चैतन्य लहरी भी मा र्च_अपैल 2005 NIRMALA UNIVERSAL PURE इस अंक में 1 सहस्रार पूजा इटली 4. 5. 86 11 2 महाकाली पूजा - लोनावाला- 19. 12.82 17-21 3 परम पूज्य श्रीमाताजी के तीन पत्र 22 4 प्लूटो नक्षत्र पर रे हेरिस के विचार 26 5 माँ का प्रेम कवच 27 6 परम पूज्य श्रीमाताजी का प्रवचन 29. 3.75 34 7 परम पूज्य श्रीमाताजी का प्रवचन मुम्बई-30.3. 75 DHARMA RELIGION चै त नय ल ह री प्रकाशक निर्मल इन्फोसिस्टम्ज एवं टेकनोलोजीज़ फ्रा. लि. मुख्य कार्यालय : प्लाट न. 8. चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड, कोठरुड पुणे - 411 029 मुद्रक अमरनाथ प्रेस प्रा. लि. 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हमारा प्रवेश एक चेतना को यादि आप उत्थान के अतिरिक्त किसी में एकत्र कर लिया, बिना इसके प्रति चेतन अन्य आयाम में होता है। पहला आयाम वो था अन्य कार्य के लिए उपयोग करते हैं तो आपका जिसमें हमारा आत्म-साक्षात्कार हुआ। पतन हो जाएगा। विकास प्रक्रिया में पशुओं को बहुत सी उन चीजों की चेतना नहीं होती जिनके बारे में मानव को चेतना उपयोग करके वे भौतिक पदार्थों को अपने हित में होती है जैसे पशु भौतिक पदार्थो (Matter) को उपयोग कर सकतें अपने लिए उपयोग नहीं कर सकते उन्हें अपने साक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् किया होता तो विषय में बिल्कुल चिन्ता भी नहीं होती। किसी पशु अत्यन्त भिन्न स्थिति होती क्योंकि आत्म साक्षात्कार को यदि आप दर्पण दिखाएं तो अपने प्रतिबिम्ब को प्राप्ति के पश्चात आपको चैतन्य लहरियों तथा चक्रों देखकर वह प्रतिक्रिया नहीं करता। मनुष्य बनने के का ज्ञान हो जाता है। इस नई चेतना द्वारा आप बाद अपनी चेतना द्वारा हमें उन बहुत सी चीजों का सभी गलत चीजों को छोड़ देते। परन्तु यें तो ऐसा ज्ञान हो जाता है जिनके विषय पशु होते हुए हम है जैसे किसी लालची व्यक्ति को थोड़ा सा धन अनभिज्ञ थे। मस्तिष्क से पशु ये नहीं समझ मिल जाए और वो सारा का सारा खर्च डाले ।अब सकता कि भौतिक पदार्थों को वह अपने उपयोग में इस समस्या ने आपके मस्तिष्क को जटिल बना पश्चिम में लोगों ने सोचा कि मस्तिष्क शक्ति का हैं । ऐसा यदि उन्होंने आत्म में 1 ले सकता है। दिया है। मानव रूप में भी आप सबको इस बात का ज्ञान न था कि आपके अंदर चक्र स्थापित हैं। आपकी हैं हमने स्वयं को ही मशीन बना लिया है । हमारे चेतना अभी भी चक्रों की अचेतन कार्यशैली के अन्दर भावनाएं नहीं रही और प्राकृतिक रूप से या माध्यम से तथा मस्तिष्क की चेतन कार्यशैली के स्वाभाविक रूप से हम किसी से भी संबंध नहीं रख माध्यम से कार्य कर रही थी। स्वचालित नाड़ी सकते। मानवीय चेतना में आपने अन्य लोगों से प्रणाली को आप न कभी अपनी नस-नाड़ियों पर तथा अपने आप से जुड़े रहना सीखा था परन्तु इस महसूस कर पाए थे और न ही इनकी कार्यशैली को अहं चालित विचारधारा ने आपको स्वाभाविक, सच्चे जिस प्रकार से हम मशीनों का उपयोग कर रहे थे समझ पाए थे। आप ये भी न जान पाए कि अन्य जीवन से अलग कर दिया है और हम अस्वाभविक चीजों का प्रभाव आप पर कैसा पड़ रहा है। मानव हो गए हैं। जैसे आजकल अक्खड़ और पाखंडी को दी हुई स्वतंत्रता के परिणाम-स्वरूप उसने होने का फैशन हो गया है। ये कार्य आपके उत्थान सभी प्रकार के विचारों को अपने मस्तिष्क में,अपने एवं विकास प्रक्रिया के विरूद्ध है। सामूहिक सूझ-बूझ 1 मार्च अप्रैल, 2005 चैतन्य लहरी के आधार पर जो भी संस्थाएं आपने बनाई हैं वो भी में एक धारणा बन गई कि वह आर्य है और श्रेष्ठतम बनावटी हैं। तत्पश्चात् एक आंदोलन चलाया गया प्रजाति का है। पूरे विश्व को नष्ट कर देने में भी उसे कोई हिचकिचाहट न थी। धर्म के क्षेत्र में भी की नकल करने जैसा है स्वाभाविक का अर्थ ये ऐसा ही है सभी धर्मों को धारणाओं के प्यालों में भर दिया गया। सर्वप्रथम इन लोगों ने राजनैतिक कि हमें स्वाभाविक बनना है ये भी अस्वाभाविक बिल्कुल नहीं है कि हम बनावटी बन जाएं, इसका अर्थ है विकसित होना (To Evolve)। सृष्टि का अर्थ ही विकसित होना है। प्रभुत्व पा लेने का प्रयत्न किया। मैने जब अपना जीवन शुरु किया तो अत्यन्त अक्खड़पने की धारणा आपने आसानी से स्वीकार जटिल सहस्रार देखने को मिले। अपनी चेतना के कर ली क्योंकि आपमें मस्तिष्क है और अपने मार्ग अन्दर रहते हुए जितना मैने उन जटिलताओं को में आने वाली हर चीज़ को आप स्वीकार कर लेते सुलझाने का प्रयत्न किया उतना ही ये कार्य कठिन हैं। आप इतने अस्वाभाविक हो जाते हैं कि स्वयं होता चला गया क्योंकि आप यदि मेरी आयु को को महसूस करने के लिए भी आपको किसी न देखें, तो आप देख सकते हैं कि पचास सालों में किसी संवेदना की आवश्यकता पड़ती है। जीवन मानव कितना जटिल हो गया है ! सहस्रार खोलने के हर कदम पर धारणात्मक अस्वाभाविक सूझ-बूझ के पश्चात् जब मैं पश्चिम में आई तो उन सोलह है, उदाहरण के रूप में यौन सम्बन्ध अत्यन्त सालों में मैने देखा कि लोग अब सुधरने के योग्य स्वाभाविक चीज़ है परन्तु आप इसे इतना अस्वाभाविक नहीं रहे। अब आप लोगों के उत्थान के लिए बना देते हैं कि अब आपके मस्तिष्क में भी इसी का प्रबन्ध कर दिया गया है । स्थान है। इस प्रकार आपने न केवल अपने आप देख सकते हैं कि आज जिस कार्यक्रम के मूलाधार में श्री गणेश को सुप्त कर दिया है बल्कि लिए पाँच सौ लोग आएं हैं। दो सप्ताह बाद वहाँ अपने मस्तिष्क में महागणेश को भी सुला दिया है। कोई दिखाई नहीं पड़ता क्योंकि जब उत्थान घटित यहाँ तक कि कला भी निर्धारित नियमों के होता है तो कुण्डलिनी अहं को बाहर ढकेलती है अनुसार होनी चाहिए। इसलिए आप सभी की और साधक को सत्य के समीप लाती है। परन्तु पुनः वही अहम्, जो कि अत्यन्त तेज रफतार से बढ़ पहुँचते हैं कि कला अत्यन्त नीरस है। जैसे गन्ने से रहा होता है कुण्डलिनी की गति को नियंत्रित करके पूरे सिर को ढक लेता है। तब यह व्यक्ति को मशवरा देता है कि किस प्रकार तुम उस दिव्य तुम्हें शराब छोड़नी पड़ेगी, सारा पागलपन, जीवन का आनन्द त्यागना पड़ेगा और पागलू होने की पूर्ण स्वतंत्रता से हाथ धोने पड़ेंगे। उनके मस्तिष्क में ये बात भरने के लिए आपको वास्तव में कुछ अटपटा करना पड़ता है। उदाहरण के रूप में खाली टीनो को लैम्प बताकर बेचने वाला कोई व्यक्ति अमीर हों गया है। ये सारी भत्त्सना करते हैं और अंततः इस परिणाम पर जब पूरा रस निचुड़ जाता है तो बचा हुआ भाग कला हैं। जो मस्तिष्क हृदय का पोषण नहीं करता वह तो रोबोट की तरह से पूर्णतः बनावटी मस्तिष्क है। और लोग रोबोट की तरह से बन गए हैं कोई भी कुशाग्र बृद्धि मानव रोबोट को चला सकता है। आपमें क्योंकि अपना दिल नहीं है अतः मस्तिष्क का नियंत्रण भी कोई ऐसा व्यक्ति करेगा जिसमें आपसे अधिक शक्तिशाली मस्तिष्क हो। ये सभी धारणाएं विनाशकारी हैं । जैसे हिटलर के मस्तिष्क जीवन में जा सकते हो. | मार्य -अप्रैल, 2005 चैतन्य लहरी चीजें जो यहाँ पर स्वाभाविक सौन्दर्य या प्राकृतिक तो सहजयोगियों की चेतना ज़िसमें आप चक्रों और चैतन्यलहरियों का ज्ञान है, आप जानते हैं कि उन्हें परिष्कृत हैं के करीब आनन्द (Sophisticated) मानकर स्वीकार कर लिया किस प्रकार अन्य लोगों से व्यवहार करना है. फिर जाता है। दूसरी ओर आसुरी विद्या ने नियंत्रण भी इस सारे ज्ञान को आप अपने निजी लाभ के कर लिया है । श्री ने गीता के पहले अध्याय लिए उपयोग करते हैं । इस प्रकार इस नई चेतना में चेतावनी दी है कि यदि आसुरी विद्या व्याप्त हो में होते हुए भी आप पर भूतकाल का साया बना जाएगी तो शुद्ध विद्या आसुरी विद्या की गति का रहता है। पशुओं को तैरने का ज्ञान स्वाभाविक रूप मुकाबला न कर पाएगी। सहजयोगियों में बहस छिड़ गई कि मेरा फोटो मनुष्यों को सीखना पड़ता है। पशुओं की सारी बैठक में होना चाहिए या नहीं। परन्तु आप यदि तकनीक मानव भूल गया है और उसने मनुष्यों की उनसे कहें कि अपने नाखुनों को काला रंग लें, तकनीके अपना ली हैं परन्तु सहजयोग में इस अपने चेहरों पर काला रंग लें और काले कपड़े जीवन में आपने आत्मसाक्षात्कार पाया है और इसी पहन लें तो ये कार्य वे तुरन्त कर लेंगे इस जीवन में आपने उन्नत होना है तथा इसी जीवन में स्थिति में जबकि हम सहजयोगी हैं अब भी हम उच्चतम स्थिति को प्राप्त करना है। अपने परमेश्वरी जीवन (Godly life) से शर्मिन्दा हैं। हिप्पी, सड़ैल (Punks) और मूर्ख बनने के विध्वंसक धारणाएं उगल रहे हैं । आप लोगों ने ही लिए उन लोगों ने अपना सारा जीवन, समय और सबसे तेजी से बाहर निकलना है यद्यपि आप ये पैसा लगा दिया, अपनी वेशभूषा, अपने परिवार समझते हैं कि आपकी चेतना सबसे भिन्न है फिर कृष्ण जैसे अमेरिका के से होता है उन्हें तैरना सीखना नहीं पड़ता, परन्तु समय बहुत कम है और पृष्ठभूमि बहुत अंधेरी है। आप ऐसे लोगों से घिरे हुए हैं जो हर क्षण I अपनी जीवन शैली को बदलकर वे पूरी तरह से भी आपके अन्दर एक प्रकार का आलस्य सहज-योग ऐसे जीवन के प्रति समर्पित हो गए। परन्तु को वैसे रवीकार नहीं करता जैसे करना चाहिए कि सहजयोगियों को जब सहजयोग की दिव्यता पर मैने आज सहजयोग के लिए क्या किया। परन्तु विश्वास हो जाता है फिर भी वे उसके विषय में आप तो अब भी अपनी नौकरियाँ, धनार्जन और शर्म करते हैं। अब आप जानते हैं कि आपकी माँ सहजयोग के लिए अर्थहीन लोगों से अपने आपसे कोई पैसा नहीं लेतीं, बल्कि वो तो जेब से सम्बन्धों में अत्यन्त व्यस्त हैं। हमें उस बिन्दु तक खर्चती हैं। उससे (सहजयोग) से आपको लाभ उन्नत होने का एक ऐसा पुरजोर प्रयत्न करना हुआ है परन्तु जब देने की (सहजयोग) बात होगा कि जो ज्ञान हमें प्राप्त है, जिस पर हम ऐसी पृष्ठभूमि विश्वास करते हैं उसी के अनुसार कार्य करें और के प्रकाश में आ रहे उसी से एकरूप हो जाएं। विचारों (Concepts) हैं। परन्तु आप उसे लपकना नहीं चाहते। शनै:शनैः से आप ऐसा नहीं कर पाते यही समस्या है। आप उसके लिए समय लेना चाहते हैं। आपकी उदाहरण के रूप में एक कट्टरपंथी ये मानता है गति इतनी धीमी है कि हो सकता है आप अपना कि अपने धर्म में वह फला-फला कार्य कर सकता है और वह ऐसा करेगा परन्तु धारणाएं वास्तविकता ददा आती है तो समी को शर्म आती है ! से आप परमात्मा की कृपा र अवसर खो दें। बाम स मार्च - अप्रैल, 2005 चैतन्य लहरी नहीं होतीं। धारणाओं ने न तो कुछ प्राप्त करके इस पर लज्जा नहीं आती और कुछ समय पश्चात् दिखाया है और न ही कोई महत्वपूर्ण लाभ पहुँचाया आपमें उन चक्रों की चेतना की समाप्त हो जाती है, फिर भी लोग इनमें फंसे हम जब स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए लड़ रहे सूक्ष्म हो गए हैं परन्तु अपनी चेतना में अभी भी आप थे तो मेरे पिताजी ने अपनी सारी सम्पत्ति त्याग दी, सूक्ष्म नहीं हैं और जो लोग आत्म साक्षात्कारी नहीं हुए हैं। है। आत्म साक्षात्कार पाने का अर्थ है कि अब आप अपनी वकालत त्याग दी और परिवार में ग्यारह है उनसे भी कहीं अधिक आप बहुत सी व्यर्थ चीजों बच्चों समेत जहाँ हम महलों में रहते थे उन्हें त्याग को सच्चा मान लेते हैं उदारहण के रूप में । ।। में कर और वर्षों तक हम झोंपड़ियों में रहने लगे। आवश्यकता पड़ने पर प्रायः हममें चैतन्य लहरियाँ स्थूल स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए हम कुछ भी तक नहीं होतीं या कभी कभी मशीन की तरह से करते हैं। परन्तु सूक्ष्म स्वतंत्रता के लिए यंत्रवत हम बंधन देने लगते हैं। अतः अभी तक भी सहज-योगियों को हर सम्भव प्रयत्न करना चाहिए। आप अपने चक्रों के प्रति चेतन नहीं हैं। अपना पहली चीज़ है आत्म-साक्षात्कार पाना और अपने मस्तिष्क जब आप इन चक्रों पर डालते हैं तो आप चेतन मस्तिष्क में हर समय इस बारे में सचेत रहना कि बाकि सभी मनुष्यों से आप कहीं उच्च हैं। पूरी तन्त्र पर अभी भी आप चेतन नहीं हैं। यही कारण थोड़े से चेतन हो उठते हैं। परन्तु अपने मध्य नाड़ी मानवता का उद्घार आप पर निर्भर है। आप ही है कि आप ये नहीं समझ पाते कि किस समय सृजन के लक्ष्य को पूर्ण करेंगे। अतः सर्वप्रथम आपको अपनी चेतना में चेतन होना होगा कि आप विशेष पर आपने कौन सा कार्य करना है। निर्विकल्प अवस्था तक उन्नत हुए बिना आप आगे न बढ़ इतने महत्वपूर्ण हैं और इसी कारण से आपको सकेंगे आत्म-साक्षात्कार दिया जाता है। अपने अहं और उसका मुझे पूरा ज्ञान है। जहाँ भी मैं चाहूँ किसी भी बंधनों में फँसकर आप कैसे रह सकते हैं ? बन्धन शक्ति को संचालन कर सकती हूँ। मैं यदि चाहूँ तो इस प्रकार के होते हैं.. मान लो आप इसाई धर्म किसी भी नकारात्मकता को आत्म- सात कर सकती से आए हैं तो आप थोड़ा सा इसाई धर्म सहजयोग हूँ और यदि न चाहूँ तो ये कार्य नहीं करती। आप में ले आते हैं या यदि आप हिन्दू हैं तो हिन्दू धर्म चाहे मुझसे हजारों मील दूर हों मैं आप सभी के का कुछ तत्व आप सहजयोग में लाना चाहते हैं। विषय में जानती हूँ। आपके सांसारिक नाम चाहे मैं इन सभी धर्मों का सार तत्व सहजयोग में है परन्तु न जानती होऊं, परन्तु अपने अस्तित्व के अंग हम केवल स्थूल मूर्खता ही ले पाते हैं ! हमारे प्रत्यंग के रूप में मैं आपको जानती हूँ। मैं साधारण उदाहरण के रूप में मैं जो भी करती हूँ मानव की तरह से व्यवहार कर सकती हूँ, पूर्णतः आप लोगों की तरह, आप ही की तरह से वृद्ध कचरे (Dirt) के समान सहस्रार पर ये सारी चीजें हैं जिन्हें झटक दिया जाना चाहिए । यद्यपि अब आपको चक्रों का ज्ञान है और इनके होना चश्मा पहनना, और वो सभी कार्य करना जो प्रति आप चेतन हैं फिर भी आप इनहें स्वच्छ नहीं रखते। सर्वसाधारण मनुष्यों के पास वस्त्र और घर में, अचेतन अवस्था में नहीं, मैने ये भूमिका स्वीकार होते हैं जिन्हें वे स्वच्छ रखने का प्रयत्न करते हैं की है। मेरे लिए अचेतन कुछ भी नहीं है। अतः परन्तु आपके चक्र यदि खराब होते हैं तो आपको यदि आप अपने कार्यों के प्रति चेतन होना चाहते हैं मुझे हर तरह से मानव दर्शाएं। पूर्ण चेतन अवस्था मार्च - अप्रैल, 2005 वैतन्य लहरी तो आपको इनके विषय में अत्यन्त सावधान होना होगा। पहलीं चीज़ जो आपने प्राप्त की है वह है शान्ति परन्तु अब भी मैं पाती हैूँ कि जो शान्ति लेने से चैतन्य-लहरियाँ नहीं बहतीं। आपका नाम लिए जाने पर चैतन्य लहरियाँ क्यों नहीं बहने लगती ? और आपको तो एक विशेष लाभ भी प्राप्त है क्योंकि आदिशक्ति आपके साथ-साथ है, आपके आनन्द बन जानी चाहिए वह झगड़े का रूप धारण सम्मुख हैं। ये सब चीजें उन्हें बताने के लिए कोई न था परन्तु आप तो इस कृपा को अपना अधिकार मान बैठे हैं । अभिव्यक्ति करते हुए जब हम कुछ कहते हैं तो कर लेती है। सत्य एक है। सत्य के विषय में आप बहस नहीं कर सकते। यह एकरूप है। एक दूसरे से यह झगड़ा नहीं करना। अपनी उंगलियों के विषय में हम हर समय चेतन नहीं होते परन्तु जब भी हमें कोई चीज़ पकड़नी होती है तो सारी उंगलियाँ इक्ट्ठी हो जाती हैं। अत: मस्तिष्क के ाक क्या हम स्वाभाविक हैं अर्थात् क्या हम हृदय से वो बात कह रहें हैं ? मैं चाहती हूँ कि आप यह चेतना प्राप्त करें कि " मैं यह कार्य हृरदय से कर रहा हूँ। सहजयोग में कुछ ऐसे लोग हैं जो परिश्रम करते हैं और कुछ लोगों ने इसे अधिकार मान लिया है। वो सहजयोग में कोई मदद नहीं करना चाहते, हर चीज़़ उन्हें बनी वनाई चाहिए। उनका ये आचरण दर्शाता है कि वे आनन्द प्राप्ति की अपनी शक्तियों के प्रति चेतन नहीं हैं। अपने हृदय से यदि वे कार्य करेंगे तो कभी भी उन्हें अपने प्रयत्न और उपलब्धि का एहसास न होगा। संतोष का एहसास (Sense of fulfilment) सारी समस्याओं को दूर कर देगा। विशेष रूप से बाई दिशुद्धि की समस्याओं को । दूसरी अवस्था वह होगी जब आप किसी भी कार्य को करते हुए उसके विषय में चेतन होंगे, उसमें कोई गलती न होगी कहीं जब आपको लगेगा कि गलती कर दी है तो वह भी ठीक साबित भाग भी. बनाया जाना चाहिए। यही उत्क्रान्ति है। किसी इसका अचेतन हिस्सा भी चेतन बहुत एक धारणा पर अड़े रहना उत्क्रान्ति के विरुद्ध है। सच्चाई पूर्वक कार्य करना आपको सीखना होगा सर्वसाधारण मानव के लिए. हो सकता है सहजयोगियों के लिए. चमत्कार हों परन्तु मेरे लिए चमत्कार का कोई अर्थ नहीं क्योंकि मैं जानती हूँ कि ये क्या है। अर्धचेतना की स्थिति से ऊपर उठकर आपको देखना होगा कि आप क्या कर रहे हैं। परस्पर सम्बन्धों की पूरी प्रणाली का परिवर्तित होना आवश्यक है। ऐसा करना अत्यन्त नहत्वपूर्ण है क्योंकि मानवीय प्रयत्न आपको कहीं नहीं पहुँचा पाते। आपको उत्क्रान्ति प्राप्त करनी होगी। कुछ लोग सहजयोग का अनुचित लाभ उठाते हैं और फिर वे गायब हो जाते हैं। परन्तु अधिकतर लोग जानते हैं कि उन्हें जो प्राप्त हुआ है उसके प्रति उन्होंने चेतन होना है। अतः हम होगी। उदाहरण के रूप में अपनी घड़ी का समय ठीक करने के लिए आज मैने उसका पेच बाहर को कह सकते हैं कि हमें आत्म-ज्ञान प्राप्त हो गया खींचा। ये कार्य मैंने अंजाने में किया फिर भी चेतन अवस्था में किया क्योंकि घडी तो रूक गई पर मैं जानती थी कि यहाँ किस वक्त पहुँचना है। अतः जानबूझकर मैंने स्वयं को स्वयं के विरुद्ध कर लिया। यदि घड़ी बंद न हुई होती तो मैं यहाँ पर अभी तक हमें आत्म चेतना प्राप्त नहीं है परन्तु हुई। उदाहरण के रूप में किसी महान सन्त का नाम लेते ही आपमें चैतन्य लहरियाँ बहने लगती हैं। आप ये भी जानते हैं कि क्यों, क्योंकि वह एक महान सन्त हैं परन्तु आप सहजयोगियों का नाम मार्च -अप्रैल, 2005 चैतन्य लहरी 8 समय से पहले पहुँच जाती, परन्तु वह मेरे आने का समय न होता। इसलिए घड़ी को बन्द रखने के कि आप भूतकाल की सभी अच्छाइयों को भी भूल लिए मुझे उसका पेच खींचना पड़ा। तो जो भी जाएं। भूतकाल को भूल जाने का अभिप्राय ये है शरारत आप करें, आपको उसकी समझ हो और कि बीता हुआ समय आप पर काबू न पा ले। प्रेम भूतकाल को भूल जाइए। इसका अर्थ ये नहीं है तब आप ये शरारत अपने ही साथ कर सकते हैं से परिपूर्ण सहज और सीधा मस्तिष्क मेरी बात को और फिर इसका नाटक भी बना सकते हैं। परन्तु ठीक प्रकार से समझ सकता है। इस जटिल ऐसी स्थिति अभी बहुत दूर है। जिस अवस्था में मस्तिष्क का ठीक किया जाना आवश्यक है और अब हम हैं उसमें हम बहुत सी गलतियाँ करते हैं इसका सर्वोत्तम उपाय ये है कि आप सोचना बन्द कर दें। सोचना बन्द करके आपको लगता है कि आप कोई कार्य न कर सकेंगे। उदाहरण के रूप में मेरे दिए हुए प्रवचन के विषय में भी आप केवल सोचते रहते हैं। इसमें से क्या आप मेरी सोच को सुन सकते हैं ? इन बत्तियों के बारे में सोचने से इनमें प्रकाश नहीं आ सकता। सोचते रहना आलसी व्यक्ति का पहनावा है जो काम से बचने के लिए क्योंकि हम आत्मा के प्रति चेतन नहीं होते। परन्तु उत्थान के मामले में क्या हम सावधान होते हैं या इसे हम अधिकार मान लेते हैं कि श्रीमाताजी हमें उस स्थिति तक ले जाएंगी ? ऐसा करना बचकानापन है। अपने उत्थान के मामले में आपको परिपक्व होना है। प्रतिदिन अपना सामना करें। वास्तव में देखें कि दुनियावी चिन्ताओं में आप कितना समय खर्च करते हैं और अपने उत्थान को पहना जाता है। ये चालाकी है, पलायन है। कितना समय देते हैं। क्या आपने सभी कुछ, अपनी सहजयोग के विषय में बहस मुबाहिसा न करें। सभी चिन्ताएं सर्वशक्तिमान परमात्मा पर छोड़ दी अपने अगुआओं से बहस न करें, चाहे आप उसकी हैं? क्या आप अपने पूर्वबंधनों से पूरी तरह मुक्त पत्नी हों फिर भी उससे बहस न करें सहजयोग हो गए हैं, सभी मूर्खताओं को त्यागकर क्या आप पूरी तरह बाहर निकल आए हैं ? ये भी देखें कि मैं प्रभावित करने का प्रयत्न न करें। इसमें उनका किस प्रकार से अन्य सहजयोगियों से बात करता लेना-देना नहीं। ऐसे मामले में पत्नियों को हूँ और किस प्रकार उनसे सम्बंधित हूँ । ये देखकर मुझे हैरानी होती है कि कोई भी संस्था तथा अपने पतियों का पोषण करें मैं सोचती व्यक्ति जो सहजयोगी नहीं है सहजयोगी पर हूँ कि स्त्री रूप में अवतरित होना मेरे लिए बहुत आक्रमण करे तो सहजयोगियों का समूह उस बाहरी व्यक्ति का पक्ष लेता है। कई बार सहजयोगी अच्छे लोगों की अपेक्षा नकारात्मक लोगों पर में पत्नियाँ अपने पतियों को किसी भी मामलें पर कुछ चाहिए कि अपने हार्दिक प्रेम से, मस्तिष्क से नहीं, महान बात है क्योंकि इस रूप में मैं अपने हृदय, प्रेम की भावनाओं, उनकी कार्य-शैली तथा अपने प्रेम की लीला का आनन्द लेती हूँ। ये इतनी महान अधिक ध्यान देते हैं। आपको सकारात्मक लोगों के चीज़ है कि कोई अन्य अवतरण इस प्रकार आनन्द नहीं ले सका जैसे मैं ले सकी। महिलाओं को यदि हृदय की देख-भाल करनी पड़े तो उन्हें स्वयं को अपमानित नहीं महसूस करना चाहिए । साथ जुड़े रहना चाहिए। उनमें यह बहुत सूक्ष्म अहं है। परन्तु बिगड़े हुए कम्प्यूटर की तरह से अपने जटिल मस्तिष्क से आप मेरी कही हुई बात का गलत अर्थ समझते हैं। जैसे मैं कहती हूँ कि अपने एक प्रकार से वे अत्यन्त उच्च स्थिति में हैं क्योंकि मार्च -अप्रैल, 2005 चैतन्य लहरी ये तादात्म्यं मेरे शरीर से बाहर रहते हुए प्राप्त हो गया है। जबकि संतों पैगम्बरों और योगियों को इस प्रकार चे बिना सोचे कार्य कर सकती हैं, हृदय के बिना तो कार्य किया ही नहीं जा सकता। 1 व्यक्ति को बहस नहीं करनी चाहिए। स्त्रियाँ यदि बहुत अधिक बहस करने वाली हों तो पुरुष बहरे हो जाते हैं। महिलाओं की बात को वो सुनते ही नहीं । महिलाएं यदि बहुत अधिक आक्रामक हों तो पुरुष बिल्कुल मौन हो जाते हैं। अतः आप लोगों को इस उच्चतम कार्य को करने के लिए किस प्रकार आप प्रकार बर्ताव करना चाहिए कि पुरुष पुरुष हों और लोगों को चुना गया है। आलस्य के लिए अब कोई महिलाएं महिलाएं। आपको चाहिए कि पूर्ण पुरुष समय शेष नहीं रहा। आपको उठना होगा, जागना या पूर्ण महिला बनें। तब आप मजा ले पाएंगे। अपनी चेतना में हमें चेतन होना है कि कहाँ निर्विकल्प में छलांग लगाएंगे। लेकिन प्रयत्न द्वारा तक हमने अपने पारस्परिक सम्बन्धों की चेतना ही आप वहाँ रुक पाएंगे अन्यथा पुनः आप नीचे की प्राप्त की है अर्थात् विराट की सामूहिक चेतना, ओर फिसल जाएंगे। इस प्रवचन को बार-बार सुनें मस्तिष्क यानि सहस्रार की सामूहिक चेतना। सैद्धान्तिक रूप से सहसरार विष्णु तत्व है परन्तु वहाँ ज्ञान होना चाहिए कि प्रतिदिन आप कितना आगे पर शासक देवता श्री माताजी निर्मला देवी हैं। तो बढ़ रहे हैं। आप घटित हुए इस सुन्दर सामंजस्य को देख सकते हैं। विष्णु की सभी शक्तियों को शासक देवी होनी चाहिए थी परन्तु हम आज पूजा कर रहे हैं। के अनुरूप, उनके चरण कमलों पर, उनके अनुसार कार्य करना पड़ता है। अतः श्री विष्णु की चेतना मानव के पांचांग से कुछ लेना देना नहीं। कुछ पूर्णतः शासक देवी के हाथ में है। जो कुछ भी पांचांगों के अनुसार मुझे दो हजार वर्ष बाद अवरतरित घटित हो रहा है उसे घटित होने दें। अपने होना चाहिए था और कुछ मानते हैं कि इस रूप में सहस्रार इस देवी को समर्पित करें। देवी क्योंकि मुझे दो हजार वर्ष पूर्व आना चाहिए था तो पांचांग आपके बीच में है इसलिए ऐसा कर पाना बहुत अपनी जगह ठीक है । तादात्म्य मृत्यु पश्चात् मेरे शरीर के अन्दर आने पर प्राप्त हुआ। अतः समय सीमा को समझें, अपनी महानता को समझे और इस बात को भी कि सृष्टि के इस होगा। आज वो दिन है जब मुझे आशा है कि आप (पढ़ें), इसके विषय में सोचे अपने बारे में आपको आज सहस्रार का विशेष दिन है। पूजा कल अतः हमें समझना है कि परमात्मा के पांचांग का आप लोग न तो रोबोट हैं न ही मशीनें। विकास में आप सहजयोगियों ने ही इस देवी प्रणाली के माध्यम से आप विकसित हुए हैं और विकास प्रणाली के माध्यम से ही आपने श्रेष्ठतम आसान है। आपके अपने सहार हैं और इस आधुनिक युग को देखा है। ना उपलब्धि प्राप्त करनी है। आप ही ने परिणाम दिखाने हैं मैं जितना चाहे आपके सहस्रार को प्रकाशित कर दूँ परन्तु पुनः यह लड़खड़ा जाएगा। अतः आपको समझना है कि जिन बुलंदियों पर आपको लाया गया है उन्हें आप ही ने अपनी पूर्ण सालोक्यं परमात्मा के दर्शन। सामीप्यं परमात्मा का सामीप्य । सानिध्यं परमात्मा का साथ । परन्तु आपको तो तादात्म्यं अर्थात् परमात्मा की एकरूपता भी प्राप्त हो गई है, यह किसी भी योगी सन्त या पैगम्बर की धारणा नहीं है। आपको है । शक्ति और क्रियाशीलता द्वारा बनाए रखना मार्च - अप्रैल, 2005 मैतन्य लहरी 10 की উ का म लक प्रवचन आपकी माँ की चिन्ता है इस बात बन जाना चाहिए। यदि आप इसे वहाँ (सहस्रार) को आप समझ सकते हैं परन्तु यह आपकी चेतना बनाए रखें तो ऐसा हो सकता है। परमात्मा आपको धन्य करें। महाकाली पूजा लोनावाला 19. दिसम्बर, 82 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् पहली योग के इस महान देश में आप सब सहज-योगियों का स्वागत है। आज सर्वप्रथम बाधा जो आपके सम्मुख आती है बो ये हैं कि आप अपने अन्तस में हमें अपनी इस इच्छा को स्थापित अपने परिवार के विषय में सोचने लगते हैं. "कि करना है कि हम साधक हैं। तथा हमें पूर्ण मेरी माँ को जागृति नहीं प्राप्त हुई. मेरे पिताजी को उत्क्रान्ति एवं परिपक्वता प्राप्त करनी है । आज की जागृति नहीं हुई, मेरी पत्नी को जागृति नहीं हुई, मेरे बच्चों को जागृति नहीं हुई।" आपको ये समझ पूरा से पूजा पूरे ब्रह्माण्ड के लिए है। इस इच्छा ब्रह्माण्ड का ज्योतिर्मय होना चाहिए। आपकी लेना चाहिए कि ये सारे सम्बन्ध सांसारिक हैं। इच्छा इतनी गहन होनी चाहिए कि इससे आत्मा संस्कृत भाषा में इन्हें लौकिक कहा जाता है, ये प्राप्ति की शुद्ध इच्छा, महाकाली शक्ति से निकलने अलौकिक नहीं हैं, ये सांसारिक सम्बन्धों से परे नहीं वाली पावन चैतन्य-लहरियाँ बहनी चाहिएं। यही हैं। सांसारिक सम्बन्ध हैं। सारे मोह सांसारिक हैं । सच्ची इच्छा है। बाकी सभी इच्छाएं मृगतॄष्णा सम इस सांसारिक माया में यदि आप फँसे रहे, क्योंकि हैं। आप लोग विशेषरूप से परमात्मा द्वारा चुने गए खिलवाड़ करने देती हैं, तो आप इसमें किसी भी हैं, सर्वप्रथम इस इच्छा की अभिव्यक्ति करने के सीमा तक जा सकते हैं। लोग मेरे पास अपने लिए और फिर पावनता की इस गहन इच्छा को सम्बंधियों माता-पिता आदि को लेकर आते हैं और प्राप्त करने के लिए परमात्मा ने आप लोगों को अन्ततः उन्हें पता चलता है कि उन्होंने ऐसा करके विशेष रूप से चुना है। आपने पूरे विश्व को पावन बहुत गलत किया। उन लोगों ने अपने जीवन के करना है, केवल साधकों को ही नहीं उन लोगों बहुत से दिन उन लोगों पर बर्बाद कर दिए जिनमें को भी जो साधक नहीं हैं। इस पूरे ब्रहमाण्ड के श्रीमाताजी का चित्त प्राप्त करने की बिल्कुल भी चहूँ ओर आपने अन्तिम लक्ष्य, आत्मा-प्राप्ति की योग्यता नहीं है। इच्छा, के परिमल (Aura) का सृजन करना है। नाग आप जानते हैं कि महामाया शक्ति आपको ऐसा इस बात को आप जितना जल्दी महसूस कर लें इच्छा के बिना इस ब्रहमाण्ड का अस्तित्व ही उतना अच्छा है कि इस बात से कोई अन्तर नहीं नहीं होता। आदिशक्ति (The Holy Ghost) ही पड़ता कि आपमें तो यह इच्छा है परन्तु आपके इन परमात्मा की इच्छा हैं। वे सर्व्याप्त शक्ति हैं. वही तथाकथित सांसारिक सम्बंधियों में नहीं है। हमारे अंतःस्थित कुण्डलिनी हैं। कृण्डलिनी की ईसा-मसीह को जब कहा गया कि उनके भाई-बहन कौन केवल एकमात्र इच्छा है- ये हैं आत्मा बनना। बाहर प्रतीक्षा कर रहें हैं तो उन्होंने कहा, किसी अन्य चीज़ की यदि आप इच्छा करें तो मेरे भाई और कौन मेरी बहनें" ? अतः व्यक्ति को ं । कुण्डलिनी नहीं उड़ती। जब इसे पता लग जाता ये बात महसूस करनी है कि जो लोग हर समय है कि सामने बैठे साधक के माध्यम से ये इच्छा अपनी पारिवारिक समस्याओं पूर्ण होने वाली है तभी ये जागृत होती हैं। आपमें मेरा ध्यानाकर्षण भी करना चाहते हैं तो आप जान यदि इच्छा न हो तो कोई इसे जगा नहीं सकता। ले कि मैं उनके साथ केवल खिलवाड़ कर रही हूँ। सहजयोगी को कभी अपनी इच्छा अन्य लोगों पर आपके लिए ये चीजें मूल्यहीन हैं। उत्थान के लिए नहीं थोपनी चाहिए। में फॅसे रहते हैं और पहली आवश्यकता ये है कि आप कोई इच्छा न मार्च -अप्रैल 2005 चैतन्य लहरी 12 करें। अपने सगे-संबंधियों में शुद्ध इच्छा को न सहजयोग में आपको अपनी इच्छा शुद्ध इच्छा बना खोजें। महाकाली शक्ति की स्थापना का यह लेनी चाहिए। आपको पहला सिद्धांत है। भारत में, जहाँ लोग विशेष रूप होगा. परन्तु जो लोग अपने परिवारों के मोह में फँसे से अपने परिवारों में फँसे हुए हैं. यह बहुत बड़ी हैं, उनसे बंधे हुए हैं उन्हें ये देखना होगा कि समस्या है। आप यदि एक व्यक्ति को कहीं वे सहजयोग को अपने किसी सम्बंधी पर थोप आत्म-साक्षात्कार देते हैं तो यह देखकर हैरान हो तो नहीं रहे हैं। कम से कम उन्हें मुझ पर तो जाते हैं कि उसके सभी सगे-सम्बंधी तो भूतों की बिल्कुल न थोपें । बहुत सी चीजों में से निकलना अब हमारे अन्दर ये इच्छा, जो कि महाकाली एक बहुत बड़ी टोली है। एक व्यक्ति को आत्म साक्षात्कार देकर आप मुसीबत में फँस जाते शक्ति है और जो अभिव्यक्त हो रही है, बहुत सी हैं। मुझे सताने के लिए, मेरी शक्ति का ह्रास करने विधियों से हमारे पास आती है । जैसा मैने आपको के लिए धीरे-धीरे ये सभी भूत घुसते चले आते हैं। बताया आत्म-साक्षात्कार के पश्चात् सहजयोगियों और ये किसी काम के नहीं । यह समझने के लिए में यह