की चैतन्य लहरी जनवरी फरवरी 2006 रमयरवर हैं। 44 मेरे बच्चों, आप वास्तव में नेरे सहस्रार से उत्पन्न हुए अपने हृदय में मैने आपका गर्भ धारण किया और अपने ब्रह्मरन्त्र के माध्यम से मैंने आधको जन्म दिया है| मेरे प्रेम की गंगा अपको सामूहिक चेतना के साम्राज्य में बहाकर ले आई है।" 'परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी. चै त न्य लहरी NIRMALA MIVERSAL 1।RE R४.{। इस अंक में गुरु पूर्णिमा पूजा, 20.7.2005 रिपोर्ट - 2005 गुरु पूजा ईस्टर पूजा लंदन आश्रम, 6.4.1981 8. श्री माताजी का एक पत्र 13 आन्तरिक और बाह्य विकास का सन्तुलन 14 परमेश्वरी माँ के कथन 16 सहज योग का अलिखित इतिहास 17 10.2.1981 परम पूज्य श्रीमाताजी का प्रवचन 24 piHARA DHARMA ल ह री चै त नय प्रकाशक निर्मल इन्फोसिस्टम्ज एवं टैक्नोलोजीज प्रा. लि. 8. चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड, कोठरुड पुणे 411 029 मुद्रक कृष्णा प्रिन्टर्ज एण्ड डिजाइनर्ज त्रीनगर दिल्ली 110035 मोबाइल : 9868545679 हु आप अपने सुझाव, सदस्यता एवं जानकारी के लिए निम्न पते पर लिखें श्री जी.एल. अग्रवाल निर्मल इन्कोसिस्टम्ज एवं टैक्नोलोजीज प्रा. लि. 222, देशबन्धु अपार्टमैंट, कालकाजी. नई दिल्ली-110 019 फोन : 26216654 अपने अनुभव, सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ.पी. चान्दना जी-11-(463). ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली-110 034 F: 55356811 फोन गुरु पूर्णिमा पूजा 2005 (इंटरनैट रिपोर्ट) (नई जर्सी) अमेरिका 20 जुलाई बुधवार के दिन हमने श्रीमाताजी से पूछा कि क्या वे कल, गुरु पूर्णिमा के दिन हमें अपने चरण कमलों की पूजा करने की आज्ञा देंगी? कृपा पूर्वक वे इसके लिए सहमत हो गई। रि आरम्भ हुआ, तत्पश्चात् सभी अगुआओं ने श्रीमाताजी के चरण कमलों पर हल्दी और कुमकुम चढ़ाया। हमने श्रीगणेश का एक भजन गाया, इसके बाद बृहस्पतिवार प्रातःकाल नाश्ते के तुरन्त बाद उन्होंने स्वयं कुछ महिलाओं से पूजा के लिए उनकी साड़ी तैयार करने के लिए कहा। शाम की चाय के बाद श्रीमाताजी ने सारी सामूहिकता को इस विशिष्ट आनन्दमय अवसर के लिए अपने कमरे में बुलाया। अमेरिका तथा अन्य बहुत से देशों के ध्यान केन्द्रों के प्रतिनिधि और श्रीमाताजी "गुरु तुज्या महानवी" गाया गया तथा जागो सवेरा गाने के पश्चात् भजन समाप्त हुए। श्रीमाताजी कमरे में उपस्थित योगियों को अपने गुरु के प्रति देखते भक्ति अभिव्यक्ति करते हुए भजनों का हुए पूरा आनन्द उठा रहीं थीं। इसके बाद मेजबान देशों ने श्रीमाताजी को उपहार भेंट किए। वे पूछती रहीं कि उपहार कहाँ से आए हैं और उपहारों की शिल्पकारिता की सराहना करती रहीं की सेवारत बहुत से सहजयोगी इस पूजा में उपस्थित हुए। लगभग आठ बजे महिलाओं ने श्रीमाताजी की स्वागत आरती उतारी और पूजा का चैतन्य लहरी 2- 2006 2. : । & अंक ०১ उन्हें श्रीमाताजी का कितना प्रेम प्राप्त हुआ और पूरे इस संध्या को अपने चरणों में बैठे हुए सांयकाल वे कितनी प्रसन्न प्रतीत हुं। उनसे प्रसारित होने वाली एक के बाद एक चैतन्य लहरियाँ पूरा समय हमें आनन्दित करती रहीं। हर व्यक्ति यही कह रहा था कि देखो किस प्रकार से पूरा क्षेत्र चैतन्य लहरियों से आच्छादित हो गया है ! अपने इतने सारे बच्चों की उपस्थिति का आनन्द लेते हुए श्रीमाताजी अत्यन्त तेजोमय प्रतीत हो रही थीं और वहाँ उपस्थित हर योगी पर अपना अथाह प्रेम उड़ेल रही थीं। बहुत से योगी बता रहे थे कि एक बार कैमरा उठाए हुए एक योगी जब कमरे में आया तो र उन्मुक्त मुस्कान के साथ श्रीमाताजी उससे कह उठी,"आ गए"- इसे प्रकार से उन्होंने बताया कि नियुक्त फोटोग्राफर आ गया है। इससे पूर्व आनन्ददायी भजनों तथा श्रीमाताजी से सामूहिक बातचीत के दौरान श्रीमार्क फोटोग्राफ खींच रहे थे। श्रीमाताजी अत्यन्त प्रसन्न थीं और २ एक बार तो उन्होंने कमरे में उपस्थित योगियों की संख्या पूछी और टिप्पणी की कि उनका कमरा खचाखच भरा हुआ है चैतन्य लहरी अंक : 1 & 2-2006 कुछ समय पश्चात मनोज, पाल, कर्ण और गगन ने श्रीमाताजी के सम्मुख "श्रीमाताजी निर्मला देवी सहजयोग विश्व संस्थान" (Shri Mata Ji Nirmala Devi Sahaja Yoga World Foundation ) के निगमीकरण के लिए आज के शुभ दिन दाखिल किए गए दस्तावेज़ पेश किए। के पूजा यह अत्यन्त ऐतिहासिक क्षण था जब पहली बार विश्व संस्थान को विश्व के किसी देश में कानूनी दर्जा दिया गया था श्रीमाताजी ने निगमीकरण दस्तावेज़ स्वीकार किए और संस्था को आशर्वाद दिया । ा एक बिन्दु पर तो उन्होंने टिप्पणी की, "कितना अच्छा सामूहिक कार्य है!" (What a team work!) बाकी की शाम श्रीमाताजी कुछ सहजयोगियों की संगति का आनन्द उठाती रहीं। कुछ फिल्में देखती रहीं और कमरे में उपस्थित योगियों से बातचीत करती रहीं। टेलिफोन पर उन्होंने लॉस एंजलिस स्थित अपने परिवार के सदस्यों से लम्बी बात की और उनसे बार-बार पूछती रहीं कि वे पूजा के लिए कब पहुँच रहे हैं? यह अत्यन्त विशिष्ट संध्या थी और श्रीमाता जी की न्यू जर्सी में उपस्थिति के लिए हम आभारी हैं। (कृपया तस्वीरों का आनन्द लीजिए) । जय श्रीमाताजी मनोज, वासु, मार्क और अनुराग गुरु पूजा सप्ताहाज्त रिपोर्ट U.S.A अमेरिका 2005 (इन्टरनैट) प्रक्रिया ने हम सबको मौन-साक्षी भाव में प्रवेश इस गुरु पूजा का यह ऐतिहासिक स्ताहान्त था क्योंकि यह अमेरिका में होने वाली पहली अन्तर्राष्ट्रीय पूजा थी ये इसलिए भी ऐतिहासिक थी क्योंकि सहज योगियों ने इस घटना के महत्व करने का अवसर प्रदान किया क्योंकि हमारी अपनी आयोजन की आवश्यकताएँ और होटल में कमरों की उपलब्धता में मुकाबला था। वर्तमान वर्षों में जैसा हमने लॉस एंजलिस और न्यूयार्क देखा था कि होटल के कमरे यदि अच्छे हों तो नए लोगों को बहुत अच्छी तरह से समझा । सामूहिक परिपक्वता और आन्तरिक शान्ति का माहौल था एक दूसरे से मुलाकातें होती हैं और नई दोस्तियाँ बनती हैं। हमें भी निराशा नहीं हुई। एक दूसरे को समझते हुए. एक दूसरे पर कार्य करते हुए और मिलकर पूजा की तैयारी करते हुए हम विराट की विशुद्धि के गले लगकर अच्छे वार्तालाप द्वारा, भजन गाकर और नाचकर पूजा में भाग लेने वाले 950 सहजयोगियों ने गहन स्नेह एवं प्रेम, जो कि सहजयोग वास्तव में है - के वातावरण को मनाया। के अंग-प्रत्यंग थे। न्यूजर्सी के रविवारीय समाचार पत्र The Record में एक कहानी छपी और उसमें इस अवसर का वर्णन किया गया। ज़िसका शीर्षक था, "सप्ताहान्त ल होटल के गाड़ियाँ खड़ी करने के स्थान पर बनाए गए विशाल शामियाने में हमें शुक्रवार और शनिवार को एकत्र होना था क्योंकि होटल का को सैकड़ों लोगों ने श्रद्धा एवं आनन्द से भर विया fa " (Hundred's fill weekend with Devo- विशाल बाल रूम रविवार तक उपलब्ध ने था। tion and Bliss) शनिवार शाम को बालरूम का उपयोग करने वाली पार्टी ने वहाँ पर धूम-धाम से भारतीय विवाह किया हमारे लिए शुक्रवार आने के साथ ही जिसके कारण होटल मे कई स्थानों पर श्री गणेश सप्ताहान्त का आरम्भ हुआ। नाम दर्ज कराने की प्रक्रिया, कमरा एवं खाने के कूपन प्राप्त करने की के पुतले लगाए गए और सजावटी खम्भ बनाए चैतन्य लहरी अंक : 1 & 2 - 2006 हमें ध्यान करने के लिए उपलब्ध करवाए गए। गए इनके कारण वहाँ धूमधाम का वातावरण बन खाना भी अन्दर या बाहर ले जाया जा सकता था। गया। यद्यपि बाहर गर्मी थी फिर भी शीतल हवाएं और न । शुक्रवार संध्या मनोरंजन कार्यक्रम की मुख्य विशेषता कान्नाजौहारी स्कूल के नन्हें बच्चों द्वारा संगीत प्रस्तुतीकरण था। उन बच्चों का उत्साह एवं अबोधिता अमरीका में सहजयोग के भविष्य को छायादार क्षेत्र भोजन को आनन्ददायी पिकनिक में परिवर्तित करने के लिए काफी थे । शनिवार रात्रि को मनोरंजन कार्यक्रम का आरम्भ डलसिमर (Dulcimer) के सुन्दर संगीत से हुआ जिसने सारे वातावरण को गुंजरित कर दिया। एक योगी तो पूछने लगा कि कौन सा सुन्दर टेप दर्शाता था। सप्ताहान्त की अन्य गतिविधियों में फुटबाल स्पर्धा, सामूहिक जूता क्रिया, होटल के ताल में स्नानान्नद तथा सिर एवं शरीर की तेल मालिश थी । बजाया जा रहा है। बाद में उसे पता चला कि तम्बू के अग्रभाग में बजाया जाने वाला यह जीवन्त संगीत है पूरी संध्या हमने आश्चर्यचकित कर देने वाली प्रतिभा को देखा और सुना। हर वर्ष भारतीय शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य पेश करने वाले युवा कलाकारों का विकास हो रहा है हमने बांसुरी, गिटार, कव्वाली टर्की के ड्रम संगीत एवं भारतीय शैरातों भीडोलैण्ड होटल का सुख सुविधा एवं खाना प्रदान करने का स्तर शानदार था। हमारी शारीरिक आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखा गया और हम आध्यात्मिक उत्थान की ओर पूरी तरह बढ़ सके। श्रीमाताजी जहाँ ठहरी हुईं थी शास्त्रीय संगीत का आनन्द लिया। जब दस टर्की ड्रम बजाने वाले कलाकारों ने पारम्परिक सहज तथा वायुपतन के बीच का मार्ग अत्यन्त सुखकर था तथा होटल में पेड़ों तथा हरी घास भरे स्थान य क० क connect yourself. ह रु चैतन्य लहरी अंक : । 2 - 2006 & 6. हुए, हँसते हुए दिखाया गया है। इस प्रकार उनके पूजनीय चुम्बकीय मातृरूपी ऐतिहासिक व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति होती है। बीडियो में उन्हें अथक रूप भजनों के साथ बजते हारमोनियम के सुर में सुर मिलाए तो हम स्वयं को उठकर नृत्य करने से न रोक सके। Eter- nal Values मंच ने बिना किसी तैयारी के एक प्रहसन नाटिका से गाँवों तथा सभागारों में हजारों लोगों की कुण्डलिनी उठाते हुए दिखाया है। कैमरा जब पीछे को (Commedy) पेश की। Real - ijze America यात्रा पर आई घूमा तो सहस्रार पर एक हाथ से शीतल चैतन्य को पहली बार शक्ति ने स्लाइड फोटो युवा दिखाए और अमेरिका की पूर्वी खाड़ी तक यात्रा के अनुभवों के महसूस करते हुए साधकों का अन्त कैमरे की पहुँच से बाहर विषय में बताया। एक मंचन द्वारा कई अवतरणों और आदि गुरुओं को महात्मा गाँधी को ये समझाते दिखाया गया कि था। इस वीडियो में श्रीमाताजी के प्रति हम सबके गहन प्रेम एवं आभार को प्रकट किया गया था। हुए सप्ताहान्त की सारी घटनाओं ने हमारे हृदय खोल दिए और श्रीमाताजी के प्रेम को पहले से कहीं अधिक महसूस करने के योग्य बनाया। हर चीज़ हमें पूजा के लिए तैयार कर रही थी। केवल सहस्रार में पूर्ण मौनान्नद की स्थिति में हम उनकी पूजा कर सकते हैं। रविवार की संध्या को विश्व एकता के उनके स्वप्न को साकार करने के लिए देवी देवताओं की सहायता आवश्यक है, परन्तु सर्वोपरि इसके लिए परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के आदि शक्ति रूप में अवतरण की आवश्यकता है। उस संध्या की विशेषता श्रीमाताजी के सम्मान में गाया गया एक गान था जिसका वीडियो इटली के सहज योगियों ने चलाया इसने सब सहजयोगियों को इतना भावुक कर दिया कि वे सात बजे पूजा आरम्भ होने का समय था। सात बजते ही हमने पूजा भजन गाने आरम्भ कर दिए और पूजा आरम्भ हो गई। 950 सहजयोगी होटल के बाल रूम में श्रीमाताजी के साथ अपने व्यक्तिगत गहन योग का उत्सव मना रहे थे। श्रीमाताजी ने ज्यों ही बाल रूम में प्रवेश किया सभी लोग श्रद्धा एवं भक्ति से खड़े हो गए । इक्कीस बच्चों को मंच पर श्रीगणेश की पूजा तत्पश्चात् कुछ विवाहित महिलाओं ने देवी का श्ृंगार किया। आरती इतनी शक्तिशाली थी कि मानो हम विश्व के सम्मुख घोषणा कर रहे हों कि एक दूसरे को गले लगा कर अश्रुधारा से अनाभिव्यक्त की अभिव्यक्ति किए बिना न रह सके। इस वीडियो में परम पावनी श्रीमाताजी को बीस साल पूर्व करने के लिए बुलाया गया। दुल्हनों के वस्त्र ठीक करते हुए तथा दुल्हों की फूल मालाओं को ठीक करते हुए. विवाह के अवसर पर खाना बनाते हुए, हारमोनियम बजाते भजन हुए. गाते हुए छोटे बच्चों को प्रेम से बुलाते या चूमते अंक : 1& 2 -2006 चैतन्य लहरी 7. समय समाप्त हो गया। व्यक्तिगत रूप से हमने श्रीमाताजी का धन्यवाद किया कि हम उनके चैतन्य को आत्मसात् कर सके। कुछ समय ध्यान करने के पश्चात् प्रसाद तथा यादगार उपहार वितरित किए गए। तब हमें पता चला क शक्ति के हॉल में हमें बाँधे हुए थी। बालरूम चुम्बकीय शु पूजा से निकलने के पश्चात् भी हॉल हमें खींच रहा था। म्यूजिकल आंगुलिक (Digital) कैमरे सहजयोगियों ने एक दूसरे को दिए और उनमें आए चमत्कारिक फोटो एक दूसरे का दिए। (पूजा से पूर्व ही श्रीमाताजी ने बता दिया था कि बहुत से चमत्कारिक फोटो आएंगे) प्रेम एवं भाव-विभोर हमारे हृदय खुशी से ३ ० की हं देवी यहाँ विराजमान हैं। गुरुओं की गुरु अपनी पूर्ण शक्तियों एवं विभूतियों के साथ यहाँ विराजित हैं।" नीच रहे थे और इस खुशी ने होंल के अन्दर शक्तिशाली नृत्य एवं संगीत का रूप धारणे कर लिया। हममें से कुछ लोग मंच पर रखे श्रीमाताजी के सिंहासन के सम्मुख मौन सम्मान से बैठे रहे। देवी को सामूहिक प्रणाम करने के पश्चात् राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय उपहार एक-एक करके मच पर लाए गए। पूरे उत्सव के दौरान श्रीमाताजी चहीं रहीं। सारे उपहार भेंट हो जाने के बाद Arneau ने ये घोषणा करने के लिए माइक्रोफोन लिया कि दो दिन पूर्व ही "श्रीमाताजी निर्मला देवी सहजयोग फाऊंडेशन का अमेरिका में लाभ निरपेक्ष (Non- Profitable) संस्था के रूप में पंजीकरण हो गया है। ये नई संस्था श्रीमाताजी की शिक्षाओं की रक्षा करेगी। इन्हें संभालेगी और विश्व भर में उनके दिव्य संदेश का प्रसार करने के लिए राष्ट्रीय सामूहिकताओं की सहायता करेगी। हे के सो सा पु हमें ऐसा प्रतीत हुआ मानो हम इतिहास का अवलोकन कर रहे हों। पहली बार किसी अवतरण के पथ प्रदर्शन में इतने बड़े विश्व धर्म का कानूनी रूप से गठन हुआ है। श्रीमाताजी तथा उनके परिवार की उदार सहायता से नई संस्था दृढ़तापूर्वक स्थापित हो जाएगी। यह ऐसा अवरार था जब खड़े होकर अपनी परम पावनी माँ का सम्मान (Standing ovation) करना तथा उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करना आवश्यक था। धीरे-धीरें तालियों की गड़गड़ाहट शान्त हो गई और हम सब पूर्ण शान्ति के सागर में खड़े हुए थे। मंच के सामने का विशाल पर्दा गिरा दिया गया और इसी के साथ श्रीमाताजी की हमारे साथ साक्षात् उपस्थिति का घर लौटते हुए श्रीमाताजी ने मनोज को बताया कि "चैतन्य बहुत अच्छा था" तथा "बहुत से चमत्कारिक फोटो देखे जा सकेंगे।" इस पूजा में हमने अपने सहस्रार पर न केवल श्रीमाताजी से अपने योग का अनुभव किया, हमने सहजयोग की पुर्ण सामूहिकता में उनके साथ योग की प्रयत्नहीन आनन्दमयी अवस्था का अनुभव भी किया। इस नई अवस्था में, हम जानते थे, कि हम कुछ भी नहीं कर रहे- वे ही (श्रीमाताजी) सभी कुछ कर रही हैं। जय श्रीमाताजी ईस्टर पूजा 6-4-1981 लन्दन आश्रम परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन यहाँ किस प्रकार से लोग ईसा-मसीह के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। वे स्वयं को इसाई दिया। ईसा-मसीह के शिष्यों तक ने उन्हें नहीं कहते हैं परन्तु ईसा-मसीह के जीवन के प्रति बिल्कुल भी सम्मान नहीं दर्शाते। वे तो उत्क्रान्ति की प्रतिमूर्ति थे उन्होंने उत्क्रान्ति की बात की। पुर्नजीवित हुए तब भी कोई विश्वास करने के लिए मूर्खतापूण चीज़ों की बात उन्होंने कभी नहीं की। दूसरे, हम बिल्कुल भी सम्मान नहीं दशति । हमारे लोगों को मिला उसके बारे में भी कई प्रकार की हृदय में जरा भी भय नहीं है कि ब्रह्माण्डों के दलीलें दी जाती हैं। निःसन्देह उनके चेहरे पर एक ब्रह्माण्ड सृजन करने वाले वही थे। उनके मुकाबले कपड़ा बाँध दिया गया था जिसे बाद में खींच में हम क्या है? मानव का अहं क्या है. बुलबुलो लिया गया। यही कारण है कि उनका चेहरा हल्का जैसा ! हुआ था कि उन्होंने ईसा-मसीह को सूली पर चढ़ा पहचाना। जब उन्हें सूली पर चढ़ाया गया तो शिष्यों ने कहा, "अब वे मर चुके हैं।" वे जब तैयार न था। सभी प्रकार की बाते है, जो कफन सा बिगड़ा हुआ वहीं पर छोड़ दिया गया। मेरी समझ में ये नहीं दिखाई देता है। परन्तु वह कपड़ा निःसन्देह उन्हें (ईसा-मसीह) को ब्रह्म तत्व, परमेश्वरी प्रेम से बनाया गया इसीलिए उनका वध न हो सका। उन्हें श्री कृष्ण की तरह से जन्म लेना था क्योंकि श्रीकृष्ण ने कहा है कि इस परमात्मा की शक्ति की मृत्यु नहीं होती, इसका बध नहीं हो सकता। श्री कृष्ण ने यह बात प्रमाणित करने के लिए ईसामसीह का स्थूल शरीर धारण किया। आता कि कफन का इतना महत्व क्यों है? ये ईसा मसीह का रक्त है। अज्ञानता पूर्वक जिस प्रकार लोगों ने ईसा-मसीह को देखा उस पर व्यक्ति को शर्म आनी चाहिए। इस नज़रिए से यदि आप देखें कि किस प्रकार लोग अपने अहंकार को संभाले हुए हैं और पूर्ण अंधकार में रहते स्वयं को सच्चा हुए ये समझते है कि वे परमात्मा का भी मानते हुए आंकलन कर सकते हैं तो इस बात की आप कल्पना भी नहीं कर सकते। इन लोगों ने उन्हें तीन या चार साल भी जीवित नहीं रहने दिया। उन्होंने किसी का कोई नुकसान नहीं किया था । इसके लिए आप किसी एक जाति विशेष को दोषी नहीं ठहरा सकते। उनका जन्म यदि भारत में होता तो यहाँ के लोगों ने भी ऐसा ही किया होता। त मोहम्मद साहब के साथ लोगों ने क्या किया? बिल्कुल ऐसा ही परन्तु जैसा दर्शाया गया है. उनके जीवन में इतने चोर क्यों है? तुलना के (Contrast) लिए उन्हें (चोरों को) बाहर निकलने की आज्ञा दी गई। ये समझौता किस प्रकार संभव हुआ और ईसामसीह के साथ ऐसा क्यों नहीं हुआ? वे इस पृथ्वी पर अवतरित हुए परन्तु ये बात देखने के लिए मनुष्यों के पास आँखें न थी। मानव जानता है कि हीरे क्या होते हैं. कीमती वस्त्र क्या होते हैं परन्तु पृथ्वी पर उनके अवतरण का मूल्य कोई नहीं समझता ! अब इसके बारे में सोचे, स्थिति बहुत भयानक थी, किसी से परमात्मा के विषय में या आत्म-साक्षात्कार के विषय में बात नहीं की जा सकती थीं, यहाँ तक की धर्म और धर्मपरायणता की बात करना भी कठिन था। कहने से अभिप्राय है कि अज्ञानता का पर्दा लोगों पर इस प्रकार पड़ा अंक : । & 2 -2006 चैतन्य लहरी आज क्या हम अपने साथ भी ऐसा ही करते हैं कि हैं!" तब उनके शिष्यों को भी उन पर विश्वास हम चोरों के साथ, नकारात्मक लोगों के साथ हुआ। कितना अज्ञान और कितना अंधकार है ! ये समझौता करते हैं और ईसा-मसीह के क्रूसोरोपित ऐसा है मानो चींटी को मानव सम्भ्यता के बारे में बताना। जैसे यह स्थूल घटना घटी, सूक्ष्म में भी इसी घटना को घटित होना था। जैसे जब आप कहते हैं मोजिज ने नदी पार कर ली तो यह घटना किसी आदि गुरु द्वारा भवसागर को पार करना था। अतः सूक्ष्म में जो कुछ भी घटित होना होता है उसकी अभिव्यक्ति इस प्रकार से स्थूल में भी होती है। और जब ईसा-मसीह क़नो क्रूसारोपित किया गया तब भी ऐसा ही हुआ। परन्तु पुनः आप ा होने का बुरा नहीं मानते? जैसा आप जानते हैं उन्होंने सारे ब्रह्माण्डों का सृजन किया। ब्रह्माण्ड अर्थात ग्रह । सूर्य ग्रह के अन्दर से पृथ्वी ग्रह का सृजन हुआ और उसमें से आप लोग उत्पन्न हुए और आपके आज्ञा चक्रों में उन्होंने एक छोटे विराट का सृजन किया, वह तुम्हारे आज्ञा चक्र में हैं। ये बलिदान अत्यन्त- अत्यन्त महत्वपूर्ण है और यद्यपि यह स्थूल है फिर ईसामसीह को क्रूसारोपित नहीं कर सके, जैसे भी बहुत सूक्ष्म है। चेतना को आज्ञा चक्र के बीच से ऊपर ले जाने के लिए ये घटित हुआ। स्वयं क्रूसारोपित होकर ईसा-मसीह ने इस कार्य को किया। स्थूल व्यक्ति के रूप में किसी भी अन्य मानव की तरह से वे आए। मृत्यु के पश्चात् उनका शरीर नहीं मरा क्योंकि उनका शरीर जैसे आप कहते हैं, अविनाशी परमेश्वरी चैतन्य लहरियों वर्णन किया गया है अब वे एकादश रुद्र बन गए हैं। ग्यारह रुद्रों के बारे में आप भली-- भांति जानते हैं, शिव की ये सभी शक्तियां उन्हें (ईसामसीह) प्रदान की गई है। अब तक, जब भी उनका जन्म भी हुआ श्री कृष्ण ने अपनी शक्तियाँ उन्हें प्रदान की थीं और वे महा-विराट बन गए। यहाँ तक कि उन्हें श्री कृष्ण से भी ऊपर (आज्ञा चक्र में) स्थान दिया गया, परन्तु अब यदि वे अवतरित होंगे तो उनके पास शिव की विध्वंसक शक्तियाँ होंगी, ग्यारह विध्वंसक शक्तियों। केवल एक शक्ति सभी ब्रह्माण्डों को समाप्त करने के लिए काफी है। ईसा-मसीह के अवतरण के बारे में इसका बर्णन किया गया है । अब आप उन्हें क्रूसारोपित नहीं कर सकते, और समय आ गया है कि हम सब उनका स्वागत करने के लिए तैयार हो जाएं। उन्हें स्वीकार करने के लिए अभी तक हम तैयार नहीं हैं जब से बना हुआ था, ब्रह्म से, ब्रह्म की किरणों से। न तो वे चैतन्य की किरणें मरी और न ही उनका शरीर। और अपने शरीर के साथ ही वे पुनर्जीवित हो उठे| ये दर्शाने के लिए उनकी मृत्यु हुई थी कि शरीर की मृत्यु के पश्चात् भी इसे बचाया जा सकता है, इसीलिए उन्हें क्रूसारोपित होना पड़ा । इसके बिना वे इस सत्य को दर्शा न सकते। परन्तु वास्तव में मरने के पश्चात् पुनर्जीवित होकर उन्होंने ये दर्शाया कि दिव्य लोगों का शरीर नहीं मरता। श्री कृष्ण ने कहा है कि आत्मा को न तो कोई शस्त्र काट सकता है न अग्नि इसे जला सकती है, न वायु इसे उड़ा सकती है। कोई भी चीज़ इसे समाप्त नहीं कर सकती। कोई भी चीज़ इसे समाप्त नहीं कर सकती। ईसा-मसीह की आत्मा है, उन्हें पुनर्जीवित रूप में जब लोगों ने देखा तो आश्चर्य से कहने लगे, "अरे, ये तो बही तक आप लोग आत्म-साक्षात्कारी नहीं है आप उन्हें स्वीकार नहीं कर सकते क्योंकि उनके आने तक यदि आप आत्म साक्षात्कार प्राप्त नहीं करेंगे तो आप समाप्त हो जाएंगे, जा चुके होंगे, नष्ट हो जाएंगे सभी मूर्खतापूर्ण चीजों को नष्ट करने के लिए वे आएंगे। अत: ये बीच का थोड़ा सा समय आपकी उत्क्रान्ति और मोक्ष प्राप्ति के लिए लगना अंक :। & 2 - 2006 चैतन्य लहरी 10 उनके शरीर में धरा-माँ का अस्तित्व था । धरा माँ चाहिए । परन्तु ईसा-मसीह के बारे में जब हम सोचते हैं तो मानव किस प्रकार से बहानेबाज़ी करता है ! सभी प्रकार के छल करता है। ईसा-मसीह के क्रूसारोपण के बारे में लोग नाटक या पृथ्वी माँ का अस्तित्व चुम्बकीय शक्ति के रूप में होता है. चुम्बक के अतिरिक्त वे कुछ भी नहीं । ये चुम्बकीय शक्ति ही ईसा-मसीह की शक्ति का एक हिस्सा है जो कभी नष्ट नहीं हो सकती। परन्तु हम मानव अत्यन्त स्थूल हैं, पृथ्वी माँ की चुम्बकीय शक्ति को भी हम नहीं जानते। इसे हम अपने अन्दर महसूस नहीं करते। जिस दिन अपने अन्दर हम इस चुम्बकीय शक्ति को महसूस करने लगेंगे उस दिन सभी मूर्खतापूर्ण गतिविधियाँ छोड़ देंगे और अपने गुरुत्व तो चुम्बकीय शक्ति के प्रति उतने भी संवेदनशील नहीं है जितने पक्षी हैं। आत्म- साक्षात्कार के पर नाटक किए जा रहे है। सुन्दर-सुन्दर रत्न आदि धारण करके वे ये नाटक करते हैं और ये उपहास चले जा रहा है। आपको भी यदि पुनर्जीवन तक पहुँचना है तो आपको अपने अन्दर ईसा-मसीह को जागृत करना होगा, अपने आज्ञा चक्र में ऐसा यदि आप नहीं कर सकते तो ये सारा नाटक है। स्पेन में भी लोग कहते हैं कि वे क्रूसारोपण का नाटक कर रहे हैं। कहने से अभिप्राय ये है कि में स्थापित हो जाएंगे परन्तु हम संसार में ये उपहास चल रहा है दिखावे और असत्य में हम जीवित हैं। ये सारे छल हमें कहीं नहीं पहुँचाएंगे। हमें अपना सामना करना होगा, ईसा-मसीह को अपने अन्दर जागृत करना होगा। उनकी महानता की पूरी सूझ-बूझ के साथ हमें उनके सम्मुख झुकना होगा इसके विपरीत, हमारा झुकाव तो कपटी लोगों के प्रति है जो उनका नाटक बना देते हैं। ये उपहास सर्वत्र चल रही है। क्रॉस को उठाकर चलना या कोई अन्य नाटक करना। मेरा अभिप्राय ये है कि इतनी कष्टकर घटना का मंचन करना, मैं नहीं जानती क्यों लोग ऐसा करते हैं, क्यों ऐसा करना चाहते हैं! ये मेरी पश्चात् आपमें इस चुम्बकीय शक्ति को महसूस करने की सुक्ष्मता आ जाती है और आप पृथ्वी माँ से अपनी समस्याओं और अपने पापों को ले लेने के लिए प्रार्थना कर सकते हैं । वे इन्हें सोख लेंगी । एक बार यदि आप सूक्ष्म हो जाएंगे तो पृथ्वी माँ इसे कार्यान्वित कर देंगी, इसमें कोई सन्देह नहीं है। परन्तु इसके लिए आपको उत्तना उन्नत होना पड़ेगा, उसके बिना आप पृथ्वी के सूक्ष्म पहलुओं को, उनकी चुम्बकीय शक्ति को छू नहीं सकते। ईसा-मसीह का तो शरीर ही इसी चुम्बकीय शक्ति से बना हुआ था। जब वे पुनर्जीवित हुए तो उस रविवार को लोग मनाते हैं। जैसा आपने देखा है समझ से बाहर है और बर्दाश्त से भी। आप लोगों में यदि भावना है तो आप अपने अन्दर देख सकते उनमें करोड़ों-करोड़ सूर्य हैं और वो सूर्य से ही हैं। क्रूसारोपित होकर पुनर्जीवित हो उठना न तो कोई समारोह हो सकता है न कोई कर्मकाण्ड। बने हैं। वे सूर्य का सार-तत्व हैं। सूर्य के अन्दर ऑक्सीजन की शक्ति है और ये ऑँक्सीजन ब्रह्माण्ड 1 हम सहजयोगियों के लिए आवश्यक है के बाद ब्रह्माण्ड का सृजन करने के लिए जिम्मेदार कि ईसा-मसीह के जीवन के महत्व को समझें। केवल उनका शरीर ही इन विकीर्णित चैतन्य लहरियों से बना हुआ था, बाकी सभी शरीर मानव शरीर थे सभी अवतरण, श्री कृष्ण भी. जब पृथ्वी अंकुरित होकर पुनः पेड़ बनते हैं। सूर्य के बिना पर अवतरित हुए तो उनमें सभी मानवीय थे । है सूर्य की किरणें जब वृक्ष पर पड़ती है, हम तो हर चीज़ को स्वीकृत रूप से ले लेते हैं, तो पेड़ खिलता है, फल देता है. फलों में बीज होते हैं जो पृथ्वी पर किसी भी चीज़ का अस्तित्व न होगा । गुण II अक : । & 2 - 2006 चैतन्य लहरी इसी कारण से हम रविवार के दिन सूर्य की पूजा सिद्ध मंत्र। आक्रामकता की स्थिति में यदि व्यक्ति करते हैं। ईसा-मसीह क्योंकि सूर्य थे इसीलिए हम कह सकते हैं कि उनका निवास सूर्य में है। क्योंकि ईसा मसीह आत्मा के रूप में आपके हृदय जब हम बाई ओर को चले जाते हैं तो वास्तव में में विराजमान हैं। वे ही आत्मा हैं और यदि आप हम उनसे (ईसा मसीह) से बहुत दूर नकारात्मक अवस्था में चले जाते हैं। हम बहुत नकारात्मक हो जाते हैं, जैसे जब हम बाई ओर को झुक जाते हैं है कि अंहकारी लोगों को हृदय रोग हो जाते है। तो, आप जानते हैं, हम उनसे बहुत दूर चले जाते चला जाए तो उसे हृदय से विनम्र होना होगा दाई ओर को जाकर बहुत अधिक आक्रामक हो जाते हैं तो आत्मा अपमानित होती है। यही कारण प्रतिअहं के क्षेत्र में, बाईं ओर, ईसा मसीह का रूप अत्यन्त दहशत भरा है। ऐसे लोग उनके नाम-मात्र से डर जाते हैं, उनसे दूर दौड़ते हैं क्योंकि वे जानते है कि ईसा-मसीह एकादश रुद्र है। तो एक ओर तो वे अत्यन्त कोमल हैं क्योंकि वे अहंकारी, अहंचालित लोगों से दूर हट जाते हैं। मूर्ख और विदूषक उन्हें पसन्द नहीं हैं। जिन गधों पर वे सवारी करते थे वे अहंचालित लोगों की ओर इशारा करते हैं। उन्होंने गधे को नियंत्रित करने का प्रयत्न किया परन्तु बाईं ओर के लोग इतने भयानक नकारात्मक होते हैं कि वे उससे डर जाते हैं, बिल्कुल डर जाते हैं। आप ईसा-मसीह का नाम लें और वे भाग खड़े होंगे। किसी भी तरह से है तथा हमारा आज्ञा चक्र, पीछे की आज्ञा (Back Agnaya ) पकड़ जाती है। जब आप दाएं ओर की अति में चले जाते हैं तो आप ईसा-मसीह को स्वीकार ही नहीं करते, अपनी सभी सीमाएं पार कर जाते हैं। उनसे आगे आप नहीं जा सकते और यही कारण है कि आक्रामकता की अवस्था में आप शालीनता, मर्यादा और विनम्रता के विवेक को पीछे छोड़ देते हैं। तो दोनों ही अवस्थाओं में आप विपरीत दिशा में चले जाते हैं, ईसा मसीह से बहुत दूर। अहकार, आक्रामकता की अवस्था में (दाई ओर) जाने का परिणाम है। क्योंकि बाई या दाई ओर की अवस्था के लिए ईसा-मसीह का वास्तव में कोई भी योगदान नहीं है तो एक ओर तो वे आपकी बाईं ओर, प्रति अहंकार, से लड़ते हैं और दूसरी ओर वे मानव के अहं से युद्ध करते हैं। इसीलिए, आपने देखा है, कि आप यदि भूत- बाधित हैं तो आपको ईसा-मसीह का नाम लेना होगा केवल उनका नाम लेने से ही आप भूत बाधाओं से मुक्त हो सकते हैं। प्रभु प्रार्थना (Lord's Prayer) में भूत बाधाओं को दूर करने का पूर्ण सार छिपा हुआ है परन्तु कोई ऐरा गैरा नत्थू खैरा यदि प्रभु प्रार्थना कहेगा तो उससे कुछ नहीं होने वाला। इसके लिए तो व्यक्ति को ईसा-मसीह से जुड़ना होगा। उनसे जुड़कर यदि आप प्रभु-प्रार्थना कहेंगे तो इसका प्रभाव होगा क्योंकि जुड़े हुए व्यक्ति द्वारा कही गई प्रार्थना एक मंत्र बन जाती है, वे उनका सामना नहीं करते, हे परमात्मा!' अब ये निशान वास्तव में उनके रक्त का है उन्हें ये रंग दिखाते ही वे भाग खड़े होंगे अत्यन्त शान्ति एवं विनम्रता पूर्वक व्यक्ति को ईसा-मसीह के महत्व को समझना होगा क्योंकि उन्होंने ब्रह्माण्ड के बाद ब्रह्माण्ड का सृजन किया है। कुर्सी पर बैठकर आप ये नहीं कह सकते कि हम इसके बारे में वाद-विवाद करें। कोई सिद्धान्त नहीं चल रहा है, वे जीवन्त देव (God) हैं और जीवन्त के विषय में मानव वाद-विवाद नहीं कर सकता। उनके बारे में बात-चीत करने और उनको समझने के लिए आपको महामानव बनना होगा। जितना आप उन्नत होते हैं उतना ही अधिक भय आपके अन्दर भर जाता है। हे परमात्मा! जब आपको ये कि वे ही ब्रह्माण्ड का है पता चलता है। अंक : । & 2 - 2006 चैतन्य लहरी 12 जानते हैं कि इसके बाद पुनर्जीवन है और इसी पुनर्जीवन का वास्तवीकरण आप इसी जीवन में करने वाले हैं। परन्तु अब आपको साधना के लिए सारे मूर्खतापूर्ण विचार और व्यर्थ की भटकन्ने छोड़नी होगी। साधना का अर्थ किसी चीज़ का ज्ञान पाना नहीं, वह बनना है। इसी के लिए ईसा मसीह ने स्वयं को सूली पर चढ़वा लिया। उन्होंने स्वयं को पुनर्जीवित किया ताकि आप लोग भी पुनर्जीवित हो सकें। आज आपको उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करनी होगी कि इसी जीवन में पुनर्जीवित होने का मार्ग उन्होंने खोल दिया। आप भी पुनर्जीवित होने वाले हैं और आप अपनी आँखों से अपने पुनर्जन्म को वैसे ही देखेंगे जैसे ईसा मसीह के शिष्यों ने उनके पुनर्जन्म को देखा था। इसका वचन दिया आधार हैं, हमारा आधार हैं, तब आप स्वयं को अत्यन्त शक्तिशाली महसूस करते हैं - कि यदि वे आप का आधार हैं तो कोई भूत बाधा आपको नहीं हो सकती। परन्तु आप या कोई अन्य उन पर हावी नहीं हो सकता। आपको उनके समर्पित होना होगा ताकि आप उनकी जिम्मेदारी बन जाएं और वे आपकी देखभाल करें। उनकी महानता का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता । सम्मुख एक शिशु और बेटे के रूप में वे आनन्द दाता हैं। जिस प्रकार वे अपनी माँ की देखभाल करते हैं उसका वर्णन करना असम्भव है। अपनी माँ के प्रति उनकी सूझ-बूझ, उनका प्रेम, महानता, सेवाभाव, श्रद्धा और समर्पण शब्दों में वर्णन नहीं किए जा सकते। आप जानते हैं कि वे उन्नत श्री गणेश के रूप में अवतरित हुए। पीछे की आज्ञा पर वे श्री गणेश हैं और आगे की आज्ञा पर कार्तिकेय । अत्यन्त शक्तिशाली एकादश रुद्र, और इनमें उनका स्थान सर्वोच्च है। अतः आज के दिन हमने ये सोचना है कि किस प्रकार वे हमारे लिए पुनर्जीवित