शुभ चैतन्य लहरी सी] ० ४० ू लि जुलाई - अगस्त, 2004 क TAT में इस अक आदि शक्ति पूजा, कमेला 06.06.2004 सानव का सृजन एवं लक्ष्य प्राप्ति 5 निर्मला - राहुरी 10 - 18.1.1980 20 आत्म साक्षात्कार का अर्थ, मुम्बई - 3.9.1973 ৪6 अपनी ओर चित्त रखें, मुम्बई 21.12.1975 47 परम पूज्य श्रीमाता जी का एक पत्र मई 1977 हर ा 3० चै त - य ल ह री प्रकाशक निर्मल इन्फोसिस एवं टेकनोलोजीज़ प्रा. लि. मुख्य कार्यालय : प्लाट न. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, होटल ग्रेस के पीछे, पाड रोड, कोठरुड पुणे 411 029 मुद्रक अमरनाथ प्रेस प्रा. लि. 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समस्या किस प्रकार की है । रहा है। परन्तु सबसे कठिन कार्य तो लोगों को परन्तु कुछ भी करने से पूर्व मैं यह कहना चाहूँगी अधिक अनुकूल बनाना तथा उनमें परस्पर सामंजस्य कि अभी तक हमारे सहजयोगी उस स्तर पर नहीं को बढ़ाना है। यह कार्य बहुत मुश्किल लगता है। पहुंचे हैं जहाँ वो इस एकरूपता, अपने हृदयों की यदि उनके अपने मित्र हों, उनकी अपनी शैली हो एकरूपता को समझ सकें। यह सभी कुछ अपने तो वे परस्पर बिल्कुल ठीक होते हैं। परन्तु उनमें अन्दर से आता है बाहर से नहीं। अतः सभी बाहु्य पूर्ण सामंजस्य बनाना, उन्हें परस्पर एकरूप करना, प्रयत्न व्यर्थ हैं। एक जीवन में तो बहुत ही कठिन कार्य हैं। अब समस्या यह है कि हमारे यहां अत्यन्त भले को धारण करना हैं। वो बनना है जो वास्तव में हम लोग हैं, सुन्दर आत्माएं हैं, परन्तु वो परस्पर उतने हैं। यह सभी कुछ मौजूद है । आपने तो बस वह एकरूप नहीं हैं जितना उन्हें होना चाहिए किस बनना है. वही बनना मात्र है उन लोगों के लिए तरह से इस समस्या का समाधान किया जाए? यह बात समझना कुछ कठिन है जिनके भिन्न-भिन्न मूल लक्ष्य, जिसके लिए हमने यह सब आरंभ किया नाक हैं, भिन्न चेहरे हैं, जिनका सभी कुछ भिन्न है, था-यह नवीन प्रकार की सूझबूझ, नई प्रकार की उनके लिए एकरूप होना कठिन है। परन्तु आप तो मर्मज्ञयता-का उदेश्य यह था कि हम हर व्यक्ति एकरूप हैं, आप एकरूप हैं। क्योंकि आपको इस में एकरूपता खोजना चाहते थे। अब आप लोगों बात का एहसास नहीं है इसलिए आप भिन्न प्रतीत को शुक्रगुज़ार होना है कि आप एकरूप हैं, अन्दर होते हैं। अतः मुझे आपसे एक बात बतानी है कि : से एक है, दूसरा कुछ भी नहीं। यह केवल एक है आप सब एक हैं। इस प्रकार से एक हैं कि और वह एक जब बोलता है या कोई कार्य करना चाहता है तो, आपको हैरानी होगी, सभी कुछ पूर्ण हैं, एक ही भावना हैं आप सबकी सूझबूझ प्रयत्नों को छोड़कर हमें अपने वास्तविक रूप आप ही सभी कुछ हैं। एक ही अन्तः प्रेरणा सामंजस्य से हो जाता है। यह सब एक रूप होता एक ही है है और एक ही प्रकार से कार्यान्वित होता है। इसमें कोई परिवर्तन नहीं होता और दोनों में कोई अन्तर आप मान लेते हैं कि कोई अन्य है, परन्तु वास्तव में नहीं होता। इसके बावजूद भी हमारे मस्तिष्क भटकते यह सम्बन्ध है आदि शक्ति से क्योंकि आप रहते हैं, सहजयोग के दृष्टिकोण से किसी महत्वहीन आदिशक्ति के अंग प्रत्यंग हैं जो भी कुछ व्यक्ति समस्या को लेकर भटकते रहते हैं। मुख्य समस्या करता रहे वह आदि शक्ति से अलग हो नहीं जो हमारे साथ है वो है हमारा यह महसूस सकता। आप उन्हीं से उत्पन्न हुए हैं और वही न करना कि हमें कोई समस्या ही नहीं है । हम समस्याओं से मुक्त हैं। हम सोचते हैं कि एक लगता है, जबकि आप लोग सोचते हैं कि यह समस्याएं हैं और हमें इन समस्याओं का समाधान भिन्न है यह सोच गलत है। इसका आप पर बहुत गलत प्रभाव पड़ता है और ऐसा नहीं है। केवल एक है, एक ही सम्बन्ध, और आपका मार्गदर्शन कर रही हैं। मुझे तो सभी कुछ जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2004 मैं सोचती हैँ कि लोग सहजयोगी हैं, परन्तु वह मैं जो भी कहती हैँ वह प्रमाणित होना चाहिए अन्यथा आप उसे क्यों स्वीकार करेंगे। मैं स्वयं सहजयोगी नहीं हैं। वे सहजयोगी नहीं हैं, सहजयोगी आपसे एक रूप हूँ और सदैव आप लोगों के साथ बनने का प्रयत्न कर रहे हैं। इसके विपरीत उन्हें वैसी ही रहूँगी। मेरे लिए कोई अन्तर नहीं हैं । यह इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि वे सहजयोगी प्रवृत्ति यदि थोड़ी सी बदल जाए तो आप भी सभी हैं इसके अतिरिक्त उन्हें कुछ और नहीं बनना। के बीच एकरूपता को देखेंगे और तुरन्त भिन्नता के तब और कोई समस्या न रहेगी। हमें यह जानना विचार समाप्त हो जाएंगे। जिस प्रकार आप एक दूसरे को समझते हैं उस कोई अज्ञानता आवश्यक नहीं है। ऐसा जब घटित पर अत्यन्त आश्चर्य होता है। बिना एक दूसरे को हो जाएगा तो विश्व की सभी समस्याएं बिना किसी ठीक से समझे आप कुछ प्राप्त नहीं कर सकते। कठिनाई के हल हो जाएंगी। यह आवश्यक है, ठीक है और सत्य है। सत्य बहुत समय पूर्व आरंभ हुआ था। उससे बहुत समय पूर्व एक ऐसी शक्ति की पूजा कर रहे हैं जो कभी जब किसी भी मनुष्य ने सत्य की खोज के विषय परिवर्तित नहीं हुई, जिसमें कभी परिवर्तन नहीं में सोचा था, मनुष्य के बहुत सारी असत्य चीजों में आया, जो अपनी वास्वतविक स्थिति में रही, उस फंसने के कारण सत्य लुप्त हो गया। सत्य को इतना आसानी से स्वीकार नहीं किया भी वैसी की वैसी है। ऐसी पूजा में कोई क्या कह जाता जितनी आसानी से असत्य को। क्यों? क्योंकि सकता है? कुछ नहीं। स्वयं से एकरूप हो जाएं। हम असत्य पर खड़े हैं। हमारी सारी सूझबूझ हमें अपने आप से एक रूप होना है, वातावरण या असत्य है। इस सारी सूझबूझ को बदल कर हमें मानसिक हलचल में खो नहीं जाना। क्योंकि यह सत्य पर लाना होगा। यह कार्य कठिन नहीं है ऐसा समय है जब मस्तिष्क चलने लगता है और क्योंकि हम सत्य ही हैं। हम सत्य है। सत्य, जो जब यह चलने लगता है तो इसका नियंत्रण अपने हम हैं, बनना क्यों कठिन होना चाहिए? यह कार्य पर समाप्त हो जाता है, उसी तरह से जैसे सॉप कठिन नहीं होना चाहिए। परन्तु ऐसा होता है। जब तक अपने बिल में बना रहता है तो उसे कोई इसका अर्थ यह है कि हमारे अन्दर अवश्य कोई खतरा नहीं रहता, परन्तु ज्योंही बिल से निकलकर कमी है जिसे हमने खोज निकालना है। यह कमी वह इधर उधर घूमना शुरु करता है तभी खतरे का यह है कि हम स्वयं का सामना नहीं कर सकते। आरम्भ हो जाता है। इसी प्रकार से हमें यह दूसरों का सामना करते हैं अपना नहीं। स्वयं को समझना है कि हमारा मस्तिष्क अत्यन्त अत्यन्त कभी नहीं देखते। हम यह नहीं जानते कि हमारी जटिल है और इसे गलत दिशाओं में नहीं जाना स्थिति क्या है। यह दर्शाने के लिए आपको एक माँ चाहिए। उसके लिए हमें आदिशक्ति की पूजा की आवश्यकता थी। इस प्रकार से आपको यह करनी होगी क्योंकि हमें आदिशक्ति द्वारा दिखाए बताने के लिए कि आपके अन्दर क्या समस्या है, गए पथ पर चलने का प्रयत्न करना चाहिए। हमें माँ को (आदिरशक्ति) पृथ्वी पर अवतरित होना पड़ा। स्वयं को आद्य (Primordial ) बनाए रखना है। हमें इस सिद्धान्त का अभ्यास किया जाना चाहिए। तब अपने आद्य स्वरूप आत्मा को कार्यान्वित करना यह जानकर आप हैरान होंगे कि आपमें अपने बारे होगा स्वयं को परिवर्तित नहीं करना होगा हम में और इनके बारे में कितना ज्ञान है। कुछ भी आत्म स्वरूप ही हैं और इसी को हमें प्राप्त करना विशेष नहीं, न ही कुछ असाधारण है। आपमें केवल है-स्वयं से पूर्ण एक रूपता। स्वयं को स्वीकार करने का क्षेम होना चाहिए। है कि हम एक हैं, बिल्कुल समान। किसी प्रकार की आज की पूजा अत्यन्त विशिष्ट है क्योंकि आप मे स्थिति में जिसमें उसने जन्म लिया और जो आज परमात्मा आपको धन्य करे। एवं लक्ष्य प्राप्ति मानव का सृजन फरवरी - 1979 गाँधी भवन - दिल्ली विश्वविद्यालय (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) (हिन्दी रूपान्तर) इस प्रवचन में मैं सृजन के विषय में बताऊंगी जाएंगे तो लाल और सफेद गोलियों की व्यवस्था और इसके लिए मुझे उस समय तक वापिस जाना पूरी तरह से अव्यवस्थित हो जाएगी। इन्हें वापिस होगा जब मानव अमीबा के रूप में थुा। कोई भी अपनी असली अवस्था में लाने के लिए व्यक्ति को खुले मस्तिष्क का वैज्ञानिक इस बात को स्वय देख कितनी बार वह गोलियां हिलनी पड़ेगी, इसके लिए LIM सकता है कि ये ब्रह्माण्ड अत्यन्त सुन्दर एवं उन्होंने एक फार्मूला खोज लिया है। इस फार्मूले के है, सुव्यवस्थित है। इसे अत्यन्त सहजतापूर्वक चलाया हिसाब से मानव का सृजन यदि संयोग से हुआ गया तथा वह इस परिणाम तक भी पहुँच सकता है जो कि असंभव लगता है क्योंकि मानव के सृजन कि इस ब्रह्माण्ड के कारण ही पृथ्वी माँ का सृजन में लगाया गया समय इतना कम है कि इस समय में तो मुश्किल से किसी जीवन्त कोषाणु का सृजन हुआ। लगभग पचास-लाख वर्ष पूर्व गैसों की गर्मी से ही हो पाता। भरी हुई यह पृथ्वी माँ ठण्डी हुई। किस प्रकार इसमें शीतलता आई? वैज्ञानिक इस बात को ऐसे और उसके अन्दर इतनी सुन्दर व्यवस्था की गई ही स्वीकार कर लेते हैं और अपनी सीमाओं के कि इस बात पर विश्वास करना कठिन है कि इस कारण इसके शीतल होने की वजह नहीं खोज सारे नाटक के पीछे कोई मदारी नहीं है। कोई सकते। क्यों ये घटना घटी? कैसे इसका आरम्भ वैज्ञानिक तो अवश्य होगा जिसने यह परिणाम इतने जटिल मानव का सृजन क्यों किया गया 1. प्राप्त किए। ये सारे कार्य हो पाने तो किसी विशेष हुआ? ये कहना बहुत आसान है के परमात्मा नाम की कोई चीज नहीं है परन्तु बिना परमात्मा के व्यक्ति से ही सम्भव हैं। कहने से अभिप्राय यह है अस्तित्व को स्वीकार किए बहुत सी चीजों की कि बिना किसी व्यवस्था, सोच विचार, योजना एवं व्याख्या कर पाना अत्यन्त कठिन है। उदाहरण के शक्तिशाली व्यक्तित्व के. जब तक सर्वशक्तिमान | रूप में इस ब्रह्माण्ड में मानव सृजन पर लगा समय परमात्मा इसके पीछे न होते, ये कार्य संभव न इतना कम है कि कोई भी अन्य चीज इसकी होता । जिस प्रकार विज्ञान की सीमाएं हैं उनके होते व्याख्या नहीं कर सकती। संयोग के नियम का यदि आप उपयोग करें तो हुए निःसन्देह इस बात का पता नहीं लगा सकते हम पता लगा सकते हैं कि कितनी बार कम कि किस प्रकार इस कार्य में तेजी आई और यह परिवर्तन एवं संयोग (Permutations and घटित हुआ। परन्तु हम देख सकते हैं कि विज्ञान combinations) को एक छोटे से कोषाणु का केक्षेत्र में हमने सृजन करने के लिए कार्य करना पड़ता है। उदाहरण ऐसे तरीके से जो शायद विकास प्रक्रिया की गति के रूप में किसी परखनली ( Test Tube ) में आपके को तेज करने के लिए उपयोग किया गया था । पास यदि पचास लाल गोलियां है और पचास सफेद तथा उनको इस प्रकार रखा गया है कि इस बात पर बिल्कुल विश्वास न किया होता कि लाल गोलियाँ नीचे की तह में हैं और सफेद उपर हम चॉद को भी सकिय कर सकते हैं। किसी ने की तह में तो आप यदि परखनली को हिलाते चले अगर ऐसा कहा होता तो लोग उस पर हँसे होते। कुछ उपलब्धियां प्राप्त की हैं, एक ति युवा विद्यार्थी थी तब मैंने पाठशाला में जब में जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2004 आज भी यदि आप मेरी दादी माँ को यह बात और धमाका करती है। अतः कुण्डलिनी हर चीज में बताएं तो उस पर वह विश्वास नहीं करेगी, सोचेगी विद्यमान है परन्तु मानव में यह अधिकतम प्रभावशाली कि आप कोई कहानी सुना रहे हैं। परन्तु हम चाँद सर्वोत्तम तथा उच्चतम स्थिति में है । यही वह शक्ति पर पहुँच चुके हैं इस बात में कोई सन्देह नहीं है। है जो सबमें हैं और हर चीज को विकसित करती इस प्रणाली में हमने एक के अन्दर एक पाँच है-कार्बन से अमीबा अवस्था तक, अमीबा से पशु कैप्सूल लगाए। सर्वप्रथम सबसे नीचे वाला कैप्सूल अवस्था तक और पशु से मानव अवस्था तक। पंच फटकर धमाका करता है और बाकी के चार कैप्सूलों तत्वों में भी कुण्डलिनी विद्यमान है क्योंकि पंचतत्वों को गति प्रदान करता है। दूसरा कैप्सूल जब फटता का भी विकास होता है। हम ये नहीं जानते कि है तो पहले कैप्सूल की अपेक्षा कई गुना गति प्रदान किस प्रकार इनका विकास होता है परन्तु प्रकृति में करता है। गति इतनी अधिक बढ़ती है कि अचानक ये घटित होता है कि तत्व अपना आकार बदलते हैं हमें लगता है कि पहले कैप्सूल द्वारा दी गई गति और भिन्न रूप धारण कर लेते हैं। से कई गुनी हो गई है। तीसरा कैप्सूल फटने पर यह गति को और अधिक बढ़ा देता है। इसी प्रकार क्योंकि धटित होने वाले परिवर्तन की संख्या को चौथा कैप्सूल फटता है और फिर पाँचवां जिसके मापने का हमारे पास कोई तरीका नहीं है। जीवों में अन्दर अन्तरिक्षयान होता है। अन्दर बनी प्रणाली भी परिवर्तन होता है। मछलियाँ परिवर्तित होकर के माध्यम से जब एक के बाद एक धमाका होता है रेंगने वाले जीवों का आकार ले लेती है और रेंगने उसी से हमें अन्तरिक्ष यान के लिए अत्यन्त उच्च वाले जीव स्तनधारी पशु बन जाते हैं, से गति प्राप्त करनी होती है। बिना अपनी उत्कान्ति के बारे में जाने यह बन्दर बन जाते है और तत्पश्चात् मानव में परिवर्तित विचार हमें अपने अचेतन (unconscious) से प्राप्त हो जाते हैं। यह सब घटित होता है। इस प्रक्रिया इस परिवर्तन की हमें कोई समझ नहीं है। बहुत स्तनधारी पशु नर वानरों में परिवर्तित हो जाते हैं हुए हैं। हम ये जान गए हैं कि यह किस प्रकार में कितने जीव नष्ट हो जाते हैं, कितने परिवर्तित घटित हुआ परन्तु इन दोनों को हम एक दूसरे से होते हैं, इसका हिसाब किताब किसी ने नहीं रखा। जोड़ नहीं सकते। अतः इसी प्रकार से मानव का सृजन भी अमीबा से किया गया और अमीबा का करते हैं। संभवतः बहुत से पशुओं ने मानव जन्म सृजन सभी तत्वों से किया गया उसी प्रकार से लिया है। इसका प्रभाव आप देख सकते हैं। लोगों हम कह सकते हैं कि हमारा पुनर्सृजन भी पाँच के आचरण को देखकर आप विश्वस्त हो सकते हैं कैप्सूलों से किया गया पहला कैप्सूल शारीरिक कि बहुत से पशुओं ने मानव रूप धारण किया है है, हमारा शारीरिक अस्तित्व, शरीर रूपी कैप्सूल के और मानव रूप में उन्हें विकास एवं प्रशिक्षण प्रक्रिया अन्दर भावनात्मक अस्तित्व (Emotional Being) में से गुजरना होगा, तभी वे इस योग्य बनेंगे कि को रखा गया, भावनात्मक अस्तित्व के अन्दर मानव जीवन के मूल्य को समझ सकें आध्यात्मिक अस्तित्व रखा गया और आध्यात्मिक अपने अन्दर ही विकास की ओर बढ़ने लगता है। अस्तित्व के अन्दर आत्मा या हमारे चित्त को रखा आज हम जनसंख्या समस्या के विषय में बात मानव तो चौदह हजार वर्षों से, जैसे माना जाता है, हम मानव हैं। पूर्ण स्वतंत्रता में हम अपने अंदर विकसित गया। हम कह सकते हैं कि कुण्डलिनी ही फटती है हो रहे हैं । मानव ही एकमात्र वो जीव हैं जिन्हें चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 स्वयं विकसित होने की स्वतंत्रता प्राप्त है और इस (Telegram) भेजे थे आज उसने बताया कि एक विकास से वे भले-बुरे के भेद को समझ सकते हैं। महीने के बाद उसे केवल एक तार मिला। यह स्वतंत्रता दी गई है क्योंकि स्वतंत्रता के बिना आप आगे नहीं बढ़ सकते। उदाहरण के रूप में विकसित करने की और सृष्टि के सृजनकर्ता तथा जब आप स्कूल में पढ़ने लगते हैं तो आपको दो उसकी शक्तियों को प्राप्त करने की स्वतंत्रता दी गुणा दस बराबर है बीस बताया जाता है। इस गई है। यही कारण है कि केवल मानव में ही पहाड़े को आप कंठस्थ कर लेते हैं, ये प्रश्न नहीं करते कि ऐसा क्यों है? इसमें आगे बढ़ते ही चले शक्ति और कुण्डलिनी सभी जीव - जन्तुओं में भी जाते हैं। परन्तु जब आप शिक्षा के उच्च स्तर परविद्यमान है परन्तु केवल मनुष्य में ही इस शक्ति को आते हैं स्नातक या स्नातकोत्तर स्तर पर, तो सुप्तावस्था में त्रिकोणाकार अस्थि में रखा गया है आपको इस विषय पर लिखने की स्वतंत्रता होती है ताकि अज्ञात क्षेत्र (unknown)में उसकी उत्क्रान्ति कि दो गुणा दस बराबर बीस क्यों होता है? ये को यह अन्तिम ऊर्जा प्रदान कर सके। यह इसलिए होता है कि आप अब विकास की एक विशेष अवस्था तक पहुँच चुके हैं। इस अवस्था में आपको स्वयं खोज करने की स्वतंत्रता दी जाती पहले किसका सृजन किया गया? इसके विषय में है। इस तरह से आपका विकास होता है और यदि मैं बताऊंगी तो यह बात अत्यन्त दिलचस्प विकसित होकर आप शिक्षार्थियों को शिक्षा दे होगी और हो सकता है कि एक वैज्ञानिक के सकते हैं। इस प्रकार से सारा विकास कार्य हुआ मस्तिष्क के लिए यह बात सुखद न हो। जो बात अभी तक आपने अमीबा से लेकर इस अवस्था मैं बता रही हूँ ये विज्ञान से बहुत ऊँची है कि पृथ्वी तक अपनी उत्कान्ति को महसूस नहीं किया है पर सृजन से पूर्व पावित्र्य (पावनता) का सृजन आपने ये नहीं समझा कि किस प्रकार आप मानव किया गया श्री गणेश पावित्र्य के देवता. हैं और अवस्था तक पहुँचे। ये सब आपने स्वीकार भर कर अपने सृजन की सुरक्षा के लिए परमात्मा ने सर्वप्रथम लिया है। अपनी आँखों को यदि आप देखें, तो ये इस पावित्र्य का सृजन किया, इस पवित्र वातावरण कितनी जटिल हैं? ये इतने जटिल अंग हैं कि आप यदि इनका अध्ययन करने लगेंगे तो इनकी रचना उन्होंने पावित्र्य का सृजन किया क्योंकि बिना को देखकर दंग रह जाएंगे। आप यदि मेरी उंगली इसके कोई भी चीज कार्यान्वित न हो पाती। आप में सुई चुभोएं तो तुरन्त इसकी प्रतिक्रिया मेरी इस बात को सोचें कि कोई एक सागर यदि केवल ऑँखों में आ जाएगी। यह इतना अच्छी तरह से दस फुट भी गहरा होता तो पृथ्वी का सारा सन्तुलन बनाया गया है, इतनी अच्छी इसकी व्यवस्था की बिगड़ गया होता कल्पना करें कि पृथ्वी माँ की गई है, यह इतना तीव्र कार्य करता है इतना कुशल गति कितनी तेज है! इतनी तीव्र गति से यह सूर्य है कि मानव शरीररूपी इस प्रकार की संस्था के के चहुँ ओर अत्यन्त सन्तुलित ढंग से घूमती है । चमत्कार को देखकर आश्चर्यचकित रह जाता है! इसकी परिक्रमा गोल नहीं होती, यह एक विशेष परन्तु आप देखें कि मानव क्या हैं? वे अकुशलता प्रकार की होती है इस बात को आप जानते हैं। की प्रतिमूर्ति हैं। मैंनें अपनी पुत्री को चार तार मानव को समझने की, अपनी कुशलता को कुण्डलिनी स्थापित की गई है यद्यपि कुण्डलिनी कुण्डलिनी विद्यमान है, इसका अस्तित्व है । परन्तु आरम्भ में इस सारे सृजन से पूर्व सबसे का सृजन किया पूर्ण सृष्टि की सुरक्षा के लिए है। आपके लिए वह दिन और रात बनाती है-कार्य जुलाई चैतन्य लहरी ৪ अगस्त, 2004 करने के लिए दिन और आराम करने के लिए रात। पड़ती है। सत्य की खोज के लिए किसी को किस प्रकार स्वयं पृथ्वी माँ ने आपके लिए इतना सम्मोहित नहीं किया जा सकता क्योंकि सम्मोहित सुन्दर वातावरण बनाया है, इतना सन्तुलन बनाया किया गया व्यक्ति तो सत्य को समझ ही नहीं है और जो तापमान उसे दिया गया था उसे शीतल सकता। अपनी पूर्ण चेतना और गरिमा में आपको किया है! यह सारा कार्य सर्वप्रथम सृजित पावनता सत्य का ज्ञान प्राप्त करना है। आपके सम्मुख की शक्ति से हो पाया है। अब अपनी मूर्खता के कारण मानव इस पावित्र्य पाएंगे। यह आत्मसाक्षात्कार पाखण्डी लोगों द्वारा को चुनौती दे रहा है। वो सोचता है कि वह किया गया सम्मोहन नहीं है। यह घटना है, परमात्मा को चुनौती दे सकता है यह उसकी वास्तवीकरण है जिसके द्वारा चेतना की अवस्था में चेतनता का चिन्ह है। मानव यदि उस बुलन्दी तक पहुंचते हैं और जो आपके अन्दर सामूहिक चेतना भाषण देने मात्र से आप सत्य को नहीं समझ के गणित का विकास करती है। यह चेतना अवस्था उन्नत हो पाता जहाँ हर चीज में वह परमात्मा की धड़कन को महसूस कर सकता तो उसने परमात्मा आपके अन्दर विकसित होती है और यही सच्चा को चुनौती कभी न दी होती। परन्तु पूर्णता की उस वास्तवीकरण है। अवस्था को पाने से पूर्व ही मानव ने परमात्मा की बात करनी शुरु कर दी। जो भी व्यक्ति परमात्मा जब इस मानव अस्तित्व के कैप्सूल में धमाका हुआ को चुनौती देने की सोचता है वह ऐसा मूर्ख है तो आपको बहुत सी उपलब्धियां प्राप्त हुईं। उदाहरण जिसे पूर्णता प्राप्त करने की कोई इच्छा नहीं है, वह के रूप में आपकी चेतना पशुओं की चेतना से कहीं तो केवल बड़ी-बड़ी बातें करना चाहता है। पावनता की सर्वव्यापी शक्ति है जो सुधारती है, विश्वविद्यालय नहीं हो सकते। पशु बाग-बगीचों पथ प्रदर्शन करती है. आयोजन करती है, प्रेम को नहीं समझते, गन्दगी को नहीं समझते, सौन्दर्य करती है तथा आपके अन्दर की सुप्त शक्ति की को नहीं समझते। ये सारा ज्ञान आपमें आ गया है। जागृति के लिए पूर्ण व्यवस्था करती है। अतः ज्योंही आप मानव बने इस सारे ज्ञान की अभिव्यक्ति व्यक्ति को समझना चाहिए कि कुण्डलिनी की आपके अन्तस की गहनता में हो गई। जागृति का घटित होना बहुत महत्वपूर्ण घटना है। कुण्डलिनी जागृति ही एकमात्र मार्ग है जिसके दिव्य मानव बनते हैं तो अपने अन्दर आपको द्वारा आप अपनी आत्मा को पहचान सकते हैं। अपनी पहचान हो जाती है और अन्य लोगों को मानव के इतिहास में यह महत्वपूर्णतम घटना है। समझने की चेतना आपमें आ जाती है यही यह कार्य उद्यान की तैयारी करने जैसा है जिसमें सामूहिक चेतना है। यही सहजयोग है। सहजयोग आप पेड़ लगाते हैं, पेड़ों पर फूल आते हैं और अब प्रकृति की प्रणाली है। जिस प्रकार यह सृजन हुआ वह आप क्योंकि मानव हैं अतः आप जानते हैं कि 1. अधिक है। आपके विश्वविद्यालय हैं। पशुओं के अतः कुण्डलिनी जागृति द्वारा ज्योंही आप भी सहज है। 'सह' का अर्थ है साथ और 'ज' अर्थात वह समय आ गया है जब फल भी लगने चाहिएं। ये बहुत महत्वपूर्ण घटना है जिसने घटित होना है। जन्मा हुआ। सहज का अर्थ है साथ जन्मा हुआ। सभी सभी सत्य साधक इसके विषय में जान जाएंगें। सत्य साधना में कठिनाई यह है कि अपने अन्तस में विनम्रता से परिपूर्ण होकर साधना करनी ऐसा तत्व होता है जो अकुंरित होता है। बीज के कुछ आपके अन्दर एक बीज की तरह से बना हुआ है। बीज को यदि आप ध्यान से देखें तो इसमें एक चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2004 अन्दर उस पेड़ की पूरी शक्ति होती है जो इसे भाग हमारे शारीरिक अस्तित्व को देखता है और बनना है, सभी कुछ इसमें निहित होता है। इसी उसमें से भी वैज्ञानिक कितना कुछ जानता है। प्रकार से मानव के बीज के अन्दर भी वो सारी आपको आश्चर्य होगा कि ज्ञान यदि सागर है तो तस्वीर होती है जो उसे बनना है। सारी यान्त्रिकता उसके अन्दर स्थापित कर दी गई होती है। आपके अस्तित्व की अन्तर्धाराओं का वर्णन मैं अस्तित्व उसमें खो देना होगा केवल अपने प्रयत्न आपके सम्मुख करूंगी। मानव के अन्दर कौन सी से बूँद सागर नहीं बन सकती। सागर को बूँद अपने शक्तियां बनाई गई हैं? मैं केवल इतना कहना अन्दर विलीन करनी होगी। सागर को यह कार्य चाहूँगी कि आप कम्प्यूटर की तरह से हैं. कम्प्यूटर करना होगा मानव को यदि पूर्ण सन्तुष्टि प्राप्त की तरह से आपको बनाया गया है आपने केवल करनी है तो परमात्मा की सुन्दर सृष्टि की अभिव्यक्ति स्वयं को स्रोत से जोड़ना है। स्रोत से जुड़ते ही मानव के अन्दर होती है। मानव को चाहिए कि पूर्ण कम्प्यूटर स्वतः कार्य करने लगता है। परन्तु मशीन सन्तुष्टि प्राप्त करे। पूर्ण सन्तुष्टि प्राप्त किए बिना से जुड़ने का यही तरीका है। आप मानव हैं आप वह अपने किसी भी प्रयत्न में पूर्णता को नहीं पा समझते हैं कि प्रेम क्या है। एक वैज्ञानिक से मैं प्रेम सकता। जब तक मानव इस अवस्था को नहीं पा के विषय में बात नहीं कर सकती। परमेश्वरी लेता परमात्मा स्वयं भी चैन से नहीं बैठेंगे, क्योंकि पावनता के विषय में मैं बात कर रही हूँ। परमात्मा कौन चाहेगा कि अपनी ही सृष्टि को नष्ट कर दे? के प्रेम के बारे में, जिसने आपका सृजन किया है हजारों हज़ार वर्षों में सन्तुष्टि प्राप्ति की यह अवस्था और जो चाहता है कि आप उस (परमात्मा) को आई है। यह कार्य यदि मेरे द्वारा ही होना है, मैने पहचानो। विज्ञान के माध्यम से आप ऐसा नहीं कर ही यदि आपकी कुण्डलिनी को उठाना है तो सकते। वैज्ञानिक केवल बूँद मात्र जानता है। सागर को समझने के लिए बूंद को सागर में गिरकर अपना 1. आपको इस पर एतराज क्यों होना चाहिए? परमात्मा हर वैज्ञानिक भी अवश्य किसी न किसी से प्रेम का शुक्र है कि मैं वैज्ञानिक नहीं बनी अन्यथा मैंने करता होगा, अपने बच्चों से शायद उसे प्रेम न हो. भी एटम बम बना दिया होता। परमात्मा की कृपा से तो शायद अपने कुत्ते से प्रेम करता होगा। हो सकता है वो फूलों से प्रेम करता हो। यदि फूलों से बातें सुनते सुनते मैं पागल हो गई होती। परमात्मा नहीं तो हो सकता हो अपने घोड़ों से प्रेम करता की धन्यवादी हूँ कि मुझे राजनीतिज्ञ नहीं बनाया। मैं मनोवैज्ञानिक नहीं बनी नहीं तो पागल लोगों की हो। परन्तु वह यह अवश्य जानता है कि प्रेम क्या है और यदि वह समझता है कि प्रेम चिंगारी क्या हूँ। मैं तो बस आपकी माँ हूँ और सदैव आपके है, ये कहाँ से आती है तो उसकी समझ में आ सर्वोच्च हित के लिए चिन्तित रहती हूँ, उथले लाभ जाएगा कि जिस प्रेम की बात मैं कर रही हूँ वह के लिए नहीं । इन सारी शक्तियों का सामंजस्य है। विज्ञान एक छोटे से अंश को देखता है। मैं भी आपको यह बताऊंगी कि इस शक्ति का कौन सा परमात्मा की कृपा से मैं इनमें से कुछ भी नहीं परमात्मा आप सब पर कृपा करें (महाअवतार 1980 से उद्धृत) 'निर्मला* 18 जनवरी 1980 को राहुरी में मराठी प्रवचन का हिन्दी रूपान्तर जिसमें परमपूज्य श्री माताजी ने स्वतः पूर्ण मन्त्र स्वनाम 'निर्मला (निः+म+ला) में निहित गूढ़ माव की विश्लेषणपूर्ण विशद व्याख्या की है। यह हर्ष की बात है कि सब सहजयोगी एक विचार आये तो कहिये यह कुछ नहीं है, यह सब साथ एकत्रित हुए हैं। जब हम इस भाँति एकत्रित होते हैं तब हम परस्पर हित की अनेक बातों पर भ्रम है, मिथ्या है दूसरा विचार आये तो कहिये यह कुछ नहीं है। आपको बारम्बार यह भाव लाना है। 1 विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं और उन तब आप 'निः' शब्द का अर्थ समझ पायेंगे। विषयों पर अनेक सूक्ष्म बातें एक दूसरे को बता सकते हैं। दो-एक दिन पहले मैंने अपको को सम्पूर्णतः भ्रम मात्र नहीं है, इस दृश्यमान के परे भी स्वच्छ, दोष-मुक्त करने की विधि बताई थी। स्वयं कुछ है। किन्तु अपने जन्मों के इतने बहुमूल्य वर्ष आपकी माँ का नाम ही निर्मला है और इसमें अनेक हमने वृथा गंवा दिये हैं कि हम वे वस्तुएँ जिनका शक्तियाँ है। आपको जो कुछ माया-रूप दिखता है यह वास्तव में अस्तित्व नहीं है उनको महत्व देते हैं और इस नाम में पहला शब्द 'निः' है जिसका अर्थ है इस भाँति हमने पापों के ढेर इकट्ठे कर लिये हैं। "नहीं। कोई वस्तु जिसका वास्तव में अस्तित्व नहीं इन सब वस्तुओं में हमने आनन्द-लाभ करने का है किन्तु जिसका अस्तित्व प्रतीत होता है, उसे प्रयास किया है, किन्तु वास्तव में इनमें से हमें कुछ महामाया (भ्रम) कहते हैं। सम्पूर्ण विश्व इसी प्रकार भी आनन्द प्राप्त नहीं हुआ। तत्व रूप से ये सब है। यह दिखता है किन्तु वास्तव में नहीं है यदि कुछ नहीं है । हम इसमें तल्लीन हो जाते हैं तो प्रतीत होता है यही सब कुछ है। तब हमें लगता है हमारी आर्थिक "कुछ नहीं है केवल ब्रह्म ही सत्य है, अन्य सब अवस्था अच्छी नहीं है, सामाजिक व पारिवारिक मिथ्या है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आपको यह स्थितियाँ असन्तोषजनक हैं। हमारे चारों ओर सम्पूर्ण दृष्टिकोण अपनाना है। तब आप सहज योग को जो समझेंगे। साक्षात्कार के पश्चात् अनेक सहज योगियों अतः दृष्टिकोण यह होना चाहिये कि यह सब | भी है सब खराब है। हम किसी चीज से कुछ का यह होता है कि वे सोचते हैं कि हमें सिद्धि सन्तुष्ट नहीं हैं। समुद्र सतह पर जल अत्यन्त गदला होता है। (साक्षात्कार) प्राप्त है, हमें पूज्य माताजी का उसके ऊपर अनेक वस्तुएं तैरती रहती हैं। किन्तु आशीर्वाद प्राप्त है तो हम समृद्ध क्यों नहीं यदि हम उसकी गहराई में जायें तो देखेंगे कि हैं? उन के विचार में परमात्मा का अर्थ है उसके भीतर कितना सौंदर्य, कितनी धन-सम्पदा समृद्धि । यदि आप विचार करें कि क्या कारण है और कितनी शक्ति है। तब हम भूल जायेंगे कि कि साक्षात्कार के पश्चात् भी आपका 'स्वभाव' नहीं 1 बदला, तब आप देखेंगे कि आपकी आत्मा का सतह का जल मैला है। कहने का अभिप्राय है कि हम चारों ओर जो स्वरूप नहीं बदला। देखिये, 'स्व' अर्थात् आत्मा देखते हैं वह सब माया (भ्रम) है। सर्वप्रथम आप को स्मरण रखना चाहिये कि यह सब जो दिखता है शब्द कितना सुन्दर है। बताइये, क्या आपने अपनी और 'भाव' अर्थात् स्वरूप के योग से बना 'स्वभाव' यह कुछ नहीं है। यदि आपको "निः' भावना अपने आत्मा का स्वरूप प्राप्त कर लिया है? यदि आप अन्दर प्रतिष्ठित करना है तो जब भी आपके मन में 'आत्मा' में स्थित हो गये तो आप देखेंगे कि भीतर चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 11 इतना सौंदर्य है कि आपको बाह्य सब कुछ नाटक जाते हैं कि ये सज्जन व्यक्ति कैसे इतने क्रोध- सा प्रतीत होगा जब तक आपकी यह साक्षी ग्रस्त हो गये! वे अपनी निजी मानसिक शन्ति भी स्थिति जागृत नहीं होती, आपने निः' शब्द का खो बैठते हैं । उनका सम्पूर्ण आन्तरिक सौंदर्य अनुसरण नहीं किया, उसके अनुसार आचरण नहीं समाप्त हो जाता है। अतः वांछनीय यही है कि हम किया यदि आप जानते हैं कि 'निः' आपके भीतर सदैव निर्विचार रहें। अपने मस्तिक से छोटे विचारों प्रतिष्ठित नहीं हुआ है, फिर भी आप भावुक, अहकारी, पर प्रतिबन्ध लगा दें। तब आप स्वतः ही मध्य में हठी अथवा विनम्र व निराश होते रहते हैं तो इन रहेंगे। पराकाष्ठाओं (असीम अवस्थाओं) में स्थिति का 1 आपको समस्त प्रयत्न करने चाहियें अब आप कारण 'निः' से सम्बन्धित उधर, न इस स्थिति में हैं और न उस स्थिति में, सकते हैं?" अब आपके विचार क्या हैं? वह वास्तव अर्थात् डावाँडोल स्थिति में हैं। निः स्थिति में खोखले हैं। निर्विचार अवस्था में आप परमात्मा ध्यानयोग में सर्वश्रेष्ठ रूप में प्राप्त की जा सकती की शक्ति के साथ एकरूप हो जाते हैं अर्थात् बूंद है। अपने जीवन में 'निः विचार का अनुसरण करने ( अर्थात् आप स्वयं) समुद्र (अर्थात् परमात्मा) में है । आप न इधर न पूछेंगे, 'माँ, बिना विचार किये हम काम कैसे कर से आप 'निर्विचार' स्थिति प्राप्त कर लेंगे। सर्वप्रथम आपको निर्विचार होना चाहिये। जब आपके भीतर आ जाती है क्या आप की अंगुली आपके मन में कोई विचार आता है, चाहे वह अच्छा सोचती है? क्या यह फिर भी चल नहीं रही? अपने हो अथवा बुरा, तब विचारों का ताँता-सा लग विचारों को परमात्मा को समर्पित कर दें और अपने जाता है। एक के बाद दूसरा विचार आता रहता विषय में सोचने का भार उस पर छोड़ दें। किन्तु है। लोग कहते हैं कि बुरे विचार का अच्छे यह कठिन-सा है क्योंकि आप निर्विचार स्थिति में आकर मिल जाती है। तब परमात्मा की शक्ति भी कुछ विचार से प्रतिकार करना चाहिये, अर्थात् एक दिशा नहीं है । से आने वाली गाड़ी को जब विपरीत दिशा से आने वाली गाड़ी से धकेला जाये तो दोनों एक मध्य समर्पण कर दिया है। किन्तु यह केवल मौखिक अनेक लोग कहते हैं हमने सब परमात्मा को होता है, वास्तव में नहीं। समर्पण मौखिक क्रिया स्थान पर रुक जायेंगी। कहीं तक यह ठीक है किन्तु कभी-कभी यह हानिकारक भी हो सकता नहीं है निर्विचारिता प्राप्त करने के लिये, जिसका है। एक कुविचार जब एक सुविचार द्वारा दबाया अर्थ है आपका विचार करना बन्द कर देना, आपको जाता है तो यह भीतर ही भीतर दबा रहता है। समर्पण करना पड़ता है। जब आपकी विचार क्रिया किन्तु यह एकाएक उभर सकता है। अनेक व्यक्तियों बन्द हो जाती है तब आप मध्य में आ जाते हैं। के साथ ऐसा ही होता है। वे अपने सामान्य विचारों मध्य में आते ही तुरन्त आप निर्विचार चेतना में को दबा रखते हैं और अपने से कहते हैं हमें पहुँच जाते हैं अर्थात् आप परमात्मा की शक्ति के परोपकारी होना चाहिये, अपने आचरण अच्छे रखने साथ एकरूप हो जाते हैं और जब ऐसा होता है तब चाहियें, इत्यादि। कभी-कभी ऐसे लोग बड़े वह (परमात्मा) आपकी देख- रेख करता है । वह उपद्रव-ग्रस्त हो सकते हैं अचानक एकदम यह आपकी छोटी-छोटी बातों के विषय में सोचता है। क्रोध के वशीभूत हो जाते हैं और लोग चकित हो यह आश्चर्यजनक है। किन्तु आप करके तो देखें जुलाई चैतन्य लहरी 12 अगस्त, 2004 और आप देखेंगे कि आपका पहला रास्ता गलत समय आप निर्विचारिता में प्रवेश करने की क्षमता था। अतः एक बार जब आप निर्विचारिता का स्वाद लेते हैं तो आप देखते हैं कि आपको समस्त हो जाता है। आप जो अनुसन्धान करते हैं वह भी प्रेरणायें, समस्त शक्तियाँ और अन्य सर्वस्व प्राप्त निर्विचार अवस्था में रहना चाहिये । निर्विचार अवस्था होने लगता है। निर्विचारिता में आपके मन में जो में कार्य-रत रहने का अभ्यास कीजिये इस विचार आता है वह एक अन्तः प्रेरणा (inspiration ) आप अति उत्कृष्ट रीति से अपना अनुसंधान कार्य होती है। आप चकित होंगे प्रत्येक वस्तु आपके कर सकते हैं। मैं अनेक विषयों पर बोलती हूँ। सामने ऐसे आयेगी मानो थाली में परोस कर आपके अपने जीवन में मैंने कभी विज्ञान का अध्ययन नहीं सम्मुख प्रस्तुत कर दी गई आप वक्तृता देने खड़े किया और उस विषय में कुछ नहीं जानती। फिर होते हैं. केवल निर्विचारिता में प्रवेश कीजिये और यह सब ज्ञान कहाँ से आता है? निर्विचारिता से।. मैं श्रीगणेश कर दीजिये यद्यपि आपने पहले कभी बोलती जाती हूँ और जो कुछ होता है उसे देखती भाषण नहीं दिया, भाषण की कला का आपको कुछ रहती हूँ। मेरे वाणीरूपी कम्प्यूटर में मानो यह सब प्राप्त कीजिये। आप देखेंगे सब कुछ स्वतः ही स्पष्ट भाँति ज्ञान नहीं अथवा प्रस्तुत विषय का आपको कुछ कुछ पहले से तैयार करा कराया रखा था। यदि विशेष ज्ञान नहीं, किन्तु चमत्कार! आप इतना आप निर्विचार अवस्था में नहीं हैं तो आप उस कमाल का बोलेंगे कि लोग स्तम्भित हो जायेंगे कि कम्प्यूटर (अर्थात् निर्विचारिता) का उपयोग नहीं यह ज्ञान भण्डार आप में कहाँ से उमड़ पड़ा! कर रहे हैं और अपने मस्तिष्क को उसके ऊपर किन्तु जहाँ एक बार आप निर्विचारिता में गहरे प्रतिष्ठित करते हैं (अर्थात् आपका निर्विचारितारूपी उतरे, सब कुछ वहाँ से (निर्विचारिता से) आता है, कम्प्यूटर निष्क्रिय रहता है और आपके सब कार्य न कि आपके मस्तिष्क से मानव मस्तिष्क शक्ति, जो सीमित है, उसके बल पर होते हैं) निर्विचारिता एक प्राचीन कम्प्यूटर है अब मैं आपको अपना रहस्य बताती हूँ। आप प्रार्थना कीजिये, "माँ" मेरे लिये कृपया ऐसा कर और इसकी शक्ति से विपुल परिमाण में सही कार्य दीजिये" । आप आश्चर्य करेंगे मैं आपकी विनती पर किया गया है यदि आप अपने मस्तिष्क का प्रयोग विचार नहीं करती। केवल उसे अपनी निर्विचारिता करते हैं और इस कम्प्यूटर का आश्रय नहीं लेते तो को समर्पित कर देती हूँ। सम्पूर्ण संयन्त्र वहाँ आप निश्चित् रूप से गलतियाँ करेंगे। क्रियाशील होता है। उसे (विचार को) उस संयन्त्र (निर्विचारिता) में डालिये और माल तैयार होकर वह प्रबुद्ध प्रकाशमान होता है। हिन्दी, मराठी तथा आपके सम्मुख आ जाता है। आप उस संयन्त्र- यों संस्कृत भाषाओं में किसी शब्द से पहले 'प्र' युक्त कहें नीरव अथवा शान्त संयन्त्र- को काम तो करने करने से उसका अर्थ होता है प्रकाशित, प्रकाशमान। दीजिये। अपनी सारी समस्याएं उनको सौंपिये। प्रकाश कभी बोलता नहीं। यदि आप कमरे की बत्ती किन्तु बुद्धि-जीवियों के लिये यह अत्यन्त कठिन जला दें, तो वह बत्ती ( दीप) बोलेगी नहीं अथवा है क्योंकि उनको प्रत्येक बात के बारे में सोचने की कोई विचार आपको नहीं देगी। वह केवल सब कुछ निर्विचार अवस्था में जो कुछ भी घटित होता है आदत होती है। किसी विषय को समझने की कोशिश करते रूप प्रकाश के बारे में है। निर्विचार, निरहंकार दृष्यमान (प्रकट) कर देगी। यही बात निर्विचारिता जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2004 13 (अर्थत् अहंकार रहित) इत्यादि सब शब्दों के पहले है आप मुख्य धारा (निर्विचारिता) में हैं अथवा नहीं। निः जुड़ा यदि आप इसमें नहीं है और आप कहीं किनारे पर भीतर स्थापित कीजिये और तब आप निर्विकल्प अटके हैं तो प्रवाह, तरंगे आती हैं और आपको अवस्था में आ जायेंगे। पहले निर्विचार, तत्पश्चात् मुख्य धारा में ले जाती हैं, एक बार, दो बार, तीन निर्विकल्प। तब आपके समस्त सन्देह व शंकायें बार। किन्तु यदि आप फिर भी किनारे पर आकर समाप्त हो जाती हैं और आपको प्रतीत होता है कि अटक जाते हैं, तब आप कहते हैं 'माता जी, मेरा कोई शक्ति है जो काम करती है। यह शक्ति कोई कार्य सुचारु रूप से नहीं होता। वास्तव में अत्यन्त द्रुत गति से काम करती है और अत्यन्त होगा भी नहीं। कारण, आप किनारे पर अटके हैं। श्री गणेश की जो आप स्तुति गान करते हैं वह अत्यन्त सुन्दर है। इसमें कहते हैं "मुख्य धारा जिसका अर्थ है प्रकाशमान है आप इसे (अर्थात् 'निः' को) अपने सूक्ष्म है। आप आश्चर्य करेंगे यह सब कैसे घटित होता है। यही बात समय के विषय में है। मैं कभी घड़ी (प्रवाह) में प्रवाहित. की तरफ नहीं देखती । कभी-कभी यह रुक जाती मुख्य धारा (प्र+वाह)। आप इसमें अपनी पृथक् है, कभी गलत समय बताती है। किन्तु मेरी असली लहर, तरंगे न मिलायें। श्री गणेश की आरती में घड़ी निर्विचारिता में है। यह हमेशा स्थिर (शान्त) यह भी आता है । "निर्वाणी रक्षावे" अर्थात् मृत्यु के समय मेरी रक्षा करें आप यह भी कहते हैं "रक्षः रहती है। यदि कोई कार्य करना हो तो वह उचित् समय पर हो जाता है। फिर मन में कुछ पश्चाताप रक्षः परमेश्वरः हे परमात्मा आप मेरी रक्षा करें। नहीं होता कि यह समय पर हुआ अथवा देरी से। किन्तु आप स्वयं ही अपनी रक्षा करना चाहते हैं। जब भी हो, मुझे कोई चिन्ता नहीं। कल मेरी गाड़ी (कार) खराब हो गई। किन्तु मैं कहते हैं 'उसे अपनी रक्षा अपने आप ही करने दो।" आनन्दमग्न थी क्योंकि मैं तारागणों को देखना फिर परमात्मा आपकी रक्षा क्यों करें? वह (परमात्मा) मैं इस बात पर बल देना चाहती हूँ कि आपको चाहती थी। वह सौंदर्य लन्दन में उपलब्ध नहीं गहराई में जाना सीखना चाहिये और निर्विचारिता होता। अतः मैं वह देखना चाहती थी। इसका सौंदर्य सम्पूर्ण आकाश में व्याप्त था आकाश की निर्विकल्प स्थिति प्राप्त कर सकते हैं । अभिलाषा थी माँ उसकी इस छटा को देखें । कभी-कभी मुझे उस ओर भी देखना आवश्यक लोग कहते हैं 'मेरा बेटा, मेरी बेटी ।" इंग्लैण्ड में में ही सब कुछ प्राप्त करना चाहिये। तभी आप आपको निरासक्त रहना चाहिये। यहाँ भारत में होता है। मैं उसका आनन्द लाभ कर रही थी। इसके विपरीत होता है। वहाँ बेटा, बेटी किसी से कोई लगाव (आसक्ति) नहीं होती। वे केवल अपने स्वयं के बारे में सोचते हैं। यहाँ हर चीज़ में 'मेरा, मेरा मेरा लड़का, मेरी लड़की, मेरा मकान और अन्त में विचारों में केवल 'मैं' और 'मेरा' ही बाकी कर ऐसी सरलतापूर्वक। वह सब प्रबन्ध कर देते रह जाता है, इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं । 1 संक्षेप में, आपको किसी वस्तु का दास नहीं होना चाहिये। यदि आप निर्विचार अवस्था में हैं तो परमात्मा आपको सर्वत्र ले जाते हैं मानो अपने हाथों पर उठा हैं। वह सब कुछ जानते हैं और उन्हें कुछ भी आपको कहना चाहिये मेरा कुछ भी नहीं है, सब बताने की आवश्यकता नहीं। किन्तु आपको देखना कुछ आपका ही है। सन्त कबीर कहते हैं "जब तक चैतन्य लहरी जुलाई अगरत, 2004 14 'ला' शक्ति में प्रेम का समावेश (सम्मिलित) है बकरी जीवित रहती है तब तक वह 'मैं, 'मैं' करती है। किन्तु उसको मारने के बाद उसकी आँतों के वह हमारा दूसरों से नाता जोड़ती है। 'ल' शब्द तारों से जो ताँत (जिससे धुनिया रुई धुनता है) ललाम', 'लावन्य' में आता है। 'ल' शब्द में उसका बनती है. उसमें से तू-ही-तू आवाज़ आती है। अपना ही विशेष माधुर्य है और आपको दूसरों को आपको भी तू-ही-तू ही भावना में मग्न रहना उससे (माधुर्य से) प्रभावित करना चाहिये। दूसरों से चाहिए। जब आप मैं नहीं हूँ मेरा कोई अस्तित्व बातचीत करते समय आपको इस शक्ति का प्रयोग नहीं है इस भावना में दृढ़ स्थित हो जाते हैं तभी करना चाहिये। चराचर में यह प्रेम की शक्ति व्याप्त आप 'निः' शब्द को समझ सकेंगे। है। ऐसी, स्थिति में आपका क्या कर्त्तव्य है? आपको अब 'निर्मला नाम के अन्तिम अक्षर 'ला' के अपने सारे विचार प्रथम (निः) शक्ति पर छोड देने विषय में विचार करें। मेरा दूसरा नाम है 'ललिता'। यह देवी का आशीर्वाद है। यह उसका आयुध से ही होता है । अन्तिम (ला) शक्ति, जो प्रेम और (शस्त्र) है। जब ला अर्थात् 'देवी' ललिता रूप सौंदर्य की शक्ति है, उससे आप को प्रेम के आनन्द धारण करती है अथवा जब शक्ति ललित अर्थात् का रसास्वादन करना चाहिये । यह कैसे करें? क्रियाशील रूप में परिणत होती है अर्थात् जब उस अपने आपको दूसरों के प्रति प्रेमभाव में भूल जायें, में चैतन्य लहरियाँ प्रवाहित होती हैं जो आप अपनी उस भाव में खो जायें क्या किसी ने अनुमान हथेलियों पर अनुभव कर रहे हैं, वह शक्ति 'ललिता लगाया है. कि वह दूसरों से कितना प्रेम करता है? शक्ति' है। यह सौंदर्य एवं प्रेम से परिपूर्ण है जब यह बढ़ता ही रहना चाहिये। आप दूसरों को प्रेम की शक्ति जागृत होती है तब वह 'ला' शक्ति कितना प्यार करते हैं और इस भाव में कितना बन जाती है। यह आपको चारों ओर से घेर लेती आनन्द लेते हैं? क्या अपने बारे में आपने सोचा है? है। जब वह क्रियाशील होती है तब चिन्ता कैसी? मानवों के विषय में मैं कह नहीं सकती, किन्तु अपने तब आपकी कितनी शक्ति होती है? क्या आप वृक्ष स्वयं के विषय में मैं कह सकती हूँ कि मैं दूसरों से से एक फल भी बना सकते हैं। फल की तो बात प्रेम करने में अत्यन्त आनन्द अनभव करती हैँ। क्या, आप एक पत्ता अथवा जड़ भी नहीं बना अनुभव करें, कैसे चारों और प्रेम की गंगा बह रही सकते। केवल मात्र 'ला शक्ति यह सब कार्य है, वह अनुभूति कितनी आनन्ददायक है! एक करती है। आपको जो आत्म-साक्षात्कार प्राप्त चाहियें क्योंकि विचारों का जन्म उस प्रथम शक्ति गायक को देखिये, वह कैसे अपने स्वयं के राग में है वह भी इसी शक्ति का काम है। इसी अपने आपको भूल जाता है, उसमें खो जाता है और हुआ शक्ति से 'निः' तथा 'म' (निर्मला नाम के प्रथम व सर्वत्र उस संगीत को प्रवाहित होते अनुभव करता द्वितीय अंश) शक्तियों का जन्म हुआ है। 'निः' है! इसी भाँति प्रेम भी अबाधित रूप से प्रवाहित शक्ति श्री ब्रह्मदेव की श्री सरस्वती शक्ति है । होना चाहिये। अतः आप 'ललाम' शक्ति, जो चैतन्य सरस्वती शक्ति में आप को 'निः' के गुण अर्जन लहरियों के रूप में विशुद्ध दिव्य प्रेम की शक्ति है (प्राप्त) करने चाहिये। 'निः' शक्ति प्राप्त करने का उसे पहले अपने भीतर जागृत करें। अर्थ है पूर्णतः निरासक्त बनना आपको पूरी तरह आप देखें कि आप दूसरों की ओर किस दृष्टि से देखते हैं। कुछ निम्न स्तर के लोग दूसरों से कुछ निरासक्त बनना चाहिये। चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 15 चुराने अथवा उनसे कुछ लाभ उठाने के भाव से आकर्षणयुक्त बन जाता है कि आप घण्टों उसके देखते हैं, कुछ दूसरों के दोषों को देखते हैं। पता संगीत में आनन्द और प्रसन्नता का अनुभव करते नहीं इसमें उन्हें क्या आनन्द आता है। इस भाँति हैं। आपका प्रेम दूसरों को आनन्ददायक और दूसरों वे अकेले, अलग-अलग हो जाते हैं और फिर कष्ट के मन को जीतने वाला बनना चाहिये। इसके भोगते हैं यह स्वयं कष्टों को निमन्त्रण देना है। फलस्वरूप सब आपके मित्र बन जाते हैं और मुझे तो सबसे मिलने, भेंट करने में आनन्द आता परस्पर प्रेम बढ़ता है। प्रत्येक अनुभव करता है कि है। एक स्थान है जहाँ उसे प्रेम और वात्सल्य मिल आपको ललाम शक्ति का जो चैतन्य लहरी सकता है। अतः आपको प्रेम की ईश्वरीय शक्ति को रूप में दिव्य प्रेम की शक्ति है-उपयोग करना अपने भीतर विकसित करना चाहिये। चाहिये। दूसरे व्यक्ति को देखने मात्र से आप निर्विचारिता में पहुँच जायें। इससे दूसरा व्यक्ति भी चाहिये। जब भी कोई विचार आये तो सोचिये निर्विचार हो जायेगा। अतः आप अपने को एवं ईश्वर के प्रेमरूपी पवित्र गंगा में यह गन्द कहाँ से दूसरे को भी विशुद्ध दिव्य प्रेम का बन्धन दें । 'निः' आ गई? ऐसी चित्त-वृत्ति से हमारी 'ला शक्ति शक्ति और 'ला' शक्ति को बँधने दें। 'ला' शक्ति अर्थात् दिव्य प्रेम की शक्ति सदैव स्वच्छ, निर्मल अर्थात् चैतन्य लहरियों के रूप में प्रेम की शक्ति रहेगी और उस स्वच्छता के आनन्द में हम विभोर को निः शक्ति अर्थात् निर्विचारिता में पहुँचाना, रहेंगे। हमें सदैव निर्विचारिता (निः' शक्ति) में रहना परिणत करना है। दोनों को बन्धन देना लाभप्रद आप दूसरों की टीका-टिप्पणी (criticism) न है बहुत से लोगों से, जो बड़े अभिमानी हैं अथवा करें यदि आप मुझसे किसी व्यक्ति के विषय में जो सोचते हैं कि वे बड़े काम करने वाले, कर्मवीर पूछें तो मैं केवल उसकी कुण्डलिनी की अवस्था के हैं, उनसे मैं अपनी बायें पार्श्व (side) को उठाने को विषय में बता सकती हैँं अथवा उसका कौन सा बताती हैँ। इस भाँति हम अपने स्वयं के पंच तत्वों चक्र इस समय पकड़ा हुआ है अथवा बहुधा पकड़ा आकाश) में अपने स्वयं रहता है इसके अतिरिक्त मैं कुछ नहीं समझ के विशद्ध दिव्य प्रेम को भरते हैं, संचारित करते हैं। सकती कि वह कैसा है. उसका स्वभाव कैसा है, अपने हृदय के प्रेम की शक्ति (हमारा बायाँ पार्श्व) इत्यादि । यदि इस विषय में मुझसे पूछा जाये तो मैं को अपनी क्रिया शक्ति (हमारा दायाँ पार्श्व) में कहूँगी, स्वभाव होता क्या है? यह परिवर्तनशील पहुँचाना चाहिये, जैसे आप कपड़े पर रंगों से होता है। नदी इस समय यहाँ बह रही है। बाद में चित्रण करते हैं। जब इस भांति क्रिया शक्ति में प्रेम उसका बहाव कहाँ होगा, कौन बता सकता है? इस शक्ति का सम्मिश्रण किया जाता है तब वह व्यक्ति समय आप कहाँ हैं? यही विचार करने की बात है। | (पृथ्वी, जल, तेज, वायु और अत्यन्त मधुर बन जाता है और क्रमशः वह माधुर्य, आप नदी के इस किनारे पर खड़े हैं तो आपको प्रेम उसके व्यक्तित्व और उसके आचरणों में विचित्र लगता है कि नदी यहाँ बह रही है। मैं प्रकाशमान होता है। वह प्रेम प्रवाहित होकर दूसरों समुद्र की दिशा में खड़ी हैूँ। इस कारण मैं जानती को प्रभावित करता है और उसकी प्रत्येक क्रिया हूँ इसका उदगम-स्थल कौन सा है। अतः आप अत्यन्त रसमय हो जाती है। वह व्यक्ति इतना किसी को भी व्यर्थ, निकम्मा न कहें। प्रत्येक व्यक्ति পাঁ चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2004 16 बदलता रहता है, यह अवश्य होता है। सहजयोग बीज उग कर एक बृक्ष बनता है जिसमें पत्ते होते हैं। फिर पत्ते झड़ते हैं। यह क्रिया भी अत्यन्त करने वाले व्यक्तियों को किसी को नहीं कहना सुकोमल व सरल होती है तब फूल आते हैं। जब चाहिये कि वह बेकार हो गया है । प्रत्येक को फूल फल बनते हैं, तब उनके अंश झड़ कर गिर स्वतन्त्रता होनी चाहिये। आप सब जानते हैं हमारी जाते हैं और तब फल आते हैं। उन फलों को भी वर्तमान स्थिति क्या है। यदि आप इस भाँति सोचेंगे खाने के लिये काटा जाता है । खाने पर आपको तो आप न केवल अपने स्वयं का आत्म-सम्मान स्वाद प्राप्त होता है। वह भी यही शक्ति है। इस करते हैं. बल्कि दूसरों का भी सम्मान करते हैं । प्रकार ये दोनों शक्तियाँ काम करती हैं। आप जिसमें आत्म-सम्मान नहीं है. वह दूसरों का कभी जानते हैं बिना काटे, संवारे आप कोई मूर्ति नहीं बना सकते। यदि आप समझ लें कि यह काटना का कार्य परिवर्तन लाना है। सहजयोग में विश्वास 1 आदर नहीं कर सकता। संवारना भी उसी जाति की क्रिया है तो यदि हमें ललाम शक्ति का विकास करना चाहिये। एक पुस्तक लिखकर भी मैं इसका आनन्द पर्याप्त आपको कभी ऐसा करना पड़े तो आपको बुरा रूप से वर्णन नहीं कर सकती क्योंकि साँदर्य को अनुभव नहीं करना चाहिए । वह भी आवश्यक है। प्रकट करने के लिये शब्द असमर्थ हैं। अर्थात्, यदि किन्तु एक कलाकार इसे कलापूर्ण ढंग से करता है आपको 'मुस्कान' का वर्णन करना हो तो आप और कला हीन व्यक्ति इसे बेढंगे तरीके से करता केवल कह सकते हैं कि स्नायु कैसे आन्दोलन है सो आप में कितनी कला है इस पर यह शक्ति (हरकत) करते हैं। आप उसके प्रभाव को नहीं बता निर्भर करती है। सकते। यह तो केवल अनुभव की वस्तु है। आप केवल इस शक्ति को जागृत और विकसित होने इच्छा करती है आप इसकी ओर देखते ही रहें। कभी आप एक चित्र को देखते हैं और आपकी यदि कोई पूछे इस चित्र में क्या विशेषता है तो आप का अवसर दें। ललाम शक्ति से मनुष्य को एक प्रकार का शब्दों में नहीं बता सकते। आप बस उसे निहारते सौंदर्य, एक भव्यता और स्वाभाव में माधुर्य प्राप्त हैं। कुछ चित्र ऐसे होते हैं कि आप उनकी ओर होता है। इस शक्ति को अपने वचन, कर्म तथा देखने मात्र से निर्विचार हो जाते हैं। इस निर्विचार अन्य क्रिया-कलापों में विकसित करने का प्रयास अवस्था में आप उसके आनन्द का रसास्वादन करते करें। लोगों का रोष भी मनोहारी होता हैं। हैं यह अवस्था सर्वोत्कृष्ट है। इसकी किसी अन्य कुछ इस मधुर, मनोहारी शक्ति को 'ललित शक्ति वस्तु से तुलना अथवा मुस्करा कर व्यक्त करने के कहते हैं। लोगों ने इसके भाव को बिल्कुल विकृत स्थान पर आपको इस स्थिति के आनन्द का मन कर कर दिया है। वे कहते हैं यह संहार की शक्ति भरकर रसास्वादन करना ही उचित है। इसका है। किन्तु यह बिल्कुल ठीक नहीं है। अति मनोरम, सृजनात्मक और कलात्मक है। मानो भाव भंगिमा पर्याप्त है। आपको इसका भीतर अनुभव आपने एक बीज बोया। उसके कुछ अंश नष्ट हो करना है सबको यह अनुभव लाभ होना चाहिए। जाते हैं, जिसे 'ललित शक्ति कहते हैं। किन्तु यह विनाश अत्यन्त कोमल और सरल होता है तब रोचक है। 'म' महालक्ष्मी का प्रथम अक्षर है। 'म' यह शक्ति वर्णन करने के लिये न कोई शब्द है, न कोई निः और 'ला के मध्य में 'म' शাब्द अत्यन्त चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 17 धर्म ( पवित्र आचरण) की शक्ति है और हमारी संगीत में आप को रागों का संतुलन करना पड़ता उत्क्रान्ति की भी 'म ' शक्ति में आपको समझना है, चित्रकला में आपको रंगों का संतुलन करना होता है, फिर उसे आत्मसात करना होता है और पड़ता है। इसी भाँति आपको 'निः और 'ला पूर्णता (mastery) कुशलता, प्राप्त करनी होती है। शक्तियों का संतुलन करना आवश्यक है। इस उदाहरण के लिये, एक कलाकार में 'ल' शवित्त से संतुलन प्राप्ति के लिये आपको परिश्रम करना उसके सृजन का विचार अंकुरित होता है 'नि' पड़ेगा अनेक बार आप वह खो बैठते हैं। जो शक्ति द्वारा वह उसका निर्माण करता है और 'म' सहजयोगी इस संतुलन को बनाये रखता है वह शक्ति के द्वारा वह उसे अपने विचार के अनुरूप उच्चतम स्तर पर पहुँच जाता है। बहुत भावुक सहजयोगी ठीक नहीं। इसी तरह यह उसके विचार के अनुरूप है और यदि नहीं तो बहुत ज्यादा कामों में फेसा रहने वाला सहजयोगी वह उसमें सुधार प्रेम की शक्ति को यह बार-बार करता है। यह 'म' शक्ति है अर्थात् सक्रिय करना चाहिये और देखना चाहिये अब तक यदि कोई वस्तु ठीक नहीं है तो एक बार, दो बार, वह कैसी क्रियाशील रही है। उदाहरणार्थ, मैं किसी एक ढंग से काम करती हूँ। आपने देखा होगा कि इस सुधार कार्य में परिश्रम लगता है हमें हर बार कुछ नवीनता, कोई नया तरीका होता है। अपने स्वयं का भी सुधार करना चाहिए यदि यह यदि एक तरीके से काम नहीं चलता, दूसरा तरीका अपनाइये। यदि यह भी असफल रहता है तो और के लिये परमात्मा को महान् परिश्रम करना पड़ता कोई ढूँढिये। किसी भी पद्धति पर अटल नहीं होना है। हमें 'म' शक्ति अर्जित करनी है और उसे चाहिये। आप प्रातः उठते हैं, सिंदूर लगाते हैं, श्री संभाल कर रखना है। यदि यह न किया जाये तो माँ को नमस्कार करते हैं। यह सब यान्त्रिक बनाता है। प्रत्येक पग पर वह देखता है कि क्या करने की कोशिश करता है। वह भी ठीक नहीं। आपको अपने बार-बार करें। न होता तो उत्क्रान्ति की क्रिया असम्भव थी। इस दूसरी दोनों शक्तियाँ समाप्त हो जाती हैं, क्योंकि यह शक्ति सन्तुलन बिन्दु (centre of gravity) है । है सजीव प्रक्रिया में आपको नित्य नई पद्धतियां आपको सन्तुलन बिन्दु पर स्थित रहना चाहिये और खोजनी होंगी। मैं सदैव वृक्ष की जड़ का उदारहण हमारी उत्क्रान्ति का सन्तुलन बिन्दु 'म' शक्ति है। देती हूँ। बाधाओं से मोड़ लेते हुए, बचते हुए, यह अन्य दोनों शक्तियाँ तभी आपके भीतर सक्रिय क्रमशः नीचे और नीचे पृथ्वी के भीतर उतरती चली होंगी जब आप उत्क्रान्ति शक्ति के अनुरूप उन्नति जाती है। यह बाधाओं से झगड़ती नहीं। बाधाओं करें। किन्तु उसके लिये आपको 'म' शक्ति को के बिना जड़ें वृक्ष को संभाल भी नहीं सकती थीं। (mechanical ) होता है। यह सजीव प्रक्रिया नहीं पूर्णतः समझना होगा और उसे विकसित करना होगा। तब तक आप कह सकते हैं कि यदि ईश्वर आप उन्नति भी नहीं कर सकते। वह शक्ति, जो आपसे प्रेम करते हैं तो उन्हें आपके पास आना आपको बाधाओं पर विजय पाना सिखाती है, वह चाहिये, किन्तु साक्षात्कार-प्राप्ति के पश्चात् आप 'म' शक्ति है। अतः यह 'म' शक्ति अर्थात् माँ की ऐसा न कह सकेंगे। क्योंकि 'म' शक्तिति के बल पर शक्ति है। उसके लिये प्रथम आवश्यक वस्तु है आपको दूसरी दो शक्तियों का संतुलन करना है। बुद्धिमानी। अतः समस्याएँ, बाधाएँ आवश्यक हैं। वे न हों तो जुलाई - अगस्त, 2004 चैतन्य लहरी 18 सोचिये कोई व्यक्ति बड़ा कोमल स्वभाव है और शक्ति द्वारा किया गया है। यदि केवल 'नि' और "ल' दो शक्तियाँ ही होती, तो यह कार्य सम्भव नहीं कहता है, 'माँ मैं अत्यन्त मृदु हूँ मैं क्या कर सकता हूँ। मैं उससे कहती हूँ अपने को बदलो और एक था । मैं तीनों शक्तियों सहित आई हूँ, किन्तु 'म' सिंह बनो। यदि कोई दूसरा व्यक्ति सिंह है तो मैं शक्ति सर्वोच्च है। आपने देखा 'म' 'शक्ति' माँ की उसे बकरी बनने को कहती हैँ। अन्यथा काम नहीं शक्ति है। यह सिद्ध करना होगा कि वह आपकी चलता। आपको अपने तरीके बदलने होंगे जो माँ है । यदि कोई आकर कहे 'मैं आपकी माँ हूँ' तो व्यक्ति अपने तरीके नहीं बदल सकता, वह सहजयोग क्या आप मान लेंगे? नहीं, आप स्वीकार नहीं नहीं फैला सकता, क्योंकि वह एक ही तरीके पर करेंगे मातृत्व को सिद्ध करना होगा। जमा रहता है जिससे लोग ऊब जाते हैं। आपको नये मार्ग खोजने होंगे इसी भाँति 'म ' शक्ति कार्य करती है। महिलायें इसमें निपुण होती हैं। वे पर और माँ को हम पर पूर्ण अधिकार है क्यों कि प्रतिदिन नये व्यंजन (भोज्य पदार्थ, recipes) बनाती वह हमें अपार प्यार करती है। उसका प्रेम नितान्त हैं और पति जानने को उत्सुक रहते हैं कि आज निःस्वार्थपूर्ण है। वह सदैव हमारी मंगल कामना माँ क्या है? माँ ने अपने हृदय में हमें स्थान दिया है। हमें माँ करती है और उसके हृदय में हमारे लिये वात्सल्य क्या बना है। यह वह शक्ति है जिसके द्वारा आप अपना के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। माँ में आपको संतुलन और एकाग्रता प्राप्त करते हैं। जब आप इस शक्ति को उच्चतम स्तर पर विकसित कर लेते कि आपकी वास्तविक शोभा, अर्थात् आपकी आत्मा, हैं तब आप अपने संतुलन तथा बुद्धि स्तर से चैतन्य उनमें ही बास करती है। आप दूसरों को यह सिद्ध लहरियाँ अनुभव करते हैं। यदि आप में बुद्धिमानी करके दिखायें। सहजयोगी में ऐसी सामर्थ्य होनी नहीं है तो आप में उक्त लहरियाँ प्रभावित नहीं चाहिये। अन्य लोगों को पता हो कि वह एक होंगी। अधिकतम चैतन्य-लहरियों-सम्पन्न व्यक्ति क्रियाशीलता दोनों शक्तियों में संतुलन आवश्यक निश्चित बुद्धिमान व्यक्ति होता है। वास्तव में यह है। वह इतना मनोहारी होना चाहिये कि बिना जाने बुद्धिमत्ता ही है जो प्रवाहित हो रही है। इस अन्य लोग ऐसे व्यक्ति से प्रभावित हों। सहजयोगी मापदण्ड से यह निश्चित हो सकता है कि आप को यह गुण अजर्जन करना चाहिये। किस स्तर के सहजयोगी हैं। जब आप संतुलन तथा बुद्धि खो देते हैं तो 'ला' और 'म' शक्तियों को कैसे सक्रिय कर प्रयोग स्वाभाविक रूप से आपके चक्र पकड़े (बाधाग्रस्त) करें । 'निः शक्ति आपके परिवार में पूर्ण सौंदर्य, जाते हैं। जब आपके चक्र बाधाग्रस्त हों तो समझ गम्भीरता और गहराई लायेगी । जन-सम्पर्क के लीजिये आपका संतुलन बिगड़ गया है। असंतुलन आप नये-नये मार्ग और साधन खोजें। इन शक्तियों संकेत करता है कि 'म' शक्ति आप में दुर्बल है। का आप सहजयोग के प्रचार के लिये उपयोग करें। "माताजी' अर्थ वाचक किसी भी शुभ नाम का प्रथम उनके उचित उपयोग के लिये आपकी 'निः' शक्ति, अक्षर 'म' होता है और यह कार्य मेरे भीतर 'म' अर्थात् क्रियाशक्ति, अत्यन्त बलशाली होनी चाहिये । आस्था तभी प्राप्त होगी जब आप यह समझ लेंगे बुद्धिमान व्यक्ति है। उसके लिये आप में प्रेम और घर जाकर आप विचार करें कि इन तीनों 'नि', चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 19 यद्यपि आप में ला शक्ति अर्थात् प्रेम की शक्ति सहजयोग में पूर्ण सिद्धता, निपुर्णता प्राप्त होगी। होनी चाहिये, किन्तु यह 'निः' शक्ति के साथ-साथ अभी तक वे सिद्ध नहीं हुए हैं। आपको सिद्धता संयुक्त रूप से क्रियान्वित होनी चाहिये। यदि एक प्राप्त करनी है। सिद्ध सहजयोगी वह है जो पूर्ण तरीका सफल नहीं होता, तो दूसरा तरीका अपनाइये। रूप से परमात्मा से एकरूप हो जाये और उसे पहले लाल और पीला लें, यदि यह उपयुक्त नहीं अपने वश में कर ले। उसको उसके लिये सर्वस्व रहता तो लाल और हरा उपयोग करें और यदि अर्पित करना होता है। मैं जा रही हूँ। उसके बाद यह भी ठीक नहीं रहता तो अन्य कोई उपयोग देखेंगे आप अपनी सिद्धता का किस भाँति और करें। हठी होना, किसी बात पर अड़ना बुद्धिमानी किस क्षेत्र में उपयोग करते हैं । नहीं है। हठधर्मी व्यक्ति सहजयोग में कुछ नहीं कर सकता। आपका उद्देश्य तो केवल सहजयोग करती हैँ। आपको उसका बुरा नहीं मानना चाहिये। 1 कभी-कभी मैं आपको कुछ बातों के लिये मना का प्रचार करना है, तो विभिन्न मार्ग अवलम्बन कर 'म' शक्ति के सिद्धान्त अनुसार आपको निराश नहीं देखिये। आप जो भी आग्रह करते हैं वही मैं होना चाहिये, क्योंकि आपका मार्ग दर्शन करना स्वीकार कर लेती हूँ क्योंकि मैं जानती हूँ कि होना चाहिये, क्योंकि आपका मार्ग दर्शन करना साधारण मानव मेरी भाँति नहीं है हठधर्मी व्यक्ति मेरा कर्तव्य है। कुछ लोग निराश हो जाते हैं। आप क्या कर बैठे, कहा नहीं जा सकता। आप वह ध्यान रखें आपको सिद्ध बनना है। दूसरे स्वीकार पराकाष्ठा अर्थात् हद पर जाने की स्थिति न आने करें आप सिद्ध हैं। ज्यों ही वे आपको देखें उन्हें दें। 'म' शक्ति से मैं यह सब जानती हूँ। किन्तु स्पष्ट हो आप सिद्ध हैं। आप इसके लिये यत्न आप सहजयोगियों को किसी एक बात पर हठ करें। यदि यह होता है तो सब शुभ होगा। नहीं करना चाहिये। आपकी माँ हठ नहीं करती। जो भी स्थिति हो, स्वीकार कर लें। आप जो भी सब मित्र और सम्बन्धियों को मध्यान्ह अथवा रात्रि 1 एक दिन मैंने आपसे कहा था कि आप अपने करें, ध्यान रखें आप एक महत्वपूर्ण कार्य कर रहे भोज के लिये पूजा या किसी अन्य कार्यक्रम के हैं। मुझ में कोई इच्छा नहीं है। मुझ में 'निः', 'ला', लिये आमन्त्रित करें साथ ही कुछ सहजयोगियों 'म' कोई शक्ति नहीं है मुझ में कुछ भी नहीं है। को भी आमन्त्रित करें और अपने सब अतिथियों को मैं यह भी नहीं जानती मैं स्वयं इन शक्तियों की आत्म-साक्षात्कार प्रदान करें। यदि एक साल तक मूर्तस्वरूप हूँ। मैं केवल सब खेल देखती हैँ। आप ऐसा करें तो बड़ा लाभकारी होगा । सबको अनेक आशीर्वाद जब जीवन में इस प्रकार परिवर्तन आ जायेगा (निर्मला योग से उद्घृत) तब मनुष्यों में सिद्ध सहजयोगीजन होंगे जिनहें आत्म-साक्षात्कार का अर्थ मुम्बई, 03.09.1973 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन जो अभी अभी realize हुए हैं कुछ लोग ऐसे हैं रहा है। अपने चारों तरफ मनुष्य के बातावरण के जो थोड़े दिन पहले realize हुए हैं और कुछ लोग और सारे संसार के चारों तरफ चैतन्य शक्ति खेल ऐसे हैं जो बहुत पुराने realize हुए हैं जो कि इस रही है। अन्दर और बाहर जैसे कि हर एक पेड़ के चीज को समझ गए हैं कि अपनी चेतना क्या है ये अन्दर भी चेतना शक्ति है उसके पत्ते में भी चेतना किस तरह कार्यान्वित होती है, किस तरह से कार्य शक्ति है उसके मूल में भी है और उसी तरह से ये करती है और किस तरह से हम उसको अपनाते सारे भूमण्डल पर भी चैतन्य शक्ति का वास है चारों जाते हैं। इस तरह से यहाँ तीन तरह के लोग होने तरफ जैसे कोई ether होता है। के कारण मुझे कुछ बातें फिर से दोहरानी पड़ेंगी और मैं बताऊंगी तथा आप लोग समझ पाएंगे कि वास है और वही शक्ति पूरा जो कुछ कार्य जड़ इस तरह से ये अन्दर बाहर हर जगह उसका realization का अर्थ क्या है कि realized आदमी शक्ति का करने का है, करती रहती है अब ये की क्या विशेषता होती है। पिछली मर्तबा भी मैंने शक्ति हमारे अन्दर कुण्डलिनी नामक जिसको कि बहुत सी बातें बताई कि realized आदमी की क्या कुण्डलिनी योग, लोग कुण्डलिनी कहते हैं, लेकिन विशेषता है और आगे इसको किस तरह से हमें कुण्डलिनी एक शब्द है दिया हुआ। हालांकि परमात्मा realized state में हमें कैसे रहना चाहिए । इस ने किसी भी चीज को अर्थ ही दिया है और शब्द तो तरह से इस पर मैं बताऊंगी। इतना जरूर होना दिया नहीं है लेकिन किसी का नाम दिया नहीं है कुण्डलिनी। पर भी, जो कुछ भी पढ़ा है उसको सभी भूल कुण्डलिनी नाम की शक्ति हमारे अन्दर रीढ़ की हड्डी के नीचे जो त्रिकोणाकार अस्थि है उसमें चाहिए कि इस वक्त आपने जो पढ़ा लिखा है, जहाँ पर मानव ने दिया है नाम इसका - जाइए। पहले तो प्रश्न ये है कि realization का अर्थ स्थित है, उसके बारे में अभी मैं एक aticle निकालने क्या है? जब आप पैर पर आते है तो उसमें से वाली हूँ ब्रह्मशक्ति में, तो आप उसके सारे details कितने ही लोगों को कहा जाता है कि आप पार पढ़ लीजिएगा और आपमें से बहुत से लोग उसको नहीं और कितने ही लोगों को कहा जाता है जानते भी हैं । हुए कि आप पार हो गए। इसका एक तो अर्थ है ही कि realization का संबंध आपके बाहरी शरीर, मन, जब आप साधारण मानव रहते हैं तो शरीर बुद्धि बुद्धि से नहीं है किन्तु किसी आन्तरिक चीज से है और मन तीनों में रहता है और आप खोजते रहते जो कुछ लोगों को हो जाता है और कुछ लोगों को हैं उस चीज को जिससे आप आनन्द पाएं। जब अब आपका चित्त जो है, आपका जो चित्त है आप उस चैतन्य शक्ति से एकाकार होते हैं, नहीं होता। Realization में जब आप लोग मेरे पैर पर रहते हैं उस वक्त जो हाथ में देखते हैं लोग वे कुण्डलिनी की जागृति से सहस्रार पर आपका चित्त ये देखते हैं कि उनके उपर जोर से प्रवाह हाथ में आकर के उससे एकाकार होता है, तब आपका आने लग जाता है और आपको भी पैर में ऐसे चित्त जो है अपनी कुण्डलिनी पर जाता है और लगने लगता है कि कुछ तो भी पैर में आर पार जा अपनी कुण्डलिनी पर जाते ही आपका चित्त दूसरों প जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2004 21 की कुण्डलिनी पर भी जाता है। यानि अभी तक वास्तविक में हमें इसकी प्राप्ति इतनी सहज में होती आपका चित्त तीन जगह तक जा सकता था अब है कि हम समझ नहीं पाते कि कहाँ से कहाँ पहुँच एक चौथी जगह जाता है जो निराकार शक्ति है गए । या ये कहिए कि आधुनिक युग में जिस तरह और उसमें जाते ही आप विचारों से परे उठकर के से आप एक दम से चन्द्रमा पर पहुँच जाते हैं पता और इस मन, बुद्धि और शरीर तीनों को देखने भी नहीं चलता। आप अगर चन्द्रमा में एक क्षण में लगते हैं साक्षी स्वरूप होकर। पहुँच सकें ऐसी कोई व्यवस्था हो जाए तो हो अब जिन लोगों के हाथ में से झन झन झन झन सकता है आप ऐसे ही महसूस करेंगे कि हम ये ऐसे चैतन्य की लहरियाँ बह रही हैं इन लहरियों कहाँ पहुंच गए? कैसे हो सकता है? चन्द्रमा में हम को हम इतने सहज में पा गए हैं के हम जानते एक क्षण में कैसे पहुंच गए? इसी तरह से ये नहीं कि कितनी बड़ी चीज हमें मिल गई। पहला घटना जो है इतनी सहज में होती है इतने सहज तो सबसे बड़ा जो problem है कि इतनी बड़ी में ये घटना होती है कि आपको ऐसा लगना चीज सहज में कैसे मिल गई? जैसे कि एक छोटी स्वाभाविक है। लेकिन कोई बात सहज से हो जाए सी चीज, समझ लीजिए कि मानव का जन्म, हम और चाहे बहुत तकलीक से हो जाए याद वो रहती लोग इतने सहज में पा लेते हैं कि हम ये जानते है जो तकलीफ से होती है और समझ में वो आती ही नहीं कि मानव जन्म पाना जन्म जन्मांतर की है जो तकलीफ से होती है। ये मानव का स्वभाव मेहनत के बाद बड़ी मुश्किल से मानव का जन्म है और मानव उसी में अपने को बड़ा धन्य समझता मिलता है और उसका पुनर्जन्म बहुत ही जन्म है जो किसी करतब बाजी से पाता है। बाप ने गर जन्मांतर की मेहनत के बाद, खोज के बाद पुनर्जन्म लाखों रु. की भी गर स्टेट दे दी तो उसकी वो होता है। लेकिन वो इतने सहज में घटित हो रहा विशेषता नहीं समझता और उसकी कमाई से उसने है कि उसकी कीमत हम लोग समझ नहीं पाते। गर दो रुपये भी कमाए तो उसको बड़ी भारी चीज और ये भी सोचते हैं कि इतनी जल्दी कैसे हुआ? समझता है। ये उसके अहंकार का लक्षण है। ये उसकी वजह ये थी कि आज तक आप सारी खोज उसके अहंकार की तृप्ति है। लेकिन सहजयोग में बाहर कर रहे थे और चीज आप ही के साथ थी। तो अहंकार ही जब छुटता है तब फिर अंहकार से जैसे आपके अन्दर हीरा बैठा हुआ है और आप कोई चीज पाने की तो बात ही नहीं। ये अहंकार सारी दुनिया में खोज रहे हैं और आपके यहीं हीरा जो है अतृप्त रहकर के इस तरह की शंकाएं अन्दर गिरा हुआ है। और फौरन किसी ने बता दिया कि उठाता है कि ऐसे सहज में क्यों है? अब अपने हीरा तो यहीं है और आपको रास्ता भी बता दिया, realization के तरीके जो होता है जैसे जैसे रीति आपने हीरे को पकड़ लिया। फिर आप ये थोड़े ही से वो होता है ये सब आपमें से बहुतों ने देखा है। कहेंगे कि अरे इतनी जल्दी हीरा कैसे मिल गया? आप तो यही कहेंगे कि अरे मैं तो यहीं था और तरीका आप पाइएगा कि जब आत्म साक्षात्कार 1 किताबों में, अब हर एक किताब में एक नया दुनिया भर में कहाँ खोजता फिरा? ये बात वास्तविक होता है तब ऐसा हो जाता है वैसा हो जाता है। अब इसमें से कितने लोग पार है और कितने नहीं हैं ये तो परमात्मा ही जाने। लेकिन आपमें से जो हो रही है । जब हमें सहजयोग से ये दशा प्राप्त होती है तो जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2004 22 लोग पार हुए हैं धीरे-धीरे आपमें अपनी गति बढ़ती बात का पता नहीं लगा है । है और लोग जानते हैं कि आदमी जब पार होता है तो पहले उसका सहस्रार टूटता है और वो बताती तो सब लोग कहते माताजी यूँ ही उड़ा रहे एकाकार होता है उस चैतन्य शक्ति से फिर इसके हैं। मैंने कहा तुम्हीं देखो। तो जब उन्होंने ऐसे हाथ बाद तो भी वो यहीं रहता है। और उसकी दृष्टि रखा और उनकी ये उंगली जलने लग गई तो मैने अपनी और दूसरों की कृण्डलिनी पर आ तो जाती कहा अच्छा इनके नाभि चक्र पर तुम हाथ रखकर मैने तो बताया नहीं क्योंकि मैं इसको गर है लेकिन vibrations जो इसके अन्दर आ रहे हैं देखो नाभि चक्र चल रहा है। अपने अन्दर आँख वो कभी कभी एकदम रुक जाते हैं और वो गर बन्द करके देखो तुम्हारा कौन सा चक्र चल रहा है अपने सर पर हाथ रखे तो देख लेगा कि सिर पर तो नाभि चक्र चल रहा है और हाथ तुमने जब यहाँ पर जो बिल्कुल नरम हो गया था वहाँ फिर से उनकी ओर किया तो कौन सी उंगली जल रही है? कड़क हो जाता है calcification हो जाता है। ये उंगली जल रही है इसका मतलब ये उंगली अभी आप कल ही पार हुए हैं और आपका नाभि चक्र का साक्षात है और सबकी यही उंगली पकड़ी जाएगी उस आदमी में तो निर्विवाद ये बात उसकी वजह क्या है? उसकी वजह ये है कि है, इस पर किताब चाहे कुछ भी लिखे जिस तरह हमारे अन्दर जो ego और super ego हैं वो हट से जो होता है वैसा ही होता है। अभी कल जरूर जाते हैं, हमारा चित्त बीचों बीच जरूर आ ज्ञानेश्वर जी को लेकर के एक साहब मुझसे भिड़ जाता है लेकिन फिर से grow करके एक हो जाता रहे थे बहुत ज्यादा। ज्ञानेश्वर जी आज होते तो है तो फिर से calcification हो जाता है और प्रवाह उनसे हम भी बात कर लेते वो भी खोज रहे थे बन्द हो जाता है । लेकिन आप तो भी कुण्डलिनी तरीका, किस तरह से बात समझाने का है। लेकिन समझ सकते हैं। वो कैसे? कि आप उसके बाद गुर उनका बन नहीं पड़ा, बहुत छोटी उम्र में उनकी ध्यान में आएं और मेरी ओर हाथ करें तो आपको मृत्यु बहुत से लोगों की अल्पमृत्यु होने अभी पुष्पा ने मुझे के कारण भी बहुत सी गलतफुहमियां संसार में आके कहा कि मेरा ये अंगूठा पकड़ गया। ये पार फैल गईं। और उन्होंने किताब लिख दी ये दूसरी है क्योंकि वैसे जो आदमी पार नहीं है, जो पार नहीं बड़ी गलती कर दी। इस वजह से मैं किताब हैं वो मेरी ओर गर हाथ करके बैठे तो उनको कुछ लिखने से बहुत डरती हूँ। अब किताब लिखते ही भी नहीं लगेगा लेकिन जो लोग पार हो गए हैं लोग उसको रटना शुरु कर देंगे और उससे भी उनको लगेगा कि माताजी देखो ये उंगली मेरी लोगों पर conditiong हो जाएगी। तो अब इसमें पकड़ गई है। उनको ऐसा लगेगा ये उंगली मेरी क्या होता है क्या नहीं होता है वो बिल्कुल आपको पकड़ गई है या ये पकड़ गई है। इसमें नहीं आ ऐसा सोचना चाहिए कि हर मिनट हमें नया एक रहा है इसमें आ रहा है। उसमें से जो जानकार अनुभव हो रहा है। हम नए आदमी हैं नया ही है लोग होंगे वो समझ जाएंगे कि कौन सी उंगली सब कुछ। नए से ही जानना है सब कुछ, हम नए का इशारा कौन से चक्र पर है। अब ये कोई होकर के बैठे हैं। जैंसे छोटा बच्चा बचपन से कपोल कल्पित नहीं है, दिमागी जमा खर्च से इस एक-एक शब्द सुनता है उसको रट लेता है, एक calcification हो जाता है। हो गई। ऐसे लगेगा कि ये हाथ पकड़ गया। जुलाई - अगस्त, 2004 चैतन्य लहरी 23 हैं और सारे संसार के लिए आपको मार्ग बनाना है। एक बात देखता है उसको समझ लेता है। इसी तरह से आप लोग जो नए लोक में, इस इतने realized लोग एक छत के नीचे बैठकर के दिव्य लोक में आ गए हैं तो उसकी दिव्यता को उस परम शक्ति को पा रहे हैं। इतनी बड़ी भारी समझना चाहिए। इसकी ओर दृष्टि होनी चाहिए। शक्ति आपके अन्दर से विशेष रूप से प्रवाहित है। ये बड़ी विशेषता है कि इसका नाम दिव्यलोक रखा और लोगों के अन्दर से नहीं है संसार में ये आप गया है। मैं जाती थी तो इसका नाम पढ़के. मुझे जानते हैं। इसमें कोई आपको शंका नहीं रहेगी लगता था कि किसी बड़े सोचने वाले आदमी ने जिनको थोड़ी बहुत शंका है वो इसलिए कि अभी नाम रखा होगा। कितना सुन्दर नाम है 'दिव्यलोक मुझे क्या पता था परमात्मा सारी व्यवस्था यहीं कर रहेगी। अब ये जरूरी हो जाता है कि आप अपनी देंगे और भाटिया साहब इतनी मेहरबानी कर देंगे विशेषता को समझ लें। सबसे बड़ी विशेषता आपकी अभी पार हुए हैं, थोड़े दिन में उनको भी नहीं हम पर। बहुत ही सुन्दर जगह है। तो जिस दिव्य ये है कि आपको एक fourth dimension आ गया लोक में आप उतरे हुए हैं उसकी दिव्यता को है कौन सा fourth dimension आ गया है? जो जानने के लिए आपको सोच लेना चाहिए कि ये चैतन्य शक्ति आपके अन्दर प्रवाहित है, उसमें आप सब नवीन है। नाविन्यपूर्ण है। इसमें सारा ही नवीन खडे हुए हैं। अब आप इसमें से उसमें कैसे जा अनुभव है, कहीं लिखा हुआ घिसापिटा जो दूसरों सकते हैं? ये बड़ा महत्व का point है। आप समझ ने अनुभव किया है वो नहीं है हमें जो अनुभव करने का है वो है। इसलिए एकदम नया नूतन सकते हैं । उसमें रह सकते हैं, स्थिर हो सकते हैं, बालक जैसा होता है ऐसे आप एकदम नए स्वरूप यह बड़ा महत्व का point है। अब आप देखिएगा, में इसमें उतरिए। पहली चीज जरूरी है कि आप इसमें नवीनतम बातों की ओर ध्यान दीजिए सब देखेंगे कि इसमें एक तरह का एक expansion नवीन है। आज तक ऐसा कहीं भी किसी ने अनुभव होता है और ये ऐसे अन्दर खिंचता भी है। अपने किया नहीं। इतने जोरों में ये experiment कहीं चित्त की ओर देखिए, ये ऐसा लगता है जैसे कहीं भी successful इस संसार में नहीं हुआ क्योंकि मैं किसी चीज की ओर जाता है और आप चाहें तो भी इस संसार में बहुत बार आ चुकी हूँ और इस उसको हटा भी सकते हैं। उसका expansion हो कार्य को करने का मैने बहुत बार प्रयत्न किया। रहा है और उसको आप खींच भी सकते हैं। जैसे पहली मर्तबा इस जन्म ये कार्य सफलीभूत हुआ। कि कोई गुब्बारा होता है या इसको मराठी में फुगा इसलिए सबमें थोड़ा थोड़ा अधूरापन जो रह गया है कहते हैं, इसको आप फुला दीजिए तो वो ऐसे उसको आपको पूरा करना है। आप उसी अधूरेपन जाएगा और फिर अन्दर भी खिंच सकता है। इसी को complete करने के लिए आए हुए हैं । किसी तरह से आप लोग अपने चित्त की ओर दृष्टि को आप गिराने या घटाने नहीं आए लेकिन उसमें रखिए । आपका चित्त जो है वो किसी भी चीज की लीजिए। अब इसमें आप किस तरह से उसमें उतर अब आप देखिएगा अपने चित्त की ओर तो आप जो थोड़ा बहुत अधूरापन रह गया है उसको पूरा ओर जा भी सकता है, वहाँ से लौट भी आ सकता करने के लिए आए हैं। अब आप सोचिए कि एक है। ख्याल करें, देखें कि हमारा चित्त किसी वस्तुमात्र नए ज़माने के नए विस्तार के. एक नए लोग आप पर गया, जैसे समझ लीजिए आपका चित्त जो है जुलाई चैतन्य लहरी 24 अगस्त, 2004 आप जैसे यहाँ से कोई चीज चलती है तो वो पूरी उससे अपना चित्त खींच सकते हैं। अपना चित्त की पूरी चलती रहेगी और इसकी परिधि बनी रहेगी। वो अपने अन्दर घूमती रहेगी लेकिन अब हैं और उसको जहाँ तक चाहे पहुंचा सकते हैं यहाँ से जो छूटेगी गोल घूमकर के फिर आपके आप पूरे समाए हुए हैं बीच में जैसे कि एक समुद्र तरफ आ जाएगी। यहाँ बीच में भी नहीं रहेगा, होता है, समुद्र में से पानी बढ़ता हुआ हर एक खाली हो जाएगा। कहीं वो उसको जकड़ेगा नहीं। किनारे पर जाता है और फिर खिंच जाता है। ममत्व इस तरह से खींचता है। हरेक चीज, शरीर, लेकिन वो बीचोंबीच समुद्र का सारा उसका अपना मन, बुद्धि का तो छूटता ही है लेकिन और भी वास्तव्य है। जो वास्तव्य है जो easiest है, जो जितने कृत्रिम हमारे अन्दर बहुत सारे, हम सिर्फ होना है, वो अन्दर है और उसका जो reaction है मानव हैं, पहले और आखिर और हमेशा थे जो सत्य है ये सत्य भी इसी तरह से छूटता है क्योंकि हमने जो अपना ममत्व है उसको तोड़ लिया। और ममत्व तोड़ने का तरीका ध्यान का यही है कि आप अपने चित्त को हर समय बढ़ाएं, उसका मजा देखें। एक गाड़ी पर गया। अब गाड़ी पर गया, पर आप आप जैसा भी चाहें उसे घटा सकते हैं, बढ़ा सकते कुछ at awareness 1 जो चेतना है वो जाती है किसी चीज पे चित्त से और लौट आती है। इसी से आप detachment सीखते हैं। किसी चीज से हम कहें आप detach हो जाइए। सभी जैसे यहाँ वो गाड़ी आई, एक अब बढ़ गया, वहाँ तक गया और फिर आप उसको छोटी सी बात, उसमें से सबको बदबू आ रही थी। पहले सबको बदबू आई, ठीक है आप उस बदबू की realization के बाद में आई। अभी तक मैंने पहले ओर अपना चित्त ले जाइए तो बदबू आ रही है और चित्त हटा लीजिए तो बदबू नहीं आ रही। Detach आपको बताई थीं, इसके अलावा आप इस बात का करने की शक्ति आपके अन्दर आ गई। धीरे-धीरे ध्यान करें। जो deeper meditation में आपको आप अपने चित्त पे practice करिए। आदमी है करना है वो अपने चित्तवृत्ति का expansion और सब चीजों से सर्वधर्मसम्पन्न से बैठा हुआ है, उसके उसका खिंचाव। अब जब आप खिंचाव और जब बीच में बैठा हुआ है कि ये क्या है, ये क्या है, ये क्या है? ये भी है, आपको आश्चर्य होगा कि आपकी गहराई जो है वो ये भी है । लोग कहते हैं कि सब मेरा है। उसकी बढ़ती है एक ऐसा सोचिए गेहूँ गर खूब सारा ओर अपना चित्त डालिए और जैसे ही आप अपना आपने यहाँ फैला दिया, बहुत सारा गेहूँ, जिस चित्त डालेंगे आप जान जाएंगे कि मैं इससे चित्त आदमी ने फैला दिया उसका फैलाव ज्यादा हो हटा भी सकता हूँ। किसी में आपका चित्त involve नहीं हो सकता। और अब जो भी आप उसके प्रति कर दिया, उसकी ऊँचाई बढ़ गई कि नहीं बढ़ जो भी आप प्रेम जोड़ेगें या कुछ भी करेंगे वो फिर गई? तो उसी तरह से जब आपने सारा का सारा उसको चक्कर मारकर वापिस आ जाएगा लेकिन अपने को समेट लिया अपने चित्त को तो आप लिप्त नहीं होगा इसको आप समझ लें। पहले देखिए अन्दर की गहराई बढ़ेगी। और ज्ञान आते आप विचारों से जब किसी चीज को देखते थे तो ही, ज्ञान क्या आया कि हँसी आने लगी कि अरे मैं वापिस ले आए। ये आपकी विशेष शक्ति आपको बताई हैं ये बातें बहुत सारी जो english में मैने आप खिंचाव और expansion करने लग जाएंगे तो है। सब चीजों की ओर देख रहा गया। फिर गेहूँ इकट्ठा करके उसको ऐसे बड़ा जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2004 25 इसमें लिपटा हुआ था, ये भी कोई लिपटने की चढ़ने वाली होती है बेलें इनमें से निकलकर के वो इसको पकड़ लेती हैं, उसको पकड़ लेती है, फिर ही नहीं । कोई ऐसी विशेष संसार की ये बातें हैं ही इसको पकड़ लेती हैं। पहले बिचारी धीरे धीरे, धीरे धीरे ऊपर चढ़ती हैं। उसी तरह से जो मानव पार अपने यहाँ का एक लड़का है, पार हो गया था। नहीं हुआ होता है वो भी कभी इसको पकड़ता है वो interview में गया जब लौट के आया तो मैंने कभी उसको पकड़ता है, इसको पकड़ता है। इस कि नहीं हुआ? तो कहने लगा कि तरह से वो अपने को खड़ा करता है। कभी तो चीज है! माने ऐसा लगेगा कि कोई खास बात है नहीं । कहा भई हुआ मुझे कुछ लग ही नहीं रहा कि कुछ हुआ है कि सोचता है अरे मेरे पास position नही हैं तो मैं नहीं हुआ। होगा तो होगा, नहीं होगा तो नहीं दुनिया में कैसे चलूंगा? अरे मेरे पास पैसा नहीं है । तो वो तो मैं दुनिया में कैसे चलूंगा? अरे मेरे पास ये नहीं जो board वाले थे उन्होंने मुझे बताया कि साहब है तो मैं दुनिया में कैसे चलूंगा? लेकिन जो पेड़ ये लड़का अजीब कमाल का है, बिल्कुल डरा नहीं, अपने तने पर खड़ा हो जाता है वो स्वतन्त्रता में होगा। बाद में selection हो गया उसका कुछ नहीं। एकदम आया, जो कुछ भी उससे बात पूछी उसने साफ-साफ कह दी। जो कुछ भी थी आपके साथ भी हो रही