चैतन्य लहरी २] नवम्बर-दिसम्बर, 2005 MAISESTAS (SHWA NIRMALA NIVERSAL PURE इस अंक में:- परम पूज्य श्रीमाताजी का प्रवचन- 30.1.1978 24 अहं एवं प्रति अहं 25 श्रीमाताजी की सहजयोगियों को सीख श्रद्धा 28 30 ज्यूरिक से एक पत्र परम पूज्य श्रीमाताजी का एक पत्र-लन्दन 2.6.80 32 श्रीमन सी० पीo श्रीवास्तव का स्वागत दिल्ली-4.1.80 33 सहजयोग का अलिखित इतिहास 41 DHARMA RELIGION चै त न य ल ह री प्रकाशक निर्मल इन्फोसिस्टम्ज़ एवं टैक्नोलोजीज़ प्रा. लि. प्लाट न. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड, कोठरुड पुणे - 411 029 मुद्रक अमरनाथ प्रेस प्रा. लि. W.H.S 2/47 कीर्ति नगर, औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली-110015 मोबाइल : 9810452981, 25268673 आप अपने सुझाव, सदस्यता एवं जानकारी के लिए कृपया निम्न पते पर लिखें:- श्री जी.एल. अग्रवाल निर्मल इन्फोसिस्टम्ज़ एवं टैक्नोलोजीज़ प्रा. लि. 222, देशबन्धु अपार्टमैंट, कालका जी नई दिल्ली-110 019 फोन : 26216654, अपने अनुभव,सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ. पी. चान्दना जी-11-(463). ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली 110 034 दूरभाष : 011-55356811 (प्रातः एवं सायं) परम पूज्य श्री माताजी का प्रवचन (30.1.1978) रजोगुण, स्वाधिष्ठान, लक्ष्मीपति पीछे भी हो सकता है। जैसे कमल की date होती ...........काम करने पे लग गए तो काम ही कर रहें है उस तरह वो लचीला होता है। उसके ऊपर है यही कहो सत्वगुण पर थे असल में, बहुत चक्र के ऊपर श्री ब्रह्मदेव का स्थान है और उनकी पहले फिर तमोगुण पर गए । रजोगुण की ओर पत्नी, पत्नी तो नहीं कहना चाहिए, क्योंकि वो कुमारिका ही रहती है सदा, उनकी सहचरी जो है गए। क्योंकि हम लोग अब developing बन गए हैं तो अब रजोगुण पर आ गए हैं। जब हम वो सरस्वती है या कहना चाहिए कि उनकी शक्ति के अंदर मनुष्य रजोगुण पर आ गए हैं तो मकान बनाने हैं. जो है वो सरस्वती है। इस चक्र को भी हम लोग बाहर से देख सकते हैं। इसे आँख से बड़े-बड़े महल खड़े करने हैं, कारखाने खोलने हैं। देश में बहुत सारा प्लास्टिक लाना चाहिए। अभी हम नहीं देख सकते, लेकिन इसका जो जड़ रूप थालियों में खाना खा रहे हैं, फिर प्लास्टिक में है इसका जो Gross रूप है उसे डाक्टर लोग Aortic plexus कहते हैं। इस चक्र में 6 पंखुड़ियाँ खाएँगे बाद में Paper में खाएँगे। Development हम लोग जो कर रहे हैं अपना। जिस वक्त आदमी . है उसी प्रकार Aortic plexus में भी 6 Sub plexus हैं। लेकिन डाक्टर लोग इस बात को नहीं अतिकर्मी हो जाता है.बहुत ज्यादा कर्म करने लगता है तो उसके अंदर स्वयं ही संतुलन बिगड़ मानेगे जब मैं कहूँगी कि इस चक्र का मुख्य कार्य जाता है। Balance बिगड़ जाता है। उसकी एक यह होता है के पेट में जो मेद है, जो fat है उसको मेंदू माने अपने मग जिसे कहते हैं, या आप विचित्र सी व्यवस्था अपने कुण्डलिनी योग में कुण्डलिनी Brain जिसे कहते हैं, उस brain के cells का बनाई गई है। जो स्वाधिष्ठान चक्र मार्ग में हैं, जिस चक्र से कुण्डलिनी गुजरती है. replacement करना। यहाँ का जो मेद है, जो fat जिस चक्र के कारण सारी सृष्टि की निर्मति हुई, है उसको evolve करके उसकी उत्क्रांति करके उसको इस योग्य कराना कि वो अपने brain का आकाश के ग्रह गोल, सारे तारे जिस चक्र के मारे इस संसार में आए, उस चक्र का स्थान हमारे भी cell बन जाए। जब हम बहुत विचार करते हैं, जब अन्दर पेट में है। ये चक्र नाभी चक्र से निकल कर हम बहुत planning करते हैं, जब हम बहुत सोचते हैं, जब हम रजोगुण को इस्तेमाल करते हैं उसके चारों तरफ हरेक angle में चलता है। आगे दिसम्बर. 2005 चैतन्य लहरी नवम्बर तब ये कार्य बहुत वेग से होता है। इसमें गति आ शरीर आपको इशारा देता है कि अब देखो बेटे, जाती है। हर समय हम लोग सोचते ही रहते हैं। अब जरा काम धीरे करो। फिर बिस्तर पर लेट फिर हमारा सोचना भी नहीं बंद होता। पूरे समय जाता है आदमी। इसी imbalance के कारण छव हम विचारों के चक्कर में उलझ जाते हैं। एक heart fisher आता है और इसी imbalance के मिनट भी हम अपने विचार को रोक नहीं पाते। कारण ही diabetes बीमारी होती है। क्योंकि हजारों तरह के विचार हम एक के ऊपर एक अपने आपका जो Pancreas है उसका working खत्म ऊपर लादते जाते हैं और planning में लगे रहते हो जाता है । आपकी kidney का working खत्म हैं। ये कार्य अविरत होते रहता है लेकिन जब हो जाता है। इसी वजह से kidney trouble हो इसकी गति बहुत ज्यादा, जरूरत से ज्यादा बढ़ जाती है। Uterus में इतनी परेशानी हो जाती है जाती है तब इस चक्र के जो दूसरे कार्य हैं जिसे कि ऐसी औरतों को बच्चे नहीं हो सकते। बाँझ हो कि हम कह सकते हैं कि हमारा liver, हमारा जाती हैं। ये सारे imbalance के कारण आता spleen, हमारा pancreas हमारी kidney, हमारा और Medical Science में imbalance की कोई uterus इन सब चीज़ों को ये चक्र देखता है तो भी बातचीत नहीं है। हम लोगों ने diabetes उसमें कमी आ जाती है और कभी कभी रुकावट बिल्कुल हजार गुना ठीक किया है सहजयोग में। सी आ जाती है क्योंकि एक ही कार्य में फिर हालाँकि हम ठीक नहीं करेंगे । इसकी वजह है कि संलग्न हो जाता इसलिए जो लोग दिमागी कार्य आप सब diabetes यहाँ इक्ट्ठा न करें लेकिन जो ज्यादा करते हैं उन्हीं को Diabetes की बीमारी सहजयोगी पार हो जाते हैं उनका diabetes ठीक होती है। उन्हीं को heart- attack आता है। क्योंकि हो जाता है। ऐसा ही समझिये, as a by-product I right side बहुत चलाने से left side जो है वो Diabetes के कारण की आँखे कमज़ोर हो मनुष्य उसको balance देने की कोशिश करता है बहुत जाती हैं, आप जानते ही हैं, कभी-कभी एकदम आदमी जब काम करता हैं तो आश्चर्य की बात है अंधा हो जाता है। वो देख भी नहीं पाता Diabetes कि गर आप शारीरिक श्रम कर रहें हैं, Physical से अनेक रोग और हो सकते हैं क्योंकि अंदर से labour कर रहें हैं तो आपका heart नहीं पकड़ना मनुष्य कमजोर होते जाता है। किडनी में यूरिया चाहिए क्योंकि heart तो emotional चीज है। बढ जाना और इसी प्रकार की जितनी भी left side की बीमारियाँ हैं वो right side के अतिकर्म से Heart तो emotion से चलता है लेकिन balance के लिए Heart attack आ जाता है और आपका होती हैं। और फिर विचार का भी ऐसा हो जाता दिसम्बर, 2005 चैतन्य लहरी नवम्बर है कि जब मनुष्य विचार को अत्यंत जोर से गति मिलेंगे जिन्होंने Drug अभी तक चखी नहीं । सोचिए वेग से करता है तो उसके brain में भी एक तरह आप! सोचिए कितनी हद हो गई वहाँ पर ! और का momentum बन जाता है, माने फिर वो इसे कम से कम 30 फीसदी लोग वहाँ पर ऐसे हैं जो regularly इसमें से regularily जिसको कहते हैं रोक नहीं पाता और वो इस कदर बेतहाशा पागल की तरह से सोचने लग जाता है। अब west में drug लेते हैं। 13 साल की उमर से लोग वहाँ इस तरह के अनेक लोग हैं। इसीलिए जहाँ पर drugs लेना शुरु करते हैं। ये escape हो गया कि रजोगुण अतिशय पे पहुँच गया, जहाँ पर कि शुरु। ये natural है क्योंकि जब आप इस कदर रजोगुण उसके अंतिम extreme पर पहुँच गया, परेशान हो जाएँ अपने विचारों से कि अब जी नहीं वहाँ लोग अब drugs लेने लग गए। वैसे भी सकते हैं तो कहीं न कहीं अपने से भागिएगा आप। रजोगुणी शराब पीते हैं, अधिकतर । रजोगुणी इसलिए अपने को देख नहीं पाइयेगा। अपने को face नहीं श्राब पीते हैं कि उनको लगता है कि इससे कुछ कर सकते। उसके साथ फिर और भी चीज़े जुड़ती balance आता है। Escape है। मस्तिष्क की जो जाती हैं। उसके बाद जो sex वगैरह की बातें हैं अत्यंत क्रिया होती है उससे बचने के लिए उससे वो भी उसी का balance है । किसी भी अतिशयता 1 escape के लिए ये लोग शराब पीते हैं पर में जाने पर दूसरी अतिशयता जीवित हो जाती है इसका वो इलाज़ नहीं । फिर आप तमोगुण में आ और वो भी इतनी बुरी तरह से आपको खीचती है गए। और जितने अति से आप दूसरी अति में पहुँच कि फिर वो उधर की अतिशयता फिर आपको जाइए फिर उतनी ही अति से आप उस अति पर दूसरी side पर फेंकती है। इसी उधेड़बुन में इसी पेन्डुलम के जैसे दौड़ते रहिए एक अतिशयता गर दौड़धूप में, मनुष्य collapse हो जाता है। मनुष्य आपने ले ली तो आप दूसरे अतिशयता पर पहुँचते खत्म हो जाता है और इसीलिए वहाँ पर इस कदर हैं। जब आपने अतिशय एक तरह से नशा चढ़ा आत्महत्याएँ हो रही हैं और लोग समझते नहीं कि लिया, काम करने का अति काम करने का, तो जहाँ इतना affluence आ गया जहाँ इतनी उन देशो में जहाँ कि अत्यंत Planning हो गई, सुबधता आ गई वहाँ लोग क्यों मर रहे हैं ! उनके हरेक चीज़, जहाँ पर बिल्कुल रजोगुण की अति हो बच्चे हैं, वो अपने माँ बाप को छोटी उम्र में छोड़ देते गई है, वहाँ अब आपको यंग लड़कों में, 30 साल हैं। बुड़ढे लोग अनाथालय में पड़े हुए हैं। छोटे के नीचे बच्चों में, या समझलीजिए 35 साल के बच्चे अनाथ बने हैं। शादियाँ ,एक-एक आदमी नीचे के लोगों में आपको 100 में 2 या 3 ऐसे दस-दस बार करता है। उसमें भी इतनी विकृति, दिसम्बर, 2005 चैतन्य लहरी 7. नवम्यर मैंने कल आपसे बताया था कितने विकृत हो गए। असर उसके मानवता के साथ लगे। माने मनुष्य यानि उनकी विकृति की भी हद हो गई। अब हम जो है वो बड़ा रईस हो जाए, बहुत पैसे वाला हो जाए तो जरूरी नहीं है कि वो बड़ा शरीफ आदमी लोग रजोगुण पर उतर रहे हैं, ठीक है। लेकिन उसकी भी मर्यादाएँ बॉधनी पड़ेंगी। इसलिए हमारी हो जाए। हो सकता है कि उससे बढ़ कर दुष्ट मर्यादाएँ बाँधने के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम कोई न हो। गर कोई बड़ा विद्वान और पण्डित हो रजोगुण के उपर में रखा दिए गये कि अपनी जाए तो ज़रूरी नहीं है कि ऐसा मनुष्य कोई बड़ा मर्यादाएँ बाँधनी पड़ेंगी। हम लोगों का सारा जीवन भारी धर्मात्मा हो जाए। बिल्कुल जरूरी नहीं है। ही मर्यादाओं मैं बंधा हुआ है। लेकिन रजोगुण की उससे बढ़ के कुरूप कोई नहीं होएगा। सुनते हैं जब डोरी चढ़ती है, तब मर्यादाएँ कि जो माफिया वाले हैं उनके जो साहब जादे हैं बुरा तरह से टूटती हैं। अब आप developing countries हो उन्होंने 0xford University, Cambridge Univer- रहे हैं तो developing जब आपने शुरु कर दिया sity और John Hopkin University सब जगह से out of proportion तो आपने कह दिया कि हम पास किया हुआ है। और आजकल धंधा क्या करते गरीबी हटा रहे हैं इसलिए हम development हैं माफिया के लीडर के लड़के हैं और सबका कर रहे हैं। लेकिन गर आपने 1 रुपया भी ज्यादा murder करते फिरते हैं। तो उस मार्ग का ज़रूर अपने नौकर को दिया और वह गर शराब या अवलम्बन करें जिससे मनुष्य का सम्बंध उसके सिगरेट पीने लग गया तो वह गरीब नहीं। खत्म मानवता के केन्द्र आत्मा से हो जाए। गर उसका उस केन्द्र से सम्बंध स्थापित नहीं हुआ तो आप हो गया उसकी गरीबी खत्म हुई वहाँ पर। जब मनुष्य किसी भी व्यसन में पड़ता है तो सोच लेना उसका कितना भी development कर दें, हम चाहिए कि वो अब गरीब नहीं रह गया । आपको उदाहरणार्थ बताते हैं कि हमारे यहाँ ship- व्यसनाधीन तभी आदमी होगा कि जब उसके ping corporation में सब ड्राइवरों की तनख्वाएँ पास थोड़ा इतना पैसा होगा। इसका मतलब ये बढ़ाई। उन्हें एक एक को हजार हजार रुपये नहीं कि किसी को गरीब रखा जाए। ये मैं नहीं तनख्वाह मिलने लग गई। थोड़े दिन में उन सबकी कह रही। इसका मतलब ये है कि जब तक मनुष्य पत्नियाँ आई और कहने लगी "माताजी, साहब ने के अंदर ऐसी कोई घटना घटित नहीं होती है कि सबकी तनख्वाह क्यों बढ़ा दी?" मैं ने कहा "क्यों ?" कहने लगी कि पहले 4 सौ कमाते थे तो जिसके कारण उसका जो कुछ भी material सुख में थे, अब सब लोग शराब पीने लग गए हैं development है, जड़ development है उसका चैतन्य लहरी दिसम्बर, 2005 नवम्बर ৪ और इन लोगों ने औरतें रख ली हैं और अब अड्डे आपके आत्मतत्व पर पहुँचती है और तब आत्मा का पर पड़े रहते हैं। घर आते ही नहीं, रात भर। जो प्रकाश है इन चक्रों से गुज़रता हुआ जाता है पहले बेहतर थे चार सौ तक तो वो balance और मनुष्य समझ लेता है कौन सी चीज़ ठीक है कर पाए उसके बाद जरा सा ज्यादा पैसा हो गया और कौन सी गलत है। क्योंकि गर आप कोई तो शराब शुरु कर दी । इसका मतलब बिल्कुल गलत काम करना चाहेंगे तो आप नहीं कर सकते, नहीं है कि उन्हें 4 सौ ही दिया जाए, पर उनको मुश्किल हो जाएगा। उसकी वजह ये है कि आपके balance दिया जाए जिसके कारण वो उस लक्ष्मी अंदर एक नई चेतना आ जाती है जिसे Vibratory को सँवार सकें। नहीं तो पैसे वाले हो जाएँगे awareness कहिए जिसे चेतनात्मक awareness राक्षस पर लक्ष्मीपति नहीं। इसका connection कहें। आप कह सकते हैं, जिसे आप चैतन्यमय हमारे अंदर से उस आत्मतत्व से जुड़ना चाहिए चेतना कहें। उस चेतना के प्रकाश में आप समझ जिससे मानवता पनपती है। जब तक ये सकते हैं कि ये चीज अच्छी है कि बुरी है। गर connection नहीं हो गा सारा आपका आपने कोई बुरा काम किया तो आपके Vibrations education व्यर्थ है इसीलिए सूरदास जी ने भी एक दम से रुक जाएंगे। आप गर Vibrations से कह दिया कि 'सूरदास की सभी अवद्या दूर करो पूछे कि फलां आदमी शरीफ है या बदमाश है, गर नन्दलाल ।' सारा education प्राप्त करके भी जब आपके Vibration रुक गए तो समझ लीजिए ये तक आपने आत्मतत्व का प्रकाश उस education निहायत शैतान आदमी है। यही Vitbrations बहुत पर नहीं लिया तो education आपका भी व्यर्थ हो की वजह से आप समझ पाइयेगा कि परमात्मा है जाता है, उसका कोई भी अर्थ नहीं लगता। या नहीं। जितने आपके बुनियादी प्रश्न हैं absolute इसलिए अत्यंत आवश्यक है के आप अपने guestion उनका जवाब आपको इन्हीं चैतन्य की आत्मतत्व को पाएँ। तब आपको हरेक चीज़ का लहरियों से मिल सकता है। कोई चीज़ सत्य है या अर्थ लगेगा जो ये सातों चक्र हैं आपके अंदर यही ही असत्य है ये जानना इस कलयुग में बहुत वो मानवता के अनेक अंग हैं जिसको पिरोती हुई कठिन कार्य है कारण हम लोग Confusion की कुण्डलिनी अंदर से जाती है. इसीलिए वो सबको वजह से इस कोलाहल की वजह से बिल्कुल ही समग्र करती है. Integrate करती है जब अपरिचित हो गए हैं किसी भी संवेदना से किसी भी कुण्डलिनी इन सबसे गुज़रती है तो इन सब तत्वों sensitivity से और इस वक्त गर ये sensitivity पर चलती हुई तत्व को integrate करती हुई जो और अति सूक्ष्म sensitivity है, संवेदना है सूक्ष्म चैतन्य लहरी दिसम्बर, 2005 नवम्बर जब आपके अंदर आ जाती है तो आपको चाहिए उसको अपने प्रति प्रेम नहीं है। उसमें आत्मसम्मान नहीं है तभी वो अपने जीवन के हरेक क्षण को व्यर्थ कि आप इसको जमाएं। कोई अगर चाहे कि थोड़ा किए चला जा रहा है। गर वो अपने अंदर जागरूक सा हम करके माताजी क्यो नहीं हमारे अंदर हो हो और सोचे कि मैं अपने जीवन को कहाँ बरबाद जाता। सो बात नहीं है। हाँ आपका connection तो हम जोड़ देंगे लेकिन अभी आपका ढीला-ढाला कर रहा हूँ, किस जगह मैं अपने जीवन को खराब है। उसको ठीक से जमाना होगा, किए दे रहा हूँ, तो वो समझेगा कि अरे ये भी क्षण connection उसको सूक्ष्म साध से जमायें। गर आपको अपने व्यर्थ गया, वो भी क्षण व्यर्थ गया . वो भी क्षण व्यर्थ प्रति इज्जत हो, आप गर इसको विशेष रूप से गया ! कोई ऐसा भी क्षण हो जहाँ कोई जीवन्त कोई चीज़ समझते हों तो आप जरूर प्रयत्न शक्ति का हमारे अंदर प्रदर्शन हो या हमारे अंदर से जीवन्त शक्ति प्रकाशित हो। यही स्वार्थ है। स्व करिये। गर आप अपने प्रति जागरूक नहीं हैं और का अर्थ खोज लेना ही स्वार्थ है बाकि सब जो है आप अपने जीवन का कोई भी अर्थ नहीं समझते ये माया का खेल है। मनुष्य सोचता है, इसमें स्वार्थ और जीवन को अब तक आपने व्यर्थ ही किया है है। लेकिन जब मिलेगा, उसमें स्वार्थ है, उसमें स्वार्थ और आगे भी व्यर्थ ही करना चाहते हैं तब फिर मिलता होता तो कहीं चिपक के रह जाता। कहीं सहजयोग आपके लिए बिल्कुल व्यर्थ है । आप आएंगे यहाँ, पार हो जाएगें लेकिन इसकी गहराई भी स्वार्थ नहीं मिलने वाला। स्वार्थ स्व का अर्थ में आप नहीं उतर सकते। इसमें बैठना पड़ता है, समझने से ही स्वार्थ घटित हो सकता है। और इसकी बैठक होती है। गर आप अपने जीवन का इसलिए स्व का अर्थ ही नहीं समझना है बल्कि वास्तविक अर्थ इसमें बिठाना चाहते हैं तो अपने उसमें एकाकार होना है । इसी को हम सब सूत्रों पर आपको ठीक से व्यवस्थित रूप से Medical terminology में ऐसे कहें गे कि पकड़ना चाहिए। और उसमें विश्वास होना चाहिए Parasympathetic nervous system पर नहीं तो आपका आना जाना बेकार हो गया जैसे control आ जाना चाहिए अब doctor कहेंगे कि ऐसे कैसे हो सकता है। हाँ इन लोगों से नहीं हो कि किसी ने हाथों में सितार पकड़ ली और उसको झंकार कर दिया तो क्या वो सितार मे निपुण तो सकता है। डॉक्टरी से नहीं हो सकता है। किसी नहीं हुआ। लेकिन मनुष्य कलयुग में अपने जीवन भी विद्वान से नहीं हो सकता है। किसी पढ़ने ने योगेण न के प्रति जागरूक नहीं है उसको अपने प्रति लिखने से नहीं हो सकता है। साँख्येन" किसी भी चीज से नहीं हो सकता है। ये सम्मान नहीं है। वो अपना सम्मान नहीं कर पाता। दिसम्बर, 2005 बैतन्य लहरी नवम्बर 10 पहले ही कह दिया है। अरे कितने वर्षों पहले से आदमी चिल्ला रहा है. कोई भी आदमी। दूसरा भी कह दिया है। हजारो वर्षों पहले से कह दिया है आदमी चिल्ला सकता है चाहे उसकी कुण्डलिनी कि ये ऐसे नहीं हो सकता है। इसमें माँ की कृपा जागृत हो चाहे न हो। ये तो सभी कुछ आप कर चाहिए। ठीक है। आप में से जो लोग यहाँ आते हैं सकते हैं। कुण्डलिनी का स्पंदन नहीं आप दिखा वे सब इसको पा सकते हैं, लेकिन हर इंसान नहीं सकते। आप अपनी आँख से देखिएगा कि कुण्डलिनी पाएगा ये भी बात मैं कहूँगी हरेक नहीं पाएगा। त्रिकोणाकार अस्थि में स्पन्दित होएगी या कहीं तो कल साहब एक साहब आए वो नहीं पाए बहुत side पर स्पन्दित होएगी। आप अपनी आँख से मेरे पे बिगड़े। उन्होंने बहुत बहुत तमाशा किया। देख सकते हैं, ये आप नहीं कह सकते कि एक चिल्लाने लग गए । ये सब झूठा propoganda चल किसी portion में ही pulsation शुरु हो जाएं धड़ रहा है और ऐसा है और वैसा है। उन्होंने बहुत धड़ धड़ धड़। तूफान मचा दिया। जब वो आए थे तभी मैंने उनको ये तो आप नहीं कर सकते। कोई कर के दिखा पहले अपने पास बुला लिया। बेटे तुम मेरे पास दे आओ। एक तो उनको कोई बीमारी है गन्दी अंदर । पर कोई भी चाहे नाच सकता है। कोई भी चाहे में और उनके अंदर भूत बाधा भी काफी थी। तो कूद सकता है। चीख सकता है। तो आप ये कहिएगा तो अकस्मात् अगर कोई चीखने लग पहले मैंने बुला कर उनसे कहा कि तुम ठण्डे बैठे जाए. चिल्लाने लग जाए और कूदने लग जाए तो रहना जरा, लेकिन वो विचलित हो गए और क्या होगा ? तो उसका सीधा नाम है कि उनको चीखना चिल्लाना शुरु कर दिया। कुण्डलिनी बहुत भूत बाधा हो गई। जब भी कभी किसी को भूत लोगों का कहना है कि जागृत होती है तो कूदना बाधा होती है तो वो ऐसे ही करता है। उसके अंदर पड़ता है, नाचना पड़ता है और फलाना होता है ढेकाना होता है। जो चीज आप कर सकते हैं वो कोई और आदमी आने की वजह से वो आदमी चिल्लाने लगता है। चीखने लगता है, कुछ भी कुण्डलिनी नहीं हो सकती। सीधा हिसाब है। आप करने लगता है। कल हमारे बीच एक साहब आए नाच सकते हैं आप चाहे तो। एक आदमी नाच रहा थे मैंने आपसे बताया था कि वो पूरा हठयोग का है, समझ लीजिए। अपने आप से नाच रहा है. व्यायाम मेरे सामने करने लगे, पूरा। यहाँ तक कि किसी भी वजह से नहीं नाच रहा है, तो आप कैसे मैंने ही उनका आना बंद कर दिया कि अब उनकी जानिएगा कि ये कुण्डलिनी है, क्योंकि कोई भी आदमी नाच सकता है ? सीधा हिसाब है। कोई अंतड़ियाँ बाहर निकल आएंगी। इसको भी ये चैतन्य लहरी दिसम्बर, 2005 नवम्बर 11 । और वो अविरत करते थे। बगैर जाते हैं। जितने भी Mental diseases हैं, ESP छोड़ेगें नहीं किसी effort के करते थे उन्होंने कभी हठयोग हैं, पहले से किसी की खबर आ जानी, ये सब कर्ण नहीं सीखा था। उनके अंदर कोई भ्रष्ट हठयोगी पिशाचादि के बारे में अपने शास्त्रों में अनेक कुछ घुस गया था। वो हर तरह के नक्शे मेरे सामने लिखा हुआ है। लेकिन हम कहाँ ? हम तो हिन्दी कर रहा था यहाँ तक इस तरह के भूत बाधा के भी नहीं पढ़ते फिर संस्कृत तो बहुत दूर की चीज़ लोग है, आपको आश्चर्य होगा कि वो मेरे ऊपर है। वो तो भाषा English लोगों की हो गई अब । अनेक कविता लिखते हैं। शुरु शुरु में जब सहजयोग हम लोग तो English पढ़ते हैं । हमारे शास्त्रों में शुरु किया था तब बम्बई में एक नौकरानी जो कि सब कुछ लिखा हुआ है कि इस तरह की चीजें बर्तन माँजती थी, जिसे घाटिन कहते हैं, उसने घटित होती हैं और उससे मनुष्य बहुत दुःखी हो आते ही बड़े जोर जोर से श्लोक गाने शुरु कर जाता है। कुछ लोग हैं. अपने को बड़े बड़े लोहे के दिए। 15 श्लोक देवी-महात्म्य के मेरे सामने गाए। जंजीरों में अटका लेते हैं और पेड़ों पर लटका कर और पुरुष के जैसे खड़े-खड़े संस्कृत में इस तरह दिखाते हैं। ये खास कर आदिवासियों में तो बहुत सुनाए कि लोग दंग रह गए कि संस्कृत में इस यह प्रथाएँ चलती हैं। अजीब- अजीब तरह की कदर पांडित्य इस नौकरानी में कहाँ से आ गया! बिल्कुल आग जला कर उसके ऊपर चलना, भूत विद्या, अफ्रीका में भी बहुत तरह तरह की होती हैं। ये इतने बड़े बड़े देवी के श्लोक कैसे सुना रही है! बड़े आश्चर्य चकित हो गए । उसकी वजह ये थी हरेक देश में अजीब अजीब तरह की भूत विद्याएं कि उसके अंदर एक पंडित आ गए थे और वो होती हैं। तो मनुष्य ये सोचेगा कि ये तो विशेष श्लोक सुना रहे थे। मैंने उन पंडित साहब से कहा तरह की चीज़ हो ही गई कि ये भई आग पर चल बंधन देकर, मैंने कहा आप जाइये यहाँ से। आप दिए। इस प्रकार अनेक तरह की चीजें इस देश में पहले से होती रहीं हैं और अब उन देशों में हो रही इस औरत में आ कर क्यों परेशान कर रहे हैं मुझे। उसने कहा माँ मैं कब आऊँगा, फिर मैं कब पैदा हैं जहाँ रजोगुण अति पे पहुँच गया है । रजोगुण होऊँगा, फिर मैं तुम्हारे कब गुणगान गाऊँगा ? अति पे पहुँचते ही साहब आपके देश से अनेक भूत इसलिए मैं यहाँ चला आया। उस समय बहुत से विद्या वाले experts वहाँ पहुँच रहे हैं। सबको वहाँ हमारे सहजयोगी थे, उन्होंने भी बात सुनी। mesmerise करना शुरु कर दिया। सब पर उन्होंने छाप डाल दी। लाखों रुपया, करोड़ों रुपया मार्कण्डेय से ले कर के उससे भी अनादि काल से लोगों ने बताया कि भूत-पिशाच आदि सब चिपक उन्होंने बनाया, बड़ी-बड़ी जगहें बनाई। अब वही दिसम्बर 2005 चेतन्य लहरी नवम्बर 12 भूत उनको खाएँगे। खाते ही हैं और वो शुरु हो खराब करने की बात है सिर्फ सत्वगुण में रहने गया। अब वो परेशान हैं। ये पैसे उनको नहीं बचा से मध्यम-कार रहने से, मध्यम स्थिति में रहने से सकते। और उन लोगों को भी भूत खाते हैं। कल मनुष्य गुणातीत हो सकता है। क्यों ? इसकी जो भी मैंने बताया था मैं साफ तरह से आपको बताना गति है, ये मध्यम में जो लाईन है, जिसे आप देख चाहती हूँ मुझे किसी से भी डर नहीं कि रहे हैं, जिसे सुषुम्ना नाड़ी कहते हैं, उसी से Transcendental Meditation करने वाले लोग उसकी गति होती है, और उसी से वो आदमी आज मेरे पास 132 आदमी बराबर London में ऊपर उठता है। कुण्डलिनी सुव्यवस्थित ऊपर और सब कहते हैं माँ हमारे सर में blockage उठती है उसका उठाने वाला चाहिए। कुण्डलिनी आए बराबर अपने रास्ते से उठ कर ब्रह्मरंध्र को छेद हो गया, माँ इसे निकाल दो। देती है, उसका जानकार चाहिए। जिसको देखो कल मैंने बताया था आज फिर बता रही हूँ कि वही कुण्डलिनी ले कर के बैठ जाने से वो कुण्डलिनी माँगना चाहिए. आत्मशक्ति को । आत्मशक्ति रजोगुणी नहीं होती, आत्मशक्ति तमोगुणी नहीं होती है वाला नहीं होता। फिर एकाध Minister उससे चिपक जाए तो और भी अच्छा ! कोई Minister आत्मशक्ति सत्वगुणी भी नहीं होती है। वो गुणातीत, सबसे परे बहती हुई, अंदर से शक्ति स्वरूप अपने हो जाने से वो कुण्डलिनी का बड़ा भारी वो लाटसाहब नहीं हो सकता। अंदर से बहती रहती है। वो किसी भी गुणों के अंदर लिपटने वाली शक्ति नहीं है। वो निर्वाज्य कबीर दास कहाँ के Minister थे ? कितनी है। किसी से लिपटती नहीं। आत्मा की शक्ति धड़ पढ़ाई की थी कबीर दास जी ने ? कौन सी धड धड़ धड़ अंदर से ऐसे बहती है जैसे गंगा University , School में पढ़े थे वो ? तुकाराम जी। उसकी शक्ति का, उस शक्ति के कोई कौन सी University Sch0ol में पढ़े थे कहाँ के प्रर्दशन आप नहीं कर सकते। गर आप चाहें कि वो Minister थे ? कहाँ के राजा थे वो ? इतना चलिए इस शक्ति को घुमा करके चार आप अगूँठी ज्ञान कहाँ से पाया ? ज्ञानेश्वर कहाँ के पढ़े लिखे सी चीजें निकाल दें और ये हो और ऐसी फालतू थे ? कहाँ उन्होंने इतना ज्ञान पाया ? कौन सी चीजों में इस शक्ति को कोई interest नहीं होता। पाठशाला में गए थे वो ? परमात्मा के साम्राज्य में अगूँठी, अगूँठी होती क्या चीज़ है ? पैर की धूल के उतरने की बात है जब मनुष्य परमात्मा के साम्राज्य में आ जाता है तो उसके कायदे कानून बराबर भी नहीं है। ये सब आपका attention दिसम्बर 2005 चैतन्य लहरी 13 नवबर देखने लगता है तो हँसी आती है regulations हैं और उसकी जो planning है उसके कि इस कायदे कानून का क्या करना ? अभी कोई साहब ने मुझसे साथ एकाकार होना चाहिए। पृथ्वी जिस तरह से कहा कि "माताजी अब इस देश में हमारे लिए अपने प्रेम को उगाल रही है संसार में और फैला कोई Leader नहीं रह गया, अब आप ही रही है उस पृथ्वी तत्व के proportion में उस पृथ्वी Election लड़ो। अरे मैंने कहा "कहाँ की बात तत्त्व के उगालने के proportion में ही आपको करते हो" । राजा के घर में रहने वाले लोग production करना चाहिए पृथ्वी जिस तत्व से भिखारियों के घर में आ कर नहीं रह सकते। उगाल रही है, आज जिस तरह से बह सृष्टि पर भिखारियों का Politics ये कि किससे भीख बना रही है उसके out of proportion आप बनाना माँगे ? किसका रुपया बचाएँ, छी छी छी। ये सब चाहते हैं, रजोगुण में माने London में गर आप चीज़े हमारे बस की नहीं। हम तो बादशाह आदमी जाएँ तो शराब पीने के सिर्फ गिलास आप लेने जाएँ हैं हमें कहाँ फँसा रहे हो हमने कहा, ये तो तो कम से कम 15 हजार आपको खर्चा करना भिखारियों के राज्य हैं हमारे बस का नहीं। उसी पड़ेगा। पहले तो शराब आप बनाओ जो कि बिल्कुल में आप बादशाहत में ऊतर सकते हैं अगर आप ही गलत चीज है फिर उसको पीने के लिए जरूरी चाहें तो अपनी बादशाहत में उतरिये। वो तभी हो है उसके आप उसके प्याले बनाओ। England में सकता है जब आप परमात्मा के राज्य में आप गर Scotch Whisky बंद हो जाए तो देश डूब आते हैं, तभी आप असल में बादशाह होते हैं। जाएगा क्योंकि उनके पास दो ही चीजे हैं, एक तो बाकी आप कभी बादशाह नहीं हो सकते। पैसे वाले उनका Scotch Whisky है दूसरे उनका cristle नहीं हो सकते। कुछ नहीं हो सकते सब व्यर्थ है, है। जब मनुष्य बाहर बढ़ने लगता है तो वह दूसरों सब भिखारी हैं। दीन बनकर खड़े हुए हैं कि साहब की कमजोरियों पर ही चलने लगता है। गर कमजोरी हमारा ये काम करवा दीजिए। घधिधिया रहे हैं नहीं हो तो क्या दरकार होगी उसे चीजों की। भगवान से भी जा कर के कि भगवान मुझे तुम उसको कमजोर बना दिया जाता है। जिस प्रकार फलानी चीज दे दो। भई कि औरतों में है कि भई तुम्हारी body ऐसी होनी चाहिए. तुम्हारी शक्ल ऐसी होनी चाहिए. में आदमी अपनी शान में खड़ा बादशाहत रहता है। उसकी शान अत्यंत सौम्य और प्रेममयी तुम्हारे अन्दर ये चीज़ होनी चाहिए। औरतें लगी 1 होती है। अत्यंत दयामयी, कल्याणमयी और खर्चा करने। उनके अंदर वो कमजोरी डाल दी। मंगलमयी होती है। परमात्मा के जो rules और Race का घोड़ा जरूर खेलना चाहिए गर आप दिसम्बर, 2005 चेतन्य लहरी 14 नवम्बर London में रहते हैं नहीं तो आप वहाँ के सभ्य comfort मनुष्य को क्या जरूरत है कि हर नहीं हैं, Elite नहीं हैं आप। आपको Race के समय वो लोटता रहे ? क्योंकि शराब के बाद घोड़े का सब आना चाहिए। गर आप Paris में लोटना जरूरी है। लोटने के लिए comfort जरूरी रहते हैं तो आपको शराब के बारे में सब पता होना है और comfort जरूरी है तो उसके लिए हर तरह चाहिए कि शराब का मतलब क्या होता है. उसको की चीज में कुशन बनना चाहिए। ये फलाना कितना मिलाना चाहिए, उसमें कितना घोलना ढिकाना बनना चाहिए. उसमें वो चीज होना चाहिए। चाहिए। मुझे आश्चर्य हुआ कि यहाँ पर भी इतनी ज्यादा विद्ूपता है, मैं आपसे कहती हूँ Government का जो College है जहां पर कि इतनी Ugliness आ गई मनुष्य के अंदर और बच्चों को Hotel Management सिखाते हैं उसमें उसमें शर्म नहीं आती कि उसने बड़े-बड़े Science दो पेपर होते हैं जिसमें शराब के बारे में सिखाया बनाएँ है। शराब पिलाने के भी Science बनाएँ हैं। जाता है कि कौन सी शराब दी जाए और कौन सी फिर औरतों को किस तरह से खूबसूरत रहना नहीं दी जाए। नहीं तो आपके Hotel ही नहीं चाहिए ? उनको tanning करना चाहिए। चाहे चलेंगे। होटल में गर में शराब नहीं पियेंगे तो वो उसमें शर्म उतर जाए उनकी, हर्ज नहीं पर उनका रहेंगे ही नहीं। तो पैसा कैसे आएगा ? आपके body जरूर tan होना चाहिए। उन्होंने एक चक्कर अंदर जितनी कमजोरी होएगी, उतना ही रजोगुण चला दिया वहाँ tanning का। अरे भई आपको प्रवल हो सकता है। गर आप 2 ही चार कपड़ों में अगर सूर्य की रोशनी ले है तो बदन पे आपके रह लेते हैं और मस्ती में रहते हैं तो इनकी कपड़े गर कपड़ा रहे तो कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। सूर्य की मिलें कैसी चलेंगी ? गर आप सादगी से रहते की रोशनी तो आपके अंदर जाती है। लेकिन हैं तो इन लोगों का व्यापार कैसे चलेगा ? अमेरिका tanning होना चाहिए, उसके लिए इस तरह नज़ारे गर जाइएगा आप तो 50 तरह के हैन्डलेज होते होते हैं कि आप चल नहीं सकते किसी भी हैं। यहाँ तक कि खपरैल जो सर पर होती है, वो sea-shore पर। एक दिन ये सारे sea-shore हजारों तरह की होती है। किसी के Bathroom सुकड़ करके इन सारी औरतों को खींच लेगा में गर जाएँ तो पहले पूछ लीजिए कि कौन सा समुद्र अपने अंदर। तब इनकी अक्ल ठीक होगी। knob दबाएँ, नहीं तो आप अंदर पहुँचे और गए