ज चैतन्य लहरी 2ं १० ও ० बुभ सितम्बर - अक्टूबर, 2004 मठ ी NIRMALA, UNIVERSAL PUKE इस अंक में 3 गुरु पूजा, कबेला 4.2004 6 शास्त्रों में 'ऊँ" की व्याख्या 8 शपथ (युवा शक्ति की) 9 संगीत अकादमी का शुभारम्भ, वैतरणा- 1.1.2003 |। दिवाली पूजा लास एंजलिस, 9 नवम्बर, 2003 12 परम पूज्य श्री माताजी का सहजयोगियों को आदेश 15 - 1.6.1972 गुरु पूर्णिमा 28 हर श्वास में सहजयोग को प्रस्थापित क ..1.197) 37 कुण्डलिनी और कल्कि (नवराि पूजा- 28.09.1979) DHARMA चै त न य ल ह री प्रकाशक निर्मल इन्फोसिस एवं टेकनोलोजीज़ प्रा. लि. मुख्य कार्यालय : प्लाट न. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, होटल ग्रेस के पीछे, पॉड रोड, कोठरुड पुणे - 411 029 मुद्रक अमरनाथ प्रेस प्रा. लि. औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली-110015 WH.S 2/47 कीर्ति नगर, मोबाइल : ९८१०४५२९८१, २५२६८६७३ सदस्यता के लिए कृपया निम्न पते पर लिखें: श्री जी.एल. अग्रवाल निर्मल इन्फोसिस एवं टेकनोलोजीज़ प्रा. लि. 222, देशबन्धु अपार्टमैंट, कालका जी नई दिल्ली-110 019 फोन : 26216654, 26422054 आप अपने अनुभव, सुझाव, सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ. पी. चान्दना जी-11-(463), ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली 110 034 011-5535681I दूरभाष प्रात: 08.00 बजे से 09.30 बजे सायं: 08.30 बजे ये 10.30 बजे गुरु पूजा ड कबेला लीगरे, जुलाई 4,2004 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ( हिन्दी रूपान्तर) (Internet Version) यही कारण है कि आज आपका गुरुपर्व है और सहजयोगियों को देखकर मुझे अत्यन्त खुशी हो इस पर्व में आप अपने गुरु के प्रति उस प्रेम को रही है और अत्यन्त आन्नद हो रहा है। ये सोचना महसूस कर सकते हैं। वह अहसास अन्दर है और अत्यन्त सुखकर है कि दवतने सारे आप लोग मेरे अपने अपने अन्दर ही आप इसे महसूस कर सकते शिष्य हैं। कभी आशा नहीं की थी कि मेरे इतने हैं अत: हमें समझना है कि यह दिखावा नहीं है, न कुछ और भी नहीं है, केवल अपने अन्दर का में आशा करती हैँ कि आप सब मेरे प्रेम अहसास है जिसे आप जानते हैं कि आपमें परमेश्वरी सन्देश का अनुसरण करेंगे प्रेम के विषय में मुझे प्रेम है। क्योकि यह अन्दर मौजूद है इसलिए आप कुछ नहीं कहना। प्रेम पूर्ण उपहार है।दूसरों की इसे पा सकते हैं कोई अन्य न आपको यह प्रेम दे भावनाओं को महसूस करने का पूर्ण उपहार । न सकता है, न ही कोई इसे बेच सकता है, न कोई इसमें कोई बातचीत है और न बहस मोबाहिसा। इसे बांट सकता है। यह तो बस मौजूद है। इस प्रेम आप तो बस प्रेम को महसूस करते हैं। मैं कहूँगी को महसूस किया जा सकता है और बांटा भी जा कि प्रेम को महसूस करने के लिए व्यक्ति के पास सकता है किसी अन्य से इसका कुछ लेना देना हृदय होना आवश्यक है। परन्तु यह हृदय आप नहीं। दूसरे लोग आपको प्रेम करते हैं या नहीं किस प्रकार प्राप्त कर सकते है ? यह आपके करने इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । ये अहसास तो की चीज नहीं है, सभी कुछ मौजूद हैं तो इसका आपके अन्दर मौजूद है, आपके अन्दर यह गहनता वरदान तो आपको पहले ही दिया जा चुका है-ये है और इसका आप आनन्द लेते हैं। ये सबके आपके पास है तथा उस प्रेम को आप महसूस कर सामर्थ्य पर निर्भर करता है। सभी में यह प्रचुर सकते हैं। ये अत्यन्त आनन्ददायी एवम् शान्ति मात्रा में विद्यमान है कभी कभी आपको लगता है कि आपने इसे खो दिया, कभी आपको लगता है प्रेम की अपनी ही खूबियां होती हैं और इसकी कि आपने इसे पा लिया, परन्तु यह तो सदा सर्वदा गुरु पूजा के लिए आए इतने अधिक अधिक अनुयायी होंगे। 1 प्रदायक है। एक खूबी यह है कि बह प्रेम को समझती है। इसे विद्यमान है । शब्दों,विचारों में नहीं समझा जा सकता। यह तो इसी प्रकार प्रेम का स्रोत भी शाश्वत है। आप अन्तर में समझा जाता है। प्रेम का अनुभव अन्दर इसकी गहनता को नाप नहीं सकते। ऐसा करना होता है और यह बात अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है इस कठिन है । ये सभी मानवीय अभिव्यक्तियों से परे है महत्वपूर्ण भाग को व्यक्ति ने महसूस करना है कि और आपकी सूझ बूझ को दर्शाता है प्रेम की प्रेम को केंवल महसूस किया जा सकता है इसके आपकी सूझ बूझ को, जिसमें कोई शब्द नहीं होते, विषय में आप बातचीत नहीं कर सकते इसका जिसकी व्याख्या नहीं की जा सकती, स्वतः ही आप दिखावा नहीं कर सकते। यह तो अन्त स्थित है, जान जाते हैं कि मेरे अन्तस में प्रेम का यह गुण है और अपने अन्दर मैं इस प्रेम का आनन्द ले सकता इसे महसूस कर सकते हैं। सितम्बर अवटूबर, 2004 न्य लसष्ी ै। ये अद्वितीय उपहार है जो बहुत कम मनुष्यों अन्तरनिहित है कि यह कार्य करती है अपनी को प्राप्त है पशुओं से भी आप देखते हैं कि लोगों अभिव्यक्ति करती है। प्रकाश की तरह से अभिव्यक्त को प्रेग है। परन्तु वह प्रेम गहन नहीं है, वो होती है। ऐसे लोगों को हम पहचान सकते हैं अर्थहीन है। हो सकता है कि इसका कोई उद्देश्य क्योंकि वे पूर्णतः प्रबुद्ध होते हैं उनमें प्रकाश होता हो परन्तु यह मानवीय नहीं है अत इसमें मानवीय हैं और उस प्रकाश के माध्यम से वे पूरे विश्व को प्रेम के सीन्दर्य का अभाव है, मानवीय प्रेम की देखते हैं। ऐसा करना उनके लिए अत्यन्त पावन साझ -बूझ की कमी है । प्रेम की व्याख्या या वर्णन शब्दों में करना आसान नही है इसे तो आप अपने अन्दर ही लिए प्रेम है। अपने माता पिता के लिए भी हमारे और सहज होता है। स्वाभाविक रूप से हमारे अन्दर अपने बच्चों के महसूस कर सकते हैं। एक बार जब आप इस प्रेम अन्दर स्वामाविक प्रेम है। यहुत से लोगों के लिए को महसूस कर लेंगे तो आप महसूस कर पाएंगे हमारे अन्दर प्रेम है,परन्तु जिस प्रेम के विषय में मैं कि आप का गुरू कौन है और यह भी जान पाएंगे आपको बता रही हैं उस प्रेम से यह प्रेम भिन्न है । कि कौन आपको सिखा रहा है, कायल कर रहा है उस प्रेम का कुछ सम्बन्ध होता है,कोई अभिप्राय और एक विशेष प्रकार से जीना सिखा रहा है। ऐसा कर पाना सम्भव है । आप स्वयं को इसमें शब्दों में नहीं हो सकता। यही कारण है कि डुबो दें । यह देख कर अत्यन्त प्रसन्नता होती है कि कोई कारण नहीं है क्योंकि प्रेम तो प्रेम है। इस किस प्रकार लोग परस्पर प्रेम करते हैं। तत्पश्चात प्रकार से जीवन में गुरु अत्यन्त महत्वपूर्ण बन जाता সह प्रेम फैलता है। प्रेम से प्रेम बढ़ता है। किसी है हमारे यहां ऐसे लोग है जो अपने गुरु को प्रेम तव्यक्ति में यदि प्रेम है तो यह फैलता है । उसे करते हैं और जिन्हें अपने प्रेम का पावन ज्ञान है। होता है परन्तु यह नि.स्वार्थ प्रेम है । इसका वर्णन आपको अपने गुरु से प्रेम करना चाहिए उसके लिए किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है, प्रेम को प्रेम के इस पावन अवसर पर जिसमें हम सवीकार करने की आवश्यकता नहीं। यह तो उपस्थित हैं, यहां हम हृदय से एक दूसरे का आनन्द प्राप्त करने के लिए हैं। इस प्रेम का सागर. हमारे अन्दर है, इस सागर में हमें स्वयं को फैलेगा । और यही व्यक्ति को सीखना है-दूसरे रयविति में प्रेम को किस प्रकार देखना है। डुबोना गिर में यदि हम खो गए तो न प्रेम जो भी हो सहज घटित होने के कारण हम मात्र है। इस -सा लोग पहले से ही प्रेम मग्न हैं। हम सब प्रेम करते तो हमें कोई समस्या होगी और न ही कोई प्रश्न सरह है र प्रेस का आनन्द लेते हैं। यह बात हमारे जाएगा। हर चीज हमारी अपनी होगी, विना किसी मेहरों पर झलकती है कि अपने चरित्र में हम प्रेम मय है और यह प्रेम प्रत्यक्ष दिखाई देता हैं । यह व्यवस्था कर सकेंगे यही सहज' होना है। वाद-विवाद के. बिना किसी प्रश्न के हम सारी सहज तरीके से आपमें यदि यह प्रेम है.. बहुत बड़ा वरदान है कि आप लोग मानव हैं और मानवता कि यह सूझ बूझ, जिसके लिए हमें किसी अद्वितीय ढंग से लोगों तक पहुँचने वाला हृदय का महाविद्यालय, पाठशाला आदि में शिक्षा ग्रहण करने वह प्रेम कहां है। उस चीज को आप अपनी सम्पत्ति के लिए नहीं जाना पड़ता. यह तो इस प्रकार नहीं बना सकते । उसके लिए आप कोई दावा नहीं सितम्बर गोतन्य लहरो अवटूबर 2004 ्र छा इ कर सकते। यह तो है और कार्य करती है । स्वत यह कार्य करती है। हमने यहीं जानना है कि हम परन्तु अपने अन्दर महसूरा करना ही सबसे डा वही प्रेम हैं। वहीं प्रेम हमारे अंत स्थित है । ज्ञान हमें प्राप्त करना है इस बात का हमें ज्ञान प्राप्त करना है कि हम बादशाह है । इससे युझाने के लिए हम पानी पी तो नहीं सकते। आप हमारी समस्या का समाधान हो जाएगा क्योंकि ही को जल पीना होगा, आप ही को उसका स्वाद इससे आप हर चीज की व्याख्या कर सकते हैं, महसूर करना होगा, उसकी भावना को सहसूरा अपने आचरण की, अपनी असफलताओं की और करना होगा कि यह क्या करता है यह सब एक प्रेम के विषय में मैं लगातार बोल सकती हैँ । इसका कार्य हैं । पानी की तरह से, आप यदि प्यासे है तो पूर्ण हम आपको जल दे सकते हैं परन्तु आपकी प्यास शेष हर चीज की व्याख्या आप कर सकेगे यदि साथ है, अलग नहीं है। मेरे विचार से यह विषय आपके लिए बहुत आपमें उस प्रेम का वरदान है। गुरु भी यही है, आपके अंतस्थित प्रेम, जो अधिक सूक्ष्म नहीं था। आप सब उस प्रेम को एक दूसरों के साथ यह प्रेम बाटना चाहता है, दूसरों को सीमा तक तो समझ ही चुके हैं। गुझे आशा है कि यह प्रेम देना चाहता है। यह ऐसा ही है-प्रेम एवं यह प्रेम बढेगा, आप लोग इसमें उतरें आप सभी, और इसका आनन्द उठाएगें। आनन्द । परमात्मा आपको धन्य करें। शास्त्रों में 'ॐ' की व्याख्या सहजयोगी जानते हैं कि विश्व के सभी धर्मो बनाया गया था, फिर भी विश्व उन्हें ( परमात्मा) का लक्ष्य जीव और आत्मा तथा अआत्मा और परमात्मा पहचानता नही था। का मिलन है। यह साधक का अपनी आत्मा से (John I "जिस लक्ष्य के विषय में वेदों ने घोषणा की एकरूप होना है,आत्मा का परमात्मा में लीन हो जाना हैं। परमात्मा के स्नेहमय प्रेम के खेल को चह है,जो सभी तपस्याओं में निहित हैं और जिसको मुरली की तरह से साक्षी भाव से देखते हैं। सहस्रार में स्थापित होने पर जब कुण्डलिनी जीवन व्यतीत करता है, उसके विषय में संक्षिप्त में का भिलन अनहद् चक्र स्थित आत्मा से होता है तो बताऊगा। यह ॐ है।" मानवीय चेतना सर्वोच्च धर्म को महसूस करती है। यह आत्मा और शक्ति (परमात्मा तथा पावन आत्मा) भी चीज का अस्तित्व रहा, जो अस्तित्व में है और के सामंजस्य की अवस्था है। यह अवस्था अव्यक्त जिसका आज के बाद भी अस्तित्व रहेगा वंह ऊ. परमात्मा (परब्रह्म, परमात्मा, ब्रह्मा) तथा मानव के है। भूत, भविष्य और वर्तमान से भी परे अगर कुछ अंत स्थित परमात्मा (आत्मा) के बीच योग को भी है तो वह भी ऊँ है। बाहर जो भी कुछ हम देखते व्यक्त करती है, क्योंकि यह मूल अन्तर से पूर्व है वह ब्रह्मा है। हमारे अंतः स्थित आत्मा भी ब्रह्मा आने वाली योग की अवस्था को प्रतिबिम्बित करती है, यह आत्मा ऊ से एकरूप है।" है( सर्वशक्तिमान) परमात्मा और पावन आत्मा (HOLY SPIRIT) सदाशिव और आदिशक्ति में मूलतः दिखाई प्राप्त करने के लिए मनुष्य ब्रह्मचर्य और सेवा के "अक्षर ऊँ नश्वर है और वही ब्रह्माण्ड है। जिस र (मन्दोक्यउपनिषद) "आमीन (Amen) शब्द के अक्षर शुभचिन्तक, सच्चे, साक्षी परमात्मा की सृष्टि के आरम्भ है।" पड़ने वाला अन्तर स्पष्ट हो जाता है। लाओडीसी (Laodicea) के चर्च के देवदूत को इस योग (UNITY) की अभिव्यक्ति ब्रह्य तत्व, ॐ और आमीन में प्रकट होती है जो भगवान लिखे जीसस काइस्ट, परमात्मा के पुत्र, महाविष्णु (Lord (John. The Apocaly pse 3.14) ईसाइयत और ऊँ शब्द का सम्बन्ध सहज Vishnu) के रूप में अवतरित हुए। आइए देखते हैं कुण्डलिनी योग से जोड़ कर हम पावन अक्षरों में कि प्राचीन युगों में इसके विषय में क्या कहा निहित प्रतीकवाद को अनावरित कर सकते है:- अक्षर 'A" विराट के, आदि पुरुष के तमोगुण "सर्वप्रथम शब्द था, शब्द परमात्मा के पास था, का प्रतिनिधित्व करता है( उनके इच्छा भाव का) । शब्द ही परमात्मा था। इस प्रकार परमात्मा ने ब्रहमाण्डीय स्तर पर महाकाली ईश्वर की शक्ति है शुरुआत की, सभी कुछ उनके द्वारा बनाया गया। लघु ब्रह्माण्डीय स्तर पर यह ईड़ा नाडी है और कोई भी सृजित चीज उनके अतिरिक्त किसी बाई अनुकम्पी नाड़ी प्रणाली (Left Sympathetic ने नहीं बनाई। उन्हीं में जीवन था और जीवन ही Nervous System)। सूक्ष्म स्तर पर यह अणु का Jesus the Christ, the Son of God, Maha गया । मानव मात्र को ज्योतिमय नाभिक (nucleus) है । अक्षर U" आदि पुरुष के रजो गुण को व्यक्त (कार्यशीलता- activating. mood) मानव का प्रकाश था..| करने वाला सच्चा प्रकाश विश्व में आ रहा था। परमात्मा संसार में थे और संसार उन्हीं के द्वारा करता है ( सितम्बर - अवटूबर, 2004 चैतन्य लहरी ब्रह्माण्डीय स्तर पर यह हिरण्यगर्भ है जिसकी सर्वत्र और हर समय कार्य रत् है परन्तु शक्ति महासरस्वती है। लघु ब्रह्माण्डीय स्तर पर यह पिंगला नाड़ी है तथा दाई अनुकम्पी नाड़ी कर सकता। g uaa (Right Sympathetic nervous आत्म साक्षात्कार से पूर्व मनुष्य इसे महसूस नहीं उपनिषद हमें बताते है कि." ऊँ ही ब्रह्म है । ॐ एली System) तथा सूक्ष्म स्तर पर यह अणु को ही सभी कुछ है।" अब यह प्रश्न उठता है कि ऊँ विद्युतअणु है। अक्षर "M" आदि पुरुष के सत्व गुण को इसका उत्तर सहजयोग के माध्यम से दिया है। अभिव्यक्त करता है ( प्रकटन भाच-Revelation मानव ऊ किस प्रकार बनता है? Mood) जो ऊ को साक्षात् आदिपुरुष, विराट का रूप प्रदान करता है, जिसकी शक्ति महालक्ष्मी है) A", "U" और "M" को वास्तव में एकरूप कौन लघु ब्रह्माण्डीय स्तर पर यह सुषम्ना है अर्थात् करता है? जो कुण्डिलनी की जागृति प्राप्त कर पराअनुकम्पी नाड़ी प्रणाली (Para Sympathetic लेता है। Nervous System) तथा सूक्ष्म स्तर पर यह अणु की कर्षण शक्ति (Valency ) है। आदि कुण्डलिनी ( आदि कुण्डलिनी के रूप में आदि शक्ति-(HOLY SPIRIT) त्रिगुणात्मिका कहलाती है, जिनमें तीनो गुण हैं। वे A", "U" और में उन्होंने श्री गणेश का सृजन किया, श्री पार्वती "M" को एकरूप करती हैं। अतः परमेश्वरी शक्ति के रूप में उन्होंने श्री कार्तिकेय का सृजन के स्तर पर आदि कुण्डलिनी ऊँ का सृजन करती किया, श्री राधा के रूप में उन्होंनें श्री महाविष्णु हैं। प्रतीकाल्मक रूप में इसका अर्थ यह है कि का सृजन किया जो श्री जीज़स के रूप में माँ आदिशक्ति ही परमात्मा के पुत्र (Son of God) की मैरी की कोख से अवतरित हुए तथा परम माँ हैं । ॐ एक ध्वनि है और यह प्रतीक बास्तव में ऊर्जा की आदि गति-विधि का प्रतीक है। किया । पर ध्यान किस प्रकार किया जाए? श्रीमाताजी ने अक्षर "A", "U" और 'M" को एक रूप करके। कुण्डलनी स्वयं को किस प्रकार अभिव्यक्त करती है? सहजयोग के माध्यम से। आदि शक्ति के रूप में सर्वशक्तिमान पावनी माँ ने ऊँ का सृजन किया, श्री गौरी के रूप पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी जी के रूप में उन्होने सहजयोगियों की एक प्रजाति का सृजन, श्री माताजी कहती हैं कि "परमात्मा के महान् आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् चैतन्य रूप में इसकी अभिव्यकित को पराअनुकम्पी प्रणाली नाड़ी तंत्र के पुत्र (Great Son of God) के रूप में ही सहज माध्यम से महसूस किया जा सकता है। यह शक्ति योगियों का सृजन किया गया है। " शपथ (युवा शक्ति की) का समाधान कर सकें। हग ऐसा करने की शपथ लेते हैं। हम शपथ लेते हैं कि सहज योग के विषय पर बात करने की और विनम्रता-पूर्वक आत्मसाक्षात्कार देने के किसी भी अबसर को छोड़ेगे नहीं |। हम शपथ लेते हैं कि हम स्वयं के गुरु बनेंगे ताकि हमारे मुख से निकले शब्द आत्मसाक्षात्कारी गुरुओं के विश्वास से गूँजें और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने तथा विश्वनिर्मला धर्म में स्वतंत्र जीवन अपनाने की प्रेरणा दे। साधकों को हम शपथ लेते हैं कि अपने अंत्त निहित भय का सामना करेंगे, श्रीमाताजी से स्वंय का सामना करने तथा सहजयोग प्रसार करने के साहस की याचना करेंगे ह१ हम शपथ लेते हैं कि हम अपना अधिक से अधिक समय युवा शक्ति के भाई-बहनों के साथ विताएंगे, उन्नसे परमेश्वरी ज्ञान का आदान-प्रदान करेंगे और यदि आवश्यकता हुई तो उनकी रक्षा करेंगे। हम शपथ लेते हैं कि अपने अहँ और प्रतिअह ৪। पथ लेते है कि ध्यान धारणा करते हुए पर काबू पाने के लिए तथा पूर्ण विश्वास बनाए श्री गणेश की पूजा द्वारा, उनसे सुरक्षा की याचना रखने के लिए हम समर्पित होंगे। करके तथा अपने मूलाधार में स्थापित होने का निमन्त्रण उन्हें देते हुए हम अपनी अवोधिता की निष्ठापूर्वक हम अपनी परमेश्वरी मों से प्रार्थना करेंगे हम शपथ लेले हैं कि पूर्ण समर्पित, विनम्र कि वे हमें अपनी वास्तचिकता की पहचान प्रदान समाज के अनन्त प्रलोभनों से रक्षा करेंगे । हम शपथ लेते हैं कि हमारे चित्त में आत्मा के करें तथा हमें आशीवाद दें कि इस नव वर्ष में अपनी प्रकाश को ज्योतित होने से रोकने वाली संसारिक शपथ को पूर्ण करने के मार्ग में आने वाली बाधाओं बाधाओ से मुक्ति प्राप्त करेगे। जिस प्रकार श्रीमाताजी ने कवेला में सहस्रार आशा है कि नव वर्ष में एक नई शक्तिशाली युवा पूजा वर्ष 2000 के समय युवा-शक्ति से कहा था शक्ति सेना के उदभव का आरम्भ होगा, ऐसी युवा कि विचक्षण चित्त विकसित करें ताकि यह हमारे शक्ति के उदभव का जो अपने बच्चों के रूप में अंतस में दिव्य शक्ति का वाहक (Vector) बने और चुनने के लिए परमेश्वरी माँ के प्रति हृदय से हमारे सम्मुख मुँहबाए खड़ी विश्व की समस्याओं अनुगृहीत हो। एवं दुर्बलताओं पर हम विजय प्राप्त कर सकें। हमें 1 संगीत अकादमी का शुभारम्भ वैतरणा ( भारत)-01.01.2003 (परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी जी का प्रवचन) हिन्दी रूपान्तर मुझे खेद है कि मुझे हिन्दी भाषा में बोलना माँ या पिता या परिवार से भी मिल सकता है। तो पड़ा क्योंकि मेरे पिताजी के विषय में किसी अन्य इस प्रकार मैनें मानव को वैसे समझा जैसे वो आज भाषा में बोल पाना अत्यन्त कठिन है, यद्यपि वे स्वयं है। सहजयोग में आने के पश्चात्, शनैः-शनैः अंग्रेजी भाषा के प्रकाण्ड विद्वान थे और अंग्रेजी में सर्वत्र में ऐसे बहुत से लोगों से मिली. भारत में बहुत कुछ पढ़ा करते थे। उनका अपना एक भी और बाहर भी। परन्तु उनमें से 99% लोगों में पुस्तकालय था,मैने भी वहीं अंग्रेजी सीखी थी क्योंकि सुधार हुआ। अभी तक भी 1% लोग वैसे ही लटक मेरा शिक्षा का माध्यम तो मराठी था हिन्दी और रहे हैं। अंग्रजी भाषा का मैने कभी अध्ययन नहीं किया। क्योंकि मुझे पढ़ने का शौक था और पिताजी के आपमें यदि अहॅँ है तो आपका कुछ नहीं किया जा मानव की सबसे बड़ी समस्या उसका अहॅ है। पुस्तकालय के कारण जो थोड़ी बहुत हिन्दी और सकता क्योंकि ऐसा व्यक्ति सोचता है कि "मैने अंग्रेजी भाषा मुझे आती है, मैनें सीखी । अब लोग कुछ महान् कार्य किया है जिसके कारण मुझमें यह कहते हैं कि मैं बहुत अच्छी हिन्दी और अंग्रेजी अहॅँ है।" ऐसे लोग किसी की सराहना नहीं कर बोलती हूँ। इस पर मुझे आश्चर्य होता है क्योंकि सकते, प्रेम की तो बात ही बहुत दूर है । अहँ का मेरे लिए तो ये दोनों विदेशी भाषाएं थी। मैट्रिक की परीक्षा भी जब मैनें पास की तो मेरे पास एक छोटी सी पुस्तक अंग्रेजी की थी और यह भरा हुआ है, विदेशों में भी मैनें बहुत अहँ देखा माध्यमिक विज्ञान ( Inter Science) में भी एक परन्तु वो लोग कम से कम इतना तो जानते हैं कि छोटी सी पुस्तक मेरे पास थी। चिकित्सा महाविद्यालय अहॅ है और इसका सामना करना है। परन्तु इस में तो भाषा का कोई प्रश्न ही न था, परन्तु मैं बहुत देश में मैं समझ नहीं पाती, लोग ऐसे कार्य करते हैं कुछ पढ़ा करती थी। अतः मैं आप सब लोगों को जिनसे उनमें अहँ विकसित होता है, फिर भी वह भी राय दूंगी कि खूब पढ़ा करो। परन्तु मूर्खतापूर्ण सोचते हैं कि वो बिल्कुल ठीक हैं। पुस्तक न पढ़ कर अच्छी सुप्रसिद्ध पुस्तकों को पढ़ें। इसी प्रकार से मैने भाषा ज्ञान विकसित हमारे पास एक महानतम् उपलब्धि है और वो है किया, इसमें कुशलता पाई। पुस्तकों को पढ़ करके मैं यह जान पाई कि संगीतकारों को चाहिए कि सहजयोग अपनाएं। मानवीय असफलताओं का क्या कारण है मैं नहीं उन्हें चाहिए कि ध्यान-धारण करें। कोई संगीतज्ञ जानती थी कि मनुष्यों में ये कमियाँ थीं, इनका मुझे यदि धन लोलुप है तो आप कुछ नहीं कर सकते। ज्ञान न था, मैं तो इन सब चीजों से परे थी । पुस्तकें उसे या तो संगीत लोलुप होना चाहिए या ध्यान पढ़ने के बाद ही मैं यह जान पाई कि मनुष्यों में लोलुप । ऐसे लोग जो धन लोलुप होते हैं वो कभी कुछ कमियाँ भी हैं, हो सकता है इनका कारण अपना मूल्य नहीं समझ सकते क्योंकि यदि आपके उनका अहॅ या कुप्रशिक्षण रहा हो। यह कुप्रशिक्षण पास संगीत है संगीत की प्रतिभा है तो फिर क्यों अर्थ यह है कि आप केवल स्वयं से प्रेम करते हैं और अपना कोई अंत आप नहीं देखते। भारत में सभी देशों की अपनी-अपनी समस्याएं हैं, परन्तु हमारा संगीत । संगीतकार नहीं संगीत । अतः सितम्बर चैतन्य लहरी 10 अक्टूबर 2004 आपको पैसे की चिन्ता होनी चाहिए? चाहे जितना पैसा आप उन्हें दे दें, वे कभी सन्तुष्ट नहीं होते। लिए उसके प्रस्ताव (Essays)मैं लिखा करती थी। गैने ऐसे बहुत से महान संगीतज्ञ देखे हैं जिन्हें न ' तो कभी धन की लालसा थी और न ही सत्ता की। तुम लिख सकते हों?" परन्तु उसने अध्यापकों को परन्तु आज भी हमारे यहां ऐसे संगीतकार है जो कभी नहीं बताया कि उसके प्रस्ताव में लिखा करती धुर-्धर हैं फिर भी अत्यन्त विनम्र हैं, वो सदैव यही थी। परन्तु अचानक उसमें भाषाएं सीखने की कहेंगे, "हमें अभी बहुत कुछ सीखना है, बहुत कुछ इच्छा जागृत हुई-मराठी समझना है।" अतः बाबा मामा तथा अपने पिता की मूर्ति को अच्छा ज्ञान था क्योंकि मेरी माँ भी गणितज्ञ यहा देख कर मैं अत्यन्त द्रवीभूत एवं प्रभावित हुई। थी, परन्तु अचानक उसने भाषाओं का भी ज्ञान इसलिए नहीं कि वे मेरे भाई या पिता थे परन्तु इसलिए प्राप्त कर लिया! वह इतना कुशल था कि मैं कि वे अत्यन्त-अत्यन्त महान् मानव थे और उनकी अपनी कविताएं ठीक करने के लिए उसे दिया महानता ने मेरे हृदय को छू लिया । बाबा में यह गुण करती थी। उर्दू, हिन्दी, अंग्रेजी और मराठी भाषा के था कि वह अत्यन्त प्रेममय और क्षमाशील व्यक्ति था। शब्दों का उसे अच्छा ज्ञान था। वह मुझे बताया अत्यन्त विनम्र एवं प्रेममय ।शोहरत की उसने कभी करता था कि, "मराठी भाषा बहुत अच्छी है, किसी चिन्ता नहीं की और न ही उसने कभी यह सोचा कि की गलतियाँ यदि आपने खोजनी हैं तो मराठी आरम्भ में वह बहुत निकम्मा था, स्कूल अध्यापक उससे कहते, "इतने अच्छे प्रस्ताव क्या हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी। आश्चर्य की बात थी कि गणित का उसे बड़ा बह कीन से पद पर है। उसका विनम्र स्वभाव अत्यन्त सर्वोत्तम है, इसके माध्यम से आप उसे उन गलतियों स्वाभाविक और अत्यन्त मधुर था। बचपन से ही वह मेरे साथ रहा इसलिए मैं उसे पहचान सकी। उसके बहुत से दिलचस्प शब्द भी बताए, मैने कहा, "बाबा मन में किसी के प्रति दुभावना न थी, न ही उसने किसी तुमने मराठी कब पढ़ी? उसने कहा 'अभी मुझे को नीचा दिखाना चाहा, हमेशा उसने शून्य बिन्दु पर इसका पता लगा है।" रहना चाहा। कोई यदि मुझे सताता तो वे अपनी पटुता से उसे कहीं अन्यत्र भेज देते,वह बहुत चतुर था। उसके स्वभाव के कारण सभी लोग उससे प्रेम करते उराने यह समझ लिया था कि इन धूत्तो को काबू थे कभी उसने दिखावा करने की कोशिश नहीं करना मेरे वश कि बात नहीं है, अतः वह अत्यन्त के बारे में बता सकते हैं उसने मुझे मराठी के तो उसका सारा ज्ञान अन्तरजात था और की,कभी नहीं। अत्यन्त सहज व्यक्तित, अत्यन्त सहज आदतें, उसने सदा लोगों को समझाने की कोशिश की कि वे किस प्रकार का जीवन व्यतीत करें बिना चतुराई से इनसे निपटता था और यह बात निश्चित कर लेता था कि ऐसे लोग इधर-उधर हो जाएं। वह जानता था कि दिखावा करने वाले लोग कौन हैं और उन्हें बताए, मैं नहीं जानती कि किस प्रकार वह ये उनके बारे में मुझे बताया करता था "यह व्यक्ति अत्यन्त दिखावेबाज है,ये दूसरों पर रौब जमाने का प्रयत्न करेगा जबकि ये कुछ भी नहीं जानते।" कविता उनके हृदय का सर्वोत्तम गुण था. वे सुन्दर कविताऍ लिखा सब कुछ कर पाया। अत: उसके प्रेम और लगन के कारण हमारे पास अब बहुत से संगीतज्ञ हैं, बहुत से लोग हैं सहज योग के लिए बाबा ने और मेरे पिताजी ने जो कार्य किया उसके लिए मैं उनके प्रति कृतज्ञ हू । करता थे। परमात्मा आपको धन्य करें। दिवाली पूजा लॉस एंजलिस, 9 नवम्बर, 2003 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी जी का प्रवचन आपके हृदयों का प्रकाश जब तो घटित हो ही गया है। अंत িे सामूहिक रूप से निकलता है तो विश्व के उचित दिशा में चलने के आपको यह बात भी समझनी चाहिए कि हमारे भाग्य का भी पथ- प्रदर्शन एवं देखभाल हों रहा है। आप आशीर्वादित लोग हैं, इसके विषय में कोई सन्देह नहीं हैं। हमें छोटी-छोटी चीजों और तुच्छ मामलों के विषय में हैं परन्तु समस्याएं भी हैं, जैसे सब लोग कहते चिंतित नहीं होना चाहिए। आप देखेंगे की सभी हैं, परन्तु हमारे लिए कोई समस्या नहीं है क्योंकि कुछ भली भांति कार्यन्वित होगा, यदि आप इसे हमारे सम्मुख अधेरा बिल्कुल नहीं हैं,कहीं भी हम अपनी नियति के भरोसे छोड़ देंगे ।आपकी नियति अंधेरा नहीं देखते,हम केवल प्रकाश, प्रकाश, प्रकाश अत्यंत उच्च एवं अत्यन्त महान् है। अपनी नियति लिए महान् प्रकाश का सृजन करता हैं। आज गहान् आनन्द का दिन है,जो भी लोग इसमें भाग लेगे वो भी इस महान आनन्द को फैला रहे देखते हैं। फिर किस चीज की कमी हैं ? कमी है के साथ आप बहुत आगे बढ़ेगे। हमारी सच्चाई की। हमें स्वयं के प्रति निष्कपट होना है क्योंकि, हमारा प्रेम एवं आनन्द उधार लिया आप जीवन के उच्चतम एवं श्रेष्ठतम् मार्ग पर दिवाली पर आज आप सबसे यह वचन है कि नहीं हैं। इसका उद्गम स्रोत से है और यह पहुँचेगे बह रहा है, बह रहा है,बह रहा है। अतः उसको करने के लिए सत्य होगा कि जो भी मैं कहती हैं मैरा कहा हुआ एक-एक शब्द यह प्रमाणित जागृत किया जाना आवश्यक है ताकि वह प्रेम वह घटित होता है। आपकी जो भी छोटी-छोटी बहता रहे और इष्यां, प्रतिद्वंद भाव आदि हमारे समस्याएं हैं सभी समाप्त हो जाएंगीं यह परमेश्वरी तुच्छ दुर्गुण इस प्रेम के प्रवाह में बह जाएं। यह के सन्देश है, आपको तूच्छ चीजों के लिए, धन के द्र्ग बह सकते हैं यदि आपका हदय प्रेम से परिपूर्ण हो। आज प्रेम के उस प्रकाश को फैलाने आपका कार्य नहीं हैं। आपकी नियति इसे कार्यन्वित 1 लिए,नौकरियों के लिए चिंतित नहीं होना। यह का दिन है ताकि हर मनुष्य प्रकाश एवं प्रेम को करेगी। आपको वचन दिया जाता है कि आपकी महसूस कर सके और अपनी छोटी-छोटी समस्याओं देखभाल की जाएगी। मुझे आशा है कि आप इस को भूल सके। मुझे प्रसन्नता है कि आप लोगों को कोई मग्न हो जाएंगे| तचन पर विश्वास करेगे और पूरी तरह से आनन्द हृदय से मैं आप सबको अत्यन्त प्रसन्नता एवं सभागार मिल सका। सौभाग्य से हमें यह प्राप्त हुआ है, इसके विषय में लोग बहुत चिंतित थे । यह स्मृद्धिमय दिवाली का आशीर्वाद देती हैं। आपका हार्दिक धन्यवाद परम पूज्य श्रीमाताजी का सहजयोगियों को आदेश (सहज योग सभी शारीरिक एवं अन्य विकारों को दूर करता है) चक्रों के विषय में हमेशा सावधान रहना अत्यन्त तरीके हैं। हमारी परमेश्वरी मौं पावनता का सार तत्व आवश्यक है। सदैव चकों को बाह्य बाधाओं और हैं। उनके चरण-स्पर्श करके लोगों को महान् पकड़ से मुक्त रखना चाहिए । नमक डले पानी में प्रसन्नता मिलती है। परन्तु लोगों की अंत स्थित बाध नियमित रूप से पैर डाल कर बैठना इसके लिए ओ के कारण माँ को कष्ट हो सकता है। अत्यन्त लाभदायक है। शारीरिक तथा मानसिक विकार उत्पन्न करने वाली बाधाएं प्रायः आँखों और है और बड़े इसके बदले में आशीर्वाद देते हैं यही भोजन के माध्यम से प्रवेश करती हैं। इन चीजों पर विशेष ध्यान दिया जाना आवश्यक है। चक जब अन्य लोगों से बिल्कुल भिन्न है और उन्हें इसकी खुलते हैं तो उन पर विराजमान् देवी-देवता जागृत कोई आवश्यकता नहीं। किसी को चरण सेवा के हो जाते हैं तथा सहज-योगियों की सहायता लिए यदि वह कहती हैं तो इसलिए कि उस व्यक्ति करते हैं । रात को सोने से पूर्व बन्धन लेना भी के चक्रों को स्वच्छ कर सकें, अपने व्यक्तिगत बाघाओं से रक्षा करता है। भारत में बुजुर्गों की चरण सेवा करने की रीति भावना माँ के प्रति भी दिखाई जाती है जबकि वे आनन्द के लिए वे ऐसा नहीं करतीं। अतः सभी को भक्त सदैव देवता को प्रसन्न रखना चाहता यह बात भली भांति समझ लेनी चाहिए कि उनकी है। हमारी माँ इतनी दयालु हैं कि वे अपने बच्चों आज्ञा के बिना उनके चरण-कमलों को स्पर्श नहीं को प्रसन्न देखने मात्र से तथा सहज-योग में उन्हें करना है। बढ़ता हुआ देख करे ही प्रसन्न हो जाती हैं। सहज-योगियों की समस्याओं को दूर करने के अभी आत्मसाक्षात्कार नहीं मिला तो हमें चाहिए कि लिए वे भिन्न स्थानों और देशों में जा-जा कर अपने चक्रो को स्वच्छ करने के लिए. कुण्डलिनी उनसे मिलती हैं । सहज-योगियों को भी चाहिए उठाने के लिए. बन्धन लेने के लिए. सन्तुलन प्राप्ति कि वे उतने ही संवेदनशील बनें और जब-जब भी के लिए. बायां-दायां उठाने के लिए. प्रतीकाल्मक श्रीमाताजी उनसे मिलती हैं वह उन्हें अपनी रूप से हिलाए जाने वाले, हाथों का उपयोग न उन्नति दिखाएं। हर समय अपनी समस्याएं ही न करें यह सारा कार्य चित्त से भी उतनी ही अच्छी बताते रहें। निःसन्देह उनके आदेशों के अनुसार तरह से किया जा सकता है। श्रीमाताजी साक्षात् चल कर ही सहजयोगी विश्व के सबसे आनन्दित जब किसी सभागार या जन कार्यक्रम के स्थान पर लोग हो सकेगे। जब हम नए साधकों के बीच में होते हैं,जिन्हें में पहुँचे तो भाग-भाग कर द्वार पर इकट्डे होने का माँ के लिए प्रेम का अहसास होना स्वाभाविक कोई लाभ नहीं । सभी लोगों को चाहिए कि उनके हैं। उनका मौन इस प्रेम की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति आने से पूर्व अपने स्थान ग्रहण कर लें और सभागार हैं,क्योंकि वे हृदय के सूक्ष्माति-सूक्ष्म भाव को भी में उनके प्रवेश करते ही सम्मानपूर्वक खड़े होकर, समझती हैं। बिना आज्ञा के उनके चरण-स्पर्श हाथ जोड़कर उनका स्वागत करें। माला पहनाने से करने के लिए भाग कर आगे जाना या उनका पूर्व उनकी आज्ञा ली जानी आवश्यक है। अपने ध्यानकर्षण करने का प्रयत्न करना, बिना कहे आगमन के पश्चात् जब वे कुशल क्षेम पूछती हैं तो बोलना तथा उनके निवास पर जा कर उनसे प्रायः इस बात की आज्ञा देती हैं। यदि कोई मिलना, हृदय की प्रेम अभिव्यक्ति के अवांछित समस्या हो तो इस समय संक्षिप्त रूप में उसके बारे सितम्बर चैतन्य लहरी अवटूपर, 2004 १3 में बताया जा सकता है और यदि तुरन्त वे समस्या कदम है। समर्पण का अर्थ है यह स्वीकार करना का समाधान नहीं सुझातीं तो इस पर बल नहीं कि श्रीमाताजीं सर्वोपरि हैं तथा इस ब्रह्माण्ड की सृजनकर्ता। वो जानती हैं कि हमारे लिए सर्वोत्तम इशारा करता है कि उन्होंने समस्या को सुन लिया क्या है और उनके मुँह से निकले हुए शब्द प्रणव है और शीध्र ही उसका कोई-न-कोई समाधान की अभिव्यक्ति हैं । समर्पण का अर्थ है अपने पूर्वानुभवों, गुरुओं तथा किताबी ज्ञान को भूल दिया जाना चाहिए। उनका मौन इस बात की ओर निकल आएगा। उनकी विनम्रता, सुगमता से उन तक पहुँच जाना तथा निष्ठा पूर्वक उनकी शिक्षाओं को अपना पाना, सभी के साथ उनका सम्मानमय व्यवहार लेना। सभी समस्याओं को अहम् के माध्यम से लोग गलत समझ बैठते हैं। उनकी उपस्थिति में सुलझाने के स्थान पर श्री माता जी पर छोड़ देना सभी मान-मर्यादाओं और आचार संहिता का पालन ही समर्पण है समर्पण की सबसे सहज विधि श्री किया जाना तथा उनके प्रति विनम्र, सम्मानमय, माता जी की जीवन शैली और उनके गुणों का सावधान तथा संवदनशील होना अत्यन्त आवश्यक अनुकरण करना है। है सभी देवी देवता हमेशा उनकी सेवा में उपस्थित होते हैं और उनके प्रति जरा सा भी अनादर वे व्यक्ति हमेशा अपने से प्रश्न कर सकता है," क्या बर्दाश्त नहीं करते। उनकी उपस्थिति में अपनी श्रीमाताजी भी ऐसे ही आचरण करतीं जैसे मैं कर विनम्रता एवं प्रेम के कारण देवी देवता कुछ सीमा रहा हूँ?" उन्हें याद रखते हुए और ये सोचते हुए तक अपने क्रोध को रोकते हैं। परन्तु एक सीमा से आगे वे गतिशील हो उठते हैं ऐसी स्थिति में सजा शक्तियों को दूर रखने में हमारी पथ-प्रदर्शक-शक्ति प्रलोभन,उत्तेजना,तनाव या निराशा के क्षणों में की इन परिस्थितियों में वो क्या करतीं. नकारात्मक से बचा नहीं जा सकता। ज्योही वे सभागार में तथा हमारा सम्बल होनी चाहिए। प्रवेश करती हैं तो सभी प्रकार की व्यक्तिगत बातचीत रोक दी जानी चाहिए और उनकी उपस्थिति से एक जुट उनकी नकारत्मकता से निरन्तर संघर्ष में ये बातें बिल्कुल नहीं होनी चाहिए । उनके प्रवचन आवश्यक है नकारत्मकता जन्मजात भी हो सकती के दौरान किसी भी प्रकार की गड़बड़ी नहीं होनी है, जो पूर्वजन्मों के कर्मफल के परिणाम स्वरूप चाहिए। उन्हें किसी भी प्रकार की व्याख्या, सुझाव सूक्षम रूप से हमारे अन्त स्थित है। या टिपण्णी की जरूरत नहीं होती। समर्पण के बिना श्रद्धा नहीं हो सकती। समर्पण नकारात्मकता का सामना कर पड़ सकता है। के मार्ग में अहम् और प्रतिअहम् दो बाधाएं हैं एक पश्चिमी सहजयोगी ने बडी सच्चाई पूर्वक कहा बाह्य नकारत्मकता से एक रूप हो जाती है। यदि है," मैं अपने अहम् को देखता हूँ और मुस्कराता इसे काबू न किया जाए तो यह श्रीमाता जी के शुभ हैं। मुझे अपने आप से दुर रखने के लिए तुम कौन प्रभाव को भी गौण कर देती है। अतः आत्मसाक्षात्कार कौन सी चालाकियां नहीं करोगे?" अहम् और प्राप्त करने के बाद भी आवश्यक है कि व्यक्ति न प्रतिअहम् को श्री माताजी के श्री चरणों में समर्पित तो कुगुरुओं के पास जाए और न ही उनके द्विज बने लोगों के लिए अहम् और प्रति अहम् इसके साथ साथ दिनचर्या में भी हमें बाह्य अवसर प्राप्त होते ही अन्तःस्थित नकारत्मकता कारना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के लिए आवश्यक साहित्य को पढ़े। नकारात्मक वाद विवाद तथा सितम्बर ইसन्य लहरी 14 अक्टूबर 2004 ३० हि नकारात्मक लोगों से दूर रहने में ही भलाई है। में उदारता को बढ़ावा दे सकता है। इन गुणों को किसी भी मन्दिर मे प्रवेश करने से पूर्व उसकी अपने अन्दर उत्पन्न करने के प्रयास सहायक हो सकते हैं। जो कुछ कहा गया है उसके अतिरिक्त परमेश्वरी माँ का स्थान हमारे हृदय में होना श्री माताजी द्वारा बोए गए सहजयोग के बीज चाहिए । सदैव उनको स्मरण करने से या निर्विचारिता अंकुरित होंगे और उचित वातावरण में विशाल वृक्षों की स्थिति बनाए रखने से दुनियावी चीजों से के रूप में उन्नत होंगे श्रीमाताजी अपनी सर्वव्यापी विरक्ति का दृष्टिकोण विकसित होगा अपने नाम शक्तियों द्वारा उनकी रक्षा करती है परन्तु मनुष्यों को प्रतिदिन जूते मारने से अन्तःस्थित सूक्ष्म को आवश्यक वातावरण की व्यवस्था करनी होती नकारात्मकता दूर हो सकती है। नकारात्मक लोगों है। व्यक्ति को दी गई चयन की स्वतन्त्रता का को बन्धन देना और उनके नाम को जूते मारना विवेक पूर्ण उपयोग करना होगा और श्री माता जी ( Shoe Beating) उन्हें आपसे दूर रख सकता है द्वारा दिखाए गए मार्ग पर निरन्तर चलते रहना होगा। सर्वशक्तिमान परमात्मा तुम्हें स्वीकार करने की आलोचना करना या उनकी शिकायत करने की की प्रतिक्षा कर रहे हैं परमात्मा तक न पहुँच पाने अपेक्षा उनकी गलतियों को अनदेखा करना व्यक्ति वाले लोगों को स्वयं को ही दोष देना होगा। चैतन्य लहरियाँ देखी जानी आवश्यक हैं। तथा उन्हें सुधार भी सकता है। दूसरों की गलतियों गुरु पूर्णिमा सहजयोग एक अभिनव अविष्कार" 1.6.1972 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन वास्तविक जो चीज स्थित है, जो है ही वह धर्म की ओर मुड़ता है और धर्म की ओर जब उसका अविष्कार कैसे होता है? जैसे कि कोलम्बस मुड़ता है तब भी वह बाहर ही खोजता है। हिन्दुस्तान खोजने के लिए चल पड़ा था तब क्या हिन्दुस्तान नहीं था? यदि नहीं होता तो खोज खोजता है, इसलिए अपने से मनुष्य भागता है। हर किस चीज की कर रहा था। सहजयोग तो है ही समय अपने से भागता है दो मिनट अपने साथ नहीं कारण यह है कि जो वो खुद है स्वयं है वो पहले ही से है। इसका पता सिर्फ अभी लगा है। बैठ पाता। उसको अगर दो मिनट अपने साथ बैठने सहजयोग, ये परम -तत्व का अपना तरीका है। को कहों तो वो कहता है प्रभु ये क्या मेरे लिए ये यह एक ही मार्ग है, मानव जाति को उत्क्रान्ति सजा हो गई! जिसको आजकल कहते हैं। आदमी Evolution) के उस आयाम में, उस (Dimension) अपने से इतना क्यों उलझा हुआ है? सोचने की में पहुँचाने का एक तरीका है, एक व्यवस्था है, बात है कि मनुष्य अपने से इतना क्यों जोर से भागा जिससे मानव उच्च-चेतना से परिचित हो जाए, चला जा रहा है? क्योंकि चो अपने से अपरिचित है, उस चेतना से आत्मसात हो जाए जिसके सहारे ये अपने सौन्दर्य से, अपने वैभव से, अपने ज्ञान से और सारा संसार,सारी सृष्टि और मानव का हृदय भी अपने प्रेम से अपरिचित आनन्द की खोज बाहर की चल रहा है। बहुत कुछ इसके बारे में लिखा गया और करते हुए दौड़ रहा है। आनन्द बाहर है नहीं, पुरातन कालों से ही खोज होती रही, मनुष्य यह अन्दर है, आपमें है, आप स्वयं आनन्द स्वरूप खोज कुछ रहा ही है हर समय, चाहे वो पैसे में हैं। आप परमात्मा स्वरूप हैं ऐसा सब लोग कहते खोज ले, चाहे वो सत्ता में खोज ले, चाहे वो प्रेम में हैं। सिर्फ बातें करने से यह बात पूरी नहीं होने खोज ले, बो किसी न किसी खोज की ओर दौड़ रहा है। लेकिन उस खोज के पीछे में कौन सी आपको कहें कि आप निराकार को खोजें, चाहे प्यास है वो शायद बो जानता नहीं। इसके पीछे में साकार को खोजें तो सब बातें ही बातें तो हो गईं, सिर्फ आनन्द की खोज है, आनन्द की खोज में बो हजारों बातें हो गई, करोड़ों किताबें लिखी गई, न सोचता है कि बहुत सी गर सम्पत्ति तो उस आनन्द में लय हो सकता है। लेकिन ऐसे खोज का कोई अन्त नहीं! मनुष्य जो कुछ भी भी देश अनेक हैं जिन्होंने सम्पत्ति में बहुत कुछ खोजता हैं अपने मनसे वो मन के दायरे में वाली है। मराठी में कहते हैं कि.। चाहे हम जाने कितने ही जीवन बर्बाद हो गए, इन्सान की इकट्ढा कर ले प्रगति कर ली, बहुत