चैतन्य लहरी नत्याल i ם चै त न्य ल हरी २] NIRMALA NIVERSAL PURE RELIGIC इस अक में तति उचिन पतल परम पूज्य श्री माताजी का एक पत्र 1980 3. जिज्ञासा 4. लन्दन 24.7.1979 चलती हुई अंगुली 5 सितम्बर 1980 15. चैतन्य लहरियों पर हमारा विश्वास -1983 17. आदिशक्ति एवं लाओत्से 18. बनी 1983 श्री आदिशक्ति पूजा कबेला 15 जून 2003 20. श्री आदिशक्ति पूजा-2003, एक रिपोर्ट 21. श्री कृष्ण पूजा, मुम्बई 28.8.1973 22. परम पूज्य श्री माता जी का एक पत्र- 1979 30. परम पूज्य श्री माता जी का एक पत्र (without date) 31. सहजयोग का अलिखित इतिहास 34. DHARMA रका चै त न्य ल ह री प्रकाशक निर्मल इन्फोसिस्टम्ज़ एवं टैक्नोलोजीज़ प्रा. लि. हाउस प्लाट नं. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड कोठरुड पुणे इन्फोसिज़ 411 029 मुद्रक कृष्णा प्रिन्टर्ज एण्ड डिजाइनर्ज त्रीनगर, दिल्ली-110035 मोबाइल : 9868545679 आप अपने सुझाव एवं सदस्यता के लिए निम्न पते पर लिखें : श्री जी.एल. अग्रवाल निर्मल इन्फोसिस्टम्ज एवं टैक्नोलोजीज़ प्रा. लि. 222, देशबन्धु अपार्टमैंट, कालकाजी, नई दिल्ली-110 019 फोन : 26216654, 26422054 अपने अनुभव, सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ.पी. चान्दना जी-11-(463), ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली-110 034 परम पूज्य श्री माताजी का एक पत्र (मराठी से अनुवादित) की इस असीम कृपा के अधिकारी बने हैं, इस बात को समझने का प्रयत्न करें। मैंने आपको केवल वही दिया है जो आपका अपना था, अपना मैने आपको कुछ भी नहीं दिया। आपको और भी बहुत कुछ मिलने वाला है जो आपको मिल जाएगा. बाधाओं तथा कमियों की तरफ मेरा चित्त जा रहा है। पूना और राहुरी के लोगों से कोई समस्या नहीं है। आप लोगों को आनन्द सागर में गोते लगाता देख मुझे बहुत चैन मिलता है, अतः इस स्थिति को बनाएं रखें यहाँ विद्यमान हम लोग आप लोगों की तरह से भाग्यशाली नहीं हैं। कार्य निरन्तर चल रहा है। बहुत सी कठिनाईयाँ हैं, आप लोग दिलचस्पी लें और इन समस्याओं का समाधान करें क्योंकि मेरी तो कोई इच्छा है ही नहीं। अतः इच्छा पूरी होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। आप सभी लोगों लन्दन को अपने मन में इच्छा करनी चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिए ताकि आपके अंग्रेज भाई-बहनों की शुक्रवार अगस्त-1980 मेरे प्रिय पेडकर तथा अन्य सहजयोगियो, मदद हो सके। बहुत समय से आपको पत्र लिखने का अवसर नहीं मिला। आजकल मैं केवल तभी लिखती आपकी उन्नति मेरे हृदय में सहजयोग को जीवित रखे हुए है। जब जब भी मैं तंग आ में जोर-शोर से कार्य चल रहा है। यहाँ के लोग जाती हैं तो सन्तोष प्राप्ति के लिए आपके पत्र नशे की आदतों में फँसे हुए हैं और आलस्य एवं पढ़ती हैं। अतः कृपया पत्र लिखते रहें । मैं भी हूँ जब बम्बई से कोई काम होता है क्योंकि इंग्लैण्ड नकारात्मकता सर्वत्र फैली हुई है। इंग्लैण्ड ब्रह्माण्ड नियमित रूप से आपको लिखती रहूंगी। का हृदय है। परन्तु यह इतना उपेक्षित है कि तुरन्त इसे ठीक किया जाना आवश्यक है। हमेशा आपकी अपनी माँ श्री गणेश की पावन भूमि पुणे में जन्म पाने निर्मला वाले आप सभी लोग अत्यन्त भाग्यशाली हैं। अपने (महावतार- 1980) पूर्व जन्मों के सुकृत्यों के कारण ही आप परमात्मा जिज्ञासा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन लन्दन 24.7.1979 आि रट बबार के ि कल मैं एक महिला से मिली । उसने मुझे आपसे बताना चाहूंगी कि हम क्या खोज रहे हैं । बताया कि वह परमात्मा को खोज रही है। मैंने आइए देखते हैं कि ये जिज्ञासा हमारे अन्दर कैसे पूछा, "आप परमात्मा के विषय में क्या सोचती हैं? आती है और कहाँ से? जैसे यहाँ दिखाया गया हैं, आप क्या खोज रही हैं? जब हम कहते हैं कि हम एक चक्र है जिसे नाभि चक्र कहते हैं यह शरीर के खोज रहे हैं, तो क्या हमें इस बात का ज्ञान होता मध्य में है। है कि हमें क्या खोजना है और क्या हम समझते मेरुरज्जु पर ये चक्र बना है और यह सूर्य हैं कि किस प्रकार हम अपनी खोज को पूर्ण मानते चक्र की अभिव्यक्ति करता है जिसे शरीर के मध्य हैं? किस प्रकार हम ये मानते हैं कि हमने लक्ष्य में नाभि से नीचे बनाया गया है। यही चक्र हमारे प्राप्त कर लिया है? पिछली बार मैंने आपसे कहा अन्दर जिज्ञासा का सृजन करता है। जिज्ञासा था कि जिज्ञासा सच्ची होनी चाहिए, सच्चे हृदय से केवल जीवन्त चीजों में ही सम्भव होती है। उदाहरण और इसे आप न तो खरीद सकते हैं और न ही इसे के रूप में इस कुर्सी की क्या जिज्ञासा है? न ये पाने के लिए कोई प्रयत्न कर सकते हैं । आज मैं सोच सकती है, न ये हिल सकती है, आप चाहे इसे अंक : 7 & 8 - 2005 चैतन्य लहरी खोज पर आधारित है। शनैः शनैः खोज के तौर यहाँ रख दें या गली में रख दें। आप इसे तोड़ तरीके सुधरते जाते हैं जबकि इच्छा केवल भोजन की ही होती है। सकते हैं, कहीं फेंक सकते हैं, इसकी लकड़ी का कुछ और उपयोग कर सकते हैं, इसकी स्टूल बना सकते हैं। इसमें किसी प्रकार की जिज्ञासा नहीं है छोटे से छोटे अमीबा में एक अन्य इच्छा कोई चीज़ जब अमीबा की तरह से जीवन्त बनती है तब आप एककोशिकीय (Unicellular) कार्य या कह सकते हैं कि भावना होती है। यह है स्वयं को सुरक्षित रखने का विवेक। ये जानता है कि कर सकते हैं। इसके अस्तित्व को कौन से खतरे हैं। यही छोटा सा अमीबा हजारों वर्षों की उत्क्रान्ति के बाद जब जिज्ञासा अभिव्यक्त होने लगती है क्योंकि मानव बनता है तब उसकी खोज परिवर्तित हो नहीं। अतः जो जीवन्त ही खोज सकता है मृत जाती है। नि:सन्देह भोजन की खोज बनी रहती है लोग कहते हैं कि हम कुछ नहीं खोजते वो मृत सम क्योंकि यह मूल चीज़ है। व्यक्ति को भोजन तो हैं तथा जो ये कहते हैं कि हम खोज में लगे हुए हैं वो जीवित हैं, जिज्ञासु हैं। यदि आप छोटी सी करना ही है यद्यपि भोजन की खोज करने के तरीके सुधर जाते हैं, परिवर्तित हो जाते है, विकसित बात को समझें तो अमीबा जैसे छोटे से जीव में भी हो जाते हैं। परन्तु व्यक्ति में स्वयं को तथा अपने भूख के रूप में इच्छा का सृजन किया जाता है। इस बारे में सोचें। अमीबा में मस्तिष्क नहीं होता कबीले को सुरक्षित रखने की गहन सूझ-बूझ आ है । सामूहिकता का भाव छोटी आयु से ही जाती केवल एक छोटा सा केन्द्रक ( Nuclear) होता है, जागृत हो जाता है यहाँ तक की चीटियों में भी ये फिर भी उसे भूख महसूस होती है, बढ़ने के लिए भावना होती है। वो समझती हैं कि हम सबको उसे कुछ न कुछ खाना पड़ता है। इस अमीबा को सामूहिक होना है. एकत्र होना है और यदि स्वयं इस बात का भी ज्ञान होता है कि इसे प्रजनन को सुरक्षित रखना है तो हमें संघटित (Integrate) करना है और इस तरह से यह खोज में लग जाता होना है। यही सामूहिंकता की भावना धीरे-धीरे है। इसे इस बात का ज्ञान होता है कि खाना किस प्रकार खाना होता है! परन्तु ये नहीं जानता कि मनुष्यों में भी विकसित होती है और इसकी अभिव्यक्ति आप सुरक्षित रहने के लिए सामूहिक खाना पचता कैसे है? खाना पचन की जानकारी बने रहने के अपने प्रयत्न में देख सकते हैं। इन प्राप्त करना इसका कार्य नहीं है हमारे साथ भी ऐसा ही है। तो नन्हें से अमीबा में खोज की सारे प्रयत्नों की अभिव्यक्ति हमारे सभी राजनीतिक एवं आर्थिक उद्यमों से होती है। शुरुआत होती है और पूरी विकास प्रणाली इसी चैतन्य लहरी अक : 7 & 8 - 2005 अब पैसे को पशु तो नहीं समझते, यह तो मानव ने ही बनाया है। अपनी बनाई हुई चीज होने मानव में एक अन्य प्रकार की खोज शुरु हो जाती है - दूसरों पर प्रभुत्व जमाने की जिज्ञासा । के कारण पैसा मनुष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। पहले वस्तु विनिमय (Barter) प्रणाली होती थी। परन्तु बाद में हमने सोचा कोई ऐसा पशुओं को यह शक्ति खोजनी नहीं पड़ती उनमें ये शक्ति होती है। उदाहरण के रूप में शेर बेचारे खरगोश से बहुत अधिक शक्तिशाली होता है तथा त माध्यम बनाया जाए जिससे कोई भी चीज ली जा खरगोश में शेर बनने की इच्छा नहीं होती। वो सके, और मुद्रा का आरम्भ हुआ। इस प्रकार से इसकी कोशिश भी नहीं करता। ऐरा गैरा नत्थू-खैरा मानव का चित्त भोजन से धन पर गया और धन से मानव तो प्रधानमंत्री बनना चाहेगा परन्तु खरगोश सत्ता पर। जब व्यक्ति के पास बहुत पैसा हो जाता कभी भी शेर नहीं बनना चाहेगा। वो समझता है मैं है तब वह सत्ता चाहता है, ऐसा होना स्वाभाविक है खरगोश हूँ और मुझे अपने को सुरक्षित और इसमें कोई दोष नहीं। जीवित रखने के तौर तरीके विकसित करने होंगे । शेर भी इसी प्रकार कार्य करता है, वो अपनी मौलिक रूप से पैसे के पीछे दौड़ना और शक्तियों को जानता है और अपनी सीमाएं भी। फिर सत्ता के पीछे दौड़ना मानव के लिए अत्यन्त कुछ पशुओं में तो नेतृत्व करने की भी शक्ति होती स्वाभाविक है। परन्तु इससे परे एक अन्य खोज है, वे मुखिया बन जाते हैं। आपने देखा होगा कि आरम्भ होती है और ये खोज ये जानने की है कि पक्षियों के भी मुखिया होते हैं। मुखिया आगे-आगे "हम यहाँ क्यों आए हैं? हम यहाँ क्या कर रहे चलता है और बाकी के पक्षी उसके पीछे-पीछे हैं? हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है? परमात्मा ने तथा जिधर वह मुड़ता है, पूँछ की तरह से बाकी के हमारा सृजन क्यों किया है? किसी लक्ष्य के पक्षी भी उधर मुड़ जाते हैं। जिस प्रकार अगुआ लिए, किसी उद्देश्य के लिए, या ये केवल मज़ाक मात्र है? क्या हम मूरखों की तरह से चलता है वैसे ही अन्य पक्षी भी उसके पीछे-पीछे उत्पन्न होते हैं, विवाह करते हैं, हमारे बच्चे होते हैं चलते हैं। मानव में भी इस गुण की अभिव्यक्ति और फिर अमीबा की तरह से मर जाते हैं, या हमारे जीवन का कोई उद्देश्य है? बहुत से मनुष्य धन जोरों से होती है कुछ व्यक्ति जन्मजात नेता बहुत होते हैं जो लोगों के समूह को उनकी जिज्ञासा का या स्वास्थ्य से आगे कुछ सोचते ही नहीं उन्हें लक्ष्य प्राप्त करने में नेतृत्व करते हैं। अब यह अच्छा स्वास्थ्य चाहिए। कहने का अभिप्राय ये है जिज्ञासा धन के लिए भी हो सकती है, अधिकतर कि पशु, जहाँ तक मैं जानती हूँ, कभी व्यायाम नहीं लोगों में ऐसा ही है। करते। परन्तु मानव अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने अंक : 7 & 8 - 2005 7 चैतन्य लहरी के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं, परन्तु आस्ट्रेलियन कहें या कुछ और कहें परन्तु परमात्मा की दृष्टि में आप केवल मानव हैं। मेरा कहने से किसलिए? हो सकता है आप पहलवान हों, परन्तु अभिप्राय है न तो आपकी पशुओं की तरह से पूँछ किसलिए? आप तो मात्र एक बोझ हैं! क्या उपयोग होती है और न ही उनकी तरह से सिर नीचे की है आपका? या हो सकता है कि आप सबसे ओर झुके हुए होते हैं। आपका सिर सीधा ऊपर की अधिक वैभवशाली व्यक्ति हों, सर्वोत्तम कारों में ओर उठा हुआ है चाहे आप अप्रीका के हों, भारत चलते हों, आपके पास जीवन के सभी ऐश्वर्य हों, के, इंग्लैण्ड के या अमेरिका के, सभी का सिर एक भौतिक पदार्थ हों, परन्तु किसलिए? जब हमारे सा होता है जब तक आपके सिर ऊपर की ओर मस्तिष्क में इस प्रकार के प्रश्न उठने लगते हैं तब उठे हुए हैं और आपकी पूँछ नहीं है निःसन्देह हमारे अन्दर एक नई खोज का आरम्भ होता है जो हमसे प्रश्न पूछती है कि "आप यहाँ क्यों हैं", कुछ लोग जिस प्रकार से व्यवहार करते हैं उससे ऐसा ही लगता है कि उनकी पशु सम पूँछ हैं! परन्तु "क्या आप यहाँ पर सुबह से शाम तक धनार्जन निश्चित रूप से आप मानव हैं। करने, सत्ता प्राप्त करने और अन्य बेकार के कार्य करने दूसरों को प्रसन्न करने, अपने धन का जीवन के भिन्न अनुभवों से उत्क्रान्ति पाकर दिखावा करने या अन्य लोगों से धन ऐंठने की चूहा दौड़ के लिए ही हैं? क्या आपके जीवन का यही मानव को यदि इस बात का एहसास हो जाए कि जीवन के अनुभवों नें न तो उसे तुष्टि (Fulfliment) लक्ष्य है"? अब यह चौथी जिज्ञासा या आपकी प्रदान की है और न ही इस प्रश्न का उत्तर कि हम चेतना के चौथे आयाम का आरम्भ है। ये आपके यहाँ क्यों हैं? तो उसके जीवन में परिवर्तन घटित अन्दर की स्थूल जिज्ञासा अर्थात भूख का पुष्पीकरण होने लगता है और वह साधक बन जाता है इससे है- आध्यात्मिकता की भूख, परमात्मा प्राप्ति की पूर्व नहीं। जो लोग गुरुओं के पास जाते हैं या जो भूख, जीवन की उच्च चीज़ों को प्राप्त करने की कहते हैं श्रीमाताजी "मेरे बेटे को नौकरी दे भूख, ये हमारे अन्दर आरम्भ हो जाती है। मेरे दीजिए, तो समझ में नहीं आता कि क्या कहा विचार से यह सच्ची घटना है। इस खोज में हम भ्रान्त हो जाते हैं क्योंकि इस जिज्ञासा के आरम्भ जाए! ऐसे व्यक्ति को तो यही कहना चाहिए कि होने के समय तक भूख से पीड़ित हो उठते हैं। मेरे बच्चे आप अभी तक इसके (योग के) योग्य कैसे? क्योंकि तब तक आप चहूँ ओर घटित होनेनहीं हैं, आप अभी तक इतने परिपक्व नहीं हैं कि वाली मूर्खतापूर्ण चीज़ों के बन्धन में फँस चुके होते आत्म साक्षात्कार के लिए यहाँ आएं। या आप किसी व्यक्ति के पास हीरे की अंगूठी माँगने के हैं। आप चाहे स्वयं को अंग्रेज कहें, भारतीय कहें चैतन्य लहरी अक : 7 & 8 - 2005 लिए जाते हैं या कोई यदि आपसे कहता है कि आप परिपक्व नहीं हो सकते। आपको सच्चा होना परमात्मा के नाम पर मैं हीरे की अँगूठी देता हूँ और होगा ये समझने के लिए कि आप अपने लक्ष्य की खोज कर रहे हैं, आपको विवेकशील होना होगा। आप ऐसी बात को सुनकर सन्तुष्ट हो जाते हैं तो आप धन या हीरे की अँगूठियाँ नहीं खोज रहे और न ही आपको चहूँ और घटित होने वाली मूर्खताओं, आप अच्छे साधक नहीं हैं। नहीं, सहजयोग के लिए तो आप विशेष रूप से बेकार हैं । या कोई यदि आपसे ये कहे कि मैं आपको रोग मुक्त कर बाजीगरियों का साक्षी होना है। आपने तो परमात्मा दूंगा और रोग ठीक कराने के लिए आप उसके के जादू का साक्षी होना है साधना में आपको इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि परमात्मा यदि पास जाएं तो हो सकता है वो आपका रोग ठीक सर्वव्यापी है तो कोई व्यक्ति यदि ये कहे कि हम कर दे परन्तु आप अच्छे साधक नहीं है। जो आदमी परमात्मा को नहीं खोज रहा उसे ठीक क्यों ही परमात्मा द्वारा चुने गए हैं या केवल वही पैगम्बर करना है? कहने का अर्थ ये है कि ये माइक यदि है या परमात्मा है क्योंकि वह किसी संस्था-विशेष मेरी आवाज़ को नहीं उठा सकता तो इसकी से जुड़ा हुआ है तो यह घिनौनी धर्मान्धता और भद्दीपन है। स्वयं को धोखा न दें। समझने का प्रयत्न करें कि आत्म प्रवंचना (Self deception) मरम्मत करने का क्या लाभ है? या फिर आप किसी ऐसे व्यक्ति के पास जाते हैं जो आपको कहानी समझाता है कि परमात्मा प्राप्ति के लिए को परमात्मा कभी क्षमा नहीं करेंगे। क्या अमीबा आपको मुझे इतनी रकम देनी होगी तो आपको स्वयं को धोखा देता है? खाने को देखकर क्या वो ऐसा करता है? शेर या मेंढक क्या ऐसा करते हैं? चाहिए कि आप उसके चक्कर में न फँसें, बेहतर होगा कि ऐसे गुरु के मुँह पर चाँटा मारें और पूछें अमीबा का इतना छोटा सा मस्तिष्क होता है फिर कि तुम मुझे क्या समझते हों? यह तो आपकी भी यह जानता है कि वह क्या खोज रहा है, क्या वह स्वयं को धोखा देगा? परन्तु मानव सुबह से साधना का तिरस्कार है । आपसे पैसा ऐंठकर वो आपको फँसाना चाहता है। क्या आप ये नहीं देख शाम तक स्वयं को धोखा दिए चला जाता है हमें सकते कि यह कहकर वो आपका अपमान कर रहा परमात्मा को खोजना है, अपने लक्ष्य को प्राप्त है कि आप इतने भौतिकवादी हैं कि पैसा देकर ही करना है. हमें विराट रूपी आदिपरमात्मा से, उनके आप परमात्मा की साधना में जुड़ेंगे? इस बात को पूर्णत्व से जुड़ना है। यही खोज हमने करनी है। हैं सोचें लोग आपको इस प्रकार की बातें बताते इसी के लिए आपका सृजन किया गया है । माँ के और यदि आप उन्हें स्वीकार कर लेते हैं और ऐसे गर्भ में पनप रहे छोटे से माँस पिण्ड का यदि आप अध्ययन करें तो आप हैरान होंगे कि माँ की नाभि गुरुओं का अनुसरण करते हैं तो साधना के लिए नाडी उस पिण्ड की देखभाल करती है। यद्यपि अंक : 7 & 8 - 2005 9 चैतन्य लहरी इंग्लैण्ड आता है और महान गुरु बन बैठता है! इस पिण्ड के सभी अवयव मस्तिष्क से जुड़ने के लिए अभी तक पूरे विकसित नहीं हुए होते फिर भी हजारों लोग उसके पीछे भागना शुरु कर देते हैं! उनकी समझ में कुछ नहीं आता और गुरु अधिक एक वाहिका के माध्यम से इसे भोजन प्राप्त होता से अधिक शिष्य पाकर बड़े प्रसन्न होते हैं। परन्तु है, इसकी देखभाल होती है और इसके लिए सारा एक मार्ग है परमात्मा ने पहले से ही इसका प्रबन्ध होता है। जन्म के समय बच्चा माँ की कोख आयोजन आपके अन्दर किया हुआ है। आपकी से अलग होता है और शनै: शनैः उसमें सारी उत्क्रान्ति के लिए परमात्मा ने ये प्रबन्ध किया हुआ संवेदनाओं और इन्द्रियों का सृजन होता है जो है, वह तो बस आपके हृदय की सच्चाई को परख धीरे-धीरे विकसित होती हैं। जैसे-जैसे वो बढ़ता रहा है। परन्तु किसी असत्य एवं मूर्खतापूर्ण चीज है उसके अवयव विकसित होते हैं परन्तु सारी से बँधे रहने की ज़िद यदि आपमें है तो आप इसे इन्द्रियों में तादात्म्य नहीं होता। एक बार जब योग कार्यान्वित नहीं कर सकते। इन सभी बाधाओं से घटित हो जाता है तो मानव स्वतः गतिशील हो मुक्ति पा लें। अपना हृदय खोल दें। आप सबने उठता है। पूरा शरीर संघटित रूप से कार्य करता - पूर्ण का ज्ञान प्राप्त करना है। आप सबने आत्म हो तो पूरे शरीर को है। उँगली पर यदि चुभन साक्षात्कार पाना है। आपकी इस उपलब्धि से इसका एहसास होता है और पूरा शरीर जानता है परमात्मा अपनी सृष्टि को पूर्ण मानकर तुष्ट हो कि क्या हुआ, पूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। ये जाएंगे। उन्हें ये कार्य करना है और वो इसे करेंगे। जीवन्त प्रक्रिया है जो उन्नत होती है और कार्यान्वित परन्तु इसके लिए उन्हें बहुत परिश्रम करना पड़ेगा करती है। परन्तु मानव में एक बहुत बड़ी समस्या और फिर भी यदि आप सत्य को स्वीकार नहीं है, मैं कहूँगी कि सबसे बड़ी समस्या, कि वे अपनी करते तो भी नि:सन्देह सत्य की अभिव्यक्ति होगी कमियों, गलत विचारों के साथ एक रूप होते हैं। परन्तु इसके लिए असत्य को नष्ट करना पड़ेगा यह कमी केवल मानव में ही होती है इसीलिए और उस समय जो लोग असत्य से जुड़े हुए है वे व्यक्ति को अत्यन्त सावधान रहना पड़ता है। कुत्ता भी नष्ट हो जाएंगे अत: ऐसे अवसर से पूर्व ही से कहीं बेहतर करता है और वह जानता है मनुष्य अपने विवेक को अपनाएं और समझ लें कि हमें कि उसे क्या खाना है और क्या नहीं खाना, आप खोजना है। हमें अपने पूर्णत्व की खोज करनी है लोग ये बात नहीं जानते। सच्चे गुरु, गन्दे गुरु, जिसे अब तक हम आंशिक रूप से अपने भयानक गुरु और दुष्ट व्यक्ति के भेद को आप नहीं जानते। ये बात आप समझ नहीं सकते। जेल से निकलकर कोई व्यक्ति लम्बा चोगा पहनकर राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक क्लबों में अभिव्यक्त करते रहे हैं। ये सब एकरूप होना आवश्यक है। मानव के विकास में जो जो भी अक : 7 & 8 - 2005 चैतन्य लहरी 10 महान धर्म बनाए गए हैं जिन्होंने मानव की उत्क्रान्ति ऐसा कहा, उदाहरण के रूप में क्या कभी ईसा-मसीह ने कहा कि मोजिज गलत हैं? क्या में महत्वपूर्ण सहायता की है और जो मानव जीवन उन्होंने कभी ऐसा कहा? गुरुनानक जब आए तो के आधार हैं इन सबका उस घटना (आत्म क्या उन्होंने कहा कि मोहम्मद गलत थे? क्या साक्षात्कार) में तादात्म्य करना होगा उदाहरण के किसी भी महान सन्त ने ऐसा कहा? तो आप रूप में मान लो मैं किसी हिन्दू से मिलती हूँ तो वह उनकी भत्त्सना करने वाले कौन होते हैं? इन कहता है श्रीमाताजी आप ईसा-मसीह की बात कैसे करती हैं। हम ईसा-मसीह को नहीं मानते। तथाकथित साधकों के मार्ग में यह सबसे बड़ी ईसा-मसीह पर विश्वास न करने वाले आप महान बाधा है। व्यक्ति हैं। ईसा-मसीह पर विश्वास करने वाले ये लोग अपने गुरुओं से जुड़े हुए हैं। मैं आप कौन हैं? आप स्वयं को क्या समझते हैं? ये उनसे एक प्रश्न पूछती हैँ कि अपने गुरुओं से यदि कहने से कि "मैं ईसा-मसीह को नहीं मानता, आप इतने एकरूप हैं तो उन्ही के अनुसार चलते आपका क्या मतलब है? क्या आप जानते हैं कि रहो, आप मेरे पास क्यों आते हैं? श्रीमाताजी जब पृथ्वी पर अवतरित किसी महान अवतरण के बारे में से मैं इस गुरु के पास गया हूँ मुझे दमा हो गया ऐसा कहना घोर पाप है? कुछ लोग कहते हैं कि है, इसलिए आपके पास आया हूँ । तो आप उनसे हम मोजिज को नहीं मानते या गुरुनानक को नहीं कहें कि आपको ठीक करें। आप मेरे पास क्यों मानते या मोहम्मद साहब को नहीं मानते आप होते आते हैं? यदि आपके गुरु ने आपको आपकी कौन हैं? मैं नहीं मानता! मैं आपको नहीं मानती! इच्छानुरूप सभी कुछ प्रदान किया है तो क्यों आपका विश्वास है क्या? इसका आधार क्या है? आप ऐसी बातें क्यों कहते हैं? उनके विषय में आप क्या जानते हैं? केवल चर्च, मस्जिद या सिनेमा आपको मेरे पास आना चाहिए? यदि वे सच्चे गुरु ैं तो ये बात तो मैं आपके चेहरे पर लिखी हुई देख लेती। इस बात को मैं समझ सकती हूँ और यदि जाकर आपने उनको जान लिया है! वहाँ तो कोई सच्चा गुरु हो तो मैं उसकी पूजा करुँगी और अन्धे लोग हैं जो आपको भी अन्धा बना रहे हैं। अपने लिए उसे महानतम वरदान मानूंगी। परन्तु केवल धर्मान्धता और बेवकूफी के सिवाए आपने 1 ऐसे लोग बहुत कम हैं और वो भी हिमालय तथा क्या पाया है? ये तो रोग है. रोग है ये परमात्मा 1 अन्य ऐसे स्थानों पर छिपे हुए हैं जहाँ से वै कुछ के साम्राज्य में आ जाएं और देखें कि वो इस मंच बोलते ही नहीं। ऐसे लोग बहुत कम हैं। ऐसे ही पर बैठे हुए हैं। बो सब तो एक हैं और आप लोग एक गुरु ने अमेरिका जाने की हिम्मत की। परन्तु मूर्खों की तरह से लड़े जा रहे हैं। क्यों उन्होंने कभी अक : 7 & 8 - 2005 चैतन्य लहरी 11 जन्म लेना ही है। परन्तु लोग कहते हैं कि वो उन्हें जानते हैं। क्योंकि उन्होंने भी हमारी तरह से ही पाँच ही दिनों में वह वापिस भारत लौट आए। उन्होंने मुझे लिखा कि माँ ये बहुत कठिन कार्य है। जन्म लिया. वो कुछ खास नहीं हैं। वो चाहते है कि आप लोग क्योंकि खेलों के आदि हो चुके हैं. आपको ऐसे ही लोग अच्छे लगते हैं जो आपके कोई व्यक्ति स्वर्ग से टपक पड़े! कितनी अजीब साथ खिलवाड़ करें। वो लोग आपको अच्छे नहीं बात है! अतः हम लोग, जो कि सच्चे साधक है, हमें लगते हैं जो आपसे सत्य की बात करें। वास्तविकता चाहिए कि अपने मस्तिष्क पूरी तरह से खुले रखें। ये है। आपको सत्य प्राप्त करना होगा। आपको परन्तु यदि आप अपना समय बर्बाद की करना चाहते हैं तो करते रहें, चलते रहें अपने गुरु के समझना चाहिए कि यही मेरी चिन्ता है। आपको प्रेम करने वाला कोई भी व्यक्ति किस प्रकार से अनुसार। उनके चमत्कार पर आश्चर्य करें, उन्हें धन दें, अपनी महिलाएं उन्हें पेश करें, अपनी आपको ऐसा कुछ बता सकता है जो आपके लिए हानिकारक हो, भयानक हो या जिससे आपका सम्पतियाँ उन्हें दें, अपना सभी कुछ उनको अर्पण अहित हो सके। वे आपको नहीं बताएंगे जो लोग कर दें और उनसे बीमारियाँ और पागलपन ले लें तथा अन्त में पागलखाने पहुँच जाएं! मैं नहीं कहूँगी बनावटी हैं। वो किसी के बारे में आपको नहीं कुछ बताएंगे। वो तो यही कहेंगे, ओह! पृथ्वी के दूसरे कि मेरे बच्चे मेरे पास आ जाओ । परन्तु पागलखाने छोर पर सभी ठीक है। कोई सच्चा व्यक्ति में भी यदि आपको अपनी गलती का एहसास हो कुछ यदि आ जाएगा तो उसके विषय में वो एक शब्द और आप आ जाएं तो परमात्मा तो क्षमा के सागर भी नहीं कहेंगे। मेरी ये बात आप गाठ बॉँध लें। हैं। परन्तु आरम्भ से ही मैं आपको चेतावनी देती हैं कि ऐसे सभी लोग अपना समय बर्बाद कर रहे हैं अतः साधना