चैतन्य लहरी छी शे ा सितम्बर-अक्तबर 2005 न चै त न्य लहरी (SHWA NIRMALA. IVERSAL PURE RELIGIC इस अंक में परम पूज्य श्री माताजी का एक पत्र 30.10.1976 महाकाली पूजा लोनावाला लन्दन 19.12.1982 श्रीमाताजी की आस्ट्रेलिया यात्रा 10 1983 जन कार्यक्रम, नई दिल्ली 15 -10.2.1981 सहजयोग से रोग-मुक्ति 35 सहजयोग का अलिखित इतिहास 39 DHARMA ৮AHS1 ल चै त नय ल ह री प्रकाशक निर्मल इन्फोसिस्टम्ज़ एवं टैक्नोलोजीज प्रा. लि. प्लाट नं. 8. चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड, कोठरुड़ पुणे 411 029 मुद्रक कृष्णा प्रिन्टर्ज एण्ड डिजाइनर्ज त्रीनगर, दिल्ली-110035 मोबाइल : 9868545679 आप अपने सुझाव, सदस्यता एवं जानकारी के लिए निम्न पते पर लिखें : श्री जी.एल. अग्रवाल निर्मल इन्फोसिस्टम्ज एवं टैक्नोलोजीज प्रा. लि. 222, देशबन्धु अपार्टमैंट, कालकाजी, नई दिल्ली-110 019 फोन : 26216654, 26422054 अपने अनुभव सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ.पी. चान्दना जी-11-(463). ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली-110 034 फोन , 55356811 परम पूज्य श्री माताजी का एक पत्र (30.10.1976) परन्तु शीशे को साफ रखना होगा? किस प्रकार मैं इसकी व्याख्या करू? श्री की तरह से क्या मुझे भी कहना पड़ेगा कि 'सर्व धर्माणाम परितज्य मामेकम शरणं व्रज अर्थात सभी अन्य धर्मों को छोड़कर केवल मेरी शरण में आ जाओ, या जैसे ईसा-मसीह ने कहा था "मै ही मार्ग हूँ, मैं ही प्रवेश द्वारा हूँ (I am the Path, I am the न कृष्ण ै/ ० Gate)" I मैं आपको बताना चाहती हूँ कि मैं ही अन्तिम लक्ष्य हैूँ परन्तु क्या आप लोग इस बात को स्वीकार करेंगे? क्या ये सत्य आपके हृदय में उतरेगा? यद्यपि मेरी कही हुई हर बात को तोड़ मरोड़ दिया जाता है फिर भी सत्य तो सदैव अटल रहेगा। आप इसे परवर्तित नहीं कर सकते सत्य के ज्ञान के बिना आप हमेशा अंधकार में रहेंगे, पिछड़े रहेंगे। इस बात का मुझे खेद है । |र प्रिय सहजयोगियों, मेरे प्रिय बच्चो, दीवाली सच्ची आकांक्षाओं का दिन होता दीवाली का ये पर्व आपको प्रेम-प्रकाश से है। परे ब्रह्माण्ड का आहु्वान करें बहुत से दीपक प्रज्जवलित करेगा आप स्वयं वो दीपक है जिनका जलाने होंगे और उनकी देखभाल करनी होगी। प्रकाश बहुत ऊँचाईयों तक जाता है, कोई आवरण इसे दवा नहीं सकता। दीपक आव ण से कहीं अधिक शक्तिशाली बन जाता है। यह उनकी अपनी संपदा है। जब उन्हें चोट पहुँंचती है तो वे परेशान होकर वुझ जाते हैं। प्रेम का तेल डालें, कुण्डलिनी वाती है। अपने अन्दर के आत्म प्रकाश से अन्य लोगो की कुडलिनी को जागृत करो कुण्डलिनी की लौ जल उठेगी. आपसे एक रूप हो कर मशाल वन जाएगी मशाल जलती रहेगी तो मेरे प्रेम का वेदाग कदच बना रहेगा। इसकी न तो काई सीमा होगी न तो कोई अन्त होगा। मैं आपको देखती रहूगी। हमारे दीपक डावांडोल वषं ह? आपको चाहिए कि इस वि्य पर सोचे कि क्या उनके चहेँ ओर कोई पारदर्शी कवच नहीं है? कहीं आप अपनी माँ के प्रेम को तो नहीं रए हैं তি सके कारण नेरा प्रेम आप पर अनन्त आशी र्वादा की वर्षा कर रहा है। भूल आप डावाडोल हैं जिस प्रकार शीश दीपक की रक्षा करता है वैरे ही मेरा प्रेम अपकी क्षा करेगा । हशा आपकी प्रेमसपी माँ निर्मला (निर्मला योगा 1983) अनुवादित। महाकाली पूजा लोनावाला 19 दिसंबर 1982 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन पवा सहजयोगी को कभी भी अपनी इच्छा किसी अन्य पर लादने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। याग के इस महान देश में आप सभी सहजयोगियों का स्वागत है। आज सर्वप्रथम हमने अपनी इच्छा को अपने अन्दर स्थापित करना है कि हम साधक हैं और हमने पूर्ण उत्क्रान्ति एवं परिपक्वता प्राप्त करनी है। आज की पूजा पूरे ब्रह्माण्ड के लिए है। इस इच्छा से पूरे ब्रह्माण्ड को ज्योतिर्मय किया जाना चाहिए। आपकी इच्छा इतनी गहन होनी चाहिए कि इससे महाकाली शक्ति की पावन चैतन्य लहरियाँ प्रसारित हों। महाकाली शक्ति आत्मा प्राप्ति की पावनतम इच्छा है। यही सच्ची इच्छा है बाकी सब इच्छाएं मृगतृष्णा सम है। आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् पहली बाधा जिसका सामना आपको करना पड़ता है वह यह है कि आप अपने परिवार वालों के विषय में सोचने लगते है आप सोचने लगते हैं. मेरी माँ को आत्म-साक्षात्कार नहीं मिला, मेरे पिताजी को आत्म साक्षात्कार नहीं मिला, मेरी पत्नी को आत्म- साक्षात्कार नहीं मिला, मेरे बच्चों को आत्म- साक्षात्कार नहीं मिला। आपको यह समझ लेना आवश्यक है कि ये सभी सम्बन्ध सांसारिक है, लौकिक हैं, ये आलौकिक नहीं हैं, ये सांसारिकता से ऊपर नहीं हैं, ये सभी सम्बन्ध सांसारिक हैं, ये सारे मोह भी सांसारिक हैं। यदि आप इस शक्ति के साथ खिलवाड़ करते हैं तो महामाया शक्ति आपको खिलवाड़ करने देती है तथा आप जब तक चाहें खिलवाड़ किए चले जाते हैं। लोग अपने सम्बन्धियों को माता-पिता को मेरे पास आप ही वो लोग हैं जिन्हें परमात्मा इच्छा की अभिव्यक्ति के लिए और पावनता की ने इस इस गहन इच्छा को प्राप्त करने के लिए विशेष रूप से है। आपने पूरे विश्व को पावन करना है चुना केवल साधकों को ही नहीं उन लोगों को भी जो साधक नहीं है जिज्ञासु नहीं है अन्तिम लक्ष्य । आत्मा को प्राप्त करने की शुद्ध इच्छा का पावन परिमल (Aura) आपने पूरे ब्रह्माण्ड के चहुँ और लाते हैं परन्तु अन्ततः उन्हें पता चलता है कि खींचना है। ऐसा करके उन्होंने बहुत गलत काम किया है। उन लोगों पर, जो श्रीमाताजी के चित्त देने के योग्य भी नहीं थे उन्होंने अपने बहुमूल्य क्षण, इच्छा के विना इस ब्रह्माण्ड का राजन न हो पाता। परमा मा की इच्ा ही आदिशक्ति (Holy | यह सर्वच्यापी शक्ति है, हमारे अन्दर कुण्डलिगी की केवल एक इ्छा बहुमूल्य घण्टे, वर्ष एवं शक्ति बर्ाद की है। जितनी जल्दी आपको इस बात का एहसास होगा उत्त ही बेहतर है । हो सकता है कि आपमें यह Ghost) ये कडलिनी है। है - ये है आ मा बनना कोई और इत्छा यदि शुद्ध च्छा हो और आपके सांसारिक सम्बंधियों में आप करेंगे तो कुण्डलिनी नहीं उटेगी। जय इसे न हो, गरन्तु कोई फर्क नहीं पड़ता । बैठे व्यक्ति के पता चलता है कि साक के रा म यम से पह इ पूर्ण होने वाली है केल तभी यह जागृत होती है आपमें यदि शुद्ध इ छा नहीं है तो कोई भी आपकी कुण्डलिनी नहीं उठा सकता। म्मुख जब ईंसा मसीह को बताया गया कि उनके भाई बहन बाहर खड़े हैं, तो उन्होंने कहा, "कौन मेरे भाई हैं और कौन मेरी बहने? अतः चैतन्य लहरी &10-2005 अंक : 9 उत्क्रान्ति की इच्छा है भी या नहीं। उनमें यदि उत्क्रान्ति प्राप्त करने की इच्छा है तो उन्हें आपके व्यक्ति को समझ लेना चाहिए कि जो लोग स्वयं को अपने परिवार की समस्याओं में उलझा कर मेरा ध्यान आकर्षित करते हैं, उन्हें समझ लेना सम्बन्धी होने के कारण अयोग्य नहीं माना जाना चाहिए कि मैं खिलवाड़ करती रहती हैँ । ये सभी चाहिए। सहजयोग में आपको अपनी इच्छा शुद्ध चीजें आपके लिए मूल्यहीन हैं। उत्क्रान्ति प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि आपमें कोई इच्छा न हो। सगे-सम्बन्धियों में कोई मोह न हो। महाकाली शक्ति को स्थापित करने का यह पहला सिद्धान्त उन्हें इस बात का ध्यान रखना होगा कि अपने है। भारत में ये समस्या विशेष रूप से है क्योंकि किसी भी सम्बन्धी पर वे सहजयोग थोपें नहीं। कम वहाँ लोगों का अपने परिवारों से बहुत मोह है। आप किसी एक व्यक्ति को आत्म साक्षात्कार दें तो थोपे। आपको ये देखकर आश्चर्य होता है कि उसके सभी सगे सम्बन्धी भूतों का बहुत बड़ा समूह है। इच्छा बनानी होगी बहुत सी चीजों से आपको बाहर निकलना होगा। परन्तु जो लोग अपने परिवार हैं के मोह में फँसे हुए हैं, उनके बन्धन में बँधे हुए से कम अपने इन सम्बन्धियों को मुझ पर तो न अब हमारे अन्दर यह इच्छा जो कि महाकाली शक्ति है जो अभिव्यक्त हो रही है, यह भिन्न प्रकार से हमारे अन्दर आती है जैसा मैंने आपको बताया एक व्यक्ति को आत्म-साक्षात्कार देकर ही आप कष्ट में फंस जाते हैं. सभी भूत (परिवार के) धीरे- धीरे मेरे पास आते चले जाते हैं, मेरे जीवन को कष्टकर बनाने के लिए और मेरी शक्ति को नष्ट करने के लिए। और वे बिल्कुल किसी काम के नहीं होते ये बात आपकी समझ में आ जानी चाहिए कि ऐसा करना बिल्कुल भी शुभ नहीं होता। आत्म-साक्षात्कार के पश्चात् सहजयोगियों में अपने सम्बन्धियों के लिए कुछ करने की इच्छा के रूप में यह आती है। दूसरी इच्छा जो हमारे अन्दर जागृत होती है वह सम्बन्धियों के रोगों को दूर करने की होती है। ये दूसरी इच्छा है। आप खुद महसूस करके देखें कि आप बहुत से लोगों के साथ भी ऐसा हुआ तो कोढ़ से लेकर सर्दी जुकाम तक कोई भी रोग हो आप सोचते हैं कि अपने सम्बन्धियों को माँ के पास ले जाए। परिवार की सभी चिंताएं भी आप मेरे पास लाना चाहते हैं। गर्भ या छीकों जैसी साधारण चीजों के लिए भी आपको इन चीजों को आप जब अपने चित्त आप यदि अपना समय बर्बाद करना चाहते हैं तो मैं आपको ऐसा करने की इजाज़त दूगी परन्तु यदि आप तेजी से उत्क्रान्ति प्राप्त करना चाहते हैं तो ये बात याद रखनी होगी कि ये सारे सम्बन्ध मात्र सांसारिक सम्बन्ध हैं, ये आपकी शुद्ध इच्छा नहीं है। ०. कहा जाता है। में रख लेते हैं तो मैं कहती हैं, "प्रयत्न करके देख लो, सम्भव हो तो इनका समाधान खोज लो। आप जब अपना चित्त इन चीजों से हटा लेते हैं तब मेरा अंतः अपनी शुद्ध इच्छा को सांसारिक इच्छाओं से पृथक करने का प्रयत्न करें। परन्तु इसका अभिप्राय ये भी बिल्कुल नहीं है कि आप अपने परिवार को त्याग दें अपनी माँ को त्याग दें अपनी बहन को छोड़ दें। कुछ भी नहीं, साक्षी रूप से उन्हें देखें, वैसे ही जैसे किसी अन्य व्यक्ति को देखते हैं। इस बात का अन्दाजा लगाएं कि उनमें चित्त इन पर जाता है। ये सब चीजें आप मेरे चित्त में छोड़ दें। मैं इनका प्रबन्ध करूंगी। परन्तु यह तो दुर्दम्य वृत (Vicious Circle) है. सोचों से भरे मस्तिष्क का सूक्ष्म प्रक्षेपण है। "ठीक है, माँ ये म अंक 9& ।0-2005 चैतन्य लहरी जब जब भी आपमें कोई इच्छा जागृत हो आप उससे ऊपर उठे और जब तक आपके सम्मुख खड़ी "भयानक समस्या, जिसका समाधान आप चीज अब हमारे चित्त में नहीं है आप कृपया इसे देखें। परन्तु ये तरीका नहीं हैं। हमारे अन्दर केवल एक ही गहन इच्छा होनी चाहिए कि क्या मुझसे चाहते है, उस पर आपका प्रकाश पड़ने नही मैं आत्मा बन गया हूँ। क्या मैंने अपना अन्तिम लगता, उससे ऊपर ही बने रहे। ये सारी मेरी सिरदर्दियाँ हैं जिन्हें आप अपने पर ओढ़ रहे है । लक्ष्य पा लिया है? क्या मैं सांसारिक इच्छाओं से ऊपर उठ गया हूँ? स्वयं को स्वच्छ करें जब आप स्वयं को स्वच्छ करने लगेंगे तो जो सांसारिक इच्छाएं आप निकाल फेकेंगे मैं उनकी देखभाल करुंगी। ये मेरा आश्वासन है वचनबदढ्धता नहीं है। यदि ये समस्या मेरे चित्त के काबिल हुई तो अवश्य मैं इसे देखूंगी। जिस प्रकार मैं अपने चित्त का सम्मान करती हैँ आपने भी अपने चित्त को उतना ही महत्व देना है। मेरे विचार में आपने अपने चित्त को उससे भी कहीं अधिक महत्त्व देना है जितना मैं देती हूँ क्योंकि मैं अपने अन्दर सारी चीजों का मेरे चित्त आपको केवल एक कार्य जो करना है चह है आत्मा बनना। बस इतना ही ये बहुत साधारण बात है, बाकी सब मेरी सिरदर्दी हैं। आपको अपनी इच्छा सामूहिकता पर ले जानी है ये बिल्कुल भिन्न समस्या है। अपनी पावनता को सिद्ध करने के लिए, अपनी पावनता से सुगन्धित होने के लिए आपका चित्त दूसरी ओर होना चाहिए। अब आप मेरा सामना नहीं कर रहे, प्रबन्धन कर सकती हैँ क्योंकि सभी में है । मेरे साथ पूरे विश्व का सामना कर रहे हैं। इस कुछ प्रकार से पूरा दृष्टिकोण ही परिवर्तित हो जाएगा। दृष्टिकोण ये होना चाहिए. मैं क्या दे सकता हूँ? परन्तु आप अपनी इच्छाओं को आपके मैं किस प्रकार दे सकता हूँ? देने में मेरी क्या सामने मुँह बाए खड़ी सांसारिक समस्याओं से मुक्त करने का प्रयन्त करें। इच्छाएं जब विस्तृत चित्त कहाँ है? अपने बारे में मुझे अधिक होती हैं तब आप सोचने लगते हैं, "माँ हमारे देश की समस्याओं का क्या होगा?" ठीक है, अपने देश का मानचित्र मुझे दे दीजिए। समाप्त, इतना कर लेना काफी है। तो स्वयं को स्वच्छ करें, अपनी अर्थात आपको आत्मा होना चाहिए। अपने प्रति इच्छाओं को त्यागें। एक बार जब आप स्वच्छ हो जाएंगे तो वह क्षेत्र आपके चित्त की सीमा में आ गलती है? मुझे अधिक सावधान रहना होगा, मेरा सावधान होना होगा, मैं क्या कर रहा हूँ? मेरी जिम्मेदारी क्या है? आपकी इच्छा होनी चाहिए कि आप पवित्र बने । आपको शुद्ध इच्छा होनी चाहिए आपकी क्या जिम्मेदारी है? आपको इच्छा करनी चाहिए कि अपने प्रति आपकी जिम्मेदारी की अभिव्यक्ति हो, वह पूर्ण होनी चाहिए। जाएगा। यह बहुत दिलचस्प बात है। इस पर जब आप काबू पा लेते हैं केवल तभी आप इस पर प्रकाश डाल सकते हैं। लेकिन जब तक आप इसमें फंसे रहते हैं तो आपका प्रकाश भी छिपा रहता है। इसके बाद सहजयोग के प्रति आपकी जिम्मेदारी आती है। सहजयोग के प्रति आपकी क्या जिम्मेदारी है? सहजयोग जो परमात्मा का कार्य है जो आरम्भ हों चुका है। आप ही मेरे बाजू हैं। आप ही ने परमात्मा का कार्य करना है और प्रकाश प्रसारित नहीं हो पाता। आपको इस इच्छा से ऊपर उठना होगा। अक : 9 & 10 -2005 चैतन्य लहरी 7 होना आपके लिए कठिन कार्य नहीं है। चित्त को आसुरी तत्वों आप ही ने परमात्मा विरोधी तत्वों - पावन रखना होगा। सहजयोग में आप सारी विधियाँ जानते हैं कि चित्त को किस प्रकार पवित्र से लड़ना है। अब आपका परिवार आपकी जिम्मेदारी नहीं है । जो लोग परिवार की जिम्मेदारियों में फँसे हुए हैं वे आधे-अधूरे सहजयोगी हैं - मैंने बताया कि वे बेकार लोग हैं, विल्कुल किसी काम के नहीं। ऐसे सभी लोगों को सहजयोग छोड़ देगा। उनके परिवार कष्ट उठाएंगे और मैं जानती हूँ ऐसा घटित होने वाला है क्योंकि शक्तियों अब इस प्रकार से एकत्र हो रही हैं कि छँटनी शुरु हो जाएगी। आपकी अपने प्रति जिम्मेदारी है कि आप आत्मा बने, आपकी सहजयोग के प्रति जिम्मेदारी है, आपकी जिम्मेदारी है कि आप मुझे बेहतर और बेहतर, और बेहतर रूप से समझें। आपकी जिम्मेदारी है कि आप इस सारी तकनीक को समझे जो आपके अन्तःस्थित है, ये समझना आपकी जिम्मेदारी है कि ये तकनीक किस प्रकार कार्यान्वित करती है और व्यवहार करती है। ये आपकी जिम्मेदारी है कि आप स्वयं गुरु किस प्रकार बनेंगे। सम्माननीय एवं गरिमामय व्यक्तित्व बनना आपकी जिम्मेदारी है। सम्माननीय व्यक्तित्व बनना, घटिया व्यक्तित्व का नहीं । आपमें से हर एक पूरे ब्रह्माण्ड के बराबर मूल्यवान है। बशर्ते कि आप उस बुलन्दी तक उठना चाहें। आप यदि उन ऊँचाइयों तक उठना चाहेंगे, अपने अन्तः स्थित विस्तार को यदि विकसित रखा जा सकता है। चित्त यदि पावन नहीं है तो इस इच्छा पर तुच्छ मूर्खतापूर्ण चीजों का आक्रमण होता रहेगा, उन चीजों का जो उत्क्रान्ति प्राप्ति के लिए अर्थहीन हैं। अच्छे सहजयोगी को वस्त्रों की चिन्ता नहीं होती, उसे ये चिन्ता नहीं होती कि लोग उसे क्या कहते हैं, उसके बारे में क्या बातें करते हैं, किस प्रकार उससे व्यवहार करते हैं। उसका चित्त आलोचना पर नहीं होता कि फलाँ व्यक्ति ऐसा है और फलाँ ऐसा, और न ही वह किसी अन्य के प्रति आक्रामक होता है क्योंकि अन्य तो कोई है ही नहीं। समस्या तो ये है कि मैं जब कोई बात करती हैँ तो हर आदमी सोचता है कि मैं उसके बारे में नहीं कह रही। आक्रामक लोग भूमिका ले लेते हैं और आलसी प्रकृति दूसरी प्रकार से सोचते हैं। जैसे मैं यदि किसी आक्रामक व्यक्ति के बारे में कुछ कहूँ तो जो व्यक्ति आक्रामक नहीं है वह तुरन्त आक्रामक व्यक्ति के बारे में सोचने लगता है, अपने बारे में नहीं सोचता । एकदम से आप अपने मस्तिष्क अन्य लोगों पर ले जाते हैं और दूसरों के दोष खोजते हैं। इच्छा पर वजन पड़ने के कारण व्यक्ति की इच्छा शनैः शनैः निम्न, निम्न और निम्न होती चली जाती है। अतः सावधानी अत्यन्त आवश्यक है, पूर्ण सावधानी, सतर्कता कि हमें अपना चित्त केवल अपनी शुद्ध इच्छा को बनाए रखने के लिए ही लगाए रखना चाहिए। करना चाहेंगे तो ब्रह्माण्डों के ब्रह्माण्ड आपके चरणों में न्योछावर किए जा सकते हैं । इच्छा का उदभव हृदय से होता है और आपकी रचना भी ऐसी की गई है कि आपका ब्रह्मरन्ध्र भी जो लोग अब भी अत्यन्त निम्न-स्तर पर बने रहना चाहते हैं वो उन्नत नहीं हो सकते। उदाहरण के रूप में पाश्चात्य सहजयोगियों के साथ एक विशेष समस्या है कि वे अपनी माँ के प्रति पाप करते हैं और पूर्वी सहजयोगियों में पिता के प्रति पाप करने की समस्या है। इनसे मुक्त हृदय ही है। आपका हृदय यदि स्वच्छ नहीं है तो ब्रह्मरन्ध्र भी स्वच्छ नहीं होगा। जो लोग ये सोचते हैं कि सहजयोग के बारे में बड़े-बड़े भाषण दे देना ही काफी है, परन्तु यदि उनका हृदय नहीं खुला है अक : 9 & 10 - 2005 चैतन्य लहरी को भूल जाओ, तत्पश्चात् उन्होंने 'सौन्दर्य- लहरी लिखी - इसमें केवल माँ का और उनके प्रति उनकी (आदिरशंकराचार्य) श्रद्धा का वर्णन हैं । तो वे स्वयं को धोखा दे रहे हैं। अतः हृदय को खोलने का प्रयत्न करे। मुझे आशा है आज जब आप ये पूजा सौन्दर्य-लहरी का हर श्लोक मन्त्र रूप है। यह करेंगे, महाकाली की पूजा और ये विशेष यज्ञ करेंगे बुद्धि के माध्यम से बुद्धि का समर्पण नहीं है, यह हृदय का समर्पण है पश्चिमी सहजयोगी भली-भांति जानते हैं कि किस प्रकार उन पर लगातार तो निश्चित रूप से हम इस परिमल को स्थापित करके पूरे विश्व को ज्योतिर्मय बनाएंगे। परन्तु आपका दृष्टिकोण ये होना चाहिए कि मैंने इस कार्य में कितना योगदान दिया है? क्या अब भी मैं नकारात्मकता के आक्रमण होते रहे, विशेष रूप से जब फ्रॉयड जैसे भयानक लोग उनके मूल को, अन्य लोगों के विषय में सोचता हूँ? क्या अब भी मैं जड़ों को नष्ट करने के लिए आए और किस प्रकार तुच्छ समस्याओं के विषय भें सोचता हूँ या अपनी पश्चिम ने उसे आँखें बन्द करके स्वीकार किया और स्वयं को नर्क के मार्ग पर डाल दिया! इन सभी चीज़ों को खदेडना होगा यह सब मूर्खता है, आत्मा के विषय में? अतः बाएं पक्ष का आदि और अन्ति श्री बिल्कुल गलत है और परमात्मा विरोधी गतिविधि गणेश से होता है। श्री गणेश में मूलतः एक ही गुण है। तब आपको एहसास होगा कि आपने अपने है- कि वे अपनी माँ के प्रति पूर्णतः समर्पित हैं । मूल, अपनी जड़ों को नष्ट करने वाली इस प्रवृत्ति किसी और परमात्मा को वे नहीं जानते। वो तो से युद्ध करके इसे पराजित करना है। जब हमारी अपने पिता तक को नहीं पहचानते। वो केवल माँ सभी उत्कृष्ट, श्रेष्ठ, पोषक, उन्नत करने वाली, अपनी माँ को जानते हैं और उन्हीं के प्रति पूरी मोक्षदायिनी चीजों का स्रोत हैं तो तुम तो हमें तरह से समर्पित हैं परन्तु इस शुद्ध इच्छा को हमारी जड़ों से दूर कर रहे हो। मैं सोचती हूँ कि क्रियान्वित भी करना होगा इसके विषय में मैं आपके साथ पशुओं की तरह से व्यवहार किया आपको बाद में बताऊंगी क्योंकि आगे हम बहुत सी पूजाएं करते रहेंगे। परन्तु आज, आइए, हम स्वयं को आत्मा बनने की शुद्ध इच्छा में स्थापित कर लें। गया है। वो चाहता है कि आप मनुष्यत्व के उस निम्न स्तर पर पहुँच जाएं जहाँ आप विक्षिप्त अवस्था में बने रहें या इससे भी किसी निम्न अवस्था में । अतः जो आक्रमण आप पर हुए उनके प्रति सचेत रहना अत्यन्त आवश्यक है। उनसे ततलि अब, पाश्चात्य मस्तिष्क प्रश्न करेगा कि कैसे? ये प्रश्न हमेशा उठता है कि ये कार्य कैसे किया जाए? क्या मैं आपसे बताऊं, ये कार्य बहुत सहज है ! आदिशंकराचार्य ने विवेक चूड़ामणि तथा अन्य बहुत से ग्रन्थ लिखे, फिर भी ये बड़े-बड़े बुद्धिबादी लोग उनकी जान के पीछे हाथ धोकर पड़ गए। कहने लगे "ऐसा करो, वो लिखो, ये लिखो। शकराचार्य ने सोचा कि इन सब लोगों सर्तक रहना और इस प्रकार की किसी भी चीज से एकरूप न होना। अंत में मैं ये कहूँगी कि आप लोग इस देश की जड़ों को देखने के लिए आए हैं पत्तों को नहीं। पश्चिमी शैली के अपने दृष्टिकोण को बदलें यहाँ पर टेलिफोन अच्छे नहीं है, आप कोई टेलिफोन नहीं कर सकते। डाक और रेल की स्थिति भी अक : 9 & 10 - 2005 चैतन्य लहरी से बहुत परे है। इस मामले में वे बहुत ऊँचे लोग हैं क्योंकि उन पर कोई आक्रमण नहीं हुए। परन्तु आप लोग उनसे कहीं ऊँचे हैं क्योंकि आप पर बहुत खराब है। (मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए क्योंकि हम रेल के बंगलों में रुके हुए हैं।) परन्तु यहाँ के लोग बहुत शानदार हैं वे जानते हैं कि धर्म' क्या आक्रमण होने के बावजूद भी आप इस दलदल से बाहर आ गए। आपने अपने मुख उससे मोड लिए और दूसरे छोर पर आ गए। यह बहुत महान उपलब्धि है। है। जैसे-कैसे उन पर कोई आक्रमण नहीं हो रहा क्योंकि कुण्डलिनी होने के कारण यहाँ पर श्री गणेश वैठे हुए हैं कोई भी इस महान ह. महाराष्ट्र पर आक्रमण करने का साहस किस प्रकार कर सकता है? इसकी सुरक्षा के लिए तो यहाँ आठ गणेश विद्यमान हैं। मैं नहीं जानती कि अतः आपको विश्वास होना चाहिए कि बहुत बड़ी आबादी वाले इस विशाल देश में ऐसे बहुत से लोग हैं जो आप ही की तरह से सोचते हैं । अतः आप स्वयं को अकेला न समझे। महाराष्ट्र के लोगों को भी इस सत्य का ज्ञान है या नहीं? इसके अलावा यहाँ पर बहुत से मारुति हैं। तो इस देश पर कौन आक्रमण कर सकता हैं? यहाँ पर नकारात्मकता का कोई आक्रमण नहीं है, सिवाए इसके कि ये लोग स्वयं कुछ धन लोलुप प्रवृत्ति के हैं। इन पर केवल यही अभिशाप है। इससे यदि ये छुटकारा पा सकें तो ये महान लोग हैं । इस प्रकार, आज हम महाकाली तत्व की पूजा आरम्भ करेगे। आज गौरी का, आप कह सकते हैं गणेश का दिन है । यद्यपि पांचांग के अनुसार ऐसा नहीं है परन्तु मेरे अनुसार आज अपने अन्दर सूक्ष्म-स्तर पर हमें पावन होने की, सभी बन्धनों को तोड़ने की, सभी अस्वच्छ चीजों को त्यागने की शुद्ध इच्छा को स्थापित करना है। महान सहजयोगी बनने की इच्छा को, जिम्मेदार सहजयोगी बनने की इच्छा को, माँ के प्रति समर्पित होने की इच्छा को स्थापित करना है। ये कार्य कठिन नहीं है। ये अहम् है। अन्त में जाने वाला तो आप लोग इस देश में पश्चिमी सुख सुविधाओं का आनन्द लेने के लिए नहीं आए जा आत्मा का आनन्द लेने के लिए आए हैं अतः भारत के विषय में अपना दृष्टिकोण बदलें मेरा कहने का मतलब किसी भी तरह से एयर-इण्डिया नहीं हैं। ये गलत धारणा है कि क्योंकि आप सहजयोगी हैं तो एयर-इण्डिया से ही यात्रा करें। दुर्गुण क्योंकि आप क्या समर्पण करते हैं? आप बिल्कुल नहीं । सहजयोग को एयर इण्डिया से कुछ लेना देना नहीं। हमारी रेलों का तथा अन्य सभी चीजों का सहजयोग से कुछ नहीं। तो क्या? अतः आप लोगों को चाहिए कि देशभक्त बनें और परमात्मा के लिए अपनी ही एयर लाइन का उपयोग करें जब आप यहाँ पहुँचेंगे तो देखेंगे कि यहाँ के लोग कितने अबोध हैं। वो निश्चित रूप से मैं वहाँ स्थापित हो जाऊँगी फ्रॉयड को नहीं समझ सकते। उनसे आप फ्रॉयड की बात भी नहीं कर सकते। फ्रॉयड उनकी बुद्धि मेरा प्रेम स्वीकार करें, इसके सिवाए मैं आपसे कोई आशा नहीं करती। समर्पण का अर्थ केवल यह है कि मेरा प्रेम स्वीकार करने के लिए आप अपना लेना-देना हृदय खोलें। इस अहम् को त्यागें, केवल इतना ही और ये कार्यान्वित हो जाएगा मैं स्वयं को आपके हृदय में धकेलने का प्रयत्न कर रही हैूँ। परमात्मा आपको धन्य करे। (अनुवादित) श्रीभाताजी की आस्टेलिया याजा (1983) 17 मार्च 1983 वृहस्पतिवार के दिन सिडनी के मैकेबियन हॉल में डा० वारेन रीव्ज़ ने परम पूज्य श्रीमाताजी की आस्ट्रेलिया यात्रा के दूसरे अन्तिम कार्यक्रम का परिचय दिया| जब डॉक्टर एक शानदार यात्रा का यह उपयुक्त चरमोत्कर्ष था। दो मार्च से ही पर्थ में साधकों का 1 समूह आने लगा था। समाचार पत्र, रेडियो, दूरदर्शन के लोग भी श्रीमाताजी के लिए लाखों आस्ट्रेलियाई लोगों को सम्बोधित करने का मार्ग खोल रहे थे। वारेन ने पहले दिए गए परिचयों की अपेक्षा बिल्कुल भिन्न परिचय दिया तो वहाँ आस्ट्रेलिया के एक श्रीमाताजी ने केवल चार नगरों की यात्रा अग्रणी समाचार पत्र का फ़ोटोग्राफर और पत्रकार भी मौजूद था। वक्ता ने ज्यों ही आदिशक्ति के पूर्व- अवतरणों के विषय में ईसा-मसीह की परम पावनी माँ, श्री फातिमा तथा अन्य महान अवतरणों करने का निश्चय किया था और ये सभी नगर राज्यों की राजधानियाँ थीं पर्थ और एडीलेड नामक दो छोटे शहरों में दो-दो जन कार्यक्रम हुए के विषय में बताया तो श्री माताजी के सम्मुख मेलबोर्न में तीन और सिडनी में चार। एडीलेड. उपस्थित सभी सहजयोगीं अभिभूत हो उठे। हम जहाँ पर नकारात्मकता ने सहज़योग प्रचार-प्रसार सबकी समझ में आ गया कि हम एक महत्वपर्ण के मार्ग में स्थानीय सहजयोगियों के सम्मुख बाधायें खड़ी की हुई थीं, विशेष सफलता प्राप्त हुई। पाँच मार्च शनिवार के दिन श्रीमाताजी का पहला जन कार्यक्रम हुआ जिस दिन ऐडीलेड में पहला कार्यक्रम था उस दिन देश में चुनाव भी थे। पूज्य श्रीमाताजी (Holy Ghost) श्री आदिशक्ति मीडिया का झुकाव चुनावों की ओर था क्योंकि सत्ता आध्यात्मिकता से अधिक उन्हें आकर्षित कर घटना में भाग ले रहे हैं। अपने परिचय भाषण के अन्त में डॉक्टर वारेन ने विश्व के सम्मुख घोषणा की कि परम हैं। पृथ्वी पर अवतरित हुई हैं। का अवतरण है जो आवश्यकता पड़ने पर बार-बार रही थी। फिर भी शहर के अन्दर सुन्दर रंग के लगाए गए पास्टर, सोमवार के समाचार पत्रों में छपा एक लेख और कुछ अन्य अच्छे विज्ञापनों द्वारा श्रीमाताजी की यात्रा की घोषणा से बहुत से साधकों को श्रीमाताजी के आने का समाचार मिल कुछ क्षण पश्चात् जब श्री माताजी बोलने के लिए उठी तो सभागार में पूर्ण सन्नाटा था। बड़ी ही संयमित आवाज में श्रीमाताजी ने केवल इतना गया था तथा सारी कठिनाइयों के बावजूद भी वे उन तक पहुँचे। कहा ये बात सत्य है और एक नए युग का आरम्भ हो चुका है। उस सुबह श्रीमाताजी ने बताया था कि "इस बारे में विश्व के सम्मुख बात 1 चुनावों की रात को पहली सभा में बहुत से लोग आए। परन्तु सोमवार सुबह टी.वी. पर विज्ञापन देने के कारण रात की समा अत्यन्त ही सफल करेगी। परन्तु इसका समय एक रहस्य था। संभवतः कल रात," उन्होंने कहा। चैतन्य लहरी अक : 9& 10 - 2005 भली-भांति स्थापित हो गए हैं और बढ़ रहे हैं । श्रीमाताजी को कोटि-कोटि धन्यवाद। रही। सभी कुर्सियाँ भरी हुई थीं और सामने के फर्श पर भी बहुत से लोग बैठे हुए थे, सभागार के दोनों तरफ और पीछे की ओर लोग खड़े हुए थे। पश्चिमी राज्यों को छोड़कर जब श्रीमाताजी सभा समाप्त होने पर उनमें से बहुत से साधक माँ के चरणों पर आए, यह एक ऐसी घटना थी पूर्वी राज्यों की यात्रा के लिए निकलीं तो पूरे जिसकी आशा आस्ट्रेलिया में नहीं की जा सकती पश्चिमी-पूर्वी आस्ट्रेलिया के जंगलों में भयानक आग लगी हुई थी। चार वर्षों के सूखे के कारण थी। नकारात्मकता की पराजय का यह बहुत सभी कुछ बहुत शुष्क था और आग बुझाने के लिए पानी तक न था। श्रीमाताजी ने ज्यों ही पूर्व की यात्रा आरम्भ की तो उनके साथ अत्यन्त सुखकर वर्षा भी आई । ये वर्षा श्रीगणेश की भूमि के लिए एक विशेष आशीर्वाद। भी बर्षा होती रही। वर्षा का होना ये बताता था कि श्रीमाताजी के आने से कितने परिवर्तन हुए हैं। परमेश्वरी माँ एडीलेड से जब 8 मार्च को मैलबोर्न पहुँची तो समाचार पत्रों और दूरदर्शन के संवाददाता प्रेस कान्फ्रेंस के लिए विंडसर होटल में सुन्दर प्रदर्शन था। रविवार की सुबह श्रीमाताजी ने टोरेन नदी के तट पर नए लोगों को प्रशिक्षण देने का एक कार्यक्रम किया जिसमें बहुत बड़ी संख्या में लोग थी। उनके प्रस्थान के पश्चात् आए तथा सोमवार प्रातः एडीलेड के सहजयोगियों को एक बहुत सुन्दर और विशाल आश्रअम भेंट किया गया। केवल तीन दिन में परम पूज्य श्रीमाताजी ने इस बिगड़े हुए नगर को परिवर्तित कर दिया पर्थ इस यात्रा का अत्यन्त सुन्दर परन्तु एकत्रित थे। उनमें से कुछ लोग दोषदर्शी (Cyni- शान्त आरम्भ था। पर्थ टाऊन हाल में दो कार्यक्रम Cal) थे, कुछ पेशावर थे और कुछ ये बात समझ होने के पश्चात् ही रेडियो तथा टी.वी. समाचार चुके थे कि कौन विशिष्ट व्यक्ति आ रहा है। प्रेस लोगों तक पहुँच पाए। फिर भी साधक पहुँचे कान्फ्रेंस का अन्त दूरदर्शन साक्षात्कार से हुआ जिसे शाम को समाचार बुलेटिन में दिखाया गया. जो कि आस्ट्रेलिया दूरदर्शन का अत्यन्त अहम् कार्यक्रम हैं। इस शक्तिशाली माध्यम (दूरदर्शन) से जब श्रीमाताजी आत्म-साक्षात्कार दे रही थीं तो उन्हें दस लाख से भी अधिक लोगों ने देखा और क्योंकि पर्थ के परिश्रमी सहजयोगियों ने नगर तथा पास के गाँवों में भली-भांति पोस्टर लगाए थे। पोस्टरों और समाचार पत्रों में छपे विज्ञापनों से लोगों को पता चला कि श्रीमाताजी कहाँ पर होंगे। पहुँचने के तुरन्त पश्चात् परमेश्वरी माँ ने एक छोटी सी पूजा करवाई थी और आने वाले कुछ ही दिनों में ये पता चल गया कि इस पूजा से वास्तव में नकारात्मकताऐं दूर हुई थीं बहुत से नए लोग इस अनुभव के परिणामस्वरुप आने वाले दिनों में कार्यक्रमों में आए। दूरदर्शन पर ये कार्यक्रम दिखाए जाने के पश्चात् वहाँ टेलिफोनों का तांता लग गया क्योंकि लोग इसके विषय में और अधिक जानना चाहते थे। अगले दिन जब श्रीमाताजी ने आकाशवाणी से लोगों को सम्बोधित किया तब भी वैसे ही आत्म-साक्षात्कार में स्थापित होकर नियमित रूप से पर्थ आश्रम आ रहे हैं। इन दोनों नए केन्द्रों पर पहले श्रीमाताजी कभी नहीं आए थे। अब ये केन्द्र अक : 9& 10-2005 12 चैतन्य लहरी दूरदर्शन वाली महिला ने ज्यों ही पटरी पर पैर रखा वर्षा की पहली बूंद उस पर गिरी। वह रुकी ऊपर को देखा और आगे चलते हुए मुस्कराकर अपनी कृतज्ञता प्रकट की। बहुत समय पश्चात् मैलबोर्न में पहली बार लगातार वर्षा होते हुए देखी गई थी। अनुभव की पुनरावृत्ति हुई एक बार फिर टेलिफोनों की घण्टियाँ बज उठीं। हमेशा की तरह से आदिशक्ति की शक्ति चमत्कारों के रूप में अभिव्यक्त हुई। जन्म से कलाई की समस्या लेकर उत्पन्न हुई एक लड़की जिसे ठीक करने में चिकित्सा विज्ञान असफल हो गया था, दूरदर्शन देखते हुए उसे अपने हाथों में शीतल लहरियाँ महसूस हुई। अचानक उसकी कलाई ठण्डी हो गई। परमेश्वरी कृपा उसके अन्दर परन्तु मैलबोर्न में इससे भी अधिक बहुत होना था। आकाशवाणी से कई सफल-प्रवचन कुछ हुए और परिणाम स्वरूप जन-कार्यक्रमों में साधको की भीड़ उमडती गई। 13 मार्च को मैलबोर्न आश्रम के विशाल प्रांगण में कार्यशाला से प्रवाहित हो रही थी। मैलबोर्न पर विशेष रूप से परमेश्वरी कृपा की वर्षा हुई। वर्षों से वहाँ पानी की समस्या थी । एक प्रातः श्रीमाताजी ने समुद्र देव की पूजा करने का निर्णय लिया। सभी लोग कुछ दूर तक यात्रा द्वारा इसका समापन हुआ। आत्म-साक्षात्कार के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए आए लोगों की भीड़ से बाग भर गया । श्रीमाताजी ने स्वयं भोजन बनाकर हम लोगों को खिलाया। करते समुद्र तट तक पहुँचे जहाँ श्रीमाताजी ने एक सुन्दर समारोह में अध्यक्षता करते हुए बालू से श्रीगणेश बनाया बाद में श्रीमाताजी ने वहाँ उपस्थित सभी सहजयोगियों को बताया कि मेलबोर्न की ने बहुत से लोगों को चौकाया। यद्यपि रात बहुत पानी की समस्या का सदा के लिए समाधान हो बीत चुकी थी फिर भी सहजयोगियों का बहुत बड़ा सभी के लिए ये सप्ताह आनन्ददायी था । सिडनी वायुपतन पर श्रीमाताजी के आगमन समूह वहाँ प्रतीक्षा कर रहा था। प्रेममयी माँ लगभग दो वर्षों बाद वहाँ पहुँचे थे वायुयान से उतरे बहुत गया है। बारिश लाने वाली इस यात्रा में केवल से विशिष्ट व्यक्ति आश्चर्य चकित थे क्योंकि सहजयोगी ही श्रीमाताजी के साथ नहीं थे परन्तु सवाददाता सम्मेलन में दूरदर्शन की एक महिला भी सहजियों से पूछ रही थी कि क्या वर्षा होगी? ने एक पूजा रखी जैसे वे अन्य सभी शहरों में वायुपतन से आते हुए कार में बैठे लोगों को करवाती आई थीं। शाम को बहने वाली दिव्य श्रीमाताजी ने कहा था 'अब मै आ गई हूँ वर्षा को चैतन्य लहरियाँ उन सहज-योगियों के लिए भी आना ही होगा। दूरदर्शन की उस महिला को ये वात बताई गई और ज्योंही ये कान्फ्रेंस समाप्त हुई अधिक समय से श्रीमाताजी को हृदय में बसाया श्रीमाताजी को चहुँओर से घेरे हुए उल्लसित भीड ने बिल्कुल तवज्जो नही दी। शाम को श्रीमाताजी विशेष वरदान थीं जिन्होंने एक साल या उससे भी सामान लिए कई सहजी कार की ओर जा रहे थे। हुआ था। परन्तु श्रीमाताजी के दर्शन का अवसर चैतन्य लहरी अक : 9 & 10 - 2005 13 आकाशवाणी प्रसारण के बाद आकाशवाणी के उन्हें पहली बार प्राप्त हुआ था। एक बार फिर श्रीगणेश और आदिशक्ति को समर्पित इस पूजा ने बाधाओं को दूर किया, यद्यपि अगली सुबह कुछ देर के लिए माया हममें से कुछ लोगों के लिए बहुत जोर से कार्यरत थी। कार्यकर्त्ता, जिनके लिए अति विशिष्ट व्यक्ति आम बात होती है, श्रीमाताजी को प्रणाम करने के लिए आए। वापसी के समय श्रीमाताजी ने हल्के से कहा कि देखो परमात्मा किस प्रकार कार्य करते है। ये एक ऐसा पाठ था जिसे भुलाया नही जा मंगलवार की सुबह अर्थात पन्द्रह मार्च को श्रीमाताजी ए.बी.