त्वैतान्य लाहवरी रब ही ु नवम्बर - दिसम्बर, 2004 FELICITATIC EE MATI NIRM WA NIRMALA UNIVERSAL PUKE इस अंक में 3 श्री कृष्ण पूजा, ( एक रिपोर्ट ) लॉस एंजलिस- 19 सितम्बर, 2004 5 गुरु पूजा,लन्दन-02.12.1979 16 श्रीमाताजी का प्रवचन, मैकेबिअन हाल, आस्ट्रेलिया-22.03.1981 28 विवेक प्राप्ति- श्रीमाताजी के प्रवचनों से उद्धरण 34 चैतन्य लहरियाँ 35 लक्ष्मी तत्व VISHW DHARMA RELIGION चै त - य ल ह री प्रकाशक निर्मल इन्फोसिस एवं टेकनोलोजीज़ प्रा. लि. मुख्य कार्यालय इन्फोसिस हाऊस, प्लाट न. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड, कोठरुड पुणे - 411 029 मुद्रक अमरनाथ प्रेस प्रा. लि. W.H.S 2/47 कीर्ति नगर, औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली 110015 मोबाइल : 9810452981, 25268673 ८ सदस्यता के लिए कृपया निम्न पते पर लिखें: श्री जी. एल. अग्रवाल निर्मल इन्फोसिस एवं टेकनोलोजीज़ प्रा. लि. 222, देशबन्धु अपार्टमैंट, कालका जी नई दिल्ली-110 019 फोन : 26216654, 26422054 आप अपने अनुभव, सुझाव, सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ. पी. चान्दना जी-11 -(463), ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली 110 034 दूरभाष : 011-55356811 प्रातः 08.00 बजे से 09.30 बजे सायं: 08.30 बजे ये 10.30 बजे श्री कृष्ण पूजा लॉस एंजलिस 19 सितम्बर,2004 (इंटरनेट विवरण) प्रिय योगियो और योगिनियों, लास एंजलिस में शक्ति है जिसके द्वारा सभी कुछ प्राप्त किया जा हुई कृष्ण पूजा 2004 के महान अनुभव में आपके सकता है। इस प्रकार 'निर्मला' हमारे लिए अत्यन्त साथ बांट रही हूँ। हम लास एंजलिस से 40 मिनट अर्थपूर्ण है। स्वामित्व,शक्ति तथा प्रेम पा लेते हैं तो की दूरी पर वुडलैंड हिल्स होटल में रुके हुए थे। हम सहजयोगी का जीवन जीना शुरु करते हैं और ये अत्यन्त सुन्दर होटल था।(मेरियोट)। लगभग हमारी उत्क्रान्ति होती है। श्रीमाताजी ने यह भी 600-650 योगी जिनमें से अधिकतर अमेरिका और कहा कि समस्याएं हमारे ही तरीके से होती हैं। कनाडा से थे परन्तु कुछ स्विजरलैंड, फांस तथा क्योंकि बिना समस्याओं के न तो हमारा परिवर्तन अन्य दूर दराज देशों से भी थे। शुकवार और होगा और न ही हम उन्नत होंगे। हमने अपनी शनिवार की रात संगीत कार्यकर्मों में श्रीमाताजी समस्याओं का सामना करना है और उन पर काबू नहीं पधारीं। हम सबने कनाडा तथा भिन्न राज्यों पाना है और इसी प्रस्तुतिकरण में और भी बहुत के संगीत का आनन्द लिया। कनाडा के सारी चीजें प्रस्तुत की गई थीं परन्तु उनमें से ये सहजयोगियों ने एक लघु कामदी पेश की। शनिवार कुछ महत्वपूर्ण बातें याद हैं। आशा है बाद में हमें की सुबह कोलम्बिया के सहजयोगियों ने एक इसकी सी. डी. मिल सकेगी । सुन्दर प्रस्तुतिकरण किया जिस में उन्होंने परम पूज्य माताजी के नाम (निर्मल) का अर्थ वर्णन स्पायरो ने सहज विश्व परिषद के बारे में बताया किया ये इतना सशक्त प्रस्तुतीकरण था कि आने वाले गणेश या दिवालीपूजा के अवसर पर इसकी देशों के चालीस अगुवाओं के प्रतिनिधित्व वाली इस सी.डी.उपलब्ध कराई जाएगी। 45 मिनट के इस परिषद की जिम्मेदारी होगी कि विश्व भर में सहजयोग अनूठे प्रस्तुतिकरण में संगीत और श्रीमातीजी की का प्रचार -प्रसार करे उन्होंने यह भी बताया कि | इस प्रस्तुति के बाद इंगलैंड के डाक्टर डेविड जिन्हे श्रीमाताजी ने हाल ही में बनाया है भिन्न सुन्दर तस्वीरें थीं और साथ ही साथ परम पूज्य श्रीमाताजी ने कबेला हाउस तथा हैंगर, जिसमें श्री माताजी के नाम के अर्थ की व्याख्या भी। 'निर आजकल पूजाएं होती हैं. VND के नाम लिख का अर्थ है कुछ नहीं। श्रीमाताजी कहते हैं कि वे दिया है। इस परिषद के सदस्य योगी गण सभी कुछ भी नहीं हैं। तो हमें भी अपने विषय में यही कानूनी मामलों, सहज प्रकाशन तथा सहजयोग के सोचना चाहिए कि हम कुछ भी नहीं हैं। जब हम अन्य महत्वपूर्ण कार्यों के प्रतिभारी होंगे। इस प्रकार अपने विषय में सोचने लगते हैं कि हम कुछ भी नहीं हैं तो हम आत्मा बनने लगते हैं। अपना चित्त हमें स्वंय पर न रख कर आत्मा पर स्थापित करने के लिए एक-एक भाई चुना। रखना चाहिए । 'माँ' का अर्थ है माँ, ये वो शक्ति सहजयोग में यह पवित्रतम सम्बन्ध है। यह समारोह है जो हमें गुरु बनाती है। जब हम अपने स्वामी श्रीकृष्ण पूजा के समय पर मनाया जाता है क्योंकि बन जाते हैं तो सन्तुलन में होते है और स्वंय से श्रीकृष्ण जी की महान बहन श्री विष्णु माया थीं जो हमारा सामंजस्य स्थापित हो जाता है।ला बह कि बाई विशुद्धि की देवी भी हैं। निःसन्देह श्रीकृष्ण शक्ति है जो सारा कार्य करती है। ये प्रेम ( Love)की मध्य और बाई विशुद्धि के देवता भी हैं और दाई रविवार के दिन हमनें रक्षा-बन्घन का त्यौहार मनाया और बहनों ने भाई-बहन पावन सम्बन्धों को चैतन्य लहरी दिसम्बर, 2004 नवम्बर विशुद्धि पर तो वे सम्राट बन जाते हैं। राखी बंधने के सहज प्रभारी श्री वासु किसी और काम में लगे के बाद स्त्री-पुरुष जीवन भर के लिए भाई-बहन हुए थे। श्रीमाताजी के प्रस्थान करने के समय भी बन जाते हैं और आवश्यकता के समय एक-दूसरे उनके समीप होने का सौभाग्य मैं पा सकी। झुककर की सहायता और रक्षा करने का वचन देते हैं। मैंने श्रीमाताजी को प्रणाम किया, उन्होंने मेरी ओर शाम को आनन्द विभोर होकर हम सबने देखा मुझे ऐसा लगा मानो विश्व की महानतम माँ परम पावनी श्रीमाताजी के स्वागत की तैयारियाँ मुझसे कह रही हो," ये सब एक भ्रम हैं! मैं ये शरीर कीं। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण अवसर था (पहली बार इतनी तीव्र चैतन्य लहरियों को मैने महसूस किया दिव्य हैं! यदि आपमें इच्छा है तो इस क्षण आप ये था। पूजा में श्रीमाताजी ने प्रवचन देने की आवश्यकता सब देख सकते है।" श्रीमाताजी का सबसे बड़ा नहीं समझी। हम सभी लोगों ने उनका प्रेम शक्ति सौन्दर्य यह है कि वो एवं उनकी उपस्थिति से बहने वाली सुरक्षा को हमारी कुण्डलिनी का योग जब उनसे हो जाता महसूस किया। सर्वप्रथम श्री गणेश की पूजा हुई तो हम एकदम से जान जाते हैं कि परमेश्वरी हम जिसमें बच्चों ने श्रीमाताजी के चरणों पर पूष्प अर्पण मानवों को क्या समझाना चाहती हैं। ज्यों ही किए। इसके बाद श्रीकृष्ण की पूजा हुई। शक्ति उन्होंने मुझे देखा चैतन्य लहरियों के माध्यम से मैं उनके चेहरे से फूट पड़ रही थी, मुझे ऐसे लगा जैसे उन्हें साक्षात् माँ के रूप में पहचान सकी। उनके मैं जीवन की हर चीज हू। मेरा स्वभाव नहीं हूँ, भी नहीं कहतीं। परन्तु कुछ हमारे अन्दर तथा आसपास विद्यमान सारी एक कटाक्ष से मैं समझ गई कि वे मानव नहीं नकरात्मकता को वो दूर कर रही हैं। वास्तव में वे परमेश्वर हैं। श्रीमाताजी चले गए और हम सब हमारी आन्तरिक एवं बाह्य बाधाओं को दर कर रही शब्द-विमूढ, हतप्रभ दशा में खड़े रहे । थीं मुझे ऐसे लगा मानों वे अपने परमेश्वरी स्वभाव और महान् शक्तियों की अभिव्यक्ति कर रही हों। सभी पूजाएं अधिकाधिक शक्तिशाली होती चली जा श्री माताजी के इस परमेश्वरी स्वभाव को हम रही हैं, चैतन्य लहरियाँ भी अविश्वसनीय ढंग से व्यक्तिगत रूप से गहन ध्यान की स्थिति में महसूस शक्तिशाली हो रही हैं। कौन कल्पना कर सकता करते हैं। परन्तु इस बार वे ये अनुभव पूरी सामूहिकता था कि इसी जीवन में हम लोग साक्षात् देवी का में प्रदान कर रही थीं। पूजा अत्यन्त शक्तिशाली सामीप्य और उनका प्रेम पा सकेंगे! कौन कल्पना और गहन थी और सभी योगियों ने शक्तिशाली कर सकता था कि सहजयोग और आदिशक्ति चैतन्य लहरियाँ अनुभव कीं। इस महान मंगलमय हमारी उत्क्रान्ति इतने उच्च स्तर पर करेंगी कि हम घटना से मैं अभिभूत थीं । पूजा के बाद सभी देशों ने श्रीमाताजी को बनकर हम कितने भाग्यशाली हैं! उपहार दिए। इस अवसर पर मुझे श्रीमाताजी के समीप रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ क्योंकि न्यूयॉर्क ये वास्तव में एक महान् शक्ति का अनुभव था। इतनी सुन्दर चीजों को अनुभव कर पाएं! सहजयोगी सभी को प्रेम एवं जय श्रीमाताजी एना मानसीनी-न्यूयॉर्क नीट गुरु पूजा (ईसा-मसीह के अवतरण की पूर्व संघ्या) लन्दन-02.12.1979 त एक महीना पूर्व मैनें रुस्तम से कहा कि इस अवतरण थे दत्रात्रेय ने भी कभी नहीं कहा कि वे रविवार को एक पूजा का आयोजन करो क्योंकि आदिगुरु के अवतरण हैं जो इन तीनों शक्तियों को यह पूर्णिमा का दिन है। उसने मुझसे पूछा कि क्या अबोधिता के माध्यम से गतिशील करके लोगों का यह गुरु पूजा है, महालक्ष्मी पूजा या गणेश पूजा? पथ प्रदर्शन करने के लिए अवतरित हुए मैने बताया कि इसे गुरु पूजा कहो और बहुत मोजेज यद्यपि यह जानते थे कि वे महान अवतरण समय पश्चात् जब मैं भारत जा रही थी तो उसने हैं जिन्होंने प्रकृति को वश में कर लिया है, फिर भी मुझसे पूछा कि क्यों न हम ईसा-मसीह पूजा भी उन्होंने कभी नहीं कहा कि वे अवतरण हैं। ईसा-मसीह के समय में उन्होंने महसूस किया न यहीं कर लें ? आज का दिन बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि बहुत कि ये बात बताना आवश्यक है अन्यथा लोग इसे समय पूर्व जब ईसा- मसीह मात्र एक बच्चे थे,उन्होंने नहीं समझेंगे। धर्म-ग्रन्थों में पढ़कर जनता के सामने घोषणा की उस समय यदि लोगों ने ईसा- मसीह को की वे ही बह अवतरण (Advent) हैं जो रक्षक पहचान लिया होता तो कोई समस्या न होती। (Saviour) हैं। लोगों का विश्वास था कि रक्षक परन्तु अभी मानव को आगे विकसित होना था । (Saviour) अवतरित होने वाले हैं। आज बहुत विराट में स्थित दरवाजे के माध्यम से जाने के लिए समय पश्चात् एक रविवार के दिन उन्होंने घोषणा किसी न किसी को तो आज्ञा चक पार करना ही की कि मैं ही वह रक्षक हूँ। यही कारण हैं कि था. यही कार्य करने के लिए ईसा-मसीह पृथ्वी पर आज अवतरण रविवार है (Advent Sunday)। आए । उनका जीवन छोटा था, अतः बहुत ही छोटी अत्यन्त आश्चर्यजनक बात है कि इस जीवन में उन्हें यह घोषणा करनी पड़ी कि वे ही वृक्ष पर जड़ों से कोपल निकलते है कोपलो से डालियाँ निकलती है, डालियों से पत्ते और फूल ये बात अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं कि उनसे पूर्व निकलते हैं। फिर भी जिन लोगों को जड़ों का ज्ञान किसी ने भी खुल्लम-खुल्ला यह नहीं का था कि है वे कोंपलों का ज्ञान नहीं पाना चाहते और जिन्हें वे अवतरण हैं। श्री राम तो भूल ही गए थे कि वे कॉपलों का ज्ञान है वे फलों को नहीं पहचानना अवतरण हैं। एक तरह से उन्होंने स्वयं को यह चाहते! मानव का यह अजीबोगरीब स्वभाव हैं। मैनें अपने विषय में कभी नहीं कहा क्योंकि मैंने वे पूर्ण मानव-' मर्यादा पुरूषोत्तम ' बन गए थे और महसूस कर लिया था कि मानव ने अब अह का श्रीकृष्ण ने भी केवल एक व्यक्ति, अर्जुन को यह एक अन्य ऐसा आयाम प्राप्त कर लिया है जो ईसा-मसीह के समय के अहँ से भी भयानक है। अब्रहम ने कभी यह नहीं कहा कि वे अवतरण हैं आप चाहे जिस चीज को दोष दें, आप इसे औद्योगिक यद्यपि वै आदि गुरु (Primordial Master) थे कांति कह सकते हैं क्योंकि इसके कारण आप बहुत आयु अवतरण हैं। बात भुला दी थी, अपने ऊपर माया जाल डाल कर बात बताई थी और वो भी युद्ध शुरु होने से पूर्व । चैतन्य लहरी दिसम्बर, 2004 नवम्बर प्रकृति से दूर हो गए, जो चाहे आप इसे कह सकते सन्त इस बात को जानते हैं क्योंकि उनकी चेतना हैं. परन्तु मानव ने वास्तविकता से अपने सम्बन्ध इतनी उन्नत स्थिति में है जहाँ वो इस बात को तोड़ दिए थे। बनावट के रूप में वे पहचाने जाते थे समझ सकते हैं। आप लोगों से भी कहीं अधिक वो और इतने बड़े सत्य को स्वीकार करना उनके लिए समझते हैं क्योंकि अभी तक आप बच्चे हैं नवजात शिशु । वो बड़े हो चुके हैं। परन्तु "आज के दिन जब मैं घोषणा करती हैं कि मैं ही वह अवतरण हूँ जिसे मानवता की रक्षा करनी है, मैं घोषणा तक लोग इस बात पर आश्चर्य नहीं करने लगे करती हूँ कि मैं ही 'आदिशक्ति हूँ जो सभी असम्भव होता। यही कारण है कि मैनें तब तक अपने विषय में कुछ नहीं बताया जब कुछ भूत बाधित लोगों ने मेरे विषय में नहीं धुताया और जब कि माताजी की उपस्थिति में कुण्डलिनी जागृति माताओं की माँ है, जो 'आदि माँ है, शक्ति है, जैसा कठिन कार्य भी इतनी गति से हो जाता है। परमात्मा की शुद्धतम इच्छा है जो स्वयं को, इस भारत में एक मन्दिर था जिसके विषय में कोई सृष्टि को मानव मात्र को स्वयं का अर्थ देने के लिए न जानता था। परन्तु यह पाया गया कि एक स्थान इस पृथ्वी पर अवतरित हुई है। मुझे पूर्ण विश्वास है विशेष के समीप जो भी समुद्री जहाज चले जाते वे कि अपने प्रेम एवं धैर्य के माध्यम से और अपनी मंदिर तट की तरफ स्वतः ही खिंच जाते और उन्हें शक्ति के माध्यम से मैं इस कार्य को पूर्ण करूँगी।" मैंने ही बार-बार पृथ्वी पर जन्म लिया, परन्तु आकर्षण क्षेत्र से जहाज को वापिस खींचने में उन्हें अबकी बार मानव को स्वर्ग का साम्राज्य, आनन्द वापिस समुद्र में ला पाना बहुत कठिन होता। उस दुगनी ताकत लगानी पड़ती.परन्तु ये बात वो न समझ पाते कि कौन सी शक्ति कार्यरत है । लोगों ने समझा कि समुद्र की गहराई में कुछ मानव का केवल उद्घार करने तथा उनकी रक्षा कमी है. परन्तु लगातार बहुत से जहाजों के साथ करने के लिए नहीं आई. क्योंकि उनके पिता यह घटना घटित हुई। तब उन्होंने ये जानना चाहा (सर्वशक्तिमान परमात्मा) उन्हें आनन्द एवं परम कि इन जहाजों के साथ क्या घटित हो रहा है,क्यों स्थिति का आशीष देना चाहते हैं। तथा परमानन्द प्रदान करने के लिए मैं अपनी पूर्ण कलाओं में पूर्ण शक्तियों के साथ अवतरित हुई हूँ। ये समुद्र तट की तरफ खिंचे जा रहे हैं? अतः उन्होंने इस बात का पता लगाना चाहा। जब वे ही सीमित रखा जाना चाहिए। जंगल में गए तो वहां एक मन्दिर पाया जिसके इन शब्दों को कुछ समय सहज योगियों तक आज गुरु पूजा का दिन है, मेरी पूजा का नहीं, शिखर पर एक बहुत बड़ा चुम्बक स्थापित किया गुरु रूप में आपकी पूजा का, गुरु रूप में मैं आप हुआ था। तो अपने तर्क विवेक के माध्यम से लोग सबका अभिषेक करती हूँ और आज मैं आपको इस बिन्दु तक पहुँचे कि 'माताजी' कुछ विशेष चीज़ बताऊँगी कि मैंने आपको क्या प्रदान किया है और हैं क्योंकि धर्म ग्रन्थों में कहीं भी इस बात का वर्णन आप कितनी महान् शक्तियाँ प्राप्त कर चुके हैं। आपमें अभी भी ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने अवंतरित होंगे जिनके कटाक्ष मात्र और विचार मात्र अभी 'पहचाना' नहीं है, मेरी इस घोषणा से उनके से ही कुण्डलिनी जागृत हो जाएगी। जंगलों में, अन्दर यह 'पहचान' कार्यान्वित होगी। मुझे 'पहचाने पागल भीड़ से दूर हिमालय में बैठे हुए बहुत से बिना आप लीला को नहीं देख सकते, लीला देखे नहीं किया गया है कि पृथ्वी पर एक ऐसे अवतरण नेवम्बर - दिसम्बर, 2004 वैतन्य लाहरी 7 बिना आपमें आत्मविश्वास नहीं आ सकता, धीरे-धीरे उसकी कुण्डलिनी को उठाते हैं। आत्मविश्वास के बिना आप गुरु नहीं बन सकते। गुरु बने बिना आप अन्य लोगों की सहायता नहीं परिश्रम के तरीके भी कुण्डलिनी जागृति के लिए कर सकते और अन्य लोगों की सहायता किए बिना आप आनन्द में नहीं जा सकते। श्रृंखला को तोड़ना बहुत आसान है, परन्तु आपको तो एक के पूछते हैं, पता लगाने के लिए सभी कुछ करते हैं। बाद एक श्रृंखला बनानी है। आप सब यही कार्य आपके माता-पिता कैसे थे, आपको स्वप्न कैसे करना भी चाह रहे थे अत: आत्मविश्वस्त आनन्दित आते हैं पूरी तरह से वे आपका विश्लेषण करते एवं प्रसन्न हों ताकि मेरी शक्तियाँ आपकी रक्षा करें, ह मेरा प्रेम आपको शक्ति प्रदान करे और मेरा स्वभाव की बीमारियाँ हो चुकी हैं। उदाहरण के रूप में वे आपको शांति एवं आनन्द की स्थिति प्रदान करें । परन्तु मनुष्य अपने स्वभाव के अनुरूप कठोर अपनाते हैं पहले वे पता लगाते हैं कि कुण्डलिनी की समस्या क्या है. फिर वे आपका पूरा इतिहास हैं। तब वे पता लगाते हैं कि आपको किस प्रकार पता लगाते हैं कि किसको आँखों की तकलीफ हुई परमात्मा आपको धन्य करे। किसको नाक, पेट, गला आदि की तकलीफ हुई उस दिन आपको बताया था कि सम्भवोपाय और सभी प्रकार की चीजों को नजरअंदाज़ किया और शक्तोपाय लोगों को स्वच्छ करने के दो तरीके जाता है। अब आप कल्पना कर सकते हैं कि इस हैं। एक मार्ग द्वांरा आप केवल कुछ ही लोगों को श्रेणी में हममें से कितने लोग आते हैं। वो ये भी स्वच्छ कर सकते हैं। थोडे से लोग लेकर आप उन्हें स्वच्छ करते रहते हैं ताकि उनका चित्त पूर्णतः अब तक बिताया है और उसके माता-पिता का स्वच्छ हो जाएं, तत्पश्चात उनके पँचों तत्वों को इतिहास क्या है। स्वच्छ करके उनकी कुंण्डलिनी को उठाएं और वो पता लगाते हैं कि व्यक्ति ने किस प्रकार का जीवन जो लोग युवा आयु में गुरुओं के पास जाकर आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकें। यह सम्भवोपाय शक्ति-पथ की याचना किया करते थे उनमें से कहलाता है इस मार्ग से आपका व्यक्तित्व पूर्णतः अधिकतर के साथ ऐसा होता था । अब मेरे कारण, आप जानते हैं, यह शक्ति पथ स्वच्छ हो जाता है। दूसरा शक्तोपाय है इसमें शक्ति आपकी बहुत आसान हो गया है। आपको यही करना है कुण्डलिनी को उठाती है, चाहे जो भी स्थिति रही शक्तिपथ अर्थात् आपको अपना प्रकाश अन्य लोगों हो और इसके बाद शुद्धिकरण का कार्य होता है। पर डालना है। शक्ति-पथ अर्थात् शक्ति के प्रकाश तो सहज-योग में हमने दूसरा उपाय अपनाया है को अन्य लोगों पर डालना है तो अब आपकी क्योंकि सम्भवोपाय के लिए कोई समय नहीं बचा शक्ति किसी भी अन्य व्यक्ति की कुण्डलिनी पर है। इसे कर पाना असंभव होगा। तो शक्तोपाय में पड़ सकती है और उसकी कुण्डलिनी जागृत हो लोग प्रायः क्या करते हैं, यह शक्ति पथ है । शक्ति सकती है। यह अत्यंत कठिन कार्य था। पहले पथ में दूसरे व्यक्ति पर शक्ति परछाई की तरह से कहा जाता था कि केवल वीतराग व्यक्ति जिसने डाली जाता है या जैसे हम पर प्रकाश पडता है मोह-लिप्सा आदि पर विजय प्राप्त कर ली हो, ही, उस प्रकार से। तो वे अपनी कुण्डलिनी की शक्ति जो पूर्णतः निराग हो, केवल वही कुण्डलिनी उठा दूसरे व्यक्ति की कुण्डलिनी पर डालते हैं और सकता है। चैतन्य लहरी दिसम्बर, 2004 नवस्यर तो सर्वप्रथम दीक्षा दी जानी आवश्यक थी। वह व्यक्ति में कैवल क्षमाशीलता शेष रह जाए। ऐसे आपको प्राप्त हो चुकी है, जिस दिन आप मेरे पास व्यक्ति को वीतराग माना जाता था ऐसा व्यक्ति आए थे उसी दिन आपको दीक्षा मिल गई थी परन्तु जब कुण्डलिनी उठाना चाहेगा तो वह इस कार्य को आप इस बात को महसूस नहीं कर सकते कि कर सकेगा, केवल ऐसे गिने-चुने व्यक्ति ही यह कार्य किस प्रकार होता है। दूरबीनी कुण्डलिनी को संभाल (Command) सकते हैं अतः सर्वप्रथम तो आप सब लोगों को, बिना और आपको पता भी नहीं चलता कि आपके साथ किसी परिचय के गुरु से दीक्षा प्राप्त हो गई है तो किस प्रकार की इतनी सारी चीजें हुई हैं। अतः तुम्हें दीक्षा प्राप्त हो गई है. तुम्हें महादीक्षा भी प्राप्त केवल दीक्षा देने के लिए व्यक्ति को बहुत सा कष्ट हो गई है दीक्षा पहले होती है. महादीक्षा क्या है? दिया जाता है। कहने से मेरा अभिप्राय है कि दूसरी महादीक्षा में साधक को कोई नाम या मंत्र की सेवा करनी पडती है, काफ़ी सेवा, दिया जाता है (प्रायः केवल एक नाम दिया जाता (Telescopically) विधि से बहुत से कार्य होते हैं fafet a आपको गुरु उसके लिए फल आदि ले जाने पडते हैं, कुछ धूर्त है)। परन्तु यह मंत्र भी तभी लिया जाना चाहिए लोग धन भी लेते हैं परन्तु कोई ब्रात नहीं। कुछ जब गुरु को मंत्र का ज्ञान हो। कहने से मेरा दक्षिणा तो देनी ही होती है क्योंकि गुरु की अभिप्राय यह है कि यह गुरु तो ये भी नहीं जानते देखभाल करना चेलों का ही कार्य है। गुरु आपकी कि आपका कौन सा चक्र पकड़ रहा है, इस बात धन सम्पत्ति या आपकी दी हुई चीजों से लिप्त नहीं की आप कल्पना करें! है, परन्तु ये शिष्यों का कर्त्तव्य है कि गुरु की देखभाल करे। इसी कारण से, सम्भवतः, गुरु को पास आप एक ऐसे समय पर आए हैं, आज आप मेरे अतः वे व्यक्ति की कुण्डली देखा करते थे मेरे थोड़ा सा पैसा देना भी आवश्यक था। परन्तु अब ये पास आए हैं, आपकी कुण्डली क्या है ? आपको गुरु इस प्रथा का दुरुपयोग कर रहे हैं । गुरु को क्या कष्ट है? आपका जन्म कौन से नक्षत्र में हुआ? क्योंकि कहीं रहना है, उसके लिए घर की आपके माता-पिता के नाम क्या थे ? इन चीजों के आवश्यकता है, तो दक्षिणा के रूप में थोड़ा सा विषय में एक बहुत बड़ा विज्ञान हुआ करता था। पैसा दिया जाना उसे आवश्यक है। परन्तु अब पूरी अ.ब.स. से ये लोग गिनना आरम्म किया करते थे चीज़ को इतना गलत ढंग से उपयोग किया जा और तब यह किसी बिन्दु पर पहुँचा करते थे जहां रहा है। इस प्रथा को मूर्खता की चरम सीमा तक इन्हें कोई शब्द मिला करता था, जैसे दूसरा शब्द ले जाया जा रहा है कि लोगों के लिए अब यह क्या है, तीसरा शब्द क्या है और फिर किसी बड़े शास्त्र में देखकर ये पता लगाते थे कि आपमें कौन गुरु इतना उन्नत होना चाहिए कि वह कुण्डलिनी सा चक पकड़ रहा है, तब वो साधक को कोई नाम एक ऐसा देते थे कि ठीक है आप राम का नाम जपें। व्यक्ति जिसे संसार से कोई मोह न हो, विल्कुल राम-राम कहते रहे जब तक आपका हृदय चक्र उद्यम बन कर रह गया है। जागृत कर सके। वह वीतराग हो निर्मोह हो, जिसका चित्त इतना शुद्ध हो चुका हो ठीक नहीं हो जाता। इसमें चाहे दो साल लग कि उसमें जरा तनिक सा भी मोह बाकी न हो। जाएं चाहे. तीन साल लग जाए,दो जीवन लग जाएं उसमें किसी भी प्रकार का प्रलोभन शेष न हो। या सौ-जीवन लग जाएं। आप एक ही मंत्र दिसम्बर, 2004 नवम्बर चैतन्य लहरी राम-राम जपते रहे। परन्तु ये सब आपके नक्षत्रों इसकी बात भी न कर सकते। उन्हें तो हर वक्त आदि, आपके परिवार,घर तथा सभी चीजों की हवा में वे लटकाए रखा जाता था और रात को जानकारी के बाद किया जाता था और तब यह जिस प्रकार चमगादड़ उलटे लटके होते हैं उन्हें निर्णय होता था कि कौन-सा चक्र पकड़ा हुआ है लटका दिया जाता था तब अन्य चीजों को देखा अब मान लो आपके चार चक्र पकड़े हुए हैं, क्योंकि जाता था जैसे आपके कैसे मित्र है. आप कैसे लोगों आपकी कुण्डली ये सब बताती है कि आपको क्या के प्रति आकिर्षत हैं ? तो ये लोग स्वभाव देखते थे कष्ट हैं या आपको कौन से कष्ट होंगे। आरम्भ में और इससे किसी निर्णय पर पहुँचते थे तभी वो केवल शारीरिक कष्ट । अतः वे लोग आपकी कुण्डली आपको दूसरा मंत्र दे सकते थे और साधक उनके के माध्यम से ये सब पता चलाते थे कि आपको साथ घंटों तक मंत्र कहे चला जाता था। हर समय कौन सी समस्याएं है। मान लो आपको पेट की वह मंत्र ही रटता रहता था, अपनी अन्य समस्या है तो वे सोच सोचकर पता लगाते कि पेट आवश्यकताओं पर बिना कोई ध्यान दिए। जब मंत्र का कौन सा मंत्र है क्योंकि वैज्ञानिक की तरह से पर सिद्धी प्राप्त हो जाती थी तब वे कहते थे, अब आपके लिए मंत्र सिद्ध हो गया है अर्थात् अब आप सीधे ही वे इस बात का पता नहीं लगा सकते। इस मंत्र को किसी दूसरे पर भी उपयोग कर सकते वैज्ञानिक किस प्रकार चीजों का पता लगाते थे? मान लो आप किसी डाक्टर के पास जाते हैं तो वह है, यानि आप अब केवल' राम का मंत्र उपयोग कर आपकी आँखें निकालकर धो देंगे और उन्हें वापिस सकते है। इसकी आप कल्पना कीजिए| लगा देंगे और कहेंगे कि ऑँखें ठीक हैं। तब वह आपके दांत निकाल लेंगे,उनकी जगह बनावटी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है, ठीक है। परन्तु अब आपको क्या प्राप्त हुआ है? आपको दांत लगाकर कहेंगे कि आपके दांत ठीक हैं। फिर आत्मसाक्षात्कार का अर्थ यह है कि अब आपको 1 आपके कान निकालकर उनके स्थान पर कुछ पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो गया है कि मंत्र क्या है और बनावटी यंत्र लगा देंगे और कहेंगे कि यह ठीक किस चक्र के लिए कौन सा मंत्र बनाना है आपमें है। फिर आपका हृदय निकालकर इसका निरीक्षण सभी चक्रों को देखने की शक्ति आ जाती है कि करेंगे और उसके स्थान पर कुछ नया लगा देंगे। कौन से चक्र को सहायता की आवश्यकता है। ऐसा ही है, ये लोग भी ऐसे ही किया करते थे आपमें अन्य लोगों की कुण्डलिनी उठाने की शक्ति क्योंकि ये भी अंधेरे में टटोलते थे। जिस प्रकार से है कुण्डलिनी यदि नीचे की ओर आती है तो उसे आप लोगों को चक्रों का ज्ञान है इन लोगों को इस सहस्रार पर बांधने की शक्ति है। चक्रों को बन्धन बात का ज्ञान न था कि कौन से चक्र पकड़ रहे हैं। देकर उन्हें स्थापित करने की शक्ति आपमें है और अब आप कल्पना कर सकते हैं कि कौन सी बन्धन द्वारा नकारात्मकता से अपनी रक्षा करने की शक्ति भी आपमें है। अपने चित्त को आप किसी भी महा, महा, महा दीक्षा आपको प्राप्त हो गई है! पहले तो आपको दीक्षा प्राप्त होती है, जिस दिन स्थान पर ले जा सकते हैं और किसी के भी बारे में आपकी कुण्डलिनी जागृत होती है, ये दीक्षा है। जान सकते हैं कि किसको आपकी सहायता की तब आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है। उनके आवश्यकता है। सामूहिकता की समस्या जानने की लिए तो इसका प्रश्न ही न था, एक ही सांस में वे शक्ति भी आपमें है, जैसे आप जान सकते हैं कि नैतन्य लहरी दिसम्बर, 2004 नवम्बर 10 लन्दन में क्या समस्या है (अपने दोनों हाथ फैलाकर आप किसी देवी- देवता का नाम लें, आपके मंत्र तो पूछे कि लन्दन में क्या समस्या है, इस प्रकार से) पहले से ही सिद्ध हैं और प्रभावशाली हैं। गट्ठड़ बायां हृदय और दायां हृदय। इस प्रकार से, की तरह इसमें सभी कुछ है। आप इसे खोलें। मुख्यतः बायें हृदय पर पकड़ आ रही है। इसकी किसी का कोई चक्र यदि पकड़ रहा हो। अब उस व्याख्या करने के लिए आपके पास भाषा है। आपने चक्र का मंत्र कहें और बह ठीक हो जाएगा। 1. कहा कि बार हृदय। ऐसा कहकर आपने किसी आपको क्योंकि सभी मंत्रों का ज्ञान है, आप जानते का दिल नहीं दुखाया। लन्दन के आप लोगों को हैं कि यह क्या है, इसका रहस्य आप जानते हैं। बाएं हृदय की पकड़ है, इसका अर्थ क्या है? अन्य लोग नहीं जानते। यदि आप नाम भी नहीं इर का अर्थ यह है कि आप लोग आत्मा के विरुद्ध लेते, उसकी तरफ इशारा मात्र करते हैं तो भी सब चत रहे हैं। आत्मा में आपकी कोई दिलचस्पी नहीं जान जाते है कि क्या मामला है, कहाँ जाना है और है,आप भौतिकतावादी हैं अहंकारी हैं और आत्मा क्या कहना है अत:ः यद्यपि यह इतना बड़ा रहस्य की कोई चिन्ता नहीं करते,अपनी आत्मा को आप है फिर भी आप लोग इसको समझते हैं। हमारे बीच हानि पहुंचाने का प्रयत्न कर रहे हैं। आप शराबी परस्पर इस तालमेल पूर्ण समझ को देखें । हम हैं, और मद्यपान से अपने को नष्ट करने में लगे हुए जानते हैं कि कौन सी चीज क्या है और फिर न तो हैं। परन्तु ये सब बातें आपको कहनी नहीं पड़तीं,आप अपने विषय में इसका बुरा मानते हैं और न ही अन्य केवल इतना कह देते हैं कि आपका बायां हृदय लोगों के। यद्यपि मैं कहती हैं कि आपमें अहम् पकड़ रहा है,समाप्त। आप इतना भी नहीं कहते बहुत अधिक है फिर भी कोई मुझ पर पलट वार कि आपको क्षमाशील होना चाहिए आदि, अपने नहीं करता। ईसा-मसीह के समय में 'अहॅ का | दोनों हाथ इस तरह से खोलकर बाएं हृदय चक्र नाम लेना सम्भव न था। अब आप स्पष्ट रूप से पर लन्दन के लोगों के लिए क्षमा याचना करते हैं देख सकते हैं और कह सकते हैं कि यह आपका और उन्हें क्षमा मिल जाती है और फिर वे और अहँ, प्रति अहँ, आपकी मूर्खता आदि-आदि सभी ज्यादा शराब पीते हैं और अपने हृदय चक्र की चीजें हैं। दुर्दशा कर लेते हैं । अतः अब आपको यह सब शक्तियां प्राप्त हो आत्मासाक्षात्कारी है, फिर भी वह कुण्डलिनी जागृत गई हैं, आप कुण्डलिनी उठा सकते हैं और कुण्डलिनी करने के विषय में कुछ नहीं जानता। वह तब तक जागृति के मार्ग में आने वाली बाधा को दूर कर कुण्डलिनी जागृत नहीं कर सकता. जब तक वह किसी में यदि शक्ति है, कोई चाहे जन्मजात् सकते हैं। किसी का आज्ञा चक्र यदि पकड़ा हुआ सहज-योगी नहीं बन जाता। अतः जन्मजात है तो गुरु लोग उनका आज्ञा चक्र इसलिए ठीक आत्मसाक्षात्कारी जो अपनी कोई सीमा नहीं समझते, नहीं किया करते थे कि कहीं उनका अपना आज्ञा उन्हें समझ लेना चाहिए कि उन्हें सहजयोगी बनना चक्र न पकड़ जाए। अतः सिद्ध होने के लिए उन्हे पड़ेगा अन्यथा वे प्रभावशाली नहीं हो सकते. वे मंत्र -जाप करना पड़ता था। सिद्ध का अर्थ है कि क्रियावादी नहीं हो सकते और न ही इस कार्य को व्यक्ति की शक्ति प्रमाणित हो चुकी है अर्थात् वह कर सकते हैं । प्रभावशाली हैं आपके सभी मंत्र प्रभावशाली है। तो आपके अन्दर ये सब गुण हैं, आपमें सभी नवम्बर - दिसम्बर 2004 चैतन्य लहरी 11 आपको वर्तमान में रहना है। मुझे आप अपनी देवी-देवताओं का पूर्ण ज्ञान है। आप जानते हैं कि देवी-देवता क्यों नाराज हो जाते हैं. समस्या क्या धारणाओं में नहीं बांध सकते। आपकी धारणाएं है, किस बात से देवी-देवता कुपित हो जाते हैं। यदि केवल इतना कहूँ कि 'पाप मत करो', समाप्त। आप ईसाई बनते, आपका जन्म यदि भारत में होता आप कहेंगे पाप क्या है?' तब आप कहते हैं ऐसा तो आप हिन्दु होते, आपका जन्म यदि चीन में होता मत करो'। इसी से बात समाप्त नहीं हो जाती आप. तो आप चीनी होते इस प्रकार से आप कुछ भी कुछ न कुछ चालाकी करने लगते हैं। आप पर होते एक बार जब आपमें असामन्जस्य कार्य करने आपकी माँ का पक्का बन्धन है। आप यदि शराब लगता है तो आप तुरन्त जान जाते हैं कि यह पीने का प्रयत्न करेंगे तो आपको उल्टी हो जाएगी। असामाजस्य की स्थिति है क्योंकि तब आपकी कुछ और यदि आप गलत कार्य करेंगे तो आपका चैतन्य लहरियाँ रुक जाती हैं। अतः आधे अधूरे पेट खराब हो जाएगा, सहज-योग से यदि आप लोगों का समूह, जो अभी तक सहजयोग में स्थापित आना-कानी करने लगेंगे तो आपको उसमें होना नहीं हो पाए हैं, जिन्हें अभी पूरी शक्तियां नहीं प्राप्त पड़ेगा क्योंकि यद्यपि आपको यह महसूस नहीं हो हुई हैं, वे लोग मुझे पहचान नहीं सकते। ये मूर्खता रहा फिर भी अपने अन्दर आप सहज-योग के है मुझे पहचानते ही (स्वीकार करते ही) आपकी चमत्कार को महसूस कर चुके हैं। परन्तु अब भी लोगों का एक ऐसा समूह है जो के समूह उन लोगों के हैं जो दूसरे गुरुओं आदि के आत्मसाक्षात्कारी हैं परन्तु उस स्थान पर नहीं हैं। भिन्न सोतों से आए हैं। तब उनके विषय में समस्या इन दोनों में क्या अन्तर है ? अत्यन्त सहज मैं सीमित हैं । आपका जन्म यदि यहाँ पर होता तो चैतन्य लहरियां बहने लगेगी इस तरह के लोगों पा होती है। ऐसे लोग जब सहजयोग में आते हैं तो पहचान। जिन लोगों ने मुझे नहीं पहचाना है उन्हें उन्हें भी आत्मसाक्षात्कार मिल जाता है क्योंकि मैं आर्शीवाद प्राप्त नहीं होगा वो गोल-गोल घूमते तो उदारता से परिपूर्ण हूँ। चाहे वे जैसे भी हों! उस रहंगे। अतः पहचानना बहुत आवश्यक है। दिन एक वैश्या आ गई, उसे भी आत्म साक्षात्कार लोग ऐसे हैं, जैसे उदाहरण के रूप में शिरडी साई मिल गया। केवल इतना ही नहीं सहजयोग एक नाथ के शिष्य । शिरडी साई नाथ अब जीवित नहीं लम्बी रस्सी देता है आसानी से आपकी चैतन्य हैं कुछ परन्तु वे उनमें विश्वास क्ररते हैं। परन्तु अब लहरियाँ समाप्त नहीं होतीं, यदि आपने अच्छी तरह शिरडी साई नाथ हैं कहाँ? वर्तमान अवतरण में ये से इन्हें पा लिया हो तो। लोग विश्वास करना नहीं चाहते। ये केवल ही विश्वास करना चाहते हैं। वे राम को मानते हैं, के पश्चात् आपको अपनी खामियाँ दिखाई देने ईसा-मसीह को मानते हैं अधिकतर ईसाई लोगों लगती में यह समस्या है। वे मेरी तुलना भी ईसा-मसीह लगते हैं। कुछ लोगों को झिनझिनाहट (TIngling) से करते हैं। ईसा-मसीह सम मुझे समझे बिना वे महसूस होने लगती है, कुछ लोगों को सामान्य सहज-योग को स्वीकार नहीं कर सकते या फिर स्थिति में ठीक लगता है परन्तु मेरे सम्मुख आकर वे मोजिज या किसी ऐसे अन्य अवतरण से मेरी वो हिलने लगते हैं या उनका शरीर ऐंठने लगता में सहजयोग क्योंकि प्रकाश है, सहजयोग में आने मृत हैं और तब आप सहजयोग को नकारने है। कुछ लोग ज्यों ही मुझे देखते हैं वो तप जाते तुलना करेंगे। नवम्बर - दिसम्बर, 2004 औैतन्य लहरी 12 हैं, उनके पेट में दर्द हो जाता है। क्योंकि प्रकाश मुक्ति पा लें । इन सांपों और बिच्छुओं तथा अपने से होते ही आप स्वयं का सामना करने लगते हैं। चिपके हुए सभी बन्धनों से मुक्त होकर स्वच्छ हो स्वयं का सामना आप करना नहीं चाहते। मुख्य जाएं, यही आपकी स्वयं पर बहुत बड़ी होगी। कृपा बात यह है कि जो लोग सहजयोग में सुस्थिर नहीं प्रकाश हो चुका हैं । उस प्रकाश में आप देखना हैं. वो अपनी वास्तविकता का सामना नहीं करना आरम्भ करें कि सत्य क्या है तब आपके सभी भ्रम चाहते। स्वयं को यदि वे लोग देखें तो वे बिना छूट जाएंगे और आपकी वास्तविक एकरूपता स्थापित किसी देरी के अपने को सुधार लेंगे क्योंकि अब हो जाएगी, अन्यथा ऐसा नहीं हो सकता। आपको है । आप अपनी खामियों से एक स्वयं का सामना करना होगा। कभी स्वयं को प्रकाश हो चुका रूप नहीं होते। आप डाक्टर हैं, आपके पास प्रकाश न्यायसंगत ने ठहराएं। है और आप ही शल्य क्रिया (Operation) करते हैं तथा इस कार्य को करने का ज्ञान भी आपको है। न्यायसंगत ठहराने की कुछ लोगों में आदत होती इस बात का यदि आप निर्णय कर लें कि मैं है। ऐसा करके आप उनका हित नहीं करते। इस स्वयं का सामना करूंगा और देखूंगा कि मैं कौन प्रकार के सारे दुष्प्रवृत्ति लोग एकजुट हो जाते हैं। हूँ तो यह सभी खामियां आपको छोड़ देंगी। परन्तु अपनी शक्ति दर्शाने के लिए दो बुरे व्यक्ति एक हो अपने बैटों, भाइयों, अपनी पत्नी या पति को आप तो अपना सामना ही नहीं करना चाहते। यही जाएंगे। मुझे आश्चर्य है कि यहाँ पर उनका कारण है कि आत्म साक्षात्कार पा लेने के बाद भी कोइ संघ नहीं है अन्यथा माताजी के खिलाफ ऐसे लोग इसमें आना नहीं चाहते। जिन्हें शीतल चैतन्य नकारात्मक लोगों का संघ यहाँ भी आपको दिखाई लहरियाँ प्राप्त होती हैं वे भी इनके विषय में अधिक पड़ता। कहने से मेरा अभिप्राय है कि हो सकता है नहीं सोचते, क्योंकि यदि वे इनके विषय में बहुत आप भी सभी चीज़ों का सामना कर रहे हों क्योंकि सोचेंगे तो उन्हें अपना अहम् त्यागना होगा और ऐसे लोग एकजुट हो जाते हैं और उनका बहुत अहम् के साथ तो उन्होंने मित्रता बनाई हुई है! जो बड़ा संघ बन जाता है। आपने देखा होगा कि लुटेरे भी हो उन्हें स्वयं को देखना पड़ेगा। वो कहते हैं, सदा एकजुट होते हैं। उनमें गहन मित्रता होती है 'नहीं, मैं पहले से बेहतर नहीं हूं, मुझे झिनडिनाहट और अपने भेद एक दूसरे को बताते हैं। परन्तु दो हो रही है. ऐसा हो रहा है । मेरे शरीर में सुइयाँ चुभ अच्छे लोग यदि एकजुट हो जाएं तो पूरा विश्व रही हैं और दर्द हो रहा है। ऐसा कैसे हो सकता परिवर्तित हो सकता है अत: इस बात को भली है ? मेरी सहायता नहीं हो रही, सहज-योग मुझे भांति समझ लें कि सदैव सकारात्मक लोगों के पास पीछे की ओर ले जा रहा है । जिन लोगों में सुधार जाने का प्रयत्न करें नहीं तो आप सहजयोग में हुआ है उन्हें देखने की अपेक्षा वे सहजयोग को बिकसित न हो सकेंगे। नकारात्मक बातें करने वाले दोष देने लगते हैं। परन्तु आप किसे दोष दे रहे हैं ? एक ऐसी चीज को जो आपकी रक्षा करेगी। आप अपने रक्षक (Saviour) को दोष दे रहे हैं। बेहतर होगा कि आपको सभी तरह के लोगों के विषय में बता रही आप अपनी समस्याओं, दोषों को देखें और उनसे हूँ। ये लोग स्वयं का सामना नहीं करते। किसी न किसी भी व्यक्ति के समीप न जाएं। परन्तु इस देश में लोगों का एक अन्य समूह है। कल क्योंकि आप लोगों ने बनना है इसलिए में गुरु दिसम्बर 2004 वैतन्य लहरी 13 नमर किसी तरीके से अपना सामना करने से बचते हैं। कुछ भी नहीं। हमें बहुत से ऐसे व्यक्ति मिल जाते उनका एक तरीका यह भी है कि आत्मसाक्षात्कार हैं। तो इस प्रकार के व्यक्तियों से कैंसा व्यवहार प्राप्त करते ही वे इसका विश्लेषण करने लगते हैं। आप उन्हें कुछ भी दे दें वे इसका विश्लेषण करेंगे। व्यक्त्तियों से जिस प्रकार व्यवहार किया है आप भी इस देश में ये लोग सोचते हैं कि वे किसी भी चीज वैसा ही करें। मेरी बात को ध्यान से सुनें। आप का विश्लेषण कर सकते हैं। मैं नहीं जानती कि किसी व्यक्ति को आत्मसाक्षात्कार देते हैं, ठीक है? उन्हें यह धारणा कहाँ से प्राप्त हुई है। हो सकता उसे हाथों में शीतल चैतन्य लहरियाँ भी महसूस है ये धारणा उन लोगों को वैज्ञानिकों, मनोवैज्ञानिकों होती हैं, फिर भी वह कहने लगता है. तो क्या?" या तथाकथित बुद्धिजीवियों से मिली हो। वे सोचते आप उसे बताएं कि ये लहरियाँ आपको सोचने से हैं कि उन्हें यह कहने का अधिकार है कि इस नहीं मिली. क्या ऐसा हुआ ? और न ही ये कारण से यह ऐसा है" परन्तु अभी तक तो आपकी नुक्ताचीनी से मिली हैं इससे पूर्व कभी आपको ऑँखें भी खुली नहीं हैं, आप इतने नन्हे बच्चे हैं, यह अनुभूति नहीं मिली होगी। ये क्या है? आप किस प्रकार आप इन चीजों का विश्लेषण करने इसकी व्याख्या नहीं कर सकते। आपके साथ ये लगते हैं. "ऐसा व्यों हुआ, बार जब आप विश्लेषण करने लगते हैं, इसके बारे शक्ति से परे है। ये शवित्ति आपके विचारों से अधि में बोलने लगते हैं तो संभी कुछ खो देते हैं। आपने करना यह है कि इसे प्राप्त करना है व्यक्ति यदि निर्विचार हो तो लोग सोचते हैं कि यह आत्मसात करना है और अधिक से अधिक स्वयं आधा पागल है । करना चाहिए। मैंने ऐसे नुक्ताचीनी करने वाले 1 1 वैसा क्यों हुआ ? एक एक ऐसी घटना घटित हुई है जो आपकी विचार कि शक्तिशाली है। यह निर्विचारिता है कोई को इसके सम्मुख उघाड़ना है। सहजयोग के दोष न खोजें, परन्तु यह समझ लें कि आपके अन्दर है तो लोग समझते हैं कि आप पुराने विचारों के दोष है जिन्हें केवल सहजप्रेम द्वारा दूर किया जा हैँ क्योंकि आप सोचते नहीं हैं। ये घटना एक ऐसी अतः जब भी आप निर्विचार चेतना की चात करते शक्ति के माध्यम से हुई है जो आपके विचारों से सकता है। कुछ लोग ऐसे भी है जो मेरे पास आकर कहते कहीं ऊँची है। विचारों द्वारा आपन कान सा कार्य माँ आपने ऐसा क्यों नहीं किया? माँ आपने वैस किया है ? विचारों में फंसकर आपने अपनी नाक वयों नहीं किया? मेरे ख्याल से मैं अपने कार्य को काट ली. ऑँखें फोड़ ली हैं हाथ काट लिए हैं. सभी अच्छी तरह से जानती हैँ, वे मुझे सिखाने का कुछ काट डाला है। अब आपने युद्ध लडना है। प्रयत्न करते हैं, वो मुझे शिक्षा भी देते हैं आपको अतः आत्मसाक्षात्कार देने के बाद आप लोगो से ऐसे करना चाहिए था, आपको वैसे कर लेना चाहिए बताएं कि विचारों द्वारा उन्हें आत्ममाक्षात्कार नहीं था। आप चाहे जैसे कर लें कोई न कोई बिन बात मिला, ये किसी उच्च शक्ति की देन है। इस का चौधरी आगे आ जाएगा क्योंकि व्यक्ति का वरदान देने वाली ऊँची चीज की बात करो। अत: यही स्वभाव है। अतः इस स्वभाव के बदले, अपने यदि आप उच्च स्तर पर रहना चाहते हैं तो सोचने स्प्रिंग थोडे से हटा लें. स्थिर हो जाएं और आप की तुच्छ शक्ति को वश में करना होगा । इस देखेंगे कि ये स्प्रिंग विश्लेषण बाजी के अतिरिक्त प्रकार से लोग समझ पाएंगे। यदि आप यह कहने छेतन्य] लहरी दिसम्बर 2004 नवम्बर 14 का प्रयत्न करेंगे, "कृपा करके आप सोचना बंद कर सोचती हूैँ कि वे इतने तुच्छ नहीं हो सकते कि दीजिए तो लोग कहेंगे, 'क्या सोचना बंद कर दें मैं उनकी स्वतंत्रता पर बन्धन लगा दूँ और वे ? क्या ये सोचने के लायक भी नहीं हैं, क्या ये स्वतंत्र रूप से कार्य न इतने बेकार हैं ? तो ये उन लोगों को रास्ते पर लाने के लिए है जो अहँवादि हैं हर वरक्त सोचते हैं सीधे बहां जाने के लिए मैं आपको रथ दूंगी और परन्तु जब उन्हें शीतल चैतन्य लहरियों महसूस आप यदि स्वर्ग में जाना चाहते हैं तो वहां जाने होती हैं तो वै स्वीकार नहीं करते। इस प्रकार के लिए मैं आपको विमान दूंगी। तो यह आप कर सकें आप पूर्णतः स्वतन्त्र हैं. आप थदि नरक में जांना चाहते हैं तो 1 धीरे-धीरे आप उनकी सहायता करते हैं । लोगों पर निर्भर है, प्रगल्भ बनें और अपने में अब गुरु के विषय में, क्योंकि अब आप गुरु है । आत्मविश्वास लाएं। आपको सभी चक्रों का ज्ञान आपके पास पूरा ज्ञान है, पूरी शक्ति है, सभी कुछ है, आप जानते हैं कि कुण्डलिनी को कैसे है। आपमें यदि कमी है तो आत्मविश्वास की, दूसरे उठाना है आप सभी कुछ जानते हैं अतः यह आप अकर्मण्य हैं। मैं नहीं समझ पाती कि किस उत्तरदायित्व आप अपने ऊपर ले सकते हैं। आप प्रकार यह अकर्मण्यता दूर हो पाएगी। कई बार ये ही वो व्यक्ति हैं जो ये जिम्मेदारी सम्भाल सकता अकर्मण्य लोग भी काम आ जाते हैं ऐसे लोगों को है। मैं आप सबसे नाराज़ भी हो सकती हूँ, बहुत ही है ताकि चे अपने कंरतव दिखा सकें। वो इतने आसान बात है परन्तु, नहीं, मुझे ये कार्य करना है आलसी होते हैं कि किसी भी तरह उन्हें जगाया इसलिए आपसे अत्यन्त प्रेम से बात करनी पड़ती है कभी-कभी आपको डॉटना भी पड़ता है। सरकस में तोप में डालकर धमाके से उड़ाया जाता नहीं जा सकता। परन्तु आप लोग मेरे बच्चे हैं, ईसा-मसीह और श्री गणेश की तरह से मैंने आपका सृजन किया है। उनकी सभी शक्तियां आपको उपलब्ध घुमाफिरा कर आपसे पूछना पड़ता है, कभी आपको तैयार करना पड़ता है, कभी आपके पूजों में तेल डालना पड़ता है, कभी कुछ करना पड़ता है, कभी कुछ करना पड़ता है. कभी आपको गरम करना पड़ता है, कभी आपको ठंडा करना पडता है किसी आता कि किस प्रकार.