में सर्वप्रथम आपकी सारी और मेरा भी अत: जो लोग अभी तक भी गलत लोगों से एक रूप हैं वो बहस कर-करके मुझे न जानी चाहिए। बहुत सारी असामंजस्यताए छुट गलत चीजों से आप जुड़े हुए हैं। जैसे कुछ लोग सताएं क्योंकि मैंने हमेशा ये ही पाया है कि उन्हें कहते हैं कि हम ईसा-मसीह का अनुसरण क्यों सच्चे साधक माना जाता है। जैसे कल उस करें? वो तो यहूदी थे। कहने का अर्थ ये है कि महिला ने मुझसे पूछना शुरु किया कि क्या आपने उन्हें कहीं न कहीं तो जन्म लेना ही था और फलाँ-फलां पुस्तक पढ़ी है? मैंने कहा मैं उन्हें जन्मानुसार व्यक्ति का सम्बन्ध किसी न किसी धर्म पढूँगी परन्तु इन पुस्तकों को पढ़ने के बाद भी मुझे से होना ही होता है। आप इंग्लैण्ड में जन्म लें, तुम्हारे अन्दर कोई परिवर्तन नजर नहीं आता! इन्हें पढ़कर आपने क्या उपलब्धि प्राप्त की है? क्या भारत में या टिम्बकटू में, कहीं न कहीं तो आपको चैतन्य लहरी अंक : 7 & 8 - 2005 12 आत्मसाक्षात्कार पाना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि इन्हें करें। पूरा दृष्टिकोण ये होना चाहिए कि आपने यहाँ पर मुझसे कुछ लेना है। ये आपके लिए आपने कुछ प्राप्त किया? कुछ नहीं। उसने मुझसे कि क्या आप फलां-फलां गुरुओं से मिली है? हो सकता है, परन्तु आप अपने विषय में बताएं। पूछा आपको क्या मिला? उसे दमा रोग है, एक आँख उपहार है। उपहार लेने के मामले में कोई जिद नहीं होनी चाहिए। ऐसी ज़िद जो हम प्रायः करते फूट गई. वो बैठ नहीं सकती, गठिया के कारण उसका शरीर अकड़ गया है। वो वास्तव में भूत- हैं। कोई यदि उपहार दे रहा हो तो हम जिद नहीं बाधित है। फिर भी वह साधक कहलाती है! उसने करते। क्या हम ऐसा करते हैं? क्या उपहार लेते मुझसे प्रश्न किया, "श्रीमाताजी मैं साधक हूँ फिर भी परमात्मा मेरे प्रति इतने क्रूर क्यों हैं"? मेरे बच्चे आपने अपने विवेक का उपयोग नहीं किया आज हुए लोग जिद करते हैं? परन्तु जब परमात्मा प्राप्ति की बात आती है तो वे अपने जूते भी नहीं उतारते! आप इतनी महान चीज़ माँग रहे हैं । अमीबा से भी विवेक को अपनाएं और समझ लें कि तुम्हारे परमेश्वर पूर्ण हृदय से, आत्मा से तुम्हें प्रेम करते हैं चाहे तुम उन्हें प्रेम करते हो या नहीं। उन्होंने तुम्हें मानव अवस्था तक पहुँचने में आपकी साधना का पुष्पिकरण है मानव बनकर भी हजारों वर्षों तक आपने साधना की और आज जब आप अपने लक्ष्य ये जिज्ञासा दी है, आपका सूक्ष्म तंत्र बनाया है। के समीप पहुँच गए हैं तो इतने अड़ियल क्यों है? इतनी सुन्दरतापूर्वक उन्होंने आपके अन्दर इस मैं कहती हूँ कि सहजयोग में आत्म-साक्षात्कार तन्त्र को स्थापित किया है कि सभी कुछ स्वतः प्राप्त कर लें, न कोई पैसा देना है न लेना है । आत्म-साक्षात्कार के परिणामस्वरूप आपका स्वास्थ्य चलता है। परन्तु लोग तो ऐसे हैं कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के लिए जब वे आते हैं तो मैं उन्हें कहती हैं कि मेरे समीप आकर बैठो, वो कहते हैं, ठीक हो जाएगा, आपकी भौतिक स्थिति ठीक हो कृपा से बहुत सी चीजें जाएगी । सहजयोग की सुधरती है परन्तु सबसे बड़ी चीज़ जो आपमें घटित "नहीं मैं नहीं बैठूंगा। कृपा करके अपने जूते उतार दो। नहीं मैं जूते नहीं उतारूंगा"। ऐसे बहुत से होती है वह है आपका आत्मज्ञान को पा लेना। लोग हैं। आप यदि उनसे कहें कि अपने दोनों पैर आपको आत्म-साक्षात्कार मिल जाता है आपके अन्दर ज्योति प्रज्जवलित हो उठती है और आप इस तरह से करके बैठ जाइए तो आपको आराम स्वयं को देखने लगते हैं, अपने और अन्य लोगों के मिलेगा, परन्तु वो ऐसा नहीं करते। जो भी मैं कुछ कहती हूँ उसके बहुत से अर्थ होते हैं। नहीं, मैं क्यों चक्रों को देखने लगते हैं क्योंकि आप विराट से लिए जुड़ जाते हैं, अपने विराट तत्व को प्राप्त कर लेते ऐसा करू? आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने हैं। सहजयोग ने आपको यही उपहार देना है । कुछ चीजें अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं, अगर आप नाट अंक : 7 & 8 - 2005 चैतन्य लहरी 13 यदि आप इसे पाना चाहते हैं तो कृपया पा लें, कभी-कभी लोग सहजयोग को बीमारियाँ ठीक करने के लिए उपयोग करते हैं । निःसन्देह बाकी सबकुछ तो इसके परिणामस्वरूप होता है हो जाते हैं । यहाँ तक कि कैंसर भी आप रोग मुक्त ठीक हो जाता है। कैसर ठीक हो सकता है, क्योंकि यदि प्रकाश हो तो आप लड़खड़ाते नहीं हैं सीधे चलते हैं। आप ये नहीं कहते कि प्रकाश के सहजयोग से इसे ठीक किया जा सकता है। परन्तु कारण मेरी टॉँगों में सुधार हुआ। नहीं, न ही ये कहते हैं कि प्रकाश के कारण मेरी आँखें ठीक हुईं। ये दोबारा हो जाएगा। हम इसका कोई आश्वासन नहीं दे सकते। ये रोग आपको पुनः हो सकता है। क्योंकि प्रकाश न होने के कारण समस्या थी आपकी साधना के अनुरूप आप पर कृपा करने का ज्योंही प्रकाश हुआ सबकुछ ठीक हो गया। आप सब कुछ समझने लगे। सारी चीज़ों को जाँच विवेक क्या परमात्मा में नहीं है? निःसन्देह वे आपसे प्रेम करते हैं। प्रेम के कारण वो आपको देना लिया और सीधे चलने लगे। अब आप जानते हैं कि कहाँ बैठना है, कुर्सी क्या है और व्यक्ति कैसा चाहते हैं। परन्तु यदि आप भटके हुए हैं, अपव्ययी हैं, तो क्यों वे आपको देते चले जाएं? ये एक है? सीधा सा प्रश्न है जो आपको स्वय से पूछना साधक बनकर भी आप यही खोजते हैं। और यदि आप सच्चे साधक हैं तो आपको आशीर्वाद चाहिए और फिर आत्म-साक्षात्कार की याचना मिल जाता है। ये देखना मेरा कार्य है कि आप इस करनी चाहिए। तब आपको आत्म-साक्षात्कार प्राप्त स्थिति को पा लें। आप अपनी शक्तियों को प्राप्त हो जाता है। आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के बाद भी कुछ समय सन्देह-काल होता है क्योंकि पहले तो आप निर्विचार समाधि (Thoughtless - करें अपने गुरु की शक्तियों को नहीं। अपने गुरु की शक्तियों को नहीं अपनी शक्तियों को और स्वयं को समझ लें। आत्मज्ञान तथा विराट के ज्ञान Awareness) प्राप्त करते हैं। जब हम कहते हैं चेतना तो इसका आम अर्थ होता है किसी चीज़ के को आप प्राप्त कर लें। यदि आप ऐसे नहीं हैं तो, मेरे बच्चो, मुझे खेद है कि साधना पथ पर अभी प्रति चेतनता। परन्तु जब हम समाधि कहते हैं तो इसका अर्थ ज्योतितचेतना (Enlightened आप अपरिपक्व बच्चे हैं अभी आपको और अधिक Awareness) होता है। आपको ज्योतित निर्विचार चेतना मिल जाती है। इन दोनों स्थितियों के बीच उन्नत होना होगा। उन्नत होकर आप मेरे पास आएं. जब आप पूरी तरह से उन्त हो जाएं। अन्यथा अपरिपक्व व्यक्ति पर कार्य करना या उसे की अवस्था कुछ लोगों में इतनी कम होती है कि आत्म-साक्षात्कार देना मेरे लिए बहुत बड़ी सिरदर्दी वे तुरन्त दूसरी अवस्था पर पहुँच जाते हैं। यहाँ पर है । कुछ लोग हैं जिन्हें आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करते अंक : 7 & 8 -2005 चैतन्य लहरी 14 ही ज्योतित निर्विचार चेतना प्राप्त हो गई। वे इन पूर्ण प्रेम- पूर्वक उन्हें स्वीकार करती हूँ। परन्तु मैं आपसे प्रार्थना करती हूँ कि इस प्रकार सन्देह दोनों अवस्थाओं में से नहीं गुजरते। परन्तु कुछ लोग औसत दर्जे के हैं और कुछ तो पूरी तरह से करके अपनी उन्नति की गति को धीमा न करें। प्रश्न ये है कि आपके सन्देह क्या हैं? मैं आपसे बैलगाड़ी सम हैं। वो जैट की गति से नहीं चल कुछ नहीं माँगती। आप यदि किसी चीज़ के लिए सकते आधुनिक युग में जैट द्वारा बैलगाड़ी खींचने धन दे रहे होते है तब आपको सन्देह होता है। आप की कल्पना कीजिए। बहुत बड़ी समस्या है। परन्तु तो किसी चीज़ के लिए पैसा नहीं दे रहे । आप आप यदि उस गुणवत्ता और क्षमता के व्यक्ति हैं किस बात पर सन्देह कर रहे हैं? मुझे आपसे क्या तो आपको एक दम से दोनों अवस्थाएं प्राप्त हो जाती हैं, उसके पश्चात् कोई सन्देह नहीं बचता। से लोग आकर लाभ उठाना है? फिर भी बहुत कहते हैं कि श्रीमाताजी हमें सन्देह है! मैं कहती है परन्तु कुछ ऐसे लोग भी हैं जो सन्देह में फँस जाते हैं। मैं नहीं जानती कि यहाँ वे किस बात पर सन्देह ठीक है, करते रहो। जब आपके सन्देह खत्म हो करते हैं । उन्हें अनुभव प्राप्त हो जाता है, उन्हे जाएं तब मेरे पास आ जाना। तो चीजें इस प्रकार से हैं । मेरा आपसे अनुरोध है कि अपने मस्तिष्क चैतन्य लहरियाँ आती हैं, उनसे शीतल लहरियाँ को ये बताने का प्रयत्न करें कि तुम हर तरफ के बहती हैं, वो ये भी महसूस करते हैं कि ये चैतन्य लहरियाँ अन्य लोगों पर कार्य कर रही हैं, कुण्डलिनी कार्य कर चुके हो, सभी प्रकार के गुरुओं के पास जा चुके हो, सभी प्रकार की मूर्खतापूर्ण पुस्तकें पढ़ की धड़कन एवं इसे उठते हुए भी वे देखते हैं. चुके हो और सभी प्रकार के सन्देह कर चुके हो। हर चीज उनका स्वास्थ्य बेहतर हो जाता है, अब तो कुछ देर के लिए शान्त हो जाओ! शान्त हो सुधरती है, फिर भी वे सन्देह करते हैं और अपना जाओ। अपने मस्तिष्क से कहो कि तुम्हें गलत मार्ग समय बर्बाद करते हैं! ऐसे लोगों की सभी चीजों में देरी होती है, उनके रोग ठीक होने में देरी होती है। पर न ले जाए और आत्म साक्षात्कार को प्राप्त कर ले। ये आपका अपना है। ये आपकी अपनी सम्पत्ति और सन्देह की प्रवृत्ति के कारण हर लाभ होने में देर लगती है। ठीक है? तो यहाँ पर हमारे पास है। इस अवस्था में होना आपका अधिकार है । अतः जेट यान हैं, आत्म-साक्षात्कार पा लें और यदि किसी प्रकार के सुपरसॉनिक हैं, यहाँ पर प्रक्षेपात्र (Missiles) हैं और यहाँ बैलगाड़ियां भी हैं । इस विश्व को बनाने के लिए बहुत सारी चीजों की लिए कहें सन्देह हो रहे हों तो उन्हें कुछ देर प्रतीक्षा करने के आवश्यकता पड़ती है, क्या ऐसा नहीं है? अतः मैं परमात्मा आपको धन्य करें। सभी चीज़ों को सहज स्वभाव से लेती हूँ और अपने चलती हुई अंगुली चलती हुई उँगली लिखती है और लिखकर आगे, बढ़ जाती है । पूर्ण पावनता या बुद्धि-चातुर्य उस लिखाई का एक शब्द भी मिटा नहीं सकते। इन पंक्तियों से मुग्ध सोलह वर्षीय युवा बाला, छब्बीस वर्षों तक इनके सहारे जीवित रही। आपके जीवन को नियन्त्रित करने वाली यदि ऐसी वर्ष 1980 में परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी दिल्ली में थे। यहाँ वे साधकों की 1 कण्डलिनी जागृत करने के लिए आए थे यह निर्देशक अॅगुली है तो मन्दिरों, चर्चों तथा अन्य पूजा स्थानों की क्या आवश्यकता है? ये से मिलने के लिए गई क्योंकि रिश्ते में श्रीमाताजी कोई युवती, जो अब बड़े-बड़े बच्चों की माँ है, श्रीमाताजी उनकी मामी जी हैं। परन्तु जब वह उनके चरण प्रश्न बहुत से वर्षों तक उसे कचोटता रहा। कमलों को स्पर्श करने के लिए झुकी तो उसे तब एक दिन उसने एक कहावत सुनी, महसूस हुआ कि वे केवल मामी ही नहीं उनकी माँ "उठो, जागृत हो जाओ और तब तक मत रुको हैं! ये सारा परिवर्तन पलक झपकते ही हो गया! जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता। ये बात उसे उसने श्रीमाताजी से प्रार्थना की कि वे उनकी बेटी अच्छी लगी और वो प्रातः चार बजे उठने लगी । रत्ना को भी आशीर्वाद दें जो कि मिरांडा हाऊस में (स्वयं को कर्मयोगी कहा) कार्य करती रही, परन्तु पढ़ती थी। श्रीमाताजी की उपस्थिति में उसे विस्मयकारी आनन्द की अनुभूति हुई। अब भी जीवन की समस्याओं का न तो समाधान श्रीमाताजी : आप कैसे हैं बेटे? हुआ और न ही उसे जीवन का अर्थ समझ आया। हर चीज़ जीवित नजर आती परन्तु इसमें उसकी रत्ना : माताजी मैं ठीक हूैँ परन्तु मैं तीसरी ऑख (Third eye) के विषय में जानना चाहती हूँ। जिसके विषय में लोवसेंग राम्पा ने लिखा है। क्या भूमिका थी? ये एक प्रश्न था, संभवतः शाश्वत प्रश्न। श्रीमाताजी : बेटे, क्या कोई दोनों आँखों के मध्य में हो सकता है कि हम लोग उतने भाग्यशाली ऑप्रेशन करके तीसरी आँख खोल सकता है? क्या न हों जितने उस काल के लोग थे जब श्री और कोई ऐसा सर्जन है? (सभी लोग हैँसते है सीताराम, श्री राधाकृष्ण और ईसा-मसीह और माँ हुँसते चले जाते हैं) मैरी उन्हें आशीर्वाद देने के लिए पृथ्वी पर अवतरित रत्ना : श्रीमाताजी जैसे हाल में आई एक फिल्म हुए। कई बार मैंने सोचा कि हो सकता है हमें भी "The Omen Exorcist" में कहा है, 'क्या दिव्य महाविष्णु के दर्शन हो सकें या साक्षात् शक्ति के, शक्ति को आसुरी शक्ति में परिवर्तित किया जा मैं सोचती ही रही, और लो! हम आशीर्वादित हो सकता है? श्रीमाताजी : दिव्य शक्ति हमेशा दिव्य रहती है, गए! चैतन्य लहरी अंक : 7 & 8 - 2005 16 म इसमें कोई संदेह नहीं है। ये शक्ति कभी समाप्त किया। अब हमारी समझ में आया कि हमारी भाग्य नहीं हो सकती। आप यदि अपना मार्ग भूल जाएं रेखा को परम् पूज्य श्रीमाताजी का आशीर्वाद तो मैं तुम्हें सिर्फ एक झटका दे सकती हूँ। बस बदल सकता है। इतना ही। मेरा प्रेम आप सबके लिए हमेशा मौजूद है। रत्ना तथा उसका पूरा परिवार ध्यान धारणा करने लगे, रात को जल पैर क्रिया करने रत्ना : अध्यात्म पथ पर क्या अच्छे कपड़े पहनना लगे और उन्हें जीवन में एक नया अर्थ मिल गया। आवश्यक है? श्रीमाताजी : जागृत होकर कुण्डलिनी छः चक्रों में न कोई जल्दी, न कोई चिंता, न टैक्सियाँ, न कारें जो आपको तीर्थ स्थानों पर ले जाएं। यह से गुजरकर सहस्रार को छूती है। सहस्रार अन्तिम लक्ष्य है। इन सारे चक्रों के रक्षक देवता हैं। एक बार जब महालक्ष्मी चक्र जागृत हो जाता है तो उपलब्धि पाने वाली वह भाग्यशालिनी थी हाँ| आपको अत्यन्त स्वच्छ रहकर और सामर्थ्य के श्रीमाताजी का दृष्टिपात, उनका देखना ही काफी है। उनके तो चित्र से भी चैतन्य बहता है। ये बात अनुसार अच्छे वस्त्र पहनकर उसका सम्मान करना 1 होता है । महासरस्वती विवेक एवं स्वच्छता की पूर्णतः सत्य है। हमारी सम्मानमयी, प्रिय श्रीमाताजी आकांक्षा करती हैं । हमारी सारी तकलीफों को खींच लेती हैं और हम सदैव मुस्कराते रहते हैं। लक्ष्य प्राप्त हो गया था। परम पूज्य श्रीमाताजी ने अपनी दृष्टि एवं स्पर्श द्वारा रत्ना को हमारी स्थाई मुस्कान का रहस्य सभी लोग जानना चाहते हैं क्योंकि सहजयोग में कुछ भी आत्मसाक्षात्कार दे दिया था। छुपा हुआ नहीं है। हम सबसे जय श्रीमाताजी' बोलने के लिए कहते हैं। दिव्य दृष्टि अपना कार्य करती रही और कमरे में उपस्थित सभी लोगों को आशीर्वादित श्रीमती वर्मा B-18, प्रेस एन्कलेव, नई दिल्ली 5 सितम्बर 1980 चैतन्य लहरियों पर हमारा विश्वास चैतन्य चेतना (Viberatory Awareness) इस प्रकार की घटना हमें अपने आप पर और अपने निर्णयों पर विश्वास प्रदान करती है । कई बार हमें लगता है कि किसी खास स्थिति को खास प्रकार से निपटाना चाहिए। परन्तु निर्णय लेने का और कार्य करने का समय जब आता है एक बहुमूल्य उपहार है जो हम आत्म-साक्षात्कार के बाद प्राप्त करते हैं। हमारे सम्मुख विवेक का एक नया क्षेत्र खुल जाता है और हमें एक विशाल क्षितिज दर्शाता है हमारी सद-सद विवेक बुद्धि (Sense of Discrimination), दूध से पानी पृथक तो हम पीछे हट जाते हैं। ऐसे समय पर आनन्द कर देने वाला हँस जिसका प्रतीक है, विकसित हो जाती है और हमें अधिक सुरक्षा भाव और निर्णय लेने में अधिक आत्म-विश्वास प्रदान करती है। अंधेरे में भी अब हम प्रकाश देखते हैं। जहाँ पर हमें होता। अभी तक अविश्वास होता था वहाँ अब हमें पूर्ण विश्वास होता है। चैतन्य लहरियों के माध्यम से हम त्रुटिहीन, ठीक मार्ग देख पाते हैं। परन्तु कि हमें यह शक्ति प्रदान की गई है तो हम सदैव कभी-कभी हम इस दैवी उपहार का दुरुपयोग विश्वस्त हॉंगे और महसूस करेंगे कि श्रीमाताजी करते हैं और चैतन्य लहरियों के माध्यम से रोज़मरोा का चित्त हमारे ऊपर है हम उन नन्हें पक्षियों जैसे की छोटी-छोटी समस्याओं के उत्तर खोजते हैं। हैं जो अभी उड़ना सीख रहे हैं और बिना प्रगति आदिशक्ति की अनन्त कृपा से यह शक्ति हमें किए हम नीड़ तक ही सीमित रह जाते है। परन्तु समाप्त हो जाता है और विश्वासहीनता हमारे अन्दर स्थापित हो जाती है। ऐसे समय पर लिया गया निर्णय अचेतन से प्राप्त हुआ निर्णय नहीं इसके विपरीत यदि हमें गहन विश्वास हो प्राप्त हुई है। इसका उपयोग भी उचित ढंग से होना चाहिए। चैतन्य लहरियों को बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए। यदि हम इन्हें ठीक प्रकार से उपयोग नहीं करेंगे तो हो सकता है कि हम इन्हें खो दें। ऐसी स्थिति में चैतन्य लहरियों के आधार पर जो भी उत्तर हम खोजेंगे वो ठीक न होंगे। ऐसी अवस्था में हमारा आत्म-विश्वास डगमगा जाता है अपने आपमें विश्वास और परिणाम स्वरूप से हम प्रयत्न करते रहेंगे. हम तब तक उनकी कृपा प्रयत्न करते रहेंगे तब तक स्वयं इस कार्य को करने के योग्य नहीं बन जाते। जिस प्रकार श्रीमाताजी हमें शक्तियाँ देती है और वे हमें कार्य करने की विधि भी सिखाती है इसके बाद अपनी प्रेममयी देखरेख, विवेकशील प्रदर्शन और अगाध करुणा में कार्य करने के लिए वे हमें स्वतन्त्र छोड़ देती हैं। सहजयोग में विश्वास। परन्तु जब-जब भी हम हृदय से उच्च उद्देश्य के लिए चैतन्य लहरियों का उपयोग करेंगे तो निश्चित उत्तर प्राप्त होगा चाहे हमें इसकी है कि हम स्वयं को परमेश्वरी माँ के अगाध प्रेम के आनन्द को अपने हृदय में बनाए रखते हुए अब समय आ गया करें, वास्तविकता का दृढ आशा न हो। सहजयोगी को इस प्रकार से इसका सामना करें और उत्थान मार्ग पर उडना सीखें । आभास हो जाएगा मानो ये संदेश परमात्मा ने भेजा हो। Maria Amelia de Kalbermatten निर्मल योगा-83 आदिशक्ति एवं लाओत्से ताओ (Tao) आदिशक्ति हैं। श्री लाओत्से वास्तव में आधुनिक बनने के लिए मानव की सीमा केवल एक नाम है : निर्मला। का ताओ का अध्ययन हमारी भ्रान्ति रूपिणी आदिशक्ति माँ के कुछ पक्षों पर ही प्रकाश नहीं डालता, यह हमारे अपने विषय में भी बहुत सारी रोचक चीजें सिखाता है। उदाहरण के रूप में हममें हूँ तो से कुछ पश्चिमी सहजयोगी कभी-कभी अपने आक्रामक संस्कारों के अनुरूप सहजयोग का अधिक जबान चलाने लगता जब मैं बहुत "जो ज्ञानी है बोलते नहीं जो बोलते हैं वो अज्ञानी हैं। सत्य स्थिर मानव दिखावा नहीं करते दिखावा करने वाले सच्चे नहीं होते। (Tao Te Ching 81) प्रचार-प्रसार करने का प्रयत्न करते हैं। यह आक्रामक गतिविधि हम पर अनुकम्पी गतिशीलता तथा व्यक्तिगत चेतना जैसी इच्छा शक्ति का प्रभाव छोड़ती है और अपने कार्यों, प्रयत्नों, संघर्षों और उपलब्धियाँ प्राप्त करने के लिए जब मैं अपने पुराने संभवतः अपने तनावों के फल की आकांक्षा करते ढरे पर चलने लगता हूँ हैं। जो भी हो जब हम अन्दर से खाली होते हैं, इन "जिज्ञासु प्रतिदिन उन्नत होता है, ताओ के पीछे दौड़ने वाले का पतन होता सब चीजों से मुक्त होते हैं, केवल तभी ताओ हमारे अन्दर भर सकती है। श्री लाओत्से चाहते थे कि ताओ के बच्चे इस बात को स्वीकार करें। इसीलिए उन्होंने नीचे लिखी कुछ अद्भुत पंक्तियाँ हमारे लिए छोड़ी हैं : है प्रतिदिन वह घटेगा और घटता चला जाएगा, अकर्मण्यता में आ नहीं जाता वो जब तक क्योंकि अकर्मण्य बनकर ही किया जा सकता है सबकुछ। जब मेरा झुकाव मन्त्रों की ओर हो जाता है तो ये पंक्तियाँ हैं : (Tao Te Ching 48) ताओ सदैव बेनाम थे भारत, लन्दन या अन्यत्र जहाँ पर भी श्री माताजी पहली बार जब इसे उपयोग में लाया गया, होती है वहाँ न पहुँच पाने पर जब जब भी मैं उदास होता हूँ : "धर के दरवाजे से बाहर आए बगैर, तब इसका नामकरण हुआ जितने चाहे नाम इसे दे दें, मानव को अपनी सीमा तो जाननी ही होगी। अपनी सीमा को जानने के पश्चात् ही जान सकता है पूरे विश्व को मानव, खिड़की से झाँके बिना, मानव अमर हो पाएगा। बैकुण्ठ में आदिशक्ति को देख सकता है (Tao Te Ching 32) मानव, बिना कोई यात्रा किए. अक : 7 & 8 -2005 चैतन्य लहरी 19 हम उन आदि गुरुओं की अथाह गहनता के सम्मुख सब जान जाते हैं सन्त, बिना कोई हरकत किए पा लेते हैं सभी कुछ।" नतमस्तक हैं जिन्होंने हमें महादेवी के पावन चरण कमलों तक पहुँचा दिया है। श्रीमाताजी आपकी (Tao Te Ching 47) विनोदप्रियता और विवेक की एक चिंगारी मात्र से, सहजयोग में गुरु बनने वाले हमलोग, आपके मोक्ष परमेश्वरी माँ के उदाहरणों से जब मैं प्रेरणा एवं सन्देश को वांछित सूक्ष्मता, मधुरता, समर्पण एवं प्रभावात्मक शैली में लोगों तक पहुँचा पाएंगे हे देवी, तीनों लोकों में आप और केवल आप ही पथप्रदंर्शन लेना भूल जाता हूँ : ताओ महान व्याप्त है सर्वत्र, के असंख्य गुणों का दीप नश्वर मानव में सच्चे बाएं पर भी और दाएं पर भी, गुरु जला सकती हैं। श्रीमाताजी, आपकी जय हो, आपकी जय हो, आपकी जय हो। देवी महात्म्यम् तकि सृजन हर चीज़ का किया इन्होंने नकारती कुछ भी नहीं इसीलिए. प्रेम पूर्वक पोषण करती हैं हर चीज़ का, में वर्णन किया गया है कि आपके सेवक गण भी प्रभुत्व उन पर जमाती नहीं अस्तित्व हीन होने के कारण, ब्रह्माण्ड के आश्रय बन जाते हैं। री कहा जा सकता है इन्हें सूक्ष्म ताओ का एक अर्ध-पूर्ण एवं अर्धरिक्त बालक सभी कुछ समा जाता है इनमें स्वामित्व फिर भी ये दर्शाती नहीं (निर्मला योगा 83 से महान' है ये इसलिए। उद्धृत और अनुवादित) महानता भी कभी ये ओढ़ती नहीं महानता को पा लेती है इसलिए ।" श्री आदिशक्ति पूजा कर परम पूज्य श्रीमाताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन कबेला, 15 जून 2003 आप सब लोगों को यहाँ गोंधडी के गीत गाते देखकर मैं बहुत खुश हूँ। संभवतः आप स न ९ इसका अर्थ नहीं जानते। इसका ा अर्थ ये है कि हम श्रीमाताजी के शु गवैय्ये हैं ग्रामीण लोग ये भजन गाते हैं जिसमें वे कहते हैं कि "माँ के प्रति अपने पूर्ण प्रेम के साथ हम उनके गीत गा रहे हैं।" यही सारा संगीत आप तक पहुँच गया है। मेरे लिए ये अत्यन्त प्रसन्नता की बात है कि सर्वसाधारण ग्रामीण लोगों के प्रसन्नतामय की मनःस्थिति तथा उनके गीतों को आपने स्वीकार किया है। परमात्मा आपको धन्य करें। श्री आदिशक्ति 2003 (एक रिपोर्ट) पूजा श्रीमाताजी के साथ बिताए गए क्षण अमूल्य होते हैं। इस बात को बहुत से सहजयोगियों ने श्री आदिशक्ति पूजा के पश्चात् समझा। शनिवार शाम के कार्यक्रम तथा पूजा में श्रीमाताजी की संक्षिप्त उपस्थिति का आनन्द लेने की कृपा मि हम पर हुई। शनिवार शाम को कला कार्यक्रम में पहुँच कर श्रीमाताजी ने हम सब को आनन्दमय आश्चर्य में डाल दिया। वहाँ मेज़बान देशों के सहजयोगियों द्वारा उनके सम्मुख उपस्थित किए गए कार्यक्रमों का उन्होंने आनन्द लिया। पूजा का समय सात बजे का रखा गया था और इसी समय पर घोषणा की गई कि श्रीमाताजी किले से चलने वाली हैं। चैतन्य लहरियाँ एकदम से बढ़ गई। वास्तव में श्रीमाताजी दस बजे पधारीं और वहाँ एक घण्टा रुर्की। बिना प्रवचन के पूजा आरम्भ हो गई और तुरन्त बच्चों को श्रीमाताजी के चरण कमलों पर कुम-कुम अर्पण करने के लिए कहा गया। तत्पश्चात् बिना कोई साज़ श्रृंगार किए श्रीमाताजी को पूजा भेंट अर्पण की गई और सबने मिलकर आरती की। इसके पश्चात श्रीमाताजी ने स्वयं माझी गोधाडी गाने को कहा। ये भजन गाते हुए वास्तव में पण्डाल नाच उठा। श्रीमाताजी के चेहरे से नूर बह रहा था और हम सब लोग आनन्द में डूबे हुए थे तथा कामना कर रहे थे कि इस भजन का अन्त कभी न हो। अचानक श्रीमाताजी ने माइक्रोफोन लिया और इस भजन का अर्थ बताया । "हम श्रीमाताजी के गवैय्ये (भाट) हैं।" श्रीमाताजी ने इसके पश्चात् प्रस्थान किया और हम सब आन्तरिक मौन में सन्तुष्ट रहे । पूरा आव्वो यूटे मारगोट मारटिन और सीता रा श्री कृष्ण पूजा मुम्बई 28.8.1973 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन में रहते हैं। वातावरण में वह उष्मा (warmth) महसूस करती हैँ और आप भी इसे महसूस करते हैं क्योंकि आप जानते हैं कि विदेशों से यहाँ आए ये साधक कोई गैर (Foreigners) नहीं हैं। वे आपके अपने बहन भाई हैं। पुराणों १ में