सी. (Austration Broadcasting सकता। सिडनी में पुनः श्रीमाताजी के एक Corporation ) के मुख्य कार्यक्रम (City Extra) में उनकी विशेष मेहमान थी क्योंकि जहाँ-जहाँ भी श्रीमाताजी गई थीं वर्षा ने उनका अनुसरण किया था, शहर में प्रातःकाल की गाड़ियों की बेइन्तहा भीड़ थी, सभी रस्ते जाम थे सभी लोग जान गए कि श्रीमाताजी स्टूडियो में निश्चित समय से बाद में पहुँचेंगी। कार में बैठे हुए अन्य चार लोग बहुत अधिक चिन्तित थे, परन्तु बन्धन देते हुए श्रीमाताजी ने उनसे कहा कि 'भरोसा रखो, सभी कुछ ठीक हो जाएगा। निर्धारित समय से पन्द्रह मिनट पश्चात् जब हम आकाशवाणी पहुँचे तो हमें पता लगा कि श्रीमाताजी से बाद में आने वाला व्यक्ति अपना साक्षात्कार का प्रसारण शाम के समाचार बुलेटिन में किया गया जिसे दस लाख से भी अधिक लोगों ने देखा । एक अन्य दूरदर्शन चैनल ने गहनता पूर्वक श्रीमाताजी का साक्षात्कार किया और सिडनी जनकार्यक्रम के कुछ भागों की फिल्म भी बनाई। यात्रा के आरम्भ में श्रीमाताजी ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति करते हुए कहा था कि दूरदर्शन सर्वोत्तम माध्यम है, ये बात प्रमाणित हो गई । हर रात लोगों की संख्या बढ़ती जाती थी और रविवार के दिन कार्यशाला के समय यद्यपि वर्षा हो रही थी फिर भी आश्रम में दो सौ से कार्यक्रम उपस्थित कर रहा है। ये अमेरिका का प्रबन्धन सलाहकार था, जो अजीबो-गरीब ढंग से प्रबन्धन और तनावमुक्ति के विषय में बता रहा था। उसका ये भाषण अत्यन्त उपयुक्त पूर्व-भाषण साबित हुआ क्योंकि साक्षात्कार-कर्ता (Inter अधिक नए साधकों तथा इनके अतिरिक्त सहजयोगियों ने श्रीमाताजी को सुनने के लिए उनके आशीर्वाद का आनन्द लेने के लिए, जिसमें उनके हाथों से पकाया हुआ खाना भी था, पूरे Viewer) ने गहन सम्मान पूर्वक श्रीमाताजी का परिचय करवाया और एक प्रकार से दर्शाया कि आश्रम को खरचाखच भरा हुआ था। पब्लिक प्रोग्राम समाप्त हो गया था। अब पहला वक्ता कितना उथला था! श्रीमाताजी के लिए थोड़ा सा आराम करने का समय था। शनिवार को लेनकूव नदी के राष्ट्रीय पार्क में एक पिकनिक का आयोजन किया गया | नदी के हरे-भरे मैदान में आस्ट्रेलिया की सुगन्धित इसके बाद चमत्कार पूर्ण बीस मिनट का समय था। गहनता, गर्मजोशी, करुणा और विवेक के प्रसार ने सभी श्रोताओं को समृद्ध किया। अंक : 9 & 10 -2005 14 चैतन्य लहरी झाड़ियों में घास पर बैठी श्रीमाताजी को उनके श्रीमाताजी के सम्मुख सितार प्रस्तुत करने के लिए आ पहुँचा। पूरा आश्रम अत्यन्त शान्त और प्रेममय घर बन गया यद्यपि वहाँ अस्सी लोग विद्यमान थे और जब कोमल प्रिन्ट की साड़ी और खुले बालों में श्रीमाताजी वहाँ पहुँचीं तो प्रेम की सीमा न रही । बच्चों ने घेरा हुआ था। ये हँसी और खुशी का दिन था। वातावरण से मिलते-जुलते रंग की हरी साडी श्रीमाताजी ने पहनी हुई थी और वे नए जन्में बच्चों को गोद में लेकर उनका नामकरण कर रही थीं और उनके माता-पिता से बच्चों के पालन-पोषण के विषय में बड़े प्रेम से बता रहीं थीं। अनौपचारिकता सितार-वादक तथा श्रीमाताजी के सम्मान में सहजियों द्वारा बजाया गया .संगीत स्वर्गीय था। उस सीमा तक, उस सीमा तक पहुँची कि श्रीमाताजी तत्पश्चात् स्वास्तिक की शक्ल में बना एक विशाल पुरुषों को श्री कृष्ण की तरह से सुन्दर धोती बाँधना सिखा रही थीं! बार-बार पैरों से चलने समयानुसार आन्नदमयी माँ ने सितारवादक और वाली नावें नदी के किनारे आकर रुकरतीं और उनमें बैठे यात्री हैरानी पूर्वक आनन्दमग्न सहजयोगियों के समूह की ओर देखते। केक लाया गया जिससे बच्चे बहुत आन्नदित हुए। उसके दो साथियों को आत्मसाक्षात्कार का महानतम उपहार देकर उस सन्ध्या का समापन किया। अगले दिन दोपहर के समय बहुत बड़ी भीड़ ने श्रीमाताजी को विदाई दी। श्रीमाताजी आस्ट्रेलिया 1 यात्रा का महत्वपूर्णतम दिवस 21 मार्च से विदा हो गए परन्तु उनका आशीर्वाद हमेशा वहाँ हमारी प्रेममयी माँ का जन्म-दिवस पूरे आस्ट्रेलिया से इस खुशी में भाग लेने के लिए सहजयोगी श्रीमाताजी के पास आए और उस दिन बना रहा। हर रात नए साधक आ रहे हैं पुराने था.. साधक उन्नत हो रहे हैं और हमारी दृष्टि के सम्मुख सहजयोग बढ़ रहा है। की पूजा के सौन्दर्य और गहनता को तो शब्दों में वर्णन ही नहीं किया जा सकता। पूजा में उपस्थित होने वाले सौभाग्य-शाली सहजयोगियों की स्मृतियों में ये सौन्दर्य और गहनता हमेशा बनी रहेगी ज्यों परमात्मा करे कि इस यात्रा की उपलब्धियों की पुनरावृत्ति पूरे विश्व में हो और परमेश्वरी कृपा से जो हमने आस्ट्रेलिया में अनुभव किया है वही अनुभव साधकों को सर्वत्र प्राप्त हो । खुले दिल से हम सब उद्घोष करते है: ही पूजा समाप्त हुई तेज़ बारिश गिरने लगी। मनमोहक मुस्कान बिखेरते हुए श्रीमाताजी ने ऊपर को देखा और कहा, "पूरी प्रकृति मेरे चरणों को धो रही है।" हमें तो यह सृजन प्रतीत हुआ। जय श्रीमाताजी आस्ट्रेलिया के सहजयोगीगण (निर्मला योगा 83 से उद्धृत एवं अनुवादित) उस रात समारोह के लिए आस्ट्रेलिया के गिने-चुने सितारवादकों में से एक सितारवादक जनकार्यक्रम कॉन्स्टीच्यूशन क्लब, नई दिल्ली 10.2.1981 यहाँ कुछ दिनों से अपना जो कार्यक्रम होता रहा है उसमें मैंने आपसे बताया था कि कुण्डलिनी और उसके साथ और भी क्या-क्या हमारे अन्दर स्थित है। जो भी मैं बात कह रही हूँ ये आप लोगों को मान नहीं लेनी चाहिए, लेकिन इसका धिक्कार भी नहीं करना चाहिए क्योंकि ये अन्तरज्ञान आपको अभी नहीं है। और अगर मैं कहती हैं कि मुझे है, तो उसे खुले दिमाग से देखना चाहिए, सोचना चाहिए और पाना चाहिए। दिमाग जरूर अपना खुला रखें। है, एक Category (श्रेणी) है । सब लोग साधक नहीं होते। हमारे ही घर में हम तो किसी से नहीं कहते कि आप सहज योग करो या सहजयोग में आओ। किसी से भी नहीं कहते। सिवा हमारे और हमारे नाती पोतियों के कोई भी सहज योगी नहीं है। लेकिन जो नहीं हैं वो नहीं हैं, जो है सो है। अगर कोई खोज रहा है, उसके लिए सहजयोग है जो साधक है उसके लिए सहज योग है। हर एक आदमी के लिए नहीं। आप तो जानते हैं कि दिल्ली में सालों से हम रह रहे हैं और हमारे पति भी यहाँ रह चुके हैं। लेकिन हमने अभी तक किसी भी हमारे पति के दोस्त या उनके पहचान वाले या रिश्तेदार से बात-चीत भी नहीं करी और बहुत लोग हैरान हैं कि हमको मालूम नहीं था कि यही माता जी निर्मला देवी हैं जिनको हम दूसरी तरह से जानते हैं! पहली तो बात ये है कि सहज योग कोई दुकान नहीं है। इसमें किसी प्रकार का भी वैसा काम नहीं होता है जैसे और आश्रमों में या और गुरुओं के यहाँ पर होता है कि आप इतना रुपया दीजिए और मेम्बर (सदस्य) हो जाइए। यहाँ पर आप ही को खोजना पड़ता है, आप ही को पाना पड़ता है और आप ही को आत्मसात करना पड़ता है। जैसे कि गंगाजी बह रही हैं, आप गंगाजी में जायें, इसका आदर करें, उसमें नहाएं-धोएं और घर चले आएं। अगर आपको गंगा जी को धन्यवाद देना हो तो दें, न दें तो गंगाजी कोई आपसे नाराज़ नहीं होतीं। एक बार इस बात को अगर मनुष्य समझ ले, कि यहाँ कुछ भी देना नहीं है सिर्फ लेना ही है, तो सहज योग की ओर देखने की जो दृष्टि है उसमें एक तरह की गहनता आ जाएगी। जब लेना होता है, जैसे कि प्याला है, उसमें तभी आप डाल सकते हैं जब उसमें गहराई हो। जब लेने की वृत्ति होती है तब मनुष्य उसे पा सकता है। तो सहज योग जो चीज है, इससे आपको लाभ उठाना है। पहली बात । इस बात को अगर पहले आप समझ लें कि आपको कुछ पाना है। परमात्मा को भी आप कुछ नहीं दे सकते और सहज योग को भी आप कुछ नहीं दे सकते। उनसे लेना ही मात्र है। लेकिन माँ की दृष्टि से मुझे ये कहना है कि अगर लेना है तो उसके प्रति नम्रता रखें। अपने में गहनता रखें और इसे स्वीकार करें नात माँ जो होती है वो समझ के बताती है। ये नहीं कि आपकी हर समय परीक्षा लँ और आपको मैं परेशान करूँ और फिर देखें कि आप इस योग्य हैं या नहीं, या पात्र है या नहीं दूसरे ये भी बात है कि माँ बच्चों को जानती अच्छे से है। जानती है कि इनमें क्या दोष है, क्या बात है, किस वजह से रुक गये उसको उसकी मालूमात गहरी होती है दूसरी बात ये है कि आप लोग अनेक जगह जा चुके हैं क्योंकि आप परमात्मा को खोज रहे हैं। आप साधक हैं। साधक होना भी एक श्रेणी 1 ौतन्य लहरी 16 अंक : 9& 10 - 2005 बहुत और वो समझती है कि किस तरह से बच्चे को भी ठीक किया जाए कहीं डॉटना पड़ता है, तो डॉट भी देगी, जहाँ दुलार से समझाना पड़ता है, समझा भी देती है और ये सिर्फ माँ का ही काम है और कोई कर भी नहीं सकता। मुश्किल काम है और किसी के लिए करना क्योंकि ये सारा काम स्वरूप है कि परमात्मा से मिलन हो और दूसरी उसे इच्छा नहीं होती। ये उसका शुद्ध स्वरूप है। और जब वो इच्छा कुण्डलिनी स्वरूप होकर के बैठती है तो वो मनुष्य का पूरा पिण्ड बनाती है-पर अभी इच्छा ही है । इसलिए पूरा बनाने पर भी वो इच्छा ही बनी रहती है क्योंकि उसकी जो इच्छा है प्यार का है। आज मनुष्य इतने विप्लव में और वो जागृत नहीं है। इसलिए इच्छा पूरी की पूरी वैसी इतनी आफत में है: इतने दुःख में और आतंक में ही बनी रहती है और वो अपनी इच्छा छाया की तरह आपको सभालती रहती है कि देखो इस रास्ते पर गए हो तो यहाँ वो इच्छा पूरी नहीं होगी जो इन पर दी जाए, ऐसा समय नहीं है और ये माँ सम्पूर्ण शुद्ध आपके अन्दर से इच्छा है बो पूरी नहीं होगी। उस इच्छा को पूरी किए बगैर आप कभी रहे हैं, उनको कित्तनी परेशानियाँ हैं और किस सुख भी नहीं पा सकते सारा आपका पिण्ड जो है तरह से उनका भार उठाना चाहिए और उनके वो इसीलिए बनाया गया कि वो इच्छा पूर्ण हो बैठा हुआ है इस कदर उस पर परेशानियाँ छाई हुई हैं कि इस वक्त और भी किसी तरह की परीक्षा ही समझ सकती है कि बच्चे कितनी आफतें उठा अन्दर किस तरह से प्रभु का अस्तित्व जागृत करना चाहिए। ये माँ ही कर सकती है। जिससे आप परमात्मा को पाएँ। पर महाकाली शक्ति को जब आप इस्तेमाल करने लगते हैं तो आपकी महाकाली की शक्ति में जो उसका कार्य है वो बाहर की ओर होने लग जाता है। माने आपकी इच्छाएँ जो हैं वो बाहर की ओर जाने लग जाती है । ये चीज़ पा लँ। जब आपका चित्त बाहर जाता है कुण्डलिनी के बारे में जो कहा गया है कि "कुण्डलिनी आपके अन्दर स्थित आपकी माँ है, जो हजारों वर्षों से आपके जन्म होते ही आप में प्रवेश करती है और वो आपका साथ छोड़ती नहीं, जब तक आप पार न हो जाएँ। वो प्रतीक रूप आपकी माँ ही है।" यानी ये कि समझ लीजिए 'प्रतीक रूप आप ये सोचते हैं कि मैं उसका भी एक कारण है जिसके कारण आपका चित्त बाहर जाता है। जो मैंने कहा था कि वो जरा विस्तारपूर्वक बताना होगा जब, क्योंकि आपका चित्त बाहर की ओर जाने लगता और जैसे-जैसे आप बड़े होने लग जाते हैं और भी वो बाहर की ओर जाने लग जाता है। इसकी वजह से जो शुद्ध इच्छा आपके अन्दर है जिसको कि शुद्ध विद्या कहते हैं और आपके अन्दर जो अन्तरतम् आपकी महा-माँ' की एक छाया है, छवि है। एक प्रश्न यह जो किया था किसी ने कि 'माँ आपने कहा कि पूरी रचना हमारी करने के बाद पिण्ड की पूरी रचना करने के बाद भी वो वैसी की वैसी ही बनी रहती है, इसको किसी तरह से समझाया जाए। वो आज मैं बात आपको समझाऊँगी कि किस तरह से होता है । शुद्ध इच्छा है वो एक ही है कि 'परमात्मा से योग घटित हो' वो कार्यान्वित नहीं हो पाती। सिर्फ आप ये ही सोचते रहते हैं कि हम इसे पाएँ, उसे पाएँ, उसे पायें इसलिए वो जैसी की तैसी बनी रहती है । इसीलिए इसे Residual energy (अवशिष्ट ऊर्जा) कुण्डलिनी शक्ति हमारी जो महाकाली की इच्छा शक्ति है उसका शुद्ध स्वरूप है। पूर्ण शुद्ध स्वरूप है। मतलब ये कि एक ही इच्छा मनुष्य को होती है संसार में जब वो आता है उसका शुद्ध अंक : 9 & 10 -2005 चैतन्य लहरी 17 बहुत बार लोगों ने मुझे कहा कि माँ आप किसी भी गुरु के बारे में कुछ भी मत कहिए। मैंने कहा कि ऐसा ही हुआ कि कोई मेरे बच्चों की गर्दनें काटे और मैं न कहूं कि ये गर्दन काट रहे हैं! ये कहे बगैर कैसे होगा, आप ही बताइये, आप माँ-बाप भी हैं। आप बताइये कि अगर आप जानते हैं कि कोई आदमी आपकी ये इच्छा हमेशा के लिए मन्त्रमुग्ध कर देगा और आपको विचलित कर देगा। आपकी कुण्डलिनी को एकदम से ही वो जकड़ देगा या उसको ऐसा कर देगा कि वो freeze हो जाए (जम जाए) एकदम। तो क्या कोई माँ ऐसी होगी जो नहीं बताएगी? इस मामले में बहुतों ने मुझे डराया भी, धमकाया भी कहा कि आपको कोई गोली झाड़ देगा। मैंने कहा झाड़ने वाला अभी पैदा नहीं हुआ। मुझे देखने का है ऐसा आसान नहीं है मेरे ऊपर गोली झाड़ना। वो तो ईसा मसीह ने एक नाटक खेला था इसलिए उस पर चढ़ गए, नहीं तो ऐसा वो सबको मार डालते कि सबको पता चल जाता। लेकिन वो एक नाटक खेलने का था, इसलिए उस वक्त ये काम हुआ। कहते हैं। अब ये जो आपकी शुद्ध इच्छा है ये ही आपको खींचकर इधर से उधर ले जाती है और आप दर-दर पे ठोकरें खाते हैं, कर्मकाण्ड करते हैं. इधर ढूँढते हैं, किताबें पढ़ते हैं और आप अपने अन्दर धारणा सी बना लेते हैं कि परमेश्वर का पाना ये होता है. परमेश्वर का पाना ये होता है। जब तक आप उसे पाते नहीं आप इच्छा को सोचते कि हमें इस चीज से ह पूरा हो जाएगा किसी चीज़ से पूरा हो जाएगा सो नहीं होता पर बहुत बार ऐसा भी होता है कि महाकाली शक्ति जो है जब हमारी बहुत बार और जगह दौड़ने लग जाती है तब कभी-कभी कोइ गुरु लोग भी या ऐसे लोग कि जो बहुत पहुँचे हुए लोग हैं वो भी इस मामले में ये बता देते हैं कि ये इच्छा किस तरह से पूर्ण हो जाती है। लेकिन बहुत-से अगुरु भी इस संसार में हैं। बहुत-से दुष्ट लोगों ने भी गुरु रूप धारण कर लिया है। और इसी वजह से वो आपकी इस इच्छा को मन्त्रमुग्ध कर देते हैं। माने कुण्डलिनी को तो कोई छू नहीं सकता, किन्तु आपकी जो महाकाली की जो शक्ति है उसको मन्त्रमुग्ध कर अब, हमको ये सोचना चाहिए कि जब हमारी ये शुद्ध इच्छा है कि परमात्मा से योग होना है, तो कुण्डलिनी जागृत करने के लिए क्या करना चाहिए? ऐसा बहुत बार लोगों ने कहा है। हालाँकि हर लैक्चर में मैं कहती हैं कि ये जीवन्त क्रिया है. इसके लिए आप कुछ नहीं कर सकते। 'आप नहीं कर सकते इसका मतलब नहीं कि मैं नहीं कर सकती। इसका मतलब यह नहीं कि सहजयोगी नहीं कर सकते अधिकारी होना चाहिए। जैसे एक डॉक्टर है जो कि operation (ऑपरेशन) करना जानता है, वो ही ऑपरेशन कर सकता है। पर कोई दूसरा आदमी अगर इस तरह का काम करे देते हैं। वो मन्त्रमुग्ध होने के कारण आपकी जो वास्तविक इच्छा परमात्मा से योग पाने की है वो छूट करके आप सोचते हैं कि ये जो अगुरु है जिसने हमको मन्त्र मुग्ध किया है, ये ही उस इच्छा को पूरा कर देगा। इसको पूर्ण कर देगा। और इसलिए आप उस चीज़ से चिपक जाते हैं। और जब आप मन्त्रमुग्ध की तरह उससे चिपक जाते हैं तब आपके ध्यान ही में नहीं आता है कि आपकी वास्तविक इच्छा पूरी नहीं हुई है और आप गलत रास्ते पर चल रहे हैं। जब तक आप बहुत ठोकरें नहीं खाते हैं, जब तक आपका सारा पैसा नहीं लुट तो लोग कहेंगे कि ये खूनी है और इतना ही नहीं वो खून ही कर डालेगा, क्योंकि उसको मालू-मात जाता, जब तक आप पूरी तरह से बर्बाद नहीं हो जाते, आपके ध्यान में ये बात नहीं आती। चैतन्य लहरी अक : 9 & 10 -2005 18 ही नहीं उस चीज़ की जिसको इसकी जानकारी नहीं है, जो इस बारे में समझता नहीं है उस को कुण्डलिनी में पड़ना नहीं चाहिए। ये कोई आदमी आज बड़े-बड़े अफसर हो जाते हैं। हम भी अफसरी काफी देख चुके है और जैसे ही अफ़सरी खत्म हो गयी तो कोई पूछता भी नहीं बड़ा आश्चर्य है अगर आपका transfer (तवादला) ही हो गया तो कोई नहीं पूछता। आपने मकान बना लिया. आपने देखे हैं कितने बड़े-बड़े खण्डहर पड़े हुए हैं। और न कोई जानता है कि ये है क्या बला, कहां से आई. क्या हुआ। बड़े-बड़े ऐसी चीजें के जब आप सहजयोग में पार हो जाते हैं उसके बाद इसके नियम शुरु हो जाते हैं. जो परमात्मा के दरबार के नियम हैं-जैसे आप हिन्दुस्तान में आए तो आपको हिन्दुस्तान सरकार के नियम पालने पड़ते हैं। उसी प्रकार जब आप परमात्मा साम्राज्य में आए तो उसके नियम आपको पालने पड़ते हैं और अगर आप वो नियम न पालें तो आपके वाइब्रेशन हाथ से छूट जायेंगे बार-बार वो वाइब्रेशन छूट जायेंगे, बार-बार आप पहले जैसे होते रहेंगे, जब तक आप पूरी तरह से इसके ऊपर पूरा प्रभुत्व न पा जाए जब तक आपने अपनी आत्मा को पूरी तरह से नहीं पाया, आप पाइएगा वाइब्रेशन आपके छूटते जाएँगे। क्योंकि ये वाइब्रेशन आपकी आत्मा से आ रहे हैं। खत्म हो चुकी है। 1 एक बार मैं गयी थी आपके आगरा के font (किला) में । तो रात बहुत बीत गयी वहाँ। और कुछ special (खास) हमें दिखाने का इन्तज़ाम था तो बहुत रात हो गयी। और वो कहने लगे जब भीड़ जाएगी तब आपको ठीक से दिखाएँगे।" बहत कुछ चीजें दिखाई। जब लोग लौट रहे थे तो मैंने देखा कि बिल्कुल 'सब दूर अँधेरा है । सब ' जितनी भी उस वक्त में चहल-पहल रही होगी। रानियों ने क्या-क्या काम किये होंगे और परेशान किया होगा अपने नौकरों को कि ये मेरे कपड़े नहीं ठीक हैं राजाओं ने परेशान किया होगा बड़े-बड़े वहाँ पर दावतें हुई होंगी। उसके लिए झगड़े हुए होंगे। पता नहीं क्या-क्या किया होगा इन लोगों ने उस ज़माने में। सब एक दम फ़िजूल। कुछ नहीं सुनाई दे रहा था। अब वो आवाज़ खत्म हो चुकी थी वहाँ। कुछ भी नहीं था एकदम अँधेरा चारों तरफ छाया हुआ। और जब हम बाहर आ रहे थे बिल्कुल बाहर आये तो रोशनी थी नहीं खास। एक साहब के पास ज़रा-सी Torch (टॉच) थी. उससे सभी लोग देखकर बाहर आ रहे थे। बाहर आते वक्त देखा कि एक चिराग की रोशनी जल रही थी उस चिराग की रोशनी में हम बाहर आए, तो पूछा कि भाई चिराग यहाँ किसने जला कर रखा? मैंने पूछा कि किसने चिराग यहाँ जलाया? कहने लगे कि यहाँ पर एक मजार हैं, एक पीर की मज़ार है और ये पीर बहुत पुराने हैं। कितने पुराने? आत्मा जो है उसको सत् चित्त आनन्द कहते हैं। माने वो सत्य है। सत्य का मतलब ये है कि वो ही एक सत्य है, बाकी सब असत्य है बाकी सब ब्रह्म है। ब्रह्म जो है वो भी उन्हीं की शक्ति है और जो कुछ उनके अलावा है-आत्मा, ब्रह्म इसके अलावा जो कुछ भी है वो असत्य है। असत्य माने ये हैं कि एक आदमी है समझ लीजिए सोचता है कि हमने बहुत बड़ा काम किया, आपने क्या काम किया, उनसे पूछिए तो बतायेगा कि साहब मैंने मकान बनाया, घर बनाया और बच्चों की शादियाँ कर दीं या कोई बड़ा भारी उस का तमगा मिल गया। मैने aeroplane (हयाई जहाज) बना दिया और कोई चीज बना दी, मैं बड़ा भारी Prime Minister (प्रधान मन्त्री) हो गया। ये सब भी एक मिथ्याचरण है। मिथ्या बात है क्योंकि ये शाश्वत नहीं है, सनातन नहीं है, शाश्वत नहीं है। अंक : 9& 10 -2005 19 चैतन्य लहरी जानते हैं अगर Aeroplane (हवाई जहाज) है इसको पहले जब आप testing (परीक्षण) करते हैं तो उड़ाते हैं, देखते हैं कि इसका Balance (सन्तुलन) कैसा है। ये ठीक से चल रहा है या नहीं चल रहा है। उसको बार-बार grounding कहने लगे कि जब ये किला भी नहीं बना था, उससे पुराने। अच्छा, तब से इस पर दिया जलता रहता है। सब लोग यहाँ माथा टेकने जाते हैं । ये सनातन है। पीर हो जाना सनातन है। ये शाश्वत है बाकी सब असत्य है सब गुम हो कराते हैं, फिर उसको उड़ाते हैं, फिर देखते हैं। गया है, खत्म हो गया, शून्य हो गया लीन हो उसी प्रकार जब आपकी कुण्डलिनी जागृत भी हो गया। आज कोई आकाश में उछल रहा है, कल देखा तो वो गर्द में पड़ा हुआ है। आप रोज़मर्रा ही देखते हैं अपने ही आँखों के सामने आपने देखा है होने लगे। तो फिर आपको जरूरी है कि आप कि कितनी बार ऐसे होता हुआ। इतना पचास साल में इस भारतवर्ष में हुआ है, कभी नहीं हुआ था। सबसे ज्यादा उथल-पुथल इसी पचास साल में हुई है। इससे आप समझ सकते हैं कि ये हैं, पार होने के बाद पहली गलती ये है, कि हम इस सनातन नहीं है ये कोई-सी भी चीज़ सनातन नहीं, जिसके पीछे आप दौड़ रहे हैं। दौड़-धूप कर रहे हैं। आज बड़े भारी आदमी बन कर घूम रहे हैं; आपका ठिकाना नहीं। कल आप रास्ते के भिखारी बने होंगे। जो चीज सनातन नहीं है उसके पीछे हम क्यों दौड़ें? जो चीज़ सनातन है उसे पाना चाहिए। जब आदमी Realization (साक्षात्कार) पा लेता है, तो वह खोता नहीं। जब उसका जन्म होता है तो Realization के साथ वो दूसरी चीज मोक्ष, मोक्ष लेकर के वो आता है वो करुणा में फिर से जन्म लेता है। सिर्फ करुणा में जन्म लेता है। लेकिन वो मोक्ष अपने साथ लेकर के आता है। उस गई और आप पार भी हो गए और माना कि आप पार हो गए, और आपके अन्दर से बाइब्रेशन शुरु अपने को जरा-सा देखें और समझें क्या है। अब, सबसे जो बड़ी गलती हम लोग करते वास के बारे में सोचना शुरु कर देते हैं तो उसमें कभी-कभी शंकाएँ भी बहुत लोगों को आती है । कहते हैं 'भई कैसे हो सकता है, माँ ने हमको mesmerise (सम्मोहित) भी कर दिया होगा तो क्या पता? हो सकता है कि गड़बड़ ही हो गया होगा, हम कैसे ऐसे हो सकते हैं, हमने तो सुना था इसमें बड़ी-बड़ी दिक्कृतें होती हैं, हम ऐसे आसानी से कैंसे पार हो गए? ठण्डी हवा आ गयी तो क्या समझना चाहिए कि क्या बड़े भारी हम पार हो गए? ये कैसे हुआ? 1 1 पहली गलती ये है कि इसके बारे में आप सोच नहीं सकते। सोचने से आपके वाइब्रेशन खट से खत्म हो जाएँगे आपको अगर हम हीरा दें और आपको कहें ये आपके पास हीरा है। आप उस पर क्या करेंगे? आप जौहरी के पास जाकर पूछेगे कि भई ये हीरा है क्या? कम से कम इतना तो आप करेंगे। क्या घर में बैठे-बैठे सोचकर हीरे को कोई फेंक देगा? जब रोज़मर्रा के जीवन में हम लोग इस तरह से अपना ध्यान लगाते हैं, तब जो हमारे परम की बात है, उसमें ये ध्यान रखना चाहिए कि अगर सनातन को पाना चाहिए। और जब हम इस बात को जान लेते हैं कि हमें सनातन को पाना चाहिए. तब हमारा जो व्यवहार है, सहजयोग के प्रति, बदल न जाता है। जो लोग पार हो गये हैं उनको पता होना चाहिए कि हमें 'स्थित' होना पड़ता है। मैंने कल बताया था कि पार होने के बाद क्या करना चाहिए स्थित' होने के लिए उसके नियम हैं। जैसे आप अंक : 9 & 10 -2005 20 चैतन्य लहरी में मनुष्य करता है, लेकिन वो करना परमात्मा को पाना नहीं है। वो हो सकता है कि मनुष्य पाकर के गा रहा हो या नाच रहा हो। लेकिन पाया तो नहीं अभी तक। पाना तो कुण्डलिनी के ही जागृति से हमने परम पाया है तो आखिर ये कैसे जाने कि ये परम है या नहीं? और इसमें शंका करने की कौन-सी बात है? बहुत-से गुरु लोग हैं, आपसे कहेंगे कि होता है। उसके बगैर हो नहीं सकता। और इसमें आप नाच सकते हैं, कूद सकते हैं। ऐसा कुण्डलिनी सहज ही में जागृत होती है । होता है, कुण्डलिनी में, वैसा होता है, ये होता है। ये सब चीजें आप वैसे भी कर सकते हैं । माने नाचना कोई मुश्किल काम नहीं, कूदना कोई मुश्किल याने ये living process (जीवन्त क्रिया) है। आपका नहीं, मेंढक जैसे चलना भी कोई मुश्किल नहीं है । और आजकल एक गुरुजी हैं वो उड़ना सिखा रहे हैं, तो लोग अपने foam (फोम ) में बैठकर ऐसे उड़ते हैं सोच रहे हैं कि वो हवा में उड़ रहे हैं। ऐसा सोचना भी मुश्किल नहीं है । घोड़े पर भी लोग कूद करके बैठ जाते हैं। जरा कोशिश करने से आ जाता है वो भी। ये भी कोई मुश्किल नहीं है । वो ऐसे कर सकते हैं वो परमात्मा क्यों करेंगे, वो तो भी आप कोशिश करें तो कर सकते है। और आप एक तार पर भी चल सकते हैं, सरकस में जैसे जो हम नहीं कर सकते। तब फिर इसमें सोचने की चलते हैं या आप कलाबाजी कर सकते हैं। ये भी आपने करते देखा है और कर सकते हैं। अगर आप कोशिश करें तो सब धन्धे आप कर सकते हैं । माने ये कि spontaneous (सहज) है, evolutionary process है (उत्क्रान्ति प्रक्रिया) और आप आज उस evolutionary process के अन्तर्गत ऊपर उठ जाते हैं। आपकी उत्क्रान्ति (evolution) जो है, वो चल रहा है । अभी आप इन्सान हैं । इन्सान से आप अतिमानव हो जाते हैं। जब इस तरह से बात आपने समझ ली कि जो काम हम हम कर ही सकते हैं। वो तो अब वो काम करेंगे कि बात क्या है? हाथ में ठण्डी-ठण्डी हवा आनी शुरु हो गयी इसके बारे में भी सब शास्त्रों में लिखा हुआ सिर्फ आप क्या नहीं कर सकते? कि ये है। कोई नयी बात नहीं है। चैतन्य की लहरियाँ, ये एक त्रिकोणाकार अस्थि में अगर आप स्पन्दन देखें तो मानना चाहिए कि कुण्डलिनी है स्पन्दन आप नहीं कर सकते कहीं भी। फिर उसका उठता हुआ स्पंदन आप देख सकते हैं। सब में नहीं, क्योंकि सीमित है. और मैं तो असीम की बात कर रही हूँ । कोई अगर बढ़िया लोग हों तो उनमें तो जरा भी पता नहीं चलता, खट से कुण्डलिनी उठ जाती है। पर बहुत-से लोगों में इसका स्पन्दन दिखाई देता है। उसका अनहत् का बजना आप सुन सकते हैं। चाहिए, वैसा होना चाहिए। उससे फायदा क्या? शून्य शिखर पर अनहत् बाजे रे। तो उसको आप देख सकते हैं, बज रहा है क्या? कोई गुरु हैं, कहते हैं हम नाच रहे हैं, भगवान का नाम लेकर के 'नाचि रे-नाचि रे सीधा हिसाब बताइये, कि नाचना, गाना, ये आनन्द ब्रह्म की शक्ति है लेकिन इस पर आप सोच करके क्या करने वाले हैं? आप सोच करके भी कौन-सा प्रकाश डालने वाले हैं? क्योंकि आपकी बुद्धि तो अगर आप समझ लीजिए यहाँ से चन्द्रमा में चले गए तो वहाँ जाकर के देखना ही है न। कि आप सोचकर बैठे कि भई चन्द्रमा पर जाएँ तो ऐसा होना आप जाइए और देखिए। जो चीज है उसका साक्षात् करना चाहिए। 1 अब, जब आपके अन्दर में ये शुरु हो गया, तब दूसरा बड़ा भारी नियम सहजयोग का है। भई, ये क्या तरीका है? अंक : 9& 10-2005 चैतन्य लहरी 21 चेतना का कार्य है इसको लोग समझ नहीं पाते। यह point ( बात) क्या है, इसको समझना चाहिए। जैसे हम कहें आप भाई-बहन हैं और अपने एक -दूसरे को भाई-बहन समझें। यह तो ऊपरी बात कहनी हुई। जब यह हैं ही नहीं, तो कैसे समझेंगे। लेकिन पार होने पर ये पता होता है कि एक ही माँ ने हमको जन्म दिया है। अब जैसे जो लोग पार हैं, अगर हम अपने हाथ में फुँके तो आपको भी फँक आएगी। अगर हम कोई सुगन्ध, ये लोग scent (इत्र) वरगैरह लगायें तो आपको सुगन्ध आएगी चाहे आप यहाँ हों चाहे इंग्लैण्ड में हों। पर सहजयोग में पूरी तरह से हमसे con- nected (जुड़े) हों, तो। आधे अधूरे लोगों को नहीं होता। लोग कहते हैं 'माँ suddenly (अचानक) कभी एकदम से खुशबू आने लग जाती है। क्योंकि सब एक ही के अंग प्रत्यंग है। ये जब तक आप समझ नहीं लेंगे पूरी तरह से, तब तक आपको मुश्किल रहेगी। पहला नियम ये कि इसके बारे में आप सोच नहीं सकते, ये सोच विचार के परे हैं, निर्विचार में है, असीम की बात है। दूसरी जो बात इसकी बहुत ही महत्त्व पूर्ण है कि "सहजयोग की क्रिया आज महायोग बन गई। पहले एक ही दो फूल आते थे पेड़ पर। एक ही फूल। वो ज़माना और था। उस जमाने में इतना ज्यादा कोई ज्ञान देता भी नहीं था कहीं किताबों में भी लिखा नहीं है, किसी को कोई बताता भी नहीं था। समझ लीजिए कबीरदास जी ने भी कहा है तो उन्होंने सिर्फ अपना ही वर्णन किया है कि भई मेरे 'शून्य शिखर पर अनहत् बाजे रे और मेरे ऐसे-ऐसे वगैरा है। पर इतना गहराई से बताया नहीं क्योंकि उन्होंने ये काम किया नहीं था, उसके बारे में निवेदन किया था उसके बारे में Prophecy (भविष्यवाणी) की थी कि ये काम है। विशेष कर ज्ञानेश्वरजी ने साफ़ कहा था कि महायोग होने वाला है विलियम ब्लेक नाम के एक बड़े भारी कवि ने बहुत सहजयोग के बारे में बताया है जो ये घटना घटने वाली है। ईड़ा पिंगला सुषुम्ना नाड़ी' 1 अब बहुत-से लोगों को मैं देखती हैं कि "मैं घर में ले जाऊँगा माँ और वहाँ मैं करूँगा । तो, जो चीज घटने वाली है, होने वाली है बहुत-से लोग तो यहाँ आने पर भी सोचते है कि हम बड़े भारी अफसर है। हम यहाँ कैसे? बहुत-से लोग यहाँ इसलिए नहीं आते हैं कि हम बड़े भारी अफसर हैं। जहाँ लोग mesmerise (सम्मोहित ) नहीं गया किताबों में। ये बहुत गलत धारणा है। करते हैं, और गन्दे काम करते हैं, वहाँ सब मोटरें लेकर पहुँच जाते हैं। तब कोई शर्म नहीं। घोड़े का नम्बर पूछना हो तो वहाँ पहुँच जायेंगे सब मोटरें लेकर! लेकिन ऐसी जगह जहाँ परम का कार्य हो रहा है, वहाँ मैं देखती हूँ कि लोगों को शर्म आती है आते हुए। या तो कुछ लोग डरते भी हैं। उस के बारे में उन्होंने कहा था। और आज जब वो घट गई तो उसके बारे में अगर हम बता रहे हैं तो बहुत से लोग ये भी सोचते हैं कि ये तो कहीं लिखा क्योंकि समझ लीजिये कोई कहे कि आप चन्द्रमा पर गये किसी ने लिखा था कि चन्द्रमा पे कैसे जाया जाएगा? जिस वक्त आप उसको करें तभी तो आप लिखेंगे। इसलिए इस तरह की धारणायें लेकर के मनुष्य अपने को रोक लेता है पर जो महत्त्वपूर्ण है, जो बड़ा है, वो ये है, उसको समझना चाहिए कि आज का सहजयोग एक-दो आदमियों का नहीं है। यह सामूहिक डरने की कोई बात नहीं अपनी माँ हैं। हम तो सबकी माया जानते हैं. किसी भी तरह का मामला हो, हम ठीक कर सकते हैं। तो डरने की जा अंक : 9& 10 -2005 22 चैतन्य लहरी किसी भी आदमी के बारे में, कहीं पर है, उसके बारे में भी जान सकते हैं कि इस आदमी को क्या शिकायत है। बैठे-बैठे। ये सामूहिक चेतना में आप जानते हैं। आप कोई मृत आदमी के लिए भी जान सकते हैं। कोई गुरु वो सच्चे थे कि झूठे थे, जान सकते हैं। आप कहीं पर जायें और कहें कि यह कौन सी बात है? इसलिए माँ का स्वरूप है न हमारा। उसको ऐसा समझना चाहिए कि प्रेम का स्वरूप है, और उसमें डरने की कोई बात नहीं है। ये सामूहिक कार्य को मनुष्य समझ नहीं पाता है, कभी भी। जब तक वो पार नहीं होता। यानि ये कि जब दूसरा आदमी है वो, कोई रह ही नहीं जाता है। 'दूसरा है कौन? | 1 जागरूक स्थान है, आप जाने सकते है कि जागृत है या नहीं। जागृत होगा तो उसमें वाइब्रेशन आयेंगे। जागृत नहीं होगा तो नहीं आयेंगे। ये इस तरह से महसूस होता है कि आपके हाथ से ठण्डी -ठण्डी हवा तो चलनी शुरु हुई, और आप जैसे ही दूसरे आदमी के पास में जायेंगे तो में ऐसा लगेगा कि एक उँगली जरा जो सच्ची बात है, जो सत्य है वह आत्मा बताता है। इसलिए उसे 'सत्य-स्वरूप' कहते है। और क्योंकि जब आत्मा हमारे अन्दर जागृत हो शुरु - शुरु जाता है, तो हमारा जो चित्त है, जो हमारा atten- tion है. वो जहाँ भी जाता है, वो काम करता है। अब ये चीज़ भी ननुष्य के समझ में नहीं आती। माने कि यहाँ बैले- बैठे किसी सहजयोगी का चित्त अगर गया कहीं पर, तो वो आदमी ठीक हो सकता हरकत कर रही है, पता नहीं क्या? आप उनसे पूछिये कि आपको बहुत जुकाम होता है, आपको कोई शिकायत है, ऐसी तकलीफ है? कहने लगे हाँ भई क्या बतायें, तुमको कैसे पता?' कहने लगे मेरी ये उँगली पता नहीं क्यों काट सी रही थी? ये है। subjective knowledge , subjective H 3HI का knowledge (ज्ञान) । Subjective ऐसा अगर शब्द इस्तेमाल करें तो इसका मतलब होता है कि दिमागी जमा-खर्च। मतलब एक आदमी है-साहब मैं इसे जानता हूँ, मैं उसे जानता हूँ। ये Absolute Knowledge (शुद्ध सत्य विद्या) है, आत्मा Absolute (शुद्ध सत्य) है। ये absolute knowledge है। लो एक आदमी एक बात कहेगा। वही दस आदमी कहेंगे, अगर वो सहजयोगी हैं तो दस छोटे बच्चे अगर Realised Souls हैं ये experiment लोग कर चुके हैं-उनकी आँख आप बाँध कर रखिये और किसी आदमी को सामने बैठा दीजिये बताइये कहने लगे इनके वाइब्रेशन्स, कहाँ पकड़ आ रही है। सबके सब उसके लिए बतायेंगे ये उँगली में पकड़ आ रही है। सब' । इसमें जलन हो रहा है। माने ये कि उसके नाभि चक्र की तकलीफ़ है या उसका लीबर खराब है वो थोड़ा सीखना पड़ता है। आप यहाँ बैठे हैं। ड हमारे एक रिश्तेदार हैं उनकी माँ बहुत बीमार रहती थीं बिचारी। और बहुत ही बूढ़ी हो गयी हैं। तो वो हम से बताते हैं कि 'अब हम आप से नहीं बतायेंगे क्योंकि बहुत बूढी हो गयी हैं, अब उन्हें छुट्टी कराइये आप। जब भी हम बताते हैं वह ठीक हो जाती है। ये हमारा अनुभव है कि जब भी हम बताते है ठीक हो जाते हैं। अस्सी साल की हो गयी है। अब भी फिर वैसे ही हाल हो जाता है। फिर बीमार पड़ जाती हैं फिर आपको बताते हैं वो ठीक हो जाती हैं। मतलब चित्त जो है, वो जागरूक हो जाता है। जहाँ भी आपका चित्त जाएगा वो कार्यान्वित होता है। जहाँ भी आप चित्त डालें। 