कुछ पा लिया है और अत्यन्त Limitations में खोजता है। मन से परे की जो बात दुखी हैं। आनन्द तो दूर रहा, हजारों लोग वहों है वो इस मन से समझने वाली है नहीं। अब जैसा आत्महत्याएं कर रहे हैं! सारी खोज के पीछे में मेरा भाषण है ये भी आपके लिए सिर्फ बातचीत ही आनन्द की प्यास आपको घसीटे चली जा रही है है, ये भी एक बातचीत ही है क्योंकि इस बातचीत किसी अज्ञात की ओर, सारी ही खोजों में ढूँढते-ढूँढ़ते से आप उस परमात्मा को नहीं जानेंगे। जितनी भी मैं इस पर बात करती जाऊँ उतना ही आपके मन जब मनुष्य हार जाता है, और कहीं मिलता नहीं तो सितम्बर चैतन्य लहरी 16 अवटूबर, 2004 पर इसका बोझा बढ़ता जाएगा। अगर मैं कहूं कि उसे खोज नहीं पाए थे गर कोलम्बस हिन्दुस्तान कोई बोझा न रखो तो उसका भी बोझा बनता नहीं खोज पाया था तो इसका मतलब ये नहीं कि जाएगा। इसी तरह की व्यवस्था परमात्मा ने हमारे वो कुछ कम था। और बाद में जिन लोगों ने उसे अन्दर कर दी है कि मन से हम जो भी करेंगे वह खोज लिया है वो उन्होंने उसे कोई नीचे गिराने के बोझिल हो जाएगा और उस बोझे के नीचे हम दबै लिए नहीं खोजा। ये सामूहिक खोज है। आप भी हुए उड़ नहीं सकते वहाँ पर जहाँ पर हमें जाना जब उसे अलग-अलग होकर सोचते हैं तब इस तरह से बात बहुतों के दिमाग में आती है कि लेकिन नव निर्माण की बात मैं आप से करने माताजी कुछ अलग ही बात कह रही हैं नहीं। मैं वाली हूँ सिर्फ बात ही नहीं इसका अविष्कार, जो इन सब खोजों की खोज का ही पता आपको दे खोज निकाला है। उत्क्रान्ति के मार्ग में ऐसा नहीं रही हूँ। आज तक अत्यन्त कष्ट उठाकर के न होता रहा है कि कोई प्राणी अति विशेष जाने कितने मानवों ने इस पर ध्यान दिया । Specialization में या विशेषज्ञ हो गया तो वो गिर Psychologists ने भी दिया, Biologists ने भी जाता है, वो खत्म हो जाता है, इसी तरह से मनुष्य दिया, बड़े बड़े Scientists ने भी दिया। वो भी एक का भी हुआ जा रहा है कि इतना ज्यादा आपस की हद तक जाकर के हार जाते हैं बहुत बहुत सन्त जो विरोध और Competiton चल रही है उससे और जो महन्त हो गए, Realized हो गए और मनुष्य ने भी अपने दिमाग को इतना ज्यादा विशेषज्ञ उन्होंने भी पा लिया लेकिन दे नहीं पाए । इसका कर लिया है कि वो फटा चला जा रहा है उसका कारण समय है। परमात्मा के लिए समय अनन्त दिमाग और एक अब नया तरह का मानव आने की है हम लोग उसे ऐसा सोचते हैं कि जो लोग पीछे जरूरत है जो मन से परे उस शक्ति को जान ले हो गए और जो लोग आगे हो गए और जो लोग है मैं ये है इसीलिए खोज आज तक अधूरी ही रही है। मर गए जो बड़े हो गए। कौन मरा पूछना भी स्पन्दन करता है। उस शक्ति को जानने के चाहती हैं? कोई मरता ही नहीं। जितने भी मरते बारे में कितनी भी बातें आप करिए और कितना ही हैं परलोक में बैठते हैं और वापिस यहाँ लौट आते इस पर प्रयत्न करें आप वहाँ तक नहीं पहुँच हैं। प्राणी मात्र से कुछ कुछ लोग मनुष्य हो जाते सकते। ये बात निःसन्देह है। ऐसे तो सभी ने यही हैं लेकिन अधिकतर मनुष्य परलोक से वापिस यहाँ लिखा है जो मैं कह रही हूँ। कोई भी ऐसी विशेष पर और यहाँ से परलोक! यही आना जाना लगा बात तो कह नहीं रही हैँ। नानक जी को आप पढ़ें, हुआ है। कोई मरता हैं तो हो सकता है कि आपमें कबीर दास जी को आप पढ़ें, आप वशिष्ठ को पढ़ं, से जो आज यहाँ बैठे हुए हैं ये भी जन्म जन्मातर गुरुओं के गुरु जनक के बारे में आप पढ़ें, अपने की खोज लिए हुए आज यहाँ पहुँचे हुए हैं और देश में छोड़ों, बाहर के देशों में भी हजारों लोगों को उसको पा सकते हैं । अगर आप पा सकतें हैं तो जो पार हो चुके हैं हजारों वर्षो से ऐसा ही लिखते उसमें इतना वाद विवाद क्यों? एक साधारण सी आए हैं यही लिखते आए हैं जो मैं कह रही हूँ कि बात है, मुझे बड़ी बचकाना सी लगती हैं, बहुत ही जो पाना है अकस्मात अन्दर होता है लेकिन वो बचकाना सी बात है कि लोग हर एक चीज का भी बेचारे कहते ही रह गए क्योंकि शायद वो भी राजकरण बना लेते हैं। एक माँ खाना खाने को दे जो इस मन को भी चलाता है और इस हृदय का 1 सितम्बर चैतन्य लहरी 17 अवदूबर, 2004 रही हैं उसका भी राजकरण बना लेते हैं, कैसे कार्य मिल जाएं। उसमें परमात्मा को कोई भी Interest चलेगा? ये राजकरण नहीं हैं। ये तथ्य है, ये सत्य नहीं है। है। एक बहुत बड़ी खोज है। यहाँ पर जो लोग Realized लोग बैठे हैं वो समझ रहे हैं, मैं क्या दी है परम तत्व को परम ही देने में Interest है। कह रही हैं। धर्म की खोज में मनुष्य परलोक ही ये बात आप लिख डालिए। और इस पर भी लोग तक पहुँच पाया है. अभी तक परम तक नहीं पहुँच सब बात करते हैं कि परम तत्व जो है वो पाया। और जो परम तक पहुँचे भी थे वो परम को कुण्डलिनीयोग से पाया जाता है, ऐसा भी बहुत नीचे नहीं ला सके और लोगों के लिए ये बात सत्य लोग लिखकर के गए। लेकिन कुण्डलिनी योग से है। जैसे आपके अनेक जन्म हुए हैं मेरे भी अनेक कोई सिद्धि पाई जा सकती है ऐसी बात कहीं भी जन्म हुए हैं। इन सब बड़े-बड़े खोजने वालों से लिखी नहीं गई है। जिन्होंने सिद्धियाँ पाई है वो मेरा भी बहुत नजदीकी संबंध रहा है । और वो लोग नहीं लिखते कि कुण्डलिनी से सिद्धियाँ आती हैं, जितने मेरे अपने हैं शायद आप लोगों के नहीं हैं। कभी भी नहीं। कुण्डलिनी आपकी माँ हैं, आपके जो लोग बड़े-बड़े झण्डे लगाते हैं कि हम मुसलमान अन्दर बैठी हुई हैं, आपको पुनर्जन्म देने के लिए । हैं, हिन्दु हैं, ये हैं, वो है, वो सिर्फ एक वकीली वो आपको सिर्फ पुनर्जन्म देंगी, आपको सिद्धियाँ लेकर के झूठमूठ से आए हैं। उनके पास कोई भी देकर के परलोक में फैंकने वाली वो मूर्ख माँ नहीं guarantee नही है कि पिछले जन्म में हो सकता हैं। जितनी समझ आपके पास है उससे कहीं है जो हिन्दू है वो मुसलमान रहा हो, जो मुसलमान अधिक समझदार है वो, कहीं अधिक प्रेममय हैं। वो है वो इसाई रहा हो। जब जन्म जन्मातर की बात आपको गलत जगह में असत्य में ढकेलने वाली है, जब अनन्त की बात है, तो सोचना भी उसी दुष्ट माँ नहीं हैं । कुृण्डलिनी के योग से जब तक Level पर, उसी स्तर पर होगा वो पर ऐसा है कि परमतत्व की पहचान नहीं होती है तब तक वो जो कुछ परम है वो जड़ नही, जो कुछ परम तत्व कुण्डलिनीयोग नहीं है। और वही सहजयोग है। है वो जड़ नहीं। जो कुछ कठिन है वो जो सूक्ष्म है वो जड़ नहीं। इस बात को आप ठीक परमात्मा ने हमारे अन्दर की है, वो भी एक समझने से समझ लें। वो जड़ में प्रकाशित हो सकता है की बात है जब बच्चा माँ के पेट में आता है तो हमने परमात्मा को समझने में ही गलती कर और इसकी व्यवस्था कितनी खुबसूरती से नहीं, gross किन्तु परम जड में Interested नहीं है, उसमें कोई जड़-तत्व से उसका सारा मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार दिलचस्पी नहीं है। जैसे कि बहुत से लोग मुझे वो सब बना देता है लेकिन उसके अन्दर जब बताते हैं कि वे एक साधू-सन्त थे वो परमात्मा से प्रकाश आता है वो माथे के तालू में से जिसे कि कुछ माँग रहे थे और इनको परमात्मा ने दे दिया। Fontanelle Bone अंग्रेजी में कहते हैं और नीचे दिया होगा, लेकिन परमात्मा ने नहीं दिया, ये मैं उतरता है और अपना Brain जिसका आकार बता सकती हैूँ । परमात्मा को इसमें कोई भी त्रिकोणाकार एक त्रिकोण के जैसा है उसमें से यही Interest नहीं है कि आपके इतने बच्चे पैदा शक्ति गुजरते वक्त तीन हिस्सों में बँट जाती है हो जाएं या आपको जमीन मिल जाए. आपको ये सब परमात्मा ने किस खूबी से किया है ये जानने घर मिल जाए, आपको दुनिया भर के ऐशो आराम के लिए यहाँ पर कोई डॉक्टर हो तो वो समझ सितम्बर - अक्टूबर 2004 चैतन्य लहरी 18 सकता है। इसी को हम Sympathetic और कह रही हूँ, कि सारा Sympathetic Nervous Parasympathetic Nervous System कहते हैं। System सुषुम्ना नाड़ी है जो कि बीचों-बीच है हमारे शरीर के अन्दर ही दो ऐसी शक्तियाँ विराजमान और उसकी पहचान एक है कि जब कुण्डलिनी हैं कि जिसके बारे में हम बहुत कुछ कम जानते हैं उठती है तो आँख की पुतलियाँ बड़ी हो जानी और जिसके बारे में हमें पता लगाने में बड़ी चाहिएं। ये तो साधारण बाहर की पहचान है किसी 1 दिक्कतें होती हैं खासकर के Parasympathetic भी Nervous System के बारे में। अपने योग शास्त्र में इसे सुषुम्ना, ईडा और पिंगला ऐसी दो नाडियां है तो पुतलियाँ "dilate" होनी चाहिएं। और बाहर बताई हैं। ईडा और पिंगला ये दोनों ही अपने शरीर भी हम आपको दिखा सकते हैं अगर आपकी नजर Sympathetic Nervous System का उद्भव खुली हुई हो तो क्योंकि आपको तो हर एक चीज करती हैं। माने उसका जड़तत्व जो है वो का कोई न कोई proof ही देना पड़ता है नहीं तो Sympathetic Nervous System है। अब ऐसा कुछ समझ में नहीं आती बातें। इसका भी एक समझ लें कि परमात्मा ये Petrol अपने सिर में यहाँ proof है कि गर आप हमारे किसी कार्यक्रम में से भर देते हैं और Petrol भरते वक्त वो कुछ ऐसी आएं तो आज ही आपको दिखा देंगे। कुण्डलिनी घटना घटित होती है कि प्रिज्म के अन्दर से का स्पन्दन भी आप देख सकते हैं। आप जानते हैं गुजरने वाले उनके किरण आपस में इस तरह से कि सबसे पहले त्रिकोणाकार अस्थि पर कभी भी आकर के और फिर मुड़ जाते हैं, जिसे Reflect कोई स्पन्दन होता नहीं। वो हम दिखा सकते होना कहते हैं। और फिर नीचे जाकर के उनकी आप गर देखें कि त्रिकोणाकार अस्थि में स्पन्दन ईडा और पिंगला, ऐसी दो नाड़ियाँ बनती हैं और होता है, फिर धीरे धीरे स्पन्दन ऊपर की ओर जो बराबर बीचों बीच शिखर पर से, बीचों बीच उठता है और इसके साथ-साथ बीच-बीच में उतरने वाले किरण, आपकी कुण्डलिनी बन करके किसी -किसी जगह ज्यादा स्पन्दित होता है। वही जो त्रिकोणाकार अस्थि, अपने मज्जा तन्तुओं के है नीचे बना हुआ है, उसमें वास करती है। इससे एक और इसको आप देख सकते हैं और उसकी प्रचीति बात तो जाहिर हो गई कि हमारी कुण्डलिनी जो देख सकते हैं। जब कुण्डलिनी सुषुम्ना से उठेगी है वो ऐसी जगह बैठी हुई है जिसका सम्बन्ध सेक्स तभी आप पार हो सकते हैं। लेकिन इसके लिए से कुछ नहीं है। अब आप गर किताबें पढ़े तो परमात्मा ने न जाने क्यों एक बड़ी जबरदस्त कुण्डलिनी शास्त्र पे तो आप सब जान जाइएगा कि condition लगा दी है। एक बड़ी भारी अटकल है ऐसा होता है, वैसा होता है, ये है, वो है। लेकिन इसमें, जो देना ही पड़ता है। वो यह कि कुण्डलिनी कुण्डलिनी को उठाने वाले, वो बहुत कुछ मुझे भी सुषुम्ना पर तभी आएगी जब परमात्मा का असीम मिले हैं और मैनें भी जाने हैं वो सब Sympathetic प्रेम उस आदमी में उतर पड़ेगा। जब तक वो प्रेम से आपको ले जाते हैं, सुषुम्ना से उठाते नहीं हैं। मनुष्य में उतरेगा नही, कुण्डलिनी उठने वाली नहीं उसकी एक पहचान है, आप में से गर कोई चाहे आप कुछ कर लें। वो नाराज हो सकती है, Doctor होगा तो समझ लेगा इस बात को जो मैं गुस्सा हो सकती है। लेकिन कुण्डलिनी कभी भी 'doctor" से आप पूछ ले कि जब para sympathetic nervous system activate होती अपने केन्द्र हैं। ये आपको दिखाया जा सकता सितम्बर - चैतन्य लहरी अक्टूबर, 2004 19 नहीं उठ सकती है जब तक वो असीम प्रेम सुषुम्ना से भरा गया था, उसका गेट बन्द हो गया। अब हम अलग हो गए, अब हमें लगा कि भई हम कोई के अन्दर जगह बनी हुई है, खास इसकी जगह जाी बनी हुई है, हमारे नाभि चक और अनहत् चक्र के हैं! अब अहंकार शुरु हुआ, हमें लगा कि हम हैं। अब यही है भागने का, अपने से भागने का कारण है क्योंकि हम जो हैं, हमको हम जानते ही नहीं कि हम क्या हैं। आप मेरी ओर इतना चित्त लगाकर के एक सीढ़ी है, उस जो सुन रहे हैं मैं आपकी ओर अपना चित्त नहीं सीढ़ी में और हममें कुछ अंतर है । क्या ? इस लगा सकती। मैं कहूँ आप अपनी ओर चित्त लगाएं अन्तर को आप किसी भी तरह से लॉघ नहीं पा रहे तो आप लगा ही नहीं सकते हैं क्योंकि आप बह है, उसमें कोई पुल नहीं है जिसको आप लांघकर गए हैं उस प्रेम में जो आप है। एक जो प्रतिहंकार जाएं। और ये दो सीढ़ियां बराबर ईडा और पिंगला है Super ego है. उस पर बोझे जितने भी हमारी नीचे जमीन पर लगी हुई हैं, Sympathetic ओर से बढ़ते जाते हैं, हर तरह के बोझे, उसमें आप Nervous System की Left और Right ये दोनों कह सकते हैं कि इस तरह के बोझे जिसमें हम ही जमीन पर लगी हुई हैं और बीच वाली अधान्तरी आप को सिखाते हैं ये करो, वो करो, ऐसा नहीं लटकी हुई है जो परम में पहुँचाती है। अब करना चाहिए, वैसा नहीं करना चाहिए, इधर नहीं Sympathetic Nervous System की जो दोनों जाना चाहिए. उधर नहीं जाना चाहिए, ये नहीं सीढ़ियाँ है, अब अगर कोई Psychologist हो तो खाना, वो नहीं खाना चाहिए, इस तरह की चीजें या मेरी बात समझ सकता है, वो एक जो Left Hand ऐसा कहें कि हम बड़े बड़े भाषण देते हैं लोगों को की तरफ से है, दाहिनी ओर है वो आपको पहुँचा कि आपको हिन्दुस्तानी बनना चाहिए, आपको जापानी देती है, Ego में, अपने अहंकार में, और जो Right बनना चाहिए, आपको इससे नफरत करना चाहिए, Hand Side में है वो आपको पहुँचा देती है आपके उससे नफरत करना चाहिए, हम हिन्दु हैं, हम Super ego में, प्रतिअहंकार में । ये दोनों मिलकर मुसलमान हैं, हम इसाई हैं, अनेक तरह के सब के हमारे माथे पर छा जाते हैं, जैसे कि कोई Conditionings जो हैं ये बोझ हैं उससे यह Super बीच में, एक बड़ी सी जगह बनी है। जब तक उसके अन्दर ये प्रेम उतरेगा नहीं तब तक सुषुम्ना से यह प्रवाह उठने वाला नहीं। जैसे समझ लीजिए कि दो सीढियाँ हैं और बीच में Balloon न हो! इस तरह से ऊपर आ जाते हैं ego दब जाता है। और जो अहंकार है वो ये कहता और आकर के इस जगह जहां हमारा तालू होता है नहीं इम तो ये है, हमें ये करना चाहिए, वो करना है उस पर आकर के दोनों मिल जाती हैं। कभी चाहिए। जो कहता है नहीं करना चाहिए वो तो कभी तो ये पूरे सारे सिर पर ही छा जाते हैं कभी Super ego है और जो कहता है करना चाहिए वो तो प्रतिअहंकार जबरदस्त होता है और कभी ego हैं। असल में हम न तो कुछ नहीं करते हैं 1 अहंकार। जो भी ज्यादा जबरदस्त होता है वो और न तो कुछ करते हैं। करने वाला तो कोई और हमारे दिमाग पर छाया हुआ है और आकर के वो ही है बेकार ही में बचकानापन है। करने वाला हमारे इस मार्ग को रोक देते हैं, बन्द कर देते हैं। अपना काम तो करता ही है और करेगा ही । लेकिन अब जो Petrol इमारे अन्दर Para Sympathetic यही जड़ता हमारे अन्दर दोनों है कि हम उस Nervous System से भरा गया था, जो कुण्डलिनी Petrol को इस्तेमाल करते हैं। इन दोनों ईडा और सितम्बर - चैतन्य लहरी अवटूबर, 2004 20 परमात्मा को पाने का अधिकारी है। ऐसा उन्होंने साफ-साफ कहा है। लेकिन कौन पढ़ता है उनको? कोई पढ़ता जो नहीं ना! प्रश्न तो ये है कि हम अब बीचोंबीच सुषुम्ना नाड़ी है। अब बहुत से लोग सभी को पढ़ते हैं और उसमें से उनको ज्यादा लोगों ने मुझसे ऐसा भी कहा कि माताजी आप तो पढ़ते हैं जिन्हें धर्म के बारे में कुछ मालूम ही नहीं। भी है तो थोड़ा बहुत मालूम है। जो हिन्दु कहलाते हैं उनको पहले लेकिन तुम तो गलत सीढ़ी पर चढ़ गए न. उससे आदिशंकराचार्य को पढना चाहिए । आदिशंकराचार्य ने ही तो हिन्दू धर्म की संस्थापना करी थी, फिर आदिशंकराचार्य को क्यों नहीं पढ़ते हैं ? दुनिया भर मेरी समझ में नहीं आता कि इसमें किसी से के लोगों को पढ़ते हैं, उनको क्यों नहीं आप पढ़ते? विरोध करके मुझे क्या करना है? मैं तो आपको उनको आप जानते क्यों नहीं? उनमें मुझमें जो बता रही हैँ कि आप गलत सीढ़ी पर चढ़ गए हैं। अन्तर है वो इतना ही है वो कहते थे बहुत ही सभी उतर आइए। मै तो बड़े बड़े गुरुजनों से करोड़ो में एक दो होते हैं मैं कहती हूँ करोड़ो में लाखों तो है ही ये आशावाद का अन्तर नहीं है क्या रहे हैं? कुछ करने से परमात्मा नहीं मिल यह समय का अन्तर है समा ऐसा है। कलियुग सकता। इन लोगों से कुछ करवाइए नहीं, ये करने का समा है ही बड़ा घनघोर युद्ध का समय है। धरने से परमात्मा मिल नहीं सकता। ये आपको मैं अन्धकार और प्रकाश का घनघोर युद्ध का समय पिंगला से अपने Sympathetic Nervous System से, इससे हम अपने को Conditioning कर लेते हैं, बोझे में डाल लेते हैं। इनके विरोध में बोलते हैं, उनके विरोध में बोलते और मालूम हैं। भाई मैं किसी के विरोध में नहीं बोल रही हूँ। अपने को बहुत तो उतारना पड़ेगा ही, जो बीच की सीढ़ी में तुम्हें चढ़ाना है। इसमें किससे मैं विरोध कर रही हूँ? मिलने जाती है, उनसे बात करती हैँ कि आप कर पत क्या बता रही हूँ, आप वशिष्ठ पढ़ें, नहीं तो चल रहा है। आपको पता नहीं क्योंकि आप तो आदिशंकराचार्य को पढें जो कि historical चीज मुझे ही देख रहें हैं। अपने से परे आप किसी को है। उनको पढ़ें, उन्होंने भी यही कहा है कि आप देख नहीं पा रहे लेकिन जो लोग Realized हैं वो परमात्मा को पाने के लिए कुछ कर नहीं सकते। जानते हैं कि कैसा कैसा जंग बाँधा गया है। लेकिन अन्तर है, उनमें और मुझमें जरा सा थोड़ा Negative और Positive forces दोनों अपना जोर सा फर्क है इतना ही अन्तर है कि उन्होंनें कहा बाँध रहे हैं । था कि परमात्मा को पाने के अधिकारी बहुत ही sympathetic का पूरा जोर है। Sympathetic कम हैं, इसलिए ठीक है कि कुछ भक्ति में रहें और Para Sympathetic को छुकर चली जा रही है कुछ अपने ऊपर में योग लगाकर अपने मन को और Sympathetic कितनी भी छुू ले, गर Para अनुशांसित करें लेकिन उन्होंनें नहीं कहा था कि Sympathetic अनन्त से एकाकार हो जाएगी तो अनुशासित हों, फिर चाहे वो किसी भी तरह का उसमें भरता ही र हो और वैसा भी मन जो विषयों के पीछे दौड़ता है खर्चा करें, गर पेट्रोल पम्प ही लगा हुआ है तो फिर और अपने को जिसे indulgence कहते हैं, दोनों क्या डरने का? ये सारे Sympathetic का प्रश्न है, ही मन इस कार्य के लिए व्यर्थ हैं ऐसा सुन्दर मन Sympathetic की जो Active Consciousness जो छोटे बच्चों जैसा निष्पाप हो, वो ही इस की side है, जहाँ से आप सारा काम करते है Sympathetic और para रहेगा। कितना भी आप Petrol सितम्बर चैतन्य लडरी 21 अवटूधर, 2004 Energy इस्तेमाल करते हैं. वो गर अति इस्तेमाल हमें आगे बढ़ना चाहिए। उस पर उनका चित्त. मेरा हो तो कैसर जैसा रोग हो जाता है। और जिस लड़का जो है वो ठीक हो जाए, मेरे बच्चे जो हैं वो तरफ में Super Ego होता है वो ज्यादा इस्तेमाल ठीक हो जाएं, मेरा पति जो है वो ठीक हो जाए । हो तो पागलपन आ जाता है। हम किसी को ठीक फिर कोई कहेगा, वो मेरे पैसे का मामला है ठीक ठाक नहीं करते हैं। यह भी कहना कि हम हो जाए! चित्त कहाँ है? अब आप Realized हो बीमारियों ठीक करते हैं एक तरह से गलत ही बात गए तो भी चित्त वहीं है जिसे आप छोड़कर आए है! हैं क्योंकि वो तो Para Sympathetic Nervous जिसने चैतन्य पर चित्त रखा है वो बहुत ऊँचा उठ System जो कि इन दोनो ही System को ठण्डा गया है आपके बीच में भी ऐसे लोग बैठे हुए हैं जो कर देती है अपने आप ही मनुष्य जो है वो ठीक हो पढ़े लिखे हैं, देवता स्वरूप है. यह लोग वन्दनीय हैं. जाता है। गर कोई पागलपन होगा तो चो भी ठीक हो जाएगा और कोई गर आपके अन्दर में Over जिनका Rebirth हुआ है। बेकार की बातें करने Activity से कैंसर जैसा रोग होगा तो वो भी ठीक वाले लोगों से झगड़ा करने की किसी को भी कोई हो जाएगा। कैसर का इलाज सिर्फ सहज योग है जरूरत नहीं। जिनको आना हो आए. नहीं आना है और कोई उसका इलाज संसार में नहीं है यह बात नहीं आएं। उनसे झगड़ा करने की इस पर वाद सिद्ध हो जाएगी हम जानते हैं थोड़े से ही दिन विवाद करने का समय है ही नहीं क्योंकि वो लोग में यह बात सिद्ध हो जाएगी और हमने बहुतों का वाद-विवाद ही करते रहेंगे । आदिशंकराचार्य ने इलाज भी जो किया है कैंसर का वो भी लोग यहाँ भी कहा था न कि निम्न कोटि के लोग, उनको तो बैठे हुए हैं, वो भी बता सकते हैं । तो भी, एक बात पहले और शुरु से ही कह अनुशासित करें और किसी तरह से अच्छे से रहें, रही हैं कि चित्त हमारा कहाँ है? चित्त क्या उस चोरी चकारी से बचे एक अच्छे सामाजिक घटक कैसर पे हैं जो इस शरीर को जर्जर किये हुए है बन कर रहें। किन्तु परम को पाने वाले लोग, परम जो कि जड़ हैं? हमारा चित्त गर चैतन्य पर है तो की ओर दृष्टि रखने वाले लोग, ऐसी चीजों से न्य की बात सोचनी चाहिए। जब तक हम सन्तुष्ट होने वाले नहीं । जब तक परम आपने पाया अपना चित्त चैतन्य की ओर नहीं रखेंगे तो जड़ भी नहीं आप को मेरे ऊपर भी बिल्कुल विश्वास नहीं हमें सताएगा सारा काम चैतन्य का है जड़ता का करना चाहिए। इस ढकोसलेबाजी की बिल्कुल कोई काम ही नहीं है। हगको इतनी आदत जड़ता जरूरत नहीं । किसी भी चीज आपको कोई भी की हो गई है कि मनु ी छोटी जड़ बातों से बताए आप कुछ विश्वास न करके पहले अपने चिपक जाता है, छोटी छोटी जड़ बातों से। जैसे मैं अन्दर पा लीजिए तभी आप मेरे ऊपर भी उपकार आपसे कहूँ कि एक स्त्री हमारे पास आती थी, करेंगे यहाँ कोई बाजार खोलना नहीं है, पैसा यही देवता हैं, इन्हीं को देवता कहना चाहिए ठीक है वो अपना किसी तरह से अपने मन को टी उनको Realization हो गया और वो काफी अच्छे कमाना नहीं है, माल कमाना नहीं है। सिर्फ मुझे से देने वगैरा लग गई। लेकिन Realization का यहाँ मनुष्य का परिवर्तन करने का है इस जन्म में नहीं हुआ तो अगले जन्म में देख लेगे। तो. हमें अनन्त में ही रहने की आदत सी है। लेकिन अब भी मतलब भी यह तो नहीं कि आप व्यस्त हो गए, आपका पुनर्जन्म हो गया आप निरक्षर हो गए। अब चैतन्य लहरी सितम्बर - अक्टूबर 2004 22 यह सोच लेना चाहिए कि जो कोई मर चुके हैं वो के साथ कैसा भी खिलवाड हो गया हो। खिलवाड मर चुके हैं। उनकी बातें करके मत घबराइये। बहुत हो चुके हैं, पर मैं कहती है कि किसी की भी चित्त को अपनी ओर रखें। शायद उनमें से आप कुण्डलिनी में खराबी आ गई हो, उसपर लोग मुझे एक हों जिन्होंने कुछ कुछ लिख दिया था हो कहते हैं कि आप विरोध कर रहें हैं! भई पागलपन सकता है कि आप ही वो बड़े भारी लोग हों की बात है! एक माँ है जो बच्चे की कोई चीज जिन्होंने बहुत कुछ लिखा हो और आज भी यहाँ बिगड़ी देखती है तो उससे वो बताती है तो किसी जन्म लेकर आए हैं, अपना दावा लेने आए हैं जो का विरोध नहीं करती है। तुम्हारी अबोधिता में, हो चुका सो बीत गया। सहजयोग में जो साधक होता है उसे कुछ भी उसको हम बैठे हुए हैं उसे ठीक करने के लिए । नहीं करना चाहिए। जो डूब रहा है पानी में वो कुछ लेकिन पहले ही इस तरह की बात सोच लेना ये न करे तो अच्छा है। लेकिन बाकी के तैराक लोग कौन सी आर्तता है? यह कौन सी माँ है? उसे बचाते हैं और उसे उठाते हैं। यही साधारण सादगी में, गर तुम्हारा कुछ बिगाड़ हो जाए, तो गुरु का आज, गुरु पूर्णिमा का आज दिवस है तरह से सहजयोग आप समझ लें। जो लोग अपने और सहजयोग का पूर्णवर्णन विषद रूप से करना में उतर गए हैं, जो लोग पार हो गए हैं, जो अपने इतने छोटे समय में सम्भव नहीं। मेरा आज विचार अन्दर एकाकार अपनी शक्तियों से हो गए हैं, वही था कि काफी विषय पर मैं कह सकूंगी लेकिन मैं सब कुछ करेंगे। आप शान्त बैठिएगा जो अभी तक जानती हैँ कि यह विषय अत्यन्त विषद सागर की पार नहीं हुए हैं। आपके सूत्र में आकर के वो आप तरह, और अनेक ध्यान की क्लास में मैंने लोगों को को प्यार देंगे, आपके सूत्र में आकर वो आपके बताया है। इतना ही नहीं जो लोग Realized है, चकों को ठीक करेंगे क्योंकि आप अभी अपने चकों उस स्तर पर आ गए हैं कि इस बात को समझें को जानते ही नहीं। जब आप पार हो जाएंगे तब क्योंकि उनके हाथ से वो प्रवाह निकल रहा है, वो आप मेरी बात जानिएगा कि हाँ यहाँ चक है, यह आनन्द लहरियाँ बह रही हैं. वो प्रेम की लहरियाँ चक्र घूम रहा है, वो चक चल रहा है, उनका ऐसा बह रही हैं जिससे वो समझ सकते हैं कि Collective Consciousness क्या है, सामूहिक चेतना क्या जिसे कहते हैं 'सामूहिक चेतना', उसका आभास है। इसको भी समझना चाहिए कि ये कौन सी चीज होगा पहले ही से नहीं नहीं करने वाले लोगों का बहुत से लोग आपमें ऐसे भी होंगे जो मेरी यह स्थान नहीं है और न ही उनके लिये यहाँ पर ओर हाथ करके बैठें तो आपके अन्दर ऐसा लगेगा कोई व्यवस्था की जा सकती है ऐसे लोग जो कि कि जैसे हाथ थरथरा रहें हैं, कंपकपा रहे हैं। आप है, चाहे वो कितने भी Condition में हों आपको ऐसा लगेगा और मुझसे लोग कहेंगे ये लेकिन जो सच्चाई चाहते हैं और जो चाहते हैं कि Vibrations आ रहे हैं। ये Vibrations नहीं हैं। वो हमारे अन्दर परिवर्तन हो जाए, वो सिर आँखो पर तो आप हमारे विरोध में हैं, आपमें कोई चीज हमारा हमारे। और मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस जन्म में विरोध कर रही है पूरा समय। ये जो हम प्यार ही उनको मिलेगा चाहे उनकी कै सी भी आपको दे रहे हैं उसके विरोध में थरथरा रहे हैं। ये Conditioning हो गई हो, चाहे उनकी कुण्डलिनी आप हमारे विरोध में खड़े हैं इस लिए आप थरथरा पत 1. चक्र है। तभी आपको Collective Conscious है अभी चैतन्य लहरी सिस्तम्बर - अव्दूबर, 2004 23 रहे हैं, वो Vibration नहीं हैं| और Vibration तो यह कहेंगे कि इतनी जल्दी कोई पार होता है? नही तभी हम मानते है जिस वक्त आपके सहस्रार का होते, बहुत से नहीं होते, चार चार साल से लोग चलना रुक जाए कबीर दास जी ने कहा है कि हमारे पास आ रहे हैं, बहुत बड़े-बड़े लोग हैं, कोई शिखर पर अनहद बाजोरे। शिखर पर अनहद् की तो बहुत भारी Minister Saheb है, आवाज आती है. माने हृदय में जो स्पन्दन है वैसी साहब हैं, कोई कुछ हैं ! नहीं होते तो नहीं होते, आवाज आने लगती है ये तो हुई जबतक टूटा हमें इससे क्या करना? हमें किसी से पैसा तो लेना नहीं, जब टूटने पर सारी ही आवाज टूटकरके, है नहीं कि आप हमें दो हजार दे दीजिए. हम पार सारी ही आवाज टूटकरके आप परमात्मा से एकाकार कर दें. Certificate दे देंगे! जो नहीं हुआ सो नहीं हो जाते हैं तब न कोई आवाज आती है, न कोई हुआ, जो हुआ सो हुआ। अभी हम अमेरिका गए थे चीज दिखाई देती है, न कोई चीज दृश्यमान होती वहाँ पर एक साहब बहुत बड़े राजा है वो कहीं के। है। बहुत से लोग कहते हैं कि हमें दिव्यदृष्टि है, वहाँ मिले, वो हमारे साथ थे बो हमसे कहते हैं ये हमें दिव्य फैलाना है। ये सब किसलिए? दृष्टि से क्या श्रीमाताजी जो आता है आप उसको पार करते क्या होता है? दृष्टि से क्या मिलने वाला हैं? दृष्टि हैं हमको नहीं करते हैं, हमने क्या किया? हमनें से ही गर सब कुछ मिलने वाला होता तो फिर कहा बेटे हम तुमसे कुछ कहेंगे नहीं क्योंकि तुम्हं खोज काहे की? इस दृष्टि से मिलने वाला चो नहीं दुख होगा। तुम धर्म पर इतना लेक्चर देते हो तुम और इस कान से सुनने वाला वो नहीं है। किन्तु कभी धर्म में उतरे हो क्या? यह रात दिन जो तुम इसको जानना है अन्दर से। जिसने उसे अन्दर से अपनी जान को मारे ले रहे हो वो किसके मारे ? कोई गवर्नर जाना है वही उसे समझ सकता है। दृष्टि से तो तुम जरा इसे छोड़ो, थोड़ा सा परमात्मा पर छोड़ो। बहुतों को दिखाई देते हैं, बड़े बड़े करिश्में दिखाई चार दिन बीत गए उसने कहा भई आज तो हम देते हैं, बड़े बड़े लोगों को चित्र दिखाई देते हैं। मुझे मान गए, हम India में गए तो सब लोगों ने हम से बहुत से लोग आकर बताते हैं कि उसको चमत्कार कहा कि तुम तो मईया एकदम पार हो गए और तुम हैं। मैं कहती हैं बेटे उससे परे रहो। यह सब हमारा कार्य करो। तुम हम को रुपया दो और ये परलोक, सब मरी हुई चीजें हैं। इससे परे परमात्मा करो।सबने हमें Certificate दिया! मैने कहा मेरे एक अनुभव है ये एक अनुभव है। इससे परे पास नहीं चलता बैटे क्या करूं? वो तो जो होएगा परमात्मा हैं इसे छोड़िए। यह सब कुछ छोड़कर सो होएगा इसमें किसी की चापलूसी. किसी की निराकार में जब आप एकाकार परमात्मा से होंगे Recommedation कुछ नहीं चाहिए। ये इतना तब इन सब चीजों का अर्थ बनेगा जो साकार बनी UItra modren है कि इस पर किसी का असर बैठी है। इस आनन्द लहरी से लोगों ने बहुतों को नहीं होगा। अब जो नहीं हुए वो नाराज हो जाते है ठीक भी किया, बीमारियाँ ठीक हुई। लेकिन जो और मेरे खिलाफ जाकर कुछ कुछ बोलने लग जाते सबसे बड़ी जो चीज हुई है. जिसका मुझे बहुत हैं। कुछ बोलें, अब हम क्या करें जो नहीं हो रहे आनन्द है, कि दस आदमी पार हो गए। सबने त्तो! हम तो चाहते हैं कि सबको हो, रात दिन मिलकर सामूहिक किया, पार हो गए। अब आप मेहनत कर रहे हैं कि आपको हो जाए। लेकिन 1 नहीं चलता। जो होगा सो होगा, जो नहीं होगा सो चैतन्य लहरी सितम्बर अवटूबर, 2004 24 आप नहीं होते हो तो हम क्या करें? आपकी कहते हैं हम लोग झूठे नहीं । इसको भगवान का रुकावट है । ये भी सोचना चाहिए कि किसी को नाम नहीं देते हैं। उन लोगों का ऐसा है कि उनको कहते हैं. किसी को नहीं कहते और सब लोग आप चिट्ठी लिख दीजिए तो वो आपको लिखकर कहते हैं कि हाँ हो गया, जितने भी खड़े हैं कहते भेजते हैं कि दस बजें उतने Time पर कोई आदमी हैं हाँ हो गया तो हो और गया सब लोग कहते आपके पास आकर कुछ कर जाएगा, आप आराम हैं कि इसका सहस्रार चल रहा है, मैंने कहा नहीं सब का ही चल रहा है। इसमें से कोई तो सत्य कुछ लगता है कि कुछ हुआ अपने अन्दर में और होगा बीमारी को ठीक करना सहज योग का आप ठीक भी हो गए। बहुत से लोग ठीक भी हुए कार्य नहीं। ये जान लेना चाहिए क्योंकि हुत से हैं लेकिन तो भी ठीक करने से केवल शरीर ही तो लोग ये कहते हैं उन्होंने भी ठीक किया, उन्होंने ठीक किया है, उससे परम तत्व तो किसी ने नहीं ठीक किया। किया होगा, कैसे किया होगा? पता पाया! परम तो मिला नहीं, ये शरीर तो यही नहीं! सहजयोग से सिर्फ कुण्डलिनी की जाग्रति छूट जाएगा और फिर यहाँ जाकर फिर यहीं आना और परमात्मा को पाने की ही बात है और कोई है! और जिन पर वो ऐसे प्रयोग कर रहे हैं वो ये नहीं है। और ये कार्य जो है इसका आप जड़ से भी नहीं जानते, बो भी अबोध हैं, वो भी उनका सम्बन्ध नहीं जोड़िए कभी भी इसका जड़ से बचकानापन है! सम्बन्ध जोड़ करके इसको जड़ में नहीं आप जान सकते। क्योंकि बीमारियों तो हजार तरह से ठीक इस्तेमाल कर रहे हैं वहीं कल उलट कर हमारे हो सकती हैं। आपने सुना होगा डेक्टर लैंग एक ऊपर आएंगे। मैं सोचती हूं Dr. Lang थोड़ा सा आदमी था, लन्दन में बहुत बड़ा डॉक्टर वो मर जानते थे, नहीं तो अपनी लडकी के अन्दर क्यों गया अकरमात, वो मर गया उसकी इच्छाएं अतृप्त नहीं घुसे? वो एक Soldier के अन्दर जाकर क्यों थीं। तो एक Soldier था वियतनाम में उसके घुसे? और Spirit का देह जो होता है उस पर ये Superego में वो घुस गया। उसको कहने लगे जड़ नहीं होता, इसलिए बहुत कुछ देख सकता है तुम London चलो मेरी लड़की के घर। वहाँ पहुँचे बनिस्वत हमारे। जिसको कि आप Para तो उन्होंने उनसे कहा उनको कहो कि मैं आया Psychology कहते हैं, जिसे कि आप आत्मा का हैँ तुम्हारे अन्दर। तो लड़के ने कहा इसका क्या आशीर्वाद कहते हैं, जो कृूदना होता है, जो चीखना विश्वास? तो उन्होंने उसको सब बताया, जो कुछ होता है, चिल्लाना होता है और सम्मोहन करना भी उनके बीच में गुप्तवार्ता, Secret हुए थे वो सब होता है सारा Spirit का काम है उसमें कुछ अच्छे बताए। उसको विश्वास हो गया उसने कहा तुम Spirit भी होते हैं कुछ Spirit बहुत ही फिर से मेरा Organisation शुरु करो, मैं तुम्हारी हैं वैसे Spirit भी हैं । इसमें राक्षस भी होते हैं, मदद करूंगा क्योंकि यहाँ परलोक में बहुत से महादुष्ट भी है । आप उन्हें आज देख नहीं रहे, हो डॉक्टर हैं जो Menifest करना चाहते हैं, जो सका तो बाद में आपको मैं दिखा भी दूंगी, जैसे अवतरित होना चाहते हैं। उनका बडा भारी आज मैं आपको कुण्डलिनी दिखा रही हूँ। ऐसा International Organisation है, सच्चे लोग हैं, समय आजाय तो मैं आपको ये भी दिखा दूंगी। से देखते रहना। और बराबर उसी वक्त आपको वो जानते नहीं हैं कि जिस Spirit को वो आज जैसे हम स] सितम्बर अक्टूबर, 2004 चैतन्य लहरी 25 लेकिन हैं। उनका वास्तव्य आप देख सकते हैं,उनका कहना चाहिए परलोक। उससे भी उत्थान हो रहे असर आप देख सकते हैं, उनका असर आप देख हैं,वही उत्थान हमारे सहजयोग में सबसे ज्यादा हो सकते है और हर एक धर्म में उनके बारे में लिखा रहे हैं । और जिस आदमी पर ऐसा कुछ हो गया हो है। हिन्दुओं है सो है। जब आप positive की बात करेंगे तो सहजयोग में परमात्मा को पाए। इसमें दोष हमारा Negative आपको दिखाना ही पड़ेगा कि ये positive नहीं है। सच बात है इसमें हमारा कोई भी दोष है नहीं। दोष न आपका है न हमारा है । थोड़ा आपके में सुर-आसुरों की बात लिखी है । जो उसके लिए बहुत कठिन हो जाता है कि वो और ये Negative है जो धर्म और अधर्म की बात नही कर सकता वो हवाई बात है सिर्फ धर्म कर्मों का जरूर होगा नहीं तो आप ऐसी जगह क्यों की बात करने से कैसे होगा?धर्म भी है और अधर्म गए जहाँ पर जाकर के आप पर ऐसा दोष लग भी है। उसकी पूरी सारी रेखा है, जो धर्म है वो गया? पूरी सतर्कता में स्वयं ही अपने आप होने अधर्म नहीं हो सकता, जो अधर्म है वो धर्म नहीं हो वाला जीवन का विकास यही सहजयोग है। भूत-प्रेत Spint, सन्त भी, इनसे आप परम नहीं पा सकते वो सकता। इसका Confussion कलियुग की वजह मरे हुए लोग हैं। परम सिर्फ जिन्दा में ही आ से कर दिया, लेकिन ऐसी बात नहीं है, जो Negative सकता है मरे हुए में गर जाता है तो क्यों वो यहाँ है Negative है जो positive है वो positive है । आ रहे हैं हमारे ऊपर में, वहाँ क्यों नहीं बैठतें? जो Negative चीज़़ है उसको समझ लेना चाहिए। जिन्दा होना चाहिए। आदमी जब तक जिन्दा नहीं Negative का मतलब है मरी हुई, Dead होगा, सतर्क नहीं होगा, उसकी चेतना जब तक sympathetic में बैठी हुई। वो है, और उस पूरी तरह से जागृत नहीं होगी तब तक उसके Negative का असर बहुत ज्यादा उस जगह जब अन्दर सहजयोग नहीं उतर सकता। पूर्ण जागृत होता है जहाँ पर मनुष्य जड़ होता है जैसे बम्बई अवस्था में जो चीज आप पाते हैं वो ही परम है। शहर में हम लोग बहुत जड़ हो गए हैं। रात दिन समाधि में लोग सोचते हैं कि आँखें ऊपर हो गई पैसों की ढनकार, Election के झण्डे! इन सब गुरु हो गए हम। दो-दो घण्टे बैठे हुए हैं! यह चीजों में इतना चित्त उलझा रहता है रात दिन सहजयोग से नहीं होने वाला। ये सब आपका यह पढ़ पढ़ कर और सुन सुनकर मनुष्य का चित्त Subconscious है जिसे कि मैं कहती हैं मृतलोक, ही नहीं जाता है वहाँ पर। Enquiry ही नहीं है, जिसमें आप उतर रहे हैं। इसका कोई भी आपको खोज ही नहीं है! अरे हम क्यों जी रहे है! क्या चिरस्थायी फायदा नहीं है। जिस मनुष्य को परम यही सब करने के लिए? उनके गुण्डे ने बहाँ पाना है उसको सोच लेना है कि जो मैं सतर्कता में, मारा,उन्होंने जाकर उनकी बुराई करी, उन्होंने पूरी स्वतंत्रता में पाऊँगा वही मैं पाऊँगा| पूरी जाके उनको ऐसा किया! क्या यही सब करने के स्वतंत्रता आपको यहाँ तक किसी भी तरह का 1 लिए हम संसार में आए हैं? मनुष्य का चयन गलत भक्ति भाव मेरे प्रति न हो, बिल्कुल नहीं होना है। इस जड़ तत्व से बहुत बच कर रहिए। लेकिन चाहिए। जैसे एक साधारण सौम्य स्त्री होती है वैसे ये जड़ तत्व तो आपका अपना घिराव है। इसके ही मैं हूँ। घर गृहस्थी की एक साधारण स्त्री हैं, अलावा भी collective subconscious है। जिसे ऐसा ही समझ लीजिए कुछ विशेष हूँ ये सोचना सितम्बर अक्टूबर. 2004 चैत्तन्य लहरी 26 ऐसा ही सोचकर आइए। ये स्वत्रता भी जिम्मेदारी भी इतनी बढ़ जाती है। उसका सारा होनी चाहिए। तभी आप पाएंगे चाहे आप दस हों, व्यक्तित्व ही दूसरा हो जाता है। लेकिन आदिकाल चाहे आप एक हों, हमारे लिए काफी है इसके से ही लोग कहते आए हैं कि माँ से बढ़कर गुरु ही नहीं । number से नही होता है हालांकि number भी, कोई नहीं है। गुरु उसी को मानिए जो आपसे बड़ा बढ़ाना होगा Number जरूर बढ़ाना होगा इसमें हो, बड़ा हो, जो आपसे बड़ा परमात्मा हो । कोई शंका नहीं । कार्य जोरों में गर हो जाए तो रामदासस्वामी ने गुरु के बारे में ऐसा कहा था कि हो सकता है। हालांकि परम उपर से बहुत अलग गुरु उसे मानिए जो स्वयं तों पारस है ही दूसरों को है। एक नव निर्माण के लिए एक नई चेतना के छूते ही सोना नहीं बना देता उसे, पर पारस बना लिए, एक नए तरह के सानव की इसमें व्यवस्था की देता है। जैसा खुद है वैसा ही दूसरों को बना देता हुई है इस Para Sympathetic में एक प्रेम है है और इसीलिए ये मॉं स्वरूप चीज हैं माँ बच्चों एक ज्ञान है, एक सीन्दर्य शैली। होनी ही पड़ेगी और होके ही रहेगी। आप लोगों ने इतनी देर तक मेरा भाषण सुना इच्छा रही कि ये प्रेम और ये ज्ञान एक मां के अन्दर है, गुरु पूर्णिमा के दिन मुझे यही कहने का है कि से आपको मिले। अभी हम लोग ध्यान में जाएंगे इस जन्म में मैं गुरु हो गई, और तो किसी जन्म में इसके बाद में आप लोग आर्तता से इसमें बैठे। ये कार्य नहीं किया था पहली मरतबा गुरु का अपने विचार, अपने विरोध, इनको छोड़ दें थोड़ी देर कार्य करना पड़ा। शायद वो भी मों को ही गुरु के लिए। इसलिए कि आपको अपना मंगल और होना पड़ता है। ये कलियुग का मामला है इसलिए कल्याण करना है अपने साथ अच्छाई है, अपने नितांत परमात्मा की जो भी शक्ति है ये किसी माँ साथ बुराई है, किसी भी एक चीज को पकड़े बैठे से बहे, उसी की करुणा और उसी के प्रेम हुए हो तो उसे छोड़ दीजिए थोड़ी देर के लिए । हमें में कुण्डलिनी को संजोया जाए और उस शिखर आपसे कुछ लेना देना नहीं और आपकी स्वतंत्रता तक पहुँचा दिया जाए जहाँ पर कि वो अपने दोलन हमें छीननी नहीं। किसी भी तरह किसी भी कीमत में अपने आनन्द में अपने स्थान में विराजित हो! पर मैं आपकी स्वतंत्रता छीनती नहीं । जैसे लोग ये आज हमारे ही भाग्य में है, इसीलिए इस जन्म पागल जैसे किसी के पीछे दौडते हैं, हजारों रुपया में ये गुरु का स्थान स्वीकृत किया है। माँ गुरु बन उन्हें दे देते हैं, चीजें दे देते हैं! अरे चीजें लेते जाए, ऐसा कही होना बड़ा कठिन है क्योंकि माँ किसलिए हो? गुरु वो जो आपसे कुछ नहीं लेता अत्यन्त कोमल होती है। गुरु तो मार भी देगा, पीट गुरु को आप क्या देगे? आप मुझे कुछ नहीं दे भी देगा, डाट भी देगा, लेकिन माँ एक भी कठिन शब्द बोलते वक्त उसके हृदय में कचोटती है, को आश्चर्य होगा कि आप मुझे Vibrations भी तकलीफ होती है- बहुत ही, और जब वो देखती नहीं दे सकते! है कि मेरे बच्चे कितनी साधना से आए हुए है और इनको किस तरह से इनको संजोकर के, संभाल थी, वो कहने लगी माताजी में आपको Vibration करके, प्यार से उस किनारे ले जाना है।