निर्लज्जता संसार में फैलाना चाहिए क्योंकि निर्लज्ज खड्ड में। इतना तमाशा करने की क्या जरूरत नहीं होएगे तो इनके coSmatics कैसे बिकेंगे है ? इस कदर आराम पसंदगी, इतना ज्यादा इन्होंने जो जो चीज़ इन औरतों को बेवकूफ बनाने ট चैतन्य लहरी नवम्बर - दिसम्बर, 2005 15 के लिए बनाई हुई हैं वो कैसे लेगें ? अब तो देवियाँ हैं। इसीलिए आदमियों की कितनी भी बड़ी गलतियाँ होने पर भी ये देश रुका हुआ है। आदमी कुछ-कुछ जरा सा अपने देश में अक्ल आ गई है औरतों को, पहले तो मैं देखती थी कि यहाँ पर एक लोग तो सब साहब ही हो गए, उनको तो कोई डालडा का टिन लगा कर औरतें चलती थी। तो कुछ कह नहीं सकता, उनको तो कहना बहुत ही मुश्किल हो गया है। सब साहब हो गए हैं अब मैने कहा, इस पर एक lecture दिया कि बाबा कम देसी चीज़ जो है वो बिल्कुल बंद। गर आप, दिल्ली से कम डालडा का टिन कम करो। हील्ज पहनेंगी तो इतनी ऊँची-ऊँची पहनेंगी ! आखिर कोई आप में मैने सुना कि आप कहीं जाइए और दारू नहीं ऊँट बनना चाहते हैं ? आप इंसान हैं भगवान ने पीते हैं तो लोग हँसते हैं आप के ऊपर कि साहब अभी तक आप पूरी तरह से बंदर नहीं बने और आपको कायदे का बना दिया है। किसलिए इतने जब तक बंदरों की दुमें नहीं कटती तब तक और परेशान है ? Beauty Contest बना रहें हैं, बताइये भी उनको खुशी नहीं होती कि जब तक अपने दो आप ! बिल्कुल अजीब, बहुत ही ज्यादा विकृत और चार लड़कियोँ इधर-उधर से ला करके और विद्रूप चीज़ है ये, क्योंकि जब असली रूप होता है को देखते ही सब पूर्णतः संतोष में नचाया नहीं तो आप गए काम से गए। आजकल तो मनुष्य रूप यहाँ के बुड्ढो को शौक हो गया है कि हम उल्लू आ जाता है। ये रूप का लक्षण है कि बस अब रूप का अंत आ गया इससे आगे रूप नहीं है। वही बने। वो एक हमने नागपुर हमारा है देश जहाँ हम रहते थे, वहाँ के लोग कुछ क्रूर जरूर है पर असली रूप होता है। लेकिन ये तो ऐसा रूप है कि कभी-कभी पते की कहते हैं कि 'बुलबुलों को अभी चले, एक दूसरा देखा उसके बाद दूसरा हसरत हुई कि उल्लू न हुए। तो बजाए इसके कि बंदर देखा, उसके बाद तीसरा बंदर देखा । बंदरियाँ समझदारी रखें, कुछ शान्ति रखें, कुछ शान अपनी ही बंदरियाँ सब तरफ भरी पड़ी हुई हैं। मैने कहा रखें, बुर्जुगों को आजकल ये शौक हो रहा है कि यहाँ कोई सती साध्वी एक भी नहीं है, सब बंदरियाँ हम जवानों के जैसे जा करके वहाँ वो नाचते कूदते ही हैं। कोई जो इसके गर्दन पर कुद रही है, कोई उसके गर्दन पर कूद रही है। और उस पर बड़ा हैं। क्यों न लोग wig झपरे रख करके, उस तरह 1 घमण्ड है उनको कि हम तो बहुत ही ज्यादा वाह से हो जाएँ। एक साहब मुझसे कहने लगे कि साहब इसमें क्या हर्ज, आपको है कि अगर हम वाह advance हैं ! ऐसी गधापंथी अपने यहाँ की औरतें न करें तो बड़ी मेहरबानी हो जाए। अभी भी hippy बन करके घूमें तो आपको क्या हर्ज है ? इस देश में बड़ी देवियाँ हैं और बड़ी पूजनीय साहब मैंने कहा मुझे कोई हर्ज नहीं, लेकिन मैं चैतन्य लहरी दिसम्बर, 2005 16 नवम्बर आपसे इतना बता देँ कि इस वक्त आप ऐसे लग उनको समझती थी, एक पार्टी में आए तो ये सब रहे हैं जैसे कोई पिशाच होता है और अगर आप करके आए। मैंने कहा ये क्या ? कहने लगे कि पहले से ही पिशाच बने घूम रहे हैं तो रास्ते में गर आजकल मैंने पनक्रॉप join कर लिया है। मैने कहा, कोई पिशाच आपके ऊपर बैठ जाए तो वो दोष हैं ! आप तो काफी अक्लमंद लगते थे, अब आप भी किसका होगा ? पिशाच का नहीं आप ही का पनक्राप में चले गए हैं ! कहने लगे आपको भी बड़ा होएगा। क्योंकि वो देखेगा कि ये अच्छा एजेन्ट मजा आएगा आइये, बड़ी शान्ति मिलती है उसमें । मिल रहा है अपने ही जैसा जिसमें जम जाएंगे मतलब ये है कि कुछ तो भी nuisance जिसको पूरा। आपकी शक्ल ऐसी है कि उससे सिर्फ भूत ही कहते हैं कि महामूर्ख बन कर ही कोई गर अपनी आकर्षित होएंगे। ये सब रजोगुण की कमालात है तरफ देखे तो बड़ा अच्छा है। जोकर ही बन जाओ, कि आपको पिशाचों जैसे घूमना है तो आप रजोगुणी वैसे तो कोई देखता नहीं है, अब क्योंकि सभी जो बनिये। Development करना है तो करिए। hippy बन गए तो सभी एक ही जैसे ही दीखते हैं। तो कोई तो विशेषता आनी चाहिए तो मुँह में पिनें Pant दस दस दिन नहीं धुलती , एक Lady तो सुनते हैं कि उसने पहनी है तब से उसने धीोई ही डाल-डाल कर यहाँ से यहाँ तक Pin बड़े बढ़िया नहीं कितने दिन से, उसी के साथ नहाती है और और ये बड़ी Common sight है वहाँ पर। में सुखाती है। एक एक तमाशे सुनिये ! उनकी आपको सिर्फ विनोद के लिए नहीं कह रही हॅूँ। highest development आपसे बताए, अब वहां पर असलियत है। और देखते ही आप अचम्भे में देखते 1. पनक्रॉप एक नया निकला है। शायद आप तक हैं कि या तो हम पागल हैं या ये पागल हैं और पहुँचा नहीं अब तक। हों सकता है पहुच जाए। बो हमारे ऊपर सोचते हैं कि हम बहुत inhibited उसमें सिर्फ बड़ी-बड़ी पिनें ले कर के यहाँ से कुछ लोग हैं। हमें अक्ल ही नहीं है कि हम इस तरह का सिल दिया जाता है दोनों side से, बड़ी बड़ी पिने। कोई सा भी अच्छा कार्य नहीं कर सकते जिसमें हम नाक में लाल, यहाँ पर shocking Pink, यहाँ पर अपने को let loose कर दें। हम इतने inhibited हैं। हरा। ये सब पत्तियाँ हैं इनको निकाल निकाल कर हमें कोई स्वतंत्रता की कल्पना ही नहीं। जोड़ दीजिए आप उसके बाद घूमा करते हैं और स्वतंत्रता का मतलब बेहूदापना, उच्छुंखलता नहीं वहाँ कौन घूमते हैं ? बड़े बड़े प्रोफेसर। हमारे यहाँ है। महामूर्खता तो बिल्कुल भी नहीं है। स्वतंत्रता कुछ प्रोफेसर बैठे हैं, सम्भल के रहिएगा। और एक बहुत इतनी बड़ी चीज़ है। स्व के तंत्र पर चलना ही साहब तो, आपको आश्चर्य होगा कि बडे विद्वान मैं चैतन्य लहरी दिसम्बर 2005 नवम्बर 17 स्वतंत्रता है। और स्व का तंत्र ये है जो आपके मुश्किल है जब संस्कृत भाषा प्रचलित थी तब ऐसे सामने है। जो मनुष्य अपने को स्वतंत्र समझना गधों के बारे में किसी ने सोचा भी नहीं। पुराण में भी वर्णन है कि कलयुग आएगा लेकिन इस तरह चाहता है उसे पहले पार हो जाना चाहिए नहीं तो में के महामूर्ख संसार में विचरण करेंगे ऐसा पुराण वह स्वतन्त्र नहीं। स्व का तन्त्र समझ लेना चाहिए और यही उसका तंत्र है न कि तांत्रिकों का भी नहीं बताया गया था ये तो देखते ही बनता है। लोग negative जिसमें स्व ही उसमें खत्म हो जाए। और पढ़े-लिखे, पढ़े-लिखे और अति पढ़े हुए जिससे स्व पूर्णतया स्वतंत्रता में आ जाता है। जब ये काम कर रहे हैं ! इसको आप क्या वो पूर्णतया स्वतंत्र होता है तभी उसके अंदर कहिएगा ? wisdom पूरी तरह से संतुलित बैठ जाता है। वो ये रजोगुण का प्रादुर्भाव है। अब आप का हैं जो भी करता है पूर्ण स्वतन्त्रता से करता है लेकिन देश Develop हो रहा है। होइये साहब, लेकिन ये उसके एक-एक इशारे में , एक एक इशारे में भी देख लीजिए नमूना। आप जरूर Develop होइये स्वतंत्रता के अनेक प्रकार दिखाई देते हैं। वो किसी लेकिन ये नमूना देख कर चलें कि वो जिस गड्ढे से भी नहीं डरता और हमेशा नतमस्तक रहता है। में पड़े हैं उधर आप जाकर न कूदिए। एक तो प्रेम में वो स्वतंत्र होता है। अत्यंत प्रेममय व रजोगुण में सबसे बड़ा जो दोष है कि ये अहंकार करुणामय वो होता है। ऐसे स्वतंत्र आदमी को पे चलता है। मतलब Ego oriented है रजोगुण। प्रणाम करना चाहिए। बजाए इसके कि जो अपने जब Ego orientation शुरु हो गया तो अहंकार आपको स्वतंत्रता के नाम पर गधे से मूर्ख और ऐसी चीज है कि उसमें आदमी जो भी करता है मूर्खों से पता नहीं और क्या हो जाएगें मेरे पास उसमें अपनी बेवकूफी वो देख ही नहीं सकता, या तो ऐसे जानवर भी नहीं जिनकी मैं आपको प्रणाली कुछ भी करता है वो बिल्कुल सही क्योंकि अहंकार उसमें होता है। अपने यहाँ रामायण में बड़ा बताऊँ। कोई मुझे ऐसे शब्द भी नहीं मिलते जो मैं तृप्त इनका वर्णन करूँ क्योंकि कलयुग से पहले ऐसे कभी हुए ही नहीं थे। इसलिए नए शब्दों के पुन्दर वर्णन है कि जिस वक्त नारद मुनि स्वयं ही एक चक्कर में पड़ गए। ऐसे ही चक्कर हैं, ये coinage की जरूरत है और जो शब्द बनाने वाले रजोगुण के चक्कर हैं इसको तो समझने के लिए थे वही ये हो गए तो अब कौन उनके शब्द अपने को देखना चाहिए और कहना चाहिए. हे बनाएगा ये हालत आ गई है कोई संस्कृत भाषा भगवान ये मेरा अहंकार मुझे गधा बना रहा है। में ढूँढे से मिले तो मुझे बताइयेगा क्योंकि बड़ा ही दिसम्बर, 2005 वैतन्य लहरी 18 नवम्बर और अहंकार आपको गधा बना के इतना छोड़ देता एक आदमी के पास गई। उन्होंने कोई जन्तर मंतर है कि अंत में वो आप घबराहट के मारे ही उस करे तो बाधा ने पकड़ लिया, भूत ने पकड़ लिया। गधे को अपने ऊपर लिए चलते हैं। क्योंकि Ego तो उनका बदन ऐसे ऐसे एंठने लग गया। चलो oriented है इसलिए बहुत ज्यादा dangerous भई छोड़ो इसे। पर अगर आप किसी Egoistical है अगर ये Ego oriented नहीं होता तो इतना आदमी के सामने जाइये तो उसका Ego आपके dangerous नहीं बैठता। क्योंकि मनुष्य कभी भी अंदर भी घुस जाएगा। ये हैं तो मैं इसके बाप से भी अपने को गधा कह नहीं सकता। सब दुनिया पे बड़ा हूँ। चलिए उसने एक बोला तो मैंने 10 बोला, हँसेगा, लेकिन खुद ही अपने सर पर गधा ले कर वो कौन होते हैं, मैं उसका नाना हूँ| शुरु हुआ, वो चल रहा है, उसे नहीं देखेगा। ये Ego की विशेषता जितने गधे हैं आप उसके double नाना गधे हो 1. है। Ego में एक अंधापन आ जाता है और इसलिए गए। और उसमें उसके साथ एक और बीमारी लग ये बहुत ही खराब चीज़ है। हाँ अगर Super Ego जाती है जो बड़ी ही सूक्ष्म है, उसे समझना चाहिए। जो कि दूसरी side में अपने सर में develop यश ! उसमें एक बीमारी और लग जाती है। यश, हुआ हो सकता है. तमोगुण की वजह से, उसमें आदमी Success । उसके साथ अगर Success लग पीड़ित हो सकता है। उसका बदन कॉप सकता जाए तो बड़ी ही problem हो जाती है । फिर तो है। उसमें तकलीफें आ सकती हैं उसको बीमारियाँ आदमी को गधे पर से उतारना असंभव है। आ सकती हैं। उसको Physical problem आ Sसccess अगर लग गया तो बड़े ही सकता है पर Ego-oriented आदमी में कभी ये Successful थे वो। फिर उनके मरने के 30-40 तकलीफे नहीं होगीं जब तक उसका heart trouble साल बाद निकलता है कि उन्होंने ये गधापन्थी न आए। एक ही है कि heart ही stop हो जाएगा करी, ये गोबर खाया। ये हालत अपनी खराब की। 1. बस। Ego oriented आदमी को कभी भी कोई वो ऐसे थे और वो वैसे थे। तो लोग कहते हैं कि भी इस तरह की चीज़़ नहीं मिल सकती है जैसे वो तो ऐसे होंगे नहीं । क्योंकि Ego में आदमी कुछ कि तमोगुणी के रुकावट हर समय हर जगह होती भी कर सकता है, कहीं भी जा सकता है। कैसे भी है। तमोगुणी एक तरह से बेचारा ज्यादा ठीक है काम कर सकता है। बहुत से लोग हैं Ego में अक्ल क्योंकि कम से कम उसकी ठोकरों से वो बचते लगा करके चोरी छिपे करते हैं और कुछ लोग हैं रहता है। समझ लीजिए अभी यहीं एक देवी जी खुले आम करते हैं अगर expose हो जाएँ तो। बैठी हुई हैं जिनको कि बाधा ने पकड़ लिया। वो लेकिन सबके अंदर एक तरह की एक बड़ी दानव चैतन्य लहरी दिसम्बर, 2005 नवम्बर 19 शक्ति कार्यान्वित है और इतनी महामूर्खता उस ऐसा पहले कहते थे पुराण में। हम लोग जब छोटे |दानव शक्ति में है, जैसे कि मैंने आपसे कल ही थे तब कोई कहता था कि ऐसा ज़माना आएगा जब बताया था कि लंदन में 77 साल की बुढ़़िया नानी लोग लोहे में खाएंगे। तो हम लोगों की माँ वगैरह अपने Grand child से शादी करती है, उनको कोई कहती थी " हे भगवान'! ये कैसा जमाना आएगा, आश्चर्य नहीं है और नाना जी अपनी नातिन से ये ऐसी दुर्दशा हो जाएगी. ऐसी गरीबी आ जाएगी शादी करते हैं । इसमें उनको कोई हर्ज नहीं है और कि लोग लोहे में खाएंगे ! हे भगवान! कॉसे में उसके लिए अब वहाँ कायदा पास करवाने वाले हैं खाएं, पंचधातु में खाएं, कुछ बढ़िया चीज़ में खाएं। और उसके लिए बड़ा वहाँ movement हो रहा है ये क्या ? तो अब Stainless Steel में लोग खाते कि इस तरह का आप हमारी स्वतंत्रता पर आप हैं ! मैं बहाँ से लंदन से आती हूँ तो मुझे लोग आक्रमण कर रहें हैं। ऐसे बेवकूफों से कोई सीखने लिखते हैं कि भई नाएलोन की वहाँ बढ़िया साड़ी की जरूरत नहीं। उनके पास कुछ भी अपने को मिलती है, American जार्जेट लेकर आओ। वहाँ देने की चीज नहीं है आप मेहरबानी करके उनसे सब लोग हँसते हैं. English लोग, कि अरे क्या! कोई चीज़ नहीं सीखें और ऐसे पैसे की भी अपने आपके यहाँ कॉटन इतना बढ़िया होता है और आप को जरूरत नहीं जिससे हम महामूर्ख हो जाएँ। ये रद्दी कहाँ ले जा रहे हो वहाँ ? अपने यहाँ कोई ठीक है, Development करना है तो गाँधी जी के अगर कॉटन पहने तो लोग हँसेंगे कि ये क्या रास्ते बहुत अच्छे बने हुए हैं उनके रास्ते से कॉटन पहन लिया ! वो दिन दूर नहीं जब कि बनाओ। अपने से चलो। अपने पास जो सम्पदा है, खादी सारे संसार में छाएगी। वो दिन बिल्कुल दूर अपने पास जो सत्ता है उसे ले कर चलो। हम नहीं । आप मेरा विश्वास मानिए। क्योंकि इसके लोग कितने बेवकूफ बन रहें हैं, ये भी आप समझ अंदर हाथ से बने हुए Vibration हैं और वो लोग लीजिये। हमारे पास अगर हम पीतल के बर्तनों में इस चीज़ की महत्ता समझते हैं। इस खादी की खाते हैं तो बड़े गर्व की बात है कि हमारे पास इस महत्ता समझते हैं लेकिन हम लोग बेवकूफ हैं जो कदर पीतल है. और ये लोग प्लास्टिक में खाते हैं इस नायलोन को बड़ी भारी चीज़ समझते हैं। आप और हम चाहते हैं कि हमारे यहाँ प्लास्टिक आ जानते हैं कि नायलोन से अनेक बीमारियाँ हो जाती जाए नहीं तो stainless steel आ जाए। हैं ये मनुष्य के विरोध में है लेकिन हमें नायलोन Stanless steel भी कोई खाने की चीज होती है क्यों पसंद है ? क्योंकि हम लोग बड़े भारी अंग्रेज जिसको कि लोहा कहते हैं। लोहे में लोग खाएंगे बनते हैं। आप 10 के जगह 2 साड़ियाँ पहनिये दिसम्बर 2005 चैतन्य लहरी 20 नवम्बर लेकिन कायदे की साड़ी पहनिये। आप 10 की तो best suit में जाना। अंग्रेज गर suit में आया तो जगह 2 कपड़े पहनिये। अब अपने यहाँ लोगों को उसी के पैर पे हमारा हिन्दुस्तानी गिरता है और आश र्य होता है कि कॉटन से टैरीकॉट महँगा है। ऐसे वैसे नहीं गिरने वाला है गर तुम ऐसे वैसे कपड़े ही आश्चर्य होता है। ऐसे कैसे सम्भवनीय पहन कर आओगे तुम नहीं समझते हो अभी भी उनको बहुत है ? वहाँ गर कॉटन आपको 10 पाउँड का मिलता हमारे अंदर वही Slavish mentality है हजारों होगा तो टैरीकॉट 2 पाँड का मिलता होगा। कोई वर्षों की चली आ रही, वो छूटने नहीं वाली। हमारे गर काँटन कहीं मिले कि कॉटन मिल रहा है तो जो बाप दादे हो गए वो ये सब पहनते नहीं थे लोग दौड़े जाते हैं। कहते हैं उसका feel कितना लेकिन इंसानियत का मादा उनके अंदर बहुत सुन्दर है ! हम लोग अभी भी इस्त्री पे इस्त्री मारे ज्यादा था। एक-एक आदमी अगर सोचिए तो जाते हैं। वे लोग कहते हैं कि इतना ज्यादा legendry कहना चाहिए. क्या लोग थे ! एक बार Suited booted लोगों से हमारा जी घबराता है, शब्द दे देते थे तो उसी शब्द पर चलने वाले। घुटता है। काहे को इस्त्री करते रहते हो सुबह से जिनके बारे में सारे संसार में गुणगान गाते थे कि शाम तक ? अरे अपने मन की भी कोई इस्त्री हिन्दुस्तान का आदमी एक होता है तो वो यहाँ के करो। बाहर की झकपकाहट जिसे हम लोग सोचते हज़ारों बेकार लोगों से अच्छा होता है। वही हिन्दुस्तान हैं, कि बहुत बड़ी चीज़ है, उस पर लोग हैँसते हैं। की आज ये दुर्दशा हो गई। ये रजोगुण की कृपा हँसते हैं। हमारे कुछ English अंग्रेज लोग बहुत है । शिष्य यहाँ आए थे तो कहने लगे हमें बम्बई ज़्यादा स्वतंत्रता से पहले हम लोग बहुत अच्छे थे पसंद है बनिस्वत दिल्ली के। ठण्ड में थे न। मैंने जब गुलाम थे, जब कधे से कंधे लड़ाए थे और कहा क्यों ? कहने लगे यहाँ Every body सबसे जाकर वहाँ पर सारे संसार के देशों से हमने is so Westernised, horried । मैंने कहा अपनी स्वतंत्रता की मांग उठाई थी। वो हम लोगों कहने लगे Westernised ! How do you say ? रहे हैं ! उन लोगों की से अलग थे और ये आज रजोगुण की गुलामगिरी ये सब लोग Suit डाले घूम में हम लोग जो फँसे जा रहे हैं, materialism के. समझ में नहीं आया, वो इस चीज़ को समझ नहीं इस कदर गर्दै हम हो रहे हैं, इसको समझने की पाए। तो मैंने उनसे कहा तुमको भी गर इन पर रोब जरूरत है। रजोगुण में उठते वक्त रास्ते में ही झाड़ना है तो तुम भी suit पहन कर आना नहीं तो उन पर रोब नहीं पड़ेगा। जब University जाना सत्यगुण की दिशा है रुक जाइये। रुक जाइये दिसम्बर, 2005 पैतन्य लहरी 21 नवम्बर उस आदमी को जो दुनिया भर में सबको ही वहाँ पर। उनका extreme देखते हुए बीच में आ जाइये। सत्वगुण तभी आता है जब रजोगुण के अपमानित करते फिरता है । जो आदमी हृदय से साथ धर्म चलता है और धर्म हमारे पेट में नाभी चक्र कमल जैसा है अत्यंत सुन्दर और गुलाबी कमल के जैसा, अत्यंत प्रेममय, भावनापूर्ण और जिसमें पूर्ण में उसके चारों तरफ होता है। लक्ष्मी का स्थान है। लक्ष्मी रजोगुण की ही सत्वगुणी व्यवस्था है। मैंने अपनापन बहता हो। जिसके अन्दर भोरे जैसा भी आपसे लक्ष्मी के बारे में पहले बताया था कल भी काला गढ़ने वाला प्राणी भी जा कर आराम से सा बताया था कि लक्ष्मी स्वरूप जो मनुष्य होता है सकता है, उस आदमी को लक्ष्मीपति अपने यहाँ उसके एक हाथ से दान, दूसरे हाथ से आश्रय कहते हैं। लक्ष्मी स्वरूप हुए बगैर ये रजोगुण होना चाहिए। वो स्वयं माँ स्वरूप होना चाहिए. आपको लाभदायक नहीं होगा वो यँ ही trustee उसके दो हाथ में कमल के फूल जैसी उसके अंदर की तरह से जीता है। उसका जो भी पैसा है उससे सम्मान और उसके अंदर प्रेम की आभा हर समय वो व्यसनाधीन नहीं होता। अपने बच्चों के लिए वो रहनी चाहिए। जब उसके घर के दरवाजे पर जायें पैसा नहीं छोड़ता, उसको व्यसन आदि में नहीं आओ बेटे कहाँ से आए, कैसे तो कहे कि डालता। उस पैसे का उपयोग वो दुनिया के कल्याण तकलीफ से आए हो, बैठो, यहाँ रहो। मैंने अभी के लिए करता है। वो एक trustee स्वरूप होता किसी एक रईस आदमी से कहा कि इसको है । शरतचन्द्र की एक बड़ी सुन्दर कहानी मैंने पढ़ी लक्ष्मीपति कहते हैं। कहने लगा बहन जी अगर थी कि उन्होंने लिखा कि हम लोग एक टोले के कोई चोर आ गया तो ?" मैंने कहा, " चोर भी आ लड़के एक बड़े भारी धनी के पास पहुँचे। तो गया तो भी कोई हर्ज नहीं, बिठाओ उसे। प्रेम से उन्होंने पूछा कि तुम लोग क्या करना चाहते हो ? विठाओ।" उसकी चोरी बदल जाएगी। चोर कभी तो हमने उन्हें कहा कि हम लोग एक ड्रामा करना चाहते हैं और ऐसा करना चाहते हैं और उसमें भी शरीफ आदमी की चोरी नहीं करने वाला। बहुत ही गया-बीता होगा तो जाने दो फिर उसको । बहुत modren life दिखाना चाहते हैं और आप हमें उसकी कर्म गति से क्या गर चोर आ जाए आपके कुछ रुपया दीजिए उन्होंने कहा बैठो-बैठो। बहुत | घर में तो रख लीजिए उसको, प्रेम से स्वीकार्य बिठाया, उसके बाद चवन्नी उनको पकड़वा दी तो करिए। वो 10 बार सोचेगा, चोरी करूँ कि नहीं ये लड़के बड़े गुस्से हो गए कि बड़ा ही कंजूस कर उस आदमी की, ये तो मेरे बाप जैसा है ? निकला। चवन्नी हमें पकड़वा दी। उसके बाद एक उस आदमी को पैसे वाला कहना चाहिए न कि स्त्री आई, बेचारी बड़ी बूढी थी। आई, कहने लगी दिसम्बर, 2005 चैतन्य लहरी नवम्बर 22 कि पता नहीं कुछ पचास वर्ष पहले मेरे पति ने आजकल के सबसे बड़े हीरो हैं, दढ़ियल महाराज आपके पास कुछ रुपया रखवा दिया था । उसके और उनके चप्पा गोती। ये हमारे लिए आजकल के बाद हम लोग परदेस चले गए । वहीं मेरे पति की सबसे बड़े हीरो साहब हो गए! अपने संस्कृति में कभी भी पैसे वाले की महत्ता नहीं गाई गई । कहीं हो गई उनके उसमें एक पत्र मिला जिसमें मृत्यु लिखा था कि उनके पास बहुत रुपया मैं छोड़ कर भी नहीं । हमेशा उसी मनुष्य की गाई गई जो आया हूँ, तो तुम हो सके तो वो धर्मात्मा हैं, उनके धर्मात्मा है। और आप को भी पता होना चाहिए कि पास चले जाना। कहने लगे अच्छा! पत्र तो इस देश में आपकी महत्ता कभी भी नहीं गाई दिखाइये । पत्र देखा उसकी तारीख देखी । कहने जाएगी। आप चाहे कितने भी मन्दिर बनवाइए और की चीजें करिए। आपकी तभी लगे भई देखो, वो कहाँ उनका है, वो निकालो, कितने भी फालतू फलानी तारीख को, फलाने साल में। और पचास महत्ता गाई जाएगी जब आप धर्मात्मा हों। चाहे आपके पास पैसा है तो उसको धर्म में लगाइये और साल पहले की बात है तो सब फाइलें निकलवाओ, और बैठे वो वहाँ देखने के लिए । वो भी बड़े जब आप खर्च करिए तो किसी से कहिए नहीं कि वयोवृद्ध थे। वो भी 75-80 साल के थे लेकिन बैठे मैंने आपके लिए खर्च किया देते रहिए देते बहन अभी रुकी रहो, यहीं खाना रहिए। सिर्फ आप बीच में इसलिए खड़े हुए हैं कि कहने लगे खाना। यहीं रहना। इत्तफाकन उनको 2-3 घंटे में आप देखते रहें कि पैसा जो है वो ठीक जगह पर उसका पता लग गया। 2-3 घंटे में उनको पता पहुँच रहा है। कुछ कुछ लोग तो इस कदर परमात्मा में लीन हो जाते हैं कि वो ये भी नहीं लग गया कि ये जो है, ये रुपया दिया गया था। उन्होंने वो सारा रुपया उस औरत को वापिस देखते। जाने दो, जिस जिस को जाता है जाने दो। करके सूद सहित वो वापस कर दिया। ये लक्ष्मीपति लेकिन गर कोई धर्म पुरुष दान करता है तो उसका का लक्षण है कि घर्म में खड़े हैं वो। पैसा एक पैसा कभी भी दुर्व्यवहार में नहीं जाता। दुष्टों का धर्मात्माओं trustee की तरह इस्तेमाल करते हैं। बड़ी भारी मैं, पैसा जरूर दुर्व्यवहार में जाएगा लेकिन शरतचंद्र को इसलिए मानती हूँ कि मनुष्य का जो का नहीं जाएगा। उसमें भी एक बड़ी भारी आकर्षण है उसको शरतचंद्र ने इतना सुन्दर निभाया है, शक्ति होती है जिसे हम कहते हैं Vibrations, चैतन्य उसके धर्म-तत्व को इतना सुन्दर दिखाया है। की लहरियाँ हरेक चीज़ में चैतन्य की लहरियाँ लेकिन हम शरतचंद्र को पढ़ते नहीं। हम तो होती हैं। उसका देने वाला और करने वाला होना रजनीश को पढ़ते हैं। रजनीश को ये हमारे चाहिए। आपके अंदर भी चैतन्य की लहरियाँ उत्पन्न वैतन्य लहरी दिसम्बर, 2005 नवम्बर 23 हो सकती हैं गर आप इसको पा लें। आप में से लगे 25000 आदमी सिर्फ दर्शन के लिए आए थे। अनेक लोगों के अभी हाथ मैं ठण्डा ठण्डा आने लग अच्छा ! फिर उनका क्या हुआ ? दर्शन हो गए। गया है। कह रहे हैं। ऐसे ही आप हाथ रखें फिर फिर क्या हुआ ? कौन सी भलाई हुई ? नहीं कुछ तीन चक्रों के बारे में दर्शन हो गए साहब, दर्शन हो गए माने दर्शन हो से। आज मैं आपको बचे हुए बताऊँगी क्योंकि कल मैंने आपको नीचे वाले चार गए अरे भाई कुछ फायदा हुआ ? कुछ भला चक्रों के बारे में बताया था। अगले साल शायद में हुआ ? कुछ transformation हुआ, कुछ इनमें ज्यादा दिन के लिए Delhi आ जाऊँगी, देखिए । बदलाव हुआ कि यूं ही दर्शन के ही लिए गए थे लेकिन Delhi वाले और बम्बई वाले व कलकत्ते वहाँ ? नहीं साहब वो तो ऐसा था कि हम तो अंदर वाले ज़रा जरूरत से ज्यादा बड़े लोग हैं। तो जा नहीं सके, वो तो दूसरे जो बड़े-बड़े लोग थे वो उनके लिए अभी 16 राक्षस पैदा हुए हैं। 6 राक्षस सब अंदर गए। बाबा जी ने उनको अंगूठियाँ दी। ही नहीं वो बराबर अपना मौके से आ जाते हैं। उसके बाद वो सब अंगूठियाँ पहन कर प्रफुल्लित जहाँ जहाँ बैठे हुए हैं लाला-हमके धूमके। हो कर बाहर आ गए। उसके बाद पता चला, सबको heart attack आए । अंगूठी सहित heart रायबहादुर हमके ठमके, फलाने minister. फलाने ढिकाने, उसके लिए सब बने हुए हैं वो आ करके, attack चल रहे हैं । फिर उसके बाद पता हुआ ब्राबर जमे हुए हैं सब जगह । मैं गरीब सहजयोगिनी अंगूठी भी चोरी हो गई और उनके घर में भी चोरी हूँ। मेरे लिए तो देहातों में अनेक लोग मिल सकते हो गई ! ठीक है। जिसके पास अधिक पैसा हैं। देखिए दिल्ली शहर में कहाँ तक लोग प्रगति उसको खाने के लिए बहुत सारे तैयार हो गए करते हैं, कहाँ तक क्ढ़ते हैं, कहाँ तक सच्चाई को हैं । आपके पास गर अधिक पैसा है तो जमना जी पाते हैं। ज्यादातर लोग तो जो फैशन चलता है में डाल दीजिए, नहीं तो आप के भी चिपक जाएगें। वहीं तक चलते हैं। आज कल, फैशन है तो हज़ारो इसलिए बच के रहिए । आदमी चले जा रहें हैं । सिर्फ दर्शन के लिए. कहने परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। পट अहं एवं प्रतिअहं इसे परमात्मा की रक्षा से स्वतन्त्र किया जाए ताकि मानव अभी तक परिवर्तन की अवस्था में है यदि थोड़ी सी और छलांग लगा ले तो वह उस स्थिति स्वतन्त्र रूप से कार्य करके यह विवेक रूपी नया आयाम विकसित कर सके। इस लक्ष्य को प्राप्त को प्राप्त कर सकता है जिसके लिए उसका सृजन किया गया है। मानव मस्तिष्क एवं हृदय अत्यंत करने के लिए अहं और प्रतिअहं नामक संस्थाओं का सृजन किया गया है। ये दोनों संस्थाएँ मानवीय गतिविधियों की प्रतिक्रिया या प्रतिफल हैं । हर विकसित अवयव हैं। मानव हृदय और मस्तिष्क के सम्बन्धों को एक साथ देखना होगा। गतिविधि की प्रतिक्रिया होती है। किसी बात के पेट के अन्दर की चर्बी सारे केन्द्रों में से गुजरती हुई मस्तिष्क की कोशिकाओं के रूप में विकसित लिए यदि आप 'नहीं कहते हैं तो प्रतिक्रिया 'अहम' होकर मस्तिष्क में पहुँचती है। मानवीय चेतना में है. और यदि किसी बात को आप स्वीकार कर लेते हैं तो प्रतिक्रिया प्रतिअहं है । कुछ विशिष्ट परिवर्तन लाने के लिए चर्बी को अहं और प्रतिअहं हमारे आज्ञा चक्र को पूर्णतः विकसित होकर मस्तिष्क बनना होता है। मानव औच्छादित कर लेते हैं और कार्य करने की स्वतन्त्रता मस्तिष्क का एक ऐसा आयाम है जो पशुओं में नहीं प्रदान करने वाली शक्ति एवं मस्तिष्क को परमात्मा मानसिक या भावनात्मक आयाम, जिसके है। माध्यम से हम प्रेम को समझते हैं। हम जानते हैं की सर्वव्यापी शक्ति से पृथक कर देते हैं। उत्क्रान्ति प्राप्त करने के लिए ये आवश्यक है कि मानव कि प्रेम का आदान प्रदान किस प्रकार करना है। प्रयत्न करता रहे। परमात्मा ने जो भी कुछ किया है हमें सौन्दर्य और कविता की समझ है और हम उनका सृजन करना भी जानते हैं। आकार में वह आपकी भलाई के लिए किया है। परमात्मा ने है। परमेश्वरी आपके अन्दर अहं और प्रतिअहं की रचना इसलिए भस्तिष्क त्रिकोणाकार प्रिज्म जैसा शक्ति की किरणें जब इसमें प्रसारित होती हैं तो ये नहीं की कि आप बिगड़ जाएँ या नष्ट हो जाएँ। आपके अन्दर अहं का होना आवश्यक है परन्तु भिन्न कोणों में चली जाती हैं और सामानान्तर आपने इससे लड़ना नहीं है। अपने अहं को आपने 1. चतुर्भुज शक्ति के सिद्धान्त के अनुरूप इस शक्ति परमात्मा के अहं से एकरूप कर देना है। एक बार का एक हिस्सा बाएं को चला जाता है और एक जब आपकी जागृति हो जाएगी, आपमें प्रकाश आ दाएं को। यही कारण है कि मानव भूत और भविष्य के विषय में सोच सकता है परन्तु पशु ऐसा नहीं जाएगा तो ऐसा कर पाना सम्भव होगा। कर सकते। परम पूज्य श्रीमाताजी (निर्मल योगा से उद्धृत परिवर्तन के इस समय में ये अत्यन्त आवश्यक है कि सावधानी पूर्वक मस्तिष्क की रक्षा की जाए। एवं अनुवादित ।) পu परम पूज्य श्रीमाताजी की सहजयोगियों को सीख (सहजयोग सभी शारीरिक एवं अन्य तकलीफों को दूर करता है) चक्रों के विषय में हमेशा सावधान रहना अत्यन्त इसकी सर्वोत्तम अभिव्यक्ति है क्योंकि वे हृदय की आवश्यक है। बाहर की बाधाओं और पकड़ से इन्हें सूक्ष्मतम अनुभूतियों को समझती हैं। बिना इजाज़त बचाकर रखा जाना चाहिए। नियमित पानी पैर उनके चरण कमलों को छुने के लिए आगे भागना, क्रिया चक्रों को स्वच्छ रखने में बहुत सहायक उनके चित्त को आकर्षित करने का प्रयास करना, होगी। देखा गया है कि शारीरिक तथा अन्य रोगों बिना कहे बोलना तथा उनके निवास पर उनसे का कारण बनने वाली बाधाओं का प्रवेश ऑखों मिलना, अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करने का आवांछित और भोजन के माध्यम से होता है। इसकी ओर तरीका है। हमारी परमेश्वरी माँ पावनता की प्रतिमूर्ति विशेष रूप से सावधान रहना सदैव अपेक्षित है। हैं। उनके चरण कमलों पर नतमस्तक होना हम चक्र जब खुले होते हैं तभी देवी-देवता जागृत होते लोगों के लिए सुखकर हो सकता है परन्तु यह हैं और सहजयोगियों की सहायता करते हैं सोने उनके (श्रीमाताजी) के लिए कष्टकर है क्योंकि हम से पूर्व बन्धन लेना भी बाधाओं से रक्षा करता है। लोग बाधाओं से परिपूर्ण हैं। भारत में अपने बुजुर्गों की चरण-सेवा करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करने भक्त हमेशा अपने इष्ट-देव को प्रसन्न रखना चाहता है परन्तु हमारी माँ (श्रीमाताजी) इतनी की परम्परा है यही सेवा लोग श्रीमाताजी की भी दयालु हैं, इतनी करुणामय हैं कि वो अपने बच्चों करना चाहते हैं परन्तु श्रीमाताजी सामान्य मानव से भिन्न हैं, उन्हें इसकी आवश्यकता नहीं है। किसी को प्रसन्न देखकर और सहजयोग में उन्नत होते हुए देखकर प्रसन्न होती हैं। सहजयोगी बच्चों से व्यक्ति को चरण सेवा करने के लिए यदि माँ कहती मिलने के लिए और उनकी समस्याओं का हैं तो केवल उस व्यक्ति के चक्रों को शुद्ध करने के समाधान करने के लिए वे भिन्न स्थानों और देशों लिए ऐसा करती हैं अपने आराम के लिए नहीं । में जाती हैं। बच्चों को भी उतना ही संवेदनशील अतः सभी लोगों को इस बात का ध्यान रखना है होना चाहिए और जब-जब भी वे उनसे मिलती हैं कि उनकी आज्ञा के बिना उनके शरीर के किसी भी तो उन्हें अपनी समस्याएं बताने की अपेक्षा सहजयोग भाग को स्पर्श नहीं करना चाहिए। सहजयोगी यदि में अपनी उन्नति दर्शानी चाहिए। इसमें जरा भी सर्व - साधारण जनता के बीच हों तो उन्हें चाहिए सन्देह नहीं है कि उनके दिखाए गए मार्ग पर कि अपने चक्रों को शुद्ध करने के लिए न तो चलने से सहजयोगी विश्व के सबसे अधिक सौभाग्य प्रतीकात्मक रूप से हाथ हिलाएं, न कुण्डलिनी शाली लोग होंगे। उठाएं. न बन्धन लें, न बाएं-दाएं के असन्तुलन को दूर करने के लिए बाएं-दाएं को उठाएं या गिराएं। माँ के प्रति प्रेम का अहसास स्वाभाविक है। मौन दिसम्बर, 2005 चैतन्य लहरी नवम्बर 26 कु ये सारा कार्य चित्त से भी अत्यन्त प्रभावशाली रूप के सभागार में प्रवेश करते ही सारी निजी बातचीत से किया जा सकता है। जन कार्यक्रमों में प्रवचन समाप्त हो जानी चाहिए और उनकी उपस्थिति में सभागार के द्वार पर श्रीमाताजी का स्वागत करने ऐसी कोई बात नहीं की जानी चाहिए। उनके के लिए भीड़ लगानेका कोई लाभ नहीं । बेहतर प्रवचन