है। आप अपने तना पर कह दी और चला गया, डरा न कुछ। ये कैसे क्या खड़े है ही लेकिन भय के कारण आप अपने में हो गया ? हमने कहा भई देखिए, हमने कहा था तंदुल निकालकर के इसको पकड़ रहे हैं, उसको न कि वो realized है आप देखिएगा उसको पकड़ रहे हैं, इसको पकड़ रहे हैं । जैसे आपको विशेष रूप से, आप examine करिए कि क्या पता होता है कि आप तना पर खड़े हैं ये आपको विशेषता है। तो उन्होंने कहा, हमने उसमें यही दूसरी बात लगती है। बात देखी, वो आया, हमने जो सवाल पूछे उसने सीधे सीधे जबाब दे दिया। न उसमें छल न कपट इसको रोकने का नहीं, चित्त कहीं उलझेगा ही अलग से खड़ा हो जाता है। लेकिन यही बात 1. पहली तो ये कि चित्त का निरोध नहीं करना, न, कुछ नहीं। उसने साफ साफ बात कह दी, ये नहीं। आप कोशिश करें चित्त कहीं उलझेगा हीं ये बात है, ऐसी बात है और फिर इस तरह से खड़ा नहीं। ये deep meditation में आप प्रयत्न करें, रहा माने लेना है तो लो वरना नहीं। शान से खड़ा कोई सा भी बड़ा सा प्रश्न आए आप उसकी ओर रहा, न तो उसने हमारा किसी तरह से अपमान देखें और देखते साथ आपको आश्चर्य होगा कि किया और न ही उसने बड़ा ही हमारे पीछे दुम चित्त वहाँ जाता है और लौट आता है। चित्त कहीं हिलाके खड़ा रहा। चित्त भी ऐसा ही है, जब चित्त उलझ नहीं सकता। फिर आप ये सोचें, समझ में विकृति रहती है, क्योंकि मनुष्य में दिव्यता तभी लीजिए कोई बड़ी भारी दुखद घटना हो गई, आती है जब वो पार हो जाता है। जब उसका चित्त लेकिन आप ये सोचिए यहाँ तो बड़ी भारी दुखद हर जगह में उलझा रहता है तो उसके चित्त में घटना हुई पर संसार तो वैसे ही चल रहा है। दुख विकृति आती है। समझ लीजिए जैसे कोई ये और सुख जो है वो एक हमारा दिमागी जमाखर्च आपने देखे होंएगे बहुत से पेड़ों में से जिसको है। ऐसी कौन सी बात हो गई जो हमें बड़ा दुखी तंदुल कहते हैं वो निकलते हैं। खास कर जो कि बनाती हैं या हमें बड़ा सुखी बनाती है या यहाँ ऐसी जुलाई - अगस्त, 2004 चैलन्य लहरी 26 समर्थता बिल्कुल जिस दिन जा जाए उस दिन सारे कौन सी चीज है जो हमें सुखी करे या दुखी करे? किसी से आदमी नफरत करे और किसी से घ्यार प्रश्न छूट जाते हैं। लेकिन जैसा मैंने उसके लिए कहा था उसके दो ही तरीके हैं एक तो अन्दर का meditation और एक बाहर का देखना। अब अपने हाथ से जो चीज जा रही है पहले बो कहते हैं भई अच्छा कर्म करो, अच्छा करो, बुरा करो। अच्छा और बुरा ये भी करें। ऐसी कोई सी भी बात नहीं है जिसमें ये होना चाहिए। धीरे-धीरे आपके चित्त का बढ़ना बहुत जोरों में प्रसारित होने लग जाता है और उसके बाद चित्त जब बिल्कुल सबल हो जाता है बिल्कुल तब् फिर हम लोग पूरी तरह से सबल हो जाता है मनुष्य देखते हैं कि आपके हाथ-वाथ जलते हैं, किसी को का विचार हो जाता है। जब कभी अकर्म हो जाए हाथ लगाने से हाथ जलते हैं, किसी को कुछ करने माने जब कर्म की भावना ही नहीं रही जैसे सूर्य की से पकड़ जाता है। शुरु- शुरु में ऐसा होगा और रोशनी है वो कौन सा कर्म कर रहा है? वो अकर्म उससे दूर रहना चाहिए जहाँ तक हो सके। में है । लेकिन कर्म तों हो रहा है उसका । ज़िस एकदम आग भट्टी में मत डालिए हाथ। जब वक्त पूरी तरह से अकर्मता आ जाए माने हाथ से लड़की खाना बनाना सीखती है तो पहले छोटे से कोई चीज बंट रही है और हो रहा है तो जो कुछ चूल्हे पर थोड़ा सा कपड़ा लगाकर के धीरे-धीरे भी अपने अन्दर कर्म पहले के इक्ट्ठे हुए हैं सीखती है फिर उसके बाद जरा उसका हाथ जिसको कहते हैं कि कर्मफल आपको भोगना जलना सीख लिया तो फिर वो बड़े चूल्हे पर काम पड़ेगा। बहुत से लोग बीमार आते हैं कहते हैं करना सीखती है। उसमें भी वो पहले एक सन्सी माताजी कर्म के फल हैं, आप क्या ले लीजिएगा? लेती है, तवा लेती है. फिर उससे वो रोटी सेकती हमने कहा हाँ ले लेंगे ये बाद की बात है। गंगाजी है। उसके बाद जब वो expert हो जाती है तो में आए तो धुल जाना ही चाहिए सब कुछ। मगर हाथ से ही रोटी बना लेती है। चूल्हे में हाथ आपके कर्मों के फल आपके हाथ-पैर गर दुख रहे डालकर भी वो ठीक तरह से ऐसे कर सकती है। है या कुछ आपको बीमारी हो गई या तकलीफ हो उसी तरह से शुरु में आज जिस को हम evil भी गई तो ऐसी कोई बात नहीं वो तो हम ले ही सकते कह रहे हैं, जिसको हम बुरा भी कह रहे हैं वो भी हैं लेकिन आपके कर्म शरीर से उठकर के मन में ठीक हैं फिर वो evil पने की जो चीज है जब आप चले गए। अब मन में से कर्म कैसे निकलेंगे ? वो जहाँ खड़े होंगे वो खुद ही भाग खड़ी होएगी। वो तो यहाँ आके भाग खड़े हुए माताजी की वजह से, वहाँ रहेगी ही नहीं। कुछ आप पर असर ही नहीं चलो शरीर ठीक हो गया लेकिन जब मन के अन्दर हैं। आने वाला उस चीज का ये दशा जब आ जाएगी कर्म बैठे हुए हैं । आप पार भी हो गए तो भी अब ये गन्दगी निकलेगी कैसे ? इसलिए यही करम जब आप करते रहेंगे तो अकर्म में ये सब बह जाएंगे। और जितना तब फिर माँ के protection की क्या जरूरत है? फिर आप खुद ही बड़े हो जाएगें तब फिर आपको किसी का पकड़ेगा नहीं, किसी का कुछ नहीं। कोई कहीं का, कुछ हो, आप जाइएगा, देखिएगा आप इस जन्म में कर डालेंगे उतना ही कर्म खत्म कि कुछ नहीं। जहाँ पहुंचे वहीं सब भाग रहे हैं हो जाएगा। धीरे-धीरे जब कर्म करते जाइएगा तो वहाँ से, वहाँ खुद ही वो टिकने नहीं वाले इतनी इस तरह से निकलते जाइएगा। आपकी अन्दर पूरी जुलाई चैतन्य लहरी 27 अगस्त, 2004 न मेरी कोई उंगली पकड़ती है, न हाथ में कुछ। हर इसमें रुचि अरुचि आदि कुछ भी नहीं रह जाता। समय वैसा ही प्रवाह रहता है। आप लोगों को गर आप बैठे हैं बैठे हैं, खाने को मिल गया खा लिया मेरे सिर पर कुछ गर्मी लगे तो इसका मतलब है कि नहीं तो नहीं खाया। कोई भी आप काम करें आप आपके अन्दर ही कोई दोष आ गया है ये इसका आपके सामने उदाहरण है मैं भी आपके जैसी ही आप उसी काम को करें जो परमात्मा का है. आप हूँ न, लेकिन आपके सामने उदाहरण है इसी तरह खुद का कोई काम नहीं करें। उसी का काम से जब आप भी हो जाएंगे कि जिसमें न तो कोई और आपको पता नहीं शैतान रह जाएगा न तो कोई बुरा रह जाएगा, जो ही सफाई हो जाने के बाद अन्दर में वही सम्यक भाव एक दूसरी चीज हैं, दुनियादारी की चीज नहीं । आपके हाथ से हो रहा है चल रहा। जैसे सूर्य है वो अपनी रोशनी दे रहा है आपके सामने आएगा वो आपके प्यार में और चन्द्रमा जो है वो सूर्य की रोशनी अपने अन्दर चाहिए और नहीं धुले तो वो भाग जाए। ऐसी जिस लौटा रहा है। ये समुद्र हैं ये चढ़ रहे हैं उतर रहे दिन दशा आएगी उस दिन फिर आपको इस हैं, अपने अन्दर से बादल भेज रहे हैं। सब कर्म हो protection की जरूरत नहीं रहेगी। अब protection रहे हैं लेकिन कोई भी ये नहीं सोचता कि हम ये के बहुत सारे तरीके आप ही. लोगों ने ढूढ के सब कर रहे हैं। पेड़ हैं पेड़ में से फल निकलते हैं, निकाले हैं उसमें से कुछ तरीके जो हैं आप चाहे फलों में से बीज निकलते हैं बीज में से पेड़ तो ये लोग बता सकते हैं आपको उठकर के निकलते हैं। कितने बड़े कार्य में ये लोग संलग्न हैं क्योंकि जैसे ये लोग इस्तेमाल करते हैं ये आप लेकिन इनको किसी को कुछ लगता नहीं कि हम इनसे पूछ सकते हैं । जैसे फोटो पर लेना, पैर से कुछ कर रहे हैं। सब आराम से चला हुआ है। एक निकालना, पानी से निकालना, अपने ही को अपना मनुष्य में ही प्रश्न हो गया है। वो लोग तो सब बंधन डालना आदि नाम different different नाम harmony में हैं, हम लोगों में प्रश्न हो गया है लेना वरगैरा वरगैरा बहुत सारे सब कुछ प्रकार हैं, क्योंकि के अन्दर परमात्मा ने ही खासकर धुलना ये इसके बारे में आप चाहें तो इन लोगों से गर बात मनुष्य अहंकार का वरदान दिया है कि जिससे हम सीख करें तो ये लोग सब बता सकते हैं। लेकिन realized जाएं। लेकिन अंहकार को मारने से ये मरता नहीं आदमी को ध्यान में आते वक्त पहले बैठ कर के है ये हमने देखा हुआ है इसलिए वो अपने आप देखना चाहिए कि माताजी से जो आ रहा है उसमें जैसा छूट जाए वही तरीका सहजयोग का है और वो अपने आप छूट जाता है वो भी आपने देखा है। हैं कि नहीं ? गर vibration रुक गए हैं तो उनको लेकिन करना क्या चाहिए ? अपने हाथ से जितना भी कर्म हो सके करें और क्या करना चाहिए. शरद जी बता सकते हैं, ये लोग कहीं हमारी कोई पकड़ है ? हमें vibration आ रहे निकालना चाहिए। उसको कैसे निकालना चाहिए दूसरा है कि deep meditation में आप जाएं जब बता सकते हैं किस तरह से बन्द हुए vibration आ तक आपकी वो दशा नहीं आ जाती जहाँ कुछ सकते हैं। गर हाथ में थोड़ी सी जलन है तो बुराई और अच्छाई नहीं रह जाती। आपने मुझे उसको फूक कर कैसे निकालना चाहिए । उसको देखा होगा कि मैं कहीं भी जाती हैँ मुझे न तो कोई उस वक्त फूक करके निकाल दीजिए, नाम ले negativity पकड़ती है न मुझे कोई भूत पकड़ता है, लीजिए। फूकने से निकल जाएगा एक दम, ऐसे चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 28 निकल जाएगा कि आपको लगेगा ही नहीं कि वहाँ कोई पकड़ भी है। Atmosphere में है, हर जगह है, आप पकड़ेंगे नहीं। अभी आपकी दशा वैसी है जैसे छोटी सी शुरु कर दी। जैसे ही वो ठण्डे पड़े वैसे ही खुशबू लड़की खाना बनाना सीखती है। लेकिन आप जब आनी शुरु हो गई बहुत ज़ोरों में और सब ठीक हो इस शास्त्र में निपुण हो जाएंगे तभी आप असली गया आपको भी, कितने ही लोगों को ध्यान में पार योगी होंगे क्योंकि कुशलता पूरी आनी चाहिए, होने से पहले या बाद में बहुत बार सुगन्ध आती है। perfect knowledge आनी चाहिए। जब perfect तो चैतन्य इसका knowledge आ जाता है तब आप ही इसका knowledge हो जाते हैं माने आप करते सुगन्ध आती है। तो जितना कुछ दुर्गन्ध वो अपने कुछ नहीं वो स्वतः सब मामला अपने आप चलते आप गिर सकता है गर आप अपनी ध्यान की दशा रहता है जैसे कि ये अगर perfect हो जाए और ठीक कर लें, याने आप अपने को ठीक कर लें। उसमें से मेरी आवाज गर perfect उसमें जा रही इसमें कोई बुरा मानने की बात नहीं है। आपने देखा है तो उसको कुछ नहीं करना पड़ता है, इसको कि शरद है, हम कहते हैं कि शरद काफी ऊँचे हैं. कुछ जानना नहीं पड़ता है, सीधे ही सारे का सारा कोई बहुत ऊँचे हैं, देवड़े हैं, पंत भाई हैं, आदि बहुत record हो जाता है। क्योंकि बोलने वाला और सारे लोग आप जानते हैं। करने वाला और सबको संभालने वाला पालनहार आई, इतनी बदबू अन्दर में आई कि समझ में नहीं आया अब क्या करें। इसके बाद उन लोगों ने नाम 1 लेना शुरु कर दिया और उसको vibration देना सुगन्ध देता है चैतन्य बहुत सुगन्धित है और अत्यन्त आह्लाददायी है। इसी से आपको साहू साहब भी आगे चले गए, अपने लाल साहब परमात्मा सबके सर पे मंडरा रहा है। Realized भी आगे चले गए, बहुत से लोग आगे चले गए। लोगों को एक बात और भी पता होनी चाहिए. ये भी अब इनके नाम लो, मैंने कहा सभी लोग आगे चले बहुत जरूरी बात है जिसको जान लेने से आपको गए और तो भी वो सब लोग पकड़ते ही हैं थोड़ा एक तरह की निर्भरता आती है। हरेक realized बहुत। किस किस का नाम लें, सभी लोग थोड़ा आदमी के उपर में देवता मंडराते हैं। जैसे किसी थोड़ा पकड़ते हैं शरद ने अभी पकड़ लिया बुरी negative आदमी के ऊपर में भूत मंडराते हैं वैसे तरह से। तीन दिन पहले उन्होंने बहुत बुरी तरह से ही बहुत लालायित है सारे देवता लोग उन लोगों पकड़ लिया था । ठीक है पकड़ लिया था लेकिन की मदद करने के लिए जो realized हैं। उनको समझ में आ रहा था कि पकड़े हैं इसलिए ये हालत सुगन्ध आती है और वो बराबर उनके आसपास हो रही है पकड़ गए ये समझ में आ रहा है, मंडराते हैं। आपमें से जिन लोगों ने इसका अनुभव इसको निकाल डालना बहुत ही आसान है। लिया होगा, अभी कोई बता रही थी उस दिन कि Realized आदमी के लिए तो बहुत ही आसान है। उनके देवर पर बाधा थी, उसपे भूत की बाधा थी उसको किसी तरह से निकाल डालना चाहिए। और साढे तीन बजे के करीब उनकी तबीयत बहुत कैसे निकालना चाहिए. क्या करना चाहिए उसकी खराब हो गई और वो लगे चिल्लाने चीखने और क्या-क्या विधियाँ है. ये वो सब जानते हैं और बाहर भी आदमी चिल्लाने चीखने लग गए और अपने ऊपर experiment करते हैं तरह-तरह उसके बाद में कहने लगे इतनी गंदगी अन्दर में इसको समुद्र में खड़े होकर भी निकाल सकते हैं, के जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2004 29 बहुत से पहले realized लोग जाकर पानी में ही भी लगता है और बड़ा आनन्द भी आता है। इतने बैठ जाते थे। अच्छी बात हैं क्योंकि बेचारे इतने लोग आज मेरे बच्चे हैं बेटे हैं, बड़े गौरव की बात परेशान होते थे. उनकी उंगलियां जलने लगती है माँ के लिए, लेकिन जो पायां हुआ है वो थीं। यहाँ गगनगढ़ बाबा महाराज हैं वो जब पार छोटी-छोटी चीजों पर मत जाया करें। हो गए तो उसके बाद वो पानी में बैठ गए, उनकी उंगलियाँ जो वो जलकर छोटी हो गई उनमें कभी आप यादव से पूछें, वो आपको बताएगें, अभी creative power तो आ गई थी परन्तु उनको ये पाटिल साहब आए हैं वो भी मुझे बता रहे हैं। नहीं मालूम कि उनकी उंगलियाँ क्यों जल जल कर छोटी हो गई थीं? उनकी उंगलियाँ जल कैसे-कैसे इनको अनुभव आए, कैसे कैसे इनके जलकर इतनी छोटी हो गई क्योंकि आप जानते हैं साथ हुआ। मतलब कोई भी problem हो उसको आपके भी हाथ जलते रहते है अब बेचारे को पता तो मैं solve कर ही सकती हूँ। पर थोड़ा थोड़ा ही नहीं था। अब बम्बई शहर में वो आते ही नहीं आप भी चलें, आप भी सीखें, जाने इस चीज़ को। है क्योंकि बम्बई शहर में इतने हाथ जलते हैं कि आप ही डॉक्टर हैं और आप ही दवा हैं। आप ही आप लोगों को सबको इसका अनुभव हुआ है। इधर ladies में कित्तने ही लोग बता सकते हैं कि उनके हाथ बहुत ज्यादा जलते हैं या उनको पता के हाथ से जाने बाला है और आप ही उसको ही नहीं था कि इनको किस प्रकार ठीक करो। समझने वाले हैं। तुमको थोड़ी सी कहीं चोट वोट बेचारे जाकर के वहाँ बैठ गए। बहाँ जाकर बैठ गए. अब वो पानी में बैठे रहते हैं। क्योंकि अब आपको चिन्ता की बात नहीं। ऐसे पहले कहाँ थे लोग? अब तो कोई बताने वाला है. जानकार है, समझाने वाला जो ऐसे लोग पार भी हुए हैं वो बेचारे कहते हैं कहाँ है कि हाथ जल रहे हैं कोई हर्ज नहीं इस तरह से से हम पार हो गए, भगवान बचाए। ऐसे ऐसे निकाल डालो। हमारे देवड़े साहब के हाथ दो चार इसलिए पहले लोग पार हो जाते थे तो हाथ में लोगों से इतनी बुरी तरह जले थे कि वो तो किसी चिमटा लेकर बैठते थे उनका दोष नहीं था कोई किसी को देखकर nervous हो जाते हैं कि आए उसको तड़ाक से मार देते थे कोई गर माताजी इनसे कल वो दाढ़ी बाले आए थे उनको जलाने वाला आता था जिसकी तरफ से ऐसे गरम देखकर इनके दोनो हाथ आकाश की ओर इस गरम भाप आही थी तो उसको लेकर चिमटे से तरह से घूमने लगे तो आप इसको सोच लीजिए मारते थे उनको चिमटे वाला कहते थे। हमने कि आपको कोई बताने वाला है समझाने वाला है अपने बचपन में देखे हैं। ऐसे मैं देखकर हैरान हैँ कि realization के बाद कितनी dangerous बात कि जो आए उसको चिमटे से मार रहे हैं! जिसको है, कोई भी आपको पकड़ सकता है। आप बिल्कुल देखो उसे। मुझे बड़े प्यार से बुलाते थे। मैने कभी छोटे से बच्चे हैं, बिल्कुल और ऐसे छोटे से बच्चे चिमटे विमटे से मार नहीं खाई । इनके पास कौन बहुत जरूरी है कि अपनी स्थिति जो है उसको जाए? उसकी वजह ये है कि उनको कोई समझाने लग भी गई तो माँ बैठी हैं ठीक करने वाली। कोई संभाले रखना। हमारा तो आप पर सब पर हाथ है वाला बताने वाला था ही नहीं। अब आप इतने ही, हर समय और हर समय आपका सबका ख्याल लोगों की बीमारियाँ ठीक करते हैं, कैंसर जैसी रखे हैं। और अत्यन्त प्रेम है सबसे और बड़ा गौरव बीमारियाँ आप ठीक करते हैं इस तरह की बीमारियों चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 30 को आप ठीक करते हैं, कितनी ही तरह की तुम्हें कैसे मदद मिलेगी? इसलिए बेहतर है ऐसे बाधाओं को आपने हटा दिया है। इतना आपने लोग जो तुम्हारे इसमें आते हैं और जो पार होने के कार्य किया है. जरूरी है कि उसमें आपको कुछ न बाद दिखाई नहीं देते, ऐसे बहुत से लोग हैं, वो कुछ पकड़ेगा ही। लेकिन उसका इलाज, उसका लोग गर पार भी नहीं हो रहे हैं तो भी आपको भी दवाखाना है। आपका भी दवाखाना है और उनसे भिड़ने की जरूरत नहीं क्योंकि वो आके आपको बताने वाला भी बैठा है और सब बारीकी रहेंगे नहीं हमेशा के लिए । वो चार साल आएंगें. समझाने वाला बैठा है। कोई डरने की बात नहीं। नहीं तो छः साल आएंगे वो दस साल भी आएंगे फिर भी गर आप डरे तो इसका मतलब है कि आगे उनसे भिड़ना नहीं। आ रहे हैं बैठने दो। आपको जाने का इस जन्म में नहीं होगा ये तो realized मालूम है पार नहीं हैं। जो एक बार पार हो गया वो लोगों की बात हुई, लेकिन एक और बात हमको तो पार होता रहेगा लेकिन जो हुआ ही नहीं पार समझना चाहिए। बहुत से सन्त साधु ऐसे हैं जो मर चुके हैं पर नहीं। ये आज आपको मैं दूसरी तरह की बात बता जन्म नहीं ले पा रहे हैं। कोशिश कर रहे हैं बहुत रही हूँ। उनपे भी सन्ति लोग ही काम करेंगे क्योंकि वो जन्म नहीं ले पा रहे हैं। क्योंकि उनको बगैर उनके काम नहीं बन रहा है। भूत बाधा जो है | और डावांडोल चल रहा है उससे भिड़ने की जरूरत परन्तु ऐसा जीव नहीं मिल रहा है या कुछ और प्रश्न है । उसको भगाने के लिए ये सन्त ही लोग काम तो ऐसे सन्त साधुओं का भी ऐसा विचार बन रहा है कि हमारे बीच में जो लोग कभी भी realized देता? आप लोग परलोक में तो जा नहीं सकते तो नहीं हो सके, ऐसे बहुत से लोग है अपने यहाँ जो उन्हीं को ये कार्य करने दें । वो लोग कहते हैं कि कभी भी नहीं होगे क्योंकि उन्होंने पहले ऐसे कर्म हम आकर के इसमें कार्यान्वित रहेंगे और आपके किए करेंगे। तो क्या आप लोगों को वो दिखाई नहीं हुए हैं कि कुछ ऐसे कार्य किए, कुछ ऐसा कार्य को हम बढ़ाएंगे। वो आपको किसी को ठीक किया है कि उसमें फंसे हुए हैं या कुछ ऐसी बात नहीं करेंगे, कुछ नहीं करेंगे, पर वो इस तरह का है, तो वो कहते हैं कि हम इनके अन्दर आ जाएं। कार्य करेंगे जो दूसरों के साथ में जैसे ऐसे लोग हैं, तो आपको उनके अन्दर बाधा सी लगेगी वो वो जरा भाषा प्रबल होंगे। वो बोलेंगे, लोगो को कोई नुकसान वाले नहीं हैं। इनसे लड़ने की खींचकर के लाएंगे, बहुत से और लोगों को लाएंगे जरूरत नहीं। ये हालांकि बड़े theoretical लोग जिनको आना है। जो हैं उनको बड़ी अजीब सी बात लगेगी कि माताजी ऐसी बात कहते हैं, उनको छेड़ो नहीं, उनको छेड़ोगे तो उनके अन्दर भूत तो घुसे ही हुए हैं। भूत नहीं होंगे तो सन्त आ जाएंगे। सन्त आने होने वाले। उनको किसी ने कहा कि लिखो इन पर से अपना कार्य होगा, इसलिए बहुत से लोगों में तो वो लिखने लग गए हमारे ऊपर। फिर उसके सन्त भी घुसे हैं उनकी बड़ी इच्छा है, उन्होंने ऐसा कहा है हमसे कि हम चाहते हैं कि अपने को लाएं। लेकिन अब हम छोटे बच्चे के रूप में आएंगे तो में फंस गए। तो ऐसे लोगों को बचाना चाहिए, परन्तु ऐसे हमारे पास एक साहब थे उन्होंने हमारे ऊपर Article भी लिखा था परन्तु वो कुछ ज्यादा नहीं टिक पाए। वो भाग गए। वो कभी पार नहीं बाद में जरा वो वेचारे दूसरे ही चक्कर में फंस गए और वहाँ पर दूसरा ही ढंग चल गया। तो वो उसी जुलाई वैतन्य लहरी अगस्त, 2004 3१ उनको सन्तों ही के साथ में रखो। कम से कम इसलिए सबको इसमें समेटे रहना हैं और सबको सदाचार में रहेंगे और अपने यहाँ आने से इनके हर महीने एक बार तो भई मिलना चाहिए। हर उपर कोई भूत बाधा नहीं आएगी, इनको कोई realized आदमी को हर महीने एक बार तो भई शारीरिक पीडा नहीं होगी उनको मानसिक पीड़ा मिलना चाहिए। वो ऐसा आप बना लीजिए हर नहीं होगी, उनकी बुद्धि सही रहेगी। क्योंकि सन्त महीने में एक बार सबके पास में चिट्ठी जाए। या किसी को सताते नहीं इसलिए उनके अन्दर सन्त कोई ऐसा newspaper बना लीजिए जिसको सब ही लोग आते हैं । लेकिन जो महन्त हैं वो भी लोग पढ़ते हों, उसमें एक महीने के लिए वहाँ पर आपके ऊपर मंडरा रहे हैं, वो भी आपकी मदद कर दिया जाए, जहाँ पैसा न लगे? पैंसा आप लोग कहीं रहें हैं। वो आपको बहुत सारी बातों से बचाएंगे और भी मत दो न आप लोग पैसा लो। पैसे के मामले में आपको संभालेंगे। आप पड़िये मत। आश्रम बनाने के लिए जो सरकार आपको शारीरिक मानसिक, बौद्धिक protection जमीन भी देगी उसमें भी कभी इस तरह से विचार रहेगा। अपने संसार के जो कार्य हैं उसको देखेंगे, न करें कि आप सब्जी लगाइए, फिर आप सब्जी आपके घर द्वार का जो काम है वो देखेंगे, आपके बेच रहे है! ये सब धन्धे करने की कोई जरूरत बाल बच्चों को संभालेंगे ये सब वो लोग करेंगे लेकिन आप लोग अपने को पूरी तरह से परमात्मा आप लोगों ने पढ़ा होगा कि वो चेयरमैन स्टेट बैंक में लीन करे, बहुत बड़ी आप पर जिम्मेदारी है। का क्या हाल हो गया ? वो आश्रम में 90 लाख आज मैं चाह रही थी कि गर किसी को कोई प्रश्न उसको दिया 20 लाख उसको दिया, वहाँ फर्नीचर हो, कुछ discussion करना हो बो करें। पिछले बन रहा है, वहाँ फर्न्नीचर बनाने का आश्रम में काम पाँच साल में मुझे बहुत अच्छे अनुभव हुए हैं और होता है आप जरा अक्ल लगाएं। आप मेहरबानी आप लोग बगीचे में जैसे gardner होते हैं इस से अपने इसमें फर्नीचर बनाकर उसको बेचिएगा तरह से हैं। आपको इस बगीचे को कैसे रखना है, नहीं, नहीं तो कल देखिएगा हमारे शिष्य लोग इसको किस तरह से ठीक रखना है, कैसे चलाना फर्नीचर बना रहे हैं कोई जरूरत नहीं। वहाँ पर है, वो सब आपको सोचना है वो आप सोचकर के आपको करना है तो gardening कर लेना नहीं तो उसको बताएं कि आप कैसे हैं उन्होंने एक जो 9ardner रख लेना । ये सब काम करने के लिए बात कही वो ठीक है वो कह रहे थे गर हम लोगों बहुत से लोग हैं। आप लोग तो विशेष काम के लिए ने realization दिया और उसके बाद हमनें follow हैं आप लोग ध्यान में चैतन्य दें और इस तरह से up नहीं किया, realization होगा, ये बात सही है दुख दूर करने में उनको चैतन्य देने में उनको गर हम लोगों ने अपने जो realization की जो देने जागृति देने में, उनको पार कराने में संलग्न रहें । पर भी follow up नहीं किया उनको प्रयत्न नहीं, और पैसा जहाँ तक है दूर रहें । पैसे के मामले में किया उनको आगे बढ़ाते नहीं रहे, उनको हमने बिल्कुल आप न लगें पैसा. पैसे का इंतजाम होना ख्याल नहीं किया तो हो सकता है उनका जो चाहिए और बो जितना जितना रुपया लो उसका realization है वो खो जाए और फिर बहुत देर हिसाब किताब रखो, कोई बात नहीं। चैतन्य का बाद जागेगा और तब तक उनको परेशानी होगी और पैसे का हिसाब किताब आपने जोड़ दिया तो । नहीं । हम लोगों को पैसा नहीं कमाना है। आज मता चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 32 आप पकड़ जाएंगे हमेशा के लिए । इसलिए पैसा मैं सीधी हूँ और भोली भी हूँ लेकिन ऐसे बड़ी और परमात्मा इसका बिल्कुल कोई सम्बंध नहीं। कोई आपको मुफ्त में जगह देता है भले नहीं हूँ। आपको पहले मैं बता देती हूँ कि अगर पैसे के देता है तो कोई बात नहीं। सब परमात्मा की जगह चक्कर में आपने मुझे चलाया तो मैं उसमें चलने है। अगर आप कहीं बैठे हुए हैं, किसी ने आपको वाली नहीं। चाहे आप लोग पार हों चाहे नहीं हों जगह दे दी वो परमात्मा का आदमी था उसने मेरा इससे कोई मतलब नहीं है पहले ही समझ आपको जगह दे दी। दे दी नहीं दी भला। जगह लेना चाहिए कि पैसे का और इसका सम्बंध कहीं से कोई भी मनुष्य परमात्मा नहीं बन सकता। भी और किसी जगह भी नहीं है। दूसरी चीज चालाक भी हूँ। इस चक्कर में मैं आने वाली नहीं राजकारण से भी इसका सम्बंध नहीं है। अभी आश्रम बहुत से बने आज तक, हमारा कोई आश्रम नहीं बना इसलिए उधर कोई भी दृष्टि न लगाएं। आपको ऐसे भी लोग आएंगे कि चलो तुम election मेहरबानी से अपनी दृष्टि उधर न लगाएं। आश्रम में में खड़े हो जाओ, तुम्हारा इतना following है। हम ये करेंगे और वो करेंगे और आश्रम में हम आपको राजकारण में जाना है तो आप राजकारण buisness करेंगे। मैं ये चीज कभी चलने नहीं में जाएं। लेकिन राजकारण मनुष्य ने बनाया परमात्मा दूंगी। और जब मैं देखूंगी कि आप लोग उस ने बनाया नहीं। जो परमात्मा ने बनाया है जब धंधे में फंस रहे हो तो मेरे बस के आप लोग नहीं, उसमें खड़ा होना है तो उसका राजकारण से और फिर मैं आपके लिए कुछ नहीं। Business आपको सत्ता से कोई भी सम्बंध नहीं। ये पहली बात है। बिल्कुल नहीं करना है, किसी भी तरह, पैसा भी गर आप ये सोचे कि साहब आप बड़े भारी trustee आपको इक्ट्ठा नहीं करना है किसी भी तरह, कोई हैं, यहाँ तो दो ही चार हैं बेचारे अभी लेकिन कोई सी भी चीज के लिए | एक साहब थे वो मुझसे अपने को सोचे कि मैं बड़ा भारी सेक्रेटरी हूं या मैं कहने लगे मैं आपके फोटो बेचूंगा, जितनी भी इसका चैयरमैन हूँ कल मैं सोचू इसका चैयरमैन हैँ income होगीं उसमें मै आश्रम को पैसे भेजूंगा। तो इसमें चेयर-वेयर का कोई भी सम्बंध नहीं है मैने कहा कौन सा आश्रम, किसको पैसे दोगे? और न ही इसका आसन है न पीठ है। पहली बात किसने कहा है ? 1. समझ लो आपस में करने की बात है, न इसका इसकी कोई आपको चिन्ता करने की आवश्यकता कोई पीठ है न इसका आसन है। नहीं। सब करने वाला और अपने को संभालने वाला वो है। हम कोई अपना काम थोड़े ही कर रहे आदिशंकराचार्य की गद्दी पर कौन लोग बैठे हैं? हैं उसका काम कर रहे हैं। उसको देना हो दे नहीं None realized soul हैं। कोई गद्दी पर नहीं देना हो नहीं दे। और वही काम जो रात- दिन हम बैठने वाला। सब अपनी गद्दी पर बैठेंगे दूसरे की गोबर खाने का करते हैं वो इसमें आकर भी करने गद्दी पर बैठने से हमेशा आपको निकालने का डर का है तो कोई फायदा नहीं। मुझे इस तरह का रहता है। अपनी अपनी गद्दी पर सब लोग बैठेंगे सुझाव कोई भी न दे क्योंकि दो चार ने दिया है और अपनी ही गद्दी पर सब लोग राज करेंगे। तो इससे मेरा बड़ा जी घबराता है। मेहरबानी से मुझे बहुत ठीक है, दो चार चीजों को बिल्कुल गाँठ इस तरह के कोई पीठ निकालने की आवश्यकता नहीं । बांध लीजिए। तीसरी चीज कि सदचरित्र, सदाचार सुझाव मैं सुनने वाली नहीं । ऐसे तो जुलाई चैतन्य लहरी 33 अगस्त, 2004 और शुद्धता, इसके बगैर कुछ भी आप इस मार्ग में की बीमारियाँ ठीक कर रहे हैं उनका जीवन कैसा जा नहीं सकते गर आपके अन्दर कोई ऐसी है। उसकी बुराई कर, उसकी बुराई कर हालांकि आदतें हैं तो आपको उनको छोड़ने का प्रयत्न अभी तक तो ऐसा मैँने देखा नहीं, अभी तक तो करना ही होगा मेरे पाँव की कसम लेकर। असल इतनी बुराई नहीं आई है लेकिन हो सकता है। में बात ये है अब आपके अन्दर शक्ति है बहुत कोई बात हो हमसे आकर कहें। सबमें कमियाँ हैं बड़ी। जैसे हिन्दुस्तानियों की खास आदते ये हैं अभी कोई perfect तो हुआ नहीं। इसलिए जो कुछ आपस में बुराई करना। सब आप प्रेम में बंधे हुए हैं, भी जिसमें कमी है उसका इलाज मैं खुद ही बैठे हम सब भाई बहन हैं। आपस में गर किसी से कुछ बिठाए कर दूंगी। और अपने में जो कमी है वो हो भी गया, हो सकता है किसी का पैर डिग भी किसी को कहने में शर्माएं नहीं। सब अपने भाई जाए, तो जरूरी नहीं कि उसको जाकर सारे बहन हैं। जैसे ही आप कह देंगे मेरा ये पकड़ा है संसार में आप बदनाम करते फिरें। मुझे आकर तो वैसे ही साफ हो सकता है। अगर आप नहीं कहेंगे तो कौन कर सकता है ? इसमें कोई बुरा आप बताएं। ये चीज हम ठीक कर सकते हैं लेकिन जान मानने की बात नहीं। आप जानते है सबका ही देकर भी अपने भाईयों को बचाने की आप पर पूर्ण पकड़ता है, सबको ही होता है। सब डॉक्टर हैं। जिम्मेदारी हैं। भाईयों को और बहनों को। इसके डॉक्टर लोग आपस में फ्री इलाज करते हैं इसलिए आपका सबका इलाज फ्री हो सकता है। भाईचारा | लिए कुछ भी करना पड़े हमें उसको बचाना पड़ेगा। मतलब morally । इसका मतलब नहीं कि आप आना चाहिए और अत्यन्त पवित्र जीवन की ओर किसी को पैसा दें. आप किसी को पैसा उधार नहीं अपनी दृष्टि रखें। दें। कोई गर आपसे पैसा उधार माँगता है तो बिल्कुल एक कौडी न दें. बिल्कुल देने की जरूरत नहीं सकता, पहले गर पवित्रता की मैं बात करती नहीं, किसी को एक पैसा उधार देने की जरूरत न तो वो ही perversion की बात आ जाती है। नहीं। गर कोई आदमी अपने spiritual life में इस तरह से आप लोग एक चीज छोडने जाते हैं तो kundalini में उसका पतन हो रहा हो, किसी तरह दूसरी पकड़ लेते हैं, दूसरी चीज छोड़ने जाते हैं तो गिर रहा हो, उसको कोई आदत पड़ गई हो तो तीसरी चीज पकड़ लेते हैं। लेकिन realization के सबको उसकी मिलकर मदद करनी चाहिए । उसके बाद ये problem नहीं रहता। Realization के चक्र चलाओ अपने प्यार से। पवित्रता पूरी तरह से बाद जो यहाँ छेद कर दिया है न इसके कारण जब तक हमारे अन्दर नहीं आएगी तब तक हमारा हरेक चीज यहाँ से निकल जाएगी। आप एक चीज कार्य अधूरा रहेगा। आपको ये पता होना चाहिए छोड़ेंगे वो यहाँ से निकल जाएगी। छूटेगी यहाँ से, कि सारी दुनिया की दृष्टि आप पर है। ये लगाकर निकल जाएगी, पूरी ही निकल जाएगी। इसलिए वो के आप दीवाली सजाइये। लोगों की दृष्टि घर पर नहीं और जगह घुसने वाली। ये जो यहाँ छेद कर नहीं होती उन दीयों पर होती है जो जलते हैं। दिया है ये इसका फायदा है। जो आदत है उसका आप हरेक के जीवन की ओर संसार की दृष्टि है विचार मन में ले लें, उसको यहाँ रखकर उसको कि आप ये जो बड़े पार हो गए हैं और दुनिया भर निकालें, वहाँ पर जो आदत है आपको वहीं भारी तो पवित्रता बहुत जरूरी उसके बगैर कार्य बन जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2004 34 लगेगा। नाभि पर किसी को खाने की आदत है. समझ लिया है कि हम भई ईसाई हैं, हम मुसलमान बहुत ज्यादा अच्छा नहीं लगता, बहुत ज्यादा खाता हैं, हम हिन्दू हैं, अब बस बाकी सब बेकार है। तो है, नाभि पर ध्यान रखें। नाभि आपकी यूँ यूँ कर ये misidentification है और सब कुछ झूठ है सच रही हैं। नाभि से लेकर के उसको धीरे धीरे धीरे सिर्फ एक ही है कि हम मनुष्य हैं। बिल्कुल उस धीरे करके उसको निकालें। सब निकल जाएगा सच्चाई पर एक दम आ जाइए, reality पर | पहले सब आदतें यहाँ से निकलेंगी, सब गंदगी यहाँ से आप उस पर आ जाएं फिर बाकी चीज़ आपको खुद निकलेगी अब उल्टी तरफ को चलेगा अभी समझ में जा जाएगी Misidentification अपने जो देवड़े साहब ने मुझे बताया कि मेरे यहॉाँ से अहंकार हैं उनको देखते रहना हैं पूरा समय, हर समय टूटा। सच्ची बात है। श्वांस देखना, सुनना, सूंधना, देखना है अभी हम क्या सोच रहे हैं ? अभी हम ये स्वाद सब यहाँ से है। आखिर सब चेतना की ही सोच रहे हैं कि घर जाकर हमें अभी खाना बनाना वजह से होता है और जब चेतना यहीं पर आ गई है खाया नहीं यहाँ पर | कुछ लोग ये सोच रहे हैं तो सब यहीं पर है। हृदय का स्पंदन सारे शरीर कि office में आज क्या हुआ, अब office में कल का कार्य यहाँ से चलता है। इसमें कोई भी ऐसी क्या होगा। तरह तरह की बातें सब लोग सोच रहे बात जिसको आप निकालना चाहते हैं अपने अंदर हैं मुझे सब मालूम है लोग क्या सोच रहे हैं। से उसको आप दबाकर के और यहाँ से निकाल निर्विचारिता में मेरा भाषण सुनना चाहिए । लेकिन दें। आदते छूट जाएंगी। सारी आदतें आपकी यहाँ नहीं। इन विचारों को नहीं रखना। खाना हमारा से निकलकर छूट जाएंगी। क्योंकि ये छेद हो गया बनाने वाला बैठा हुआ है हम नहीं खाना बनाएंगे। ये बड़ा फायदे का है। ये छेद नहीं था तो इसको आप एक बार ये सोचकर देखिए, जब आपके अन्दर इधर से दबाइए तो जैसे कहते हैं समुद्र को इधर से ये भी चमत्कार हो गए कि आप बैठे विठाए निर्विचारिता दबाइए तो दूसरे तरफ से निकल जाता है लेकिन में उतर गए तो ये भी चमत्कार देख लेंगे। क्योंकि उसमें गर एक जगह बना दी जाए तो वहीं जाएगा। matter भी तो उसी चैतन्य शक्ति से चलती है। इसलिए एक तरफ से गर दबाइएगा तो दूसरी हुआ है। तरफ से निकलेगा नहीं वो बाहर निकल आएगा ऐसे ऐसे आपके प्रश्न जो हैं ऐसे छूट जाते हैं। प्रयत्न लेकिन करें और सोचें, अपनी ओर देखें कि निर्विचारिता में जाते ही आप समझ जाएंगे कि आप | उसको भी देखें। खाना बनाने वाला बैठा हमारे अन्दर क्या अपवित्र चीज है। जैसे हमारी माँ का नाम है ऐसे ही हमें निर्मल में उसकी मदद आपके अन्दर आ गई है । आपको होना है। और हमारे अन्दर, हमारे अन्दर क्या कुछ और प्रश्न हो तो मुझसे आज पूछ लीजिए | अपवित्र चीज है जो दूसरों के अन्दर नहीं। क्योंकि अब ध्यान नहीं करेंगे क्योंकि समय अब हो गया है यही बात आती है। हाँ अभी मैं देख रही हूँ किसी काफी। अब सबको ध्यान मिल गया है। किसी को ऐसा लग रहा है कि हाँ उनमें ऐसा, उनमें ऐसा ये नहीं। मेरा मतलब हमारे अन्दर क्या सके तो शरणागत परमात्मा के हो गए हैं और निर्विचारिता अगले सत्र में ध्यान होगा उस वक्त कुछ गर हो कुछ मंत्र वगैरा पूजन वरगैरा कर लिया जाए, जिससे आपको विशेष रूप से कवच दिया ये हमारे misidentification हमने किसी को ये जाएगा| उससे ये कि आप पर फिर कोई आफत न है मतलब हम जो हैं उसके अन्दर कौन सा है। चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 35 घन आए। बाहर जो शैतान लोग घूम रहें हैं उससे आप सुगन्ध वो चैतन्य है और फूल का नाम जो भी हो लोग और संकट में नहीं आएं। तो जरूर आएं। तो नाम आपको समझ में नहीं भी आए तो सुगन्ध उसके बाद का प्रोग्राम पूना में है जिनको आना है हरेक मनुष्य को आता है। वो पूना भी आ सकते हैं। लेकिन पूरे हफ्ते का प्रोग्राम आप इन दो हफ्तों में attend करें तो अच्छा इंडियन हो, सबको सुगन्ध आता है। इस पर कोई रहेगा अब जो मैंने बात कही है उस पर विचार भाषा करने की जरूरत नहीं। इसी तरह से परमात्मा को रखो चाहे वो अग्रेज हो, फ्रैच हो, किसी फूल 1 करें। अब मेरी बात पर आपको conditioning नहीं का सुगन्ध जो ये चैतन्य शव्त्ति है ये भी हरेक हो सकता। Conditioning भी यहाँ से निकल आदमी को आ सकती है। चाहे किसी तरह का जाएगी। बात का जो सार है वो उपर जाएगा। हो इस भाषण में जो मुझे कहना था वो दूसरी Conditioning यहाँ से निकल जाएगी। Realization बात लेकिन जो मुझे देना था वो दूसरी बात वो के बाद सबसे बड़ा फायदा ये है कि कोई चीज अन्दर आत्मसात हो गया और साथ ही जो भी आपको चिपक नहीं सकती। खाली चैतन्य चिपक अन्दर गड़बड़ियाँ हुई हैं सबको यहाँ से निकाल सकता है। माने मैं गर चाहे उर्दू में बोलू चाहे दो। अन्दर मंथन होगा उसके साथ जो फारसी में बोलू चाहे फ्रंच में बोलू लेकिन उसकी चक्र घूमकर के उसको फेंकना चाहता है उसको जो चैतन्य शक्ति बह रही है न उन शब्दों से वो फेंकने दो। अपने आप उसको निकाल दो, किसी आपके अन्दर आ जाएगी। इसमें से जो viberation किसी का सिर भारी हो गया हो उसको निकाल हैं वो आपको पकड़ते हैं। उसको भाषा समझ में दो। सर जब भारी होता है तो दूसरों को पकड़ता नहीं आने की जरूरत। जो प्रेम है न अन्दर से वो है, कुछ अपना भी बचा खुचा निकल आता है। भी कुछ आपके अन्दर बह जाएगा जैसे फूल का आपको निकाल दो। इसमें कोई बात नहीं। Left hand से नाम नहीं पता लेकिन शहद आपके अन्दर उतरता निकाल दो right hand मेरी तरफ कर लो। किसी जाएगा। सुगन्ध आपके अन्दर उतरता जाएगा। को सवाल पूछना है पूछ लो। मेरे बच्चो आपको समझ लेना चाहिए कि मैं अपमान एवम् पीड़ा से परे हूँ। क्या आप जानते हैं कि ईसा मसीह को जब सूली पर चढ़ाया गया, वे अपनी पीड़ा के साक्षी थे? उन्हें कभी भी अपमानित नहीं किया जा सकता। परन्तु ये लोग शैतानी शक्तियों के दबाब में हैं। हमें इनकी रक्षा करनी होगी। क्या आप चाहते हैं कि वे सब नर्क में चले जाएं ? परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी अपनी ओर चित्त रखें मुम्बई, 21-12-1975 परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन सहजयोगियों का प्रेम इतना अगाध है कि शब्द जितने जल्दी मिथ्या हमारे अंदर से मिटता जाता है सूझ नहीं रहे कि किस तरह से बात की जाए। उतनी ही जल्दी हम लोग उस चित्त को हलका आपको पता है कि संसार में हर जगह आज कर लेते हैं। सहजयोग में यही चित्त जो है, ये सहजयोगी उत्क्रांति की ओर, evolution की ओर चित्त परमेश्वर से जाकर मिलता है। यही चित्त उस बढ़ रहा है। बहुत से सहजयोगी बड़ी ऊँची दशा सर्वव्यापी, परमेश्वर के प्रकाश में जा कर डूब जाता में चले गए हैं। आनंद के स्रोत उनके अंदर बह रहे है। यही मानव का चित्त जो कि हम प्रकृति का रूप हैं। कुछ तो बिल्कुल निमित्तमात्र हो करके ही समझते हैं, प्रकृति का जो ये फूल है वो परमात्मा के संसार में एक विशेष रूप से कार्यान्वित हैं। लेकिन प्रेम सागर में विसर्जित हो जाता है। लेकिन ये चित्त हर एक देश की एक अपनी अपनी, मैं देखती हूँ कि कितना बोझिल है, कितना अव्यवस्थित है, कभी परिपाटी है। मानव हर जगह एक ही है। इसमें कभी देखते ही बनता है। कोई अंतर नहीं है और सहजयोग एक अन्तर्तम की ही व्यवस्था है जिसका कि बाह्य से कोई सम्बंध है कितने आनंद में उतरे, आप कितने शांति में उतरे, ही नहीं। तो भी चित्त जो कि प्रकृति का एक आप कितने प्रेम में उतरे। मिथ्या में रहने वाले लोग स्वरूप है, जिसे हम कुण्डलिनी के नाम से जानते सहजयोग को नहीं प्राप्त कर सकते। हमारी मेहनत हैं, उसके अंदर आप जिस जिस देश से गुजरे हैं, से क्या हो सकता है? ज्यादा से ज्यादा हमारे जिस जिस जन्म से गुजरे हैं, जिस जिस प्रणालियों कुण्डलिनी पर बिठा कर आपको हम वहाँ छोड़ देंगे से गुजरे हैं, जिस जिस व्यवस्थाओं में से आपका लेकिन आप बार बार गिर आते हैं। उसका आंनद सहजयोग की पहचान एक ही है कि आप 1. व्यवहार हुआ है, उस सभी का टेपरिकार्ड है । भी नहीं उठा पाते जहाँ आपको पहुँचाया है। हर इसके कारण हर एक देश का, मैं देखती हूँ, मानव एक देश में एक अजीब- अजीब तरह की समस्याएं थोड़ा थोड़ा सा भिन्न हो जाता है। बड़े आश्चर्य की बात है कि मानव जितना कुछ लेना चाहिए क्योंकि हमें अपनी समस्या पहले मिथ्या है उसे कितने जोर से पकड लेता है और समझनी चाहिए। अपने प्रति दूसरे देशों की समस्या सत्य को पकड़ने में कितना कतराता है! कितना है उसे भी समझना चाहिए। जैसे कि अभी यू.