तब उसकी दूँ?" मैने कहा देखें दो तो सही। जब वो Vibration मनुष्य की रचना में होती है। बच्चों के गौरव- में गौरव मानती है । इसलिए इस जन्म में शायद परमात्मा की यही के हृदय सकते, आप मुझे Vibration भी नहीं दे सकते, आप एक दिन मेरे पैर में चोट लगी तो एक Doctor सितम्बर अवटूबर, 2004 चैतन्य लहरी 27 ।ु. देने लगी तो चोट की जगह से इतनी तेज उनको परम मांगिएगा | आज की गुरु पूर्णिमा के दिन मेरा Vibration आईं कि वो खुद ही ध्यान में चली गई। आपको बहुत आशीर्वाद है और जितने Realized कहने लगी इस जगह से Vibrations आ रहे हैं। लोग हैं उनको विशेष रूप से, और उनसे मेरी और मेरी जो चोट थी वो एकदम से हल्की होने विनती है कि जैसे अपने पाया है दूसरों को देने का लगी। गुरु कुछ भी न ले सके, जो पूरा प्रयत्न करें। शिखर पर बैठा हुआ है वो नीचे की ओर बहेगा, उसकी ओर कोई नहीं, कुछ नहीं बहेगा|। सब है वो लोग आपसे नाराज हो जाएं, गुस्से हो जाएं, चो जो आपसे उनको भी समझाने का प्रयत्न करें। हो सकता मारेग, पीटेंगे। ये कुछ भी नहीं हैं, इससे कहीं समझ की बात है। गर मैं किसी से कहती हैं बेटे मुझे मत दो अधिक हमने सहा है, इसलिए कुछ भी नहीं। क्योंकि ये सब ढकोसला है, आप मुझे कुछ भी नहीं वाद विवाद करेंगे, आपको नहीं मानेगे, कोई ह्ज दे सकते। उल्टे आप कुछ माँगते हैं मुझसे तो सारा नहीं। छोड़ दीजिए उन्हें, जो आपको मानते हैं का सारा व्यक्तित्व जो है वो खौल उठता है, अन्दर उन्हीं पर यह अनुग्रह करें। यहाँ तो केवल देना है, से सारी की सारी प्रभावशाली शक्तियाँ दौड़ने लग आपको देना है, आप दे सकते हैं, सब मेरे बच्चे । जाती हैं कि किस तरह से प्रेम से मैं इस बच्चे को मेरा प्यार संसार में सब जगह पहुँचे और धर घर सम्हालू! जरा सा कोई कुछ मांग ही ले! परम, दीप जलें। बहुत बहुत आप सबका धन्यवाद श हर श्वास में सहजयोग को प्रस्थापित करना होगा परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन 25.11.1975 मुंबई शान्ति के लिए सहजयोग का उद्भव हुआ है। आपको मालूम है कि ऐसे है जो पार हो गए सो पार लेकिन मानव के लिए सहजयोग को समझ लेना हो गए, उनको कोई छूता नहीं। कभी वो पकड़ते इतना आसान नहीं, क्योंकि कोई बहुत बड़ी महान नहीं हैं। लेकिन उनकी पूर्वजन्म की बड़ी पुण्याई चीज एक दम सहज में मिल जाए तो उसका है। उनको भी सतर्क रहना चाहिए, इसे भूल नहीं महात्म्य, उसका आँकलन, उस शक्ति के लिए जाना चाहिए कि हमको पकड़ा नहीं तो हम कोई श्रद्धा, उसके लिए भक्ति, पूर्ण चित्त से उसको विशेष हो गए, कोई बात नहीं। Casual जिसे कहते अन्दर में तादात्म्य कराने के लिए मेहनत, इन सब हैं Casually सहजयोग के प्रति रहना हम लोगो चीजों की कमी रह जाती है । इसीलिए आप को बड़ा मॅहगा पडेगा। ऑँख के प्रति आप गर देखिएगा कि अधिकतर सहजयोगी बड़े Casual होते हैं। पर दूसरे जो स्वामी लोग हैं जो आपको आँख, हाथ,पैर शरीर देखने वाला तो है ही कोई मालूम है कि किस तरह से लोगों को ध्यान में तैयार । और उसको देखने का नहीं है लेकिन डालते हैं और कैसे उनका फायदा उठाते हैं। जो सहजयोग आप ही को देखना है। ये दोनो में आपसे पैसा लेते हैं, आप से मेहनत करवाते हैं, अन्तर है आपका शरीर कोई संभाल लेगा, आपका आपको सिर के बल खड़ा करते हैं, शारीरिक श्रम सबकुछ जो है, जो कुछ भी बाकी का जितना भी, करवाते हैं, कोई न कोई मेहनत करवाले हैं, कुछ न Three Dimension जिसको मैं कहती हैं, वो सब कुछ करवाते हैं. तो आपका जो अहंकार है उसमें संभल जाएगा. लेकिन आपका सहजयोग आप ही थोड़ा सा तृप्त होकर के आप उनसे चिपके रहते को हैं। आपने ऐसे भी लोग देखे होंगे कि जो कुछ और Casual इतने हम हैं, इतने Casual हैं, कि अपना है सब कुछ देकर के, पैसा वरगैरा, और इन हमारे पड़ोस में ही कोई आदमी बैठा हुआ है उससे साधुओं के पास में वो लोग झाडू मारते हैं । सहजयोग की प्राप्ति इतनी सहज में हो जाती उससे यही बात करो, Dedication इसी का देना है कि उसके प्रति लोग Casual रहते हैं। जैसे पड़ेगा सहजयोग को। अभी से लोग हैं, शरीर ऑँख की प्राप्ति हमको एकदम सहज हो गई तो के बहुत से अंग अंग अलग अलग बिखरे हुए हैं। उसकी तरफ हम Casual है. उसकी कोई कीमत अभी कल देखिए के वो एक उस दिन की बात हैं ही नहीं हमको कि ये आँख कितनी कीमती है। वो लड़की के बाधा हुई तो उसका भाई आया, वो जिस दिन ऑँख हमारी जरा सी दुखती है तो पता फट से पार हो गया। संसार में ऐसे चलता है, हे भगवान! इसीलिए बाधा का होना भी अंग-प्रत्यंग कहीं कहीं गिरे हुए हैं उनको सबको जरूरी हो जाता है। गर बाधा नहीं हो तो सहजयोगी इक्ट्ठा करना है। ये भी बड़ा भारी सहजयोग तो बिल्कुल परवाह ही न करें ऊपर निर्भर है, जब तक आप पकड़ेंगे तब तक कैसे रहता है, देखिए। आप गर हमारे घर में हैं तो बाधा है, लेकिन क्या किया जाए? कुछ कुछ लोग सबको सहजयोग में आना पड़ेगा, पार होना पड़ेगा, 1 Casual रहें तो कोई हर्जा नहीं क्योंकि आपकी साधने का है, आप ही को उसमें बढ़ने का है। भी हम नहीं कहते कि अरे भई जिससे भी मिलो बहुत बहुत से आपके बाधा तो आपके है। अपने घर में ही कोई आदमी बगैर सहजयोग के सितम्बर चैतन्य लहरी 29 अक्टूबर, 2004 बाधा रखनी नहीं पड़ेगी। इतना efficient होना चाहिए। लेकिन जान के नहीं बन रहे भिखारी, वो चाहिए। उसमें गुस्सा नहीं करना, लेकिन उनसे तो Casualness में चले गए। हम उधर भी चले बात यही करनी चाहिए बोलना यही चाहिए। उसमें गए, कि क्या करें हमारी बीवी ऐसी है, क्या करें बिल्कुल Casual पना नहीं चलने वाला। खाते, हमारा बाप ऐसा है, क्या करें हमारी लड़की ने कहा उठते बैठते जैसे श्वास चलती है. हर श्वास के है तो चलो, हम भी चले गए। फिर क्या हुआ? साथ में सहजयोग को प्रस्थापित करना होगा आज तो माताजी आज्ञा चक्र पकड़ गया पेट का वो क्योंकि गर आप अपने को कोई विशेष रूप मानते पकड़ गया, नाभि चक्र पकड़ गया तीन चक् पर हैं और आप गर अपने मन्दिर को सोचते हैं कि खास पकड़ ही लेकर आए। अभी सगी बहन मैं इसमें कोई विशेषता है तो इसमें घण्टा नाद होना उसके इधर बैठी हुई हूँ उसको गजानन महाराज ही चाहिए हर समय । नहीं तो व्यर्थ जाएगा। जाने को किसने कहा था? कहने लगे कि हमने सहजयोग भी व्यर्थ जा सकता है। ये समझ सोचा था कि हम लोगों की हालत बहुत खराब हो लीजिए आप ये भी दूसरी बात आपको बता हेँ कि गई तो अब साई बाबा के जाएंगे। तो मैने कहा तुम बगैर सहजयोग के आपका कोई व्यक्तित्व है नहीं। पहले इधर आओ, अपना पेट ठीक कराओ, फिर अब उसके बगैर आपका निखार भी है नही, उसके साई बाबा के जाओ। नहीं तो वहाँ जाकर तुमको बगैर आपका कोई स्थान भी है नहीं। क्योंकि क्या अक्ल आने वाली है, हजारों जाते हैं तो क्या परमात्मा के राज्य में जब आप आ गए तो उसका है वहाँ पर? तुमको मॉँगना क्या है? Material चीज आपको Citizenship लेना ही पड़ेगा। मैं लोगों से सुनती हूँ, कल हमारे भाई साहब ही आए की ये इच्छाएं पूरी होंगी? अब सब हो गया न थे कहने लगे कि हम गजानन महाराज के पास Materially, और क्या चाहिए तुम लोगों को? राजे गए थे। मुझे तो पता ही नहीं कि कौन गजानन रजवाड़े होकर भी क्या चाहिए तुमको अब। जो देने महाराज हैं कि कौन हैं. फिर उस लड़के ने बताया को आए हैं. जो पाने का है वो बहुत महत्वपूर्ण है। कि वो गजानन महाराज थे। उस पर हमने देखा मानव जाति के लिए। परमात्मा ने बहुत सोच विचार कि आज्ञा चक्र, विशुद्धि चक, फलाना तीन चक के तुमको बनाया। इधर उधर का पढ़ा हुआ दिमाग पकड़ते हैं। वहीं बैठे वो भी थे इधर, उन्होंने अपने में इतना ज्यादा मैल है उस सबको उठाकर फैंक माँगनी है, तो साई बाबा के पास जाइए। कब मनुष्य बहुत से अनुभव बताए गजानन महाराज के कि उनके फोटो दो फालतू की जितनी चीजें इक्ट्ठी करके रखी से ही पकड़ते हैं। मैने कहा, लो अब उनके तीन हुई है सारा जंग। इस मन्दिर में से फैंक दो, इस चक्र पकड़े हुए! मैनें कहा घर में तुम्हारी बहन बैठी मन्दिर की प्रतिष्ठा बनाओ। हर एक हृदय में हुई हूँ तो काहे को गजानन महाराज के पास गए एक-एक दीप जलाने का है। अपने घर को पवित्र थे? कहने लगे सबने बोला सन्त पुरुष हैं। मैने करो, अपने परिवार को पवित्र करो। अपने समाज कहा अरे भई Viberation से देखो सन्त पुरुष हैं को पवित्र करो। रिश्तेदारों का आपको बड़ा ख्याल कि नहीं। Casually चले गए! उनको भी देखना है, रिश्तेदार बहुत हो गए, उनके लिए आए, मेरी चाहिए । ये कोई सहजयोग हुआ? राजा बनने के सास आई है, उसके लिए मुझे देना चाहिए। क्या बाद भिखारी बनने वाले लोगों को निकाल देना देगी तुम्हारी सास तुमको? जाओगी तो जूते देगी, | चैतन्य लहरी सितम्बर - अक्टूबर, 2004 30 जूते! आपके रिश्तेदार सिर्फ ये हैं आप जान लो, जितना भी आप पर गिरेगा सब झटक जाएगा जब इनके सिवाय तुम्हारा कोई रिश्तेदार नहीं है। सहजयोगी ही सहजयोगी के रिश्तेदार हैं हैं गर मैं कहूँ किसी से कि तुम्हारा कोई चक्र क्योंकि वो भाषा ही और बोलते हैं, उनका तरीका पकड़ा है तो वो कीचड़ है, निकाल डालो उसको । आप जानेंगे कि आप कमल हैं। आप कीचड़ नहीं ही और है, उनका ढंग ही और है। इस पर प्राण तुम तो कमल बना दिए गए हो न! तुम तो कमल लगाने पड़ेंगे अपने। और प्रेम, प्रेम को बाँटना हो, कमल पर अगर कीचड़ गिर गया तो कमल को होगा। चित्त की धार पर प्रेम बहेगा, चित्त को पहले चाहिए कि उठाकर फेंक दे। और टिकने भी नहीं ठीक करो, चित्त को पहले हल्का करो। सब दुनिया वाला उस पर। हर एक को सहजयोग के प्रति भर की चीजें इस चित्त पर रखने से ये सहजयोग जागरूक होना पड़ेगा। गर सहजयोग की नैया कैसे उतरेगा? चित्त के ही ऊपर चला आ रहा हैं पार लगानी है तो अपनी छोटे छोटे परिवार के, और धड़ धड़ धड़ देखिए । प्रभु तो तुम्हारे ऊपर छोटे-छोटे घर के प्रश्नों को लेकर के मत बैठे । उड़ेलने के लिए बैठा हुआ है। लेकिन तुम्हारा चित्त जब तक इस कीचड़ को पकड़े रहोगे अपने साथ, कहाँ है? दो दो मिनट में चित्त इधर-उधर होता कोई तुम्हारा साथ देने वाला नहीं है लडके की है! उसके चरण में सिर्फ चित्त को देने का है, शादी होएगी, लड़की की शादी होएगी, फलाना तुम्हारा पैसा, धेला, कौड़ी, कुछ नहीं चाहिए उसको। होगा! होगा,होगा, नहीं होगा नहीं होगा। ये मनुष्य की मूर्खता है, उसने अपने पास जो जोड़ रखा है उसका महत्व क्या है? महत्च अपने चित्त सहजयोग में, सहजयोग के लिए टाइम नहीं आपको! का करो। इसी चित्त पर परमात्मा उतरेगा तुम सबसे बड़ी बात ये है कि भारतवर्ष के लोगों के पास लोगों को दस दस बीस-बीस साल तो उन्होंनें पैसा वैसा ज्यादा नहीं है। उनकी इतनी, देखा जाए जबान कर दिया! शरीर तुम्हारा ठीक हो गया, मन तो, आर्थिक दशा कुछ खास अच्छी नहीं हैं। लेकिन की भावनाएं तुम्हारी शुद्ध कर दीं। तुम्हारे अन्दर Collective Concious आ गया, अब क्या? अभी Viberations हैं जो सब चीज को Control करता दौड़ रहे हो इस चीज के लिए, उस चीज के लिए? है अभी तक कोई और देश होता तो Collapse उसका महत्व ज्यादा है तुम लोगों को। पहले भी हो गया होता! उसी Viberations के सहारे ही तुम जन्म में बहुत कमाया था, सब गोबर यही छोड़कर लोग जी रहे हो । कितना बडा देश है। ऐसे महान गए थे, और फिर इक्ट्ठा करो और फिर यही देश में पैदा हुए हो। और सब कुछ तुम जानते हो छोड़कर जाओगे। Casually रहना सहजयोगी वहां अग्रेजों से तो मुझे बताना ही नहीं आता कि के लिए बड़ी ही खतरनाक चीज है। गफलत कहते इन्हें मैं क्या बताऊँ । देवी महात्म्य इन्होंने पढ़ा नहीं, हैं जिसे। बड़ा भारी युद्ध खड़ा हुआ है! आप तो देवी क्या मालूम है उनको? इनको माँ मालूम जानते हैं कि किस कदर दूसरे भी संहार के तरीके नहीं, इतने गन्दे लोग हैं वहाँ जिनको माँ नहीं तैयार हो गए हैं। सहजयोग एक कमल जैसे मालूम मैं इनको क्या बताऊ माँ का महत्व? मुझे तो कीचड़ में खड़ा हुआ है, नाजुक, सुन्दर और आप उसीकी पंखुड़ियाँ हैं। कीचड़ हो, जैसे दाढ़ी बनाते हो ऐसे ही ध्यान में बैठते हो ! धड़ उसमें खर्चा करेंगे, उसमें नाम कमाएंगे और जान के रहना चाहिए हमें कि इसी भारतवर्ष में 1 1 सुरभित, सुगन्धित, रोना आता है। और तुम लोग ऐसे casual हो गए सितम्बर - अक्टूबर, 2004 चैतन्य लहरी 31 कैसे होगा भाई? मेरे भाई लोग बोलते हैं क्यों मर Realization दिया है, कहाँ है? उनमें वो दो चार रही हो सुबह से शाम तक? तुम्हारी तबियत को हैं और वो भी कंजूसी करते हैं। बहुत पैसे वाला तो कुछ हो जाएगा तो तुम्हारा पति हमें क्या कहेगा? कोई है ही नहीं अपने पास में लाखोंपति, करोड़ोंपतियों रात को चार-चार पाँच-पाँच बजे सोती हो, दिन को दिया है Realization, क्या कर रहे हैं? अच्छा भर मेहनत कर रही हो, क्यों कर रही हों? क्या है पैसा नहीं है। उसकी झंझट तुम्हारे बहुत कम तुमको मिलने वाला है, समझ में नहीं आता है? चिपकी हुई है। कम पैसे हैं, बहुत अच्छा है देख अभी उनको समझ में नहीं आता है और मेरी भी लिया मैंने ये पैसे वालो, को बड़े बड़े पदाधीशों को देखा, बड़े-बड़े Minister को देखा, उनको, क्या समझ में नहीं आता है। जब एक बैठेगी उनकी मेरी समझ तभी कुछ काम बनने वाला है अकेले मैं है? वो तुम्हारे जैसा आनन्द तो वो लेते ही नहीं हैं। लड़ सकती हैँ न,लेकिन उससे तुम लोगों को क्या पार हो गए, बैठ गए उसके बाद में ढम से। बड़ा लाभ होगा? आपको क्या मिलने वाला है। Casual पैसा लेकर बैठेंगे। बड़े बड़े Minister हुए, बड़े-बड़े रहना, Casually चलना, अपने प्रति उदासीनता है, Secretary हुए हैं पार, पर क्या किया उन्होनें? अपना अनादर है, स्वयं ही। जिस राजा को सारा उनके घमण्ड से भगवान बचाए रखे। भगवान के धन मिल गया है वो Casually रह रहा है! अरे पास में कौन है Secretary और कौन है राजा? वो राज करो, विराजो। छोटी-छोटी बातों को लेकर आपसे भी अच्छे हैं कि उनको कोई पैसे का गुम ही के क्या सहजयोग को खत्म करने वाले हो? अपने नहीं है। आप और भी अच्छे हैं कि उनको कोई अन्तर को साफ करो, अपने हृदय को साफ करो,चालाकी छोड़ो, अपने हृदय को साफ करके ये इनको तो बस माताजी चाहिए कल कुछ बच्चे देखो कि क्या हम अबोधिता में, Innocence में, आए थे उनकी माँ ने कहा अब चलो, कहने लगे बैठे हुए हैं? मेरे ऊपर कोई उपकार नहीं हो रहा है अभी थोड़ी देर तो ठहरो न । इनको कोई चाक्लेट आपका। आप ही पर, अपने पर ही, आप जो माँग नहीं दे रही थी, कुछ नहीं दे रही थी, बैठे थे। रहे थे, सालों से खोज रहे थे वही मिल रहा है। माताजी ये यही हमको चाकलेट चाहिए। हमको अब चरम सीमा पर आने पर ये क्या पागलपन लगा सिनेमा विनेमा नहीं जाने का, हमको यही चाहिए. रखा है? जो चरम सीमा पर आ चुका है उसको माताजी के पास । वो ज्यादा समझते हैं तुम लोगों मोड़ कर आपने देखा नहीं होगा लेकिन मैंने से। तुम भी ऐसे ही हो जाओं। सबकुछ छोड़ दो हैं Position नहीं है इन सब मूर्खताओं से छूटे हुए मुख बहुतों को देखा है। पहले तो चिपकाना पडता चिपको, चिपको, चिपको। कभी कभी तो ऐसा भी गए हो अब। क्या सुन्दर रूप हैं! तुम भी ऐसे ही थे विचार बन सकता है आप लोगों का कि हम लोग बेटे। तुम भी ऐसे ही थे सब लोग, ये कहाँ से ऐसे क्या कर सकते हैं, हमारे देश में तो इतनी खराबी विद्रूप हो गए सब लोग! अपनी विद्रूपताओं से है, हम लोग तो गरीब आदमी है यहाँ पर, हमारी घबराओ, दूसरों की सुरूपता को देखो। मैं जब तो परेशानियाँ है, हम क्या देश का उद्धार करेंगे? चली जाऊंगी तब सहजयोग पर, माँ चली जाती है माताजी हमको चढ़ाती हैं। अच्छा है कि आपके तो बच्चों का काम है घर संभालना। आने पर पास पैसा नहीं है। पिछला, ऐसे ही हो जाओ, फिर से तुम बच्चे ही हो है, इतने लोग. पैसेवालों, को दिखना चाहिए कि सहजयोग बढ़ा कर रखा हुआ the सितम्बर 32 अक्टूबर, 2004 चैतन्य लहरी है मेरे बच्चो ने, और नहीं तो आने पर दिखा आज माँ को देखा है तुमने, कितने घण्टे सोती है? चार वहाँ उसके आज्ञा चक्र पकड़े हैं, किसी का नाभि बजे सवेरे उठकर के बैठो, अपने मन से कहों, चार चक्र पकड़े है किसी का विशुद्धि चक् पकड़ा हुआ से पाँच बजे सवेरे ध्यान में जाने का है। निद्रा विद्वा है, कोई उनके पास चले गए, कोई उनके पास चले फैंक देने का है। रात का जागरण छोड़ों, फालतू किसी की हालत खराब, लोगों से बातचीत करना छोड़ो, फालतू गए, कोई बीमार पड़ गए, किसी की बीबी हस्पताल, कोई पागलखाने में । अरे Associations छोड़ो, रिश्तेदारी छोड़ो। बेकार के भई ये क्या हो गया? और ये नहीं सोचना है कि लोग हैं, सब भूत वाले हैं, इनके लिए अपना Time हम छोटे आदमी हैं। अरे तुम लोग बहुत बड़े बर्बाद करने के लिए हम हैं कहाँ यहाँ पर। मैं तो एक भी क्षण, आपको आश्चर्य होगा कि. आदमी हो। ये बड़े बड़े किसी काम के नहीं, ये पार ही नहीं होते। अपना बड़प्पन जान करके, बात करो, सहजयोग के सिवाय बिताती नहीं, एक भी क्षण! अपने को खोलकर के बात करो । एक अक्षर सहजयोग हमारे पति के दफतर में हजारों आदमी आते हैं, में जो बोलता है सरस्वती साक्षात् वहाँ आकर बैठ जब कभी Reception होता है तो हजारों आदमियों जाएगी, मै आपको बता रही हूँ। आप बोलकर से हाथ मिलाना पड़ता है तो जाग्रति देती हूँ। देखिए। आपके अनुभव हैं ये। सहजयोग पर बोलना हाथ मिलाते ही जाग्रति, उसके दिया तो खट से शुरु करो सरस्वती आपके वाणी में आ जाएगी, देखती हूँ कि जाग्रत हो गए, मुझे आती है हँसी! जिस देश में जाती हूँ उस देश में जाग्रति देती लिखना शुरु करो, आपकी लेखनी में आ जाएगी। हूँ, किसी कार्य को लो साक्षात हनुमान खड़े हैं हाथ जिससे बात करती हॅँ उसको जाग्रति देती हूँ, वो जोड़कर के कि माँ बोलो किसके साथ खड़ा हो बोलते रहता है मैं उसे जाग्रति दती रहती हूँ। वो जाऊ मैं? हनुमान जी सारा काम कर रहे बोलते रहता है... दुनिया की चीज। जहाँ मौका हैं आपका, कोई भी काम लो, माँ का नाम लेकर के, मिलता है जाग्रति देती हूँ । विक्टोरिया स्टेशन पर कोई सा भी काम संसार का लो चाहे, किसी चीज टिकट कलेक्टर एक साहब मुसलमान, तो उस का वो करेंगे, और सहजयोग के लिए तो साक्षात् समय टिकट लेने के लिए मैं खड़ी थी तो लाइन बहुत लम्बी थी तो मैं देख रही थी, पाकिस्तान का सब लोग अपनी शक्तियाँ तुम्हारे ऊपर लगा होगा, पता नहीं जहाँ का भी हो, हाँ पाकिस्तान का करके पीछे Background में खड़े हुए हैं और देखा था, तो उसको मैं जाग्रति दे रही थी खड़ी खड़ी, क्या कि नट जी जो आए हैं उनकी हालत खराब । सामने वालों को भी जाग्रति दे रही थी जैसे उसने वो इधर उधर देख रहे हैं। नाटक कैसे रचेगा? आध टिकट दिया उसने मेरी ओर देखा और पार हो ॥ अधूरापन नहीं चाहिए। मेरे को टाइम नहीं गया! तो वो सबका टिकट देकर के जो अन्दर में मिलता माताजी, ध्यान में बैठने को टाइम नहीं है। आ गया, और आकर मेरे कम्पार्टमेन्ट में बैठ गया। इसका मतलब क्या? टाइम है किसके लिए? किसने कम्पार्टमेन्ट में मैं अकेली बैठी थी। कहता है आप दिया टाइम तुमको? अपने लिए Time नहीं मिलता कौन हैं? आपमें इतनी कशिश कैसी है? मैने कहा है तो भगवान का क्या दोष हैं? Time कैसे नहीं आप कौन हैं? कहने लगा मेरा नाम हुसैन है, फिर मिलता है? चार बजे सवेरे उठना चाहिए तुम्हारी मैने कहा बैठो हुसैन मियाँ, ऐसे हाथ करो। कहने पाँचों चिरंजीव खड़े हुए हैं आपके लिए । सितम्बर चैतन्य लहरी 33 अक्टूबर, 2004 लगा ये क्या आ रहा है ठण्डा? आप कौन हैं? देख जितनी पुरानी गुलामियाँ हैं सबको छोड़ो। पहले लो कौन हैं, पहचान लो। रोम में मैं गई थी, बहुत घड़ियों को फेंको उठा करके । System नहीं दिन पहले की बात है, वहाँ बहुत से आर्टिस्ट बैठे बनाओ किसी चीज का, सहजयोग में System 1. हुए थे। कुछ पेंट कर रहे थे, एक को पार दिया। नहीं बन सकता है। उससे अपना System बनता वह धीरे से उठा और आके उसने धीरे से किसी रहेगा, उसके System को बनने दो। तुम लोग ने कुछ कहा और उसके बाद आकर के दोनों पैर System बनाया तो जड़ हो जाएगा। Discipline पकड़ के बैठ गया और रोने लग गया जोर जोर मत बनाओ, उसकी Discipline चलने दो अपने से। "माँ तुम कब आए"? मैं तो वहाँ बड़े भारी अन्दर म अफसर की बीवी बन कर गई थी, तीन आदमी लिए Discipline जरूरी है वो तुम करो। लेकिन' उधर में, चार आदमी उधर में खड़े हुए थे! वो लोग जो लोग पार हो गए हैं उन्होने अपनी Discipline सब embarrased हो गए कि ये क्या कर रहा है? अन्दर करनी है। अपने आप अन्दर Disciplining से में। हाँ जो लोग पार नहीं हुए हैं, उनके माँ तुम मुझे मिल गईं, रात को तुम स्वप्न में आई हो जाएगा। सहजयोगी का अपना अन्दरूनी थीं, तुमने कहा था कि मैं ऐसी साड़ी पहनकर Disciplin है, वो गर Indiscipline करे तो उसकी आऊंगी, वैसी तुम पहन कर आईं हो। एक क्षण भी माफी नहीं है जो सहजयोगी नहीं है उसको माफ सहजयोग के सिवाए मुझे कुछ सूझता ही नहीं है, करो, क्योंकि वह अभी तक जानता नहीं कि सब पिछला भूल गई मैं। बड़े बड़े जन्म हुए, बड़े Discipline क्या चीज है। उसको तो संसारी बड़े हो गए सब लोग सब भूल गई हूँ मैं, पिछला Discipline मालूम है, डण्डे वाली। सहजयोगी की अपनी ही Discipline अन्दर से आने दो, अन्दर से अगला सब भूल गई हूँ। यही सब सहजयोग ही मुझे याद है और मुझे उसको जगने दो, देखो तुम कितने उसके Discipline कुछ याद नहीं। ऐसे ही आप लोगों का भी हर क्षण में चंल रहे हो, उसके हाथ पैर के साथ घूम रहे हो, हर पल, सहजयोग । जहाँ बैठे हैं वहीं पर । घड़ियाँ उसकी लहर के साथ उठ रहे हो! समुद्र की लहर फेंक दो पहले, उतार दो घड़ियाँ फेंक दो, घड़ियों की किसने Discipline बाँधी है ? यहाॅ बैठे, बैठे की गुलामी फेंक दो, सहजयोग की गुलामी करो, आप London में कौन से Time High Tide आएगी, सहजयोग तुम्हारी घड़ी है। साढ़े बारह बज गए Low Tide आएगी, आप बता सकते हैं? किसने उस दिन, कोई हर्जा नही, बैठे हुए हैं। तीन बज बाँधने के रखी है उसकी Discipline जो आप गए बैठे हुए हैं सहजयोग में बैठे हैं, सहजयोग Discipline बाँधने लग गए? उसके Discipline में क्या Time का गुलाम है, क्या घड़ी का गुलाम है? उतरना सीखो। उसके इशारे, उसके यंत्र में बंधना किसी भी कायदे कानून के हम गुलाम नहीं है हम सीखो। उसका यंत्र चल रहा है, अपना कुछ मत सिर्फ सहजयोग में खड़े हुए है कितना भी टाइम बनाओ। अपना बस ये कहो कि चलो सहजयोग में लग जाए बैठे रहेंगे। जहाँ भी बैठेंगे, बैठेंगे हम उतरो, चलो लगाओ Time उसी में । घड़ियाँ लगानी कोई पेट के गुलाम हैं जो टाइम से खाएं ? हम है तो सहजयोग के लिए। Alarm लगाना है तो किसी के भी गुलाम नहीं हैं। होते रहता है सहजयोग के लिए। ये देखिए, ये उम्र है और ये सबकुछ, होने वाली है अपनी गुलामी पहले छोड़ो, सहजयोग है! (मराठी) चैतन्य लहरी सितम्बर 34 अक्टूबर 2004 अभी तो छोटे छोटे बच्चे हैं सारे। उम्र का संसार का एक पत्ता भी उसके Discipline के बगैर नहीं चल सकता, उसके Discipline में अपने तकाजा नहीं है। निर्विचारिता में रहना चाहिए, यही को घोल दो, उसकी Hamony में चले जाओ। आपका स्थान है, यही आपका धन है, यही आपका उसके साथ Hamonise कर लीज़िए पुरी तरह बल है, शक्ति है, यही आपका स्वरूप है, यही से, जब वो उठता है तो उठ गए, जब वो गिरता है आपका सौन्दर्य है, यही आपका जीवन है। तो गिर गए। जब हम अपना कुछ नहीं करके बैठ निर्विचार निर्विचार होते ही बाकी का जो बाहर का जाते हैं तो उससे अछूते रह जाते हैं। अपने को यन्त्र है वो पूरा का पूरा आपके हाथ में घूमने लग उसी के साथ mould कर लीजिए। सिर्फ सहजयोग जाता है निर्विचारिता में रहिए, वहाँ पर न समय है से उतरता है और किसी चीज से नहीं हो सकता, न दिशा है, न कोई छ सकता है, सिर्फ जीवंतता का और कोई संसारिक लौकिक चीजों से नहीं हो दर्शन होता है कि जीवन कैसे खिलता है इसके सकता है उसका काम। उसका एक ही तरीका सौन्दर्य का दर्शन होता है, इसके सामर्थ्य का दर्शन हजार बार बताया फिर से बता रही हैं,फिर से बता होता है, इसके ऐश्वर्य का दर्शन होता है और इसके रही हूं कि आपका जो किला है, आपका जो सत्य का दर्शन होता है। उस जगह से देखिए जहाँ Fortress है वो है निर्विचारिता। निर्विचारिता में से जीवन की धारा बहती है। लेकिन निर्बुद्ध बनना, जानों, वहीं जान जाओगे सबकुछ। कोई भी काम महामूर्ख बनना, कैसे आपको वो दिखाएगा. या करना है निर्विचारिता में जाओ । सारा संसारिक हृदय शून्य होना प्रेम रहित होना, Seifish होना, काम निर्विचारिता में करते ही साथ में आप जानिएगा Self Centred होना, अपने बारे में सोचना, अपने कि कहाँ से कहाँ Dynamic हो गया मामला! को बड़ा ऊँचा समझ लेना, बो कैसे दिखाएगा फूलों को खिलते हुए किसने देखा है, फलों को आपको मार्ग? कुरूप होना, अत्याचार करना! लगते हुए किसने देखा है? संसार का सारा जीवन्त कार्य होते हुए किसने देखा है? हो रहा है Movement में भी कितना सौन्दर्य होना चाहिए! उसी Dynamism में, उसी Living चीज में आपको उसको करते वक्त भी उसमें कितनी श्रद्धा होनी उतरना है। वो निर्विचारित से आ रहा है ना। उस चाहिए! कुण्डलिनी उठाते वक्त भी हाथ में कितनी स्थान पर आप बैठे हैं जहाँ ये सारा संसार धार्मिकता होनी चाहिए कि आप किसी की कुण्डलिनी, फीका है। निर्विचारिता में ही उसकी आदत किसी की माँ का पूजन कर रहे हैं! कितना उसके लगाएं। हर समय निर्विचार रहने का ही प्रयत्न प्रति आदर होना चाहिए! कितना विचार होना करें सारा कार्य संसार का उसी से होता है और चाहिए! हरेक चीज में आपके Behaviour में, आपकी आपका भी होगा फालतू फालतू सब चीजें हो बातचीत में आपके बोलने में आपके दुलार में, जाएंगी लेकिन अन्दर का चलना आपको ही करने आपके हँसने में, आपके रोने में हर एक चीज में, सहजयोग की भी हर एक गति और का है। कोई उम्र वुम्र का तकाजा नहीं है कि हम हृदय का कितना दर्शन होना चाहिए! विशालता बूढ़े हो गए ! कोई बुढ़ा नहीं है। अभी अभी तो पैदा दिखनी चाहिए. आपके अन्दर से आकाश के दर्शन हुए हैं, कितने साल हुए? दो चार साल हुए होंगे होने चाहिए, पानी की पवित्रता झलकनी चाहिए और क्या! आपके अन्दर से। सूर्य की तेजस्विता आपके मुख सितम्बर वैतन्य लहरी अवटूबर, 2004 35 पर होनी चाहिए, चंद्रमा की शीतलता आपके अन्दर रुपए आज तक खर्च किए? मुझको कुछ तुम्हारा से बहनी चाहिए। सर्वगामी होना चाहिए आपको रूपया नहीं चाहिए, मुझको कुछ नहीं चाहिए, म हवा के जैसे, सबके प्राणों में आपका प्राण स्पन्दन पर कोई खर्चा नहीं करने का। तुम्हारे लिए 3 अ्रम कर रहा है इस वक्त में, जान लीजिए। अपने प्राणों बन रहा है, तुम्हारे भाई बहनों के लिए आश्रम बन के साथ मत खेलिए। अत्यन्त श्रद्धावान और भक्ति रहा है, उनको वहाँ रहना है, अभी ये बच्चे पैदा हो पूर्ण, नतमस्तक होकरके उसको स्वीकार करें। जो रहे हैं, उनके पढ़ने के लिए स्कूल चाहिए। वहाँ उन ऊपर से नवजीवन हमारे अन्दर परमात्मा ला रहे बच्चों को संभालने वाला कोई चाहिए, उसके लिए हैं। स्वीकार्य हो उसका प्यार, उसकी अनुकम्पा रुपया दो। बगैर रुपए के वो खड़ा कैसे होगा? स्वीकार्य हो आपको फिर उसके लिए नहाने की तुम्हारे हृदय से यदि एक भी रुपया निकलता है तो 1 1 जरूरत नहीं, हाथ धोने की जरूरत नहीं, कुछ उसका बड़ा महत्त्व है। ऐसे भी यहाँ पर लोग आते करने की जरूरत नहीं, हृदय की सफाई चाहिए हैं जो एक रुपया भी नहीं खर्च करना चाहते! ऐसे सिर्फ। हृदय साफ कर लो। प्रभु हमारा हृदय साफ भी लोग है यहाँ पर! ऐसे कोई गरीब लोग तो यहाँ करो, हमारा छल कपट दुर करो। अपने हृदय को हैं नहीं। ऐसे हों तो ठीक है। लेकिन एक रूपया साफ करो, इस हृदय कमल में उतरने वाले हैं। निकालनें में भी कंजूसपना करने वाले लोग भी हृदय को साफ करो। क्या हमारा हृदय साफ है? सहजयोगी हो सकते हैं क्या ? सुनती हूँ तो मुझे किससे छल कपट कर रहे हो, किससे रहे हो? तुम सभी एक हो किसी एक को मेरा करते हैं! और जिनके पास पैसा है वो रूपया दं. कहना कभी हो ही नहीं सकता है। सबके लिए काफी हजारों में रुपया देना पड़ेगा, लाखों में रुपया कह रही हैं कि तुम एक ही शरीर में हो और वो देना पड़ेगा। किसने दिया है तुमको रुपया ? भी मेरे ही शरीर के अन्दर हो मेरा ही Proiectlion मुझको नहीं चाहिए, मुझको क्या दोगे? तुम अपने हो। मैं अपने को ही कहे दे रही हूँ, मैं दूसरे लिए तो दो भाई, अपनी भलाई के लिए दो। कल किसको कहूँ, दूसरा है ही कौन? तुम बीमार होते तुम्हीं लोग अपने बाल बच्चों को लेकर के इन हो तो अन्तर से वैसी ही पीड़ा होती है जैसे कि मैं आश्रमों में आकर के रहोगे। मुझे मालूम है। फुक्कट ही स्वयं बीमार हो गई हैं, और सुखी होते हो तो खोरी करने की कोई जरूरत नहीं। राजा जैसे अन्दर से वही आनन्द आता है जैसे कि मैं ही रहो। जैसे हम फुक्कट का नहीं खाते, तुम भी नहीं महासुखी हो गई हूँ। तुम लोग गर सुखी नहीं हो खाना फुक्कट का जो कुछ होता है करो । जिसको तो मुझे कोई सूख अच्छा नहीं लगता है। दिन जगती रहती हूँ तुम्हारे लिए । जो जिससे बन पड़ता है, जिसके पास समय करो, जिससे पार होते है पार करो, जो भूत निकालते है वो समय दे, पूर्णतया समय दे इसको। अब है भूत निकालो। करो सहजयोग में तुम्हें करना हमारा आश्रम बनने वाला है, उसके लिए रुपया दें पड़ेगा, बगैर करे हुए तुम्हारा जो ego है वो मरने जिसके पास रुपया है। देना पड़ेगा। आप इधर उध नहीं वाला तुम्हारा. Super Ego जो है बो भागने र रुपया खर्च करते हैं, क्या फायदा हुआ सारे नहीं वाला, जबतक सहजयोग में कुछ आश्चर्य लगता है, एक एक रुघए के लिए परेशान बोल झूठ तभी रात टाइम मिलता है Time करो, जिससे मेहनत होती हैं मेहनत करो, जिससे जाग्रति होती है जाग्रति 1 करोगे नहीं । सितम्बर - चैतन्य लहरी 36 अक्टूबर, 2004 फिर से आज्ञा पकड़ेगा। माताजी मेरा सर पकड़ा होना तो चाहिए, नहीं तो उंगली दबाओ तो अन्दर गया, माताजी मेरी लड़की भग गई, माताजी मेरे से क्या निकलेगा? Vaccume? अन्दर कुछ है ही बाप के ऐसे होगया होगा ही मैं कुछ नहीं करती नहीं। अन्दर जिसने संतोष को जोड़ा है वही तो हूँ। गण भी कुछ े हुए इस कमजोरी आई वहाँ भूत तुमको ही पकड़ता है मेरे हुए हैं इस को नहीं पकड़ता है। क्यो नहीं पकड़ता है मेरे को? वक्त सब अपना धन जोड़ रखा है सालों साल का, माताजी ने हमको क्या दिया है उसको इतना दे शरीर जला जला करके सब आपके सामने खड़े हुए दिया। माताजी उसको इतना दिया। अरे उसको हैं! ऐसे ही आप लोग भी एक-एक चीज को इतना मिलने का था मिल गया उसको तुमको जो जोड़ो। संतोष, संतोष। Innocense में आओ, धर्म मिला है वो कुछ कम नहीं। तुम्हारे को इसका कोई में आओ, सत्य में आओ, सौन्दर्य में आओ प्रेम में मूल्य ही नहीं है कि तुम्हें मिला हुआ है। संतोष आओ। सबके बटन हैं। कैसे होगा ? कैसे करें ? आना चाहिए अन्दर से, पकड़ो अन्दर में संतोष ये सहजयोग को कहना नहीं, सब होता है। कैसा को। उस संतोष में खड़े हो जाओ मैं कैसे कहूँ शब्द ही नहीं है उसमें जोड़ो। जो कमाना है तुमसे कि इसके भी Computers होते हैं, उसके सब कमा सकते हो आप अपने अन्दर में । चाहो Points होते हैं, संतोष में एक उंगलीं दबाओ तो तो संतोष कमा सकते हो, सब चीज कमा सकते संतोष जागृत हो। रखो, फिर आपमें Innocense जागृत हो जाएगा, एक दबाओ बटन दबाओ। जो चीज चाहिए वो मिल सकती है तो सत्य जागृत हो जाएगा। ये सब आपके, ऐसे उंगलियाँ दबाने से एक सारा ProgrammSetting हो सकता है माताजी ऐसे कि तुम्हारे अन्दर उसका उपार्जन कैसे हो? ही अपना करती रहती है। पर पहले बहाँ पर अपना उपार्जन जोडो, अपना उपार्जन जोडो, Innocense थोड़ा होना तो चाहिए, वहाँ पर संतोष अच्छा ! (मराठी) नहीं करते हैं। तुम्हारी जहाँ दबाने से संतोष में पहुँचे हैं, संतोष में बैठे রक्त । धर्म में पहुँचे हुए हैं, धर्म में बैठे हो गया । एक उंगली जब दबाओ तो हो, अपने अन्दर रख सकते अन्दर में है आपको। मशीन-मशीन न जाएगी अन्दर में। अब मैं कैसे क्या कर, मेरे समझ में नहीं आता है कुण्डलिनी और कल्कि नवरात्रि पूजा 28.09.1979 मुम्बई परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आपकी इच्छानुरूप आज मैं आपसे अंग्रजी काल में या तो जन्म ले चुके हैं या शीघ्र लेने वाले भाषा में बातचीत करूंगी हो सकता है कल भी हैं। ये समय अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि सहजयोग हमें इसी विदेशी भाषा का उपयोग करना पड़े। आज का विषय है कुण्डलिनी और कल्कि के अत्यन्त अजीब लगता है, परन्तु यही वास्तविकता बीच सम्बन्ध।" 'कल्कि शब्द वास्ताव में निष्कलक है और यही सत्य हैं। यद्यपि आप समझ सकते हैं शब्द का संक्षिप्त रूप है। निष्कलंक का अर्थ वही कि माँ (श्रीमाताजी) के प्रेम ने आपके लिए है जो मेरे नाम का है अर्थात 'निर्मल' अर्थात बेदाग, आत्माक्षात्कार प्राप्त करना तथा भयानक अनुभव स्वच्छ। कोई भी चीज, जिस पर कोई दाग धब्बा न प्रतीत होने वाली अंतिम निर्णय की कहानी को हो, वह निष्कलंक होती है । इस अवतरण का वर्णन बहुत से पुराणों में आपको कोई परेशानी नहीं होती । किया गया है कि सम्भलपुर गॉँव में सफेद घोड़े पर सवार होकर यह पृथ्वी पर अवतरित होगा वे इसे निर्णय है और सहजयोग के माध्यम से आप सब सम्भलपुर कहते हैं। अत्यन्त दिलचस्प बात है कि लोगों को परखा जाएगा कि आप परमात्मा के लोग किस प्रकार सभी कुछ शाब्दिक (Literal) रूप साम्राज्य में प्रवेश करने योग्य हैं कि नहीं। से लेते हैं। "सम्भल' शब्द में' भाल' का अर्थ हैं ही अन्तिम निर्णय (Last Judgement) है। ये सुनना अत्यन्त सुन्दर कोमल एवं मृदु बना दिया है, इससे परन्तु मैं आपको बताती हूँ कि यह अंतिम सहज-योग में लोग भिन्न प्रकार के चित्त मस्तक' अतः सम्भल का अर्थ हुआ उसी अवस्था में (Attentions) लेकर आते हैं.ऐसे लोग भी हो सकते अर्थात कल्कि आपके भाल पर स्थित है। भाल है जिनकी तृत्ति अत्यन्त तामसिक हो,जड़ हो या मस्तक है और यहीं पर वो जन्म लेंगे । शब्द उनके स्वभाव अत्यन्त आलसी और धीमें हों। उनकी सम्भलपुर का वास्तविक अर्थ यही है । ईसा मसीह और उनके विध्वंसक अवतरण के चंगुल में आ जाते हैं,उन्हें शराब की लत पड महाविष्णु, जिन्हें कल्कि भी कहा जाता है, के बीच जाती है या कुछ अन्य ऐसी आदत पड़ जाती है जो में मानव को समय दिया ताकि वे स्वयं को सुधार व्यक्ति को वास्तविकता से दूर ले जाकर उसे यह वृत्ति जब बहुत बढ़ जाती है तो वे मृत आत्माओं सकें और, जैसा बाइबल में कहा गया है, अंतिम जड़वत कर देती है। जैसा आप जानते हैं कि निर्णय' (Last Judgement) के समय परमात्मा के मनुष्य का दूसरा पक्ष दायां पक्ष होता है। अर्थात् साम्राज्य में प्रवेश कर सकें । कहा गया है कि अत्यन्त महत्वाकांक्षी प्रवृत्ति के लोग ऐसे लोग अन्तिम निर्णय के समय आपका आंकलन होगा । इसी अत्यन्त महत्वाकांक्षी होते हैं. यह पूरे विश्व को पृथ्वी आप सबको परखा जाएगा| आज पृथ्वी परविजय करना चाहते हैं पूर्णतयः स्वतन्त्र (निरंकुश) हमेशा से अधिक जन-संख्या है क्योंकि वो सभी होना चाहते हैं, कैंसर की तरह से विषालु । पूर्ण लोग, व्यवहारिक रूप से वो सभी जो परमात्मा के विराट से वे अपना संबंध नहीं रखना चाहते। इस साम्राज्य में प्रवेश करने के इच्छुक हैं, इस आधुनिक कलयुग में आप देखते हैं कि किस प्रकार से लोग चैतन्य लहरी सितम्बर अव्टूबर 2004 38 अति में चले जाते हैं। कुछ बहुत अधिक शराब अपना आत्म- साक्षाल्कार प्राप्त कर लेते हैं। परन्तु आदि में फस जाते हैं अर्थात् चेतना से, आत्मा से. जब हम कल्कि की बात करते हैं तो हमें याद सच्चाई एवं सौन्दर्य से परे दौडने लगते हैं। कुछ रखना है कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने और अन्य जो इन सब चीजों को नकारते हैं । कुछ लोग परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश करने के बीच के इतने अहकारवादी है कि सभी सौन्दर्यपूर्ण चीजों समय में हम भटक भी सकते हैं। यह योग भ्रष्ट को नकारते हैं । स्थिति कहलाती है। लोग योग को अपनाते हैं. तो कुछ लोग ऐसे हैं जो प्रतिअहँ ग्रस्त हैं, योग में आते हैं, फिर भी अपनी प्रवृत्तियों के पाश अत्यन्त बन्धन ग्रस्त, तामसिक एवं आलसी तथा फंसे रहते हैं। उदाहरण के रूप में एक अहम ग्रस्त एकदम असभ्य। दूसरी ओर ऐसे लोग हैं जो बहुत व्यक्ति या धनलोलुप मनुष्य या सत्तालोलुप व्यक्ति अधिक महत्वाकांक्षी, प्रभुत्व जमाने वाले तथा अपनी जो लोगों के समूह पर रोब जमाना चाहता है और मह्बाकांक्षाओं और मुकाबले की भावना से एक जो अपने विचारों से उन पर शासन करना चाहता दूसरे को नष्ट करने वाले हैं। दोनों प्रकार से इन है, उसका पतन भी हो सकता है और सहज योग उत्कट(Extreme)लोगों का सहज-योग में प्रवेश में रहते हुए भी ऐसे व्यक्ति के साथ अन्य लोगों का कर पाना कठिन है। परन्तु जो लोग मध्य में है भी पतन हो सकता है बाम्बे में ऐसा प्रायः होता उनका सहज-योग में आसानी से समावेश हो रहा है यह ऐसी आम बात है जो घटित होती रही जाएगा । इसके अतिरिक्त जो लोग कम जटिल है, है परन्तु इसे योगभ्रष्ट स्थिति कहते हैं जिसमें सहज हृदय हैं. जैसे गांव के लोग होते हैं, उनका व्यक्ति का योग-स्थिति से पतन हो जाता है। भी सहज योग में आसानी से समावेश हो जाता उसका पतन हो जाता है क्योंकि सहज-योग हैं और बिना किसी कठिनाई के वे सहजयोग को आपको उन्नत होने या पतन के गर्त में जाने की अपना लेते हैं। नगरों में भी ऐसी ही बात है। पुर्ण स्वतन्त्रता प्रदान करता है। परन्तु आप यदि मस्तिष्क से किए गए इतने अधिक काम का भी किसी अन्य गुरु के पास या किसी अन्य योग में परिणाम आप देखते है कि आज यहां मुश्किल से जाते हैं जिसमें दो-तीन सौ लोग हैं। परन्तु यदि मैं किसी गांव में लोगों को बचपन से ही प्रशिक्षित और अनुशासित जाती तो पूरा गांव, पांच-छ हजार लोग वहाँ आ किया जाता है ऐसे योगों में गुरु किसी न किसी जाते और सभी के सभी बिना किसी कढठिनाई के तरह से देख लेता है कि आप जख्मी हैं, इतने बुरी में शुद्धि करण घटित होता हैं, जहाँ आत्माक्षात्कार पा लेते। यहाँ पर सभी लोग बहुत तरह जमी है कि आपका किसी अन्य से कोई व्यस्त है, उनके पास पहले से ही बहुत से कार्य है। सम्बन्ध नहीं । किसी आपरेशन की तरह से वें उस वो सोचते हैं कि परमात्मा को खोजने से और व्यक्तित्व को निकाल कर बाहर फेंक देते है । परमात्मा की साधना के लिए समय बरबाद करने से अधिक महत्वपूर्ण बहुत से कार्य उनके पास है। परिस्थितियों में सहजयोग सभी साधकों के हृदय स्रोत से जुड़े रहना होगा, सामूहिकता में रहना में अत्यन्त नैसर्गिक रूप से यह कार्य करता है। ह बिना किसी कठिनाई, बिना किसी प्रयासा आप ऐसे व्यक्ति के साथ नहीं, जो अन्य लोगों को वश परन्तु यहाँ पर सभी कुछ आपकी स्वतंत्रता पर इन छोड़ दिया जाता है। आप समझते हैं कि आपको होगा, पूर्ण के साथ जुड़ना होगा, यहाँ वहाँ, किसी बैतन्य लहरी सितम्बर - अवदूबर, 2004 ५ इस वात से प्रभावित करने का प्रयत्न करते है कि में करने का प्रयास कर रहा हो। सहज-योग में कोई यदि आवांच्छित रूप से ऊँचा उठने का प्रयास आप बड़े महान साक्षात्कारी आत्मा हैं या आपने यह करेगा तो उसका पतन हो जाएगा। प्रकृति में उपलब्धि पा ली हैं, वो उपलब्धि पा ली है, यह सारी आपने देखा होगा कोई भी चीज सीमा से अधिक चीजें जो आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने से पहले नहीं बढ़ती जैसे मानव की एक विशेष ऊँचाई है. भिन्न वृक्षों की अपनी ही सीमित ऊँचाइयों हैं, सभी अपराध है और इसका दण्ड आपको अवश्य मिलता कुछ नियंत्रित है। सहज-योग में आप दिखावा है यह कल्कि की शक्ति गुप्त रूप से सहज- बाजी नहीं कर सकते और न ही आपको कोई भी किया करते थे, तो यह अंत्यन्त गम्भीर योगियो के पीछे से कार्य करती रहती है। उदाहरण रामूह या कोई विशेष चीज बनाने का प्रयत्न के रूप में एक महिला मुझे मिलने आई, वह मेरे करना चाहिए। मैने दंखा है कि थोड़ा सा उन्नत विषय में कुछ लेख छापना चाहती थी, किसी दुष्ट होने के पश्चात सहज योग में लोग अन्य साधकों ने पैसे देकर उसे मेरे पास भेजा था। उसने मेरे से अपने चरण स्पर्श करवाते हैं । आश्चर्य की बात विषय में कुछ उल्टी सीधी ऐसी चीजें छापी जो मैने है कि ऐसे लोगों का निश्चित रूप से पर्दा कभी की ही नही थीं। इनके कारण सभी लोग बहुत फाश हो जाता है। सभी लोग उन्हें जान जाते है नाराज हो गए और कहने लगे श्रीमाताजी आप और चक्रो के पकडे जाने के कारण वह बेकार हो अवश्य उसे दंडित करे, उसे कचहरी में घसीटें, जाते हैं । हो सकता है उन्हें चैतन्य लहरिया आती उसके विरुद्ध मान-हानि का दावा करें, आदि हो परन्तु उनका पतन होता चला जाता है, होता आदि। मैने कहा कि मैं कचहरी नहीं जाऊगी, कृपा चला ना है जब तक वे पूरी तरह से नष्ट नहीं करके आप लोग जाएं. ऐसे विचार त्याग दें। परन्तु हो जाते । मनुष्य में घटित होने वाली यह योग- भ्रष्ट कोई मेरी बात सुनने को तैयार न था। हुआ यह कि रिथति निकृष्तम स्थिति है पहले तो आपको योग वह अखबार साढ़े तीन महीनों के लिए बन्द हो गया ही नहीं प्राप्त होता और यदि योग प्राप्त हो गया और उन्हें बहुत बड़ी हानि उठानी पड़ी। नि सन्देह और उसके बाद आप योगभ्रष्ट स्थिति में चले गए यह सब मैने नहीं किया था जहाँ तक माताजी तो, जैसे श्री कृष्ण ने वर्णन किया है, आप राक्षस निर्मला देवी का प्रश्न है। यह सारा कार्य कल्कि ने योनि में चले जाते है। भिन्न तुरन्त 1 किया था । ग्यारह शक्तियाँ सहज-योग के सौन्दर्य की रक्षा कर रही हैं कोई भी यदि सहज-योग से खिलवाड़ करने का प्रयत्न करे तो उसे बुरी ततरह से कृष्ट होता है तो आज का दिन आपको यह बताने सहज -योग में आने वाले सभी लोगों को यह अवश्य समझ लेना चाहिए कि उन्हें एक ही स्थिति में स्थापित रहना चाहिए अन्यथा और कौन सी योनि बच जाती है? योग प्राप्ति विना यदि आपकी हो जाती है तो हो सकता है कि आपका का है कि परमात्मा से खिलवाड़ करने में बितने मृत्यु पुनर्जन्म हो जाए, हो सकता है। नि:सन्देह यह खतरे हैं। अभी तक लोग उन पर अपना अधिकार जीवन तो व्यर्थ हो ही जाएगा। मानते थे ।