से Realized Souls बारह लोग हैं, बस। बड़ी दुख की बात है । इसलिए हैं जिन्होंने जन्म लिया है। बहुत से Realized आपसे, आज आखिरी दिन है. माँ के नाते मैं विनती बच्चे पैदा हुए हैं। दस साल के अन्दर वो तैयार हो करती है और शक्ति के नाते आगाह करती हूँ कि जाएंगे। इसमें कोई शंका नहीं है। स्टाइलर जैसे अपनी गहराई को पाइए। अपनी गहराइयों में आदमी ने इग्लैण्ड में लिखा है कि अब वो समय दूर उतरिए। अपने समय को इस महान शक्ति के लिए नहीं कि बहुत से Realized Soul इस संसार में रखिए । इसमें आप पाइए और दूसरों को दीजिए । जन्म लेंगे ये कलियुग का मामला है, कलियुग में बहुत बड़ा कार्य करने का है। गर हम किसी से दो ही तरह के आदमी जन्म ले सकते हैं। एक तो कहते हैं कि मुम्बई शहर में और सब शहरों में कीड़े मकोड़े मच्छर लेंगे जो कि हर हालत में ऐसी मिलाकर कोई बारह, दस हजार आदमी हैं, अरे दुर्दशा में रह सकें और ऐसे गन्दे atmosphere में क्या हुआ. दस हजार आदमी हैं तो क्या हुआ? रह सकें इसलिए Population भी बढ़ता है। वंणे चैतन्य लहरी मई 43 - जून, 2004 जितनी देश में गंदगी और दुर्दशा आती है उतना शुद्ध करें और इस वातावरण को शुद्ध करने के लिए ही Population बढ़ता है। जैसे गरीबी आ गई, ज़रूरी है कि आप लोग इस शक्ति को वहन करें, गरीबी तो leprosy है, समझ लीजिए, गरीबी से पहली मर्तबा अब मानव अपने व्यक्तित्व से या घबराना चाहिए। ये आदमी गर अपने गरीबी को अपनी शक्ति से ये जो पाँच तत्व हैं उसमें शव्ति लेकर आए कि साहब मैं गरीब हूँ, मुझे दीजिए, तो डाल सकता है। इसके बहुत सारे Experiment नी उसे दो झापड़ दीजिए। गर आदमी कोशिश करे किए हैं। हमारे Scientist लोगों ने बताया किस तो उसको ऐसे लानत वानत जैसे करने जरूरत तरह से हम शक्ति दे सकते हैं इन पाँच तत्वों को । नहीं, बस कोशिश की बात है। इस तरह से हम किस तरह से हम हमारी खेती बढा सकते हैं। ये सोचते हैं कि हम गरीबों के लिए क्या कर सकते लोग Agriculturist हैं Agricultural University हैं। बहुत कुछ कर सकते हैं। किसी आदमी को राहुरी में बड़े बड़े Scientist हैं, आप उनको चिट्ठी आप गरीब देखें तो उसकी आप मदद करे उसको लिखकर पूछ सकते हैं, उन लोगों ने जब Vibrated ऊपर उठाने की कोशिश करें। हरेक गरीब आदमी पानी दिया तो 2/3, दो तिहाई फसल उनकी को उठाने की कोशिश करें, आपका कर्तव्य होता ज्यादा आई और फूल बड़े आए। और हमने जो है। जिस तरह से भी हो सकता है उसकी मदद वहाँ की चीज़े देखी तो बड़ा आश्चर्य लगा हमें कि करें, उसे बताएं किस तरह से वो अपना जीवन कुछ फल ऐसे कि ऐसे तो फल हमने कभी देखे निर्वाह करे । बहुत ही ज्यादा पैसे की ज़रूरत नहीं थे। उनके रंग उनका तेज, उनका आकार नहीं। ज्यादा पैसा हो गया तो उसके पैर निकलेंगे। प्रकार एक अजीब तरह की चीज़ थी। इन्हीं चैतन्य जो आदमी शराब पीने लग गया तो अब उसको की लहरियों से आप लोगों की बीमारियाँ में मुफ्त ठीक कर सकते हैं। आधा प्रश्न तो आपका ठीक हो गया, Health M.nistry बन्द करा सकते हैं आप कहना अब तेरे को पैसा ज्यादा करने की ज़रूरत नहीं। जिसने सिगरेट पी उससे भी कह सकते हैं कि बस काफी है, जिसने बीड़ी पी उससे कहना का पैसा बचा, डॉक्टरों के जेब आप कुछ कम भरेंगे, अब काफी है। अब तू गरीब नहीं। फिर जो जुआ डॉक्टर लोग इसी से मुझसे घबराते हैं। इसी से खेलता है तो वो कभी भी गरीब नहीं । इतना हो कि बुलाया नहीं। लेकिन ऐसी सब बीमारियाँ थोड़ी बस उसका खाना पीना चले, उसमें कोई सहजयोग से ठीक होने वाली हैं। लेकिन दुनिया विषय-वासना नहीं आए। सो ऐसी जगह ही कीड़े बीमार रहे ऐसी मकोड़े पैदा होते हैं और इसीलिए Population होगा मुफ्त में, अब जो लोग हमारे सहजयोग में कोई इच्छा डॉक्टर भी नहीं करता बढ़ता है। जैसे ही वातावरण अच्छा हो जाता है, आते हैं अधिकतर लोग वो डॉक्टरों के पास नहीं आप जानते हैं कि जहाँ बुरादा होता है जहाँ गंदगी होती है, वहीं मच्छर पनपते हैं। जैसे ही सफाई हो जाते। दवाईयों के खर्चे कम हो गए, डॉक्टरों के खर्चे कम हो गए, नींद की गोलियाँ लेने की जरूरत जाती है वहाँ एक ही दो फूल खिलते हैं। इसीलिए नहीं, आप आराम से पड़कर सोइए। बहुत सारी बहुत जरूरी है कि हम लोग इस वातावरण को बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं, कुछ नहीं होती, मई - जून, 2004 चैतन्य लहरी अधिकतर बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं कुछ नहीं ईमानदार लोगों का दुनिया में कोई ठिकाना नहीं। होती. अधिकतर बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं। ये बेवकूफी की बात है। आप ईमानदार हैं यही तो आपमें संतुलन आ जाता है, आप आनन्द में आ मजे की चीज़ है। सब बेइमान हैं और आप ईमानदार जाते हैं । शराब सिगरेट और हैं. ये बड़ी शान की चीज है । ये आपका गौरव है, जुआ बाज़ी, औरतों के चक्कर सब छूट जाते हैं। हमारे यहाँ लोग आए, थोड़े दिनों में देखा उनके पास बड़े ईमानदार की कोई दुनियां में पूछ नहीं। पूंछ काहे अच्छे रेडियोग्राम, ये वो। मैंने कहा ये कहाँ से को लगाने को चाहिए? इसकी क्या ज़रूरत है? अरे आए? कहने लगे अब तो हमारे यहाँ पैसे ही पैसे आप ईमानदार आदमी हैं दुनिया में लोग कहते हैं बरस रहे हैं। मैंने कहा 'कैसे? कहने लगे अब हम कि शास्त्री जी इतने ईमानदार थे कि जब मरे थे तो गांजा नहीं पीते हैं, LS.D. नहीं पीते, उसमें तो वे कर्जे अपने छोड़ गए। अब वो कर्जे छोड़ गए बहुत पैसा लगता है, अब हम शराब नहीं पीते। यही उनका गुण हो गया । देखिए सारी दुनिया कहने लगे अब हम कहीं कैबरे में भी नहीं जाते, इन्हीं का उनको गुण दे रही है कि उन्होंने debts डॉस में नहीं जाते, बस इसी में मज़ा आता है सब छोड़ दिए। अपने गुणों पर आदमी को आनन्द आता भारतीय रिकार्ड ले लेकर के बजाते रहते हैं । अब है, अपने गुण से वो प्लावित होता हैं। एक सती हिप्पी आपका ताज़ है उसके लिए आप कहते हैं कि कुछ आप सोचिए। घर में उनके शोभा आ गई, रौनक स्त्री है वो अपने सतीत्व और अपने पतिव्रत्य के आ गई, सब आनन्द से, सब लोग रह रहे हैं, मियां आनन्द में रहती है। अपने गुणों का आनन्द आता बीवी के झगड़े छूट गए, दूसरों की बीवियों के साथ है अपने मज़े का आनन्द आता है। आप कोई भागते नहीं अपनी बीवी को प्यार करते हैं, और शराबी को देखते हैं कि वो शराब पी रहा है तो बीवी भी ठिकाने से आ गई। सब आराम हो गया, आपको उस पर दया लगती है कि भई मैं तो आराम व्यवस्था हो गई, सब राम राज्य आ गया। उसमें से बैठा हूँ, ये कहाँ मरा जा रहा हैं? फिर ये नहीं खर्चे बड़े कम हो जाते हैं। एकदम खर्चे कम हो लगता कि ये शराब पी रहा है और मैं तो बिल्कुल जाते हैं। मनुष्य मौके पर पहुँचता है। जो कुछ ही पुराने ढंग का हूँ। मैं तो बिल्कुल पी नहीं पाता। 1 उसका जितना है Vibrations से देखता है। जो हीन भावना की जगह आदमी को ये लगने लगता में हैं कि ये आदमी पता नहीं कहाँ ये दयनीय दशा आदमी Vibrations में जीता है वो बहुत बड़ा संग्रह आ गया? उल्टी ही दशा आ जाती है। हँसी आने नहीं कर पाता। ज्यादा उसके पास चीज़ हो जाती है तो वह बाँटना शुरू कर देता है। संग्रह बहुत लगती है और बेवकूफी पर उसको आश्चर्य लगता ज्यादा नहीं करता, उसको बाँटने का मजा आता है जब ऐसी कोई बातें करता है तो उसको लगता है, उसको देने का मज़ा आता है। वो अपनी जो है कि ये कैसा बेवकूफ आदमी है ? कैसी बात कर Virtues जो Goodness हैं उसको Enjoy करते रहा है? अभी भी लोग मुझसे कहते हैं कि माताजी यहाँ तो ऐसा है कि अगर आप शराब नहीं पिओ तो 1. हैं। चो अगर सच बोलता हैं तो उसका मजा उठाता है। आपने बहुत से लोग देखे होंगे जो कहते हैं आपकी कोई इज्जत नहीं करता। मैंने कहा सच्ची चैतन्य लहरी मई - जून, 2004 45 बात है? ऐसा तो कभी हो ही नहीं सकता। Cosmic Change आ जाएगा और आ ही रहा है। वास्तविक में ऐसा नहीं हो सकता। असल में वो उसको आप लोगों को देखना चाहिए और सोचना आपसे इसलिए भिड़ते हैं कि उनको लगता है कि चाहिए कि माँ ये कहती थीं, सच था । और आप मेरी दुम कटी है और इसकी क्यों नहीं कटी? अपनी स्थिति बनाएं इसी चीज़ में और आप ही इसीलिए आपके पीछे पड़ते हैं। लेकिन गर आप ये वहन करें इस शक्ति को और सारे संसार को भी 1 उनको ज्यादा न जताएं कि हम शराब नहीं पीते हैं दें उसके लिए आपको रुपया पैसा खर्च करना पर उल्टी तरह से बातें करें इसमें कृष्ण की नहीं, आपको कुछ भी देने का नहीं, सिर्फ ये कि Diplomacy करनी चाहिए कि ऐसे कहें मैं आजकल आप अपना Instrument ठीक कर लें। इस इतना खुशहाल हूँ बड़ा मजा आता है मुझे। घर में Instrument के लिए आपको ध्यान धारणा आदि आराम से खाता पीता हूँ, मुझे आजकल कोई करना पड़ता है। इसके लिए जो भी ये लोग तकलीफ नहीं। उन्होंने कहा क्यों भई? मैंने कहा Programme करते हैं दिल्ली में, जो भी इनके शराब छोड़ दी न तो वो पैसा सब बच गया । फिर पास सहूलियतें हैं, इनका नम्बर आप फिर से लिख इतना मजा आता है, बच्चों को लेकर मैं घूमता हूँ। लें, E-288 पंडारा रोड, आप वहाँ पर खबर लें E- बड़ी मेरी मजे की जिन्दगी है। वो फिर सोचेगा कि 288 पंडारा रोड, यहाँ उनसे बातचीत करें। Every अरे ये तरीके होते हैं। उससे आप दुनिया बदल Friday 6 to 7 वहाँ आप जब भी फोन करें वे सकते हैं। इस तरह से संसार में राम-राज्य आ बताएंगे इस बारे में । आज बहुत दिनों बाद एक जाएगा। सतयुग तो शुरु हो ही गया है, इसमें किताब भी प्रकाशित हो गई है वो भी आप ले लें। शंका ही नहीं है क्योंकि सतयुग के ही असर आ उसमें भी आप समझ लें कि कुण्डलिनी क्या चीज रहे हैं। कोई भी बात छिपने वाली नहीं। कार्टर हैं और उसमें क्या क्या घटित होता है और किस | तरह से ये कार्यान्वित होती है। इसमें कौन सी आ गई। कोई किसी की बात छिपने नहीं वाली, कौन सी विशेषता है। गर आप इस चीज़ को बिठा सब लोग सामने आ जाएंगे सबका पता हो जाएगा, लें अपने अन्दर समालें, इसमें रजें, तब मज़ा आएगा । कौन कहाँ है क्या है। कौन कितनी गहराई में है रे रजने वाली चीज़ है। अब वो समय आ गया है । सब प्रकाशित हो जाएगा। अब वो दिन नहीं रहे कि परमात्मा का साक्षात्, सत्य का साक्षात्, कुछ साहब ने एक छोटी सी बात कह दी, वो भी बाहर जो आप कोई भी चीज़ छिपा कर कर लें। एक आदमी लिख गए हैं उसका fullfilment, उसका दूसरे को खींचेगा, एक ईमानदार आदमी होगा Completion, उसकी पहचान, पूरी तरह से आप उसको लोग खींचना चाहेंगे तो वो खिंच नहीं चैतन्य लहरियों से कर सकते हैं क्योंकि आपके अन्दर एक नई चेतना जिसको वाइब्रेटरी चेतना कहते हैं, चैतन्यमय चेतना आ गई है, माने जो भी क्योंकि उसको समाज, जनता उसकी मदद पाएगा करेगी। ये सतयुग के लक्षण हैं और ये शुरु हो गए हैं। कोई भी आदमी बहुत गर दुष्ट हो वो भी चल नहीं पाएगा। सबका जिसे कहना चाहिए कि awareness है उसमें light आ गई है। उसके माध्यम से आप सिद्ध कर सकते हैं कि परमात्मा है चैतन्य लहरी मई जून, 2004 46 या नहीं, परमात्मा की शक्ति क्या है. किस तरह से गई। ये पहचान हो गई कि हम एक ही माँ के बेटे चलती है, ये हमारे अन्दर चक्र हैं या नहीं, चक्रों में हैं। चाहे आप अमरीका चले जाओ। एक साहब देवी देवता हैं या नहीं। हम लोगों का किस तरह अमरीका गए उनका भी ऐसा ही हाल हुआ। से उत्थान होता है? किस तरह से हम दूसरों को उन्होंने कहा । was lost, वहाँ एक साहब मुझे मिले ठीक कर सकते हैं, किसमें क्या बीमारी है, अनेक तो उन्होंने कहा कि साहब आपके Vibration आ छोटी छोटी चीज़ों का आप निर्णय कर सकते हैं। रहे हैं। मुझे भी Vibration आ रहे हैं। कहने लगे जैसे कि एक साहब आये, कहने लगे माँ हम आप माताजी के भक्त हैं? कहने लगे हाँ। तो कहने बाजार गए तो समझ नहीं पाये कि ये चीज़ खरीदें लगे चलो भई, अपने चलें एक साथ। इसी तरह से या नहीं खरीदें। मैंने कहा आप वाइब्रेशन देख अनेक काम बनते जाते हैं। जहाँ जाइए वहाँ लेते। एक बार हम जा रहे थे तो किसी ने कहा कि Vibration से पता चलता है, ये है न। हरेक एकदम हमें वाइब्रेशन आए तो हमने सोचा कि माँ आदमी पहचान लेता है। कुत्ते बिल्लियाँ तक आपको कहीं आयी होंगी और पहुँच गए वहीं पे। कहने पहचान लेंगे कि आप Vibration वाले आदमी हैं। लगे देखो माँ हमको तो वाइब्रेशन आये, हम पहुँच छोटे छोटे बच्चे भी पहचान लेते हैं । बताते हैं कि गए यहाँ। स्टेशन पर एक दिन ये परेशान थे कि स्कूल में हमारे यहाँ पाँच लड़के हैं, वो हैं पार । अभी तक पहुँची नहीं माँ, तो उनके एक दम बाकी नहीं हैं। कौन पार है, कौन नहीं, फौरन पता वाइब्रेशन आए कि माँ तो पहुँच गईं। हम भी वही चल जाता है। जो पार है वो हमारा भाई हुआ या पहुँच गए। तो वाइब्रेशन जो हैं वो आपस में बोलते बहन हुई, क्योंकि माँ के ही तो सब बच्चे हैं। ये नई रहते हैं बताते रहते हैं, बराबर ठीक ठाक करते चीज़ अन्दर में आ जाती है और आप सोचो सुगन्ध | रहते हैं। इतने कमालात हैं, इतने कमालात हैं कि आपके कितने भाई बहन इंग्लैण्ड अमरीका में हैं। हम आपको बता नहीं सकते उदाहरण के लिए उस तरह के नहीं जैसे गुरुजी लोगों के होते हैं, साहब यहाँ दिल्ली में आए हमने आपसे बताया, उस तरह के नहीं, ये असली हैं। ये आपके लिए यहाँ आए और उन्होंने कहा कि हम तो जानते नहीं दौड़ेंगे आपके लिए सब काम करेंगे एक राहब कि दिल्ली में जाऐं कहाँ। तो उसने कहा कि माँ राहुरी से जा रहे थे, अपने बोरे ले जा रहे थे, चीनी को याद किया, इतने में सामने देखते ह कि एक के बोरे ले जा रहे थे, ऊपर से बरसात हो गई । साहब चले आ रहे हैं! तो उन्होंने कहा आप कौन उनके सब बोरे भीग गए। उन्होंने कहा कहीं रोकेंगे हैं? तो कहने लगे मैं तो माँ का भक्त हूँ मैं भी माँ तब होगा, नहीं तो हमारी तो सारी चीज़ बेकार हो का भक्त हूँ। उन्होंने उनके Vibration देखे, कहने लगे हम तो आपको जानते हैं। आपको माताजी निर्मला देवी ने जागृति दी है? कहने लगे हाँ। वहीं पर Vibrations आने लगे। उन्होंने कहा यहाँ गई। इतने में जाकर कहने लगे कि अच्छा चलो कहाँ जाएं? जहाँ रुक जाए वहीं रोको। जहाँ रोका काल आपने कैसे पहचाना? कहने लगे Vibration आ रहे हैं, आपके भी आ रहे हैं। चलो। दोनों की दोस्ती हो कहाँ Vibration? तो देखा। वहाँ रास्ते पर हमारा Board लगा है। कहने लगे यहाँ कहाँ हमारा मई - जून 2004 चैतन्य लहरी 47 Board लगा है? अन्दर गए तो बंगले के अन्दर में आप अजातशत्रु हो जाते हैं। आपके शत्रु जो वहाँ पर हमारा Centre! उन्होंने कहा आओ भई, हैं आपके हट जाते हैं। Private वालों का भी तो उन्होंने कहा हम तो देखते देखते आए. भुलिया फायदा हो जाता है, लेकिन सब से बड़ी चीज़ है कि अपनी नाभि साफ रखनी पडती है। आपकी है। फिर उन्होंने हम से पूछा हाँ वो आए थे हमारे नाभि खराब है और आप चाहें कि लक्ष्मी जी में बैठी हुई हैं। जहाँ हम गए उन्होंने हमसे बताया जागृत पास। एक साहब बैठे हुए थे, सवेरे उठकर देखा तो नहीं हुई और नाभि साफ़ करने के लिए शुद्धता उसके बारे में सोचना पड़ता हैं। बोरे-बोरे सब सुखे हुए थे। फिर वो उठ गए, रखनी पड़ती है जितना पैसा था उतना मिल गया। लक्ष्मी जी की एक साहब थे हमारे यहाँ आए, कहने लगे हमारे कृपा तो बड़ी होती है। इसमें कोई शंका नहीं । यहाँ कोई आता ही नहीं, हमारी दुकान ही नहीं असली होती है। असली लक्ष्मी जी की कृपा होती चलती है। पूने की बात है। तो हमने कहा हम हमारे पास एक साहब आते थे, बहुत दूर आएंगे, हम उनकी दुकान पर गए उनको जागृति से, काल्वा से बड़े शरीफ आदमी परन्तु गरीब थे दी, तो दुकान ऐसे चलने लगी कि अब बहुत ही खेती का काम करने वाले आदमी। मैंने उनसे कहा Busy हो गए, अब वो बहुत बड़े आदमी हो गए, हर बार एक-एक हार लेकर आते हो? कितना अब वो हमें मिलने भी नहीं आते हर बार याद खर्चा पड़ता होगा? क्यों इतनी परेशानी करते हो, | एक टी करते हैं। अरे फिर इतना Time नहीं मिलता, ये Business हैं वो Business है । हम दो बार पूना हर बार नहीं करना चाहिए? कहने लगे माँ तुम्हारी कृपा से लक्ष्मी जी की कृपा हो गई कहने लगे गए मिलने भी नहीं आए । और जब पहली मर्तबा हमारा एक खेत था वैसे ही पड़ा रहता था । उसको हम वहाँ गए थे तो वो गरीब थे बेचारे, गरीब माने हम जोतते नहीं थे क्योंकि उसमे मिट्टी जरा उनका चलता नहीं था हमें याद है हम रिक्शा में चिकनी ज्यादा थी। कोई सिंधी आए, कहने लगे बैठकर गए, मोटर थी नहीं, रिक्शा में बैठकर गए. तुम्हारी मिट्टी बड़ी अच्छी है हमको दोगे? कहने तो पूरी समय रोते गए माँ आप चली जाओगी, लगे, किसलिए? कहने लगे ईंट बनाने के लिए। तो हमारा कैसा होगा? अब ये हाल है अब हम चहाँ ति उसको दस गुना दाम उसी मिट्टी का मिलता था, गए तो मिलने भी नहीं आए। तो ऐसे पैसे से भी खेत का खेत उसी तरह बना रहा। अब उसकी क्या फायदा? मतलब क्या है कि समझ में आ मिट्टी उठाकर ले जाने का दस गुना दाम मिला। जाता है, wisdom आ जाता है, संतुलन आ जाता कहने लगे आपकी कृपा से हुआ, सहजयोग के है, क्योंकि आप समझते हैं Vibrations में, आप बाद हुआ, कहने लगे हम कभी सोच भी नहीं सकते चाहते हैं ये चीज़ लें, फिर समझते हैं कि Vibrations थे ऐसे अनेक लोगों को फायदे हुए हैं । तो आपके ठीक नहीं हैं, छोड़ो। छूटते जाता है, आदमी Promotions भी हो जाते हैं, सरकारी नौकरों को साक्षी स्वरूप हो जाता है। देखता है नाटक सब। बहलाने के लिए कह रही हूँ। पहली चीज़ आज कितने लोग पार हुए. देखते हैं, हाथ ऐसे Promotion होना चाहिए. Promotion हो जाएगा, करें। ---------------------- 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-0.txt पैतन्य लहरी त् ६ ल० गा वि ३ या मब हौ मई - जून, 2004 क 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-2.txt टि २ं দ০ हैि ७ इस अंक में 8 ईसामसीह पूजा - 25.12.03 गणपति पुले क 5 संक्रान्ति पूजा - 14.01.04 पुणे 6 सतोगुण की प्राप्ति 17.05.80 14 अहं पर विजय पाकर आप स्वयं को कैसे पहचाने-डालिस हिल 18.11.79 20 आनन्द 24 हमारी प्राथमिकताएं क्या हैं 26 त्रिगुण 3.2.78 दिल्ली ड 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-3.txt चै त - य ल ह री प्रकाशक निर्मल इन्फोसिस एवं टेकनोलोजीज़ प्रा. लि. मुख्य कार्यालय : प्लाट न. 8, चन्द्रगुप्त हाऊसिंग सोसाइटी, होटल ग्रेस के पीछे, पॉड रोड, कोठरुड पुणे 411 029 मुद्रक अमरनाथ प्रस प्रा. लि. WHS-2/47, कीर्ति नगर, औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली-110015 सदस्यता के लिए कृपया निम्न पते पर लिखें :- श्री जी.एल. अग्रवाल निर्मल इन्फोसिस एवं टेकनोलोज़ीज़ प्रा. लि. 