अपने सम्बंधियों के लिए कुछ करने की कि ऐसा होना शुभ नहीं है, आपके साथ भी यह इच्छा के रूप में ये चीज घटित होनी चाहिए। आप यदि अपना समय होती है कि अपने बीमार सम्बंधियों को ठीक करने आती है हममें दूसरी इच्छा बरबाद करना चाहते हैं तो मैं आपको आपका समय का प्रयत्न करें |यह दूसरी इच्छा है। आप अपने बर्बाद करने की आज्ञा दूँगी। परन्तु यदि आप अन्दर देखें तो आप पाएंगे कि आपमें से तीव्रता से उत्क्रान्ति प्राप्त करना चाहते हैं तो लोगों को यह इच्छा हुई। अतः कुष्ठ रोग से लेकर सर्वप्रथम व्यक्ति को याद रखना है कि ये सम्बंध तो के सर्दी, छीकें आदि छोटी-छोटी बीमारियों को पूर्णतः सांसारिक हैं और ये आपकी शुद्ध इच्छा नहीं लेकर भी वो सोचते हैं कि अपने सम्बंधियों को हैं। अतः अपनी शुद्ध इच्छा को सांसारिक इच्छा से सारी चिन्ताओं को मेरे सम्मुख लाना चाहते हैं। अलग करें इसका ये अर्थ बिल्कुल भी नहीं है कि ऐसी छोटी-छोटी चीजों को भी जैसे गर्भ या छीकें आप अपना परिवार त्याग दें, अपनी माँ को त्याग आदि जो कि अल्यन्त स्वाभाविक हैं. फिर भी उन्हें दें या बहन को त्याग दें। कुछ भी नहीं। साक्षी रूप वे मेरे चित्त में डालना चाहते हैं। मैं कहती हैँ, से उन्हें देखें, उसी तरह से जैसे आप किसी अन्य है तो इस प्रकार व्यक्ति को देखते हैं और स्वयं परखें कि क्या बहुत से श्रीमाताजी के पास ले जाएं। अपने परिवार की 1 'ऐसा करते रहो. अगर सम्भव इनका समाधान करने का प्रयत्न करो परन्तु वास्तव में उनमे उत्क्रान्ति प्राप्त करने की इच्छा है आपका चित्त यदि ऐसे सम्बंधियों में नहीं उलझा या नहीं। उनमें यदि इच्छा है तो बहुत अच्छी बात होगा तभी लोग मेरे चित्त में होंगे आप उन्हें मेरे है. उन्हें इसलिए अयोग्य नहीं ठहराया जाना चाहिए चित्त में छोड दें। मैं इसका समाधान करुंगी परन्तु क्योंकि वे आपके सम्बंधी हैं ये बात दोनों तरह से यह कुचक्र (Vicious Circle) है। यह उस मस्तिष्क है- आपके सम्बंधी होने के नाते उन्हें उत्क्रान्ति के का प्रक्षेपण है जो सोचता है कि ठीक है, "श्रीमाताजी योग्य भी नहीं उहराया जा सकता और न ही उन्हें यह चीज़ हमारे चित्त में नहीं है । आप कृपया इसे इस कारण से अयोग्य ठहराया जा सकता है। देखें " परन्तु इसका यह तरीका नहीं है। हमारे मार्थ - अग्रैल, 2005 चैतन्य लहरी 13 अन्दर केवल एक गहन इच्छा होनी चाहिए कि और सुलझना चाहिए। ये सारी चिन्ताएं जो आप क्या मैं स्वयं आत्मा बन गया हैूँ? क्या मैने अपना अन्तिम लक्ष्य प्राप्त कर लिया है? क्या में सांसारिक अपने ऊपर ले रहे हैं ये मेरी सिरदर्दियां हैं। आपको तो केवल एक कार्य करना है- आपको आत्मा इच्छाओं से ऊपर उठ गया हूँ? स्वयं को स्वच्छ बनना है। मात्र इतना ही ये बड़ा आसान कार्य है- बाकी सब मेरा सिरदर्द है। करें। एक बार जब आप स्वयं को स्वच्छ करने लगते हैं तब यदि कोई कमी रह जाती है तो मैं आपकी इच्छा को सामूहिकता पर ले जाने उसे दूर करती हैँ। यह मात्र एक आश्वासन है, वाली समस्या अत्यन्त भिन्न होनी चाहिए। अपनी | उत्तरदायित्व (Guaranty) नहीं। समस्या यदि मेरे पावनता का पोषण करने के लिए, अपनी पावनता से चित्त के काबिल है तो मैं अवश्य इस पर ध्यान सुगंधित होने के लिए आपका चित्त दूसरी ओर दुगी। आपको भी अपने चित्त का मूल्य वैसे ही होना चाहिए। अब आप मेरा सामना नहीं कर रहें. समझना चाहिए जैसे मैं समझती हैँ। मेरे विचार से आपको तो मुझसे भी अधिक अपने चित्त के मूल्य को समझना चाहिए क्योंकि मैं तो अपने अन्दर ही हर चीज का संचालन कर सकती हूँ क्योंकि हर मेरे साथ मिल कर पूरे विश्व का सामना कर रहे हैं। इस बात को समझें, पूरा दृष्टि कोण ही परिवर्तित हो जाएगा। दृष्टिकोण ऐसा होना चाहिए:- मैं क्या दे सकता हैं? मैं किस प्रकार दे सकता हूँ? देने चीज़ मेरे चित्त में है । परन्तु आप अपनी इच्छाओं को, आपकी और होगा, मेरा चित्त कहाँ है ? मुझे अपने प्रति अधिक मुँहबाए खड़ी सभी सांसारिक इच्छाओं से दूर सावधान होना होगा मैं क्या कर रहा हूँ ? मेरी करके स्वच्छ करने का प्रयत्न करें। इसे विशाल जिम्मेदारी क्या है ? आपमें पावनता प्राप्त करने की स्तर पर जब आप देखते हैं तो सोचते है, " इच्छा का होना आवश्यक है। आपको शुद्ध इच्छा श्रीमाताजी देश की समस्याओं का क्या करें " ? होनी चाहिए। अर्थात् आपको आत्मा बन जाना ठीक है, अपने देश का मानचित्र मुझे दे दें । चाहिए। परन्तु अपने प्रति आपकी जिम्मेदारी क्या में क्या गलती है? मुझे और अधिक सावधान रहना समाप्त, इतना काफी है। तब स्वयं को स्वच्छ है ? आपको इच्छा करनी चाहिए कि अपने प्रति करें- आपमें जो भी इच्छा है उसे छोड़ दें। एक आपकी जिम्मेदारी की अभिव्यक्ति हो और वो पूर्ण बार जब आष फावन हो जाएंगे तो वह क्षेत्र आपके हो। चित्त की सीमा में आ जाएगा। ये बात बहुत इसके बाद सहजयोग के प्रति आपकी दिलचस्प है। जब आप इस पर काबू पा लेते हैं जिम्मेदारी आती है। जो कि परमात्मा का कार्य है केवल तभी इस पर प्रकाश डाल सकते हैं। परन्तु और जो शुरु हो चुका है। उसके प्रति आपकी क्या यदि आप इसके अन्दर हैं तो आपका प्रकाश छुपा जिम्मेदारी हैं। आप लोग ही मेरे हाथ हैं आप लोगों हुआ है। प्रकाश बाहर को प्रसारित नहीं हो रहा। आपको इस इच्छा से ऊपर उठना होगा। जब विरोधी तत्वों से यूद्ध करना है- आसुरी तत्वों से। भी आपमें कोई इच्छा जागृत हो आप तब तक इससे ऊपर उठे रहें जब तक आपके सम्मुख खड़ी जो लोग अब भी परिवार के लिए जिम्मेदार हैं वे उस समस्या पर आपका प्रकाश नहीं पड़ने लगता। आधे-अधूरे सहजयोगी हैं- मैं कहती हैँ वे बेकार ने ही षरमात्मा का कार्य करना है और परमात्मा अब आप अपने परिवार के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। मार्च - अप्रैल, 2005 14 वैतन्य लहरी हैं, बिल्कुल किसी काम के नहीं। ऐसे सब लोग करता। उसका चित्त आलोचना पर नहीं होता कि छुट जाएंगे, उनके परिवारों को कष्ट उठाना पडेगा और मैं जानती हैँ कि ये घटित होगा क्योंकि अब चित्त किसी अन्य की आक्रामकता पर होता है इस प्रकार से शक्तियाँ एकत्र हो रही हैं कि छटनी क्योंकि अन्य तो कोई है ही नहीं। परन्तु समस्या ये फलां व्यक्ति ऐसा है और फलां ऐसा। न ही उसका है कि जब मैं बताती हूँ तो लोग समझते हैं कि मैं आरम्भ हो जाएगी। आत्मा बनना आपकी जिम्मेदारी है, सहजयोग किसी अन्य को कह रही हूँ। कोई ये नहीं सोचता आपकी जिम्मेदारी है, मुझे बेहतर, बेहतर, और कि मैं उसी के विषय में ये बात कह रही हूँ। जो बेहतर समझना आपकी जिम्मेदारी है। अपने अंदर लोग आक्रामक नहीं हैं वो दूसरे ढंग से सोचते हैं। स्थापित तंत्र को समझना आपकी जिम्मेदारी है। मैं यदि किसी आक्रामक व्यक्ति के बारे में कहूँ तो किस प्रकार ये तंत्र कार्य करता है, और आचरण जो व्यक्ति आक्रामक नहीं हैं वो तुरन्त आक्रामक करता है ये समझना आपकी जिम्मेदारी है । स्वयं व्यक्ति के बारे में सोचेगा अपने बारे में नहीं। तुरन्त किस प्रकार गुरु बनना है ये जानना आपकी आप अपना मस्तिष्क दूसरे लोगों पर ले जाते हैं जिम्मेदारी है। गरिमामय और सम्मानमय बनना और उनके दोष खोजने लगते हैं। अतः इस पर पड़े आपकी जिम्मेदारी है। सम्मानमय व्यक्तित्व बनना हुए दबाव के कारण ये इच्छा शनैः शनैः निम्न से घटिया व्यक्तित्व का नहीं। आप यदि बुलंदियां निम्नतर हो जाती है । प्राप्त करना चाहें तो आपमें से हरेक का मूल्य पूरे ब्रह्माण्ड जितना है ब्रह्माण्डों के ब्रह्याण्ड आपके सावधानी। सतर्कता कि हमें अपना चित्त केवल चरणों में न्योछावर किए जा सकते हैं बशर्ते कि अपनी शुद्ध इच्छा के पोषण के लिए रखना चाहिए। अतः सावधानी अत्यन्त आवश्यक है। पूर्ण आप बुलंदियों तक उन्नत होना चाहें और अपने इच्छा हृदय से आती है और आपको इस प्रकार से अन्दर स्थित विशालता का पोषण करना चाहें। जो लोग अब भी अपने को निम्न स्तर पर रखना बनाया गया है कि इसके बिना आपका ब्रह्मरन्ध्र ही स्वच्छ न होगा। कुछ लोग सहजयोग की प्रशंसा चाहते हैं वो कभी उन्नत नहीं हो सकते। उदाहरण के बाँधने को ही बहुत बड़ी बात समझ लेते के रूप में पश्चिमी सहजयोगियों को माँ के विरुद्ध हैं। परन्तु उनके हृदय यदि खुले नहीं हैं तो वे स्वयं पाप करने की समस्या है और पूर्व के सहजयोगियों को धोखा दे रहे हैं। अतः अपने हृदय को को पिता के विरुद्ध अपराध करने की समस्या है। रखने का प्रयत्न करें। इससे मुक्त होना आपके लिए बिल्कुल भी कठिन नहीं है चित्त को शुद्ध रखना है। सहजयोग में महाकाली की पूजा करेंगे तथा यह विशेष यज्ञ आप सारे तरीके जानते हैं। जिनसे चित्त को पावन करेंगे तो निश्चित रूप से हम यह परिमल (Aura) किया जा सकता है चित्त यदि पावन नहीं होगा तो स्थापित कर लेंगे और पूरे विश्व को ज्योतिर्मय बना सभी तुच्छ मूर्खता पूर्ण तथा उत्क्रान्ति की दृष्टि से देंगे परन्तु आपका दृष्टिकोण ये होना चाहिए कि अर्थहीन चीजें हर समय इस इच्छा पर आक्रमण मैंने इसके लिए क्या योगदान दिया ? क्या अब भी करती रहेंगी। अच्छा सहजयोगी अपने कपड़ों की, मैं अन्य लोगों के बारे में सोच रहा हूँ? क्या अब लोगों के आचरण और उनकी बातों की चिन्ता नहीं भी मैं छोटी-छोटी समस्याओं के विषय में सोच रहा पुल खुला मुझे आशा है कि आज जब आप ये पूजा करेंगे, मार्च - अप्रैल, 2005 चैतन्य लहरी 15 सब मूर्खता है, पूर्णतः गलत है और परमात्मा हूँ या अपनी आत्मा के विषय में ? तो बायाँ पक्ष श्री गणेश से शुरू होता है और विरोधी गतिविधियाँ हैं। ये एहसास होने पर आप उन्हीं पर समाप्त होता है। श्रीगणेश जी में मूलतः इनका डटकर मुकाबला करेंगे, कहेंगे कि यह तो एक ही गुण है कि वे पूर्णतः अपनी माँ के प्रति हमारे मूल का, हमारी जड़ों का विनाश है। जब समर्पित हैं । किसी अन्य परमात्मा को वो नहीं हमारी माँ सारी उत्कृष्ट पहचानते। यहाँ तक कि वो अपने पिता को भी नहीं पोषण करने वाले तत्वों का, उत्क्रांति और मुक्ति की पहचानते। वो तो केवल अपनी माँ को जानते हैं ओर ले जाने वाले तत्वों का स्रोत है तो ये लोग और उन्हीं के प्रति समर्पित हैं। परन्तु ये शुद्ध इच्छा ( गतिशील होनी चाहिए। इस गतिशीलता के बारे में हैं। मैं सोचती हूँ कि आप लोगों के साथ ऐसे मैं आगे होने वाली बहुत सी पूजाओं में बताऊँगी। व्यवहार किया गया है मानो आप पशु हों ! बो परन्तु आज हमें चाहिए कि स्वयं को आत्मा बनने चाहते हैं कि हम सब मानवता के निकृष्टतम स्तर की शुद्ध इच्छा में स्थापित कर लें। अब पाश्चात्य मस्तिष्क प्रश्न करेगा, कैसे ? ये मेरी समझ में नहीं आती ! अतः आप पर हुए उन बात हमेशा उठती है कि किस प्रकार ये कार्य सारे आक्रमणों को समझ लेना आपके लिए अत्यन्त करें? क्या में आपको बता दूँ कि यह बहुत सहज आवश्यक है। सावधान रहें कि इस प्रकार के लोगों है। आदिशंकराचार्य ने विवेक चूड़ामणि तथा अन्य के झाँसे में न आ जाए। बहुत सी पुस्तकें और ग्रन्थ लिख डाले और सारे बुद्धिवादी लोग उनकी जान के दुश्मन बन गए। जड़ों को देखने के लिए आए हैं कोपलों को देखने कहने लगे, इसमें ऐसा लिखो, वैसा लिखो। आदिशंकराचार्य ने इन सब लोगों को भुलाकर परिवर्तित करें। यहाँ पर टेलिफोन खराब हैं आप सौन्दर्य लहरी लिखी जो केवल माँ का वर्णन है कोई टेलिफोन नहीं कर सकते। यहाँ की डाक और माँ के प्रति उनके समर्पण है। सौन्दर्यलहरी में प्रणाली भयानक है। रेलवे भी बदतर है (मुझे ये बात लिखा गया हर श्लोक एक मंत्र है यह मस्तिष्क के नहीं कहनी चाहिए क्योंकि हम रेलवे के बंगले में माध्यम से मस्तिष्क का समर्पण नहीं है। यह तो रुके हुए हैं) परन्तु यहाँ के लोग शानदार हैं। वो उनके हृदय का समर्पण है। यह आपके हृदय का जानते हैं कि धर्म क्या है । किसी भी तरह से पूर्ण समर्पण है। पश्चिमी सहजयोगी भली भांति समझ लीजिए बो आक्रमण से बचे हुए हैं क्योंकि जानते हैं कि किस प्रकार उन 1 चीजों का, श्रेष्ठ चीजों का, 1 फॉयड आदि) तो हमें हमारी जड़ों से काट से रहें 1. पर आ जाएं जैसे हम भयानक रोगी हों। ये बात अंत में मैं ये कहूँगी कि इस देश में आप लोग के लिए नहीं । पाश्चात्य शैली का अपना दृष्टिकोण पर बार -बार कुण्डलिनी होने के कारण यहाँ श्रीगणेश बैठे हुए नकारात्मकता के आक्रमण हुए. विशेष रूप से जब हैं। कैसे कोई इस महाराष्ट्र पर आक्रमण करने की फायड जैसे भयानक लोग उनके आधार को, हिम्मत कर सकता है ? यहाँ तो रक्षा करने के लिए उनकी जड़ों को नष्ट करने के लिए आए और किस आठ गणेश बैठे प्रकार से पश्चिम ने आँखे बंद करके उसे स्वीकार के लोग भी इस बात को जानते हैं या नहीं। बहुत किया और स्वयं को नर्क के मार्ग पर डाल दिया। से मारुति भी यहाँ विराजमान हैं। अत: इस देश पर ये सारी चीजें बाहर निकालनी आवश्यक हैं। ये कौन आक्रमण कर सकता है ? यहाँ पर कोई अन्य हुए हैं। मैं नहीं जानती कि महाराष्ट्र मार्च - अप्रैल, 2005 पैतन्य लहरी 16: नकारात्मक आक्रमण नहीं है सिवाय इसके कि लोग स्वयं कुछ धन-लोलुप हैं। केवल ये अभिशाप उन पर है, इससे वे यदि मुक्ति पा लें तो वे महान लोग हैं दिन है। पांचांग के अनुसार हो सकता है कि ऐसा न हो परन्तु मेरे सूक्ष्म स्तर पर अपने अन्दर पावन होने की इच्छा, सभी बाधाओं और अपने अन्दर की सभी अस्वच्छ चीज़ों से मुक्ति पाने की इच्छा को स्थापित कर अनुसार ऐसा ही है आइए अपने अतः आप लोग इस देश में पश्चिम की सुख लें। सुविधा प्राप्त करने के लिए नहीं आए। आत्मा का सुख पाने के लिए आए हैं। अतः भारत के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलें मैं किसी भी प्रकार से ये सहजयोगी बनने की इच्छा को, माँ के प्रत्ति समर्पित नहीं कह रही कि एयर इण्डिया के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलें। ये बिल्कुल गलत धारणा है कि सहजयोगी होने के नाते आपको केवल एयरइण्डिया में जाने वाली विकृति, क्योंकि आप क्या समर्पण से ही यात्रा करनी है। बिल्कुल भी नहीं। सहजयोग करते हैं ? मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए। सिवाए को एयरइण्डिया से कुछ नहीं लेना-देना। हमारे रेलवे, तथा अन्य सभी चीजों का सहजयोग से कोई सरोकार नहीं । तो क्या ? अतः देश भक्त के लिए आप अपने हृदय खोल लें। इस अहम् को बने और परमात्मा के लिए अपनी ही एयरलाइन महान सहजयोगी बनने की इच्छा को, जिम्मेदार होने की इच्छा को। 1 ऐसा करना कठिन नहीं है। ये अहम् है। अन्त इसके कि आप मेरा प्रेम स्वीकार कर लें। समर्पण का अर्थ केवल इतना है कि मेरा प्रेम स्वीकार करने त्याग दें। केवल इतना ही, और यह कार्यान्वित हो जाएगा। मैं स्वयं को आपके हृदय में बिठाने का प्रयत्न कर रही हैूं और निश्चित रूप से मैं वहाँ स्थापित हो जाऊंगी। का उपयोग करें। आप जब यहाँ पहुँचेंगे तो पाएंगे कि यहाँ के लोग अत्यन्त अबोध हैं। वे फायड को नहीं समझ सकते। इस विषय पर तो हम उनसे । ये बात उनसे परे है । इस मामलें में वे ऊँचे प्रकार के लोग हैं क्योंकि बीत भी नहीं कर सकते परमात्मा आपको धन्य करें। (निर्मला योग से उद्धृत एवं अनुवादित) उन पर आक्रमण नहीं हुआ। परन्तु आप लोग भी एक प्रकार से बहुत ऊँचे है क्योंकि आप पर आक्रमण हुआ फिर भी आप इसमें से निकल आए। मुख मोड़ने मात्र से आप दूसरी ओर आ गए हैं। ये भी महान बात है। TI अंतः आपको इस बात का भी भरोसा हो जाएगा कि और भी बहुत से लोग हैं जो आप की तरह से विश्वास करते हैं। विशाल जनसंख्या वाले इस देश में आपको आश्रय देने वाले बहुत से लोग हैं। अतः स्वयं को खोया हुआ न समझें। आज हम महाकाली तत्व की पूजा से आरम्भ करेंगे। आप कह सकते हैं आज गणेश गौरी का परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का एक पत्र (मराठी से अनुवादित) 19 दिसंबर 1982 प्रिय मोदी एवं अन्य सहजयोगियों, अनन्त आशीर्वाद. आपका पत्र पाकर मुझे अत्यन्त हर्ष हुआ कि त्वं दुर्गा, त्वं अम्बिका आदि मन्त्र ईड़ा नाड़ी के आपकी ईड़ा नाड़ी स्वच्छ हो गई है और मुझे आशा लिए ठीक हैं, परन्तु सहजयोग में जब आप स्थापित है कि सभी लोगों की ईडा नाडियाँ, कम से कम हो जाते हैं तब आपको कहना होगा, अहम् भवानी। कुछ सीमा तक स्वच्छ हो गई होंगी। यहाँ मैंने सभी से कह दिया था कि मूच्छा की स्थिति में भी जाएगा। ये बात मैं आपको बताती हैँ। मैं ईडा मार्ग को स्वच्छ करने के लिए कार्य करूंगी। तीन दिनों तक प्रतिदिन लगभग पचास नाड़ी को स्वच्छ कर रही हॅूँ। ईडा नाडी के बन्धनों बार वमन (उल्टी) करके मैंने ये कार्य किया और के कारण सहजयोगी आलसी प्रवृत्ति के हो गए थे अहम् भवानी के साथ ये मंत्र अब स्वतः घटित हो ईडा नाड़ी को स्वच्छ करने के पश्चात् मैं पिंगला | अच्छा हुआ कि स्वच्छ करने का यह कार्य सम्भव आलस्य और काम को टालने की प्रवृति उन पर हो पाया। ये शरीर उसी लक्ष्य के लिए उपयोग हावी हो गई थी । काम से आना-कानी करने के किया जाना चाहिए जिसके लिए यह बना है। और कारण उनका चित्त भटक गया था परन्तु अब मैंने इसी लिए मैं बीमारी और कष्टों से चिन्तित नहीं पिंगला नाड़ी को जागृत करने का कार्य आरम्भ कर हूँ। इसके विपरीत ऐसे सभी तथा अन्य प्रयोग इस दिया है। आप सभी लोग अपने दाई ओर दायाँ अवतरण में करने होंगे। इसके विषय में आप हाथ ऊपर को ले जाएं और सिर के ऊपर से ले चिन्तित क्यों हैं, इस शरीर का और क्या उपयोग जाकर बाई ओर को नीचे गिरांए परन्तु ऐसा करते है ? मुझे कभी पीड़ा नहीं होती। मैं तो केवल इतना हुए अपनी इच्छा शक्ति का उपयोग करें ताकि चाहती हूँ कि इस शरीर रूपी प्रयोगशाला में कोई आपकी इच्छा फलीभूत हो सामूहिकता की जागृति न कोई कार्य चलता रहे। समय बहुत कम है और से आपको बहुत से ऐसे लोग मिल जाएँगे जो इस किया जाने बाला कार्य बहुत बड़ा है कार्य में आपकी सहायता करेंगे जिसे आप अभी केवल अपने आत्म-साक्षात्कार के बल पर आप तक अकेले कर रहे हैं। सहस्रार क्षेत्र में आपका लोग अपने ईडा मार्ग को स्वच्छ नहीं कर सकते। हृदय भी सम्मिलित है। हृदय के बंधन जब कम हो मैं जानती थी कि इसे अन्दर से साफ करना जाते हैं तो लैम्प के साफ किए गए शीशे की तरह होगा प्राचीन काल में सभी साधकों को अपने से, आत्मा की फूट पड़ने वाली किरणें सहस्रार की शैशव काल से ही अपने गुरुओं के घर पर या को जागृत करती हैं और दिव्य प्रकाश फैलता है एकान्त स्थानों पर रहकर निरंतर यह क्रिया करनी जिससे हम सहस्रार पर अनुभव करते हैं। यह पुड़ती थी। व्यक्तिगत रूप से कई-कई जन्मों तक प्रकाश रंग-बिरंगे हृदय को चहुँ ओर से प्रकाशमय साधकों को यह कार्य करना पड़ता था। आप करता है तथा आनन्ददायी एवं सुखकर गुणों से लोगों ने अब सामूहिकता की स्थिति पा ली है, मैंने इसको सजाता है। शनैः शनैः यह अवस्था बढ़ेगी सामूहिक चेतना जगा दी है। यद्यपि आप कहते हैं और आपमें स्थापित हो जाएगी। अधिकतर कि मैने ये कार्य किया. मेरे तेरे का अन्तर सहजयोगियों को यह विधि अपनानी चाहिए। परन्तु सामूहिक चेतना में नहीं होना चाहिए। त्वं भवानी, हाथों को केवल मशीन की तरह से चलाना ही सार्च - अप्रैल, 2005 बैतन्य लहरी 18 क भाति ब् 2ख काफी नहीं है जो भी कुछ आप करें पूरे विश्वास के समाधान करने के लिए जो सहजयोगी, सहजयोग साथ करें कि आपकी पूजा में एक योद्धा का का उपयोग कर रहें हैं वो किस प्रकार ज्योतिर्भय उत्साह हो और एक कलाकार की संवेदना। हो पाएँगे ? प्रकाश स्तम्भ (Light House) क्षण देवी-देवताओं को जागृत करने के लिए मंत्रों का भर के लिए भी स्वयं को प्रकाश नहीं दिखाते अत: उच्चारण पूर्णतः शुद्ध होना चाहिए और पूरे हृदय से इन्हें अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है और इनकी किया जाना चाहिए। केवल तभी जागृति घटित हो देखभाल की जाती है पाएगी। एक साधारण सिद्धांत आपको समझना चाहिए कि माचिस की छोटी सी तीली से इतनी बड़ी अग्नि कैसे प्रज्जवलित की जा सकती है ? कृपया यह पत्र सभी सहजयोगियों तक पहुँचाएँं। आपकी माँ निर्मला तैल में यदि पानी मिला हुआ हो तो दीपक की बत्ती किस प्रकार जलेगी ? अपनी तुच्छ समस्याओं का (निर्मला योग से उद्धृत) परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का एक पत्र मराठी से अनुवादित 19 दिसंबर 1982 मुझे आप सबके पत्र प्राप्त हुए। परन्तु मैं किसी सहजयोगी हैं। परमात्मा ने हमें चुना है। यदि हम को भी पत्र न लिख सकी क्योंकि लन्दन में दुर्बल होंगे तो किस प्रकार कार्य कर सकेंगे ? सहजयोग कार्य जोरों पर चल पड़ा है। दिल्ली के सहजयोगी बहुत कम पत्र लिखते करने की शक्ति दी है। इन विचारों से आपको हैं। परन्तु वे सब प्रसन्न हैं । बम्बई के सहजयोगी आलोचना करनी चाहिए भी ठीक हैं। राहुरी के सहजयोगी भी आनंद में हैं। बम्बई के सहजयोगियों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है प्रदान किया है. वे दया के सागर हैं । हमारी सारी अतः उन्हें बहुत से आक्रमणों का सामना करना गलतियों को भुलाकर वे हमारे हित के लिए कार्य पड़ा। उन पर पहला आक्रमण तब हुआ जब मैं कर रहे हैं और हम उनसे अपनी गलतियों को क्षमा अमरीका में थी उस समय बहुत से सहजयोगी प्रभावित हुए और बहुत से चले गए। बाद में जब हैं ! निम्नलिखित विचार आपके हृदय को प्रसन्न लन्दन के सहजयोगियों पर आक्रमण हुआ तो करेंगे : " हे परमात्मा कृपा करके हमें अपने प्रेम की उन्होंने सामूहिक रूप से गलत मार्ग अपनाया, ऐसा शक्ति प्रदान कीजिए " कृपा करके मुझे ब्रह्माण्ड में मार्ग जो खतरों और हानियों से परिपूर्ण था वहाँ के बहुत से दुष्ट लोग अभी भी बाधाओं के रूप में इसकी प्रेममय धडकन मेरे जीवन से प्रसारित हो कुछ सहजयोगियों के अन्दर छुपे हुए हैं। ये दुष्ट उठे और मैं इसी आनन्द में डूबा रहूँ। आदिशक्ति ने हमें पूर्ण मानव जाति का उद्घार हमारे प्रति परमात्मा :- का प्रेम कितना गहन है । उन्होंने हमें आत्मसाक्षात्कार करने के स्थान पर उनके विरुद्ध शिकायतें कर रहें व्याप्त अपने प्रेमसागर की बूंद बना लीजिए ताकि आप पर आज्ञा और हृदय से आक्रमण करते हैं। आज्ञा से वे सहजयोग विरोधी विचार आपके मस्तिष्क से सराबोर रहे । स्वयं से भी अधिक सदैव आपको को भेजते हैं और हृदय से वो शिकायतें करते हैं। प्रेम करने वाली। परमात्मा करें कि आपका जीवन परमेश्वरी प्रेम आप यदि इन्हें पहचान लें तो ये प्रभावहीन हो जाएंगे। इसके लिए केवल एक ही इलाज है आपकी माँ निर्मला (निर्मला योग से उद्धृत) जिसका उपयोग आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के बाद ही किया जा सकता है। आपकी कार यदि चालू नहीं है तो आपके ब्रेक और गतिवर्धक व्यर्थ हैं । परन्तु इन्जन चालू होने के पश्चात् यदि आप गतिवर्धक का उपयोग नहीं करते तो किस प्रकार कार आगे बढ़ेगी। आप इच्छा अनुरूप किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। आपके सभी आत्म सुझाव (Auto Suggestions) फलीभूत होंगे। इसकी विधि इस प्रकार है :- आपका चित्त मुझ पर होना चाहिए और अपनी आज्ञा से आपको निम्नलिखित विचार करने चाहिए :- हम कितने भाग्यशाली हैं कि हमें आत्म साक्षात्कार दिया गया है ! हम परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का एक पत्र मराठी से अनुवादित 19 दिसंबर 1982 मनुष्य को शांति, धन, सत्ता आदि की इच्छा चाहिए। प्रेम अथाह है। आपका चित्त भौतिक वस्तुओं होती है। परन्तु यदि परमात्मा इन सारी चीज़ों का पर है और बातें आप शाश्वतपन की करते हैं! स्रोत हैं तो मानव में परमात्मा प्राप्ति की इच्छा क्यों आपको चाहिए कि शाश्वत ( Eternal) में विलीन नहीं होनी चाहिए? परमात्मा से मिलने की कामना हो जाएं ताकि शाश्वत जीवन प्राप्त कर सकें। और आकांक्षा क्यों नहीं होनी चाहिए ? हमें चहिए आप परमात्मा के साम्राज्य के अधिकारी हैं। कि परमात्मा से शांति के लिए प्रार्थना करें और फिर भी आप खीझ क्यों रहे हैं ? इस साम्राज्य में सारे देवता आपके बड़े भाई हैं, कुण्डलिनी के पथ पर भिन्न रूपों में वे विद्यमान हैं। आपको चाहिए कि उन्हें पहचानें और प्राप्त करें कुण्डलिनी उनकी माँ परमात्मा से मिलन की अपनी इच्छा को भी परमात्मा है, हमेशा उनकी छत्रछाया में रहने का प्रयत्न करें। के चरणों में अर्पित करने के लिए तैयार होना उनके बच्चे बनें और वे आपको अन्तिम लक्ष्य तक चाहिए। पूरा चित्त परमात्मा पर ही होना चाहिए ले जाएंगी। सभी चीज़ों के स्रोत को एक बार जब आप प्राप्त कर लेंगे तो बाकी का सभी कुछ आपको शांति रूप परमात्मा से मिलने की इच्छा बनाए रखें एक सर्वसाधारण मनुष्य और एक सहजयोगी के संतोष में यह अन्तर होना चाहिए। व्यक्ति को और इसके लिए व्यक्ति में समर्पण, दृढ़-निश्चय और चित्त की एकाग्रता ( तपस्विता) होनी चाहिए। इसके लिए सभी भौतिक लगाव नष्ट होने चाहिए । आसानी से मिल जाएगा। परन्तु आप लोग ध्यान धारणा, प्रेम और शांत संसार में चिपके रहने के लिए क्या है ? आपको जीवन के अभ्यास में दृढ़ नहीं हैं। आप तो मुझे भी इन चरण कमलों की गरिमा महसूस करनी होगी बड़े अनियमित (Casual) ढंग से लेते हैं ! परन्तु जिनमें सभी कुछ विलीन होकर शान्त हो जाता है। सांसारिक मामलों में आप कितने हैं ! किसी उत्सुक केवल तभी आप अपनी गरिमा को पा सकेंगे। व्यक्ति को अपनी उपलब्धियों की शेखी क्यों जाते हैं ! सांसारिक मामलों में आप ढीले-ढाले बघारनी चाहिए? आपको ये समझना आवश्यक है (Casual) क्यों नहीं हैं ? मैं क्योंकि महामाया हूँ कि आप जो भी कुछ कर रहें हैं ये सब परमात्मा की शक्ति है अर्थात् आदिशक्ति का कार्य है और करें। मैं आपकी हूँ। मैं आपके लिए हूँ। मैने आपको भी चीज को पाने के लिए आप किस प्रकार अड़ इसलिए वास्तविकता से दूर न भागें। मुझे प्राप्त वह दिया है जो महान सन्तों और पैगम्बरों की को प्राप्त करने के लिए आपको प्रार्थना, करनी पहुँच से भी परे है। किस प्रकार आप इसका हे परमात्मा मेरे अन्दर का 'मैं भाव' उपयोग करेंगे ? आपको बहुत बड़ी मूल्यवान चीज़ आप इन चमत्कारों के साक्षी मात्र हैं। उस अवस्था चाहिए समाप्त हो जाए " मेरे अन्दर यह सत्य स्थापित हो जाए कि हम सब आप ही के अंग-प्रत्यंग है, ताकि और ग्रहों की सृष्टि की गई थी। आपका दिव्यानन्द हमारे रोम-रोम से स्पदित हो उठे। केवल तभी यह जीवन आपके सुन्दर संगीत गुरुदक्षिणा दी है ? इस बात को समझें कि आपका से परिपूर्ण हो पाएगा और पूरी मानव जाति को पैसा, आपकी गुरुमाँ के चरणों की धूल सम भी मंत्रमुग्ध कर लेगा तथा पूरे विश्व को प्रकाश नहीं। आपको अपने ह्ृदय समर्पित करने दिखाएगा।" आपके हृदयों से प्रेम प्रवाहित होना चाहिएं- केवल स्वच्छ एवं पावन हृदय। अपने शरीर दे दी गई है इसकी एक लहर से हजारों सितारों आज गुरु पूजा का दिन है आपने मुझे क्या मार्च - अप्रैल, 2005 वेतन्य लहरी 21 आपमें से कुछ लोग कृपा सागर में आनन्द ले को पावन करें। इस मामले में आलस्य न करें। रहें हैं। मेरा आशीर्वाद है कि आप सभी प्रसन्न हों। आपका सांसारिक जीवन और संतोष उसी स्तर का होना चाहिए। सहजयोगियों का संतोष और उनके हालात में संतुलन होना चाहिए। हमारी दोनों टांगे बराबर बढ़ती हैं। एक टॉग यदि दूसरी टांग से छोटी होगी तो आप लंगड़े हो जाएंगे मैं आपको ये नहीं कहना चाहती कि यदि संतोष कम है तो आप शपथ लें। अवश्य प्रातः उठें और कम से कम एक घण्टा ध्यान धारणा एवं पूजा पर लगाएं। सायंकाल आरती एवं ध्यान करें। शैतानों के शिष्य श्मशान में कठोर परिश्रम करते हैं। मेरी समझ में नहीं आता कि आप लोग सभी कुछ इतनी लापरवाही से क्यों लेते हैं ? गप्पवाजी बन्द कर दें। ईष्ष्या और झगड़े छोड़ दें। समय कभी किसी की प्रतीक्षा नहीं करता खजाने की चाबी होने के बावजूद भी क्या आप खाली हाथ जाना चाहते हैं। अपने हालात का स्तर भी नीचा कर लें। परन्तु सहजयोगियों का संतोष हालात पर निर्भर नहीं है । हालात जो भी हो वह प्रसन्न रहता है यदि वह प्रसन्न नहीं है तो उसका संतोष सतही है। आंतरिक नहीं। परमात्मा आपको अपने चरण कमलों में निरंतर स्थान प्रदान करें। आप यदि परमात्मा के साम्राज्य को स्वीकार नहीं करते तो शैतान का साम्राज्य आएगा और इसके लिए आप ही दोषी होंगे। याद रखें क्योंकि आप सहजयोगी ही मेरे प्रिय लोग हैं और अधिकारियों के रूप में आप ही को चुना गया है। आप यदि इसकी अनदेखी करते हैं तो एक ओर आपकी माँ निर्मला । (निर्मल योग से उद्धृत।) तो आनन्द के इस गहान स्रोत से आप वंचित होंगे और दूसरे सहजयोग के अधूरे ज्ञान के कारण आप अपना अंधिकार खो देंगे। अंतः विवेकशील बने और दृढ़ता-पूर्वक खड़े रहें। हर क्षण हज़ारों निर्देश हैं । आप ही लोग पूरे विश्व का हित देखेंगे। गतिशील होने के लिए अपने निकम्मेपन पर काबू पा ले। आप ही लोगों ने कंप्तान बनना है। परमात्मा के संगीत को अपनी बाँसुरियों से बजने दें। अपनी भावनाओं में उन सब लोगों से ऊँचे उठें जिन्हें अभी तक आत्म-साक्षात्कार एवं आशीर्वाद प्राप्त नहीं हुआ और परमात्मा का साम्राज्य आपका होगा मेरी कामना है कि ये मंगलमयता आपको प्राप्त हो। मेरे सारे प्रयत्न इसी दिशा में हैं । आपको मन्दिर सम बनाया गया है। इसे स्वच्छ रखें । श्रीमाताजी के कथनोंनुसार प्लूटो नक्षत्र पर रे हेरिस के विचार पिछले शरद एक्सीटर (Exeter) इंग्लैंड में जबकि प्लूटो युद्ध का प्रभाव है, उसकी ही श्रीमाताजी ने हमें बताया कि प्लूटो श्री कल्की का उप अवस्था । या हम ये कह सकते हैं कि यदि नक्षत्र है और इस अवतरण में सौर-मण्डल