आपकी आलसी प्रवृत्ति को तरह से मैं यह सब चला रही हूँ। लोगों को किसी ठीक कर! आपने सहज-योग का अभ्यास नहीं तरह से रास्ते पर लाकर उनसे ऐसा बर्ताव करती मैं है, परन्तु ये एक ऐसी अवस्था है जहां बहुत बार असफल हो जाती हूँ, मेरी समझ में नहीं किया, आपको अत्यंत आसानी से, बहुत ही सस्ते हूँ। इसी प्रकार से आपने अन्य लोगों से व्यवहार में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है। आप इसका मूल्य नहीं समझते. इसीलिए इसे गाण बना देते हैं आपको स्वयं को अनुशासित करना होगा। जब तक आप स्वयं को अनुशासित नहीं कर लेते तब तक मैं सभी कुछ आपकी स्वतंत्रता के ऊपर छोड़ देती हूँ क्योंकि मैनें सदा अपने बच्चों की स्वतंत्रता में विश्वास किया है। मैं करना है, नाराज़ नहीं होना। नाराज होना तो बहुत आसान है, इसके बाद कोई समस्या रहेगी ही नहीं। मैं यदि अपसे एक बार नाराज हो जाऊ तो मेरी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी और मुझे शान्ति मिल जाएगी। आपको सभी के प्रति अल्यन्त धैर्यवान होना है अत्यन्त धेर्यवान। आपकी भाषा का ? नवम्बर - दिसम्बर 2004 चैतन्य लहरी 15 सुधरना अत्यन्त आवश्यक है। कृपा करके. " मुझे खेद है यहाँ ऐसे बहुत से शब्द हैं परन्तु मुझे ऐसा गुरुओं को यह जानना होता है कि उनकी शंक्ति लगता है कि ये मूल्यहीन हैं । अतः हम एक परिणाम तक पहुँचते हैं कि हमें आपको चाहिए कि मुझे देखें कि मैं किस प्रकार हृदय से महसूस करना चाहिए कि इस व्यक्ति का बचाना है, इसकी सहायता करनी है परन्तु कभी-कभी आपको डांट भी लगानी पड़ती है क्योकि आप लोग पाएंगे कि अधिकतर नकारात्मक चिवेक वढ़ेगा और सभी कुछ परिवर्तित होगा। कहाँ से आई है। उन्हें आदर्श चरित्र होना है । लोगों से बातचीत करती हूं। उनकी बाधाओं के में जानते हुए भी यह दर्शाती हूँ कि मैं कुछ विषय नहीं जानती। मैं तब तक कुछ नहीं बताती जब तक लोग बहुत पकड़ वाले लोगों के हाथ हिलने न लगें और वे तमाशा बना देते हैं। अपने को बहुत ने दर्शाते हैं। जब यह सभी चीजें समाप्त हो जाएंगी कुछ नहीं बताती। इसी प्रकार से आपको भी ये तो सहजयोग की शुरूआत होगी। परन्तु इस तरह नहीं कहना चाहिए कि आप भूत बाधित हैं क्योंकि के लोग बहुत बड़ा बोझ होते हैं। इसलिए आपने इसका लोगों पर बुरा असर पड़ता है। तीखे उत्तर निर्णय करना है कि कहीं आप माताजी पर बोझ तो देने से कोई लाभ नहीं होता। ये बात आपको अच्छी नहीं हैं। क्या आप यहां पर यह कहने के लिए तरह से समझ लेनी चाहिए कि गुरु बनना बिल्कुल आए हैं कि मैरे पिता बीमार हैं, मेरी माताजी बीमार भिन्न है। आपको अत्यन्त मधुर एवं विनम्र होना हैं या मुझे नौकरी दिला दीजिए या मेरे लिए ये कर होगा नहीं तो सारे सिरफिरे दौड़ जाएंगे और उन्हें ही टेढ़े होते हैं । ऐसे लोग हर संभव हो जाए। व्यक्तिगत रूप से मैं उन्हें वड़ी चीज असामान्य दीजिए या मेरे लिए वो कर दीजिए ये सभी चीजें व्यर्थ हैं किसी काम की नहीं। मेरे विचार से मे सदमा लगेगा। यो चाहे अच्छे न हों फिर भी उन्हें विल्कुल व्यर्थ हैं बिल्कुल अर्थहीन। इनके विषय में कहें कि वो बहुत अच्छे हैं। उनसे अत्यन्त प्रेम से अधिक न सोचें। अब आपको ठीक हो जाना बात करे और उन्हें रास्ते पर लाने के लिए सभी चाहिए। सहजयोग का इस्तेमाल करना चाहिए। कुछ करें। आपको सभी कुछ करना होगा आज लोगों से पूछना चाहिए कि इन व्यर्थ की चीजों के आप सबको शपथ लेनी होगी कि आप गुरु हैं और विषय में तुम क्यों परेशान हो? इनका क्या लाभ आपको अपने गुरुपन की अभिव्यक्ति करनी होगी। है? आपने इसका क्या करना है? जीवन में जब वापस आकर मैं देखना चाहूंगी कि आप सबने ऐसा आप इस प्रकार से बातें करने लगेंगे तो आपका किया है। सभी लोग इस कार्य में जुट जाएं। परमात्मा आपको धन्य करें। पटम पूज्य माताजी श्री निर्मना मेकेबिअन हाल, आस्ट्रेलिया देवी काः प्रवचन 22.03.1981 सभी सत्य साधकों को मेरा प्रणाम। इस महान् देश में आकर मुझे अत्यन्त खुशी हुई है क्योंकि यहां पर है कि इन सारे प्रवचनों तथा साहसिक कार्यों का अनगिनत साधक हैं। इस आधुनिक काल में भी इतने साधकों ने जन्म लिया है. इससे पूर्व कभी भी घटना घटित नहीं हो जाती। आपमें भी यह घटित इतनी संख्या में साधकों नें जन्म नहीं लिया। होनी चाहिए क्योंकि यही वास्तवीकरण है, यही उदाहरण के रूप में ईसा- मसीह के समय में उन्हें बनना है (Becoming ) जो कि महत्वपूर्ण है। लोगों की भीड़ एकत्र करनी पड़ती थी, परन्तु उनमें इसके विषय में पढ़ने का कोइ अधिक अर्थ नहीं है। जिज्ञासा का पूर्ण अभाव था। वे तो बस ईसा की बातें सुना करते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि है,पैगम्बर दना सकती है। विलियम ब्लैक ने स्पष्ट लेते। यह तो सभी के लिए है। मुख्य बात तो यह तब तक कोई लाभ नहीं है जब तक जागृति की यह जीवंत शक्ति ही हमें उच्चव्यक्तित्व बना सकती इसमें कुछ नयापन है। आज वह समय आ गया है जब विश्व भर में बहुत से साधकों ने जन्म लिया है शब्दों में कहा है कि परमात्मा के बन्दे पैगम्बर बन जाएंगे और वो दिन आएगा जब ये पैगम्बर अन्य और उनमें जिज्ञासा है। ये वास्तविकता है जिसे लोगों को भी पैगम्बर बनाने में सशक्त हो जाएंगे। व्यक्ति को स्वीकार करना है. इसमें कोई पाखंड आज वो दिन आ गया है। विलियम व्लैक सहजयोग नहीं है। कुछ लोगों को इस बात की समझ नहीं की कार्य शैली को 100 बर्ष पूर्व देख पाए और आज हैं. कि जिज्ञासा विद्यमान है और जो भी कार्य वो आप लोग इस वास्तवीकरण को देख रहे हैं । कर रहे हैं-गलत या ठीक-वास्तव में वे अपने आपके सम्मुख आज शुरीर तन्त्र का चार्ट लगाया हुआ है। ये अत्यन्त जटिल चीज है। ये लोग इसे आज सबसे पहले मैं आपको सहजयोग की आसान बनाने की कोशिश कर रहे हैं फिर भी यह अन्दर खोज रहे हैं। रूपरेखा बताऊंगी जिसका अर्थ है: परमात्मा से अत्यन्त जटिल प्रतीत होता है। उदाहरण के रूप में योग पराप्त करने की हमारे अन्दर स्वतः होने वाली आप कमरे में बैठे हुए हैं परन्तु वहाँ पर बत्ती नहीं घटना। इसके विषय में बातें करना बहुत आसान है, तो आपको केवल इतना बताना पड़ेगा कि बटन है कोई भी इसकी बात कर सकता है। पहली बार दबाएं और सारी बत्तियाँ जल जाएंगी। परन्तु इस जब मैं अमेरिका में गई तो लोगों ने कहा कि सारी घटना के पीछे बहुत बड़ी तकनीक है और श्रीमाताजी आप अपने प्रवचनों को अवश्य पेटेंट बहुत बड़ी संस्था इस कार्य को कर रही है से करवा लें। मैं मुरकरा दी- और कहा, क्या बात है? केवल बटन दबाना मात्र नहीं है अव गेटी स्थिति कहने लगे कि लोग आपके शब्दों आदि को अपना उल्लू सीधा करने के लिए प्रयोग करेंगे, हो सकता परन्तु लोग इसका पूरा इतिहारा और सिर दर्द है कि आपको हानि पहुँचाएं। मैने कहा नहीं, सब ठीक है। उन्हें इसके बारे में बोलने दें क्योंकि ये तो इसका वर्णन करना पड़ता है । यहाँ घटित होना ही है, लोगों ने इसके विषय में जानना ही है। इसमें कानूनी एकाधिकार (पेटेंट) लेने की अन्दर का सूक्ष्म अस्तित्व । यह मानव है जो चेतना क्या जरूरत है ? सूर्य की रोशनी और रितारों के की इस अवस्था तक विकसित हो चुका है और उसे सौन्दर्य के लिए तो हम कानूनी एकाधिकार नहीं यह है कि मैं केवल बटन दबा सकती हॅँ, टीक है. जानना चाहते हैं। इसलिए मुझे आपके सम्पुख (त्रिकोणाकार अस्थि) देखें। यह सूक्ष्म शक्ति है-हमारे यह गतिशील चेतना (Dvnamic Awaren3ss )बनना दिसम्बर 2004 चैतन्य लहरी नवम्बर 17 है। आप यदि कोई यन्त्र बनाने की कोशिश करते बात समझ लेनी चाहिए कि परमेश्वरी प्रेम को हम हैं, उदाहरण के रूप में ये माइक्रोफोन बनाने का पैसे से नहीं खरीद सकते। पैसे की बात करना भी प्रयत्न करते हैं तो लोग आपसे पूछेंगे जब तक इसको उर्जा के स्रोत से जोड़ा न जाए तो इसका नहीं समझते। ये तो आपका मिथक है मानव ने इसे इसका अपमान करना होगा। परमात्मा पैसे को क्या लाभ है ? इसी प्रकार से आपका भी सुन्दर मानव बनने के लिए सृजन किया गया है और आपको शक्ति के स्रोत से है अन्यथा आप बनाया है। परमात्मा नहीं जानते कि पैसा क्या है। इसके लिए आप पैसा नहीं दे सकते और न ही इसे पाने के लिए आप कोई क्रिया कर सकते हैं।फल जुड़ना अपना पूर्ण मूल्य (पूर्णत्व) नहीं प्राप्त कर सकते। बनने के लिए फूल न तो कोई प्रयत्न करता है और कुण्डलिनी के विषय में बहुत से लोगों ने न ही धन खर्च करता है। बन्दर से मानव बनने के बताया है। कहने का अभिप्राय यह है कि उन्होंने लिए आपने कितना पैसा खर्च किया था ? इसके एक पुस्तक के बाद दूसरी पुस्तक कुण्डलिनी के लिए आपने कितना प्रयत्न किया था। यह सब स्वतः घटित हुआ जैसे अकुरण तन्तु(Primule )के लगा कि कुण्डलिनी के बारे में वे कुछ भी नहीं माध्यम से बीज अंकुरित होता है और फिर वही जानते,किस प्रकार वे इतनी बड़ी बड़ी किताबें अंकुरण तन्तु जड़ बनता है और कोंपल बनता है तथा जड़ की नोक पर एक छोटा सा कोशाणु हुआ ? कुण्डलिनी अत्यन्त सहज चीज है। हमारे स्वतः खुदाई का सारा कार्य कार्यान्वित करता है। अन्दर यह शुद्ध इच्छा है कि हमें आत्मा से एकरूप केवल जीवन्त चीजें ही स्वतः कार्यशील हो सकती होना है। यही शुद्ध इच्छा है। ताकि आत्मा के माध हैं । अंकुरण से निकली कोपल विकसित होती हैं. यम से हम परमात्मा को जान सकें। यह शुद्ध पत्तों का रूप धारण करती हैं उसमें फूल निकलते इच्छा,शुद्ध इच्छा की शक्ति कुण्डलिनी रूप में हैं और फल बनते हैं। इसके सारे अस्तित्व का नक्शा इसी बीज सूक्ष्म रूप से निहित होता है । अभिव्यक्ति हो चुकी है परन्तु कुण्डलिनी अब भी इसी प्रकार हमारे अन्दर भी अंकुरण तन्तु निहित सुप्त अवस्था में है। पूरी तरह से ये यहाँ है। जीव है, अंकुरित करने वाली शक्ति जिसे कुण्डलिनी को मानव रूप में सृजन करने के बाद भी यह सुप्त कहते हैं और ये शक्ति जो कि हमारे अन्दर साढ़े है क्योंकि इच्छा की इस शक्ति को अपनी अभिव्यक्ति तीन कुण्डलों में विद्यमान है, इसका बहुत बड़ा करने का अवसर की प्राप्त नहीं हुआ। इस इच्छा गणित है और मेरे विचार से इसकी बातचीत करना शक्ति के विषय में लोग सोचते हैं कि इसे उत्तेजित उचित न होगा, इसके विषय में हम फिर कभी बात कुण्डलिनी करेगें । कुण्डलिनी की इस स्थिति को समझना विषय में लिखी है। और ये जानकर मुझे सदमा लिख सकते हैं ? कहाँ से उन्हें यह ज्ञान प्राप्त हमारे अन्दर विद्यामान है । पूर्ण अस्तित्व की किया जा सकता है। कुछ लोगों ने तो जागृति के लिए कुण्डलिनी योग के उद्यम आरम्भ कर दिए हैं। यह व्यापार की चीज नहीं है.यह जीवन्त प्रक्रिया है इसे आप व्यापार में परिवर्तित आवश्यक है। यह सैक्रम( Secrum) नामक त्रिकोणाकार अस्थि में स्थापित की गई है सैक्रम शब्द यूनानी भाषा का हैं। यूनानी लोग ये जानते थे कि यह पवित्र अस्थि है इसलिए उन्होंने इसे सैक्रम नाम दिया। कुछ यूनानी लोग जब आस्ट्रेलिया नहीं कर सकते। हमारे अन्दर मस्तिष्क है,हम मानब हैं। हमें यह दिसम्बर 2004 चैतन्य लहरी नवम्बर 18 आए तो उन्होंने आपकी नदी का चैंतन्य अवश्य बहुत बड़ा भ्रम है, आधुनिक काल के सबसे बड़े भ्रमों किया होगा इसलिए उन्होंने इसे परामाता में से एक आधुनिक काल अपनी भ्रांतियों के लिए महसूस (Parramatta) नाम दिया। क्या आपने कभी प्रसिद्ध है । भ्रम की स्थिति में ही हमें सत्य को सोचा कि इसका क्या अर्थ है ? इसका अर्थ है खोजना है, भ्रम के बिना जिज्ञासा नहीं हो सकती। आदिशक्ति Holy Ghost)। परा अर्थात परे, सर्वोच्च और ये भ्रम एक ऐसी स्थिति में पहुँच चुका है कि सुप्रीम, माता( Matta) अर्थात माँ । कुछ साक्षात्कारी हमें कुण्डलिनी के विषय में भी भ्रम हैं । ऐसे भी लोग लोगों ने अवश्य इस नदी की चैतन्य लहरियाँ हैं जिन्होंनें हमारे भ्रम को बढ़ाने के लिए घोर महसूस की होगी और इसे ये नाम दिया होगा। परिश्रम किया है । यह महत्वपूर्ण बात है कि हमारे इसी प्रकार से उन्होंने यह भी महसूस किया होगा अन्तःस्थित प्रथम केन्द्र अबोधिता का चक्र है.इस कि यह त्रिकोणाकार अस्थि कुछ विशेष है। अन्तिम बात को समझा जाना अत्यन्त आवश्यक है, तथा संस्कार के समय विद्युत दबाब के प्रभाव से जब कुण्डलिनी का निवास त्रिकोणाकार अस्थि पूरा शरीर जल जाता है तो अन्त में यह अस्थि मूलाधार में है। अतः इस शक्ति का चक्र कुण्डलिनी जलती है। यह शक्ति इसी अस्थि में है। इस बात के नीचे स्थित है । ये अत्यन्त महत्वपूर्ण बात है को आप अपनी आँखों से देख सकते हैं। आज जिसे आज मैं आपको बता रही हूँ। हमारे अन्दर विश्वविद्यालय में बहुत से विद्यार्थियों ने इसे अन्तिम चक्र, सातवां चक्र श्रोणीय(Pevic Plexus) देखा,त्रिकोणाकार अस्थि में कुण्डलिनी की धड़कन चक्र की अभिव्यक्ति करता है। हमारे अन्दर यह को। क्या आपमें से कोई उछलकूद करके चीख सूक्ष्म केन्द्र है जो पावन अस्थि (Sacrum Bone) चिल्लाकर, मन्त्रोचारण से या पैसे खर्चकर यह कार्य कर सकता है ? जो भी कार्य आप करते हैं ग्रन्थि (Prostrate Gland) की देखभाल करता है, वह परमेश्वरी कार्य नहीं है। परमात्मा को कुछ यह अबोधिता का चक्र है,अबोधिता प्रथम गुण है ऐसा होना पड़ता है जो मानवीय प्रयत्नों से परे जिसका सृजन परमात्मा ने इस पृथ्वी पर किया। के नीचे स्थित है । ये सूक्ष्म केन्द्र है, ये हमारी पौरुष यह पावनता है, परमात्मा का सौन्दर्य है प्रेम है। ये वो सभी कुछ कर सकते परन्तु एक फूल से इस पावनता का निवास हमारे अन्दर कुण्डलिनी के नीचे है। इसी हाल में, इसी सभागार में अपने अगले प्रवचन में मैं विस्तृत रूप से इसके विषय में होना, परन्तु हम इस परिवर्तन को स्वीकार मात्र बताऊंगी कि हमारे जीवन के अन्य पक्षों की कर लेते हैं। इसी प्रकार से हमनें अपनी मानवीय अभिव्यक्ति ये किस प्रकार करता है। परन्तु यह चेतना को भी अधिकार समझ लिया है । ये अच्छी इतना महत्वपूर्ण क्यों है कि इसको कुण्डलिनी के बात है अन्यथा हम इसके विषय में सोचने लगते नीचे स्थापित किया गया है ? क्योंकि हमारी विसर्जन क्रियाएं भी श्रोणीय चक्र द्वारा होती हैं बांध लेते। यह प्रथम चक्र (मूलाधार चक्र) के जिसकी अभिव्यक्ति मूलाधार चक्र नामक केन्द्र से होती है। इसका कुण्डलिनी की जागृति से कोई सम्बन्ध नहीं है। इस तथ्य को जान लेना अत्यन्त हो। आप छलांग लगा सकते हैं.चिल्ला सकते हैं फल नहीं बना सकते। यह चमत्कार प्रतिदिन देखते हैं. खरबों फूलों को फल रूप में परिवर्तित और अपने सिर पर तनाव की एक अन्य गठरी ऊपर( मूलाधार) में स्थित है । पहला चक्र मूलाधार कहलाता है। यह भी चैतन्य लहरी दिसम्बर, 2004 नवम्बर 19 लेनी वाली है कि यौन क्रियाओं का कुण्डलिनी जागृति में कोई सरोकार नहीं। वो आपकी पावन माँ है और व्यक्तिगत रूप से आपके साथ है। आवश्यक है कि यौन क्रिया का कुण्डलिनी जागृति से कोई सम्बन्ध नहीं है। यौन अभिव्यक्ति यदि आपका योग परमात्मा से करा पाती तो पशुओं का विकास मानव की अपेक्षा कहीं तेजी से होता। हमें सिखाने के लिए पशुओं के पास कुछ भी अपनी धाराणाओं को भुला दें. अपने संस्कारों नहीं (ldentifications) को भुला दें। कृपया यह समझने का प्रयत्न करे। वो आपकी माँ है जो युगों से चाहते हैं वे पशु बन जाएंगे। क्या अब हमनें मेंढक आपको आपका वास्तविक जन्म देने की प्रतीक्षा कर रही हैं आपके अन्दर आदिशक्ति(Holy Ghost) एक ऐसा व्यक्तित्व जिसका पूर्ण नियन्त्रण हो, जो है। उन्होंने आपको आत्मसाक्षात्कार देना है और हर चीज का स्वामी हो। या हमें अपनी समस्याओं इस कार्य के लिए वो प्रतिक्षा किए चली जा रही का दास बनना है ? नष्ट करने वाली चीजों के हैं। कुछ लोगों में मैने देखा है कि उनकी कुण्डलिनी जख्मी सर्पणी की तरह इधर उधर सिर पटक रही है। हम मानव हैं। जो लोग पशुओं से सीखना और केंचुए बनना हैं या उच्च व्यक्तत्व मानव ? सम्मुख यदि हम समर्पण कर देंगे तो किस प्रकार अपने स्वामी बन सकते हैं ? अतः ये बात व्यक्ति होती है और अपना शरीर तोड़ती रहती है। मैने कुछ लोग ऐसे देखे हैं जिनकी कुण्डलिनी में छेद कुण्डलिनी से कोई सरोकार नहीं। ऐसा हो ही हैं। मूर्खतापूर्ण विचारों तथा हमारे से धन ऐंठने वाले नहीं सकता। हमारे सम्मुख ईसा-मसीह का और हमें बेवकूफ बनाने वाले लोगों की बातें सुन उदाहरण है, मुझे आश्चर्य होता है कि ईसा-मसीह कितना नुकसान किया है । कुछ विनाशकारी शक्तियाँ भी पृथ्वी पर अवतरित धारणा को स्वीकार कर सकते हैं कि विकृत यौन हो गई हैं। थोड़ी नहीं ऐसी बहुत सी शक्तियाँ और क्रियाओं से व्यक्ति का योग परमात्मा से हो उनकी गति बहुत तेज है। किसी चीज को नष्ट करना बहुत ही आसान होता है। परन्तु किसी क्या हमारे अन्दर जरा सा भी आत्मसम्मान नहीं चीज की रचना करना, विशेष रूप से किसी जीवन्त चीज की,बहुत ही कठिन कार्य है हम समझते हैं कहीं ऊँचे हैं ? लोगों को नष्ट करने के ये सर्वोत्तम कि यह कार्य बहुत आसान है अतः एकदम से सम्मोहित हो जाते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बताती हूँ कि आप लोग साधक हैं. पूरी तरह से कहते हैं कि किसी के चेले बन जाने मात्र से ही आपकी रक्षा हो जाएगी। किस प्रकार से आपको को स्पष्ट समझ लेनी चाहिए कि यौन क्रिया का सुनकर हमने इसका को जानने वाले लोग किस प्रकार ऐसी बेतुरकी जाएगा। अब क्या हम यौन बिन्दू बनने वाले हैं ? बचा ताकि हम समझ सकें कि यौन बिन्दू से हम मार्ग हैं, उन्हें प्रलोभित करने का परन्तु मैं आपको गुरु साधक। जब तक आप अपनी आत्मा को प्राप्त नहीं कर लेते और कुछ नहीं सुनें। इन सारी मूर्खतापूर्ण चीज़ों से आपको सन्तोष नहीं होगा। मैं जानती हूैँ आप वापस आएंगे,एक दिन आप सब वापिस आएंगे। परन्तु तब तक आप इतने नष्ट हो कितनी शक्तियाँ प्राप्त हुई है, उन लोगों से जो चुके होंगे कि हो सकता है कि मैं भी आपकी कहते हैं कि आपको यौन स्वतन्त्रता होनी बचाया जा सकता है ? आपको स्वंय ही उन्नत होना होगा आपको बनना होगा। यह जानना आपके लिए आवश्यक है कि उन लोगों से आपको चाहिए । ये सब तो पशुओं के पास भी है। यौन स्वतन्त्रता सहायता न कर पाऊ। ये बात स्पष्ट रूप से समझ दिसम्बर 2004। चैतन्य लहरी 20 नवम्बर में क्या विशेष है ? मेरी समझ में नहीं आता! कहने जानकर हम अचम्भित रह जाते हैं । भारत के गांव से अभिप्राय यह है कि भारत में बिना किसी गुरु के में जो लोग सामान्य हैं उनसे यदि आप इस प्रकार पास गए लोग कितने बच्चे पैदा कर रहे हैं। इसके विपरीत ये गुरु आपको नपुंसक बना देते हैं, यौन व्यक्ति को क्या कष्ट है। इसे तो किसी पागलखाने क्रियाएं आपको सिखाते हैं ताकि आप यह महसूस में जाना चाहिए । करें कि यौन क्रिया ही प्राप्त की जाने वाली बहुत बड़ी उपलब्धि है। ये कार्य बहुत साधारण है। प्राप्त किया निसन्देह नपुंसक लोगों के लिए यह बहुत बड़ी क्या प्राप्त करना है? आप यदि इस चित्र में देखें उपलब्धि है.परन्तु सामान्य लोगों के लिए यह इतना (आप मुझे स्वीकृत रूप में भी नहीं ले सकते) जैसे सरल है जितना अपने स्नानगृह में जाना। इतनी आज दूरदर्शन वालो ने मुझसे एक प्रश्न किया कि साधारण चीजों के लिए इतना बड़ा हंगामा करने यदि हम सन्देह करेगे तो क्या आपको बुरा की क्या आवश्यक है ? ये चीज़ बहुत आगे बढ़ लगेगा? मैने कहा नहीं। इसके विपरीत मैं तो बहुत चुकी है। ये चीजें सूझाती हैं कि यौन क्रियाओं से प्रसन्न हैं। आपका सन्देह यह दर्शाता है कि आपने आप कुण्डलिनी को उठा सकते हैं। ये बात ऐसी है मुझसे प्रश्न पूछने हैं।परन्तु जब झूठमूठ के गुरुओं जैसे बहुत ही अभद्र तरीके से मों बच्चे का की बात आती है तो आप आँखें बन्द करके अनुसरण सम्बन्ध जोड़ा जाना। लोग कह सकते हैं कि करते हैं। उनसे इतने सम्मोहित हो जाते हैं कि यह की बाते करें तो वो एकदम से कहेंगे कि इस अब हमें देखना है कि मानव रूप में हमने क्या है? मानव रूप में हम क्या है और हमें 1 फायड ने ऐसा कहा था। मैं तो कहूँंगी कि फायड भी नहीं सोचते कि क्या कर रहे हैं। आप यह भी अधपका व्यक्ति था, पूरी तरह अधपका जिसमें नहीं देखते कि अन्य लोगों ने क्या उपलब्धि प्राप्त विवेक का पूर्ण अभाव था। हो सकता है उसे भी की है। कुछ लोगों को सड़क पर उछलते हुए कुछ ऐसी समस्याएं हों। आरम्भ में उसका व्यक्तित्व देखते हैं और उन्हीं के साथ जा खडे होते हैं ये भी असामान्य था। उसके अतिरिक्त ये सभी भी नहीं पता लगाना चाहते कि उन्होंने कौन सी मनोवैज्ञानिक हमेशा असामान्य लोगों से ही मिलते शक्तियां प्राप्त की हैं, क्या वे हमसे अच्छी स्थिति में हैं। किसी सामान्य व्यक्ति से कभी वो मिलते हैं ? हैं या नहीं,क्या उनकी तकलीफें ठीक हो गई हैं ? कोई भी सामान्य व्यक्ति मनोवैज्ञानिक के पास क्यों आप यदि इन चीजों का पता लगाने का प्रयत्न जाएगा? हमेशा पागल लोग ही उनके पास जाते करेगें तो जान जाएंगे कि वे तो भगौड़ी प्रवृत्ति के हैं और ये मनोवैज्ञानिक उनकी बाधाओं ले कर हैं। मैने देखा है कि कई बार तो उन्हें सब्जियों से स्वयं भी पगला जाते हैं। फिर वे आपको पागलपन भी डर लगता है।उन्हें यदि लहसुन दिखाया जाए की बातें ही सिखाने लगते हैं । तो उससे भी डर जाते हैं। इस प्रकार के कुछ फायड इतना अधपका था कि वह जीवन का गुरुओं में भी यह समस्या है। यो लोगों से कहते हैं केवल एक ही पक्ष देख पाया, वो नहीं जानता था कि आपको लहसुन नहीं खाना क्योंकि उन्हें यदि कि जीवन के और भी कई पक्ष हैं उसके लिए दिखा दिया जाए तो वे उछलने लगते हैं। यौन इतना महत्वपूर्ण हो गया और वह केवल यह सब क्या है ? क्या हम लहसुन से डरने लगते हैं ? क्या हम इतने बेकार मनुष्य हैं कि हम लहसुन इसका विकृत पक्ष ही देख पाया,जिसके बारे में दिसम्बर 2004 चैतन्य लहरी नवम्बर 21 इन छोटी मोटी चीजों से ही डरते रहें ? हमारे शरीर की बाईं तरफ इच्छा शक्ति है जो कौन से स्थान पर हैं ? इस बात का क्या प्रमाण दाई ओर से आती है। यह मन (Psyche) है है कि उनका निवास हमारे अन्दर किसी चक्र जिसके विषय में फायड ने बताया है। वो अन्धा विशेष पर है? मध्य में एक अन्य शक्ति विद्यमान है व्यक्ति था जो सभी को विनाश की ओर ले जा रहा जिसके कारण हम मानव बने। यह विकास-शक्ति उन्होंने कृष्ण के विषय में बोला,कृष्ण हमारे अन्दर (Evolutionary Power), पोषक- शक्ति शरीर का बायाँ हिस्सा तो हमारा भूतकाल है, (Sustenance Power), धर्म - शक्ति (Religious) है । यही हमारा है वो धर्म नहीं जो आम लोग समझते हैं। कार्बन होती है,स्वर्ण था। हमारे संस्कार( Conditioning) अवचेतन मन है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि की चार संयोजकताएं(Valencies ) हमारे अन्दर एक अवचेतन मन भी है। परन्तु केवल में दाग-रहित रहने का गुण है, इसी प्रकार मानव यही नहीं है। इसके अतिरिक्त भी बहुत सी चीजें के अन्दर भी दस पोषक शक्तियाँ है और यह हैं। इस अवचेतनमन का अपने से परे भी एक क्षेत्र शक्ति जो पोषण करती है जो यह कहती हैं कि अवचे तन यह मानव है, यह मानव का ही गुण है तो हमारे (Collective Subconcious) है । यदि व्यक्ति इसमें अन्दर तीन शक्तियाँ हैं, सहजयोग की भाषा में इन्हें प्रवेश कर जाए तो यह अत्यन्त भयानक क्षेत्र है। सहज बनाने के लिए, इनका वर्णन हम भिन्न नामों व्यक्ति कैंसर जैसी बीमारी की चपेट में आ सकता से करते हैं। ये तीनों शक्तियाँ हमारे अन्दर विद्यमान है। आप जानते हैं कि सहजयोग में हमने निश्चित हैं परन्तु मध्य की शक्ति बीच में थोड़ी सी टूटी रूप से कैंसर ठीक किया है। मैं हैरान थी कि जो हुई है, इसके बीच में खाली स्थान है। मध्य की यह लोग कैंसर पीड़ित थे और जो मेरे पास आए वो शक्ति जिससे हमने उत्थान को प्राप्त करना है, सब ठीक हो गए। उनमें से अधिकतर में दाई तरफ अभी तक स्रोत से जुड़ नहीं पाई। यह तन्तु की अपेक्षा बाईं तरफ की पकड़ बहुत अधिक थी। (Cord )कुण्डलिनी हैं। हमारे हृदय में आत्मा का एक बार आत्मसाक्षात्कार मिलने के पश्चात् आप निवास है। आत्मा हमारे हृदय में निवास करती है. स्वयं को पहचान सकते हैं और आत्मसाक्षात्कारी ये सर्वशक्तिमान परमात्मा का प्रतिबिम्ब है। बिना जो सामू हिक है म आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किए, बिना इससे जुड़े, सभी दाई ओर को एक अन्य शक्ति है जो 'क्रिया धर्म, आप द्वारा किए गए सभी कर्म अर्थहीन हैं। ये शक्ति' कहलाती है. आपको किसी चीज़ की इच्छा तो ऐसे हैं जैसे बिना तार जोड़े किसी को टेलीफोन है तो उसके लिए आपको कार्य करना होगा यह करना। इस प्रकार तो आप इसे खराब करते हैं। क्रिया शक्ति है,भविष्य है. भविष्य से आगे अतिचेतन अतः आपको एकतार होना पड़ेगा। आज इन लोगों व्यक्ति बन जाते हैं। क्षेत्र (Supra conscious Area) है या सामूहिक ने मुझसे एक अन्य दिलचस्प सवाल पूछा , यह हठ अतिचेतन(Collective Supra Conscious)। लोगों - योग के विषय में था मैने कहा कोई भी हठयोग नें इसकी बातें तो की हैं परन्तु यह नहीं बताया कि नहीं कर रहा, बिना किसी विवेक के वे कोई न कोई हमारे अन्दर ये कहाँ हैं। उन्होंने ईसा-मसीह की व्यायाम कर रहे हैं। उनका चित्त क्योंकि शरीर पर बातें की। हमारे अन्दर ईसा-मसीह कहाँ हैं ? है इसलिए वो ये व्यायाम बिना सोचे समझे कर रहे चैलन्य लहरी दिसम्बर 2004 नवम्बर हैं। पातांजलि का हठ-योग तो ईश्वरीय प्रणिधान दिया! मैने कहा क्या ? डिम्बवाही नली! ये मंत्र प्राप्त करना है अर्थात् सर्वप्रथम परमात्मा को अपने कैसे हो सकते है? फिर भी हम इसे स्वीकार करते अन्दर स्थापित करना है। सर्वप्रथम आपको उससे हैं। इसे स्वीकार करते हैं और इसके लिए पैसे भी जुड़ना है। कुण्डलिनी को उठने दें और फिर जाने देते हैं। लोगों ने तो तीन हजार पाउंड दिए और की आपके कौन से चक्र पकड़ रहे हैं और आपने उन्हें एक हफते का खाना दिया गया जिसमें उबले कीन से व्यायाम करने हैं। कौन से मंत्र आपके हुए आलूओं का सूप था, तीन हजार पाउंड के लिए आवश्यक हैं। हमारे देश में बहुत सी महान बदले। पाँच दिनों तक उन्हें केवल उबले हुए संस्थाए हैं और सभी स्थानों पर ये लोग मंत्र देते आलूओं का जल दिया गया, एक दिन आलू का हैं। अब इसके विषय में सोचें। छः चक्र है जो मूल छिलका खिलाया गया और एक दिन आलू दिए केन्द्र है। इनके अतिरिक्त भी जिनकी संख्या में आपको बताना नहीं चोहती,अन्यथा ताकि उनके मुस्तिष्क काम करना बंद कर दे और आप हैरान होंगे परन्तु छः मुख्य केन्द् है और दी बाएं, दाएं पर है-सूर्य और चन्द्र तथा सबसे नीचे सातवां चक्र है मूलाधार) । तो आप देख सकते हैं कि 9 चक्र हैं जिन्हें हमने मूलतः समझना है और इन 9 चक्रों पर 9 देवी -देवता भी हैं। तो किसी को आप एक ही मंत्र कैसे दे सकते हैं ? मान लो आपको छः दरवाजे अन्दर धन खर्चने की समर्थ है, तुम्हें धन देना पार करने हैं और आपके पास केवल एक के लिए चाहिए। देने के लिए तुम्हारे पास कितना धन हैं ? अनुमति पत्र ( Pass) है, केवल पाँचवे दरवाजे के ये सब निकृष्टतम खून चूसने वाले कीड़े हैं। खून लिए और अभी आप पहले दरवाजे पर है,तो आप पाँचवे दरवाजे तक पहुँचेंगे कैसे ? इस बात की दिन आएगा जब आप इन्हें पहचान लेंगे लेकिन तब समझ इन लोगों को नहीं है। इन लोगों ने ऐसे-ऐसे तक गलियों में आपको मिर्गी के दौरे पड़ रहे होंगे भयानक मंत्र दिए हैं कि मुझे खेद हुआ। भारतीयों और आप सभी प्रकार की भयानक बीमारियों के को यदि यह मंत्र बताएंगे तो वे दंग रह जाएंगे। शिकार हो चुके होंगे तब आप मेरे पास आएंगे। बहुत से चक्र हैं गये। ये सब उन्हें दुर्बल करने के लिए किया गया 1 उन्हें आसानी से सम्मोहित किया जा सके इन भयानक लोगों से सावधान रहें। वो जानते हैं कि आप साधक हैं तथा निष्ठापूर्वक खोज रहे हैं बो ये ं भी जानते हैं कि आपके पास धन है और ये कह करके वे आपके अहॅ को बढ़ावा देते हैं कि तुम्हारे चूसने वाले कीड़े हैं ये. इस बात को याद रखें। एक इन मंत्रों में से एक है ठिंगा (अंगूठा)। क्या आप इस दशा में बहुत से लोग मेरे पास आने भी लगे कल्पना कर सकते हैं कि यह भी एक मंत्र हो हैं। मैं आपको चेतावनी देती हूँ कि सावधान हो सकता है ? कितनी हास्यास्पद चीज है ऐसा जाएं और समझ लें कि ये लोग कोई ज्ञान-बान कहना । इंगा', 'पिंगा' 'ठिंगा जैसे व्यर्थ के शब्द नहीं देते, वे तो आपको सम्मोहित कर रहे हैं। सिर्फ मंत्र नहीं है, यह तो मूर्खता है। लुटेरों के दल कार्यरत हैं। वो आते हैं और आपके कान में कहते परमात्मा के साम्राज्य को भी नष्ट करने के लिए हैं कि आपने ये मंत्र किसी को नहीं बताना है ये कटिबद्ध हैं। वे आप सबको नष्ट करने के लिए सुन सुन कर मैं हैरान थी कि एक कुगुरु ने तो कमर कसे हुए हैं क्योंकि वे शैतान हैं और शैतान डिम्बवाही पैसे ऐठने के लिए ही वे ऐसे नहीं कर रहे, वे नली(Fallopian Tube ) का भी मंत्र का साम्राज्य स्थापित करना चाहते हैं। इन सब 22 दिसम्बर, 2004 चैतन्य लहरी नवम्बर 23 । कि आपको सत्य का ज्ञान हो। सत्य यही है कि चीजों को अपना लेना हमारे लिए बहुत आसान है जैसा मैने आपको बताया पतन की स्थिति में चले जब आपको आत्मसाक्षात्कार होता है तो आपको जाना बहुत आसान है लेकिन उत्थान को प्राप्त अपने हाथों में शीतल लहरियाँ महसूस होनी चाहिएं। करना बहुत कठिन। उत्थान प्राप्त करना भी इतना आपने स्वयं अपना आंकलन करना हैं। मैं आपको कठिन नहीं है। नैसर्गिकता बहुत सहज हैं. अपने नहीं बताऊंगी आप ही ने देखना है, आप ही ने कार्य की यदि आपको समझ हो तो इसे कर सकते महसूस करना है और फिर आप ही ने उन्नत होना हैं। कोई सुन्दर सा उद्यान यदि है तो आप आसानी हैं और सभी चीजों का ज्ञान प्राप्त करना है, से पता लगा सकते हैं कि इसका कोई माली भी परमेश्वरी विज्ञान के सभी रहस्यों को समझना है। अवश्य होगा जो बाग के कार्य कर रहा है। किसी तब आप गुरु बन जाते हैं, अपने स्वामी। आप को यदि कार्य की समझ आ जाए तो वह इस कार्य आत्मा हैं, आपको यह स्थिति प्राप्त होनी ही चाहिए। जो आपको दिया जा रहा है वो आपका अपना है। को कर सकता है। अब ये मध्य मार्ग वह मार्ग है जिससे व्यक्ति मैने इसमें कुछ नहीं करना, मैं तो मात्र उत्प्रेरक ने उत्थान को पाना है। कुण्डलिनी अतिसूक्ष्म ब्रह्म (Catalyst) हू । मुझे कहना चाहिए कि ये कार्य नाड़ी के बीच में से उठती है। आरम्भ में केवल एक आप स्वयं कर सकते हैं, एक बार आत्मसाक्षात्कार बाल जितना पतला तन्तु उठता है और छेदन प्राप्त करने के पश्चात आप आत्मक्षातकार दे सकते करता है। निःसन्देह कुछ लोगों में यह (कुण्डलिनी) तो इन लोगों बड़े जोरों से उठती है और तब यह ब्रह्मरंध्र ( तालु को गुरुओं ने निचोड़ा हुआ था और वो बहुत दुखी अस्थि) का छेदन करती है। यह व्यक्ति का सच्चा बपतिस्म होता है। आज पहली बार लोगों ने अपने सिर से बहती हुई शीतल चैतन्य लहरियों को मिला, क्या हम आपसे मिलने आ सकते हैं ?' मैं हैं। वारेन और टैरेन्स मेरे पास आए थे। भारत जाने से पूर्व उसने मुझे अस्ट्रेलिया से फोन किया श्रीमाताजी, हमें आपका टेलीफोन 1 महसूस किया। क्या ये अनुभव आप धन देकर या जानती थी वो लोग साधक हैं। तो पहले मैने उनको उछल-कूद करके प्राप्त कर सकते हैं ? उन्हें हाथों पकड़ा। आप जानते हैं कि मैं शहरों में कार्य नहीं पर भी चैतन्य लहरियां महसूस हुई। बाइबल में भी स्पष्ट लिखा गया है कि यह शीतल चैतन्य लहरियाँ लोग आसानी से आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेते हैं। हैं, शीतल चैतन्य लहरियाँ ही आदिशक्ति का चिन्ह उस दिन हम लोग कडु नामक गाँव में थे, वहां पर हैं। आपको अपने हाथों में और सिर पर शीतल छः हजार लोगों को आत्मसाक्षात्कार मिला, ये बात लहरियाँ महसूस है आप लोग अन्य पुस्तकों को नहीं पढ़ते। आदि शंकराचार्य जैसी कुछ पुस्तकें बहुत ही अच्छी हैं। लोग तो उस व्यक्ति का नाम भी नहीं लेना चाहते गाँव में कार्य करती हूँ। बेचारे सहज-योगियों को जिसने स्पष्ट बताया है कि यह शीतल लहरियाँ हैं गाँवों में जाना पड़ा जहां पर न तो कायदे के तथा चैतन्य को अपने हाथों पर शीतल लहरियों के गुसलखाने हैं, नहाने के लिए. तथा अन्य कार्यों के रूप में महसूस किया जाना चाहिए। वो नहीं चाहते लिए उन्हें नदी पर जाना पड़ता था और आरामपसन्द करती, मैं गाँवों में कार्य करती हूँ क्योंकि गाँवों के होने लगती हैं। यही वास्तवीकरण अखबारों में भी छापी गई। शहरों में तो ये तथाकथित गुरु कार्य करते हैं क्योंकि उन्हें धन और बटुए की जरूरत होती है जो शहरों में ही मिलते हैं। मैं तो चैतन्य लहरी नवम्बर - दिसम्बर 2004 24 अस्ट्रेलिया के लोगों के लिए यह अत्यन्त कठोर अधिकार है ताकि आप सच्चा बपतिस्म सच्ची कार्य था। परन्तु किसी तरह से उन्होंने चला लिया शक्ति प्राप्त कर सकें। एक बार जब आप इसे प्राप्त और उन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया। कर लेंगे तो सर्वप्रथम तो आपका व्यक्तित्व ही आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके जब वो वापिस आए बिल्कुल बदल जाएगा। आप कुछ भिन्न ही चीज तो पहले ही झटके में उन्होंने तीन सौ लोगों को बन जाएगें| आत्मसाक्षात्कार दिया। अब तो वे कुण्डलिनी जागृति आर प्रबुद्धता साक्षात्कार के बाद ये सब तर्कसंगत है परन्तु इससे आत्म-साक्षात्कार के पश्चात् अभी में पूर्व यह अंधविश्वास है जिसमें व्यक्ति को कोई तरह से उतरा भी न था कि मुझमें एक चीज घटित समझ नहीं होती। कुण्डलिनी विद्यमान है आपके हुई "मैने जुआ खेलना, सिगरेट और शराब पीना अपने साथ जन्मी हुई है। 