222, देशवन्धु अपार्टमेंट, कालका जी नई दिल्ली-110 019 आप अपने अनुभव, सुझाव, सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओं. पी. चान्दना जी-11-(463), ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली त 110 034 दूरभाष 011-55356811 प्रात: 08.00 बजे से 09.30 बजे सायं: 08.30 बजे ये 10.30 बजे 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-4.txt ईन्सामसीह पूजा गणपति पुले (हिन्दी रूपान्तर) 25.10.03 १ ० ० आज महान दिवस है. हम ईसामसीह का कि इतने कष्ट झेलते हुए भी वे अत्यन्त शान्त थे। जन्मदिवस समारोह मना रहे हैं । उनका व्यक्तित्व उनका जीवन हमारे सम्मुख एक मिसाल है कि इतना आध्यात्मिक था कि उन्हें सूली पर चढ़ना लोगों द्वारा खड़ी की गई समस्याओं का सामना पड़ा। बहुत से लोगों की समझ में ये बात नहीं करते हुए हमें कैसा होना चाहिए और किस प्रकार आती कि उन जैसी योग्यता, स्थिति तथा आचरण करना चाहिए। आध्यात्मिकता वाले व्यक्ति को जीवन में इतने कष्ट क्यों झेलने पड़े। ये बात समझ लेना बहुत आसान है। हम समारोह मना रहे हैं क्योंकि उन्होंने है कि उनका जन्म ऐसी परिस्थितियों में हुआ जो आध्यात्मिकता का नया मार्ग हमें दिखाया है जिसमें उनकी स्थिति तथा परमेश्वरी शक्ति के प्रतिकूल कष्ट झेलने ही पड़ते हैं। बहुत से लोगों की थीं। ईसामसीह को वश में करने के लिए लोगों ने अज्ञानता के कारण उन्होंने इतना दुःख उठाया । उन्हें खत्म करने का प्रयत्न किया। परन्तु न तो वे परन्तु आज स्थिति इतनी बुरी नहीं है। लोग दर्द से तड़पे और न ही लोगों की मूर्खता का बुरा आध्यात्मिकता और दिव्यता को समझते हैं तथा माना। इसके विपरीत, उन्होंने सारे कष्ट झेोले। यह आज आपकी संख्या भी काफी बड़ी है । कष्टों को उनकी दिव्यता थी क्योंकि दिव्य शक्ति साहस झेलते हुए भी ईसा कभी न तो रोए और न चिल्लाए । प्रदान करती है और साहस से ब्यक्ति अग्नि परीक्षा अत्यन्त दृढ़ता पूर्वक उन्होंने सब कुछ सहन किया। आज उनका जन्म दिवस है, यह खुशी का दिन में सफलता प्राप्त कर सकता है। पृथ्बी पर अवतरित अतः उनके जीवन से हमें सीखना है कि किसी भी व्यक्ति के सम्मुख भिन्न प्रकार की समस्याएं होती परिस्थिति में हमें घबराना नहीं। अब समय बदल हैं, चाहे आप राजवंशी हों समस्याएं सदैव बनी रहती हैं । ईसामसीह ने दर्शाया अब आपको सताते नहीं। ऐसा नहीं है। यह सब या निर्धन व्यक्ति। गया है आपकी आध्यात्मिकता के कारण लोग 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-5.txt हैतन्य लहरी मई - जून, 2004 समाप्त हो गया है। ईसा मसीह ने मानव मस्तिष्क इस बदली हुई दुनिया में आध्यात्मिक जीवन बहुत से ये सब भाव समाप्त कर दिए हैं। आध्यात्मिक महत्वपूर्ण है। इससे कितने क्लेश हमारे दूर हो होने के कारण लोग अब आपका सम्मान करते हैं । सकते हैं। हमारे शारीरिक क्लेश आध्यात्म से खल्म ईसा मसीह के जीवन का यही संदेश है। हमें खुशी हो सकते हैं, मानसिक क्लेश आध्यात्म से खत्म हो होनी चाहिए कि उन्होंने हमें सहनशीलता का मार्ग सकते हैं, इसके अलावा जागृति के मार्ग में जो भी दिखाया। क्लेश हैं वो भी खत्म हो सकते हैं। इस तरह सारी सहजयोग का भी यही संदेश है कि दुनिया की ज़िन्दगी जो है आध्यात्म में पनप सकती आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करें, आध्यात्मिक जीवन है कितना महत्वपूर्ण है यह जानना कि एक तरफ अपनाएं। बाकी सब कुछ स्वतः ठीक हो जाएगा तो ईसामसीह जैसा आध्यात्म का मसीहा और क्योंकि सभी दिव्य शक्तियाँ आपके साथ हैं बो दूसरी तरफ हम लोग जिन्होंने आध्यात्म को थोड़ा आपके लिए सभी कार्य कर रही हैं। आपमें से बहुत पाया है और हम लोगों की वजह से दुनिया अधिकतर लोग इस बात के साक्षी हैं। जीवन में शान्त हो गई, बहुत दूर हो गई और उन्होंने जो कष्ट सहे वो आपको नहीं सहने पड़ेंगे। हमारे लिए उन्होंने सभी कष्ट सह लिए । हमें है आध्यात्म को पाना ये आप लोगों की जिन्दगी 1. सी तकलीफें मनुष्य जान गया कि उसके लिए सबसे बड़ी चीज़ प्रसन्न, शांत एवं आनन्दित होना हैं। मुझे ये सब से उसने जाना है, आप को देखकर उसने जाना कहने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि आप लोगों है। ये सारा परिवर्तन आप लोगों की वजह से ने इसका अनुभव किया है। आज भी अत्यन्त क्ूर, आया, हम अकेले क्या कर सकते थे! जैसे ईसामसीह मूर्ख एवं आक्रामक लोग हैं, परन्तु कोई आपको वैसे ही हम, हम कितना कर सकते थे! लेकिन इतने लोग आप जब आपने आध्यात्म को प्राप्त और जिस लक्ष्य के लिए ईसामसीह ने किया है तब देख सकते हैं कि दुनिया कितनी इतनी यातनाएं झेलीं उसे प्राप्त करने में आपको बदल गई है! आपके प्रभाव से और आपके अन्तर्यामी जो शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक जितनी भी तकलीफें हैं वो हो गई हैं। इसका प्रत्यन्तर बहुत लोगों ईसामसीह की आज जन्म तारीख है और हम को आया है, दुनिया भर में लोग जान गए हैं कि लोग बहुत उसको खुशी से मना रहे हैं किन्तु सहजयोग से बहुत जबरदस्त परिवर्तन आ जाता जीज़स क्राईस्ट को कितनी तकलीफें हुई वों भी है। सिर्फ एक व्यक्तिगत नहीं किन्तु जागृति से हम लोग जानते हैं और वो तकलीफें, जो परेशानियाँ हजारों लोगों में परिवर्तन आ सकता है. समाज में उनको हुई वे हम लोगों को नहीं हो सकतीं क्योंकि परिवर्तन आ सकता है और ये सब आप कर रहे हैं हानि नहीं पहुँचा सकता। जीवन अत्न्त बदल गया काफी मदद मिली है। हिन्दी प्रवचन दूर है. जो बड़ी महत्वपूर्ण बात है। अब समाज बदल गया है, दुनियाँ बदल गई है और 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-6.txt संक्रान्ति पूजा नि पुणे (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) 14.01.2004 जब ये सूर्य दक्षिण से उत्तर में आता है, इसलिए आज्ञा चक्र से लोगों पर क्रोधित होते हैं और उनके नहीं कि ये घूमता है, हर साल एक ही तारीख को साथ हमारा व्यवहार बिगड़ जाता है, गुस्सा आता ऐसा होता है। तो हम लोग इसको क्यों इतना है और हर तरह की आस्थाएं टूटती जाती हैं। मानते हैं? क्या विशेष बात है कि सूर्य अगर उत्तर आज्ञा बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं जिसको हमें समझना में आ गया तो हम लोगों को उसमें इतनी खुशी चाहिए कि इस पर ईसामसीह का स्थान हैं और क्यों होती है? बात ये है कि सूर्य से ही हमारे सब ईसामसीह ने एक ही चीज़ बताई थी- सबको क्षमा कार्य जो हैं प्रणीत होते हैं। अंधेरे में, रात्रि में हम करना चाहिए। क्षमा करना बहुत जरूरी चीज़ है। लोग निद्रावस्था में रहते हैं लेकिन जब सूर्य उदित अब वो कैसे किया जाए? लोग बहुत से कहते हैं होता है उसके बाद ही हमारे सारे कार्य चलते हैं। कि हमने तो कर दिया पर होता नही है। क्षमा के इसलिए इस कार्य को प्रभावित करने वाली जो लिए जरूरी है कि सबको क्षमनस्य होना चाहिए चीज है, वो है सूर्य और वो क्योंकि हमारे कक्ष में और सोचना चाहिए कि जिसे जो करना था बो आ जाती है तो हम इसको बहुत मानने लगते हैं। भोगेगा, हमको क्या करना है! जिसने जो कहा था सबसे बड़ी बात तो ये है कि बाकि सारे त्योहार वो खुद उसको इस्तेमाल होगा हमको इसमें क्यों चन्द्रमा को ध्यान में रख कर होते हैं और सिर्फ पड़ना है? इस तरह से निरीक्षता आ जाए और आप यही एक त्योहार ऐसा है कि जो हम सूर्य के क्षमा कर दें सबको तो आज्ञा चक्र ठीक हो जाएगा| आधार पे लेते हैं। ऐसे हमारे यहाँ सूर्यनारायण की आज्ञा चक्र ठीक होने से जो बहुत बड़ी रुकावट भी बहुत महति ( महत्व ) है और लोग सूर्यनारायण हमारे उत्थान में है, जो कुण्डलिनी को रोकती है वो को मानते हुए गंगाजी पर जा कर नहाते हैं और है आज्ञा और इसके लिए हमें क्षमा करना आना अनेक तरह के अनुष्ठान करते हैं। पर सबसे महत्वपूर्ण यही एक दिन है। अब हम लोगों को यह दुःख दिया, किसने क्या तकलीफ दी। उसकी तय करना पड़ता है कि इस दिन क्या करना जगह ये सोचना चाहिए कि हमें क्षमा करना है. चाहिए? इस विशेष दिन को क्या कार्य करना उसको हमने क्षमा कर दिया और क्षमा करने से चाहिए? सूर्य का नमस्कार हो गया, सूर्य को अर्ध्य एकदम से, आपको हैरानी होगी कि कुण्डलिनी दे दिया और सूर्य के प्रति अपनी कृतज्ञता हम झट से ऊपर चढ़ जाएगी। हमको तो अपनी लोगों ने सम्बोधित की। किन्तु क्या विशेष अब कर कुण्डलिनी को चढ़ाना है और उसके लिए हमें सकते हैं? विशेष कर सहजयोगी, क्या कर सकते ज़रूरी क्या है कि गुस्सा हम करें? गुस्सा करना हैं? आज्ञा चक्र पे सूर्य का स्थान है, आप लोग मनुष्य का स्वभाव है, परमात्मा का नहीं, मनुष्य का जानते हैं और आज्ञा चक्र से आप आगे की सोच स्वभाव है। इसलिए हमें गुस्से को रोकना चाहिए सोचते हैं। तो आज्ञा चक्र को ठीक करना बहुत और उसकी जगह 'क्षमा, क्षमा, क्षमा' ऐसे तीन बार जरूरी है क्योंकि ये सूर्य को प्रभावित करता है । इसके लिए आज्ञा पर जो महत्व है वो ये है कि आज्ञा पर हमारे जो ग्रह हैं उनके अनुसार हम लोग 1 चाहिए। हर समय हम सोचते रहते हैं किसने क्या | कहने से आज्ञा चक्र ठीक हो जाता है। सबको अनन्त आशीर्वाद 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-7.txt सतोगुण की प्राप्ति 17.05.1980 (अनुवादित) (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ) बनने के विषय में जब आप सोचते हैं तो कुछ के साथ क्या घटित हुआ। क्या आप ध्यान कर बनने की तैयारी हो जाती है और जब आप यह सके? ध्यान करने के लिए आपको समय मिला या समझ जाते हैं कि अहँ और प्रतिअह आप पर सवार नहीं? इस कार्य को कुछ इस प्रकार से करे जैसे हैं तो चैतन्य-चेतना द्वारा इनका सूक्ष्म निरीक्षण आप किसी परीक्षा की तैयारी कर रहे हों, वैसे ही कर। लिखलें। क्या मैं प्रातःकाल उठा? क्या में उठ चित्त (attention) दो प्रकार का होता है। पहला पाया? अपने मध्य, बायें या दायें ओर की किसी भी जो निरन्तर कार्यरत है-सहजयोगियों में यह दिन- विशेष गतिविधि के अनुभव को अवश्य लिखें ताकि चर्या की चीज है । दूसरा आपातकालीन चित्त अपने मस्तिष्क पर दृष्टि रख सकें। डायरी लिखना (ermergency attention) है । मैं सोचती हूँ कि बहुत अच्छी बात है। सभी सहजयोगियों को रोजमर्रा के अनुभवों की डायरी अवश्य लिखनी चाहिए। आपको यदि ये पता होगा कि आपने डायरी लिखनी है तो अपने हैं। वास्तविक चीज़ों को किस प्रकार आप महत्व मस्तिष्क को एकदम चुस्त रखेंगे। भूत या भविष्य देते हैं और अवास्तविक को कतई महत्व नहीं देते। के विषय में जब भी कोई विशेष विचार प्राप्त हों तो डायरी लिखना, मेरे विचार से मनुष्य के लिए आप देखेंगे कि किस प्रकार आपके विचार बदले हैं। किस प्रकार नई प्राथमिकृताएं स्थापित हो रही उन्हें लिख लें। इस प्रकार आपके पास दो डायरियां अत्यन्त व्यवहारिक कार्य है। कुछ समय पश्चात होनी चाहिएं। निरन्तर देखने के लिए आपको कुछ डायरियाँ ऐतिहासिक महत्व की वस्तुएं बन अपना मस्तिष्क कुछ तथ्यों पर लगाना पड़ेगा। जाएंगी। लोग जानना चाहेंगे कि आप सबने क्या पहली बात, जैसे मैंने कहा, यह है कि यदि आप लिखा डायरी रखेंगे तो जान जाएंगे कि घटित हुई सभी अत्यन्त सच्चाई और सूझबूझ के साथ सोने से पूर्व महत्वपूर्ण चीजों को आपने याद रखना है। इस कुछ पंक्तियाँ लिखें। हैं। पाखण्ड या धोखा करने के लिए नहीं, हमें देखना है कि हमारे साथ अहँ और प्रति अह प्रकार आपका चित्त चुस्त हो जाएगा और सभी चीजों के प्रति आप सावधान रहेंगे चित्त के चुस्त कि समस्याएं हैं । प्रतिअह बाई ओर से है- कर लेने पर, आप हैरान होगें, कितनी नई चीजें अन्धकार, तमोगुण और हमारा भूत काल है। बाईं आपको सूझती हैं-अत्यन्त प्रतिभाशाली विचार, जीवन ओर की बाधाओं से ग्रस्त लोगों को सन्तुलन में के चमत्कार, परमात्मा के सौंदर्य और मंगलमयता आने के लिए भविष्य के बारे में सोचना चाहिए। के विचार, उनकी महानता, करुणा और आशीर्वाद |। आलसी व्यक्ति को चाहिए कि काम करने की दो पंक्तियाँ भी यदि प्रतिदिन लिखेंगे तो किस आदत डाले। अपने मस्तिष्क को भविष्य की योजनाएं प्रकार कार्यान्वित करेंगे? ऐसा करने मात्र से आपका बनाने में लगादें। क्या करूं, कहाँ जाऊं, किस मस्तिष्क निरन्तर अन्तःस्थित होता चला जाएगा|। प्रकार कार्य करू? इस प्रकार बाई ओर के खिचाव मानव की यही कार्यशैली है। डायरी में आप ये भी लिख सकते हैं कि आप पाएंगे। से बच कर शनैः शनैः आप स्वयं को संतुलित कर य पतलि 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-8.txt मई चैतन्य लहरी जून, 2004 किसी व्यक्ति की दाई ओर यदि बहुत अधिक अवस्था में हैं तो आप जागते हुए स्वप्न देखेंगे गतिशील हो उठे तो तामसिकता द्वारा सन्तुलन ओह! फलां व्यक्ति की इतनी मान्यता है. फलां की नहीं करना चाहिए। मध्य का इस्तेमाल करना इतनी मान्यता है। मानो आप सर्वोत्तम हों। आप चाहिए । कोई यदि बहुत अधिक मेहनती है तो उसे जानते हैं कि ये मानव स्वभाव है। वह व्यक्ति ऐसा चाहिए कि साक्षीभाव विकसित करे कोई कार्य है, वह ऐसा है। समाज में यह बहुत बड़ी खराबी है, करें, निर्विचार चेतना में रहते हुए साक्षी-भाव से यह बहुत बुरा हो रहा है। हम उस सीमा तक भी इस कार्य को करें चाहे जो भी आप कर रहे हों, जा सकते है कि वह गुरु बहुत बुरा है, वह विक्षिप्त कहें कि मैं कुछ नहीं कर रहा। आत्मसाक्षात्कार के है। इस प्रकार बहुत कुछ चल रहा है। यह आपको पश्चात आप ऐसा कर सकते हैं-निर्विचार चेतना में कितना प्रभावित कर रहा है? इससे आपका कितना स्थापित हो कर अपना कार्य आरम्भ कर सकते हैं। सुधार हुआ? बस सोचना और विश्लेषण ही चल अतः बाईं ओर की समस्याओं का समाधान दाई रहा है। यह तामसी शैली है, बैठे बैठे विश्लेषण ओर को गतिशील करके होता है और दाई ओर की करते रहना तामसी शैली है। दूसरी चीज़ तब होती है जब आप दूसरी ओर 'रजोगुण' और क्रिया पर आते हैं। उस स्थिति में आपका चित्त उस मध्य में 'सत्वगुण। परन्तु ये तीनों गुणों का अस्तित्व कार्य पर होता है जो आप कर रहे होते हैं। इसे है। यह स्थिति आपने प्राप्त नहीं करनी। कल मैं कहीं ओर जाने की आज्ञा नहीं होती, अन्यथा ये आपसे बताऊंगी कि इसमें आगे किस प्रकार बढ़ना चित्त किसी भी व्यर्थ की बात की ओर जाता है और है। पता लगाने के बाद, कि आपका कौन सा पक्ष आपकी समझ में ये नहीं आता कि ये सभी उल्टे- कमजोर है, अपनी जीवनशैली की योजना बनाएं। सीधे विचार कहाँ से आ रहे हैं। अतः कुछ करना आरंभ करें। आप चाहें तो पेड़-पौधे लगा राकते हैं। समस्याओं का समाधान मध्य में स्थापित होने से। बाईं ओर तमोगुण है, दाई ओर उदाहरण के रूप में यदि आप अत्यन्त आलसी स्वाभाव है, सुबह सवेरे उठ नहीं पाते, रात को अतः कुछ करना आरंभ करें। आप चाहें तो पेड़- आपको बहुत नींद सताती है. आपमें चुस्ती का पौधे लगा सकते हैं, चाहें तो खाना बना सकते हैं अभाव है, तो सोचें कि आपको क्या करना है? या कोई और कार्य कर सकते हैं। काम करना किस प्रकार आप प्रातः उठ पाएंगे? पूजा का विचार आरंभ करें। इससे आपको सहायता मिलेगी। परंतु भी अच्छा है, घर का भी कुछ ऐसा कार्य करें जिसे कार्य करने से आपका अहं बढ़ सकता है। अहंभाव आप क्रिया कहते हैं। क्रिया-शील बनें। सहजयोग जब भी बढ़ने लगे तो स्वयं से कहें कि श्रीमन् आप ये कार्य नहीं कर रहे हैं, ये कार्य आप नहीं कर रहे में तथा रोजमर्रा के जीवन में क्रियाशीलता लाएं। इस प्रकार आपका स्वभाव पहले रजोगुणी बनेगा हैं। ये बात यदि आप स्वयं को सुझाते रहेंगे तो और फिर आप सतोगुण की ओर बढ़ेंगे, अर्थात हर आपमें अहं नहीं बढ़ेगा और जो बातें आपको तथा चीज़ को साक्षी-भाव से देखेंगे। सत्वगुण तक पहुँच कर, जहाँ आप मध्य में होते हैं-आपको कमरा साफ किया है, कोई आकर इसे गंदा कर देखना होगा कि किस सीमा तक आपका गलत देता है तो स्वाभाविक रूप से आपको क्रोध आएगा आंकलन हुआ है? मान लो बाईं ओर की पहली क्योंकि आप सोचते हैं कि "मैंने कमरा साफ किया अन्य लोगों को कष्ट देती हैं- जैसे मानलो आपने 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-9.txt चैतन्य लहरी मई जून, 2004 ৪ था।" या तो आप कमरा साफ न करें और करें तो यहाँ के (Europe) लोगों को ये बात समझानी इस बात के लिए तैयार रहें कि इसे गंदा तो होना बहुत कठिन है क्योंकि इनके सिर पर तो अहं सवार ही है अन्यथा साफ करने की आवश्यकता क्यों है। परंतु भारत में इसे अभद्रता माना जाता है। ये पड़ती। कमरा साफ है तो भी ठीक है और साफ बात आपको भारत जाने पर ही पता लगेगी। आप नहीं है तो भी ठीक है। सत्वगुण की अवस्था में महसूस करेंगे कि ऐसा कहना अभद्रता है किस पहुँचने के लिए इस प्रकार का दृष्टिकोण अपनाएं प्रकार कह सकते हैं कि, 'मैं अत्यंत सुख से हूँ। सत्त्वगुण पर पहुँच कर आप स्वीकार करने लगते ऐसा कहना अभद्रता है । वहां के लोग ऐसा कभी हैं। अत्यंत विनम्र हो जाते हैं। आपका व्यक्तित्व नहीं कहते। 'मुझे पसन्द है', तो क्या? ये शब्द अत्यंत कोमल हो जाता है। तब आप ये नहीं उपयोग नहीं किए जाने चाहिएं। यदि आप सतोगुणीं सोचते कि "ओह! मुझे ये पसंद नहीं है। ये गलत हैं तो आप ऐसा कुछ नहीं कहते। आप पूछते हैं. था, ऐसा नहीं होना चाहिए था। सत्त्व गुण की 'क्या आपको पसन्द है? क्या यह सुखकर है? क्या अवस्था में आपमें ये सब चीजें नहीं आतीं। आप आप इसे लेना पसन्द करेगें?' आप ही की ओर से इन्हें देखने लगते हैं। उसी समय आप देख लेते हैं. चित्त जाता है। क्या आप इस बात को समझ "ठीक है, कोई बात नहीं। आप समझ जाते हैं। पाए? व्यक्ति को यही शैली विकसित करनी चाहिए। इसके विपरीत सतोगुणी होते हुए भी यदि आपमें केवल तभी आप सतोगुणीं हैं अन्यथा आप अभी भी अहंभाव आता है तो आपको कष्ट होता है। क्या अहम् के झूले पर सवार हैं। किसी भी चीज को आप इस बात को समझ पाए? आप यदि सतोगुणी हैं तो आपको अपने अहं पर शर्म आती है। उदाहरण मै, आप कौन हैं? सर्वप्रथम प्रश्न पूछें कि आप के रूप में आपको ये कहते हुए भी संकोच होगा कौन हैं परमात्मा यदि ये कहें कि 'मुझे पसन्द कि 'ये मेरी कार है।' या ये कहते हुए कि 'आपने नहीं है तो मेरी समझ में आता है। परन्तु आपका पूरा देखकर आप कहते हैं कि यह मुझे पसन्द नहीं है। मेरा कालीन गंदा कर दिया। भारत में कोई भी यह कहना मेरी समझ में नहीं आता। आखिरकार ऐसा नहीं कहेगा। मैं आपको बताती हैँ कि ऐसा आप पृथ्वी पर किस प्रकार अवतरित हुए? किस प्रकार आपको मानव जन्म प्राप्त हुआ? किस प्रकार आपको ये सभी बस्तुएं प्राप्त हुई? अब आप इस कहना अभद्र व्यवहार माना जाता है, पूर्णतः अभद्र व्यवहार। कोई यदि आपके घर पर आए और उससे कालीन गंदा हो जाए तो लोग कहेंगे 'कोई प्रकार सोचें, मैं कौन हूँ? मैं तो कुछ भी नहीं । बात नहीं, होने दो' कालीन यदि जल भी जाए तब भी लोग कहेंगे कि 'आपको आँच तो नहीं आई?' लेना चाहिए कि वह कुछ भी नहीं । उसके होने या न वो कभी नहीं कहेंगे कि आपने मेरा कालीन जला होने का परमात्मा को कोई फर्क नहीं पड़ता । आपको दिया या कुछ और बिगाड़ दिया। ऐसा कहना यदि ये बात समझ में आ जाए तब किसी भी कार्य को अभद्रता मानी जाती है। जैसे यदि कोई सोया हुआ करते हुए आप सोचते है कि मैं इसे इसलिए कर रहा हो और कोई शोर मचा दे तो जागने पर वह व्यक्ति हैँ क्योंकि मैं करना चाहता हूँ और इस प्रकार आप कहेगा कि मुझे तो उठना ही था। उठकर वह सतोगुण पर पहुँच जाते हैं। परन्तु प्रायः ऐसा होता पूछेगा, 'आपको किसी चीज़ की आवश्यकता है?' कोई यदि अपने को कुछ समझता है तो उसे नान नहीं है होता इसके विपरीत है। उदाहरण के रूप 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-10.txt मई - जून, 2004 चैतन्य लहरी में कोई व्यक्ति कुछ कार्य कर रहा है, अचानक उसका बहुत से दृष्टिकोण हैं। कार्य करते हुए व्यक्ति सोचता दिल दुखता है या वो सोचता है कि जो भी उसने है कि मैं ही क्यों इस कार्य को कर रहा हूँ और तो किया वह अच्छा नहीं है, लोग इसकी सराहना नहीं कोई नहीं करता? और वह भी उन्हीं लोगों की स्थिति करेंगे, यह अच्छे स्तर का नहीं है इसकी प्रक्रिया में चला जाता है। कार्य न करने वाले लोग भी यह उस व्यक्ति पर केवल यही नहीं होती, वह सतोगुण नहीं सोचते कि यह व्यक्ति सारा कार्य कर रहा है, की स्थिति प्राप्त करने के प्रयत्न को छोड़ देता है मुझे भी कुछ करना चाहिए। इसी चीज का यह दूसरा परन्तु उसका तमोगुण में पतन हो जाता है वह पक्ष है। कुछ लोगों का यह दृष्टिकोण है कि यह कहता है ठीक है, अब मैं इसे करूंगा ही नहीं, आराम व्यक्ति कार्य कर रहा है तो करने दो। यह शैली तो से सोऊंगा। बाकी लोगों को कर लेने दो। मुझे ही क्यों करना है? तो रजोगुण से जो शिक्षण आपको किसी रेस्त्रां में जाते हैं. बिल देने के लिए एक व्यक्ति प्राप्त होता है वह व्यर्थ चला जाता है। रजोगुण की अपना पर्स निकालता है और दूसरा अपनी नजरें स्थिति में होना आपके प्रशिक्षण का समय है। आप दूसरी ओर घुमा लेता है। ऐसा करना नीचता है। कोई कार्य कर रहे हैं। प्रशिक्षण के समय में आपने केवल एक बात सीखनी है कि मध्य में किस प्रकार आपने भुगत्तान कर दिया तो कर दिया, समाप्त। आना है। शेव करने के लिए आपको पानी की यह सोचना न शुरु कर दें कि क्यों मैने भुगतान आवश्यकता पड़ती है। पानी के बिना आप शेव नहीं किया। व्यक्ति को प्रयत्न करना चाहिए। सभी कार्य कर सकते इसी प्रकार सतोगुण तक पहुंचने के किए जाने हैं। इनके लिए आगे बढ़े। हृदय से लिए रजोगुण की आवश्यकता है आप यदि कोई कार्यों को करें चिन्ता न करें कि अन्य लोग तो कार्य नहीं करते तो सतोगुण तक नहीं पहुंच सकते। कार्य कर ही नहीं रहे। आनन्द के लिए कार्य को अतः आप जो भी कार्य कर रहे हैं स्वयं साक्षी भाव करें, सूझबूझ से ये समझ कर कि यह प्रशिक्षण तक पहुंचने का प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए कर रहे काल हैं। जब आप कार्य करेंगे तो आनन्द प्राप्त हैं। अब आपको यह बात समझ में आई? इसलिए होगा दूसरे व्यक्ति की अपेक्षा आप बेहतर प्रशिक्षित आप कार्य नहीं कर रहे क्योंकि आपको यह पसन्द हैं। दूसरे व्यक्ति की अपेक्षा आप उच्च दर्जे पर हैं। है या किसी चीज विशेष की आदत है, इसलिए कर अतः हमें उच्च दर्जे पर होना है इसके लिए यह रहे हैं क्योंकि आप गहनता में जाना चाहते हैं। इसलिए प्रशिक्षण चल रहा है । इस प्रकार से हम इस तैयारी आप कार्य कर रहे हैं कि आप सीख सकें कि शान्त को पूर्ण विस्तार पूर्वक व्यवहारिकता में ला सकते हैं कैसे होना है, शान्ति पूर्ण व्यवहार किस प्रकार करना और देख सकते हैं कि अपने अहम् और प्रतिअहम् है, तथा यह देखने के लिए कि आप कितने शान्त हैं। का कार्यान्वयन हम किस प्रकार करते हैं। आज और भी अधम है। इन चीज़ों से बचना चाहिए। आप सभी को आगे आना चाहिए और एक बार जब एक बार जब आप ऐसा करने लगेंगे तो, आप हैरान सुबह ही मैने आपको बताया था कि आपका विवेक होगें कि, किसी भी स्थिति में वह कार्य आपको बोझ इस बात को भली भांति आत्मसात कर ले। ठीक नहीं लगेगा। परन्तु ऐसा होता नहीं है, लोगों को है। आप द्वारा किए गए हर कार्य पर आपके यदि यह लगता है कि उनके द्वारा किया गया कार्य प्रशिक्षण की मोहर लगी होनी चाहिए। मान लो प्रभावशाली नहीं है तो वे तमोगुण में चले जाते हैं। आपको मीलों गाड़ी चलानी पड़ती है तो आप की 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-11.txt चैतन्य लहरी मई जून, 2004 10 सबूरी की परीक्षा होती है। आप ही सभी कुछ कर अपने लिए आप स्वयं जिम्मेवार हैं। उदाहरण के सकते हैं। हेलिकोप्टर से यदि आपको छंलाग लगानी हो तरह से हैं । अब आप सोचें की मैं माँ हूँ-एक ही या पैराशूट से कूदना हो तो आप बार-बार इसका व्यक्तित्व दूसरा श्रीमान डान या किंग या काई अभ्यास करते हैं. बार-बार छलागें लगाते हैं अपनी और आपके दो व्यक्तित्व हैं। तो माताजी के टांगे तुडवाते हैं, हाथ तुड़वाते हैं. सभी कुछ करते सामने यदि आप स्वयं से कह रहे हैं कि मैं ठीक हैं, जब तक आप इस कार्य में कुशल नहीं हो नहीं हूँ, तो माताजी उभर कर आपके सम्मुख आएं जाते। आप मेरी बात को समझ रहे हैं न। गाड़ी और पूछे कि यह कहने से आपका क्या अभिप्राय चलाने में भी आप ऐसा ही करते हैं जब तक आप है? आपको ऐसा क्यों कहना चाहिए? क्या खराबी रूप में आप किसी से पूछे या कहें कि मैं माँ की कुशलता प्राप्त नहीं कर लेते। क्या यह ठीक नहीं है? है? इन बादलों को अपने अन्दर आते हुए देखने के बाह्य है तब चित्त आपकी आत्मा की ओर जाने लिए किस प्रकार हम अपना पूर्ण विश्लेषण करते लगता है अर्थात माताजी की ओर, और आप वही हैं? किस प्रकार यह बादल हमारे अन्दर आ रहे बनने लगते हैं। और हृदय के माध्यम से हैं? अपने भिन्न चक्रों के विषय में पता लगाएं। हम करने लगते हैं। अतः आत्मा को आत्मा से सन्तुष्ट कौन से चक्रों पर पकड़ रहे हैं? इस प्रकार से चित्त किया जाना चाहिए। इसके बीच में कुछ भी नहीं निरन्तर चक्रों पर स्थापित हो जाएगा| हमारी चैतन्य लहरियां ठीक हैं या नहीं? क्या हमें चैतन्य ही आपको सन्तुष्ट करना है। एक अज्ञान है और लहरियां आ रही हैं? यदि नहीं आ रहीं तो कौन से दूसर ज्ञान। अब स्वयं को माता जी के या, ये कहें चक्रों पर हमें पकड़ है? कौन सी पकड़ हैं? मुझे कि, आत्मा के रूप में देखने का प्रयत्न कीजिए। अपनी कुंडलिनी उठानी चाहिए और देखना चाहिए आप कह सकते हैं कि मात्र एक नाटक है। मात्र कि पकड़ कहा हैं। मैं ध्यान करता हूँ या नहीं? इतना सोचें कि आप एक आत्मा हैं तो स्वयं को यदि मैं ध्यान करता हूँ तो क्या ऊंघते हुए ध्यान किस प्रकार सम्बोधित करेंगे? आइये देखते हैं। इस करता हूँ या वास्तव में ध्यान में होता हूँ? क्या मैं बात को आप इस प्रकार से लें कि मान लो आप मेरे वास्तव में ध्यान महसूस करता हूँ या नहीं? क्या मैं सिंहासन पर बैठते हैं और साथ-साथ मेरे सम्मुख चुस्त होता हूँ या नहीं? ये सारी चीजें मेहनत, भी बैठते हैं। इस प्रकार आप यहां वहां बैठे निष्ठा से पूरी तरह से और सच्चाई से कार्यान्वित ऐसी स्थिति धारण कर लें और अब स्वयं को नाटक की जानी चाहिए। यह सारी प्रक्रिया आपके अन्दर के पात्र के रूप में सम्बोधित करें, "तो बाला आप है-आत्मन्येवा आत्मनः जायते। आप देखें कि यह कैसी है?" बाला उत्तर देती है. 'बेहतर। बड़ा अजीब सम्बन्ध है कि आत्मा से ही आत्मा सन्तुष्ट होती है! आपको स्वयं से ही सन्तुष्ट होना शनैः बाला लुप्त हो जाएगी। ठीक है? परन्तु अब भी चाहिए, और कोई नहीं है। माताजी का कोई यदि आपकी चिपकन बाला से है तो वह इस भ्रम सम्बन्ध नहीं है। किसी और का भी कार्य नहीं है। में पनपेगी। ये बात जब आप स्वयं से कहने लगते हैं जोकि महसूस है। इस ह्वैत व्यक्तित्व में केवल आप हैं और आपने हैं। हुए अब अगर आप माताजी से एकरूप हैं तो शनैः স 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-12.txt चैतन्य लहरी मई - जून 2004 11 आपको चाहिए कि स्वयं को इस प्रकार उछलना शुरु कर दे और कहे कि मैं ही मैं हूँ तो सम्बोधित करें मानो आप ही माताजी हैं । यह यह अहकार है। नाटक है, ड्रामा है। शीशे के सम्मुख बैठकर अपने बाह्य (शरीर) को देखें। आप जो चाहे हों, चाहे श्री इसका उल्लघंन नहीं कर सकते। इसको आपने डान ही क्यों न हों, आप यहां बैठे हैं। अब श्रीडान दूसरे डान को सम्बोधित कर रहे हैं। उसे एक प्रकार की होनी चाहिए। परन्तु यदि आप केवल भूमिका ले लेने दो कि "मैं आत्मा हूँ। वो कहेगा, "मै यही बनना चाहेंगे तो यही बन जाएंगे, वो नहीं। आत्मा हूँ और शाश्वत हूँ। मैं ऐसा हूँ। कोई मुझे क्योंकि आप यह नहीं बन सकते। क्या आप मेरी नष्ट नहीं कर सकता। मैं सर्वों परि हूँ। मैं बात को समझे? अतः इसे करते हुए भी शीशे के आत्मसाक्षात्कारी हूँ। मैं जानता हूँ कि आत्मा क्या सम्मुख बैठकर यदि आप स्वयं से कहते हैं कि आप है। तुम क्या बोल रहे हो? और इस प्रकार से वो आत्मा हैं, जो कि विराट का अंग-प्रत्यंग है. तथा चीज दब जाएगी, नीचे चली जाएगी। इस प्रकार आपकी गति आरम्भ होती है। ऐसा केवल तभी गिर चुके हैं तो आपको यह जान लेना चाहिए कि संभव है जब आप सतोगुणी बन जाएं। आप यदि बूंद रूप में आप सागर में गिर चुके हैं इस प्रकार सतोगुणी नहीं हैं, अहम् आपमें बना हुआ है-मैं ये से आप सागर बने हैं। यह अवस्था (समझ) यदि हूँ-और ऐसी स्थिति में यदि आप गुरु बन जाते हैं नहीं आई तो यह कहना अति होगी कि आप सागर तो नोट छापना (धन एकत्र करना) शुरु कर देगे। सर्वप्रथम अहम् को नीचे लाना आवश्यक है। सावधान होना चाहिए- जहाँ तक स्वयं से बर्ताव अहम् यदि अब भी बना हुआ है तो आप अंहकार करने का कार्य है उसमें पूर्णतः स्थिर होना चाहिए। का रूप धारण कर लेंगे आत्मा नहीं बनेंगे। अतः क्योंकि आप जानते हैं कि किस प्रकार यह बुद्धि सर्वप्रथम इस यात्रा को सतोगुण के मध्य में लाना आपको धोखा दे सकती है। होगा यही कारण है कि मैं कहती हूँ कि कोई भी कार्य करते हुए, बातचीत करते हुए आपको ज्ञान होना चाहिए कि जो कुछ भी कर रही है आपकी आत्मा कर रही है। इस प्रकार से आप अपनी जीतने के लिए अपनी भाषा एवं शैली को परिवर्तित आत्मा को कार्यभार दे देते हैं। सभी अवस्थाओं में आप बात को समझें। आप बात को समझ लें तो इसमें विलीन करना है और इनको इसमें चाल इस आप सागर हैं क्योंकि बूंद रूप में आप सागर में हैं। अतः व्यक्ति को अत्यन्त स्थिर एवं अतः स्वयं का आंकलन करते अत्यंत-अत्यंत | हुए सावधान रहें। यह अवश्य जान लें कि सर्वप्रथम आपको अपने अहम् को जीतना है अहम् को करना होगा तृतीय पुरुष (Third Person) में बात जब आत्मा प्रभारी होती है तब आप कहते हैं कि करें। यह बहुत अच्छा तरीका है। अपने बारे में जब अब मैं आत्मा हूँ। उदाहरण के रूप में मान लो आप बात करते हैं तो कहें 'ये माताजी मेरी बात आपके पास एक प्रधानमंत्री है, एक उपप्रधानमंत्री है नहीं सुनेंगी, ये माताजी ऐसा नहीं करेंगी'। अब और एक मंत्री है, ठीक है। अब यदि आपकी आत्मा देखें कि इससे क्या होता है। ये माताजी आपको प्रधानमंत्री है और मंत्री को ही प्रधानमंत्री बनना है कुछ बताएंगी। एक बार जब आप इस माताजी को तो पहले वह उपप्रधानमंत्री बनेगा उसके पश्चात् ही स्वयं से अलग करने लगेंगे तो यह अहम् लुप्त हो प्रधानमंत्री बन सकता है। यदि यह व्यक्ति जाएगा क्या आप समझे? जैसे आप कह सकते हैं परन्तु 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-13.txt चैतन्य लहरी मई - जून 2004 12 कि यह बाला ऐसा है। वो नहीं सुनेगा तो जो भी सच्चा बाला आपमें बचा है वही ठीक है। इस प्रकार की पकड़ किसको है। परन्तु आपको यदि यह से अपने अहम् से आप मुक्त हो जाते हैं और अपने पकड़ है तो आप एकदम से इस बात को स्वीकार चक्रों को समझने लगते हैं। कौन से चक्र पर पकड़ करें। यदि आप स्वीकार नहीं करते तो आपके रहे हैं, कहां पकड़ आ रही है, क्यों पकड़ आ रही नम्बर कम हो जाते हैं, यह अच्छी कला नहीं हैं। मैं है? वास्तव में अहम् से मुक्ति पा लेना आपके लिए ठीक नहीं हूं, मैं नहीं जानता... यह अच्छी कला आसान हो जाएगा तब आप देखें कि सहज-योगी नहीं है आपको बताना होगा कि कौन पकड़ रहा क्या करते हैं। कहने से अभिप्राय यह है, और आप है। परीक्षा में पास होने के लिए तब आप अधिक जानते है, कि मैं सभी के और हर चीज के विषय चित्त लगाएंगे। यह मात्र परीक्षा है। क्यों? क्योंकि में जानती हैँ। मुझे यह पूछने की आवश्यकता नहीं कल आपने आत्मसाक्षात्कार देना है. कल आपको है कि सच्चाई क्या है फिर भी मैं क्यों पूछती हूँ? गुरु बनना है। यह सभी चीजे बतानी हैं अतः यह चीजों के विषय में अपना पूर्ण अनजानपना दिखाती प्रशिक्षण का समय है। यह सब बातें पूछ कर मैं हूँ। लोग सोचते हैं कि वास्तव में अब कभी नहीं आपको प्रशिक्षित कर रही हूँ। परन्तु मैंने देखा है पकड़ूंगा। मैं यदि जानना चाहूं कि पकड़ कहां है कि लोगों में इसका भी अंहकार हो जाता है। जब तो मैं पता लगा सकता हूँ परन्तु मैं ऐसा करना नहीं मैं लोगों से पूछती हैूँ कि मुझे बताओ कि मुझे कहा चाहता। तब मैं कहती हैं, ठीक है, मैं तुम्हें बताऊगी पकड़ है तो इस बात पर भी उन्हें अहम् हो जाता कि पकड़ कहाँ है। ऐसे मौके पर व्यक्ति का है । आपने अत्यंत मूर्खातापूर्ण बात कही, सभी को दृष्टिकोण यह भी हो सकता है कि मुझे बता देना स्पष्ट देखना चाहिए। अतः बच्चों की तरह से सहज चाहिए, नहीं तो माताजी को पता कैसे चलेगा? व्यक्तित्व बनें। बच्चे आते हैं, यह चीज देखते हैं, वो कितनी अजीब बात है। दूसरे लोग ऐसा भी सोच चीज़ देखते हैं, समाप्त। मैं कहूंगी कि वह अथक सकते है कि मैं जानता हूँ कि वे (माताजी) कहां कार्य करते हैं । उन्हें इस बात की चिन्ता नहीं होती पकड़ रही हैं और यह बात मुझे बता देनी चाहिए। कि कुछ कहना, कुछ दिखावा करना है-कुछ नहीं । माताजी भी इस बात को जानती है परन्तु वह मेरी वो जो देखते हैं, वो कह देते हैं। यह सभी दिखावा परीक्षा ले रही हैं। मुझे सावधान रहना चाहिए । इस बाजी लोग करते हैं । वह कहते हैं, हो सकता है मैं अवस्था में लोग गलतियां करते हैं। मैं जब उनसे पूछती हूँ कि वह कहां पकड़ रहे यद्यपि ठीक होती है फिर भी वे अपने पर विश्वास हैं तों कहते है कि मैं बाएं हृदय पर पकड़ रहा हूँ नहीं कर पाते। बच्चे पूर्ण विश्वस्त होते हैं, उनसे परन्तु पकड़ बहुत मामूली है-हो गया सब खत्म। कुछ भी पूछिए वो तुरन्त बताते हैं कि ऐसा-ऐसा आपको बहुत कम अंक मिले, इस प्रकार 'आप कम है। परन्तु आप यदि किसी से पूछें कि यह चीज नम्बर लेते हैं। खैर कुछ तो आपको मिल ही जाता कौन से रंग की है. तो वो उत्तर देंगें या तो हरी या है क्योंकि आप ईमानदार हैं। जो भी हो मान लो लाल। जैसे हमारे यहां एक वृद्ध व्यक्ति था, ज्यादा किसी को हृदय की पकड़ नहीं है और आपको वृद्ध नहीं, मेरी आयु का था। उसे मेरे घर पर आना ईमानदारी है। तब मैं आपको बताऊंगी कि हृदय द 1 1 काई ही पकड़ रहा हूँ या कुछ ऐसा हो। उनकी संवेदना हृदय आ रहा है तो आप कहेंगे हृदय। यह था, तो उसने मुझे फोन किया, कहने लगा कि मैं 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-14.txt मई ा चैतन्य लहरी 13 जून, 2004 ना आपके घर आना चाहता हूँ, किस प्रकार आऊ? बिन्दु पर विपरीत दिशा में मुड़ती हैं। तो दाईं नाड़ी मैंने कहा यह स्थान आक्सटैंड है। आप यहां आ बाई ओर को तथा बाई नाड़ी दाई ओर को चलायमान सकते है। परन्तु यदि टैक्सी न मिली तो कठिनाई होती है। यह दोनों नाडियां हँसा चक्र पर मुडती होगी। अतः Hertz Green आ जाओ। उसने पूछा हैं- । कहाँ? मैंने उत्तर दिया Hertz Green । वह कहने आपको या दाई ओर की समस्याए होती है या बाई लगा Hertz Blue? मेरी समझ में नहीं आया कि ओर की। बहुत से लोग सर्दी वरगैरह की वज़ह से वह हरे को नीला किस प्रकार कह रहा था। भी हँसा चक्र पर पकड़ते हैं। सर्दी को करने की बार-बार समझाने के उपरान्त भी उसकी समझ में मैंने आपको बहुत सी विधियां बताई हैं। बाईं ओर नहीं आ रहा था। तब मैंने उससे कहा कि पत्ते का की कमी के कारण यदि हँसा चक्र की पकड़ हो कौन सा रंग होता है कहने लगा नीला। ग्रेगार तब आप क्या करेंगे. बताएं। वहीं मौजूद था। मैंने कहा देखो अब यह पत्ते का रंग नीला बता रहा है। उसने फोन उठाया और ओर जाती हैं। अतः आपको महाकाली या ईडा उससे कहा कि तुम Hertz Blue आ जाओ। कहने लगा कि श्रीमाताजी कम-से-कम यह तकलीफ यह मंत्र कहें क्योंकि आपको दाई ओर की पकड़ नहीं होगी। वो आएगा ही नहीं। इतना भ्रमित आ रही है व्यक्ति था। नीले और हरे रंग में ही भ्रमित था । ऊँ त्वमेव साक्षात श्री ईड़ा नाड़ी स्वामिनी साक्षात् आप भी इससे लड़ रहे हैं। यही सत्य है। यह श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमोः नमः देखने के लिए चित्त का चौकन्ना होना आवश्यक है तीन बार इस मंत्र को कहें । कि हम भ्रमित तो नहीं है। यदि भ्रमित हैं तो अपने चक्रों को ठीक करके भ्रम को करें। आइये सभी ओर की पकड़ है या ज़िगर की समस्या है, ऐसी चक्रों का एक छोटा सा प्ररीक्षण करते हैं। आपको स्थिति में आप क्या करेंगे, प्रकाश का उपयोग मेरे प्रश्नों का उत्तर देना है। यदि हँसा चक्र पकड़ रहा हो तो वहां क्या कुछ और। आपको सूर्य नाडी की-दाई ओर की करना चाहिए? प्रश्न का उत्तर दीजिए । हँसा चक्र पकड़ रहा है तो हमें क्या करना करने के लिए आपको कोई ठंडी चीज इस्तेमाल चाहिए। -हँसा चक्र पकड़ रहा हो तो आपको कहना है: होगा-आपको 'चँद्र' का मंत्र लेना होगा दाई ओर ऊँ त्वमेव साक्षात् श्री हंसा चक्र स्वामिनी साक्षात् को यदि गरमी है तो 'चॅँद्र' का मंत्र लेने से यह श्री आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमोः शान्त हो जाएगी। यदि बाईं ओर की पकड़ है तो आज्ञा से नीचे। आज्ञा के नीचे हॅसा चक्र है दूर यह ईडा नाडी है, जो बाई ओर से आकर दाई नाड़ी स्वामिनी का मंत्र लेना होगा। अभी आप लोग एक अन्य चीज़ है, मान लो आपको दाई दूर करेंगे. सूर्य की किरणों का उपयोग करेगें या समस्या है या पकड़ है। इसकी गरमी को दूर करनी होगी। ऐसे समय पर आपको कहना सूर्य' का नाम लेने से यह दूर हो जाएगी। मान लो नमः अपनी उंगलियां चक्र पर रख कर तीन बार मंत्र आपको भूत बाधा है तो जाकर धूप में बैठ जाएं। कहें । सारे भूत भाग जाएंगे। सूर्य से भूत भागते हैं। परन्तु इस चक्र पर क्या होता है? दोनों नाड़ियाँ 'ह' यदि आप अंहकारी हैं तो जाकर चाँदनी में बैठें, हो और ठ', ईडा और पिंगला यहां पर आकर मिलती सकता है आप थोड़े से पगला जाएं। (सभी लोग हैं और विपरीत दिशा की ओर मुड़ती हैं और इस हँसते हैं)। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-15.txt अहं पर विजय पाकर आप स्वयं को कैसे पहचानें (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) डालिस हिल 18 नवंबर 1979 (हिन्दी रूपान्तर) एक ऐसी घटना जिसके माध्यम से परमात्मा की को इसके गंतव्य तक पहुँचाना है जहाँ तक मेरा सृष्टि पूर्णता को प्राप्त करेगी और अपना अर्थ प्रश्न है अब मुझे और कुछ नहीं करना। मैं कर समझेगी। ये इतनी महान बात है। ये इतनी महान चुकी हूँ। अब आपने इसे प्राप्त करना है इसमें परिवर्तित करना है। ये घटना है। संभवतः ये बात हम महसूस नहीं करते। परन्तु जब हम कहते हैं कि हम सहजयोगी हैं तो आपका कार्य है, इसीलिए यह गंभीर मामला है। हमें इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि सहजयोगी होने के लिए आपका कितना सामंजस्य सहजयोग की समस्या के कारण हम अत्यन्त विघटित के सत्य से होना चाहिए तथा इतनी सारी (Disintegrated) हैं । परमात्मा से हमारा योग असामंजस्यताएं, जो हमारे साथ चिपकी हुई हैं (Connection) कभी ठीक प्रकार से स्थापित नहीं इनसे छुटकारा पाना होगा। लोग इसे बलिदान है। जैसे मैंने कहा कि यह यंत्र (माइक) यदि पाँच कहते हैं। मैं नहीं सोचती कि यह बलिदान है। भागों में बँटा हुआ हो और पाँचों भाग एक दूसरे से आप यदि ये सोचते हैं कि आपके मार्ग में कोई झगड़ रहे हों तो आप इस यंत्र से कुछ भी कार्य उतरना है और सभी कुछ | दूसरी बात जो मैं हमेशा कहती रही हूँ कि अहं रुकावट है तो उस बाधा को दूर करने का प्रयत्न नहीं कर सकते। चाहे यह अपने ऊर्जा स्रोत से करते हैं। इसी प्रकार से अपनी बाधाओं से जब जुडा हुआ ही क्यों न हो। इसी प्रकार से अब भी आप मुक्त हो जाते हैं तो ये बात आपको समझ में यदि आप लोगों में सामंजस्य नहीं है तो योग की आ जाएगी। वाधाएं आपके मार्ग में खड़ी हैं और बह अवस्था आप नहीं पा सकते। उदाहरण के रूप आपकी उन्नति को रोक रही हैं अतः इन सारी में मैंने देखा है कि लोग यहाँ सहजयोग के लिए असामंजर्यताओं को अपने मस्तिष्क से पूरी तरह आते हैं। परन्तु उनके लिए अन्य आकर्षण एवं अन्य वाहर निकाल फेंकें और अपनी आत्मा से एकरूप प्राथमिकताएं होती हैं तथा अन्य बहुत सी चीजें हो जाएं, असामंजस्यताओं से नहीं । मेरे विचार से यहाँ के लोगों में भी यह एक के लिए वे अपना सारा समय बर्बाद करते रहते हैं समस्या है। जब भी मुझे कोई शिकायत मिलती है और फिर कहते हैं कि 'श्रीमाताजी सहजयोग में या ऐसा कुछ और होता है तो मैं समझ लेती हूँ। हमारी उन्नति नहीं हो रही। जैसे पहले श्री तो मैं समझ लेती हूँ कि सहजयोग के विषय में वेणुगोपालन ने बताया कि यदि आप निश्चय कर लें उनके लिए अत्यन्त महत्व पूर्ण होती हैं उन चीजों समझ का स्तर अभी तक पूरा नहीं है यह बहुत कि 'हमें सर्वप्रथम सहजयोग करना है बाकी सभी वड़ा कार्य है और यदि आप लोगों ने ही इसे करना चीजें गौण हैं, केवल तभी आपके अन्दर वास्तव में है तो आपको बहुत उन्नत होना होगा आप लोगों सहजयोग स्थापित होगा तभी हम उच्च स्तर के को ही यदि इसके लिए संघर्ष करना है तो इसे पूरी कुछ सहजयोगी प्राप्त कर सकेंगे । मैं जानती हूँ कि ह से समझना होगा और ये भी जानना होगा कि कुछ लोग मध्यम दर्जे के भी होंगे, कुछ विल्कुल आ कहाँ खड़े हैं और स्वयं को कितना सुधारना बेकार होंगे और कुछ पूरी तरह से बाहर फेंक दिए है । व्योंकि आप ही लोग हैं जिन्होंने सहजयोग जाएंगे। मैं ये भी जानती हूँ कि यहाँ पर सभी प्रकार 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-16.txt रैतन्य लहरी मई - जून 2004 15 के लोग आएंगे। बड़ी बाधा होती है। अत्यन्त कठिन प्रतीत होता है। अब आप लोगों ने निर्णय करना है कि आप हर रामय उनको सन्तुष्ट करने के लिए उनके किस स्थान पर है? किस सीमा तक आप जाएंगे? अहम की सराहना करनी पड़ती है ताकि वे रास्ते अन्य सहजयोगियों की छोटी-छोटी तुच्छ चीजों पर आ जाएं या समझ जाएं। यही कारण है कि के विषय में यदि आपने अपना समय व्यर्थ करना बहां पर उन्नति कम हो जाती है। है तो आपका विघटन बढ़ जाएगा। आप अकेले पड़ जाएंगे क्योंकि इस प्रकार के सभी निर्णय अहं के और उनकी पत्नी सभी प्रकार के उल्टे-सीधें गुरुओं जहा तक श्री वेणुगोपालन का सबाल है तो ये माध्यम से ही होते हैं। ये मुझे पसन्द नहीं हैं, मैं के पास गए। कशोकि भारत में भी ये एक अन्य ऐसा नहीं करता, ऐसा मुझे दिखाई नहीं देता प्रकार की