इस प्रकार की बहुत सी कथाएं हैं। मैं उनकी बात नहीं करूंगी। एक बार जंगल में दो भाई मिले। परन्तु उन्होंने सोचा कि वे एक दूसरे के दुश्मन हैं और परस्पर युद्ध करना चाहा। मारने के लिए जब उन्होंने हाथ उठाया तो वे एक दूसरे को मार न सके, तब उन्होंने तीर निकाले। तीरों ने भी कार्य न किया। इस बात से उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ! तब उन्होंने एक दूसरे से उसकी माँ का नाम पूछा और पाया कि वे एक ही माँ के बेटे थे तब उन्हें महसूस हुआ कि वे न तो गैर थे और न ही दुश्मन। वों दोनों एक ही तत्व के बने हुए थे। इस ज्ञान ने उन्हें कितना सौन्दर्य और कितना परमात्मा ने पूर्ण को समझने के लिए माधुर्य प्रदान किया! ये जानकर हमें कितनी सारा प्रबन्ध किया है उदाहरण के रूप यदि मुझे केवल अपने सिर का ज्ञान हो तो ये काफी नहीं है, मुझे यदि केवल टॉँगों का ज्ञन हो तो भी काफी नहीं है। अपने विषय में में सूझ-बूझ और सुरक्षा प्राप्त होती है कि विश्व भर में सर्वत्र हमारे भाई-बहन हैं जो आत्मचालित हैं, जो अपने परमेश्वर पर निर्भर हैं और उस दिव्य प्रेम से हम किस प्रकार बन्धे हुए हैं! जितना अधिक ज्ञान मुझे होगा मैं उतनी ही मैं जब प्रेम की बात करती हूँ तो लोग समझते हैं कि मैं आप लोगों को दुर्बल बनाने का प्रयत्न कर रही हूँ। उनके विचार से प्रेम प्रगल्भ और विशाल होऊंगी। महान कहलाने वाला सभी कुछ या महान कहे जाने वाले लोग इसलिए इन्सान हैं क्योंकि वे बहुत से मनुष्यों अक : 7 & 8 - 2005 चैतन्य लहरी 23 दुर्बलता है। परन्तु विश्व में प्रेम की शक्ति जिससे आगे हमारा मस्तिष्क नहीं सोच सकता अत्यन्त प्रगल्म शक्ति है, प्रेम की शक्ति ही है प्रेम जब स्थूल तत्व से घिरा हुआ हो, उसी अत्यन्त प्रभावशाली है प्रेम में चाहे हम कष्ट उठाते हैं तो भी अपनी शक्ति के कारण कष्ट उठाते हैं न कि अपनी दुर्बलता के कारण । में उलझा हुआ हो केवल तभी यह दुर्बल और परेशान महसूस होता है । स्थूल तत्वों से जब होता है तो प्रेम की प्रगल्भ शक्ति पूरे ये मुक्त उदाहरण के रूप में चीन में मुर्गों को सिखाने विश्व की आसुरी शक्तियों पर काबू पा सकती वहाँ का राजा अपने मुर्गे |=ा े है। लोगों को जब आत्म साक्षात्कार मिलता है वाला एक गुरु था। उसके पास ले गया और उससे कहा कि इन्हें तो काफी हृद तक अहम् समाप्त हो जाता है लड़ना सिखाए। एक महीने के पश्चात् जब क्योंकि आप कहते हैं कि चैतन्य लहरियाँ बह राजा अपने मुर्गे लेने के लिए गया तो उसे रही हैं। ये नहीं कहते कि आप दे रहे हैं। आश्चर्य हुआ कि उसके मुर्गे अत्यन्त शान्तिपूर्वक अहम मुक्त हो जाने के कारण कभी-कभी आपको ऐसा लगता है कि जो भी आप पाना "तुमने मेरे मुर्गों को क्या किया है?" वो बिल्कुल चाहते थे आपको मिल गया और अब उसके एक तरफ खड़े थे। उसने उस गुरु से कहा, भी आक्रामक नहीं हैं, वो कुछ भी नही कर बारे में बात नहीं करना चाहते। कहीं से यदि रहे। ये किस प्रकार लड़ाई जीतेंगे? दौड़ और विरोध होता है तो उसकी चिन्ता न करके आप शक्तिस्पर्धा होगी, उसमें ये क्या करेंगे? गुरु ने एक ओर बैठ जाते हैं। नकारात्मक विरोध से कहा कि आप इन मुर्गों को ले जाएं। राजा बचने के लिए न तो आप कुछ बोलते हैं न ही मुर्गों को ले गया और उसे अखाड़े में छोड़ कोई गलत तरीका अपनाते हैं। इस विचार से भी आप परे भागते हैं कि हे परमात्मा! ये दिया जहाँ और मुर्गे लड़ने के लिए आए थे। ये दोनों मुर्गे बड़ी शान्ति से खड़े रहे। अन्य मुर्गे आपस में लड़ते रहे। परन्तु ये दोनों विपरीत नकारात्मक और घृणायुक्त व्यक्ति आ अधिक बातूनी हो जाता है और बड़ी -बड़ी बातें इस व्यवहार को देखकर बाकी मुर्गों ने ये करते जाता है, करते जाता है, करते जाता समझा कि ये दोनों बहुत शक्तिशाली हैं और है। वो सोचता है कि वह सबसे ऊपर है और इसका मुकाबला किस प्रकार करेंगे? इसके राम से खड़े होकर उन्हें देख रहे थे। उनके डरकर वहाँ से भाग गए। पूरे विश्व को बेवकूफ बना सकता है। पूरी जिम्मेदारी वो स्वयं पर ले लेता है। लोग कोई जिस प्रेम के विषय में मैं बात कर रही बड़ा आश्रम या स्थान उसके लिए बना देते हैं और अपनी सारी अज्ञानता के साथ वो इसमें हूँ, परमेश्वरी प्रेम आपको शक्तिशाली एवं प्रगल्भ है बैठ जाता है और अपना अंधकारमय ज्ञान बनाता है। यह महानतम ज्योतिर्मय शक्ति चैतन्य लहरी अंक : 7 & 8 - 2005 24 परे थे वो कभी नहीं रोए। वे प्रशिक्षित मुर्गो की तरह से थे, अत्यन्त शक्तिशाली व्यक्तित्व। परन्तु आज आप लोगों ने अपने अन्दर विद्यमान अपनी शक्ति की सूझ-बूझ को परिष्कृत करना इन तरीकों में लोग लोगों में फैलाने लगता है। बहुत रुचि लेते हैं और जा-जाकर उसके पैरों में गिरते हैं। परन्तु आत्म-साक्षात्कारी व्यक्ति आराम से अपने घर बैठता है और चकित होता है कि ये मूर्ख क्या कर रहे हैं। परन्तु अब है। जो लोग स्थूल (भौतिक स्तर पर) हैं वो आत्म- साक्षात्कारी लोगों को इस तरह से अपनी असुरक्षा, अपनी समस्याओं और अपनी बैठकर न तो हैरान होना है और न ही उनपर संस्थाओं की चिन्ता करें। यह कार्य आत्मसाक्षात्कारी लोगों का नहीं है। बहुत बार हँसना है जो लोग आत्म साक्षात्कारी नहीं हैं उनकी मूर्खता पर उसे दया नहीं करनी, मैंने आपसे बताया है और आज पुनः बता रही आत्म-साक्षात्कारी व्यक्ति को बाहर निकलना हूँ कि आत्म साक्षात्कार प्राप्त कह लेने के है। प्रेम की तलवार लेकर पूरे विश्व को जीतने पश्चात् आप कभी अकेले नहीं होते। के लिए उसे बाहर निकलना है, ऐसा करना आपके जन्म से पूर्व भी बहुत से लोगों अत्यन्त आवश्यक है। ने आत्म-साक्षात्कार को प्राप्त किया, वो सब विद्यमान हैं और हर क्षण आपकी सहायता सृष्टि को यदि बचाना है तो आपका इसके विषय में चुप करके नहीं बैठना। प्रेम के विषय में सारी गलत धारणाएं, सारे झूठ त्यागने होंगे। व्यक्ति को समझना करने के लिए उत्सुक हैं। हमारे शास्त्रों में उन्हें चिरंजीवी कहा गया है। यह बात आप है कि प्रेम की शक्ति जानते हैं। ये निरंजन' लोग हैं । जैसा मैंने भैरवनाथ और हनुमान जी के बारे में बताया था कि ये सब विद्यमान हैं और आपकी पुकार की प्रतीक्षा करते रहते हैं। एक बार हम बाजार अत्यन्त प्रगल्म है और यदि पूरा विश्व इसके आनन्द से वंचित है और विश्व को नष्ट करने के लिए तथा पृथ्वी पर शैतान का साम्राज्य स्थापित करने के लिए आई हुई आसुरी शक्तियों के हाथों में खेल रहा है तो ये प्रेम की शक्ति गए और वहाँ कोई समस्या थ्री। एक शिष्य मेरे साथ था, मैं उसकी प्रतिक्रिया जानना चाहती आपको आराम से बैठकर आत्मानन्द तथा थी। वह दुकानदार को कुछ समझाने का परमेश्वरी कृपा का आनन्द नहीं लेने देगी। प्रयत्न कर रहा था। वह मेरे पास आया और कहने लगा श्रीमाताजी आइए चलें।" हम दुकान अब वो दिन चले गए जब सच्चे साधकों को कष्ट उठाना पड़ता था। ईसा मसीह ने हमारे से बाहर आ गए। मैने उससे पूछा, कि अब तुम इसके बारे में क्या करोगे? उसने उत्तर दिया कि मैंने हनुमान जी को कह दिया है कि लिए कष्ट उठाए। वास्तव में ईसा मसीह ने कभी कष्ट नहीं उठाया क्योंकि वो तो दुःख से अंक : 7 & 8 - 2005 चैतन्य लहरी 25 नहीं इस मामले को देखें और कार्य हो गया ये कहें कि ये नकारात्मकता है, और कुछ स्थूल हैं। आप भी ऐसे कार्य उन पर छोड़ चाहे आपको ये बात अच्छी लगे या न लगें, सकते हैं और वे इन कार्यों को देखेंगे। क्योंकि ऐसा करके आप उस व्यक्ति से प्रेम करते हैं। मंच पर तो आप हैं वे नहीं। वे तो पृष्ठभूमि में प्रेम का अर्थ ये बिल्कुल नहीं है कि केवल मीठी-मीठी बातें करनी हैं. नहीं। माँ भी तो हैं, पार्श्व (Playback) में हैं। परन्तु आपको अपना मुँह खोलना होगा यदि वे सोचने लगेंगे कभी कभी बच्चों को डाँटती हैं, परन्तु डाँटने का मतलब ये नहीं है कि वे उन्हें प्रेम नहीं तो लोग क्या कहेंगे। वो आपको हर तरह से मदद करेंगे। परन्तु आप अपनी सुरक्षा के लिए करती। यदि आवश्यक हो तो आपको बताना कितने विश्वस्त हैं? कहाँ तक अपनी सम्पदा होगा कि यह सकारात्मकता है। व्यक्ति यदि आत्म साक्षात्कारी है तो वो इस सुधार के लिए और आत्मज्ञान पर खड़े हुए हैं? इस बात का बिल्कुल भी बुरा न मानेगा क्योंकि वह तो सुधरना चाहेगा। आत्म-साक्षात्कारी कि ये दोष है। यन्त्र का बहुत बड़ा युद्ध चल रहा है इसका आपको ज्ञान नहीं है। आपमें कुछ लोग तो व्यक्ति जानता है निश्चित रूप से इसके विषय में जानते हैं सुधारा जाना आवश्यक है। परन्तु कोई व्यक्ति क्योंकि उन्हें ये युद्ध लड़ने का अनुभव है। यदि नहीं समझता तो आपको अपना प्रेम उस बहुत बड़ी लड़ाई चल रही है, विशेष रूप से पर थोपना पड़ेगा। आप बलपूर्वक अपना प्रेम जबकि आपको कमजोर करने के लिए दस उसे जता सकते हैं। इस बात को आप जानते राक्षस अवतरित हो चुके हैं। अभी तक आप हैं कि यहाँ बैठे हुए बहुत से लोगों ने अन्य छोटे बच्चे हैं, इसमें सन्देह नहीं है, क्योंकि लोगों पर अपना प्रेम कवच डालने का प्रयत्न किया है, ऐसे लोगों पर जो शरारत करने का आपकों कुछ ही दिन पूर्व आत्म साक्षात्कार प्रयत्न कर रहे हैं और उन्हें बड़े अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हें। वे शरारती लोग वापिस लौट आए हैं अपना हाथ रखकर, उस व्यक्ति पर प्राप्त हुआ है परन्तु आप यदि चाहें तो बहुत जल्द आपका विकास हो सकता है और आप बड़े-बड़े सूरमा बन सकते हैं। आप सभी उन्नत हो सकते हैं, केवल आपको ये निर्णय करना होगा कि आपने अपने अन्दर बढ़ना है। आपने ऐसी बहुत सी चीजें खोज ली हैं जिनसे व्यक्ति का विकास होता है। मैं आपको भोजन अपना चित्त डालकर और हाथ को इस प्रकार गोल घुमा (बन्धन) प्रेम का बन्धन लगा कर आप व्यक्ति को रास्ते पर ला सकते हैं । निःसन्देह या तो सकारात्मकता है या नकारात्मकता मध्य में कुछ भी नहीं है। दोनों दे सकती हूँ, बढ़ना तो आपको ही होगा। जब के बीच में कोई समझौता नहीं । या तो रोशनी भी आप नकारात्मकता देखें तो दृढता पूर्वक अंक 7 & 8 - 2005 26 चैतन्य लहरी सर्वसाधारण गृहणी हूँ। कुछ लोग कहते हैं। या अंधेरा, या सकारात्मकता है या श्रीमाताजी हम आप जैसे कैसे हो सकते हैं? नकारात्मकता। निश्चित रूप से इन दोनों के बीच में युद्ध चल रहा है। केवल आपकी क्यों नहीं हो सकते। मैं भी आप ही की तरह ये से हूँ, मेरी समस्याएं भी आप ही की तरह से इच्छा, बहुत बड़ मजाक है, का सम्मान होता है। पूरी तरह से आपकी इच्छा का सम्मान होता है आपमें यदि उस प्रेम की मैं प्रेम की दिव्य मूर्ति के अतिरिक्त कुछ भी निकटता पाने की इच्छा है तो आप इसे पा सकते हैं। हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि मैं जानती हूँ कि नहीं और इस दिव्यता के बगैर मेरा कोई अस्तित्व नहीं है मैं चाहती हूँ कि मेरे जीवन के हर क्षण में मुझसे प्रेम बहता रहे. बहुता उस दिन मैं एक मनोवैज्ञानिक से रहे। मेरे मस्तिष्क की हर तरंग उस प्रेम को मिली। उसका प्रति अहं बहुत पकड़ रहा था। मैंने पूछा, आपको क्या परेशानी है? वह कहने लगा मेरा बचपन। अपने बचपन में मुझे पर्याप्त प्रेम नहीं मिला। मैंने कहा, अब मैं यहाँ हूँ, मेरे जीवन में आओ और प्रेम ले लो। वह कहने पहुँचाती रहे और आपको अत्यन्त शक्तिशाली बना दे। मैं देवी महात्म्य पढ़ रही थी, आप भी यदि इसे पढ़ें, तो इसमें एक राक्षस के बारे वर्णन किया गया है जिसमें आदिशक्ति का TI (परमेश्वरी माँ का) सामना किया वह उन पर हँसा और कहा, "ओ, स्त्री तुम मेरा क्या बिगाड़ लगा, श्रीमाताजी मैं अपना प्रेम प्रसारित करना सकती हो? तुम तो केवल एक महिला हो! चाहता हूँ। निडर होकर मैं अपना हृदय खोलना तुम मेरा क्या बिगाड़ सकती हो? वे उस राक्षस चाहता हूँ। मैंने कहा आप ये कार्य तुरन्त शुरु कर दें चिन्ता न करें कि किस प्रकार लोग पर मुस्कराई और कहा, "ठीक है, आगे बढ़ो, इसे गलत समझेंगे और क्या कहेंगे लोगों की चिन्ता करना महत्वपूर्ण नहीं है। प्रेम की तृप्ति हम युद्ध करें।" एक ही प्रहार से देवी ने उसकी गर्दन काट दी! यह बात स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि सकारात्मकता नकारात्मकता तो केवल प्रेम से ही हो सकती है कि आप का गला काट सकती है। इसमें कोई हिंसा दूसरे व्यक्ति को प्रेम करें, अपना प्रेम प्रसारित करें और जैसा मैंने कहा, आप इस कार्य में नहीं है। दो चीजों के अन्तर को आप अवश्य समझ लें। यदि नकारात्मकता को नष्ट किया सफल हो जाएंगे। निर्णय कर लें कि मैंने प्रेम जाता है और सकारात्मकता को बढ़ावा दिया करना है एक बार जब आप दृढ़ निश्चय कर जाता है तो यह सबसे बड़ी अहिंसा है जो आप कर सकते हैं। आपने देखा है कि नकारात्मकता लेंगे तो पूरी दिव्यता, पूर्ण दिव्य शक्ति आपके चरणों में लोट जाएगी। इस मामले में आप मेरा विश्वास करें। आप मुझे देखें, मैं एक लोगों के साथ क्या करती है। अब आपने প প अंक : 7 & 8 -2005 चैतन्य लहरी 27 जाना है कि नकारात्मकता क्या है और किस हैं और चैतन्य बहाने लगते हैं। शक्ति के प्रकार लोग इसके कारण कष्ट उठाते हैं! और कारण! ये सारे विजय-दिवस अभी आने बाकी यहाँ पर वो प्रेम प्राप्त करने के लिए भी हैं और ये सब आपके माध्यम से कार्यान्वित होगा परन्तु आपके दुर्बल शरीर यन्त्र का क्या होगा? यह तो अभी तक बहुत ही धीमी गति से उत्सुक है। आपको आश्चर्य होगा कि यदि आप वास्तव में उनसे प्रेम करें (.) लोग स्वयं मेरे पास आकर कहते हैं कि श्रीमाताजी चल रहा है। हमें मोक्ष दीजिए! मेरे पास लोग केवल मोक्ष प्राप्ति के लिए आते हैं और यदि मैं वचन देती ड वह समय जब प्रेम का साम्राज्य होगा, हूँ तो वो पुनर्जन्म (आत्मसाक्षात्कार) लेते हैं । उस दिन जैसे मैंने आपको बताया था कि उस सतयुग ने यदि आना है तो वह आपके प्रयत्नों से आएगा सहजयोग से पूर्व कोई भी प्रयत्न दिव्य प्रयत्न नहीं था परन्तु अब आपके सभी प्रयत्न दिव्य हैं। जो भी कुछ आप करते कलियुग में एक सुन्दर मंच की रचना की गई और इस पर आश्चर्यजनक नाटक खेला हों, अनुकम्पी नाड़ी तन्त्र को जितना भी आप गतिशील करें, प्राप्ति तो आपको पराअनुकम्पी जाना है। इस नाटक में रावण सीता को माँ की तरह से प्रेम करेगा और कंस भी राधा के चरण कमलों में गिरेगा। शायद आप नहीं के माध्यम से हो रही है। आप कुछ भी नहीं करते। आप स्वयं देख सकते हैं इसके साथ जानते कि श्रीकृष्ण कंस को उसी समय मारना कितने खतरे जुड़े हुए हैं। आप चुनिन्दा व्यक्ति केवल चाहते थे। कंस उसके मामा थे माँ के भाई है। अन्यथा क्यों यह आपको प्राप्त होता। आप ही वो लोग हैं जिन्हें आत्मसाक्षात्कार की भावना कृष्ण के मन में उठी। अतः उन्होंने राधा से कहा वे कंस का वध करें क्योंकि प्राप्त हुआ है और आप ही इतना आगे बढ़े हैं। राधा का प्रेम तो पूरे विश्व के लिए था। वे प्रेम की प्रतिमूर्ति हैं, उन्होंने कंस का वध किया क्योंकि यही परमेश्वरी इच्छा थी जब आप अभी कुछ ही दिन पूर्व आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ था और आप इतना आगे बढ़ गए हैं, क्यों? आप चुने हुए लोग है, आपने ही ये उत्तरदायित्व लेना है, परमेश्वरी प्रेम की वाहिकाएं परमात्मा के हाथ में खेल रहे होते हैं और वह किसी का वध करना चाहता है तो उसे तो बनने का, वह प्रगल्भ शक्ति बनने का जो उस मरना ही है। परन्तु सर्वप्रथम आपको परी होना होगा प्रेम घृणा की सारी धारणा को ही परिवर्तित कर देगा जिस पर ये सारे राष्ट्र और भेदभव बनाए तरह से परमात्मा के हाथ में ही इस शरीर का वध करता है। परमात्मा के विजय गीत जब गाए जाते हैं, तो आपने देखा गए है। कुछ समय तक ऐसा लगता है कि परन्तु अब कैसे, कैसे ये कार्य हो सकता है? है, किस प्रकार सभी चक्र कार्यान्वित हो उठते अंक : 7 & 8 - 2005 28 चैतन्य लहरी गोकुल के दिन चले गए हैं मैं इसके विषय में में ऐसा नहीं होता वो महान सन्त होता है । सोच रही थी, उस समय श्री कृष्ण अपनी यहाँ पर सभी सन्त बैठे हुए हैं यह सन्त- बॉँसुरी बजाया करते थे और गोपियों तथा गोपों को सहजयोग देने का प्रयत्न करते थे। परमेश्वर प्रवाहित हैं। आवश्यकता केवल इतनी ओह! वह प्रयत्न करते रहे, करते रहे, कई है कि इसे अपने अन्दर से प्रवाहित होने दें। ये जन्मों में ये प्रयत्न करते रहे। भी कार्यान्वित सुलभता का केन्द्रक (Nucleus) है जहाँ पूर्ण परमात्मा की शक्ति है और इस बात की कुछ नहीं हुआ। परन्तु अब ये चिंगारी की तरह से चिन्ता करना आपका कार्य नहीं है कि यह फैल जाएगा निरन्तर प्रतिक्रिया ( Chain reaction) आरम्भ हो जाएगी परन्तु इसे हैं कि इस विश्व के आधुनिक विज्ञान के कार्यान्वित करने के लिए हमारे पास शक्तिशाली अनुसार यह शक्ति कुछ बुरा कर सकती है, मशीनों का होना आवश्यक है नहीं तो फ्यूज़ तो भी अन्ततः सभी कुछ अच्छा हो जाएगा। अच्छा करेगी या बुरा। यदि आप ये सोचते भी उड़ जाएगा। आपने केवल अपने चित्त से, अपनी शक्ति को महसूस करना है। आपने को मारना क्यों आवश्यक था? रावण को मारना केवल इतना कार्य करना है - अपने धैर्य को क्यों आवश्यक था? निःसन्देह वध करने से जरासन्ध को मारना क्यों आवश्यक था? कंस अधिक लाभ नहीं होता, इस बात को मैंने महसूस करना और सारे असत्य को त्याग देना। जो भी असत्य है, उसे आप अन्दर देखें और छोड़ दें केवल सत्य को स्वीकार करें सोचा है। जिन लोगों के वर् किए गए थे वो सब पुनः अपने स्थानों पर आ गए हैं। परन्तु अब आप उन राक्षसों से न लड़े, स्वयं से और सत्य आपको वो शक्ति देगा कि आप प्रेम की शक्ति, प्रेम की वाहिका को कार्यान्वित लड़कर उन्हें बाहर निकाल दें। केवल स्वयं को देखें कि आप कहाँ हैं? क्या कर रहे हैं? करने वाले सच्चे उपकरण बन सकें। तब आप चाहने पर भी अहंकार न कर सकेंगे। चाह कर भी किसी को हानि न पहुँचा से लोग कहते हैं कि श्रीमाताजी ने ये वरदान क्या आप परमेश्वरी धरातल पर है या स्थूल धरातल पर? हर क्षण इसके विषय में सोचें, हर क्षण आपको परिपूर्ण करने वाली, आपके अन्दर प्रवाहित होने वाली पूर्ण शक्ति के बारे सकेंगे। बहुत ऐरे गैरे को दे दिया है। ऐरे-गैरे को मैं ये नहीं दे सकती। यह तो किसी साधक पुरूष को तथा जन्म-जन्मान्तरों से साधनारत किसी महिला में सोचें। सहस्रार के माध्यम से ये आपके रोम रोम में प्रवाहित होगी। आपके पूर्ण अस्तित्व के को ही दिया जा सकता है। आपको समझ चहूँ ओर घूमेगी और आपके अन्तस को पूर्ण लेना चाहिए कि आपको क्या मिल गया है! चैतन्य शक्ति, पूर्ण परमेश्वरी शक्ति के रूप में आपका अधिकार ही आपको प्राप्त हुआ है । तो परिवर्तित कर देगी। इसे अपने अन्दर आने दें देखने में व्यक्ति चाहे सर्वसाधारण लगे वास्तव इसे स्वीकार करें, बिना किसी भय के इसे अंक : 7 & 8 -2005 29 चैतन्य लहरी कृष्ण आपके अन्तस में जन्मेंगे, जब आप कृष्ण बन जाएंगे तब आपको कृष्ण से शैली अपना ली है । मेरे केवल दो हाथ हैं, मिलने के लिए नहीं जाना होगा। आइए अब स्वीकार करें, हर क्षण इसे अपने अन्दर आने दें, हर क्षण चेतन रहें। आपने अत्यन्त खतरनाक आप इन्हें देख सकते हैं और यद्यपि श्री. ऐसी अवस्था को पा लें जो आपके अधिकार कहते हैं कि मैं कुछ भी करने में सक्षम हैं, मैं क्षेत्र से, आपके विचारों से परे है. निर्विचार सभी कुछ कर सकती हूँ परन्तु आपको कुछ समाधि के साम्राज्य में जहाँ परमात्मा अपनी भी करने के लिए विवश नहीं कर सकती। कृपा वर्षा कर रहे हैं। सदा आपकी इच्छा का सम्मान होगा। एक चीज़ के अतिरिक्त सभी कुछ देखा जा सकता इन लोगों ने आज पूजा करने का निश्चय किया है आप जानते हैं कि जब आप लोग मेरी पूजा करले हैं तो मेरा क्या हाल कुछ है । आपको पूर्ण यन्त्र, पूर्ण वाहिका, पूर्ण बाँसुरी तो बनना ही होगा यदि आप चाहते हैं कि मैं होता है? तो जिन समस्याओं का सामना बाद आपके प्रेम की धुन बजाऊं तो आपको अपने सातों छिद्र (चक्र) स्वच्छ करने होंगे स्वयं को में करना है उसके बारे में न सोचते हुए मैं चाहूँगी कि आप पूजा पर पूरा चित्त दें और इसका पूरा लाभ उठाएं। इस पूजा से आरम्भ में तो आप माँ की सुरक्षा प्राप्त करते हैं और जब मेरे चक्र चलने लगते हैं तो वे आपको प्रेम कलाकार हैं परन्तु आप यन्त्र है। इतनी सारी की विशेष शक्तियाँ प्रदान करते हैं, आपके आत्माओं से बजने वाला लयबद्ध संगीत, इन सभी चक्रों पर विशेष कृपा करते हैं और उन्हें सारे राक्षसों के कानों में घुस सकता है, इनके पूरी तरह से चैतन्य से भर देते हैं । यद्यपि में प्रवेश कर सकता है और उनके हृदय थोड़े से लोग ही मेरे पास पूजा के लिए पूरी तरह से खाली कर लेना और अपने अन्दर पूर्ण होना आपका कार्य है। इसके बाद परमात्मा अपने कार्य को जानते हैं। परमात्मा हृदय है कि वे आएंगे। में प्रेम भर सकता है। तब हो सकता। स्वयं अपनी दुष्प्रवृत्तियों को त्यागकर प्रेम के मैं चाहूँगी, कि आप सभी इस बात का चरणों में गिर जाएं। आज आप ही के अंदर श्री कृष्ण जन्म लेंगे। पाँच वर्ष का बालक जो एहसास करें कि उनके माध्यम से आप ही मेरी पूजा कर रहे हैं। आप ऐसा एहसास कर कालिया वध के लिए चल पड़ा! वे कृष्ण आपके अन्दर जन्म लेगे जो जाकर कालिया के सहस्रार सकते है। इस प्रकार से मेरा आशीर्वाद और पर बैठकर अपने पैर से उसे दबाते रहें। मुझसे एकरूपता स्वतः ही आपमें प्रवाहित होने कालिया के सहस्रार पर श्री कृष्ण-नृत्य के । महान नाटक को सभी लोग देख रहे थे । लगेगी करें ं। परमात्मा आप पर कृपा परम पूज्य श्री माताजी का एक पत्र वर्ष 1979 (मराठी से अनुवादित) मेरे प्यारे सहजयोगियो आपके प्रेममय एवं सुन्दर पत्र तथा बधाई संदेश प्राप्त हुए। यहाँ, लन्दन में व्यस्त होने के परमात्मा का जो भी कार्य है सब हो जाएगा। अतः सभी लोगों को चुस्त एवं चेतन होना चाहिए। कारण मैं उत्तर न दे सकी। मेरा जीवन आपके प्रति समर्पित है। हर क्षण मैं कार्य करती हूँ। मैं केवल इतना चाहती हूँ कि कलियुग के नर्क की आग में तपकर यह शुद्ध सोना मानव इतिहास को जयोतिर्मय करे एक बार मैंने आपसे बताया था के इस वर्ष नवरात्रि से सहजयोग आरम्भ हो रहा है। अर्थात जिस सत्ययुग के लिए आप अब तक तैयारी कर रहे थे वह अब दिखाई देगा। जिस प्रकार पेड़ का अंकुरण सर्वप्रथम पृथ्वी में होता है, फिर इसकी पत्तियाँ बाहर दिखाई देती हैं, इसी प्रकार नवरात्रि के पहले दिन- अर्थात 8 अप्रैल को सहजयोग की पत्तियाँ दिखाई देंगी। मेरा आशीर्वाद है कि घर-घर में यह दीप प्रज्जवलित हो, समाज में इसका आनन्द फैले, इसका विजय घोष सभी देशों में गुंजरित हो और यह ब्रह्मशक्ति ब्रह्माण्ड के हर अणु-अणु में संचरित हो उठे। यह महान आनन्द का दिन होगा पूर्ण प्रकृति को नवजीवन प्राप्त होगा आप एक बात समझ लें कि इस दिवस के महत्व को मनुष्य केवल तभी समझ पाएगा जब पूरी मानव जाति प्रेम की चैतन्य लहरियों से ज्योतिर्मय हो जाएगी। ह बहुत समय के लिए मुझे आपसे दूर जाना होगा परन्तु आपके भाई यहाँ पर भी हैं और अन्य देशों में भी। समय के साथ-साथ आप उन सबसे मिलेंगे। मुझे प्रायः ये आभास होता है कि एक दिन ऐसे महान प्रेम के आनन्द का उदय आपके जीवन में होना चाहिए। आप जो भी इच्छा करेंगे बह पूर्ण क मेरे जन्मदिवस से ही इस विश्व में ब्रह्मशक्ति जागृत हो गई थी कुछ सीमा तक आपने यह शक्ति प्राप्त कर ली है और भिन्न प्रकार होगी। अंतः आपका चित्त पूरी तरह से सहजयोग पर होना चाहिए। मैंने अपना शरीर, मन, धन सभी से इसका उपयोग कर रहे हैं। कुछ इसको अर्पण किया हैं मैं आपसे बता रही थी कि प्यार की ये महान शक्ति विश्व में सर्वत्र फैल जाएगी। उस दिन पहला दीपक प्रज्जवलित किया जाएगा। आपको केवल अपने चित्त के प्रति सावधान रहना है क्योंकि चित्त ने ही ज्योतिर्मय होना है। परन्तु दिवाली की रात अंधी है। यह दीपकों को नहीं देख सकती। इस कलियुग में यह कार्य केवल तभी हो सकेगा जब बहुत से दीपक प्रज्जवलित हो जाएंगे। सदैव आपको स्मरण करने वाली आपसे बिछुड़ी हुई आपकी माँ (निर्मला योगा- 1983 ) श्) परम पूज्य श्री माताजी का एक पत्र मराठी से अनुवादित िंड मेरे प्यारे सहजयोगियो को बहुत ऊँचा मानने वाले व्यक्ति को जागृति प्राप्त करने के लिए बहुत प्रयत्न करने पड़़ते मानव चित्त में बहुत से भ्रम होते हैं। जब ये भ्रम दूर हो जाते हैं तब मानव चित्त ज्योतिर्मय होकर आनन्दमयी बन जाता है । कुण्डलिनी की जागृति से आपके बहुत से भ्रम दूर हो गए हैं :- है परन्तु यह उसका दोष नहीं है। 