लोगों ने ईसा-मसीह जैसे व्यक्ति को भी परन्तु सहज-योग में आकर यदि आप ऐसी सताया । बड़े बड़े संतो को भी सताया गया । हमेशा चालाकियों करने का प्रयत्न करते हैं या लोगों को मानव को कष्ट दिए गए और मैं अपने हर भाषण में सितम्बर - अक्टूबर, 2004 चैतन्य लहरी এ0 यह चेतावनी देती रही कि आज भी आप वही निहित कल्कि आपको थोडा सा बक्त देगा। परन्तु चालाकियां न करते रहें क्योंकि कल्कि गतिशील एक बार यदि वह गतिशील हो उठा तो-आप हो चुके हैं। अतः किसी भी सन्त को, सज्जन व्यक्ति को कष्ट देने का प्रयत्न न करें। हुआ। पहले साल ही मौ्वी के कुछ लोग मुझसे इस बारे में सावधान रहें क्योंकि कल्कि गतिशील हैं मिले, मौ्वी के कुछ बड़े-बडे आदमीं । यह सब और यह शक्ति एक बार यदि आप पर कृपित हो एक ऐसे भयानक सन्त में विश्वास करते थे जो गई तो आपको छुपने की जगह नहीं मिलेगी यह इतना दुष्ट था कि उसने परिवारों के परिवार नष्ट बात मैं केवल सहज-योगियों से नहीं कह रही हूँ, कर दिए।मैने उनसे पूछा कि क्यों तुम इस व्यक्ति पूरे विश्व से कह रही हैँ कि सावधान हो जाएं,दूसरों को मानते हो ? यह तो आपका चित्त भौतिक को हानि पहुँचाने का प्रयत्न न करें, उनका नाजायज चीजों की तरफ ले जा रहा है। क्यों आप इसमें लाभ उठाने का प्रयत्न न करें, अपनी शक्ति दर्शाने विश्वास करते हैं ? मौवी में हर घर में इस दुष्ट का प्रयत्न न करें क्योंकि आपके जीवन में यदि एक बाबा का चित्र था और जब मैने उन्हें बताया तो वह किसी भी जानते हैं आंध्र में क्या हुआ। मौ्वी में भी ऐसे ही बार यह विनाश शुरु हो गया तो आपको समझ मेरी बात सुनने को तैयार न थे। उन्होंने सोचा कि नहीं आएगा कि इसे कैसे रोके। मेरे ख्याल से पहले भी मैनें आपको बताया था तथाकथित सन्त से ईष्या है। आप जानते है मौर्वी कि एक बार मैं आंध्र-प्रदेश गई थी। वहां मैने में क्या घटना हुई, यह सच्चाई है। लोगों से कहा कि अब आप तम्बाकू उगाने बन्द मैं उन्हें इसलिए चेतावनी दे रही हूं क्योंकि मुझे उस यह सभी बातें अन्य लोगों के सम्मुख की गई कर दें। सभी मेरे से बहुत नाराज हो गए क्योंकि थीं ताकि लोग इस बात को जान लें कि किस उनके विचार में तो यह उनकी जीविका थी। तम्बाकू से वे नोट छाप रहे थे और उस धन से सभी ने बता दिया था। इससे पूर्व दिल्ली में मैं वृंदावन के प्रकार के पाप कर रहे थे। मैने कहा कि संसार में कुछ लोगों से मिली थी ,उन्होंनें मुझे वहाँ के पण्डे आप अपने सिर पर इतने सारे पाप कर्म लादने के तथा अन्य चीजों के बारे में बताया मैने उन लोगों लिए नहीं आए,आप तो अपने पापों को धोने के से कहा आप अपना यह पेशा त्याग दें, आप कितने लिए,पापाक्षालन करने के लिए आए हैं अपने पापों भयानक लोग हैं! परमात्मा के नाम पर पैसे बनाने को बढ़ाने के लिए नहीं आए हैं, उन्हें धोने के लिएवाले आप कौन होते हैं? यह सभी पंडित और पण्डे स्थान पर क्या घटित हुआ, उसके बारे में माताजी आए हैं । यह पापों से मुक्ति पाने का समय है। और ऐसे सभी लोग समाज का रक्त चुसने वाले यही कारण है कि मैं निर्मल बन कर आपको पाप भयानक कीड़े हैं। तुम लोग अपने धन्धे छोड़ दो। मुक्त करने के लिए आई हूँ। पर आप तो अपने गंगा नदी के कारण तुम जो पैसा कमा रहे हो, वही पापों को बढ़ाए चले जा रहे हैं । यह तम्बाकू उगाने से आपको क्या लाभ होगा? परन्तु उन्होंने मेरी एक देगी गंगा और यमुना में जब बाढ़ आई तो मैं न सुनी इंसके बाद अपने तीन प्रवचनों में, यह लन्दन में थी। दूरदर्शन पर मैने इन पांडों को अपने रिकार्ड किए गए हैं, लोग कहते हैं कि मैंने उनसे खोमचे और बाकी का सामान सिर पर लादकर कहा था कि सावधान हो जाओ, बीज के अन्दर दौड़ते हुए देखा। गंगा नदी एक दिन तुम्हें पूरी तरह से नृष्ट कर ho बैतन्य लहरी सितम्बर अवटूबर 2004 41 नि संदेह इन दुष्टों के साथ जब आप सहयोग आने वाले सन्तो के यह सिर फोड़ देते हैं । उनके करेंगे, इनके साथ जब आप रहेंगे, तो आप भी दुखी सिर को यह ऐसे फोड़ते हैं मानो नारियल को फोड होंगे। अबोध लोग ही कष्ट उठाएंगे क्यों हमें ऐसे रहे हों। बेचारे सभी सिर के दर्द से कराहते हैं। इन लोगों से प्रभावित होना चाहिए? ऐसा करने की सादे अबोध- लोगों पर यह इतना अत्याचार करते हैं कीमत तो आपको चुकानी होगी उनसे प्रभावित तो क्या आपके विचार से मुझे इनको उचित ठहराना होकर आप उनके सहयोगी बन जाते हैं और कहते चाहिए? मैं तो सत्य, धर्म और दया पर खड़ी हैं। हैं, चलो कोई बात नहीं। हम वहां जा रहे हैं तो जब मैने यह कहा तो कुछ लोग जिनके अपने हित इसको कुछ दे ही दें यह हमारे पूर्वजों का पंडा भी निहित थे, हो सकता है वो इन बाधावों के संबंधी बैठा है गंगा नदी के सम्मुख, यह पैसों की भीख रहे हों या जो भी हो, मुझसे नाराज हो गए| परन्तु मांग रहा है । कल्पना करें कि प्रेम और आनन्द की परमात्मा का शुक्र है कि तीन महीनों के अन्दर दाता गंगा नदी बह रही है और यह दुष्ट अपनी सरकार ने वहाँ का सभी कुछ अपने अधिकार में ले पीठ उसकी ओर करके बैठे हुए हैं और आपसे पैसे लिया था । मांग रहे हैं! कितने मूर्ख है यह लोग, कितने बेकार और जाहिल! और आप हैं कि उन्हें पैसे देते हैं कि हमारी आँखों के सम्मुख चीजें घटित होती और सोचते हैं कि उन्हें पैसे देकर आपने पुण्य का रहती हैं फिर भी हम मंदिरों में परमात्मा के नाम पर काम किया है। हम इसी प्रकार का जीवन बिताते वही सब कुछ किए चले जाते हैं, पाप के बाद पाप रहे हैं, सत्य और असत्य को समझे बिना सहयोग किए चले जाते हैं। पापों को स्वच्छ करने और किए चले जाने का एक ओर तो हमें देश में तथा अपने विकसित मस्तिष्क से उन्हें समझने के स्थान विश्व भर में होने वाले, विशेष रूप से इस देश में पर हम अपने पूर्व पापों में और पाप जोड़ते चले होने वाले, सभी कूक्मों में पूर्ण अंधविश्वास है। हम जाते हैं । पापों में और पाप जोड़ते ही चले जाते हैं। अत्यन्त अबोध लोग हैं जिनमें भावुकता का बाहुल्य ऐसे लोग जो अपने मस्तिष्क का उपयोग ही नहीं है। यह बात सत्य है परन्तु इसका अर्थ यह भी करते, वे मूढ़ बुद्धि हैं। किसी के भी सम्मोहन, प्रभाव नहीं कि हम मूर्ख एवं जाहिल बन जाए। उदाहरण या चमत्कारिक गतिविधियों. के रूप में उस दिन अवध गांव की एक सभा में मैने में हैं कहा था कि विट्ठल के मंदिर में बाधावी कहलाने हो जाते हैं और यह चमत्कार करने वाले इनसे वाले इन लोगों को अच्छी तरह से दंडित किया हजारों रुपये ऐंठ कर मिर्गी और आधे सिर दर्द जाना चाहिए क्योंकि लगातार कई दिनों तक (Epilepsy, Migraine) रोग उनके गले डाल देते पैदल चल कर वहाँ आने वाले सन्तों से जो हैं। यदि यह न दिए तो पागलपन तथा अन्य र्दुव्यवहार वो करते हैं, इसके बारे में अवश्य कुछ बिमारियाँ दे देते हैं। परन्तु लोग पागलों की तरह किया जाना चाहिए। मैने जब यह बात कही तो से इन चमत्कारिक गतिविधियों के पीछे दौड रहे हैं सभी लोगों को कुछ नाराजगी हुई क्योंकि इन और अपने विनाश को बढ़ावा दे रहे हैं, और किए बेचारे लोगों के लिए राक्षस रूपी यह बाधव कुछ हुए अपराधों के ढेर को स्वच्छ करने की अपेक्षा महान चीज हैं। हजारों मील चलकर उनके पास उन्हें बढ़ाए चले जा रहे हैं । हम लोगों के लिए यह बात इतनी सामान्य है जैसा पश्चिमी देशों को देखकर लोग उनके सम्मुख नतमस्तक सितम्बर चैठन्य लहरी अक्टूबर, 2004 42 इस बार हमें अत्यन्त बहुमूल्य समय प्राप्त म पाप किया जाए। तो ऐसे लोग मात्र दो छलांगों हुआ है और व्यक्ति को अपने विषय में अत्यन्त में असानी से नरक में जा सकते हैं। सावधान रहना है। स्वास्थ्य के मामले में व्यक्ति को किसी और पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, उसे वाले कल में हो या बीते हुए कल में हो या हजारों परमात्मा के साम्राज्य में अपना विश्वास स्थापित वर्ष पहले हो। आपके धर्म और पुष्टि के लिए जो करना चाहिए और सर्वशक्तिमान् परमात्मा के हृदय गलत है वो गलत है। मूर्खता यह है कि लोग में उच्चतम स्थान प्राप्त करना चाहिए क्योंकि जब कहते हैं इसमें क्या दोष है, उसमें क्या दोष है ? कल्कि आएंगे तो वे इन दुष्टों को अत्यन्त बेरहमीपूर्वक इस प्रश्न का उत्तर केवल कल्कि देंगे। मैं तो जो गलत है वो गलत है, चाहे आज हो, आने काट डालेंगे। उनमें करुणा का पूर्ण अभाव है,ग्यारह आपको केवल यह बता रही हैूँ कि यह गलत है, रुद्र उनमें निवास करते हैं,अर्थात् विध्वंसक शक्तियां बुरी तरह गलत है। यह आपके उत्थान के विरोध उनमें पूर्णतः स्थापित हैं । जब मैं यह सब कुछ में है, आपके अस्तित्व के विरोध में है। बाद में देखती हैूँ, क्योंकि मैं यह सब कुछ देख सकती हैँ, आपके पास पछतावा करने के लिए और यह पूछने मुझमे एक अपात स्थिति का अहसास आ जाता है के लिए कि," इसमें क्या दोष है," समय न होगा। और फिर मैं बताती हैूँ कि इससे सावधान हो आपका दम घोंट दिया जाएगा। कल्कि का अवतरण जाओ, इस शक्ति से बचो, इसके साथ खिलवाड़ ऐसा है। जैसा कहा जाता है, वे सफेद घोड़े पर मत करो इसे सहज मत मानो और दुष्ट लोगों के सवार होकर आएंगे । इतनी आश्चर्यजनक शक्ति कार्यान्वित होने वाली है। सभी मनुष्यों को परखा जाएगा, तब कोई साथ तालमेल मत करो,सत्य पर डटे रहो। अन्यथा कल्कि के आने का दिन बहुत समीप है। एक अन्य प्रकार के लोग हैं जो अपनी बुद्धि भी खिलवाड़ न कर सकेगा। आप देखें किस प्रकार का कोई अन्त नहीं देखते, उन्होंनें परमात्मा को सभी चीजों का विज्ञापन हो रहा है, सभी कुछ छापा नकार दिया है, वो कहते हैं 'कहां है परमात्मा? कोई परमात्मा नहीं है, हम परमात्मा पर विश्वास (Microphone) सहजयोग के प्रचार के लिए उपयोग नहीं करते। यह सब पागलपन है, विज्ञान ही सभी किया जा सकता है। इसे यदि मैं अपने चकों पर कुछ है । विज्ञान ने अभी तक क्या किया है? ले लूँ तो आपको चैतन्य लहरियाँ मिलती हैं और आइए इसे देखते हैं कि विज्ञान ने हमारे लिए क्या आत्म-साक्षात्कार प्राप्त होता है पूरा विज्ञान किया है । अभी तक तो विज्ञान ने हमारे लिए कुछ सहजयोग की हजूरी में है उस दिन जैसे दूरदर्शन नहीं किया है, इसने केवल मृत कार्य किया है, के कुछ लोग आए थे। उन्होंने ने कहा, 'श्रीमाताजी आपको अहंकारी बनाया है,पूरा पश्चिम अंहकार हम आपकी दूरदर्शन फिल्म बनाना चाहते हैं। मैने चालित हैं। वो अपराध करने के नए- नए तरीके कहा इस कार्य को करने से पहले सावधान हो खोज रहे हैं कि किस तरह बुरे से बुरा अपराध जाना। मुझे कीर्ति की आवश्यकता नहीं है। जो भी किया जाए। वो इसके मार्ग खोज रहे हैं और भारत कार्य आप करो उसे अच्छी तरह से करना। दूरदर्शन जा रहा है। विज्ञान द्वारा बनाया गया यंत्र भी कुछ ऐसे गुरु हैं जो उन्हें इसके लिए ज्ञान के माध्यम से हम सहज-योग दे सकते हैं। मान उपलब्ध करा रहे हैं कि किस प्रकार अधम से अध लो कि टी वी के पर्दे पर मैं हूँ तो मैं लोगों से कह में सितम्बर चैतन्य लहरी 43 अव्टूबर, 2004 सकती हूँ कि अपने हाथ मेरी ओर करें और इस प्रकार से हजारों लोगों को केवल टी.वी देखते हुए ने कहा था कि शैतान (Satan) अपने घर के विरुद्ध कुछ नहीं बोलेगा एक दूसरे से उनकी बड़ी अच्छी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो सकता है। यह वास्तविकता मित्रता है। परस्पर उन्हें कोई समस्या नहीं। एक है। इसके विषय में क्यों आपको नाराज होना दूसरे के प्रति वे अत्यन्त करुणामय हैं, शिष्यों में भी चाहिए? क्यों नहीं आकर आप इसे परखते ? क्यों वे धन बांटते हैं, आप ये ले जाओ और मैं ये ले लूंगा आपको आधात पहुँचना चाहिए ? मैं यदि ऐसी हूँ और हम सभी सीधे नरक में जाएंगे। अच्छी तरह से तो इससे आपके अहँ पर क्यों चोट आनी चाहिए ? यह आयोजित है जैसे एक रेलगाड़ी पहले जाती आप यदि मेरे से भिन्न हैं तो इससे मुझे कोई चोट है, फिर दूसरी छुटेगी और फिर तीसरी। इस प्रकार नहीं पहुँचती! आप जब कहते हैं कि हमें की महत्वाकांक्षा इस प्रकार के अहंकार, धन लोलुपता, फलां -फलां कार्य आयोजित करना है तो मुझे बुरा इसका दूसरा पक्ष है। हर समय हम इसी पैसे में नहीं लगता, तो यदि कोई अन्य परमेश्वरी व्यक्तित्व ही व्यस्त रहते हैं। मैं इसे भ्रम कहती हैँ- मतिभ्रम का है तो आपको बुरा क्यों लगना चाहिए? ईसा-मसीह यदि दिव्य व्यक्ति हों तो आपको आपमें है वो है आपका प्रेत-आत्माओं के पीछे , मृत क्यों बुरा लगा? क्यों आपने उनका कत्ल कर लोगों के पीछे भागते रहना यह दो मृगतृष्णाएं हैं दिया? क्यों आपने उनकी हत्या कर दी? इतने जिनके पीछे आप दौड़ते हैं । पैसे से आप क्या इतने महान् संतो को क्यों आपने सताया? आप तो प्राप्त करने वाले हैं? किसी अतिधनी व्यक्ति के पास अत्यन्त बुद्धिमान एवं मधुर थे! क्या ये बात ठीक जाकर स्वयं देखें। जाएं और देखें कि क्या वह 1 (Hallucination) कहती हैूँ। एक अन्य भ्रांति जो नहीं है? आप लोग अत्यन्त करुणामय एवं अच्छे व्यक्ति प्रसन्न है? लोग हैं जो सभी प्रकार के गलत, व्यर्थ एवं भ्रमित करने वाली चीजों के पीछे दौड़ रहे हैं। बहुत से तथाकथित सफल व्यक्ति के पास जाकर उसे देखें लोग आपको भ्रमित करने के लिए आए और कि उनकी सफलता क्या है? कौन उनका सम्मान आपको पथ भ्रष्ट करने के लिए आपसे धन ले रहे करता है? ज्यों ही वह पीठ मोडते हैं,लोग कहते हैं. हैं। पाप देने के बदले वे आपसे पैसा ऐंठ रहे हैं। "हे परमात्मा! मैने किसका चेहरा देख लिया? मुझे नरक यात्रा के लिए ये आपका नाम दर्ज कर रहे जाकर अपना मुँह धो लेना चाहिए।" क्या आप हैं। उनके अपने नाम भी इसमें लिखे हुए है जब मंगलमय हैं? आपको देखकर किसी का कुछ मैं उनके नाम लेती हूँ तो लोगों को बहुत आघात होता है, किसी का कुछ शुभ होता है? क्या आप लगता है कि क्यों श्रीमाताजी इन गुरुओं के विरूद्ध कल्याणमय हैं? आपका व्यक्तित्व कैसा है? । स्वयं बोलती है! वे गुरु नहीं हैं। वो तो राक्षस हैं। एक बार ईसा-मसीह खड़े हो गए और कहा में हो सकता हैं। कि इन राक्षसों और इनके बच्चों को नरक में जाना होगा तब लोग उनके पास गए और कहा कि लगा श्रीमाताजी मैं एक युवा लड़का हूँ न जाने मुझे उसके जीवन का क्या विश्लेषण है? ऐसे किसी हित अपना निर्णय करें और वह आंकलन यहां सहज -योग सहज-योग में हमारे पास एक रोगी आया,कहने इनके विरुद्ध यह सब कहते हैं?" एक क्या हो- गया है कि मैं अमंगलमय (अशुभ) हो गया "क्यों तुम दूसरे के विरुद्ध वो कुछ नहीं कहते। ईसा-मसीह हूँ। मैने कहा, "तुम कैसे जानते हो?" कहने लगा सितम्बर - अक्टूबर, 2004 चैतन्य लहरी 44 जहां भी मैं जाता हूँ पति-पत्नी में झगडा हो जाता के जाल में फंस गए हैं उससे सम्मोहित हैं। मैने है, बच्चों को कोई तकलीफ हो जाती है, वो रोने उनसे पूछा कि क्या ये व्यक्ति आपके घर आता है? चिल्लाने लगते हैं। अब लोग मुझसे घृणा करने उसने उत्तर दिया हाँ । मैने कहा ठीक हैं, जाकर लगे हैं लोग कहते हैं कि मूझमें कोई दोष है मैने उसे वैसे ही जूते लगाने की क्रिया करो, वैसा करो उस बच्चे के बारे में पता लगाया कि मामला क्या जैसा हम सहज-योग में करते हैं। इस प्रकार से है और बह बच्चा ठीक हो गया अब उसमें से उस लड़के का चक्र ठीक हो गया क्या आप अपने अत्यंत सुन्दर चैतन्य लहरियाँ बहती हैं। आपमें से परिवार, अपने बच्चों और सभी सदस्यों को केवल अत्यन्त नकारात्मक लहरियों भी निकल सकती हैं। इसलिए नष्ट करना चाहते हैं क्योंकि आप किसी अनजाने में हो सकता है आप अपराध किए चले सम्मोहित करने वाले व्यक्त को मानते हैं?कम से जा रहे हों। फिर भी आप कह सकते हैं, "श्रीमाताजी कम इस बात को तो सोचो। ऐसे बहुत से लोग हैं। मुझे चैतन्य लहरियाँ आ रही हैं, मैं बिल्कुल ठीक परन्तु सहज-योग को छोड़ देना बहुत आसान हूं।" ऐसे लोग हमेशा स्वयं को और अन्य लोगों को धोखा देते हैं "बहुत बढ़िया, मुझमें मेरी स्थिति प्रथम दर्जे की है, मेरी चैतन्य लहरियां मत करो, ऐसा बिल्कुल मत करो, मुझे कुछ नहीं सर्वोत्तम हैं और मैं बहुत अच्छी तरह से बढ़ रहा लेना देना। तुरन्त आपको समझ जाना चाहिए कि हूँ। आपका आंकलन कौन करेगा? यह आपका हमारी माँ जो सभी कुछ जानती हैं, वो जानती है कार्य है! दूसरों के साथ आप क्या करते ? हाल ही और उन्होंने हमें बताया है, यही कार्य हमें करना में हमारे यहाँ ऐसा एक पादरी (Bishop) था । मैंने चाहिए । इसके बारे में बहस नहीं करनी चाहिए। देखा कि जिस भी व्यक्ति ने उस भद्र पुरुष को क्या बहस मोबाहिसा करके आपको चैतन्य लहरियाँ है,लन्दन में भी मैं जानती हूँ कि कौन कहाँ जाता कोई कमी नहीं । है और क्या करता है। मैं उनसे कहती हूँ कि ऐसा छुआ था उसका बायोँ स्वाधिष्ठान बुरी तरह से प्राप्त हुई थीं? परन्तु सहज-योग में लोग गलतियाँ पकड़ गया था मैंने जब यह बात बताई कि इस करते हैं और यह अत्यन्त निकुष्टतम कार्य है व्यक्ति को इतना महत्त्व देना गलत था तो सभी क्योंकि योगभ्रष्ट लोग निकृष्टतम होते हैं, वो कहाँ जाएंगे। यहाँ उपस्थित सभी सहज योगियों को मैं एक सहजयोगी डाक्टर मुझसे मिलने के लिए चेतावनी देती हूँ कि सहज-योग अंतिम निर्णय मेरी जान के पीछे पड़ गए। आया। उसका आठ वर्ष का बच्चा भी आया, वो (Last Judgement) है । आपका केवल निर्णय ही बहुत अच्छा लड़का था, आत्साक्षात्कारी था परन्तु नहीं होगा, आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश उसका स्वाधिष्ठान बहुत खराब था। तो मैने उससे करेगे। आप परमात्मा के नागरिक बन जाएंगे, यह पूछा क्या यह व्यक्ति आपके घर आता है? उसने ढीक है। परन्तु इसके अतिरिक्त आपमे यहाँ होने कहा हाँ, श्रीमाताजी वो प्रायः हमारे यहाँ आता है। की योग्यता है, चाहे आपका समर्पण पूर्ण है या मेरी चेतावनी के बावजूद भी वह व्यव्ति उनके घर नहीं परमेश्वरी नियमों की समझ आपको है या पर जाता और वे लोग उसका मनोरंजन करते, यह नहीं। आप चाहे भारत के नागरिक हों परन्तु यदि नहीं बताते कि तुम श्रीमाताजी के पास जाकर 3पने को स्वच्छ करा लो । वास्तव में वे उस व्यक्ति आपको दंडित किया ही जाएगा। इसी प्रकार आप आप गलतियाँ करेंगे, गैर-कानूनी कार्य करेंगे तो सितम्बर - अवटूबर. 2004 चैतन्य] लहरी 45 चाहे परमात्मा के साम्राज्य नागरिक बन जाए तो प्रतीक के रूप में तलवार जैसा एक शस्त्र (खड़ा) है भी आपको अत्यन्त-अत्यन्त सावधान होना पड़ेगा। और श्री गणेश के पास फरसा है और श्री दूसरी बात जो मैं आपको बताना चाहूँगी वह जी की हनन करने वाली नव सिद्धियाँ भी उन्हें दी है कल्कि की विध्वंसक शक्तियों के विषय में । गई हैं। श्री बुद्ध की सारी क्षमाशीलता और श्री आज का प्रवचन आपके लिए बहुत तेज है क्योंकि महावीर जी की अंहिसा भी बिल्कुल उल्ट जिस अवतरण के बारे में आपने मुझे बोलने के लिए जाएगी यदि हम सहज-योग से अलग हो गए हनुमान कहा है वह भी अत्यन्त उग्र है, उग्रतम । कृष्ण और जब हमें पूरी तरह से निकाल फेंका गया तो अवतरण भी हुए, जिनमें हनन शव्ति थी,उन्होने यह सारी ग्यारह शक्तियाँ हम पर टूट पड़ेंगी और कंस और बहुत से राक्षसों का वध किया। बचपन में ही उन्होंने पूतना तथा बहुत से राक्षसों का वध किया, परन्तु उन्होंने लीला भी की। ये एक सामान्य हनन की तरह से नहीं होगा जैसा उन्होंने प्रेम किया और लोगों को क्षमा भी किया, देवी ने किया था देवी ने तो हजारों वर्ष पूर्व केवल रियायतें भी दी। अंतिम हनन उन्हीं के द्वारा किया जाएगा। काश की यह हनन तक ही सीमित रहे क्योंकि राक्षसों का हनन किया था। परन्तु वो सारे राक्षस परन्तु ईसा-मसीह क्षमा की प्रतिपूर्ति हैं। एक बार फिर जीवित हो उठे हैं। ईसा-मसीह की क्षमा उनके अंत स्थित सहनशीलता (Sustenance) के अतिरिक्त और कुछ भी कि इसको समझने का प्रयत्न करें कृष्ण के समय नहीं। यदि हम उनकी क्षमा का मूल्य न समझ पाए में प्राचीनकाल में जब श्रीकृष्ण ने कहा," विनाशायः तो वो फट पड़ेगे (कुपित हो जाएंगे) उनकी क्षमा च दुष्कृताम्, परित्राणाय च साधुणाम" तो इस अब समस्या बिल्कुल भिन्न है आपको चाहिए विध्वस बन कर हम पर गिर सकती है। उन्होंने कथन को समझना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि स्पष्ट कहा है कि मेरे विरुद्ध यदि कुछ कहा गया दुष्ट प्रवृत्तियों एवं नकरात्मक शक्तियों को समाप्त तो उसे सहन कर लिया जाएगा परन्तु (HOLY करने के लिए और सन्तों की रक्षा करने के लिए मैं GHOST) के विरुद्ध यदि एक भी शब्द बोला गया युग -युग में अवतरित होता हूँ (सम्भवामि) बार-बार तो उसे बर्दाश्त् नहीं किया जाएगा यह बात मैं पृथ्वी पर अवतरित होता हूँ । परन्तु कलयुग की उन्होंने स्पष्ट रूप से कही है। अब आपने इसे समस्या यह है कि इस युग में न तो कोई पावन समझना है। HOLY GHOST आदि शक्ति हैं। सहज साधु है और न ही राक्षस । बहुत से राक्षस, व्यक्ति को यह बात समझनी है कि ऐसे अवतरण लोगों के मस्तिष्क में घुस गए है आप बहुत से का आना बहुत समीप है और श्रीकृष्ण की सभी गलत लोगों का,गलत कार्य करने वालों का, राजनीति, शक्तियाँ उन्हें दी गई हैं जो कि हनन शक्तियाँ धर्म, विकास और शिक्षा आदि के नाम पर गलत हैं। ब्रह्मदेव की शक्तियाँ भी, जो कि हनन कार्य करने वाले बहुत शक्तियाँ है, उन्हें दी गई हैं, शिव की शक्तियाँ, एक बार जब उनका पक्ष लेते हैं तो वे आपके तांडव जिसका एक हिस्सा है, भी उन्हें दी गई हैं। मस्तिष्क में प्रवेश कर जाते हैं । वो आपके अन्दर श्री भैरव की शक्ति, इसे आप भी जानते हैं कि श्री होते हैं और जब तक वे आपके अन्दर हैं उन्हें कैसे भैरव के पास क्या है, उनके पास हनन शक्ति के नष्ट किया जाए? वे आपके अन्दर हैं, हो सकता है से लोगों का पक्ष लेते हैं। चैतन्य लहरी सितम्बर - अक्टूबर, 2004 46 आप अच्छे व्यक्ति हैं और फिर भी आप नष्ट हो लोग शराब पीने के लिए जाते हैं। यह लोग इतने जाएं क्योंकि आपने इन लोगों को, इन दुष्टों को मूर्ख हैं कि किसी की यदि मृत्यु हो जाए तब भी ये अपने मस्तिष्क में भरा हुआ है। अतः इस चीज का लोग शैम्पेन पीते हैं। शैम्पेन उनका धर्म है और कोई स्थायी मापदंड नहीं है कि कौन वास्तव में व्हिस्की उनकी कुृण्डलिनी। कैसे वे परमात्मा को दुष्प्रवृत्ति है और कौन सच्चा सन्त। केवल सहज-योग समझ सकते हैं जबकि उन्होंने परमात्मा को अपने ही आपको स्वच्छ करके पूरी तरह से सकारात्मकं, मिथ्या विचारों के अनुरूप बनाया हुआ है! माँ होने के नाते मैं आपको चेतावनी देती हॅँ कि है। एक मात्र यही तरीका है क्योंकि आपका अंकुर सावधान हो जाएं। अपनी आत्मा से खिलवाड़ मत जब आत्मसाक्षात्कार देना शुरु करे तो अपनी करो। पतित न हों,उन्नत हों, आगे बढे, मैं यहाँ आत्मा का एहसास होने लगता है, अच्छी आत्मा आपकी सहायता के लिए हैं । आप जानते हैं कि को आप महसूस करते हैं और उस आत्मा के साथ मैं दिन-रात आपके लिए कार्य करने के लिए हैँ। आत्मा हैं, मृगतृष्णा आपके लिए मैं बहुत परिश्रम करती हैूँ, आपकी (Mirage)नहीं। उस आत्मा का आप आनन्द लेने सहायता करने के लिए मैं कोई भी कसर नहीं लगते हैं और एक बार जब आत्मा का आनन्द लेने लिए हर लगते हैं तो आप उन सभी चीजों को त्याग देते हैं सम्भव प्रयत्न करूंगी ताकि आप अन्तिम निर्णय की जिनकी वजह से आपको समझौता करना पड़ता है, इस परीक्षा को पास कर लें। परन्तु इसके लिए जिसके कारण आप भयानक मिश्रित व्यक्ति बन आपको मुझे सहयोग देना होगा तथा अपना सकारात्मक रूप से अच्छे और धार्मिक बना सकता | आप समझते हैं कि आप छोडूंगी, और आपको ठीक करने के जाते हैं। यह सारा भ्रम दूर हो सकता है। अतः यह अधिकतर समय तथा सभी श्रेष्ठ एवं महान् गुणों को आवश्यक है कि हमें सहजयोग को अत्यन्त समर्पित आत्मसात करने के लिए अपना सारा समय समर्पित होकर अपनाना है और स्वयं को और अपने सभी करना होगा। कल्कि बहुत बड़ा विषय है, आप जानकारों को दुष्प्रवृत्ति मुक्त कर सकते हैं। यही अगर कल्कि पुराण को देखें तो जानेंगे की कितनी एकमात्र उपहार है जो हम अपने मित्रों, संबंधियों मोटी पुस्तक है। निःसंदेह बहुत सी व्यर्थ की चीजें तथा आस-पास के व्यक्तियों को दे सकते हैं। भी हैं, परन्तु समय आने पर हम कहते हैं कि यह लोग अन्य लोगों को रात्रि भोजों तथा शराब की जीवन्त प्रक्रिया हैं। कार्य जब समाप्त हो जाएगा पार्टियों आदि के लिए निमंत्रित करते हैं। इस और जब हम यह समझ लेंगे कि पंक्ति में खड़े होने प्रकार आप उन्हें क्या देते हैं? कुछ नहीं। वे जंन्म के लिए अब कोई स्थान बाकी नहीं है तो कल्कि दिवस में उपहार देते हैं, एक दूसरे के पास जाकर अवतरित हो जांएगे देखना है कि कितने लोग इस पुष्प मालाएं पहनाते हैं और मंगलकामनाओं का कार्य को करते हैं क्योंकि इसकी भी सीमा है । आदान-प्रदान करते हैं। लन्दन में ईसा-मसीह के अतः मेरी प्रार्थना है कि बाहर निकलो, अपने मित्रों जन्म दिवस के अवसर पर मंगलकामना पत्रों का को संबंधियों को और पड़ोसियों को तथा अन्य सभी इतना बड़ा ढेर लगता है कि क्रिसमस से दस दिन लोगों को बुलाओ। पहले से ही कोई अन्य पत्र डाक द्वारा नहीं भेजा जा सकता और ईसा-मसीह के जन्म के दिन सभी दिन है, माँ की तरफ से कल थोड़ा सा समारोह यहां नवरात्रि के कार्यक्रम का कल अन्तिम चैतन्य लहरी सितम्बर अक्टूबर, 2004 এ7 भी मनाया जाएगा। मेरे लिए महानतम समारोह पूरे देश के लोग बम्बई के लोगों का अनुसरण करने तब होगा जब मुस्बई में मुझे सहज-योग को का प्रयत्न करते हैं। गंभीरतापूर्वक अपनाते हुए बहुत से आत्मसाक्षात्कारी लोग दिखाई देंगे । सहज-योग में आने के पश्चात् पीठ पीछे का प्रयत्न करेंगे। यह हमारे सतही स्वभाव की छुरी, तुच्छता, परस्पर क्रोध करना आदि नहीं होना समस्या है। मैं आपको बताती हूँ कि कल हमारा चाहिए। संवेदन एवं विवेकशील बनना चाहिए। एक बहुत अच्छा कार्यकरम है और ग्रेगोर, जो की अत्यन्त आश्चर्य की बात है कि जिन लोगों को स्विटजरलैंड के एक बैरन के बेटे है उनकी पुस्तक राष्ट्र का गर्व होना चाहिए था वही परिष्कृत The Advent का विमोचन भी होगा। ग्रेगोर जब (Sophisticated) लोग भी इतने संकीर्ण बुद्धि एवं पहली बार मेरे पास पहुँचे तो मैं स्पष्ट देख पाई कि व्यर्थ हैं! यह सारी चीजें मुझे इसलिए बतानी पड़ वह साधक हैं यद्यपि उस वक्त उसकी स्थिति रही हैं कि मेरे सम्मुख आपात स्थिति की तरह से बहुत खराब थेी। वह खडित मनस्किता चीजें आ रही हैं। बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो परमात्मा के स्थान पर किसी अभिनेता या अभिनेत्री का अनुसरण करने 1 (Scizophrenic) रोगी की तरह से बिगड़ा हुआ मैं प्रार्थना कर रही हूँ कि यह सब कुछ बम्बई मामला था। परन्तु मैं देख पाई कि उसके अन्दर में आरम्भ होना चाहिए। बम्बई उस दिन सीमा एक बहुत गहन साधक विद्यमान् है। उसे सामान्य (Verge) पर पहुँच गई थी,जिस दिन राजेश ने मुझसे पूछा था कि 'श्रीमाताजी बारिश का क्या है, परिश्रम करना पड़ा। परन्तु जब आपमें जिज्ञासा ही बुद्धि स्तर पर लाने के लिए मुझे बहुत कठिन बारिश का क्या है बारिश का क्या हैं? परन्तु मैने न हो, जब आप इतने भटक चुके हों, तब आपके उसके प्रश्न का उत्तर नहीं दिया तो उसने कहा, श्रीमाताजी, मैं जानता हूँ कि आप बम्बई के लोगों से नाराज है, एक बार फिर उन्हें क्षमा कर दें। और का दिन आपको चेतावनी देने का है क्योंकि आपने उसी रात से यहाँ बारिश होने लगी परन्तु आगे मुझे कल्कि के विष्य में बताने के लिए कहा है। आने वाली आपदा के बारे में सावधान रहें, ये बात उन्हें हमारे भाल पर स्थापित किया गया हैं। कल्कि मैने सभी बम्बई के लोगों को बतानी थी। जब-जब यदि पकड़ा हुआ हो, कलिक का चक यदि पकड़ा भी मैं वापिस आती हैँ मुझे सहज-योगियों की हुआ हो तो मस्तक पर स्थित श्री बुद्ध बिगड़ जाते बेवकूफी दिखाई देती है कि वो किसी एक व्यक्ति हैं। कुण्डलिनी जागृति में हम देखते हैं कि यदि श्ी के पीछे हो जाते हैं बम्बई के लोग अभी तक भी बुद्ध बिगड़े हुए हों तो कुण्डलिनी उठती ही नही, यह नहीं जानते कि आगे उन पर कौन सी विपत्ति पूरा सिर अवरुद्ध हो जाता है ऐसे लोग कुण्डलिनी आने वाली है वो इस बात से बिल्कुल अनभिज्ञ हैं को, हम कह सकते है, हंसा चक्र से ऊपर नहीं साथ क्या होगा, ये बात मैं नहीं जानती। अतः सावधान रहे, अल्यन्त सावधान रहे। आज कि किस प्रकार उन्हें अमीबा से इस अवस्था तक उठने देते। ज्यादा से ज्यादा आज्ञा चक्र तक लाया गया। परमात्मा ने उनके लिए क्या किया कुण्डलिनी उठती है और फिर गिर जाती है, इसका और उन्होंने परमात्मा के लिए, पूरे देश के लिए कारण जैसा बताया मैनें बताया था, कि गलत क्या किया! यह अत्यंत खेद की बात है क्योंकि गुरुओं के सामने यदि आपने अपना मस्तक झुकाया चैतन्य] लहरी सितम्बर - अक्टूबर, 2004 हो तब भी दाई ओर की समस्या खड़ी हो या किसी अन्य से छुपा हुआ है, आप स्वयं जानते सकती है। इससे कल्कि का एक पक्ष बिगड़ जाता हैं कि आप क्या गलत कर रहे हैं। है और इस पक्ष में (दाई आज्ञा) असंतुलन बन आप यदि जानते हैं कि आप पाप कर रहे हैं, है तो व्यक्ति अपने हृदय में यदि आप जानते हैं कि मैं पाप कर को समझ लेना चाहिए कि कल्कि चक्र खराब है रहा हूँ तो कृपा करके ऐसा करना छोड़ दें अन्यथा और कल्कि चक्र यदि खराब हो तो व्यक्ति किसी आपका कल्कि बिगड जाएगा। जब आपमें परमात्मा न किसी भयानक विपत्ति में फसने वाला होता है। का भय होगा और आप जानते हैं कि परमात्मा यह आने वाली विपत्ति के चिन्ह हैं। कल्कि चक्र सर्वव्यापी है, सर्वशक्तिमान है। उनमें हमें उच्च जब पकड़ जाता है तो सारी उंगलिया जलने अवस्था तक उठाने की शक्ति है तथा हम पर अपने लगती हैं, हथेलिया और कभी-कभी तो शरीर पर सभी आशीष की वर्षा करने की शक्ति है । चे जाता है। पूरे मर्तक पर यदि उभाड भी भयानक जलन महसूस होती है। कल्कि चक्र के पकड़ने का अर्थ यह है कि व्यक्ति को कैसर, करुणामय पिता हैं इतने करुणामय की उससे कोढ आदि कोई न कोई बीमारी होने लगती है. अपर हम सोच भी नहीं सकते। परन्तु वे दडशक्ति या तो ऐसी कोई बीमारी होने लगती है और या से भी परिपूर्ण हैं जब े हम पर कोध करते हैं तो किसी विपत्ति में फस कर व्यक्ति का अन्त होने हमें अत्यन्तअत्यन्त सावधान होना होगा मां होने अत्यन्त दयालु है या हम कह सकते है कि अत्यन्त के नाते मुझे आपको चेतावनी देनी होंगी कि अपने लगता है। अंत कल्कि चक्र को ठीक तथा संतुलित रखा मिता के कोध से सावधान हो जाएं क्योंकि यदि वे जाना आवश्यक है । कल्कि चक्र के कम से कम आप पर कुपित हो गए तो उन्हें कोई नहीं रोक ग्यारह उपचक्र हैं, उनमें से कम से कम कुछ चक्रों सकता, कोई नहीं रोक सकता,मां की करुणा को को तो जीवित रखना आवश्यक है ताकि अन्य को भी नहीं सुना जाएगा क्योंकि वे कह सकते हैं कि बचाया जा सके। परन्तु सारे चक्र यदि नष्ट हो गए ढीला छोड़कर आपने अपने बच्चों को बिगाड दिया तो ऐसे व्यक्ति को आत्साक्षात्कार दे पाना अत्यन्त है। अत आपको मुझे यह बताना है कि कोई गलत कठिन कार्य है । कल्कि को ठीक रखने के लिए व्यक्ति को माँं के लिए तो यह सारी बातें कह पाना क्या करना चाहिए? अपने कल्कि को ठीक रखने कठिन है । कोमल हृदय, आपके लिए कोमलता की कार्य न करें अपनी गलतियों से मुझे नाराज न करें। भी बहुत के लिए आपके अन्दर परमात्मा का भय होना भावना से परिपूर्ण मों के लिए ये सब कुछ कहना चाहिए । परमात्मा का भय यदि आपके अन्दर नहीं बहुत कठिन है परन्तु मुझे आपसे प्रार्थना करनी है, परमात्मा से यदि आप नहीं डरते, इस बात से है कि खिलवाड मत करें, क्योंकि आपके पिता यदि आप नहीं डरते कि कोई गलत कार्य यदि क्रोध से परिपूर्ण है, कोई दुष्कर्म यदि आप करेंगे तो आपने किया तो परमात्मा का दंड भी है तथा वे वै आपको दडित कर सकते हैं । दंडित करने वाले उसमात्मा है. तथा [यदि हम उनके लिए., अपने लिए, अपने आत्मसाक्षात्कार भारे लिए विष से परिपूर्ण के लिए यदि आप कुछ करेगे तो आपको उच्च पद हैं। इसका यदि भध नही है, यह नहीं कि मेरे से पर स्थापित किया जाएगा। आज हो सकता है आप दुष्कर्ग करते हैं सितम्बर - अकटूर, 2084 49 वैतन्य लहरी ब करोड़पति हों, सबसे अधिक धनवान हों, महानतम है उनका कोई महत्व नहीं है। महत्वपूर्णतम चीज राजनीतिक नेता हों, हो सकता है आप प्रधानमंत्री तो यह है कि परमात्मा की दृष्टि में आप कहाँ है। हों, आदि कुछ भी हों। परमात्मा की उपस्थिति में अपने विषय में, अपनी आत्मा के विषय में सहज-योग जो लोग उन्हें प्यारे हैं उन्हें उच्वतम पद पर के माध्म से पता लगा कर आपको यह सम्बन्ध आरूढ़ किया जाएगा। सारी सांसारिक चीजें जो स्थापित आपको अत्यन्त मनोरंजक और सम्मोहनशील लगती सम्बन्ध आत्मा से जोड़ना होगा। और हो गा अपना करना परमात्मा सबको धन्य करें। के का ८६ ी ह० आपका जो किला है, आपका जो Fortress है वो है निर्विचारिता । निर्विचारिता में जानों, वहीं जान जाओगे सबकुछ। कोई भी काम करना हो तो ता निर्विचारिता में जाओ। सारा संसारिक काम निर्विचारिता में करते ही साथ में आप |े जानिएगा कि कहाँ से कहाँ Dynamic हो गया मामला.. उम्र का तकाजा नहीं है। निर्विचारिता में रहना चाहिए, यही आपका स्थान है, यही आपका धन है, यही आपका बल है, शक्ति है, यही आपका स्वरूप है, यही आपका सौन्दर्य है, यही आपका जीवन है । निर्विचार, निर्विचार होते ही बाकी का जो बाहर का यन्त्र है वो धूरा का पूरा आपके हाथ में घूमने लग जाता है निर्विचारिता में रहिए, वहाँ पर न समय है, न दिशा है, न कोई छू सकता है, सिर्फ जीवंतता का दर्शन होता है कि जीवन कैसे खिलता है। इसके सौन्दर्य का दर्शन होता है, इसके सामर्थ्य का दर्शन होता है, इसके ऐश्वर्य का दर्शन होता है और इसके सत्य का दर्शन होता है। उस जगह से देखिए जहाँ से जीवन की धारा बहुती है। " 3० करं 8४ ---------------------- 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-0.txt ज चैतन्य लहरी 2ं १० ও ० बुभ सितम्बर - अक्टूबर, 2004 मठ ी 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-2.txt NIRMALA, UNIVERSAL PUKE इस अंक में 3 गुरु पूजा, कबेला 4.2004 6 शास्त्रों में 'ऊँ" की व्याख्या 8 शपथ (युवा शक्ति की) 9 संगीत अकादमी का शुभारम्भ, वैतरणा- 1.1.2003 |। दिवाली पूजा लास एंजलिस, 9 नवम्बर, 2003 12 परम पूज्य श्री माताजी का सहजयोगियों को आदेश 15 - 1.6.1972 गुरु पूर्णिमा 28 हर श्वास में सहजयोग को प्रस्थापित क ..1.197) 37 कुण्डलिनी और कल्कि (नवराि पूजा- 28.09.1979) DHARMA 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-3.txt चै त न य ल ह री प्रकाशक निर्मल इन्फोसिस एवं टेकनोलोजीज़ प्रा. लि. मुख्य कार्यालय : प्लाट न. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, होटल ग्रेस के पीछे, पॉड रोड, कोठरुड पुणे - 411 029 मुद्रक अमरनाथ प्रेस प्रा. लि. औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली-110015 WH.S 2/47 कीर्ति नगर, मोबाइल : ९८१०४५२९८१, २५२६८६७३ सदस्यता के लिए कृपया निम्न पते पर लिखें: श्री जी.एल. अग्रवाल निर्मल इन्फोसिस एवं टेकनोलोजीज़ प्रा. लि. 