अंतिशायता है कि हमें सभी संतों का आदि-आदि। किसी प्रकार से यदि आप अपने अहं सम्मान करना चाहिए। परन्तु इस प्रकार के संत की कार्यशैली को देख लें तो इससे मुक्ति पा सकते झूठ-मूठ के संत हैं केवल झूठ-मूठ के ही नहीं कार्य आपने करना है। अहं से लड़ाई नहीं उनमें से हैं। यहीं कुछ तो राक्षस हैं वो खुद तो अपने मुँह करनी। मैं ये कभी भी नहीं कहती कि अहं से से कहेंगे नहीं कि 'हम राक्षस हैं। वो लोग ये नहीं लड़ाई करो, मैं ये कहती है कि समर्पण करो, यही कहते कि हम राक्षस हैं और न ही अपने असली 1 एक मात्र उपाय है जिससे आपका अहं दूर हो रूप में सामने आते हैं। वे सीधे-सच्चे साधक उनके पास आते हैं, अपना हृदय उन्हें समर्पित करते हैं, सकता है। यही कारण है कि पश्चिमी देशों में आध्यात्मिक सभी कुछ करते हैं और अन्त में उन्हें पता चलता विकास भारत से कम है, ये बात आपने देखी है। है कि वे तो राक्षस हैं। जब उन्हें पता चलता है कि श्री वेणुगोपालन जी को ही लो। वो प्रशंसनीय हैं। ये राक्षस हैं तब वे हैरान हो जाते हैं। बापिस आकर यो एक ऐसे आदमी हैं जो सराहनीय कार्य कर रहे वे किसी अन्य गुरु के पास जाते हैं और फिर किसी हैं। भारत में वे एक अत्यन्त ऊंचे पद पर नियुक्त अन्य के पास। परन्तु वों इस हानि की पूर्ति कर लेते हैं। यहां पर मैंने देखा है कि कोई बर्तन धोने वाला है क्योंकि उन्हें ये पता चल जाता है कि हानि हो व्यक्ति भी सहजयोग में आता है तो उसका भी गई है तथा सत्य का भी ज्ञान हो जाता है और ये अहम् इतना बडा होता है। हमारे (भारत के) भी जान जाते हैं कि उन्हें किस चीज़ की आशा प्रधानमंत्री का भी अहम् इतना अधिक नहीं होता करनी चाहिए। उस देश का ये आशीर्वाद है कि जितना उसका है। वो बात करता है कि "मैं ये लोगों को पता चल जाता है कि किस चीज़ की कार्य नहीं करता आदि आदि। जिस प्रकार लोग आशा करनी चाहिए। उन जैसे अच्छे किसम के बाते करते हैं मुझे हैरानी होती है। मानो हर आदमी लोग किसी ऐसे व्यक्ति के पास नहीं जाने चाहिएँ इंग्लैड का सम्राट बन गया हो! जब लोग यहां आएं जो चमत्कार दिखाते हो या इन्द्रियार्थवाद दर्शाते तो आपको बताना चाहिए कि 'व्यर्थ की बहस हैं ऐसे लोगों के पास न जाकर ये साधक सूक्ष्म करके श्रीमाताजी की शक्ति को बर्बाद न करो। लोगों के पास जाते हैं जो वहुत वालाक हैं, जो एक यहां पर सभी लोग अपना कोई अन्त नहीं समझते। प्रकार का दिखावा करते हैं और कहते हैं-नहीं पहली बार जब वो आते हैं तब भी उनमें यह बहुत नहीं, इस मार्ग रो तुभ चतम उपलब्धि प्राप्त कर 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-17.txt चैतन्य लहरी मई - जून, 2004 16 सकते हो। भारत के अधिकतर सहजयोगियों को करें, तुच्छ चीज़ों पर या दूसरे लोगों के दोष ढूंढने भी इन चीजों से निकलना पड़ा। गाँवों के या कुछ में । जिलों के लोगों के अतिरिक्त अधिकतर शहरी लोग किसी न किसी गुरु के कुछ होने के बावजूद सम्मुख दिया है। मैंने उन्हें बताया है कि आपने इन लोगों कोई भी समस्या नहीं आईं। आप उन्हें किसी भी की जूतामार क्रिया ( Shoe Beating) करनी है। काम के लिए कहो वो कहते है, 'ठीक है। मेरी प्रतिदिन सुबह वे (वेणुगोपालन) एक घण्टे तक समझ में नहीं आता ये सब कैसे कार्यान्वित होता साधना करते हैं चाहे कितने भी व्यस्त हों। यहाँ पर है। आप सब लोग दिल्ली में रहे हैं। आपने देखा तो लोग सुबह उठने के नाम से ही नाराज़ हो जाते होगा कि वहां पर कितने सारे लोग हैं, कभी कोई है कहने से अभिप्राय ये है कि ऐसे सुस्त लोगों समस्या नहीं आई। क्या आपने कभी किसी को का कोई क्या करे! ये अत्यन्त कठिन कार्य है। मैं यही सोचती हूँ कि हमें समझना चाहिए कि हुए देखा? ऐसा कुछ भी नहीं है। पश्चिम में हमारी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है क्योंकि यह कार्य लन्दन में ही होना है आरम्भ में इसे दोष मढ़ते रहना, विवेक का चिन्ह नहीं है। दोनों ही लन्दन में ही घटित होना है और इसलिए आप चीजें गलत हैं सर्वोत्तम बात तो विवेकशीलता की लोगों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। आपने अपना ओर बढ़ना और स्वयं देखना है कि हम और सहजयोग का बार-बार मूल्यांकन करना और अधिकाधिक विवेकशील बन रहे हैं आपमें से कुछ समझना है कि अहम् और निःसन्देह प्रतिअहं भी लोग वास्तव में बहुत उन्नत हैं और कुछ लोग आपको सुस्त करता है। ऊपर-नीचे होते रहते हैं तथा कुछ अन्य अभी बहुत है। मैं आपको बता देँ कि अहं ही मुख्य समस्या ही निम्न-स्तर पर हैं। अतः हम सबको एक साथ है। परन्तु मैं किसी से ये नहीं कह सकती कि ये चलना होगा किसी एक व्यक्ति ने यदि कुछ पा आपका अहं है। ऐसा कहने पर तो वो उछलकर लिया तो सहजयोग को इसका कोई लाभ नहीं। मेरे सिर पर आएगा परन्तु अपने अहं को देखने जैसा मैंने आपको बताया, सामूहिक उन्नति ही का प्रयत्न करें कि यह किस प्रकार आपको पथभ्रष्ट कार्य को करेगी और आप सबने सामूहिक रूप से कर रहा है। आप क्योंकि अपने लिए आनन्द खोज इसे कार्यान्वित करना है। कितनी मधुर बात है कि रहे हैं अपनी ही संपदा को खोज रहे हैं। आपकी आज विश्व-भर में आपके भाई-बहन हैं। जब आप अपनी ही छुपी हुई संपदा को आप युगों से खोज वहां जाएंगे तो वे पूर्ण हृदय से आपका स्वागत रहे हैं। इसी संपदा को मैंने आपके सम्मुख अनावृत करेंगे जिस प्रकार आपने पूर्ण हृदय से यहाँ उनका करना है। कोई व्यक्ति यदि आपको उच्चतम चीज़ स्वागत किया। परन्तु हम सबको इतना उन्नत देने का प्रयत्न कर रहा हो तो उससे बहस करने होना होगा, उस बिन्दु तक आना होगा, जहां हम की क्या आवश्यकता है? ये तो शक्ति को बर्बाद अत्यन्त प्रेम से खुले दिल से बिना किसी चिन्ता या करना है। इन चीज़ों पर अपनी शक्ति बर्बाद नहीं भय के एक दूसरे का सामना कर सकें और कह वो दिली कैम्प का आयोजन करते हैं । उन्होंने पास गए परन्तु इतना सब ही हमारी पुस्तकें छपने का प्रबन्ध किया है, सभी भी उन्होंने सब कुछ छोड़ कुछ अत्यन्त सुचारु रूप से किया है। मेरे शिकायत करते हुए, झगड़ते हुए या परस्पर लड़ते हर समय दूसरों में दोष ढूँढते रहना, दूसरों को परन्तु अह मुख्य समस्या 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-18.txt चैतन्य लहरी मई - जून, 2004 17 सकें कि वे हमारे भाई हैं और हम उनके भाई हैं लिए यह अत्यन्त विनम्र दृष्टिकोण है इसकी बूँदें अपने मस्तिष्क में इस प्रकार बरसने दें कि ये तथा हमें उनसे प्रेम करना है। ऐसा तभी सम्भव हो सकता है जब हम भयमुक्त मस्तिष्क को पूरी तरह से आच्छादित कर ले। इस हों क्योंकि इसका दूसरा पक्ष ये है कि अहं के साथ शाश्वत आशीर्वाद को अपने अन्दर आने दें। मैं भय भी जुड़ा रहता है. क्योंकि यह दूसरों पर बहुत ही उत्सुक हूँ। स्वयं को तुच्छ व्यक्ति न आक्रमण करता है और ये भी जानता है कि अन्य बनाएं अपनी कल्पना को विस्तृत करें, अपने विचारों लोग भी आक्रमण कर सकते हैं। अतः इस विषय को विशाल बनाएं क्योंकि अब आपका सम्बंध बहुत में भी सोचना होगा कि इससे हमें किसी प्रकार का विशाल चीज़ से है, विशालतम से, आद्य लाभ नहीं होगा। कभी अपना तिरस्कार न करें । (Primordial ) से, उच्चतम से, विराट से है। आप आत सन्त हैं, ये बात आपको समझनी होगी। विश्व यदि अपने महत्व को महसूस करेंगे तो इसे कार्यान्वित में आप ही लोग आत्मसाक्षात्कारी हैं। कितने लोग कर लेंगे । | ऐसे हैं जो कुण्डलिनी उठा सकते हैं, कितने लोग समझते हैं कि चैतन्य लहरियाँ क्या हैं? गुरु पूजा के दिन मैं आपको बताने वाली हूँ कि घण्टे सोता है फिर भी अपनी साधना नहीं छोड़ता, आपने क्या उपलब्धियाँ प्राप्त की और आपके अन्दर पूरी नींद यदि ले सके तो ठीक है। प्रातःकाल एक अब कितनी शक्तियाँ विकसित हो चुकी हैं और घण्टे की साधना अवश्य होनी चाहिए। चाहे जैसे कार्य कर रही हैं। सहजयोग के माध्यम से किस भी हो वह ये साधना करता है। परन्तु नींद का प्रकार आपके चक्र जागृत हो गए हैं वो जैसे क्या? अपने सभी जन्मों में हम सोते ही रहे हैं। कहते है, 'हाँ, ये घटित हो गया है। परन्तु आप आपको स्वयं को सुधारना होगा, ऊपर उठना होगा। इसके विषय में आप क्या कर रहे हैं? किसी भी अपनी उत्क्रान्ति प्राप्त करने के लिए आपको आगे व्यक्ति के साथ घटित होने वाली ये महानतम बढ़ना होगा। यही आवश्यक बात है। आप यदि किसी भारतीय सहजयोगी को देखेंगे तो हैरान हो जाएंगे। वो केवल दो, तीन या चार मैं बता रही हूँ कि आप अपने स्वार्थ हैं कि ये वो महानतम घटना है जिसकी बहुत (Selfishness) को देखें। स्वयं को पहचानना ही समय पूर्व 'अन्तिम निर्णय' (Last Judgement) महानतम स्वार्थ है। आप स्वयं को यदि नहीं पहचानते कहकर भविष्यवाणी की गई थी। आप जानते हैं तो सारा स्वार्थ बेकार है। संस्कृत में इसे स्वार्थ कि यही रास्ता है। आपका आंकलन होने वाला है। कहते हैं। इसका सन्धिछेद यदि करें, ये है स्वः+अर्थ अतः आपको कठिन परिश्रम करना होगा। हमें है। स्वः अर्थात आत्मा और आत्मा का अर्थ खोजना कार्य करना होगा ठीक है कि बिना किसी प्रयत्न ही महानतम स्वार्थ है। इसका यही अर्थ है। हमें खुशी है कि वह (वेणुगोपालन) यहां पर हैं रखने के लिए, और अधिक उन्नत करने के लिए और हम भी भारत जाएंगे। अगले वर्ष हम भारत हमें पूर्ण निष्ठापूर्वक इसे कार्यान्वित करना होगा जाने की योजना बना रहे हैं और वहाँ पर दिल्ली तथा मुम्बई के बहुत से लोगों से मिलेंगे, सभी आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। वो योजना बना रहे हैं घटना है, आप ये बात जानते हैं। आप ये भी जानते के आपको ये दे दिया गया। परन्तु इसे बनाए अपने अन्तस में इसे अधिक से अधिक प्राप्त करने के लिए अपने अन्दर आत्म-सात करने के 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-19.txt चैतन्य लहरी मई - जून, 2004 18 स्वयं के प्रति शान्त हो जाएं। मेरे प्रति नहीं स्वयं के कि किस प्रकार आपका स्वागत करना है आपके जाने पर उन्हें बहुत प्रसन्नता होगी कि लन्दन तथा प्रति मैं कह रही हूँ कि आपको शान्त होना होगा अन्य स्थानों से सहजयोगी आए। आप जानते हैं क्योंकि आपके अन्दर समस्याएं हैं। आपको स्वयं कि किस प्रकार वे आपकी देखभाल करते हैं और के प्रति सबूरी करनी होगी किसी अन्य के प्रति कितने प्रसन्न एवं आन्नदित होते हैं। हमसे बहुत सी गलतियां हुई हैं। हमें चाहिए शान्त हैं तो युगों पूर्व दिए गए वचन के अनुसार कि इन गरलतियों को समझें क्योंकि ये समस्या आपको उपलब्धि प्राप्त हो जाएगी। परन्तु इसके हमारे बहुत अधिक सोचने, बहुत अधिक पढ़ने तथा लिए आपको स्वयं से शान्त रहना सीखना होगा, बहुत अधिक प्रभुत्व जमाने के कारण है परन्तु इन स्वयं पर क्रोधित नहीं होना होगा स्वयं को दूषित चीज़ों से हम बड़ी आसानी से मुक्ति पा सकते हैं, नहीं करना होगा दूसरों के प्रति आक्रामक व्यवहार छुटकारा पा सकते हैं। स्वयं को निर्लिप्त करना नहीं करना होगा करने के लिए यह अत्यन्त होगा और अपने को संबोधित करते हुए स्वयं को सामान्य अत्यन्त सहजतम कार्य है परन्तु अपने देखना होगा, "अब श्रीमन आप कैसे है?" ऐसा यदि जटिल जीवन और जटिल विचारों के कारण हम आप कहेंगे तो तुरन्त आपका चित्त आपके अन्दर से इन चीज़ों में जकड़े गए हैं बिना किसी कठिनाई निकलकर आपके बाह्य अस्तित्व को देखेगा। जितना के अत्यन्त सुगमता से इन चीज़ों से निकला जा स्पष्ट आप स्वयं को देखेंगे उतना ही अच्छा है सकता है, फिसलकर इनसे बाहर आया जा सकता नहीं। यह मुख्य बिन्दु है। आप यदि स्वयं के प्रति आपने अपना सामना करना है। आप अपना सामना है। मैं जानती हूँ कि आप ये कार्य कर सकते हैं। नहीं करते क्योंकि ऐसा करने से आपको डर लगता है। क्योंकि आप दूसरे लोगों के प्रति आक्रामक भूल जाएं। एकदम से ये सारी समस्याएं टल रहे हैं इसीलिए आप अन्य लोगों के अपने प्रति जाएंगी। ज्यों ही आपका जीवन सीधा चलने लगेगा आक्रामक होने से घबराते हैं। परन्तु स्वयं को सारी समस्याएं खाक हो जाएंगी। आपके प्रकाश के देखने में कोई आक्रामकता नहीं होगी क्योंकि जब अतिरिक्त कुछ भी बाकी न बचेगा तथा वो लोग रह आप स्वयं को देखते हैं तो यह पूर्ण अवस्था होती है। किसी के प्रति न तो आक्रामक बनें और न ही के लिए आपके पास आते हैं। अतः मेरे पिता, मेरी बहन, मेरा भाई आदि चीजों को जाएंगे जो प्रकाश प्राप्ति आत्म-साक्षात्कार प्राप्ति 1 मैं जानती हूँ कि गुरु पूजा पर आपको बहुत कोई अन्य आपके प्रति। आप तो मात्र स्वयं को स्पष्ट देखें, यही कार्य आपने करना है। शनैः शनैः आप अपने चक्रों को देखने लगते हैं, कि स्वयं को तैयार करें। मैं कोई महान कार्य बाधाओं को देखने लगते हैं और जान जाते हैं कि करूंगी परन्तु उसके लिए मेरे सम्मुख पात्र होना आनन्द प्राप्त होगा और इससे पूर्व, मेरी प्रार्थना है, किस प्रकार ये समस्याएं उत्पन्न होती हैं। परन्तु चाहिए। अतः अपनी तैयारी करें, इसके विषय में सभी को परिणाम चाहिए! ठीक है आपको सोचें क्या आप दूसरों से प्रेम करते हैं? क्या आप शीघ्र परिणाम चाहिए। परन्तु क्या आपभी वैसे ही प्रेममय हैं? क्या आप सभी से प्रेम करते हैं? दूसरों हैं। आप यदि वैसे हैं तो आपको शीघ्र परिणाम से प्रेम करने की सोच ही अत्यन्त महान है। कहने प्राप्त होंगे और यदि आप उस स्तर के नहीं हैं तो से अभिप्राय है कि आप मुझसे पूछे क्योंकि मैं सदा तुरन्त 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-20.txt मैतन्य लहरी मई - जून, 2004 19 यही सोचती हैँ कि मुझे कितना प्रेम करना है। आप जानती हूँ कि ऐसा हो सकता हैं जितना जल्दी ये देखते हैं कि दूसरों को देने के लिए मेरे पास घटित हो जाए बेहतर है । अब ये आपकी मर्जी पर कितना प्रेम है! ये सोचें कि अन्य लोगों से प्रेम निर्भर है कि आप क्या चुनते हैं। करना कितना महान है। आप जानते हैं कि कभी-कभी किस प्रकार से लोग मुझसे व्यवहार सुनने को मिला और वो भी क्रिसमस से पूर्व। करते हैं, भयंकर! क्या ये बात ठीक नहीं है? फिर क्रिसमस मेरे लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है इस बात भी मैं उनसे प्रेम करती हैँ, उनसे खेलने में आनन्द को आप जानते हैं। इसी प्रकार से अब हम एक लेती हूँ मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ कि इतना सुन्दर संगीत अन्य क्रिसमस मना रहे है-अपने अन्दर अवतरित इसी प्रकार आपने भी प्रेम करना है और प्रेम ही हुए 'एक नए ईसामसीह का क्रिसमस आइए वो चीज है जो कमल की तरह से आपके सम्मुख उनके आने की तैयारी करें और ये तैयारी स्वयं से सौन्दर्य-पूर्ण खिल उदेगी। कमल की पंखुड़ियाँ पलायन करके नहीं होगी, कार्यान्वित करने से जब खिलती हैं तो अत्यन्त सुन्दर सुगन्ध लगती है। इसी प्रकार से आपके हृदय भी खुल शरीर मन्दिर में यदि आत्मा को स्थापित करना है जाएंगे और प्रेम की सुगन्ध पूरे विश्व में फैल तो इसे स्वच्छ तो करना ही होगा। जाएगी। आप भी इससे सुरभित हो उठेंगे मैं सुन्दरतापूर्वक स्वच्छ करने से ये तैथारी होगी इस बहने परमात्मा आप संबको धन्य करें ज हु ४ ोभ े क कoट री) 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-21.txt आनन्द (निर्मला योग से उद्धृत) महत्वपूर्ण देन है। शारीरिक और मानसिक समृद्धि का महत्वूपर्ण आधार 'कुण्डलिनी उत्थान प्रक्रिया ही है आध्यात्मिक मूल्यों को जन मानस में पुनः प्रतिष्ठापित करने का प्रशंसनीय प्रयास पूज्य माताजी ने सहजयोग द्वारा सम्पन्न किया है। निःसन्देह प्राणिमात्र में मानव ही सर्वश्रेष्ठ है और उसका आधार स्वयं उसका चरित्र है। इसी अपने चरित्र के कारण बह सर्वाोपरि है। जब तक उसका चरित्र उसके पास है, तब तक उसका यह गौरवपूर्ण अस्तित्व भी अक्षुण्ण है। अन्यथा उसमें एवं अन्य जीवों में कोई अन्तर नहीं होता। संसार में अब तक जितने भी चरित्रवान महापुरूष हुए हैं और संसार जिन्हें पूज्य मानता है एवं नत-मस्तक होता है उन सबने अनादि काल से ही सद्गुणों के आदर्शों की स्थापना की है। इस प्रकार उन्होंने ज्ञानी एवं बुद्धिमान देवात्माओं को बाध्य किया कि वे स्वयं चरित्रवान होकर उनके गुणों का प्रचार एवं प्रसार करें जिससे मानव समाज अपना अस्तित्व बनाये सहज योग की महत्ता प्राचीन काल, से ही रखने में सफल हो तथा शनैः-शनैः मनुष्यता की स्वीकार की गई है। उसे आत्म-साक्षात्कार का ओर अग्रसर होता रहे। चरित्र की महिमा एवं सबसे श्रेष्ठ साधन माना गया है "अयं तु परमो गरिमा अपार है। इस का सांगोपांग वर्णन कठिन धर्मः यद्योगेनात्म दर्शनम् (मनु) योग के द्वारा है । ऐसे ही देवात्मा पुण्यशीला माताजी श्री निर्मला आत्मदर्शन करना सबसे बड़ा धर्म है। सहज देवी जी हैं जो साक्षात कुण्डलिनी माता का अवतार योगान्तर्गत कुण्डलिनी जागरण विधि की दीक्षा हैं। इन्होंने अपने अनूठे सम-सामयिक आचार विचार वंदनीय माता जी द्वारा दी जाती है। जिससे साधक एवं सदव्यवहार से पूर्वजों के चारित्रिक आदर्शों तथा पल्लावित एवं कुसुमित होकर दिव्य आह्लाद प्राप्त गुणों को ग्रहण कर संसार के समक्ष एक अद्भुत करता है। मुदित प्रेरणाप्रद निश्छल आशीर्वादात्मक महान आश्चर्य प्रस्तुत किया है । प्रसाद वितरण कर अपनी अथाह अमूल्य संपदा का स्वामी बनाने में समर्थ है। समृद्ध अतीत का आकर्षण अनादिकाल से गूढ़ एवं व्यापक चिषय रहा है। एवं बीते युग की भव्यता उद्भाषित हो उठती है। विश्व का कोई भाग ऐसा नहीं जहां धर्म किसी न आधुनिक युग में समस्त विश्व के लिये सहजयोग किसी रूप में विद्यमान न हो-देश काल एं साधारणतया मानव जीवन के लिये धर्म 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-22.txt चैतन्य लहरी मई जून, 2004 21 में अपने विचारों और अनुभवों के आधार पर विचरण करता है। मानसलोक की यही स्थिति है। अंतर्जगत परम्परागत धर्म को मान्यता प्राप्त नहीं है वे भी की अनुभूतियों के आधार पर बर्हिजगत का निर्माण व्यापक धर्म के किसी न किसी अंग को स्वीकार होता है । व्यक्ति काम क्रोध, लोभ, मोह, हानि, कर जीवन यापन करते हैं। धर्म के आरम्भ होने के लाभ जीवन, मरण, यश, अपयश से रहित शुद्ध हृदय से सुख दुःख आदि द्वन्दों में स्थिर बुद्धि वाला परिस्थितियों के अनुसार इसका वास्तविक स्वरूप बदलता रहता है। जिन लोगों के विचारों में किसी समय के बारे में भी विवाद है, परन्तु यह तथ्य भुलाया नहीं जा सकता कि समाज व्यवस्था के सिद्धि असिद्धि में समता भाव से सम्पन्न और आरंभ से पूर्व मानव की वह अवस्था किसी न किसी निष्पक्ष भाव से लोक संग्रह की भावना लेकर अपनी आत्म तुष्टि में ही व्यावहारिक जीवन का संचालन सामाजिक व्यवस्था के समय से ही मानव के समक्ष करता है, जिससे अन्तर्जगत और बाह्यजगत में आया-आज भी समाज से अलग थलग इसका किसी प्रकार का असामंजस्य न हो। वस्तुतः आत्म अस्तित्व स्वीकारा नहीं जा सकता। क्रमशः मानव ज्ञान का व्यष्टि और समष्टि रूप में ठीक निरूपण जीवन का विकास होता गया और धर्म का स्वरूप इसी आधार पर किया जा सकता है। मानव जीवन का विकास और उसके उद्देश्य की प्राप्ति इसी में का अर्थ किसी न किसी धर्म से ही लिया जाता है। संनिहित है । वर्तमान जटिल परिस्थितियों में धर्म का सामाजिक रूप निश्चित होते ही सहजयोगान्तर्गत कुण्डलिनी उत्थान की अनुपम तत्सम्बन्धी विचार कि धर्म क्या है, उठता है। इस प्रक्रिया जो माता जी श्री निर्मला देवी द्वारा अनुसंधानित एवं प्रसारित है वह धर्म की परिभाषा के रूप निश्चित हुआ जिसके अनुसार संस्कृति का अन्तर्गत है क्योंकि वे अनुप्राणित आनन्द लहरियों निर्माण हुआ। इसका सामाजिक व्यवस्था के साथ द्वारा "आत्मवेदं सर्वत्र" तथा "आत्म दीपोभव" का भी गहरा सम्बन्ध है क्योंकि धर्म, अर्थ, काम मोक्ष बोध कराती हैं। जिस प्रकार अपने घर के दीपक रूप में विद्यमान है। परन्तु स्परष्ट रूप से यह भी समाज के लिये स्पष्ट होता गया। अतः समाज विवेचन में जो धारण करे वही धर्म है"-धर्म का में इसका स्थान प्रथम है। इसकी पृष्ठभूमि व्यापक को प्रकाशित करने के पश्चात ही दूसरे के घर का है, युग के अनुसार परिस्थितियों में परिवर्तन होता दीपक जलाया जा सकता है आत्म-ज्ञान होने पर है। इन्हीं के आधार पर उस विशिष्ट युग की ही यथार्थ लोक संग्रह हो सकता है। आत्म ज्ञानी मान्यताऐं बनती हैं। स्वधर्म सिद्धि इसके पालन से पुरुष दूसरों के कल्याण के लिये प्रेरित होता है। ही सम्भव है, पर धर्म से इसका विरोध सम्भव नहीं वैयक्तिक मान्यताओं के आधार पर सत्य निरूपण (गीता) आध्यात्मिक क्षेत्र में कर्म भक्ति और ज्ञान सम्भव नहीं-यह सब सहज योग द्वारा ही सहज को सभी ने मान्यता दी है, अपने स्वभाव व अनुभव सुलभ है। मन की निरोगता ही वास्तविक निरोगता को आधार मान कर। यह ध्रुव सत्य है कि प्राणी है। जिसका शरीर बलवान एवं हृष्ट पुष्ट है परन्तु बिना अपने को वातावरण के अनुकूल बनाये रह ही मन में बुरी वासना, असद्विचार, काम क्रोध, लोभ, नहीं सकता-उसके अस्तित्व में ही खतरा पैदा हो जाना स्वाभाविक है। प्राणीमात्र आन्तरिक और स्वार्थ आदि दुर्गुण और दुष्ट विचार एवं विकार मोह, घृणा, द्वेष, वैर, हिंसा, अभिमान, कपट, ईष्ष्या, बाह्य सामंजस्य की आवश्यकतावश अपने अंर्तजगत निवास करते हैं, वह कदापि निरोग नहीं-मन का 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-23.txt चैतन्य लहरी मई जून, 2004 22 रोगी सदा जलता रहता है। वह माताजी द्वारा जाती है और तब वह निर्मल आनन्द स्वरूप बन दर्शाये सहज योग द्वारा ही अमोध शान्ति की जाता है। इसी को अष्टांग योग में सविकल्प उपलब्धि कर सकता है। सुन्दर वही है जिसका समाधि की संज्ञा प्रदान की गई है। "तत्र शब्दार्थ हृदय सुन्दर है। इसको शुद्ध करो, एक- एक दोष ज्ञान विकल्पै संकीर्ण सवित की समाप्ति (पांतजली चुन-चुन कर निकाल बाहर करो, सद्गुणों को योग दर्शन 142) उनमें शब्द, अर्थ और ज्ञान इन ढूंढ-ढूंढ कर हृदय में बसाओ। माता जी का कथन तीनों के विकल्पों से संकीर्ण मिली हुई समाधि यह भी है कि "धरती का धन-धन नहीं सच्चा सवितर्क है इसके बाद जब साधक स्वयं ब्रह्म में धन हृदय में रहता है। उत्तम विचार और चरित्रबल तद्रूप हो जाता है तब ये शब्द अर्थ ज्ञान नहीं रहते ही परम धन है। सुख न पहुँचा सको तो दुख तो वरन केवल ब्रह्म (आत्मा) का स्वरूप ही रहता है। किसी को न दो; पृथ्वी पर से पाप का भार हल्का यही निर्विकल्प समाधि है। 