'सह अर्थात् साथ और छोड़ दिया। ये मेरे साथ क्या हुआ"? मैने कहा ज अर्थात जन्मी हुई। ये आपके साथ जन्म लेती जब आपको सल्य प्राप्त हो जाता है तो आप यह हैं और आपके अन्दर स्थित है, परन्तु केवल सब चीजें छोड़ देते हैं। सच्चा रत्न मिल जाने पर अधिकारी व्यक्ति जिसे इसका ज्ञान हो, वही इसे बनावटी पत्थर त्याग दिए जाते हैं । जीवन से उब उठा सकता है। क्योंकि मैं है, मनुष्य हूँ इस कारण से किसी को दुख नहीं होना चाहिए। क्योंकि उबाऊ लगते हैं और अरुचिपूर्ण प्रतीत होते यदि आप इसे कर पाएं तो मुझे बहुत खुशी होगी। हैं, तनावों, क्रूरता तथा समस्याओं से परिपूर्ण लगते आप जानते है कि मैं अपनी गृहस्थी में अत्यन्त हैं इसलिए आप इन चीजों ( नशे आदि) को अपना प्रसन्न हूँ। मुझे किसी चीज की आवश्यकता नहीं लेते हैं। परन्तु एक बार जब आपको अपना पूर्णत्व है। मेरे पति ने जगह जगह जाकर इस कार्य को प्राप्त हो जाता है तो आपमें पूर्ण सुरक्षा की भावना करने की आज्ञा इसलिए दी है क्योंकि के जानते हैं स्थापित हो जाती है और जिस आनन्द, खुशी एवम् उस दिन सिगांपुर में एक वृद्ध सज्जन बहुत के विषय में बहुत कुछ जानते हैं। समय बाद मुझे मिले। कहने लगे, श्रीमाताजी इसमें पूरी इस कार्य को कर रही कर, जीवन क्योंकि आपको उबाऊ लगता कि कोई अन्य इस कार्य को नहीं कर सकता। कृपा का वचन आपको दिया गया है वह आपके आप यदि इस कार्य को कर सकें तो मुझे अत्यन्त अन्दर बहुनी शुरु हो जाती है। आपको अत्यन्त प्रसन्नता होगी वास्तव में मैं इससे निवृत्त होना शान्ति का अहसास होता है। इसके अतिरिक्त और फिर यदि मै इस कार्य को करती हूं आपके साथ बहुत सी चीजें घटित होने लगती हैं। चाहूंगी। तो आपको बुरा क्यों लगना चाहिए ? से ऐसे इसके विषय में एक ही प्रवचन में बता पाना कठिन कार्य भी तो हैं जो मैं बिल्कुल नहीं कर सकती। मैं है। आपके सम्मुख कार नहीं चला सकती, टाइप नहीं कर सकती, चीज जो घटित होती है वो यह है कि आपका आपके डिब्बे तक खोलने मुझे नहीं आते। इन सभी स्वास्थ्य ठीक हो जाता हैं। ऐसा नहीं है कि मैं इस कार्यों में मैं एकदम से बेकार हूँ। तो यदि मुझे उद्यम को शुरू करने के लिए अस्पतालों में जा कुण्डलिनी जागृत करने का ज्ञान है तो आपको जाकर रोगियों को खोजने वाली हूँ, ठीक है, इतना बुरा क्यों लगना चाहिए। स्वंय को पहचानना और पैसा दे दो और आपका यह रोग ठीक हो जाएगा अपने अन्दर जागृति को प्राप्त करना आपका नहीं, मैं नहीं जानती कि मैं कितने लोगों को ठीक बहुत मैं और भी प्रवचन दूंगी। पहली दिसम्बर, 2004 चैतन्य लहरी नम्बर 25 योग प्राप्ति के बाद यह सब घटित होगा इससे पूर्व कर चुकी हूँ। विश्वास करें कि मैं वास्तव में नहीं जानती। मैं यह भी नहीं जानती कि मेरे शिष्यों ने नहीं । आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेने के पश्चात् कितने लोगों को रोग-मुक्त किया है। ये तो सूर्य आपके साथ भी यह घटित होगा| आज आप यदि किरणों की तरह है जिन्हें इस बात का ज्ञान नहीं इसे प्राप्त नहीं करते तो भी मैं निराश नहीं होऊंगी। होता कि उनके कारण कितने पत्तों में हरियाली इस महान इंग्लैंड में जिसे कि विलियम ब्लैक ने आयी हैं जिन लोगो से आप प्रेम करते हैं जिन्हें आप भोजन देते हैं उनका आप हिसाब पड़ा। केवल चार लोगों पर मैने छह वर्ष तक कार्य किताब नहीं रखते। किसको आपने कितने निवाले किया क्या आप इस बात पर विश्वास करेंगे ? खिलाए हैं क्या आप उनकी गिनती करते हैं ? यह लोहे के चने चवाने जैसा है। परन्तु एक बार जब प्रेम है। आपको प्रमाण किसलिए चाहिए? क्यों उन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया तो तूफान सा प्रमाण चाहिए, आप मुझे कोई पैसा तो दे नहीं रहे? आ गया और अब हमारे पास हजारों आत्मसाक्षात्कारी सूर्य किरणों का आप कोई प्रमाण चाहते हैं ? आप लोग हैं। निःसन्देह हम इनका कोई लेखा जोखा मुझे कुछ हूँ। दुकानदारी नहीं हो रही है! आपने यह तोहफा आप उन्हें अपनी चैतन्य लहरियों के माध्यम से ा येरुशलम कहा है,मुझे बहुत कठिन परिश्रम करना नहीं दे रहे और न ही मैं कुछ बेच रही नहीं रखते। कोई संस्था नहीं है,कुछ भी नहीं है। पाना है आपने इसे प्राप्त करना है तो क्यों आप पहचान सकते मेरा आंकलन करना चाहते हैं ? आपको यदि नहीं नहीं । क्योंकि आप सामूहिक चेतना में आ जाते हैं. मिला है तो बेहतर होगा इसके लिए प्रयत्न करें। हाँ बार बार मैं यह बात कहती हैँ कि यह बनना है। मेरे बारे जानकर आपको क्या लाभ होने वाला है आप अपने को तथा अन्य लोगों को महसूस करने मुझे समझ पाना आसान नहीं है। यह कार्य बहुत लगते हैं। यह बात महत्त्वपूर्ण है. पूरी तरह से कठिन है। मैं इतनी भ्रांति रूप हूँ। मुझे जानना महत्वपूर्ण । अब आपने इसे प्राप्त करना है आज कठिन है, बेहतर होगा कि आप स्वंय को जाने, नहीं तो कल। तो आज ही इसे प्राप्त कर लेने का उससे आप सीख पाएंगे। जब तक आप स्वयं को विचार बहुत अच्छा हैं। परन्तु पा लेने के बाद, जैसे नहीं पहचान लेते मुझे नहीं पहचान सकते। अतः ईसा मसीह ने कहा था, कुछ बीज चट्टानों पर गिर मुझसे उलझन पूर्ण प्रश्न पूछने का कोई लाभ नहीं। जाते हैं। यहाँ भी ऐसा ही होता है। आपने इसको मैं आपको कुछ नहीं बता पाऊंगी क्योंकि अब मैं संभालना है. बढ़ाना है. इसमें कुशलता प्राप्त करनी बहुत चतुर हो गई हूँ। कृष्ण ने केवल अर्जुन को हैं और स्वयं गुरु बनना है। आज सुबह जैसे मैंने बत्ताया था। उसने कहा था सभी कुछ त्याग कर आपको बताया था, इन अगुरूओं से जाकर अपना मेरे बताए हुए मार्ग पर चलो। श्रीकृष्ण ने कहा योग धन वापस मांगें ये समझने का यह सर्वोत्तम उपाय प्राप्त करने के बाद आपको क्षेम प्राप्त होगा, इससे है कि यह चीज तार्किकता से परे है मैं असीम की पू.र्व नहीं शारीरिक, मानसिक,मावनात्मक, भौतिक और हमारे मस्तिष्क सीमित हैं परन्तु बहुत सी चीजें सामाजिक क्षेम प्राप्त हो जाता है। अध्यात्मिक क्षेम समझी जा सकती हैं। बहुत से लोग इस निष्कर्ष भी आपको प्राप्त हो जाता है । उन्होंने कहा कि पर पहुँचे कि कुण्डलिनी जागृति द्वारा ही हैं कि वे आत्मसाक्षात्कारी हैं या । आपको सभी प्रकार का बात कर रही हूँ, हमारी तार्किकता सीमित है। tho दिसम्बर 2004 चैतन्य लहरी नवम्बर 26 आत्मसाक्षात्कार पाया जा सकता है। अपने सीमित करने वाले हैं इसीलिए आप ब्राहमण हैं और यह मस्तिष्क द्वारा वे इस परिणाम पर पहुँचे। उन्होंनें जाति कहीं भी हो सकती है। यह इस्लामिक संसार बहुत से निष्कर्ष निकाले। श्रीमान फायड शिष्य(Jung) युग इतना संवेदनशील व्यक्ति था कि चीन में हो सकती है,रूस में हो सकती है इंग्लैंड उसने कहा कि आपको अवश्य आत्मसाक्षात्कार और अमेरिका में हो सकती है। मेरे पति की नौकरी का में हो सकती है, इस्लामिक देशों में हो सकती है. थी प्राप्त करना है, आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना ही है, के कारण में इन सब देशों में गई। मैं हैरान और इस तरह से उसने सहजयोग के लिए आधार मैंने रूसी लोगो को भी आत्मसाक्षात्कार दिया है। तैयार किया। उसने कहा कि आत्मसाक्षात्कार आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के लिए वो बहुत अच्छे हैं। प्राप्त करके आप सामूहिक चेतना में आ जाएंगे। परन्तु इस सीमा तक समझने में वो बहुत समय उसने इसकी बात की अत: हमें समझना है कि लेंगे आप लोग क्योंकि वास्तव में स्वतन्त्र हैं. आप इसके विषय में बताने वाली में पहली व्यक्ति नहीं लोग स्वतन्त्र हैं. प्रजातान्त्रिक हैं अतः सहजयोग हूँ। सभी महान संतों, अवतरणों और पैगम्बरों ने को समझने के लिए, इसमें महान ऊँचाइयाँ प्राप्त इसके विषय में बताया। मोहम्मद साहब ने कहा करने के लिए आपके पास खुला मस्तिष्क है। फिर कि आपको पीर बनना होगा परन्तु आप जानते हैं भी मैं कहूँगी कि स्वतन्त्रता का अर्थ स्वच्छंदता नहीं कि अव वे धर्म से क्या खिलवाड़ कर रहे हैं! मैं है। इसका यह अर्थ बिल्कुल भी नहीं है। हवाई विवाद में नहीं पड़ना चाहती। परन्तु आप लोग जहाज के सभी पुरजे यदि स्वच्छंद होना चाहें तो स्वयं इस बात का निर्णय कर सकते हैं कि इन उस हवाई जहाज का क्या हुप्र होगा। हम एक ही महान अवतरणों का उन्होंने क्या किया। आप चाहे विराट के अंग प्रत्यंग हैं। एक ही आदि पुरुष, एक उन्हें सर्वोत्तम और सर्वोच्च चीज दे दें, वो जानते हैं ही ब्राहमण के हम अणु हैं। हमे स्वयं को विराट से कि इसे किस तरह बिगाड़ना है जैसे हिन्दुओं को जोड़ना है, अपना सम्बन्ध, सहयोग और प्रेम भिन्न बताया गया कि आत्मा का निवास शरीर के अन्दर अणुओं से खोज निकालना है । तो जन्म के आधार पर जाति प्रथा बनाने का अंत में मैं कहूँगी कि यह परमात्मा का दिव्य प्रेम है, उन्हें क्या अधिकार था ? वास्तव में जाति का अर्थ परमात्मा की है जिसने आपको मानव योनि दी तो है जन्म से आए संस्कार । उदाहरण के रूप में और उनकी कृपा ही आपको श्रेष्ठ मानव बनाएगी। आप ब्राहमण हैं क्योंकि आप साधक हैं ब्रह्मा को वो चाहते हैं कि यह शक्ति आपके माध्यम से बहे। खोज रहे हैं इसलिए आप ब्राहमण हैं। खोजने वाले, चाहे बह चुनावों से हो, क्षत्रिय हैं । खोखले व्यक्तित्व का बनाना चाहते हैं ताकि आप यह तो व्यक्तित्व की वृत्तियां हैं जो व्यक्तित की उनकी शक्तियों को महसूस कर सकें और उनका जाति का निर्णय करती हैं। गीता के लेखक व्यास संचालन कर सकें तथा परमात्मा के साम्राज्य में एक मछुआरिन के नाजायज़़ बच्चे थे बो कैसे कह प्रवेश कर सकें । वे ही प्रेम के सागर हैं वे आपके सकते थे कि आप ब्राहमण परिवार के हैं। जाति तो सभी अपराधों को क्षमा करते हैं। हममें कौन से दोष योग्यता है,श्रेणी है। आप लोग भी उसी तरह के हो सकते हैं कौन से पाप हम कर सकते हैं ? साधकों की श्रेणी में हैं। आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त आप तो न्हें पक्षियों की तरह से हैं जो कहीं से कृपा सत्ता को इसलिए वे आपको श्रीकृष्ण की बाँसुरी की तरह से (N. चैतन्य लहरी नवम्बर - दिसम्बर 2004 27 दार छोटा सा तिनका उठा लाने के लिए स्वंय को दोषी अपना सीन्दर्य प्रदान करते हैं और आप उनके महसूस करता है। वे के सागर हैं। वह हमें पूर्णतयाः स्वच्छ कर देते हैं। की है! प्रेममय पिता हैं, क्षमा शक्तियां अपना सौन्दर्य और अपनी गरिमा प्रदान परमात्मा आपको धन्य करें। क कुम १ TI विवेक प्राप्ति ( केवल विवेक का अर्थ समझ लेने पर) उत्तम पक्ष को अपनाना और उनका आनन्द लेना ही विवेक है । यही विवेक है और इसमें आप विनाशकारी चीजों से हटकर रचनात्मकता को अपनाते हैं। आपके नौकर, ड्राइवर आदि के रूप में आपको कोई विवेकशील व्यक्ति मिल जाता है तो आप हैरान हो जाते हैं कि किस प्रकार ये इतना विवेकशील हो सकता है! सम्भवतः अपने पूर्व जन्म में ही उसने अपने अन्दर यह विवेक पा लिया हो या इसकी गहनता में जाकर इसे पाया सहजयोगी के जीवन में विवेक की भूमिका ऐसी हो। विवेक किसी एक व्यक्ति मात्र के अवस्था या फैशन हो, जो चाहे विचारधारा हो, जैसे चाहे लोग सम्पत्ति नहीं है बहुत से व्यक्ति विवेकशील हो सकते हैं। अतः सहजयोगी वही है जिसने विवेक हसा चक्र पूजा-1992 होती है कि बाहर चाहे जो भी होता रहे, जो चाहे परिवर्तित हो रहे हों, आप उनके अनुसार परिवर्तित नहीं होते। आपके अन्दर परिवर्तन होता है। श्री गणेश पूजा, 1991 पुणे प्राप्त कर लिया है। उन्हें ऐसे प्रश्न नहीं पूछने कि आप ऐसा क्यों कह रहे हैं, इसकी क्या आवश्यकता है ? उन्हें प्रश्न नहीं पूछनें। बो तो गलती करते ही नहीं गलत कार्य करते ही नहीं .हमेशा ठीक मार्ग त्याग कर अपने विवेक तथा अपने अस्तित्व का पर होते हैं । नेरा मानना है कि सहजयोगी का यही आनन्द लेते हुए आप मध्य में खड़े चिन्ह है और यही देवी का आशर्शीवाद भी है । देवी की शक्ति यदि आपके अन्दर कार्यरत् है तो आपको चीजों को कार्यन्वित करने का विवेक प्राप्त विवेक बाहर नहीं दिखाई देता। किसी व्यक्ति को ध्यान एक मात्र मार्ग है । अपने बाएं और दाएं को हैं। हुए श्री गणेश पूजा,1991 पुणे देखने मात्र से आप यह नहीं कह सकते कि वह हो जाएगा। नवरात्रि पूजा-2002 विवेकशील है,परन्तु चैतन्य लहरियों द्वारा आप यह जान जाएंगे कि व्यक्ति अत्यन्त विवेकशील हैं वह विवेक ऐसा गुण है जो सर्वप्रथम आपको पूर्ण शान्ति व्यक्ति बोले या न बोले वह यदि बोलेगा तो बिना प्रदान करता है। विवेक विकसित हो जाने पर आप किसी को चोट पहुँचाए कोई अत्यन्त गहन, विवेकशील अत्यन्त शान्त हो जाते हैं। लोग जो चाहे कहते एवं अच्छी बात कहेगा। रहें, करते रहें, जितने चाहे आक्रामक हो, हर हाल में आप शान्त रहते हैं तथा लोगों तथा राष्ट्रों की मूर्खता को देखते हैं और इस बात को समझते हैं विवेक ये मान लेना मात्र नहीं है कि मैं विवेकशील कि क्यों वे यह मूर्खता कर रहे हैं। नवरात्रि पूजा, 1998 हूँ। विवेक तो अपनी अभिव्यक्ति करता है, चीजों को नवरात्रि पूजा-1998 कार्यन्वित करता है और दर्शाता है कि अच्छा क्या है और बुरा क्या है। नवरात्रि पूजा,2002 विवेक का अर्थ यह नहीं है कि आप चीज़ों के विषय में वाद-विवाद करें या लोगों से झगड़ें। नहीं, इसका ये अर्थ बिल्कुल नहीं है। चीजों के विवेक उस व्यक्ति का चिन्ह है जो वास्तव में उच्च बैतन्य लहरी दिसम्बर, 2004 29 नयम्बर स्तर का आत्मसाक्षात्कारी है। आपमें यदि विवेक की समझ देता है. सन्तुलन प्रदान करता है. अपने नहीं है तो जो चाहे आप करें, अपने कार्यों से साथ व्यवहार करना, अपनी रक्षा करना तथा अपना जितने मर्जी सन्तुष्ट हों परन्तु विवेक का होना सम्मान करना सिखाता है। अत्यन्त महत्वपूर्ण है । श्री गणेश पूजा,1991 अस्ट्रेलिया नवरात्रि पूजा-2002 श्री गणेश विवेक के दाता हैं। वो हमें सिखाते हैं कि क्या मैं विवेकशील हूँ? परमात्मा कि कृपा का यह किस समय कैसा व्यवहार करना है. किस समय पहला चिन्ह है। परमात्मा कि कृपा जिस पर है वह कैसा बोलना है, किस मामले में किस सीमा तक व्यक्ति विवेकशील होता है और उसके मौन से जाना है। ये सारे गुण अन्न्तजात हो जाने चाहिए। उसका विवेक झलकता है। परमात्मा की पूर्ण सहज। शव्ति ऐसे व्यक्ति को माध्यम के रूप में उपयोग इन्हें कार्यान्वित करने की आवश्यकता नहीं होनी करती है और आश्चार्यजनक रूप से कार्य करती चाहिए, आपके अन्दर इनका ज्ञान होना चाहिए। हैं। व्यक्ति आश्चर्यचकित हो जाता है कि यह सब कैसे पटित हो गया। किसी महिला को भी विवेक प्राप्त हो बताएँ कि. सकता है और पुरुष तक जाना है? मेरा व्यवहार कैसा होना चाहिए ? यह गहनता, यह स्वभाव प्रप्त कर सकता है जो मेरा दृष्टिकोण कैसा होना चाहिए ?" यह विवेक अत्यन्त सुन्दर है और अत्यन्त शक्तिशाली है। "अब मैं सहजयोगिनी हैँ। हर सुबह स्वयं को ये "मैं सहजयोगिनी हैूँ। मुझे किस सीमा को भी कोई भी यह विवेक, पंति कमल यदि आप में खिल उठे तो इन वातों को नवरात्रि पूजा,2002 आसानी से समझा जा राकता है । कमल कैसे खिलता है ? बीज अंकुरित आपमें भी यह बीज निहित है । विवेक आपमें स्वतः आता है,परन्तु अनुभव के होता है. .। माध्यम से। तब आप समझते हैं कि यह ठीक मार्ग अब सबगें यह बीज विद्यमान है। अब क्योंकि आप है अनुभव 1 आत्मसाक्षात्कारी हैं इसीलिए यह कमल खिलने लगा है। विवेकशीलता को अपनी लगामें थाम लेने से ही आप समझने लगते हैं । हंसा पूजा,1992 दें. मानव..किसी भी बात को सीधे से नहीं समझेंगे । ऐसे करने का एक अत्यंत आसान तरीका है अतः जब तक वो ये समझ न लें कि यह श्रीमाताजी विवेक के सम्मुख सगर्पण कर दें और आपके की लीला है जो हमें विवेक के तट पर ले आई है, अन्तःस्थित विवेक गतिशील हो उठेगा। ये कार्य चीजों को करेंगा। फिरा कर बताना पड़ता है। नवरात्रि पूजा,1998 घुमा दिवाली पूजा, 1991 श्री गणेश का प्रथम गुण यह है कि वे हमें विवेक जो लोग ध्यान-धारण नहीं करते वो सहजयोग में प्रदान करते हैं और वह विवेक हमें व्यवहार करने खो जाएंगे क्योंकि विवेक तो केवल आपकी आन्तरिक दिसम्बर, 2004 30 चैतन्य लहरी नयम्बर प्रेरणा से ही उन्नत हो सकता हैं और यह आन्तरिक वरदान हैं। आप इसे चेतना भी कह सकते हैं या प्रेरणा आपको तभी मिल सकती है जब आपके कुछ और भी इस विवेक के द्वारा ही आप पूर्णतः अन्दर श्री गणेश की शक्ति की अभिव्यक्ति हो। दिव्य व्यक्तित्व बन जाते हैं। अपनी भक्ति द्वारा आपको यह विवेक प्राप्त कर लेना चाहिए। नवरात्रि पूजा, 2002 वही विवेक के दाता है। श्री गणेश पूजा,1998 यह कहना अति कठिन है कि विवेकशील कैसे परमात्मा को आपकी आवश्यकता है। वो नहीं बनें। यह घटना तो बस घटित हो जाती है और चाहते कि आपकी मृत्यु हो जाए या आप समाप्त हो आप विवेकशील हो जाते हैं। अतः बालक होते हुए जाएं। उन्हें आपकी बहुत आवश्यकता है। परमेश्वरी भी श्री गणेश अत्यन्त परिपक्व हैं। वे अत्यन्त शक्ति ने बहुत से कार्य करने हैं और आप उसके विवेकशील हैं। केवल इतना ही नहीं, वे विवेक माध्यम हैं। प्रवाहित करते हैं और जो भी व्यक्ति सहजयोगी हैं. विवेक उसका अन्त्तजात गुण हैं क्योंकि उसके अन्दर भी श्री गणेश जागृत हो चुके हैं। अतः वह विवेकशील हो जाता है, अत्यन्त विवेकशील। ये दर्शाता है कि किसी भी शक्ति की तरह यह अपने विवेक से वह क्या प्राप्त करता है- सन्तुलन, सूझबूझ की शक्ति है जिसे देवी की शक्ति का क्षेम सच्ची उत्क्रान्ति और उसे समझ आ जाती है कि प्राप्त है। ये उत्क्रान्ति उसके अपने उसके देश के तथा पूरे अतः वे ( देवी) विवेक की दाता है। देवी का ये विश्व के हित के लिए है। सहजयोग का महत्व महानतम् गुण है कि वे विवेक की दाता है। नवरात्रि पूजा,2002 विवेक...अत्यन्त अन्न्तजात गुण हैं. अत्यन्त अन्नर्तजात। उत्क्रान्ति प्रक्रिया के एक भाग के रूप में विवेक का उसकी समझ में आ जाता है। बिना विवेक के व्यक्ति ये सब नहीं समझ सकता। यह विवेक हमारे अन्दर है, पूरी तरह से । अन्न्तजात अभी तक की सारी उत्क्रान्ति उन्होंने (देवी ने) की रूप से स्थापित है। हमें तो केवल अपने अन्तः है और अब आगे बढ़ाने के लिए वे आपको अत्यन्त स्थित विवेक के भण्डार का उपयोग करना है। उदय होता है। विवेकशील बनाने वाली हैं। नवरात्रि पूजा,2002 श्री गणेश पूजा, 1991पुणे कोई भी पूछ सकता है," श्रीमाताजी इस विवेक वो लोग अत्यन्त भाग्यशाली हैं जिन्हें विवेक प्राप्त का स्रोत क्या हैं ?" श्री गणेश इसके स्रोत हैं..। हो गया है, परन्तु विवेक जीवन के प्रति अपनी श्री गणेश यदि अपमानित हो जाएं तो वे अन्धकार सुझबूझ के अतिरिक्त किसी अन्य स्रोत से प्राप्त के बादलों के पीछे छुप जाते हैं। ऐसी स्थिति में नहीं होता। व्यक्ति जब सोचने लगता है कि, "अब मैं ऐसा क्यों कर रहा हूँ? मेरे इस कार्य का क्या श्री गणेश पूजा, 1993 जर्मनी प्रभाव होगा ? मेरे आचरण का परिणाम क्या है ? आपको विवेक प्रदान करना देवी का महानतम् ये मेरे लिए अच्छा है या बुरा, केवल तभी विवेक TI लोग मूर्खतापूर्ण कार्य करने लगते हैं। दिसम्बर 2004 चैतन्य लहरी नवम्बर 31 आपके अन्दर विवेक का यह ऐसा कार्य है जो श्री गणेश पूजा 1993, जर्मनी आपको अच्छे-अच्छे लोगों, सुन्दर परिस्थितियों की ओर ले जाएगा जहाँ आप सुन्दर चीजें या आता है।" वही व्यक्ति शक्तिशाली है जिसे केवल उचित, अनुचित का ज्ञान नहीं है, बल्कि जिसमें अनुचित कभी आपने आशा भी न की थी । कार्य को न करने की शक्ति भी है। गलत कार्य को यह समझ लेना अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि आप मुझे सुन्दर कृतियाँ खोज निकालेंगे. ऐसी चीजें जिनकी वह करता ही नहीं। हमारे अन्दर विवेक ऐसी पूर्ण शक्ति हैं जिससे हम चमत्कार हुआ" आपके विवेक के अतिरिक्त यह कोई प्रयोग नहीं करते। यह तो हमारे माध्यम से कुछ भी नहीं हैं। आपकी आत्मा कार्य कर रही है। स्वतः कार्य करती है और हम केवल उन्हीं कार्यो आपको कुछ भी नहीं करना। को करते हैं जो ठीक हैं और उचित हैं। श्रीमाताजी यह चमत्कार हुआ, वह बताएं. दिवाली पूजा, 1991 श्री गणेश पूजा,1993 जर्मनी हमें समझना है कि विवेक ऐसा गुण नहीं है जिसे आपकी अबोधिता अपने आप में ही एक शक्ति है हम अन्तर्निविष्ट(Inculcate) कर सकें। यह ऐसा और यह निश्चित रूप से आपको वह विवेक प्रदान गुण नहीं है जिसे चतुराई से स्थापित किया जा करेगी जिससे आप सभी समस्याएं सुगमतापूर्वक सके( Manoeuvered)यह तो अत्यन्त अन्त्तजात और हमारे परिपक्व होने पर ही आता हैं श्री गणेश पूजा, काल्वे 1991 डी सुलझा सके। श्री गणेश पूजा,1990 विवेक निर्लिप्तता प्रदान करता है, स्वार्थ से स्वंय इस स्तर तक पहुँचना है जहां आप समझ जाएं तक सीमित रहने से, अहँ से तथा स्वंय से जुड़े कि आपने विवेक प्राप्त करना हैं। आपमें यदि सभी भावों से। क्या आप इसकी कल्पना कर सकते विवेक का अभाव है तो आप आत्मसाक्षात्कारी हैं। व्यक्ति नहीं है। मी दिवाली पूजा 1991 श्री कष्ण पूजा, 2000 क्यों न ऐसा व्यक्तित्व विकसित कर लिया जाए आपकी आत्मा को कोई समस्या नहीं हो सकती। कि. " मैं सदैव आनन्द में हूँ। किसी भी चीज को इसे कोई भय नहीं हैं सर्वोपरि इसमें विवेक है, देखकर मैं आनन्दविभोर हो जाता हूँ। किसी को भी अथाह विवेक। यही विवेक आपके व्यक्तित्व की सुनते हुए मैं 'आपको महसूस करता हूँ। तब बुलन्दी का भी चिन्ह हैं । आपका सुगन्ध कमल सुधरेगा और सौन्दर्य को जैसे मैने आपको बताया था यह उत्क्रान्ति हैं। आत्मसात करने के लिए आपका विवेक गतिशील जब आप परिवर्तित (Transformed) हो जाते हैं हो उठेगा। सभी कुछ अत्यन्त सन्तोष तथा आनन्दायी सभी कुछ आपको प्राप्त हो जाएगा। तो आपकी उत्क्रान्ति हो जाती है। आपका स्वभाव बिल्कुल भिन्न हो जाता है और आप अतिविशिष्ट चैतन्य लहरी नवम्बर - दिसम्बर, 2004 32 विवेक भी प्राप्त हो जाएगा। आपकी आत्मा आपको बन जाते हैं। श्री कृष्ण पूजा, 2000 प्रचुर मात्रा में उत्साह एवं विवेक प्रदान करेगी। यह न तो लड़ाकापन हैं और न हिंसात्मक स्वभाव। आपने यदि स्वयं को पहचाना है तो आपके अन्दर ये अपरिपक्व स्वभाव भी नहीं हैं, यह तो अत्यन्त साहस की शक्तियाँ आ जाएंगी। आप दुस्साहसी शान्त सुन्दर एवं साहसपूर्ण नजरिया है। नहीं बनेंगे,विवेकशील होंगे। साहस के साथ आपको जन्मदिवस पूजा,2001 छ प न प्रतिबोधविदितं मतममृतत्वु हि विन्दे आत्मना विन्दते वीर्य विद्या विदतमृतम् ा केनोपनिशद्( 2 / 4) ज्ञान वही है जिसके माध्म से व्यक्ति अमृत्व प्रदान करने वाली आत्मा का बोध प्राप्त कर सके। र पाभ ाड ु० चैतन्य लहरियाँ हमारे हृदय में एक ज्योति है जो निरन्तर जलती हमारे हृदयं में उतर सके। गैस के प्रकाश की तह रहती है। ये आत्मा हैं. हमारे हृदय में परमात्मा का से इसमें भी टिमटिमाहट है। ( गैस जब खुलती है प्रतिबिम्ब। कुण्डलिनी जब उठती है तो ब्रह्मरन्त्र को तो प्रकाश होता है। चैतन्य लहरियाँ हमारे अन्दर खोलती है। श्री सदाशिव की पीठ ( seat ) सहस्रार से इस सूक्ष्म शक्ति का प्रवाह हैं हमारी कुण्डलिनी 1 में हैं, परन्तु सदाशिव आत्मा के रूप में हृदय में जब ब्रह्मरन्ध्र को पार करती हैं तो हमारे अन्दर से प्रतिबिम्बित है। पीठ का सृजन इसलिए किया गया चैतन्य लहरियाँ बहने लगती हैं। है क्योंकि यह सर्वव्यापी सूक्ष्म शक्ति को धारण चैतन्य लहरियाँ हमें पूर्ण सन्तुलन प्रदान करती हैं. हमारे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकारों करता है। इसी प्रकार से मस्तिष्क में पीठ हैं और सदाशिव का को दूर करती हैं। ये हमें परमात्मा से पूर्ण पीठ सहस्रार में सर्वोच्च है। सहस्रार खुलता हैं आध्यात्मिक एकाकारिता का विवेक प्रदान करती ताकि यह सूक्ष्म शक्ति सूक्ष्म वाहिका के रास्ते हैं। ये हमें पूर्ण सामन्जस्य प्रदान करती हैं। 1 श्री माताजी ( महाअवतार-1980 ) ं सा लक्ष्मी तक्त्व परम पूज्यमाताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन कृष्ण ने गीता में कहा है कि योगक्षेम बहाम्यहम' इसका मतलब है- पहले योग। पहले वो क्षेम उसमें ज्योति आ जाती है, क्योंकि आत्मा की कहते. (पर) पहले उन्होंने' योग कहा, और उसके ज्योति * क्षेम। क्षेम का मतलब होता है, आपका नाभि चक्र में जो लक्ष्मी तत्त्व' है वह जागृत हो well-being आपका लक्ष्मी तत्त्व। तो पहले योग जाता है। जैसे ही लक्ष्मी तत्त्व आपमें जागृत हो होना चाहिये। जब तक योग नहीं होता तब तक परमात्मा से खुशहाली होने लगेगी। आपसे कोई भतलब नहीं। आपको पहले योग, माने कोई आदमी रईस हो जाए- जिसे हम 'पैसे-बाला परमात्मा से मिलन होना चाहिये, आपके अन्दर कहते हैं. जरूरी नहीं कि वह 'खुशहाल' है। आत्मा जागृत होनी चाहिये। जब आपके अन्दर अधिकतर पैसे वाले लोग महादु खीं होते हैं। जितना आत्मा जागृत हो जाती है, तब आप परमात्मा के पैसा होगा, उतने ही वो गधे होते हैं, उतनी ही दरबार में असल में जाते हैं. नहीं तो आप रट्टू तोते उनके घर के अन्दर गन्दगी आती है-शराब, दुनिया के जैसे कहा करते हैं। जो कुछ भी बात होती है, भर की चीज़, मक्कारीपन,झूठापन-हर तरह की कुण्डलिनी की शक्ति ब्रह्मरन्ध्र को छेदती है तब । वो पा लेती है । और उस ज्योति के कारण बाद जाएगा, चारों तरफ से आप देखियेगा कि आपकी बहर ही रह जाती है। अन्दर का आपा जब तक चीज़ उनके अन्दर रहती है। हर समय डर, भय-कभी आप जानते नहीं. जब तक आप अपने को पहचानते सरकार आकर पकड़ती है, कि खाती है, कि हमारा नहीं, तब तक आप परमात्मा के राज्य में आते नहीं पैसा जाता है, कि ये होता है.वो होता है जो बहुत और इसीलिये आप उसके अधिकारी नहीं हैं जो रईस लोग हैं, तो भी कोई लक्ष्मी पति नहीं क्योंकि उनके अन्दर लक्ष्मी का तत्त्व नहीं जागृत हुआ परमात्मा ने कहा है। है बहुत से लोग परमात्मा को इसका दोष देते हैं. कि सिर्फ पैसा कमा लिया। पैसा उनके लिये मिट्टी हम तो इतनी परमात्मा की भक्ति कर रहे हैं,. इतनी जैसा है, उससे कोई उनको सुख नहीं है । । हम पूजा कर रहे हैं, इतने सर के बल खड़े होते हैं, ये करते लक्ष्मी का तत्त्व समझना चाहिये। हैं, वो करते हैं, धूप चढ़ाते हैं, सुबह से ैने पिछली मर्तबा बताया था कि लक्ष्मी जी कैसी शाम तक रटते बैठते हैं, तो भी हमें परमात्मा क्यों बनी हैं। उनके हाथ में दो कमल हैं-वो गुलाबी रंग नहीं मिलते ? परमात्मा से बात करने के लिये के हैं और एक हाथ से दान करती है और एक हाथ आपका उनसे सम्बन्ध होना चाहिये,connection से वो आश्रय देती हैं। गुलाबी रंग का द्योतक होता होना चाहिये। जब तक आपका योग घटित नहीं है - प्रेम'। जिस मनुष्य के ह्रदय में प्रेम नहीं है वो होता, तब तक क्षेम नहीं होता। क्षेम का मतलब है. लक्ष्मीपति नहीं हो सकता। उस का घर ऐसा होना आपक्री चारों तरफ से रक्षा, लक्ष्मी तत्त्व की जागृति। चाहिये जैसे कमल का फूल होता है कमल के फूल के अन्दर भाँरे जैसा जानवर, जो कि बिल्कुल करुँगा". पर कैसे करूँगा, सो नहीं कहा। सो मैं शुष्क होता है- उसके काँटे चुभते हैं अगर आप हाथ में लीजिये तो-उसको तक वो स्थान देता है। जब योग घटित होता है, तब कुण्डलिनी त्रिकोणाकार अपनी गोद में उसको सुलाता है, उसको शान्ति कृष्ण ने सिर्फ ये कहा है कि बहाम्यहम्- " मैं आपसे बताती हैं, वह किस तरह से होता है। अस्थि से उठकर के ब्रह्मरन्ध्र को छेदती है, जब देता है। दिसम्बर, 2004। चैतन्य लहरी नवम्बर 36 लक्ष्मीपति का मतलब ये है कि जिसका दिल बहुत बड़ा है। जो अपने घर आए हुए अतिथियों को, किसी को भी अत्यन्त आनन्ददायी होता है- वो लक्ष्मीपति है। लेकिन अधिकतर आप रईस लोग देखते हैं कि महाभिखारी होते हैं। उनके घर आप वो भी लक्ष्मीपति नहीं। जो दूसरों के लिये सोचता है-" अगर मेरा अच्छा आलीशान मकान है तो इसमें कितने लोग आकर बैठेंगे, अगर मेरे पास आलीशान चीजें हैं तो कितने लोगों को आराम होगा। कैसे मैं दूसरों का स्वागत जाइये तो उनकी एकदम जान निकल जाती है, कर पाऊंगा, कैसे मैं दूसरे लोगों की मदद कंर पाऊँगा ? किस तरह मैं उनको अपने हृदय में को हर समय से फिक्र लगी रहती है कि मेरे स्थान दूँगा? मदद का भी सवाल नहीं उठता; आज चार पैसे यहाँ खर्च हो रहे हैं, दो पैसे वहाँ आदमी यह सोचता है कि ये मेरे ही अपने हैं। खर्च हो रहे हैं, इसको जोड़ के रखो, उसको कहाँ इनके साथ जो भी करना है मैं अपने साथ ही कर बचाऊँ, उस को ब्या काढू' -वो आदमी लक्ष्मीपति रहा हूँ -तब असल में लक्ष्मी तत्त्व जागृत हो कि मेरे दो पैसे खर्च हो जाएँगे जिस आदमी नहीं है। जाता है। कन्जूस आदमी लक्ष्मी पति नहीं हो, सकता। जो कमल के जैसा उसका रहन-सहन, उसकी शक्ल कन्जूस है. वो कन्जूस हैं, तो लक्ष्मीपति नहीं है। होनी चाहिये। ऐसा आदमी सुरभित होना चाहिये कन्जूस आदमी दरिद्री होता है- महादरिद्री होता न कि उससे हर समय घमण्ड की बदबू आए । है। उसमें बादशाहत नहीं होती। जिस आदमी की अत्यन्त 'नम्र' होना चाहिये। कमल का फूल आपने तबियत में बादशाहत नहीं होती, उसे लक्ष्मीपति नहीं कहना चाहिये। जो आदमी बादशाह होता है, वह चाहे गरीबी में थोड़ी -सी झूकान जरूर डण्ठल में आ जाती है। देखा है उसमें हमेशा थोड़ी -सी झुकान रहती है। कमल कभी भी तनकर खड़ा नहीं होता. उसमें रहे चाहे अमीरी में रहे, वह बादशाह होता है। यह बादशाह के जैसा रहता है छोटी-छोटी चीज़ के पीछे, दो-दो कौडी के पीछे, इसके पीछे, उसके पीछे परेशान होने वाला लक्ष्मीपति नहीं हो सकता। इसीलिये लक्ष्मी-तत्त्व जागृत नहीं होता इसीलिये नाभि-चक्र की बड़ी जोर की पकड़ हो जाती है। उस आदमी के अन्दर Materialism (भौतिकवाद) आ जाता है । वह जड़वादी हो जाता है । छोटी-छोटी चीज़ का उसे बड़ा खयाल रहता है। ये मेरा, ये मेरा -ये मेरा बेटा है, ये मेरा फलाना है ये दविकाना- ये सारी चीज जिस आदमी में आ गई तो लक्ष्मीपति नहीं। इसकी चीज़़ मारूँ कि उसकी चीज मारू कि ये लँ कि बो लेँ, कि सब मेरे लिये होना। चाहिये- इस तरह से जो आदमी सोचता उसी प्रकार जो कम से कम लक्ष्मी जी के हाथ में जो कमल हैं दोनों में इसी तरह की सुकुमारिता होती है । दूसरों से बात करते समय बो बहुत ठण्डी तबियत से आनन्द से, प्रेम भरा इस तरह से बात करता है-झूठा नहीं होता, वो Plastic के नहीं होते हैं वो कमल, असल में होते हैं। ऐसा मनुष्य असल में कमल के जैसा होना चाहिये। एक हाथ से वो दानी होना चाहिए. उसके हाथ से दान बहते ही रहना चाहिए .