222, देशबन्धु अपार्टमैंट, कालका जी नई दिल्ली-110 019 फोन : 26216654, 26422054 आप अपने अनुभव, सुझाव, सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ. पी. चान्दना जी-11-(463), ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली 110 034 011-5535681I दूरभाष प्रात: 08.00 बजे से 09.30 बजे सायं: 08.30 बजे ये 10.30 बजे 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-4.txt गुरु पूजा ड कबेला लीगरे, जुलाई 4,2004 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ( हिन्दी रूपान्तर) (Internet Version) यही कारण है कि आज आपका गुरुपर्व है और सहजयोगियों को देखकर मुझे अत्यन्त खुशी हो इस पर्व में आप अपने गुरु के प्रति उस प्रेम को रही है और अत्यन्त आन्नद हो रहा है। ये सोचना महसूस कर सकते हैं। वह अहसास अन्दर है और अत्यन्त सुखकर है कि दवतने सारे आप लोग मेरे अपने अपने अन्दर ही आप इसे महसूस कर सकते शिष्य हैं। कभी आशा नहीं की थी कि मेरे इतने हैं अत: हमें समझना है कि यह दिखावा नहीं है, न कुछ और भी नहीं है, केवल अपने अन्दर का में आशा करती हैँ कि आप सब मेरे प्रेम अहसास है जिसे आप जानते हैं कि आपमें परमेश्वरी सन्देश का अनुसरण करेंगे प्रेम के विषय में मुझे प्रेम है। क्योकि यह अन्दर मौजूद है इसलिए आप कुछ नहीं कहना। प्रेम पूर्ण उपहार है।दूसरों की इसे पा सकते हैं कोई अन्य न आपको यह प्रेम दे भावनाओं को महसूस करने का पूर्ण उपहार । न सकता है, न ही कोई इसे बेच सकता है, न कोई इसमें कोई बातचीत है और न बहस मोबाहिसा। इसे बांट सकता है। यह तो बस मौजूद है। इस प्रेम आप तो बस प्रेम को महसूस करते हैं। मैं कहूँगी को महसूस किया जा सकता है और बांटा भी जा कि प्रेम को महसूस करने के लिए व्यक्ति के पास सकता है किसी अन्य से इसका कुछ लेना देना हृदय होना आवश्यक है। परन्तु यह हृदय आप नहीं। दूसरे लोग आपको प्रेम करते हैं या नहीं किस प्रकार प्राप्त कर सकते है ? यह आपके करने इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । ये अहसास तो की चीज नहीं है, सभी कुछ मौजूद हैं तो इसका आपके अन्दर मौजूद है, आपके अन्दर यह गहनता वरदान तो आपको पहले ही दिया जा चुका है-ये है और इसका आप आनन्द लेते हैं। ये सबके आपके पास है तथा उस प्रेम को आप महसूस कर सामर्थ्य पर निर्भर करता है। सभी में यह प्रचुर सकते हैं। ये अत्यन्त आनन्ददायी एवम् शान्ति मात्रा में विद्यमान है कभी कभी आपको लगता है कि आपने इसे खो दिया, कभी आपको लगता है प्रेम की अपनी ही खूबियां होती हैं और इसकी कि आपने इसे पा लिया, परन्तु यह तो सदा सर्वदा गुरु पूजा के लिए आए इतने अधिक अधिक अनुयायी होंगे। 1 प्रदायक है। एक खूबी यह है कि बह प्रेम को समझती है। इसे विद्यमान है । शब्दों,विचारों में नहीं समझा जा सकता। यह तो इसी प्रकार प्रेम का स्रोत भी शाश्वत है। आप अन्तर में समझा जाता है। प्रेम का अनुभव अन्दर इसकी गहनता को नाप नहीं सकते। ऐसा करना होता है और यह बात अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है इस कठिन है । ये सभी मानवीय अभिव्यक्तियों से परे है महत्वपूर्ण भाग को व्यक्ति ने महसूस करना है कि और आपकी सूझ बूझ को दर्शाता है प्रेम की प्रेम को केंवल महसूस किया जा सकता है इसके आपकी सूझ बूझ को, जिसमें कोई शब्द नहीं होते, विषय में आप बातचीत नहीं कर सकते इसका जिसकी व्याख्या नहीं की जा सकती, स्वतः ही आप दिखावा नहीं कर सकते। यह तो अन्त स्थित है, जान जाते हैं कि मेरे अन्तस में प्रेम का यह गुण है और अपने अन्दर मैं इस प्रेम का आनन्द ले सकता इसे महसूस कर सकते हैं। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-5.txt सितम्बर अवटूबर, 2004 न्य लसष्ी ै। ये अद्वितीय उपहार है जो बहुत कम मनुष्यों अन्तरनिहित है कि यह कार्य करती है अपनी को प्राप्त है पशुओं से भी आप देखते हैं कि लोगों अभिव्यक्ति करती है। प्रकाश की तरह से अभिव्यक्त को प्रेग है। परन्तु वह प्रेम गहन नहीं है, वो होती है। ऐसे लोगों को हम पहचान सकते हैं अर्थहीन है। हो सकता है कि इसका कोई उद्देश्य क्योंकि वे पूर्णतः प्रबुद्ध होते हैं उनमें प्रकाश होता हो परन्तु यह मानवीय नहीं है अत इसमें मानवीय हैं और उस प्रकाश के माध्यम से वे पूरे विश्व को प्रेम के सीन्दर्य का अभाव है, मानवीय प्रेम की देखते हैं। ऐसा करना उनके लिए अत्यन्त पावन साझ -बूझ की कमी है । प्रेम की व्याख्या या वर्णन शब्दों में करना आसान नही है इसे तो आप अपने अन्दर ही लिए प्रेम है। अपने माता पिता के लिए भी हमारे और सहज होता है। स्वाभाविक रूप से हमारे अन्दर अपने बच्चों के महसूस कर सकते हैं। एक बार जब आप इस प्रेम अन्दर स्वामाविक प्रेम है। यहुत से लोगों के लिए को महसूस कर लेंगे तो आप महसूस कर पाएंगे हमारे अन्दर प्रेम है,परन्तु जिस प्रेम के विषय में मैं कि आप का गुरू कौन है और यह भी जान पाएंगे आपको बता रही हैं उस प्रेम से यह प्रेम भिन्न है । कि कौन आपको सिखा रहा है, कायल कर रहा है उस प्रेम का कुछ सम्बन्ध होता है,कोई अभिप्राय और एक विशेष प्रकार से जीना सिखा रहा है। ऐसा कर पाना सम्भव है । आप स्वयं को इसमें शब्दों में नहीं हो सकता। यही कारण है कि डुबो दें । यह देख कर अत्यन्त प्रसन्नता होती है कि कोई कारण नहीं है क्योंकि प्रेम तो प्रेम है। इस किस प्रकार लोग परस्पर प्रेम करते हैं। तत्पश्चात प्रकार से जीवन में गुरु अत्यन्त महत्वपूर्ण बन जाता সह प्रेम फैलता है। प्रेम से प्रेम बढ़ता है। किसी है हमारे यहां ऐसे लोग है जो अपने गुरु को प्रेम तव्यक्ति में यदि प्रेम है तो यह फैलता है । उसे करते हैं और जिन्हें अपने प्रेम का पावन ज्ञान है। होता है परन्तु यह नि.स्वार्थ प्रेम है । इसका वर्णन आपको अपने गुरु से प्रेम करना चाहिए उसके लिए किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है, प्रेम को प्रेम के इस पावन अवसर पर जिसमें हम सवीकार करने की आवश्यकता नहीं। यह तो उपस्थित हैं, यहां हम हृदय से एक दूसरे का आनन्द प्राप्त करने के लिए हैं। इस प्रेम का सागर. हमारे अन्दर है, इस सागर में हमें स्वयं को फैलेगा । और यही व्यक्ति को सीखना है-दूसरे रयविति में प्रेम को किस प्रकार देखना है। डुबोना गिर में यदि हम खो गए तो न प्रेम जो भी हो सहज घटित होने के कारण हम मात्र है। इस -सा लोग पहले से ही प्रेम मग्न हैं। हम सब प्रेम करते तो हमें कोई समस्या होगी और न ही कोई प्रश्न सरह है र प्रेस का आनन्द लेते हैं। यह बात हमारे जाएगा। हर चीज हमारी अपनी होगी, विना किसी मेहरों पर झलकती है कि अपने चरित्र में हम प्रेम मय है और यह प्रेम प्रत्यक्ष दिखाई देता हैं । यह व्यवस्था कर सकेंगे यही सहज' होना है। वाद-विवाद के. बिना किसी प्रश्न के हम सारी सहज तरीके से आपमें यदि यह प्रेम है.. बहुत बड़ा वरदान है कि आप लोग मानव हैं और मानवता कि यह सूझ बूझ, जिसके लिए हमें किसी अद्वितीय ढंग से लोगों तक पहुँचने वाला हृदय का महाविद्यालय, पाठशाला आदि में शिक्षा ग्रहण करने वह प्रेम कहां है। उस चीज को आप अपनी सम्पत्ति के लिए नहीं जाना पड़ता. यह तो इस प्रकार नहीं बना सकते । उसके लिए आप कोई दावा नहीं 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-6.txt सितम्बर गोतन्य लहरो अवटूबर 2004 ्र छा इ कर सकते। यह तो है और कार्य करती है । स्वत यह कार्य करती है। हमने यहीं जानना है कि हम परन्तु अपने अन्दर महसूरा करना ही सबसे डा वही प्रेम हैं। वहीं प्रेम हमारे अंत स्थित है । ज्ञान हमें प्राप्त करना है इस बात का हमें ज्ञान प्राप्त करना है कि हम बादशाह है । इससे युझाने के लिए हम पानी पी तो नहीं सकते। आप हमारी समस्या का समाधान हो जाएगा क्योंकि ही को जल पीना होगा, आप ही को उसका स्वाद इससे आप हर चीज की व्याख्या कर सकते हैं, महसूर करना होगा, उसकी भावना को सहसूरा अपने आचरण की, अपनी असफलताओं की और करना होगा कि यह क्या करता है यह सब एक प्रेम के विषय में मैं लगातार बोल सकती हैँ । इसका कार्य हैं । पानी की तरह से, आप यदि प्यासे है तो पूर्ण हम आपको जल दे सकते हैं परन्तु आपकी प्यास शेष हर चीज की व्याख्या आप कर सकेगे यदि साथ है, अलग नहीं है। मेरे विचार से यह विषय आपके लिए बहुत आपमें उस प्रेम का वरदान है। गुरु भी यही है, आपके अंतस्थित प्रेम, जो अधिक सूक्ष्म नहीं था। आप सब उस प्रेम को एक दूसरों के साथ यह प्रेम बाटना चाहता है, दूसरों को सीमा तक तो समझ ही चुके हैं। गुझे आशा है कि यह प्रेम देना चाहता है। यह ऐसा ही है-प्रेम एवं यह प्रेम बढेगा, आप लोग इसमें उतरें आप सभी, और इसका आनन्द उठाएगें। आनन्द । परमात्मा आपको धन्य करें। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-7.txt शास्त्रों में 'ॐ' की व्याख्या सहजयोगी जानते हैं कि विश्व के सभी धर्मो बनाया गया था, फिर भी विश्व उन्हें ( परमात्मा) का लक्ष्य जीव और आत्मा तथा अआत्मा और परमात्मा पहचानता नही था। का मिलन है। यह साधक का अपनी आत्मा से (John I "जिस लक्ष्य के विषय में वेदों ने घोषणा की एकरूप होना है,आत्मा का परमात्मा में लीन हो जाना हैं। परमात्मा के स्नेहमय प्रेम के खेल को चह है,जो सभी तपस्याओं में निहित हैं और जिसको मुरली की तरह से साक्षी भाव से देखते हैं। सहस्रार में स्थापित होने पर जब कुण्डलिनी जीवन व्यतीत करता है, उसके विषय में संक्षिप्त में का भिलन अनहद् चक्र स्थित आत्मा से होता है तो बताऊगा। यह ॐ है।" मानवीय चेतना सर्वोच्च धर्म को महसूस करती है। यह आत्मा और शक्ति (परमात्मा तथा पावन आत्मा) भी चीज का अस्तित्व रहा, जो अस्तित्व में है और के सामंजस्य की अवस्था है। यह अवस्था अव्यक्त जिसका आज के बाद भी अस्तित्व रहेगा वंह ऊ. परमात्मा (परब्रह्म, परमात्मा, ब्रह्मा) तथा मानव के है। भूत, भविष्य और वर्तमान से भी परे अगर कुछ अंत स्थित परमात्मा (आत्मा) के बीच योग को भी है तो वह भी ऊँ है। बाहर जो भी कुछ हम देखते व्यक्त करती है, क्योंकि यह मूल अन्तर से पूर्व है वह ब्रह्मा है। हमारे अंतः स्थित आत्मा भी ब्रह्मा आने वाली योग की अवस्था को प्रतिबिम्बित करती है, यह आत्मा ऊ से एकरूप है।" है( सर्वशक्तिमान) परमात्मा और पावन आत्मा (HOLY SPIRIT) सदाशिव और आदिशक्ति में मूलतः दिखाई प्राप्त करने के लिए मनुष्य ब्रह्मचर्य और सेवा के "अक्षर ऊँ नश्वर है और वही ब्रह्माण्ड है। जिस र (मन्दोक्यउपनिषद) "आमीन (Amen) शब्द के अक्षर शुभचिन्तक, सच्चे, साक्षी परमात्मा की सृष्टि के आरम्भ है।" पड़ने वाला अन्तर स्पष्ट हो जाता है। लाओडीसी (Laodicea) के चर्च के देवदूत को इस योग (UNITY) की अभिव्यक्ति ब्रह्य तत्व, ॐ और आमीन में प्रकट होती है जो भगवान लिखे जीसस काइस्ट, परमात्मा के पुत्र, महाविष्णु (Lord (John. The Apocaly pse 3.14) ईसाइयत और ऊँ शब्द का सम्बन्ध सहज Vishnu) के रूप में अवतरित हुए। आइए देखते हैं कुण्डलिनी योग से जोड़ कर हम पावन अक्षरों में कि प्राचीन युगों में इसके विषय में क्या कहा निहित प्रतीकवाद को अनावरित कर सकते है:- अक्षर 'A" विराट के, आदि पुरुष के तमोगुण "सर्वप्रथम शब्द था, शब्द परमात्मा के पास था, का प्रतिनिधित्व करता है( उनके इच्छा भाव का) । शब्द ही परमात्मा था। इस प्रकार परमात्मा ने ब्रहमाण्डीय स्तर पर महाकाली ईश्वर की शक्ति है शुरुआत की, सभी कुछ उनके द्वारा बनाया गया। लघु ब्रह्माण्डीय स्तर पर यह ईड़ा नाडी है और कोई भी सृजित चीज उनके अतिरिक्त किसी बाई अनुकम्पी नाड़ी प्रणाली (Left Sympathetic ने नहीं बनाई। उन्हीं में जीवन था और जीवन ही Nervous System)। सूक्ष्म स्तर पर यह अणु का Jesus the Christ, the Son of God, Maha गया । मानव मात्र को ज्योतिमय नाभिक (nucleus) है । अक्षर U" आदि पुरुष के रजो गुण को व्यक्त (कार्यशीलता- activating. mood) मानव का प्रकाश था..| करने वाला सच्चा प्रकाश विश्व में आ रहा था। परमात्मा संसार में थे और संसार उन्हीं के द्वारा करता है ( 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-8.txt सितम्बर - अवटूबर, 2004 चैतन्य लहरी ब्रह्माण्डीय स्तर पर यह हिरण्यगर्भ है जिसकी सर्वत्र और हर समय कार्य रत् है परन्तु शक्ति महासरस्वती है। लघु ब्रह्माण्डीय स्तर पर यह पिंगला नाड़ी है तथा दाई अनुकम्पी नाड़ी कर सकता। g uaa (Right Sympathetic nervous आत्म साक्षात्कार से पूर्व मनुष्य इसे महसूस नहीं उपनिषद हमें बताते है कि." ऊँ ही ब्रह्म है । ॐ एली System) तथा सूक्ष्म स्तर पर यह अणु को ही सभी कुछ है।" अब यह प्रश्न उठता है कि ऊँ विद्युतअणु है। अक्षर "M" आदि पुरुष के सत्व गुण को इसका उत्तर सहजयोग के माध्यम से दिया है। अभिव्यक्त करता है ( प्रकटन भाच-Revelation मानव ऊ किस प्रकार बनता है? Mood) जो ऊ को साक्षात् आदिपुरुष, विराट का रूप प्रदान करता है, जिसकी शक्ति महालक्ष्मी है) A", "U" और "M" को वास्तव में एकरूप कौन लघु ब्रह्माण्डीय स्तर पर यह सुषम्ना है अर्थात् करता है? जो कुण्डिलनी की जागृति प्राप्त कर पराअनुकम्पी नाड़ी प्रणाली (Para Sympathetic लेता है। Nervous System) तथा सूक्ष्म स्तर पर यह अणु की कर्षण शक्ति (Valency ) है। आदि कुण्डलिनी ( आदि कुण्डलिनी के रूप में आदि शक्ति-(HOLY SPIRIT) त्रिगुणात्मिका कहलाती है, जिनमें तीनो गुण हैं। वे A", "U" और में उन्होंने श्री गणेश का सृजन किया, श्री पार्वती "M" को एकरूप करती हैं। अतः परमेश्वरी शक्ति के रूप में उन्होंने श्री कार्तिकेय का सृजन के स्तर पर आदि कुण्डलिनी ऊँ का सृजन करती किया, श्री राधा के रूप में उन्होंनें श्री महाविष्णु हैं। प्रतीकाल्मक रूप में इसका अर्थ यह है कि का सृजन किया जो श्री जीज़स के रूप में माँ आदिशक्ति ही परमात्मा के पुत्र (Son of God) की मैरी की कोख से अवतरित हुए तथा परम माँ हैं । ॐ एक ध्वनि है और यह प्रतीक बास्तव में ऊर्जा की आदि गति-विधि का प्रतीक है। किया । पर ध्यान किस प्रकार किया जाए? श्रीमाताजी ने अक्षर "A", "U" और 'M" को एक रूप करके। कुण्डलनी स्वयं को किस प्रकार अभिव्यक्त करती है? सहजयोग के माध्यम से। आदि शक्ति के रूप में सर्वशक्तिमान पावनी माँ ने ऊँ का सृजन किया, श्री गौरी के रूप पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी जी के रूप में उन्होने सहजयोगियों की एक प्रजाति का सृजन, श्री माताजी कहती हैं कि "परमात्मा के महान् आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् चैतन्य रूप में इसकी अभिव्यकित को पराअनुकम्पी प्रणाली नाड़ी तंत्र के पुत्र (Great Son of God) के रूप में ही सहज माध्यम से महसूस किया जा सकता है। यह शक्ति योगियों का सृजन किया गया है। " 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-9.txt शपथ (युवा शक्ति की) का समाधान कर सकें। हग ऐसा करने की शपथ लेते हैं। हम शपथ लेते हैं कि सहज योग के विषय पर बात करने की और विनम्रता-पूर्वक आत्मसाक्षात्कार देने के किसी भी अबसर को छोड़ेगे नहीं |। हम शपथ लेते हैं कि हम स्वयं के गुरु बनेंगे ताकि हमारे मुख से निकले शब्द आत्मसाक्षात्कारी गुरुओं के विश्वास से गूँजें और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने तथा विश्वनिर्मला धर्म में स्वतंत्र जीवन अपनाने की प्रेरणा दे। साधकों को हम शपथ लेते हैं कि अपने अंत्त निहित भय का सामना करेंगे, श्रीमाताजी से स्वंय का सामना करने तथा सहजयोग प्रसार करने के साहस की याचना करेंगे ह१ हम शपथ लेते हैं कि हम अपना अधिक से अधिक समय युवा शक्ति के भाई-बहनों के साथ विताएंगे, उन्नसे परमेश्वरी ज्ञान का आदान-प्रदान करेंगे और यदि आवश्यकता हुई तो उनकी रक्षा करेंगे। हम शपथ लेते हैं कि अपने अहँ और प्रतिअह ৪। पथ लेते है कि ध्यान धारणा करते हुए पर काबू पाने के लिए तथा पूर्ण विश्वास बनाए श्री गणेश की पूजा द्वारा, उनसे सुरक्षा की याचना रखने के लिए हम समर्पित होंगे। करके तथा अपने मूलाधार में स्थापित होने का निमन्त्रण उन्हें देते हुए हम अपनी अवोधिता की निष्ठापूर्वक हम अपनी परमेश्वरी मों से प्रार्थना करेंगे हम शपथ लेले हैं कि पूर्ण समर्पित, विनम्र कि वे हमें अपनी वास्तचिकता की पहचान प्रदान समाज के अनन्त प्रलोभनों से रक्षा करेंगे । हम शपथ लेते हैं कि हमारे चित्त में आत्मा के करें तथा हमें आशीवाद दें कि इस नव वर्ष में अपनी प्रकाश को ज्योतित होने से रोकने वाली संसारिक शपथ को पूर्ण करने के मार्ग में आने वाली बाधाओं बाधाओ से मुक्ति प्राप्त करेगे। जिस प्रकार श्रीमाताजी ने कवेला में सहस्रार आशा है कि नव वर्ष में एक नई शक्तिशाली युवा पूजा वर्ष 2000 के समय युवा-शक्ति से कहा था शक्ति सेना के उदभव का आरम्भ होगा, ऐसी युवा कि विचक्षण चित्त विकसित करें ताकि यह हमारे शक्ति के उदभव का जो अपने बच्चों के रूप में अंतस में दिव्य शक्ति का वाहक (Vector) बने और चुनने के लिए परमेश्वरी माँ के प्रति हृदय से हमारे सम्मुख मुँहबाए खड़ी विश्व की समस्याओं अनुगृहीत हो। एवं दुर्बलताओं पर हम विजय प्राप्त कर सकें। हमें 1 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-10.txt संगीत अकादमी का शुभारम्भ वैतरणा ( भारत)-01.01.2003 (परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी जी का प्रवचन) हिन्दी रूपान्तर मुझे खेद है कि मुझे हिन्दी भाषा में बोलना माँ या पिता या परिवार से भी मिल सकता है। तो पड़ा क्योंकि मेरे पिताजी के विषय में किसी अन्य इस प्रकार मैनें मानव को वैसे समझा जैसे वो आज भाषा में बोल पाना अत्यन्त कठिन है, यद्यपि वे स्वयं है। सहजयोग में आने के पश्चात्, शनैः-शनैः अंग्रेजी भाषा के प्रकाण्ड विद्वान थे और अंग्रेजी में सर्वत्र में ऐसे बहुत से लोगों से मिली. भारत में बहुत कुछ पढ़ा करते थे। उनका अपना एक भी और बाहर भी। परन्तु उनमें से 99% लोगों में पुस्तकालय था,मैने भी वहीं अंग्रेजी सीखी थी क्योंकि सुधार हुआ। अभी तक भी 1% लोग वैसे ही लटक मेरा शिक्षा का माध्यम तो मराठी था हिन्दी और रहे हैं। अंग्रजी भाषा का मैने कभी अध्ययन नहीं किया। क्योंकि मुझे पढ़ने का शौक था और पिताजी के आपमें यदि अहॅँ है तो आपका कुछ नहीं किया जा मानव की सबसे बड़ी समस्या उसका अहॅ है। पुस्तकालय के कारण जो थोड़ी बहुत हिन्दी और सकता क्योंकि ऐसा व्यक्ति सोचता है कि "मैने अंग्रेजी भाषा मुझे आती है, मैनें सीखी । अब लोग कुछ महान् कार्य किया है जिसके कारण मुझमें यह कहते हैं कि मैं बहुत अच्छी हिन्दी और अंग्रेजी अहॅँ है।" ऐसे लोग किसी की सराहना नहीं कर बोलती हूँ। इस पर मुझे आश्चर्य होता है क्योंकि सकते, प्रेम की तो बात ही बहुत दूर है । अहँ का मेरे लिए तो ये दोनों विदेशी भाषाएं थी। मैट्रिक की परीक्षा भी जब मैनें पास की तो मेरे पास एक छोटी सी पुस्तक अंग्रेजी की थी और यह भरा हुआ है, विदेशों में भी मैनें बहुत अहँ देखा माध्यमिक विज्ञान ( Inter Science) में भी एक परन्तु वो लोग कम से कम इतना तो जानते हैं कि छोटी सी पुस्तक मेरे पास थी। चिकित्सा महाविद्यालय अहॅ है और इसका सामना करना है। परन्तु इस में तो भाषा का कोई प्रश्न ही न था, परन्तु मैं बहुत देश में मैं समझ नहीं पाती, लोग ऐसे कार्य करते हैं कुछ पढ़ा करती थी। अतः मैं आप सब लोगों को जिनसे उनमें अहँ विकसित होता है, फिर भी वह भी राय दूंगी कि खूब पढ़ा करो। परन्तु मूर्खतापूर्ण सोचते हैं कि वो बिल्कुल ठीक हैं। पुस्तक न पढ़ कर अच्छी सुप्रसिद्ध पुस्तकों को पढ़ें। इसी प्रकार से मैने भाषा ज्ञान विकसित हमारे पास एक महानतम् उपलब्धि है और वो है किया, इसमें कुशलता पाई। पुस्तकों को पढ़ करके मैं यह जान पाई कि संगीतकारों को चाहिए कि सहजयोग अपनाएं। मानवीय असफलताओं का क्या कारण है मैं नहीं उन्हें चाहिए कि ध्यान-धारण करें। कोई संगीतज्ञ जानती थी कि मनुष्यों में ये कमियाँ थीं, इनका मुझे यदि धन लोलुप है तो आप कुछ नहीं कर सकते। ज्ञान न था, मैं तो इन सब चीजों से परे थी । पुस्तकें उसे या तो संगीत लोलुप होना चाहिए या ध्यान पढ़ने के बाद ही मैं यह जान पाई कि मनुष्यों में लोलुप । ऐसे लोग जो धन लोलुप होते हैं वो कभी कुछ कमियाँ भी हैं, हो सकता है इनका कारण अपना मूल्य नहीं समझ सकते क्योंकि यदि आपके उनका अहॅ या कुप्रशिक्षण रहा हो। यह कुप्रशिक्षण पास संगीत है संगीत की प्रतिभा है तो फिर क्यों अर्थ यह है कि आप केवल स्वयं से प्रेम करते हैं और अपना कोई अंत आप नहीं देखते। भारत में सभी देशों की अपनी-अपनी समस्याएं हैं, परन्तु हमारा संगीत । संगीतकार नहीं संगीत । अतः 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-11.txt सितम्बर चैतन्य लहरी 10 अक्टूबर 2004 आपको पैसे की चिन्ता होनी चाहिए? चाहे जितना पैसा आप उन्हें दे दें, वे कभी सन्तुष्ट नहीं होते। लिए उसके प्रस्ताव (Essays)मैं लिखा करती थी। गैने ऐसे बहुत से महान संगीतज्ञ देखे हैं जिन्हें न ' तो कभी धन की लालसा थी और न ही सत्ता की। तुम लिख सकते हों?" परन्तु उसने अध्यापकों को परन्तु आज भी हमारे यहां ऐसे संगीतकार है जो कभी नहीं बताया कि उसके प्रस्ताव में लिखा करती धुर-्धर हैं फिर भी अत्यन्त विनम्र हैं, वो सदैव यही थी। परन्तु अचानक उसमें भाषाएं सीखने की कहेंगे, "हमें अभी बहुत कुछ सीखना है, बहुत कुछ इच्छा जागृत हुई-मराठी समझना है।" अतः बाबा मामा तथा अपने पिता की मूर्ति को अच्छा ज्ञान था क्योंकि मेरी माँ भी गणितज्ञ यहा देख कर मैं अत्यन्त द्रवीभूत एवं प्रभावित हुई। थी, परन्तु अचानक उसने भाषाओं का भी ज्ञान इसलिए नहीं कि वे मेरे भाई या पिता थे परन्तु इसलिए प्राप्त कर लिया! वह इतना कुशल था कि मैं कि वे अत्यन्त-अत्यन्त महान् मानव थे और उनकी अपनी कविताएं ठीक करने के लिए उसे दिया महानता ने मेरे हृदय को छू लिया । बाबा में यह गुण करती थी। उर्दू, हिन्दी, अंग्रेजी और मराठी भाषा के था कि वह अत्यन्त प्रेममय और क्षमाशील व्यक्ति था। शब्दों का उसे अच्छा ज्ञान था। वह मुझे बताया अत्यन्त विनम्र एवं प्रेममय ।शोहरत की उसने कभी करता था कि, "मराठी भाषा बहुत अच्छी है, किसी चिन्ता नहीं की और न ही उसने कभी यह सोचा कि की गलतियाँ यदि आपने खोजनी हैं तो मराठी आरम्भ में वह बहुत निकम्मा था, स्कूल अध्यापक उससे कहते, "इतने अच्छे प्रस्ताव क्या हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी। आश्चर्य की बात थी कि गणित का उसे बड़ा बह कीन से पद पर है। उसका विनम्र स्वभाव अत्यन्त सर्वोत्तम है, इसके माध्यम से आप उसे उन गलतियों स्वाभाविक और अत्यन्त मधुर था। बचपन से ही वह मेरे साथ रहा इसलिए मैं उसे पहचान सकी। उसके बहुत से दिलचस्प शब्द भी बताए, मैने कहा, "बाबा मन में किसी के प्रति दुभावना न थी, न ही उसने किसी तुमने मराठी कब पढ़ी? उसने कहा 'अभी मुझे को नीचा दिखाना चाहा, हमेशा उसने शून्य बिन्दु पर इसका पता लगा है।" रहना चाहा। कोई यदि मुझे सताता तो वे अपनी पटुता से उसे कहीं अन्यत्र भेज देते,वह बहुत चतुर था। उसके स्वभाव के कारण सभी लोग उससे प्रेम करते उराने यह समझ लिया था कि इन धूत्तो को काबू थे कभी उसने दिखावा करने की कोशिश नहीं करना मेरे वश कि बात नहीं है, अतः वह अत्यन्त के बारे में बता सकते हैं उसने मुझे मराठी के तो उसका सारा ज्ञान अन्तरजात था और की,कभी नहीं। अत्यन्त सहज व्यक्तित, अत्यन्त सहज आदतें, उसने सदा लोगों को समझाने की कोशिश की कि वे किस प्रकार का जीवन व्यतीत करें बिना चतुराई से इनसे निपटता था और यह बात निश्चित कर लेता था कि ऐसे लोग इधर-उधर हो जाएं। वह जानता था कि दिखावा करने वाले लोग कौन हैं और उन्हें बताए, मैं नहीं जानती कि किस प्रकार वह ये उनके बारे में मुझे बताया करता था "यह व्यक्ति अत्यन्त दिखावेबाज है,ये दूसरों पर रौब जमाने का प्रयत्न करेगा जबकि ये कुछ भी नहीं जानते।" कविता उनके हृदय का सर्वोत्तम गुण था. वे सुन्दर कविताऍ लिखा सब कुछ कर पाया। अत: उसके प्रेम और लगन के कारण हमारे पास अब बहुत से संगीतज्ञ हैं, बहुत से लोग हैं सहज योग के लिए बाबा ने और मेरे पिताजी ने जो कार्य किया उसके लिए मैं उनके प्रति कृतज्ञ हू । करता थे। परमात्मा आपको धन्य करें। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-12.txt दिवाली पूजा लॉस एंजलिस, 9 नवम्बर, 2003 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी जी का प्रवचन आपके हृदयों का प्रकाश जब तो घटित हो ही गया है। अंत িे सामूहिक रूप से निकलता है तो विश्व के उचित दिशा में चलने के आपको यह बात भी समझनी चाहिए कि हमारे भाग्य का भी पथ- प्रदर्शन एवं देखभाल हों रहा है। आप आशीर्वादित लोग हैं, इसके विषय में कोई सन्देह नहीं हैं। हमें छोटी-छोटी चीजों और तुच्छ मामलों के विषय में हैं परन्तु समस्याएं भी हैं, जैसे सब लोग कहते चिंतित नहीं होना चाहिए। आप देखेंगे की सभी हैं, परन्तु हमारे लिए कोई समस्या नहीं है क्योंकि कुछ भली भांति कार्यन्वित होगा, यदि आप इसे हमारे सम्मुख अधेरा बिल्कुल नहीं हैं,कहीं भी हम अपनी नियति के भरोसे छोड़ देंगे ।आपकी नियति अंधेरा नहीं देखते,हम केवल प्रकाश, प्रकाश, प्रकाश अत्यंत उच्च एवं अत्यन्त महान् है। अपनी नियति लिए महान् प्रकाश का सृजन करता हैं। आज गहान् आनन्द का दिन है,जो भी लोग इसमें भाग लेगे वो भी इस महान आनन्द को फैला रहे देखते हैं। फिर किस चीज की कमी हैं ? कमी है के साथ आप बहुत आगे बढ़ेगे। हमारी सच्चाई की। हमें स्वयं के प्रति निष्कपट होना है क्योंकि, हमारा प्रेम एवं आनन्द उधार लिया आप जीवन के उच्चतम एवं श्रेष्ठतम् मार्ग पर दिवाली पर आज आप सबसे यह वचन है कि नहीं हैं। इसका उद्गम स्रोत से है और यह पहुँचेगे बह रहा है, बह रहा है,बह रहा है। अतः उसको करने के लिए सत्य होगा कि जो भी मैं कहती हैं मैरा कहा हुआ एक-एक शब्द यह प्रमाणित जागृत किया जाना आवश्यक है ताकि वह प्रेम वह घटित होता है। आपकी जो भी छोटी-छोटी बहता रहे और इष्यां, प्रतिद्वंद भाव आदि हमारे समस्याएं हैं सभी समाप्त हो जाएंगीं यह परमेश्वरी तुच्छ दुर्गुण इस प्रेम के प्रवाह में बह जाएं। यह के सन्देश है, आपको तूच्छ चीजों के लिए, धन के द्र्ग बह सकते हैं यदि आपका हदय प्रेम से परिपूर्ण हो। आज प्रेम के उस प्रकाश को फैलाने आपका कार्य नहीं हैं। आपकी नियति इसे कार्यन्वित 1 लिए,नौकरियों के लिए चिंतित नहीं होना। यह का दिन है ताकि हर मनुष्य प्रकाश एवं प्रेम को करेगी। आपको वचन दिया जाता है कि आपकी महसूस कर सके और अपनी छोटी-छोटी समस्याओं देखभाल की जाएगी। मुझे आशा है कि आप इस को भूल सके। मुझे प्रसन्नता है कि आप लोगों को कोई मग्न हो जाएंगे| तचन पर विश्वास करेगे और पूरी तरह से आनन्द हृदय से मैं आप सबको अत्यन्त प्रसन्नता एवं सभागार मिल सका। सौभाग्य से हमें यह प्राप्त हुआ है, इसके विषय में लोग बहुत चिंतित थे । यह स्मृद्धिमय दिवाली का आशीर्वाद देती हैं। आपका हार्दिक धन्यवाद 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-13.txt परम पूज्य श्रीमाताजी का सहजयोगियों को आदेश (सहज योग सभी शारीरिक एवं अन्य विकारों को दूर करता है) चक्रों के विषय में हमेशा सावधान रहना अत्यन्त तरीके हैं। हमारी परमेश्वरी मौं पावनता का सार तत्व आवश्यक है। सदैव चकों को बाह्य बाधाओं और हैं। उनके चरण-स्पर्श करके लोगों को महान् पकड़ से मुक्त रखना चाहिए । नमक डले पानी में प्रसन्नता मिलती है। परन्तु लोगों की अंत स्थित बाध नियमित रूप से पैर डाल कर बैठना इसके लिए ओ के कारण माँ को कष्ट हो सकता है। अत्यन्त लाभदायक है। शारीरिक तथा मानसिक विकार उत्पन्न करने वाली बाधाएं प्रायः आँखों और है और बड़े इसके बदले में आशीर्वाद देते हैं यही भोजन के माध्यम से प्रवेश करती हैं। इन चीजों पर विशेष ध्यान दिया जाना आवश्यक है। चक जब अन्य लोगों से बिल्कुल भिन्न है और उन्हें इसकी खुलते हैं तो उन पर विराजमान् देवी-देवता जागृत कोई आवश्यकता नहीं। किसी को चरण सेवा के हो जाते हैं तथा सहज-योगियों की सहायता लिए यदि वह कहती हैं तो इसलिए कि उस व्यक्ति करते हैं । रात को सोने से पूर्व बन्धन लेना भी के चक्रों को स्वच्छ कर सकें, अपने व्यक्तिगत बाघाओं से रक्षा करता है। भारत में बुजुर्गों की चरण सेवा करने की रीति भावना माँ के प्रति भी दिखाई जाती है जबकि वे आनन्द के लिए वे ऐसा नहीं करतीं। अतः सभी को भक्त सदैव देवता को प्रसन्न रखना चाहता यह बात भली भांति समझ लेनी चाहिए कि उनकी है। हमारी माँ इतनी दयालु हैं कि वे अपने बच्चों आज्ञा के बिना उनके चरण-कमलों को स्पर्श नहीं को प्रसन्न देखने मात्र से तथा सहज-योग में उन्हें करना है। बढ़ता हुआ देख करे ही प्रसन्न हो जाती हैं। सहज-योगियों की समस्याओं को दूर करने के अभी आत्मसाक्षात्कार नहीं मिला तो हमें चाहिए कि लिए वे भिन्न स्थानों और देशों में जा-जा कर अपने चक्रो को स्वच्छ करने के लिए. कुण्डलिनी उनसे मिलती हैं । सहज-योगियों को भी चाहिए उठाने के लिए. बन्धन लेने के लिए. सन्तुलन प्राप्ति कि वे उतने ही संवेदनशील बनें और जब-जब भी के लिए. बायां-दायां उठाने के लिए. प्रतीकाल्मक श्रीमाताजी उनसे मिलती हैं वह उन्हें अपनी रूप से हिलाए जाने वाले, हाथों का उपयोग न उन्नति दिखाएं। हर समय अपनी समस्याएं ही न करें यह सारा कार्य चित्त से भी उतनी ही अच्छी बताते रहें। निःसन्देह उनके आदेशों के अनुसार तरह से किया जा सकता है। श्रीमाताजी साक्षात् चल कर ही सहजयोगी विश्व के सबसे आनन्दित जब किसी सभागार या जन कार्यक्रम के स्थान पर लोग हो सकेगे। जब हम नए साधकों के बीच में होते हैं,जिन्हें में पहुँचे तो भाग-भाग कर द्वार पर इकट्डे होने का माँ के लिए प्रेम का अहसास होना स्वाभाविक कोई लाभ नहीं । सभी लोगों को चाहिए कि उनके हैं। उनका मौन इस प्रेम की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति आने से पूर्व अपने स्थान ग्रहण कर लें और सभागार हैं,क्योंकि वे हृदय के सूक्ष्माति-सूक्ष्म भाव को भी में उनके प्रवेश करते ही सम्मानपूर्वक खड़े होकर, समझती हैं। बिना आज्ञा के उनके चरण-स्पर्श हाथ जोड़कर उनका स्वागत करें। माला पहनाने से करने के लिए भाग कर आगे जाना या उनका पूर्व उनकी आज्ञा ली जानी आवश्यक है। अपने ध्यानकर्षण करने का प्रयत्न करना, बिना कहे आगमन के पश्चात् जब वे कुशल क्षेम पूछती हैं तो बोलना तथा उनके निवास पर जा कर उनसे प्रायः इस बात की आज्ञा देती हैं। यदि कोई मिलना, हृदय की प्रेम अभिव्यक्ति के अवांछित समस्या हो तो इस समय संक्षिप्त रूप में उसके बारे 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-14.txt सितम्बर चैतन्य लहरी अवटूपर, 2004 १3 में बताया जा सकता है और यदि तुरन्त वे समस्या कदम है। समर्पण का अर्थ है यह स्वीकार करना का समाधान नहीं सुझातीं तो इस पर बल नहीं कि श्रीमाताजीं सर्वोपरि हैं तथा इस ब्रह्माण्ड की सृजनकर्ता। वो जानती हैं कि हमारे लिए सर्वोत्तम इशारा करता है कि उन्होंने समस्या को सुन लिया क्या है और उनके मुँह से निकले हुए शब्द प्रणव है और शीध्र ही उसका कोई-न-कोई समाधान की अभिव्यक्ति हैं । समर्पण का अर्थ है अपने पूर्वानुभवों, गुरुओं तथा किताबी ज्ञान को भूल दिया जाना चाहिए। उनका मौन इस बात की ओर निकल आएगा। उनकी विनम्रता, सुगमता से उन तक पहुँच जाना तथा निष्ठा पूर्वक उनकी शिक्षाओं को अपना पाना, सभी के साथ उनका सम्मानमय व्यवहार लेना। सभी समस्याओं को अहम् के माध्यम से लोग गलत समझ बैठते हैं। उनकी उपस्थिति में सुलझाने के स्थान पर श्री माता जी पर छोड़ देना सभी मान-मर्यादाओं और आचार संहिता का पालन ही समर्पण है समर्पण की सबसे सहज विधि श्री किया जाना तथा उनके प्रति विनम्र, सम्मानमय, माता जी की जीवन शैली और उनके गुणों का सावधान तथा संवदनशील होना अत्यन्त आवश्यक अनुकरण करना है। है सभी देवी देवता हमेशा उनकी सेवा में उपस्थित होते हैं और उनके प्रति जरा सा भी अनादर वे व्यक्ति हमेशा अपने से प्रश्न कर सकता है," क्या बर्दाश्त नहीं करते। उनकी उपस्थिति में अपनी श्रीमाताजी भी ऐसे ही आचरण करतीं जैसे मैं कर विनम्रता एवं प्रेम के कारण देवी देवता कुछ सीमा रहा हूँ?" उन्हें याद रखते हुए और ये सोचते हुए तक अपने क्रोध को रोकते हैं। परन्तु एक सीमा से आगे वे गतिशील हो उठते हैं ऐसी स्थिति में सजा शक्तियों को दूर रखने में हमारी पथ-प्रदर्शक-शक्ति प्रलोभन,उत्तेजना,तनाव या निराशा के क्षणों में की इन परिस्थितियों में वो क्या करतीं. नकारात्मक से बचा नहीं जा सकता। ज्योही वे सभागार में तथा हमारा सम्बल होनी चाहिए। प्रवेश करती हैं तो सभी प्रकार की व्यक्तिगत बातचीत रोक दी जानी चाहिए और उनकी उपस्थिति से एक जुट उनकी नकारत्मकता से निरन्तर संघर्ष में ये बातें बिल्कुल नहीं होनी चाहिए । उनके प्रवचन आवश्यक है नकारत्मकता जन्मजात भी हो सकती के दौरान किसी भी प्रकार की गड़बड़ी नहीं होनी है, जो पूर्वजन्मों के कर्मफल के परिणाम स्वरूप चाहिए। उन्हें किसी भी प्रकार की व्याख्या, सुझाव सूक्षम रूप से हमारे अन्त स्थित है। या टिपण्णी की जरूरत नहीं होती। समर्पण के बिना श्रद्धा नहीं हो सकती। समर्पण नकारात्मकता का सामना कर पड़ सकता है। के मार्ग में अहम् और प्रतिअहम् दो बाधाएं हैं एक पश्चिमी सहजयोगी ने बडी सच्चाई पूर्वक कहा बाह्य नकारत्मकता से एक रूप हो जाती है। यदि है," मैं अपने अहम् को देखता हूँ और मुस्कराता इसे काबू न किया जाए तो यह श्रीमाता जी के शुभ हैं। मुझे अपने आप से दुर रखने के लिए तुम कौन प्रभाव को भी गौण कर देती है। अतः आत्मसाक्षात्कार कौन सी चालाकियां नहीं करोगे?" अहम् और प्राप्त करने के बाद भी आवश्यक है कि व्यक्ति न प्रतिअहम् को श्री माताजी के श्री चरणों में समर्पित तो कुगुरुओं के पास जाए और न ही उनके द्विज बने लोगों के लिए अहम् और प्रति अहम् इसके साथ साथ दिनचर्या में भी हमें बाह्य अवसर प्राप्त होते ही अन्तःस्थित नकारत्मकता कारना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के लिए आवश्यक साहित्य को पढ़े। नकारात्मक वाद विवाद तथा 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-15.txt सितम्बर ইसन्य लहरी 14 अक्टूबर 2004 ३० हि नकारात्मक लोगों से दूर रहने में ही भलाई है। में उदारता को बढ़ावा दे सकता है। इन गुणों को किसी भी मन्दिर मे प्रवेश करने से पूर्व उसकी अपने अन्दर उत्पन्न करने के प्रयास सहायक हो सकते हैं। जो कुछ कहा गया है उसके अतिरिक्त परमेश्वरी माँ का स्थान हमारे हृदय में होना श्री माताजी द्वारा बोए गए सहजयोग के बीज चाहिए । सदैव उनको स्मरण करने से या निर्विचारिता अंकुरित होंगे और उचित वातावरण में विशाल वृक्षों की स्थिति बनाए रखने से दुनियावी चीजों से के रूप में उन्नत होंगे श्रीमाताजी अपनी सर्वव्यापी विरक्ति का दृष्टिकोण विकसित होगा अपने नाम शक्तियों द्वारा उनकी रक्षा करती है परन्तु मनुष्यों को प्रतिदिन जूते मारने से अन्तःस्थित सूक्ष्म को आवश्यक वातावरण की व्यवस्था करनी होती नकारात्मकता दूर हो सकती है। नकारात्मक लोगों है। व्यक्ति को दी गई चयन की स्वतन्त्रता का को बन्धन देना और उनके नाम को जूते मारना विवेक पूर्ण उपयोग करना होगा और श्री माता जी ( Shoe Beating) उन्हें आपसे दूर रख सकता है द्वारा दिखाए गए मार्ग पर निरन्तर चलते रहना होगा। सर्वशक्तिमान परमात्मा तुम्हें स्वीकार करने की आलोचना करना या उनकी शिकायत करने की की प्रतिक्षा कर रहे हैं परमात्मा तक न पहुँच पाने अपेक्षा उनकी गलतियों को अनदेखा करना व्यक्ति वाले लोगों को स्वयं को ही दोष देना होगा। चैतन्य लहरियाँ देखी जानी आवश्यक हैं। तथा उन्हें सुधार भी सकता है। दूसरों की गलतियों 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-16.txt गुरु पूर्णिमा सहजयोग एक अभिनव अविष्कार" 1.6.1972 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन वास्तविक जो चीज स्थित है, जो है ही वह धर्म की ओर मुड़ता है और धर्म की ओर जब उसका अविष्कार कैसे होता है? जैसे कि कोलम्बस मुड़ता है तब भी वह बाहर ही खोजता है। हिन्दुस्तान खोजने के लिए चल पड़ा था तब क्या हिन्दुस्तान नहीं था? यदि नहीं होता तो खोज खोजता है, इसलिए अपने से मनुष्य भागता है। हर किस चीज की कर रहा था। सहजयोग तो है ही समय अपने से भागता है दो मिनट अपने साथ नहीं कारण यह है कि जो वो खुद है स्वयं है वो पहले ही से है। इसका पता सिर्फ अभी लगा है। बैठ पाता। उसको अगर दो मिनट अपने साथ बैठने सहजयोग, ये परम -तत्व का अपना तरीका है। को कहों तो वो कहता है प्रभु ये क्या मेरे लिए ये यह एक ही मार्ग है, मानव जाति को उत्क्रान्ति सजा हो गई! जिसको आजकल कहते हैं। आदमी Evolution) के उस आयाम में, उस (Dimension) अपने से इतना क्यों उलझा हुआ है? सोचने की में पहुँचाने का एक तरीका है, एक व्यवस्था है, बात है कि मनुष्य अपने से इतना क्यों जोर से भागा जिससे मानव उच्च-चेतना से परिचित हो जाए, चला जा रहा है? क्योंकि चो अपने से अपरिचित है, उस चेतना से आत्मसात हो जाए जिसके सहारे ये अपने सौन्दर्य से, अपने वैभव से, अपने ज्ञान से और सारा संसार,सारी सृष्टि और मानव का हृदय भी अपने प्रेम से अपरिचित आनन्द की खोज बाहर की चल रहा है। बहुत कुछ इसके बारे में लिखा गया और करते हुए दौड़ रहा है। आनन्द बाहर है नहीं, पुरातन कालों से ही खोज होती रही, मनुष्य यह अन्दर है, आपमें है, आप स्वयं आनन्द स्वरूप खोज कुछ रहा ही है हर समय, चाहे वो पैसे में हैं। आप परमात्मा स्वरूप हैं ऐसा सब लोग कहते खोज ले, चाहे वो सत्ता में खोज ले, चाहे वो प्रेम में हैं। सिर्फ बातें करने से यह बात पूरी नहीं होने खोज ले, बो किसी न किसी खोज की ओर दौड़ रहा है। लेकिन उस खोज के पीछे में कौन सी आपको कहें कि आप निराकार को खोजें, चाहे प्यास है वो शायद बो जानता नहीं। इसके पीछे में साकार को खोजें तो सब बातें ही बातें तो हो गईं, सिर्फ आनन्द की खोज है, आनन्द की खोज में बो हजारों बातें हो गई, करोड़ों किताबें लिखी गई, न सोचता है कि बहुत सी गर सम्पत्ति तो उस आनन्द में लय हो सकता है। लेकिन ऐसे खोज का कोई अन्त नहीं! मनुष्य जो कुछ भी भी देश अनेक हैं जिन्होंने सम्पत्ति में बहुत कुछ खोजता हैं अपने मनसे वो मन के दायरे में वाली है। मराठी में कहते हैं कि.। चाहे हम जाने कितने ही जीवन बर्बाद हो गए, इन्सान की इकट्ढा कर ले प्रगति कर ली, बहुत कुछ पा लिया है और अत्यन्त Limitations में खोजता है। मन से परे की जो बात दुखी हैं। आनन्द तो दूर रहा, हजारों लोग वहों है वो इस मन से समझने वाली है नहीं। अब जैसा आत्महत्याएं कर रहे हैं! सारी खोज के पीछे में मेरा भाषण है ये भी आपके लिए सिर्फ बातचीत ही आनन्द की प्यास आपको घसीटे चली जा रही है है, ये भी एक बातचीत ही है क्योंकि इस बातचीत किसी अज्ञात की ओर, सारी ही खोजों में ढूँढते-ढूँढ़ते से आप उस परमात्मा को नहीं जानेंगे। जितनी भी मैं इस पर बात करती जाऊँ उतना ही आपके मन जब मनुष्य हार जाता है, और कहीं मिलता नहीं तो 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-17.txt