'स्मृति परिशुद्धो स्वरूप न कर सको तो पापमय जीवन बिता कर उसके शून्येवार्थ निर्मासा निवर्तको' (पा. यो. दर्शन 1143) भार को मत बढ़ाओ। जीवन को निर्मल, सादा, शब्द और प्रतीति की स्मृति भली भांति लुप्त हो स्पष्ट, सरल, श्रद्धायुक्त आनन्दमय बनाओ और जाने पर अपने रूप से शून्य के सदृश केवल ध्येय विवेक को सदैव साथ रखो क्योंकि एक सच्चिदानन्द मात्र के स्वरूप को प्रत्यक्ष कराने वाली चित्त की धन निर्गुण निराकार ब्रह्म के सिवा और कुछ भी स्थिति ही निर्विवतर्क समाधि है । इस समाधि नहीं है। अतः उस आनन्दमय ब्रह्म का मन से वितंडावाद के चक्कर में न पड़ कर सन्त कबीर जी कुण्डलिनी योग द्वारा इस प्रकार मनन का अभ्यास कहते हैं कि "साधो सहज समाधि भली है" जो करना कि पूर्ण आनन्द, अचल आनन्द, ध्रुव आनन्द, नित्य आनन्द, आचार आनन्द, अचिन्त्य आनन्द, नियम आदि कठिन साधनाओं के फेर में एक सहज योग द्वारा ही सम्भव है। अष्टांग योग के यम ज्ञानस्वरूप आनन्द, परम आनन्द, महान आनन्द गृहस्थ को पड़ना उचित नहीं जान पड़ता। बस एक आनन्द के अतिरिक्त भी न हो-ब्रह्म ध्येय है, बुद्धि की वृत्ति ध्यान है और साधक ध्याता चेतन चर अचर सब में ब्रह्म का ही स्वरूप है। हृदय है। ध्यान करने पर बुद्धि तन्मय होकर तद्रूप हो प्रदीप को प्रज्वलित कर जीवन सफल करने में ही जाती है तब यह त्रिपुटी नहीं रहती एकमात्र ब्रह्म भलाई है । सर्व खल्विदं ब्रह्म (छान्दोग्यपनिषद 31411) जड़ कुछ ही रह जाता है और साधक की ब्रह्म में स्थिति हो आनन्द स्वरूप मिश्र 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-25.txt हमारी प्राथमिकताएं क्या हैं? जब हमें आत्म-साक्षात्कार प्राप्त होता है तब श्रीमाताजी में पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास प्रदान करने के अपने अस्तित्व में घटित हुए आन्तरिक परिवर्तन का लिए होती है और उसी स्थिति को दृढ़ करने के ज्ञान हमें नहीं होता। हमें बस इतना महसूस होता लिए ये आशीर्वाद हमें मिलते हैं । ये आशीर्वाद हैं कि किसी सुन्दर और नई चीज़ ने हमें परिवर्तित सहजयोग में हमारे स्थायित्व की नीवें हैं। परन्तु कर दिया है। उन्नत होकर हम देखते हैं कि हमारे इन आशीर्वादों को हम साक्षी भाव से नहीं देखते परिवर्तन के अनुरूप किस प्रकार विश्व परिवर्तित और जब ये बढ़ते हैं तो हम इन्हें अपने अहं का एक होता हैं, हमें अच्छी नौकरियाँ मिल जाती है, अच्छे हिस्सा बना लेते हैं और इनके घट जाने या लुप्त हो मित्र मिल जाते हैं, अधिक शान्ति व चैन प्राप्त होता जाने की स्थिति में हम बाई ओर को या भ्रम के ग्त है। इन सारे आन्तरिक और बाह्य परिवर्तनों को हम में चले जाते हैं। अपनी प्राथमिकताओं को यदि हम देवी के आशीर्वाद के रूप में देखते हैं। ये आशीर्वाद नहीं देखते तो दैवी आशीर्वादों को साक्षी भाव से बढ़ते चले जाते हैं और इनकी अभिव्यक्ति के विशेष कभी नहीं देख सकते। हर सहजयोगी की ये रूप से बाह्य अभिव्यक्तियों के जैसे अच्छा स्वास्थ्य, प्राथमिकता होनी चाहिए कि वह इन आशीर्वादों को भावनात्मक सफलता और व्यवसायिक सफलता महसूस करे, प्राप्त करे और इनका पोषण करे। यह आदि के हम आदी हो जाते हैं। परन्तु जब भी इन कार्य हृदय से होना चाहिए. मस्तिष्क से नहीं अभिव्यक्तियों की संख्या में कमी आ जाती है या अन्यथा हमें लगता है कि क्योंकि हम अपने पति. कुछ समय के लिए ये रुक जाती हैं, जब हम माँ या बहन को सहजयोग में नहीं ला पाए अतः बीमार हो जाते हैं या किसी और तरह की तकलीफ हम सहजयोग में असफल रहे। ये इसलिए होता है हमें हो जाती हैं तब हम हैरान होते हैं कि हमारे क्योंकि हम सोचते हैं कि सुखमय पारिवारिक साथ ये सब क्यों हुआ? हमने ऐसा क्या किया है. जीवन ही हर सहजयोगी का लक्ष्य, अधिकार एवं तब या तो इम सहजयोग को दोष देने लगते हैं या पारितोषिक हैं । इस प्रकार के दृष्टिकोण के होते हममें दोष-भाव आ जाते हैं। इस दोष भावना के हुए हम कभी भी उन्नत नहीं हो सकते। इस कारण हमारे हृदय में असुरक्षा की भावना जागृत अवस्था को हमें पार करना होगा, इससे ऊँचा होती हैं जिसके कारण आन्तरिक आनन्द लुप्त हो उठना होगा आत्मा को महानतम आशीर्वाद के रूप में देखना ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। लेकिन इतने जल्दी और इतनी बार ऐसा क्यों आत्मा ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए । होता है? क्योंकि हम ये नहीं देखते कि हमारी आत्माभिव्यक्ति की प्राथमिकता ही हमारी प्राथमिकता प्राथमिकताएं कहाँ हैं। इन आशीर्वादों को अपने होनी चाहिए। अपनी हृदयाभिव्यक्ति हृदय के हृदय में आत्मसात करने के लिए सर्वप्रथम हमें माध्यम से कार्य करना, आत्मा के प्रकाश से चालित इनका साक्षी होना चाहिए। इस साक्षी अवस्था में होना और परम प्रिय श्रीमाताजी की से ज्योतिर्मय हम समझ पाते हैं कि ये बाहरी आशीर्वाद ही होना ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। आत्मा को यदि हम प्राथमिकता बना लें तो यही उपलब्धियाँ हैं। वास्तव में हमारी आन्तरिक आत्मा द्वारा ज्योतित सारे आनन्द के हम स्वतः ही उत्क्रान्ति तो हमें अपनी आत्मा में तथा परम पूज्य साक्षी बन जाते हैं। आत्मा ही पूर्ण आशीर्वाद है अतः जाता है कृपा सहजयोग का लक्ष्य है या आध्यात्मिक उन्नति की 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-26.txt चैतन्य] लहरी मई - 25 सून, 2004 इस पूर्ण आशीर्वाद को अपने हृदय में महसूस होनी चाहिए। सर्व शक्तिमान परमात्मा के बच्चों के करना तथा क्यों और कैसे' जैसे प्रश्नों को भूल रूप में चुने जाने के अर्थ को क्या हम महसूस करते जाना ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। सभी को हैं? हमें किस चीज़ का भय है? कौन हम पर (सहजयोगियों) पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त होता है। जिस आक्रमण कर सकता है? कोई नहीं कर सकता दिन व्यक्ति की आत्मा का योग आदिशव्त्ति से हो यदि हम श्रीमाताजी द्वारा दी गई सुरक्षा को महसूस जाता है, जिस दिन बुँद सागर में जा गिरती हैं उस करते हैं तो सब मिथ्या है. खेल है, नाटक हैं। दिन से सभी को श्रीमाताजी के प्रेम का पूर्ण आशीर्वाद मिल जाता है और समान रूप से सबकी के नाम की पूर्णतः खुले दिल से, पूर्ण आनन्द से देखभाल होती है। अतः अपनी आशीर्वादित आत्मा, अपने पूरे प्रेम से और शक्ति से उदघोषणा हमने जो कि शाश्वत है, पूर्ण है, दिव्य स्रोत, को महसूस करनी है। उनके नाम की उद्घोषणा करना मात्र करना सभी की प्राथमिकता होनी चाहिए इस ही महानतम आशीर्वाद है और अद्वितीय आनन्द । महानतम आशीर्वाद के प्रति जागरूक होना, उसके माध्यम से परमेश्वरी से जुड़े रहना ही एकमात्र चित्त को प्रशिक्षित करना होगा तथा साक्षी भाव को प्राथमिकता है, परमेश्वरी माँ से योग हो जाने के दृढ़ करना होगा आत्मा के आनन्द और इसके मैं इससे भी आगे जाने की धृष्टता करूंगा। देवी TI अपनी प्राथमिकताओं को देखने के लिए अपने बाद आत्मा को कुछ और नहीं चाहिए, क्योंकि अब महत्व को खोजने में चित्त हमारी सहायता करेगा उसे सब कुछ मिल गया, सभी आशीर्वाद उसे प्राप्त चित्त का ज्योतिर्मय होना जब हमारी प्राथमिकताओं हो गए। अब तो वह पूर्ण आशीर्वाद का प्रतिनिधि को स्थापित करेगा तो हम उस अवस्था को प्राप्त बन गया अपनी आत्मा को तथा परमेश्वरी माँ के करेंगे जहाँ न कोई संदेह होगा न प्रश्न होंगे न प्रति उसके प्रेम को समझना तथा आदिशव्ति माँ के उत्तर होंगे। जहाँ हम अपने हृदय को खोलकर बालक होने के महान आनन्द तथा गौरव को उसके माध्यम से परमेश्वरी माँ (Divine Mother) समझना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। परमात्मा के गौरव को देख सकेंगे। के परिवार से सम्बंधित होने के आनन्द को अपने A.de. Kalbermatten (निर्मला योगा- 1981 से उद्धृत) में महसूस करना ही हमारी मुख्य प्राथमिकता हृदय 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-27.txt त्रिगुण (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) 3.2.1978 दिल्ली जिस शक्ति को आप इस्तेमाल कर रहे हैं उसे चल रहा है, माताजी थोड़ा म्यूजिक कर दें? हमने Refill कर लेते हैं हम। Modern बीमारी एक और है जिसे हम Tension कहते हैं। Tension' मुझे तो Vibrations चलते रहते हैं आप Receive करते Tension आ गया, पहले किसी को Tension नहीं रहिए। अब उन्होंने ज़रा लम्बा चौड़ा कर दिया जरा कहा कर दो भाई। ऐसे ही बैठेगें आराम से। हमारे आता थी। तब तो Tension आना ही हुआ कि आप Music, तो लोग कहने लगे अब जरा जल्दी खत्म निकले पुरानी दिल्ली से माताजी के Programme में जाने के लिए। अब 6.30 बजे पहुँचना ही चाहिए, मेरा Lecture सुनने का है पर मेरी तो आज तबियत पहले सीट पर बैठना ही चाहिए। देर से जाएंगे, नहीं कर रही। अपने तो तबीयत से चलते करो, जल्दी खत्म करो मैंने कहा क्यों भई तुमको कोई हर्ज नहीं, देर से भी आ सकते हैं। वो समय Temperamental आदमी हैं, अभी आज तो भई आप के आने का था आप आ गए। कोई बात नहीं। तबीयत हो नहीं रही। तो म्यूजिक ही सुनने दो, तुम ऐसी कौन सी आफत मची हुई हैं? भाई मुझे कहाँ भी सुनो मेरे साथ आराम से क्यों नहीं सुनते? जाने का है और आपको कहाँ जाने का है? आराम अच्छा म्यूज़िक चल रहा है, भई सुनो। ऐसी कौन से बैठेंगे दो चार बातें करेंगे, चलो हो गया सहजयोग सी आफत आई है? मेरे तो चल ही रहे हैं Vibrations, पूरा। कौन सी आफत मचाने की चीज है? कोई मैं चाहे भाषण देऊं, चाहे नहीं देऊं, वो तो चल ही नहीं। इतने सरल सहज आराम से बैठिए वैसे ही रहे हैं। हर समय कार्यान्वित हैं एक क्षण भी नहीं आप को सहजयोग प्राप्त होगा। रुक रहे। अरे Lecture ही में क्या रखा है वो मेरी मैं देखती हैँं कि सहजयोग में भी लोग इस तरह से Planning करते हैं। मुझे आती है बड़ी भला म्यूज़्कि चल रहा है, बीच में आप क्यों चिल्ला हँसी। जैसे आप ये कहें कि दो दिन बाद यहाँ पर रहे हैं? हम लोगों को आदत ही पड़ गई है। ये फल लगेगा तो मैं मान जाऊं। दो दिन बाद 5 बजे आदतें छूटती नहीं। आराम से पाँच मिनट बैठकर कर 6 मिनट पर यहाँ पर फल लगेगा इस फूल में, के हम लोग किसी से कभी बात नहीं करते। कोई ये अगर आप कह दें और करके दिखा दें तो मैं गर अपने यहाँ दोस्त आया तो कहेंगे चल भई तेरे समझ में ही नहीं आया। सब शान्ति से बैठें। अच्छा मान जाऊं। जो लोग जितना Planning करके को खाना खिलाऊं। बीवी घर के अन्दर खाना यहाँ पर आते हैं उतना उनकी कुण्डलिनी नहीं जागृत होती। सहज समाधि लागो, सहज लगती कुछ भी नहीं हो तो T.V. चला लेंगे। सब लोग T. V. है। सहज माने बिल्कुल साधारण तरीके से। ऐसे देखो। अरे भई आपस में कुछ आदान-प्रदान करो, ही जो लोग होते है उनको ही मिलती है। अब कुछ बातचीत करो बनाएगी, आप बैठे हुए बहाँ पर Politics झाड़ेंगे। काहे मार-धाड़ किए हो भाई? ऐसी कौन सी आफत आ गई? अभी मुम्बई में एक Programme बैठे हैं? आपस में अनजाने ही आप चले जाते हैं। आपने बुलाया है दोस्त को, आप T.V. लगा कर ये फिर दोस्ती नहीं होती, दोस्ती किससे है आपको? हो रहा था तो एक साहब ने कहा चलो भई Music 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-28.txt मई - जून, 2004 चैतन्य लहरी 27 कोई दौस्त ही नहीं है आपका। दोस्ती तो तब नहीं, कोई Friendship नहीं, कोई पहचान नहीं, आती है जब आपस में कोई मज़ा उठाया जाए। कुछ नहीं। नानी के घर आप जाइए वहाँ पर नानी दोस्ती उसे कहते हैं। आजकल दोस्ती का मतलब कहेंगी कि तू मेरे Telephone के दो पैसे दे, तब तू घर में पैर रखना। तुमने उस दिन टेलिफोन किया था, उसके पैसे नहीं दिए थे, पहले उसके दो पैसे दे, है कि Business आ गया, नहीं तो फिर ताश खेलो, ताश खेलने बैठ गए। तब तक भी ठीक है। फिर रुपया लगाया, काम खत्म । ताश में आप सारी चीज़ यही हो गई। इस तरह के artificial रुपया लगाइए. जिसने ताश में रुपया लगा लिया जीवन में भी imbalance आ जाता है क्योंकि artificiality के साथ रहना पड़ता है । किसी के घर काम खत्म । अब हमने ये कहा कि आप balance में रहिये। जाइए साहब खाने पर बुलाते हैं, 8.00 बजे के गर Balance में रहने का तरीका ये है कि आप जरा 8.30 बज गए तो मार चीखना शुरू कर दिया। क्या बैठिए, ज़रा देखिए, मजा देखिए । सवेरे सूरज अपने घर खाने को नहीं मिलता है क्या? देर हो उगता है, आकाश में देखिए कितने सुन्दर रंग आते गई तो कौन आफत आ गई? आ गए 8.30 आए हैं? यू ही चला जाता है। शाम को सूरज डूबता है चाहे 9.00 बजे आए क्या हुआ? आओ बैठो आराम इतने सुन्दर रंग उगते हैं, सब वैसे ही चला जाता करो। Punctuality काहे के लिये चाहिए इतनी है कितने ही फूल खिलते हैं कितनी ही बहार ज्यादा? जरूरत से ज्यादा Punctuality करने की आती हैं, कितने ही रंग बदलते हैं, ऐसे ही सारा जरूरत नहीं। हाँ Punctuality एक चीज़ में होनी काम चला जाता है। कितने ही लोग मिलते हैं चाहिए कि अपने अन्दर जो परमात्मा का call सबसे मिलते हैं और बगैर मिले ही लोग चले जाते है उसकी ओर Punctuality होनी चाहिए। हैं बिल्कुल अजनबी। कभी जाना ही नहीं! कोई मर इस वक्त परमात्मा ने हमें याद किया है गया तो उसके लिए फूल भेज दिया, चलो हो गया फौरन ध्यान में चले जाएं। Vibrations आ काम खत्म । जहाँ सबसे ज्यादा रजोगुण हो गया रहें हैं फौरन ध्यान में चले जाएं। उस मामले है वहाँ तो ये हालत है कि कोई मरता है, बाप भी में नहीं है Punctuality हमारे अन्दर। इससे मरता है तो पेपर में आ जाता है कि भई मर गए। क्या होगा, Punctuality से हुआ क्या? यही suicide वो बाप पहले से ही पैसे दे जाते हैं कि गर मैं मर जिन देशों ने Punctuality बहुत रखी उन्होंने क्या जाऊँगा तो मेरा एक सूट सिला देना नया, मेरे को प्राप्त किया? Punctuality से लोग आत्महत्या करते पहना देना और वहाँ लिखा जाता है कि फलानी हैं, आत्महत्या का भी time लिखते हैं। हमारे यहाँ तारीख को आप देख लीजिए उनकी Body पर | वो Punctuality पहले होती थी। इस तरह से कि हम दिखा देते हैं, देखो भई उनको सूट सिला दिया, पंचांग देखकर के Punctuality बनाते हैं। ये महूर्त अब ये मर गए। सब लोग आते हैं, उसमें एक-एक अच्छा है, इस मुहूर्त पर ये कार्य करने से अच्छा है। फूल चढ़ा दिया, चले गए अपने घर। तो ये वहाँ उसमें तो कुछ तो आपने Consult किया Superior हालत है। कोई आदान प्रदान नहीं, कोई दोस्ती power को । परमात्मा से कुछ लेन-देन को 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-29.txt चैतन्य लहरी मई - जून, 2004 28 Consult किया, लेकिन ये जो बिल्कुल हमारी इस चीज़ को कभी भी मैं बाह्य, इस तरह से दैनंदिन इस तरह की Punctuality और इस तरह छोटे-छोटे घरोंदों में विश्वास नहीं करती। न ही मैं उन भ्रमों में विश्वास करती हूँ जो बिल्कुल ही मनुष्यों ने बनाए हैं। ये बिल्कुल ही बेकार के हैं । जाएंगे, घबरा जाएंगे। वही सवेरे उठना, वही दाढ़ी इन सब चीजों को तोड़ फोड़कर के ही अपने बनाना, वही मुँह धोना वही दफ्तर जाना, वही सहजयोग पनपा है। लेकिन धर्म का मतलब ये है का हम लोगों का बिल्कुल यांत्रिक जीवन हो गया है इस जीवन से आप लोग ऊब जाएंगें, परेशान हो आदतें। फिर वही घर पर आना, फिर वही बातें। कि हमारे अन्दर जो Sustenance power है, हमारे अन्दर जो बसी हुई innate धर्म है, हमारे अन्दर आप लोग घबरा जाएंगें। घबराहट से फिर शुरू क्या होगा? वही चीज़ जो वहां हो रही है गांजा, एक- एक अंग-प्रत्यंग में जो बनाया गया है, उसको जागृत करना चाहिए। इसके बारे में मैंने आपसे कल बताया था कि अनेक धर्म हैं। उसमें से एक, LSD और उससे भी नहीं तो हमेशा बेहोश रहना। मतलब पलायनवाद, भागो, इस दुनिया में जीने की क्या ज़रूरत हैं? जब मनुष्य जीवन में बोर हो जाता आपको आश्चर्य होगा, कि सबसे बड़ा धर्म ये है कि है तभी वह पलायनवादी जीवन को खोजता है। सर्वधर्म समान हैं। गाँधीजी ने कहा था बोर इसलिए होता है क्योंकि वो अपने को सर्वधर्म समानत्व मानें । उसका तत्व एक है ये मनुष्य जानता नहीं। जब वह अपने को जानता है तो समझ लेना चाहिए। पेड़ के अन्दर बहने वाली में जाती है, उसके शक्ति हर जगह जाती है, मस्ती चढ़ती है क्योंकि आप अपने अन्दर इस कदर मूल सुन्दर, इतने व्यवस्थित, इतने मधुर हैं कि फिर तने में जाती है, उसके पत्तों में भी जाती है. उसके ज़रूरत नहीं किसी की आप अपने ही साथ बैठे फूलों में जाती है और फिर वो वापिस लौटकर रहते हैं, बड़ा मज़ा आता है। जब आप अकेले होते वापिस चली आती है। कहीं भी लिपटती नहीं। इसी तरह का निर्वाज्य, इसी तरह से अलग रहने वाला हैं तब सब से अच्छे रहते हैं, बड़ा मज़ा आता है। अपने ही जीवन को देखते रहते हैं, अपने ही अन्दर जो प्रेम है और जो शक्ति है, उस शक्ति में जो एक अपने स्वर्ग को देखते रहते हैं। हाँ जब दूसरों से तत्व चारों तरफ घूम रहा है उसी प्रकार सारे ही मिलते हैं तो ये लगता है कि ये भी इस स्वर्ग में धर्मों में एक ही तत्व घूम रहा है। और वो सीधा हमारे साथी हैं। जैसे दो शराबी बैठ जाते हैं तब सादा सरल तत्व एक ही है कि जब धर्म की उन्हें मज़ा आता है, अकेला कोई पीता नहीं। इस स्थापना हमारे अन्दर हो जाती है, जब हम किसी भी धर्म के तत्व से प्लावित हो जाते हैं, उस तत्व को तरह का एक खुमार जिन्दगी भर चढ़ा रहता है। जब हम अपने अन्दर पूरी तरह से स्थापित कर लेते ऐसी बादशाहत गर पानी हो तो ऐसी बादशाहत हैं, तभी हमारा evolution हो सकता है। जैसे कि अन्दर भी आनी चाहिए। अपने अन्दर Balance लाना पड़ता है और ये धर्म से होता है। धर्म से मेरा मतलब कभी भी हिन्दु हिन्दू धर्म के लोगों को एक ही तत्व सीखना चाहिए कि सबके अन्दर एक ही आत्मा का वास है और मुसलमान से नहीं होता है, आप समझ सकते हैं जाति-पाति आदि चीजें ये जन्म से नहीं होती, ये 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-30.txt चैतन्य लहरी मई - जून, 2004 29 सा त कर्म से होती हैं। यही तत्व हिन्दु धर्म का है और होगा। हमारे अन्दर सेवा भाव