में किसी भी प्रकार का व्यवधान नहीं होना होगा कि उनके आगमन से पूर्व सभी लोग अपने चाहिए। उन्हें किसी व्याख्या, मश्वरा या टिप्पणी की आवश्यकता नहीं। स्थान पर बैठे रहें और उनके आने पर सम्मान-पूर्वक अपने स्थान पर खड़े होकर हाथ जोड़कर उनका समर्पण के बिना श्रद्धा सम्भव नहीं है। अहं और स्वागत करें। माला अर्पण करने से पूर्व उनका प्रतिअहं समर्पण के मार्ग में बाधाएं हैं। एक पाश्चात्य आदेश लिया जाना आवश्यक है। प्रायः पहुँचते ही सहजयोगी के " मैं अपने अहं को देखता जब वे लोगों से उनका कुशल क्षेम पूछ रहीं होती हूँ और मुस्कराता हूँ, मुझे स्वयं से दूर रखने के लिए अनुसार न हैं तब वे माला पहनाने की आज्ञा देती हैं। ऐसे कौन सी चालाकियाँ नहीं करोगे ?" आत्म तुम समय पर किसी समस्या के बारे में यदि उन्हें साक्षात्कार की ओर बढ़ने के लिए परम पूज्य बताना हो तो बहुत संक्षेप में बताना चाहिए। श्रीमाताजी के चरणों में अहं और प्रतिअहं को समस्या का समाधान यदि वे उस समय न बताए समर्पित करना अत्यन्त आवश्यक है। समर्पण का तो इस पर बल नहीं दिया जाना चाहिए। उनका अर्थ है स्वीकार करना कि माँ उच्चतम हैं और मौन इस बात की ओर इशारा करता है कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्तिकर्त्ता हैं तथा वे जानती हैं कि समाधान शीघ्र ही आ जाएगा उनकी विनम्रता, हमारे लिए क्या सर्वोत्तम है, उनका बोला हुआ हर सहज में उन तक पहुँच जाना और सभी के प्रति शब्द साक्षात प्रणव है। समर्पण का अर्थ है सभी उनका सम्मानमय व्यवहार, के गलत अर्थ लगा पूर्व अनुभवों को भुला देना सभी गुरुओं को लिए जाते हैं। उनकी उपस्थिति में सभी मर्यादाओं और पुस्तकों से प्राप्त किए गए ज्ञान को भुला का पालन करना, विनम्र, सम्मानमय, सतर्क और कर श्रीमाताजी द्वारा बताए गए मार्ग को प्रतिसंवेदी होना आवश्यक है। सभी देवी-देवता निष्ठा - पूर्वक अपनाना। समर्पण का अर्थ है सभी उनकी हाजिरी में होते हैं और उनके प्रति ज़रा सी समस्याओं को अहं के माध्यम से समाधान खोजने भी मर्यादा विहीनता बर्दाश्त नहीं करते। उनकी के स्थान पर उन्हें परम पूज्य श्रीमाताजी पर छोड़ उपस्थिति में उनके प्रति विनम्रता और प्रेम के देना। समर्पण का सुगमतम मार्ग जीवन में श्रीमाताजी 1. कारण हो सकता है कि वे स्वयं को नियंत्रित करें के गुणों और उनकी जीवन शैली का अनुसरण करना है प्रलोभन, उत्तेजना, तनाव या निराशा परन्तु एक सीमा से आगे वो क्रियाशील हो उठते हैं और दण्ड से बचा नहीं जा सकता। श्रीमाताजी के क्षणों में व्यक्ति सदा स्वयं से पूछ सकता दिसम्बर, 2005 चैतन्य लहरी नवम्बर 27 है क्या ऐसे अवसर पर श्रीमाताजी भी ऐसा चाहिए। हमेशा उन्हें स्मरण रखते हुए निर्विचार ही आचरण करतीं जैसा मैं कर रहा हूँ ?" समाधि की स्थिति को बनाए रखना हमारे दृष्टिकोण को निर्लिप्तता पूर्ण बना देगा और हमें सांसारिक उन्हें याद रखना और ये सोचना कि ऐसे और भौतिक पचड़ों से दूर रखेगा प्रतिदिन अपने हालातों में श्रीमाताजी क्या करतीं, व्यक्ति के लिए पथ प्रदर्शक एवं सहायक शक्ति होनी चाहिए नाम की जूता क्रिया करने से भी अन्तर्निहित सुक्ष्म नकारात्मकता दूर की जा सकती है। नकारात्मक जिसके माध्यम से वह नकारात्मक शक्तियों को दूर लोगों को बन्धन देना और उनके नाम को जूते रख सके। मारना उन्हें आपसे दूर तो रखेगा ही, उन्हें सुधार पुनर्जन्म प्राप्त व्यक्तियों का जीवन नकारात्मकता दूसरे लोगों की गलतियों और भी सकता है। से निरन्तर संघर्षरत है क्योंकि उनके अपने अहं मूर्खताओं की आलोचना एवं उनकी शिकायत करने और प्रतिअहं भी उनके विरोध में खड़े होते हैं। के स्थान पर उनकी गलतियों की अनदेखी करना नकारात्मकता अन्तर्जात हो सकती है। पूर्वजन्मों में, आपके अन्दर उदारता को बढ़ावा देगा। निरन्तर न केवल इस जन्म में, किए गए कर्मों के फलस्वरूप अभ्यास से अपने अन्दर इन गुणों को स्थापित यह हमारे अन्दर सूक्ष्मतम रूप में बनी रहती है। करना अत्यन्त सहायक हो सकता है। रोजमर्रा के जीवन में भी यह हमारे अन्दर प्रवेश जो कुछ भी कहा जा चुका है उसके बावजूद करती रहती है। नकारात्मकता को यदि काबू न किया जाए तो अवसर मिलते ही आन्तरिक श्रीमाताजी ने सहजयोग का बीजारोपण कर दिया है और आवश्यक वातावरण मिलने पर यह बीज नकारात्मकता बाह्य नकारात्मकता से एकरूप अंकुरित होकर बहुत विशाल वृक्ष का रूप धारण होकर श्रीमाताजी के शुभ प्रभाव को निष्प्रभावित कर देती है। अतः यह आवश्यक है कि । अपनी सर्वव्यापी शक्तियों से श्रीमाताजी हमारी रक्षा करती हैं। परन्तु हमें आवश्यक वातावरण करेगा प्राप्त करने के पश्चात् आत्म-साक्षात्कार तो बनाना ही होगा। चुनने की स्वतन्त्रता का कोई भी सहजयोगी किसी कुगुरु के पास न विवेकपूर्ण उपयोग करना होगा तथा उनके द्वारा जाए ने ही उनका साहित्य पढ़े। नकारात्मक बहस से तथा नकारात्मक लोगों से मिलने जुलने दिखाए गए मार्ग पर बने रहना होगा। सर्वशक्तिमान दूर रहना बेहतर होगा किसी मन्दिर में प्रवेश परमात्मा साधकों का स्वागत करने की प्रतीक्षा कर करने से पहले उसका चैतन्य जाँचा जाना चाहिए। से रहें हैं। जो लोग उन तक नहीं पहुँच सकते उन्हें स्वयं को ही दोष देना होगा। हमारे हृदय में परमेश्वरी माँ का स्थान होना (निर्मल योग से उद्धृत एवं अनुवादित) श्रद्धा परम पूज्य श्रीमाताजी से आत्म-साक्षात्कार लेकर सभी सहजयोगी द्विज बन जाते हैं। केवल परमेश्वरी उठाती रहती हैं। बच्चे यदि पुकारें तो वे तुरन्त उस पुकार का उत्तर देती हैं। वे 'योग क्षेम वाहम्यम' माँ ही उन्हें मोक्ष प्रदान कर सकती हैं क्योंकि वे रूपी अपने वचन को पूरा कर रहीं हैं। परम पिता श्री सदा शिव की शक्ति हैं (शिव शक्ति रूपिणी) । उनके चरण कमलों पर जब ये सोचना बिल्कुल गलत होगा कि श्रीमाताजी और देवी-देवता भिन्न अस्तित्व हैं। सभी देवी- देवता सहजयोगी निर्विचार समाधि की आनन्ददायी अवस्था उनके अन्दर पूर्णतः अभिव्यक्त होते हैं और उनसे में पहुँचते हैं तो उन्हें उत्क्रान्ति प्रक्रिया की भिन्न कहलाना भी उन्हें अच्छा नहीं लगता। इस अन्तिम-अवस्था की एक झलक प्राप्त होती है। प्रकार का कोई भी विचार सम्बन्धित चक्र को हानि अतः सभी सहजयोगी अपना अन्तिम लक्ष्य जानते पहुँचा सकता है। श्रीमाताजी के प्रति श्रद्धा देवी-देवताओं के प्रति श्रद्धा है। हैं और अपनी अपनी शारीरिक एवं मानसिक स्थितियों के अनुरूप उन्हें एक लम्बा मार्ग तय करना होता के कुछ स्थूल हैं और कुछ से पक्ष है, बहुत श्रद्धा है आत्म -साक्षात्कार का अलभ्य अनुभव प्राप्त सूक्ष्म। एक पक्ष को दूसरे से बेहतर समझना उचित हो जानी करने के पश्चात् व्यक्ति में ये धारणा दृढ़ चाहिए कि श्री माताजी के प्रति श्रद्धा और उनके न होगा क्योंकि आध्यात्मिक उत्क्रान्ति के लिए सभी पक्ष आवश्यक हैं। ब्रह्म मुहूर्त में ध्यान-धारणा आदेशानुसार ध्यान धारणा करना मोक्ष प्राप्ति का करना अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। बिस्तर छोड़ने से एक मात्र मार्ग है । श्रीमाताजी की शक्तियाँ सर्वव्यापी हैं और पूर्व व्यक्ति को अत्यन्त सम्मान-पूर्वक पृथ्वी माँ को सहजयोगियों तथा श्रीमाताजी के बीच आध्यात्मिक प्रणाम करना चाहिए। बिस्तर पर बैठकर ध्यान सम्पर्क में कोई भी दूरी बाधा नहीं डाल सकती। लोगों के लिए हितकर हो सकता करना भी कुछ है। परन्तु स्नान आदि करने के पश्चात् हमें श्रीमाताजी सामूहिक चेतना श्रीमाताजी का सहजयोगियों को के दिया गया अमूल्य उपहार है। उनकी उपस्थिति सम्मुख बैठकर ध्यान करना चाहिए। ध्यान का चैतन्य चेतना (Vibratory Awareness) के आरम्भ करने से पूर्व स्वयं को तथा बैठने के स्थान को बन्धन देना हितकर होता है श्रीमाताजी के माध्यम से महसूस किया जा सकता है। अपनी सर्वव्याप्त शक्ति के माध्यम से वे अपने सभी सामने नतमस्तक होकर प्रणाम करें। जाने-अनजाने वटे-बेटियों की गतिविधियों के बारे में जानती हैं। में की गई गलतियों के लिए क्षमा याचना करें और उनका योग्य बालक बनने के लिए आशीर्वाद प्राप्त उनके कुशल क्षेम का ध्यान रखती हैं, उनके अन्दर व्यात सभी बाधाओं को रोकती हैं और उनका करने के लिए उनसे प्रार्थना करें। स्नान आदि करने के पश्चात् ही अच्छी गुणवत्ता की सामग्री तथा समाधान करती हैं तथा उनकी कुण्डलिनी को भु ूर साफ तौलिया आदि लेकर श्रीमाताजी की पूजा की इस मामले में अति में जाना आवांछित है क्योंकि भी ध्यान में बैठना इससे व्यक्ति का चित्त लक्ष्य से भटक जाता है । जानी चहिए। पूजा के पश्चात् हितकर है। शाम के समय आरती करें और ध्यान शाम को सोने से पूर्व श्रीमाताजी की फोटोग्राफ के करें। सहजयोग में उत्क्रान्ति के लिए सप्ताह में सम्मुख पानी पैर क्रिया करना नियमित रूप से एक बार सामूहिकता में ध्यान करना आवश्यक है। होना चाहिए। यह क्रिया आवश्यक है। आन्तरिक और बाह्य सफाई महत्वपूर्णतम है। परन्तु (निर्मल योग से उद्धृत एवं अनुवादित) ज्यूरिक (Zurich ) से एक पत्र यूरोप की ठण्ड, बर्फ और हवाओं में हम लौट वर्तमान की महत्ता पर स्वामित्व पाने लगते हैं ! आए हैं परन्तु आपके सदैव चमकते हुए सूर्य, अविस्मरणीय सूर्यास्त, आपके देश की चमक एवं से देखते हैं, उसकी योजना बनाते हैं और इस यहाँ, पश्चिम में हम भविष्य को देखते हैं, पहले प्रकाश को भूल पाना हमारे लिए असम्भव है इन्द्र क्रिया में हमारे गतिमापक (Speedometer ) धनुषी अछूते गाँव, वातावरण की ताज़गी तथा हमारे पुगला जाते हैं। वर्तमान के सौन्दर्य को महसूस संसर्ग में आए लोगों की दिनचर्या ने हमें आन्तरिक करने का समय हमारे पास नहीं है। परन्तु हमारी शान्ति एवं गहन-ध्यान की ओर आमन्त्रत किया। ज़िन सहजयोगियों से हम मिले उन्होंने भी हमें तो केवल वर्तमान के माध्यम से ही लिया जा श्रीमाताजी की सृजित सृष्टि का आनन्द परम पूज्य आपके पावन देश के बासियों के अन्तर्निहित आनन्द सकता है। को खोजने के लिए प्रेरित किया हम आपसे पहली बार मिले परन्तु हमें ऐसा हम जानते हैं कि हम पश्चिमी लोगों को हर लगा मानो आप युगों-युगों से हमारे हृदय में रहते वात पर धन्यवाद देने की बुरी आदत है। अंतः हम हों और प्रथम मिलन में ही हमने अपने भाई-बहनों अपने हृदय का उपयोग करना चाहिए, मस्तिष्क को पहचान लिया जो आनन्दावस्था में अपना सभी का नहीं। इस पत्र के माध्यम से सभी पश्चिमी कुछ हमसे बाँटने को तैयार थे हमने तो केवल सहजयोगियों की ओर से हम कहना चाहेंगे कि लेना ही था,अतः हमने स्वयं को प्रेम की इस जिस प्रकार आपने हमारा अपने देश में स्वागत गतिशीलता के समर्पित कर दिया। हमारा सम्मुख किया इतना प्रेम, आनन्द एवं भाईचारा प्रदान किया महानतम अनुभव ये है कि जीवन में पहली बार उसके लिए हम सब आपके आभारी हैं। हमने अपनी प्रिय श्रीमाताजी और हमारे मध्य के आप सभी हमारे प्रति इतने मधुर थे कि आपकी माध्यम को देखा। अपनी चेतना के माध्यम से आप मुस्कराहट, दृष्टिकोण एवं उदारता के माध्यम से सुगमता-पूर्वक श्रीआदिशक्ति के परमेश्वरी सौन्दर्य हम अपनी प्रिय श्रीमाताजी की कार्यशैली को देख को वहुत कुछ समझते हैं, बहुत कुछ खोजते हैं एवं सम्मान से हमारे क्योंकि आपकी संवेदना हमसे कहीं अधिक है और पाए। आपके प्रति कृतज्ञता हृदय परिपूर्ण हैं। श्रीमाताजी के प्रति आप लोगों गतिशील आत्मा के माध्यम से आप आत्म-सात की श्रद्धा, प्रेम एवं समर्पण अनुसरणीय उदाहरण करते हैं, थके हुए मस्तिष्क के माध्यम से नहीं। | आपके व्यवहार में हमने आपकी श्रद्धा के आपके अहं के गुब्बारों की हवा निकल चुकी है, ै प्रतिबिम्ब को महसूस किया। आप लोग कितने आपकी विनम्रता कहीं अधिक है आपके आचरण बिवेकशील हैं. कितने विश्वस्त हैं और किस प्रकार की कपा से हम श्रीमाताजी को ऊँचा और अधिक दिसम्बर 2005 चैतन्य लहरी 31 नवम्बर ऊँचा, अधिक दिव्य, अधिक शक्तिशाली रूप में होता है कि श्रीमाताजी की दिव्य चेतना हमारे देखते हैं क्योंकि जिस प्रकार पूर्ण चित्त . गहन अन्दर की गहराइयों में बसती चली जा रही है सम्मान, श्रद्धा एवं प्रशंसा भाव से आप उनसे ब्रह्माण्ड के सृष्टा से हम ये प्रार्थना करते व्यवहार करते हैं वह हमारे लिए प्रेरणा का ओत और मिलकर सभी वचन देते हैं कि हम केवल अपने है। आप उनसे तभी बोलते हैं जब वे आपसे कुछ अन्दर चमकते हुए सौन्दर्य को ही देखेंगे और ये पूछ, आप अचानक बोलना शुरु नहीं कर देते और याद रखते कि हमारी माँ हमसे कितना प्रेम न ही उन्हें बीच में टोकते हैं मर्यादाओं का आप करती है, हम भी परस्पर उतनी ही गहनता से प्रेम हुए सम्मान करते हैं। परमात्मा करें की आत्मा द्वारा करेंगे और परस्पर एक ही परमात्मा के बच्चे होने समझने एवं दर्शन करने के योग्य अपनी परमेश्वरी का अहसास बनाए रखेंगे। माँ की गरिमा को बढ़ाने के लिए हम सब भी आइए स्वयं को श्रीमाताजी की सुरक्षा में समर्पित कर दें.उनके साक्षात में बार-बार मिलें और मिलकर यह वह महान समय था जब पूर्व और पश्चिम उनकी गरिमा को बढ़ाएं, क्योंकि केवल उन्हीं की आपकी सहजता और उत्साह का अनुसरण करे। माँ के प्रेम सागर में विलय हो गए थे, इसी समय से हम अपने सौन्दर्य तथा आनन्दमयी आत्मा कृपा हमने परमात्मा द्वारा ज्योतित सौन्दर्य का अवलोकन की ज्योति को प्राप्त कर सकेंगे। किया और ये जाना कि किस प्रकार एक दूसरे हार्दिक प्रेम एवं का सम्मान करना है और परस्पर प्रेम दर्शाना है। जय श्रीमाताजी श्रीमाताजी द्वारा दिए गए एक साथ रहने और प्रेम Arneau, Maria-Amelia, Marie आदान-प्रदान करने के लक्ष्य को हमें प्राप्त करना Laure, Gregoire, Catherine है। परस्पर प्रेम एवं आनन्द के आदान-प्रदान के Christine माध्यम से ही सामूहिकता की भावना की अधिकाधिक अभिव्यक्ति होती है और हमें अहसास (निरमल योग से उद्धृत एवं अनुवादित) कब परम पूज्य श्रीमाताजी का एक पत्र लन्दन 26.1980 बानेश्वर में जिस कार्यक्रम का आपने आयोजन विशाल स्तर पर कार्य शुरू हो गया है इस वर्ष किया है निश्चित रूप से बह अत्यन्त सफल होगा। आपकी पावन भूमि पर बहुत से लोग आने वाले हैं। अब परमात्मा के सारे कार्यों में एक नई गतिशीलता मैं नवंबर में आऊँगी। तब तक गाँव-गाँव में आएगी। पूना के सहजयोगियों ने पूना के पुण्यों को सहजयोग का सन्देश पहुँच जाना चाहिए। सम्पूर्णता प्रदान की है इसमें मेरा कोई विशेष योगदान नहीं है। आपको जो भी प्राप्त हुआ है उसे आपने खोजा है और स्वीकार किया हैं । यह सभी को मेरा स्नेहमय आशीर्वाद सर्वदा आपकी अपनी माँ निर्मला (मराठी से अनुवादित) (निर्मला योगा- 1981) आनन्द का सोत है। सहजयोग, महायोग के रूप में विकसित हो रहा है । बानेश्वर की गोष्ठी (Seminar) में ये बात साबित हो जाएगी यूरोप में भी अब बहुत है ै। ह ा. ति श्रीमन सी० पीo श्रीवास्तव का स्वागत दिल्ली- 4 जनवरी 1980 4 जनवरी 1980 की शाम दिल्ली के जीवन प्राप्त हो। केवल तभी वे अपने विशाल मानव सहजयोगियों के लिए अत्यन्त स्मरणीय एवं परिवार के प्रति स्वयं को समर्पित करने के लिए आनन्ददायी थी। उन्होंने श्रीमन सी0पी० श्रीवास्तव स्वतन्त्र होंगी उन्होंने (श्रीमाताजी) अपना वचन का हृदय से स्वागत किया। इस अवसर पर श्रीमन निभाया और मैंने अपना। हमारी बेटियाँ बड़ी हुई। सी0पी0 श्रीवास्तव ने सहजयोगियों को इस प्रकार इसका श्रेय, स्वाभाविक रूप से उन्हें ही जाता है क्योंकि मैं तो अपने दफ़्तर के कार्यों में ही बहुत अधि सम्बोधित किया:- कि व्यस्त था। सुब्रमण्यम् और दिल्ली के प्यारे सहजयोगियो और सहजयोगिनियों, श्री बच्चों और घर की देखभाल की जिम्मेदारियों को स्वीकार करके उन्होंने मुझे भी सशक्त आश्रय सर्वप्रथम तो मैं ये कहूँगा कि आज शाम जितने प्रदान किया। मैं तो केवल अपने दफ्तर के कार्यों प्रेम सम्मान एवं करुणा की वर्षा आपने मुझपर की. तक ही सीमित रहा। बेटियाँ जब बड़ी हुईं तो उसके लिए मैं आपका हृदय से अनुगृहीत हूँ। ये उनके विवाह का प्रश्न आया और ये समय मेरी अनुभव मेरे लिए अत्यन्त सुखकर है.और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं इसे बड़े लम्बे समय तक पत्नी के पालन-पोषण तथा बेटियों की भी परीक्षा का था। मैंने अपनी बेटियों से अब आप पूछा, संजोकर रखूंगा। बड़ी हो गई हो, तुमने इतनी दुनिया घूम ली है, तुम सहजयोग अब मेरी पत्नी, जिन्हें आप माताजी अच्छी पढ़ी लिखी हो, विश्व के बहुत से देश देख कहते हैं, की जान है। वे अब भी मेरी पत्नी हैं और चुकी हो, अब तुमने निर्णय करना है कि किंस जैसे सुब्रमण्यम् जी ने कहा, उन्होंने एक पूर्ण पत्नी प्रकार से तुम विवाह करना चाहोगी।" परन्तु जिस की भूमिका निभाई और मैं ये कहना चाहूँगा कि प्रकार से सच्ची भारतीय परम्परा के अनुसार मेरी इसके साथ-साथ उन्होंने एक पूर्ण माँ और अब पत्नी ने उनका पालन पोषण किया था, दोनों ने नानी माँ की भूमिका भी निभाई। अब वे मानव के कहा कि माता-पिता के रूप में उनके लिए दुल्हे लिए जो भी कुछ कर रही हैं उस पर मुझे गर्व है खोजने का कर्तव्य हमारा है। अतः जो कुछ भी और सन्तोष है। मैं ये कहना चाहूँगा कि वर्षों पूर्व हमने निर्णय लिया वही उनका निर्णय था। बम्बई, 1 जब हमारी दोनो बेटियाँ छोटी थीं तो हम दोनों ने जहाँ हम रहते थे, वहाँ के लोग इस बात पर निर्णय किया कि हम उनका ठीक प्रकार से पालन विश्वास न कर पाए कि इतनी पढ़ी लिखी और इतना भ्रमण करने के पश्चात् भी पुरातन भारतीय पोषण करेंगे, उन्हें पढ़ाएंगे, लिखाएंगे और ये दखेंगे कि विवाह के पश्चात् उन्हें सुख शांति से परिपूर्ण मूल्यों के अनुरूप भारतीय पारम्परिक शैली से वे दिसम्बर, 2005 34 चैतन्य लहरी नवम्बर विवाह करना चाहेंगी! तो माता-पिता के रूप में रक्षा करनी है तो एक नई क्रान्ति, आध्यात्मिक हमने उनके लिए दुल्हे खोजे और अब वे दोनों क्रान्ति का आना अत्यन्त आवश्यक है अन्यथा युद्ध, लड़ाईयाँ और संघर्ष मानवता को नष्ट करे अपने परिवारों में सुख शान्ति पूर्वक स्थापित हैं। देंगे। इस संदर्भ में मैं सहजयोग में मानव-मात्र के तब से मेरी पत्नी अपना समय, केवल समय ही लिए एक नए आन्दोलन की शुरुआत देखता हूँ और आप लोगों को विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि नहीं अपनी आत्मा भी, संहजयोग को समर्पित कर रही हैं और मैंने देखा है कि उनके प्रयत्न का कितना चमत्कारिक परिणाम है । जिस विश्व में सहजयोगी और सहजयोगिनियों के रूप में आप जो कार्य कर रहे हैं मुझे उस पर गर्व है- सबके हम रह रहे हैं, सुबह उठकर यदि आप समाचार लिए सच्चा निःस्वार्थ प्रेम, सहज आदर्शों के लिए पत्र पर दृष्टि डालें तो कठिनाइयाँ, कष्ट, दुर्घटनाए भरी हुई होती हैं। वे शान्ति लाना चाहती हैं सच्चा समर्पण , ये आश्चर्यजनक मूल्य हैं। इंग्लैण्ड में मैंने सहजयोग के चमत्कार देखे हैं, आध्यात्मिक शान्ति । जहाँ भी वैर-भाव है उसके स्थान पर वह प्रेम लाना चाहती हैं, कड़वाहट के और जो मैंने देखा है वह मैं आपको बताना चाहूँगा। स्थान पर सामंजस्य स्थापित करके वे लोगों में जिम्मेदारियों के कारण मेरा जीवन अत्यन्त व्यस्त आध्यात्मिक उत्क्रांति लाना चाहती हैं। मेरे विचार है। एक माह पूर्व एक बार जब मेरी पत्नी और से आज विश्व अशान्त है। मुझे लगता है कि सहजयोगियों ने मुझे एक समारोह के लिए निमंत्रित वास्तव में मानव अपने अन्दर और बाहर से अशान्त किया. मैं उनके प्रति कृतज्ञ हूँ, वहाँ बूढ़े, जवान, | तो समय की आवश्यकता क्या है? वैभवशाली अधेड़ और बच्चे, वे सब एक सुख-शान्त परिवार की तरह से दिखाई दिए। वे देश के भिन्न भागों से देशों की स्थिति भी बेहतर नहीं है। हो सकता है उनके पास भौतिक पदार्थ अधिक हों परन्तु आन्तरिक आए थे अत्यन्त प्रसन्न और शान्त मुद्रा में वे सब एक साथ थे और उनके चेहरों पर गहन दिव्यता रूप से वे हमसे भी अधिक परेशान हैं। हम भारतीय लोग कुछ सीमा तक तो सन्तुष्ट हैं। हमारी संस्कृति झलक रही थी। वे प्रसन्न थे. शान्त थे और प्रायः अत्यन्त समृद्ध है और हमारी परम्पराएं अत्यन्त दिखाई देने वाली भीड़ से अलग थे। जीवन के आश्चर्यजनक । हमारी शानदार परम्पराओं में तनावों, क्रोध एवं कड़वाहटों का उन पर कोई असर भौतिकता और आध्यात्मिकता का पतन हुआ है न था एक चीज़ जिसने मेरे हृदय को स्पर्श किया इसलिए वहाँ आन्तरिक अशान्ति बहुत अधिक है। कि बहुत सी महिलाएँ एक-एक करके आई. उनमें सर्वत्र लोग कुछ खोज रहे हैं। वे जानना चाहते हैं से कुछ की आँखों में आँसू थे। वे मेरी पत्नी के पास कि दिखाई देने वाले इस विश्व से परे क्या है ? आई, जहाँ में भी बैठा हुआ था । एक महिला कहने लगी श्रीमाताजी आपने मुझे और मेरे बेटे को बचा और मानव की नियति क्या है ? यदि मानवता की প दिसम्बर. 2005 वैतन्य लहरी 35 नवम्बर लिया है। मेरा बेटा भटक गया था उसे नशे और है। हमें यहाँ की मान्यताओं का सम्मान करना है। उन मान्यताओं का सम्मान करना होगा जो भारत शराब की लत पड़ गई थी। अब वह बच गया है। को महान बनाती हैं और भारतीयों को विवेकशील। वह परिवार में वापिस आ गया है । अब हमारा आनन्दमय परिवार है। इस कृपा के लिए किस हमारी परम्पराएं अत्यन्त समृद्ध हैं और अत्यन्त प्रकार हम आपका धन्यवाद करें ? एक अन्य अद्भुत। परन्तु हम कभी-कभी अपनी वास्तविकता महिला आकर कहती हैं, " मेरी बेटी हमारी इच्छाओं को छोड़ बैठते हैं। अब भी यदि हम सब अपने के विपरीत गलत रास्ते पर चल रही थी। आपका पूर्वजों द्वारा बनाए गए विवेकपथ पर चलकर सच्चे सहजयोग उसे वापिस परिवार में ले आया है और भारतीय बनें और उस महिला, मेरी पत्नी, द्वारा अब हम एक बार फिर संयुक्त और प्रसन्न परिवार बताई गई विधि द्वारा अपना अध्यात्मिक विकास करें हैं।" मेरे विचार से इस प्रकार यदि एक भी व्यक्ति तो, मुझे कोई सन्देह नहीं है, हम एक अद्भुत को बचाया जा सके तो यह अद्वितीय उपलब्धि है। आध्यात्मिक उत्क्रान्ति की ओर अग्रसर हो रहे हैं। दो व्यक्तियों को यदि बचाया जा सक तो बेहतर है जो प्रेम आप मेरी पत्नी को दे रहे हैं उसके लिए यदि दर्जनों और सैकड़ों को बचाया जा सके इन थोड़े से शब्दों के साथ मैं आप सबके प्रति परन्तु तो यह चमत्कार है। मुझे लगता है कि मानवता के अपनी गहन कृतज्ञता प्रकट करना चाहता हूँ। आप हित के लिए इस आन्दोलन में बहुत सी महान लोग उनके स्वप्नों का साकार रूप हैं। एक विशेष सम्भावनाएं हैं बशर्ते कि अपने मूल्यों के अनुरूप प्रकार की सामूहिकता का सृजन करना, आध्यात्मिक कठोरतापूर्वक चलते हुए आप इस पथ पर आगे सामूहिकता, अन्तिम सत्य की एक विशेष चेतना का बढ़ें। मूल्य अत्यन्त आवश्यक हैं, विशेष रूप से सृजन करना उनका ख्वाब था। अतः यहाँ पर आप आज के विश्व में यद्यपि पूरे विश्व में उन मूल्यों लोगों की उपस्थिति मेरे लिए उनके सदा से संजोए हुए स्वप्न की साकार प्रतिमूर्ति है। जो प्रेम एवं स्नेह थे, फिर भी इन मूल्यों को पुनर्जीवित करना होगा आपके मन में उनके लिए है उसके लिए मैं आपका और बनाए रखना होगा। विनम्रता एवं निष्ठा पूर्वक अभारी हूँ। आज मेरे प्रति जो करुणा और प्रेम मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मेरे देश भारत आपने दर्शाया है उसके लिए मैं आपको धन्यवाद का पतन हुआ है जो मानव समाज को स्थिर करते वर्ष की मान्यताएं पूरे विश्व की मान्यताओं से कहीं करता हूँ। मैं केवल इतना कह सकता हूँ कि किसी भी प्रकार से मेरी गतिविधियाँ उनके कार्य में सहायक बेहतर हैं। कोई भी देश भारत से अच्छा नहीं है , कोई भी लोग भारतीय लोगों से अच्छे नहीं हैं। हो सकती है तो ये उनके लिए हैं। उनका पूरा इतना कुछ याद रखके यदि हम भारतीय बनें तो समय सहजयोग के लिए है और इसकी मुझे बहुत बहुत अच्छा है। भारत में जन्म लेना ही काफी नहीं खुशी है। काश कि उनके लिए दिन में चौबीस चैतन्य लहरी नवम्बर - दिसग्बर, 2005 36 भारतीय मूल्यों को पूनर्जीवन दें जिन पर हमें नाज़ घण्टो के स्थानपर 48 घण्टे होते ! जो भी क्षेम उनके पास है उसे वे भली-भांति है। जो सम्मान आज आपने मुझे दिया है और समर्पित करती हैं। अपनी पत्नी की बात करना देवी-लक्ष्मी की प्रतिमा का सुन्दर तोहफ़ा जो आपने मुझे दिया है उसके लिए आप सबका हृदय से अत्यन्त उलझन पूर्ण है परन्तु ये सम्बन्ध भी जीवन की वास्तविकता है। इससे ऊँचा भी एक सम्बन्ध है धन्यवाद करते हुए अपना भाषण समापन करूँगा। देवी लक्ष्मी की कृपा-वर्षा आप सब पर होती रहे । जो आप लोगों का श्रीमाताजी के साथ है। तत्पश्चात् परम पूज्य श्रीमाताजी ने सामूहिकता उनमें ऐसे बहुत से गुण हैं जो सम्भवतः आप न को इस प्रकार सम्बोधित किया:- देख पाएं। उन्हें केवल देने में विश्वास है लेने में श्री श्रीवास्तव के विषय में बात करना एक नहीं। आप जानते हैं कि हमारे सभी प्रकार के सम्बन्धी होते हैं। कुछ बहुत समृद्ध हैं, कुछ इतने प्रकार से, अत्यन्त उलझन-पूर्ण कार्य है। मुझे प्रसन्नता है कि आज आप लोग उनका सम्मान कर समृद्ध नहीं है, कुछ निर्धन हैं, कुछ जरूरतमन्द हैं, परन्तु हमारे सरकारी सेवाकाल में जो भी सम्बन्धी रहे हैं क्योंकि उनका सहयोग यदि मुझे प्राप्त न भी नहीं कर पाती। इसके अतिरिवत हमारे यहाँ आया, हमारे यहाँ जो कुछ भी होता तो मैं कुछ जिस प्रकार से उन्होंने मूल्यों की बात की, तो मुझे उपलब्ध था उसे हमारे बच्चों और हमारे यहाँ आए उनसे अधिक मूल्यों का सम्मान करने वाला व्यक्ति बच्चों ने बराबर बाँटकर लिया। कभी भी उन्होंने अपनी बेटियों तथा हमारे घर आए किसी और के जीवन में अभी तक नहीं मिला। अन्तर सिर्फ इतना बेटे-बेटियों में फर्क नहीं किया। ये बात आरम्भ से है कि आत्म-साक्षात्कार के पश्चात् आप लोग ही थी। उनका स्वभाव सदा ऐसा ही था, यही आसानी से इन मूल्यों को आत्मसात कर सकते हैं परन्तु उनमें तो आत्म साक्षात्कार से पूर्व ही ये कारण है कि वे आध्यात्मिक व्यक्तित्व में पुष्पित हो रही हैं। आज भी यही घटित हुआ है। कुछ समय मूल्य विद्यमान हैं। वे अत्यन्त ईमानदार व्यक्ति हैं। और अधिक बढ़ उन्होंने करोड़ों-करोड़ों रुपयों के समुद्री जहाज से ऐसा ही था। अब तो ये गुण रहा है। आन्दोलन विस्तृत हो रहा है। ये आन्दोलन खरीदे परन्तु किसी भी प्रकार की बेईमानी का स्वैच्छिक है। इंग्लैण्ड, फॉस, जर्मनी, अन्य यूरोपियन ख्याल उन्हें नहीं आया। वे अत्यन्त अनुशासित देश, आस्ट्रेलिया और निस्सन्देह भारत, इसकी व्यक्ति हैं। मेरे विचार से हमारे अन्दर अनुशासन मातृ-भूमि है। परमात्मा करे कि ये आन्दोलन आगे की कमी है। जो देश अनुशासित हैं वो स्वयं भी बढ़े, सहज-गतिविधियों में अधिक से अधिक संख्या उन्नत हुए हैं और उन्होंने अन्य देशों की उन्नत में सहजयोगी सम्मिलित हों और उन सभी महान होने में सहायता की है। सहजयोगियों में यदि दिसम्बर 2005 37 वैतन्य लहरी नवम्बर सहजयोग का अनुशासन नहीं होगा तो सहजयोग भी किसी अन्य मूर्खता पूर्ण संस्था की तरह से बन बलिदान है। परन्तु क्योंकि उन्होंने देखा है कि यही रास्ता है इसलिए उन्होंने न केवल मुझे इसकी आज्ञा दी परन्तु आप जानते हैं कि वे इसके प्रति कितने उदार हैं। हम चीजों को देखते हैं और जाएगा। श्री श्रीवास्तव का अनुशासन इतना महान है कि मैं समझ नहीं पाती कि वे किस प्रकार इन्हें निभाते हैं ! उदाहरण के रूप में समय के विषय में तार्किकता से समझते भी हैं कि ये अच्छी हैं, फिर वे अत्यन्त मर्यादित हैं। इसी प्रकार से अन्य लोगों भी हमारा उनसे सामंजस्य नहीं है। उनमें का सम्मान करने के बारे में, अपना कार्य करने के (सर सीoपी0) मुझे उनका अपना अनुशासन दिखाई विषय में, उनसे मिलने आए लोगों के विषय में, हर पड़ता है। तार्किकता पूर्वक जब वे किसी चीज़ को बात बोलने के विषय में, वे अत्यन्त सावधान रहते स्वीकार करते हैं या सोचते हैं कि वो ठीक है तो हैं कि उचित समय पर क्या कहा जाना चाहिए। उस कार्य को कर देते हैं। ये गुण आपने किसी ऐसे सहजता उनके अन्दर इतनी अधिक है, इतनी व्यक्ति से सीखना है जिसने स्वयं जीवन पर्यन्त अन्तर्जात है कि ठीक समय पर वे ठीक बात कहते ऐसा किया हो। जिस प्रकार वे सामंजस्य स्थापित हैं। सर्वोपरि उनमें इतनी मेधा है कि वे तुरन्त ठीक करते थे कि उस पर मुझे हैरानी हुआ करती थी! परिणाम पर पहुँचते हैं। वे आत्मसाक्षात्कारी न थे। उनके कार्यों में इतना सामंजस्य और सूझ-बूझ है, परन्तु अब. मुझे लगता है, कि उन्होंने सहस्रार को ये बात मुझे आश्चर्य चकित करती है क्योंकि पूर्व भी वे सही निष्कर्ष पर छू लिया है। परन्तु इससे पहुँचा करते थे। सहजयोग के विषय में आपने आत्मसाक्षात्कार के बाद कठोर तपस्या करने पर ही व्यक्ति को ऐसा सामंजस्य प्राप्त हो सकता है। हम उनके दृष्टिकोण को देखा कि उनका दृष्टिकोण हैं। जैसे बहुत से लोग कहते कुछ हैं करते कुछ हर चीज़ की आलोचना करते हैं परन्तु स्वयं यदि वही कार्य करना पड़े तो ठीक वैसा ही करते हैं। वे कितना ठीक है। आप यदि कुद्धिमान हों केवल तभी आप उचित दृष्टिकोण अपना सकते है जो लोग विवेकशील नहीं हैं वे ऐसा नहीं कर सकते। शुद्ध यदि उच्च पद पर पहुँच गए हैं तो लोग सोचते हैं विवेकशीलता का अर्थ है कि अहं और प्रतिअहं का यह श्रीमाताजी की कृपा से है। चाहे कृपा का इसमें बहुत मामूली अंश हो, फिर भी मैं कहूँगी कि हमारे कोई पूर्वाग्रह न होना यह गुण आप उनमें शुद्ध अवस्था में देख सकते हैं। देश में उन जैसा कोई भी व्यक्ति अवश्य उन्नति करेगा क्योंकि हमारे यहाँ के लोग ईमानदारी, ये स्वीकार करना ही कि मैं ये सारा कार्य करूं, एक पुरूष के लिए बहुत बड़ा बलिदान है। आपमें से कोई भी अपनी पत्नी को तीन महीने तक अपने मानते हैं। निष्ठा, नैतिकता को अत्यन्त विशिष्ट गुण इस बार मेरे भारत आने के बाद इतनी संस्थाओं से दूर रहने की आज्ञा न देगा। ये बहुत बड़ा और लोगों ने उन्हें सम्मान प्रदान किया कि मैं दिसम्बर. 2005 चैतन्य लहरी नवम्बर 38 मैंने इतना भर कहा कि शराब पीना मुझे पसन्द नहीं आश्चर्य चकित थी कि उनका इतना सम्मान कैसे है परन्तु कभी ये नहीं कहा कि आप मत पियो। इस हुआ ! आखिरकार वे भी तो किसी अन्य नौकर शाह की तरह से हैं । परन्तु अपने आदर्शो के प्रकार से मैं कभी भी दखलन्दाजी नहीं करती। कारण उनका सम्मान हुआ ! वे आदर्शवादी हैं। सहजयोग के विषय में भी मैंने इस प्रकार से कभी नहीं बताया। ये उनकी अपनी सूझ-बूझ है। लोगों पति के रूप में मेरे साथ रहना आसान काम नहीं है. क्योंकि आप जानते हैं, अपने जीवन में मैं किसी में यदि ऐसा विवेक होगा तो हमें उनके पास जा-जाकर के उन्हें समझाना नहीं पड़ेगा। भी