में मंगल श्री गणेश हैं तो प्लूटो श्री महागणेश। ये वैसे यही उनका स्थान है। खगोलशास्त्रियों ने श्री ही है जैसे श्री ईसामसीह युग के अंत में अपनी आदिशक्ति के पृथ्वी पर अवतरित होने के कुछ वर्ष ग्यारह विध्वंसक शक्ति के साथ श्री कल्की रूप में उपरान्त वर्ष 1931 में प्लूटों नक्षत्र को खोज अपने सफेद घोड़े पर बैठ कर लौटें। निकाला। आश्चर्य की बात है कि इस नक्षत्र को विश्व इतिहास की दृष्टि से आधुनिक युग जिसमें हम रहते हैं, नोस्ट्राडमस ने माना कि वर्ष 1999 नए युग से पूर्व का अंतिम वर्ष होगा। यहुदियों का पांचांग भी छः हजार वर्ष कह रहा है तथा विलियम ब्लेक ने भी छः हजार वर्ष पूरे होने इस कार्य मे रत खगोलशास्त्री के सहायक एक किसान लड़के ने खोजा था। ज्योतिषियों के अनुसार प्लूटो का सम्बन्ध मृत्यु, पुनर्जन्म, विनाश तथा गहन सामूहिक अचेतन की अभिव्यक्ति करने से है। आज भी ये नक्षत्र अपनी अनियमित परिक्रमा और हमारे सामूहिक मन पर अपने प्रभाव के कारण पहचाना जाता है। इसकी परिक्रमा पर पुनरुत्थान की बात की है। परन्तु इस विषय में हम कितने निश्चित हो सकते हैं ? ज्योतिष के अनुसार हम प्लूटो के साथ अद्वितीय अवस्था में हैं वास्तव में अत्यन्त असाधारण है। बाकी सभी क्योंकि ये नक्षत्र न केवल अपनी राशि में प्रवेश कर नक्षत्र सूर्य की एक ही मार्ग से परिक्रमा करते हैं । एक ही मार्ग से। परन्तु प्लूटो उन्हें एक कोण से में भी प्रवेश कर रहा है। वरुण समुद्र का देवता है काटता है। अण्डाकार मार्ग पर चलता है और और इसे त्रिशूल पकड़े हुए दिखाया गया है। कभी-कभी तो वरुण नक्षत्र की परिक्रमा में प्रवेश संभवतः प्रतीकात्मक रूप से यह तीन नाड़ियों, तीन कर जाता है । अतः सीर परिवार में खोजे गए गुणों या श्री आदि कुण्डलिनी की तीन शक्तियों-श्री नक्षत्रों में से ही प्लूटो भी एक नक्षत्र है। वर्ष 1979 में प्लूटो वरुण की परिक्रमा में आया और वहाँ यह 1999 तक रहेगा। नवंबर 1983 में ह प्लूटो ने वृश्चिक ( Scorpio) में प्रवेश किया और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह उसकी राज्यसत्ता बुद्धि या विचार शक्ति नहीं जा सकती, वरुण हमारे का चिन्ह है जहाँ यह अत्यन्त शक्तिशाली होता अनुभव का पूर्णत्व है। अतः परिव्व्तन, मृत्यु विनाश है। (वृश्चिक - गुरु, मृत्यु और पुनर्जन्म का चिन्ह तथा गहन परिर्वतन का नक्षत्र प्लूटो अर्थात् श्री है।) भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बरुण है परन्तु इसके साथ-साथ वरुण की परिक्रमा रहा ह महालक्ष्मी, श्री महासरस्वती और श्री महाकाली को दर्शाता है। हमारे अन्दर वरुण स्वाधिष्ठान चक्र हैं-भवसागर की, भ्रम सागर और भौतिक अस्तित्व की बाह्य सीमा सम्बंधित अस्तित्व जिससे आगे कलकी मानवीय चेतना के क्षेत्र में - वर्ष 1999 तक जल का देवता है और प्लूटो छिपी हुई अथाह गहराइयों का ज्योतिषज्ञ वृश्चिक की परिवर्तन शक्ति को प्लूटो की ही देन मानते हैं वृश्चिक प्लूटो के आने की आशा की थी। थोड़े से समय के मंगल ग्रह का भी शासक नक्षत्र है, मंगल ग्रह जो लिए प्लूटो हमारी चेतना में गतिशील होता है । श्री गणेश का नक्षत्र है मंगल युवा योद्धा है फिर भी ये इतना विशेष क्यों है ? हर ढ़ाई सौ वरुण की कक्षा में आ गया है। अत्यन्त दिलचस्प बात है कि ज्योतिष पांचांगो में सभी साधकों ने मार्च - अप्रैल, 2005 चैतन्य लहरी 23 निश्चितता होनी चाहिए। सहजयोग यदि उड़ान ले ले और स्थापित हो जाए तो कुछ भी अनिश्चित रहेगा। साल में प्लूटो बरुण की कक्षा में जाता है और अपनी राशि वृश्चिक में भी प्रायः दौ सौ से ढाई सौ न वर्षों के पश्चात् जाता है। परन्तु इन दोनों नक्षतरों के मिलने का परिणाम हर छः हजार वर्ष में आता प्लूटो के वरुण की कक्षा में प्रवेश, अपनी राशि है। अतः इन दोनों घटनाओं का एक के बाद एक वृश्चिक में प्रवेश और पृथ्वी के कुंभ युग में प्रवेश का एक ही समय पर घटित होना इसकी ओर इशारा करता है। हम योगदान दें या न दें परिवर्तन चलता है कि जब -जब भी प्लूटो ने वृश्चक में तो आएगा ही प्लूटों का सतही तापमान सबसे ठण्डा है। यह 0 से तीन डिग्री ऊपर होता है। और सितारों तथा अंतरिक्ष के बीच के तापमान से थोड़ा धटित होना अत्यन्त दुर्लभ है। उदाहरण के रूप में यदि हम पश्चिम के इतिहास को देखें तो पता प्रवेश किया तो आलस्य और सुखपरता का समय उसके पश्चात् आया। अति नैतिकवाद काल आया जिसमें नए धार्मिक विचारों का उदय हुआ । अमरीकन क्रान्ति, नव चेतना (Renaissance) और मध्य युग की पराकाष्ठा इसके कुछ उदाहरण हैं । जब-जब भी प्लूटो अपनी राशि में प्रवेश करता है तो लम्बे समय तक प्रभावित करने वाले नाटकीय सी अधिक शीतलता आत्मा का गुण है प्लूटो जमे हुए तत्वों या ठोस हुई मिथेन गैस से बना है । सूर्य से इतनी दूर होते हुए जितने बृहस्पति और शनि हैं यह नक्षत्र तरल गैस की अवस्था में होता है और 0 तापमान से भी ऊपर यह जमता है। यही परिवर्तन मानवीय सामूहिक चेतना में होते हैं। इसके अतिरिक्त अब हम एक नए युग के शीर्ष पर हैं- कुंभ का युग(The Age of Aquarius) सर्व-साधारण मनुष्य को ये सब समझाना कठिन है। परन्तु वास्तव में बारह युग होते हैं जिस तरह से बारह राशियाँ हैं और हर राशि में पृथ्वी दो हजार वर्ष रुकती है। ईसा मसीह का युग मीन राशि (Pices) का युग है। तापमान आत्मा का है मिथेन गस CH4 या 4 हाइड्रोजन अणु + 1 कार्बन अणु मूल तत्वों का जैव मिश्रण (Organic Compound) है । कार्बन कठोर काला तत्व होता है या प्रायः हीरे की तरह का पदार्थ अपने आप यह जीवन नहीं बना सकता। परन्तु अपनी चार संयोजकताओं के कारण जीवन के विकास में सहायक बन जाता है। इसी कारण से यह श्री गणेश है। मिथेन या CH4 अन्तिम तत्व नहीं है। उदाहरण के रूप में तेल के पूराने भण्डारों में यह प्राकृतिक गैस के रूप में मिलता है या दलदल से निकलने वाली गैस के रूप में । अत: यहाँ प्लूटो या श्री कल्की की बनावट में पूर्ण विलय 1 ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अब इसका अन्त आ गया है। मीन माया है। भ्रम का युग है जबकि कुंभ जल वबाहक है अर्थात् आत्मा रूपी जल के सामूहिक घड़े का वाहक अर्थात् कुण्डलिनी अर्थात् सहजयोगी गण । अतः सहजयोगियों को मानवता को नए युग तक और पुनर्जन्म निहित हैं । ले जाने के लिए श्री माताजी का यंत्र बनना प्लूटो का एक दिन, इस नक्षत्र का अपनी धुरी चाहिए। हमें चाहिए कि इस कार्य की विशालता पर एक चक्कर हमारे सात दिनों के बराबर है । इसकी परिक्रमा और आकार की विशेषताओं को की आवश्यकता को भी । मीन राशि यदि देखते हुए हाल ही में इस बात का पता लगाया है कि इस पर चन्द्रमा है और यूनानी पौराणिक को समझें और मनुष्य मात्र के सामूहिक उत्थान अनिश्चितता है तो कुंभ मानव जाति के लिए वैतन्य लहरी मार्च - अप्रैल, 2005 24 अतः हमे चाहिए कि बाह्य चिंता को भूलकर कथाओं के अनुसार मृत्यु की नदी पर आत्मा को ले जाने वाले नाविक चेरो (CHARON) के नाम पर कभी तो अपनी आत्मा के विकास को देखें । उस इसका नामकरण किया गया है। उस चाँद की अवस्था की ओर जो सब से परे है। यह वह क्षण खोज वर्ष 1979 के आस-पास की गई अर्थात् उस होता है जब हम उत्क्रान्ति पथ पर छलांग लगाते समय जब इस नक्षत्र से जुड़ी हुई मानवीय चेतना हैं उत्क्रान्ति तो होनी है परन्तु किस मार्ग से हम के परिवर्तन सम्बंधित हर चीज़ घटित होती हुई इस पथ पर बढ़ेंगे ये हम पर निर्भर करता है। दिखाई देती थी। ये वो समय था जब श्रीमाताजी पारंपरिक ज्योतिष के अनुसार प्लूटो बताने लगीं थी कि श्री कल्की की अभिव्यक्ति भावनात्मक तथा आर्थिक कार्यों से भी है और का संबंध आरम्भ हो रही है। इस नक्षत्र के हिसाब से इस पर दिलचस्प बात है कि दिसम्बर / जनवरी 82/ 83 देखे गए चाँद का आकार बहुत बड़ा है । ऐसा में प्लूटो वृश्चिक के समूह में 1 / 2 समीप तक लगता है मानो यहाँ दोहरी नक्षत्र प्रणाली हो। चैरों पहुँचा और विश्व मुद्रा जैसे पौण्ड आदि का मूल्य (CHARON) कल्की का सफेद घोड़ा है या उसका नाटकीय ढ़ंग से गिर गया । विलियम ब्लेक के वाहन है। श्री कल्की दयाविहीन होकर निर्णय करते हैं। और चेरों, प्लूटो का उसी प्रकार से बाहन है जैसे सहजयोग श्रीमाताजी का वाहन है। लक्ष्य येरोशलम के या मिल्टन के कुछ पन्ने पढ़ने मात्र से हम जान सकते हैं कि आने वाले कुछ वर्षों में यदि मानव के प्रयत्न आत्मा प्राप्ति की ओर न होकर प्रणाली का ये माध्यम मात्र है । अपने आप में पूर्ण आर्थिक उत्क्रान्ति की ओर हुए तो अर्थव्यवस्था पतन की ओर चली जाएगी क्योंकि कल्की की में भयंकर परिवर्तन लाती हैं। एक ही मानव जाति अभिव्यक्ति मानव के उच्च मूल्यों की ओर जाने पर नहीं। प्लूटो की परिक्रमा में अनियमितताएं मानव के रूप में हमें चाहिए कि हम आत्मा के प्रति बल देती है। व्यापार और पैसे पर जितना समय समर्पित हो जाएं। हमने बर्बाद किया है उसने हमें कहाँ पहुँचाया सूर्य का प्रकाश मिथेन गैस को वाष्प क्योंकि ब्रह्माण्ड तो एक दूसरे ही स्तर की अभिव्यक्ति बनाकर उड़ाता है तो कभी-कभी प्लूटो पर एक की ओर बढ़ रहा है और मानव उसका एक हिस्सा जब विशेष वातावरण बनता है। ऐसा तब होता है जब है ? शनैः- शनैः मानव के सम्मुख ये स्पष्ट हो अपनी अनियमित परिक्रमा में प्लूटो सूर्य के करीब जाएगा कि केवल आत्मा के प्रति समर्पण और अहं आता है और जब मार्ग में चाँद नहीं होता ऐसे में और प्रतिअहं के त्याग के माध्यम से ही राष्ट्र और सूर्य का प्रकाश एक ओर से इस पर पड़ता है। इस मानव प्रजातियाँ जीवित रह पाएगी। बसंत का प्रकार सर्वशक्तिशाली सूर्य जो कि प्लूटो के कभी न समय प्रचुर बनाएं. क्योंकि इसके बिना इस नक्षत्र खत्म होने वाली शीतलता का विरोधी है. प्लूटो की का जरा सा भी भौतिक स्तर पर संतुलन परिवर्तन शक्ति की अभिव्यक्ति करता है। सौर प्रणाली में महान कठिनाइयों और कष्टों का कारण बन सकता श्रीमाताजी के भी तीन स्थान हैं :- हृदय में शुक्र. है। यह डराने की बात नहीं है परन्तु हमें सहजयोग चन्द्रमा और प्लूटो उनके सिर पर है। इस अवतरण को अपनाकर मानवीय उत्क्रान्ति की विस्मयकारी में प्लूटो उनका वाहन है - श्री कल्की रूप में जो अवस्था प्राप्त करने के लिए खुद को श्रीमाताजी के कि प्रलय की अंतिम शक्ति है। निर्देशानुसार सहजयोग को अपनाना होगा इस मार्चं - अपैल, 2005 चैतन्य लहरी 25 वर्ष दिल्ली के एक प्रवचन में श्रीमाताजी न कहा कि स्वास्थ्य की प्रार्थना करें। उनका शरीर सहजयोगियों प्लूटो बहुत सी बीमारियों का कारण भी हो सकता के सामूहिक स्वास्थ्य को दर्शाता है। अतः यह है और निदान भी। आइए प्रार्थना करें कि हम इस आवश्यक है कि प्लूटो की शक्ति को व्यक्तिगत प्रकार से प्लूटो की शक्ति के सम्मुख समर्पित हो और सामूहिक रूप से उपयोग करके हमने स्वयं जाएं कि व्यक्तिगत स्तर पर रोग घटित न होकर को रोग मुक्त करना है। ताकि हमारे कारण से रोगों से मुक्ति ही प्राप्त हो और सम्पूर्ण मानवजाति हमारी प्रिय श्रीमाताजी को कष्ट न हो और उनका सामूहिक रोगों के लिए सहज इलाज खोज सके, असीम प्रेम बरसता रहे। जैसे कुरान में लिखा है कि ऐसे रोगों के लिए जो पूरी मानव जाति को एक जिस मनुष्य के पास देखने के लिए ऑखें और दूसरे से अलग करके कष्टों में फँसाते हैं। इलाज सुनने के लिए कान हैं वह सर्वत्र परमात्मा के प्रेम केवल ये है कि परम पूज्य श्रीमाताजी के चरणों पर उनके कार्य तथा योजनाओं को स्पष्ट देख सकता नतमस्तक होकर सहजयोग के माध्यम से उन्हें है। अपना अन्तर्परिवर्तन करने दें। इन्हीं दिनों में, मार्च 83 में श्रीमाताजी ने कहा था कि हम सब उनके इच्छा को नतमस्तक नमन करते हैं । हम सभी बच्चे सर्व शक्तिमान परमात्मा की शुद्ध (निर्मल योग से उद्धृत।) माँ का प्रेम कवच ओम त्वमेव साक्षात् प्रेमतत्व साक्षात्, प्रेम दायिनी और उनकी मुस्काने उनके चेहरों को तेजस्वी बना साक्षात्, प्रेम शक्ति साक्षात् आदिशक्ति माताजी रहीं थी। उनकी एकाकारिता भरपूर थी। और श्री निर्मला देव्यै नमो नमः । साक्षात् प्रेमदायिनी, साक्षात् सर्वव्यापिणी श्री माताजी वास्तव में यह परमात्मा की बहुत बड़ी कृपा है अपने आनिन्दत बच्चों पर अपने प्रेम और कि अब सहजयोग में हम सभी को जीवन का चैतन्यलहरियों की वर्षा कर रहीं थीं। प्रेम स्वरूप माँ सत्य और सर्वोपरि प्रेममयी श्रीमाताजी प्राप्त हो के बच्चे ज्योंही परस्पर मिले माँ का प्रेम उनके गई हैं। प्रेममयी श्रीमातजी हमें अत्यन्त प्रेम करती अन्दर प्रवाहित हो रहा था और उस प्रेम से बो पूरा हैं और हर कदम पर हमारी देखभाल करती हैं। वातावरण आशीर्वादित हो उठा था इस दिव्य उनकी करुणा एवं प्रेम अत्यन्त महान है निश्चित वातावरण में कोई भी नकारात्मकता किस प्रकार ठहर सकती थी ? रूप से वे ही प्रेम का स्रोत हैं। ऐसे बहुत से मौके होते हैं जब हमें इस बात का प्रेम के इस कृपा सागर में हम सब क्रीड़ा कर रहें हैं, आनन्द से उछल रहे हैं और परस्पर प्रेम से एहसास होता है कि श्री आदिशक्ति का प्रेम नाच रहे हैं, मिलकर गा रहे हैं और ये स्थिति हमें सर्वशक्तिमान है। श्री जगदम्बा माँ के प्रेम-आगोश चैतन्य-लहरियाँ एवं आनन्द की ओर ले जा रही में हम इतने सुरक्षित होते हैं कि कोई भी चीज़ न है। सहजयोगियों के मध्य होना और इस प्रेम को तो हमें परेशान कर सकती हैं और न ही हमारे बॉटना सदैव आनन्ददायी होता है। जहाँ भी प्रेम चित्त को भटका सकती है। होगा, किसी प्रकार की नकारात्मकता या बाधा उन्होंने हमारे लिए साहस और निडरता के अश्व तैयार किए हैं और हमें इन अश्वों की सवारी करने वाले योद्धा बनाया है। हम यदि इतना महसूस कर वहाँ न रुक सकेगी और न ही कोई समस्याएं वहाँ रह पाएंगी। दिसंबर 1982 में लोनावाला शिविर के प्रथम लें कि हम अपने हाथों में उन्हीं की प्रेम खडग थामे दिन श्री महामाया ने ये बात हमें स्पष्ट दिखाई। हुए हैं, उन्हीं की प्रेम ढाल हमारी रक्षा करती है, एक सहजयोगी पकड़ा हुआ था और उसकी उन्हीं के प्रेम का आश्रय हमारा पथ-प्रदर्शन करता तबीयत खराब थी। अन्य लोग उस पर कार्य कर है और हमें सुचारु बनाता है तब हमारे अन्दर उनके विनम्र माध्यम होने का विश्वास आ जाता है। रहे थे परन्तु उसे कोई लाभ न हुआ था। अचानक कुण्डलिनी उठी और सब कुछ ठीक हो गया । हृदय और सहस्रार खुले और उस व्यक्ति को की क्षुद्र बाधाओं पर सहजयोग की विजय का आइए इन अश्वों पर सवार होकर नकारात्मकता उदधोष करें और विश्व-भर में श्रीमाताजी के नाम बहुत अच्छा लगने लगा। इस परिवर्तन का कारण स्पष्ट था। तभी यूरोप के महामन्त्र का निनाद करें। के कुछ सहजयोगी वहाँ पहुँचे थे और अपने भारतीय भाई - बहनों से गले मिल रहे थे ऐसे मिलन क़ितने सुंदर होते हैं ! एक दूसरे को गले लगाते हुए वे आनन्द- विभोर जय श्रीमाताजी (निर्मला योगा से उद्धृत। हो रहे थे। उनके हृदय से प्रेम उमड़ रहा था, आँखें चमक रहीं थीं विज्ञान मनुष्य की खोज है रचना नहीं परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन- मुम्बई. 29.3.75 पहले भी Practical करके आप से बताया था कि होगा और उनका एक CO -efficient बनाकर सहजयोग क्या चीज़ है, उसमें क्या होता है, यह () पाया बनाया है यह science है न तो बह कैसे घटित होता है। उसी का मैंने वैज्ञानिक सात से आठ होगा अगर आठ होगा तो उसी व्याख्या भी दी थी, Sceintific definition दिए proportion में होगा। हमेशा एक ही proportion थे। आखिर science जिसे हम ? जब science में रहेगा। अब सात क्यों है diameter science कहते हैं, यह परमात्मा ने बनाया हुआ बिन्दु में से, मध्य बिन्दु में से diameter गुजरता है नहीं है, यह मनुष्य ने जो जो खोजा हुआ है उसे तो उसे सात होना पड़ता है। इसी प्रकार हमारे वह science कहता है। लेकिन उसने संसार की अन्दर जो सुषुम्ना गुजर गई है उसको भी सात कोई भी चीज़ बनाई हुई नहीं है। उसका कोई भी होना पड़ता है, उसमें भी सात चक्र बनाए हैं। और नियम उसका बनाया हुआ नहीं, कोई सा भी शास्त्र उसे साढ़े तीन इसलिये होना पड़ता है क्योंकि उसका बनाया हुआ नहीं है। गणित का शास्त्र भी diameter को आप आधा कर दीजिए तो साढ़े उसका बनाया हुआ नहीं है। उसके नियम उसकी तीन हो जाएगा। अगर आप साढ़े तीन वलय बनाएं. विधि, यह सब परमात्मा की बनाई हुई है जैसे कि उस पाया के ratioमें आप अगर साढ़े तीन बलय आप देखिये कि एक Circle होता है और उसका बनाएं एक के ऊपर एक, कुण्डलिनी जैसे और जो व्यास होता है उसके व्यास और उस व्यास की बीच में से आप लकीर खींच दें तो उसके बराबर परिधि में जो एक ratio होता है, proportion सात टुकड़े हो जाएंगे, लेकिन वो साढ़े तीन वलय होता है, वह आपने बनाया हुआ नहीं है। उसका होगा। है कोई यहाँ scientist या mathematician नियम परमात्मा ने ही बनाया हुआ है कि वह इससे? कहाँ है ? बराबर है कि नहीं ? साढ़े तीन वलय ज्यादा होगा या इससे कम होगा। ऐसा भी नहीं के बाद इस तरह से बनाएंगे एक के ऊपर इस तरह हो सकता है, वह जितना है वह उतना ही रहेगा। से साढ़े तीन वलय बनाएंगे और बीच में से जब उसका ratio बँधा हुआ है सब नियम जितने उसके बीच मध्य बिन्दु को छेदकर निकालेंगे तब बनाए गये हैं वो परमात्मा ने बनाए हुए हैं। आप उसके अन्दर में वह सात जगह कटेगा और इसीलिए लोगों में से बहुत से लोगों ने मुझसे पूछा है कि अपने अन्दर सात चक्र हैं । लेकिन circumference माताजी आप साढ़े तीन कृण्डल कहतीं हैं, कुण्डलिनी का हिसाब किताब अलग लगता है कि बाइस का के साढ़े तीन कुण्डल क्यों कहती हैं ? एकदम आप ग्यारह करें तो ग्यारह होता है। देखिए कितना scientific बात है। जो समझने वाला है वह समझ गणित है ? हरेक चीज का कितना गणित है आप सकता है। आपने कभी घड़ी को देखा है क्या ? देखिए जो मध्य में चीज़ चलती है तो सात के घड़ी में आप देखें तो circle का जो व्यास होता हिसाब से चलती है और जो उसके प्रकार में चलती है जिसको कि आप diameter कहते हैं और जो है उसका जो प्रकार होता है वह ग्यारह के हिसाब 1 circumference होता है, तो अगर वह सात हो से चलता है इसीलिये अपने यहाँ अगर आज तो यह बाइस होना पड़ता है, उससे ज्यादा नहीं किसी को रुपए देते हैं तो ग्यारह देतें हैं। अब होगा कम नहीं होगा, यह सात होगा तो वह बाइस आपको समझ में आया होगा कि ग्यारह का क्या होगा। उसका relationship हमेशा 22 व 7 महत्त्व है। मार्ध - अप्रैल, 2005 वैशन्य लहरी 28 ८ ने हमारे शास्त्रों में जो चीज़ें लिखी हुई हैं ये छोड़ कर और आप लोग जो मेरे बेटे हैं व मेरी अनादि हैं। उसको बड़े-बड़े गणितज्ञ भी समझ लड़कियाँ हैं. जो मेरे सहस्रार से पैदा हुए हैं, मैंने नहीं पाएंगे क्योंकि साधुओं ने जो खोजा वह लिख किसी को नहीं देखा है जो कुण्डलिनी को इशारे दिया उन्होंने लिखा कि कुण्डलिनी साढ़े तीन बार लपेटे हुए एक coil है, एक कुण्डल है लेकिन यह कहेंगे कि भई ये कैसे ? इन लोगों ने इतनी यह नहीं बता पाए कि वह ऐसे क्यों है। Scientist मेहनत करी, इतना किया, यह कैसे ? एक पते की बता पाएंगे कि आप साढ़े तीन इस तरह से बात आपको बता दें जो कि राजा का मंत्री होता है लपेटिएगा तो पूरा circumference उसका cover वह सबकुछ जानता पर खड़ी कर दे। बात सही है। इसमें बहुत से लोग है कि राज्य को कैसे चलाना हो सकता है। उसके बगैर हो ही नहीं सकता है। है और वो राज्य का सारा कार्यभार संभालता है। और बराबर सात ऊपर से नीचे तक छेद दीजिए सबकछ है, लेकिन जो घर की लक्ष्मी होती है, रानी उसमें बड़ा सा चक्र तैयार हो जाएगा। अब होती हैं. वह अपनी चाबियाँ अपने बच्चों के हाथ में Scientist इधर में खोज रहे हैं और उन्होंने देती है, लेकिन मंत्री के हाथ में नहीं देती। होंगे पढ़े उधर खोज लिया। अब इन दोनों के बीच एक लिखे, बहुत विद्वान होंगे होंगे बहुत पहुँचे हुए पुरुष, अधूरापन है, वह सहजयोग से पूरा हो सकता है। लेकिन मेरे सहस्रार से पैदा जो नहीं हुए हैं जब तक सहजयोग science जहाॅ रुक गया है, Science वे इस बात को मान नहीं लेते कि वे मेरे बेटे हैं जहाँ झुक गया है और Science जहाँ हार गया उनको यह अधिकार मिल नहीं सकता और मिला है वहाँ उसको आशा दे सकता है और उसे बता भी नहीं। इसके लिए बहुतों ने मुझसे सवाल जवाब सकता है कि जो उन्होंने बताया है वही तुम्हारी किए हैं अपने शिष्यों ने भी कि माताजी हम उनके किताबों में लिखा है । परिभाषाओं का फंर्क है। पास गए थे, गुरुजी के पास गए थे, वह इतने बड़े उसका कारण क्या है ? सहज योग उन साधुओं आदमी हैं, आप उनको मानती हैं पर उनको तो यह को भी पर्याप्त में ले जाता है, उन ऋषि मुनिओं काम नहीं आता जैसे हमें आता है। हमें तो मालूम को भी पर्याप्त में ले जाएगा जिंहोंने खोज के है कि कौन से चक्र कहाँ पकड़े होते हैं, कहाँ कैसा निकाला है। आपको आश्चर्य होगा, पर है बात होता है, हम तो यू करके ऐसा हाथ कर देते हैं तो सही। हमने बहुत बड़े साधु योगीराज देखें हैं वे ऐसे यहाँ पैसा बैसा इक्कठा नहीं करते फिरते हैं, हजारों की कृण्डलिनियाँ उठती हैं और हम सबको ै दूसरों के चक्र छूट जाते हैं और हमारे इशारे पर वे बहुत बड़े जन हैं। वे अपने संसार से बाहर रहकर के और संसार की vibrations से सेवा सब मेरे सहस्रार से पैदा हुए हो। एक और ऐसा कर रहें हैं। किन्तु हमने अभी तक किसी भी ऐसे इन्सान है ईसा मसीह जो कि माँ के हृदय से पैदा आदमी नहीं देखा है कि जो आप लोगों जैसे हुआ था। उसको भी यह अधिकार है। लेकिन वह कुण्डलिनी को उठा सकता है। एक इशारे से, समय भी ऐसा नहीं था कि वह यह काम कर पार करा देते हैं। यह कैसे ? वजह यह है कि तुम सिवाए गणेश जी को छोड़ कर। गणेश के हाथ सकता। पर आज वह समय भी आ गया है और में जो एक छोटा सा साप होता है बही आप की कुण्डलिनी का प्रतीक है। सिवाए गणेश जी को है कि तुम कहो कि हम तो सामान्य लोग हैं, हम लोग तैयार भी हो गए हो। अब तो हो सकता तुम ho ति माध - अप्रैल 2005 29 चैतन्य लहरी अत्यंत सामान्य हैं और हम यह कैसे काम कर ।am the Path", वही मेरी भी बात है।। am the सकते हैं? पता नहीं, लेकिन करते हो तो न इसमें Destination not only the Path । लेकिन मैंने तो कोई शंका नहीं है तुम लोगों को कि तुम सबकी यह बात आज तक आप लोगों से कही नहीं थी। कुण्डलिनियाँ देख सकते हो, जान सकते हो और इसलिए क्योंकि पिछले अनुभव इतने खराब रहे । समझ सकते हो कि किसका हृदय चक्र पकड़ा है, इसी वजह से मैंने बात नहीं की। आप लोगों को किसका क्या पकड़ा है और उसे कैसे निकालना है मेरी शरणागत लेनी पड़ेगी, मुझे माँ मानना पड़ेगा और कैसे ठीक करना है हजारों भूत बाधाएँ और और मेरा बेटा बनकर के जीना होगा उसके बगैर बीमारियाँ और दुनिया भर की चीजें तुम लोग आपका कार्य नहीं होगा इसी एक छोटी सी वजह निकाल कर फेंक देते हो। और इन लोगों को के कारण आप लोग इस दशा में पहुँच गए कि देखिए, मैंने बड़े-बड़े महन्तों को देखा है कि हम बड़े-बड़े सन्त महात्मा लोग हार गए लेकिन बह वहाँ गए थे, हमें भी लकवा मार गया क्योंकि हमने नहीं पा सके एक तो मेरा साक्षात् उनसे नहीं हुआ किसी का लकवा ले लिया। तुम्हें तो न लकवा और दूसरी चीज़ अभी उनमें अहंकार बना हुआ है, स्वीकारे ही नहीं हैं क्योंकि बो अन्जान में पार मारता है न कुछ नहीं मारता है। जब से तुम लोग पार हुए हो गए तुम्हारी तन्दरुस्ती ठीक हो गई। हो गए, उन्हें पता ही नहीं कि उनकी माँ कौन है। अगर किसी की खराब हो भी जाए ज़रा तो वह यूं लेकिन तुमने मुझे जाना है तब तुम लोग पार हुए ही ठीक हो जाती है। खैर छोड़िए। यह तुम लोगों हो। यह समझ के रखो कि जरा सा तुमने इधर कुछ अनुभव हुए हैं। इस पर राहुरी में भी मुझसे प्रश्न उधर कदम डगमगाया तब vibrations तुम्हारे छूट हुआ था। वहाँ मैंने इतनी openly बात नहीं कही जाते हैं तब तुम कहते हो माताजी यह तो All थी लेकिन बात यह है कि तुम मेरे सहस्रार से पैदा pervading है तो यह vibrations कैसे छूट जाते हुए हो। मेरे सर से मैंने तुमको पैदा किया हुआ है हैं ? All pervading में भी कहाँ से vibrations इसलिए तुम्हारे लिए विशेष अधिकार है । तुम लोग जाते हैं, सोचना पड़ता विशेष अधिकारी हो। मानती हूँ कि बाकि जो लोग किसी भी जगह रहें, जिस वक्त आप लोग सहजयोग हैं वे भी सहजयोग से पार हुए हैं बड़े-बड़े के विरोध में अगर एक अक्षर भी कहेंगे तो आपके साधु सन्त भी सहजयोग से पार हुए हैं अविरल vibrations छूट जाएंगे और उसके बाद आप जो क्रियाएं करके, हजारों वर्ष तपस्या करके। लेकिन भी कार्य करेंगे जिस भी कार्य में आप रहेंगे उसमें उनके अन्दर अभी तक acceptance नहीं है भूत आपका साथ देगें, माँ नहीं देने वाली। मैंने ऐसे मेरी। के है। आप लोग कहीं भी रहें, भी लोग देखे हैं जो मेरे यहाँ आते हैं थोड़े दिन आज आपसे मैं खोलकर कह रही हूँ कि आप vibrations लेते हैं और उनके ऊपर जब कुछ भूत जब तक मुझे accept नहीं करिएगा तब तक यह बाधाएँ चढ़ जाती हैं तो वे भूत बाधा का काम करने काम नहीं होगा। मैंने यह बात पहले नहीं कही। लगते हैं उनका ढंग और हो जाता है, उनका जैसे कृष्ण ने कहा है कि "सर्व धर्माणां परित्यज्य तरीका और हो जाता है । उनका बताना और हो मामेकम शरणं ब्रज | " ऐसी ही मेरी भी बात है। जैसे कि Christ ने कहा था "| am the Light, बताते हैं कि घोड़े का नम्बर कौन सा है, तेरे बाप जाता है। फिर वह कुण्डलिनी नहीं देखते हैं, वो ये चैतन्य लहरी मार्च अप्रैल, 2005 30 का क्या होगा, तेरे माँ का क्या होगा, असलियत में है। आज वह समय आ गया है कि आप ही का नहीं आते ऐसे अनेक लोग हमारे इस सहजयोग माँगना आप ही की चाहत, आप ही लोगों की में आए और बिछड़ गए. थोड़े दिन रहे बिछुड़ गए पुकार साकार मेरे अन्दर घुस जाए मैं स्वयं से फिर उन्होंने थोड़े दिन काम वाम किया इस तरह नहीं आई हूँ। मैं आप ही की पुकार से आई हूँ। का, बड़े अपने को साधु गुरु महात्मा समझकर के आपके आनादि काल से जो पुकार व चिल्लाहट हो काम किया और उसके बाद देखा यह गया कि रही थी उसी के कारण मैंने यह शरीर धारण उनके ऊपर बाधाएँ जम गई और वो बहुत ही किया और अब भी आप ही लोग जो सर्व साधारण नुकसान व तकलीफ में फँस गए इसीलिए एक जन हैं, मुझे पहले पहचानेंगे और जो यह बड़े-बड़े बात आप जान लीजिए कि सहजयोग के विरोध में साधु सन्त और बाबाजी बन कर बैठे हैं यह पहचानेंगे बात करने से, मैं चाहे आपको माफ कर भी दें नहीं, जैसे न इन्होंने सीता को पहचाना था न राध लेकिन परम पिता परमात्मा आपको कभी माफ नहीं T को पहचाना था न मेरे को पहचाना। और अब भी करेंगे। हमारे घर में मेरी अपनी लड़की का मैं यह लोग नहीं पहचान पाएंगे। यह अब भी बड़े आपको बताती हैँ कि एक दिन जरा सी गुस्सा हो घमण्ड में बड़े बाबाजी बनकर बैठे हुए हैं। जो 1. गई मेरे ऊपर, फौरन उसके कान में से गरम गरम इन्सान अपनी माँ को भी नहीं पहचानता है उसको हवा निकलने लगी। उससे मैंने कहा कि तुम कान बाप क्यों पहचानें अपने रगड़ लो और कहो की माफ कर दो। मुझसे सहजयोग को खिलवाड़ नहीं समझना चाहिए । ऐसी बात कहना गलत है। सहजयोग के विरोध में सहजयोग को एक साधारण चीज़ नहीं समझना तुमने एक अक्षर कहा, हालाँकि तुम मेरी अपनी चाहिए। यह बड़ी अनुपम अजीब, अजीबो गरीब लड़की हो लेकिन तुम्हें अधिकार नहीं है । यह चीज़ आई है। क्या आपको कभी किसी किताब में सबसे बड़ी अनाधिकार चेष्टा है जो मैं आपके ऐसा लिखा मिला है कि अगर यह आपका चक्र सामने आज खड़ी हूँ। यह आप लोगों के बुलाने पकड़ता है तो यह विशुद्धि चक्र है। क्या आपको का फल है। ऐसे भी देखिए कि मन्दिरों में मस्जिदों कहीं पता हुआ है कि नाभि चक्र होता है और यह में, और जहाँ-जहाँ भक्त लोग माँ को पुकारते हैं सहस्रार होता है ? आपको कभी किसी ने यह बातें तो माँ का हृदय उछलने लग जाता है। आपने बताई हैं क्या ? आपको कुण्डलिनी के बारे में किसी देखा है कि आप जब कभी जरा सा भी आप गाना ने भी इतने खुल्लमखुल्ला कोई बात बताई है और गाते हैं तो मेरे बदन से अनगिनत vibrations दिखाई है क्या ? किसी ने भी इस तरह से संसार बहने लग जाते हैं। अगर कहीं भी मैं जरा सा गाना में आज तक, हमने भी पहले कभी भी यह कार्य सुन लेँ या record सुन लूँ या cinema में ऐसा नहीं किया जैसे आज हो रहा है । लेकिन आप दिखाई दे जहाँ माँ को पुकारा जा रहा है तो मेरे सारे बदन से जैसे करोड़ों रश्मियाँ फूट पड़ती हैं आप जो लेने आए हैं वो बहुत बड़ी चीज़ है बहुत जैसे vibrations निकल रही हों। यह आपने भी ही बड़ी चीज़ है। उसका अन्दाज ही आपको आज जाना हुआ है। यह आपने भी देखा हुआ है। इस नहीं है एक दिन आएगा, चाहे मेरे ही आँख के चीज को आप भी समझते हैं कि ऐसा माँ को होता सामने आजाए या बाद में आए, जब संसार में यह लोगों का आधा अधूरापन इसको खत्म कर देगा। मार्च - अप्रैल, 2005 सैतन्य लहरी 31 पता हो जाएगा कि हम लोग अब एक नए आयाम क्योंकि मनुष्य की अक्ल अपने जैसी दौड़ती है न। में dimension में उतर गए हैं लेकिन आप लोगों उसको छूने की कोई जरूरत नहीं थी उसके बाद का आधा अधूरापन, हो सकता है कि. संहार की उसके जो पुजारी जो हमने देखे उनके सबके चक्र गति शीघ्र कर दे। धर्म का चक्र उल्टा घूम रहा है, पकड़े हुए यह आप जानते हैं और वह दिखाई दे रहा है । चक्र पकड़े हुए हैं और उसपर जो सिन्दूर