का तो बड़ा भारी इसमें दूसरा कोई सा भी तत्व नहीं खोजना है। गर आदर्श है, सबकी सेवा करनी चाहिए, इसकी सेवा इस तत्व को आपने पा लिया तो आप असली हिन्दु करो, उसकी सेव करो। अब देखिए कि शूद्र क्यों हो गए बाकी तो आप अहिन्दु हैं। चाहे वो अपने को कहा गया, ये सोचने की बात है। बड़े आश्चर्य की मुसलमान कहलाएं चाहे वो अपने को ईसाई कहलाएं। बात है कि कोई किसी की सेवा करे तो वो क्यों शूद्र एक ही शक्ति, हम लोग तो शक्ति के पुजारी हैं न, है? ये सूक्ष्म बात है। इस सूक्ष्म बात को गर आप एक ही शक्ति सब के अन्दर बसती हैं और जिस समझ लें तो आप हिन्दु धर्म को समझ लें। किसी कर्म में मनुष्य लीन होता है उसी कर्म से वो जाना की सेवा जो करे वो शूद्र है क्योंकि दूसरा कोई है जाए। माने जो ब्रह्म कर्म में लीन है वो ब्राह्मण है, ही नहीं । गर हम आपको ठीक करते हैं. आपकी जितने सहजयोगी हैं सब ब्राह्मण हैं जो ब्रह्म में मालिश करते हैं, आपका सिर ठीक करते हैं तो हम 1 लीन है वो ब्राह्मण है। जो आनन्द को सत्ता में अपने को ही ठीक कर रहे हैं असल में, क्योंकि खोजता हैं वो क्षत्रिय है और जो आनन्द को पैसे हमारा ही सिर पकडा हुआ है। आपका पकड़ा है में खोजता है वैश्य है, जो आनन्द को किसी की तो, हमारे आप अंग प्रत्यंग हैं, तो हम गर इसे ठीक सेवा में खोजता है वो शूद्र है। आपको आश्चर्य नहीं करेंगे, हमारे अंग प्रत्यंग को तो हमें ही 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-31.txt चैतन्य लहरी मई 30 जून, 2004 तकलीफ होती है। दूसरा कोई है ही नहीं। जिसने बड़ी सूक्ष्म सी बात है। इसकी सूक्ष्मता को वो ही ये ldea ले ली कि मैं दूसरे की सेवा कर रही हूँ पकड़ सकता है जिसमें सूक्ष्म रति है इसलिए जो बहुत ही शूद्र ldea है। जिसने ये सोच लिया कि आदमी ऐसे कहता है कि मैं संसार में बड़ा उपकारी मैंने बड़े भारी अनाथालय बना लिए, मैं जाता हूँ हूँ मैं बड़ी मिठाइयाँ बाँटता हूँ और मैंने लंगर खोल गरीबों की सेवा करता हूँ। कौन हैं गरीब? आप हैं रखे हैं, वो महामूर्ख है और शूद्ध है। किसी पर भी गरीब। मुझे गरीबी इसलिए अखरती है क्योंकि ये उपकार करने का मनुष्य को कोई अधिकार नहीं मेरा ही Part and Parcel है। अगर कोई इंसान है। उपकार तो एक ही करता है, परमात्मा। वो भी संसार में गरीब है तो ये मेरे लिए insult है. मैं ही अपने ही ऊपर उपकार कर रहा है किसी दूसरे पर गरीब हूँ। इतनी बड़ी उच्च कल्पना को जब आप नहीं। जब वो अपने से नाराज़ हो जाता है तो निम्न दिशा में देखते हैं इसी लिए ऐसा होता है। तहस-नहस कर देता है। जब वो अपने से प्रसन्न कोई भी बादशाह नहीं कहता कि मैं किसी की सेवा होता है तो सब ठीक-ठाक कर देता है और जब करता हूँ। चो देता है उससे बहता है, वो सेवा नहीं किसी पर उपकार करना होता है तो वो सारे संसार करता। सेवा में एक बहुत सूक्ष्म मूर्खतापूर्ण अंहकार को उबार देता है है। किस पर उपकार आप करने जा रहे हैं? ये सब है, विराट के अंग प्रत्यंग में सारा संसार है । जैसे आपके अंग-प्रत्यंग में हैं और इसीलिए जब आप समझ लीजिए जैसे ये light है परमात्मा की, और । क्योंकि संसार भी परमात्मा ही collective consciousness में आ जाते हैं तो उसके सामने अगर विराट का चित्र है तो इससे जो आपको आश्चर्य होता है कि किसी की विशुद्धि चैतन्य बाहर आ रहा है उसी में सारा संसार है। चक्र में गर पकड़ है, गर कोई बीमार है तो आप भी अब गर इस विराट में कोई तकलीफ है तो वहाँ पकड़ते हैं। आप कहते हैं माँ इसका विशुद्धि पकड़ दिखाई देगी। गर वहाँ कोई तकलीफ है तो यहाँ रहा है, जल्दी छुड़ाओ। क्योंकि आप से रहा नहीं दिखाई देगी। उसको ठीक किए बगैर विराट ठीक जाता। वो आपका अंग-प्रत्यंग बन जाता है, कहते नहीं होने वाला और न उन्हें आराम मिलने वाला हैं माँ देखो इसका पकड़ रहा है-मतलब आपका है। ये मैं आपसे सच कहती हैँ। आपको आश्चर्य खुद पकड़ रहा है। देखिए आप कितने एकाकार होंगा एक बार मेरे पैर में लग गई चोट, तो हमारे हो जाते हैं। जैसे अब lecture की बात नहीं होती साथ एक डॉक्टर थे तो उन्होंने कहा कि माताजी कि हाँ सब धर्म एक हैं। हिन्दु मुसलमान, पारसी, मैं आपको Vibration देती हूँ। मैने कह्म अच्छा, इसाई सब एक हैं, ये कहने की बात नहीं होती। ये आओ बेटे दे दो Vibration | जैसे ही उन्होंने मेरे होता ही है। कोई भी आदमी आपके सामने आए पैर पर हाथ रखा वहाँ से धड़-धड़ Vibration आने आप कहेंगे देखिए माँ इसका ये पकड़ रहा है। लगे। मतलब जब कहीं चोट लग जाती है तो वहाँ पकड़ आपकी उंगली रही है, आप कहते हैं इसका से double Vibration आने लगती हैं। जब मैं थक पकड़ रहा है। जैसे आपने अपनी उंगली ठीक कर जाती हैं तो तिगुने treble Vibration आने लगती ली, वो भी ठीक हो गए, आप भी ठीक हो गए। ये हैं जब मैं बीमार हो जाती हैूँ तो वहाँ से ऐसे 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-32.txt चैतन्य लहरी मई - जून, 2004 31 Vibration आएंगी जैसे आप सब लोग बीमार हों। me अब who are those? मोहम्मद साहब ने भी समझ लीजिए बहुत से लोग दिल्ली शहर में बीमार कहा है खूब कहा है, आप अगर पढ़ें उसको बहुत हैं फ्लू से, तो मुझे भी फलू हो जाएगा और उसमें से पैगम्बर आए। इन लोगों ने लगा दिया कि अब से जो Vibration निकलेंगी वो आपके फ्लू को ठीक इनके बाद कोई पैगम्बर ही नहीं आएगा। करेंगी। बो जब निकल जाएंगे तो मैं भी ठीक हो जाऊंगी। अजीब सी चीज है ये! है ऐसी चीज, path, तो कहा कि ठीक है He is the light He is क्राइस्ट ने कहा है कि । am the light I am the यही होता है। ये बड़ी सूक्ष्म चीज हैं इसे आप the path but who is the destination? Who is समझे, इसे आप देखें और इसका साक्षात्कार करें। । the beginning? भई ight, है path है उसकी और आपमें से ऐसे भी लोग हैं यहाँ जिन्होंने ये देखा है। भी तो चीज हैं, आगा-पीछा भी है उसका कृष्ण ने ऐसा ही होता है। जैसे कि समझ लीजिए अन्दर में कहा सर्व धर्माणाम् परितज्य मामेकम शरणम व्रज, antibodies तैयार होती हैं और वो बहने लग जाती तो लोग कहते हैं के अब आप सब लोग हिन्दु हो हैं। इसलिए हमारे सन्तुलन में जो हमने पहले ही जाइए। इसका मतलब ये है इतने जड़ हम लोग से कहा है सबसे बड़ी चीज है कि हमें धर्म के तत्व हैं। जिसने जो कहा उसको बड़ा ही जड़कर समझ लेने चाहिए। सर्वधर्म समान हैं। बहुत ज़रूरी दिया। हर एक तत्व को जड़ करने में मनुष्य बहुत ही होशियार हो गया है । जितनी भी सूक्ष्मता है वो चीज है। कोई भी यहाँ पर कट्टर हो, उन्होंने बड़े बनाए, कट्टरपना के नमूने बना रखे हैं हिन्दु धर्म में बड़ी अच्छाई एक ही है कि उन्होंने कोई एक खोती गई हैं। आपकों कुण्डलिनी के बारे में मैंने कल सब चक्रों मनुष्य जाति पर कोई लगाया नहीं कि ईसामसीह के बारे में बताया था। कुण्डलिनी क्या है, बो किस हैं या कोई मोहम्मद साहब ही हैं। ये एक अच्छाई तरह से उठती है कैसे चढ़ती है आदि । कुण्डलिनी हो गई, लेकिन उन्होंने सोचा कि भई जब इतने गए सूक्ष्म शक्ति है। वास्तविक सदाशिव की शक्ति तो कोई दूसरा बनाओ, उन्होंने सोचा कि जितने हमारे सिर पर सदा विराजमान रहती है और ईसाई हैं वो पार हो गए या जितने मुसलमान हैं सदाशिव की शक्ति जो है यह ब्रह्मशव्ति है अब सदाशिव कौन हैं उससे पहले की बात करें। तो उनका ठीक हो गया तो अब उसका कैसे किया जाए? तो वो कहते है कि ठीक है, नहीं हो रहा तो ऐसा ही समझ लीजिए कि सदाशिव और शक्ति ये दूसरा इलाज बनाएं। तो क्या इलाज उन्होंने बनाया, दोनों एक ही चीज़ हैं जैसे सूर्य और उसका लेकिन creation जब करने का हुआ, चीज़ से बाज नहीं आता। ईसाई लोग कहेंगे कि अनेक बार हुआ creation, एक बार नहीं अनेक बस ईसामसीह एक आए थे दुनिया में और कोई, बार हुआ, तब तक सदाशिव और शक्ति अलग हट नहीं आए। तो ईसामसीह भी काफी उनके मुँह में गए। दो अंग हो गए. शक्ति ये कार्य करती है. बातें डाल दी। लेकिन ईसा मसीह ने खुद ही कहा सदाशिव जो हैं बो साक्षी स्वरूप देखते हैं। शक्ति का कार्य है शक्ति कार्यन्वित होती है। अब हम तो जाति पाति ही बना दी। आदमी ऐसा है, किसी प्रकाश 1 e Those who are not against me are with 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-33.txt मई चैतन्य लहरी 32 जून, 2004 र शक्ति को समझते हैं, जैसे कि समझ लीजिए, आज वो सबसे out of best हो गया है। जब ये सहजयोग यहाँ एक शक्ति आई है आपके सामने आप light हमारा इंग्लैण्ड और अमरीका से यहाँ आएगा तो देख रहे हैं। पर आप जानते हैं कि इसी light से लोग समझेंगे। हम लोगों को सीधे समझ में बात आप गैस भी चला सकते हैं, इसी light से चाहे तो नहीं आती। जब English लोग सहजयोग आपको, आप पंखा चला सकते हैं, इसी light से चाहे तो मेरे पर लिख ही रहे हैं दो आदमी एक English लिख रहे हैं एक फ्रेंच लिख रहे हैं, जब चिट्टियाँ ले के यहाँ आएंगे तब यहाँ के ladies और यहाँ के आप convert कर सकते हैं magnet में। पर आप उस शक्ति को नहीं समझ सकते जो शक्ति सारा कार्य करती है, सारा organize करती है, सब gentlemen जो हैं जो सिवाए tailcoat के बाकी cooperation करती है. integrate करती है और सब अंग्रेज हैं, वो ladies and gentlemen, क्योंकि जो प्यार करती है। आप कोई ऐसी शक्ति नहीं हिन्दुस्तानी यहाँ बहुत कम हैं। सभी वही लोग अभी समझ सकते हैं जो प्यार करती है और प्यार में ही तक हमारा guidance कर रहे हैं। इनका नाम ये सारा कार्य है प्यार से ही हरेक चीज़ जानती महाकाली, महासरस्वती, महालक्ष्मी ऐसा है। लेकिन है और सारा कार्य करती है। ऐसी शक्ति आप नहीं संस्कृत भाषा की विशेषता ये है कि एक - एक अक्षर मंत्र है। देवनागरी लिपि में एक-एक जो हम अक्षर अ+क्षर, जो क्षर नहीं है, जितना हमने अ, आ, इ. समझ सकते। उसी शक्ति की मैं बात कर रही हैूँ और वो शक्ति सारी ही शक्तियों का समूह है, उसी में electricity है, उसी में magnet है, उसी में light ई जो कुछ है वो सारा ही कुण्डलिनी में घूमने बाला हैं, उसी में सारे elements हैं। अब आप यहाँ शब्द है। वहाँ वो शब्द निकलता है। मनन में हम देखिए, ये जो हमने चित्र बनाया है विराट का, लोगों ने इन शब्दों को सीखा है और तब लिखा है। उसके सिर पर सदाशिव की शक्ति है और सदाशिव अंग्रेज लोग कहते हैं, मगर जैसा बोलते हैं ऐसा का पीठ भी है इसलिए उनकी वहाँ शक्ति है। हमने 'M' सीखा है। मगर फगर से हमारा कोई इसके तीन अंग हो जाते हैं। आप देखिए ऊपर से, मतलब नहीं है। इन्होंने जानवरों से भाषा सीखी है, हमने बताया, वहाँ से जब छूटती है तो एक ऐसे हमने मनुष्य के अन्दर बहने वाली कुण्डलिनी से आती है, एक ऐसे आती है. और एक बीच से आती भाषा सीखी है । जब कुण्डलिनी ऐसे घूमती है तो है और एक जो सदाशिव स्वयं हैं, उनका असर आवाज यूं करती है, श. श, श. यहाँ पर । ठीक है हृदय में आता है। ये जो तीन शक्तियाँ हैं इनको न? हर जगह उसके अलग-अलग शब्द हैं जैसे महालक्ष्मी महासरस्वती और महाकाली, तीन के यहाँ हूँ 'क्षं दो शब्द आते हैं। होते हैं, वो जो हम नाम से कहा जाता है। अंग्रेजी में इस का कोई जिसे ओम् करके लिखते हैं, अ जैसे जो लिखते हैं. नाम नहीं है, मैं नहीं जानती अंग्रेजी में इसे क्या जो आप जिसे लिपि में ओम् लिखते हैं वो यहाँ आप कहा जाता है। आप कहेंगे बहुत ही out of date देख सकते हैं कि यहाँ पर ओम् ही रहता है। जब कुण्डलिनी जागृत होती है तो यहाँ जब उस पर light पड़ती है तो ये जो चक्र है यहाँ पर ओम् ऐसा चीज़ है क्योंकि जो कुछ सनातन है वो अपने देश में out of date हो गया है और जो अंग्रेजों का है 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-34.txt मई चैतन्य लहरी जून, 2004 33 ही लिखा होता है जैसा आप लिखते हैं। और जो संस्कृत भाषा का, कितनी, इसकी बुनियादें देखिए, अ आ इ ई. जो भी लिखा है आप लिखते हैं। कितनी गहरी और कितनी सूक्ष्म है? तो यह तीन, देवनागरी में संस्कृत भाषा में, वो भी हमारे अन्दर जो मैंने बताया, महाकाली, महासरस्वती, महालक्ष्मी जब कुण्डलिनी वहाँ पर आघात करती है, जिस तीन शक्तियाँ हमारे अन्दर में हैं. इनको ही ऐं री' वक्त उसके निनाद होते हैं, तब वो निनाद और हीं ऐसे कहते हैं क्योंकि इनका निनाद 'क्लीं', उसका लिखना भी घटित होता है। कितनी बारीक ऐसा होता है। र ये energy का शब्द है, जैसे चीज़ है? क्या आपकी संस्कृति है और कहाँ से राधा। र माने energy, ध माने धारने वाली। राधा, आई है! जो सारी मननों से उतरी हुई है, कोई कृष्ण का अर्थ मैंने आपसे बताया था कृषि से आता है अब कृ शब्द कृष्ण कहते साथ विशुद्धि चक्र लेकिन संस्कृत भाषा तो हमारे यहाँ पण्डितों मूर्खो एक दम असर कर जाता है। कृष्ण ही कहना और गधों की हो गई जिनको कि. उसका उच्चारण पड़ेगा क्योंकि कृष्ण जो हैं इसका यहीं से सम्बन्ध भी नहीं आता। जो उसके तत्व को नहीं समझते! है। विशुद्धि चक्र से ही सम्बन्ध है तो कृष्ण ही हमने बाहर से सीखी हुई, Artificial चीजें नहीं हैं। ये सब अंग्रेज हैं, शैली और कीट्स उनका नाम हो सकता है। कितनी Scientific चीज़ पढ़ते हैं। ये भाषा हमारे अन्दर उत्पन्न होती है और लिखित है, ये बताइए और कितनी सूक्ष्म चीज़ है? लेकिन होती है। एक-एक अक्षर लिखने में अर्थ होता है। सहजयोग हमारा प्रेम का मार्ग है और प्रेम में इतनी ओम् कैसे बना? इस तरह से ओम् की रचना होती गहराई नहीं देखने की जरूरत। एक ही अक्षर प्रेम है. बिल्कुल ओम् ही लिखा है। मैं ऐसे अंगुली घुमा का पढ़े सो पण्डित होए। ये हमारा सहजयोग है। कोई जरूरत नहीं आप बड़े पण्डित होइए, पढ़ि पढ़ि पण्डित मूर्ख भए, जो पण्डित यहाँ आए उनसे तो रही हूँ, आपका भी आज्ञा घूम रहा है। इतनी scientific चीज़ है क्योंकि इसका सम्बन्ध Reality से है। इससे बढ़कर और कौन सी चीज़ scientific भगवान बचाए, कहने लगे कि साहब हमने गुरु ग्रंथ हो सकती है? जब तक आप संस्कृत में श्लोक नहीं साहब सारा रटा हुआ हैं। मैंने कहा अच्छा क्या कहते मेरे चक्र चलते ही नहीं हैं, आश्चर्य की बात वो ही जो आप कहते हैं वो ही कहते हैं कि मन में है! पर आप गर अंग्रेजी में कहें तो चलते हैं। सिर्फ ही खोजो आज्ञा चक्र पर ईसा- मसीह की जो उन्होंने अपनी तो खोजा नहीं न? खोजो? खोजना चाहिए। उसी लिखी है क्योंकि यहाँ ईसा-मसीह का स्थान है प्रकार हो गया कि मन्त्रं अमन्त्रं अक्षरं नास्ति, नास्ति । मैंने कहा तुमने तो रट रखा है न. तुने अंशनम्, अयोग्यः पुरुषो नास्ति योजकः सः Lord's Prayer. वो चलता है, पर इंगलिश में भी दुर्लभम्। वैसे तो हरेक चीज़ में मन्त्र है परन्तु मन्त्र क्षमा की योजना आनी चाहिए। तो कोई कोई भूत लोग उस पर उनका जो हिब्रू में उन्होंने लिखा हुआ है मूलं कहें तो चल जाता है। पर यहां पर तो भी स्वरूपपिणी, क्षमा ही शब्द कहना पड़ता हैं क्योंकि यहाँ आए हैं राक्षस लोग वो 'ऐ 'रीं क्लीं का यहाँ 'क्ष' शब्द है इसलिए क्षमा कहना चाहिए। सब आपको मन्त्र दे देंगे, ओम बोलो, क्लीं बोलो। पृछो कहने पर भी क्षमा कहना पड़ता है। इतना हमारा भई ये है क्या? कुछ नहीं बता पाएंगे। अच्छा बता 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-35.txt मई चैतन्य लहरी - जून, 2004 34 भी दिया थोड़ा बहुत, कहीं पढ़ा-वढ़ा होगा, अब चन्द्र नाड़ी को जो कि हमारे अन्दर बसती है उसे आपका चक्र कीन सा पकड़ा हुआ है? आपको ऐं ईडा नाड़ी कहते हैं। इसमें भी बड़े घोटाले हैं. मैं "री क्लीं का उन्होंने मन्त्र दे दिया, कोई मन्त्र विद्या देखती हैँ कि इतना coniusion है, इतना confusion का बड़ा भारी शास्त्र है कि कौनसा आपका चक्र है। Right side में जो नाड़ी है उसे पिंगला नाड़ी पकड़ा हुआ है? गर आपकी left side पकड़ी हुई है कहते हैं, right side की नाड़ी जो है सूर्य नाड़ी है, तो आपको Left Side का मन्त्र देना चाहिए और Ileft side की नाड़ी जो है चन्द्र नाड़ी है। इन दोनों आपकी right side पकड़ी हुई है तो right side का का जब संतुलन आप साधते हैं तब आप बीचों-बीच देना चाहिए. वीच की पकड़ी हुई है तो बीच का आते हैं। एक extreme में कोई गए तो पैण्डुलम देना चाहिए। अब ये जो तीन आपको यहाँ दिखाई जैसे एक जगह गए तो दूसरी जगह को जाना शुरु दे रही हैं उसमें से left side महाकाली का स्थान होता है जैसे कि मैंने बताया था जहाँ रजोगुण हे। ये हमारे तमोगुण को पालती है। तमोगुण बहुत ज्यादा हो गया है विदेशों में तो उन्होंने हमारे अन्दर है। इसे चन्द्रनाड़ी भी कहते हैं। अब देखिए कि पृथ्वी की रचना भगवती ने कैसे ज्यादा बढ़ गए तो suicide शुरु हो गए और नहीं की? पहले सूर्य से कुछ हिस्सा भगवती ने निकाल तो शराब पीना, गांजा और इस तरह की चीजें लिया। उसके बाद उस हिस्से को बहुत दूर ले गई. तमोगुण में आने की शुरुआत की। जब बहुत जिससे balance आ जाए एक पैण्डुलम इधर सूर्य से बहुत दूर ले गई जिससे बो एक दम ठण्डा गया तो उधर से उधर दौड़ गया। उधर से उधर हो गया, बर्फ की तरह। फिर उसको धीरे-धीरे बीचों बीच संतुलन है, एकदम मध्य में और उसके सूर्य के पास लाई। उससे बो पिघलने लग गया, बीच में Gap है, यहीं void है, इसे void कहते हैं जेन system में अगर आप जेन पढ़ें तो उसमें पानी का प्रवाह शुरु हो गया। उसके बाद वो पूरा उसे फिर से बहुत दूर ले गई, फिर नजदीक लाकर सहजयोग है, कबीर पढ़ें तो पूरा सहजयोग है, ऐसा adjust कर दिया कि जिससे वहाँ सृष्टि हो नानक पढ़ें तो पूरा सहजयोग है कृष्ण पढ़िये तो सके. जिससे वहाँ जीव-धारणा हो सके, ये सारा पूरा सहजयोग है, राम पढिए तो पूरा सहजयोग है। ब्रह्माण्ड जो है Spiral में Move करता है Spiral क्राइस्ट पढ़ें तो पूरा सहजयोग है, कुरान पढ़ें तो में । मैं आपसे बता रही हैूँ शायद सौ साल बाद पूरा सहजयोग है। सब सहजयोग है। कहने का लोग कहेंगे वहुत सी बातें जो अभी अभी हमने कहीं ढंग शायद अलग हो जाए पर मज़ा आएगा वही। ये जो बीच का void है, ये भवसागर है और इसमें थीं वो भी अब लोग कहने लग गए हैं। उस Spiral के बराबर उस Spiral के Movement से ये होता उठने के लिए कोई सीढ़ी नहीं है समझ लीजिए कि है कि व्यविति कभी सूर्य की ओर ज्यादा होता है कभी चन्द्र की ओर ज्यादा होता है तो सूर्य नाडी सीढ़ी आधी लटक रही है और उस पर चढ़ने का और चन्द्र नाडी हमारे अन्दर दो नाड़ियाँ हैं। Right जो मार्ग है वो नीचे है कुण्डलिनी । इस कुण्डलिनी stide में जी ना़ी है उसे सूर्य नाड़ी कहते हैं और को, इस bridge को, इस gap को भरना होता है, दो ऐसी सीढ़ियां लगी हुई हैं लेकिन बीच वाली 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-36.txt चैतन्य लहरी मई - जून 2004 35 बहुत सीधा-सरल है, कोई बहुत दूर नहीं। अब ये Super Ego कहते हैं और जो (ight side के कार्य कुण्डलिनी आपकी माँ हैं, जन्म-जन्म आपके साथ करने से होता है वो Ego होता है। जो लोग right पैदा हुई, आप ही में स्थित रहती है। मृत्यु के बाद side में कार्य करते हैं. जिन्हें रजोगुणी कहते हैं वो र कुण्डलिनी ego-oriented होते हैं, अपने Ego से कार्य करते दोनों साथ ही साथ रहते हैं। ये हर समय आपमें हैं। और ज़ो left side होता है वो Super Ego स्थित रहती हैं और यही आपके पास होता है, बहुत से आपमें psychologist होंगे तो भी जीवात्मा के साथ ऊपर में आत्मा कृण्डलिनी जो आपको समझा देंगे। जैसे कि एक बचचा Subconscious का पूरा जोखा है। है माँ की है ये गौरी है यानि ये महाकाली का एक part है। गोद में दूध पी रहा है आराम से। आनन्द में है। महाकाली का एक part है बीच की शक्ति जिसे उस वक्त उसकी माँ उसको हटाती है, तो उसका हम सृजनात्मक शक्ति या उत्क्रान्ति की शक्ति ego जागूत होता है. वो कहता है कि ये क्या कर कहते हैं या जिसे हम evolutionary शक्ति कहते दिया? माने उसको गुस्सा चढ़ता है। उसकी माँ हैं महालक्ष्मी की शक्ति कहते हैं, वो ये शक्ति नहीं उसको डॉटती है। ऐसा नहीं करना, super ego है। ये आपके subconscious की शक्ति है जो बनता है। कोई करने की इच्छा होना ego से होती अब तक आपको past हुआ, आपका कर्म हुआ. है और जब उस पर दबाव आता है वो शवित आपका ये हुआ, वो समझ-लेना चाहिए। तो super ego की होती है। हमारे अन्दर इस फ्रकार कुण्डलिनी वो चीज है, उसका हिस्सा है। जो void दो संस्थाएं बनती हैं Ego और Super Ego । एक है void के अन्दर में सरस्वती का कार्य है। क्योंकि चीज़ से तो हम कहते हैं इसको हम करके दिखाएंगे मैंने आपसे बताया था बीच का जो नाभि चक्र है और दूसरी चीज़ से हम कहते हैं कि नहीं भई ये उसमें से एक कमल का फूल निकलकर के. उसमें नहीं करो। ये हमारे बाप कह गए थे, इसमें फायदा बैठा हुआ ब्रह्मदेव सारी चीज, रचनात्मक कार्य नहीं होने वाला। अब जरूरी नहीं कि बाप अच्छा ही करता है। इसलिए इस void के अन्दर में रचनात्मक कह गए हैं, कभी अच्छा भी कहते हैं कभी कभी बुरा कार्य की शव्ति है। आप जानते हैं. ये है ये भी कह जाते हैं । इस तरह की दो शक्तियाँ हमारे रचनात्मक कार्य पाँच element के बारे में, उसी से अन्दर काम करती हैं या ऐसा समझ लीजिए कि सन भी तैयार होता हैं। मन भी इसी का एक हिस्सा एक से हमारी इच्छा शकब्ति और दूसरी से हमारी है। Existence की शक्ति है और वो कार्यान्वित रचना शक्ति। रचना शक्ति और इच्छा शक्ति गर रहने की रचानात्मक शक्ति है जब बो कार्य बराबर आ जाए या जिसे कहिए ego और super करती है तो इस तरह से, एक समझ लीजिए, कि ego जब बराबर आ जाए तो आप देख सकते हैं byproduct होता है किसी factory में, किसी कि कुण्डलिनी का उठना कितना आसान हो जाएगा प्रकार के दो byproduct निकलते हैं, एक क्योंकि सर का बोझा जो है बो एक जैसा हो byproduct जो left side से ऊपर चलता है वो जाएगा बीच में से कुण्डलिनी आसानी से निकल इस side में आ जाता है right side में। इसे जाएगी। इसीलिए संतुलन की बहुत जरूरत है। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-37.txt मई - जून, 2004 चैतन्य लहरी 36 आज मैं संतुलन पर ही बोल रही हूँ, बार बार हो सकते। और ये कहने पर भी लोग कहते हैं. गुणगान करके संतुलन पर आती हूँ। गर आपके नहीं हमारे गुरु बहुत अच्छे हैं। तो सोचते हैं क्या? अन्दर संतुलन नहीं है तो कुण्डलिनी जागृत होकर एकदम भूत-बाधा है. क्या? कितना भी कोई परेशान के ब्रह्मरन्ध्र से नहीं निकलती। संतुलन का establish करे, कुछ भी तकलीफें हों, सारा शरीर भी टूट जाए. बहुत जरूरी है। और उस संतुलन के लिएHeart से भी मर जाएं. तो भी माँ, हमारे गुरु बडे होना ही मैं आप लोगों से कहती हूँ कि आप left से अच्छे हैं। इसका कारण क्या है? इसका कारण right को जाएं क्योंकि ego यहाँ पर बढ़ गया है। एक ही सीधा सरल बैठता हैं कि कोई न कोई ती आपके ऊपर पकड़ है। आप सोचना ही नहीं चाहते पूरा ego है। यहाँ का balloon ego ने दबा दिया है, Super ego को नीचे तो आपसे मैं कहती हैं कि असलियत क्या है? अब ego किसी आदमी का बहुत जबरदस्त बढ़ा हुआ है. उसके अनेक तरीके हैं उठेगा और ego नीचे आ जाएगा| फिर आप आपसे मैंने पहले ही बताया है। Ego की वीमारी उठाइए फिर आप करिए, धीरे-धीरे करते करते ये ऐसी है कि बो बीमारी पता ही नहीं चलती है। गर हो जाएगा कि बीचों बीच आ जाएगा| उसके लिए आपका तमोगुण super ego ज़्यादा है, तो उसका भी मेरे ओर हाथ करना पड़ेगा नहीं तो आपके हाथ बदन टूटेगा, कि माँ मेरा यहाँ दुखता है, मेरे पैर कि आप इस तरह से ऊपर उठाइए. super ego से थोड़े ही कुछ होने वाला है। जैसे बीच में आ पकड़ गए, पता नहीं कोई कभी मेरे गर्दन में बैठ HE जाएगा तो कुण्डलिनी खट से उठकर ऊपर चली गया है, पता चलता है। पर ego तो अपने को ही जाएगी। कुूण्डलिनी सब जानती है, समझती है अपने ऊपर बिठाया होता है, घोड़े पर चलता है। आपका सब। उसको Past भालूम है आपने जो उसके पास आप जाइए तो मेरे को ही lecture देना गलतियाँ करीं, जो कुछ भी आपने अपने साथ शुरु कर देता है अभी गई थी मैं कोई मंत्रियों के ज्यादतियाँ करीं, जैसे आप किसी गुरु के पास गए, पास में उन्होंने मेरे को ही lecture देना शुरु कर कुण्डलिनी आपकी जानती है। उठेगी ही नहीं दिया, इधर आप लोगों का कोई programme होने frozen कुण्डलिनी। इसीलिए आपने देखा होगा वाला था, उसी में मैं lecture सुनती रही, मैंने कहा कि किसी ने बताया मेरे गुरु थे तो मैं सर पकड़ वाह भई वाह! रोज़ lecture देते हैं अभी इन्हें मैं ही कर बैठ जाती हैं कि गई कुण्डलिनी काम से, अब चाहिए थी lecture सुनाने के लिए? अच्छा भई तो हाथ जोड़ो इनको भैया। क्या करें? अब लोगों सुना लो। तुम्हारा भी हो जाएगा, इधर तुम लोग को ये लगता है कि माताजी क्यों गुरुओं को बुरा यहाँ बैठे रह गए मैं वहाँ ही बैठे रह गई | इसलिए कहते हैं? क्योंकि कुण्डलिनी ही उन्होंने freeze ego ऐसी चीज़ है जिसको अहंकार एक बार चढ़ कर दी तुम्हारी तो मैं क्या करूंगी? और दूसरा ये जाए उसको समझाना बहुत मुश्किल होता है। है कि आपका क्या होगा? कितना सर्वनाश है? सूक्ष्म अंहकार भी होता है, जैसे किसी ने कुछ पढ़ लिख लिया तो मेरा तो इसमें विश्वास ही नहीं बहुत आप ही सोचो कि आपका कोई उद्धार नहीं, आप सम पार नहीं कर सकते, जन्म जन्मांतर तक भी नहीं कि माताजी कुण्डलिनी उठाती है। अब साहब 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-38.txt चैतन्य लहरी मई - जून, 2004 37 आपका विश्वास ही नहीं रहा। मैं तो विश्वास ही से लेकर के नेपोलियन से लेकर के सबने भगवान नहीं कर सकता, आपका विश्वास किसी चीज़ पर पर भाषण झाड़े, किसी ने छोड़े थोड़े ही। सब अपने हैं? आपने क्या जाना, आपने क्या देखा? आप को सोचते हैं कि उनको अधिकार है भगवान पर आइए देखिए। आपका विश्वास नहीं है या है इससे lecture देने का इनसे पूछिए, तुमको क्या मालूम क्या फर्क पड़ने वाला है भगवान को? मुझे पूर्ण हैं भगवान के बारे में तुम क्यों बोलते हो? मैंने विश्वास भगवान पर है, माने आप कहाँ के अफलातून हो गए? सृष्टि क्या अपने बनाई थी, या आपके बाप ढिकाना, मैं अमरीका गया था मैंने इतने ecture ने बनाई थी? इस पेड़ के नीचे जो बैठे हुए हो क्या दिए. मैंने इतने lecture पढ़ डाले, एक एक एक आपने बनाया? पूर्ण विश्वास परमात्मा पर है, इस एक इस तरह से एक तरह का बड़ा सूक्ष्म तरह से जो मनुष्य बातें करता है वो अति है। जिसने सारी सृष्टि की रचना की, जिसने सारा मनुष्य के Intelect पर एक aggression है, आपको संसार बनाया, आपको और आपके बच्चों को बनाया, mental feast देते हैं भगवान की बातें करने लगे, इतनी किताबें लिख डालीं, मैंने फलाना पढ़ डाला, aggression है। आप इसको समझ नहीं पाए। ये जो चीज़ संसार में जगमगा रही है, ये सब जिसकी बातें सुनने लगे आप, बड़े अच्छे बोलते हैं साहब । कृपा दृष्टि से हो रहा है उस पर आप विश्वास कर एक साहब हैं क्या भाषण देते हैं, बस सुनते ही रहे हैं, बहुत आप उपकार करते है! परमात्मा पर रहिए आप पता ही नहीं चलता है time का! अच्छा आपका विश्वास ही नहीं है तो आपसे बढ़कर मनोरंजन हो रहा है । भगवान पे बोलने का हरेक अक्लमंद कौन होगा? ये सब पागलों जैसी बाते हैं। को अधिकार नहीं, गीता पर बोलने का तो किसी मैं जब पैदा हुई तो मेरे को लगा कि मैं कौन से को अधिकार नहीं, गीता के lecture होते हैं ! पागलखाने में आ गई? फिर ये कि हाँ मैं तो सब माताजी मैं गीता के lecture में जरा जाता हूँ और कुछ जानता हूँ माताजी, हाँ मैंने पढ़ा था, सारी मॉँ आपका आज्ञा चक़् पकड़ा हुआ है। तो मैं गीता के ये किताब पढ़ के आया हूँ उसमें । अब किताब कहीं lecture में नहीं जाऊं? बेटा तुमको जो गीता भी, किसी भी छापे खाने में आप छपा दीजिए, छप समझा रहा है क्या वो पार है? पार हुए बगैर जाती है। कोई भी छाप सकता है, जिसका मन हो आपको धर्म पर बोलने का या गीता पर बोलने का छाप दे और भगवान के ऊपर कोई छापे तो उसके कोई अधिकार नहीं। जो मनुष्य पार हुए बगैर कोई लिए कोई नियम नहीं है। कोई कायदा कानून नहीं सा भी lecture देता है वो ऐसा ही जैसे एक अंधा कि कोई उसको पकड़े कि भई तूने इसको क्यों आदमी आपको रास्ता बता रहा है। लेकिन धर्म में 1 छापा? और कोई कहे कि भगवान का ये हाल है अन्धा कौन है. और देखता कौन है ये जानने का भी तो हाँ भई है। वो कहे कि भगवान का वो हाल है कोई मार्ग नहीं। जो आदमी विरह में बोलता है तो है। उसका कोई ऐसा कहीं कायदा है. कोई उसका तो सुनना भी नहीं चाहिए । विरह के गीत कानून है जहाँ आदमी हाथ पकड़े कि खबरदार गाए उसको क्या सुनना? हम भी विरह में हैं, वो भी भगवान पर बोलने वाले तुम कौन होते हो? हिटलर विरह में है, इसलिए मजा आता है। जैसे सूरदास 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-39.txt मई - चैतन्य लहरी जून 2004 38 जी हैं, सूरदास जी विरह में रोते थे तो सबको मुझे तो घिन चढ़ जाती है जिस तरह से विरह में अच्छा लगता है। ये भी अन्धे, हम भी अन्धे, सब लोग रोने लग जाते हैं गजलों में बैठकर। ये कोई अन्धे गा रहे हैं। बल्लभाचार्य जी के पास गए, मदद की लोगों की बात नहीं। ये सब तमोगुण के बल्लभाचार्य कहने लगे काहे घिधियावत हो भाई? लक्षण हैं। हर समय विरह गाना, रोते रहना, विरह जो आदमी मिलन में बैठता है उसको समझ ही की बात करना। मिलन की बात करो, मिलन में नहीं आता कि विरह की बात क्यों गा रहे हो। आओ और जब समय आ गया तो हमें विश्वास ही नहीं कि मिलन भी हो सकता है। तो रोते बैठेंगे। सबको अच्छा लगता है ऐसा भजन कि भगवान कब मिलेंगे? किसी किसी को ऐसा बेकार का झूठा पहले कहेंगे कि आओ, आओ आओ, जब आकर बक नाटक भी अच्छा लगता है। बड़ी विरह अवस्था में खड़े हुए तो कहते हैं हमें विश्वास ही नहीं होता कि सब देवदास बने बैठे हैं। देवदास काटे घास, मैं ये वो सच्चा है! ये दुनिया है इसे क्या कहा जाए? अरे कहती हैँ। इतनी कविता रुदन की और इतना पहले बुलाया क्यों, जब बुलाया है, जब आ गए तो बोलते हैं कि हमें विश्वास ही नहीं होता है कि आप विरह। हे भगवान! इनको कब बुद्धि आएगी? विरह का मजा बड़ा आता है आदमी को। इसके काव्य आ गए! अभी हमें रोने दीजिए, अभी रोने से फूर्सत होते हैं लेकिन जो मिला हुआ है, मिलन में बैठा है, नहीं उनको। जब इनका रोना खत्म होगा तब तक वो विरह के गीत कैसे गाएगा? एक सीधा हिसाब यहाँ से पसार भी हो जाएगा घण्टों बजाते रहेंगे होता है, जो मिलन में बैठा है वो विरह की बात और पुकारते रहेंगे कि प्रभु तुम आओ, प्रभु तुम कैसे कहेगा? वो कहेगा am the light, I am the आओ दर्शन दो, दर्शन दो हमको, दर्शन दो और path, वो कहेगा कि सर्व धर्माणाम परित्यज्य मामेकम् दर्शन लेकर करने का क्या है? कुछ बनना चाहिए. शरणम् ब्रज। उसके अन्दर authority होएगी। बो होना चाहिए. घटित होना चाहिए। ये तो होने की किसी के बाप से डरने वाला नहीं, किसी के सामने बात है, Becoming की बात है. हवाई बातें नहीं। घिघियाने वाला नहीं। आना हो तो आओ नहीं तो लेकिन मनुष्य बड़ा संतोष में रहता है क्योंकि वो जाओ। उसकी पहचान कबीर है उसका सबने superficial है न उसको इसी में संतोष रहता है मजाक उड़ाया सिंधुक्कड़ी भाषा करते हैं। हमारे कि कोई इनको रिझाए रखे। बैठे अपने भजन गा हां यहाँ हिन्दी भाषी लोग उसका बड़ा मजाक बनाते रहे हैं, घण्टों गा रहे हैं, घटही खोजो भाई, घटही हैं। उनके पांव के धूल के बराबर भी इनमें से कोई खोजो भाई, घटही खोजो भाई । घटही खोजो भाई, हो तो मुझे बता दीजिए। मार्कण्डेय जी के पीछे पड़ खोजने वाले कौन हैं? किसको lecture दे रहे हो गए। उनमें ये ये दोष है, उनके वाङमय में ये दोष भई? वो तो उन्होंने बताया जो खोज चुके, अब तुम है। तो इनके लिए उमरखैय्याम बहुत अच्छे हैं किसको lecture दे रहे हो? वो तो उनको बताया क्योंकि वो पिनक में अपने सब पिनक में ही लिखते हैं, अधिकतर गजलें जो सरदर्द की ये दवा ले लेना, अब तुम prescription हैं वो मैंने देखा है कि पिनक में ही लिखी हुई हैं। ही रट रहे हो सुबह से शाम तक! इससे क्या लाभ लिखते रहते हैं। ये लोग था कि तुम घट को खोजो उनसे कहा था कि 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-40.txt मई चैतन्य लहरी जून, 2004 39 होने वाला है? इससे किसका भला हुआ है? ऐसे रहते हैं, हे राम, हे राम तो वहाँ से भगवान जी तो भजन गाने से एक भी आदमी को आपने देखा है कबके भाग गए, ये तो मुझे पता है लेकिन अब मैं कि लाभ हुआ? अन्त में वही सिर पैर ऊपर करके भी भाग जाऊंगी। कहने लगी कि इन्हें सुन-सुन नाटक करके चिल्ला रहे हैं सुबह से शाम तक। के तो मेरे कान दुख गए. अब तुम भी भाग जाना Cancer of the Throat हो जाएगा अब समय ये यहाँ से। ऐसे बेकार लोग हैं एक छोटा सा बच्चा आ गया है कि ऐसी बेकूफियाँ ज्यादा न करो, नहीं समझता है। वो गए थे लद्दाख उनके पिताजी तो बैठे हुए थे। देखिए एक छोटा 1. तो Throat Cancer हो जाएगा। बेंकार में गाते वहाँ एक लामा साहब फिरेंगे तो Cancer of the Throat हो जाएगा। सा बच्चा छ: साल का, अब सब लोग जाकर, सब किसने कहा इतने द्राविड़ी प्राणायाम करने के लोग जा-जाकर लामा साहब के पैर छू रहे थे। लिए? कि गला फाड़ फाड़ करगाओ? अरे भई अब ये तो पार हैं, इनको मालूम है कौन पार है, एक बार जब कह दिया हो गया. आ जाओ, आ ही देखा उनकी Mother ने भी पैर छुए, पिता ने भी पैर जाएंगे, इतना गला फाड़ने की और अपना विशुद्धि छुए, तो उससे रहा नहीं गया फिर वो ही शान आ चक्र इतना सत्यानाश करने की क्या ज़रूरत पड़ी गई उनकी। सामने जाकर उनके खड़ी हो गई, हुई है? मेरी समझ में नहीं आता। यहाँ पर आए, कहने लगी ये क्या सिर मुंडा के. चोगा पहन के माताजी हम ये मंत्र कहते थे कितने बार? रोज़ सबसे पैर छुआ रहे हो? पार तो हो नहीं। सबकी का कम से कम हो जाता था 108 बार। भई किसने हालत खराब, माँ बाप की। ये क्या कर दिया बच्चे कहा 108 बार कहने के लिए? एक बार कह दिया ने? ठीक तो कह रही हूँ ये क्यों पैर छुआ रहा है? हाथ जोड़ के, श्री राम तुम्हारे शरणागत हैं बस हो तुम लोग इनके पैर क्यों छूते हो? ये तो पार नहीं गया अब वो कोई आपका नौकर है जो आप सुबह है बिल्कुल भी। इन्होंने सिर्फ सिर मुंडा लिए हैं और से शाम तक आप उसको Order दे रहे हैं? अब चोगा पहन लिया है और ऐसा मुँह बना कर बैठे हैं। पूरा समय आप किसी को इस तरह करें तो उनको ऐसा मुँह भी दिखा दिया। उनको किसी का भगवान वहाँ से उठ ही जाएंगे साहब सिर दर्द हो डर नहीं । सरमुंडाने से अगर भगवान मिलते हैं तो जाता है मुझे। अब तीन से चौथी बार कोई माताजी जो ये भेड़-बकरियाँ होती हैं ये पहले भगवान के कहते हैं तो मैं कहती हैँ भई क्या चाहिए आपको? पास पहुँचती। कबीर का Sense of humour जो आप ही सोचिए भगवान की position में जाकर, था वो कमाल का था। और ये रोने की हद् इतनी क्या आपको कोई 108 मर्तबा पूरा समय पुकारता पहुँच गई है इन लोगों की कि अब वो हसन हुसैन रहे तो कहेंगे भई चुप भी कर। हमारी grand मर गए तो उसके लिए चिल्ला रहे हैं। एक आफत daughter थी हम गए थे वहाँ बिहार में, Realized मचाए हुए हैं, साहब ऐसी रोनी सूरत देख के जी Soul है बड़ी मज़ेदार जीव है । होगी कोई पाँच छः साल की, कहने लगी नानी बस यहाँ तो बहुत गड़ भाग जाए। ये कहाँ रोने पीटने वाले लोग? इतने तो बड़ हो गया, मन्दिर में ये सब लोग रात-दिन गाते जानवर भी नहीं रोते, कोई नहीं रोता इतना। ये तो घबराता है। कोई आने वाला हो भगवान तो वो भी 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-41.txt मई चैतन्य लहरी 40 जून, 2004 मनुष्य का एक अजीब तरीका है, रोने लग गए तो भी ब्राह्मण कहे चढ़ा दो, चलो ठीक है जितनी श्रद्धा रोने ही लग जाए। अच्छा वो हुआ, उससे भी जब हो ब्राह्मण को दे दो। ब्राह्मणों की तो यहाँ agency हुई। सबसे तो कमाल ये है कि जब मेरी शादी हुई, जब मेरी शादी हुई यू.पी. में तो हम घर पर गए. तो चैन नहीं आया तो जिस दिन भगवान का जन्म होएगा उसी दिन उपवास करेंगे इससे बढ़कर और किसी का क्या अपमान करेंगे। इससे बढ़कर आपको आश्चर्य होगा, कि शादी में श्राद्धयोग गा और किसी का क्या अपमान होएगा? आप समझ रहे थे! वही मंत्र गा रहे थे! मारे हँसी के मेरी तो लीजिए आपके घर में कोई आदमी आया, कहने हालत खराब और पेट में बल पड़ गया। अब जाऊं तो जाऊं कहाँ? मैं घर की बहू, नई नई, मारे हँसते हँसते मैंने कहा भई मुझे तो नींद आ रही है। तो उन्होंने कहा इतने शुभ मुहूर्त पर तुम कहाँ सोने जा लगा मैं तो आज खाना नहीं खा रहा हूँ। वो कहेगा भई मैं जा रहा हूँ अपने घर। गर किसी आदमी को आपको भगाना हो घर से तो आप कह दें 'मैं आज खाना नहीं खा रहा हूँ। उसने कहा अच्छा मैं रही हो? मैंने कहा मैं करू क्या? क्यों हँसी आ रही जाता हूँ होटल, सीधा हिसाब। आपके घर में कृष्ण है? मैं उनको कहूँ तो कहूँ कैसे कि सब उनको का जन्म हुआ राम का जन्म हुआ तो भी उपवास थोड़े बहुत वही पितृ पक्ष के थोड़े बहुत मन्त्र मालूम करो। ये कौन सा तरीका है? इससे बढ़कर अपमान थे, वही बोले जा रहे हैं। मैं कहूँ कि ये क्या तमाशा का और कौन सा तरीका है? कल मैं आपके घर में है कि इनको तो कोई श्लोक भी मालूम नहीं? आऊं, समझ लीजिए श्रीमाताजी आपके घर में आते ब्राह्मण हैं और हमारे घर में खानदानी चले आ रहे हैं, मेरा तो उपवास है, तो भैया मेरे को काहे को हैं? तो मैंने कहा इनसे कौन बात करे अब? इन्होंने बुलाया? जब कोई ऐसे आते हैं, ऐसे जन्म होते हैं खानदानी ऐसे ही शादियाँ लगाई होंगी, उनको बड़े तो उस बक्त जश्न मनाना चाहिए, खुशियाँ बरतन भी मिले हुए हैं, उनको गैया भी मिल जाती मनानी चाहिएं, सबको खाना खिलाना चाहिए। गणेश जी को मोदक पसंद हैं तो मोदक बाँटिए। है। तो उनके घर में गैया ही गैया हो गई हैं और ह इस तरह के धर्म की चीजें बनी हैं इस तरह से उस दिन उपवास करेंगे! और जिस दिन नरक rituals बने हैं! हम लोग क्या सोचते हैं कि पीछा चतुर्दशी है, उस दिन सवेरे चार बजे उठकर नहा करके खाने को बैठेंगे। बताइए सब उल्टी चीजें एक गैया देना और एक कपड़ा देना हमें और एक छुड़ाओ। श्राद्ध हुआ तो उसने कहा कि भई देखो समझ में नहीं आती। ये किसने सिखाई? ये हमारी ब्राह्मणी को साड़ी दे दो, तुम्हारी माँ पहनेगी। ब्राह्मणों ने बेवकूफ बनाया है या तो ये राक्षसों के आपने सोचा, ठीक है इससे पीछा छुड़ाओ, गैया तो धंधे हैं । मेरी तो ये समझ में नहीं आता है कि ये बहुत मुश्किल है इसे साड़ी ही दे दो। कोई ये नहीं उल्टी बातें कहाँ से आ गईं अपने यू.