तरह की चालबाजी की आज्ञा नहीं देती। जब मैं बच्ची थी तो मेरी माताजी मुझसे कहा भारतीय प्रशासनिक सेवा में जब उनका चयन करती थीं कि जिस प्रकार से तुम अबोध हो उदार हुआ तो, आप मानेंगे नहीं, इससे पूर्व उन्हें भारतीय हो, तुमसे केवल श्री शंकर ही विवाह कर सकते हैं । क्योंकि किसी भी गरीब या जरूरतमन्द को देखते विदेश सेवाओं के लिए चुना गया था। उन्हें कहीं अधिक वेतन मिलता परन्तु मैंने उनसे कहा कि ही अपनी माँ के भण्डार से सभी कुछ उठाकर मैं उसे दे दिया करती थी। वे कहा करतीं, " मैं नहीं सर्वप्रथम हमें अपने देश की सेवा करनी है, बाहर विदेशों में नहीं जाना। उन्होंने भारतीय प्रशासनिक विवाह किससे होगा, उस बेचारे जानती कि तुम्हारा सेवा स्वीकार कर ली. इसलिए नहीं कि मैंने उन्हें को श्री शंकर की तरह से निर्धन ही रहना पड़ेगा इसके लिए कहा, परन्तु इसलिए कि उन्होंने सोचा क्योंकि उसके पास जो भी कुछ होगा वह सब तो कि मातृभूमि की सेवा करनी चाहिए। भारतीय बाँट दोगी।" परन्तु मैं तो ऐसी ही हूँ। ये तो तुम मेरा स्वभाव है। कोई यदि ये कहता है कि "मुझे ये प्रशासनिक सेवा में कार्य करते हुए उन्होंने बहुत कृष्ट उठाए फिर भी अपने आदर्शों पर डटे रहे। मेरे चीज पसन्द है" तो मैं सब कुछ भूलकर वह चीज़ विचार से व्यक्ति को उनसे मानसिक अनुशासन उसे दे देती हूँ। उन्हें मुझसे एक शिकायत है कि सीखना चाहिए। ये मानसिक अनुशासन ये है कि मैंने हमारी मंगनी की अंगूठी भी दे डाली। परन्तु बुद्धि से एक बार स्वीकार करने के पश्चात् ये एक ओर से मैं देती और दूसरी ओर से आ जाता। अनुशासन व्यक्ति की गतिविधियों में झलकना अब वे इस बात को जानते हैं। मेरे इस स्वभाव को चाहिए। आपको अपने गुणों पर गर्व होना चाहिए। बर्दाशत करना किसी भी पति के लिए आसान नहीं आप उनके पद और सहयोगियों के बारे में जानते है, जिस प्रकार से मैं उदार हूँ। फिर आप सबके हैं फिर भी वे एक बूँद शराब नहीं पीते। कोई भी लिए मेरा अत्यधिक प्रेममय स्वभाव इसे भी वे कह सकता है कि माताजी के कारण ऐसा है। समझते हैं। आपके लिए मेरे मन में गहन प्रेम है। निःसन्देह जब आप लोग आकर मुझे परेशान करते परन्तु मैंने कभी भी उनसे ऐसा नहीं कहा। निःसन्देह दिसम्बर, 2005 चैतन्य लहरी 39 नवम्बर हमारे यहाँ चोरी हो गई और मेरी सारी साड़ियाँ, लोग आजकल मुझे बहुत तंग कर रहे हैं। कुछ हैं भी घटित होता है उन्हे माँ की याद आती है और इनके सभी कपड़े, सभी कुछ चोर ले गए । कुछ भी भागे आते हैं। कहीं न कहीं किसी न किसी के न बचा। उस बक्त क्योंकि हमारे पास धन का अभाव था तो मैंने इनसे कहा कि पहले अपने कपड़े साथ हमेशा आपात स्थिति बनी रहती है। इस सबको सहन करते हुए भी वे अत्यन्त शान्त रहे । सिलवा लो। मैं अपने लिए कपड़े न बनवा सकी। सात सालों तक मेरे पास केवल एक रेशमी साड़ी मेरे पति के रूप में, वे मुझे समझ सकते हैं। बचपन से ही वे स्वः निर्मित व्यक्ति हैं। पूर्णतः ईमानदार। थी परन्तु हमने सब कुछ चलाया और उसके वो कभी झूठ नहीं बोलते, किसी भी प्रकार की पश्चात् सब बढ़िया हो गया आपके पास कुछ है चालबाजी नहीं करते, कभी गप्प नहीं मारते। गप्प या नहीं इसका कोई महत्व नहीं है, महत्व तो इस बाजी से मुझे घृणा है और वो भी कभी गप्प बाज़ी बात का है कि आप किस प्रकार अपना जीवन चलाते हैं । नहीं करते अन्तर्राष्ट्रीय विश्व में भी उन्होंने अपनी मेरे बच्चे होना भी आसान नहीं है क्योंकि मैं एक तस्वीर बनाई है कि वे एक परिवार की देखभाल कर रहे हैं । अतः यदि आपने सहजयोगी जानती हूँ आप क्या करते हैं. आपके विषय में मैं बनना है तो आप लोगों को भी समझना सबकुछ जानती हूँ। मैं आपको सुधारती भी हूँ, आप होगा कि आपने ये सभी मूल्य आत्मसात इस बात को जानते हैं परन्तु जब आप मुझसे जुड़े करने हैं, अन्यथा सहजयोग पूरी तरह नष्ट हुए हैं तो ये बात दर्शाती है कि आप उस श्रेणी के हो जाएगा सहजयोगियों को उन्नत होना होगा लोगों में से हैं जो विकसित होकर आन्तरिक उन्हें ये निर्णय करना होगा कि उन्हें झूठ नहीं परिवर्तन द्वारा बेहतर अवस्था को प्राप्त करने के बोलना, ईमानदार होना है, परमात्मा पर विश्वास लिए आमादा हैं। सहजयोगी होना सुगम कार्य नहीं करना है। सर्वशक्तिमान परमात्मा ही उनके पिता है, कि आप कुछ पैसा देकर सदस्य बन जाएं और हैं और वे अपने बच्चों की देखभाल करते हैं। हमें श्रीमाताजी के शिष्य कहलाएं। मेरे शिष्य बनने के इस विश्व के मानचित्र को परिवर्तित करना है, बाद भी आपको कुछ परीक्षाएं पास करनी पड़ती है विशेष रूप से हमारे देश के। इसके लिए हमें और इसके लिए कठोर परिश्रम करना पड़ता है। चरित्रवान और निर्भीक लोगों की आवश्यकता है अपने परिवार में रहते हुए काफी तपस्या करनी जो अत्यन्त ईमानदारी पूर्वक जीवन का सामना पड़ती है। आप ये सब क्र रहे हैं इसलिए मैं बहुत कर सकें हमने कुछ खोया नहीं है। आपने देखा प्रसन्न हूँ और जिस तरह से मुझे उन पर है जब हमारे पास कुछ नहीं था तब भी (सर सी०पी० श्रीवास्तव) गर्व है, वैसे ही मुझे आप पर भी गर्व है, वैसे ही मुझे आप पर भी गर्व है। मैं परमात्मा की से हम प्रसन्न थे। एक बार कृपा F প दिसम्बर 2005 चैतन्य लहरी 40 नवम्बर कीमत पर नहीं. और न ही हम किसी ऐसे आदमी चाहूँगी कि आप इस बात को देखें कि उन्होंने किस को चुनाव जितवाएंगे जो ईमानदार और सत्यनिष्ठ नहीं है हमें इसका मुकाबला करना होगा, केवल के प्रति कितने करुणामय । हमें चाहिए कि सबसे तभी हमारा देश सुधर सकेगा । आरम्भ में हमें कुछ पहले अपनी गलतियों को देखें, दूसरों के दोष नहीं बलिदान करना होगा जैसा आपने देखा, मुझे भी प्रकार अपने जीवन को चलाया आप लोगों से पूछे कि वे कितने ईमानदार हैं, कितने अच्छे, और सभी देखने चाहिएं। हम भारतीयों में विशेष प्रकार के बलिदान करना पड़ा। परन्तु बलिदान करना कठिन दोष होते हैं जिन्हें सुधारने का प्रयत्न हमें करना कार्य नहीं है अन्य महिलाओं के पास मैं बहुत से चाहिए। उस दिन हमारे कार्यक्रम में ऐसे लोग आए गहनें आदि देखा करती थी परन्तु इन चीजों के जो महाराष्ट्र में आन्दोलन शुरु कर रहे हैं मैंने लिए कभी मेरे मनमें इच्छा नहीं हुई । उसकी अपेक्षा शुरु करने का कोई लाभ मुझे इस बात पर गर्व है कि मेरे पति चरित्रवान उन्हें बताया," आन्दोलन नहीं, क्योंकि जब आपकी सरकार थी तब आपने व्यक्ति हैं। महिला के लिए यही सबसे बड़ा आभूषण और क्या किया ?" ज्यादा से ज्यादा एक बार फिर आप अपनी सरकार बना लेंगे, परन्तु फिर उसके बाद गर्व है। सभी सहजयोगियों और सहजयोगिनियों 1 को ऐसे ही सोचना चाहिए। अपनी इच्छा शक्ति को क्या करेंगे ? उन्होंने उत्तर दिया, अब हम क्या करें ? चीनी के एक बहुत बड़े व्यापारी से बहुत हमें उपयोग करना होगा सभी में कुछ न कुछ पैसा ले लिया है, सारा वैभव इक्टू्ठा कर लिया है कमियाँ हैं। इन कमियों को उचित ठहराने के स्थान और कीमतें बढ़ा दी हैं। जमाखोरी की चीनी को वो पर इन्हें ठीक करने के लिए सभी को चाहिए कि अब बहुत महगें दामो पर बेच रहा है क्योंकि उसने अपनी इच्छा शक्ति का उपयोग करें। मुझे पूर्ण चुनावों के लिए पार्टी को बहुत पैसा दिया था । विश्वास है कि एक दिन ऐसा आएगा जब श्री-श्री मैंने कहा, "अब आप लोग सहजयोग के दृष्टिकोण वास्तव इस देश को इस प्रकार से परिवर्तित होता से निर्णय करें कि आप किसी ऐसे आदमी को वोट हुआ देखेंगे जैसे वे स्वयं परिवर्तित होते रहे हैं। ये नहीं देंगे जो आपको वोट के लिए पैसा देता हो, भी हो सकता है कि एक दिन वे हमारे कन्धे से आप अपने वोट बेचेंगे नहीं। खाने तक के लिए कन्धा गिलाकर कार्य करेंगे हमे ऐसे लोगों की हम अपने वोट बेच देते हैं- हमारे अन्दर आवश्यकता है जो दिव्यता के जिज्ञासु हों और जो आत्मानुशासन का पूर्ण अभाव है।" कम से कम वर्तमान स्थिति को परिवर्तित करने के लिए पृथ्वी सहजयोगियों को तो ये कार्य शुरु कर देना चाहिए। पर अवतरित हों। आइए हम सब मिलकर निर्णय करें कि हम किसी परमात्मा आपको धन्य करें। (निर्मल योगा से उद्धृत एवं अनुवादित) भी प्रकार के गलत तरीके नहीं अपनाएगें किसी भी सहजयोग का अलिखित इतिहास (अंक 9-10 से आगे) श्रीमाताजी को उनके साथ अत्यन्त धैर्य एकदम से भिन्न ब्रहमाण्ड (Ice House wood) आइस हाऊस बुड रखना पड़ा। मुझे याद है कि आरम्भिक सहजयोगियों के Hurst green में स्थित अपने घर पर श्रीमाताजी ने सप्ताहान्त का आयोजन किया Hurst Green जो साथ श्रीमाताजी कभी-कभी बहुत सख्त होती थीं। वे अविश्वसनीय ढंग से विनोदशील एवं स्नेहमय हो ऑक्सटेड के सभीप Sussex में है। हम सब वहाँ सकती थीं। परन्तु आवश्यकता पड़ने पर वे अत्यन्त रेल से गए। ये सब अदभुत था क्योंकि अजीब किस्म के लोग एक ऐसे वातावरण में एकत्रित हुए सख्त भी होती थीं उन दिनों मे वे पूरी तरह से माँ थे जहाँ, श्रीमाताजी के कथानुसार एक चूहे को भी के रूप में होती थीं। प्रारम्भिक सहजयोगयों में यह मूल विवेक विकसित नहीं हुआ था। जैसे एक घुसने की इजाजत नहीं थी। उस क्षेत्र में तो लोग साधक कब्रिस्तान के चैतन्य को जाँचने के लिए अन्जान लोगों को प्रवेश भी न करने देते थे, जीन और पुराने फैशन के कपडे पहने हुए पन्द्रह हिप्पी चला गया। जब वह वापिस आया तो श्रीमाताजी जैसे लोगों का तो प्रश्न ही न था। घर में नीचे एक को उस पर घण्टों काम करना पड़ा। "तुमने ऐसा बहुत विशाल बैठक थी जिसमें भारतीय कालीन विछे हुए क्यों किया ?" वह इसका कोई कारण न बता थे। उसके ऊपर मियानी पाया। एक सहजयोगिनी कहीं से एक हार खरीद लाई और माँ कह रहीं थीं, "तुम्हें चीज़ों का चैतन्य सकती थी और जहाँ श्री गणेश की एक अत्यन्त (Mejanine Room) थी जिसमें खूब सारी धूप आ देखना चाहिए। उन्होंने कहा, इस हार का सुन्दर प्रतिमा रखी हुई थी और अन्य देवी-देवताओं चैतन्य कुछ ठीक नहीं है।" श्रीमाताजी ने एक की प्रतिमाएं भी थीं। बाल्टी पानी मंगवाया और उस हार को पानी में (Maureen Rossi) डुबो दिया, पानी काला हो गया, इसमें से एक पैट (Anslow) मुझे सीढ़ियों के रास्ते पहली उनके मुँह से निकला, आह। "इसे देखो।" सबने मंजिल पर ले गया और श्री गणेश की विशाल काला बादल उभर आया और जैसी उनकी शैली है देखा परन्तु कोई भी जल्दी से सीखा नहीं। श्रीमाताजी प्रतिमा दिखाई। वह कहने लगा "देखो इस प्रतिमा को. उन लोगों के साथ धैर्य रखना पड़ा में इतना अच्छा चैतन्य है।"मैने कहा, " यहीं लटके बहुत Kevin Anslow रहो।" एक प्रकार से मैंने प्रतिक्रिया नहीं की। चैतन्य लहरी दिसम्बर, 2005 42 नवम्बर मुस्लिम पृष्ठभूमि से होने के कारण मैंने सोचा, पास हैं। पुनः एक सत्र में श्रीमाताजी ने हम पर "ये क्या बात कर रहा है ? किस चीज़ के विषय कार्य किया परन्तु मुझे अन्दर बाहर जाते रहना में बात कर रहा है ?" पीछे हटते हुए मैंने चैतन्य पड़ा। परन्तु मुझे ऐसे लग रहा था मानो मैं शरीर के महसूस करने का प्रयत्न किया परन्तु इसमें चैतन्य अहसास से मुक्त हो गया हूँ। मेरे लिए यह अत्यन्त न था। ये लकड़ी की प्रतिमा है जो चैल्शम रोड अजीब अनुभव था । घर में बालकॉनी गोलाई में बनी हुई थी और सभी कमरों तक पहुँचती थी। आश्रम लंदन में है। मैं क्योंकि बीमार थी इसलिए श्रीमाताजी ने श्रीमाताजी के घर में जिस चीज़ ने मुझे प्रभावित किया वह थी कि घर के अन्दर रखी हुई सभी कहा,"मोरीन तुम आकर मेरे कमरे में सो सकती प्रतिमाओं से तेजी से चैतन्य प्रवाहित हो रहा है। हो जब सोने का समय आया तो मैंने स्वयं को सबके पीछे छिपाने का प्रयत्न किया क्योंकि मुझे जहाँ भी आप जाएं आपको एक प्रकार का मौन और शान्ति महसूस होती थी परन्तु अत्यन्त शक्ति विश्वास हो गया था कि जब श्रीमाताजी कमरे से शाली वातावरण जिसका वर्णन कर पाना कठिन बाहर गई तो वो लुप्त हो गई थी। वे गोल घूमती हुई सीढ़ियों से घर के मध्य में गई और आधी है आप केवल इतना कह सकते हैं कि वहाँ पर कोई अत्यन्त शक्तिशाली चीज़ आपके अन्दर और सीढ़ियाँ चढ़ने पर मुझे देख लिया और भीड़ के अन्दर से मुझे निकाल लाई। मैं डर गई थी कि क्या बाहर गहन प्रभाव छोड़ रही थी। फिर भी आप मध्य में थे और आपको लगता था कि होने वाला है जो भी हो उनका बिस्तर अत्यन्त इसके आरामदेह था। हिप्पी पृष्ठभूमि से होने के कारण आप एक अत्यन्त भिन्न प्रकार के ब्रह्माण्ड में है रात को पहनने के कपड़े जो मैं लाई थी वो कुछ विशेष अच्छे न थे। उन्होंने मुझे पेटीकोट और श्री माताजी ने हम पर कार्य किया और हमसे स्वेटर पहनाए। नींद में भी पूरी रात उन्होंने मेरी Djamel Metouri पीठ पर कार्य किया। उठने तक भी मैं बीमार बनी बातचीत की। लगभग तीन घण्टे तक वहाँ पर भारतीय खानों की शानदार सुगन्ध थी। हम सब रही वो कभी खरटि लेने लगतीं, एकदम से खरटे मर रहे थे, उन्होंने बहुत जल्दी खाना बन्द होते और वो कहतीं "अब बेहतर है।" फिर भूख से बनाना शुरु किया था। मुझे लगा कि मैं बीमार होने वे अपना हाथ मेरी पीठ पर तथा भिन्न स्थानों पर लगा हूँ। फिर भी मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। रखतीं और कुछ देर तक खरटे लेतीं फिर रुक ये आश्चर्य जनक शुद्धिकरण था इसके बाद सभी जातीं और कहतीं "अब कैसा लग रहा है।" और लोग नीचे बैठक में गए और फुर्श पर सो गए । ये सब सारी रात चलता रहा। प्रातः काल मुझे केले फ्र्श पर सर्वत्र पड़े हुए शरीरों की तस्वीरे हमारे और इलायची के बीज खाने की आज्ञा दी गई। तो दिसम्बर, 2005 चैतन्य लहरी 43 नवम्बर ये पूर्णतः सूक्ष्म ध्यान वे हमारी ओर दिया करतीं और एक श्रीमाताजी के लिए । श्रीमाताजी कहने लगीं, "ये बात अच्छी नहीं है, कैसे मैं आपके पास थी। हमारे लिए उनका ये सब करना अत्यन्त आऊंगी ?" मैंने कहा, "मैं रेलगाड़ी तो ला नहीं अविश्वसनीय है। बाद में छः महीनों के लिए वे सकता। अगर भूमिगत रेलगाडी लाएं तो कैसा ठीक है, ये बहुत अच्छा भारत चली गई हम थोड़े से लोग परस्पर मिला रहे ?" माँ ने कहा, करते और ध्यान करने का प्रयास करते परन्तु रहेगा।" और उनके आदेश के अनुसार हमने उस ध्यान के मामले में हमारी स्थिति बहुत अच्छी न नक्शे में भूमिगत रेल के लिए पटरी बनाई। इससे थी। जाने से पूर्व श्रीमाताजी ने कहा था " जब मैं सभी समस्याएं हल हो गई। भारत जाऊंगी तो मेरे साथ भारत आकर वहाँ (Kevin Anslow) तुम के सभी सहजयोगियों से मिल सकती हो।" अतः उन्होंने हमें अत्यन्त स्नेह दिया। हमने पैसे बचाने शुरु किए। जब वो वापिस आई तो हमारी स्थिति ऐसी थी कि उन्होंने कहा, " इसे हम आरम्भिक दिनों की बात कर रहे हैं। आरम्भिक जाओ आपकी स्थिति ऐसी नहीं है ।" परन्तु दिन मेरे लिए वर्ष 1977 का बसन्त और ग्रीष्म ऋतु भूल हैं। आरम्भिक दिनों की जो विशेष बात थी वो यह पुनः वे हमसे हर सप्ताह मिलने लगीं, प्रायः शनिवार और इतवार को, तथा अपने घर पर हमें बुलाने थी कि श्रीमाताजी के पास बहुत कम सहजयोगी थे, बहुत अधिक लोग न थे वे उनका स्तर ऊँचा लगीं। करने में लगी हुई थीं ताकि वे इतने शक्तिशाली हो सकें कि सामूहिकता को बढ़ाया ज़ा सके । (Maureen Rossi) मैं किस प्रकार आपके यहाँ आऊंगी ? मैं, जब आया था तो शायद छः या सात लोग हम उनके घर ऑक्सटड में गए। मुझे थे-सम्भवतः मैं आठवाँ व्यक्ति था। उन दिनों के छोटी-छोटी चीजें भी याद हैं क्योंकि उस समय मैं कुछ सहजयोगी जा चुके हैं। मुझे याद है कि किस बहुत छोटा था। नक्शे बनाना मुझे अच्छा लगता प्रकार वे Gus नामक एक आस्ट्रेलियन लड़के पर कई सप्ताह तक कार्य करती थीं ! वे उसे अपने घर था- वास्तव में अब भी अच्छा लगता है- आजकल मैं उन्हें एक प्रकार की कहानियों के लिए बनाता हूँ ले गई. उसकी देखवाल की, उसे ठीक किया। वह जो मैं लिखता हूँ। परन्तु उन दिनों मैं नक्शे तो लड़का नशीली दवाओं में सर्वज्ञान सम्पन्न बनाता था परन्तु इस बात का मुझे ज्ञान न था कि Encyclopedia था। वास्तव में वह बहुत बुरा था। क्यों बनाता हूँ। मैंने एक नक्शा बनाया जिसमें कुछ वास्तव में उसे बहुत समस्याए थी और श्रीमाताजी टापू ( Island) थे इसमें एक टापू मेरे लिए था पूरा- पूरा दिन उस पर कार्य करती थीं। उन्होंने दिसम्बर, 2005 चैतन्य लहरी 44 नवम्बर कोई कसर बाकी न छोड़ी। सबसे विशेष बात जो Gardens का फलैट हो- जिस प्रकार वे हमारा थी कि उन्होंने उस लड़के को पूरा प्रेम दिया, फिर स्वागत करतीं और हमारी देखभाल करती, वह भी तीन महीने बाद वह वहाँ से चला गया उसने स्मरणीय है। उन्होंने हमें इतना अधिक स्नेह दिया। सहजयोग छोड़ दिया। वह वहाँ पर रह सकता (Djamel Metouri) था। श्रीमाताजी ने कभी उसे इन्कार नहीं किया सच्ची माँ की तरह- था। उन्होंने कहा, "ठीक है।" हमारे दृष्टिकोण से श्रीमाताजी हमारे लिए खाना बनातीं। निम्बू, यदि आप इस बात को देखें तो उसने श्रीमाताजी चैतन्यित करतीं और हम पर लगातार अथक कार्य के प्रयत्नों को बर्बाद कर दिया था। परन्तु श्रीमाताजी करतीं। हर सप्ताह वे आश्रम आतीं, हमारे चक्रों पर ने कभी भी इस नजरिए से बात नहीं की। उनके कार्य करतीं, हमारा चैतन्य जाँचतीं और देखतीं कि उन्होंने तो अपना प्रेम दिया था और उस अनुसार, हम किस प्रकार प्रगति कर रहे हैं। वास्तव में एक प्रेम पर कोई बन्धन न था। श्रीमाताजी की एक सबसे बड़ी विशेषता है माँ सच्ची माँ की तरह वे हमारी देखभाल कर रही थी के रूप में मूलतः उनके पास आने वाले सभी सहजयोगियों का पोषण करना। अपने पूर्ण प्रेम से (Miodrag Radosavlievic) वे जैकटें और टाइयाँ खरीदतीं- उनका पोषण करना ताकि वो सहजयोग में बने रहें और महसूस करें कि श्रीमाताजी हमें वो दे रही हैं जो हमें नहीं मिल पाया। जैसे शिरडी साई नाथ ने पता है कि वो मुझे और कुछ अन्य लोगों को अपने श्रीमाताजी एक दुकान पर जातीं। मुझे इसलिए 1 कहा था, " शायद हम जो चाहते थे वो हमें वही साथ ले जाया करती थीं वे उन्हें सर सी०पी० की पुरानी टाईयाँ देतीं और सर सी० पीo. उनके पति देना चाहती थीं " वे हमें अपने घर लेजाकर अथक कार्य करती थीं। हमारे लिए खाना बनाने में भी अन्तर्राष्ट्रीय जहाज रानी संस्थान क अध्यक्ष थे। उन्हें किसी प्रकार का एतराज न होता कल्पना अन्तर्राष्ट्रीय समाज में उनका बहुत ऊँचा स्थान था और हमें तो मानो किसी गटर से खोद कर निकाला करें, आदिशक्ति अपने घर में हम थोड़े से लोगों के गया हो। मुझे याद है कि मुझे भी एक टाई मिली लिए स्वयं खाना बना रही हैं ! सात, आठ नौ या अधिक से अधिक दस सहजयोगी होंगे और वे थी। हमेशा वे पूजा के समय टाइयाँ बाँटती थीं। वे 1 स्वयं हमारे लिए खाना बनाती ताकि हमारी नाभियों टाइयाँ, जैकटें और कपड़े दिया करतीं। वे मुझे को चैतन्य दे सकें । हमारी बिगड़ी हुई नाभियों को बाहर ले गई और मेरे लिए जैकटें खरीदीं, मेरी वे सुधारना चाहती थीं। अपने घर पर चाहे वह बहन के लिए वस्त्र खरीदे। इन वस्त्रों पर उन्होंने हर्स्ट ग्रीन ( Hurst Green) का घर Ashley सौ पाऊण्ड से भी अधिक धन खर्चा होगा ये दिसम्बर, 2005 चैतन्य लहरी नवम्बर এs जब मैं उनके लिए एक तोहफा लेकर आया तो खरीदारी उन्होंने Bricklane (लन्दन का पूर्वी छोर) उन्होंने मुझसे कहा, "क्या मैं उनका संरक्षक बन पर की। (Ray Harris) रहा हूँ? उन्हें कोई तोहफे नहीं चाहिएं।" कहने लगीं " आप मुझसे गुरुओं की तरह से व्यवहार नहीं कर सकते " व्यक्तिगत उपहार लाना उचित बेहद सस्ता श्रीमाताजी ने मेरे लिए एक परिधान खरीदा। न था। बाद में हमें बता दिया गया कि सामूहिक मुझे याद नहीं आता मेरे बचपन के बाद किसी ने उपहार तो ठीक हैं परन्तु व्यक्तिगत उपहार देना ठीक नहीं है। माँ जब मेरे घर से गईं तो मेरी आँखों मेरे लिए कुछ खरीदा हो- मेरी समझ में नहीं आ में मोटे-मोटे ऑसूं आ गए। ये सोचकर कि मैंने माँ रहा था कि किस प्रकार इसे स्वीकार करूं, मैं ये भी को नाराज़ किया है। न जानता था कि इसके लिए मुझे कीमत देनी होगी या नहीं। उस क्षण की मर्यादा का वास्तव में मुझे हमने भी वही महसूस किया जो श्रीमाताजी ज्ञान न था। मैंने कहा, " मैं इसे स्वीकार नहीं कर ने किया मैं इसकी कीमत देना चाहता .था सकता। भागों में हम रंग रोगन कर रहे थे । घर के कुछ जिसकी आज्ञा उन्होंने दी। फिर वे एक और शायद ये सन् 1974 था। इसका एक विशेष अनुभव परिधान लाई। इस प्रकार मुझे दो जोड़े मिल गए । मुझे याद हैं। श्रीमाताजी श्री श्रीवास्तव के साथ (Vicky Halperin) किसी सभा या स्वागत समारोह में गईं। उस समय वे अन्तर्राष्ट्रीय जहाजरानी संस्थान के मुख्य निदेशक थे। वे हमें घर छोड़ गई। हम एक दीवार को साफ हाँ, वो कभी भी पैसा नहीं लेंगी। यही अन्तर करके उस पर रंग कर रहे थे आधी रात के करीब है। आप गुरुओं के विषय में सुनते होंगे परन्तु सभी हमें तेज सिरदर्द हुआ और बड़ा अजीब सा पैसे लेते होंगे आप अपना सभी कुछ उन्हें दे देते अहसास हुआ, परन्तु हम कार्य करते रहे। वक्त हैं। अपनी बहन के लिए ( Sharon Vincent) गुज़र गया। जब श्रीमाताजी वापिस आई और हमसे पूछा, कि हम कैसे हैं तो मैंने कहा, खरीदे गए कपड़ों की कीमत जब मैंने श्रीमाताजी को देने का प्रयत्न किया तो उन्होंने वो पैसे फैंक आधा कार्य करने के बाद मुझे भयंकर सिरदर्द दिए और कहा, " मूर्ख मत बनो। तुम कर क्या रहे हुआ। मेरी समझ में नहीं आया कि क्या हो रहा हो ? मुझे तुम्हारे पैसे नहीं चाहिए, मूर्ख मत बनो।" हुआ ये था कि हम एक है।"उन्होंने कहा, "ओह ! (Ray Harris) स्वागत समारोह में गए थे और वहाँ किसी ने गलती tho दिसम्बर, 2005 चैतन्य लहरी 46 नवम्बर विधियां अपनातीं। से एक गिलास शराब (wine) दे दी. और मैंने उसे मुझे याद है एक बार उन्होंने मेरे सिर की पी लिया।" तेल-मालिश की। घर के आस-पास हम छोटे-छोटे तो श्रीमाताजी ने जो शराब पी थी उसका असर कार्य करते थे। मुझे याद है कि एक बार हम किसी हम पर भी आया। इसका प्रभाव क्योंकि अचेतन पर हुआ इसलिए हमारे पर भी इसका असर हुआ। चीज़ पर रंग करने के लिए उसे रेगमार (Sand Paper ) से रगड़ रहे थे और श्रीमाताजी स्पष्ट है कि उस समय हम गहन ध्यान में थे इसलिए हमें भी सामूहिक अ चे तन वहाँ आई और हमारे साथ कार्य करने लगीं। उन्होंने भी एक रेगमार का ट्कड़ा लिया और उससे (Collective unconcious ) के माध्यम से बही चीज़ों को रगड़ा। भोजन तो अत्यन्त स्मरणीय हुआ अहसास हुआ जो श्रीमाताजी को हुआ था। यह करते थे, क्या ऐसा नहीं होता था ? हमें वास्तव में आश्चर्य चकित कर देने वाला अनुभव था। (Douglas Fry) बिगाड़ दिया गया था, अत्यन्त बिगाड़ दिया गया था। मुझे याद है कि एक दिन में उनके घर पर आया उन्हों ने भिन्न विधियाँ अपनाई। तो वे कहने लगीं, " तुम बाहर चले जाओ। मैं तुम्हें ऑक्सटैड के घर में मेरे लिए एक अत्यन्त साफ करती हैँ और तुम हो कि पकड़ जाते हो।" स्मरणीय घटना घटी। वहाँ हम बहुत देर रहा उन्होंने मुझे अपने सामने लिटा लिया, अपना जूता करते थे और श्रीमाताजी हमारे लिए खाना बनाया निकाला और वास्तव में मेरी रीढ़ पर जूते बजाए - बहुत जोर से- इतने जोर से कि मुझे सितारे नजर आ करतीं थी। खाना बनाने के लिए वहाँ पर नौकर भी थे परन्तु कभी-कभी वे स्वयं हमारे लिए खाना गए परन्तु उससे कार्य हुआ। उसके बाद मुझे लगा कि मैं बाधा मुक्त हो गया हूँ बनातीं और हम पर कार्य करतीं। ये सब अत्यन्त (Pat Anslow) गहन था। अपने दोनों हाथ श्रीमाताजी के चरण-कमलों के नीचे रखकर हम झुक जाते तथा एक शक्ति है और एक पावनता अन्य सहजयोगी आस-पास इक्ट्ठे हो जाते और मैं अभी तक पूरी तरह से मध्य में न था। तब ये कार्य कभी-कभी तो घण्टों तक चलता रहता ताकि उस व्यक्ति के चक्र शुद्ध हो सकें। पूरा तक मेरे अन्दर आज्ञा की समस्या बनी हुई थी। समय वह व्यक्ति अपना सिर श्रीमाताजी के चरणों श्रीमाताजी मुझे भिन्न रंगो में से निकलती हुई पर रखकर प्रणाम मुद्रा में बना रहता। अत्यन्त दिखाई देती थीं। कभी वे हरे इन्द्रधनुषी रंग में होतीं सुन्दर तरीकों से हमारी देखभाल करते हुए वे सभी और कभी सुन्दर लाल इन्द्रधनुषी रंग में। मुझे दिसम्बर 2005 चैतन्य लहरी 47 नवम्बर कि मेरी ऑण्टी मोरीन मुझे याद है उनके अन्दर से ये प्रकाश जैसी चमक दिखाई पड़ती। परन्तु वास्तव में ऐसा आज्ञा चक्र की (Maureen Rossy) कहा करती थी कि श्रीमाताजी समस्या के कारण था मैंने ये बात श्रीमाताजी से पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं के सम्पर्क में ज़्यादा बताई। उन्होंने कहा," ये सब तुम्हें दिखाई नहीं आती थीं और उनके साथ घुल-मिल जाती थीं। देना चाहिए।" उन्होंने कहा," एक शक्ति है और परन्तु उनके प्रवचनों आदि से आप देखेंगे कि भिन्न एक पावनता। मुझे वास्तव में वो रंग दिखाई देते थे, क्षणों में उनका कोई विशेष पक्ष अभिव्यक्त होता है, देख परन्तु उन्होंने बताया कि " सकते हैं तो इसका अर्थ ये है कि आप वास्तव में यदि आप ये रंग कभी तो वे अत्यन्त गम्भीर और शिक्षक सम होती हैं गुण है। और कभी अत्यन्त विनोदशील| उनमें ये मध्य में नहीं हैं आप एक ओर झुके हुए हैं।" परन्तु उन दिनों में वे अधिक गम्भीर नहीं होती थीं। मेरे विचार से शायद उन दिनों लोग उनकी ( Douglas Fry) पूर्णाभिव्यक्ति के योग्य न थे । नन्हें शिशु की तरह से मैं श्रीमाताजी को (Kavin Anslow) देख रहा था। मैं माँ को ऐसे देख रहा था जैसे एक नन्हां शिशु मैं स्रोत की तरह से हूँ देख रहा हो। कहने से अभिप्राय ये है कि जितनी श्रीमाताजी से ये मुलाकात मुझे याद है। हम बार भी मैं उन्हें देखता दौड़कर उनके गले लग सात या आठ लोगों को उन्होंने अपनी बैठक में इस जाता। ये कार्य ऐसा है जो आप बड़े होकर नहीं प्रकार से ध्यान करवाया। मोरीन, गस और पुराने कर सकते। बड़ा होने के बाद मर्यादाएं बदल जाती समय के लोगों में से Pat और Douglas वहाँ पर हैं। मुझे याद है कि मैं भी बड़ा हुआ। इस मर्यादा उपस्थित थे। एक स्थिति ऐसी आई जब माँ हमें का मुझे ज्ञान न था। मैं न जानता था कि मैं क्या सिखा रही थीं कि वे क्या हैं ? वे हमें अपनी करूं क्योंकि बुद्धिवादी सहजयोगी इसमें बुद्धि असलियत समझाने का प्रयत्न कर रही थीं। तब लगाने लगते थे। परन्तु मुझे याद है कि मैं दौड़ उन्होंने कहा, परमात्मा की शक्ति तो केवल मेरे कर श्रीमाताजी को गले लगा सकता हॅूँ। मेरे लिए पीछे चलती है। मैं स्रोत की तरह से हूँ और ये वे एक बड़ी की मित्र थीं। उन दिनों बात आयु शक्ति मेरे पीछे बह रही है।" तब हमें ये बात समझ बिल्कुल भिन्न होती थी। लोग आसानी से उन तक आई कि माँ हमें बता रही थीं कि वे कौन हैं। वे पहुँच सकते थे। चीजें आज की तरह से इतनी हमारे े मूलाधार चक्र पर कार्य करने का प्रयत्न कर गहन न थी कि कभी-कभी व्यक्ति माँ से मिल रही थीं। सके। পা दिसम्बर. 2005 चैतन्य लहरी 48 नवम्बर Gus कह रहा था कि उसने श्रीमाताजी को सात सहजयोगी बैठे हुए थे। ये कहना अनावश्यक श्रीगणेश के रूप में देखा। वह आश्चर्य-चकित हो होगा कि उन दिनों हम सब नए थे, कोई और न गया। इससे पूर्व उसने कभी श्रीमाताजी को इस था श्रीमाताजी अपने चप्पल मेज पर रखने लगीं- निःसन्देह ये जूते अत्यन्त अच्छे और सुन्दर थे। रूप में न देखा था| (Djamel Metouri) परन्तु हमें एक बात का ज्ञान न था कि श्रीमाताजी ऐसा इसलिए कर रही हैं क्योंकि उनके जूतों से बहने वाली चैतन्य-लहरियाँ बहुत तेज़ थीं तो मैं PC आदिशक्ति के जूते मुझे ऐसा लगता है कि आरम्भिक दिनों से ही मेज के इर्द-गिर्द बैठे मुट्ठी-भर आश्चर्य चकित मैने समझ लिया था कि श्रीमाताजी क्या कर रही लोगों की ओर देख रहा था जो मेज़ पर रखे श्रीमाताजी के जूतों के जोड़ो को देखते हुए थीं। मुझे समझ आ गई थी कि वे पूर्ण, महान सोच क्रान्ति और मानवता में विश्व स्तरीय परिवर्तन ला रहे थे. " क्या हम इन्हीं (जूतों) से विश्व को रही हैं। इस क्रान्ति के सम्मुख फ्रांस और रूस की क्रान्तियों तुच्छ परिवर्तित करने वाले हैं ?" मेरी गलती अपने चित्त को जूतों के स्थान पर दूसरे लोगों पर डालना थी। थीं। दूसरी ओर मैं अपने चहूँ और देख रहा था कि मुझे इस बात का ज्ञान न था कि जूते यदि आदिशक्ति के हों तो वे क्या कर सकते हैं। यदि मेरे किस प्रकार हमारा वहाँ पहुँचना सम्भव होगा मस्तिष्क में ये समस्या और तनाव था। ये ऐसा था हम विश्व को परिवर्तित कर सकते हैं तो निश्चित जैसे विशाल पर्वत की तलहटी में व्यक्ति खड़ा हो रूप से हमें श्रीमाताजी के इन जूतों को ऐसे और उसे इस बात का ज्ञान न हो कि चोटी पर सम्भालना चाहिए जैसे भरत ने अपने बड़े भाई श्रीराम के खडाऊ सम्भाले थे । चढ़ना कैसे है ! Gregoire de kalbermatten मुझे याद है अगस्त 1975 के एक दिन श्रीमाताजी के Hurst Green स्थित घर के मेज़़ पर लगभग (क्रमश) े जी ति ० १ स २ क ॥ि निर्मल धाम ALDIHA म ु यि ---------------------- 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी २] नवम्बर-दिसम्बर, 2005 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-1.txt MAISESTAS 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-2.txt (SHWA NIRMALA NIVERSAL PURE इस अंक में:- परम पूज्य श्रीमाताजी का प्रवचन- 30.1.1978 24 अहं एवं प्रति अहं 25 श्रीमाताजी की सहजयोगियों को सीख श्रद्धा 28 30 ज्यूरिक से एक पत्र परम पूज्य श्रीमाताजी का एक पत्र-लन्दन 2.6.80 32 श्रीमन सी० पीo श्रीवास्तव का स्वागत दिल्ली-4.1.80 33 सहजयोग का अलिखित इतिहास 41 DHARMA RELIGION 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-3.txt चै त न य ल ह री प्रकाशक निर्मल इन्फोसिस्टम्ज़ एवं टैक्नोलोजीज़ प्रा. लि. प्लाट न. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड, कोठरुड पुणे - 411 029 मुद्रक अमरनाथ प्रेस प्रा. लि. W.H.S 2/47 कीर्ति नगर, औद्योगिक क्षेत्र, नई दिल्ली-110015 मोबाइल : 9810452981, 25268673 आप अपने सुझाव, सदस्यता एवं जानकारी के लिए कृपया निम्न पते पर लिखें:- श्री जी.एल. अग्रवाल निर्मल इन्फोसिस्टम्ज़ एवं टैक्नोलोजीज़ प्रा. लि. 222, देशबन्धु अपार्टमैंट, कालका जी नई दिल्ली-110 019 फोन : 26216654, अपने अनुभव,सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ. पी. चान्दना जी-11-(463). ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली 110 034 दूरभाष : 011-55356811 (प्रातः एवं सायं) 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-4.txt परम पूज्य श्री माताजी का प्रवचन (30.1.1978) रजोगुण, स्वाधिष्ठान, लक्ष्मीपति पीछे भी हो सकता है। जैसे कमल की date होती ...........