5. चैतन्य लहरियों के रूप में आपके अन्दर जो ब्रह्मतत्व बह रहा है वह आपके शरीर, मन एवं अहंकार (Body, Mind and Ego ) रूपी तीनों है इन तीनों 1. आपने महसूस किया है कि कुण्डलिनी मात्र आवरणों को स्वच्छ कर देता कल्पना न होकर मानव के अन्तः-स्थित जीवन्त शक्ति है। आवरणों में से कोई भी आवरण यदि अस्वच्छ 2. यह शक्ति सभी मनुष्यों में है और सामान्य हो जाए तो आपकी चैतन्य-लहरियाँ आपको इसके बारे में इंगित करती है। व्यक्ति में स्वतः इसकी जागृति घटित हो जाती है। 3. किसी भी कर्मकाण्ड द्वारा इसकी जागृति नहीं होती परन्तु यदि किसी व्यक्ति ने दुष्कर्म किए हों तो उसकी जागृति होना सम्भव नहीं है 6. आपका शरीर यदि शक्तिशाली हो जाए. मस्तिष्क पावन हो जाए और आपका अहं यदि समाप्त हो जाए तो आपको आत्मा का आशीर्वाद क्योंकि सुप्तावस्था में भी कुण्डलिनी को व्यक्ति के पूर्वकर्मों की चेतना होती है। प्राप्त होने लगता है। दिव्य चैतन्य लहरियाँ आत्मा से प्रवाहित होती हैं क्योंकि अब आत्मा के प्रकाश की लौ निर्मल रूप से जलने लगती कुण्डलिनी धर्मपरायण है और यद्यपि यह माँ है। साक्षी भाव में हैं फिर भी ये जानती हैं कि व्यक्ति के अन्दर क्या अच्छाई है और क्या 7. इस ब्रह्माण्ड का सृजन किस प्रकार हुआ? बुराई। कुण्डलिनी की कृपा से शरीर और मन के रोग दूर हो जाते हैं। क्यों इसका सृजन किया गया? क्या परमात्मा का अस्तित्व है? ये सब मूल प्रश्न हैं। देवता। लोग भी इन प्रश्नों को समझ नहीं सके। 4. कुण्डलिनी शक्ति देवी भगवती की इच्छा शक्ति है भगवती माँ की इच्छा (संकल्प) मात्र परन्तु मैंने जो कुछ भी बताया है वह ठीक है या गलत इस बात को चैतन्य लहरियों पर से ये सुगमता पूर्वक जागृत हो जाती है। स्वयं परखा जा सकता है। औ ्रीL: चैतन्य लहरी अंक : 7 & 8 -2005 32 अपने अनुभव से जब आप ये सीख जाएंगे कि सत्य और प्रेम एक ही है और अनुभव से जब 9. आप सामूहिक रूप से चेतन हो गए हैं । सामूहिक चेतना की ये शक्ति जो आपमें जो पूरे आपको अपने अत्यन्त सूक्ष्म ब्रह्म तत्व का हो गई है यह ब्रह्म शक्ति है जागृत अहसास हो जाएगा तब आपके भ्रम कि ब्रह्म ब्रह्माण्ड में, हर अणु रेणु में भी, भिन्न रूपों में निर्लिप्त है, समाप्त हो जाएंगे। परमेश्वरी विद्यमान है।ज़ बजों में यह जड़ शक्ति है. जीव धारियों में यह सौन्दर्य शक्ति है, जागृत सिद्धान्त अर्थात ब्रह्म, कमल की तरह से आपके हृदय में खिल उठेगा और इसकी शक्ति (Power of Bliss) अवस्था में यह कृपा है, सहजयोग में यह चेतना शक्ति है, परमयोग सुगन्ध चहुँ ओर फैल जाएगी। शारीरिक, सूक्ष्म एवं कारणरूप शरीर की सभी अस्वच्छताएँ में यह पराकृपा (Supreme Bliss) है और देवी भगवती के अन्दर यह ब्रह्मभूत्व शक्ति समाप्त हो जाएंगी। आपका चित्त जब ब्रह्म हो जाएगा तो असत्य से जुड़े होने के कारण ( ब्रह्म रूप होने की शक्ति) है आपने ये सारी चीजें समझ ली हैं परन्तु इन्हें अनुभव करना उत्पन्न भ्रम नष्ट हो जाएंगे। बला भी आवश्यक है। आप सब चेतन मस्तिष्क से अपने हृदय को समर्पित करके भ्रममुक्त हो जाएं। ये मेरे आशीर्वाद हैं। 8. यद्यपि ब्रह्मतत्व सूर्य की तरह से है इसकी किरणें असत्य रूपी जल पर प्रतिबिम्बित होती हैं और हमारे चित्त को अस्थिर करती हैं परन्तु जब आपका चित्त ही ब्रह्म (सूर्य) बन जाएगा सदा सर्वदा आपकी माँ तो यह डावांडोल न होगा प्रेममयी भगवती माँ से एकरूप होकर उनकी ध्यान धारणा से निर्मला यह भ्रम दूर होगा। he सहजयोग का अलिखित इतिहास अपने अन्तस में यदि आप इसे संजों कर रखें और अपनी स्मृति के उस क्षेत्र को कभी खोलें तो पूर्ण सौंदर्य की वर्षा आप पर होने लगेगी । वो श्लोक आपको स्मरण है जो ये कहते हैं कि ज्ञान की तरह से परम चैतन्य हमारे अन्दर स्थापित है इसी प्रकार से वह (सौन्दर्य) भी हमारे अन्दर बसा हुआ है। श्रीमाताजी निर्मला देवी प्रिय सहजी कुछ वर्ष पूर्व पुराने एवं नए सहजयोगियों द्वारा भेजी गई उनकी अलिखित सहज स्मृतियों को एक पुस्तक रूप में अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित किया गया था उन्हीं सुंदर स्मृतियों को हिन्दी भाषा में हम चैतन्य लहरी के भविष्य में आने वाले अंकों में आप तक पहुँचाने का क्रम आरम्भ कर रहे हैं। आशा है इन्हें पढ़कर परमेश्वरी सौन्दर्य की फुहार का आनन्द आप भी ले पाएंगे। -चैतन्य लहरी- और मैंने उन्हें कार से उतरकर एक या दो कदम चलते हुए देखा और लों ! मैं खो गई। मैं सब कुछ भूल गई। तत्पश्चात् मैंने उन्हें मंच पर देखा। ऐसा प्रतीत हुआ मानो चन्द्रमा चाँदनी छिटका रहा हो। निर्मल गुप्ता इस युग में जीवित रहकर यह सारी अनुभूति करना ! इसकी तो कल्पना भी कठिन प्रतीत होती है। मुझे आश्चर्य है कि क्यों मुझे इसके (आत्म-साक्षात्कार) लिए चुना गया और क्यों मैं इतनी भाग्यशाली थी कि उनके साकार में उपस्थित रह सकूं। यही छोटी-छोटी अनुभूतियाँ पूरा जीवन आपके मन में बसी रहती हैं ! आप इनकी अनदेखी नहीं कर सकते। शेरों विन्सैन्ट मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि वे, श्रीमाताजी, सहजयोग के भविष्य के विषय में बता रही हैं कि हम बहुत से लोग होंगे, इतनी अधिक संख्या में होंगे कि उनकी एक झलक भी हमें न मिल पाएगी। माइकल पैटरोनिया यह सत्य अभिभूत कर देता है कि परमात्मा हमें इतना प्रेम करते हैं ! हेलेन मनासे सहजयोग का अलिखित इतिहास परिचय : सुन्दर अनुभूतियों का संग्रह करने की आज्ञा देने के हमारी परमेश्वरी माँ की ऐसी बहुत सी लिए हम आपके आभारी हैं और आपका धन्यवाद स्मृतियाँ और कथाएं हैं जिन्हें अभी तक न तो करते हैं। सहज रूप से जिस प्रकार आप चाय का वीडियो पर रिकार्ड किया गया है न ऑडियो पर कप उठाती हैं, उसी से हम बहुत कुछ सीख सकते और न ही उन्हें लिखा गया है । उनके हजारों बच्चों ने इन स्मृतियों की केवल अनुभूति की है और इस खजाने को अपने हृदय में संजोया हुआ है । हैं । स्नेह, सहजता एवं अन्य बहुत से तरीकों से जैसे आप अपने प्रेम की वर्षा करती हैं हम स्मृतियों के इस सागर से, जिन्हें हमनें अब तक व्यक्तिगत अनुभूतियों के रूप में संजोया हुआ आपके आभारी हैं। आप द्वारा खेली जा रही श्री महामाया की महान लीला के कारण आपके बच्चे था, कुछ मधुर कथाएं चुनकर इस पुस्तक में प्रकाशित की जा रही है। आपसे प्रेम करते हैं और आप पर विश्वास करते हैं। यद्यपि प्रायः वे उस सत्य को नहीं समझ पाते जो आप हैं हम आपके आभारी हैं। ये पुस्तक हमारा इतिहास है आंशिक और स्मृतियों की तरह से नाजुक। यह अधूरा, इस पुस्तक का उद्देश्य हमें सहजयोग उस संस्कृति की के जादू की याद कराना है। इस पुस्तक की हमारा जीवन्त इतिहास है तरह से ही नाजुक। यह हमारा जीवन्त इतिहास है उस संस्कृति का इतिहास जिसे हम सहजयोग कहते हैं परम पूज्य श्रीमाताजी श्री निर्मला देवी ने आत्मा भविष्य में आने वाले भाई बहनों की सहायता करने के लिए है ताकि वे प्रेम एवं करुणामयी माँ, जिनकी दिव्य प्रेम शक्ति हमारे सभी सन्देहों को जिस प्रकार हमारी सीमित चेतना को उन्नत किया दूर करती है, उस सौन्दर्य के इस छोटे से अंश को है वह सब इसमें लिपिबद्ध है । किस प्रकार हमने जान सकें। स्वयं को खोजा, यह इसमें लिखा हुआ है। सहजी भाई बहनों की अनुभूतियाँ, जोकि हमारी अनुभूतियाँ तो आइए स्मृतियों को खोजने के प्रयत्न में मिले शब्दों का आनन्द प्राप्त करें। इसके पश्चात् हैं, उनसे हमारे सम्बन्धों का यह उत्सव है हे देवी! शुरु होती है हमारी सामूहिक स्मृतियाँ हमारी सामूहिक अपनी करुणा, प्रेम, उन्मुक्त हँसी, प्रेमपूर्वक कथा... सुधार, हमें अपने साथ रखकर अपने अवतरण की भारत में प्रारम्भ आप भाग्यशाली हैं कि आपको मेरे दर्शन हुए राओल बाई को देखो, उसका चित्त हमेशा इसी वर्ष 1970 में श्रीमाताजी जीवन ज्योत में चीज़ पर रहता है कि मैं क्या कर रही हूँ। अन्य रहा करती थी और निर्मला श्रीवास्तव के नाम से लोगों की तरह से तुच्छ चीजों पर अपना समय बर्बाद करने में वह नहीं लगी रहती। वे मुझे लड़कियों से पूछा कि जानी जाती थीं। मैंने कुछ निर्मला श्रीवास्तव कहाँ रहती हैं? जब मैं ऊपर राजकंवर बुलाया करती थीं। पहुँची तो मैं श्रीमाताजी से मिली। उन्होंने दरवाजा 1 खोला और पूछा "क्या तुम मुझे खोज रही हो?" रात्रि भोज के बाद वे लोगों को आत्म- उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और अत्यन्त प्रेम से मुझे साक्षात्कार देना आरम्भ करतीं। उन्होंने मुझे कहा अन्दर ले गई और चारपाई पर बैठने के लिए कहा। कि मैं अपने हाथ उनके चरण कमलों के नीचे "आप कहाँ से आई हैं?" "मैं धुलिया से आई हूँ, मैंने आपका नाम सुना है और आपको खोजती हुई यहाँ आई हूँ।" "मैं ये कार्य आरम्भ करने वाली हूँ रखेँ। मोदी सभी कुछ समझते थे व्यक्तिगत रूप नहीं समझा। से मैंने कभी कुछ जो भी कुछ कहती थीं मेरे लिए वही सब कुछ था। यदि उन्होंने परन्तु अभी अपनी बेटी कल्पना के प्रसव की प्रतीक्षा कह दिया मैं पार हो गई हूँ तो मैंने मान लिया मैं में हूँ। ये कार्य हो जाने पर मैं आपको बुलाऊंगी। पार हो गई हूँ। जाने से पूर्व कृपया अपना नाम और पता यहाँ छोड़ दें, एक महीने के अन्दर मैं आपको बुला लूगी।" उन्होंने मेरी पीठ पीछे इस प्रकार कार्य - किया (कुण्डलिनी उठाना) तब माँ ने अत्यन्त प्रेम बम्बई से बोर्डी तक हम सब श्रीमाताजी के पूर्वक देखा और एक सुन्दर भजन गाया 'पार साथ रेल में गए। हम सब एक साथ थे। माँ हम 1 ब्रह्म परमेश्वर" । उन्होंने अत्यन्त सुन्दर भजन गाया। सबसे बात करतीं, जहाँ भी वे जातीं हम उनके उनकी मुखाकृति अत्यन्त आनन्ददायी, प्रेममयी साथ जाते। मैं कभी भी माँ को अकेला न छोड़ती और प्रसन्न थी और इस प्रकार से आधी रात तक क्योंकि मैं देखना चाहती थी कि माँ क्या करती हैं? उन्होंने चार या पॉच लोगों को आत्म-साक्षात्कार मैं उनका अनुसरण और बिना कोई प्रश्न किए वह दिया। दिन के समय वे अकेली बैठकर एक-एक सब करती जिसका वे आदेश देती। व्यक्ति को बुलातीं और आत्मसाक्षात्कार देतीं। रात्रिवास के लिए हम सब एक ही स्कूल में रुके थे और रात्रि का भोजन करने के पश्चात् वापिसी के समय रेल में उन्होंने हमसे पूछा कि क्या हम निर्विचार हैं या नहीं? अत्यन्त हम अपने-अपने कमरों में चले गए । "धुलिया की चैतन्य लहरी अंक : 7 & 8 - 2005 36 था, आज प्रातः मैं उन सबके लिए ध्यान कर रही नम्रता पूर्वक, मैं कहती, मुझे नहीं पता क्या हो रहा थी। क्यों के आप सब लोग नए हैं, आपको समझ है। तब माँ ने कहा, 'कि हम अपने दोनों हाथ नहीं है फिर भी आप भाग्यशाली हैं कि आप मुझे उनकी ओर करें और देखें कि शीतल लहरियाँ महसूस हो रही हैं या नहीं?' पुनः अबोध बच्चे की तरह मैं कहती, मुझे कुछ महसूस नहीं हो रहा। "राओल बाई. आप धुलिया से हैं और मैं चाहती हैं देख पाए ।' " (राओल बाई) ता कि कल आप मेरे घर आएं। आपमें से जिन-जिन मेरा नाम सुनकर वे अत्यन्त प्रसन्न हुई- लोगों ने चैतन्य लहरियों महसूस की हैं उन्हें चाहिए कि सुबह-शाम ध्यान करें ताकि गहनता में जा अप्रैल 1972 में बम्बई में जीवन ज्योत सकें और चैतन्य लहरियाँ महसूस कर सकें " अपार्टमेन्ट में मुझे मेरा आत्म-साक्षात्कार प्राप्त हुआ। ये अपार्टमेन्ट भारतीय जहाजरानी निगम के 1. मैं अपनी बेटी के साथ एक कमरे के घर थे और श्रीमन सी. पी. श्रीवास्तव क्योंकि उन दिनों में रहा करती थी प्रातः चार बजे स्वतः मेरी नींद जहाजरानी निगम के अध्यक्ष थे, श्रीमाताजी अमेरिका खुल गई, श्रीमाताजी मेरे सम्मुख उसी मुद्रा में बैठी जाने से पूर्व वर्ष 1972 में प्रतिदिन लोगों को अपने हुई थी जिसमें वे बो्डी में आत्म-साक्षात्कार दे रहीं घर पर मिला करती थीं। थीं। यहां पर उन्हें अपने सम्मुख पाकर मैं आश्चर्य चकित रह गई | ध्यान-धारणा का अपना पहला अनुभव वर्णन करूंगा। मुझे कहा गया कि आँखें बन्द अगले दिन जब मैं श्रीमाताजी से मिली तो देर शान्ति से बैठूं। परन्तु मुझे लगा करके कुछ उन्होंने मुझसे पूछा, "क्या मुझ पर चित्त रखने के जैसे मैंने दो घण्टे तक आँखे बन्द रखी हों। जो भी बाद भी तुम्हें विचार आते हैं।" हो, तब उन्होंने कहा कि मैं पार हो गया हूँ और तब हमें श्रीमाताजी के पास जाने की आज्ञा मिली। माताजी ने मुझे बताया कि मुझे निर्विचार सफेद साड़ी पहने टॉँगे आगे की ओर किए वे बैठी अवस्था प्राप्त हो गई है, "आज सुबह तुमने क्या हुई थीं। "आप जाकर अपना सिर उनके चरणों पर देखा?" श्रीमाताजी के चरण एक गद्दी रख सकते हैं हुए थे - या आप उनके हाथों की ओर जा पर रखे "माताजी, मैंने आपको ध्यान मुद्रा में देखा ।" सकते हैं।" जब मेरी बारी आई तो मैं उनके हाथों "जिन लोगों को कल मैंने आत्म-साक्षात्कार दिया के समीप था उन्होंने मेरे सिर में थोड़ा सा आँवला अक : 7 & 8 - 2005. चैतन्य लहरी 3ा7 का नहीं है। आप शाम को छ: या सात बजे तेल डाला और मुझसे पूछा कि मुझे कैसा लगा रहा है? मैंने कहा, बहुत अच्छा।" उन्होंने मेरा नाम पूछा आइए।" और मेरा नाम सुनकर वे अत्यन्त प्रसन्न हुई। तो उसी दिन शाम को हम पुनः भारतीय ये मेरी उनसे प्रथम भेंट थी। विद्या भवन गए। श्रीमाताजी बहुत थोड़े से लोगों अवधूत पाई साक्षात्कार दे रही थी। हम को, दस या पन्द्रह दोनों भी वहाँ बैठ गए। यह सहजयोग के आरम्भिक उनकी जिज्ञासा ने हमारा मार्गदर्शन किया दिनों की बात है। उन दिनों आत्म-साक्षात्कार देने 12 अगस्त 1973 को मुझे आत्म साक्षात्कार और कुण्डलिनी उठाने के लिए माताजी स्वयं कार्य प्राप्त हुआ। इस आत्मसाक्षात्कार का श्रेय मेरे बड़े करती थीं। मेरे आश्चर्य की सीमा न रही जब भाई मारुति को जाता है जिन्हें वर्षों तक आत्म- उन्होंने मेरे सिर के तालू पर हाथ रखा तो एक तेज साक्षात्कार पाने की तीव्र इच्छा थी। परमात्मा के रोशनी हुई। उस समय तो मुझे पता न था कि ये लिए उनकी इस जिज्ञासा ने हमें श्रीमाताजी से आज्ञा चक्र है। यहाँ पर मुझे क्रूसारोपित ईसा मसीह दिखाई दिए। ऐसा केवल पाँच या छः मिलवाया। -रोशनी का एक तेज झटका। सैकण्ड के लिए हुआ दिन हमने श्रीमाताजी 12 अगस्त के शुभ मुझे आश्चर्य हुआ कि मैं तो इसाई मत से घृणा और सहजयोग के विषय में मराठी समाचार पत्र में करने वाली कट्टर हिन्दु थी। क्या मुझे क्रूसारोपित ईसा-मसीह के दर्शन इस प्रकार होने चाहिए! छपा एक लेख पढ़ा और हम समाचार पत्र के संपादक से मिलने उसके दफ्तर जा पहुँचे। जब परन्तु उस समय मैं कुछ न बोली। मैं इसका हम उससे मिले तो उसने बताया कि उसके साथ आनन्द लेने लगी। मैंने अपनी आँखें बन्द कर लीं क्या घटित हुआ था। उसने कहा कि आज ही हम और माताजी ने कहा, "पहली ही बैठक में तुम्हं भारतीय विद्या भवन चले जाएं। समाचार पत्र के आत्म साक्षात्कार मिल गया है।" दफ्तर से निकलकर लगभग तीन बजे हम भारतीय निरंजन माविनकुर्व विद्या भवन पहुँचे परन्तु हमें हैरानी हुई कि सहजयोग के विषय में बताने के लिए वहाँ कोई भी न था। शनैः शनैः ये स्थापित हुआ सभागार से बाहर आकर हमने संपादक के दफ्तर वर्ष 1970 में नारगोल में श्रीमाताजी ने में फोन करके पूछा कि माताजी हमें कहाँ मिलेंगी? सहस्रार खोला। मैं उन ग्यारह आरम्भिक शिष्यों में उसने उत्तर दिाय, "ओह! ये समय उनके मिलने चैतन्य लहरी अंक : 7 & 8 - 2005 38 से नहीं हूँं जिनमें से अब केवल एक या दो ही बुलाकर चैतन्य आत्मसात करने, अपने चरण कमलों की मालिश करके चैतन्य लहरियाँ लेने के लिए जीवित हैं। मैं दूसरी टोली से हैँं जो 1973 में कहती थीं वे कहा करतीं, "ये (चैतन्य) बहुत आई । ज्यादा हैं मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर सकती, इसका उन दिनों रोज़ कार्यक्रम हुआ करते थे। कारण ये है कि आप लोग इस चैतन्य को आत्मसात हर रोज़ शाम को हम भारतीय विद्या भवन मिला नहीं करते।" पूजा के पश्चात चैतन्य को वापिस अपने अन्दर समेटना उनके लिए बहुत कष्टकर करते और इस प्रकार धीरे धीरे सहजयोग फैला। होता था। शैलजा ग्लोवर तत्पश्चात् पुणे में श्री राजवाड़े के घर पर श्रीमाताजी ने बुहत से लोगों को आशीर्वाद दिया। उन्होंने हमें बहुत से कार्य करने सिखाए :- श्री राजवाड़े कट्टर ब्राह्मण थे वे इन सब चीजों के विरुद्ध थे और स्वयं उन्होंने सहज में आने से नवरात्रि के दिनों में एक विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम हुआ करता और हम श्रीमाताजी की इन्कार कर दिया। परन्तु अपने घर पर एक प्रवचन इमारत की खुली छत पर पहुँच जाया करते। माँ 1 की आज्ञा उन्होंने दे दी । वे अपने कमरे में बैठी हुई वहाँ आती और हमें प्रवचन देतीं और उसके बाद थी। प्रवचन चल रहा था। आधे घण्टे के बाद वे प्रशिक्षण। हम वहाँ पर प्रातः चार बजे पहुँचते और थर-थर काँपते हुए आए और कहने लगे "मैंने साढ़े छः बजे तक रहते लगभग चौबीस पच्चीस कल्पना भी न की थी कि आप देवी हैं! 1973 में लोग वहाँ सात बजे आते और चाय-नाश्ता लेते उन्हें आत्म-साक्षात्कार प्राप्त हुआ। इसके बाद वे और फिर वहाँ से लौट जाते। उस समय तक सहजयोग के शक्तिशाली अंग बन गए और पुणे में सहजयोग फैलाया। पुणे क्योंकि ब्राह्मणों और किसी को भी उनके प्रवचन रिकार्ड करने की आज्ञा न थी। वो कहतीं, "नहीं तुम इसे सुनकर आत्म-सात करो, टेपरिकार्डर का कोई लाभ नहीं " बुद्धिजीवियों से भरा हुआ है। उन्होंने आरम्भ में पूरी ताकत से सहजयोग का विरोध किया परन्तु शनैः शनैः वहाँ पर सहजयोग स्थापित हो गया। उन दिनों श्रीमाताजी हमे आत्म-साक्षात्कार निरंजन माविनकुर्वे दिया करती थीं। हम अपना पैर साधकों के से छुआ कर आत्म साक्षात्कार देना आरम्भ मूलाधार आप चैतन्य लहरियाँ नहीं ले सकते : करते ताकि कुण्डलिनी उठे और ऊपर को जाए। के बहुत से लोगों को हम आत्म-साक्षात्कार दिया सहजयोग के आरम्भिक दिनों में पूजा पश्चात जब श्रीमाताजी लेट जातीं कुछ लोगों को अंक : 7 & 8 - 2005 चैतन्य लहरी 39 करते थे। मैं पन्द्रह -बीस से अधिक लोगों को करता था। लोग इसकी आलोंचना करने लगे। तब श्रीमाताजी ने आदेश दिया कि जनसाधारण के आत्म-साक्षात्कार नहीं दे पाया क्योंकि तब सम्मुख बन्धन न लें। केवल सहज सभाओं, कार्यक्रमों आदि में ही बन्धन लें। रेलगाड़ियों में चलते हुए भी आत्मसाक्षात्कार देने के तरीके इतने अधिक विकसित नहीं थे माताजी स्वयं गहन शोध में लगी हुई थीं। सहजी बन्धन लेते और अन्य लोग सोचते कि "ये आज तो हम कह सकते हैं कि पलभर में या इंटरनेट की गति से सहजयोग फैल रहा है परन्तु पागल लोग हैं जो ऐसा कर रहे हैं। हो सकता है आरम्भिक दिनों में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने में कि ये कोई जादू-टोना कर रहे हो।" बहुत समय लगा करता था। तब श्रीमाताजी को पानी पैर क्रिया तथा अन्य उपचार स्वयं बाहर जाकर आत्म-साक्षात्कार देना पड़ता था उन्होंने हमें बहुत से कार्य करने सिखाए, जैसे विधियाँ बाद में आई। वास्तव में हम श्रीमाताजी के बाएं दाएं का संतुलन करना और कुण्डलिनी उठाना। साथ समुद्र पर जाया करते और वहाँ पानी पैर क्रिया करते। इस प्रकार से गणपति पुले आया बन्धन डालने की क्रिया कुछ बाद में क्योंकि वहाँ पर अत्यन्त स्वच्छ समुद्र है। इससे पूर्व हम बोर्डी जाया करते थे। बोर्डी हम बहुत बार गए। आरम्भ हुई। उस समय तक कोई बन्धन नहीं होता नारगोल यहाँ से बहुत समीप है जब हम बोर्डी में था। तब तक बहुत सी बाधाएं सामने आती थीं। थे तो वहाँ भी समुद्र था । परन्तु सभी लोग तो समुद्र तब उन्हें एहसास हुआ कि बन्धन देना अच्छा ह के समीप नहीं रहते, तो इसका एकमात्र विकल्प होगा। इस प्रकार से यह शनैःशनैः विकसित हुआ घर पर पानी पैर क्रिया करना था। और अब यह एक पूर्ण प्रणाली बन चुका है तथा लोगों को कुछ अधिक नहीं करना पड़ता, केवल फोटोग्राफ के सम्मुख बैठकर ही लोगों को आत्म- तत्पश्चात् जूता क्रिया आई। श्रीमाताजी ने ये क्रिया हमें बताई। बम्बई में अब लोग ये क्रिया साक्षात्कार प्राप्त हो जाता है। बहुत अधिक नहीं करते। होता क्या है कि जब भी आरम्भिक दिनों में हम उस प्रकार से श्रीमाताजी किसी चीज के विषय में बताती हैं तो लोग उसे बहुत अधिक करने लगते हैं। अतः बाद कुण्डलिनी नहीं उठाया करते थे जैसे अब उठाते हैं। श्रीमाताजी बल देकर कहा करती थी कि में श्रीमाताजी ने बम्बई के लोगों को कहा कि "आप लोग ध्यान (Meditation) की ओर अधिक चित्त दें. बन्धन देने पर बहुत अधिक जोर नहीं दिया जाना जूता क्रिया तो बाह्य विधि है। अतः ध्यान की ओर अधिक चित्त दें । चाहिए। हुआ ऐसा कि हर व्यक्ति बन्धन के महत्त्व तथा अर्थ का एहसास किए बिना बन्धन ले लिया निरंजन माविनकर्व अंक : 7 & 8 - 2005 चैतन्य लहरी 40 यह निर्मला विद्या है :- जैसे मूलाधार चक्र कैसा दिखाई देता है इसके गुण क्या हैं आदि आदि। प्रति रात्रि मैं आठ घण्टे श्रीमाताजी वर्णन किया करती थी कि हमें सामूहिकता में किस प्रकार रहना है और सहजयोगियों ध्यान किया करती थी मैंने आप सब लोगों के लिए के रूप में किस प्रकार आचरण करना है ध्यान- धारणा को उन्होंने हमेशा महत्व दिया और आज कठोर परिश्रम किया है अब आपको परिश्रम भी दे रही हैं। उन्होंने हम सब लोगों को ध्यान करना है और प्रातः काल ध्यान-धारणा करनी है। करने के लिए तथा एक-एक करके सभी चक्रों मैं सभी चक्रों पर आठ-आठ घण्टे कार्य करती पर चित्त डालने की आदत डाली। ये मूलाधार है थी। अब मेरा आप लोगों से अनुरोध है कि आठ दिनों तक हर चक्र पर एक घण्टा प्रतिदिन ध्यान और इसके बाद आप ऊपर की ओर चलें। ये निर्मल विद्या है, इसके विषय में न तो किसी ने मुझे करें और फिर आगे बढ़े जैसे हर सुबह आठ दिनों कुछ सिखाया है और न ही इसके विषय में मैंने कोई पुस्तक पढ़ी है", वो कहा करती थी मैंने सभी तक मूलाधार चक्र पर एक घण्टा रोज ध्यान करें फिर स्वाधिष्ठान चक्र पर आएं और फिर आगे बढ़ें। चक्रों पर ध्यान कियाऔर इनके रहस्यों को खोजा तब आप लोग इन सभी चक्रों के रहस्यों और शक्ति के बारे में सीख पाएँगे। राओल बाई (क्रमश) ८ ---------------------- 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी नत्याल i ם 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-2.txt चै त न्य ल हरी २] NIRMALA NIVERSAL PURE RELIGIC इस अक में तति उचिन पतल परम पूज्य श्री माताजी का एक पत्र 1980 3. जिज्ञासा 4. लन्दन 24.7.1979 चलती हुई अंगुली 5 सितम्बर 1980 15. चैतन्य लहरियों पर हमारा विश्वास -1983 17. आदिशक्ति एवं लाओत्से 18. बनी 1983 श्री आदिशक्ति पूजा कबेला 15 जून 2003 20. श्री आदिशक्ति पूजा-2003, एक रिपोर्ट 21. श्री कृष्ण पूजा, मुम्बई 28.8.1973 22. परम पूज्य श्री माता जी का एक पत्र- 1979 30. परम पूज्य श्री माता जी का एक पत्र (without date) 31. सहजयोग का अलिखित इतिहास 34. DHARMA रका 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-3.txt चै त न्य ल ह री प्रकाशक निर्मल इन्फोसिस्टम्ज़ एवं टैक्नोलोजीज़ प्रा. लि. हाउस प्लाट नं. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड कोठरुड पुणे इन्फोसिज़ 411 029 मुद्रक कृष्णा प्रिन्टर्ज एण्ड डिजाइनर्ज त्रीनगर, दिल्ली-110035 मोबाइल : 9868545679 आप अपने सुझाव एवं सदस्यता के लिए निम्न पते पर लिखें : श्री जी.एल. अग्रवाल निर्मल इन्फोसिस्टम्ज एवं टैक्नोलोजीज़ प्रा. लि. 222, देशबन्धु अपार्टमैंट, कालकाजी, नई दिल्ली-110 019 फोन : 26216654, 26422054 अपने अनुभव, सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ.पी. चान्दना जी-11-(463), ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली-110 034 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-4.txt परम पूज्य श्री माताजी का एक पत्र (मराठी से अनुवादित) की इस असीम कृपा के अधिकारी बने हैं, इस बात को समझने का प्रयत्न करें। मैंने आपको केवल वही दिया है जो आपका अपना था, अपना मैने आपको कुछ भी नहीं दिया। आपको और भी बहुत कुछ मिलने वाला है जो आपको मिल जाएगा. बाधाओं तथा कमियों की तरफ मेरा चित्त जा रहा है। पूना और राहुरी के लोगों से कोई समस्या नहीं है। आप लोगों को आनन्द सागर में गोते लगाता देख मुझे बहुत चैन मिलता है, अतः इस स्थिति को बनाएं रखें यहाँ विद्यमान हम लोग आप लोगों की तरह से भाग्यशाली नहीं हैं। कार्य निरन्तर चल रहा है। बहुत सी कठिनाईयाँ हैं, आप लोग दिलचस्पी लें और इन समस्याओं का समाधान करें क्योंकि मेरी तो कोई इच्छा है ही नहीं। अतः इच्छा पूरी होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। आप सभी लोगों लन्दन को अपने मन में इच्छा करनी चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिए ताकि आपके अंग्रेज भाई-बहनों की शुक्रवार अगस्त-1980 मेरे प्रिय पेडकर तथा अन्य सहजयोगियो, मदद हो सके। बहुत समय से आपको पत्र लिखने का अवसर नहीं मिला। आजकल मैं केवल तभी लिखती आपकी उन्नति मेरे हृदय में सहजयोग को जीवित रखे हुए है। जब जब भी मैं तंग आ में जोर-शोर से कार्य चल रहा है। यहाँ के लोग जाती हैं तो सन्तोष प्राप्ति के लिए आपके पत्र नशे की आदतों में फँसे हुए हैं और आलस्य एवं पढ़ती हैं। अतः कृपया पत्र लिखते रहें । मैं भी हूँ जब बम्बई से कोई काम होता है क्योंकि इंग्लैण्ड नकारात्मकता सर्वत्र फैली हुई है। इंग्लैण्ड ब्रह्माण्ड नियमित रूप से आपको लिखती रहूंगी। का हृदय है। परन्तु यह इतना उपेक्षित है कि तुरन्त इसे ठीक किया जाना आवश्यक है। हमेशा आपकी अपनी माँ श्री गणेश की पावन भूमि पुणे में जन्म पाने निर्मला वाले आप सभी लोग अत्यन्त भाग्यशाली हैं। अपने (महावतार- 1980) पूर्व जन्मों के सुकृत्यों के कारण ही आप परमात्मा 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-5.txt जिज्ञासा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन लन्दन 24.7.1979 आि रट बबार के ि कल मैं एक महिला से मिली । उसने मुझे आपसे बताना चाहूंगी कि हम क्या खोज रहे हैं । बताया कि वह परमात्मा को खोज रही है। मैंने आइए देखते हैं कि ये जिज्ञासा हमारे अन्दर कैसे पूछा, "आप परमात्मा के विषय में क्या सोचती हैं? आती है और कहाँ से? जैसे यहाँ दिखाया गया हैं, आप क्या खोज रही हैं? जब हम कहते हैं कि हम एक चक्र है जिसे नाभि चक्र कहते हैं यह शरीर के खोज रहे हैं, तो क्या हमें इस बात का ज्ञान होता मध्य में है। है कि हमें क्या खोजना है और क्या हम समझते मेरुरज्जु पर ये चक्र बना है और यह सूर्य हैं कि किस प्रकार हम अपनी खोज को पूर्ण मानते चक्र की अभिव्यक्ति करता है जिसे शरीर के मध्य हैं? किस प्रकार हम ये मानते हैं कि हमने लक्ष्य में नाभि से नीचे बनाया गया है। यही चक्र हमारे प्राप्त कर लिया है? पिछली बार मैंने आपसे कहा अन्दर जिज्ञासा का सृजन करता है। जिज्ञासा था कि जिज्ञासा सच्ची होनी चाहिए, सच्चे हृदय से केवल जीवन्त चीजों में ही सम्भव होती है। उदाहरण और इसे आप न तो खरीद सकते हैं और न ही इसे के रूप में इस कुर्सी की क्या जिज्ञासा है? न ये पाने के लिए कोई प्रयत्न कर सकते हैं । आज मैं सोच सकती है, न ये हिल सकती है, आप चाहे इसे 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-6.txt अंक : 7 & 8 - 2005 चैतन्य लहरी खोज पर आधारित है। शनैः शनैः खोज के तौर यहाँ रख दें या गली में रख दें। आप इसे तोड़ तरीके सुधरते जाते हैं जबकि इच्छा केवल भोजन की ही होती है। सकते हैं, कहीं फेंक सकते हैं, इसकी लकड़ी का कुछ और उपयोग कर सकते हैं, इसकी स्टूल बना सकते हैं। इसमें किसी प्रकार की जिज्ञासा नहीं है छोटे से छोटे अमीबा में एक अन्य इच्छा कोई चीज़ जब अमीबा की तरह से जीवन्त बनती है तब आप एककोशिकीय (Unicellular) कार्य या कह सकते हैं कि भावना होती है। यह है स्वयं को सुरक्षित रखने का विवेक। ये जानता है कि कर सकते हैं। इसके अस्तित्व को कौन से खतरे हैं। यही छोटा सा अमीबा हजारों वर्षों की उत्क्रान्ति के बाद जब जिज्ञासा अभिव्यक्त होने लगती है क्योंकि मानव बनता है तब उसकी खोज परिवर्तित हो नहीं। अतः जो जीवन्त ही खोज सकता है मृत जाती है। नि:सन्देह भोजन की खोज बनी रहती है लोग कहते हैं कि हम कुछ नहीं खोजते वो मृत सम क्योंकि यह मूल चीज़ है। व्यक्ति को भोजन तो हैं तथा जो ये कहते हैं कि हम खोज में लगे हुए हैं वो जीवित हैं, जिज्ञासु हैं। यदि आप छोटी सी करना ही है यद्यपि भोजन की खोज करने के तरीके सुधर जाते हैं, परिवर्तित हो जाते है, विकसित बात को समझें तो अमीबा जैसे छोटे से जीव में भी हो जाते हैं। परन्तु व्यक्ति में स्वयं को तथा अपने भूख के रूप में इच्छा का सृजन किया जाता है। इस बारे में सोचें। अमीबा में मस्तिष्क नहीं होता कबीले को सुरक्षित रखने की गहन सूझ-बूझ आ है । सामूहिकता का भाव छोटी आयु से ही जाती केवल एक छोटा सा केन्द्रक ( Nuclear) होता है, जागृत हो जाता है यहाँ तक की चीटियों में भी ये फिर भी उसे भूख महसूस होती है, बढ़ने के लिए भावना होती है। वो समझती हैं कि हम सबको उसे कुछ न कुछ खाना पड़ता है। इस अमीबा को सामूहिक होना है. एकत्र होना है और यदि स्वयं इस बात का भी ज्ञान होता है कि इसे प्रजनन को सुरक्षित रखना है तो हमें संघटित (Integrate) करना है और इस तरह से यह खोज में लग जाता होना है। यही सामूहिंकता की भावना धीरे-धीरे है। इसे इस बात का ज्ञान होता है कि खाना किस प्रकार खाना होता है! परन्तु ये नहीं जानता कि मनुष्यों में भी विकसित होती है और इसकी अभिव्यक्ति आप सुरक्षित रहने के लिए सामूहिक खाना पचता कैसे है? खाना पचन की जानकारी बने रहने के अपने प्रयत्न में देख सकते हैं। इन प्राप्त करना इसका कार्य नहीं है हमारे साथ भी ऐसा ही है। तो नन्हें से अमीबा में खोज की सारे प्रयत्नों की अभिव्यक्ति हमारे सभी राजनीतिक एवं आर्थिक उद्यमों से होती है। शुरुआत होती है और पूरी विकास प्रणाली इसी 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-7.txt चैतन्य लहरी अक : 7 & 8 - 2005 अब पैसे को पशु तो नहीं समझते, यह तो मानव ने ही बनाया है। अपनी बनाई हुई चीज होने मानव में एक अन्य प्रकार की खोज शुरु हो जाती है - दूसरों पर प्रभुत्व जमाने की जिज्ञासा । के कारण पैसा मनुष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। पहले वस्तु विनिमय (Barter) प्रणाली होती थी। परन्तु बाद में हमने सोचा कोई ऐसा पशुओं को यह शक्ति खोजनी नहीं पड़ती उनमें ये शक्ति होती है। उदाहरण के रूप में शेर बेचारे खरगोश से बहुत अधिक शक्तिशाली होता है तथा त माध्यम बनाया जाए जिससे कोई भी चीज ली जा खरगोश में शेर बनने की इच्छा नहीं होती। वो सके, और मुद्रा का आरम्भ हुआ। इस प्रकार से इसकी कोशिश भी नहीं करता। ऐरा गैरा नत्थू-खैरा मानव का चित्त भोजन से धन पर गया और धन से मानव तो प्रधानमंत्री बनना चाहेगा परन्तु खरगोश सत्ता पर। जब व्यक्ति के पास बहुत पैसा हो जाता कभी भी शेर नहीं बनना चाहेगा। वो समझता है मैं है तब वह सत्ता चाहता है, ऐसा होना स्वाभाविक है खरगोश हूँ और मुझे अपने को सुरक्षित और इसमें कोई दोष नहीं। जीवित रखने के तौर तरीके विकसित करने होंगे । शेर भी इसी प्रकार कार्य करता है, वो अपनी मौलिक रूप से पैसे के पीछे दौड़ना और शक्तियों को जानता है और अपनी सीमाएं भी। फिर सत्ता के पीछे दौड़ना मानव के लिए अत्यन्त कुछ पशुओं में तो नेतृत्व करने की भी शक्ति होती स्वाभाविक है। परन्तु इससे परे एक अन्य खोज है, वे मुखिया बन जाते हैं। आपने देखा होगा कि आरम्भ होती है और ये खोज ये जानने की है कि पक्षियों के भी मुखिया होते हैं। मुखिया आगे-आगे "हम यहाँ क्यों आए हैं? हम यहाँ क्या कर रहे चलता है और बाकी के पक्षी उसके पीछे-पीछे हैं? हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है? परमात्मा ने तथा जिधर वह मुड़ता है, पूँछ की तरह से बाकी के हमारा सृजन क्यों किया है? किसी लक्ष्य के पक्षी भी उधर मुड़ जाते हैं। जिस प्रकार अगुआ लिए, किसी उद्देश्य के लिए, या ये केवल मज़ाक मात्र है? क्या हम मूरखों की तरह से चलता है वैसे ही अन्य पक्षी भी उसके पीछे-पीछे उत्पन्न होते हैं, विवाह करते हैं, हमारे बच्चे होते हैं चलते हैं। मानव में भी इस गुण की अभिव्यक्ति और फिर अमीबा की तरह से मर जाते हैं, या हमारे जीवन का कोई उद्देश्य है? बहुत से मनुष्य धन जोरों से होती है कुछ व्यक्ति जन्मजात नेता बहुत होते हैं जो लोगों के समूह को उनकी जिज्ञासा का या स्वास्थ्य से आगे कुछ सोचते ही नहीं उन्हें लक्ष्य प्राप्त करने में नेतृत्व करते हैं। अब यह अच्छा स्वास्थ्य चाहिए। कहने का अभिप्राय ये है जिज्ञासा धन के लिए भी हो सकती है, अधिकतर कि पशु, जहाँ तक मैं जानती हूँ, कभी व्यायाम नहीं लोगों में ऐसा ही है। करते। परन्तु मानव अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-8.txt अंक : 7 & 8 - 2005 7 चैतन्य लहरी के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं, परन्तु आस्ट्रेलियन कहें या कुछ और कहें परन्तु परमात्मा की दृष्टि में आप केवल मानव हैं। मेरा कहने से किसलिए? हो सकता है आप पहलवान हों, परन्तु अभिप्राय है न तो आपकी पशुओं की तरह से पूँछ किसलिए? आप तो मात्र एक बोझ हैं! क्या उपयोग होती है और न ही उनकी तरह से सिर नीचे की है आपका? या हो सकता है कि आप सबसे ओर झुके हुए होते हैं। आपका सिर सीधा ऊपर की अधिक वैभवशाली व्यक्ति हों, सर्वोत्तम कारों में ओर उठा हुआ है चाहे आप अप्रीका के हों, भारत चलते हों, आपके पास जीवन के सभी ऐश्वर्य हों, के, इंग्लैण्ड के या अमेरिका के, सभी का सिर एक भौतिक पदार्थ हों, परन्तु किसलिए? जब हमारे सा होता है जब तक आपके सिर ऊपर की ओर मस्तिष्क में इस प्रकार के प्रश्न उठने लगते हैं तब उठे हुए हैं और आपकी पूँछ नहीं है निःसन्देह हमारे अन्दर एक नई खोज का आरम्भ होता है जो हमसे प्रश्न पूछती है कि "आप यहाँ क्यों हैं", कुछ लोग जिस प्रकार से व्यवहार करते हैं उससे ऐसा ही लगता है कि उनकी पशु सम पूँछ हैं! परन्तु "क्या आप यहाँ पर सुबह से शाम तक धनार्जन निश्चित रूप से आप मानव हैं। करने, सत्ता प्राप्त करने और अन्य बेकार के कार्य करने दूसरों को प्रसन्न करने, अपने धन का जीवन के भिन्न अनुभवों से उत्क्रान्ति पाकर दिखावा करने या अन्य लोगों से धन ऐंठने की चूहा दौड़ के लिए ही हैं? क्या आपके जीवन का यही मानव को यदि इस बात का एहसास हो जाए कि जीवन के अनुभवों नें न तो उसे तुष्टि (Fulfliment) लक्ष्य है"? अब यह चौथी जिज्ञासा या आपकी प्रदान की है और न ही इस प्रश्न का उत्तर कि हम चेतना के चौथे आयाम का आरम्भ है। ये आपके यहाँ क्यों हैं? तो उसके जीवन में परिवर्तन घटित अन्दर की स्थूल जिज्ञासा अर्थात भूख का पुष्पीकरण होने लगता है और वह साधक बन जाता है इससे है- आध्यात्मिकता की भूख, परमात्मा प्राप्ति की पूर्व नहीं। जो लोग गुरुओं के पास जाते हैं या जो भूख, जीवन की उच्च चीज़ों को प्राप्त करने की कहते हैं श्रीमाताजी "मेरे बेटे को नौकरी दे भूख, ये हमारे अन्दर आरम्भ हो जाती है। मेरे दीजिए, तो समझ में नहीं आता कि क्या कहा विचार से यह सच्ची घटना है। इस खोज में हम भ्रान्त हो जाते हैं क्योंकि इस जिज्ञासा के आरम्भ जाए! ऐसे व्यक्ति को तो यही कहना चाहिए कि होने के समय तक भूख से पीड़ित हो उठते हैं। मेरे बच्चे आप अभी तक इसके (योग के) योग्य कैसे? क्योंकि तब तक आप चहूँ ओर घटित होनेनहीं हैं, आप अभी तक इतने परिपक्व नहीं हैं कि वाली मूर्खतापूर्ण चीज़ों के बन्धन में फँस चुके होते आत्म साक्षात्कार के लिए यहाँ आएं। या आप किसी व्यक्ति के पास हीरे की अंगूठी माँगने के हैं। आप चाहे स्वयं को अंग्रेज कहें, भारतीय कहें 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-9.txt चैतन्य लहरी अक : 7 & 8 - 2005 लिए जाते हैं या कोई यदि आपसे कहता है कि आप परिपक्व नहीं हो सकते। आपको सच्चा होना परमात्मा के नाम पर मैं हीरे की अँगूठी देता हूँ और होगा ये समझने के लिए कि आप अपने लक्ष्य की खोज कर रहे हैं, आपको विवेकशील होना होगा। आप ऐसी बात को सुनकर सन्तुष्ट हो जाते हैं तो आप धन या हीरे की अँगूठियाँ नहीं खोज रहे और न ही आपको चहूँ और घटित होने वाली मूर्खताओं, आप अच्छे साधक नहीं हैं। नहीं, सहजयोग के लिए तो आप विशेष रूप से बेकार हैं । या कोई यदि आपसे ये कहे कि मैं आपको रोग मुक्त कर बाजीगरियों का साक्षी होना है। आपने तो परमात्मा दूंगा और रोग ठीक कराने के लिए आप उसके के जादू का साक्षी होना है साधना में आपको इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि परमात्मा यदि पास जाएं तो हो सकता है वो आपका रोग ठीक सर्वव्यापी है तो कोई व्यक्ति यदि ये कहे कि हम कर दे परन्तु आप अच्छे साधक नहीं है। जो आदमी परमात्मा को नहीं खोज रहा उसे ठीक क्यों ही परमात्मा द्वारा चुने गए हैं या केवल वही पैगम्बर करना है? कहने का अर्थ ये है कि ये माइक यदि है या परमात्मा है क्योंकि वह किसी संस्था-विशेष मेरी आवाज़ को नहीं उठा सकता तो इसकी से जुड़ा हुआ है तो यह घिनौनी धर्मान्धता और भद्दीपन है। स्वयं को धोखा न दें। समझने का प्रयत्न करें कि आत्म प्रवंचना (Self deception) मरम्मत करने का क्या लाभ है? या फिर आप किसी ऐसे व्यक्ति के पास जाते हैं जो आपको कहानी समझाता है कि परमात्मा प्राप्ति के लिए को परमात्मा कभी क्षमा नहीं करेंगे। क्या अमीबा आपको मुझे इतनी रकम देनी होगी तो आपको स्वयं को धोखा देता है? खाने को देखकर क्या वो ऐसा करता है? शेर या मेंढक क्या ऐसा करते हैं? चाहिए कि आप उसके चक्कर में न फँसें, बेहतर होगा कि ऐसे गुरु के मुँह पर चाँटा मारें और पूछें अमीबा का इतना छोटा सा मस्तिष्क होता है फिर कि तुम मुझे क्या समझते हों? यह तो आपकी भी यह जानता है कि वह क्या खोज रहा है, क्या वह स्वयं को धोखा देगा? परन्तु मानव सुबह से साधना का तिरस्कार है । आपसे पैसा ऐंठकर वो आपको फँसाना चाहता है। क्या आप ये नहीं देख शाम तक स्वयं को धोखा दिए चला जाता है हमें सकते कि यह कहकर वो आपका अपमान कर रहा परमात्मा को खोजना है, अपने लक्ष्य को प्राप्त है कि आप इतने भौतिकवादी हैं कि पैसा देकर ही करना है. हमें विराट रूपी आदिपरमात्मा से, उनके आप परमात्मा की साधना में जुड़ेंगे? इस बात को पूर्णत्व से जुड़ना है। यही खोज हमने करनी है। हैं सोचें लोग आपको इस प्रकार की बातें बताते इसी के लिए आपका सृजन किया गया है । माँ के और यदि आप उन्हें स्वीकार कर लेते हैं और ऐसे गर्भ में पनप रहे छोटे से माँस पिण्ड का यदि आप अध्ययन करें तो आप हैरान होंगे कि माँ की नाभि गुरुओं का अनुसरण करते हैं तो साधना के लिए नाडी उस पिण्ड की देखभाल करती है। यद्यपि 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-10.txt अंक : 7 & 8 - 2005 9 चैतन्य लहरी इंग्लैण्ड आता है और महान गुरु बन बैठता है! इस पिण्ड के सभी अवयव मस्तिष्क से जुड़ने के लिए अभी तक पूरे विकसित नहीं हुए होते फिर भी हजारों लोग उसके पीछे भागना शुरु कर देते हैं! उनकी समझ में कुछ नहीं आता और गुरु अधिक एक वाहिका के माध्यम से इसे भोजन प्राप्त होता से अधिक शिष्य पाकर बड़े प्रसन्न होते हैं। परन्तु है, इसकी देखभाल होती है और इसके लिए सारा एक मार्ग है परमात्मा ने पहले से ही इसका प्रबन्ध होता है। जन्म के समय बच्चा माँ की कोख आयोजन आपके अन्दर किया हुआ है। आपकी से अलग होता है और शनै: शनैः उसमें सारी उत्क्रान्ति के लिए परमात्मा ने ये प्रबन्ध किया हुआ संवेदनाओं और इन्द्रियों का सृजन होता है जो है, वह तो बस आपके हृदय की सच्चाई को परख धीरे-धीरे विकसित होती हैं। जैसे-जैसे वो बढ़ता रहा है। परन्तु किसी असत्य एवं मूर्खतापूर्ण चीज है उसके अवयव विकसित होते हैं परन्तु सारी से बँधे रहने की ज़िद यदि आपमें है तो आप इसे इन्द्रियों में तादात्म्य नहीं होता। एक बार जब योग कार्यान्वित नहीं कर सकते। इन सभी बाधाओं से घटित हो जाता है तो मानव स्वतः गतिशील हो मुक्ति पा लें। अपना हृदय खोल दें। आप सबने उठता है। पूरा शरीर संघटित रूप से कार्य करता - पूर्ण का ज्ञान प्राप्त करना है। आप सबने आत्म हो तो पूरे शरीर को है। उँगली पर यदि चुभन साक्षात्कार पाना है। आपकी इस उपलब्धि से इसका एहसास होता है और पूरा शरीर जानता है परमात्मा अपनी सृष्टि को पूर्ण मानकर तुष्ट हो कि क्या हुआ, पूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। ये जाएंगे। उन्हें ये कार्य करना है और वो इसे करेंगे। जीवन्त प्रक्रिया है जो उन्नत होती है और कार्यान्वित परन्तु इसके लिए उन्हें बहुत परिश्रम करना पड़ेगा करती है। परन्तु मानव में एक बहुत बड़ी समस्या और फिर भी यदि आप सत्य को स्वीकार नहीं है, मैं कहूँगी कि सबसे बड़ी समस्या, कि वे अपनी करते तो भी नि:सन्देह सत्य की अभिव्यक्ति होगी कमियों, गलत विचारों के साथ एक रूप होते हैं। परन्तु इसके लिए असत्य को नष्ट करना पड़ेगा यह कमी केवल मानव में ही होती है इसीलिए और उस समय जो लोग असत्य से जुड़े हुए है वे व्यक्ति को अत्यन्त सावधान रहना पड़ता है। कुत्ता भी नष्ट हो जाएंगे अत: ऐसे अवसर से पूर्व ही से कहीं बेहतर करता है और वह जानता है मनुष्य अपने विवेक को अपनाएं और समझ लें कि हमें कि उसे क्या खाना है और क्या नहीं खाना, आप खोजना है। हमें अपने पूर्णत्व की खोज करनी है लोग ये बात नहीं जानते। सच्चे गुरु, गन्दे गुरु, जिसे अब तक हम आंशिक रूप से अपने भयानक गुरु और दुष्ट व्यक्ति के भेद को आप नहीं जानते। ये बात आप समझ नहीं सकते। जेल से निकलकर कोई व्यक्ति लम्बा चोगा पहनकर राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक क्लबों में अभिव्यक्त करते रहे हैं। ये सब एकरूप होना आवश्यक है। मानव के विकास में जो जो भी 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-11.txt अक : 7 & 8 - 2005 चैतन्य लहरी 10 महान धर्म बनाए गए हैं जिन्होंने मानव की उत्क्रान्ति ऐसा कहा, उदाहरण के रूप में क्या कभी ईसा-मसीह ने कहा कि मोजिज गलत हैं? क्या में महत्वपूर्ण सहायता की है और जो मानव जीवन उन्होंने कभी ऐसा कहा? गुरुनानक जब आए तो के आधार हैं इन सबका उस घटना (आत्म क्या उन्होंने कहा कि मोहम्मद गलत थे? क्या साक्षात्कार) में तादात्म्य करना होगा उदाहरण के किसी भी महान सन्त ने ऐसा कहा? तो आप रूप में मान लो मैं किसी हिन्दू से मिलती हूँ तो वह उनकी भत्त्सना करने वाले कौन होते हैं? इन कहता है श्रीमाताजी आप ईसा-मसीह की बात कैसे करती हैं। हम ईसा-मसीह को नहीं मानते। तथाकथित साधकों के मार्ग में यह सबसे बड़ी ईसा-मसीह पर विश्वास न करने वाले आप महान बाधा है। व्यक्ति हैं। ईसा-मसीह पर विश्वास करने वाले ये लोग अपने गुरुओं से जुड़े हुए हैं। मैं आप कौन हैं? आप स्वयं को क्या समझते हैं? ये उनसे एक प्रश्न पूछती हैँ कि अपने गुरुओं से यदि कहने से कि "मैं ईसा-मसीह को नहीं मानता, आप इतने एकरूप हैं तो उन्ही के अनुसार चलते आपका क्या मतलब है? क्या आप जानते हैं कि रहो, आप मेरे पास क्यों आते हैं? श्रीमाताजी जब पृथ्वी पर अवतरित किसी महान अवतरण के बारे में से मैं इस गुरु के पास गया हूँ मुझे दमा हो गया ऐसा कहना घोर पाप है? कुछ लोग कहते हैं कि है, इसलिए आपके पास आया हूँ । तो आप उनसे हम मोजिज को नहीं मानते या गुरुनानक को नहीं कहें कि आपको ठीक करें। आप मेरे पास क्यों मानते या मोहम्मद साहब को नहीं मानते आप होते आते हैं? यदि आपके गुरु ने आपको आपकी कौन हैं? मैं नहीं मानता! मैं आपको नहीं मानती! इच्छानुरूप सभी कुछ प्रदान किया है तो क्यों आपका विश्वास है क्या? इसका आधार क्या है? आप ऐसी बातें क्यों कहते हैं? उनके विषय में आप क्या जानते हैं? केवल चर्च, मस्जिद या सिनेमा आपको मेरे पास आना चाहिए? यदि वे सच्चे गुरु ैं तो ये बात तो मैं आपके चेहरे पर लिखी हुई देख लेती। इस बात को मैं समझ सकती हूँ और यदि जाकर आपने उनको जान लिया है! वहाँ तो कोई सच्चा गुरु हो तो मैं उसकी पूजा करुँगी और अन्धे लोग हैं जो आपको भी अन्धा बना रहे हैं। अपने लिए उसे महानतम वरदान मानूंगी। परन्तु केवल धर्मान्धता और बेवकूफी के सिवाए आपने 1 ऐसे लोग बहुत कम हैं और वो भी हिमालय तथा क्या पाया है? ये तो रोग है. रोग है ये परमात्मा 1 अन्य ऐसे स्थानों पर छिपे हुए हैं जहाँ से वै कुछ के साम्राज्य में आ जाएं और देखें कि वो इस मंच बोलते ही नहीं। ऐसे लोग बहुत कम हैं। ऐसे ही पर बैठे हुए हैं। बो सब तो एक हैं और आप लोग एक गुरु ने अमेरिका जाने की हिम्मत की। परन्तु मूर्खों की तरह से लड़े जा रहे हैं। क्यों उन्होंने कभी 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-12.txt अक : 7 & 8 - 2005 चैतन्य लहरी 11 जन्म लेना ही है। परन्तु लोग कहते हैं कि वो उन्हें जानते हैं। क्योंकि उन्होंने भी हमारी तरह से ही पाँच ही दिनों में वह वापिस भारत लौट आए। उन्होंने मुझे लिखा कि माँ ये बहुत कठिन कार्य है। जन्म लिया. वो कुछ खास नहीं हैं। वो चाहते है कि आप लोग क्योंकि खेलों के आदि हो चुके हैं. आपको ऐसे ही लोग अच्छे लगते हैं जो आपके कोई व्यक्ति स्वर्ग से टपक पड़े! कितनी अजीब साथ खिलवाड़ करें। वो लोग आपको अच्छे नहीं बात है! अतः हम लोग, जो कि सच्चे साधक है, हमें लगते हैं जो आपसे सत्य की बात करें। वास्तविकता चाहिए कि अपने मस्तिष्क पूरी तरह से खुले रखें। ये है। आपको सत्य प्राप्त करना होगा। आपको परन्तु यदि आप अपना समय बर्बाद की करना चाहते हैं तो करते रहें, चलते रहें अपने गुरु के समझना चाहिए कि यही मेरी चिन्ता है। आपको प्रेम करने वाला कोई भी व्यक्ति किस प्रकार से अनुसार। उनके चमत्कार पर आश्चर्य करें, उन्हें धन दें, अपनी महिलाएं उन्हें पेश करें, अपनी आपको ऐसा कुछ बता सकता है जो आपके लिए हानिकारक हो, भयानक हो या जिससे आपका सम्पतियाँ उन्हें दें, अपना सभी कुछ उनको अर्पण अहित हो सके। वे आपको नहीं बताएंगे जो लोग कर दें और उनसे बीमारियाँ और पागलपन ले लें तथा अन्त में पागलखाने पहुँच जाएं! मैं नहीं कहूँगी बनावटी हैं। वो किसी के बारे में आपको नहीं कुछ बताएंगे। वो तो यही कहेंगे, ओह! पृथ्वी के दूसरे कि मेरे बच्चे मेरे पास आ जाओ । परन्तु पागलखाने छोर पर सभी ठीक है। कोई सच्चा व्यक्ति में भी यदि आपको अपनी गलती का एहसास हो कुछ यदि आ जाएगा तो उसके विषय में वो एक शब्द और आप आ जाएं तो परमात्मा तो क्षमा के सागर भी नहीं कहेंगे। मेरी ये बात आप गाठ बॉँध लें। हैं। परन्तु आरम्भ से ही मैं आपको चेतावनी देती हैं कि ऐसे सभी लोग अपना समय बर्बाद कर रहे हैं अतः साधना में सर्वप्रथम आपकी सारी और मेरा भी अत: जो लोग अभी तक भी गलत लोगों से एक रूप हैं वो बहस कर-करके मुझे न जानी चाहिए। बहुत सारी असामंजस्यताए छुट गलत चीजों से आप जुड़े हुए हैं। जैसे कुछ लोग सताएं क्योंकि मैंने हमेशा ये ही पाया है कि उन्हें कहते हैं कि हम ईसा-मसीह का अनुसरण क्यों सच्चे साधक माना जाता है। जैसे कल उस करें? वो तो यहूदी थे। कहने का अर्थ ये है कि महिला ने मुझसे पूछना शुरु किया कि क्या आपने उन्हें कहीं न कहीं तो जन्म लेना ही था और फलाँ-फलां पुस्तक पढ़ी है? मैंने कहा मैं उन्हें जन्मानुसार व्यक्ति का सम्बन्ध किसी न किसी धर्म पढूँगी परन्तु