चढ़ाया उसको सीधा घूमाने का कार्य सिर्फ सहजयोग से था और जो बेल चढ़ाया था वह सब पकड़ा हुआ ही हो सकता है लेकिन जो लोग सहजयोग में आ रहे हैं उनको अत्यन्त धार्मिक, अत्यन्त सदचित्त जागृत स्थान है लेकिन इतनी अक्ल नहीं है कि अब और अत्यन्त उदार चित्त होना पड़ता है। धर्म की भी इसमें से vibrations पूरे आ रहे हैं कि आधे आ पूर्ण व्याख्याएं उनको सीखनी है। सिर्फ Vibration से नहीं होता है । बहुत से लोग मेरे सामने आते चक्र उस मूर्ति के भी पकड़े हुए थे। और मेरे समझ हैं तो बड़ी जोर-जोर से vibration उनके अन्दर में नहीं आया । जब मैं अन्दर मंदिर में जाकर बैठी आते हैं और जब बाहर चले जाते हैं तो ऐसे नहीं तब पंडित जी कहने लगे कि आप अन्दर नहीं बैठ होता है। ऐसा तो हर जगह ही आना चाहिए सकते आप बाहर बैठिए और आप उनको हाथ आपको। ऐसी कौन सी जगह है जहाँ हम नहीं नहीं लगा सकते तो मैंने यह सोचा कि अगर हम हैं? हर जगह यह vibration आने चाहिएं आपको इसको हाथ भी नहीं लगा सकते तो इसको हम और इतने बलवत्तर होने चाहिए कि किसी भी क्या कर सकेंगे ? यह मूर्ति तो ऐसी ही रह प्रकार के काले vibration इसके ऊपर नहीं चढ़े। जाएगी तो पीछे से गए और पीछे से, जाकर के क्योंकि आप जीवंत हैं अभी हम राजन गांव के वहाँ उस मूर्ति की ओर हमने देखा और पीछे से गणपति के पास गए थे। वहाँ हमने देखा कि अपना सर, अपना सहस्रार ही जाकर लगा दिया तो राजन गांव के गणपति को उस गणपति में से उसके अन्दर से इतनी जोर से vibration निकल बहुत थोड़े-थोड़े vibration आ रहे थे । और जो आई इसलिए यह जान लेना चाहिए कि आप लोग हमारे साथ थे वे इतने आश्चर्य चकित हो गए जीवंत हैं। आपके अन्दर कहीं अधिक, इन मंदिरों कि जब जागृत स्थान है तो इसमें vibration इतने कम क्यों आ रहे हैं ? मैंने कहा कि पहले तो यह मगर जीवंत रहिए । मरी हुई चीजों का तो जो लोग बात सोचो कि इसको पहचाना किसने कि यह शौक करते हैं या मरी हुई बातों का शौक करते हैं जागृत स्थान है। यह मनुष्य ने किया है ? जिसने वे लोग मर जाते हैं । जिन्दा होते भी मर जाते पहचाना कि यह जागृत स्थानि है वह कोई न कोई हैं जड़ वस्तुओं के पीछे में भागना एक इस तरह साधु सन्त रहा होगा कि उसने यहाँ vibration का शौक है। उसकी ओर भागना या उससे भागना देखे होंगे और कहा होगा कि यह जागृत स्थान दोनों एक ही चीज़ है। सन्यास भी लेना बही चीज़ थे वह जितने भी पुजारी हैं और उनके था। मनुष्य को इतनी अक्ल जरूर है कि यह रहे हैं कि कौन से vibrations आ रहे हैं । तीन से भी अधिक, vibrations आ सकते हैं। आप हुए है फिर जब वह जागृत पत्थर लाया गया तो हो है और सन्यास से भागना भी वही चीज़ है। दोनों सकता है किसी ने उसे shape देने के लिए थोड़ा में कोई अन्तर नहीं है। आप अपनी स्थिति पर खड़े बहुत चलाया हो, हो सकता है नहीं भी हो सकता। हो जाइए। मार्च - अप्रैल, 2005 এ2 चैतन्य लहरी पहली चीज़ दूसरी चीज़ अपना धर्म बनाइए। धर्म का मतलब है जो पढ़े-लिखे अपने को बिद्वान समझते हैं, ऐसे आप अपने अन्दर में से इन vibrations को पूरी महामूखों को तरह से बहने दीजिए। आपका मन होता हैं कहीं अपने आप ही अकरमात् आपको innocense में ही गए। आपने देखा वहाँ एक आदमी गिर गया, होता है, बहुतों को हो जाता है, हज़ारों को होता है दौड़िए, उसको फौरन पकडिए, उसे vibrations आप को भी होना चाहिए। लेकिन बेकार की झूठी दीजिए, बचाइए। दुनिया कहेगी, कहने दीजिए। बातों को आप पकड़ कर रखिएगा। और अगर आप आपके अन्दर से vibrations बह रहे हैं, यही झूठी बातें करियेगा और झूठी बातों में ही आप पूरी आपका धर्म है। मैंने आपसे बताया था कि सोने का तरह से जमें रहियेगा जो आप को जड़ बना रही धर्म यह नहीं कि वह पीला है। उसका धर्म यह भी हैं तो इस जड़ता से आप भी तो जड़ ही हो जाएंगे। नहीं कि उससे कुछ जेवर बन सकते हैं। उसका जो चैतन्य आपके अन्दर से बह रहा है उसको आप धर्म बस एक ही है कि वह किसी चीज़ से खराब कैसे किस प्रकार प्रसारित कर पाए। थोड़ा बहुत नहीं होता। इसी तरह हीरे का भी एक ही धर्म है समय इसके लिए देना पड़ेगा यह मैं पहले कह कि वह हर चीज़ को काट सकता है व hardest चुकी हूँ, यह बात सही है । लेकिन यह priority है। इसी प्रकार मनुष्य का एक धर्म होता है कि उस की चीज़ है । आपके priority बदलने पड़ेगी। थोड़े परमात्मा को पा लेना और जान लेना और जिस दिन जब इस priority आ जाएगे तो इसका मजा है आप अपनी स्थिति बनाइए। होना होता है। बहुत से लोगों को होता नहीं है। कुछ नहीं होता। मैं क्या करू यह तो TI मनुष्य ने उसे पा लिया है उस मनुष्य का एक ही आपको आने लगेगा सारे संसार में जितना सुख धर्म होता है कि उस पाई हुई चीज़ को पूरी तरह और मजा है सारे संसार का जितना आर्कषण और से आत्मसात् करके पूरे संसार में प्रसारण करे । सौन्दर्य है. सारे संसार का जितना भी धन दौलत लेकिन इधर उधर की बातें और वही जड़ता के सब कुछ जो भी है जो कुछ भी जिसे आप दौलत, तरीके, उससे आप बिल्कुल न तो इधर के रहेंगे न सब कुछ, जो भी है, जो कुछ भी जिसे आप उधर के रहेंगे। आपके vibrations खो जाएंगे और मेरी जितनी भी मेहनत है सब बेकार हो समझते हैं उन सबका सरोत यह है। ये जानता भी जाएगी कोई भी धर्म संसार में ऐसा नहीं है जिसने है, प्यार भी करता है और सौन्दर्य भी है। यही वह vibrations की बात न कही हो। माने असली शक्ति है जिसके बारे में हमने हजारों बार पढा है धर्म। किसी ने भी ऐसा नहीं कहा है कि vibrations और हजारों बार इसके बारे में हमने जाना है। इसी नहीं होते हैं। हर एक जगह इसे रूह कहते हैं, इसे शक्ति के सहारे सारी सृष्टि की रचना हुई है और water of life कहते हैं कुछ भी कहते हैं लेकिन इसी के द्वारा आप भी उसको जानेंगे जो यह शक्ति हर जगह कहा है कि vibrations होते हैं और है। यह एक बहुत बड़ी बात है। वह धीरे धीरे हिन्दु धर्म में तो साक्षात् आप जानते हैं कि इसी पर फैलना चाहिए । इतनी बड़ी बड़ी बात इतनी जल्दी न जाने कितनी विवेचना की गई है। आदि शंकराचार्य नहीं फैलती, कोई सी भी जीवन्त चीज है धीरे धीरे knowledge कहते हैं, जिसे आप ज्ञान करके 1 ने भी। इसमें कुछ पढ़ा नहीं जा सकता कुछ लिखा पनपती हैं। मैं देखती हूँ जड़ जम गई है. उसकी नहीं जा सकता, कुछ समझा नहीं जा सकता। यह जड़ बहुत गहरी जम गई है अभी मैं शहरों से अप्रैल 2005 मार्च चैतन्य लहरी 33 र होकर आई हूँ । मुझे बड़ी खुशी है कि वहाँ के से जाने व पाएं जैसे कि गोपी और गोप कृष्ण के scientist लोगों ने इसे बिलकुल scientifically जमाने में खोज रहे थे और जानने के प्रयत्न में कर दिया। अपने पौधों पर, इस पर, उस पर थे और आज आपको वह चीज़ पूरी तरह से मिल experiment करके एकदम scientific चीज बना गई है। मैने आपको अनेक बार बताया है कि गोप ली है और वे कह रहे थे कि हम goverment से से गोपनीय इसको जितनी भी गहराई की बातें हैं भी इसके लिये लडेंगे कि यही चीज़ सत्य है और मैं सब आप को बताने के लिए आई हूँ। लेकिन आप उसके अधिकारी हो जाएं। जिनको अधिकार देने से बह सत्य नहीं होता। आपकी अपनी शक्ति ही नहीं है उनको यह बात नहीं बता सकती थी। आपको अपनी शक्ति उस शक्ति से एकाकार हो इसीलिए जो बात आज मैंने सर्वप्रथम कही है जा रही हैं जो आप के अन्दर बसी हुई हैं। जैसे इससे पहले कभी भी इतना खोलकर कही नहीं। आप में से यदी किसी को प्रश्न पूछना हो तो एक मटको में पानी रहता था जब उन मटको में छेद दो आदमी को पूछने दीजिए जिसे प्रश्न पूछना है हो जाता था तभी वह पानी और उन मटको का कृपया प्रश्न पूछे। जरूर पूछना चाहिए प्रश्न। बाकि सारे जितने भी असत्य हैं उसका नाम सल्य कि जमना में बहुत से मटके रहते थे और उन पानी एकाकार हो जाता था उसी तरह से अपना क्योंकि मुझे पता ही नहीं तुम लोगों का क्या प्रश्न भी हाल होना चाहिए। आप भी उसको उसी तरह है। य मुम्बई 30.3.75 परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन अधिकतर प्रगल्भ है, developed है । मनुष्य पूरी तरह से इन तीन शक्तियों में पूर्णतया कल मैंने आपसे बताया था, सबको सुनाई दे रहा है या नहीं ? पीछे में सुनाई दे रहा है ? आपसे मैंने यह बताया था कि मनुष्य का शरीर mature हो गया है, बड़ा हो गया है। अब उसकी तैयारी हो गयी है कि उन तीनों शक्तियों उसका मन, उसकी बुद्धि, आदि उसका जितना भी पूरा व्यक्तित्व है उसकी जितनी भी personality है वह सब कुछ तीन तरह के शक्ति से बना हुआ है एक शक्ति जिससे कि हम अस्तित्व बनकर रहते हैं। वह मनुष्य में प्राण का संचय, जो एक शक्ति परमात्मा का प्यार है उनका प्रेम है उसे जाने। जो एक शक्ति ही तीनों में बंट गई है वो एकाकार हो जाए, उस परम शक्ति का एक थोड़ा सा अंश हमारे अन्दर कुण्डलिनी के रूप में त्रिकोणाकार अस्थि में सोया हुआ रहता है। जिस वक्त कोई भी ऐसा इन्सान जिसने इस प्रेम को अपने अन्दर ले लिया हो और जिसके अन्दर यह शक्ति से स्वरूप होती हैं जिसका स्थान हवृदय में होता है। दूसरी शक्ति जो कि हमारे पेट में होती है जिसके कारण हमारी आज मनुष्य दशा तक उत्क्रान्ति हुई है, वह है धर्म। और तीसरी शक्ति जो एक चेतनामय है जिससे हमें बुद्धि आदि अनेक चेतना के अवलम्बन मिले हैं लेकिन यह तीनों ही शक्तियाँ सर्वव्यापी परमात्मा के प्रेम से समग्र होकर integrate हो बह रही हो, माने कि जो आदमी realised soul हो, वह किसी साधक के ऊपर अनुग्रह करता है तभी कुण्डलिनी, आपकी माँ, जागृत होती है। लेकिन वैसा साधक अगर सोचे कि नहीं मैं ही अपनी कुण्डलिनी जागृत करूँगा तो वैसी ही बात हुई है कि जो गाड़ी चलाना नहीं जानता है बह पाई जाती हैं। परमात्मा बन सर्वव्यापी प्रेम इन तीनों शक्तियों को संचालित करता है, समग्र बनाता है, माने integrate कर देता है। जैसे कि जड़ वस्तु में भी जो vibrations दिखाई देते हैं. जिसे electromagnetic vibrations कहते हैं, वो भी उसी स्थिति स्वरूप, प्राण का ही सोया मोटर चला रहा है। जिसको मोटर चलाना नहीं आता है ऐसा अगर आदमी मोटर चलाए तो मोटर का कचरा बन जाता है। इसी प्रकार हुआ स्वरूप है। जब बह जाग जाता है तब वह जो लोग अपनी कुण्डलिनी स्वयं जागृत करना चाहते हैं तो वे अपनी सारी ही कुण्डलिनी की संस्था को उसके सारे instrument को पूरी प्राण हो जाता है। जो एक छोटे से amoeba में पेट में भूख लगती है, वही मनुष्य के अन्दर में धर्म के रूप में जागृत हो जाती है। धर्म हर एक वस्तु मात्र में है। जैसे कि मैंने आपसे बताया था कि सोने का धर्म यह नहीं है कि बह पीला है । तरह नष्ट भ्रष्ट कर देते हैं। अगर कोई अन्जान आदमी इस कुण्डलिनी को जगाना चाहता है तब भी यही हो जाता है। कोई अगर अपवित्र आदमी आपकी माँ के ओर अग्रसर होता है उसका धर्म यह भी नहीं है कि उससे आप जेवर बना सकते हैं। लेकिन सोने का धर्म यह है कि वह किसी भी हालत में ifarmish नहीं होता खराब नहीं होता। अब जो तीसरी चीज़ है चेतना, और उसको जगाना चाहता है तब भी ऐसा ही हो जाता है । और कोई अगर आदमी आपको पैसे के लिए, आपको लूटने के लिए, आपको वो मनुष्य में, मनुष्य के मस्तिष्क में, सबसे मार्च - अप्रैल 2005 35 बैतन्य लहरी बेवकूफ बनाकर के कुण्डलिनी पर हाथ डालता है आदमी को चाहिए कि वह अपना समय और किसी तब भी यही काम हो जाता है। वही इन्सान जो कार्य में लगाए लेकिन कुण्डलिनी के ऊपर अपना परमात्मा के प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति से पूरी तरह हाथ न रखे। कुण्डलिनी जितनी सौम्य है जितनी प्लावित हो, जिसके अन्दर सामूहिक चेतना पूरी कृपालु है, जितनी वरदायनी है, जितनी मातृ हृदय तरह से बह रही हों, इस बात का अधिकारी है कि से प्लावित है उतने ही उसको संभालने वाले गण. कुण्डलिनी पर आमन्त्रण का आरोप करे कुण्डलिनी deity जो कि उसकी रक्षा करते हैं, वह प्रखर और का आमन्त्रण ऐसे वैसे आदमी भेज नहीं सकते। तेजोमय हैं किसी भी प्रकार का खेल जब और जो इस तरह से भद्दे प्रयत्न करते हैं वह बड़े कुण्डलिनी के साथ होता है. तो वह पूरी तरह से भारी पाप के भागीदार हो जाते हैं । जो दूसरे की कुण्डलिनी की रक्षा में तत्पर रहते हैं और ऐसे लोगों कुण्डलिनी नष्ट कर देते हैं. उनकी स्वंय कुण्डलिनी जन्म जन्मांतर के लिए नष्ट हो जाती है और वे कीड़े मकोड़े के जन्म लेते हैं। इसलिए किसी साधक की कुण्डलिनी अनाधिकार चेष्टाओं कुण्डलिनी के साथ खेलने का साहस कभी न करें। से धायल करना इससे बढ़कर कोई भी पाप बाकी सब चीजों में ठीक है आप चोरी करिए, आप संसार में नहीं है माँ की हत्या से भी बढ़कर यह Smuggling करिए कोई हर्ज नहीं लेकिन आप पाप है कि आप किसी की कुण्डलिनी को हाथ लगा कुण्डलिनी के मामले में मेहरबानी से दूर रहिए। रहे हैं अनाधिकार चेष्टा से । कुण्डलिनी को करने का अधिकार परमात्मा के सिवाय और कोई नहीं दे सकता। जब तक हुई है और उसे पवित्रता से भरा हुआ है। यह सारी की को नष्ट भ्रष्ट कर देते हैं। जो इस तरह का पाप करते हैं। सबसे बड़ा पाप, संसार में यही है कि परमात्मा ने यह सारी सृष्टि अपने प्रेम से बनाई जागृत स्वयं परमात्मा की शक्ति इसका अधिकार आपको सृष्टि अत्यन्त पवित्र है। उसमें जो कुछ भी अधर्म न दे तब तक यह आपके पास अधिकार नहीं है कि है और बुरा है वह मनुष्य ने ही संचित किया हुआ आप college में जाकर इसकी degree ले लें है। क्योंकि मनुष्य ही ऐसा जीव संसार में बनाया और कहें कि हम कुण्डलिनी जागृत कर सकते हैं गया जो स्वतन्त्र है। बाकी सारी ही सृष्टि परमात्मा इस तरह के झूठे बहुत लोग आजकल संसार में के इशारे पर नाचती है एक पत्ता भी उनके इशारे दिखाई दे रहे हैं और वे जान नहीं रहे हैं कि हम के बिना नहीं हिलता। सारी सृष्टि में जो अधर्म से कितना बड़ा घोर, अत्यन्त भंयकर पाप कर रहे हैं। अधर्म है, जो नर्क से नर्क है जो पाप से बढ़कर पाप कुण्डलिनी का काम अत्यंत कुशलतापूर्वक करना हैं, वह मनुष्य का ही बनाया हुआ है इसकी रचना पड़ता है। इतना ही नहीं अत्यंत प्रेमपूर्वक करना मनुष्य ही ने की है और ऐसे ही गिरे हुए अधर्म लोग पड़ता है और सबसे बड़ी बात है कि वह प्रेम भी जब अधर्माधम की स्थिति में पहुँच जाते हैं तब वे अत्यंत पवित्र होना पड़ता है। पवित्रता यह धर्म के शैतान के रूप में विचरण करने लग जाते हैं। रोम-रोम में छाई हुई शक्ति। जो आदमी पवित्र शैतान परमात्मा ने नहीं बनाया, उसको मनुष्य ने नहीं होता है, जो दूषित विचारों से भरा रहता है, बनाया है और वह शैतान की पूजा करते हैं क्योंकि जिसका सारा चित्त दूसरों का पैसा, दूसरों की उसने ही उसकी रचना की है। जब तक हम शैतान पत्नी या दूसरों को लूटने की ओर होता हैं ऐसे को शैतान नहीं कहेंगे, जब तक हम अधर्म को अप्रैल 2005 मार्च अ चैतन्य लहरी 36 अधर्म नहीं कहेंगे, जब तक हम बुराई को बुराई अत्यन्त अधर्म कार्य करके जो शैतान तैयार किया नहीं कहेंगे, तब तक हमारे अन्दर अच्छाई जागृत हुआ है उस शैतान के बादल आज भी संसार के नहीं हो सकती। आपने सुना होगा कि जब लोग ऊपर इतनी बुरी तरह से मंडरा रहे हैं कि हो मक्का जाते हैं तब रास्ते में एक वहाँ शैतान की संकता है कि अगर सहज योग पूरी तरह से न मूर्ति बनाकर बिठाई गई है और सब लोग अपने घर पनप पाया तो वह दिन दूर नहीं जबकि इन लोगों से एक पुरानी चप्पल लेकर वहाँ जाते हैं और पहले का सबका सर्वनाश हो जाए और अन्धकार के गर्भ शैतान को मारते हैं, माने कि उसको धिक्कारते हैं। में हम डूब जाएं। उस अन्धकार में भी सहजयोग में उसको धिक्कारे बगैर परमात्मा आप को स्वीकार जिन जीवों ने परम कार्य किये हुए हैं वो सितारों ही नहीं करने वाले और उनके स्वीकारे बगैर कुछ जैसे चमकेंगे सितारों जैसी उनकी महिमा होगी। भी आप को नहीं मिलने वाला, आप चाहे कुछ भी यह वह बड़ा आपका स्थान है। आज आप इसको कर लीजिए। उनकी मेहर आप पर होनी चाहिए. समझ नहीं पा रहे हैं लेकिन इतिहास में इस बात उनकी दया आप पर होनी चाहिए, उनका प्रेम की चर्चा होगी कि कितने सहजयोगियों ने सत्य पर आपकी ओर उमड़ना चाहिए। वह अत्यंत दयालु, अपने पैर जमा लिए थे। करुणामय शक्तिमान प्रभु परमेश्वर हैं । लेकिन अगर आप अधमाधम कार्य में बैठे हुए हैं और आप की ओर उलझने की जरूरत नहीं है। आप बहुत उस शैतान की पूजा कर रहे हैं जिसने संसार में बड़ी चीज़ पर जमे हैं। इतनी बड़ी चीज़ पर एक अजीब तरह का चक्र चला दिया है, जिसने अध जमने वाले लोगों को चाहिए कि छोटी मोटी चीजों र्म का एक चक्र चलाया हुआ है और जिसके बहुत की ओर बिल्कुल भी ध्यान न दें। आपके अन्दर की सारे अनुचर संसार में पैदा होकर अधर्म को फैला भी शक्ति आपकी स्वयं की तैयारी पर ही प्रभावित रहे हैं. जब तक उस शैतान को तुम पूरी तरह से होती है। अगर आपकी तैयारी कम हो तो वह धिक्कार नहीं करोगे तब तक परमाल्मा भी आपको स्वीकार नहीं करेगा इस मामले में अगर आधा अध आपकी तैयारी पूरी तरह से है और शैतान को पूरी परापन है आपके अन्दर, तो अपने ही साथ छल तरह से धिक्कारने की आपके अन्दर शक्ति है तो कंपट कर रहे हैं । उसको आपको पूरी तरह से आप ही में से बड़े-बड़े सन्त और गुरुजन निकलने आपको धिक्कारना होगा। उसको पूरी तरह से वाले आपको छोड़ना होगा नहीं तो जो आपके अन्दर में है पाँच साल के बच्चे से लेकर आज ऐसे नवोदित मिथ्या है वह आपके अन्दर में बैठा रहेगा जो सत्य बड़े-बड़े जीवों ने एकदम से संसार में जन्म आपके अन्दर है वह प्रकट नहीं होगा। जब तक ले लिया है जैसे कि ऊपर से कहीं से सारा उनका आपके अन्दर सत्य प्रकट नहीं होगा, संसार में भी पूरा तबका इकट्ठा ही उतर आया हो। बहुत से सत्य कैसे फैल सकता है। जैसे समझ लीजिए कि बच्चे, मैं देखती हैँ कि वह पार ही पैदा हुए हैं। पर सूर्य पर अगर बादल छा जाएं तो अन्धेरा आ जाता नीव के पत्थर तो आप ही हैं । सहजयोग के नीव है और अगर बादल हट जाएं तो सूर्य फिर से के पत्थर आप लोग हैं । आपको मैंने पहले भी चमकने लग जाता है । इसी प्रकार मनुष्य ने ही अनेक बार बताया है कि जो लोग आज धर्म के झूठे आधा अधूरापन छोड़ दीजिए छोटी-छोटी बातों हुए शक्ति भी हल्का ही अपना जोर दिखायेगी। अगर हैं । एक बड़ी भारी पीढी आज जन्म ले रही बहुत मार्य - अप्रैल, 2005 37 चैतन्य लहरी झगड़े खड़े किए हुए हैं, जो आपस में नफरत से आज्ञा चक्र पकड़ा हुआ हैं। सबके सब बताएंगे, एक एक दूसरे को देख रहे हैं और उसमें धर्म का नाम फर्क नहीं बताएगा, दूसरा फर्क नहीं बताएगा। जो इस्तेमाल कर रहे हैं, यह शैतान के बच्चे हैं, ये कोई भी इस हॉल के इस छत को देखेगा तो यह परमात्मा के भेजे हुए लोग नहीं हैं। परमात्मा ने बताएगा कि यह छत सफेद रंग का है रंग कभी भी द्वेष व दुष्टता को मान्यता नहीं दी है। नहीं बता सकता है। जब आप हँसेंगे तो एक ही लेकिन उसका खण्डन किया है उसका संहार ढंग से हँसते हैं, जब आप रोएंगे तो आपकी आँख किया है। जो लोग अपने को बहुत छोटे दायरे में से ऑसूं आएंगे और एक ही ढंग से आप रोएंगे। बाँधे हुए हैं कि हम फलाने हैं और ढ़िकाने हैं, वो उससे भी कितना अधिक धर्म का अपना स्वरूप लोग अनन्त की गोद में नहीं जा सकते। जिसकी जो कि व्यापक है और सबके अन्दर एक है। उस कोई सीमा नहीं है वह असीम में बैठा हुआ है धर्म में झगड़ा होना सम्भव ही नहीं हो सकता, अपनी सीमाएं आपको तोड़नी पड़ेंगी जो आपने कलह होना सम्भव ही नहीं हो सकता। कलह जहाँ मूर्खता से बाँधीं हैं कोई भी धर्म आपको सीमा में आया समझ लीजिए कि एक अधर्म दूसरे अधर्म से नहीं बाँधना चाहता है लेकिन जो मनुष्य ने मूर्खों लड़ रहा है। धर्म कभी धर्म के साथ लड़ नहीं जैसे धर्म बनाए हैं उसका तो कोई इलाज ही नहीं सकता। जो आदमी अपने को धार्मिक कहकर के दूसरा और दूसरे को कहता है कि आप भी धार्मिक, हम कर सकते। वास्तव में दो ही धर्म संसार में हैं- एक है धर्म भी धार्मिक लेकिन लड़ लें, वो धर्म को जानता नहीं। और दूसरा है अधर्म तीसरा कोई धर्म है ही नहीं । सहजयोग में यह किस तरह से होता है. यह एक है धर्म जिसकी धारणा अन्दर होती है और समंग्रता कैसे आती है ? कुण्डलिनी का उद्दीपन दूसरा है अधर्म। जितने बड़े-बड़े गुरुजन हो गए हैं वह धर्म के लिए लड़े और उस वक्त जो में थे उनसे लड़ते रहे मुसलमान कहिए. चाहे उनका नाम आप हिन्दु खुद ही इस शक्ति को पा लेते हैं जबकि पहली कहिए, चाहे उनका नाम आप Christian कहिए। लेकिन उनके जितने भी followers थे, अनुयायी प्राणं हैं, वह प्रेम हो जाती है, और जो आपके पेट थे उन लोगों में वो सत्यता नहीं थी उन्होंने अपने में धर्म है वह सारे संसार की जागृति हो जाती है । छोटे छोटे group बना लिए और अधर्म के झगड़़े होने लगे। एक अधर्म से दूसरा अधर्म लड़ने लगा। संसार का ज्ञान हो जाता है। उसी वक्त आप जान धर्म में झगडा कोई नहीं होता है। धर्म में कलह सकते हैं कि यह कुण्डलिनी का उद्दीपन आपके नहीं होता है। धर्म सब एक हैं। सबके अन्दर एक इन हाथों से कैसे हो रहा है । आप ही के इशारों से कैसे होता है ? 'आदि, सभी कुछ आपको पहले भी अधर्म बताया है और फिर भी मैं आपको बताऊगी किसी वक्त। लेकिन यह तो देखने का मजा है जब आप फिर उसका नाम आप शक्ति, जो कि आपके हृदय में है जिससे आपके और जो आपकी चेतना आपके सर में है वो सारे है सबमें एक ही बैठता है। उसमें कोई argument कुण्डलिनी कैसे उठ रही है और आप ही के बंधनों नहीं होता है। जब आप लोग किसी की ओर हाथ में ये अधर्म कैसे चरमरा रहा है। और आप ही के करके खड़े होते हैं तो सभी बताएंगे कि माँ इस खींचे तारों में यह किस तरह से मरा जा रहा आदमी से हमें यहाँ जलन आ रही है,माने उसका हुए है। आप ही देख सकते हैं कि आप के जो दो चार मार्च - अप्रैल, 2005 चैतन्य लहरी 38 तीर कमान इस अधर्म को लग जाएं कि यह किस century से लेकर अभी तक पार हुए हैं और अभी तरह से अपना मार्ग छोड़ कर चला जाता है और कम से कम तीन चार century से तो कोई पार ही कुण्डलिनी अपने रास्ते पे अपने आप साफ साफ नहीं हुआ है। और आप समझ सकते हैं कि यहाँ आ जाती है। किस प्रकार शरीर में छिपी हुई हजारों आदमी पार होते जा रहे हैं। बहुतों को हुआ व्याधियाँ एक दम से नष्ट होकर के, कुण्डलिनी हैं, किसी-किसी को नहीं भी होता है । लेकिन हो सामने ऊपर एक गंगा जैसे भागीरथ ले आए थे, ही जाता है। आज तक ऐसा कोई नहीं है कि वह उसी तरह से उतरती चली आती है गंगा को लाने आता रहे और उसको न हो। जो भी आया यहाँ के लिए भगीरथ ने अनेक प्रयत्न किए थे और इस बैठा उसने पाने का प्रयत्न किया, सब लोग पार हो कुण्डलिनी को लाने के लिए भी मैंने अनेक प्रयत्न गए। ऐसा हमें आज तक मालूम नहीं जो पार नहीं किए हुए हैं, पूर्व जन्म में भी और इस जन्म में भी। हुआ। लेकिन एक चीज़ जरूर तैयार करके आना लेकिन अब इसका फल आप लीजिए क्योंकि चाहिए कि शैतान को आपको जूते मारने पड़ेंगे। आपके दरवाजे पे ही गंगा बह रही है । आपके शैतान को आपको पहचानना पड़ेगा, उसको आपको इशारे पर कुण्डलिनी चलेगी आप रास्ते चलते हुए छुट्टी देनी पड़ेगी, उसको अपने हृदय से निकाल लोगों को जागृति दे सकते हैं। आपके हाथ से देना पड़ेगा। और कौन शैतान है और कौन परमात्मा अनेक cancer जैसे रोग ठीक हो जाते हैं यह है उसकी पहचान इन्हीं चैतन्य लहरियों से हो बात सही है और होनी ही चाहिए, होते ही है यह सकती है अगर आपके पास नहीं हैं तो जिनके सब कैसे हो रहा है ? उसका कारण यह है कि पास है उनकी बात सुनिए, जो इसको जानते हैं आप उस सर्वव्यापी परमात्मा के प्रेम की शक्ति के उनकी बात सुनिए। जिन्होंने इसको पड़ताला अंग हो गए हैं जो आप इस्तेमाल कर रहे हैं। उनकी बात सुनिए। इसी प्रकार आप जान सकेंगे आपके अन्दर से वही शक्ति प्रवाहित हो रही है कि कौन शैतान है और कौन धर्ममात्मा, कौन और आप उस शक्ति का कार्य कर रहे हैं। अब असली गुरु है और कौन नकली है। संसार में जैसे इसमें झगड़े का कौन सा सवाल उठता है ? क्या असली फूल होते हैं वैसे plastic के भी फूल होते मेरा यह हाथ इस हाथ से हर समय झगड़ा करता हैं। लेकिन उसकी पहचान अपके आँख से, नाक रहता है? जिस दिन यह झगड़ा शुरू हो जाएगा से, मुँह से, हर एक चीज़ से हो सकती है कि यह तो हम यह कहेंगे कि यह हाथ इससे अलग हो plastic का फूल है या कि सच्ची फूल है। लेकिन गया, यह कोई हमारा हाथ नहीं है। इसी प्रकार धर्म को जानने के लिए सिर्फ Vibrations चाहिएं। इस सर्वव्यापी शक्ति को हमारे अन्दर हम पा लेते उसके बगैर आप जान ही नहीं सकेंगे कि यह हैं तो हम सर्वशक्तिमान हो जाते हैं। बहुत से लोगों आदमी पाखण्डी है. कि झूठा है, कि अधर्मी है. यह को पहले भी यह शक्ति मिली है। बहुत कम लोगों राक्षस है। यह आदमी धर्मात्मा है और यह आदमी को कहना चाहिए, क्योंकि जब मैंने पढ़ा जेन को, परमात्मा है, यह आदमी अवतार है । यह आदमी जेन छठी शताब्दी में जापान में शुरू हुआ था, और बहुत बड़ी शक्ति है। जब तक आपके हाथ में उसमें भी यही कुण्डलिनी जागरण का कार्यक्रम vibrations नहीं आएंगे आप जान नहीं सकते। किया था निकिता माँ ने और कुल 26 आदमी छठी इसीलिए यह चीज़ सबसे पहले आपको पा लेना चैतन्य लहरी मार्च - अप्रैल, 2005 39 चाहिए कि असली vibrations आपके हाथ से नहीं चल सकता, किसी भी तरह का झूठ नहीं चल ढंडे-ठंडे आने चाहिए जैसे कि कोई cooler से आ सकता इसमें। यह सच्चाई होनी चाहिए। आपको रहे हों, इस प्रकार आपके अन्दर से आने चाहिए। खुद अनुभव होना चाहिए। आपके अन्दर दिखाई इसके अलावा आपके विचार आपके काबू में आ देना चाहिए और आपके हाथ से इसका बहता हुआ जाते हैं. आप निर्विचार हो जाते हैं, और विचारों की प्रवाह से दूसरों को भी जागृत करना चाहिए। तभी ओर देखते हैं कि आप निर्विचार हो गए कोई भी आप पार हुए हैं हाँ मैं आपको धों पोंछ के साफ विचार नहीं आ रहा है। यह असलियत है. यह कर दूंगी. आपको प्यार से साफ़ कर दूंगी, आपकी सत्य है। इसमें मैं कोई झूठा वादा नहीं कर कुण्डलिनी को समझा दूंगी, सब कुछ कर दूंगी, सकती। मे रे हाथ recommendation नहीं है। इसमें कोई झूठी दुनियाभर का पाखण्ड रचते हैं और दुनिया भर की बात नहीं हो सकती। जब तक आप पार नहीं होंगे चीजें करते हैं और बातें बनाते हैं। उसकी मुझे तब तक आप मेरे कुछ नहीं लगते चाहे मेरे कुछ भी परवाह नहीं है। लेकिन तुम लोग भी उसकी परवाह लगते हों। कोई कितना भी रुपया दे मैं पार नहीं न करो और अपना ही कल्याण साधो अपना मंगल कर सकती चाहे आप कितने भी पढ़े लिखे हों मैं साधो। अपने को सत्य के रास्ते में रखो। चाहे दो पार नहीं कर सकती। आप घर में बैठिए। आप चार लोग कम हों या चाहे हजार लोग ज्यादा हों। तभी पार हो सकते हैं जब हो सकते हैं. जब हो गए इससे फर्क नहीं पड़ता। हम लोग अब ध्यान में हों। कोई भी हों आप, मैं मजबूर हूँ। मैं आपको जाएंगे सब लोग इस प्रकार हाथ रखें। आँखें अभी ऐसा झूठा certificate नहीं दे सकती। इसमें में बंद रखें का कोई झूठा लेकिन यह होना पड़ेगा जिनके नहीं होता है वह 1. झूठ शुरु म े 8666866 े क 0999395 2003 शिवरात्रि पूजा पर माताजी के बायें हृदय से चैतन्य निकलते हुए ५ मिनट बाद पूरे फोटो से चैतन्य निकलता हुआ। बा] ा मुगल सराय सैंटर-नवरात्रि पूजा 2003 हवन में दर्गा रूप अग्निशिखा EGO ा ल ---------------------- 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी भी मा र्च_अपैल 2005 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-2.txt NIRMALA UNIVERSAL PURE इस अंक में 1 सहस्रार पूजा इटली 4. 5. 86 11 2 महाकाली पूजा - लोनावाला- 19. 12.82 17-21 3 परम पूज्य श्रीमाताजी के तीन पत्र 22 4 प्लूटो नक्षत्र पर रे हेरिस के विचार 26 5 माँ का प्रेम कवच 27 6 परम पूज्य श्रीमाताजी का प्रवचन 29. 3.75 34 7 परम पूज्य श्रीमाताजी का प्रवचन मुम्बई-30.3. 75 DHARMA RELIGION 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-3.txt चै त नय ल ह री प्रकाशक निर्मल इन्फोसिस्टम्ज एवं टेकनोलोजीज़ फ्रा. लि. मुख्य कार्यालय : प्लाट न. 8. चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड, कोठरुड पुणे - 411 029 मुद्रक अमरनाथ प्रेस प्रा. लि. W.H.S 2/47 कीर्ति नगर, औद्योगिक क्षेत्रा, नई दिल्ली 110015 मोबाइल : 9810452981, 25268673 सदस्यता के लिए कृपया निम्न पते पर लिखें: श्री जी.एल. अग्रवाल निर्मल इन्फोसिस्टम्ज एवं टेकनोलोजीज प्रा. लि. 222, देशबन्धु अपार्टमैंट, कालका जी नई दिल्ली-110 019 क फोन : 26216654, 26422054 आप अपने अनुभव, सुझाव, सहज सम्बन्ध लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ. पी. चान्दना जी-11-(463). ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली 110 034 दूरभाष 011-55356811 प्रातः 08.00 बजे से 09.30 बजे सायंः 08.30 बजे ये 10.30 बजे 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-4.txt दर सहस्रार पूजा इटली 45 1986 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज महान दिन है क्योंकि आज सोलहवाँ सहस्रार सहस्रार दिवस है अर्थात् (Coil) कुण्डल की उच्चतम् हुए ( बिना इसकी सच्चाई जाने)। उन्होंने सहस्ार अवस्था तक पहुँचने के लिए सोलह मनके या मस्तिष्क को सभी प्रकार के व्यर्थ के कार्यों के लिए सोलह क्रियाएं। अब ये पूर्ण है । श्री कृष्ण को उपयोग किया। उन्हें श्री कृष्ण जी की उस चेतावनी पूर्णावतार कहा जाता है क्योंकि उनकी सोलह का भी ज्ञान न था जिसमें उन्होंने कहा कि मानवीय कलाएं (पंखुड़ियां ) हैं तो अब हमारा प्रवेश एक चेतना को यादि आप उत्थान के अतिरिक्त किसी में एकत्र कर लिया, बिना इसके प्रति चेतन अन्य आयाम में होता है। पहला आयाम वो था अन्य कार्य के लिए उपयोग करते हैं तो आपका जिसमें हमारा आत्म-साक्षात्कार हुआ। पतन हो जाएगा। विकास प्रक्रिया में पशुओं को बहुत सी उन चीजों की चेतना नहीं होती जिनके बारे में मानव को चेतना उपयोग करके वे भौतिक पदार्थों को अपने हित में होती है जैसे पशु भौतिक पदार्थो (Matter) को उपयोग कर सकतें अपने लिए उपयोग नहीं कर सकते उन्हें अपने साक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् किया होता तो विषय में बिल्कुल चिन्ता भी नहीं होती। किसी पशु अत्यन्त भिन्न स्थिति होती क्योंकि आत्म साक्षात्कार को यदि आप दर्पण दिखाएं तो अपने प्रतिबिम्ब को प्राप्ति के पश्चात आपको चैतन्य लहरियों तथा चक्रों देखकर वह प्रतिक्रिया नहीं करता। मनुष्य बनने के का ज्ञान हो जाता है। इस नई चेतना द्वारा आप बाद अपनी चेतना द्वारा हमें उन बहुत सी चीजों का सभी गलत चीजों को छोड़ देते। परन्तु यें तो ऐसा ज्ञान हो जाता है जिनके विषय पशु होते हुए हम है जैसे किसी लालची व्यक्ति को थोड़ा सा धन अनभिज्ञ थे। मस्तिष्क से पशु ये नहीं समझ मिल जाए और वो सारा का सारा खर्च डाले ।अब सकता कि भौतिक पदार्थों को वह अपने उपयोग में इस समस्या ने आपके मस्तिष्क को जटिल बना पश्चिम में लोगों ने सोचा कि मस्तिष्क शक्ति का हैं । ऐसा यदि उन्होंने आत्म में 1 ले सकता है। दिया है। मानव रूप में भी आप सबको इस बात का ज्ञान न था कि आपके अंदर चक्र स्थापित हैं। आपकी हैं हमने स्वयं को ही मशीन बना लिया है । हमारे चेतना अभी भी चक्रों की अचेतन कार्यशैली के अन्दर भावनाएं नहीं रही और प्राकृतिक रूप से या माध्यम से तथा मस्तिष्क की चेतन कार्यशैली के स्वाभाविक रूप से हम किसी से भी संबंध नहीं रख माध्यम से कार्य कर रही थी। स्वचालित नाड़ी सकते। मानवीय चेतना में आपने अन्य लोगों से प्रणाली को आप न कभी अपनी नस-नाड़ियों पर तथा अपने आप से जुड़े रहना सीखा था परन्तु इस महसूस कर पाए थे और न ही इनकी कार्यशैली को अहं चालित विचारधारा ने आपको स्वाभाविक, सच्चे जिस प्रकार से हम मशीनों का उपयोग कर रहे थे समझ पाए थे। आप ये भी न जान पाए कि अन्य जीवन से अलग कर दिया है और हम अस्वाभविक चीजों का प्रभाव आप पर कैसा पड़ रहा है। मानव हो गए हैं। जैसे आजकल अक्खड़ और पाखंडी को दी हुई स्वतंत्रता के परिणाम-स्वरूप उसने होने का फैशन हो गया है। ये कार्य आपके उत्थान सभी प्रकार के विचारों को अपने मस्तिष्क में,अपने एवं विकास प्रक्रिया के विरूद्ध है। सामूहिक सूझ-बूझ 1 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-5.txt मार्च अप्रैल, 2005 चैतन्य लहरी के आधार पर जो भी संस्थाएं आपने बनाई हैं वो भी में एक धारणा बन गई कि वह आर्य है और श्रेष्ठतम बनावटी हैं। तत्पश्चात् एक आंदोलन चलाया गया प्रजाति का है। पूरे विश्व को नष्ट कर देने में भी उसे कोई हिचकिचाहट न थी। धर्म के क्षेत्र में भी की नकल करने जैसा है स्वाभाविक का अर्थ ये ऐसा ही है सभी धर्मों को धारणाओं के प्यालों में भर दिया गया। सर्वप्रथम इन लोगों ने राजनैतिक कि हमें स्वाभाविक बनना है ये भी अस्वाभाविक बिल्कुल नहीं है कि हम बनावटी बन जाएं, इसका अर्थ है विकसित होना (To Evolve)। सृष्टि का अर्थ ही विकसित होना है। प्रभुत्व पा लेने का प्रयत्न किया। मैने जब अपना जीवन शुरु किया तो अत्यन्त अक्खड़पने की धारणा आपने आसानी से स्वीकार जटिल सहस्रार देखने को मिले। अपनी चेतना के कर ली क्योंकि आपमें मस्तिष्क है और अपने मार्ग अन्दर रहते हुए जितना मैने उन जटिलताओं को में आने वाली हर चीज़ को आप स्वीकार कर लेते सुलझाने का प्रयत्न किया उतना ही ये कार्य कठिन हैं। आप इतने अस्वाभाविक हो जाते हैं कि स्वयं होता चला गया क्योंकि आप यदि मेरी आयु को को महसूस करने के लिए भी आपको किसी न देखें, तो आप देख सकते हैं कि पचास सालों में किसी संवेदना की आवश्यकता पड़ती है। जीवन मानव कितना जटिल हो गया है ! सहस्रार खोलने के हर कदम पर धारणात्मक अस्वाभाविक सूझ-बूझ के पश्चात् जब मैं पश्चिम में आई तो उन सोलह है, उदाहरण के रूप में यौन सम्बन्ध अत्यन्त सालों में मैने देखा कि लोग अब सुधरने के योग्य स्वाभाविक चीज़ है परन्तु आप इसे इतना अस्वाभाविक नहीं रहे। अब आप लोगों के उत्थान के लिए बना देते हैं कि अब आपके मस्तिष्क में भी इसी का प्रबन्ध कर दिया गया है । स्थान है। इस प्रकार आपने न केवल अपने आप देख सकते हैं कि आज जिस कार्यक्रम के मूलाधार में श्री गणेश को सुप्त कर दिया है बल्कि लिए पाँच सौ लोग आएं हैं। दो सप्ताह बाद वहाँ अपने मस्तिष्क में महागणेश को भी सुला दिया है। कोई दिखाई नहीं पड़ता क्योंकि जब उत्थान घटित यहाँ तक कि कला भी निर्धारित नियमों के होता है तो कुण्डलिनी अहं को बाहर ढकेलती है अनुसार होनी चाहिए। इसलिए आप सभी की और साधक को सत्य के समीप लाती है। परन्तु पुनः वही अहम्, जो कि अत्यन्त तेज रफतार से बढ़ पहुँचते हैं कि कला अत्यन्त नीरस है। जैसे गन्ने से रहा होता है कुण्डलिनी की गति को नियंत्रित करके पूरे सिर को ढक लेता है। तब यह व्यक्ति को मशवरा देता है कि किस प्रकार तुम उस दिव्य तुम्हें शराब छोड़नी पड़ेगी, सारा पागलपन, जीवन का आनन्द त्यागना पड़ेगा और पागलू होने की पूर्ण स्वतंत्रता से हाथ धोने पड़ेंगे। उनके मस्तिष्क में ये बात भरने के लिए आपको वास्तव में कुछ अटपटा करना पड़ता है। उदाहरण के रूप में खाली टीनो को लैम्प बताकर बेचने वाला कोई व्यक्ति अमीर हों गया है। ये सारी भत्त्सना करते हैं और अंततः इस परिणाम पर जब पूरा रस निचुड़ जाता है तो बचा हुआ भाग कला हैं। जो मस्तिष्क हृदय का पोषण नहीं करता वह तो रोबोट की तरह से पूर्णतः बनावटी मस्तिष्क है। और लोग रोबोट की तरह से बन गए हैं कोई भी कुशाग्र बृद्धि मानव रोबोट को चला सकता है। आपमें क्योंकि अपना दिल नहीं है अतः मस्तिष्क का नियंत्रण भी कोई ऐसा व्यक्ति करेगा जिसमें आपसे अधिक शक्तिशाली मस्तिष्क हो। ये सभी धारणाएं विनाशकारी हैं । जैसे हिटलर के मस्तिष्क जीवन में जा सकते हो. | 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-6.txt मार्य -अप्रैल, 2005 चैतन्य लहरी चीजें जो यहाँ पर स्वाभाविक सौन्दर्य या प्राकृतिक तो सहजयोगियों की चेतना ज़िसमें आप चक्रों और चैतन्यलहरियों का ज्ञान है, आप जानते हैं कि उन्हें परिष्कृत हैं के करीब आनन्द (Sophisticated) मानकर स्वीकार कर लिया किस प्रकार अन्य लोगों से व्यवहार करना है. फिर जाता है। दूसरी ओर आसुरी विद्या ने नियंत्रण भी इस सारे ज्ञान को आप अपने निजी लाभ के कर लिया है । श्री ने गीता के पहले अध्याय लिए उपयोग करते हैं । इस प्रकार इस नई चेतना में चेतावनी दी है कि यदि आसुरी विद्या व्याप्त हो में होते हुए भी आप पर भूतकाल का साया बना जाएगी तो शुद्ध विद्या आसुरी विद्या की गति का रहता है। पशुओं को तैरने का ज्ञान स्वाभाविक रूप मुकाबला न कर पाएगी। सहजयोगियों में बहस छिड़ गई कि मेरा फोटो मनुष्यों को सीखना पड़ता है। पशुओं की सारी बैठक में होना चाहिए या नहीं। परन्तु आप यदि तकनीक मानव भूल गया है और उसने मनुष्यों की उनसे कहें कि अपने नाखुनों को काला रंग लें, तकनीके अपना ली हैं परन्तु सहजयोग में इस अपने चेहरों पर काला रंग लें और काले कपड़े जीवन में आपने आत्मसाक्षात्कार पाया है और इसी पहन लें तो ये कार्य वे तुरन्त कर लेंगे इस जीवन में आपने उन्नत होना है तथा इसी जीवन में स्थिति में जबकि हम सहजयोगी हैं अब भी हम उच्चतम स्थिति को प्राप्त करना है। अपने परमेश्वरी जीवन (Godly life) से शर्मिन्दा हैं। हिप्पी, सड़ैल (Punks) और मूर्ख बनने के विध्वंसक धारणाएं उगल रहे हैं । आप लोगों ने ही लिए उन लोगों ने अपना सारा जीवन, समय और सबसे तेजी से बाहर निकलना है यद्यपि आप ये पैसा लगा दिया, अपनी वेशभूषा, अपने परिवार समझते हैं कि आपकी चेतना सबसे भिन्न है फिर कृष्ण जैसे अमेरिका के से होता है उन्हें तैरना सीखना नहीं पड़ता, परन्तु समय बहुत कम है और पृष्ठभूमि बहुत अंधेरी है। आप ऐसे लोगों से घिरे हुए हैं जो हर क्षण I अपनी जीवन शैली को बदलकर वे पूरी तरह से भी आपके अन्दर एक प्रकार का आलस्य सहज-योग ऐसे जीवन के प्रति समर्पित हो गए। परन्तु को वैसे रवीकार नहीं करता जैसे करना चाहिए कि सहजयोगियों को जब सहजयोग की दिव्यता पर मैने आज सहजयोग के लिए क्या किया। परन्तु विश्वास हो जाता है फिर भी वे उसके विषय में आप तो अब भी अपनी नौकरियाँ, धनार्जन और शर्म करते हैं। अब आप जानते हैं कि आपकी माँ सहजयोग के लिए अर्थहीन लोगों से अपने आपसे कोई पैसा नहीं लेतीं, बल्कि वो तो जेब से सम्बन्धों में अत्यन्त व्यस्त हैं। हमें उस बिन्दु तक खर्चती हैं। उससे (सहजयोग) से आपको लाभ उन्नत होने का एक ऐसा पुरजोर प्रयत्न करना हुआ है परन्तु जब देने की (सहजयोग) बात होगा कि जो ज्ञान हमें प्राप्त है, जिस पर हम ऐसी पृष्ठभूमि विश्वास करते हैं उसी के अनुसार कार्य करें और के प्रकाश में आ रहे उसी से एकरूप हो जाएं। विचारों (Concepts) हैं। परन्तु आप उसे लपकना नहीं चाहते। शनै:शनैः से आप ऐसा नहीं कर पाते यही समस्या है। आप उसके लिए समय लेना चाहते हैं। आपकी उदाहरण के रूप में एक कट्टरपंथी ये मानता है गति इतनी धीमी है कि हो सकता है आप अपना कि अपने धर्म में वह फला-फला कार्य कर सकता है और वह ऐसा करेगा परन्तु धारणाएं वास्तविकता ददा आती है तो समी को शर्म आती है ! से आप परमात्मा की कृपा र अवसर खो दें। बाम स 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-7.txt मार्च - अप्रैल, 2005 चैतन्य लहरी नहीं होतीं। धारणाओं ने न तो कुछ प्राप्त करके इस पर लज्जा नहीं आती और कुछ समय पश्चात् दिखाया है और न ही कोई महत्वपूर्ण लाभ पहुँचाया आपमें उन चक्रों की चेतना की समाप्त हो जाती है, फिर भी लोग इनमें फंसे हम जब स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए लड़ रहे सूक्ष्म हो गए हैं परन्तु अपनी चेतना में अभी भी आप थे तो मेरे पिताजी ने अपनी सारी सम्पत्ति त्याग दी, सूक्ष्म नहीं हैं और जो लोग आत्म साक्षात्कारी नहीं हुए हैं। है। आत्म साक्षात्कार पाने का अर्थ है कि अब आप अपनी वकालत त्याग दी और परिवार में ग्यारह है उनसे भी कहीं अधिक आप बहुत सी व्यर्थ चीजों बच्चों समेत जहाँ हम महलों में रहते थे उन्हें त्याग को सच्चा मान लेते हैं उदारहण के रूप में । ।। में कर और वर्षों तक हम झोंपड़ियों में रहने लगे। आवश्यकता पड़ने पर प्रायः हममें चैतन्य लहरियाँ स्थूल स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए हम कुछ भी तक नहीं होतीं या कभी कभी मशीन की तरह से करते हैं। परन्तु सूक्ष्म स्वतंत्रता के लिए यंत्रवत हम बंधन देने लगते हैं। अतः अभी तक भी सहज-योगियों को हर सम्भव प्रयत्न करना चाहिए। आप अपने चक्रों के प्रति चेतन नहीं हैं। अपना पहली चीज़ है आत्म-साक्षात्कार पाना और अपने मस्तिष्क जब आप इन चक्रों पर डालते हैं तो आप चेतन मस्तिष्क में हर समय इस बारे में सचेत रहना कि बाकि सभी मनुष्यों से आप कहीं उच्च हैं। पूरी तन्त्र पर अभी भी आप चेतन नहीं हैं। यही कारण थोड़े से चेतन हो उठते हैं। परन्तु अपने मध्य नाड़ी मानवता का उद्घार आप पर निर्भर है। आप ही है कि आप ये नहीं समझ पाते कि किस समय सृजन के लक्ष्य को पूर्ण करेंगे। अतः सर्वप्रथम आपको अपनी चेतना में चेतन होना होगा कि आप विशेष पर आपने कौन सा कार्य करना है। निर्विकल्प अवस्था तक उन्नत हुए बिना आप आगे न बढ़ इतने महत्वपूर्ण हैं और इसी कारण से आपको सकेंगे आत्म-साक्षात्कार दिया जाता है। अपने अहं और उसका मुझे पूरा ज्ञान है। जहाँ भी मैं चाहूँ किसी भी बंधनों में फँसकर आप कैसे रह सकते हैं ? बन्धन शक्ति को संचालन कर सकती हूँ। मैं यदि चाहूँ तो इस प्रकार के होते हैं.. मान लो आप इसाई धर्म किसी भी नकारात्मकता को आत्म- सात कर सकती से आए हैं तो आप थोड़ा सा इसाई धर्म सहजयोग हूँ और यदि न चाहूँ तो ये कार्य नहीं करती। आप में ले आते हैं या यदि आप हिन्दू हैं तो हिन्दू धर्म चाहे मुझसे हजारों मील दूर हों मैं आप सभी के का कुछ तत्व आप सहजयोग में लाना चाहते हैं। विषय में जानती हूँ। आपके सांसारिक नाम चाहे मैं इन सभी धर्मों का सार तत्व सहजयोग में है परन्तु न जानती होऊं, परन्तु अपने अस्तित्व के अंग हम केवल स्थूल मूर्खता ही ले पाते हैं ! हमारे प्रत्यंग के रूप में मैं आपको जानती हूँ। मैं साधारण उदाहरण के रूप में मैं जो भी करती हूँ मानव की तरह से व्यवहार कर सकती हूँ, पूर्णतः आप लोगों की तरह, आप ही की तरह से वृद्ध कचरे (Dirt) के समान सहस्रार पर ये सारी चीजें हैं जिन्हें झटक दिया जाना चाहिए । यद्यपि अब आपको चक्रों का ज्ञान है और इनके होना चश्मा पहनना, और वो सभी कार्य करना जो प्रति आप चेतन हैं फिर भी आप इनहें स्वच्छ नहीं रखते। सर्वसाधारण मनुष्यों के पास वस्त्र और घर में, अचेतन अवस्था में नहीं, मैने ये भूमिका स्वीकार होते हैं जिन्हें वे स्वच्छ रखने का प्रयत्न करते हैं की है। मेरे लिए अचेतन कुछ भी नहीं है। अतः परन्तु आपके चक्र यदि खराब होते हैं तो आपको यदि आप अपने कार्यों के प्रति चेतन होना चाहते हैं मुझे हर तरह से मानव दर्शाएं। पूर्ण चेतन अवस्था 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-8.txt मार्च - अप्रैल, 2005 वैतन्य लहरी तो आपको इनके विषय में अत्यन्त सावधान होना होगा। पहलीं चीज़ जो आपने प्राप्त की है वह है शान्ति परन्तु अब भी मैं पाती हैूँ कि जो शान्ति लेने से चैतन्य-लहरियाँ नहीं बहतीं। आपका नाम लिए जाने पर चैतन्य लहरियाँ क्यों नहीं बहने लगती ? और आपको तो एक विशेष लाभ भी प्राप्त है क्योंकि आदिशक्ति आपके साथ-साथ है, आपके आनन्द बन जानी चाहिए वह झगड़े का रूप धारण सम्मुख हैं। ये सब चीजें उन्हें बताने के लिए कोई न था परन्तु आप तो इस कृपा को अपना अधिकार मान बैठे हैं । अभिव्यक्ति करते हुए जब हम कुछ कहते हैं तो कर लेती है। सत्य एक है। सत्य के विषय में आप बहस नहीं कर सकते। यह एकरूप है। एक दूसरे से यह झगड़ा नहीं करना। अपनी उंगलियों के विषय में हम हर समय चेतन नहीं होते परन्तु जब भी हमें कोई चीज़ पकड़नी होती है तो सारी उंगलियाँ इक्ट्ठी हो जाती हैं। अत: मस्तिष्क के ाक क्या हम स्वाभाविक हैं अर्थात् क्या हम हृदय से वो बात कह रहें हैं ? मैं चाहती हूँ कि आप यह चेतना प्राप्त करें कि " मैं यह कार्य हृरदय से कर रहा हूँ। सहजयोग में कुछ ऐसे लोग हैं जो परिश्रम करते हैं और कुछ लोगों ने इसे अधिकार मान लिया है। वो सहजयोग में कोई मदद नहीं करना चाहते, हर चीज़़ उन्हें बनी वनाई चाहिए। उनका ये आचरण दर्शाता है कि वे आनन्द प्राप्ति की अपनी शक्तियों के प्रति चेतन नहीं हैं। अपने हृदय से यदि वे कार्य करेंगे तो कभी भी उन्हें अपने प्रयत्न और उपलब्धि का एहसास न होगा। संतोष का एहसास (Sense of fulfilment) सारी समस्याओं को दूर कर देगा। विशेष रूप से बाई दिशुद्धि की समस्याओं को । दूसरी अवस्था वह होगी जब आप किसी भी कार्य को करते हुए उसके विषय में चेतन होंगे, उसमें कोई गलती न होगी कहीं जब आपको लगेगा कि गलती कर दी है तो वह भी ठीक साबित भाग भी. बनाया जाना चाहिए। यही उत्क्रान्ति है। किसी इसका अचेतन हिस्सा भी चेतन बहुत एक धारणा पर अड़े रहना उत्क्रान्ति के विरुद्ध है। सच्चाई पूर्वक कार्य करना आपको सीखना होगा सर्वसाधारण मानव के लिए. हो सकता है सहजयोगियों के लिए. चमत्कार हों परन्तु मेरे लिए चमत्कार का कोई अर्थ नहीं क्योंकि मैं जानती हूँ कि ये क्या है। अर्धचेतना की स्थिति से ऊपर उठकर आपको देखना होगा कि आप क्या कर रहे हैं। परस्पर सम्बन्धों की पूरी प्रणाली का परिवर्तित होना आवश्यक है। ऐसा करना अत्यन्त नहत्वपूर्ण है क्योंकि मानवीय प्रयत्न आपको कहीं नहीं पहुँचा पाते। आपको उत्क्रान्ति प्राप्त करनी होगी। कुछ लोग सहजयोग का अनुचित लाभ उठाते हैं और फिर वे गायब हो जाते हैं। परन्तु अधिकतर लोग जानते हैं कि उन्हें जो प्राप्त हुआ है उसके प्रति उन्होंने चेतन होना है। अतः हम होगी। उदाहरण के रूप में अपनी घड़ी का समय ठीक करने के लिए आज मैने उसका पेच बाहर को कह सकते हैं कि हमें आत्म-ज्ञान प्राप्त हो गया खींचा। ये कार्य मैंने अंजाने में किया फिर भी चेतन अवस्था में किया क्योंकि घडी तो रूक गई पर मैं जानती थी कि यहाँ किस वक्त पहुँचना है। अतः जानबूझकर मैंने स्वयं को स्वयं के विरुद्ध कर लिया। यदि घड़ी बंद न हुई होती तो मैं यहाँ पर अभी तक हमें आत्म चेतना प्राप्त नहीं है परन्तु हुई। उदाहरण के रूप में किसी महान सन्त का नाम लेते ही आपमें चैतन्य लहरियाँ बहने लगती हैं। आप ये भी जानते हैं कि क्यों, क्योंकि वह एक महान सन्त हैं परन्तु आप सहजयोगियों का नाम 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-9.txt मार्च -अप्रैल, 2005 चैतन्य लहरी 8 समय से पहले पहुँच जाती, परन्तु वह मेरे आने का समय न होता। इसलिए घड़ी को बन्द रखने के कि आप भूतकाल की सभी अच्छाइयों को भी भूल लिए मुझे उसका पेच खींचना पड़ा। तो जो भी जाएं। भूतकाल को भूल जाने का अभिप्राय ये है शरारत आप करें, आपको उसकी समझ हो और कि बीता हुआ समय आप पर काबू न पा ले। प्रेम भूतकाल को भूल जाइए। इसका अर्थ ये नहीं है तब आप ये शरारत अपने ही साथ कर सकते हैं से परिपूर्ण सहज और सीधा मस्तिष्क मेरी बात को और फिर इसका नाटक भी बना सकते हैं। परन्तु ठीक प्रकार से समझ सकता है। इस जटिल ऐसी स्थिति अभी बहुत दूर है। जिस अवस्था में मस्तिष्क का ठीक किया जाना आवश्यक है और अब हम हैं उसमें हम बहुत सी गलतियाँ करते हैं इसका सर्वोत्तम उपाय ये है कि आप सोचना बन्द कर दें। सोचना बन्द करके आपको लगता है कि आप कोई कार्य न कर सकेंगे। उदाहरण के रूप में मेरे दिए हुए प्रवचन के विषय में भी आप केवल सोचते रहते हैं। इसमें से क्या आप मेरी सोच को सुन सकते हैं ? इन बत्तियों के बारे में सोचने से इनमें प्रकाश नहीं आ सकता। सोचते रहना आलसी व्यक्ति का पहनावा है जो काम से बचने के लिए क्योंकि हम आत्मा के प्रति चेतन नहीं होते। परन्तु उत्थान के मामले में क्या हम सावधान होते हैं या इसे हम अधिकार मान लेते हैं कि श्रीमाताजी हमें उस स्थिति तक ले जाएंगी ? ऐसा करना बचकानापन है। अपने उत्थान के मामले में आपको परिपक्व होना है। प्रतिदिन अपना सामना करें। वास्तव में देखें कि दुनियावी चिन्ताओं में आप कितना समय खर्च करते हैं और अपने उत्थान को पहना जाता है। ये चालाकी है, पलायन है। कितना समय देते हैं। क्या आपने सभी कुछ, अपनी सहजयोग के विषय में बहस मुबाहिसा न करें। सभी चिन्ताएं सर्वशक्तिमान परमात्मा पर छोड़ दी अपने अगुआओं से बहस न करें, चाहे आप उसकी हैं? क्या आप अपने पूर्वबंधनों से पूरी तरह मुक्त पत्नी हों फिर भी उससे बहस न करें सहजयोग हो गए हैं, सभी मूर्खताओं को त्यागकर क्या आप पूरी तरह बाहर निकल आए हैं ? ये भी देखें कि मैं प्रभावित करने का प्रयत्न न करें। इसमें उनका किस प्रकार से अन्य सहजयोगियों से बात करता लेना-देना नहीं। ऐसे मामले में पत्नियों को हूँ और किस प्रकार उनसे सम्बंधित हूँ । ये देखकर मुझे हैरानी होती है कि कोई भी संस्था तथा अपने पतियों का पोषण करें मैं सोचती व्यक्ति जो सहजयोगी नहीं है सहजयोगी पर हूँ कि स्त्री रूप में अवतरित होना मेरे लिए बहुत आक्रमण करे तो सहजयोगियों का समूह उस बाहरी व्यक्ति का पक्ष लेता है। कई बार सहजयोगी अच्छे लोगों की अपेक्षा नकारात्मक लोगों पर में पत्नियाँ अपने पतियों को किसी भी मामलें पर कुछ चाहिए कि अपने हार्दिक प्रेम से, मस्तिष्क से नहीं, महान बात है क्योंकि इस रूप में मैं अपने हृदय, प्रेम की भावनाओं, उनकी कार्य-शैली तथा अपने प्रेम की लीला का आनन्द लेती हूँ। ये इतनी महान अधिक ध्यान देते हैं। आपको सकारात्मक लोगों के चीज़ है कि कोई अन्य अवतरण इस प्रकार आनन्द नहीं ले सका जैसे मैं ले सकी। महिलाओं को यदि हृदय की देख-भाल करनी पड़े तो उन्हें स्वयं को अपमानित नहीं महसूस करना चाहिए । साथ जुड़े रहना चाहिए। उनमें यह बहुत सूक्ष्म अहं है। परन्तु बिगड़े हुए कम्प्यूटर की तरह से अपने जटिल मस्तिष्क से आप मेरी कही हुई बात का गलत अर्थ समझते हैं। जैसे मैं कहती हूँ कि अपने एक प्रकार से वे अत्यन्त उच्च स्थिति में हैं क्योंकि 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-10.txt मार्च -अप्रैल, 2005 चैतन्य लहरी ये तादात्म्यं मेरे शरीर से बाहर रहते हुए प्राप्त हो गया है। जबकि संतों पैगम्बरों और योगियों को इस प्रकार चे बिना सोचे कार्य कर सकती हैं, हृदय के बिना तो कार्य किया ही नहीं जा सकता। 1 व्यक्ति को बहस नहीं करनी चाहिए। स्त्रियाँ यदि बहुत अधिक बहस करने वाली हों तो पुरुष बहरे हो जाते हैं। महिलाओं की बात को वो सुनते ही नहीं । महिलाएं यदि बहुत अधिक आक्रामक हों तो पुरुष बिल्कुल मौन हो जाते हैं। अतः आप लोगों को इस उच्चतम कार्य को करने के लिए किस प्रकार आप प्रकार बर्ताव करना चाहिए कि पुरुष पुरुष हों और लोगों को चुना गया है। आलस्य के लिए अब कोई महिलाएं महिलाएं। आपको चाहिए कि पूर्ण पुरुष समय शेष नहीं रहा। आपको उठना होगा, जागना या पूर्ण महिला बनें। तब आप मजा ले पाएंगे। अपनी चेतना में हमें चेतन होना है कि कहाँ निर्विकल्प में छलांग लगाएंगे। लेकिन प्रयत्न द्वारा तक हमने अपने पारस्परिक सम्बन्धों की चेतना ही आप वहाँ रुक पाएंगे अन्यथा पुनः आप नीचे की प्राप्त की है अर्थात् विराट की सामूहिक चेतना, ओर फिसल जाएंगे। इस प्रवचन को बार-बार सुनें मस्तिष्क यानि सहस्रार की सामूहिक चेतना। सैद्धान्तिक रूप से सहसरार विष्णु तत्व है परन्तु वहाँ ज्ञान होना चाहिए कि प्रतिदिन आप कितना आगे पर शासक देवता श्री माताजी निर्मला देवी हैं। तो बढ़ रहे हैं। आप घटित हुए इस सुन्दर सामंजस्य को देख सकते हैं। विष्णु की सभी शक्तियों को शासक देवी होनी चाहिए थी परन्तु हम आज पूजा कर रहे हैं। के अनुरूप, उनके चरण कमलों पर, उनके अनुसार कार्य करना पड़ता है। अतः श्री विष्णु की चेतना मानव के पांचांग से कुछ लेना देना नहीं। कुछ पूर्णतः शासक देवी के हाथ में है। जो कुछ भी पांचांगों के अनुसार मुझे दो हजार वर्ष बाद अवरतरित घटित हो रहा है उसे घटित होने दें। अपने होना चाहिए था और कुछ मानते हैं कि इस रूप में सहस्रार इस देवी को समर्पित करें। देवी क्योंकि मुझे दो हजार वर्ष पूर्व आना चाहिए था तो पांचांग आपके बीच में है इसलिए ऐसा कर पाना बहुत अपनी जगह ठीक है । तादात्म्य मृत्यु पश्चात् मेरे शरीर के अन्दर आने पर प्राप्त हुआ। अतः समय सीमा को समझें, अपनी महानता को समझे और इस बात को भी कि सृष्टि के इस होगा। आज वो दिन है जब मुझे आशा है कि आप (पढ़ें), इसके विषय में सोचे अपने बारे में आपको आज सहस्रार का विशेष दिन है। पूजा कल अतः हमें समझना है कि परमात्मा के पांचांग का आप लोग न तो रोबोट हैं न ही मशीनें। विकास में आप सहजयोगियों ने ही इस देवी प्रणाली के माध्यम से आप विकसित हुए हैं और विकास प्रणाली के माध्यम से ही आपने श्रेष्ठतम आसान है। आपके अपने सहार हैं और इस आधुनिक युग को देखा है। ना उपलब्धि प्राप्त करनी है। आप ही ने परिणाम दिखाने हैं मैं जितना चाहे आपके सहस्रार को प्रकाशित कर दूँ परन्तु पुनः यह लड़खड़ा जाएगा। अतः आपको समझना है कि जिन बुलंदियों पर आपको लाया गया है उन्हें आप ही ने अपनी पूर्ण सालोक्यं परमात्मा के दर्शन। सामीप्यं परमात्मा का सामीप्य । सानिध्यं परमात्मा का साथ । परन्तु आपको तो तादात्म्यं अर्थात् परमात्मा की एकरूपता भी प्राप्त हो गई है, यह किसी भी योगी सन्त या पैगम्बर की धारणा नहीं है। आपको है । शक्ति और क्रियाशीलता द्वारा बनाए रखना 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-11.txt मार्च - अप्रैल, 2005 मैतन्य लहरी 10 की উ का म लक प्रवचन आपकी माँ की चिन्ता है इस बात बन जाना चाहिए। यदि आप इसे वहाँ (सहस्रार) को आप समझ सकते हैं परन्तु यह आपकी चेतना बनाए रखें तो ऐसा हो सकता है। परमात्मा आपको धन्य करें। 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-12.txt महाकाली पूजा लोनावाला 19. दिसम्बर, 82 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् पहली योग के इस महान देश में आप सब सहज-योगियों का स्वागत है। आज सर्वप्रथम बाधा जो आपके सम्मुख आती है बो ये हैं कि आप अपने अन्तस में हमें अपनी इस इच्छा को स्थापित अपने परिवार के विषय में सोचने लगते हैं. "कि करना है कि हम साधक हैं। तथा हमें पूर्ण मेरी माँ को जागृति नहीं प्राप्त हुई. मेरे पिताजी को उत्क्रान्ति एवं परिपक्वता प्राप्त करनी है । आज की जागृति नहीं हुई, मेरी पत्नी को जागृति नहीं हुई, मेरे बच्चों को जागृति नहीं हुई।" आपको ये समझ पूरा से पूजा पूरे ब्रह्माण्ड के लिए है। इस इच्छा ब्रह्माण्ड का ज्योतिर्मय होना चाहिए। आपकी लेना चाहिए कि ये सारे सम्बन्ध सांसारिक हैं। इच्छा इतनी गहन होनी चाहिए कि इससे आत्मा संस्कृत भाषा में इन्हें लौकिक कहा जाता है, ये प्राप्ति की शुद्ध इच्छा, महाकाली शक्ति से निकलने अलौकिक नहीं हैं, ये सांसारिक सम्बन्धों से परे नहीं वाली पावन चैतन्य-लहरियाँ बहनी चाहिएं। यही हैं। सांसारिक सम्बन्ध हैं। सारे मोह सांसारिक हैं । सच्ची इच्छा है। बाकी सभी इच्छाएं मृगतॄष्णा सम इस सांसारिक माया में यदि आप फँसे रहे, क्योंकि हैं। आप लोग विशेषरूप से परमात्मा द्वारा चुने गए खिलवाड़ करने देती हैं, तो आप इसमें किसी भी हैं, सर्वप्रथम इस इच्छा की अभिव्यक्ति करने के सीमा तक जा सकते हैं। लोग मेरे पास अपने लिए और फिर पावनता की इस गहन इच्छा को सम्बंधियों माता-पिता आदि को लेकर आते हैं और प्राप्त करने के लिए परमात्मा ने आप लोगों को अन्ततः उन्हें पता चलता है कि उन्होंने ऐसा करके विशेष रूप से चुना है। आपने पूरे विश्व को पावन बहुत गलत किया। उन लोगों ने अपने जीवन के करना है, केवल साधकों को ही नहीं उन लोगों बहुत से दिन उन लोगों पर बर्बाद कर दिए जिनमें को भी जो साधक नहीं हैं। इस पूरे ब्रहमाण्ड के श्रीमाताजी का चित्त प्राप्त करने की बिल्कुल भी चहूँ ओर आपने अन्तिम लक्ष्य, आत्मा-प्राप्ति की योग्यता नहीं है। इच्छा, के परिमल (Aura) का सृजन करना है। नाग आप जानते हैं कि महामाया शक्ति आपको ऐसा इस बात को आप जितना जल्दी महसूस कर लें इच्छा के बिना इस ब्रहमाण्ड का अस्तित्व ही उतना अच्छा है कि इस बात से कोई अन्तर नहीं नहीं होता। आदिशक्ति (The Holy Ghost) ही पड़ता कि आपमें तो यह इच्छा है परन्तु आपके इन परमात्मा की इच्छा हैं। वे सर्व्याप्त शक्ति हैं. वही तथाकथित सांसारिक सम्बंधियों में नहीं है। हमारे अंतःस्थित कुण्डलिनी हैं। कृण्डलिनी की ईसा-मसीह को जब कहा गया कि उनके भाई-बहन कौन केवल एकमात्र इच्छा है- ये हैं आत्मा बनना। बाहर प्रतीक्षा कर रहें हैं तो उन्होंने कहा, किसी अन्य चीज़ की यदि आप इच्छा करें तो मेरे भाई और कौन मेरी बहनें" ? अतः व्यक्ति को ं । कुण्डलिनी नहीं उड़ती। जब इसे पता लग जाता ये बात महसूस करनी है कि जो लोग हर समय है कि सामने बैठे साधक के माध्यम से ये इच्छा अपनी पारिवारिक समस्याओं पूर्ण होने वाली है तभी ये जागृत होती हैं। आपमें मेरा ध्यानाकर्षण भी करना चाहते हैं तो आप जान यदि इच्छा न हो तो कोई इसे जगा नहीं सकता। ले कि मैं उनके साथ केवल खिलवाड़ कर रही हूँ। सहजयोगी को कभी अपनी इच्छा अन्य लोगों पर आपके लिए ये चीजें मूल्यहीन हैं। उत्थान के लिए नहीं थोपनी चाहिए। में फॅसे रहते हैं और पहली आवश्यकता ये है कि आप कोई इच्छा न 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-13.txt मार्च -अप्रैल 2005 चैतन्य लहरी 12 करें। अपने सगे-संबंधियों में शुद्ध इच्छा को न सहजयोग में आपको अपनी इच्छा शुद्ध इच्छा बना खोजें। महाकाली शक्ति की स्थापना का यह लेनी चाहिए। आपको पहला सिद्धांत है। भारत में, जहाँ लोग विशेष रूप होगा. परन्तु जो लोग अपने परिवारों के मोह में फँसे से अपने परिवारों में फँसे हुए हैं. यह बहुत बड़ी हैं, उनसे बंधे हुए हैं उन्हें ये देखना होगा कि समस्या है। आप यदि एक व्यक्ति को कहीं वे सहजयोग को अपने किसी सम्बंधी पर थोप आत्म-साक्षात्कार देते हैं तो यह देखकर हैरान हो तो नहीं रहे हैं। कम से कम उन्हें मुझ पर तो जाते हैं कि उसके सभी सगे-सम्बंधी तो भूतों की बिल्कुल न थोपें । बहुत सी चीजों में से निकलना अब हमारे अन्दर ये इच्छा, जो कि महाकाली एक बहुत बड़ी टोली है। एक व्यक्ति को आत्म साक्षात्कार देकर आप मुसीबत में फँस जाते शक्ति है और जो अभिव्यक्त हो रही है, बहुत सी हैं। मुझे सताने के लिए, मेरी शक्ति का ह्रास करने विधियों से हमारे पास आती है । जैसा मैने आपको के लिए धीरे-धीरे ये सभी भूत घुसते चले आते हैं। बताया आत्म-साक्षात्कार के