1 1 लेकिन इसके लिये पहले अपनी आत्मा में स्थिरता आनी चाहिए। कनेक्शन (योग) पूरा आना चाहिए। समझ लीजिए इसका कनेक्शन ठीक न अंक : 9& 10 -2005 23 चैतन्य लहरी Vibrations-for ordinary vibration 100 dollars & for special vibrations 250 dollars ( हो तो मैं थोड़ी देर बात करूँगी सुनाई देगा, बाकी बात गुल हो जाएगी। यही बात है, इस वजह से आप वाइब्रेशन भी खो देते हैं, आपका जरा कनेक्शन loose (ढीला) हो गया। पहले अपना कनेक्शन ठीक करना पड़ेगा। वाइब्रेशन सौ डॉलर, विशेष वाइब्रेशन 250 डॉलर)। मैंने कहा गये काम से ये तो मैंने उनसे कहा कि ये क्या बदतमीज़ी है आपकी? आपने कितना पैसा दिया था मुझे कितने Dollars (डॉलर) दिये थे आपने वाइब्रेशन लेने के लिए जो तुमने ऐसा लिखा, तो कहने लगे कि 'माँ, ऐसा है कि मैं पैसे कैसे कमाऊँ फिर? मै खाऊँ क्या?' मैने कहा, स लेकिन सामूहिकता की और भी गहनता अपने को समझनी चाहिए कि सारा एक ही है। हम सब अंग-प्रत्यंग हैं। और जब हम अंग-प्रत्यंग हैं, तो एक आदमी ज्यादा नहीं बढ़ सकता और एक आदमी कम नहीं हो सकता। भूखे मरो। क्या तुम सहजयोग से पहले कुछ करते थे? कहने लगे, हाँ मैं स्कूल में पढ़ाता था मैंने कहा स्कूल में पढ़ाओ। जो करते थे सो करो । कभी-कभी सहजयोगियों में भी ये धारणा लेकिन तुम सहजयोग को बेच नहीं सकते हो। तुम आ जाती है कि हम सहजयोग में बड़े भारी बन बाइब्रेशन बैच नहीं सकते। कहने लगे मेरा Centre गए। बहुतों में ये आती है। हम तो बड़े ऊँचे आदमी (केन्द्र) है, उसमें लोग आते हैं खाना खाते हैं। मैंने है जब ऐसी भावना आ जाए तो सोचना चाहिए कि ही पतन की ओर हम जा रहे हैं। जिसने ये क्यों लिखा। लिखो, खाने का इतना पैसा, कमरे 1 कहा ठीक है, खाने का पैसा लो। वाइब्रेशन का बहुत सोच लिया कि हम ऊँचे हो गये, वो सोचना कि हम पतन की ओर जा रहे हैं। क्योंकि जैसे आदमी सच में ऊँचा होता है, वैसे-वैसे बो नम्र ही होता जाता है। उसकी आवाज़ बदलती जाती है। उसका स्वभाव बदलता जाता है। उसमें बहुत ही त्रमता, उसमें प्रेम बहुते रहता है। ये पहचान है। अगर कोई सहजयोगी सहजयोग में आने के बाद भी बुलन्दी (बड़प्पन) पर आ जाए और कहे 'साहब तुम ये क्या हो, वो क्या' तो उसको खुद सोचना चाहिए के मैं गिरता जा रहा हूँ। लेकिन इसका दूसरा भी अर्थ नहीं लगाना चाहिए, बहुत-से लोगों को ये है । मैंने देखा। एक साहब थे, अमरीका में और उन्होंने कहने लगे 'वाह रे वाह, देखिये ये सहजयोग नाम से केन्द्र चलाए। जब आए तो का इतना पैसा। उसमें भी आप Profit (लाभ) नहीं बना सकते। ठीक है, जितना लगा उतना खर्चा लो। उसके दम पर तुम अपने महल नहीं खड़े कर सकते । और वाइब्रेशन उसके ऐसे थे कि जैसे जल रहा है। बहुत नाराज़ हो गये मेरे साथ। और नाराज़ होकर के वो चले गये। उन्होंने कहा ये तो हो ही नहीं सकता ऐसा। लेकिन सबसे बड़ी बात उस वक्त ये हुई कि उन्होंने बहुत बकना शुरु कर दिया। जब बहुत बकना शुरु किया तो एक साहब हमारे सहजयोगी हैं, उठकर खड़े हो कर कहने 1 1 लगे, ज्यादा बका तो ऊपर से नीचे फेंक देंगे तो सहज योगी हुए हैं । इनमें कोई नम्रता नहीं है। मैंने कहा खबरदार जो सहजयोगियों को कुछ कहा या मुझे कुछ कहा, सबने बताया, माँ ये तो पता नहीं क्या तमाशा है, हम लोग इस पर हाथ रखते हैं और चक्कर खाकर गिर जाते हैं । तो बड़े चक्कर वाला आदमी है, मैंने कहा, 'अच्छा, मैं तो समझ रही हूँ। फिर मैंने उससे कहा, 'अच्छा ज़रा अपना Brochure (पुस्तिका) दिखाओगे? Brochure में उसने लिखा था कि बहुत। मैंने कहा ये दिन गये कि सब साधु सन्तों को तुमने सताया था। अगर किसी ने भी एक शब्द कहा है, तो देख लेना उनका ठीक नहीं होगा बहुत लोगों को ये है कि कोई अगर साधु सन्त है उसको जूते मारो, तो भी अब मैंने सुन लिया अंक : 9& 10 -2005 24 चैतन्य लहरी विशेष कर रहा हूँ, एक आदमी सोचे कि मुझे करने का है। एक आदमी सोच ले कि मैं माँ के बहुत नजदीक हूँ, तो इतना साधु सन्त को कहना चाहिए और दस मारो। ये कुछ नहीं होने वाला। आप अगर एक जूता मारियेगा तो हजार आप खाइयेगा। तब वो घबड़ा करके भागे वहाँ से । बो दूर चला जाएगा क्योंकि पति मन्थन हो रहा है। बड़े जोर का मन्थन हो रहा है। शायद आप इसको महसूस कर रहे हैं कि नहीं कर रहे, पता नहीं। जब हम दही को मथते हैं, ये भी बहुत लोगों में है कि 'आपको गुस्सा कैसे आ गया?" दूसरी side (ओर) अभी एक साहब मिले। मुझसे बकवास करने लगे, मैंने कहा चुप रहिए, आप बेवकूफ आदमी हैं, बहुत बकवास कर रहे हैं बेकार में। कहने लगे मैंने ये पुराण पढ़ा. मैंने वो पुराण पढ़ा। मैंने कहा आपने कुछ नहीं पढ़ा बेकार बातें कर रहे हैं। आपको कुछ पता नहीं है। अभी पता हो कि नम्बर दो को चलाते हैं कि नम्बर चार पता नहीं क्या-क्या होता है। तो मैंने कहा कि देखिये आप बेवकूफी की बातें मत करिये। दूसरे जो है उनको समझने दीजिये । आप बीच में तो उस का सब मक्खन ऊपर आ जाता है। फिर हम थोड़ा-सा मक्खन उसमें डाल देते है यही समझ लीजिए Incarnation (अवतार) है, समझ लीजिए, यही समझ लीजिये कि परमात्मा की कृपा है। और उस मक्खन से बाकी सारा लिपट जाता है, और सब साथ ही साथ एक ही जैसा चलता है। अब उसमें से कोई सोचे मैं अलग हैँ। एक-आध, 1 HE दो-चार मक्खन के कण इधर-उधर रह जाते हैं तो लोग फेंक देते हैं। उसके पीछे में कौन दौड़ने चला है? बकवास मत करिये, आप चुप रहिए। तो कहने लगे देखिये आपको गुस्सा आ गया। आप की अगर कुण्डलिनी जागृत है तो आपको गुस्सा नहीं आता। मैने कहा मेरा गुस्सा मत पूछो तुम। बड़ा जबरदस्त होता है जब आए तो। तो फिर जरा सहमे महाशय। लेकिन बात ये है कि इस तरह की भी धारणा लोग कर लेते हैं। में हैं"। और एक ही दशा कोई ये न सोच ले कि मैं ऊँची दशा में हूँ। मै नीची दशा में हूँ। ऊँची दशा में हैं, कभी नहीं सोचना। इस तरह से सोचने से बड़ा नुक्सान हो जाता है। यानी आप सोच लीजिये कि जब हम "सब एक हैं | एक ही अंग है। अगर एक उँगली सोच ले कि मैं बड़ी हो जाऊँ, नाक मेरी सोच ले कि मैं बड़ी हो आप कोई बिलबिले आदमी नहीं हो जाते जाऊँ। कैसी दीखेगी शक्ल? ये तो malignancy हैं। आप वीर, श्रीपूर्ण, आप तेजस्वी लोग हो जाते ( दोष) है। यही तो cancer होता है। cancer में हैं, आपके हाथ में तो तलवारें देने की बात है। ये थोड़े कि आप उस बक्त में जितना भी कोई चाँटा खाने लग जाता है। ये हो गया कैँसर। ऐसा जो मारे आप खायेंगे। वो Christ (येसु) ने कहा कि माफ कर दो। वो दूसरी बात थी, उसका अर्थ ही दूसरा था। क्योंकि उस वक्त लोगों का ये ही हाल विशेष था कि एक ही चाटा कोई नहीं खा सकता था। लेकिन पार होने के बाद तत्क्षण आपमें शक्ति आ जाती है। तत्क्षण । तो सामूहिकता को इस तरह से समझना चाहिए कि एक आदमी उठकर के कोई कहे कि मैं एक अपने को बड़ा समझकर के बाकी cels को इन्सान होता है वो अपने को unique (अनोखा) मैं बनाना चाहता है कि सब मेरे ही पास हो जाए. कोई तो भी विशेष हो जाऊँ। मेरा ही कुछ हो जाये, वो आदमी cancerous हो गया society (समाज) के लिये। सहजयोग की ऐसी स्थिति है, जैसे कि एक मैं कहानी बताती हूँ । कि जैसे एक बहुत - सी अंक : 9& 10 2005 25 चैतन्य लहरी कृष्ण ने भी कहा है कि जहाँ दस लोग हमारे नाम पर बैठते हैं वहीं हम रहते हैं न कि कहीं एक बैठा हुआ वहाँ जगल में और कृष्ण-कृष्ण रहा है। उनको time (समय) नहीं है। कबीर ने कहा कि "पाँचों पच्चीसों पकड़ बुलाऊँ मतलब उनकी भाषा में इतनी Authority ( अधिकार) भी सब मिलकर के एक, दो, तीन कहकर के उठें। देखिये । कितने अधिकार से बातें करते थे! कोई और सबके सब उठे और जाल को तोड़ दिया गिला नहीं था उनमें वो कहते हैं पाँचों पच्चीसों पकड़ बुलाऊँ, एक ही डोर उड़ाऊँ। ये कबीर जैसे बोल सकते हैं। और आप भी कह सकते हैं इसको चिड़ियाँ थीं और उनको एक जाल में फँसा दिया गया। तो चिड़ियों ने आपस में ये सलाह मशवरा किया कि अगर हम लोग सब मिलकर इस जाल को उठा लें, तो जाल हमारे साथ उठ जायेगा फिर जाकर इस को तुड़वा देंगे बाद में, फड़वा देंगे, किसी तरह से निकाल देंगे तो कहा, हाँ ठीक है। कर उन्होंने। वही चीज़ सहजयोग है। सहजयोग की सामूहिकता लोग समझ नहीं पाते हैं, इसलिये कि जब तक पाँचों पच्चीसों नहीं आयेंगे तब तक बहुत गड़बड़ होता है। माने, माँ, मैं करके ध्यान करता हूँ। रोज पूजा करता हूँ। मेरे वाइब्रेशन बन्द हो गये होंगे ही आपको सामूहिकता में आना पड़ेगा। आपको Centre (केन्द्र) पर आना पड़ेगा। एक दिन हफ्ते में कम से कम सेंटर में आ करके आपको देखना पड़ेगा कि आपके वाइब्रेशन ठीक हैं या नहीं। दूसरों पर मेहनत करनी पड़ेगी। आप दीप इसलिए बनाये मरगिल्ले हो जाएँ तो उनको और पेड़ों के साथ गये हैं कि आपको दूसरों को देना होगा इसलिए नहीं बनाए गए कि आप अपने ही घर बनाते को शक्ति देते हैं । मानो जैसे कोई एक दूसरे को रहिये। फिर वही दीप हो सकता है बिल्कुल बुझ जाएगा। ये दीप सामूहिकता में ही जल सकता है, नहीं तो जल नहीं सकता। ये महायोग का विशेष कारण है कि हम अपने को अलग न बाद में। जब आप पार हो जायें तो आप भी देखेंगे सहजयोग मुकम्मल (पूर्ण) नहीं होता है। घर में बैठ बहुत-से लोग आते हैं, पार हो जाते हैं। उसके बाद जब मैं आती हूँ तभी आते हैं। उनकी हालत कोई ठीक नहीं रहती। सहजयोग में वो बढ़ते नहीं, वृद्धिगत नहीं होते। आप पेड़ों के बारे में भी ये अनुभव करके देखें, कि अगर कुछ पेड़ आप लगा दीजिए. वो पनप जाते हैं। एक दूसरों देखकर के बढ़ते हैं। और यही सामूहिकता ही सर्व राष्ट्रों में और सर्व देशों में फैलने वाली है और उस दिन आप जानियेगा कि आप चाहे यहाँ रहें, चाहे इंग्लैंड में, चाहे अमेरिका में, या चाहे किसी भी मुसलमान देशों में या चीनी देशों में, कहीं भी रहें आप सब एक हैं। यही शुरुआत हो गई है. और सहजयोग एक बड़ी संक्रान्ति है। 'सं' माने अच्छी और 'क्रान्ति' माने आप जानते हैं। ये एक बड़ी समझें। आएँ नम्रतापूर्वक, आप ध्यान में आएँ, हो सकता है कि सेन्टर में एक आध आदमी आपसे कहे भी कि भई, ये छोड़ दो, ये नहीं करो। तो बुरा नहीं मानना है। क्योंकि उन्होंने अनुभव किया है । उन्होंने जाना है कि ये बात गलत है, इसको भारी evolutionary क्रान्ति है। और जो पवित्र छोड़ना चाहिए, इसे निकालना चाहिए। और जो कुछ भी सेन्टर में कहा जाये उसे करें क्यों कि सेण्टर पर हमारा ध्यान रहता है। क्रान्ति है। जो प्रेम से होती है, जो अन्दर से होती है । उसमें सबसे पहले जानना चाहिये कि हम उस विराट् के अंग प्रत्यंग हैं हम अलग नहीं। और आप हैरान होइयेगा इसके कितने फायदे होते हैं। এ ट. अंक : 9 & 10 - 2005 चैतन्य लहरी 26 एक हमारे शिष्य थे प्रोफेसर साहब राहुरी पहुँचे और बम्बई में सब सहजयोगियों ने अपनी में। वो ज़रा अपने को अफ़लातून समझते थे, बहुत ज्यादा। एक बार उन्होंने मुझे बताना शुरु किया जितने भी डॉक्टर थे सहजयोगी और जो लोग थे कि ये साहब जो हैं ये सहजयोग तो अच्छा करते उन्होंने hospital (अस्पताल) में उनको भर्ती करना, हैं, बहुतों को पार तो किया लेकिन ज़रा गुस्सा इनको ज्यादा आता हैं। और इनकी बीवी से इनकी पटती नहीं है । दुनिया भर की मुझे शिकायतें करने लग गये तो भी मैं चुप थी। मैंने कुछ नहीं कहा। फिर उन्होंने एक ग्रुप बनाया आपस में, और कहने न इतना रुपया था न पैसा था। सब कुछ लगे हम लोग अलग से काम करेंगे तो भी मैं चुप सहजयोगियों ने तैयार करके-मुझे कभी जो लोग थी। तीसरे मर्तबा जब गये तो देखा कि वो कह रहे कभी भी टरंक-कॉल नहीं करते थे वो लन्दन में थे कि कुछ हर्ज नहीं थोड़ा-सा तम्बाकू भी खा लें ट्रंक कॉल पर ट्रंक-कॉल माँ वो हमारे एक तो कोई बात नहीं, मै तो खाता हूँ। माता जी को सहजयोगी हैं, उनको ब्लड कैंसर कैसे हो गया? तो कुछ पता ही नहीं है। मैं तो खाता हैूँ। कोई हर्ज नहीं। तो वो सब तम्बाकू खाने वालों ने एक ग्रुप चिट्टी लिखी न कुछ किया। आज ट्रंक कॉल बना लिया। माताजी के. मतलब, हैं तो सहजयोगी लेकिन तम्बाकू खाने वाले सहजयोगी, शराब पीने देखो तब ट्रंक कॉल, माँ इनको ठीक कर दो, माँ वाले सहजयोगी, रिश्वत लेने वाले सहजयोगी, झूठ बोलने वाले सहजयोगी। ऐसे ग्रुप बन गये। तो मैंने रहे हैं, सबके। बहरहाल वो अब ठीक हो गये, उनसे कहा-वहाँ पर सिर्फ तम्बाकू खाने वालों का था, तम्बाकू बड़ी मुश्किल से छूटती है, बहुत मुश्किल से। तो, उसके बाद जनाबेआली से मैंने ठीक हो गये 'अब' वो समझ गये बात। उनके जान लगा दी। बिल्कुल जान लगा दी उनके लिये उन का सब diagnosis (जॉँच पड़ताल) करना, उन के लिए दौड़ना, धूपना सब शुरु। अब जो रिश्तेदार उनके चिपके थे वो तो सब छूट गए. हुए वो कोई उनको जानने वाला नहीं। उनके पास तो आप ठीक कर दीजिये । मैंने कहा इन्होंने कभी न लन्दन करना कोई आसान चीज नहीं। और जब वो हमारे.. । माने जैसे इन्हीं के प्राण निकलें जा बिल्कुल ठीक हो गये डॉक्टर ने कह दिया कि दस दिन में खत्म हो जायेंगे लेकिन अब बिल्कुल सगे कौन हैं, वह अब पहचान गये हैं। उससे पहले नहीं। उन लोगों के पीछे में दौड़ते थे, दूसरे रिश्तेदारों के पीछे में उनको खाना खिलाना. पिलाना। उनसे कभी सहजयोग की बात नहीं करना। और जब सहजयोग में आना तो तम्बाकू वालों का एक ग्रुप बना लेना। फ़रमाया कि देखिये, ज़रा आप सम्भल के रहिये। ज्यादतियाँ आपने करली हैं। जब ये ग्रुप बन बहुत जाता है, मैंने तभी कहा, तब malignancy (विष) बहुत जोर करती है। अगर एक ही cell हो तो कोई बात नहीं। लेकिन अगर दस cell हो गये और सब malignant हो गये तो गया आदमी काम से।" उसके बाद जब मैं मोटर से आ रही थी तो मैंने रास्ते में जो वहाँ के संचालक थे उनसे कहा कि इनपर नज़र रखिये । मुझे डर लगता है कि ये कहीं गड़बड़ में न फँस जाएँ । और आपको आश्चर्य होगा कि उनको ब्लड कैंसर हो गया। लेकिन ऐसा आपका सगा-सोएरा कहीं हैं दुनिया में नहीं मिलेगा। ज्यादातर सगे ऐसे होते कि आपकी खुशियों पर पानी डालते हैं। और कहते हैं कि-ऊपर से दिखायेंगे आपके बड़े दोस्त हैं लेकिन चाहेंगे कि आप खुश न हों। देखिए। आपको आश्चर्य होगा कि अगर कोई मर जाता है तो हज़ारों लोग पहुँच जाते हैं रोने के लिए। खुश अब जब Blood Cancer हो गया तो उनकी हालत खराब हो गयी। तो वो साहब बम्बई अंक : 9& 10-2005 27 चैतन्य लहरी होते होंगे, शायद घर पर आफ्त आयी, मन में। और जब कुछ प्रमोशन हो जाये, कुछ अच्छाई हो जाये, तो कहने लगे-पता है इसका कैसे प्रमोशन हो गया इसने बड़ी लल्लोचप्पी की होगी।' कभी खुश नहीं होते। लेकिन सहजयोग दूसरी चीज़ है। सहजयोग में लोग खुश होते हैं, जब देखते हैं 'अरे ये सहजयोगी first (प्रथम) आ गया इस सहजयोगी के ऐसे हो गया सहजयोगी के घर में किसी के बार-बार माफी माँगेंगे, 'माँ तुम माफ कर दो। तुम तो माफ़ कर दो उस पर तुम कुछ नाराज हो गई हो। नहीं तो...| मैंने कहा कि भई तुम क्यों माफी माँग रहे हो उसकी । 'अब वो भूल रहा है माफी माँगना तो हम ही माँग रहें हैं, उसको माफ़ कर दो। इतना प्रेम चढ़ता है सब देख-देखकर । इतना मोह लगता है कि 'कितनी मौहब्बत', 'कितना खयाल' । कितनी किसी पर कोई परेशानी आ जाए, पैसे की परेशानी आ जाए, कोई तकलीफ हो जाए, तो सबके सब secretly (चुपके से) उसको कर लेते हैं, मेरे को पता ही नहीं चलता है। सब आपस में ऐसे खड़े हो जाते हैं, और सारी दुनिया की दुनिया ऐसे सहजयोगियों की जब करी। कहने लगे मेरे सगे भाई-बहन तो यहाँ रहते खड़ी होगी तब सोचिये क्या होगा? अभी तो हम लोग वैमनस्य, द्वेष और हर तरह के competition (प्रतियोगिता) और पागल दौड़ Rat race के पीछे में। वहाँ आकर के उन्होंने शादी करी, अपनी बीवी में दौड़ रहे हैं। ये सब खत्म हो जाएगा। और इतनी sense of security (सुरक्षा की भावना) हमारे अन्दर आ जाएगी कि सब हमारे भाई बहन बच्चा हो गया तो मार तूफान हो जाता है। अभी एक साहब की शादी हुई राहुरी में । वो स्विटजरलैण्ड के थे। वहाँ आकर उन्होंने शादी हैं। मुझे क्या करना है स्विटज़रलैण्ड में शादी कर के। वो स्विटजरलैण्ड से आये, राहुरी-एक गाँव को भी लाये, और वहाँ उन्होंने शादी करायी। वहीं घोड़े पर गये और सब कुछ किया उन्होंने। कहने लगे, भइया, मेरा वहाँ कोई नहीं रहता, मेरे सगे-सोएरे सब यहाँ पर हैं। और ऐसे आनन्द से सबने उनकी शादी मनाई। और अब उसको बच्चा होने वाला है तो सब सहजयोगी ऐसे खुश हो गये, आपस में पेड़े बॉटने लग गये और उनके जो रिश्तेदार थे, उनको समझ में ही नहीं आया कि ये कैसे सब हो गया। अब आपके रिश्तेदार सहजयोगी हो जाते हैं। आपके मित्र हो जाते हैं । आपके 'अपने हो जाने हैं, आत्मज'। हैं। पर जो लोग, जन-सामूहिक नहीं होते वो निकलते जाते हैं, सहजयोग से। ये तो ऐसा है, जैसे कि centrifugal force (अपकेन्द्रीय बल) है वो घूमता है, घूमता है और अगर उसने ज़रा-सा छोड़ा कि गया वो tangent (स्पर्शरेखा) से बाहर। वो रहता नहीं, फिर टिकता नहीं। इसलिए उसे चिपक कर रहना चाहिये इसके जो नियम हैं, उसको समझना चाहिए, उसको जानना चाहिये। दूसरों से पूछना चाहिए उसमें मानने की कोई बात नहीं। जो कल आए थे "आत्मज' शब्द बहुत सुन्दर है। शायद कभी इस का मतलब किसी ने नहीं सोचा 'आत्मज' जो आत्मा से पैदा हुए हैं, वो आत्मज होते हैं। कहा जाता है कोई बहुत नजदीकी आदमी को ये मेरे बुरा वो ज्यादा जान गये। आज आप आये है आप जान जाइये। और जो कल आएँगे वो आप से जानेंगे । इसमें बुरा मानने की और इसकी कोई बात नहीं । पर जब आदमी सहज योग में पहले आता है तो वह यही भावना लेकर आता है कि अब हम इसमें आये हैं और ये देखिये, हमें बड़ी शान दिखा रहे आत्मज है। जिस का आत्मा से सम्बन्ध हो गया उसका 'नितान्त' सम्बन्ध होता है। मैं और खुद आश्चर्य में पड़ती हूँ मेरे जान को लग जाएँगे अगर किसी के इतनी-सी तकलीफ हो जाए-और हैं। अंक : 9 & 10 -2005 चैतन्य लहरी 28 हूँ, चलो हो गए एक। ये दूसरे हो गये इनकी श्रेणी बदल गयी है ये दूसरे हैं। ये दिखने में आप जैसे ही हैं लेकिन ये दूसरे हो गये हैं जैसे समझ लीजिये कि आपके college में लड़के पढ़ते हैं। कोई बी.ए. है. कोई First Year ( प्रथम वर्ष) है। फिर कोई एम.ए. में है। एम. ए. का लड़का Pass (पास) होकर Proffessor (प्रोफेसर) होकर आ जाता है, तो हम यह थोड़े ही कहते हैं कि कल हमारे ही साथ में पढ़ता था और मैं भी सरकारी नौकर सहजयोग में सब छूट जाता है। आप 1 कौन देश के हैं? परमात्मा के देश के। आप किसके साम्राज्य के हैं? परमात्मा के। परमात्मा ने थोड़ी ऐसा बनाया था कि आप यहाँ के आप वहाँ के। भाई परमात्मा तो हर एक जगह variety (विविधता) बनाते ही हैं। ये त्रिगुण के permuta- tion and combinations (विविध मिश्रण) के साथ में उन्होंने ये सारा बनाया, और इसलिए कि जैसे variety से खूबसूरती आती है। आप सोचिए कि सबकी एक जैसी हो शक्ल जाती तो Bore (नीरस) नहीं हो जाते सब लोग? आज आ गया बड़ा हमारे ऊपर । उसी तरह की चीज़ है-इनकी श्रेणी बदल गयी आप की भी श्रेणी बदल सकती है। कुछ-कुछ लोगों को मैंने देखा है कि सालों से रगड़ रहे हैं सहजयोग में। कुछ progress नहीं होता, वो ऐसे ही चलते रहते हैं. डावाँडोल-डावाँ-डोल। कभी गुरुओं के चक्करों में घुसे। आज ही एक महाशय आये थे, आये होंगे अभी भी पार हो गये थे, उसके बाद में वो गये; कोई शकराचार्य के पास गये, कहीं किसी के पास गये, कहीं कुछ गये विचारे बिल्कुल पागल हो गये-पागल! मुझे आकर बतलाने लगे कि माँ मेरे अन्दर पिशाच' भर दिये इन्होंने। सबने पिशाच भरे। आए अभी बिचारे; काफी उनको साफ सूफ किया हमने। पर उससे progress (प्रगति) उनका कम से कम हिन्दुस्तानी औरतों को इतनी अक्ल है कि साड़ियाँ पहनती हैं अब भी, और सब अलग-अलग तरह की पहनती है। पर आदमी तो बोर करते हैं-उनके कपड़ों से। सब एक जैसे। औरतें जो है अभी भी अपना maintain किए हैं। अगर एक औरत ने देखा कि दूसरी मेरे जैसी साड़ी पहन कर आयी है तो बदल के आ जाएगी। और वो साड़ी वाले भी इतने होशियार होते हैं बिचारे वो जानते हैं उनको आदत पड़ी रहती है। पचासों साडियाँ दिखायेंगे। बो थकते नहीं बिचारे। मैं कहती हूं कौन जीव हैं ये भी, पता नहीं । और कभी उनको पता हो गया कि ये साड़ी मेरे पड़ोस के उसके रिश्तेदार के उसके पास है तो लेंगी कम हुआ। अगर उसी वक्त जम जाते तो आज कहाँ से कहाँ होते! और बड़ी तकलीफ उठाई बिचारों ने। बड़ी परेशानी उठाई। नहीं। सामूहिकता को आप समझें कि बहुत महत्त्वपूर्ण है। सबसे बड़ा आशीर्वाद सामूहिकता में आता है । और जहाँ इस सामूहिकता को तोड़ने की कोशिश की, यानि लोगों को आदत है, क्लब करने की, कोई न कोई बहाना लेकर के। आप सफेद बाल वाले हैं तो मैं भी सफेद बाल वाला हूँ। चलो हों गये एक। आप लम्बे आदमी हैं तो हम भी लम्बे आदमी हैं, हो गये क्लब। आप सरकारी नौकर हैं, ये variety की sense (विविधता का विवेक) सौंदर्य का लक्षण है। बनाया है। उसने सारी सृष्टि सुन्दर से बनायी, कहीं पहाड़ बनाये, कहीं पर नदियाँ बनायीं,. कहीं कुछ बनाया। इसलिए कि आप लोग उसमें मस्त रहें, मज़े में रहें । लेकिन आपने तो इसको ये बना लिया देश उसको वो देश बना लिया। उसने वो इसलिए परमात्मा ने 29 अक : 9 & 10 - 2005 चैतन्य लहरी में मुझे मिले-तो मेरा फोटा वोटो रखा हुआ अपने मोटर में। कहने लगे मैंने घर में भी फोटो रखा है, मेरे दिल में भी फोटो है। मैंने कहा बेटे क्या बात है, वाइब्रेशन तो हैं नहीं! कहने लगे हाँ नहीं हैं। और अब एक कोई नई बीमारी हो रही है। मैंने कहा ये सब फोटो बेकार गए न तुम्हारे लिए। तुम सहजयोग करने के लिए केन्द्र पर आओ ।' देश बना लिया, और लड़ रहे हैं आपस में! अजीब हालत है। हमारे जैसे अजनबी को तो बड़ा ही आश्चर्य लगता है, भई इसमें लड़ने की कौनसी बात है? और फिर घुटते-घुटते हर एक देश में अपनी-अपनी समस्या, अपना-अपना ढंग बनता गया। जाती है। आपको सहजयोग में ये चीज़ टूट देखना चाहिए था कि परदेश के आए हुए लोग किस तरह से अपने देहातियों के साथ गले मिल-मिलकर के कूद रहे थे। और वहाँ पर नृत्य सीख रहे थे, कैसे अपने देहाती लोग नृत्य करते हैं! अगर ये पंजाब जाएँगे तो वहाँ जाकर भँगड़ा करेंगे उनके साथ कूद-कूदकर। देखने लायक चीज़ है। ये भूल गए कि हम किस देश के हैं। आप सोचिये दिल्ली शहर में हमारे पास कोई केन्द्र नहीं। हर तरह के चोरों के पास यहां इतने बड़े-बड़े आश्रम बन गये हमारे पास अभी कोई जगह नहीं, किसी के घर में हीं हम कर रहे हैं। कोई बात नहीं। हमारे पास जो धन है. वो सबसे बड़ी चीज है। उसके लिये कोई ज़रूरी नहीं कि अब महल खड़े हों, बड़े Air- conditioned (वातानुकूलित) आश्रम हों। वह कहाँ रह रहा है कि क्या; बस मजे में। ये सब तो कभी होंगे ही नहीं हमारे। और अभी तक हमें कहीं भी हम लोग ज़मीन नहीं खरीद पाये, क्योंकि कौन कितनी position में है। कुछ खयाल नहीं हमने यह कहा था कि हम black-market (काला आता। ये सब बाह्य की चीजें हैं, सनातन नहीं है। बाज़ार) का पैसा नहीं देंगे। तो आज तक इस दिल्ली शहर में एक आदमी नहीं मिला जिसने कहा है कि, 'अच्छा माँ हम आपको ऐसी जमीन देंगे जिसमें सीधा-सीधा पैसा हो। एक आदमी नहीं मिला इस दिल्ली शहर में और उस बड़े भारी बम्बई शहर में आपके! ये हालत है। Government प्रेम-उसका मज़ा, प्रेम का मजा आता है। फिर आदमी यह नहीं सोचता कि कपड़े क्या पहने हैं, ये विचार ही नहीं आता है-कौन बड़ा, कौन छोटा, क्योंकि सनातन को पा लिया है। पर सबसे बड़ी बात आपको याद रखनी चाहिए, हर समय, कि हमें सामूहिक होना चाहिए और सामूहिकता में ही सहजयोग के आशीर्वाद हैं अकेले-अकेले indi - vidualistic बिल्कुल नहीं। बिल्कुल भी नहीं। आप खो दीजियेगा सब कुछ। मैंने ऐसे बहुत-से लोग देखे हैं। लोग ज्यादातर जो बीमारी ठीक करने आते हैं, वो ज्यादातर इसी तरह से होते है। आये, बीमारी ठीक हो गई, उसके बाद बैठ गये । (सरकार) से कहा तो वहाँ भी जो नीचे के लोग हैं ये वो bribe (रिश्वत) लेते हैं। उनको क्या मालूम सब चीज, कि ऐसा ऐसा होता है। लेकिन होता है। और उसके बाद उन्होंने ज़मीन दी भी, मतलब किसी को bribery तो हमने दी नहीं, तो उन्होंने हमें सब्ज़ी मण्डी के अन्दर हमें जगह दी। बताइये चिल्ला -चिल्ला कर 'माँ मेरे ये जल रहा है, मुझे अब! सब्जी मण्डी के अन्दर जहाँ बैल बाँधते हैं, बहाँ उन्होंने सहजयोगियों के लिए जगह दी । हमने कहा, भई जिसने दी है उसने कभी देखा भी कि बैलों के साथ क्या सहजयोगी वहाँ वैदने वाले हैं?" एक साहब आए थे हमारे पास, बहुत बचाओ, बचाओ, बचाओ।' मैंने कहा, 'वैटे रहो अभी थोड़ी देर।' उसके बाद जब पहुँची तो पाँच मिनट में ठीक भी हो गए। उसके बाद एक दिन बाजार अक : 9& 10 -2005 चैतन्य लहरी 30 आसन आज नहीं बता सकती। लेकिन इसके बहरहाल अब तो उस बात को लोग समझ गए। बहुत दौड़ना पड़ा, सालों तक। अब दस वर्ष से मामले में बहुत लोग जानते हैं। कौन-से आसन कोशिश करने के बाद उन्होंने कहा, कि हम इस पर सोचेंगे। इसका अर्थ आप सरकारी नौकर है। आपको कौन-सी तकलीफ हैं, चो बता सकते जानते हैं। अभी वो सोच ही रहे हैं। तो बहरहाल जब भी जगह होगी, जैसे भी जगह, आप उसको विमर्श कर सकते है और आप (उन्नति) कर सकते देखें वहाँ करें, जो भी अभी सुब्रमनियम साहब ने अपना घर दिया हुआ है वहीं होता है । और कोई जगह अगर आपको मिल जाये तो ऐसी कोई जगह कर लीजिए। कोई जरूरत नहीं कि बहुत बड़ी करनी होगी और कहना होगा कि मुझे तकलीफ जगह हो। सर्व-साधारण लोग जहाँ आ सकें। इस तरह से सब अपना ही कार्य है। हमें करने चाहिए, कौन-से चक्र पर कौन-सी तकलीफ हैं, पता लगा सकते है। आपस में आप विचार है। लेकिन आपको एक दूसरे से बात-चीत है। सबमें घुल-मिल जाना चाहिए। अधिकतर लोग क्या है, कि आए वहाँ देखा कि वो साहब थे । बह सब ऐसा कर रहे थे, तो हम वहाँ से भाग खड़े हुए, ऐसे लोगों के लिए सहजयोग नहीं है। आपको घुसना पड़ेगा, उसमें रहना पड़ेगा. उन लोगों के साथ बात-चीत करनी पडेगी। क्योंकि ये ऐसी कला है कि ये बार-बार माँगने पर मिलती है । हमारे बच्चों के लिए हम कर रहे है। हमारे सारे मानव जाति के लिए हम कर रहे हैं। इसके लिए बहुत बड़ा आडम्बर करने की जरूरत नहीं है। सादगी से ही, सरलता से ही सबको बैठकर करना चाहिए। सहजयोग इतनी आशीर्वाद देने वाली कोई-सी भी कला आप जानते हैं, गुरु लोग चीज है कि सहजयोग में आए हुए लोग आज बड़े-बड़े मिनिस्टर हो गये हैं ये भी बात देखिये कितनी आश्चर्य की है। लेकिन मिनिस्टर होने के कितने योग्य हैं। यह नहीं कि आप आए और आप बाद वो भूल गए कि वो सहजयोगी हैं। जब छुई-मुई के बुधवा बनकर आपने कह दिया कि मिनिस्ट्री छूटेगी फिर आएँगे। ज़रूर आयेंगे। फिर आप पहचानियेगा कि ये फलाने मिनिस्टर थे, की तो हम भाग आए। कुछ माताजी' अब उनको फुरसत नहीं। आपकी हालत खराब कर देते हैं, तब देते हैं। तो आप का भी Testing (परीक्षण) होता है कि आप साहब वो ऐसे-ऐसे थे उन्होंने हमसे बदतमीजी नहीं। सहजयोग में जमना पड़ता है और उसमें आना पड़ता है। हालाँकि कोई आपका अपमान नहीं करता। लेकिन आप में बहुत ego (अहंकार) होगा तो बात- बात में आपको ऐसा लगेगा जैसे एक साहब आए, मुझे कहने लगे, 'हम तो आए थे आपसे मिलने लेकिन फुरसत सहजयोग के लिए जरूर निकालनी पड़ेगी आपको। ये आपका परम कर्त्तव्य है। जो कहता है 'मेरे पास समय नहीं है कब क, वो सहजयोग नहीं कर सकता। रोज शाम को और रोज सवेरे थोड़ा देर निकालना पड़ता है। सहजयोग में अनेक नियम हैं। अपने आचार-व्यवहार बर्ताव, वहाँ एक साहब थे बड़े बदमाश थे। हमने कहा 'क्या हुआ'? कहने लगे कि हम दिन में आए थे आपके पास।' मैंने कहा कि 'कितने बजे? '३-३० बजे'। मैंने कहा 'उस वक्त तो मैं आराम करती । रहन-सहन, आसन आदि क्या-क्या करने के वगैरह सबके नियम हैं । मैं सब नहीं बता सकती एक साहब ने प्रश्न किया कि 'माताजी आपने कहा था उसके आसन बताओ। तो मैं सब चक्रों के हूँ। तो कहने लगे हम ने सोचा माँ का दरबार है, कभी भी आ जाओ। मैंने कहा ठीक है. आपके लिए तो माँ का दरबार है, लेकिन आपकी अंक्ल चैतन्य लहरी अंक : 9 & 10 - 2005 31 पर अगर कोई बिगड़ भी गया उस पर, तो सहजयोग से भागने की क्या ज़रूरत है अब? जब तक आप केन्द्र पर नहीं आएँगे तब तक आपका कोई भी काम नहीं बन सकता है। का दरबार कहाँ रह गया? जो रात-दिन माँ मेहनत कर रही हैं क्या उसको थोड़ा आराम नहीं करना चाहिए? अगर उन्होंने कह दिया कि इस वक्त माँ आराम कर रही हैं, आप नहीं आएँ तो आपको खुद सोचना चाहिए कि बात सही है? 'लेकिन जब वो उस जगह खड़े होंगे तो क्या एक तो सब से बड़ी बात यह है कि करेंगे? इस प्रकार लोग बहुत बार सहजयोग से बहुत-से लोग यह भी सोचते हैं कि अगर हम सहजयोगी हैं तो हमारे बाप-दादे के दादे के, बहन के बहन के, और भाई के भाई के भाई के, कोई न कोई रिश्तेदार, कहीं अगर उसको कुछ हो जाये तो बस वो माता जी उसको ठीक करें। एक साहब बहुत बड़े सहज योगी हैं और हमारे यहाँ Trustee (ट्रस्टी) रह चुके हैं सालों से Trustee हैं। उनकी बीवी भी दोनों को बहुत बीमारी थी। ठीक हो गए काफी गहरे उतर चुके सब कुछ हुआ। उनके लड़के का लड़का ऊपर से गिरकर मर गेया। Normally ( सामान्यतः) सहजयोग के लोग accident (दुर्घटना) से मरते नहीं । कभी अभी तक तो हमने सुना नहीं किसी को मरते हुए । और वो इस तरह से मर गया। जवान लड़का था। लेकिन उन्होंने कहा कि ठीक है, ये तो कुछ न कुछ होना था और हो गया लेकिन accident से तो माँ ने बेकार में भागते हैं. और इसकी सबसे बड़ी वजह मैं तो ये ही सोचती हैँ कि अभी वह पात्र नहीं है। जो आदमी पात्र होता है घुसता चला जाता है। थोड़े दिन नाराज़ हो रहे हैं, कुछ हो रहे हैं। चलो घुसते चले जाओ और गहन उतरता है। जो Soft-line है, वो हमेशा लेती है. जीवन्त चीज। जैसे एक बीज है, जब वो अंकुरित होता है, जब sprout करता है, तो उसका जो root-cap होता है, बड़ा छोटा-सा होता है, इतना-सा। लेकिन बड़ा समझदार, wise होता है। वो जाकर चट्टानों से नहीं टकराता है। किसी पत्थरों से नहीं टकराता है, पर पत्थर के किनारे पर थोड़ी सी soft (नर्म) जगह मिल जाए, उसमें से घुसता चला जाता है। और जाकर जम जाता है उन पत्थरों पर, इस तरह से जकड़ जाता है कि सारा पैड़ का पेड़ उसी के मुझे बहुत बार बचाया है। मैने इतनी बार अपने लड़के से कहा कि माँ के पास चलो। आया नहीं। तो मैं क्या उसकी ज़िम्मेदारी ले सकता हूँ? अगर तो क्या सहजयोगियों को नहीं होनी चाहिए । वो माँ के पास आता अपने बच्चे को लेकर आता, तो कभी भी ऐसा नहीं होता उन्होंने यही बात मुझसे कही और इतना उस बच्चे को प्यार करते कुछ न कुछ बहाना बनाकर सहजयोग से थे, सब कुछ, लेकिन उन्होंने कहा कि जब बाप ही नहीं आ रहा तो लड़का क्या आएगा? आपके loss (नुकसान) होगा ये सब बहानेबाजी आपको जितने रिश्तेदार हैं, उनका ठेका हमने नहीं लिया हुआ। न आप लीजिए। आप उन से कहिए कि इसको आप छोड़िये। ये ego (अहंकार) है और सहजयोग में आप उतरें सहजयोग को आप पाएँ । कुछ नहीं है। ये बड़ा सूक्ष्म ego है। कोई आपके और इसकी रिश्तेदारी आप अगर उठा लें तो सारी पैर पर नहीं गिरने वाला। यह तो ज़रूरी है कि दुनिया ही आपकी रिश्तेदार है। पर ये सोचना कि 'मेरी बहन बीमार रहती है और मेरे फलाने बीमार सहारे खड़ा हो जाता है। यह अक्लमन्दी की बात है जब इतना-सा एक cell है, उसको इतनी अक्ल कि किस तरह से हम गहन उतरते चलें । भागने से आपकी प्रगति नहीं होगी। आपका ही बन्द करनी चाहिए। ये आपके मन का खेल है सबसे अच्छी तरह बात-चीत की जाए कहा जाए। अंक : 9& 10 - 2005 32 चैतन्य लहरी रहते हैं' और इस तरह से जो लोग करते है उससे कोई लाभ नहीं होता। किया? पहला सवाल । लोग ऐसा हक सहजयोग से लगाने लगते हैं। क्योंकि ये सहज है । वो सोचते हैं कि माँ ने हमारे लिए क्या किया? अब भई आपने क्या किया माँ के लिए? आपने अपने ही लिए क्या किया? पहले तो सवाल ये पूछना चाहिए कि हमने अपना ही क्या भला किया हुआ है? सहजयोग में हमने ही क्या पाया हुआ है? क्या हमने अपने Vibrations ठीक रखे हैं? या क्या हमने एक आदमी को भी पहले आपको पार हो जाना चाहिए। पार हो जाने के बाद आपका अधिकार बनता है। उस अधिकार के स्वरूप आप चाहे जो भी माँगें। आप का पूरा अधिकार है। सर ऑँखों पर हैं आप। अगर समझ लीजिए आप इंग्लैण्ड जाएँ और इंग्लैण्ड में जाकर आपः कहें कि हमें ये चीज़ चाहिए। अरे रहने दीजिए, उस लन्दन में आपके लोग पैर नहीं ठहरने देंगे, जब तक आपके पास सत्ता न हो, वहाँ जाने की। जब आपके पास सत्ता नहीं है, तब आपका सहजयोग से कोई भी आशीर्वाद माँगना पार कराया है? महाराष्ट्र में आप आश्चर्य करेंगे, इतने लोग पार होते हैं कि हजारों की तादाद में। गलत है। महाराष्ट्र की महत्ता मैं इसलिए नहीं कहना चाहती जैसे एक साहब थे, बहुत बीमार थे। इन हूँ कि आप जाकर खुद ही देखिये, मैं तो खुद ही लोगों ने टेलीफोन किया, ट्रक. कॉल किया माँ उनको ठीक करो।' वे पार नहीं थे, कुछ नहीं थे। तो मैंने कहा 'अच्छा हम कोशिश करते है'। उनके साहबजादे पार थे। कोशिश की, मैंने कहा कि देखो इसको छोड़ दो। अहंकार इतना था कि वो ठीक ही नहीं हुए। तब आने पर वो ठीक हो गए। थोड़े दिन उनकी जिन्दगी चली। लेकिन जब मरना है तब तो आदमी मरता ही है, वो थोड़े ही न नहीं छूना, तो बस उसके लिए फिर आफत हो रोकने वाले हैं। सिर्फ यह है कि सहजयोग से जाती है। छः हज़ार भी आदमी होंगे तो भी चाहेगे मनुष्य शान्ति को प्राप्त करता है, मरने से पहले कि माँ के पैर छुएं । यहाँ किसी से कहो कि पैर और जो चीज़ बहुत आकस्मिक हो जाती है, उससे छुओ तो वो बिगड़ जाएंगे कि 'क्यों पैर छुए साहब बच जाता है। इसलिए मैंने कहा कि accident से इनके हम?" नहीं मरता है। Suddenly ( अचानक) कोई चीज वो होकर नहीं मरता है। वास्तविक जब मरना है आश्चर्य में हूँ कि इतने हज़ारों लोग कैसे पार हो जाते हैं? और फिर जमते भी बहुत है यह भी बात उन लोगों में है। और इस तरह की बात वहाँ नही होती है। अब वहाँ ये नियम बनाया था पहले हमने कि किसी ने अगर ग्यारह आदमियो को पार किया है वो ही मेरे पैर छू सकता है। वहाँ पैर छूने की लोगों को बीमारी है। अगर किसी से कहो कि पैर हम लेकिन उनको मैंने अगर कहा कि आपको तब मरता है। तो उनको जब मरना था बो मर ही पैर है तो आप से कम से कम ग्यारह आदमी गये, बिचारे। वो पार भी नहीं हुए थे और बड़ी होने चाहिए। वही लोग सकते हैं जिन्होंने ग्यारह आदमी पार किये। तो कुछ लोग खड़े हो गये. कहने लगे माँ हमने तो ग्यारह नहीं दस ही किये छूना छू मुश्किल से उनको किसी तरह से ठीक किया था। वो मर गये तो उनके सब रिश्तेदार कहने लगे कि 'माता जी, इनको बचाया नहीं। मैंने कहा उनसे है । अब उन्होंने कहा कि 'भई अब इक्कीस बनाओ। कम से कम छ लें पैर? देखिए भोलापन एक सवाल पूछो कि आपने माताजी के लिए क्या चैतन्य लहरी अंक : 9 & 10 - 2005 33 इक्कीस पार किये हों तो माँ के पैर छू सकते हैं, नहीं तो अधिकार नहीं जमता। और ये काम बन गया, इक्कीस वाले बहुत निकल आए! इतने निकले, कि मुझे तो कहना पड़ा 'भाइयो अब जाने दो, अब नम्बर बढ़ाओ। ५१ कर दीजिये, तो भी बहुत निकल आयेंगे। वहाँ तो ऐसे-ऐसे लोग हैं दस-दस हज़ार' पार किये हैं। इसीलिए शायद उसका नाम यहाँ मेहनत कर रही हूँ दिल्ली में, और अभी इन गिन के दो सौ stones भी नहीं जोड़ पायी। ये कठिनाई है। आप सोचिये। और जो आते भी हैं ज्यादातर दल-बदल और दल बांधने में नम्बर "एक"। यह शायद हो सकता है कि Politics (राजनीति) का असर हो। चाहे जो भी हो। इतना Poltics करते हैं कि जिसकी कोई हद नहीं। 