हो उठे| जा रहा है और आप सबके साथ ये घटना घटित होनी चाहिए। अतः हम सब लोगों को खुश होना चाहिए कि पुनर्जन्म लेने का समय आ गया है और इतनी महान घटना हमारे सम्मुख घटित होने वाली है। हम ऐसे लोग हैं हमें अपनी संकीर्ण दृष्टि, तुच्छ चीज़ों के पीछे भागना और तुच्छ जीवन शैली, जिसमें हम कुएं के मेंढक की तरह से चले जा रहे हैं, त्यागनी होगी स्वयं को विस्तृत करें और सोचें कि आज हम सामूहिक पुनर्जन्म लेने का नाटक देखने वाले हैं, केवल इतना ही नहीं आप इस नाटक का युक्तिचालन (Manoeuvering) भी कर रहे हैं। अत्तः आनन्द लें और खुशी मनाएं कि जो कार्य ईसा मसीह ने दो हजार वर्ष पूर्व किया था, आज हम वही कार्य करने वाले हैं। इसी कारण से ईस्टर हम सबके लिए विशेष दिन है। ये वास्तव में विशेष दिन है क्योंकि हमारे जीवन में मृत्यु समाप्त हो चुकी है और हम पुनर्जीवित हो उठे हैं । क्रूसारोपित होने का दुख उनसे भी अधिक उनकी माँ ने उठाया, क्योंकि वे जानतीं थी कि ये घटित होने वाला है और मानव रूप में वे माँ थीं। एक माँ के सम्मुख उनके पुत्र का क्रूसारोपण किया जाना! क्रॉस का महिमा गान केवल इसलिए नहीं किया जाना चाहिए कि ईसा-मसीह को सूली पर चढ़ाया गया। क्रॉस आज्ञा चक्र का चिन्ह है और स्वारितक क्रॉस का उन्नत प्रतीक है। अतः जब हम क्रॉस का महिमा गान करते हैं तो वास्तव में हम आज्ञा चक्र का महिमा गान करते हैं जिसके माध्यम से हम बलिदान और समर्पण के जीवन को स्वीकार करते हैं । क्रॉस से आगे यदि हम देखें तो हम परमात्मा आपको धन्य करें। (निर्मला योग से उद्धृत और अनुवादित) श्री माता जी का एक पत्र वर्षों की हमारी दासता के कारण भारत के चिकित्सक ये भूल गए हैं कि हम लोग योगभूमि पर उत्पन्न हुए हैं। उनकी सोच भी इतनी दासता पुर्ण है कि वे सोचते हैं कि चिकित्सा के विषय में हमारे विचार अत्यन्त मूर्खतापूर्ण हैं जबकि पाश्चात्य ज्ञान अत्यन्त विवेकशील है। प्रिय डॉक्टर राउल, दाम्ले से मुझे एक विस्तृत पत्र प्राप्त हुआ। गगनगढ़ महाराज से मिलकर तुमने विवेक का कार्य किया है सहजयोग के चमत्कार के विषय में वो जो भी कहते हैं वो पूरी तरह सत्य है। अब तक पृथ्वी पर इस महान आशीर्वाद की वास्तविक अभिव्यक्ति का कारण ये है कि जब-जब भी आदिशक्ति पृथ्वी पर अवतरित हुई उनके सारे चक्रों का समन्वय सहस्रार के माध्यम से नहीं था। पूर्ण ताल-मेल और एकरूपता के उनके व्यक्तित्व के समन्वित यन्त्र में मिल जाने से ही ये आश्चर्यजनक परिणाम निकल रहे हैं। ये परिणाम इतने आश्चर्यजनक है कि मैं स्वयं पर हैरान हैं हृदय से मैं तुम्हें आशीर्वाद देती हूँ कि डॉक्टर रामलिंगम की चैतन्य लहरियाँ अच्छी हैं। उनके अन्तः स्थित श्रीराम उन्हें सर्वशक्तिमान परमात्मा की विधियों को समझने का विवेक देंगे। मैं तुम्हें अपना प्रेम एवं सुरक्षा भेज रही हूँ ताकि तुम हमारे चिकित्सक वर्ग के अन्दर से अज्ञान बाधाओं को दूर कर सको । उन्हें ये जान लेना चाहिए कि अब समय आ गया है कि वो स्वीकार कर लें कि विज्ञान ही सभी कुछ नहीं है। विज्ञान केवल उन्हीं चीजों को खोजता है जिनका अस्तित्व पहले से है यही कारण है कि उन्हें लगता है कि अवधूतों को और जो स्थूल अस्तित्व को भी दिखाई देती हैं। आबादी से जंगलों में होना चाहिए तथा किसी चौथे आयाम में उठते हुए जब हम सूक्ष्म बन जाते हैं तब हमें सूक्ष्म अस्तित्व, आत्मा, सन्तोष और इस प्रेम की दिव्य कार्यशैली दिखाई पड़ती है कैंसर ठीक किया है क्या इसकी तुम पर कोई वाद-विवाद से इसे नहीं देखा जा सकता। व्यक्ति प्रतिक्रिया हुई? चैतन्य जब आपकी ओर से बहेगा को आत्म साक्षात्कारी होना पड़ता है। सहजयोग तो किसी से किस प्रकार आप कुछ के माध्यम से स्वतः उसे विकसित होना पड़ता है क्योंकि यह जीवन्त प्रणाली है जल क्रिया अर्थात नदी, समुद्र या घर में फोटो के सम्मुख बैठकर मेरे विचार से गगनगढ़ महाराज भी इस खोज की सूक्ष्मताओं की कल्पना नहीं कर सकते । दूर का कैंसर ठीक करने के प्रयत्न की व्यक्ति पर प्रतिक्रिया हो सकती है। तुमने फड़के के पिता का ले सकते हैं? (When you are at a giving end how can you receive anything?) आपको कमल की तरह से पुनर्जन्म प्राप्त हुआ है और कमल तो कीचड़ में रहकर भी उसकी गन्दगी से मुक्त रहता पानी पैर क्रिया करना कैंसर का सर्वोत्तम इलाज है। स्वच्छ करना जल का धर्म है। इसलिए मानव है और आत्म-साक्षात्कार के चमत्कार से अपने धर्म के लिए जिम्मेदार श्री विष्णु और श्री दत्तात्रेय की पूजा की जानी चाहिए। रोग मुक्त होने में वे आप सोचते हैं कि डॉक्टर लोग इस बात को (श्री विष्णु और दत्तात्रेय) तथा प्रभावित चक्र से स्थानीय देवता सहायक होते हैं। रोगी को फोटो के सम्मुख बिठाकर उसके पैर पानी में डलवाकर हमारी परानुकम्पी नाड़ी प्रणाली का स्वामी है और और आगे-पीछे मोमबत्ती जलाकर अपने हाथ परमात्मा का प्रतिबिम्ब है? आप श्री बोस, श्री अनुकम्पी नाड़ी प्रणाली मार्ग से ऊपर से नीचे पानी की ओर लाएं। शनैः शनैः रोगी शान्त हो जाएगा। यदि उसे आत्म-साक्षात्कार मिल जाए तो मान लो कि वह रोग मुक्त हो गया अगले पत्र में इस है वातावरण को परिवर्तित करता है, सुधारता । क्या स्वीकार करेंगे कि परमात्मा का भी कोई साम्राज्य है जो हमारा सृजन करता है तथा हमारी आत्मा ही दफ्तरी और श्री शर्मा का नाम बता सकते हैं जिनका रंगान्धी (Colour Blindness) रोग सहजयोग के माध्यम से ठीक हुआ है। जो भी हो अगले वर्ष मैं अमेरिका जा रही हूँ। मेरा एक प्रिय पुत्र डॉ. लान्झेवर अब न्यूयार्क चिकित्सक संघ का अध्यक्ष बन गया है और अगले वर्ष वो न्यूयार्क में एक संगोष्ठी कराने के लिए अति उत्सुक हैं। इतने । विषय पर और बताऊगी आपकी प्रेममयी माँ निर्मला (निर्मला योग से उद्धृत एवं अनुवादित) आन्तरिक और बाह्य विकास का संतुलन का अर्थ है स्वयं को जीवन की कठोरताओं और बाधाओं के अनुकूल बनाना और उन पर विजय हासिल करना। हर सहजयोगी को उन्नत होना चाहिए। उत्क्रान्ति प्राप्त करना उसकी जिम्मेदारी है। वास्तव में अपूने भाई बहनों तथा अपने प्रति एकमात्र जिम्मेदारी है। सहजयोग में उन्नत होने का क्या अर्थ है तथा अन्दर और बाहर से किस प्रकार अन्ततः उन्नत होने का अर्थ है स्वयं को संतुलित करना, पृथ्वी की कोमलता और पेड़ के आत्मविश्वास को महसूस करना। सहजयोग में उत्क्रान्ति हमें साक्षी भाव से अपनी उन्नति देखने की शक्ति प्रदान करती है। साक्षी भाव से जब हम देखते हैं तो पूरे वातावरण से विकीर्णित होती हुई सर्वव्यापी शक्ति की उपस्थिति का एहसास हमें होता है, उस शक्ति का जिसने आदिशक्ति की प्रेम लहरियों से पूरे जीवन वृक्ष को घेरा हुआ है और जो शान्ति एवं आनन्द के रूप में कोपलों पर बह रही है। तब पूरा वृक्ष आनन्द-कम्पन के साथ उस चैतन्य की अभिव्यक्ति करेगा और स्वयं को उन्नत होना है? उन्नत होने का अर्थ है पेड़ की तरह से उन्नत होना, पेड़ पृथ्वी माँ के अन्दर और बाहर विकसित होता है। बढ़ने के लिए पेड़ को अपनी जड़ें पृथ्वी में गहरी गाड़ने के लिए मार्ग खोजना पड़ता है। पृथ्वी माँ जब जड़ों का पोषण करती हैं तो जड़ें बढ़ती हैं और साथ-साथ पेड़ को भी बढ़ाती हैं। आत्म-साक्षात्कार प्राप्त कर लेने के पश्चात् हम ये बात जान जाते हैं कि हम जीवन वृक्ष हैं। उत्क्रान्ति का अर्थ सर्वप्रथम ये जान लेना है कि कुण्डलिनी ही जीवन वृक्ष है जिसे हमारे वायु तथा प्रकृति को अपने आकार की शान तथा अपनी छाया की उदारता दर्शाएगा। अन्दर सशक्त होना है। आत्म-साक्षात्कार हमें न केवल जीवन बनने की शक्ति प्रदान करता है बल्कि शक्ति प्रदान करके सुदृढ़ बनाकर उन्नते भी करता है। उत्क्रान्ति का अर्थ है आत्मा के प्रकाश के माध्यम से जीवन वृक्ष के सौन्दर्य की अनुभूति करना और इसके कार्य और स्वभाव का आनन्द लेना। वृक्ष उन्नति किस प्रकार करें? एक वृक्ष की तरह, पूरी सहजता एवं निर्लिप्तता पूर्वक। कुण्डलिनी इस वृक्ष का जीवन रस है। उन्नत होने के लिए आवश्यक है कि कुण्डलिनी अपनी शक्ति को उत्थान पथ पर प्रसारित करती रहे और हमारे सहस्रार तक बार-बार जाकर अपनी शक्ति को बनाए रखे। जितना अधिक कुण्डलिनी उठेगी, जितनी अधिक शक्तिशाली वह होगी उतने ही अधिक उन्नत हम होंगे। जिस प्रकार वृक्ष के अन्दर जीवन रस बहता है वैसे ही दिव्य चैतन्य लहरियाँ हमारे अन्दर प्रसारित होती रहती हैं और हमारे जीवन तथा उत्क्रान्ति को प्रभावशाली बनाती हैं। हमारा चित्त उत्क्रान्ति को प्रवर्तित करता है-इसको आगे बढ़ाता हैं। ये चित्त पथ प्रदर्शक बनकर हमें बताएगा कि किस प्रकार और किस सीमा तक जड़ें बढ़ रही हैं और हमारे अन्तस में गहरी उतर रही हैं। अतः उत्क्रान्ति का अर्थ आदिशक्ति की दिव्य चैतन्य लहरियों से स्वयं को पोषित होते देखना है जब हम देखते हैं तो सुधार कर सकते हैं और सुधरने पर उन्नत होते क्योंकि इस अवस्था में हम स्वयं को उस जड़ की तरह से चट्टान के चहुँ ओर घूमते हुए देखते हैं आत्मोन्नति होती है परन्तु आनन्द के बिना किस जो पृथ्वी में गहरा उतरने के लिए नया रास्ता खोजने में प्रयत्नशील है इस प्रकार से उन्नत होनेहमारी उत्क्रान्ति का इन्जन है, इसके बिना कैसे 1 परन्तु हमारे अन्दर उन्नत होने की इच्छा भी होनी चाहिए। अन्यथा जीवन रस किस प्रकार हैं, प्रसारित होगा कुण्डलिनी का पोषण पाकर कार कुण्डलिनी का पोषण हो सकता है? आनन्द अंक : & 2-2006 चैतन्य लहरी 15 हम उत्क्रान्ति पा सकते हैं? और आनन्द हमारी और बाहर की ओर उन्नत होकर हम अन्य लोगों आत्मा की अभिव्यक्ति है। किस प्रकार उन्नत हों? को यही प्रेम एवं करुणा दिखाने का प्रयत्न करते अपने हृदय को आत्मा के आशीरर्वाद के लिए खोलकर सर्वशक्तिमान परमात्मा के परमेश्वरी नियमों लिए पहले हमें अपने अन्दर उन्नत होना होगा। के सम्मुख स्वयं को समर्पित करने मात्र से। तब कुण्डलिनी के माध्यम से, उसे सशक्त बनाकर, हम उन्नत होते हैं क्योंकि उन्नत होने में हमें अपने चक्रों को स्वच्छ एवं दृढ़ करके अपनी आत्मा आनन्द आता है और अपनी उत्क्रान्ति की सहजता में हमें अपनी जड़ों की गहनता, कोपलों की शक्ति का एहसास होने लगता है और हम अपनी आन्तरिक विनम्रता हमारा सम्बन्ध श्रीमाताजी से स्थापित एवं बाह्य उन्नति का आनन्द लेते हैं। आन्तरिक और बाह्य उत्क्रान्ति हमारे निर्वाण के दो पहिए बन जाते हैं। है। अतः दूसरों के प्रति अपने प्रेम को बढ़ाने के से एकरूप होना होगा। आन्तरिक उन्नति हमें विनम्र करती है और करती है, जो कि शाश्वत प्रेम और परमेश्वरी सौन्दर्य का सार तत्व हैं। आन्तरिक उत्थान हमें शान्ति एवं आनन्द से परिपूर्ण कर देता है और अपनी आत्मा की आवाज़ को सुनने की योग्यता और आत्मा की गरिमा महसूस करने का एहसास अपनी उत्क्रान्ति के विषय में जब हम जागरूक होते हैं और उन्नते होने की इच्छा जब हमारे अन्दर होती है तो हम अन्य लोगों से प्रेम करने लगते हैं क्योंकि आँधी और तूफानों को देने की शक्ति देता है क्योंकि हम अपनी प्रेममयी चुनौती देने वाली जड़ों की ताकृत को हम अनुभव माँ की अथाह करुणा को अपने हृदय में आत्मसात करते हैं और धूप और वर्षां से सुरक्षा प्रदान करने वाली डालियों की छाया के सौन्दर्य को भी हम महसूस करते हैं। उन्नत हुए बिना हम प्रेम नहीं कर सकते और प्रेम के बिना उन्नत नहीं हो सकते। होने के लिए विवश करता है, परन्तु बाह्य उत्थान सर्वप्रथम हम अपने अन्दर उन्नत होते हैं क्योंकि सबसे पहले हमें स्वयं को प्रेम करना पड़ता है और नहीं प्राप्त होगी तो बाह्य उत्थान लुप्त हो जाएगा। स्वयं का सम्मान करना पड़ता है। केवल तभी हम बाह्य में उन्नत हो सकते हैं ताकि अपने हृदय में लोगों को प्रेम कर सकते हैं। एकत्र किए हुए प्रेम को बाँट सकें। अन्य लोगों के लिए प्रेम हमारे हृदय से बहना चाहिए और डालियाँ जड़ों द्वारा पोषित होनी चाहिए। जड़ें अंकुर को शक्ति देती हैं और अंकुर जड़ों को पृथ्वी के गर्भ में गहरा उतरने में सहायता देते हैं। व्यक्ति का अपनी आत्मा के प्रति प्रेम दूसरों की आत्मा को भी उनके अन्दर चमकाता है और वह चमक हमारे हृदय में ज्योतित सामूहिक आनन्द केवल एक है। प्रेम एवं निस्वर्धथ पूर्वक प्रतिबिम्बित होती है यह आन्तरिक एवं आा्य उत्क्रान्ति का सन्तुलन अपने अन्दर उन्नत होकर हम श्रीमाताजी के प्रेम श्रीरूणा की अभिव्यक्ति अपने अन्दर देखते हैं प्रदान करता है। बाह्य उत्थान हमें क्षमा माँगने और ति कर लेते हैं बाह्य उत्थान हमें अपने भाई-बहनों से बाँधने वाले सभी तन्तुओं का सृजन करता है। आन्तरिक उत्थान, बाह्य उत्थान को स्वतः अभिव्यक्त को यदि आन्तरिक उत्थान का पोषण और देखभाल आत्मा को प्रेम किए बिना किस प्रकार हम अन्य आन्तरिक रूप से उन्नत होने के लिए हमें बाहर भी अपना प्रेम प्रसारित करना होगा और अपनी आत्मा की अभिव्यक्ति से बाह्य प्रेम को बनाए रखना होगा आन्तरिक और बाह्य उन्नति का सन्तुलन हमें यह एहसास करवाता है कि उत्क्रान्ति हमारी प्रेममयी माँ की शाश्वत गरिमा एवं प्रकाश से (Arneau de Kalbermatten) है। (निर्मला योग से उद्धृत एवं अनुवादित) ह परमेश्वरी माँ के कथन आत्म-साक्षात्कार के पश्चात् आप सबको कुण्डलिनी और सहजयोग का काफी ज्ञान प्राप्त हो 1. 1 जाता हैं। परन्तु भक्ति के बिना आप सन्तुलन प्राप्त नहीं कर सकते। आपको भक्ति में खो जाना होगा भक्ति भावनाओं को समृद्ध करती है। विना आलोचना किए अन्य सहजयोगियों को महसूस करें। मैं आप सवका, आपके सौन्दर्य और गरिमा का आनन्द ले रही हूँ। काश कि आप सब लोग भी ऐसा ही कर सकते और स्वयं को समुद्र के अन्दर बूँद सम मान पाते। भक्ति आपकी कोणिकताओं और सामूहिक एकता के मार्ग में आने वाली बाधाओं को समाप्त करेगी। मेरे बच्चो, आप वास्तव में मेरे सहस्रार से उत्पन्न हुए है। अपने हृदय में मैने आपका गर्भ 2. धारण किया और अपने ब्रह्मरन्घ्र के माध्यम से मैने आपको जन्म दिया है। मेरे प्रेम की गंगा आपको सामूहिक चेतना के साम्राज्य में बहाकर ले आई है। मेरे मानव शरीर के लिए यह प्रेम बहुत अधिक महत्त्व पूर्ण है। यह आपका पोषण करता है। आपको सहलाता है और सुरक्षा प्रदान करता है। शनैः-शनैः यह कृपा और आनन्द की चेतना में आपको ले जाता है। परन्तु ये प्रेम आपको सुधारता है और आपकी कांट-छाट (prunes) भी करता है। यह आपका पथ-प्रदर्शन और निर्देशन करता है। सच्चे ज्ञान के रूप में यह स्वयं को प्रकट करता। है। ये आपके झटके झेलता है और मार्गदर्शक पत्ते की तरह सत्य की कठोर डगर पर आपको स्थापित करता है। आध्यात्मिक बुलन्दियाँ पाने की आपकी इच्छाओं को प्राप्त करने के लिए यह आपको शक्ति प्रदान करता है। *** सहजयोग का अलिखित इतिहास (पिछले अंक से आगे) आरम्भिक दिनों की पूजाएं इस प्रकार कहा जाना चाहिए, आपका उच्चारण गलत है।" तो पूरी पूजा के दौरान वे निर्देशन करती रहती। "अब हम पानी लेंगे, अब हम ये लेंगे, अब हम वो लेंगे।" वास्तव में यदि श्रीमाताजी पूजा का निर्देशन न करती होतीं तो सम्भवतः हम कभी हमें पूजाओं का ज्ञान न था। पूजा के विषय में हम कुछ भी न जानते थे पूजा करवाने के लिए श्रीमाताजी को अपने साथ एक ब्राह्मण पूजा पूरी न कर पाते। क्या हम ऐसा कर पाते? (Gail Pottinger) लाना पड़ता था। माँ पहले उसे आत्मसाक्षात्कार देती और फिर पूजा करवाने को कहर्तीं । हम लोग वहाँ मात्र बैठे रहते और वह ब्राह्मण मन्त्र बोलता क्या आप आ सकते हैं, हम पूजा करेंगे १६७७ की गुरु पूजा मेरी पहली पूजा थी। मुझे याद है एक बार मैं अपने काम पर गया हुआ और सभी कुछ करता। जब आरती का समय आता तो हमें आरती के विषय में कुछ भी ज्ञान न था। हमारे पास भारतीय फिल्म का एक रिकार्ड था जिस पर सिगरेट पीती हुई अमेरिका आई एक भारतीय लड़की की तस्वीर थी। वह लडकी भटक गई थी परन्तु बाद में उसे अपनी गलतियों का अहसास हुआ और वह भारतीयता की ओर लौटी। हम इस रिकॉर्ड को बजाते और इसके साथ-साथ तालियाँ बजाते रहते। ये सबको दुआ देने की धुन थी। परन्तु ये मूल आरती थी इस प्रकार से पूजा होती थी। हम पूजा करने की विधि नहीं जानते, किसी भी कार्य को करने का ज्ञान हमें न अचानक गोविन की पत्नी जेन ब्राऊन का फोन था, आया और उसने कहा कि क्या तुम आ सकते हो, हम पूजा करेंगे? मैं नहीं जानता था कि पूजा क्या होती है। अत: मैं आ गया। हम कोई आठ-नौ लोग थे और एक भारतीय पुजारी भी था। उसका नाम सतपाल है। अब तो कुछ दिनों से वह दिखाई नहीं दिया जो भी हो पहली बार मैं पूजा देख रहा था। मैं वहाँ बैठ गया। इस्लामिक पृष्ठ भूमि से आए हुए व्यक्ति का इस प्रकार से बैठना उसके लिए एक नया अनुभव था। था। (Djamel Metouri) (Pat Anslow) वह गुरु पूजा पहली थी जो गोविन ब्राऊन के फ्लैट पर हुई। श्री माताजी की एक तस्वीर जिसमें उन्होंने गुलाब के फूल हाथों में पकड़े हुए थे। मुझे याद है कि श्रीमाताजी को वो गुलाब भेंट करते हुए कहा था, "श्रीमाताजी सावधान रहिए, इन फूलों में काटे हैं।" उन्होंने कहा, "मुझे काँटे भी लेने हैं।" उन्होंने फूल लिए और फिर कहा, "क्या माँ ये सारी मर्यादाएं सिखाया करती थीं। वो हमें बतातीं कि किस हाथ से क्या करना है कब रिकॉर्ड चलाना है। इस प्रकार वे पूजा को निर्देशित करतीं। (Malcolm Murdoch) तुम मेरा प्रवचन टेपरिकार्ड कर सकते हो। मुझे पूजा में वे लोगों को रोक कर कहती, "नहीं, मन्त्र : 1 & 2 -2006 18 बैतन्य लहरी अंक याद है कि पहली बार उन्होंने यह औपचारिक श्री कृष्ण पूजा थी । हमने श्रीमाताजी के चरण कमल धोए और आज की तरह से पूजा की, टेप करने की क्या आवश्यकता है हम सब तो यहाँ हालांकि पुजा सामग्री इतनी नहीं थी जितनी आज होती है। यह पूजा उतनी सम्पूर्ण पूजा न थी प्रवचन दिया था। मैं सोचने लगा था, "प्रवचन को उपस्थित हैं।" इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे अन्दर वहाँ घटित होने वाली चीजों के विषय में कितनी चेतना थी। जितनी आज की पूजाएं होती हैं। (Djamet Metouri) (Pat Anslow) हमारे पास कोई सूत्र न था इंग्लैण्ड में ऑक्सटैड सरे के समीप श्रीमाताजी के घर में पूजा हुई। शाम के समय वे एक बड़े कागज़ पर बनाए हुए चक्र हमारे सम्मुख थे हर चक्र का मन्त्र कहते हुए हम उस चक्र पर अक्षत और पुष्प समर्पण कर रहे थे। हमें घर के अन्दर से बाहर बगीचे में लाई और वहाँ हमने हवन किया वे हमारे चक्र स्वच्छ करने का अत्यन्त दिलचस्प बात थी कि यह पूजा एक प्रकार से बहुत छोटी पूजा थी क्योंकि हम केवल नौ या दस लोग थे। इस पूजा से श्रीमाताजी की खींची हुई एक तस्वीर है जिसमें श्रीमाताजी ने अपने चरण कमलों से पकड़े हैं। प्रयत्न कर रही थीं। हम सब लोग वहाँ खड़े हुए थे। अचानक उनके मुँह से निकला "अब ठीक है, हुए पुष्प That's it" तेज़ हवा चली जिसने सारे पत्तों को बिखेर दिया। हमें ऐसे लगा मानो ईसा- मसीह के चहूँ ओर उनके शिष्य खड़े हैं । चाहे जो भी हो हर मुझे पूरा स्मरण नहीं है कि ये मेरी पहली पूजा थी। परन्तु मुझे अच्छी तरह से याद है कि वर्ष 1977 में यह मेरी पहली गुरु पूजा थी जिसमें आज के दो-तीन हजार लोगों के स्थान पर केवल दस समय वे हमें स्वच्छ करने के लिए कठोर परिश्रम किया करती थीं हमारी बाधाओं को लिए वो सभी प्रकार की विधियाँ अपनाती थीं। दूर करने के लोग थे। ये पूजा गोविन ब्राऊन के घर की बैठक में हुई थी। (Maureen Rossi) वास्तव में आज हम जिस प्रकार से पूजा करते हैं, ये पूजा उससे बिल्कुल भिन्न प्रकार से की गई थी। आज हम सीधे देवी की पूजा करते हैं बाद में उनके घर पर हमने एक और पूजा की। ये पूजा वास्तविक पूजाओं की तरह से थी। इसमें पंचामृत तथा अन्य सभी सामग्रियाँ थीं। सितम्बर 1977 के समीप उनके घर पर जो गोष्ठी हुई थी। और उनका पद प्रक्षालन करते हैं। उस समय हम उनके चरण धोते तो थे परन्तु पूजा के लिए हम चक्रों का चार्ट इस्तेमाल करते थे और चक्रों पर भेंट अर्पण करते थे। इसके अतिरिक्त गर्मियों में अन्य पूजाएं उस समय ये पूजा की गई। ये Hurst Green Oxted था। मुझे ये बात अच्छी तरह से याद क्योंकि Pat का बेटा Kevin भी वहां उपस्थित था। भी हुई। एक पूजा मेरे घर पर भी हुई जब श्रीमाताजी (St. Albans) सेन्ट अलबन्स आई, ये उस समय वह बहुत छोटा था। (Djamel Metouri) अंक : । & 2 -2006 19 धेतन्य लहरी बिठाया। इनमें एक डच लड़का और मैं थे श्रीमाताजी ने हमें बताया कि हमारी दोहरी जिम्मेदारी है। बाकी नए लोग हमारे पीछे बैठे थे, हमने उनकी की। उन्होंने अपने हाथ हमारे कन्धों पर रख उस पहली पूजा पर हम लगभग बारह लोग थे। मेरा बेटा Kevin भी वहाँ था। वह बदतमीजी करता और मुझे उस पर बहुत क्रोध आता। श्रीमाताजी उसे मेरे से दूर ले जातीं, मुझे शान्त करती और Kevin की देखभाल करतीं। श्रीमाताजी को हमारे पूजा लिए और इस प्रकार हम एक दूसरे से जुड़ गए। हमें इस बात का बिल्कुल भी ज्ञान न था कि हम क्या कर रहे हैं, श्रीमाताजी ने कदम-कदम पर हमारा मार्गदर्शन किया, पद प्रक्षालन, अमृत, चरणों लिए सब कुछ करना पड़ा। हमारे पास तो इसका सूत्र तक न था। (Pat Anslow) पर कुमकुम एवं चन्दन का तेल लगाना और पुष्प चढ़ाना। अंत में लोग श्रीमाताजी का फोटो खींचने के लिए इस प्रकार से दौड़े मानो हमें कुचल देंगे। सामीप्य और घनिष्ठता श्रीमाताजी के ऑक्सटैड के घर में परिदृश्य (Landscape) और पर्यावरण से जुड़ी हुई बहुत सी चीजें मुझे याद हैं। ऑक्सटैड में जो सामीप्य एवं घनिष्टता थी, आरम्भिक सहजयोगियों से जो हमारे हाथों पर उनके पैर पड़े। (Marilyn Leate) शूरवीर सूर्यमुखी के फूल के लिए गरिमा का एक उनके सम्बन्ध थे, वे मुझे याद हैं। पूराने सहजयोगी इन चीज़ों के बारे में बहुत बातें करते है। उदाहरण क्षण एक वर्ष श्रीमाताजी क्रिसमस के लिए लन्दन में रुर्कीं। क्रिसमस की पूर्व संध्या को बर्फ पड़ी तो श्रीमाताजी ने कहा कि क्योंकि Kevin सफेद के रूप में हम अजवायन जलाते तो वे चादर में हर सहजयोगी को धूनी लेने के लिए अपने पास बुलाती। सभी खाँसते और वे कहतीं, "क्या परेशानी हैं?" (What's wrong), उन पर इस धूनी का बिल्कुल भी असर न होता! क्रिसमस चाहता था इसलिए बर्फ पड़ी है। चैलशम रोड आश्रम की रसोई की खिड़की के पास हमने एक सूर्यमुखी का पौधा लगया था। ज्यों-ज्यों महीने गुजरते गए ये पौधा लम्बा होता चला गया। (Kevin Anslow) परन्तु इस पर कोई फूल न आया। जब दिसम्बर का महीना आया, मैं हैरान थी क्योंकि सूर्यमुखी का पौधा बर्फ को बदयश्त नहीं कर पाता और प्रायः मुझे लगा कि मेरे पास कोई सूत्र नहीं है। श्रीमाताजी की पहली पूजा जिसमें मैं सम्मिलित हुआ वह 1978 की गुरु पूजा थी। उत्तरी लन्दन के Finchley अक्टूबर नवम्बर तक सूर्यमुखी के पौधे मर जाते हैं। ये 1980 या 81 का वर्ष था । अभी तक ऋतु ने इस पूजा की अधिकतर तैयारी की। वे परिवर्तन और ग्रीष्म का आरम्भ नहीं हुआ था। के एक सभागार में ये पूजा हुई। निवासी भारतीयों अत्यधिक मेहमाननवाज़ थे और उनकी विनम्रता, मेहमाननवाज़ी और भारतीय संस्कृति ने मुझे आश्चर्य चकित कर दिया। उन्होंने हम सभी नए नए लोगों को श्रीमाताजी की पूजा करने के लिए बुलाया और दिसम्बर के मध्य में भी ये पौधा मरा नहीं था और इस पर एक फूल उगने लगा था। इंग्लैण्ड की सर्दियां तेज ठण्ड और अन्धेरे में यह आश्चर्य था । क्रिसमस की सुबह यद्यपि बर्फ पड़ रही थी, फिर भी ये फूल खिल उठा। हमने इसे तोड़ा और जिस जन्मजात आत्मसाक्षात्कारी बच्चों को सबसे आगे 20 चैतन्य लहरी अक : 1 & 2 - 2006 वे चैतन्य लहरियाँ देख रही थीं आरम्भिक दिनों की ईसा-मसीह पूजा थी। यह हैम्पस्टैड के सर्वधर्म मन्दिर में हुई। श्रीमाताजी ने कमरे में क्रिसमस पूजा के लिए श्री माताजी आई उसमें रखे क्रिसमस वृक्ष की चोटी पर इसे लगा दिया। शूरवीर सूर्यमुखी के फूल के लिए यह मुझे अपने लिए एक तस्वीर दी तथा अन्य पुराने सहजयोगियों के लिए उन्होंने अन्य चीजें दी। गरिमा का क्षण था। फूल जब बढ़ रहा था तो श्रीमाताजी प्रायः उसके पास से गुजरा करती थीं क्योंकि उन दिनों वे चैलशम रोड आश्रम सप्ताह में उनके पास बहुत सी चीजें थी। सर सी. पी. की बहुत सी पुरानी चीजें भी थीं उनकी उपयोग की हुई टाईयाँ थीं जिन्हें श्रीमाताजी ने अच्छी तरह से बिल्कुल वैसे ही पैक किया था जैसे वे बाजार में होती हैं। भिन्न-भिन्न तरह की टाईयाँ भी थीं परन्तु सभी एक ही प्रकार से पैक की गई थीं । उनमें भेद नहीं किया जा सकता था। अतः श्रीमाताजी एक बार अवश्य आती थीं। (Linda Williams) वे हमारा गहन अध्ययन कर रहीं थी मुझे याद है कि क्रिसमस पूजा थी, मैं 1979 के ये उपहार दे रही थीं। वे जिसे उपहार देती वह अन्त में आया था। अतः सम्भवतः ये वर्ष 1980 था, लेकर चला जाता। एक जोड़ा उपहार उन्होंने और दिए और फिर बोली, "नहीं उसे मत ले जाओ | श्रीमाताजी ने बहुत से उपहार दिए थे। उन दिनों पूजा अत्यन्त कठोर और कष्टकर कार्य हुआ करती थी। आत्मा तो इसे प्रेम करती थी परन्तु बाकी की हर चीज़ दर्द से कराह उठती थी। जब कृपया इनमें से एक मुझे लौटा दो। उससे वापिस लेकर यह उन्होंने दूसरे व्यक्ति को दी और वापिस करने वाले को एक अन्य टाई दी। उसने वह टाई खोलकर देखी । यह टाई बिल्कुल उस सूट पर फबती थी जो उसने पहना हुआ था। अत्यन्त श्रीमाताजी ने उपहार दिए मैं उनके पास गया तो ऐसे लगा मानो वे केवल चैतन्य लहरियाँ देख सकती हों। वे इतनी खोई हुई थीं। उनकी अवस्था हैरानी की बात है। श्रीमाताजी व्यक्ति की ओर नहीं देख रही थीं, वह तो चैतन्य लहरियाँ देख रही थीं और जानती थीं कि चैतन्य लहरियाँ ठीक नहीं है। अतः उन्होंने चैतन्य लहरियों को ठीक किया। इस प्रकार से यह कार्यान्वित हुआ। इतनी आश्चर्यजनक थी कि वे लोगों को देखती और ऐसे लगता मानो वे किसी को जानती ही न हो। परन्तु वास्तव में वे सभी के विषय में उससे भी कहीं अधिक जानती थी जो वे थे। वे हमारा गहन अध्ययन कर रही थीं। उन्होंने मुझे तीन उपहार (Douglas Fry) दिए, तीन उपहार। मैं हैरान था परन्तु क्या करता? देवी स्तुति गान :- उन्होंने ये उपहार मुझे पकड़ा दिए थे। उपहार एक समय था जब हम पूजा किया करते थे तो पूरा लेकर मैं उनके प्रेम को अनुभव करता हुआ देर रात को अपने घर की ओर जा रहा था उनके दिए हुए पूजा प्रातः काल आरम्भ होती थी और दिन चलती रहती थी। एक विशेष पूजा के आरम्भिक दिनों में, हमने बाहर एक हवन किया। देवी के सहस्र नाम की एक संस्कृत की पुस्तक थी। मेरे उपहार प्रतीकात्मक थे। आज भी मैंने इन्हें सम्भालकर है। रखा हुआ (John Glover) श्री अंक :& 2 -2006 21 चैतन्य लहरी तो अत्यन्त हैरानी की बात थी कि जहाँ हमने श्रीमाताजी को अर्पित की गई वस्तुएं दबाई थीं वहाँ से बहुत तेज प्रकाश निकलता हुआ तस्वीरों में विचार से श्रीमाताज़ी की स्तुति करने के लिए यह पहली पूजा थी जो पार्क लेन्डज हर्स्ट ग्रीन स्थित उनके घर पर हुई। चारों ओर बैठकर हम हवन सामग्री अर्पित कर रहे थे और श्रीमाताजी स्वयं नाम पढ़ रही थीं। वो कहने लगी कि अजीब बात है कि देवी स्वयं आपके सम्मुख देवी की स्तुति पढ़ रही है, ये बड़ी अनहोनी बात है। उनके सिवाय देवी के नामों को पढ़ने वाला कोई अन्य वहाँ न आया, उस समय तक हमें चमत्कारिक तस्वीरों का कोई ज्ञान न था। मैंने सोचा शायद कैमरे में कोई कमी थी। (Linda Williams) मानो ये कोई दुर्लभ भोजन हो- वास्तव में हम श्रीमाताजी को उन दिनों में (इंग्लैण्ड में पूजाओं के अवसर पर) बहुत ही घटिया खाना भेंट किया करते थे वे दुर्लभ पदार्थ समझकर सब था। जब हम वहाँ पर थे वहाँ बाहर बहुत ठण्ड थी। वर्ष के अन्तिम दिन थे, पूरा आकाश एक बड़े शून्य की तरह से खुला हुआ था। आकाश में बहुत अँधेरा था लेकिन जिस स्थान पर हम बैठे हुए थे उसके ऊपर आकाश में पूरा प्रकाश था। चैतन्य लहरियों ने आकाश को खोल दिया था। कुछ खा लेती थीं। है: वो हमेशा यही कहतीं कि कितना अच्छा खाना हाँ वो ऐसा ही कहती थीं और मैं सोचता वास्तव में (Douglas Fry) खाना बहुत अच्छा है। खाने में पुराने भूरे रंग के चावल बने होते थे परन्तु श्रीमाताजी उन्हें ऐसे मैंने सोचा कि कैमरे में कोई दोष है चैलशम रोड पर जो पहली पूजा हमने की वह भूमि पूजा थी। घर को आशीर्वादित करने के लिएखाती थीं मानो ये कोई दुर्लभ भोजन हो। गृहणी होने के नाते मुझे श्रीमाताजी को घर की ड्रयोढ़ी में भिन्न चीजें अर्पण करने के लिए बुलाकर सम्मानित किया गया मेरे गर्भ में मेरा दूसरा बच्चा था और गर्भ के अन्तिम दिन थे। श्रीमाताजी हमने एक पूजा की। इससे पूर्व मैंने प्रारम्भिक पाठों दरवाजे पर खड़ी थीं और मैंने उनके चरण कमलों पर अक्षत और अन्य चीजें अर्पण किए। सभी लोग हॉल के रास्ते पर और बगीचे में घेर कर खड़े हुए सफाई पर लगा दिया श्रीमाताजी जब आई तो वे थे ज्यों ही हमने पूजा समाप्त की श्रीमाताजी ने मुझे एक ओर ले गईं वे मुझ पर प्रसन्न थी । कहा कि उन्हें अर्पित की गई चीजों को दसवाजे के दाई ओर दरवाजे और खिड़की के बीच की जमीन भूत सबको इधर-उधर दौड़ा रहे हैं और सफाई में गाड़ दें एक वर्ष पश्चात् मैं दरवाजे की सीढ़ियों पर बैठे हुए कुछ बच्चों के फोटो लेने लगी। खिड़की के साथ एक छोटा सा लॉन बना हुआ था मैंने वहाँ फोटो लिए। फोटो जब विकसित किए गए (Kay Mchugh) उनके हृदय एवं चक्र शुद्ध थे में से एक पाठ पढ़ा। चैलशम रोड आश्रम इसका एक प्रकार का पाठ था। मैंने सबको आश्रम की 1 उन्होंने मुझसे कहा कि मेरे अन्दर के अतिचेतन करवा रहे हैं, यद्यपि मैं बाहर से स्वच्छ हूँ परन्तु अन्दर से मेरे चक्र अत्यन्त अस्वच्छ हैं। श्रीमाताजी ने कहा, कि सहजयोगियों का आश्रम यद्यपि कुछ अस्वच्छ है परन्तु उनके हृदय और चक्र स्वच्छ हैं। 