बहते ही रहना चाहिए। हमने अपने पिता को ऐसा देखा है। पिता की बात हम देखते हैं, बहुत दानी आदमी थे बो देते ही रहते थे। उनके पास कुछ ज्यादा हो जाए तो है . बाँटते ही रहते थे। मजा ही नहीं आता जब तक तो दिसम्बर, 2004 वैतन्य लहरी 37 नवम्बर से न दबाए। जो बहुत ही नम्र होना चाहिये। जो दिखाते फिरते हैं हमारे पास ये चीज़ है, वो चीज़ है, फलाना है, ढिकाना है, वो लक्ष्मीपति नहीं हो मातृत्व' उनमें होना चाहिये। माँ का हृदय होना चाहिये, तब उसे लक्ष्मीपति कहना बाटे नहीं। अगर उनसे कोई कहता कि आप आँख उठाकर नहीं देखते जो आ रहा है वही उठा कर ले जा रहा है तो कहने लगते कि "मैं क्या देखें । जो देने वाला है दे रहा है, मैं तो सिर्फ बीच में खड़ा हूँ- दे रहा हूँ उसमें देखना क्या ? मुझे तो शर्म लगती है कि लोग कहते हैं कि तुम' दे रहे सकता। चाहिये। ये सब लक्ष्मीपति के लक्षण हैं और जब आप के चीज़ हो। इस तरह का दानत्व वाला आदमी जो होता है, जो अपने लिये कुछ भी संग्रह नहीं करता है. दूसरों को देता रहता है जो दूसरों को बांटता रहता आती है- 'सन्तोष' । ऐसे तो किसी चीज़ का अन्त है. देने में ही उसको आनन्द आता है. लेने में ही तहीं है, आप जानते हैं कि Economics नहीं-यह आदमी लक्ष्मीपति है जो अपने ही बारे में सोचता रहे- मेरा कैसे भला होगा, मेरे बच्चों का कैसे भला होगा, मैं कैसे अच्छा होऊँगा-ऐसे चाहत की तृप्ति नहीं होती)। आज आपके पास से आदमी को लक्ष्मीपति नहीं कहते। उसमें कोई है तो कल वो चाहिये वो है तो वो चाहिये. वो शोभा नहीं होती, वह असल में भिखारी होता है। चाहिये तो वो चाहिये। आदमी पागल जैसा दौड़ता और लक्ष्मीपति एक हाथ से तो आश्रय देता है, रहता है, उसकी कोई हद ही नहीं होती। आज अनेक को अपने घर में, जो भी आए, उससे अत्यन्त प्रेम से मिलना, उस से अत्यन्त प्रेम से, अपने बेटे लेकिन आदमी को सन्तोष आता है। उसे संतोष जैसे उसकी सेवा करनी आश्रय देना। उसके यहाँ अन्दर ये तत्त्व जागृत हो जाता है, तो पहली (अर्थशास्त्र) में कहते हैं, कोई भी wants satiable होती नहीं है in general (सामान्यतया कोई भी यह मिला, तो वो चाहिये वो मिला तो वो चाहिये। आ जाता है। जब तक आदमी को सन्तोष नहीं आएगा, वह किसी भी चीज़ का मजा नहीं ले सकता। क्योंकि 'संतोष जो है वह वर्तमान की नौकर-चाकर, घर में जानवर-अनेक लोग उसके आश्रय में होते हैं पर वो जानते है कि हमारा आश्रय दाता है। कोई हमें तकलीफ़ होयेगी वो हमें चीज़ है present की चीज़ है. और ' आशा' जो है देगा। रात को उठ कर के भी देगा, चुषके से करता है। वो ये बताता नहीं, जताता नहीं, दुनिया को Past (भूतकाल) की चीज है। आप जब सन्तोष में दिखाता नहीं कि मैंने उनके लिये इतना कर दिया, खड़े रहते हैं तो filly satiafied , ( पूर्णतया बो कर दिया-एकदन चुपके से करता है। परमात्मा भी हू-बहू ऐसा है। वो स्त्री स्वरूप, माँ जो आपको मिला हुआ है नहीं तो उनके पास, स्वरूप बनाया हुआ है- लक्ष्मीजी का स्वरूप। एक कमल पर लक्ष्मीजी खड़ी हो जाती हैं। आप सोचिये कि एक कमल पर खड़ा होना, माने आदमी में कितनी सादगी होनी चाहिये, बिल्कुल हल्का, उसमें ऐसा आदमी अपने जीवन का आनन्द नहीं उठा कोई दोष नहीं। कमल पर भी वो खड़ा हो सके-ऐसा सकता, कभी भी वो ऊँचा नहीं उठ सकता। रात -दिन आदमी उसे होना चाहिये, जो किसी को अपने बोझ रे Future (भविष्य) की चीज है, निराशा जो है ये सन्तुष्ट), तब आप पूरा उसका आनन्द उठा रहे हैं. कितना भी रहता है तो भी कहते हैं, अरे! उसके पास है-मुझे वो चाहिये। तो काहे को मिला है ? फिर वो मिल गया तो उसको वो चाहिये । कभी भी उसकी नज़र जो है ऐसी ही बढ़ती रहेगी, जो चीजें दिसम्बर 2004 चैतन्य लहरी 38 नवग्बर बिल्कुल व्यर्थ हैं. जिनका कोई भी महत्त्व नहीं रहते थे, कहाँ रहते थे। जिनका जीवन में कोई महत्त्व नहीं, जिनका अपने इसलिये, जो गुरुजन हो गए हैं. उन्होंने शराब और जीवन के आनन्द से कोई भी सम्बन्ध नहीं, ऐसी ऐसी चीजो को एकदम मना किया है । अब, शराब तो इतनी हानिकर चीज है कि इस तरफ से अगर चीज़ के पीछे वो भागता है। पर पहले योग घटित होना चाहिये- फिर क्षेम बोतल आई. शराब की, उस तरफ से लक्ष्मी जी होता है। हमारे सहजयोग में- यहाँ पर भी अनेक लोग आये हुये हैं जो कि हमारे साथ सहजयोग में शराब की बोतल अन्दर आ गई. उधर से वो चली रहे और जिन्होंने पाया और इसमें प्रगति की है। इनकी सबकी Financial (आर्थिक) प्रगति हुई मिल सकता। जिनके घर में शराब चलती है. उनके है। सबकी- A to Z । कोई-कोई लोगों के पास तो लाखों रुपया आया। जिनके पास एक रूपया उनके यहाँ पैसा होगा, लड़के रुपया उड़ाऍँगे, बीवी नहीं था उनको लाखों रुपया मिला। ऐसे भी लोग भाग जाएगी- कुछ न कुछ गड़बड हो जाएगा। हमारे यहाँ हैं जिन्होंने- अब देखिये, अभी भी जो बच्चे भाग जाएँगे-कुछ न कुछ तमाशे होंगे आज आए हुए हैं अंग्रेज लोग वो India (भारत) आना तक एक भी घर आप मुझे बतायें, जहाँ शराब चाहते थे, तो इन्होंने कहा कि कैसे जाएँ ? पैसा तो चलती है और लोग खुशहाल हों। खुशहाल हो ही है इन के पास इनकी भी बड़ी प्रगति हो गई। नहीं सकते खुशहाली शराब के बिल्कुल विरोध में वैसे भी इनको बहुत पैसा -वैसा मिल गया और रहती है। काफी आराम से रहने लगे वो जब आने लगे तो इसीलिये गुरुजनों ने जो मना किया-खास कर इन्हें एक Firm (संस्था) ने कह दिया, अच्छा ,तुम हरएक ने; क्यों किया ? हमकों सोचना चाहिये। मुफ्त में जाओ, हम तुम्हारा पैसा दे देंगे क्योंकि चली गई-' सीधा हिसाब। उन्होंने देखा कि आपकी गई ऐसे आदमी को कभी भी लक्ष्मी का सुख नहीं धर में लक्ष्मीजी का सुख नहीं हो सकता। हॉं. आखिर वो लोग कोई पागल नहीं थे। उन्होंने हजार बार इस चीज़ को मना किया कि 'शराद छोटी-छोटी चीज़ में परमात्मा मदद करता है। पीना बुरी बात है शराब मत पियो, शराब मत और इतना रुपया आपके पास बच जाता है कि पियो।' शराब तो एक ऐसी चीज है कि ये भगवान आपको समझ नहीं आता कि क्या करूँ ये लोग ने पीने के लिये तो कभी भी नहीं बनाई थी पॉलिश पहले लेते श्रे, शराब लेते थे और दुनिया भर की करने के लिये बनाई थी- पॉलिश कंरने के लिये| कल लोग फिनायल' पीने लगेंगे! क्या कहें आंदमी था। अब मैने देखा है कि इनके घर अच्छे हो गए के दिमाग को! कुछ भी पीने लग जाएं तो कौन क्या कर सकता है ? आदमी का दिमाग इतना (सगडीत) सुनते हैं, सब अच्छे-अच्छे शौक इनके चौपट है कि कोई भी चीज़ उसकी समझ में आ जाए, पीने लग जाएगा। उसे किसने कहा था शराब तुम हमारा यह काम कर देना। चीजे करते थे। उसमें बहुत रुपया निकल जाता हैं, घरों में सब चीजें आ गई, अच्छे से सब Music अन्दर आ गए सब बढिया तरीके से रहने लग गए। इनके बाल-बच्चे अच्छे हो गए मैने पूछा, पीने के लिये ? "यह कैसे हुआ ?' कहने लगे कि हम सारा पैसा अब ये पॉलिश की चीज़ आप शराब के नाम से जब बर्बाद करते थे,हमें होश ही नहीं था कि हम कैसे पीते हैं तो आपके भी जितने भी Liver नवम्बर - दिसम्बर 2004 चैतन्य लहरी 39 जो हमारे धर्म हैं. जो कि गुरुओं ने बनाए हैं, ये दस धर्म हमारी नाभि में होते हैं इसीलिए इन गुरुओं ने मना किया हुआ है कि आप अपने धर्मो को बनाने के लिये, पहली चीज है-शराब या कोई सी भी ऐसी आदत न लगाएं जिससे आप उसके गुलाम हो जाएँ। अगर आपको ये गुलामी करनी है, तो आप (जिगर,Intestines (अन्तडियोँ हैं, सब पॉलिश हो जाते हैं यहाँ तक कि Arfteries (धर्मनियाँ) आपकी पॉलिश होकर के Stif ( सख्त) हो जाती हैं।Arteries इतनी Stif हो जाती हैं कि उसकी जो स्नायु है वो अपने को स्थितिस्थापक नहीं बना सकते । माने, न तो वो बढ़ सकते हैं, न घट सकते हैं-बस जमते ही जाते है। Arteries जो हैं एकदम एक size की स्वतन्त्रता की बात क्यों करते हैं। लोग तो सोचते हो जाती हैं तो खून भी नहीं चल पाता खून भी हैं कि गुलामी करना ही स्वतन्त्रता है। आपको अटक जाता है जब कोई भी दबाव न हो, उसके अगर कोई मना करे कि बेटे शराब नहीं पियो तो ऊपर में कोई फुलाव न हो और एकदम नली जैसे लोग सोचते हैं कि देखो, ये मुझे रोकते हैं टोकते वन जाए Arteries तो उसमें क्या होगा ? ऐसा हैं मेरी" स्व-तन्त्र ता" छीनते हैं। मनुष्य इतना पॉलिश का पुट चढ़ता जाता है जिसकी कोई हद पागल है। उसको मना इसलिये किया जाता है कि नहीं, और मनुष्य भी पॉलिश बन जाता है। ऐसा आदमी बड़ा कृत्रिम होता है। ऊपर से बड़ी अच्छाई दिखाएगा। शराबी आदमी है; ऊपर से-वाह ! उसको विचारना चाहिए-न कि उसको रटते बैठना बड़ा शरीफ है,बड़ा दानी है, ऐसा है. वैसा है । सब चाहिए, सुबह से शाम तक। उसको विचारना चाहिए. ऊपरी चीजें जो अपने बीवी बच्चों को भूखा मार उसको सोचना चाहिए कि उन्होंने ऐसी बात 'क्यों सकता है. जो अपने बीवी बच्चों से ज्यादती कर कही; कोई न कोई इसकी वजह हो सकती है। ऐसे सकता है, वो आदमी कितना भी भला बाहर करके इतने बड़े ऊँचे लोगों को ऐसी बात कहने की घूमे उसका क्या अर्थ निकलता है.बताइये ? इसलिये जरूरत क्या पड़ी थी ? क्यों इस चीज को बार-बार शराब की इतनी मनाही की गई है, इतनी मनाही उन्होंने मना किया है ? ये सोचना चाहिए और कर गए हैं, सो किस लिये कर गये हैं ? अब मुसलमानों को इतनी मनाही है शराब की बैठकर सोचे तो वह समझ सकता है कि इस कदर लेकिन उनसे ज्यादा कोई पीता ही नहीं । क्यों गर्दी ये चीजें हम लोगों ने अपना ली हैं, जिस के मनाही कर गए ? सोचना चाहिये। मोहम्मद साहब कारण हमारे यहाँ से लक्ष्मी-तत्व चला गया है। जैसे आदमी क्यों मनाही कर गए ? नानक साहब इंग्लैंड से तो लक्ष्मी-तत्व बिल्कुल पूरी तरह से इतनी मनाही कर गए- सिक्खों से ज्यादा तो चला गया है। यहाँ पर लक्ष्मी-तत्व है ही नहीं, और लंदन में कोई पीता ही नहीं । उनके आगे तो अंग्रेज जागृत करना भी बहुत कठिन है। बेटे, तुम उसकी गुलामी मत करो'। जब कभी कोई बात बड़े लोग बताते हैं तो विचारना चाहिए और कोई भी मनुष्य जरा सा भी क्योंकि लक्ष्मी-तत्व जो है, वो ही परमात्मा हार गए। है कि नहीं बात ? कौन-से धर्म में शराब को अच्छा कहा है ? कोई भी धर्म में नहीं कहा । के कोच का पाया है। नाभि में ही विष्णुजी का जो लेकिन सब धर्म में लोग इतना ज्यादा पीते हैं और स्थान है, और विष्णु या जिसे हम लक्ष्मी, उनको जो गुरुओं का अपमान करते हैं। हमारी सारी नाभि चक्र और उसके चारों तरफ दस है जब हम Amoeba (अमीबा) में रहते, तो हम शक्ति मानते हैं - इसी में हमारी खोज शुरू होती दिसम्बर, 2004 नवम्बर चैतन्य लहरी खाना खोजते थे। जरा उससे बड़े जानवर हो गए चारों तरफ धर्म' है। मनुष्य के दस धर्म बने हुए हैं। तो और कुछ खाना पीना और संग-साथी ढूँढते अब आप Modern (आधुनिक) हो गए तो आप सब हैं। उसके बाद हम इन्सान बन गए तो हम सत्ता धर्म उठाकर चूल्हे में डाल दीजिए। भई आप खोजते हैं। हम इसमें पैसा खोजते हैं। बहुत से Modern हो गए। क्या कहने आपके ! लेकिन ये लोग तो खाने-पीने में ही मरे जाते हैं। बहुत-से लोग तो सुबह से शाम तक क्या वहाँ हैं। अगर मनुष्य के दस धर्म नहीं रहे, तो वो खाना है, क्या नहीं खाना है, ये करना है, वो करना राक्षस हो जाएगा। जैसे ये सोने का धर्म होता है। इसी में सारे बर्बाद रहते हैं। जिन लोगो को कि ये खराब नहीं होता, इसी तरह से आपके अन्दर अति खाने की बीमारी होती है, वो भी लक्ष्मी-पति जो दस धर्म हैं, बो आपको बनाए रखने हैं - जो कैसे ? वो तो भिखारी होते हैं. इनका तो दिल ही मानव धर्म हैं । अगर इन धर्मों की आप अवहेलना नहीं भरता। एक मुझे कहने लग गई - एक हमारे करें - और उसके उपधर्म भी हैं लेकिन में दस यहाँ बहु आई थीं रिश्ते में, कहने लगीं कि मेरे बाप धर्म आपने सम्भालने हैं, गर वो आप दस धर्म न के यहाँ ये था, वो था। 'अरे ! मैंने कहा, तुम में संभालें - तो आपका कभी भी उद्धार नहीं हो तो दिखाई देना चाहिए। तुम्हारे अन्दर तो जरा भी सकता, कभी भी आप पार नहीं हो सकते पहले, सन्तोष नहीं। तुम्हें कि ये खाना चाहिए, तुमको वो जब तक आप खाने को चाहिए: घूमने को चाहिए । कोई सन्तोष आप धर्मातीत' नहीं हो सकते - धर्म से ऊपर नहीं तुम्हारे बाप ने दिया कि नहीं दिया तुमको ? अगर उठ सकते पहले इन धर्मो को बनाना पड़ता है वाकई तुम्हारे बाप इतने लक्ष्मीपति थे तो कुछ तो और इसीलिए इन गुरुओं ने बहुत मेहनत की, बहुत तुम्हारे अन्दर सन्तोष होता ! "मिला तो मिला. मेहनत करी है। इनकी मेहनत को हम लोग बिल्कुल नहीं तो नहीं मिला।" जब ये स्थिति मनुष्य में आ जाती है। तो आपके अन्दर दसों धर्म हैं ही ये स्थित' हैं. ये 1 धर्म को नहीं बनाते हैं, तब तक मटियामेट कर रहे हैं, अपनी अक्ल की वजह से। सब इनको खत्म कर रहे हैं। "इन धर्मों को बनाना जब उसकी सत्ता खत्म हो गई, जब उसको समझ हमारा पहला परम कर्त्तव्य है।" में आया कि सत्ता में नहीं रहा, पैसे में नहीं रहा, किसी चीज़ में उसे वह आनन्द नहीं मिला. जिसे हैं, उनको आपसे या धर्म से कोई मतलब नहीं है खोज रहा था, तब आनन्द की खोज हो जाती 'आप शराब पीते हैं ? लेओ और हमको भी एक है। वो भी नाभि चक्र से ही होती है इसी खोज के बोतल लाओ रात को कोई हर्जा नहीं। अच्छा. आप लेकिन आजकल के जो गुरु निकले हुए शुरू कारण आज हम Amoeba (अमीबा)से इन्सान बने। औरतें रख रहे हैं ? तो ठीक है, दस औरतें रखिए और इसी खोज के कारण, जिससे हम परमात्मा और एक हमारे पास भी भिजवा दीजिए, या अपने को खोजते हैं, हम इन्सान से अतिमानव होते हैं। बीवी-बच्चे हमारे पास भेज दीजिए आपकी जेब में "आपा' को पहचानते हैं। आत्मा को पहचानते हैं - इसी खोज से। इसीलिए लक्ष्मी-तत्व बहुत ज़रूरी से कोई मतलब नहीं। आपको जो भी धन्धा करना चीज है। जितना रुपया है, हमारे पास दे दीजिए - हमें आप है करें। आपके बस पर्स में जितना पैसा है इधर और लक्ष्मी-तत्व जो बैठा हुआ है, उसके जमा कर दीजिए, फिर आप चाहे जैसा करें ! आज 40 दिसम्बर, 2004 चैतन्य लहरी नवम्बर 41 ही एक किस्सा है, बता रही थीं हमारे साथ आई जमीन पर भी सो सकता है, वो चाहे राजमहल में हुई हैं कि इनकी बहन, राजकन्या है वो भी, और भी रह सकता है। वो जैसा रहना चाहे, रहे। उसे उनके पति बहुत शराबी, कबाबी, बहुत बुरे आदमी आपसे कोई मतलब नहीं। उसको तो सिर्फ आपके थे। और वो एक गुरु के शिष्य थे। इन्होंने जाकर प्यार' से, आपकी 'श्रद्धा से और आपकी 'खोज' उनसे बताया कि ये आदमी मारता है, पीटता है, से। अगर आपको खोज है तो सर आँखों पर सताता है. औरत रख ली है। उससे कुछ कहो। वो आपको उठा लेगा ऐसे गुरु को खोजना चाहिए. औरतें रखता है। और राजकुमार है, लेकिन क्या जो आपको परमात्मा की बात बताए, जो आपकी करें उसका इतना खराब हों रहा है। तो कहने लगे आत्मा की पहचान कराए। 'जो मालिक से मिलाएं कि रहने दो. तुमको क्या करना है ? उनसे रुपए वही गुरु माना हुआ है ऐंटते गए, रुपया ऐंठते गए। गुरुजी को मतलब उनके रुपए से ! ये कोई गुरु हुए जो आपसे रुपए ऐंठते हैं? आप को देते हैं। जो आदमी आपको अंगूठी निकाल आपके हो ही कैसे सकते हैं ? जो आपके पैसे कर देता है, बो क्या परमात्मा की बात करता जिसे दिखे, उसकी को गुरु ! ये तो अगुरु भी नहीं है - राक्षस हैं, राक्षस' ! अंगूठियाँ निकालकर गुरु के बूते पर रहते हैं। ये तो Parasites हैं। आपके होगा? आपका चित्त अंगूठी में डालता है, आपको नौकरों से भी गए गुजरे हैं। कम से कम आपके दिखाई नहीं देता ? एक है नौकर आप का कुछ काम करते हैं। जो लोग सिखा रहे हैं - अधर्म सिखा रहे हैं। कौन-से धर्म आपसे रुपया ले करके जीते हैं, ऐसे दुष्टों को तो में लिखा है इस तरह की चीज़ ? दूसरे आजकल बिल्कुल राक्षसों की योनी में डालना चाहिए और के गुरुओं के बारे में यह भी जानना चाहिए कि ऐसे दुष्टों के पास जाने वाले लोग भी महामूर्ख हैं. अपने ही ढँग से कोई चीज़ निकाल ली है। इनका मैं कहती हूँ। वो देखते क्यों नहीं ? क्या आप पहले के गुरुओं के साथ कोई नहीं मेल बैठता। 'वो' परमात्मा को खरीद सकते हैं ? क्या आप किसी जैसे रहते थे, जैसी उनकी गुरु को खरीद सकते हैं ? अगर कोई गुरु हो तो उनका बर्ताव था जो उनकी बातें थीं उनके इनका क्या यो अपने को बेचेगा ? उसकी अपनी एक शान होती है उसको आप खरीद नहीं सकते। कोई भी चाहे। एक ही रहे हैं, जिसको कि आप कह सकते हैं कि किसी चीज से आप उसको मात कर सकते हैं । आपके भी धर्ग में लिखित वही चीज़, वही चीज कही जाती प्यार से, आपकी 'श्रद्धा' से, आपके प्रेम से है। अपने शंकराचार्य को पढ़े तो आप सहजयोग भक्ति से। और किसी चीज से वो वश में आने समझ लेंगे, आप कबीर को पढ़ें, आप सहजयोग वाली चीज़ नहीं है उसकी अपनी एक 'शान' होती समझ लेंगे, नानक को पढ़े, आप समझ लेंगे; मोहम्मद है। तो अपनी एक प्रतिष्ठा' में रहता है। उसकी को पढ़े आप समझ लेंगे, Christ को पढ़े तो समझ एक बादशाहत' होती है । उसको क्या परवाह लेंगे; कन्फ्यूशियस और सुकरात से लेकर सबको होगी? आप हैं रईस तो बैठे अपने घर में । उसको देखें तो सहजयोग ही सिखाते हैं । और ये जो सब वो अधनंगा नाचना सिखावन थी, जैसा कोई मेल नहीं बैठता। अपने धर्म के जो अनेक इतिहास चले आ 1 क्या ? वो पत्तल में भी खा सकता है. वो चाहे आपको सर के बल उड़ना और फुलाना और to नवम्बर - दिसम्बर, 2004 चैतन्य लहरी डिकाना और दुनिया भर की चीज़ आपको नचा-नचाकर मारते हैं - इनको कैसे आप गुरु में और इसमें और उसमें सब कुछ छापा था मान लेते हैं ? "एक ही गुरु की पहचान है - जो साल पहले छापा था। कहने लगीं. हम ने पढ़ा, पर "मालिक को मिलाए, वही गुरु है और बाकी गुरु वह सब झूठ है। हमने कहा, झूठ है । तो. आपको नहीं।" पच्चीस और लड़कियों ने Bitz (ब्लिट्ज़ एक पत्रिका) दस क्या मिला उनसे ? तो उनको बड़ा बुरा लग गया। पटड सत्य पर अगर आप खड़े हुए हैं, तो कहने लगीं, 'मैं तो शादीशुदा औरत हूँ, मैं ऐसी. मैं आपको इसी चीज को देखना इतना Superficial (उथला) हो गया है कि वो जाना ही क्यों ?' लेकिन यह नहीं कि वो औरत सर्कस' को देखता है। कितने ताम-झाम लेकर के बदमाश है. आदमी । लेकिन इन्सान वैसी हूँ। फिर मैंने कहा ऐसे आदमी के दरवाजे ये नहीं कि बो खराब औरत है। पर उस घूम रहा है। कितनी हँडियाँ सर पर रखकर पर Hypnosis (सम्मोहन) है, Hypnotised चल रहा है । बाल कैसे बनाकर चल रहा है। क्या (सम्मोहित)। कोई उनको Freedom (स्वतन्त्रता) सींग लगा कर चल रहा है। "गुरु की सिर्फ एक नहीं। गुरु बैठेंगे सात मंजिल फर जाकर ! आप ही पहचान है, कि वो सिवाय मालिक के और कोई जाइए, वहाँ पर 'सेवा करिए ! इतनी बड़ी -बड़ी बात नहीं जानता। उसी में रमा रहता है। वही गुरु, पेटियाँ रखी रहेंगी उसमें आप पैसा डालिए। सेवा माने आपसे ऊँचा इन्सान है।" लेकिन जिनको आप खरीदते हैं, बाज़ार में, पैसे भर-भरकर ले जाते हैं, वहाँ डालने के लिए । जिनको आप पैसा देते हैं. जो आपको बेवकूफ यह आप देख लीजिए, कहीं भी जाकर के इतनी बनाते हैं, जो आपको Hypnotise (सम्मोहित) करते बड़ी-बड़ी ट्रंकें रखी रहेंगी। अरे! हमारे भी पैर का मतलब है - पैसा डालिए ! और लोग घर से हैं, उनके साथ आप बंधे हुए हैं, तो इस तरह के छूते हैं तो कोई एक रूपया दे जाता है, कभी पॉँच लोगों को क्या कहा जाए ? और इस कलियुग मे, इस घोर कलियुग में, तो ऐसे अनेक, अजीब तरह के एक-एक नमूने हैं मैं आपको बताऊँ किसका वहां भी सवा रुपया चढ़ाओ। और इसी चक्कर की वर्णन करूँ, किसका कहूँ। ऐसे कभी न गुरु हुए, होंगें, मेरे खयाल से जिस तरह से हो रहे हैं गई हैं। ऐसी कोई जगह नहीं छोड़ी जो पवित्र रुपया रख जाता है ! मुझे आती है हँसी । मतलब आदत पड़ गई है न हनुमान जी के मन्दिर जाओ, न वजह से हर जगह गड़बड़, हर जगह गड़बड़ हो जगह रह गई हो। आजकल । और इसी चक्कर की वजह से हमारे जो जवान बेटे हैं, जो 'जवान लोग हैं, सोचते हैं कि पर वो ऐसी चिपकन होती है उस चीज की कि अभी एक देहरादून से एक देवी जी आई थीं । उनकी कुण्डलिनी एकदम ऐसे जमी हुई थी। तो परमात्मा है कि तमाशा है ये सब ? क्योंकि वो तो मैंने कहा कि तुम कौन गुरु हैं न, अभी साबुत हैं दिमाग बड़े इससे बताया कि उनके पास गई! मैंने कहा उनके। उनको अविश्वास हो रहा है। सारे धर्मों में कि 'आपने उसके बारे में पेपर में पढ़ा कि नहीं पढ़ा ये हो गया है, आपको आश्चर्य होगा। के पास गई ?' उन्होंने अपनी बृद्धि रखते ? एक अठारह साल की लड़की के साथ उन्होंने जो Algeria (अल्जीरिया) से हमारे पास आए भी गड़बड़ किया था, उस लड़की ने और थे एक साहब-जवान हैं. बहुत होशियार और कुछ पैतन्य लहरी दिसम्बर 2004 नवम्बर 43 इंजीनियर थे। वो भी इसी आन्दोलन में कि ये कि आपको मैं लैक्चर देती रहूँ सुबह किस कदर रे, मुसलमान और ये Fanaticism लैक्चर से तो मेरा गला थक गया। अब पाने की (धर्मान्धता) इन में है और इस तरह से ये लोग बात है कि कुछ पाओ, 'आत्मा' को पाओ। बहुत-से दुष्टता करते हैं और ये मुल्ला लोग हैं, सब पैसा लोग ऐसे भी मैंने देखे हैं 'हमें तो कुछ हुआ नहीं खाते हैं और सब (जनता) के पैसे पर जीते हैं और माताजी' माने बड़े अच्छे हो गए! 'होना चाहिए'। अपने को बड़ा महान समझते हैं और सब लोग उनके सामने झुकते हैं फिर उन्होंने Pope (पोप) को भी देखा। वो भी एक नमूना हैं। तो बिल्कुल शाम तक। अगर नहीं हुआ तो कुछ गड़बड़ है आपके अन्दर | कोई न कोई तकलीफ है. आप बीमार हैं, आप mentally (मानसिक रूप से) ठीक नहीं हैं, आप ने है। अविश्वास से भरकर आए। उन्होंने कहा कि ये सब धोखा है। इसमें कोई अर्थ नहीं -सब इझूठ है। यो कोई गलत गुरु के सामने अपना मत्था टेका हमारे पास आए तो हमने कहा कि "जब सत्य है अगर आपने अपना मत्था ही, जो कि परमात्मा ने तभी उसका झूठ निकलता है।" जब सत्य होता है इतनी शान से बनाया है. इसको किसी गलत तो उसी के आधार पर लोग झूठ बनाते हैं न। सत्य आदमी के सामने टेक दिया है तो खत्म हो गया भी कोई चीज़ है। Absolute भी कोई चीज़ है 'अच्छा हमने कहा, तुम देखना सहजयोग में । करना चाहिए। गलत बात है। । मामला। आपको हमें भी अन्धता से नहीं विश्वास "सहजयोग जो है, ये धर्मान्धता और हम चाहते हैं कि आप पाओ और उसके बाद भी अविश्वास के बीचोंबीच है, जहाँ परमात्मा साक्षात् अगर आपने अविश्वास किया तो आपसे बड़ा मूर्ख आपसे मिलते हैं। आप स्वयं इसका साक्षात करें, कोई नहीं। और उसके बाद भी अगर आप जमे इस का अनुभव करें, इसमें जमें। जब तक आप नहीं, तो आपके लिये क्या कहा जाए ? सहज योग में जमते नहीं, तब तक आप पूरी तरह से इसका अनुभव नहीं कर सकते। जो जम गए,. के बाद आप देखिये कि आपकी पूरी शक्तियाँ जो उन्होंने पा लिया, मिल जाता है। जिन खोजा तिन 7. जब आप पा लेते हैं तो इसमें जमिये । और जमने भी है, उस तरह से हाथ से बहुती हैं और आप फिर पाइया।' पर खोजा ही नहीं तो कोई आपके पैर पर तो सत्य बैठने नहीं वाला कि 'भई मुझे खोज उसकी अपनी प्रतिष्ठा है । उसको खोजना चाहिए सुख दे सकते हैं। और ये किस तरह से लेकिन उसको खोजने से सत्य से आनन्द उत्पन्न पड़ता है ? ये आप होता है। सत्य और आनन्द दोनों एक ही चीज हैं, धीरे-धीरे ,जैसे -जैसे इसमें गजरते जाते हैं आप एक ही चीज़ हैं दोनों। जैसे चंद्र की चन्द्रिका होती खुद इसको समझते हैं। है या जिस तरह से सूर्य का उसका अपना प्रकाश अब इनमें से बहुत-से लोग हैं, छः महीने पहले होता है, उसी प्रकार सत्य और आनन्द दोनों चीजें हमारे पास आए। सिर्फ छः महीनें पहले हमारे एक साथ हैं। जब आप सत्य को पा लेते हैं, पास में आए। अब ये. डॉ. बरजोर्जी साहब हैं। ये तो आनन्द-विभोर हो जाते हैं, आनन्द में रममाण हमारे पास छः महीने पहले आए और ये बहुत बड़े हो जाते हैं । लेकिन ये सिर्फ लैक्चरबाज़ी नहीं है डॉक्टर हैं लन्दन के. इसके अलावा जर्मनी में भी दूसरों को भी इस आनन्द को दे सकते हैं। दूसरों । को भी ये 1 घटित होता है ? कैसे बन दिसम्बर, 2004 चैतन्य लहरी नवम्बर 44 हो जाता है न, वैसी लाइट है, जिसे स्पार्क (चिंगारी) Practice (व्यवसाय) करते हैं। जब से इन्होंने पाया है इसके पीछे पड़े हैं। तब से कैँंसर ठीक बोलते हैं। इसलिये जिस जिस को लाइट दीख किये हैं, दुनिया भर की बीमारियाँ ठीक की हैं और रही हो, वो मुझे बताएँ-आज्ञाचक्र टूटा है उस अब कहते हैं कि इसको पाने के बाद सब कुछ आदमी का। उसको ठीक करना पड़ेगा। irrelevent (असंगत) लगता है। क्योंकि 'जब आप ये सारे चक्र भी कुण्डलिनी अपने से ठीक करती बिल्कुल सूत्र पर ही काम करने लग गए, जब चलती है। "वो आपकी माँ है", आप हरएक की आपने सूत्र को ही पकड़ लिया, तो फिर बाकी चीजें अलग-अलग माँ हैं, वो आप जिसको सुरति कहते हिलाना कुछ मुश्किल नहीं । इस प्रकार आप सब' इसके अधिकारी हैं, इसीलिये चढ़ती है और अपने आप आपको ठीक करके वहाँ इसे सह-ज (सहज) कहते हैं। सह' माने आपके पहुचाँ देती है। आप में अगर कोई दोष है. वो भी साथ, 'ज' माने पैदा हुआ। आप भी इसके हम समझ सकते हैं। वो भी वो बता देती हैं कि अधिकारी हैं- हर एक आदमी इसका अधिकारी है क्या दोष ठीक हो सकता है, कोई गलती हो गई और इसको पा लेना चाहिये। जैसे एक दीप दूसरे वो भी ठीक हो सकती है। लेकिन अपने को दीप को जला सकता है, उसी प्रकार एक Receptive mood (प्राप्ति इच्छुक स्थिति) में रहना Realized Soul (साक्षात्कार प्राप्त) दसरे को चाहिये- कि 'हम इसे ले लें, प्राप्त कर लें और 'हो' Realization (साक्षात्कार ) दे सकता है। लेकिन जाएँ। Realized Soul होना चाहिए। अगर एक दीप अब कल भी एक बात जो उठी थी, वह आज भी जला हुआ ही न हो, तो दूसरे दीप को क्या करेगा? दिमाग में किसी के उठ रही है कि कुण्डलिनी जब दूसरा दीप जल जाता है तो वो तीसरे को Awakening (जागृति) तो, लोग कहतें हैं, कि बडी जला सकता है। इसी प्रकार ये घटना घटित होती मुश्किल चीज़ है, बड़ी कठिन चीज है, यह कैसे है. और आदमी के अन्दर लाइट (प्रकाश) आ जाती होती है। इसमें कोई नाचते हैं, कोई बन्दर जैसे है। हैं, वही यह सुरति है। और यह अपने आप से 1 1 नाचते हैं, कोई कुछ करते हैं । कुछ भी नहीं होता! अब लाइट आने का मतलब यह नहीं कि आप हमने हजारों की कुण्डलिनी जागृत की हैं और पार Light देखते हैं। यह भी एक दूसरी एक अजीब- सी किया हुआ है। ऐसा कभी भी नहीं होता है। चीज़ है कि लोग लाइट देखना चाहते हैं। 'देखना जो परमात्मा ने आपके उद्धार के लिये चीज़ रखी जब होता है. तब वहाँ आप नहीं होते। जैसे कि समझ लीजिये कि आप अब बाहर हैं, तो आपको कोई भी दुःख नहीं देती। उल्टे आपको वो हुई है, आपके पुनर्जन्म के लिये आपकी माँ है. वह "अत्यन्त सुखदायी' है। कैंसर जैसी बीमारी कुण्डलिनी आप इस Building (भवन) को देख सकते हैं, लेकिन जब आप अन्दर आ गए. तो क्या देखियेगा? के Awakening (जागृति) से ठीक होती है। सारी कुछ भी नहीं! तब तो सिर्फ आप होते मात्र हैं, आप बीमारी आपकी ठीक हो सकती हैं। इसी तरह की देखते नहीं हैं कुछ। जहाँ-जहाँ देखना होता है तो बड़ी भारी 'देवदायिनी, आशीर्वाददायिनी', इस तरह सोंचना कि आप अभी बाहर हैं। लाइट जो लोगों की बड़ी भारी शक्ति आपके अन्दर में हैं। इस तरह को दिखाई देती है, वो Short circuit(फयूज उड़ना) की गलत धारणाएँ कर लेना, कि हम बन्दर चैतन्य लहरी दिसम्बर, 2004 नवम्बर 45 हो जाएँगे, मेंढक हो जाएँगे-आपको अतिमानव जो बनाने वाली चीज है, तो आपको क्या मेंढक बनाएगी? कि कौन असल है और कौन नकल है गाँव के लोगों में नब्ज़ होती है इस चीज़ को पहचानने की। वो समझते हैं, कि ये आदमी नकली है और ये उसके आदमी असली है। इस चीज़ को आप समझ लें। अब 'यह कठिन होता है लिये कठिन है जो बेवकूफ है, जिसको मालूम नहीं, पर शहर के लोग तो आप जानते हैं, कृत्रिम हो जो इसका अधिकारी नहीं, उसके लिये कठिन है । जाते हैं । Artificially जो इसका अधिकारी है, जो इसके सारे ही पहचान नहीं होती और इसलिये भी जितने चोर ढंग काम-काज जानती है. उसके लिये यह बाएँ हाथ के लोग हैं, ये सब आपके शहर के पीछे लगे हैं। का खेल है हो सकता है कि हम इसके अधिकारी ये सारे शहरों में आते हैं. गाँव में कोई नहीं काम हैं और हम इसके सारे काम काज जानते हैं, करता। क्योंकि आपके जेब में पैसे होते हैं, आपकी इसीलिये आसानी से हो जाता है। "बहरहाल जेब से उनको मतलब हैं। वो क्यों गावँ में जाएँगे? आप अपनी आँख से भी देख सकते हैं, इसका सहजयोग हमारा गाँव में चलता है। असल में शहर चढ़ना भी देख सकते हैं। और इस की हम लोगों में तो हम यों ही आते हैं लेकिन हमारा काम तो ने फिल्म-विल्म भी बनाई है। पर जो लोग बहुत गाँव में ही होता है। गाँव के लोग सीधे-सादे, शंकापूर्ण होते हैं, उनके लिये सहजयोग जरा सरल, परमात्मा से सम्बन्धित लोग होते हैं,. वो मुश्किल से पनपता है। इस चीज़ को पाना चाहिये इसको और इसको लेना चाहिये। आजकल जो ज़माना आ गया है, जिस जमाने में लेकिन शहर के लोगों में एक तो शहर की आबोहवा हम रह रहे हैं- कलियुग में, असल में हम ये की वजह से और यहाँ के तौर-तरीकों की वजह से कहेंगे कि आध्यात्मिक दृष्टि से हम लोग बहुत ही आदमी इतना अपने को बदल देता है, इस कुदर ज्यादा, बहुत ही ज्यादा कमज़ोर है। Insensitive अपने को धर्म से गिरा देता है- "अब ये इसमें क्या अर्थात संवेदना हमारे अन्दर नहीं है। हम आध्यात्म हुआ साहब, सब लोग पीते है Business के लिये की चीज को अगर समझते होते और अगर समझते पीना चाहिये। "मानो जैसे Business ही भगवान कि आत्मा की पहचान क्या है. तो हम कभी भी है। "उसको तो पीना ही चाहिये, फिर उसके गलत गुरुओं के पीछे नहीं भागते। लेकिन हमारे अलावा Business कैसे चलेगा।" अन्दर सच को पहचानने की शक्ति, बहुत कम हो या तो फिर ये कहो कि तुम परमात्मा में या धर्म में गई है, क्षीण हो गई है। हम यह नहीं पहचान बिल्कुल विश्वास नहीं करते और अगर ज़रा भी सकते, कि सच्चाई क्या है! उसकी वजह यह है विश्वास करते हो, तो जो अधर्म है. इसको नहीं कि इतने कृत्रिम हो गए हैं, इतने artificial (कृत्रिम) करना चाहिये। कोई जरूरत नहीं किसी को पीने हो गए- आप artificial हो जाइएगा तो आपकी की। ये भी एक गलतफहमी है कि Business के सत्य को पहचानने की शक्ति कम हो जाएगी। ! तो , रहते हैं, इसलिये सत्य की आसानी से पा लेते हैं। उनको एक बहुत क्षण भी नहीं लगता। लिए करना पड़ता है, इसके लिये। जो आदमी पर जैसे गाँव में, अभी भी मैं देखती हैं कि गाँव में अपने को धोखा देना चाहता है उसे तो कोई नहीं लोग एकदम पहचान लेते हैं। वो पहचान लेते हैं कचा सकता। दिसम्बर, 2004 46 चैतन्य लहरी नवम्बर हमारे पति भी आप जानते हैं सरकारी नौकरी में छोटा-सा. उससे इन्सान बनाना कितनी कठिन रहे हैं उन्होंने बहुत बड़ी (जहाजी) कम्पनी चलाई. उसके बाद आज भी बहुत बड़ी जगह पर पहुॅचे हुए योनियों में से गुज़ार के. आज आपकी जैसी एक हैं। मैंने उनसे एक बात कही कि शराब मेरे बस की सुन्दर चीज़ परमात्मा ने बनाकर रखी है। फिर नहीं और जिन्दगी भर उन्होंने छुई नहीं, एक बूँद आपको उसने freedom दे दी, स्वतन्त्रता दे दी कि भी और भगवान की कृपा से बहुत successful तुम चाहो तो अच्छाई को वरण करो और चाहो तो (सफल) हैं। सब उनको मानते हैं, सब उनकी इज्जत करते हैं । आज तक किसी शराबी आदमी हो। तुम्हें बुराई को अपनाना है चलो बुराई करो, का कहीं पुतला बना है कि ये महान् शराबी थे। अच्छाई को अपनाना है अच्छाई करो। मुझे एक भी बताएँ, एक भी देश इंगलैण्ड में लोग अब, आपको भी सोचना चाहिये कि जिस परमात्मा इतनी शराब पीते हैं, मैंने किसी को देखा नहीं कि ने हमें बनाया है, 'इतनी' मेहनत से बनाया है. उसने ये बड़ा शराबी खड़ा हुआ है, इसकी पूजा हो रही वो भी इन्तजाम हमारे अन्दर ज़रूर कर दिये होंगे है। कि शराब पीता था। किसी शराबी की आज जिससे हम उसको जाने और उसको समझें और तक संसार में कहीं भी मान्यता हुई है ? फिर अपने को जाने और हमारा मतलब क्या है. हम क्यों आपका Business इससे कैसे बढ़ सकता है। संसार में आए हैं, हमारा क्या ulfilment है ?मनुष्य अगर आपकी इज्जत ही नहीं रहेगी तो आपका ने यह कभी जानने की कोशिश नहीं की कि Business कैसे? इज्जत से Business होता है। आखिर हम इस संसार में क्यों आए हैं ? Scientist धोखाधड़ी से नहीं है जो आदमी एक बार खड़ा यह क्यों नहीं सोचते कि हम amoeba से इन्सान हो जाए तो कहते हैं 'एक आदमी खड़ा हुआ है क्यों बनाए गए ? हमारी कौन -सी बात है कि चीज़ है। हजारों चीजों में से गुज़ार करके, इतनी बुराई को। जिस चीज़ को चाहो तुम अपना सकते जिसके लिए परमात्मा ने इतनी मेहनत की और ये' । इस तरह से अपने को आप इन चक्करों में, इन उसके बाद हमें स्वतन्त्रता दे दी ? societies में, इसमें इस तरह से क्यों मिलाते चले बस इस जगह परमात्मा भी आपके आगे झुक जाते जाते हैं। आप अपने व्यक्तित्व को सँभालें, इसी के हैं क्योंकि आप स्वतन्त्र हैं। आपकी स्वतन्त्रता अन्दर परमात्मा का वास है। आजकल के जमाने में परमात्मा नहीं छीन सकते। अगर आपको परमात्मा ये बातें करना ही बेवकूफी है और कहना ही के साम्राज्य में बिठाना है, आपको अगर राजा बेवकूफी है। लेकिन आप नहीं जानते कि आपने बनाना है, तो आपको परतन्त्र करके कैसा बनाया अपने को कितना तोड़ डाला है, अपने को कितना जाए ? आपको क्या hypnosis करके बनाया गुलाम कर लिया है। इन सब चीजों में अपने को बहा देने के बाद तो परमात्मा को स्वीकार करें, अपने जीवन में, और आपको मैं क्या दे सकती हैँ? आप ही बताइये। जाएगा? आप पूरी तरह से स्वतन्त्र हैं। आप चाहें चाहें तो शैतान को । दोनों रास्ते आपके लिए पूरी तरह परमात्मा ने खोज रखे हैं। और सबसे बड़ी मेहनत की है । मैं आपसे बताती हूँ कि गुरुओं ने कितनी आफ्तें उठाई हैं इतनी ही अब कम से कम सबको ये व्रत लेना चाहिए कि हम खुद जो हैं, हमारी इज्जत है। परमात्मा ने हमको एक amoeba से इन्सान बनाया है। एक amoeba दिसम्बर, 2004 वैतन्य लहरी नवम्बर 47 अच्छे से मेहनत, आपके पीछे सारे जितने भी अवतार हो धोखा दे सकता है। वो तो आप को गए, उन्होंने, गुरुओं ने, कितनी मेहनत करी है। खूब जानता है आप अपना ही नुक्सान कर रहे हैं। इनको कितना सताया, हमने उनको कितना छला। आपको पाना चाहिये, क्योंकि आपकी अपनी शक्ति है, आपकी अपनी सम्पदा है । अन्दर सारा स्रोत है। आपके अन्दर भरा सब कुछ है। इसे आपको लेकिन कलयुग कुछ ऐसा आया, बवण्डर जैसा कि लेना चाहिए और फिर इसमें जमना चाहिए। हम सब कुछ भूल गए और हमारी जो भी आत्मिक सहजयोग में जब मैं आती हूं तो लोग बहुत आते संवेदना है इसको भूल गए। हम पहचान ही नहीं हैं, मैं जानती हैं। लेकिन यहाँ पर सबका कहना पाते किसी इन्सान की शक्ल देखकर कि ये है कि माँ आगे लोग नहीं जाते। अब यहाँ पर असली है कि नकली है- आश्चर्य है। शक्ल से हमने ऐसे लोग देखे हैं कि जिनसे हमें कोई जाहिर हो जाता है अगर कोई आदमी वाकई उम्मीद नहीं थीं वो कहाँ के कहाँ पहुँच गए। उनकी कितनी तकलीफ़, वो सारी बर्दाश्त करके उन्होंने आपको बिठाने की कोशिश की I । और परमात्मा का आदमी है। उसकी शक्ल से जाहिर जो कि बहुत हम सोचते थे, तो वहीं के वहीं जमे बैठे हैं। फिर लेकर आ गए वही सिरद्द, वही हमारे अन्दर की जो sensitivity है. वही ये हो रहा है, वही वो हो रहा है, अभी भी उनका उतना ही ऊँचा होता है। हम यह पहचानना ही भूल गए कि यह 1 जो हमारे आफ्ते, वही परेशानिया अन्दर की संवेदनशीलता है वो पूरी तरह से खत्म हो गई। जब श्री रामचन्द्रजी संसार में आये थे सब लोग जानते थे कि ये अवतार हैं। श्रीकृष्ण जी जब उठा है। आये थे तब सब लोग जानते थे कि ये अवतार हैं। सहजयोग में जब तक आप लोगों को देंगे नहीं तब तक लेकिन आज ये जमाना आ गया कि कोई किसी को पहचानता नहीं। ईसा मसीह के समय में भी ऐसा ही हुआ। लेकिन उस समय कुछ लोगों ने तो आपकी प्रगति नहीं होगी। देना पड़ेगा,जैसे-जैसे आप देते रहेंगे,वैसे-वैसे आप आगे बढ़ें गे। उनको पहचाना। लेकिन आज ये समय आ गया कि सब भूतों और राक्षसों को लोग अवतार मानते हैं। इस चक्कर से अपने को हटा लेना चाहिये और एक ही चीज़ माँगनी चाहिए कि प्रभू तुम हमारे कोई अगर हम लोग बड़ी भारी Boat तैयार करते अन्दर जागो जिससे हम अपने को पहचानें । आत्मा हैं, Ship तैयार करते हैं, अगर हम उसको पानी में को पहचाने बगैर हम परमात्मा को नहीं जान नहीं छोडे तो उसका क्या अर्थ निकलता है ? उसी सकते, नहीं जान सकते, नहीं जान सकते। बाकी प्रकार है, अगर मनुष्य परमात्मा को पाकर के और सब बैकार हैं। ये सब circus है। ये सिर्फ जिसको घर में बैठ जाए, तो ऐसे दीप से फायदा क्या कि कहते हैं बाहरी तमाशे हैं। इस बाहरी तमाशे से जो जलाकर के आप Table के नीचे रख दीजिये। अपने को सन्तुष्ट रखने से कोई फायदा नहीं। आप दीप इसलिए जलाया जाता है कि दूसरों को अपने को ही धोखा दे रहे हैं। परमात्मा को कौन प्रकाश दे। उससे आप अपने अन्दर अपने को भी 1. चैतन्य लहरी नवम्बर - दिसम्बर, 2004 48 देख सकते हैं और दूसरे को भी देख सकते है। आप अपने भी चक्र देख सकते हैं और दूसरों के भी रही है उसको। किस तरह से इसको हमें बनाना देख सकते हैं आप अपने भी आनन्द को देख सकते हैं और दूसरों की व्यथा को भी देख सकते हैं। और आप ये समझते हैं कि दूसरों को किस तरह से देना चाहिये। किस जगह ये चीज़ रोक चाहिये । आज के लिये इतना काफी है। हम लोग अब ज़रा ध्यान करें, देखें कितने लोग पार होते हैं। I "आलस्य सहजयोग का सबसे बड़ा दुश्मन है। -श्री माताजी ूभ 36 ु ६ ं िद कस दिवाली पर आज आप सबसे यह वचन है कि आप जीवन के उच्चतम् एवं श्रेष्ठतम् मार्ग पर पहुँचें गे। मेरा कहा हुआ एक-एक शब्द यह प्रमाणित करने के लिए सत्य होगा कि जो भी मैं कहती हैँ वह घटित होता है। आपकी जो भी छोटी-छोटी समस्याएं हैं सभी समाप्त हो जाएंगीं। यह परमेश्वरी के सन्देश हैं, आपको तुच्छ चीजों के लिए, धन के लिए. नौकरियों के लिए चिंतित नहीं होना। यह आपका कार्य नहीं है आपकी नियति इसे कार्यान्वित करेगी । आपको वचन दिया जाता है कि आपकी देखभाल की जाएगी। मुझे आशा है कि आप इस वचन पर विश्वास करेंगे और पूरी तरह से आनन्द मग्न हो जाएंगें। परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी 9 नवम्बर, 2003 दु यार ता १ ---------------------- 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-0.txt त्वैतान्य लाहवरी रब ही ु नवम्बर - दिसम्बर, 2004 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-1.txt FELICITATIC EE MATI NIRM 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-2.txt WA NIRMALA UNIVERSAL PUKE इस अंक में 3 श्री कृष्ण पूजा, ( एक रिपोर्ट ) लॉस एंजलिस- 19 सितम्बर, 2004 5 गुरु पूजा,लन्दन-02.12.1979 16 श्रीमाताजी का प्रवचन, मैकेबिअन हाल, आस्ट्रेलिया-22.03.1981 28 विवेक प्राप्ति- श्रीमाताजी के प्रवचनों से उद्धरण 34 चैतन्य लहरियाँ 35 लक्ष्मी तत्व VISHW DHARMA RELIGION 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-3.txt चै त - य ल ह री प्रकाशक निर्मल इन्फोसिस एवं टेकनोलोजीज़ प्रा. लि. मुख्य कार्यालय इन्फोसिस हाऊस, प्लाट न. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड, कोठरुड पुणे - 411 029 मुद्रक अमरनाथ प्रेस प्रा. लि. W.H.S 2/47 कीर्ति नगर, औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली 110015 मोबाइल : 9810452981, 25268673 ८ सदस्यता के लिए कृपया निम्न पते पर लिखें: श्री जी. एल. अग्रवाल निर्मल इन्फोसिस एवं टेकनोलोजीज़ प्रा. लि. 222, देशबन्धु अपार्टमैंट, कालका जी नई दिल्ली-110 019 फोन : 26216654, 26422054 आप अपने अनुभव, सुझाव, सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ. पी. चान्दना जी-11 -(463), ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली 110 034 दूरभाष : 011-55356811 प्रातः 08.00 बजे से 09.30 बजे सायं: 08.30 बजे ये 10.30 बजे 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-4.txt श्री कृष्ण पूजा लॉस एंजलिस 19 सितम्बर,2004 (इंटरनेट विवरण) प्रिय योगियो और योगिनियों, लास एंजलिस में शक्ति है जिसके द्वारा सभी कुछ प्राप्त किया जा हुई कृष्ण पूजा 2004 के महान अनुभव में आपके सकता है। इस प्रकार 'निर्मला' हमारे लिए अत्यन्त साथ बांट रही हूँ। हम लास एंजलिस से 40 मिनट अर्थपूर्ण है। स्वामित्व,शक्ति तथा प्रेम पा लेते हैं तो की दूरी पर वुडलैंड हिल्स होटल में रुके हुए थे। हम सहजयोगी का जीवन जीना शुरु करते हैं और ये अत्यन्त सुन्दर होटल था।