पश्चात् सहजयोगियों और ये किसी काम के नहीं । यह समझने के लिए में यह अपने सम्बंधियों के लिए कुछ करने की कि ऐसा होना शुभ नहीं है, आपके साथ भी यह इच्छा के रूप में ये चीज घटित होनी चाहिए। आप यदि अपना समय होती है कि अपने बीमार सम्बंधियों को ठीक करने आती है हममें दूसरी इच्छा बरबाद करना चाहते हैं तो मैं आपको आपका समय का प्रयत्न करें |यह दूसरी इच्छा है। आप अपने बर्बाद करने की आज्ञा दूँगी। परन्तु यदि आप अन्दर देखें तो आप पाएंगे कि आपमें से तीव्रता से उत्क्रान्ति प्राप्त करना चाहते हैं तो लोगों को यह इच्छा हुई। अतः कुष्ठ रोग से लेकर सर्वप्रथम व्यक्ति को याद रखना है कि ये सम्बंध तो के सर्दी, छीकें आदि छोटी-छोटी बीमारियों को पूर्णतः सांसारिक हैं और ये आपकी शुद्ध इच्छा नहीं लेकर भी वो सोचते हैं कि अपने सम्बंधियों को हैं। अतः अपनी शुद्ध इच्छा को सांसारिक इच्छा से सारी चिन्ताओं को मेरे सम्मुख लाना चाहते हैं। अलग करें इसका ये अर्थ बिल्कुल भी नहीं है कि ऐसी छोटी-छोटी चीजों को भी जैसे गर्भ या छीकें आप अपना परिवार त्याग दें, अपनी माँ को त्याग आदि जो कि अल्यन्त स्वाभाविक हैं. फिर भी उन्हें दें या बहन को त्याग दें। कुछ भी नहीं। साक्षी रूप वे मेरे चित्त में डालना चाहते हैं। मैं कहती हैँ, से उन्हें देखें, उसी तरह से जैसे आप किसी अन्य है तो इस प्रकार व्यक्ति को देखते हैं और स्वयं परखें कि क्या बहुत से श्रीमाताजी के पास ले जाएं। अपने परिवार की 1 'ऐसा करते रहो. अगर सम्भव इनका समाधान करने का प्रयत्न करो परन्तु वास्तव में उनमे उत्क्रान्ति प्राप्त करने की इच्छा है आपका चित्त यदि ऐसे सम्बंधियों में नहीं उलझा या नहीं। उनमें यदि इच्छा है तो बहुत अच्छी बात होगा तभी लोग मेरे चित्त में होंगे आप उन्हें मेरे है. उन्हें इसलिए अयोग्य नहीं ठहराया जाना चाहिए चित्त में छोड दें। मैं इसका समाधान करुंगी परन्तु क्योंकि वे आपके सम्बंधी हैं ये बात दोनों तरह से यह कुचक्र (Vicious Circle) है। यह उस मस्तिष्क है- आपके सम्बंधी होने के नाते उन्हें उत्क्रान्ति के का प्रक्षेपण है जो सोचता है कि ठीक है, "श्रीमाताजी योग्य भी नहीं उहराया जा सकता और न ही उन्हें यह चीज़ हमारे चित्त में नहीं है । आप कृपया इसे इस कारण से अयोग्य ठहराया जा सकता है। देखें " परन्तु इसका यह तरीका नहीं है। हमारे 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-14.txt मार्थ - अग्रैल, 2005 चैतन्य लहरी 13 अन्दर केवल एक गहन इच्छा होनी चाहिए कि और सुलझना चाहिए। ये सारी चिन्ताएं जो आप क्या मैं स्वयं आत्मा बन गया हैूँ? क्या मैने अपना अन्तिम लक्ष्य प्राप्त कर लिया है? क्या में सांसारिक अपने ऊपर ले रहे हैं ये मेरी सिरदर्दियां हैं। आपको तो केवल एक कार्य करना है- आपको आत्मा इच्छाओं से ऊपर उठ गया हूँ? स्वयं को स्वच्छ बनना है। मात्र इतना ही ये बड़ा आसान कार्य है- बाकी सब मेरा सिरदर्द है। करें। एक बार जब आप स्वयं को स्वच्छ करने लगते हैं तब यदि कोई कमी रह जाती है तो मैं आपकी इच्छा को सामूहिकता पर ले जाने उसे दूर करती हैँ। यह मात्र एक आश्वासन है, वाली समस्या अत्यन्त भिन्न होनी चाहिए। अपनी | उत्तरदायित्व (Guaranty) नहीं। समस्या यदि मेरे पावनता का पोषण करने के लिए, अपनी पावनता से चित्त के काबिल है तो मैं अवश्य इस पर ध्यान सुगंधित होने के लिए आपका चित्त दूसरी ओर दुगी। आपको भी अपने चित्त का मूल्य वैसे ही होना चाहिए। अब आप मेरा सामना नहीं कर रहें. समझना चाहिए जैसे मैं समझती हैँ। मेरे विचार से आपको तो मुझसे भी अधिक अपने चित्त के मूल्य को समझना चाहिए क्योंकि मैं तो अपने अन्दर ही हर चीज का संचालन कर सकती हूँ क्योंकि हर मेरे साथ मिल कर पूरे विश्व का सामना कर रहे हैं। इस बात को समझें, पूरा दृष्टि कोण ही परिवर्तित हो जाएगा। दृष्टिकोण ऐसा होना चाहिए:- मैं क्या दे सकता हैं? मैं किस प्रकार दे सकता हूँ? देने चीज़ मेरे चित्त में है । परन्तु आप अपनी इच्छाओं को, आपकी और होगा, मेरा चित्त कहाँ है ? मुझे अपने प्रति अधिक मुँहबाए खड़ी सभी सांसारिक इच्छाओं से दूर सावधान होना होगा मैं क्या कर रहा हूँ ? मेरी करके स्वच्छ करने का प्रयत्न करें। इसे विशाल जिम्मेदारी क्या है ? आपमें पावनता प्राप्त करने की स्तर पर जब आप देखते हैं तो सोचते है, " इच्छा का होना आवश्यक है। आपको शुद्ध इच्छा श्रीमाताजी देश की समस्याओं का क्या करें " ? होनी चाहिए। अर्थात् आपको आत्मा बन जाना ठीक है, अपने देश का मानचित्र मुझे दे दें । चाहिए। परन्तु अपने प्रति आपकी जिम्मेदारी क्या में क्या गलती है? मुझे और अधिक सावधान रहना समाप्त, इतना काफी है। तब स्वयं को स्वच्छ है ? आपको इच्छा करनी चाहिए कि अपने प्रति करें- आपमें जो भी इच्छा है उसे छोड़ दें। एक आपकी जिम्मेदारी की अभिव्यक्ति हो और वो पूर्ण बार जब आष फावन हो जाएंगे तो वह क्षेत्र आपके हो। चित्त की सीमा में आ जाएगा। ये बात बहुत इसके बाद सहजयोग के प्रति आपकी दिलचस्प है। जब आप इस पर काबू पा लेते हैं जिम्मेदारी आती है। जो कि परमात्मा का कार्य है केवल तभी इस पर प्रकाश डाल सकते हैं। परन्तु और जो शुरु हो चुका है। उसके प्रति आपकी क्या यदि आप इसके अन्दर हैं तो आपका प्रकाश छुपा जिम्मेदारी हैं। आप लोग ही मेरे हाथ हैं आप लोगों हुआ है। प्रकाश बाहर को प्रसारित नहीं हो रहा। आपको इस इच्छा से ऊपर उठना होगा। जब विरोधी तत्वों से यूद्ध करना है- आसुरी तत्वों से। भी आपमें कोई इच्छा जागृत हो आप तब तक इससे ऊपर उठे रहें जब तक आपके सम्मुख खड़ी जो लोग अब भी परिवार के लिए जिम्मेदार हैं वे उस समस्या पर आपका प्रकाश नहीं पड़ने लगता। आधे-अधूरे सहजयोगी हैं- मैं कहती हैँ वे बेकार ने ही षरमात्मा का कार्य करना है और परमात्मा अब आप अपने परिवार के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-15.txt मार्च - अप्रैल, 2005 14 वैतन्य लहरी हैं, बिल्कुल किसी काम के नहीं। ऐसे सब लोग करता। उसका चित्त आलोचना पर नहीं होता कि छुट जाएंगे, उनके परिवारों को कष्ट उठाना पडेगा और मैं जानती हैँ कि ये घटित होगा क्योंकि अब चित्त किसी अन्य की आक्रामकता पर होता है इस प्रकार से शक्तियाँ एकत्र हो रही हैं कि छटनी क्योंकि अन्य तो कोई है ही नहीं। परन्तु समस्या ये फलां व्यक्ति ऐसा है और फलां ऐसा। न ही उसका है कि जब मैं बताती हूँ तो लोग समझते हैं कि मैं आरम्भ हो जाएगी। आत्मा बनना आपकी जिम्मेदारी है, सहजयोग किसी अन्य को कह रही हूँ। कोई ये नहीं सोचता आपकी जिम्मेदारी है, मुझे बेहतर, बेहतर, और कि मैं उसी के विषय में ये बात कह रही हूँ। जो बेहतर समझना आपकी जिम्मेदारी है। अपने अंदर लोग आक्रामक नहीं हैं वो दूसरे ढंग से सोचते हैं। स्थापित तंत्र को समझना आपकी जिम्मेदारी है। मैं यदि किसी आक्रामक व्यक्ति के बारे में कहूँ तो किस प्रकार ये तंत्र कार्य करता है, और आचरण जो व्यक्ति आक्रामक नहीं हैं वो तुरन्त आक्रामक करता है ये समझना आपकी जिम्मेदारी है । स्वयं व्यक्ति के बारे में सोचेगा अपने बारे में नहीं। तुरन्त किस प्रकार गुरु बनना है ये जानना आपकी आप अपना मस्तिष्क दूसरे लोगों पर ले जाते हैं जिम्मेदारी है। गरिमामय और सम्मानमय बनना और उनके दोष खोजने लगते हैं। अतः इस पर पड़े आपकी जिम्मेदारी है। सम्मानमय व्यक्तित्व बनना हुए दबाव के कारण ये इच्छा शनैः शनैः निम्न से घटिया व्यक्तित्व का नहीं। आप यदि बुलंदियां निम्नतर हो जाती है । प्राप्त करना चाहें तो आपमें से हरेक का मूल्य पूरे ब्रह्माण्ड जितना है ब्रह्माण्डों के ब्रह्याण्ड आपके सावधानी। सतर्कता कि हमें अपना चित्त केवल चरणों में न्योछावर किए जा सकते हैं बशर्ते कि अपनी शुद्ध इच्छा के पोषण के लिए रखना चाहिए। अतः सावधानी अत्यन्त आवश्यक है। पूर्ण आप बुलंदियों तक उन्नत होना चाहें और अपने इच्छा हृदय से आती है और आपको इस प्रकार से अन्दर स्थित विशालता का पोषण करना चाहें। जो लोग अब भी अपने को निम्न स्तर पर रखना बनाया गया है कि इसके बिना आपका ब्रह्मरन्ध्र ही स्वच्छ न होगा। कुछ लोग सहजयोग की प्रशंसा चाहते हैं वो कभी उन्नत नहीं हो सकते। उदाहरण के बाँधने को ही बहुत बड़ी बात समझ लेते के रूप में पश्चिमी सहजयोगियों को माँ के विरुद्ध हैं। परन्तु उनके हृदय यदि खुले नहीं हैं तो वे स्वयं पाप करने की समस्या है और पूर्व के सहजयोगियों को धोखा दे रहे हैं। अतः अपने हृदय को को पिता के विरुद्ध अपराध करने की समस्या है। रखने का प्रयत्न करें। इससे मुक्त होना आपके लिए बिल्कुल भी कठिन नहीं है चित्त को शुद्ध रखना है। सहजयोग में महाकाली की पूजा करेंगे तथा यह विशेष यज्ञ आप सारे तरीके जानते हैं। जिनसे चित्त को पावन करेंगे तो निश्चित रूप से हम यह परिमल (Aura) किया जा सकता है चित्त यदि पावन नहीं होगा तो स्थापित कर लेंगे और पूरे विश्व को ज्योतिर्मय बना सभी तुच्छ मूर्खता पूर्ण तथा उत्क्रान्ति की दृष्टि से देंगे परन्तु आपका दृष्टिकोण ये होना चाहिए कि अर्थहीन चीजें हर समय इस इच्छा पर आक्रमण मैंने इसके लिए क्या योगदान दिया ? क्या अब भी करती रहेंगी। अच्छा सहजयोगी अपने कपड़ों की, मैं अन्य लोगों के बारे में सोच रहा हूँ? क्या अब लोगों के आचरण और उनकी बातों की चिन्ता नहीं भी मैं छोटी-छोटी समस्याओं के विषय में सोच रहा पुल खुला मुझे आशा है कि आज जब आप ये पूजा करेंगे, 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-16.txt मार्च - अप्रैल, 2005 चैतन्य लहरी 15 सब मूर्खता है, पूर्णतः गलत है और परमात्मा हूँ या अपनी आत्मा के विषय में ? तो बायाँ पक्ष श्री गणेश से शुरू होता है और विरोधी गतिविधियाँ हैं। ये एहसास होने पर आप उन्हीं पर समाप्त होता है। श्रीगणेश जी में मूलतः इनका डटकर मुकाबला करेंगे, कहेंगे कि यह तो एक ही गुण है कि वे पूर्णतः अपनी माँ के प्रति हमारे मूल का, हमारी जड़ों का विनाश है। जब समर्पित हैं । किसी अन्य परमात्मा को वो नहीं हमारी माँ सारी उत्कृष्ट पहचानते। यहाँ तक कि वो अपने पिता को भी नहीं पोषण करने वाले तत्वों का, उत्क्रांति और मुक्ति की पहचानते। वो तो केवल अपनी माँ को जानते हैं ओर ले जाने वाले तत्वों का स्रोत है तो ये लोग और उन्हीं के प्रति समर्पित हैं। परन्तु ये शुद्ध इच्छा ( गतिशील होनी चाहिए। इस गतिशीलता के बारे में हैं। मैं सोचती हूँ कि आप लोगों के साथ ऐसे मैं आगे होने वाली बहुत सी पूजाओं में बताऊँगी। व्यवहार किया गया है मानो आप पशु हों ! बो परन्तु आज हमें चाहिए कि स्वयं को आत्मा बनने चाहते हैं कि हम सब मानवता के निकृष्टतम स्तर की शुद्ध इच्छा में स्थापित कर लें। अब पाश्चात्य मस्तिष्क प्रश्न करेगा, कैसे ? ये मेरी समझ में नहीं आती ! अतः आप पर हुए उन बात हमेशा उठती है कि किस प्रकार ये कार्य सारे आक्रमणों को समझ लेना आपके लिए अत्यन्त करें? क्या में आपको बता दूँ कि यह बहुत सहज आवश्यक है। सावधान रहें कि इस प्रकार के लोगों है। आदिशंकराचार्य ने विवेक चूड़ामणि तथा अन्य के झाँसे में न आ जाए। बहुत सी पुस्तकें और ग्रन्थ लिख डाले और सारे बुद्धिवादी लोग उनकी जान के दुश्मन बन गए। जड़ों को देखने के लिए आए हैं कोपलों को देखने कहने लगे, इसमें ऐसा लिखो, वैसा लिखो। आदिशंकराचार्य ने इन सब लोगों को भुलाकर परिवर्तित करें। यहाँ पर टेलिफोन खराब हैं आप सौन्दर्य लहरी लिखी जो केवल माँ का वर्णन है कोई टेलिफोन नहीं कर सकते। यहाँ की डाक और माँ के प्रति उनके समर्पण है। सौन्दर्यलहरी में प्रणाली भयानक है। रेलवे भी बदतर है (मुझे ये बात लिखा गया हर श्लोक एक मंत्र है यह मस्तिष्क के नहीं कहनी चाहिए क्योंकि हम रेलवे के बंगले में माध्यम से मस्तिष्क का समर्पण नहीं है। यह तो रुके हुए हैं) परन्तु यहाँ के लोग शानदार हैं। वो उनके हृदय का समर्पण है। यह आपके हृदय का जानते हैं कि धर्म क्या है । किसी भी तरह से पूर्ण समर्पण है। पश्चिमी सहजयोगी भली भांति समझ लीजिए बो आक्रमण से बचे हुए हैं क्योंकि जानते हैं कि किस प्रकार उन 1 चीजों का, श्रेष्ठ चीजों का, 1 फॉयड आदि) तो हमें हमारी जड़ों से काट से रहें 1. पर आ जाएं जैसे हम भयानक रोगी हों। ये बात अंत में मैं ये कहूँगी कि इस देश में आप लोग के लिए नहीं । पाश्चात्य शैली का अपना दृष्टिकोण पर बार -बार कुण्डलिनी होने के कारण यहाँ श्रीगणेश बैठे हुए नकारात्मकता के आक्रमण हुए. विशेष रूप से जब हैं। कैसे कोई इस महाराष्ट्र पर आक्रमण करने की फायड जैसे भयानक लोग उनके आधार को, हिम्मत कर सकता है ? यहाँ तो रक्षा करने के लिए उनकी जड़ों को नष्ट करने के लिए आए और किस आठ गणेश बैठे प्रकार से पश्चिम ने आँखे बंद करके उसे स्वीकार के लोग भी इस बात को जानते हैं या नहीं। बहुत किया और स्वयं को नर्क के मार्ग पर डाल दिया। से मारुति भी यहाँ विराजमान हैं। अत: इस देश पर ये सारी चीजें बाहर निकालनी आवश्यक हैं। ये कौन आक्रमण कर सकता है ? यहाँ पर कोई अन्य हुए हैं। मैं नहीं जानती कि महाराष्ट्र 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-17.txt मार्च - अप्रैल, 2005 पैतन्य लहरी 16: नकारात्मक आक्रमण नहीं है सिवाय इसके कि लोग स्वयं कुछ धन-लोलुप हैं। केवल ये अभिशाप उन पर है, इससे वे यदि मुक्ति पा लें तो वे महान लोग हैं दिन है। पांचांग के अनुसार हो सकता है कि ऐसा न हो परन्तु मेरे सूक्ष्म स्तर पर अपने अन्दर पावन होने की इच्छा, सभी बाधाओं और अपने अन्दर की सभी अस्वच्छ चीज़ों से मुक्ति पाने की इच्छा को स्थापित कर अनुसार ऐसा ही है आइए अपने अतः आप लोग इस देश में पश्चिम की सुख लें। सुविधा प्राप्त करने के लिए नहीं आए। आत्मा का सुख पाने के लिए आए हैं। अतः भारत के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलें मैं किसी भी प्रकार से ये सहजयोगी बनने की इच्छा को, माँ के प्रत्ति समर्पित नहीं कह रही कि एयर इण्डिया के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलें। ये बिल्कुल गलत धारणा है कि सहजयोगी होने के नाते आपको केवल एयरइण्डिया में जाने वाली विकृति, क्योंकि आप क्या समर्पण से ही यात्रा करनी है। बिल्कुल भी नहीं। सहजयोग करते हैं ? मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए। सिवाए को एयरइण्डिया से कुछ नहीं लेना-देना। हमारे रेलवे, तथा अन्य सभी चीजों का सहजयोग से कोई सरोकार नहीं । तो क्या ? अतः देश भक्त के लिए आप अपने हृदय खोल लें। इस अहम् को बने और परमात्मा के लिए अपनी ही एयरलाइन महान सहजयोगी बनने की इच्छा को, जिम्मेदार होने की इच्छा को। 1 ऐसा करना कठिन नहीं है। ये अहम् है। अन्त इसके कि आप मेरा प्रेम स्वीकार कर लें। समर्पण का अर्थ केवल इतना है कि मेरा प्रेम स्वीकार करने त्याग दें। केवल इतना ही, और यह कार्यान्वित हो जाएगा। मैं स्वयं को आपके हृदय में बिठाने का प्रयत्न कर रही हैूं और निश्चित रूप से मैं वहाँ स्थापित हो जाऊंगी। का उपयोग करें। आप जब यहाँ पहुँचेंगे तो पाएंगे कि यहाँ के लोग अत्यन्त अबोध हैं। वे फायड को नहीं समझ सकते। इस विषय पर तो हम उनसे । ये बात उनसे परे है । इस मामलें में वे ऊँचे प्रकार के लोग हैं क्योंकि बीत भी नहीं कर सकते परमात्मा आपको धन्य करें। (निर्मला योग से उद्धृत एवं अनुवादित) उन पर आक्रमण नहीं हुआ। परन्तु आप लोग भी एक प्रकार से बहुत ऊँचे है क्योंकि आप पर आक्रमण हुआ फिर भी आप इसमें से निकल आए। मुख मोड़ने मात्र से आप दूसरी ओर आ गए हैं। ये भी महान बात है। TI अंतः आपको इस बात का भी भरोसा हो जाएगा कि और भी बहुत से लोग हैं जो आप की तरह से विश्वास करते हैं। विशाल जनसंख्या वाले इस देश में आपको आश्रय देने वाले बहुत से लोग हैं। अतः स्वयं को खोया हुआ न समझें। आज हम महाकाली तत्व की पूजा से आरम्भ करेंगे। आप कह सकते हैं आज गणेश गौरी का 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-18.txt परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का एक पत्र (मराठी से अनुवादित) 19 दिसंबर 1982 प्रिय मोदी एवं अन्य सहजयोगियों, अनन्त आशीर्वाद. आपका पत्र पाकर मुझे अत्यन्त हर्ष हुआ कि त्वं दुर्गा, त्वं अम्बिका आदि मन्त्र ईड़ा नाड़ी के आपकी ईड़ा नाड़ी स्वच्छ हो गई है और मुझे आशा लिए ठीक हैं, परन्तु सहजयोग में जब आप स्थापित है कि सभी लोगों की ईडा नाडियाँ, कम से कम हो जाते हैं तब आपको कहना होगा, अहम् भवानी। कुछ सीमा तक स्वच्छ हो गई होंगी। यहाँ मैंने सभी से कह दिया था कि मूच्छा की स्थिति में भी जाएगा। ये बात मैं आपको बताती हैँ। मैं ईडा मार्ग को स्वच्छ करने के लिए कार्य करूंगी। तीन दिनों तक प्रतिदिन लगभग पचास नाड़ी को स्वच्छ कर रही हॅूँ। ईडा नाडी के बन्धनों बार वमन (उल्टी) करके मैंने ये कार्य किया और के कारण सहजयोगी आलसी प्रवृत्ति के हो गए थे अहम् भवानी के साथ ये मंत्र अब स्वतः घटित हो ईडा नाड़ी को स्वच्छ करने के पश्चात् मैं पिंगला | अच्छा हुआ कि स्वच्छ करने का यह कार्य सम्भव आलस्य और काम को टालने की प्रवृति उन पर हो पाया। ये शरीर उसी लक्ष्य के लिए उपयोग हावी हो गई थी । काम से आना-कानी करने के किया जाना चाहिए जिसके लिए यह बना है। और कारण उनका चित्त भटक गया था परन्तु अब मैंने इसी लिए मैं बीमारी और कष्टों से चिन्तित नहीं पिंगला नाड़ी को जागृत करने का कार्य आरम्भ कर हूँ। इसके विपरीत ऐसे सभी तथा अन्य प्रयोग इस दिया है। आप सभी लोग अपने दाई ओर दायाँ अवतरण में करने होंगे। इसके विषय में आप हाथ ऊपर को ले जाएं और सिर के ऊपर से ले चिन्तित क्यों हैं, इस शरीर का और क्या उपयोग जाकर बाई ओर को नीचे गिरांए परन्तु ऐसा करते है ? मुझे कभी पीड़ा नहीं होती। मैं तो केवल इतना हुए अपनी इच्छा शक्ति का उपयोग करें ताकि चाहती हूँ कि इस शरीर रूपी प्रयोगशाला में कोई आपकी इच्छा फलीभूत हो सामूहिकता की जागृति न कोई कार्य चलता रहे। समय बहुत कम है और से आपको बहुत से ऐसे लोग मिल जाएँगे जो इस किया जाने बाला कार्य बहुत बड़ा है कार्य में आपकी सहायता करेंगे जिसे आप अभी केवल अपने आत्म-साक्षात्कार के बल पर आप तक अकेले कर रहे हैं। सहस्रार क्षेत्र में आपका लोग अपने ईडा मार्ग को स्वच्छ नहीं कर सकते। हृदय भी सम्मिलित है। हृदय के बंधन जब कम हो मैं जानती थी कि इसे अन्दर से साफ करना जाते हैं तो लैम्प के साफ किए गए शीशे की तरह होगा प्राचीन काल में सभी साधकों को अपने से, आत्मा की फूट पड़ने वाली किरणें सहस्रार की शैशव काल से ही अपने गुरुओं के घर पर या को जागृत करती हैं और दिव्य प्रकाश फैलता है एकान्त स्थानों पर रहकर निरंतर यह क्रिया करनी जिससे हम सहस्रार पर अनुभव करते हैं। यह पुड़ती थी। व्यक्तिगत रूप से कई-कई जन्मों तक प्रकाश रंग-बिरंगे हृदय को चहुँ ओर से प्रकाशमय साधकों को यह कार्य करना पड़ता था। आप करता है तथा आनन्ददायी एवं सुखकर गुणों से लोगों ने अब सामूहिकता की स्थिति पा ली है, मैंने इसको सजाता है। शनैः शनैः यह अवस्था बढ़ेगी सामूहिक चेतना जगा दी है। यद्यपि आप कहते हैं और आपमें स्थापित हो जाएगी। अधिकतर कि मैने ये कार्य किया. मेरे तेरे का अन्तर सहजयोगियों को यह विधि अपनानी चाहिए। परन्तु सामूहिक चेतना में नहीं होना चाहिए। त्वं भवानी, हाथों को केवल मशीन की तरह से चलाना ही 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-19.txt सार्च - अप्रैल, 2005 बैतन्य लहरी 18 क भाति ब् 2ख काफी नहीं है जो भी कुछ आप करें पूरे विश्वास के समाधान करने के लिए जो सहजयोगी, सहजयोग साथ करें कि आपकी पूजा में एक योद्धा का का उपयोग कर रहें हैं वो किस प्रकार ज्योतिर्भय उत्साह हो और एक कलाकार की संवेदना। हो पाएँगे ? प्रकाश स्तम्भ (Light House) क्षण देवी-देवताओं को जागृत करने के लिए मंत्रों का भर के लिए भी स्वयं को प्रकाश नहीं दिखाते अत: उच्चारण पूर्णतः शुद्ध होना चाहिए और पूरे हृदय से इन्हें अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है और इनकी किया जाना चाहिए। केवल तभी जागृति घटित हो देखभाल की जाती है पाएगी। एक साधारण सिद्धांत आपको समझना चाहिए कि माचिस की छोटी सी तीली से इतनी बड़ी अग्नि कैसे प्रज्जवलित की जा सकती है ? कृपया यह पत्र सभी सहजयोगियों तक पहुँचाएँं। आपकी माँ निर्मला तैल में यदि पानी मिला हुआ हो तो दीपक की बत्ती किस प्रकार जलेगी ? अपनी तुच्छ समस्याओं का (निर्मला योग से उद्धृत) 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-20.txt परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का एक पत्र मराठी से अनुवादित 19 दिसंबर 1982 मुझे आप सबके पत्र प्राप्त हुए। परन्तु मैं किसी सहजयोगी हैं। परमात्मा ने हमें चुना है। यदि हम को भी पत्र न लिख सकी क्योंकि लन्दन में दुर्बल होंगे तो किस प्रकार कार्य कर सकेंगे ? सहजयोग कार्य जोरों पर चल पड़ा है। दिल्ली के सहजयोगी बहुत कम पत्र लिखते करने की शक्ति दी है। इन विचारों से आपको हैं। परन्तु वे सब प्रसन्न हैं । बम्बई के सहजयोगी आलोचना करनी चाहिए भी ठीक हैं। राहुरी के सहजयोगी भी आनंद में हैं। बम्बई के सहजयोगियों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है प्रदान किया है. वे दया के सागर हैं । हमारी सारी अतः उन्हें बहुत से आक्रमणों का सामना करना गलतियों को भुलाकर वे हमारे हित के लिए कार्य पड़ा। उन पर पहला आक्रमण तब हुआ जब मैं कर रहे हैं और हम उनसे अपनी गलतियों को क्षमा अमरीका में थी उस समय बहुत से सहजयोगी प्रभावित हुए और बहुत से चले गए। बाद में जब हैं ! निम्नलिखित विचार आपके हृदय को प्रसन्न लन्दन के सहजयोगियों पर आक्रमण हुआ तो करेंगे : " हे परमात्मा कृपा करके हमें अपने प्रेम की उन्होंने सामूहिक रूप से गलत मार्ग अपनाया, ऐसा शक्ति प्रदान कीजिए " कृपा करके मुझे ब्रह्माण्ड में मार्ग जो खतरों और हानियों से परिपूर्ण था वहाँ के बहुत से दुष्ट लोग अभी भी बाधाओं के रूप में इसकी प्रेममय धडकन मेरे जीवन से प्रसारित हो कुछ सहजयोगियों के अन्दर छुपे हुए हैं। ये दुष्ट उठे और मैं इसी आनन्द में डूबा रहूँ। आदिशक्ति ने हमें पूर्ण मानव जाति का उद्घार हमारे प्रति परमात्मा :- का प्रेम कितना गहन है । उन्होंने हमें आत्मसाक्षात्कार करने के स्थान पर उनके विरुद्ध शिकायतें कर रहें व्याप्त अपने प्रेमसागर की बूंद बना लीजिए ताकि आप पर आज्ञा और हृदय से आक्रमण करते हैं। आज्ञा से वे सहजयोग विरोधी विचार आपके मस्तिष्क से सराबोर रहे । स्वयं से भी अधिक सदैव आपको को भेजते हैं और हृदय से वो शिकायतें करते हैं। प्रेम करने वाली। परमात्मा करें कि आपका जीवन परमेश्वरी प्रेम आप यदि इन्हें पहचान लें तो ये प्रभावहीन हो जाएंगे। इसके लिए केवल एक ही इलाज है आपकी माँ निर्मला (निर्मला योग से उद्धृत) जिसका उपयोग आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के बाद ही किया जा सकता है। आपकी कार यदि चालू नहीं है तो आपके ब्रेक और गतिवर्धक व्यर्थ हैं । परन्तु इन्जन चालू होने के पश्चात् यदि आप गतिवर्धक का उपयोग नहीं करते तो किस प्रकार कार आगे बढ़ेगी। आप इच्छा अनुरूप किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। आपके सभी आत्म सुझाव (Auto Suggestions) फलीभूत होंगे। इसकी विधि इस प्रकार है :- आपका चित्त मुझ पर होना चाहिए और अपनी आज्ञा से आपको निम्नलिखित विचार करने चाहिए :- हम कितने भाग्यशाली हैं कि हमें आत्म साक्षात्कार दिया गया है ! हम 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-21.txt परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का एक पत्र मराठी से अनुवादित 19 दिसंबर 1982 मनुष्य को शांति, धन, सत्ता आदि की इच्छा चाहिए। प्रेम अथाह है। आपका चित्त भौतिक वस्तुओं होती है। परन्तु यदि परमात्मा इन सारी चीज़ों का पर है और बातें आप शाश्वतपन की करते हैं! स्रोत हैं तो मानव में परमात्मा प्राप्ति की इच्छा क्यों आपको चाहिए कि शाश्वत ( Eternal) में विलीन नहीं होनी चाहिए? परमात्मा से मिलने की कामना हो जाएं ताकि शाश्वत जीवन प्राप्त कर सकें। और आकांक्षा क्यों नहीं होनी चाहिए ? हमें चहिए आप परमात्मा के साम्राज्य के अधिकारी हैं। कि परमात्मा से शांति के लिए प्रार्थना करें और फिर भी आप खीझ क्यों रहे हैं ? इस साम्राज्य में सारे देवता आपके बड़े भाई हैं, कुण्डलिनी के पथ पर भिन्न रूपों में वे विद्यमान हैं। आपको चाहिए कि उन्हें पहचानें और प्राप्त करें कुण्डलिनी उनकी माँ परमात्मा से मिलन की अपनी इच्छा को भी परमात्मा है, हमेशा उनकी छत्रछाया में रहने का प्रयत्न करें। के चरणों में अर्पित करने के लिए तैयार होना उनके बच्चे बनें और वे आपको अन्तिम लक्ष्य तक चाहिए। पूरा चित्त परमात्मा पर ही होना चाहिए ले जाएंगी। सभी चीज़ों के स्रोत को एक बार जब आप प्राप्त कर लेंगे तो बाकी का सभी कुछ आपको शांति रूप परमात्मा से मिलने की इच्छा बनाए रखें एक सर्वसाधारण मनुष्य और एक सहजयोगी के संतोष में यह अन्तर होना चाहिए। व्यक्ति को और इसके लिए व्यक्ति में समर्पण, दृढ़-निश्चय और चित्त की एकाग्रता ( तपस्विता) होनी चाहिए। इसके लिए सभी भौतिक लगाव नष्ट होने चाहिए । आसानी से मिल जाएगा। परन्तु आप लोग ध्यान धारणा, प्रेम और शांत संसार में चिपके रहने के लिए क्या है ? आपको जीवन के अभ्यास में दृढ़ नहीं हैं। आप तो मुझे भी इन चरण कमलों की गरिमा महसूस करनी होगी बड़े अनियमित (Casual) ढंग से लेते हैं ! परन्तु जिनमें सभी कुछ विलीन होकर शान्त हो जाता है। सांसारिक मामलों में आप कितने हैं ! किसी उत्सुक केवल तभी आप अपनी गरिमा को पा सकेंगे। व्यक्ति को अपनी उपलब्धियों की शेखी क्यों जाते हैं ! सांसारिक मामलों में आप ढीले-ढाले बघारनी चाहिए? आपको ये समझना आवश्यक है (Casual) क्यों नहीं हैं ? मैं क्योंकि महामाया हूँ कि आप जो भी कुछ कर रहें हैं ये सब परमात्मा की शक्ति है अर्थात् आदिशक्ति का कार्य है और करें। मैं आपकी हूँ। मैं आपके लिए हूँ। मैने आपको भी चीज को पाने के लिए आप किस प्रकार अड़ इसलिए वास्तविकता से दूर न भागें। मुझे प्राप्त वह दिया है जो महान सन्तों और पैगम्बरों की को प्राप्त करने के लिए आपको प्रार्थना, करनी पहुँच से भी परे है। किस प्रकार आप इसका हे परमात्मा मेरे अन्दर का 'मैं भाव' उपयोग करेंगे ? आपको बहुत बड़ी मूल्यवान चीज़ आप इन चमत्कारों के साक्षी मात्र हैं। उस अवस्था चाहिए समाप्त हो जाए " मेरे अन्दर यह सत्य स्थापित हो जाए कि हम सब आप ही के अंग-प्रत्यंग है, ताकि और ग्रहों की सृष्टि की गई थी। आपका दिव्यानन्द हमारे रोम-रोम से स्पदित हो उठे। केवल तभी यह जीवन आपके सुन्दर संगीत गुरुदक्षिणा दी है ? इस बात को समझें कि आपका से परिपूर्ण हो पाएगा और पूरी मानव जाति को पैसा, आपकी गुरुमाँ के चरणों की धूल सम भी मंत्रमुग्ध कर लेगा तथा पूरे विश्व को प्रकाश नहीं। आपको अपने ह्ृदय समर्पित करने दिखाएगा।" आपके हृदयों से प्रेम प्रवाहित होना चाहिएं- केवल स्वच्छ एवं पावन हृदय। अपने शरीर दे दी गई है इसकी एक लहर से हजारों सितारों आज गुरु पूजा का दिन है आपने मुझे क्या 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-22.txt मार्च - अप्रैल, 2005 वेतन्य लहरी 21 आपमें से कुछ लोग कृपा सागर में आनन्द ले को पावन करें। इस मामले में आलस्य न करें। रहें हैं। मेरा आशीर्वाद है कि आप सभी प्रसन्न हों। आपका सांसारिक जीवन और संतोष उसी स्तर का होना चाहिए। सहजयोगियों का संतोष और उनके हालात में संतुलन होना चाहिए। हमारी दोनों टांगे बराबर बढ़ती हैं। एक टॉग यदि दूसरी टांग से छोटी होगी तो आप लंगड़े हो जाएंगे मैं आपको ये नहीं कहना चाहती कि यदि संतोष कम है तो आप शपथ लें। अवश्य प्रातः उठें और कम से कम एक घण्टा ध्यान धारणा एवं पूजा पर लगाएं। सायंकाल आरती एवं ध्यान करें। शैतानों के शिष्य श्मशान में कठोर परिश्रम करते हैं। मेरी समझ में नहीं आता कि आप लोग सभी कुछ इतनी लापरवाही से क्यों लेते हैं ? गप्पवाजी बन्द कर दें। ईष्ष्या और झगड़े छोड़ दें। समय कभी किसी की प्रतीक्षा नहीं करता खजाने की चाबी होने के बावजूद भी क्या आप खाली हाथ जाना चाहते हैं। अपने हालात का स्तर भी नीचा कर लें। परन्तु सहजयोगियों का संतोष हालात पर निर्भर नहीं है । हालात जो भी हो वह प्रसन्न रहता है यदि वह प्रसन्न नहीं है तो उसका संतोष सतही है। आंतरिक नहीं। परमात्मा आपको अपने चरण कमलों में निरंतर स्थान प्रदान करें। आप यदि परमात्मा के साम्राज्य को स्वीकार नहीं करते तो शैतान का साम्राज्य आएगा और इसके लिए आप ही दोषी होंगे। याद रखें क्योंकि आप सहजयोगी ही मेरे प्रिय लोग हैं और अधिकारियों के रूप में आप ही को चुना गया है। आप यदि इसकी अनदेखी करते हैं तो एक ओर आपकी माँ निर्मला । (निर्मल योग से उद्धृत।) तो आनन्द के इस गहान स्रोत से आप वंचित होंगे और दूसरे सहजयोग के अधूरे ज्ञान के कारण आप अपना अंधिकार खो देंगे। अंतः विवेकशील बने और दृढ़ता-पूर्वक खड़े रहें। हर क्षण हज़ारों निर्देश हैं । आप ही लोग पूरे विश्व का हित देखेंगे। गतिशील होने के लिए अपने निकम्मेपन पर काबू पा ले। आप ही लोगों ने कंप्तान बनना है। परमात्मा के संगीत को अपनी बाँसुरियों से बजने दें। अपनी भावनाओं में उन सब लोगों से ऊँचे उठें जिन्हें अभी तक आत्म-साक्षात्कार एवं आशीर्वाद प्राप्त नहीं हुआ और परमात्मा का साम्राज्य आपका होगा मेरी कामना है कि ये मंगलमयता आपको प्राप्त हो। मेरे सारे प्रयत्न इसी दिशा में हैं । आपको मन्दिर सम बनाया गया है। इसे स्वच्छ रखें । 