इन पुस्तकों को पढ़ने के बाद भी मुझे से होना ही होता है। आप इंग्लैण्ड में जन्म लें, तुम्हारे अन्दर कोई परिवर्तन नजर नहीं आता! इन्हें पढ़कर आपने क्या उपलब्धि प्राप्त की है? क्या भारत में या टिम्बकटू में, कहीं न कहीं तो आपको 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-13.txt चैतन्य लहरी अंक : 7 & 8 - 2005 12 आत्मसाक्षात्कार पाना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि इन्हें करें। पूरा दृष्टिकोण ये होना चाहिए कि आपने यहाँ पर मुझसे कुछ लेना है। ये आपके लिए आपने कुछ प्राप्त किया? कुछ नहीं। उसने मुझसे कि क्या आप फलां-फलां गुरुओं से मिली है? हो सकता है, परन्तु आप अपने विषय में बताएं। पूछा आपको क्या मिला? उसे दमा रोग है, एक आँख उपहार है। उपहार लेने के मामले में कोई जिद नहीं होनी चाहिए। ऐसी ज़िद जो हम प्रायः करते फूट गई. वो बैठ नहीं सकती, गठिया के कारण उसका शरीर अकड़ गया है। वो वास्तव में भूत- हैं। कोई यदि उपहार दे रहा हो तो हम जिद नहीं बाधित है। फिर भी वह साधक कहलाती है! उसने करते। क्या हम ऐसा करते हैं? क्या उपहार लेते मुझसे प्रश्न किया, "श्रीमाताजी मैं साधक हूँ फिर भी परमात्मा मेरे प्रति इतने क्रूर क्यों हैं"? मेरे बच्चे आपने अपने विवेक का उपयोग नहीं किया आज हुए लोग जिद करते हैं? परन्तु जब परमात्मा प्राप्ति की बात आती है तो वे अपने जूते भी नहीं उतारते! आप इतनी महान चीज़ माँग रहे हैं । अमीबा से भी विवेक को अपनाएं और समझ लें कि तुम्हारे परमेश्वर पूर्ण हृदय से, आत्मा से तुम्हें प्रेम करते हैं चाहे तुम उन्हें प्रेम करते हो या नहीं। उन्होंने तुम्हें मानव अवस्था तक पहुँचने में आपकी साधना का पुष्पिकरण है मानव बनकर भी हजारों वर्षों तक आपने साधना की और आज जब आप अपने लक्ष्य ये जिज्ञासा दी है, आपका सूक्ष्म तंत्र बनाया है। के समीप पहुँच गए हैं तो इतने अड़ियल क्यों है? इतनी सुन्दरतापूर्वक उन्होंने आपके अन्दर इस मैं कहती हूँ कि सहजयोग में आत्म-साक्षात्कार तन्त्र को स्थापित किया है कि सभी कुछ स्वतः प्राप्त कर लें, न कोई पैसा देना है न लेना है । आत्म-साक्षात्कार के परिणामस्वरूप आपका स्वास्थ्य चलता है। परन्तु लोग तो ऐसे हैं कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के लिए जब वे आते हैं तो मैं उन्हें कहती हैं कि मेरे समीप आकर बैठो, वो कहते हैं, ठीक हो जाएगा, आपकी भौतिक स्थिति ठीक हो कृपा से बहुत सी चीजें जाएगी । सहजयोग की सुधरती है परन्तु सबसे बड़ी चीज़ जो आपमें घटित "नहीं मैं नहीं बैठूंगा। कृपा करके अपने जूते उतार दो। नहीं मैं जूते नहीं उतारूंगा"। ऐसे बहुत से होती है वह है आपका आत्मज्ञान को पा लेना। लोग हैं। आप यदि उनसे कहें कि अपने दोनों पैर आपको आत्म-साक्षात्कार मिल जाता है आपके अन्दर ज्योति प्रज्जवलित हो उठती है और आप इस तरह से करके बैठ जाइए तो आपको आराम स्वयं को देखने लगते हैं, अपने और अन्य लोगों के मिलेगा, परन्तु वो ऐसा नहीं करते। जो भी मैं कुछ कहती हूँ उसके बहुत से अर्थ होते हैं। नहीं, मैं क्यों चक्रों को देखने लगते हैं क्योंकि आप विराट से लिए जुड़ जाते हैं, अपने विराट तत्व को प्राप्त कर लेते ऐसा करू? आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने हैं। सहजयोग ने आपको यही उपहार देना है । कुछ चीजें अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं, अगर आप नाट 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-14.txt अंक : 7 & 8 - 2005 चैतन्य लहरी 13 यदि आप इसे पाना चाहते हैं तो कृपया पा लें, कभी-कभी लोग सहजयोग को बीमारियाँ ठीक करने के लिए उपयोग करते हैं । निःसन्देह बाकी सबकुछ तो इसके परिणामस्वरूप होता है हो जाते हैं । यहाँ तक कि कैंसर भी आप रोग मुक्त ठीक हो जाता है। कैसर ठीक हो सकता है, क्योंकि यदि प्रकाश हो तो आप लड़खड़ाते नहीं हैं सीधे चलते हैं। आप ये नहीं कहते कि प्रकाश के सहजयोग से इसे ठीक किया जा सकता है। परन्तु कारण मेरी टॉँगों में सुधार हुआ। नहीं, न ही ये कहते हैं कि प्रकाश के कारण मेरी आँखें ठीक हुईं। ये दोबारा हो जाएगा। हम इसका कोई आश्वासन नहीं दे सकते। ये रोग आपको पुनः हो सकता है। क्योंकि प्रकाश न होने के कारण समस्या थी आपकी साधना के अनुरूप आप पर कृपा करने का ज्योंही प्रकाश हुआ सबकुछ ठीक हो गया। आप सब कुछ समझने लगे। सारी चीज़ों को जाँच विवेक क्या परमात्मा में नहीं है? निःसन्देह वे आपसे प्रेम करते हैं। प्रेम के कारण वो आपको देना लिया और सीधे चलने लगे। अब आप जानते हैं कि कहाँ बैठना है, कुर्सी क्या है और व्यक्ति कैसा चाहते हैं। परन्तु यदि आप भटके हुए हैं, अपव्ययी हैं, तो क्यों वे आपको देते चले जाएं? ये एक है? सीधा सा प्रश्न है जो आपको स्वय से पूछना साधक बनकर भी आप यही खोजते हैं। और यदि आप सच्चे साधक हैं तो आपको आशीर्वाद चाहिए और फिर आत्म-साक्षात्कार की याचना मिल जाता है। ये देखना मेरा कार्य है कि आप इस करनी चाहिए। तब आपको आत्म-साक्षात्कार प्राप्त स्थिति को पा लें। आप अपनी शक्तियों को प्राप्त हो जाता है। आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के बाद भी कुछ समय सन्देह-काल होता है क्योंकि पहले तो आप निर्विचार समाधि (Thoughtless - करें अपने गुरु की शक्तियों को नहीं। अपने गुरु की शक्तियों को नहीं अपनी शक्तियों को और स्वयं को समझ लें। आत्मज्ञान तथा विराट के ज्ञान Awareness) प्राप्त करते हैं। जब हम कहते हैं चेतना तो इसका आम अर्थ होता है किसी चीज़ के को आप प्राप्त कर लें। यदि आप ऐसे नहीं हैं तो, मेरे बच्चो, मुझे खेद है कि साधना पथ पर अभी प्रति चेतनता। परन्तु जब हम समाधि कहते हैं तो इसका अर्थ ज्योतितचेतना (Enlightened आप अपरिपक्व बच्चे हैं अभी आपको और अधिक Awareness) होता है। आपको ज्योतित निर्विचार चेतना मिल जाती है। इन दोनों स्थितियों के बीच उन्नत होना होगा। उन्नत होकर आप मेरे पास आएं. जब आप पूरी तरह से उन्त हो जाएं। अन्यथा अपरिपक्व व्यक्ति पर कार्य करना या उसे की अवस्था कुछ लोगों में इतनी कम होती है कि आत्म-साक्षात्कार देना मेरे लिए बहुत बड़ी सिरदर्दी वे तुरन्त दूसरी अवस्था पर पहुँच जाते हैं। यहाँ पर है । कुछ लोग हैं जिन्हें आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करते 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-15.txt अंक : 7 & 8 -2005 चैतन्य लहरी 14 ही ज्योतित निर्विचार चेतना प्राप्त हो गई। वे इन पूर्ण प्रेम- पूर्वक उन्हें स्वीकार करती हूँ। परन्तु मैं आपसे प्रार्थना करती हूँ कि इस प्रकार सन्देह दोनों अवस्थाओं में से नहीं गुजरते। परन्तु कुछ लोग औसत दर्जे के हैं और कुछ तो पूरी तरह से करके अपनी उन्नति की गति को धीमा न करें। प्रश्न ये है कि आपके सन्देह क्या हैं? मैं आपसे बैलगाड़ी सम हैं। वो जैट की गति से नहीं चल कुछ नहीं माँगती। आप यदि किसी चीज़ के लिए सकते आधुनिक युग में जैट द्वारा बैलगाड़ी खींचने धन दे रहे होते है तब आपको सन्देह होता है। आप की कल्पना कीजिए। बहुत बड़ी समस्या है। परन्तु तो किसी चीज़ के लिए पैसा नहीं दे रहे । आप आप यदि उस गुणवत्ता और क्षमता के व्यक्ति हैं किस बात पर सन्देह कर रहे हैं? मुझे आपसे क्या तो आपको एक दम से दोनों अवस्थाएं प्राप्त हो जाती हैं, उसके पश्चात् कोई सन्देह नहीं बचता। से लोग आकर लाभ उठाना है? फिर भी बहुत कहते हैं कि श्रीमाताजी हमें सन्देह है! मैं कहती है परन्तु कुछ ऐसे लोग भी हैं जो सन्देह में फँस जाते हैं। मैं नहीं जानती कि यहाँ वे किस बात पर सन्देह ठीक है, करते रहो। जब आपके सन्देह खत्म हो करते हैं । उन्हें अनुभव प्राप्त हो जाता है, उन्हे जाएं तब मेरे पास आ जाना। तो चीजें इस प्रकार से हैं । मेरा आपसे अनुरोध है कि अपने मस्तिष्क चैतन्य लहरियाँ आती हैं, उनसे शीतल लहरियाँ को ये बताने का प्रयत्न करें कि तुम हर तरफ के बहती हैं, वो ये भी महसूस करते हैं कि ये चैतन्य लहरियाँ अन्य लोगों पर कार्य कर रही हैं, कुण्डलिनी कार्य कर चुके हो, सभी प्रकार के गुरुओं के पास जा चुके हो, सभी प्रकार की मूर्खतापूर्ण पुस्तकें पढ़ की धड़कन एवं इसे उठते हुए भी वे देखते हैं. चुके हो और सभी प्रकार के सन्देह कर चुके हो। हर चीज उनका स्वास्थ्य बेहतर हो जाता है, अब तो कुछ देर के लिए शान्त हो जाओ! शान्त हो सुधरती है, फिर भी वे सन्देह करते हैं और अपना जाओ। अपने मस्तिष्क से कहो कि तुम्हें गलत मार्ग समय बर्बाद करते हैं! ऐसे लोगों की सभी चीजों में देरी होती है, उनके रोग ठीक होने में देरी होती है। पर न ले जाए और आत्म साक्षात्कार को प्राप्त कर ले। ये आपका अपना है। ये आपकी अपनी सम्पत्ति और सन्देह की प्रवृत्ति के कारण हर लाभ होने में देर लगती है। ठीक है? तो यहाँ पर हमारे पास है। इस अवस्था में होना आपका अधिकार है । अतः जेट यान हैं, आत्म-साक्षात्कार पा लें और यदि किसी प्रकार के सुपरसॉनिक हैं, यहाँ पर प्रक्षेपात्र (Missiles) हैं और यहाँ बैलगाड़ियां भी हैं । इस विश्व को बनाने के लिए बहुत सारी चीजों की लिए कहें सन्देह हो रहे हों तो उन्हें कुछ देर प्रतीक्षा करने के आवश्यकता पड़ती है, क्या ऐसा नहीं है? अतः मैं परमात्मा आपको धन्य करें। सभी चीज़ों को सहज स्वभाव से लेती हूँ और अपने 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-16.txt चलती हुई अंगुली चलती हुई उँगली लिखती है और लिखकर आगे, बढ़ जाती है । पूर्ण पावनता या बुद्धि-चातुर्य उस लिखाई का एक शब्द भी मिटा नहीं सकते। इन पंक्तियों से मुग्ध सोलह वर्षीय युवा बाला, छब्बीस वर्षों तक इनके सहारे जीवित रही। आपके जीवन को नियन्त्रित करने वाली यदि ऐसी वर्ष 1980 में परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी दिल्ली में थे। यहाँ वे साधकों की 1 कण्डलिनी जागृत करने के लिए आए थे यह निर्देशक अॅगुली है तो मन्दिरों, चर्चों तथा अन्य पूजा स्थानों की क्या आवश्यकता है? ये से मिलने के लिए गई क्योंकि रिश्ते में श्रीमाताजी कोई युवती, जो अब बड़े-बड़े बच्चों की माँ है, श्रीमाताजी उनकी मामी जी हैं। परन्तु जब वह उनके चरण प्रश्न बहुत से वर्षों तक उसे कचोटता रहा। कमलों को स्पर्श करने के लिए झुकी तो उसे तब एक दिन उसने एक कहावत सुनी, महसूस हुआ कि वे केवल मामी ही नहीं उनकी माँ "उठो, जागृत हो जाओ और तब तक मत रुको हैं! ये सारा परिवर्तन पलक झपकते ही हो गया! जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता। ये बात उसे उसने श्रीमाताजी से प्रार्थना की कि वे उनकी बेटी अच्छी लगी और वो प्रातः चार बजे उठने लगी । रत्ना को भी आशीर्वाद दें जो कि मिरांडा हाऊस में (स्वयं को कर्मयोगी कहा) कार्य करती रही, परन्तु पढ़ती थी। श्रीमाताजी की उपस्थिति में उसे विस्मयकारी आनन्द की अनुभूति हुई। अब भी जीवन की समस्याओं का न तो समाधान श्रीमाताजी : आप कैसे हैं बेटे? हुआ और न ही उसे जीवन का अर्थ समझ आया। हर चीज़ जीवित नजर आती परन्तु इसमें उसकी रत्ना : माताजी मैं ठीक हूैँ परन्तु मैं तीसरी ऑख (Third eye) के विषय में जानना चाहती हूँ। जिसके विषय में लोवसेंग राम्पा ने लिखा है। क्या भूमिका थी? ये एक प्रश्न था, संभवतः शाश्वत प्रश्न। श्रीमाताजी : बेटे, क्या कोई दोनों आँखों के मध्य में हो सकता है कि हम लोग उतने भाग्यशाली ऑप्रेशन करके तीसरी आँख खोल सकता है? क्या न हों जितने उस काल के लोग थे जब श्री और कोई ऐसा सर्जन है? (सभी लोग हैँसते है सीताराम, श्री राधाकृष्ण और ईसा-मसीह और माँ हुँसते चले जाते हैं) मैरी उन्हें आशीर्वाद देने के लिए पृथ्वी पर अवतरित रत्ना : श्रीमाताजी जैसे हाल में आई एक फिल्म हुए। कई बार मैंने सोचा कि हो सकता है हमें भी "The Omen Exorcist" में कहा है, 'क्या दिव्य महाविष्णु के दर्शन हो सकें या साक्षात् शक्ति के, शक्ति को आसुरी शक्ति में परिवर्तित किया जा मैं सोचती ही रही, और लो! हम आशीर्वादित हो सकता है? श्रीमाताजी : दिव्य शक्ति हमेशा दिव्य रहती है, गए! 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-17.txt चैतन्य लहरी अंक : 7 & 8 - 2005 16 म इसमें कोई संदेह नहीं है। ये शक्ति कभी समाप्त किया। अब हमारी समझ में आया कि हमारी भाग्य नहीं हो सकती। आप यदि अपना मार्ग भूल जाएं रेखा को परम् पूज्य श्रीमाताजी का आशीर्वाद तो मैं तुम्हें सिर्फ एक झटका दे सकती हूँ। बस बदल सकता है। इतना ही। मेरा प्रेम आप सबके लिए हमेशा मौजूद है। रत्ना तथा उसका पूरा परिवार ध्यान धारणा करने लगे, रात को जल पैर क्रिया करने रत्ना : अध्यात्म पथ पर क्या अच्छे कपड़े पहनना लगे और उन्हें जीवन में एक नया अर्थ मिल गया। आवश्यक है? श्रीमाताजी : जागृत होकर कुण्डलिनी छः चक्रों में न कोई जल्दी, न कोई चिंता, न टैक्सियाँ, न कारें जो आपको तीर्थ स्थानों पर ले जाएं। यह से गुजरकर सहस्रार को छूती है। सहस्रार अन्तिम लक्ष्य है। इन सारे चक्रों के रक्षक देवता हैं। एक बार जब महालक्ष्मी चक्र जागृत हो जाता है तो उपलब्धि पाने वाली वह भाग्यशालिनी थी हाँ| आपको अत्यन्त स्वच्छ रहकर और सामर्थ्य के श्रीमाताजी का दृष्टिपात, उनका देखना ही काफी है। उनके तो चित्र से भी चैतन्य बहता है। ये बात अनुसार अच्छे वस्त्र पहनकर उसका सम्मान करना 1 होता है । महासरस्वती विवेक एवं स्वच्छता की पूर्णतः सत्य है। हमारी सम्मानमयी, प्रिय श्रीमाताजी आकांक्षा करती हैं । हमारी सारी तकलीफों को खींच लेती हैं और हम सदैव मुस्कराते रहते हैं। लक्ष्य प्राप्त हो गया था। परम पूज्य श्रीमाताजी ने अपनी दृष्टि एवं स्पर्श द्वारा रत्ना को हमारी स्थाई मुस्कान का रहस्य सभी लोग जानना चाहते हैं क्योंकि सहजयोग में कुछ भी आत्मसाक्षात्कार दे दिया था। छुपा हुआ नहीं है। हम सबसे जय श्रीमाताजी' बोलने के लिए कहते हैं। दिव्य दृष्टि अपना कार्य करती रही और कमरे में उपस्थित सभी लोगों को आशीर्वादित श्रीमती वर्मा B-18, प्रेस एन्कलेव, नई दिल्ली 5 सितम्बर 1980 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-18.txt चैतन्य लहरियों पर हमारा विश्वास चैतन्य चेतना (Viberatory Awareness) इस प्रकार की घटना हमें अपने आप पर और अपने निर्णयों पर विश्वास प्रदान करती है । कई बार हमें लगता है कि किसी खास स्थिति को खास प्रकार से निपटाना चाहिए। परन्तु निर्णय लेने का और कार्य करने का समय जब आता है एक बहुमूल्य उपहार है जो हम आत्म-साक्षात्कार के बाद प्राप्त करते हैं। हमारे सम्मुख विवेक का एक नया क्षेत्र खुल जाता है और हमें एक विशाल क्षितिज दर्शाता है हमारी सद-सद विवेक बुद्धि (Sense of Discrimination), दूध से पानी पृथक तो हम पीछे हट जाते हैं। ऐसे समय पर आनन्द कर देने वाला हँस जिसका प्रतीक है, विकसित हो जाती है और हमें अधिक सुरक्षा भाव और निर्णय लेने में अधिक आत्म-विश्वास प्रदान करती है। अंधेरे में भी अब हम प्रकाश देखते हैं। जहाँ पर हमें होता। अभी तक अविश्वास होता था वहाँ अब हमें पूर्ण विश्वास होता है। चैतन्य लहरियों के माध्यम से हम त्रुटिहीन, ठीक मार्ग देख पाते हैं। परन्तु कि हमें यह शक्ति प्रदान की गई है तो हम सदैव कभी-कभी हम इस दैवी उपहार का दुरुपयोग विश्वस्त हॉंगे और महसूस करेंगे कि श्रीमाताजी करते हैं और चैतन्य लहरियों के माध्यम से रोज़मरोा का चित्त हमारे ऊपर है हम उन नन्हें पक्षियों जैसे की छोटी-छोटी समस्याओं के उत्तर खोजते हैं। हैं जो अभी उड़ना सीख रहे हैं और बिना प्रगति आदिशक्ति की अनन्त कृपा से यह शक्ति हमें किए हम नीड़ तक ही सीमित रह जाते है। परन्तु समाप्त हो जाता है और विश्वासहीनता हमारे अन्दर स्थापित हो जाती है। ऐसे समय पर लिया गया निर्णय अचेतन से प्राप्त हुआ निर्णय नहीं इसके विपरीत यदि हमें गहन विश्वास हो प्राप्त हुई है। इसका उपयोग भी उचित ढंग से होना चाहिए। चैतन्य लहरियों को बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए। यदि हम इन्हें ठीक प्रकार से उपयोग नहीं करेंगे तो हो सकता है कि हम इन्हें खो दें। ऐसी स्थिति में चैतन्य लहरियों के आधार पर जो भी उत्तर हम खोजेंगे वो ठीक न होंगे। ऐसी अवस्था में हमारा आत्म-विश्वास डगमगा जाता है अपने आपमें विश्वास और परिणाम स्वरूप से हम प्रयत्न करते रहेंगे. हम तब तक उनकी कृपा प्रयत्न करते रहेंगे तब तक स्वयं इस कार्य को करने के योग्य नहीं बन जाते। जिस प्रकार श्रीमाताजी हमें शक्तियाँ देती है और वे हमें कार्य करने की विधि भी सिखाती है इसके बाद अपनी प्रेममयी देखरेख, विवेकशील प्रदर्शन और अगाध करुणा में कार्य करने के लिए वे हमें स्वतन्त्र छोड़ देती हैं। सहजयोग में विश्वास। परन्तु जब-जब भी हम हृदय से उच्च उद्देश्य के लिए चैतन्य लहरियों का उपयोग करेंगे तो निश्चित उत्तर प्राप्त होगा चाहे हमें इसकी है कि हम स्वयं को परमेश्वरी माँ के अगाध प्रेम के आनन्द को अपने हृदय में बनाए रखते हुए अब समय आ गया करें, वास्तविकता का दृढ आशा न हो। सहजयोगी को इस प्रकार से इसका सामना करें और उत्थान मार्ग पर उडना सीखें । आभास हो जाएगा मानो ये संदेश परमात्मा ने भेजा हो। Maria Amelia de Kalbermatten निर्मल योगा-83 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-19.txt आदिशक्ति एवं लाओत्से ताओ (Tao) आदिशक्ति हैं। श्री लाओत्से वास्तव में आधुनिक बनने के लिए मानव की सीमा केवल एक नाम है : निर्मला। का ताओ का अध्ययन हमारी भ्रान्ति रूपिणी आदिशक्ति माँ के कुछ पक्षों पर ही प्रकाश नहीं डालता, यह हमारे अपने विषय में भी बहुत सारी रोचक चीजें सिखाता है। उदाहरण के रूप में हममें हूँ तो से कुछ पश्चिमी सहजयोगी कभी-कभी अपने आक्रामक संस्कारों के अनुरूप सहजयोग का अधिक जबान चलाने लगता जब मैं बहुत "जो ज्ञानी है बोलते नहीं जो बोलते हैं वो अज्ञानी हैं। सत्य स्थिर मानव दिखावा नहीं करते दिखावा करने वाले सच्चे नहीं होते। (Tao Te Ching 81) प्रचार-प्रसार करने का प्रयत्न करते हैं। यह आक्रामक गतिविधि हम पर अनुकम्पी गतिशीलता तथा व्यक्तिगत चेतना जैसी इच्छा शक्ति का प्रभाव छोड़ती है और अपने कार्यों, प्रयत्नों, संघर्षों और उपलब्धियाँ प्राप्त करने के लिए जब मैं अपने पुराने संभवतः अपने तनावों के फल की आकांक्षा करते ढरे पर चलने लगता हूँ हैं। जो भी हो जब हम अन्दर से खाली होते हैं, इन "जिज्ञासु प्रतिदिन उन्नत होता है, ताओ के पीछे दौड़ने वाले का पतन होता सब चीजों से मुक्त होते हैं, केवल तभी ताओ हमारे अन्दर भर सकती है। श्री लाओत्से चाहते थे कि ताओ के बच्चे इस बात को स्वीकार करें। इसीलिए उन्होंने नीचे लिखी कुछ अद्भुत पंक्तियाँ हमारे लिए छोड़ी हैं : है प्रतिदिन वह घटेगा और घटता चला जाएगा, अकर्मण्यता में आ नहीं जाता वो जब तक क्योंकि अकर्मण्य बनकर ही किया जा सकता है सबकुछ। जब मेरा झुकाव मन्त्रों की ओर हो जाता है तो ये पंक्तियाँ हैं : (Tao Te Ching 48) ताओ सदैव बेनाम थे भारत, लन्दन या अन्यत्र जहाँ पर भी श्री माताजी पहली बार जब इसे उपयोग में लाया गया, होती है वहाँ न पहुँच पाने पर जब जब भी मैं उदास होता हूँ : "धर के दरवाजे से बाहर आए बगैर, तब इसका नामकरण हुआ जितने चाहे नाम इसे दे दें, मानव को अपनी सीमा तो जाननी ही होगी। अपनी सीमा को जानने के पश्चात् ही जान सकता है पूरे विश्व को मानव, खिड़की से झाँके बिना, मानव अमर हो पाएगा। बैकुण्ठ में आदिशक्ति को देख सकता है (Tao Te Ching 32) मानव, बिना कोई यात्रा किए. 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-20.txt अक : 7 & 8 -2005 चैतन्य लहरी 19 हम उन आदि गुरुओं की अथाह गहनता के सम्मुख सब जान जाते हैं सन्त, बिना कोई हरकत किए पा लेते हैं सभी कुछ।" नतमस्तक हैं जिन्होंने हमें महादेवी के पावन चरण कमलों तक पहुँचा दिया है। श्रीमाताजी आपकी (Tao Te Ching 47) विनोदप्रियता और विवेक की एक चिंगारी मात्र से, सहजयोग में गुरु बनने वाले हमलोग, आपके मोक्ष परमेश्वरी माँ के उदाहरणों से जब मैं प्रेरणा एवं सन्देश को वांछित सूक्ष्मता, मधुरता, समर्पण एवं प्रभावात्मक शैली में लोगों तक पहुँचा पाएंगे हे देवी, तीनों लोकों में आप और केवल आप ही पथप्रदंर्शन लेना भूल जाता हूँ : ताओ महान व्याप्त है सर्वत्र, के असंख्य गुणों का दीप नश्वर मानव में सच्चे बाएं पर भी और दाएं पर भी, गुरु जला सकती हैं। श्रीमाताजी, आपकी जय हो, आपकी जय हो, आपकी जय हो। देवी महात्म्यम् तकि सृजन हर चीज़ का किया इन्होंने नकारती कुछ भी नहीं इसीलिए. प्रेम पूर्वक पोषण करती हैं हर चीज़ का, में वर्णन किया गया है कि आपके सेवक गण भी प्रभुत्व उन पर जमाती नहीं अस्तित्व हीन होने के कारण, ब्रह्माण्ड के आश्रय बन जाते हैं। री कहा जा सकता है इन्हें सूक्ष्म ताओ का एक अर्ध-पूर्ण एवं अर्धरिक्त बालक सभी कुछ समा जाता है इनमें स्वामित्व फिर भी ये दर्शाती नहीं (निर्मला योगा 83 से महान' है ये इसलिए। उद्धृत और अनुवादित) महानता भी कभी ये ओढ़ती नहीं महानता को पा लेती है इसलिए ।" 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-21.txt श्री आदिशक्ति पूजा कर परम पूज्य श्रीमाताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन कबेला, 15 जून 2003 आप सब लोगों को यहाँ गोंधडी के गीत गाते देखकर मैं बहुत खुश हूँ। संभवतः आप स न ९ इसका अर्थ नहीं जानते। इसका ा अर्थ ये है कि हम श्रीमाताजी के शु गवैय्ये हैं ग्रामीण लोग ये भजन गाते हैं जिसमें वे कहते हैं कि "माँ के प्रति अपने पूर्ण प्रेम के साथ हम उनके गीत गा रहे हैं।" यही सारा संगीत आप तक पहुँच गया है। मेरे लिए ये अत्यन्त प्रसन्नता की बात है कि सर्वसाधारण ग्रामीण लोगों के प्रसन्नतामय की मनःस्थिति तथा उनके गीतों को आपने स्वीकार किया है। परमात्मा आपको धन्य करें। 