(मेरियोट)। लगभग हमारी उत्क्रान्ति होती है। श्रीमाताजी ने यह भी 600-650 योगी जिनमें से अधिकतर अमेरिका और कहा कि समस्याएं हमारे ही तरीके से होती हैं। कनाडा से थे परन्तु कुछ स्विजरलैंड, फांस तथा क्योंकि बिना समस्याओं के न तो हमारा परिवर्तन अन्य दूर दराज देशों से भी थे। शुकवार और होगा और न ही हम उन्नत होंगे। हमने अपनी शनिवार की रात संगीत कार्यकर्मों में श्रीमाताजी समस्याओं का सामना करना है और उन पर काबू नहीं पधारीं। हम सबने कनाडा तथा भिन्न राज्यों पाना है और इसी प्रस्तुतिकरण में और भी बहुत के संगीत का आनन्द लिया। कनाडा के सारी चीजें प्रस्तुत की गई थीं परन्तु उनमें से ये सहजयोगियों ने एक लघु कामदी पेश की। शनिवार कुछ महत्वपूर्ण बातें याद हैं। आशा है बाद में हमें की सुबह कोलम्बिया के सहजयोगियों ने एक इसकी सी. डी. मिल सकेगी । सुन्दर प्रस्तुतिकरण किया जिस में उन्होंने परम पूज्य माताजी के नाम (निर्मल) का अर्थ वर्णन स्पायरो ने सहज विश्व परिषद के बारे में बताया किया ये इतना सशक्त प्रस्तुतीकरण था कि आने वाले गणेश या दिवालीपूजा के अवसर पर इसकी देशों के चालीस अगुवाओं के प्रतिनिधित्व वाली इस सी.डी.उपलब्ध कराई जाएगी। 45 मिनट के इस परिषद की जिम्मेदारी होगी कि विश्व भर में सहजयोग अनूठे प्रस्तुतिकरण में संगीत और श्रीमातीजी की का प्रचार -प्रसार करे उन्होंने यह भी बताया कि | इस प्रस्तुति के बाद इंगलैंड के डाक्टर डेविड जिन्हे श्रीमाताजी ने हाल ही में बनाया है भिन्न सुन्दर तस्वीरें थीं और साथ ही साथ परम पूज्य श्रीमाताजी ने कबेला हाउस तथा हैंगर, जिसमें श्री माताजी के नाम के अर्थ की व्याख्या भी। 'निर आजकल पूजाएं होती हैं. VND के नाम लिख का अर्थ है कुछ नहीं। श्रीमाताजी कहते हैं कि वे दिया है। इस परिषद के सदस्य योगी गण सभी कुछ भी नहीं हैं। तो हमें भी अपने विषय में यही कानूनी मामलों, सहज प्रकाशन तथा सहजयोग के सोचना चाहिए कि हम कुछ भी नहीं हैं। जब हम अन्य महत्वपूर्ण कार्यों के प्रतिभारी होंगे। इस प्रकार अपने विषय में सोचने लगते हैं कि हम कुछ भी नहीं हैं तो हम आत्मा बनने लगते हैं। अपना चित्त हमें स्वंय पर न रख कर आत्मा पर स्थापित करने के लिए एक-एक भाई चुना। रखना चाहिए । 'माँ' का अर्थ है माँ, ये वो शक्ति सहजयोग में यह पवित्रतम सम्बन्ध है। यह समारोह है जो हमें गुरु बनाती है। जब हम अपने स्वामी श्रीकृष्ण पूजा के समय पर मनाया जाता है क्योंकि बन जाते हैं तो सन्तुलन में होते है और स्वंय से श्रीकृष्ण जी की महान बहन श्री विष्णु माया थीं जो हमारा सामंजस्य स्थापित हो जाता है।ला बह कि बाई विशुद्धि की देवी भी हैं। निःसन्देह श्रीकृष्ण शक्ति है जो सारा कार्य करती है। ये प्रेम ( Love)की मध्य और बाई विशुद्धि के देवता भी हैं और दाई रविवार के दिन हमनें रक्षा-बन्घन का त्यौहार मनाया और बहनों ने भाई-बहन पावन सम्बन्धों को 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-5.txt चैतन्य लहरी दिसम्बर, 2004 नवम्बर विशुद्धि पर तो वे सम्राट बन जाते हैं। राखी बंधने के सहज प्रभारी श्री वासु किसी और काम में लगे के बाद स्त्री-पुरुष जीवन भर के लिए भाई-बहन हुए थे। श्रीमाताजी के प्रस्थान करने के समय भी बन जाते हैं और आवश्यकता के समय एक-दूसरे उनके समीप होने का सौभाग्य मैं पा सकी। झुककर की सहायता और रक्षा करने का वचन देते हैं। मैंने श्रीमाताजी को प्रणाम किया, उन्होंने मेरी ओर शाम को आनन्द विभोर होकर हम सबने देखा मुझे ऐसा लगा मानो विश्व की महानतम माँ परम पावनी श्रीमाताजी के स्वागत की तैयारियाँ मुझसे कह रही हो," ये सब एक भ्रम हैं! मैं ये शरीर कीं। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण अवसर था (पहली बार इतनी तीव्र चैतन्य लहरियों को मैने महसूस किया दिव्य हैं! यदि आपमें इच्छा है तो इस क्षण आप ये था। पूजा में श्रीमाताजी ने प्रवचन देने की आवश्यकता सब देख सकते है।" श्रीमाताजी का सबसे बड़ा नहीं समझी। हम सभी लोगों ने उनका प्रेम शक्ति सौन्दर्य यह है कि वो एवं उनकी उपस्थिति से बहने वाली सुरक्षा को हमारी कुण्डलिनी का योग जब उनसे हो जाता महसूस किया। सर्वप्रथम श्री गणेश की पूजा हुई तो हम एकदम से जान जाते हैं कि परमेश्वरी हम जिसमें बच्चों ने श्रीमाताजी के चरणों पर पूष्प अर्पण मानवों को क्या समझाना चाहती हैं। ज्यों ही किए। इसके बाद श्रीकृष्ण की पूजा हुई। शक्ति उन्होंने मुझे देखा चैतन्य लहरियों के माध्यम से मैं उनके चेहरे से फूट पड़ रही थी, मुझे ऐसे लगा जैसे उन्हें साक्षात् माँ के रूप में पहचान सकी। उनके मैं जीवन की हर चीज हू। मेरा स्वभाव नहीं हूँ, भी नहीं कहतीं। परन्तु कुछ हमारे अन्दर तथा आसपास विद्यमान सारी एक कटाक्ष से मैं समझ गई कि वे मानव नहीं नकरात्मकता को वो दूर कर रही हैं। वास्तव में वे परमेश्वर हैं। श्रीमाताजी चले गए और हम सब हमारी आन्तरिक एवं बाह्य बाधाओं को दर कर रही शब्द-विमूढ, हतप्रभ दशा में खड़े रहे । थीं मुझे ऐसे लगा मानों वे अपने परमेश्वरी स्वभाव और महान् शक्तियों की अभिव्यक्ति कर रही हों। सभी पूजाएं अधिकाधिक शक्तिशाली होती चली जा श्री माताजी के इस परमेश्वरी स्वभाव को हम रही हैं, चैतन्य लहरियाँ भी अविश्वसनीय ढंग से व्यक्तिगत रूप से गहन ध्यान की स्थिति में महसूस शक्तिशाली हो रही हैं। कौन कल्पना कर सकता करते हैं। परन्तु इस बार वे ये अनुभव पूरी सामूहिकता था कि इसी जीवन में हम लोग साक्षात् देवी का में प्रदान कर रही थीं। पूजा अत्यन्त शक्तिशाली सामीप्य और उनका प्रेम पा सकेंगे! कौन कल्पना और गहन थी और सभी योगियों ने शक्तिशाली कर सकता था कि सहजयोग और आदिशक्ति चैतन्य लहरियाँ अनुभव कीं। इस महान मंगलमय हमारी उत्क्रान्ति इतने उच्च स्तर पर करेंगी कि हम घटना से मैं अभिभूत थीं । पूजा के बाद सभी देशों ने श्रीमाताजी को बनकर हम कितने भाग्यशाली हैं! उपहार दिए। इस अवसर पर मुझे श्रीमाताजी के समीप रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ क्योंकि न्यूयॉर्क ये वास्तव में एक महान् शक्ति का अनुभव था। इतनी सुन्दर चीजों को अनुभव कर पाएं! सहजयोगी सभी को प्रेम एवं जय श्रीमाताजी एना मानसीनी-न्यूयॉर्क नीट 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-6.txt गुरु पूजा (ईसा-मसीह के अवतरण की पूर्व संघ्या) लन्दन-02.12.1979 त एक महीना पूर्व मैनें रुस्तम से कहा कि इस अवतरण थे दत्रात्रेय ने भी कभी नहीं कहा कि वे रविवार को एक पूजा का आयोजन करो क्योंकि आदिगुरु के अवतरण हैं जो इन तीनों शक्तियों को यह पूर्णिमा का दिन है। उसने मुझसे पूछा कि क्या अबोधिता के माध्यम से गतिशील करके लोगों का यह गुरु पूजा है, महालक्ष्मी पूजा या गणेश पूजा? पथ प्रदर्शन करने के लिए अवतरित हुए मैने बताया कि इसे गुरु पूजा कहो और बहुत मोजेज यद्यपि यह जानते थे कि वे महान अवतरण समय पश्चात् जब मैं भारत जा रही थी तो उसने हैं जिन्होंने प्रकृति को वश में कर लिया है, फिर भी मुझसे पूछा कि क्यों न हम ईसा-मसीह पूजा भी उन्होंने कभी नहीं कहा कि वे अवतरण हैं। ईसा-मसीह के समय में उन्होंने महसूस किया न यहीं कर लें ? आज का दिन बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि बहुत कि ये बात बताना आवश्यक है अन्यथा लोग इसे समय पूर्व जब ईसा- मसीह मात्र एक बच्चे थे,उन्होंने नहीं समझेंगे। धर्म-ग्रन्थों में पढ़कर जनता के सामने घोषणा की उस समय यदि लोगों ने ईसा- मसीह को की वे ही बह अवतरण (Advent) हैं जो रक्षक पहचान लिया होता तो कोई समस्या न होती। (Saviour) हैं। लोगों का विश्वास था कि रक्षक परन्तु अभी मानव को आगे विकसित होना था । (Saviour) अवतरित होने वाले हैं। आज बहुत विराट में स्थित दरवाजे के माध्यम से जाने के लिए समय पश्चात् एक रविवार के दिन उन्होंने घोषणा किसी न किसी को तो आज्ञा चक पार करना ही की कि मैं ही वह रक्षक हूँ। यही कारण हैं कि था. यही कार्य करने के लिए ईसा-मसीह पृथ्वी पर आज अवतरण रविवार है (Advent Sunday)। आए । उनका जीवन छोटा था, अतः बहुत ही छोटी अत्यन्त आश्चर्यजनक बात है कि इस जीवन में उन्हें यह घोषणा करनी पड़ी कि वे ही वृक्ष पर जड़ों से कोपल निकलते है कोपलो से डालियाँ निकलती है, डालियों से पत्ते और फूल ये बात अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं कि उनसे पूर्व निकलते हैं। फिर भी जिन लोगों को जड़ों का ज्ञान किसी ने भी खुल्लम-खुल्ला यह नहीं का था कि है वे कोंपलों का ज्ञान नहीं पाना चाहते और जिन्हें वे अवतरण हैं। श्री राम तो भूल ही गए थे कि वे कॉपलों का ज्ञान है वे फलों को नहीं पहचानना अवतरण हैं। एक तरह से उन्होंने स्वयं को यह चाहते! मानव का यह अजीबोगरीब स्वभाव हैं। मैनें अपने विषय में कभी नहीं कहा क्योंकि मैंने वे पूर्ण मानव-' मर्यादा पुरूषोत्तम ' बन गए थे और महसूस कर लिया था कि मानव ने अब अह का श्रीकृष्ण ने भी केवल एक व्यक्ति, अर्जुन को यह एक अन्य ऐसा आयाम प्राप्त कर लिया है जो ईसा-मसीह के समय के अहँ से भी भयानक है। अब्रहम ने कभी यह नहीं कहा कि वे अवतरण हैं आप चाहे जिस चीज को दोष दें, आप इसे औद्योगिक यद्यपि वै आदि गुरु (Primordial Master) थे कांति कह सकते हैं क्योंकि इसके कारण आप बहुत आयु अवतरण हैं। बात भुला दी थी, अपने ऊपर माया जाल डाल कर बात बताई थी और वो भी युद्ध शुरु होने से पूर्व । 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-7.txt चैतन्य लहरी दिसम्बर, 2004 नवम्बर प्रकृति से दूर हो गए, जो चाहे आप इसे कह सकते सन्त इस बात को जानते हैं क्योंकि उनकी चेतना हैं. परन्तु मानव ने वास्तविकता से अपने सम्बन्ध इतनी उन्नत स्थिति में है जहाँ वो इस बात को तोड़ दिए थे। बनावट के रूप में वे पहचाने जाते थे समझ सकते हैं। आप लोगों से भी कहीं अधिक वो और इतने बड़े सत्य को स्वीकार करना उनके लिए समझते हैं क्योंकि अभी तक आप बच्चे हैं नवजात शिशु । वो बड़े हो चुके हैं। परन्तु "आज के दिन जब मैं घोषणा करती हैं कि मैं ही वह अवतरण हूँ जिसे मानवता की रक्षा करनी है, मैं घोषणा तक लोग इस बात पर आश्चर्य नहीं करने लगे करती हूँ कि मैं ही 'आदिशक्ति हूँ जो सभी असम्भव होता। यही कारण है कि मैनें तब तक अपने विषय में कुछ नहीं बताया जब कुछ भूत बाधित लोगों ने मेरे विषय में नहीं धुताया और जब कि माताजी की उपस्थिति में कुण्डलिनी जागृति माताओं की माँ है, जो 'आदि माँ है, शक्ति है, जैसा कठिन कार्य भी इतनी गति से हो जाता है। परमात्मा की शुद्धतम इच्छा है जो स्वयं को, इस भारत में एक मन्दिर था जिसके विषय में कोई सृष्टि को मानव मात्र को स्वयं का अर्थ देने के लिए न जानता था। परन्तु यह पाया गया कि एक स्थान इस पृथ्वी पर अवतरित हुई है। मुझे पूर्ण विश्वास है विशेष के समीप जो भी समुद्री जहाज चले जाते वे कि अपने प्रेम एवं धैर्य के माध्यम से और अपनी मंदिर तट की तरफ स्वतः ही खिंच जाते और उन्हें शक्ति के माध्यम से मैं इस कार्य को पूर्ण करूँगी।" मैंने ही बार-बार पृथ्वी पर जन्म लिया, परन्तु आकर्षण क्षेत्र से जहाज को वापिस खींचने में उन्हें अबकी बार मानव को स्वर्ग का साम्राज्य, आनन्द वापिस समुद्र में ला पाना बहुत कठिन होता। उस दुगनी ताकत लगानी पड़ती.परन्तु ये बात वो न समझ पाते कि कौन सी शक्ति कार्यरत है । लोगों ने समझा कि समुद्र की गहराई में कुछ मानव का केवल उद्घार करने तथा उनकी रक्षा कमी है. परन्तु लगातार बहुत से जहाजों के साथ करने के लिए नहीं आई. क्योंकि उनके पिता यह घटना घटित हुई। तब उन्होंने ये जानना चाहा (सर्वशक्तिमान परमात्मा) उन्हें आनन्द एवं परम कि इन जहाजों के साथ क्या घटित हो रहा है,क्यों स्थिति का आशीष देना चाहते हैं। तथा परमानन्द प्रदान करने के लिए मैं अपनी पूर्ण कलाओं में पूर्ण शक्तियों के साथ अवतरित हुई हूँ। ये समुद्र तट की तरफ खिंचे जा रहे हैं? अतः उन्होंने इस बात का पता लगाना चाहा। जब वे ही सीमित रखा जाना चाहिए। जंगल में गए तो वहां एक मन्दिर पाया जिसके इन शब्दों को कुछ समय सहज योगियों तक आज गुरु पूजा का दिन है, मेरी पूजा का नहीं, शिखर पर एक बहुत बड़ा चुम्बक स्थापित किया गुरु रूप में आपकी पूजा का, गुरु रूप में मैं आप हुआ था। तो अपने तर्क विवेक के माध्यम से लोग सबका अभिषेक करती हूँ और आज मैं आपको इस बिन्दु तक पहुँचे कि 'माताजी' कुछ विशेष चीज़ बताऊँगी कि मैंने आपको क्या प्रदान किया है और हैं क्योंकि धर्म ग्रन्थों में कहीं भी इस बात का वर्णन आप कितनी महान् शक्तियाँ प्राप्त कर चुके हैं। आपमें अभी भी ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने अवंतरित होंगे जिनके कटाक्ष मात्र और विचार मात्र अभी 'पहचाना' नहीं है, मेरी इस घोषणा से उनके से ही कुण्डलिनी जागृत हो जाएगी। जंगलों में, अन्दर यह 'पहचान' कार्यान्वित होगी। मुझे 'पहचाने पागल भीड़ से दूर हिमालय में बैठे हुए बहुत से बिना आप लीला को नहीं देख सकते, लीला देखे नहीं किया गया है कि पृथ्वी पर एक ऐसे अवतरण 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-8.txt नेवम्बर - दिसम्बर, 2004 वैतन्य लाहरी 7 बिना आपमें आत्मविश्वास नहीं आ सकता, धीरे-धीरे उसकी कुण्डलिनी को उठाते हैं। आत्मविश्वास के बिना आप गुरु नहीं बन सकते। गुरु बने बिना आप अन्य लोगों की सहायता नहीं परिश्रम के तरीके भी कुण्डलिनी जागृति के लिए कर सकते और अन्य लोगों की सहायता किए बिना आप आनन्द में नहीं जा सकते। श्रृंखला को तोड़ना बहुत आसान है, परन्तु आपको तो एक के पूछते हैं, पता लगाने के लिए सभी कुछ करते हैं। बाद एक श्रृंखला बनानी है। आप सब यही कार्य आपके माता-पिता कैसे थे, आपको स्वप्न कैसे करना भी चाह रहे थे अत: आत्मविश्वस्त आनन्दित आते हैं पूरी तरह से वे आपका विश्लेषण करते एवं प्रसन्न हों ताकि मेरी शक्तियाँ आपकी रक्षा करें, ह मेरा प्रेम आपको शक्ति प्रदान करे और मेरा स्वभाव की बीमारियाँ हो चुकी हैं। उदाहरण के रूप में वे आपको शांति एवं आनन्द की स्थिति प्रदान करें । परन्तु मनुष्य अपने स्वभाव के अनुरूप कठोर अपनाते हैं पहले वे पता लगाते हैं कि कुण्डलिनी की समस्या क्या है. फिर वे आपका पूरा इतिहास हैं। तब वे पता लगाते हैं कि आपको किस प्रकार पता लगाते हैं कि किसको आँखों की तकलीफ हुई परमात्मा आपको धन्य करे। किसको नाक, पेट, गला आदि की तकलीफ हुई उस दिन आपको बताया था कि सम्भवोपाय और सभी प्रकार की चीजों को नजरअंदाज़ किया और शक्तोपाय लोगों को स्वच्छ करने के दो तरीके जाता है। अब आप कल्पना कर सकते हैं कि इस हैं। एक मार्ग द्वांरा आप केवल कुछ ही लोगों को श्रेणी में हममें से कितने लोग आते हैं। वो ये भी स्वच्छ कर सकते हैं। थोडे से लोग लेकर आप उन्हें स्वच्छ करते रहते हैं ताकि उनका चित्त पूर्णतः अब तक बिताया है और उसके माता-पिता का स्वच्छ हो जाएं, तत्पश्चात उनके पँचों तत्वों को इतिहास क्या है। स्वच्छ करके उनकी कुंण्डलिनी को उठाएं और वो पता लगाते हैं कि व्यक्ति ने किस प्रकार का जीवन जो लोग युवा आयु में गुरुओं के पास जाकर आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकें। यह सम्भवोपाय शक्ति-पथ की याचना किया करते थे उनमें से कहलाता है इस मार्ग से आपका व्यक्तित्व पूर्णतः अधिकतर के साथ ऐसा होता था । अब मेरे कारण, आप जानते हैं, यह शक्ति पथ स्वच्छ हो जाता है। दूसरा शक्तोपाय है इसमें शक्ति आपकी बहुत आसान हो गया है। आपको यही करना है कुण्डलिनी को उठाती है, चाहे जो भी स्थिति रही शक्तिपथ अर्थात् आपको अपना प्रकाश अन्य लोगों हो और इसके बाद शुद्धिकरण का कार्य होता है। पर डालना है। शक्ति-पथ अर्थात् शक्ति के प्रकाश तो सहज-योग में हमने दूसरा उपाय अपनाया है को अन्य लोगों पर डालना है तो अब आपकी क्योंकि सम्भवोपाय के लिए कोई समय नहीं बचा शक्ति किसी भी अन्य व्यक्ति की कुण्डलिनी पर है। इसे कर पाना असंभव होगा। तो शक्तोपाय में पड़ सकती है और उसकी कुण्डलिनी जागृत हो लोग प्रायः क्या करते हैं, यह शक्ति पथ है । शक्ति सकती है। यह अत्यंत कठिन कार्य था। पहले पथ में दूसरे व्यक्ति पर शक्ति परछाई की तरह से कहा जाता था कि केवल वीतराग व्यक्ति जिसने डाली जाता है या जैसे हम पर प्रकाश पडता है मोह-लिप्सा आदि पर विजय प्राप्त कर ली हो, ही, उस प्रकार से। तो वे अपनी कुण्डलिनी की शक्ति जो पूर्णतः निराग हो, केवल वही कुण्डलिनी उठा दूसरे व्यक्ति की कुण्डलिनी पर डालते हैं और सकता है। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-9.txt चैतन्य लहरी दिसम्बर, 2004 नवस्यर तो सर्वप्रथम दीक्षा दी जानी आवश्यक थी। वह व्यक्ति में कैवल क्षमाशीलता शेष रह जाए। ऐसे आपको प्राप्त हो चुकी है, जिस दिन आप मेरे पास व्यक्ति को वीतराग माना जाता था ऐसा व्यक्ति आए थे उसी दिन आपको दीक्षा मिल गई थी परन्तु जब कुण्डलिनी उठाना चाहेगा तो वह इस कार्य को आप इस बात को महसूस नहीं कर सकते कि कर सकेगा, केवल ऐसे गिने-चुने व्यक्ति ही यह कार्य किस प्रकार होता है। दूरबीनी कुण्डलिनी को संभाल (Command) सकते हैं अतः सर्वप्रथम तो आप सब लोगों को, बिना और आपको पता भी नहीं चलता कि आपके साथ किसी परिचय के गुरु से दीक्षा प्राप्त हो गई है तो किस प्रकार की इतनी सारी चीजें हुई हैं। अतः तुम्हें दीक्षा प्राप्त हो गई है. तुम्हें महादीक्षा भी प्राप्त केवल दीक्षा देने के लिए व्यक्ति को बहुत सा कष्ट हो गई है दीक्षा पहले होती है. महादीक्षा क्या है? दिया जाता है। कहने से मेरा अभिप्राय है कि दूसरी महादीक्षा में साधक को कोई नाम या मंत्र की सेवा करनी पडती है, काफ़ी सेवा, दिया जाता है (प्रायः केवल एक नाम दिया जाता (Telescopically) विधि से बहुत से कार्य होते हैं fafet a आपको गुरु उसके लिए फल आदि ले जाने पडते हैं, कुछ धूर्त है)। परन्तु यह मंत्र भी तभी लिया जाना चाहिए लोग धन भी लेते हैं परन्तु कोई ब्रात नहीं। कुछ जब गुरु को मंत्र का ज्ञान हो। कहने से मेरा दक्षिणा तो देनी ही होती है क्योंकि गुरु की अभिप्राय यह है कि यह गुरु तो ये भी नहीं जानते देखभाल करना चेलों का ही कार्य है। गुरु आपकी कि आपका कौन सा चक्र पकड़ रहा है, इस बात धन सम्पत्ति या आपकी दी हुई चीजों से लिप्त नहीं की आप कल्पना करें! है, परन्तु ये शिष्यों का कर्त्तव्य है कि गुरु की देखभाल करे। इसी कारण से, सम्भवतः, गुरु को पास आप एक ऐसे समय पर आए हैं, आज आप मेरे अतः वे व्यक्ति की कुण्डली देखा करते थे मेरे थोड़ा सा पैसा देना भी आवश्यक था। परन्तु अब ये पास आए हैं, आपकी कुण्डली क्या है ? आपको गुरु इस प्रथा का दुरुपयोग कर रहे हैं । गुरु को क्या कष्ट है? आपका जन्म कौन से नक्षत्र में हुआ? क्योंकि कहीं रहना है, उसके लिए घर की आपके माता-पिता के नाम क्या थे ? इन चीजों के आवश्यकता है, तो दक्षिणा के रूप में थोड़ा सा विषय में एक बहुत बड़ा विज्ञान हुआ करता था। पैसा दिया जाना उसे आवश्यक है। परन्तु अब पूरी अ.ब.स. से ये लोग गिनना आरम्म किया करते थे चीज़ को इतना गलत ढंग से उपयोग किया जा और तब यह किसी बिन्दु पर पहुँचा करते थे जहां रहा है। इस प्रथा को मूर्खता की चरम सीमा तक इन्हें कोई शब्द मिला करता था, जैसे दूसरा शब्द ले जाया जा रहा है कि लोगों के लिए अब यह क्या है, तीसरा शब्द क्या है और फिर किसी बड़े शास्त्र में देखकर ये पता लगाते थे कि आपमें कौन गुरु इतना उन्नत होना चाहिए कि वह कुण्डलिनी सा चक पकड़ रहा है, तब वो साधक को कोई नाम एक ऐसा देते थे कि ठीक है आप राम का नाम जपें। व्यक्ति जिसे संसार से कोई मोह न हो, विल्कुल राम-राम कहते रहे जब तक आपका हृदय चक्र उद्यम बन कर रह गया है। जागृत कर सके। वह वीतराग हो निर्मोह हो, जिसका चित्त इतना शुद्ध हो चुका हो ठीक नहीं हो जाता। इसमें चाहे दो साल लग कि उसमें जरा तनिक सा भी मोह बाकी न हो। जाएं चाहे. तीन साल लग जाए,दो जीवन लग जाएं उसमें किसी भी प्रकार का प्रलोभन शेष न हो। या सौ-जीवन लग जाएं। आप एक ही मंत्र 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-10.txt दिसम्बर, 2004 नवम्बर चैतन्य लहरी राम-राम जपते रहे। परन्तु ये सब आपके नक्षत्रों इसकी बात भी न कर सकते। उन्हें तो हर वक्त आदि, आपके परिवार,घर तथा सभी चीजों की हवा में वे लटकाए रखा जाता था और रात को जानकारी के बाद किया जाता था और तब यह जिस प्रकार चमगादड़ उलटे लटके होते हैं उन्हें निर्णय होता था कि कौन-सा चक्र पकड़ा हुआ है लटका दिया जाता था तब अन्य चीजों को देखा अब मान लो आपके चार चक्र पकड़े हुए हैं, क्योंकि जाता था जैसे आपके कैसे मित्र है. आप कैसे लोगों आपकी कुण्डली ये सब बताती है कि आपको क्या के प्रति आकिर्षत हैं ? तो ये लोग स्वभाव देखते थे कष्ट हैं या आपको कौन से कष्ट होंगे। आरम्भ में और इससे किसी निर्णय पर पहुँचते थे तभी वो केवल शारीरिक कष्ट । अतः वे लोग आपकी कुण्डली आपको दूसरा मंत्र दे सकते थे और साधक उनके के माध्यम से ये सब पता चलाते थे कि आपको साथ घंटों तक मंत्र कहे चला जाता था। हर समय कौन सी समस्याएं है। मान लो आपको पेट की वह मंत्र ही रटता रहता था, अपनी अन्य समस्या है तो वे सोच सोचकर पता लगाते कि पेट आवश्यकताओं पर बिना कोई ध्यान दिए। जब मंत्र का कौन सा मंत्र है क्योंकि वैज्ञानिक की तरह से पर सिद्धी प्राप्त हो जाती थी तब वे कहते थे, अब आपके लिए मंत्र सिद्ध हो गया है अर्थात् अब आप सीधे ही वे इस बात का पता नहीं लगा सकते। इस मंत्र को किसी दूसरे पर भी उपयोग कर सकते वैज्ञानिक किस प्रकार चीजों का पता लगाते थे? मान लो आप किसी डाक्टर के पास जाते हैं तो वह है, यानि आप अब केवल' राम का मंत्र उपयोग कर आपकी आँखें निकालकर धो देंगे और उन्हें वापिस सकते है। इसकी आप कल्पना कीजिए| लगा देंगे और कहेंगे कि ऑँखें ठीक हैं। तब वह आपके दांत निकाल लेंगे,उनकी जगह बनावटी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है, ठीक है। परन्तु अब आपको क्या प्राप्त हुआ है? आपको दांत लगाकर कहेंगे कि आपके दांत ठीक हैं। फिर आत्मसाक्षात्कार का अर्थ यह है कि अब आपको 1 आपके कान निकालकर उनके स्थान पर कुछ पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो गया है कि मंत्र क्या है और बनावटी यंत्र लगा देंगे और कहेंगे कि यह ठीक किस चक्र के लिए कौन सा मंत्र बनाना है आपमें है। फिर आपका हृदय निकालकर इसका निरीक्षण सभी चक्रों को देखने की शक्ति आ जाती है कि करेंगे और उसके स्थान पर कुछ नया लगा देंगे। कौन से चक्र को सहायता की आवश्यकता है। ऐसा ही है, ये लोग भी ऐसे ही किया करते थे आपमें अन्य लोगों की कुण्डलिनी उठाने की शक्ति क्योंकि ये भी अंधेरे में टटोलते थे। जिस प्रकार से है कुण्डलिनी यदि नीचे की ओर आती है तो उसे आप लोगों को चक्रों का ज्ञान है इन लोगों को इस सहस्रार पर बांधने की शक्ति है। चक्रों को बन्धन बात का ज्ञान न था कि कौन से चक्र पकड़ रहे हैं। देकर उन्हें स्थापित करने की शक्ति आपमें है और अब आप कल्पना कर सकते हैं कि कौन सी बन्धन द्वारा नकारात्मकता से अपनी रक्षा करने की शक्ति भी आपमें है। अपने चित्त को आप किसी भी महा, महा, महा दीक्षा आपको प्राप्त हो गई है! पहले तो आपको दीक्षा प्राप्त होती है, जिस दिन स्थान पर ले जा सकते हैं और किसी के भी बारे में आपकी कुण्डलिनी जागृत होती है, ये दीक्षा है। जान सकते हैं कि किसको आपकी सहायता की तब आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है। उनके आवश्यकता है। सामूहिकता की समस्या जानने की लिए तो इसका प्रश्न ही न था, एक ही सांस में वे शक्ति भी आपमें है, जैसे आप जान सकते हैं कि 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-11.txt नैतन्य लहरी दिसम्बर, 2004 नवम्बर 10 लन्दन में क्या समस्या है (अपने दोनों हाथ फैलाकर आप किसी देवी- देवता का नाम लें, आपके मंत्र तो पूछे कि लन्दन में क्या समस्या है, इस प्रकार से) पहले से ही सिद्ध हैं और प्रभावशाली हैं। गट्ठड़ बायां हृदय और दायां हृदय। इस प्रकार से, की तरह इसमें सभी कुछ है। आप इसे खोलें। मुख्यतः बायें हृदय पर पकड़ आ रही है। इसकी किसी का कोई चक्र यदि पकड़ रहा हो। अब उस व्याख्या करने के लिए आपके पास भाषा है। आपने चक्र का मंत्र कहें और बह ठीक हो जाएगा। 1. कहा कि बार हृदय। ऐसा कहकर आपने किसी आपको क्योंकि सभी मंत्रों का ज्ञान है, आप जानते का दिल नहीं दुखाया। लन्दन के आप लोगों को हैं कि यह क्या है, इसका रहस्य आप जानते हैं। बाएं हृदय की पकड़ है, इसका अर्थ क्या है? अन्य लोग नहीं जानते। यदि आप नाम भी नहीं इर का अर्थ यह है कि आप लोग आत्मा के विरुद्ध लेते, उसकी तरफ इशारा मात्र करते हैं तो भी सब चत रहे हैं। आत्मा में आपकी कोई दिलचस्पी नहीं जान जाते है कि क्या मामला है, कहाँ जाना है और है,आप भौतिकतावादी हैं अहंकारी हैं और आत्मा क्या कहना है अत:ः यद्यपि यह इतना बड़ा रहस्य की कोई चिन्ता नहीं करते,अपनी आत्मा को आप है फिर भी आप लोग इसको समझते हैं। हमारे बीच हानि पहुंचाने का प्रयत्न कर रहे हैं। आप शराबी परस्पर इस तालमेल पूर्ण समझ को देखें । हम हैं, और मद्यपान से अपने को नष्ट करने में लगे हुए जानते हैं कि कौन सी चीज क्या है और फिर न तो हैं। परन्तु ये सब बातें आपको कहनी नहीं पड़तीं,आप अपने विषय में इसका बुरा मानते हैं और न ही अन्य केवल इतना कह देते हैं कि आपका बायां हृदय लोगों के। यद्यपि मैं कहती हैं कि आपमें अहम् पकड़ रहा है,समाप्त। आप इतना भी नहीं कहते बहुत अधिक है फिर भी कोई मुझ पर पलट वार कि आपको क्षमाशील होना चाहिए आदि, अपने नहीं करता। ईसा-मसीह के समय में 'अहॅ का | दोनों हाथ इस तरह से खोलकर बाएं हृदय चक्र नाम लेना सम्भव न था। अब आप स्पष्ट रूप से पर लन्दन के लोगों के लिए क्षमा याचना करते हैं देख सकते हैं और कह सकते हैं कि यह आपका और उन्हें क्षमा मिल जाती है और फिर वे और अहँ, प्रति अहँ, आपकी मूर्खता आदि-आदि सभी ज्यादा शराब पीते हैं और अपने हृदय चक्र की चीजें हैं। दुर्दशा कर लेते हैं । अतः अब आपको यह सब शक्तियां प्राप्त हो आत्मासाक्षात्कारी है, फिर भी वह कुण्डलिनी जागृत गई हैं, आप कुण्डलिनी उठा सकते हैं और कुण्डलिनी करने के विषय में कुछ नहीं जानता। वह तब तक जागृति के मार्ग में आने वाली बाधा को दूर कर कुण्डलिनी जागृत नहीं कर सकता. जब तक वह किसी में यदि शक्ति है, कोई चाहे जन्मजात् सकते हैं। किसी का आज्ञा चक्र यदि पकड़ा हुआ सहज-योगी नहीं बन जाता। अतः जन्मजात है तो गुरु लोग उनका आज्ञा चक्र इसलिए ठीक आत्मसाक्षात्कारी जो अपनी कोई सीमा नहीं समझते, नहीं किया करते थे कि कहीं उनका अपना आज्ञा उन्हें समझ लेना चाहिए कि उन्हें सहजयोगी बनना चक्र न पकड़ जाए। अतः सिद्ध होने के लिए उन्हे पड़ेगा अन्यथा वे प्रभावशाली नहीं हो सकते. वे मंत्र -जाप करना पड़ता था। सिद्ध का अर्थ है कि क्रियावादी नहीं हो सकते और न ही इस कार्य को व्यक्ति की शक्ति प्रमाणित हो चुकी है अर्थात् वह कर सकते हैं । प्रभावशाली हैं आपके सभी मंत्र प्रभावशाली है। तो आपके अन्दर ये सब गुण हैं, आपमें सभी 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-12.txt नवम्बर - दिसम्बर 2004 चैतन्य लहरी 11 आपको वर्तमान में रहना है। मुझे आप अपनी देवी-देवताओं का पूर्ण ज्ञान है। आप जानते हैं कि देवी-देवता क्यों नाराज हो जाते हैं. समस्या क्या धारणाओं में नहीं बांध सकते। आपकी धारणाएं है, किस बात से देवी-देवता कुपित हो जाते हैं। यदि केवल इतना कहूँ कि 'पाप मत करो', समाप्त। आप ईसाई बनते, आपका जन्म यदि भारत में होता आप कहेंगे पाप क्या है?' तब आप कहते हैं ऐसा तो आप हिन्दु होते, आपका जन्म यदि चीन में होता मत करो'। इसी से बात समाप्त नहीं हो जाती आप. तो आप चीनी होते इस प्रकार से आप कुछ भी कुछ न कुछ चालाकी करने लगते हैं। आप पर होते एक बार जब आपमें असामन्जस्य कार्य करने आपकी माँ का पक्का बन्धन है। आप यदि शराब लगता है तो आप तुरन्त जान जाते हैं कि यह पीने का प्रयत्न करेंगे तो आपको उल्टी हो जाएगी। असामाजस्य की स्थिति है क्योंकि तब आपकी कुछ और यदि आप गलत कार्य करेंगे तो आपका चैतन्य लहरियाँ रुक जाती हैं। अतः आधे अधूरे पेट खराब हो जाएगा, सहज-योग से यदि आप लोगों का समूह, जो अभी तक सहजयोग में स्थापित आना-कानी करने लगेंगे तो आपको उसमें होना नहीं हो पाए हैं, जिन्हें अभी पूरी शक्तियां नहीं प्राप्त पड़ेगा क्योंकि यद्यपि आपको यह महसूस नहीं हो हुई हैं, वे लोग मुझे पहचान नहीं सकते। ये मूर्खता रहा फिर भी अपने अन्दर आप सहज-योग के है मुझे पहचानते ही (स्वीकार करते ही) आपकी चमत्कार को महसूस कर चुके हैं। परन्तु अब भी लोगों का एक ऐसा समूह है जो के समूह उन लोगों के हैं जो दूसरे गुरुओं आदि के आत्मसाक्षात्कारी हैं परन्तु उस स्थान पर नहीं हैं। भिन्न सोतों से आए हैं। तब उनके विषय में समस्या इन दोनों में क्या अन्तर है ? अत्यन्त सहज मैं सीमित हैं । आपका जन्म यदि यहाँ पर होता तो चैतन्य लहरियां बहने लगेगी इस तरह के लोगों पा होती है। ऐसे लोग जब सहजयोग में आते हैं तो पहचान। जिन लोगों ने मुझे नहीं पहचाना है उन्हें उन्हें भी आत्मसाक्षात्कार मिल जाता है क्योंकि मैं आर्शीवाद प्राप्त नहीं होगा वो गोल-गोल घूमते तो उदारता से परिपूर्ण हूँ। चाहे वे जैसे भी हों! उस रहंगे। अतः पहचानना बहुत आवश्यक है। दिन एक वैश्या आ गई, उसे भी आत्म साक्षात्कार लोग ऐसे हैं, जैसे उदाहरण के रूप में शिरडी साई मिल गया। केवल इतना ही नहीं सहजयोग एक नाथ के शिष्य । शिरडी साई नाथ अब जीवित नहीं लम्बी रस्सी देता है आसानी से आपकी चैतन्य हैं कुछ परन्तु वे उनमें विश्वास क्ररते हैं। परन्तु अब लहरियाँ समाप्त नहीं होतीं, यदि आपने अच्छी तरह शिरडी साई नाथ हैं कहाँ? वर्तमान अवतरण में ये से इन्हें पा लिया हो तो। लोग विश्वास करना नहीं चाहते। ये केवल ही विश्वास करना चाहते हैं। वे राम को मानते हैं, के पश्चात् आपको अपनी खामियाँ दिखाई देने ईसा-मसीह को मानते हैं अधिकतर ईसाई लोगों लगती में यह समस्या है। वे मेरी तुलना भी ईसा-मसीह लगते हैं। कुछ लोगों को झिनझिनाहट (TIngling) से करते हैं। ईसा-मसीह सम मुझे समझे बिना वे महसूस होने लगती है, कुछ लोगों को सामान्य सहज-योग को स्वीकार नहीं कर सकते या फिर स्थिति में ठीक लगता है परन्तु मेरे सम्मुख आकर वे मोजिज या किसी ऐसे अन्य अवतरण से मेरी वो हिलने लगते हैं या उनका शरीर ऐंठने लगता में सहजयोग क्योंकि प्रकाश है, सहजयोग में आने मृत हैं और तब आप सहजयोग को नकारने है। कुछ लोग ज्यों ही मुझे देखते हैं वो तप जाते तुलना करेंगे। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-13.txt नवम्बर - दिसम्बर, 2004 औैतन्य लहरी 12 हैं, उनके पेट में दर्द हो जाता है। क्योंकि प्रकाश मुक्ति पा लें । इन सांपों और बिच्छुओं तथा अपने से होते ही आप स्वयं का सामना करने लगते हैं। चिपके हुए सभी बन्धनों से मुक्त होकर स्वच्छ हो स्वयं का सामना आप करना नहीं चाहते। मुख्य जाएं, यही आपकी स्वयं पर बहुत बड़ी होगी। कृपा बात यह है कि जो लोग सहजयोग में सुस्थिर नहीं प्रकाश हो चुका हैं । उस प्रकाश में आप देखना हैं. वो अपनी वास्तविकता का सामना नहीं करना आरम्भ करें कि सत्य क्या है तब आपके सभी भ्रम चाहते। स्वयं को यदि वे लोग देखें तो वे बिना छूट जाएंगे और आपकी वास्तविक एकरूपता स्थापित किसी देरी के अपने को सुधार लेंगे क्योंकि अब हो जाएगी, अन्यथा ऐसा नहीं हो सकता। आपको है । आप अपनी खामियों से एक स्वयं का सामना करना होगा। कभी स्वयं को प्रकाश हो चुका रूप नहीं होते। आप डाक्टर हैं, आपके पास प्रकाश न्यायसंगत ने ठहराएं। है और आप ही शल्य क्रिया (Operation) करते हैं तथा इस कार्य को करने का ज्ञान भी आपको है। न्यायसंगत ठहराने की कुछ लोगों में आदत होती इस बात का यदि आप निर्णय कर लें कि मैं है। ऐसा करके आप उनका हित नहीं करते। इस स्वयं का सामना करूंगा और देखूंगा कि मैं कौन प्रकार के सारे दुष्प्रवृत्ति लोग एकजुट हो जाते हैं। हूँ तो यह सभी खामियां आपको छोड़ देंगी। परन्तु अपनी शक्ति दर्शाने के लिए दो बुरे व्यक्ति एक हो अपने बैटों, भाइयों, अपनी पत्नी या पति को आप तो अपना सामना ही नहीं करना चाहते। यही जाएंगे। मुझे आश्चर्य है कि यहाँ पर उनका कारण है कि आत्म साक्षात्कार पा लेने के बाद भी कोइ संघ नहीं है अन्यथा माताजी के खिलाफ ऐसे लोग इसमें आना नहीं चाहते। जिन्हें शीतल चैतन्य नकारात्मक लोगों का संघ यहाँ भी आपको दिखाई लहरियाँ प्राप्त होती हैं वे भी इनके विषय में अधिक पड़ता। कहने से मेरा अभिप्राय है कि हो सकता है नहीं सोचते, क्योंकि यदि वे इनके विषय में बहुत आप भी सभी चीज़ों का सामना कर रहे हों क्योंकि सोचेंगे तो उन्हें अपना अहम् त्यागना होगा और ऐसे लोग एकजुट हो जाते हैं और उनका बहुत अहम् के साथ तो उन्होंने मित्रता बनाई हुई है! जो बड़ा संघ बन जाता है। आपने देखा होगा कि लुटेरे भी हो उन्हें स्वयं को देखना पड़ेगा। वो कहते हैं, सदा एकजुट होते हैं। उनमें गहन मित्रता होती है 'नहीं, मैं पहले से बेहतर नहीं हूं, मुझे झिनडिनाहट और अपने भेद एक दूसरे को बताते हैं। परन्तु दो हो रही है. ऐसा हो रहा है । मेरे शरीर में सुइयाँ चुभ अच्छे लोग यदि एकजुट हो जाएं तो पूरा विश्व रही हैं और दर्द हो रहा है। ऐसा कैसे हो सकता परिवर्तित हो सकता है अत: इस बात को भली है ? मेरी सहायता नहीं हो रही, सहज-योग मुझे भांति समझ लें कि सदैव सकारात्मक लोगों के पास पीछे की ओर ले जा रहा है । जिन लोगों में सुधार जाने का प्रयत्न करें नहीं तो आप सहजयोग में हुआ है उन्हें देखने की अपेक्षा वे सहजयोग को बिकसित न हो सकेंगे। नकारात्मक बातें करने वाले दोष देने लगते हैं। परन्तु आप किसे दोष दे रहे हैं ? एक ऐसी चीज को जो आपकी रक्षा करेगी। आप अपने रक्षक (Saviour) को दोष दे रहे हैं। बेहतर होगा कि आपको सभी तरह के लोगों के विषय में बता रही आप अपनी समस्याओं, दोषों को देखें और उनसे हूँ। ये लोग स्वयं का सामना नहीं करते। किसी न किसी भी व्यक्ति के समीप न जाएं। परन्तु इस देश में लोगों का एक अन्य समूह है। कल क्योंकि आप लोगों ने बनना है इसलिए में गुरु 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-14.txt दिसम्बर 2004 वैतन्य लहरी 13 नमर किसी तरीके से अपना सामना करने से बचते हैं। कुछ भी नहीं। हमें बहुत से ऐसे व्यक्ति मिल जाते उनका एक तरीका यह भी है कि आत्मसाक्षात्कार हैं। तो इस प्रकार के व्यक्तियों से कैंसा व्यवहार प्राप्त करते ही वे इसका विश्लेषण करने लगते हैं। आप उन्हें कुछ भी दे दें वे इसका विश्लेषण करेंगे। व्यक्त्तियों से जिस प्रकार व्यवहार किया है आप भी इस देश में ये लोग सोचते हैं कि वे किसी भी चीज वैसा ही करें। मेरी बात को ध्यान से सुनें। आप का विश्लेषण कर सकते हैं। मैं नहीं जानती कि किसी व्यक्ति को आत्मसाक्षात्कार देते हैं, ठीक है? उन्हें यह धारणा कहाँ से प्राप्त हुई है। हो सकता उसे हाथों में शीतल चैतन्य लहरियाँ भी महसूस है ये धारणा उन लोगों को वैज्ञानिकों, मनोवैज्ञानिकों होती हैं, फिर भी वह कहने लगता है. तो क्या?" या तथाकथित बुद्धिजीवियों से मिली हो। वे सोचते आप उसे बताएं कि ये लहरियाँ आपको सोचने से हैं कि उन्हें यह कहने का अधिकार है कि इस नहीं मिली. क्या ऐसा हुआ ? और न ही ये कारण से यह ऐसा है" परन्तु अभी तक तो आपकी नुक्ताचीनी से मिली हैं इससे पूर्व कभी आपको ऑँखें भी खुली नहीं हैं, आप इतने नन्हे बच्चे हैं, यह अनुभूति नहीं मिली होगी। ये क्या है? आप किस प्रकार आप इन चीजों का विश्लेषण करने इसकी व्याख्या नहीं कर सकते। आपके साथ ये लगते हैं. "ऐसा व्यों हुआ, बार जब आप विश्लेषण करने लगते हैं, इसके बारे शक्ति से परे है। ये शवित्ति आपके विचारों से अधि में बोलने लगते हैं तो संभी कुछ खो देते हैं। आपने करना यह है कि इसे प्राप्त करना है व्यक्ति यदि निर्विचार हो तो लोग सोचते हैं कि यह आत्मसात करना है और अधिक से अधिक स्वयं आधा पागल है । करना चाहिए। मैंने ऐसे नुक्ताचीनी करने वाले 1 1 वैसा क्यों हुआ ? एक एक ऐसी घटना घटित हुई है जो आपकी विचार कि शक्तिशाली है। यह निर्विचारिता है कोई को इसके सम्मुख उघाड़ना है। सहजयोग के दोष न खोजें, परन्तु यह समझ लें कि आपके अन्दर है तो लोग समझते हैं कि आप पुराने विचारों के दोष है जिन्हें केवल सहजप्रेम द्वारा दूर किया जा हैँ क्योंकि आप सोचते नहीं हैं। ये घटना एक ऐसी अतः जब भी आप निर्विचार चेतना की चात करते शक्ति के माध्यम से हुई है जो आपके विचारों से सकता है। कुछ लोग ऐसे भी है जो मेरे पास आकर कहते कहीं ऊँची है। विचारों द्वारा आपन कान सा कार्य माँ आपने ऐसा क्यों नहीं किया? माँ आपने वैस किया है ? विचारों में फंसकर आपने अपनी नाक वयों नहीं किया? मेरे ख्याल से मैं अपने कार्य को काट ली. ऑँखें फोड़ ली हैं हाथ काट लिए हैं. सभी अच्छी तरह से जानती हैँ, वे मुझे सिखाने का कुछ काट डाला है। अब आपने युद्ध लडना है। प्रयत्न करते हैं, वो मुझे शिक्षा भी देते हैं आपको अतः आत्मसाक्षात्कार देने के बाद आप लोगो से ऐसे करना चाहिए था, आपको वैसे कर लेना चाहिए बताएं कि विचारों द्वारा उन्हें आत्ममाक्षात्कार नहीं था। आप चाहे जैसे कर लें कोई न कोई बिन बात मिला, ये किसी उच्च शक्ति की देन है। इस का चौधरी आगे आ जाएगा क्योंकि व्यक्ति का वरदान देने वाली ऊँची चीज की बात करो। अत: यही स्वभाव है। अतः इस स्वभाव के बदले, अपने यदि आप उच्च स्तर पर रहना चाहते हैं तो सोचने स्प्रिंग थोडे से हटा लें. स्थिर हो जाएं और आप की तुच्छ शक्ति को वश में करना होगा । इस देखेंगे कि ये स्प्रिंग विश्लेषण बाजी के अतिरिक्त प्रकार से लोग समझ पाएंगे। यदि आप यह कहने 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-15.txt छेतन्य] लहरी दिसम्बर 2004 नवम्बर 14 का प्रयत्न करेंगे, "कृपा करके आप सोचना बंद कर सोचती हूैँ कि वे इतने तुच्छ नहीं हो सकते कि दीजिए तो लोग कहेंगे, 'क्या सोचना बंद कर दें मैं उनकी स्वतंत्रता पर बन्धन लगा दूँ और वे ? क्या ये सोचने के लायक भी नहीं हैं, क्या ये स्वतंत्र रूप से कार्य न इतने बेकार हैं ? तो ये उन लोगों को रास्ते पर लाने के लिए है जो अहँवादि हैं हर वरक्त सोचते हैं सीधे बहां जाने के लिए मैं आपको रथ दूंगी और परन्तु जब उन्हें शीतल चैतन्य लहरियों महसूस आप यदि स्वर्ग में जाना चाहते हैं तो वहां जाने होती हैं तो वै स्वीकार नहीं करते। इस प्रकार के लिए मैं आपको विमान दूंगी। तो यह आप कर सकें आप पूर्णतः स्वतन्त्र हैं. आप थदि नरक में जांना चाहते हैं तो 1 धीरे-धीरे आप उनकी सहायता करते हैं । लोगों पर निर्भर है, प्रगल्भ बनें और अपने में अब गुरु के विषय में, क्योंकि अब आप गुरु है । आत्मविश्वास लाएं। आपको सभी चक्रों का ज्ञान आपके पास पूरा ज्ञान है, पूरी शक्ति है, सभी कुछ है, आप जानते हैं कि कुण्डलिनी को कैसे है। आपमें यदि कमी है तो आत्मविश्वास की, दूसरे उठाना है आप सभी कुछ जानते हैं अतः यह आप अकर्मण्य हैं। मैं नहीं समझ पाती कि किस उत्तरदायित्व आप अपने ऊपर ले सकते हैं। आप प्रकार यह अकर्मण्यता दूर हो पाएगी। कई बार ये ही वो व्यक्ति हैं जो ये जिम्मेदारी सम्भाल सकता अकर्मण्य लोग भी काम आ जाते हैं ऐसे लोगों को है। मैं आप सबसे नाराज़ भी हो सकती हूँ, बहुत ही है ताकि चे अपने कंरतव दिखा सकें। वो इतने आसान बात है परन्तु, नहीं, मुझे ये कार्य करना है आलसी होते हैं कि किसी भी तरह उन्हें जगाया इसलिए आपसे अत्यन्त प्रेम से बात करनी पड़ती है कभी-कभी आपको डॉटना भी पड़ता है। सरकस में तोप में डालकर धमाके से उड़ाया जाता नहीं जा सकता। परन्तु आप लोग मेरे बच्चे हैं, ईसा-मसीह और श्री गणेश की तरह से मैंने आपका सृजन किया है। उनकी सभी शक्तियां आपको उपलब्ध घुमाफिरा कर आपसे पूछना पड़ता है, कभी आपको तैयार करना पड़ता है, कभी आपके पूजों में तेल डालना पड़ता है, कभी कुछ करना पड़ता है, कभी कुछ करना पड़ता है. कभी आपको गरम करना पड़ता है, कभी आपको ठंडा करना पडता है किसी आता कि किस प्रकार.