सितम्बर चैतन्य लहरी 16 अवटूबर, 2004 पर इसका बोझा बढ़ता जाएगा। अगर मैं कहूं कि उसे खोज नहीं पाए थे गर कोलम्बस हिन्दुस्तान कोई बोझा न रखो तो उसका भी बोझा बनता नहीं खोज पाया था तो इसका मतलब ये नहीं कि जाएगा। इसी तरह की व्यवस्था परमात्मा ने हमारे वो कुछ कम था। और बाद में जिन लोगों ने उसे अन्दर कर दी है कि मन से हम जो भी करेंगे वह खोज लिया है वो उन्होंने उसे कोई नीचे गिराने के बोझिल हो जाएगा और उस बोझे के नीचे हम दबै लिए नहीं खोजा। ये सामूहिक खोज है। आप भी हुए उड़ नहीं सकते वहाँ पर जहाँ पर हमें जाना जब उसे अलग-अलग होकर सोचते हैं तब इस तरह से बात बहुतों के दिमाग में आती है कि लेकिन नव निर्माण की बात मैं आप से करने माताजी कुछ अलग ही बात कह रही हैं नहीं। मैं वाली हूँ सिर्फ बात ही नहीं इसका अविष्कार, जो इन सब खोजों की खोज का ही पता आपको दे खोज निकाला है। उत्क्रान्ति के मार्ग में ऐसा नहीं रही हूँ। आज तक अत्यन्त कष्ट उठाकर के न होता रहा है कि कोई प्राणी अति विशेष जाने कितने मानवों ने इस पर ध्यान दिया । Specialization में या विशेषज्ञ हो गया तो वो गिर Psychologists ने भी दिया, Biologists ने भी जाता है, वो खत्म हो जाता है, इसी तरह से मनुष्य दिया, बड़े बड़े Scientists ने भी दिया। वो भी एक का भी हुआ जा रहा है कि इतना ज्यादा आपस की हद तक जाकर के हार जाते हैं बहुत बहुत सन्त जो विरोध और Competiton चल रही है उससे और जो महन्त हो गए, Realized हो गए और मनुष्य ने भी अपने दिमाग को इतना ज्यादा विशेषज्ञ उन्होंने भी पा लिया लेकिन दे नहीं पाए । इसका कर लिया है कि वो फटा चला जा रहा है उसका कारण समय है। परमात्मा के लिए समय अनन्त दिमाग और एक अब नया तरह का मानव आने की है हम लोग उसे ऐसा सोचते हैं कि जो लोग पीछे जरूरत है जो मन से परे उस शक्ति को जान ले हो गए और जो लोग आगे हो गए और जो लोग है मैं ये है इसीलिए खोज आज तक अधूरी ही रही है। मर गए जो बड़े हो गए। कौन मरा पूछना भी स्पन्दन करता है। उस शक्ति को जानने के चाहती हैं? कोई मरता ही नहीं। जितने भी मरते बारे में कितनी भी बातें आप करिए और कितना ही हैं परलोक में बैठते हैं और वापिस यहाँ लौट आते इस पर प्रयत्न करें आप वहाँ तक नहीं पहुँच हैं। प्राणी मात्र से कुछ कुछ लोग मनुष्य हो जाते सकते। ये बात निःसन्देह है। ऐसे तो सभी ने यही हैं लेकिन अधिकतर मनुष्य परलोक से वापिस यहाँ लिखा है जो मैं कह रही हूँ। कोई भी ऐसी विशेष पर और यहाँ से परलोक! यही आना जाना लगा बात तो कह नहीं रही हैँ। नानक जी को आप पढ़ें, हुआ है। कोई मरता हैं तो हो सकता है कि आपमें कबीर दास जी को आप पढ़ें, आप वशिष्ठ को पढ़ं, से जो आज यहाँ बैठे हुए हैं ये भी जन्म जन्मातर गुरुओं के गुरु जनक के बारे में आप पढ़ें, अपने की खोज लिए हुए आज यहाँ पहुँचे हुए हैं और देश में छोड़ों, बाहर के देशों में भी हजारों लोगों को उसको पा सकते हैं । अगर आप पा सकतें हैं तो जो पार हो चुके हैं हजारों वर्षो से ऐसा ही लिखते उसमें इतना वाद विवाद क्यों? एक साधारण सी आए हैं यही लिखते आए हैं जो मैं कह रही हूँ कि बात है, मुझे बड़ी बचकाना सी लगती हैं, बहुत ही जो पाना है अकस्मात अन्दर होता है लेकिन वो बचकाना सी बात है कि लोग हर एक चीज का भी बेचारे कहते ही रह गए क्योंकि शायद वो भी राजकरण बना लेते हैं। एक माँ खाना खाने को दे जो इस मन को भी चलाता है और इस हृदय का 1 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-18.txt सितम्बर चैतन्य लहरी 17 अवदूबर, 2004 रही हैं उसका भी राजकरण बना लेते हैं, कैसे कार्य मिल जाएं। उसमें परमात्मा को कोई भी Interest चलेगा? ये राजकरण नहीं हैं। ये तथ्य है, ये सत्य नहीं है। है। एक बहुत बड़ी खोज है। यहाँ पर जो लोग Realized लोग बैठे हैं वो समझ रहे हैं, मैं क्या दी है परम तत्व को परम ही देने में Interest है। कह रही हैं। धर्म की खोज में मनुष्य परलोक ही ये बात आप लिख डालिए। और इस पर भी लोग तक पहुँच पाया है. अभी तक परम तक नहीं पहुँच सब बात करते हैं कि परम तत्व जो है वो पाया। और जो परम तक पहुँचे भी थे वो परम को कुण्डलिनीयोग से पाया जाता है, ऐसा भी बहुत नीचे नहीं ला सके और लोगों के लिए ये बात सत्य लोग लिखकर के गए। लेकिन कुण्डलिनी योग से है। जैसे आपके अनेक जन्म हुए हैं मेरे भी अनेक कोई सिद्धि पाई जा सकती है ऐसी बात कहीं भी जन्म हुए हैं। इन सब बड़े-बड़े खोजने वालों से लिखी नहीं गई है। जिन्होंने सिद्धियाँ पाई है वो मेरा भी बहुत नजदीकी संबंध रहा है । और वो लोग नहीं लिखते कि कुण्डलिनी से सिद्धियाँ आती हैं, जितने मेरे अपने हैं शायद आप लोगों के नहीं हैं। कभी भी नहीं। कुण्डलिनी आपकी माँ हैं, आपके जो लोग बड़े-बड़े झण्डे लगाते हैं कि हम मुसलमान अन्दर बैठी हुई हैं, आपको पुनर्जन्म देने के लिए । हैं, हिन्दु हैं, ये हैं, वो है, वो सिर्फ एक वकीली वो आपको सिर्फ पुनर्जन्म देंगी, आपको सिद्धियाँ लेकर के झूठमूठ से आए हैं। उनके पास कोई भी देकर के परलोक में फैंकने वाली वो मूर्ख माँ नहीं guarantee नही है कि पिछले जन्म में हो सकता हैं। जितनी समझ आपके पास है उससे कहीं है जो हिन्दू है वो मुसलमान रहा हो, जो मुसलमान अधिक समझदार है वो, कहीं अधिक प्रेममय हैं। वो है वो इसाई रहा हो। जब जन्म जन्मातर की बात आपको गलत जगह में असत्य में ढकेलने वाली है, जब अनन्त की बात है, तो सोचना भी उसी दुष्ट माँ नहीं हैं । कुृण्डलिनी के योग से जब तक Level पर, उसी स्तर पर होगा वो पर ऐसा है कि परमतत्व की पहचान नहीं होती है तब तक वो जो कुछ परम है वो जड़ नही, जो कुछ परम तत्व कुण्डलिनीयोग नहीं है। और वही सहजयोग है। है वो जड़ नहीं। जो कुछ कठिन है वो जो सूक्ष्म है वो जड़ नहीं। इस बात को आप ठीक परमात्मा ने हमारे अन्दर की है, वो भी एक समझने से समझ लें। वो जड़ में प्रकाशित हो सकता है की बात है जब बच्चा माँ के पेट में आता है तो हमने परमात्मा को समझने में ही गलती कर और इसकी व्यवस्था कितनी खुबसूरती से नहीं, gross किन्तु परम जड में Interested नहीं है, उसमें कोई जड़-तत्व से उसका सारा मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार दिलचस्पी नहीं है। जैसे कि बहुत से लोग मुझे वो सब बना देता है लेकिन उसके अन्दर जब बताते हैं कि वे एक साधू-सन्त थे वो परमात्मा से प्रकाश आता है वो माथे के तालू में से जिसे कि कुछ माँग रहे थे और इनको परमात्मा ने दे दिया। Fontanelle Bone अंग्रेजी में कहते हैं और नीचे दिया होगा, लेकिन परमात्मा ने नहीं दिया, ये मैं उतरता है और अपना Brain जिसका आकार बता सकती हैूँ । परमात्मा को इसमें कोई भी त्रिकोणाकार एक त्रिकोण के जैसा है उसमें से यही Interest नहीं है कि आपके इतने बच्चे पैदा शक्ति गुजरते वक्त तीन हिस्सों में बँट जाती है हो जाएं या आपको जमीन मिल जाए. आपको ये सब परमात्मा ने किस खूबी से किया है ये जानने घर मिल जाए, आपको दुनिया भर के ऐशो आराम के लिए यहाँ पर कोई डॉक्टर हो तो वो समझ 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-19.txt सितम्बर - अक्टूबर 2004 चैतन्य लहरी 18 सकता है। इसी को हम Sympathetic और कह रही हूँ, कि सारा Sympathetic Nervous Parasympathetic Nervous System कहते हैं। System सुषुम्ना नाड़ी है जो कि बीचों-बीच है हमारे शरीर के अन्दर ही दो ऐसी शक्तियाँ विराजमान और उसकी पहचान एक है कि जब कुण्डलिनी हैं कि जिसके बारे में हम बहुत कुछ कम जानते हैं उठती है तो आँख की पुतलियाँ बड़ी हो जानी और जिसके बारे में हमें पता लगाने में बड़ी चाहिएं। ये तो साधारण बाहर की पहचान है किसी 1 दिक्कतें होती हैं खासकर के Parasympathetic भी Nervous System के बारे में। अपने योग शास्त्र में इसे सुषुम्ना, ईडा और पिंगला ऐसी दो नाडियां है तो पुतलियाँ "dilate" होनी चाहिएं। और बाहर बताई हैं। ईडा और पिंगला ये दोनों ही अपने शरीर भी हम आपको दिखा सकते हैं अगर आपकी नजर Sympathetic Nervous System का उद्भव खुली हुई हो तो क्योंकि आपको तो हर एक चीज करती हैं। माने उसका जड़तत्व जो है वो का कोई न कोई proof ही देना पड़ता है नहीं तो Sympathetic Nervous System है। अब ऐसा कुछ समझ में नहीं आती बातें। इसका भी एक समझ लें कि परमात्मा ये Petrol अपने सिर में यहाँ proof है कि गर आप हमारे किसी कार्यक्रम में से भर देते हैं और Petrol भरते वक्त वो कुछ ऐसी आएं तो आज ही आपको दिखा देंगे। कुण्डलिनी घटना घटित होती है कि प्रिज्म के अन्दर से का स्पन्दन भी आप देख सकते हैं। आप जानते हैं गुजरने वाले उनके किरण आपस में इस तरह से कि सबसे पहले त्रिकोणाकार अस्थि पर कभी भी आकर के और फिर मुड़ जाते हैं, जिसे Reflect कोई स्पन्दन होता नहीं। वो हम दिखा सकते होना कहते हैं। और फिर नीचे जाकर के उनकी आप गर देखें कि त्रिकोणाकार अस्थि में स्पन्दन ईडा और पिंगला, ऐसी दो नाड़ियाँ बनती हैं और होता है, फिर धीरे धीरे स्पन्दन ऊपर की ओर जो बराबर बीचों बीच शिखर पर से, बीचों बीच उठता है और इसके साथ-साथ बीच-बीच में उतरने वाले किरण, आपकी कुण्डलिनी बन करके किसी -किसी जगह ज्यादा स्पन्दित होता है। वही जो त्रिकोणाकार अस्थि, अपने मज्जा तन्तुओं के है नीचे बना हुआ है, उसमें वास करती है। इससे एक और इसको आप देख सकते हैं और उसकी प्रचीति बात तो जाहिर हो गई कि हमारी कुण्डलिनी जो देख सकते हैं। जब कुण्डलिनी सुषुम्ना से उठेगी है वो ऐसी जगह बैठी हुई है जिसका सम्बन्ध सेक्स तभी आप पार हो सकते हैं। लेकिन इसके लिए से कुछ नहीं है। अब आप गर किताबें पढ़े तो परमात्मा ने न जाने क्यों एक बड़ी जबरदस्त कुण्डलिनी शास्त्र पे तो आप सब जान जाइएगा कि condition लगा दी है। एक बड़ी भारी अटकल है ऐसा होता है, वैसा होता है, ये है, वो है। लेकिन इसमें, जो देना ही पड़ता है। वो यह कि कुण्डलिनी कुण्डलिनी को उठाने वाले, वो बहुत कुछ मुझे भी सुषुम्ना पर तभी आएगी जब परमात्मा का असीम मिले हैं और मैनें भी जाने हैं वो सब Sympathetic प्रेम उस आदमी में उतर पड़ेगा। जब तक वो प्रेम से आपको ले जाते हैं, सुषुम्ना से उठाते नहीं हैं। मनुष्य में उतरेगा नही, कुण्डलिनी उठने वाली नहीं उसकी एक पहचान है, आप में से गर कोई चाहे आप कुछ कर लें। वो नाराज हो सकती है, Doctor होगा तो समझ लेगा इस बात को जो मैं गुस्सा हो सकती है। लेकिन कुण्डलिनी कभी भी 'doctor" से आप पूछ ले कि जब para sympathetic nervous system activate होती अपने केन्द्र हैं। ये आपको दिखाया जा सकता 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-20.txt सितम्बर - चैतन्य लहरी अक्टूबर, 2004 19 नहीं उठ सकती है जब तक वो असीम प्रेम सुषुम्ना से भरा गया था, उसका गेट बन्द हो गया। अब हम अलग हो गए, अब हमें लगा कि भई हम कोई के अन्दर जगह बनी हुई है, खास इसकी जगह जाी बनी हुई है, हमारे नाभि चक और अनहत् चक्र के हैं! अब अहंकार शुरु हुआ, हमें लगा कि हम हैं। अब यही है भागने का, अपने से भागने का कारण है क्योंकि हम जो हैं, हमको हम जानते ही नहीं कि हम क्या हैं। आप मेरी ओर इतना चित्त लगाकर के एक सीढ़ी है, उस जो सुन रहे हैं मैं आपकी ओर अपना चित्त नहीं सीढ़ी में और हममें कुछ अंतर है । क्या ? इस लगा सकती। मैं कहूँ आप अपनी ओर चित्त लगाएं अन्तर को आप किसी भी तरह से लॉघ नहीं पा रहे तो आप लगा ही नहीं सकते हैं क्योंकि आप बह है, उसमें कोई पुल नहीं है जिसको आप लांघकर गए हैं उस प्रेम में जो आप है। एक जो प्रतिहंकार जाएं। और ये दो सीढ़ियां बराबर ईडा और पिंगला है Super ego है. उस पर बोझे जितने भी हमारी नीचे जमीन पर लगी हुई हैं, Sympathetic ओर से बढ़ते जाते हैं, हर तरह के बोझे, उसमें आप Nervous System की Left और Right ये दोनों कह सकते हैं कि इस तरह के बोझे जिसमें हम ही जमीन पर लगी हुई हैं और बीच वाली अधान्तरी आप को सिखाते हैं ये करो, वो करो, ऐसा नहीं लटकी हुई है जो परम में पहुँचाती है। अब करना चाहिए, वैसा नहीं करना चाहिए, इधर नहीं Sympathetic Nervous System की जो दोनों जाना चाहिए. उधर नहीं जाना चाहिए, ये नहीं सीढ़ियाँ है, अब अगर कोई Psychologist हो तो खाना, वो नहीं खाना चाहिए, इस तरह की चीजें या मेरी बात समझ सकता है, वो एक जो Left Hand ऐसा कहें कि हम बड़े बड़े भाषण देते हैं लोगों को की तरफ से है, दाहिनी ओर है वो आपको पहुँचा कि आपको हिन्दुस्तानी बनना चाहिए, आपको जापानी देती है, Ego में, अपने अहंकार में, और जो Right बनना चाहिए, आपको इससे नफरत करना चाहिए, Hand Side में है वो आपको पहुँचा देती है आपके उससे नफरत करना चाहिए, हम हिन्दु हैं, हम Super ego में, प्रतिअहंकार में । ये दोनों मिलकर मुसलमान हैं, हम इसाई हैं, अनेक तरह के सब के हमारे माथे पर छा जाते हैं, जैसे कि कोई Conditionings जो हैं ये बोझ हैं उससे यह Super बीच में, एक बड़ी सी जगह बनी है। जब तक उसके अन्दर ये प्रेम उतरेगा नहीं तब तक सुषुम्ना से यह प्रवाह उठने वाला नहीं। जैसे समझ लीजिए कि दो सीढियाँ हैं और बीच में Balloon न हो! इस तरह से ऊपर आ जाते हैं ego दब जाता है। और जो अहंकार है वो ये कहता और आकर के इस जगह जहां हमारा तालू होता है नहीं इम तो ये है, हमें ये करना चाहिए, वो करना है उस पर आकर के दोनों मिल जाती हैं। कभी चाहिए। जो कहता है नहीं करना चाहिए वो तो कभी तो ये पूरे सारे सिर पर ही छा जाते हैं कभी Super ego है और जो कहता है करना चाहिए वो तो प्रतिअहंकार जबरदस्त होता है और कभी ego हैं। असल में हम न तो कुछ नहीं करते हैं 1 अहंकार। जो भी ज्यादा जबरदस्त होता है वो और न तो कुछ करते हैं। करने वाला तो कोई और हमारे दिमाग पर छाया हुआ है और आकर के वो ही है बेकार ही में बचकानापन है। करने वाला हमारे इस मार्ग को रोक देते हैं, बन्द कर देते हैं। अपना काम तो करता ही है और करेगा ही । लेकिन अब जो Petrol इमारे अन्दर Para Sympathetic यही जड़ता हमारे अन्दर दोनों है कि हम उस Nervous System से भरा गया था, जो कुण्डलिनी Petrol को इस्तेमाल करते हैं। इन दोनों ईडा और 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-21.txt सितम्बर - चैतन्य लहरी अवटूबर, 2004 20 परमात्मा को पाने का अधिकारी है। ऐसा उन्होंने साफ-साफ कहा है। लेकिन कौन पढ़ता है उनको? कोई पढ़ता जो नहीं ना! प्रश्न तो ये है कि हम अब बीचोंबीच सुषुम्ना नाड़ी है। अब बहुत से लोग सभी को पढ़ते हैं और उसमें से उनको ज्यादा लोगों ने मुझसे ऐसा भी कहा कि माताजी आप तो पढ़ते हैं जिन्हें धर्म के बारे में कुछ मालूम ही नहीं। भी है तो थोड़ा बहुत मालूम है। जो हिन्दु कहलाते हैं उनको पहले लेकिन तुम तो गलत सीढ़ी पर चढ़ गए न. उससे आदिशंकराचार्य को पढना चाहिए । आदिशंकराचार्य ने ही तो हिन्दू धर्म की संस्थापना करी थी, फिर आदिशंकराचार्य को क्यों नहीं पढ़ते हैं ? दुनिया भर मेरी समझ में नहीं आता कि इसमें किसी से के लोगों को पढ़ते हैं, उनको क्यों नहीं आप पढ़ते? विरोध करके मुझे क्या करना है? मैं तो आपको उनको आप जानते क्यों नहीं? उनमें मुझमें जो बता रही हैँ कि आप गलत सीढ़ी पर चढ़ गए हैं। अन्तर है वो इतना ही है वो कहते थे बहुत ही सभी उतर आइए। मै तो बड़े बड़े गुरुजनों से करोड़ो में एक दो होते हैं मैं कहती हूँ करोड़ो में लाखों तो है ही ये आशावाद का अन्तर नहीं है क्या रहे हैं? कुछ करने से परमात्मा नहीं मिल यह समय का अन्तर है समा ऐसा है। कलियुग सकता। इन लोगों से कुछ करवाइए नहीं, ये करने का समा है ही बड़ा घनघोर युद्ध का समय है। धरने से परमात्मा मिल नहीं सकता। ये आपको मैं अन्धकार और प्रकाश का घनघोर युद्ध का समय पिंगला से अपने Sympathetic Nervous System से, इससे हम अपने को Conditioning कर लेते हैं, बोझे में डाल लेते हैं। इनके विरोध में बोलते हैं, उनके विरोध में बोलते और मालूम हैं। भाई मैं किसी के विरोध में नहीं बोल रही हूँ। अपने को बहुत तो उतारना पड़ेगा ही, जो बीच की सीढ़ी में तुम्हें चढ़ाना है। इसमें किससे मैं विरोध कर रही हूँ? मिलने जाती है, उनसे बात करती हैँ कि आप कर पत क्या बता रही हूँ, आप वशिष्ठ पढ़ें, नहीं तो चल रहा है। आपको पता नहीं क्योंकि आप तो आदिशंकराचार्य को पढें जो कि historical चीज मुझे ही देख रहें हैं। अपने से परे आप किसी को है। उनको पढ़ें, उन्होंने भी यही कहा है कि आप देख नहीं पा रहे लेकिन जो लोग Realized हैं वो परमात्मा को पाने के लिए कुछ कर नहीं सकते। जानते हैं कि कैसा कैसा जंग बाँधा गया है। लेकिन अन्तर है, उनमें और मुझमें जरा सा थोड़ा Negative और Positive forces दोनों अपना जोर सा फर्क है इतना ही अन्तर है कि उन्होंनें कहा बाँध रहे हैं । था कि परमात्मा को पाने के अधिकारी बहुत ही sympathetic का पूरा जोर है। Sympathetic कम हैं, इसलिए ठीक है कि कुछ भक्ति में रहें और Para Sympathetic को छुकर चली जा रही है कुछ अपने ऊपर में योग लगाकर अपने मन को और Sympathetic कितनी भी छुू ले, गर Para अनुशांसित करें लेकिन उन्होंनें नहीं कहा था कि Sympathetic अनन्त से एकाकार हो जाएगी तो अनुशासित हों, फिर चाहे वो किसी भी तरह का उसमें भरता ही र हो और वैसा भी मन जो विषयों के पीछे दौड़ता है खर्चा करें, गर पेट्रोल पम्प ही लगा हुआ है तो फिर और अपने को जिसे indulgence कहते हैं, दोनों क्या डरने का? ये सारे Sympathetic का प्रश्न है, ही मन इस कार्य के लिए व्यर्थ हैं ऐसा सुन्दर मन Sympathetic की जो Active Consciousness जो छोटे बच्चों जैसा निष्पाप हो, वो ही इस की side है, जहाँ से आप सारा काम करते है Sympathetic और para रहेगा। कितना भी आप Petrol 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-22.txt सितम्बर चैतन्य लडरी 21 अवटूधर, 2004 Energy इस्तेमाल करते हैं. वो गर अति इस्तेमाल हमें आगे बढ़ना चाहिए। उस पर उनका चित्त. मेरा हो तो कैसर जैसा रोग हो जाता है। और जिस लड़का जो है वो ठीक हो जाए, मेरे बच्चे जो हैं वो तरफ में Super Ego होता है वो ज्यादा इस्तेमाल ठीक हो जाएं, मेरा पति जो है वो ठीक हो जाए । हो तो पागलपन आ जाता है। हम किसी को ठीक फिर कोई कहेगा, वो मेरे पैसे का मामला है ठीक ठाक नहीं करते हैं। यह भी कहना कि हम हो जाए! चित्त कहाँ है? अब आप Realized हो बीमारियों ठीक करते हैं एक तरह से गलत ही बात गए तो भी चित्त वहीं है जिसे आप छोड़कर आए है! हैं क्योंकि वो तो Para Sympathetic Nervous जिसने चैतन्य पर चित्त रखा है वो बहुत ऊँचा उठ System जो कि इन दोनो ही System को ठण्डा गया है आपके बीच में भी ऐसे लोग बैठे हुए हैं जो कर देती है अपने आप ही मनुष्य जो है वो ठीक हो पढ़े लिखे हैं, देवता स्वरूप है. यह लोग वन्दनीय हैं. जाता है। गर कोई पागलपन होगा तो चो भी ठीक हो जाएगा और कोई गर आपके अन्दर में Over जिनका Rebirth हुआ है। बेकार की बातें करने Activity से कैंसर जैसा रोग होगा तो वो भी ठीक वाले लोगों से झगड़ा करने की किसी को भी कोई हो जाएगा। कैसर का इलाज सिर्फ सहज योग है जरूरत नहीं। जिनको आना हो आए. नहीं आना है और कोई उसका इलाज संसार में नहीं है यह बात नहीं आएं। उनसे झगड़ा करने की इस पर वाद सिद्ध हो जाएगी हम जानते हैं थोड़े से ही दिन विवाद करने का समय है ही नहीं क्योंकि वो लोग में यह बात सिद्ध हो जाएगी और हमने बहुतों का वाद-विवाद ही करते रहेंगे । आदिशंकराचार्य ने इलाज भी जो किया है कैंसर का वो भी लोग यहाँ भी कहा था न कि निम्न कोटि के लोग, उनको तो बैठे हुए हैं, वो भी बता सकते हैं । तो भी, एक बात पहले और शुरु से ही कह अनुशासित करें और किसी तरह से अच्छे से रहें, रही हैं कि चित्त हमारा कहाँ है? चित्त क्या उस चोरी चकारी से बचे एक अच्छे सामाजिक घटक कैसर पे हैं जो इस शरीर को जर्जर किये हुए है बन कर रहें। किन्तु परम को पाने वाले लोग, परम जो कि जड़ हैं? हमारा चित्त गर चैतन्य पर है तो की ओर दृष्टि रखने वाले लोग, ऐसी चीजों से न्य की बात सोचनी चाहिए। जब तक हम सन्तुष्ट होने वाले नहीं । जब तक परम आपने पाया अपना चित्त चैतन्य की ओर नहीं रखेंगे तो जड़ भी नहीं आप को मेरे ऊपर भी बिल्कुल विश्वास नहीं हमें सताएगा सारा काम चैतन्य का है जड़ता का करना चाहिए। इस ढकोसलेबाजी की बिल्कुल कोई काम ही नहीं है। हगको इतनी आदत जड़ता जरूरत नहीं । किसी भी चीज आपको कोई भी की हो गई है कि मनु ी छोटी जड़ बातों से बताए आप कुछ विश्वास न करके पहले अपने चिपक जाता है, छोटी छोटी जड़ बातों से। जैसे मैं अन्दर पा लीजिए तभी आप मेरे ऊपर भी उपकार आपसे कहूँ कि एक स्त्री हमारे पास आती थी, करेंगे यहाँ कोई बाजार खोलना नहीं है, पैसा यही देवता हैं, इन्हीं को देवता कहना चाहिए ठीक है वो अपना किसी तरह से अपने मन को टी उनको Realization हो गया और वो काफी अच्छे कमाना नहीं है, माल कमाना नहीं है। सिर्फ मुझे से देने वगैरा लग गई। लेकिन Realization का यहाँ मनुष्य का परिवर्तन करने का है इस जन्म में नहीं हुआ तो अगले जन्म में देख लेगे। तो. हमें अनन्त में ही रहने की आदत सी है। लेकिन अब भी मतलब भी यह तो नहीं कि आप व्यस्त हो गए, आपका पुनर्जन्म हो गया आप निरक्षर हो गए। अब 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-23.txt चैतन्य लहरी सितम्बर - अक्टूबर 2004 22 यह सोच लेना चाहिए कि जो कोई मर चुके हैं वो के साथ कैसा भी खिलवाड हो गया हो। खिलवाड मर चुके हैं। उनकी बातें करके मत घबराइये। बहुत हो चुके हैं, पर मैं कहती है कि किसी की भी चित्त को अपनी ओर रखें। शायद उनमें से आप कुण्डलिनी में खराबी आ गई हो, उसपर लोग मुझे एक हों जिन्होंने कुछ कुछ लिख दिया था हो कहते हैं कि आप विरोध कर रहें हैं! भई पागलपन सकता है कि आप ही वो बड़े भारी लोग हों की बात है! एक माँ है जो बच्चे की कोई चीज जिन्होंने बहुत कुछ लिखा हो और आज भी यहाँ बिगड़ी देखती है तो उससे वो बताती है तो किसी जन्म लेकर आए हैं, अपना दावा लेने आए हैं जो का विरोध नहीं करती है। तुम्हारी अबोधिता में, हो चुका सो बीत गया। सहजयोग में जो साधक होता है उसे कुछ भी उसको हम बैठे हुए हैं उसे ठीक करने के लिए । नहीं करना चाहिए। जो डूब रहा है पानी में वो कुछ लेकिन पहले ही इस तरह की बात सोच लेना ये न करे तो अच्छा है। लेकिन बाकी के तैराक लोग कौन सी आर्तता है? यह कौन सी माँ है? उसे बचाते हैं और उसे उठाते हैं। यही साधारण सादगी में, गर तुम्हारा कुछ बिगाड़ हो जाए, तो गुरु का आज, गुरु पूर्णिमा का आज दिवस है तरह से सहजयोग आप समझ लें। जो लोग अपने और सहजयोग का पूर्णवर्णन विषद रूप से करना में उतर गए हैं, जो लोग पार हो गए हैं, जो अपने इतने छोटे समय में सम्भव नहीं। मेरा आज विचार अन्दर एकाकार अपनी शक्तियों से हो गए हैं, वही था कि काफी विषय पर मैं कह सकूंगी लेकिन मैं सब कुछ करेंगे। आप शान्त बैठिएगा जो अभी तक जानती हैँ कि यह विषय अत्यन्त विषद सागर की पार नहीं हुए हैं। आपके सूत्र में आकर के वो आप तरह, और अनेक ध्यान की क्लास में मैंने लोगों को को प्यार देंगे, आपके सूत्र में आकर वो आपके बताया है। इतना ही नहीं जो लोग Realized है, चकों को ठीक करेंगे क्योंकि आप अभी अपने चकों उस स्तर पर आ गए हैं कि इस बात को समझें को जानते ही नहीं। जब आप पार हो जाएंगे तब क्योंकि उनके हाथ से वो प्रवाह निकल रहा है, वो आप मेरी बात जानिएगा कि हाँ यहाँ चक है, यह आनन्द लहरियाँ बह रही हैं. वो प्रेम की लहरियाँ चक्र घूम रहा है, वो चक चल रहा है, उनका ऐसा बह रही हैं जिससे वो समझ सकते हैं कि Collective Consciousness क्या है, सामूहिक चेतना क्या जिसे कहते हैं 'सामूहिक चेतना', उसका आभास है। इसको भी समझना चाहिए कि ये कौन सी चीज होगा पहले ही से नहीं नहीं करने वाले लोगों का बहुत से लोग आपमें ऐसे भी होंगे जो मेरी यह स्थान नहीं है और न ही उनके लिये यहाँ पर ओर हाथ करके बैठें तो आपके अन्दर ऐसा लगेगा कोई व्यवस्था की जा सकती है ऐसे लोग जो कि कि जैसे हाथ थरथरा रहें हैं, कंपकपा रहे हैं। आप है, चाहे वो कितने भी Condition में हों आपको ऐसा लगेगा और मुझसे लोग कहेंगे ये लेकिन जो सच्चाई चाहते हैं और जो चाहते हैं कि Vibrations आ रहे हैं। ये Vibrations नहीं हैं। वो हमारे अन्दर परिवर्तन हो जाए, वो सिर आँखो पर तो आप हमारे विरोध में हैं, आपमें कोई चीज हमारा हमारे। और मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस जन्म में विरोध कर रही है पूरा समय। ये जो हम प्यार ही उनको मिलेगा चाहे उनकी कै सी भी आपको दे रहे हैं उसके विरोध में थरथरा रहे हैं। ये Conditioning हो गई हो, चाहे उनकी कुण्डलिनी आप हमारे विरोध में खड़े हैं इस लिए आप थरथरा पत 1. चक्र है। तभी आपको Collective Conscious है अभी 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-24.txt चैतन्य लहरी सिस्तम्बर - अव्दूबर, 2004 23 रहे हैं, वो Vibration नहीं हैं| और Vibration तो यह कहेंगे कि इतनी जल्दी कोई पार होता है? नही तभी हम मानते है जिस वक्त आपके सहस्रार का होते, बहुत से नहीं होते, चार चार साल से लोग चलना रुक जाए कबीर दास जी ने कहा है कि हमारे पास आ रहे हैं, बहुत बड़े-बड़े लोग हैं, कोई शिखर पर अनहद बाजोरे। शिखर पर अनहद् की तो बहुत भारी Minister Saheb है, आवाज आती है. माने हृदय में जो स्पन्दन है वैसी साहब हैं, कोई कुछ हैं ! नहीं होते तो नहीं होते, आवाज आने लगती है ये तो हुई जबतक टूटा हमें इससे क्या करना? हमें किसी से पैसा तो लेना नहीं, जब टूटने पर सारी ही आवाज टूटकरके, है नहीं कि आप हमें दो हजार दे दीजिए. हम पार सारी ही आवाज टूटकरके आप परमात्मा से एकाकार कर दें. Certificate दे देंगे! जो नहीं हुआ सो नहीं हो जाते हैं तब न कोई आवाज आती है, न कोई हुआ, जो हुआ सो हुआ। अभी हम अमेरिका गए थे चीज दिखाई देती है, न कोई चीज दृश्यमान होती वहाँ पर एक साहब बहुत बड़े राजा है वो कहीं के। है। बहुत से लोग कहते हैं कि हमें दिव्यदृष्टि है, वहाँ मिले, वो हमारे साथ थे बो हमसे कहते हैं ये हमें दिव्य फैलाना है। ये सब किसलिए? दृष्टि से क्या श्रीमाताजी जो आता है आप उसको पार करते क्या होता है? दृष्टि से क्या मिलने वाला हैं? दृष्टि हैं हमको नहीं करते हैं, हमने क्या किया? हमनें से ही गर सब कुछ मिलने वाला होता तो फिर कहा बेटे हम तुमसे कुछ कहेंगे नहीं क्योंकि तुम्हं खोज काहे की? इस दृष्टि से मिलने वाला चो नहीं दुख होगा। तुम धर्म पर इतना लेक्चर देते हो तुम और इस कान से सुनने वाला वो नहीं है। किन्तु कभी धर्म में उतरे हो क्या? यह रात दिन जो तुम इसको जानना है अन्दर से। जिसने उसे अन्दर से अपनी जान को मारे ले रहे हो वो किसके मारे ? कोई गवर्नर जाना है वही उसे समझ सकता है। दृष्टि से तो तुम जरा इसे छोड़ो, थोड़ा सा परमात्मा पर छोड़ो। बहुतों को दिखाई देते हैं, बड़े बड़े करिश्में दिखाई चार दिन बीत गए उसने कहा भई आज तो हम देते हैं, बड़े बड़े लोगों को चित्र दिखाई देते हैं। मुझे मान गए, हम India में गए तो सब लोगों ने हम से बहुत से लोग आकर बताते हैं कि उसको चमत्कार कहा कि तुम तो मईया एकदम पार हो गए और तुम हैं। मैं कहती हैं बेटे उससे परे रहो। यह सब हमारा कार्य करो। तुम हम को रुपया दो और ये परलोक, सब मरी हुई चीजें हैं। इससे परे परमात्मा करो।सबने हमें Certificate दिया! मैने कहा मेरे एक अनुभव है ये एक अनुभव है। इससे परे पास नहीं चलता बैटे क्या करूं? वो तो जो होएगा परमात्मा हैं इसे छोड़िए। यह सब कुछ छोड़कर सो होएगा इसमें किसी की चापलूसी. किसी की निराकार में जब आप एकाकार परमात्मा से होंगे Recommedation कुछ नहीं चाहिए। ये इतना तब इन सब चीजों का अर्थ बनेगा जो साकार बनी UItra modren है कि इस पर किसी का असर बैठी है। इस आनन्द लहरी से लोगों ने बहुतों को नहीं होगा। अब जो नहीं हुए वो नाराज हो जाते है ठीक भी किया, बीमारियाँ ठीक हुई। लेकिन जो और मेरे खिलाफ जाकर कुछ कुछ बोलने लग जाते सबसे बड़ी जो चीज हुई है. जिसका मुझे बहुत हैं। कुछ बोलें, अब हम क्या करें जो नहीं हो रहे आनन्द है, कि दस आदमी पार हो गए। सबने त्तो! हम तो चाहते हैं कि सबको हो, रात दिन मिलकर सामूहिक किया, पार हो गए। अब आप मेहनत कर रहे हैं कि आपको हो जाए। लेकिन 1 नहीं चलता। जो होगा सो होगा, जो नहीं होगा सो 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-25.txt चैतन्य लहरी सितम्बर अवटूबर, 2004 24 आप नहीं होते हो तो हम क्या करें? आपकी कहते हैं हम लोग झूठे नहीं । इसको भगवान का रुकावट है । ये भी सोचना चाहिए कि किसी को नाम नहीं देते हैं। उन लोगों का ऐसा है कि उनको कहते हैं. किसी को नहीं कहते और सब लोग आप चिट्ठी लिख दीजिए तो वो आपको लिखकर कहते हैं कि हाँ हो गया, जितने भी खड़े हैं कहते भेजते हैं कि दस बजें उतने Time पर कोई आदमी हैं हाँ हो गया तो हो और गया सब लोग कहते आपके पास आकर कुछ कर जाएगा, आप आराम हैं कि इसका सहस्रार चल रहा है, मैंने कहा नहीं सब का ही चल रहा है। इसमें से कोई तो सत्य कुछ लगता है कि कुछ हुआ अपने अन्दर में और होगा बीमारी को ठीक करना सहज योग का आप ठीक भी हो गए। बहुत से लोग ठीक भी हुए कार्य नहीं। ये जान लेना चाहिए क्योंकि हुत से हैं लेकिन तो भी ठीक करने से केवल शरीर ही तो लोग ये कहते हैं उन्होंने भी ठीक किया, उन्होंने ठीक किया है, उससे परम तत्व तो किसी ने नहीं ठीक किया। किया होगा, कैसे किया होगा? पता पाया! परम तो मिला नहीं, ये शरीर तो यही नहीं! सहजयोग से सिर्फ कुण्डलिनी की जाग्रति छूट जाएगा और फिर यहाँ जाकर फिर यहीं आना और परमात्मा को पाने की ही बात है और कोई है! और जिन पर वो ऐसे प्रयोग कर रहे हैं वो ये नहीं है। और ये कार्य जो है इसका आप जड़ से भी नहीं जानते, बो भी अबोध हैं, वो भी उनका सम्बन्ध नहीं जोड़िए कभी भी इसका जड़ से बचकानापन है! सम्बन्ध जोड़ करके इसको जड़ में नहीं आप जान सकते। क्योंकि बीमारियों तो हजार तरह से ठीक इस्तेमाल कर रहे हैं वहीं कल उलट कर हमारे हो सकती हैं। आपने सुना होगा डेक्टर लैंग एक ऊपर आएंगे। मैं सोचती हूं Dr. Lang थोड़ा सा आदमी था, लन्दन में बहुत बड़ा डॉक्टर वो मर जानते थे, नहीं तो अपनी लडकी के अन्दर क्यों गया अकरमात, वो मर गया उसकी इच्छाएं अतृप्त नहीं घुसे? वो एक Soldier के अन्दर जाकर क्यों थीं। तो एक Soldier था वियतनाम में उसके घुसे? और Spirit का देह जो होता है उस पर ये Superego में वो घुस गया। उसको कहने लगे जड़ नहीं होता, इसलिए बहुत कुछ देख सकता है तुम London चलो मेरी लड़की के घर। वहाँ पहुँचे बनिस्वत हमारे। जिसको कि आप Para तो उन्होंने उनसे कहा उनको कहो कि मैं आया Psychology कहते हैं, जिसे कि आप आत्मा का हैँ तुम्हारे अन्दर। तो लड़के ने कहा इसका क्या आशीर्वाद कहते हैं, जो कृूदना होता है, जो चीखना विश्वास? तो उन्होंने उसको सब बताया, जो कुछ होता है, चिल्लाना होता है और सम्मोहन करना भी उनके बीच में गुप्तवार्ता, Secret हुए थे वो सब होता है सारा Spirit का काम है उसमें कुछ अच्छे बताए। उसको विश्वास हो गया उसने कहा तुम Spirit भी होते हैं कुछ Spirit बहुत ही फिर से मेरा Organisation शुरु करो, मैं तुम्हारी हैं वैसे Spirit भी हैं । इसमें राक्षस भी होते हैं, मदद करूंगा क्योंकि यहाँ परलोक में बहुत से महादुष्ट भी है । आप उन्हें आज देख नहीं रहे, हो डॉक्टर हैं जो Menifest करना चाहते हैं, जो सका तो बाद में आपको मैं दिखा भी दूंगी, जैसे अवतरित होना चाहते हैं। उनका बडा भारी आज मैं आपको कुण्डलिनी दिखा रही हूँ। ऐसा International Organisation है, सच्चे लोग हैं, समय आजाय तो मैं आपको ये भी दिखा दूंगी। से देखते रहना। और बराबर उसी वक्त आपको वो जानते नहीं हैं कि जिस Spirit को वो आज जैसे हम स] 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-26.txt सितम्बर अक्टूबर, 2004 चैतन्य लहरी 25 लेकिन हैं। उनका वास्तव्य आप देख सकते हैं,उनका कहना चाहिए परलोक। उससे भी उत्थान हो रहे असर आप देख सकते हैं, उनका असर आप देख हैं,वही उत्थान हमारे सहजयोग में सबसे ज्यादा हो सकते है और हर एक धर्म में उनके बारे में लिखा रहे हैं । और जिस आदमी पर ऐसा कुछ हो गया हो है। हिन्दुओं है सो है। जब आप positive की बात करेंगे तो सहजयोग में परमात्मा को पाए। इसमें दोष हमारा Negative आपको दिखाना ही पड़ेगा कि ये positive नहीं है। सच बात है इसमें हमारा कोई भी दोष है नहीं। दोष न आपका है न हमारा है । थोड़ा आपके में सुर-आसुरों की बात लिखी है । जो उसके लिए बहुत कठिन हो जाता है कि वो और ये Negative है जो धर्म और अधर्म की बात नही कर सकता वो हवाई बात है सिर्फ धर्म कर्मों का जरूर होगा नहीं तो आप ऐसी जगह क्यों की बात करने से कैसे होगा?धर्म भी है और अधर्म गए जहाँ पर जाकर के आप पर ऐसा दोष लग भी है। उसकी पूरी सारी रेखा है, जो धर्म है वो गया? पूरी सतर्कता में स्वयं ही अपने आप होने अधर्म नहीं हो सकता, जो अधर्म है वो धर्म नहीं हो वाला जीवन का विकास यही सहजयोग है। भूत-प्रेत Spint, सन्त भी, इनसे आप परम नहीं पा सकते वो सकता। इसका Confussion कलियुग की वजह मरे हुए लोग हैं। परम सिर्फ जिन्दा में ही आ से कर दिया, लेकिन ऐसी बात नहीं है, जो Negative सकता है मरे हुए में गर जाता है तो क्यों वो यहाँ है Negative है जो positive है वो positive है । आ रहे हैं हमारे ऊपर में, वहाँ क्यों नहीं बैठतें? जो Negative चीज़़ है उसको समझ लेना चाहिए। जिन्दा होना चाहिए। आदमी जब तक जिन्दा नहीं Negative का मतलब है मरी हुई, Dead होगा, सतर्क नहीं होगा, उसकी चेतना जब तक sympathetic में बैठी हुई। वो है, और उस पूरी तरह से जागृत नहीं होगी तब तक उसके Negative का असर बहुत ज्यादा उस जगह जब अन्दर सहजयोग नहीं उतर सकता। पूर्ण जागृत होता है जहाँ पर मनुष्य जड़ होता है जैसे बम्बई अवस्था में जो चीज आप पाते हैं वो ही परम है। शहर में हम लोग बहुत जड़ हो गए हैं। रात दिन समाधि में लोग सोचते हैं कि आँखें ऊपर हो गई पैसों की ढनकार, Election के झण्डे! इन सब गुरु हो गए हम। दो-दो घण्टे बैठे हुए हैं! यह चीजों में इतना चित्त उलझा रहता है रात दिन सहजयोग से नहीं होने वाला। ये सब आपका यह पढ़ पढ़ कर और सुन सुनकर मनुष्य का चित्त Subconscious है जिसे कि मैं कहती हैं मृतलोक, ही नहीं जाता है वहाँ पर। Enquiry ही नहीं है, जिसमें आप उतर रहे हैं। इसका कोई भी आपको खोज ही नहीं है! अरे हम क्यों जी रहे है! क्या चिरस्थायी फायदा नहीं है। जिस मनुष्य को परम यही सब करने के लिए? उनके गुण्डे ने बहाँ पाना है उसको सोच लेना है कि जो मैं सतर्कता में, मारा,उन्होंने जाकर उनकी बुराई करी, उन्होंने पूरी स्वतंत्रता में पाऊँगा वही मैं पाऊँगा| पूरी जाके उनको ऐसा किया! क्या यही सब करने के स्वतंत्रता आपको यहाँ तक किसी भी तरह का 1 लिए हम संसार में आए हैं? मनुष्य का चयन गलत भक्ति भाव मेरे प्रति न हो, बिल्कुल नहीं होना है। इस जड़ तत्व से बहुत बच कर रहिए। लेकिन चाहिए। जैसे एक साधारण सौम्य स्त्री होती है वैसे ये जड़ तत्व तो आपका अपना घिराव है। इसके ही मैं हूँ। घर गृहस्थी की एक साधारण स्त्री हैं, अलावा भी collective subconscious है। जिसे ऐसा ही समझ लीजिए कुछ विशेष हूँ ये सोचना 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-27.txt सितम्बर अक्टूबर. 2004 चैत्तन्य लहरी 26 ऐसा ही सोचकर आइए। ये स्वत्रता भी जिम्मेदारी भी इतनी बढ़ जाती है। उसका सारा होनी चाहिए। तभी आप पाएंगे चाहे आप दस हों, व्यक्तित्व ही दूसरा हो जाता है। लेकिन आदिकाल चाहे आप एक हों, हमारे लिए काफी है इसके से ही लोग कहते आए हैं कि माँ से बढ़कर गुरु ही नहीं । number से नही होता है हालांकि number भी, कोई नहीं है। गुरु उसी को मानिए जो आपसे बड़ा बढ़ाना होगा Number जरूर बढ़ाना होगा इसमें हो, बड़ा हो, जो आपसे बड़ा परमात्मा हो । कोई शंका नहीं । कार्य जोरों में गर हो जाए तो रामदासस्वामी ने गुरु के बारे में ऐसा कहा था कि हो सकता है। हालांकि परम उपर से बहुत अलग गुरु उसे मानिए जो स्वयं तों पारस है ही दूसरों को है। एक नव निर्माण के लिए एक नई चेतना के छूते ही सोना नहीं बना देता उसे, पर पारस बना लिए, एक नए तरह के सानव की इसमें व्यवस्था की देता है। जैसा खुद है वैसा ही दूसरों को बना देता हुई है इस Para Sympathetic में एक प्रेम है है और इसीलिए ये मॉं स्वरूप चीज हैं माँ बच्चों एक ज्ञान है, एक सीन्दर्य शैली। होनी ही पड़ेगी और होके ही रहेगी। आप लोगों ने इतनी देर तक मेरा भाषण सुना इच्छा रही कि ये प्रेम और ये ज्ञान एक मां के अन्दर है, गुरु पूर्णिमा के दिन मुझे यही कहने का है कि से आपको मिले। अभी हम लोग ध्यान में जाएंगे इस जन्म में मैं गुरु हो गई, और तो किसी जन्म में इसके बाद में आप लोग आर्तता से इसमें बैठे। ये कार्य नहीं किया था पहली मरतबा गुरु का अपने विचार, अपने विरोध, इनको छोड़ दें थोड़ी देर कार्य करना पड़ा। शायद वो भी मों को ही गुरु के लिए। इसलिए कि आपको अपना मंगल और होना पड़ता है। ये कलियुग का मामला है इसलिए कल्याण करना है अपने साथ अच्छाई है, अपने नितांत परमात्मा की जो भी शक्ति है ये किसी माँ साथ बुराई है, किसी भी एक चीज को पकड़े बैठे से बहे, उसी की करुणा और उसी के प्रेम हुए हो तो उसे छोड़ दीजिए थोड़ी देर के लिए । हमें में कुण्डलिनी को संजोया जाए और उस शिखर आपसे कुछ लेना देना नहीं और आपकी स्वतंत्रता तक पहुँचा दिया जाए जहाँ पर कि वो अपने दोलन हमें छीननी नहीं। किसी भी तरह किसी भी कीमत में अपने आनन्द में अपने स्थान में विराजित हो! पर मैं आपकी स्वतंत्रता छीनती नहीं । जैसे लोग ये आज हमारे ही भाग्य में है, इसीलिए इस जन्म पागल जैसे किसी के पीछे दौडते हैं, हजारों रुपया में ये गुरु का स्थान स्वीकृत किया है। माँ गुरु बन उन्हें दे देते हैं, चीजें दे देते हैं! अरे चीजें लेते जाए, ऐसा कही होना बड़ा कठिन है क्योंकि माँ किसलिए हो? गुरु वो जो आपसे कुछ नहीं लेता अत्यन्त कोमल होती है। गुरु तो मार भी देगा, पीट गुरु को आप क्या देगे? आप मुझे कुछ नहीं दे भी देगा, डाट भी देगा, लेकिन माँ एक भी कठिन शब्द बोलते वक्त उसके हृदय में कचोटती है, को आश्चर्य होगा कि आप मुझे Vibrations भी तकलीफ होती है- बहुत ही, और जब वो देखती नहीं दे सकते! है कि मेरे बच्चे कितनी साधना से आए हुए है और इनको किस तरह से इनको संजोकर के, संभाल थी, वो कहने लगी माताजी में आपको Vibration करके, प्यार से उस किनारे ले जाना है।