'महाराष्ट्र रखा है। दस-दस हजार लोग पार करने वाले वहाँ लोग हैं। इसमें Politics नहीं है कुछ नहीं है। इसमें सिर्फ अपने को पाना और परमात्मा को पाना, और सारे संसार को एक नई सुन्दर, प्रेमपूर्ण क्रान्ति में बदल देना ही एक काम है। बड़ा भारी काम है। और यहाँ खुद ही नहीं जमते हैं, दूसरों को क्या करेंगे। जिसको कहना चाहिए बिल्कुल Frivo- lous Temperament (उथली वृत्ति) हैं। अपने तरफ भी self esteem ( अपना आदर) नहीं है। अपने बारे में भी विचार नहीं है, न दूसरों के बारे। जानते नहीं हैं हम क्या हैं। हम आत्मा स्वरूप हैं, कितनी बड़ी चीज़ हैं! हम कितने शक्तिशाली हैं! इस शक्ति को हमें बढ़ाना चाहिए। अपने बारे में कोई विचार ही नहीं है एक रौनक लगा ली, बस हो गया। बहुत महान् काम है। इसमें हजारों लोग चाहिएँ और अगर आप नहीं करियेगा तो ये भी आप जान लें कि ये Last Judgment है । Judgment कुण्डलिनी से ही होने वाला है । और क्या भगवान आप को तराजू में डाल कर नहीं देखने वाला? कुण्डलिनी को जागृत करके ही आपका Judg- ment होना है। वो Last Judgment जो बताया गया है वह शुरु हो गया है। और जो इसमें से रुक जायेंगे उसके लिए 'कल्कि' अवतरण में कि आप जानियेगा कि काट-छाँट होगी। कोई आपको Lecture (भाषण) नहीं देगा, कोई बात नहीं करेगा। बस एक टुकड़ा इधर, या एक टुकड़ा 1 इससे काम नहीं होता अपने अन्दर जो है रौनक करनी पड़ती है और सबके साथ में इसको बाँटना पड़ता है। मराठी में एक कवि हो गये हैं उन्होंने कहा है 'माला पाहिजे गबा-ळयाचे काम नोहे। कहने लगे इसके लिए जैसमें जान हो वो आए। ऐसे-वैसे नन्दी-फ़न्दी लोगों का ये काम नहीं है 'येरा गवाळयाचे' माने अपने गाँठ में बॉध लें कि अब ज़ितना भी सन्त- बेवकूफों का ये काम नहीं है। जातीचे, येरा उधर। यह आप समझ लीजिए, और ये चीज साधुओं ने यहाँ मेहनत की है, जो भी बड़े-बडे अवतरण यहाँ हो गये, जो भी कार्य परमात्मा के दरबार के लिए हुआ है, वह सब पूरा हो गया है और आप अब stage (मच) पर है आप stage पर रहना चाहे तो stage पर रहे, या नीचे उतर इसलिये आप से मुझे request (अनुरोध) करना है, बताना है, बहुत-बहुत विनती करके, कि आपको जो भी दिया है उसको संजोना बहुत जरूरी है। इस की ओर बढ़ना बहुत जरूरी है जायें यह आपकी जिम्मेदारी है, कि आप ही न रहें आप ही देहली के foundation (नींव) के पहले stones (पत्थर) हैं। और आज सात साल से मैं के हैं। आपकी श्रेणी और है। आप साधक है और लेकिन सबको ऊपर खींचे । आप लोग दूसरी तरह अंक : 9 & 10 - 2005 चैतन्य लहरी 34 करें और औरों की भी रक्षा करें। अपना कल्याण आपको समझ लेना चाहिए कि इसके लिए एकव्रत निश्चय होना चाहिए। Army (सेना) में इसको करें, औरों का भी कल्याण करें, और सारे संसार कहते हैं कि बाना' पहन लिया आपने। तभी ये चीज कम हो सकती है और ऐसे वैसे, ऐरे-गैरे नत्थू खैरों से यह काम नहीं हो सकता। आप ऐरे-गैरे, नत्थू-खैरे नहीं हैं, मैं जानती हूँ। लेकिन उसके बाद आऊँगी। और उसके बाद भी मेरा अभी आपने अपने को पहचाना नहीं। उसे जान लेने पर आश्चर्य होगा कि क्या यह शक्ति, प्रचण्ड शक्ति, यह ब्रह्म शक्ति माँ ने हमें दी है! और जैसे ही शक्ति बहने लग जाती है. आदमी सोचता है कि "मैं भी इस काबिल हो जाऊँ। जब इस प्याले से ये चीज़ छलक रही है तो ये प्याला भी इस योग्य वगैरा में वहाँ तो हिन्दी या मराठी भाषा बोलती हो जाये कि इस महफिल में आ सके। इस तरह से आदमी अपने आप ही अपना व्यवहार, अपना को मंगलमय बनायें. यही मेरी इच्छा है। इसके बाद में मद्रास जा रही हैँ लेकिन प्रोग्राम दिल्ली में रहेगा तीन-चार दिन। आप लोग सब वहाँ आइये, जहाँ भी प्रोग्राम होता है। जहाँ-जहाँ सहजयोगी आते हैं वहाँ-बहाँ कार्य ज्यादा होता है। सब लोग वहाँ आइये। ये लोग तो आपकी भाषा भी नहीं समझते हैं और जहाँ-जहाँ मैं गई गाँव 1 रही। लेकिन ये लोग सब लोग वहाँ आते रहे और हर तरह की आफ्त, आप जानते है इन लोगों को तो गाँव में रहने की बिल्कुल आदत नहीं है वहाँ पर रहकर के ये समझते हैं कि हमारे रहने से माँ के लिए बड़ा आसान हो जाता है। क्योंकि आप ही Channels (पथ) हैं। आपके channels मैं इस्तेमाल करती हैँ। अगर समझ लीजिये, इतनी बड़ी ये जो आपको Power-house (बिजली-घर) है, इसमें अगर channels नहीं हुए, तो बिजली कैसे प्रवाहित होगी? वह channels आप हैं। इस लिये आपको चाहिए कि जहाँ भी मैं कार्य करूँ, जब तक मैं हूँ इसको निश्चय से, धर्म समझ कर आप वहाँ आयें और इस कार्य को आप अपने लिए भी अपनाइये और दूसरों के लिए भी अपनायें । तरीका 'सब' कुछ बदलता जाता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि बड़े-बड़े जीव इस संसार में जन्म लेना चाहते हैं। अगर आपका दिल्ली में वातावरण ठीक नहीं हुआ, तो यहाँ सिर्फ राक्षस जन्म लेंगे, या तो बहुत हुए लोग जन्म लेंगे, जो डण्डे लेकर आपको मारेंगे। और या तो राक्षस पैदा होंगे, और राक्षसों ही की यह नगरी हो जायेगी इसलिये मुझे बड़ा डर लगता है। कभी कभी सोचती हूँ कि इनकी समझ में अभी बोत आ नहीं रही। ही पहुँचे आप लोगों की बड़ी जिम्मेदारी है, क्योंकि देहली जो है वह दहलीज़ है इस देश की ओर। इस दहलीज़ को लॉघ कर अगर राक्षस आ जायें तो आप लोग कहीं के नहीं रहेंगे। आपको दहलीज पर उसी तरह से पहरा देना चाहिये जैसे कि बड़े-बड़े देवदूत और बड़े-बड़े चिरञ्जीव खड़े हुये आपके जीवन को संभाल रहे हैं। अपनी आप रक्षा धन्यवाद! आशा है मैंने आपके अधिकतर प्रश्नों का जवाब दे दिया होगा और अगर नहीं दिया गया हो तो आप जरूर centre (केन्द्र) पर चीज़ों का जवाब पा लेंगे। इसलिए मैं सब बात आज नहीं कह पाऊँगी, आप समझ रहे हैं, समय की कमी है। सहजयोग से रोग मुक्ति रा० मानव के शारीरिक पक्ष की जिम्मेदार है और मनुष्य के सृजनात्मक पक्ष को भी सम्भालती है। ईडा नाड़ी के साथ यह शरीर में गर्मी-सर्दी का हार सन्तुलन बनाती है। जब हम किसी एक अनुकम्पी का बहुत अधिक उपयोग करते हैं तो हमारे अन्दर असन्तुलन आ जाता है। बहुत ज्यादा सोना, बीते हुए समय के बारे में बहुत अधिक सोचना और आलसी स्वभाव बाएं पक्ष को अवांछित रूप से गतिशील करते हैं और दायें खा पक्ष का उपयोग ही नहीं होता। शारीरिक और मानसिक शक्तियों का बहुते ज्यादा उपयोग व्यक्ति को असन्तुलन की ओर लै जाते हैं ्योंकि ऐसे हालात में दायों पक्ष बहुत अधिक गतिशील हो उठता है और बाएं का बिल्कुल उपयोग नहीं हो पाता। दाई ओर के (राजसिक) स्वभाव के लोग बहुत ज्यादा नहत्वाकांक्षी होते हैं और दूसरों पर सभी सहजयोगी जानते हैं कि अनुकर्पी रौब ज़माना उनका स्वभाव होता है। इसके विपरीत नाड़ी प्रणाली और सात चक्र मानव के शारीरिक बाई ओर के आलसी प्रवृत्ति लोग बहुत ज्यादा एवं मानसिक स्वास्थ्य का संचालन करते हैं। बायाँ विनम्र होते हैं परन्तु सदैव स्वयं को कोसते रहते अनुकम्पी नाड़ी तन्त्र अर्थात ईडा नाड़ी मानव हैं। प्रकृति के भावनात्मक पक्ष, इच्छाओं और भूतकाल से जुड़े उसके दृष्टिकोण को सम्भालता है। ईड़ा नाड़ी चन्द्र नाड़ी है। पिंगला नाड़ी के साथ मिलकर और यह तालू क्षेत्र तक जाती है और पिंगला नाड़ी यह शरीर की गर्मी, सर्दी का सन्तुलन बनाती है। दाएं स्वाधिष्ठान से आरम्म होकर तालू क्षेत्र तक दायाँ अनुकम्पी नाड़ी तन्त्र अर्थात पिंगला नाड़ी ईडा नाड़ी का आरम्भ मूलाधार से होता है जाती है। रोजमर्रा के कार्यों में दोनों ही नाड़ियों अंक : 9& 10-2005 36। चैतन्य लहरी का उपयोग होता है और परिणामस्वरूप उनके इनकी क्रियाओं को बहुत अधिक धीमा कर देता अन्तिम बिन्दु गुब्बारों की तरह से फूलकर अहं और है। इस कारण से निम्न रक्तचाप हो सकता है। प्रतिअहं की रचना करते हैं। प्रतिअहं (Super ego) बाएं अनुकम्पी की अत्यधिक गतिशीलता हृदय को अवचेतन (Subconscious) है और अहं (Ego) बहुत अधिक आलसी बना देती है। हृदय कम अति-चेतन (Supra- Conscious) बन्धनों को रक्तसंचार करता है और परिणामस्वरूप हृदयघात हो सकते है बहुत अधिक गतिशील हृदय तीव्रता से रक्तसंचार करता है और ये भी हृदयघात का स्वीकार करने के कारण प्रतिअहं बढ़ जाता है। और हम अवचेतन की ओर चल पडते हैं? रीति रिवाजों (बन्धनों) को बिल्कुल स्वीकार न करने पर व्यक्ति अतिचेतन की ओर चल पड़ता है। इन दोनों सामूहिक अवचेतन से निकलते हैं जैसे कैंसर, में से किसी ओर को भी मनुष्य का झुकाव यदि कारण हो सकता है। बाईं ओर के अधिकतर रोग 1 वायरल-संक्रमण, भिन्न प्रकार का साइरोसिस, मैनिनजाइटिस, कम्पन रोग, जोड़ों के रोग (गठिया). कमर हड्डी रोग (Slip Disk) गर्दन में अकड़न, बहुत ज्यादा होगा तो वह या तो अवचेतन में चला जाएगा या अतिचेतन में। ये वो क्षेत्र हैं जहाँ पर असन्तुष्ट या अतृप्त आत्माएँ निवास करती हैं और तपेदिक, अस्थमा, रक्त की कमी, शियाटिका, परिणामस्वरूप व्यक्ति भूत-बाधित हो सकता है। पोलियो, पक्षघात, माँस पेशियों के रोग आदि-आदि। मृत आत्माओं को पकड़ने के लिए कभी-कभी तान्त्रिक लोग भी इन क्षेत्रों में प्रवेश कर लेते हैं बुखार नहीं चढ़ता जबकि दाई ओर (आक्रामक ताकि वे अपने स्वार्थ सिद्ध कर सकें। शारीरिक प्रवृत्ति) लोगों को तेज़ बुखार होता है । ऐसे मामलों स्तर पर दाएं-बाएं के असन्तुलन के कारण कई में बाईं ओर को उठाकर दाई ओर को परमेश्वरी रोग भी हो सकते हैं। चिकित्सा-विज्ञान के लोग ये जान चुके हैं कि पिंगला नाड़ी (दाईं वाहिका) की आवांछित सक्रियता (उनकी भाषा में (a) समूह के प्रायः बाई ओर के रोगों से पीड़ित मरीज़ों को शक्ति देकर उसे दृढ़ किया जाना चाहिए। बाईं ओर के रोगों से पीड़ित लोगों को अपना दायाँ पक्ष उठाना चाहिए और बाएं पक्ष को परमेश्वरी शक्ति से दृढ़ करना चाहिए। उन्हें चाहिए लोग) में फँसे लोगों को हृदयाघात होने की बहुत अधिक सम्भावनाएँ होती हैं। सहजयोग में हम इसका कारण जानते हैं। पिंगला नाड़ी का बहुत कि अपना बायाँ हाथ परम पूज्य श्रीमाताजी के अधिक उपयोग ईडा की शक्ति को भी सोख लेता फोटो की तरफ करें और दायाँ हाथ पृथ्वी पर रख है; विशेष रूप से बाएं हृदय की शक्ति को, और लें। इसी प्रकार से दाई भेर की बीमारियों से परिणामस्वरूप हृदयघात हो सकता है। पिंगला पीड़ित लोगों को चाहिए ।क अपना दायाँ हाथ नाड़ी की अत्यधिक क्रियाशीलता के कारण शरीर श्रीमाताजी के फोटो की तरफ करें और बायाँ हाथ आकाश की तरफ इस प्रकार उठाए कि आपकी हथेली पीछे की ओर हो। हथेली का रुख श्रीमाताजी के फोटो की तरफ होना हानिकारक हो सकता के अवयव भी बहुत अधिक गतिशील हो उठते हैं। और उच्च रक्तचाप ज़िगर की गर्मी, दाई नाभि और दाएं धिष्ठान की समस्याओं को जन्म देते हैं। बाएं अनुकम्पी का बहुत अधिक उपयोग आलसी है। जिगर, आलसी हृदय का कारण बनता है और no अंक : 9&10-2005 चैतन्य लहरी 37 अनुकम्पी नाड़ी प्रणाली को ठीक करने में हमारे खान-पान की भी बहुत शारीरिक या मानसिक गतिविधियों की अति में असन्तुलन को दूर करने के लिए खान-पान में भी परिवर्तन किए जा सकते हैं। कुपोषण के कारण भी करने के कारण बाईं ओर के (मनौदैहिक) रोग हो बहुत से रोग हो सकते हैं। अतः आलरसी अवयवों सकते हैं क्योंकि अत्यधिक कार्य करने के कारण वाले लोगों को चाहिए कि अधिक प्रोटीन वाली चीजें ले, कार्बो हाइड्रेटस बहुत कम लें और चाहें है। तो माँस का सेवन भी कर सकते हैं। दाईं ओर के आक्रामक प्रवृत्ति लोगों को चाहिए कि अधिक प्रोटीन युक्त भोजन न लें, शाकाहारी भोजन करें सकते हैं। ऐसे लोगों को चाहिए कि अपना बायाँ और कार्बोहाइड्रेट्स अधिक लें। भोजन के विषय पर शाकाहार के पक्षधर लोगों को समझ लेना को उठाए। अपने नाम की जूता क्रिया भी प्रभावशाली चाहिए कि पशुओं के प्रति मानसिक रूप से बहुत सकता है। अतः इस मामले में जो लोग भी बड़ी भूमिका है । चले जाते हैं उन्हें बहुत अधिक मस्तिष्क उपयोग मस्तिष्क थक जाता है और रोग का कारण बनता बाधाओं के कारण भी बाई ओर के रोग हो हाथ फोटो की ओर करके अपने दाएं पक्ष को ऊपर इलाज है। ऐसे लोगों के लिए आवश्यक है कि अपनी आन्तरिक स्वच्छता तथा अबोधिता द्वारा अधिक करुणा दर्शानेि से वे उनका कोई ज्यादा हित नहीं कर सकते। स्वयं को हानि जरूर पहुँचा सकते हैं। करुणा आत्मा से निकलनी चाहिए। हृदय से निकली हुई करुणा ही प्रभावशाली होती है। मूलाधार पर श्रीगणेश का आह्वान करें और उन्हें वहाँ स्थापित करें। श्रीमाताजी के प्रति समर्पण सबसे अधिक आवश्यक है क्योंकि श्रीमाताजी के प्रसन्न होने पर ही श्रीगणेश प्रसन्न होंगे कुगुरुओं का प्रभाव भी बाई ओर की समस्याओं को जन्म देता हैं क्योंकि कुगुरुओं के प्रभाव से बायाँ स्वाधिष्ठान, बायोँ भवसागर और बाई आज्ञा, बाधित हो जाते हैं। ऐसे लोगों को चाहिए कि अपना दायाँ करुणा का बौद्धिक प्रक्षेपण व्यर्थ है। हमें ये जान लेना चाहिए कि कौन से पशुओं को बचाया जाए और किन्हें नष्ट किया जाऐ। जैसे परम पूज्य श्रीमाताजी कहती हैं ये किस काम के हैं? क्या मैं यहाँ पर मुर्गियों को आत्मसाक्षात्कार देने के लिए हूँ? हाथ पेट पर रखकर बायाँ श्रीमाताजी की फोटो की ओर करें और प्रार्थना करें 'श्रीमाताजी कृपा करके मुझे स्वयं का गुरु बना दीजिए। जैसा श्रीमाताजी ने कहा है कि आत्मा ही हमारी गुरु है। अतैव आत्मा की जागृति के पश्चात् व्यक्ति स्वयं ऊपर जो कुछ भी कहा गया है उसके बावजूद भी ये आवश्यक नहीं कि किसी भी पक्ष की अत्यधिक गतिशीलता केवल उसी ओर की बीमारियों का गुरु बन जाता है। का कारण बनें। दाईं ओर की अवांछित क्रियाशीलता कि प्रतिक्रिया के स्वरूप सामूहिक अवचेतन बाएं या दाएं की समस्याएं हमारे चक्रों को प्रभावित करती हैं और इन चक्रों से जुड़े अवयवों को हानि पहुँचाती है। चक्र प्रभावित होने पर चक्र के शासक देवी-देवता वहाँ से चले जाते हैं। अत (Collective Subconscious) प्रभावित होकर कैसर जैसी बाईं ओर की बीमारियों का कारण भी बन अंक : 9& 10 -2005 चैतन्य लहरी 38 परम पूज्य श्रीमाताजी के नाम से चक्र विशेष का उपयोग किया जा सकता है परन्तु यह प्रभावित व्यक्ति की मदद करने वाले सहजयोगी पर निर्भर मन्त्र बोलकर वहाँ के शासक देवी-देवता का आह्वान किया जाता है। इलाज करने के लिए प्रभावित पक्ष के दूसरी ओर की हथेली को उस करता है। फिर भी रोग यदि बाधा के कारण हो तो नींबू हरी मिर्च से इलाज करने का मश्वरा देने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए। हम सब जानते हैं कि मानव पंच-तत्व से बना हुआ है और बुद्धि एवं मन मानव की मनौदैहिक प्रणाली की देखभाल करते हैं । भिन्न चक्रों के तत्वों तथा उनसे होने वाली बीमारियों का वर्णन नीचे किया गया है चक्र पर रखा जाता है और दूसरी ओर का हाथ श्रीमाताजी की फोटो की तरफ फैलाया जाता है। गुनगुने पानी में नमक डालकर पानी पैर क्रिया भी अत्यन्त लाभ दायक है और तुरन्त लाभ पहुँचाती है बिगड़े हुए मामलों में नींबू और हरी मिर्चों का देवी-देवता तत्व चक्र पृथ्वी पृथ्वी बाई ओर पृथ्वी तत्त्व श्री गणेश श्री गौरी और श्रीकुण्डलिनी श्री ब्रह्मदेव 1. मूलाधार चक्र मूलाधार 2. स्वाधिष्ठान दाई ओर अग्नि तत्व श्री सरस्वती श्री विष्णु 3. मणिपुर जल तत्व श्री लक्ष्मी जल तत्व श्री शिव पार्वती 4. बायां हृदय वायु तत्व श्री जगदम्बा वायु तत्व मध्य हृदय दायां हृदय श्री राम, सीता वायु तत्व कृष्ण और राधा श्री जीसस, मेरी श्री 5. विशुद्धि आकाश तत्व अग्नि तत्व 6. आज्ञा परम पूज्य श्रीमाताजी (सदा शिव के रूप में आत्मा सहस्रार पर विराजित हैं।) पंच तत्व, मन और बुद्धि . सहस्रार 7. आर.डी. कुलकर्णी (निर्मला योग से उद्धृत एवं अनुवादित) सहजयोग का अलिखित इतिहास (पिछले अंक से आगे) जिन लोगों को वह योग सिखाता था उन आधा दर्जन लोगों से उसने बताया, "देखिए, मैंने एक नए प्रकार का योग खोज निकाला है। हमें केवल इतना करना होगा कि श्रीमाताजी की फोटो-ग्राफ के सम्मुख हाथ फैलाकर बैठना होगा" उसने एक श्याम-श्वेत फोटोग्राफ निकाला। यह पोस्ट कार्ड से बड़े आकार का था। हम सब उस ठण्डे, शुष्क पुराने किनारे वाले अपने सामूदायिक क्लब के स्थान पर श्रीमाताजी के फोटोग्राफ के सम्मुख हाथ फैलाकर बैठ गए। हम कोई पाँच या छः लोग थे वह आया, हमारे हाथों को जाँचा और पूछा हमें क्या महसूस हो रहा है? हम सबको भिन्न-भिन्न अनुभव हुए थे क्योंकि अपने पूर्व कर्मों के अनुसार हमारी चेतनावर्था भिन्न प्रकार से की थी। जो भी हो, हम सबने स्पष्ट रूप कुछ महसूस किया था। वह कहने लगा. "ये चैतन्य... लहरियाँ आपको श्रीमाताजी से मिलती हैं। क्या आप लोग उन्हें भारतीय विद्या भवन आकर मिलना चाहेंगे? (तब ये भवन New Oxford Street पर स्थित था) मुझे यह नए प्रकार का योग प्राप्त हुआ सर्व प्रथम, जिस क्षेत्र में मैं रहता था वह लन्दन में Euston, Tolmers Square के समीप स्थित था और एक प्रकार से ये क्षेत्र उच्च ऊर्जा अगले शुक्रवार को मेरे विचार से हम भारतीय विद्या भवन जाकर श्रीमाताजी से मिले । हमने पीछे बैठकर श्रीमाताजी को सुना और हमें (High Energy) क्षेत्र था । वहाँ पर पृथ्वी पर बैठकर आसन आदि बहुत करवाए जाते थे। वहाँ एक सामूदायिक क्लब था और 1973 में एक दिन एक व्यक्ति हमें योग सिखाने के लिए आया, ये मुकन्द अहसास हुआ कि ये वास्तव में कोई अच्छी चीज थी। उस समय वे किसी व्यक्ति पर कार्य कर रहीं थीं। उस क्षण हमें लगा कि यह कुछ चिशेष है। हो सकता है यह इसकी एक झलक हो परन्तु हम भी शाह था। एक वर्ष तक वह हमें भिन्न प्रकार के योग तथा ध्यान-धारणाएं सिखाता रहा। क्योंकि किसी अन्य के सम्मुख, एक दूसरे के सम्मुख नहीं, ये स्वीकार करने के लिए तैयार न थे कि हम वास्तव में आदिशक्ति से मिले थे। परन्तु मेरे विचार से मूलतः हम जानते थे कि यह अत्यन्त विशेष है। उसे भिन्न प्रकार की योग तथा ध्यान धारणाओं का ज्ञान था वह श्रीमाताजी के पास चला गया उसे चैतन्य लहरियाँ तो महसूस हुईं परन्तु विश्वास की कमी के कारण चैतन्य प्रवाह बहुत अधिक न था। र अंक : 9& 10 2005 चैतन्य लहरी 40 थी, स्वच्छ होने के दो दिन बाद ही हम पुनः पकड़े जाते! ये खेद का विषय था परन्तु ये दर्शाता था तत्पश्चात् हम दो या तीन बार भारतीय विद्या भवन गए क्योंकि हम अब कहीं अन्यत्र जाना चाहते थे। क्योंकि श्रृंखला समाप्त हो चुकी थी, हम कि हम किस अवस्था में हैं। लोग Judd Street Clare Court पर स्थित मकान Dauglas Fry.. में चले गए, जहाँ मुकन्द शाह भी Kings Cross के समीप रहा करते थे वहाँ हमारी कुछ सभाएं हुई और श्रीमाताजी ने कुण्डलिनी जागृति के विषय में बताया। उन्होंने यह भी बताया कि सहस्रार के ऐसा कोई व्यक्ति यहाँ कैसे हो सकता है। वास्तव में श्रीमाताजी से मिलने से पूर्व मैं उनका फोटो देख चुका था। आपके फोटो लाने से मैं माध्यम से सुनने का यह हमारा पहला मीका था। उन्होंने बताया कि हम सबके सहस्रार खुल चुके थे उन्होंने कहा, "अपने हाथों से अपने कानों को पूरी तरह से ढक लें, फिर भी आप मेरी आवाज को सुन सकेंगे।" हम वास्तव में सहस्रार से उनकी आवाज़ को सुन सके। अपने कानों को हमने हथेलियों से बन्द किया हुआ था फिर भी वास्तव में पहले मैं पहले योग सामूहिकता चला गया था। Baker Street चला गया था और श्रीमाताजी के फोटो की ओर मेरा ध्यान न गया था क्योंकि यह छुपा हुआ सा छपा था और इसके विषय में सीधे से मैंने कुछ भी न सुना था। फिर भी मैंने कहा कि मैं आकर उन्हें मिलना चाहूँगा उनकी सभाओं के बारे में मैंने था और Judd Street की उनकी अन्तिम सभा में मैं गया वर्षा ऋतु के भीगे हुए दोपहर पश्चात् मैं अपनी बहन Maureen (Rossy) के साथ आया। मेरे मस्तिष्क पर बहुत गहन प्रभाव था क्योंकि मैंने सुना था कि वे योगी महिला हैं और मेरे मन में इस प्रकार की धारणाए थीं कि मैं ऐसे कमरे में प्रवेश करूंगा जहाँ पूर्ण शान्ति होगी। और सम्भवतः वहाँ घण्टियों की झंकार होगी। मैंने हम सहस्रार से सुन रहे थे। वास्तव में हमारे सहस्रार खुल चुके थे चैतन्य-लहरियों को महसूस करने के अतिरिक्त सम्भवतः यह प्रथम अनुभव था जो वाकई आश्चर्यजनक था पहला आश्चर्यजनक सुना 1. अनुभव हम ले चुके थे। हमारी कुछ सभाएं Judd Street में हुई। परन्तु क्योंकि जो व्यक्ति हमें वहाँ ले गया था वह कहीं अन्यत्र जा रहा था इसलिए हमें कोई और स्थान खोजना था। तब हम North Gower Street कमरे में प्रवेश किया। यहाँ का चातावरण मेरी आकाक्षाओं के अनुरूप बिल्कुल के एक घर में मिलने लगे North Gower Street में जब हम मिलने लगे तब वास्तव में इसकी जड़ें ताकत पकड़ने लगीं। तब होता क्या था कि श्रीमाताजी बहाँ आत्ती आकर बैठतीं और चाहे हम केवल आधा दर्जन लोग ही वहाँ होते थे फिर भी श्रीमाताजी अपना प्रवचन देतीं और सहजयोग के विषय में बताती। अपने हाथ वो हमें अपने चरण कमलों के नीचे रखने को कहती और हमारी अन्तर्निहित बाधाओं को दूर करने के लिए वे कई क्रियाएँ करतीं। हमारी संख्या क्योंकि बहुत कम भी न था। इसका मुझे मुझ पर बहुत गहन प्रभाव पड़ा। एकदम से लगा कि ईसा-मसीह जब बाज़ार में शिक्षा देते होंगे तो वहाँ भी वैसा ही वातावरण होता होगा। वातावरण का मुझ पर बिल्कुल ऐसा प्रभाव पड़ा जो कि अत्यन्त अजीब था। क्योंकि मुझ में कुछ भी धार्मिक न था। धर्म का मेरे जीवन में कोई स्थान न था। इसके विपरीत मेरी तो हिप्पी पृष्ठभूमि थी। मुझे एक दम से लगा कि मेरे सम्मुख कोई आश्चर्यजनक व्यक्तित्व है और मेरे मन में प्रश्न अंक : 9& 10 - 2005 41 चैतन्य लहरी इस बात का एहसास थी कि वे भावना मुझमें घर करती गई कि वे ईसा-मसीह सम कुछ शख्सीयत है। मेरे अन्दर ये भावना बन गई। और मैं ये देखने का प्रयत्न कर रहा था चे कुछ विशेष है। ये उठा कि, "पृथ्वी पर किस प्रकार ऐसा भी कोई व्यक्ति हो सकता है? ऐसा कोई व्यक्ति यहाँ कैसे हो सकता है?" पूरा कमरा प्रकाश से परिपूर्ण प्रतीत हो रहा था और इस बात का गहन प्रभाव था कि श्रीमाताजी कितनी शक्तिशाली हैं! परन्तु वे तो मधुरता के सिवाए कुछ भी नहीं थीं उन्होंने हमें अपने समीप आने को कहा। मैं उनके समीप गया, इस भावना में कितना सत्य है और मुझ पर ये बात कितनी ठीक है। (Pat Anslow) I उन्होंने अपना हाथ मुझ पर रखा और कही ये बीमार है"। मेरे विचार से उन्होंने मुझे सर्वप्रथम यही शब्द कहे थे। भेंट चलती रही। सभी कुछ अत्यन्त चमत्कारिक था। मुझे ये पूछने का अवसर ही न मिला कि ये सब क्या है परन्तु मैं जानता था मैं नहीं जानती थी कि मुझे क्या मिला? परन्तु ये जानती कि अवश्य मुझे कुछ मिला। सोलह सितम्बर 1975 के दिन Judd Street में उसी फ्लैट में हम श्रीमाताजी से पहली बार मिले जो मेरे भाई Pat जैसा था। सम्भवतः इसीके कारण मुझमें किसी विशेष भावना का एहसास न हुआ हो। पलैट तक पहुँचने के लिए गली में पैदल चलते भी मेरे मन में हमेशा की तरह से यही भावना बनी रही कि मैं दौड़ जाऊ । ये न जानती थी कि मैं कहाँ जा रही हूँ क्योंकि मुझे बताया गया था कि ये एक महिला योग-शिक्षक हैं परन्तु वे हठ योग नहीं सिखलाती। परन्तु मुझे याद है कि मैं ऐसे लोगों के साथ न होती जो कहते, संसार में तुम्हारा लक्ष्य क्या है" तो मैं दौड़ गई होती। जिस शक्ति की ओर मैं जा रही थी वह कि सभी कुछ अत्यन्त महत्वपूर्ण है । ये हमारी पहली मुलाकात थी। उन्होंने मुझे बताया कि मैं बीमार हूँ और मुझे अपने पेट के लिए कुछ आवश्यकता है। उन्होंने एक बोतल मॉँगी और हैरानी की बात ये थी कि किसी अन्य ने भी इस चीज को नहीं देखा परन्तु मैंने उन्हें एक बोतल लेकर आते हुए देखा । उन्होंने एक दरवाजा खोला, वहाँ पर भट्टी (Fur- nace) सा कुछ था, उसमें वह बोतल डाली, फिर निकाली, दरवाजा बन्द किया और वहन बोतल मुझे दे दी मैं आश्चर्य चकित था । ये बोतल मैं अपने हुए यद्यपि मैं इतनी सशक्त है ये बात मैं महसूस कर सकी। घर पर लाया, इसके जल को पिया। जल का भाव अत्यन्त गहन था। इसने मुझे स्वच्छ कर दिया उन्होंने मुझे बताया कि मेरे जीवन के केवल छः महीने शेष हैं, हाँ, मेरी स्थिति वाकई बहुत जब हम फ्लैट के अन्दर गए और हमें जूते उतारने के लिए कहा गया, जो कि हमारे लिए बड़ी अजीब बात थी. और हमें बैठने के लिए कहा गया। तब मैंने श्रीमात्ताजी को एक भारतीय पुरुष पर कार्य करते देखा। वे उनसे कुछ बता रही थी। उन पर कार्य करते हुए मुझे वे देवी-सम प्रतीत हुईं। उनके विषय में मेरे मन में यह पहला विचार खराब थी। और अधिक मुलाकातों के लिए मैं पुनः उनसे मिलने के लिए गया और जब तक वे वहाँ रहीं निरन्तर मुझे अजीबो-गरीब अनुभव होते रहे। परन्तु मुझे प्रभावित करने वाली सबसे बडी प्रतिक्रिया आया। परन्तु एकदम से मैंने सोचा, "ऐसा सोचने अंक : 9& 10 - 2005 42 चैतन्य लहरी से मेरा अभिप्राय क्या हैं? मैं तो ये भी नहीं जानती कि देवी क्या होती है? परन्तु वो मुझे ऐसी ही गया। पिताजी मुझे लन्दन ले आए, यह भी एक विशेष बात थी हम श्रीमाताजी के पास पहुँचे वे मेरी कल्पना से कहीं भिन्न थीं। मेरे अनुसार भारतीय महिला साड़ी पहने लोगों से बहुत परे बैठी होती, उनके साथ एक दो व्यक्ति और होते आदि-आदि। लगी। तत्पश्चात् एक-एक करके वे सभी लोगों को देखने लगीं और जब मेरी बारी आई तो वे खड़ी हुई. थोड़ा सा चलीं और फिर बैठ गई। उन्होंने मुझे अपने दोनों हाथ फैलाने को कहा और पूछा कि मुझे क्या महसूस हो रहा है? उस समय मुझे लगा कि मेरा चित्त हाथों की तरफ गया है । मेरे मुँह से निकला. ओह, मुझे कुछ महसूस हो रहा है।" उन्होंने केवल इतना कहा, परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। आप पार हो गई हैं।" मैंने सोचा, यहाँ तो अत्यन्त विशेष प्रेममय महिला थी। मैं अत्यन्त उत्सुक था और न जानता था कि क्या किया जाए क्योंकि मेरे सम्मुख एक अन्जान व्यस्क महिला थीं। मेरे लिए ये बास्तव में मजाक सा था। जो लोग श्रीमाताजी को बच्चों के साथ मिले हैं वो जानते है कि बड़ी जिन्दादिली से कहती है वास्तव में? वे इस प्रकार की आवाज़ में पूछती है। वे उनके चित्त को आकर्षित करती है "मुझे प्राप्त हो गया है।" मै ये न जानती थी कि मुझे कुछ मिल गया है। तत्पश्चात् पास, साधकों के पास, चली गई जिस प्रकार उन्होंने व्यवहार किया यह अत्यन्त महान अनुभव वे और लोगों के और उनमें अपनत्व जगाकर उनसे निरन्तर नाता था। जोड़ती हैं पुझे भी कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ। Maureen Rossi उन्होंने मुझसे प्रश्न पूछे, उनकी आँखें चमक उठीं, उनके चेहरे पर विस्तृत मुस्कान उभरी न जाने किस कारण! अब बड़ा होने पर भी मैं बालक होना अत्यन्त सुखद है सात वर्ष की आयु में मुझे आत्म-साक्षात्कार मिल गया था। वर्ष 1968 में मेरा जन्म हुआ और 1975 में मुझे आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया मुझे ऐसे लगा कि मुझे हाथी बनना चाहिए। वहाँ श्रीमाताजी से मेरी पहली मुलाकात अत्यन्त स्मरणीय है। मेरे पिता (Pat Anslow) उन दिनों कभी-कभी सताहान्त में मुझे लन्दन लाया करते थे। मेरे पिता जो मुझे दिया गया उसे मैंने अपने पैरों और टॉगों ने जब तक दूसरा विवाह नहीं किया मैं अपने दादा-दादी के पास रहा करता था। मेरे पिताजी हाथी होने का नाटक किया। मैं जब ऐसा कर रहा भी इन्हीं दिनों श्रीमाताजी से मिले थे यो मुझे लाए और कहने लगे मैं एक अत्यन्त विशिट भारतीय अपनी कुर्सी से टिकाकर हँलते गए, हेते गए महिला से मिलने जा रहा हूँ । ब्राइटन के सभीप हँसते गए मेरे पिताजी, मुझे लगा, घवरा गए कि एक मध्यवर्गी क्षेत्र से सन्वन्धित होने के कारण मैं इससे पूर्व किसी भी महत्वपूर्ण भारतीय महिला से न मिला था। अत: मेरे लिए ये साहसपूर्ण कार्य बन इसका कारण नहीं समझ पाया हूँ। इस फ्लैट में पर सत्तर वर्षो का घिसा पिटा फर्नीचर लगा हुआ था और पुराने फैशन की चीजे थीं पेय का ग्लास पर उडेल लिया और कमरे में दहाड- दहाड़ कर था तो न जाने कब श्रीमाताजी अपना सिर पीछे ये वच्या क्या कर रहा है!" परतु श्रीमाताजी ने ये बात महसूस की आर वातावरण को अत्यन्त विनोदमय बना दिया। किसी प्रकार की कडवा हट अंक : 9 & 10 - 2005 चैतन्य लहरी 43 न हुई। मेरे विचार से बच्चा होना बहुत बड़ी बात है। आप यदि बच्चे हैं तो श्रीमाताजी के सम्मुख आपको ये नहीं सोचना पड़ता कि मुझे ऐसा होना है, वैसा होना है।" आप जैसे हैं वैसे हैं आशा है, आप मेरा अर्थ समझ गए होंगे। मैं इनका क्या करू? IV अज्ञानता के कारण की गई मर्यादा विहीनताओं के कारण श्रीमाताजी हमारे प्रति जिस प्रकार से प्रेममयी होती है वह वास्तव में आश्चर्यजनक है। हम नहीं जानते थे कि उनके प्रति किस प्रकार Kewin Anslow व्यवहार करना है, किस प्रकार परस्पर व्यवहार करना है, परन्तु श्रीमाताजी ने इसकी कभी भी चिन्ता नहीं की। वे इतनी उदार थीं। उन्होंने किस मुझे लगा कि यह महिला अत्यन्त उच्च हैं। श्रीमाताजी से मिलने पर मेरी पहली तरह से स्वयं को सम्भाला होगा इस बात पर विश्वास नहीं हुआ। हर छोटी-छोटी चीज़ के बारे में हमारे से बात-चीत करतीं। स्पष्टतः हम उनसे प्रतिक्रिया यह थी कि मैं इस महिला को पहले भी मिल चुका हूँ। मैंने सोचा कि Oxford Street (लन्दन) में पहले मैंने इन्हें किसी दुकान आदि पर देखा है। मुझ पर ये पहला प्रभाव था। उन्होंने मेरे हाथ को छुआ और कहने लगीं तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगे अभी तुम ठीक नहीं हो परन्तु तुम ठीक हो जाओगे।" घर जाकर मैने स्नान किया। काफी प्रभावित थे हम देख सकते थे कि श्रीमाताजी द्वारा कही गई हर बात अत्यन्त ज्ञानवर्धक एवं आश्चर्य जनक होती। परन्तु अब भी ऐसी बहुत सी चीजें थीं जिनके विषय में हम उनसे सहमत नहीं थे और उनसे बहस करते थे श्रीमाताजी कहतीं कि हर बात को धैर्य पूर्वर्क समझने से सब ठीक हो सकता था। माँ ने स्वयं को बहुत ही कठोर वातावरण में रखा हुआ थी। Gavin Jane (Brown) तो कुछ सम्मानमय थे परन्तु बाकी के हम लोग सम्मानमय न थे हम हिप्पी पृष्ठभूमि से आए हुए | उस समय घर में मैं अकेला था। यहाँ पर मेरे साथ और भी लोग रहते थे अचानक मैं एकदम निर्विचार हो गया! मैं कुछ सोचना चाहता था परन्तु सोच न पाया। मैं जानता था कि मुझे लेटना होगा, अतः बिस्तर पर लेटकर मैंने आँखें बन्द कर लीं । इस ऊर्जा को अपने पेट में से उठाकर छाती तक आते थे। हुए और फिर सिर के तालू भाग पर ताज़ की तरह से पहुँचने की चेतना मुझे थी। मेरा शरीर बिल्कुल हल्का हो गया और मैं पूरी तरह से आनन्द मुद्रा में पहुँच गया। मुझे लगा कि ये महिला अत्यन्त महान हैं। ऐसा अनुभव तो मुझे पहले कभी भी न हुआ था! तो यह मेरा सहजयोग का प्रथम अनुभव था। अपनी सारी समस्याओं को ठीक करने में मुझे Pat Anslow मैं घर लौट आया वर्ष 1975 में मुझे याद है जब मने Oxted में उनके घर प्रवेश किरा था तो मैंने जीन पहनी हुई थी और उसके ऊपर U.S Army की छेदों से भरी हुई जेकट पहनी हुई थी । मैंने उनका हाथ चूमा और उन्हें फूल भेट किए मुझे याद है कि मैं किस पकार झुका और पृथ्वी पर देखा। इन सारी चीज़ों का स्वतः हो जाना अत्यन्त दिलतास्प है। भेम बहुत समय लगा और अभी भी प्रयास करना पड़ ाि रहा हैं। Miocrag Radc Savljevic चैतन्य लहरी अक : 9& 10 -2005 44 उन्हें तुरन्त सम्मान दिया जाना आवश्यक है। देखा । इससे मुझे वाकई चोट पहुँची। ग्रैगोर अपने परन्तु ऐसा करने से एकदम मेरे हृदय को चैन घुटनों के बल बैठा हुआ श्रीमाताजी से कह रहा था, श्रीमाताजी कृपा करके इन्हें क्षमा कर दें, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे है। ऐसा कहना अत्यन्त नाटकीय था परन्तु अत्यन्त सत्य । उसने स्थिति को ठीक प्रकार से समझ लिया था। मिला। ये कहना तो कठिन है कि कब मैने श्रीमाताजी को पहचानना शुरु किया, परन्तु ये बात स्पष्ट थी कि हृदय ने उन्हें मस्तिष्क से पहले पहचाना। आनन्द, भारहीनता, स्नेह एवं क्षेम प्राप्ति की भावना, नि:सन्देह आपको अहसास करवाती है कि मैं घर लौट आया हूँ. अपने प्यारे-प्यारे घर? (Pat Anslow) थोड़े समय के लिए जब श्रीमाताजी ने मुझे U.S.A. का अगुआ बनाया तो वे बोली, "इस कार्य के लिए तुम पूरी तरह से योग्य हो क्योंकि तुम नर्क को बहुत अच्छी तरह से जानते हो। ये बात सत्य है कि सहज में आने से पूर्व मैंने सभी प्रकार के अध्मों को आज़मा कर देखा, परन्तु इन अधर्मों की सीमाओं को भी पहचाना था। कहने से अभिप्राय ये है कि मुझे लगा कि मैं लुढ़कते हुए Gregoire de Kalbermatten ग्रैगोर की पहली स्मृति वह आया और माँ से मिला। वह उसी क्षेत्र में रहता था। अतः कई बार श्रीमाताजी से मिला । गेविन और जेन्स की एक सभा में वह आया। उस पत्थर की तरह से था, मुझे सन्तोष नहीं प्राप्त हो सका था। प्रयत्न करते-करते मैं थक चुका था। अतः श्रीमाताजी से मिलने के उपरान्त मेरे लिए अपनी जीवन शैली को परिवर्तित कर देना कोई कठिन कार्य न था। जिस प्रकार से उन्होंने सबकुछ समझाया था वह अत्यन्त विवेकपूर्ण था । इससे पूर्व मिले नैतिक शिक्षक मुझे ये न बता पाए थे कि अपनी पसन्द के कार्यों को करना मैं क्यों छोड दें। मैं ये सब कुछ कर चुका थी और जानता था कि यह सब खाक है। श्रीमाताजी से एक ओर तो मैंने ये जाना कि नैतिकता मेरे लिए क्यों हितकर है। दिन पूरा स्थान नशीले पदार्थ सेवन करने वाले लोगों से भरा हुआ था। श्रीमाताजी नशेड़ियों को समझा रही थीं कि नशा करना बुरा है परन्तु वो लोग कह रहे थे, "नहीं, ये बात ठीक नहीं है आप भी इसका अनुभव कर सकती है। आप भी इसे लेकर आज़मा सकती हैं । एक स्थिति तो ऐसी आई जिसे मैं भुला नहीं सकता। माँ ने अपने कंधे पकड़कर स्वयं को भीच लिया मानो कह रही हो, "हे परमात्मा! मैं इनका क्या करूं?" वो वास्तव में अत्यन्त अकेली और दुखी प्रतीत हुईं। इसके कारण मुझे बहुत चोट पहुँची। मैं उस दृश्य को देख रहा था, ये ऐसे था जैसे माँ बच्चों के बीच में हों वास्तव में पहली बार मुझे महसूस हुआ कि वे माँ सम थीं। वे कह रहीं थीं, "तुम्हें नशे त्यागने ही होंगे।" ठीक है? मैंने ये बात महसूस की और कहा, "ठीक है, मैं ऐसा ही करूंगा तुरन्त"। बाकी के सभी लोगों ने मुझे घेर लिया और मुझे घूर कर परन्तु मुझे इस बात का भी ज्ञान न था कि किस प्रकार एकदम से अपने चित्त को पावन कर लिया जाए। सारी आदतों से मुक्ति पाने के लिए केवल ध्यान-धारणा ही मददगार साबित हुई Gregoire de Kalbermatten (क्रमशः अगले अंक में) ww. www.ww ---------------------- 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी छी शे ा सितम्बर-अक्तबर 2005 न 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-2.txt चै त न्य लहरी (SHWA NIRMALA. IVERSAL PURE RELIGIC इस अंक में परम पूज्य श्री माताजी का एक पत्र 30.10.1976 महाकाली पूजा लोनावाला लन्दन 19.12.1982 श्रीमाताजी की आस्ट्रेलिया यात्रा 10 1983 जन कार्यक्रम, नई दिल्ली 15 -10.2.1981 सहजयोग से रोग-मुक्ति 35 सहजयोग का अलिखित इतिहास 39 DHARMA ৮AHS1 ल 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-3.txt चै त नय ल ह री प्रकाशक निर्मल इन्फोसिस्टम्ज़ एवं टैक्नोलोजीज प्रा. लि. प्लाट नं. 8. चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड, कोठरुड़ पुणे 411 029 मुद्रक कृष्णा प्रिन्टर्ज एण्ड डिजाइनर्ज त्रीनगर, दिल्ली-110035 मोबाइल : 9868545679 आप अपने सुझाव, सदस्यता एवं जानकारी के लिए निम्न पते पर लिखें : श्री जी.एल. अग्रवाल निर्मल इन्फोसिस्टम्ज एवं टैक्नोलोजीज प्रा. लि. 222, देशबन्धु अपार्टमैंट, कालकाजी, नई दिल्ली-110 019 फोन : 26216654, 26422054 अपने अनुभव सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ.पी. चान्दना जी-11-(463). ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली-110 034 फोन , 55356811 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-4.txt परम पूज्य श्री माताजी का एक पत्र (30.10.1976) परन्तु शीशे को साफ रखना होगा? किस प्रकार मैं इसकी व्याख्या करू? श्री की तरह से क्या मुझे भी कहना पड़ेगा कि 'सर्व धर्माणाम परितज्य मामेकम शरणं व्रज अर्थात सभी अन्य धर्मों को छोड़कर केवल मेरी शरण में आ जाओ, या जैसे ईसा-मसीह ने कहा था "मै ही मार्ग हूँ, मैं ही प्रवेश द्वारा हूँ (I am the Path, I am the न कृष्ण ै/ ० Gate)" I मैं आपको बताना चाहती हूँ कि मैं ही अन्तिम लक्ष्य हैूँ परन्तु क्या आप लोग इस बात को स्वीकार करेंगे? क्या ये सत्य आपके हृदय में उतरेगा? यद्यपि मेरी कही हुई हर बात को तोड़ मरोड़ दिया जाता है फिर भी सत्य तो सदैव अटल रहेगा। आप इसे परवर्तित नहीं कर सकते सत्य के ज्ञान के बिना आप हमेशा अंधकार में रहेंगे, पिछड़े रहेंगे। इस बात का मुझे खेद है । |र प्रिय सहजयोगियों, मेरे प्रिय बच्चो, दीवाली सच्ची आकांक्षाओं का दिन होता दीवाली का ये पर्व आपको प्रेम-प्रकाश से है। परे ब्रह्माण्ड का आहु्वान करें बहुत से दीपक प्रज्जवलित करेगा आप स्वयं वो दीपक है जिनका जलाने होंगे और उनकी देखभाल करनी होगी। प्रकाश बहुत ऊँचाईयों तक जाता है, कोई आवरण इसे दवा नहीं सकता। दीपक आव ण से कहीं अधिक शक्तिशाली बन जाता है। यह उनकी अपनी संपदा है। जब उन्हें चोट पहुँंचती है तो वे परेशान होकर वुझ जाते हैं। प्रेम का तेल डालें, कुण्डलिनी वाती है। अपने अन्दर के आत्म प्रकाश से अन्य लोगो की कुडलिनी को जागृत करो कुण्डलिनी की लौ जल उठेगी. आपसे एक रूप हो कर मशाल वन जाएगी मशाल जलती रहेगी तो मेरे प्रेम का वेदाग कदच बना रहेगा। इसकी न तो काई सीमा होगी न तो कोई अन्त होगा। मैं आपको देखती रहूगी। हमारे दीपक डावांडोल वषं ह? आपको चाहिए कि इस वि्य पर सोचे कि क्या उनके चहेँ ओर कोई पारदर्शी कवच नहीं है? कहीं आप अपनी माँ के प्रेम को तो नहीं रए हैं তি सके कारण नेरा प्रेम आप पर अनन्त आशी र्वादा की वर्षा कर रहा है। भूल आप डावाडोल हैं जिस प्रकार शीश दीपक की रक्षा करता है वैरे ही मेरा प्रेम अपकी क्षा करेगा । हशा आपकी प्रेमसपी माँ निर्मला (निर्मला योगा 1983) अनुवादित। 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-5.txt महाकाली पूजा लोनावाला 19 दिसंबर 1982 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन पवा सहजयोगी को कभी भी अपनी इच्छा किसी अन्य पर लादने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। याग के इस महान देश में आप सभी सहजयोगियों का स्वागत है। आज सर्वप्रथम हमने अपनी इच्छा को अपने अन्दर स्थापित करना है कि हम साधक हैं और हमने पूर्ण उत्क्रान्ति एवं परिपक्वता प्राप्त करनी है। आज की पूजा पूरे ब्रह्माण्ड के लिए है। इस इच्छा से पूरे ब्रह्माण्ड को ज्योतिर्मय किया जाना चाहिए। आपकी इच्छा इतनी गहन होनी चाहिए कि इससे महाकाली शक्ति की पावन चैतन्य लहरियाँ प्रसारित हों। महाकाली शक्ति आत्मा प्राप्ति की पावनतम इच्छा है। यही सच्ची इच्छा है बाकी सब इच्छाएं मृगतृष्णा सम है। आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् पहली बाधा जिसका सामना आपको करना पड़ता है वह यह है कि आप अपने परिवार वालों के विषय में सोचने लगते है आप सोचने लगते हैं. मेरी माँ को आत्म-साक्षात्कार नहीं मिला, मेरे पिताजी को आत्म साक्षात्कार नहीं मिला, मेरी पत्नी को आत्म- साक्षात्कार नहीं मिला, मेरे बच्चों को आत्म- साक्षात्कार नहीं मिला। आपको यह समझ लेना आवश्यक है कि ये सभी सम्बन्ध सांसारिक है, लौकिक हैं, ये आलौकिक नहीं हैं, ये सांसारिकता से ऊपर नहीं हैं, ये सभी सम्बन्ध सांसारिक हैं, ये सारे मोह भी सांसारिक हैं। यदि आप इस शक्ति के साथ खिलवाड़ करते हैं तो महामाया शक्ति आपको खिलवाड़ करने देती है तथा आप जब तक चाहें खिलवाड़ किए चले जाते हैं। लोग अपने सम्बन्धियों को माता-पिता को मेरे पास आप ही वो लोग हैं जिन्हें परमात्मा इच्छा की अभिव्यक्ति के लिए और पावनता की ने इस इस गहन इच्छा को प्राप्त करने के लिए विशेष रूप से है। आपने पूरे विश्व को पावन करना है चुना केवल साधकों को ही नहीं उन लोगों को भी जो साधक नहीं है जिज्ञासु नहीं है अन्तिम लक्ष्य । आत्मा को प्राप्त करने की शुद्ध इच्छा का पावन परिमल (Aura) आपने पूरे ब्रह्माण्ड के चहुँ और लाते हैं परन्तु अन्ततः उन्हें पता चलता है कि खींचना है। ऐसा करके उन्होंने बहुत गलत काम किया है। उन लोगों पर, जो श्रीमाताजी के चित्त देने के योग्य भी नहीं थे उन्होंने अपने बहुमूल्य क्षण, इच्छा के विना इस ब्रह्माण्ड का राजन न हो पाता। परमा मा की इच्ा ही आदिशक्ति (Holy | यह सर्वच्यापी शक्ति है, हमारे अन्दर कुण्डलिगी की केवल एक इ्छा बहुमूल्य घण्टे, वर्ष एवं शक्ति बर्ाद की है। जितनी जल्दी आपको इस बात का एहसास होगा उत्त ही बेहतर है । हो सकता है कि आपमें यह Ghost) ये कडलिनी है। है - ये है आ मा बनना कोई और इत्छा यदि शुद्ध च्छा हो और आपके सांसारिक सम्बंधियों में आप करेंगे तो कुण्डलिनी नहीं उटेगी। जय इसे न हो, गरन्तु कोई फर्क नहीं पड़ता । बैठे व्यक्ति के पता चलता है कि साक के रा म यम से पह इ पूर्ण होने वाली है केल तभी यह जागृत होती है आपमें यदि शुद्ध इ छा नहीं है तो कोई भी आपकी कुण्डलिनी नहीं उठा सकता। म्मुख जब ईंसा मसीह को बताया गया कि उनके भाई बहन बाहर खड़े हैं, तो उन्होंने कहा, "कौन मेरे भाई हैं और कौन मेरी बहने? अतः 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-6.txt चैतन्य लहरी &10-2005 अंक : 9 उत्क्रान्ति की इच्छा है भी या नहीं। उनमें यदि उत्क्रान्ति प्राप्त करने की इच्छा है तो उन्हें आपके व्यक्ति को समझ लेना चाहिए कि जो लोग स्वयं को अपने परिवार की समस्याओं में उलझा कर मेरा ध्यान आकर्षित करते हैं, उन्हें समझ लेना सम्बन्धी होने के कारण अयोग्य नहीं माना जाना चाहिए कि मैं खिलवाड़ करती रहती हैँ । ये सभी चाहिए। सहजयोग में आपको अपनी इच्छा शुद्ध चीजें आपके लिए मूल्यहीन हैं। उत्क्रान्ति प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि आपमें कोई इच्छा न हो। सगे-सम्बन्धियों में कोई मोह न हो। महाकाली शक्ति को स्थापित करने का यह पहला सिद्धान्त उन्हें इस बात का ध्यान रखना होगा कि अपने है। भारत में ये समस्या विशेष रूप से है क्योंकि किसी भी सम्बन्धी पर वे सहजयोग थोपें नहीं। कम वहाँ लोगों का अपने परिवारों से बहुत मोह है। आप किसी एक व्यक्ति को आत्म साक्षात्कार दें तो थोपे। आपको ये देखकर आश्चर्य होता है कि उसके सभी सगे सम्बन्धी भूतों का बहुत बड़ा समूह है। इच्छा बनानी होगी बहुत सी चीजों से आपको बाहर निकलना होगा। परन्तु जो लोग अपने परिवार हैं के मोह में फँसे हुए हैं, उनके बन्धन में बँधे हुए से कम अपने इन सम्बन्धियों को मुझ पर तो न अब हमारे अन्दर यह इच्छा जो कि महाकाली शक्ति है जो अभिव्यक्त हो रही है, यह भिन्न प्रकार से हमारे अन्दर आती है जैसा मैंने आपको बताया एक व्यक्ति को आत्म-साक्षात्कार देकर ही आप कष्ट में फंस जाते हैं. सभी भूत (परिवार के) धीरे- धीरे मेरे पास आते चले जाते हैं, मेरे जीवन को कष्टकर बनाने के लिए और मेरी शक्ति को नष्ट करने के लिए। और वे बिल्कुल किसी काम के नहीं होते ये बात आपकी समझ में आ जानी चाहिए कि ऐसा करना बिल्कुल भी शुभ नहीं होता। आत्म-साक्षात्कार के पश्चात् सहजयोगियों में अपने सम्बन्धियों के लिए कुछ करने की इच्छा के रूप में यह आती है। दूसरी इच्छा जो हमारे अन्दर जागृत होती है वह सम्बन्धियों के रोगों को दूर करने की होती है। ये दूसरी इच्छा है। आप खुद महसूस करके देखें कि आप बहुत से लोगों के साथ भी ऐसा हुआ तो कोढ़ से लेकर सर्दी जुकाम तक कोई भी रोग हो आप सोचते हैं कि अपने सम्बन्धियों को माँ के पास ले जाए। परिवार की सभी चिंताएं भी आप मेरे पास लाना चाहते हैं। गर्भ या छीकों जैसी साधारण चीजों के लिए भी आपको इन चीजों को आप जब अपने चित्त आप यदि अपना समय बर्बाद करना चाहते हैं तो मैं आपको ऐसा करने की इजाज़त दूगी परन्तु यदि आप तेजी से उत्क्रान्ति प्राप्त करना चाहते हैं तो ये बात याद रखनी होगी कि ये सारे सम्बन्ध मात्र सांसारिक सम्बन्ध हैं, ये आपकी शुद्ध इच्छा नहीं है। ०. कहा जाता है। में रख लेते हैं तो मैं कहती हैं, "प्रयत्न करके देख लो, सम्भव हो तो इनका समाधान खोज लो। आप जब अपना चित्त इन चीजों से हटा लेते हैं तब मेरा अंतः अपनी शुद्ध इच्छा को सांसारिक इच्छाओं से पृथक करने का प्रयत्न करें। परन्तु इसका अभिप्राय ये भी बिल्कुल नहीं है कि आप अपने परिवार को त्याग दें अपनी माँ को त्याग दें अपनी बहन को छोड़ दें। कुछ भी नहीं, साक्षी रूप से उन्हें देखें, वैसे ही जैसे किसी अन्य व्यक्ति को देखते हैं। इस बात का अन्दाजा लगाएं कि उनमें चित्त इन पर जाता है। ये सब चीजें आप मेरे चित्त में छोड़ दें। मैं इनका प्रबन्ध करूंगी। परन्तु यह तो दुर्दम्य वृत (Vicious Circle) है. सोचों से भरे मस्तिष्क का सूक्ष्म प्रक्षेपण है। "ठीक है, माँ ये म 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-7.txt अंक 9& ।0-2005 चैतन्य लहरी जब जब भी आपमें कोई इच्छा जागृत हो आप उससे ऊपर उठे और जब तक आपके सम्मुख खड़ी "भयानक समस्या, जिसका समाधान आप चीज अब हमारे चित्त में नहीं है आप कृपया इसे देखें। परन्तु ये तरीका नहीं हैं। हमारे अन्दर केवल एक ही गहन इच्छा होनी चाहिए कि क्या मुझसे चाहते है, उस पर आपका प्रकाश पड़ने नही मैं आत्मा बन गया हूँ। क्या मैंने अपना अन्तिम लगता, उससे ऊपर ही बने रहे। ये सारी मेरी सिरदर्दियाँ हैं जिन्हें आप अपने पर ओढ़ रहे है । लक्ष्य पा लिया है? क्या मैं सांसारिक इच्छाओं से ऊपर उठ गया हूँ? स्वयं को स्वच्छ करें जब आप स्वयं को स्वच्छ करने लगेंगे तो जो सांसारिक इच्छाएं आप निकाल फेकेंगे मैं उनकी देखभाल करुंगी। ये मेरा आश्वासन है वचनबदढ्धता नहीं है। यदि ये समस्या मेरे चित्त के काबिल हुई तो अवश्य मैं इसे देखूंगी। जिस प्रकार मैं अपने चित्त का सम्मान करती हैँ आपने भी अपने चित्त को उतना ही महत्व देना है। मेरे विचार में आपने अपने चित्त को उससे भी कहीं अधिक महत्त्व देना है जितना मैं देती हूँ क्योंकि मैं अपने अन्दर सारी चीजों का मेरे चित्त आपको केवल एक कार्य जो करना है चह है आत्मा बनना। बस इतना ही ये बहुत साधारण बात है, बाकी सब मेरी सिरदर्दी हैं। आपको अपनी इच्छा सामूहिकता पर ले जानी है ये बिल्कुल भिन्न समस्या है। अपनी पावनता को सिद्ध करने के लिए, अपनी पावनता से सुगन्धित होने के लिए आपका चित्त दूसरी ओर होना चाहिए। अब आप मेरा सामना नहीं कर रहे, प्रबन्धन कर सकती हैँ क्योंकि सभी में है । मेरे साथ पूरे विश्व का सामना कर रहे हैं। इस कुछ प्रकार से पूरा दृष्टिकोण ही परिवर्तित हो जाएगा। दृष्टिकोण ये होना चाहिए. मैं क्या दे सकता हूँ? परन्तु आप अपनी इच्छाओं को आपके मैं किस प्रकार दे सकता हूँ? देने में मेरी क्या सामने मुँह बाए खड़ी सांसारिक समस्याओं से मुक्त करने का प्रयन्त करें। इच्छाएं जब विस्तृत चित्त कहाँ है? अपने बारे में मुझे अधिक होती हैं तब आप सोचने लगते हैं, "माँ हमारे देश की समस्याओं का क्या होगा?" ठीक है, अपने देश का मानचित्र मुझे दे दीजिए। समाप्त, इतना कर लेना काफी है। तो स्वयं को स्वच्छ करें, अपनी अर्थात आपको आत्मा होना चाहिए। अपने प्रति इच्छाओं को त्यागें। एक बार जब आप स्वच्छ हो जाएंगे तो वह क्षेत्र आपके चित्त की सीमा में आ गलती है? मुझे अधिक सावधान रहना होगा, मेरा सावधान होना होगा, मैं क्या कर रहा हूँ? मेरी जिम्मेदारी क्या है? आपकी इच्छा होनी चाहिए कि आप पवित्र बने । आपको शुद्ध इच्छा होनी चाहिए आपकी क्या जिम्मेदारी है? आपको इच्छा करनी चाहिए कि अपने प्रति आपकी जिम्मेदारी की अभिव्यक्ति हो, वह पूर्ण होनी चाहिए। जाएगा। यह बहुत दिलचस्प बात है। इस पर जब आप काबू पा लेते हैं केवल तभी आप इस पर प्रकाश डाल सकते हैं। लेकिन जब तक आप इसमें फंसे रहते हैं तो आपका प्रकाश भी छिपा रहता है। इसके बाद सहजयोग के प्रति आपकी जिम्मेदारी आती है। सहजयोग के प्रति आपकी क्या जिम्मेदारी है? सहजयोग जो परमात्मा का कार्य है जो आरम्भ हों चुका है। आप ही मेरे बाजू हैं। आप ही ने परमात्मा का कार्य करना है और प्रकाश प्रसारित नहीं हो पाता। आपको इस इच्छा से ऊपर उठना होगा। 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-8.txt अक : 9 & 10 -2005 चैतन्य लहरी 7 होना आपके लिए कठिन कार्य नहीं है। चित्त को आसुरी तत्वों आप ही ने परमात्मा विरोधी तत्वों - पावन रखना होगा। सहजयोग में आप सारी विधियाँ जानते हैं कि चित्त को किस प्रकार पवित्र से लड़ना है। अब आपका परिवार आपकी जिम्मेदारी नहीं है । जो लोग परिवार की जिम्मेदारियों में फँसे हुए हैं वे आधे-अधूरे सहजयोगी हैं - मैंने बताया कि वे बेकार लोग हैं, विल्कुल किसी काम के नहीं। ऐसे सभी लोगों को सहजयोग छोड़ देगा। उनके परिवार कष्ट उठाएंगे और मैं जानती हूँ ऐसा घटित होने वाला है क्योंकि शक्तियों अब इस प्रकार से एकत्र हो रही हैं कि छँटनी शुरु हो जाएगी। आपकी अपने प्रति जिम्मेदारी है कि आप आत्मा बने, आपकी सहजयोग के प्रति जिम्मेदारी है, आपकी जिम्मेदारी है कि आप मुझे बेहतर और बेहतर, और बेहतर रूप से समझें। आपकी जिम्मेदारी है कि आप इस सारी तकनीक को समझे जो आपके अन्तःस्थित है, ये समझना आपकी जिम्मेदारी है कि ये तकनीक किस प्रकार कार्यान्वित करती है और व्यवहार करती है। ये आपकी जिम्मेदारी है कि आप स्वयं गुरु किस प्रकार बनेंगे। सम्माननीय एवं गरिमामय व्यक्तित्व बनना आपकी जिम्मेदारी है। सम्माननीय व्यक्तित्व बनना, घटिया व्यक्तित्व का नहीं । आपमें से हर एक पूरे ब्रह्माण्ड के बराबर मूल्यवान है। बशर्ते कि आप उस बुलन्दी तक उठना चाहें। आप यदि उन ऊँचाइयों तक उठना चाहेंगे, अपने अन्तः स्थित विस्तार को यदि विकसित रखा जा सकता है। चित्त यदि पावन नहीं है तो इस इच्छा पर तुच्छ मूर्खतापूर्ण चीजों का आक्रमण होता रहेगा, उन चीजों का जो उत्क्रान्ति प्राप्ति के लिए अर्थहीन हैं। अच्छे सहजयोगी को वस्त्रों की चिन्ता नहीं होती, उसे ये चिन्ता नहीं होती कि लोग उसे क्या कहते हैं, उसके बारे में क्या बातें करते हैं, किस प्रकार उससे व्यवहार करते हैं। उसका चित्त आलोचना पर नहीं होता कि फलाँ व्यक्ति ऐसा है और फलाँ ऐसा, और न ही वह किसी अन्य के प्रति आक्रामक होता है क्योंकि अन्य तो कोई है ही नहीं। समस्या तो ये है कि मैं जब कोई बात करती हैँ तो हर आदमी सोचता है कि मैं उसके बारे में नहीं कह रही। आक्रामक लोग भूमिका ले लेते हैं और आलसी प्रकृति दूसरी प्रकार से सोचते हैं। जैसे मैं यदि किसी आक्रामक व्यक्ति के बारे में कुछ कहूँ तो जो व्यक्ति आक्रामक नहीं है वह तुरन्त आक्रामक व्यक्ति के बारे में सोचने लगता है, अपने बारे में नहीं सोचता । एकदम से आप अपने मस्तिष्क अन्य लोगों पर ले जाते हैं और दूसरों के दोष खोजते हैं। इच्छा पर वजन पड़ने के कारण व्यक्ति की इच्छा शनैः शनैः निम्न, निम्न और निम्न होती चली जाती है। अतः सावधानी अत्यन्त आवश्यक है, पूर्ण सावधानी, सतर्कता कि हमें अपना चित्त केवल अपनी शुद्ध इच्छा को बनाए रखने के लिए ही लगाए रखना चाहिए। करना चाहेंगे तो ब्रह्माण्डों के ब्रह्माण्ड आपके चरणों में न्योछावर किए जा सकते हैं । इच्छा का उदभव हृदय से होता है और आपकी रचना भी ऐसी की गई है कि आपका ब्रह्मरन्ध्र भी जो लोग अब भी अत्यन्त निम्न-स्तर पर बने रहना चाहते हैं वो उन्नत नहीं हो सकते। उदाहरण के रूप में पाश्चात्य सहजयोगियों के साथ एक विशेष समस्या है कि वे अपनी माँ के प्रति पाप करते हैं और पूर्वी सहजयोगियों में पिता के प्रति पाप करने की समस्या है। इनसे मुक्त हृदय ही है। आपका हृदय यदि स्वच्छ नहीं है तो ब्रह्मरन्ध्र भी स्वच्छ नहीं होगा। जो लोग ये सोचते हैं कि सहजयोग के बारे में बड़े-बड़े भाषण दे देना ही काफी है, परन्तु यदि उनका हृदय नहीं खुला है 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-9.txt अक : 9 & 10 - 2005 चैतन्य लहरी को भूल जाओ, तत्पश्चात् उन्होंने 'सौन्दर्य- लहरी लिखी - इसमें केवल माँ का और उनके प्रति उनकी (आदिरशंकराचार्य) श्रद्धा का वर्णन हैं । तो वे स्वयं को धोखा दे रहे हैं। अतः हृदय को खोलने का प्रयत्न करे। मुझे आशा है आज जब आप ये पूजा सौन्दर्य-लहरी का हर श्लोक मन्त्र रूप है। यह करेंगे, महाकाली की पूजा और ये विशेष यज्ञ करेंगे बुद्धि के माध्यम से बुद्धि का समर्पण नहीं है, यह हृदय का समर्पण है पश्चिमी सहजयोगी भली-भांति जानते हैं कि किस प्रकार उन पर लगातार तो निश्चित रूप से हम इस परिमल को स्थापित करके पूरे विश्व को ज्योतिर्मय बनाएंगे। परन्तु आपका दृष्टिकोण ये होना चाहिए कि मैंने इस कार्य में कितना योगदान दिया है? क्या अब भी मैं नकारात्मकता के आक्रमण होते रहे, विशेष रूप से जब फ्रॉयड जैसे भयानक लोग उनके मूल को, अन्य लोगों के विषय में सोचता हूँ? क्या अब भी मैं जड़ों को नष्ट करने के लिए आए और किस प्रकार तुच्छ समस्याओं के विषय भें सोचता हूँ या अपनी पश्चिम ने उसे आँखें बन्द करके स्वीकार किया और स्वयं को नर्क के मार्ग पर डाल दिया! इन सभी चीज़ों को खदेडना होगा यह सब मूर्खता है, आत्मा के विषय में? अतः बाएं पक्ष का आदि और अन्ति श्री बिल्कुल गलत है और परमात्मा विरोधी गतिविधि गणेश से होता है। श्री गणेश में मूलतः एक ही गुण है। तब आपको एहसास होगा कि आपने अपने है- कि वे अपनी माँ के प्रति पूर्णतः समर्पित हैं । मूल, अपनी जड़ों को नष्ट करने वाली इस प्रवृत्ति किसी और परमात्मा को वे नहीं जानते। वो तो से युद्ध करके इसे पराजित करना है। जब हमारी अपने पिता तक को नहीं पहचानते। वो केवल माँ सभी उत्कृष्ट, श्रेष्ठ, पोषक, उन्नत करने वाली, अपनी माँ को जानते हैं और उन्हीं के प्रति पूरी मोक्षदायिनी चीजों का स्रोत हैं तो तुम तो हमें तरह से समर्पित हैं परन्तु इस शुद्ध इच्छा को हमारी जड़ों से दूर कर रहे हो। मैं सोचती हूँ कि क्रियान्वित भी करना होगा इसके विषय में मैं आपके साथ पशुओं की तरह से व्यवहार किया आपको बाद में बताऊंगी क्योंकि आगे हम बहुत सी पूजाएं करते रहेंगे। परन्तु आज, आइए, हम स्वयं को आत्मा बनने की शुद्ध इच्छा में स्थापित कर लें। गया है। वो चाहता है कि आप मनुष्यत्व के उस निम्न स्तर पर पहुँच जाएं जहाँ आप विक्षिप्त अवस्था में बने रहें या इससे भी किसी निम्न अवस्था में । अतः जो आक्रमण आप पर हुए उनके प्रति सचेत रहना अत्यन्त आवश्यक है। उनसे ततलि अब, पाश्चात्य मस्तिष्क प्रश्न करेगा कि कैसे? ये प्रश्न हमेशा उठता है कि ये कार्य कैसे किया जाए? क्या मैं आपसे बताऊं, ये कार्य बहुत सहज है ! आदिशंकराचार्य ने विवेक चूड़ामणि तथा अन्य बहुत से ग्रन्थ लिखे, फिर भी ये बड़े-बड़े बुद्धिबादी लोग उनकी जान के पीछे हाथ धोकर पड़ गए। कहने लगे "ऐसा करो, वो लिखो, ये लिखो। शकराचार्य ने सोचा कि इन सब लोगों सर्तक रहना और इस प्रकार की किसी भी चीज से एकरूप न होना। अंत में मैं ये कहूँगी कि आप लोग इस देश की जड़ों को देखने के लिए आए हैं पत्तों को नहीं। पश्चिमी शैली के अपने दृष्टिकोण को बदलें यहाँ पर टेलिफोन अच्छे नहीं है, आप कोई टेलिफोन नहीं कर सकते। डाक और रेल की स्थिति भी 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-10.txt अक : 9 & 10 - 2005 चैतन्य लहरी से बहुत परे है। इस मामले में वे बहुत ऊँचे लोग हैं क्योंकि उन पर कोई आक्रमण नहीं हुए। परन्तु आप लोग उनसे कहीं ऊँचे हैं क्योंकि आप पर बहुत खराब है। (मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए क्योंकि हम रेल के बंगलों में रुके हुए हैं।) परन्तु यहाँ के लोग बहुत शानदार हैं वे जानते हैं कि धर्म' क्या आक्रमण होने के बावजूद भी आप इस दलदल से बाहर आ गए। आपने अपने मुख उससे मोड लिए और दूसरे छोर पर आ गए। यह बहुत महान उपलब्धि है। है। जैसे-कैसे उन पर कोई आक्रमण नहीं हो रहा क्योंकि कुण्डलिनी होने के कारण यहाँ पर श्री गणेश वैठे हुए हैं कोई भी इस महान ह. महाराष्ट्र पर आक्रमण करने का साहस किस प्रकार कर सकता है? इसकी सुरक्षा के लिए तो यहाँ आठ गणेश विद्यमान हैं। मैं नहीं जानती कि अतः आपको विश्वास होना चाहिए कि बहुत बड़ी आबादी वाले इस विशाल देश में ऐसे बहुत से लोग हैं जो आप ही की तरह से सोचते हैं । अतः आप स्वयं को अकेला न समझे। महाराष्ट्र के लोगों को भी इस सत्य का ज्ञान है या नहीं? इसके अलावा यहाँ पर बहुत से मारुति हैं। तो इस देश पर कौन आक्रमण कर सकता हैं? यहाँ पर नकारात्मकता का कोई आक्रमण नहीं है, सिवाए इसके कि ये लोग स्वयं कुछ धन लोलुप प्रवृत्ति के हैं। इन पर केवल यही अभिशाप है। इससे यदि ये छुटकारा पा सकें तो ये महान लोग हैं । इस प्रकार, आज हम महाकाली तत्व की पूजा आरम्भ करेगे। आज गौरी का, आप कह सकते हैं गणेश का दिन है । यद्यपि पांचांग के अनुसार ऐसा नहीं है परन्तु मेरे अनुसार आज अपने अन्दर सूक्ष्म-स्तर पर हमें पावन होने की, सभी बन्धनों को तोड़ने की, सभी अस्वच्छ चीजों को त्यागने की शुद्ध इच्छा को स्थापित करना है। महान सहजयोगी बनने की इच्छा को, जिम्मेदार सहजयोगी बनने की इच्छा को, माँ के प्रति समर्पित होने की इच्छा को स्थापित करना है। ये कार्य कठिन नहीं है। ये अहम् है। अन्त में जाने वाला तो आप लोग इस देश में पश्चिमी सुख सुविधाओं का आनन्द लेने के लिए नहीं आए जा आत्मा का आनन्द लेने के लिए आए हैं अतः भारत के विषय में अपना दृष्टिकोण बदलें मेरा कहने का मतलब किसी भी तरह से एयर-इण्डिया नहीं हैं। ये गलत धारणा है कि क्योंकि आप सहजयोगी हैं तो एयर-इण्डिया से ही यात्रा करें। दुर्गुण क्योंकि आप क्या समर्पण करते हैं? आप बिल्कुल नहीं । सहजयोग को एयर इण्डिया से कुछ लेना देना नहीं। हमारी रेलों का तथा अन्य सभी चीजों का सहजयोग से कुछ नहीं। तो क्या? अतः आप लोगों को चाहिए कि देशभक्त बनें और परमात्मा के लिए अपनी ही एयर लाइन का उपयोग करें जब आप यहाँ पहुँचेंगे तो देखेंगे कि यहाँ के लोग कितने अबोध हैं। वो निश्चित रूप से मैं वहाँ स्थापित हो जाऊँगी फ्रॉयड को नहीं समझ सकते। उनसे आप फ्रॉयड की बात भी नहीं कर सकते। फ्रॉयड उनकी बुद्धि मेरा प्रेम स्वीकार करें, इसके सिवाए मैं आपसे कोई आशा नहीं करती। समर्पण का अर्थ केवल यह है कि मेरा प्रेम स्वीकार करने के लिए आप अपना लेना-देना हृदय खोलें। इस अहम् को त्यागें, केवल इतना ही और ये कार्यान्वित हो जाएगा मैं स्वयं को आपके हृदय में धकेलने का प्रयत्न कर रही हैूँ। परमात्मा आपको धन्य करे। (अनुवादित) 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-11.txt श्रीभाताजी की आस्टेलिया याजा (1983) 17 मार्च 1983 वृहस्पतिवार के दिन सिडनी के मैकेबियन हॉल में डा० वारेन रीव्ज़ ने परम पूज्य श्रीमाताजी की आस्ट्रेलिया यात्रा के दूसरे अन्तिम कार्यक्रम का परिचय दिया| जब डॉक्टर एक शानदार यात्रा का यह उपयुक्त चरमोत्कर्ष था। दो मार्च से ही पर्थ में साधकों का 1 समूह आने लगा था। समाचार पत्र, रेडियो, दूरदर्शन के लोग भी श्रीमाताजी के लिए लाखों आस्ट्रेलियाई लोगों को सम्बोधित करने का मार्ग खोल रहे थे। वारेन ने पहले दिए गए परिचयों की अपेक्षा बिल्कुल भिन्न परिचय दिया तो वहाँ आस्ट्रेलिया के एक श्रीमाताजी ने केवल चार नगरों की यात्रा अग्रणी समाचार पत्र का फ़ोटोग्राफर और पत्रकार भी मौजूद था। वक्ता ने ज्यों ही आदिशक्ति के पूर्व- अवतरणों के विषय में ईसा-मसीह की परम पावनी माँ, श्री फातिमा तथा अन्य महान अवतरणों करने का निश्चय किया था और ये सभी नगर राज्यों की राजधानियाँ थीं पर्थ और एडीलेड नामक दो छोटे शहरों में दो-दो जन कार्यक्रम हुए के विषय में बताया तो श्री माताजी के सम्मुख मेलबोर्न में तीन और सिडनी में चार। एडीलेड. उपस्थित सभी सहजयोगीं अभिभूत हो उठे। हम जहाँ पर नकारात्मकता ने सहज़योग प्रचार-प्रसार सबकी समझ में आ गया कि हम एक महत्वपर्ण के मार्ग में स्थानीय सहजयोगियों के सम्मुख बाधायें खड़ी की हुई थीं, विशेष सफलता प्राप्त हुई। पाँच मार्च शनिवार के दिन श्रीमाताजी का पहला जन कार्यक्रम हुआ जिस दिन ऐडीलेड में पहला कार्यक्रम था उस दिन देश में चुनाव भी थे। पूज्य श्रीमाताजी (Holy Ghost) श्री आदिशक्ति मीडिया का झुकाव चुनावों की ओर था क्योंकि सत्ता आध्यात्मिकता से अधिक उन्हें आकर्षित कर घटना में भाग ले रहे हैं। अपने परिचय भाषण के अन्त में डॉक्टर वारेन ने विश्व के सम्मुख घोषणा की कि परम हैं। पृथ्वी पर अवतरित हुई हैं। का अवतरण है जो आवश्यकता पड़ने पर बार-बार रही थी। फिर भी शहर के अन्दर सुन्दर रंग के लगाए गए पास्टर, सोमवार के समाचार पत्रों में छपा एक लेख और कुछ अन्य अच्छे विज्ञापनों द्वारा श्रीमाताजी की यात्रा की घोषणा से बहुत से साधकों को श्रीमाताजी के आने का समाचार मिल कुछ क्षण पश्चात् जब श्री माताजी बोलने के लिए उठी तो सभागार में पूर्ण सन्नाटा था। बड़ी ही संयमित आवाज में श्रीमाताजी ने केवल इतना गया था तथा सारी कठिनाइयों के बावजूद भी वे उन तक पहुँचे। कहा ये बात सत्य है और एक नए युग का आरम्भ हो चुका है। उस सुबह श्रीमाताजी ने बताया था कि "इस बारे में विश्व के सम्मुख बात 1 चुनावों की रात को पहली सभा में बहुत से लोग आए। परन्तु सोमवार सुबह टी.वी. पर विज्ञापन देने के कारण रात की समा अत्यन्त ही सफल करेगी। परन्तु इसका समय एक रहस्य था। संभवतः कल रात," उन्होंने कहा। 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-12.txt चैतन्य लहरी अक : 9& 10 - 2005 भली-भांति स्थापित हो गए हैं और बढ़ रहे हैं । श्रीमाताजी को कोटि-कोटि धन्यवाद। रही। सभी कुर्सियाँ भरी हुई थीं और सामने के फर्श पर भी बहुत से लोग बैठे हुए थे, सभागार के दोनों तरफ और पीछे की ओर लोग खड़े हुए थे। पश्चिमी राज्यों को छोड़कर जब श्रीमाताजी सभा समाप्त होने पर उनमें से बहुत से साधक माँ के चरणों पर आए, यह एक ऐसी घटना थी पूर्वी राज्यों की यात्रा के लिए निकलीं तो पूरे जिसकी आशा आस्ट्रेलिया में नहीं की जा सकती पश्चिमी-पूर्वी आस्ट्रेलिया के जंगलों में भयानक आग लगी हुई थी। चार वर्षों के सूखे के कारण थी। नकारात्मकता की पराजय का यह बहुत सभी कुछ बहुत शुष्क था और आग बुझाने के लिए पानी तक न था। श्रीमाताजी ने ज्यों ही पूर्व की यात्रा आरम्भ की तो उनके साथ अत्यन्त सुखकर वर्षा भी आई । ये वर्षा श्रीगणेश की भूमि के लिए एक विशेष आशीर्वाद। भी बर्षा होती रही। वर्षा का होना ये बताता था कि श्रीमाताजी के आने से कितने परिवर्तन हुए हैं। परमेश्वरी माँ एडीलेड से जब 8 मार्च को मैलबोर्न पहुँची तो समाचार पत्रों और दूरदर्शन के संवाददाता प्रेस कान्फ्रेंस के लिए विंडसर होटल में सुन्दर प्रदर्शन था। रविवार की सुबह श्रीमाताजी ने टोरेन नदी के तट पर नए लोगों को प्रशिक्षण देने का एक कार्यक्रम किया जिसमें बहुत बड़ी संख्या में लोग थी। उनके प्रस्थान के पश्चात् आए तथा सोमवार प्रातः एडीलेड के सहजयोगियों को एक बहुत सुन्दर और विशाल आश्रअम भेंट किया गया। केवल तीन दिन में परम पूज्य श्रीमाताजी ने इस बिगड़े हुए नगर को परिवर्तित कर दिया पर्थ इस यात्रा का अत्यन्त सुन्दर परन्तु एकत्रित थे। उनमें से कुछ लोग दोषदर्शी (Cyni- शान्त आरम्भ था। पर्थ टाऊन हाल में दो कार्यक्रम Cal) थे, कुछ पेशावर थे और कुछ ये बात समझ होने के पश्चात् ही रेडियो तथा टी.वी. समाचार चुके थे कि कौन विशिष्ट व्यक्ति आ रहा है। प्रेस लोगों तक पहुँच पाए। फिर भी साधक पहुँचे कान्फ्रेंस का अन्त दूरदर्शन साक्षात्कार से हुआ जिसे शाम को समाचार बुलेटिन में दिखाया गया. जो कि आस्ट्रेलिया दूरदर्शन का अत्यन्त अहम् कार्यक्रम हैं। इस शक्तिशाली माध्यम (दूरदर्शन) से जब श्रीमाताजी आत्म-साक्षात्कार दे रही थीं तो उन्हें दस लाख से भी अधिक लोगों ने देखा और क्योंकि पर्थ के परिश्रमी सहजयोगियों ने नगर तथा पास के गाँवों में भली-भांति पोस्टर लगाए थे। पोस्टरों और समाचार पत्रों में छपे विज्ञापनों से लोगों को पता चला कि श्रीमाताजी कहाँ पर होंगे। पहुँचने के तुरन्त पश्चात् परमेश्वरी माँ ने एक छोटी सी पूजा करवाई थी और आने वाले कुछ ही दिनों में ये पता चल गया कि इस पूजा से वास्तव में नकारात्मकताऐं दूर हुई थीं बहुत से नए लोग इस अनुभव के परिणामस्वरुप आने वाले दिनों में कार्यक्रमों में आए। दूरदर्शन पर ये कार्यक्रम दिखाए जाने के पश्चात् वहाँ टेलिफोनों का तांता लग गया क्योंकि लोग इसके विषय में और अधिक जानना चाहते थे। अगले दिन जब श्रीमाताजी ने आकाशवाणी से लोगों को सम्बोधित किया तब भी वैसे ही आत्म-साक्षात्कार में स्थापित होकर नियमित रूप से पर्थ आश्रम आ रहे हैं। इन दोनों नए केन्द्रों पर पहले श्रीमाताजी कभी नहीं आए थे। अब ये केन्द्र 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-13.txt अक : 9& 10-2005 12 चैतन्य लहरी दूरदर्शन वाली महिला ने ज्यों ही पटरी पर पैर रखा वर्षा की पहली बूंद उस पर गिरी। वह रुकी ऊपर को देखा और आगे चलते हुए मुस्कराकर अपनी कृतज्ञता प्रकट की। बहुत समय पश्चात् मैलबोर्न में पहली बार लगातार वर्षा होते हुए देखी गई थी। अनुभव की पुनरावृत्ति हुई एक बार फिर टेलिफोनों की घण्टियाँ बज उठीं। हमेशा की तरह से आदिशक्ति की शक्ति चमत्कारों के रूप में अभिव्यक्त हुई। जन्म से कलाई की समस्या लेकर उत्पन्न हुई एक लड़की जिसे ठीक करने में चिकित्सा विज्ञान असफल हो गया था, दूरदर्शन देखते हुए उसे अपने हाथों में शीतल लहरियाँ महसूस हुई। अचानक उसकी कलाई ठण्डी हो गई। परमेश्वरी कृपा उसके अन्दर परन्तु मैलबोर्न में इससे भी अधिक बहुत होना था। आकाशवाणी से कई सफल-प्रवचन कुछ हुए और परिणाम स्वरूप जन-कार्यक्रमों में साधको की भीड़ उमडती गई। 13 मार्च को मैलबोर्न आश्रम के विशाल प्रांगण में कार्यशाला से प्रवाहित हो रही थी। मैलबोर्न पर विशेष रूप से परमेश्वरी कृपा की वर्षा हुई। वर्षों से वहाँ पानी की समस्या थी । एक प्रातः श्रीमाताजी ने समुद्र देव की पूजा करने का निर्णय लिया। सभी लोग कुछ दूर तक यात्रा द्वारा इसका समापन हुआ। आत्म-साक्षात्कार के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए आए लोगों की भीड़ से बाग भर गया । श्रीमाताजी ने स्वयं भोजन बनाकर हम लोगों को खिलाया। करते समुद्र तट तक पहुँचे जहाँ श्रीमाताजी ने एक सुन्दर समारोह में अध्यक्षता करते हुए बालू से श्रीगणेश बनाया बाद में श्रीमाताजी ने वहाँ उपस्थित सभी सहजयोगियों को बताया कि मेलबोर्न की ने बहुत से लोगों को चौकाया। यद्यपि रात बहुत पानी की समस्या का सदा के लिए समाधान हो बीत चुकी थी फिर भी सहजयोगियों का बहुत बड़ा सभी के लिए ये सप्ताह आनन्ददायी था । सिडनी वायुपतन पर श्रीमाताजी के आगमन समूह वहाँ प्रतीक्षा कर रहा था। प्रेममयी माँ लगभग दो वर्षों बाद वहाँ पहुँचे थे वायुयान से उतरे बहुत गया है। बारिश लाने वाली इस यात्रा में केवल से विशिष्ट व्यक्ति आश्चर्य चकित थे क्योंकि सहजयोगी ही श्रीमाताजी के साथ नहीं थे परन्तु सवाददाता सम्मेलन में दूरदर्शन की एक महिला भी सहजियों से पूछ रही थी कि क्या वर्षा होगी? ने एक पूजा रखी जैसे वे अन्य सभी शहरों में वायुपतन से आते हुए कार में बैठे लोगों को करवाती आई थीं। शाम को बहने वाली दिव्य श्रीमाताजी ने कहा था 'अब मै आ गई हूँ वर्षा को चैतन्य लहरियाँ उन सहज-योगियों के लिए भी आना ही होगा। दूरदर्शन की उस महिला को ये वात बताई गई और ज्योंही ये कान्फ्रेंस समाप्त हुई अधिक समय से श्रीमाताजी को हृदय में बसाया श्रीमाताजी को चहुँओर से घेरे हुए उल्लसित भीड ने बिल्कुल तवज्जो नही दी। शाम को श्रीमाताजी विशेष वरदान थीं जिन्होंने एक साल या उससे भी सामान लिए कई सहजी कार की ओर जा रहे थे। हुआ था। परन्तु श्रीमाताजी के दर्शन का अवसर 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-14.txt चैतन्य लहरी अक : 9 & 10 - 2005 13 आकाशवाणी प्रसारण के बाद आकाशवाणी के उन्हें पहली बार प्राप्त हुआ था। एक बार फिर श्रीगणेश और आदिशक्ति को समर्पित इस पूजा ने बाधाओं को दूर किया, यद्यपि अगली सुबह कुछ देर के लिए माया हममें से कुछ लोगों के लिए बहुत जोर से कार्यरत थी। कार्यकर्त्ता, जिनके लिए अति विशिष्ट व्यक्ति आम बात होती है, श्रीमाताजी को प्रणाम करने के लिए आए। वापसी के समय श्रीमाताजी ने हल्के से कहा कि देखो परमात्मा किस प्रकार कार्य करते है। ये एक ऐसा पाठ था जिसे भुलाया नही जा मंगलवार की सुबह अर्थात पन्द्रह मार्च को श्रीमाताजी ए.बी.सी. (Austration Broadcasting सकता। सिडनी में पुनः श्रीमाताजी के एक Corporation ) के मुख्य कार्यक्रम (City Extra) में उनकी विशेष मेहमान थी क्योंकि जहाँ-जहाँ भी श्रीमाताजी गई थीं वर्षा ने उनका अनुसरण किया था, शहर में प्रातःकाल की गाड़ियों की बेइन्तहा भीड़ थी, सभी रस्ते जाम थे सभी लोग जान गए कि श्रीमाताजी स्टूडियो में निश्चित समय से बाद में पहुँचेंगी। कार में बैठे हुए अन्य चार लोग बहुत अधिक चिन्तित थे, परन्तु बन्धन देते हुए श्रीमाताजी ने उनसे कहा कि 'भरोसा रखो, सभी कुछ ठीक हो जाएगा। निर्धारित समय से पन्द्रह मिनट पश्चात् जब हम आकाशवाणी पहुँचे तो हमें पता लगा कि श्रीमाताजी से बाद में आने वाला व्यक्ति अपना साक्षात्कार का प्रसारण शाम के समाचार बुलेटिन में किया गया जिसे दस लाख से भी अधिक लोगों ने देखा । एक अन्य दूरदर्शन चैनल ने गहनता पूर्वक श्रीमाताजी का साक्षात्कार किया और सिडनी जनकार्यक्रम के कुछ भागों की फिल्म भी बनाई। यात्रा के आरम्भ में श्रीमाताजी ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति करते हुए कहा था कि दूरदर्शन सर्वोत्तम माध्यम है, ये बात प्रमाणित हो गई । हर रात लोगों की संख्या बढ़ती जाती थी और रविवार के दिन कार्यशाला के समय यद्यपि वर्षा हो रही थी फिर भी आश्रम में दो सौ से कार्यक्रम उपस्थित कर रहा है। ये अमेरिका का प्रबन्धन सलाहकार था, जो अजीबो-गरीब ढंग से प्रबन्धन और तनावमुक्ति के विषय में बता रहा था। उसका ये भाषण अत्यन्त उपयुक्त पूर्व-भाषण साबित हुआ क्योंकि साक्षात्कार-कर्ता (Inter अधिक नए साधकों तथा इनके अतिरिक्त सहजयोगियों ने श्रीमाताजी को सुनने के लिए उनके आशीर्वाद का आनन्द लेने के लिए, जिसमें उनके हाथों से पकाया हुआ खाना भी था, पूरे Viewer) ने गहन सम्मान पूर्वक श्रीमाताजी का परिचय करवाया और एक प्रकार से दर्शाया कि आश्रम को खरचाखच भरा हुआ था। पब्लिक प्रोग्राम समाप्त हो गया था। अब पहला वक्ता कितना उथला था! श्रीमाताजी के लिए थोड़ा सा आराम करने का समय था। शनिवार को लेनकूव नदी के राष्ट्रीय पार्क में एक पिकनिक का आयोजन किया गया | नदी के हरे-भरे मैदान में आस्ट्रेलिया की सुगन्धित इसके बाद चमत्कार पूर्ण बीस मिनट का समय था। गहनता, गर्मजोशी, करुणा और विवेक के प्रसार ने सभी श्रोताओं को समृद्ध किया। 