के. में ढीला होता है! इतने मुश्किल से अपनाता है सत्य मैंने अपना कार्य बहुत धीमा शुरु किया है। बहुत को और असत्य को बहुत बुरी तरह से अपने अंदर थोड़े लोगों को हाथ में लिया है । ज्यादा लोगों को पकड़े रहता है। आश्यर्च इसीलिए होता है । पहले लेना नहीं चाहती थी सोचा पहले 25 आदमी ऐसे तो मैं सोचती थी कि मानव अपना नाम, अपना गाँव, जमा लिए जाएं जो कि सहजयोग में जम जाएं। अपनी शिक्षा, अपना ओहदा, इन सब चीजों को आपको आश्चर्य होगा कि बड़ी पहुँची हुई विभूतियाँ बड़ा महत्वपूर्ण समझता है लेकिन अन्तर्तम में कितना हैं वो नितांत श्रद्धा है उनकी सहजयोग पर । वो गहरा इसका असर है उसको देखते ही बनता है। सोचते हैं कि सहजयोग के बगैर कोई इलाज है ही जितने जल्दी ये चीज अपने अंदर से छूट जाती है, नहीं। आज की दशा में पहुंचने पर सहजयोग हैं। अपने देश की समस्या है, इसको पहले समझ जुलाई चैतन्य लहरी 37 अगस्त, 2004 अत्यन्त अप्रतिम है, Dynamic चीज है और वो अपने पीछे डण्डा लेकर लगे हुए हैं। मैंने उनसे कोई प्रोग्राम है सहजयोग का तो उनके लिए उससे कहा कि आप अपने को जूते मार सकते हैं, आपके बढ़कर महत्वपूर्ण संसार में कोई चीज है ही नहीं और घण्टों तक वे उसी में लगे रहेंगे कि सहजयोग वो 3 बार 108 मारते हैं। जहाँ देखो वो अपने को में अपने को जैसे की ये पता नहीं क्या परमात्मा की मारते रहते हैं। हमसे कहने लगे कि कोई गालियाँ चीज आई हुई है जो दुनिया भर में देने की है, और सिखाओ हम अपने को देना चाहते हैं। ये हम ही वास्तविकता ये है ही इसमें कोई शंका नहीं। खराब हैं, कोई individually बात करते हैं। कभी लेकिन इतनी बड़ी वास्तविकता समझने पर भी मैने देखा नहीं कि किसी की शिकायत या किसी उनका एक बड़ा भारी, मैं दोष तो नहीं कहूँगी की कोई बात। अपने को ही कहते हैं। और दूसरे लेकिन कारण है। कारण वो भारतवर्ष की योग- के बारे में यही कहते हैं कि वो इतना बढ़िया भूमि में पैदा नहीं हुए। परमात्मा ने ऐसे सज्जनों को आदमी है कि हमें अपने पे लज्जा आती है। वो न जाने क्यों उस भोग भूमि में पैदा किया? इस योग भूमि में आप पैदा हुए हैं और वो पैदा उसकी तरफ दृष्टि ही नहीं करते जिसको वे गलत हुए हैं उस भोग भूमि में जहाँ पर के उनके उपर सोचते हैं । अपने ही को गलत समझते हैं पूरे कोई भी, किसी भी प्रकार का संस्कार है ही नहीं । समय । उनको ये भी पता नहीं है कि माथे पर सिन्दूर अगर ऊपर जो बाधाएं हैं उनके लिए। मैंने 108 बार कहा, कितना बढ़िया है हम तो अपने पर शर्मिन्दा हैं। आपको आश्चर्य होगा कि अपने ही पीछे डण्डा लगता है तो वो नाक पर लगा रहे हैं या सर पर लेकर लगे हुए हैं। यहाँ मैं देखती हैं कि उसके लगा रहे हैं। उनको अर्चन की विधि मालूम नहीं। परमेश्वर के बारे में कर इतनी तपस्विता उन लोगों के अन्दर कुछ भी मालुमात नहीं। उनको नीचे बैठना तक छोटे बच्चों जैसे मासूम बिल्कुल। मैं आने लगी तो नहीं आता। कुछ भी वो नहीं जानते। इतने अनभिज्ञ हैं कि आरती बजाने पर ताली कैसे देना चाहिए ये भी मालूम इतने आंतरिक हैं वो लोग! इतने प्रेममय हैं। इतना बिल्कुल उल्टी बात है। सारी दृष्टि अपनी ओर लगा और पूजन की विधि मालूम नहीं, झर झर झर झर आँसू उनके बहने लगे । उन पर डाला। सब कुछ कर लिया पर उनके आँसू नहीं रुके। इतनी सहज सरल उनकी भावना है। अभी तो सिर्फ 21 आदमी से ज्यादा नहीं ऐसे लोग, सहजयोंग नहीं। और इतनी बड़ी-बड़ी विभूतियाँ हैं. उनको मेरे ऊपर प्रेम है, इतना आदर है मेरे प्रति मैं जोड़ पाई हूँ। लेकिन है ये बात। और जिसको कि मैं आश्चर्य करती हूँ। सामने गुजरते वक्त कभी कहते हैं genuine असली। खुद मैं genuine नहीं भी सीधे नहीं गुजरते हैं, झुक करके। इतना मेरे हूँ, ये वो समझते हैं। कहते हैं कि कोई मेरे अंदर प्रति प्रेम उनको है कि संसार की कोई सी भी चीज आकर कह रहा है कि मैं genuine नहीं हूँ। नहीं मेरे आगे उनको तुच्छ लगती है। इतना उनको मेरा हूँ मैं genuine | माताजी मेरे अंदर ये कपट है। मैं महात्म्य है कि समझ में नहीं आता कि किस तरह इस झूठ को लिए हुए हूँ। पूर्णतया दिल को से मेरे आदर को पूरा करें। इस पर बड़ा आश्चर्य खोलकर कहते हैं और उनको कोई बात में शर्म होता है कि वो इस चीज का इतना महात्म्य नहीं आती। अपने को बुरा कहने में उनको जरा भी 1. समझते हैं और अपने प्रति अत्यंत उदासीन हैं, शर्म नहीं आती। लेकिन दूसरों को judgement वो चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 38 बिल्कुल नहीं करते फिर ये भी बताते हैं कि हाँ मैंने ये गलत काम क्यों किया, इसकी वजह यह हमारे परम भाग्य हैं कि हम पहले माँ से मिले और थी। अपना ही सब बताएंगे कि मेरे बाप ऐसे थे, एक कहते हैं कि इस धरती में इतने लोग आप को ऐसे अपने भाग्य को सराहते हैं और कहते हैं कि बार ऐसा हुआ था, psychologically ये बात है मिलेंगे। एक दिन सहजयोग बहुत ऊँचे पद पर इसलिए मैं ऐसा करता हूँ। मैंने ये बात ऐसे क्यों पहुँचने वाला है, इसमें कोई शंका नहीं। लेकिन करी, इसका कारण वे बताते हैं कि ऐसा हुआ था आप हमारी नींव हैं। नींव के पत्थर कितने जबरदस्त | इसलिए मैं ऐसा करता हूँ। एकाध दो लोग ऐसे भी होने चाहिए? पहली चीज हमें ध्यान में लानी आते हैं जिन पर बहुत बाधा थी। वो अपने दिन चाहिए कि क्या हम genuine हैं? अपनी ओर नहीं भूलते हैं बिल्कुल भी और चुप रहते हैं। कहते नजर करें, दूसरों की ओर नहीं। अपनी ओर नजर नहीं कुछ, कहते हैं कि नहीं, अभी हममें जो असर करें क्या हम genuine हैं? देखिए कि उनको थे वो निकलने दो पूरे। हो सकता है कि कहीं छिपे कोई मंत्र भी बोलना नहीं आता। उनसे श्री कृष्ण भी हुए असर हों। इतनी मौन आत्मसात करते हैं। बोलना नहीं आता बेचारों को बहुत मुश्किल से लेकिन उनके अंदर ये कमी है कि वो पूजन भी राधा कृष्ण कह पाते हैं। आपके लिए कितना सरल नहीं जानते, अर्चन भी नहीं जानते बेचारों को है कि आप अपनी विशुद्धि को साफ कर लें । समझ में नहीं आता। मैंने उनसे कहा कि मैं कुछ राधा-कृष्ण आपने कह दिया हो गया काम खत्म ।| पैसा नहीं लेती हूँ कुछ भी नहीं लेती हूँ। अब वो राधा कृष्ण नहीं कह सकते बेचारे तो कृष्ण जी जरा नाराज हो जाते हैं बात-बात पर। उनका एक दिन ऐसे ही मैंने कहा कि मुझे ये डबलरोटी खाते थे वो मैंने कहा मुझे ये बहुत पंसद आती है तो pronunciation भी ठीक नहीं, और आपको आसानी जितने लोग आएंगे एक एक डबलरोटी ले कर। मैंने से मिल जाते हैं। उनको कुमकुम लगाना नहीं कहा इतनी सारी डबलरोटी कौन खाने वाला है? मैंने आता। उनको सिन्दूर का मालूम नहीं, उनको फूल ऐसे ही कह दिया था कहने को ऐसे थोड़ा है कि चढ़ाना नहीं आता, उनको गणेश जी बनाना नहीं मैं रोज खाती हैँ। उनकी समझ में नहीं आता कि आता, उनको स्वास्तिक बनाना नहीं आता, हर बार किस तरह से समर्पण करें। सब बहुत पढ़े लिखे उल्टी बना देते हैं बेचारे। कभी उन्होंने जाना नहीं विद्वान, सब कुछ जानते हैं। आपके सारे शास्त्र ये सब चीज़ें लेकिन अत्यंत शरणागत होते हुए भी वास्त्र उन्होंने जितने आपके अंग्रेजी में लिखे हैं सब वे लोग उसे नहीं पाते जिसे तुम लोग पा चुके हो। पढ़ डाले। उनके लिए सहजयोग समझाना कोई तुमने बहुत पाया है। लेकिन उसका महात्म्य अभी मुश्किल नहीं। वो कहते हैं कि ये जड़ से सूक्ष्म में तक बहुत कम लोगों के आता है समझ में। ये नहीं उतरने का तरीका सहजयोग है। उन लोगों ने मेरा कि उनको सहज मिल गया है, ये नहीं कि उनको introduction लिखा है। अभी किताब आप पढ़कर मुफ्त में ही दिया है। उन्होंने भी ऐसे ही पाया है दंग रह जाएंगे। सारे दुनिया के philosophers को जैसे आप लोगों ने पाया है। लेकिन उनका मेरे प्रति लाकर उन्होंने माँ के चरणों में डाल दिए। ये सब जो प्रेम है इतना नितांत है. लगता है कि जैसे कुछ भी नहीं है। इन्होंने क्या? इन्होनें तो प्रश्न खड़े जन्म-जन्मान्तर का वो सम्बंध समझ गए हैं और किए, माँ ने उसका उत्तर दिया। तुम लोग अभी तक समझ नहीं पा रहे हो। अपने जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2004 39 ही में क्यों सीमित हो? सब तुम एक ही शरीर के गणेश दो। गणेश के सामने सर पटक पटक कर रोम-रोम होते हुए भी, एक ही शरीर में स्पंदन होते पटकर पटक कर, कान पकड़ पकड़ के पश्चाताप भी अलग अलग महसूस करते हो। और वहाँ की पूरे धुन में लगे। और उसमें एक वीरता भरी है। हुए ये प्रश्न ही नहीं खड़ा होता team work का प्रश्न इतना बड़ा उनके अंदर जागरण अपने प्रति और ही नहीं खड़ा होता। आपस में एक वहाँ पर लड़का दूसरों के प्रति भी और सहजयौग के ऐसे ऐसे है जिसने smoking शुरु की सब लोग उसको अनुभव और ऐसी ऐसी बातें उन्होंने बताई। आपके फाड़ खा गए। उसको इस तरह से उन्होंने ठिकाना पास एक चिट्ठी मैंने भेजी थी, वो उन सब लोगों ने किया कि उसकी छुट गई Smoking । उसके सारे मिल करके उसका पता लगाया। मेरे भी असलियत arguments ठीक किए. उसकी पूरी मदद की, का पता उन्होंने लगाया अभी तक आप के नहीं जैसे ही वोsmoking करे उसको अपने पास बुलायें, नज़र में आई बात पर उनके आ गई। वो समझ गए उसके साथ बैठ जाएं। उसके घर में जाकर ये बात है, ये ये चीज है। कहने को महामाया है, सिगरेट-विगरेट निकाल दिये पैसे ले जाकर छिपा अंदर बात ये है। दिए। सिगरेट की smoking नहीं थी उसकी क्या वो करता। और कहने लगे कि अब अगर तुमने सर्वस्व लगाकर वे लोग लगे हुए हैं। वो समझ गए और किया तो पुलिस में inform कर देंगे अच्छा हैं कि उत्कांति का समय आ गया है, सतयुग उन्होंने इतना आनंद नहीं पाया है। लेकिन वो लड़का इसका बुरा नहीं मानता। वो कहता कि दरवाजे पर है। और वो ये भी समझ रहे हैं कि गर हाँ भई तुम कर दो कुछ। वो लड़का खुद कहता है सतयुग का दरवाजा नहीं खुला तो दूसरा संहार का और भागता है उस चीज से दूर और उन लोगों के दरवाजा खुलने वाला है और सबकी जिम्मेदारी है पास आ जाता है और कहता है कि भई मुझे इस चीज की इसकी जिम्मेदारी वो सोचते हैं कि बचाओ। इस वक्त मुझे आ रही है वो इच्छा। इस हमें ये करने का है । वो जिम्मेदार हैं सहजयोग के वक्त तुम मुझे बचा लो, बचा लो इस वक्त। अपने लिए। मजाल है कोई सहजयोग के विरोध में एक को correct करने के लिए कितनी मेहनत वो कर अक्षर बोल दे। आपस में तो बोलने का कोई सवाल रहा है! यहाँ तो आपका समाज ही corrected है । ही नहीं पर कोई बोलता है तो फौरन उसको वहीं कितनी आपको, आपको पता नहीं कि आप कितनी झाड़ कर रख देते हैं। उनसे अगर मैं कहूँ कि 24 स्वर्गभूमि में रह रहे हैं! जहाँ पर माँ बहन का पता घण्टे तुम बगैर खाना खाए बैठे रहो, बैठे रहेंगे। नहीं इतनी वहाँ गंदगी है उस देश में जहाँ पर लेकिन इसका ये अर्थ नहीं कि आप लोग कुछ कम घर घर में शराब चलती है। इतने गंदे आपस में हैं। आप लोगों में से किसी किसी ने जो height सम्बंध हैं। किसी के घर का ठिकाना नहीं, माँ का साधी है, जिस height पे पहुंच गए हैं जिस ऊँचाई ठिकाना नहीं, बाप का ठिकाना नहीं। उससे पूछो पर पहुँच गए हैं, बहुत कमाल की चीज है। लेकिन भई तुम्हारी माँ कहाँ है ? वो कहते हैं पता नहीं सबको अपने अपने लिए बड़ा घमण्ड है ये बड़ा कहाँ चली गई, उसने किससे शादी कर ली! problem है । चित्त को एकाग्र करना भी एक अर्थ चरित्रहीन, मूलाधार चक्र सबका चौपट। ऐसे देश में रखता है। इसका मतलब ये नहीं कि यहाँ देखो पैदा हो करके भी, गणेश को ले कर आए। माँ हमें वहाँ देखो। एकाग्र तभी होता है चित्त जब उसके चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 40 ऊपर का सारा मैल बह जाता है। सब हल्का हो गर इतना एक कर ले कि जैसे राखहु तैसे ही रहिहु। जैसे भी रखो मंजूर है हमको देख लेते है जाता है। अब अपने देश के जो curses हैं या अपने देश तुम कैसे रखते हो और हम कैसे रहते हैं। हर एक के जो समझ लीजिए बड़ा भारी शाप है अपने देश चीज का एक मजाक हो सकता है। हर एक चीज पर कि हम लोगों के चित्त पर एक बड़ी भारी चीज में एक आनद आ सकता है। कैसे रखोगे? जैसे है जिसे कि मैं कहती हैं Sins Against the राखहु तैसे ही रहिहू। चाहे पैदल चलाओ तो पैदल father, अपने बाप प्रभु परमेश्वर के खिलाफ हमने चलेंगे, चाहे घोड़े पे बिठाओ तो घोड़े पे चलेंगे। ऐसी पाप किया। वो कौन सा पाप है? कि हर समय मस्ती में जब आप आ जाइएगा, बाकी तो भगचान सोचना कि हम दरिद्र हैं, हम गरीब हैं. हमारे पास की कृपा से ऐसी योगभूमि में आप पैदा हुए हैं कि पैसा नहीं है हमारा कैसा होगा, हमारे पेट का बाकी का हिस्सा ठीक कैसा होगा। बिल्कुल भिखारी पन की बातें । हमारा से हैं आपके बीबी बच्चे ठिकाने से हैं आपका चरित्र खर्चा कैसे चलेगा ? हमारे बाल-बच्चों का क्या भी इतना गड़बड़ शडबड़ नहीं है। हैं कुछ लोगों होगा? गर आपका परमात्मा पर विश्वास है तो कम का, बो भी गड़बड़ है पर इतना गड़बड़ नहीं है, से कम इतना तो उस पर छोड़ दो कि वो तुमको ठीक हो सकता है वह भी वहाँ पर इतना ज्यादा खाना पीना तो देगा, नहीं तो ऐसे परमेश्वर पर दूसरा बाला पाप है सबकी आँखें यो यों यों यों विश्वास करने से फायदा क्या। ये बड़ा भारी हम औरतों आदमियो की चलती रहती हैं हर समय लोग पाप करते हैं। परमात्मा पर खाना पीना और माने बाधा है उनके अंदर। एक से दूसरे की बाधा ये व्यवस्था गर हम लोग छोड़ दें तो हिन्दुस्तानी जा रही है । ा है। आपके माँ-बाप ठिकाने एक औरत आई उसने आदमी को देखा आदमी आदमी ऊँचा उठ सकता है। दो तरह के पाप बहुत हैं। एक पाप तो ये है कि बाप के पितृत्च पे शंका ने औरत को देखा। ये ही चलते रहता है वहाँ पर । करना और दूसरा मैं कहती हैँ कि Sin Against चक्कर ही ऐसा है। हमसे कहने लगे ये माँ हम सब the mother, वो वहाँ पर हो रहा है, जिसमें चारित्रिक के बाधा घुस जाती है करे क्या? मैने कहा आँख दोष, indulgences भोग, घर गृहस्थी का तोड़ जरा नीची रखें लक्ष्मण जी सीताजी के सिर्फ पैर देना, बैछूट हो जाना, ये महादोष हैं। दोनों नरक के देखते थे नीची आँख। धीरे धीरे आपने आप ये रास्ते सीधे जाने की व्यवस्था है। पैसे के लिए कुछ भी करो! पैसे के लिए जो करिएगा तो काम क्या है बाधा का? अपने आप जो चाहे बो गलत काम करो वो ठीक है। ये हिन्दुस्तानियों भूत आपके अंदर में घूम रहा है, आपके अंदर काम का काम हैं। मैं सरकारी बात नहीं कर रही हूँ. मैं कर रहा है वो अपने आप ही वहाँ से भाग जाएगा। परमात्मा की बात कर रही हैँ परमात्मा के राज्य की गर आप इधर उधर आँख नहीं घुमाइयेगा तो बात कर रही हैँ। जब आप परमात्मा के राज्य में हैं एकदम से भूत भाग जाएंगे और जब तक आप तो देगा तो देगा नहीं तो नहीं देगा। इतनी कम से अपनी आँख घुमाते रहिएगा तो वो भूत वहाँ बैठे कम वृत्ति ले आने में क्या लगता है? करेगा नहीं तो रहेंगे। फौरन आँखे सबकी यों। रास्ते पर चलते हैं नहीं करेगा। जैसे राखहु तैसे ही रहिहु । सहजयोगी आँखे यों करके। माँ ने कह दिया, मान लिया। ये बाधा छूट जाएगी। जब आप ऐसे धंधे ही नहीं 1. ho. चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 41 बच्चों के लक्षण हैं। आपके भले के लिए, कल्याण दो। दरवाजे की और देखो। वो कुछ और नहीं के लिए कह रही हैँ। आपको भी समझना है कि जानता है सिर्फ ये जानता है कि हाँ मैंने पाया है सहजयोग में हमने जितना पाने का है वो पाना है न, मैंने देखा है न, मुझे मालूम है, vibration आ रहे इसी जन्म में हमको पाने का है किसी और को है मेरे अंदर से। सहस्रार मेरा छिदा है। होता है। नहीं, हमको ही पाने का है, हमको लेने का है। मैंने जाना है। उसी बात को पकड़े हुए हैं. उसी दूसरों को नहीं, दूसरों की चिन्ता छोड़ो। अपनी दरवाजे को पकड़े हुए हैं। फिर माँ कुछ भी कह दे। सोचो कि हमने कितना पाया। हम इसके कितनी ये नहीं कि मैं ये नहीं मानता, वो नहीं मानता। जो गहराई में उतरे। हमने क्या पाया है? हमने अपने भी कह रही हैं हर एक बात सही है और जैसे ही साथ क्या व्यवहार कर रहे हैं? हम क्यों ढोंग कर वो कहते हैं सारा का सारा उनके आगे ज्ञान आते रहे हैं अपने साथ? हम क्यों अपने को ठगा रहे है? जा रहा है। आप लोगों की बैठक बननी चाहिए। बैठक हम क्यों झूठ बोल रहे हैं? हम अपने साथ क्यों ऐसी ज्यादती कर रहे हैं? हमने क्या पा लिया? जमनी चाहिए। उनसे तो बैठक शब्द नहीं मैं कह अरे सारा भण्डार खोल दिया है, आ जाओ अंदर। सकती कि बैठक जमाओ। बेचारे बैठक शब्द भी जैसे भी हो आ जाओ। हम नहला धुलाकर तुमको नहीं जानते। अंग्रेजी भाषा ऐसी क्या काम की है बिठा देंगे। फिर सोच क्यो? कितने गहरे उतरे उनकी कोई ऐसी संस्कृति ही नहीं है। उनका कोई हम? गंगा की शीतल धारा में कितने अंदर वहते ऐसा culture ही नहीं है ऐसी वहां बात ही नहीं है। गए हम। वो तो बह रही है पूरी तरह से कि लो बेटे कितने अभागी लोग हैं और बड़े बड़े साधुसंत है लो, लो जो लेना है लो। कितनी गागर भर ली और आप लोग कितने सौभाग्यशाली हैं। आप ही हमने? चित हमारा इधर उधर दौड़ रहा है। अपनी के देश में मेरा जन्म हुआ है इसी योगभूमि में मेरा ओर दृष्टि करते ही तुम समझ जाओगे कि तुमने जन्म हुआ है लेकिन आपने क्या पाया है ये देखिए । ही अपने साथ छलना की किसी और ने की दूसरों ने क्या पाया है? दूसरों ने क्या किया है, नहीं। ये बड़ा भारी अंतर है। सहजयोग के लिए दूसरों ने क्या कहा? दूसरे कहाँ हैं। ये वगैरह से नुकसानकारी है। अपनी ओर दृष्टि न रखना मतलब नहीं। आपने क्या पाया है। जैसे ही आपने सहजयोग के लिए बहुत बड़ी नुकसान की चीज है पा लिया आप निमित्त हो जाएंगे परमात्मा के। आप और अपनी ओर उसी मनुष्य की दृष्टि होती है हैं क्या? आप तो उसके अंदर एक निमित्त मात्र हैं। स्वभावतः ही जो जन्म-जन्मांतर से खोज रहा है। 1000 आदमी मुझे चाहिएं. मैंने कहा है, जो इस वो जानता है कि मेरी गलितयों की वजह से ही सहस्रार पर बैठ जाएं। 1000 घोड़े पर बिठाने वाले मैंने नहीं पाया था। अब और गलती मैं नहीं 1000 आदमी ऐसे चाहिएं जो बिल्कुल न पकड़े। जो करुंगा। जैसे कुन्दधर के अंदर आप बंद है और निर्लेप हों। गर आप सहजयोग के लिए कुछ कर निकलने का रास्ता नहीं। जिसने दस जगह दरवाजे रहे हैं तो अपने ही लिए तो कर रहे हैं । ऐसा तो पर ठोका मारा है जिसका दस जगह सर फूटा है कोई हो जो कहे कि भाई मैं गया मैंने इतना बाजार वो सोचता है नहीं रास्ते की ओर नजर रखो। में अपने लिए सोना खरीदा। इतनी मैंने चीजें दरवाजे की ओर नजर रखो। सब दूर | | से मार खाने खरीदी, इतनी मैंने मेहनत की। आपने इतनी जो भी चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2004 42 मेहनत की जो भी आपने किया अपने ही लिए तो से अपने पैर काट रहे हैं । गुटबाजी कर रहे हैं । किया है। किसी और के लिए नहीं। आपने देखा है क्या करूँ, मेरी समझ में नहीं आता है। एकदम न। जो भी कुछ आपने किया है उसका लाभ अपने बेवकूफी की बातें कर रहे हैं। अरे तुम अलग हो ही को है। बहुत से लोग हो गए संसार में, उन्होंने कहाँ मैं यहाँ एक जरा सी उंगली घुमाती हूँ तो पाया। एकाध दो एक युग में हुए हैं बहुत थोड़े सबके सहस्रार चलते हैं। थोड़ा सा पाँव झनकाती हैँ आप जानते हैं आपसे मिले हैं कितने लोग realized तो सबके सहस्रार में झनकार आते हैं। है? बहुत का बिल्कुल घोर निनाद चल रहा है। इस वक्त तो रहे हो। क्या तुम समझते नहीं? तुम अलग हो ही पशु ही हैं अधिकतर। बिना पूँछ के पशु बहुत सारे नहीं सकते ये तो ऐसा है कि एक हाथ तोड़ के हैं। पर इसी कलयुग में इसी कीचड़ में एक विशेष तुम उधर ले जाओ और वो कहे कि हाँ भई मैं इस रूप से कार्य होने वाला है और ये आप जानते हैं हाथ को अलग करके बड़ा भारी कार्य करूँगा। मुझे ये हो रहा है। ऐसे में आपको चाहिए कि जो ले बड़ा दुख हो रहा है इस पूरे शरीर के साथ चिपकने सकते है लें, नहीं तो ये जो क्रांति का process है Evolution का process है उसमें से आप फेंक होती है। अपनी अगर मुक्ति चाहिए हो तो मनुष्य दिए जाएगें। वो समय दूर नहीं है। 79 मैंने बता ऐसे ही एकता से काम करता है। लेकिन जिस दिया है कि 79 तक ही ये कार्य होगा उसके बाद आदमी को ये समझ में आ गया कि एक सामूहिक 99 साल तक सब कुछ पूरा mature हो जाएगा। व्यक्तित्व के collective personality के आप एक हाँ आपकी अक्ल पर है नहीं तो कलयुग भी आप अंश है उसी क्षण सारा काम ठीक हो जाता है। ही की बदौलत पनपेगा आप लोग अगर इसको आप हैं आप जानते हैं, आप हैं आप जानते हैं, आप नहीं चलाना चाहेंगे तो जो विध्वंस विनाश होगा हैं उसमें । सारे सहजयोगी जानते हैं। कोई England थोडे से ही। और आजकल तो कलयुग तुम लोग अलग कहाँ हो जो अलग अलग कर में तो मैं अलग हो जाऊँगा। इसी तरह की ये बात से चला आए, कोई अमेरिका से चला आए, कोई उसका बोझा आप ही के सर पर है। अपनी अक्ल को ऐसा लगाइए, अपनी बुद्धि को हिन्दुस्तान से चला आए। जब बात करेगा तो यही सुबुद्धि में लाइए और सोचिए कि हमने गंगा जी से कि आज्ञा पकड़ रहा है कि हृवय पकड़ रहा है कि क्या लिया? क्या पाया? क्या पाने का है? आपने फलाना पकड़ रहा है। सब कोई जानते हैं ये बात, बहुत आनंद पाया है? उस आनंद का जो भी क्षण ये तो कोई भी और नहीं जानते लोग। उनको तो आपने पाया है उसको याद करते रहना चाहिए ये भाषा ही मालूम नहीं। नई भाषा है, आप लोगों ने और मन से कहना चाहिए कि उसी क्षण में हमेशा सोचा है कभी। रहना है मुझे। चिपक जाएगें आप वहाँ पर । और जो भी इधर-उधर के फालतू के विचार आ रहे हैं पकड़ रहा है कौन कहाँ कितने गहरे पानी में है, उनको बंद करिये। किसी भी उम्र के आदमी को ये क्या हो रहा है, क्या नहीं हो रहा ? फर्क इतना ही मना नहीं है । किसी भी वर्ण के आदमी के लिए ये है कि अपनी ओर दृष्टि कम होने की वजह से मना नहीं है। किसी भी व्यवस्था के आदमी के लिए अपने लिए क्या हो रहा है वो नहीं दिखाई दे रहा, ये मना नहीं है। लेकिन अधिकतर लोग अपने हाथ दूसरे का दिखाई दे रहा है । ये तो ऐसा ही है कि फौरन आपको पता हो जाता है किसका क्या जुलाई चैतन्य लहरी 43 अगस्त, 2004 ये गर हाथ सड़ रहा है और ये हाथ इस हाथ का को निकाल देते हैं। जब देखते हैं कि साडी में छेद नहीं सोच रहा है तो ये तो सड़ जाएगा ही और हो गया है तो आप उसको सी देते हैं। आपको इस हाथ का क्या फायदा होने वाला है? किसी को जिस चीज से प्रेम होता है उसको आप ठीक कर भी नीचे गिरना नहीं है खुद भी और दूसरा भी नहीं देते हैं और जिस चीज से आपको प्रेम नहीं होता गिरना चाहिए। लेकिन आप खुद मत गिरिए, पहली उसको आप छोड़ देते हैं। हमने आपसे इतना प्रेम चीज ये है। अव्याहत चल रहा है ये सारा काम। किया, आपने अपने से कब प्रेम किया? अपने प्रति सारे चारों तरफ छाया हुआ है। जिसको कि प्रेम करें। जिस दिन ये लहर एक तार हो जाएगी unconscious कहते हैं जिसको कि प्रणव कहा एक इसमें हम लोग आ जाएंगे, वो दिन की मैं राह जाता है, जिसको कि मैं Divine Love कहती हूैं। देख रही हैूँ। अब आप लोगों को इसमें कोई शक चारों तरफ आपकी मदद के लिए मंडरा रहा है नहीं रहा, क्योंकि vibration आप लोगों ने जाने हैं। चारों तरफ आपकी मदद के लिए। भैरव नाथ जी इसमें तो किसी को शक नहीं है साक्षात् शंकर हैं इस वक्त यहाँ बैठे हुए हैं। यहीं हनुमान जी बैठे आप भी। (मराठी) हुए हैं। आपके साथ हजारों आदमी लगे हुए हैं यहाँ पर। आपके लिए मेहनत कर रहे हैं। जिस हैं उन की ओर को आपने पाया है संसार में कितनों ने नजर करो उनकी ओर और ऊपर बढ़ो। खट से कुछ कुछ लोग बहुत पहुँच गए और सब उन्मुख देखिए जो ऊपर उठ गए हैं। अनुभव खींच लिए गए ऊपर को जैसे मछलियों को एक ही पाया था आजतक, बताइए। बड़े बड़े साधू सन्यासी हो गए। हो गए होगें, तार में बाँध करके खींचा जाता है वैसे ही खींच किसी ने भी सामूहिक चेतना पर इतना clearly लिए गए । लेकिन पहले उस जाल में फँसे रहो प्रेम जाना है जितना तुम लोग जानते हो? कितनी के माँ के प्रेम के जाल से नहीं निकलना। अपनी किताब पढ़ डालो। वो मुझसे पूछते हैं साधू सन्यासी अपनी अकल मत लगाओ तुम लोगों की अकल मैं बड़े बड़े साधू उसमें से किसी किसी ने जन्म लिया जानती हूँ कहाँ त्क चलने वाली है। तुम लोगों को है किसी किसी ने नहीं लिया, कि इनको किस मालूम था कि कुण्डलिनी कहाँ है क्या है? कुछ सिलसिले में आपने दिया है? बहुत बड़ी चीज है। नहीं मालूम था ना? फिर तुम कुछ बड़े हो, बुजुर्ग मैंने अपने सहस्रार से तुमको जन्म दिया है। उन हो, उम्र में बड़े होओगे मेरे से, लेकिन मैं तो हजारों लोगों को नहीं दिया था। उनके उपर उतर के साल की पुरानी हूँ। तुम ऐसे कैसे बड़़े हो सकते दिया था। तुम लोगों को अपने हृदय में स्थान हो? मेरे तो बेटे ही हो न, मेरे तो बच्चे ही हो। मैं देकर अपने सहस्रार से जन्म दिया है। कितनी बड़ी तुम्हारी स्थिति है। ऐसा तो श्री गणेश को भी जन्म ही जाओ और सारे संसार की व्यवस्था करो । थोड़ा नहीं दिया था जैसा कि तुमको दिया है। ये विशेष सा धक्का देने की जरूरत है, थोड़ा सा अपने को 1. चाहती हूँ कि इस आनंद के सागर में खुद तो लुट वस्तु है न? अत्यंत प्रेम से प्लावित करके दिया पकड़ने की जरूरत है, अभी नैया पार होगी। थोड़ी है। अपने से प्रेम करो। जब अपने से प्रेम सी बगड़-दगड़ चल रही है, आगे जाती है पीछे हुआ होगा तभी अपना दोष दिखेगा। जब आपको साड़ी जाती है। अभी भी सहजयोग की नैया मैं नहीं से प्रेम होता है तो आप साड़ी में लगे हुए सभी दोष कहती कि किनारे पर पहुँच गई है। अभी खींच चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2004 44 रही हूँ आप लोगों के through, आप ही लोग इधर उधर खींचते हैं कभी कभी। कुछ उधर खींच क्या कहेंगे कि माँ ऐसे कैसे हो सकता है? कैसे रहे है कुछ इधर खींच रहे हैं। नाव को किनारे पर पकड़ा है मेरा आज्ञा? अरे भाई है तो है। उसको तो उसी प्रकार आपका गर आज्ञा पकड़ा है तो आप है। लाना है। पर group बाजी करना नही है। ये छुड़वाना सहस्रार पर चक्कर है। कैसे चक्कर आदमी अच्छा नहीं है, वो आदमी अच्छा नहीं है। है? उसको तो छुड़वाना है। जो बुरी चीज है उसमें ऐसी ज्यादती हो गई, उसमें ये गड़बड़ हो उसको तो निकालना है। काम खत्म। एक सीधी गई. उसमें ये गड़बड़ हो गया। मुझे कोई भी सादी बात है इसमें वाद-विवाद क्या और इसमें शिकायत नहीं लगाए। मैं सबको अंदर बाहर से कहना सुनना क्या है ? किसी के कहने सुनने से जानती हूँ। मैं किसी की भी शिकायत नहीं सुनने आज्ञा चक्र छूटता हो तो छुड़वा लो। वाद-विवाद वाली। से किसी का छूटता है तो छुड़वा लो। बातचीत से पहला हिसाब । तुम कहाँ थे और कहाँ से कहाँ थोड़ी होने वाला है। ये सूक्ष्म से सूक्ष्मतर, ये प्रेम का गए। बस ये देखते रहो। और वहाँ से कहाँ जाने चक्कर है। इससे होता है। आप लोग पार हुए हैं. का है, बस ये देखते रहो। आप जब कहीं रास्ते पर वो कोई तुम्हारे वाद-विवाद से पार हुए हैं क्या? या चल रहे हैं तो आप क्या यही कहते रहते हैं क्या? तुम्हारी पंडिताई से, तुम्हारी किताबों से पार हुए आप कहते हैं कि कब वहाँ पहुँचूंगा, कब वहां हैं क्या? पार कैसे हो गए आप? एक चमत्कार पहुँचूंगा। जो हमें सता रहा है उसे पहले माफ़ घटित हुआ है और खट से पार हो गए । गगनगढ़ करके आओ । उसको बाहर, फिर देखो आप उसके महाराज कहते थे न कि माताजी ये कैसे हुआ अंदर। सब छोड़ो पिछला। हर एक क्षण पीछे छोड़ समझ में नहीं आता है कि आप आए और सबकी दो। इस क्षण में खड़े हो जाओ अंदर घुसने की कुण्डलनियाँ खड़ी हो गईं। ये तो समझ में ही नहीं बात है। हम बैठे हुए हैं यहाँ पर ढकेलने के लिए आ रहा। एक को भी उन्होंने आजतक पार नहीं सबको। मगर सब के सब मेरी खोपड़ी पर मत गिर किया, गगनगढ़ महाराज ने और उनको जान देने जाना। दो चार गिरेंगे तो ठीक है, काहे का वाद के लिए हजारों आदमी तैयार हैं! (मराठी) विवाद सहजयोग में हो सकता है? अरे भई गर अपने यहाँ ऐसे बच्चे भी खराब हो जाएंगे तुम्हारा आज्ञा पकड़ा है तो पकड़ा है हृदय पकड़ा क्योंकि हम लोग ही आधे अधूरे हैं। ऐसे पहुंचे हुए है तो पकड़ा है। उसमें वाद-विवाद करना नहीं वो बच्चे हैं हिन्दुस्तान में भी बहुत है। वो भी सत्यानाश छूटना ही पड़ेगा। बुरा मानने की कौन सी बात है, जाएंगे क्योंकि जबरदस्त माँ-बाप । उनको भी ठिकाने जब पकड़ा है, तो पकड़ा है छुड़वाना है तो लगाइए। उनके भी मन में द्वेष भावना, उनके भी छुड़वाना है अरे अपने को अगर कैंसर हो, कैंसर गनर्दी बातें सिखाएंगे। पूरी समझ सुन सुन के, सुन हो गया है डॉक्टर के पास जाएंगे। डॉक्टर बोले सुन के बच्चे भी खराब हो जाएंगे। लेकिन वहाँ पर कि आपको कैंसर हो गया है तो उसको क्या आप ऐसा नहीं है। वहाँ ऐसे जबरदस्त बच्चे हैं जो मारने को दौड़ेंगे कि उसने बोला आपको कैंसर हो माँ-बाप से भी भिड़ लेते हैं इस बात पर। वो सब गया, बोलेंगे कि भईया मुझे कैंसर हो गया है उसे बच्चे तैयार हो रहे हैं। दस साल के अंदर वो बच्चे भी तैयार हो जाएंगे और आपके भी घर में ऐसे बच्चे ठीक कर दो। श्री चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2004 45 आएंगे और ऐसे बहुत से बच्चे है जो अपनी सत्ता उसको भी, सबको बंधन दो आज घर पर जाकर पे खड़े हैं। जैसे ही ये बच्चे बड़े हो जाएंगे ये बंधन दो। इसको भी आना चाहिए उसको भी आना अपनी सत्ता पर खड़े हो जाएंगे। उनको सहयोग चाहिए और आप खुद उपस्थित होकर सबको बंधन दो। परमात्मा का आश्शीरवाद आपके उपर आएगा। पुराने हैं, मेरे अपने हैं। लेकिन फिर यही कहूँगी कि किसी और इंसान से अपना ldentification आप आप लोग मील के पत्थर हैं, बम्बई वाले। (मराठी) मत करो कि वे फलाने हैं ये इस जगह रहते हैं वो सबका कहना ये है कि सहजयोग में बड़े मेरे हैं, वो मेरे हैं, उनके साथ ये ज्यादती हो गई। धीरे-धीरे लोग बढ़ते हैं। उसका कारण ये है कि ये नहीं। मैं सहजयोग के लिए क्या कर सकता हूँ? आप लोगों को देख के लोग कहते हैं कि ये फलाने आने चाहिएं ढिकाने आने चाहिएं। उधर सहजयोगी हैं? भगवान बचाए इनसे। हमें नहीं चित्त लगाओ आपके चित्त पे शक्ति बैठी हुई है। चित्त पे शक्ति बैठी हुई है। उसको अगर गलत करके सहजयोग बढ़ने वाला है। बहुत बार लोग जगह पर लगाओगे तो सो जाएगी। सहजयोग में कहते हैं कि इनके पीछे में सहजयोगी संस्था लगा लगाओगे तो चमक जाएगी। इसको हमने ठीक दो। मैंने कहा नहीं नहीं ऐसा मत करो। ये तो भई किया था। उसको हमने ठीक किया था उसकी ऐसा चिपक जाएगा मामला। किसी को ऐसे लगा बीमारी ठीक की थी, उससे मिले थे, उससे बातचीत नहीं सकते। कहने लगे क्यो? ये ऐसा है कि आज की थी । उस पर आज बैठ कर चित्त लगाओ अब M.A. हैं तो कल बिल्कुल गधे। आज आकाश में हैं मुझसे सहजयोग के अलावा कोई और बात करने तो कल एकदम पाताल में इसमें आप किसी को की नहीं। मैं कुछ और सुनने को अब तैयार नहीं। डिग्री नहीं दे सकते। आपने गर डिग्री दी तो बहुत हो गया मेरी बीबी भाग गई। मेरा पति भाग मुश्किल हो जाएगी। ऐसा झगड़ा है। तो अब हम गया। मेरे बच्चे का ठिकाना हो गया ये अब हो सिखाने की जरूरत नहीं। वो सीखे-सिखाए हैं, चाहिए ऐसा सहजयोग। आप ही लोगों को देख आ गए हैं अब बताइये क्या-क्या आपने सोचा है सहजयोगियों से मैं सुनने वाली नहीं । बस बहुत तथा क्या आपने करना है? आज आपने घर जाकर गया उसने मेरे को ऐसी कहा, उसने मेरे को डाँटा, उसने मेरे को मारा। मैं किसी से सुनने वाली महीने भर की छुट्टी लेकर जा रहे हैं। अभी दो नहीं और जिनको ये बातें करनी है वे अब छुट्टी दिन तो प्रोग्राम है ही देखते हैं क्या क्या उसमें आप करें सहजयोग से। जिसको आनंद लेना है वो यहाँ करामात करते हैं। बढ़ाओ अपना चित्त। Meditation आएं। जिसको प्रेम लेना है वो यहाँ आएं। सारे में बैठो तीन दिन Meditation में जाकर ये कहो संसार का सुख जिसे लेना है वो यहाँ आए। सारी कि कौन कौन लोग ध्यान में क्या करेंगे। कौन सम्पदा परमात्मा ने जो तुम्हारे लिए उडेली हुई है, कौन लोग ध्यान में आएंगे। चित लगाओ अपने वो लेना है तो यहाँ आए। और आप लोग ही सोचना है। leader हैं उस सतयुग के leader हैं जो आने चित्त को लगाओ कि ये भी आना चाहिए, वो भी वाला है आपका नाम इतिहास में जाएगा। इतने महत्त कार्य में, गर आप इतने महत्त नहीं हैं तो सकता है। लगाओ चित्त इसको भी आना चाहिए आप न आएं। पहली मर्तबा मैं ये कह रही हूँ । चित्त पहचान करो। चित्त में ही सारी शक्ति है । आना चाहिए। ये भी आ सकता है वो भी आ जुलाई - अगस्त, 2004 चैतन्य लहरी 46 जिसको पाना है जिसको उठना है वो Individually तो मेरी आपको प्रार्थना है, विनती है. कि गर मैंने आए। किसी Group की तरह से नहीं आए। वाकई आपको प्रेम किया है. और प्रेम दिया है तो Individually आए । व्यक्तिगत और जब व्यक्तिगत उसको फल लगने के समय में मूर्खता नहीं करनी इसमें डूबिएगा तो जैसे एक बूँद जैसे सागर हो है कोई भी, किसी भी तरह। Maturity आनी चाहिए। जाता है आप हो जाएंगे। नहीं तो सबकी गंदगी बड़प्पन आना चाहिए। बच्चों जैसा काम बंद करिए आप अपने साथ ले करके चलोगे इस पर किसी और जब बच्चों जैसी बातें करते हैं तो चुप रहो । से बातचीत, वार्तालाप या चर्चा नहीं होती है, उनकी बात नहीं सुनना है। बुर्जुगों जैसे बात करनी सिवाय सहजयोग के कोई मैं बात नहीं करूँगा । ये निश्चय कर लें। आप लोग काफी लोग हैं। किसी शांत रहें, मौन रहें, और आनंद उठाएं। सारे भेद भी जन्म में इतने लोग मुझे नहीं मिले थे जितने तोड़ दें। आपके अंदर फौरन जीवन्त रक्त बहना आप लोग हैं। इनके सहारे नैया पार हो जाएगी। शुरु हो जाएगा। आनंद और सुख और शान्ति। है। बड़ों जैसी, Mature । फल हो गए हैं । अब आप परमात्मा आपको धन्य करें। आपकी चेतना में नई क्रान्ति घटित हुए बिना मानव द्वारा प्राप्त की गई सभी उपलब्धियाँ अर्थहीन हैं । ये तो ऐसा होगा जैसे विवाह के अवसर पर विद्युत-सज्जा के सभी उपकरण लगा कर उनमें विद्युत-प्रवाह न किया जाये। रोशनी होने पर ही आप दूल्हा- दुल्हन को देख सकेंगे । परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी परम पूज्य माताजी निर्मला देवी का एक पत्र इंग्लैड मई 1977 (मराठी से अनुवादित) हैं या त्योरीयाँ चढ़ाकर गुस्से से उन्हें देखते हैं। नन्हें बच्चों से यदि कोई कड़वा बोले तो मुझे लगता हैं कि किसी ने मेरे हृदय में छुरा घोप दिया है। आप ही बताएं कि क्या सहजयोगी में प्रेम भाव की मुझे समाचार मिला है कि मुस्कवाडी गाँव राहुरी अभिव्यक्ति नहीं होनी चाहिए? एक ही माँ के बच्चे में एक नया ध्यान केन्द्र चल रहा है जहाँ हजारों भी प्रायः इस बात को नहीं समझ पाते कि वे वास्तव सन्ताने है। इस सत्य को आप प्रिय सहजयोगियों, आप सबको अनन्त आर्शीवाद । लोग आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर रहे हैं। ये में एक ही माँ की उपलब्धि इसलिए प्राप्त हुई है क्योंकि वहाँ के भलीभांति जानते हैं। फिर क्यों आपमें यह भावना कार्यकर्ताओं ने स्वयं को प्रेम के अदभुत बन्धन में आनी चाहिए कि कोई आपसे बढ़िया है या घटिया बाँध लिया हैं । वे कभी किसी चीज की शिकायत हैं। क्या आपमें कोई दोष नहीं है? क्या आपमें इस करने का प्रयत्न नहीं करते। शिकायत की अपेक्षा बात का निर्णय करने की योग्यता है? लोग मानव यदि कोई कार्यकर्ता किसी प्रकार की गलती करता के सार्वभौमिक भाईचारे की बात करते हैं परन्तु है तो वे उस गलती को नजर अंदाज करते हैं। बिना परस्पर प्रेम किए क्या यह बात सम्भव है? इस उदारता का यह कार्य व्यक्ति के अपने हृदय में क्षण मुझे केवल इतना ही कहना है कि अन्त- प्रसन्नता की भावना उत्पन्न करता है और इससे अंवलोकन करें, सत्य असत्य का भेद देखें और इस अन्य सम्बन्धित लोग भी आकर्षित होते हैं । उदारता का यह गुण कुण्डलिनी की जागृति से के बाद ही आप सच्चे सहजयोगी बनेंगे। बढ़ता है। यह दिव्यता की अभिव्यक्ति है । परन्तु जो लोग केवल बनावटी वातारण में रहते हैं वो इस उससे इस प्रकार व्यवहार करें कि मानो वह आपका वरदान का आनन्द नहीं ले सकते। आपकी कुण्डलिनी भाई है। अच्छी प्रकार उसकी देखभाल करें, उससे जागृत हो गई है और इसने आपके सहस्र का आपकी गृहस्थी पवित्र होगी। मैं नहीं समझ पाती भेदन कर दिया है। परन्तु हृदय ने अभी भी इस कि किस प्रकार सहजयोगी धड़े बना लेते हैं। हर विश्व से मुक्ति पा लें क्योंकि केवल ऐसा कर लेने कोई सहजयोगी यदि आपके घर आता है तो 1 जागृति को महसूस करना है। व्यक्ति का हृदय क्षण आपकी स्थिति या तो बेहतर होती रहती है या यदि पत्थर की तरह से है. अपने प्रेम की वर्षा यदि बदतर। इस प्रकार के धड़े बनाने से तो आपकी वह किसी पर नहीं कर सकता, बातचीत में यदि आत्मा पूर्णतः दब जाएगी। आपको चाहिए कि वह कष्ट प्रदायी भाषा का उपयोग करता है और दूसरों के गुणों को देखें और दोषों की अनदेखी करें इस चीज पर विशेष रूप से बल देता है कि वह उसी तरह से जैसे मैं स्वयं देखती हैँ। ध्यान धारणा कुछ खास है तो वह सहजयोगी बनने के योग्य में आप महसूस करेंगे कि यह शाश्वत आनन्द का नहीं है । निःसन्देह कुछ लोगों का ऐसा ही स्वभाव द्वार है। हैं । मैंने देखा है कि मेरे सम्मुख ही आपमें से कुछ लोग दूसरों को एक ओर धकैलने का प्रयत्न करते आपको सदा याद रखने वाली माँ निर्मला क अन १ री এ बच्चे, ही अवतरण हैं। वही मानव को महान उन्नति की ओर ले जाएंगे। मानव जाति की देखभाल होना आवश्यक है । बच्चे ही कल की मानव जाति हैं और हम आज के मानव। अनुसरण करने के लिए हम उन्हें क्या दे रहे हैं?" यह कहना कठिन है कि जीवन में बच्चों का लक्ष्य क्या है, "परन्तु सहज-योग से वे ठीक प्रकार से चलेंगे, ठीक से आचरण करेंगे और सहज-योगियों का बहुत बड़ा समुदाय विकसित हो जाएगा जो कि अपनी ही प्रकार का होगा।" थि ---------------------- 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-0.txt शुभ चैतन्य लहरी सी] ० ४० ू लि जुलाई - अगस्त, 2004 क TAT 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-2.txt में इस अक आदि शक्ति पूजा, कमेला 06.06.2004 सानव का सृजन एवं लक्ष्य प्राप्ति 5 निर्मला - राहुरी 10 - 18.1.1980 20 आत्म साक्षात्कार का अर्थ, मुम्बई - 3.9.1973 ৪6 अपनी ओर चित्त रखें, मुम्बई 21.12.1975 47 परम पूज्य श्रीमाता जी का एक पत्र मई 1977 हर ा 3० 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-3.txt चै त - य ल ह री प्रकाशक निर्मल इन्फोसिस एवं टेकनोलोजीज़ प्रा. लि. मुख्य कार्यालय : प्लाट न. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, होटल ग्रेस के पीछे, पाड रोड, कोठरुड पुणे 411 029 मुद्रक अमरनाथ प्रेस प्रा. लि. WHS-2/47, कीर्ति नगर, औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली 110015 मोबाइल : 9810452981, 25268673 सदस्यता के लिए कृपया निम्न पते पर लिखे: श्री जी.एल. अग्रवाल निर्मल इन्फोसिस एवं टेकनोलोजीज़ प्रा. लि. 222, देशबन्धु अपार्टमैंट, कालका जो नई दिल्ली-110 019 फोन : 26216654. 26422054 आप अपने अनुभव, सुझाव, सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ. पी. चान्दना जी-11-(463). ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली 110 034 दूरभाष : 011-55356811 प्रात: 08.00 बजे से 09.30 बजे सायं: 08.30 बजे ये 10.30 बजे 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-4.txt आदिशक्ति पूजा कबेला-06.06.2004 आज हम उस शक्ति के विषय में बात करेंगे जो करना हैं। परन्तु वास्तव में इनमें से कोई भी आपके हृदय में छुपी हुई है और जिसके द्वारा एक समस्या नहीं है। मुझे कहीं भी कोई समस्या नजर नया विश्व, एक नया परिवार, नए मानदण्ड तथा नहीं आती। जो लोग सोचते हैं कि उन्हें समस्या है अब तक अज्ञात हर चीज की आप सृष्टि कर मैनें उनसे उन समस्याओं को लिखने के लिए कहा सकते हैं, हर उस चीज की जो आप चाहते हों। है और मैं उन्हें उत्तर देने का प्रयत्न करूंगी और ऐसा करना बिल्कुल संभव है, ऐसा किया भी जा बताऊंगी कि यह समस्या किस प्रकार की है । रहा है। परन्तु सबसे कठिन कार्य तो लोगों को परन्तु कुछ भी करने से पूर्व मैं यह कहना चाहूँगी अधिक अनुकूल बनाना तथा उनमें परस्पर सामंजस्य कि अभी तक हमारे सहजयोगी उस स्तर पर नहीं को बढ़ाना है। यह कार्य बहुत मुश्किल लगता है। पहुंचे हैं जहाँ वो इस एकरूपता, अपने हृदयों की यदि उनके अपने मित्र हों, उनकी अपनी शैली हो एकरूपता को समझ सकें। यह सभी कुछ अपने तो वे परस्पर बिल्कुल ठीक होते हैं। परन्तु उनमें अन्दर से आता है बाहर से नहीं। अतः सभी बाहु्य पूर्ण सामंजस्य बनाना, उन्हें परस्पर एकरूप करना, प्रयत्न व्यर्थ हैं। एक जीवन में तो बहुत ही कठिन कार्य हैं। अब समस्या यह है कि हमारे यहां अत्यन्त भले को धारण करना हैं। वो बनना है जो वास्तव में हम लोग हैं, सुन्दर आत्माएं हैं, परन्तु वो परस्पर उतने हैं। यह सभी कुछ मौजूद है । आपने तो बस वह एकरूप नहीं हैं जितना उन्हें होना चाहिए किस बनना है. वही बनना मात्र है उन लोगों के लिए तरह से इस समस्या का समाधान किया जाए? यह बात समझना कुछ कठिन है जिनके भिन्न-भिन्न मूल लक्ष्य, जिसके लिए हमने यह सब आरंभ किया नाक हैं, भिन्न चेहरे हैं, जिनका सभी कुछ भिन्न है, था-यह नवीन प्रकार की सूझबूझ, नई प्रकार की उनके लिए एकरूप होना कठिन है। परन्तु आप तो मर्मज्ञयता-का उदेश्य यह था कि हम हर व्यक्ति एकरूप हैं, आप एकरूप हैं। क्योंकि आपको इस में एकरूपता खोजना चाहते थे। अब आप लोगों बात का एहसास नहीं है इसलिए आप भिन्न प्रतीत को शुक्रगुज़ार होना है कि आप एकरूप हैं, अन्दर होते हैं। अतः मुझे आपसे एक बात बतानी है कि : से एक है, दूसरा कुछ भी नहीं। यह केवल एक है आप सब एक हैं। इस प्रकार से एक हैं कि और वह एक जब बोलता है या कोई कार्य करना चाहता है तो, आपको हैरानी होगी, सभी कुछ पूर्ण हैं, एक ही भावना हैं आप सबकी सूझबूझ प्रयत्नों को छोड़कर हमें अपने वास्तविक रूप आप ही सभी कुछ हैं। एक ही अन्तः प्रेरणा सामंजस्य से हो जाता है। यह सब एक रूप होता एक ही है है और एक ही प्रकार से कार्यान्वित होता है। इसमें कोई परिवर्तन नहीं होता और दोनों में कोई अन्तर आप मान लेते हैं कि कोई अन्य है, परन्तु वास्तव में नहीं होता। इसके बावजूद भी हमारे मस्तिष्क भटकते यह सम्बन्ध है आदि शक्ति से क्योंकि आप रहते हैं, सहजयोग के दृष्टिकोण से किसी महत्वहीन आदिशक्ति के अंग प्रत्यंग हैं जो भी कुछ व्यक्ति समस्या को लेकर भटकते रहते हैं। मुख्य समस्या करता रहे वह आदि शक्ति से अलग हो नहीं जो हमारे साथ है वो है हमारा यह महसूस सकता। आप उन्हीं से उत्पन्न हुए हैं और वही न करना कि हमें कोई समस्या ही नहीं है । हम समस्याओं से मुक्त हैं। हम सोचते हैं कि एक लगता है, जबकि आप लोग सोचते हैं कि यह समस्याएं हैं और हमें इन समस्याओं का समाधान भिन्न है यह सोच गलत है। इसका आप पर बहुत गलत प्रभाव पड़ता है और ऐसा नहीं है। केवल एक है, एक ही सम्बन्ध, और आपका मार्गदर्शन कर रही हैं। मुझे तो सभी कुछ 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-5.txt जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2004 मैं सोचती हैँ कि लोग सहजयोगी हैं, परन्तु वह मैं जो भी कहती हैँ वह प्रमाणित होना चाहिए अन्यथा आप उसे क्यों स्वीकार करेंगे। मैं स्वयं सहजयोगी नहीं हैं। वे सहजयोगी नहीं हैं, सहजयोगी आपसे एक रूप हूँ और सदैव आप लोगों के साथ बनने का प्रयत्न कर रहे हैं। इसके विपरीत उन्हें वैसी ही रहूँगी। मेरे लिए कोई अन्तर नहीं हैं । यह इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि वे सहजयोगी प्रवृत्ति यदि थोड़ी सी बदल जाए तो आप भी सभी हैं इसके अतिरिक्त उन्हें कुछ और नहीं बनना। के बीच एकरूपता को देखेंगे और तुरन्त भिन्नता के तब और कोई समस्या न रहेगी। हमें यह जानना विचार समाप्त हो जाएंगे। जिस प्रकार आप एक दूसरे को समझते हैं उस कोई अज्ञानता आवश्यक नहीं है। ऐसा जब घटित पर अत्यन्त आश्चर्य होता है। बिना एक दूसरे को हो जाएगा तो विश्व की सभी समस्याएं बिना किसी ठीक से समझे आप कुछ प्राप्त नहीं कर सकते। कठिनाई के हल हो जाएंगी। यह आवश्यक है, ठीक है और सत्य है। सत्य बहुत समय पूर्व आरंभ हुआ था। उससे बहुत समय पूर्व एक ऐसी शक्ति की पूजा कर रहे हैं जो कभी जब किसी भी मनुष्य ने सत्य की खोज के विषय परिवर्तित नहीं हुई, जिसमें कभी परिवर्तन नहीं में सोचा था, मनुष्य के बहुत सारी असत्य चीजों में आया, जो अपनी वास्वतविक स्थिति में रही, उस फंसने के कारण सत्य लुप्त हो गया। सत्य को इतना आसानी से स्वीकार नहीं किया भी वैसी की वैसी है। ऐसी पूजा में कोई क्या कह जाता जितनी आसानी से असत्य को। क्यों? क्योंकि सकता है? कुछ नहीं। स्वयं से एकरूप हो जाएं। हम असत्य पर खड़े हैं। हमारी सारी सूझबूझ हमें अपने आप से एक रूप होना है, वातावरण या असत्य है। इस सारी सूझबूझ को बदल कर हमें मानसिक हलचल में खो नहीं जाना। क्योंकि यह सत्य पर लाना होगा। यह कार्य कठिन नहीं है ऐसा समय है जब मस्तिष्क चलने लगता है और क्योंकि हम सत्य ही हैं। हम सत्य है। सत्य, जो जब यह चलने लगता है तो इसका नियंत्रण अपने हम हैं, बनना क्यों कठिन होना चाहिए? यह कार्य पर समाप्त हो जाता है, उसी तरह से जैसे सॉप कठिन नहीं होना चाहिए। परन्तु ऐसा होता है। जब तक अपने बिल में बना रहता है तो उसे कोई इसका अर्थ यह है कि हमारे अन्दर अवश्य कोई खतरा नहीं रहता, परन्तु ज्योंही बिल से निकलकर कमी है जिसे हमने खोज निकालना है। यह कमी वह इधर उधर घूमना शुरु करता है तभी खतरे का यह है कि हम स्वयं का सामना नहीं कर सकते। आरम्भ हो जाता है। इसी प्रकार से हमें यह दूसरों का सामना करते हैं अपना नहीं। स्वयं को समझना है कि हमारा मस्तिष्क अत्यन्त अत्यन्त कभी नहीं देखते। हम यह नहीं जानते कि हमारी जटिल है और इसे गलत दिशाओं में नहीं जाना स्थिति क्या है। यह दर्शाने के लिए आपको एक माँ चाहिए। उसके लिए हमें आदिशक्ति की पूजा की आवश्यकता थी। इस प्रकार से आपको यह करनी होगी क्योंकि हमें आदिशक्ति द्वारा दिखाए बताने के लिए कि आपके अन्दर क्या समस्या है, गए पथ पर चलने का प्रयत्न करना चाहिए। हमें माँ को (आदिरशक्ति) पृथ्वी पर अवतरित होना पड़ा। स्वयं को आद्य (Primordial ) बनाए रखना है। हमें इस सिद्धान्त का अभ्यास किया जाना चाहिए। तब अपने आद्य स्वरूप आत्मा को कार्यान्वित करना यह जानकर आप हैरान होंगे कि आपमें अपने बारे होगा स्वयं को परिवर्तित नहीं करना होगा हम में और इनके बारे में कितना ज्ञान है। कुछ भी आत्म स्वरूप ही हैं और इसी को हमें प्राप्त करना विशेष नहीं, न ही कुछ असाधारण है। आपमें केवल है-स्वयं से पूर्ण एक रूपता। स्वयं को स्वीकार करने का क्षेम होना चाहिए। है कि हम एक हैं, बिल्कुल समान। किसी प्रकार की आज की पूजा अत्यन्त विशिष्ट है क्योंकि आप मे स्थिति में जिसमें उसने जन्म लिया और जो आज परमात्मा आपको धन्य करे। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-6.txt एवं लक्ष्य प्राप्ति मानव का सृजन फरवरी - 1979 गाँधी भवन - दिल्ली विश्वविद्यालय (परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन) (हिन्दी रूपान्तर) इस प्रवचन में मैं सृजन के विषय में बताऊंगी जाएंगे तो लाल और सफेद गोलियों की व्यवस्था और इसके लिए मुझे उस समय तक वापिस जाना पूरी तरह से अव्यवस्थित हो जाएगी। इन्हें वापिस होगा जब मानव अमीबा के रूप में थुा। कोई भी अपनी असली अवस्था में लाने के लिए व्यक्ति को खुले मस्तिष्क का वैज्ञानिक इस बात को स्वय देख कितनी बार वह गोलियां हिलनी पड़ेगी, इसके लिए LIM सकता है कि ये ब्रह्माण्ड अत्यन्त सुन्दर एवं उन्होंने एक फार्मूला खोज लिया है। इस फार्मूले के है, सुव्यवस्थित है। इसे अत्यन्त सहजतापूर्वक चलाया हिसाब से मानव का सृजन यदि संयोग से हुआ गया तथा वह इस परिणाम तक भी पहुँच सकता है जो कि असंभव लगता है क्योंकि मानव के सृजन कि इस ब्रह्माण्ड के कारण ही पृथ्वी माँ का सृजन में लगाया गया समय इतना कम है कि इस समय में तो मुश्किल से किसी जीवन्त कोषाणु का सृजन हुआ। लगभग पचास-लाख वर्ष पूर्व गैसों की गर्मी से ही हो पाता। भरी हुई यह पृथ्वी माँ ठण्डी हुई। किस प्रकार इसमें शीतलता आई? वैज्ञानिक इस बात को ऐसे और उसके अन्दर इतनी सुन्दर व्यवस्था की गई ही स्वीकार कर लेते हैं और अपनी सीमाओं के कि इस बात पर विश्वास करना कठिन है कि इस कारण इसके शीतल होने की वजह नहीं खोज सारे नाटक के पीछे कोई मदारी नहीं है। कोई सकते। क्यों ये घटना घटी? कैसे इसका आरम्भ वैज्ञानिक तो अवश्य होगा जिसने यह परिणाम इतने जटिल मानव का सृजन क्यों किया गया 1. प्राप्त किए। ये सारे कार्य हो पाने तो किसी विशेष हुआ? ये कहना बहुत आसान है के परमात्मा नाम की कोई चीज नहीं है परन्तु बिना परमात्मा के व्यक्ति से ही सम्भव हैं। कहने से अभिप्राय यह है अस्तित्व को स्वीकार किए बहुत सी चीजों की कि बिना किसी व्यवस्था, सोच विचार, योजना एवं व्याख्या कर पाना अत्यन्त कठिन है। उदाहरण के शक्तिशाली व्यक्तित्व के. जब तक सर्वशक्तिमान | रूप में इस ब्रह्माण्ड में मानव सृजन पर लगा समय परमात्मा इसके पीछे न होते, ये कार्य संभव न इतना कम है कि कोई भी अन्य चीज इसकी होता । जिस प्रकार विज्ञान की सीमाएं हैं उनके होते व्याख्या नहीं कर सकती। संयोग के नियम का यदि आप उपयोग करें तो हुए निःसन्देह इस बात का पता नहीं लगा सकते हम पता लगा सकते हैं कि कितनी बार कम कि किस प्रकार इस कार्य में तेजी आई और यह परिवर्तन एवं संयोग (Permutations and घटित हुआ। परन्तु हम देख सकते हैं कि विज्ञान combinations) को एक छोटे से कोषाणु का केक्षेत्र में हमने सृजन करने के लिए कार्य करना पड़ता है। उदाहरण ऐसे तरीके से जो शायद विकास प्रक्रिया की गति के रूप में किसी परखनली ( Test Tube ) में आपके को तेज करने के लिए उपयोग किया गया था । पास यदि पचास लाल गोलियां है और पचास सफेद तथा उनको इस प्रकार रखा गया है कि इस बात पर बिल्कुल विश्वास न किया होता कि लाल गोलियाँ नीचे की तह में हैं और सफेद उपर हम चॉद को भी सकिय कर सकते हैं। किसी ने की तह में तो आप यदि परखनली को हिलाते चले अगर ऐसा कहा होता तो लोग उस पर हँसे होते। कुछ उपलब्धियां प्राप्त की हैं, एक ति युवा विद्यार्थी थी तब मैंने पाठशाला में जब में 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-7.txt जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2004 आज भी यदि आप मेरी दादी माँ को यह बात और धमाका करती है। अतः कुण्डलिनी हर चीज में बताएं तो उस पर वह विश्वास नहीं करेगी, सोचेगी विद्यमान है परन्तु मानव में यह अधिकतम प्रभावशाली कि आप कोई कहानी सुना रहे हैं। परन्तु हम चाँद सर्वोत्तम तथा उच्चतम स्थिति में है । यही वह शक्ति पर पहुँच चुके हैं इस बात में कोई सन्देह नहीं है। है जो सबमें हैं और हर चीज को विकसित करती इस प्रणाली में हमने एक के अन्दर एक पाँच है-कार्बन से अमीबा अवस्था तक, अमीबा से पशु कैप्सूल लगाए। सर्वप्रथम सबसे नीचे वाला कैप्सूल अवस्था तक और पशु से मानव अवस्था तक। पंच फटकर धमाका करता है और बाकी के चार कैप्सूलों तत्वों में भी कुण्डलिनी विद्यमान है क्योंकि पंचतत्वों को गति प्रदान करता है। दूसरा कैप्सूल जब फटता का भी विकास होता है। हम ये नहीं जानते कि है तो पहले कैप्सूल की अपेक्षा कई गुना गति प्रदान किस प्रकार इनका विकास होता है परन्तु प्रकृति में करता है। गति इतनी अधिक बढ़ती है कि अचानक ये घटित होता है कि तत्व अपना आकार बदलते हैं हमें लगता है कि पहले कैप्सूल द्वारा दी गई गति और भिन्न रूप धारण कर लेते हैं। से कई गुनी हो गई है। तीसरा कैप्सूल फटने पर यह गति को और अधिक बढ़ा देता है। इसी प्रकार क्योंकि धटित होने वाले परिवर्तन की संख्या को चौथा कैप्सूल फटता है और फिर पाँचवां जिसके मापने का हमारे पास कोई तरीका नहीं है। जीवों में अन्दर अन्तरिक्षयान होता है। अन्दर बनी प्रणाली भी परिवर्तन होता है। मछलियाँ परिवर्तित होकर के माध्यम से जब एक के बाद एक धमाका होता है रेंगने वाले जीवों का आकार ले लेती है और रेंगने उसी से हमें अन्तरिक्ष यान के लिए अत्यन्त उच्च वाले जीव स्तनधारी पशु बन जाते हैं, से गति प्राप्त करनी होती है। बिना अपनी उत्कान्ति के बारे में जाने यह बन्दर बन जाते है और तत्पश्चात् मानव में परिवर्तित विचार हमें अपने अचेतन (unconscious) से प्राप्त हो जाते हैं। यह सब घटित होता है। इस प्रक्रिया इस परिवर्तन की हमें कोई समझ नहीं है। बहुत स्तनधारी पशु नर वानरों में परिवर्तित हो जाते हैं हुए हैं। हम ये जान गए हैं कि यह किस प्रकार में कितने जीव नष्ट हो जाते हैं, कितने परिवर्तित घटित हुआ परन्तु इन दोनों को हम एक दूसरे से होते हैं, इसका हिसाब किताब किसी ने नहीं रखा। जोड़ नहीं सकते। अतः इसी प्रकार से मानव का सृजन भी अमीबा से किया गया और अमीबा का करते हैं। संभवतः बहुत से पशुओं ने मानव जन्म सृजन सभी तत्वों से किया गया उसी प्रकार से लिया है। इसका प्रभाव आप देख सकते हैं। लोगों हम कह सकते हैं कि हमारा पुनर्सृजन भी पाँच के आचरण को देखकर आप विश्वस्त हो सकते हैं कैप्सूलों से किया गया पहला कैप्सूल शारीरिक कि बहुत से पशुओं ने मानव रूप धारण किया है है, हमारा शारीरिक अस्तित्व, शरीर रूपी कैप्सूल के और मानव रूप में उन्हें विकास एवं प्रशिक्षण प्रक्रिया अन्दर भावनात्मक अस्तित्व (Emotional Being) में से गुजरना होगा, तभी वे इस योग्य बनेंगे कि को रखा गया, भावनात्मक अस्तित्व के अन्दर मानव जीवन के मूल्य को समझ सकें आध्यात्मिक अस्तित्व रखा गया और आध्यात्मिक अपने अन्दर ही विकास की ओर बढ़ने लगता है। अस्तित्व के अन्दर आत्मा या हमारे चित्त को रखा आज हम जनसंख्या समस्या के विषय में बात मानव तो चौदह हजार वर्षों से, जैसे माना जाता है, हम मानव हैं। पूर्ण स्वतंत्रता में हम अपने अंदर विकसित गया। हम कह सकते हैं कि कुण्डलिनी ही फटती है हो रहे हैं । मानव ही एकमात्र वो जीव हैं जिन्हें 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-8.txt चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 स्वयं विकसित होने की स्वतंत्रता प्राप्त है और इस (Telegram) भेजे थे आज उसने बताया कि एक विकास से वे भले-बुरे के भेद को समझ सकते हैं। महीने के बाद उसे केवल एक तार मिला। यह स्वतंत्रता दी गई है क्योंकि स्वतंत्रता के बिना आप आगे नहीं बढ़ सकते। उदाहरण के रूप में विकसित करने की और सृष्टि के सृजनकर्ता तथा जब आप स्कूल में पढ़ने लगते हैं तो आपको दो उसकी शक्तियों को प्राप्त करने की स्वतंत्रता दी गुणा दस बराबर है बीस बताया जाता है। इस गई है। यही कारण है कि केवल मानव में ही पहाड़े को आप कंठस्थ कर लेते हैं, ये प्रश्न नहीं करते कि ऐसा क्यों है? इसमें आगे बढ़ते ही चले शक्ति और कुण्डलिनी सभी जीव - जन्तुओं में भी जाते हैं। परन्तु जब आप शिक्षा के उच्च स्तर परविद्यमान है परन्तु केवल मनुष्य में ही इस शक्ति को आते हैं स्नातक या स्नातकोत्तर स्तर पर, तो सुप्तावस्था में त्रिकोणाकार अस्थि में रखा गया है आपको इस विषय पर लिखने की स्वतंत्रता होती है ताकि अज्ञात क्षेत्र (unknown)में उसकी उत्क्रान्ति कि दो गुणा दस बराबर बीस क्यों होता है? ये को यह अन्तिम ऊर्जा प्रदान कर सके। यह इसलिए होता है कि आप अब विकास की एक विशेष अवस्था तक पहुँच चुके हैं। इस अवस्था में आपको स्वयं खोज करने की स्वतंत्रता दी जाती पहले किसका सृजन किया गया? इसके विषय में है। इस तरह से आपका विकास होता है और यदि मैं बताऊंगी तो यह बात अत्यन्त दिलचस्प विकसित होकर आप शिक्षार्थियों को शिक्षा दे होगी और हो सकता है कि एक वैज्ञानिक के सकते हैं। इस प्रकार से सारा विकास कार्य हुआ मस्तिष्क के लिए यह बात सुखद न हो। जो बात अभी तक आपने अमीबा से लेकर इस अवस्था मैं बता रही हूँ ये विज्ञान से बहुत ऊँची है कि पृथ्वी तक अपनी उत्कान्ति को महसूस नहीं किया है पर सृजन से पूर्व पावित्र्य (पावनता) का सृजन आपने ये नहीं समझा कि किस प्रकार आप मानव किया गया श्री गणेश पावित्र्य के देवता. हैं और अवस्था तक पहुँचे। ये सब आपने स्वीकार भर कर अपने सृजन की सुरक्षा के लिए परमात्मा ने सर्वप्रथम लिया है। अपनी आँखों को यदि आप देखें, तो ये इस पावित्र्य का सृजन किया, इस पवित्र वातावरण कितनी जटिल हैं? ये इतने जटिल अंग हैं कि आप यदि इनका अध्ययन करने लगेंगे तो इनकी रचना उन्होंने पावित्र्य का सृजन किया क्योंकि बिना को देखकर दंग रह जाएंगे। आप यदि मेरी उंगली इसके कोई भी चीज कार्यान्वित न हो पाती। आप में सुई चुभोएं तो तुरन्त इसकी प्रतिक्रिया मेरी इस बात को सोचें कि कोई एक सागर यदि केवल ऑँखों में आ जाएगी। यह इतना अच्छी तरह से दस फुट भी गहरा होता तो पृथ्वी का सारा सन्तुलन बनाया गया है, इतनी अच्छी इसकी व्यवस्था की बिगड़ गया होता कल्पना करें कि पृथ्वी माँ की गई है, यह इतना तीव्र कार्य करता है इतना कुशल गति कितनी तेज है! इतनी तीव्र गति से यह सूर्य है कि मानव शरीररूपी इस प्रकार की संस्था के के चहुँ ओर अत्यन्त सन्तुलित ढंग से घूमती है । चमत्कार को देखकर आश्चर्यचकित रह जाता है! इसकी परिक्रमा गोल नहीं होती, यह एक विशेष परन्तु आप देखें कि मानव क्या हैं? वे अकुशलता प्रकार की होती है इस बात को आप जानते हैं। की प्रतिमूर्ति हैं। मैंनें अपनी पुत्री को चार तार मानव को समझने की, अपनी कुशलता को कुण्डलिनी स्थापित की गई है यद्यपि कुण्डलिनी कुण्डलिनी विद्यमान है, इसका अस्तित्व है । परन्तु आरम्भ में इस सारे सृजन से पूर्व सबसे का सृजन किया पूर्ण सृष्टि की सुरक्षा के लिए है। आपके लिए वह दिन और रात बनाती है-कार्य 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-9.txt जुलाई चैतन्य लहरी ৪ अगस्त, 2004 करने के लिए दिन और आराम करने के लिए रात। पड़ती है। सत्य की खोज के लिए किसी को किस प्रकार स्वयं पृथ्वी माँ ने आपके लिए इतना सम्मोहित नहीं किया जा सकता क्योंकि सम्मोहित सुन्दर वातावरण बनाया है, इतना सन्तुलन बनाया किया गया व्यक्ति तो सत्य को समझ ही नहीं है और जो तापमान उसे दिया गया था उसे शीतल सकता। अपनी पूर्ण चेतना और गरिमा में आपको किया है! यह सारा कार्य सर्वप्रथम सृजित पावनता सत्य का ज्ञान प्राप्त करना है। आपके सम्मुख की शक्ति से हो पाया है। अब अपनी मूर्खता के कारण मानव इस पावित्र्य पाएंगे। यह आत्मसाक्षात्कार पाखण्डी लोगों द्वारा को चुनौती दे रहा है। वो सोचता है कि वह किया गया सम्मोहन नहीं है। यह घटना है, परमात्मा को चुनौती दे सकता है यह उसकी वास्तवीकरण है जिसके द्वारा चेतना की अवस्था में चेतनता का चिन्ह है। मानव यदि उस बुलन्दी तक पहुंचते हैं और जो आपके अन्दर सामूहिक चेतना भाषण देने मात्र से आप सत्य को नहीं समझ के गणित का विकास करती है। यह चेतना अवस्था उन्नत हो पाता जहाँ हर चीज में वह परमात्मा की धड़कन को महसूस कर सकता तो उसने परमात्मा आपके अन्दर विकसित होती है और यही सच्चा को चुनौती कभी न दी होती। परन्तु पूर्णता की उस वास्तवीकरण है। अवस्था को पाने से पूर्व ही मानव ने परमात्मा की बात करनी शुरु कर दी। जो भी व्यक्ति परमात्मा जब इस मानव अस्तित्व के कैप्सूल में धमाका हुआ को चुनौती देने की सोचता है वह ऐसा मूर्ख है तो आपको बहुत सी उपलब्धियां प्राप्त हुईं। उदाहरण जिसे पूर्णता प्राप्त करने की कोई इच्छा नहीं है, वह के रूप में आपकी चेतना पशुओं की चेतना से कहीं तो केवल बड़ी-बड़ी बातें करना चाहता है। पावनता की सर्वव्यापी शक्ति है जो सुधारती है, विश्वविद्यालय नहीं हो सकते। पशु बाग-बगीचों पथ प्रदर्शन करती है. आयोजन करती है, प्रेम को नहीं समझते, गन्दगी को नहीं समझते, सौन्दर्य करती है तथा आपके अन्दर की सुप्त शक्ति की को नहीं समझते। ये सारा ज्ञान आपमें आ गया है। जागृति के लिए पूर्ण व्यवस्था करती है। अतः ज्योंही आप मानव बने इस सारे ज्ञान की अभिव्यक्ति व्यक्ति को समझना चाहिए कि कुण्डलिनी की आपके अन्तस की गहनता में हो गई। जागृति का घटित होना बहुत महत्वपूर्ण घटना है। कुण्डलिनी जागृति ही एकमात्र मार्ग है जिसके दिव्य मानव बनते हैं तो अपने अन्दर आपको द्वारा आप अपनी आत्मा को पहचान सकते हैं। अपनी पहचान हो जाती है और अन्य लोगों को मानव के इतिहास में यह महत्वपूर्णतम घटना है। समझने की चेतना आपमें आ जाती है यही यह कार्य उद्यान की तैयारी करने जैसा है जिसमें सामूहिक चेतना है। यही सहजयोग है। सहजयोग आप पेड़ लगाते हैं, पेड़ों पर फूल आते हैं और अब प्रकृति की प्रणाली है। जिस प्रकार यह सृजन हुआ वह आप क्योंकि मानव हैं अतः आप जानते हैं कि 1. अधिक है। आपके विश्वविद्यालय हैं। पशुओं के अतः कुण्डलिनी जागृति द्वारा ज्योंही आप भी सहज है। 'सह' का अर्थ है साथ और 'ज' अर्थात वह समय आ गया है जब फल भी लगने चाहिएं। ये बहुत महत्वपूर्ण घटना है जिसने घटित होना है। जन्मा हुआ। सहज का अर्थ है साथ जन्मा हुआ। सभी सभी सत्य साधक इसके विषय में जान जाएंगें। सत्य साधना में कठिनाई यह है कि अपने अन्तस में विनम्रता से परिपूर्ण होकर साधना करनी ऐसा तत्व होता है जो अकुंरित होता है। बीज के कुछ आपके अन्दर एक बीज की तरह से बना हुआ है। बीज को यदि आप ध्यान से देखें तो इसमें एक 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-10.txt चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2004 अन्दर उस पेड़ की पूरी शक्ति होती है जो इसे भाग हमारे शारीरिक अस्तित्व को देखता है और बनना है, सभी कुछ इसमें निहित होता है। इसी उसमें से भी वैज्ञानिक कितना कुछ जानता है। प्रकार से मानव के बीज के अन्दर भी वो सारी आपको आश्चर्य होगा कि ज्ञान यदि सागर है तो तस्वीर होती है जो उसे बनना है। सारी यान्त्रिकता उसके अन्दर स्थापित कर दी गई होती है। आपके अस्तित्व की अन्तर्धाराओं का वर्णन मैं अस्तित्व उसमें खो देना होगा केवल अपने प्रयत्न आपके सम्मुख करूंगी। मानव के अन्दर कौन सी से बूँद सागर नहीं बन सकती। सागर को बूँद अपने शक्तियां बनाई गई हैं? मैं केवल इतना कहना अन्दर विलीन करनी होगी। सागर को यह कार्य चाहूँगी कि आप कम्प्यूटर की तरह से हैं. कम्प्यूटर करना होगा मानव को यदि पूर्ण सन्तुष्टि प्राप्त की तरह से आपको बनाया गया है आपने केवल करनी है तो परमात्मा की सुन्दर सृष्टि की अभिव्यक्ति स्वयं को स्रोत से जोड़ना है। स्रोत से जुड़ते ही मानव के अन्दर होती है। मानव को चाहिए कि पूर्ण कम्प्यूटर स्वतः कार्य करने लगता है। परन्तु मशीन सन्तुष्टि प्राप्त करे। पूर्ण सन्तुष्टि प्राप्त किए बिना से जुड़ने का यही तरीका है। आप मानव हैं आप वह अपने किसी भी प्रयत्न में पूर्णता को नहीं पा समझते हैं कि प्रेम क्या है। एक वैज्ञानिक से मैं प्रेम सकता। जब तक मानव इस अवस्था को नहीं पा के विषय में बात नहीं कर सकती। परमेश्वरी लेता परमात्मा स्वयं भी चैन से नहीं बैठेंगे, क्योंकि पावनता के विषय में मैं बात कर रही हूँ। परमात्मा कौन चाहेगा कि अपनी ही सृष्टि को नष्ट कर दे? के प्रेम के बारे में, जिसने आपका सृजन किया है हजारों हज़ार वर्षों में सन्तुष्टि प्राप्ति की यह अवस्था और जो चाहता है कि आप उस (परमात्मा) को आई है। यह कार्य यदि मेरे द्वारा ही होना है, मैने पहचानो। विज्ञान के माध्यम से आप ऐसा नहीं कर ही यदि आपकी कुण्डलिनी को उठाना है तो सकते। वैज्ञानिक केवल बूँद मात्र जानता है। सागर को समझने के लिए बूंद को सागर में गिरकर अपना 1. आपको इस पर एतराज क्यों होना चाहिए? परमात्मा हर वैज्ञानिक भी अवश्य किसी न किसी से प्रेम का शुक्र है कि मैं वैज्ञानिक नहीं बनी अन्यथा मैंने करता होगा, अपने बच्चों से शायद उसे प्रेम न हो. भी एटम बम बना दिया होता। परमात्मा की कृपा से तो शायद अपने कुत्ते से प्रेम करता होगा। हो सकता है वो फूलों से प्रेम करता हो। यदि फूलों से बातें सुनते सुनते मैं पागल हो गई होती। परमात्मा नहीं तो हो सकता हो अपने घोड़ों से प्रेम करता की धन्यवादी हूँ कि मुझे राजनीतिज्ञ नहीं बनाया। मैं मनोवैज्ञानिक नहीं बनी नहीं तो पागल लोगों की हो। परन्तु वह यह अवश्य जानता है कि प्रेम क्या है और यदि वह समझता है कि प्रेम चिंगारी क्या हूँ। मैं तो बस आपकी माँ हूँ और सदैव आपके है, ये कहाँ से आती है तो उसकी समझ में आ सर्वोच्च हित के लिए चिन्तित रहती हूँ, उथले लाभ जाएगा कि जिस प्रेम की बात मैं कर रही हूँ वह के लिए नहीं । इन सारी शक्तियों का सामंजस्य है। विज्ञान एक छोटे से अंश को देखता है। मैं भी आपको यह बताऊंगी कि इस शक्ति का कौन सा परमात्मा की कृपा से मैं इनमें से कुछ भी नहीं परमात्मा आप सब पर कृपा करें (महाअवतार 1980 से उद्धृत) 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-11.txt 'निर्मला* 18 जनवरी 1980 को राहुरी में मराठी प्रवचन का हिन्दी रूपान्तर जिसमें परमपूज्य श्री माताजी ने स्वतः पूर्ण मन्त्र स्वनाम 'निर्मला (निः+म+ला) में निहित गूढ़ माव की विश्लेषणपूर्ण विशद व्याख्या की है। यह हर्ष की बात है कि सब सहजयोगी एक विचार आये तो कहिये यह कुछ नहीं है, यह सब साथ एकत्रित हुए हैं। जब हम इस भाँति एकत्रित होते हैं तब हम परस्पर हित की अनेक बातों पर भ्रम है, मिथ्या है दूसरा विचार आये तो कहिये यह कुछ नहीं है। आपको बारम्बार यह भाव लाना है। 1 विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं और उन तब आप 'निः' शब्द का अर्थ समझ पायेंगे। विषयों पर अनेक सूक्ष्म बातें एक दूसरे को बता सकते हैं। दो-एक दिन पहले मैंने अपको को सम्पूर्णतः भ्रम मात्र नहीं है, इस दृश्यमान के परे भी स्वच्छ, दोष-मुक्त करने की विधि बताई थी। स्वयं कुछ है। किन्तु अपने जन्मों के इतने बहुमूल्य वर्ष आपकी माँ का नाम ही निर्मला है और इसमें अनेक हमने वृथा गंवा दिये हैं कि हम वे वस्तुएँ जिनका शक्तियाँ है। आपको जो कुछ माया-रूप दिखता है यह वास्तव में अस्तित्व नहीं है उनको महत्व देते हैं और इस नाम में पहला शब्द 'निः' है जिसका अर्थ है इस भाँति हमने पापों के ढेर इकट्ठे कर लिये हैं। "नहीं। कोई वस्तु जिसका वास्तव में अस्तित्व नहीं इन सब वस्तुओं में हमने आनन्द-लाभ करने का है किन्तु जिसका अस्तित्व प्रतीत होता है, उसे प्रयास किया है, किन्तु वास्तव में इनमें से हमें कुछ महामाया (भ्रम) कहते हैं। सम्पूर्ण विश्व इसी प्रकार भी आनन्द प्राप्त नहीं हुआ। तत्व रूप से ये सब है। यह दिखता है किन्तु वास्तव में नहीं है यदि कुछ नहीं है । हम इसमें तल्लीन हो जाते हैं तो प्रतीत होता है यही सब कुछ है। तब हमें लगता है हमारी आर्थिक "कुछ नहीं है केवल ब्रह्म ही सत्य है, अन्य सब अवस्था अच्छी नहीं है, सामाजिक व पारिवारिक मिथ्या है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आपको यह स्थितियाँ असन्तोषजनक हैं। हमारे चारों ओर सम्पूर्ण दृष्टिकोण अपनाना है। तब आप सहज योग को जो समझेंगे। साक्षात्कार के पश्चात् अनेक सहज योगियों अतः दृष्टिकोण यह होना चाहिये कि यह सब | भी है सब खराब है। हम किसी चीज से कुछ का यह होता है कि वे सोचते हैं कि हमें सिद्धि सन्तुष्ट नहीं हैं। समुद्र सतह पर जल अत्यन्त गदला होता है। (साक्षात्कार) प्राप्त है, हमें पूज्य माताजी का उसके ऊपर अनेक वस्तुएं तैरती रहती हैं। किन्तु आशीर्वाद प्राप्त है तो हम समृद्ध क्यों नहीं यदि हम उसकी गहराई में जायें तो देखेंगे कि हैं? उन के विचार में परमात्मा का अर्थ है उसके भीतर कितना सौंदर्य, कितनी धन-सम्पदा समृद्धि । यदि आप विचार करें कि क्या कारण है और कितनी शक्ति है। तब हम भूल जायेंगे कि कि साक्षात्कार के पश्चात् भी आपका 'स्वभाव' नहीं 1 बदला, तब आप देखेंगे कि आपकी आत्मा का सतह का जल मैला है। कहने का अभिप्राय है कि हम चारों ओर जो स्वरूप नहीं बदला। देखिये, 'स्व' अर्थात् आत्मा देखते हैं वह सब माया (भ्रम) है। सर्वप्रथम आप को स्मरण रखना चाहिये कि यह सब जो दिखता है शब्द कितना सुन्दर है। बताइये, क्या आपने अपनी और 'भाव' अर्थात् स्वरूप के योग से बना 'स्वभाव' यह कुछ नहीं है। यदि आपको "निः' भावना अपने आत्मा का स्वरूप प्राप्त कर लिया है? यदि आप अन्दर प्रतिष्ठित करना है तो जब भी आपके मन में 'आत्मा' में स्थित हो गये तो आप देखेंगे कि भीतर 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-12.txt चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 11 इतना सौंदर्य है कि आपको बाह्य सब कुछ नाटक जाते हैं कि ये सज्जन व्यक्ति कैसे इतने क्रोध- सा प्रतीत होगा जब तक आपकी यह साक्षी ग्रस्त हो गये! वे अपनी निजी मानसिक शन्ति भी स्थिति जागृत नहीं होती, आपने निः' शब्द का खो बैठते हैं । उनका सम्पूर्ण आन्तरिक सौंदर्य अनुसरण नहीं किया, उसके अनुसार आचरण नहीं समाप्त हो जाता है। अतः वांछनीय यही है कि हम किया यदि आप जानते हैं कि 'निः' आपके भीतर सदैव निर्विचार रहें। अपने मस्तिक से छोटे विचारों प्रतिष्ठित नहीं हुआ है, फिर भी आप भावुक, अहकारी, पर प्रतिबन्ध लगा दें। तब आप स्वतः ही मध्य में हठी अथवा विनम्र व निराश होते रहते हैं तो इन रहेंगे। पराकाष्ठाओं (असीम अवस्थाओं) में स्थिति का 1 आपको समस्त प्रयत्न करने चाहियें अब आप कारण 'निः' से सम्बन्धित उधर, न इस स्थिति में हैं और न उस स्थिति में, सकते हैं?" अब आपके विचार क्या हैं? वह वास्तव अर्थात् डावाँडोल स्थिति में हैं। निः स्थिति में खोखले हैं। निर्विचार अवस्था में आप परमात्मा ध्यानयोग में सर्वश्रेष्ठ रूप में प्राप्त की जा सकती की शक्ति के साथ एकरूप हो जाते हैं अर्थात् बूंद है। अपने जीवन में 'निः विचार का अनुसरण करने ( अर्थात् आप स्वयं) समुद्र (अर्थात् परमात्मा) में है । आप न इधर न पूछेंगे, 'माँ, बिना विचार किये हम काम कैसे कर से आप 'निर्विचार' स्थिति प्राप्त कर लेंगे। सर्वप्रथम आपको निर्विचार होना चाहिये। जब आपके भीतर आ जाती है क्या आप की अंगुली आपके मन में कोई विचार आता है, चाहे वह अच्छा सोचती है? क्या यह फिर भी चल नहीं रही? अपने हो अथवा बुरा, तब विचारों का ताँता-सा लग विचारों को परमात्मा को समर्पित कर दें और अपने जाता है। एक के बाद दूसरा विचार आता रहता विषय में सोचने का भार उस पर छोड़ दें। किन्तु है। लोग कहते हैं कि बुरे विचार का अच्छे यह कठिन-सा है क्योंकि आप निर्विचार स्थिति में आकर मिल जाती है। तब परमात्मा की शक्ति भी कुछ विचार से प्रतिकार करना चाहिये, अर्थात् एक दिशा नहीं है । से आने वाली गाड़ी को जब विपरीत दिशा से आने वाली गाड़ी से धकेला जाये तो दोनों एक मध्य समर्पण कर दिया है। किन्तु यह केवल मौखिक अनेक लोग कहते हैं हमने सब परमात्मा को होता है, वास्तव में नहीं। समर्पण मौखिक क्रिया स्थान पर रुक जायेंगी। कहीं तक यह ठीक है किन्तु कभी-कभी यह हानिकारक भी हो सकता नहीं है निर्विचारिता प्राप्त करने के लिये, जिसका है। एक कुविचार जब एक सुविचार द्वारा दबाया अर्थ है आपका विचार करना बन्द कर देना, आपको जाता है तो यह भीतर ही भीतर दबा रहता है। समर्पण करना पड़ता है। जब आपकी विचार क्रिया किन्तु यह एकाएक उभर सकता है। अनेक व्यक्तियों बन्द हो जाती है तब आप मध्य में आ जाते हैं। के साथ ऐसा ही होता है। वे अपने सामान्य विचारों मध्य में आते ही तुरन्त आप निर्विचार चेतना में को दबा रखते हैं और अपने से कहते हैं हमें पहुँच जाते हैं अर्थात् आप परमात्मा की शक्ति के परोपकारी होना चाहिये, अपने आचरण अच्छे रखने साथ एकरूप हो जाते हैं और जब ऐसा होता है तब चाहियें, इत्यादि। कभी-कभी ऐसे लोग बड़े वह (परमात्मा) आपकी देख- रेख करता है । वह उपद्रव-ग्रस्त हो सकते हैं अचानक एकदम यह आपकी छोटी-छोटी बातों के विषय में सोचता है। क्रोध के वशीभूत हो जाते हैं और लोग चकित हो यह आश्चर्यजनक है। किन्तु आप करके तो देखें 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-13.txt जुलाई चैतन्य लहरी 12 अगस्त, 2004 और आप देखेंगे कि आपका पहला रास्ता गलत समय आप निर्विचारिता में प्रवेश करने की क्षमता था। अतः एक बार जब आप निर्विचारिता का स्वाद लेते हैं तो आप देखते हैं कि आपको समस्त हो जाता है। आप जो अनुसन्धान करते हैं वह भी प्रेरणायें, समस्त शक्तियाँ और अन्य सर्वस्व प्राप्त निर्विचार अवस्था में रहना चाहिये । निर्विचार अवस्था होने लगता है। निर्विचारिता में आपके मन में जो में कार्य-रत रहने का अभ्यास कीजिये इस विचार आता है वह एक अन्तः प्रेरणा (inspiration ) आप अति उत्कृष्ट रीति से अपना अनुसंधान कार्य होती है। आप चकित होंगे प्रत्येक वस्तु आपके कर सकते हैं। मैं अनेक विषयों पर बोलती हूँ। सामने ऐसे आयेगी मानो थाली में परोस कर आपके अपने जीवन में मैंने कभी विज्ञान का अध्ययन नहीं सम्मुख प्रस्तुत कर दी गई आप वक्तृता देने खड़े किया और उस विषय में कुछ नहीं जानती। फिर होते हैं. केवल निर्विचारिता में प्रवेश कीजिये और यह सब ज्ञान कहाँ से आता है? निर्विचारिता से।. मैं श्रीगणेश कर दीजिये यद्यपि आपने पहले कभी बोलती जाती हूँ और जो कुछ होता है उसे देखती भाषण नहीं दिया, भाषण की कला का आपको कुछ रहती हूँ। मेरे वाणीरूपी कम्प्यूटर में मानो यह सब प्राप्त कीजिये। आप देखेंगे सब कुछ स्वतः ही स्पष्ट भाँति ज्ञान नहीं अथवा प्रस्तुत विषय का आपको कुछ कुछ पहले से तैयार करा कराया रखा था। यदि विशेष ज्ञान नहीं, किन्तु चमत्कार! आप इतना आप निर्विचार अवस्था में नहीं हैं तो आप उस कमाल का बोलेंगे कि लोग स्तम्भित हो जायेंगे कि कम्प्यूटर (अर्थात् निर्विचारिता) का उपयोग नहीं यह ज्ञान भण्डार आप में कहाँ से उमड़ पड़ा! कर रहे हैं और अपने मस्तिष्क को उसके ऊपर किन्तु जहाँ एक बार आप निर्विचारिता में गहरे प्रतिष्ठित करते हैं (अर्थात् आपका निर्विचारितारूपी उतरे, सब कुछ वहाँ से (निर्विचारिता से) आता है, कम्प्यूटर निष्क्रिय रहता है और आपके सब कार्य न कि आपके मस्तिष्क से मानव मस्तिष्क शक्ति, जो सीमित है, उसके बल पर होते हैं) निर्विचारिता एक प्राचीन कम्प्यूटर है अब मैं आपको अपना रहस्य बताती हूँ। आप प्रार्थना कीजिये, "माँ" मेरे लिये कृपया ऐसा कर और इसकी शक्ति से विपुल परिमाण में सही कार्य दीजिये" । आप आश्चर्य करेंगे मैं आपकी विनती पर किया गया है यदि आप अपने मस्तिष्क का प्रयोग विचार नहीं करती। केवल उसे अपनी निर्विचारिता करते हैं और इस कम्प्यूटर का आश्रय नहीं लेते तो को समर्पित कर देती हूँ। सम्पूर्ण संयन्त्र वहाँ आप निश्चित् रूप से गलतियाँ करेंगे। क्रियाशील होता है। उसे (विचार को) उस संयन्त्र (निर्विचारिता) में डालिये और माल तैयार होकर वह प्रबुद्ध प्रकाशमान होता है। हिन्दी, मराठी तथा आपके सम्मुख आ जाता है। आप उस संयन्त्र- यों संस्कृत भाषाओं में किसी शब्द से पहले 'प्र' युक्त कहें नीरव अथवा शान्त संयन्त्र- को काम तो करने करने से उसका अर्थ होता है प्रकाशित, प्रकाशमान। दीजिये। अपनी सारी समस्याएं उनको सौंपिये। प्रकाश कभी बोलता नहीं। यदि आप कमरे की बत्ती किन्तु बुद्धि-जीवियों के लिये यह अत्यन्त कठिन जला दें, तो वह बत्ती ( दीप) बोलेगी नहीं अथवा है क्योंकि उनको प्रत्येक बात के बारे में सोचने की कोई विचार आपको नहीं देगी। वह केवल सब कुछ निर्विचार अवस्था में जो कुछ भी घटित होता है आदत होती है। किसी विषय को समझने की कोशिश करते रूप प्रकाश के बारे में है। निर्विचार, निरहंकार दृष्यमान (प्रकट) कर देगी। यही बात निर्विचारिता 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-14.txt जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2004 13 (अर्थत् अहंकार रहित) इत्यादि सब शब्दों के पहले है आप मुख्य धारा (निर्विचारिता) में हैं अथवा नहीं। निः जुड़ा यदि आप इसमें नहीं है और आप कहीं किनारे पर भीतर स्थापित कीजिये और तब आप निर्विकल्प अटके हैं तो प्रवाह, तरंगे आती हैं और आपको अवस्था में आ जायेंगे। पहले निर्विचार, तत्पश्चात् मुख्य धारा में ले जाती हैं, एक बार, दो बार, तीन निर्विकल्प। तब आपके समस्त सन्देह व शंकायें बार। किन्तु यदि आप फिर भी किनारे पर आकर समाप्त हो जाती हैं और आपको प्रतीत होता है कि अटक जाते हैं, तब आप कहते हैं 'माता जी, मेरा कोई शक्ति है जो काम करती है। यह शक्ति कोई कार्य सुचारु रूप से नहीं होता। वास्तव में अत्यन्त द्रुत गति से काम करती है और अत्यन्त होगा भी नहीं। कारण, आप किनारे पर अटके हैं। श्री गणेश की जो आप स्तुति गान करते हैं वह अत्यन्त सुन्दर है। इसमें कहते हैं "मुख्य धारा जिसका अर्थ है प्रकाशमान है आप इसे (अर्थात् 'निः' को) अपने सूक्ष्म है। आप आश्चर्य करेंगे यह सब कैसे घटित होता है। यही बात समय के विषय में है। मैं कभी घड़ी (प्रवाह) में प्रवाहित. की तरफ नहीं देखती । कभी-कभी यह रुक जाती मुख्य धारा (प्र+वाह)। आप इसमें अपनी पृथक् है, कभी गलत समय बताती है। किन्तु मेरी असली लहर, तरंगे न मिलायें। श्री गणेश की आरती में घड़ी निर्विचारिता में है। यह हमेशा स्थिर (शान्त) यह भी आता है । "निर्वाणी रक्षावे" अर्थात् मृत्यु के समय मेरी रक्षा करें आप यह भी कहते हैं "रक्षः रहती है। यदि कोई कार्य करना हो तो वह उचित् समय पर हो जाता है। फिर मन में कुछ पश्चाताप रक्षः परमेश्वरः हे परमात्मा आप मेरी रक्षा करें। नहीं होता कि यह समय पर हुआ अथवा देरी से। किन्तु आप स्वयं ही अपनी रक्षा करना चाहते हैं। जब भी हो, मुझे कोई चिन्ता नहीं। कल मेरी गाड़ी (कार) खराब हो गई। किन्तु मैं कहते हैं 'उसे अपनी रक्षा अपने आप ही करने दो।" आनन्दमग्न थी क्योंकि मैं तारागणों को देखना फिर परमात्मा आपकी रक्षा क्यों करें? वह (परमात्मा) मैं इस बात पर बल देना चाहती हूँ कि आपको चाहती थी। वह सौंदर्य लन्दन में उपलब्ध नहीं गहराई में जाना सीखना चाहिये और निर्विचारिता होता। अतः मैं वह देखना चाहती थी। इसका सौंदर्य सम्पूर्ण आकाश में व्याप्त था आकाश की निर्विकल्प स्थिति प्राप्त कर सकते हैं । अभिलाषा थी माँ उसकी इस छटा को देखें । कभी-कभी मुझे उस ओर भी देखना आवश्यक लोग कहते हैं 'मेरा बेटा, मेरी बेटी ।" इंग्लैण्ड में में ही सब कुछ प्राप्त करना चाहिये। तभी आप आपको निरासक्त रहना चाहिये। यहाँ भारत में होता है। मैं उसका आनन्द लाभ कर रही थी। इसके विपरीत होता है। वहाँ बेटा, बेटी किसी से कोई लगाव (आसक्ति) नहीं होती। वे केवल अपने स्वयं के बारे में सोचते हैं। यहाँ हर चीज़ में 'मेरा, मेरा मेरा लड़का, मेरी लड़की, मेरा मकान और अन्त में विचारों में केवल 'मैं' और 'मेरा' ही बाकी कर ऐसी सरलतापूर्वक। वह सब प्रबन्ध कर देते रह जाता है, इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं । 1 संक्षेप में, आपको किसी वस्तु का दास नहीं होना चाहिये। यदि आप निर्विचार अवस्था में हैं तो परमात्मा आपको सर्वत्र ले जाते हैं मानो अपने हाथों पर उठा हैं। वह सब कुछ जानते हैं और उन्हें कुछ भी आपको कहना चाहिये मेरा कुछ भी नहीं है, सब बताने की आवश्यकता नहीं। किन्तु आपको देखना कुछ आपका ही है। सन्त कबीर कहते हैं "जब तक 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-15.txt चैतन्य लहरी जुलाई अगरत, 2004 14 'ला' शक्ति में प्रेम का समावेश (सम्मिलित) है बकरी जीवित रहती है तब तक वह 'मैं, 'मैं' करती है। किन्तु उसको मारने के बाद उसकी आँतों के वह हमारा दूसरों से नाता जोड़ती है। 'ल' शब्द तारों से जो ताँत (जिससे धुनिया रुई धुनता है) ललाम', 'लावन्य' में आता है। 'ल' शब्द में उसका बनती है. उसमें से तू-ही-तू आवाज़ आती है। अपना ही विशेष माधुर्य है और आपको दूसरों को आपको भी तू-ही-तू ही भावना में मग्न रहना उससे (माधुर्य से) प्रभावित करना चाहिये। दूसरों से चाहिए। जब आप मैं नहीं हूँ मेरा कोई अस्तित्व बातचीत करते समय आपको इस शक्ति का प्रयोग नहीं है इस भावना में दृढ़ स्थित हो जाते हैं तभी करना चाहिये। चराचर में यह प्रेम की शक्ति व्याप्त आप 'निः' शब्द को समझ सकेंगे। है। ऐसी, स्थिति में आपका क्या कर्त्तव्य है? आपको अब 'निर्मला नाम के अन्तिम अक्षर 'ला' के अपने सारे विचार प्रथम (निः) शक्ति पर छोड देने विषय में विचार करें। मेरा दूसरा नाम है 'ललिता'। यह देवी का आशीर्वाद है। यह उसका आयुध से ही होता है । अन्तिम (ला) शक्ति, जो प्रेम और (शस्त्र) है। जब ला अर्थात् 'देवी' ललिता रूप सौंदर्य की शक्ति है, उससे आप को प्रेम के आनन्द धारण करती है अथवा जब शक्ति ललित अर्थात् का रसास्वादन करना चाहिये । यह कैसे करें? क्रियाशील रूप में परिणत होती है अर्थात् जब उस अपने आपको दूसरों के प्रति प्रेमभाव में भूल जायें, में चैतन्य लहरियाँ प्रवाहित होती हैं जो आप अपनी उस भाव में खो जायें क्या किसी ने अनुमान हथेलियों पर अनुभव कर रहे हैं, वह शक्ति 'ललिता लगाया है. कि वह दूसरों से कितना प्रेम करता है? शक्ति' है। यह सौंदर्य एवं प्रेम से परिपूर्ण है जब यह बढ़ता ही रहना चाहिये। आप दूसरों को प्रेम की शक्ति जागृत होती है तब वह 'ला' शक्ति कितना प्यार करते हैं और इस भाव में कितना बन जाती है। यह आपको चारों ओर से घेर लेती आनन्द लेते हैं? क्या अपने बारे में आपने सोचा है? है। जब वह क्रियाशील होती है तब चिन्ता कैसी? मानवों के विषय में मैं कह नहीं सकती, किन्तु अपने तब आपकी कितनी शक्ति होती है? क्या आप वृक्ष स्वयं के विषय में मैं कह सकती हूँ कि मैं दूसरों से से एक फल भी बना सकते हैं। फल की तो बात प्रेम करने में अत्यन्त आनन्द अनभव करती हैँ। क्या, आप एक पत्ता अथवा जड़ भी नहीं बना अनुभव करें, कैसे चारों और प्रेम की गंगा बह रही सकते। केवल मात्र 'ला शक्ति यह सब कार्य है, वह अनुभूति कितनी आनन्ददायक है! एक करती है। आपको जो आत्म-साक्षात्कार प्राप्त चाहियें क्योंकि विचारों का जन्म उस प्रथम शक्ति गायक को देखिये, वह कैसे अपने स्वयं के राग में है वह भी इसी शक्ति का काम है। इसी अपने आपको भूल जाता है, उसमें खो जाता है और हुआ शक्ति से 'निः' तथा 'म' (निर्मला नाम के प्रथम व सर्वत्र उस संगीत को प्रवाहित होते अनुभव करता द्वितीय अंश) शक्तियों का जन्म हुआ है। 'निः' है! इसी भाँति प्रेम भी अबाधित रूप से प्रवाहित शक्ति श्री ब्रह्मदेव की श्री सरस्वती शक्ति है । होना चाहिये। अतः आप 'ललाम' शक्ति, जो चैतन्य सरस्वती शक्ति में आप को 'निः' के गुण अर्जन लहरियों के रूप में विशुद्ध दिव्य प्रेम की शक्ति है (प्राप्त) करने चाहिये। 'निः' शक्ति प्राप्त करने का उसे पहले अपने भीतर जागृत करें। अर्थ है पूर्णतः निरासक्त बनना आपको पूरी तरह आप देखें कि आप दूसरों की ओर किस दृष्टि से देखते हैं। कुछ निम्न स्तर के लोग दूसरों से कुछ निरासक्त बनना चाहिये। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-16.txt चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 15 चुराने अथवा उनसे कुछ लाभ उठाने के भाव से आकर्षणयुक्त बन जाता है कि आप घण्टों उसके देखते हैं, कुछ दूसरों के दोषों को देखते हैं। पता संगीत में आनन्द और प्रसन्नता का अनुभव करते नहीं इसमें उन्हें क्या आनन्द आता है। इस भाँति हैं। आपका प्रेम दूसरों को आनन्ददायक और दूसरों वे अकेले, अलग-अलग हो जाते हैं और फिर कष्ट के मन को जीतने वाला बनना चाहिये। इसके भोगते हैं यह स्वयं कष्टों को निमन्त्रण देना है। फलस्वरूप सब आपके मित्र बन जाते हैं और मुझे तो सबसे मिलने, भेंट करने में आनन्द आता परस्पर प्रेम बढ़ता है। प्रत्येक अनुभव करता है कि है। एक स्थान है जहाँ उसे प्रेम और वात्सल्य मिल आपको ललाम शक्ति का जो चैतन्य लहरी सकता है। अतः आपको प्रेम की ईश्वरीय शक्ति को रूप में दिव्य प्रेम की शक्ति है-उपयोग करना अपने भीतर विकसित करना चाहिये। चाहिये। दूसरे व्यक्ति को देखने मात्र से आप निर्विचारिता में पहुँच जायें। इससे दूसरा व्यक्ति भी चाहिये। जब भी कोई विचार आये तो सोचिये निर्विचार हो जायेगा। अतः आप अपने को एवं ईश्वर के प्रेमरूपी पवित्र गंगा में यह गन्द कहाँ से दूसरे को भी विशुद्ध दिव्य प्रेम का बन्धन दें । 'निः' आ गई? ऐसी चित्त-वृत्ति से हमारी 'ला शक्ति शक्ति और 'ला' शक्ति को बँधने दें। 'ला' शक्ति अर्थात् दिव्य प्रेम की शक्ति सदैव स्वच्छ, निर्मल अर्थात् चैतन्य लहरियों के रूप में प्रेम की शक्ति रहेगी और उस स्वच्छता के आनन्द में हम विभोर को निः शक्ति अर्थात् निर्विचारिता में पहुँचाना, रहेंगे। हमें सदैव निर्विचारिता (निः' शक्ति) में रहना परिणत करना है। दोनों को बन्धन देना लाभप्रद आप दूसरों की टीका-टिप्पणी (criticism) न है बहुत से लोगों से, जो बड़े अभिमानी हैं अथवा करें यदि आप मुझसे किसी व्यक्ति के विषय में जो सोचते हैं कि वे बड़े काम करने वाले, कर्मवीर पूछें तो मैं केवल उसकी कुण्डलिनी की अवस्था के हैं, उनसे मैं अपनी बायें पार्श्व (side) को उठाने को विषय में बता सकती हैँं अथवा उसका कौन सा बताती हैँ। इस भाँति हम अपने स्वयं के पंच तत्वों चक्र इस समय पकड़ा हुआ है अथवा बहुधा पकड़ा आकाश) में अपने स्वयं रहता है इसके अतिरिक्त मैं कुछ नहीं समझ के विशद्ध दिव्य प्रेम को भरते हैं, संचारित करते हैं। सकती कि वह कैसा है. उसका स्वभाव कैसा है, अपने हृदय के प्रेम की शक्ति (हमारा बायाँ पार्श्व) इत्यादि । यदि इस विषय में मुझसे पूछा जाये तो मैं को अपनी क्रिया शक्ति (हमारा दायाँ पार्श्व) में कहूँगी, स्वभाव होता क्या है? यह परिवर्तनशील पहुँचाना चाहिये, जैसे आप कपड़े पर रंगों से होता है। नदी इस समय यहाँ बह रही है। बाद में चित्रण करते हैं। जब इस भांति क्रिया शक्ति में प्रेम उसका बहाव कहाँ होगा, कौन बता सकता है? इस शक्ति का सम्मिश्रण किया जाता है तब वह व्यक्ति समय आप कहाँ हैं? यही विचार करने की बात है। | (पृथ्वी, जल, तेज, वायु और अत्यन्त मधुर बन जाता है और क्रमशः वह माधुर्य, आप नदी के इस किनारे पर खड़े हैं तो आपको प्रेम उसके व्यक्तित्व और उसके आचरणों में विचित्र लगता है कि नदी यहाँ बह रही है। मैं प्रकाशमान होता है। वह प्रेम प्रवाहित होकर दूसरों समुद्र की दिशा में खड़ी हैूँ। इस कारण मैं जानती को प्रभावित करता है और उसकी प्रत्येक क्रिया हूँ इसका उदगम-स्थल कौन सा है। अतः आप अत्यन्त रसमय हो जाती है। वह व्यक्ति इतना किसी को भी व्यर्थ, निकम्मा न कहें। प्रत्येक व्यक्ति পাঁ 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-17.txt चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2004 16 बदलता रहता है, यह अवश्य होता है। सहजयोग बीज उग कर एक बृक्ष बनता है जिसमें पत्ते होते हैं। फिर पत्ते झड़ते हैं। यह क्रिया भी अत्यन्त करने वाले व्यक्तियों को किसी को नहीं कहना सुकोमल व सरल होती है तब फूल आते हैं। जब चाहिये कि वह बेकार हो गया है । प्रत्येक को फूल फल बनते हैं, तब उनके अंश झड़ कर गिर स्वतन्त्रता होनी चाहिये। आप सब जानते हैं हमारी जाते हैं और तब फल आते हैं। उन फलों को भी वर्तमान स्थिति क्या है। यदि आप इस भाँति सोचेंगे खाने के लिये काटा जाता है । खाने पर आपको तो आप न केवल अपने स्वयं का आत्म-सम्मान स्वाद प्राप्त होता है। वह भी यही शक्ति है। इस करते हैं. बल्कि दूसरों का भी सम्मान करते हैं । प्रकार ये दोनों शक्तियाँ काम करती हैं। आप जिसमें आत्म-सम्मान नहीं है. वह दूसरों का कभी जानते हैं बिना काटे, संवारे आप कोई मूर्ति नहीं बना सकते। यदि आप समझ लें कि यह काटना का कार्य परिवर्तन लाना है। सहजयोग में विश्वास 1 आदर नहीं कर सकता। संवारना भी उसी जाति की क्रिया है तो यदि हमें ललाम शक्ति का विकास करना चाहिये। एक पुस्तक लिखकर भी मैं इसका आनन्द पर्याप्त आपको कभी ऐसा करना पड़े तो आपको बुरा रूप से वर्णन नहीं कर सकती क्योंकि साँदर्य को अनुभव नहीं करना चाहिए । वह भी आवश्यक है। प्रकट करने के लिये शब्द असमर्थ हैं। अर्थात्, यदि किन्तु एक कलाकार इसे कलापूर्ण ढंग से करता है आपको 'मुस्कान' का वर्णन करना हो तो आप और कला हीन व्यक्ति इसे बेढंगे तरीके से करता केवल कह सकते हैं कि स्नायु कैसे आन्दोलन है सो आप में कितनी कला है इस पर यह शक्ति (हरकत) करते हैं। आप उसके प्रभाव को नहीं बता निर्भर करती है। सकते। यह तो केवल अनुभव की वस्तु है। आप केवल इस शक्ति को जागृत और विकसित होने इच्छा करती है आप इसकी ओर देखते ही रहें। कभी आप एक चित्र को देखते हैं और आपकी यदि कोई पूछे इस चित्र में क्या विशेषता है तो आप का अवसर दें। ललाम शक्ति से मनुष्य को एक प्रकार का शब्दों में नहीं बता सकते। आप बस उसे निहारते सौंदर्य, एक भव्यता और स्वाभाव में माधुर्य प्राप्त हैं। कुछ चित्र ऐसे होते हैं कि आप उनकी ओर होता है। इस शक्ति को अपने वचन, कर्म तथा देखने मात्र से निर्विचार हो जाते हैं। इस निर्विचार अन्य क्रिया-कलापों में विकसित करने का प्रयास अवस्था में आप उसके आनन्द का रसास्वादन करते करें। लोगों का रोष भी मनोहारी होता हैं। हैं यह अवस्था सर्वोत्कृष्ट है। इसकी किसी अन्य कुछ इस मधुर, मनोहारी शक्ति को 'ललित शक्ति वस्तु से तुलना अथवा मुस्करा कर व्यक्त करने के कहते हैं। लोगों ने इसके भाव को बिल्कुल विकृत स्थान पर आपको इस स्थिति के आनन्द का मन कर कर दिया है। वे कहते हैं यह संहार की शक्ति भरकर रसास्वादन करना ही उचित है। इसका है। किन्तु यह बिल्कुल ठीक नहीं है। अति मनोरम, सृजनात्मक और कलात्मक है। मानो भाव भंगिमा पर्याप्त है। आपको इसका भीतर अनुभव आपने एक बीज बोया। उसके कुछ अंश नष्ट हो करना है सबको यह अनुभव लाभ होना चाहिए। जाते हैं, जिसे 'ललित शक्ति कहते हैं। किन्तु यह विनाश अत्यन्त कोमल और सरल होता है तब रोचक है। 'म' महालक्ष्मी का प्रथम अक्षर है। 'म' यह शक्ति वर्णन करने के लिये न कोई शब्द है, न कोई निः और 'ला के मध्य में 'म' शাब्द अत्यन्त 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-18.txt चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 17 धर्म ( पवित्र आचरण) की शक्ति है और हमारी संगीत में आप को रागों का संतुलन करना पड़ता उत्क्रान्ति की भी 'म ' शक्ति में आपको समझना है, चित्रकला में आपको रंगों का संतुलन करना होता है, फिर उसे आत्मसात करना होता है और पड़ता है। इसी भाँति आपको 'निः और 'ला पूर्णता (mastery) कुशलता, प्राप्त करनी होती है। शक्तियों का संतुलन करना आवश्यक है। इस उदाहरण के लिये, एक कलाकार में 'ल' शवित्त से संतुलन प्राप्ति के लिये आपको परिश्रम करना उसके सृजन का विचार अंकुरित होता है 'नि' पड़ेगा अनेक बार आप वह खो बैठते हैं। जो शक्ति द्वारा वह उसका निर्माण करता है और 'म' सहजयोगी इस संतुलन को बनाये रखता है वह शक्ति के द्वारा वह उसे अपने विचार के अनुरूप उच्चतम स्तर पर पहुँच जाता है। बहुत भावुक सहजयोगी ठीक नहीं। इसी तरह यह उसके विचार के अनुरूप है और यदि नहीं तो बहुत ज्यादा कामों में फेसा रहने वाला सहजयोगी वह उसमें सुधार प्रेम की शक्ति को यह बार-बार करता है। यह 'म' शक्ति है अर्थात् सक्रिय करना चाहिये और देखना चाहिये अब तक यदि कोई वस्तु ठीक नहीं है तो एक बार, दो बार, वह कैसी क्रियाशील रही है। उदाहरणार्थ, मैं किसी एक ढंग से काम करती हूँ। आपने देखा होगा कि इस सुधार कार्य में परिश्रम लगता है हमें हर बार कुछ नवीनता, कोई नया तरीका होता है। अपने स्वयं का भी सुधार करना चाहिए यदि यह यदि एक तरीके से काम नहीं चलता, दूसरा तरीका अपनाइये। यदि यह भी असफल रहता है तो और के लिये परमात्मा को महान् परिश्रम करना पड़ता कोई ढूँढिये। किसी भी पद्धति पर अटल नहीं होना है। हमें 'म' शक्ति अर्जित करनी है और उसे चाहिये। आप प्रातः उठते हैं, सिंदूर लगाते हैं, श्री संभाल कर रखना है। यदि यह न किया जाये तो माँ को नमस्कार करते हैं। यह सब यान्त्रिक बनाता है। प्रत्येक पग पर वह देखता है कि क्या करने की कोशिश करता है। वह भी ठीक नहीं। आपको अपने बार-बार करें। न होता तो उत्क्रान्ति की क्रिया असम्भव थी। इस दूसरी दोनों शक्तियाँ समाप्त हो जाती हैं, क्योंकि यह शक्ति सन्तुलन बिन्दु (centre of gravity) है । है सजीव प्रक्रिया में आपको नित्य नई पद्धतियां आपको सन्तुलन बिन्दु पर स्थित रहना चाहिये और खोजनी होंगी। मैं सदैव वृक्ष की जड़ का उदारहण हमारी उत्क्रान्ति का सन्तुलन बिन्दु 'म' शक्ति है। देती हूँ। बाधाओं से मोड़ लेते हुए, बचते हुए, यह अन्य दोनों शक्तियाँ तभी आपके भीतर सक्रिय क्रमशः नीचे और नीचे पृथ्वी के भीतर उतरती चली होंगी जब आप उत्क्रान्ति शक्ति के अनुरूप उन्नति जाती है। यह बाधाओं से झगड़ती नहीं। बाधाओं करें। किन्तु उसके लिये आपको 'म' शक्ति को के बिना जड़ें वृक्ष को संभाल भी नहीं सकती थीं। (mechanical ) होता है। यह सजीव प्रक्रिया नहीं पूर्णतः समझना होगा और उसे विकसित करना होगा। तब तक आप कह सकते हैं कि यदि ईश्वर आप उन्नति भी नहीं कर सकते। वह शक्ति, जो आपसे प्रेम करते हैं तो उन्हें आपके पास आना आपको बाधाओं पर विजय पाना सिखाती है, वह चाहिये, किन्तु साक्षात्कार-प्राप्ति के पश्चात् आप 'म' शक्ति है। अतः यह 'म' शक्ति अर्थात् माँ की ऐसा न कह सकेंगे। क्योंकि 'म' शक्तिति के बल पर शक्ति है। उसके लिये प्रथम आवश्यक वस्तु है आपको दूसरी दो शक्तियों का संतुलन करना है। बुद्धिमानी। अतः समस्याएँ, बाधाएँ आवश्यक हैं। वे न हों तो 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-19.txt जुलाई - अगस्त, 2004 चैतन्य लहरी 18 सोचिये कोई व्यक्ति बड़ा कोमल स्वभाव है और शक्ति द्वारा किया गया है। यदि केवल 'नि' और "ल' दो शक्तियाँ ही होती, तो यह कार्य सम्भव नहीं कहता है, 'माँ मैं अत्यन्त मृदु हूँ मैं क्या कर सकता हूँ। मैं उससे कहती हूँ अपने को बदलो और एक था । मैं तीनों शक्तियों सहित आई हूँ, किन्तु 'म' सिंह बनो। यदि कोई दूसरा व्यक्ति सिंह है तो मैं शक्ति सर्वोच्च है। आपने देखा 'म' 'शक्ति' माँ की उसे बकरी बनने को कहती हैँ। अन्यथा काम नहीं शक्ति है। यह सिद्ध करना होगा कि वह आपकी चलता। आपको अपने तरीके बदलने होंगे जो माँ है । यदि कोई आकर कहे 'मैं आपकी माँ हूँ' तो व्यक्ति अपने तरीके नहीं बदल सकता, वह सहजयोग क्या आप मान लेंगे? नहीं, आप स्वीकार नहीं नहीं फैला सकता, क्योंकि वह एक ही तरीके पर करेंगे मातृत्व को सिद्ध करना होगा। जमा रहता है जिससे लोग ऊब जाते हैं। आपको नये मार्ग खोजने होंगे इसी भाँति 'म ' शक्ति कार्य करती है। महिलायें इसमें निपुण होती हैं। वे पर और माँ को हम पर पूर्ण अधिकार है क्यों कि प्रतिदिन नये व्यंजन (भोज्य पदार्थ, recipes) बनाती वह हमें अपार प्यार करती है। उसका प्रेम नितान्त हैं और पति जानने को उत्सुक रहते हैं कि आज निःस्वार्थपूर्ण है। वह सदैव हमारी मंगल कामना माँ क्या है? माँ ने अपने हृदय में हमें स्थान दिया है। हमें माँ करती है और उसके हृदय में हमारे लिये वात्सल्य क्या बना है। यह वह शक्ति है जिसके द्वारा आप अपना के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। माँ में आपको संतुलन और एकाग्रता प्राप्त करते हैं। जब आप इस शक्ति को उच्चतम स्तर पर विकसित कर लेते कि आपकी वास्तविक शोभा, अर्थात् आपकी आत्मा, हैं तब आप अपने संतुलन तथा बुद्धि स्तर से चैतन्य उनमें ही बास करती है। आप दूसरों को यह सिद्ध लहरियाँ अनुभव करते हैं। यदि आप में बुद्धिमानी करके दिखायें। सहजयोगी में ऐसी सामर्थ्य होनी नहीं है तो आप में उक्त लहरियाँ प्रभावित नहीं चाहिये। अन्य लोगों को पता हो कि वह एक होंगी। अधिकतम चैतन्य-लहरियों-सम्पन्न व्यक्ति क्रियाशीलता दोनों शक्तियों में संतुलन आवश्यक निश्चित बुद्धिमान व्यक्ति होता है। वास्तव में यह है। वह इतना मनोहारी होना चाहिये कि बिना जाने बुद्धिमत्ता ही है जो प्रवाहित हो रही है। इस अन्य लोग ऐसे व्यक्ति से प्रभावित हों। सहजयोगी मापदण्ड से यह निश्चित हो सकता है कि आप को यह गुण अजर्जन करना चाहिये। किस स्तर के सहजयोगी हैं। जब आप संतुलन तथा बुद्धि खो देते हैं तो 'ला' और 'म' शक्तियों को कैसे सक्रिय कर प्रयोग स्वाभाविक रूप से आपके चक्र पकड़े (बाधाग्रस्त) करें । 'निः शक्ति आपके परिवार में पूर्ण सौंदर्य, जाते हैं। जब आपके चक्र बाधाग्रस्त हों तो समझ गम्भीरता और गहराई लायेगी । जन-सम्पर्क के लीजिये आपका संतुलन बिगड़ गया है। असंतुलन आप नये-नये मार्ग और साधन खोजें। इन शक्तियों संकेत करता है कि 'म' शक्ति आप में दुर्बल है। का आप सहजयोग के प्रचार के लिये उपयोग करें। "माताजी' अर्थ वाचक किसी भी शुभ नाम का प्रथम उनके उचित उपयोग के लिये आपकी 'निः' शक्ति, अक्षर 'म' होता है और यह कार्य मेरे भीतर 'म' अर्थात् क्रियाशक्ति, अत्यन्त बलशाली होनी चाहिये । आस्था तभी प्राप्त होगी जब आप यह समझ लेंगे बुद्धिमान व्यक्ति है। उसके लिये आप में प्रेम और घर जाकर आप विचार करें कि इन तीनों 'नि', 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-20.txt चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 19 यद्यपि आप में ला शक्ति अर्थात् प्रेम की शक्ति सहजयोग में पूर्ण सिद्धता, निपुर्णता प्राप्त होगी। होनी चाहिये, किन्तु यह 'निः' शक्ति के साथ-साथ अभी तक वे सिद्ध नहीं हुए हैं। आपको सिद्धता संयुक्त रूप से क्रियान्वित होनी चाहिये। यदि एक प्राप्त करनी है। सिद्ध सहजयोगी वह है जो पूर्ण तरीका सफल नहीं होता, तो दूसरा तरीका अपनाइये। रूप से परमात्मा से एकरूप हो जाये और उसे पहले लाल और पीला लें, यदि यह उपयुक्त नहीं अपने वश में कर ले। उसको उसके लिये सर्वस्व रहता तो लाल और हरा उपयोग करें और यदि अर्पित करना होता है। मैं जा रही हूँ। उसके बाद यह भी ठीक नहीं रहता तो अन्य कोई उपयोग देखेंगे आप अपनी सिद्धता का किस भाँति और करें। हठी होना, किसी बात पर अड़ना बुद्धिमानी किस क्षेत्र में उपयोग करते हैं । नहीं है। हठधर्मी व्यक्ति सहजयोग में कुछ नहीं कर सकता। आपका उद्देश्य तो केवल सहजयोग करती हैँ। आपको उसका बुरा नहीं मानना चाहिये। 1 कभी-कभी मैं आपको कुछ बातों के लिये मना का प्रचार करना है, तो विभिन्न मार्ग अवलम्बन कर 'म' शक्ति के सिद्धान्त अनुसार आपको निराश नहीं देखिये। आप जो भी आग्रह करते हैं वही मैं होना चाहिये, क्योंकि आपका मार्ग दर्शन करना स्वीकार कर लेती हूँ क्योंकि मैं जानती हूँ कि होना चाहिये, क्योंकि आपका मार्ग दर्शन करना साधारण मानव मेरी भाँति नहीं है हठधर्मी व्यक्ति मेरा कर्तव्य है। कुछ लोग निराश हो जाते हैं। आप क्या कर बैठे, कहा नहीं जा सकता। आप वह ध्यान रखें आपको सिद्ध बनना है। दूसरे स्वीकार पराकाष्ठा अर्थात् हद पर जाने की स्थिति न आने करें आप सिद्ध हैं। ज्यों ही वे आपको देखें उन्हें दें। 'म' शक्ति से मैं यह सब जानती हूँ। किन्तु स्पष्ट हो आप सिद्ध हैं। आप इसके लिये यत्न आप सहजयोगियों को किसी एक बात पर हठ करें। यदि यह होता है तो सब शुभ होगा। नहीं करना चाहिये। आपकी माँ हठ नहीं करती। जो भी स्थिति हो, स्वीकार कर लें। आप जो भी सब मित्र और सम्बन्धियों को मध्यान्ह अथवा रात्रि 1 एक दिन मैंने आपसे कहा था कि आप अपने करें, ध्यान रखें आप एक महत्वपूर्ण कार्य कर रहे भोज के लिये पूजा या किसी अन्य कार्यक्रम के हैं। मुझ में कोई इच्छा नहीं है। मुझ में 'निः', 'ला', लिये आमन्त्रित करें साथ ही कुछ सहजयोगियों 'म' कोई शक्ति नहीं है मुझ में कुछ भी नहीं है। को भी आमन्त्रित करें और अपने सब अतिथियों को मैं यह भी नहीं जानती मैं स्वयं इन शक्तियों की आत्म-साक्षात्कार प्रदान करें। यदि एक साल तक मूर्तस्वरूप हूँ। मैं केवल सब खेल देखती हैँ। आप ऐसा करें तो बड़ा लाभकारी होगा । सबको अनेक आशीर्वाद जब जीवन में इस प्रकार परिवर्तन आ जायेगा (निर्मला योग से उद्घृत) तब मनुष्यों में सिद्ध सहजयोगीजन होंगे जिनहें 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-21.txt आत्म-साक्षात्कार का अर्थ मुम्बई, 03.09.1973 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन जो अभी अभी realize हुए हैं कुछ लोग ऐसे हैं रहा है। अपने चारों तरफ मनुष्य के बातावरण के जो थोड़े दिन पहले realize हुए हैं और कुछ लोग और सारे संसार के चारों तरफ चैतन्य शक्ति खेल ऐसे हैं जो बहुत पुराने realize हुए हैं जो कि इस रही है। अन्दर और बाहर जैसे कि हर एक पेड़ के चीज को समझ गए हैं कि अपनी चेतना क्या है ये अन्दर भी चेतना शक्ति है उसके पत्ते में भी चेतना किस तरह कार्यान्वित होती है, किस तरह से कार्य शक्ति है उसके मूल में भी है और उसी तरह से ये करती है और किस तरह से हम उसको अपनाते सारे भूमण्डल पर भी चैतन्य शक्ति का वास है चारों जाते हैं। इस तरह से यहाँ तीन तरह के लोग होने तरफ जैसे कोई ether होता है। के कारण मुझे कुछ बातें फिर से दोहरानी पड़ेंगी और मैं बताऊंगी तथा आप लोग समझ पाएंगे कि वास है और वही शक्ति पूरा जो कुछ कार्य जड़ इस तरह से ये अन्दर बाहर हर जगह उसका realization का अर्थ क्या है कि realized आदमी शक्ति का करने का है, करती रहती है अब ये की क्या विशेषता होती है। पिछली मर्तबा भी मैंने शक्ति हमारे अन्दर कुण्डलिनी नामक जिसको कि बहुत सी बातें बताई कि realized आदमी की क्या कुण्डलिनी योग, लोग कुण्डलिनी कहते हैं, लेकिन विशेषता है और आगे इसको किस तरह से हमें कुण्डलिनी एक शब्द है दिया हुआ। हालांकि परमात्मा realized state में हमें कैसे रहना चाहिए । इस ने किसी भी चीज को अर्थ ही दिया है और शब्द तो तरह से इस पर मैं बताऊंगी। इतना जरूर होना दिया नहीं है लेकिन किसी का नाम दिया नहीं है कुण्डलिनी। पर भी, जो कुछ भी पढ़ा है उसको सभी भूल कुण्डलिनी नाम की शक्ति हमारे अन्दर रीढ़ की हड्डी के नीचे जो त्रिकोणाकार अस्थि है उसमें चाहिए कि इस वक्त आपने जो पढ़ा लिखा है, जहाँ पर मानव ने दिया है नाम इसका - जाइए। पहले तो प्रश्न ये है कि realization का अर्थ स्थित है, उसके बारे में अभी मैं एक aticle निकालने क्या है? जब आप पैर पर आते है तो उसमें से वाली हूँ ब्रह्मशक्ति में, तो आप उसके सारे details कितने ही लोगों को कहा जाता है कि आप पार पढ़ लीजिएगा और आपमें से बहुत से लोग उसको नहीं और कितने ही लोगों को कहा जाता है जानते भी हैं । हुए कि आप पार हो गए। इसका एक तो अर्थ है ही कि realization का संबंध आपके बाहरी शरीर, मन, जब आप साधारण मानव रहते हैं तो शरीर बुद्धि बुद्धि से नहीं है किन्तु किसी आन्तरिक चीज से है और मन तीनों में रहता है और आप खोजते रहते जो कुछ लोगों को हो जाता है और कुछ लोगों को हैं उस चीज को जिससे आप आनन्द पाएं। जब अब आपका चित्त जो है, आपका जो चित्त है आप उस चैतन्य शक्ति से एकाकार होते हैं, नहीं होता। Realization में जब आप लोग मेरे पैर पर रहते हैं उस वक्त जो हाथ में देखते हैं लोग वे कुण्डलिनी की जागृति से सहस्रार पर आपका चित्त ये देखते हैं कि उनके उपर जोर से प्रवाह हाथ में आकर के उससे एकाकार होता है, तब आपका आने लग जाता है और आपको भी पैर में ऐसे चित्त जो है अपनी कुण्डलिनी पर जाता है और लगने लगता है कि कुछ तो भी पैर में आर पार जा अपनी कुण्डलिनी पर जाते ही आपका चित्त दूसरों প 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-22.txt जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2004 21 की कुण्डलिनी पर भी जाता है। यानि अभी तक वास्तविक में हमें इसकी प्राप्ति इतनी सहज में होती आपका चित्त तीन जगह तक जा सकता था अब है कि हम समझ नहीं पाते कि कहाँ से कहाँ पहुँच एक चौथी जगह जाता है जो निराकार शक्ति है गए । या ये कहिए कि आधुनिक युग में जिस तरह और उसमें जाते ही आप विचारों से परे उठकर के से आप एक दम से चन्द्रमा पर पहुँच जाते हैं पता और इस मन, बुद्धि और शरीर तीनों को देखने भी नहीं चलता। आप अगर चन्द्रमा में एक क्षण में लगते हैं साक्षी स्वरूप होकर। पहुँच सकें ऐसी कोई व्यवस्था हो जाए तो हो अब जिन लोगों के हाथ में से झन झन झन झन सकता है आप ऐसे ही महसूस करेंगे कि हम ये ऐसे चैतन्य की लहरियाँ बह रही हैं इन लहरियों कहाँ पहुंच गए? कैसे हो सकता है? चन्द्रमा में हम को हम इतने सहज में पा गए हैं के हम जानते एक क्षण में कैसे पहुंच गए? इसी तरह से ये नहीं कि कितनी बड़ी चीज हमें मिल गई। पहला घटना जो है इतनी सहज में होती है इतने सहज तो सबसे बड़ा जो problem है कि इतनी बड़ी में ये घटना होती है कि आपको ऐसा लगना चीज सहज में कैसे मिल गई? जैसे कि एक छोटी स्वाभाविक है। लेकिन कोई बात सहज से हो जाए सी चीज, समझ लीजिए कि मानव का जन्म, हम और चाहे बहुत तकलीक से हो जाए याद वो रहती लोग इतने सहज में पा लेते हैं कि हम ये जानते है जो तकलीफ से होती है और समझ में वो आती ही नहीं कि मानव जन्म पाना जन्म जन्मांतर की है जो तकलीफ से होती है। ये मानव का स्वभाव मेहनत के बाद बड़ी मुश्किल से मानव का जन्म है और मानव उसी में अपने को बड़ा धन्य समझता मिलता है और उसका पुनर्जन्म बहुत ही जन्म है जो किसी करतब बाजी से पाता है। बाप ने गर जन्मांतर की मेहनत के बाद, खोज के बाद पुनर्जन्म लाखों रु. की भी गर स्टेट दे दी तो उसकी वो होता है। लेकिन वो इतने सहज में घटित हो रहा विशेषता नहीं समझता और उसकी कमाई से उसने है कि उसकी कीमत हम लोग समझ नहीं पाते। गर दो रुपये भी कमाए तो उसको बड़ी भारी चीज और ये भी सोचते हैं कि इतनी जल्दी कैसे हुआ? समझता है। ये उसके अहंकार का लक्षण है। ये उसकी वजह ये थी कि आज तक आप सारी खोज उसके अहंकार की तृप्ति है। लेकिन सहजयोग में बाहर कर रहे थे और चीज आप ही के साथ थी। तो अहंकार ही जब छुटता है तब फिर अंहकार से जैसे आपके अन्दर हीरा बैठा हुआ है और आप कोई चीज पाने की तो बात ही नहीं। ये अहंकार सारी दुनिया में खोज रहे हैं और आपके यहीं हीरा जो है अतृप्त रहकर के इस तरह की शंकाएं अन्दर गिरा हुआ है। और फौरन किसी ने बता दिया कि उठाता है कि ऐसे सहज में क्यों है? अब अपने हीरा तो यहीं है और आपको रास्ता भी बता दिया, realization के तरीके जो होता है जैसे जैसे रीति आपने हीरे को पकड़ लिया। फिर आप ये थोड़े ही से वो होता है ये सब आपमें से बहुतों ने देखा है। कहेंगे कि अरे इतनी जल्दी हीरा कैसे मिल गया? आप तो यही कहेंगे कि अरे मैं तो यहीं था और तरीका आप पाइएगा कि जब आत्म साक्षात्कार 1 किताबों में, अब हर एक किताब में एक नया दुनिया भर में कहाँ खोजता फिरा? ये बात वास्तविक होता है तब ऐसा हो जाता है वैसा हो जाता है। अब इसमें से कितने लोग पार है और कितने नहीं हैं ये तो परमात्मा ही जाने। लेकिन आपमें से जो हो रही है । जब हमें सहजयोग से ये दशा प्राप्त होती है तो 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-23.txt जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2004 22 लोग पार हुए हैं धीरे-धीरे आपमें अपनी गति बढ़ती बात का पता नहीं लगा है । है और लोग जानते हैं कि आदमी जब पार होता है तो पहले उसका सहस्रार टूटता है और वो बताती तो सब लोग कहते माताजी यूँ ही उड़ा रहे एकाकार होता है उस चैतन्य शक्ति से फिर इसके हैं। मैंने कहा तुम्हीं देखो। तो जब उन्होंने ऐसे हाथ बाद तो भी वो यहीं रहता है। और उसकी दृष्टि रखा और उनकी ये उंगली जलने लग गई तो मैने अपनी और दूसरों की कृण्डलिनी पर आ तो जाती कहा अच्छा इनके नाभि चक्र पर तुम हाथ रखकर मैने तो बताया नहीं क्योंकि मैं इसको गर है लेकिन vibrations जो इसके अन्दर आ रहे हैं देखो नाभि चक्र चल रहा है। अपने अन्दर आँख वो कभी कभी एकदम रुक जाते हैं और वो गर बन्द करके देखो तुम्हारा कौन सा चक्र चल रहा है अपने सर पर हाथ रखे तो देख लेगा कि सिर पर तो नाभि चक्र चल रहा है और हाथ तुमने जब यहाँ पर जो बिल्कुल नरम हो गया था वहाँ फिर से उनकी ओर किया तो कौन सी उंगली जल रही है? कड़क हो जाता है calcification हो जाता है। ये उंगली जल रही है इसका मतलब ये उंगली अभी आप कल ही पार हुए हैं और आपका नाभि चक्र का साक्षात है और सबकी यही उंगली पकड़ी जाएगी उस आदमी में तो निर्विवाद ये बात उसकी वजह क्या है? उसकी वजह ये है कि है, इस पर किताब चाहे कुछ भी लिखे जिस तरह हमारे अन्दर जो ego और super ego हैं वो हट से जो होता है वैसा ही होता है। अभी कल जरूर जाते हैं, हमारा चित्त बीचों बीच जरूर आ ज्ञानेश्वर जी को लेकर के एक साहब मुझसे भिड़ जाता है लेकिन फिर से grow करके एक हो जाता रहे थे बहुत ज्यादा। ज्ञानेश्वर जी आज होते तो है तो फिर से calcification हो जाता है और प्रवाह उनसे हम भी बात कर लेते वो भी खोज रहे थे बन्द हो जाता है । लेकिन आप तो भी कुण्डलिनी तरीका, किस तरह से बात समझाने का है। लेकिन समझ सकते हैं। वो कैसे? कि आप उसके बाद गुर उनका बन नहीं पड़ा, बहुत छोटी उम्र में उनकी ध्यान में आएं और मेरी ओर हाथ करें तो आपको मृत्यु बहुत से लोगों की अल्पमृत्यु होने अभी पुष्पा ने मुझे के कारण भी बहुत सी गलतफुहमियां संसार में आके कहा कि मेरा ये अंगूठा पकड़ गया। ये पार फैल गईं। और उन्होंने किताब लिख दी ये दूसरी है क्योंकि वैसे जो आदमी पार नहीं है, जो पार नहीं बड़ी गलती कर दी। इस वजह से मैं किताब हैं वो मेरी ओर गर हाथ करके बैठे तो उनको कुछ लिखने से बहुत डरती हूँ। अब किताब लिखते ही भी नहीं लगेगा लेकिन जो लोग पार हो गए हैं लोग उसको रटना शुरु कर देंगे और उससे भी उनको लगेगा कि माताजी देखो ये उंगली मेरी लोगों पर conditiong हो जाएगी। तो अब इसमें पकड़ गई है। उनको ऐसा लगेगा ये उंगली मेरी क्या होता है क्या नहीं होता है वो बिल्कुल आपको पकड़ गई है या ये पकड़ गई है। इसमें नहीं आ ऐसा सोचना चाहिए कि हर मिनट हमें नया एक रहा है इसमें आ रहा है। उसमें से जो जानकार अनुभव हो रहा है। हम नए आदमी हैं नया ही है लोग होंगे वो समझ जाएंगे कि कौन सी उंगली सब कुछ। नए से ही जानना है सब कुछ, हम नए का इशारा कौन से चक्र पर है। अब ये कोई होकर के बैठे हैं। जैंसे छोटा बच्चा बचपन से कपोल कल्पित नहीं है, दिमागी जमा खर्च से इस एक-एक शब्द सुनता है उसको रट लेता है, एक calcification हो जाता है। हो गई। ऐसे लगेगा कि ये हाथ पकड़ गया। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-24.txt जुलाई - अगस्त, 2004 चैतन्य लहरी 23 हैं और सारे संसार के लिए आपको मार्ग बनाना है। एक बात देखता है उसको समझ लेता है। इसी तरह से आप लोग जो नए लोक में, इस इतने realized लोग एक छत के नीचे बैठकर के दिव्य लोक में आ गए हैं तो उसकी दिव्यता को उस परम शक्ति को पा रहे हैं। इतनी बड़ी भारी समझना चाहिए। इसकी ओर दृष्टि होनी चाहिए। शक्ति आपके अन्दर से विशेष रूप से प्रवाहित है। ये बड़ी विशेषता है कि इसका नाम दिव्यलोक रखा और लोगों के अन्दर से नहीं है संसार में ये आप गया है। मैं जाती थी तो इसका नाम पढ़के. मुझे जानते हैं। इसमें कोई आपको शंका नहीं रहेगी लगता था कि किसी बड़े सोचने वाले आदमी ने जिनको थोड़ी बहुत शंका है वो इसलिए कि अभी नाम रखा होगा। कितना सुन्दर नाम है 'दिव्यलोक मुझे क्या पता था परमात्मा सारी व्यवस्था यहीं कर रहेगी। अब ये जरूरी हो जाता है कि आप अपनी देंगे और भाटिया साहब इतनी मेहरबानी कर देंगे विशेषता को समझ लें। सबसे बड़ी विशेषता आपकी अभी पार हुए हैं, थोड़े दिन में उनको भी नहीं हम पर। बहुत ही सुन्दर जगह है। तो जिस दिव्य ये है कि आपको एक fourth dimension आ गया लोक में आप उतरे हुए हैं उसकी दिव्यता को है कौन सा fourth dimension आ गया है? जो जानने के लिए आपको सोच लेना चाहिए कि ये चैतन्य शक्ति आपके अन्दर प्रवाहित है, उसमें आप सब नवीन है। नाविन्यपूर्ण है। इसमें सारा ही नवीन खडे हुए हैं। अब आप इसमें से उसमें कैसे जा अनुभव है, कहीं लिखा हुआ घिसापिटा जो दूसरों सकते हैं? ये बड़ा महत्व का point है। आप समझ ने अनुभव किया है वो नहीं है हमें जो अनुभव करने का है वो है। इसलिए एकदम नया नूतन सकते हैं । उसमें रह सकते हैं, स्थिर हो सकते हैं, बालक जैसा होता है ऐसे आप एकदम नए स्वरूप यह बड़ा महत्व का point है। अब आप देखिएगा, में इसमें उतरिए। पहली चीज जरूरी है कि आप इसमें नवीनतम बातों की ओर ध्यान दीजिए सब देखेंगे कि इसमें एक तरह का एक expansion नवीन है। आज तक ऐसा कहीं भी किसी ने अनुभव होता है और ये ऐसे अन्दर खिंचता भी है। अपने किया नहीं। इतने जोरों में ये experiment कहीं चित्त की ओर देखिए, ये ऐसा लगता है जैसे कहीं भी successful इस संसार में नहीं हुआ क्योंकि मैं किसी चीज की ओर जाता है और आप चाहें तो भी इस संसार में बहुत बार आ चुकी हूँ और इस उसको हटा भी सकते हैं। उसका expansion हो कार्य को करने का मैने बहुत बार प्रयत्न किया। रहा है और उसको आप खींच भी सकते हैं। जैसे पहली मर्तबा इस जन्म ये कार्य सफलीभूत हुआ। कि कोई गुब्बारा होता है या इसको मराठी में फुगा इसलिए सबमें थोड़ा थोड़ा अधूरापन जो रह गया है कहते हैं, इसको आप फुला दीजिए तो वो ऐसे उसको आपको पूरा करना है। आप उसी अधूरेपन जाएगा और फिर अन्दर भी खिंच सकता है। इसी को complete करने के लिए आए हुए हैं । किसी तरह से आप लोग अपने चित्त की ओर दृष्टि को आप गिराने या घटाने नहीं आए लेकिन उसमें रखिए । आपका चित्त जो है वो किसी भी चीज की लीजिए। अब इसमें आप किस तरह से उसमें उतर अब आप देखिएगा अपने चित्त की ओर तो आप जो थोड़ा बहुत अधूरापन रह गया है उसको पूरा ओर जा भी सकता है, वहाँ से लौट भी आ सकता करने के लिए आए हैं। अब आप सोचिए कि एक है। ख्याल करें, देखें कि हमारा चित्त किसी वस्तुमात्र नए ज़माने के नए विस्तार के. एक नए लोग आप पर गया, जैसे समझ लीजिए आपका चित्त जो है 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-25.txt जुलाई चैतन्य लहरी 24 अगस्त, 2004 आप जैसे यहाँ से कोई चीज चलती है तो वो पूरी उससे अपना चित्त खींच सकते हैं। अपना चित्त की पूरी चलती रहेगी और इसकी परिधि बनी रहेगी। वो अपने अन्दर घूमती रहेगी लेकिन अब हैं और उसको जहाँ तक चाहे पहुंचा सकते हैं यहाँ से जो छूटेगी गोल घूमकर के फिर आपके आप पूरे समाए हुए हैं बीच में जैसे कि एक समुद्र तरफ आ जाएगी। यहाँ बीच में भी नहीं रहेगा, होता है, समुद्र में से पानी बढ़ता हुआ हर एक खाली हो जाएगा। कहीं वो उसको जकड़ेगा नहीं। किनारे पर जाता है और फिर खिंच जाता है। ममत्व इस तरह से खींचता है। हरेक चीज, शरीर, लेकिन वो बीचोंबीच समुद्र का सारा उसका अपना मन, बुद्धि का तो छूटता ही है लेकिन और भी वास्तव्य है। जो वास्तव्य है जो easiest है, जो जितने कृत्रिम हमारे अन्दर बहुत सारे, हम सिर्फ होना है, वो अन्दर है और उसका जो reaction है मानव हैं, पहले और आखिर और हमेशा थे जो सत्य है ये सत्य भी इसी तरह से छूटता है क्योंकि हमने जो अपना ममत्व है उसको तोड़ लिया। और ममत्व तोड़ने का तरीका ध्यान का यही है कि आप अपने चित्त को हर समय बढ़ाएं, उसका मजा देखें। एक गाड़ी पर गया। अब गाड़ी पर गया, पर आप आप जैसा भी चाहें उसे घटा सकते हैं, बढ़ा सकते कुछ at awareness 1 जो चेतना है वो जाती है किसी चीज पे चित्त से और लौट आती है। इसी से आप detachment सीखते हैं। किसी चीज से हम कहें आप detach हो जाइए। सभी जैसे यहाँ वो गाड़ी आई, एक अब बढ़ गया, वहाँ तक गया और फिर आप उसको छोटी सी बात, उसमें से सबको बदबू आ रही थी। पहले सबको बदबू आई, ठीक है आप उस बदबू की realization के बाद में आई। अभी तक मैंने पहले ओर अपना चित्त ले जाइए तो बदबू आ रही है और चित्त हटा लीजिए तो बदबू नहीं आ रही। Detach आपको बताई थीं, इसके अलावा आप इस बात का करने की शक्ति आपके अन्दर आ गई। धीरे-धीरे ध्यान करें। जो deeper meditation में आपको आप अपने चित्त पे practice करिए। आदमी है करना है वो अपने चित्तवृत्ति का expansion और सब चीजों से सर्वधर्मसम्पन्न से बैठा हुआ है, उसके उसका खिंचाव। अब जब आप खिंचाव और जब बीच में बैठा हुआ है कि ये क्या है, ये क्या है, ये क्या है? ये भी है, आपको आश्चर्य होगा कि आपकी गहराई जो है वो ये भी है । लोग कहते हैं कि सब मेरा है। उसकी बढ़ती है एक ऐसा सोचिए गेहूँ गर खूब सारा ओर अपना चित्त डालिए और जैसे ही आप अपना आपने यहाँ फैला दिया, बहुत सारा गेहूँ, जिस चित्त डालेंगे आप जान जाएंगे कि मैं इससे चित्त आदमी ने फैला दिया उसका फैलाव ज्यादा हो हटा भी सकता हूँ। किसी में आपका चित्त involve नहीं हो सकता। और अब जो भी आप उसके प्रति कर दिया, उसकी ऊँचाई बढ़ गई कि नहीं बढ़ जो भी आप प्रेम जोड़ेगें या कुछ भी करेंगे वो फिर गई? तो उसी तरह से जब आपने सारा का सारा उसको चक्कर मारकर वापिस आ जाएगा लेकिन अपने को समेट लिया अपने चित्त को तो आप लिप्त नहीं होगा इसको आप समझ लें। पहले देखिए अन्दर की गहराई बढ़ेगी। और ज्ञान आते आप विचारों से जब किसी चीज को देखते थे तो ही, ज्ञान क्या आया कि हँसी आने लगी कि अरे मैं वापिस ले आए। ये आपकी विशेष शक्ति आपको बताई हैं ये बातें बहुत सारी जो english में मैने आप खिंचाव और expansion करने लग जाएंगे तो है। सब चीजों की ओर देख रहा गया। फिर गेहूँ इकट्ठा करके उसको ऐसे बड़ा 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-26.txt जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2004 25 इसमें लिपटा हुआ था, ये भी कोई लिपटने की चढ़ने वाली होती है बेलें इनमें से निकलकर के वो इसको पकड़ लेती हैं, उसको पकड़ लेती है, फिर ही नहीं । कोई ऐसी विशेष संसार की ये बातें हैं ही इसको पकड़ लेती हैं। पहले बिचारी धीरे धीरे, धीरे धीरे ऊपर चढ़ती हैं। उसी तरह से जो मानव पार अपने यहाँ का एक लड़का है, पार हो गया था। नहीं हुआ होता है वो भी कभी इसको पकड़ता है वो interview में गया जब लौट के आया तो मैंने कभी उसको पकड़ता है, इसको पकड़ता है। इस कि नहीं हुआ? तो कहने लगा कि