आपकी आलसी प्रवृत्ति को तरह से मैं यह सब चला रही हूँ। लोगों को किसी ठीक कर! आपने सहज-योग का अभ्यास नहीं तरह से रास्ते पर लाकर उनसे ऐसा बर्ताव करती मैं है, परन्तु ये एक ऐसी अवस्था है जहां बहुत बार असफल हो जाती हूँ, मेरी समझ में नहीं किया, आपको अत्यंत आसानी से, बहुत ही सस्ते हूँ। इसी प्रकार से आपने अन्य लोगों से व्यवहार में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है। आप इसका मूल्य नहीं समझते. इसीलिए इसे गाण बना देते हैं आपको स्वयं को अनुशासित करना होगा। जब तक आप स्वयं को अनुशासित नहीं कर लेते तब तक मैं सभी कुछ आपकी स्वतंत्रता के ऊपर छोड़ देती हूँ क्योंकि मैनें सदा अपने बच्चों की स्वतंत्रता में विश्वास किया है। मैं करना है, नाराज़ नहीं होना। नाराज होना तो बहुत आसान है, इसके बाद कोई समस्या रहेगी ही नहीं। मैं यदि अपसे एक बार नाराज हो जाऊ तो मेरी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी और मुझे शान्ति मिल जाएगी। आपको सभी के प्रति अल्यन्त धैर्यवान होना है अत्यन्त धेर्यवान। आपकी भाषा का ? 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-16.txt नवम्बर - दिसम्बर 2004 चैतन्य लहरी 15 सुधरना अत्यन्त आवश्यक है। कृपा करके. " मुझे खेद है यहाँ ऐसे बहुत से शब्द हैं परन्तु मुझे ऐसा गुरुओं को यह जानना होता है कि उनकी शंक्ति लगता है कि ये मूल्यहीन हैं । अतः हम एक परिणाम तक पहुँचते हैं कि हमें आपको चाहिए कि मुझे देखें कि मैं किस प्रकार हृदय से महसूस करना चाहिए कि इस व्यक्ति का बचाना है, इसकी सहायता करनी है परन्तु कभी-कभी आपको डांट भी लगानी पड़ती है क्योकि आप लोग पाएंगे कि अधिकतर नकारात्मक चिवेक वढ़ेगा और सभी कुछ परिवर्तित होगा। कहाँ से आई है। उन्हें आदर्श चरित्र होना है । लोगों से बातचीत करती हूं। उनकी बाधाओं के में जानते हुए भी यह दर्शाती हूँ कि मैं कुछ विषय नहीं जानती। मैं तब तक कुछ नहीं बताती जब तक लोग बहुत पकड़ वाले लोगों के हाथ हिलने न लगें और वे तमाशा बना देते हैं। अपने को बहुत ने दर्शाते हैं। जब यह सभी चीजें समाप्त हो जाएंगी कुछ नहीं बताती। इसी प्रकार से आपको भी ये तो सहजयोग की शुरूआत होगी। परन्तु इस तरह नहीं कहना चाहिए कि आप भूत बाधित हैं क्योंकि के लोग बहुत बड़ा बोझ होते हैं। इसलिए आपने इसका लोगों पर बुरा असर पड़ता है। तीखे उत्तर निर्णय करना है कि कहीं आप माताजी पर बोझ तो देने से कोई लाभ नहीं होता। ये बात आपको अच्छी नहीं हैं। क्या आप यहां पर यह कहने के लिए तरह से समझ लेनी चाहिए कि गुरु बनना बिल्कुल आए हैं कि मैरे पिता बीमार हैं, मेरी माताजी बीमार भिन्न है। आपको अत्यन्त मधुर एवं विनम्र होना हैं या मुझे नौकरी दिला दीजिए या मेरे लिए ये कर होगा नहीं तो सारे सिरफिरे दौड़ जाएंगे और उन्हें ही टेढ़े होते हैं । ऐसे लोग हर संभव हो जाए। व्यक्तिगत रूप से मैं उन्हें वड़ी चीज असामान्य दीजिए या मेरे लिए वो कर दीजिए ये सभी चीजें व्यर्थ हैं किसी काम की नहीं। मेरे विचार से मे सदमा लगेगा। यो चाहे अच्छे न हों फिर भी उन्हें विल्कुल व्यर्थ हैं बिल्कुल अर्थहीन। इनके विषय में कहें कि वो बहुत अच्छे हैं। उनसे अत्यन्त प्रेम से अधिक न सोचें। अब आपको ठीक हो जाना बात करे और उन्हें रास्ते पर लाने के लिए सभी चाहिए। सहजयोग का इस्तेमाल करना चाहिए। कुछ करें। आपको सभी कुछ करना होगा आज लोगों से पूछना चाहिए कि इन व्यर्थ की चीजों के आप सबको शपथ लेनी होगी कि आप गुरु हैं और विषय में तुम क्यों परेशान हो? इनका क्या लाभ आपको अपने गुरुपन की अभिव्यक्ति करनी होगी। है? आपने इसका क्या करना है? जीवन में जब वापस आकर मैं देखना चाहूंगी कि आप सबने ऐसा आप इस प्रकार से बातें करने लगेंगे तो आपका किया है। सभी लोग इस कार्य में जुट जाएं। परमात्मा आपको धन्य करें। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-17.txt पटम पूज्य माताजी श्री निर्मना मेकेबिअन हाल, आस्ट्रेलिया देवी काः प्रवचन 22.03.1981 सभी सत्य साधकों को मेरा प्रणाम। इस महान् देश में आकर मुझे अत्यन्त खुशी हुई है क्योंकि यहां पर है कि इन सारे प्रवचनों तथा साहसिक कार्यों का अनगिनत साधक हैं। इस आधुनिक काल में भी इतने साधकों ने जन्म लिया है. इससे पूर्व कभी भी घटना घटित नहीं हो जाती। आपमें भी यह घटित इतनी संख्या में साधकों नें जन्म नहीं लिया। होनी चाहिए क्योंकि यही वास्तवीकरण है, यही उदाहरण के रूप में ईसा- मसीह के समय में उन्हें बनना है (Becoming ) जो कि महत्वपूर्ण है। लोगों की भीड़ एकत्र करनी पड़ती थी, परन्तु उनमें इसके विषय में पढ़ने का कोइ अधिक अर्थ नहीं है। जिज्ञासा का पूर्ण अभाव था। वे तो बस ईसा की बातें सुना करते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि है,पैगम्बर दना सकती है। विलियम ब्लैक ने स्पष्ट लेते। यह तो सभी के लिए है। मुख्य बात तो यह तब तक कोई लाभ नहीं है जब तक जागृति की यह जीवंत शक्ति ही हमें उच्चव्यक्तित्व बना सकती इसमें कुछ नयापन है। आज वह समय आ गया है जब विश्व भर में बहुत से साधकों ने जन्म लिया है शब्दों में कहा है कि परमात्मा के बन्दे पैगम्बर बन जाएंगे और वो दिन आएगा जब ये पैगम्बर अन्य और उनमें जिज्ञासा है। ये वास्तविकता है जिसे लोगों को भी पैगम्बर बनाने में सशक्त हो जाएंगे। व्यक्ति को स्वीकार करना है. इसमें कोई पाखंड आज वो दिन आ गया है। विलियम व्लैक सहजयोग नहीं है। कुछ लोगों को इस बात की समझ नहीं की कार्य शैली को 100 बर्ष पूर्व देख पाए और आज हैं. कि जिज्ञासा विद्यमान है और जो भी कार्य वो आप लोग इस वास्तवीकरण को देख रहे हैं । कर रहे हैं-गलत या ठीक-वास्तव में वे अपने आपके सम्मुख आज शुरीर तन्त्र का चार्ट लगाया हुआ है। ये अत्यन्त जटिल चीज है। ये लोग इसे आज सबसे पहले मैं आपको सहजयोग की आसान बनाने की कोशिश कर रहे हैं फिर भी यह अन्दर खोज रहे हैं। रूपरेखा बताऊंगी जिसका अर्थ है: परमात्मा से अत्यन्त जटिल प्रतीत होता है। उदाहरण के रूप में योग पराप्त करने की हमारे अन्दर स्वतः होने वाली आप कमरे में बैठे हुए हैं परन्तु वहाँ पर बत्ती नहीं घटना। इसके विषय में बातें करना बहुत आसान है, तो आपको केवल इतना बताना पड़ेगा कि बटन है कोई भी इसकी बात कर सकता है। पहली बार दबाएं और सारी बत्तियाँ जल जाएंगी। परन्तु इस जब मैं अमेरिका में गई तो लोगों ने कहा कि सारी घटना के पीछे बहुत बड़ी तकनीक है और श्रीमाताजी आप अपने प्रवचनों को अवश्य पेटेंट बहुत बड़ी संस्था इस कार्य को कर रही है से करवा लें। मैं मुरकरा दी- और कहा, क्या बात है? केवल बटन दबाना मात्र नहीं है अव गेटी स्थिति कहने लगे कि लोग आपके शब्दों आदि को अपना उल्लू सीधा करने के लिए प्रयोग करेंगे, हो सकता परन्तु लोग इसका पूरा इतिहारा और सिर दर्द है कि आपको हानि पहुँचाएं। मैने कहा नहीं, सब ठीक है। उन्हें इसके बारे में बोलने दें क्योंकि ये तो इसका वर्णन करना पड़ता है । यहाँ घटित होना ही है, लोगों ने इसके विषय में जानना ही है। इसमें कानूनी एकाधिकार (पेटेंट) लेने की अन्दर का सूक्ष्म अस्तित्व । यह मानव है जो चेतना क्या जरूरत है ? सूर्य की रोशनी और रितारों के की इस अवस्था तक विकसित हो चुका है और उसे सौन्दर्य के लिए तो हम कानूनी एकाधिकार नहीं यह है कि मैं केवल बटन दबा सकती हॅँ, टीक है. जानना चाहते हैं। इसलिए मुझे आपके सम्पुख (त्रिकोणाकार अस्थि) देखें। यह सूक्ष्म शक्ति है-हमारे यह गतिशील चेतना (Dvnamic Awaren3ss )बनना 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-18.txt दिसम्बर 2004 चैतन्य लहरी नवम्बर 17 है। आप यदि कोई यन्त्र बनाने की कोशिश करते बात समझ लेनी चाहिए कि परमेश्वरी प्रेम को हम हैं, उदाहरण के रूप में ये माइक्रोफोन बनाने का पैसे से नहीं खरीद सकते। पैसे की बात करना भी प्रयत्न करते हैं तो लोग आपसे पूछेंगे जब तक इसको उर्जा के स्रोत से जोड़ा न जाए तो इसका नहीं समझते। ये तो आपका मिथक है मानव ने इसे इसका अपमान करना होगा। परमात्मा पैसे को क्या लाभ है ? इसी प्रकार से आपका भी सुन्दर मानव बनने के लिए सृजन किया गया है और आपको शक्ति के स्रोत से है अन्यथा आप बनाया है। परमात्मा नहीं जानते कि पैसा क्या है। इसके लिए आप पैसा नहीं दे सकते और न ही इसे पाने के लिए आप कोई क्रिया कर सकते हैं।फल जुड़ना अपना पूर्ण मूल्य (पूर्णत्व) नहीं प्राप्त कर सकते। बनने के लिए फूल न तो कोई प्रयत्न करता है और कुण्डलिनी के विषय में बहुत से लोगों ने न ही धन खर्च करता है। बन्दर से मानव बनने के बताया है। कहने का अभिप्राय यह है कि उन्होंने लिए आपने कितना पैसा खर्च किया था ? इसके एक पुस्तक के बाद दूसरी पुस्तक कुण्डलिनी के लिए आपने कितना प्रयत्न किया था। यह सब स्वतः घटित हुआ जैसे अकुरण तन्तु(Primule )के लगा कि कुण्डलिनी के बारे में वे कुछ भी नहीं माध्यम से बीज अंकुरित होता है और फिर वही जानते,किस प्रकार वे इतनी बड़ी बड़ी किताबें अंकुरण तन्तु जड़ बनता है और कोंपल बनता है तथा जड़ की नोक पर एक छोटा सा कोशाणु हुआ ? कुण्डलिनी अत्यन्त सहज चीज है। हमारे स्वतः खुदाई का सारा कार्य कार्यान्वित करता है। अन्दर यह शुद्ध इच्छा है कि हमें आत्मा से एकरूप केवल जीवन्त चीजें ही स्वतः कार्यशील हो सकती होना है। यही शुद्ध इच्छा है। ताकि आत्मा के माध हैं । अंकुरण से निकली कोपल विकसित होती हैं. यम से हम परमात्मा को जान सकें। यह शुद्ध पत्तों का रूप धारण करती हैं उसमें फूल निकलते इच्छा,शुद्ध इच्छा की शक्ति कुण्डलिनी रूप में हैं और फल बनते हैं। इसके सारे अस्तित्व का नक्शा इसी बीज सूक्ष्म रूप से निहित होता है । अभिव्यक्ति हो चुकी है परन्तु कुण्डलिनी अब भी इसी प्रकार हमारे अन्दर भी अंकुरण तन्तु निहित सुप्त अवस्था में है। पूरी तरह से ये यहाँ है। जीव है, अंकुरित करने वाली शक्ति जिसे कुण्डलिनी को मानव रूप में सृजन करने के बाद भी यह सुप्त कहते हैं और ये शक्ति जो कि हमारे अन्दर साढ़े है क्योंकि इच्छा की इस शक्ति को अपनी अभिव्यक्ति तीन कुण्डलों में विद्यमान है, इसका बहुत बड़ा करने का अवसर की प्राप्त नहीं हुआ। इस इच्छा गणित है और मेरे विचार से इसकी बातचीत करना शक्ति के विषय में लोग सोचते हैं कि इसे उत्तेजित उचित न होगा, इसके विषय में हम फिर कभी बात कुण्डलिनी करेगें । कुण्डलिनी की इस स्थिति को समझना विषय में लिखी है। और ये जानकर मुझे सदमा लिख सकते हैं ? कहाँ से उन्हें यह ज्ञान प्राप्त हमारे अन्दर विद्यामान है । पूर्ण अस्तित्व की किया जा सकता है। कुछ लोगों ने तो जागृति के लिए कुण्डलिनी योग के उद्यम आरम्भ कर दिए हैं। यह व्यापार की चीज नहीं है.यह जीवन्त प्रक्रिया है इसे आप व्यापार में परिवर्तित आवश्यक है। यह सैक्रम( Secrum) नामक त्रिकोणाकार अस्थि में स्थापित की गई है सैक्रम शब्द यूनानी भाषा का हैं। यूनानी लोग ये जानते थे कि यह पवित्र अस्थि है इसलिए उन्होंने इसे सैक्रम नाम दिया। कुछ यूनानी लोग जब आस्ट्रेलिया नहीं कर सकते। हमारे अन्दर मस्तिष्क है,हम मानब हैं। हमें यह 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-19.txt दिसम्बर 2004 चैतन्य लहरी नवम्बर 18 आए तो उन्होंने आपकी नदी का चैंतन्य अवश्य बहुत बड़ा भ्रम है, आधुनिक काल के सबसे बड़े भ्रमों किया होगा इसलिए उन्होंने इसे परामाता में से एक आधुनिक काल अपनी भ्रांतियों के लिए महसूस (Parramatta) नाम दिया। क्या आपने कभी प्रसिद्ध है । भ्रम की स्थिति में ही हमें सत्य को सोचा कि इसका क्या अर्थ है ? इसका अर्थ है खोजना है, भ्रम के बिना जिज्ञासा नहीं हो सकती। आदिशक्ति Holy Ghost)। परा अर्थात परे, सर्वोच्च और ये भ्रम एक ऐसी स्थिति में पहुँच चुका है कि सुप्रीम, माता( Matta) अर्थात माँ । कुछ साक्षात्कारी हमें कुण्डलिनी के विषय में भी भ्रम हैं । ऐसे भी लोग लोगों ने अवश्य इस नदी की चैतन्य लहरियाँ हैं जिन्होंनें हमारे भ्रम को बढ़ाने के लिए घोर महसूस की होगी और इसे ये नाम दिया होगा। परिश्रम किया है । यह महत्वपूर्ण बात है कि हमारे इसी प्रकार से उन्होंने यह भी महसूस किया होगा अन्तःस्थित प्रथम केन्द्र अबोधिता का चक्र है.इस कि यह त्रिकोणाकार अस्थि कुछ विशेष है। अन्तिम बात को समझा जाना अत्यन्त आवश्यक है, तथा संस्कार के समय विद्युत दबाब के प्रभाव से जब कुण्डलिनी का निवास त्रिकोणाकार अस्थि पूरा शरीर जल जाता है तो अन्त में यह अस्थि मूलाधार में है। अतः इस शक्ति का चक्र कुण्डलिनी जलती है। यह शक्ति इसी अस्थि में है। इस बात के नीचे स्थित है । ये अत्यन्त महत्वपूर्ण बात है को आप अपनी आँखों से देख सकते हैं। आज जिसे आज मैं आपको बता रही हूँ। हमारे अन्दर विश्वविद्यालय में बहुत से विद्यार्थियों ने इसे अन्तिम चक्र, सातवां चक्र श्रोणीय(Pevic Plexus) देखा,त्रिकोणाकार अस्थि में कुण्डलिनी की धड़कन चक्र की अभिव्यक्ति करता है। हमारे अन्दर यह को। क्या आपमें से कोई उछलकूद करके चीख सूक्ष्म केन्द्र है जो पावन अस्थि (Sacrum Bone) चिल्लाकर, मन्त्रोचारण से या पैसे खर्चकर यह कार्य कर सकता है ? जो भी कार्य आप करते हैं ग्रन्थि (Prostrate Gland) की देखभाल करता है, वह परमेश्वरी कार्य नहीं है। परमात्मा को कुछ यह अबोधिता का चक्र है,अबोधिता प्रथम गुण है ऐसा होना पड़ता है जो मानवीय प्रयत्नों से परे जिसका सृजन परमात्मा ने इस पृथ्वी पर किया। के नीचे स्थित है । ये सूक्ष्म केन्द्र है, ये हमारी पौरुष यह पावनता है, परमात्मा का सौन्दर्य है प्रेम है। ये वो सभी कुछ कर सकते परन्तु एक फूल से इस पावनता का निवास हमारे अन्दर कुण्डलिनी के नीचे है। इसी हाल में, इसी सभागार में अपने अगले प्रवचन में मैं विस्तृत रूप से इसके विषय में होना, परन्तु हम इस परिवर्तन को स्वीकार मात्र बताऊंगी कि हमारे जीवन के अन्य पक्षों की कर लेते हैं। इसी प्रकार से हमनें अपनी मानवीय अभिव्यक्ति ये किस प्रकार करता है। परन्तु यह चेतना को भी अधिकार समझ लिया है । ये अच्छी इतना महत्वपूर्ण क्यों है कि इसको कुण्डलिनी के बात है अन्यथा हम इसके विषय में सोचने लगते नीचे स्थापित किया गया है ? क्योंकि हमारी विसर्जन क्रियाएं भी श्रोणीय चक्र द्वारा होती हैं बांध लेते। यह प्रथम चक्र (मूलाधार चक्र) के जिसकी अभिव्यक्ति मूलाधार चक्र नामक केन्द्र से होती है। इसका कुण्डलिनी की जागृति से कोई सम्बन्ध नहीं है। इस तथ्य को जान लेना अत्यन्त हो। आप छलांग लगा सकते हैं.चिल्ला सकते हैं फल नहीं बना सकते। यह चमत्कार प्रतिदिन देखते हैं. खरबों फूलों को फल रूप में परिवर्तित और अपने सिर पर तनाव की एक अन्य गठरी ऊपर( मूलाधार) में स्थित है । पहला चक्र मूलाधार कहलाता है। यह भी 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-20.txt चैतन्य लहरी दिसम्बर, 2004 नवम्बर 19 लेनी वाली है कि यौन क्रियाओं का कुण्डलिनी जागृति में कोई सरोकार नहीं। वो आपकी पावन माँ है और व्यक्तिगत रूप से आपके साथ है। आवश्यक है कि यौन क्रिया का कुण्डलिनी जागृति से कोई सम्बन्ध नहीं है। यौन अभिव्यक्ति यदि आपका योग परमात्मा से करा पाती तो पशुओं का विकास मानव की अपेक्षा कहीं तेजी से होता। हमें सिखाने के लिए पशुओं के पास कुछ भी अपनी धाराणाओं को भुला दें. अपने संस्कारों नहीं (ldentifications) को भुला दें। कृपया यह समझने का प्रयत्न करे। वो आपकी माँ है जो युगों से चाहते हैं वे पशु बन जाएंगे। क्या अब हमनें मेंढक आपको आपका वास्तविक जन्म देने की प्रतीक्षा कर रही हैं आपके अन्दर आदिशक्ति(Holy Ghost) एक ऐसा व्यक्तित्व जिसका पूर्ण नियन्त्रण हो, जो है। उन्होंने आपको आत्मसाक्षात्कार देना है और हर चीज का स्वामी हो। या हमें अपनी समस्याओं इस कार्य के लिए वो प्रतिक्षा किए चली जा रही का दास बनना है ? नष्ट करने वाली चीजों के हैं। कुछ लोगों में मैने देखा है कि उनकी कुण्डलिनी जख्मी सर्पणी की तरह इधर उधर सिर पटक रही है। हम मानव हैं। जो लोग पशुओं से सीखना और केंचुए बनना हैं या उच्च व्यक्तत्व मानव ? सम्मुख यदि हम समर्पण कर देंगे तो किस प्रकार अपने स्वामी बन सकते हैं ? अतः ये बात व्यक्ति होती है और अपना शरीर तोड़ती रहती है। मैने कुछ लोग ऐसे देखे हैं जिनकी कुण्डलिनी में छेद कुण्डलिनी से कोई सरोकार नहीं। ऐसा हो ही हैं। मूर्खतापूर्ण विचारों तथा हमारे से धन ऐंठने वाले नहीं सकता। हमारे सम्मुख ईसा-मसीह का और हमें बेवकूफ बनाने वाले लोगों की बातें सुन उदाहरण है, मुझे आश्चर्य होता है कि ईसा-मसीह कितना नुकसान किया है । कुछ विनाशकारी शक्तियाँ भी पृथ्वी पर अवतरित धारणा को स्वीकार कर सकते हैं कि विकृत यौन हो गई हैं। थोड़ी नहीं ऐसी बहुत सी शक्तियाँ और क्रियाओं से व्यक्ति का योग परमात्मा से हो उनकी गति बहुत तेज है। किसी चीज को नष्ट करना बहुत ही आसान होता है। परन्तु किसी क्या हमारे अन्दर जरा सा भी आत्मसम्मान नहीं चीज की रचना करना, विशेष रूप से किसी जीवन्त चीज की,बहुत ही कठिन कार्य है हम समझते हैं कहीं ऊँचे हैं ? लोगों को नष्ट करने के ये सर्वोत्तम कि यह कार्य बहुत आसान है अतः एकदम से सम्मोहित हो जाते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बताती हूँ कि आप लोग साधक हैं. पूरी तरह से कहते हैं कि किसी के चेले बन जाने मात्र से ही आपकी रक्षा हो जाएगी। किस प्रकार से आपको को स्पष्ट समझ लेनी चाहिए कि यौन क्रिया का सुनकर हमने इसका को जानने वाले लोग किस प्रकार ऐसी बेतुरकी जाएगा। अब क्या हम यौन बिन्दू बनने वाले हैं ? बचा ताकि हम समझ सकें कि यौन बिन्दू से हम मार्ग हैं, उन्हें प्रलोभित करने का परन्तु मैं आपको गुरु साधक। जब तक आप अपनी आत्मा को प्राप्त नहीं कर लेते और कुछ नहीं सुनें। इन सारी मूर्खतापूर्ण चीज़ों से आपको सन्तोष नहीं होगा। मैं जानती हूैँ आप वापस आएंगे,एक दिन आप सब वापिस आएंगे। परन्तु तब तक आप इतने नष्ट हो कितनी शक्तियाँ प्राप्त हुई है, उन लोगों से जो चुके होंगे कि हो सकता है कि मैं भी आपकी कहते हैं कि आपको यौन स्वतन्त्रता होनी बचाया जा सकता है ? आपको स्वंय ही उन्नत होना होगा आपको बनना होगा। यह जानना आपके लिए आवश्यक है कि उन लोगों से आपको चाहिए । ये सब तो पशुओं के पास भी है। यौन स्वतन्त्रता सहायता न कर पाऊ। ये बात स्पष्ट रूप से समझ 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-21.txt दिसम्बर 2004। चैतन्य लहरी 20 नवम्बर में क्या विशेष है ? मेरी समझ में नहीं आता! कहने जानकर हम अचम्भित रह जाते हैं । भारत के गांव से अभिप्राय यह है कि भारत में बिना किसी गुरु के में जो लोग सामान्य हैं उनसे यदि आप इस प्रकार पास गए लोग कितने बच्चे पैदा कर रहे हैं। इसके विपरीत ये गुरु आपको नपुंसक बना देते हैं, यौन व्यक्ति को क्या कष्ट है। इसे तो किसी पागलखाने क्रियाएं आपको सिखाते हैं ताकि आप यह महसूस में जाना चाहिए । करें कि यौन क्रिया ही प्राप्त की जाने वाली बहुत बड़ी उपलब्धि है। ये कार्य बहुत साधारण है। प्राप्त किया निसन्देह नपुंसक लोगों के लिए यह बहुत बड़ी क्या प्राप्त करना है? आप यदि इस चित्र में देखें उपलब्धि है.परन्तु सामान्य लोगों के लिए यह इतना (आप मुझे स्वीकृत रूप में भी नहीं ले सकते) जैसे सरल है जितना अपने स्नानगृह में जाना। इतनी आज दूरदर्शन वालो ने मुझसे एक प्रश्न किया कि साधारण चीजों के लिए इतना बड़ा हंगामा करने यदि हम सन्देह करेगे तो क्या आपको बुरा की क्या आवश्यक है ? ये चीज़ बहुत आगे बढ़ लगेगा? मैने कहा नहीं। इसके विपरीत मैं तो बहुत चुकी है। ये चीजें सूझाती हैं कि यौन क्रियाओं से प्रसन्न हैं। आपका सन्देह यह दर्शाता है कि आपने आप कुण्डलिनी को उठा सकते हैं। ये बात ऐसी है मुझसे प्रश्न पूछने हैं।परन्तु जब झूठमूठ के गुरुओं जैसे बहुत ही अभद्र तरीके से मों बच्चे का की बात आती है तो आप आँखें बन्द करके अनुसरण सम्बन्ध जोड़ा जाना। लोग कह सकते हैं कि करते हैं। उनसे इतने सम्मोहित हो जाते हैं कि यह की बाते करें तो वो एकदम से कहेंगे कि इस अब हमें देखना है कि मानव रूप में हमने क्या है? मानव रूप में हम क्या है और हमें 1 फायड ने ऐसा कहा था। मैं तो कहूँंगी कि फायड भी नहीं सोचते कि क्या कर रहे हैं। आप यह भी अधपका व्यक्ति था, पूरी तरह अधपका जिसमें नहीं देखते कि अन्य लोगों ने क्या उपलब्धि प्राप्त विवेक का पूर्ण अभाव था। हो सकता है उसे भी की है। कुछ लोगों को सड़क पर उछलते हुए कुछ ऐसी समस्याएं हों। आरम्भ में उसका व्यक्तित्व देखते हैं और उन्हीं के साथ जा खडे होते हैं ये भी असामान्य था। उसके अतिरिक्त ये सभी भी नहीं पता लगाना चाहते कि उन्होंने कौन सी मनोवैज्ञानिक हमेशा असामान्य लोगों से ही मिलते शक्तियां प्राप्त की हैं, क्या वे हमसे अच्छी स्थिति में हैं। किसी सामान्य व्यक्ति से कभी वो मिलते हैं ? हैं या नहीं,क्या उनकी तकलीफें ठीक हो गई हैं ? कोई भी सामान्य व्यक्ति मनोवैज्ञानिक के पास क्यों आप यदि इन चीजों का पता लगाने का प्रयत्न जाएगा? हमेशा पागल लोग ही उनके पास जाते करेगें तो जान जाएंगे कि वे तो भगौड़ी प्रवृत्ति के हैं और ये मनोवैज्ञानिक उनकी बाधाओं ले कर हैं। मैने देखा है कि कई बार तो उन्हें सब्जियों से स्वयं भी पगला जाते हैं। फिर वे आपको पागलपन भी डर लगता है।उन्हें यदि लहसुन दिखाया जाए की बातें ही सिखाने लगते हैं । तो उससे भी डर जाते हैं। इस प्रकार के कुछ फायड इतना अधपका था कि वह जीवन का गुरुओं में भी यह समस्या है। यो लोगों से कहते हैं केवल एक ही पक्ष देख पाया, वो नहीं जानता था कि आपको लहसुन नहीं खाना क्योंकि उन्हें यदि कि जीवन के और भी कई पक्ष हैं उसके लिए दिखा दिया जाए तो वे उछलने लगते हैं। यौन इतना महत्वपूर्ण हो गया और वह केवल यह सब क्या है ? क्या हम लहसुन से डरने लगते हैं ? क्या हम इतने बेकार मनुष्य हैं कि हम लहसुन इसका विकृत पक्ष ही देख पाया,जिसके बारे में 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-22.txt दिसम्बर 2004 चैतन्य लहरी नवम्बर 21 इन छोटी मोटी चीजों से ही डरते रहें ? हमारे शरीर की बाईं तरफ इच्छा शक्ति है जो कौन से स्थान पर हैं ? इस बात का क्या प्रमाण दाई ओर से आती है। यह मन (Psyche) है है कि उनका निवास हमारे अन्दर किसी चक्र जिसके विषय में फायड ने बताया है। वो अन्धा विशेष पर है? मध्य में एक अन्य शक्ति विद्यमान है व्यक्ति था जो सभी को विनाश की ओर ले जा रहा जिसके कारण हम मानव बने। यह विकास-शक्ति उन्होंने कृष्ण के विषय में बोला,कृष्ण हमारे अन्दर (Evolutionary Power), पोषक- शक्ति शरीर का बायाँ हिस्सा तो हमारा भूतकाल है, (Sustenance Power), धर्म - शक्ति (Religious) है । यही हमारा है वो धर्म नहीं जो आम लोग समझते हैं। कार्बन होती है,स्वर्ण था। हमारे संस्कार( Conditioning) अवचेतन मन है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि की चार संयोजकताएं(Valencies ) हमारे अन्दर एक अवचेतन मन भी है। परन्तु केवल में दाग-रहित रहने का गुण है, इसी प्रकार मानव यही नहीं है। इसके अतिरिक्त भी बहुत सी चीजें के अन्दर भी दस पोषक शक्तियाँ है और यह हैं। इस अवचेतनमन का अपने से परे भी एक क्षेत्र शक्ति जो पोषण करती है जो यह कहती हैं कि अवचे तन यह मानव है, यह मानव का ही गुण है तो हमारे (Collective Subconcious) है । यदि व्यक्ति इसमें अन्दर तीन शक्तियाँ हैं, सहजयोग की भाषा में इन्हें प्रवेश कर जाए तो यह अत्यन्त भयानक क्षेत्र है। सहज बनाने के लिए, इनका वर्णन हम भिन्न नामों व्यक्ति कैंसर जैसी बीमारी की चपेट में आ सकता से करते हैं। ये तीनों शक्तियाँ हमारे अन्दर विद्यमान है। आप जानते हैं कि सहजयोग में हमने निश्चित हैं परन्तु मध्य की शक्ति बीच में थोड़ी सी टूटी रूप से कैंसर ठीक किया है। मैं हैरान थी कि जो हुई है, इसके बीच में खाली स्थान है। मध्य की यह लोग कैंसर पीड़ित थे और जो मेरे पास आए वो शक्ति जिससे हमने उत्थान को प्राप्त करना है, सब ठीक हो गए। उनमें से अधिकतर में दाई तरफ अभी तक स्रोत से जुड़ नहीं पाई। यह तन्तु की अपेक्षा बाईं तरफ की पकड़ बहुत अधिक थी। (Cord )कुण्डलिनी हैं। हमारे हृदय में आत्मा का एक बार आत्मसाक्षात्कार मिलने के पश्चात् आप निवास है। आत्मा हमारे हृदय में निवास करती है. स्वयं को पहचान सकते हैं और आत्मसाक्षात्कारी ये सर्वशक्तिमान परमात्मा का प्रतिबिम्ब है। बिना जो सामू हिक है म आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किए, बिना इससे जुड़े, सभी दाई ओर को एक अन्य शक्ति है जो 'क्रिया धर्म, आप द्वारा किए गए सभी कर्म अर्थहीन हैं। ये शक्ति' कहलाती है. आपको किसी चीज़ की इच्छा तो ऐसे हैं जैसे बिना तार जोड़े किसी को टेलीफोन है तो उसके लिए आपको कार्य करना होगा यह करना। इस प्रकार तो आप इसे खराब करते हैं। क्रिया शक्ति है,भविष्य है. भविष्य से आगे अतिचेतन अतः आपको एकतार होना पड़ेगा। आज इन लोगों व्यक्ति बन जाते हैं। क्षेत्र (Supra conscious Area) है या सामूहिक ने मुझसे एक अन्य दिलचस्प सवाल पूछा , यह हठ अतिचेतन(Collective Supra Conscious)। लोगों - योग के विषय में था मैने कहा कोई भी हठयोग नें इसकी बातें तो की हैं परन्तु यह नहीं बताया कि नहीं कर रहा, बिना किसी विवेक के वे कोई न कोई हमारे अन्दर ये कहाँ हैं। उन्होंने ईसा-मसीह की व्यायाम कर रहे हैं। उनका चित्त क्योंकि शरीर पर बातें की। हमारे अन्दर ईसा-मसीह कहाँ हैं ? है इसलिए वो ये व्यायाम बिना सोचे समझे कर रहे 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-23.txt चैलन्य लहरी दिसम्बर 2004 नवम्बर हैं। पातांजलि का हठ-योग तो ईश्वरीय प्रणिधान दिया! मैने कहा क्या ? डिम्बवाही नली! ये मंत्र प्राप्त करना है अर्थात् सर्वप्रथम परमात्मा को अपने कैसे हो सकते है? फिर भी हम इसे स्वीकार करते अन्दर स्थापित करना है। सर्वप्रथम आपको उससे हैं। इसे स्वीकार करते हैं और इसके लिए पैसे भी जुड़ना है। कुण्डलिनी को उठने दें और फिर जाने देते हैं। लोगों ने तो तीन हजार पाउंड दिए और की आपके कौन से चक्र पकड़ रहे हैं और आपने उन्हें एक हफते का खाना दिया गया जिसमें उबले कीन से व्यायाम करने हैं। कौन से मंत्र आपके हुए आलूओं का सूप था, तीन हजार पाउंड के लिए आवश्यक हैं। हमारे देश में बहुत सी महान बदले। पाँच दिनों तक उन्हें केवल उबले हुए संस्थाए हैं और सभी स्थानों पर ये लोग मंत्र देते आलूओं का जल दिया गया, एक दिन आलू का हैं। अब इसके विषय में सोचें। छः चक्र है जो मूल छिलका खिलाया गया और एक दिन आलू दिए केन्द्र है। इनके अतिरिक्त भी जिनकी संख्या में आपको बताना नहीं चोहती,अन्यथा ताकि उनके मुस्तिष्क काम करना बंद कर दे और आप हैरान होंगे परन्तु छः मुख्य केन्द् है और दी बाएं, दाएं पर है-सूर्य और चन्द्र तथा सबसे नीचे सातवां चक्र है मूलाधार) । तो आप देख सकते हैं कि 9 चक्र हैं जिन्हें हमने मूलतः समझना है और इन 9 चक्रों पर 9 देवी -देवता भी हैं। तो किसी को आप एक ही मंत्र कैसे दे सकते हैं ? मान लो आपको छः दरवाजे अन्दर धन खर्चने की समर्थ है, तुम्हें धन देना पार करने हैं और आपके पास केवल एक के लिए चाहिए। देने के लिए तुम्हारे पास कितना धन हैं ? अनुमति पत्र ( Pass) है, केवल पाँचवे दरवाजे के ये सब निकृष्टतम खून चूसने वाले कीड़े हैं। खून लिए और अभी आप पहले दरवाजे पर है,तो आप पाँचवे दरवाजे तक पहुँचेंगे कैसे ? इस बात की दिन आएगा जब आप इन्हें पहचान लेंगे लेकिन तब समझ इन लोगों को नहीं है। इन लोगों ने ऐसे-ऐसे तक गलियों में आपको मिर्गी के दौरे पड़ रहे होंगे भयानक मंत्र दिए हैं कि मुझे खेद हुआ। भारतीयों और आप सभी प्रकार की भयानक बीमारियों के को यदि यह मंत्र बताएंगे तो वे दंग रह जाएंगे। शिकार हो चुके होंगे तब आप मेरे पास आएंगे। बहुत से चक्र हैं गये। ये सब उन्हें दुर्बल करने के लिए किया गया 1 उन्हें आसानी से सम्मोहित किया जा सके इन भयानक लोगों से सावधान रहें। वो जानते हैं कि आप साधक हैं तथा निष्ठापूर्वक खोज रहे हैं बो ये ं भी जानते हैं कि आपके पास धन है और ये कह करके वे आपके अहॅ को बढ़ावा देते हैं कि तुम्हारे चूसने वाले कीड़े हैं ये. इस बात को याद रखें। एक इन मंत्रों में से एक है ठिंगा (अंगूठा)। क्या आप इस दशा में बहुत से लोग मेरे पास आने भी लगे कल्पना कर सकते हैं कि यह भी एक मंत्र हो हैं। मैं आपको चेतावनी देती हूँ कि सावधान हो सकता है ? कितनी हास्यास्पद चीज है ऐसा जाएं और समझ लें कि ये लोग कोई ज्ञान-बान कहना । इंगा', 'पिंगा' 'ठिंगा जैसे व्यर्थ के शब्द नहीं देते, वे तो आपको सम्मोहित कर रहे हैं। सिर्फ मंत्र नहीं है, यह तो मूर्खता है। लुटेरों के दल कार्यरत हैं। वो आते हैं और आपके कान में कहते परमात्मा के साम्राज्य को भी नष्ट करने के लिए हैं कि आपने ये मंत्र किसी को नहीं बताना है ये कटिबद्ध हैं। वे आप सबको नष्ट करने के लिए सुन सुन कर मैं हैरान थी कि एक कुगुरु ने तो कमर कसे हुए हैं क्योंकि वे शैतान हैं और शैतान डिम्बवाही पैसे ऐठने के लिए ही वे ऐसे नहीं कर रहे, वे नली(Fallopian Tube ) का भी मंत्र का साम्राज्य स्थापित करना चाहते हैं। इन सब 22 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-24.txt दिसम्बर, 2004 चैतन्य लहरी नवम्बर 23 । कि आपको सत्य का ज्ञान हो। सत्य यही है कि चीजों को अपना लेना हमारे लिए बहुत आसान है जैसा मैने आपको बताया पतन की स्थिति में चले जब आपको आत्मसाक्षात्कार होता है तो आपको जाना बहुत आसान है लेकिन उत्थान को प्राप्त अपने हाथों में शीतल लहरियाँ महसूस होनी चाहिएं। करना बहुत कठिन। उत्थान प्राप्त करना भी इतना आपने स्वयं अपना आंकलन करना हैं। मैं आपको कठिन नहीं है। नैसर्गिकता बहुत सहज हैं. अपने नहीं बताऊंगी आप ही ने देखना है, आप ही ने कार्य की यदि आपको समझ हो तो इसे कर सकते महसूस करना है और फिर आप ही ने उन्नत होना हैं। कोई सुन्दर सा उद्यान यदि है तो आप आसानी हैं और सभी चीजों का ज्ञान प्राप्त करना है, से पता लगा सकते हैं कि इसका कोई माली भी परमेश्वरी विज्ञान के सभी रहस्यों को समझना है। अवश्य होगा जो बाग के कार्य कर रहा है। किसी तब आप गुरु बन जाते हैं, अपने स्वामी। आप को यदि कार्य की समझ आ जाए तो वह इस कार्य आत्मा हैं, आपको यह स्थिति प्राप्त होनी ही चाहिए। जो आपको दिया जा रहा है वो आपका अपना है। को कर सकता है। अब ये मध्य मार्ग वह मार्ग है जिससे व्यक्ति मैने इसमें कुछ नहीं करना, मैं तो मात्र उत्प्रेरक ने उत्थान को पाना है। कुण्डलिनी अतिसूक्ष्म ब्रह्म (Catalyst) हू । मुझे कहना चाहिए कि ये कार्य नाड़ी के बीच में से उठती है। आरम्भ में केवल एक आप स्वयं कर सकते हैं, एक बार आत्मसाक्षात्कार बाल जितना पतला तन्तु उठता है और छेदन प्राप्त करने के पश्चात आप आत्मक्षातकार दे सकते करता है। निःसन्देह कुछ लोगों में यह (कुण्डलिनी) तो इन लोगों बड़े जोरों से उठती है और तब यह ब्रह्मरंध्र ( तालु को गुरुओं ने निचोड़ा हुआ था और वो बहुत दुखी अस्थि) का छेदन करती है। यह व्यक्ति का सच्चा बपतिस्म होता है। आज पहली बार लोगों ने अपने सिर से बहती हुई शीतल चैतन्य लहरियों को मिला, क्या हम आपसे मिलने आ सकते हैं ?' मैं हैं। वारेन और टैरेन्स मेरे पास आए थे। भारत जाने से पूर्व उसने मुझे अस्ट्रेलिया से फोन किया श्रीमाताजी, हमें आपका टेलीफोन 1 महसूस किया। क्या ये अनुभव आप धन देकर या जानती थी वो लोग साधक हैं। तो पहले मैने उनको उछल-कूद करके प्राप्त कर सकते हैं ? उन्हें हाथों पकड़ा। आप जानते हैं कि मैं शहरों में कार्य नहीं पर भी चैतन्य लहरियां महसूस हुई। बाइबल में भी स्पष्ट लिखा गया है कि यह शीतल चैतन्य लहरियाँ लोग आसानी से आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेते हैं। हैं, शीतल चैतन्य लहरियाँ ही आदिशक्ति का चिन्ह उस दिन हम लोग कडु नामक गाँव में थे, वहां पर हैं। आपको अपने हाथों में और सिर पर शीतल छः हजार लोगों को आत्मसाक्षात्कार मिला, ये बात लहरियाँ महसूस है आप लोग अन्य पुस्तकों को नहीं पढ़ते। आदि शंकराचार्य जैसी कुछ पुस्तकें बहुत ही अच्छी हैं। लोग तो उस व्यक्ति का नाम भी नहीं लेना चाहते गाँव में कार्य करती हूँ। बेचारे सहज-योगियों को जिसने स्पष्ट बताया है कि यह शीतल लहरियाँ हैं गाँवों में जाना पड़ा जहां पर न तो कायदे के तथा चैतन्य को अपने हाथों पर शीतल लहरियों के गुसलखाने हैं, नहाने के लिए. तथा अन्य कार्यों के रूप में महसूस किया जाना चाहिए। वो नहीं चाहते लिए उन्हें नदी पर जाना पड़ता था और आरामपसन्द करती, मैं गाँवों में कार्य करती हूँ क्योंकि गाँवों के होने लगती हैं। यही वास्तवीकरण अखबारों में भी छापी गई। शहरों में तो ये तथाकथित गुरु कार्य करते हैं क्योंकि उन्हें धन और बटुए की जरूरत होती है जो शहरों में ही मिलते हैं। मैं तो 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-25.txt चैतन्य लहरी नवम्बर - दिसम्बर 2004 24 अस्ट्रेलिया के लोगों के लिए यह अत्यन्त कठोर अधिकार है ताकि आप सच्चा बपतिस्म सच्ची कार्य था। परन्तु किसी तरह से उन्होंने चला लिया शक्ति प्राप्त कर सकें। एक बार जब आप इसे प्राप्त और उन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया। कर लेंगे तो सर्वप्रथम तो आपका व्यक्तित्व ही आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके जब वो वापिस आए बिल्कुल बदल जाएगा। आप कुछ भिन्न ही चीज तो पहले ही झटके में उन्होंने तीन सौ लोगों को बन जाएगें| आत्मसाक्षात्कार दिया। अब तो वे कुण्डलिनी जागृति आर प्रबुद्धता साक्षात्कार के बाद ये सब तर्कसंगत है परन्तु इससे आत्म-साक्षात्कार के पश्चात् अभी में पूर्व यह अंधविश्वास है जिसमें व्यक्ति को कोई तरह से उतरा भी न था कि मुझमें एक चीज घटित समझ नहीं होती। कुण्डलिनी विद्यमान है आपके हुई "मैने जुआ खेलना, सिगरेट और शराब पीना अपने साथ जन्मी हुई है। 