काम करने पे लग गए तो काम ही कर रहें है उस तरह वो लचीला होता है। उसके ऊपर है यही कहो सत्वगुण पर थे असल में, बहुत चक्र के ऊपर श्री ब्रह्मदेव का स्थान है और उनकी पहले फिर तमोगुण पर गए । रजोगुण की ओर पत्नी, पत्नी तो नहीं कहना चाहिए, क्योंकि वो कुमारिका ही रहती है सदा, उनकी सहचरी जो है गए। क्योंकि हम लोग अब developing बन गए हैं तो अब रजोगुण पर आ गए हैं। जब हम वो सरस्वती है या कहना चाहिए कि उनकी शक्ति के अंदर मनुष्य रजोगुण पर आ गए हैं तो मकान बनाने हैं. जो है वो सरस्वती है। इस चक्र को भी हम लोग बाहर से देख सकते हैं। इसे आँख से बड़े-बड़े महल खड़े करने हैं, कारखाने खोलने हैं। देश में बहुत सारा प्लास्टिक लाना चाहिए। अभी हम नहीं देख सकते, लेकिन इसका जो जड़ रूप थालियों में खाना खा रहे हैं, फिर प्लास्टिक में है इसका जो Gross रूप है उसे डाक्टर लोग Aortic plexus कहते हैं। इस चक्र में 6 पंखुड़ियाँ खाएँगे बाद में Paper में खाएँगे। Development हम लोग जो कर रहे हैं अपना। जिस वक्त आदमी . है उसी प्रकार Aortic plexus में भी 6 Sub plexus हैं। लेकिन डाक्टर लोग इस बात को नहीं अतिकर्मी हो जाता है.बहुत ज्यादा कर्म करने लगता है तो उसके अंदर स्वयं ही संतुलन बिगड़ मानेगे जब मैं कहूँगी कि इस चक्र का मुख्य कार्य जाता है। Balance बिगड़ जाता है। उसकी एक यह होता है के पेट में जो मेद है, जो fat है उसको मेंदू माने अपने मग जिसे कहते हैं, या आप विचित्र सी व्यवस्था अपने कुण्डलिनी योग में कुण्डलिनी Brain जिसे कहते हैं, उस brain के cells का बनाई गई है। जो स्वाधिष्ठान चक्र मार्ग में हैं, जिस चक्र से कुण्डलिनी गुजरती है. replacement करना। यहाँ का जो मेद है, जो fat जिस चक्र के कारण सारी सृष्टि की निर्मति हुई, है उसको evolve करके उसकी उत्क्रांति करके उसको इस योग्य कराना कि वो अपने brain का आकाश के ग्रह गोल, सारे तारे जिस चक्र के मारे इस संसार में आए, उस चक्र का स्थान हमारे भी cell बन जाए। जब हम बहुत विचार करते हैं, जब अन्दर पेट में है। ये चक्र नाभी चक्र से निकल कर हम बहुत planning करते हैं, जब हम बहुत सोचते हैं, जब हम रजोगुण को इस्तेमाल करते हैं उसके चारों तरफ हरेक angle में चलता है। आगे 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-5.txt दिसम्बर. 2005 चैतन्य लहरी नवम्बर तब ये कार्य बहुत वेग से होता है। इसमें गति आ शरीर आपको इशारा देता है कि अब देखो बेटे, जाती है। हर समय हम लोग सोचते ही रहते हैं। अब जरा काम धीरे करो। फिर बिस्तर पर लेट फिर हमारा सोचना भी नहीं बंद होता। पूरे समय जाता है आदमी। इसी imbalance के कारण छव हम विचारों के चक्कर में उलझ जाते हैं। एक heart fisher आता है और इसी imbalance के मिनट भी हम अपने विचार को रोक नहीं पाते। कारण ही diabetes बीमारी होती है। क्योंकि हजारों तरह के विचार हम एक के ऊपर एक अपने आपका जो Pancreas है उसका working खत्म ऊपर लादते जाते हैं और planning में लगे रहते हो जाता है । आपकी kidney का working खत्म हैं। ये कार्य अविरत होते रहता है लेकिन जब हो जाता है। इसी वजह से kidney trouble हो इसकी गति बहुत ज्यादा, जरूरत से ज्यादा बढ़ जाती है। Uterus में इतनी परेशानी हो जाती है जाती है तब इस चक्र के जो दूसरे कार्य हैं जिसे कि ऐसी औरतों को बच्चे नहीं हो सकते। बाँझ हो कि हम कह सकते हैं कि हमारा liver, हमारा जाती हैं। ये सारे imbalance के कारण आता spleen, हमारा pancreas हमारी kidney, हमारा और Medical Science में imbalance की कोई uterus इन सब चीज़ों को ये चक्र देखता है तो भी बातचीत नहीं है। हम लोगों ने diabetes उसमें कमी आ जाती है और कभी कभी रुकावट बिल्कुल हजार गुना ठीक किया है सहजयोग में। सी आ जाती है क्योंकि एक ही कार्य में फिर हालाँकि हम ठीक नहीं करेंगे । इसकी वजह है कि संलग्न हो जाता इसलिए जो लोग दिमागी कार्य आप सब diabetes यहाँ इक्ट्ठा न करें लेकिन जो ज्यादा करते हैं उन्हीं को Diabetes की बीमारी सहजयोगी पार हो जाते हैं उनका diabetes ठीक होती है। उन्हीं को heart- attack आता है। क्योंकि हो जाता है। ऐसा ही समझिये, as a by-product I right side बहुत चलाने से left side जो है वो Diabetes के कारण की आँखे कमज़ोर हो मनुष्य उसको balance देने की कोशिश करता है बहुत जाती हैं, आप जानते ही हैं, कभी-कभी एकदम आदमी जब काम करता हैं तो आश्चर्य की बात है अंधा हो जाता है। वो देख भी नहीं पाता Diabetes कि गर आप शारीरिक श्रम कर रहें हैं, Physical से अनेक रोग और हो सकते हैं क्योंकि अंदर से labour कर रहें हैं तो आपका heart नहीं पकड़ना मनुष्य कमजोर होते जाता है। किडनी में यूरिया चाहिए क्योंकि heart तो emotional चीज है। बढ जाना और इसी प्रकार की जितनी भी left side की बीमारियाँ हैं वो right side के अतिकर्म से Heart तो emotion से चलता है लेकिन balance के लिए Heart attack आ जाता है और आपका होती हैं। और फिर विचार का भी ऐसा हो जाता 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-6.txt दिसम्बर, 2005 चैतन्य लहरी नवम्बर है कि जब मनुष्य विचार को अत्यंत जोर से गति मिलेंगे जिन्होंने Drug अभी तक चखी नहीं । सोचिए वेग से करता है तो उसके brain में भी एक तरह आप! सोचिए कितनी हद हो गई वहाँ पर ! और का momentum बन जाता है, माने फिर वो इसे कम से कम 30 फीसदी लोग वहाँ पर ऐसे हैं जो regularly इसमें से regularily जिसको कहते हैं रोक नहीं पाता और वो इस कदर बेतहाशा पागल की तरह से सोचने लग जाता है। अब west में drug लेते हैं। 13 साल की उमर से लोग वहाँ इस तरह के अनेक लोग हैं। इसीलिए जहाँ पर drugs लेना शुरु करते हैं। ये escape हो गया कि रजोगुण अतिशय पे पहुँच गया, जहाँ पर कि शुरु। ये natural है क्योंकि जब आप इस कदर रजोगुण उसके अंतिम extreme पर पहुँच गया, परेशान हो जाएँ अपने विचारों से कि अब जी नहीं वहाँ लोग अब drugs लेने लग गए। वैसे भी सकते हैं तो कहीं न कहीं अपने से भागिएगा आप। रजोगुणी शराब पीते हैं, अधिकतर । रजोगुणी इसलिए अपने को देख नहीं पाइयेगा। अपने को face नहीं श्राब पीते हैं कि उनको लगता है कि इससे कुछ कर सकते। उसके साथ फिर और भी चीज़े जुड़ती balance आता है। Escape है। मस्तिष्क की जो जाती हैं। उसके बाद जो sex वगैरह की बातें हैं अत्यंत क्रिया होती है उससे बचने के लिए उससे वो भी उसी का balance है । किसी भी अतिशयता 1 escape के लिए ये लोग शराब पीते हैं पर में जाने पर दूसरी अतिशयता जीवित हो जाती है इसका वो इलाज़ नहीं । फिर आप तमोगुण में आ और वो भी इतनी बुरी तरह से आपको खीचती है गए। और जितने अति से आप दूसरी अति में पहुँच कि फिर वो उधर की अतिशयता फिर आपको जाइए फिर उतनी ही अति से आप उस अति पर दूसरी side पर फेंकती है। इसी उधेड़बुन में इसी पेन्डुलम के जैसे दौड़ते रहिए एक अतिशयता गर दौड़धूप में, मनुष्य collapse हो जाता है। मनुष्य आपने ले ली तो आप दूसरे अतिशयता पर पहुँचते खत्म हो जाता है और इसीलिए वहाँ पर इस कदर हैं। जब आपने अतिशय एक तरह से नशा चढ़ा आत्महत्याएँ हो रही हैं और लोग समझते नहीं कि लिया, काम करने का अति काम करने का, तो जहाँ इतना affluence आ गया जहाँ इतनी उन देशो में जहाँ कि अत्यंत Planning हो गई, सुबधता आ गई वहाँ लोग क्यों मर रहे हैं ! उनके हरेक चीज़, जहाँ पर बिल्कुल रजोगुण की अति हो बच्चे हैं, वो अपने माँ बाप को छोटी उम्र में छोड़ देते गई है, वहाँ अब आपको यंग लड़कों में, 30 साल हैं। बुड़ढे लोग अनाथालय में पड़े हुए हैं। छोटे के नीचे बच्चों में, या समझलीजिए 35 साल के बच्चे अनाथ बने हैं। शादियाँ ,एक-एक आदमी नीचे के लोगों में आपको 100 में 2 या 3 ऐसे दस-दस बार करता है। उसमें भी इतनी विकृति, 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-7.txt दिसम्बर, 2005 चैतन्य लहरी 7. नवम्यर मैंने कल आपसे बताया था कितने विकृत हो गए। असर उसके मानवता के साथ लगे। माने मनुष्य यानि उनकी विकृति की भी हद हो गई। अब हम जो है वो बड़ा रईस हो जाए, बहुत पैसे वाला हो जाए तो जरूरी नहीं है कि वो बड़ा शरीफ आदमी लोग रजोगुण पर उतर रहे हैं, ठीक है। लेकिन उसकी भी मर्यादाएँ बॉधनी पड़ेंगी। इसलिए हमारी हो जाए। हो सकता है कि उससे बढ़ कर दुष्ट मर्यादाएँ बाँधने के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम कोई न हो। गर कोई बड़ा विद्वान और पण्डित हो रजोगुण के उपर में रखा दिए गये कि अपनी जाए तो ज़रूरी नहीं है कि ऐसा मनुष्य कोई बड़ा मर्यादाएँ बाँधनी पड़ेंगी। हम लोगों का सारा जीवन भारी धर्मात्मा हो जाए। बिल्कुल जरूरी नहीं है। ही मर्यादाओं मैं बंधा हुआ है। लेकिन रजोगुण की उससे बढ़ के कुरूप कोई नहीं होएगा। सुनते हैं जब डोरी चढ़ती है, तब मर्यादाएँ कि जो माफिया वाले हैं उनके जो साहब जादे हैं बुरा तरह से टूटती हैं। अब आप developing countries हो उन्होंने 0xford University, Cambridge Univer- रहे हैं तो developing जब आपने शुरु कर दिया sity और John Hopkin University सब जगह से out of proportion तो आपने कह दिया कि हम पास किया हुआ है। और आजकल धंधा क्या करते गरीबी हटा रहे हैं इसलिए हम development हैं माफिया के लीडर के लड़के हैं और सबका कर रहे हैं। लेकिन गर आपने 1 रुपया भी ज्यादा murder करते फिरते हैं। तो उस मार्ग का ज़रूर अपने नौकर को दिया और वह गर शराब या अवलम्बन करें जिससे मनुष्य का सम्बंध उसके सिगरेट पीने लग गया तो वह गरीब नहीं। खत्म मानवता के केन्द्र आत्मा से हो जाए। गर उसका उस केन्द्र से सम्बंध स्थापित नहीं हुआ तो आप हो गया उसकी गरीबी खत्म हुई वहाँ पर। जब मनुष्य किसी भी व्यसन में पड़ता है तो सोच लेना उसका कितना भी development कर दें, हम चाहिए कि वो अब गरीब नहीं रह गया । आपको उदाहरणार्थ बताते हैं कि हमारे यहाँ ship- व्यसनाधीन तभी आदमी होगा कि जब उसके ping corporation में सब ड्राइवरों की तनख्वाएँ पास थोड़ा इतना पैसा होगा। इसका मतलब ये बढ़ाई। उन्हें एक एक को हजार हजार रुपये नहीं कि किसी को गरीब रखा जाए। ये मैं नहीं तनख्वाह मिलने लग गई। थोड़े दिन में उन सबकी कह रही। इसका मतलब ये है कि जब तक मनुष्य पत्नियाँ आई और कहने लगी "माताजी, साहब ने के अंदर ऐसी कोई घटना घटित नहीं होती है कि सबकी तनख्वाह क्यों बढ़ा दी?" मैं ने कहा "क्यों ?" कहने लगी कि पहले 4 सौ कमाते थे तो जिसके कारण उसका जो कुछ भी material सुख में थे, अब सब लोग शराब पीने लग गए हैं development है, जड़ development है उसका 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-8.txt चैतन्य लहरी दिसम्बर, 2005 नवम्बर ৪ और इन लोगों ने औरतें रख ली हैं और अब अड्डे आपके आत्मतत्व पर पहुँचती है और तब आत्मा का पर पड़े रहते हैं। घर आते ही नहीं, रात भर। जो प्रकाश है इन चक्रों से गुज़रता हुआ जाता है पहले बेहतर थे चार सौ तक तो वो balance और मनुष्य समझ लेता है कौन सी चीज़ ठीक है कर पाए उसके बाद जरा सा ज्यादा पैसा हो गया और कौन सी गलत है। क्योंकि गर आप कोई तो शराब शुरु कर दी । इसका मतलब बिल्कुल गलत काम करना चाहेंगे तो आप नहीं कर सकते, नहीं है कि उन्हें 4 सौ ही दिया जाए, पर उनको मुश्किल हो जाएगा। उसकी वजह ये है कि आपके balance दिया जाए जिसके कारण वो उस लक्ष्मी अंदर एक नई चेतना आ जाती है जिसे Vibratory को सँवार सकें। नहीं तो पैसे वाले हो जाएँगे awareness कहिए जिसे चेतनात्मक awareness राक्षस पर लक्ष्मीपति नहीं। इसका connection कहें। आप कह सकते हैं, जिसे आप चैतन्यमय हमारे अंदर से उस आत्मतत्व से जुड़ना चाहिए चेतना कहें। उस चेतना के प्रकाश में आप समझ जिससे मानवता पनपती है। जब तक ये सकते हैं कि ये चीज अच्छी है कि बुरी है। गर connection नहीं हो गा सारा आपका आपने कोई बुरा काम किया तो आपके Vibrations education व्यर्थ है इसीलिए सूरदास जी ने भी एक दम से रुक जाएंगे। आप गर Vibrations से कह दिया कि 'सूरदास की सभी अवद्या दूर करो पूछे कि फलां आदमी शरीफ है या बदमाश है, गर नन्दलाल ।' सारा education प्राप्त करके भी जब आपके Vibration रुक गए तो समझ लीजिए ये तक आपने आत्मतत्व का प्रकाश उस education निहायत शैतान आदमी है। यही Vitbrations बहुत पर नहीं लिया तो education आपका भी व्यर्थ हो की वजह से आप समझ पाइयेगा कि परमात्मा है जाता है, उसका कोई भी अर्थ नहीं लगता। या नहीं। जितने आपके बुनियादी प्रश्न हैं absolute इसलिए अत्यंत आवश्यक है के आप अपने guestion उनका जवाब आपको इन्हीं चैतन्य की आत्मतत्व को पाएँ। तब आपको हरेक चीज़ का लहरियों से मिल सकता है। कोई चीज़ सत्य है या अर्थ लगेगा जो ये सातों चक्र हैं आपके अंदर यही ही असत्य है ये जानना इस कलयुग में बहुत वो मानवता के अनेक अंग हैं जिसको पिरोती हुई कठिन कार्य है कारण हम लोग Confusion की कुण्डलिनी अंदर से जाती है. इसीलिए वो सबको वजह से इस कोलाहल की वजह से बिल्कुल ही समग्र करती है. Integrate करती है जब अपरिचित हो गए हैं किसी भी संवेदना से किसी भी कुण्डलिनी इन सबसे गुज़रती है तो इन सब तत्वों sensitivity से और इस वक्त गर ये sensitivity पर चलती हुई तत्व को integrate करती हुई जो और अति सूक्ष्म sensitivity है, संवेदना है सूक्ष्म 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-9.txt चैतन्य लहरी दिसम्बर, 2005 नवम्बर जब आपके अंदर आ जाती है तो आपको चाहिए उसको अपने प्रति प्रेम नहीं है। उसमें आत्मसम्मान नहीं है तभी वो अपने जीवन के हरेक क्षण को व्यर्थ कि आप इसको जमाएं। कोई अगर चाहे कि थोड़ा किए चला जा रहा है। गर वो अपने अंदर जागरूक सा हम करके माताजी क्यो नहीं हमारे अंदर हो हो और सोचे कि मैं अपने जीवन को कहाँ बरबाद जाता। सो बात नहीं है। हाँ आपका connection तो हम जोड़ देंगे लेकिन अभी आपका ढीला-ढाला कर रहा हूँ, किस जगह मैं अपने जीवन को खराब है। उसको ठीक से जमाना होगा, किए दे रहा हूँ, तो वो समझेगा कि अरे ये भी क्षण connection उसको सूक्ष्म साध से जमायें। गर आपको अपने व्यर्थ गया, वो भी क्षण व्यर्थ गया . वो भी क्षण व्यर्थ प्रति इज्जत हो, आप गर इसको विशेष रूप से गया ! कोई ऐसा भी क्षण हो जहाँ कोई जीवन्त कोई चीज़ समझते हों तो आप जरूर प्रयत्न शक्ति का हमारे अंदर प्रदर्शन हो या हमारे अंदर से जीवन्त शक्ति प्रकाशित हो। यही स्वार्थ है। स्व करिये। गर आप अपने प्रति जागरूक नहीं हैं और का अर्थ खोज लेना ही स्वार्थ है बाकि सब जो है आप अपने जीवन का कोई भी अर्थ नहीं समझते ये माया का खेल है। मनुष्य सोचता है, इसमें स्वार्थ और जीवन को अब तक आपने व्यर्थ ही किया है है। लेकिन जब मिलेगा, उसमें स्वार्थ है, उसमें स्वार्थ और आगे भी व्यर्थ ही करना चाहते हैं तब फिर मिलता होता तो कहीं चिपक के रह जाता। कहीं सहजयोग आपके लिए बिल्कुल व्यर्थ है । आप आएंगे यहाँ, पार हो जाएगें लेकिन इसकी गहराई भी स्वार्थ नहीं मिलने वाला। स्वार्थ स्व का अर्थ में आप नहीं उतर सकते। इसमें बैठना पड़ता है, समझने से ही स्वार्थ घटित हो सकता है। और इसकी बैठक होती है। गर आप अपने जीवन का इसलिए स्व का अर्थ ही नहीं समझना है बल्कि वास्तविक अर्थ इसमें बिठाना चाहते हैं तो अपने उसमें एकाकार होना है । इसी को हम सब सूत्रों पर आपको ठीक से व्यवस्थित रूप से Medical terminology में ऐसे कहें गे कि पकड़ना चाहिए। और उसमें विश्वास होना चाहिए Parasympathetic nervous system पर नहीं तो आपका आना जाना बेकार हो गया जैसे control आ जाना चाहिए अब doctor कहेंगे कि ऐसे कैसे हो सकता है। हाँ इन लोगों से नहीं हो कि किसी ने हाथों में सितार पकड़ ली और उसको झंकार कर दिया तो क्या वो सितार मे निपुण तो सकता है। डॉक्टरी से नहीं हो सकता है। किसी नहीं हुआ। लेकिन मनुष्य कलयुग में अपने जीवन भी विद्वान से नहीं हो सकता है। किसी पढ़ने ने योगेण न के प्रति जागरूक नहीं है उसको अपने प्रति लिखने से नहीं हो सकता है। साँख्येन" किसी भी चीज से नहीं हो सकता है। ये सम्मान नहीं है। वो अपना सम्मान नहीं कर पाता। 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-10.txt दिसम्बर, 2005 बैतन्य लहरी नवम्बर 10 पहले ही कह दिया है। अरे कितने वर्षों पहले से आदमी चिल्ला रहा है. कोई भी आदमी। दूसरा भी कह दिया है। हजारो वर्षों पहले से कह दिया है आदमी चिल्ला सकता है चाहे उसकी कुण्डलिनी कि ये ऐसे नहीं हो सकता है। इसमें माँ की कृपा जागृत हो चाहे न हो। ये तो सभी कुछ आप कर चाहिए। ठीक है। आप में से जो लोग यहाँ आते हैं सकते हैं। कुण्डलिनी का स्पंदन नहीं आप दिखा वे सब इसको पा सकते हैं, लेकिन हर इंसान नहीं सकते। आप अपनी आँख से देखिएगा कि कुण्डलिनी पाएगा ये भी बात मैं कहूँगी हरेक नहीं पाएगा। त्रिकोणाकार अस्थि में स्पन्दित होएगी या कहीं तो कल साहब एक साहब आए वो नहीं पाए बहुत side पर स्पन्दित होएगी। आप अपनी आँख से मेरे पे बिगड़े। उन्होंने बहुत बहुत तमाशा किया। देख सकते हैं, ये आप नहीं कह सकते कि एक चिल्लाने लग गए । ये सब झूठा propoganda चल किसी portion में ही pulsation शुरु हो जाएं धड़ रहा है और ऐसा है और वैसा है। उन्होंने बहुत धड़ धड़ धड़। तूफान मचा दिया। जब वो आए थे तभी मैंने उनको ये तो आप नहीं कर सकते। कोई कर के दिखा पहले अपने पास बुला लिया। बेटे तुम मेरे पास दे आओ। एक तो उनको कोई बीमारी है गन्दी अंदर । पर कोई भी चाहे नाच सकता है। कोई भी चाहे में और उनके अंदर भूत बाधा भी काफी थी। तो कूद सकता है। चीख सकता है। तो आप ये कहिएगा तो अकस्मात् अगर कोई चीखने लग पहले मैंने बुला कर उनसे कहा कि तुम ठण्डे बैठे जाए. चिल्लाने लग जाए और कूदने लग जाए तो रहना जरा, लेकिन वो विचलित हो गए और क्या होगा ? तो उसका सीधा नाम है कि उनको चीखना चिल्लाना शुरु कर दिया। कुण्डलिनी बहुत भूत बाधा हो गई। जब भी कभी किसी को भूत लोगों का कहना है कि जागृत होती है तो कूदना बाधा होती है तो वो ऐसे ही करता है। उसके अंदर पड़ता है, नाचना पड़ता है और फलाना होता है ढेकाना होता है। जो चीज आप कर सकते हैं वो कोई और आदमी आने की वजह से वो आदमी चिल्लाने लगता है। चीखने लगता है, कुछ भी कुण्डलिनी नहीं हो सकती। सीधा हिसाब है। आप करने लगता है। कल हमारे बीच एक साहब आए नाच सकते हैं आप चाहे तो। एक आदमी नाच रहा थे मैंने आपसे बताया था कि वो पूरा हठयोग का है, समझ लीजिए। अपने आप से नाच रहा है. व्यायाम मेरे सामने करने लगे, पूरा। यहाँ तक कि किसी भी वजह से नहीं नाच रहा है, तो आप कैसे मैंने ही उनका आना बंद कर दिया कि अब उनकी जानिएगा कि ये कुण्डलिनी है, क्योंकि कोई भी आदमी नाच सकता है ? सीधा हिसाब है। कोई अंतड़ियाँ बाहर निकल आएंगी। इसको भी ये 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-11.txt चैतन्य लहरी दिसम्बर, 2005 नवम्बर 11 । और वो अविरत करते थे। बगैर जाते हैं। जितने भी Mental diseases हैं, ESP छोड़ेगें नहीं किसी effort के करते थे उन्होंने कभी हठयोग हैं, पहले से किसी की खबर आ जानी, ये सब कर्ण नहीं सीखा था। उनके अंदर कोई भ्रष्ट हठयोगी पिशाचादि के बारे में अपने शास्त्रों में अनेक कुछ घुस गया था। वो हर तरह के नक्शे मेरे सामने लिखा हुआ है। लेकिन हम कहाँ ? हम तो हिन्दी कर रहा था यहाँ तक इस तरह के भूत बाधा के भी नहीं पढ़ते फिर संस्कृत तो बहुत दूर की चीज़ लोग है, आपको आश्चर्य होगा कि वो मेरे ऊपर है। वो तो भाषा English लोगों की हो गई अब । अनेक कविता लिखते हैं। शुरु शुरु में जब सहजयोग हम लोग तो English पढ़ते हैं । हमारे शास्त्रों में शुरु किया था तब बम्बई में एक नौकरानी जो कि सब कुछ लिखा हुआ है कि इस तरह की चीजें बर्तन माँजती थी, जिसे घाटिन कहते हैं, उसने घटित होती हैं और उससे मनुष्य बहुत दुःखी हो आते ही बड़े जोर जोर से श्लोक गाने शुरु कर जाता है। कुछ लोग हैं. अपने को बड़े बड़े लोहे के दिए। 15 श्लोक देवी-महात्म्य के मेरे सामने गाए। जंजीरों में अटका लेते हैं और पेड़ों पर लटका कर और पुरुष के जैसे खड़े-खड़े संस्कृत में इस तरह दिखाते हैं। ये खास कर आदिवासियों में तो बहुत सुनाए कि लोग दंग रह गए कि संस्कृत में इस यह प्रथाएँ चलती हैं। अजीब- अजीब तरह की कदर पांडित्य इस नौकरानी में कहाँ से आ गया! बिल्कुल आग जला कर उसके ऊपर चलना, भूत विद्या, अफ्रीका में भी बहुत तरह तरह की होती हैं। ये इतने बड़े बड़े देवी के श्लोक कैसे सुना रही है! बड़े आश्चर्य चकित हो गए । उसकी वजह ये थी हरेक देश में अजीब अजीब तरह की भूत विद्याएं कि उसके अंदर एक पंडित आ गए थे और वो होती हैं। तो मनुष्य ये सोचेगा कि ये तो विशेष श्लोक सुना रहे थे। मैंने उन पंडित साहब से कहा तरह की चीज़ हो ही गई कि ये भई आग पर चल बंधन देकर, मैंने कहा आप जाइये यहाँ से। आप दिए। इस प्रकार अनेक तरह की चीजें इस देश में पहले से होती रहीं हैं और अब उन देशों में हो रही इस औरत में आ कर क्यों परेशान कर रहे हैं मुझे। उसने कहा माँ मैं कब आऊँगा, फिर मैं कब पैदा हैं जहाँ रजोगुण अति पे पहुँच गया है । रजोगुण होऊँगा, फिर मैं तुम्हारे कब गुणगान गाऊँगा ? अति पे पहुँचते ही साहब आपके देश से अनेक भूत इसलिए मैं यहाँ चला आया। उस समय बहुत से विद्या वाले experts वहाँ पहुँच रहे हैं। सबको वहाँ हमारे सहजयोगी थे, उन्होंने भी बात सुनी। mesmerise करना शुरु कर दिया। सब पर उन्होंने छाप डाल दी। लाखों रुपया, करोड़ों रुपया मार्कण्डेय से ले कर के उससे भी अनादि काल से लोगों ने बताया कि भूत-पिशाच आदि सब चिपक उन्होंने बनाया, बड़ी-बड़ी जगहें बनाई। अब वही 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-12.txt दिसम्बर 2005 चेतन्य लहरी नवम्बर 12 भूत उनको खाएँगे। खाते ही हैं और वो शुरु हो खराब करने की बात है सिर्फ सत्वगुण में रहने गया। अब वो परेशान हैं। ये पैसे उनको नहीं बचा से मध्यम-कार रहने से, मध्यम स्थिति में रहने से सकते। और उन लोगों को भी भूत खाते हैं। कल मनुष्य गुणातीत हो सकता है। क्यों ? इसकी जो भी मैंने बताया था मैं साफ तरह से आपको बताना गति है, ये मध्यम में जो लाईन है, जिसे आप देख चाहती हूँ मुझे किसी से भी डर नहीं कि रहे हैं, जिसे सुषुम्ना नाड़ी कहते हैं, उसी से Transcendental Meditation करने वाले लोग उसकी गति होती है, और उसी से वो आदमी आज मेरे पास 132 आदमी बराबर London में ऊपर उठता है। कुण्डलिनी सुव्यवस्थित ऊपर और सब कहते हैं माँ हमारे सर में blockage उठती है उसका उठाने वाला चाहिए। कुण्डलिनी आए बराबर अपने रास्ते से उठ कर ब्रह्मरंध्र को छेद हो गया, माँ इसे निकाल दो। देती है, उसका जानकार चाहिए। जिसको देखो कल मैंने बताया था आज फिर बता रही हूँ कि वही कुण्डलिनी ले कर के बैठ जाने से वो कुण्डलिनी माँगना चाहिए. आत्मशक्ति को । आत्मशक्ति रजोगुणी नहीं होती, आत्मशक्ति तमोगुणी नहीं होती है वाला नहीं होता। फिर एकाध Minister उससे चिपक जाए तो और भी अच्छा ! कोई Minister आत्मशक्ति सत्वगुणी भी नहीं होती है। वो गुणातीत, सबसे परे बहती हुई, अंदर से शक्ति स्वरूप अपने हो जाने से वो कुण्डलिनी का बड़ा भारी वो लाटसाहब नहीं हो सकता। अंदर से बहती रहती है। वो किसी भी गुणों के अंदर लिपटने वाली शक्ति नहीं है। वो निर्वाज्य कबीर दास कहाँ के Minister थे ? कितनी है। किसी से लिपटती नहीं। आत्मा की शक्ति धड़ पढ़ाई की थी कबीर दास जी ने ? कौन सी धड धड़ धड़ अंदर से ऐसे बहती है जैसे गंगा University , School में पढ़े थे वो ? तुकाराम जी। उसकी शक्ति का, उस शक्ति के कोई कौन सी University Sch0ol में पढ़े थे कहाँ के प्रर्दशन आप नहीं कर सकते। गर आप चाहें कि वो Minister थे ? कहाँ के राजा थे वो ? इतना चलिए इस शक्ति को घुमा करके चार आप अगूँठी ज्ञान कहाँ से पाया ? ज्ञानेश्वर कहाँ के पढ़े लिखे सी चीजें निकाल दें और ये हो और ऐसी फालतू थे ? कहाँ उन्होंने इतना ज्ञान पाया ? कौन सी चीजों में इस शक्ति को कोई interest नहीं होता। पाठशाला में गए थे वो ? परमात्मा के साम्राज्य में अगूँठी, अगूँठी होती क्या चीज़ है ? पैर की धूल के उतरने की बात है जब मनुष्य परमात्मा के साम्राज्य में आ जाता है तो उसके कायदे कानून बराबर भी नहीं है। ये सब आपका attention 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-13.txt दिसम्बर 2005 चैतन्य लहरी 13 नवबर देखने लगता है तो हँसी आती है regulations हैं और उसकी जो planning है उसके कि इस कायदे कानून का क्या करना ? अभी कोई साहब ने मुझसे साथ एकाकार होना चाहिए। पृथ्वी जिस तरह से कहा कि "माताजी अब इस देश में हमारे लिए अपने प्रेम को उगाल रही है संसार में और फैला कोई Leader नहीं रह गया, अब आप ही रही है उस पृथ्वी तत्व के proportion में उस पृथ्वी Election लड़ो। अरे मैंने कहा "कहाँ की बात तत्त्व के उगालने के proportion में ही आपको करते हो" । राजा के घर में रहने वाले लोग production करना चाहिए पृथ्वी जिस तत्व से भिखारियों के घर में आ कर नहीं रह सकते। उगाल रही है, आज जिस तरह से बह सृष्टि पर भिखारियों का Politics ये कि किससे भीख बना रही है उसके out of proportion आप बनाना माँगे ? किसका रुपया बचाएँ, छी छी छी। ये सब चाहते हैं, रजोगुण में माने London में गर आप चीज़े हमारे बस की नहीं। हम तो बादशाह आदमी जाएँ तो शराब पीने के सिर्फ गिलास आप लेने जाएँ हैं हमें कहाँ फँसा रहे हो हमने कहा, ये तो तो कम से कम 15 हजार आपको खर्चा करना भिखारियों के राज्य हैं हमारे बस का नहीं। उसी पड़ेगा। पहले तो शराब आप बनाओ जो कि बिल्कुल में आप बादशाहत में ऊतर सकते हैं अगर आप ही गलत चीज है फिर उसको पीने के लिए जरूरी चाहें तो अपनी बादशाहत में उतरिये। वो तभी हो है उसके आप उसके प्याले बनाओ। England में सकता है जब आप परमात्मा के राज्य में आप गर Scotch Whisky बंद हो जाए तो देश डूब आते हैं, तभी आप असल में बादशाह होते हैं। जाएगा क्योंकि उनके पास दो ही चीजे हैं, एक तो बाकी आप कभी बादशाह नहीं हो सकते। पैसे वाले उनका Scotch Whisky है दूसरे उनका cristle नहीं हो सकते। कुछ नहीं हो सकते सब व्यर्थ है, है। जब मनुष्य बाहर बढ़ने लगता है तो वह दूसरों सब भिखारी हैं। दीन बनकर खड़े हुए हैं कि साहब की कमजोरियों पर ही चलने लगता है। गर कमजोरी हमारा ये काम करवा दीजिए। घधिधिया रहे हैं नहीं हो तो क्या दरकार होगी उसे चीजों की। भगवान से भी जा कर के कि भगवान मुझे तुम उसको कमजोर बना दिया जाता है। जिस प्रकार फलानी चीज दे दो। भई कि औरतों में है कि भई तुम्हारी body ऐसी होनी चाहिए. तुम्हारी शक्ल ऐसी होनी चाहिए. में आदमी अपनी शान में खड़ा बादशाहत रहता है। उसकी शान अत्यंत सौम्य और प्रेममयी तुम्हारे अन्दर ये चीज़ होनी चाहिए। औरतें लगी 1 होती है। अत्यंत दयामयी, कल्याणमयी और खर्चा करने। उनके अंदर वो कमजोरी डाल दी। मंगलमयी होती है। परमात्मा के जो rules और Race का घोड़ा जरूर खेलना चाहिए गर आप 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-14.txt दिसम्बर, 2005 चेतन्य लहरी 14 नवम्बर London में रहते हैं नहीं तो आप वहाँ के सभ्य comfort मनुष्य को क्या जरूरत है कि हर नहीं हैं, Elite नहीं हैं आप। आपको Race के समय वो लोटता रहे ? क्योंकि शराब के बाद घोड़े का सब आना चाहिए। गर आप Paris में लोटना जरूरी है। लोटने के लिए comfort जरूरी रहते हैं तो आपको शराब के बारे में सब पता होना है और comfort जरूरी है तो उसके लिए हर तरह चाहिए कि शराब का मतलब क्या होता है. उसको की चीज में कुशन बनना चाहिए। ये फलाना कितना मिलाना चाहिए, उसमें कितना घोलना ढिकाना बनना चाहिए. उसमें वो चीज होना चाहिए। चाहिए। मुझे आश्चर्य हुआ कि यहाँ पर भी इतनी ज्यादा विद्ूपता है, मैं आपसे कहती हूँ Government का जो College है जहां पर कि इतनी Ugliness आ गई मनुष्य के अंदर और बच्चों को Hotel Management सिखाते हैं उसमें उसमें शर्म नहीं आती कि उसने बड़े-बड़े Science दो पेपर होते हैं जिसमें शराब के बारे में सिखाया बनाएँ है। शराब पिलाने के भी Science बनाएँ हैं। जाता है कि कौन सी शराब दी जाए और कौन सी फिर औरतों को किस तरह से खूबसूरत रहना नहीं दी जाए। नहीं तो आपके Hotel ही नहीं चाहिए ? उनको tanning करना चाहिए। चाहे चलेंगे। होटल में गर में शराब नहीं पियेंगे तो वो उसमें शर्म उतर जाए उनकी, हर्ज नहीं पर उनका रहेंगे ही नहीं। तो पैसा कैसे आएगा ? आपके body जरूर tan होना चाहिए। उन्होंने एक चक्कर अंदर जितनी कमजोरी होएगी, उतना ही रजोगुण चला दिया वहाँ tanning का। अरे भई आपको प्रवल हो सकता है। गर आप 2 ही चार कपड़ों में अगर सूर्य की रोशनी ले है तो बदन पे आपके रह लेते हैं और मस्ती में रहते हैं तो इनकी कपड़े गर कपड़ा रहे तो कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। सूर्य की मिलें कैसी चलेंगी ? गर आप सादगी से रहते की रोशनी तो आपके अंदर जाती है। लेकिन हैं तो इन लोगों का व्यापार कैसे चलेगा ? अमेरिका tanning होना चाहिए, उसके लिए इस तरह नज़ारे गर जाइएगा आप तो 50 तरह के हैन्डलेज होते होते हैं कि आप चल नहीं सकते किसी भी हैं। यहाँ तक कि खपरैल जो सर पर होती है, वो sea-shore पर। एक दिन ये सारे sea-shore हजारों तरह की होती है। किसी के Bathroom सुकड़ करके इन सारी औरतों को खींच लेगा में गर जाएँ तो पहले पूछ लीजिए कि कौन सा समुद्र अपने अंदर। तब इनकी अक्ल ठीक होगी। knob दबाएँ, नहीं तो आप अंदर पहुँचे और गए निर्लज्जता संसार में फैलाना चाहिए क्योंकि निर्लज्ज खड्ड में। इतना तमाशा करने की क्या जरूरत नहीं होएगे तो इनके coSmatics कैसे बिकेंगे है ? इस कदर आराम पसंदगी, इतना ज्यादा इन्होंने जो जो चीज़ इन औरतों को बेवकूफ बनाने ট 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-15.txt चैतन्य लहरी नवम्बर - दिसम्बर, 2005 15 के लिए बनाई हुई हैं वो कैसे लेगें ? अब तो देवियाँ हैं। इसीलिए आदमियों की कितनी भी बड़ी गलतियाँ होने पर भी ये देश रुका हुआ है। आदमी कुछ-कुछ जरा सा अपने देश में अक्ल आ गई है औरतों को, पहले तो मैं देखती थी कि यहाँ पर एक लोग तो सब साहब ही हो गए, उनको तो कोई डालडा का टिन लगा कर औरतें चलती थी। तो कुछ कह नहीं सकता, उनको तो