22 अक : 1 & 2 - 2006 चैतन्य लहरी एक अच्छी चीज़ भी बताई जा सकती है। पूजा के बाद हम बारी-बारी श्रीमाताजी के पास जाते थे। बारी-बारी हम उनके सम्मुख घुटनों पर बैठते और अपना सिर उनके चरण कमलों पर रख देते और अदा करने की कोई जरूरत नहीं " आरम्भिक दिनों में श्रीमाताजी ने ये बात कही थी कि हमें ऐसा नहीं करना। यही बात उन्होंने वर्ष 1984-85 में पुनः कही माँ ने इस वे हम पर कार्य करतीं। मेरी प्रथम पूजा के अवसर पर जब मैं उनके चरण कमलों पर झुकी तो उन्होंने मुझे बताया कि एक दिन मैं बहुत से अन्य लोगों को सहजयोग दूंगी। श्रीमाताजी का ये वचन, जो वास्तव में सत्य हुआ, बाद में कठिनाईयों के समय विषय पर बात करनी शुरु की या हो सकता है इस विषय पर बात की। आरम्भ में उन्होंने इस पर बल नहीं दिया मैं ऐसा इसलिए कह रही हूँ क्योंकि कई वर्षों के पश्चात् कुछ घटनाएं घरटीं इन मेरा सम्बल बना रहा। घटनाओं ने उस सारे समय पर प्रकाश डाला जिसमें श्रीमाताजी ने कुछ भी न कहा था। (Linda Williams) मर सहजयोग में श्रीमाताजी बहुत वर्षों तक देखती ही रहीं, एक प्रकार से वे हमारे बन्धनों को उन्होंने हमारे बन्धन देखे लगभग सभी लोगों के साथ ऐसा होता है कि जब वो सहजयोग में आते हैं तो प्रायः अपने साथ पूर्व देखती रहीं। छोटी-छोटी चीजों के प्रति हमारे मोह धर्म बंधन लेकर आते हैं। ऐसे लोग प्रायः श्रीमाताजी का चित्त अपने धर्म की ओर आकर्षित करने का प्रयत्न करते हैं क्योंकि उनमें एक इच्छा होती हैं कि श्रीमाताजी उनकी पीठ थपथपाते हुए कहें, "इस्लाम के बारे में मुझे बताकर तुमने कितना अच्छा कार्य किया!" आदि को वे देखती रहीं। उन्होंने देखा कि किस प्रकार हम अपने देशों से भिन्न प्रकार के बन्धन साथ लेकर आते हैं। (Djamel Metouri) -आदि। आप उनकी उपस्थिति को महसूस कर सकते हैं बाद में हमने संस्थानों में, होटलों में या संगोष्ठी स्थानों पर पूजाएं करनी आरम्भ कीं। परन्तु जब 1979-80 में मैं सहजयोग में आई तो आरम्भ में अधिकतर पूजाएं ज। मेरे विचार से एक बार जब रुस्तम (Bujorjee) मध्य पूर्वी देशों से वापिस आए, तो वे कहा करते थे, " के अन्त में हम नमाज़ या लोगों के घर पर होती थी मुझे पूजा ऐसा कुछ और क्यों नहीं करते?" एक दिन श्रीमाताजी ने कहा, "ठीक है कि नमाज़ पढ़ना याद है कि ब्राइटन में पामेला (Bromley) के घर पर हमने बहुत सी पूजाएं की और वहाँ श्रीमाताजी के साथ रहना भी मुझे याद है। श्रीमाताजी चाहे ऊपर की मंजिल में होतीं या किसी अन्य कमरे में होतीं, आप उनकी उपस्थिति को महसूस कर सकते थे कि वे घर में मौजूद हैं और उनकी उपस्थिति आपको अपने आचरण के प्रति जागरूक ठीक है, परन्तु नमाज तो तुम तब भी पढ़ते हो जब तुम्हें परमात्मा का ज्ञान न था।" आपको क्योंकि परमात्मा का ज्ञान न था इसलिए उनके सभीप आने के लिए सम्भवतः तुम्हें कुछ अभ्यास करने पड़े। "परन्तु अब आप परमात्मा को जानते हैं, हैं। अब आपको नमाज़ परमात्मा आपके कर देती और मस्तिष्क में चलते अपने विचारों के सम्मुख अंक : । & 2 - 2006 23 चैतन्य लहरी की तरह से था जैसे मेरे पैर में कील ठोक दिया विषय में भी आपको सावधान करतीं। कभी आपको लगता कि आपके मस्तिष्क में किसी विशेष विचार का होना ठीक नहीं है। इस विचार का आपके गया हो ! किसी तरह से मैंने अपने अन्दर दोष भाव नहीं आने दिया ये मात्र रिकार्डिंग थी । (Vicky Halperin) मस्तिष्क में बना रहना खतरनाक है क्योंकि आप देवी के सम्मुख उपस्थित हैं । मैंने एकदम से पीठ मोड़ी और वहाँ के स्थानीय (Felicity Payment) दुकान पर जाकर मेहदी के शहद का एक जार खरीदा। वापिस आया और वो शहद श्रीमाताजी को भेंट की गई। उन्होंने कहा, "ओह! ये बढिया ा ब्राइटन में गणेश पूजा श्रीमाताजी किसी व्यक्ति पर कार्य कर रही थीं । के बाद काफी भीड़ थी। उन्होंने लोगों के आज्ञा चक्र स्वच्छ करने के लिए शहद मॉँगा जिसे वह चैतन्यित कर सकें। हैरानी की बात थी वहाँ उपस्थित एक व्यक्ति के पास है।" (Chris Marlow) ताकि उनके हृदय खुल सके मैं नहीं जानता की ऐसा क्यों था? भआरतीयों की से शहद का एक अत्यन्त सुन्दर बर्तन भरा हुआ था जिसे वह किसी अच्छे भोज्य पदार्थों की तरह से धोती पहनने के लिए मैं श्रीमाताजी के दुकान सम्मुख खड़ा था। उनके पास धोती थी। वे धोती को मेरे इर्द-गर्द लपेटती गईं और यह पायजामे जैसी चीज बनकर रह गई| इसे क्या कहते हैं? हाँ, खरीद कर लाया था। श्री माता जी ने कहा, "नहीं, ये अच्छी नहीं है, ये की शहद है और बबूल के पेड पर ईसा बबूल मसीह को क्रूसारोपित किया गया था। बबूल भयानक काँटेदार पेड़ होता है। धोती। वे हमें बता रही थीं कि धोती किस प्रकार बाँधनी है । का उन्होंने कई युग हमारे साथ बिताएं क्योंकि उन दिनों में यद्यपि कम लोग होते थे, औपचारिकता (Chris Marlow) ये बात अच्छी तरह याद रखने का कारण ये है कि छोटी होती थीं यद्यपि बहुत कम थी, पूजाएं बहुत जो पूजाएँ हम करते थे वो बहुत लम्बी होती थीं परन्तु जो पूजाएं वो स्वयं करती थीं वो बहुत छोटी होती थी। आज भी बह बहुत छोटी है। परन्तु पूरी सन्ध्या वे हमारे साथ बिताया करती थीं ताकि हम मैंने बबूल (Acacia) की शहद खरीदी थी। खाना बनाने के लिए उपयोग होने वाला सामान मैंने पॉल के घर से खरीदा था और हम थोक विक्रेता और कई अन्य स्थानों पर गए थे। ये शहद बबूल का अपना मनोरंजन कर सकें। मेरे विचार से वे ऐसा किया करती थीं क्योंकि हम हर समय बहुत दुखी शहद था। (Chris Marlow) हुआ करते थे। अतः हमें हँसाने के लिए वे अजीब- अजीब कार्य किया करती थी। धोती बाँधना ऐसा ही एक कार्य था, लोगों को वस्त्र पहनाना, उनसे कार्य करवाना, ताकि उनके हृदय खुल सके। श्रीमाताजी ने जब शहद और बबूल के बारे में ये टिप्पणी की। तो मेरे पैर में भयानक दर्द हुआ मानो 1 वास्तव में मेरे पैर में कोई कील ठोका जा रहा ही। श्रीमाताजी बोली, "क्या बात है?" यह क्रूसारोपण (Ray Harris) परम पूज्य श्रीमाताजी का प्रवचन (कांस्टीट्यूशन क्लब, नई दिल्ली) 10-2-1981 यहाँ कुछ दिनों से अपना जो कार्यक्रम रहे हैं। आप साधक हैं साधक होना भी एक श्रेणी होता रहा है उसमें मैंने आपसे बताया था कि है, एक Category (श्रेणी) है । सब लोग साधक नहीं होते। हमारे ही घर में हम तो किसी से नहीं हमारे अन्दर स्थित है। जो भी मैं बात कह रही हूँ कहते कि आप सहज योग करो या सहजयोग में ये आप लोगों को मान नहीं लेनी चाहिए । लेकिन आओ किसी से भी नहीं कहते। सिवा हमारे और हमारे नाती पोतियों के कोई भी सहज योगी नहीं है। लेकिन जो नहीं है वो नहीं है. जो हैं सो हैं । अगर कोई खोज रहा है, उसके लिए सहजयोग है देखना चाहिए, सोचना चाहिए और पाना चाहिए। जो साधक है उसके लिए सहज योग है । हरेक आदमी के लिए नहीं। आप तो जानते हैं कि दिल्ली में सालों से हम रह रहे हैं और हमारे पति भी यहाँ रह चुके हैं। लेकिन हमने अभी तक किसी से भी हमारे पति के दोस्त या उनके पहचान वाले या रिश्तेदार से, बात-चीत भी नहीं करी और बहुत लोग हैरान हैं कि हमको मालूम नहीं था कि यही माता जी निर्मला देवी है जिनको हम दूसरी तरह 1 कुण्डलिनी और उसके साथ और भी क्या-क्या इसका धिक्कार भी नहीं करना चाहिए। क्योंकि ये अन्तरज्ञान आपको अभी नहीं है। और अगर मैं कहती हैँ कि मुझे है. तो उसे खुले दिमाग से दिमाग जरूर अपना खुला रखें । पहली तो बात ये है कि सहज योग कोई दुकान नहीं है। इसमें किसी प्रकार का भी वैसा काम नही होता है जैसे और आश्रमों में या और गुरुओं के यहाँ पर होता है कि आप इतना रुपया दीजिए और मेम्बर (सदस्य) हो जाइए। यहाँ पर आप ही को खोजना पड़ता है, आप ही को पाना पड़ता है और आप ही को आत्मसात करना पड़ता है। जैसे कि गंगाजी बह रही हैं, आप गंगाजी में जायें, इसका आदर करें, उसमें नहाएं-धोएं और घर चले आएं। अगर आपको गंगा जी को धन्यवाद देना हो तो दें, न दें तो गंगाजी कोई आपसे नाराज़ नहीं होती। एक बार इस बात को अगर मनुष्य समझ ले, कि यहाँ कुछ भी देना नहीं है सिर्फ लेना ही है, तो एक तरह की गहनता आ जाएगी। जब लेना होता है, जैसे कि प्याला है, उसमें तभी आप डाल सकते है जब उसमें गहराई हो। और जब लेने की वृत्ति होती है तब मनुष्य उसे पा सकता है। से जानते हैं। तो सहज योग जो चीज़ है, इससे आपको लाभ उठाना है पहली बात। इस बात को अगर पहले आप समझ लें कि कि आपको कुछ पाना है। परमात्मा को भी आप कुछ नहीं दे सकते और सहजयोग को भी आप कुछ नहीं दे सकते उनसे लेना ही मात्र है। लेकिन माँ की दृष्टि से मुझे ये कहना है कि अगर लेना है तो उसके प्रति नम्रता रखें अपने में गहनता रखें और इसे स्वीकार करें। माँ जो होती है वो समझ के बताती हैं। ये नहीं कि आपकी हर समय परीक्षा लँ और आपको मैं परेशान करूँ और फिर देखें कि आप इस योग्य जगह जा चुके हैं क्योंकि आप परमात्मा को खोज हैं या नहीं, या पात्र हैं या नहीं। दूसरे ये भी बात दूसरी बात ये है कि आप लोग अनेक चैतन्य लहरी 25 अक : । & 2 - 2006 कुण्डलिनी शक्ति हमारी जो महाकाली की इच्छा शक्ति है उसका शुद्ध स्वरूप है। पूर्ण है कि माँ बच्चों को जानती अच्छे से हैं। जानती हैं कि इनमें क्या दोष है, क्या बात है, किस वजह से रुक गये उसको उसकी मालूमात गहरी होती है बहुत और वो समझती है कि किस तरह से बच्चे को भी ठीक किया जाए, कहीं डॉटना पड़ता है, तो डॉट भी देगी। जहाँ दुलार से समझाना पड़ता है, समझा भी देती है। और ये सिर्फ माँ का ही काम है और कोई कर भी नहीं सकता। मुश्किल काम है और किसी के लिए करना क्योंकि ये सारा काम शुद्ध स्वरूप है। मतलब ये कि एक ही इच्छा मनुष्य को होती है संसार में जब बो आता है। उसका शुद्ध स्वरूप है कि परमात्मा से मिलन हो और दूसरी उसे इच्छा नहीं होती। ये उसका शुद्ध स्वरूप है। और जब ये इच्छा कुण्डलिनी स्वरूप होकर के बैठती है तो वो मनुष्य का पूरा पिण्ड बनाती है- पर अभी इच्छा ही है। इसलिए पूरा बनाने पर भी वो इच्छा ही बनी रहती है क्योंकि उसकी जो इच्छा है वो जागृत नहीं है। इसलिए इच्छा पूरी की पूरी वैसी ही बनी रहती है और वो प्यार का है। आज मनुष्य इतने विप्लव में और इतनी आफत में है, इतने दुःख में और आतंक में बैठा हुआ है इस कदर उस पर परेशानियाँ छाई हुई हैं कि इस वक्त और भी किसी तरह की परीक्षा इन पर दी जाए, ऐसा समय नहीं है और ये माँ ही समझ सकती है कि बच्चे कितनी आफतें उठा रहे हैं, उनको कितनी परेशानियाँ हैं और किस तरह से उनका भार उठाना चाहिए और उनके अन्दर किस तरह से प्रभु का अस्तित्व माँ ही कर सकती है। अपनी इच्छा छाया की तरह आपको संभालती रहती है कि देखो इस रास्ते पर गए हो तो यहाँ वो इच्छा पूरी नहीं होगी, जो सम्पूर्ण शुद्ध आपके अन्दर से इच्छा है वो पूरी नहीं होगी, उस इच्छा को पूरी किए बगैर आप कभी सुख भी नहीं पा सकते। सारा आपका पिण्ड जो है वो इसीलिए बनाया गया जागृत करना चाहिए। ये कि वो इच्छा पूर्ण हो जिससे आप परमात्मा को पाएँ कुण्डलिनी के बारे में जो कहा गया है कि "कुण्डलिनी आपके अन्दर स्थित आपकी माँ है, जो हजारों वर्षों से आपके जन्म होते ही आप में प्रवेश करती हैं और वो आपका साथ छोड़ती नहीं, जब पर महाकाली शक्ति को जब आप इस्तेमाल करने लगते हैं तो आपकी महाकाली की शक्ति में जो उसका कार्य है वो बाहर की ओर होने लग जाता है। मानो आपकी इच्छाएँ जो हैं वो बाहर की ओर जाने लग जाती हैं। आप ये सोचते हैं कि मैं ये चीज़ पा लूँ। जब आपका चित्त बाहर जाता तक आप पार न हो जाएँ। वो प्रतीक रूप आपकी माँ ही है।" यानी ये कि समझ लीजिए 'प्रतीक रूप आपकी महा- माँ' की एक छाया है, छवि है एक प्रश्न यह जो किया था किसी ने कि माँ आपने कहा था कि पूरी रचना हमारी करनी के बाद पिण्ड की पूरी रचना करने के बाद भी वो वैसी की वैसी ही बनी रहती है, इसको किसी तरह से उसका भी एक कारण है जिसके कारण आपका चित्त बाहर जाता है । जो मैंने कहा था कि वो ज़रा विस्तारपूर्वक बताना होगा । जब. क्योंकि आपका चित्त बाहर की ओर जाने लगता और जैसे-जैसे आप बड़े होने लग जाते हैं और भी वो बाहर की ओर जाने लग जाता है। इसकी वजह से जो शुद्ध इच्छा आपके अन्दर है जिसको कि विद्या समझाया जाए। वो आज मैं बात आपको समझाऊँगी कि किस तरह से होता है। शुद्ध कहते हैं और शुद्ध आपके अन्दर जो अन्तरतम् अंक : 1 चैतन्य लहरी & 2-2006 26 इच्छा है वो एक ही है कि 'परमात्मा से योग घटित आपके ध्यान ही में नहीं आता है कि आपकी हो' वो कार्यान्वित नहीं हो पाती। सिर्फ आप ये ही वास्तविक इच्छा पूरी नहीं हुई है और आप गलत सोचते रहते हैं कि हम इसे पाएँ, उसे पाएँ, उसे रास्ते पर चल रहे हैं। जब तक आप बहुत पायें। इसलिए वो जैसी की तैसी बनी रहती है। नहीं खाते हैं. जब तक आपका सारा पैसा नहीं लुट इसीलिए इसे Residual energy (अवशिष्ट ऊर्जा) कहते हैं। ठोकरें जाता, जब तक आप पूरी तरह से बर्बाद नहीं हो जाते, आपके ध्यान में ये बात नहीं आती। बहुत बार लोगों ने मुझे कहा कि माँ आप अब ये जो आपकी शुद्ध इच्छा है ये ही किसी भी गुरु के बारे में कुछ भी मत कहिए। मैंने कहा कि ऐसा ही हुआ कि कोई मेरे बच्चों की गर्दनें काटे और मैं न कहूँ कि ये गर्दन काट रहे हैं। ये कहे बगैर कैसे होगा, आप ही बताइये? आप माँ-बाप भी हैं, आप बताइये कि अगर आप जानते हैं कि कोई आदमी आपकी ये इच्छा हमेशा के लिए मन्त्रमुग्ध कर देगा और आपको विचलित कर देगा, हमें इस चीज़ से पूरा हो जाएगा। किसी चीज़ से आपकी कुण्डलिनी को एकदम से ही वो जकड़ पूरा हो जाएगा। सो नहीं होता। पर बहुत बार ऐसा देगा या उसको ऐसा कर देगा कि वो freeze हो जाए (जम जाए) एकदम, तो क्या कोई माँ ऐसी बहुत बार और जगह दौड़ने लग जाती है तब होगी जो नहीं बताएगी? इस मामले में बहुतों ने मुझे डराया भी, धमकाया भी। कहा कि आपको कौई गोली झाड़ देगा। मैंने कहा झाड़ने वाला अभी पैदा में ये बता देते हैं कि ये इच्छा किस तरह से पूर्ण नहीं हुआ। मुझे देखने का है। ऐसा आसान नहीं है हो जाती है। लेकिन बहुत से अगुरु भी इस संसार मेरे ऊपर गोली झाड़ना। वो तो ईसा मसीह ने एक नाटक खेला था इसलिए उस पर चढ़ गए, नहीं तो ऐसा वो सबको मार डालते कि सबको पता चल आपको खींचकर इधर से उधर ले जाती है और आप दर-दर पे ठोकरें खाते हैं, कर्मकाण्ड करते हैं, इधर ढूँढते हैं, किताबें पढ़ते हैं और आप अपने अन्दर धारणा बना लेते हैं कि परमेश्वर का पाना ये होता है, परमेश्वर का पाना ये होता है। जब तक आप उसे पाते नहीं आप इच्छा को सोचते हैं कि भी होता है कि महाकाली शक्ति जो है जब हमारी कभी-कभी कोई गुरु लोग भी या ऐसे लोग भी या ऐसे लोग कि जो बहुत पहुँचे हुए लोग हैं इस मामले में हैं बहुत से दुष्ट लोगों ने भी गुरु धारण कर लिया है और इसी वजह से बो आपकी इस इच्छा को मन्त्रमुग्ध कर देते हैं माने कुण्डलिनी को तो कोई छू नहीं सकता, किन्तु आपकी जो महाकाली की जो शक्ति है उसको मन्त्रमुग्ध कर देते हैं। वो जाता। लेकिन वो एक नाटक खेलने का था, इसलिए उस वक्त ये काम हुआ। मन्त्र मुग्ध होने के कारण आपकी जो वास्तविक इच्छा परमात्मा से योग पाने की है वो करके अब, हमको ये सोचना चाहिए कि जब हमारी ये शुद्ध इच्छा है कि परमात्मा से योग होना है, तो कुण्डलिनी जागृत करने के लिए क्या करना चाहिए? ऐसा बहुत बार लोगों ने कहा है। हालाँकि हर लैक्चर में मैं कहती हूँ कि ये जीवन्त क्रिया है, इसके लिए आप कुछ नहीं कर सकते आप' नहीं कर सकते इसका मतलब नहीं कि मैं नहीं कर छूट आप सोचते हैं कि ये जो अगुरु हैं जिसने हमको मन्त्र मुग्ध किया है, ये ही उस इच्छा को पूरा कर देगा। इसको पूर्ण कर देगा। और इसलिए आप उस चीज़ से चिपक जाते हैं। और जब आप मन्त्रमुग्ध की तरह 'उससे चिपक जाते हैं तब चैतन्य लहरी अंक : । & 2-2006 27 सकती। इसका मतलब यह नहीं कि सहजयोगी नहीं कर सकते। अधिकारी होना चाहिए । जैसे एक डॉक्टर है जो कि (ऑपरेशन) operation करना समझ लीजिए सोचता है कि हमने बहुत बड़ा काम किया। आपने क्या काम किया, उनसे पूछिए तो बतायेगा कि साहब मैंने मकान बनाया, घर बनाया और बच्चों की शादियाँ कर दीं या कोई बड़ा भारी जानता है, वो ही ऑपरेशन कर सकता है। पर आदमी अगर इस तरह का काम करें कोई दूसरा तो लोग कहेंगे कि 'ये खूनी है और इतना ही नहीं वो खून ही कर डालेगा. क्योंकि उसको मालूमात ही नहीं उस चीज़ की। जिसको इसकी जानकारी नहीं है, जो इस बारे में समझता नहीं है उस को कुण्डलिनी में पड़ना नहीं चाहिए। उस का तमगा मिल गया। मैंने aeroplane (हवाई जहाज़) बना दिया और कोई चीज़ बना दी, मैं बड़ा े भारी Prime Minister (प्रधान मन्त्री) हो गया। सब भी एक मिथ्याचरण है। मिथ्या बात है। क्योंकि ये शाश्वत नहीं है, सनातन नहीं है, शाश्वत नहीं है। ये कोई आदमी, आज बड़े-बड़े अफसर हो जाते हैं। हम भी अफ़्सरी काफी देख चुके हैं और जैसे भी नहीं । जब आप सहजयोग में पार हो जाते हैं ही अफसरी खत्म हो गयी तो कोई पूछता उसके बाद इसके नियम शुरु हो जाते हैं, जो परमात्मा के दरबार के नियम है-जैसे आप हिन्दुस्तान में आए तो आपको हिन्दुस्तान सरकार के नियम पालने पड़ते हैं। उसी प्रकार जब आप परमात्मा के साम्राज्य में आए तो उसके नियम आपको पालने पड़ते हैं। और अगर आप वो नियम न पालें तो आपके वाइब्रेशन हाथ से वाइब्रेशन छूट जायेंगे, बार-बार आप पहले जैसे होते रहेंगे, जब तक आप पूरी तरह से इसको अपने ऊपर पूरा प्रभुत्व न पा जाए। जब तक आपने अपनी आत्मा को पूरी तरह से नहीं पाया, आप पाइएगा वाइब्रेशन आपके छूटते जाएँगे क्योंकि ये वाइब्रेशन आपकी आत्मा से आ रहे हैं। बड़ा आश्चर्य है अगर आपका transfer (तबादला) ही हो गया तो कोई नहीं पूछता। आपने मकान बना लिया. आपने देखे हैं कितने बडे-बड़े खण्डहर पड़े हुए हैं। और न कोई जानता है कि ये है क्या बला कहाँ से आई, क्या हुआ। बड़ी-बड़ी ऐसी चीजें खत्म हो चुकी है। छूट जायेंगे। बार- बार वो एक बार मैं गयी थी आपके आगरा के fort ( किला) में । तो रात बहुत बीत गयी वहाँ। और कुछ special (खास) हमें दिखाने का इन्तजाम था तो बहुत रात हो गयी। और वो कहने लगे जब भीड़ जाएगी तब आपको ठीक से दिखाएँगे। बहुत कुछ चीजें दिखाईं। जब लोग लौट रहे थे तो मैंने देखा कि बिल्कुल 'सब दूर अँधेरा है । सब आत्मा जो है उसको सत् चित्त आनन्द कहते हैं। माने वो सत्य है। सत्य का मतलब ये है कि वो ही एक सत्य है, बाकी सब असत्य है । बाकी सब ब्रह्म है ब्रह्म जो है वो भी उन्हीं की शक्ति है और जो कुछ उनके अलावा है-आत्मा, ब्रह्म इसके अलावा जो कुछ भी है बो असत्य है। जितनी भी उस बक्त में चहल-पहल रही होगी। रानियों ने क्या-क्या काम किये होंगे और परेशान किया होगा अपने नौकरों को कि ये मेरे कपड़े नहीं ठीक हैं। राजाओं ने परेशान किया होगा। बड़े-बड़े वहाँ पर दावतें हुई होंगी। उसके लिए झगड़े हुए होंगे। पता नहीं क्या-क्या किया होगा इन लोगों ने उस ज़माने में सब एक दम फिजूल है कुछ नहीं सुनाई दे रहा था अब वो आवाज़ खत्म हो चुकी असत्य माने ये हैं कि एक आदमी है अंक :। & 2 -2006 चैतन्य लहरी 28 लेकर के वो आता है वो करुणा में फिर से जन्म लेता है। सिर्फ करुणा में जन्म लेता है । लेकिन वो मोक्ष अपने साथ लेकर के आता है। उस सनातन थी वहाँ। कुछ भी नहीं था। एकदम अँधेरा चारों तरफ छाया हुआ। और जब हम बाहर आ रहे थे बिल्कुल बाहर आये तो रोशनी थी नहीं खास। एक साहब के पास ज़रा-सी Torch (टॉच) थी, उससे सभी लोग देखकर बाहर आ रहे थे। बाहर आते वक्त देखा कि एक चिराग की रोशनी जल रही थी। उस चिराग की रोशनी में हम बाहर आए, तो पूछा कि भाई चिराग यहाँ किसने जला कर रखा? मैंने पूछा कि किसने चिराग यहाँ जलाया? कहने को पाना चाहिए। और जब हम इस बात को जान लेते हैं कि हमें सनातन को पाना चाहिए, तब हमारा जो व्यवहार है, सहजयोग के प्रति, बदल जाता है। जो लोग पार हो गये हैं उनको पता होना चाहिए कि हमें 'स्थित' होना पड़ता है। मैंने कल बताया था कि पार होने के बाद क्या करना चाहिए। 'स्थित' होने के लिए उसके नियम हैं । जैसे आप जानते हैं अगर Aeroplane (हवाई जहाज़) है इसको पहले जब आप testing (परीक्षण) करते हैं तो उडाते हैं, देखते हैं कि इसका Balance लगे कि यहाँ पर एक मजार हैं, एक पीर की मजार है और ये पीर बहुत पुराने हैं। कितने पुराने? कहने लगे कि जब ये किला भी नहीं बना था, उससे पुराने। अच्छा, तब से इस पर दिया ज़लता रहता है। सब लोग यहाँ माथा टेकने जाते हैं । (सन्तुलन) कैसा है । ये ठीक से चल रहा है या नहीं चल रहा है। उसको बार-बार grounding कराते हैं, फिर उसको उड़ाते हैं, फिर देखते हैं। उसी प्रकार जब आपकी कुण्डलिनी जागृत भी हो गई और आप पार भी हो गए और माना कि आप पार हो गए, और आपके अन्दर से वाइब्रेशन शुरु होने लगे तो फिर आपको ज़रूरी है कि आप अपने ये सनातन है। पीर हो जाना सनातन है। ये शाश्वत है बाकी सब असत्य है सब गुम हो गया है. खत्म हो गया, शून्य हो गया, लीन हो गया। आज कोई आकाश में उछल रहा है, कल देखा तो वो गर्द में पड़ा हुआ है। आप रोजमर्रा ही देखते हैं अपने ही आँखों के सामने आपने देखा है कि कितनी बार ऐसा हुआ। इतना पचास साल में इस भारतवर्ष में हुआ है, कभी नहीं हुआ था। सबसे को ज़रा-सा देखें और समझे कि क्या है। अब, सबसे जो बड़ी गलती हम लोग करते ज्यादा उथल-पुथल इसी पचास साल में हुई है। इससे आप समझ सकते हैं कि ये सनातन नहीं है। हैं पार होने के बाद पहली गलती ये है, कि हम इस ये कोई-सी भी चीज़ सनातन नहीं, जिसके पीछे आप दौड़ रहे हैं। दौड़-धूप कर रहे हैं। आज बड़े कभी-कभी शंकाऐं भी बहुत लोगों को आती हैं । भारी आदमी बन कर धूम रहे हैं; आपका ठिकाना कहते हैं 'भई कैसे हो सकता है, माँ ने हमको नहीं। कल आप रास्ते के भिखारी बने होंगे जो चीज सनातन नहीं है उसके पीछे हम क्यों दौड़ें? जो चीज़ सनातन है उसे पाना चाहिए। जब के बारे में सोचना शुरु कर देते हैं। तो उसमें mesmerise (सम्मोहित) भी कर दिया होगा तो क्या पता? हो सकता है कि गड़बड़ ही हो गया होगा, हम कैसे ऐसे हो सकते हैं? हमने तो सुना था इसमें बड़ी-बड़ी दिक्कतें होती हैं, हम ऐसे आसानी आदमी Realization (साक्षात्कार) पा लेता है तो वह खोता नहीं। जब उसका जन्म होता है तो से कैसे पार हो गए? ठण्डी हवा आ गयी तो क्या समझना चाहिए कि क्या बड़े भारी हम पार हो गए? Realization के साथ वो दूसरी चीज मोक्ष, मोक्ष अंक :। & 2-2006 चैतन्य लहरी 29 सिर्फ आप क्या नहीं कर सकते कि ये एक त्रिकोणाकार अस्थि में अगर आप स्पन्दन देखें तो मानना चाहिए कि कुण्डलिनी है स्पन्दन आप नहीं कर सकते कहीं भी फिर उसका उठता हुआ स्पंदन आप देख सकते हैं। सब में नहीं. क्योंकि कोई अगर बढ़िया लोग हों तो उनमें जरा भी पता नहीं चलता, खट से कुण्डलिनी उठ जाती है। पर बहुत-से लोगों में इसका स्पन्दन दिखाई देता है। उसका अनहत् पर बजना सुनाई देता है तो कबीरदास जी ने बहुत अच्छा कहा है कि 'शून्य शिखर पर अनहतु बाजे रे। शून्य शिखर पर', यहाँ (सहस्रार) पर अनहत् का बजना आप सुन सकते हैं। शून्य शिखर पर अनहत् बाजे रे। तो उसको आप देख सकते हैं, बज रहा है क्या? कोई गुरु है, कहते हैं हम नाच रहे हैं, भगवान का नाम लेकर के "नाचि रे-नाचि रे. भई, ये क्या तरीका है? सीधा हिसाब बताइये, कि नाचना, गाना, ये आनन्द इसमें आप नाच सकते हैं, कूद सकते हैं ऐसा में मनुष्य करता है, लेकिन वो करना परमात्मा को पाना नहीं है। वो हो सकता है कि मनुष्य पाकर के ये कैसे हुआ? पहली गलती ये है कि इसके बारे में आप सोच नहीं सकते। सोचने से आपके वाइब्रेशन खट से खत्म हो जाएँगे। आपको अगर हम हीरा दें और आपको कहें ये आपके पास हीरा है। आप उस पर क्या करेंगे? आप जौहरी के पास जाकर पूछेंगे कि भई ये हीरा है क्या?" कम से कम इतना तो आप करेंगे। क्या घर में बैठे-बैठे सोचकर हीरे को कोई फेंक देगा? जब रोजमर्रा के जीवन में हम लोग इस तरह से अपना ध्यान लगाते हैं, तब जो हमारे परम की बात है, उसमें ये ध्यान रखना चाहिए कि अगर हमने परम पाया है तो आखिर ये कैसे जाने कि ये परम है या नहीं? और इसमें शंका करने कौन-सी बात है? बहुत-से गुरु लोग हैं., आपसे कहेंगे कि होता है, कुण्डलिनी में, वैसा होता है, ये होता है। ये सब चीजें आप बैसे भी कर सकते हैं। माने नाचना कोई मुश्किल काम नहीं, कूदना कोई मुश्किल नहीं, मेंढक जैसे चलना भी कोई मुश्किल नहीं है । और आजकल एक गुरुजी हैं वो उड़ना सिखा रहे हैं। तो लोग अपने foam (फोम) में बैठकर ऐसे उड़ते हैं, सोच रहे हैं कि वो हवा में उड़ रहें हैं । ऐसा सोचना भी मुश्किल नहीं है। घोड़े पर भी लोग कूद करके बैठ जाते हैं। जरा कोशिश करने से आ जाता है वो भी। ये भी कोई मुश्किल नहीं है। वो भी आप कोशिश करें तो कर सकते हैं। और आप गा रहा हो या नाच रहा हो। लेकिन पाया तो नहीं अभी तक। पाना तो कुण्डलिनी के ही जागृति से होता है । उसके बगैर हो नहीं सकता। और कुण्डलिनी सहज ही में जागृत होती है । माने ये कि spontaneous (सहज) है. याने ये living process (जीवन्त प्रक्रिया) है। आपका evolutionary process है (उत्क्रान्ति प्रक्रिया) और आप आज उस evolutionary process के अन्तर्गत ऊपर उठ जाते हैं। आपकी उत्क्रान्ति (evolution) जो है. वो चल रहा है। अभी आप इन्सान एक तार पर भी चल सकते हैं, सरकस में जैसे चलते हैं या आप कुलाबाजी कर सकते हैं। ये भी आपने करते देखा है और कर सकते हैं। अगर आप कोशिश करें तो सब धन्धे आप कर सकते हैं। इन्सान से आप अतिमानव हो जाते हैं। जब इस तरह से बात आपने समझ ली कि जो काम हम ऐसे कर सकते हैं वो परमात्मा क्यों करेंगे, वो तो हम कर ही सकते हैं। वो तो अब वो काम करेंगे कि अ अंक :1 चैतन्य लहरी & 2-2006 30 Prophesy ( भविष्यवाणी) की थी कि ये काम है। विशेष कर ज्ञानेश्वरजी ने साफ कहा था कि महायोग होने वाला है। विलियम ब्लेक नाम के एक बड़े भारी कवि ने बहुत सहजयोग के बारें में बताया है, जो ये घटना घटने वाली है। जो हम नहीं कर सकते। तब फिर इसमें सोचने की बात क्या है? हाथ में ठण्डी - ठण्डी हवा आनी शुरु हो गयी इसके बारे में भी सब शास्त्रों में लिखा हुआ है। कोई नयी बात नहीं है। चैतन्य की लहरियाँ, ये ब्रह्म की शक्ति है। लेकिन इस पर आप सोच करके क्या करने वाले हैं? आप सोच करके भी कौन-सा प्रकाश डालने वाले हैं? क्योंकि आपकी बुद्धि तो सीमित है, और मैं तो असीम की बात कर रही हूँ! तो, जो चीज घटने वाली है होने वाली है उस के बारे में उन्होंने कहा था। और आज जब वो घट गई तो उसके बारे में अगर हम बता रहे हैं तो बहुत से लोग ये भी सोचते हैं कि ये तो कहीं लिखा नहीं गया किताबों में। ये क्योंकि समझ लीजिये कोई कहे कि आप चन्द्रमा पर गये किसी ने लिखा था कि चन्द्रमा पे कैसे बहुत गलत धारणा है। अगर आप समझ लीजिए यहाँ से, चन्द्रमा में चले गए तो बहाँ जाकर के देखना ही है न कि आप सोचकर बैठे कि भई चन्द्रमा पर जाएँ तो ऐसा होना चाहिए, वैसा होना चाहिए। उससे फायदा क्या? आप जाइए और देखिए। जो चीज़ है उसका जाया जाएगा? जिस वक्त आप उसे करेंगे तभी तो आप लिखेंगे। इसलिए इस तरह की धारणायें लेकर के मनुष्य अपने को रोक लेता है। साक्षात् करना चाहिए। पर जो महत्त्वपूर्ण, जो बड़ा है, वो ये है, अब, जब आपके अन्दर में ये शुरु हो गया, तब दूसरा बड़ा भारी नियम सहजयोग का है। उसको समझना चाहिए कि आज का सहजयोग पहला नियम ये कि इसके बारे में आप सोच नहीं सकते ये सोच विचार के परे हैं, निर्विचार में है, असीम की बात है। दूसरी जो बात इसकी बहुत ही महत्त्व पूर्ण है कि "सहजयोग की क्रिया आज महायोग बन गई हैं।" पहले एक ही दो फूल आते थे पेड़ पर। एक ही फूल। वो ज़माना और था। हुई। जब यह हैं ही नहीं, तो कैसे समझेंगे? लेकिन उस ज़माने में इतना ज्यादा कोई ज्ञान देता भी पार होने पर ये पता होता है कि एक ही माँ ने नहीं था। कहीं किताबों में भी लिखा नहीं है, किसी हमको जन्म दिया है । अब जैसे लोग पार हैं, अगर को कोई बताता भी नहीं था । समझ लीजिए हम अपने हाथ में फूँकें तो आपको भी फूँक कबीरदास जी ने भी कहा है तो उन्होंने सिर्फ आएगी। अगर हम कोई सुगन्ध, ये लोग scent अपना ही वर्णन किया है कि भई मेरे 'शून्य शिखर (इत्र) वगैरह लगायें तो आपको सुगन्ध आएगी चाहे पर अनहत् बाजे रे और मेरे ऐसे-ऐसे ईड़ा पिंगला सुषुम्ना नाड़ी' वरगैरा है। पर इतना गहराई से पूरी तरह से हमसे connected (जुड़े) हों, तो। आधे बताया नहीं क्योंकि उन्होंने ये काम किया नहीं था. उसके बारे में निवेदन किया था, उसके बारे में एक-दो आदमियों का नहीं है। यह सामूहिक चेतना का कार्य है इसको लोग समझ नहीं पाते। यह point (बात) क्या है, इसको समझना चाहिए। जैसे हम कहें आप भाई-बहन हैं और आप एक-दूसरे को भाई-बहन समझें यह तो ऊपरी बात कहनी आप यहाँ हों चाहे इग्लैण्ड में हों पर सहृजयोग में अधूरे लोगों को नहीं होता लोग कहते हैं माँ suddenly ( अचानक) कभी एकदम से खुशबू आने अंक 2-2006 31 :। & चैतन्य लहरी शुरू - शुरु में ऐसा लगेगा कि एक उँगली जरा प्रत्यंग हैं। ये जब तक आप समझ नहीं लेंगे पूरी हरकत कर रही है, पता नहीं क्या? आप उनसे पूछिये कि आपको बहुत जुकाम होता है, आपको कोई शिकायत है. ऐसी तकलीफ है? कहने लगे हाँ भई क्या बतायें, तुमको कैसे पता?' कहने लगे मेरी ये उँगली पता नहीं क्यों काट सा रही थी? ये लग जाती है। क्योंकि सब एक ही विराट के अंग 1 तरह से, तब तक आपको मुश्किल रहेगी । अब बहुत-से लोगों को मैं देखती हूँ कि "मैं घर में ले जाऊँगा माँ और वहाँ मैं करूँगा। बहुत-से लोग तो यहाँ आने पर भी सोचते हैं कि हम बड़े भारी अफ्सर हैं। हम यहाँ कैसे? बहुत-से लोग यहाँ इसलिए नहीं आते हैं कि हम बड़े भारी subjective knowledge 6, subjective H 3IT का knowledge (ज्ञान)। Subjective ऐसा अगर शब्द इस्तेमाल करें तो इसका मतलब होता है कि दिमागी जमा-खर्च मतलब एक आदमी है-साहब मैं इसे जानता हूँ, मैं उसे जानता हूँ। अफ़सर है। पर जहाँ लोग mesmerise (सम्मोहित) करते हैं, और गन्दे काम करते हैं. वहां सब मोटरें लेकर पहुँच जाते हैं। तब कोई शर्म नहीं। घोड़े का नम्बर पूछना हो तो वहाँ पहुँच जायेंगे सब, मोटरें लेकर। लेकिन ऐसी जगह जहाँ परम का कार्य हो रहा है, वहाँ मैं देखती हूँ कि लोगों को शर्म आती हैं आते हुए। या तो कुछ लोग डरते भी है। ये Absolute Knowledge (पूर्ण ज्ञान) है, ये 3 Absolute (qui) absolute knowledge है जो एक आदमी एक बात कहेगा वही दस आदमी कहेंगे अगर वो सहजयोगी हैं. तो। दस छोटे बच्चे अगर Realised Souis है-ये experi- ment लोग कर चुके हैं-उनकी आँख आप बाँध कर रखिये और किसी आदमी को सामने बैठा दीजिये बताइये, कहने लगे इनके वाइब्रेशन्स, डरने की कोई बात नहीं। अपनी माँ है। हम तो सबकी माया जानते हैं, किसी भी तरह का मामला हो, हम ठीक कर सकते हैं । तो डरने की कौन सी बात है? इसलिए माँ का स्वरूप है न कहाँ पकड़ आ रही है। सबके सब उसके लिए बतायेंगे ये उँगली में पकड़ आ रही है। 'सब' । हमारा। उसको ऐसा समझना चाहिए कि प्रेम का स्वरूप है, और उसमें डरने की कोई बात नहीं है। 1 इसमें जलन हो रहा है। माने ये कि उसके नाभि चक्र की तकलीफ़ है या उसका लीवर खराब है-वो थोड़ा सीखना पड़ता है। आप यहाँ बैठे हैं किसी भी आदमी के बारे में, कहीं पर है, उसके बारे में भी जान सकते हैं कि इस आदमी को क्या शिकायत है। बैठे-बैठे। ये सामूहिक चेतना में आप जानते हैं आप कोई मृत आदमी के लिए भी जान सकते हैं। कोई गुरु वो सच्चे थे कि झूठे थे, जान ये सामूहिक कार्य को मनुष्य समझ नहीं पाता है, कभी भी। जब तक वो पार नहीं होता। यानि ये कि जब दूसरा आदमी है वो, कोई रह ही नहीं जाता है। 