तरह से वो अपने को खड़ा करता है। कभी तो चीज है! माने ऐसा लगेगा कि कोई खास बात है नहीं । कहा भई हुआ मुझे कुछ लग ही नहीं रहा कि कुछ हुआ है कि सोचता है अरे मेरे पास position नही हैं तो मैं नहीं हुआ। होगा तो होगा, नहीं होगा तो नहीं दुनिया में कैसे चलूंगा? अरे मेरे पास पैसा नहीं है । तो वो तो मैं दुनिया में कैसे चलूंगा? अरे मेरे पास ये नहीं जो board वाले थे उन्होंने मुझे बताया कि साहब है तो मैं दुनिया में कैसे चलूंगा? लेकिन जो पेड़ ये लड़का अजीब कमाल का है, बिल्कुल डरा नहीं, अपने तने पर खड़ा हो जाता है वो स्वतन्त्रता में होगा। बाद में selection हो गया उसका कुछ नहीं। एकदम आया, जो कुछ भी उससे बात पूछी उसने साफ-साफ कह दी। जो कुछ भी थी आपके साथ भी हो रही है। आप अपने तना पर कह दी और चला गया, डरा न कुछ। ये कैसे क्या खड़े है ही लेकिन भय के कारण आप अपने में हो गया ? हमने कहा भई देखिए, हमने कहा था तंदुल निकालकर के इसको पकड़ रहे हैं, उसको न कि वो realized है आप देखिएगा उसको पकड़ रहे हैं, इसको पकड़ रहे हैं । जैसे आपको विशेष रूप से, आप examine करिए कि क्या पता होता है कि आप तना पर खड़े हैं ये आपको विशेषता है। तो उन्होंने कहा, हमने उसमें यही दूसरी बात लगती है। बात देखी, वो आया, हमने जो सवाल पूछे उसने सीधे सीधे जबाब दे दिया। न उसमें छल न कपट इसको रोकने का नहीं, चित्त कहीं उलझेगा ही अलग से खड़ा हो जाता है। लेकिन यही बात 1. पहली तो ये कि चित्त का निरोध नहीं करना, न, कुछ नहीं। उसने साफ साफ बात कह दी, ये नहीं। आप कोशिश करें चित्त कहीं उलझेगा हीं ये बात है, ऐसी बात है और फिर इस तरह से खड़ा नहीं। ये deep meditation में आप प्रयत्न करें, रहा माने लेना है तो लो वरना नहीं। शान से खड़ा कोई सा भी बड़ा सा प्रश्न आए आप उसकी ओर रहा, न तो उसने हमारा किसी तरह से अपमान देखें और देखते साथ आपको आश्चर्य होगा कि किया और न ही उसने बड़ा ही हमारे पीछे दुम चित्त वहाँ जाता है और लौट आता है। चित्त कहीं हिलाके खड़ा रहा। चित्त भी ऐसा ही है, जब चित्त उलझ नहीं सकता। फिर आप ये सोचें, समझ में विकृति रहती है, क्योंकि मनुष्य में दिव्यता तभी लीजिए कोई बड़ी भारी दुखद घटना हो गई, आती है जब वो पार हो जाता है। जब उसका चित्त लेकिन आप ये सोचिए यहाँ तो बड़ी भारी दुखद हर जगह में उलझा रहता है तो उसके चित्त में घटना हुई पर संसार तो वैसे ही चल रहा है। दुख विकृति आती है। समझ लीजिए जैसे कोई ये और सुख जो है वो एक हमारा दिमागी जमाखर्च आपने देखे होंएगे बहुत से पेड़ों में से जिसको है। ऐसी कौन सी बात हो गई जो हमें बड़ा दुखी तंदुल कहते हैं वो निकलते हैं। खास कर जो कि बनाती हैं या हमें बड़ा सुखी बनाती है या यहाँ ऐसी 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-27.txt जुलाई - अगस्त, 2004 चैलन्य लहरी 26 समर्थता बिल्कुल जिस दिन जा जाए उस दिन सारे कौन सी चीज है जो हमें सुखी करे या दुखी करे? किसी से आदमी नफरत करे और किसी से घ्यार प्रश्न छूट जाते हैं। लेकिन जैसा मैंने उसके लिए कहा था उसके दो ही तरीके हैं एक तो अन्दर का meditation और एक बाहर का देखना। अब अपने हाथ से जो चीज जा रही है पहले बो कहते हैं भई अच्छा कर्म करो, अच्छा करो, बुरा करो। अच्छा और बुरा ये भी करें। ऐसी कोई सी भी बात नहीं है जिसमें ये होना चाहिए। धीरे-धीरे आपके चित्त का बढ़ना बहुत जोरों में प्रसारित होने लग जाता है और उसके बाद चित्त जब बिल्कुल सबल हो जाता है बिल्कुल तब् फिर हम लोग पूरी तरह से सबल हो जाता है मनुष्य देखते हैं कि आपके हाथ-वाथ जलते हैं, किसी को का विचार हो जाता है। जब कभी अकर्म हो जाए हाथ लगाने से हाथ जलते हैं, किसी को कुछ करने माने जब कर्म की भावना ही नहीं रही जैसे सूर्य की से पकड़ जाता है। शुरु- शुरु में ऐसा होगा और रोशनी है वो कौन सा कर्म कर रहा है? वो अकर्म उससे दूर रहना चाहिए जहाँ तक हो सके। में है । लेकिन कर्म तों हो रहा है उसका । ज़िस एकदम आग भट्टी में मत डालिए हाथ। जब वक्त पूरी तरह से अकर्मता आ जाए माने हाथ से लड़की खाना बनाना सीखती है तो पहले छोटे से कोई चीज बंट रही है और हो रहा है तो जो कुछ चूल्हे पर थोड़ा सा कपड़ा लगाकर के धीरे-धीरे भी अपने अन्दर कर्म पहले के इक्ट्ठे हुए हैं सीखती है फिर उसके बाद जरा उसका हाथ जिसको कहते हैं कि कर्मफल आपको भोगना जलना सीख लिया तो फिर वो बड़े चूल्हे पर काम पड़ेगा। बहुत से लोग बीमार आते हैं कहते हैं करना सीखती है। उसमें भी वो पहले एक सन्सी माताजी कर्म के फल हैं, आप क्या ले लीजिएगा? लेती है, तवा लेती है. फिर उससे वो रोटी सेकती हमने कहा हाँ ले लेंगे ये बाद की बात है। गंगाजी है। उसके बाद जब वो expert हो जाती है तो में आए तो धुल जाना ही चाहिए सब कुछ। मगर हाथ से ही रोटी बना लेती है। चूल्हे में हाथ आपके कर्मों के फल आपके हाथ-पैर गर दुख रहे डालकर भी वो ठीक तरह से ऐसे कर सकती है। है या कुछ आपको बीमारी हो गई या तकलीफ हो उसी तरह से शुरु में आज जिस को हम evil भी गई तो ऐसी कोई बात नहीं वो तो हम ले ही सकते कह रहे हैं, जिसको हम बुरा भी कह रहे हैं वो भी हैं लेकिन आपके कर्म शरीर से उठकर के मन में ठीक हैं फिर वो evil पने की जो चीज है जब आप चले गए। अब मन में से कर्म कैसे निकलेंगे ? वो जहाँ खड़े होंगे वो खुद ही भाग खड़ी होएगी। वो तो यहाँ आके भाग खड़े हुए माताजी की वजह से, वहाँ रहेगी ही नहीं। कुछ आप पर असर ही नहीं चलो शरीर ठीक हो गया लेकिन जब मन के अन्दर हैं। आने वाला उस चीज का ये दशा जब आ जाएगी कर्म बैठे हुए हैं । आप पार भी हो गए तो भी अब ये गन्दगी निकलेगी कैसे ? इसलिए यही करम जब आप करते रहेंगे तो अकर्म में ये सब बह जाएंगे। और जितना तब फिर माँ के protection की क्या जरूरत है? फिर आप खुद ही बड़े हो जाएगें तब फिर आपको किसी का पकड़ेगा नहीं, किसी का कुछ नहीं। कोई कहीं का, कुछ हो, आप जाइएगा, देखिएगा आप इस जन्म में कर डालेंगे उतना ही कर्म खत्म कि कुछ नहीं। जहाँ पहुंचे वहीं सब भाग रहे हैं हो जाएगा। धीरे-धीरे जब कर्म करते जाइएगा तो वहाँ से, वहाँ खुद ही वो टिकने नहीं वाले इतनी इस तरह से निकलते जाइएगा। आपकी अन्दर पूरी 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-28.txt जुलाई चैतन्य लहरी 27 अगस्त, 2004 न मेरी कोई उंगली पकड़ती है, न हाथ में कुछ। हर इसमें रुचि अरुचि आदि कुछ भी नहीं रह जाता। समय वैसा ही प्रवाह रहता है। आप लोगों को गर आप बैठे हैं बैठे हैं, खाने को मिल गया खा लिया मेरे सिर पर कुछ गर्मी लगे तो इसका मतलब है कि नहीं तो नहीं खाया। कोई भी आप काम करें आप आपके अन्दर ही कोई दोष आ गया है ये इसका आपके सामने उदाहरण है मैं भी आपके जैसी ही आप उसी काम को करें जो परमात्मा का है. आप हूँ न, लेकिन आपके सामने उदाहरण है इसी तरह खुद का कोई काम नहीं करें। उसी का काम से जब आप भी हो जाएंगे कि जिसमें न तो कोई और आपको पता नहीं शैतान रह जाएगा न तो कोई बुरा रह जाएगा, जो ही सफाई हो जाने के बाद अन्दर में वही सम्यक भाव एक दूसरी चीज हैं, दुनियादारी की चीज नहीं । आपके हाथ से हो रहा है चल रहा। जैसे सूर्य है वो अपनी रोशनी दे रहा है आपके सामने आएगा वो आपके प्यार में और चन्द्रमा जो है वो सूर्य की रोशनी अपने अन्दर चाहिए और नहीं धुले तो वो भाग जाए। ऐसी जिस लौटा रहा है। ये समुद्र हैं ये चढ़ रहे हैं उतर रहे दिन दशा आएगी उस दिन फिर आपको इस हैं, अपने अन्दर से बादल भेज रहे हैं। सब कर्म हो protection की जरूरत नहीं रहेगी। अब protection रहे हैं लेकिन कोई भी ये नहीं सोचता कि हम ये के बहुत सारे तरीके आप ही. लोगों ने ढूढ के सब कर रहे हैं। पेड़ हैं पेड़ में से फल निकलते हैं, निकाले हैं उसमें से कुछ तरीके जो हैं आप चाहे फलों में से बीज निकलते हैं बीज में से पेड़ तो ये लोग बता सकते हैं आपको उठकर के निकलते हैं। कितने बड़े कार्य में ये लोग संलग्न हैं क्योंकि जैसे ये लोग इस्तेमाल करते हैं ये आप लेकिन इनको किसी को कुछ लगता नहीं कि हम इनसे पूछ सकते हैं । जैसे फोटो पर लेना, पैर से कुछ कर रहे हैं। सब आराम से चला हुआ है। एक निकालना, पानी से निकालना, अपने ही को अपना मनुष्य में ही प्रश्न हो गया है। वो लोग तो सब बंधन डालना आदि नाम different different नाम harmony में हैं, हम लोगों में प्रश्न हो गया है लेना वरगैरा वरगैरा बहुत सारे सब कुछ प्रकार हैं, क्योंकि के अन्दर परमात्मा ने ही खासकर धुलना ये इसके बारे में आप चाहें तो इन लोगों से गर बात मनुष्य अहंकार का वरदान दिया है कि जिससे हम सीख करें तो ये लोग सब बता सकते हैं। लेकिन realized जाएं। लेकिन अंहकार को मारने से ये मरता नहीं आदमी को ध्यान में आते वक्त पहले बैठ कर के है ये हमने देखा हुआ है इसलिए वो अपने आप देखना चाहिए कि माताजी से जो आ रहा है उसमें जैसा छूट जाए वही तरीका सहजयोग का है और वो अपने आप छूट जाता है वो भी आपने देखा है। हैं कि नहीं ? गर vibration रुक गए हैं तो उनको लेकिन करना क्या चाहिए ? अपने हाथ से जितना भी कर्म हो सके करें और क्या करना चाहिए. शरद जी बता सकते हैं, ये लोग कहीं हमारी कोई पकड़ है ? हमें vibration आ रहे निकालना चाहिए। उसको कैसे निकालना चाहिए दूसरा है कि deep meditation में आप जाएं जब बता सकते हैं किस तरह से बन्द हुए vibration आ तक आपकी वो दशा नहीं आ जाती जहाँ कुछ सकते हैं। गर हाथ में थोड़ी सी जलन है तो बुराई और अच्छाई नहीं रह जाती। आपने मुझे उसको फूक कर कैसे निकालना चाहिए । उसको देखा होगा कि मैं कहीं भी जाती हैँ मुझे न तो कोई उस वक्त फूक करके निकाल दीजिए, नाम ले negativity पकड़ती है न मुझे कोई भूत पकड़ता है, लीजिए। फूकने से निकल जाएगा एक दम, ऐसे 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-29.txt चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 28 निकल जाएगा कि आपको लगेगा ही नहीं कि वहाँ कोई पकड़ भी है। Atmosphere में है, हर जगह है, आप पकड़ेंगे नहीं। अभी आपकी दशा वैसी है जैसे छोटी सी शुरु कर दी। जैसे ही वो ठण्डे पड़े वैसे ही खुशबू लड़की खाना बनाना सीखती है। लेकिन आप जब आनी शुरु हो गई बहुत ज़ोरों में और सब ठीक हो इस शास्त्र में निपुण हो जाएंगे तभी आप असली गया आपको भी, कितने ही लोगों को ध्यान में पार योगी होंगे क्योंकि कुशलता पूरी आनी चाहिए, होने से पहले या बाद में बहुत बार सुगन्ध आती है। perfect knowledge आनी चाहिए। जब perfect तो चैतन्य इसका knowledge आ जाता है तब आप ही इसका knowledge हो जाते हैं माने आप करते सुगन्ध आती है। तो जितना कुछ दुर्गन्ध वो अपने कुछ नहीं वो स्वतः सब मामला अपने आप चलते आप गिर सकता है गर आप अपनी ध्यान की दशा रहता है जैसे कि ये अगर perfect हो जाए और ठीक कर लें, याने आप अपने को ठीक कर लें। उसमें से मेरी आवाज गर perfect उसमें जा रही इसमें कोई बुरा मानने की बात नहीं है। आपने देखा है तो उसको कुछ नहीं करना पड़ता है, इसको कि शरद है, हम कहते हैं कि शरद काफी ऊँचे हैं. कुछ जानना नहीं पड़ता है, सीधे ही सारे का सारा कोई बहुत ऊँचे हैं, देवड़े हैं, पंत भाई हैं, आदि बहुत record हो जाता है। क्योंकि बोलने वाला और सारे लोग आप जानते हैं। करने वाला और सबको संभालने वाला पालनहार आई, इतनी बदबू अन्दर में आई कि समझ में नहीं आया अब क्या करें। इसके बाद उन लोगों ने नाम 1 लेना शुरु कर दिया और उसको vibration देना सुगन्ध देता है चैतन्य बहुत सुगन्धित है और अत्यन्त आह्लाददायी है। इसी से आपको साहू साहब भी आगे चले गए, अपने लाल साहब परमात्मा सबके सर पे मंडरा रहा है। Realized भी आगे चले गए, बहुत से लोग आगे चले गए। लोगों को एक बात और भी पता होनी चाहिए. ये भी अब इनके नाम लो, मैंने कहा सभी लोग आगे चले बहुत जरूरी बात है जिसको जान लेने से आपको गए और तो भी वो सब लोग पकड़ते ही हैं थोड़ा एक तरह की निर्भरता आती है। हरेक realized बहुत। किस किस का नाम लें, सभी लोग थोड़ा आदमी के उपर में देवता मंडराते हैं। जैसे किसी थोड़ा पकड़ते हैं शरद ने अभी पकड़ लिया बुरी negative आदमी के ऊपर में भूत मंडराते हैं वैसे तरह से। तीन दिन पहले उन्होंने बहुत बुरी तरह से ही बहुत लालायित है सारे देवता लोग उन लोगों पकड़ लिया था । ठीक है पकड़ लिया था लेकिन की मदद करने के लिए जो realized हैं। उनको समझ में आ रहा था कि पकड़े हैं इसलिए ये हालत सुगन्ध आती है और वो बराबर उनके आसपास हो रही है पकड़ गए ये समझ में आ रहा है, मंडराते हैं। आपमें से जिन लोगों ने इसका अनुभव इसको निकाल डालना बहुत ही आसान है। लिया होगा, अभी कोई बता रही थी उस दिन कि Realized आदमी के लिए तो बहुत ही आसान है। उनके देवर पर बाधा थी, उसपे भूत की बाधा थी उसको किसी तरह से निकाल डालना चाहिए। और साढे तीन बजे के करीब उनकी तबीयत बहुत कैसे निकालना चाहिए. क्या करना चाहिए उसकी खराब हो गई और वो लगे चिल्लाने चीखने और क्या-क्या विधियाँ है. ये वो सब जानते हैं और बाहर भी आदमी चिल्लाने चीखने लग गए और अपने ऊपर experiment करते हैं तरह-तरह उसके बाद में कहने लगे इतनी गंदगी अन्दर में इसको समुद्र में खड़े होकर भी निकाल सकते हैं, के 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-30.txt जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2004 29 बहुत से पहले realized लोग जाकर पानी में ही भी लगता है और बड़ा आनन्द भी आता है। इतने बैठ जाते थे। अच्छी बात हैं क्योंकि बेचारे इतने लोग आज मेरे बच्चे हैं बेटे हैं, बड़े गौरव की बात परेशान होते थे. उनकी उंगलियां जलने लगती है माँ के लिए, लेकिन जो पायां हुआ है वो थीं। यहाँ गगनगढ़ बाबा महाराज हैं वो जब पार छोटी-छोटी चीजों पर मत जाया करें। हो गए तो उसके बाद वो पानी में बैठ गए, उनकी उंगलियाँ जो वो जलकर छोटी हो गई उनमें कभी आप यादव से पूछें, वो आपको बताएगें, अभी creative power तो आ गई थी परन्तु उनको ये पाटिल साहब आए हैं वो भी मुझे बता रहे हैं। नहीं मालूम कि उनकी उंगलियाँ क्यों जल जल कर छोटी हो गई थीं? उनकी उंगलियाँ जल कैसे-कैसे इनको अनुभव आए, कैसे कैसे इनके जलकर इतनी छोटी हो गई क्योंकि आप जानते हैं साथ हुआ। मतलब कोई भी problem हो उसको आपके भी हाथ जलते रहते है अब बेचारे को पता तो मैं solve कर ही सकती हूँ। पर थोड़ा थोड़ा ही नहीं था। अब बम्बई शहर में वो आते ही नहीं आप भी चलें, आप भी सीखें, जाने इस चीज़ को। है क्योंकि बम्बई शहर में इतने हाथ जलते हैं कि आप ही डॉक्टर हैं और आप ही दवा हैं। आप ही आप लोगों को सबको इसका अनुभव हुआ है। इधर ladies में कित्तने ही लोग बता सकते हैं कि उनके हाथ बहुत ज्यादा जलते हैं या उनको पता के हाथ से जाने बाला है और आप ही उसको ही नहीं था कि इनको किस प्रकार ठीक करो। समझने वाले हैं। तुमको थोड़ी सी कहीं चोट वोट बेचारे जाकर के वहाँ बैठ गए। बहाँ जाकर बैठ गए. अब वो पानी में बैठे रहते हैं। क्योंकि अब आपको चिन्ता की बात नहीं। ऐसे पहले कहाँ थे लोग? अब तो कोई बताने वाला है. जानकार है, समझाने वाला जो ऐसे लोग पार भी हुए हैं वो बेचारे कहते हैं कहाँ है कि हाथ जल रहे हैं कोई हर्ज नहीं इस तरह से से हम पार हो गए, भगवान बचाए। ऐसे ऐसे निकाल डालो। हमारे देवड़े साहब के हाथ दो चार इसलिए पहले लोग पार हो जाते थे तो हाथ में लोगों से इतनी बुरी तरह जले थे कि वो तो किसी चिमटा लेकर बैठते थे उनका दोष नहीं था कोई किसी को देखकर nervous हो जाते हैं कि आए उसको तड़ाक से मार देते थे कोई गर माताजी इनसे कल वो दाढ़ी बाले आए थे उनको जलाने वाला आता था जिसकी तरफ से ऐसे गरम देखकर इनके दोनो हाथ आकाश की ओर इस गरम भाप आही थी तो उसको लेकर चिमटे से तरह से घूमने लगे तो आप इसको सोच लीजिए मारते थे उनको चिमटे वाला कहते थे। हमने कि आपको कोई बताने वाला है समझाने वाला है अपने बचपन में देखे हैं। ऐसे मैं देखकर हैरान हैँ कि realization के बाद कितनी dangerous बात कि जो आए उसको चिमटे से मार रहे हैं! जिसको है, कोई भी आपको पकड़ सकता है। आप बिल्कुल देखो उसे। मुझे बड़े प्यार से बुलाते थे। मैने कभी छोटे से बच्चे हैं, बिल्कुल और ऐसे छोटे से बच्चे चिमटे विमटे से मार नहीं खाई । इनके पास कौन बहुत जरूरी है कि अपनी स्थिति जो है उसको जाए? उसकी वजह ये है कि उनको कोई समझाने लग भी गई तो माँ बैठी हैं ठीक करने वाली। कोई संभाले रखना। हमारा तो आप पर सब पर हाथ है वाला बताने वाला था ही नहीं। अब आप इतने ही, हर समय और हर समय आपका सबका ख्याल लोगों की बीमारियाँ ठीक करते हैं, कैंसर जैसी रखे हैं। और अत्यन्त प्रेम है सबसे और बड़ा गौरव बीमारियाँ आप ठीक करते हैं इस तरह की बीमारियों 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-31.txt चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 30 को आप ठीक करते हैं, कितनी ही तरह की तुम्हें कैसे मदद मिलेगी? इसलिए बेहतर है ऐसे बाधाओं को आपने हटा दिया है। इतना आपने लोग जो तुम्हारे इसमें आते हैं और जो पार होने के कार्य किया है. जरूरी है कि उसमें आपको कुछ न बाद दिखाई नहीं देते, ऐसे बहुत से लोग हैं, वो कुछ पकड़ेगा ही। लेकिन उसका इलाज, उसका लोग गर पार भी नहीं हो रहे हैं तो भी आपको भी दवाखाना है। आपका भी दवाखाना है और उनसे भिड़ने की जरूरत नहीं क्योंकि वो आके आपको बताने वाला भी बैठा है और सब बारीकी रहेंगे नहीं हमेशा के लिए । वो चार साल आएंगें. समझाने वाला बैठा है। कोई डरने की बात नहीं। नहीं तो छः साल आएंगे वो दस साल भी आएंगे फिर भी गर आप डरे तो इसका मतलब है कि आगे उनसे भिड़ना नहीं। आ रहे हैं बैठने दो। आपको जाने का इस जन्म में नहीं होगा ये तो realized मालूम है पार नहीं हैं। जो एक बार पार हो गया वो लोगों की बात हुई, लेकिन एक और बात हमको तो पार होता रहेगा लेकिन जो हुआ ही नहीं पार समझना चाहिए। बहुत से सन्त साधु ऐसे हैं जो मर चुके हैं पर नहीं। ये आज आपको मैं दूसरी तरह की बात बता जन्म नहीं ले पा रहे हैं। कोशिश कर रहे हैं बहुत रही हूँ। उनपे भी सन्ति लोग ही काम करेंगे क्योंकि वो जन्म नहीं ले पा रहे हैं। क्योंकि उनको बगैर उनके काम नहीं बन रहा है। भूत बाधा जो है | और डावांडोल चल रहा है उससे भिड़ने की जरूरत परन्तु ऐसा जीव नहीं मिल रहा है या कुछ और प्रश्न है । उसको भगाने के लिए ये सन्त ही लोग काम तो ऐसे सन्त साधुओं का भी ऐसा विचार बन रहा है कि हमारे बीच में जो लोग कभी भी realized देता? आप लोग परलोक में तो जा नहीं सकते तो नहीं हो सके, ऐसे बहुत से लोग है अपने यहाँ जो उन्हीं को ये कार्य करने दें । वो लोग कहते हैं कि कभी भी नहीं होगे क्योंकि उन्होंने पहले ऐसे कर्म हम आकर के इसमें कार्यान्वित रहेंगे और आपके किए करेंगे। तो क्या आप लोगों को वो दिखाई नहीं हुए हैं कि कुछ ऐसे कार्य किए, कुछ ऐसा कार्य को हम बढ़ाएंगे। वो आपको किसी को ठीक किया है कि उसमें फंसे हुए हैं या कुछ ऐसी बात नहीं करेंगे, कुछ नहीं करेंगे, पर वो इस तरह का है, तो वो कहते हैं कि हम इनके अन्दर आ जाएं। कार्य करेंगे जो दूसरों के साथ में जैसे ऐसे लोग हैं, तो आपको उनके अन्दर बाधा सी लगेगी वो वो जरा भाषा प्रबल होंगे। वो बोलेंगे, लोगो को कोई नुकसान वाले नहीं हैं। इनसे लड़ने की खींचकर के लाएंगे, बहुत से और लोगों को लाएंगे जरूरत नहीं। ये हालांकि बड़े theoretical लोग जिनको आना है। जो हैं उनको बड़ी अजीब सी बात लगेगी कि माताजी ऐसी बात कहते हैं, उनको छेड़ो नहीं, उनको छेड़ोगे तो उनके अन्दर भूत तो घुसे ही हुए हैं। भूत नहीं होंगे तो सन्त आ जाएंगे। सन्त आने होने वाले। उनको किसी ने कहा कि लिखो इन पर से अपना कार्य होगा, इसलिए बहुत से लोगों में तो वो लिखने लग गए हमारे ऊपर। फिर उसके सन्त भी घुसे हैं उनकी बड़ी इच्छा है, उन्होंने ऐसा कहा है हमसे कि हम चाहते हैं कि अपने को लाएं। लेकिन अब हम छोटे बच्चे के रूप में आएंगे तो में फंस गए। तो ऐसे लोगों को बचाना चाहिए, परन्तु ऐसे हमारे पास एक साहब थे उन्होंने हमारे ऊपर Article भी लिखा था परन्तु वो कुछ ज्यादा नहीं टिक पाए। वो भाग गए। वो कभी पार नहीं बाद में जरा वो वेचारे दूसरे ही चक्कर में फंस गए और वहाँ पर दूसरा ही ढंग चल गया। तो वो उसी 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-32.txt जुलाई वैतन्य लहरी अगस्त, 2004 3१ उनको सन्तों ही के साथ में रखो। कम से कम इसलिए सबको इसमें समेटे रहना हैं और सबको सदाचार में रहेंगे और अपने यहाँ आने से इनके हर महीने एक बार तो भई मिलना चाहिए। हर उपर कोई भूत बाधा नहीं आएगी, इनको कोई realized आदमी को हर महीने एक बार तो भई शारीरिक पीडा नहीं होगी उनको मानसिक पीड़ा मिलना चाहिए। वो ऐसा आप बना लीजिए हर नहीं होगी, उनकी बुद्धि सही रहेगी। क्योंकि सन्त महीने में एक बार सबके पास में चिट्ठी जाए। या किसी को सताते नहीं इसलिए उनके अन्दर सन्त कोई ऐसा newspaper बना लीजिए जिसको सब ही लोग आते हैं । लेकिन जो महन्त हैं वो भी लोग पढ़ते हों, उसमें एक महीने के लिए वहाँ पर आपके ऊपर मंडरा रहे हैं, वो भी आपकी मदद कर दिया जाए, जहाँ पैसा न लगे? पैंसा आप लोग कहीं रहें हैं। वो आपको बहुत सारी बातों से बचाएंगे और भी मत दो न आप लोग पैसा लो। पैसे के मामले में आपको संभालेंगे। आप पड़िये मत। आश्रम बनाने के लिए जो सरकार आपको शारीरिक मानसिक, बौद्धिक protection जमीन भी देगी उसमें भी कभी इस तरह से विचार रहेगा। अपने संसार के जो कार्य हैं उसको देखेंगे, न करें कि आप सब्जी लगाइए, फिर आप सब्जी आपके घर द्वार का जो काम है वो देखेंगे, आपके बेच रहे है! ये सब धन्धे करने की कोई जरूरत बाल बच्चों को संभालेंगे ये सब वो लोग करेंगे लेकिन आप लोग अपने को पूरी तरह से परमात्मा आप लोगों ने पढ़ा होगा कि वो चेयरमैन स्टेट बैंक में लीन करे, बहुत बड़ी आप पर जिम्मेदारी है। का क्या हाल हो गया ? वो आश्रम में 90 लाख आज मैं चाह रही थी कि गर किसी को कोई प्रश्न उसको दिया 20 लाख उसको दिया, वहाँ फर्नीचर हो, कुछ discussion करना हो बो करें। पिछले बन रहा है, वहाँ फर्न्नीचर बनाने का आश्रम में काम पाँच साल में मुझे बहुत अच्छे अनुभव हुए हैं और होता है आप जरा अक्ल लगाएं। आप मेहरबानी आप लोग बगीचे में जैसे gardner होते हैं इस से अपने इसमें फर्नीचर बनाकर उसको बेचिएगा तरह से हैं। आपको इस बगीचे को कैसे रखना है, नहीं, नहीं तो कल देखिएगा हमारे शिष्य लोग इसको किस तरह से ठीक रखना है, कैसे चलाना फर्नीचर बना रहे हैं कोई जरूरत नहीं। वहाँ पर है, वो सब आपको सोचना है वो आप सोचकर के आपको करना है तो gardening कर लेना नहीं तो उसको बताएं कि आप कैसे हैं उन्होंने एक जो 9ardner रख लेना । ये सब काम करने के लिए बात कही वो ठीक है वो कह रहे थे गर हम लोगों बहुत से लोग हैं। आप लोग तो विशेष काम के लिए ने realization दिया और उसके बाद हमनें follow हैं आप लोग ध्यान में चैतन्य दें और इस तरह से up नहीं किया, realization होगा, ये बात सही है दुख दूर करने में उनको चैतन्य देने में उनको गर हम लोगों ने अपने जो realization की जो देने जागृति देने में, उनको पार कराने में संलग्न रहें । पर भी follow up नहीं किया उनको प्रयत्न नहीं, और पैसा जहाँ तक है दूर रहें । पैसे के मामले में किया उनको आगे बढ़ाते नहीं रहे, उनको हमने बिल्कुल आप न लगें पैसा. पैसे का इंतजाम होना ख्याल नहीं किया तो हो सकता है उनका जो चाहिए और बो जितना जितना रुपया लो उसका realization है वो खो जाए और फिर बहुत देर हिसाब किताब रखो, कोई बात नहीं। चैतन्य का बाद जागेगा और तब तक उनको परेशानी होगी और पैसे का हिसाब किताब आपने जोड़ दिया तो । नहीं । हम लोगों को पैसा नहीं कमाना है। आज मता 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-33.txt चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 32 आप पकड़ जाएंगे हमेशा के लिए । इसलिए पैसा मैं सीधी हूँ और भोली भी हूँ लेकिन ऐसे बड़ी और परमात्मा इसका बिल्कुल कोई सम्बंध नहीं। कोई आपको मुफ्त में जगह देता है भले नहीं हूँ। आपको पहले मैं बता देती हूँ कि अगर पैसे के देता है तो कोई बात नहीं। सब परमात्मा की जगह चक्कर में आपने मुझे चलाया तो मैं उसमें चलने है। अगर आप कहीं बैठे हुए हैं, किसी ने आपको वाली नहीं। चाहे आप लोग पार हों चाहे नहीं हों जगह दे दी वो परमात्मा का आदमी था उसने मेरा इससे कोई मतलब नहीं है पहले ही समझ आपको जगह दे दी। दे दी नहीं दी भला। जगह लेना चाहिए कि पैसे का और इसका सम्बंध कहीं से कोई भी मनुष्य परमात्मा नहीं बन सकता। भी और किसी जगह भी नहीं है। दूसरी चीज चालाक भी हूँ। इस चक्कर में मैं आने वाली नहीं राजकारण से भी इसका सम्बंध नहीं है। अभी आश्रम बहुत से बने आज तक, हमारा कोई आश्रम नहीं बना इसलिए उधर कोई भी दृष्टि न लगाएं। आपको ऐसे भी लोग आएंगे कि चलो तुम election मेहरबानी से अपनी दृष्टि उधर न लगाएं। आश्रम में में खड़े हो जाओ, तुम्हारा इतना following है। हम ये करेंगे और वो करेंगे और आश्रम में हम आपको राजकारण में जाना है तो आप राजकारण buisness करेंगे। मैं ये चीज कभी चलने नहीं में जाएं। लेकिन राजकारण मनुष्य ने बनाया परमात्मा दूंगी। और जब मैं देखूंगी कि आप लोग उस ने बनाया नहीं। जो परमात्मा ने बनाया है जब धंधे में फंस रहे हो तो मेरे बस के आप लोग नहीं, उसमें खड़ा होना है तो उसका राजकारण से और फिर मैं आपके लिए कुछ नहीं। Business आपको सत्ता से कोई भी सम्बंध नहीं। ये पहली बात है। बिल्कुल नहीं करना है, किसी भी तरह, पैसा भी गर आप ये सोचे कि साहब आप बड़े भारी trustee आपको इक्ट्ठा नहीं करना है किसी भी तरह, कोई हैं, यहाँ तो दो ही चार हैं बेचारे अभी लेकिन कोई सी भी चीज के लिए | एक साहब थे वो मुझसे अपने को सोचे कि मैं बड़ा भारी सेक्रेटरी हूं या मैं कहने लगे मैं आपके फोटो बेचूंगा, जितनी भी इसका चैयरमैन हूँ कल मैं सोचू इसका चैयरमैन हैँ income होगीं उसमें मै आश्रम को पैसे भेजूंगा। तो इसमें चेयर-वेयर का कोई भी सम्बंध नहीं है मैने कहा कौन सा आश्रम, किसको पैसे दोगे? और न ही इसका आसन है न पीठ है। पहली बात किसने कहा है ? 1. समझ लो आपस में करने की बात है, न इसका इसकी कोई आपको चिन्ता करने की आवश्यकता कोई पीठ है न इसका आसन है। नहीं। सब करने वाला और अपने को संभालने वाला वो है। हम कोई अपना काम थोड़े ही कर रहे आदिशंकराचार्य की गद्दी पर कौन लोग बैठे हैं? हैं उसका काम कर रहे हैं। उसको देना हो दे नहीं None realized soul हैं। कोई गद्दी पर नहीं देना हो नहीं दे। और वही काम जो रात- दिन हम बैठने वाला। सब अपनी गद्दी पर बैठेंगे दूसरे की गोबर खाने का करते हैं वो इसमें आकर भी करने गद्दी पर बैठने से हमेशा आपको निकालने का डर का है तो कोई फायदा नहीं। मुझे इस तरह का रहता है। अपनी अपनी गद्दी पर सब लोग बैठेंगे सुझाव कोई भी न दे क्योंकि दो चार ने दिया है और अपनी ही गद्दी पर सब लोग राज करेंगे। तो इससे मेरा बड़ा जी घबराता है। मेहरबानी से मुझे बहुत ठीक है, दो चार चीजों को बिल्कुल गाँठ इस तरह के कोई पीठ निकालने की आवश्यकता नहीं । बांध लीजिए। तीसरी चीज कि सदचरित्र, सदाचार सुझाव मैं सुनने वाली नहीं । ऐसे तो 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-34.txt जुलाई चैतन्य लहरी 33 अगस्त, 2004 और शुद्धता, इसके बगैर कुछ भी आप इस मार्ग में की बीमारियाँ ठीक कर रहे हैं उनका जीवन कैसा जा नहीं सकते गर आपके अन्दर कोई ऐसी है। उसकी बुराई कर, उसकी बुराई कर हालांकि आदतें हैं तो आपको उनको छोड़ने का प्रयत्न अभी तक तो ऐसा मैँने देखा नहीं, अभी तक तो करना ही होगा मेरे पाँव की कसम लेकर। असल इतनी बुराई नहीं आई है लेकिन हो सकता है। में बात ये है अब आपके अन्दर शक्ति है बहुत कोई बात हो हमसे आकर कहें। सबमें कमियाँ हैं बड़ी। जैसे हिन्दुस्तानियों की खास आदते ये हैं अभी कोई perfect तो हुआ नहीं। इसलिए जो कुछ आपस में बुराई करना। सब आप प्रेम में बंधे हुए हैं, भी जिसमें कमी है उसका इलाज मैं खुद ही बैठे हम सब भाई बहन हैं। आपस में गर किसी से कुछ बिठाए कर दूंगी। और अपने में जो कमी है वो हो भी गया, हो सकता है किसी का पैर डिग भी किसी को कहने में शर्माएं नहीं। सब अपने भाई जाए, तो जरूरी नहीं कि उसको जाकर सारे बहन हैं। जैसे ही आप कह देंगे मेरा ये पकड़ा है संसार में आप बदनाम करते फिरें। मुझे आकर तो वैसे ही साफ हो सकता है। अगर आप नहीं कहेंगे तो कौन कर सकता है ? इसमें कोई बुरा आप बताएं। ये चीज हम ठीक कर सकते हैं लेकिन जान मानने की बात नहीं। आप जानते है सबका ही देकर भी अपने भाईयों को बचाने की आप पर पूर्ण पकड़ता है, सबको ही होता है। सब डॉक्टर हैं। जिम्मेदारी हैं। भाईयों को और बहनों को। इसके डॉक्टर लोग आपस में फ्री इलाज करते हैं इसलिए आपका सबका इलाज फ्री हो सकता है। भाईचारा | लिए कुछ भी करना पड़े हमें उसको बचाना पड़ेगा। मतलब morally । इसका मतलब नहीं कि आप आना चाहिए और अत्यन्त पवित्र जीवन की ओर किसी को पैसा दें. आप किसी को पैसा उधार नहीं अपनी दृष्टि रखें। दें। कोई गर आपसे पैसा उधार माँगता है तो बिल्कुल एक कौडी न दें. बिल्कुल देने की जरूरत नहीं सकता, पहले गर पवित्रता की मैं बात करती नहीं, किसी को एक पैसा उधार देने की जरूरत न तो वो ही perversion की बात आ जाती है। नहीं। गर कोई आदमी अपने spiritual life में इस तरह से आप लोग एक चीज छोडने जाते हैं तो kundalini में उसका पतन हो रहा हो, किसी तरह दूसरी पकड़ लेते हैं, दूसरी चीज छोड़ने जाते हैं तो गिर रहा हो, उसको कोई आदत पड़ गई हो तो तीसरी चीज पकड़ लेते हैं। लेकिन realization के सबको उसकी मिलकर मदद करनी चाहिए । उसके बाद ये problem नहीं रहता। Realization के चक्र चलाओ अपने प्यार से। पवित्रता पूरी तरह से बाद जो यहाँ छेद कर दिया है न इसके कारण जब तक हमारे अन्दर नहीं आएगी तब तक हमारा हरेक चीज यहाँ से निकल जाएगी। आप एक चीज कार्य अधूरा रहेगा। आपको ये पता होना चाहिए छोड़ेंगे वो यहाँ से निकल जाएगी। छूटेगी यहाँ से, कि सारी दुनिया की दृष्टि आप पर है। ये लगाकर निकल जाएगी, पूरी ही निकल जाएगी। इसलिए वो के आप दीवाली सजाइये। लोगों की दृष्टि घर पर नहीं और जगह घुसने वाली। ये जो यहाँ छेद कर नहीं होती उन दीयों पर होती है जो जलते हैं। दिया है ये इसका फायदा है। जो आदत है उसका आप हरेक के जीवन की ओर संसार की दृष्टि है विचार मन में ले लें, उसको यहाँ रखकर उसको कि आप ये जो बड़े पार हो गए हैं और दुनिया भर निकालें, वहाँ पर जो आदत है आपको वहीं भारी तो पवित्रता बहुत जरूरी उसके बगैर कार्य बन 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-35.txt जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2004 34 लगेगा। नाभि पर किसी को खाने की आदत है. समझ लिया है कि हम भई ईसाई हैं, हम मुसलमान बहुत ज्यादा अच्छा नहीं लगता, बहुत ज्यादा खाता हैं, हम हिन्दू हैं, अब बस बाकी सब बेकार है। तो है, नाभि पर ध्यान रखें। नाभि आपकी यूँ यूँ कर ये misidentification है और सब कुछ झूठ है सच रही हैं। नाभि से लेकर के उसको धीरे धीरे धीरे सिर्फ एक ही है कि हम मनुष्य हैं। बिल्कुल उस धीरे करके उसको निकालें। सब निकल जाएगा सच्चाई पर एक दम आ जाइए, reality पर | पहले सब आदतें यहाँ से निकलेंगी, सब गंदगी यहाँ से आप उस पर आ जाएं फिर बाकी चीज़ आपको खुद निकलेगी अब उल्टी तरफ को चलेगा अभी समझ में जा जाएगी Misidentification अपने जो देवड़े साहब ने मुझे बताया कि मेरे यहॉाँ से अहंकार हैं उनको देखते रहना हैं पूरा समय, हर समय टूटा। सच्ची बात है। श्वांस देखना, सुनना, सूंधना, देखना है अभी हम क्या सोच रहे हैं ? अभी हम ये स्वाद सब यहाँ से है। आखिर सब चेतना की ही सोच रहे हैं कि घर जाकर हमें अभी खाना बनाना वजह से होता है और जब चेतना यहीं पर आ गई है खाया नहीं यहाँ पर | कुछ लोग ये सोच रहे हैं तो सब यहीं पर है। हृदय का स्पंदन सारे शरीर कि office में आज क्या हुआ, अब office में कल का कार्य यहाँ से चलता है। इसमें कोई भी ऐसी क्या होगा। तरह तरह की बातें सब लोग सोच रहे बात जिसको आप निकालना चाहते हैं अपने अंदर हैं मुझे सब मालूम है लोग क्या सोच रहे हैं। से उसको आप दबाकर के और यहाँ से निकाल निर्विचारिता में मेरा भाषण सुनना चाहिए । लेकिन दें। आदते छूट जाएंगी। सारी आदतें आपकी यहाँ नहीं। इन विचारों को नहीं रखना। खाना हमारा से निकलकर छूट जाएंगी। क्योंकि ये छेद हो गया बनाने वाला बैठा हुआ है हम नहीं खाना बनाएंगे। ये बड़ा फायदे का है। ये छेद नहीं था तो इसको आप एक बार ये सोचकर देखिए, जब आपके अन्दर इधर से दबाइए तो जैसे कहते हैं समुद्र को इधर से ये भी चमत्कार हो गए कि आप बैठे विठाए निर्विचारिता दबाइए तो दूसरे तरफ से निकल जाता है लेकिन में उतर गए तो ये भी चमत्कार देख लेंगे। क्योंकि उसमें गर एक जगह बना दी जाए तो वहीं जाएगा। matter भी तो उसी चैतन्य शक्ति से चलती है। इसलिए एक तरफ से गर दबाइएगा तो दूसरी हुआ है। तरफ से निकलेगा नहीं वो बाहर निकल आएगा ऐसे ऐसे आपके प्रश्न जो हैं ऐसे छूट जाते हैं। प्रयत्न लेकिन करें और सोचें, अपनी ओर देखें कि निर्विचारिता में जाते ही आप समझ जाएंगे कि आप | उसको भी देखें। खाना बनाने वाला बैठा हमारे अन्दर क्या अपवित्र चीज है। जैसे हमारी माँ का नाम है ऐसे ही हमें निर्मल में उसकी मदद आपके अन्दर आ गई है । आपको होना है। और हमारे अन्दर, हमारे अन्दर क्या कुछ और प्रश्न हो तो मुझसे आज पूछ लीजिए | अपवित्र चीज है जो दूसरों के अन्दर नहीं। क्योंकि अब ध्यान नहीं करेंगे क्योंकि समय अब हो गया है यही बात आती है। हाँ अभी मैं देख रही हूँ किसी काफी। अब सबको ध्यान मिल गया है। किसी को ऐसा लग रहा है कि हाँ उनमें ऐसा, उनमें ऐसा ये नहीं। मेरा मतलब हमारे अन्दर क्या सके तो शरणागत परमात्मा के हो गए हैं और निर्विचारिता अगले सत्र में ध्यान होगा उस वक्त कुछ गर हो कुछ मंत्र वगैरा पूजन वरगैरा कर लिया जाए, जिससे आपको विशेष रूप से कवच दिया ये हमारे misidentification हमने किसी को ये जाएगा| उससे ये कि आप पर फिर कोई आफत न है मतलब हम जो हैं उसके अन्दर कौन सा है। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-36.txt चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 35 घन आए। बाहर जो शैतान लोग घूम रहें हैं उससे आप सुगन्ध वो चैतन्य है और फूल का नाम जो भी हो लोग और संकट में नहीं आएं। तो जरूर आएं। तो नाम आपको समझ में नहीं भी आए तो सुगन्ध उसके बाद का प्रोग्राम पूना में है जिनको आना है हरेक मनुष्य को आता है। वो पूना भी आ सकते हैं। लेकिन पूरे हफ्ते का प्रोग्राम आप इन दो हफ्तों में attend करें तो अच्छा इंडियन हो, सबको सुगन्ध आता है। इस पर कोई रहेगा अब जो मैंने बात कही है उस पर विचार भाषा करने की जरूरत नहीं। इसी तरह से परमात्मा को रखो चाहे वो अग्रेज हो, फ्रैच हो, किसी फूल 1 करें। अब मेरी बात पर आपको conditioning नहीं का सुगन्ध जो ये चैतन्य शव्त्ति है ये भी हरेक हो सकता। Conditioning भी यहाँ से निकल आदमी को आ सकती है। चाहे किसी तरह का जाएगी। बात का जो सार है वो उपर जाएगा। हो इस भाषण में जो मुझे कहना था वो दूसरी Conditioning यहाँ से निकल जाएगी। Realization बात लेकिन जो मुझे देना था वो दूसरी बात वो के बाद सबसे बड़ा फायदा ये है कि कोई चीज अन्दर आत्मसात हो गया और साथ ही जो भी आपको चिपक नहीं सकती। खाली चैतन्य चिपक अन्दर गड़बड़ियाँ हुई हैं सबको यहाँ से निकाल सकता है। माने मैं गर चाहे उर्दू में बोलू चाहे दो। अन्दर मंथन होगा उसके साथ जो फारसी में बोलू चाहे फ्रंच में बोलू लेकिन उसकी चक्र घूमकर के उसको फेंकना चाहता है उसको जो चैतन्य शक्ति बह रही है न उन शब्दों से वो फेंकने दो। अपने आप उसको निकाल दो, किसी आपके अन्दर आ जाएगी। इसमें से जो viberation किसी का सिर भारी हो गया हो उसको निकाल हैं वो आपको पकड़ते हैं। उसको भाषा समझ में दो। सर जब भारी होता है तो दूसरों को पकड़ता नहीं आने की जरूरत। जो प्रेम है न अन्दर से वो है, कुछ अपना भी बचा खुचा निकल आता है। भी कुछ आपके अन्दर बह जाएगा जैसे फूल का आपको निकाल दो। इसमें कोई बात नहीं। Left hand से नाम नहीं पता लेकिन शहद आपके अन्दर उतरता निकाल दो right hand मेरी तरफ कर लो। किसी जाएगा। सुगन्ध आपके अन्दर उतरता जाएगा। को सवाल पूछना है पूछ लो। मेरे बच्चो आपको समझ लेना चाहिए कि मैं अपमान एवम् पीड़ा से परे हूँ। क्या आप जानते हैं कि ईसा मसीह को जब सूली पर चढ़ाया गया, वे अपनी पीड़ा के साक्षी थे? उन्हें कभी भी अपमानित नहीं किया जा सकता। परन्तु ये लोग शैतानी शक्तियों के दबाब में हैं। हमें इनकी रक्षा करनी होगी। क्या आप चाहते हैं कि वे सब नर्क में चले जाएं ? परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-37.txt अपनी ओर चित्त रखें मुम्बई, 21-12-1975 परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन सहजयोगियों का प्रेम इतना अगाध है कि शब्द जितने जल्दी मिथ्या हमारे अंदर से मिटता जाता है सूझ नहीं रहे कि किस तरह से बात की जाए। उतनी ही जल्दी हम लोग उस चित्त को हलका आपको पता है कि संसार में हर जगह आज कर लेते हैं। सहजयोग में यही चित्त जो है, ये सहजयोगी उत्क्रांति की ओर, evolution की ओर चित्त परमेश्वर से जाकर मिलता है। यही चित्त उस बढ़ रहा है। बहुत से सहजयोगी बड़ी ऊँची दशा सर्वव्यापी, परमेश्वर के प्रकाश में जा कर डूब जाता में चले गए हैं। आनंद के स्रोत उनके अंदर बह रहे है। यही मानव का चित्त जो कि हम प्रकृति का रूप हैं। कुछ तो बिल्कुल निमित्तमात्र हो करके ही समझते हैं, प्रकृति का जो ये फूल है वो परमात्मा के संसार में एक विशेष रूप से कार्यान्वित हैं। लेकिन प्रेम सागर में विसर्जित हो जाता है। लेकिन ये चित्त हर एक देश की एक अपनी अपनी, मैं देखती हूँ कि कितना बोझिल है, कितना अव्यवस्थित है, कभी परिपाटी है। मानव हर जगह एक ही है। इसमें कभी देखते ही बनता है। कोई अंतर नहीं है और सहजयोग एक अन्तर्तम की ही व्यवस्था है जिसका कि बाह्य से कोई सम्बंध है कितने आनंद में उतरे, आप कितने शांति में उतरे, ही नहीं। तो भी चित्त जो कि प्रकृति का एक आप कितने प्रेम में उतरे। मिथ्या में रहने वाले लोग स्वरूप है, जिसे हम कुण्डलिनी के नाम से जानते सहजयोग को नहीं प्राप्त कर सकते। हमारी मेहनत हैं, उसके अंदर आप जिस जिस देश से गुजरे हैं, से क्या हो सकता है? ज्यादा से ज्यादा हमारे जिस जिस जन्म से गुजरे हैं, जिस जिस प्रणालियों कुण्डलिनी पर बिठा कर आपको हम वहाँ छोड़ देंगे से गुजरे हैं, जिस जिस व्यवस्थाओं में से आपका लेकिन आप बार बार गिर आते हैं। उसका आंनद सहजयोग की पहचान एक ही है कि आप 1. व्यवहार हुआ है, उस सभी का टेपरिकार्ड है । भी नहीं उठा पाते जहाँ आपको पहुँचाया है। हर इसके कारण हर एक देश का, मैं देखती हूँ, मानव एक देश में एक अजीब- अजीब तरह की समस्याएं थोड़ा थोड़ा सा भिन्न हो जाता है। बड़े आश्चर्य की बात है कि मानव जितना कुछ लेना चाहिए क्योंकि हमें अपनी समस्या पहले मिथ्या है उसे कितने जोर से पकड लेता है और समझनी चाहिए। अपने प्रति दूसरे देशों की समस्या सत्य को पकड़ने में कितना कतराता है! कितना है उसे भी समझना चाहिए। जैसे कि अभी यू.