कहना बहुत ही मुश्किल हो गया है। सब साहब हो गए हैं अब मैने कहा, इस पर एक lecture दिया कि बाबा कम देसी चीज़ जो है वो बिल्कुल बंद। गर आप, दिल्ली से कम डालडा का टिन कम करो। हील्ज पहनेंगी तो इतनी ऊँची-ऊँची पहनेंगी ! आखिर कोई आप में मैने सुना कि आप कहीं जाइए और दारू नहीं ऊँट बनना चाहते हैं ? आप इंसान हैं भगवान ने पीते हैं तो लोग हँसते हैं आप के ऊपर कि साहब अभी तक आप पूरी तरह से बंदर नहीं बने और आपको कायदे का बना दिया है। किसलिए इतने जब तक बंदरों की दुमें नहीं कटती तब तक और परेशान है ? Beauty Contest बना रहें हैं, बताइये भी उनको खुशी नहीं होती कि जब तक अपने दो आप ! बिल्कुल अजीब, बहुत ही ज्यादा विकृत और चार लड़कियोँ इधर-उधर से ला करके और विद्रूप चीज़ है ये, क्योंकि जब असली रूप होता है को देखते ही सब पूर्णतः संतोष में नचाया नहीं तो आप गए काम से गए। आजकल तो मनुष्य रूप यहाँ के बुड्ढो को शौक हो गया है कि हम उल्लू आ जाता है। ये रूप का लक्षण है कि बस अब रूप का अंत आ गया इससे आगे रूप नहीं है। वही बने। वो एक हमने नागपुर हमारा है देश जहाँ हम रहते थे, वहाँ के लोग कुछ क्रूर जरूर है पर असली रूप होता है। लेकिन ये तो ऐसा रूप है कि कभी-कभी पते की कहते हैं कि 'बुलबुलों को अभी चले, एक दूसरा देखा उसके बाद दूसरा हसरत हुई कि उल्लू न हुए। तो बजाए इसके कि बंदर देखा, उसके बाद तीसरा बंदर देखा । बंदरियाँ समझदारी रखें, कुछ शान्ति रखें, कुछ शान अपनी ही बंदरियाँ सब तरफ भरी पड़ी हुई हैं। मैने कहा रखें, बुर्जुगों को आजकल ये शौक हो रहा है कि यहाँ कोई सती साध्वी एक भी नहीं है, सब बंदरियाँ हम जवानों के जैसे जा करके वहाँ वो नाचते कूदते ही हैं। कोई जो इसके गर्दन पर कुद रही है, कोई उसके गर्दन पर कूद रही है। और उस पर बड़ा हैं। क्यों न लोग wig झपरे रख करके, उस तरह 1 घमण्ड है उनको कि हम तो बहुत ही ज्यादा वाह से हो जाएँ। एक साहब मुझसे कहने लगे कि साहब इसमें क्या हर्ज, आपको है कि अगर हम वाह advance हैं ! ऐसी गधापंथी अपने यहाँ की औरतें न करें तो बड़ी मेहरबानी हो जाए। अभी भी hippy बन करके घूमें तो आपको क्या हर्ज है ? इस देश में बड़ी देवियाँ हैं और बड़ी पूजनीय साहब मैंने कहा मुझे कोई हर्ज नहीं, लेकिन मैं 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-16.txt चैतन्य लहरी दिसम्बर, 2005 16 नवम्बर आपसे इतना बता देँ कि इस वक्त आप ऐसे लग उनको समझती थी, एक पार्टी में आए तो ये सब रहे हैं जैसे कोई पिशाच होता है और अगर आप करके आए। मैंने कहा ये क्या ? कहने लगे कि पहले से ही पिशाच बने घूम रहे हैं तो रास्ते में गर आजकल मैंने पनक्रॉप join कर लिया है। मैने कहा, कोई पिशाच आपके ऊपर बैठ जाए तो वो दोष हैं ! आप तो काफी अक्लमंद लगते थे, अब आप भी किसका होगा ? पिशाच का नहीं आप ही का पनक्राप में चले गए हैं ! कहने लगे आपको भी बड़ा होएगा। क्योंकि वो देखेगा कि ये अच्छा एजेन्ट मजा आएगा आइये, बड़ी शान्ति मिलती है उसमें । मिल रहा है अपने ही जैसा जिसमें जम जाएंगे मतलब ये है कि कुछ तो भी nuisance जिसको पूरा। आपकी शक्ल ऐसी है कि उससे सिर्फ भूत ही कहते हैं कि महामूर्ख बन कर ही कोई गर अपनी आकर्षित होएंगे। ये सब रजोगुण की कमालात है तरफ देखे तो बड़ा अच्छा है। जोकर ही बन जाओ, कि आपको पिशाचों जैसे घूमना है तो आप रजोगुणी वैसे तो कोई देखता नहीं है, अब क्योंकि सभी जो बनिये। Development करना है तो करिए। hippy बन गए तो सभी एक ही जैसे ही दीखते हैं। तो कोई तो विशेषता आनी चाहिए तो मुँह में पिनें Pant दस दस दिन नहीं धुलती , एक Lady तो सुनते हैं कि उसने पहनी है तब से उसने धीोई ही डाल-डाल कर यहाँ से यहाँ तक Pin बड़े बढ़िया नहीं कितने दिन से, उसी के साथ नहाती है और और ये बड़ी Common sight है वहाँ पर। में सुखाती है। एक एक तमाशे सुनिये ! उनकी आपको सिर्फ विनोद के लिए नहीं कह रही हॅूँ। highest development आपसे बताए, अब वहां पर असलियत है। और देखते ही आप अचम्भे में देखते 1. पनक्रॉप एक नया निकला है। शायद आप तक हैं कि या तो हम पागल हैं या ये पागल हैं और पहुँचा नहीं अब तक। हों सकता है पहुच जाए। बो हमारे ऊपर सोचते हैं कि हम बहुत inhibited उसमें सिर्फ बड़ी-बड़ी पिनें ले कर के यहाँ से कुछ लोग हैं। हमें अक्ल ही नहीं है कि हम इस तरह का सिल दिया जाता है दोनों side से, बड़ी बड़ी पिने। कोई सा भी अच्छा कार्य नहीं कर सकते जिसमें हम नाक में लाल, यहाँ पर shocking Pink, यहाँ पर अपने को let loose कर दें। हम इतने inhibited हैं। हरा। ये सब पत्तियाँ हैं इनको निकाल निकाल कर हमें कोई स्वतंत्रता की कल्पना ही नहीं। जोड़ दीजिए आप उसके बाद घूमा करते हैं और स्वतंत्रता का मतलब बेहूदापना, उच्छुंखलता नहीं वहाँ कौन घूमते हैं ? बड़े बड़े प्रोफेसर। हमारे यहाँ है। महामूर्खता तो बिल्कुल भी नहीं है। स्वतंत्रता कुछ प्रोफेसर बैठे हैं, सम्भल के रहिएगा। और एक बहुत इतनी बड़ी चीज़ है। स्व के तंत्र पर चलना ही साहब तो, आपको आश्चर्य होगा कि बडे विद्वान मैं 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-17.txt चैतन्य लहरी दिसम्बर 2005 नवम्बर 17 स्वतंत्रता है। और स्व का तंत्र ये है जो आपके मुश्किल है जब संस्कृत भाषा प्रचलित थी तब ऐसे सामने है। जो मनुष्य अपने को स्वतंत्र समझना गधों के बारे में किसी ने सोचा भी नहीं। पुराण में भी वर्णन है कि कलयुग आएगा लेकिन इस तरह चाहता है उसे पहले पार हो जाना चाहिए नहीं तो में के महामूर्ख संसार में विचरण करेंगे ऐसा पुराण वह स्वतन्त्र नहीं। स्व का तन्त्र समझ लेना चाहिए और यही उसका तंत्र है न कि तांत्रिकों का भी नहीं बताया गया था ये तो देखते ही बनता है। लोग negative जिसमें स्व ही उसमें खत्म हो जाए। और पढ़े-लिखे, पढ़े-लिखे और अति पढ़े हुए जिससे स्व पूर्णतया स्वतंत्रता में आ जाता है। जब ये काम कर रहे हैं ! इसको आप क्या वो पूर्णतया स्वतंत्र होता है तभी उसके अंदर कहिएगा ? wisdom पूरी तरह से संतुलित बैठ जाता है। वो ये रजोगुण का प्रादुर्भाव है। अब आप का हैं जो भी करता है पूर्ण स्वतन्त्रता से करता है लेकिन देश Develop हो रहा है। होइये साहब, लेकिन ये उसके एक-एक इशारे में , एक एक इशारे में भी देख लीजिए नमूना। आप जरूर Develop होइये स्वतंत्रता के अनेक प्रकार दिखाई देते हैं। वो किसी लेकिन ये नमूना देख कर चलें कि वो जिस गड्ढे से भी नहीं डरता और हमेशा नतमस्तक रहता है। में पड़े हैं उधर आप जाकर न कूदिए। एक तो प्रेम में वो स्वतंत्र होता है। अत्यंत प्रेममय व रजोगुण में सबसे बड़ा जो दोष है कि ये अहंकार करुणामय वो होता है। ऐसे स्वतंत्र आदमी को पे चलता है। मतलब Ego oriented है रजोगुण। प्रणाम करना चाहिए। बजाए इसके कि जो अपने जब Ego orientation शुरु हो गया तो अहंकार आपको स्वतंत्रता के नाम पर गधे से मूर्ख और ऐसी चीज है कि उसमें आदमी जो भी करता है मूर्खों से पता नहीं और क्या हो जाएगें मेरे पास उसमें अपनी बेवकूफी वो देख ही नहीं सकता, या तो ऐसे जानवर भी नहीं जिनकी मैं आपको प्रणाली कुछ भी करता है वो बिल्कुल सही क्योंकि अहंकार उसमें होता है। अपने यहाँ रामायण में बड़ा बताऊँ। कोई मुझे ऐसे शब्द भी नहीं मिलते जो मैं तृप्त इनका वर्णन करूँ क्योंकि कलयुग से पहले ऐसे कभी हुए ही नहीं थे। इसलिए नए शब्दों के पुन्दर वर्णन है कि जिस वक्त नारद मुनि स्वयं ही एक चक्कर में पड़ गए। ऐसे ही चक्कर हैं, ये coinage की जरूरत है और जो शब्द बनाने वाले रजोगुण के चक्कर हैं इसको तो समझने के लिए थे वही ये हो गए तो अब कौन उनके शब्द अपने को देखना चाहिए और कहना चाहिए. हे बनाएगा ये हालत आ गई है कोई संस्कृत भाषा भगवान ये मेरा अहंकार मुझे गधा बना रहा है। में ढूँढे से मिले तो मुझे बताइयेगा क्योंकि बड़ा ही 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-18.txt दिसम्बर, 2005 वैतन्य लहरी 18 नवम्बर और अहंकार आपको गधा बना के इतना छोड़ देता एक आदमी के पास गई। उन्होंने कोई जन्तर मंतर है कि अंत में वो आप घबराहट के मारे ही उस करे तो बाधा ने पकड़ लिया, भूत ने पकड़ लिया। गधे को अपने ऊपर लिए चलते हैं। क्योंकि Ego तो उनका बदन ऐसे ऐसे एंठने लग गया। चलो oriented है इसलिए बहुत ज्यादा dangerous भई छोड़ो इसे। पर अगर आप किसी Egoistical है अगर ये Ego oriented नहीं होता तो इतना आदमी के सामने जाइये तो उसका Ego आपके dangerous नहीं बैठता। क्योंकि मनुष्य कभी भी अंदर भी घुस जाएगा। ये हैं तो मैं इसके बाप से भी अपने को गधा कह नहीं सकता। सब दुनिया पे बड़ा हूँ। चलिए उसने एक बोला तो मैंने 10 बोला, हँसेगा, लेकिन खुद ही अपने सर पर गधा ले कर वो कौन होते हैं, मैं उसका नाना हूँ| शुरु हुआ, वो चल रहा है, उसे नहीं देखेगा। ये Ego की विशेषता जितने गधे हैं आप उसके double नाना गधे हो 1. है। Ego में एक अंधापन आ जाता है और इसलिए गए। और उसमें उसके साथ एक और बीमारी लग ये बहुत ही खराब चीज़ है। हाँ अगर Super Ego जाती है जो बड़ी ही सूक्ष्म है, उसे समझना चाहिए। जो कि दूसरी side में अपने सर में develop यश ! उसमें एक बीमारी और लग जाती है। यश, हुआ हो सकता है. तमोगुण की वजह से, उसमें आदमी Success । उसके साथ अगर Success लग पीड़ित हो सकता है। उसका बदन कॉप सकता जाए तो बड़ी ही problem हो जाती है । फिर तो है। उसमें तकलीफें आ सकती हैं उसको बीमारियाँ आदमी को गधे पर से उतारना असंभव है। आ सकती हैं। उसको Physical problem आ Sसccess अगर लग गया तो बड़े ही सकता है पर Ego-oriented आदमी में कभी ये Successful थे वो। फिर उनके मरने के 30-40 तकलीफे नहीं होगीं जब तक उसका heart trouble साल बाद निकलता है कि उन्होंने ये गधापन्थी न आए। एक ही है कि heart ही stop हो जाएगा करी, ये गोबर खाया। ये हालत अपनी खराब की। 1. बस। Ego oriented आदमी को कभी भी कोई वो ऐसे थे और वो वैसे थे। तो लोग कहते हैं कि भी इस तरह की चीज़़ नहीं मिल सकती है जैसे वो तो ऐसे होंगे नहीं । क्योंकि Ego में आदमी कुछ कि तमोगुणी के रुकावट हर समय हर जगह होती भी कर सकता है, कहीं भी जा सकता है। कैसे भी है। तमोगुणी एक तरह से बेचारा ज्यादा ठीक है काम कर सकता है। बहुत से लोग हैं Ego में अक्ल क्योंकि कम से कम उसकी ठोकरों से वो बचते लगा करके चोरी छिपे करते हैं और कुछ लोग हैं रहता है। समझ लीजिए अभी यहीं एक देवी जी खुले आम करते हैं अगर expose हो जाएँ तो। बैठी हुई हैं जिनको कि बाधा ने पकड़ लिया। वो लेकिन सबके अंदर एक तरह की एक बड़ी दानव 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-19.txt चैतन्य लहरी दिसम्बर, 2005 नवम्बर 19 शक्ति कार्यान्वित है और इतनी महामूर्खता उस ऐसा पहले कहते थे पुराण में। हम लोग जब छोटे |दानव शक्ति में है, जैसे कि मैंने आपसे कल ही थे तब कोई कहता था कि ऐसा ज़माना आएगा जब बताया था कि लंदन में 77 साल की बुढ़़िया नानी लोग लोहे में खाएंगे। तो हम लोगों की माँ वगैरह अपने Grand child से शादी करती है, उनको कोई कहती थी " हे भगवान'! ये कैसा जमाना आएगा, आश्चर्य नहीं है और नाना जी अपनी नातिन से ये ऐसी दुर्दशा हो जाएगी. ऐसी गरीबी आ जाएगी शादी करते हैं । इसमें उनको कोई हर्ज नहीं है और कि लोग लोहे में खाएंगे ! हे भगवान! कॉसे में उसके लिए अब वहाँ कायदा पास करवाने वाले हैं खाएं, पंचधातु में खाएं, कुछ बढ़िया चीज़ में खाएं। और उसके लिए बड़ा वहाँ movement हो रहा है ये क्या ? तो अब Stainless Steel में लोग खाते कि इस तरह का आप हमारी स्वतंत्रता पर आप हैं ! मैं बहाँ से लंदन से आती हूँ तो मुझे लोग आक्रमण कर रहें हैं। ऐसे बेवकूफों से कोई सीखने लिखते हैं कि भई नाएलोन की वहाँ बढ़िया साड़ी की जरूरत नहीं। उनके पास कुछ भी अपने को मिलती है, American जार्जेट लेकर आओ। वहाँ देने की चीज नहीं है आप मेहरबानी करके उनसे सब लोग हँसते हैं. English लोग, कि अरे क्या! कोई चीज़ नहीं सीखें और ऐसे पैसे की भी अपने आपके यहाँ कॉटन इतना बढ़िया होता है और आप को जरूरत नहीं जिससे हम महामूर्ख हो जाएँ। ये रद्दी कहाँ ले जा रहे हो वहाँ ? अपने यहाँ कोई ठीक है, Development करना है तो गाँधी जी के अगर कॉटन पहने तो लोग हँसेंगे कि ये क्या रास्ते बहुत अच्छे बने हुए हैं उनके रास्ते से कॉटन पहन लिया ! वो दिन दूर नहीं जब कि बनाओ। अपने से चलो। अपने पास जो सम्पदा है, खादी सारे संसार में छाएगी। वो दिन बिल्कुल दूर अपने पास जो सत्ता है उसे ले कर चलो। हम नहीं । आप मेरा विश्वास मानिए। क्योंकि इसके लोग कितने बेवकूफ बन रहें हैं, ये भी आप समझ अंदर हाथ से बने हुए Vibration हैं और वो लोग लीजिये। हमारे पास अगर हम पीतल के बर्तनों में इस चीज़ की महत्ता समझते हैं। इस खादी की खाते हैं तो बड़े गर्व की बात है कि हमारे पास इस महत्ता समझते हैं लेकिन हम लोग बेवकूफ हैं जो कदर पीतल है. और ये लोग प्लास्टिक में खाते हैं इस नायलोन को बड़ी भारी चीज़ समझते हैं। आप और हम चाहते हैं कि हमारे यहाँ प्लास्टिक आ जानते हैं कि नायलोन से अनेक बीमारियाँ हो जाती जाए नहीं तो stainless steel आ जाए। हैं ये मनुष्य के विरोध में है लेकिन हमें नायलोन Stanless steel भी कोई खाने की चीज होती है क्यों पसंद है ? क्योंकि हम लोग बड़े भारी अंग्रेज जिसको कि लोहा कहते हैं। लोहे में लोग खाएंगे बनते हैं। आप 10 के जगह 2 साड़ियाँ पहनिये 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-20.txt दिसम्बर 2005 चैतन्य लहरी 20 नवम्बर लेकिन कायदे की साड़ी पहनिये। आप 10 की तो best suit में जाना। अंग्रेज गर suit में आया तो जगह 2 कपड़े पहनिये। अब अपने यहाँ लोगों को उसी के पैर पे हमारा हिन्दुस्तानी गिरता है और आश र्य होता है कि कॉटन से टैरीकॉट महँगा है। ऐसे वैसे नहीं गिरने वाला है गर तुम ऐसे वैसे कपड़े ही आश्चर्य होता है। ऐसे कैसे सम्भवनीय पहन कर आओगे तुम नहीं समझते हो अभी भी उनको बहुत है ? वहाँ गर कॉटन आपको 10 पाउँड का मिलता हमारे अंदर वही Slavish mentality है हजारों होगा तो टैरीकॉट 2 पाँड का मिलता होगा। कोई वर्षों की चली आ रही, वो छूटने नहीं वाली। हमारे गर काँटन कहीं मिले कि कॉटन मिल रहा है तो जो बाप दादे हो गए वो ये सब पहनते नहीं थे लोग दौड़े जाते हैं। कहते हैं उसका feel कितना लेकिन इंसानियत का मादा उनके अंदर बहुत सुन्दर है ! हम लोग अभी भी इस्त्री पे इस्त्री मारे ज्यादा था। एक-एक आदमी अगर सोचिए तो जाते हैं। वे लोग कहते हैं कि इतना ज्यादा legendry कहना चाहिए. क्या लोग थे ! एक बार Suited booted लोगों से हमारा जी घबराता है, शब्द दे देते थे तो उसी शब्द पर चलने वाले। घुटता है। काहे को इस्त्री करते रहते हो सुबह से जिनके बारे में सारे संसार में गुणगान गाते थे कि शाम तक ? अरे अपने मन की भी कोई इस्त्री हिन्दुस्तान का आदमी एक होता है तो वो यहाँ के करो। बाहर की झकपकाहट जिसे हम लोग सोचते हज़ारों बेकार लोगों से अच्छा होता है। वही हिन्दुस्तान हैं, कि बहुत बड़ी चीज़ है, उस पर लोग हैँसते हैं। की आज ये दुर्दशा हो गई। ये रजोगुण की कृपा हँसते हैं। हमारे कुछ English अंग्रेज लोग बहुत है । शिष्य यहाँ आए थे तो कहने लगे हमें बम्बई ज़्यादा स्वतंत्रता से पहले हम लोग बहुत अच्छे थे पसंद है बनिस्वत दिल्ली के। ठण्ड में थे न। मैंने जब गुलाम थे, जब कधे से कंधे लड़ाए थे और कहा क्यों ? कहने लगे यहाँ Every body सबसे जाकर वहाँ पर सारे संसार के देशों से हमने is so Westernised, horried । मैंने कहा अपनी स्वतंत्रता की मांग उठाई थी। वो हम लोगों कहने लगे Westernised ! How do you say ? रहे हैं ! उन लोगों की से अलग थे और ये आज रजोगुण की गुलामगिरी ये सब लोग Suit डाले घूम में हम लोग जो फँसे जा रहे हैं, materialism के. समझ में नहीं आया, वो इस चीज़ को समझ नहीं इस कदर गर्दै हम हो रहे हैं, इसको समझने की पाए। तो मैंने उनसे कहा तुमको भी गर इन पर रोब जरूरत है। रजोगुण में उठते वक्त रास्ते में ही झाड़ना है तो तुम भी suit पहन कर आना नहीं तो उन पर रोब नहीं पड़ेगा। जब University जाना सत्यगुण की दिशा है रुक जाइये। रुक जाइये 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-21.txt दिसम्बर, 2005 पैतन्य लहरी 21 नवम्बर उस आदमी को जो दुनिया भर में सबको ही वहाँ पर। उनका extreme देखते हुए बीच में आ जाइये। सत्वगुण तभी आता है जब रजोगुण के अपमानित करते फिरता है । जो आदमी हृदय से साथ धर्म चलता है और धर्म हमारे पेट में नाभी चक्र कमल जैसा है अत्यंत सुन्दर और गुलाबी कमल के जैसा, अत्यंत प्रेममय, भावनापूर्ण और जिसमें पूर्ण में उसके चारों तरफ होता है। लक्ष्मी का स्थान है। लक्ष्मी रजोगुण की ही सत्वगुणी व्यवस्था है। मैंने अपनापन बहता हो। जिसके अन्दर भोरे जैसा भी आपसे लक्ष्मी के बारे में पहले बताया था कल भी काला गढ़ने वाला प्राणी भी जा कर आराम से सा बताया था कि लक्ष्मी स्वरूप जो मनुष्य होता है सकता है, उस आदमी को लक्ष्मीपति अपने यहाँ उसके एक हाथ से दान, दूसरे हाथ से आश्रय कहते हैं। लक्ष्मी स्वरूप हुए बगैर ये रजोगुण होना चाहिए। वो स्वयं माँ स्वरूप होना चाहिए. आपको लाभदायक नहीं होगा वो यँ ही trustee उसके दो हाथ में कमल के फूल जैसी उसके अंदर की तरह से जीता है। उसका जो भी पैसा है उससे सम्मान और उसके अंदर प्रेम की आभा हर समय वो व्यसनाधीन नहीं होता। अपने बच्चों के लिए वो रहनी चाहिए। जब उसके घर के दरवाजे पर जायें पैसा नहीं छोड़ता, उसको व्यसन आदि में नहीं आओ बेटे कहाँ से आए, कैसे तो कहे कि डालता। उस पैसे का उपयोग वो दुनिया के कल्याण तकलीफ से आए हो, बैठो, यहाँ रहो। मैंने अभी के लिए करता है। वो एक trustee स्वरूप होता किसी एक रईस आदमी से कहा कि इसको है । शरतचन्द्र की एक बड़ी सुन्दर कहानी मैंने पढ़ी लक्ष्मीपति कहते हैं। कहने लगा बहन जी अगर थी कि उन्होंने लिखा कि हम लोग एक टोले के कोई चोर आ गया तो ?" मैंने कहा, " चोर भी आ लड़के एक बड़े भारी धनी के पास पहुँचे। तो गया तो भी कोई हर्ज नहीं, बिठाओ उसे। प्रेम से उन्होंने पूछा कि तुम लोग क्या करना चाहते हो ? विठाओ।" उसकी चोरी बदल जाएगी। चोर कभी तो हमने उन्हें कहा कि हम लोग एक ड्रामा करना चाहते हैं और ऐसा करना चाहते हैं और उसमें भी शरीफ आदमी की चोरी नहीं करने वाला। बहुत ही गया-बीता होगा तो जाने दो फिर उसको । बहुत modren life दिखाना चाहते हैं और आप हमें उसकी कर्म गति से क्या गर चोर आ जाए आपके कुछ रुपया दीजिए उन्होंने कहा बैठो-बैठो। बहुत | घर में तो रख लीजिए उसको, प्रेम से स्वीकार्य बिठाया, उसके बाद चवन्नी उनको पकड़वा दी तो करिए। वो 10 बार सोचेगा, चोरी करूँ कि नहीं ये लड़के बड़े गुस्से हो गए कि बड़ा ही कंजूस कर उस आदमी की, ये तो मेरे बाप जैसा है ? निकला। चवन्नी हमें पकड़वा दी। उसके बाद एक उस आदमी को पैसे वाला कहना चाहिए न कि स्त्री आई, बेचारी बड़ी बूढी थी। आई, कहने लगी 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-22.txt दिसम्बर, 2005 चैतन्य लहरी नवम्बर 22 कि पता नहीं कुछ पचास वर्ष पहले मेरे पति ने आजकल के सबसे बड़े हीरो हैं, दढ़ियल महाराज आपके पास कुछ रुपया रखवा दिया था । उसके और उनके चप्पा गोती। ये हमारे लिए आजकल के बाद हम लोग परदेस चले गए । वहीं मेरे पति की सबसे बड़े हीरो साहब हो गए! अपने संस्कृति में कभी भी पैसे वाले की महत्ता नहीं गाई गई । कहीं हो गई उनके उसमें एक पत्र मिला जिसमें मृत्यु लिखा था कि उनके पास बहुत रुपया मैं छोड़ कर भी नहीं । हमेशा उसी मनुष्य की गाई गई जो आया हूँ, तो तुम हो सके तो वो धर्मात्मा हैं, उनके धर्मात्मा है। और आप को भी पता होना चाहिए कि पास चले जाना। कहने लगे अच्छा! पत्र तो इस देश में आपकी महत्ता कभी भी नहीं गाई दिखाइये । पत्र देखा उसकी तारीख देखी । कहने जाएगी। आप चाहे कितने भी मन्दिर बनवाइए और की चीजें करिए। आपकी तभी लगे भई देखो, वो कहाँ उनका है, वो निकालो, कितने भी फालतू फलानी तारीख को, फलाने साल में। और पचास महत्ता गाई जाएगी जब आप धर्मात्मा हों। चाहे आपके पास पैसा है तो उसको धर्म में लगाइये और साल पहले की बात है तो सब फाइलें निकलवाओ, और बैठे वो वहाँ देखने के लिए । वो भी बड़े जब आप खर्च करिए तो किसी से कहिए नहीं कि वयोवृद्ध थे। वो भी 75-80 साल के थे लेकिन बैठे मैंने आपके लिए खर्च किया देते रहिए देते बहन अभी रुकी रहो, यहीं खाना रहिए। सिर्फ आप बीच में इसलिए खड़े हुए हैं कि कहने लगे खाना। यहीं रहना। इत्तफाकन उनको 2-3 घंटे में आप देखते रहें कि पैसा जो है वो ठीक जगह पर उसका पता लग गया। 2-3 घंटे में उनको पता पहुँच रहा है। कुछ कुछ लोग तो इस कदर परमात्मा में लीन हो जाते हैं कि वो ये भी नहीं लग गया कि ये जो है, ये रुपया दिया गया था। उन्होंने वो सारा रुपया उस औरत को वापिस देखते। जाने दो, जिस जिस को जाता है जाने दो। करके सूद सहित वो वापस कर दिया। ये लक्ष्मीपति लेकिन गर कोई धर्म पुरुष दान करता है तो उसका का लक्षण है कि घर्म में खड़े हैं वो। पैसा एक पैसा कभी भी दुर्व्यवहार में नहीं जाता। दुष्टों का धर्मात्माओं trustee की तरह इस्तेमाल करते हैं। बड़ी भारी मैं, पैसा जरूर दुर्व्यवहार में जाएगा लेकिन शरतचंद्र को इसलिए मानती हूँ कि मनुष्य का जो का नहीं जाएगा। उसमें भी एक बड़ी भारी आकर्षण है उसको शरतचंद्र ने इतना सुन्दर निभाया है, शक्ति होती है जिसे हम कहते हैं Vibrations, चैतन्य उसके धर्म-तत्व को इतना सुन्दर दिखाया है। की लहरियाँ हरेक चीज़ में चैतन्य की लहरियाँ लेकिन हम शरतचंद्र को पढ़ते नहीं। हम तो होती हैं। उसका देने वाला और करने वाला होना रजनीश को पढ़ते हैं। रजनीश को ये हमारे चाहिए। आपके अंदर भी चैतन्य की लहरियाँ उत्पन्न 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-23.txt वैतन्य लहरी दिसम्बर, 2005 नवम्बर 23 हो सकती हैं गर आप इसको पा लें। आप में से लगे 25000 आदमी सिर्फ दर्शन के लिए आए थे। अनेक लोगों के अभी हाथ मैं ठण्डा ठण्डा आने लग अच्छा ! फिर उनका क्या हुआ ? दर्शन हो गए। गया है। कह रहे हैं। ऐसे ही आप हाथ रखें फिर फिर क्या हुआ ? कौन सी भलाई हुई ? नहीं कुछ तीन चक्रों के बारे में दर्शन हो गए साहब, दर्शन हो गए माने दर्शन हो से। आज मैं आपको बचे हुए बताऊँगी क्योंकि कल मैंने आपको नीचे वाले चार गए अरे भाई कुछ फायदा हुआ ? कुछ भला चक्रों के बारे में बताया था। अगले साल शायद में हुआ ? कुछ transformation हुआ, कुछ इनमें ज्यादा दिन के लिए Delhi आ जाऊँगी, देखिए । बदलाव हुआ कि यूं ही दर्शन के ही लिए गए थे लेकिन Delhi वाले और बम्बई वाले व कलकत्ते वहाँ ? नहीं साहब वो तो ऐसा था कि हम तो अंदर वाले ज़रा जरूरत से ज्यादा बड़े लोग हैं। तो जा नहीं सके, वो तो दूसरे जो बड़े-बड़े लोग थे वो उनके लिए अभी 16 राक्षस पैदा हुए हैं। 6 राक्षस सब अंदर गए। बाबा जी ने उनको अंगूठियाँ दी। ही नहीं वो बराबर अपना मौके से आ जाते हैं। उसके बाद वो सब अंगूठियाँ पहन कर प्रफुल्लित जहाँ जहाँ बैठे हुए हैं लाला-हमके धूमके। हो कर बाहर आ गए। उसके बाद पता चला, सबको heart attack आए । अंगूठी सहित heart रायबहादुर हमके ठमके, फलाने minister. फलाने ढिकाने, उसके लिए सब बने हुए हैं वो आ करके, attack चल रहे हैं । फिर उसके बाद पता हुआ ब्राबर जमे हुए हैं सब जगह । मैं गरीब सहजयोगिनी अंगूठी भी चोरी हो गई और उनके घर में भी चोरी हूँ। मेरे लिए तो देहातों में अनेक लोग मिल सकते हो गई ! ठीक है। जिसके पास अधिक पैसा हैं। देखिए दिल्ली शहर में कहाँ तक लोग प्रगति उसको खाने के लिए बहुत सारे तैयार हो गए करते हैं, कहाँ तक क्ढ़ते हैं, कहाँ तक सच्चाई को हैं । आपके पास गर अधिक पैसा है तो जमना जी पाते हैं। ज्यादातर लोग तो जो फैशन चलता है में डाल दीजिए, नहीं तो आप के भी चिपक जाएगें। वहीं तक चलते हैं। आज कल, फैशन है तो हज़ारो इसलिए बच के रहिए । आदमी चले जा रहें हैं । सिर्फ दर्शन के लिए. कहने परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। পट 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-24.txt अहं एवं प्रतिअहं इसे परमात्मा की रक्षा से स्वतन्त्र किया जाए ताकि मानव अभी तक परिवर्तन की अवस्था में है यदि थोड़ी सी और छलांग लगा ले तो वह उस स्थिति स्वतन्त्र रूप से कार्य करके यह विवेक रूपी नया आयाम विकसित कर सके। इस लक्ष्य को प्राप्त को प्राप्त कर सकता है जिसके लिए उसका सृजन किया गया है। मानव मस्तिष्क एवं हृदय अत्यंत करने के लिए अहं और प्रतिअहं नामक संस्थाओं का सृजन किया गया है। ये दोनों संस्थाएँ मानवीय गतिविधियों की प्रतिक्रिया या प्रतिफल हैं । हर विकसित अवयव हैं। मानव हृदय और मस्तिष्क के सम्बन्धों को एक साथ देखना होगा। गतिविधि की प्रतिक्रिया होती है। किसी बात के पेट के अन्दर की चर्बी सारे केन्द्रों में से गुजरती हुई मस्तिष्क की कोशिकाओं के रूप में विकसित लिए यदि आप 'नहीं कहते हैं तो प्रतिक्रिया 'अहम' होकर मस्तिष्क में पहुँचती है। मानवीय चेतना में है. और यदि किसी बात को आप स्वीकार कर लेते हैं तो प्रतिक्रिया प्रतिअहं है । कुछ विशिष्ट परिवर्तन लाने के लिए चर्बी को अहं और प्रतिअहं हमारे आज्ञा चक्र को पूर्णतः विकसित होकर मस्तिष्क बनना होता है। मानव औच्छादित कर लेते हैं और कार्य करने की स्वतन्त्रता मस्तिष्क का एक ऐसा आयाम है जो पशुओं में नहीं प्रदान करने वाली शक्ति एवं मस्तिष्क को परमात्मा मानसिक या भावनात्मक आयाम, जिसके है। माध्यम से हम प्रेम को समझते हैं। हम जानते हैं की सर्वव्यापी शक्ति से पृथक कर देते हैं। उत्क्रान्ति प्राप्त करने के लिए ये आवश्यक है कि मानव कि प्रेम का आदान प्रदान किस प्रकार करना है। प्रयत्न करता रहे। परमात्मा ने जो भी कुछ किया है हमें सौन्दर्य और कविता की समझ है और हम उनका सृजन करना भी जानते हैं। आकार में वह आपकी भलाई के लिए किया है। परमात्मा ने है। परमेश्वरी आपके अन्दर अहं और प्रतिअहं की रचना इसलिए भस्तिष्क त्रिकोणाकार प्रिज्म जैसा शक्ति की किरणें जब इसमें प्रसारित होती हैं तो ये नहीं की कि आप बिगड़ जाएँ या नष्ट हो जाएँ। आपके अन्दर अहं का होना आवश्यक है परन्तु भिन्न कोणों में चली जाती हैं और सामानान्तर आपने इससे लड़ना नहीं है। अपने अहं को आपने 1. चतुर्भुज शक्ति के सिद्धान्त के अनुरूप इस शक्ति परमात्मा के अहं से एकरूप कर देना है। एक बार का एक हिस्सा बाएं को चला जाता है और एक जब आपकी जागृति हो जाएगी, आपमें प्रकाश आ दाएं को। यही कारण है कि मानव भूत और भविष्य के विषय में सोच सकता है परन्तु पशु ऐसा नहीं जाएगा तो ऐसा कर पाना सम्भव होगा। कर सकते। परम पूज्य श्रीमाताजी (निर्मल योगा से उद्धृत परिवर्तन के इस समय में ये अत्यन्त आवश्यक है कि सावधानी पूर्वक मस्तिष्क की रक्षा की जाए। एवं अनुवादित ।) পu 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-25.txt परम पूज्य श्रीमाताजी की सहजयोगियों को सीख (सहजयोग सभी शारीरिक एवं अन्य तकलीफों को दूर करता है) चक्रों के विषय में हमेशा सावधान रहना अत्यन्त इसकी सर्वोत्तम अभिव्यक्ति है क्योंकि वे हृदय की आवश्यक है। बाहर की बाधाओं और पकड़ से इन्हें सूक्ष्मतम अनुभूतियों को समझती हैं। बिना इजाज़त बचाकर रखा जाना चाहिए। नियमित पानी पैर उनके चरण कमलों को छुने के लिए आगे भागना, क्रिया चक्रों को स्वच्छ रखने में बहुत सहायक उनके चित्त को आकर्षित करने का प्रयास करना, होगी। देखा गया है कि शारीरिक तथा अन्य रोगों बिना कहे बोलना तथा उनके निवास पर उनसे का कारण बनने वाली बाधाओं का प्रवेश ऑखों मिलना, अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करने का आवांछित और भोजन के माध्यम से होता है। इसकी ओर तरीका है। हमारी परमेश्वरी माँ पावनता की प्रतिमूर्ति विशेष रूप से सावधान रहना सदैव अपेक्षित है। हैं। उनके चरण कमलों पर नतमस्तक होना हम चक्र जब खुले होते हैं तभी देवी-देवता जागृत होते लोगों के लिए सुखकर हो सकता है परन्तु यह हैं और सहजयोगियों की सहायता करते हैं सोने उनके (श्रीमाताजी) के लिए कष्टकर है क्योंकि हम से पूर्व बन्धन लेना भी बाधाओं से रक्षा करता है। लोग बाधाओं से परिपूर्ण हैं। भारत में अपने बुजुर्गों की चरण-सेवा करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करने भक्त हमेशा अपने इष्ट-देव को प्रसन्न रखना चाहता है परन्तु हमारी माँ (श्रीमाताजी) इतनी की परम्परा है यही सेवा लोग श्रीमाताजी की भी दयालु हैं, इतनी करुणामय हैं कि वो अपने बच्चों करना चाहते हैं परन्तु श्रीमाताजी सामान्य मानव से भिन्न हैं, उन्हें इसकी आवश्यकता नहीं है। किसी को प्रसन्न देखकर और सहजयोग में उन्नत होते हुए देखकर प्रसन्न होती हैं। सहजयोगी बच्चों से व्यक्ति को चरण सेवा करने के लिए यदि माँ कहती मिलने के लिए और उनकी समस्याओं का हैं तो केवल उस व्यक्ति के चक्रों को शुद्ध करने के समाधान करने के लिए वे भिन्न स्थानों और देशों लिए ऐसा करती हैं अपने आराम के लिए नहीं । में जाती हैं। बच्चों को भी उतना ही संवेदनशील अतः सभी लोगों को इस बात का ध्यान रखना है होना चाहिए और जब-जब भी वे उनसे मिलती हैं कि उनकी आज्ञा के बिना उनके शरीर के किसी भी तो उन्हें अपनी समस्याएं बताने की अपेक्षा सहजयोग भाग को स्पर्श नहीं करना चाहिए। सहजयोगी यदि में अपनी उन्नति दर्शानी चाहिए। इसमें जरा भी सर्व - साधारण जनता के बीच हों तो उन्हें चाहिए सन्देह नहीं है कि उनके दिखाए गए मार्ग पर कि अपने चक्रों को शुद्ध करने के लिए न तो चलने से सहजयोगी विश्व के सबसे अधिक सौभाग्य प्रतीकात्मक रूप से हाथ हिलाएं, न कुण्डलिनी शाली लोग होंगे। उठाएं. न बन्धन लें, न बाएं-दाएं के असन्तुलन को दूर करने के लिए बाएं-दाएं को उठाएं या गिराएं। माँ के प्रति प्रेम का अहसास स्वाभाविक है। मौन 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-26.txt दिसम्बर, 2005 चैतन्य लहरी नवम्बर 26 कु ये सारा कार्य चित्त से भी अत्यन्त प्रभावशाली रूप के सभागार में प्रवेश करते ही सारी निजी बातचीत से किया जा सकता है। जन कार्यक्रमों में प्रवचन समाप्त हो जानी चाहिए और उनकी उपस्थिति में सभागार के द्वार पर