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-23.txt श्रीमाताजी के कथनोंनुसार प्लूटो नक्षत्र पर रे हेरिस के विचार पिछले शरद एक्सीटर (Exeter) इंग्लैंड में जबकि प्लूटो युद्ध का प्रभाव है, उसकी ही श्रीमाताजी ने हमें बताया कि प्लूटो श्री कल्की का उप अवस्था । या हम ये कह सकते हैं कि यदि नक्षत्र है और इस अवतरण में सौर-मण्डल में मंगल श्री गणेश हैं तो प्लूटो श्री महागणेश। ये वैसे यही उनका स्थान है। खगोलशास्त्रियों ने श्री ही है जैसे श्री ईसामसीह युग के अंत में अपनी आदिशक्ति के पृथ्वी पर अवतरित होने के कुछ वर्ष ग्यारह विध्वंसक शक्ति के साथ श्री कल्की रूप में उपरान्त वर्ष 1931 में प्लूटों नक्षत्र को खोज अपने सफेद घोड़े पर बैठ कर लौटें। निकाला। आश्चर्य की बात है कि इस नक्षत्र को विश्व इतिहास की दृष्टि से आधुनिक युग जिसमें हम रहते हैं, नोस्ट्राडमस ने माना कि वर्ष 1999 नए युग से पूर्व का अंतिम वर्ष होगा। यहुदियों का पांचांग भी छः हजार वर्ष कह रहा है तथा विलियम ब्लेक ने भी छः हजार वर्ष पूरे होने इस कार्य मे रत खगोलशास्त्री के सहायक एक किसान लड़के ने खोजा था। ज्योतिषियों के अनुसार प्लूटो का सम्बन्ध मृत्यु, पुनर्जन्म, विनाश तथा गहन सामूहिक अचेतन की अभिव्यक्ति करने से है। आज भी ये नक्षत्र अपनी अनियमित परिक्रमा और हमारे सामूहिक मन पर अपने प्रभाव के कारण पहचाना जाता है। इसकी परिक्रमा पर पुनरुत्थान की बात की है। परन्तु इस विषय में हम कितने निश्चित हो सकते हैं ? ज्योतिष के अनुसार हम प्लूटो के साथ अद्वितीय अवस्था में हैं वास्तव में अत्यन्त असाधारण है। बाकी सभी क्योंकि ये नक्षत्र न केवल अपनी राशि में प्रवेश कर नक्षत्र सूर्य की एक ही मार्ग से परिक्रमा करते हैं । एक ही मार्ग से। परन्तु प्लूटो उन्हें एक कोण से में भी प्रवेश कर रहा है। वरुण समुद्र का देवता है काटता है। अण्डाकार मार्ग पर चलता है और और इसे त्रिशूल पकड़े हुए दिखाया गया है। कभी-कभी तो वरुण नक्षत्र की परिक्रमा में प्रवेश संभवतः प्रतीकात्मक रूप से यह तीन नाड़ियों, तीन कर जाता है । अतः सीर परिवार में खोजे गए गुणों या श्री आदि कुण्डलिनी की तीन शक्तियों-श्री नक्षत्रों में से ही प्लूटो भी एक नक्षत्र है। वर्ष 1979 में प्लूटो वरुण की परिक्रमा में आया और वहाँ यह 1999 तक रहेगा। नवंबर 1983 में ह प्लूटो ने वृश्चिक ( Scorpio) में प्रवेश किया और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह उसकी राज्यसत्ता बुद्धि या विचार शक्ति नहीं जा सकती, वरुण हमारे का चिन्ह है जहाँ यह अत्यन्त शक्तिशाली होता अनुभव का पूर्णत्व है। अतः परिव्व्तन, मृत्यु विनाश है। (वृश्चिक - गुरु, मृत्यु और पुनर्जन्म का चिन्ह तथा गहन परिर्वतन का नक्षत्र प्लूटो अर्थात् श्री है।) भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बरुण है परन्तु इसके साथ-साथ वरुण की परिक्रमा रहा ह महालक्ष्मी, श्री महासरस्वती और श्री महाकाली को दर्शाता है। हमारे अन्दर वरुण स्वाधिष्ठान चक्र हैं-भवसागर की, भ्रम सागर और भौतिक अस्तित्व की बाह्य सीमा सम्बंधित अस्तित्व जिससे आगे कलकी मानवीय चेतना के क्षेत्र में - वर्ष 1999 तक जल का देवता है और प्लूटो छिपी हुई अथाह गहराइयों का ज्योतिषज्ञ वृश्चिक की परिवर्तन शक्ति को प्लूटो की ही देन मानते हैं वृश्चिक प्लूटो के आने की आशा की थी। थोड़े से समय के मंगल ग्रह का भी शासक नक्षत्र है, मंगल ग्रह जो लिए प्लूटो हमारी चेतना में गतिशील होता है । श्री गणेश का नक्षत्र है मंगल युवा योद्धा है फिर भी ये इतना विशेष क्यों है ? हर ढ़ाई सौ वरुण की कक्षा में आ गया है। अत्यन्त दिलचस्प बात है कि ज्योतिष पांचांगो में सभी साधकों ने 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-24.txt मार्च - अप्रैल, 2005 चैतन्य लहरी 23 निश्चितता होनी चाहिए। सहजयोग यदि उड़ान ले ले और स्थापित हो जाए तो कुछ भी अनिश्चित रहेगा। साल में प्लूटो बरुण की कक्षा में जाता है और अपनी राशि वृश्चिक में भी प्रायः दौ सौ से ढाई सौ न वर्षों के पश्चात् जाता है। परन्तु इन दोनों नक्षतरों के मिलने का परिणाम हर छः हजार वर्ष में आता प्लूटो के वरुण की कक्षा में प्रवेश, अपनी राशि है। अतः इन दोनों घटनाओं का एक के बाद एक वृश्चिक में प्रवेश और पृथ्वी के कुंभ युग में प्रवेश का एक ही समय पर घटित होना इसकी ओर इशारा करता है। हम योगदान दें या न दें परिवर्तन चलता है कि जब -जब भी प्लूटो ने वृश्चक में तो आएगा ही प्लूटों का सतही तापमान सबसे ठण्डा है। यह 0 से तीन डिग्री ऊपर होता है। और सितारों तथा अंतरिक्ष के बीच के तापमान से थोड़ा धटित होना अत्यन्त दुर्लभ है। उदाहरण के रूप में यदि हम पश्चिम के इतिहास को देखें तो पता प्रवेश किया तो आलस्य और सुखपरता का समय उसके पश्चात् आया। अति नैतिकवाद काल आया जिसमें नए धार्मिक विचारों का उदय हुआ । अमरीकन क्रान्ति, नव चेतना (Renaissance) और मध्य युग की पराकाष्ठा इसके कुछ उदाहरण हैं । जब-जब भी प्लूटो अपनी राशि में प्रवेश करता है तो लम्बे समय तक प्रभावित करने वाले नाटकीय सी अधिक शीतलता आत्मा का गुण है प्लूटो जमे हुए तत्वों या ठोस हुई मिथेन गैस से बना है । सूर्य से इतनी दूर होते हुए जितने बृहस्पति और शनि हैं यह नक्षत्र तरल गैस की अवस्था में होता है और 0 तापमान से भी ऊपर यह जमता है। यही परिवर्तन मानवीय सामूहिक चेतना में होते हैं। इसके अतिरिक्त अब हम एक नए युग के शीर्ष पर हैं- कुंभ का युग(The Age of Aquarius) सर्व-साधारण मनुष्य को ये सब समझाना कठिन है। परन्तु वास्तव में बारह युग होते हैं जिस तरह से बारह राशियाँ हैं और हर राशि में पृथ्वी दो हजार वर्ष रुकती है। ईसा मसीह का युग मीन राशि (Pices) का युग है। तापमान आत्मा का है मिथेन गस CH4 या 4 हाइड्रोजन अणु + 1 कार्बन अणु मूल तत्वों का जैव मिश्रण (Organic Compound) है । कार्बन कठोर काला तत्व होता है या प्रायः हीरे की तरह का पदार्थ अपने आप यह जीवन नहीं बना सकता। परन्तु अपनी चार संयोजकताओं के कारण जीवन के विकास में सहायक बन जाता है। इसी कारण से यह श्री गणेश है। मिथेन या CH4 अन्तिम तत्व नहीं है। उदाहरण के रूप में तेल के पूराने भण्डारों में यह प्राकृतिक गैस के रूप में मिलता है या दलदल से निकलने वाली गैस के रूप में । अत: यहाँ प्लूटो या श्री कल्की की बनावट में पूर्ण विलय 1 ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अब इसका अन्त आ गया है। मीन माया है। भ्रम का युग है जबकि कुंभ जल वबाहक है अर्थात् आत्मा रूपी जल के सामूहिक घड़े का वाहक अर्थात् कुण्डलिनी अर्थात् सहजयोगी गण । अतः सहजयोगियों को मानवता को नए युग तक और पुनर्जन्म निहित हैं । ले जाने के लिए श्री माताजी का यंत्र बनना प्लूटो का एक दिन, इस नक्षत्र का अपनी धुरी चाहिए। हमें चाहिए कि इस कार्य की विशालता पर एक चक्कर हमारे सात दिनों के बराबर है । इसकी परिक्रमा और आकार की विशेषताओं को की आवश्यकता को भी । मीन राशि यदि देखते हुए हाल ही में इस बात का पता लगाया है कि इस पर चन्द्रमा है और यूनानी पौराणिक को समझें और मनुष्य मात्र के सामूहिक उत्थान अनिश्चितता है तो कुंभ मानव जाति के लिए 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-25.txt वैतन्य लहरी मार्च - अप्रैल, 2005 24 अतः हमे चाहिए कि बाह्य चिंता को भूलकर कथाओं के अनुसार मृत्यु की नदी पर आत्मा को ले जाने वाले नाविक चेरो (CHARON) के नाम पर कभी तो अपनी आत्मा के विकास को देखें । उस इसका नामकरण किया गया है। उस चाँद की अवस्था की ओर जो सब से परे है। यह वह क्षण खोज वर्ष 1979 के आस-पास की गई अर्थात् उस होता है जब हम उत्क्रान्ति पथ पर छलांग लगाते समय जब इस नक्षत्र से जुड़ी हुई मानवीय चेतना हैं उत्क्रान्ति तो होनी है परन्तु किस मार्ग से हम के परिवर्तन सम्बंधित हर चीज़ घटित होती हुई इस पथ पर बढ़ेंगे ये हम पर निर्भर करता है। दिखाई देती थी। ये वो समय था जब श्रीमाताजी पारंपरिक ज्योतिष के अनुसार प्लूटो बताने लगीं थी कि श्री कल्की की अभिव्यक्ति भावनात्मक तथा आर्थिक कार्यों से भी है और का संबंध आरम्भ हो रही है। इस नक्षत्र के हिसाब से इस पर दिलचस्प बात है कि दिसम्बर / जनवरी 82/ 83 देखे गए चाँद का आकार बहुत बड़ा है । ऐसा में प्लूटो वृश्चिक के समूह में 1 / 2 समीप तक लगता है मानो यहाँ दोहरी नक्षत्र प्रणाली हो। चैरों पहुँचा और विश्व मुद्रा जैसे पौण्ड आदि का मूल्य (CHARON) कल्की का सफेद घोड़ा है या उसका नाटकीय ढ़ंग से गिर गया । विलियम ब्लेक के वाहन है। श्री कल्की दयाविहीन होकर निर्णय करते हैं। और चेरों, प्लूटो का उसी प्रकार से बाहन है जैसे सहजयोग श्रीमाताजी का वाहन है। लक्ष्य येरोशलम के या मिल्टन के कुछ पन्ने पढ़ने मात्र से हम जान सकते हैं कि आने वाले कुछ वर्षों में यदि मानव के प्रयत्न आत्मा प्राप्ति की ओर न होकर प्रणाली का ये माध्यम मात्र है । अपने आप में पूर्ण आर्थिक उत्क्रान्ति की ओर हुए तो अर्थव्यवस्था पतन की ओर चली जाएगी क्योंकि कल्की की में भयंकर परिवर्तन लाती हैं। एक ही मानव जाति अभिव्यक्ति मानव के उच्च मूल्यों की ओर जाने पर नहीं। प्लूटो की परिक्रमा में अनियमितताएं मानव के रूप में हमें चाहिए कि हम आत्मा के प्रति बल देती है। व्यापार और पैसे पर जितना समय समर्पित हो जाएं। हमने बर्बाद किया है उसने हमें कहाँ पहुँचाया सूर्य का प्रकाश मिथेन गैस को वाष्प क्योंकि ब्रह्माण्ड तो एक दूसरे ही स्तर की अभिव्यक्ति बनाकर उड़ाता है तो कभी-कभी प्लूटो पर एक की ओर बढ़ रहा है और मानव उसका एक हिस्सा जब विशेष वातावरण बनता है। ऐसा तब होता है जब है ? शनैः- शनैः मानव के सम्मुख ये स्पष्ट हो अपनी अनियमित परिक्रमा में प्लूटो सूर्य के करीब जाएगा कि केवल आत्मा के प्रति समर्पण और अहं आता है और जब मार्ग में चाँद नहीं होता ऐसे में और प्रतिअहं के त्याग के माध्यम से ही राष्ट्र और सूर्य का प्रकाश एक ओर से इस पर पड़ता है। इस मानव प्रजातियाँ जीवित रह पाएगी। बसंत का प्रकार सर्वशक्तिशाली सूर्य जो कि प्लूटो के कभी न समय प्रचुर बनाएं. क्योंकि इसके बिना इस नक्षत्र खत्म होने वाली शीतलता का विरोधी है. प्लूटो की का जरा सा भी भौतिक स्तर पर संतुलन परिवर्तन शक्ति की अभिव्यक्ति करता है। सौर प्रणाली में महान कठिनाइयों और कष्टों का कारण बन सकता श्रीमाताजी के भी तीन स्थान हैं :- हृदय में शुक्र. है। यह डराने की बात नहीं है परन्तु हमें सहजयोग चन्द्रमा और प्लूटो उनके सिर पर है। इस अवतरण को अपनाकर मानवीय उत्क्रान्ति की विस्मयकारी में प्लूटो उनका वाहन है - श्री कल्की रूप में जो अवस्था प्राप्त करने के लिए खुद को श्रीमाताजी के कि प्रलय की अंतिम शक्ति है। निर्देशानुसार सहजयोग को अपनाना होगा इस 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-26.txt मार्चं - अपैल, 2005 चैतन्य लहरी 25 वर्ष दिल्ली के एक प्रवचन में श्रीमाताजी न कहा कि स्वास्थ्य की प्रार्थना करें। उनका शरीर सहजयोगियों प्लूटो बहुत सी बीमारियों का कारण भी हो सकता के सामूहिक स्वास्थ्य को दर्शाता है। अतः यह है और निदान भी। आइए प्रार्थना करें कि हम इस आवश्यक है कि प्लूटो की शक्ति को व्यक्तिगत प्रकार से प्लूटो की शक्ति के सम्मुख समर्पित हो और सामूहिक रूप से उपयोग करके हमने स्वयं जाएं कि व्यक्तिगत स्तर पर रोग घटित न होकर को रोग मुक्त करना है। ताकि हमारे कारण से रोगों से मुक्ति ही प्राप्त हो और सम्पूर्ण मानवजाति हमारी प्रिय श्रीमाताजी को कष्ट न हो और उनका सामूहिक रोगों के लिए सहज इलाज खोज सके, असीम प्रेम बरसता रहे। जैसे कुरान में लिखा है कि ऐसे रोगों के लिए जो पूरी मानव जाति को एक जिस मनुष्य के पास देखने के लिए ऑखें और दूसरे से अलग करके कष्टों में फँसाते हैं। इलाज सुनने के लिए कान हैं वह सर्वत्र परमात्मा के प्रेम केवल ये है कि परम पूज्य श्रीमाताजी के चरणों पर उनके कार्य तथा योजनाओं को स्पष्ट देख सकता नतमस्तक होकर सहजयोग के माध्यम से उन्हें है। अपना अन्तर्परिवर्तन करने दें। इन्हीं दिनों में, मार्च 83 में श्रीमाताजी ने कहा था कि हम सब उनके इच्छा को नतमस्तक नमन करते हैं । हम सभी बच्चे सर्व शक्तिमान परमात्मा की शुद्ध (निर्मल योग से उद्धृत।) 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-27.txt माँ का प्रेम कवच ओम त्वमेव साक्षात् प्रेमतत्व साक्षात्, प्रेम दायिनी और उनकी मुस्काने उनके चेहरों को तेजस्वी बना साक्षात्, प्रेम शक्ति साक्षात् आदिशक्ति माताजी रहीं थी। उनकी एकाकारिता भरपूर थी। और श्री निर्मला देव्यै नमो नमः । साक्षात् प्रेमदायिनी, साक्षात् सर्वव्यापिणी श्री माताजी वास्तव में यह परमात्मा की बहुत बड़ी कृपा है अपने आनिन्दत बच्चों पर अपने प्रेम और कि अब सहजयोग में हम सभी को जीवन का चैतन्यलहरियों की वर्षा कर रहीं थीं। प्रेम स्वरूप माँ सत्य और सर्वोपरि प्रेममयी श्रीमाताजी प्राप्त हो के बच्चे ज्योंही परस्पर मिले माँ का प्रेम उनके गई हैं। प्रेममयी श्रीमातजी हमें अत्यन्त प्रेम करती अन्दर प्रवाहित हो रहा था और उस प्रेम से बो पूरा हैं और हर कदम पर हमारी देखभाल करती हैं। वातावरण आशीर्वादित हो उठा था इस दिव्य उनकी करुणा एवं प्रेम अत्यन्त महान है निश्चित वातावरण में कोई भी नकारात्मकता किस प्रकार ठहर सकती थी ? रूप से वे ही प्रेम का स्रोत हैं। ऐसे बहुत से मौके होते हैं जब हमें इस बात का प्रेम के इस कृपा सागर में हम सब क्रीड़ा कर रहें हैं, आनन्द से उछल रहे हैं और परस्पर प्रेम से एहसास होता है कि श्री आदिशक्ति का प्रेम नाच रहे हैं, मिलकर गा रहे हैं और ये स्थिति हमें सर्वशक्तिमान है। श्री जगदम्बा माँ के प्रेम-आगोश चैतन्य-लहरियाँ एवं आनन्द की ओर ले जा रही में हम इतने सुरक्षित होते हैं कि कोई भी चीज़ न है। सहजयोगियों के मध्य होना और इस प्रेम को तो हमें परेशान कर सकती हैं और न ही हमारे बॉटना सदैव आनन्ददायी होता है। जहाँ भी प्रेम चित्त को भटका सकती है। होगा, किसी प्रकार की नकारात्मकता या बाधा उन्होंने हमारे लिए साहस और निडरता के अश्व तैयार किए हैं और हमें इन अश्वों की सवारी करने वाले योद्धा बनाया है। हम यदि इतना महसूस कर वहाँ न रुक सकेगी और न ही कोई समस्याएं वहाँ रह पाएंगी। दिसंबर 1982 में लोनावाला शिविर के प्रथम लें कि हम अपने हाथों में उन्हीं की प्रेम खडग थामे दिन श्री महामाया ने ये बात हमें स्पष्ट दिखाई। हुए हैं, उन्हीं की प्रेम ढाल हमारी रक्षा करती है, एक सहजयोगी पकड़ा हुआ था और उसकी उन्हीं के प्रेम का आश्रय हमारा पथ-प्रदर्शन करता तबीयत खराब थी। अन्य लोग उस पर कार्य कर है और हमें सुचारु बनाता है तब हमारे अन्दर उनके विनम्र माध्यम होने का विश्वास आ जाता है। रहे थे परन्तु उसे कोई लाभ न हुआ था। अचानक कुण्डलिनी उठी और सब कुछ ठीक हो गया । हृदय और सहस्रार खुले और उस व्यक्ति को की क्षुद्र बाधाओं पर सहजयोग की विजय का आइए इन अश्वों पर सवार होकर नकारात्मकता उदधोष करें और विश्व-भर में श्रीमाताजी के नाम बहुत अच्छा लगने लगा। इस परिवर्तन का कारण स्पष्ट था। तभी यूरोप के महामन्त्र का निनाद करें। के कुछ सहजयोगी वहाँ पहुँचे थे और अपने भारतीय भाई - बहनों से गले मिल रहे थे ऐसे मिलन क़ितने सुंदर होते हैं ! एक दूसरे को गले लगाते हुए वे आनन्द- विभोर जय श्रीमाताजी (निर्मला योगा से उद्धृत। हो रहे थे। उनके हृदय से प्रेम उमड़ रहा था, आँखें चमक रहीं थीं 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-28.txt विज्ञान मनुष्य की खोज है रचना नहीं परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन- मुम्बई. 29.3.75 पहले भी Practical करके आप से बताया था कि होगा और उनका एक CO -efficient बनाकर सहजयोग क्या चीज़ है, उसमें क्या होता है, यह () पाया बनाया है यह science है न तो बह कैसे घटित होता है। उसी का मैंने वैज्ञानिक सात से आठ होगा अगर आठ होगा तो उसी व्याख्या भी दी थी, Sceintific definition दिए proportion में होगा। हमेशा एक ही proportion थे। आखिर science जिसे हम ? जब science में रहेगा। अब सात क्यों है diameter science कहते हैं, यह परमात्मा ने बनाया हुआ बिन्दु में से, मध्य बिन्दु में से diameter गुजरता है नहीं है, यह मनुष्य ने जो जो खोजा हुआ है उसे तो उसे सात होना पड़ता है। इसी प्रकार हमारे वह science कहता है। लेकिन उसने संसार की अन्दर जो सुषुम्ना गुजर गई है उसको भी सात कोई भी चीज़ बनाई हुई नहीं है। उसका कोई भी होना पड़ता है, उसमें भी सात चक्र बनाए हैं। और नियम उसका बनाया हुआ नहीं, कोई सा भी शास्त्र उसे साढ़े तीन इसलिये होना पड़ता है क्योंकि उसका बनाया हुआ नहीं है। गणित का शास्त्र भी diameter को आप आधा कर दीजिए तो साढ़े उसका बनाया हुआ नहीं है। उसके नियम उसकी तीन हो जाएगा। अगर आप साढ़े तीन वलय बनाएं. विधि, यह सब परमात्मा की बनाई हुई है जैसे कि उस पाया के ratioमें आप अगर साढ़े तीन बलय आप देखिये कि एक Circle होता है और उसका बनाएं एक के ऊपर एक, कुण्डलिनी जैसे और जो व्यास होता है उसके व्यास और उस व्यास की बीच में से आप लकीर खींच दें तो उसके बराबर परिधि में जो एक ratio होता है, proportion सात टुकड़े हो जाएंगे, लेकिन वो साढ़े तीन वलय होता है, वह आपने बनाया हुआ नहीं है। उसका होगा। है कोई यहाँ scientist या mathematician नियम परमात्मा ने ही बनाया हुआ है कि वह इससे? कहाँ है ? बराबर है कि नहीं ? साढ़े तीन वलय ज्यादा होगा या इससे कम होगा। ऐसा भी नहीं के बाद इस तरह से बनाएंगे एक के ऊपर इस तरह हो सकता है, वह जितना है वह उतना ही रहेगा। से साढ़े तीन वलय बनाएंगे और बीच में से जब उसका ratio बँधा हुआ है सब नियम जितने उसके बीच मध्य बिन्दु को छेदकर निकालेंगे तब बनाए गये हैं वो परमात्मा ने बनाए हुए हैं। आप उसके अन्दर में वह सात जगह कटेगा और इसीलिए लोगों में से बहुत से लोगों ने मुझसे पूछा है कि अपने अन्दर सात चक्र हैं । लेकिन circumference माताजी आप साढ़े तीन कृण्डल कहतीं हैं, कुण्डलिनी का हिसाब किताब अलग लगता है कि बाइस का के साढ़े तीन कुण्डल क्यों कहती हैं ? एकदम आप ग्यारह करें तो ग्यारह होता है। देखिए कितना scientific बात है। जो समझने वाला है वह समझ गणित है ? हरेक चीज का कितना गणित है आप सकता है। आपने कभी घड़ी को देखा है क्या ? देखिए जो मध्य में चीज़ चलती है तो सात के घड़ी में आप देखें तो circle का जो व्यास होता हिसाब से चलती है और जो उसके प्रकार में चलती है जिसको कि आप diameter कहते हैं और जो है उसका जो प्रकार होता है वह ग्यारह के हिसाब 1 circumference होता है, तो अगर वह सात हो से चलता है इसीलिये अपने यहाँ अगर आज तो यह बाइस होना पड़ता है, उससे ज्यादा नहीं किसी को रुपए देते हैं तो ग्यारह देतें हैं। अब होगा कम नहीं होगा, यह सात होगा तो वह बाइस आपको समझ में आया होगा कि ग्यारह का क्या होगा। उसका relationship हमेशा 22 व 7 महत्त्व है। 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-29.txt मार्ध - अप्रैल, 2005 वैशन्य लहरी 28 ८ ने हमारे शास्त्रों में जो चीज़ें लिखी हुई हैं ये छोड़ कर और आप लोग जो मेरे बेटे हैं व मेरी अनादि हैं। उसको बड़े-बड़े गणितज्ञ भी समझ लड़कियाँ हैं. जो मेरे सहस्रार से पैदा हुए हैं, मैंने नहीं पाएंगे क्योंकि साधुओं ने जो खोजा वह लिख किसी को नहीं देखा है जो कुण्डलिनी को इशारे दिया उन्होंने लिखा कि कुण्डलिनी साढ़े तीन बार लपेटे हुए एक coil है, एक कुण्डल है लेकिन यह कहेंगे कि भई ये कैसे ? इन लोगों ने इतनी यह नहीं बता पाए कि वह ऐसे क्यों है। Scientist मेहनत करी, इतना किया, यह कैसे ? एक पते की बता पाएंगे कि आप साढ़े तीन इस तरह से बात आपको बता दें जो कि राजा का मंत्री होता है लपेटिएगा तो पूरा circumference उसका cover वह सबकुछ जानता पर खड़ी कर दे। बात सही है। इसमें बहुत से लोग है कि राज्य को कैसे चलाना हो सकता है। उसके बगैर हो ही नहीं सकता है। है और वो राज्य का सारा कार्यभार संभालता है। और बराबर सात ऊपर से नीचे तक छेद दीजिए सबकछ है, लेकिन जो घर की लक्ष्मी होती है, रानी उसमें बड़ा सा चक्र तैयार हो जाएगा। अब होती हैं. वह अपनी चाबियाँ अपने बच्चों के हाथ में Scientist इधर में खोज रहे हैं और उन्होंने देती है, लेकिन मंत्री के हाथ में नहीं देती। होंगे पढ़े उधर खोज लिया। अब इन दोनों के बीच एक लिखे, बहुत विद्वान होंगे होंगे बहुत पहुँचे हुए पुरुष, अधूरापन है, वह सहजयोग से पूरा हो सकता है। लेकिन मेरे सहस्रार से पैदा जो नहीं हुए हैं जब तक सहजयोग science जहाॅ रुक गया है, Science वे इस बात को मान नहीं लेते कि वे मेरे बेटे हैं जहाँ झुक गया है और Science जहाँ हार गया उनको यह अधिकार मिल नहीं सकता और मिला है वहाँ उसको आशा दे सकता है और उसे बता भी नहीं। इसके लिए बहुतों ने मुझसे सवाल जवाब सकता है कि जो उन्होंने बताया है वही तुम्हारी किए हैं अपने शिष्यों ने भी कि माताजी हम उनके किताबों में लिखा है । परिभाषाओं का फंर्क है। पास गए थे, गुरुजी के पास गए थे, वह इतने बड़े उसका कारण क्या है ? सहज योग उन साधुओं आदमी हैं, आप उनको मानती हैं पर उनको तो यह को भी पर्याप्त में ले जाता है, उन ऋषि मुनिओं काम नहीं आता जैसे हमें आता है। हमें तो मालूम को भी पर्याप्त में ले जाएगा जिंहोंने खोज के है कि कौन से चक्र कहाँ पकड़े होते हैं, कहाँ कैसा निकाला है। आपको आश्चर्य होगा, पर है बात होता है, हम तो यू करके ऐसा हाथ कर देते हैं तो सही। हमने बहुत बड़े साधु योगीराज देखें हैं वे ऐसे यहाँ पैसा बैसा इक्कठा नहीं करते फिरते हैं, हजारों की कृण्डलिनियाँ उठती हैं और हम सबको ै दूसरों के चक्र छूट जाते हैं और हमारे इशारे पर वे बहुत बड़े जन हैं। वे अपने संसार से बाहर रहकर के और संसार की vibrations से सेवा सब मेरे सहस्रार से पैदा हुए हो। एक और ऐसा कर रहें हैं। किन्तु हमने अभी तक किसी भी ऐसे इन्सान है ईसा मसीह जो कि माँ के हृदय से पैदा आदमी नहीं देखा है कि जो आप लोगों जैसे हुआ था। उसको भी यह अधिकार है। लेकिन वह कुण्डलिनी को उठा सकता है। एक इशारे से, समय भी ऐसा नहीं था कि वह यह काम कर पार करा देते हैं। यह कैसे ? वजह यह है कि तुम सिवाए गणेश जी को छोड़ कर। गणेश के हाथ सकता। पर आज वह समय भी आ गया है और में जो एक छोटा सा साप होता है बही आप की कुण्डलिनी का प्रतीक है। सिवाए गणेश जी को है कि तुम कहो कि हम तो सामान्य लोग हैं, हम लोग तैयार भी हो गए हो। अब तो हो सकता तुम ho ति 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-30.txt माध - अप्रैल 2005 29 चैतन्य लहरी अत्यंत सामान्य हैं और हम यह कैसे काम कर ।am the Path", वही मेरी भी बात है।। am the सकते हैं? पता नहीं, लेकिन करते हो तो न इसमें Destination not only the Path । लेकिन मैंने तो कोई शंका नहीं है तुम लोगों को कि तुम सबकी यह बात आज तक आप लोगों से कही नहीं थी। कुण्डलिनियाँ देख सकते हो, जान सकते हो और इसलिए क्योंकि पिछले अनुभव इतने खराब रहे । समझ सकते हो कि किसका हृदय चक्र पकड़ा है, इसी वजह से मैंने बात नहीं की। आप लोगों को किसका क्या पकड़ा है और उसे कैसे निकालना है मेरी शरणागत लेनी पड़ेगी, मुझे माँ मानना पड़ेगा और कैसे ठीक करना है हजारों भूत बाधाएँ और और मेरा बेटा बनकर के जीना होगा उसके बगैर बीमारियाँ और दुनिया भर की चीजें तुम लोग आपका कार्य नहीं होगा इसी एक छोटी सी वजह निकाल कर फेंक देते हो। और इन लोगों को के कारण आप लोग इस दशा में पहुँच गए कि देखिए, मैंने बड़े-बड़े महन्तों को देखा है कि हम बड़े-बड़े सन्त महात्मा लोग हार गए लेकिन बह वहाँ गए थे, हमें भी लकवा मार गया क्योंकि हमने नहीं पा सके एक तो मेरा साक्षात् उनसे नहीं हुआ किसी का लकवा ले लिया। तुम्हें तो न लकवा और दूसरी चीज़ अभी उनमें अहंकार बना हुआ है, स्वीकारे ही नहीं हैं क्योंकि बो अन्जान में पार मारता है न कुछ नहीं मारता है। जब से तुम लोग पार हुए हो गए तुम्हारी तन्दरुस्ती ठीक हो गई। हो गए, उन्हें पता ही नहीं कि उनकी माँ कौन है। अगर किसी की खराब हो भी जाए ज़रा तो वह यूं लेकिन तुमने मुझे जाना है तब तुम लोग पार हुए ही ठीक हो जाती है। खैर छोड़िए। यह तुम लोगों हो। यह समझ के रखो कि जरा सा तुमने इधर कुछ अनुभव हुए हैं। इस पर राहुरी में भी मुझसे प्रश्न उधर कदम डगमगाया तब vibrations तुम्हारे छूट हुआ था। वहाँ मैंने इतनी openly बात नहीं कही जाते हैं तब तुम कहते हो माताजी यह तो All थी लेकिन बात यह है कि तुम मेरे सहस्रार से पैदा pervading है तो यह vibrations कैसे छूट जाते हुए हो। मेरे सर से मैंने तुमको पैदा किया हुआ है हैं ? All pervading में भी कहाँ से vibrations इसलिए तुम्हारे लिए विशेष अधिकार है । तुम लोग जाते हैं, सोचना पड़ता विशेष अधिकारी हो। मानती हूँ कि बाकि जो लोग किसी भी जगह रहें, जिस वक्त आप लोग सहजयोग हैं वे भी सहजयोग से पार हुए हैं बड़े-बड़े के विरोध में अगर एक अक्षर भी कहेंगे तो आपके साधु सन्त भी सहजयोग से पार हुए हैं अविरल vibrations छूट जाएंगे और उसके बाद आप जो क्रियाएं करके, हजारों वर्ष तपस्या करके। लेकिन भी कार्य करेंगे जिस भी कार्य में आप रहेंगे उसमें उनके अन्दर अभी तक acceptance नहीं है भूत आपका साथ देगें, माँ नहीं देने वाली। मैंने ऐसे मेरी। के है। आप लोग कहीं भी रहें, भी लोग देखे हैं जो मेरे यहाँ आते हैं थोड़े दिन आज आपसे मैं खोलकर कह रही हूँ कि आप vibrations लेते हैं और उनके ऊपर जब कुछ भूत जब तक मुझे accept नहीं करिएगा तब तक यह बाधाएँ चढ़ जाती हैं तो वे भूत बाधा का काम करने काम नहीं होगा। मैंने यह बात पहले नहीं कही। लगते हैं उनका ढंग और हो जाता है, उनका जैसे कृष्ण ने कहा है कि "सर्व धर्माणां परित्यज्य तरीका और हो जाता है । उनका बताना और हो मामेकम शरणं ब्रज | " ऐसी ही मेरी भी बात है। जैसे कि Christ ने कहा था "| am the Light, बताते हैं कि घोड़े का नम्बर कौन सा है, तेरे बाप जाता है। फिर वह कुण्डलिनी नहीं देखते हैं, वो ये 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-31.txt चैतन्य लहरी मार्च अप्रैल, 2005 30 का क्या होगा, तेरे माँ का क्या होगा, असलियत में है। आज वह समय आ गया है कि आप ही का नहीं आते ऐसे अनेक लोग हमारे इस सहजयोग माँगना आप ही की चाहत, आप ही लोगों की में आए और बिछड़ गए. थोड़े दिन रहे बिछुड़ गए पुकार साकार मेरे अन्दर घुस जाए मैं स्वयं से फिर उन्होंने थोड़े दिन काम वाम किया इस तरह नहीं आई हूँ। मैं आप ही की पुकार से आई हूँ। का, बड़े अपने को साधु गुरु महात्मा समझकर के आपके आनादि काल से जो पुकार व चिल्लाहट हो काम किया और उसके बाद देखा यह गया कि रही थी उसी के कारण मैंने यह शरीर धारण उनके ऊपर बाधाएँ जम गई और वो बहुत ही किया और अब भी आप ही लोग जो सर्व साधारण नुकसान व तकलीफ में फँस गए इसीलिए एक जन हैं, मुझे पहले पहचानेंगे और जो यह बड़े-बड़े बात आप जान लीजिए कि सहजयोग के विरोध में साधु सन्त और बाबाजी बन कर बैठे हैं यह पहचानेंगे बात करने से, मैं चाहे आपको माफ कर भी दें नहीं, जैसे न इन्होंने सीता को पहचाना था न राध लेकिन परम पिता परमात्मा आपको कभी माफ नहीं T को पहचाना था न मेरे को पहचाना। और अब भी करेंगे। हमारे घर में मेरी अपनी लड़की का मैं यह लोग नहीं पहचान पाएंगे। यह अब भी बड़े आपको बताती हैँ कि एक दिन जरा सी गुस्सा हो घमण्ड में बड़े बाबाजी बनकर बैठे हुए हैं। जो 1. गई मेरे ऊपर, फौरन उसके कान में से गरम गरम इन्सान अपनी माँ को भी नहीं पहचानता है उसको हवा निकलने लगी। उससे मैंने कहा कि तुम कान बाप क्यों पहचानें अपने रगड़ लो और कहो की माफ कर दो। मुझसे सहजयोग को खिलवाड़ नहीं समझना चाहिए । ऐसी बात कहना गलत है। सहजयोग के विरोध में सहजयोग को एक साधारण चीज़ नहीं समझना तुमने एक अक्षर कहा, हालाँकि तुम मेरी अपनी चाहिए। यह बड़ी अनुपम अजीब, अजीबो गरीब लड़की हो लेकिन तुम्हें अधिकार नहीं है । यह चीज़ आई है। क्या आपको कभी किसी किताब में सबसे बड़ी अनाधिकार चेष्टा है जो मैं आपके ऐसा लिखा मिला है कि अगर यह आपका चक्र सामने आज खड़ी हूँ। यह आप लोगों के बुलाने पकड़ता है तो यह विशुद्धि चक्र है। क्या आपको का फल है। ऐसे भी देखिए कि मन्दिरों में मस्जिदों कहीं पता हुआ है कि नाभि चक्र होता है और यह में, और जहाँ-जहाँ भक्त लोग माँ को पुकारते हैं सहस्रार होता है ? आपको कभी किसी ने यह बातें तो माँ का हृदय उछलने लग जाता है। आपने बताई हैं क्या ? आपको कुण्डलिनी के बारे में किसी देखा है कि आप जब कभी जरा सा भी आप गाना ने भी इतने खुल्लमखुल्ला कोई बात बताई है और गाते हैं तो मेरे बदन से अनगिनत vibrations दिखाई है क्या ? किसी ने भी इस तरह से संसार बहने लग जाते हैं। अगर कहीं भी मैं जरा सा गाना में आज तक, हमने भी पहले कभी भी यह कार्य सुन लेँ या record सुन लूँ या cinema में ऐसा नहीं किया जैसे आज हो रहा है । लेकिन आप दिखाई दे जहाँ माँ को पुकारा जा रहा है तो मेरे सारे बदन से जैसे करोड़ों रश्मियाँ फूट पड़ती हैं आप जो लेने आए हैं वो बहुत बड़ी चीज़ है बहुत जैसे vibrations निकल रही हों। यह आपने भी ही बड़ी चीज़ है। उसका अन्दाज ही आपको आज जाना हुआ है। यह आपने भी देखा हुआ है। इस नहीं है एक दिन आएगा, चाहे मेरे ही आँख के चीज को आप भी समझते हैं कि ऐसा माँ को होता सामने आजाए या बाद में आए, जब संसार में यह लोगों का आधा अधूरापन इसको खत्म कर देगा। 