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-22.txt श्री आदिशक्ति 2003 (एक रिपोर्ट) पूजा श्रीमाताजी के साथ बिताए गए क्षण अमूल्य होते हैं। इस बात को बहुत से सहजयोगियों ने श्री आदिशक्ति पूजा के पश्चात् समझा। शनिवार शाम के कार्यक्रम तथा पूजा में श्रीमाताजी की संक्षिप्त उपस्थिति का आनन्द लेने की कृपा मि हम पर हुई। शनिवार शाम को कला कार्यक्रम में पहुँच कर श्रीमाताजी ने हम सब को आनन्दमय आश्चर्य में डाल दिया। वहाँ मेज़बान देशों के सहजयोगियों द्वारा उनके सम्मुख उपस्थित किए गए कार्यक्रमों का उन्होंने आनन्द लिया। पूजा का समय सात बजे का रखा गया था और इसी समय पर घोषणा की गई कि श्रीमाताजी किले से चलने वाली हैं। चैतन्य लहरियाँ एकदम से बढ़ गई। वास्तव में श्रीमाताजी दस बजे पधारीं और वहाँ एक घण्टा रुर्की। बिना प्रवचन के पूजा आरम्भ हो गई और तुरन्त बच्चों को श्रीमाताजी के चरण कमलों पर कुम-कुम अर्पण करने के लिए कहा गया। तत्पश्चात् बिना कोई साज़ श्रृंगार किए श्रीमाताजी को पूजा भेंट अर्पण की गई और सबने मिलकर आरती की। इसके पश्चात श्रीमाताजी ने स्वयं माझी गोधाडी गाने को कहा। ये भजन गाते हुए वास्तव में पण्डाल नाच उठा। श्रीमाताजी के चेहरे से नूर बह रहा था और हम सब लोग आनन्द में डूबे हुए थे तथा कामना कर रहे थे कि इस भजन का अन्त कभी न हो। अचानक श्रीमाताजी ने माइक्रोफोन लिया और इस भजन का अर्थ बताया । "हम श्रीमाताजी के गवैय्ये (भाट) हैं।" श्रीमाताजी ने इसके पश्चात् प्रस्थान किया और हम सब आन्तरिक मौन में सन्तुष्ट रहे । पूरा आव्वो यूटे मारगोट मारटिन और सीता रा 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-23.txt श्री कृष्ण पूजा मुम्बई 28.8.1973 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन में रहते हैं। वातावरण में वह उष्मा (warmth) महसूस करती हैँ और आप भी इसे महसूस करते हैं क्योंकि आप जानते हैं कि विदेशों से यहाँ आए ये साधक कोई गैर (Foreigners) नहीं हैं। वे आपके अपने बहन भाई हैं। पुराणों १ में इस प्रकार की बहुत सी कथाएं हैं। मैं उनकी बात नहीं करूंगी। एक बार जंगल में दो भाई मिले। परन्तु उन्होंने सोचा कि वे एक दूसरे के दुश्मन हैं और परस्पर युद्ध करना चाहा। मारने के लिए जब उन्होंने हाथ उठाया तो वे एक दूसरे को मार न सके, तब उन्होंने तीर निकाले। तीरों ने भी कार्य न किया। इस बात से उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ! तब उन्होंने एक दूसरे से उसकी माँ का नाम पूछा और पाया कि वे एक ही माँ के बेटे थे तब उन्हें महसूस हुआ कि वे न तो गैर थे और न ही दुश्मन। वों दोनों एक ही तत्व के बने हुए थे। इस ज्ञान ने उन्हें कितना सौन्दर्य और कितना परमात्मा ने पूर्ण को समझने के लिए माधुर्य प्रदान किया! ये जानकर हमें कितनी सारा प्रबन्ध किया है उदाहरण के रूप यदि मुझे केवल अपने सिर का ज्ञान हो तो ये काफी नहीं है, मुझे यदि केवल टॉँगों का ज्ञन हो तो भी काफी नहीं है। अपने विषय में में सूझ-बूझ और सुरक्षा प्राप्त होती है कि विश्व भर में सर्वत्र हमारे भाई-बहन हैं जो आत्मचालित हैं, जो अपने परमेश्वर पर निर्भर हैं और उस दिव्य प्रेम से हम किस प्रकार बन्धे हुए हैं! जितना अधिक ज्ञान मुझे होगा मैं उतनी ही मैं जब प्रेम की बात करती हूँ तो लोग समझते हैं कि मैं आप लोगों को दुर्बल बनाने का प्रयत्न कर रही हूँ। उनके विचार से प्रेम प्रगल्भ और विशाल होऊंगी। महान कहलाने वाला सभी कुछ या महान कहे जाने वाले लोग इसलिए इन्सान हैं क्योंकि वे बहुत से मनुष्यों 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-24.txt अक : 7 & 8 - 2005 चैतन्य लहरी 23 दुर्बलता है। परन्तु विश्व में प्रेम की शक्ति जिससे आगे हमारा मस्तिष्क नहीं सोच सकता अत्यन्त प्रगल्म शक्ति है, प्रेम की शक्ति ही है प्रेम जब स्थूल तत्व से घिरा हुआ हो, उसी अत्यन्त प्रभावशाली है प्रेम में चाहे हम कष्ट उठाते हैं तो भी अपनी शक्ति के कारण कष्ट उठाते हैं न कि अपनी दुर्बलता के कारण । में उलझा हुआ हो केवल तभी यह दुर्बल और परेशान महसूस होता है । स्थूल तत्वों से जब होता है तो प्रेम की प्रगल्भ शक्ति पूरे ये मुक्त उदाहरण के रूप में चीन में मुर्गों को सिखाने विश्व की आसुरी शक्तियों पर काबू पा सकती वहाँ का राजा अपने मुर्गे |=ा े है। लोगों को जब आत्म साक्षात्कार मिलता है वाला एक गुरु था। उसके पास ले गया और उससे कहा कि इन्हें तो काफी हृद तक अहम् समाप्त हो जाता है लड़ना सिखाए। एक महीने के पश्चात् जब क्योंकि आप कहते हैं कि चैतन्य लहरियाँ बह राजा अपने मुर्गे लेने के लिए गया तो उसे रही हैं। ये नहीं कहते कि आप दे रहे हैं। आश्चर्य हुआ कि उसके मुर्गे अत्यन्त शान्तिपूर्वक अहम मुक्त हो जाने के कारण कभी-कभी आपको ऐसा लगता है कि जो भी आप पाना "तुमने मेरे मुर्गों को क्या किया है?" वो बिल्कुल चाहते थे आपको मिल गया और अब उसके एक तरफ खड़े थे। उसने उस गुरु से कहा, भी आक्रामक नहीं हैं, वो कुछ भी नही कर बारे में बात नहीं करना चाहते। कहीं से यदि रहे। ये किस प्रकार लड़ाई जीतेंगे? दौड़ और विरोध होता है तो उसकी चिन्ता न करके आप शक्तिस्पर्धा होगी, उसमें ये क्या करेंगे? गुरु ने एक ओर बैठ जाते हैं। नकारात्मक विरोध से कहा कि आप इन मुर्गों को ले जाएं। राजा बचने के लिए न तो आप कुछ बोलते हैं न ही मुर्गों को ले गया और उसे अखाड़े में छोड़ कोई गलत तरीका अपनाते हैं। इस विचार से भी आप परे भागते हैं कि हे परमात्मा! ये दिया जहाँ और मुर्गे लड़ने के लिए आए थे। ये दोनों मुर्गे बड़ी शान्ति से खड़े रहे। अन्य मुर्गे आपस में लड़ते रहे। परन्तु ये दोनों विपरीत नकारात्मक और घृणायुक्त व्यक्ति आ अधिक बातूनी हो जाता है और बड़ी -बड़ी बातें इस व्यवहार को देखकर बाकी मुर्गों ने ये करते जाता है, करते जाता है, करते जाता समझा कि ये दोनों बहुत शक्तिशाली हैं और है। वो सोचता है कि वह सबसे ऊपर है और इसका मुकाबला किस प्रकार करेंगे? इसके राम से खड़े होकर उन्हें देख रहे थे। उनके डरकर वहाँ से भाग गए। पूरे विश्व को बेवकूफ बना सकता है। पूरी जिम्मेदारी वो स्वयं पर ले लेता है। लोग कोई जिस प्रेम के विषय में मैं बात कर रही बड़ा आश्रम या स्थान उसके लिए बना देते हैं और अपनी सारी अज्ञानता के साथ वो इसमें हूँ, परमेश्वरी प्रेम आपको शक्तिशाली एवं प्रगल्भ है बैठ जाता है और अपना अंधकारमय ज्ञान बनाता है। यह महानतम ज्योतिर्मय शक्ति 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-25.txt चैतन्य लहरी अंक : 7 & 8 - 2005 24 परे थे वो कभी नहीं रोए। वे प्रशिक्षित मुर्गो की तरह से थे, अत्यन्त शक्तिशाली व्यक्तित्व। परन्तु आज आप लोगों ने अपने अन्दर विद्यमान अपनी शक्ति की सूझ-बूझ को परिष्कृत करना इन तरीकों में लोग लोगों में फैलाने लगता है। बहुत रुचि लेते हैं और जा-जाकर उसके पैरों में गिरते हैं। परन्तु आत्म-साक्षात्कारी व्यक्ति आराम से अपने घर बैठता है और चकित होता है कि ये मूर्ख क्या कर रहे हैं। परन्तु अब है। जो लोग स्थूल (भौतिक स्तर पर) हैं वो आत्म- साक्षात्कारी लोगों को इस तरह से अपनी असुरक्षा, अपनी समस्याओं और अपनी बैठकर न तो हैरान होना है और न ही उनपर संस्थाओं की चिन्ता करें। यह कार्य आत्मसाक्षात्कारी लोगों का नहीं है। बहुत बार हँसना है जो लोग आत्म साक्षात्कारी नहीं हैं उनकी मूर्खता पर उसे दया नहीं करनी, मैंने आपसे बताया है और आज पुनः बता रही आत्म-साक्षात्कारी व्यक्ति को बाहर निकलना हूँ कि आत्म साक्षात्कार प्राप्त कह लेने के है। प्रेम की तलवार लेकर पूरे विश्व को जीतने पश्चात् आप कभी अकेले नहीं होते। के लिए उसे बाहर निकलना है, ऐसा करना आपके जन्म से पूर्व भी बहुत से लोगों अत्यन्त आवश्यक है। ने आत्म-साक्षात्कार को प्राप्त किया, वो सब विद्यमान हैं और हर क्षण आपकी सहायता सृष्टि को यदि बचाना है तो आपका इसके विषय में चुप करके नहीं बैठना। प्रेम के विषय में सारी गलत धारणाएं, सारे झूठ त्यागने होंगे। व्यक्ति को समझना करने के लिए उत्सुक हैं। हमारे शास्त्रों में उन्हें चिरंजीवी कहा गया है। यह बात आप है कि प्रेम की शक्ति जानते हैं। ये निरंजन' लोग हैं । जैसा मैंने भैरवनाथ और हनुमान जी के बारे में बताया था कि ये सब विद्यमान हैं और आपकी पुकार की प्रतीक्षा करते रहते हैं। एक बार हम बाजार अत्यन्त प्रगल्म है और यदि पूरा विश्व इसके आनन्द से वंचित है और विश्व को नष्ट करने के लिए तथा पृथ्वी पर शैतान का साम्राज्य स्थापित करने के लिए आई हुई आसुरी शक्तियों के हाथों में खेल रहा है तो ये प्रेम की शक्ति गए और वहाँ कोई समस्या थ्री। एक शिष्य मेरे साथ था, मैं उसकी प्रतिक्रिया जानना चाहती आपको आराम से बैठकर आत्मानन्द तथा थी। वह दुकानदार को कुछ समझाने का परमेश्वरी कृपा का आनन्द नहीं लेने देगी। प्रयत्न कर रहा था। वह मेरे पास आया और कहने लगा श्रीमाताजी आइए चलें।" हम दुकान अब वो दिन चले गए जब सच्चे साधकों को कष्ट उठाना पड़ता था। ईसा मसीह ने हमारे से बाहर आ गए। मैने उससे पूछा, कि अब तुम इसके बारे में क्या करोगे? उसने उत्तर दिया कि मैंने हनुमान जी को कह दिया है कि लिए कष्ट उठाए। वास्तव में ईसा मसीह ने कभी कष्ट नहीं उठाया क्योंकि वो तो दुःख से 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-26.txt अंक : 7 & 8 - 2005 चैतन्य लहरी 25 नहीं इस मामले को देखें और कार्य हो गया ये कहें कि ये नकारात्मकता है, और कुछ स्थूल हैं। आप भी ऐसे कार्य उन पर छोड़ चाहे आपको ये बात अच्छी लगे या न लगें, सकते हैं और वे इन कार्यों को देखेंगे। क्योंकि ऐसा करके आप उस व्यक्ति से प्रेम करते हैं। मंच पर तो आप हैं वे नहीं। वे तो पृष्ठभूमि में प्रेम का अर्थ ये बिल्कुल नहीं है कि केवल मीठी-मीठी बातें करनी हैं. नहीं। माँ भी तो हैं, पार्श्व (Playback) में हैं। परन्तु आपको अपना मुँह खोलना होगा यदि वे सोचने लगेंगे कभी कभी बच्चों को डाँटती हैं, परन्तु डाँटने का मतलब ये नहीं है कि वे उन्हें प्रेम नहीं तो लोग क्या कहेंगे। वो आपको हर तरह से मदद करेंगे। परन्तु आप अपनी सुरक्षा के लिए करती। यदि आवश्यक हो तो आपको बताना कितने विश्वस्त हैं? कहाँ तक अपनी सम्पदा होगा कि यह सकारात्मकता है। व्यक्ति यदि आत्म साक्षात्कारी है तो वो इस सुधार के लिए और आत्मज्ञान पर खड़े हुए हैं? इस बात का बिल्कुल भी बुरा न मानेगा क्योंकि वह तो सुधरना चाहेगा। आत्म-साक्षात्कारी कि ये दोष है। यन्त्र का बहुत बड़ा युद्ध चल रहा है इसका आपको ज्ञान नहीं है। आपमें कुछ लोग तो व्यक्ति जानता है निश्चित रूप से इसके विषय में जानते हैं सुधारा जाना आवश्यक है। परन्तु कोई व्यक्ति क्योंकि उन्हें ये युद्ध लड़ने का अनुभव है। यदि नहीं समझता तो आपको अपना प्रेम उस बहुत बड़ी लड़ाई चल रही है, विशेष रूप से पर थोपना पड़ेगा। आप बलपूर्वक अपना प्रेम जबकि आपको कमजोर करने के लिए दस उसे जता सकते हैं। इस बात को आप जानते राक्षस अवतरित हो चुके हैं। अभी तक आप हैं कि यहाँ बैठे हुए बहुत से लोगों ने अन्य छोटे बच्चे हैं, इसमें सन्देह नहीं है, क्योंकि लोगों पर अपना प्रेम कवच डालने का प्रयत्न किया है, ऐसे लोगों पर जो शरारत करने का आपकों कुछ ही दिन पूर्व आत्म साक्षात्कार प्रयत्न कर रहे हैं और उन्हें बड़े अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हें। वे शरारती लोग वापिस लौट आए हैं अपना हाथ रखकर, उस व्यक्ति पर प्राप्त हुआ है परन्तु आप यदि चाहें तो बहुत जल्द आपका विकास हो सकता है और आप बड़े-बड़े सूरमा बन सकते हैं। आप सभी उन्नत हो सकते हैं, केवल आपको ये निर्णय करना होगा कि आपने अपने अन्दर बढ़ना है। आपने ऐसी बहुत सी चीजें खोज ली हैं जिनसे व्यक्ति का विकास होता है। मैं आपको भोजन अपना चित्त डालकर और हाथ को इस प्रकार गोल घुमा (बन्धन) प्रेम का बन्धन लगा कर आप व्यक्ति को रास्ते पर ला सकते हैं । निःसन्देह या तो सकारात्मकता है या नकारात्मकता मध्य में कुछ भी नहीं है। दोनों दे सकती हूँ, बढ़ना तो आपको ही होगा। जब के बीच में कोई समझौता नहीं । या तो रोशनी भी आप नकारात्मकता देखें तो दृढता पूर्वक 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-27.txt अंक 7 & 8 - 2005 26 चैतन्य लहरी सर्वसाधारण गृहणी हूँ। कुछ लोग कहते हैं। या अंधेरा, या सकारात्मकता है या श्रीमाताजी हम आप जैसे कैसे हो सकते हैं? नकारात्मकता। निश्चित रूप से इन दोनों के बीच में युद्ध चल रहा है। केवल आपकी क्यों नहीं हो सकते। मैं भी आप ही की तरह ये से हूँ, मेरी समस्याएं भी आप ही की तरह से इच्छा, बहुत बड़ मजाक है, का सम्मान होता है। पूरी तरह से आपकी इच्छा का सम्मान होता है आपमें यदि उस प्रेम की मैं प्रेम की दिव्य मूर्ति के अतिरिक्त कुछ भी निकटता पाने की इच्छा है तो आप इसे पा सकते हैं। हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि मैं जानती हूँ कि नहीं और इस दिव्यता के बगैर मेरा कोई अस्तित्व नहीं है मैं चाहती हूँ कि मेरे जीवन के हर क्षण में मुझसे प्रेम बहता रहे. बहुता उस दिन मैं एक मनोवैज्ञानिक से रहे। मेरे मस्तिष्क की हर तरंग उस प्रेम को मिली। उसका प्रति अहं बहुत पकड़ रहा था। मैंने पूछा, आपको क्या परेशानी है? वह कहने लगा मेरा बचपन। अपने बचपन में मुझे पर्याप्त प्रेम नहीं मिला। मैंने कहा, अब मैं यहाँ हूँ, मेरे जीवन में आओ और प्रेम ले लो। वह कहने पहुँचाती रहे और आपको अत्यन्त शक्तिशाली बना दे। मैं देवी महात्म्य पढ़ रही थी, आप भी यदि इसे पढ़ें, तो इसमें एक राक्षस के बारे वर्णन किया गया है जिसमें आदिशक्ति का TI (परमेश्वरी माँ का) सामना किया वह उन पर हँसा और कहा, "ओ, स्त्री तुम मेरा क्या बिगाड़ लगा, श्रीमाताजी मैं अपना प्रेम प्रसारित करना सकती हो? तुम तो केवल एक महिला हो! चाहता हूँ। निडर होकर मैं अपना हृदय खोलना तुम मेरा क्या बिगाड़ सकती हो? वे उस राक्षस चाहता हूँ। मैंने कहा आप ये कार्य तुरन्त शुरु कर दें चिन्ता न करें कि किस प्रकार लोग पर मुस्कराई और कहा, "ठीक है, आगे बढ़ो, इसे गलत समझेंगे और क्या कहेंगे लोगों की चिन्ता करना महत्वपूर्ण नहीं है। प्रेम की तृप्ति हम युद्ध करें।" एक ही प्रहार से देवी ने उसकी गर्दन काट दी! यह बात स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि सकारात्मकता नकारात्मकता तो केवल प्रेम से ही हो सकती है कि आप का गला काट सकती है। इसमें कोई हिंसा दूसरे व्यक्ति को प्रेम करें, अपना प्रेम प्रसारित करें और जैसा मैंने कहा, आप इस कार्य में नहीं है। दो चीजों के अन्तर को आप अवश्य समझ लें। यदि नकारात्मकता को नष्ट किया सफल हो जाएंगे। निर्णय कर लें कि मैंने प्रेम जाता है और सकारात्मकता को बढ़ावा दिया करना है एक बार जब आप दृढ़ निश्चय कर जाता है तो यह सबसे बड़ी अहिंसा है जो आप कर सकते हैं। आपने देखा है कि नकारात्मकता लेंगे तो पूरी दिव्यता, पूर्ण दिव्य शक्ति आपके चरणों में लोट जाएगी। इस मामले में आप मेरा विश्वास करें। आप मुझे देखें, मैं एक लोगों के साथ क्या करती है। अब आपने প প 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-28.txt अंक : 7 & 8 -2005 चैतन्य लहरी 27 जाना है कि नकारात्मकता क्या है और किस हैं और चैतन्य बहाने लगते हैं। शक्ति के प्रकार लोग इसके कारण कष्ट उठाते हैं! और कारण! ये सारे विजय-दिवस अभी आने बाकी यहाँ पर वो प्रेम प्राप्त करने के लिए भी हैं और ये सब आपके माध्यम से कार्यान्वित होगा परन्तु आपके दुर्बल शरीर यन्त्र का क्या होगा? यह तो अभी तक बहुत ही धीमी गति से उत्सुक है। आपको आश्चर्य होगा कि यदि आप वास्तव में उनसे प्रेम करें (.) लोग स्वयं मेरे पास आकर कहते हैं कि श्रीमाताजी चल रहा है। हमें मोक्ष दीजिए! मेरे पास लोग केवल मोक्ष प्राप्ति के लिए आते हैं और यदि मैं वचन देती ड वह समय जब प्रेम का साम्राज्य होगा, हूँ तो वो पुनर्जन्म (आत्मसाक्षात्कार) लेते हैं । उस दिन जैसे मैंने आपको बताया था कि उस सतयुग ने यदि आना है तो वह आपके प्रयत्नों से आएगा सहजयोग से पूर्व कोई भी प्रयत्न दिव्य प्रयत्न नहीं था परन्तु अब आपके सभी प्रयत्न दिव्य हैं। जो भी कुछ आप करते कलियुग में एक सुन्दर मंच की रचना की गई और इस पर आश्चर्यजनक नाटक खेला हों, अनुकम्पी नाड़ी तन्त्र को जितना भी आप गतिशील करें, प्राप्ति तो आपको पराअनुकम्पी जाना है। इस नाटक में रावण सीता को माँ की तरह से प्रेम करेगा और कंस भी राधा के चरण कमलों में गिरेगा। शायद आप नहीं के माध्यम से हो रही है। आप कुछ भी नहीं करते। आप स्वयं देख सकते हैं इसके साथ जानते कि श्रीकृष्ण कंस को उसी समय मारना कितने खतरे जुड़े हुए हैं। आप चुनिन्दा व्यक्ति केवल चाहते थे। कंस उसके मामा थे माँ के भाई है। अन्यथा क्यों यह आपको प्राप्त होता। आप ही वो लोग हैं जिन्हें आत्मसाक्षात्कार की भावना कृष्ण के मन में उठी। अतः उन्होंने राधा से कहा वे कंस का वध करें क्योंकि प्राप्त हुआ है और आप ही इतना आगे बढ़े हैं। राधा का प्रेम तो पूरे विश्व के लिए था। वे प्रेम की प्रतिमूर्ति हैं, उन्होंने कंस का वध किया क्योंकि यही परमेश्वरी इच्छा थी जब आप अभी कुछ ही दिन पूर्व आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ था और आप इतना आगे बढ़ गए हैं, क्यों? आप चुने हुए लोग है, आपने ही ये उत्तरदायित्व लेना है, परमेश्वरी प्रेम की वाहिकाएं परमात्मा के हाथ में खेल रहे होते हैं और वह किसी का वध करना चाहता है तो उसे तो बनने का, वह प्रगल्भ शक्ति बनने का जो उस मरना ही है। परन्तु सर्वप्रथम आपको परी होना होगा प्रेम घृणा की सारी धारणा को ही परिवर्तित कर देगा जिस पर ये सारे राष्ट्र और भेदभव बनाए तरह से परमात्मा के हाथ में ही इस शरीर का वध करता है। परमात्मा के विजय गीत जब गाए जाते हैं, तो आपने देखा गए है। कुछ समय तक ऐसा लगता है कि परन्तु अब कैसे, कैसे ये कार्य हो सकता है? है, किस प्रकार सभी चक्र कार्यान्वित हो उठते 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-29.txt अंक : 7 & 8 - 2005 28 चैतन्य लहरी गोकुल के दिन चले गए हैं मैं इसके विषय में में ऐसा नहीं होता वो महान सन्त होता है । सोच रही थी, उस समय श्री कृष्ण अपनी यहाँ पर सभी सन्त बैठे हुए हैं यह सन्त- बॉँसुरी बजाया करते थे और गोपियों तथा गोपों को सहजयोग देने का प्रयत्न करते थे। परमेश्वर प्रवाहित हैं। आवश्यकता केवल इतनी ओह! वह प्रयत्न करते रहे, करते रहे, कई है कि इसे अपने अन्दर से प्रवाहित होने दें। ये जन्मों में ये प्रयत्न करते रहे। भी कार्यान्वित सुलभता का केन्द्रक (Nucleus) है जहाँ पूर्ण परमात्मा की शक्ति है और इस बात की कुछ नहीं हुआ। परन्तु अब ये चिंगारी की तरह से चिन्ता करना आपका कार्य नहीं है कि यह फैल जाएगा निरन्तर प्रतिक्रिया ( Chain reaction) आरम्भ हो जाएगी परन्तु इसे हैं कि इस विश्व के आधुनिक विज्ञान के कार्यान्वित करने के लिए हमारे पास शक्तिशाली अनुसार यह शक्ति कुछ बुरा कर सकती है, मशीनों का होना आवश्यक है नहीं तो फ्यूज़ तो भी अन्ततः सभी कुछ अच्छा हो जाएगा। अच्छा करेगी या बुरा। यदि आप ये सोचते भी उड़ जाएगा। आपने केवल अपने चित्त से, अपनी शक्ति को महसूस करना है। आपने को मारना क्यों आवश्यक था? रावण को मारना केवल इतना कार्य करना है - अपने धैर्य को क्यों आवश्यक था? निःसन्देह वध करने से जरासन्ध को मारना क्यों आवश्यक था? कंस अधिक लाभ नहीं होता, इस बात को मैंने महसूस करना और सारे असत्य को त्याग देना। जो भी असत्य है, उसे आप अन्दर देखें और छोड़ दें केवल सत्य को स्वीकार करें सोचा है। जिन लोगों के वर् किए गए थे वो सब पुनः अपने स्थानों पर आ गए हैं। परन्तु अब आप उन राक्षसों से न लड़े, स्वयं से और सत्य आपको वो शक्ति देगा कि आप प्रेम की शक्ति, प्रेम की वाहिका को कार्यान्वित लड़कर उन्हें बाहर निकाल दें। केवल स्वयं को देखें कि आप कहाँ हैं? क्या कर रहे हैं? करने वाले सच्चे उपकरण बन सकें। तब आप चाहने पर भी अहंकार न कर सकेंगे। चाह कर भी किसी को हानि न पहुँचा से लोग कहते हैं कि श्रीमाताजी ने ये वरदान क्या आप परमेश्वरी धरातल पर है या स्थूल धरातल पर? हर क्षण इसके विषय में सोचें, हर क्षण आपको परिपूर्ण करने वाली, आपके अन्दर प्रवाहित होने वाली पूर्ण शक्ति के बारे सकेंगे। बहुत ऐरे गैरे को दे दिया है। ऐरे-गैरे को मैं ये नहीं दे सकती। यह तो किसी साधक पुरूष को तथा जन्म-जन्मान्तरों से साधनारत किसी महिला में सोचें। सहस्रार के माध्यम से ये आपके रोम रोम में प्रवाहित होगी। आपके पूर्ण अस्तित्व के को ही दिया जा सकता है। आपको समझ चहूँ ओर घूमेगी और आपके अन्तस को पूर्ण लेना चाहिए कि आपको क्या मिल गया है! चैतन्य शक्ति, पूर्ण परमेश्वरी शक्ति के रूप में आपका अधिकार ही आपको प्राप्त हुआ है । तो परिवर्तित कर देगी। इसे अपने अन्दर आने दें देखने में व्यक्ति चाहे सर्वसाधारण लगे वास्तव इसे स्वीकार करें, बिना किसी भय के इसे 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-30.txt अंक : 7 & 8 -2005 29 चैतन्य लहरी कृष्ण आपके अन्तस में जन्मेंगे, जब आप कृष्ण बन जाएंगे तब आपको कृष्ण से शैली अपना ली है । मेरे केवल दो हाथ हैं, मिलने के लिए नहीं जाना होगा। आइए अब स्वीकार करें, हर क्षण इसे अपने अन्दर आने दें, हर क्षण चेतन रहें। आपने अत्यन्त खतरनाक आप इन्हें देख सकते हैं और यद्यपि श्री. ऐसी अवस्था को पा लें जो आपके अधिकार कहते हैं कि मैं कुछ भी करने में सक्षम हैं, मैं क्षेत्र से, आपके विचारों से परे है. निर्विचार सभी कुछ कर सकती हूँ परन्तु आपको कुछ समाधि के साम्राज्य में जहाँ परमात्मा अपनी भी करने के लिए विवश नहीं कर सकती। कृपा वर्षा कर रहे हैं। सदा आपकी इच्छा का सम्मान होगा। एक चीज़ के अतिरिक्त सभी कुछ देखा जा सकता इन लोगों ने आज पूजा करने का निश्चय किया है आप जानते हैं कि जब आप लोग मेरी पूजा करले हैं तो मेरा क्या हाल कुछ है । आपको पूर्ण यन्त्र, पूर्ण वाहिका, पूर्ण बाँसुरी तो बनना ही होगा यदि आप चाहते हैं कि मैं होता है? तो जिन समस्याओं का सामना बाद आपके प्रेम की धुन बजाऊं तो आपको अपने सातों छिद्र (चक्र) स्वच्छ करने होंगे स्वयं को में करना है उसके बारे में न सोचते हुए मैं चाहूँगी कि आप पूजा पर पूरा चित्त दें और इसका पूरा लाभ उठाएं। इस पूजा से आरम्भ में तो आप माँ की सुरक्षा प्राप्त करते हैं और जब मेरे चक्र चलने लगते हैं तो वे आपको प्रेम कलाकार हैं परन्तु आप यन्त्र है। इतनी सारी की विशेष शक्तियाँ प्रदान करते हैं, आपके आत्माओं से बजने वाला लयबद्ध संगीत, इन सभी चक्रों पर विशेष कृपा करते हैं और उन्हें सारे राक्षसों के कानों में घुस सकता है, इनके पूरी तरह से चैतन्य से भर देते हैं । यद्यपि में प्रवेश कर सकता है और उनके हृदय थोड़े से लोग ही मेरे पास पूजा के लिए पूरी तरह से खाली कर लेना और अपने अन्दर पूर्ण होना आपका कार्य है। इसके बाद परमात्मा अपने कार्य को जानते हैं। परमात्मा हृदय है कि वे आएंगे। में प्रेम भर सकता है। तब हो सकता। स्वयं अपनी दुष्प्रवृत्तियों को त्यागकर प्रेम के मैं चाहूँगी, कि आप सभी इस बात का चरणों में गिर जाएं। आज आप ही के अंदर श्री कृष्ण जन्म लेंगे। पाँच वर्ष का बालक जो एहसास करें कि उनके माध्यम से आप ही मेरी पूजा कर रहे हैं। आप ऐसा एहसास कर कालिया वध के लिए चल पड़ा! वे कृष्ण आपके अन्दर जन्म लेगे जो जाकर कालिया के सहस्रार सकते है। इस प्रकार से मेरा आशीर्वाद और पर बैठकर अपने पैर से उसे दबाते रहें। मुझसे एकरूपता स्वतः ही आपमें प्रवाहित होने कालिया के सहस्रार पर श्री कृष्ण-नृत्य के । महान नाटक को सभी लोग देख रहे थे । लगेगी करें ं। परमात्मा आप पर कृपा 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-31.txt परम पूज्य श्री माताजी का एक पत्र वर्ष 1979 (मराठी से अनुवादित) मेरे प्यारे सहजयोगियो आपके प्रेममय एवं सुन्दर पत्र तथा बधाई संदेश प्राप्त हुए। यहाँ, लन्दन में व्यस्त होने के परमात्मा का जो भी कार्य है सब हो जाएगा। अतः सभी लोगों को चुस्त एवं चेतन होना चाहिए। कारण मैं उत्तर न दे सकी। मेरा जीवन आपके प्रति समर्पित है। हर क्षण मैं कार्य करती हूँ। मैं केवल इतना चाहती हूँ कि कलियुग के नर्क की आग में तपकर यह शुद्ध सोना मानव इतिहास को जयोतिर्मय करे एक बार मैंने आपसे बताया था के इस वर्ष नवरात्रि से सहजयोग आरम्भ हो रहा है। अर्थात जिस सत्ययुग के लिए आप अब तक तैयारी कर रहे थे वह अब दिखाई देगा। जिस प्रकार पेड़ का अंकुरण सर्वप्रथम पृथ्वी में होता है, फिर इसकी पत्तियाँ बाहर दिखाई देती हैं, इसी प्रकार नवरात्रि के पहले दिन- अर्थात 8 अप्रैल को सहजयोग की पत्तियाँ दिखाई देंगी। मेरा आशीर्वाद है कि घर-घर में यह दीप प्रज्जवलित हो, समाज में इसका आनन्द फैले, इसका विजय घोष सभी देशों में गुंजरित हो और यह ब्रह्मशक्ति ब्रह्माण्ड के हर अणु-अणु में संचरित हो उठे। यह महान आनन्द का दिन होगा पूर्ण प्रकृति को नवजीवन प्राप्त होगा आप एक बात समझ लें कि इस दिवस के महत्व को मनुष्य केवल तभी समझ पाएगा जब पूरी मानव जाति प्रेम की चैतन्य लहरियों से ज्योतिर्मय हो जाएगी। ह बहुत समय के लिए मुझे आपसे दूर जाना होगा परन्तु आपके भाई यहाँ पर भी हैं और अन्य देशों में भी। समय के साथ-साथ आप उन सबसे मिलेंगे। मुझे प्रायः ये आभास होता है कि एक दिन ऐसे महान प्रेम के आनन्द का उदय आपके जीवन में होना चाहिए। आप जो भी इच्छा करेंगे बह पूर्ण क मेरे जन्मदिवस से ही इस विश्व में ब्रह्मशक्ति जागृत हो गई थी कुछ सीमा तक आपने यह शक्ति प्राप्त कर ली है और भिन्न प्रकार होगी। अंतः आपका चित्त पूरी तरह से सहजयोग पर होना चाहिए। मैंने अपना शरीर, मन, धन सभी से इसका उपयोग कर रहे हैं। कुछ इसको अर्पण किया हैं मैं आपसे बता रही थी कि प्यार की ये महान शक्ति विश्व में सर्वत्र फैल जाएगी। उस दिन पहला दीपक प्रज्जवलित किया जाएगा। आपको केवल अपने चित्त के प्रति सावधान रहना है क्योंकि चित्त ने ही ज्योतिर्मय होना है। परन्तु दिवाली की रात अंधी है। यह दीपकों को नहीं देख सकती। इस कलियुग में यह कार्य केवल तभी हो सकेगा जब बहुत से दीपक प्रज्जवलित हो जाएंगे। सदैव आपको स्मरण करने वाली आपसे बिछुड़ी हुई आपकी माँ (निर्मला योगा- 1983 ) श्) 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-32.txt परम पूज्य श्री माताजी का एक पत्र मराठी से अनुवादित िंड मेरे प्यारे सहजयोगियो को बहुत ऊँचा मानने वाले व्यक्ति को जागृति प्राप्त करने के लिए बहुत प्रयत्न करने पड़़ते मानव चित्त में बहुत से भ्रम होते हैं। जब ये भ्रम दूर हो जाते हैं तब मानव चित्त ज्योतिर्मय होकर आनन्दमयी बन जाता है । कुण्डलिनी की जागृति से आपके बहुत से भ्रम दूर हो गए हैं :- है परन्तु यह उसका दोष नहीं है। 