पी. में? और सोचता है कि हम जो कर रहे हैं उसमें हमारा क्या North में तो और भी चौपट हाल है, इतना चौपट हृदय है? क्या करना है, क्या देना है, धर्म में क्या हाल है कि कोई पढ़ा लिखा तो है नहीं यहाँ चीज़ है उसको जानना चाहिए। किस तरह की संस्कृत वंस्कृत। किसी को समझ तो है नहीं, जो बात है? कोई इस तरह से बात को सोचता नहीं है 1 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-42.txt मई - जून 2004 चैतन्य लहरी और इसीलिए ये हमारे अन्दर उसका संतुलन नहीं कि आये यहाँ, जैसे वो ये कि Nescafe फट बैठता। बस काम चालू, काम चालू, चलते रहो, काफी बन गई, वैसे माँ आप कुण्डलिनी तो जागृत चलाते रहो किसी तरह से। कोई हाँ हाँ भई कैसे करती है, वो तो मैं करती हूैँ। जेट कुण्डलिनी का हो अच्छे हो, बैठो, हाँ ठीक ठीक है। उसके बाद वो Set जरूर करती हूँ पर खींचती भी वैसे ही हूँ। है गए, मालूम पड़ा बड़ा बदमाश है ये। इसने फलाने ना सही बात? आप खो भी देते हैं अपनी Vibrations के घर चोरी की थी, उसने इतना रुपया मारा था। को इसके बारे में जेन System में लिखा हुआ है फिर आए अच्छा पान खा लो भाई। रात-दिन उसको सपोरी कहते हैं कि आदमी जैसा कोई बॉल के जैसा होता है, ऊपर जाता है नीचे आता है, ऐसे ही डॉवा डोल चलता है। ये, वो होता है। इसलिए मनुष्य इसी तरह Superficialy रहता रहेगा गहराई उसके अन्दर उतरती नहीं है, और इसीलिए तो कुण्डलिनी जागृत होती नहीं है धर्म के मामले में भी अपने चक्रों को संभालना पड़ता है। अपने को नहीं, search के मागले गें भी। परमात्मा को गहराई में उतरना पड़ता है, अपना जीवन गहरा खोजने के मामले में भी। जैसे अमेरिका में गुरु बनाना पड़ता है, अब आप पूरा अपना जीवन जो है Shoping होता है वैसे यहाँ भी गुरु Shoping फालतू चीजों में बर्बाद करेंगे सुबह से शाम तक। होता है। नहीं मैं सिर्फ गया था, मैंने देखा, मैंने अब करना ही पड़ता है. वया करें, दुनिया ऐसी है, चरण छुए, दर्शन हुए, प्रसाद मांगा, दर्शन करने उसके लिए करना पड़ता है और आपके पास सगय गया था माँ मैं तो वहाँ पर। वो दर्शन में उन्होंने भी नहीं कि अपने में गहराई उतराए और परमात्या आपके अन्दर में भूत रख दिए होंगे? मैं तो दर्शन के साम्राज्य में बैठे रहें। तो ठीक है आप जिस चीज़ के लिए गया था पर ये कुण्डलिनी तो उठ नहीं की चाहत करेंगे वही होगा, आप जो करना चाहेंगे रही बाबा, मैं क्या करूं? उनको क्या? ये तो बड़ी वहीं होगा। अपना समय ऐसे ही बवद आप कर गेहरी सूक्ष्म चीज़ है कुण्डलिनी का उठाना और लीजिए ऐसे ही आपने हजारों जिन्दिगयाँ कार्ी, कुण्डलिनी का ऊपर चढ़ना भी अति सूक्ष्म चीज़ है और एक कट जाएगी, लेकिन ये वाली ज़रा गुश्किल गर आपने इसकी संभाल नहीं करी, गर आपने रहेगा मामला दयोंकि फिर पता होगा बड़ी गलती तर अपना विचार इतना सूक्ष्म नहीं रखा तो चीज़ तो कर गए, सत्य को मना करते करते जो Peal रात्य दब गई न अब भी पार होने के बाद भी आप आ गया उसको भी मना कर गए। वो तो देखना तो देखिएगा कि आपके Vibrations खो जाएंगे, ये तो चाहिए न, समझना तो चाहिए । उसको पाने के बाद है ही बात आपको बता दें। लोग कहते हैं गाताजी जो आदमी खो देता है तव तो समझना चाहिए कि दीजिए, तो Permanent दीजिए, क्यों साहब आपने उनके लिए ये व्यर्थ ही हुआ । दिल्ली शहर की ये History है, ये कहना मुझे क्या Permanent दिया है? मैं आपको क्यों दूं Pemanent? मैं तो नहीं देने वाली मैं तो चाहिए कि हर समय काफी लोग पार हो जाते हैं महामाया हूँ। सीधा हिसाब। आप Permanent पर पर जमते नहीं। जमने वाले बहुत ही कग लोग होते बैठिए तो मैं भी Permanent दूंगी और आप ऐसे हैं। हर कार्यक्रम के बाद एक दो आदमी वच जाते 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-43.txt दतन्य लहरी मई - जून 2004 42 ९ ते रा र हे है। इस प्रकार तीन चार साल से हम आ रहे हैं, सच बात है। बहुत लोगों को होने का समय आ कुल मिला करके गर आप देखिए तो जो रोज़ के गया है और ये है ही ऐसी चीज़ कि इतिहास की आने वाले आदमी हैं, जो उत्तरे हैं, जो कुण्डलिनी दृष्टि से ही वो समय आ गया था कि जहाँ बहुत को मास्टर कर चुके. ज्यादा से ज्यादा दस या लोग उसे पाएं। हालांकि बहुत से Realized Souls बारह लोग हैं, बस। बड़ी दुख की बात है । इसलिए हैं जिन्होंने जन्म लिया है। बहुत से Realized आपसे, आज आखिरी दिन है. माँ के नाते मैं विनती बच्चे पैदा हुए हैं। दस साल के अन्दर वो तैयार हो करती है और शक्ति के नाते आगाह करती हूँ कि जाएंगे। इसमें कोई शंका नहीं है। स्टाइलर जैसे अपनी गहराई को पाइए। अपनी गहराइयों में आदमी ने इग्लैण्ड में लिखा है कि अब वो समय दूर उतरिए। अपने समय को इस महान शक्ति के लिए नहीं कि बहुत से Realized Soul इस संसार में रखिए । इसमें आप पाइए और दूसरों को दीजिए । जन्म लेंगे ये कलियुग का मामला है, कलियुग में बहुत बड़ा कार्य करने का है। गर हम किसी से दो ही तरह के आदमी जन्म ले सकते हैं। एक तो कहते हैं कि मुम्बई शहर में और सब शहरों में कीड़े मकोड़े मच्छर लेंगे जो कि हर हालत में ऐसी मिलाकर कोई बारह, दस हजार आदमी हैं, अरे दुर्दशा में रह सकें और ऐसे गन्दे atmosphere में क्या हुआ. दस हजार आदमी हैं तो क्या हुआ? रह सकें इसलिए Population भी बढ़ता है। वंणे 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-44.txt चैतन्य लहरी मई 43 - जून, 2004 जितनी देश में गंदगी और दुर्दशा आती है उतना शुद्ध करें और इस वातावरण को शुद्ध करने के लिए ही Population बढ़ता है। जैसे गरीबी आ गई, ज़रूरी है कि आप लोग इस शक्ति को वहन करें, गरीबी तो leprosy है, समझ लीजिए, गरीबी से पहली मर्तबा अब मानव अपने व्यक्तित्व से या घबराना चाहिए। ये आदमी गर अपने गरीबी को अपनी शक्ति से ये जो पाँच तत्व हैं उसमें शव्ति लेकर आए कि साहब मैं गरीब हूँ, मुझे दीजिए, तो डाल सकता है। इसके बहुत सारे Experiment नी उसे दो झापड़ दीजिए। गर आदमी कोशिश करे किए हैं। हमारे Scientist लोगों ने बताया किस तो उसको ऐसे लानत वानत जैसे करने जरूरत तरह से हम शक्ति दे सकते हैं इन पाँच तत्वों को । नहीं, बस कोशिश की बात है। इस तरह से हम किस तरह से हम हमारी खेती बढा सकते हैं। ये सोचते हैं कि हम गरीबों के लिए क्या कर सकते लोग Agriculturist हैं Agricultural University हैं। बहुत कुछ कर सकते हैं। किसी आदमी को राहुरी में बड़े बड़े Scientist हैं, आप उनको चिट्ठी आप गरीब देखें तो उसकी आप मदद करे उसको लिखकर पूछ सकते हैं, उन लोगों ने जब Vibrated ऊपर उठाने की कोशिश करें। हरेक गरीब आदमी पानी दिया तो 2/3, दो तिहाई फसल उनकी को उठाने की कोशिश करें, आपका कर्तव्य होता ज्यादा आई और फूल बड़े आए। और हमने जो है। जिस तरह से भी हो सकता है उसकी मदद वहाँ की चीज़े देखी तो बड़ा आश्चर्य लगा हमें कि करें, उसे बताएं किस तरह से वो अपना जीवन कुछ फल ऐसे कि ऐसे तो फल हमने कभी देखे निर्वाह करे । बहुत ही ज्यादा पैसे की ज़रूरत नहीं थे। उनके रंग उनका तेज, उनका आकार नहीं। ज्यादा पैसा हो गया तो उसके पैर निकलेंगे। प्रकार एक अजीब तरह की चीज़ थी। इन्हीं चैतन्य जो आदमी शराब पीने लग गया तो अब उसको की लहरियों से आप लोगों की बीमारियाँ में मुफ्त ठीक कर सकते हैं। आधा प्रश्न तो आपका ठीक हो गया, Health M.nistry बन्द करा सकते हैं आप कहना अब तेरे को पैसा ज्यादा करने की ज़रूरत नहीं। जिसने सिगरेट पी उससे भी कह सकते हैं कि बस काफी है, जिसने बीड़ी पी उससे कहना का पैसा बचा, डॉक्टरों के जेब आप कुछ कम भरेंगे, अब काफी है। अब तू गरीब नहीं। फिर जो जुआ डॉक्टर लोग इसी से मुझसे घबराते हैं। इसी से खेलता है तो वो कभी भी गरीब नहीं । इतना हो कि बुलाया नहीं। लेकिन ऐसी सब बीमारियाँ थोड़ी बस उसका खाना पीना चले, उसमें कोई सहजयोग से ठीक होने वाली हैं। लेकिन दुनिया विषय-वासना नहीं आए। सो ऐसी जगह ही कीड़े बीमार रहे ऐसी मकोड़े पैदा होते हैं और इसीलिए Population होगा मुफ्त में, अब जो लोग हमारे सहजयोग में कोई इच्छा डॉक्टर भी नहीं करता बढ़ता है। जैसे ही वातावरण अच्छा हो जाता है, आते हैं अधिकतर लोग वो डॉक्टरों के पास नहीं आप जानते हैं कि जहाँ बुरादा होता है जहाँ गंदगी होती है, वहीं मच्छर पनपते हैं। जैसे ही सफाई हो जाते। दवाईयों के खर्चे कम हो गए, डॉक्टरों के खर्चे कम हो गए, नींद की गोलियाँ लेने की जरूरत जाती है वहाँ एक ही दो फूल खिलते हैं। इसीलिए नहीं, आप आराम से पड़कर सोइए। बहुत सारी बहुत जरूरी है कि हम लोग इस वातावरण को बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं, कुछ नहीं होती, 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-45.txt मई - जून, 2004 चैतन्य लहरी अधिकतर बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं कुछ नहीं ईमानदार लोगों का दुनिया में कोई ठिकाना नहीं। होती. अधिकतर बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं। ये बेवकूफी की बात है। आप ईमानदार हैं यही तो आपमें संतुलन आ जाता है, आप आनन्द में आ मजे की चीज़ है। सब बेइमान हैं और आप ईमानदार जाते हैं । शराब सिगरेट और हैं. ये बड़ी शान की चीज है । ये आपका गौरव है, जुआ बाज़ी, औरतों के चक्कर सब छूट जाते हैं। हमारे यहाँ लोग आए, थोड़े दिनों में देखा उनके पास बड़े ईमानदार की कोई दुनियां में पूछ नहीं। पूंछ काहे अच्छे रेडियोग्राम, ये वो। मैंने कहा ये कहाँ से को लगाने को चाहिए? इसकी क्या ज़रूरत है? अरे आए? कहने लगे अब तो हमारे यहाँ पैसे ही पैसे आप ईमानदार आदमी हैं दुनिया में लोग कहते हैं बरस रहे हैं। मैंने कहा 'कैसे? कहने लगे अब हम कि शास्त्री जी इतने ईमानदार थे कि जब मरे थे तो गांजा नहीं पीते हैं, LS.D. नहीं पीते, उसमें तो वे कर्जे अपने छोड़ गए। अब वो कर्जे छोड़ गए बहुत पैसा लगता है, अब हम शराब नहीं पीते। यही उनका गुण हो गया । देखिए सारी दुनिया कहने लगे अब हम कहीं कैबरे में भी नहीं जाते, इन्हीं का उनको गुण दे रही है कि उन्होंने debts डॉस में नहीं जाते, बस इसी में मज़ा आता है सब छोड़ दिए। अपने गुणों पर आदमी को आनन्द आता भारतीय रिकार्ड ले लेकर के बजाते रहते हैं । अब है, अपने गुण से वो प्लावित होता हैं। एक सती हिप्पी आपका ताज़ है उसके लिए आप कहते हैं कि कुछ आप सोचिए। घर में उनके शोभा आ गई, रौनक स्त्री है वो अपने सतीत्व और अपने पतिव्रत्य के आ गई, सब आनन्द से, सब लोग रह रहे हैं, मियां आनन्द में रहती है। अपने गुणों का आनन्द आता बीवी के झगड़े छूट गए, दूसरों की बीवियों के साथ है अपने मज़े का आनन्द आता है। आप कोई भागते नहीं अपनी बीवी को प्यार करते हैं, और शराबी को देखते हैं कि वो शराब पी रहा है तो बीवी भी ठिकाने से आ गई। सब आराम हो गया, आपको उस पर दया लगती है कि भई मैं तो आराम व्यवस्था हो गई, सब राम राज्य आ गया। उसमें से बैठा हूँ, ये कहाँ मरा जा रहा हैं? फिर ये नहीं खर्चे बड़े कम हो जाते हैं। एकदम खर्चे कम हो लगता कि ये शराब पी रहा है और मैं तो बिल्कुल जाते हैं। मनुष्य मौके पर पहुँचता है। जो कुछ ही पुराने ढंग का हूँ। मैं तो बिल्कुल पी नहीं पाता। 1 उसका जितना है Vibrations से देखता है। जो हीन भावना की जगह आदमी को ये लगने लगता में हैं कि ये आदमी पता नहीं कहाँ ये दयनीय दशा आदमी Vibrations में जीता है वो बहुत बड़ा संग्रह आ गया? उल्टी ही दशा आ जाती है। हँसी आने नहीं कर पाता। ज्यादा उसके पास चीज़ हो जाती है तो वह बाँटना शुरू कर देता है। संग्रह बहुत लगती है और बेवकूफी पर उसको आश्चर्य लगता ज्यादा नहीं करता, उसको बाँटने का मजा आता है जब ऐसी कोई बातें करता है तो उसको लगता है, उसको देने का मज़ा आता है। वो अपनी जो है कि ये कैसा बेवकूफ आदमी है ? कैसी बात कर Virtues जो Goodness हैं उसको Enjoy करते रहा है? अभी भी लोग मुझसे कहते हैं कि माताजी यहाँ तो ऐसा है कि अगर आप शराब नहीं पिओ तो 1. हैं। चो अगर सच बोलता हैं तो उसका मजा उठाता है। आपने बहुत से लोग देखे होंगे जो कहते हैं आपकी कोई इज्जत नहीं करता। मैंने कहा सच्ची 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-46.txt चैतन्य लहरी मई - जून, 2004 45 बात है? ऐसा तो कभी हो ही नहीं सकता। Cosmic Change आ जाएगा और आ ही रहा है। वास्तविक में ऐसा नहीं हो सकता। असल में वो उसको आप लोगों को देखना चाहिए और सोचना आपसे इसलिए भिड़ते हैं कि उनको लगता है कि चाहिए कि माँ ये कहती थीं, सच था । और आप मेरी दुम कटी है और इसकी क्यों नहीं कटी? अपनी स्थिति बनाएं इसी चीज़ में और आप ही इसीलिए आपके पीछे पड़ते हैं। लेकिन गर आप ये वहन करें इस शक्ति को और सारे संसार को भी 1 उनको ज्यादा न जताएं कि हम शराब नहीं पीते हैं दें उसके लिए आपको रुपया पैसा खर्च करना पर उल्टी तरह से बातें करें इसमें कृष्ण की नहीं, आपको कुछ भी देने का नहीं, सिर्फ ये कि Diplomacy करनी चाहिए कि ऐसे कहें मैं आजकल आप अपना Instrument ठीक कर लें। इस इतना खुशहाल हूँ बड़ा मजा आता है मुझे। घर में Instrument के लिए आपको ध्यान धारणा आदि आराम से खाता पीता हूँ, मुझे आजकल कोई करना पड़ता है। इसके लिए जो भी ये लोग तकलीफ नहीं। उन्होंने कहा क्यों भई? मैंने कहा Programme करते हैं दिल्ली में, जो भी इनके शराब छोड़ दी न तो वो पैसा सब बच गया । फिर पास सहूलियतें हैं, इनका नम्बर आप फिर से लिख इतना मजा आता है, बच्चों को लेकर मैं घूमता हूँ। लें, E-288 पंडारा रोड, आप वहाँ पर खबर लें E- बड़ी मेरी मजे की जिन्दगी है। वो फिर सोचेगा कि 288 पंडारा रोड, यहाँ उनसे बातचीत करें। Every अरे ये तरीके होते हैं। उससे आप दुनिया बदल Friday 6 to 7 वहाँ आप जब भी फोन करें वे सकते हैं। इस तरह से संसार में राम-राज्य आ बताएंगे इस बारे में । आज बहुत दिनों बाद एक जाएगा। सतयुग तो शुरु हो ही गया है, इसमें किताब भी प्रकाशित हो गई है वो भी आप ले लें। शंका ही नहीं है क्योंकि सतयुग के ही असर आ उसमें भी आप समझ लें कि कुण्डलिनी क्या चीज रहे हैं। कोई भी बात छिपने वाली नहीं। कार्टर हैं और उसमें क्या क्या घटित होता है और किस | तरह से ये कार्यान्वित होती है। इसमें कौन सी आ गई। कोई किसी की बात छिपने नहीं वाली, कौन सी विशेषता है। गर आप इस चीज़ को बिठा सब लोग सामने आ जाएंगे सबका पता हो जाएगा, लें अपने अन्दर समालें, इसमें रजें, तब मज़ा आएगा । कौन कहाँ है क्या है। कौन कितनी गहराई में है रे रजने वाली चीज़ है। अब वो समय आ गया है । सब प्रकाशित हो जाएगा। अब वो दिन नहीं रहे कि परमात्मा का साक्षात्, सत्य का साक्षात्, कुछ साहब ने एक छोटी सी बात कह दी, वो भी बाहर जो आप कोई भी चीज़ छिपा कर कर लें। एक आदमी लिख गए हैं उसका fullfilment, उसका दूसरे को खींचेगा, एक ईमानदार आदमी होगा Completion, उसकी पहचान, पूरी तरह से आप उसको लोग खींचना चाहेंगे तो वो खिंच नहीं चैतन्य लहरियों से कर सकते हैं क्योंकि आपके अन्दर एक नई चेतना जिसको वाइब्रेटरी चेतना कहते हैं, चैतन्यमय चेतना आ गई है, माने जो भी क्योंकि उसको समाज, जनता उसकी मदद पाएगा करेगी। ये सतयुग के लक्षण हैं और ये शुरु हो गए हैं। कोई भी आदमी बहुत गर दुष्ट हो वो भी चल नहीं पाएगा। सबका जिसे कहना चाहिए कि awareness है उसमें light आ गई है। उसके माध्यम से आप सिद्ध कर सकते हैं कि परमात्मा है 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-47.txt चैतन्य लहरी मई जून, 2004 46 या नहीं, परमात्मा की शक्ति क्या है. किस तरह से गई। ये पहचान हो गई कि हम एक ही माँ के बेटे चलती है, ये हमारे अन्दर चक्र हैं या नहीं, चक्रों में हैं। चाहे आप अमरीका चले जाओ। एक साहब देवी देवता हैं या नहीं। हम लोगों का किस तरह अमरीका गए उनका भी ऐसा ही हाल हुआ। से उत्थान होता है? किस तरह से हम दूसरों को उन्होंने कहा । was lost, वहाँ एक साहब मुझे मिले ठीक कर सकते हैं, किसमें क्या बीमारी है, अनेक तो उन्होंने कहा कि साहब आपके Vibration आ छोटी छोटी चीज़ों का आप निर्णय कर सकते हैं। रहे हैं। मुझे भी Vibration आ रहे हैं। कहने लगे जैसे कि एक साहब आये, कहने लगे माँ हम आप माताजी के भक्त हैं? कहने लगे हाँ। तो कहने बाजार गए तो समझ नहीं पाये कि ये चीज़ खरीदें लगे चलो भई, अपने चलें एक साथ। इसी तरह से या नहीं खरीदें। मैंने कहा आप वाइब्रेशन देख अनेक काम बनते जाते हैं। जहाँ जाइए वहाँ लेते। एक बार हम जा रहे थे तो किसी ने कहा कि Vibration से पता चलता है, ये है न। हरेक एकदम हमें वाइब्रेशन आए तो हमने सोचा कि माँ आदमी पहचान लेता है। कुत्ते बिल्लियाँ तक आपको कहीं आयी होंगी और पहुँच गए वहीं पे। कहने पहचान लेंगे कि आप Vibration वाले आदमी हैं। लगे देखो माँ हमको तो वाइब्रेशन आये, हम पहुँच छोटे छोटे बच्चे भी पहचान लेते हैं । बताते हैं कि गए यहाँ। स्टेशन पर एक दिन ये परेशान थे कि स्कूल में हमारे यहाँ पाँच लड़के हैं, वो हैं पार । अभी तक पहुँची नहीं माँ, तो उनके एक दम बाकी नहीं हैं। कौन पार है, कौन नहीं, फौरन पता वाइब्रेशन आए कि माँ तो पहुँच गईं। हम भी वही चल जाता है। जो पार है वो हमारा भाई हुआ या पहुँच गए। तो वाइब्रेशन जो हैं वो आपस में बोलते बहन हुई, क्योंकि माँ के ही तो सब बच्चे हैं। ये नई रहते हैं बताते रहते हैं, बराबर ठीक ठाक करते चीज़ अन्दर में आ जाती है और आप सोचो सुगन्ध | रहते हैं। इतने कमालात हैं, इतने कमालात हैं कि आपके कितने भाई बहन इंग्लैण्ड अमरीका में हैं। हम आपको बता नहीं सकते उदाहरण के लिए उस तरह के नहीं जैसे गुरुजी लोगों के होते हैं, साहब यहाँ दिल्ली में आए हमने आपसे बताया, उस तरह के नहीं, ये असली हैं। ये आपके लिए यहाँ आए और उन्होंने कहा कि हम तो जानते नहीं दौड़ेंगे आपके लिए सब काम करेंगे एक राहब कि दिल्ली में जाऐं कहाँ। तो उसने कहा कि माँ राहुरी से जा रहे थे, अपने बोरे ले जा रहे थे, चीनी को याद किया, इतने में सामने देखते ह कि एक के बोरे ले जा रहे थे, ऊपर से बरसात हो गई । साहब चले आ रहे हैं! तो उन्होंने कहा आप कौन उनके सब बोरे भीग गए। उन्होंने कहा कहीं रोकेंगे हैं? तो कहने लगे मैं तो माँ का भक्त हूँ मैं भी माँ तब होगा, नहीं तो हमारी तो सारी चीज़ बेकार हो का भक्त हूँ। उन्होंने उनके Vibration देखे, कहने लगे हम तो आपको जानते हैं। आपको माताजी निर्मला देवी ने जागृति दी है? कहने लगे हाँ। वहीं पर Vibrations आने लगे। उन्होंने कहा यहाँ गई। इतने में जाकर कहने लगे कि अच्छा चलो कहाँ जाएं? जहाँ रुक जाए वहीं रोको। जहाँ रोका काल आपने कैसे पहचाना? कहने लगे Vibration आ रहे हैं, आपके भी आ रहे हैं। चलो। दोनों की दोस्ती हो कहाँ Vibration? तो देखा। वहाँ रास्ते पर हमारा Board लगा है। कहने लगे यहाँ कहाँ हमारा 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_III.pdf-page-48.txt मई - जून 2004 चैतन्य लहरी 47 Board लगा है? अन्दर गए तो बंगले के अन्दर में आप अजातशत्रु हो जाते हैं। आपके शत्रु जो वहाँ पर हमारा Centre! उन्होंने कहा आओ भई, हैं आपके हट जाते हैं। Private वालों का भी तो उन्होंने कहा हम तो देखते देखते आए. भुलिया फायदा हो जाता है, लेकिन सब से बड़ी चीज़ है कि अपनी नाभि साफ रखनी पडती है। आपकी है। फिर उन्होंने हम से पूछा हाँ वो आए थे हमारे नाभि खराब है और आप चाहें कि लक्ष्मी जी में बैठी हुई हैं। जहाँ हम गए उन्होंने हमसे बताया जागृत पास। एक साहब बैठे हुए थे, सवेरे उठकर देखा तो नहीं हुई और नाभि साफ़ करने के लिए शुद्धता उसके बारे में सोचना पड़ता हैं। बोरे-बोरे सब सुखे हुए थे। फिर वो उठ गए, रखनी पड़ती है जितना पैसा था उतना मिल गया। लक्ष्मी जी की एक साहब थे हमारे यहाँ आए, कहने लगे हमारे कृपा तो बड़ी होती है। इसमें कोई शंका नहीं । यहाँ कोई आता ही नहीं, हमारी दुकान ही नहीं असली होती है। असली लक्ष्मी जी की कृपा होती चलती है। पूने की बात है। तो हमने कहा हम हमारे पास एक साहब आते थे, बहुत दूर आएंगे, हम उनकी दुकान पर गए उनको जागृति से, काल्वा से बड़े शरीफ आदमी परन्तु गरीब थे दी, तो दुकान ऐसे चलने लगी कि अब बहुत ही खेती का काम करने वाले आदमी। मैंने उनसे कहा Busy हो गए, अब वो बहुत बड़े आदमी हो गए, हर बार एक-एक हार लेकर आते हो? कितना अब वो हमें मिलने भी नहीं आते हर बार याद खर्चा पड़ता होगा? क्यों इतनी परेशानी करते हो, | एक टी करते हैं। अरे फिर इतना Time नहीं मिलता, ये Business हैं वो Business है । हम दो बार पूना हर बार नहीं करना चाहिए? कहने लगे माँ तुम्हारी कृपा से लक्ष्मी जी की कृपा हो गई कहने लगे गए मिलने भी नहीं आए । और जब पहली मर्तबा हमारा एक खेत था वैसे ही पड़ा रहता था । उसको हम वहाँ गए थे तो वो गरीब थे बेचारे, गरीब माने हम जोतते नहीं थे क्योंकि उसमे मिट्टी जरा उनका चलता नहीं था हमें याद है हम रिक्शा में चिकनी ज्यादा थी। कोई सिंधी आए, कहने लगे बैठकर गए, मोटर थी नहीं, रिक्शा में बैठकर गए. तुम्हारी मिट्टी बड़ी अच्छी है हमको दोगे? कहने तो पूरी समय रोते गए माँ आप चली जाओगी, लगे, किसलिए? कहने लगे ईंट बनाने के लिए। तो हमारा कैसा होगा? अब ये हाल है अब हम चहाँ ति उसको दस गुना दाम उसी मिट्टी का मिलता था, गए तो मिलने भी नहीं आए। तो ऐसे पैसे से भी खेत का खेत उसी तरह बना रहा। अब उसकी क्या फायदा? मतलब क्या है कि समझ में आ मिट्टी उठाकर ले जाने का दस गुना दाम मिला। जाता है, wisdom आ जाता है, संतुलन आ जाता कहने लगे आपकी कृपा से हुआ, सहजयोग के है, क्योंकि आप समझते हैं Vibrations में, आप बाद हुआ, कहने लगे हम कभी सोच भी नहीं सकते चाहते हैं ये चीज़ लें, फिर समझते हैं कि Vibrations थे ऐसे अनेक लोगों को फायदे हुए हैं । तो आपके ठीक नहीं हैं, छोड़ो। छूटते जाता है, आदमी Promotions भी हो जाते हैं, सरकारी नौकरों को साक्षी स्वरूप हो जाता है। देखता है नाटक सब। बहलाने के लिए कह रही हूँ। पहली चीज़ आज कितने लोग पार हुए. देखते हैं, हाथ ऐसे Promotion होना चाहिए. Promotion हो जाएगा, करें।