'सह अर्थात् साथ और छोड़ दिया। ये मेरे साथ क्या हुआ"? मैने कहा ज अर्थात जन्मी हुई। ये आपके साथ जन्म लेती जब आपको सल्य प्राप्त हो जाता है तो आप यह हैं और आपके अन्दर स्थित है, परन्तु केवल सब चीजें छोड़ देते हैं। सच्चा रत्न मिल जाने पर अधिकारी व्यक्ति जिसे इसका ज्ञान हो, वही इसे बनावटी पत्थर त्याग दिए जाते हैं । जीवन से उब उठा सकता है। क्योंकि मैं है, मनुष्य हूँ इस कारण से किसी को दुख नहीं होना चाहिए। क्योंकि उबाऊ लगते हैं और अरुचिपूर्ण प्रतीत होते यदि आप इसे कर पाएं तो मुझे बहुत खुशी होगी। हैं, तनावों, क्रूरता तथा समस्याओं से परिपूर्ण लगते आप जानते है कि मैं अपनी गृहस्थी में अत्यन्त हैं इसलिए आप इन चीजों ( नशे आदि) को अपना प्रसन्न हूँ। मुझे किसी चीज की आवश्यकता नहीं लेते हैं। परन्तु एक बार जब आपको अपना पूर्णत्व है। मेरे पति ने जगह जगह जाकर इस कार्य को प्राप्त हो जाता है तो आपमें पूर्ण सुरक्षा की भावना करने की आज्ञा इसलिए दी है क्योंकि के जानते हैं स्थापित हो जाती है और जिस आनन्द, खुशी एवम् उस दिन सिगांपुर में एक वृद्ध सज्जन बहुत के विषय में बहुत कुछ जानते हैं। समय बाद मुझे मिले। कहने लगे, श्रीमाताजी इसमें पूरी इस कार्य को कर रही कर, जीवन क्योंकि आपको उबाऊ लगता कि कोई अन्य इस कार्य को नहीं कर सकता। कृपा का वचन आपको दिया गया है वह आपके आप यदि इस कार्य को कर सकें तो मुझे अत्यन्त अन्दर बहुनी शुरु हो जाती है। आपको अत्यन्त प्रसन्नता होगी वास्तव में मैं इससे निवृत्त होना शान्ति का अहसास होता है। इसके अतिरिक्त और फिर यदि मै इस कार्य को करती हूं आपके साथ बहुत सी चीजें घटित होने लगती हैं। चाहूंगी। तो आपको बुरा क्यों लगना चाहिए ? से ऐसे इसके विषय में एक ही प्रवचन में बता पाना कठिन कार्य भी तो हैं जो मैं बिल्कुल नहीं कर सकती। मैं है। आपके सम्मुख कार नहीं चला सकती, टाइप नहीं कर सकती, चीज जो घटित होती है वो यह है कि आपका आपके डिब्बे तक खोलने मुझे नहीं आते। इन सभी स्वास्थ्य ठीक हो जाता हैं। ऐसा नहीं है कि मैं इस कार्यों में मैं एकदम से बेकार हूँ। तो यदि मुझे उद्यम को शुरू करने के लिए अस्पतालों में जा कुण्डलिनी जागृत करने का ज्ञान है तो आपको जाकर रोगियों को खोजने वाली हूँ, ठीक है, इतना बुरा क्यों लगना चाहिए। स्वंय को पहचानना और पैसा दे दो और आपका यह रोग ठीक हो जाएगा अपने अन्दर जागृति को प्राप्त करना आपका नहीं, मैं नहीं जानती कि मैं कितने लोगों को ठीक बहुत मैं और भी प्रवचन दूंगी। पहली 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-26.txt दिसम्बर, 2004 चैतन्य लहरी नम्बर 25 योग प्राप्ति के बाद यह सब घटित होगा इससे पूर्व कर चुकी हूँ। विश्वास करें कि मैं वास्तव में नहीं जानती। मैं यह भी नहीं जानती कि मेरे शिष्यों ने नहीं । आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लेने के पश्चात् कितने लोगों को रोग-मुक्त किया है। ये तो सूर्य आपके साथ भी यह घटित होगा| आज आप यदि किरणों की तरह है जिन्हें इस बात का ज्ञान नहीं इसे प्राप्त नहीं करते तो भी मैं निराश नहीं होऊंगी। होता कि उनके कारण कितने पत्तों में हरियाली इस महान इंग्लैंड में जिसे कि विलियम ब्लैक ने आयी हैं जिन लोगो से आप प्रेम करते हैं जिन्हें आप भोजन देते हैं उनका आप हिसाब पड़ा। केवल चार लोगों पर मैने छह वर्ष तक कार्य किताब नहीं रखते। किसको आपने कितने निवाले किया क्या आप इस बात पर विश्वास करेंगे ? खिलाए हैं क्या आप उनकी गिनती करते हैं ? यह लोहे के चने चवाने जैसा है। परन्तु एक बार जब प्रेम है। आपको प्रमाण किसलिए चाहिए? क्यों उन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया तो तूफान सा प्रमाण चाहिए, आप मुझे कोई पैसा तो दे नहीं रहे? आ गया और अब हमारे पास हजारों आत्मसाक्षात्कारी सूर्य किरणों का आप कोई प्रमाण चाहते हैं ? आप लोग हैं। निःसन्देह हम इनका कोई लेखा जोखा मुझे कुछ हूँ। दुकानदारी नहीं हो रही है! आपने यह तोहफा आप उन्हें अपनी चैतन्य लहरियों के माध्यम से ा येरुशलम कहा है,मुझे बहुत कठिन परिश्रम करना नहीं दे रहे और न ही मैं कुछ बेच रही नहीं रखते। कोई संस्था नहीं है,कुछ भी नहीं है। पाना है आपने इसे प्राप्त करना है तो क्यों आप पहचान सकते मेरा आंकलन करना चाहते हैं ? आपको यदि नहीं नहीं । क्योंकि आप सामूहिक चेतना में आ जाते हैं. मिला है तो बेहतर होगा इसके लिए प्रयत्न करें। हाँ बार बार मैं यह बात कहती हैँ कि यह बनना है। मेरे बारे जानकर आपको क्या लाभ होने वाला है आप अपने को तथा अन्य लोगों को महसूस करने मुझे समझ पाना आसान नहीं है। यह कार्य बहुत लगते हैं। यह बात महत्त्वपूर्ण है. पूरी तरह से कठिन है। मैं इतनी भ्रांति रूप हूँ। मुझे जानना महत्वपूर्ण । अब आपने इसे प्राप्त करना है आज कठिन है, बेहतर होगा कि आप स्वंय को जाने, नहीं तो कल। तो आज ही इसे प्राप्त कर लेने का उससे आप सीख पाएंगे। जब तक आप स्वयं को विचार बहुत अच्छा हैं। परन्तु पा लेने के बाद, जैसे नहीं पहचान लेते मुझे नहीं पहचान सकते। अतः ईसा मसीह ने कहा था, कुछ बीज चट्टानों पर गिर मुझसे उलझन पूर्ण प्रश्न पूछने का कोई लाभ नहीं। जाते हैं। यहाँ भी ऐसा ही होता है। आपने इसको मैं आपको कुछ नहीं बता पाऊंगी क्योंकि अब मैं संभालना है. बढ़ाना है. इसमें कुशलता प्राप्त करनी बहुत चतुर हो गई हूँ। कृष्ण ने केवल अर्जुन को हैं और स्वयं गुरु बनना है। आज सुबह जैसे मैंने बत्ताया था। उसने कहा था सभी कुछ त्याग कर आपको बताया था, इन अगुरूओं से जाकर अपना मेरे बताए हुए मार्ग पर चलो। श्रीकृष्ण ने कहा योग धन वापस मांगें ये समझने का यह सर्वोत्तम उपाय प्राप्त करने के बाद आपको क्षेम प्राप्त होगा, इससे है कि यह चीज तार्किकता से परे है मैं असीम की पू.र्व नहीं शारीरिक, मानसिक,मावनात्मक, भौतिक और हमारे मस्तिष्क सीमित हैं परन्तु बहुत सी चीजें सामाजिक क्षेम प्राप्त हो जाता है। अध्यात्मिक क्षेम समझी जा सकती हैं। बहुत से लोग इस निष्कर्ष भी आपको प्राप्त हो जाता है । उन्होंने कहा कि पर पहुँचे कि कुण्डलिनी जागृति द्वारा ही हैं कि वे आत्मसाक्षात्कारी हैं या । आपको सभी प्रकार का बात कर रही हूँ, हमारी तार्किकता सीमित है। tho 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-27.txt दिसम्बर 2004 चैतन्य लहरी नवम्बर 26 आत्मसाक्षात्कार पाया जा सकता है। अपने सीमित करने वाले हैं इसीलिए आप ब्राहमण हैं और यह मस्तिष्क द्वारा वे इस परिणाम पर पहुँचे। उन्होंनें जाति कहीं भी हो सकती है। यह इस्लामिक संसार बहुत से निष्कर्ष निकाले। श्रीमान फायड शिष्य(Jung) युग इतना संवेदनशील व्यक्ति था कि चीन में हो सकती है,रूस में हो सकती है इंग्लैंड उसने कहा कि आपको अवश्य आत्मसाक्षात्कार और अमेरिका में हो सकती है। मेरे पति की नौकरी का में हो सकती है, इस्लामिक देशों में हो सकती है. थी प्राप्त करना है, आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना ही है, के कारण में इन सब देशों में गई। मैं हैरान और इस तरह से उसने सहजयोग के लिए आधार मैंने रूसी लोगो को भी आत्मसाक्षात्कार दिया है। तैयार किया। उसने कहा कि आत्मसाक्षात्कार आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के लिए वो बहुत अच्छे हैं। प्राप्त करके आप सामूहिक चेतना में आ जाएंगे। परन्तु इस सीमा तक समझने में वो बहुत समय उसने इसकी बात की अत: हमें समझना है कि लेंगे आप लोग क्योंकि वास्तव में स्वतन्त्र हैं. आप इसके विषय में बताने वाली में पहली व्यक्ति नहीं लोग स्वतन्त्र हैं. प्रजातान्त्रिक हैं अतः सहजयोग हूँ। सभी महान संतों, अवतरणों और पैगम्बरों ने को समझने के लिए, इसमें महान ऊँचाइयाँ प्राप्त इसके विषय में बताया। मोहम्मद साहब ने कहा करने के लिए आपके पास खुला मस्तिष्क है। फिर कि आपको पीर बनना होगा परन्तु आप जानते हैं भी मैं कहूँगी कि स्वतन्त्रता का अर्थ स्वच्छंदता नहीं कि अव वे धर्म से क्या खिलवाड़ कर रहे हैं! मैं है। इसका यह अर्थ बिल्कुल भी नहीं है। हवाई विवाद में नहीं पड़ना चाहती। परन्तु आप लोग जहाज के सभी पुरजे यदि स्वच्छंद होना चाहें तो स्वयं इस बात का निर्णय कर सकते हैं कि इन उस हवाई जहाज का क्या हुप्र होगा। हम एक ही महान अवतरणों का उन्होंने क्या किया। आप चाहे विराट के अंग प्रत्यंग हैं। एक ही आदि पुरुष, एक उन्हें सर्वोत्तम और सर्वोच्च चीज दे दें, वो जानते हैं ही ब्राहमण के हम अणु हैं। हमे स्वयं को विराट से कि इसे किस तरह बिगाड़ना है जैसे हिन्दुओं को जोड़ना है, अपना सम्बन्ध, सहयोग और प्रेम भिन्न बताया गया कि आत्मा का निवास शरीर के अन्दर अणुओं से खोज निकालना है । तो जन्म के आधार पर जाति प्रथा बनाने का अंत में मैं कहूँगी कि यह परमात्मा का दिव्य प्रेम है, उन्हें क्या अधिकार था ? वास्तव में जाति का अर्थ परमात्मा की है जिसने आपको मानव योनि दी तो है जन्म से आए संस्कार । उदाहरण के रूप में और उनकी कृपा ही आपको श्रेष्ठ मानव बनाएगी। आप ब्राहमण हैं क्योंकि आप साधक हैं ब्रह्मा को वो चाहते हैं कि यह शक्ति आपके माध्यम से बहे। खोज रहे हैं इसलिए आप ब्राहमण हैं। खोजने वाले, चाहे बह चुनावों से हो, क्षत्रिय हैं । खोखले व्यक्तित्व का बनाना चाहते हैं ताकि आप यह तो व्यक्तित्व की वृत्तियां हैं जो व्यक्तित की उनकी शक्तियों को महसूस कर सकें और उनका जाति का निर्णय करती हैं। गीता के लेखक व्यास संचालन कर सकें तथा परमात्मा के साम्राज्य में एक मछुआरिन के नाजायज़़ बच्चे थे बो कैसे कह प्रवेश कर सकें । वे ही प्रेम के सागर हैं वे आपके सकते थे कि आप ब्राहमण परिवार के हैं। जाति तो सभी अपराधों को क्षमा करते हैं। हममें कौन से दोष योग्यता है,श्रेणी है। आप लोग भी उसी तरह के हो सकते हैं कौन से पाप हम कर सकते हैं ? साधकों की श्रेणी में हैं। आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त आप तो न्हें पक्षियों की तरह से हैं जो कहीं से कृपा सत्ता को इसलिए वे आपको श्रीकृष्ण की बाँसुरी की तरह से (N. 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-28.txt चैतन्य लहरी नवम्बर - दिसम्बर 2004 27 दार छोटा सा तिनका उठा लाने के लिए स्वंय को दोषी अपना सीन्दर्य प्रदान करते हैं और आप उनके महसूस करता है। वे के सागर हैं। वह हमें पूर्णतयाः स्वच्छ कर देते हैं। की है! प्रेममय पिता हैं, क्षमा शक्तियां अपना सौन्दर्य और अपनी गरिमा प्रदान परमात्मा आपको धन्य करें। क कुम १ TI 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-29.txt विवेक प्राप्ति ( केवल विवेक का अर्थ समझ लेने पर) उत्तम पक्ष को अपनाना और उनका आनन्द लेना ही विवेक है । यही विवेक है और इसमें आप विनाशकारी चीजों से हटकर रचनात्मकता को अपनाते हैं। आपके नौकर, ड्राइवर आदि के रूप में आपको कोई विवेकशील व्यक्ति मिल जाता है तो आप हैरान हो जाते हैं कि किस प्रकार ये इतना विवेकशील हो सकता है! सम्भवतः अपने पूर्व जन्म में ही उसने अपने अन्दर यह विवेक पा लिया हो या इसकी गहनता में जाकर इसे पाया सहजयोगी के जीवन में विवेक की भूमिका ऐसी हो। विवेक किसी एक व्यक्ति मात्र के अवस्था या फैशन हो, जो चाहे विचारधारा हो, जैसे चाहे लोग सम्पत्ति नहीं है बहुत से व्यक्ति विवेकशील हो सकते हैं। अतः सहजयोगी वही है जिसने विवेक हसा चक्र पूजा-1992 होती है कि बाहर चाहे जो भी होता रहे, जो चाहे परिवर्तित हो रहे हों, आप उनके अनुसार परिवर्तित नहीं होते। आपके अन्दर परिवर्तन होता है। श्री गणेश पूजा, 1991 पुणे प्राप्त कर लिया है। उन्हें ऐसे प्रश्न नहीं पूछने कि आप ऐसा क्यों कह रहे हैं, इसकी क्या आवश्यकता है ? उन्हें प्रश्न नहीं पूछनें। बो तो गलती करते ही नहीं गलत कार्य करते ही नहीं .हमेशा ठीक मार्ग त्याग कर अपने विवेक तथा अपने अस्तित्व का पर होते हैं । नेरा मानना है कि सहजयोगी का यही आनन्द लेते हुए आप मध्य में खड़े चिन्ह है और यही देवी का आशर्शीवाद भी है । देवी की शक्ति यदि आपके अन्दर कार्यरत् है तो आपको चीजों को कार्यन्वित करने का विवेक प्राप्त विवेक बाहर नहीं दिखाई देता। किसी व्यक्ति को ध्यान एक मात्र मार्ग है । अपने बाएं और दाएं को हैं। हुए श्री गणेश पूजा,1991 पुणे देखने मात्र से आप यह नहीं कह सकते कि वह हो जाएगा। नवरात्रि पूजा-2002 विवेकशील है,परन्तु चैतन्य लहरियों द्वारा आप यह जान जाएंगे कि व्यक्ति अत्यन्त विवेकशील हैं वह विवेक ऐसा गुण है जो सर्वप्रथम आपको पूर्ण शान्ति व्यक्ति बोले या न बोले वह यदि बोलेगा तो बिना प्रदान करता है। विवेक विकसित हो जाने पर आप किसी को चोट पहुँचाए कोई अत्यन्त गहन, विवेकशील अत्यन्त शान्त हो जाते हैं। लोग जो चाहे कहते एवं अच्छी बात कहेगा। रहें, करते रहें, जितने चाहे आक्रामक हो, हर हाल में आप शान्त रहते हैं तथा लोगों तथा राष्ट्रों की मूर्खता को देखते हैं और इस बात को समझते हैं विवेक ये मान लेना मात्र नहीं है कि मैं विवेकशील कि क्यों वे यह मूर्खता कर रहे हैं। नवरात्रि पूजा, 1998 हूँ। विवेक तो अपनी अभिव्यक्ति करता है, चीजों को नवरात्रि पूजा-1998 कार्यन्वित करता है और दर्शाता है कि अच्छा क्या है और बुरा क्या है। नवरात्रि पूजा,2002 विवेक का अर्थ यह नहीं है कि आप चीज़ों के विषय में वाद-विवाद करें या लोगों से झगड़ें। नहीं, इसका ये अर्थ बिल्कुल नहीं है। चीजों के विवेक उस व्यक्ति का चिन्ह है जो वास्तव में उच्च 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-30.txt बैतन्य लहरी दिसम्बर, 2004 29 नयम्बर स्तर का आत्मसाक्षात्कारी है। आपमें यदि विवेक की समझ देता है. सन्तुलन प्रदान करता है. अपने नहीं है तो जो चाहे आप करें, अपने कार्यों से साथ व्यवहार करना, अपनी रक्षा करना तथा अपना जितने मर्जी सन्तुष्ट हों परन्तु विवेक का होना सम्मान करना सिखाता है। अत्यन्त महत्वपूर्ण है । श्री गणेश पूजा,1991 अस्ट्रेलिया नवरात्रि पूजा-2002 श्री गणेश विवेक के दाता हैं। वो हमें सिखाते हैं कि क्या मैं विवेकशील हूँ? परमात्मा कि कृपा का यह किस समय कैसा व्यवहार करना है. किस समय पहला चिन्ह है। परमात्मा कि कृपा जिस पर है वह कैसा बोलना है, किस मामले में किस सीमा तक व्यक्ति विवेकशील होता है और उसके मौन से जाना है। ये सारे गुण अन्न्तजात हो जाने चाहिए। उसका विवेक झलकता है। परमात्मा की पूर्ण सहज। शव्ति ऐसे व्यक्ति को माध्यम के रूप में उपयोग इन्हें कार्यान्वित करने की आवश्यकता नहीं होनी करती है और आश्चार्यजनक रूप से कार्य करती चाहिए, आपके अन्दर इनका ज्ञान होना चाहिए। हैं। व्यक्ति आश्चर्यचकित हो जाता है कि यह सब कैसे पटित हो गया। किसी महिला को भी विवेक प्राप्त हो बताएँ कि. सकता है और पुरुष तक जाना है? मेरा व्यवहार कैसा होना चाहिए ? यह गहनता, यह स्वभाव प्रप्त कर सकता है जो मेरा दृष्टिकोण कैसा होना चाहिए ?" यह विवेक अत्यन्त सुन्दर है और अत्यन्त शक्तिशाली है। "अब मैं सहजयोगिनी हैँ। हर सुबह स्वयं को ये "मैं सहजयोगिनी हैूँ। मुझे किस सीमा को भी कोई भी यह विवेक, पंति कमल यदि आप में खिल उठे तो इन वातों को नवरात्रि पूजा,2002 आसानी से समझा जा राकता है । कमल कैसे खिलता है ? बीज अंकुरित आपमें भी यह बीज निहित है । विवेक आपमें स्वतः आता है,परन्तु अनुभव के होता है. .। माध्यम से। तब आप समझते हैं कि यह ठीक मार्ग अब सबगें यह बीज विद्यमान है। अब क्योंकि आप है अनुभव 1 आत्मसाक्षात्कारी हैं इसीलिए यह कमल खिलने लगा है। विवेकशीलता को अपनी लगामें थाम लेने से ही आप समझने लगते हैं । हंसा पूजा,1992 दें. मानव..किसी भी बात को सीधे से नहीं समझेंगे । ऐसे करने का एक अत्यंत आसान तरीका है अतः जब तक वो ये समझ न लें कि यह श्रीमाताजी विवेक के सम्मुख सगर्पण कर दें और आपके की लीला है जो हमें विवेक के तट पर ले आई है, अन्तःस्थित विवेक गतिशील हो उठेगा। ये कार्य चीजों को करेंगा। फिरा कर बताना पड़ता है। नवरात्रि पूजा,1998 घुमा दिवाली पूजा, 1991 श्री गणेश का प्रथम गुण यह है कि वे हमें विवेक जो लोग ध्यान-धारण नहीं करते वो सहजयोग में प्रदान करते हैं और वह विवेक हमें व्यवहार करने खो जाएंगे क्योंकि विवेक तो केवल आपकी आन्तरिक 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-31.txt दिसम्बर, 2004 30 चैतन्य लहरी नयम्बर प्रेरणा से ही उन्नत हो सकता हैं और यह आन्तरिक वरदान हैं। आप इसे चेतना भी कह सकते हैं या प्रेरणा आपको तभी मिल सकती है जब आपके कुछ और भी इस विवेक के द्वारा ही आप पूर्णतः अन्दर श्री गणेश की शक्ति की अभिव्यक्ति हो। दिव्य व्यक्तित्व बन जाते हैं। अपनी भक्ति द्वारा आपको यह विवेक प्राप्त कर लेना चाहिए। नवरात्रि पूजा, 2002 वही विवेक के दाता है। श्री गणेश पूजा,1998 यह कहना अति कठिन है कि विवेकशील कैसे परमात्मा को आपकी आवश्यकता है। वो नहीं बनें। यह घटना तो बस घटित हो जाती है और चाहते कि आपकी मृत्यु हो जाए या आप समाप्त हो आप विवेकशील हो जाते हैं। अतः बालक होते हुए जाएं। उन्हें आपकी बहुत आवश्यकता है। परमेश्वरी भी श्री गणेश अत्यन्त परिपक्व हैं। वे अत्यन्त शक्ति ने बहुत से कार्य करने हैं और आप उसके विवेकशील हैं। केवल इतना ही नहीं, वे विवेक माध्यम हैं। प्रवाहित करते हैं और जो भी व्यक्ति सहजयोगी हैं. विवेक उसका अन्त्तजात गुण हैं क्योंकि उसके अन्दर भी श्री गणेश जागृत हो चुके हैं। अतः वह विवेकशील हो जाता है, अत्यन्त विवेकशील। ये दर्शाता है कि किसी भी शक्ति की तरह यह अपने विवेक से वह क्या प्राप्त करता है- सन्तुलन, सूझबूझ की शक्ति है जिसे देवी की शक्ति का क्षेम सच्ची उत्क्रान्ति और उसे समझ आ जाती है कि प्राप्त है। ये उत्क्रान्ति उसके अपने उसके देश के तथा पूरे अतः वे ( देवी) विवेक की दाता है। देवी का ये विश्व के हित के लिए है। सहजयोग का महत्व महानतम् गुण है कि वे विवेक की दाता है। नवरात्रि पूजा,2002 विवेक...अत्यन्त अन्न्तजात गुण हैं. अत्यन्त अन्नर्तजात। उत्क्रान्ति प्रक्रिया के एक भाग के रूप में विवेक का उसकी समझ में आ जाता है। बिना विवेक के व्यक्ति ये सब नहीं समझ सकता। यह विवेक हमारे अन्दर है, पूरी तरह से । अन्न्तजात अभी तक की सारी उत्क्रान्ति उन्होंने (देवी ने) की रूप से स्थापित है। हमें तो केवल अपने अन्तः है और अब आगे बढ़ाने के लिए वे आपको अत्यन्त स्थित विवेक के भण्डार का उपयोग करना है। उदय होता है। विवेकशील बनाने वाली हैं। नवरात्रि पूजा,2002 श्री गणेश पूजा, 1991पुणे कोई भी पूछ सकता है," श्रीमाताजी इस विवेक वो लोग अत्यन्त भाग्यशाली हैं जिन्हें विवेक प्राप्त का स्रोत क्या हैं ?" श्री गणेश इसके स्रोत हैं..। हो गया है, परन्तु विवेक जीवन के प्रति अपनी श्री गणेश यदि अपमानित हो जाएं तो वे अन्धकार सुझबूझ के अतिरिक्त किसी अन्य स्रोत से प्राप्त के बादलों के पीछे छुप जाते हैं। ऐसी स्थिति में नहीं होता। व्यक्ति जब सोचने लगता है कि, "अब मैं ऐसा क्यों कर रहा हूँ? मेरे इस कार्य का क्या श्री गणेश पूजा, 1993 जर्मनी प्रभाव होगा ? मेरे आचरण का परिणाम क्या है ? आपको विवेक प्रदान करना देवी का महानतम् ये मेरे लिए अच्छा है या बुरा, केवल तभी विवेक TI लोग मूर्खतापूर्ण कार्य करने लगते हैं। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-32.txt दिसम्बर 2004 चैतन्य लहरी नवम्बर 31 आपके अन्दर विवेक का यह ऐसा कार्य है जो श्री गणेश पूजा 1993, जर्मनी आपको अच्छे-अच्छे लोगों, सुन्दर परिस्थितियों की ओर ले जाएगा जहाँ आप सुन्दर चीजें या आता है।" वही व्यक्ति शक्तिशाली है जिसे केवल उचित, अनुचित का ज्ञान नहीं है, बल्कि जिसमें अनुचित कभी आपने आशा भी न की थी । कार्य को न करने की शक्ति भी है। गलत कार्य को यह समझ लेना अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि आप मुझे सुन्दर कृतियाँ खोज निकालेंगे. ऐसी चीजें जिनकी वह करता ही नहीं। हमारे अन्दर विवेक ऐसी पूर्ण शक्ति हैं जिससे हम चमत्कार हुआ" आपके विवेक के अतिरिक्त यह कोई प्रयोग नहीं करते। यह तो हमारे माध्यम से कुछ भी नहीं हैं। आपकी आत्मा कार्य कर रही है। स्वतः कार्य करती है और हम केवल उन्हीं कार्यो आपको कुछ भी नहीं करना। को करते हैं जो ठीक हैं और उचित हैं। श्रीमाताजी यह चमत्कार हुआ, वह बताएं. दिवाली पूजा, 1991 श्री गणेश पूजा,1993 जर्मनी हमें समझना है कि विवेक ऐसा गुण नहीं है जिसे आपकी अबोधिता अपने आप में ही एक शक्ति है हम अन्तर्निविष्ट(Inculcate) कर सकें। यह ऐसा और यह निश्चित रूप से आपको वह विवेक प्रदान गुण नहीं है जिसे चतुराई से स्थापित किया जा करेगी जिससे आप सभी समस्याएं सुगमतापूर्वक सके( Manoeuvered)यह तो अत्यन्त अन्त्तजात और हमारे परिपक्व होने पर ही आता हैं श्री गणेश पूजा, काल्वे 1991 डी सुलझा सके। श्री गणेश पूजा,1990 विवेक निर्लिप्तता प्रदान करता है, स्वार्थ से स्वंय इस स्तर तक पहुँचना है जहां आप समझ जाएं तक सीमित रहने से, अहँ से तथा स्वंय से जुड़े कि आपने विवेक प्राप्त करना हैं। आपमें यदि सभी भावों से। क्या आप इसकी कल्पना कर सकते विवेक का अभाव है तो आप आत्मसाक्षात्कारी हैं। व्यक्ति नहीं है। मी दिवाली पूजा 1991 श्री कष्ण पूजा, 2000 क्यों न ऐसा व्यक्तित्व विकसित कर लिया जाए आपकी आत्मा को कोई समस्या नहीं हो सकती। कि. " मैं सदैव आनन्द में हूँ। किसी भी चीज को इसे कोई भय नहीं हैं सर्वोपरि इसमें विवेक है, देखकर मैं आनन्दविभोर हो जाता हूँ। किसी को भी अथाह विवेक। यही विवेक आपके व्यक्तित्व की सुनते हुए मैं 'आपको महसूस करता हूँ। तब बुलन्दी का भी चिन्ह हैं । आपका सुगन्ध कमल सुधरेगा और सौन्दर्य को जैसे मैने आपको बताया था यह उत्क्रान्ति हैं। आत्मसात करने के लिए आपका विवेक गतिशील जब आप परिवर्तित (Transformed) हो जाते हैं हो उठेगा। सभी कुछ अत्यन्त सन्तोष तथा आनन्दायी सभी कुछ आपको प्राप्त हो जाएगा। तो आपकी उत्क्रान्ति हो जाती है। आपका स्वभाव बिल्कुल भिन्न हो जाता है और आप अतिविशिष्ट 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-33.txt चैतन्य लहरी नवम्बर - दिसम्बर, 2004 32 विवेक भी प्राप्त हो जाएगा। आपकी आत्मा आपको बन जाते हैं। श्री कृष्ण पूजा, 2000 प्रचुर मात्रा में उत्साह एवं विवेक प्रदान करेगी। यह न तो लड़ाकापन हैं और न हिंसात्मक स्वभाव। आपने यदि स्वयं को पहचाना है तो आपके अन्दर ये अपरिपक्व स्वभाव भी नहीं हैं, यह तो अत्यन्त साहस की शक्तियाँ आ जाएंगी। आप दुस्साहसी शान्त सुन्दर एवं साहसपूर्ण नजरिया है। नहीं बनेंगे,विवेकशील होंगे। साहस के साथ आपको जन्मदिवस पूजा,2001 छ प न प्रतिबोधविदितं मतममृतत्वु हि विन्दे आत्मना विन्दते वीर्य विद्या विदतमृतम् ा केनोपनिशद्( 2 / 4) ज्ञान वही है जिसके माध्म से व्यक्ति अमृत्व प्रदान करने वाली आत्मा का बोध प्राप्त कर सके। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-35.txt र पाभ ाड ु० चैतन्य लहरियाँ हमारे हृदय में एक ज्योति है जो निरन्तर जलती हमारे हृदयं में उतर सके। गैस के प्रकाश की तह रहती है। ये आत्मा हैं. हमारे हृदय में परमात्मा का से इसमें भी टिमटिमाहट है। ( गैस जब खुलती है प्रतिबिम्ब। कुण्डलिनी जब उठती है तो ब्रह्मरन्त्र को तो प्रकाश होता है। चैतन्य लहरियाँ हमारे अन्दर खोलती है। श्री सदाशिव की पीठ ( seat ) सहस्रार से इस सूक्ष्म शक्ति का प्रवाह हैं हमारी कुण्डलिनी 1 में हैं, परन्तु सदाशिव आत्मा के रूप में हृदय में जब ब्रह्मरन्ध्र को पार करती हैं तो हमारे अन्दर से प्रतिबिम्बित है। पीठ का सृजन इसलिए किया गया चैतन्य लहरियाँ बहने लगती हैं। है क्योंकि यह सर्वव्यापी सूक्ष्म शक्ति को धारण चैतन्य लहरियाँ हमें पूर्ण सन्तुलन प्रदान करती हैं. हमारे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकारों करता है। इसी प्रकार से मस्तिष्क में पीठ हैं और सदाशिव का को दूर करती हैं। ये हमें परमात्मा से पूर्ण पीठ सहस्रार में सर्वोच्च है। सहस्रार खुलता हैं आध्यात्मिक एकाकारिता का विवेक प्रदान करती ताकि यह सूक्ष्म शक्ति सूक्ष्म वाहिका के रास्ते हैं। ये हमें पूर्ण सामन्जस्य प्रदान करती हैं। 1 श्री माताजी ( महाअवतार-1980 ) ं सा 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-36.txt लक्ष्मी तक्त्व परम पूज्यमाताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन कृष्ण ने गीता में कहा है कि योगक्षेम बहाम्यहम' इसका मतलब है- पहले योग। पहले वो क्षेम उसमें ज्योति आ जाती है, क्योंकि आत्मा की कहते. (पर) पहले उन्होंने' योग कहा, और उसके ज्योति * क्षेम। क्षेम का मतलब होता है, आपका नाभि चक्र में जो लक्ष्मी तत्त्व' है वह जागृत हो well-being आपका लक्ष्मी तत्त्व। तो पहले योग जाता है। जैसे ही लक्ष्मी तत्त्व आपमें जागृत हो होना चाहिये। जब तक योग नहीं होता तब तक परमात्मा से खुशहाली होने लगेगी। आपसे कोई भतलब नहीं। आपको पहले योग, माने कोई आदमी रईस हो जाए- जिसे हम 'पैसे-बाला परमात्मा से मिलन होना चाहिये, आपके अन्दर कहते हैं. जरूरी नहीं कि वह 'खुशहाल' है। आत्मा जागृत होनी चाहिये। जब आपके अन्दर अधिकतर पैसे वाले लोग महादु खीं होते हैं। जितना आत्मा जागृत हो जाती है, तब आप परमात्मा के पैसा होगा, उतने ही वो गधे होते हैं, उतनी ही दरबार में असल में जाते हैं. नहीं तो आप रट्टू तोते उनके घर के अन्दर गन्दगी आती है-शराब, दुनिया के जैसे कहा करते हैं। जो कुछ भी बात होती है, भर की चीज़, मक्कारीपन,झूठापन-हर तरह की कुण्डलिनी की शक्ति ब्रह्मरन्ध्र को छेदती है तब । वो पा लेती है । और उस ज्योति के कारण बाद जाएगा, चारों तरफ से आप देखियेगा कि आपकी बहर ही रह जाती है। अन्दर का आपा जब तक चीज़ उनके अन्दर रहती है। हर समय डर, भय-कभी आप जानते नहीं. जब तक आप अपने को पहचानते सरकार आकर पकड़ती है, कि खाती है, कि हमारा नहीं, तब तक आप परमात्मा के राज्य में आते नहीं पैसा जाता है, कि ये होता है.वो होता है जो बहुत और इसीलिये आप उसके अधिकारी नहीं हैं जो रईस लोग हैं, तो भी कोई लक्ष्मी पति नहीं क्योंकि उनके अन्दर लक्ष्मी का तत्त्व नहीं जागृत हुआ परमात्मा ने कहा है। है बहुत से लोग परमात्मा को इसका दोष देते हैं. कि सिर्फ पैसा कमा लिया। पैसा उनके लिये मिट्टी हम तो इतनी परमात्मा की भक्ति कर रहे हैं,. इतनी जैसा है, उससे कोई उनको सुख नहीं है । । हम पूजा कर रहे हैं, इतने सर के बल खड़े होते हैं, ये करते लक्ष्मी का तत्त्व समझना चाहिये। हैं, वो करते हैं, धूप चढ़ाते हैं, सुबह से ैने पिछली मर्तबा बताया था कि लक्ष्मी जी कैसी शाम तक रटते बैठते हैं, तो भी हमें परमात्मा क्यों बनी हैं। उनके हाथ में दो कमल हैं-वो गुलाबी रंग नहीं मिलते ? परमात्मा से बात करने के लिये के हैं और एक हाथ से दान करती है और एक हाथ आपका उनसे सम्बन्ध होना चाहिये,connection से वो आश्रय देती हैं। गुलाबी रंग का द्योतक होता होना चाहिये। जब तक आपका योग घटित नहीं है - प्रेम'। जिस मनुष्य के ह्रदय में प्रेम नहीं है वो होता, तब तक क्षेम नहीं होता। क्षेम का मतलब है. लक्ष्मीपति नहीं हो सकता। उस का घर ऐसा होना आपक्री चारों तरफ से रक्षा, लक्ष्मी तत्त्व की जागृति। चाहिये जैसे कमल का फूल होता है कमल के फूल के अन्दर भाँरे जैसा जानवर, जो कि बिल्कुल करुँगा". पर कैसे करूँगा, सो नहीं कहा। सो मैं शुष्क होता है- उसके काँटे चुभते हैं अगर आप हाथ में लीजिये तो-उसको तक वो स्थान देता है। जब योग घटित होता है, तब कुण्डलिनी त्रिकोणाकार अपनी गोद में उसको सुलाता है, उसको शान्ति कृष्ण ने सिर्फ ये कहा है कि बहाम्यहम्- " मैं आपसे बताती हैं, वह किस तरह से होता है। अस्थि से उठकर के ब्रह्मरन्ध्र को छेदती है, जब देता है। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-37.txt दिसम्बर, 2004। चैतन्य लहरी नवम्बर 36 लक्ष्मीपति का मतलब ये है कि जिसका दिल बहुत बड़ा है। जो अपने घर आए हुए अतिथियों को, किसी को भी अत्यन्त आनन्ददायी होता है- वो लक्ष्मीपति है। लेकिन अधिकतर आप रईस लोग देखते हैं कि महाभिखारी होते हैं। उनके घर आप वो भी लक्ष्मीपति नहीं। जो दूसरों के लिये सोचता है-" अगर मेरा अच्छा आलीशान मकान है तो इसमें कितने लोग आकर बैठेंगे, अगर मेरे पास आलीशान चीजें हैं तो कितने लोगों को आराम होगा। कैसे मैं दूसरों का स्वागत जाइये तो उनकी एकदम जान निकल जाती है, कर पाऊंगा, कैसे मैं दूसरे लोगों की मदद कंर पाऊँगा ? किस तरह मैं उनको अपने हृदय में को हर समय से फिक्र लगी रहती है कि मेरे स्थान दूँगा? मदद का भी सवाल नहीं उठता; आज चार पैसे यहाँ खर्च हो रहे हैं, दो पैसे वहाँ आदमी यह सोचता है कि ये मेरे ही अपने हैं। खर्च हो रहे हैं, इसको जोड़ के रखो, उसको कहाँ इनके साथ जो भी करना है मैं अपने साथ ही कर बचाऊँ, उस को ब्या काढू' -वो आदमी लक्ष्मीपति रहा हूँ -तब असल में लक्ष्मी तत्त्व जागृत हो कि मेरे दो पैसे खर्च हो जाएँगे जिस आदमी नहीं है। जाता है। कन्जूस आदमी लक्ष्मी पति नहीं हो, सकता। जो कमल के जैसा उसका रहन-सहन, उसकी शक्ल कन्जूस है. वो कन्जूस हैं, तो लक्ष्मीपति नहीं है। होनी चाहिये। ऐसा आदमी सुरभित होना चाहिये कन्जूस आदमी दरिद्री होता है- महादरिद्री होता न कि उससे हर समय घमण्ड की बदबू आए । है। उसमें बादशाहत नहीं होती। जिस आदमी की अत्यन्त 'नम्र' होना चाहिये। कमल का फूल आपने तबियत में बादशाहत नहीं होती, उसे लक्ष्मीपति नहीं कहना चाहिये। जो आदमी बादशाह होता है, वह चाहे गरीबी में थोड़ी -सी झूकान जरूर डण्ठल में आ जाती है। देखा है उसमें हमेशा थोड़ी -सी झुकान रहती है। कमल कभी भी तनकर खड़ा नहीं होता. उसमें रहे चाहे अमीरी में रहे, वह बादशाह होता है। यह बादशाह के जैसा रहता है छोटी-छोटी चीज़ के पीछे, दो-दो कौडी के पीछे, इसके पीछे, उसके पीछे परेशान होने वाला लक्ष्मीपति नहीं हो सकता। इसीलिये लक्ष्मी-तत्त्व जागृत नहीं होता इसीलिये नाभि-चक्र की बड़ी जोर की पकड़ हो जाती है। उस आदमी के अन्दर Materialism (भौतिकवाद) आ जाता है । वह जड़वादी हो जाता है । छोटी-छोटी चीज़ का उसे बड़ा खयाल रहता है। ये मेरा, ये मेरा -ये मेरा बेटा है, ये मेरा फलाना है ये दविकाना- ये सारी चीज जिस आदमी में आ गई तो लक्ष्मीपति नहीं। इसकी चीज़़ मारूँ कि उसकी चीज मारू कि ये लँ कि बो लेँ, कि सब मेरे लिये होना। चाहिये- इस तरह से जो आदमी सोचता उसी प्रकार जो कम से कम लक्ष्मी जी के हाथ में जो कमल हैं दोनों में इसी तरह की सुकुमारिता होती है । दूसरों से बात करते समय बो बहुत ठण्डी तबियत से आनन्द से, प्रेम भरा इस तरह से बात करता है-झूठा नहीं होता, वो Plastic के नहीं होते हैं वो कमल, असल में होते हैं। ऐसा मनुष्य असल में कमल के जैसा होना चाहिये। एक हाथ से वो दानी होना चाहिए. उसके हाथ से दान बहते ही रहना चाहिए .