'दूसरा है कौन? सकते हैं। आप कहीं पर जायें और कहें कि यह ये इस तरह से महसूस होता है कि आपके हाथ से ठण्डी -ठण्डी हवा तो चलनी शुरु हुई, और आप जैसे ही दूसरे आदमी के पास में जायेंगे तो जागरूक स्थान है, आप जान सकते हैं कि जागृत है या नहीं। जागृत होगा तो उसमें वाइब्रेशन आयेंगे, जागृत नहीं होगा तो नहीं आयेंगे। अंक :। & 2 - 2006 32 चैतन्य लहरी तो एक आदमी ज्यादा नहीं बढ़ सकता और एक आदमी कम नहीं हो सकता। जो जो सच्ची बात है, सत्य है बह आत्मा बताता है। इसलिए उसे सत्य-स्वरूप' कहते हैं। और क्योंकि जब आत्मा हमारे अन्दर जागृत हो कभी-कभी सहजयोगियों में भी ये धारणा आ जाती है कि हम सहजयोग में बड़े भारी बन गए। बहुतों में ये आती है। हम तो बड़े ऊँचे आदमी ये चीज़ भी मनुष्य के समझ में नहीं आती। माने हैं जब ऐसी भावना आ जाए तो सोचना चाहिए कि बहुत ही पतन की ओर हम जा रहे हैं। जिसने ये सोच लिया कि हम ऊँचे हो गये, सोच ले कि हम जाता है, तो हमारा जो चित्त है माने हमारा atten- tion है, वो जहाँ जाता है, वो काम करता है। अब कि यहाँ बैठे-बैठे किसी सहजयोगी का चित्त अगर गया कहीं पर, तो चो आदमी ठीक हो सकता है। पतन की ओर जा रहे हैं। क्योंकि जैसे आदमी सच 1 हमारे एक रिश्तेदार हैं उनकी माँ बहुत बीमार रहती थीं बिचारी। और बहुत ही बूढ़ी हो गयी है। तो वो हम से बताते है कि 'अब हम आप से नहीं बतायेंगे क्योंकि बहुत बूढ़ी हो गयी हैं, अब ही में ऊँचा होता है, वैसे-वैसे वो नम्र ही होता जाता है। उसकी आवाज बदलती जाती है। उसका स्वभाव बदलता जाता है। उसमें बहुत ही नम्रता, उसमें प्रेम बहते रहता है। ये पहचान है। अगर कोई सहजयोगी सहजयोग में आने के बाद भी बुलन्द (बड़प्पन) पर आ जाए और कहे 'साहब तुम ये क्या हो, वो क्या तो उसको खुद सोचना चाहिए कि मैं गिरता जा रहा हूँ । लेकिन इसका दूसरा भी अर्थ नहीं लगाना चाहिए, बहुत-से लोगों को ये है। मैंने देखा। एक साहब थे. अमरीका में और उन्होंने उन्हें छुट्टी कराइये आप। जब भी हम बताते हैं वह ठीक हो जाती हैं। ये हमारा अनुभव है कि जब भी हम बताते है ठीक हो जाते हैं। अस्सी साल की हो गयी हैं अब भी फिर वैसे ही हाल हो जाता है। फिर बीमार पड़ जाती हैं फिर आपको बताते हैं, वो ठीक हो जाती हैं। मतलब चित्त जो है, वो जागरूक हो जाता है। जहाँ भी आपका चित्त जाएगा वो कार्यान्वित होता है। जहाँ भी आप चित्त डालें । सहजयोग नाम से केन्द्र चलाए। जब आए तो सबने बताया, माँ ये तो पता नहीं क्या तमाशा है, हम लोग इस पर हाथ रखते हैं और चक्कर खाकर गिर जाते हैं। तो बड़े चक्कर वाला आदमी है, मैंने रही हूँ। फिर मैंने उससे लेकिन इसके लिये पहले अपनी आत्मा में स्थिरता आनी चाहिए। कनेक्शन (योग) पूरा आना चाहिए। समझ लीजिए इसका कनेक्शन ठीक न हो तो मैं थोड़ी देर बात करूँगी, सुनाई देगा, बाकी बात गुल हो जाएगी। यही बात है. इस वजह से आप वाइब्रेशन भी खो देते हैं, आपका जरा कनेक्शन loose (ढीला) हो गया। पहले अपना कनेक्शन ठीक करना पड़ेगा। कहा, 'अच्छा, मैं तो समझ कहा, 'अच्छा जरा अपना Brouchure (पुस्तिका) दिखाओगे? Brouchure में उसने लिखा था कि Vibrations-for ordinary vibration 100 dollars & for 1 special vibrations 250 dollars ( साधारण वाइब्रेशन : सौ डॉलर, विशेष वाइब्रेशन २५० डॉलर) मैंने कहा गये काम से ये तो मैंने उनसे कहा कि ये क्या बदतमीजी है आपकी? आपने कितना पैसा दिया था मुझे, कितने Dolars (डॉलर) दिये थे आपने वाइब्रेशन लेने के लिए जो तुमने ऐसा लिखा, तो कहने लगे कि 'माँ, ऐसा है कि मैं पैसे कैसे लेकिन सामूहिकता की और भी गहनता अपने को समझनी चाहिए कि सारा एक ही है हम है सब अंग-प्नंग दैं। और ननत नम अंग अंक :। & 2 - 2006 33 चैतन्य लहरी कमाऊँ फिर? मैं खाऊँ क्या?' मैं ने कहा, भूखे कैसे आ गया? दूसरी side (ओर) अमी एक साहब मरो। क्या तुम सहजयोग से पहले कुछ करते थे? कहने लगे, हाँ मैं स्कूल में पढ़ाता था मैंने कहा रहिए. आप बैवकूफ आदमी हैं, बहुत बकवास कर में पढ़ाओ जो करते थे सो करो। लेकिन रहे हैं बेकार में। कहने लगे मैंने ये मिले। मुझसे बकवास करने लगे. मैंने कहा चुप पुराण पढ़ा, मैने स्कूल तुम सहजयोग को बेच नहीं सकते हो। तुम वाइब्रेशन वो पुराण पढ़ा। मैंने कहा आपने कुछ नहीं पढ़ा बेच नहीं सकते। कहने लगा मेरा Centre (केन्द्र) बेकार बातें कर रहे हैं। आपको कुछ पता नहीं है। है, उसमें लोग आते हैं खाना खाते हैं। मैंने कहा ठीक है, खाने का पैसा लो। वाइब्रेशन का क्यों चार पता नहीं क्या-क्या होता है। तो मैंने कहा कि लिखा? लिखो, खाने का इतना पैसा, कमरे का इतना पैसा। उसमें भी आप Profit (लाभ) नहीं बना सकते। ठीक है, जितना लगा उतना खर्चा लो। उसके दम पर तुम अपने महल नहीं खड़े कर सकते। और वाइब्रेशन उसके ऐसे थे कि जैसे जल कुण्डलिनी जागृत है तो आपको गुस्सा नहीं आता। अभी पता हो कि नम्बर दो को चलाते हैं कि नम्बर देखिये आप बेवकूफी की बातें मत करियें दूसरे जो है उनको समझने दीजिये । आप बीच में बकवास मत करिये, आप चुप रहिए। तो कहने लगे देखिये आपको गुस्सा आ गया। आप की अंगर रहा है। बहुत नाराज़ हो गये मेरे साथ और नाराज़ मैंने कहा मेरा गुस्सा मत पूछो तुम। बड़ा ज़बरदस्त होकर के वो चले गये उन्होंने कहा ये तो हो ही नहीं सकता ऐसा। लेकिन सबसे बड़ी बात उस वक्त ये हुई कि उन्होंने बहुत बकना शुरु कर दिया। जब बहुत बकना शुरु किया तो एक साहब हमारे सहजयोगी हैं, उठकर खड़े हो कर कहने लगे, 'ज्यादा बका तो ऊपर से नीचे फेंक देंगे तो हैं। आप वीर श्री पूर्ण, आप तेजस्वी लोग हो जाते कहने लगे 'वाह रे वाह, देखिये ये सहजयोगी हुए हैं, आपके हाथ में तो तलवारें देने की बात है ये हैं। इनमें कोई नम्रता नहीं है। मैंने कहा 'खबरदार जो सहजयोगियों को कुछ कहा या मुझे कुछ कहा होता है जब आए तो। तो फिर जरा सहमे महाशय। लेकिन बात ये है कि इस तरह की भी धारणा लोग कर लेते हैं । आप कोई बिलबिले आदमी नहीं हो जाते | थोड़े कि आप उस वक्त में जितना भी कोई चॉटा मारे आप खायेंगे। वो Christ (येसु) ने कहा कि माफ कर दो। बो दूसरी बात थी, उसका अर्थ ही दूसरा था। क्योंकि उस वक्त लोगों का ये ही हाल था कि एक ही चॉटा कोई नहीं खा सकता था। अब; मैंने सुन लिया बहुत। मैंने कहा वे दिन गये कि सब साधु सन्तों को तुमने सताया था। अगर किसी ने भी एक शब्द कहा है, तो देख लेना उनका ठीक नहीं होगा बहुत लोगों को ये है कि कोई लेकिन पार होने के बाद तत्सण आपमें शक्ति आ अगर साधु सन्त है उसको जूते मारो, तो भी जाती साधु सन्त को कहना चाहिए और दस मारो। ये कुछ नहीं होने वाला। आप अगर एक जूता मारियेगा तो हज़ार आप खाइयेगा। तब वो घबड़ा करके चाहिए कि एक आदमी उठकर के कोई कहे कि मैं भागे वहाँ से। | है। तत्क्षण । तो सामूहिकता को इस तरह से समझना विशेष कर रहा हूँ, एक आदमी सोचे कि मुझे करने का है। एक आदमी सोच ले कि मैं माँ के बहुत नजदीक हूँ, तो इतना वो दूर चला जाएगा क्योंकि ये भी बहुत लोगों में है कि 'आपको गुस्सा चैतन्य लहरी अंक :। & 2 - 2006 1 & 34 किया कि अगर हम लोग सब मिलकर इस जाल मन्थन हो रहा है। बड़े जोर का मन्थन हो रहा है । शायद आप इसको महसूस कर रहे हैं कि नहीं कर रहे, पता नहीं। जब हम दही को मथते हैं, तो उस का सब मक्खन ऊपर आ जाता है। फिर हम थोड़ा-सा मक्खन उसमें डाल देते हैं यही समझ लीजिए Incamation (अवतार) है, समझ लीजिए, यही समझ लीजिये कि परमात्मा की कृपा है। और उस मक्खन से बाकी सारा लिपट जाता को उठा लें, तो जाल हमारे साथ उठ जायेगा फिर देंगे बाद में, फड़वा देंगे. जाकर इस को किसी तरह से निकाल देंगे। तो कहा, हाँ ठीक है। सब मिलकर के एक, दो, तीन कहकर के उरठे। और सबके सब उठे और जाल को तोड़ दिया उन्होंने। तुडवा वही चीज़ सहजयोग है। सहजयोग की सामूहिकता लोग समझ नहीं पाते हैं, इसलिये बहुत गड़बड़ होता है। माने, माँ, मैं घर में बैठ करके ध्यान करता हूँ। रोज़ पूजा करता हूँ। मेरे वाइब्रेश बन्द हो गये होंगे ही आपको सामूहिकता में आना पडेगा। आपको Centre (केन्द्र) पर आना पड़ेगा। एक दिन हफ्ते में कम से कम सेंटर में आ करके आपको देखना पड़ेगा कि आपके वाइब्रेशन ठीक हैं या नहीं। दूसरों पर मेहनत करनी पड़ेगी। आप दीप इसलिए बनाये गये हैं कि आपको दूसरों को देना होगा इसलिए नहीं बनाए गए कि आप अपने ही घर बनाते रहिये। फिर वही दीप हो है, और सब साथ ही साथ एक ही जैसा चलता है। अब उसमें से कोई सोचे मैं अलग हूँ। एक-आध, दो-चार मक्खन के कण इधर-उधर रह जाते हैं तो लोग फेंक देते है। उसके पीछे में कौन दौडने चला है? 'सब एक हैं और एक ही दशा में हैं"। कोई ये न सोच ले कि मैं ऊँची दशा में हूँ । मैं नीची दशा में हूँ। ऊँची दशा में है. कभी नहीं सोचना। इस तरह से सोचने से बड़ा नुक्सान हो जाता है। यानि आप सोच लीजिये कि जब हम एक ही अंग हैं। अगर एक उँगली सोच ले कि मैं बड़ी हो जाऊँ, नाक मेरी सोच ले कि मैं बड़ी हो जाऊँ। कैसी दिखेगी शक्ल? ये तो malignancy (दोष) है। यही सकता है बिल्कुल बुझ जाएगा। ये दीप सामूहिकता में ही जल सकता है, नहीं तो जल नहीं सकता। ये महायोग का विशेष कारण है कि हम अपने को अलग न समझे। आएँ नम्रतापूर्वक, आप ध्यान में आएँ हो सकता है कि सेन्टर में एक आध आदमी आपसे कहे भी कि भई, ये छोड़ दो, ये नहीं करो तो बुरा नहीं मानना है क्योंकि उन्होंने अनुभव किया है। उन्होंने जाना है कि ये बात गलत है, इसको छोड़ना चाहिए, इसे निकालना चाहिए और जो कुछ भी सेन्टर में कहा जाये उसे करें क्यों कि सेण्टर पर हमारा ध्यान रहता है। तो cancer होता है। cancer में एक अपने को बड़ा समझकर के बाकी cells को खाने लग जाता है। ये हो गया कैंसर। ऐसा जो इन्सान होता है वो अपने को unique (अनोखा) बनाना चाहता है कि सब मेरे ही पास हो जाए. मैं कोई तो भी विशेष हो जाऊँ। मेरा ही कुछ विशेष हो जाये, वो आदमी cancerous हो गया society (समाज) के लिये। सहजयोग की ऐसी स्थिति है, जैसे कि एक मैं कहानी बताती हूँ। कि जैसे एक बहुत -सी चिड़ियाँ थीं और उनको एक जाल में फँसा दिया गया। तो चिड़ियों ने आपस में ये सलाह मशवरा कृष्ण ने भी कहा है कि जहाँ दस लोग हमारे नाम पर बैठते हैं वहीं हम रहते हैं न कि कहीं अंक : । & 2 -2006 चैतन्य लहरी 35 एक बैठा हुआ वहाँ जंगल में और कृष्ण-कृष्ण कह रहा है। उनको time (समय) नहीं है। कबीर ने कहा कि "पाँचों पच्चीसों पकड़ बुलाऊँ मतलब उनकी भाषा में इतनी Authority ( अधिकार) भी देखिये । कितने अधिकार से बातें करते थे! कोई गिला नहीं था उनमें। वो कहते हैं 'पाँचों पच्चीसों पकड़ बुलाऊँ, एक ही डोर उड़ाऊँ। ये कबीर जैसे लोग बोल सकते हैं। और आप भी कह सकते हैं इसको बाद में। जब आप पार हो जायें तो आप भी देखेंगे कि जब तक पाँचों पच्चीसों नहीं आयेंगे तब एक हमारे शिष्य थे प्रोफेसर साहब राहुरी में। बो जरा अपने को अफ़लातून समझते थे, बहुत ज्यादा। एक बार उन्होंने मुझे बताना शुरु किया कि ये साहब जो हैं ये सहजयोग तों अच्छा करते हैं. बहुतों को पार तो किया लेकिन ज़रा गुस्सा इनको ज्यादा आता है। और इनकी बीवी से इनकी पटती नहीं है दुनिया भर की मुझे शिकायतें करने लग गये तो भी मैं चुप थी। मैंने कुछ नहीं कहा। फिर उन्होंने एक ग्रुप बनाया आपस में, और कहने लगे हम लोग अलग से काम करेंगे। तो भी मैं चुप थी। तीसरे मर्तबा जब गये तो देखा कि वो कह रहे थे कि कुछ हर्ज नहीं थोड़ा-सा तम्बाकू भी खा लें तो कोई बात नहीं, मैं तो खाता हूँ । माता जी को तो 1 तक सहजयोग मुकम्मल (पूर्ण) नहीं होता है। बहुत-से लोग आते हैं, पार हो जाते हैं। उसके बाद जब मैं आती हैं तभी आते हैं। उनकी कुछ पता ही नहीं है। मैं तो खाता हूँ। कोई हर्ज नहीं। तो वो सब तम्बाकू खाने वालों ने एक ग्रुप बना लिया। माताजी के. मतलब, हैं तो सहजयोगी लेकिन तम्बाकू खाने वाले सहजयोगी, शराब पीने वाले सहजयोगी, रिश्वत लेने वाले सहजयोगी, झूठ बोलने वाले सहजयोगी। ऐसे ग्रुप बन गये तो मैंने उनसे कहा-वहाँ पर सिर्फ़ तम्बाकू खाने वालों का था, तम्बाकू बड़ी मुश्किल से छुटती है, बहुत मुश्किल से। तो, उसके बाद जनाबेआली से मैंने फरमाया कि 'देखिये, जरा आप सम्भल के रहिये। बहुत ज्यादतियाँ आपने करलीं हैं। जब जाता है, मैंने तभी कहा, तब malignancy (विष) बहुत जोर करती है। अगर एक ही cell हो तो कोई बात नहीं। लेकिन अगर दस cell हो गये और सब हूँ। हालत कोई ठीक नहीं रहती सहजयोग में वो बढ़ते नहीं, वृद्धिगत नहीं होते। आप पेड़ों के बारे में भी ये अनुभव करके देखें, कि अगर कुछ पेड़ मरगिल्ले हो जाएँ तो उनको और पेड़ों के साथ आप लगा दीजिए, वो पनप जाते हैं। एक दूसरे को शक्ति देते हैं। मानो जैसे कोई एक दूसरे को देखकर के बढ़ते हैं। और यही सामूहिकता ही सर्व राष्ट्रों में और सर्व देशों में फैलने वाली है। और उस दिन आप जानियेगा कि आप चाहे यहाँ रहें, चाहे इंग्लैंड में, चाहे अमेरिका में, या चाहे किसी भी ये ग्रुप बन मुसलमान देशों में या चीनी देशों में, कहीं भी रहें आप सब एक हैं। यही शुरुआत हो गई है, और सहजयोग एक बड़ी संक्रान्ति है। 'सं' माने अच्छी और 'क्रान्ति' माने आप जानते हैं। ये एक कडी भारी evolutionary क्रान्ति है और जो पवित्र क्रान्ति है जो प्रेम से होती है, जो अन्दर से होती है। उसमें सबसे पहले जानना चाहिये कि हम उस विराट् के अंग-प्रत्यंग हैं। हम अलग नहीं। और आप हैरान होइयेगा! इसके इतने फायदे होते हैं! malignant हो गये तो गया आदमी काम से।" उसके बाद जब मैं मोटर से आ रही थी तो मेंने रास्ते में जो वहाँ के संचालक थे उनसे कहा कि इनपर नज़र रखिये। मुझे डर लगता है कि ये कहीं गड़बड़ में न फँस जाएँ और आपको आश्चर्य होगा कि उनको ब्लड कैंसर हो गया! चैतन्य लहरी अक : 1 & 2 - 2006 36 लेकिन चाहेंगे कि आप खुश न हों। देखिए आपको आश्चर्य होगा कि अगर कोई मर जाता है तो हज़ारों लोग पहुँच जाते हैं रोने के लिए । खुश होते होंगे, शायद घर पर आफत आयी, मन में और जब कुछ प्रमोशन हो जाये, कुछ अच्छाई हो जाये, तो कहने लगे-पता है इसका कैसे प्रमोशन हो गया है। इसने बड़ी लल्लोचप्पी की होगी। नहीं होते। अब जब Blood Cancer हो गया तो उनकी हालत खराब हो गयी। तो वो साहब बम्बई पहुँचे। और बम्बई में सब सहजयोगियों ने अपनी जान लगा दी। बिल्कुल जान लगा दी उनके लिये जितने भी डॉक्टर थे सहजयोगी और जो लोग थे. उन्होंने hospital (अस्पताल) में उनको भर्ती करना, कभी खुश उन का सब diagnosis (जॉँच पड़ताल) करना, उन के लिए दौड़ना, घूमना सब शुरु। अब जो रिश्तेदार उनके चिपके थे वो तो सब छूट गए, वो कोई उनको जानने वाला नहीं। उनके पास तो न इतना हुए लेकिन सहजयोग दूसरी चीज़ हैं। सहजयोग में लोग खुश होते हैं, जब देखते हैं 'अरे ये सहजयोगी first (प्रथम) आ गया। इस सहजयोगी के ऐसे हो गया सहजयोगी के घर में किसी के रुपया था न पैसा था सब कुछ सहजयोगियों ने तैयार करके-मुझे कभी जो लोग कभी भी ट्रंक-कॉल नहीं करते थे वो लन्दन में ट्रंककॉल पर ट्रंककॉल 'माँ वो हमारे एक सहजयोगी हैं. उनको ब्लड कैंसर कैसे हो गया? आप ठीक कर दीजिये। मैंने कहा इन्होंने कभी न चिट्ठी लिखी न कुछ किया। आज ट्रंकाकॉल लन्दन करना कोई आसान चीज़ नहीं। और जब देखो तब ट्रंककॉल, 'माँ इनको ठीक करदो, माँ वो हमारे..। माने जैसे इन्हीं के प्राण निकले जा रहे हैं, सबके। बहरहाल वो अब ठीक हो गये, बिल्कुल ठीक हो गये डॉक्टर ने कह दिया कि दस दिन में खत्म हो जायेंगे लेकिन अब बिल्कुल ठीक हो गये। 'अब वो समझ गये बात । उनके सगे कौन हैं, वह अब पहचान गये हैं । उससे पहले नहीं। उन लोगों के पीछे में दौड़ते थे, दूसरे रिश्तेदारों के पीछे में उनको खाना खिलाना, पिलाना। उनसे कभी सहजयोग की बात नहीं करना। और जब सहजयोग में आना तो तम्बाकू बच्चा हो गया तो मार तूफान हो जाता है। अभी एक साहब की शादी हुई राहुरी में वो स्विटजरलैण्ड के थे वहाँ आकर उन्होंने शादी करी। कहने लगे मेरे सगे भाई-बहन तो यहाँ रहते है। मुझे क्या करना है स्विटज़रलैण्ड में शादी कर के वो स्विटजरलैण्ड से आये, राहुरी-एक गाँव में वहाँ आकर के उन्होंने शादी करी, अपनी बीवी को भी लाये, और वहाँ उन्होंने शादी करायी । वहीं घोड़े पर गये और सब कुछ किया उन्होंने। कहने लगे, भइया, मेरा वहाँ कोई नहीं रहता, मेरे सगे-सोएरे सब यहाँ पर हैं। और ऐसे आनन्द से सबने उनकी शादी मनाई। और अब उसको बच्चा होने वाला हैं | तो सब सहजयोगी ऐसे खुश हो गये, आपस में पेड़े बाँटने लग गये और उनके जो रिश्तेदार थे, उनको समझ में ही नहीं आया कि ये कैसे सब हो गया! अब आपके रिश्तेदार सहजयोगी हो जाते हैं। आपके मित्र हो जाते हैं । आपके 'अपने हो जाते हैं, वालों का एक ग्रुप बना लेना। लेकिन ऐसा आपका सगा-सोएरा कहीं दुनिया में नहीं मिलेगा ज्यादातर सगे ऐसे होते हैं कि आपकी खुशियों पर पानी डालते हैं और कहते हैं कि-ऊपर से दिखायेंगे आपके बड़े दोस्त हैं 'आत्मज'| आत्मज' शब्द बहुत सुन्दर है। शायद अंक चैतन्य लहरी 2-2006 37 टिकता नहीं। इसलिए उसे चिपक कर रहना चाहिये। इसके जो नियम हैं, उसको समझना चाहिए, उसको जानना चाहिये। दूसरों से पूछना चाहिए। उसमें बुरा मानने की कोई बात नहीं। जो कभी इस का मतलब किसी ने नहीं सोचा 'आत्मज' जो आत्मा से पैदा हुए हैं, वो आत्मज होते हैं। कहा जाता है कोई बहुत नजदीकी आदमी को 'ये मेरे आत्मज हैं। जिस का आत्मा से सम्बन्ध हो गया कल आए थे वो ज्यादा जान गये। आज आप आये हैं आप जान जाइये। और जो कल आएँगे वो आप से जानेंगे। इसमें बुरा मानने की और इसकी कोई बात नहीं। पर जब आदमी सहज योग में पहले उसका 'नितान्त' सम्बन्ध होता है मैं और खुद आश्चर्य में पड़ती हूँ कि मेरे जान को लग जाएँगे अगर किसी के इतनी-सी तकलीफ हो जाए-और बार-बार माफी मॉँगेंगे, 'माँ तुम माफ् कर दो। तुम तो माफ कर दो। उस पर तुम कुछ नाराज़ हो गई हो । नहीं तो...। मैंने कहा कि भई माँग रहे हो उसकी माँगना तो हम ही माँग रहें हैं, उसको माफ कर आता है तो वह यही भावना लेकर आता है कि अब हम इसमें आये हैं और ये देखिये, हमें बड़ी शान दिखा रहे हैं। तुम क्यों माफी । 'अब वो भूल रहा है माफी ये दूसरे हो गये इनकी श्रेणी बदल गयी है, ये दूसरे हैं। ये दिखने में आप जैसे ही हैं लेकिन ये दूसरे हो गये हैं। जैसे समझ लीजिये कि आपके college में लड़के पढ़ते हैं। कोई बी.ए. में है, कोई First Year (प्रथम वर्ष) है फिर कोई एम.ए. में है। दो। इतना प्रेम चढ़ता है सब देख-देखकर। इतना मोह लगता है कि 'कितनी मोहब्बत', 'कितना ख्याल । कितनी किसी पर कोई परेशानी आ जाए, पैसे की परेशानी आ जाए, कोई तकलीफ़ हो जाए, तो सबके सब secretly (चुपके से) उसको कर लेते मेरे को पता ही नहीं चलता है। एम.ए. का लड़का Pass (पास) होकर Professor (प्रोफेसर) होकर आ जाता है, तो हम यह थोड़े ही कहते हैं कि कल हमारे ही साथ में पढ़ता था और सब आपस में ऐसे खड़े हो जाते हैं, और सारी दुनिया की दुनिया ऐसे सहजयोगियों की जब खड़ी होगी तब सोचिये क्या होगा? अभी तो हम लोग वैमनस्य, द्वेष और हर तरह के competition आज आ गया बड़ा हमारे ऊपर उसी तरह की चीज़ है - इनकी श्रेणी बदल गयी आप की भी, श्रेणी बदल सकती है। (प्रतियोगिता) और पागल दौड़ Rat race के पीछे में दौड़ रहे हैं। ये सब खत्म हो जाएगा और इतनी कुछ-कुछ लोगों को मैंने देखा है कि सालों से रगड रहे हैं सहजयोग में। कुछ progress ऐ से ही चलते रहते हैं, डावाँडोल-डावॉडोल। कभी गुरुओं के चक्करों में पर जो लोग, सामूहिक नहीं होते वो निकलते घुसे। आज ही एक महाशय आये थे, आये होंगे अभी भी। पार हो गये थे, उसके बाद में वो गये; कोई शंकराचार्य के पास गये, कहीं किसी के पास गये, कहीं कुछ गये बिचारे बिल्कुल पागल हो गये-पागल। मुझे आकर बतलाने लगे कि माँ मेरे अन्दर पिशाच' भर दिये इन्होंने। सबने पिशाच sense of security (सुरक्षा की भावना) हमारे अन्दर आ जाएगी कि सब हमारे भाई बहन हैं। हो ता वो नहीं जाते है, सहजयोग से। ये तो ऐसा है, जैसे कि centrifugal force (अपकेन्द्रीय बल) है वो घूमता है. घूमता है और अगर उसने जरा-सा छोड़ा कि गया वो tangent (गुलेल) से बाहर। वो रहता नहीं, फिर ती ं अंक : 1 & 2 -2006 चैतन्य लहरी 38 साड़ी पहन कर आयी है तो बदल के आ जाएगी। और वो साड़ी वाले भी इतने होशियार होते है बिचारे। वो जानते हैं उनको आदत पड़ी रहती है। पचासों साड़ियाँ दिखायेंगे। वो थकते नहीं बिचारे। मैं कहती हूँ कौन जीव हैं ये भी, पता नहीं। और कभी उनको पता हो गया कि ये साडी मेरे पड़ोस के उसके रिश्तेदार के उसके पास है तो लेंगी नहीं । भरे। आए अभी बिचारे; काफ़ी उनको साफ सूफ किया हमने। पर उससे progress (प्रगति) उनका कम हुआ। अगर उसी वक्त जम जाते तो आज कहाँ से कहाँ होते और बड़ी तकलीफ़ उठाई बिचारों ने। बड़ी परेशानी उठाई। सामूहिकता को आप समझे कि बहुत महत्त्वपूर्ण है। सबसे बड़ा आशीर्वाद सामूहिकता में आता है। और जहाँ इस सामूहिकता को तोड़ने की कोशिश की, यानि लोगों की आदत है, क्लब करने की, कोई न कोई बहाना लेकर के। आप सफेद बाल वाले हैं तो मैं भी सफेद बाल वाला हूँ। चलो, हो गये एक। आप लम्बे आदमी हैं तो हम भी लम्बे आदमी हैं, हो गये क्लब। आप सरकारी नौकर हैं, मैं भी सरकारी नौकर हूँ, चलो हो गए एक। 1 ये variety की sense (विविधता की भावना) सौंदर्य का लक्षण है। इसलिए परमात्मा ने बनाया है उसने सारी सृष्टि सुन्दर से बनायी, कहीं पहाड़ बनाये, कहीं पर नदियाँ बनायी. कहीं इसलिए कि आप लोग उसमें मस्त रहें, मजे में रहें। लेकिन आपने तो इसको ये, बना लिया देश उसको वो देश बना लिया। उसने वो देश बना लिया । कुछ बनाया। और लड़ रहे हैं आपस में। अजीब हालत है। हमारे जैसे अजनबी को तो बड़ा ही आश्चर्य लगता है, सहजयोग में सब छूट जाता है। आप कौन देश के हैं? परमात्मा के देश के। आप भई इसमें लड़ने की कौन सी बात है? और फिर घुटते-घुटते हर एक देश में अपनी-अपनी समस्या, किसके साम्राज्य के हैं? परमात्मा के। परमात्मा ने थोड़ी ऐसा बनाया था कि आप यहाँ के, आप बहाँ के। भई परमात्मा तो हर एक जगह variety अपना-अपना ढंग बनता गया। ( विविधता बनाते ही हैं। ये त्रिगुण के permutation सहजयोग में ये चीज टूट जाती है। आपको देखना चाहिए था कि परदेश के आए हुए लोग and combinations (विविध मिश्रण) के साथ में उन्होंने ये सारा बनाया, और इस लिए कि जैसे variety से खूबसूरती आती है। आप सोचिए कि सबकी एक जैसी ही शक्ल हो जाती तो Bore (नीरस) नहीं हो जाते सब लोग? किस तरह से अपने देहातियों के साथ गले मिल-मिलकर के कूद रहे थे। और वहाँ पर नृत्य सीख रहे थे, कैसे अपने देहाती लोग नृत्य करते हैं। अगर ये पंजाब जाएँगे तो वहाँ जाकर भँगडा करेंगे उनके साथ कूद-कूदकर। देखने लायक चीज़ है। ये भूल गए कि हम किस देश के हैं। फिर कम से कम हिन्दुस्तानी औरतों को इतनी अक्ल है कि साड़ियाँ पहनती हैं अब भी और सब प्रेम-उसका मजा, प्रेम का मजा आता है। आदमी यह नहीं सोचता कि कपड़े क्या पहने हैं, ये अलग-अलग तरह की पहनती हैं। पर आदमी तो बौर करते हैं-उनके कपड़ों से। सब एक जैसे औरतें जो हैं अभी भी अपना maintain किए हैं। कहाँ रह रहा है कि क्या; बस मजे में। ये सब विचार ही नहीं आता है-कौन बड़ा, कौन छोटा, अगर एक औरत ने देखा कि दूसरी मेरे जैसी अंक :। & 2 -2006 39 चैतन्य लहरी नहीं हमारे। और अभी तक हमें, कहीं भी हम लोग जमीन नहीं खरीद पाये, क्योंकि हमने यह कहा था कौन कितनी position में है। कुछ ख्याल नहीं आता। ये सब बाह्म की चीजें है, सनातन नहीं हैं। क्योंकि सनातन को पा लिया है । पर सबसे बड़ी बात आपको याद रखनी चाहिए, हर समय, कि हमें कि हम black-market (काला बाजार) का पैसा नहीं देंगे तो आज तक इस दिल्ली शहर में एक आदमी नहीं मिला जिसने कहा है कि, 'अच्छा माँ सामूहिक होना चाहिए और सामूहिकता में ही सहजयोग के आशीर्वाद हैं । हम आपको ऐसी ज़मीन देंगे जिसमें सीधा- सीधा पैसा हो। एक आदमी नहीं मिला इस दिल्ली शहर में और उस बड़े भारी बम्बई शहर में आपके! ये हालत है। Government (सरकार) से कहा तो वहाँ भी जो नीचे के लोग हैं वो bribe (रिश्वत) लेते हैं । उनको क्या मालूम ये सब चीज़, कि ऐसा ऐसा होता है। लेकिन होता है। और उसके बाद उन्होंने जमीन दी भी, मतलब किसी को bribe तो हमने दी अकेले-अकेले ।indi- vidualistic बिल्कुल नहीं। बिल्कुल भी नहीं । आप खो दीजियेगा सब कुछ। मैंने ऐसे बहुत-से लोग देखे हैं। लोग ज्यादातर जो बीमारी ठीक करने आते हैं, वो ज्यादातर इसी तरह से होते हैं। आये, बीमारी ठीक हो गई; उसके बाद बैठ गये एक साहब आए थे हमारे पास, बहुत चिल्ला-चिल्ला कर 'माँ मेरे ये जल रहा है, मुझे नहीं, तो उन्होंने हमें सब्ज़ी मण्डी के अन्दर हमें बचाओ, बचाओ, बचाओ।' मैंने कहा, 'बैठे रहो अभी थोड़ी देर। उसके बाद जब पहुँची तो पाँच मिनट में ठीक भी हो गए। उसके बाद एक दिन बाज़ार में मुझे मिले-तो मेरा फोटो वोटो रखा हुआ है उसने कभी देखा भी है कि बैलों के साथ क्या अपने मोटर में। कहने लगे मैंने घर में भी फोटो सहजयोगी वहाँ बैठने वाले हैं? बहरहाल अब तो रखा है, मेरे दिल में भी फोटो है । मैंने कहा बेटे क्या बात है, वाइब्रेशन तो हैं नहीं। कहने लगे हाँ नहीं हैं। और अब एक कोई नई बीमारी हो रही के बाद उन्होंने कहा, कि हम इस पर सोचेंगे है। मैंने कहा ये सब फोटो बेकार गए न तुम्हारे इसका अर्थ आप सरकारी नौकर जानते हैं। अभी लिए। तुम सहजयोग करने के लिए केन्द्र पर आओ ।' जगह दी। बताइये अब! सब्जी मण्डी के अन्दर जहाँ बैल बाँधते हैं, वहाँ उन्होंने सहजयोगियों के लिए जगह दी। हमने कहा, 'भई जिसने दी है उस बात को लोग समझ गए हमें बहुत दौड़ना पड़ा, सालों तक। अब दस वर्ष से कोशिश करने वो सोच ही रहे हैं। तो बहरहाल जब भी जगह होगी, जैसे भी जगह, आप उसको देखें वहाँ करें, जो भी अभी सुब्रमन्यम साहब ने अपना घर दिया हुआ है वहीं होता है। और कोई जगह अगर आपको मिल जाये तो ऐसी कोई जगह कर लीजिए । कोई जरूरत नहीं कि आप सोचिये दिल्ली शहर में हमारे पास कोई केन्द्र नहीं। हर तरह के चोरों के पास यहाँ इतने बड़े-बड़े आश्रम बन गये। हमारे पास अभी कोई जगह नहीं, किसी के घर में ही हम कर रहे हैं। कोई बात नहीं। हमारे पास जो धन है, वो सबसे बड़ी चीज़ है। उसके लिये कोई जरूरी नहीं कि अब महल खड़े हों, बड़े Air-conditioned बहुत बड़ी जगह हो । सर्व - साधारण लोग जहाँ आ सकें। इस तरह से सब अपना ही कार्य है। हमारे बच्चों के लिए हम कर रहे हैं। हमारे सारे मानव जाति के लिए हम कर रहे हैं । इसके (वातानुकूलित) आश्रम हों। वह तो कभी होंगे ही अक : 1 & 2 -2006 40 चैतन्य लहरी घुसना पड़ेगा, उसमें रहना पड़ेगा, उन लोगों के साथ बात-चीत करनी पड़ेगी। क्योंकि ये ऐसी कला है कि ये बार-बार माँगने पर मिलती है। कोई-सी भी कला आप जानते हैं, गुरु लोग लिए बहुत बड़ा आडम्बर करने की जरूरत नहीं है। सादगी से ही, सरलता से ही सबको बैठकर करना चाहिए। सहजयोग इतनी आशीर्वाद देने वाली चीज है कि सहजयोग में आए हुए लोग आज बड़े-बड़े मिनिस्टर हो गये हैं। ये भी बात देखिये कितनी आश्चर्य की है! लेकिन मिनिस्टर होने के आपकी हालत खराब कर देते हैं. तब देते हैं। तो आप का भी Testing ( परीक्षण) होता है कि आप कितने योग्य हैं। यह नहीं कि आप आए और आप छुई-मुई के बुधवा बनकर आपने कह दिया कि "साहब वो ऐसे-ऐसे थे। उन्होंनें हमसे बदतमीजी की तो हम भाग आए। कुछ नहीं। सहजयोग में जमना पड़ता है और उसमें आना पड़ता है। हालाँकि कोई आपका अपमान नहीं करता। लेकिन ते बाद वो भूल गए कि वो सहजयोगी हैं। जब मिनिस्ट्री छूटेगी फिर आएँगे जरूर आयेंगे। फिर आप पहचानियेगा कि ये फलाने मिनिस्टर थे. माताजी । अब उनको फुरसत नहीं। 