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-15.txt अंक : 9 & 10 -2005 14 चैतन्य लहरी झाड़ियों में घास पर बैठी श्रीमाताजी को उनके श्रीमाताजी के सम्मुख सितार प्रस्तुत करने के लिए आ पहुँचा। पूरा आश्रम अत्यन्त शान्त और प्रेममय घर बन गया यद्यपि वहाँ अस्सी लोग विद्यमान थे और जब कोमल प्रिन्ट की साड़ी और खुले बालों में श्रीमाताजी वहाँ पहुँचीं तो प्रेम की सीमा न रही । बच्चों ने घेरा हुआ था। ये हँसी और खुशी का दिन था। वातावरण से मिलते-जुलते रंग की हरी साडी श्रीमाताजी ने पहनी हुई थी और वे नए जन्में बच्चों को गोद में लेकर उनका नामकरण कर रही थीं और उनके माता-पिता से बच्चों के पालन-पोषण के विषय में बड़े प्रेम से बता रहीं थीं। अनौपचारिकता सितार-वादक तथा श्रीमाताजी के सम्मान में सहजियों द्वारा बजाया गया .संगीत स्वर्गीय था। उस सीमा तक, उस सीमा तक पहुँची कि श्रीमाताजी तत्पश्चात् स्वास्तिक की शक्ल में बना एक विशाल पुरुषों को श्री कृष्ण की तरह से सुन्दर धोती बाँधना सिखा रही थीं! बार-बार पैरों से चलने समयानुसार आन्नदमयी माँ ने सितारवादक और वाली नावें नदी के किनारे आकर रुकरतीं और उनमें बैठे यात्री हैरानी पूर्वक आनन्दमग्न सहजयोगियों के समूह की ओर देखते। केक लाया गया जिससे बच्चे बहुत आन्नदित हुए। उसके दो साथियों को आत्मसाक्षात्कार का महानतम उपहार देकर उस सन्ध्या का समापन किया। अगले दिन दोपहर के समय बहुत बड़ी भीड़ ने श्रीमाताजी को विदाई दी। श्रीमाताजी आस्ट्रेलिया 1 यात्रा का महत्वपूर्णतम दिवस 21 मार्च से विदा हो गए परन्तु उनका आशीर्वाद हमेशा वहाँ हमारी प्रेममयी माँ का जन्म-दिवस पूरे आस्ट्रेलिया से इस खुशी में भाग लेने के लिए सहजयोगी श्रीमाताजी के पास आए और उस दिन बना रहा। हर रात नए साधक आ रहे हैं पुराने था.. साधक उन्नत हो रहे हैं और हमारी दृष्टि के सम्मुख सहजयोग बढ़ रहा है। की पूजा के सौन्दर्य और गहनता को तो शब्दों में वर्णन ही नहीं किया जा सकता। पूजा में उपस्थित होने वाले सौभाग्य-शाली सहजयोगियों की स्मृतियों में ये सौन्दर्य और गहनता हमेशा बनी रहेगी ज्यों परमात्मा करे कि इस यात्रा की उपलब्धियों की पुनरावृत्ति पूरे विश्व में हो और परमेश्वरी कृपा से जो हमने आस्ट्रेलिया में अनुभव किया है वही अनुभव साधकों को सर्वत्र प्राप्त हो । खुले दिल से हम सब उद्घोष करते है: ही पूजा समाप्त हुई तेज़ बारिश गिरने लगी। मनमोहक मुस्कान बिखेरते हुए श्रीमाताजी ने ऊपर को देखा और कहा, "पूरी प्रकृति मेरे चरणों को धो रही है।" हमें तो यह सृजन प्रतीत हुआ। जय श्रीमाताजी आस्ट्रेलिया के सहजयोगीगण (निर्मला योगा 83 से उद्धृत एवं अनुवादित) उस रात समारोह के लिए आस्ट्रेलिया के गिने-चुने सितारवादकों में से एक सितारवादक 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-16.txt जनकार्यक्रम कॉन्स्टीच्यूशन क्लब, नई दिल्ली 10.2.1981 यहाँ कुछ दिनों से अपना जो कार्यक्रम होता रहा है उसमें मैंने आपसे बताया था कि कुण्डलिनी और उसके साथ और भी क्या-क्या हमारे अन्दर स्थित है। जो भी मैं बात कह रही हूँ ये आप लोगों को मान नहीं लेनी चाहिए, लेकिन इसका धिक्कार भी नहीं करना चाहिए क्योंकि ये अन्तरज्ञान आपको अभी नहीं है। और अगर मैं कहती हैं कि मुझे है, तो उसे खुले दिमाग से देखना चाहिए, सोचना चाहिए और पाना चाहिए। दिमाग जरूर अपना खुला रखें। है, एक Category (श्रेणी) है । सब लोग साधक नहीं होते। हमारे ही घर में हम तो किसी से नहीं कहते कि आप सहज योग करो या सहजयोग में आओ। किसी से भी नहीं कहते। सिवा हमारे और हमारे नाती पोतियों के कोई भी सहज योगी नहीं है। लेकिन जो नहीं हैं वो नहीं हैं, जो है सो है। अगर कोई खोज रहा है, उसके लिए सहजयोग है जो साधक है उसके लिए सहज योग है। हर एक आदमी के लिए नहीं। आप तो जानते हैं कि दिल्ली में सालों से हम रह रहे हैं और हमारे पति भी यहाँ रह चुके हैं। लेकिन हमने अभी तक किसी भी हमारे पति के दोस्त या उनके पहचान वाले या रिश्तेदार से बात-चीत भी नहीं करी और बहुत लोग हैरान हैं कि हमको मालूम नहीं था कि यही माता जी निर्मला देवी हैं जिनको हम दूसरी तरह से जानते हैं! पहली तो बात ये है कि सहज योग कोई दुकान नहीं है। इसमें किसी प्रकार का भी वैसा काम नहीं होता है जैसे और आश्रमों में या और गुरुओं के यहाँ पर होता है कि आप इतना रुपया दीजिए और मेम्बर (सदस्य) हो जाइए। यहाँ पर आप ही को खोजना पड़ता है, आप ही को पाना पड़ता है और आप ही को आत्मसात करना पड़ता है। जैसे कि गंगाजी बह रही हैं, आप गंगाजी में जायें, इसका आदर करें, उसमें नहाएं-धोएं और घर चले आएं। अगर आपको गंगा जी को धन्यवाद देना हो तो दें, न दें तो गंगाजी कोई आपसे नाराज़ नहीं होतीं। एक बार इस बात को अगर मनुष्य समझ ले, कि यहाँ कुछ भी देना नहीं है सिर्फ लेना ही है, तो सहज योग की ओर देखने की जो दृष्टि है उसमें एक तरह की गहनता आ जाएगी। जब लेना होता है, जैसे कि प्याला है, उसमें तभी आप डाल सकते हैं जब उसमें गहराई हो। जब लेने की वृत्ति होती है तब मनुष्य उसे पा सकता है। तो सहज योग जो चीज है, इससे आपको लाभ उठाना है। पहली बात । इस बात को अगर पहले आप समझ लें कि आपको कुछ पाना है। परमात्मा को भी आप कुछ नहीं दे सकते और सहज योग को भी आप कुछ नहीं दे सकते। उनसे लेना ही मात्र है। लेकिन माँ की दृष्टि से मुझे ये कहना है कि अगर लेना है तो उसके प्रति नम्रता रखें। अपने में गहनता रखें और इसे स्वीकार करें नात माँ जो होती है वो समझ के बताती है। ये नहीं कि आपकी हर समय परीक्षा लँ और आपको मैं परेशान करूँ और फिर देखें कि आप इस योग्य हैं या नहीं, या पात्र है या नहीं दूसरे ये भी बात है कि माँ बच्चों को जानती अच्छे से है। जानती है कि इनमें क्या दोष है, क्या बात है, किस वजह से रुक गये उसको उसकी मालूमात गहरी होती है दूसरी बात ये है कि आप लोग अनेक जगह जा चुके हैं क्योंकि आप परमात्मा को खोज रहे हैं। आप साधक हैं। साधक होना भी एक श्रेणी 1 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-17.txt ौतन्य लहरी 16 अंक : 9& 10 - 2005 बहुत और वो समझती है कि किस तरह से बच्चे को भी ठीक किया जाए कहीं डॉटना पड़ता है, तो डॉट भी देगी, जहाँ दुलार से समझाना पड़ता है, समझा भी देती है और ये सिर्फ माँ का ही काम है और कोई कर भी नहीं सकता। मुश्किल काम है और किसी के लिए करना क्योंकि ये सारा काम स्वरूप है कि परमात्मा से मिलन हो और दूसरी उसे इच्छा नहीं होती। ये उसका शुद्ध स्वरूप है। और जब वो इच्छा कुण्डलिनी स्वरूप होकर के बैठती है तो वो मनुष्य का पूरा पिण्ड बनाती है-पर अभी इच्छा ही है । इसलिए पूरा बनाने पर भी वो इच्छा ही बनी रहती है क्योंकि उसकी जो इच्छा है प्यार का है। आज मनुष्य इतने विप्लव में और वो जागृत नहीं है। इसलिए इच्छा पूरी की पूरी वैसी इतनी आफत में है: इतने दुःख में और आतंक में ही बनी रहती है और वो अपनी इच्छा छाया की तरह आपको सभालती रहती है कि देखो इस रास्ते पर गए हो तो यहाँ वो इच्छा पूरी नहीं होगी जो इन पर दी जाए, ऐसा समय नहीं है और ये माँ सम्पूर्ण शुद्ध आपके अन्दर से इच्छा है बो पूरी नहीं होगी। उस इच्छा को पूरी किए बगैर आप कभी रहे हैं, उनको कित्तनी परेशानियाँ हैं और किस सुख भी नहीं पा सकते सारा आपका पिण्ड जो है तरह से उनका भार उठाना चाहिए और उनके वो इसीलिए बनाया गया कि वो इच्छा पूर्ण हो बैठा हुआ है इस कदर उस पर परेशानियाँ छाई हुई हैं कि इस वक्त और भी किसी तरह की परीक्षा ही समझ सकती है कि बच्चे कितनी आफतें उठा अन्दर किस तरह से प्रभु का अस्तित्व जागृत करना चाहिए। ये माँ ही कर सकती है। जिससे आप परमात्मा को पाएँ। पर महाकाली शक्ति को जब आप इस्तेमाल करने लगते हैं तो आपकी महाकाली की शक्ति में जो उसका कार्य है वो बाहर की ओर होने लग जाता है। माने आपकी इच्छाएँ जो हैं वो बाहर की ओर जाने लग जाती है । ये चीज़ पा लँ। जब आपका चित्त बाहर जाता है कुण्डलिनी के बारे में जो कहा गया है कि "कुण्डलिनी आपके अन्दर स्थित आपकी माँ है, जो हजारों वर्षों से आपके जन्म होते ही आप में प्रवेश करती है और वो आपका साथ छोड़ती नहीं, जब तक आप पार न हो जाएँ। वो प्रतीक रूप आपकी माँ ही है।" यानी ये कि समझ लीजिए 'प्रतीक रूप आप ये सोचते हैं कि मैं उसका भी एक कारण है जिसके कारण आपका चित्त बाहर जाता है। जो मैंने कहा था कि वो जरा विस्तारपूर्वक बताना होगा जब, क्योंकि आपका चित्त बाहर की ओर जाने लगता और जैसे-जैसे आप बड़े होने लग जाते हैं और भी वो बाहर की ओर जाने लग जाता है। इसकी वजह से जो शुद्ध इच्छा आपके अन्दर है जिसको कि शुद्ध विद्या कहते हैं और आपके अन्दर जो अन्तरतम् आपकी महा-माँ' की एक छाया है, छवि है। एक प्रश्न यह जो किया था किसी ने कि 'माँ आपने कहा कि पूरी रचना हमारी करने के बाद पिण्ड की पूरी रचना करने के बाद भी वो वैसी की वैसी ही बनी रहती है, इसको किसी तरह से समझाया जाए। वो आज मैं बात आपको समझाऊँगी कि किस तरह से होता है । शुद्ध इच्छा है वो एक ही है कि 'परमात्मा से योग घटित हो' वो कार्यान्वित नहीं हो पाती। सिर्फ आप ये ही सोचते रहते हैं कि हम इसे पाएँ, उसे पाएँ, उसे पायें इसलिए वो जैसी की तैसी बनी रहती है । इसीलिए इसे Residual energy (अवशिष्ट ऊर्जा) कुण्डलिनी शक्ति हमारी जो महाकाली की इच्छा शक्ति है उसका शुद्ध स्वरूप है। पूर्ण शुद्ध स्वरूप है। मतलब ये कि एक ही इच्छा मनुष्य को होती है संसार में जब वो आता है उसका शुद्ध 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-18.txt अंक : 9 & 10 -2005 चैतन्य लहरी 17 बहुत बार लोगों ने मुझे कहा कि माँ आप किसी भी गुरु के बारे में कुछ भी मत कहिए। मैंने कहा कि ऐसा ही हुआ कि कोई मेरे बच्चों की गर्दनें काटे और मैं न कहूं कि ये गर्दन काट रहे हैं! ये कहे बगैर कैसे होगा, आप ही बताइये, आप माँ-बाप भी हैं। आप बताइये कि अगर आप जानते हैं कि कोई आदमी आपकी ये इच्छा हमेशा के लिए मन्त्रमुग्ध कर देगा और आपको विचलित कर देगा। आपकी कुण्डलिनी को एकदम से ही वो जकड़ देगा या उसको ऐसा कर देगा कि वो freeze हो जाए (जम जाए) एकदम। तो क्या कोई माँ ऐसी होगी जो नहीं बताएगी? इस मामले में बहुतों ने मुझे डराया भी, धमकाया भी कहा कि आपको कोई गोली झाड़ देगा। मैंने कहा झाड़ने वाला अभी पैदा नहीं हुआ। मुझे देखने का है ऐसा आसान नहीं है मेरे ऊपर गोली झाड़ना। वो तो ईसा मसीह ने एक नाटक खेला था इसलिए उस पर चढ़ गए, नहीं तो ऐसा वो सबको मार डालते कि सबको पता चल जाता। लेकिन वो एक नाटक खेलने का था, इसलिए उस वक्त ये काम हुआ। कहते हैं। अब ये जो आपकी शुद्ध इच्छा है ये ही आपको खींचकर इधर से उधर ले जाती है और आप दर-दर पे ठोकरें खाते हैं, कर्मकाण्ड करते हैं. इधर ढूँढते हैं, किताबें पढ़ते हैं और आप अपने अन्दर धारणा सी बना लेते हैं कि परमेश्वर का पाना ये होता है. परमेश्वर का पाना ये होता है। जब तक आप उसे पाते नहीं आप इच्छा को सोचते कि हमें इस चीज से ह पूरा हो जाएगा किसी चीज़ से पूरा हो जाएगा सो नहीं होता पर बहुत बार ऐसा भी होता है कि महाकाली शक्ति जो है जब हमारी बहुत बार और जगह दौड़ने लग जाती है तब कभी-कभी कोइ गुरु लोग भी या ऐसे लोग कि जो बहुत पहुँचे हुए लोग हैं वो भी इस मामले में ये बता देते हैं कि ये इच्छा किस तरह से पूर्ण हो जाती है। लेकिन बहुत-से अगुरु भी इस संसार में हैं। बहुत-से दुष्ट लोगों ने भी गुरु रूप धारण कर लिया है। और इसी वजह से वो आपकी इस इच्छा को मन्त्रमुग्ध कर देते हैं। माने कुण्डलिनी को तो कोई छू नहीं सकता, किन्तु आपकी जो महाकाली की जो शक्ति है उसको मन्त्रमुग्ध कर अब, हमको ये सोचना चाहिए कि जब हमारी ये शुद्ध इच्छा है कि परमात्मा से योग होना है, तो कुण्डलिनी जागृत करने के लिए क्या करना चाहिए? ऐसा बहुत बार लोगों ने कहा है। हालाँकि हर लैक्चर में मैं कहती हैं कि ये जीवन्त क्रिया है. इसके लिए आप कुछ नहीं कर सकते। 'आप नहीं कर सकते इसका मतलब नहीं कि मैं नहीं कर सकती। इसका मतलब यह नहीं कि सहजयोगी नहीं कर सकते अधिकारी होना चाहिए। जैसे एक डॉक्टर है जो कि operation (ऑपरेशन) करना जानता है, वो ही ऑपरेशन कर सकता है। पर कोई दूसरा आदमी अगर इस तरह का काम करे देते हैं। वो मन्त्रमुग्ध होने के कारण आपकी जो वास्तविक इच्छा परमात्मा से योग पाने की है वो छूट करके आप सोचते हैं कि ये जो अगुरु है जिसने हमको मन्त्र मुग्ध किया है, ये ही उस इच्छा को पूरा कर देगा। इसको पूर्ण कर देगा। और इसलिए आप उस चीज़ से चिपक जाते हैं। और जब आप मन्त्रमुग्ध की तरह उससे चिपक जाते हैं तब आपके ध्यान ही में नहीं आता है कि आपकी वास्तविक इच्छा पूरी नहीं हुई है और आप गलत रास्ते पर चल रहे हैं। जब तक आप बहुत ठोकरें नहीं खाते हैं, जब तक आपका सारा पैसा नहीं लुट तो लोग कहेंगे कि ये खूनी है और इतना ही नहीं वो खून ही कर डालेगा, क्योंकि उसको मालू-मात जाता, जब तक आप पूरी तरह से बर्बाद नहीं हो जाते, आपके ध्यान में ये बात नहीं आती। 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-19.txt चैतन्य लहरी अक : 9 & 10 -2005 18 ही नहीं उस चीज़ की जिसको इसकी जानकारी नहीं है, जो इस बारे में समझता नहीं है उस को कुण्डलिनी में पड़ना नहीं चाहिए। ये कोई आदमी आज बड़े-बड़े अफसर हो जाते हैं। हम भी अफसरी काफी देख चुके है और जैसे ही अफ़सरी खत्म हो गयी तो कोई पूछता भी नहीं बड़ा आश्चर्य है अगर आपका transfer (तवादला) ही हो गया तो कोई नहीं पूछता। आपने मकान बना लिया. आपने देखे हैं कितने बड़े-बड़े खण्डहर पड़े हुए हैं। और न कोई जानता है कि ये है क्या बला, कहां से आई. क्या हुआ। बड़े-बड़े ऐसी चीजें के जब आप सहजयोग में पार हो जाते हैं उसके बाद इसके नियम शुरु हो जाते हैं. जो परमात्मा के दरबार के नियम हैं-जैसे आप हिन्दुस्तान में आए तो आपको हिन्दुस्तान सरकार के नियम पालने पड़ते हैं। उसी प्रकार जब आप परमात्मा साम्राज्य में आए तो उसके नियम आपको पालने पड़ते हैं और अगर आप वो नियम न पालें तो आपके वाइब्रेशन हाथ से छूट जायेंगे बार-बार वो वाइब्रेशन छूट जायेंगे, बार-बार आप पहले जैसे होते रहेंगे, जब तक आप पूरी तरह से इसके ऊपर पूरा प्रभुत्व न पा जाए जब तक आपने अपनी आत्मा को पूरी तरह से नहीं पाया, आप पाइएगा वाइब्रेशन आपके छूटते जाएँगे। क्योंकि ये वाइब्रेशन आपकी आत्मा से आ रहे हैं। खत्म हो चुकी है। 1 एक बार मैं गयी थी आपके आगरा के font (किला) में । तो रात बहुत बीत गयी वहाँ। और कुछ special (खास) हमें दिखाने का इन्तज़ाम था तो बहुत रात हो गयी। और वो कहने लगे जब भीड़ जाएगी तब आपको ठीक से दिखाएँगे।" बहत कुछ चीजें दिखाई। जब लोग लौट रहे थे तो मैंने देखा कि बिल्कुल 'सब दूर अँधेरा है । सब ' जितनी भी उस वक्त में चहल-पहल रही होगी। रानियों ने क्या-क्या काम किये होंगे और परेशान किया होगा अपने नौकरों को कि ये मेरे कपड़े नहीं ठीक हैं राजाओं ने परेशान किया होगा बड़े-बड़े वहाँ पर दावतें हुई होंगी। उसके लिए झगड़े हुए होंगे। पता नहीं क्या-क्या किया होगा इन लोगों ने उस ज़माने में। सब एक दम फ़िजूल। कुछ नहीं सुनाई दे रहा था। अब वो आवाज़ खत्म हो चुकी थी वहाँ। कुछ भी नहीं था एकदम अँधेरा चारों तरफ छाया हुआ। और जब हम बाहर आ रहे थे बिल्कुल बाहर आये तो रोशनी थी नहीं खास। एक साहब के पास ज़रा-सी Torch (टॉच) थी. उससे सभी लोग देखकर बाहर आ रहे थे। बाहर आते वक्त देखा कि एक चिराग की रोशनी जल रही थी उस चिराग की रोशनी में हम बाहर आए, तो पूछा कि भाई चिराग यहाँ किसने जला कर रखा? मैंने पूछा कि किसने चिराग यहाँ जलाया? कहने लगे कि यहाँ पर एक मजार हैं, एक पीर की मज़ार है और ये पीर बहुत पुराने हैं। कितने पुराने? आत्मा जो है उसको सत् चित्त आनन्द कहते हैं। माने वो सत्य है। सत्य का मतलब ये है कि वो ही एक सत्य है, बाकी सब असत्य है बाकी सब ब्रह्म है। ब्रह्म जो है वो भी उन्हीं की शक्ति है और जो कुछ उनके अलावा है-आत्मा, ब्रह्म इसके अलावा जो कुछ भी है वो असत्य है। असत्य माने ये हैं कि एक आदमी है समझ लीजिए सोचता है कि हमने बहुत बड़ा काम किया, आपने क्या काम किया, उनसे पूछिए तो बतायेगा कि साहब मैंने मकान बनाया, घर बनाया और बच्चों की शादियाँ कर दीं या कोई बड़ा भारी उस का तमगा मिल गया। मैने aeroplane (हयाई जहाज) बना दिया और कोई चीज बना दी, मैं बड़ा भारी Prime Minister (प्रधान मन्त्री) हो गया। ये सब भी एक मिथ्याचरण है। मिथ्या बात है क्योंकि ये शाश्वत नहीं है, सनातन नहीं है, शाश्वत नहीं है। 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-20.txt अंक : 9& 10 -2005 19 चैतन्य लहरी जानते हैं अगर Aeroplane (हवाई जहाज) है इसको पहले जब आप testing (परीक्षण) करते हैं तो उड़ाते हैं, देखते हैं कि इसका Balance (सन्तुलन) कैसा है। ये ठीक से चल रहा है या नहीं चल रहा है। उसको बार-बार grounding कहने लगे कि जब ये किला भी नहीं बना था, उससे पुराने। अच्छा, तब से इस पर दिया जलता रहता है। सब लोग यहाँ माथा टेकने जाते हैं । ये सनातन है। पीर हो जाना सनातन है। ये शाश्वत है बाकी सब असत्य है सब गुम हो कराते हैं, फिर उसको उड़ाते हैं, फिर देखते हैं। गया है, खत्म हो गया, शून्य हो गया लीन हो उसी प्रकार जब आपकी कुण्डलिनी जागृत भी हो गया। आज कोई आकाश में उछल रहा है, कल देखा तो वो गर्द में पड़ा हुआ है। आप रोज़मर्रा ही देखते हैं अपने ही आँखों के सामने आपने देखा है होने लगे। तो फिर आपको जरूरी है कि आप कि कितनी बार ऐसे होता हुआ। इतना पचास साल में इस भारतवर्ष में हुआ है, कभी नहीं हुआ था। सबसे ज्यादा उथल-पुथल इसी पचास साल में हुई है। इससे आप समझ सकते हैं कि ये हैं, पार होने के बाद पहली गलती ये है, कि हम इस सनातन नहीं है ये कोई-सी भी चीज़ सनातन नहीं, जिसके पीछे आप दौड़ रहे हैं। दौड़-धूप कर रहे हैं। आज बड़े भारी आदमी बन कर घूम रहे हैं; आपका ठिकाना नहीं। कल आप रास्ते के भिखारी बने होंगे। जो चीज सनातन नहीं है उसके पीछे हम क्यों दौड़ें? जो चीज़ सनातन है उसे पाना चाहिए। जब आदमी Realization (साक्षात्कार) पा लेता है, तो वह खोता नहीं। जब उसका जन्म होता है तो Realization के साथ वो दूसरी चीज मोक्ष, मोक्ष लेकर के वो आता है वो करुणा में फिर से जन्म लेता है। सिर्फ करुणा में जन्म लेता है। लेकिन वो मोक्ष अपने साथ लेकर के आता है। उस गई और आप पार भी हो गए और माना कि आप पार हो गए, और आपके अन्दर से बाइब्रेशन शुरु अपने को जरा-सा देखें और समझें क्या है। अब, सबसे जो बड़ी गलती हम लोग करते वास के बारे में सोचना शुरु कर देते हैं तो उसमें कभी-कभी शंकाएँ भी बहुत लोगों को आती है । कहते हैं 'भई कैसे हो सकता है, माँ ने हमको mesmerise (सम्मोहित) भी कर दिया होगा तो क्या पता? हो सकता है कि गड़बड़ ही हो गया होगा, हम कैसे ऐसे हो सकते हैं, हमने तो सुना था इसमें बड़ी-बड़ी दिक्कृतें होती हैं, हम ऐसे आसानी से कैंसे पार हो गए? ठण्डी हवा आ गयी तो क्या समझना चाहिए कि क्या बड़े भारी हम पार हो गए? ये कैसे हुआ? 1 1 पहली गलती ये है कि इसके बारे में आप सोच नहीं सकते। सोचने से आपके वाइब्रेशन खट से खत्म हो जाएँगे आपको अगर हम हीरा दें और आपको कहें ये आपके पास हीरा है। आप उस पर क्या करेंगे? आप जौहरी के पास जाकर पूछेगे कि भई ये हीरा है क्या? कम से कम इतना तो आप करेंगे। क्या घर में बैठे-बैठे सोचकर हीरे को कोई फेंक देगा? जब रोज़मर्रा के जीवन में हम लोग इस तरह से अपना ध्यान लगाते हैं, तब जो हमारे परम की बात है, उसमें ये ध्यान रखना चाहिए कि अगर सनातन को पाना चाहिए। और जब हम इस बात को जान लेते हैं कि हमें सनातन को पाना चाहिए. तब हमारा जो व्यवहार है, सहजयोग के प्रति, बदल न जाता है। जो लोग पार हो गये हैं उनको पता होना चाहिए कि हमें 'स्थित' होना पड़ता है। मैंने कल बताया था कि पार होने के बाद क्या करना चाहिए स्थित' होने के लिए उसके नियम हैं। जैसे आप 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-21.txt अंक : 9 & 10 -2005 20 चैतन्य लहरी में मनुष्य करता है, लेकिन वो करना परमात्मा को पाना नहीं है। वो हो सकता है कि मनुष्य पाकर के गा रहा हो या नाच रहा हो। लेकिन पाया तो नहीं अभी तक। पाना तो कुण्डलिनी के ही जागृति से हमने परम पाया है तो आखिर ये कैसे जाने कि ये परम है या नहीं? और इसमें शंका करने की कौन-सी बात है? बहुत-से गुरु लोग हैं, आपसे कहेंगे कि होता है। उसके बगैर हो नहीं सकता। और इसमें आप नाच सकते हैं, कूद सकते हैं। ऐसा कुण्डलिनी सहज ही में जागृत होती है । होता है, कुण्डलिनी में, वैसा होता है, ये होता है। ये सब चीजें आप वैसे भी कर सकते हैं । माने नाचना कोई मुश्किल काम नहीं, कूदना कोई मुश्किल याने ये living process (जीवन्त क्रिया) है। आपका नहीं, मेंढक जैसे चलना भी कोई मुश्किल नहीं है । और आजकल एक गुरुजी हैं वो उड़ना सिखा रहे हैं, तो लोग अपने foam (फोम ) में बैठकर ऐसे उड़ते हैं सोच रहे हैं कि वो हवा में उड़ रहे हैं। ऐसा सोचना भी मुश्किल नहीं है । घोड़े पर भी लोग कूद करके बैठ जाते हैं। जरा कोशिश करने से आ जाता है वो भी। ये भी कोई मुश्किल नहीं है । वो ऐसे कर सकते हैं वो परमात्मा क्यों करेंगे, वो तो भी आप कोशिश करें तो कर सकते है। और आप एक तार पर भी चल सकते हैं, सरकस में जैसे जो हम नहीं कर सकते। तब फिर इसमें सोचने की चलते हैं या आप कलाबाजी कर सकते हैं। ये भी आपने करते देखा है और कर सकते हैं। अगर आप कोशिश करें तो सब धन्धे आप कर सकते हैं । माने ये कि spontaneous (सहज) है, evolutionary process है (उत्क्रान्ति प्रक्रिया) और आप आज उस evolutionary process के अन्तर्गत ऊपर उठ जाते हैं। आपकी उत्क्रान्ति (evolution) जो है, वो चल रहा है । अभी आप इन्सान हैं । इन्सान से आप अतिमानव हो जाते हैं। जब इस तरह से बात आपने समझ ली कि जो काम हम हम कर ही सकते हैं। वो तो अब वो काम करेंगे कि बात क्या है? हाथ में ठण्डी-ठण्डी हवा आनी शुरु हो गयी इसके बारे में भी सब शास्त्रों में लिखा हुआ सिर्फ आप क्या नहीं कर सकते? कि ये है। कोई नयी बात नहीं है। चैतन्य की लहरियाँ, ये एक त्रिकोणाकार अस्थि में अगर आप स्पन्दन देखें तो मानना चाहिए कि कुण्डलिनी है स्पन्दन आप नहीं कर सकते कहीं भी। फिर उसका उठता हुआ स्पंदन आप देख सकते हैं। सब में नहीं, क्योंकि सीमित है. और मैं तो असीम की बात कर रही हूँ । कोई अगर बढ़िया लोग हों तो उनमें तो जरा भी पता नहीं चलता, खट से कुण्डलिनी उठ जाती है। पर बहुत-से लोगों में इसका स्पन्दन दिखाई देता है। उसका अनहत् का बजना आप सुन सकते हैं। चाहिए, वैसा होना चाहिए। उससे फायदा क्या? शून्य शिखर पर अनहत् बाजे रे। तो उसको आप देख सकते हैं, बज रहा है क्या? कोई गुरु हैं, कहते हैं हम नाच रहे हैं, भगवान का नाम लेकर के 'नाचि रे-नाचि रे सीधा हिसाब बताइये, कि नाचना, गाना, ये आनन्द ब्रह्म की शक्ति है लेकिन इस पर आप सोच करके क्या करने वाले हैं? आप सोच करके भी कौन-सा प्रकाश डालने वाले हैं? क्योंकि आपकी बुद्धि तो अगर आप समझ लीजिए यहाँ से चन्द्रमा में चले गए तो वहाँ जाकर के देखना ही है न। कि आप सोचकर बैठे कि भई चन्द्रमा पर जाएँ तो ऐसा होना आप जाइए और देखिए। जो चीज है उसका साक्षात् करना चाहिए। 1 अब, जब आपके अन्दर में ये शुरु हो गया, तब दूसरा बड़ा भारी नियम सहजयोग का है। भई, ये क्या तरीका है? 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-22.txt अंक : 9& 10-2005 चैतन्य लहरी 21 चेतना का कार्य है इसको लोग समझ नहीं पाते। यह point ( बात) क्या है, इसको समझना चाहिए। जैसे हम कहें आप भाई-बहन हैं और अपने एक -दूसरे को भाई-बहन समझें। यह तो ऊपरी बात कहनी हुई। जब यह हैं ही नहीं, तो कैसे समझेंगे। लेकिन पार होने पर ये पता होता है कि एक ही माँ ने हमको जन्म दिया है। अब जैसे जो लोग पार हैं, अगर हम अपने हाथ में फुँके तो आपको भी फँक आएगी। अगर हम कोई सुगन्ध, ये लोग scent (इत्र) वरगैरह लगायें तो आपको सुगन्ध आएगी चाहे आप यहाँ हों चाहे इंग्लैण्ड में हों। पर सहजयोग में पूरी तरह से हमसे con- nected (जुड़े) हों, तो। आधे अधूरे लोगों को नहीं होता। लोग कहते हैं 'माँ suddenly (अचानक) कभी एकदम से खुशबू आने लग जाती है। क्योंकि सब एक ही के अंग प्रत्यंग है। ये जब तक आप समझ नहीं लेंगे पूरी तरह से, तब तक आपको मुश्किल रहेगी। पहला नियम ये कि इसके बारे में आप सोच नहीं सकते, ये सोच विचार के परे हैं, निर्विचार में है, असीम की बात है। दूसरी जो बात इसकी बहुत ही महत्त्व पूर्ण है कि "सहजयोग की क्रिया आज महायोग बन गई। पहले एक ही दो फूल आते थे पेड़ पर। एक ही फूल। वो ज़माना और था। उस जमाने में इतना ज्यादा कोई ज्ञान देता भी नहीं था कहीं किताबों में भी लिखा नहीं है, किसी को कोई बताता भी नहीं था। समझ लीजिए कबीरदास जी ने भी कहा है तो उन्होंने सिर्फ अपना ही वर्णन किया है कि भई मेरे 'शून्य शिखर पर अनहत् बाजे रे और मेरे ऐसे-ऐसे वगैरा है। पर इतना गहराई से बताया नहीं क्योंकि उन्होंने ये काम किया नहीं था, उसके बारे में निवेदन किया था उसके बारे में Prophecy (भविष्यवाणी) की थी कि ये काम है। विशेष कर ज्ञानेश्वरजी ने साफ़ कहा था कि महायोग होने वाला है विलियम ब्लेक नाम के एक बड़े भारी कवि ने बहुत सहजयोग के बारे में बताया है जो ये घटना घटने वाली है। ईड़ा पिंगला सुषुम्ना नाड़ी' 1 अब बहुत-से लोगों को मैं देखती हैं कि "मैं घर में ले जाऊँगा माँ और वहाँ मैं करूँगा । तो, जो चीज घटने वाली है, होने वाली है बहुत-से लोग तो यहाँ आने पर भी सोचते है कि हम बड़े भारी अफसर है। हम यहाँ कैसे? बहुत-से लोग यहाँ इसलिए नहीं आते हैं कि हम बड़े भारी अफसर हैं। जहाँ लोग mesmerise (सम्मोहित ) नहीं गया किताबों में। ये बहुत गलत धारणा है। करते हैं, और गन्दे काम करते हैं, वहाँ सब मोटरें लेकर पहुँच जाते हैं। तब कोई शर्म नहीं। घोड़े का नम्बर पूछना हो तो वहाँ पहुँच जायेंगे सब मोटरें लेकर! लेकिन ऐसी जगह जहाँ परम का कार्य हो रहा है, वहाँ मैं देखती हूँ कि लोगों को शर्म आती है आते हुए। या तो कुछ लोग डरते भी हैं। उस के बारे में उन्होंने कहा था। और आज जब वो घट गई तो उसके बारे में अगर हम बता रहे हैं तो बहुत से लोग ये भी सोचते हैं कि ये तो कहीं लिखा क्योंकि समझ लीजिये कोई कहे कि आप चन्द्रमा पर गये किसी ने लिखा था कि चन्द्रमा पे कैसे जाया जाएगा? जिस वक्त आप उसको करें तभी तो आप लिखेंगे। इसलिए इस तरह की धारणायें लेकर के मनुष्य अपने को रोक लेता है पर जो महत्त्वपूर्ण है, जो बड़ा है, वो ये है, उसको समझना चाहिए कि आज का सहजयोग एक-दो आदमियों का नहीं है। यह सामूहिक डरने की कोई बात नहीं अपनी माँ हैं। हम तो सबकी माया जानते हैं. किसी भी तरह का मामला हो, हम ठीक कर सकते हैं। तो डरने की 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-23.txt जा अंक : 9& 10 -2005 22 चैतन्य लहरी किसी भी आदमी के बारे में, कहीं पर है, उसके बारे में भी जान सकते हैं कि इस आदमी को क्या शिकायत है। बैठे-बैठे। ये सामूहिक चेतना में आप जानते हैं। आप कोई मृत आदमी के लिए भी जान सकते हैं। कोई गुरु वो सच्चे थे कि झूठे थे, जान सकते हैं। आप कहीं पर जायें और कहें कि यह कौन सी बात है? इसलिए माँ का स्वरूप है न हमारा। उसको ऐसा समझना चाहिए कि प्रेम का स्वरूप है, और उसमें डरने की कोई बात नहीं है। ये सामूहिक कार्य को मनुष्य समझ नहीं पाता है, कभी भी। जब तक वो पार नहीं होता। यानि ये कि जब दूसरा आदमी है वो, कोई रह ही नहीं जाता है। 'दूसरा है कौन? | 1 जागरूक स्थान है, आप जाने सकते है कि जागृत है या नहीं। जागृत होगा तो उसमें वाइब्रेशन आयेंगे। जागृत नहीं होगा तो नहीं आयेंगे। ये इस तरह से महसूस होता है कि आपके हाथ से ठण्डी -ठण्डी हवा तो चलनी शुरु हुई, और आप जैसे ही दूसरे आदमी के पास में जायेंगे तो में ऐसा लगेगा कि एक उँगली जरा जो सच्ची बात है, जो सत्य है वह आत्मा बताता है। इसलिए उसे 'सत्य-स्वरूप' कहते है। और क्योंकि जब आत्मा हमारे अन्दर जागृत हो शुरु - शुरु जाता है, तो हमारा जो चित्त है, जो हमारा atten- tion है. वो जहाँ भी जाता है, वो काम करता है। अब ये चीज़ भी ननुष्य के समझ में नहीं आती। माने कि यहाँ बैले- बैठे किसी सहजयोगी का चित्त अगर गया कहीं पर, तो वो आदमी ठीक हो सकता हरकत कर रही है, पता नहीं क्या? आप उनसे पूछिये कि आपको बहुत जुकाम होता है, आपको कोई शिकायत है, ऐसी तकलीफ है? कहने लगे हाँ भई क्या बतायें, तुमको कैसे पता?' कहने लगे मेरी ये उँगली पता नहीं क्यों काट सी रही थी? ये है। subjective knowledge , subjective H 3HI का knowledge (ज्ञान) । Subjective ऐसा अगर शब्द इस्तेमाल करें तो इसका मतलब होता है कि दिमागी जमा-खर्च। मतलब एक आदमी है-साहब मैं इसे जानता हूँ, मैं उसे जानता हूँ। ये Absolute Knowledge (शुद्ध सत्य विद्या) है, आत्मा Absolute (शुद्ध सत्य) है। ये absolute knowledge है। लो एक आदमी एक बात कहेगा। वही दस आदमी कहेंगे, अगर वो सहजयोगी हैं तो दस छोटे बच्चे अगर Realised Souls हैं ये experiment लोग कर चुके हैं-उनकी आँख आप बाँध कर रखिये और किसी आदमी को सामने बैठा दीजिये बताइये कहने लगे इनके वाइब्रेशन्स, कहाँ पकड़ आ रही है। सबके सब उसके लिए बतायेंगे ये उँगली में पकड़ आ रही है। सब' । इसमें जलन हो रहा है। माने ये कि उसके नाभि चक्र की तकलीफ़ है या उसका लीबर खराब है वो थोड़ा सीखना पड़ता है। आप यहाँ बैठे हैं। ड हमारे एक रिश्तेदार हैं उनकी माँ बहुत बीमार रहती थीं बिचारी। और बहुत ही बूढ़ी हो गयी हैं। तो वो हम से बताते हैं कि 'अब हम आप से नहीं बतायेंगे क्योंकि बहुत बूढी हो गयी हैं, अब उन्हें छुट्टी कराइये आप। जब भी हम बताते हैं वह ठीक हो जाती है। ये हमारा अनुभव है कि जब भी हम बताते है ठीक हो जाते हैं। अस्सी साल की हो गयी है। अब भी फिर वैसे ही हाल हो जाता है। फिर बीमार पड़ जाती हैं फिर आपको बताते हैं वो ठीक हो जाती हैं। मतलब चित्त जो है, वो जागरूक हो जाता है। जहाँ भी आपका चित्त जाएगा वो कार्यान्वित होता है। जहाँ भी आप चित्त डालें। 