बहते ही रहना चाहिए। हमने अपने पिता को ऐसा देखा है। पिता की बात हम देखते हैं, बहुत दानी आदमी थे बो देते ही रहते थे। उनके पास कुछ ज्यादा हो जाए तो है . बाँटते ही रहते थे। मजा ही नहीं आता जब तक तो 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-38.txt दिसम्बर, 2004 वैतन्य लहरी 37 नवम्बर से न दबाए। जो बहुत ही नम्र होना चाहिये। जो दिखाते फिरते हैं हमारे पास ये चीज़ है, वो चीज़ है, फलाना है, ढिकाना है, वो लक्ष्मीपति नहीं हो मातृत्व' उनमें होना चाहिये। माँ का हृदय होना चाहिये, तब उसे लक्ष्मीपति कहना बाटे नहीं। अगर उनसे कोई कहता कि आप आँख उठाकर नहीं देखते जो आ रहा है वही उठा कर ले जा रहा है तो कहने लगते कि "मैं क्या देखें । जो देने वाला है दे रहा है, मैं तो सिर्फ बीच में खड़ा हूँ- दे रहा हूँ उसमें देखना क्या ? मुझे तो शर्म लगती है कि लोग कहते हैं कि तुम' दे रहे सकता। चाहिये। ये सब लक्ष्मीपति के लक्षण हैं और जब आप के चीज़ हो। इस तरह का दानत्व वाला आदमी जो होता है, जो अपने लिये कुछ भी संग्रह नहीं करता है. दूसरों को देता रहता है जो दूसरों को बांटता रहता आती है- 'सन्तोष' । ऐसे तो किसी चीज़ का अन्त है. देने में ही उसको आनन्द आता है. लेने में ही तहीं है, आप जानते हैं कि Economics नहीं-यह आदमी लक्ष्मीपति है जो अपने ही बारे में सोचता रहे- मेरा कैसे भला होगा, मेरे बच्चों का कैसे भला होगा, मैं कैसे अच्छा होऊँगा-ऐसे चाहत की तृप्ति नहीं होती)। आज आपके पास से आदमी को लक्ष्मीपति नहीं कहते। उसमें कोई है तो कल वो चाहिये वो है तो वो चाहिये. वो शोभा नहीं होती, वह असल में भिखारी होता है। चाहिये तो वो चाहिये। आदमी पागल जैसा दौड़ता और लक्ष्मीपति एक हाथ से तो आश्रय देता है, रहता है, उसकी कोई हद ही नहीं होती। आज अनेक को अपने घर में, जो भी आए, उससे अत्यन्त प्रेम से मिलना, उस से अत्यन्त प्रेम से, अपने बेटे लेकिन आदमी को सन्तोष आता है। उसे संतोष जैसे उसकी सेवा करनी आश्रय देना। उसके यहाँ अन्दर ये तत्त्व जागृत हो जाता है, तो पहली (अर्थशास्त्र) में कहते हैं, कोई भी wants satiable होती नहीं है in general (सामान्यतया कोई भी यह मिला, तो वो चाहिये वो मिला तो वो चाहिये। आ जाता है। जब तक आदमी को सन्तोष नहीं आएगा, वह किसी भी चीज़ का मजा नहीं ले सकता। क्योंकि 'संतोष जो है वह वर्तमान की नौकर-चाकर, घर में जानवर-अनेक लोग उसके आश्रय में होते हैं पर वो जानते है कि हमारा आश्रय दाता है। कोई हमें तकलीफ़ होयेगी वो हमें चीज़ है present की चीज़ है. और ' आशा' जो है देगा। रात को उठ कर के भी देगा, चुषके से करता है। वो ये बताता नहीं, जताता नहीं, दुनिया को Past (भूतकाल) की चीज है। आप जब सन्तोष में दिखाता नहीं कि मैंने उनके लिये इतना कर दिया, खड़े रहते हैं तो filly satiafied , ( पूर्णतया बो कर दिया-एकदन चुपके से करता है। परमात्मा भी हू-बहू ऐसा है। वो स्त्री स्वरूप, माँ जो आपको मिला हुआ है नहीं तो उनके पास, स्वरूप बनाया हुआ है- लक्ष्मीजी का स्वरूप। एक कमल पर लक्ष्मीजी खड़ी हो जाती हैं। आप सोचिये कि एक कमल पर खड़ा होना, माने आदमी में कितनी सादगी होनी चाहिये, बिल्कुल हल्का, उसमें ऐसा आदमी अपने जीवन का आनन्द नहीं उठा कोई दोष नहीं। कमल पर भी वो खड़ा हो सके-ऐसा सकता, कभी भी वो ऊँचा नहीं उठ सकता। रात -दिन आदमी उसे होना चाहिये, जो किसी को अपने बोझ रे Future (भविष्य) की चीज है, निराशा जो है ये सन्तुष्ट), तब आप पूरा उसका आनन्द उठा रहे हैं. कितना भी रहता है तो भी कहते हैं, अरे! उसके पास है-मुझे वो चाहिये। तो काहे को मिला है ? फिर वो मिल गया तो उसको वो चाहिये । कभी भी उसकी नज़र जो है ऐसी ही बढ़ती रहेगी, जो चीजें 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-39.txt दिसम्बर 2004 चैतन्य लहरी 38 नवग्बर बिल्कुल व्यर्थ हैं. जिनका कोई भी महत्त्व नहीं रहते थे, कहाँ रहते थे। जिनका जीवन में कोई महत्त्व नहीं, जिनका अपने इसलिये, जो गुरुजन हो गए हैं. उन्होंने शराब और जीवन के आनन्द से कोई भी सम्बन्ध नहीं, ऐसी ऐसी चीजो को एकदम मना किया है । अब, शराब तो इतनी हानिकर चीज है कि इस तरफ से अगर चीज़ के पीछे वो भागता है। पर पहले योग घटित होना चाहिये- फिर क्षेम बोतल आई. शराब की, उस तरफ से लक्ष्मी जी होता है। हमारे सहजयोग में- यहाँ पर भी अनेक लोग आये हुये हैं जो कि हमारे साथ सहजयोग में शराब की बोतल अन्दर आ गई. उधर से वो चली रहे और जिन्होंने पाया और इसमें प्रगति की है। इनकी सबकी Financial (आर्थिक) प्रगति हुई मिल सकता। जिनके घर में शराब चलती है. उनके है। सबकी- A to Z । कोई-कोई लोगों के पास तो लाखों रुपया आया। जिनके पास एक रूपया उनके यहाँ पैसा होगा, लड़के रुपया उड़ाऍँगे, बीवी नहीं था उनको लाखों रुपया मिला। ऐसे भी लोग भाग जाएगी- कुछ न कुछ गड़बड हो जाएगा। हमारे यहाँ हैं जिन्होंने- अब देखिये, अभी भी जो बच्चे भाग जाएँगे-कुछ न कुछ तमाशे होंगे आज आए हुए हैं अंग्रेज लोग वो India (भारत) आना तक एक भी घर आप मुझे बतायें, जहाँ शराब चाहते थे, तो इन्होंने कहा कि कैसे जाएँ ? पैसा तो चलती है और लोग खुशहाल हों। खुशहाल हो ही है इन के पास इनकी भी बड़ी प्रगति हो गई। नहीं सकते खुशहाली शराब के बिल्कुल विरोध में वैसे भी इनको बहुत पैसा -वैसा मिल गया और रहती है। काफी आराम से रहने लगे वो जब आने लगे तो इसीलिये गुरुजनों ने जो मना किया-खास कर इन्हें एक Firm (संस्था) ने कह दिया, अच्छा ,तुम हरएक ने; क्यों किया ? हमकों सोचना चाहिये। मुफ्त में जाओ, हम तुम्हारा पैसा दे देंगे क्योंकि चली गई-' सीधा हिसाब। उन्होंने देखा कि आपकी गई ऐसे आदमी को कभी भी लक्ष्मी का सुख नहीं धर में लक्ष्मीजी का सुख नहीं हो सकता। हॉं. आखिर वो लोग कोई पागल नहीं थे। उन्होंने हजार बार इस चीज़ को मना किया कि 'शराद छोटी-छोटी चीज़ में परमात्मा मदद करता है। पीना बुरी बात है शराब मत पियो, शराब मत और इतना रुपया आपके पास बच जाता है कि पियो।' शराब तो एक ऐसी चीज है कि ये भगवान आपको समझ नहीं आता कि क्या करूँ ये लोग ने पीने के लिये तो कभी भी नहीं बनाई थी पॉलिश पहले लेते श्रे, शराब लेते थे और दुनिया भर की करने के लिये बनाई थी- पॉलिश कंरने के लिये| कल लोग फिनायल' पीने लगेंगे! क्या कहें आंदमी था। अब मैने देखा है कि इनके घर अच्छे हो गए के दिमाग को! कुछ भी पीने लग जाएं तो कौन क्या कर सकता है ? आदमी का दिमाग इतना (सगडीत) सुनते हैं, सब अच्छे-अच्छे शौक इनके चौपट है कि कोई भी चीज़ उसकी समझ में आ जाए, पीने लग जाएगा। उसे किसने कहा था शराब तुम हमारा यह काम कर देना। चीजे करते थे। उसमें बहुत रुपया निकल जाता हैं, घरों में सब चीजें आ गई, अच्छे से सब Music अन्दर आ गए सब बढिया तरीके से रहने लग गए। इनके बाल-बच्चे अच्छे हो गए मैने पूछा, पीने के लिये ? "यह कैसे हुआ ?' कहने लगे कि हम सारा पैसा अब ये पॉलिश की चीज़ आप शराब के नाम से जब बर्बाद करते थे,हमें होश ही नहीं था कि हम कैसे पीते हैं तो आपके भी जितने भी Liver 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-40.txt नवम्बर - दिसम्बर 2004 चैतन्य लहरी 39 जो हमारे धर्म हैं. जो कि गुरुओं ने बनाए हैं, ये दस धर्म हमारी नाभि में होते हैं इसीलिए इन गुरुओं ने मना किया हुआ है कि आप अपने धर्मो को बनाने के लिये, पहली चीज है-शराब या कोई सी भी ऐसी आदत न लगाएं जिससे आप उसके गुलाम हो जाएँ। अगर आपको ये गुलामी करनी है, तो आप (जिगर,Intestines (अन्तडियोँ हैं, सब पॉलिश हो जाते हैं यहाँ तक कि Arfteries (धर्मनियाँ) आपकी पॉलिश होकर के Stif ( सख्त) हो जाती हैं।Arteries इतनी Stif हो जाती हैं कि उसकी जो स्नायु है वो अपने को स्थितिस्थापक नहीं बना सकते । माने, न तो वो बढ़ सकते हैं, न घट सकते हैं-बस जमते ही जाते है। Arteries जो हैं एकदम एक size की स्वतन्त्रता की बात क्यों करते हैं। लोग तो सोचते हो जाती हैं तो खून भी नहीं चल पाता खून भी हैं कि गुलामी करना ही स्वतन्त्रता है। आपको अटक जाता है जब कोई भी दबाव न हो, उसके अगर कोई मना करे कि बेटे शराब नहीं पियो तो ऊपर में कोई फुलाव न हो और एकदम नली जैसे लोग सोचते हैं कि देखो, ये मुझे रोकते हैं टोकते वन जाए Arteries तो उसमें क्या होगा ? ऐसा हैं मेरी" स्व-तन्त्र ता" छीनते हैं। मनुष्य इतना पॉलिश का पुट चढ़ता जाता है जिसकी कोई हद पागल है। उसको मना इसलिये किया जाता है कि नहीं, और मनुष्य भी पॉलिश बन जाता है। ऐसा आदमी बड़ा कृत्रिम होता है। ऊपर से बड़ी अच्छाई दिखाएगा। शराबी आदमी है; ऊपर से-वाह ! उसको विचारना चाहिए-न कि उसको रटते बैठना बड़ा शरीफ है,बड़ा दानी है, ऐसा है. वैसा है । सब चाहिए, सुबह से शाम तक। उसको विचारना चाहिए. ऊपरी चीजें जो अपने बीवी बच्चों को भूखा मार उसको सोचना चाहिए कि उन्होंने ऐसी बात 'क्यों सकता है. जो अपने बीवी बच्चों से ज्यादती कर कही; कोई न कोई इसकी वजह हो सकती है। ऐसे सकता है, वो आदमी कितना भी भला बाहर करके इतने बड़े ऊँचे लोगों को ऐसी बात कहने की घूमे उसका क्या अर्थ निकलता है.बताइये ? इसलिये जरूरत क्या पड़ी थी ? क्यों इस चीज को बार-बार शराब की इतनी मनाही की गई है, इतनी मनाही उन्होंने मना किया है ? ये सोचना चाहिए और कर गए हैं, सो किस लिये कर गये हैं ? अब मुसलमानों को इतनी मनाही है शराब की बैठकर सोचे तो वह समझ सकता है कि इस कदर लेकिन उनसे ज्यादा कोई पीता ही नहीं । क्यों गर्दी ये चीजें हम लोगों ने अपना ली हैं, जिस के मनाही कर गए ? सोचना चाहिये। मोहम्मद साहब कारण हमारे यहाँ से लक्ष्मी-तत्व चला गया है। जैसे आदमी क्यों मनाही कर गए ? नानक साहब इंग्लैंड से तो लक्ष्मी-तत्व बिल्कुल पूरी तरह से इतनी मनाही कर गए- सिक्खों से ज्यादा तो चला गया है। यहाँ पर लक्ष्मी-तत्व है ही नहीं, और लंदन में कोई पीता ही नहीं । उनके आगे तो अंग्रेज जागृत करना भी बहुत कठिन है। बेटे, तुम उसकी गुलामी मत करो'। जब कभी कोई बात बड़े लोग बताते हैं तो विचारना चाहिए और कोई भी मनुष्य जरा सा भी क्योंकि लक्ष्मी-तत्व जो है, वो ही परमात्मा हार गए। है कि नहीं बात ? कौन-से धर्म में शराब को अच्छा कहा है ? कोई भी धर्म में नहीं कहा । के कोच का पाया है। नाभि में ही विष्णुजी का जो लेकिन सब धर्म में लोग इतना ज्यादा पीते हैं और स्थान है, और विष्णु या जिसे हम लक्ष्मी, उनको जो गुरुओं का अपमान करते हैं। हमारी सारी नाभि चक्र और उसके चारों तरफ दस है जब हम Amoeba (अमीबा) में रहते, तो हम शक्ति मानते हैं - इसी में हमारी खोज शुरू होती 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-41.txt दिसम्बर, 2004 नवम्बर चैतन्य लहरी खाना खोजते थे। जरा उससे बड़े जानवर हो गए चारों तरफ धर्म' है। मनुष्य के दस धर्म बने हुए हैं। तो और कुछ खाना पीना और संग-साथी ढूँढते अब आप Modern (आधुनिक) हो गए तो आप सब हैं। उसके बाद हम इन्सान बन गए तो हम सत्ता धर्म उठाकर चूल्हे में डाल दीजिए। भई आप खोजते हैं। हम इसमें पैसा खोजते हैं। बहुत से Modern हो गए। क्या कहने आपके ! लेकिन ये लोग तो खाने-पीने में ही मरे जाते हैं। बहुत-से लोग तो सुबह से शाम तक क्या वहाँ हैं। अगर मनुष्य के दस धर्म नहीं रहे, तो वो खाना है, क्या नहीं खाना है, ये करना है, वो करना राक्षस हो जाएगा। जैसे ये सोने का धर्म होता है। इसी में सारे बर्बाद रहते हैं। जिन लोगो को कि ये खराब नहीं होता, इसी तरह से आपके अन्दर अति खाने की बीमारी होती है, वो भी लक्ष्मी-पति जो दस धर्म हैं, बो आपको बनाए रखने हैं - जो कैसे ? वो तो भिखारी होते हैं. इनका तो दिल ही मानव धर्म हैं । अगर इन धर्मों की आप अवहेलना नहीं भरता। एक मुझे कहने लग गई - एक हमारे करें - और उसके उपधर्म भी हैं लेकिन में दस यहाँ बहु आई थीं रिश्ते में, कहने लगीं कि मेरे बाप धर्म आपने सम्भालने हैं, गर वो आप दस धर्म न के यहाँ ये था, वो था। 'अरे ! मैंने कहा, तुम में संभालें - तो आपका कभी भी उद्धार नहीं हो तो दिखाई देना चाहिए। तुम्हारे अन्दर तो जरा भी सकता, कभी भी आप पार नहीं हो सकते पहले, सन्तोष नहीं। तुम्हें कि ये खाना चाहिए, तुमको वो जब तक आप खाने को चाहिए: घूमने को चाहिए । कोई सन्तोष आप धर्मातीत' नहीं हो सकते - धर्म से ऊपर नहीं तुम्हारे बाप ने दिया कि नहीं दिया तुमको ? अगर उठ सकते पहले इन धर्मो को बनाना पड़ता है वाकई तुम्हारे बाप इतने लक्ष्मीपति थे तो कुछ तो और इसीलिए इन गुरुओं ने बहुत मेहनत की, बहुत तुम्हारे अन्दर सन्तोष होता ! "मिला तो मिला. मेहनत करी है। इनकी मेहनत को हम लोग बिल्कुल नहीं तो नहीं मिला।" जब ये स्थिति मनुष्य में आ जाती है। तो आपके अन्दर दसों धर्म हैं ही ये स्थित' हैं. ये 1 धर्म को नहीं बनाते हैं, तब तक मटियामेट कर रहे हैं, अपनी अक्ल की वजह से। सब इनको खत्म कर रहे हैं। "इन धर्मों को बनाना जब उसकी सत्ता खत्म हो गई, जब उसको समझ हमारा पहला परम कर्त्तव्य है।" में आया कि सत्ता में नहीं रहा, पैसे में नहीं रहा, किसी चीज़ में उसे वह आनन्द नहीं मिला. जिसे हैं, उनको आपसे या धर्म से कोई मतलब नहीं है खोज रहा था, तब आनन्द की खोज हो जाती 'आप शराब पीते हैं ? लेओ और हमको भी एक है। वो भी नाभि चक्र से ही होती है इसी खोज के बोतल लाओ रात को कोई हर्जा नहीं। अच्छा. आप लेकिन आजकल के जो गुरु निकले हुए शुरू कारण आज हम Amoeba (अमीबा)से इन्सान बने। औरतें रख रहे हैं ? तो ठीक है, दस औरतें रखिए और इसी खोज के कारण, जिससे हम परमात्मा और एक हमारे पास भी भिजवा दीजिए, या अपने को खोजते हैं, हम इन्सान से अतिमानव होते हैं। बीवी-बच्चे हमारे पास भेज दीजिए आपकी जेब में "आपा' को पहचानते हैं। आत्मा को पहचानते हैं - इसी खोज से। इसीलिए लक्ष्मी-तत्व बहुत ज़रूरी से कोई मतलब नहीं। आपको जो भी धन्धा करना चीज है। जितना रुपया है, हमारे पास दे दीजिए - हमें आप है करें। आपके बस पर्स में जितना पैसा है इधर और लक्ष्मी-तत्व जो बैठा हुआ है, उसके जमा कर दीजिए, फिर आप चाहे जैसा करें ! आज 40 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-42.txt दिसम्बर, 2004 चैतन्य लहरी नवम्बर 41 ही एक किस्सा है, बता रही थीं हमारे साथ आई जमीन पर भी सो सकता है, वो चाहे राजमहल में हुई हैं कि इनकी बहन, राजकन्या है वो भी, और भी रह सकता है। वो जैसा रहना चाहे, रहे। उसे उनके पति बहुत शराबी, कबाबी, बहुत बुरे आदमी आपसे कोई मतलब नहीं। उसको तो सिर्फ आपके थे। और वो एक गुरु के शिष्य थे। इन्होंने जाकर प्यार' से, आपकी 'श्रद्धा से और आपकी 'खोज' उनसे बताया कि ये आदमी मारता है, पीटता है, से। अगर आपको खोज है तो सर आँखों पर सताता है. औरत रख ली है। उससे कुछ कहो। वो आपको उठा लेगा ऐसे गुरु को खोजना चाहिए. औरतें रखता है। और राजकुमार है, लेकिन क्या जो आपको परमात्मा की बात बताए, जो आपकी करें उसका इतना खराब हों रहा है। तो कहने लगे आत्मा की पहचान कराए। 'जो मालिक से मिलाएं कि रहने दो. तुमको क्या करना है ? उनसे रुपए वही गुरु माना हुआ है ऐंटते गए, रुपया ऐंठते गए। गुरुजी को मतलब उनके रुपए से ! ये कोई गुरु हुए जो आपसे रुपए ऐंठते हैं? आप को देते हैं। जो आदमी आपको अंगूठी निकाल आपके हो ही कैसे सकते हैं ? जो आपके पैसे कर देता है, बो क्या परमात्मा की बात करता जिसे दिखे, उसकी को गुरु ! ये तो अगुरु भी नहीं है - राक्षस हैं, राक्षस' ! अंगूठियाँ निकालकर गुरु के बूते पर रहते हैं। ये तो Parasites हैं। आपके होगा? आपका चित्त अंगूठी में डालता है, आपको नौकरों से भी गए गुजरे हैं। कम से कम आपके दिखाई नहीं देता ? एक है नौकर आप का कुछ काम करते हैं। जो लोग सिखा रहे हैं - अधर्म सिखा रहे हैं। कौन-से धर्म आपसे रुपया ले करके जीते हैं, ऐसे दुष्टों को तो में लिखा है इस तरह की चीज़ ? दूसरे आजकल बिल्कुल राक्षसों की योनी में डालना चाहिए और के गुरुओं के बारे में यह भी जानना चाहिए कि ऐसे दुष्टों के पास जाने वाले लोग भी महामूर्ख हैं. अपने ही ढँग से कोई चीज़ निकाल ली है। इनका मैं कहती हूँ। वो देखते क्यों नहीं ? क्या आप पहले के गुरुओं के साथ कोई नहीं मेल बैठता। 'वो' परमात्मा को खरीद सकते हैं ? क्या आप किसी जैसे रहते थे, जैसी उनकी गुरु को खरीद सकते हैं ? अगर कोई गुरु हो तो उनका बर्ताव था जो उनकी बातें थीं उनके इनका क्या यो अपने को बेचेगा ? उसकी अपनी एक शान होती है उसको आप खरीद नहीं सकते। कोई भी चाहे। एक ही रहे हैं, जिसको कि आप कह सकते हैं कि किसी चीज से आप उसको मात कर सकते हैं । आपके भी धर्ग में लिखित वही चीज़, वही चीज कही जाती प्यार से, आपकी 'श्रद्धा' से, आपके प्रेम से है। अपने शंकराचार्य को पढ़े तो आप सहजयोग भक्ति से। और किसी चीज से वो वश में आने समझ लेंगे, आप कबीर को पढ़ें, आप सहजयोग वाली चीज़ नहीं है उसकी अपनी एक 'शान' होती समझ लेंगे, नानक को पढ़े, आप समझ लेंगे; मोहम्मद है। तो अपनी एक प्रतिष्ठा' में रहता है। उसकी को पढ़े आप समझ लेंगे, Christ को पढ़े तो समझ एक बादशाहत' होती है । उसको क्या परवाह लेंगे; कन्फ्यूशियस और सुकरात से लेकर सबको होगी? आप हैं रईस तो बैठे अपने घर में । उसको देखें तो सहजयोग ही सिखाते हैं । और ये जो सब वो अधनंगा नाचना सिखावन थी, जैसा कोई मेल नहीं बैठता। अपने धर्म के जो अनेक इतिहास चले आ 1 क्या ? वो पत्तल में भी खा सकता है. वो चाहे आपको सर के बल उड़ना और फुलाना और to 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-43.txt नवम्बर - दिसम्बर, 2004 चैतन्य लहरी डिकाना और दुनिया भर की चीज़ आपको नचा-नचाकर मारते हैं - इनको कैसे आप गुरु में और इसमें और उसमें सब कुछ छापा था मान लेते हैं ? "एक ही गुरु की पहचान है - जो साल पहले छापा था। कहने लगीं. हम ने पढ़ा, पर "मालिक को मिलाए, वही गुरु है और बाकी गुरु वह सब झूठ है। हमने कहा, झूठ है । तो. आपको नहीं।" पच्चीस और लड़कियों ने Bitz (ब्लिट्ज़ एक पत्रिका) दस क्या मिला उनसे ? तो उनको बड़ा बुरा लग गया। पटड सत्य पर अगर आप खड़े हुए हैं, तो कहने लगीं, 'मैं तो शादीशुदा औरत हूँ, मैं ऐसी. मैं आपको इसी चीज को देखना इतना Superficial (उथला) हो गया है कि वो जाना ही क्यों ?' लेकिन यह नहीं कि वो औरत सर्कस' को देखता है। कितने ताम-झाम लेकर के बदमाश है. आदमी । लेकिन इन्सान वैसी हूँ। फिर मैंने कहा ऐसे आदमी के दरवाजे ये नहीं कि बो खराब औरत है। पर उस घूम रहा है। कितनी हँडियाँ सर पर रखकर पर Hypnosis (सम्मोहन) है, Hypnotised चल रहा है । बाल कैसे बनाकर चल रहा है। क्या (सम्मोहित)। कोई उनको Freedom (स्वतन्त्रता) सींग लगा कर चल रहा है। "गुरु की सिर्फ एक नहीं। गुरु बैठेंगे सात मंजिल फर जाकर ! आप ही पहचान है, कि वो सिवाय मालिक के और कोई जाइए, वहाँ पर 'सेवा करिए ! इतनी बड़ी -बड़ी बात नहीं जानता। उसी में रमा रहता है। वही गुरु, पेटियाँ रखी रहेंगी उसमें आप पैसा डालिए। सेवा माने आपसे ऊँचा इन्सान है।" लेकिन जिनको आप खरीदते हैं, बाज़ार में, पैसे भर-भरकर ले जाते हैं, वहाँ डालने के लिए । जिनको आप पैसा देते हैं. जो आपको बेवकूफ यह आप देख लीजिए, कहीं भी जाकर के इतनी बनाते हैं, जो आपको Hypnotise (सम्मोहित) करते बड़ी-बड़ी ट्रंकें रखी रहेंगी। अरे! हमारे भी पैर का मतलब है - पैसा डालिए ! और लोग घर से हैं, उनके साथ आप बंधे हुए हैं, तो इस तरह के छूते हैं तो कोई एक रूपया दे जाता है, कभी पॉँच लोगों को क्या कहा जाए ? और इस कलियुग मे, इस घोर कलियुग में, तो ऐसे अनेक, अजीब तरह के एक-एक नमूने हैं मैं आपको बताऊँ किसका वहां भी सवा रुपया चढ़ाओ। और इसी चक्कर की वर्णन करूँ, किसका कहूँ। ऐसे कभी न गुरु हुए, होंगें, मेरे खयाल से जिस तरह से हो रहे हैं गई हैं। ऐसी कोई जगह नहीं छोड़ी जो पवित्र रुपया रख जाता है ! मुझे आती है हँसी । मतलब आदत पड़ गई है न हनुमान जी के मन्दिर जाओ, न वजह से हर जगह गड़बड़, हर जगह गड़बड़ हो जगह रह गई हो। आजकल । और इसी चक्कर की वजह से हमारे जो जवान बेटे हैं, जो 'जवान लोग हैं, सोचते हैं कि पर वो ऐसी चिपकन होती है उस चीज की कि अभी एक देहरादून से एक देवी जी आई थीं । उनकी कुण्डलिनी एकदम ऐसे जमी हुई थी। तो परमात्मा है कि तमाशा है ये सब ? क्योंकि वो तो मैंने कहा कि तुम कौन गुरु हैं न, अभी साबुत हैं दिमाग बड़े इससे बताया कि उनके पास गई! मैंने कहा उनके। उनको अविश्वास हो रहा है। सारे धर्मों में कि 'आपने उसके बारे में पेपर में पढ़ा कि नहीं पढ़ा ये हो गया है, आपको आश्चर्य होगा। के पास गई ?' उन्होंने अपनी बृद्धि रखते ? एक अठारह साल की लड़की के साथ उन्होंने जो Algeria (अल्जीरिया) से हमारे पास आए भी गड़बड़ किया था, उस लड़की ने और थे एक साहब-जवान हैं. बहुत होशियार और कुछ 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-44.txt पैतन्य लहरी दिसम्बर 2004 नवम्बर 43 इंजीनियर थे। वो भी इसी आन्दोलन में कि ये कि आपको मैं लैक्चर देती रहूँ सुबह किस कदर रे, मुसलमान और ये Fanaticism लैक्चर से तो मेरा गला थक गया। अब पाने की (धर्मान्धता) इन में है और इस तरह से ये लोग बात है कि कुछ पाओ, 'आत्मा' को पाओ। बहुत-से दुष्टता करते हैं और ये मुल्ला लोग हैं, सब पैसा लोग ऐसे भी मैंने देखे हैं 'हमें तो कुछ हुआ नहीं खाते हैं और सब (जनता) के पैसे पर जीते हैं और माताजी' माने बड़े अच्छे हो गए! 'होना चाहिए'। अपने को बड़ा महान समझते हैं और सब लोग उनके सामने झुकते हैं फिर उन्होंने Pope (पोप) को भी देखा। वो भी एक नमूना हैं। तो बिल्कुल शाम तक। अगर नहीं हुआ तो कुछ गड़बड़ है आपके अन्दर | कोई न कोई तकलीफ है. आप बीमार हैं, आप mentally (मानसिक रूप से) ठीक नहीं हैं, आप ने है। अविश्वास से भरकर आए। उन्होंने कहा कि ये सब धोखा है। इसमें कोई अर्थ नहीं -सब इझूठ है। यो कोई गलत गुरु के सामने अपना मत्था टेका हमारे पास आए तो हमने कहा कि "जब सत्य है अगर आपने अपना मत्था ही, जो कि परमात्मा ने तभी उसका झूठ निकलता है।" जब सत्य होता है इतनी शान से बनाया है. इसको किसी गलत तो उसी के आधार पर लोग झूठ बनाते हैं न। सत्य आदमी के सामने टेक दिया है तो खत्म हो गया भी कोई चीज़ है। Absolute भी कोई चीज़ है 'अच्छा हमने कहा, तुम देखना सहजयोग में । करना चाहिए। गलत बात है। । मामला। आपको हमें भी अन्धता से नहीं विश्वास "सहजयोग जो है, ये धर्मान्धता और हम चाहते हैं कि आप पाओ और उसके बाद भी अविश्वास के बीचोंबीच है, जहाँ परमात्मा साक्षात् अगर आपने अविश्वास किया तो आपसे बड़ा मूर्ख आपसे मिलते हैं। आप स्वयं इसका साक्षात करें, कोई नहीं। और उसके बाद भी अगर आप जमे इस का अनुभव करें, इसमें जमें। जब तक आप नहीं, तो आपके लिये क्या कहा जाए ? सहज योग में जमते नहीं, तब तक आप पूरी तरह से इसका अनुभव नहीं कर सकते। जो जम गए,. के बाद आप देखिये कि आपकी पूरी शक्तियाँ जो उन्होंने पा लिया, मिल जाता है। जिन खोजा तिन 7. जब आप पा लेते हैं तो इसमें जमिये । और जमने भी है, उस तरह से हाथ से बहुती हैं और आप फिर पाइया।' पर खोजा ही नहीं तो कोई आपके पैर पर तो सत्य बैठने नहीं वाला कि 'भई मुझे खोज उसकी अपनी प्रतिष्ठा है । उसको खोजना चाहिए सुख दे सकते हैं। और ये किस तरह से लेकिन उसको खोजने से सत्य से आनन्द उत्पन्न पड़ता है ? ये आप होता है। सत्य और आनन्द दोनों एक ही चीज हैं, धीरे-धीरे ,जैसे -जैसे इसमें गजरते जाते हैं आप एक ही चीज़ हैं दोनों। जैसे चंद्र की चन्द्रिका होती खुद इसको समझते हैं। है या जिस तरह से सूर्य का उसका अपना प्रकाश अब इनमें से बहुत-से लोग हैं, छः महीने पहले होता है, उसी प्रकार सत्य और आनन्द दोनों चीजें हमारे पास आए। सिर्फ छः महीनें पहले हमारे एक साथ हैं। जब आप सत्य को पा लेते हैं, पास में आए। अब ये. डॉ. बरजोर्जी साहब हैं। ये तो आनन्द-विभोर हो जाते हैं, आनन्द में रममाण हमारे पास छः महीने पहले आए और ये बहुत बड़े हो जाते हैं । लेकिन ये सिर्फ लैक्चरबाज़ी नहीं है डॉक्टर हैं लन्दन के. इसके अलावा जर्मनी में भी दूसरों को भी इस आनन्द को दे सकते हैं। दूसरों । को भी ये 1 घटित होता है ? कैसे बन 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-45.txt दिसम्बर, 2004 चैतन्य लहरी नवम्बर 44 हो जाता है न, वैसी लाइट है, जिसे स्पार्क (चिंगारी) Practice (व्यवसाय) करते हैं। जब से इन्होंने पाया है इसके पीछे पड़े हैं। तब से कैँंसर ठीक बोलते हैं। इसलिये जिस जिस को लाइट दीख किये हैं, दुनिया भर की बीमारियाँ ठीक की हैं और रही हो, वो मुझे बताएँ-आज्ञाचक्र टूटा है उस अब कहते हैं कि इसको पाने के बाद सब कुछ आदमी का। उसको ठीक करना पड़ेगा। irrelevent (असंगत) लगता है। क्योंकि 'जब आप ये सारे चक्र भी कुण्डलिनी अपने से ठीक करती बिल्कुल सूत्र पर ही काम करने लग गए, जब चलती है। "वो आपकी माँ है", आप हरएक की आपने सूत्र को ही पकड़ लिया, तो फिर बाकी चीजें अलग-अलग माँ हैं, वो आप जिसको सुरति कहते हिलाना कुछ मुश्किल नहीं । इस प्रकार आप सब' इसके अधिकारी हैं, इसीलिये चढ़ती है और अपने आप आपको ठीक करके वहाँ इसे सह-ज (सहज) कहते हैं। सह' माने आपके पहुचाँ देती है। आप में अगर कोई दोष है. वो भी साथ, 'ज' माने पैदा हुआ। आप भी इसके हम समझ सकते हैं। वो भी वो बता देती हैं कि अधिकारी हैं- हर एक आदमी इसका अधिकारी है क्या दोष ठीक हो सकता है, कोई गलती हो गई और इसको पा लेना चाहिये। जैसे एक दीप दूसरे वो भी ठीक हो सकती है। लेकिन अपने को दीप को जला सकता है, उसी प्रकार एक Receptive mood (प्राप्ति इच्छुक स्थिति) में रहना Realized Soul (साक्षात्कार प्राप्त) दसरे को चाहिये- कि 'हम इसे ले लें, प्राप्त कर लें और 'हो' Realization (साक्षात्कार ) दे सकता है। लेकिन जाएँ। Realized Soul होना चाहिए। अगर एक दीप अब कल भी एक बात जो उठी थी, वह आज भी जला हुआ ही न हो, तो दूसरे दीप को क्या करेगा? दिमाग में किसी के उठ रही है कि कुण्डलिनी जब दूसरा दीप जल जाता है तो वो तीसरे को Awakening (जागृति) तो, लोग कहतें हैं, कि बडी जला सकता है। इसी प्रकार ये घटना घटित होती मुश्किल चीज़ है, बड़ी कठिन चीज है, यह कैसे है. और आदमी के अन्दर लाइट (प्रकाश) आ जाती होती है। इसमें कोई नाचते हैं, कोई बन्दर जैसे है। हैं, वही यह सुरति है। और यह अपने आप से 1 1 नाचते हैं, कोई कुछ करते हैं । कुछ भी नहीं होता! अब लाइट आने का मतलब यह नहीं कि आप हमने हजारों की कुण्डलिनी जागृत की हैं और पार Light देखते हैं। यह भी एक दूसरी एक अजीब- सी किया हुआ है। ऐसा कभी भी नहीं होता है। चीज़ है कि लोग लाइट देखना चाहते हैं। 'देखना जो परमात्मा ने आपके उद्धार के लिये चीज़ रखी जब होता है. तब वहाँ आप नहीं होते। जैसे कि समझ लीजिये कि आप अब बाहर हैं, तो आपको कोई भी दुःख नहीं देती। उल्टे आपको वो हुई है, आपके पुनर्जन्म के लिये आपकी माँ है. वह "अत्यन्त सुखदायी' है। कैंसर जैसी बीमारी कुण्डलिनी आप इस Building (भवन) को देख सकते हैं, लेकिन जब आप अन्दर आ गए. तो क्या देखियेगा? के Awakening (जागृति) से ठीक होती है। सारी कुछ भी नहीं! तब तो सिर्फ आप होते मात्र हैं, आप बीमारी आपकी ठीक हो सकती हैं। इसी तरह की देखते नहीं हैं कुछ। जहाँ-जहाँ देखना होता है तो बड़ी भारी 'देवदायिनी, आशीर्वाददायिनी', इस तरह सोंचना कि आप अभी बाहर हैं। लाइट जो लोगों की बड़ी भारी शक्ति आपके अन्दर में हैं। इस तरह को दिखाई देती है, वो Short circuit(फयूज उड़ना) की गलत धारणाएँ कर लेना, कि हम बन्दर 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-46.txt चैतन्य लहरी दिसम्बर, 2004 नवम्बर 45 हो जाएँगे, मेंढक हो जाएँगे-आपको अतिमानव जो बनाने वाली चीज है, तो आपको क्या मेंढक बनाएगी? कि कौन असल है और कौन नकल है गाँव के लोगों में नब्ज़ होती है इस चीज़ को पहचानने की। वो समझते हैं, कि ये आदमी नकली है और ये उसके आदमी असली है। इस चीज़ को आप समझ लें। अब 'यह कठिन होता है लिये कठिन है जो बेवकूफ है, जिसको मालूम नहीं, पर शहर के लोग तो आप जानते हैं, कृत्रिम हो जो इसका अधिकारी नहीं, उसके लिये कठिन है । जाते हैं । Artificially जो इसका अधिकारी है, जो इसके सारे ही पहचान नहीं होती और इसलिये भी जितने चोर ढंग काम-काज जानती है. उसके लिये यह बाएँ हाथ के लोग हैं, ये सब आपके शहर के पीछे लगे हैं। का खेल है हो सकता है कि हम इसके अधिकारी ये सारे शहरों में आते हैं. गाँव में कोई नहीं काम हैं और हम इसके सारे काम काज जानते हैं, करता। क्योंकि आपके जेब में पैसे होते हैं, आपकी इसीलिये आसानी से हो जाता है। "बहरहाल जेब से उनको मतलब हैं। वो क्यों गावँ में जाएँगे? आप अपनी आँख से भी देख सकते हैं, इसका सहजयोग हमारा गाँव में चलता है। असल में शहर चढ़ना भी देख सकते हैं। और इस की हम लोगों में तो हम यों ही आते हैं लेकिन हमारा काम तो ने फिल्म-विल्म भी बनाई है। पर जो लोग बहुत गाँव में ही होता है। गाँव के लोग सीधे-सादे, शंकापूर्ण होते हैं, उनके लिये सहजयोग जरा सरल, परमात्मा से सम्बन्धित लोग होते हैं,. वो मुश्किल से पनपता है। इस चीज़ को पाना चाहिये इसको और इसको लेना चाहिये। आजकल जो ज़माना आ गया है, जिस जमाने में लेकिन शहर के लोगों में एक तो शहर की आबोहवा हम रह रहे हैं- कलियुग में, असल में हम ये की वजह से और यहाँ के तौर-तरीकों की वजह से कहेंगे कि आध्यात्मिक दृष्टि से हम लोग बहुत ही आदमी इतना अपने को बदल देता है, इस कुदर ज्यादा, बहुत ही ज्यादा कमज़ोर है। Insensitive अपने को धर्म से गिरा देता है- "अब ये इसमें क्या अर्थात संवेदना हमारे अन्दर नहीं है। हम आध्यात्म हुआ साहब, सब लोग पीते है Business के लिये की चीज को अगर समझते होते और अगर समझते पीना चाहिये। "मानो जैसे Business ही भगवान कि आत्मा की पहचान क्या है. तो हम कभी भी है। "उसको तो पीना ही चाहिये, फिर उसके गलत गुरुओं के पीछे नहीं भागते। लेकिन हमारे अलावा Business कैसे चलेगा।" अन्दर सच को पहचानने की शक्ति, बहुत कम हो या तो फिर ये कहो कि तुम परमात्मा में या धर्म में गई है, क्षीण हो गई है। हम यह नहीं पहचान बिल्कुल विश्वास नहीं करते और अगर ज़रा भी सकते, कि सच्चाई क्या है! उसकी वजह यह है विश्वास करते हो, तो जो अधर्म है. इसको नहीं कि इतने कृत्रिम हो गए हैं, इतने artificial (कृत्रिम) करना चाहिये। कोई जरूरत नहीं किसी को पीने हो गए- आप artificial हो जाइएगा तो आपकी की। ये भी एक गलतफहमी है कि Business के सत्य को पहचानने की शक्ति कम हो जाएगी। ! तो , रहते हैं, इसलिये सत्य की आसानी से पा लेते हैं। उनको एक बहुत क्षण भी नहीं लगता। लिए करना पड़ता है, इसके लिये। जो आदमी पर जैसे गाँव में, अभी भी मैं देखती हैं कि गाँव में अपने को धोखा देना चाहता है उसे तो कोई नहीं लोग एकदम पहचान लेते हैं। वो पहचान लेते हैं कचा सकता। 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-47.txt दिसम्बर, 2004 46 चैतन्य लहरी नवम्बर हमारे पति भी आप जानते हैं सरकारी नौकरी में छोटा-सा. उससे इन्सान बनाना कितनी कठिन रहे हैं उन्होंने बहुत बड़ी (जहाजी) कम्पनी चलाई. उसके बाद आज भी बहुत बड़ी जगह पर पहुॅचे हुए योनियों में से गुज़ार के. आज आपकी जैसी एक हैं। मैंने उनसे एक बात कही कि शराब मेरे बस की सुन्दर चीज़ परमात्मा ने बनाकर रखी है। फिर नहीं और जिन्दगी भर उन्होंने छुई नहीं, एक बूँद आपको उसने freedom दे दी, स्वतन्त्रता दे दी कि भी और भगवान की कृपा से बहुत successful तुम चाहो तो अच्छाई को वरण करो और चाहो तो (सफल) हैं। सब उनको मानते हैं, सब उनकी इज्जत करते हैं । आज तक किसी शराबी आदमी हो। तुम्हें बुराई को अपनाना है चलो बुराई करो, का कहीं पुतला बना है कि ये महान् शराबी थे। अच्छाई को अपनाना है अच्छाई करो। मुझे एक भी बताएँ, एक भी देश इंगलैण्ड में लोग अब, आपको भी सोचना चाहिये कि जिस परमात्मा इतनी शराब पीते हैं, मैंने किसी को देखा नहीं कि ने हमें बनाया है, 'इतनी' मेहनत से बनाया है. उसने ये बड़ा शराबी खड़ा हुआ है, इसकी पूजा हो रही वो भी इन्तजाम हमारे अन्दर ज़रूर कर दिये होंगे है। कि शराब पीता था। किसी शराबी की आज जिससे हम उसको जाने और उसको समझें और तक संसार में कहीं भी मान्यता हुई है ? फिर अपने को जाने और हमारा मतलब क्या है. हम क्यों आपका Business इससे कैसे बढ़ सकता है। संसार में आए हैं, हमारा क्या ulfilment है ?मनुष्य अगर आपकी इज्जत ही नहीं रहेगी तो आपका ने यह कभी जानने की कोशिश नहीं की कि Business कैसे? इज्जत से Business होता है। आखिर हम इस संसार में क्यों आए हैं ? Scientist धोखाधड़ी से नहीं है जो आदमी एक बार खड़ा यह क्यों नहीं सोचते कि हम amoeba से इन्सान हो जाए तो कहते हैं 'एक आदमी खड़ा हुआ है क्यों बनाए गए ? हमारी कौन -सी बात है कि चीज़ है। हजारों चीजों में से गुज़ार करके, इतनी बुराई को। जिस चीज़ को चाहो तुम अपना सकते जिसके लिए परमात्मा ने इतनी मेहनत की और ये' । इस तरह से अपने को आप इन चक्करों में, इन उसके बाद हमें स्वतन्त्रता दे दी ? societies में, इसमें इस तरह से क्यों मिलाते चले बस इस जगह परमात्मा भी आपके आगे झुक जाते जाते हैं। आप अपने व्यक्तित्व को सँभालें, इसी के हैं क्योंकि आप स्वतन्त्र हैं। आपकी स्वतन्त्रता अन्दर परमात्मा का वास है। आजकल के जमाने में परमात्मा नहीं छीन सकते। अगर आपको परमात्मा ये बातें करना ही बेवकूफी है और कहना ही के साम्राज्य में बिठाना है, आपको अगर राजा बेवकूफी है। लेकिन आप नहीं जानते कि आपने बनाना है, तो आपको परतन्त्र करके कैसा बनाया अपने को कितना तोड़ डाला है, अपने को कितना जाए ? आपको क्या hypnosis करके बनाया गुलाम कर लिया है। इन सब चीजों में अपने को बहा देने के बाद तो परमात्मा को स्वीकार करें, अपने जीवन में, और आपको मैं क्या दे सकती हैँ? आप ही बताइये। जाएगा? आप पूरी तरह से स्वतन्त्र हैं। आप चाहें चाहें तो शैतान को । दोनों रास्ते आपके लिए पूरी तरह परमात्मा ने खोज रखे हैं। और सबसे बड़ी मेहनत की है । मैं आपसे बताती हूँ कि गुरुओं ने कितनी आफ्तें उठाई हैं इतनी ही अब कम से कम सबको ये व्रत लेना चाहिए कि हम खुद जो हैं, हमारी इज्जत है। परमात्मा ने हमको एक amoeba से इन्सान बनाया है। एक amoeba 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-48.txt दिसम्बर, 2004 वैतन्य लहरी नवम्बर 47 अच्छे से मेहनत, आपके पीछे सारे जितने भी अवतार हो धोखा दे सकता है। वो तो आप को गए, उन्होंने, गुरुओं ने, कितनी मेहनत करी है। खूब जानता है आप अपना ही नुक्सान कर रहे हैं। इनको कितना सताया, हमने उनको कितना छला। आपको पाना चाहिये, क्योंकि आपकी अपनी शक्ति है, आपकी अपनी सम्पदा है । अन्दर सारा स्रोत है। आपके अन्दर भरा सब कुछ है। इसे आपको लेकिन कलयुग कुछ ऐसा आया, बवण्डर जैसा कि लेना चाहिए और फिर इसमें जमना चाहिए। हम सब कुछ भूल गए और हमारी जो भी आत्मिक सहजयोग में जब मैं आती हूं तो लोग बहुत आते संवेदना है इसको भूल गए। हम पहचान ही नहीं हैं, मैं जानती हैं। लेकिन यहाँ पर सबका कहना पाते किसी इन्सान की शक्ल देखकर कि ये है कि माँ आगे लोग नहीं जाते। अब यहाँ पर असली है कि नकली है- आश्चर्य है। शक्ल से हमने ऐसे लोग देखे हैं कि जिनसे हमें कोई जाहिर हो जाता है अगर कोई आदमी वाकई उम्मीद नहीं थीं वो कहाँ के कहाँ पहुँच गए। उनकी कितनी तकलीफ़, वो सारी बर्दाश्त करके उन्होंने आपको बिठाने की कोशिश की I । और परमात्मा का आदमी है। उसकी शक्ल से जाहिर जो कि बहुत हम सोचते थे, तो वहीं के वहीं जमे बैठे हैं। फिर लेकर आ गए वही सिरद्द, वही हमारे अन्दर की जो sensitivity है. वही ये हो रहा है, वही वो हो रहा है, अभी भी उनका उतना ही ऊँचा होता है। हम यह पहचानना ही भूल गए कि यह 1 जो हमारे आफ्ते, वही परेशानिया अन्दर की संवेदनशीलता है वो पूरी तरह से खत्म हो गई। जब श्री रामचन्द्रजी संसार में आये थे सब लोग जानते थे कि ये अवतार हैं। श्रीकृष्ण जी जब उठा है। आये थे तब सब लोग जानते थे कि ये अवतार हैं। सहजयोग में जब तक आप लोगों को देंगे नहीं तब तक लेकिन आज ये जमाना आ गया कि कोई किसी को पहचानता नहीं। ईसा मसीह के समय में भी ऐसा ही हुआ। लेकिन उस समय कुछ लोगों ने तो आपकी प्रगति नहीं होगी। देना पड़ेगा,जैसे-जैसे आप देते रहेंगे,वैसे-वैसे आप आगे बढ़ें गे। उनको पहचाना। लेकिन आज ये समय आ गया कि सब भूतों और राक्षसों को लोग अवतार मानते हैं। इस चक्कर से अपने को हटा लेना चाहिये और एक ही चीज़ माँगनी चाहिए कि प्रभू तुम हमारे कोई अगर हम लोग बड़ी भारी Boat तैयार करते अन्दर जागो जिससे हम अपने को पहचानें । आत्मा हैं, Ship तैयार करते हैं, अगर हम उसको पानी में को पहचाने बगैर हम परमात्मा को नहीं जान नहीं छोडे तो उसका क्या अर्थ निकलता है ? उसी सकते, नहीं जान सकते, नहीं जान सकते। बाकी प्रकार है, अगर मनुष्य परमात्मा को पाकर के और सब बैकार हैं। ये सब circus है। ये सिर्फ जिसको घर में बैठ जाए, तो ऐसे दीप से फायदा क्या कि कहते हैं बाहरी तमाशे हैं। इस बाहरी तमाशे से जो जलाकर के आप Table के नीचे रख दीजिये। अपने को सन्तुष्ट रखने से कोई फायदा नहीं। आप दीप इसलिए जलाया जाता है कि दूसरों को अपने को ही धोखा दे रहे हैं। परमात्मा को कौन प्रकाश दे। उससे आप अपने अन्दर अपने को भी 1. 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-49.txt चैतन्य लहरी नवम्बर - दिसम्बर, 2004 48 देख सकते हैं और दूसरे को भी देख सकते है। आप अपने भी चक्र देख सकते हैं और दूसरों के भी रही है उसको। किस तरह से इसको हमें बनाना देख सकते हैं आप अपने भी आनन्द को देख सकते हैं और दूसरों की व्यथा को भी देख सकते हैं। और आप ये समझते हैं कि दूसरों को किस तरह से देना चाहिये। किस जगह ये चीज़ रोक चाहिये । आज के लिये इतना काफी है। हम लोग अब ज़रा ध्यान करें, देखें कितने लोग पार होते हैं। I "आलस्य सहजयोग का सबसे बड़ा दुश्मन है। -श्री माताजी ूभ 36 ु ६ ं िद कस 2004_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-51.txt दिवाली पर आज आप सबसे यह वचन है कि आप जीवन के उच्चतम् एवं श्रेष्ठतम् मार्ग पर पहुँचें गे। मेरा कहा हुआ एक-एक शब्द यह प्रमाणित करने के लिए सत्य होगा कि जो भी मैं कहती हैँ वह घटित होता है। आपकी जो भी छोटी-छोटी समस्याएं हैं सभी समाप्त हो जाएंगीं। यह परमेश्वरी के सन्देश हैं, आपको तुच्छ चीजों के लिए, धन के लिए. नौकरियों के लिए चिंतित नहीं होना। यह आपका कार्य नहीं है आपकी नियति इसे कार्यान्वित करेगी । आपको वचन दिया जाता है कि आपकी देखभाल की जाएगी। मुझे आशा है कि आप इस वचन पर विश्वास करेंगे और पूरी तरह से आनन्द मग्न हो जाएंगें। परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी 9 नवम्बर, 2003 दु यार ता १