1 फुरसत सहजयोग के लिए जरूर निकालनी पड़ेगी आपको। ये आपका परमकर्त्तव्य है । जो 1. आप बहुत ego (अहकार) होगा तो बात-बात में आपको ऐसा लगेगा जैसे एक साहब आए. मुझे कहने लगे, 'हम तो आए थे आपसे मिलने लेकिन में कहता है 'मेरे पास समय नहीं है कब करूँ, वो सहजयोग नहीं कर सकता। रोज शाम को और रोज सवेरे थोड़ा देर निकालना पडता है। सहजयोग वहाँ एक साहब थे बड़े बदमाश थे। हमने कहा में अनेक नियम हैं। अपने आचार-व्यवहार, बर्ताव, क्या हुआ? कहने लगे कि 'हम दिन में आए थे आपके पास।' मैंने कहा कि 'कितने बजे? ३-३० न रहन-सहन आसन आदि क्या-क्या करने के वरगैरह सबके नियम है । मैं सब नहीं बता सकती। एक बजे' । मैंने कहा उस वक्त तो मैं आराम करती हूँ। तो कहने लगे 'हम ने सोचा माँ का दरबार है, कभी भी आ जाओ। मैंने कहा 'ठीक है, आपके लिए तो माँ का दरबार है. लेकिन आपकी अक्ल साहब ने प्रश्न किया कि 'माताजी आपने कहा था उसके आसन बताओ। तो मैं सब चक्रों के आसन आज नहीं बता सकती। लेकिन इसके मामले में बहुत लोग जानते हैं। कौन-से आसन करने चाहिए. कौन से चक्र पर कौन-सी तकलीफ है। आपको कौन-सी तकलीफ है. वो बता सकते हैं, पता लगा सकते हैं। आपस में आप विचार विमर्श कर सकते का दरबार कहाँ रह गया? जो रात-दिन माँ मेहनत कर रही है क्या उसको थोड़ा आराम नहीं करना चाहिए? अगर उन्होंने कह दिया कि इस वक्त माँ आराम कर रही है, आप नहीं आएँ तो आपको खुद सोचना चाहिए कि बात सही है? लेकिन जब वो उस जगह खड़े होंगे तो क्या करेंगे? इस प्रकार लोग बहुत बार सहजयोग से बेकार में भागते हैं, और इसकी सबसे बड़ी बजह मैं तो ये ही सोचती हू कि अभी वह पात्र नहीं है। हैं और आप Progress (उन्नति) कर सकते हैं। लेकिन आपको एक दूसरे से बात-चीत करनी होगी और कहना होगा कि 'मुझे तकलीफ है। सबमें घुल-मिल जाना चाहिए। अधिकतर लोग क्या है, कि आए वहाँ देखा कि वो साहब थे। वह सब ऐसा कर रहे थे, तो हम वहाँ से भाग खड़े हुए, ऐसे लोगों के लिए सहजयोग नहीं है। आपको औ जो आदमी पात्र होता है घुसता चला हो रहे थोडे दिन नाराज हो रहे है, कुछ जाता है । बैतन्य लहरी अक :। & 2 -2006 41 हैं। चलो घुसते चले जाओ। और गहन उतरता है। जो Soft-line है, वो हमेशा लेती है, जीवन्त चीज। जैसे एक बीज है, जब वो अंकुरित होता है, जब जो बस वो भाता जी उसको ठीक करें। एक साहब बहुत बड़े सहज योगी है और हमारे यहाँ Trustee (ट्रस्टी) रह चुके हैं सालों से Trustee हैं। उनकी बीवी भी। दोनों को बहुत बीमारी थी। ठीक हो गए काफी गहरे उतर चुके सब कुछ हुआ। उनके लड़के का लड़का ऊपर से गिरकर मर sprout करता है, तो उसका root-cap होता है. बड़ा छोटा-सा होता है, इतना-सा। लेकिन बड़ा समझदार, wise, होता है। वो जाकर चट्टानों से नहीं टकराता है। किसी पत्थरों से नहीं टकराता है. पर पत्थर के किनारे पर थोड़ी सी sof (नर्म) जगह मिल जाए. उसमें से घुसता चला जाता है। और जाकर जम जाता है उन पत्थरों पर, इस तरह से जकड़ जाता है कि सारा पेड़ का पेड़ उसी के सहारे खड़ा हो जाता है। यह अक्लमन्दी की बात गया। Normally (सामान्यतः) सहजयोग के लोग accident (दुर्घटना) से मरते नहीं। कभी अभी तक तो हमने सुना नहीं किसी को मरते हुए। और वो इस तरह से मर गया। जवान लड़का था। लेकिन उन्होंने कहा कि ठीक है, ये तो कुछ न कुछ होना था और हो गया। लेकिन accident से तो माँ ने मुझे बहुत बार बचाया है। मैंने इतनी बार अपने लड़के से कहा कि माँ के पास चलो । आया नहीं। है जब इतना-सा एक cell है, उसको इतनी अक्ल है, तो क्या सहजयोगियों को नहीं होनी चाहिए कि किस तरह से हम गहन उतरें चलें? तो मैं क्या उसकी जिम्मेदारी ले सकता हूँ? अंगर वो माँ के पास आता, अपने बच्चे को लेकर आता, तो कभी भी ऐसा नहीं होता उन्होंने यही बात मुझसे कही और इतना उस बच्चे को प्यार करते थे, सब कुछ, लेकिन उन्होंने कहा कि जब बाप ही नहीं आ रहा तो लड़का क्या आएगा? आपके जितने रिश्तेदार हैं, उनका ठेका हमने नहीं लिया कुछ न कुछ बहाना बनाकर सहजयोग से भागने से आपकी प्रगति नहीं होगी आपका ही loss (नुकसान) होगा ये आपको बन्द करनी चाहिए। ये आपके मन का खेल है। इसको आप छोड़िये। ये ego (अहंकार) हैं और कुछ नहीं है। ये बड़ा सूक्ष्म ego है कोई आपके पैर पर नहीं गिरने वाला। यह तो जरूरी है कि सबसे अच्छी तरह बात-चीत की जाए, कहा सब बहाने बाज़ियों हुआ। न आप लीजिए। आप उन से कहिए कि सहजयोग में आप उतरें। सहजयोग को आप पाएँ। और इसकी रिश्तेदारी आप अगर उठा लें तो सारी दुनिया ही आपकी रिश्तेदार है पर यह सोचना कि 'मेरी बहन बीमार रहती है और मेरे फलाने बीमार रहते हैं और इस तरह से जो लोग करते हैं उससे कोई लाभ नहीं होता। ही जाए। पर अगर कोई बिगड़ भी गया उस पर, तो सहजयोग से भागने की क्या जरूरत है अब? जब तक आप कैन्द्र पर नहीं आएँगे तब तक आपका कोई भी काम नहीं बन सकता है। पहले आपको पार हो जाना चाहिए पार हो जाने के बाद आपका अधिकार बनता है उस एक तो सब से बड़ी बात यह है कि बहुत-से लोग यह भी सोचते हैं कि अगर हम सहजयोगी हैं तो हमारे बाप-दादे के दादे के. बहन के बहन के, और भाई के भाई के भाई के, कोई न कोई रिश्तेदार, कहीं अगर उसको कुछ हो जाये तो अधिकार के स्वरूप आप चाहे जो भी माँरगे। आप का पूरा अधिकार है। सर आँखों पर है आप| अगर समझ लीजिए आप इंग्लैण्ड जाएँ और इंग्लैण्ड से अंक : 1&2-2006 42 चैतन्य लहरी माँ के लिए? आपने अपने ही लिए क्या किया? पहले तो सवाल ये पूछना चाहिए कि हमने अपना ही क्या भला किया हुआ है? सहजयोग में हमने ही क्या पाया हुआ है? क्या हमने अपने Vibrations ठीक रखे हैं? या क्या हमने एक आदमी को भी आकर आप कहें कि 'हमें ये चीज चाहिए। अरे रहने दीजिए, उस लन्दन में आपके लोग पैर नहीं ठहरने देंगे, जब तक आपके पास सत्ता न हो, वहाँ जाने की। जब आपके पास सत्ता नहीं है. तब आपका सहजयोग से कोई भी आशीर्वाद माँगना पार कराया है? गलत है। महाराष्ट्र में आप आश्चर्य करेंगे, इतने लोग पार होते हैं कि हजारों की तादाद में। बीमार थे। इन जैसे एक साहब थे, बहुत लोगों ने टेलिफोन किया, ट्रंककॉल किया माँ उनको ठीक करो। वे पार नहीं थे, कुछ तो मैंने कहा 'अच्छा हम कोशिश करते हैं। उनके साहबजादे पार थे कोशिश की, मैंने कहा कि देखो इसको छोड़ दो। अहंकार इतना था कि वो ठीक ही नहीं हुए। तब आने पर वो ठीक हो गए। थोड़े दिन उनकी जिन्दगी चली। लेकिन जब महाराष्ट्र की महत्ता मैं इसलिए नहीं कहना चाहती हूँ कि आप जाकर खुद ही देखिये, मैं तो खुद ही आश्चर्य में हूँ कि इतने हजारों लोग कैसे पार हो जाते हैं? और फिर जमते भी बहुत हैं। यह भी बात उन लोगों में है और इस तरह की बात वहाँ नहीं होती है। अब वहाँ ये नियम बनाया था पहले हमने कि किसी ने अगर ग्यारह आदमियों को पार किया है वो ही मेरे पैर छू सकता है। चहाँ पैर छुने की लोगों को बीमारी है। अगर किसी से कहो कि पैर नहीं छूना, तो बस उसके लिए फिर आफत हो जाती है। छः हजार भी आदमी होंगे तो भी चाहेंगे कि माँ के पैर छुएं । यहाँ किसी से कहो कि पैर छुओ तो वो बिगड़ जाए कि 'क्यों पैर छूए साहब इनके हम? नहीं थे । मरना है तब तो आदमी मरता ही है, वो थोड़े ही न हम रोकने वाले हैं सिर्फ यह है कि सहजयोग से मनुष्य शान्ति को प्राप्त करता है, मरने से पहले और जो चीज़ बहुत आकस्मिक हो जाती है, उससे बच जाता है। इसलिए मैंने कहा कि accident से नहीं मरता है। Suddenly ( अचानक) कोई चीज वो होकर नहीं मरता है। वास्तविक जब मरना है तब मरता है। तो उनको जब मरना था वो मर ही गये बिचारे। वो पार भी नहीं हुए थे और बड़ी मुश्किल से उनको किसी तरह से ठीक किया था वो मर गये तो उनके सब रिश्तेदार कहने लगे कि 'माता जी. इनको बचाया नहीं। मैंने कहा 'उनसे एक सवाल पूछो कि आपने माताजी के लिए क्या किया? पहला सवाल। लेकिन उनको मैंने अगर कहा कि 'आपको पैर छूना है तो आप से कम से कम ग्यारह आदमी होने चाहियें वही लोग छु सकते हैं जिन्होंने ग्यारह आदमी पार किये। तो कुछ लोग खड़े हो गये, कहने लगे 'माँ हमने तो ग्यारह नहीं दस ही किये हैं छू लें पैर? देखिए भोलापन। अब उन्होंने कहा कि 'भई अब इक्कीस बनाओ। कम से कम इक्कीस पार किये हों तो माँ के पैर छू सकते हैं, नहीं तो अधिकार नहीं जमता। और ये काम बन लोग ऐसा हक सहजयोग से लगाने लगते हैं। क्योंकि ये सहज है। वो सोचते हैं कि माँ ने हमारे लिए क्या किया? अब भई आपने क्या किया गया, इक्कीस वाले बहुत निकल आए! इतने निकले. मृaue चैतन्य लहरी अक :। & 2 - 2006 43 कठिनाई है। आप सोचिये। और जो आते भी हैं कि मुझे तो कहना पड़ा भाइयो अब जाने दो, अब नम्बर बढ़ाओ। 51 कर दीजिये, तो भी बहुत निकल आयेंगे वहाँ तो ऐसे-ऐसे लोग है 'दस-दस ज्यादातर दल-बदल और दल बांधने में नम्बर एक। यह शायद हो सकता है कि Politics (राजनीति) का असर हो। चाहे जो भी हो। इतना Politics करते हैं कि जिसकी कोई हद नहीं। हज़ार' पार किये हैं। इसीलिए शायद उसका नाम महाराष्ट्र' रखा है। दस-दस हजार लोग पार करने वाले वहाँ लोग हैं। इसमें Politics नहीं है कुछ नहीं है इसमें सिर्फ अपने को पाना और परमात्मा को पाना और सारे संसार को एक नई सुन्दर, प्रेमपूर्ण क्रान्ति में बदल देना ही एक काम है। बड़ा भारी काम है। बहुत महान् काम है। इसमें हजारों लोग चाहिएँ और अगर आप नहीं करियेगा तो ये भी आप जान और यहाँ खुद ही नहीं जमते हैं, दूसरों को क्या करेंगे। जिसको कहना चाहिए बिल्कुल Frive- lous Temperament (उथली प्रवृत्ति) है। अपने तरफ भी self esteem ( अपना आदर) नहीं है। अपने बारे में भी विचार नहीं है, न दूसरों के बारे। जानते नहीं हैं हम क्या है हम आत्मा स्वरूप हैं, कितनी बड़ी चीज़ हैं! हम कितने शक्तिशाली हैं! इस शक्ति को हमें बढ़ाना चाहिए। अपने बारे में कोई विचार ही नहीं है। एक रौनक लगा ली, बस हो गया। 1 लें कि ये Last Judgement है। Judgement कुण्डलिनी से ही होने वाला है और क्या भगवान आप को तराजू में डाल कर नहीं देखने वाला। कुण्डलिनी को जागृत करके ही आपका Judge- ment होना है। बो Last Judgement जो बताया गया है वह शुरु हो गया है। और जो इसमें से रुक जायेंगे उसके लिए 'कलकी" अवतरण में कि आप जानियेगा कि काट-छाँट होगी। कोई आपको Lecture (भाषण) नहीं देगा, कोई बात नहीं करेगा इससे काम नहीं होता। अपने अन्दर जो है रौनक करनी पड़ती है और सबके साथ में इसको बाँटना पड़ता है। मराठी में एक कवि हो गये हैं उन्होंने कहा है 'माला पाहिजे जातीचे, येरा गवाळयाचे काम नोहे। कहने लगे इसके लिए जिसमें जान हो वो आए। ऐसे-वैसे नन्दी-फन्दी लोगों का ये काम नहीं है येरा गबाळयाचे' माने बेवकूफों का बस एक टुकड़ा इधर, या एक टुकड़ा उधर। यह आप समझ लीजिए, और ये चीज अपने गाँठ में बाँध लें कि अब जितना भी सन्त- ये काम नहीं है । साधुओं ने यहाँ मेहनत की है, जो भी बड़े-बड़े अवतरण यहाँ हो गये, जो भी कार्य परमात्मा के इसलिये आप से मुझे request (अनुरोध) करना है, बताना है, बहुत-बहुत विनती करके, कि आपको जो भी दिया है उसका संजोना बहुत जरूरी है। इस को और बढ़ना बहुत जरूरी है । आप ही देहली के foundation (नीव) के पहले stones (पत्थर) हैं। और आज सात साल से मैं यहाँ मेहनत कर रही हैूँ। दिल्ली में और अभी इन गिन के दो सौ stones भी नहीं जोड़ पायी। ये दरबार के लिए हुआ है, वह सब पूरा हो गया है और आप अब stage (मच) पर है आप stage पर रहना चाहे तो stage पर रहें, या नीचे उतर जायें। यह आपकी जिम्मेदारी है, कि आप ही न रहें लेकिन सबको ऊपर खींचें आप लोग दूसरी तरह के हैं। आपकी श्रेणी और है। आप साधक हैं. और आपको समझ लेना चाहिए कि इसके लिये एकव्रत अंक : । & 2 - 2006 चैतन्य लहरी 44 मंगलमय बनायें, यही मेरी इच्छा है। निश्चय होना चाहिए। Army (सेना) में इसको कहते हैं कि 'बाना' पहन लिया आपने। तभी ये चीज़ कम हो सकती है। और ऐसे वैसे, ऐरे-गैरे इसके बाद मैं मद्रास जा रही हूँ लेकिन उसके बाद आऊँगी। और उसके बाद भी मेरा प्रोग्राम दिल्ली में रहेगा तीन-चार दिन। आप लोग सब वहाँ आइये, जहाँ भी प्रोग्राम होता है। जहाँ-जहाँ सहजयोगी आते हैं वहाँ-वहाँ कार्य ज्यादा होता है। सब लोग वहाँ आइये। ये लोग तो आपकी भाषा भी नहीं समझते हैं और जहाँ-जहाँ मैं गई गांव वगैरा में वहाँ तो हिन्दी या मराठी भाषा बोलती रही। लेकिन ये लोग सब लोग वहाँ आते रहे और नत्थू खैरों से यह काम नहीं हो सकता। आप ऐरे-गैरे, नत्थू- अभी आपने अपने को पहचाना नहीं। उसे जान लेने पर आश्चर्य होगा कि क्या यह शक्ति, प्रचण्ड शक्ति, यह ब्रह्म शक्ति माँ ने हमें दी है। और जैसे ही शक्ति बहने लग जाती है, आदमी सोचता है कि "मैं भी इस काबिल हो जाऊँ। जब इस प्याले से ये चीज़ छलक रही है तो ये प्याला भी इस योग्य हो जायें कि इस महफिल में आ सके। इस तरह से आदमी अपने आप ही अपना व्यवहार अपना -खैरे नहीं हैं, मैं जानती हूँ। लेकिन 1. हर तरह की आफत, आप जानते हैं इन लोगों को तो गाँव में रहने की बिल्कुल आदत नहीं है। वहाँ पर रहकर के ये समझते हैं कि हमारे रहने से माँ के लिए बड़ा आसान हो जाता है। क्योंकि आप ही Channels (पथ) हैं आपके channels मैं इस्तेमाल करती हैं। अगर, समझ लीजिये, इतनी बड़ी ये जो आपको Power-house (बिजली-घर) है, इसमें अगर channels नहीं हुए, तो बिजली कैसे प्रवाहित होगी। तरीका 'सब कुछ बदलता जाता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि बड़े-बडे जीव इस संसारः में जन्म लेना चाहते हैं। अगर आपका दिल्ली में बातावरण ठीक नहीं हुआ, तो यहाँ सिर्फ राक्षस जन्म लेंगे। या तो बहुत ही पहुँचे हुए लोग जन्म लेंगे, जो डण्डे लेकर आपको मारेंगे और या तो राक्षस पैदा होंगे, और राक्षसों ही की यह नगरी हो जायेगी। इसलिये मुझे बड़ा डर लगता है। कभी कभी सोचती हूँ कि इनकी वह channels आप हैं इस लिये आपको चाहिए कि जहाँ भी मैं कार्य करूँ, जब तक मैं हूँ, इसको निश्चय से, धर्म समझ कर आप वहाँ आयें और इस कार्य को आप अपने लिए भी अपनाइये और दूसरों के लिए भी। समझ में अभी बात आ नहीं रही। आप लोगों की बड़ी जिम्मेदारी है, क्योंकि देहली जो है वह दहलीज़ है इस देश की और इस दहलीज़ को लॉध कर अगर राक्षस जा जाये तो आप लोग कहीं के नहीं रहेंगे आपको दहलीज पर उसी तरह से पहरा देना चाहिये जैसे कि बड़े-बडे देवदूत और बड़े-बड़े चिरञ्जीव खड़े हुये आपके जीवन को संभाल रहे हैं। अपनी आप रक्षा करें और औरों की भी रक्षा करें। अपना कल्याण करें, औरों का भी कल्याण करें, और सारे संसार को धन्यवाद! आशा है कि मैंने आपके अधिकतर प्रश्नों का जवाब दे दिया होगा। और अगर नहीं दिया गया हो तो आप जरूर centre (केन्द्र) पर चीजों का जवाब पा लेंगे। इसलिए मैं सब बात आज नहीं कर पाऊँगी, आप समझ रहे हैं, समय की कमी है। Music bijd Programme Prathisthar On 20th Nov.2005. MYSTIC ULURU ---------------------- 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-0.txt की चैतन्य लहरी जनवरी फरवरी 2006 रमयरवर 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-1.txt हैं। 44 मेरे बच्चों, आप वास्तव में नेरे सहस्रार से उत्पन्न हुए अपने हृदय में मैने आपका गर्भ धारण किया और अपने ब्रह्मरन्त्र के माध्यम से मैंने आधको जन्म दिया है| मेरे प्रेम की गंगा अपको सामूहिक चेतना के साम्राज्य में बहाकर ले आई है।" 'परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी. 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-2.txt चै त न्य लहरी NIRMALA MIVERSAL 1।RE R४.{। इस अंक में गुरु पूर्णिमा पूजा, 20.7.2005 रिपोर्ट - 2005 गुरु पूजा ईस्टर पूजा लंदन आश्रम, 6.4.1981 8. श्री माताजी का एक पत्र 13 आन्तरिक और बाह्य विकास का सन्तुलन 14 परमेश्वरी माँ के कथन 16 सहज योग का अलिखित इतिहास 17 10.2.1981 परम पूज्य श्रीमाताजी का प्रवचन 24 piHARA DHARMA 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-3.txt ल ह री चै त नय प्रकाशक निर्मल इन्फोसिस्टम्ज एवं टैक्नोलोजीज प्रा. लि. 8. चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड, कोठरुड पुणे 411 029 मुद्रक कृष्णा प्रिन्टर्ज एण्ड डिजाइनर्ज त्रीनगर दिल्ली 110035 मोबाइल : 9868545679 हु आप अपने सुझाव, सदस्यता एवं जानकारी के लिए निम्न पते पर लिखें श्री जी.एल. अग्रवाल निर्मल इन्कोसिस्टम्ज एवं टैक्नोलोजीज प्रा. लि. 222, देशबन्धु अपार्टमैंट, कालकाजी. नई दिल्ली-110 019 फोन : 26216654 अपने अनुभव, सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ.पी. चान्दना जी-11-(463). ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली-110 034 F: 55356811 फोन 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-4.txt गुरु पूर्णिमा पूजा 2005 (इंटरनैट रिपोर्ट) (नई जर्सी) अमेरिका 20 जुलाई बुधवार के दिन हमने श्रीमाताजी से पूछा कि क्या वे कल, गुरु पूर्णिमा के दिन हमें अपने चरण कमलों की पूजा करने की आज्ञा देंगी? कृपा पूर्वक वे इसके लिए सहमत हो गई। रि आरम्भ हुआ, तत्पश्चात् सभी अगुआओं ने श्रीमाताजी के चरण कमलों पर हल्दी और कुमकुम चढ़ाया। हमने श्रीगणेश का एक भजन गाया, इसके बाद बृहस्पतिवार प्रातःकाल नाश्ते के तुरन्त बाद उन्होंने स्वयं कुछ महिलाओं से पूजा के लिए उनकी साड़ी तैयार करने के लिए कहा। शाम की चाय के बाद श्रीमाताजी ने सारी सामूहिकता को इस विशिष्ट आनन्दमय अवसर के लिए अपने कमरे में बुलाया। अमेरिका तथा अन्य बहुत से देशों के ध्यान केन्द्रों के प्रतिनिधि और श्रीमाताजी "गुरु तुज्या महानवी" गाया गया तथा जागो सवेरा गाने के पश्चात् भजन समाप्त हुए। श्रीमाताजी कमरे में उपस्थित योगियों को अपने गुरु के प्रति देखते भक्ति अभिव्यक्ति करते हुए भजनों का हुए पूरा आनन्द उठा रहीं थीं। इसके बाद मेजबान देशों ने श्रीमाताजी को उपहार भेंट किए। वे पूछती रहीं कि उपहार कहाँ से आए हैं और उपहारों की शिल्पकारिता की सराहना करती रहीं की सेवारत बहुत से सहजयोगी इस पूजा में उपस्थित हुए। लगभग आठ बजे महिलाओं ने श्रीमाताजी की स्वागत आरती उतारी और पूजा का 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-5.txt चैतन्य लहरी 2- 2006 2. : । & अंक ०১ उन्हें श्रीमाताजी का कितना प्रेम प्राप्त हुआ और पूरे इस संध्या को अपने चरणों में बैठे हुए सांयकाल वे कितनी प्रसन्न प्रतीत हुं। उनसे प्रसारित होने वाली एक के बाद एक चैतन्य लहरियाँ पूरा समय हमें आनन्दित करती रहीं। हर व्यक्ति यही कह रहा था कि देखो किस प्रकार से पूरा क्षेत्र चैतन्य लहरियों से आच्छादित हो गया है ! अपने इतने सारे बच्चों की उपस्थिति का आनन्द लेते हुए श्रीमाताजी अत्यन्त तेजोमय प्रतीत हो रही थीं और वहाँ उपस्थित हर योगी पर अपना अथाह प्रेम उड़ेल रही थीं। बहुत से योगी बता रहे थे कि एक बार कैमरा उठाए हुए एक योगी जब कमरे में आया तो र उन्मुक्त मुस्कान के साथ श्रीमाताजी उससे कह उठी,"आ गए"- इसे प्रकार से उन्होंने बताया कि नियुक्त फोटोग्राफर आ गया है। इससे पूर्व आनन्ददायी भजनों तथा श्रीमाताजी से सामूहिक बातचीत के दौरान श्रीमार्क फोटोग्राफ खींच रहे थे। श्रीमाताजी अत्यन्त प्रसन्न थीं और २ एक बार तो उन्होंने कमरे में उपस्थित योगियों की संख्या पूछी और टिप्पणी की कि उनका कमरा खचाखच भरा हुआ है 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-6.txt चैतन्य लहरी अंक : 1 & 2-2006 कुछ समय पश्चात मनोज, पाल, कर्ण और गगन ने श्रीमाताजी के सम्मुख "श्रीमाताजी निर्मला देवी सहजयोग विश्व संस्थान" (Shri Mata Ji Nirmala Devi Sahaja Yoga World Foundation ) के निगमीकरण के लिए आज के शुभ दिन दाखिल किए गए दस्तावेज़ पेश किए। के पूजा यह अत्यन्त ऐतिहासिक क्षण था जब पहली बार विश्व संस्थान को विश्व के किसी देश में कानूनी दर्जा दिया गया था श्रीमाताजी ने निगमीकरण दस्तावेज़ स्वीकार किए और संस्था को आशर्वाद दिया । ा एक बिन्दु पर तो उन्होंने टिप्पणी की, "कितना अच्छा सामूहिक कार्य है!" (What a team work!) बाकी की शाम श्रीमाताजी कुछ सहजयोगियों की संगति का आनन्द उठाती रहीं। कुछ फिल्में देखती रहीं और कमरे में उपस्थित योगियों से बातचीत करती रहीं। टेलिफोन पर उन्होंने लॉस एंजलिस स्थित अपने परिवार के सदस्यों से लम्बी बात की और उनसे बार-बार पूछती रहीं कि वे पूजा के लिए कब पहुँच रहे हैं? यह अत्यन्त विशिष्ट संध्या थी और श्रीमाता जी की न्यू जर्सी में उपस्थिति के लिए हम आभारी हैं। (कृपया तस्वीरों का आनन्द लीजिए) । जय श्रीमाताजी मनोज, वासु, मार्क और अनुराग 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-7.txt गुरु पूजा सप्ताहाज्त रिपोर्ट U.S.A अमेरिका 2005 (इन्टरनैट) प्रक्रिया ने हम सबको मौन-साक्षी भाव में प्रवेश इस गुरु पूजा का यह ऐतिहासिक स्ताहान्त था क्योंकि यह अमेरिका में होने वाली पहली अन्तर्राष्ट्रीय पूजा थी ये इसलिए भी ऐतिहासिक थी क्योंकि सहज योगियों ने इस घटना के महत्व करने का अवसर प्रदान किया क्योंकि हमारी अपनी आयोजन की आवश्यकताएँ और होटल में कमरों की उपलब्धता में मुकाबला था। वर्तमान वर्षों में जैसा हमने लॉस एंजलिस और न्यूयार्क देखा था कि होटल के कमरे यदि अच्छे हों तो नए लोगों को बहुत अच्छी तरह से समझा । सामूहिक परिपक्वता और आन्तरिक शान्ति का माहौल था एक दूसरे से मुलाकातें होती हैं और नई दोस्तियाँ बनती हैं। हमें भी निराशा नहीं हुई। एक दूसरे को समझते हुए. एक दूसरे पर कार्य करते हुए और मिलकर पूजा की तैयारी करते हुए हम विराट की विशुद्धि के गले लगकर अच्छे वार्तालाप द्वारा, भजन गाकर और नाचकर पूजा में भाग लेने वाले 950 सहजयोगियों ने गहन स्नेह एवं प्रेम, जो कि सहजयोग वास्तव में है - के वातावरण को मनाया। के अंग-प्रत्यंग थे। न्यूजर्सी के रविवारीय समाचार पत्र The Record में एक कहानी छपी और उसमें इस अवसर का वर्णन किया गया। ज़िसका शीर्षक था, "सप्ताहान्त ल होटल के गाड़ियाँ खड़ी करने के स्थान पर बनाए गए विशाल शामियाने में हमें शुक्रवार और शनिवार को एकत्र होना था क्योंकि होटल का को सैकड़ों लोगों ने श्रद्धा एवं आनन्द से भर विया fa " (Hundred's fill weekend with Devo- विशाल बाल रूम रविवार तक उपलब्ध ने था। tion and Bliss) शनिवार शाम को बालरूम का उपयोग करने वाली पार्टी ने वहाँ पर धूम-धाम से भारतीय विवाह किया हमारे लिए शुक्रवार आने के साथ ही जिसके कारण होटल मे कई स्थानों पर श्री गणेश सप्ताहान्त का आरम्भ हुआ। नाम दर्ज कराने की प्रक्रिया, कमरा एवं खाने के कूपन प्राप्त करने की के पुतले लगाए गए और सजावटी खम्भ बनाए 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-8.txt चैतन्य लहरी अंक : 1 & 2 - 2006 हमें ध्यान करने के लिए उपलब्ध करवाए गए। गए इनके कारण वहाँ धूमधाम का वातावरण बन खाना भी अन्दर या बाहर ले जाया जा सकता था। गया। यद्यपि बाहर गर्मी थी फिर भी शीतल हवाएं और न । शुक्रवार संध्या मनोरंजन कार्यक्रम की मुख्य विशेषता कान्नाजौहारी स्कूल के नन्हें बच्चों द्वारा संगीत प्रस्तुतीकरण था। उन बच्चों का उत्साह एवं अबोधिता अमरीका में सहजयोग के भविष्य को छायादार क्षेत्र भोजन को आनन्ददायी पिकनिक में परिवर्तित करने के लिए काफी थे । शनिवार रात्रि को मनोरंजन कार्यक्रम का आरम्भ डलसिमर (Dulcimer) के सुन्दर संगीत से हुआ जिसने सारे वातावरण को गुंजरित कर दिया। एक योगी तो पूछने लगा कि कौन सा सुन्दर टेप दर्शाता था। सप्ताहान्त की अन्य गतिविधियों में फुटबाल स्पर्धा, सामूहिक जूता क्रिया, होटल के ताल में स्नानान्नद तथा सिर एवं शरीर की तेल मालिश थी । बजाया जा रहा है। बाद में उसे पता चला कि तम्बू के अग्रभाग में बजाया जाने वाला यह जीवन्त संगीत है पूरी संध्या हमने आश्चर्यचकित कर देने वाली प्रतिभा को देखा और सुना। हर वर्ष भारतीय शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य पेश करने वाले युवा कलाकारों का विकास हो रहा है हमने बांसुरी, गिटार, कव्वाली टर्की के ड्रम संगीत एवं भारतीय शैरातों भीडोलैण्ड होटल का सुख सुविधा एवं खाना प्रदान करने का स्तर शानदार था। हमारी शारीरिक आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखा गया और हम आध्यात्मिक उत्थान की ओर पूरी तरह बढ़ सके। श्रीमाताजी जहाँ ठहरी हुईं थी शास्त्रीय संगीत का आनन्द लिया। जब दस टर्की ड्रम बजाने वाले कलाकारों ने पारम्परिक सहज तथा वायुपतन के बीच का मार्ग अत्यन्त सुखकर था तथा होटल में पेड़ों तथा हरी घास भरे स्थान य क० क connect yourself. ह रु 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-9.txt चैतन्य लहरी अंक : । 2 - 2006 & 6. हुए, हँसते हुए दिखाया गया है। इस प्रकार उनके पूजनीय चुम्बकीय मातृरूपी ऐतिहासिक व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति होती है। बीडियो में उन्हें अथक रूप भजनों के साथ बजते हारमोनियम के सुर में सुर मिलाए तो हम स्वयं को उठकर नृत्य करने से न रोक सके। Eter- nal Values मंच ने बिना किसी तैयारी के एक प्रहसन नाटिका से गाँवों तथा सभागारों में हजारों लोगों की कुण्डलिनी उठाते हुए दिखाया है। कैमरा जब पीछे को (Commedy) पेश की। Real - ijze America यात्रा पर आई घूमा तो सहस्रार पर एक हाथ से शीतल चैतन्य को पहली बार शक्ति ने स्लाइड फोटो युवा दिखाए और अमेरिका की पूर्वी खाड़ी तक यात्रा के अनुभवों के महसूस करते हुए साधकों का अन्त कैमरे की पहुँच से बाहर विषय में बताया। एक मंचन द्वारा कई अवतरणों और आदि गुरुओं को महात्मा गाँधी को ये समझाते दिखाया गया कि था। इस वीडियो में श्रीमाताजी के प्रति हम सबके गहन प्रेम एवं आभार को प्रकट किया गया था। हुए सप्ताहान्त की सारी घटनाओं ने हमारे हृदय खोल दिए और श्रीमाताजी के प्रेम को पहले से कहीं अधिक महसूस करने के योग्य बनाया। हर चीज़ हमें पूजा के लिए तैयार कर रही थी। केवल सहस्रार में पूर्ण मौनान्नद की स्थिति में हम उनकी पूजा कर सकते हैं। रविवार की संध्या को विश्व एकता के उनके स्वप्न को साकार करने के लिए देवी देवताओं की सहायता आवश्यक है, परन्तु सर्वोपरि इसके लिए परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी के आदि शक्ति रूप में अवतरण की आवश्यकता है। उस संध्या की विशेषता श्रीमाताजी के सम्मान में गाया गया एक गान था जिसका वीडियो इटली के सहज योगियों ने चलाया इसने सब सहजयोगियों को इतना भावुक कर दिया कि वे सात बजे पूजा आरम्भ होने का समय था। सात बजते ही हमने पूजा भजन गाने आरम्भ कर दिए और पूजा आरम्भ हो गई। 950 सहजयोगी होटल के बाल रूम में श्रीमाताजी के साथ अपने व्यक्तिगत गहन योग का उत्सव मना रहे थे। श्रीमाताजी ने ज्यों ही बाल रूम में प्रवेश किया सभी लोग श्रद्धा एवं भक्ति से खड़े हो गए । इक्कीस बच्चों को मंच पर श्रीगणेश की पूजा तत्पश्चात् कुछ विवाहित महिलाओं ने देवी का श्ृंगार किया। आरती इतनी शक्तिशाली थी कि मानो हम विश्व के सम्मुख घोषणा कर रहे हों कि एक दूसरे को गले लगा कर अश्रुधारा से अनाभिव्यक्त की अभिव्यक्ति किए बिना न रह सके। इस वीडियो में परम पावनी श्रीमाताजी को बीस साल पूर्व करने के लिए बुलाया गया। दुल्हनों के वस्त्र ठीक करते हुए तथा दुल्हों की फूल मालाओं को ठीक करते हुए. विवाह के अवसर पर खाना बनाते हुए, हारमोनियम बजाते भजन हुए. गाते हुए छोटे बच्चों को प्रेम से बुलाते या चूमते 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-10.txt अंक : 1& 2 -2006 चैतन्य लहरी 7. समय समाप्त हो गया। व्यक्तिगत रूप से हमने श्रीमाताजी का धन्यवाद किया कि हम उनके चैतन्य को आत्मसात् कर सके। कुछ समय ध्यान करने के पश्चात् प्रसाद तथा यादगार उपहार वितरित किए गए। तब हमें पता चला क शक्ति के हॉल में हमें बाँधे हुए थी। बालरूम चुम्बकीय शु पूजा से निकलने के पश्चात् भी हॉल हमें खींच रहा था। म्यूजिकल आंगुलिक (Digital) कैमरे सहजयोगियों ने एक दूसरे को दिए और उनमें आए चमत्कारिक फोटो एक दूसरे का दिए। (पूजा से पूर्व ही श्रीमाताजी ने बता दिया था कि बहुत से चमत्कारिक फोटो आएंगे) प्रेम एवं भाव-विभोर हमारे हृदय खुशी से ३ ० की हं देवी यहाँ विराजमान हैं। गुरुओं की गुरु अपनी पूर्ण शक्तियों एवं विभूतियों के साथ यहाँ विराजित हैं।" नीच रहे थे और इस खुशी ने होंल के अन्दर शक्तिशाली नृत्य एवं संगीत का रूप धारणे कर लिया। हममें से कुछ लोग मंच पर रखे श्रीमाताजी के सिंहासन के सम्मुख मौन सम्मान से बैठे रहे। देवी को सामूहिक प्रणाम करने के पश्चात् राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय उपहार एक-एक करके मच पर लाए गए। पूरे उत्सव के दौरान श्रीमाताजी चहीं रहीं। सारे उपहार भेंट हो जाने के बाद Arneau ने ये घोषणा करने के लिए माइक्रोफोन लिया कि दो दिन पूर्व ही "श्रीमाताजी निर्मला देवी सहजयोग फाऊंडेशन का अमेरिका में लाभ निरपेक्ष (Non- Profitable) संस्था के रूप में पंजीकरण हो गया है। ये नई संस्था श्रीमाताजी की शिक्षाओं की रक्षा करेगी। इन्हें संभालेगी और विश्व भर में उनके दिव्य संदेश का प्रसार करने के लिए राष्ट्रीय सामूहिकताओं की सहायता करेगी। हे के सो सा पु हमें ऐसा प्रतीत हुआ मानो हम इतिहास का अवलोकन कर रहे हों। पहली बार किसी अवतरण के पथ प्रदर्शन में इतने बड़े विश्व धर्म का कानूनी रूप से गठन हुआ है। श्रीमाताजी तथा उनके परिवार की उदार सहायता से नई संस्था दृढ़तापूर्वक स्थापित हो जाएगी। यह ऐसा अवरार था जब खड़े होकर अपनी परम पावनी माँ का सम्मान (Standing ovation) करना तथा उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करना आवश्यक था। धीरे-धीरें तालियों की गड़गड़ाहट शान्त हो गई और हम सब पूर्ण शान्ति के सागर में खड़े हुए थे। मंच के सामने का विशाल पर्दा गिरा दिया गया और इसी के साथ श्रीमाताजी की हमारे साथ साक्षात् उपस्थिति का घर लौटते हुए श्रीमाताजी ने मनोज को बताया कि "चैतन्य बहुत अच्छा था" तथा "बहुत से चमत्कारिक फोटो देखे जा सकेंगे।" इस पूजा में हमने अपने सहस्रार पर न केवल श्रीमाताजी से अपने योग का अनुभव किया, हमने सहजयोग की पुर्ण सामूहिकता में उनके साथ योग की प्रयत्नहीन आनन्दमयी अवस्था का अनुभव भी किया। इस नई अवस्था में, हम जानते थे, कि हम कुछ भी नहीं कर रहे- वे ही (श्रीमाताजी) सभी कुछ कर रही हैं। जय श्रीमाताजी 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-11.txt ईस्टर पूजा 6-4-1981 लन्दन आश्रम परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन यहाँ किस प्रकार से लोग ईसा-मसीह के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। वे स्वयं को इसाई दिया। ईसा-मसीह के शिष्यों तक ने उन्हें नहीं कहते हैं परन्तु ईसा-मसीह के जीवन के प्रति बिल्कुल भी सम्मान नहीं दर्शाते। वे तो उत्क्रान्ति की प्रतिमूर्ति थे उन्होंने उत्क्रान्ति की बात की। पुर्नजीवित हुए तब भी कोई विश्वास करने के लिए मूर्खतापूण चीज़ों की बात उन्होंने कभी नहीं की। दूसरे, हम बिल्कुल भी सम्मान नहीं दशति । हमारे लोगों को मिला उसके बारे में भी कई प्रकार की हृदय में जरा भी भय नहीं है कि ब्रह्माण्डों के दलीलें दी जाती हैं। निःसन्देह उनके चेहरे पर एक ब्रह्माण्ड सृजन करने वाले वही थे। उनके मुकाबले कपड़ा बाँध दिया गया था जिसे बाद में खींच में हम क्या है? मानव का अहं क्या है. बुलबुलो लिया गया। यही कारण है कि उनका चेहरा हल्का जैसा ! हुआ था कि उन्होंने ईसा-मसीह को सूली पर चढ़ा पहचाना। जब उन्हें सूली पर चढ़ाया गया तो शिष्यों ने कहा, "अब वे मर चुके हैं।" वे जब तैयार न था। सभी प्रकार की बाते है, जो कफन सा बिगड़ा हुआ वहीं पर छोड़ दिया गया। मेरी समझ में ये नहीं दिखाई देता है। परन्तु वह कपड़ा निःसन्देह उन्हें (ईसा-मसीह) को ब्रह्म तत्व, परमेश्वरी प्रेम से बनाया गया इसीलिए उनका वध न हो सका। उन्हें श्री कृष्ण की तरह से जन्म लेना था क्योंकि श्रीकृष्ण ने कहा है कि इस परमात्मा की शक्ति की मृत्यु नहीं होती, इसका बध नहीं हो सकता। श्री कृष्ण ने यह बात प्रमाणित करने के लिए ईसामसीह का स्थूल शरीर धारण किया। आता कि कफन का इतना महत्व क्यों है? ये ईसा मसीह का रक्त है। अज्ञानता पूर्वक जिस प्रकार लोगों ने ईसा-मसीह को देखा उस पर व्यक्ति को शर्म आनी चाहिए। इस नज़रिए से यदि आप देखें कि किस प्रकार लोग अपने अहंकार को संभाले हुए हैं और पूर्ण अंधकार में रहते स्वयं को सच्चा हुए ये समझते है कि वे परमात्मा का भी मानते हुए आंकलन कर सकते हैं तो इस बात की आप कल्पना भी नहीं कर सकते। इन लोगों ने उन्हें तीन या चार साल भी जीवित नहीं रहने दिया। उन्होंने किसी का कोई नुकसान नहीं किया था । इसके लिए आप किसी एक जाति विशेष को दोषी नहीं ठहरा सकते। उनका जन्म यदि भारत में होता तो यहाँ के लोगों ने भी ऐसा ही किया होता। त मोहम्मद साहब के साथ लोगों ने क्या किया? बिल्कुल ऐसा ही परन्तु जैसा दर्शाया गया है. उनके जीवन में इतने चोर क्यों है? तुलना के (Contrast) लिए उन्हें (चोरों को) बाहर निकलने की आज्ञा दी गई। ये समझौता किस प्रकार संभव हुआ और ईसामसीह के साथ ऐसा क्यों नहीं हुआ? वे इस पृथ्वी पर अवतरित हुए परन्तु ये बात देखने के लिए मनुष्यों के पास आँखें न थी। मानव जानता है कि हीरे क्या होते हैं. कीमती वस्त्र क्या होते हैं परन्तु पृथ्वी पर उनके अवतरण का मूल्य कोई नहीं समझता ! अब इसके बारे में सोचे, स्थिति बहुत भयानक थी, किसी से परमात्मा के विषय में या आत्म-साक्षात्कार के विषय में बात नहीं की जा सकती थीं, यहाँ तक की धर्म और धर्मपरायणता की बात करना भी कठिन था। कहने से अभिप्राय है कि अज्ञानता का पर्दा लोगों पर इस प्रकार पड़ा 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-12.txt अंक : । & 2 -2006 चैतन्य लहरी आज क्या हम अपने साथ भी ऐसा ही करते हैं कि हैं!" तब उनके शिष्यों को भी उन पर विश्वास हम चोरों के साथ, नकारात्मक लोगों के साथ हुआ। कितना अज्ञान और कितना अंधकार है ! ये समझौता करते हैं और ईसा-मसीह के क्रूसोरोपित ऐसा है मानो चींटी को मानव सम्भ्यता के बारे में बताना। जैसे यह स्थूल घटना घटी, सूक्ष्म में भी इसी घटना को घटित होना था। जैसे जब आप कहते हैं मोजिज ने नदी पार कर ली तो यह घटना किसी आदि गुरु द्वारा भवसागर को पार करना था। अतः सूक्ष्म में जो कुछ भी घटित होना होता है उसकी अभिव्यक्ति इस प्रकार से स्थूल में भी होती है। और जब ईसा-मसीह क़नो क्रूसारोपित किया गया तब भी ऐसा ही हुआ। परन्तु पुनः आप ा होने का बुरा नहीं मानते? जैसा आप जानते हैं उन्होंने सारे ब्रह्माण्डों का सृजन किया। ब्रह्माण्ड अर्थात ग्रह । सूर्य ग्रह के अन्दर से पृथ्वी ग्रह का