श्रीमाताजी का स्वागत करने ऐसी कोई बात नहीं की जानी चाहिए। उनके के लिए भीड़ लगानेका कोई लाभ नहीं । बेहतर प्रवचन में किसी भी प्रकार का व्यवधान नहीं होना होगा कि उनके आगमन से पूर्व सभी लोग अपने चाहिए। उन्हें किसी व्याख्या, मश्वरा या टिप्पणी की आवश्यकता नहीं। स्थान पर बैठे रहें और उनके आने पर सम्मान-पूर्वक अपने स्थान पर खड़े होकर हाथ जोड़कर उनका समर्पण के बिना श्रद्धा सम्भव नहीं है। अहं और स्वागत करें। माला अर्पण करने से पूर्व उनका प्रतिअहं समर्पण के मार्ग में बाधाएं हैं। एक पाश्चात्य आदेश लिया जाना आवश्यक है। प्रायः पहुँचते ही सहजयोगी के " मैं अपने अहं को देखता जब वे लोगों से उनका कुशल क्षेम पूछ रहीं होती हूँ और मुस्कराता हूँ, मुझे स्वयं से दूर रखने के लिए अनुसार न हैं तब वे माला पहनाने की आज्ञा देती हैं। ऐसे कौन सी चालाकियाँ नहीं करोगे ?" आत्म तुम समय पर किसी समस्या के बारे में यदि उन्हें साक्षात्कार की ओर बढ़ने के लिए परम पूज्य बताना हो तो बहुत संक्षेप में बताना चाहिए। श्रीमाताजी के चरणों में अहं और प्रतिअहं को समस्या का समाधान यदि वे उस समय न बताए समर्पित करना अत्यन्त आवश्यक है। समर्पण का तो इस पर बल नहीं दिया जाना चाहिए। उनका अर्थ है स्वीकार करना कि माँ उच्चतम हैं और मौन इस बात की ओर इशारा करता है कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्तिकर्त्ता हैं तथा वे जानती हैं कि समाधान शीघ्र ही आ जाएगा उनकी विनम्रता, हमारे लिए क्या सर्वोत्तम है, उनका बोला हुआ हर सहज में उन तक पहुँच जाना और सभी के प्रति शब्द साक्षात प्रणव है। समर्पण का अर्थ है सभी उनका सम्मानमय व्यवहार, के गलत अर्थ लगा पूर्व अनुभवों को भुला देना सभी गुरुओं को लिए जाते हैं। उनकी उपस्थिति में सभी मर्यादाओं और पुस्तकों से प्राप्त किए गए ज्ञान को भुला का पालन करना, विनम्र, सम्मानमय, सतर्क और कर श्रीमाताजी द्वारा बताए गए मार्ग को प्रतिसंवेदी होना आवश्यक है। सभी देवी-देवता निष्ठा - पूर्वक अपनाना। समर्पण का अर्थ है सभी उनकी हाजिरी में होते हैं और उनके प्रति ज़रा सी समस्याओं को अहं के माध्यम से समाधान खोजने भी मर्यादा विहीनता बर्दाश्त नहीं करते। उनकी के स्थान पर उन्हें परम पूज्य श्रीमाताजी पर छोड़ उपस्थिति में उनके प्रति विनम्रता और प्रेम के देना। समर्पण का सुगमतम मार्ग जीवन में श्रीमाताजी 1. कारण हो सकता है कि वे स्वयं को नियंत्रित करें के गुणों और उनकी जीवन शैली का अनुसरण करना है प्रलोभन, उत्तेजना, तनाव या निराशा परन्तु एक सीमा से आगे वो क्रियाशील हो उठते हैं और दण्ड से बचा नहीं जा सकता। श्रीमाताजी के क्षणों में व्यक्ति सदा स्वयं से पूछ सकता 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-27.txt दिसम्बर, 2005 चैतन्य लहरी नवम्बर 27 है क्या ऐसे अवसर पर श्रीमाताजी भी ऐसा चाहिए। हमेशा उन्हें स्मरण रखते हुए निर्विचार ही आचरण करतीं जैसा मैं कर रहा हूँ ?" समाधि की स्थिति को बनाए रखना हमारे दृष्टिकोण को निर्लिप्तता पूर्ण बना देगा और हमें सांसारिक उन्हें याद रखना और ये सोचना कि ऐसे और भौतिक पचड़ों से दूर रखेगा प्रतिदिन अपने हालातों में श्रीमाताजी क्या करतीं, व्यक्ति के लिए पथ प्रदर्शक एवं सहायक शक्ति होनी चाहिए नाम की जूता क्रिया करने से भी अन्तर्निहित सुक्ष्म नकारात्मकता दूर की जा सकती है। नकारात्मक जिसके माध्यम से वह नकारात्मक शक्तियों को दूर लोगों को बन्धन देना और उनके नाम को जूते रख सके। मारना उन्हें आपसे दूर तो रखेगा ही, उन्हें सुधार पुनर्जन्म प्राप्त व्यक्तियों का जीवन नकारात्मकता दूसरे लोगों की गलतियों और भी सकता है। से निरन्तर संघर्षरत है क्योंकि उनके अपने अहं मूर्खताओं की आलोचना एवं उनकी शिकायत करने और प्रतिअहं भी उनके विरोध में खड़े होते हैं। के स्थान पर उनकी गलतियों की अनदेखी करना नकारात्मकता अन्तर्जात हो सकती है। पूर्वजन्मों में, आपके अन्दर उदारता को बढ़ावा देगा। निरन्तर न केवल इस जन्म में, किए गए कर्मों के फलस्वरूप अभ्यास से अपने अन्दर इन गुणों को स्थापित यह हमारे अन्दर सूक्ष्मतम रूप में बनी रहती है। करना अत्यन्त सहायक हो सकता है। रोजमर्रा के जीवन में भी यह हमारे अन्दर प्रवेश जो कुछ भी कहा जा चुका है उसके बावजूद करती रहती है। नकारात्मकता को यदि काबू न किया जाए तो अवसर मिलते ही आन्तरिक श्रीमाताजी ने सहजयोग का बीजारोपण कर दिया है और आवश्यक वातावरण मिलने पर यह बीज नकारात्मकता बाह्य नकारात्मकता से एकरूप अंकुरित होकर बहुत विशाल वृक्ष का रूप धारण होकर श्रीमाताजी के शुभ प्रभाव को निष्प्रभावित कर देती है। अतः यह आवश्यक है कि । अपनी सर्वव्यापी शक्तियों से श्रीमाताजी हमारी रक्षा करती हैं। परन्तु हमें आवश्यक वातावरण करेगा प्राप्त करने के पश्चात् आत्म-साक्षात्कार तो बनाना ही होगा। चुनने की स्वतन्त्रता का कोई भी सहजयोगी किसी कुगुरु के पास न विवेकपूर्ण उपयोग करना होगा तथा उनके द्वारा जाए ने ही उनका साहित्य पढ़े। नकारात्मक बहस से तथा नकारात्मक लोगों से मिलने जुलने दिखाए गए मार्ग पर बने रहना होगा। सर्वशक्तिमान दूर रहना बेहतर होगा किसी मन्दिर में प्रवेश परमात्मा साधकों का स्वागत करने की प्रतीक्षा कर करने से पहले उसका चैतन्य जाँचा जाना चाहिए। से रहें हैं। जो लोग उन तक नहीं पहुँच सकते उन्हें स्वयं को ही दोष देना होगा। हमारे हृदय में परमेश्वरी माँ का स्थान होना (निर्मल योग से उद्धृत एवं अनुवादित) 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-28.txt श्रद्धा परम पूज्य श्रीमाताजी से आत्म-साक्षात्कार लेकर सभी सहजयोगी द्विज बन जाते हैं। केवल परमेश्वरी उठाती रहती हैं। बच्चे यदि पुकारें तो वे तुरन्त उस पुकार का उत्तर देती हैं। वे 'योग क्षेम वाहम्यम' माँ ही उन्हें मोक्ष प्रदान कर सकती हैं क्योंकि वे रूपी अपने वचन को पूरा कर रहीं हैं। परम पिता श्री सदा शिव की शक्ति हैं (शिव शक्ति रूपिणी) । उनके चरण कमलों पर जब ये सोचना बिल्कुल गलत होगा कि श्रीमाताजी और देवी-देवता भिन्न अस्तित्व हैं। सभी देवी- देवता सहजयोगी निर्विचार समाधि की आनन्ददायी अवस्था उनके अन्दर पूर्णतः अभिव्यक्त होते हैं और उनसे में पहुँचते हैं तो उन्हें उत्क्रान्ति प्रक्रिया की भिन्न कहलाना भी उन्हें अच्छा नहीं लगता। इस अन्तिम-अवस्था की एक झलक प्राप्त होती है। प्रकार का कोई भी विचार सम्बन्धित चक्र को हानि अतः सभी सहजयोगी अपना अन्तिम लक्ष्य जानते पहुँचा सकता है। श्रीमाताजी के प्रति श्रद्धा देवी-देवताओं के प्रति श्रद्धा है। हैं और अपनी अपनी शारीरिक एवं मानसिक स्थितियों के अनुरूप उन्हें एक लम्बा मार्ग तय करना होता के कुछ स्थूल हैं और कुछ से पक्ष है, बहुत श्रद्धा है आत्म -साक्षात्कार का अलभ्य अनुभव प्राप्त सूक्ष्म। एक पक्ष को दूसरे से बेहतर समझना उचित हो जानी करने के पश्चात् व्यक्ति में ये धारणा दृढ़ चाहिए कि श्री माताजी के प्रति श्रद्धा और उनके न होगा क्योंकि आध्यात्मिक उत्क्रान्ति के लिए सभी पक्ष आवश्यक हैं। ब्रह्म मुहूर्त में ध्यान-धारणा आदेशानुसार ध्यान धारणा करना मोक्ष प्राप्ति का करना अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। बिस्तर छोड़ने से एक मात्र मार्ग है । श्रीमाताजी की शक्तियाँ सर्वव्यापी हैं और पूर्व व्यक्ति को अत्यन्त सम्मान-पूर्वक पृथ्वी माँ को सहजयोगियों तथा श्रीमाताजी के बीच आध्यात्मिक प्रणाम करना चाहिए। बिस्तर पर बैठकर ध्यान सम्पर्क में कोई भी दूरी बाधा नहीं डाल सकती। लोगों के लिए हितकर हो सकता करना भी कुछ है। परन्तु स्नान आदि करने के पश्चात् हमें श्रीमाताजी सामूहिक चेतना श्रीमाताजी का सहजयोगियों को के दिया गया अमूल्य उपहार है। उनकी उपस्थिति सम्मुख बैठकर ध्यान करना चाहिए। ध्यान का चैतन्य चेतना (Vibratory Awareness) के आरम्भ करने से पूर्व स्वयं को तथा बैठने के स्थान को बन्धन देना हितकर होता है श्रीमाताजी के माध्यम से महसूस किया जा सकता है। अपनी सर्वव्याप्त शक्ति के माध्यम से वे अपने सभी सामने नतमस्तक होकर प्रणाम करें। जाने-अनजाने वटे-बेटियों की गतिविधियों के बारे में जानती हैं। में की गई गलतियों के लिए क्षमा याचना करें और उनका योग्य बालक बनने के लिए आशीर्वाद प्राप्त उनके कुशल क्षेम का ध्यान रखती हैं, उनके अन्दर व्यात सभी बाधाओं को रोकती हैं और उनका करने के लिए उनसे प्रार्थना करें। स्नान आदि करने के पश्चात् ही अच्छी गुणवत्ता की सामग्री तथा समाधान करती हैं तथा उनकी कुण्डलिनी को 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-29.txt भु ूर साफ तौलिया आदि लेकर श्रीमाताजी की पूजा की इस मामले में अति में जाना आवांछित है क्योंकि भी ध्यान में बैठना इससे व्यक्ति का चित्त लक्ष्य से भटक जाता है । जानी चहिए। पूजा के पश्चात् हितकर है। शाम के समय आरती करें और ध्यान शाम को सोने से पूर्व श्रीमाताजी की फोटोग्राफ के करें। सहजयोग में उत्क्रान्ति के लिए सप्ताह में सम्मुख पानी पैर क्रिया करना नियमित रूप से एक बार सामूहिकता में ध्यान करना आवश्यक है। होना चाहिए। यह क्रिया आवश्यक है। आन्तरिक और बाह्य सफाई महत्वपूर्णतम है। परन्तु (निर्मल योग से उद्धृत एवं अनुवादित) 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-30.txt ज्यूरिक (Zurich ) से एक पत्र यूरोप की ठण्ड, बर्फ और हवाओं में हम लौट वर्तमान की महत्ता पर स्वामित्व पाने लगते हैं ! आए हैं परन्तु आपके सदैव चमकते हुए सूर्य, अविस्मरणीय सूर्यास्त, आपके देश की चमक एवं से देखते हैं, उसकी योजना बनाते हैं और इस यहाँ, पश्चिम में हम भविष्य को देखते हैं, पहले प्रकाश को भूल पाना हमारे लिए असम्भव है इन्द्र क्रिया में हमारे गतिमापक (Speedometer ) धनुषी अछूते गाँव, वातावरण की ताज़गी तथा हमारे पुगला जाते हैं। वर्तमान के सौन्दर्य को महसूस संसर्ग में आए लोगों की दिनचर्या ने हमें आन्तरिक करने का समय हमारे पास नहीं है। परन्तु हमारी शान्ति एवं गहन-ध्यान की ओर आमन्त्रत किया। ज़िन सहजयोगियों से हम मिले उन्होंने भी हमें तो केवल वर्तमान के माध्यम से ही लिया जा श्रीमाताजी की सृजित सृष्टि का आनन्द परम पूज्य आपके पावन देश के बासियों के अन्तर्निहित आनन्द सकता है। को खोजने के लिए प्रेरित किया हम आपसे पहली बार मिले परन्तु हमें ऐसा हम जानते हैं कि हम पश्चिमी लोगों को हर लगा मानो आप युगों-युगों से हमारे हृदय में रहते वात पर धन्यवाद देने की बुरी आदत है। अंतः हम हों और प्रथम मिलन में ही हमने अपने भाई-बहनों अपने हृदय का उपयोग करना चाहिए, मस्तिष्क को पहचान लिया जो आनन्दावस्था में अपना सभी का नहीं। इस पत्र के माध्यम से सभी पश्चिमी कुछ हमसे बाँटने को तैयार थे हमने तो केवल सहजयोगियों की ओर से हम कहना चाहेंगे कि लेना ही था,अतः हमने स्वयं को प्रेम की इस जिस प्रकार आपने हमारा अपने देश में स्वागत गतिशीलता के समर्पित कर दिया। हमारा सम्मुख किया इतना प्रेम, आनन्द एवं भाईचारा प्रदान किया महानतम अनुभव ये है कि जीवन में पहली बार उसके लिए हम सब आपके आभारी हैं। हमने अपनी प्रिय श्रीमाताजी और हमारे मध्य के आप सभी हमारे प्रति इतने मधुर थे कि आपकी माध्यम को देखा। अपनी चेतना के माध्यम से आप मुस्कराहट, दृष्टिकोण एवं उदारता के माध्यम से सुगमता-पूर्वक श्रीआदिशक्ति के परमेश्वरी सौन्दर्य हम अपनी प्रिय श्रीमाताजी की कार्यशैली को देख को वहुत कुछ समझते हैं, बहुत कुछ खोजते हैं एवं सम्मान से हमारे क्योंकि आपकी संवेदना हमसे कहीं अधिक है और पाए। आपके प्रति कृतज्ञता हृदय परिपूर्ण हैं। श्रीमाताजी के प्रति आप लोगों गतिशील आत्मा के माध्यम से आप आत्म-सात की श्रद्धा, प्रेम एवं समर्पण अनुसरणीय उदाहरण करते हैं, थके हुए मस्तिष्क के माध्यम से नहीं। | आपके व्यवहार में हमने आपकी श्रद्धा के आपके अहं के गुब्बारों की हवा निकल चुकी है, ै प्रतिबिम्ब को महसूस किया। आप लोग कितने आपकी विनम्रता कहीं अधिक है आपके आचरण बिवेकशील हैं. कितने विश्वस्त हैं और किस प्रकार की कपा से हम श्रीमाताजी को ऊँचा और अधिक 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-31.txt दिसम्बर 2005 चैतन्य लहरी 31 नवम्बर ऊँचा, अधिक दिव्य, अधिक शक्तिशाली रूप में होता है कि श्रीमाताजी की दिव्य चेतना हमारे देखते हैं क्योंकि जिस प्रकार पूर्ण चित्त . गहन अन्दर की गहराइयों में बसती चली जा रही है सम्मान, श्रद्धा एवं प्रशंसा भाव से आप उनसे ब्रह्माण्ड के सृष्टा से हम ये प्रार्थना करते व्यवहार करते हैं वह हमारे लिए प्रेरणा का ओत और मिलकर सभी वचन देते हैं कि हम केवल अपने है। आप उनसे तभी बोलते हैं जब वे आपसे कुछ अन्दर चमकते हुए सौन्दर्य को ही देखेंगे और ये पूछ, आप अचानक बोलना शुरु नहीं कर देते और याद रखते कि हमारी माँ हमसे कितना प्रेम न ही उन्हें बीच में टोकते हैं मर्यादाओं का आप करती है, हम भी परस्पर उतनी ही गहनता से प्रेम हुए सम्मान करते हैं। परमात्मा करें की आत्मा द्वारा करेंगे और परस्पर एक ही परमात्मा के बच्चे होने समझने एवं दर्शन करने के योग्य अपनी परमेश्वरी का अहसास बनाए रखेंगे। माँ की गरिमा को बढ़ाने के लिए हम सब भी आइए स्वयं को श्रीमाताजी की सुरक्षा में समर्पित कर दें.उनके साक्षात में बार-बार मिलें और मिलकर यह वह महान समय था जब पूर्व और पश्चिम उनकी गरिमा को बढ़ाएं, क्योंकि केवल उन्हीं की आपकी सहजता और उत्साह का अनुसरण करे। माँ के प्रेम सागर में विलय हो गए थे, इसी समय से हम अपने सौन्दर्य तथा आनन्दमयी आत्मा कृपा हमने परमात्मा द्वारा ज्योतित सौन्दर्य का अवलोकन की ज्योति को प्राप्त कर सकेंगे। किया और ये जाना कि किस प्रकार एक दूसरे हार्दिक प्रेम एवं का सम्मान करना है और परस्पर प्रेम दर्शाना है। जय श्रीमाताजी श्रीमाताजी द्वारा दिए गए एक साथ रहने और प्रेम Arneau, Maria-Amelia, Marie आदान-प्रदान करने के लक्ष्य को हमें प्राप्त करना Laure, Gregoire, Catherine है। परस्पर प्रेम एवं आनन्द के आदान-प्रदान के Christine माध्यम से ही सामूहिकता की भावना की अधिकाधिक अभिव्यक्ति होती है और हमें अहसास (निरमल योग से उद्धृत एवं अनुवादित) कब 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-32.txt परम पूज्य श्रीमाताजी का एक पत्र लन्दन 26.1980 बानेश्वर में जिस कार्यक्रम का आपने आयोजन विशाल स्तर पर कार्य शुरू हो गया है इस वर्ष किया है निश्चित रूप से बह अत्यन्त सफल होगा। आपकी पावन भूमि पर बहुत से लोग आने वाले हैं। अब परमात्मा के सारे कार्यों में एक नई गतिशीलता मैं नवंबर में आऊँगी। तब तक गाँव-गाँव में आएगी। पूना के सहजयोगियों ने पूना के पुण्यों को सहजयोग का सन्देश पहुँच जाना चाहिए। सम्पूर्णता प्रदान की है इसमें मेरा कोई विशेष योगदान नहीं है। आपको जो भी प्राप्त हुआ है उसे आपने खोजा है और स्वीकार किया हैं । यह सभी को मेरा स्नेहमय आशीर्वाद सर्वदा आपकी अपनी माँ निर्मला (मराठी से अनुवादित) (निर्मला योगा- 1981) आनन्द का सोत है। सहजयोग, महायोग के रूप में विकसित हो रहा है । बानेश्वर की गोष्ठी (Seminar) में ये बात साबित हो जाएगी यूरोप में भी अब बहुत है ै। ह ा. ति 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-33.txt श्रीमन सी० पीo श्रीवास्तव का स्वागत दिल्ली- 4 जनवरी 1980 4 जनवरी 1980 की शाम दिल्ली के जीवन प्राप्त हो। केवल तभी वे अपने विशाल मानव सहजयोगियों के लिए अत्यन्त स्मरणीय एवं परिवार के प्रति स्वयं को समर्पित करने के लिए आनन्ददायी थी। उन्होंने श्रीमन सी0पी० श्रीवास्तव स्वतन्त्र होंगी उन्होंने (श्रीमाताजी) अपना वचन का हृदय से स्वागत किया। इस अवसर पर श्रीमन निभाया और मैंने अपना। हमारी बेटियाँ बड़ी हुई। सी0पी0 श्रीवास्तव ने सहजयोगियों को इस प्रकार इसका श्रेय, स्वाभाविक रूप से उन्हें ही जाता है क्योंकि मैं तो अपने दफ़्तर के कार्यों में ही बहुत अधि सम्बोधित किया:- कि व्यस्त था। सुब्रमण्यम् और दिल्ली के प्यारे सहजयोगियो और सहजयोगिनियों, श्री बच्चों और घर की देखभाल की जिम्मेदारियों को स्वीकार करके उन्होंने मुझे भी सशक्त आश्रय सर्वप्रथम तो मैं ये कहूँगा कि आज शाम जितने प्रदान किया। मैं तो केवल अपने दफ्तर के कार्यों प्रेम सम्मान एवं करुणा की वर्षा आपने मुझपर की. तक ही सीमित रहा। बेटियाँ जब बड़ी हुईं तो उसके लिए मैं आपका हृदय से अनुगृहीत हूँ। ये उनके विवाह का प्रश्न आया और ये समय मेरी अनुभव मेरे लिए अत्यन्त सुखकर है.और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं इसे बड़े लम्बे समय तक पत्नी के पालन-पोषण तथा बेटियों की भी परीक्षा का था। मैंने अपनी बेटियों से अब आप पूछा, संजोकर रखूंगा। बड़ी हो गई हो, तुमने इतनी दुनिया घूम ली है, तुम सहजयोग अब मेरी पत्नी, जिन्हें आप माताजी अच्छी पढ़ी लिखी हो, विश्व के बहुत से देश देख कहते हैं, की जान है। वे अब भी मेरी पत्नी हैं और चुकी हो, अब तुमने निर्णय करना है कि किंस जैसे सुब्रमण्यम् जी ने कहा, उन्होंने एक पूर्ण पत्नी प्रकार से तुम विवाह करना चाहोगी।" परन्तु जिस की भूमिका निभाई और मैं ये कहना चाहूँगा कि प्रकार से सच्ची भारतीय परम्परा के अनुसार मेरी इसके साथ-साथ उन्होंने एक पूर्ण माँ और अब पत्नी ने उनका पालन पोषण किया था, दोनों ने नानी माँ की भूमिका भी निभाई। अब वे मानव के कहा कि माता-पिता के रूप में उनके लिए दुल्हे लिए जो भी कुछ कर रही हैं उस पर मुझे गर्व है खोजने का कर्तव्य हमारा है। अतः जो कुछ भी और सन्तोष है। मैं ये कहना चाहूँगा कि वर्षों पूर्व हमने निर्णय लिया वही उनका निर्णय था। बम्बई, 1 जब हमारी दोनो बेटियाँ छोटी थीं तो हम दोनों ने जहाँ हम रहते थे, वहाँ के लोग इस बात पर निर्णय किया कि हम उनका ठीक प्रकार से पालन विश्वास न कर पाए कि इतनी पढ़ी लिखी और इतना भ्रमण करने के पश्चात् भी पुरातन भारतीय पोषण करेंगे, उन्हें पढ़ाएंगे, लिखाएंगे और ये दखेंगे कि विवाह के पश्चात् उन्हें सुख शांति से परिपूर्ण मूल्यों के अनुरूप भारतीय पारम्परिक शैली से वे 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-34.txt दिसम्बर, 2005 34 चैतन्य लहरी नवम्बर विवाह करना चाहेंगी! तो माता-पिता के रूप में रक्षा करनी है तो एक नई क्रान्ति, आध्यात्मिक हमने उनके लिए दुल्हे खोजे और अब वे दोनों क्रान्ति का आना अत्यन्त आवश्यक है अन्यथा युद्ध, लड़ाईयाँ और संघर्ष मानवता को नष्ट करे अपने परिवारों में सुख शान्ति पूर्वक स्थापित हैं। देंगे। इस संदर्भ में मैं सहजयोग में मानव-मात्र के तब से मेरी पत्नी अपना समय, केवल समय ही लिए एक नए आन्दोलन की शुरुआत देखता हूँ और आप लोगों को विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि नहीं अपनी आत्मा भी, संहजयोग को समर्पित कर रही हैं और मैंने देखा है कि उनके प्रयत्न का कितना चमत्कारिक परिणाम है । जिस विश्व में सहजयोगी और सहजयोगिनियों के रूप में आप जो कार्य कर रहे हैं मुझे उस पर गर्व है- सबके हम रह रहे हैं, सुबह उठकर यदि आप समाचार लिए सच्चा निःस्वार्थ प्रेम, सहज आदर्शों के लिए पत्र पर दृष्टि डालें तो कठिनाइयाँ, कष्ट, दुर्घटनाए भरी हुई होती हैं। वे शान्ति लाना चाहती हैं सच्चा समर्पण , ये आश्चर्यजनक मूल्य हैं। इंग्लैण्ड में मैंने सहजयोग के चमत्कार देखे हैं, आध्यात्मिक शान्ति । जहाँ भी वैर-भाव है उसके स्थान पर वह प्रेम लाना चाहती हैं, कड़वाहट के और जो मैंने देखा है वह मैं आपको बताना चाहूँगा। स्थान पर सामंजस्य स्थापित करके वे लोगों में जिम्मेदारियों के कारण मेरा जीवन अत्यन्त व्यस्त आध्यात्मिक उत्क्रांति लाना चाहती हैं। मेरे विचार है। एक माह पूर्व एक बार जब मेरी पत्नी और से आज विश्व अशान्त है। मुझे लगता है कि सहजयोगियों ने मुझे एक समारोह के लिए निमंत्रित वास्तव में मानव अपने अन्दर और बाहर से अशान्त किया. मैं उनके प्रति कृतज्ञ हूँ, वहाँ बूढ़े, जवान, | तो समय की आवश्यकता क्या है? वैभवशाली अधेड़ और बच्चे, वे सब एक सुख-शान्त परिवार की तरह से दिखाई दिए। वे देश के भिन्न भागों से देशों की स्थिति भी बेहतर नहीं है। हो सकता है उनके पास भौतिक पदार्थ अधिक हों परन्तु आन्तरिक आए थे अत्यन्त प्रसन्न और शान्त मुद्रा में वे सब एक साथ थे और उनके चेहरों पर गहन दिव्यता रूप से वे हमसे भी अधिक परेशान हैं। हम भारतीय लोग कुछ सीमा तक तो सन्तुष्ट हैं। हमारी संस्कृति झलक रही थी। वे प्रसन्न थे. शान्त थे और प्रायः अत्यन्त समृद्ध है और हमारी परम्पराएं अत्यन्त दिखाई देने वाली भीड़ से अलग थे। जीवन के आश्चर्यजनक । हमारी शानदार परम्पराओं में तनावों, क्रोध एवं कड़वाहटों का उन पर कोई असर भौतिकता और आध्यात्मिकता का पतन हुआ है न था एक चीज़ जिसने मेरे हृदय को स्पर्श किया इसलिए वहाँ आन्तरिक अशान्ति बहुत अधिक है। कि बहुत सी महिलाएँ एक-एक करके आई. उनमें सर्वत्र लोग कुछ खोज रहे हैं। वे जानना चाहते हैं से कुछ की आँखों में आँसू थे। वे मेरी पत्नी के पास कि दिखाई देने वाले इस विश्व से परे क्या है ? आई, जहाँ में भी बैठा हुआ था । एक महिला कहने लगी श्रीमाताजी आपने मुझे और मेरे बेटे को बचा और मानव की नियति क्या है ? यदि मानवता की প 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-35.txt दिसम्बर. 2005 वैतन्य लहरी 35 नवम्बर लिया है। मेरा बेटा भटक गया था उसे नशे और है। हमें यहाँ की मान्यताओं का सम्मान करना है। उन मान्यताओं का सम्मान करना होगा जो भारत शराब की लत पड़ गई थी। अब वह बच गया है। को महान बनाती हैं और भारतीयों को विवेकशील। वह परिवार में वापिस आ गया है । अब हमारा आनन्दमय परिवार है। इस कृपा के लिए किस हमारी परम्पराएं अत्यन्त समृद्ध हैं और अत्यन्त प्रकार हम आपका धन्यवाद करें ? एक अन्य अद्भुत। परन्तु हम कभी-कभी अपनी वास्तविकता महिला आकर कहती हैं, " मेरी बेटी हमारी इच्छाओं को छोड़ बैठते हैं। अब भी यदि हम सब अपने के विपरीत गलत रास्ते पर चल रही थी। आपका पूर्वजों द्वारा बनाए गए विवेकपथ पर चलकर सच्चे सहजयोग उसे वापिस परिवार में ले आया है और भारतीय बनें और उस महिला, मेरी पत्नी, द्वारा अब हम एक बार फिर संयुक्त और प्रसन्न परिवार बताई गई विधि द्वारा अपना अध्यात्मिक विकास करें हैं।" मेरे विचार से इस प्रकार यदि एक भी व्यक्ति तो, मुझे कोई सन्देह नहीं है, हम एक अद्भुत को बचाया जा सके तो यह अद्वितीय उपलब्धि है। आध्यात्मिक उत्क्रान्ति की ओर अग्रसर हो रहे हैं। दो व्यक्तियों को यदि बचाया जा सक तो बेहतर है जो प्रेम आप मेरी पत्नी को दे रहे हैं उसके लिए यदि दर्जनों और सैकड़ों को बचाया जा सके इन थोड़े से शब्दों के साथ मैं आप सबके प्रति परन्तु तो यह चमत्कार है। मुझे लगता है कि मानवता के अपनी गहन कृतज्ञता प्रकट करना चाहता हूँ। आप हित के लिए इस आन्दोलन में बहुत सी महान लोग उनके स्वप्नों का साकार रूप हैं। एक विशेष सम्भावनाएं हैं बशर्ते कि अपने मूल्यों के अनुरूप प्रकार की सामूहिकता का सृजन करना, आध्यात्मिक कठोरतापूर्वक चलते हुए आप इस पथ पर आगे सामूहिकता, अन्तिम सत्य की एक विशेष चेतना का बढ़ें। मूल्य अत्यन्त आवश्यक हैं, विशेष रूप से सृजन करना उनका ख्वाब था। अतः यहाँ पर आप आज के विश्व में यद्यपि पूरे विश्व में उन मूल्यों लोगों की उपस्थिति मेरे लिए उनके सदा से संजोए हुए स्वप्न की साकार प्रतिमूर्ति है। जो प्रेम एवं स्नेह थे, फिर भी इन मूल्यों को पुनर्जीवित करना होगा आपके मन में उनके लिए है उसके लिए मैं आपका और बनाए रखना होगा। विनम्रता एवं निष्ठा पूर्वक अभारी हूँ। आज मेरे प्रति जो करुणा और प्रेम मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मेरे देश भारत आपने दर्शाया है उसके लिए मैं आपको धन्यवाद का पतन हुआ है जो मानव समाज को स्थिर करते वर्ष की मान्यताएं पूरे विश्व की मान्यताओं से कहीं करता हूँ। मैं केवल इतना कह सकता हूँ कि किसी भी प्रकार से मेरी गतिविधियाँ उनके कार्य में सहायक बेहतर हैं। कोई भी देश भारत से अच्छा नहीं है , कोई भी लोग भारतीय लोगों से अच्छे नहीं हैं। हो सकती है तो ये उनके लिए हैं। उनका पूरा इतना कुछ याद रखके यदि हम भारतीय बनें तो समय सहजयोग के लिए है और इसकी मुझे बहुत बहुत अच्छा है। भारत में जन्म लेना ही काफी नहीं खुशी है। काश कि उनके लिए दिन में चौबीस 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-36.txt चैतन्य लहरी नवम्बर - दिसग्बर, 2005 36 भारतीय मूल्यों को पूनर्जीवन दें जिन पर हमें नाज़ घण्टो के स्थानपर 48 घण्टे होते ! जो भी क्षेम उनके पास है उसे वे भली-भांति है। जो सम्मान आज आपने मुझे दिया है और समर्पित करती हैं। अपनी पत्नी की बात करना देवी-लक्ष्मी की प्रतिमा का सुन्दर तोहफ़ा जो आपने मुझे दिया है उसके लिए आप सबका हृदय से अत्यन्त उलझन पूर्ण है परन्तु ये सम्बन्ध भी जीवन की वास्तविकता है। इससे ऊँचा भी एक सम्बन्ध है धन्यवाद करते हुए अपना भाषण समापन करूँगा। देवी लक्ष्मी की कृपा-वर्षा आप सब पर होती रहे । जो आप लोगों का श्रीमाताजी के साथ है। तत्पश्चात् परम पूज्य श्रीमाताजी ने सामूहिकता उनमें ऐसे बहुत से गुण हैं जो सम्भवतः आप न को इस प्रकार सम्बोधित किया:- देख पाएं। उन्हें केवल देने में विश्वास है लेने में श्री श्रीवास्तव के विषय में बात करना एक नहीं। आप जानते हैं कि हमारे सभी प्रकार के सम्बन्धी होते हैं। कुछ बहुत समृद्ध हैं, कुछ इतने प्रकार से, अत्यन्त उलझन-पूर्ण कार्य है। मुझे प्रसन्नता है कि आज आप लोग उनका सम्मान कर समृद्ध नहीं है, कुछ निर्धन हैं, कुछ जरूरतमन्द हैं, परन्तु हमारे सरकारी सेवाकाल में जो भी सम्बन्धी रहे हैं क्योंकि उनका सहयोग यदि मुझे प्राप्त न भी नहीं कर पाती। इसके अतिरिवत हमारे यहाँ आया, हमारे यहाँ जो कुछ भी होता तो मैं कुछ जिस प्रकार से उन्होंने मूल्यों की बात की, तो मुझे उपलब्ध था उसे हमारे बच्चों और हमारे यहाँ आए उनसे अधिक मूल्यों का सम्मान करने वाला व्यक्ति बच्चों ने बराबर बाँटकर लिया। कभी भी उन्होंने अपनी बेटियों तथा हमारे घर आए किसी और के जीवन में अभी तक नहीं मिला। अन्तर सिर्फ इतना बेटे-बेटियों में फर्क नहीं किया। ये बात आरम्भ से है कि आत्म-साक्षात्कार के पश्चात् आप लोग ही थी। उनका स्वभाव सदा ऐसा ही था, यही आसानी से इन मूल्यों को आत्मसात कर सकते हैं परन्तु उनमें तो आत्म साक्षात्कार से पूर्व ही ये कारण है कि वे आध्यात्मिक व्यक्तित्व में पुष्पित हो रही हैं। आज भी यही घटित हुआ है। कुछ समय मूल्य विद्यमान हैं। वे अत्यन्त ईमानदार व्यक्ति हैं। और अधिक बढ़ उन्होंने करोड़ों-करोड़ों रुपयों के समुद्री जहाज से ऐसा ही था। अब तो ये गुण रहा है। आन्दोलन विस्तृत हो रहा है। ये आन्दोलन खरीदे परन्तु किसी भी प्रकार की बेईमानी का स्वैच्छिक है। इंग्लैण्ड, फॉस, जर्मनी, अन्य यूरोपियन ख्याल उन्हें नहीं आया। वे अत्यन्त अनुशासित देश, आस्ट्रेलिया और निस्सन्देह भारत, इसकी व्यक्ति हैं। मेरे विचार से हमारे अन्दर अनुशासन मातृ-भूमि है। परमात्मा करे कि ये आन्दोलन आगे की कमी है। जो देश अनुशासित हैं वो स्वयं भी बढ़े, सहज-गतिविधियों में अधिक से अधिक संख्या उन्नत हुए हैं और उन्होंने अन्य देशों की उन्नत में सहजयोगी सम्मिलित हों और उन सभी महान होने में सहायता की है। सहजयोगियों में यदि 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-37.txt दिसम्बर 2005 37 वैतन्य लहरी नवम्बर सहजयोग का अनुशासन नहीं होगा तो सहजयोग भी किसी अन्य मूर्खता पूर्ण संस्था की तरह से बन बलिदान है। परन्तु क्योंकि उन्होंने देखा है कि यही रास्ता है इसलिए उन्होंने न केवल मुझे इसकी आज्ञा दी परन्तु आप जानते हैं कि वे इसके प्रति कितने उदार हैं। हम चीजों को देखते हैं और जाएगा। श्री श्रीवास्तव का अनुशासन इतना महान है कि मैं समझ नहीं पाती कि वे किस प्रकार इन्हें निभाते हैं ! उदाहरण के रूप में समय के विषय में तार्किकता से समझते भी हैं कि ये अच्छी हैं, फिर वे अत्यन्त मर्यादित हैं। इसी प्रकार से अन्य लोगों भी हमारा उनसे सामंजस्य नहीं है। उनमें का सम्मान करने के बारे में, अपना कार्य करने के (सर सीoपी0) मुझे उनका अपना अनुशासन दिखाई विषय में, उनसे मिलने आए लोगों के विषय में, हर पड़ता है। तार्किकता पूर्वक जब वे किसी चीज़ को बात बोलने के विषय में, वे अत्यन्त सावधान रहते स्वीकार करते हैं या सोचते हैं कि वो ठीक है तो हैं कि उचित समय पर क्या कहा जाना चाहिए। उस कार्य को कर देते हैं। ये गुण आपने किसी ऐसे सहजता उनके अन्दर इतनी अधिक है, इतनी व्यक्ति से सीखना है जिसने स्वयं जीवन पर्यन्त अन्तर्जात है कि ठीक समय पर वे ठीक बात कहते ऐसा किया हो। जिस प्रकार वे सामंजस्य स्थापित हैं। सर्वोपरि उनमें इतनी मेधा है कि वे तुरन्त ठीक करते थे कि उस पर मुझे हैरानी हुआ करती थी! परिणाम पर पहुँचते हैं। वे आत्मसाक्षात्कारी न थे। उनके कार्यों में इतना सामंजस्य और सूझ-बूझ है, परन्तु अब. मुझे लगता है, कि उन्होंने सहस्रार को ये बात मुझे आश्चर्य चकित करती है क्योंकि पूर्व भी वे सही निष्कर्ष पर छू लिया है। परन्तु इससे पहुँचा करते थे। सहजयोग के विषय में आपने आत्मसाक्षात्कार के बाद कठोर तपस्या करने पर ही व्यक्ति को ऐसा सामंजस्य प्राप्त हो सकता है। हम उनके दृष्टिकोण को देखा कि उनका दृष्टिकोण हैं। जैसे बहुत से लोग कहते कुछ हैं करते कुछ हर चीज़ की आलोचना करते हैं परन्तु स्वयं यदि वही कार्य करना पड़े तो ठीक वैसा ही करते हैं। वे कितना ठीक है। आप यदि कुद्धिमान हों केवल तभी आप उचित दृष्टिकोण अपना सकते है जो लोग विवेकशील नहीं हैं वे ऐसा नहीं कर सकते। शुद्ध यदि उच्च पद पर पहुँच गए हैं तो लोग सोचते हैं विवेकशीलता का अर्थ है कि अहं और प्रतिअहं का यह श्रीमाताजी की कृपा से है। चाहे कृपा का इसमें बहुत मामूली अंश हो, फिर भी मैं कहूँगी कि हमारे कोई पूर्वाग्रह न होना यह गुण आप उनमें शुद्ध अवस्था में देख सकते हैं। देश में उन जैसा कोई भी व्यक्ति अवश्य उन्नति करेगा क्योंकि हमारे यहाँ के लोग ईमानदारी, ये स्वीकार करना ही कि मैं ये सारा कार्य करूं, एक पुरूष के लिए बहुत बड़ा बलिदान है। आपमें से कोई भी अपनी पत्नी को तीन महीने तक अपने