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-32.txt मार्च - अप्रैल, 2005 सैतन्य लहरी 31 पता हो जाएगा कि हम लोग अब एक नए आयाम क्योंकि मनुष्य की अक्ल अपने जैसी दौड़ती है न। में dimension में उतर गए हैं लेकिन आप लोगों उसको छूने की कोई जरूरत नहीं थी उसके बाद का आधा अधूरापन, हो सकता है कि. संहार की उसके जो पुजारी जो हमने देखे उनके सबके चक्र गति शीघ्र कर दे। धर्म का चक्र उल्टा घूम रहा है, पकड़े हुए यह आप जानते हैं और वह दिखाई दे रहा है । चक्र पकड़े हुए हैं और उसपर जो सिन्दूर चढ़ाया उसको सीधा घूमाने का कार्य सिर्फ सहजयोग से था और जो बेल चढ़ाया था वह सब पकड़ा हुआ ही हो सकता है लेकिन जो लोग सहजयोग में आ रहे हैं उनको अत्यन्त धार्मिक, अत्यन्त सदचित्त जागृत स्थान है लेकिन इतनी अक्ल नहीं है कि अब और अत्यन्त उदार चित्त होना पड़ता है। धर्म की भी इसमें से vibrations पूरे आ रहे हैं कि आधे आ पूर्ण व्याख्याएं उनको सीखनी है। सिर्फ Vibration से नहीं होता है । बहुत से लोग मेरे सामने आते चक्र उस मूर्ति के भी पकड़े हुए थे। और मेरे समझ हैं तो बड़ी जोर-जोर से vibration उनके अन्दर में नहीं आया । जब मैं अन्दर मंदिर में जाकर बैठी आते हैं और जब बाहर चले जाते हैं तो ऐसे नहीं तब पंडित जी कहने लगे कि आप अन्दर नहीं बैठ होता है। ऐसा तो हर जगह ही आना चाहिए सकते आप बाहर बैठिए और आप उनको हाथ आपको। ऐसी कौन सी जगह है जहाँ हम नहीं नहीं लगा सकते तो मैंने यह सोचा कि अगर हम हैं? हर जगह यह vibration आने चाहिएं आपको इसको हाथ भी नहीं लगा सकते तो इसको हम और इतने बलवत्तर होने चाहिए कि किसी भी क्या कर सकेंगे ? यह मूर्ति तो ऐसी ही रह प्रकार के काले vibration इसके ऊपर नहीं चढ़े। जाएगी तो पीछे से गए और पीछे से, जाकर के क्योंकि आप जीवंत हैं अभी हम राजन गांव के वहाँ उस मूर्ति की ओर हमने देखा और पीछे से गणपति के पास गए थे। वहाँ हमने देखा कि अपना सर, अपना सहस्रार ही जाकर लगा दिया तो राजन गांव के गणपति को उस गणपति में से उसके अन्दर से इतनी जोर से vibration निकल बहुत थोड़े-थोड़े vibration आ रहे थे । और जो आई इसलिए यह जान लेना चाहिए कि आप लोग हमारे साथ थे वे इतने आश्चर्य चकित हो गए जीवंत हैं। आपके अन्दर कहीं अधिक, इन मंदिरों कि जब जागृत स्थान है तो इसमें vibration इतने कम क्यों आ रहे हैं ? मैंने कहा कि पहले तो यह मगर जीवंत रहिए । मरी हुई चीजों का तो जो लोग बात सोचो कि इसको पहचाना किसने कि यह शौक करते हैं या मरी हुई बातों का शौक करते हैं जागृत स्थान है। यह मनुष्य ने किया है ? जिसने वे लोग मर जाते हैं । जिन्दा होते भी मर जाते पहचाना कि यह जागृत स्थानि है वह कोई न कोई हैं जड़ वस्तुओं के पीछे में भागना एक इस तरह साधु सन्त रहा होगा कि उसने यहाँ vibration का शौक है। उसकी ओर भागना या उससे भागना देखे होंगे और कहा होगा कि यह जागृत स्थान दोनों एक ही चीज़ है। सन्यास भी लेना बही चीज़ थे वह जितने भी पुजारी हैं और उनके था। मनुष्य को इतनी अक्ल जरूर है कि यह रहे हैं कि कौन से vibrations आ रहे हैं । तीन से भी अधिक, vibrations आ सकते हैं। आप हुए है फिर जब वह जागृत पत्थर लाया गया तो हो है और सन्यास से भागना भी वही चीज़ है। दोनों सकता है किसी ने उसे shape देने के लिए थोड़ा में कोई अन्तर नहीं है। आप अपनी स्थिति पर खड़े बहुत चलाया हो, हो सकता है नहीं भी हो सकता। हो जाइए। 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-33.txt मार्च - अप्रैल, 2005 এ2 चैतन्य लहरी पहली चीज़ दूसरी चीज़ अपना धर्म बनाइए। धर्म का मतलब है जो पढ़े-लिखे अपने को बिद्वान समझते हैं, ऐसे आप अपने अन्दर में से इन vibrations को पूरी महामूखों को तरह से बहने दीजिए। आपका मन होता हैं कहीं अपने आप ही अकरमात् आपको innocense में ही गए। आपने देखा वहाँ एक आदमी गिर गया, होता है, बहुतों को हो जाता है, हज़ारों को होता है दौड़िए, उसको फौरन पकडिए, उसे vibrations आप को भी होना चाहिए। लेकिन बेकार की झूठी दीजिए, बचाइए। दुनिया कहेगी, कहने दीजिए। बातों को आप पकड़ कर रखिएगा। और अगर आप आपके अन्दर से vibrations बह रहे हैं, यही झूठी बातें करियेगा और झूठी बातों में ही आप पूरी आपका धर्म है। मैंने आपसे बताया था कि सोने का तरह से जमें रहियेगा जो आप को जड़ बना रही धर्म यह नहीं कि वह पीला है। उसका धर्म यह भी हैं तो इस जड़ता से आप भी तो जड़ ही हो जाएंगे। नहीं कि उससे कुछ जेवर बन सकते हैं। उसका जो चैतन्य आपके अन्दर से बह रहा है उसको आप धर्म बस एक ही है कि वह किसी चीज़ से खराब कैसे किस प्रकार प्रसारित कर पाए। थोड़ा बहुत नहीं होता। इसी तरह हीरे का भी एक ही धर्म है समय इसके लिए देना पड़ेगा यह मैं पहले कह कि वह हर चीज़ को काट सकता है व hardest चुकी हूँ, यह बात सही है । लेकिन यह priority है। इसी प्रकार मनुष्य का एक धर्म होता है कि उस की चीज़ है । आपके priority बदलने पड़ेगी। थोड़े परमात्मा को पा लेना और जान लेना और जिस दिन जब इस priority आ जाएगे तो इसका मजा है आप अपनी स्थिति बनाइए। होना होता है। बहुत से लोगों को होता नहीं है। कुछ नहीं होता। मैं क्या करू यह तो TI मनुष्य ने उसे पा लिया है उस मनुष्य का एक ही आपको आने लगेगा सारे संसार में जितना सुख धर्म होता है कि उस पाई हुई चीज़ को पूरी तरह और मजा है सारे संसार का जितना आर्कषण और से आत्मसात् करके पूरे संसार में प्रसारण करे । सौन्दर्य है. सारे संसार का जितना भी धन दौलत लेकिन इधर उधर की बातें और वही जड़ता के सब कुछ जो भी है जो कुछ भी जिसे आप दौलत, तरीके, उससे आप बिल्कुल न तो इधर के रहेंगे न सब कुछ, जो भी है, जो कुछ भी जिसे आप उधर के रहेंगे। आपके vibrations खो जाएंगे और मेरी जितनी भी मेहनत है सब बेकार हो समझते हैं उन सबका सरोत यह है। ये जानता भी जाएगी कोई भी धर्म संसार में ऐसा नहीं है जिसने है, प्यार भी करता है और सौन्दर्य भी है। यही वह vibrations की बात न कही हो। माने असली शक्ति है जिसके बारे में हमने हजारों बार पढा है धर्म। किसी ने भी ऐसा नहीं कहा है कि vibrations और हजारों बार इसके बारे में हमने जाना है। इसी नहीं होते हैं। हर एक जगह इसे रूह कहते हैं, इसे शक्ति के सहारे सारी सृष्टि की रचना हुई है और water of life कहते हैं कुछ भी कहते हैं लेकिन इसी के द्वारा आप भी उसको जानेंगे जो यह शक्ति हर जगह कहा है कि vibrations होते हैं और है। यह एक बहुत बड़ी बात है। वह धीरे धीरे हिन्दु धर्म में तो साक्षात् आप जानते हैं कि इसी पर फैलना चाहिए । इतनी बड़ी बड़ी बात इतनी जल्दी न जाने कितनी विवेचना की गई है। आदि शंकराचार्य नहीं फैलती, कोई सी भी जीवन्त चीज है धीरे धीरे knowledge कहते हैं, जिसे आप ज्ञान करके 1 ने भी। इसमें कुछ पढ़ा नहीं जा सकता कुछ लिखा पनपती हैं। मैं देखती हूँ जड़ जम गई है. उसकी नहीं जा सकता, कुछ समझा नहीं जा सकता। यह जड़ बहुत गहरी जम गई है अभी मैं शहरों से 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-34.txt अप्रैल 2005 मार्च चैतन्य लहरी 33 र होकर आई हूँ । मुझे बड़ी खुशी है कि वहाँ के से जाने व पाएं जैसे कि गोपी और गोप कृष्ण के scientist लोगों ने इसे बिलकुल scientifically जमाने में खोज रहे थे और जानने के प्रयत्न में कर दिया। अपने पौधों पर, इस पर, उस पर थे और आज आपको वह चीज़ पूरी तरह से मिल experiment करके एकदम scientific चीज बना गई है। मैने आपको अनेक बार बताया है कि गोप ली है और वे कह रहे थे कि हम goverment से से गोपनीय इसको जितनी भी गहराई की बातें हैं भी इसके लिये लडेंगे कि यही चीज़ सत्य है और मैं सब आप को बताने के लिए आई हूँ। लेकिन आप उसके अधिकारी हो जाएं। जिनको अधिकार देने से बह सत्य नहीं होता। आपकी अपनी शक्ति ही नहीं है उनको यह बात नहीं बता सकती थी। आपको अपनी शक्ति उस शक्ति से एकाकार हो इसीलिए जो बात आज मैंने सर्वप्रथम कही है जा रही हैं जो आप के अन्दर बसी हुई हैं। जैसे इससे पहले कभी भी इतना खोलकर कही नहीं। आप में से यदी किसी को प्रश्न पूछना हो तो एक मटको में पानी रहता था जब उन मटको में छेद दो आदमी को पूछने दीजिए जिसे प्रश्न पूछना है हो जाता था तभी वह पानी और उन मटको का कृपया प्रश्न पूछे। जरूर पूछना चाहिए प्रश्न। बाकि सारे जितने भी असत्य हैं उसका नाम सल्य कि जमना में बहुत से मटके रहते थे और उन पानी एकाकार हो जाता था उसी तरह से अपना क्योंकि मुझे पता ही नहीं तुम लोगों का क्या प्रश्न भी हाल होना चाहिए। आप भी उसको उसी तरह है। य 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-35.txt मुम्बई 30.3.75 परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन अधिकतर प्रगल्भ है, developed है । मनुष्य पूरी तरह से इन तीन शक्तियों में पूर्णतया कल मैंने आपसे बताया था, सबको सुनाई दे रहा है या नहीं ? पीछे में सुनाई दे रहा है ? आपसे मैंने यह बताया था कि मनुष्य का शरीर mature हो गया है, बड़ा हो गया है। अब उसकी तैयारी हो गयी है कि उन तीनों शक्तियों उसका मन, उसकी बुद्धि, आदि उसका जितना भी पूरा व्यक्तित्व है उसकी जितनी भी personality है वह सब कुछ तीन तरह के शक्ति से बना हुआ है एक शक्ति जिससे कि हम अस्तित्व बनकर रहते हैं। वह मनुष्य में प्राण का संचय, जो एक शक्ति परमात्मा का प्यार है उनका प्रेम है उसे जाने। जो एक शक्ति ही तीनों में बंट गई है वो एकाकार हो जाए, उस परम शक्ति का एक थोड़ा सा अंश हमारे अन्दर कुण्डलिनी के रूप में त्रिकोणाकार अस्थि में सोया हुआ रहता है। जिस वक्त कोई भी ऐसा इन्सान जिसने इस प्रेम को अपने अन्दर ले लिया हो और जिसके अन्दर यह शक्ति से स्वरूप होती हैं जिसका स्थान हवृदय में होता है। दूसरी शक्ति जो कि हमारे पेट में होती है जिसके कारण हमारी आज मनुष्य दशा तक उत्क्रान्ति हुई है, वह है धर्म। और तीसरी शक्ति जो एक चेतनामय है जिससे हमें बुद्धि आदि अनेक चेतना के अवलम्बन मिले हैं लेकिन यह तीनों ही शक्तियाँ सर्वव्यापी परमात्मा के प्रेम से समग्र होकर integrate हो बह रही हो, माने कि जो आदमी realised soul हो, वह किसी साधक के ऊपर अनुग्रह करता है तभी कुण्डलिनी, आपकी माँ, जागृत होती है। लेकिन वैसा साधक अगर सोचे कि नहीं मैं ही अपनी कुण्डलिनी जागृत करूँगा तो वैसी ही बात हुई है कि जो गाड़ी चलाना नहीं जानता है बह पाई जाती हैं। परमात्मा बन सर्वव्यापी प्रेम इन तीनों शक्तियों को संचालित करता है, समग्र बनाता है, माने integrate कर देता है। जैसे कि जड़ वस्तु में भी जो vibrations दिखाई देते हैं. जिसे electromagnetic vibrations कहते हैं, वो भी उसी स्थिति स्वरूप, प्राण का ही सोया मोटर चला रहा है। जिसको मोटर चलाना नहीं आता है ऐसा अगर आदमी मोटर चलाए तो मोटर का कचरा बन जाता है। इसी प्रकार हुआ स्वरूप है। जब बह जाग जाता है तब वह जो लोग अपनी कुण्डलिनी स्वयं जागृत करना चाहते हैं तो वे अपनी सारी ही कुण्डलिनी की संस्था को उसके सारे instrument को पूरी प्राण हो जाता है। जो एक छोटे से amoeba में पेट में भूख लगती है, वही मनुष्य के अन्दर में धर्म के रूप में जागृत हो जाती है। धर्म हर एक वस्तु मात्र में है। जैसे कि मैंने आपसे बताया था कि सोने का धर्म यह नहीं है कि बह पीला है । तरह नष्ट भ्रष्ट कर देते हैं। अगर कोई अन्जान आदमी इस कुण्डलिनी को जगाना चाहता है तब भी यही हो जाता है। कोई अगर अपवित्र आदमी आपकी माँ के ओर अग्रसर होता है उसका धर्म यह भी नहीं है कि उससे आप जेवर बना सकते हैं। लेकिन सोने का धर्म यह है कि वह किसी भी हालत में ifarmish नहीं होता खराब नहीं होता। अब जो तीसरी चीज़ है चेतना, और उसको जगाना चाहता है तब भी ऐसा ही हो जाता है । और कोई अगर आदमी आपको पैसे के लिए, आपको लूटने के लिए, आपको वो मनुष्य में, मनुष्य के मस्तिष्क में, सबसे 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-36.txt मार्च - अप्रैल 2005 35 बैतन्य लहरी बेवकूफ बनाकर के कुण्डलिनी पर हाथ डालता है आदमी को चाहिए कि वह अपना समय और किसी तब भी यही काम हो जाता है। वही इन्सान जो कार्य में लगाए लेकिन कुण्डलिनी के ऊपर अपना परमात्मा के प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति से पूरी तरह हाथ न रखे। कुण्डलिनी जितनी सौम्य है जितनी प्लावित हो, जिसके अन्दर सामूहिक चेतना पूरी कृपालु है, जितनी वरदायनी है, जितनी मातृ हृदय तरह से बह रही हों, इस बात का अधिकारी है कि से प्लावित है उतने ही उसको संभालने वाले गण. कुण्डलिनी पर आमन्त्रण का आरोप करे कुण्डलिनी deity जो कि उसकी रक्षा करते हैं, वह प्रखर और का आमन्त्रण ऐसे वैसे आदमी भेज नहीं सकते। तेजोमय हैं किसी भी प्रकार का खेल जब और जो इस तरह से भद्दे प्रयत्न करते हैं वह बड़े कुण्डलिनी के साथ होता है. तो वह पूरी तरह से भारी पाप के भागीदार हो जाते हैं । जो दूसरे की कुण्डलिनी की रक्षा में तत्पर रहते हैं और ऐसे लोगों कुण्डलिनी नष्ट कर देते हैं. उनकी स्वंय कुण्डलिनी जन्म जन्मांतर के लिए नष्ट हो जाती है और वे कीड़े मकोड़े के जन्म लेते हैं। इसलिए किसी साधक की कुण्डलिनी अनाधिकार चेष्टाओं कुण्डलिनी के साथ खेलने का साहस कभी न करें। से धायल करना इससे बढ़कर कोई भी पाप बाकी सब चीजों में ठीक है आप चोरी करिए, आप संसार में नहीं है माँ की हत्या से भी बढ़कर यह Smuggling करिए कोई हर्ज नहीं लेकिन आप पाप है कि आप किसी की कुण्डलिनी को हाथ लगा कुण्डलिनी के मामले में मेहरबानी से दूर रहिए। रहे हैं अनाधिकार चेष्टा से । कुण्डलिनी को करने का अधिकार परमात्मा के सिवाय और कोई नहीं दे सकता। जब तक हुई है और उसे पवित्रता से भरा हुआ है। यह सारी की को नष्ट भ्रष्ट कर देते हैं। जो इस तरह का पाप करते हैं। सबसे बड़ा पाप, संसार में यही है कि परमात्मा ने यह सारी सृष्टि अपने प्रेम से बनाई जागृत स्वयं परमात्मा की शक्ति इसका अधिकार आपको सृष्टि अत्यन्त पवित्र है। उसमें जो कुछ भी अधर्म न दे तब तक यह आपके पास अधिकार नहीं है कि है और बुरा है वह मनुष्य ने ही संचित किया हुआ आप college में जाकर इसकी degree ले लें है। क्योंकि मनुष्य ही ऐसा जीव संसार में बनाया और कहें कि हम कुण्डलिनी जागृत कर सकते हैं गया जो स्वतन्त्र है। बाकी सारी ही सृष्टि परमात्मा इस तरह के झूठे बहुत लोग आजकल संसार में के इशारे पर नाचती है एक पत्ता भी उनके इशारे दिखाई दे रहे हैं और वे जान नहीं रहे हैं कि हम के बिना नहीं हिलता। सारी सृष्टि में जो अधर्म से कितना बड़ा घोर, अत्यन्त भंयकर पाप कर रहे हैं। अधर्म है, जो नर्क से नर्क है जो पाप से बढ़कर पाप कुण्डलिनी का काम अत्यंत कुशलतापूर्वक करना हैं, वह मनुष्य का ही बनाया हुआ है इसकी रचना पड़ता है। इतना ही नहीं अत्यंत प्रेमपूर्वक करना मनुष्य ही ने की है और ऐसे ही गिरे हुए अधर्म लोग पड़ता है और सबसे बड़ी बात है कि वह प्रेम भी जब अधर्माधम की स्थिति में पहुँच जाते हैं तब वे अत्यंत पवित्र होना पड़ता है। पवित्रता यह धर्म के शैतान के रूप में विचरण करने लग जाते हैं। रोम-रोम में छाई हुई शक्ति। जो आदमी पवित्र शैतान परमात्मा ने नहीं बनाया, उसको मनुष्य ने नहीं होता है, जो दूषित विचारों से भरा रहता है, बनाया है और वह शैतान की पूजा करते हैं क्योंकि जिसका सारा चित्त दूसरों का पैसा, दूसरों की उसने ही उसकी रचना की है। जब तक हम शैतान पत्नी या दूसरों को लूटने की ओर होता हैं ऐसे को शैतान नहीं कहेंगे, जब तक हम अधर्म को 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-37.txt अप्रैल 2005 मार्च अ चैतन्य लहरी 36 अधर्म नहीं कहेंगे, जब तक हम बुराई को बुराई अत्यन्त अधर्म कार्य करके जो शैतान तैयार किया नहीं कहेंगे, तब तक हमारे अन्दर अच्छाई जागृत हुआ है उस शैतान के बादल आज भी संसार के नहीं हो सकती। आपने सुना होगा कि जब लोग ऊपर इतनी बुरी तरह से मंडरा रहे हैं कि हो मक्का जाते हैं तब रास्ते में एक वहाँ शैतान की संकता है कि अगर सहज योग पूरी तरह से न मूर्ति बनाकर बिठाई गई है और सब लोग अपने घर पनप पाया तो वह दिन दूर नहीं जबकि इन लोगों से एक पुरानी चप्पल लेकर वहाँ जाते हैं और पहले का सबका सर्वनाश हो जाए और अन्धकार के गर्भ शैतान को मारते हैं, माने कि उसको धिक्कारते हैं। में हम डूब जाएं। उस अन्धकार में भी सहजयोग में उसको धिक्कारे बगैर परमात्मा आप को स्वीकार जिन जीवों ने परम कार्य किये हुए हैं वो सितारों ही नहीं करने वाले और उनके स्वीकारे बगैर कुछ जैसे चमकेंगे सितारों जैसी उनकी महिमा होगी। भी आप को नहीं मिलने वाला, आप चाहे कुछ भी यह वह बड़ा आपका स्थान है। आज आप इसको कर लीजिए। उनकी मेहर आप पर होनी चाहिए. समझ नहीं पा रहे हैं लेकिन इतिहास में इस बात उनकी दया आप पर होनी चाहिए, उनका प्रेम की चर्चा होगी कि कितने सहजयोगियों ने सत्य पर आपकी ओर उमड़ना चाहिए। वह अत्यंत दयालु, अपने पैर जमा लिए थे। करुणामय शक्तिमान प्रभु परमेश्वर हैं । लेकिन अगर आप अधमाधम कार्य में बैठे हुए हैं और आप की ओर उलझने की जरूरत नहीं है। आप बहुत उस शैतान की पूजा कर रहे हैं जिसने संसार में बड़ी चीज़ पर जमे हैं। इतनी बड़ी चीज़ पर एक अजीब तरह का चक्र चला दिया है, जिसने अध जमने वाले लोगों को चाहिए कि छोटी मोटी चीजों र्म का एक चक्र चलाया हुआ है और जिसके बहुत की ओर बिल्कुल भी ध्यान न दें। आपके अन्दर की सारे अनुचर संसार में पैदा होकर अधर्म को फैला भी शक्ति आपकी स्वयं की तैयारी पर ही प्रभावित रहे हैं. जब तक उस शैतान को तुम पूरी तरह से होती है। अगर आपकी तैयारी कम हो तो वह धिक्कार नहीं करोगे तब तक परमाल्मा भी आपको स्वीकार नहीं करेगा इस मामले में अगर आधा अध आपकी तैयारी पूरी तरह से है और शैतान को पूरी परापन है आपके अन्दर, तो अपने ही साथ छल तरह से धिक्कारने की आपके अन्दर शक्ति है तो कंपट कर रहे हैं । उसको आपको पूरी तरह से आप ही में से बड़े-बड़े सन्त और गुरुजन निकलने आपको धिक्कारना होगा। उसको पूरी तरह से वाले आपको छोड़ना होगा नहीं तो जो आपके अन्दर में है पाँच साल के बच्चे से लेकर आज ऐसे नवोदित मिथ्या है वह आपके अन्दर में बैठा रहेगा जो सत्य बड़े-बड़े जीवों ने एकदम से संसार में जन्म आपके अन्दर है वह प्रकट नहीं होगा। जब तक ले लिया है जैसे कि ऊपर से कहीं से सारा उनका आपके अन्दर सत्य प्रकट नहीं होगा, संसार में भी पूरा तबका इकट्ठा ही उतर आया हो। बहुत से सत्य कैसे फैल सकता है। जैसे समझ लीजिए कि बच्चे, मैं देखती हैँ कि वह पार ही पैदा हुए हैं। पर सूर्य पर अगर बादल छा जाएं तो अन्धेरा आ जाता नीव के पत्थर तो आप ही हैं । सहजयोग के नीव है और अगर बादल हट जाएं तो सूर्य फिर से के पत्थर आप लोग हैं । आपको मैंने पहले भी चमकने लग जाता है । इसी प्रकार मनुष्य ने ही अनेक बार बताया है कि जो लोग आज धर्म के झूठे आधा अधूरापन छोड़ दीजिए छोटी-छोटी बातों हुए शक्ति भी हल्का ही अपना जोर दिखायेगी। अगर हैं । एक बड़ी भारी पीढी आज जन्म ले रही बहुत 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-38.txt मार्य - अप्रैल, 2005 37 चैतन्य लहरी झगड़े खड़े किए हुए हैं, जो आपस में नफरत से आज्ञा चक्र पकड़ा हुआ हैं। सबके सब बताएंगे, एक एक दूसरे को देख रहे हैं और उसमें धर्म का नाम फर्क नहीं बताएगा, दूसरा फर्क नहीं बताएगा। जो इस्तेमाल कर रहे हैं, यह शैतान के बच्चे हैं, ये कोई भी इस हॉल के इस छत को देखेगा तो यह परमात्मा के भेजे हुए लोग नहीं हैं। परमात्मा ने बताएगा कि यह छत सफेद रंग का है रंग कभी भी द्वेष व दुष्टता को मान्यता नहीं दी है। नहीं बता सकता है। जब आप हँसेंगे तो एक ही लेकिन उसका खण्डन किया है उसका संहार ढंग से हँसते हैं, जब आप रोएंगे तो आपकी आँख किया है। जो लोग अपने को बहुत छोटे दायरे में से ऑसूं आएंगे और एक ही ढंग से आप रोएंगे। बाँधे हुए हैं कि हम फलाने हैं और ढ़िकाने हैं, वो उससे भी कितना अधिक धर्म का अपना स्वरूप लोग अनन्त की गोद में नहीं जा सकते। जिसकी जो कि व्यापक है और सबके अन्दर एक है। उस कोई सीमा नहीं है वह असीम में बैठा हुआ है धर्म में झगड़ा होना सम्भव ही नहीं हो सकता, अपनी सीमाएं आपको तोड़नी पड़ेंगी जो आपने कलह होना सम्भव ही नहीं हो सकता। कलह जहाँ मूर्खता से बाँधीं हैं कोई भी धर्म आपको सीमा में आया समझ लीजिए कि एक अधर्म दूसरे अधर्म से नहीं बाँधना चाहता है लेकिन जो मनुष्य ने मूर्खों लड़ रहा है। धर्म कभी धर्म के साथ लड़ नहीं जैसे धर्म बनाए हैं उसका तो कोई इलाज ही नहीं सकता। जो आदमी अपने को धार्मिक कहकर के दूसरा और दूसरे को कहता है कि आप भी धार्मिक, हम कर सकते। वास्तव में दो ही धर्म संसार में हैं- एक है धर्म भी धार्मिक लेकिन लड़ लें, वो धर्म को जानता नहीं। और दूसरा है अधर्म तीसरा कोई धर्म है ही नहीं । सहजयोग में यह किस तरह से होता है. यह एक है धर्म जिसकी धारणा अन्दर होती है और समंग्रता कैसे आती है ? कुण्डलिनी का उद्दीपन दूसरा है अधर्म। जितने बड़े-बड़े गुरुजन हो गए हैं वह धर्म के लिए लड़े और उस वक्त जो में थे उनसे लड़ते रहे मुसलमान कहिए. चाहे उनका नाम आप हिन्दु खुद ही इस शक्ति को पा लेते हैं जबकि पहली कहिए, चाहे उनका नाम आप Christian कहिए। लेकिन उनके जितने भी followers थे, अनुयायी प्राणं हैं, वह प्रेम हो जाती है, और जो आपके पेट थे उन लोगों में वो सत्यता नहीं थी उन्होंने अपने में धर्म है वह सारे संसार की जागृति हो जाती है । छोटे छोटे group बना लिए और अधर्म के झगड़़े होने लगे। एक अधर्म से दूसरा अधर्म लड़ने लगा। संसार का ज्ञान हो जाता है। उसी वक्त आप जान धर्म में झगडा कोई नहीं होता है। धर्म में कलह सकते हैं कि यह कुण्डलिनी का उद्दीपन आपके नहीं होता है। धर्म सब एक हैं। सबके अन्दर एक इन हाथों से कैसे हो रहा है । आप ही के इशारों से कैसे होता है ? 'आदि, सभी कुछ आपको पहले भी अधर्म बताया है और फिर भी मैं आपको बताऊगी किसी वक्त। लेकिन यह तो देखने का मजा है जब आप फिर उसका नाम आप शक्ति, जो कि आपके हृदय में है जिससे आपके और जो आपकी चेतना आपके सर में है वो सारे है सबमें एक ही बैठता है। उसमें कोई argument कुण्डलिनी कैसे उठ रही है और आप ही के बंधनों नहीं होता है। जब आप लोग किसी की ओर हाथ में ये अधर्म कैसे चरमरा रहा है। और आप ही के करके खड़े होते हैं तो सभी बताएंगे कि माँ इस खींचे तारों में यह किस तरह से मरा जा रहा आदमी से हमें यहाँ जलन आ रही है,माने उसका हुए है। आप ही देख सकते हैं कि आप के जो दो चार 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-39.txt मार्च - अप्रैल, 2005 चैतन्य लहरी 38 तीर कमान इस अधर्म को लग जाएं कि यह किस century से लेकर अभी तक पार हुए हैं और अभी तरह से अपना मार्ग छोड़ कर चला जाता है और कम से कम तीन चार century से तो कोई पार ही कुण्डलिनी अपने रास्ते पे अपने आप साफ साफ नहीं हुआ है। और आप समझ सकते हैं कि यहाँ आ जाती है। किस प्रकार शरीर में छिपी हुई हजारों आदमी पार होते जा रहे हैं। बहुतों को हुआ व्याधियाँ एक दम से नष्ट होकर के, कुण्डलिनी हैं, किसी-किसी को नहीं भी होता है । लेकिन हो सामने ऊपर एक गंगा जैसे भागीरथ ले आए थे, ही जाता है। आज तक ऐसा कोई नहीं है कि वह उसी तरह से उतरती चली आती है गंगा को लाने आता रहे और उसको न हो। जो भी आया यहाँ के लिए भगीरथ ने अनेक प्रयत्न किए थे और इस बैठा उसने पाने का प्रयत्न किया, सब लोग पार हो कुण्डलिनी को लाने के लिए भी मैंने अनेक प्रयत्न गए। ऐसा हमें आज तक मालूम नहीं जो पार नहीं किए हुए हैं, पूर्व जन्म में भी और इस जन्म में भी। हुआ। लेकिन एक चीज़ जरूर तैयार करके आना लेकिन अब इसका फल आप लीजिए क्योंकि चाहिए कि शैतान को आपको जूते मारने पड़ेंगे। आपके दरवाजे पे ही गंगा बह रही है । आपके शैतान को आपको पहचानना पड़ेगा, उसको आपको इशारे पर कुण्डलिनी चलेगी आप रास्ते चलते हुए छुट्टी देनी पड़ेगी, उसको अपने हृदय से निकाल लोगों को जागृति दे सकते हैं। आपके हाथ से देना पड़ेगा। और कौन शैतान है और कौन परमात्मा अनेक cancer जैसे रोग ठीक हो जाते हैं यह है उसकी पहचान इन्हीं चैतन्य लहरियों से हो बात सही है और होनी ही चाहिए, होते ही है यह सकती है अगर आपके पास नहीं हैं तो जिनके सब कैसे हो रहा है ? उसका कारण यह है कि पास है उनकी बात सुनिए, जो इसको जानते हैं आप उस सर्वव्यापी परमात्मा के प्रेम की शक्ति के उनकी बात सुनिए। जिन्होंने इसको पड़ताला अंग हो गए हैं जो आप इस्तेमाल कर रहे हैं। उनकी बात सुनिए। इसी प्रकार आप जान सकेंगे आपके अन्दर से वही शक्ति प्रवाहित हो रही है कि कौन शैतान है और कौन धर्ममात्मा, कौन और आप उस शक्ति का कार्य कर रहे हैं। अब असली गुरु है और कौन नकली है। संसार में जैसे इसमें झगड़े का कौन सा सवाल उठता है ? क्या असली फूल होते हैं वैसे plastic के भी फूल होते मेरा यह हाथ इस हाथ से हर समय झगड़ा करता हैं। लेकिन उसकी पहचान अपके आँख से, नाक रहता है? जिस दिन यह झगड़ा शुरू हो जाएगा से, मुँह से, हर एक चीज़ से हो सकती है कि यह तो हम यह कहेंगे कि यह हाथ इससे अलग हो plastic का फूल है या कि सच्ची फूल है। लेकिन गया, यह कोई हमारा हाथ नहीं है। इसी प्रकार धर्म को जानने के लिए सिर्फ Vibrations चाहिएं। इस सर्वव्यापी शक्ति को हमारे अन्दर हम पा लेते उसके बगैर आप जान ही नहीं सकेंगे कि यह हैं तो हम सर्वशक्तिमान हो जाते हैं। बहुत से लोगों आदमी पाखण्डी है. कि झूठा है, कि अधर्मी है. यह को पहले भी यह शक्ति मिली है। बहुत कम लोगों राक्षस है। यह आदमी धर्मात्मा है और यह आदमी को कहना चाहिए, क्योंकि जब मैंने पढ़ा जेन को, परमात्मा है, यह आदमी अवतार है । यह आदमी जेन छठी शताब्दी में जापान में शुरू हुआ था, और बहुत बड़ी शक्ति है। जब तक आपके हाथ में उसमें भी यही कुण्डलिनी जागरण का कार्यक्रम vibrations नहीं आएंगे आप जान नहीं सकते। किया था निकिता माँ ने और कुल 26 आदमी छठी इसीलिए यह चीज़ सबसे पहले आपको पा लेना 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-40.txt चैतन्य लहरी मार्च - अप्रैल, 2005 39 चाहिए कि असली vibrations आपके हाथ से नहीं चल सकता, किसी भी तरह का झूठ नहीं चल ढंडे-ठंडे आने चाहिए जैसे कि कोई cooler से आ सकता इसमें। यह सच्चाई होनी चाहिए। आपको रहे हों, इस प्रकार आपके अन्दर से आने चाहिए। खुद अनुभव होना चाहिए। आपके अन्दर दिखाई इसके अलावा आपके विचार आपके काबू में आ देना चाहिए और आपके हाथ से इसका बहता हुआ जाते हैं. आप निर्विचार हो जाते हैं, और विचारों की प्रवाह से दूसरों को भी जागृत करना चाहिए। तभी ओर देखते हैं कि आप निर्विचार हो गए कोई भी आप पार हुए हैं हाँ मैं आपको धों पोंछ के साफ विचार नहीं आ रहा है। यह असलियत है. यह कर दूंगी. आपको प्यार से साफ़ कर दूंगी, आपकी सत्य है। इसमें मैं कोई झूठा वादा नहीं कर कुण्डलिनी को समझा दूंगी, सब कुछ कर दूंगी, सकती। मे रे हाथ recommendation नहीं है। इसमें कोई झूठी दुनियाभर का पाखण्ड रचते हैं और दुनिया भर की बात नहीं हो सकती। जब तक आप पार नहीं होंगे चीजें करते हैं और बातें बनाते हैं। उसकी मुझे तब तक आप मेरे कुछ नहीं लगते चाहे मेरे कुछ भी परवाह नहीं है। लेकिन तुम लोग भी उसकी परवाह लगते हों। कोई कितना भी रुपया दे मैं पार नहीं न करो और अपना ही कल्याण साधो अपना मंगल कर सकती चाहे आप कितने भी पढ़े लिखे हों मैं साधो। अपने को सत्य के रास्ते में रखो। चाहे दो पार नहीं कर सकती। आप घर में बैठिए। आप चार लोग कम हों या चाहे हजार लोग ज्यादा हों। तभी पार हो सकते हैं जब हो सकते हैं. जब हो गए इससे फर्क नहीं पड़ता। हम लोग अब ध्यान में हों। कोई भी हों आप, मैं मजबूर हूँ। मैं आपको जाएंगे सब लोग इस प्रकार हाथ रखें। आँखें अभी ऐसा झूठा certificate नहीं दे सकती। इसमें में बंद रखें का कोई झूठा लेकिन यह होना पड़ेगा जिनके नहीं होता है वह 1. झूठ शुरु म े 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-41.txt 8666866 े क 0999395 2003 शिवरात्रि पूजा पर माताजी के बायें हृदय से चैतन्य निकलते हुए ५ मिनट बाद पूरे फोटो से चैतन्य निकलता हुआ। बा] ा मुगल सराय सैंटर-नवरात्रि पूजा 2003 हवन में दर्गा रूप अग्निशिखा EGO ा ल