सृजन हुआ और उसमें से आप लोग उत्पन्न हुए और आपके आज्ञा चक्रों में उन्होंने एक छोटे विराट का सृजन किया, वह तुम्हारे आज्ञा चक्र में हैं। ये बलिदान अत्यन्त- अत्यन्त महत्वपूर्ण है और यद्यपि यह स्थूल है फिर ईसामसीह को क्रूसारोपित नहीं कर सके, जैसे भी बहुत सूक्ष्म है। चेतना को आज्ञा चक्र के बीच से ऊपर ले जाने के लिए ये घटित हुआ। स्वयं क्रूसारोपित होकर ईसा-मसीह ने इस कार्य को किया। स्थूल व्यक्ति के रूप में किसी भी अन्य मानव की तरह से वे आए। मृत्यु के पश्चात् उनका शरीर नहीं मरा क्योंकि उनका शरीर जैसे आप कहते हैं, अविनाशी परमेश्वरी चैतन्य लहरियों वर्णन किया गया है अब वे एकादश रुद्र बन गए हैं। ग्यारह रुद्रों के बारे में आप भली-- भांति जानते हैं, शिव की ये सभी शक्तियां उन्हें (ईसामसीह) प्रदान की गई है। अब तक, जब भी उनका जन्म भी हुआ श्री कृष्ण ने अपनी शक्तियाँ उन्हें प्रदान की थीं और वे महा-विराट बन गए। यहाँ तक कि उन्हें श्री कृष्ण से भी ऊपर (आज्ञा चक्र में) स्थान दिया गया, परन्तु अब यदि वे अवतरित होंगे तो उनके पास शिव की विध्वंसक शक्तियाँ होंगी, ग्यारह विध्वंसक शक्तियों। केवल एक शक्ति सभी ब्रह्माण्डों को समाप्त करने के लिए काफी है। ईसा-मसीह के अवतरण के बारे में इसका बर्णन किया गया है । अब आप उन्हें क्रूसारोपित नहीं कर सकते, और समय आ गया है कि हम सब उनका स्वागत करने के लिए तैयार हो जाएं। उन्हें स्वीकार करने के लिए अभी तक हम तैयार नहीं हैं जब से बना हुआ था, ब्रह्म से, ब्रह्म की किरणों से। न तो वे चैतन्य की किरणें मरी और न ही उनका शरीर। और अपने शरीर के साथ ही वे पुनर्जीवित हो उठे| ये दर्शाने के लिए उनकी मृत्यु हुई थी कि शरीर की मृत्यु के पश्चात् भी इसे बचाया जा सकता है, इसीलिए उन्हें क्रूसारोपित होना पड़ा । इसके बिना वे इस सत्य को दर्शा न सकते। परन्तु वास्तव में मरने के पश्चात् पुनर्जीवित होकर उन्होंने ये दर्शाया कि दिव्य लोगों का शरीर नहीं मरता। श्री कृष्ण ने कहा है कि आत्मा को न तो कोई शस्त्र काट सकता है न अग्नि इसे जला सकती है, न वायु इसे उड़ा सकती है। कोई भी चीज़ इसे समाप्त नहीं कर सकती। कोई भी चीज़ इसे समाप्त नहीं कर सकती। ईसा-मसीह की आत्मा है, उन्हें पुनर्जीवित रूप में जब लोगों ने देखा तो आश्चर्य से कहने लगे, "अरे, ये तो बही तक आप लोग आत्म-साक्षात्कारी नहीं है आप उन्हें स्वीकार नहीं कर सकते क्योंकि उनके आने तक यदि आप आत्म साक्षात्कार प्राप्त नहीं करेंगे तो आप समाप्त हो जाएंगे, जा चुके होंगे, नष्ट हो जाएंगे सभी मूर्खतापूर्ण चीजों को नष्ट करने के लिए वे आएंगे। अत: ये बीच का थोड़ा सा समय आपकी उत्क्रान्ति और मोक्ष प्राप्ति के लिए लगना 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-13.txt अंक :। & 2 - 2006 चैतन्य लहरी 10 उनके शरीर में धरा-माँ का अस्तित्व था । धरा माँ चाहिए । परन्तु ईसा-मसीह के बारे में जब हम सोचते हैं तो मानव किस प्रकार से बहानेबाज़ी करता है ! सभी प्रकार के छल करता है। ईसा-मसीह के क्रूसारोपण के बारे में लोग नाटक या पृथ्वी माँ का अस्तित्व चुम्बकीय शक्ति के रूप में होता है. चुम्बक के अतिरिक्त वे कुछ भी नहीं । ये चुम्बकीय शक्ति ही ईसा-मसीह की शक्ति का एक हिस्सा है जो कभी नष्ट नहीं हो सकती। परन्तु हम मानव अत्यन्त स्थूल हैं, पृथ्वी माँ की चुम्बकीय शक्ति को भी हम नहीं जानते। इसे हम अपने अन्दर महसूस नहीं करते। जिस दिन अपने अन्दर हम इस चुम्बकीय शक्ति को महसूस करने लगेंगे उस दिन सभी मूर्खतापूर्ण गतिविधियाँ छोड़ देंगे और अपने गुरुत्व तो चुम्बकीय शक्ति के प्रति उतने भी संवेदनशील नहीं है जितने पक्षी हैं। आत्म- साक्षात्कार के पर नाटक किए जा रहे है। सुन्दर-सुन्दर रत्न आदि धारण करके वे ये नाटक करते हैं और ये उपहास चले जा रहा है। आपको भी यदि पुनर्जीवन तक पहुँचना है तो आपको अपने अन्दर ईसा-मसीह को जागृत करना होगा, अपने आज्ञा चक्र में ऐसा यदि आप नहीं कर सकते तो ये सारा नाटक है। स्पेन में भी लोग कहते हैं कि वे क्रूसारोपण का नाटक कर रहे हैं। कहने से अभिप्राय ये है कि में स्थापित हो जाएंगे परन्तु हम संसार में ये उपहास चल रहा है दिखावे और असत्य में हम जीवित हैं। ये सारे छल हमें कहीं नहीं पहुँचाएंगे। हमें अपना सामना करना होगा, ईसा-मसीह को अपने अन्दर जागृत करना होगा। उनकी महानता की पूरी सूझ-बूझ के साथ हमें उनके सम्मुख झुकना होगा इसके विपरीत, हमारा झुकाव तो कपटी लोगों के प्रति है जो उनका नाटक बना देते हैं। ये उपहास सर्वत्र चल रही है। क्रॉस को उठाकर चलना या कोई अन्य नाटक करना। मेरा अभिप्राय ये है कि इतनी कष्टकर घटना का मंचन करना, मैं नहीं जानती क्यों लोग ऐसा करते हैं, क्यों ऐसा करना चाहते हैं! ये मेरी पश्चात् आपमें इस चुम्बकीय शक्ति को महसूस करने की सुक्ष्मता आ जाती है और आप पृथ्वी माँ से अपनी समस्याओं और अपने पापों को ले लेने के लिए प्रार्थना कर सकते हैं । वे इन्हें सोख लेंगी । एक बार यदि आप सूक्ष्म हो जाएंगे तो पृथ्वी माँ इसे कार्यान्वित कर देंगी, इसमें कोई सन्देह नहीं है। परन्तु इसके लिए आपको उत्तना उन्नत होना पड़ेगा, उसके बिना आप पृथ्वी के सूक्ष्म पहलुओं को, उनकी चुम्बकीय शक्ति को छू नहीं सकते। ईसा-मसीह का तो शरीर ही इसी चुम्बकीय शक्ति से बना हुआ था। जब वे पुनर्जीवित हुए तो उस रविवार को लोग मनाते हैं। जैसा आपने देखा है समझ से बाहर है और बर्दाश्त से भी। आप लोगों में यदि भावना है तो आप अपने अन्दर देख सकते उनमें करोड़ों-करोड़ सूर्य हैं और वो सूर्य से ही हैं। क्रूसारोपित होकर पुनर्जीवित हो उठना न तो कोई समारोह हो सकता है न कोई कर्मकाण्ड। बने हैं। वे सूर्य का सार-तत्व हैं। सूर्य के अन्दर ऑक्सीजन की शक्ति है और ये ऑँक्सीजन ब्रह्माण्ड 1 हम सहजयोगियों के लिए आवश्यक है के बाद ब्रह्माण्ड का सृजन करने के लिए जिम्मेदार कि ईसा-मसीह के जीवन के महत्व को समझें। केवल उनका शरीर ही इन विकीर्णित चैतन्य लहरियों से बना हुआ था, बाकी सभी शरीर मानव शरीर थे सभी अवतरण, श्री कृष्ण भी. जब पृथ्वी अंकुरित होकर पुनः पेड़ बनते हैं। सूर्य के बिना पर अवतरित हुए तो उनमें सभी मानवीय थे । है सूर्य की किरणें जब वृक्ष पर पड़ती है, हम तो हर चीज़ को स्वीकृत रूप से ले लेते हैं, तो पेड़ खिलता है, फल देता है. फलों में बीज होते हैं जो पृथ्वी पर किसी भी चीज़ का अस्तित्व न होगा । गुण 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-14.txt II अक : । & 2 - 2006 चैतन्य लहरी इसी कारण से हम रविवार के दिन सूर्य की पूजा सिद्ध मंत्र। आक्रामकता की स्थिति में यदि व्यक्ति करते हैं। ईसा-मसीह क्योंकि सूर्य थे इसीलिए हम कह सकते हैं कि उनका निवास सूर्य में है। क्योंकि ईसा मसीह आत्मा के रूप में आपके हृदय जब हम बाई ओर को चले जाते हैं तो वास्तव में में विराजमान हैं। वे ही आत्मा हैं और यदि आप हम उनसे (ईसा मसीह) से बहुत दूर नकारात्मक अवस्था में चले जाते हैं। हम बहुत नकारात्मक हो जाते हैं, जैसे जब हम बाई ओर को झुक जाते हैं है कि अंहकारी लोगों को हृदय रोग हो जाते है। तो, आप जानते हैं, हम उनसे बहुत दूर चले जाते चला जाए तो उसे हृदय से विनम्र होना होगा दाई ओर को जाकर बहुत अधिक आक्रामक हो जाते हैं तो आत्मा अपमानित होती है। यही कारण प्रतिअहं के क्षेत्र में, बाईं ओर, ईसा मसीह का रूप अत्यन्त दहशत भरा है। ऐसे लोग उनके नाम-मात्र से डर जाते हैं, उनसे दूर दौड़ते हैं क्योंकि वे जानते है कि ईसा-मसीह एकादश रुद्र है। तो एक ओर तो वे अत्यन्त कोमल हैं क्योंकि वे अहंकारी, अहंचालित लोगों से दूर हट जाते हैं। मूर्ख और विदूषक उन्हें पसन्द नहीं हैं। जिन गधों पर वे सवारी करते थे वे अहंचालित लोगों की ओर इशारा करते हैं। उन्होंने गधे को नियंत्रित करने का प्रयत्न किया परन्तु बाईं ओर के लोग इतने भयानक नकारात्मक होते हैं कि वे उससे डर जाते हैं, बिल्कुल डर जाते हैं। आप ईसा-मसीह का नाम लें और वे भाग खड़े होंगे। किसी भी तरह से है तथा हमारा आज्ञा चक्र, पीछे की आज्ञा (Back Agnaya ) पकड़ जाती है। जब आप दाएं ओर की अति में चले जाते हैं तो आप ईसा-मसीह को स्वीकार ही नहीं करते, अपनी सभी सीमाएं पार कर जाते हैं। उनसे आगे आप नहीं जा सकते और यही कारण है कि आक्रामकता की अवस्था में आप शालीनता, मर्यादा और विनम्रता के विवेक को पीछे छोड़ देते हैं। तो दोनों ही अवस्थाओं में आप विपरीत दिशा में चले जाते हैं, ईसा मसीह से बहुत दूर। अहकार, आक्रामकता की अवस्था में (दाई ओर) जाने का परिणाम है। क्योंकि बाई या दाई ओर की अवस्था के लिए ईसा-मसीह का वास्तव में कोई भी योगदान नहीं है तो एक ओर तो वे आपकी बाईं ओर, प्रति अहंकार, से लड़ते हैं और दूसरी ओर वे मानव के अहं से युद्ध करते हैं। इसीलिए, आपने देखा है, कि आप यदि भूत- बाधित हैं तो आपको ईसा-मसीह का नाम लेना होगा केवल उनका नाम लेने से ही आप भूत बाधाओं से मुक्त हो सकते हैं। प्रभु प्रार्थना (Lord's Prayer) में भूत बाधाओं को दूर करने का पूर्ण सार छिपा हुआ है परन्तु कोई ऐरा गैरा नत्थू खैरा यदि प्रभु प्रार्थना कहेगा तो उससे कुछ नहीं होने वाला। इसके लिए तो व्यक्ति को ईसा-मसीह से जुड़ना होगा। उनसे जुड़कर यदि आप प्रभु-प्रार्थना कहेंगे तो इसका प्रभाव होगा क्योंकि जुड़े हुए व्यक्ति द्वारा कही गई प्रार्थना एक मंत्र बन जाती है, वे उनका सामना नहीं करते, हे परमात्मा!' अब ये निशान वास्तव में उनके रक्त का है उन्हें ये रंग दिखाते ही वे भाग खड़े होंगे अत्यन्त शान्ति एवं विनम्रता पूर्वक व्यक्ति को ईसा-मसीह के महत्व को समझना होगा क्योंकि उन्होंने ब्रह्माण्ड के बाद ब्रह्माण्ड का सृजन किया है। कुर्सी पर बैठकर आप ये नहीं कह सकते कि हम इसके बारे में वाद-विवाद करें। कोई सिद्धान्त नहीं चल रहा है, वे जीवन्त देव (God) हैं और जीवन्त के विषय में मानव वाद-विवाद नहीं कर सकता। उनके बारे में बात-चीत करने और उनको समझने के लिए आपको महामानव बनना होगा। जितना आप उन्नत होते हैं उतना ही अधिक भय आपके अन्दर भर जाता है। हे परमात्मा! जब आपको ये कि वे ही ब्रह्माण्ड का है पता चलता है। 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-15.txt अंक : । & 2 - 2006 चैतन्य लहरी 12 जानते हैं कि इसके बाद पुनर्जीवन है और इसी पुनर्जीवन का वास्तवीकरण आप इसी जीवन में करने वाले हैं। परन्तु अब आपको साधना के लिए सारे मूर्खतापूर्ण विचार और व्यर्थ की भटकन्ने छोड़नी होगी। साधना का अर्थ किसी चीज़ का ज्ञान पाना नहीं, वह बनना है। इसी के लिए ईसा मसीह ने स्वयं को सूली पर चढ़वा लिया। उन्होंने स्वयं को पुनर्जीवित किया ताकि आप लोग भी पुनर्जीवित हो सकें। आज आपको उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करनी होगी कि इसी जीवन में पुनर्जीवित होने का मार्ग उन्होंने खोल दिया। आप भी पुनर्जीवित होने वाले हैं और आप अपनी आँखों से अपने पुनर्जन्म को वैसे ही देखेंगे जैसे ईसा मसीह के शिष्यों ने उनके पुनर्जन्म को देखा था। इसका वचन दिया आधार हैं, हमारा आधार हैं, तब आप स्वयं को अत्यन्त शक्तिशाली महसूस करते हैं - कि यदि वे आप का आधार हैं तो कोई भूत बाधा आपको नहीं हो सकती। परन्तु आप या कोई अन्य उन पर हावी नहीं हो सकता। आपको उनके समर्पित होना होगा ताकि आप उनकी जिम्मेदारी बन जाएं और वे आपकी देखभाल करें। उनकी महानता का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता । सम्मुख एक शिशु और बेटे के रूप में वे आनन्द दाता हैं। जिस प्रकार वे अपनी माँ की देखभाल करते हैं उसका वर्णन करना असम्भव है। अपनी माँ के प्रति उनकी सूझ-बूझ, उनका प्रेम, महानता, सेवाभाव, श्रद्धा और समर्पण शब्दों में वर्णन नहीं किए जा सकते। आप जानते हैं कि वे उन्नत श्री गणेश के रूप में अवतरित हुए। पीछे की आज्ञा पर वे श्री गणेश हैं और आगे की आज्ञा पर कार्तिकेय । अत्यन्त शक्तिशाली एकादश रुद्र, और इनमें उनका स्थान सर्वोच्च है। अतः आज के दिन हमने ये सोचना है कि किस प्रकार वे हमारे लिए पुनर्जीवित हो उठे| जा रहा है और आप सबके साथ ये घटना घटित होनी चाहिए। अतः हम सब लोगों को खुश होना चाहिए कि पुनर्जन्म लेने का समय आ गया है और इतनी महान घटना हमारे सम्मुख घटित होने वाली है। हम ऐसे लोग हैं हमें अपनी संकीर्ण दृष्टि, तुच्छ चीज़ों के पीछे भागना और तुच्छ जीवन शैली, जिसमें हम कुएं के मेंढक की तरह से चले जा रहे हैं, त्यागनी होगी स्वयं को विस्तृत करें और सोचें कि आज हम सामूहिक पुनर्जन्म लेने का नाटक देखने वाले हैं, केवल इतना ही नहीं आप इस नाटक का युक्तिचालन (Manoeuvering) भी कर रहे हैं। अत्तः आनन्द लें और खुशी मनाएं कि जो कार्य ईसा मसीह ने दो हजार वर्ष पूर्व किया था, आज हम वही कार्य करने वाले हैं। इसी कारण से ईस्टर हम सबके लिए विशेष दिन है। ये वास्तव में विशेष दिन है क्योंकि हमारे जीवन में मृत्यु समाप्त हो चुकी है और हम पुनर्जीवित हो उठे हैं । क्रूसारोपित होने का दुख उनसे भी अधिक उनकी माँ ने उठाया, क्योंकि वे जानतीं थी कि ये घटित होने वाला है और मानव रूप में वे माँ थीं। एक माँ के सम्मुख उनके पुत्र का क्रूसारोपण किया जाना! क्रॉस का महिमा गान केवल इसलिए नहीं किया जाना चाहिए कि ईसा-मसीह को सूली पर चढ़ाया गया। क्रॉस आज्ञा चक्र का चिन्ह है और स्वारितक क्रॉस का उन्नत प्रतीक है। अतः जब हम क्रॉस का महिमा गान करते हैं तो वास्तव में हम आज्ञा चक्र का महिमा गान करते हैं जिसके माध्यम से हम बलिदान और समर्पण के जीवन को स्वीकार करते हैं । क्रॉस से आगे यदि हम देखें तो हम परमात्मा आपको धन्य करें। (निर्मला योग से उद्धृत और अनुवादित) 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-16.txt श्री माता जी का एक पत्र वर्षों की हमारी दासता के कारण भारत के चिकित्सक ये भूल गए हैं कि हम लोग योगभूमि पर उत्पन्न हुए हैं। उनकी सोच भी इतनी दासता पुर्ण है कि वे सोचते हैं कि चिकित्सा के विषय में हमारे विचार अत्यन्त मूर्खतापूर्ण हैं जबकि पाश्चात्य ज्ञान अत्यन्त विवेकशील है। प्रिय डॉक्टर राउल, दाम्ले से मुझे एक विस्तृत पत्र प्राप्त हुआ। गगनगढ़ महाराज से मिलकर तुमने विवेक का कार्य किया है सहजयोग के चमत्कार के विषय में वो जो भी कहते हैं वो पूरी तरह सत्य है। अब तक पृथ्वी पर इस महान आशीर्वाद की वास्तविक अभिव्यक्ति का कारण ये है कि जब-जब भी आदिशक्ति पृथ्वी पर अवतरित हुई उनके सारे चक्रों का समन्वय सहस्रार के माध्यम से नहीं था। पूर्ण ताल-मेल और एकरूपता के उनके व्यक्तित्व के समन्वित यन्त्र में मिल जाने से ही ये आश्चर्यजनक परिणाम निकल रहे हैं। ये परिणाम इतने आश्चर्यजनक है कि मैं स्वयं पर हैरान हैं हृदय से मैं तुम्हें आशीर्वाद देती हूँ कि डॉक्टर रामलिंगम की चैतन्य लहरियाँ अच्छी हैं। उनके अन्तः स्थित श्रीराम उन्हें सर्वशक्तिमान परमात्मा की विधियों को समझने का विवेक देंगे। मैं तुम्हें अपना प्रेम एवं सुरक्षा भेज रही हूँ ताकि तुम हमारे चिकित्सक वर्ग के अन्दर से अज्ञान बाधाओं को दूर कर सको । उन्हें ये जान लेना चाहिए कि अब समय आ गया है कि वो स्वीकार कर लें कि विज्ञान ही सभी कुछ नहीं है। विज्ञान केवल उन्हीं चीजों को खोजता है जिनका अस्तित्व पहले से है यही कारण है कि उन्हें लगता है कि अवधूतों को और जो स्थूल अस्तित्व को भी दिखाई देती हैं। आबादी से जंगलों में होना चाहिए तथा किसी चौथे आयाम में उठते हुए जब हम सूक्ष्म बन जाते हैं तब हमें सूक्ष्म अस्तित्व, आत्मा, सन्तोष और इस प्रेम की दिव्य कार्यशैली दिखाई पड़ती है कैंसर ठीक किया है क्या इसकी तुम पर कोई वाद-विवाद से इसे नहीं देखा जा सकता। व्यक्ति प्रतिक्रिया हुई? चैतन्य जब आपकी ओर से बहेगा को आत्म साक्षात्कारी होना पड़ता है। सहजयोग तो किसी से किस प्रकार आप कुछ के माध्यम से स्वतः उसे विकसित होना पड़ता है क्योंकि यह जीवन्त प्रणाली है जल क्रिया अर्थात नदी, समुद्र या घर में फोटो के सम्मुख बैठकर मेरे विचार से गगनगढ़ महाराज भी इस खोज की सूक्ष्मताओं की कल्पना नहीं कर सकते । दूर का कैंसर ठीक करने के प्रयत्न की व्यक्ति पर प्रतिक्रिया हो सकती है। तुमने फड़के के पिता का ले सकते हैं? (When you are at a giving end how can you receive anything?) आपको कमल की तरह से पुनर्जन्म प्राप्त हुआ है और कमल तो कीचड़ में रहकर भी उसकी गन्दगी से मुक्त रहता पानी पैर क्रिया करना कैंसर का सर्वोत्तम इलाज है। स्वच्छ करना जल का धर्म है। इसलिए मानव है और आत्म-साक्षात्कार के चमत्कार से अपने धर्म के लिए जिम्मेदार श्री विष्णु और श्री दत्तात्रेय की पूजा की जानी चाहिए। रोग मुक्त होने में वे आप सोचते हैं कि डॉक्टर लोग इस बात को (श्री विष्णु और दत्तात्रेय) तथा प्रभावित चक्र से स्थानीय देवता सहायक होते हैं। रोगी को फोटो के सम्मुख बिठाकर उसके पैर पानी में डलवाकर हमारी परानुकम्पी नाड़ी प्रणाली का स्वामी है और और आगे-पीछे मोमबत्ती जलाकर अपने हाथ परमात्मा का प्रतिबिम्ब है? आप श्री बोस, श्री अनुकम्पी नाड़ी प्रणाली मार्ग से ऊपर से नीचे पानी की ओर लाएं। शनैः शनैः रोगी शान्त हो जाएगा। यदि उसे आत्म-साक्षात्कार मिल जाए तो मान लो कि वह रोग मुक्त हो गया अगले पत्र में इस है वातावरण को परिवर्तित करता है, सुधारता । क्या स्वीकार करेंगे कि परमात्मा का भी कोई साम्राज्य है जो हमारा सृजन करता है तथा हमारी आत्मा ही दफ्तरी और श्री शर्मा का नाम बता सकते हैं जिनका रंगान्धी (Colour Blindness) रोग सहजयोग के माध्यम से ठीक हुआ है। जो भी हो अगले वर्ष मैं अमेरिका जा रही हूँ। मेरा एक प्रिय पुत्र डॉ. लान्झेवर अब न्यूयार्क चिकित्सक संघ का अध्यक्ष बन गया है और अगले वर्ष वो न्यूयार्क में एक संगोष्ठी कराने के लिए अति उत्सुक हैं। इतने । विषय पर और बताऊगी आपकी प्रेममयी माँ निर्मला (निर्मला योग से उद्धृत एवं अनुवादित) 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-17.txt आन्तरिक और बाह्य विकास का संतुलन का अर्थ है स्वयं को जीवन की कठोरताओं और बाधाओं के अनुकूल बनाना और उन पर विजय हासिल करना। हर सहजयोगी को उन्नत होना चाहिए। उत्क्रान्ति प्राप्त करना उसकी जिम्मेदारी है। वास्तव में अपूने भाई बहनों तथा अपने प्रति एकमात्र जिम्मेदारी है। सहजयोग में उन्नत होने का क्या अर्थ है तथा अन्दर और बाहर से किस प्रकार अन्ततः उन्नत होने का अर्थ है स्वयं को संतुलित करना, पृथ्वी की कोमलता और पेड़ के आत्मविश्वास को महसूस करना। सहजयोग में उत्क्रान्ति हमें साक्षी भाव से अपनी उन्नति देखने की शक्ति प्रदान करती है। साक्षी भाव से जब हम देखते हैं तो पूरे वातावरण से विकीर्णित होती हुई सर्वव्यापी शक्ति की उपस्थिति का एहसास हमें होता है, उस शक्ति का जिसने आदिशक्ति की प्रेम लहरियों से पूरे जीवन वृक्ष को घेरा हुआ है और जो शान्ति एवं आनन्द के रूप में कोपलों पर बह रही है। तब पूरा वृक्ष आनन्द-कम्पन के साथ उस चैतन्य की अभिव्यक्ति करेगा और स्वयं को उन्नत होना है? उन्नत होने का अर्थ है पेड़ की तरह से उन्नत होना, पेड़ पृथ्वी माँ के अन्दर और बाहर विकसित होता है। बढ़ने के लिए पेड़ को अपनी जड़ें पृथ्वी में गहरी गाड़ने के लिए मार्ग खोजना पड़ता है। पृथ्वी माँ जब जड़ों का पोषण करती हैं तो जड़ें बढ़ती हैं और साथ-साथ पेड़ को भी बढ़ाती हैं। आत्म-साक्षात्कार प्राप्त कर लेने के पश्चात् हम ये बात जान जाते हैं कि हम जीवन वृक्ष हैं। उत्क्रान्ति का अर्थ सर्वप्रथम ये जान लेना है कि कुण्डलिनी ही जीवन वृक्ष है जिसे हमारे वायु तथा प्रकृति को अपने आकार की शान तथा अपनी छाया की उदारता दर्शाएगा। अन्दर सशक्त होना है। आत्म-साक्षात्कार हमें न केवल जीवन बनने की शक्ति प्रदान करता है बल्कि शक्ति प्रदान करके सुदृढ़ बनाकर उन्नते भी करता है। उत्क्रान्ति का अर्थ है आत्मा के प्रकाश के माध्यम से जीवन वृक्ष के सौन्दर्य की अनुभूति करना और इसके कार्य और स्वभाव का आनन्द लेना। वृक्ष उन्नति किस प्रकार करें? एक वृक्ष की तरह, पूरी सहजता एवं निर्लिप्तता पूर्वक। कुण्डलिनी इस वृक्ष का जीवन रस है। उन्नत होने के लिए आवश्यक है कि कुण्डलिनी अपनी शक्ति को उत्थान पथ पर प्रसारित करती रहे और हमारे सहस्रार तक बार-बार जाकर अपनी शक्ति को बनाए रखे। जितना अधिक कुण्डलिनी उठेगी, जितनी अधिक शक्तिशाली वह होगी उतने ही अधिक उन्नत हम होंगे। जिस प्रकार वृक्ष के अन्दर जीवन रस बहता है वैसे ही दिव्य चैतन्य लहरियाँ हमारे अन्दर प्रसारित होती रहती हैं और हमारे जीवन तथा उत्क्रान्ति को प्रभावशाली बनाती हैं। हमारा चित्त उत्क्रान्ति को प्रवर्तित करता है-इसको आगे बढ़ाता हैं। ये चित्त पथ प्रदर्शक बनकर हमें बताएगा कि किस प्रकार और किस सीमा तक जड़ें बढ़ रही हैं और हमारे अन्तस में गहरी उतर रही हैं। अतः उत्क्रान्ति का अर्थ आदिशक्ति की दिव्य चैतन्य लहरियों से स्वयं को पोषित होते देखना है जब हम देखते हैं तो सुधार कर सकते हैं और सुधरने पर उन्नत होते क्योंकि इस अवस्था में हम स्वयं को उस जड़ की तरह से चट्टान के चहुँ ओर घूमते हुए देखते हैं आत्मोन्नति होती है परन्तु आनन्द के बिना किस जो पृथ्वी में गहरा उतरने के लिए नया रास्ता खोजने में प्रयत्नशील है इस प्रकार से उन्नत होनेहमारी उत्क्रान्ति का इन्जन है, इसके बिना कैसे 1 परन्तु हमारे अन्दर उन्नत होने की इच्छा भी होनी चाहिए। अन्यथा जीवन रस किस प्रकार हैं, प्रसारित होगा कुण्डलिनी का पोषण पाकर कार कुण्डलिनी का पोषण हो सकता है? आनन्द 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-18.txt अंक : & 2-2006 चैतन्य लहरी 15 हम उत्क्रान्ति पा सकते हैं? और आनन्द हमारी और बाहर की ओर उन्नत होकर हम अन्य लोगों आत्मा की अभिव्यक्ति है। किस प्रकार उन्नत हों? को यही प्रेम एवं करुणा दिखाने का प्रयत्न करते अपने हृदय को आत्मा के आशीरर्वाद के लिए खोलकर सर्वशक्तिमान परमात्मा के परमेश्वरी नियमों लिए पहले हमें अपने अन्दर उन्नत होना होगा। के सम्मुख स्वयं को समर्पित करने मात्र से। तब कुण्डलिनी के माध्यम से, उसे सशक्त बनाकर, हम उन्नत होते हैं क्योंकि उन्नत होने में हमें अपने चक्रों को स्वच्छ एवं दृढ़ करके अपनी आत्मा आनन्द आता है और अपनी उत्क्रान्ति की सहजता में हमें अपनी जड़ों की गहनता, कोपलों की शक्ति का एहसास होने लगता है और हम अपनी आन्तरिक विनम्रता हमारा सम्बन्ध श्रीमाताजी से स्थापित एवं बाह्य उन्नति का आनन्द लेते हैं। आन्तरिक और बाह्य उत्क्रान्ति हमारे निर्वाण के दो पहिए बन जाते हैं। है। अतः दूसरों के प्रति अपने प्रेम को बढ़ाने के से एकरूप होना होगा। आन्तरिक उन्नति हमें विनम्र करती है और करती है, जो कि शाश्वत प्रेम और परमेश्वरी सौन्दर्य का सार तत्व हैं। आन्तरिक उत्थान हमें शान्ति एवं आनन्द से परिपूर्ण कर देता है और अपनी आत्मा की आवाज़ को सुनने की योग्यता और आत्मा की गरिमा महसूस करने का एहसास अपनी उत्क्रान्ति के विषय में जब हम जागरूक होते हैं और उन्नते होने की इच्छा जब हमारे अन्दर होती है तो हम अन्य लोगों से प्रेम करने लगते हैं क्योंकि आँधी और तूफानों को देने की शक्ति देता है क्योंकि हम अपनी प्रेममयी चुनौती देने वाली जड़ों की ताकृत को हम अनुभव माँ की अथाह करुणा को अपने हृदय में आत्मसात करते हैं और धूप और वर्षां से सुरक्षा प्रदान करने वाली डालियों की छाया के सौन्दर्य को भी हम महसूस करते हैं। उन्नत हुए बिना हम प्रेम नहीं कर सकते और प्रेम के बिना उन्नत नहीं हो सकते। होने के लिए विवश करता है, परन्तु बाह्य उत्थान सर्वप्रथम हम अपने अन्दर उन्नत होते हैं क्योंकि सबसे पहले हमें स्वयं को प्रेम करना पड़ता है और नहीं प्राप्त होगी तो बाह्य उत्थान लुप्त हो जाएगा। स्वयं का सम्मान करना पड़ता है। केवल तभी हम बाह्य में उन्नत हो सकते हैं ताकि अपने हृदय में लोगों को प्रेम कर सकते हैं। एकत्र किए हुए प्रेम को बाँट सकें। अन्य लोगों के लिए प्रेम हमारे हृदय से बहना चाहिए और डालियाँ जड़ों द्वारा पोषित होनी चाहिए। जड़ें अंकुर को शक्ति देती हैं और अंकुर जड़ों को पृथ्वी के गर्भ में गहरा उतरने में सहायता देते हैं। व्यक्ति का अपनी आत्मा के प्रति प्रेम दूसरों की आत्मा को भी उनके अन्दर चमकाता है और वह चमक हमारे हृदय में ज्योतित सामूहिक आनन्द केवल एक है। प्रेम एवं निस्वर्धथ पूर्वक प्रतिबिम्बित होती है यह आन्तरिक एवं आा्य उत्क्रान्ति का सन्तुलन अपने अन्दर उन्नत होकर हम श्रीमाताजी के प्रेम श्रीरूणा की अभिव्यक्ति अपने अन्दर देखते हैं प्रदान करता है। बाह्य उत्थान हमें क्षमा माँगने और ति कर लेते हैं बाह्य उत्थान हमें अपने भाई-बहनों से बाँधने वाले सभी तन्तुओं का सृजन करता है। आन्तरिक उत्थान, बाह्य उत्थान को स्वतः अभिव्यक्त को यदि आन्तरिक उत्थान का पोषण और देखभाल आत्मा को प्रेम किए बिना किस प्रकार हम अन्य आन्तरिक रूप से उन्नत होने के लिए हमें बाहर भी अपना प्रेम प्रसारित करना होगा और अपनी आत्मा की अभिव्यक्ति से बाह्य प्रेम को बनाए रखना होगा आन्तरिक और बाह्य उन्नति का सन्तुलन हमें यह एहसास करवाता है कि उत्क्रान्ति हमारी प्रेममयी माँ की शाश्वत गरिमा एवं प्रकाश से (Arneau de Kalbermatten) है। (निर्मला योग से उद्धृत एवं अनुवादित) ह 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-19.txt परमेश्वरी माँ के कथन आत्म-साक्षात्कार के पश्चात् आप सबको कुण्डलिनी और सहजयोग का काफी ज्ञान प्राप्त हो 1. 1 जाता हैं। परन्तु भक्ति के बिना आप सन्तुलन प्राप्त नहीं कर सकते। आपको भक्ति में खो जाना होगा भक्ति भावनाओं को समृद्ध करती है। विना आलोचना किए अन्य सहजयोगियों को महसूस करें। मैं आप सवका, आपके सौन्दर्य और गरिमा का आनन्द ले रही हूँ। काश कि आप सब लोग भी ऐसा ही कर सकते और स्वयं को समुद्र के अन्दर बूँद सम मान पाते। भक्ति आपकी कोणिकताओं और सामूहिक एकता के मार्ग में आने वाली बाधाओं को समाप्त करेगी। मेरे बच्चो, आप वास्तव में मेरे सहस्रार से उत्पन्न हुए है। अपने हृदय में मैने आपका गर्भ 2. धारण किया और अपने ब्रह्मरन्घ्र के माध्यम से मैने आपको जन्म दिया है। मेरे प्रेम की गंगा आपको सामूहिक चेतना के साम्राज्य में बहाकर ले आई है। मेरे मानव शरीर के लिए यह प्रेम बहुत अधिक महत्त्व पूर्ण है। यह आपका पोषण करता है। आपको सहलाता है और सुरक्षा प्रदान करता है। शनैः-शनैः यह कृपा और आनन्द की चेतना में आपको ले जाता है। परन्तु ये प्रेम आपको सुधारता है और आपकी कांट-छाट (prunes) भी करता है। यह आपका पथ-प्रदर्शन और निर्देशन करता है। सच्चे ज्ञान के रूप में यह स्वयं को प्रकट करता। है। ये आपके झटके झेलता है और मार्गदर्शक पत्ते की तरह सत्य की कठोर डगर पर आपको स्थापित करता है। आध्यात्मिक बुलन्दियाँ पाने की आपकी इच्छाओं को प्राप्त करने के लिए यह आपको शक्ति प्रदान करता है। *** 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-20.txt सहजयोग का अलिखित इतिहास (पिछले अंक से आगे) आरम्भिक दिनों की पूजाएं इस प्रकार कहा जाना चाहिए, आपका उच्चारण गलत है।" तो पूरी पूजा के दौरान वे निर्देशन करती रहती। "अब हम पानी लेंगे, अब हम ये लेंगे, अब हम वो लेंगे।" वास्तव में यदि श्रीमाताजी पूजा का निर्देशन न करती होतीं तो सम्भवतः हम कभी हमें पूजाओं का ज्ञान न था। पूजा के विषय में हम कुछ भी न जानते थे पूजा करवाने के लिए श्रीमाताजी को अपने साथ एक ब्राह्मण पूजा पूरी न कर पाते। क्या हम ऐसा कर पाते? (Gail Pottinger) लाना पड़ता था। माँ पहले उसे आत्मसाक्षात्कार देती और फिर पूजा करवाने को कहर्तीं । हम लोग वहाँ मात्र बैठे रहते और वह ब्राह्मण मन्त्र बोलता क्या आप आ सकते हैं, हम पूजा करेंगे १६७७ की गुरु पूजा मेरी पहली पूजा थी। मुझे याद है एक बार मैं अपने काम पर गया हुआ और सभी कुछ करता। जब आरती का समय आता तो हमें आरती के विषय में कुछ भी ज्ञान न था। हमारे पास भारतीय फिल्म का एक रिकार्ड था जिस पर सिगरेट पीती हुई अमेरिका आई एक भारतीय लड़की की तस्वीर थी। वह लडकी भटक गई थी परन्तु बाद में उसे अपनी गलतियों का अहसास हुआ और वह भारतीयता की ओर लौटी। हम इस रिकॉर्ड को बजाते और इसके साथ-साथ तालियाँ बजाते रहते। ये सबको दुआ देने की धुन थी। परन्तु ये मूल आरती थी इस प्रकार से पूजा होती थी। हम पूजा करने की विधि नहीं जानते, किसी भी कार्य को करने का ज्ञान हमें न अचानक गोविन की पत्नी जेन ब्राऊन का फोन था, आया और उसने कहा कि क्या तुम आ सकते हो, हम पूजा करेंगे? मैं नहीं जानता था कि पूजा क्या होती है। अत: मैं आ गया। हम कोई आठ-नौ लोग थे और एक भारतीय पुजारी भी था। उसका नाम सतपाल है। अब तो कुछ दिनों से वह दिखाई नहीं दिया जो भी हो पहली बार मैं पूजा देख रहा था। मैं वहाँ बैठ गया। इस्लामिक पृष्ठ भूमि से आए हुए व्यक्ति का इस प्रकार से बैठना उसके लिए एक नया अनुभव था। था। (Djamel Metouri) (Pat Anslow) वह गुरु पूजा पहली थी जो गोविन ब्राऊन के फ्लैट पर हुई। श्री माताजी की एक तस्वीर जिसमें उन्होंने गुलाब के फूल हाथों में पकड़े हुए थे। मुझे याद है कि श्रीमाताजी को वो गुलाब भेंट करते हुए कहा था, "श्रीमाताजी सावधान रहिए, इन फूलों में काटे हैं।" उन्होंने कहा, "मुझे काँटे भी लेने हैं।" उन्होंने फूल लिए और फिर कहा, "क्या माँ ये सारी मर्यादाएं सिखाया करती थीं। वो हमें बतातीं कि किस हाथ से क्या करना है कब रिकॉर्ड चलाना है। इस प्रकार वे पूजा को निर्देशित करतीं। (Malcolm Murdoch) तुम मेरा प्रवचन टेपरिकार्ड कर सकते हो। मुझे पूजा में वे लोगों को रोक कर कहती, "नहीं, मन्त्र 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-21.txt : 1 & 2 -2006 18 बैतन्य लहरी अंक याद है कि पहली बार उन्होंने यह औपचारिक श्री कृष्ण पूजा थी । हमने श्रीमाताजी के चरण कमल धोए और आज की तरह से पूजा की, टेप करने की क्या आवश्यकता है हम सब तो यहाँ हालांकि पुजा सामग्री इतनी नहीं थी जितनी आज होती है। यह पूजा उतनी सम्पूर्ण पूजा न थी प्रवचन दिया था। मैं सोचने लगा था, "प्रवचन को उपस्थित हैं।" इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे अन्दर वहाँ घटित होने वाली चीजों के विषय में कितनी चेतना थी। जितनी आज की पूजाएं होती हैं। (Djamet Metouri) (Pat Anslow) हमारे पास कोई सूत्र न था इंग्लैण्ड में ऑक्सटैड सरे के समीप श्रीमाताजी के घर में पूजा हुई। शाम के समय वे एक बड़े कागज़ पर बनाए हुए चक्र हमारे सम्मुख थे हर चक्र का मन्त्र कहते हुए हम उस चक्र पर अक्षत और पुष्प समर्पण कर रहे थे। हमें घर के अन्दर से बाहर बगीचे में लाई और वहाँ हमने हवन किया वे हमारे चक्र स्वच्छ करने का अत्यन्त दिलचस्प बात थी कि यह पूजा