तब उसकी दूँ?" मैने कहा देखें दो तो सही। जब वो Vibration मनुष्य की रचना में होती है। बच्चों के गौरव- में गौरव मानती है । इसलिए इस जन्म में शायद परमात्मा की यही के हृदय सकते, आप मुझे Vibration भी नहीं दे सकते, आप एक दिन मेरे पैर में चोट लगी तो एक Doctor 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-28.txt सितम्बर अवटूबर, 2004 चैतन्य लहरी 27 ।ु. देने लगी तो चोट की जगह से इतनी तेज उनको परम मांगिएगा | आज की गुरु पूर्णिमा के दिन मेरा Vibration आईं कि वो खुद ही ध्यान में चली गई। आपको बहुत आशीर्वाद है और जितने Realized कहने लगी इस जगह से Vibrations आ रहे हैं। लोग हैं उनको विशेष रूप से, और उनसे मेरी और मेरी जो चोट थी वो एकदम से हल्की होने विनती है कि जैसे अपने पाया है दूसरों को देने का लगी। गुरु कुछ भी न ले सके, जो पूरा प्रयत्न करें। शिखर पर बैठा हुआ है वो नीचे की ओर बहेगा, उसकी ओर कोई नहीं, कुछ नहीं बहेगा|। सब है वो लोग आपसे नाराज हो जाएं, गुस्से हो जाएं, चो जो आपसे उनको भी समझाने का प्रयत्न करें। हो सकता मारेग, पीटेंगे। ये कुछ भी नहीं हैं, इससे कहीं समझ की बात है। गर मैं किसी से कहती हैं बेटे मुझे मत दो अधिक हमने सहा है, इसलिए कुछ भी नहीं। क्योंकि ये सब ढकोसला है, आप मुझे कुछ भी नहीं वाद विवाद करेंगे, आपको नहीं मानेगे, कोई ह्ज दे सकते। उल्टे आप कुछ माँगते हैं मुझसे तो सारा नहीं। छोड़ दीजिए उन्हें, जो आपको मानते हैं का सारा व्यक्तित्व जो है वो खौल उठता है, अन्दर उन्हीं पर यह अनुग्रह करें। यहाँ तो केवल देना है, से सारी की सारी प्रभावशाली शक्तियाँ दौड़ने लग आपको देना है, आप दे सकते हैं, सब मेरे बच्चे । जाती हैं कि किस तरह से प्रेम से मैं इस बच्चे को मेरा प्यार संसार में सब जगह पहुँचे और धर घर सम्हालू! जरा सा कोई कुछ मांग ही ले! परम, दीप जलें। बहुत बहुत आप सबका धन्यवाद श 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-29.txt हर श्वास में सहजयोग को प्रस्थापित करना होगा परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन 25.11.1975 मुंबई शान्ति के लिए सहजयोग का उद्भव हुआ है। आपको मालूम है कि ऐसे है जो पार हो गए सो पार लेकिन मानव के लिए सहजयोग को समझ लेना हो गए, उनको कोई छूता नहीं। कभी वो पकड़ते इतना आसान नहीं, क्योंकि कोई बहुत बड़ी महान नहीं हैं। लेकिन उनकी पूर्वजन्म की बड़ी पुण्याई चीज एक दम सहज में मिल जाए तो उसका है। उनको भी सतर्क रहना चाहिए, इसे भूल नहीं महात्म्य, उसका आँकलन, उस शक्ति के लिए जाना चाहिए कि हमको पकड़ा नहीं तो हम कोई श्रद्धा, उसके लिए भक्ति, पूर्ण चित्त से उसको विशेष हो गए, कोई बात नहीं। Casual जिसे कहते अन्दर में तादात्म्य कराने के लिए मेहनत, इन सब हैं Casually सहजयोग के प्रति रहना हम लोगो चीजों की कमी रह जाती है । इसीलिए आप को बड़ा मॅहगा पडेगा। ऑँख के प्रति आप गर देखिएगा कि अधिकतर सहजयोगी बड़े Casual होते हैं। पर दूसरे जो स्वामी लोग हैं जो आपको आँख, हाथ,पैर शरीर देखने वाला तो है ही कोई मालूम है कि किस तरह से लोगों को ध्यान में तैयार । और उसको देखने का नहीं है लेकिन डालते हैं और कैसे उनका फायदा उठाते हैं। जो सहजयोग आप ही को देखना है। ये दोनो में आपसे पैसा लेते हैं, आप से मेहनत करवाते हैं, अन्तर है आपका शरीर कोई संभाल लेगा, आपका आपको सिर के बल खड़ा करते हैं, शारीरिक श्रम सबकुछ जो है, जो कुछ भी बाकी का जितना भी, करवाते हैं, कोई न कोई मेहनत करवाले हैं, कुछ न Three Dimension जिसको मैं कहती हैं, वो सब कुछ करवाते हैं. तो आपका जो अहंकार है उसमें संभल जाएगा. लेकिन आपका सहजयोग आप ही थोड़ा सा तृप्त होकर के आप उनसे चिपके रहते को हैं। आपने ऐसे भी लोग देखे होंगे कि जो कुछ और Casual इतने हम हैं, इतने Casual हैं, कि अपना है सब कुछ देकर के, पैसा वरगैरा, और इन हमारे पड़ोस में ही कोई आदमी बैठा हुआ है उससे साधुओं के पास में वो लोग झाडू मारते हैं । सहजयोग की प्राप्ति इतनी सहज में हो जाती उससे यही बात करो, Dedication इसी का देना है कि उसके प्रति लोग Casual रहते हैं। जैसे पड़ेगा सहजयोग को। अभी से लोग हैं, शरीर ऑँख की प्राप्ति हमको एकदम सहज हो गई तो के बहुत से अंग अंग अलग अलग बिखरे हुए हैं। उसकी तरफ हम Casual है. उसकी कोई कीमत अभी कल देखिए के वो एक उस दिन की बात हैं ही नहीं हमको कि ये आँख कितनी कीमती है। वो लड़की के बाधा हुई तो उसका भाई आया, वो जिस दिन ऑँख हमारी जरा सी दुखती है तो पता फट से पार हो गया। संसार में ऐसे चलता है, हे भगवान! इसीलिए बाधा का होना भी अंग-प्रत्यंग कहीं कहीं गिरे हुए हैं उनको सबको जरूरी हो जाता है। गर बाधा नहीं हो तो सहजयोगी इक्ट्ठा करना है। ये भी बड़ा भारी सहजयोग तो बिल्कुल परवाह ही न करें ऊपर निर्भर है, जब तक आप पकड़ेंगे तब तक कैसे रहता है, देखिए। आप गर हमारे घर में हैं तो बाधा है, लेकिन क्या किया जाए? कुछ कुछ लोग सबको सहजयोग में आना पड़ेगा, पार होना पड़ेगा, 1 Casual रहें तो कोई हर्जा नहीं क्योंकि आपकी साधने का है, आप ही को उसमें बढ़ने का है। भी हम नहीं कहते कि अरे भई जिससे भी मिलो बहुत बहुत से आपके बाधा तो आपके है। अपने घर में ही कोई आदमी बगैर सहजयोग के 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-30.txt सितम्बर चैतन्य लहरी 29 अक्टूबर, 2004 बाधा रखनी नहीं पड़ेगी। इतना efficient होना चाहिए। लेकिन जान के नहीं बन रहे भिखारी, वो चाहिए। उसमें गुस्सा नहीं करना, लेकिन उनसे तो Casualness में चले गए। हम उधर भी चले बात यही करनी चाहिए बोलना यही चाहिए। उसमें गए, कि क्या करें हमारी बीवी ऐसी है, क्या करें बिल्कुल Casual पना नहीं चलने वाला। खाते, हमारा बाप ऐसा है, क्या करें हमारी लड़की ने कहा उठते बैठते जैसे श्वास चलती है. हर श्वास के है तो चलो, हम भी चले गए। फिर क्या हुआ? साथ में सहजयोग को प्रस्थापित करना होगा आज तो माताजी आज्ञा चक्र पकड़ गया पेट का वो क्योंकि गर आप अपने को कोई विशेष रूप मानते पकड़ गया, नाभि चक्र पकड़ गया तीन चक् पर हैं और आप गर अपने मन्दिर को सोचते हैं कि खास पकड़ ही लेकर आए। अभी सगी बहन मैं इसमें कोई विशेषता है तो इसमें घण्टा नाद होना उसके इधर बैठी हुई हूँ उसको गजानन महाराज ही चाहिए हर समय । नहीं तो व्यर्थ जाएगा। जाने को किसने कहा था? कहने लगे कि हमने सहजयोग भी व्यर्थ जा सकता है। ये समझ सोचा था कि हम लोगों की हालत बहुत खराब हो लीजिए आप ये भी दूसरी बात आपको बता हेँ कि गई तो अब साई बाबा के जाएंगे। तो मैने कहा तुम बगैर सहजयोग के आपका कोई व्यक्तित्व है नहीं। पहले इधर आओ, अपना पेट ठीक कराओ, फिर अब उसके बगैर आपका निखार भी है नही, उसके साई बाबा के जाओ। नहीं तो वहाँ जाकर तुमको बगैर आपका कोई स्थान भी है नहीं। क्योंकि क्या अक्ल आने वाली है, हजारों जाते हैं तो क्या परमात्मा के राज्य में जब आप आ गए तो उसका है वहाँ पर? तुमको मॉँगना क्या है? Material चीज आपको Citizenship लेना ही पड़ेगा। मैं लोगों से सुनती हूँ, कल हमारे भाई साहब ही आए की ये इच्छाएं पूरी होंगी? अब सब हो गया न थे कहने लगे कि हम गजानन महाराज के पास Materially, और क्या चाहिए तुम लोगों को? राजे गए थे। मुझे तो पता ही नहीं कि कौन गजानन रजवाड़े होकर भी क्या चाहिए तुमको अब। जो देने महाराज हैं कि कौन हैं. फिर उस लड़के ने बताया को आए हैं. जो पाने का है वो बहुत महत्वपूर्ण है। कि वो गजानन महाराज थे। उस पर हमने देखा मानव जाति के लिए। परमात्मा ने बहुत सोच विचार कि आज्ञा चक्र, विशुद्धि चक, फलाना तीन चक के तुमको बनाया। इधर उधर का पढ़ा हुआ दिमाग पकड़ते हैं। वहीं बैठे वो भी थे इधर, उन्होंने अपने में इतना ज्यादा मैल है उस सबको उठाकर फैंक माँगनी है, तो साई बाबा के पास जाइए। कब मनुष्य बहुत से अनुभव बताए गजानन महाराज के कि उनके फोटो दो फालतू की जितनी चीजें इक्ट्ठी करके रखी से ही पकड़ते हैं। मैने कहा, लो अब उनके तीन हुई है सारा जंग। इस मन्दिर में से फैंक दो, इस चक्र पकड़े हुए! मैनें कहा घर में तुम्हारी बहन बैठी मन्दिर की प्रतिष्ठा बनाओ। हर एक हृदय में हुई हूँ तो काहे को गजानन महाराज के पास गए एक-एक दीप जलाने का है। अपने घर को पवित्र थे? कहने लगे सबने बोला सन्त पुरुष हैं। मैने करो, अपने परिवार को पवित्र करो। अपने समाज कहा अरे भई Viberation से देखो सन्त पुरुष हैं को पवित्र करो। रिश्तेदारों का आपको बड़ा ख्याल कि नहीं। Casually चले गए! उनको भी देखना है, रिश्तेदार बहुत हो गए, उनके लिए आए, मेरी चाहिए । ये कोई सहजयोग हुआ? राजा बनने के सास आई है, उसके लिए मुझे देना चाहिए। क्या बाद भिखारी बनने वाले लोगों को निकाल देना देगी तुम्हारी सास तुमको? जाओगी तो जूते देगी, | 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-31.txt चैतन्य लहरी सितम्बर - अक्टूबर, 2004 30 जूते! आपके रिश्तेदार सिर्फ ये हैं आप जान लो, जितना भी आप पर गिरेगा सब झटक जाएगा जब इनके सिवाय तुम्हारा कोई रिश्तेदार नहीं है। सहजयोगी ही सहजयोगी के रिश्तेदार हैं हैं गर मैं कहूँ किसी से कि तुम्हारा कोई चक्र क्योंकि वो भाषा ही और बोलते हैं, उनका तरीका पकड़ा है तो वो कीचड़ है, निकाल डालो उसको । आप जानेंगे कि आप कमल हैं। आप कीचड़ नहीं ही और है, उनका ढंग ही और है। इस पर प्राण तुम तो कमल बना दिए गए हो न! तुम तो कमल लगाने पड़ेंगे अपने। और प्रेम, प्रेम को बाँटना हो, कमल पर अगर कीचड़ गिर गया तो कमल को होगा। चित्त की धार पर प्रेम बहेगा, चित्त को पहले चाहिए कि उठाकर फेंक दे। और टिकने भी नहीं ठीक करो, चित्त को पहले हल्का करो। सब दुनिया वाला उस पर। हर एक को सहजयोग के प्रति भर की चीजें इस चित्त पर रखने से ये सहजयोग जागरूक होना पड़ेगा। गर सहजयोग की नैया कैसे उतरेगा? चित्त के ही ऊपर चला आ रहा हैं पार लगानी है तो अपनी छोटे छोटे परिवार के, और धड़ धड़ धड़ देखिए । प्रभु तो तुम्हारे ऊपर छोटे-छोटे घर के प्रश्नों को लेकर के मत बैठे । उड़ेलने के लिए बैठा हुआ है। लेकिन तुम्हारा चित्त जब तक इस कीचड़ को पकड़े रहोगे अपने साथ, कहाँ है? दो दो मिनट में चित्त इधर-उधर होता कोई तुम्हारा साथ देने वाला नहीं है लडके की है! उसके चरण में सिर्फ चित्त को देने का है, शादी होएगी, लड़की की शादी होएगी, फलाना तुम्हारा पैसा, धेला, कौड़ी, कुछ नहीं चाहिए उसको। होगा! होगा,होगा, नहीं होगा नहीं होगा। ये मनुष्य की मूर्खता है, उसने अपने पास जो जोड़ रखा है उसका महत्व क्या है? महत्च अपने चित्त सहजयोग में, सहजयोग के लिए टाइम नहीं आपको! का करो। इसी चित्त पर परमात्मा उतरेगा तुम सबसे बड़ी बात ये है कि भारतवर्ष के लोगों के पास लोगों को दस दस बीस-बीस साल तो उन्होंनें पैसा वैसा ज्यादा नहीं है। उनकी इतनी, देखा जाए जबान कर दिया! शरीर तुम्हारा ठीक हो गया, मन तो, आर्थिक दशा कुछ खास अच्छी नहीं हैं। लेकिन की भावनाएं तुम्हारी शुद्ध कर दीं। तुम्हारे अन्दर Collective Concious आ गया, अब क्या? अभी Viberations हैं जो सब चीज को Control करता दौड़ रहे हो इस चीज के लिए, उस चीज के लिए? है अभी तक कोई और देश होता तो Collapse उसका महत्व ज्यादा है तुम लोगों को। पहले भी हो गया होता! उसी Viberations के सहारे ही तुम जन्म में बहुत कमाया था, सब गोबर यही छोड़कर लोग जी रहे हो । कितना बडा देश है। ऐसे महान गए थे, और फिर इक्ट्ठा करो और फिर यही देश में पैदा हुए हो। और सब कुछ तुम जानते हो छोड़कर जाओगे। Casually रहना सहजयोगी वहां अग्रेजों से तो मुझे बताना ही नहीं आता कि के लिए बड़ी ही खतरनाक चीज है। गफलत कहते इन्हें मैं क्या बताऊँ । देवी महात्म्य इन्होंने पढ़ा नहीं, हैं जिसे। बड़ा भारी युद्ध खड़ा हुआ है! आप तो देवी क्या मालूम है उनको? इनको माँ मालूम जानते हैं कि किस कदर दूसरे भी संहार के तरीके नहीं, इतने गन्दे लोग हैं वहाँ जिनको माँ नहीं तैयार हो गए हैं। सहजयोग एक कमल जैसे मालूम मैं इनको क्या बताऊ माँ का महत्व? मुझे तो कीचड़ में खड़ा हुआ है, नाजुक, सुन्दर और आप उसीकी पंखुड़ियाँ हैं। कीचड़ हो, जैसे दाढ़ी बनाते हो ऐसे ही ध्यान में बैठते हो ! धड़ उसमें खर्चा करेंगे, उसमें नाम कमाएंगे और जान के रहना चाहिए हमें कि इसी भारतवर्ष में 1 1 सुरभित, सुगन्धित, रोना आता है। और तुम लोग ऐसे casual हो गए 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-32.txt सितम्बर - अक्टूबर, 2004 चैतन्य लहरी 31 कैसे होगा भाई? मेरे भाई लोग बोलते हैं क्यों मर Realization दिया है, कहाँ है? उनमें वो दो चार रही हो सुबह से शाम तक? तुम्हारी तबियत को हैं और वो भी कंजूसी करते हैं। बहुत पैसे वाला तो कुछ हो जाएगा तो तुम्हारा पति हमें क्या कहेगा? कोई है ही नहीं अपने पास में लाखोंपति, करोड़ोंपतियों रात को चार-चार पाँच-पाँच बजे सोती हो, दिन को दिया है Realization, क्या कर रहे हैं? अच्छा भर मेहनत कर रही हो, क्यों कर रही हों? क्या है पैसा नहीं है। उसकी झंझट तुम्हारे बहुत कम तुमको मिलने वाला है, समझ में नहीं आता है? चिपकी हुई है। कम पैसे हैं, बहुत अच्छा है देख अभी उनको समझ में नहीं आता है और मेरी भी लिया मैंने ये पैसे वालो, को बड़े बड़े पदाधीशों को देखा, बड़े-बड़े Minister को देखा, उनको, क्या समझ में नहीं आता है। जब एक बैठेगी उनकी मेरी समझ तभी कुछ काम बनने वाला है अकेले मैं है? वो तुम्हारे जैसा आनन्द तो वो लेते ही नहीं हैं। लड़ सकती हैँ न,लेकिन उससे तुम लोगों को क्या पार हो गए, बैठ गए उसके बाद में ढम से। बड़ा लाभ होगा? आपको क्या मिलने वाला है। Casual पैसा लेकर बैठेंगे। बड़े बड़े Minister हुए, बड़े-बड़े रहना, Casually चलना, अपने प्रति उदासीनता है, Secretary हुए हैं पार, पर क्या किया उन्होनें? अपना अनादर है, स्वयं ही। जिस राजा को सारा उनके घमण्ड से भगवान बचाए रखे। भगवान के धन मिल गया है वो Casually रह रहा है! अरे पास में कौन है Secretary और कौन है राजा? वो राज करो, विराजो। छोटी-छोटी बातों को लेकर आपसे भी अच्छे हैं कि उनको कोई पैसे का गुम ही के क्या सहजयोग को खत्म करने वाले हो? अपने नहीं है। आप और भी अच्छे हैं कि उनको कोई अन्तर को साफ करो, अपने हृदय को साफ करो,चालाकी छोड़ो, अपने हृदय को साफ करके ये इनको तो बस माताजी चाहिए कल कुछ बच्चे देखो कि क्या हम अबोधिता में, Innocence में, आए थे उनकी माँ ने कहा अब चलो, कहने लगे बैठे हुए हैं? मेरे ऊपर कोई उपकार नहीं हो रहा है अभी थोड़ी देर तो ठहरो न । इनको कोई चाक्लेट आपका। आप ही पर, अपने पर ही, आप जो माँग नहीं दे रही थी, कुछ नहीं दे रही थी, बैठे थे। रहे थे, सालों से खोज रहे थे वही मिल रहा है। माताजी ये यही हमको चाकलेट चाहिए। हमको अब चरम सीमा पर आने पर ये क्या पागलपन लगा सिनेमा विनेमा नहीं जाने का, हमको यही चाहिए. रखा है? जो चरम सीमा पर आ चुका है उसको माताजी के पास । वो ज्यादा समझते हैं तुम लोगों मोड़ कर आपने देखा नहीं होगा लेकिन मैंने से। तुम भी ऐसे ही हो जाओं। सबकुछ छोड़ दो हैं Position नहीं है इन सब मूर्खताओं से छूटे हुए मुख बहुतों को देखा है। पहले तो चिपकाना पडता चिपको, चिपको, चिपको। कभी कभी तो ऐसा भी गए हो अब। क्या सुन्दर रूप हैं! तुम भी ऐसे ही थे विचार बन सकता है आप लोगों का कि हम लोग बेटे। तुम भी ऐसे ही थे सब लोग, ये कहाँ से ऐसे क्या कर सकते हैं, हमारे देश में तो इतनी खराबी विद्रूप हो गए सब लोग! अपनी विद्रूपताओं से है, हम लोग तो गरीब आदमी है यहाँ पर, हमारी घबराओ, दूसरों की सुरूपता को देखो। मैं जब तो परेशानियाँ है, हम क्या देश का उद्धार करेंगे? चली जाऊंगी तब सहजयोग पर, माँ चली जाती है माताजी हमको चढ़ाती हैं। अच्छा है कि आपके तो बच्चों का काम है घर संभालना। आने पर पास पैसा नहीं है। पिछला, ऐसे ही हो जाओ, फिर से तुम बच्चे ही हो है, इतने लोग. पैसेवालों, को दिखना चाहिए कि सहजयोग बढ़ा कर रखा हुआ the 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-33.txt सितम्बर 32 अक्टूबर, 2004 चैतन्य लहरी है मेरे बच्चो ने, और नहीं तो आने पर दिखा आज माँ को देखा है तुमने, कितने घण्टे सोती है? चार वहाँ उसके आज्ञा चक्र पकड़े हैं, किसी का नाभि बजे सवेरे उठकर के बैठो, अपने मन से कहों, चार चक्र पकड़े है किसी का विशुद्धि चक् पकड़ा हुआ से पाँच बजे सवेरे ध्यान में जाने का है। निद्रा विद्वा है, कोई उनके पास चले गए, कोई उनके पास चले फैंक देने का है। रात का जागरण छोड़ों, फालतू किसी की हालत खराब, लोगों से बातचीत करना छोड़ो, फालतू गए, कोई बीमार पड़ गए, किसी की बीबी हस्पताल, कोई पागलखाने में । अरे Associations छोड़ो, रिश्तेदारी छोड़ो। बेकार के भई ये क्या हो गया? और ये नहीं सोचना है कि लोग हैं, सब भूत वाले हैं, इनके लिए अपना Time हम छोटे आदमी हैं। अरे तुम लोग बहुत बड़े बर्बाद करने के लिए हम हैं कहाँ यहाँ पर। मैं तो एक भी क्षण, आपको आश्चर्य होगा कि. आदमी हो। ये बड़े बड़े किसी काम के नहीं, ये पार ही नहीं होते। अपना बड़प्पन जान करके, बात करो, सहजयोग के सिवाय बिताती नहीं, एक भी क्षण! अपने को खोलकर के बात करो । एक अक्षर सहजयोग हमारे पति के दफतर में हजारों आदमी आते हैं, में जो बोलता है सरस्वती साक्षात् वहाँ आकर बैठ जब कभी Reception होता है तो हजारों आदमियों जाएगी, मै आपको बता रही हूँ। आप बोलकर से हाथ मिलाना पड़ता है तो जाग्रति देती हूँ। देखिए। आपके अनुभव हैं ये। सहजयोग पर बोलना हाथ मिलाते ही जाग्रति, उसके दिया तो खट से शुरु करो सरस्वती आपके वाणी में आ जाएगी, देखती हूँ कि जाग्रत हो गए, मुझे आती है हँसी! जिस देश में जाती हूँ उस देश में जाग्रति देती लिखना शुरु करो, आपकी लेखनी में आ जाएगी। हूँ, किसी कार्य को लो साक्षात हनुमान खड़े हैं हाथ जिससे बात करती हॅँ उसको जाग्रति देती हूँ, वो जोड़कर के कि माँ बोलो किसके साथ खड़ा हो बोलते रहता है मैं उसे जाग्रति दती रहती हूँ। वो जाऊ मैं? हनुमान जी सारा काम कर रहे बोलते रहता है... दुनिया की चीज। जहाँ मौका हैं आपका, कोई भी काम लो, माँ का नाम लेकर के, मिलता है जाग्रति देती हूँ । विक्टोरिया स्टेशन पर कोई सा भी काम संसार का लो चाहे, किसी चीज टिकट कलेक्टर एक साहब मुसलमान, तो उस का वो करेंगे, और सहजयोग के लिए तो साक्षात् समय टिकट लेने के लिए मैं खड़ी थी तो लाइन बहुत लम्बी थी तो मैं देख रही थी, पाकिस्तान का सब लोग अपनी शक्तियाँ तुम्हारे ऊपर लगा होगा, पता नहीं जहाँ का भी हो, हाँ पाकिस्तान का करके पीछे Background में खड़े हुए हैं और देखा था, तो उसको मैं जाग्रति दे रही थी खड़ी खड़ी, क्या कि नट जी जो आए हैं उनकी हालत खराब । सामने वालों को भी जाग्रति दे रही थी जैसे उसने वो इधर उधर देख रहे हैं। नाटक कैसे रचेगा? आध टिकट दिया उसने मेरी ओर देखा और पार हो ॥ अधूरापन नहीं चाहिए। मेरे को टाइम नहीं गया! तो वो सबका टिकट देकर के जो अन्दर में मिलता माताजी, ध्यान में बैठने को टाइम नहीं है। आ गया, और आकर मेरे कम्पार्टमेन्ट में बैठ गया। इसका मतलब क्या? टाइम है किसके लिए? किसने कम्पार्टमेन्ट में मैं अकेली बैठी थी। कहता है आप दिया टाइम तुमको? अपने लिए Time नहीं मिलता कौन हैं? आपमें इतनी कशिश कैसी है? मैने कहा है तो भगवान का क्या दोष हैं? Time कैसे नहीं आप कौन हैं? कहने लगा मेरा नाम हुसैन है, फिर मिलता है? चार बजे सवेरे उठना चाहिए तुम्हारी मैने कहा बैठो हुसैन मियाँ, ऐसे हाथ करो। कहने पाँचों चिरंजीव खड़े हुए हैं आपके लिए । 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-34.txt सितम्बर चैतन्य लहरी 33 अक्टूबर, 2004 लगा ये क्या आ रहा है ठण्डा? आप कौन हैं? देख जितनी पुरानी गुलामियाँ हैं सबको छोड़ो। पहले लो कौन हैं, पहचान लो। रोम में मैं गई थी, बहुत घड़ियों को फेंको उठा करके । System नहीं दिन पहले की बात है, वहाँ बहुत से आर्टिस्ट बैठे बनाओ किसी चीज का, सहजयोग में System 1. हुए थे। कुछ पेंट कर रहे थे, एक को पार दिया। नहीं बन सकता है। उससे अपना System बनता वह धीरे से उठा और आके उसने धीरे से किसी रहेगा, उसके System को बनने दो। तुम लोग ने कुछ कहा और उसके बाद आकर के दोनों पैर System बनाया तो जड़ हो जाएगा। Discipline पकड़ के बैठ गया और रोने लग गया जोर जोर मत बनाओ, उसकी Discipline चलने दो अपने से। "माँ तुम कब आए"? मैं तो वहाँ बड़े भारी अन्दर म अफसर की बीवी बन कर गई थी, तीन आदमी लिए Discipline जरूरी है वो तुम करो। लेकिन' उधर में, चार आदमी उधर में खड़े हुए थे! वो लोग जो लोग पार हो गए हैं उन्होने अपनी Discipline सब embarrased हो गए कि ये क्या कर रहा है? अन्दर करनी है। अपने आप अन्दर Disciplining से में। हाँ जो लोग पार नहीं हुए हैं, उनके माँ तुम मुझे मिल गईं, रात को तुम स्वप्न में आई हो जाएगा। सहजयोगी का अपना अन्दरूनी थीं, तुमने कहा था कि मैं ऐसी साड़ी पहनकर Disciplin है, वो गर Indiscipline करे तो उसकी आऊंगी, वैसी तुम पहन कर आईं हो। एक क्षण भी माफी नहीं है जो सहजयोगी नहीं है उसको माफ सहजयोग के सिवाए मुझे कुछ सूझता ही नहीं है, करो, क्योंकि वह अभी तक जानता नहीं कि सब पिछला भूल गई मैं। बड़े बड़े जन्म हुए, बड़े Discipline क्या चीज है। उसको तो संसारी बड़े हो गए सब लोग सब भूल गई हूँ मैं, पिछला Discipline मालूम है, डण्डे वाली। सहजयोगी की अपनी ही Discipline अन्दर से आने दो, अन्दर से अगला सब भूल गई हूँ। यही सब सहजयोग ही मुझे याद है और मुझे उसको जगने दो, देखो तुम कितने उसके Discipline कुछ याद नहीं। ऐसे ही आप लोगों का भी हर क्षण में चंल रहे हो, उसके हाथ पैर के साथ घूम रहे हो, हर पल, सहजयोग । जहाँ बैठे हैं वहीं पर । घड़ियाँ उसकी लहर के साथ उठ रहे हो! समुद्र की लहर फेंक दो पहले, उतार दो घड़ियाँ फेंक दो, घड़ियों की किसने Discipline बाँधी है ? यहाॅ बैठे, बैठे की गुलामी फेंक दो, सहजयोग की गुलामी करो, आप London में कौन से Time High Tide आएगी, सहजयोग तुम्हारी घड़ी है। साढ़े बारह बज गए Low Tide आएगी, आप बता सकते हैं? किसने उस दिन, कोई हर्जा नही, बैठे हुए हैं। तीन बज बाँधने के रखी है उसकी Discipline जो आप गए बैठे हुए हैं सहजयोग में बैठे हैं, सहजयोग Discipline बाँधने लग गए? उसके Discipline में क्या Time का गुलाम है, क्या घड़ी का गुलाम है? उतरना सीखो। उसके इशारे, उसके यंत्र में बंधना किसी भी कायदे कानून के हम गुलाम नहीं है हम सीखो। उसका यंत्र चल रहा है, अपना कुछ मत सिर्फ सहजयोग में खड़े हुए है कितना भी टाइम बनाओ। अपना बस ये कहो कि चलो सहजयोग में लग जाए बैठे रहेंगे। जहाँ भी बैठेंगे, बैठेंगे हम उतरो, चलो लगाओ Time उसी में । घड़ियाँ लगानी कोई पेट के गुलाम हैं जो टाइम से खाएं ? हम है तो सहजयोग के लिए। Alarm लगाना है तो किसी के भी गुलाम नहीं हैं। होते रहता है सहजयोग के लिए। ये देखिए, ये उम्र है और ये सबकुछ, होने वाली है अपनी गुलामी पहले छोड़ो, सहजयोग है! (मराठी) 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-35.txt चैतन्य लहरी सितम्बर 34 अक्टूबर 2004 अभी तो छोटे छोटे बच्चे हैं सारे। उम्र का संसार का एक पत्ता भी उसके Discipline के बगैर नहीं चल सकता, उसके Discipline में अपने तकाजा नहीं है। निर्विचारिता में रहना चाहिए, यही को घोल दो, उसकी Hamony में चले जाओ। आपका स्थान है, यही आपका धन है, यही आपका उसके साथ Hamonise कर लीज़िए पुरी तरह बल है, शक्ति है, यही आपका स्वरूप है, यही से, जब वो उठता है तो उठ गए, जब वो गिरता है आपका सौन्दर्य है, यही आपका जीवन है। तो गिर गए। जब हम अपना कुछ नहीं करके बैठ निर्विचार निर्विचार होते ही बाकी का जो बाहर का जाते हैं तो उससे अछूते रह जाते हैं। अपने को यन्त्र है वो पूरा का पूरा आपके हाथ में घूमने लग उसी के साथ mould कर लीजिए। सिर्फ सहजयोग जाता है निर्विचारिता में रहिए, वहाँ पर न समय है से उतरता है और किसी चीज से नहीं हो सकता, न दिशा है, न कोई छ सकता है, सिर्फ जीवंतता का और कोई संसारिक लौकिक चीजों से नहीं हो दर्शन होता है कि जीवन कैसे खिलता है इसके सकता है उसका काम। उसका एक ही तरीका सौन्दर्य का दर्शन होता है, इसके सामर्थ्य का दर्शन हजार बार बताया फिर से बता रही हैं,फिर से बता होता है, इसके ऐश्वर्य का दर्शन होता है और इसके रही हूं कि आपका जो किला है, आपका जो सत्य का दर्शन होता है। उस जगह से देखिए जहाँ Fortress है वो है निर्विचारिता। निर्विचारिता में से जीवन की धारा बहती है। लेकिन निर्बुद्ध बनना, जानों, वहीं जान जाओगे सबकुछ। कोई भी काम महामूर्ख बनना, कैसे आपको वो दिखाएगा. या करना है निर्विचारिता में जाओ । सारा संसारिक हृदय शून्य होना प्रेम रहित होना, Seifish होना, काम निर्विचारिता में करते ही साथ में आप जानिएगा Self Centred होना, अपने बारे में सोचना, अपने कि कहाँ से कहाँ Dynamic हो गया मामला! को बड़ा ऊँचा समझ लेना, बो कैसे दिखाएगा फूलों को खिलते हुए किसने देखा है, फलों को आपको मार्ग? कुरूप होना, अत्याचार करना! लगते हुए किसने देखा है? संसार का सारा जीवन्त कार्य होते हुए किसने देखा है? हो रहा है Movement में भी कितना सौन्दर्य होना चाहिए! उसी Dynamism में, उसी Living चीज में आपको उसको करते वक्त भी उसमें कितनी श्रद्धा होनी उतरना है। वो निर्विचारित से आ रहा है ना। उस चाहिए! कुण्डलिनी उठाते वक्त भी हाथ में कितनी स्थान पर आप बैठे हैं जहाँ ये सारा संसार धार्मिकता होनी चाहिए कि आप किसी की कुण्डलिनी, फीका है। निर्विचारिता में ही उसकी आदत किसी की माँ का पूजन कर रहे हैं! कितना उसके लगाएं। हर समय निर्विचार रहने का ही प्रयत्न प्रति आदर होना चाहिए! कितना विचार होना करें सारा कार्य संसार का उसी से होता है और चाहिए! हरेक चीज में आपके Behaviour में, आपकी आपका भी होगा फालतू फालतू सब चीजें हो बातचीत में आपके बोलने में आपके दुलार में, जाएंगी लेकिन अन्दर का चलना आपको ही करने आपके हँसने में, आपके रोने में हर एक चीज में, सहजयोग की भी हर एक गति और का है। कोई उम्र वुम्र का तकाजा नहीं है कि हम हृदय का कितना दर्शन होना चाहिए! विशालता बूढ़े हो गए ! कोई बुढ़ा नहीं है। अभी अभी तो पैदा दिखनी चाहिए. आपके अन्दर से आकाश के दर्शन हुए हैं, कितने साल हुए? दो चार साल हुए होंगे होने चाहिए, पानी की पवित्रता झलकनी चाहिए और क्या! आपके अन्दर से। सूर्य की तेजस्विता आपके मुख 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-36.txt सितम्बर वैतन्य लहरी अवटूबर, 2004 35 पर होनी चाहिए, चंद्रमा की शीतलता आपके अन्दर रुपए आज तक खर्च किए? मुझको कुछ तुम्हारा से बहनी चाहिए। सर्वगामी होना चाहिए आपको रूपया नहीं चाहिए, मुझको कुछ नहीं चाहिए, म हवा के जैसे, सबके प्राणों में आपका प्राण स्पन्दन पर कोई खर्चा नहीं करने का। तुम्हारे लिए 3 अ्रम कर रहा है इस वक्त में, जान लीजिए। अपने प्राणों बन रहा है, तुम्हारे भाई बहनों के लिए आश्रम बन के साथ मत खेलिए। अत्यन्त श्रद्धावान और भक्ति रहा है, उनको वहाँ रहना है, अभी ये बच्चे पैदा हो पूर्ण, नतमस्तक होकरके उसको स्वीकार करें। जो रहे हैं, उनके पढ़ने के लिए स्कूल चाहिए। वहाँ उन ऊपर से नवजीवन हमारे अन्दर परमात्मा ला रहे बच्चों को संभालने वाला कोई चाहिए, उसके लिए हैं। स्वीकार्य हो उसका प्यार, उसकी अनुकम्पा रुपया दो। बगैर रुपए के वो खड़ा कैसे होगा? स्वीकार्य हो आपको फिर उसके लिए नहाने की तुम्हारे हृदय से यदि एक भी रुपया निकलता है तो 1 1 जरूरत नहीं, हाथ धोने की जरूरत नहीं, कुछ उसका बड़ा महत्त्व है। ऐसे भी यहाँ पर लोग आते करने की जरूरत नहीं, हृदय की सफाई चाहिए हैं जो एक रुपया भी नहीं खर्च करना चाहते! ऐसे सिर्फ। हृदय साफ कर लो। प्रभु हमारा हृदय साफ भी लोग है यहाँ पर! ऐसे कोई गरीब लोग तो यहाँ करो, हमारा छल कपट दुर करो। अपने हृदय को हैं नहीं। ऐसे हों तो ठीक है। लेकिन एक रूपया साफ करो, इस हृदय कमल में उतरने वाले हैं। निकालनें में भी कंजूसपना करने वाले लोग भी हृदय को साफ करो। क्या हमारा हृदय साफ है? सहजयोगी हो सकते हैं क्या ? सुनती हूँ तो मुझे किससे छल कपट कर रहे हो, किससे रहे हो? तुम सभी एक हो किसी एक को मेरा करते हैं! और जिनके पास पैसा है वो रूपया दं. कहना कभी हो ही नहीं सकता है। सबके लिए काफी हजारों में रुपया देना पड़ेगा, लाखों में रुपया कह रही हैं कि तुम एक ही शरीर में हो और वो देना पड़ेगा। किसने दिया है तुमको रुपया ? भी मेरे ही शरीर के अन्दर हो मेरा ही Proiectlion मुझको नहीं चाहिए, मुझको क्या दोगे? तुम अपने हो। मैं अपने को ही कहे दे रही हूँ, मैं दूसरे लिए तो दो भाई, अपनी भलाई के लिए दो। कल किसको कहूँ, दूसरा है ही कौन? तुम बीमार होते तुम्हीं लोग अपने बाल बच्चों को लेकर के इन हो तो अन्तर से वैसी ही पीड़ा होती है जैसे कि मैं आश्रमों में आकर के रहोगे। मुझे मालूम है। फुक्कट ही स्वयं बीमार हो गई हैं, और सुखी होते हो तो खोरी करने की कोई जरूरत नहीं। राजा जैसे अन्दर से वही आनन्द आता है जैसे कि मैं ही रहो। जैसे हम फुक्कट का नहीं खाते, तुम भी नहीं महासुखी हो गई हूँ। तुम लोग गर सुखी नहीं हो खाना फुक्कट का जो कुछ होता है करो । जिसको तो मुझे कोई सूख अच्छा नहीं लगता है। दिन जगती रहती हूँ तुम्हारे लिए । जो जिससे बन पड़ता है, जिसके पास समय करो, जिससे पार होते है पार करो, जो भूत निकालते है वो समय दे, पूर्णतया समय दे इसको। अब है भूत निकालो। करो सहजयोग में तुम्हें करना हमारा आश्रम बनने वाला है, उसके लिए रुपया दें पड़ेगा, बगैर करे हुए तुम्हारा जो ego है वो मरने जिसके पास रुपया है। देना पड़ेगा। आप इधर उध नहीं वाला तुम्हारा. Super Ego जो है बो भागने र रुपया खर्च करते हैं, क्या फायदा हुआ सारे नहीं वाला, जबतक सहजयोग में कुछ आश्चर्य लगता है, एक एक रुघए के लिए परेशान बोल झूठ तभी रात टाइम मिलता है Time करो, जिससे मेहनत होती हैं मेहनत करो, जिससे जाग्रति होती है जाग्रति 1 करोगे नहीं । 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-37.txt सितम्बर - चैतन्य लहरी 36 अक्टूबर, 2004 फिर से आज्ञा पकड़ेगा। माताजी मेरा सर पकड़ा होना तो चाहिए, नहीं तो उंगली दबाओ तो अन्दर गया, माताजी मेरी लड़की भग गई, माताजी मेरे से क्या निकलेगा? Vaccume? अन्दर कुछ है ही बाप के ऐसे होगया होगा ही मैं कुछ नहीं करती नहीं। अन्दर जिसने संतोष को जोड़ा है वही तो हूँ। गण भी कुछ े हुए इस कमजोरी आई वहाँ भूत तुमको ही पकड़ता है मेरे हुए हैं इस को नहीं पकड़ता है। क्यो नहीं पकड़ता है मेरे को? वक्त सब अपना धन जोड़ रखा है सालों साल का, माताजी ने हमको क्या दिया है उसको इतना दे शरीर जला जला करके सब आपके सामने खड़े हुए दिया। माताजी उसको इतना दिया। अरे उसको हैं! ऐसे ही आप लोग भी एक-एक चीज को इतना मिलने का था मिल गया उसको तुमको जो जोड़ो। संतोष, संतोष। Innocense में आओ, धर्म मिला है वो कुछ कम नहीं। तुम्हारे को इसका कोई में आओ, सत्य में आओ, सौन्दर्य में आओ प्रेम में मूल्य ही नहीं है कि तुम्हें मिला हुआ है। संतोष आओ। सबके बटन हैं। कैसे होगा ? कैसे करें ? आना चाहिए अन्दर से, पकड़ो अन्दर में संतोष ये सहजयोग को कहना नहीं, सब होता है। कैसा को। उस संतोष में खड़े हो जाओ मैं कैसे कहूँ शब्द ही नहीं है उसमें जोड़ो। जो कमाना है तुमसे कि इसके भी Computers होते हैं, उसके सब कमा सकते हो आप अपने अन्दर में । चाहो Points होते हैं, संतोष में एक उंगलीं दबाओ तो तो संतोष कमा सकते हो, सब चीज कमा सकते संतोष जागृत हो। रखो, फिर आपमें Innocense जागृत हो जाएगा, एक दबाओ बटन दबाओ। जो चीज चाहिए वो मिल सकती है तो सत्य जागृत हो जाएगा। ये सब आपके, ऐसे उंगलियाँ दबाने से एक सारा ProgrammSetting हो सकता है माताजी ऐसे कि तुम्हारे अन्दर उसका उपार्जन कैसे हो? ही अपना करती रहती है। पर पहले बहाँ पर अपना उपार्जन जोडो, अपना उपार्जन जोडो, Innocense थोड़ा होना तो चाहिए, वहाँ पर संतोष अच्छा ! (मराठी) नहीं करते हैं। तुम्हारी जहाँ दबाने से संतोष में पहुँचे हैं, संतोष में बैठे রक्त । धर्म में पहुँचे हुए हैं, धर्म में बैठे हो गया । एक उंगली जब दबाओ तो हो, अपने अन्दर रख सकते अन्दर में है आपको। मशीन-मशीन न जाएगी अन्दर में। अब मैं कैसे क्या कर, मेरे समझ में नहीं आता है 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-38.txt कुण्डलिनी और कल्कि नवरात्रि पूजा 28.09.1979 मुम्बई परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आपकी इच्छानुरूप आज मैं आपसे अंग्रजी काल में या तो जन्म ले चुके हैं या शीघ्र लेने वाले भाषा में बातचीत करूंगी हो सकता है कल भी हैं। ये समय अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि सहजयोग हमें इसी विदेशी भाषा का उपयोग करना पड़े। आज का विषय है कुण्डलिनी और कल्कि के अत्यन्त अजीब लगता है, परन्तु यही वास्तविकता बीच सम्बन्ध।" 'कल्कि शब्द वास्ताव में निष्कलक है और यही सत्य हैं। यद्यपि आप समझ सकते हैं शब्द का संक्षिप्त रूप है। निष्कलंक का अर्थ वही कि माँ (श्रीमाताजी) के प्रेम ने आपके लिए है जो मेरे नाम का है अर्थात 'निर्मल' अर्थात बेदाग, आत्माक्षात्कार प्राप्त करना तथा भयानक अनुभव स्वच्छ। कोई भी चीज, जिस पर कोई दाग धब्बा न प्रतीत होने वाली अंतिम निर्णय की कहानी को हो, वह निष्कलंक होती है । इस अवतरण का वर्णन बहुत से पुराणों में आपको कोई परेशानी नहीं होती । किया गया है कि सम्भलपुर गॉँव में सफेद घोड़े पर सवार होकर यह पृथ्वी पर अवतरित होगा वे इसे निर्णय है और सहजयोग के माध्यम से आप सब सम्भलपुर कहते हैं। अत्यन्त दिलचस्प बात है कि लोगों को परखा जाएगा कि आप परमात्मा के लोग किस प्रकार सभी कुछ शाब्दिक (Literal) रूप साम्राज्य में प्रवेश करने योग्य हैं कि नहीं। से लेते हैं। "सम्भल' शब्द में' भाल' का अर्थ हैं ही अन्तिम निर्णय (Last Judgement) है। ये सुनना अत्यन्त सुन्दर कोमल एवं मृदु बना दिया है, इससे परन्तु मैं आपको बताती हूँ कि यह अंतिम सहज-योग में लोग भिन्न प्रकार के चित्त मस्तक' अतः सम्भल का अर्थ हुआ उसी अवस्था में (Attentions) लेकर आते हैं.