1 1 लेकिन इसके लिये पहले अपनी आत्मा में स्थिरता आनी चाहिए। कनेक्शन (योग) पूरा आना चाहिए। समझ लीजिए इसका कनेक्शन ठीक न 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-24.txt अंक : 9& 10 -2005 23 चैतन्य लहरी Vibrations-for ordinary vibration 100 dollars & for special vibrations 250 dollars ( हो तो मैं थोड़ी देर बात करूँगी सुनाई देगा, बाकी बात गुल हो जाएगी। यही बात है, इस वजह से आप वाइब्रेशन भी खो देते हैं, आपका जरा कनेक्शन loose (ढीला) हो गया। पहले अपना कनेक्शन ठीक करना पड़ेगा। वाइब्रेशन सौ डॉलर, विशेष वाइब्रेशन 250 डॉलर)। मैंने कहा गये काम से ये तो मैंने उनसे कहा कि ये क्या बदतमीज़ी है आपकी? आपने कितना पैसा दिया था मुझे कितने Dollars (डॉलर) दिये थे आपने वाइब्रेशन लेने के लिए जो तुमने ऐसा लिखा, तो कहने लगे कि 'माँ, ऐसा है कि मैं पैसे कैसे कमाऊँ फिर? मै खाऊँ क्या?' मैने कहा, स लेकिन सामूहिकता की और भी गहनता अपने को समझनी चाहिए कि सारा एक ही है। हम सब अंग-प्रत्यंग हैं। और जब हम अंग-प्रत्यंग हैं, तो एक आदमी ज्यादा नहीं बढ़ सकता और एक आदमी कम नहीं हो सकता। भूखे मरो। क्या तुम सहजयोग से पहले कुछ करते थे? कहने लगे, हाँ मैं स्कूल में पढ़ाता था मैंने कहा स्कूल में पढ़ाओ। जो करते थे सो करो । कभी-कभी सहजयोगियों में भी ये धारणा लेकिन तुम सहजयोग को बेच नहीं सकते हो। तुम आ जाती है कि हम सहजयोग में बड़े भारी बन बाइब्रेशन बैच नहीं सकते। कहने लगे मेरा Centre गए। बहुतों में ये आती है। हम तो बड़े ऊँचे आदमी (केन्द्र) है, उसमें लोग आते हैं खाना खाते हैं। मैंने है जब ऐसी भावना आ जाए तो सोचना चाहिए कि ही पतन की ओर हम जा रहे हैं। जिसने ये क्यों लिखा। लिखो, खाने का इतना पैसा, कमरे 1 कहा ठीक है, खाने का पैसा लो। वाइब्रेशन का बहुत सोच लिया कि हम ऊँचे हो गये, वो सोचना कि हम पतन की ओर जा रहे हैं। क्योंकि जैसे आदमी सच में ऊँचा होता है, वैसे-वैसे बो नम्र ही होता जाता है। उसकी आवाज़ बदलती जाती है। उसका स्वभाव बदलता जाता है। उसमें बहुत ही त्रमता, उसमें प्रेम बहुते रहता है। ये पहचान है। अगर कोई सहजयोगी सहजयोग में आने के बाद भी बुलन्दी (बड़प्पन) पर आ जाए और कहे 'साहब तुम ये क्या हो, वो क्या' तो उसको खुद सोचना चाहिए के मैं गिरता जा रहा हूँ। लेकिन इसका दूसरा भी अर्थ नहीं लगाना चाहिए, बहुत-से लोगों को ये है । मैंने देखा। एक साहब थे, अमरीका में और उन्होंने कहने लगे 'वाह रे वाह, देखिये ये सहजयोग नाम से केन्द्र चलाए। जब आए तो का इतना पैसा। उसमें भी आप Profit (लाभ) नहीं बना सकते। ठीक है, जितना लगा उतना खर्चा लो। उसके दम पर तुम अपने महल नहीं खड़े कर सकते । और वाइब्रेशन उसके ऐसे थे कि जैसे जल रहा है। बहुत नाराज़ हो गये मेरे साथ। और नाराज़ होकर के वो चले गये। उन्होंने कहा ये तो हो ही नहीं सकता ऐसा। लेकिन सबसे बड़ी बात उस वक्त ये हुई कि उन्होंने बहुत बकना शुरु कर दिया। जब बहुत बकना शुरु किया तो एक साहब हमारे सहजयोगी हैं, उठकर खड़े हो कर कहने 1 1 लगे, ज्यादा बका तो ऊपर से नीचे फेंक देंगे तो सहज योगी हुए हैं । इनमें कोई नम्रता नहीं है। मैंने कहा खबरदार जो सहजयोगियों को कुछ कहा या मुझे कुछ कहा, सबने बताया, माँ ये तो पता नहीं क्या तमाशा है, हम लोग इस पर हाथ रखते हैं और चक्कर खाकर गिर जाते हैं । तो बड़े चक्कर वाला आदमी है, मैंने कहा, 'अच्छा, मैं तो समझ रही हूँ। फिर मैंने उससे कहा, 'अच्छा ज़रा अपना Brochure (पुस्तिका) दिखाओगे? Brochure में उसने लिखा था कि बहुत। मैंने कहा ये दिन गये कि सब साधु सन्तों को तुमने सताया था। अगर किसी ने भी एक शब्द कहा है, तो देख लेना उनका ठीक नहीं होगा बहुत लोगों को ये है कि कोई अगर साधु सन्त है उसको जूते मारो, तो भी अब मैंने सुन लिया 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-25.txt अंक : 9& 10 -2005 24 चैतन्य लहरी विशेष कर रहा हूँ, एक आदमी सोचे कि मुझे करने का है। एक आदमी सोच ले कि मैं माँ के बहुत नजदीक हूँ, तो इतना साधु सन्त को कहना चाहिए और दस मारो। ये कुछ नहीं होने वाला। आप अगर एक जूता मारियेगा तो हजार आप खाइयेगा। तब वो घबड़ा करके भागे वहाँ से । बो दूर चला जाएगा क्योंकि पति मन्थन हो रहा है। बड़े जोर का मन्थन हो रहा है। शायद आप इसको महसूस कर रहे हैं कि नहीं कर रहे, पता नहीं। जब हम दही को मथते हैं, ये भी बहुत लोगों में है कि 'आपको गुस्सा कैसे आ गया?" दूसरी side (ओर) अभी एक साहब मिले। मुझसे बकवास करने लगे, मैंने कहा चुप रहिए, आप बेवकूफ आदमी हैं, बहुत बकवास कर रहे हैं बेकार में। कहने लगे मैंने ये पुराण पढ़ा. मैंने वो पुराण पढ़ा। मैंने कहा आपने कुछ नहीं पढ़ा बेकार बातें कर रहे हैं। आपको कुछ पता नहीं है। अभी पता हो कि नम्बर दो को चलाते हैं कि नम्बर चार पता नहीं क्या-क्या होता है। तो मैंने कहा कि देखिये आप बेवकूफी की बातें मत करिये। दूसरे जो है उनको समझने दीजिये । आप बीच में तो उस का सब मक्खन ऊपर आ जाता है। फिर हम थोड़ा-सा मक्खन उसमें डाल देते है यही समझ लीजिए Incarnation (अवतार) है, समझ लीजिए, यही समझ लीजिये कि परमात्मा की कृपा है। और उस मक्खन से बाकी सारा लिपट जाता है, और सब साथ ही साथ एक ही जैसा चलता है। अब उसमें से कोई सोचे मैं अलग हैँ। एक-आध, 1 HE दो-चार मक्खन के कण इधर-उधर रह जाते हैं तो लोग फेंक देते हैं। उसके पीछे में कौन दौड़ने चला है? बकवास मत करिये, आप चुप रहिए। तो कहने लगे देखिये आपको गुस्सा आ गया। आप की अगर कुण्डलिनी जागृत है तो आपको गुस्सा नहीं आता। मैने कहा मेरा गुस्सा मत पूछो तुम। बड़ा जबरदस्त होता है जब आए तो। तो फिर जरा सहमे महाशय। लेकिन बात ये है कि इस तरह की भी धारणा लोग कर लेते हैं। में हैं"। और एक ही दशा कोई ये न सोच ले कि मैं ऊँची दशा में हूँ। मै नीची दशा में हूँ। ऊँची दशा में हैं, कभी नहीं सोचना। इस तरह से सोचने से बड़ा नुक्सान हो जाता है। यानी आप सोच लीजिये कि जब हम "सब एक हैं | एक ही अंग है। अगर एक उँगली सोच ले कि मैं बड़ी हो जाऊँ, नाक मेरी सोच ले कि मैं बड़ी हो आप कोई बिलबिले आदमी नहीं हो जाते जाऊँ। कैसी दीखेगी शक्ल? ये तो malignancy हैं। आप वीर, श्रीपूर्ण, आप तेजस्वी लोग हो जाते ( दोष) है। यही तो cancer होता है। cancer में हैं, आपके हाथ में तो तलवारें देने की बात है। ये थोड़े कि आप उस बक्त में जितना भी कोई चाँटा खाने लग जाता है। ये हो गया कैँसर। ऐसा जो मारे आप खायेंगे। वो Christ (येसु) ने कहा कि माफ कर दो। वो दूसरी बात थी, उसका अर्थ ही दूसरा था। क्योंकि उस वक्त लोगों का ये ही हाल विशेष था कि एक ही चाटा कोई नहीं खा सकता था। लेकिन पार होने के बाद तत्क्षण आपमें शक्ति आ जाती है। तत्क्षण । तो सामूहिकता को इस तरह से समझना चाहिए कि एक आदमी उठकर के कोई कहे कि मैं एक अपने को बड़ा समझकर के बाकी cels को इन्सान होता है वो अपने को unique (अनोखा) मैं बनाना चाहता है कि सब मेरे ही पास हो जाए. कोई तो भी विशेष हो जाऊँ। मेरा ही कुछ हो जाये, वो आदमी cancerous हो गया society (समाज) के लिये। सहजयोग की ऐसी स्थिति है, जैसे कि एक मैं कहानी बताती हूँ । कि जैसे एक बहुत - सी 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-26.txt अंक : 9& 10 2005 25 चैतन्य लहरी कृष्ण ने भी कहा है कि जहाँ दस लोग हमारे नाम पर बैठते हैं वहीं हम रहते हैं न कि कहीं एक बैठा हुआ वहाँ जगल में और कृष्ण-कृष्ण रहा है। उनको time (समय) नहीं है। कबीर ने कहा कि "पाँचों पच्चीसों पकड़ बुलाऊँ मतलब उनकी भाषा में इतनी Authority ( अधिकार) भी सब मिलकर के एक, दो, तीन कहकर के उठें। देखिये । कितने अधिकार से बातें करते थे! कोई और सबके सब उठे और जाल को तोड़ दिया गिला नहीं था उनमें वो कहते हैं पाँचों पच्चीसों पकड़ बुलाऊँ, एक ही डोर उड़ाऊँ। ये कबीर जैसे बोल सकते हैं। और आप भी कह सकते हैं इसको चिड़ियाँ थीं और उनको एक जाल में फँसा दिया गया। तो चिड़ियों ने आपस में ये सलाह मशवरा किया कि अगर हम लोग सब मिलकर इस जाल को उठा लें, तो जाल हमारे साथ उठ जायेगा फिर जाकर इस को तुड़वा देंगे बाद में, फड़वा देंगे, किसी तरह से निकाल देंगे तो कहा, हाँ ठीक है। कर उन्होंने। वही चीज़ सहजयोग है। सहजयोग की सामूहिकता लोग समझ नहीं पाते हैं, इसलिये कि जब तक पाँचों पच्चीसों नहीं आयेंगे तब तक बहुत गड़बड़ होता है। माने, माँ, मैं करके ध्यान करता हूँ। रोज पूजा करता हूँ। मेरे वाइब्रेशन बन्द हो गये होंगे ही आपको सामूहिकता में आना पड़ेगा। आपको Centre (केन्द्र) पर आना पड़ेगा। एक दिन हफ्ते में कम से कम सेंटर में आ करके आपको देखना पड़ेगा कि आपके वाइब्रेशन ठीक हैं या नहीं। दूसरों पर मेहनत करनी पड़ेगी। आप दीप इसलिए बनाये मरगिल्ले हो जाएँ तो उनको और पेड़ों के साथ गये हैं कि आपको दूसरों को देना होगा इसलिए नहीं बनाए गए कि आप अपने ही घर बनाते को शक्ति देते हैं । मानो जैसे कोई एक दूसरे को रहिये। फिर वही दीप हो सकता है बिल्कुल बुझ जाएगा। ये दीप सामूहिकता में ही जल सकता है, नहीं तो जल नहीं सकता। ये महायोग का विशेष कारण है कि हम अपने को अलग न बाद में। जब आप पार हो जायें तो आप भी देखेंगे सहजयोग मुकम्मल (पूर्ण) नहीं होता है। घर में बैठ बहुत-से लोग आते हैं, पार हो जाते हैं। उसके बाद जब मैं आती हूँ तभी आते हैं। उनकी हालत कोई ठीक नहीं रहती। सहजयोग में वो बढ़ते नहीं, वृद्धिगत नहीं होते। आप पेड़ों के बारे में भी ये अनुभव करके देखें, कि अगर कुछ पेड़ आप लगा दीजिए. वो पनप जाते हैं। एक दूसरों देखकर के बढ़ते हैं। और यही सामूहिकता ही सर्व राष्ट्रों में और सर्व देशों में फैलने वाली है और उस दिन आप जानियेगा कि आप चाहे यहाँ रहें, चाहे इंग्लैंड में, चाहे अमेरिका में, या चाहे किसी भी मुसलमान देशों में या चीनी देशों में, कहीं भी रहें आप सब एक हैं। यही शुरुआत हो गई है. और सहजयोग एक बड़ी संक्रान्ति है। 'सं' माने अच्छी और 'क्रान्ति' माने आप जानते हैं। ये एक बड़ी समझें। आएँ नम्रतापूर्वक, आप ध्यान में आएँ, हो सकता है कि सेन्टर में एक आध आदमी आपसे कहे भी कि भई, ये छोड़ दो, ये नहीं करो। तो बुरा नहीं मानना है। क्योंकि उन्होंने अनुभव किया है । उन्होंने जाना है कि ये बात गलत है, इसको भारी evolutionary क्रान्ति है। और जो पवित्र छोड़ना चाहिए, इसे निकालना चाहिए। और जो कुछ भी सेन्टर में कहा जाये उसे करें क्यों कि सेण्टर पर हमारा ध्यान रहता है। क्रान्ति है। जो प्रेम से होती है, जो अन्दर से होती है । उसमें सबसे पहले जानना चाहिये कि हम उस विराट् के अंग प्रत्यंग हैं हम अलग नहीं। और आप हैरान होइयेगा इसके कितने फायदे होते हैं। এ ट. 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-27.txt अंक : 9 & 10 - 2005 चैतन्य लहरी 26 एक हमारे शिष्य थे प्रोफेसर साहब राहुरी पहुँचे और बम्बई में सब सहजयोगियों ने अपनी में। वो ज़रा अपने को अफ़लातून समझते थे, बहुत ज्यादा। एक बार उन्होंने मुझे बताना शुरु किया जितने भी डॉक्टर थे सहजयोगी और जो लोग थे कि ये साहब जो हैं ये सहजयोग तो अच्छा करते उन्होंने hospital (अस्पताल) में उनको भर्ती करना, हैं, बहुतों को पार तो किया लेकिन ज़रा गुस्सा इनको ज्यादा आता हैं। और इनकी बीवी से इनकी पटती नहीं है । दुनिया भर की मुझे शिकायतें करने लग गये तो भी मैं चुप थी। मैंने कुछ नहीं कहा। फिर उन्होंने एक ग्रुप बनाया आपस में, और कहने न इतना रुपया था न पैसा था। सब कुछ लगे हम लोग अलग से काम करेंगे तो भी मैं चुप सहजयोगियों ने तैयार करके-मुझे कभी जो लोग थी। तीसरे मर्तबा जब गये तो देखा कि वो कह रहे कभी भी टरंक-कॉल नहीं करते थे वो लन्दन में थे कि कुछ हर्ज नहीं थोड़ा-सा तम्बाकू भी खा लें ट्रंक कॉल पर ट्रंक-कॉल माँ वो हमारे एक तो कोई बात नहीं, मै तो खाता हूँ। माता जी को सहजयोगी हैं, उनको ब्लड कैंसर कैसे हो गया? तो कुछ पता ही नहीं है। मैं तो खाता हैूँ। कोई हर्ज नहीं। तो वो सब तम्बाकू खाने वालों ने एक ग्रुप चिट्टी लिखी न कुछ किया। आज ट्रंक कॉल बना लिया। माताजी के. मतलब, हैं तो सहजयोगी लेकिन तम्बाकू खाने वाले सहजयोगी, शराब पीने देखो तब ट्रंक कॉल, माँ इनको ठीक कर दो, माँ वाले सहजयोगी, रिश्वत लेने वाले सहजयोगी, झूठ बोलने वाले सहजयोगी। ऐसे ग्रुप बन गये। तो मैंने रहे हैं, सबके। बहरहाल वो अब ठीक हो गये, उनसे कहा-वहाँ पर सिर्फ तम्बाकू खाने वालों का था, तम्बाकू बड़ी मुश्किल से छूटती है, बहुत मुश्किल से। तो, उसके बाद जनाबेआली से मैंने ठीक हो गये 'अब' वो समझ गये बात। उनके जान लगा दी। बिल्कुल जान लगा दी उनके लिये उन का सब diagnosis (जॉँच पड़ताल) करना, उन के लिए दौड़ना, धूपना सब शुरु। अब जो रिश्तेदार उनके चिपके थे वो तो सब छूट गए. हुए वो कोई उनको जानने वाला नहीं। उनके पास तो आप ठीक कर दीजिये । मैंने कहा इन्होंने कभी न लन्दन करना कोई आसान चीज नहीं। और जब वो हमारे.. । माने जैसे इन्हीं के प्राण निकलें जा बिल्कुल ठीक हो गये डॉक्टर ने कह दिया कि दस दिन में खत्म हो जायेंगे लेकिन अब बिल्कुल सगे कौन हैं, वह अब पहचान गये हैं। उससे पहले नहीं। उन लोगों के पीछे में दौड़ते थे, दूसरे रिश्तेदारों के पीछे में उनको खाना खिलाना. पिलाना। उनसे कभी सहजयोग की बात नहीं करना। और जब सहजयोग में आना तो तम्बाकू वालों का एक ग्रुप बना लेना। फ़रमाया कि देखिये, ज़रा आप सम्भल के रहिये। ज्यादतियाँ आपने करली हैं। जब ये ग्रुप बन बहुत जाता है, मैंने तभी कहा, तब malignancy (विष) बहुत जोर करती है। अगर एक ही cell हो तो कोई बात नहीं। लेकिन अगर दस cell हो गये और सब malignant हो गये तो गया आदमी काम से।" उसके बाद जब मैं मोटर से आ रही थी तो मैंने रास्ते में जो वहाँ के संचालक थे उनसे कहा कि इनपर नज़र रखिये । मुझे डर लगता है कि ये कहीं गड़बड़ में न फँस जाएँ । और आपको आश्चर्य होगा कि उनको ब्लड कैंसर हो गया। लेकिन ऐसा आपका सगा-सोएरा कहीं हैं दुनिया में नहीं मिलेगा। ज्यादातर सगे ऐसे होते कि आपकी खुशियों पर पानी डालते हैं। और कहते हैं कि-ऊपर से दिखायेंगे आपके बड़े दोस्त हैं लेकिन चाहेंगे कि आप खुश न हों। देखिए। आपको आश्चर्य होगा कि अगर कोई मर जाता है तो हज़ारों लोग पहुँच जाते हैं रोने के लिए। खुश अब जब Blood Cancer हो गया तो उनकी हालत खराब हो गयी। तो वो साहब बम्बई 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-28.txt अंक : 9& 10-2005 27 चैतन्य लहरी होते होंगे, शायद घर पर आफ्त आयी, मन में। और जब कुछ प्रमोशन हो जाये, कुछ अच्छाई हो जाये, तो कहने लगे-पता है इसका कैसे प्रमोशन हो गया इसने बड़ी लल्लोचप्पी की होगी।' कभी खुश नहीं होते। लेकिन सहजयोग दूसरी चीज़ है। सहजयोग में लोग खुश होते हैं, जब देखते हैं 'अरे ये सहजयोगी first (प्रथम) आ गया इस सहजयोगी के ऐसे हो गया सहजयोगी के घर में किसी के बार-बार माफी माँगेंगे, 'माँ तुम माफ कर दो। तुम तो माफ़ कर दो उस पर तुम कुछ नाराज हो गई हो। नहीं तो...| मैंने कहा कि भई तुम क्यों माफी माँग रहे हो उसकी । 'अब वो भूल रहा है माफी माँगना तो हम ही माँग रहें हैं, उसको माफ़ कर दो। इतना प्रेम चढ़ता है सब देख-देखकर । इतना मोह लगता है कि 'कितनी मौहब्बत', 'कितना खयाल' । कितनी किसी पर कोई परेशानी आ जाए, पैसे की परेशानी आ जाए, कोई तकलीफ हो जाए, तो सबके सब secretly (चुपके से) उसको कर लेते हैं, मेरे को पता ही नहीं चलता है। सब आपस में ऐसे खड़े हो जाते हैं, और सारी दुनिया की दुनिया ऐसे सहजयोगियों की जब करी। कहने लगे मेरे सगे भाई-बहन तो यहाँ रहते खड़ी होगी तब सोचिये क्या होगा? अभी तो हम लोग वैमनस्य, द्वेष और हर तरह के competition (प्रतियोगिता) और पागल दौड़ Rat race के पीछे में। वहाँ आकर के उन्होंने शादी करी, अपनी बीवी में दौड़ रहे हैं। ये सब खत्म हो जाएगा। और इतनी sense of security (सुरक्षा की भावना) हमारे अन्दर आ जाएगी कि सब हमारे भाई बहन बच्चा हो गया तो मार तूफान हो जाता है। अभी एक साहब की शादी हुई राहुरी में । वो स्विटजरलैण्ड के थे। वहाँ आकर उन्होंने शादी हैं। मुझे क्या करना है स्विटज़रलैण्ड में शादी कर के। वो स्विटजरलैण्ड से आये, राहुरी-एक गाँव को भी लाये, और वहाँ उन्होंने शादी करायी। वहीं घोड़े पर गये और सब कुछ किया उन्होंने। कहने लगे, भइया, मेरा वहाँ कोई नहीं रहता, मेरे सगे-सोएरे सब यहाँ पर हैं। और ऐसे आनन्द से सबने उनकी शादी मनाई। और अब उसको बच्चा होने वाला है तो सब सहजयोगी ऐसे खुश हो गये, आपस में पेड़े बॉटने लग गये और उनके जो रिश्तेदार थे, उनको समझ में ही नहीं आया कि ये कैसे सब हो गया। अब आपके रिश्तेदार सहजयोगी हो जाते हैं। आपके मित्र हो जाते हैं । आपके 'अपने हो जाने हैं, आत्मज'। हैं। पर जो लोग, जन-सामूहिक नहीं होते वो निकलते जाते हैं, सहजयोग से। ये तो ऐसा है, जैसे कि centrifugal force (अपकेन्द्रीय बल) है वो घूमता है, घूमता है और अगर उसने ज़रा-सा छोड़ा कि गया वो tangent (स्पर्शरेखा) से बाहर। वो रहता नहीं, फिर टिकता नहीं। इसलिए उसे चिपक कर रहना चाहिये इसके जो नियम हैं, उसको समझना चाहिए, उसको जानना चाहिये। दूसरों से पूछना चाहिए उसमें मानने की कोई बात नहीं। जो कल आए थे "आत्मज' शब्द बहुत सुन्दर है। शायद कभी इस का मतलब किसी ने नहीं सोचा 'आत्मज' जो आत्मा से पैदा हुए हैं, वो आत्मज होते हैं। कहा जाता है कोई बहुत नजदीकी आदमी को ये मेरे बुरा वो ज्यादा जान गये। आज आप आये है आप जान जाइये। और जो कल आएँगे वो आप से जानेंगे । इसमें बुरा मानने की और इसकी कोई बात नहीं । पर जब आदमी सहज योग में पहले आता है तो वह यही भावना लेकर आता है कि अब हम इसमें आये हैं और ये देखिये, हमें बड़ी शान दिखा रहे आत्मज है। जिस का आत्मा से सम्बन्ध हो गया उसका 'नितान्त' सम्बन्ध होता है। मैं और खुद आश्चर्य में पड़ती हूँ मेरे जान को लग जाएँगे अगर किसी के इतनी-सी तकलीफ हो जाए-और हैं। 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-29.txt अंक : 9 & 10 -2005 चैतन्य लहरी 28 हूँ, चलो हो गए एक। ये दूसरे हो गये इनकी श्रेणी बदल गयी है ये दूसरे हैं। ये दिखने में आप जैसे ही हैं लेकिन ये दूसरे हो गये हैं जैसे समझ लीजिये कि आपके college में लड़के पढ़ते हैं। कोई बी.ए. है. कोई First Year ( प्रथम वर्ष) है। फिर कोई एम.ए. में है। एम. ए. का लड़का Pass (पास) होकर Proffessor (प्रोफेसर) होकर आ जाता है, तो हम यह थोड़े ही कहते हैं कि कल हमारे ही साथ में पढ़ता था और मैं भी सरकारी नौकर सहजयोग में सब छूट जाता है। आप 1 कौन देश के हैं? परमात्मा के देश के। आप किसके साम्राज्य के हैं? परमात्मा के। परमात्मा ने थोड़ी ऐसा बनाया था कि आप यहाँ के आप वहाँ के। भाई परमात्मा तो हर एक जगह variety (विविधता) बनाते ही हैं। ये त्रिगुण के permuta- tion and combinations (विविध मिश्रण) के साथ में उन्होंने ये सारा बनाया, और इसलिए कि जैसे variety से खूबसूरती आती है। आप सोचिए कि सबकी एक जैसी हो शक्ल जाती तो Bore (नीरस) नहीं हो जाते सब लोग? आज आ गया बड़ा हमारे ऊपर । उसी तरह की चीज़ है-इनकी श्रेणी बदल गयी आप की भी श्रेणी बदल सकती है। कुछ-कुछ लोगों को मैंने देखा है कि सालों से रगड़ रहे हैं सहजयोग में। कुछ progress नहीं होता, वो ऐसे ही चलते रहते हैं. डावाँडोल-डावाँ-डोल। कभी गुरुओं के चक्करों में घुसे। आज ही एक महाशय आये थे, आये होंगे अभी भी पार हो गये थे, उसके बाद में वो गये; कोई शकराचार्य के पास गये, कहीं किसी के पास गये, कहीं कुछ गये विचारे बिल्कुल पागल हो गये-पागल! मुझे आकर बतलाने लगे कि माँ मेरे अन्दर पिशाच' भर दिये इन्होंने। सबने पिशाच भरे। आए अभी बिचारे; काफी उनको साफ सूफ किया हमने। पर उससे progress (प्रगति) उनका कम से कम हिन्दुस्तानी औरतों को इतनी अक्ल है कि साड़ियाँ पहनती हैं अब भी, और सब अलग-अलग तरह की पहनती है। पर आदमी तो बोर करते हैं-उनके कपड़ों से। सब एक जैसे। औरतें जो है अभी भी अपना maintain किए हैं। अगर एक औरत ने देखा कि दूसरी मेरे जैसी साड़ी पहन कर आयी है तो बदल के आ जाएगी। और वो साड़ी वाले भी इतने होशियार होते हैं बिचारे वो जानते हैं उनको आदत पड़ी रहती है। पचासों साडियाँ दिखायेंगे। बो थकते नहीं बिचारे। मैं कहती हूं कौन जीव हैं ये भी, पता नहीं । और कभी उनको पता हो गया कि ये साड़ी मेरे पड़ोस के उसके रिश्तेदार के उसके पास है तो लेंगी कम हुआ। अगर उसी वक्त जम जाते तो आज कहाँ से कहाँ होते! और बड़ी तकलीफ उठाई बिचारों ने। बड़ी परेशानी उठाई। नहीं। सामूहिकता को आप समझें कि बहुत महत्त्वपूर्ण है। सबसे बड़ा आशीर्वाद सामूहिकता में आता है । और जहाँ इस सामूहिकता को तोड़ने की कोशिश की, यानि लोगों को आदत है, क्लब करने की, कोई न कोई बहाना लेकर के। आप सफेद बाल वाले हैं तो मैं भी सफेद बाल वाला हूँ। चलो हों गये एक। आप लम्बे आदमी हैं तो हम भी लम्बे आदमी हैं, हो गये क्लब। आप सरकारी नौकर हैं, ये variety की sense (विविधता का विवेक) सौंदर्य का लक्षण है। बनाया है। उसने सारी सृष्टि सुन्दर से बनायी, कहीं पहाड़ बनाये, कहीं पर नदियाँ बनायीं,. कहीं कुछ बनाया। इसलिए कि आप लोग उसमें मस्त रहें, मज़े में रहें । लेकिन आपने तो इसको ये बना लिया देश उसको वो देश बना लिया। उसने वो इसलिए परमात्मा ने 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-30.txt 29 अक : 9 & 10 - 2005 चैतन्य लहरी में मुझे मिले-तो मेरा फोटा वोटो रखा हुआ अपने मोटर में। कहने लगे मैंने घर में भी फोटो रखा है, मेरे दिल में भी फोटो है। मैंने कहा बेटे क्या बात है, वाइब्रेशन तो हैं नहीं! कहने लगे हाँ नहीं हैं। और अब एक कोई नई बीमारी हो रही है। मैंने कहा ये सब फोटो बेकार गए न तुम्हारे लिए। तुम सहजयोग करने के लिए केन्द्र पर आओ ।' देश बना लिया, और लड़ रहे हैं आपस में! अजीब हालत है। हमारे जैसे अजनबी को तो बड़ा ही आश्चर्य लगता है, भई इसमें लड़ने की कौनसी बात है? और फिर घुटते-घुटते हर एक देश में अपनी-अपनी समस्या, अपना-अपना ढंग बनता गया। जाती है। आपको सहजयोग में ये चीज़ टूट देखना चाहिए था कि परदेश के आए हुए लोग किस तरह से अपने देहातियों के साथ गले मिल-मिलकर के कूद रहे थे। और वहाँ पर नृत्य सीख रहे थे, कैसे अपने देहाती लोग नृत्य करते हैं! अगर ये पंजाब जाएँगे तो वहाँ जाकर भँगड़ा करेंगे उनके साथ कूद-कूदकर। देखने लायक चीज़ है। ये भूल गए कि हम किस देश के हैं। आप सोचिये दिल्ली शहर में हमारे पास कोई केन्द्र नहीं। हर तरह के चोरों के पास यहां इतने बड़े-बड़े आश्रम बन गये हमारे पास अभी कोई जगह नहीं, किसी के घर में हीं हम कर रहे हैं। कोई बात नहीं। हमारे पास जो धन है. वो सबसे बड़ी चीज है। उसके लिये कोई ज़रूरी नहीं कि अब महल खड़े हों, बड़े Air- conditioned (वातानुकूलित) आश्रम हों। वह कहाँ रह रहा है कि क्या; बस मजे में। ये सब तो कभी होंगे ही नहीं हमारे। और अभी तक हमें कहीं भी हम लोग ज़मीन नहीं खरीद पाये, क्योंकि कौन कितनी position में है। कुछ खयाल नहीं हमने यह कहा था कि हम black-market (काला आता। ये सब बाह्य की चीजें हैं, सनातन नहीं है। बाज़ार) का पैसा नहीं देंगे। तो आज तक इस दिल्ली शहर में एक आदमी नहीं मिला जिसने कहा है कि, 'अच्छा माँ हम आपको ऐसी जमीन देंगे जिसमें सीधा-सीधा पैसा हो। एक आदमी नहीं मिला इस दिल्ली शहर में और उस बड़े भारी बम्बई शहर में आपके! ये हालत है। Government प्रेम-उसका मज़ा, प्रेम का मजा आता है। फिर आदमी यह नहीं सोचता कि कपड़े क्या पहने हैं, ये विचार ही नहीं आता है-कौन बड़ा, कौन छोटा, क्योंकि सनातन को पा लिया है। पर सबसे बड़ी बात आपको याद रखनी चाहिए, हर समय, कि हमें सामूहिक होना चाहिए और सामूहिकता में ही सहजयोग के आशीर्वाद हैं अकेले-अकेले indi - vidualistic बिल्कुल नहीं। बिल्कुल भी नहीं। आप खो दीजियेगा सब कुछ। मैंने ऐसे बहुत-से लोग देखे हैं। लोग ज्यादातर जो बीमारी ठीक करने आते हैं, वो ज्यादातर इसी तरह से होते है। आये, बीमारी ठीक हो गई, उसके बाद बैठ गये । (सरकार) से कहा तो वहाँ भी जो नीचे के लोग हैं ये वो bribe (रिश्वत) लेते हैं। उनको क्या मालूम सब चीज, कि ऐसा ऐसा होता है। लेकिन होता है। और उसके बाद उन्होंने ज़मीन दी भी, मतलब किसी को bribery तो हमने दी नहीं, तो उन्होंने हमें सब्ज़ी मण्डी के अन्दर हमें जगह दी। बताइये चिल्ला -चिल्ला कर 'माँ मेरे ये जल रहा है, मुझे अब! सब्जी मण्डी के अन्दर जहाँ बैल बाँधते हैं, बहाँ उन्होंने सहजयोगियों के लिए जगह दी । हमने कहा, भई जिसने दी है उसने कभी देखा भी कि बैलों के साथ क्या सहजयोगी वहाँ वैदने वाले हैं?" एक साहब आए थे हमारे पास, बहुत बचाओ, बचाओ, बचाओ।' मैंने कहा, 'वैटे रहो अभी थोड़ी देर।' उसके बाद जब पहुँची तो पाँच मिनट में ठीक भी हो गए। उसके बाद एक दिन बाजार 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-31.txt अक : 9& 10 -2005 चैतन्य लहरी 30 आसन आज नहीं बता सकती। लेकिन इसके बहरहाल अब तो उस बात को लोग समझ गए। बहुत दौड़ना पड़ा, सालों तक। अब दस वर्ष से मामले में बहुत लोग जानते हैं। कौन-से आसन कोशिश करने के बाद उन्होंने कहा, कि हम इस पर सोचेंगे। इसका अर्थ आप सरकारी नौकर है। आपको कौन-सी तकलीफ हैं, चो बता सकते जानते हैं। अभी वो सोच ही रहे हैं। तो बहरहाल जब भी जगह होगी, जैसे भी जगह, आप उसको विमर्श कर सकते है और आप (उन्नति) कर सकते देखें वहाँ करें, जो भी अभी सुब्रमनियम साहब ने अपना घर दिया हुआ है वहीं होता है । और कोई जगह अगर आपको मिल जाये तो ऐसी कोई जगह कर लीजिए। कोई जरूरत नहीं कि बहुत बड़ी करनी होगी और कहना होगा कि मुझे तकलीफ जगह हो। सर्व-साधारण लोग जहाँ आ सकें। इस तरह से सब अपना ही कार्य है। हमें करने चाहिए, कौन-से चक्र पर कौन-सी तकलीफ हैं, पता लगा सकते है। आपस में आप विचार है। लेकिन आपको एक दूसरे से बात-चीत है। सबमें घुल-मिल जाना चाहिए। अधिकतर लोग क्या है, कि आए वहाँ देखा कि वो साहब थे । बह सब ऐसा कर रहे थे, तो हम वहाँ से भाग खड़े हुए, ऐसे लोगों के लिए सहजयोग नहीं है। आपको घुसना पड़ेगा, उसमें रहना पड़ेगा. उन लोगों के साथ बात-चीत करनी पडेगी। क्योंकि ये ऐसी कला है कि ये बार-बार माँगने पर मिलती है । हमारे बच्चों के लिए हम कर रहे है। हमारे सारे मानव जाति के लिए हम कर रहे हैं। इसके लिए बहुत बड़ा आडम्बर करने की जरूरत नहीं है। सादगी से ही, सरलता से ही सबको बैठकर करना चाहिए। सहजयोग इतनी आशीर्वाद देने वाली कोई-सी भी कला आप जानते हैं, गुरु लोग चीज है कि सहजयोग में आए हुए लोग आज बड़े-बड़े मिनिस्टर हो गये हैं ये भी बात देखिये कितनी आश्चर्य की है। लेकिन मिनिस्टर होने के कितने योग्य हैं। यह नहीं कि आप आए और आप बाद वो भूल गए कि वो सहजयोगी हैं। जब छुई-मुई के बुधवा बनकर आपने कह दिया कि मिनिस्ट्री छूटेगी फिर आएँगे। ज़रूर आयेंगे। फिर आप पहचानियेगा कि ये फलाने मिनिस्टर थे, की तो हम भाग आए। कुछ माताजी' अब उनको फुरसत नहीं। आपकी हालत खराब कर देते हैं, तब देते हैं। तो आप का भी Testing (परीक्षण) होता है कि आप साहब वो ऐसे-ऐसे थे उन्होंने हमसे बदतमीजी नहीं। सहजयोग में जमना पड़ता है और उसमें आना पड़ता है। हालाँकि कोई आपका अपमान नहीं करता। लेकिन आप में बहुत ego (अहंकार) होगा तो बात- बात में आपको ऐसा लगेगा जैसे एक साहब आए, मुझे कहने लगे, 'हम तो आए थे आपसे मिलने लेकिन फुरसत सहजयोग के लिए जरूर निकालनी पड़ेगी आपको। ये आपका परम कर्त्तव्य है। जो कहता है 'मेरे पास समय नहीं है कब क, वो सहजयोग नहीं कर सकता। रोज शाम को और रोज सवेरे थोड़ा देर निकालना पड़ता है। सहजयोग में अनेक नियम हैं। अपने आचार-व्यवहार बर्ताव, वहाँ एक साहब थे बड़े बदमाश थे। हमने कहा 'क्या हुआ'? कहने लगे कि हम दिन में आए थे आपके पास।' मैंने कहा कि 'कितने बजे? '३-३० बजे'। मैंने कहा 'उस वक्त तो मैं आराम करती । रहन-सहन, आसन आदि क्या-क्या करने के वगैरह सबके नियम हैं । मैं सब नहीं बता सकती एक साहब ने प्रश्न किया कि 'माताजी आपने कहा था उसके आसन बताओ। तो मैं सब चक्रों के हूँ। तो कहने लगे हम ने सोचा माँ का दरबार है, कभी भी आ जाओ। मैंने कहा ठीक है. आपके लिए तो माँ का दरबार है, लेकिन आपकी अंक्ल 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-32.txt चैतन्य लहरी अंक : 9 & 10 - 2005 31 पर अगर कोई बिगड़ भी गया उस पर, तो सहजयोग से भागने की क्या ज़रूरत है अब? जब तक आप केन्द्र पर नहीं आएँगे तब तक आपका कोई भी काम नहीं बन सकता है। का दरबार कहाँ रह गया? जो रात-दिन माँ मेहनत कर रही हैं क्या उसको थोड़ा आराम नहीं करना चाहिए? अगर उन्होंने कह दिया कि इस वक्त माँ आराम कर रही हैं, आप नहीं आएँ तो आपको खुद सोचना चाहिए कि बात सही है? 'लेकिन जब वो उस जगह खड़े होंगे तो क्या एक तो सब से बड़ी बात यह है कि करेंगे? इस प्रकार लोग बहुत बार सहजयोग से बहुत-से लोग यह भी सोचते हैं कि अगर हम सहजयोगी हैं तो हमारे बाप-दादे के दादे के, बहन के बहन के, और भाई के भाई के भाई के, कोई न कोई रिश्तेदार, कहीं अगर उसको कुछ हो जाये तो बस वो माता जी उसको ठीक करें। एक साहब बहुत बड़े सहज योगी हैं और हमारे यहाँ Trustee (ट्रस्टी) रह चुके हैं सालों से Trustee हैं। उनकी बीवी भी दोनों को बहुत बीमारी थी। ठीक हो गए काफी गहरे उतर चुके सब कुछ हुआ। उनके लड़के का लड़का ऊपर से गिरकर मर गेया। Normally ( सामान्यतः) सहजयोग के लोग accident (दुर्घटना) से मरते नहीं । कभी अभी तक तो हमने सुना नहीं किसी को मरते हुए । और वो इस तरह से मर गया। जवान लड़का था। लेकिन उन्होंने कहा कि ठीक है, ये तो कुछ न कुछ होना था और हो गया लेकिन accident से तो माँ ने बेकार में भागते हैं. और इसकी सबसे बड़ी वजह मैं तो ये ही सोचती हैँ कि अभी वह पात्र नहीं है। जो आदमी पात्र होता है घुसता चला जाता है। थोड़े दिन नाराज़ हो रहे हैं, कुछ हो रहे हैं। चलो घुसते चले जाओ और गहन उतरता है। जो Soft-line है, वो हमेशा लेती है. जीवन्त चीज। जैसे एक बीज है, जब वो अंकुरित होता है, जब sprout करता है, तो उसका जो root-cap होता है, बड़ा छोटा-सा होता है, इतना-सा। लेकिन बड़ा समझदार, wise होता है। वो जाकर चट्टानों से नहीं टकराता है। किसी पत्थरों से नहीं टकराता है, पर पत्थर के किनारे पर थोड़ी सी soft (नर्म) जगह मिल जाए, उसमें से घुसता चला जाता है। और जाकर जम जाता है उन पत्थरों पर, इस तरह से जकड़ जाता है कि सारा पैड़ का पेड़ उसी के मुझे बहुत बार बचाया है। मैने इतनी बार अपने लड़के से कहा कि माँ के पास चलो। आया नहीं। तो मैं क्या उसकी ज़िम्मेदारी ले सकता हूँ? अगर तो क्या सहजयोगियों को नहीं होनी चाहिए । वो माँ के पास आता अपने बच्चे को लेकर आता, तो कभी भी ऐसा नहीं होता उन्होंने यही बात मुझसे कही और इतना उस बच्चे को प्यार करते कुछ न कुछ बहाना बनाकर सहजयोग से थे, सब कुछ, लेकिन उन्होंने कहा कि जब बाप ही नहीं आ रहा तो लड़का क्या आएगा? आपके loss (नुकसान) होगा ये सब बहानेबाजी आपको जितने रिश्तेदार हैं, उनका ठेका हमने नहीं लिया हुआ। न आप लीजिए। आप उन से कहिए कि इसको आप छोड़िये। ये ego (अहंकार) है और सहजयोग में आप उतरें सहजयोग को आप पाएँ । कुछ नहीं है। ये बड़ा सूक्ष्म ego है। कोई आपके और इसकी रिश्तेदारी आप अगर उठा लें तो सारी पैर पर नहीं गिरने वाला। यह तो ज़रूरी है कि दुनिया ही आपकी रिश्तेदार है। पर ये सोचना कि 'मेरी बहन बीमार रहती है और मेरे फलाने बीमार सहारे खड़ा हो जाता है। यह अक्लमन्दी की बात है जब इतना-सा एक cell है, उसको इतनी अक्ल कि किस तरह से हम गहन उतरते चलें । भागने से आपकी प्रगति नहीं होगी। आपका ही बन्द करनी चाहिए। ये आपके मन का खेल है सबसे अच्छी तरह बात-चीत की जाए कहा जाए। 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-33.txt अंक : 9& 10 - 2005 32 चैतन्य लहरी रहते हैं' और इस तरह से जो लोग करते है उससे कोई लाभ नहीं होता। किया? पहला सवाल । लोग ऐसा हक सहजयोग से लगाने लगते हैं। क्योंकि ये सहज है । वो सोचते हैं कि माँ ने हमारे लिए क्या किया? अब भई आपने क्या किया माँ के लिए? आपने अपने ही लिए क्या किया? पहले तो सवाल ये पूछना चाहिए कि हमने अपना ही क्या भला किया हुआ है? सहजयोग में हमने ही क्या पाया हुआ है? क्या हमने अपने Vibrations ठीक रखे हैं? या क्या हमने एक आदमी को भी पहले आपको पार हो जाना चाहिए। पार हो जाने के बाद आपका अधिकार बनता है। उस अधिकार के स्वरूप आप चाहे जो भी माँगें। आप का पूरा अधिकार है। सर ऑँखों पर हैं आप। अगर समझ लीजिए आप इंग्लैण्ड जाएँ और इंग्लैण्ड में जाकर आपः कहें कि हमें ये चीज़ चाहिए। अरे रहने दीजिए, उस लन्दन में आपके लोग पैर नहीं ठहरने देंगे, जब तक आपके पास सत्ता न हो, वहाँ जाने की। जब आपके पास सत्ता नहीं है, तब आपका सहजयोग से कोई भी आशीर्वाद माँगना पार कराया है? महाराष्ट्र में आप आश्चर्य करेंगे, इतने लोग पार होते हैं कि हजारों की तादाद में। गलत है। महाराष्ट्र की महत्ता मैं इसलिए नहीं कहना चाहती जैसे एक साहब थे, बहुत बीमार थे। इन हूँ कि आप जाकर खुद ही देखिये, मैं तो खुद ही लोगों ने टेलीफोन किया, ट्रक. कॉल किया माँ उनको ठीक करो।' वे पार नहीं थे, कुछ नहीं थे। तो मैंने कहा 'अच्छा हम कोशिश करते है'। उनके साहबजादे पार थे। कोशिश की, मैंने कहा कि देखो इसको छोड़ दो। अहंकार इतना था कि वो ठीक ही नहीं हुए। तब आने पर वो ठीक हो गए। थोड़े दिन उनकी जिन्दगी चली। लेकिन जब मरना है तब तो आदमी मरता ही है, वो थोड़े ही न नहीं छूना, तो बस उसके लिए फिर आफत हो रोकने वाले हैं। सिर्फ यह है कि सहजयोग से जाती है। छः हज़ार भी आदमी होंगे तो भी चाहेगे मनुष्य शान्ति को प्राप्त करता है, मरने से पहले कि माँ के पैर छुएं । यहाँ किसी से कहो कि पैर और जो चीज़ बहुत आकस्मिक हो जाती है, उससे छुओ तो वो बिगड़ जाएंगे कि 'क्यों पैर छुए साहब बच जाता है। इसलिए मैंने कहा कि accident से इनके हम?" नहीं मरता है। Suddenly ( अचानक) कोई चीज वो होकर नहीं मरता है। वास्तविक जब मरना है आश्चर्य में हूँ कि इतने हज़ारों लोग कैसे पार हो जाते हैं? और फिर जमते भी बहुत है यह भी बात उन लोगों में है। और इस तरह की बात वहाँ नही होती है। अब वहाँ ये नियम बनाया था पहले हमने कि किसी ने अगर ग्यारह आदमियो को पार किया है वो ही मेरे पैर छू सकता है। वहाँ पैर छूने की लोगों को बीमारी है। अगर किसी से कहो कि पैर हम लेकिन उनको मैंने अगर कहा कि आपको तब मरता है। तो उनको जब मरना था बो मर ही पैर है तो आप से कम से कम ग्यारह आदमी गये, बिचारे। वो पार भी नहीं हुए थे और बड़ी होने चाहिए। वही लोग सकते हैं जिन्होंने ग्यारह आदमी पार किये। तो कुछ लोग खड़े हो गये. कहने लगे माँ हमने तो ग्यारह नहीं दस ही किये छूना छू मुश्किल से उनको किसी तरह से ठीक किया था। वो मर गये तो उनके सब रिश्तेदार कहने लगे कि 'माता जी, इनको बचाया नहीं। मैंने कहा उनसे है । अब उन्होंने कहा कि 'भई अब इक्कीस बनाओ। कम से कम छ लें पैर? देखिए भोलापन एक सवाल पूछो कि आपने माताजी के लिए क्या 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-34.txt चैतन्य लहरी अंक : 9 & 10 - 2005 33 इक्कीस पार किये हों तो माँ के पैर छू सकते हैं, नहीं तो अधिकार नहीं जमता। और ये काम बन गया, इक्कीस वाले बहुत निकल आए! इतने निकले, कि मुझे तो कहना पड़ा 'भाइयो अब जाने दो, अब नम्बर बढ़ाओ। ५१ कर दीजिये, तो भी बहुत निकल आयेंगे। वहाँ तो ऐसे-ऐसे लोग हैं दस-दस हज़ार' पार किये हैं। इसीलिए शायद उसका नाम यहाँ मेहनत कर रही हूँ दिल्ली में, और अभी इन गिन के दो सौ stones भी नहीं जोड़ पायी। ये कठिनाई है। आप सोचिये। और जो आते भी हैं ज्यादातर दल-बदल और दल बांधने में नम्बर "एक"। यह शायद हो सकता है कि Politics (राजनीति) का असर हो। चाहे जो भी हो। इतना Poltics करते हैं कि जिसकी कोई हद नहीं। 