एक प्रकार से बहुत छोटी पूजा थी क्योंकि हम केवल नौ या दस लोग थे। इस पूजा से श्रीमाताजी की खींची हुई एक तस्वीर है जिसमें श्रीमाताजी ने अपने चरण कमलों से पकड़े हैं। प्रयत्न कर रही थीं। हम सब लोग वहाँ खड़े हुए थे। अचानक उनके मुँह से निकला "अब ठीक है, हुए पुष्प That's it" तेज़ हवा चली जिसने सारे पत्तों को बिखेर दिया। हमें ऐसे लगा मानो ईसा- मसीह के चहूँ ओर उनके शिष्य खड़े हैं । चाहे जो भी हो हर मुझे पूरा स्मरण नहीं है कि ये मेरी पहली पूजा थी। परन्तु मुझे अच्छी तरह से याद है कि वर्ष 1977 में यह मेरी पहली गुरु पूजा थी जिसमें आज के दो-तीन हजार लोगों के स्थान पर केवल दस समय वे हमें स्वच्छ करने के लिए कठोर परिश्रम किया करती थीं हमारी बाधाओं को लिए वो सभी प्रकार की विधियाँ अपनाती थीं। दूर करने के लोग थे। ये पूजा गोविन ब्राऊन के घर की बैठक में हुई थी। (Maureen Rossi) वास्तव में आज हम जिस प्रकार से पूजा करते हैं, ये पूजा उससे बिल्कुल भिन्न प्रकार से की गई थी। आज हम सीधे देवी की पूजा करते हैं बाद में उनके घर पर हमने एक और पूजा की। ये पूजा वास्तविक पूजाओं की तरह से थी। इसमें पंचामृत तथा अन्य सभी सामग्रियाँ थीं। सितम्बर 1977 के समीप उनके घर पर जो गोष्ठी हुई थी। और उनका पद प्रक्षालन करते हैं। उस समय हम उनके चरण धोते तो थे परन्तु पूजा के लिए हम चक्रों का चार्ट इस्तेमाल करते थे और चक्रों पर भेंट अर्पण करते थे। इसके अतिरिक्त गर्मियों में अन्य पूजाएं उस समय ये पूजा की गई। ये Hurst Green Oxted था। मुझे ये बात अच्छी तरह से याद क्योंकि Pat का बेटा Kevin भी वहां उपस्थित था। भी हुई। एक पूजा मेरे घर पर भी हुई जब श्रीमाताजी (St. Albans) सेन्ट अलबन्स आई, ये उस समय वह बहुत छोटा था। (Djamel Metouri) 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-22.txt अंक : । & 2 -2006 19 धेतन्य लहरी बिठाया। इनमें एक डच लड़का और मैं थे श्रीमाताजी ने हमें बताया कि हमारी दोहरी जिम्मेदारी है। बाकी नए लोग हमारे पीछे बैठे थे, हमने उनकी की। उन्होंने अपने हाथ हमारे कन्धों पर रख उस पहली पूजा पर हम लगभग बारह लोग थे। मेरा बेटा Kevin भी वहाँ था। वह बदतमीजी करता और मुझे उस पर बहुत क्रोध आता। श्रीमाताजी उसे मेरे से दूर ले जातीं, मुझे शान्त करती और Kevin की देखभाल करतीं। श्रीमाताजी को हमारे पूजा लिए और इस प्रकार हम एक दूसरे से जुड़ गए। हमें इस बात का बिल्कुल भी ज्ञान न था कि हम क्या कर रहे हैं, श्रीमाताजी ने कदम-कदम पर हमारा मार्गदर्शन किया, पद प्रक्षालन, अमृत, चरणों लिए सब कुछ करना पड़ा। हमारे पास तो इसका सूत्र तक न था। (Pat Anslow) पर कुमकुम एवं चन्दन का तेल लगाना और पुष्प चढ़ाना। अंत में लोग श्रीमाताजी का फोटो खींचने के लिए इस प्रकार से दौड़े मानो हमें कुचल देंगे। सामीप्य और घनिष्ठता श्रीमाताजी के ऑक्सटैड के घर में परिदृश्य (Landscape) और पर्यावरण से जुड़ी हुई बहुत सी चीजें मुझे याद हैं। ऑक्सटैड में जो सामीप्य एवं घनिष्टता थी, आरम्भिक सहजयोगियों से जो हमारे हाथों पर उनके पैर पड़े। (Marilyn Leate) शूरवीर सूर्यमुखी के फूल के लिए गरिमा का एक उनके सम्बन्ध थे, वे मुझे याद हैं। पूराने सहजयोगी इन चीज़ों के बारे में बहुत बातें करते है। उदाहरण क्षण एक वर्ष श्रीमाताजी क्रिसमस के लिए लन्दन में रुर्कीं। क्रिसमस की पूर्व संध्या को बर्फ पड़ी तो श्रीमाताजी ने कहा कि क्योंकि Kevin सफेद के रूप में हम अजवायन जलाते तो वे चादर में हर सहजयोगी को धूनी लेने के लिए अपने पास बुलाती। सभी खाँसते और वे कहतीं, "क्या परेशानी हैं?" (What's wrong), उन पर इस धूनी का बिल्कुल भी असर न होता! क्रिसमस चाहता था इसलिए बर्फ पड़ी है। चैलशम रोड आश्रम की रसोई की खिड़की के पास हमने एक सूर्यमुखी का पौधा लगया था। ज्यों-ज्यों महीने गुजरते गए ये पौधा लम्बा होता चला गया। (Kevin Anslow) परन्तु इस पर कोई फूल न आया। जब दिसम्बर का महीना आया, मैं हैरान थी क्योंकि सूर्यमुखी का पौधा बर्फ को बदयश्त नहीं कर पाता और प्रायः मुझे लगा कि मेरे पास कोई सूत्र नहीं है। श्रीमाताजी की पहली पूजा जिसमें मैं सम्मिलित हुआ वह 1978 की गुरु पूजा थी। उत्तरी लन्दन के Finchley अक्टूबर नवम्बर तक सूर्यमुखी के पौधे मर जाते हैं। ये 1980 या 81 का वर्ष था । अभी तक ऋतु ने इस पूजा की अधिकतर तैयारी की। वे परिवर्तन और ग्रीष्म का आरम्भ नहीं हुआ था। के एक सभागार में ये पूजा हुई। निवासी भारतीयों अत्यधिक मेहमाननवाज़ थे और उनकी विनम्रता, मेहमाननवाज़ी और भारतीय संस्कृति ने मुझे आश्चर्य चकित कर दिया। उन्होंने हम सभी नए नए लोगों को श्रीमाताजी की पूजा करने के लिए बुलाया और दिसम्बर के मध्य में भी ये पौधा मरा नहीं था और इस पर एक फूल उगने लगा था। इंग्लैण्ड की सर्दियां तेज ठण्ड और अन्धेरे में यह आश्चर्य था । क्रिसमस की सुबह यद्यपि बर्फ पड़ रही थी, फिर भी ये फूल खिल उठा। हमने इसे तोड़ा और जिस जन्मजात आत्मसाक्षात्कारी बच्चों को सबसे आगे 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-23.txt 20 चैतन्य लहरी अक : 1 & 2 - 2006 वे चैतन्य लहरियाँ देख रही थीं आरम्भिक दिनों की ईसा-मसीह पूजा थी। यह हैम्पस्टैड के सर्वधर्म मन्दिर में हुई। श्रीमाताजी ने कमरे में क्रिसमस पूजा के लिए श्री माताजी आई उसमें रखे क्रिसमस वृक्ष की चोटी पर इसे लगा दिया। शूरवीर सूर्यमुखी के फूल के लिए यह मुझे अपने लिए एक तस्वीर दी तथा अन्य पुराने सहजयोगियों के लिए उन्होंने अन्य चीजें दी। गरिमा का क्षण था। फूल जब बढ़ रहा था तो श्रीमाताजी प्रायः उसके पास से गुजरा करती थीं क्योंकि उन दिनों वे चैलशम रोड आश्रम सप्ताह में उनके पास बहुत सी चीजें थी। सर सी. पी. की बहुत सी पुरानी चीजें भी थीं उनकी उपयोग की हुई टाईयाँ थीं जिन्हें श्रीमाताजी ने अच्छी तरह से बिल्कुल वैसे ही पैक किया था जैसे वे बाजार में होती हैं। भिन्न-भिन्न तरह की टाईयाँ भी थीं परन्तु सभी एक ही प्रकार से पैक की गई थीं । उनमें भेद नहीं किया जा सकता था। अतः श्रीमाताजी एक बार अवश्य आती थीं। (Linda Williams) वे हमारा गहन अध्ययन कर रहीं थी मुझे याद है कि क्रिसमस पूजा थी, मैं 1979 के ये उपहार दे रही थीं। वे जिसे उपहार देती वह अन्त में आया था। अतः सम्भवतः ये वर्ष 1980 था, लेकर चला जाता। एक जोड़ा उपहार उन्होंने और दिए और फिर बोली, "नहीं उसे मत ले जाओ | श्रीमाताजी ने बहुत से उपहार दिए थे। उन दिनों पूजा अत्यन्त कठोर और कष्टकर कार्य हुआ करती थी। आत्मा तो इसे प्रेम करती थी परन्तु बाकी की हर चीज़ दर्द से कराह उठती थी। जब कृपया इनमें से एक मुझे लौटा दो। उससे वापिस लेकर यह उन्होंने दूसरे व्यक्ति को दी और वापिस करने वाले को एक अन्य टाई दी। उसने वह टाई खोलकर देखी । यह टाई बिल्कुल उस सूट पर फबती थी जो उसने पहना हुआ था। अत्यन्त श्रीमाताजी ने उपहार दिए मैं उनके पास गया तो ऐसे लगा मानो वे केवल चैतन्य लहरियाँ देख सकती हों। वे इतनी खोई हुई थीं। उनकी अवस्था हैरानी की बात है। श्रीमाताजी व्यक्ति की ओर नहीं देख रही थीं, वह तो चैतन्य लहरियाँ देख रही थीं और जानती थीं कि चैतन्य लहरियाँ ठीक नहीं है। अतः उन्होंने चैतन्य लहरियों को ठीक किया। इस प्रकार से यह कार्यान्वित हुआ। इतनी आश्चर्यजनक थी कि वे लोगों को देखती और ऐसे लगता मानो वे किसी को जानती ही न हो। परन्तु वास्तव में वे सभी के विषय में उससे भी कहीं अधिक जानती थी जो वे थे। वे हमारा गहन अध्ययन कर रही थीं। उन्होंने मुझे तीन उपहार (Douglas Fry) दिए, तीन उपहार। मैं हैरान था परन्तु क्या करता? देवी स्तुति गान :- उन्होंने ये उपहार मुझे पकड़ा दिए थे। उपहार एक समय था जब हम पूजा किया करते थे तो पूरा लेकर मैं उनके प्रेम को अनुभव करता हुआ देर रात को अपने घर की ओर जा रहा था उनके दिए हुए पूजा प्रातः काल आरम्भ होती थी और दिन चलती रहती थी। एक विशेष पूजा के आरम्भिक दिनों में, हमने बाहर एक हवन किया। देवी के सहस्र नाम की एक संस्कृत की पुस्तक थी। मेरे उपहार प्रतीकात्मक थे। आज भी मैंने इन्हें सम्भालकर है। रखा हुआ (John Glover) श्री 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-24.txt अंक :& 2 -2006 21 चैतन्य लहरी तो अत्यन्त हैरानी की बात थी कि जहाँ हमने श्रीमाताजी को अर्पित की गई वस्तुएं दबाई थीं वहाँ से बहुत तेज प्रकाश निकलता हुआ तस्वीरों में विचार से श्रीमाताज़ी की स्तुति करने के लिए यह पहली पूजा थी जो पार्क लेन्डज हर्स्ट ग्रीन स्थित उनके घर पर हुई। चारों ओर बैठकर हम हवन सामग्री अर्पित कर रहे थे और श्रीमाताजी स्वयं नाम पढ़ रही थीं। वो कहने लगी कि अजीब बात है कि देवी स्वयं आपके सम्मुख देवी की स्तुति पढ़ रही है, ये बड़ी अनहोनी बात है। उनके सिवाय देवी के नामों को पढ़ने वाला कोई अन्य वहाँ न आया, उस समय तक हमें चमत्कारिक तस्वीरों का कोई ज्ञान न था। मैंने सोचा शायद कैमरे में कोई कमी थी। (Linda Williams) मानो ये कोई दुर्लभ भोजन हो- वास्तव में हम श्रीमाताजी को उन दिनों में (इंग्लैण्ड में पूजाओं के अवसर पर) बहुत ही घटिया खाना भेंट किया करते थे वे दुर्लभ पदार्थ समझकर सब था। जब हम वहाँ पर थे वहाँ बाहर बहुत ठण्ड थी। वर्ष के अन्तिम दिन थे, पूरा आकाश एक बड़े शून्य की तरह से खुला हुआ था। आकाश में बहुत अँधेरा था लेकिन जिस स्थान पर हम बैठे हुए थे उसके ऊपर आकाश में पूरा प्रकाश था। चैतन्य लहरियों ने आकाश को खोल दिया था। कुछ खा लेती थीं। है: वो हमेशा यही कहतीं कि कितना अच्छा खाना हाँ वो ऐसा ही कहती थीं और मैं सोचता वास्तव में (Douglas Fry) खाना बहुत अच्छा है। खाने में पुराने भूरे रंग के चावल बने होते थे परन्तु श्रीमाताजी उन्हें ऐसे मैंने सोचा कि कैमरे में कोई दोष है चैलशम रोड पर जो पहली पूजा हमने की वह भूमि पूजा थी। घर को आशीर्वादित करने के लिएखाती थीं मानो ये कोई दुर्लभ भोजन हो। गृहणी होने के नाते मुझे श्रीमाताजी को घर की ड्रयोढ़ी में भिन्न चीजें अर्पण करने के लिए बुलाकर सम्मानित किया गया मेरे गर्भ में मेरा दूसरा बच्चा था और गर्भ के अन्तिम दिन थे। श्रीमाताजी हमने एक पूजा की। इससे पूर्व मैंने प्रारम्भिक पाठों दरवाजे पर खड़ी थीं और मैंने उनके चरण कमलों पर अक्षत और अन्य चीजें अर्पण किए। सभी लोग हॉल के रास्ते पर और बगीचे में घेर कर खड़े हुए सफाई पर लगा दिया श्रीमाताजी जब आई तो वे थे ज्यों ही हमने पूजा समाप्त की श्रीमाताजी ने मुझे एक ओर ले गईं वे मुझ पर प्रसन्न थी । कहा कि उन्हें अर्पित की गई चीजों को दसवाजे के दाई ओर दरवाजे और खिड़की के बीच की जमीन भूत सबको इधर-उधर दौड़ा रहे हैं और सफाई में गाड़ दें एक वर्ष पश्चात् मैं दरवाजे की सीढ़ियों पर बैठे हुए कुछ बच्चों के फोटो लेने लगी। खिड़की के साथ एक छोटा सा लॉन बना हुआ था मैंने वहाँ फोटो लिए। फोटो जब विकसित किए गए (Kay Mchugh) उनके हृदय एवं चक्र शुद्ध थे में से एक पाठ पढ़ा। चैलशम रोड आश्रम इसका एक प्रकार का पाठ था। मैंने सबको आश्रम की 1 उन्होंने मुझसे कहा कि मेरे अन्दर के अतिचेतन करवा रहे हैं, यद्यपि मैं बाहर से स्वच्छ हूँ परन्तु अन्दर से मेरे चक्र अत्यन्त अस्वच्छ हैं। श्रीमाताजी ने कहा, कि सहजयोगियों का आश्रम यद्यपि कुछ अस्वच्छ है परन्तु उनके हृदय और चक्र स्वच्छ हैं। 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-25.txt 22 अक : 1 & 2 - 2006 चैतन्य लहरी एक अच्छी चीज़ भी बताई जा सकती है। पूजा के बाद हम बारी-बारी श्रीमाताजी के पास जाते थे। बारी-बारी हम उनके सम्मुख घुटनों पर बैठते और अपना सिर उनके चरण कमलों पर रख देते और अदा करने की कोई जरूरत नहीं " आरम्भिक दिनों में श्रीमाताजी ने ये बात कही थी कि हमें ऐसा नहीं करना। यही बात उन्होंने वर्ष 1984-85 में पुनः कही माँ ने इस वे हम पर कार्य करतीं। मेरी प्रथम पूजा के अवसर पर जब मैं उनके चरण कमलों पर झुकी तो उन्होंने मुझे बताया कि एक दिन मैं बहुत से अन्य लोगों को सहजयोग दूंगी। श्रीमाताजी का ये वचन, जो वास्तव में सत्य हुआ, बाद में कठिनाईयों के समय विषय पर बात करनी शुरु की या हो सकता है इस विषय पर बात की। आरम्भ में उन्होंने इस पर बल नहीं दिया मैं ऐसा इसलिए कह रही हूँ क्योंकि कई वर्षों के पश्चात् कुछ घटनाएं घरटीं इन मेरा सम्बल बना रहा। घटनाओं ने उस सारे समय पर प्रकाश डाला जिसमें श्रीमाताजी ने कुछ भी न कहा था। (Linda Williams) मर सहजयोग में श्रीमाताजी बहुत वर्षों तक देखती ही रहीं, एक प्रकार से वे हमारे बन्धनों को उन्होंने हमारे बन्धन देखे लगभग सभी लोगों के साथ ऐसा होता है कि जब वो सहजयोग में आते हैं तो प्रायः अपने साथ पूर्व देखती रहीं। छोटी-छोटी चीजों के प्रति हमारे मोह धर्म बंधन लेकर आते हैं। ऐसे लोग प्रायः श्रीमाताजी का चित्त अपने धर्म की ओर आकर्षित करने का प्रयत्न करते हैं क्योंकि उनमें एक इच्छा होती हैं कि श्रीमाताजी उनकी पीठ थपथपाते हुए कहें, "इस्लाम के बारे में मुझे बताकर तुमने कितना अच्छा कार्य किया!" आदि को वे देखती रहीं। उन्होंने देखा कि किस प्रकार हम अपने देशों से भिन्न प्रकार के बन्धन साथ लेकर आते हैं। (Djamel Metouri) -आदि। आप उनकी उपस्थिति को महसूस कर सकते हैं बाद में हमने संस्थानों में, होटलों में या संगोष्ठी स्थानों पर पूजाएं करनी आरम्भ कीं। परन्तु जब 1979-80 में मैं सहजयोग में आई तो आरम्भ में अधिकतर पूजाएं ज। मेरे विचार से एक बार जब रुस्तम (Bujorjee) मध्य पूर्वी देशों से वापिस आए, तो वे कहा करते थे, " के अन्त में हम नमाज़ या लोगों के घर पर होती थी मुझे पूजा ऐसा कुछ और क्यों नहीं करते?" एक दिन श्रीमाताजी ने कहा, "ठीक है कि नमाज़ पढ़ना याद है कि ब्राइटन में पामेला (Bromley) के घर पर हमने बहुत सी पूजाएं की और वहाँ श्रीमाताजी के साथ रहना भी मुझे याद है। श्रीमाताजी चाहे ऊपर की मंजिल में होतीं या किसी अन्य कमरे में होतीं, आप उनकी उपस्थिति को महसूस कर सकते थे कि वे घर में मौजूद हैं और उनकी उपस्थिति आपको अपने आचरण के प्रति जागरूक ठीक है, परन्तु नमाज तो तुम तब भी पढ़ते हो जब तुम्हें परमात्मा का ज्ञान न था।" आपको क्योंकि परमात्मा का ज्ञान न था इसलिए उनके सभीप आने के लिए सम्भवतः तुम्हें कुछ अभ्यास करने पड़े। "परन्तु अब आप परमात्मा को जानते हैं, हैं। अब आपको नमाज़ परमात्मा आपके कर देती और मस्तिष्क में चलते अपने विचारों के सम्मुख 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-26.txt अंक : । & 2 - 2006 23 चैतन्य लहरी की तरह से था जैसे मेरे पैर में कील ठोक दिया विषय में भी आपको सावधान करतीं। कभी आपको लगता कि आपके मस्तिष्क में किसी विशेष विचार का होना ठीक नहीं है। इस विचार का आपके गया हो ! किसी तरह से मैंने अपने अन्दर दोष भाव नहीं आने दिया ये मात्र रिकार्डिंग थी । (Vicky Halperin) मस्तिष्क में बना रहना खतरनाक है क्योंकि आप देवी के सम्मुख उपस्थित हैं । मैंने एकदम से पीठ मोड़ी और वहाँ के स्थानीय (Felicity Payment) दुकान पर जाकर मेहदी के शहद का एक जार खरीदा। वापिस आया और वो शहद श्रीमाताजी को भेंट की गई। उन्होंने कहा, "ओह! ये बढिया ा ब्राइटन में गणेश पूजा श्रीमाताजी किसी व्यक्ति पर कार्य कर रही थीं । के बाद काफी भीड़ थी। उन्होंने लोगों के आज्ञा चक्र स्वच्छ करने के लिए शहद मॉँगा जिसे वह चैतन्यित कर सकें। हैरानी की बात थी वहाँ उपस्थित एक व्यक्ति के पास है।" (Chris Marlow) ताकि उनके हृदय खुल सके मैं नहीं जानता की ऐसा क्यों था? भआरतीयों की से शहद का एक अत्यन्त सुन्दर बर्तन भरा हुआ था जिसे वह किसी अच्छे भोज्य पदार्थों की तरह से धोती पहनने के लिए मैं श्रीमाताजी के दुकान सम्मुख खड़ा था। उनके पास धोती थी। वे धोती को मेरे इर्द-गर्द लपेटती गईं और यह पायजामे जैसी चीज बनकर रह गई| इसे क्या कहते हैं? हाँ, खरीद कर लाया था। श्री माता जी ने कहा, "नहीं, ये अच्छी नहीं है, ये की शहद है और बबूल के पेड पर ईसा बबूल मसीह को क्रूसारोपित किया गया था। बबूल भयानक काँटेदार पेड़ होता है। धोती। वे हमें बता रही थीं कि धोती किस प्रकार बाँधनी है । का उन्होंने कई युग हमारे साथ बिताएं क्योंकि उन दिनों में यद्यपि कम लोग होते थे, औपचारिकता (Chris Marlow) ये बात अच्छी तरह याद रखने का कारण ये है कि छोटी होती थीं यद्यपि बहुत कम थी, पूजाएं बहुत जो पूजाएँ हम करते थे वो बहुत लम्बी होती थीं परन्तु जो पूजाएं वो स्वयं करती थीं वो बहुत छोटी होती थी। आज भी बह बहुत छोटी है। परन्तु पूरी सन्ध्या वे हमारे साथ बिताया करती थीं ताकि हम मैंने बबूल (Acacia) की शहद खरीदी थी। खाना बनाने के लिए उपयोग होने वाला सामान मैंने पॉल के घर से खरीदा था और हम थोक विक्रेता और कई अन्य स्थानों पर गए थे। ये शहद बबूल का अपना मनोरंजन कर सकें। मेरे विचार से वे ऐसा किया करती थीं क्योंकि हम हर समय बहुत दुखी शहद था। (Chris Marlow) हुआ करते थे। अतः हमें हँसाने के लिए वे अजीब- अजीब कार्य किया करती थी। धोती बाँधना ऐसा ही एक कार्य था, लोगों को वस्त्र पहनाना, उनसे कार्य करवाना, ताकि उनके हृदय खुल सके। श्रीमाताजी ने जब शहद और बबूल के बारे में ये टिप्पणी की। तो मेरे पैर में भयानक दर्द हुआ मानो 1 वास्तव में मेरे पैर में कोई कील ठोका जा रहा ही। श्रीमाताजी बोली, "क्या बात है?" यह क्रूसारोपण (Ray Harris) 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-27.txt परम पूज्य श्रीमाताजी का प्रवचन (कांस्टीट्यूशन क्लब, नई दिल्ली) 10-2-1981 यहाँ कुछ दिनों से अपना जो कार्यक्रम रहे हैं। आप साधक हैं साधक होना भी एक श्रेणी होता रहा है उसमें मैंने आपसे बताया था कि है, एक Category (श्रेणी) है । सब लोग साधक नहीं होते। हमारे ही घर में हम तो किसी से नहीं हमारे अन्दर स्थित है। जो भी मैं बात कह रही हूँ कहते कि आप सहज योग करो या सहजयोग में ये आप लोगों को मान नहीं लेनी चाहिए । लेकिन आओ किसी से भी नहीं कहते। सिवा हमारे और हमारे नाती पोतियों के कोई भी सहज योगी नहीं है। लेकिन जो नहीं है वो नहीं है. जो हैं सो हैं । अगर कोई खोज रहा है, उसके लिए सहजयोग है देखना चाहिए, सोचना चाहिए और पाना चाहिए। जो साधक है उसके लिए सहज योग है । हरेक आदमी के लिए नहीं। आप तो जानते हैं कि दिल्ली में सालों से हम रह रहे हैं और हमारे पति भी यहाँ रह चुके हैं। लेकिन हमने अभी तक किसी से भी हमारे पति के दोस्त या उनके पहचान वाले या रिश्तेदार से, बात-चीत भी नहीं करी और बहुत लोग हैरान हैं कि हमको मालूम नहीं था कि यही माता जी निर्मला देवी है जिनको हम दूसरी तरह 1 कुण्डलिनी और उसके साथ और भी क्या-क्या इसका धिक्कार भी नहीं करना चाहिए। क्योंकि ये अन्तरज्ञान आपको अभी नहीं है। और अगर मैं कहती हैँ कि मुझे है. तो उसे खुले दिमाग से दिमाग जरूर अपना खुला रखें । पहली तो बात ये है कि सहज योग कोई दुकान नहीं है। इसमें किसी प्रकार का भी वैसा काम नही होता है जैसे और आश्रमों में या और गुरुओं के यहाँ पर होता है कि आप इतना रुपया दीजिए और मेम्बर (सदस्य) हो जाइए। यहाँ पर आप ही को खोजना पड़ता है, आप ही को पाना पड़ता है और आप ही को आत्मसात करना पड़ता है। जैसे कि गंगाजी बह रही हैं, आप गंगाजी में जायें, इसका आदर करें, उसमें नहाएं-धोएं और घर चले आएं। अगर आपको गंगा जी को धन्यवाद देना हो तो दें, न दें तो गंगाजी कोई आपसे नाराज़ नहीं होती। एक बार इस बात को अगर मनुष्य समझ ले, कि यहाँ कुछ भी देना नहीं है सिर्फ लेना ही है, तो एक तरह की गहनता आ जाएगी। जब लेना होता है, जैसे कि प्याला है, उसमें तभी आप डाल सकते है जब उसमें गहराई हो। और जब लेने की वृत्ति होती है तब मनुष्य उसे पा सकता है। से जानते हैं। तो सहज योग जो चीज़ है, इससे आपको लाभ उठाना है पहली बात। इस बात को अगर पहले आप समझ लें कि कि आपको कुछ पाना है। परमात्मा को भी आप कुछ नहीं दे सकते और सहजयोग को भी आप कुछ नहीं दे सकते उनसे लेना ही मात्र है। लेकिन माँ की दृष्टि से मुझे ये कहना है कि अगर लेना है तो उसके प्रति नम्रता रखें अपने में गहनता रखें और इसे स्वीकार करें। माँ जो होती है वो समझ के बताती हैं। ये नहीं कि आपकी हर समय परीक्षा लँ और आपको मैं परेशान करूँ और फिर देखें कि आप इस योग्य जगह जा चुके हैं क्योंकि आप परमात्मा को खोज हैं या नहीं, या पात्र हैं या नहीं। दूसरे ये भी बात दूसरी बात ये है कि आप लोग अनेक 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-28.txt चैतन्य लहरी 25 अक : । & 2 - 2006 कुण्डलिनी शक्ति हमारी जो महाकाली की इच्छा शक्ति है उसका शुद्ध स्वरूप है। पूर्ण है कि माँ बच्चों को जानती अच्छे से हैं। जानती हैं कि इनमें क्या दोष है, क्या बात है, किस वजह से रुक गये उसको उसकी मालूमात गहरी होती है बहुत और वो समझती है कि किस तरह से बच्चे को भी ठीक किया जाए, कहीं डॉटना पड़ता है, तो डॉट भी देगी। जहाँ दुलार से समझाना पड़ता है, समझा भी देती है। और ये सिर्फ माँ का ही काम है और कोई कर भी नहीं सकता। मुश्किल काम है और किसी के लिए करना क्योंकि ये सारा काम शुद्ध स्वरूप है। मतलब ये कि एक ही इच्छा मनुष्य को होती है संसार में जब बो आता है। उसका शुद्ध स्वरूप है कि परमात्मा से मिलन हो और दूसरी उसे इच्छा नहीं होती। ये उसका शुद्ध स्वरूप है। और जब ये इच्छा कुण्डलिनी स्वरूप होकर के बैठती है तो वो मनुष्य का पूरा पिण्ड बनाती है- पर अभी इच्छा ही है। इसलिए पूरा बनाने पर भी वो इच्छा ही बनी रहती है क्योंकि उसकी जो इच्छा है वो जागृत नहीं है। इसलिए इच्छा पूरी की पूरी वैसी ही बनी रहती है और वो प्यार का है। आज मनुष्य इतने विप्लव में और इतनी आफत में है, इतने दुःख में और आतंक में बैठा हुआ है इस कदर उस पर परेशानियाँ छाई हुई हैं कि इस वक्त और भी किसी तरह की परीक्षा इन पर दी जाए, ऐसा समय नहीं है और ये माँ ही समझ सकती है कि बच्चे कितनी आफतें उठा रहे हैं, उनको कितनी परेशानियाँ हैं और किस तरह से उनका भार उठाना चाहिए और उनके अन्दर किस तरह से प्रभु का अस्तित्व माँ ही कर सकती है। अपनी इच्छा छाया की तरह आपको संभालती रहती है कि देखो इस रास्ते पर गए हो तो यहाँ वो इच्छा पूरी नहीं होगी, जो सम्पूर्ण शुद्ध आपके अन्दर से इच्छा है वो पूरी नहीं होगी, उस इच्छा को पूरी किए बगैर आप कभी सुख भी नहीं पा सकते। सारा आपका पिण्ड जो है वो इसीलिए बनाया गया जागृत करना चाहिए। ये कि वो इच्छा पूर्ण हो जिससे आप परमात्मा को पाएँ कुण्डलिनी के बारे में जो कहा गया है कि "कुण्डलिनी आपके अन्दर स्थित आपकी माँ है, जो हजारों वर्षों से आपके जन्म होते ही आप में प्रवेश करती हैं और वो आपका साथ छोड़ती नहीं, जब पर महाकाली शक्ति को जब आप इस्तेमाल करने लगते हैं तो आपकी महाकाली की शक्ति में जो उसका कार्य है वो बाहर की ओर होने लग जाता है। मानो आपकी इच्छाएँ जो हैं वो बाहर की ओर जाने लग जाती हैं। आप ये सोचते हैं कि मैं ये चीज़ पा लूँ। जब आपका चित्त बाहर जाता तक आप पार न हो जाएँ। वो प्रतीक रूप आपकी माँ ही है।" यानी ये कि समझ लीजिए 'प्रतीक रूप आपकी महा- माँ' की एक छाया है, छवि है एक प्रश्न यह जो किया था किसी ने कि माँ आपने कहा था कि पूरी रचना हमारी करनी के बाद पिण्ड की पूरी रचना करने के बाद भी वो वैसी की वैसी ही बनी रहती है, इसको किसी तरह से उसका भी एक कारण है जिसके कारण आपका चित्त बाहर जाता है । जो मैंने कहा था कि वो ज़रा विस्तारपूर्वक बताना होगा । जब. क्योंकि आपका चित्त बाहर की ओर जाने लगता और जैसे-जैसे आप बड़े होने लग जाते हैं और भी वो बाहर की ओर जाने लग जाता है। इसकी वजह से जो शुद्ध इच्छा आपके अन्दर है जिसको कि विद्या समझाया जाए। वो आज मैं बात आपको समझाऊँगी कि किस तरह से होता है। शुद्ध कहते हैं और शुद्ध आपके अन्दर जो अन्तरतम् 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-29.txt अंक : 1 चैतन्य लहरी & 2-2006 26 इच्छा है वो एक ही है कि 'परमात्मा से योग घटित आपके ध्यान ही में नहीं आता है कि आपकी हो' वो कार्यान्वित नहीं हो पाती। सिर्फ आप ये ही वास्तविक इच्छा पूरी नहीं हुई है और आप गलत सोचते रहते हैं कि हम इसे पाएँ, उसे पाएँ, उसे रास्ते पर चल रहे हैं। जब तक आप बहुत पायें। इसलिए वो जैसी की तैसी बनी रहती है। नहीं खाते हैं. जब तक आपका सारा पैसा नहीं लुट इसीलिए इसे Residual energy (अवशिष्ट ऊर्जा) कहते हैं। ठोकरें जाता, जब तक आप पूरी तरह से बर्बाद नहीं हो जाते, आपके ध्यान में ये बात नहीं आती। बहुत बार लोगों ने मुझे कहा कि माँ आप अब ये जो आपकी शुद्ध इच्छा है ये ही किसी भी गुरु के बारे में कुछ भी मत कहिए। मैंने कहा कि ऐसा ही हुआ कि कोई मेरे बच्चों की गर्दनें काटे और मैं न कहूँ कि ये गर्दन काट रहे हैं। ये कहे बगैर कैसे होगा, आप ही बताइये? आप माँ-बाप भी हैं, आप बताइये कि अगर आप जानते हैं कि कोई आदमी आपकी ये इच्छा हमेशा के लिए मन्त्रमुग्ध कर देगा और आपको विचलित कर देगा, हमें इस चीज़ से पूरा हो जाएगा। किसी चीज़ से आपकी कुण्डलिनी को एकदम से ही वो जकड़ पूरा हो जाएगा। सो नहीं होता। पर बहुत बार ऐसा देगा या उसको ऐसा कर देगा कि वो freeze हो जाए (जम जाए) एकदम, तो क्या कोई माँ ऐसी बहुत बार और जगह दौड़ने लग जाती है तब होगी जो नहीं बताएगी? इस मामले में बहुतों ने मुझे डराया भी, धमकाया भी। कहा कि आपको कौई गोली झाड़ देगा। मैंने कहा झाड़ने वाला अभी पैदा में ये बता देते हैं कि ये इच्छा किस तरह से पूर्ण नहीं हुआ। मुझे देखने का है। ऐसा आसान नहीं है हो जाती है। लेकिन बहुत से अगुरु भी इस संसार मेरे ऊपर गोली झाड़ना। वो तो ईसा मसीह ने एक नाटक खेला था इसलिए उस पर चढ़ गए, नहीं तो ऐसा वो सबको मार डालते कि सबको पता चल आपको खींचकर इधर से उधर ले जाती है और आप दर-दर पे ठोकरें खाते हैं, कर्मकाण्ड करते हैं, इधर ढूँढते हैं, किताबें पढ़ते हैं और आप अपने अन्दर धारणा बना लेते हैं कि परमेश्वर का पाना ये होता है, परमेश्वर का पाना ये होता है। जब तक आप उसे पाते नहीं आप इच्छा को सोचते हैं कि भी होता है कि महाकाली शक्ति जो है जब हमारी कभी-कभी कोई गुरु लोग भी या ऐसे लोग भी या ऐसे लोग कि जो बहुत पहुँचे हुए लोग हैं इस मामले में हैं बहुत से दुष्ट लोगों ने भी गुरु धारण कर लिया है और इसी वजह से बो आपकी इस इच्छा को मन्त्रमुग्ध कर देते हैं माने कुण्डलिनी को तो कोई छू नहीं सकता, किन्तु आपकी जो महाकाली की जो शक्ति है उसको मन्त्रमुग्ध कर देते हैं। वो जाता। लेकिन वो एक नाटक खेलने का था, इसलिए उस वक्त ये काम हुआ। मन्त्र मुग्ध होने के कारण आपकी जो वास्तविक इच्छा परमात्मा से योग पाने की है वो करके अब, हमको ये सोचना चाहिए कि जब हमारी ये शुद्ध इच्छा है कि परमात्मा से योग होना है, तो कुण्डलिनी जागृत करने के लिए क्या करना चाहिए? ऐसा बहुत बार लोगों ने कहा है। हालाँकि हर लैक्चर में मैं कहती हूँ कि ये जीवन्त क्रिया है, इसके लिए आप कुछ नहीं कर सकते आप' नहीं कर सकते इसका मतलब नहीं कि मैं नहीं कर छूट आप सोचते हैं कि ये जो अगुरु हैं जिसने हमको मन्त्र मुग्ध किया है, ये ही उस इच्छा को पूरा कर देगा। इसको पूर्ण कर देगा। और इसलिए आप उस चीज़ से चिपक जाते हैं। और जब आप मन्त्रमुग्ध की तरह 'उससे चिपक जाते हैं तब 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-30.txt चैतन्य लहरी अंक : । & 2-2006 27 सकती। इसका मतलब यह नहीं कि सहजयोगी नहीं कर सकते। अधिकारी होना चाहिए । जैसे एक डॉक्टर है जो कि (ऑपरेशन) operation करना समझ लीजिए सोचता है कि हमने बहुत बड़ा काम किया। आपने क्या काम किया, उनसे पूछिए तो बतायेगा कि साहब मैंने मकान बनाया, घर बनाया और बच्चों की शादियाँ कर दीं या कोई बड़ा भारी जानता है, वो ही ऑपरेशन कर सकता है। पर आदमी अगर इस तरह का काम करें कोई दूसरा तो लोग कहेंगे कि 'ये खूनी है और इतना ही नहीं वो खून ही कर डालेगा. क्योंकि उसको मालूमात ही नहीं उस चीज़ की। जिसको इसकी जानकारी नहीं है, जो इस बारे में समझता नहीं है उस को कुण्डलिनी में पड़ना नहीं चाहिए। उस का तमगा मिल गया। मैंने aeroplane (हवाई जहाज़) बना दिया और कोई चीज़ बना दी, मैं बड़ा े भारी Prime Minister (प्रधान मन्त्री) हो गया। सब भी एक मिथ्याचरण है। मिथ्या बात है। क्योंकि ये शाश्वत नहीं है, सनातन नहीं है, शाश्वत नहीं है। ये कोई आदमी, आज बड़े-बड़े अफसर हो जाते हैं। हम भी अफ़्सरी काफी देख चुके हैं और जैसे भी नहीं । जब आप सहजयोग में पार हो जाते हैं ही अफसरी खत्म हो गयी तो कोई पूछता उसके बाद इसके नियम शुरु हो जाते हैं, जो परमात्मा के दरबार के नियम है-जैसे आप हिन्दुस्तान में आए तो आपको हिन्दुस्तान सरकार के नियम पालने पड़ते हैं। उसी प्रकार जब आप परमात्मा के साम्राज्य में आए तो उसके नियम आपको पालने पड़ते हैं। और अगर आप वो नियम न पालें तो आपके वाइब्रेशन हाथ से वाइब्रेशन छूट जायेंगे, बार-बार आप पहले जैसे होते रहेंगे, जब तक आप पूरी तरह से इसको अपने ऊपर पूरा प्रभुत्व न पा जाए। जब तक आपने अपनी आत्मा को पूरी तरह से नहीं पाया, आप पाइएगा वाइब्रेशन आपके छूटते जाएँगे क्योंकि ये वाइब्रेशन आपकी आत्मा से आ रहे हैं। बड़ा आश्चर्य है अगर आपका transfer (तबादला) ही हो गया तो कोई नहीं पूछता। आपने मकान बना लिया. आपने देखे हैं कितने बडे-बड़े खण्डहर पड़े हुए हैं। और न कोई जानता है कि ये है क्या बला कहाँ से आई, क्या हुआ। बड़ी-बड़ी ऐसी चीजें खत्म हो चुकी है। छूट जायेंगे। बार- बार वो एक बार मैं गयी थी आपके आगरा के fort ( किला) में । तो रात बहुत बीत गयी वहाँ। और कुछ special (खास) हमें दिखाने का इन्तजाम था तो बहुत रात हो गयी। और वो कहने लगे जब भीड़ जाएगी तब आपको ठीक से दिखाएँगे। बहुत कुछ चीजें दिखाईं। जब लोग लौट रहे थे तो मैंने देखा कि बिल्कुल 'सब दूर अँधेरा है । सब आत्मा जो है उसको सत् चित्त आनन्द कहते हैं। माने वो सत्य है। सत्य का मतलब ये है कि वो ही एक सत्य है, बाकी सब असत्य है । बाकी सब ब्रह्म है ब्रह्म जो है वो भी उन्हीं की शक्ति है और जो कुछ उनके अलावा है-आत्मा, ब्रह्म इसके अलावा जो कुछ भी है बो असत्य है। जितनी भी उस बक्त में चहल-पहल रही होगी। रानियों ने क्या-क्या काम किये होंगे और परेशान किया होगा अपने नौकरों को कि ये मेरे कपड़े नहीं ठीक हैं। राजाओं ने परेशान किया होगा। बड़े-बड़े वहाँ पर दावतें हुई होंगी। उसके लिए झगड़े हुए होंगे। पता नहीं क्या-क्या किया होगा इन लोगों ने उस ज़माने में सब एक दम फिजूल है कुछ नहीं सुनाई दे रहा था अब वो आवाज़ खत्म हो चुकी असत्य माने ये हैं कि एक आदमी है 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-31.txt अंक :। & 2 -2006 चैतन्य लहरी 28 लेकर के वो आता है वो करुणा में फिर से जन्म लेता है। सिर्फ करुणा में जन्म लेता है । लेकिन वो मोक्ष अपने साथ लेकर के आता है। उस सनातन थी वहाँ। कुछ भी नहीं था। एकदम अँधेरा चारों तरफ छाया हुआ। और जब हम बाहर आ रहे थे बिल्कुल बाहर आये तो रोशनी थी नहीं खास। एक साहब के पास ज़रा-सी Torch (टॉच) थी, उससे सभी लोग देखकर बाहर आ रहे थे। बाहर आते वक्त देखा कि एक चिराग की रोशनी जल रही थी। उस चिराग की रोशनी में हम बाहर आए, तो पूछा कि भाई चिराग यहाँ किसने जला कर रखा? मैंने पूछा कि किसने चिराग यहाँ जलाया? कहने को पाना चाहिए। और जब हम इस बात को जान लेते हैं कि हमें सनातन को पाना चाहिए, तब हमारा जो व्यवहार है, सहजयोग के प्रति, बदल जाता है। जो लोग पार हो गये हैं उनको पता होना चाहिए कि हमें 'स्थित' होना पड़ता है। मैंने कल बताया था कि पार होने के बाद क्या करना चाहिए। 