ऐसे लोग भी हो सकते अर्थात कल्कि आपके भाल पर स्थित है। भाल है जिनकी तृत्ति अत्यन्त तामसिक हो,जड़ हो या मस्तक है और यहीं पर वो जन्म लेंगे । शब्द उनके स्वभाव अत्यन्त आलसी और धीमें हों। उनकी सम्भलपुर का वास्तविक अर्थ यही है । ईसा मसीह और उनके विध्वंसक अवतरण के चंगुल में आ जाते हैं,उन्हें शराब की लत पड महाविष्णु, जिन्हें कल्कि भी कहा जाता है, के बीच जाती है या कुछ अन्य ऐसी आदत पड़ जाती है जो में मानव को समय दिया ताकि वे स्वयं को सुधार व्यक्ति को वास्तविकता से दूर ले जाकर उसे यह वृत्ति जब बहुत बढ़ जाती है तो वे मृत आत्माओं सकें और, जैसा बाइबल में कहा गया है, अंतिम जड़वत कर देती है। जैसा आप जानते हैं कि निर्णय' (Last Judgement) के समय परमात्मा के मनुष्य का दूसरा पक्ष दायां पक्ष होता है। अर्थात् साम्राज्य में प्रवेश कर सकें । कहा गया है कि अत्यन्त महत्वाकांक्षी प्रवृत्ति के लोग ऐसे लोग अन्तिम निर्णय के समय आपका आंकलन होगा । इसी अत्यन्त महत्वाकांक्षी होते हैं. यह पूरे विश्व को पृथ्वी आप सबको परखा जाएगा| आज पृथ्वी परविजय करना चाहते हैं पूर्णतयः स्वतन्त्र (निरंकुश) हमेशा से अधिक जन-संख्या है क्योंकि वो सभी होना चाहते हैं, कैंसर की तरह से विषालु । पूर्ण लोग, व्यवहारिक रूप से वो सभी जो परमात्मा के विराट से वे अपना संबंध नहीं रखना चाहते। इस साम्राज्य में प्रवेश करने के इच्छुक हैं, इस आधुनिक कलयुग में आप देखते हैं कि किस प्रकार से लोग 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-39.txt चैतन्य लहरी सितम्बर अव्टूबर 2004 38 अति में चले जाते हैं। कुछ बहुत अधिक शराब अपना आत्म- साक्षाल्कार प्राप्त कर लेते हैं। परन्तु आदि में फस जाते हैं अर्थात् चेतना से, आत्मा से. जब हम कल्कि की बात करते हैं तो हमें याद सच्चाई एवं सौन्दर्य से परे दौडने लगते हैं। कुछ रखना है कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने और अन्य जो इन सब चीजों को नकारते हैं । कुछ लोग परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश करने के बीच के इतने अहकारवादी है कि सभी सौन्दर्यपूर्ण चीजों समय में हम भटक भी सकते हैं। यह योग भ्रष्ट को नकारते हैं । स्थिति कहलाती है। लोग योग को अपनाते हैं. तो कुछ लोग ऐसे हैं जो प्रतिअहँ ग्रस्त हैं, योग में आते हैं, फिर भी अपनी प्रवृत्तियों के पाश अत्यन्त बन्धन ग्रस्त, तामसिक एवं आलसी तथा फंसे रहते हैं। उदाहरण के रूप में एक अहम ग्रस्त एकदम असभ्य। दूसरी ओर ऐसे लोग हैं जो बहुत व्यक्ति या धनलोलुप मनुष्य या सत्तालोलुप व्यक्ति अधिक महत्वाकांक्षी, प्रभुत्व जमाने वाले तथा अपनी जो लोगों के समूह पर रोब जमाना चाहता है और मह्बाकांक्षाओं और मुकाबले की भावना से एक जो अपने विचारों से उन पर शासन करना चाहता दूसरे को नष्ट करने वाले हैं। दोनों प्रकार से इन है, उसका पतन भी हो सकता है और सहज योग उत्कट(Extreme)लोगों का सहज-योग में प्रवेश में रहते हुए भी ऐसे व्यक्ति के साथ अन्य लोगों का कर पाना कठिन है। परन्तु जो लोग मध्य में है भी पतन हो सकता है बाम्बे में ऐसा प्रायः होता उनका सहज-योग में आसानी से समावेश हो रहा है यह ऐसी आम बात है जो घटित होती रही जाएगा । इसके अतिरिक्त जो लोग कम जटिल है, है परन्तु इसे योगभ्रष्ट स्थिति कहते हैं जिसमें सहज हृदय हैं. जैसे गांव के लोग होते हैं, उनका व्यक्ति का योग-स्थिति से पतन हो जाता है। भी सहज योग में आसानी से समावेश हो जाता उसका पतन हो जाता है क्योंकि सहज-योग हैं और बिना किसी कठिनाई के वे सहजयोग को आपको उन्नत होने या पतन के गर्त में जाने की अपना लेते हैं। नगरों में भी ऐसी ही बात है। पुर्ण स्वतन्त्रता प्रदान करता है। परन्तु आप यदि मस्तिष्क से किए गए इतने अधिक काम का भी किसी अन्य गुरु के पास या किसी अन्य योग में परिणाम आप देखते है कि आज यहां मुश्किल से जाते हैं जिसमें दो-तीन सौ लोग हैं। परन्तु यदि मैं किसी गांव में लोगों को बचपन से ही प्रशिक्षित और अनुशासित जाती तो पूरा गांव, पांच-छ हजार लोग वहाँ आ किया जाता है ऐसे योगों में गुरु किसी न किसी जाते और सभी के सभी बिना किसी कढठिनाई के तरह से देख लेता है कि आप जख्मी हैं, इतने बुरी में शुद्धि करण घटित होता हैं, जहाँ आत्माक्षात्कार पा लेते। यहाँ पर सभी लोग बहुत तरह जमी है कि आपका किसी अन्य से कोई व्यस्त है, उनके पास पहले से ही बहुत से कार्य है। सम्बन्ध नहीं । किसी आपरेशन की तरह से वें उस वो सोचते हैं कि परमात्मा को खोजने से और व्यक्तित्व को निकाल कर बाहर फेंक देते है । परमात्मा की साधना के लिए समय बरबाद करने से अधिक महत्वपूर्ण बहुत से कार्य उनके पास है। परिस्थितियों में सहजयोग सभी साधकों के हृदय स्रोत से जुड़े रहना होगा, सामूहिकता में रहना में अत्यन्त नैसर्गिक रूप से यह कार्य करता है। ह बिना किसी कठिनाई, बिना किसी प्रयासा आप ऐसे व्यक्ति के साथ नहीं, जो अन्य लोगों को वश परन्तु यहाँ पर सभी कुछ आपकी स्वतंत्रता पर इन छोड़ दिया जाता है। आप समझते हैं कि आपको होगा, पूर्ण के साथ जुड़ना होगा, यहाँ वहाँ, किसी 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-40.txt बैतन्य लहरी सितम्बर - अवदूबर, 2004 ५ इस वात से प्रभावित करने का प्रयत्न करते है कि में करने का प्रयास कर रहा हो। सहज-योग में कोई यदि आवांच्छित रूप से ऊँचा उठने का प्रयास आप बड़े महान साक्षात्कारी आत्मा हैं या आपने यह करेगा तो उसका पतन हो जाएगा। प्रकृति में उपलब्धि पा ली हैं, वो उपलब्धि पा ली है, यह सारी आपने देखा होगा कोई भी चीज सीमा से अधिक चीजें जो आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने से पहले नहीं बढ़ती जैसे मानव की एक विशेष ऊँचाई है. भिन्न वृक्षों की अपनी ही सीमित ऊँचाइयों हैं, सभी अपराध है और इसका दण्ड आपको अवश्य मिलता कुछ नियंत्रित है। सहज-योग में आप दिखावा है यह कल्कि की शक्ति गुप्त रूप से सहज- बाजी नहीं कर सकते और न ही आपको कोई भी किया करते थे, तो यह अंत्यन्त गम्भीर योगियो के पीछे से कार्य करती रहती है। उदाहरण रामूह या कोई विशेष चीज बनाने का प्रयत्न के रूप में एक महिला मुझे मिलने आई, वह मेरे करना चाहिए। मैने दंखा है कि थोड़ा सा उन्नत विषय में कुछ लेख छापना चाहती थी, किसी दुष्ट होने के पश्चात सहज योग में लोग अन्य साधकों ने पैसे देकर उसे मेरे पास भेजा था। उसने मेरे से अपने चरण स्पर्श करवाते हैं । आश्चर्य की बात विषय में कुछ उल्टी सीधी ऐसी चीजें छापी जो मैने है कि ऐसे लोगों का निश्चित रूप से पर्दा कभी की ही नही थीं। इनके कारण सभी लोग बहुत फाश हो जाता है। सभी लोग उन्हें जान जाते है नाराज हो गए और कहने लगे श्रीमाताजी आप और चक्रो के पकडे जाने के कारण वह बेकार हो अवश्य उसे दंडित करे, उसे कचहरी में घसीटें, जाते हैं । हो सकता है उन्हें चैतन्य लहरिया आती उसके विरुद्ध मान-हानि का दावा करें, आदि हो परन्तु उनका पतन होता चला जाता है, होता आदि। मैने कहा कि मैं कचहरी नहीं जाऊगी, कृपा चला ना है जब तक वे पूरी तरह से नष्ट नहीं करके आप लोग जाएं. ऐसे विचार त्याग दें। परन्तु हो जाते । मनुष्य में घटित होने वाली यह योग- भ्रष्ट कोई मेरी बात सुनने को तैयार न था। हुआ यह कि रिथति निकृष्तम स्थिति है पहले तो आपको योग वह अखबार साढ़े तीन महीनों के लिए बन्द हो गया ही नहीं प्राप्त होता और यदि योग प्राप्त हो गया और उन्हें बहुत बड़ी हानि उठानी पड़ी। नि सन्देह और उसके बाद आप योगभ्रष्ट स्थिति में चले गए यह सब मैने नहीं किया था जहाँ तक माताजी तो, जैसे श्री कृष्ण ने वर्णन किया है, आप राक्षस निर्मला देवी का प्रश्न है। यह सारा कार्य कल्कि ने योनि में चले जाते है। भिन्न तुरन्त 1 किया था । ग्यारह शक्तियाँ सहज-योग के सौन्दर्य की रक्षा कर रही हैं कोई भी यदि सहज-योग से खिलवाड़ करने का प्रयत्न करे तो उसे बुरी ततरह से कृष्ट होता है तो आज का दिन आपको यह बताने सहज -योग में आने वाले सभी लोगों को यह अवश्य समझ लेना चाहिए कि उन्हें एक ही स्थिति में स्थापित रहना चाहिए अन्यथा और कौन सी योनि बच जाती है? योग प्राप्ति विना यदि आपकी हो जाती है तो हो सकता है कि आपका का है कि परमात्मा से खिलवाड़ करने में बितने मृत्यु पुनर्जन्म हो जाए, हो सकता है। नि:सन्देह यह खतरे हैं। अभी तक लोग उन पर अपना अधिकार जीवन तो व्यर्थ हो ही जाएगा। मानते थे ।लोगों ने ईसा-मसीह जैसे व्यक्ति को भी परन्तु सहज-योग में आकर यदि आप ऐसी सताया । बड़े बड़े संतो को भी सताया गया । हमेशा चालाकियों करने का प्रयत्न करते हैं या लोगों को मानव को कष्ट दिए गए और मैं अपने हर भाषण में 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-41.txt सितम्बर - अक्टूबर, 2004 चैतन्य लहरी এ0 यह चेतावनी देती रही कि आज भी आप वही निहित कल्कि आपको थोडा सा बक्त देगा। परन्तु चालाकियां न करते रहें क्योंकि कल्कि गतिशील एक बार यदि वह गतिशील हो उठा तो-आप हो चुके हैं। अतः किसी भी सन्त को, सज्जन व्यक्ति को कष्ट देने का प्रयत्न न करें। हुआ। पहले साल ही मौ्वी के कुछ लोग मुझसे इस बारे में सावधान रहें क्योंकि कल्कि गतिशील हैं मिले, मौ्वी के कुछ बड़े-बडे आदमीं । यह सब और यह शक्ति एक बार यदि आप पर कृपित हो एक ऐसे भयानक सन्त में विश्वास करते थे जो गई तो आपको छुपने की जगह नहीं मिलेगी यह इतना दुष्ट था कि उसने परिवारों के परिवार नष्ट बात मैं केवल सहज-योगियों से नहीं कह रही हूँ, कर दिए।मैने उनसे पूछा कि क्यों तुम इस व्यक्ति पूरे विश्व से कह रही हैँ कि सावधान हो जाएं,दूसरों को मानते हो ? यह तो आपका चित्त भौतिक को हानि पहुँचाने का प्रयत्न न करें, उनका नाजायज चीजों की तरफ ले जा रहा है। क्यों आप इसमें लाभ उठाने का प्रयत्न न करें, अपनी शक्ति दर्शाने विश्वास करते हैं ? मौवी में हर घर में इस दुष्ट का प्रयत्न न करें क्योंकि आपके जीवन में यदि एक बाबा का चित्र था और जब मैने उन्हें बताया तो वह किसी भी जानते हैं आंध्र में क्या हुआ। मौ्वी में भी ऐसे ही बार यह विनाश शुरु हो गया तो आपको समझ मेरी बात सुनने को तैयार न थे। उन्होंने सोचा कि नहीं आएगा कि इसे कैसे रोके। मेरे ख्याल से पहले भी मैनें आपको बताया था तथाकथित सन्त से ईष्या है। आप जानते है मौर्वी कि एक बार मैं आंध्र-प्रदेश गई थी। वहां मैने में क्या घटना हुई, यह सच्चाई है। लोगों से कहा कि अब आप तम्बाकू उगाने बन्द मैं उन्हें इसलिए चेतावनी दे रही हूं क्योंकि मुझे उस यह सभी बातें अन्य लोगों के सम्मुख की गई कर दें। सभी मेरे से बहुत नाराज हो गए क्योंकि थीं ताकि लोग इस बात को जान लें कि किस उनके विचार में तो यह उनकी जीविका थी। तम्बाकू से वे नोट छाप रहे थे और उस धन से सभी ने बता दिया था। इससे पूर्व दिल्ली में मैं वृंदावन के प्रकार के पाप कर रहे थे। मैने कहा कि संसार में कुछ लोगों से मिली थी ,उन्होंनें मुझे वहाँ के पण्डे आप अपने सिर पर इतने सारे पाप कर्म लादने के तथा अन्य चीजों के बारे में बताया मैने उन लोगों लिए नहीं आए,आप तो अपने पापों को धोने के से कहा आप अपना यह पेशा त्याग दें, आप कितने लिए,पापाक्षालन करने के लिए आए हैं अपने पापों भयानक लोग हैं! परमात्मा के नाम पर पैसे बनाने को बढ़ाने के लिए नहीं आए हैं, उन्हें धोने के लिएवाले आप कौन होते हैं? यह सभी पंडित और पण्डे स्थान पर क्या घटित हुआ, उसके बारे में माताजी आए हैं । यह पापों से मुक्ति पाने का समय है। और ऐसे सभी लोग समाज का रक्त चुसने वाले यही कारण है कि मैं निर्मल बन कर आपको पाप भयानक कीड़े हैं। तुम लोग अपने धन्धे छोड़ दो। मुक्त करने के लिए आई हूँ। पर आप तो अपने गंगा नदी के कारण तुम जो पैसा कमा रहे हो, वही पापों को बढ़ाए चले जा रहे हैं । यह तम्बाकू उगाने से आपको क्या लाभ होगा? परन्तु उन्होंने मेरी एक देगी गंगा और यमुना में जब बाढ़ आई तो मैं न सुनी इंसके बाद अपने तीन प्रवचनों में, यह लन्दन में थी। दूरदर्शन पर मैने इन पांडों को अपने रिकार्ड किए गए हैं, लोग कहते हैं कि मैंने उनसे खोमचे और बाकी का सामान सिर पर लादकर कहा था कि सावधान हो जाओ, बीज के अन्दर दौड़ते हुए देखा। गंगा नदी एक दिन तुम्हें पूरी तरह से नृष्ट कर ho 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-42.txt बैतन्य लहरी सितम्बर अवटूबर 2004 41 नि संदेह इन दुष्टों के साथ जब आप सहयोग आने वाले सन्तो के यह सिर फोड़ देते हैं । उनके करेंगे, इनके साथ जब आप रहेंगे, तो आप भी दुखी सिर को यह ऐसे फोड़ते हैं मानो नारियल को फोड होंगे। अबोध लोग ही कष्ट उठाएंगे क्यों हमें ऐसे रहे हों। बेचारे सभी सिर के दर्द से कराहते हैं। इन लोगों से प्रभावित होना चाहिए? ऐसा करने की सादे अबोध- लोगों पर यह इतना अत्याचार करते हैं कीमत तो आपको चुकानी होगी उनसे प्रभावित तो क्या आपके विचार से मुझे इनको उचित ठहराना होकर आप उनके सहयोगी बन जाते हैं और कहते चाहिए? मैं तो सत्य, धर्म और दया पर खड़ी हैं। हैं, चलो कोई बात नहीं। हम वहां जा रहे हैं तो जब मैने यह कहा तो कुछ लोग जिनके अपने हित इसको कुछ दे ही दें यह हमारे पूर्वजों का पंडा भी निहित थे, हो सकता है वो इन बाधावों के संबंधी बैठा है गंगा नदी के सम्मुख, यह पैसों की भीख रहे हों या जो भी हो, मुझसे नाराज हो गए| परन्तु मांग रहा है । कल्पना करें कि प्रेम और आनन्द की परमात्मा का शुक्र है कि तीन महीनों के अन्दर दाता गंगा नदी बह रही है और यह दुष्ट अपनी सरकार ने वहाँ का सभी कुछ अपने अधिकार में ले पीठ उसकी ओर करके बैठे हुए हैं और आपसे पैसे लिया था । मांग रहे हैं! कितने मूर्ख है यह लोग, कितने बेकार और जाहिल! और आप हैं कि उन्हें पैसे देते हैं कि हमारी आँखों के सम्मुख चीजें घटित होती और सोचते हैं कि उन्हें पैसे देकर आपने पुण्य का रहती हैं फिर भी हम मंदिरों में परमात्मा के नाम पर काम किया है। हम इसी प्रकार का जीवन बिताते वही सब कुछ किए चले जाते हैं, पाप के बाद पाप रहे हैं, सत्य और असत्य को समझे बिना सहयोग किए चले जाते हैं। पापों को स्वच्छ करने और किए चले जाने का एक ओर तो हमें देश में तथा अपने विकसित मस्तिष्क से उन्हें समझने के स्थान विश्व भर में होने वाले, विशेष रूप से इस देश में पर हम अपने पूर्व पापों में और पाप जोड़ते चले होने वाले, सभी कूक्मों में पूर्ण अंधविश्वास है। हम जाते हैं । पापों में और पाप जोड़ते ही चले जाते हैं। अत्यन्त अबोध लोग हैं जिनमें भावुकता का बाहुल्य ऐसे लोग जो अपने मस्तिष्क का उपयोग ही नहीं है। यह बात सत्य है परन्तु इसका अर्थ यह भी करते, वे मूढ़ बुद्धि हैं। किसी के भी सम्मोहन, प्रभाव नहीं कि हम मूर्ख एवं जाहिल बन जाए। उदाहरण या चमत्कारिक गतिविधियों. के रूप में उस दिन अवध गांव की एक सभा में मैने में हैं कहा था कि विट्ठल के मंदिर में बाधावी कहलाने हो जाते हैं और यह चमत्कार करने वाले इनसे वाले इन लोगों को अच्छी तरह से दंडित किया हजारों रुपये ऐंठ कर मिर्गी और आधे सिर दर्द जाना चाहिए क्योंकि लगातार कई दिनों तक (Epilepsy, Migraine) रोग उनके गले डाल देते पैदल चल कर वहाँ आने वाले सन्तों से जो हैं। यदि यह न दिए तो पागलपन तथा अन्य र्दुव्यवहार वो करते हैं, इसके बारे में अवश्य कुछ बिमारियाँ दे देते हैं। परन्तु लोग पागलों की तरह किया जाना चाहिए। मैने जब यह बात कही तो से इन चमत्कारिक गतिविधियों के पीछे दौड रहे हैं सभी लोगों को कुछ नाराजगी हुई क्योंकि इन और अपने विनाश को बढ़ावा दे रहे हैं, और किए बेचारे लोगों के लिए राक्षस रूपी यह बाधव कुछ हुए अपराधों के ढेर को स्वच्छ करने की अपेक्षा महान चीज हैं। हजारों मील चलकर उनके पास उन्हें बढ़ाए चले जा रहे हैं । हम लोगों के लिए यह बात इतनी सामान्य है जैसा पश्चिमी देशों को देखकर लोग उनके सम्मुख नतमस्तक 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-43.txt सितम्बर चैठन्य लहरी अक्टूबर, 2004 42 इस बार हमें अत्यन्त बहुमूल्य समय प्राप्त म पाप किया जाए। तो ऐसे लोग मात्र दो छलांगों हुआ है और व्यक्ति को अपने विषय में अत्यन्त में असानी से नरक में जा सकते हैं। सावधान रहना है। स्वास्थ्य के मामले में व्यक्ति को किसी और पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, उसे वाले कल में हो या बीते हुए कल में हो या हजारों परमात्मा के साम्राज्य में अपना विश्वास स्थापित वर्ष पहले हो। आपके धर्म और पुष्टि के लिए जो करना चाहिए और सर्वशक्तिमान् परमात्मा के हृदय गलत है वो गलत है। मूर्खता यह है कि लोग में उच्चतम स्थान प्राप्त करना चाहिए क्योंकि जब कहते हैं इसमें क्या दोष है, उसमें क्या दोष है ? कल्कि आएंगे तो वे इन दुष्टों को अत्यन्त बेरहमीपूर्वक इस प्रश्न का उत्तर केवल कल्कि देंगे। मैं तो जो गलत है वो गलत है, चाहे आज हो, आने काट डालेंगे। उनमें करुणा का पूर्ण अभाव है,ग्यारह आपको केवल यह बता रही हैूँ कि यह गलत है, रुद्र उनमें निवास करते हैं,अर्थात् विध्वंसक शक्तियां बुरी तरह गलत है। यह आपके उत्थान के विरोध उनमें पूर्णतः स्थापित हैं । जब मैं यह सब कुछ में है, आपके अस्तित्व के विरोध में है। बाद में देखती हैूँ, क्योंकि मैं यह सब कुछ देख सकती हैँ, आपके पास पछतावा करने के लिए और यह पूछने मुझमे एक अपात स्थिति का अहसास आ जाता है के लिए कि," इसमें क्या दोष है," समय न होगा। और फिर मैं बताती हैूँ कि इससे सावधान हो आपका दम घोंट दिया जाएगा। कल्कि का अवतरण जाओ, इस शक्ति से बचो, इसके साथ खिलवाड़ ऐसा है। जैसा कहा जाता है, वे सफेद घोड़े पर मत करो इसे सहज मत मानो और दुष्ट लोगों के सवार होकर आएंगे । इतनी आश्चर्यजनक शक्ति कार्यान्वित होने वाली है। सभी मनुष्यों को परखा जाएगा, तब कोई साथ तालमेल मत करो,सत्य पर डटे रहो। अन्यथा कल्कि के आने का दिन बहुत समीप है। एक अन्य प्रकार के लोग हैं जो अपनी बुद्धि भी खिलवाड़ न कर सकेगा। आप देखें किस प्रकार का कोई अन्त नहीं देखते, उन्होंनें परमात्मा को सभी चीजों का विज्ञापन हो रहा है, सभी कुछ छापा नकार दिया है, वो कहते हैं 'कहां है परमात्मा? कोई परमात्मा नहीं है, हम परमात्मा पर विश्वास (Microphone) सहजयोग के प्रचार के लिए उपयोग नहीं करते। यह सब पागलपन है, विज्ञान ही सभी किया जा सकता है। इसे यदि मैं अपने चकों पर कुछ है । विज्ञान ने अभी तक क्या किया है? ले लूँ तो आपको चैतन्य लहरियाँ मिलती हैं और आइए इसे देखते हैं कि विज्ञान ने हमारे लिए क्या आत्म-साक्षात्कार प्राप्त होता है पूरा विज्ञान किया है । अभी तक तो विज्ञान ने हमारे लिए कुछ सहजयोग की हजूरी में है उस दिन जैसे दूरदर्शन नहीं किया है, इसने केवल मृत कार्य किया है, के कुछ लोग आए थे। उन्होंने ने कहा, 'श्रीमाताजी आपको अहंकारी बनाया है,पूरा पश्चिम अंहकार हम आपकी दूरदर्शन फिल्म बनाना चाहते हैं। मैने चालित हैं। वो अपराध करने के नए- नए तरीके कहा इस कार्य को करने से पहले सावधान हो खोज रहे हैं कि किस तरह बुरे से बुरा अपराध जाना। मुझे कीर्ति की आवश्यकता नहीं है। जो भी किया जाए। वो इसके मार्ग खोज रहे हैं और भारत कार्य आप करो उसे अच्छी तरह से करना। दूरदर्शन जा रहा है। विज्ञान द्वारा बनाया गया यंत्र भी कुछ ऐसे गुरु हैं जो उन्हें इसके लिए ज्ञान के माध्यम से हम सहज-योग दे सकते हैं। मान उपलब्ध करा रहे हैं कि किस प्रकार अधम से अध लो कि टी वी के पर्दे पर मैं हूँ तो मैं लोगों से कह में 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-44.txt सितम्बर चैतन्य लहरी 43 अव्टूबर, 2004 सकती हूँ कि अपने हाथ मेरी ओर करें और इस प्रकार से हजारों लोगों को केवल टी.वी देखते हुए ने कहा था कि शैतान (Satan) अपने घर के विरुद्ध कुछ नहीं बोलेगा एक दूसरे से उनकी बड़ी अच्छी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो सकता है। यह वास्तविकता मित्रता है। परस्पर उन्हें कोई समस्या नहीं। एक है। इसके विषय में क्यों आपको नाराज होना दूसरे के प्रति वे अत्यन्त करुणामय हैं, शिष्यों में भी चाहिए? क्यों नहीं आकर आप इसे परखते ? क्यों वे धन बांटते हैं, आप ये ले जाओ और मैं ये ले लूंगा आपको आधात पहुँचना चाहिए ? मैं यदि ऐसी हूँ और हम सभी सीधे नरक में जाएंगे। अच्छी तरह से तो इससे आपके अहँ पर क्यों चोट आनी चाहिए ? यह आयोजित है जैसे एक रेलगाड़ी पहले जाती आप यदि मेरे से भिन्न हैं तो इससे मुझे कोई चोट है, फिर दूसरी छुटेगी और फिर तीसरी। इस प्रकार नहीं पहुँचती! आप जब कहते हैं कि हमें की महत्वाकांक्षा इस प्रकार के अहंकार, धन लोलुपता, फलां -फलां कार्य आयोजित करना है तो मुझे बुरा इसका दूसरा पक्ष है। हर समय हम इसी पैसे में नहीं लगता, तो यदि कोई अन्य परमेश्वरी व्यक्तित्व ही व्यस्त रहते हैं। मैं इसे भ्रम कहती हैँ- मतिभ्रम का है तो आपको बुरा क्यों लगना चाहिए? ईसा-मसीह यदि दिव्य व्यक्ति हों तो आपको आपमें है वो है आपका प्रेत-आत्माओं के पीछे , मृत क्यों बुरा लगा? क्यों आपने उनका कत्ल कर लोगों के पीछे भागते रहना यह दो मृगतृष्णाएं हैं दिया? क्यों आपने उनकी हत्या कर दी? इतने जिनके पीछे आप दौड़ते हैं । पैसे से आप क्या इतने महान् संतो को क्यों आपने सताया? आप तो प्राप्त करने वाले हैं? किसी अतिधनी व्यक्ति के पास अत्यन्त बुद्धिमान एवं मधुर थे! क्या ये बात ठीक जाकर स्वयं देखें। जाएं और देखें कि क्या वह 1 (Hallucination) कहती हैूँ। एक अन्य भ्रांति जो नहीं है? आप लोग अत्यन्त करुणामय एवं अच्छे व्यक्ति प्रसन्न है? लोग हैं जो सभी प्रकार के गलत, व्यर्थ एवं भ्रमित करने वाली चीजों के पीछे दौड़ रहे हैं। बहुत से तथाकथित सफल व्यक्ति के पास जाकर उसे देखें लोग आपको भ्रमित करने के लिए आए और कि उनकी सफलता क्या है? कौन उनका सम्मान आपको पथ भ्रष्ट करने के लिए आपसे धन ले रहे करता है? ज्यों ही वह पीठ मोडते हैं,लोग कहते हैं. हैं। पाप देने के बदले वे आपसे पैसा ऐंठ रहे हैं। "हे परमात्मा! मैने किसका चेहरा देख लिया? मुझे नरक यात्रा के लिए ये आपका नाम दर्ज कर रहे जाकर अपना मुँह धो लेना चाहिए।" क्या आप हैं। उनके अपने नाम भी इसमें लिखे हुए है जब मंगलमय हैं? आपको देखकर किसी का कुछ मैं उनके नाम लेती हूँ तो लोगों को बहुत आघात होता है, किसी का कुछ शुभ होता है? क्या आप लगता है कि क्यों श्रीमाताजी इन गुरुओं के विरूद्ध कल्याणमय हैं? आपका व्यक्तित्व कैसा है? । स्वयं बोलती है! वे गुरु नहीं हैं। वो तो राक्षस हैं। एक बार ईसा-मसीह खड़े हो गए और कहा में हो सकता हैं। कि इन राक्षसों और इनके बच्चों को नरक में जाना होगा तब लोग उनके पास गए और कहा कि लगा श्रीमाताजी मैं एक युवा लड़का हूँ न जाने मुझे उसके जीवन का क्या विश्लेषण है? ऐसे किसी हित अपना निर्णय करें और वह आंकलन यहां सहज -योग सहज-योग में हमारे पास एक रोगी आया,कहने इनके विरुद्ध यह सब कहते हैं?" एक क्या हो- गया है कि मैं अमंगलमय (अशुभ) हो गया "क्यों तुम दूसरे के विरुद्ध वो कुछ नहीं कहते। ईसा-मसीह हूँ। मैने कहा, "तुम कैसे जानते हो?" कहने लगा 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-45.txt सितम्बर - अक्टूबर, 2004 चैतन्य लहरी 44 जहां भी मैं जाता हूँ पति-पत्नी में झगडा हो जाता के जाल में फंस गए हैं उससे सम्मोहित हैं। मैने है, बच्चों को कोई तकलीफ हो जाती है, वो रोने उनसे पूछा कि क्या ये व्यक्ति आपके घर आता है? चिल्लाने लगते हैं। अब लोग मुझसे घृणा करने उसने उत्तर दिया हाँ । मैने कहा ठीक हैं, जाकर लगे हैं लोग कहते हैं कि मूझमें कोई दोष है मैने उसे वैसे ही जूते लगाने की क्रिया करो, वैसा करो उस बच्चे के बारे में पता लगाया कि मामला क्या जैसा हम सहज-योग में करते हैं। इस प्रकार से है और बह बच्चा ठीक हो गया अब उसमें से उस लड़के का चक्र ठीक हो गया क्या आप अपने अत्यंत सुन्दर चैतन्य लहरियाँ बहती हैं। आपमें से परिवार, अपने बच्चों और सभी सदस्यों को केवल अत्यन्त नकारात्मक लहरियों भी निकल सकती हैं। इसलिए नष्ट करना चाहते हैं क्योंकि आप किसी अनजाने में हो सकता है आप अपराध किए चले सम्मोहित करने वाले व्यक्त को मानते हैं?कम से जा रहे हों। फिर भी आप कह सकते हैं, "श्रीमाताजी कम इस बात को तो सोचो। ऐसे बहुत से लोग हैं। मुझे चैतन्य लहरियाँ आ रही हैं, मैं बिल्कुल ठीक परन्तु सहज-योग को छोड़ देना बहुत आसान हूं।" ऐसे लोग हमेशा स्वयं को और अन्य लोगों को धोखा देते हैं "बहुत बढ़िया, मुझमें मेरी स्थिति प्रथम दर्जे की है, मेरी चैतन्य लहरियां मत करो, ऐसा बिल्कुल मत करो, मुझे कुछ नहीं सर्वोत्तम हैं और मैं बहुत अच्छी तरह से बढ़ रहा लेना देना। तुरन्त आपको समझ जाना चाहिए कि हूँ। आपका आंकलन कौन करेगा? यह आपका हमारी माँ जो सभी कुछ जानती हैं, वो जानती है कार्य है! दूसरों के साथ आप क्या करते ? हाल ही और उन्होंने हमें बताया है, यही कार्य हमें करना में हमारे यहाँ ऐसा एक पादरी (Bishop) था । मैंने चाहिए । इसके बारे में बहस नहीं करनी चाहिए। देखा कि जिस भी व्यक्ति ने उस भद्र पुरुष को क्या बहस मोबाहिसा करके आपको चैतन्य लहरियाँ है,लन्दन में भी मैं जानती हूँ कि कौन कहाँ जाता कोई कमी नहीं । है और क्या करता है। मैं उनसे कहती हूँ कि ऐसा छुआ था उसका बायोँ स्वाधिष्ठान बुरी तरह से प्राप्त हुई थीं? परन्तु सहज-योग में लोग गलतियाँ पकड़ गया था मैंने जब यह बात बताई कि इस करते हैं और यह अत्यन्त निकुष्टतम कार्य है व्यक्ति को इतना महत्त्व देना गलत था तो सभी क्योंकि योगभ्रष्ट लोग निकृष्टतम होते हैं, वो कहाँ जाएंगे। यहाँ उपस्थित सभी सहज योगियों को मैं एक सहजयोगी डाक्टर मुझसे मिलने के लिए चेतावनी देती हूँ कि सहज-योग अंतिम निर्णय मेरी जान के पीछे पड़ गए। आया। उसका आठ वर्ष का बच्चा भी आया, वो (Last Judgement) है । आपका केवल निर्णय ही बहुत अच्छा लड़का था, आत्साक्षात्कारी था परन्तु नहीं होगा, आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश उसका स्वाधिष्ठान बहुत खराब था। तो मैने उससे करेगे। आप परमात्मा के नागरिक बन जाएंगे, यह पूछा क्या यह व्यक्ति आपके घर आता है? उसने ढीक है। परन्तु इसके अतिरिक्त आपमे यहाँ होने कहा हाँ, श्रीमाताजी वो प्रायः हमारे यहाँ आता है। की योग्यता है, चाहे आपका समर्पण पूर्ण है या मेरी चेतावनी के बावजूद भी वह व्यव्ति उनके घर नहीं परमेश्वरी नियमों की समझ आपको है या पर जाता और वे लोग उसका मनोरंजन करते, यह नहीं। आप चाहे भारत के नागरिक हों परन्तु यदि नहीं बताते कि तुम श्रीमाताजी के पास जाकर 3पने को स्वच्छ करा लो । वास्तव में वे उस व्यक्ति आपको दंडित किया ही जाएगा। इसी प्रकार आप आप गलतियाँ करेंगे, गैर-कानूनी कार्य करेंगे तो 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-46.txt सितम्बर - अवटूबर. 2004 चैतन्य] लहरी 45 चाहे परमात्मा के साम्राज्य नागरिक बन जाए तो प्रतीक के रूप में तलवार जैसा एक शस्त्र (खड़ा) है भी आपको अत्यन्त-अत्यन्त सावधान होना पड़ेगा। और श्री गणेश के पास फरसा है और श्री दूसरी बात जो मैं आपको बताना चाहूँगी वह जी की हनन करने वाली नव सिद्धियाँ भी उन्हें दी है कल्कि की विध्वंसक शक्तियों के विषय में । गई हैं। श्री बुद्ध की सारी क्षमाशीलता और श्री आज का प्रवचन आपके लिए बहुत तेज है क्योंकि महावीर जी की अंहिसा भी बिल्कुल उल्ट जिस अवतरण के बारे में आपने मुझे बोलने के लिए जाएगी यदि हम सहज-योग से अलग हो गए हनुमान कहा है वह भी अत्यन्त उग्र है, उग्रतम । कृष्ण और जब हमें पूरी तरह से निकाल फेंका गया तो अवतरण भी हुए, जिनमें हनन शव्ति थी,उन्होने यह सारी ग्यारह शक्तियाँ हम पर टूट पड़ेंगी और कंस और बहुत से राक्षसों का वध किया। बचपन में ही उन्होंने पूतना तथा बहुत से राक्षसों का वध किया, परन्तु उन्होंने लीला भी की। ये एक सामान्य हनन की तरह से नहीं होगा जैसा उन्होंने प्रेम किया और लोगों को क्षमा भी किया, देवी ने किया था देवी ने तो हजारों वर्ष पूर्व केवल रियायतें भी दी। अंतिम हनन उन्हीं के द्वारा किया जाएगा। काश की यह हनन तक ही सीमित रहे क्योंकि राक्षसों का हनन किया था। परन्तु वो सारे राक्षस परन्तु ईसा-मसीह क्षमा की प्रतिपूर्ति हैं। एक बार फिर जीवित हो उठे हैं। ईसा-मसीह की क्षमा उनके अंत स्थित सहनशीलता (Sustenance) के अतिरिक्त और कुछ भी कि इसको समझने का प्रयत्न करें कृष्ण के समय नहीं। यदि हम उनकी क्षमा का मूल्य न समझ पाए में प्राचीनकाल में जब श्रीकृष्ण ने कहा," विनाशायः तो वो फट पड़ेगे (कुपित हो जाएंगे) उनकी क्षमा च दुष्कृताम्, परित्राणाय च साधुणाम" तो इस अब समस्या बिल्कुल भिन्न है आपको चाहिए विध्वस बन कर हम पर गिर सकती है। उन्होंने कथन को समझना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि स्पष्ट कहा है कि मेरे विरुद्ध यदि कुछ कहा गया दुष्ट प्रवृत्तियों एवं नकरात्मक शक्तियों को समाप्त तो उसे सहन कर लिया जाएगा परन्तु (HOLY करने के लिए और सन्तों की रक्षा करने के लिए मैं GHOST) के विरुद्ध यदि एक भी शब्द बोला गया युग -युग में अवतरित होता हूँ (सम्भवामि) बार-बार तो उसे बर्दाश्त् नहीं किया जाएगा यह बात मैं पृथ्वी पर अवतरित होता हूँ । परन्तु कलयुग की उन्होंने स्पष्ट रूप से कही है। अब आपने इसे समस्या यह है कि इस युग में न तो कोई पावन समझना है। HOLY GHOST आदि शक्ति हैं। सहज साधु है और न ही राक्षस । बहुत से राक्षस, व्यक्ति को यह बात समझनी है कि ऐसे अवतरण लोगों के मस्तिष्क में घुस गए है आप बहुत से का आना बहुत समीप है और श्रीकृष्ण की सभी गलत लोगों का,गलत कार्य करने वालों का, राजनीति, शक्तियाँ उन्हें दी गई हैं जो कि हनन शक्तियाँ धर्म, विकास और शिक्षा आदि के नाम पर गलत हैं। ब्रह्मदेव की शक्तियाँ भी, जो कि हनन कार्य करने वाले बहुत शक्तियाँ है, उन्हें दी गई हैं, शिव की शक्तियाँ, एक बार जब उनका पक्ष लेते हैं तो वे आपके तांडव जिसका एक हिस्सा है, भी उन्हें दी गई हैं। मस्तिष्क में प्रवेश कर जाते हैं । वो आपके अन्दर श्री भैरव की शक्ति, इसे आप भी जानते हैं कि श्री होते हैं और जब तक वे आपके अन्दर हैं उन्हें कैसे भैरव के पास क्या है, उनके पास हनन शक्ति के नष्ट किया जाए? वे आपके अन्दर हैं, हो सकता है से लोगों का पक्ष लेते हैं। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-47.txt चैतन्य लहरी सितम्बर - अक्टूबर, 2004 46 आप अच्छे व्यक्ति हैं और फिर भी आप नष्ट हो लोग शराब पीने के लिए जाते हैं। यह लोग इतने जाएं क्योंकि आपने इन लोगों को, इन दुष्टों को मूर्ख हैं कि किसी की यदि मृत्यु हो जाए तब भी ये अपने मस्तिष्क में भरा हुआ है। अतः इस चीज का लोग शैम्पेन पीते हैं। शैम्पेन उनका धर्म है और कोई स्थायी मापदंड नहीं है कि कौन वास्तव में व्हिस्की उनकी कुृण्डलिनी। कैसे वे परमात्मा को दुष्प्रवृत्ति है और कौन सच्चा सन्त। केवल सहज-योग समझ सकते हैं जबकि उन्होंने परमात्मा को अपने ही आपको स्वच्छ करके पूरी तरह से सकारात्मकं, मिथ्या विचारों के अनुरूप बनाया हुआ है! माँ होने के नाते मैं आपको चेतावनी देती हॅँ कि है। एक मात्र यही तरीका है क्योंकि आपका अंकुर सावधान हो जाएं। अपनी आत्मा से खिलवाड़ मत जब आत्मसाक्षात्कार देना शुरु करे तो अपनी करो। पतित न हों,उन्नत हों, आगे बढे, मैं यहाँ आत्मा का एहसास होने लगता है, अच्छी आत्मा आपकी सहायता के लिए हैं । आप जानते हैं कि को आप महसूस करते हैं और उस आत्मा के साथ मैं दिन-रात आपके लिए कार्य करने के लिए हैँ। आत्मा हैं, मृगतृष्णा आपके लिए मैं बहुत परिश्रम करती हैूँ, आपकी (Mirage)नहीं। उस आत्मा का आप आनन्द लेने सहायता करने के लिए मैं कोई भी कसर नहीं लगते हैं और एक बार जब आत्मा का आनन्द लेने लिए हर लगते हैं तो आप उन सभी चीजों को त्याग देते हैं सम्भव प्रयत्न करूंगी ताकि आप अन्तिम निर्णय की जिनकी वजह से आपको समझौता करना पड़ता है, इस परीक्षा को पास कर लें। परन्तु इसके लिए जिसके कारण आप भयानक मिश्रित व्यक्ति बन आपको मुझे सहयोग देना होगा तथा अपना सकारात्मक रूप से अच्छे और धार्मिक बना सकता | आप समझते हैं कि आप छोडूंगी, और आपको ठीक करने के जाते हैं। यह सारा भ्रम दूर हो सकता है। अतः यह अधिकतर समय तथा सभी श्रेष्ठ एवं महान् गुणों को आवश्यक है कि हमें सहजयोग को अत्यन्त समर्पित आत्मसात करने के लिए अपना सारा समय समर्पित होकर अपनाना है और स्वयं को और अपने सभी करना होगा। कल्कि बहुत बड़ा विषय है, आप जानकारों को दुष्प्रवृत्ति मुक्त कर सकते हैं। यही अगर कल्कि पुराण को देखें तो जानेंगे की कितनी एकमात्र उपहार है जो हम अपने मित्रों, संबंधियों मोटी पुस्तक है। निःसंदेह बहुत सी व्यर्थ की चीजें तथा आस-पास के व्यक्तियों को दे सकते हैं। भी हैं, परन्तु समय आने पर हम कहते हैं कि यह लोग अन्य लोगों को रात्रि भोजों तथा शराब की जीवन्त प्रक्रिया हैं। कार्य जब समाप्त हो जाएगा पार्टियों आदि के लिए निमंत्रित करते हैं। इस और जब हम यह समझ लेंगे कि पंक्ति में खड़े होने प्रकार आप उन्हें क्या देते हैं? कुछ नहीं। वे जंन्म के लिए अब कोई स्थान बाकी नहीं है तो कल्कि दिवस में उपहार देते हैं, एक दूसरे के पास जाकर अवतरित हो जांएगे देखना है कि कितने लोग इस पुष्प मालाएं पहनाते हैं और मंगलकामनाओं का कार्य को करते हैं क्योंकि इसकी भी सीमा है । आदान-प्रदान करते हैं। लन्दन में ईसा-मसीह के अतः मेरी प्रार्थना है कि बाहर निकलो, अपने मित्रों जन्म दिवस के अवसर पर मंगलकामना पत्रों का को संबंधियों को और पड़ोसियों को तथा अन्य सभी इतना बड़ा ढेर लगता है कि क्रिसमस से दस दिन लोगों को बुलाओ। पहले से ही कोई अन्य पत्र डाक द्वारा नहीं भेजा जा सकता और ईसा-मसीह के जन्म के दिन सभी दिन है, माँ की तरफ से कल थोड़ा सा समारोह यहां नवरात्रि के कार्यक्रम का कल अन्तिम 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-48.txt चैतन्य लहरी सितम्बर अक्टूबर, 2004 এ7 भी मनाया जाएगा। मेरे लिए महानतम समारोह पूरे देश के लोग बम्बई के लोगों का अनुसरण करने तब होगा जब मुस्बई में मुझे सहज-योग को का प्रयत्न करते हैं। गंभीरतापूर्वक अपनाते हुए बहुत से आत्मसाक्षात्कारी लोग दिखाई देंगे । सहज-योग में आने के पश्चात् पीठ पीछे का प्रयत्न करेंगे। यह हमारे सतही स्वभाव की छुरी, तुच्छता, परस्पर क्रोध करना आदि नहीं होना समस्या है। मैं आपको बताती हूँ कि कल हमारा चाहिए। संवेदन एवं विवेकशील बनना चाहिए। एक बहुत अच्छा कार्यकरम है और ग्रेगोर, जो की अत्यन्त आश्चर्य की बात है कि जिन लोगों को स्विटजरलैंड के एक बैरन के बेटे है उनकी पुस्तक राष्ट्र का गर्व होना चाहिए था वही परिष्कृत The Advent का विमोचन भी होगा। ग्रेगोर जब (Sophisticated) लोग भी इतने संकीर्ण बुद्धि एवं पहली बार मेरे पास पहुँचे तो मैं स्पष्ट देख पाई कि व्यर्थ हैं! यह सारी चीजें मुझे इसलिए बतानी पड़ वह साधक हैं यद्यपि उस वक्त उसकी स्थिति रही हैं कि मेरे सम्मुख आपात स्थिति की तरह से बहुत खराब थेी। वह खडित मनस्किता चीजें आ रही हैं। बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो परमात्मा के स्थान पर किसी अभिनेता या अभिनेत्री का अनुसरण करने 1 (Scizophrenic) रोगी की तरह से बिगड़ा हुआ मैं प्रार्थना कर रही हूँ कि यह सब कुछ बम्बई मामला था। परन्तु मैं देख पाई कि उसके अन्दर में आरम्भ होना चाहिए। बम्बई उस दिन सीमा एक बहुत गहन साधक विद्यमान् है। उसे सामान्य (Verge) पर पहुँच गई थी,जिस दिन राजेश ने मुझसे पूछा था कि 'श्रीमाताजी बारिश का क्या है, परिश्रम करना पड़ा। परन्तु जब आपमें जिज्ञासा ही बुद्धि स्तर पर लाने के लिए मुझे बहुत कठिन बारिश का क्या है बारिश का क्या हैं? परन्तु मैने न हो, जब आप इतने भटक चुके हों, तब आपके उसके प्रश्न का उत्तर नहीं दिया तो उसने कहा, श्रीमाताजी, मैं जानता हूँ कि आप बम्बई के लोगों से नाराज है, एक बार फिर उन्हें क्षमा कर दें। और का दिन आपको चेतावनी देने का है क्योंकि आपने उसी रात से यहाँ बारिश होने लगी परन्तु आगे मुझे कल्कि के विष्य में बताने के लिए कहा है। आने वाली आपदा के बारे में सावधान रहें, ये बात उन्हें हमारे भाल पर स्थापित किया गया हैं। कल्कि मैने सभी बम्बई के लोगों को बतानी थी। जब-जब यदि पकड़ा हुआ हो, कलिक का चक यदि पकड़ा भी मैं वापिस आती हैँ मुझे सहज-योगियों की हुआ हो तो मस्तक पर स्थित श्री बुद्ध बिगड़ जाते बेवकूफी दिखाई देती है कि वो किसी एक व्यक्ति हैं। कुण्डलिनी जागृति में हम देखते हैं कि यदि श्ी के पीछे हो जाते हैं बम्बई के लोग अभी तक भी बुद्ध बिगड़े हुए हों तो कुण्डलिनी उठती ही नही, यह नहीं जानते कि आगे उन पर कौन सी विपत्ति पूरा सिर अवरुद्ध हो जाता है ऐसे लोग कुण्डलिनी आने वाली है वो इस बात से बिल्कुल अनभिज्ञ हैं को, हम कह सकते है, हंसा चक्र से ऊपर नहीं साथ क्या होगा, ये बात मैं नहीं जानती। अतः सावधान रहे, अल्यन्त सावधान रहे। आज कि किस प्रकार उन्हें अमीबा से इस अवस्था तक उठने देते। ज्यादा से ज्यादा आज्ञा चक्र तक लाया गया। परमात्मा ने उनके लिए क्या किया कुण्डलिनी उठती है और फिर गिर जाती है, इसका और उन्होंने परमात्मा के लिए, पूरे देश के लिए कारण जैसा बताया मैनें बताया था, कि गलत क्या किया! यह अत्यंत खेद की बात है क्योंकि गुरुओं के सामने यदि आपने अपना मस्तक झुकाया 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-49.txt चैतन्य] लहरी सितम्बर - अक्टूबर, 2004 हो तब भी दाई ओर की समस्या खड़ी हो या किसी अन्य से छुपा हुआ है, आप स्वयं जानते सकती है। इससे कल्कि का एक पक्ष बिगड़ जाता हैं कि आप क्या गलत कर रहे हैं। है और इस पक्ष में (दाई आज्ञा) असंतुलन बन आप यदि जानते हैं कि आप पाप कर रहे हैं, है तो व्यक्ति अपने हृदय में यदि आप जानते हैं कि मैं पाप कर को समझ लेना चाहिए कि कल्कि चक्र खराब है रहा हूँ तो कृपा करके ऐसा करना छोड़ दें अन्यथा और कल्कि चक्र यदि खराब हो तो व्यक्ति किसी आपका कल्कि बिगड जाएगा। जब आपमें परमात्मा न किसी भयानक विपत्ति में फसने वाला होता है। का भय होगा और आप जानते हैं कि परमात्मा यह आने वाली विपत्ति के चिन्ह हैं। कल्कि चक्र सर्वव्यापी है, सर्वशक्तिमान है। उनमें हमें उच्च जब पकड़ जाता है तो सारी उंगलिया जलने अवस्था तक उठाने की शक्ति है तथा हम पर अपने लगती हैं, हथेलिया और कभी-कभी तो शरीर पर सभी आशीष की वर्षा करने की शक्ति है । चे जाता है। पूरे मर्तक पर यदि उभाड भी भयानक जलन महसूस होती है। कल्कि चक्र के पकड़ने का अर्थ यह है कि व्यक्ति को कैसर, करुणामय पिता हैं इतने करुणामय की उससे कोढ आदि कोई न कोई बीमारी होने लगती है. अपर हम सोच भी नहीं सकते। परन्तु वे दडशक्ति या तो ऐसी कोई बीमारी होने लगती है और या से भी परिपूर्ण हैं जब े हम पर कोध करते हैं तो किसी विपत्ति में फस कर व्यक्ति का अन्त होने हमें अत्यन्तअत्यन्त सावधान होना होगा मां होने अत्यन्त दयालु है या हम कह सकते है कि अत्यन्त के नाते मुझे आपको चेतावनी देनी होंगी कि अपने लगता है। अंत कल्कि चक्र को ठीक तथा संतुलित रखा मिता के कोध से सावधान हो जाएं क्योंकि यदि वे जाना आवश्यक है । कल्कि चक्र के कम से कम आप पर कुपित हो गए तो उन्हें कोई नहीं रोक ग्यारह उपचक्र हैं, उनमें से कम से कम कुछ चक्रों सकता, कोई नहीं रोक सकता,मां की करुणा को को तो जीवित रखना आवश्यक है ताकि अन्य को भी नहीं सुना जाएगा क्योंकि वे कह सकते हैं कि बचाया जा सके। परन्तु सारे चक्र यदि नष्ट हो गए ढीला छोड़कर आपने अपने बच्चों को बिगाड दिया तो ऐसे व्यक्ति को आत्साक्षात्कार दे पाना अत्यन्त है। अत आपको मुझे यह बताना है कि कोई गलत कठिन कार्य है । कल्कि को ठीक रखने के लिए व्यक्ति को माँं के लिए तो यह सारी बातें कह पाना क्या करना चाहिए? अपने कल्कि को ठीक रखने कठिन है । कोमल हृदय, आपके लिए कोमलता की कार्य न करें अपनी गलतियों से मुझे नाराज न करें। भी बहुत के लिए आपके अन्दर परमात्मा का भय होना भावना से परिपूर्ण मों के लिए ये सब कुछ कहना चाहिए । परमात्मा का भय यदि आपके अन्दर नहीं बहुत कठिन है परन्तु मुझे आपसे प्रार्थना करनी है, परमात्मा से यदि आप नहीं डरते, इस बात से है कि खिलवाड मत करें, क्योंकि आपके पिता यदि आप नहीं डरते कि कोई गलत कार्य यदि क्रोध से परिपूर्ण है, कोई दुष्कर्म यदि आप करेंगे तो आपने किया तो परमात्मा का दंड भी है तथा वे वै आपको दडित कर सकते हैं । दंडित करने वाले उसमात्मा है. तथा [यदि हम उनके लिए., अपने लिए, अपने आत्मसाक्षात्कार भारे लिए विष से परिपूर्ण के लिए यदि आप कुछ करेगे तो आपको उच्च पद हैं। इसका यदि भध नही है, यह नहीं कि मेरे से पर स्थापित किया जाएगा। आज हो सकता है आप दुष्कर्ग करते हैं 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-50.txt सितम्बर - अकटूर, 2084 49 वैतन्य लहरी ब करोड़पति हों, सबसे अधिक धनवान हों, महानतम है उनका कोई महत्व नहीं है। महत्वपूर्णतम चीज राजनीतिक नेता हों, हो सकता है आप प्रधानमंत्री तो यह है कि परमात्मा की दृष्टि में आप कहाँ है। हों, आदि कुछ भी हों। परमात्मा की उपस्थिति में अपने विषय में, अपनी आत्मा के विषय में सहज-योग जो लोग उन्हें प्यारे हैं उन्हें उच्वतम पद पर के माध्म से पता लगा कर आपको यह सम्बन्ध आरूढ़ किया जाएगा। सारी सांसारिक चीजें जो स्थापित आपको अत्यन्त मनोरंजक और सम्मोहनशील लगती सम्बन्ध आत्मा से जोड़ना होगा। और हो गा अपना करना परमात्मा सबको धन्य करें। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-53.txt के का ८६ ी ह० आपका जो किला है, आपका जो Fortress है वो है निर्विचारिता । निर्विचारिता में जानों, वहीं जान जाओगे सबकुछ। कोई भी काम करना हो तो ता निर्विचारिता में जाओ। सारा संसारिक काम निर्विचारिता में करते ही साथ में आप |े जानिएगा कि कहाँ से कहाँ Dynamic हो गया मामला.. उम्र का तकाजा नहीं है। निर्विचारिता में रहना चाहिए, यही आपका स्थान है, यही आपका धन है, यही आपका बल है, शक्ति है, यही आपका स्वरूप है, यही आपका सौन्दर्य है, यही आपका जीवन है । निर्विचार, निर्विचार होते ही बाकी का जो बाहर का यन्त्र है वो धूरा का पूरा आपके हाथ में घूमने लग जाता है निर्विचारिता में रहिए, वहाँ पर न समय है, न दिशा है, न कोई छू सकता है, सिर्फ जीवंतता का दर्शन होता है कि जीवन कैसे खिलता है। इसके सौन्दर्य का दर्शन होता है, इसके सामर्थ्य का दर्शन होता है, इसके ऐश्वर्य का दर्शन होता है और इसके सत्य का दर्शन होता है। उस जगह से देखिए जहाँ से जीवन की धारा बहुती है। " 3० करं 8४