'महाराष्ट्र रखा है। दस-दस हजार लोग पार करने वाले वहाँ लोग हैं। इसमें Politics नहीं है कुछ नहीं है। इसमें सिर्फ अपने को पाना और परमात्मा को पाना, और सारे संसार को एक नई सुन्दर, प्रेमपूर्ण क्रान्ति में बदल देना ही एक काम है। बड़ा भारी काम है। और यहाँ खुद ही नहीं जमते हैं, दूसरों को क्या करेंगे। जिसको कहना चाहिए बिल्कुल Frivo- lous Temperament (उथली वृत्ति) हैं। अपने तरफ भी self esteem ( अपना आदर) नहीं है। अपने बारे में भी विचार नहीं है, न दूसरों के बारे। जानते नहीं हैं हम क्या हैं। हम आत्मा स्वरूप हैं, कितनी बड़ी चीज़ हैं! हम कितने शक्तिशाली हैं! इस शक्ति को हमें बढ़ाना चाहिए। अपने बारे में कोई विचार ही नहीं है एक रौनक लगा ली, बस हो गया। बहुत महान् काम है। इसमें हजारों लोग चाहिएँ और अगर आप नहीं करियेगा तो ये भी आप जान लें कि ये Last Judgment है । Judgment कुण्डलिनी से ही होने वाला है । और क्या भगवान आप को तराजू में डाल कर नहीं देखने वाला? कुण्डलिनी को जागृत करके ही आपका Judg- ment होना है। वो Last Judgment जो बताया गया है वह शुरु हो गया है। और जो इसमें से रुक जायेंगे उसके लिए 'कल्कि' अवतरण में कि आप जानियेगा कि काट-छाँट होगी। कोई आपको Lecture (भाषण) नहीं देगा, कोई बात नहीं करेगा। बस एक टुकड़ा इधर, या एक टुकड़ा 1 इससे काम नहीं होता अपने अन्दर जो है रौनक करनी पड़ती है और सबके साथ में इसको बाँटना पड़ता है। मराठी में एक कवि हो गये हैं उन्होंने कहा है 'माला पाहिजे गबा-ळयाचे काम नोहे। कहने लगे इसके लिए जैसमें जान हो वो आए। ऐसे-वैसे नन्दी-फ़न्दी लोगों का ये काम नहीं है 'येरा गवाळयाचे' माने अपने गाँठ में बॉध लें कि अब ज़ितना भी सन्त- बेवकूफों का ये काम नहीं है। जातीचे, येरा उधर। यह आप समझ लीजिए, और ये चीज साधुओं ने यहाँ मेहनत की है, जो भी बड़े-बडे अवतरण यहाँ हो गये, जो भी कार्य परमात्मा के दरबार के लिए हुआ है, वह सब पूरा हो गया है और आप अब stage (मच) पर है आप stage पर रहना चाहे तो stage पर रहे, या नीचे उतर इसलिये आप से मुझे request (अनुरोध) करना है, बताना है, बहुत-बहुत विनती करके, कि आपको जो भी दिया है उसको संजोना बहुत जरूरी है। इस की ओर बढ़ना बहुत जरूरी है जायें यह आपकी जिम्मेदारी है, कि आप ही न रहें आप ही देहली के foundation (नींव) के पहले stones (पत्थर) हैं। और आज सात साल से मैं के हैं। आपकी श्रेणी और है। आप साधक है और लेकिन सबको ऊपर खींचे । आप लोग दूसरी तरह 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-35.txt अंक : 9 & 10 - 2005 चैतन्य लहरी 34 करें और औरों की भी रक्षा करें। अपना कल्याण आपको समझ लेना चाहिए कि इसके लिए एकव्रत निश्चय होना चाहिए। Army (सेना) में इसको करें, औरों का भी कल्याण करें, और सारे संसार कहते हैं कि बाना' पहन लिया आपने। तभी ये चीज कम हो सकती है और ऐसे वैसे, ऐरे-गैरे नत्थू खैरों से यह काम नहीं हो सकता। आप ऐरे-गैरे, नत्थू-खैरे नहीं हैं, मैं जानती हूँ। लेकिन उसके बाद आऊँगी। और उसके बाद भी मेरा अभी आपने अपने को पहचाना नहीं। उसे जान लेने पर आश्चर्य होगा कि क्या यह शक्ति, प्रचण्ड शक्ति, यह ब्रह्म शक्ति माँ ने हमें दी है! और जैसे ही शक्ति बहने लग जाती है. आदमी सोचता है कि "मैं भी इस काबिल हो जाऊँ। जब इस प्याले से ये चीज़ छलक रही है तो ये प्याला भी इस योग्य वगैरा में वहाँ तो हिन्दी या मराठी भाषा बोलती हो जाये कि इस महफिल में आ सके। इस तरह से आदमी अपने आप ही अपना व्यवहार, अपना को मंगलमय बनायें. यही मेरी इच्छा है। इसके बाद में मद्रास जा रही हैँ लेकिन प्रोग्राम दिल्ली में रहेगा तीन-चार दिन। आप लोग सब वहाँ आइये, जहाँ भी प्रोग्राम होता है। जहाँ-जहाँ सहजयोगी आते हैं वहाँ-बहाँ कार्य ज्यादा होता है। सब लोग वहाँ आइये। ये लोग तो आपकी भाषा भी नहीं समझते हैं और जहाँ-जहाँ मैं गई गाँव 1 रही। लेकिन ये लोग सब लोग वहाँ आते रहे और हर तरह की आफ्त, आप जानते है इन लोगों को तो गाँव में रहने की बिल्कुल आदत नहीं है वहाँ पर रहकर के ये समझते हैं कि हमारे रहने से माँ के लिए बड़ा आसान हो जाता है। क्योंकि आप ही Channels (पथ) हैं। आपके channels मैं इस्तेमाल करती हैँ। अगर समझ लीजिये, इतनी बड़ी ये जो आपको Power-house (बिजली-घर) है, इसमें अगर channels नहीं हुए, तो बिजली कैसे प्रवाहित होगी? वह channels आप हैं। इस लिये आपको चाहिए कि जहाँ भी मैं कार्य करूँ, जब तक मैं हूँ इसको निश्चय से, धर्म समझ कर आप वहाँ आयें और इस कार्य को आप अपने लिए भी अपनाइये और दूसरों के लिए भी अपनायें । तरीका 'सब' कुछ बदलता जाता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि बड़े-बड़े जीव इस संसार में जन्म लेना चाहते हैं। अगर आपका दिल्ली में वातावरण ठीक नहीं हुआ, तो यहाँ सिर्फ राक्षस जन्म लेंगे, या तो बहुत हुए लोग जन्म लेंगे, जो डण्डे लेकर आपको मारेंगे। और या तो राक्षस पैदा होंगे, और राक्षसों ही की यह नगरी हो जायेगी इसलिये मुझे बड़ा डर लगता है। कभी कभी सोचती हूँ कि इनकी समझ में अभी बोत आ नहीं रही। ही पहुँचे आप लोगों की बड़ी जिम्मेदारी है, क्योंकि देहली जो है वह दहलीज़ है इस देश की ओर। इस दहलीज़ को लॉघ कर अगर राक्षस आ जायें तो आप लोग कहीं के नहीं रहेंगे। आपको दहलीज पर उसी तरह से पहरा देना चाहिये जैसे कि बड़े-बड़े देवदूत और बड़े-बड़े चिरञ्जीव खड़े हुये आपके जीवन को संभाल रहे हैं। अपनी आप रक्षा धन्यवाद! आशा है मैंने आपके अधिकतर प्रश्नों का जवाब दे दिया होगा और अगर नहीं दिया गया हो तो आप जरूर centre (केन्द्र) पर चीज़ों का जवाब पा लेंगे। इसलिए मैं सब बात आज नहीं कह पाऊँगी, आप समझ रहे हैं, समय की कमी है। 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-36.txt सहजयोग से रोग मुक्ति रा० मानव के शारीरिक पक्ष की जिम्मेदार है और मनुष्य के सृजनात्मक पक्ष को भी सम्भालती है। ईडा नाड़ी के साथ यह शरीर में गर्मी-सर्दी का हार सन्तुलन बनाती है। जब हम किसी एक अनुकम्पी का बहुत अधिक उपयोग करते हैं तो हमारे अन्दर असन्तुलन आ जाता है। बहुत ज्यादा सोना, बीते हुए समय के बारे में बहुत अधिक सोचना और आलसी स्वभाव बाएं पक्ष को अवांछित रूप से गतिशील करते हैं और दायें खा पक्ष का उपयोग ही नहीं होता। शारीरिक और मानसिक शक्तियों का बहुते ज्यादा उपयोग व्यक्ति को असन्तुलन की ओर लै जाते हैं ्योंकि ऐसे हालात में दायों पक्ष बहुत अधिक गतिशील हो उठता है और बाएं का बिल्कुल उपयोग नहीं हो पाता। दाई ओर के (राजसिक) स्वभाव के लोग बहुत ज्यादा नहत्वाकांक्षी होते हैं और दूसरों पर सभी सहजयोगी जानते हैं कि अनुकर्पी रौब ज़माना उनका स्वभाव होता है। इसके विपरीत नाड़ी प्रणाली और सात चक्र मानव के शारीरिक बाई ओर के आलसी प्रवृत्ति लोग बहुत ज्यादा एवं मानसिक स्वास्थ्य का संचालन करते हैं। बायाँ विनम्र होते हैं परन्तु सदैव स्वयं को कोसते रहते अनुकम्पी नाड़ी तन्त्र अर्थात ईडा नाड़ी मानव हैं। प्रकृति के भावनात्मक पक्ष, इच्छाओं और भूतकाल से जुड़े उसके दृष्टिकोण को सम्भालता है। ईड़ा नाड़ी चन्द्र नाड़ी है। पिंगला नाड़ी के साथ मिलकर और यह तालू क्षेत्र तक जाती है और पिंगला नाड़ी यह शरीर की गर्मी, सर्दी का सन्तुलन बनाती है। दाएं स्वाधिष्ठान से आरम्म होकर तालू क्षेत्र तक दायाँ अनुकम्पी नाड़ी तन्त्र अर्थात पिंगला नाड़ी ईडा नाड़ी का आरम्भ मूलाधार से होता है जाती है। रोजमर्रा के कार्यों में दोनों ही नाड़ियों 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-37.txt अंक : 9& 10-2005 36। चैतन्य लहरी का उपयोग होता है और परिणामस्वरूप उनके इनकी क्रियाओं को बहुत अधिक धीमा कर देता अन्तिम बिन्दु गुब्बारों की तरह से फूलकर अहं और है। इस कारण से निम्न रक्तचाप हो सकता है। प्रतिअहं की रचना करते हैं। प्रतिअहं (Super ego) बाएं अनुकम्पी की अत्यधिक गतिशीलता हृदय को अवचेतन (Subconscious) है और अहं (Ego) बहुत अधिक आलसी बना देती है। हृदय कम अति-चेतन (Supra- Conscious) बन्धनों को रक्तसंचार करता है और परिणामस्वरूप हृदयघात हो सकते है बहुत अधिक गतिशील हृदय तीव्रता से रक्तसंचार करता है और ये भी हृदयघात का स्वीकार करने के कारण प्रतिअहं बढ़ जाता है। और हम अवचेतन की ओर चल पडते हैं? रीति रिवाजों (बन्धनों) को बिल्कुल स्वीकार न करने पर व्यक्ति अतिचेतन की ओर चल पड़ता है। इन दोनों सामूहिक अवचेतन से निकलते हैं जैसे कैंसर, में से किसी ओर को भी मनुष्य का झुकाव यदि कारण हो सकता है। बाईं ओर के अधिकतर रोग 1 वायरल-संक्रमण, भिन्न प्रकार का साइरोसिस, मैनिनजाइटिस, कम्पन रोग, जोड़ों के रोग (गठिया). कमर हड्डी रोग (Slip Disk) गर्दन में अकड़न, बहुत ज्यादा होगा तो वह या तो अवचेतन में चला जाएगा या अतिचेतन में। ये वो क्षेत्र हैं जहाँ पर असन्तुष्ट या अतृप्त आत्माएँ निवास करती हैं और तपेदिक, अस्थमा, रक्त की कमी, शियाटिका, परिणामस्वरूप व्यक्ति भूत-बाधित हो सकता है। पोलियो, पक्षघात, माँस पेशियों के रोग आदि-आदि। मृत आत्माओं को पकड़ने के लिए कभी-कभी तान्त्रिक लोग भी इन क्षेत्रों में प्रवेश कर लेते हैं बुखार नहीं चढ़ता जबकि दाई ओर (आक्रामक ताकि वे अपने स्वार्थ सिद्ध कर सकें। शारीरिक प्रवृत्ति) लोगों को तेज़ बुखार होता है । ऐसे मामलों स्तर पर दाएं-बाएं के असन्तुलन के कारण कई में बाईं ओर को उठाकर दाई ओर को परमेश्वरी रोग भी हो सकते हैं। चिकित्सा-विज्ञान के लोग ये जान चुके हैं कि पिंगला नाड़ी (दाईं वाहिका) की आवांछित सक्रियता (उनकी भाषा में (a) समूह के प्रायः बाई ओर के रोगों से पीड़ित मरीज़ों को शक्ति देकर उसे दृढ़ किया जाना चाहिए। बाईं ओर के रोगों से पीड़ित लोगों को अपना दायाँ पक्ष उठाना चाहिए और बाएं पक्ष को परमेश्वरी शक्ति से दृढ़ करना चाहिए। उन्हें चाहिए लोग) में फँसे लोगों को हृदयाघात होने की बहुत अधिक सम्भावनाएँ होती हैं। सहजयोग में हम इसका कारण जानते हैं। पिंगला नाड़ी का बहुत कि अपना बायाँ हाथ परम पूज्य श्रीमाताजी के अधिक उपयोग ईडा की शक्ति को भी सोख लेता फोटो की तरफ करें और दायाँ हाथ पृथ्वी पर रख है; विशेष रूप से बाएं हृदय की शक्ति को, और लें। इसी प्रकार से दाई भेर की बीमारियों से परिणामस्वरूप हृदयघात हो सकता है। पिंगला पीड़ित लोगों को चाहिए ।क अपना दायाँ हाथ नाड़ी की अत्यधिक क्रियाशीलता के कारण शरीर श्रीमाताजी के फोटो की तरफ करें और बायाँ हाथ आकाश की तरफ इस प्रकार उठाए कि आपकी हथेली पीछे की ओर हो। हथेली का रुख श्रीमाताजी के फोटो की तरफ होना हानिकारक हो सकता के अवयव भी बहुत अधिक गतिशील हो उठते हैं। और उच्च रक्तचाप ज़िगर की गर्मी, दाई नाभि और दाएं धिष्ठान की समस्याओं को जन्म देते हैं। बाएं अनुकम्पी का बहुत अधिक उपयोग आलसी है। जिगर, आलसी हृदय का कारण बनता है और no 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-38.txt अंक : 9&10-2005 चैतन्य लहरी 37 अनुकम्पी नाड़ी प्रणाली को ठीक करने में हमारे खान-पान की भी बहुत शारीरिक या मानसिक गतिविधियों की अति में असन्तुलन को दूर करने के लिए खान-पान में भी परिवर्तन किए जा सकते हैं। कुपोषण के कारण भी करने के कारण बाईं ओर के (मनौदैहिक) रोग हो बहुत से रोग हो सकते हैं। अतः आलरसी अवयवों सकते हैं क्योंकि अत्यधिक कार्य करने के कारण वाले लोगों को चाहिए कि अधिक प्रोटीन वाली चीजें ले, कार्बो हाइड्रेटस बहुत कम लें और चाहें है। तो माँस का सेवन भी कर सकते हैं। दाईं ओर के आक्रामक प्रवृत्ति लोगों को चाहिए कि अधिक प्रोटीन युक्त भोजन न लें, शाकाहारी भोजन करें सकते हैं। ऐसे लोगों को चाहिए कि अपना बायाँ और कार्बोहाइड्रेट्स अधिक लें। भोजन के विषय पर शाकाहार के पक्षधर लोगों को समझ लेना को उठाए। अपने नाम की जूता क्रिया भी प्रभावशाली चाहिए कि पशुओं के प्रति मानसिक रूप से बहुत सकता है। अतः इस मामले में जो लोग भी बड़ी भूमिका है । चले जाते हैं उन्हें बहुत अधिक मस्तिष्क उपयोग मस्तिष्क थक जाता है और रोग का कारण बनता बाधाओं के कारण भी बाई ओर के रोग हो हाथ फोटो की ओर करके अपने दाएं पक्ष को ऊपर इलाज है। ऐसे लोगों के लिए आवश्यक है कि अपनी आन्तरिक स्वच्छता तथा अबोधिता द्वारा अधिक करुणा दर्शानेि से वे उनका कोई ज्यादा हित नहीं कर सकते। स्वयं को हानि जरूर पहुँचा सकते हैं। करुणा आत्मा से निकलनी चाहिए। हृदय से निकली हुई करुणा ही प्रभावशाली होती है। मूलाधार पर श्रीगणेश का आह्वान करें और उन्हें वहाँ स्थापित करें। श्रीमाताजी के प्रति समर्पण सबसे अधिक आवश्यक है क्योंकि श्रीमाताजी के प्रसन्न होने पर ही श्रीगणेश प्रसन्न होंगे कुगुरुओं का प्रभाव भी बाई ओर की समस्याओं को जन्म देता हैं क्योंकि कुगुरुओं के प्रभाव से बायाँ स्वाधिष्ठान, बायोँ भवसागर और बाई आज्ञा, बाधित हो जाते हैं। ऐसे लोगों को चाहिए कि अपना दायाँ करुणा का बौद्धिक प्रक्षेपण व्यर्थ है। हमें ये जान लेना चाहिए कि कौन से पशुओं को बचाया जाए और किन्हें नष्ट किया जाऐ। जैसे परम पूज्य श्रीमाताजी कहती हैं ये किस काम के हैं? क्या मैं यहाँ पर मुर्गियों को आत्मसाक्षात्कार देने के लिए हूँ? हाथ पेट पर रखकर बायाँ श्रीमाताजी की फोटो की ओर करें और प्रार्थना करें 'श्रीमाताजी कृपा करके मुझे स्वयं का गुरु बना दीजिए। जैसा श्रीमाताजी ने कहा है कि आत्मा ही हमारी गुरु है। अतैव आत्मा की जागृति के पश्चात् व्यक्ति स्वयं ऊपर जो कुछ भी कहा गया है उसके बावजूद भी ये आवश्यक नहीं कि किसी भी पक्ष की अत्यधिक गतिशीलता केवल उसी ओर की बीमारियों का गुरु बन जाता है। का कारण बनें। दाईं ओर की अवांछित क्रियाशीलता कि प्रतिक्रिया के स्वरूप सामूहिक अवचेतन बाएं या दाएं की समस्याएं हमारे चक्रों को प्रभावित करती हैं और इन चक्रों से जुड़े अवयवों को हानि पहुँचाती है। चक्र प्रभावित होने पर चक्र के शासक देवी-देवता वहाँ से चले जाते हैं। अत (Collective Subconscious) प्रभावित होकर कैसर जैसी बाईं ओर की बीमारियों का कारण भी बन 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-39.txt अंक : 9& 10 -2005 चैतन्य लहरी 38 परम पूज्य श्रीमाताजी के नाम से चक्र विशेष का उपयोग किया जा सकता है परन्तु यह प्रभावित व्यक्ति की मदद करने वाले सहजयोगी पर निर्भर मन्त्र बोलकर वहाँ के शासक देवी-देवता का आह्वान किया जाता है। इलाज करने के लिए प्रभावित पक्ष के दूसरी ओर की हथेली को उस करता है। फिर भी रोग यदि बाधा के कारण हो तो नींबू हरी मिर्च से इलाज करने का मश्वरा देने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए। हम सब जानते हैं कि मानव पंच-तत्व से बना हुआ है और बुद्धि एवं मन मानव की मनौदैहिक प्रणाली की देखभाल करते हैं । भिन्न चक्रों के तत्वों तथा उनसे होने वाली बीमारियों का वर्णन नीचे किया गया है चक्र पर रखा जाता है और दूसरी ओर का हाथ श्रीमाताजी की फोटो की तरफ फैलाया जाता है। गुनगुने पानी में नमक डालकर पानी पैर क्रिया भी अत्यन्त लाभ दायक है और तुरन्त लाभ पहुँचाती है बिगड़े हुए मामलों में नींबू और हरी मिर्चों का देवी-देवता तत्व चक्र पृथ्वी पृथ्वी बाई ओर पृथ्वी तत्त्व श्री गणेश श्री गौरी और श्रीकुण्डलिनी श्री ब्रह्मदेव 1. मूलाधार चक्र मूलाधार 2. स्वाधिष्ठान दाई ओर अग्नि तत्व श्री सरस्वती श्री विष्णु 3. मणिपुर जल तत्व श्री लक्ष्मी जल तत्व श्री शिव पार्वती 4. बायां हृदय वायु तत्व श्री जगदम्बा वायु तत्व मध्य हृदय दायां हृदय श्री राम, सीता वायु तत्व कृष्ण और राधा श्री जीसस, मेरी श्री 5. विशुद्धि आकाश तत्व अग्नि तत्व 6. आज्ञा परम पूज्य श्रीमाताजी (सदा शिव के रूप में आत्मा सहस्रार पर विराजित हैं।) पंच तत्व, मन और बुद्धि . सहस्रार 7. आर.डी. कुलकर्णी (निर्मला योग से उद्धृत एवं अनुवादित) 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-40.txt सहजयोग का अलिखित इतिहास (पिछले अंक से आगे) जिन लोगों को वह योग सिखाता था उन आधा दर्जन लोगों से उसने बताया, "देखिए, मैंने एक नए प्रकार का योग खोज निकाला है। हमें केवल इतना करना होगा कि श्रीमाताजी की फोटो-ग्राफ के सम्मुख हाथ फैलाकर बैठना होगा" उसने एक श्याम-श्वेत फोटोग्राफ निकाला। यह पोस्ट कार्ड से बड़े आकार का था। हम सब उस ठण्डे, शुष्क पुराने किनारे वाले अपने सामूदायिक क्लब के स्थान पर श्रीमाताजी के फोटोग्राफ के सम्मुख हाथ फैलाकर बैठ गए। हम कोई पाँच या छः लोग थे वह आया, हमारे हाथों को जाँचा और पूछा हमें क्या महसूस हो रहा है? हम सबको भिन्न-भिन्न अनुभव हुए थे क्योंकि अपने पूर्व कर्मों के अनुसार हमारी चेतनावर्था भिन्न प्रकार से की थी। जो भी हो, हम सबने स्पष्ट रूप कुछ महसूस किया था। वह कहने लगा. "ये चैतन्य... लहरियाँ आपको श्रीमाताजी से मिलती हैं। क्या आप लोग उन्हें भारतीय विद्या भवन आकर मिलना चाहेंगे? (तब ये भवन New Oxford Street पर स्थित था) मुझे यह नए प्रकार का योग प्राप्त हुआ सर्व प्रथम, जिस क्षेत्र में मैं रहता था वह लन्दन में Euston, Tolmers Square के समीप स्थित था और एक प्रकार से ये क्षेत्र उच्च ऊर्जा अगले शुक्रवार को मेरे विचार से हम भारतीय विद्या भवन जाकर श्रीमाताजी से मिले । हमने पीछे बैठकर श्रीमाताजी को सुना और हमें (High Energy) क्षेत्र था । वहाँ पर पृथ्वी पर बैठकर आसन आदि बहुत करवाए जाते थे। वहाँ एक सामूदायिक क्लब था और 1973 में एक दिन एक व्यक्ति हमें योग सिखाने के लिए आया, ये मुकन्द अहसास हुआ कि ये वास्तव में कोई अच्छी चीज थी। उस समय वे किसी व्यक्ति पर कार्य कर रहीं थीं। उस क्षण हमें लगा कि यह कुछ चिशेष है। हो सकता है यह इसकी एक झलक हो परन्तु हम भी शाह था। एक वर्ष तक वह हमें भिन्न प्रकार के योग तथा ध्यान-धारणाएं सिखाता रहा। क्योंकि किसी अन्य के सम्मुख, एक दूसरे के सम्मुख नहीं, ये स्वीकार करने के लिए तैयार न थे कि हम वास्तव में आदिशक्ति से मिले थे। परन्तु मेरे विचार से मूलतः हम जानते थे कि यह अत्यन्त विशेष है। उसे भिन्न प्रकार की योग तथा ध्यान धारणाओं का ज्ञान था वह श्रीमाताजी के पास चला गया उसे चैतन्य लहरियाँ तो महसूस हुईं परन्तु विश्वास की कमी के कारण चैतन्य प्रवाह बहुत अधिक न था। र 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-41.txt अंक : 9& 10 2005 चैतन्य लहरी 40 थी, स्वच्छ होने के दो दिन बाद ही हम पुनः पकड़े जाते! ये खेद का विषय था परन्तु ये दर्शाता था तत्पश्चात् हम दो या तीन बार भारतीय विद्या भवन गए क्योंकि हम अब कहीं अन्यत्र जाना चाहते थे। क्योंकि श्रृंखला समाप्त हो चुकी थी, हम कि हम किस अवस्था में हैं। लोग Judd Street Clare Court पर स्थित मकान Dauglas Fry.. में चले गए, जहाँ मुकन्द शाह भी Kings Cross के समीप रहा करते थे वहाँ हमारी कुछ सभाएं हुई और श्रीमाताजी ने कुण्डलिनी जागृति के विषय में बताया। उन्होंने यह भी बताया कि सहस्रार के ऐसा कोई व्यक्ति यहाँ कैसे हो सकता है। वास्तव में श्रीमाताजी से मिलने से पूर्व मैं उनका फोटो देख चुका था। आपके फोटो लाने से मैं माध्यम से सुनने का यह हमारा पहला मीका था। उन्होंने बताया कि हम सबके सहस्रार खुल चुके थे उन्होंने कहा, "अपने हाथों से अपने कानों को पूरी तरह से ढक लें, फिर भी आप मेरी आवाज को सुन सकेंगे।" हम वास्तव में सहस्रार से उनकी आवाज़ को सुन सके। अपने कानों को हमने हथेलियों से बन्द किया हुआ था फिर भी वास्तव में पहले मैं पहले योग सामूहिकता चला गया था। Baker Street चला गया था और श्रीमाताजी के फोटो की ओर मेरा ध्यान न गया था क्योंकि यह छुपा हुआ सा छपा था और इसके विषय में सीधे से मैंने कुछ भी न सुना था। फिर भी मैंने कहा कि मैं आकर उन्हें मिलना चाहूँगा उनकी सभाओं के बारे में मैंने था और Judd Street की उनकी अन्तिम सभा में मैं गया वर्षा ऋतु के भीगे हुए दोपहर पश्चात् मैं अपनी बहन Maureen (Rossy) के साथ आया। मेरे मस्तिष्क पर बहुत गहन प्रभाव था क्योंकि मैंने सुना था कि वे योगी महिला हैं और मेरे मन में इस प्रकार की धारणाए थीं कि मैं ऐसे कमरे में प्रवेश करूंगा जहाँ पूर्ण शान्ति होगी। और सम्भवतः वहाँ घण्टियों की झंकार होगी। मैंने हम सहस्रार से सुन रहे थे। वास्तव में हमारे सहस्रार खुल चुके थे चैतन्य-लहरियों को महसूस करने के अतिरिक्त सम्भवतः यह प्रथम अनुभव था जो वाकई आश्चर्यजनक था पहला आश्चर्यजनक सुना 1. अनुभव हम ले चुके थे। हमारी कुछ सभाएं Judd Street में हुई। परन्तु क्योंकि जो व्यक्ति हमें वहाँ ले गया था वह कहीं अन्यत्र जा रहा था इसलिए हमें कोई और स्थान खोजना था। तब हम North Gower Street कमरे में प्रवेश किया। यहाँ का चातावरण मेरी आकाक्षाओं के अनुरूप बिल्कुल के एक घर में मिलने लगे North Gower Street में जब हम मिलने लगे तब वास्तव में इसकी जड़ें ताकत पकड़ने लगीं। तब होता क्या था कि श्रीमाताजी बहाँ आत्ती आकर बैठतीं और चाहे हम केवल आधा दर्जन लोग ही वहाँ होते थे फिर भी श्रीमाताजी अपना प्रवचन देतीं और सहजयोग के विषय में बताती। अपने हाथ वो हमें अपने चरण कमलों के नीचे रखने को कहती और हमारी अन्तर्निहित बाधाओं को दूर करने के लिए वे कई क्रियाएँ करतीं। हमारी संख्या क्योंकि बहुत कम भी न था। इसका मुझे मुझ पर बहुत गहन प्रभाव पड़ा। एकदम से लगा कि ईसा-मसीह जब बाज़ार में शिक्षा देते होंगे तो वहाँ भी वैसा ही वातावरण होता होगा। वातावरण का मुझ पर बिल्कुल ऐसा प्रभाव पड़ा जो कि अत्यन्त अजीब था। क्योंकि मुझ में कुछ भी धार्मिक न था। धर्म का मेरे जीवन में कोई स्थान न था। इसके विपरीत मेरी तो हिप्पी पृष्ठभूमि थी। मुझे एक दम से लगा कि मेरे सम्मुख कोई आश्चर्यजनक व्यक्तित्व है और मेरे मन में प्रश्न 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-42.txt अंक : 9& 10 - 2005 41 चैतन्य लहरी इस बात का एहसास थी कि वे भावना मुझमें घर करती गई कि वे ईसा-मसीह सम कुछ शख्सीयत है। मेरे अन्दर ये भावना बन गई। और मैं ये देखने का प्रयत्न कर रहा था चे कुछ विशेष है। ये उठा कि, "पृथ्वी पर किस प्रकार ऐसा भी कोई व्यक्ति हो सकता है? ऐसा कोई व्यक्ति यहाँ कैसे हो सकता है?" पूरा कमरा प्रकाश से परिपूर्ण प्रतीत हो रहा था और इस बात का गहन प्रभाव था कि श्रीमाताजी कितनी शक्तिशाली हैं! परन्तु वे तो मधुरता के सिवाए कुछ भी नहीं थीं उन्होंने हमें अपने समीप आने को कहा। मैं उनके समीप गया, इस भावना में कितना सत्य है और मुझ पर ये बात कितनी ठीक है। (Pat Anslow) I उन्होंने अपना हाथ मुझ पर रखा और कही ये बीमार है"। मेरे विचार से उन्होंने मुझे सर्वप्रथम यही शब्द कहे थे। भेंट चलती रही। सभी कुछ अत्यन्त चमत्कारिक था। मुझे ये पूछने का अवसर ही न मिला कि ये सब क्या है परन्तु मैं जानता था मैं नहीं जानती थी कि मुझे क्या मिला? परन्तु ये जानती कि अवश्य मुझे कुछ मिला। सोलह सितम्बर 1975 के दिन Judd Street में उसी फ्लैट में हम श्रीमाताजी से पहली बार मिले जो मेरे भाई Pat जैसा था। सम्भवतः इसीके कारण मुझमें किसी विशेष भावना का एहसास न हुआ हो। पलैट तक पहुँचने के लिए गली में पैदल चलते भी मेरे मन में हमेशा की तरह से यही भावना बनी रही कि मैं दौड़ जाऊ । ये न जानती थी कि मैं कहाँ जा रही हूँ क्योंकि मुझे बताया गया था कि ये एक महिला योग-शिक्षक हैं परन्तु वे हठ योग नहीं सिखलाती। परन्तु मुझे याद है कि मैं ऐसे लोगों के साथ न होती जो कहते, संसार में तुम्हारा लक्ष्य क्या है" तो मैं दौड़ गई होती। जिस शक्ति की ओर मैं जा रही थी वह कि सभी कुछ अत्यन्त महत्वपूर्ण है । ये हमारी पहली मुलाकात थी। उन्होंने मुझे बताया कि मैं बीमार हूँ और मुझे अपने पेट के लिए कुछ आवश्यकता है। उन्होंने एक बोतल मॉँगी और हैरानी की बात ये थी कि किसी अन्य ने भी इस चीज को नहीं देखा परन्तु मैंने उन्हें एक बोतल लेकर आते हुए देखा । उन्होंने एक दरवाजा खोला, वहाँ पर भट्टी (Fur- nace) सा कुछ था, उसमें वह बोतल डाली, फिर निकाली, दरवाजा बन्द किया और वहन बोतल मुझे दे दी मैं आश्चर्य चकित था । ये बोतल मैं अपने हुए यद्यपि मैं इतनी सशक्त है ये बात मैं महसूस कर सकी। घर पर लाया, इसके जल को पिया। जल का भाव अत्यन्त गहन था। इसने मुझे स्वच्छ कर दिया उन्होंने मुझे बताया कि मेरे जीवन के केवल छः महीने शेष हैं, हाँ, मेरी स्थिति वाकई बहुत जब हम फ्लैट के अन्दर गए और हमें जूते उतारने के लिए कहा गया, जो कि हमारे लिए बड़ी अजीब बात थी. और हमें बैठने के लिए कहा गया। तब मैंने श्रीमात्ताजी को एक भारतीय पुरुष पर कार्य करते देखा। वे उनसे कुछ बता रही थी। उन पर कार्य करते हुए मुझे वे देवी-सम प्रतीत हुईं। उनके विषय में मेरे मन में यह पहला विचार खराब थी। और अधिक मुलाकातों के लिए मैं पुनः उनसे मिलने के लिए गया और जब तक वे वहाँ रहीं निरन्तर मुझे अजीबो-गरीब अनुभव होते रहे। परन्तु मुझे प्रभावित करने वाली सबसे बडी प्रतिक्रिया आया। परन्तु एकदम से मैंने सोचा, "ऐसा सोचने 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-43.txt अंक : 9& 10 - 2005 42 चैतन्य लहरी से मेरा अभिप्राय क्या हैं? मैं तो ये भी नहीं जानती कि देवी क्या होती है? परन्तु वो मुझे ऐसी ही गया। पिताजी मुझे लन्दन ले आए, यह भी एक विशेष बात थी हम श्रीमाताजी के पास पहुँचे वे मेरी कल्पना से कहीं भिन्न थीं। मेरे अनुसार भारतीय महिला साड़ी पहने लोगों से बहुत परे बैठी होती, उनके साथ एक दो व्यक्ति और होते आदि-आदि। लगी। तत्पश्चात् एक-एक करके वे सभी लोगों को देखने लगीं और जब मेरी बारी आई तो वे खड़ी हुई. थोड़ा सा चलीं और फिर बैठ गई। उन्होंने मुझे अपने दोनों हाथ फैलाने को कहा और पूछा कि मुझे क्या महसूस हो रहा है? उस समय मुझे लगा कि मेरा चित्त हाथों की तरफ गया है । मेरे मुँह से निकला. ओह, मुझे कुछ महसूस हो रहा है।" उन्होंने केवल इतना कहा, परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। आप पार हो गई हैं।" मैंने सोचा, यहाँ तो अत्यन्त विशेष प्रेममय महिला थी। मैं अत्यन्त उत्सुक था और न जानता था कि क्या किया जाए क्योंकि मेरे सम्मुख एक अन्जान व्यस्क महिला थीं। मेरे लिए ये बास्तव में मजाक सा था। जो लोग श्रीमाताजी को बच्चों के साथ मिले हैं वो जानते है कि बड़ी जिन्दादिली से कहती है वास्तव में? वे इस प्रकार की आवाज़ में पूछती है। वे उनके चित्त को आकर्षित करती है "मुझे प्राप्त हो गया है।" मै ये न जानती थी कि मुझे कुछ मिल गया है। तत्पश्चात् पास, साधकों के पास, चली गई जिस प्रकार उन्होंने व्यवहार किया यह अत्यन्त महान अनुभव वे और लोगों के और उनमें अपनत्व जगाकर उनसे निरन्तर नाता था। जोड़ती हैं पुझे भी कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ। Maureen Rossi उन्होंने मुझसे प्रश्न पूछे, उनकी आँखें चमक उठीं, उनके चेहरे पर विस्तृत मुस्कान उभरी न जाने किस कारण! अब बड़ा होने पर भी मैं बालक होना अत्यन्त सुखद है सात वर्ष की आयु में मुझे आत्म-साक्षात्कार मिल गया था। वर्ष 1968 में मेरा जन्म हुआ और 1975 में मुझे आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया मुझे ऐसे लगा कि मुझे हाथी बनना चाहिए। वहाँ श्रीमाताजी से मेरी पहली मुलाकात अत्यन्त स्मरणीय है। मेरे पिता (Pat Anslow) उन दिनों कभी-कभी सताहान्त में मुझे लन्दन लाया करते थे। मेरे पिता जो मुझे दिया गया उसे मैंने अपने पैरों और टॉगों ने जब तक दूसरा विवाह नहीं किया मैं अपने दादा-दादी के पास रहा करता था। मेरे पिताजी हाथी होने का नाटक किया। मैं जब ऐसा कर रहा भी इन्हीं दिनों श्रीमाताजी से मिले थे यो मुझे लाए और कहने लगे मैं एक अत्यन्त विशिट भारतीय अपनी कुर्सी से टिकाकर हँलते गए, हेते गए महिला से मिलने जा रहा हूँ । ब्राइटन के सभीप हँसते गए मेरे पिताजी, मुझे लगा, घवरा गए कि एक मध्यवर्गी क्षेत्र से सन्वन्धित होने के कारण मैं इससे पूर्व किसी भी महत्वपूर्ण भारतीय महिला से न मिला था। अत: मेरे लिए ये साहसपूर्ण कार्य बन इसका कारण नहीं समझ पाया हूँ। इस फ्लैट में पर सत्तर वर्षो का घिसा पिटा फर्नीचर लगा हुआ था और पुराने फैशन की चीजे थीं पेय का ग्लास पर उडेल लिया और कमरे में दहाड- दहाड़ कर था तो न जाने कब श्रीमाताजी अपना सिर पीछे ये वच्या क्या कर रहा है!" परतु श्रीमाताजी ने ये बात महसूस की आर वातावरण को अत्यन्त विनोदमय बना दिया। किसी प्रकार की कडवा हट 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-44.txt अंक : 9 & 10 - 2005 चैतन्य लहरी 43 न हुई। मेरे विचार से बच्चा होना बहुत बड़ी बात है। आप यदि बच्चे हैं तो श्रीमाताजी के सम्मुख आपको ये नहीं सोचना पड़ता कि मुझे ऐसा होना है, वैसा होना है।" आप जैसे हैं वैसे हैं आशा है, आप मेरा अर्थ समझ गए होंगे। मैं इनका क्या करू? IV अज्ञानता के कारण की गई मर्यादा विहीनताओं के कारण श्रीमाताजी हमारे प्रति जिस प्रकार से प्रेममयी होती है वह वास्तव में आश्चर्यजनक है। हम नहीं जानते थे कि उनके प्रति किस प्रकार Kewin Anslow व्यवहार करना है, किस प्रकार परस्पर व्यवहार करना है, परन्तु श्रीमाताजी ने इसकी कभी भी चिन्ता नहीं की। वे इतनी उदार थीं। उन्होंने किस मुझे लगा कि यह महिला अत्यन्त उच्च हैं। श्रीमाताजी से मिलने पर मेरी पहली तरह से स्वयं को सम्भाला होगा इस बात पर विश्वास नहीं हुआ। हर छोटी-छोटी चीज़ के बारे में हमारे से बात-चीत करतीं। स्पष्टतः हम उनसे प्रतिक्रिया यह थी कि मैं इस महिला को पहले भी मिल चुका हूँ। मैंने सोचा कि Oxford Street (लन्दन) में पहले मैंने इन्हें किसी दुकान आदि पर देखा है। मुझ पर ये पहला प्रभाव था। उन्होंने मेरे हाथ को छुआ और कहने लगीं तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगे अभी तुम ठीक नहीं हो परन्तु तुम ठीक हो जाओगे।" घर जाकर मैने स्नान किया। काफी प्रभावित थे हम देख सकते थे कि श्रीमाताजी द्वारा कही गई हर बात अत्यन्त ज्ञानवर्धक एवं आश्चर्य जनक होती। परन्तु अब भी ऐसी बहुत सी चीजें थीं जिनके विषय में हम उनसे सहमत नहीं थे और उनसे बहस करते थे श्रीमाताजी कहतीं कि हर बात को धैर्य पूर्वर्क समझने से सब ठीक हो सकता था। माँ ने स्वयं को बहुत ही कठोर वातावरण में रखा हुआ थी। Gavin Jane (Brown) तो कुछ सम्मानमय थे परन्तु बाकी के हम लोग सम्मानमय न थे हम हिप्पी पृष्ठभूमि से आए हुए | उस समय घर में मैं अकेला था। यहाँ पर मेरे साथ और भी लोग रहते थे अचानक मैं एकदम निर्विचार हो गया! मैं कुछ सोचना चाहता था परन्तु सोच न पाया। मैं जानता था कि मुझे लेटना होगा, अतः बिस्तर पर लेटकर मैंने आँखें बन्द कर लीं । इस ऊर्जा को अपने पेट में से उठाकर छाती तक आते थे। हुए और फिर सिर के तालू भाग पर ताज़ की तरह से पहुँचने की चेतना मुझे थी। मेरा शरीर बिल्कुल हल्का हो गया और मैं पूरी तरह से आनन्द मुद्रा में पहुँच गया। मुझे लगा कि ये महिला अत्यन्त महान हैं। ऐसा अनुभव तो मुझे पहले कभी भी न हुआ था! तो यह मेरा सहजयोग का प्रथम अनुभव था। अपनी सारी समस्याओं को ठीक करने में मुझे Pat Anslow मैं घर लौट आया वर्ष 1975 में मुझे याद है जब मने Oxted में उनके घर प्रवेश किरा था तो मैंने जीन पहनी हुई थी और उसके ऊपर U.S Army की छेदों से भरी हुई जेकट पहनी हुई थी । मैंने उनका हाथ चूमा और उन्हें फूल भेट किए मुझे याद है कि मैं किस पकार झुका और पृथ्वी पर देखा। इन सारी चीज़ों का स्वतः हो जाना अत्यन्त दिलतास्प है। भेम बहुत समय लगा और अभी भी प्रयास करना पड़ ाि रहा हैं। Miocrag Radc Savljevic 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-45.txt चैतन्य लहरी अक : 9& 10 -2005 44 उन्हें तुरन्त सम्मान दिया जाना आवश्यक है। देखा । इससे मुझे वाकई चोट पहुँची। ग्रैगोर अपने परन्तु ऐसा करने से एकदम मेरे हृदय को चैन घुटनों के बल बैठा हुआ श्रीमाताजी से कह रहा था, श्रीमाताजी कृपा करके इन्हें क्षमा कर दें, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे है। ऐसा कहना अत्यन्त नाटकीय था परन्तु अत्यन्त सत्य । उसने स्थिति को ठीक प्रकार से समझ लिया था। मिला। ये कहना तो कठिन है कि कब मैने श्रीमाताजी को पहचानना शुरु किया, परन्तु ये बात स्पष्ट थी कि हृदय ने उन्हें मस्तिष्क से पहले पहचाना। आनन्द, भारहीनता, स्नेह एवं क्षेम प्राप्ति की भावना, नि:सन्देह आपको अहसास करवाती है कि मैं घर लौट आया हूँ. अपने प्यारे-प्यारे घर? (Pat Anslow) थोड़े समय के लिए जब श्रीमाताजी ने मुझे U.S.A. का अगुआ बनाया तो वे बोली, "इस कार्य के लिए तुम पूरी तरह से योग्य हो क्योंकि तुम नर्क को बहुत अच्छी तरह से जानते हो। ये बात सत्य है कि सहज में आने से पूर्व मैंने सभी प्रकार के अध्मों को आज़मा कर देखा, परन्तु इन अधर्मों की सीमाओं को भी पहचाना था। कहने से अभिप्राय ये है कि मुझे लगा कि मैं लुढ़कते हुए Gregoire de Kalbermatten ग्रैगोर की पहली स्मृति वह आया और माँ से मिला। वह उसी क्षेत्र में रहता था। अतः कई बार श्रीमाताजी से मिला । गेविन और जेन्स की एक सभा में वह आया। उस पत्थर की तरह से था, मुझे सन्तोष नहीं प्राप्त हो सका था। प्रयत्न करते-करते मैं थक चुका था। अतः श्रीमाताजी से मिलने के उपरान्त मेरे लिए अपनी जीवन शैली को परिवर्तित कर देना कोई कठिन कार्य न था। जिस प्रकार से उन्होंने सबकुछ समझाया था वह अत्यन्त विवेकपूर्ण था । इससे पूर्व मिले नैतिक शिक्षक मुझे ये न बता पाए थे कि अपनी पसन्द के कार्यों को करना मैं क्यों छोड दें। मैं ये सब कुछ कर चुका थी और जानता था कि यह सब खाक है। श्रीमाताजी से एक ओर तो मैंने ये जाना कि नैतिकता मेरे लिए क्यों हितकर है। दिन पूरा स्थान नशीले पदार्थ सेवन करने वाले लोगों से भरा हुआ था। श्रीमाताजी नशेड़ियों को समझा रही थीं कि नशा करना बुरा है परन्तु वो लोग कह रहे थे, "नहीं, ये बात ठीक नहीं है आप भी इसका अनुभव कर सकती है। आप भी इसे लेकर आज़मा सकती हैं । एक स्थिति तो ऐसी आई जिसे मैं भुला नहीं सकता। माँ ने अपने कंधे पकड़कर स्वयं को भीच लिया मानो कह रही हो, "हे परमात्मा! मैं इनका क्या करूं?" वो वास्तव में अत्यन्त अकेली और दुखी प्रतीत हुईं। इसके कारण मुझे बहुत चोट पहुँची। मैं उस दृश्य को देख रहा था, ये ऐसे था जैसे माँ बच्चों के बीच में हों वास्तव में पहली बार मुझे महसूस हुआ कि वे माँ सम थीं। वे कह रहीं थीं, "तुम्हें नशे त्यागने ही होंगे।" ठीक है? मैंने ये बात महसूस की और कहा, "ठीक है, मैं ऐसा ही करूंगा तुरन्त"। बाकी के सभी लोगों ने मुझे घेर लिया और मुझे घूर कर परन्तु मुझे इस बात का भी ज्ञान न था कि किस प्रकार एकदम से अपने चित्त को पावन कर लिया जाए। सारी आदतों से मुक्ति पाने के लिए केवल ध्यान-धारणा ही मददगार साबित हुई Gregoire de Kalbermatten (क्रमशः अगले अंक में) 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-47.txt ww. www.ww