5. चैतन्य लहरियों के रूप में आपके अन्दर जो ब्रह्मतत्व बह रहा है वह आपके शरीर, मन एवं अहंकार (Body, Mind and Ego ) रूपी तीनों है इन तीनों 1. आपने महसूस किया है कि कुण्डलिनी मात्र आवरणों को स्वच्छ कर देता कल्पना न होकर मानव के अन्तः-स्थित जीवन्त शक्ति है। आवरणों में से कोई भी आवरण यदि अस्वच्छ 2. यह शक्ति सभी मनुष्यों में है और सामान्य हो जाए तो आपकी चैतन्य-लहरियाँ आपको इसके बारे में इंगित करती है। व्यक्ति में स्वतः इसकी जागृति घटित हो जाती है। 3. किसी भी कर्मकाण्ड द्वारा इसकी जागृति नहीं होती परन्तु यदि किसी व्यक्ति ने दुष्कर्म किए हों तो उसकी जागृति होना सम्भव नहीं है 6. आपका शरीर यदि शक्तिशाली हो जाए. मस्तिष्क पावन हो जाए और आपका अहं यदि समाप्त हो जाए तो आपको आत्मा का आशीर्वाद क्योंकि सुप्तावस्था में भी कुण्डलिनी को व्यक्ति के पूर्वकर्मों की चेतना होती है। प्राप्त होने लगता है। दिव्य चैतन्य लहरियाँ आत्मा से प्रवाहित होती हैं क्योंकि अब आत्मा के प्रकाश की लौ निर्मल रूप से जलने लगती कुण्डलिनी धर्मपरायण है और यद्यपि यह माँ है। साक्षी भाव में हैं फिर भी ये जानती हैं कि व्यक्ति के अन्दर क्या अच्छाई है और क्या 7. इस ब्रह्माण्ड का सृजन किस प्रकार हुआ? बुराई। कुण्डलिनी की कृपा से शरीर और मन के रोग दूर हो जाते हैं। क्यों इसका सृजन किया गया? क्या परमात्मा का अस्तित्व है? ये सब मूल प्रश्न हैं। देवता। लोग भी इन प्रश्नों को समझ नहीं सके। 4. कुण्डलिनी शक्ति देवी भगवती की इच्छा शक्ति है भगवती माँ की इच्छा (संकल्प) मात्र परन्तु मैंने जो कुछ भी बताया है वह ठीक है या गलत इस बात को चैतन्य लहरियों पर से ये सुगमता पूर्वक जागृत हो जाती है। स्वयं परखा जा सकता है। औ ्रीL: 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-33.txt चैतन्य लहरी अंक : 7 & 8 -2005 32 अपने अनुभव से जब आप ये सीख जाएंगे कि सत्य और प्रेम एक ही है और अनुभव से जब 9. आप सामूहिक रूप से चेतन हो गए हैं । सामूहिक चेतना की ये शक्ति जो आपमें जो पूरे आपको अपने अत्यन्त सूक्ष्म ब्रह्म तत्व का हो गई है यह ब्रह्म शक्ति है जागृत अहसास हो जाएगा तब आपके भ्रम कि ब्रह्म ब्रह्माण्ड में, हर अणु रेणु में भी, भिन्न रूपों में निर्लिप्त है, समाप्त हो जाएंगे। परमेश्वरी विद्यमान है।ज़ बजों में यह जड़ शक्ति है. जीव धारियों में यह सौन्दर्य शक्ति है, जागृत सिद्धान्त अर्थात ब्रह्म, कमल की तरह से आपके हृदय में खिल उठेगा और इसकी शक्ति (Power of Bliss) अवस्था में यह कृपा है, सहजयोग में यह चेतना शक्ति है, परमयोग सुगन्ध चहुँ ओर फैल जाएगी। शारीरिक, सूक्ष्म एवं कारणरूप शरीर की सभी अस्वच्छताएँ में यह पराकृपा (Supreme Bliss) है और देवी भगवती के अन्दर यह ब्रह्मभूत्व शक्ति समाप्त हो जाएंगी। आपका चित्त जब ब्रह्म हो जाएगा तो असत्य से जुड़े होने के कारण ( ब्रह्म रूप होने की शक्ति) है आपने ये सारी चीजें समझ ली हैं परन्तु इन्हें अनुभव करना उत्पन्न भ्रम नष्ट हो जाएंगे। बला भी आवश्यक है। आप सब चेतन मस्तिष्क से अपने हृदय को समर्पित करके भ्रममुक्त हो जाएं। ये मेरे आशीर्वाद हैं। 8. यद्यपि ब्रह्मतत्व सूर्य की तरह से है इसकी किरणें असत्य रूपी जल पर प्रतिबिम्बित होती हैं और हमारे चित्त को अस्थिर करती हैं परन्तु जब आपका चित्त ही ब्रह्म (सूर्य) बन जाएगा सदा सर्वदा आपकी माँ तो यह डावांडोल न होगा प्रेममयी भगवती माँ से एकरूप होकर उनकी ध्यान धारणा से निर्मला यह भ्रम दूर होगा। he 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-34.txt सहजयोग का अलिखित इतिहास अपने अन्तस में यदि आप इसे संजों कर रखें और अपनी स्मृति के उस क्षेत्र को कभी खोलें तो पूर्ण सौंदर्य की वर्षा आप पर होने लगेगी । वो श्लोक आपको स्मरण है जो ये कहते हैं कि ज्ञान की तरह से परम चैतन्य हमारे अन्दर स्थापित है इसी प्रकार से वह (सौन्दर्य) भी हमारे अन्दर बसा हुआ है। श्रीमाताजी निर्मला देवी प्रिय सहजी कुछ वर्ष पूर्व पुराने एवं नए सहजयोगियों द्वारा भेजी गई उनकी अलिखित सहज स्मृतियों को एक पुस्तक रूप में अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित किया गया था उन्हीं सुंदर स्मृतियों को हिन्दी भाषा में हम चैतन्य लहरी के भविष्य में आने वाले अंकों में आप तक पहुँचाने का क्रम आरम्भ कर रहे हैं। आशा है इन्हें पढ़कर परमेश्वरी सौन्दर्य की फुहार का आनन्द आप भी ले पाएंगे। -चैतन्य लहरी- और मैंने उन्हें कार से उतरकर एक या दो कदम चलते हुए देखा और लों ! मैं खो गई। मैं सब कुछ भूल गई। तत्पश्चात् मैंने उन्हें मंच पर देखा। ऐसा प्रतीत हुआ मानो चन्द्रमा चाँदनी छिटका रहा हो। निर्मल गुप्ता इस युग में जीवित रहकर यह सारी अनुभूति करना ! इसकी तो कल्पना भी कठिन प्रतीत होती है। मुझे आश्चर्य है कि क्यों मुझे इसके (आत्म-साक्षात्कार) लिए चुना गया और क्यों मैं इतनी भाग्यशाली थी कि उनके साकार में उपस्थित रह सकूं। यही छोटी-छोटी अनुभूतियाँ पूरा जीवन आपके मन में बसी रहती हैं ! आप इनकी अनदेखी नहीं कर सकते। शेरों विन्सैन्ट मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि वे, श्रीमाताजी, सहजयोग के भविष्य के विषय में बता रही हैं कि हम बहुत से लोग होंगे, इतनी अधिक संख्या में होंगे कि उनकी एक झलक भी हमें न मिल पाएगी। माइकल पैटरोनिया यह सत्य अभिभूत कर देता है कि परमात्मा हमें इतना प्रेम करते हैं ! हेलेन मनासे 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-35.txt सहजयोग का अलिखित इतिहास परिचय : सुन्दर अनुभूतियों का संग्रह करने की आज्ञा देने के हमारी परमेश्वरी माँ की ऐसी बहुत सी लिए हम आपके आभारी हैं और आपका धन्यवाद स्मृतियाँ और कथाएं हैं जिन्हें अभी तक न तो करते हैं। सहज रूप से जिस प्रकार आप चाय का वीडियो पर रिकार्ड किया गया है न ऑडियो पर कप उठाती हैं, उसी से हम बहुत कुछ सीख सकते और न ही उन्हें लिखा गया है । उनके हजारों बच्चों ने इन स्मृतियों की केवल अनुभूति की है और इस खजाने को अपने हृदय में संजोया हुआ है । हैं । स्नेह, सहजता एवं अन्य बहुत से तरीकों से जैसे आप अपने प्रेम की वर्षा करती हैं हम स्मृतियों के इस सागर से, जिन्हें हमनें अब तक व्यक्तिगत अनुभूतियों के रूप में संजोया हुआ आपके आभारी हैं। आप द्वारा खेली जा रही श्री महामाया की महान लीला के कारण आपके बच्चे था, कुछ मधुर कथाएं चुनकर इस पुस्तक में प्रकाशित की जा रही है। आपसे प्रेम करते हैं और आप पर विश्वास करते हैं। यद्यपि प्रायः वे उस सत्य को नहीं समझ पाते जो आप हैं हम आपके आभारी हैं। ये पुस्तक हमारा इतिहास है आंशिक और स्मृतियों की तरह से नाजुक। यह अधूरा, इस पुस्तक का उद्देश्य हमें सहजयोग उस संस्कृति की के जादू की याद कराना है। इस पुस्तक की हमारा जीवन्त इतिहास है तरह से ही नाजुक। यह हमारा जीवन्त इतिहास है उस संस्कृति का इतिहास जिसे हम सहजयोग कहते हैं परम पूज्य श्रीमाताजी श्री निर्मला देवी ने आत्मा भविष्य में आने वाले भाई बहनों की सहायता करने के लिए है ताकि वे प्रेम एवं करुणामयी माँ, जिनकी दिव्य प्रेम शक्ति हमारे सभी सन्देहों को जिस प्रकार हमारी सीमित चेतना को उन्नत किया दूर करती है, उस सौन्दर्य के इस छोटे से अंश को है वह सब इसमें लिपिबद्ध है । किस प्रकार हमने जान सकें। स्वयं को खोजा, यह इसमें लिखा हुआ है। सहजी भाई बहनों की अनुभूतियाँ, जोकि हमारी अनुभूतियाँ तो आइए स्मृतियों को खोजने के प्रयत्न में मिले शब्दों का आनन्द प्राप्त करें। इसके पश्चात् हैं, उनसे हमारे सम्बन्धों का यह उत्सव है हे देवी! शुरु होती है हमारी सामूहिक स्मृतियाँ हमारी सामूहिक अपनी करुणा, प्रेम, उन्मुक्त हँसी, प्रेमपूर्वक कथा... सुधार, हमें अपने साथ रखकर अपने अवतरण की 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-36.txt भारत में प्रारम्भ आप भाग्यशाली हैं कि आपको मेरे दर्शन हुए राओल बाई को देखो, उसका चित्त हमेशा इसी वर्ष 1970 में श्रीमाताजी जीवन ज्योत में चीज़ पर रहता है कि मैं क्या कर रही हूँ। अन्य रहा करती थी और निर्मला श्रीवास्तव के नाम से लोगों की तरह से तुच्छ चीजों पर अपना समय बर्बाद करने में वह नहीं लगी रहती। वे मुझे लड़कियों से पूछा कि जानी जाती थीं। मैंने कुछ निर्मला श्रीवास्तव कहाँ रहती हैं? जब मैं ऊपर राजकंवर बुलाया करती थीं। पहुँची तो मैं श्रीमाताजी से मिली। उन्होंने दरवाजा 1 खोला और पूछा "क्या तुम मुझे खोज रही हो?" रात्रि भोज के बाद वे लोगों को आत्म- उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और अत्यन्त प्रेम से मुझे साक्षात्कार देना आरम्भ करतीं। उन्होंने मुझे कहा अन्दर ले गई और चारपाई पर बैठने के लिए कहा। कि मैं अपने हाथ उनके चरण कमलों के नीचे "आप कहाँ से आई हैं?" "मैं धुलिया से आई हूँ, मैंने आपका नाम सुना है और आपको खोजती हुई यहाँ आई हूँ।" "मैं ये कार्य आरम्भ करने वाली हूँ रखेँ। मोदी सभी कुछ समझते थे व्यक्तिगत रूप नहीं समझा। से मैंने कभी कुछ जो भी कुछ कहती थीं मेरे लिए वही सब कुछ था। यदि उन्होंने परन्तु अभी अपनी बेटी कल्पना के प्रसव की प्रतीक्षा कह दिया मैं पार हो गई हूँ तो मैंने मान लिया मैं में हूँ। ये कार्य हो जाने पर मैं आपको बुलाऊंगी। पार हो गई हूँ। जाने से पूर्व कृपया अपना नाम और पता यहाँ छोड़ दें, एक महीने के अन्दर मैं आपको बुला लूगी।" उन्होंने मेरी पीठ पीछे इस प्रकार कार्य - किया (कुण्डलिनी उठाना) तब माँ ने अत्यन्त प्रेम बम्बई से बोर्डी तक हम सब श्रीमाताजी के पूर्वक देखा और एक सुन्दर भजन गाया 'पार साथ रेल में गए। हम सब एक साथ थे। माँ हम 1 ब्रह्म परमेश्वर" । उन्होंने अत्यन्त सुन्दर भजन गाया। सबसे बात करतीं, जहाँ भी वे जातीं हम उनके उनकी मुखाकृति अत्यन्त आनन्ददायी, प्रेममयी साथ जाते। मैं कभी भी माँ को अकेला न छोड़ती और प्रसन्न थी और इस प्रकार से आधी रात तक क्योंकि मैं देखना चाहती थी कि माँ क्या करती हैं? उन्होंने चार या पॉच लोगों को आत्म-साक्षात्कार मैं उनका अनुसरण और बिना कोई प्रश्न किए वह दिया। दिन के समय वे अकेली बैठकर एक-एक सब करती जिसका वे आदेश देती। व्यक्ति को बुलातीं और आत्मसाक्षात्कार देतीं। रात्रिवास के लिए हम सब एक ही स्कूल में रुके थे और रात्रि का भोजन करने के पश्चात् वापिसी के समय रेल में उन्होंने हमसे पूछा कि क्या हम निर्विचार हैं या नहीं? अत्यन्त हम अपने-अपने कमरों में चले गए । "धुलिया की 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-37.txt चैतन्य लहरी अंक : 7 & 8 - 2005 36 था, आज प्रातः मैं उन सबके लिए ध्यान कर रही नम्रता पूर्वक, मैं कहती, मुझे नहीं पता क्या हो रहा थी। क्यों के आप सब लोग नए हैं, आपको समझ है। तब माँ ने कहा, 'कि हम अपने दोनों हाथ नहीं है फिर भी आप भाग्यशाली हैं कि आप मुझे उनकी ओर करें और देखें कि शीतल लहरियाँ महसूस हो रही हैं या नहीं?' पुनः अबोध बच्चे की तरह मैं कहती, मुझे कुछ महसूस नहीं हो रहा। "राओल बाई. आप धुलिया से हैं और मैं चाहती हैं देख पाए ।' " (राओल बाई) ता कि कल आप मेरे घर आएं। आपमें से जिन-जिन मेरा नाम सुनकर वे अत्यन्त प्रसन्न हुई- लोगों ने चैतन्य लहरियों महसूस की हैं उन्हें चाहिए कि सुबह-शाम ध्यान करें ताकि गहनता में जा अप्रैल 1972 में बम्बई में जीवन ज्योत सकें और चैतन्य लहरियाँ महसूस कर सकें " अपार्टमेन्ट में मुझे मेरा आत्म-साक्षात्कार प्राप्त हुआ। ये अपार्टमेन्ट भारतीय जहाजरानी निगम के 1. मैं अपनी बेटी के साथ एक कमरे के घर थे और श्रीमन सी. पी. श्रीवास्तव क्योंकि उन दिनों में रहा करती थी प्रातः चार बजे स्वतः मेरी नींद जहाजरानी निगम के अध्यक्ष थे, श्रीमाताजी अमेरिका खुल गई, श्रीमाताजी मेरे सम्मुख उसी मुद्रा में बैठी जाने से पूर्व वर्ष 1972 में प्रतिदिन लोगों को अपने हुई थी जिसमें वे बो्डी में आत्म-साक्षात्कार दे रहीं घर पर मिला करती थीं। थीं। यहां पर उन्हें अपने सम्मुख पाकर मैं आश्चर्य चकित रह गई | ध्यान-धारणा का अपना पहला अनुभव वर्णन करूंगा। मुझे कहा गया कि आँखें बन्द अगले दिन जब मैं श्रीमाताजी से मिली तो देर शान्ति से बैठूं। परन्तु मुझे लगा करके कुछ उन्होंने मुझसे पूछा, "क्या मुझ पर चित्त रखने के जैसे मैंने दो घण्टे तक आँखे बन्द रखी हों। जो भी बाद भी तुम्हें विचार आते हैं।" हो, तब उन्होंने कहा कि मैं पार हो गया हूँ और तब हमें श्रीमाताजी के पास जाने की आज्ञा मिली। माताजी ने मुझे बताया कि मुझे निर्विचार सफेद साड़ी पहने टॉँगे आगे की ओर किए वे बैठी अवस्था प्राप्त हो गई है, "आज सुबह तुमने क्या हुई थीं। "आप जाकर अपना सिर उनके चरणों पर देखा?" श्रीमाताजी के चरण एक गद्दी रख सकते हैं हुए थे - या आप उनके हाथों की ओर जा पर रखे "माताजी, मैंने आपको ध्यान मुद्रा में देखा ।" सकते हैं।" जब मेरी बारी आई तो मैं उनके हाथों "जिन लोगों को कल मैंने आत्म-साक्षात्कार दिया के समीप था उन्होंने मेरे सिर में थोड़ा सा आँवला 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-38.txt अक : 7 & 8 - 2005. चैतन्य लहरी 3ा7 का नहीं है। आप शाम को छ: या सात बजे तेल डाला और मुझसे पूछा कि मुझे कैसा लगा रहा है? मैंने कहा, बहुत अच्छा।" उन्होंने मेरा नाम पूछा आइए।" और मेरा नाम सुनकर वे अत्यन्त प्रसन्न हुई। तो उसी दिन शाम को हम पुनः भारतीय ये मेरी उनसे प्रथम भेंट थी। विद्या भवन गए। श्रीमाताजी बहुत थोड़े से लोगों अवधूत पाई साक्षात्कार दे रही थी। हम को, दस या पन्द्रह दोनों भी वहाँ बैठ गए। यह सहजयोग के आरम्भिक उनकी जिज्ञासा ने हमारा मार्गदर्शन किया दिनों की बात है। उन दिनों आत्म-साक्षात्कार देने 12 अगस्त 1973 को मुझे आत्म साक्षात्कार और कुण्डलिनी उठाने के लिए माताजी स्वयं कार्य प्राप्त हुआ। इस आत्मसाक्षात्कार का श्रेय मेरे बड़े करती थीं। मेरे आश्चर्य की सीमा न रही जब भाई मारुति को जाता है जिन्हें वर्षों तक आत्म- उन्होंने मेरे सिर के तालू पर हाथ रखा तो एक तेज साक्षात्कार पाने की तीव्र इच्छा थी। परमात्मा के रोशनी हुई। उस समय तो मुझे पता न था कि ये लिए उनकी इस जिज्ञासा ने हमें श्रीमाताजी से आज्ञा चक्र है। यहाँ पर मुझे क्रूसारोपित ईसा मसीह दिखाई दिए। ऐसा केवल पाँच या छः मिलवाया। -रोशनी का एक तेज झटका। सैकण्ड के लिए हुआ दिन हमने श्रीमाताजी 12 अगस्त के शुभ मुझे आश्चर्य हुआ कि मैं तो इसाई मत से घृणा और सहजयोग के विषय में मराठी समाचार पत्र में करने वाली कट्टर हिन्दु थी। क्या मुझे क्रूसारोपित ईसा-मसीह के दर्शन इस प्रकार होने चाहिए! छपा एक लेख पढ़ा और हम समाचार पत्र के संपादक से मिलने उसके दफ्तर जा पहुँचे। जब परन्तु उस समय मैं कुछ न बोली। मैं इसका हम उससे मिले तो उसने बताया कि उसके साथ आनन्द लेने लगी। मैंने अपनी आँखें बन्द कर लीं क्या घटित हुआ था। उसने कहा कि आज ही हम और माताजी ने कहा, "पहली ही बैठक में तुम्हं भारतीय विद्या भवन चले जाएं। समाचार पत्र के आत्म साक्षात्कार मिल गया है।" दफ्तर से निकलकर लगभग तीन बजे हम भारतीय निरंजन माविनकुर्व विद्या भवन पहुँचे परन्तु हमें हैरानी हुई कि सहजयोग के विषय में बताने के लिए वहाँ कोई भी न था। शनैः शनैः ये स्थापित हुआ सभागार से बाहर आकर हमने संपादक के दफ्तर वर्ष 1970 में नारगोल में श्रीमाताजी ने में फोन करके पूछा कि माताजी हमें कहाँ मिलेंगी? सहस्रार खोला। मैं उन ग्यारह आरम्भिक शिष्यों में उसने उत्तर दिाय, "ओह! ये समय उनके मिलने 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-39.txt चैतन्य लहरी अंक : 7 & 8 - 2005 38 से नहीं हूँं जिनमें से अब केवल एक या दो ही बुलाकर चैतन्य आत्मसात करने, अपने चरण कमलों की मालिश करके चैतन्य लहरियाँ लेने के लिए जीवित हैं। मैं दूसरी टोली से हैँं जो 1973 में कहती थीं वे कहा करतीं, "ये (चैतन्य) बहुत आई । ज्यादा हैं मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर सकती, इसका उन दिनों रोज़ कार्यक्रम हुआ करते थे। कारण ये है कि आप लोग इस चैतन्य को आत्मसात हर रोज़ शाम को हम भारतीय विद्या भवन मिला नहीं करते।" पूजा के पश्चात चैतन्य को वापिस अपने अन्दर समेटना उनके लिए बहुत कष्टकर करते और इस प्रकार धीरे धीरे सहजयोग फैला। होता था। शैलजा ग्लोवर तत्पश्चात् पुणे में श्री राजवाड़े के घर पर श्रीमाताजी ने बुहत से लोगों को आशीर्वाद दिया। उन्होंने हमें बहुत से कार्य करने सिखाए :- श्री राजवाड़े कट्टर ब्राह्मण थे वे इन सब चीजों के विरुद्ध थे और स्वयं उन्होंने सहज में आने से नवरात्रि के दिनों में एक विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम हुआ करता और हम श्रीमाताजी की इन्कार कर दिया। परन्तु अपने घर पर एक प्रवचन इमारत की खुली छत पर पहुँच जाया करते। माँ 1 की आज्ञा उन्होंने दे दी । वे अपने कमरे में बैठी हुई वहाँ आती और हमें प्रवचन देतीं और उसके बाद थी। प्रवचन चल रहा था। आधे घण्टे के बाद वे प्रशिक्षण। हम वहाँ पर प्रातः चार बजे पहुँचते और थर-थर काँपते हुए आए और कहने लगे "मैंने साढ़े छः बजे तक रहते लगभग चौबीस पच्चीस कल्पना भी न की थी कि आप देवी हैं! 1973 में लोग वहाँ सात बजे आते और चाय-नाश्ता लेते उन्हें आत्म-साक्षात्कार प्राप्त हुआ। इसके बाद वे और फिर वहाँ से लौट जाते। उस समय तक सहजयोग के शक्तिशाली अंग बन गए और पुणे में सहजयोग फैलाया। पुणे क्योंकि ब्राह्मणों और किसी को भी उनके प्रवचन रिकार्ड करने की आज्ञा न थी। वो कहतीं, "नहीं तुम इसे सुनकर आत्म-सात करो, टेपरिकार्डर का कोई लाभ नहीं " बुद्धिजीवियों से भरा हुआ है। उन्होंने आरम्भ में पूरी ताकत से सहजयोग का विरोध किया परन्तु शनैः शनैः वहाँ पर सहजयोग स्थापित हो गया। उन दिनों श्रीमाताजी हमे आत्म-साक्षात्कार निरंजन माविनकुर्वे दिया करती थीं। हम अपना पैर साधकों के से छुआ कर आत्म साक्षात्कार देना आरम्भ मूलाधार आप चैतन्य लहरियाँ नहीं ले सकते : करते ताकि कुण्डलिनी उठे और ऊपर को जाए। के बहुत से लोगों को हम आत्म-साक्षात्कार दिया सहजयोग के आरम्भिक दिनों में पूजा पश्चात जब श्रीमाताजी लेट जातीं कुछ लोगों को 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-40.txt अंक : 7 & 8 - 2005 चैतन्य लहरी 39 करते थे। मैं पन्द्रह -बीस से अधिक लोगों को करता था। लोग इसकी आलोंचना करने लगे। तब श्रीमाताजी ने आदेश दिया कि जनसाधारण के आत्म-साक्षात्कार नहीं दे पाया क्योंकि तब सम्मुख बन्धन न लें। केवल सहज सभाओं, कार्यक्रमों आदि में ही बन्धन लें। रेलगाड़ियों में चलते हुए भी आत्मसाक्षात्कार देने के तरीके इतने अधिक विकसित नहीं थे माताजी स्वयं गहन शोध में लगी हुई थीं। सहजी बन्धन लेते और अन्य लोग सोचते कि "ये आज तो हम कह सकते हैं कि पलभर में या इंटरनेट की गति से सहजयोग फैल रहा है परन्तु पागल लोग हैं जो ऐसा कर रहे हैं। हो सकता है आरम्भिक दिनों में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने में कि ये कोई जादू-टोना कर रहे हो।" बहुत समय लगा करता था। तब श्रीमाताजी को पानी पैर क्रिया तथा अन्य उपचार स्वयं बाहर जाकर आत्म-साक्षात्कार देना पड़ता था उन्होंने हमें बहुत से कार्य करने सिखाए, जैसे विधियाँ बाद में आई। वास्तव में हम श्रीमाताजी के बाएं दाएं का संतुलन करना और कुण्डलिनी उठाना। साथ समुद्र पर जाया करते और वहाँ पानी पैर क्रिया करते। इस प्रकार से गणपति पुले आया बन्धन डालने की क्रिया कुछ बाद में क्योंकि वहाँ पर अत्यन्त स्वच्छ समुद्र है। इससे पूर्व हम बोर्डी जाया करते थे। बोर्डी हम बहुत बार गए। आरम्भ हुई। उस समय तक कोई बन्धन नहीं होता नारगोल यहाँ से बहुत समीप है जब हम बोर्डी में था। तब तक बहुत सी बाधाएं सामने आती थीं। थे तो वहाँ भी समुद्र था । परन्तु सभी लोग तो समुद्र तब उन्हें एहसास हुआ कि बन्धन देना अच्छा ह के समीप नहीं रहते, तो इसका एकमात्र विकल्प होगा। इस प्रकार से यह शनैःशनैः विकसित हुआ घर पर पानी पैर क्रिया करना था। और अब यह एक पूर्ण प्रणाली बन चुका है तथा लोगों को कुछ अधिक नहीं करना पड़ता, केवल फोटोग्राफ के सम्मुख बैठकर ही लोगों को आत्म- तत्पश्चात् जूता क्रिया आई। श्रीमाताजी ने ये क्रिया हमें बताई। बम्बई में अब लोग ये क्रिया साक्षात्कार प्राप्त हो जाता है। बहुत अधिक नहीं करते। होता क्या है कि जब भी आरम्भिक दिनों में हम उस प्रकार से श्रीमाताजी किसी चीज के विषय में बताती हैं तो लोग उसे बहुत अधिक करने लगते हैं। अतः बाद कुण्डलिनी नहीं उठाया करते थे जैसे अब उठाते हैं। श्रीमाताजी बल देकर कहा करती थी कि में श्रीमाताजी ने बम्बई के लोगों को कहा कि "आप लोग ध्यान (Meditation) की ओर अधिक चित्त दें. बन्धन देने पर बहुत अधिक जोर नहीं दिया जाना जूता क्रिया तो बाह्य विधि है। अतः ध्यान की ओर अधिक चित्त दें । चाहिए। हुआ ऐसा कि हर व्यक्ति बन्धन के महत्त्व तथा अर्थ का एहसास किए बिना बन्धन ले लिया निरंजन माविनकर्व 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-41.txt अंक : 7 & 8 - 2005 चैतन्य लहरी 40 यह निर्मला विद्या है :- जैसे मूलाधार चक्र कैसा दिखाई देता है इसके गुण क्या हैं आदि आदि। प्रति रात्रि मैं आठ घण्टे श्रीमाताजी वर्णन किया करती थी कि हमें सामूहिकता में किस प्रकार रहना है और सहजयोगियों ध्यान किया करती थी मैंने आप सब लोगों के लिए के रूप में किस प्रकार आचरण करना है ध्यान- धारणा को उन्होंने हमेशा महत्व दिया और आज कठोर परिश्रम किया है अब आपको परिश्रम भी दे रही हैं। उन्होंने हम सब लोगों को ध्यान करना है और प्रातः काल ध्यान-धारणा करनी है। करने के लिए तथा एक-एक करके सभी चक्रों मैं सभी चक्रों पर आठ-आठ घण्टे कार्य करती पर चित्त डालने की आदत डाली। ये मूलाधार है थी। अब मेरा आप लोगों से अनुरोध है कि आठ दिनों तक हर चक्र पर एक घण्टा प्रतिदिन ध्यान और इसके बाद आप ऊपर की ओर चलें। ये निर्मल विद्या है, इसके विषय में न तो किसी ने मुझे करें और फिर आगे बढ़े जैसे हर सुबह आठ दिनों कुछ सिखाया है और न ही इसके विषय में मैंने कोई पुस्तक पढ़ी है", वो कहा करती थी मैंने सभी तक मूलाधार चक्र पर एक घण्टा रोज ध्यान करें फिर स्वाधिष्ठान चक्र पर आएं और फिर आगे बढ़ें। चक्रों पर ध्यान कियाऔर इनके रहस्यों को खोजा तब आप लोग इन सभी चक्रों के रहस्यों और शक्ति के बारे में सीख पाएँगे। राओल बाई (क्रमश) ८