के. में ढीला होता है! इतने मुश्किल से अपनाता है सत्य मैंने अपना कार्य बहुत धीमा शुरु किया है। बहुत को और असत्य को बहुत बुरी तरह से अपने अंदर थोड़े लोगों को हाथ में लिया है । ज्यादा लोगों को पकड़े रहता है। आश्यर्च इसीलिए होता है । पहले लेना नहीं चाहती थी सोचा पहले 25 आदमी ऐसे तो मैं सोचती थी कि मानव अपना नाम, अपना गाँव, जमा लिए जाएं जो कि सहजयोग में जम जाएं। अपनी शिक्षा, अपना ओहदा, इन सब चीजों को आपको आश्चर्य होगा कि बड़ी पहुँची हुई विभूतियाँ बड़ा महत्वपूर्ण समझता है लेकिन अन्तर्तम में कितना हैं वो नितांत श्रद्धा है उनकी सहजयोग पर । वो गहरा इसका असर है उसको देखते ही बनता है। सोचते हैं कि सहजयोग के बगैर कोई इलाज है ही जितने जल्दी ये चीज अपने अंदर से छूट जाती है, नहीं। आज की दशा में पहुंचने पर सहजयोग हैं। अपने देश की समस्या है, इसको पहले समझ 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-38.txt जुलाई चैतन्य लहरी 37 अगस्त, 2004 अत्यन्त अप्रतिम है, Dynamic चीज है और वो अपने पीछे डण्डा लेकर लगे हुए हैं। मैंने उनसे कोई प्रोग्राम है सहजयोग का तो उनके लिए उससे कहा कि आप अपने को जूते मार सकते हैं, आपके बढ़कर महत्वपूर्ण संसार में कोई चीज है ही नहीं और घण्टों तक वे उसी में लगे रहेंगे कि सहजयोग वो 3 बार 108 मारते हैं। जहाँ देखो वो अपने को में अपने को जैसे की ये पता नहीं क्या परमात्मा की मारते रहते हैं। हमसे कहने लगे कि कोई गालियाँ चीज आई हुई है जो दुनिया भर में देने की है, और सिखाओ हम अपने को देना चाहते हैं। ये हम ही वास्तविकता ये है ही इसमें कोई शंका नहीं। खराब हैं, कोई individually बात करते हैं। कभी लेकिन इतनी बड़ी वास्तविकता समझने पर भी मैने देखा नहीं कि किसी की शिकायत या किसी उनका एक बड़ा भारी, मैं दोष तो नहीं कहूँगी की कोई बात। अपने को ही कहते हैं। और दूसरे लेकिन कारण है। कारण वो भारतवर्ष की योग- के बारे में यही कहते हैं कि वो इतना बढ़िया भूमि में पैदा नहीं हुए। परमात्मा ने ऐसे सज्जनों को आदमी है कि हमें अपने पे लज्जा आती है। वो न जाने क्यों उस भोग भूमि में पैदा किया? इस योग भूमि में आप पैदा हुए हैं और वो पैदा उसकी तरफ दृष्टि ही नहीं करते जिसको वे गलत हुए हैं उस भोग भूमि में जहाँ पर के उनके उपर सोचते हैं । अपने ही को गलत समझते हैं पूरे कोई भी, किसी भी प्रकार का संस्कार है ही नहीं । समय । उनको ये भी पता नहीं है कि माथे पर सिन्दूर अगर ऊपर जो बाधाएं हैं उनके लिए। मैंने 108 बार कहा, कितना बढ़िया है हम तो अपने पर शर्मिन्दा हैं। आपको आश्चर्य होगा कि अपने ही पीछे डण्डा लगता है तो वो नाक पर लगा रहे हैं या सर पर लेकर लगे हुए हैं। यहाँ मैं देखती हैं कि उसके लगा रहे हैं। उनको अर्चन की विधि मालूम नहीं। परमेश्वर के बारे में कर इतनी तपस्विता उन लोगों के अन्दर कुछ भी मालुमात नहीं। उनको नीचे बैठना तक छोटे बच्चों जैसे मासूम बिल्कुल। मैं आने लगी तो नहीं आता। कुछ भी वो नहीं जानते। इतने अनभिज्ञ हैं कि आरती बजाने पर ताली कैसे देना चाहिए ये भी मालूम इतने आंतरिक हैं वो लोग! इतने प्रेममय हैं। इतना बिल्कुल उल्टी बात है। सारी दृष्टि अपनी ओर लगा और पूजन की विधि मालूम नहीं, झर झर झर झर आँसू उनके बहने लगे । उन पर डाला। सब कुछ कर लिया पर उनके आँसू नहीं रुके। इतनी सहज सरल उनकी भावना है। अभी तो सिर्फ 21 आदमी से ज्यादा नहीं ऐसे लोग, सहजयोंग नहीं। और इतनी बड़ी-बड़ी विभूतियाँ हैं. उनको मेरे ऊपर प्रेम है, इतना आदर है मेरे प्रति मैं जोड़ पाई हूँ। लेकिन है ये बात। और जिसको कि मैं आश्चर्य करती हूँ। सामने गुजरते वक्त कभी कहते हैं genuine असली। खुद मैं genuine नहीं भी सीधे नहीं गुजरते हैं, झुक करके। इतना मेरे हूँ, ये वो समझते हैं। कहते हैं कि कोई मेरे अंदर प्रति प्रेम उनको है कि संसार की कोई सी भी चीज आकर कह रहा है कि मैं genuine नहीं हूँ। नहीं मेरे आगे उनको तुच्छ लगती है। इतना उनको मेरा हूँ मैं genuine | माताजी मेरे अंदर ये कपट है। मैं महात्म्य है कि समझ में नहीं आता कि किस तरह इस झूठ को लिए हुए हूँ। पूर्णतया दिल को से मेरे आदर को पूरा करें। इस पर बड़ा आश्चर्य खोलकर कहते हैं और उनको कोई बात में शर्म होता है कि वो इस चीज का इतना महात्म्य नहीं आती। अपने को बुरा कहने में उनको जरा भी 1. समझते हैं और अपने प्रति अत्यंत उदासीन हैं, शर्म नहीं आती। लेकिन दूसरों को judgement वो 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-39.txt चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 38 बिल्कुल नहीं करते फिर ये भी बताते हैं कि हाँ मैंने ये गलत काम क्यों किया, इसकी वजह यह हमारे परम भाग्य हैं कि हम पहले माँ से मिले और थी। अपना ही सब बताएंगे कि मेरे बाप ऐसे थे, एक कहते हैं कि इस धरती में इतने लोग आप को ऐसे अपने भाग्य को सराहते हैं और कहते हैं कि बार ऐसा हुआ था, psychologically ये बात है मिलेंगे। एक दिन सहजयोग बहुत ऊँचे पद पर इसलिए मैं ऐसा करता हूँ। मैंने ये बात ऐसे क्यों पहुँचने वाला है, इसमें कोई शंका नहीं। लेकिन करी, इसका कारण वे बताते हैं कि ऐसा हुआ था आप हमारी नींव हैं। नींव के पत्थर कितने जबरदस्त | इसलिए मैं ऐसा करता हूँ। एकाध दो लोग ऐसे भी होने चाहिए? पहली चीज हमें ध्यान में लानी आते हैं जिन पर बहुत बाधा थी। वो अपने दिन चाहिए कि क्या हम genuine हैं? अपनी ओर नहीं भूलते हैं बिल्कुल भी और चुप रहते हैं। कहते नजर करें, दूसरों की ओर नहीं। अपनी ओर नजर नहीं कुछ, कहते हैं कि नहीं, अभी हममें जो असर करें क्या हम genuine हैं? देखिए कि उनको थे वो निकलने दो पूरे। हो सकता है कि कहीं छिपे कोई मंत्र भी बोलना नहीं आता। उनसे श्री कृष्ण भी हुए असर हों। इतनी मौन आत्मसात करते हैं। बोलना नहीं आता बेचारों को बहुत मुश्किल से लेकिन उनके अंदर ये कमी है कि वो पूजन भी राधा कृष्ण कह पाते हैं। आपके लिए कितना सरल नहीं जानते, अर्चन भी नहीं जानते बेचारों को है कि आप अपनी विशुद्धि को साफ कर लें । समझ में नहीं आता। मैंने उनसे कहा कि मैं कुछ राधा-कृष्ण आपने कह दिया हो गया काम खत्म ।| पैसा नहीं लेती हूँ कुछ भी नहीं लेती हूँ। अब वो राधा कृष्ण नहीं कह सकते बेचारे तो कृष्ण जी जरा नाराज हो जाते हैं बात-बात पर। उनका एक दिन ऐसे ही मैंने कहा कि मुझे ये डबलरोटी खाते थे वो मैंने कहा मुझे ये बहुत पंसद आती है तो pronunciation भी ठीक नहीं, और आपको आसानी जितने लोग आएंगे एक एक डबलरोटी ले कर। मैंने से मिल जाते हैं। उनको कुमकुम लगाना नहीं कहा इतनी सारी डबलरोटी कौन खाने वाला है? मैंने आता। उनको सिन्दूर का मालूम नहीं, उनको फूल ऐसे ही कह दिया था कहने को ऐसे थोड़ा है कि चढ़ाना नहीं आता, उनको गणेश जी बनाना नहीं मैं रोज खाती हैँ। उनकी समझ में नहीं आता कि आता, उनको स्वास्तिक बनाना नहीं आता, हर बार किस तरह से समर्पण करें। सब बहुत पढ़े लिखे उल्टी बना देते हैं बेचारे। कभी उन्होंने जाना नहीं विद्वान, सब कुछ जानते हैं। आपके सारे शास्त्र ये सब चीज़ें लेकिन अत्यंत शरणागत होते हुए भी वास्त्र उन्होंने जितने आपके अंग्रेजी में लिखे हैं सब वे लोग उसे नहीं पाते जिसे तुम लोग पा चुके हो। पढ़ डाले। उनके लिए सहजयोग समझाना कोई तुमने बहुत पाया है। लेकिन उसका महात्म्य अभी मुश्किल नहीं। वो कहते हैं कि ये जड़ से सूक्ष्म में तक बहुत कम लोगों के आता है समझ में। ये नहीं उतरने का तरीका सहजयोग है। उन लोगों ने मेरा कि उनको सहज मिल गया है, ये नहीं कि उनको introduction लिखा है। अभी किताब आप पढ़कर मुफ्त में ही दिया है। उन्होंने भी ऐसे ही पाया है दंग रह जाएंगे। सारे दुनिया के philosophers को जैसे आप लोगों ने पाया है। लेकिन उनका मेरे प्रति लाकर उन्होंने माँ के चरणों में डाल दिए। ये सब जो प्रेम है इतना नितांत है. लगता है कि जैसे कुछ भी नहीं है। इन्होंने क्या? इन्होनें तो प्रश्न खड़े जन्म-जन्मान्तर का वो सम्बंध समझ गए हैं और किए, माँ ने उसका उत्तर दिया। तुम लोग अभी तक समझ नहीं पा रहे हो। अपने 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-40.txt जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2004 39 ही में क्यों सीमित हो? सब तुम एक ही शरीर के गणेश दो। गणेश के सामने सर पटक पटक कर रोम-रोम होते हुए भी, एक ही शरीर में स्पंदन होते पटकर पटक कर, कान पकड़ पकड़ के पश्चाताप भी अलग अलग महसूस करते हो। और वहाँ की पूरे धुन में लगे। और उसमें एक वीरता भरी है। हुए ये प्रश्न ही नहीं खड़ा होता team work का प्रश्न इतना बड़ा उनके अंदर जागरण अपने प्रति और ही नहीं खड़ा होता। आपस में एक वहाँ पर लड़का दूसरों के प्रति भी और सहजयौग के ऐसे ऐसे है जिसने smoking शुरु की सब लोग उसको अनुभव और ऐसी ऐसी बातें उन्होंने बताई। आपके फाड़ खा गए। उसको इस तरह से उन्होंने ठिकाना पास एक चिट्ठी मैंने भेजी थी, वो उन सब लोगों ने किया कि उसकी छुट गई Smoking । उसके सारे मिल करके उसका पता लगाया। मेरे भी असलियत arguments ठीक किए. उसकी पूरी मदद की, का पता उन्होंने लगाया अभी तक आप के नहीं जैसे ही वोsmoking करे उसको अपने पास बुलायें, नज़र में आई बात पर उनके आ गई। वो समझ गए उसके साथ बैठ जाएं। उसके घर में जाकर ये बात है, ये ये चीज है। कहने को महामाया है, सिगरेट-विगरेट निकाल दिये पैसे ले जाकर छिपा अंदर बात ये है। दिए। सिगरेट की smoking नहीं थी उसकी क्या वो करता। और कहने लगे कि अब अगर तुमने सर्वस्व लगाकर वे लोग लगे हुए हैं। वो समझ गए और किया तो पुलिस में inform कर देंगे अच्छा हैं कि उत्कांति का समय आ गया है, सतयुग उन्होंने इतना आनंद नहीं पाया है। लेकिन वो लड़का इसका बुरा नहीं मानता। वो कहता कि दरवाजे पर है। और वो ये भी समझ रहे हैं कि गर हाँ भई तुम कर दो कुछ। वो लड़का खुद कहता है सतयुग का दरवाजा नहीं खुला तो दूसरा संहार का और भागता है उस चीज से दूर और उन लोगों के दरवाजा खुलने वाला है और सबकी जिम्मेदारी है पास आ जाता है और कहता है कि भई मुझे इस चीज की इसकी जिम्मेदारी वो सोचते हैं कि बचाओ। इस वक्त मुझे आ रही है वो इच्छा। इस हमें ये करने का है । वो जिम्मेदार हैं सहजयोग के वक्त तुम मुझे बचा लो, बचा लो इस वक्त। अपने लिए। मजाल है कोई सहजयोग के विरोध में एक को correct करने के लिए कितनी मेहनत वो कर अक्षर बोल दे। आपस में तो बोलने का कोई सवाल रहा है! यहाँ तो आपका समाज ही corrected है । ही नहीं पर कोई बोलता है तो फौरन उसको वहीं कितनी आपको, आपको पता नहीं कि आप कितनी झाड़ कर रख देते हैं। उनसे अगर मैं कहूँ कि 24 स्वर्गभूमि में रह रहे हैं! जहाँ पर माँ बहन का पता घण्टे तुम बगैर खाना खाए बैठे रहो, बैठे रहेंगे। नहीं इतनी वहाँ गंदगी है उस देश में जहाँ पर लेकिन इसका ये अर्थ नहीं कि आप लोग कुछ कम घर घर में शराब चलती है। इतने गंदे आपस में हैं। आप लोगों में से किसी किसी ने जो height सम्बंध हैं। किसी के घर का ठिकाना नहीं, माँ का साधी है, जिस height पे पहुंच गए हैं जिस ऊँचाई ठिकाना नहीं, बाप का ठिकाना नहीं। उससे पूछो पर पहुँच गए हैं, बहुत कमाल की चीज है। लेकिन भई तुम्हारी माँ कहाँ है ? वो कहते हैं पता नहीं सबको अपने अपने लिए बड़ा घमण्ड है ये बड़ा कहाँ चली गई, उसने किससे शादी कर ली! problem है । चित्त को एकाग्र करना भी एक अर्थ चरित्रहीन, मूलाधार चक्र सबका चौपट। ऐसे देश में रखता है। इसका मतलब ये नहीं कि यहाँ देखो पैदा हो करके भी, गणेश को ले कर आए। माँ हमें वहाँ देखो। एकाग्र तभी होता है चित्त जब उसके 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-41.txt चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 40 ऊपर का सारा मैल बह जाता है। सब हल्का हो गर इतना एक कर ले कि जैसे राखहु तैसे ही रहिहु। जैसे भी रखो मंजूर है हमको देख लेते है जाता है। अब अपने देश के जो curses हैं या अपने देश तुम कैसे रखते हो और हम कैसे रहते हैं। हर एक के जो समझ लीजिए बड़ा भारी शाप है अपने देश चीज का एक मजाक हो सकता है। हर एक चीज पर कि हम लोगों के चित्त पर एक बड़ी भारी चीज में एक आनद आ सकता है। कैसे रखोगे? जैसे है जिसे कि मैं कहती हैं Sins Against the राखहु तैसे ही रहिहू। चाहे पैदल चलाओ तो पैदल father, अपने बाप प्रभु परमेश्वर के खिलाफ हमने चलेंगे, चाहे घोड़े पे बिठाओ तो घोड़े पे चलेंगे। ऐसी पाप किया। वो कौन सा पाप है? कि हर समय मस्ती में जब आप आ जाइएगा, बाकी तो भगचान सोचना कि हम दरिद्र हैं, हम गरीब हैं. हमारे पास की कृपा से ऐसी योगभूमि में आप पैदा हुए हैं कि पैसा नहीं है हमारा कैसा होगा, हमारे पेट का बाकी का हिस्सा ठीक कैसा होगा। बिल्कुल भिखारी पन की बातें । हमारा से हैं आपके बीबी बच्चे ठिकाने से हैं आपका चरित्र खर्चा कैसे चलेगा ? हमारे बाल-बच्चों का क्या भी इतना गड़बड़ शडबड़ नहीं है। हैं कुछ लोगों होगा? गर आपका परमात्मा पर विश्वास है तो कम का, बो भी गड़बड़ है पर इतना गड़बड़ नहीं है, से कम इतना तो उस पर छोड़ दो कि वो तुमको ठीक हो सकता है वह भी वहाँ पर इतना ज्यादा खाना पीना तो देगा, नहीं तो ऐसे परमेश्वर पर दूसरा बाला पाप है सबकी आँखें यो यों यों यों विश्वास करने से फायदा क्या। ये बड़ा भारी हम औरतों आदमियो की चलती रहती हैं हर समय लोग पाप करते हैं। परमात्मा पर खाना पीना और माने बाधा है उनके अंदर। एक से दूसरे की बाधा ये व्यवस्था गर हम लोग छोड़ दें तो हिन्दुस्तानी जा रही है । ा है। आपके माँ-बाप ठिकाने एक औरत आई उसने आदमी को देखा आदमी आदमी ऊँचा उठ सकता है। दो तरह के पाप बहुत हैं। एक पाप तो ये है कि बाप के पितृत्च पे शंका ने औरत को देखा। ये ही चलते रहता है वहाँ पर । करना और दूसरा मैं कहती हैँ कि Sin Against चक्कर ही ऐसा है। हमसे कहने लगे ये माँ हम सब the mother, वो वहाँ पर हो रहा है, जिसमें चारित्रिक के बाधा घुस जाती है करे क्या? मैने कहा आँख दोष, indulgences भोग, घर गृहस्थी का तोड़ जरा नीची रखें लक्ष्मण जी सीताजी के सिर्फ पैर देना, बैछूट हो जाना, ये महादोष हैं। दोनों नरक के देखते थे नीची आँख। धीरे धीरे आपने आप ये रास्ते सीधे जाने की व्यवस्था है। पैसे के लिए कुछ भी करो! पैसे के लिए जो करिएगा तो काम क्या है बाधा का? अपने आप जो चाहे बो गलत काम करो वो ठीक है। ये हिन्दुस्तानियों भूत आपके अंदर में घूम रहा है, आपके अंदर काम का काम हैं। मैं सरकारी बात नहीं कर रही हूँ. मैं कर रहा है वो अपने आप ही वहाँ से भाग जाएगा। परमात्मा की बात कर रही हैँ परमात्मा के राज्य की गर आप इधर उधर आँख नहीं घुमाइयेगा तो बात कर रही हैँ। जब आप परमात्मा के राज्य में हैं एकदम से भूत भाग जाएंगे और जब तक आप तो देगा तो देगा नहीं तो नहीं देगा। इतनी कम से अपनी आँख घुमाते रहिएगा तो वो भूत वहाँ बैठे कम वृत्ति ले आने में क्या लगता है? करेगा नहीं तो रहेंगे। फौरन आँखे सबकी यों। रास्ते पर चलते हैं नहीं करेगा। जैसे राखहु तैसे ही रहिहु । सहजयोगी आँखे यों करके। माँ ने कह दिया, मान लिया। ये बाधा छूट जाएगी। जब आप ऐसे धंधे ही नहीं 1. ho. 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-42.txt चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2004 41 बच्चों के लक्षण हैं। आपके भले के लिए, कल्याण दो। दरवाजे की और देखो। वो कुछ और नहीं के लिए कह रही हैँ। आपको भी समझना है कि जानता है सिर्फ ये जानता है कि हाँ मैंने पाया है सहजयोग में हमने जितना पाने का है वो पाना है न, मैंने देखा है न, मुझे मालूम है, vibration आ रहे इसी जन्म में हमको पाने का है किसी और को है मेरे अंदर से। सहस्रार मेरा छिदा है। होता है। नहीं, हमको ही पाने का है, हमको लेने का है। मैंने जाना है। उसी बात को पकड़े हुए हैं. उसी दूसरों को नहीं, दूसरों की चिन्ता छोड़ो। अपनी दरवाजे को पकड़े हुए हैं। फिर माँ कुछ भी कह दे। सोचो कि हमने कितना पाया। हम इसके कितनी ये नहीं कि मैं ये नहीं मानता, वो नहीं मानता। जो गहराई में उतरे। हमने क्या पाया है? हमने अपने भी कह रही हैं हर एक बात सही है और जैसे ही साथ क्या व्यवहार कर रहे हैं? हम क्यों ढोंग कर वो कहते हैं सारा का सारा उनके आगे ज्ञान आते रहे हैं अपने साथ? हम क्यों अपने को ठगा रहे है? जा रहा है। आप लोगों की बैठक बननी चाहिए। बैठक हम क्यों झूठ बोल रहे हैं? हम अपने साथ क्यों ऐसी ज्यादती कर रहे हैं? हमने क्या पा लिया? जमनी चाहिए। उनसे तो बैठक शब्द नहीं मैं कह अरे सारा भण्डार खोल दिया है, आ जाओ अंदर। सकती कि बैठक जमाओ। बेचारे बैठक शब्द भी जैसे भी हो आ जाओ। हम नहला धुलाकर तुमको नहीं जानते। अंग्रेजी भाषा ऐसी क्या काम की है बिठा देंगे। फिर सोच क्यो? कितने गहरे उतरे उनकी कोई ऐसी संस्कृति ही नहीं है। उनका कोई हम? गंगा की शीतल धारा में कितने अंदर वहते ऐसा culture ही नहीं है ऐसी वहां बात ही नहीं है। गए हम। वो तो बह रही है पूरी तरह से कि लो बेटे कितने अभागी लोग हैं और बड़े बड़े साधुसंत है लो, लो जो लेना है लो। कितनी गागर भर ली और आप लोग कितने सौभाग्यशाली हैं। आप ही हमने? चित हमारा इधर उधर दौड़ रहा है। अपनी के देश में मेरा जन्म हुआ है इसी योगभूमि में मेरा ओर दृष्टि करते ही तुम समझ जाओगे कि तुमने जन्म हुआ है लेकिन आपने क्या पाया है ये देखिए । ही अपने साथ छलना की किसी और ने की दूसरों ने क्या पाया है? दूसरों ने क्या किया है, नहीं। ये बड़ा भारी अंतर है। सहजयोग के लिए दूसरों ने क्या कहा? दूसरे कहाँ हैं। ये वगैरह से नुकसानकारी है। अपनी ओर दृष्टि न रखना मतलब नहीं। आपने क्या पाया है। जैसे ही आपने सहजयोग के लिए बहुत बड़ी नुकसान की चीज है पा लिया आप निमित्त हो जाएंगे परमात्मा के। आप और अपनी ओर उसी मनुष्य की दृष्टि होती है हैं क्या? आप तो उसके अंदर एक निमित्त मात्र हैं। स्वभावतः ही जो जन्म-जन्मांतर से खोज रहा है। 1000 आदमी मुझे चाहिएं. मैंने कहा है, जो इस वो जानता है कि मेरी गलितयों की वजह से ही सहस्रार पर बैठ जाएं। 1000 घोड़े पर बिठाने वाले मैंने नहीं पाया था। अब और गलती मैं नहीं 1000 आदमी ऐसे चाहिएं जो बिल्कुल न पकड़े। जो करुंगा। जैसे कुन्दधर के अंदर आप बंद है और निर्लेप हों। गर आप सहजयोग के लिए कुछ कर निकलने का रास्ता नहीं। जिसने दस जगह दरवाजे रहे हैं तो अपने ही लिए तो कर रहे हैं । ऐसा तो पर ठोका मारा है जिसका दस जगह सर फूटा है कोई हो जो कहे कि भाई मैं गया मैंने इतना बाजार वो सोचता है नहीं रास्ते की ओर नजर रखो। में अपने लिए सोना खरीदा। इतनी मैंने चीजें दरवाजे की ओर नजर रखो। सब दूर | | से मार खाने खरीदी, इतनी मैंने मेहनत की। आपने इतनी जो भी 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-43.txt चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2004 42 मेहनत की जो भी आपने किया अपने ही लिए तो से अपने पैर काट रहे हैं । गुटबाजी कर रहे हैं । किया है। किसी और के लिए नहीं। आपने देखा है क्या करूँ, मेरी समझ में नहीं आता है। एकदम न। जो भी कुछ आपने किया है उसका लाभ अपने बेवकूफी की बातें कर रहे हैं। अरे तुम अलग हो ही को है। बहुत से लोग हो गए संसार में, उन्होंने कहाँ मैं यहाँ एक जरा सी उंगली घुमाती हूँ तो पाया। एकाध दो एक युग में हुए हैं बहुत थोड़े सबके सहस्रार चलते हैं। थोड़ा सा पाँव झनकाती हैँ आप जानते हैं आपसे मिले हैं कितने लोग realized तो सबके सहस्रार में झनकार आते हैं। है? बहुत का बिल्कुल घोर निनाद चल रहा है। इस वक्त तो रहे हो। क्या तुम समझते नहीं? तुम अलग हो ही पशु ही हैं अधिकतर। बिना पूँछ के पशु बहुत सारे नहीं सकते ये तो ऐसा है कि एक हाथ तोड़ के हैं। पर इसी कलयुग में इसी कीचड़ में एक विशेष तुम उधर ले जाओ और वो कहे कि हाँ भई मैं इस रूप से कार्य होने वाला है और ये आप जानते हैं हाथ को अलग करके बड़ा भारी कार्य करूँगा। मुझे ये हो रहा है। ऐसे में आपको चाहिए कि जो ले बड़ा दुख हो रहा है इस पूरे शरीर के साथ चिपकने सकते है लें, नहीं तो ये जो क्रांति का process है Evolution का process है उसमें से आप फेंक होती है। अपनी अगर मुक्ति चाहिए हो तो मनुष्य दिए जाएगें। वो समय दूर नहीं है। 79 मैंने बता ऐसे ही एकता से काम करता है। लेकिन जिस दिया है कि 79 तक ही ये कार्य होगा उसके बाद आदमी को ये समझ में आ गया कि एक सामूहिक 99 साल तक सब कुछ पूरा mature हो जाएगा। व्यक्तित्व के collective personality के आप एक हाँ आपकी अक्ल पर है नहीं तो कलयुग भी आप अंश है उसी क्षण सारा काम ठीक हो जाता है। ही की बदौलत पनपेगा आप लोग अगर इसको आप हैं आप जानते हैं, आप हैं आप जानते हैं, आप नहीं चलाना चाहेंगे तो जो विध्वंस विनाश होगा हैं उसमें । सारे सहजयोगी जानते हैं। कोई England थोडे से ही। और आजकल तो कलयुग तुम लोग अलग कहाँ हो जो अलग अलग कर में तो मैं अलग हो जाऊँगा। इसी तरह की ये बात से चला आए, कोई अमेरिका से चला आए, कोई उसका बोझा आप ही के सर पर है। अपनी अक्ल को ऐसा लगाइए, अपनी बुद्धि को हिन्दुस्तान से चला आए। जब बात करेगा तो यही सुबुद्धि में लाइए और सोचिए कि हमने गंगा जी से कि आज्ञा पकड़ रहा है कि हृवय पकड़ रहा है कि क्या लिया? क्या पाया? क्या पाने का है? आपने फलाना पकड़ रहा है। सब कोई जानते हैं ये बात, बहुत आनंद पाया है? उस आनंद का जो भी क्षण ये तो कोई भी और नहीं जानते लोग। उनको तो आपने पाया है उसको याद करते रहना चाहिए ये भाषा ही मालूम नहीं। नई भाषा है, आप लोगों ने और मन से कहना चाहिए कि उसी क्षण में हमेशा सोचा है कभी। रहना है मुझे। चिपक जाएगें आप वहाँ पर । और जो भी इधर-उधर के फालतू के विचार आ रहे हैं पकड़ रहा है कौन कहाँ कितने गहरे पानी में है, उनको बंद करिये। किसी भी उम्र के आदमी को ये क्या हो रहा है, क्या नहीं हो रहा ? फर्क इतना ही मना नहीं है । किसी भी वर्ण के आदमी के लिए ये है कि अपनी ओर दृष्टि कम होने की वजह से मना नहीं है। किसी भी व्यवस्था के आदमी के लिए अपने लिए क्या हो रहा है वो नहीं दिखाई दे रहा, ये मना नहीं है। लेकिन अधिकतर लोग अपने हाथ दूसरे का दिखाई दे रहा है । ये तो ऐसा ही है कि फौरन आपको पता हो जाता है किसका क्या 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-44.txt जुलाई चैतन्य लहरी 43 अगस्त, 2004 ये गर हाथ सड़ रहा है और ये हाथ इस हाथ का को निकाल देते हैं। जब देखते हैं कि साडी में छेद नहीं सोच रहा है तो ये तो सड़ जाएगा ही और हो गया है तो आप उसको सी देते हैं। आपको इस हाथ का क्या फायदा होने वाला है? किसी को जिस चीज से प्रेम होता है उसको आप ठीक कर भी नीचे गिरना नहीं है खुद भी और दूसरा भी नहीं देते हैं और जिस चीज से आपको प्रेम नहीं होता गिरना चाहिए। लेकिन आप खुद मत गिरिए, पहली उसको आप छोड़ देते हैं। हमने आपसे इतना प्रेम चीज ये है। अव्याहत चल रहा है ये सारा काम। किया, आपने अपने से कब प्रेम किया? अपने प्रति सारे चारों तरफ छाया हुआ है। जिसको कि प्रेम करें। जिस दिन ये लहर एक तार हो जाएगी unconscious कहते हैं जिसको कि प्रणव कहा एक इसमें हम लोग आ जाएंगे, वो दिन की मैं राह जाता है, जिसको कि मैं Divine Love कहती हूैं। देख रही हैूँ। अब आप लोगों को इसमें कोई शक चारों तरफ आपकी मदद के लिए मंडरा रहा है नहीं रहा, क्योंकि vibration आप लोगों ने जाने हैं। चारों तरफ आपकी मदद के लिए। भैरव नाथ जी इसमें तो किसी को शक नहीं है साक्षात् शंकर हैं इस वक्त यहाँ बैठे हुए हैं। यहीं हनुमान जी बैठे आप भी। (मराठी) हुए हैं। आपके साथ हजारों आदमी लगे हुए हैं यहाँ पर। आपके लिए मेहनत कर रहे हैं। जिस हैं उन की ओर को आपने पाया है संसार में कितनों ने नजर करो उनकी ओर और ऊपर बढ़ो। खट से कुछ कुछ लोग बहुत पहुँच गए और सब उन्मुख देखिए जो ऊपर उठ गए हैं। अनुभव खींच लिए गए ऊपर को जैसे मछलियों को एक ही पाया था आजतक, बताइए। बड़े बड़े साधू सन्यासी हो गए। हो गए होगें, तार में बाँध करके खींचा जाता है वैसे ही खींच किसी ने भी सामूहिक चेतना पर इतना clearly लिए गए । लेकिन पहले उस जाल में फँसे रहो प्रेम जाना है जितना तुम लोग जानते हो? कितनी के माँ के प्रेम के जाल से नहीं निकलना। अपनी किताब पढ़ डालो। वो मुझसे पूछते हैं साधू सन्यासी अपनी अकल मत लगाओ तुम लोगों की अकल मैं बड़े बड़े साधू उसमें से किसी किसी ने जन्म लिया जानती हूँ कहाँ त्क चलने वाली है। तुम लोगों को है किसी किसी ने नहीं लिया, कि इनको किस मालूम था कि कुण्डलिनी कहाँ है क्या है? कुछ सिलसिले में आपने दिया है? बहुत बड़ी चीज है। नहीं मालूम था ना? फिर तुम कुछ बड़े हो, बुजुर्ग मैंने अपने सहस्रार से तुमको जन्म दिया है। उन हो, उम्र में बड़े होओगे मेरे से, लेकिन मैं तो हजारों लोगों को नहीं दिया था। उनके उपर उतर के साल की पुरानी हूँ। तुम ऐसे कैसे बड़़े हो सकते दिया था। तुम लोगों को अपने हृदय में स्थान हो? मेरे तो बेटे ही हो न, मेरे तो बच्चे ही हो। मैं देकर अपने सहस्रार से जन्म दिया है। कितनी बड़ी तुम्हारी स्थिति है। ऐसा तो श्री गणेश को भी जन्म ही जाओ और सारे संसार की व्यवस्था करो । थोड़ा नहीं दिया था जैसा कि तुमको दिया है। ये विशेष सा धक्का देने की जरूरत है, थोड़ा सा अपने को 1. चाहती हूँ कि इस आनंद के सागर में खुद तो लुट वस्तु है न? अत्यंत प्रेम से प्लावित करके दिया पकड़ने की जरूरत है, अभी नैया पार होगी। थोड़ी है। अपने से प्रेम करो। जब अपने से प्रेम सी बगड़-दगड़ चल रही है, आगे जाती है पीछे हुआ होगा तभी अपना दोष दिखेगा। जब आपको साड़ी जाती है। अभी भी सहजयोग की नैया मैं नहीं से प्रेम होता है तो आप साड़ी में लगे हुए सभी दोष कहती कि किनारे पर पहुँच गई है। अभी खींच 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-45.txt चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2004 44 रही हूँ आप लोगों के through, आप ही लोग इधर उधर खींचते हैं कभी कभी। कुछ उधर खींच क्या कहेंगे कि माँ ऐसे कैसे हो सकता है? कैसे रहे है कुछ इधर खींच रहे हैं। नाव को किनारे पर पकड़ा है मेरा आज्ञा? अरे भाई है तो है। उसको तो उसी प्रकार आपका गर आज्ञा पकड़ा है तो आप है। लाना है। पर group बाजी करना नही है। ये छुड़वाना सहस्रार पर चक्कर है। कैसे चक्कर आदमी अच्छा नहीं है, वो आदमी अच्छा नहीं है। है? उसको तो छुड़वाना है। जो बुरी चीज है उसमें ऐसी ज्यादती हो गई, उसमें ये गड़बड़ हो उसको तो निकालना है। काम खत्म। एक सीधी गई. उसमें ये गड़बड़ हो गया। मुझे कोई भी सादी बात है इसमें वाद-विवाद क्या और इसमें शिकायत नहीं लगाए। मैं सबको अंदर बाहर से कहना सुनना क्या है ? किसी के कहने सुनने से जानती हूँ। मैं किसी की भी शिकायत नहीं सुनने आज्ञा चक्र छूटता हो तो छुड़वा लो। वाद-विवाद वाली। से किसी का छूटता है तो छुड़वा लो। बातचीत से पहला हिसाब । तुम कहाँ थे और कहाँ से कहाँ थोड़ी होने वाला है। ये सूक्ष्म से सूक्ष्मतर, ये प्रेम का गए। बस ये देखते रहो। और वहाँ से कहाँ जाने चक्कर है। इससे होता है। आप लोग पार हुए हैं. का है, बस ये देखते रहो। आप जब कहीं रास्ते पर वो कोई तुम्हारे वाद-विवाद से पार हुए हैं क्या? या चल रहे हैं तो आप क्या यही कहते रहते हैं क्या? तुम्हारी पंडिताई से, तुम्हारी किताबों से पार हुए आप कहते हैं कि कब वहाँ पहुँचूंगा, कब वहां हैं क्या? पार कैसे हो गए आप? एक चमत्कार पहुँचूंगा। जो हमें सता रहा है उसे पहले माफ़ घटित हुआ है और खट से पार हो गए । गगनगढ़ करके आओ । उसको बाहर, फिर देखो आप उसके महाराज कहते थे न कि माताजी ये कैसे हुआ अंदर। सब छोड़ो पिछला। हर एक क्षण पीछे छोड़ समझ में नहीं आता है कि आप आए और सबकी दो। इस क्षण में खड़े हो जाओ अंदर घुसने की कुण्डलनियाँ खड़ी हो गईं। ये तो समझ में ही नहीं बात है। हम बैठे हुए हैं यहाँ पर ढकेलने के लिए आ रहा। एक को भी उन्होंने आजतक पार नहीं सबको। मगर सब के सब मेरी खोपड़ी पर मत गिर किया, गगनगढ़ महाराज ने और उनको जान देने जाना। दो चार गिरेंगे तो ठीक है, काहे का वाद के लिए हजारों आदमी तैयार हैं! (मराठी) विवाद सहजयोग में हो सकता है? अरे भई गर अपने यहाँ ऐसे बच्चे भी खराब हो जाएंगे तुम्हारा आज्ञा पकड़ा है तो पकड़ा है हृदय पकड़ा क्योंकि हम लोग ही आधे अधूरे हैं। ऐसे पहुंचे हुए है तो पकड़ा है। उसमें वाद-विवाद करना नहीं वो बच्चे हैं हिन्दुस्तान में भी बहुत है। वो भी सत्यानाश छूटना ही पड़ेगा। बुरा मानने की कौन सी बात है, जाएंगे क्योंकि जबरदस्त माँ-बाप । उनको भी ठिकाने जब पकड़ा है, तो पकड़ा है छुड़वाना है तो लगाइए। उनके भी मन में द्वेष भावना, उनके भी छुड़वाना है अरे अपने को अगर कैंसर हो, कैंसर गनर्दी बातें सिखाएंगे। पूरी समझ सुन सुन के, सुन हो गया है डॉक्टर के पास जाएंगे। डॉक्टर बोले सुन के बच्चे भी खराब हो जाएंगे। लेकिन वहाँ पर कि आपको कैंसर हो गया है तो उसको क्या आप ऐसा नहीं है। वहाँ ऐसे जबरदस्त बच्चे हैं जो मारने को दौड़ेंगे कि उसने बोला आपको कैंसर हो माँ-बाप से भी भिड़ लेते हैं इस बात पर। वो सब गया, बोलेंगे कि भईया मुझे कैंसर हो गया है उसे बच्चे तैयार हो रहे हैं। दस साल के अंदर वो बच्चे भी तैयार हो जाएंगे और आपके भी घर में ऐसे बच्चे ठीक कर दो। श्री 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-46.txt चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2004 45 आएंगे और ऐसे बहुत से बच्चे है जो अपनी सत्ता उसको भी, सबको बंधन दो आज घर पर जाकर पे खड़े हैं। जैसे ही ये बच्चे बड़े हो जाएंगे ये बंधन दो। इसको भी आना चाहिए उसको भी आना अपनी सत्ता पर खड़े हो जाएंगे। उनको सहयोग चाहिए और आप खुद उपस्थित होकर सबको बंधन दो। परमात्मा का आश्शीरवाद आपके उपर आएगा। पुराने हैं, मेरे अपने हैं। लेकिन फिर यही कहूँगी कि किसी और इंसान से अपना ldentification आप आप लोग मील के पत्थर हैं, बम्बई वाले। (मराठी) मत करो कि वे फलाने हैं ये इस जगह रहते हैं वो सबका कहना ये है कि सहजयोग में बड़े मेरे हैं, वो मेरे हैं, उनके साथ ये ज्यादती हो गई। धीरे-धीरे लोग बढ़ते हैं। उसका कारण ये है कि ये नहीं। मैं सहजयोग के लिए क्या कर सकता हूँ? आप लोगों को देख के लोग कहते हैं कि ये फलाने आने चाहिएं ढिकाने आने चाहिएं। उधर सहजयोगी हैं? भगवान बचाए इनसे। हमें नहीं चित्त लगाओ आपके चित्त पे शक्ति बैठी हुई है। चित्त पे शक्ति बैठी हुई है। उसको अगर गलत करके सहजयोग बढ़ने वाला है। बहुत बार लोग जगह पर लगाओगे तो सो जाएगी। सहजयोग में कहते हैं कि इनके पीछे में सहजयोगी संस्था लगा लगाओगे तो चमक जाएगी। इसको हमने ठीक दो। मैंने कहा नहीं नहीं ऐसा मत करो। ये तो भई किया था। उसको हमने ठीक किया था उसकी ऐसा चिपक जाएगा मामला। किसी को ऐसे लगा बीमारी ठीक की थी, उससे मिले थे, उससे बातचीत नहीं सकते। कहने लगे क्यो? ये ऐसा है कि आज की थी । उस पर आज बैठ कर चित्त लगाओ अब M.A. हैं तो कल बिल्कुल गधे। आज आकाश में हैं मुझसे सहजयोग के अलावा कोई और बात करने तो कल एकदम पाताल में इसमें आप किसी को की नहीं। मैं कुछ और सुनने को अब तैयार नहीं। डिग्री नहीं दे सकते। आपने गर डिग्री दी तो बहुत हो गया मेरी बीबी भाग गई। मेरा पति भाग मुश्किल हो जाएगी। ऐसा झगड़ा है। तो अब हम गया। मेरे बच्चे का ठिकाना हो गया ये अब हो सिखाने की जरूरत नहीं। वो सीखे-सिखाए हैं, चाहिए ऐसा सहजयोग। आप ही लोगों को देख आ गए हैं अब बताइये क्या-क्या आपने सोचा है सहजयोगियों से मैं सुनने वाली नहीं । बस बहुत तथा क्या आपने करना है? आज आपने घर जाकर गया उसने मेरे को ऐसी कहा, उसने मेरे को डाँटा, उसने मेरे को मारा। मैं किसी से सुनने वाली महीने भर की छुट्टी लेकर जा रहे हैं। अभी दो नहीं और जिनको ये बातें करनी है वे अब छुट्टी दिन तो प्रोग्राम है ही देखते हैं क्या क्या उसमें आप करें सहजयोग से। जिसको आनंद लेना है वो यहाँ करामात करते हैं। बढ़ाओ अपना चित्त। Meditation आएं। जिसको प्रेम लेना है वो यहाँ आएं। सारे में बैठो तीन दिन Meditation में जाकर ये कहो संसार का सुख जिसे लेना है वो यहाँ आए। सारी कि कौन कौन लोग ध्यान में क्या करेंगे। कौन सम्पदा परमात्मा ने जो तुम्हारे लिए उडेली हुई है, कौन लोग ध्यान में आएंगे। चित लगाओ अपने वो लेना है तो यहाँ आए। और आप लोग ही सोचना है। leader हैं उस सतयुग के leader हैं जो आने चित्त को लगाओ कि ये भी आना चाहिए, वो भी वाला है आपका नाम इतिहास में जाएगा। इतने महत्त कार्य में, गर आप इतने महत्त नहीं हैं तो सकता है। लगाओ चित्त इसको भी आना चाहिए आप न आएं। पहली मर्तबा मैं ये कह रही हूँ । चित्त पहचान करो। चित्त में ही सारी शक्ति है । आना चाहिए। ये भी आ सकता है वो भी आ 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-47.txt जुलाई - अगस्त, 2004 चैतन्य लहरी 46 जिसको पाना है जिसको उठना है वो Individually तो मेरी आपको प्रार्थना है, विनती है. कि गर मैंने आए। किसी Group की तरह से नहीं आए। वाकई आपको प्रेम किया है. और प्रेम दिया है तो Individually आए । व्यक्तिगत और जब व्यक्तिगत उसको फल लगने के समय में मूर्खता नहीं करनी इसमें डूबिएगा तो जैसे एक बूँद जैसे सागर हो है कोई भी, किसी भी तरह। Maturity आनी चाहिए। जाता है आप हो जाएंगे। नहीं तो सबकी गंदगी बड़प्पन आना चाहिए। बच्चों जैसा काम बंद करिए आप अपने साथ ले करके चलोगे इस पर किसी और जब बच्चों जैसी बातें करते हैं तो चुप रहो । से बातचीत, वार्तालाप या चर्चा नहीं होती है, उनकी बात नहीं सुनना है। बुर्जुगों जैसे बात करनी सिवाय सहजयोग के कोई मैं बात नहीं करूँगा । ये निश्चय कर लें। आप लोग काफी लोग हैं। किसी शांत रहें, मौन रहें, और आनंद उठाएं। सारे भेद भी जन्म में इतने लोग मुझे नहीं मिले थे जितने तोड़ दें। आपके अंदर फौरन जीवन्त रक्त बहना आप लोग हैं। इनके सहारे नैया पार हो जाएगी। शुरु हो जाएगा। आनंद और सुख और शान्ति। है। बड़ों जैसी, Mature । फल हो गए हैं । अब आप परमात्मा आपको धन्य करें। आपकी चेतना में नई क्रान्ति घटित हुए बिना मानव द्वारा प्राप्त की गई सभी उपलब्धियाँ अर्थहीन हैं । ये तो ऐसा होगा जैसे विवाह के अवसर पर विद्युत-सज्जा के सभी उपकरण लगा कर उनमें विद्युत-प्रवाह न किया जाये। रोशनी होने पर ही आप दूल्हा- दुल्हन को देख सकेंगे । परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-48.txt परम पूज्य माताजी निर्मला देवी का एक पत्र इंग्लैड मई 1977 (मराठी से अनुवादित) हैं या त्योरीयाँ चढ़ाकर गुस्से से उन्हें देखते हैं। नन्हें बच्चों से यदि कोई कड़वा बोले तो मुझे लगता हैं कि किसी ने मेरे हृदय में छुरा घोप दिया है। आप ही बताएं कि क्या सहजयोगी में प्रेम भाव की मुझे समाचार मिला है कि मुस्कवाडी गाँव राहुरी अभिव्यक्ति नहीं होनी चाहिए? एक ही माँ के बच्चे में एक नया ध्यान केन्द्र चल रहा है जहाँ हजारों भी प्रायः इस बात को नहीं समझ पाते कि वे वास्तव सन्ताने है। इस सत्य को आप प्रिय सहजयोगियों, आप सबको अनन्त आर्शीवाद । लोग आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर रहे हैं। ये में एक ही माँ की उपलब्धि इसलिए प्राप्त हुई है क्योंकि वहाँ के भलीभांति जानते हैं। फिर क्यों आपमें यह भावना कार्यकर्ताओं ने स्वयं को प्रेम के अदभुत बन्धन में आनी चाहिए कि कोई आपसे बढ़िया है या घटिया बाँध लिया हैं । वे कभी किसी चीज की शिकायत हैं। क्या आपमें कोई दोष नहीं है? क्या आपमें इस करने का प्रयत्न नहीं करते। शिकायत की अपेक्षा बात का निर्णय करने की योग्यता है? लोग मानव यदि कोई कार्यकर्ता किसी प्रकार की गलती करता के सार्वभौमिक भाईचारे की बात करते हैं परन्तु है तो वे उस गलती को नजर अंदाज करते हैं। बिना परस्पर प्रेम किए क्या यह बात सम्भव है? इस उदारता का यह कार्य व्यक्ति के अपने हृदय में क्षण मुझे केवल इतना ही कहना है कि अन्त- प्रसन्नता की भावना उत्पन्न करता है और इससे अंवलोकन करें, सत्य असत्य का भेद देखें और इस अन्य सम्बन्धित लोग भी आकर्षित होते हैं । उदारता का यह गुण कुण्डलिनी की जागृति से के बाद ही आप सच्चे सहजयोगी बनेंगे। बढ़ता है। यह दिव्यता की अभिव्यक्ति है । परन्तु जो लोग केवल बनावटी वातारण में रहते हैं वो इस उससे इस प्रकार व्यवहार करें कि मानो वह आपका वरदान का आनन्द नहीं ले सकते। आपकी कुण्डलिनी भाई है। अच्छी प्रकार उसकी देखभाल करें, उससे जागृत हो गई है और इसने आपके सहस्र का आपकी गृहस्थी पवित्र होगी। मैं नहीं समझ पाती भेदन कर दिया है। परन्तु हृदय ने अभी भी इस कि किस प्रकार सहजयोगी धड़े बना लेते हैं। हर विश्व से मुक्ति पा लें क्योंकि केवल ऐसा कर लेने कोई सहजयोगी यदि आपके घर आता है तो 1 जागृति को महसूस करना है। व्यक्ति का हृदय क्षण आपकी स्थिति या तो बेहतर होती रहती है या यदि पत्थर की तरह से है. अपने प्रेम की वर्षा यदि बदतर। इस प्रकार के धड़े बनाने से तो आपकी वह किसी पर नहीं कर सकता, बातचीत में यदि आत्मा पूर्णतः दब जाएगी। आपको चाहिए कि वह कष्ट प्रदायी भाषा का उपयोग करता है और दूसरों के गुणों को देखें और दोषों की अनदेखी करें इस चीज पर विशेष रूप से बल देता है कि वह उसी तरह से जैसे मैं स्वयं देखती हैँ। ध्यान धारणा कुछ खास है तो वह सहजयोगी बनने के योग्य में आप महसूस करेंगे कि यह शाश्वत आनन्द का नहीं है । निःसन्देह कुछ लोगों का ऐसा ही स्वभाव द्वार है। हैं । मैंने देखा है कि मेरे सम्मुख ही आपमें से कुछ लोग दूसरों को एक ओर धकैलने का प्रयत्न करते आपको सदा याद रखने वाली माँ निर्मला 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-51.txt क अन १ री এ बच्चे, ही अवतरण हैं। वही मानव को महान उन्नति की ओर ले जाएंगे। मानव जाति की देखभाल होना आवश्यक है । बच्चे ही कल की मानव जाति हैं और हम आज के मानव। अनुसरण करने के लिए हम उन्हें क्या दे रहे हैं?" यह कहना कठिन है कि जीवन में बच्चों का लक्ष्य क्या है, "परन्तु सहज-योग से वे ठीक प्रकार से चलेंगे, ठीक से आचरण करेंगे और सहज-योगियों का बहुत बड़ा समुदाय विकसित हो जाएगा जो कि अपनी ही प्रकार का होगा।" थि