मानते हैं। निष्ठा, नैतिकता को अत्यन्त विशिष्ट गुण इस बार मेरे भारत आने के बाद इतनी संस्थाओं से दूर रहने की आज्ञा न देगा। ये बहुत बड़ा और लोगों ने उन्हें सम्मान प्रदान किया कि मैं 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-38.txt दिसम्बर. 2005 चैतन्य लहरी नवम्बर 38 मैंने इतना भर कहा कि शराब पीना मुझे पसन्द नहीं आश्चर्य चकित थी कि उनका इतना सम्मान कैसे है परन्तु कभी ये नहीं कहा कि आप मत पियो। इस हुआ ! आखिरकार वे भी तो किसी अन्य नौकर शाह की तरह से हैं । परन्तु अपने आदर्शो के प्रकार से मैं कभी भी दखलन्दाजी नहीं करती। कारण उनका सम्मान हुआ ! वे आदर्शवादी हैं। सहजयोग के विषय में भी मैंने इस प्रकार से कभी नहीं बताया। ये उनकी अपनी सूझ-बूझ है। लोगों पति के रूप में मेरे साथ रहना आसान काम नहीं है. क्योंकि आप जानते हैं, अपने जीवन में मैं किसी में यदि ऐसा विवेक होगा तो हमें उनके पास जा-जाकर के उन्हें समझाना नहीं पड़ेगा। भी तरह की चालबाजी की आज्ञा नहीं देती। जब मैं बच्ची थी तो मेरी माताजी मुझसे कहा भारतीय प्रशासनिक सेवा में जब उनका चयन करती थीं कि जिस प्रकार से तुम अबोध हो उदार हुआ तो, आप मानेंगे नहीं, इससे पूर्व उन्हें भारतीय हो, तुमसे केवल श्री शंकर ही विवाह कर सकते हैं । क्योंकि किसी भी गरीब या जरूरतमन्द को देखते विदेश सेवाओं के लिए चुना गया था। उन्हें कहीं अधिक वेतन मिलता परन्तु मैंने उनसे कहा कि ही अपनी माँ के भण्डार से सभी कुछ उठाकर मैं उसे दे दिया करती थी। वे कहा करतीं, " मैं नहीं सर्वप्रथम हमें अपने देश की सेवा करनी है, बाहर विदेशों में नहीं जाना। उन्होंने भारतीय प्रशासनिक विवाह किससे होगा, उस बेचारे जानती कि तुम्हारा सेवा स्वीकार कर ली. इसलिए नहीं कि मैंने उन्हें को श्री शंकर की तरह से निर्धन ही रहना पड़ेगा इसके लिए कहा, परन्तु इसलिए कि उन्होंने सोचा क्योंकि उसके पास जो भी कुछ होगा वह सब तो कि मातृभूमि की सेवा करनी चाहिए। भारतीय बाँट दोगी।" परन्तु मैं तो ऐसी ही हूँ। ये तो तुम मेरा स्वभाव है। कोई यदि ये कहता है कि "मुझे ये प्रशासनिक सेवा में कार्य करते हुए उन्होंने बहुत कृष्ट उठाए फिर भी अपने आदर्शों पर डटे रहे। मेरे चीज पसन्द है" तो मैं सब कुछ भूलकर वह चीज़ विचार से व्यक्ति को उनसे मानसिक अनुशासन उसे दे देती हूँ। उन्हें मुझसे एक शिकायत है कि सीखना चाहिए। ये मानसिक अनुशासन ये है कि मैंने हमारी मंगनी की अंगूठी भी दे डाली। परन्तु बुद्धि से एक बार स्वीकार करने के पश्चात् ये एक ओर से मैं देती और दूसरी ओर से आ जाता। अनुशासन व्यक्ति की गतिविधियों में झलकना अब वे इस बात को जानते हैं। मेरे इस स्वभाव को चाहिए। आपको अपने गुणों पर गर्व होना चाहिए। बर्दाशत करना किसी भी पति के लिए आसान नहीं आप उनके पद और सहयोगियों के बारे में जानते है, जिस प्रकार से मैं उदार हूँ। फिर आप सबके हैं फिर भी वे एक बूँद शराब नहीं पीते। कोई भी लिए मेरा अत्यधिक प्रेममय स्वभाव इसे भी वे कह सकता है कि माताजी के कारण ऐसा है। समझते हैं। आपके लिए मेरे मन में गहन प्रेम है। निःसन्देह जब आप लोग आकर मुझे परेशान करते परन्तु मैंने कभी भी उनसे ऐसा नहीं कहा। निःसन्देह 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-39.txt दिसम्बर, 2005 चैतन्य लहरी 39 नवम्बर हमारे यहाँ चोरी हो गई और मेरी सारी साड़ियाँ, लोग आजकल मुझे बहुत तंग कर रहे हैं। कुछ हैं भी घटित होता है उन्हे माँ की याद आती है और इनके सभी कपड़े, सभी कुछ चोर ले गए । कुछ भी भागे आते हैं। कहीं न कहीं किसी न किसी के न बचा। उस बक्त क्योंकि हमारे पास धन का अभाव था तो मैंने इनसे कहा कि पहले अपने कपड़े साथ हमेशा आपात स्थिति बनी रहती है। इस सबको सहन करते हुए भी वे अत्यन्त शान्त रहे । सिलवा लो। मैं अपने लिए कपड़े न बनवा सकी। सात सालों तक मेरे पास केवल एक रेशमी साड़ी मेरे पति के रूप में, वे मुझे समझ सकते हैं। बचपन से ही वे स्वः निर्मित व्यक्ति हैं। पूर्णतः ईमानदार। थी परन्तु हमने सब कुछ चलाया और उसके वो कभी झूठ नहीं बोलते, किसी भी प्रकार की पश्चात् सब बढ़िया हो गया आपके पास कुछ है चालबाजी नहीं करते, कभी गप्प नहीं मारते। गप्प या नहीं इसका कोई महत्व नहीं है, महत्व तो इस बाजी से मुझे घृणा है और वो भी कभी गप्प बाज़ी बात का है कि आप किस प्रकार अपना जीवन चलाते हैं । नहीं करते अन्तर्राष्ट्रीय विश्व में भी उन्होंने अपनी मेरे बच्चे होना भी आसान नहीं है क्योंकि मैं एक तस्वीर बनाई है कि वे एक परिवार की देखभाल कर रहे हैं । अतः यदि आपने सहजयोगी जानती हूँ आप क्या करते हैं. आपके विषय में मैं बनना है तो आप लोगों को भी समझना सबकुछ जानती हूँ। मैं आपको सुधारती भी हूँ, आप होगा कि आपने ये सभी मूल्य आत्मसात इस बात को जानते हैं परन्तु जब आप मुझसे जुड़े करने हैं, अन्यथा सहजयोग पूरी तरह नष्ट हुए हैं तो ये बात दर्शाती है कि आप उस श्रेणी के हो जाएगा सहजयोगियों को उन्नत होना होगा लोगों में से हैं जो विकसित होकर आन्तरिक उन्हें ये निर्णय करना होगा कि उन्हें झूठ नहीं परिवर्तन द्वारा बेहतर अवस्था को प्राप्त करने के बोलना, ईमानदार होना है, परमात्मा पर विश्वास लिए आमादा हैं। सहजयोगी होना सुगम कार्य नहीं करना है। सर्वशक्तिमान परमात्मा ही उनके पिता है, कि आप कुछ पैसा देकर सदस्य बन जाएं और हैं और वे अपने बच्चों की देखभाल करते हैं। हमें श्रीमाताजी के शिष्य कहलाएं। मेरे शिष्य बनने के इस विश्व के मानचित्र को परिवर्तित करना है, बाद भी आपको कुछ परीक्षाएं पास करनी पड़ती है विशेष रूप से हमारे देश के। इसके लिए हमें और इसके लिए कठोर परिश्रम करना पड़ता है। चरित्रवान और निर्भीक लोगों की आवश्यकता है अपने परिवार में रहते हुए काफी तपस्या करनी जो अत्यन्त ईमानदारी पूर्वक जीवन का सामना पड़ती है। आप ये सब क्र रहे हैं इसलिए मैं बहुत कर सकें हमने कुछ खोया नहीं है। आपने देखा प्रसन्न हूँ और जिस तरह से मुझे उन पर है जब हमारे पास कुछ नहीं था तब भी (सर सी०पी० श्रीवास्तव) गर्व है, वैसे ही मुझे आप पर भी गर्व है, वैसे ही मुझे आप पर भी गर्व है। मैं परमात्मा की से हम प्रसन्न थे। एक बार कृपा F প 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-40.txt दिसम्बर 2005 चैतन्य लहरी 40 नवम्बर कीमत पर नहीं. और न ही हम किसी ऐसे आदमी चाहूँगी कि आप इस बात को देखें कि उन्होंने किस को चुनाव जितवाएंगे जो ईमानदार और सत्यनिष्ठ नहीं है हमें इसका मुकाबला करना होगा, केवल के प्रति कितने करुणामय । हमें चाहिए कि सबसे तभी हमारा देश सुधर सकेगा । आरम्भ में हमें कुछ पहले अपनी गलतियों को देखें, दूसरों के दोष नहीं बलिदान करना होगा जैसा आपने देखा, मुझे भी प्रकार अपने जीवन को चलाया आप लोगों से पूछे कि वे कितने ईमानदार हैं, कितने अच्छे, और सभी देखने चाहिएं। हम भारतीयों में विशेष प्रकार के बलिदान करना पड़ा। परन्तु बलिदान करना कठिन दोष होते हैं जिन्हें सुधारने का प्रयत्न हमें करना कार्य नहीं है अन्य महिलाओं के पास मैं बहुत से चाहिए। उस दिन हमारे कार्यक्रम में ऐसे लोग आए गहनें आदि देखा करती थी परन्तु इन चीजों के जो महाराष्ट्र में आन्दोलन शुरु कर रहे हैं मैंने लिए कभी मेरे मनमें इच्छा नहीं हुई । उसकी अपेक्षा शुरु करने का कोई लाभ मुझे इस बात पर गर्व है कि मेरे पति चरित्रवान उन्हें बताया," आन्दोलन नहीं, क्योंकि जब आपकी सरकार थी तब आपने व्यक्ति हैं। महिला के लिए यही सबसे बड़ा आभूषण और क्या किया ?" ज्यादा से ज्यादा एक बार फिर आप अपनी सरकार बना लेंगे, परन्तु फिर उसके बाद गर्व है। सभी सहजयोगियों और सहजयोगिनियों 1 को ऐसे ही सोचना चाहिए। अपनी इच्छा शक्ति को क्या करेंगे ? उन्होंने उत्तर दिया, अब हम क्या करें ? चीनी के एक बहुत बड़े व्यापारी से बहुत हमें उपयोग करना होगा सभी में कुछ न कुछ पैसा ले लिया है, सारा वैभव इक्टू्ठा कर लिया है कमियाँ हैं। इन कमियों को उचित ठहराने के स्थान और कीमतें बढ़ा दी हैं। जमाखोरी की चीनी को वो पर इन्हें ठीक करने के लिए सभी को चाहिए कि अब बहुत महगें दामो पर बेच रहा है क्योंकि उसने अपनी इच्छा शक्ति का उपयोग करें। मुझे पूर्ण चुनावों के लिए पार्टी को बहुत पैसा दिया था । विश्वास है कि एक दिन ऐसा आएगा जब श्री-श्री मैंने कहा, "अब आप लोग सहजयोग के दृष्टिकोण वास्तव इस देश को इस प्रकार से परिवर्तित होता से निर्णय करें कि आप किसी ऐसे आदमी को वोट हुआ देखेंगे जैसे वे स्वयं परिवर्तित होते रहे हैं। ये नहीं देंगे जो आपको वोट के लिए पैसा देता हो, भी हो सकता है कि एक दिन वे हमारे कन्धे से आप अपने वोट बेचेंगे नहीं। खाने तक के लिए कन्धा गिलाकर कार्य करेंगे हमे ऐसे लोगों की हम अपने वोट बेच देते हैं- हमारे अन्दर आवश्यकता है जो दिव्यता के जिज्ञासु हों और जो आत्मानुशासन का पूर्ण अभाव है।" कम से कम वर्तमान स्थिति को परिवर्तित करने के लिए पृथ्वी सहजयोगियों को तो ये कार्य शुरु कर देना चाहिए। पर अवतरित हों। आइए हम सब मिलकर निर्णय करें कि हम किसी परमात्मा आपको धन्य करें। (निर्मल योगा से उद्धृत एवं अनुवादित) भी प्रकार के गलत तरीके नहीं अपनाएगें किसी भी 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-41.txt सहजयोग का अलिखित इतिहास (अंक 9-10 से आगे) श्रीमाताजी को उनके साथ अत्यन्त धैर्य एकदम से भिन्न ब्रहमाण्ड (Ice House wood) आइस हाऊस बुड रखना पड़ा। मुझे याद है कि आरम्भिक सहजयोगियों के Hurst green में स्थित अपने घर पर श्रीमाताजी ने सप्ताहान्त का आयोजन किया Hurst Green जो साथ श्रीमाताजी कभी-कभी बहुत सख्त होती थीं। वे अविश्वसनीय ढंग से विनोदशील एवं स्नेहमय हो ऑक्सटेड के सभीप Sussex में है। हम सब वहाँ सकती थीं। परन्तु आवश्यकता पड़ने पर वे अत्यन्त रेल से गए। ये सब अदभुत था क्योंकि अजीब किस्म के लोग एक ऐसे वातावरण में एकत्रित हुए सख्त भी होती थीं उन दिनों मे वे पूरी तरह से माँ थे जहाँ, श्रीमाताजी के कथानुसार एक चूहे को भी के रूप में होती थीं। प्रारम्भिक सहजयोगयों में यह मूल विवेक विकसित नहीं हुआ था। जैसे एक घुसने की इजाजत नहीं थी। उस क्षेत्र में तो लोग साधक कब्रिस्तान के चैतन्य को जाँचने के लिए अन्जान लोगों को प्रवेश भी न करने देते थे, जीन और पुराने फैशन के कपडे पहने हुए पन्द्रह हिप्पी चला गया। जब वह वापिस आया तो श्रीमाताजी जैसे लोगों का तो प्रश्न ही न था। घर में नीचे एक को उस पर घण्टों काम करना पड़ा। "तुमने ऐसा बहुत विशाल बैठक थी जिसमें भारतीय कालीन विछे हुए क्यों किया ?" वह इसका कोई कारण न बता थे। उसके ऊपर मियानी पाया। एक सहजयोगिनी कहीं से एक हार खरीद लाई और माँ कह रहीं थीं, "तुम्हें चीज़ों का चैतन्य सकती थी और जहाँ श्री गणेश की एक अत्यन्त (Mejanine Room) थी जिसमें खूब सारी धूप आ देखना चाहिए। उन्होंने कहा, इस हार का सुन्दर प्रतिमा रखी हुई थी और अन्य देवी-देवताओं चैतन्य कुछ ठीक नहीं है।" श्रीमाताजी ने एक की प्रतिमाएं भी थीं। बाल्टी पानी मंगवाया और उस हार को पानी में (Maureen Rossi) डुबो दिया, पानी काला हो गया, इसमें से एक पैट (Anslow) मुझे सीढ़ियों के रास्ते पहली उनके मुँह से निकला, आह। "इसे देखो।" सबने मंजिल पर ले गया और श्री गणेश की विशाल काला बादल उभर आया और जैसी उनकी शैली है देखा परन्तु कोई भी जल्दी से सीखा नहीं। श्रीमाताजी प्रतिमा दिखाई। वह कहने लगा "देखो इस प्रतिमा को. उन लोगों के साथ धैर्य रखना पड़ा में इतना अच्छा चैतन्य है।"मैने कहा, " यहीं लटके बहुत Kevin Anslow रहो।" एक प्रकार से मैंने प्रतिक्रिया नहीं की। 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-42.txt चैतन्य लहरी दिसम्बर, 2005 42 नवम्बर मुस्लिम पृष्ठभूमि से होने के कारण मैंने सोचा, पास हैं। पुनः एक सत्र में श्रीमाताजी ने हम पर "ये क्या बात कर रहा है ? किस चीज़ के विषय कार्य किया परन्तु मुझे अन्दर बाहर जाते रहना में बात कर रहा है ?" पीछे हटते हुए मैंने चैतन्य पड़ा। परन्तु मुझे ऐसे लग रहा था मानो मैं शरीर के महसूस करने का प्रयत्न किया परन्तु इसमें चैतन्य अहसास से मुक्त हो गया हूँ। मेरे लिए यह अत्यन्त न था। ये लकड़ी की प्रतिमा है जो चैल्शम रोड अजीब अनुभव था । घर में बालकॉनी गोलाई में बनी हुई थी और सभी कमरों तक पहुँचती थी। आश्रम लंदन में है। मैं क्योंकि बीमार थी इसलिए श्रीमाताजी ने श्रीमाताजी के घर में जिस चीज़ ने मुझे प्रभावित किया वह थी कि घर के अन्दर रखी हुई सभी कहा,"मोरीन तुम आकर मेरे कमरे में सो सकती प्रतिमाओं से तेजी से चैतन्य प्रवाहित हो रहा है। हो जब सोने का समय आया तो मैंने स्वयं को सबके पीछे छिपाने का प्रयत्न किया क्योंकि मुझे जहाँ भी आप जाएं आपको एक प्रकार का मौन और शान्ति महसूस होती थी परन्तु अत्यन्त शक्ति विश्वास हो गया था कि जब श्रीमाताजी कमरे से शाली वातावरण जिसका वर्णन कर पाना कठिन बाहर गई तो वो लुप्त हो गई थी। वे गोल घूमती हुई सीढ़ियों से घर के मध्य में गई और आधी है आप केवल इतना कह सकते हैं कि वहाँ पर कोई अत्यन्त शक्तिशाली चीज़ आपके अन्दर और सीढ़ियाँ चढ़ने पर मुझे देख लिया और भीड़ के अन्दर से मुझे निकाल लाई। मैं डर गई थी कि क्या बाहर गहन प्रभाव छोड़ रही थी। फिर भी आप मध्य में थे और आपको लगता था कि होने वाला है जो भी हो उनका बिस्तर अत्यन्त इसके आरामदेह था। हिप्पी पृष्ठभूमि से होने के कारण आप एक अत्यन्त भिन्न प्रकार के ब्रह्माण्ड में है रात को पहनने के कपड़े जो मैं लाई थी वो कुछ विशेष अच्छे न थे। उन्होंने मुझे पेटीकोट और श्री माताजी ने हम पर कार्य किया और हमसे स्वेटर पहनाए। नींद में भी पूरी रात उन्होंने मेरी Djamel Metouri पीठ पर कार्य किया। उठने तक भी मैं बीमार बनी बातचीत की। लगभग तीन घण्टे तक वहाँ पर भारतीय खानों की शानदार सुगन्ध थी। हम सब रही वो कभी खरटि लेने लगतीं, एकदम से खरटे मर रहे थे, उन्होंने बहुत जल्दी खाना बन्द होते और वो कहतीं "अब बेहतर है।" फिर भूख से बनाना शुरु किया था। मुझे लगा कि मैं बीमार होने वे अपना हाथ मेरी पीठ पर तथा भिन्न स्थानों पर लगा हूँ। फिर भी मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। रखतीं और कुछ देर तक खरटे लेतीं फिर रुक ये आश्चर्य जनक शुद्धिकरण था इसके बाद सभी जातीं और कहतीं "अब कैसा लग रहा है।" और लोग नीचे बैठक में गए और फुर्श पर सो गए । ये सब सारी रात चलता रहा। प्रातः काल मुझे केले फ्र्श पर सर्वत्र पड़े हुए शरीरों की तस्वीरे हमारे और इलायची के बीज खाने की आज्ञा दी गई। तो 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-43.txt दिसम्बर, 2005 चैतन्य लहरी 43 नवम्बर ये पूर्णतः सूक्ष्म ध्यान वे हमारी ओर दिया करतीं और एक श्रीमाताजी के लिए । श्रीमाताजी कहने लगीं, "ये बात अच्छी नहीं है, कैसे मैं आपके पास थी। हमारे लिए उनका ये सब करना अत्यन्त आऊंगी ?" मैंने कहा, "मैं रेलगाड़ी तो ला नहीं अविश्वसनीय है। बाद में छः महीनों के लिए वे सकता। अगर भूमिगत रेलगाडी लाएं तो कैसा ठीक है, ये बहुत अच्छा भारत चली गई हम थोड़े से लोग परस्पर मिला रहे ?" माँ ने कहा, करते और ध्यान करने का प्रयास करते परन्तु रहेगा।" और उनके आदेश के अनुसार हमने उस ध्यान के मामले में हमारी स्थिति बहुत अच्छी न नक्शे में भूमिगत रेल के लिए पटरी बनाई। इससे थी। जाने से पूर्व श्रीमाताजी ने कहा था " जब मैं सभी समस्याएं हल हो गई। भारत जाऊंगी तो मेरे साथ भारत आकर वहाँ (Kevin Anslow) तुम के सभी सहजयोगियों से मिल सकती हो।" अतः उन्होंने हमें अत्यन्त स्नेह दिया। हमने पैसे बचाने शुरु किए। जब वो वापिस आई तो हमारी स्थिति ऐसी थी कि उन्होंने कहा, " इसे हम आरम्भिक दिनों की बात कर रहे हैं। आरम्भिक जाओ आपकी स्थिति ऐसी नहीं है ।" परन्तु दिन मेरे लिए वर्ष 1977 का बसन्त और ग्रीष्म ऋतु भूल हैं। आरम्भिक दिनों की जो विशेष बात थी वो यह पुनः वे हमसे हर सप्ताह मिलने लगीं, प्रायः शनिवार और इतवार को, तथा अपने घर पर हमें बुलाने थी कि श्रीमाताजी के पास बहुत कम सहजयोगी थे, बहुत अधिक लोग न थे वे उनका स्तर ऊँचा लगीं। करने में लगी हुई थीं ताकि वे इतने शक्तिशाली हो सकें कि सामूहिकता को बढ़ाया ज़ा सके । (Maureen Rossi) मैं किस प्रकार आपके यहाँ आऊंगी ? मैं, जब आया था तो शायद छः या सात लोग हम उनके घर ऑक्सटड में गए। मुझे थे-सम्भवतः मैं आठवाँ व्यक्ति था। उन दिनों के छोटी-छोटी चीजें भी याद हैं क्योंकि उस समय मैं कुछ सहजयोगी जा चुके हैं। मुझे याद है कि किस बहुत छोटा था। नक्शे बनाना मुझे अच्छा लगता प्रकार वे Gus नामक एक आस्ट्रेलियन लड़के पर कई सप्ताह तक कार्य करती थीं ! वे उसे अपने घर था- वास्तव में अब भी अच्छा लगता है- आजकल मैं उन्हें एक प्रकार की कहानियों के लिए बनाता हूँ ले गई. उसकी देखवाल की, उसे ठीक किया। वह जो मैं लिखता हूँ। परन्तु उन दिनों मैं नक्शे तो लड़का नशीली दवाओं में सर्वज्ञान सम्पन्न बनाता था परन्तु इस बात का मुझे ज्ञान न था कि Encyclopedia था। वास्तव में वह बहुत बुरा था। क्यों बनाता हूँ। मैंने एक नक्शा बनाया जिसमें कुछ वास्तव में उसे बहुत समस्याए थी और श्रीमाताजी टापू ( Island) थे इसमें एक टापू मेरे लिए था पूरा- पूरा दिन उस पर कार्य करती थीं। उन्होंने 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-44.txt दिसम्बर, 2005 चैतन्य लहरी 44 नवम्बर कोई कसर बाकी न छोड़ी। सबसे विशेष बात जो Gardens का फलैट हो- जिस प्रकार वे हमारा थी कि उन्होंने उस लड़के को पूरा प्रेम दिया, फिर स्वागत करतीं और हमारी देखभाल करती, वह भी तीन महीने बाद वह वहाँ से चला गया उसने स्मरणीय है। उन्होंने हमें इतना अधिक स्नेह दिया। सहजयोग छोड़ दिया। वह वहाँ पर रह सकता (Djamel Metouri) था। श्रीमाताजी ने कभी उसे इन्कार नहीं किया सच्ची माँ की तरह- था। उन्होंने कहा, "ठीक है।" हमारे दृष्टिकोण से श्रीमाताजी हमारे लिए खाना बनातीं। निम्बू, यदि आप इस बात को देखें तो उसने श्रीमाताजी चैतन्यित करतीं और हम पर लगातार अथक कार्य के प्रयत्नों को बर्बाद कर दिया था। परन्तु श्रीमाताजी करतीं। हर सप्ताह वे आश्रम आतीं, हमारे चक्रों पर ने कभी भी इस नजरिए से बात नहीं की। उनके कार्य करतीं, हमारा चैतन्य जाँचतीं और देखतीं कि उन्होंने तो अपना प्रेम दिया था और उस अनुसार, हम किस प्रकार प्रगति कर रहे हैं। वास्तव में एक प्रेम पर कोई बन्धन न था। श्रीमाताजी की एक सबसे बड़ी विशेषता है माँ सच्ची माँ की तरह वे हमारी देखभाल कर रही थी के रूप में मूलतः उनके पास आने वाले सभी सहजयोगियों का पोषण करना। अपने पूर्ण प्रेम से (Miodrag Radosavlievic) वे जैकटें और टाइयाँ खरीदतीं- उनका पोषण करना ताकि वो सहजयोग में बने रहें और महसूस करें कि श्रीमाताजी हमें वो दे रही हैं जो हमें नहीं मिल पाया। जैसे शिरडी साई नाथ ने पता है कि वो मुझे और कुछ अन्य लोगों को अपने श्रीमाताजी एक दुकान पर जातीं। मुझे इसलिए 1 कहा था, " शायद हम जो चाहते थे वो हमें वही साथ ले जाया करती थीं वे उन्हें सर सी०पी० की पुरानी टाईयाँ देतीं और सर सी० पीo. उनके पति देना चाहती थीं " वे हमें अपने घर लेजाकर अथक कार्य करती थीं। हमारे लिए खाना बनाने में भी अन्तर्राष्ट्रीय जहाज रानी संस्थान क अध्यक्ष थे। उन्हें किसी प्रकार का एतराज न होता कल्पना अन्तर्राष्ट्रीय समाज में उनका बहुत ऊँचा स्थान था और हमें तो मानो किसी गटर से खोद कर निकाला करें, आदिशक्ति अपने घर में हम थोड़े से लोगों के गया हो। मुझे याद है कि मुझे भी एक टाई मिली लिए स्वयं खाना बना रही हैं ! सात, आठ नौ या अधिक से अधिक दस सहजयोगी होंगे और वे थी। हमेशा वे पूजा के समय टाइयाँ बाँटती थीं। वे 1 स्वयं हमारे लिए खाना बनाती ताकि हमारी नाभियों टाइयाँ, जैकटें और कपड़े दिया करतीं। वे मुझे को चैतन्य दे सकें । हमारी बिगड़ी हुई नाभियों को बाहर ले गई और मेरे लिए जैकटें खरीदीं, मेरी वे सुधारना चाहती थीं। अपने घर पर चाहे वह बहन के लिए वस्त्र खरीदे। इन वस्त्रों पर उन्होंने हर्स्ट ग्रीन ( Hurst Green) का घर Ashley सौ पाऊण्ड से भी अधिक धन खर्चा होगा ये 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-45.txt दिसम्बर, 2005 चैतन्य लहरी नवम्बर এs जब मैं उनके लिए एक तोहफा लेकर आया तो खरीदारी उन्होंने Bricklane (लन्दन का पूर्वी छोर) उन्होंने मुझसे कहा, "क्या मैं उनका संरक्षक बन पर की। (Ray Harris) रहा हूँ? उन्हें कोई तोहफे नहीं चाहिएं।" कहने लगीं " आप मुझसे गुरुओं की तरह से व्यवहार नहीं कर सकते " व्यक्तिगत उपहार लाना उचित बेहद सस्ता श्रीमाताजी ने मेरे लिए एक परिधान खरीदा। न था। बाद में हमें बता दिया गया कि सामूहिक मुझे याद नहीं आता मेरे बचपन के बाद किसी ने उपहार तो ठीक हैं परन्तु व्यक्तिगत उपहार देना ठीक नहीं है। माँ जब मेरे घर से गईं तो मेरी आँखों मेरे लिए कुछ खरीदा हो- मेरी समझ में नहीं आ में मोटे-मोटे ऑसूं आ गए। ये सोचकर कि मैंने माँ रहा था कि किस प्रकार इसे स्वीकार करूं, मैं ये भी को नाराज़ किया है। न जानता था कि इसके लिए मुझे कीमत देनी होगी या नहीं। उस क्षण की मर्यादा का वास्तव में मुझे हमने भी वही महसूस किया जो श्रीमाताजी ज्ञान न था। मैंने कहा, " मैं इसे स्वीकार नहीं कर ने किया मैं इसकी कीमत देना चाहता .था सकता। भागों में हम रंग रोगन कर रहे थे । घर के कुछ जिसकी आज्ञा उन्होंने दी। फिर वे एक और शायद ये सन् 1974 था। इसका एक विशेष अनुभव परिधान लाई। इस प्रकार मुझे दो जोड़े मिल गए । मुझे याद हैं। श्रीमाताजी श्री श्रीवास्तव के साथ (Vicky Halperin) किसी सभा या स्वागत समारोह में गईं। उस समय वे अन्तर्राष्ट्रीय जहाजरानी संस्थान के मुख्य निदेशक थे। वे हमें घर छोड़ गई। हम एक दीवार को साफ हाँ, वो कभी भी पैसा नहीं लेंगी। यही अन्तर करके उस पर रंग कर रहे थे आधी रात के करीब है। आप गुरुओं के विषय में सुनते होंगे परन्तु सभी हमें तेज सिरदर्द हुआ और बड़ा अजीब सा पैसे लेते होंगे आप अपना सभी कुछ उन्हें दे देते अहसास हुआ, परन्तु हम कार्य करते रहे। वक्त हैं। अपनी बहन के लिए ( Sharon Vincent) गुज़र गया। जब श्रीमाताजी वापिस आई और हमसे पूछा, कि हम कैसे हैं तो मैंने कहा, खरीदे गए कपड़ों की कीमत जब मैंने श्रीमाताजी को देने का प्रयत्न किया तो उन्होंने वो पैसे फैंक आधा कार्य करने के बाद मुझे भयंकर सिरदर्द दिए और कहा, " मूर्ख मत बनो। तुम कर क्या रहे हुआ। मेरी समझ में नहीं आया कि क्या हो रहा हो ? मुझे तुम्हारे पैसे नहीं चाहिए, मूर्ख मत बनो।" हुआ ये था कि हम एक है।"उन्होंने कहा, "ओह ! (Ray Harris) स्वागत समारोह में गए थे और वहाँ किसी ने गलती tho 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-46.txt दिसम्बर, 2005 चैतन्य लहरी 46 नवम्बर विधियां अपनातीं। से एक गिलास शराब (wine) दे दी. और मैंने उसे मुझे याद है एक बार उन्होंने मेरे सिर की पी लिया।" तेल-मालिश की। घर के आस-पास हम छोटे-छोटे तो श्रीमाताजी ने जो शराब पी थी उसका असर कार्य करते थे। मुझे याद है कि एक बार हम किसी हम पर भी आया। इसका प्रभाव क्योंकि अचेतन पर हुआ इसलिए हमारे पर भी इसका असर हुआ। चीज़ पर रंग करने के लिए उसे रेगमार (Sand Paper ) से रगड़ रहे थे और श्रीमाताजी स्पष्ट है कि उस समय हम गहन ध्यान में थे इसलिए हमें भी सामूहिक अ चे तन वहाँ आई और हमारे साथ कार्य करने लगीं। उन्होंने भी एक रेगमार का ट्कड़ा लिया और उससे (Collective unconcious ) के माध्यम से बही चीज़ों को रगड़ा। भोजन तो अत्यन्त स्मरणीय हुआ अहसास हुआ जो श्रीमाताजी को हुआ था। यह करते थे, क्या ऐसा नहीं होता था ? हमें वास्तव में आश्चर्य चकित कर देने वाला अनुभव था। (Douglas Fry) बिगाड़ दिया गया था, अत्यन्त बिगाड़ दिया गया था। मुझे याद है कि एक दिन में उनके घर पर आया उन्हों ने भिन्न विधियाँ अपनाई। तो वे कहने लगीं, " तुम बाहर चले जाओ। मैं तुम्हें ऑक्सटैड के घर में मेरे लिए एक अत्यन्त साफ करती हैँ और तुम हो कि पकड़ जाते हो।" स्मरणीय घटना घटी। वहाँ हम बहुत देर रहा उन्होंने मुझे अपने सामने लिटा लिया, अपना जूता करते थे और श्रीमाताजी हमारे लिए खाना बनाया निकाला और वास्तव में मेरी रीढ़ पर जूते बजाए - बहुत जोर से- इतने जोर से कि मुझे सितारे नजर आ करतीं थी। खाना बनाने के लिए वहाँ पर नौकर भी थे परन्तु कभी-कभी वे स्वयं हमारे लिए खाना गए परन्तु उससे कार्य हुआ। उसके बाद मुझे लगा कि मैं बाधा मुक्त हो गया हूँ बनातीं और हम पर कार्य करतीं। ये सब अत्यन्त (Pat Anslow) गहन था। अपने दोनों हाथ श्रीमाताजी के चरण-कमलों के नीचे रखकर हम झुक जाते तथा एक शक्ति है और एक पावनता अन्य सहजयोगी आस-पास इक्ट्ठे हो जाते और मैं अभी तक पूरी तरह से मध्य में न था। तब ये कार्य कभी-कभी तो घण्टों तक चलता रहता ताकि उस व्यक्ति के चक्र शुद्ध हो सकें। पूरा तक मेरे अन्दर आज्ञा की समस्या बनी हुई थी। समय वह व्यक्ति अपना सिर श्रीमाताजी के चरणों श्रीमाताजी मुझे भिन्न रंगो में से निकलती हुई पर रखकर प्रणाम मुद्रा में बना रहता। अत्यन्त दिखाई देती थीं। कभी वे हरे इन्द्रधनुषी रंग में होतीं सुन्दर तरीकों से हमारी देखभाल करते हुए वे सभी और कभी सुन्दर लाल इन्द्रधनुषी रंग में। मुझे 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-47.txt दिसम्बर 2005 चैतन्य लहरी 47 नवम्बर कि मेरी ऑण्टी मोरीन मुझे याद है उनके अन्दर से ये प्रकाश जैसी चमक दिखाई पड़ती। परन्तु वास्तव में ऐसा आज्ञा चक्र की (Maureen Rossy) कहा करती थी कि श्रीमाताजी समस्या के कारण था मैंने ये बात श्रीमाताजी से पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं के सम्पर्क में ज़्यादा बताई। उन्होंने कहा," ये सब तुम्हें दिखाई नहीं आती थीं और उनके साथ घुल-मिल जाती थीं। देना चाहिए।" उन्होंने कहा," एक शक्ति है और परन्तु उनके प्रवचनों आदि से आप देखेंगे कि भिन्न एक पावनता। मुझे वास्तव में वो रंग दिखाई देते थे, क्षणों में उनका कोई विशेष पक्ष अभिव्यक्त होता है, देख परन्तु उन्होंने बताया कि " सकते हैं तो इसका अर्थ ये है कि आप वास्तव में यदि आप ये रंग कभी तो वे अत्यन्त गम्भीर और शिक्षक सम होती हैं गुण है। और कभी अत्यन्त विनोदशील| उनमें ये मध्य में नहीं हैं आप एक ओर झुके हुए हैं।" परन्तु उन दिनों में वे अधिक गम्भीर नहीं होती थीं। मेरे विचार से शायद उन दिनों लोग उनकी ( Douglas Fry) पूर्णाभिव्यक्ति के योग्य न थे । नन्हें शिशु की तरह से मैं श्रीमाताजी को (Kavin Anslow) देख रहा था। मैं माँ को ऐसे देख रहा था जैसे एक नन्हां शिशु मैं स्रोत की तरह से हूँ देख रहा हो। कहने से अभिप्राय ये है कि जितनी श्रीमाताजी से ये मुलाकात मुझे याद है। हम बार भी मैं उन्हें देखता दौड़कर उनके गले लग सात या आठ लोगों को उन्होंने अपनी बैठक में इस जाता। ये कार्य ऐसा है जो आप बड़े होकर नहीं प्रकार से ध्यान करवाया। मोरीन, गस और पुराने कर सकते। बड़ा होने के बाद मर्यादाएं बदल जाती समय के लोगों में से Pat और Douglas वहाँ पर हैं। मुझे याद है कि मैं भी बड़ा हुआ। इस मर्यादा उपस्थित थे। एक स्थिति ऐसी आई जब माँ हमें का मुझे ज्ञान न था। मैं न जानता था कि मैं क्या सिखा रही थीं कि वे क्या हैं ? वे हमें अपनी करूं क्योंकि बुद्धिवादी सहजयोगी इसमें बुद्धि असलियत समझाने का प्रयत्न कर रही थीं। तब लगाने लगते थे। परन्तु मुझे याद है कि मैं दौड़ उन्होंने कहा, परमात्मा की शक्ति तो केवल मेरे कर श्रीमाताजी को गले लगा सकता हॅूँ। मेरे लिए पीछे चलती है। मैं स्रोत की तरह से हूँ और ये वे एक बड़ी की मित्र थीं। उन दिनों बात आयु शक्ति मेरे पीछे बह रही है।" तब हमें ये बात समझ बिल्कुल भिन्न होती थी। लोग आसानी से उन तक आई कि माँ हमें बता रही थीं कि वे कौन हैं। वे पहुँच सकते थे। चीजें आज की तरह से इतनी हमारे े मूलाधार चक्र पर कार्य करने का प्रयत्न कर गहन न थी कि कभी-कभी व्यक्ति माँ से मिल रही थीं। सके। পা 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-48.txt दिसम्बर. 2005 चैतन्य लहरी 48 नवम्बर Gus कह रहा था कि उसने श्रीमाताजी को सात सहजयोगी बैठे हुए थे। ये कहना अनावश्यक श्रीगणेश के रूप में देखा। वह आश्चर्य-चकित हो होगा कि उन दिनों हम सब नए थे, कोई और न गया। इससे पूर्व उसने कभी श्रीमाताजी को इस था श्रीमाताजी अपने चप्पल मेज पर रखने लगीं- निःसन्देह ये जूते अत्यन्त अच्छे और सुन्दर थे। रूप में न देखा था| (Djamel Metouri) परन्तु हमें एक बात का ज्ञान न था कि श्रीमाताजी ऐसा इसलिए कर रही हैं क्योंकि उनके जूतों से बहने वाली चैतन्य-लहरियाँ बहुत तेज़ थीं तो मैं PC आदिशक्ति के जूते मुझे ऐसा लगता है कि आरम्भिक दिनों से ही मेज के इर्द-गिर्द बैठे मुट्ठी-भर आश्चर्य चकित मैने समझ लिया था कि श्रीमाताजी क्या कर रही लोगों की ओर देख रहा था जो मेज़ पर रखे श्रीमाताजी के जूतों के जोड़ो को देखते हुए थीं। मुझे समझ आ गई थी कि वे पूर्ण, महान सोच क्रान्ति और मानवता में विश्व स्तरीय परिवर्तन ला रहे थे. " क्या हम इन्हीं (जूतों) से विश्व को रही हैं। इस क्रान्ति के सम्मुख फ्रांस और रूस की क्रान्तियों तुच्छ परिवर्तित करने वाले हैं ?" मेरी गलती अपने चित्त को जूतों के स्थान पर दूसरे लोगों पर डालना थी। थीं। दूसरी ओर मैं अपने चहूँ और देख रहा था कि मुझे इस बात का ज्ञान न था कि जूते यदि आदिशक्ति के हों तो वे क्या कर सकते हैं। यदि मेरे किस प्रकार हमारा वहाँ पहुँचना सम्भव होगा मस्तिष्क में ये समस्या और तनाव था। ये ऐसा था हम विश्व को परिवर्तित कर सकते हैं तो निश्चित जैसे विशाल पर्वत की तलहटी में व्यक्ति खड़ा हो रूप से हमें श्रीमाताजी के इन जूतों को ऐसे और उसे इस बात का ज्ञान न हो कि चोटी पर सम्भालना चाहिए जैसे भरत ने अपने बड़े भाई श्रीराम के खडाऊ सम्भाले थे । चढ़ना कैसे है ! Gregoire de kalbermatten मुझे याद है अगस्त 1975 के एक दिन श्रीमाताजी के Hurst Green स्थित घर के मेज़़ पर लगभग (क्रमश) 2005_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-50.txt े जी ति ० १ स २ क ॥ि निर्मल धाम ALDIHA म ु यि