'स्थित' होने के लिए उसके नियम हैं । जैसे आप जानते हैं अगर Aeroplane (हवाई जहाज़) है इसको पहले जब आप testing (परीक्षण) करते हैं तो उडाते हैं, देखते हैं कि इसका Balance लगे कि यहाँ पर एक मजार हैं, एक पीर की मजार है और ये पीर बहुत पुराने हैं। कितने पुराने? कहने लगे कि जब ये किला भी नहीं बना था, उससे पुराने। अच्छा, तब से इस पर दिया ज़लता रहता है। सब लोग यहाँ माथा टेकने जाते हैं । (सन्तुलन) कैसा है । ये ठीक से चल रहा है या नहीं चल रहा है। उसको बार-बार grounding कराते हैं, फिर उसको उड़ाते हैं, फिर देखते हैं। उसी प्रकार जब आपकी कुण्डलिनी जागृत भी हो गई और आप पार भी हो गए और माना कि आप पार हो गए, और आपके अन्दर से वाइब्रेशन शुरु होने लगे तो फिर आपको ज़रूरी है कि आप अपने ये सनातन है। पीर हो जाना सनातन है। ये शाश्वत है बाकी सब असत्य है सब गुम हो गया है. खत्म हो गया, शून्य हो गया, लीन हो गया। आज कोई आकाश में उछल रहा है, कल देखा तो वो गर्द में पड़ा हुआ है। आप रोजमर्रा ही देखते हैं अपने ही आँखों के सामने आपने देखा है कि कितनी बार ऐसा हुआ। इतना पचास साल में इस भारतवर्ष में हुआ है, कभी नहीं हुआ था। सबसे को ज़रा-सा देखें और समझे कि क्या है। अब, सबसे जो बड़ी गलती हम लोग करते ज्यादा उथल-पुथल इसी पचास साल में हुई है। इससे आप समझ सकते हैं कि ये सनातन नहीं है। हैं पार होने के बाद पहली गलती ये है, कि हम इस ये कोई-सी भी चीज़ सनातन नहीं, जिसके पीछे आप दौड़ रहे हैं। दौड़-धूप कर रहे हैं। आज बड़े कभी-कभी शंकाऐं भी बहुत लोगों को आती हैं । भारी आदमी बन कर धूम रहे हैं; आपका ठिकाना कहते हैं 'भई कैसे हो सकता है, माँ ने हमको नहीं। कल आप रास्ते के भिखारी बने होंगे जो चीज सनातन नहीं है उसके पीछे हम क्यों दौड़ें? जो चीज़ सनातन है उसे पाना चाहिए। जब के बारे में सोचना शुरु कर देते हैं। तो उसमें mesmerise (सम्मोहित) भी कर दिया होगा तो क्या पता? हो सकता है कि गड़बड़ ही हो गया होगा, हम कैसे ऐसे हो सकते हैं? हमने तो सुना था इसमें बड़ी-बड़ी दिक्कतें होती हैं, हम ऐसे आसानी आदमी Realization (साक्षात्कार) पा लेता है तो वह खोता नहीं। जब उसका जन्म होता है तो से कैसे पार हो गए? ठण्डी हवा आ गयी तो क्या समझना चाहिए कि क्या बड़े भारी हम पार हो गए? Realization के साथ वो दूसरी चीज मोक्ष, मोक्ष 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-32.txt अंक :। & 2-2006 चैतन्य लहरी 29 सिर्फ आप क्या नहीं कर सकते कि ये एक त्रिकोणाकार अस्थि में अगर आप स्पन्दन देखें तो मानना चाहिए कि कुण्डलिनी है स्पन्दन आप नहीं कर सकते कहीं भी फिर उसका उठता हुआ स्पंदन आप देख सकते हैं। सब में नहीं. क्योंकि कोई अगर बढ़िया लोग हों तो उनमें जरा भी पता नहीं चलता, खट से कुण्डलिनी उठ जाती है। पर बहुत-से लोगों में इसका स्पन्दन दिखाई देता है। उसका अनहत् पर बजना सुनाई देता है तो कबीरदास जी ने बहुत अच्छा कहा है कि 'शून्य शिखर पर अनहतु बाजे रे। शून्य शिखर पर', यहाँ (सहस्रार) पर अनहत् का बजना आप सुन सकते हैं। शून्य शिखर पर अनहत् बाजे रे। तो उसको आप देख सकते हैं, बज रहा है क्या? कोई गुरु है, कहते हैं हम नाच रहे हैं, भगवान का नाम लेकर के "नाचि रे-नाचि रे. भई, ये क्या तरीका है? सीधा हिसाब बताइये, कि नाचना, गाना, ये आनन्द इसमें आप नाच सकते हैं, कूद सकते हैं ऐसा में मनुष्य करता है, लेकिन वो करना परमात्मा को पाना नहीं है। वो हो सकता है कि मनुष्य पाकर के ये कैसे हुआ? पहली गलती ये है कि इसके बारे में आप सोच नहीं सकते। सोचने से आपके वाइब्रेशन खट से खत्म हो जाएँगे। आपको अगर हम हीरा दें और आपको कहें ये आपके पास हीरा है। आप उस पर क्या करेंगे? आप जौहरी के पास जाकर पूछेंगे कि भई ये हीरा है क्या?" कम से कम इतना तो आप करेंगे। क्या घर में बैठे-बैठे सोचकर हीरे को कोई फेंक देगा? जब रोजमर्रा के जीवन में हम लोग इस तरह से अपना ध्यान लगाते हैं, तब जो हमारे परम की बात है, उसमें ये ध्यान रखना चाहिए कि अगर हमने परम पाया है तो आखिर ये कैसे जाने कि ये परम है या नहीं? और इसमें शंका करने कौन-सी बात है? बहुत-से गुरु लोग हैं., आपसे कहेंगे कि होता है, कुण्डलिनी में, वैसा होता है, ये होता है। ये सब चीजें आप बैसे भी कर सकते हैं। माने नाचना कोई मुश्किल काम नहीं, कूदना कोई मुश्किल नहीं, मेंढक जैसे चलना भी कोई मुश्किल नहीं है । और आजकल एक गुरुजी हैं वो उड़ना सिखा रहे हैं। तो लोग अपने foam (फोम) में बैठकर ऐसे उड़ते हैं, सोच रहे हैं कि वो हवा में उड़ रहें हैं । ऐसा सोचना भी मुश्किल नहीं है। घोड़े पर भी लोग कूद करके बैठ जाते हैं। जरा कोशिश करने से आ जाता है वो भी। ये भी कोई मुश्किल नहीं है। वो भी आप कोशिश करें तो कर सकते हैं। और आप गा रहा हो या नाच रहा हो। लेकिन पाया तो नहीं अभी तक। पाना तो कुण्डलिनी के ही जागृति से होता है । उसके बगैर हो नहीं सकता। और कुण्डलिनी सहज ही में जागृत होती है । माने ये कि spontaneous (सहज) है. याने ये living process (जीवन्त प्रक्रिया) है। आपका evolutionary process है (उत्क्रान्ति प्रक्रिया) और आप आज उस evolutionary process के अन्तर्गत ऊपर उठ जाते हैं। आपकी उत्क्रान्ति (evolution) जो है. वो चल रहा है। अभी आप इन्सान एक तार पर भी चल सकते हैं, सरकस में जैसे चलते हैं या आप कुलाबाजी कर सकते हैं। ये भी आपने करते देखा है और कर सकते हैं। अगर आप कोशिश करें तो सब धन्धे आप कर सकते हैं। इन्सान से आप अतिमानव हो जाते हैं। जब इस तरह से बात आपने समझ ली कि जो काम हम ऐसे कर सकते हैं वो परमात्मा क्यों करेंगे, वो तो हम कर ही सकते हैं। वो तो अब वो काम करेंगे कि अ 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-33.txt अंक :1 चैतन्य लहरी & 2-2006 30 Prophesy ( भविष्यवाणी) की थी कि ये काम है। विशेष कर ज्ञानेश्वरजी ने साफ कहा था कि महायोग होने वाला है। विलियम ब्लेक नाम के एक बड़े भारी कवि ने बहुत सहजयोग के बारें में बताया है, जो ये घटना घटने वाली है। जो हम नहीं कर सकते। तब फिर इसमें सोचने की बात क्या है? हाथ में ठण्डी - ठण्डी हवा आनी शुरु हो गयी इसके बारे में भी सब शास्त्रों में लिखा हुआ है। कोई नयी बात नहीं है। चैतन्य की लहरियाँ, ये ब्रह्म की शक्ति है। लेकिन इस पर आप सोच करके क्या करने वाले हैं? आप सोच करके भी कौन-सा प्रकाश डालने वाले हैं? क्योंकि आपकी बुद्धि तो सीमित है, और मैं तो असीम की बात कर रही हूँ! तो, जो चीज घटने वाली है होने वाली है उस के बारे में उन्होंने कहा था। और आज जब वो घट गई तो उसके बारे में अगर हम बता रहे हैं तो बहुत से लोग ये भी सोचते हैं कि ये तो कहीं लिखा नहीं गया किताबों में। ये क्योंकि समझ लीजिये कोई कहे कि आप चन्द्रमा पर गये किसी ने लिखा था कि चन्द्रमा पे कैसे बहुत गलत धारणा है। अगर आप समझ लीजिए यहाँ से, चन्द्रमा में चले गए तो बहाँ जाकर के देखना ही है न कि आप सोचकर बैठे कि भई चन्द्रमा पर जाएँ तो ऐसा होना चाहिए, वैसा होना चाहिए। उससे फायदा क्या? आप जाइए और देखिए। जो चीज़ है उसका जाया जाएगा? जिस वक्त आप उसे करेंगे तभी तो आप लिखेंगे। इसलिए इस तरह की धारणायें लेकर के मनुष्य अपने को रोक लेता है। साक्षात् करना चाहिए। पर जो महत्त्वपूर्ण, जो बड़ा है, वो ये है, अब, जब आपके अन्दर में ये शुरु हो गया, तब दूसरा बड़ा भारी नियम सहजयोग का है। उसको समझना चाहिए कि आज का सहजयोग पहला नियम ये कि इसके बारे में आप सोच नहीं सकते ये सोच विचार के परे हैं, निर्विचार में है, असीम की बात है। दूसरी जो बात इसकी बहुत ही महत्त्व पूर्ण है कि "सहजयोग की क्रिया आज महायोग बन गई हैं।" पहले एक ही दो फूल आते थे पेड़ पर। एक ही फूल। वो ज़माना और था। हुई। जब यह हैं ही नहीं, तो कैसे समझेंगे? लेकिन उस ज़माने में इतना ज्यादा कोई ज्ञान देता भी पार होने पर ये पता होता है कि एक ही माँ ने नहीं था। कहीं किताबों में भी लिखा नहीं है, किसी हमको जन्म दिया है । अब जैसे लोग पार हैं, अगर को कोई बताता भी नहीं था । समझ लीजिए हम अपने हाथ में फूँकें तो आपको भी फूँक कबीरदास जी ने भी कहा है तो उन्होंने सिर्फ आएगी। अगर हम कोई सुगन्ध, ये लोग scent अपना ही वर्णन किया है कि भई मेरे 'शून्य शिखर (इत्र) वगैरह लगायें तो आपको सुगन्ध आएगी चाहे पर अनहत् बाजे रे और मेरे ऐसे-ऐसे ईड़ा पिंगला सुषुम्ना नाड़ी' वरगैरा है। पर इतना गहराई से पूरी तरह से हमसे connected (जुड़े) हों, तो। आधे बताया नहीं क्योंकि उन्होंने ये काम किया नहीं था. उसके बारे में निवेदन किया था, उसके बारे में एक-दो आदमियों का नहीं है। यह सामूहिक चेतना का कार्य है इसको लोग समझ नहीं पाते। यह point (बात) क्या है, इसको समझना चाहिए। जैसे हम कहें आप भाई-बहन हैं और आप एक-दूसरे को भाई-बहन समझें यह तो ऊपरी बात कहनी आप यहाँ हों चाहे इग्लैण्ड में हों पर सहृजयोग में अधूरे लोगों को नहीं होता लोग कहते हैं माँ suddenly ( अचानक) कभी एकदम से खुशबू आने 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-34.txt अंक 2-2006 31 :। & चैतन्य लहरी शुरू - शुरु में ऐसा लगेगा कि एक उँगली जरा प्रत्यंग हैं। ये जब तक आप समझ नहीं लेंगे पूरी हरकत कर रही है, पता नहीं क्या? आप उनसे पूछिये कि आपको बहुत जुकाम होता है, आपको कोई शिकायत है. ऐसी तकलीफ है? कहने लगे हाँ भई क्या बतायें, तुमको कैसे पता?' कहने लगे मेरी ये उँगली पता नहीं क्यों काट सा रही थी? ये लग जाती है। क्योंकि सब एक ही विराट के अंग 1 तरह से, तब तक आपको मुश्किल रहेगी । अब बहुत-से लोगों को मैं देखती हूँ कि "मैं घर में ले जाऊँगा माँ और वहाँ मैं करूँगा। बहुत-से लोग तो यहाँ आने पर भी सोचते हैं कि हम बड़े भारी अफ्सर हैं। हम यहाँ कैसे? बहुत-से लोग यहाँ इसलिए नहीं आते हैं कि हम बड़े भारी subjective knowledge 6, subjective H 3IT का knowledge (ज्ञान)। Subjective ऐसा अगर शब्द इस्तेमाल करें तो इसका मतलब होता है कि दिमागी जमा-खर्च मतलब एक आदमी है-साहब मैं इसे जानता हूँ, मैं उसे जानता हूँ। अफ़सर है। पर जहाँ लोग mesmerise (सम्मोहित) करते हैं, और गन्दे काम करते हैं. वहां सब मोटरें लेकर पहुँच जाते हैं। तब कोई शर्म नहीं। घोड़े का नम्बर पूछना हो तो वहाँ पहुँच जायेंगे सब, मोटरें लेकर। लेकिन ऐसी जगह जहाँ परम का कार्य हो रहा है, वहाँ मैं देखती हूँ कि लोगों को शर्म आती हैं आते हुए। या तो कुछ लोग डरते भी है। ये Absolute Knowledge (पूर्ण ज्ञान) है, ये 3 Absolute (qui) absolute knowledge है जो एक आदमी एक बात कहेगा वही दस आदमी कहेंगे अगर वो सहजयोगी हैं. तो। दस छोटे बच्चे अगर Realised Souis है-ये experi- ment लोग कर चुके हैं-उनकी आँख आप बाँध कर रखिये और किसी आदमी को सामने बैठा दीजिये बताइये, कहने लगे इनके वाइब्रेशन्स, डरने की कोई बात नहीं। अपनी माँ है। हम तो सबकी माया जानते हैं, किसी भी तरह का मामला हो, हम ठीक कर सकते हैं । तो डरने की कौन सी बात है? इसलिए माँ का स्वरूप है न कहाँ पकड़ आ रही है। सबके सब उसके लिए बतायेंगे ये उँगली में पकड़ आ रही है। 'सब' । हमारा। उसको ऐसा समझना चाहिए कि प्रेम का स्वरूप है, और उसमें डरने की कोई बात नहीं है। 1 इसमें जलन हो रहा है। माने ये कि उसके नाभि चक्र की तकलीफ़ है या उसका लीवर खराब है-वो थोड़ा सीखना पड़ता है। आप यहाँ बैठे हैं किसी भी आदमी के बारे में, कहीं पर है, उसके बारे में भी जान सकते हैं कि इस आदमी को क्या शिकायत है। बैठे-बैठे। ये सामूहिक चेतना में आप जानते हैं आप कोई मृत आदमी के लिए भी जान सकते हैं। कोई गुरु वो सच्चे थे कि झूठे थे, जान ये सामूहिक कार्य को मनुष्य समझ नहीं पाता है, कभी भी। जब तक वो पार नहीं होता। यानि ये कि जब दूसरा आदमी है वो, कोई रह ही नहीं जाता है। 'दूसरा है कौन? सकते हैं। आप कहीं पर जायें और कहें कि यह ये इस तरह से महसूस होता है कि आपके हाथ से ठण्डी -ठण्डी हवा तो चलनी शुरु हुई, और आप जैसे ही दूसरे आदमी के पास में जायेंगे तो जागरूक स्थान है, आप जान सकते हैं कि जागृत है या नहीं। जागृत होगा तो उसमें वाइब्रेशन आयेंगे, जागृत नहीं होगा तो नहीं आयेंगे। 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-35.txt अंक :। & 2 - 2006 32 चैतन्य लहरी तो एक आदमी ज्यादा नहीं बढ़ सकता और एक आदमी कम नहीं हो सकता। जो जो सच्ची बात है, सत्य है बह आत्मा बताता है। इसलिए उसे सत्य-स्वरूप' कहते हैं। और क्योंकि जब आत्मा हमारे अन्दर जागृत हो कभी-कभी सहजयोगियों में भी ये धारणा आ जाती है कि हम सहजयोग में बड़े भारी बन गए। बहुतों में ये आती है। हम तो बड़े ऊँचे आदमी ये चीज़ भी मनुष्य के समझ में नहीं आती। माने हैं जब ऐसी भावना आ जाए तो सोचना चाहिए कि बहुत ही पतन की ओर हम जा रहे हैं। जिसने ये सोच लिया कि हम ऊँचे हो गये, सोच ले कि हम जाता है, तो हमारा जो चित्त है माने हमारा atten- tion है, वो जहाँ जाता है, वो काम करता है। अब कि यहाँ बैठे-बैठे किसी सहजयोगी का चित्त अगर गया कहीं पर, तो चो आदमी ठीक हो सकता है। पतन की ओर जा रहे हैं। क्योंकि जैसे आदमी सच 1 हमारे एक रिश्तेदार हैं उनकी माँ बहुत बीमार रहती थीं बिचारी। और बहुत ही बूढ़ी हो गयी है। तो वो हम से बताते है कि 'अब हम आप से नहीं बतायेंगे क्योंकि बहुत बूढ़ी हो गयी हैं, अब ही में ऊँचा होता है, वैसे-वैसे वो नम्र ही होता जाता है। उसकी आवाज बदलती जाती है। उसका स्वभाव बदलता जाता है। उसमें बहुत ही नम्रता, उसमें प्रेम बहते रहता है। ये पहचान है। अगर कोई सहजयोगी सहजयोग में आने के बाद भी बुलन्द (बड़प्पन) पर आ जाए और कहे 'साहब तुम ये क्या हो, वो क्या तो उसको खुद सोचना चाहिए कि मैं गिरता जा रहा हूँ । लेकिन इसका दूसरा भी अर्थ नहीं लगाना चाहिए, बहुत-से लोगों को ये है। मैंने देखा। एक साहब थे. अमरीका में और उन्होंने उन्हें छुट्टी कराइये आप। जब भी हम बताते हैं वह ठीक हो जाती हैं। ये हमारा अनुभव है कि जब भी हम बताते है ठीक हो जाते हैं। अस्सी साल की हो गयी हैं अब भी फिर वैसे ही हाल हो जाता है। फिर बीमार पड़ जाती हैं फिर आपको बताते हैं, वो ठीक हो जाती हैं। मतलब चित्त जो है, वो जागरूक हो जाता है। जहाँ भी आपका चित्त जाएगा वो कार्यान्वित होता है। जहाँ भी आप चित्त डालें । सहजयोग नाम से केन्द्र चलाए। जब आए तो सबने बताया, माँ ये तो पता नहीं क्या तमाशा है, हम लोग इस पर हाथ रखते हैं और चक्कर खाकर गिर जाते हैं। तो बड़े चक्कर वाला आदमी है, मैंने रही हूँ। फिर मैंने उससे लेकिन इसके लिये पहले अपनी आत्मा में स्थिरता आनी चाहिए। कनेक्शन (योग) पूरा आना चाहिए। समझ लीजिए इसका कनेक्शन ठीक न हो तो मैं थोड़ी देर बात करूँगी, सुनाई देगा, बाकी बात गुल हो जाएगी। यही बात है. इस वजह से आप वाइब्रेशन भी खो देते हैं, आपका जरा कनेक्शन loose (ढीला) हो गया। पहले अपना कनेक्शन ठीक करना पड़ेगा। कहा, 'अच्छा, मैं तो समझ कहा, 'अच्छा जरा अपना Brouchure (पुस्तिका) दिखाओगे? Brouchure में उसने लिखा था कि Vibrations-for ordinary vibration 100 dollars & for 1 special vibrations 250 dollars ( साधारण वाइब्रेशन : सौ डॉलर, विशेष वाइब्रेशन २५० डॉलर) मैंने कहा गये काम से ये तो मैंने उनसे कहा कि ये क्या बदतमीजी है आपकी? आपने कितना पैसा दिया था मुझे, कितने Dolars (डॉलर) दिये थे आपने वाइब्रेशन लेने के लिए जो तुमने ऐसा लिखा, तो कहने लगे कि 'माँ, ऐसा है कि मैं पैसे कैसे लेकिन सामूहिकता की और भी गहनता अपने को समझनी चाहिए कि सारा एक ही है हम है सब अंग-प्नंग दैं। और ननत नम अंग 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-36.txt अंक :। & 2 - 2006 33 चैतन्य लहरी कमाऊँ फिर? मैं खाऊँ क्या?' मैं ने कहा, भूखे कैसे आ गया? दूसरी side (ओर) अमी एक साहब मरो। क्या तुम सहजयोग से पहले कुछ करते थे? कहने लगे, हाँ मैं स्कूल में पढ़ाता था मैंने कहा रहिए. आप बैवकूफ आदमी हैं, बहुत बकवास कर में पढ़ाओ जो करते थे सो करो। लेकिन रहे हैं बेकार में। कहने लगे मैंने ये मिले। मुझसे बकवास करने लगे. मैंने कहा चुप पुराण पढ़ा, मैने स्कूल तुम सहजयोग को बेच नहीं सकते हो। तुम वाइब्रेशन वो पुराण पढ़ा। मैंने कहा आपने कुछ नहीं पढ़ा बेच नहीं सकते। कहने लगा मेरा Centre (केन्द्र) बेकार बातें कर रहे हैं। आपको कुछ पता नहीं है। है, उसमें लोग आते हैं खाना खाते हैं। मैंने कहा ठीक है, खाने का पैसा लो। वाइब्रेशन का क्यों चार पता नहीं क्या-क्या होता है। तो मैंने कहा कि लिखा? लिखो, खाने का इतना पैसा, कमरे का इतना पैसा। उसमें भी आप Profit (लाभ) नहीं बना सकते। ठीक है, जितना लगा उतना खर्चा लो। उसके दम पर तुम अपने महल नहीं खड़े कर सकते। और वाइब्रेशन उसके ऐसे थे कि जैसे जल कुण्डलिनी जागृत है तो आपको गुस्सा नहीं आता। अभी पता हो कि नम्बर दो को चलाते हैं कि नम्बर देखिये आप बेवकूफी की बातें मत करियें दूसरे जो है उनको समझने दीजिये । आप बीच में बकवास मत करिये, आप चुप रहिए। तो कहने लगे देखिये आपको गुस्सा आ गया। आप की अंगर रहा है। बहुत नाराज़ हो गये मेरे साथ और नाराज़ मैंने कहा मेरा गुस्सा मत पूछो तुम। बड़ा ज़बरदस्त होकर के वो चले गये उन्होंने कहा ये तो हो ही नहीं सकता ऐसा। लेकिन सबसे बड़ी बात उस वक्त ये हुई कि उन्होंने बहुत बकना शुरु कर दिया। जब बहुत बकना शुरु किया तो एक साहब हमारे सहजयोगी हैं, उठकर खड़े हो कर कहने लगे, 'ज्यादा बका तो ऊपर से नीचे फेंक देंगे तो हैं। आप वीर श्री पूर्ण, आप तेजस्वी लोग हो जाते कहने लगे 'वाह रे वाह, देखिये ये सहजयोगी हुए हैं, आपके हाथ में तो तलवारें देने की बात है ये हैं। इनमें कोई नम्रता नहीं है। मैंने कहा 'खबरदार जो सहजयोगियों को कुछ कहा या मुझे कुछ कहा होता है जब आए तो। तो फिर जरा सहमे महाशय। लेकिन बात ये है कि इस तरह की भी धारणा लोग कर लेते हैं । आप कोई बिलबिले आदमी नहीं हो जाते | थोड़े कि आप उस वक्त में जितना भी कोई चॉटा मारे आप खायेंगे। वो Christ (येसु) ने कहा कि माफ कर दो। बो दूसरी बात थी, उसका अर्थ ही दूसरा था। क्योंकि उस वक्त लोगों का ये ही हाल था कि एक ही चॉटा कोई नहीं खा सकता था। अब; मैंने सुन लिया बहुत। मैंने कहा वे दिन गये कि सब साधु सन्तों को तुमने सताया था। अगर किसी ने भी एक शब्द कहा है, तो देख लेना उनका ठीक नहीं होगा बहुत लोगों को ये है कि कोई लेकिन पार होने के बाद तत्सण आपमें शक्ति आ अगर साधु सन्त है उसको जूते मारो, तो भी जाती साधु सन्त को कहना चाहिए और दस मारो। ये कुछ नहीं होने वाला। आप अगर एक जूता मारियेगा तो हज़ार आप खाइयेगा। तब वो घबड़ा करके चाहिए कि एक आदमी उठकर के कोई कहे कि मैं भागे वहाँ से। | है। तत्क्षण । तो सामूहिकता को इस तरह से समझना विशेष कर रहा हूँ, एक आदमी सोचे कि मुझे करने का है। एक आदमी सोच ले कि मैं माँ के बहुत नजदीक हूँ, तो इतना वो दूर चला जाएगा क्योंकि ये भी बहुत लोगों में है कि 'आपको गुस्सा 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-37.txt चैतन्य लहरी अंक :। & 2 - 2006 1 & 34 किया कि अगर हम लोग सब मिलकर इस जाल मन्थन हो रहा है। बड़े जोर का मन्थन हो रहा है । शायद आप इसको महसूस कर रहे हैं कि नहीं कर रहे, पता नहीं। जब हम दही को मथते हैं, तो उस का सब मक्खन ऊपर आ जाता है। फिर हम थोड़ा-सा मक्खन उसमें डाल देते हैं यही समझ लीजिए Incamation (अवतार) है, समझ लीजिए, यही समझ लीजिये कि परमात्मा की कृपा है। और उस मक्खन से बाकी सारा लिपट जाता को उठा लें, तो जाल हमारे साथ उठ जायेगा फिर देंगे बाद में, फड़वा देंगे. जाकर इस को किसी तरह से निकाल देंगे। तो कहा, हाँ ठीक है। सब मिलकर के एक, दो, तीन कहकर के उरठे। और सबके सब उठे और जाल को तोड़ दिया उन्होंने। तुडवा वही चीज़ सहजयोग है। सहजयोग की सामूहिकता लोग समझ नहीं पाते हैं, इसलिये बहुत गड़बड़ होता है। माने, माँ, मैं घर में बैठ करके ध्यान करता हूँ। रोज़ पूजा करता हूँ। मेरे वाइब्रेश बन्द हो गये होंगे ही आपको सामूहिकता में आना पडेगा। आपको Centre (केन्द्र) पर आना पड़ेगा। एक दिन हफ्ते में कम से कम सेंटर में आ करके आपको देखना पड़ेगा कि आपके वाइब्रेशन ठीक हैं या नहीं। दूसरों पर मेहनत करनी पड़ेगी। आप दीप इसलिए बनाये गये हैं कि आपको दूसरों को देना होगा इसलिए नहीं बनाए गए कि आप अपने ही घर बनाते रहिये। फिर वही दीप हो है, और सब साथ ही साथ एक ही जैसा चलता है। अब उसमें से कोई सोचे मैं अलग हूँ। एक-आध, दो-चार मक्खन के कण इधर-उधर रह जाते हैं तो लोग फेंक देते है। उसके पीछे में कौन दौडने चला है? 'सब एक हैं और एक ही दशा में हैं"। कोई ये न सोच ले कि मैं ऊँची दशा में हूँ । मैं नीची दशा में हूँ। ऊँची दशा में है. कभी नहीं सोचना। इस तरह से सोचने से बड़ा नुक्सान हो जाता है। यानि आप सोच लीजिये कि जब हम एक ही अंग हैं। अगर एक उँगली सोच ले कि मैं बड़ी हो जाऊँ, नाक मेरी सोच ले कि मैं बड़ी हो जाऊँ। कैसी दिखेगी शक्ल? ये तो malignancy (दोष) है। यही सकता है बिल्कुल बुझ जाएगा। ये दीप सामूहिकता में ही जल सकता है, नहीं तो जल नहीं सकता। ये महायोग का विशेष कारण है कि हम अपने को अलग न समझे। आएँ नम्रतापूर्वक, आप ध्यान में आएँ हो सकता है कि सेन्टर में एक आध आदमी आपसे कहे भी कि भई, ये छोड़ दो, ये नहीं करो तो बुरा नहीं मानना है क्योंकि उन्होंने अनुभव किया है। उन्होंने जाना है कि ये बात गलत है, इसको छोड़ना चाहिए, इसे निकालना चाहिए और जो कुछ भी सेन्टर में कहा जाये उसे करें क्यों कि सेण्टर पर हमारा ध्यान रहता है। तो cancer होता है। cancer में एक अपने को बड़ा समझकर के बाकी cells को खाने लग जाता है। ये हो गया कैंसर। ऐसा जो इन्सान होता है वो अपने को unique (अनोखा) बनाना चाहता है कि सब मेरे ही पास हो जाए. मैं कोई तो भी विशेष हो जाऊँ। मेरा ही कुछ विशेष हो जाये, वो आदमी cancerous हो गया society (समाज) के लिये। सहजयोग की ऐसी स्थिति है, जैसे कि एक मैं कहानी बताती हूँ। कि जैसे एक बहुत -सी चिड़ियाँ थीं और उनको एक जाल में फँसा दिया गया। तो चिड़ियों ने आपस में ये सलाह मशवरा कृष्ण ने भी कहा है कि जहाँ दस लोग हमारे नाम पर बैठते हैं वहीं हम रहते हैं न कि कहीं 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-38.txt अंक : । & 2 -2006 चैतन्य लहरी 35 एक बैठा हुआ वहाँ जंगल में और कृष्ण-कृष्ण कह रहा है। उनको time (समय) नहीं है। कबीर ने कहा कि "पाँचों पच्चीसों पकड़ बुलाऊँ मतलब उनकी भाषा में इतनी Authority ( अधिकार) भी देखिये । कितने अधिकार से बातें करते थे! कोई गिला नहीं था उनमें। वो कहते हैं 'पाँचों पच्चीसों पकड़ बुलाऊँ, एक ही डोर उड़ाऊँ। ये कबीर जैसे लोग बोल सकते हैं। और आप भी कह सकते हैं इसको बाद में। जब आप पार हो जायें तो आप भी देखेंगे कि जब तक पाँचों पच्चीसों नहीं आयेंगे तब एक हमारे शिष्य थे प्रोफेसर साहब राहुरी में। बो जरा अपने को अफ़लातून समझते थे, बहुत ज्यादा। एक बार उन्होंने मुझे बताना शुरु किया कि ये साहब जो हैं ये सहजयोग तों अच्छा करते हैं. बहुतों को पार तो किया लेकिन ज़रा गुस्सा इनको ज्यादा आता है। और इनकी बीवी से इनकी पटती नहीं है दुनिया भर की मुझे शिकायतें करने लग गये तो भी मैं चुप थी। मैंने कुछ नहीं कहा। फिर उन्होंने एक ग्रुप बनाया आपस में, और कहने लगे हम लोग अलग से काम करेंगे। तो भी मैं चुप थी। तीसरे मर्तबा जब गये तो देखा कि वो कह रहे थे कि कुछ हर्ज नहीं थोड़ा-सा तम्बाकू भी खा लें तो कोई बात नहीं, मैं तो खाता हूँ । माता जी को तो 1 तक सहजयोग मुकम्मल (पूर्ण) नहीं होता है। बहुत-से लोग आते हैं, पार हो जाते हैं। उसके बाद जब मैं आती हैं तभी आते हैं। उनकी कुछ पता ही नहीं है। मैं तो खाता हूँ। कोई हर्ज नहीं। तो वो सब तम्बाकू खाने वालों ने एक ग्रुप बना लिया। माताजी के. मतलब, हैं तो सहजयोगी लेकिन तम्बाकू खाने वाले सहजयोगी, शराब पीने वाले सहजयोगी, रिश्वत लेने वाले सहजयोगी, झूठ बोलने वाले सहजयोगी। ऐसे ग्रुप बन गये तो मैंने उनसे कहा-वहाँ पर सिर्फ़ तम्बाकू खाने वालों का था, तम्बाकू बड़ी मुश्किल से छुटती है, बहुत मुश्किल से। तो, उसके बाद जनाबेआली से मैंने फरमाया कि 'देखिये, जरा आप सम्भल के रहिये। बहुत ज्यादतियाँ आपने करलीं हैं। जब जाता है, मैंने तभी कहा, तब malignancy (विष) बहुत जोर करती है। अगर एक ही cell हो तो कोई बात नहीं। लेकिन अगर दस cell हो गये और सब हूँ। हालत कोई ठीक नहीं रहती सहजयोग में वो बढ़ते नहीं, वृद्धिगत नहीं होते। आप पेड़ों के बारे में भी ये अनुभव करके देखें, कि अगर कुछ पेड़ मरगिल्ले हो जाएँ तो उनको और पेड़ों के साथ आप लगा दीजिए, वो पनप जाते हैं। एक दूसरे को शक्ति देते हैं। मानो जैसे कोई एक दूसरे को देखकर के बढ़ते हैं। और यही सामूहिकता ही सर्व राष्ट्रों में और सर्व देशों में फैलने वाली है। और उस दिन आप जानियेगा कि आप चाहे यहाँ रहें, चाहे इंग्लैंड में, चाहे अमेरिका में, या चाहे किसी भी ये ग्रुप बन मुसलमान देशों में या चीनी देशों में, कहीं भी रहें आप सब एक हैं। यही शुरुआत हो गई है, और सहजयोग एक बड़ी संक्रान्ति है। 'सं' माने अच्छी और 'क्रान्ति' माने आप जानते हैं। ये एक कडी भारी evolutionary क्रान्ति है और जो पवित्र क्रान्ति है जो प्रेम से होती है, जो अन्दर से होती है। उसमें सबसे पहले जानना चाहिये कि हम उस विराट् के अंग-प्रत्यंग हैं। हम अलग नहीं। और आप हैरान होइयेगा! इसके इतने फायदे होते हैं! malignant हो गये तो गया आदमी काम से।" उसके बाद जब मैं मोटर से आ रही थी तो मेंने रास्ते में जो वहाँ के संचालक थे उनसे कहा कि इनपर नज़र रखिये। मुझे डर लगता है कि ये कहीं गड़बड़ में न फँस जाएँ और आपको आश्चर्य होगा कि उनको ब्लड कैंसर हो गया! 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-39.txt चैतन्य लहरी अक : 1 & 2 - 2006 36 लेकिन चाहेंगे कि आप खुश न हों। देखिए आपको आश्चर्य होगा कि अगर कोई मर जाता है तो हज़ारों लोग पहुँच जाते हैं रोने के लिए । खुश होते होंगे, शायद घर पर आफत आयी, मन में और जब कुछ प्रमोशन हो जाये, कुछ अच्छाई हो जाये, तो कहने लगे-पता है इसका कैसे प्रमोशन हो गया है। इसने बड़ी लल्लोचप्पी की होगी। नहीं होते। अब जब Blood Cancer हो गया तो उनकी हालत खराब हो गयी। तो वो साहब बम्बई पहुँचे। और बम्बई में सब सहजयोगियों ने अपनी जान लगा दी। बिल्कुल जान लगा दी उनके लिये जितने भी डॉक्टर थे सहजयोगी और जो लोग थे. उन्होंने hospital (अस्पताल) में उनको भर्ती करना, कभी खुश उन का सब diagnosis (जॉँच पड़ताल) करना, उन के लिए दौड़ना, घूमना सब शुरु। अब जो रिश्तेदार उनके चिपके थे वो तो सब छूट गए, वो कोई उनको जानने वाला नहीं। उनके पास तो न इतना हुए लेकिन सहजयोग दूसरी चीज़ हैं। सहजयोग में लोग खुश होते हैं, जब देखते हैं 'अरे ये सहजयोगी first (प्रथम) आ गया। इस सहजयोगी के ऐसे हो गया सहजयोगी के घर में किसी के रुपया था न पैसा था सब कुछ सहजयोगियों ने तैयार करके-मुझे कभी जो लोग कभी भी ट्रंक-कॉल नहीं करते थे वो लन्दन में ट्रंककॉल पर ट्रंककॉल 'माँ वो हमारे एक सहजयोगी हैं. उनको ब्लड कैंसर कैसे हो गया? आप ठीक कर दीजिये। मैंने कहा इन्होंने कभी न चिट्ठी लिखी न कुछ किया। आज ट्रंकाकॉल लन्दन करना कोई आसान चीज़ नहीं। और जब देखो तब ट्रंककॉल, 'माँ इनको ठीक करदो, माँ वो हमारे..। माने जैसे इन्हीं के प्राण निकले जा रहे हैं, सबके। बहरहाल वो अब ठीक हो गये, बिल्कुल ठीक हो गये डॉक्टर ने कह दिया कि दस दिन में खत्म हो जायेंगे लेकिन अब बिल्कुल ठीक हो गये। 'अब वो समझ गये बात । उनके सगे कौन हैं, वह अब पहचान गये हैं । उससे पहले नहीं। उन लोगों के पीछे में दौड़ते थे, दूसरे रिश्तेदारों के पीछे में उनको खाना खिलाना, पिलाना। उनसे कभी सहजयोग की बात नहीं करना। और जब सहजयोग में आना तो तम्बाकू बच्चा हो गया तो मार तूफान हो जाता है। अभी एक साहब की शादी हुई राहुरी में वो स्विटजरलैण्ड के थे वहाँ आकर उन्होंने शादी करी। कहने लगे मेरे सगे भाई-बहन तो यहाँ रहते है। मुझे क्या करना है स्विटज़रलैण्ड में शादी कर के वो स्विटजरलैण्ड से आये, राहुरी-एक गाँव में वहाँ आकर के उन्होंने शादी करी, अपनी बीवी को भी लाये, और वहाँ उन्होंने शादी करायी । वहीं घोड़े पर गये और सब कुछ किया उन्होंने। कहने लगे, भइया, मेरा वहाँ कोई नहीं रहता, मेरे सगे-सोएरे सब यहाँ पर हैं। और ऐसे आनन्द से सबने उनकी शादी मनाई। और अब उसको बच्चा होने वाला हैं | तो सब सहजयोगी ऐसे खुश हो गये, आपस में पेड़े बाँटने लग गये और उनके जो रिश्तेदार थे, उनको समझ में ही नहीं आया कि ये कैसे सब हो गया! अब आपके रिश्तेदार सहजयोगी हो जाते हैं। आपके मित्र हो जाते हैं । आपके 'अपने हो जाते हैं, वालों का एक ग्रुप बना लेना। लेकिन ऐसा आपका सगा-सोएरा कहीं दुनिया में नहीं मिलेगा ज्यादातर सगे ऐसे होते हैं कि आपकी खुशियों पर पानी डालते हैं और कहते हैं कि-ऊपर से दिखायेंगे आपके बड़े दोस्त हैं 'आत्मज'| आत्मज' शब्द बहुत सुन्दर है। शायद 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-40.txt अंक चैतन्य लहरी 2-2006 37 टिकता नहीं। इसलिए उसे चिपक कर रहना चाहिये। इसके जो नियम हैं, उसको समझना चाहिए, उसको जानना चाहिये। दूसरों से पूछना चाहिए। उसमें बुरा मानने की कोई बात नहीं। जो कभी इस का मतलब किसी ने नहीं सोचा 'आत्मज' जो आत्मा से पैदा हुए हैं, वो आत्मज होते हैं। कहा जाता है कोई बहुत नजदीकी आदमी को 'ये मेरे आत्मज हैं। जिस का आत्मा से सम्बन्ध हो गया कल आए थे वो ज्यादा जान गये। आज आप आये हैं आप जान जाइये। और जो कल आएँगे वो आप से जानेंगे। इसमें बुरा मानने की और इसकी कोई बात नहीं। पर जब आदमी सहज योग में पहले उसका 'नितान्त' सम्बन्ध होता है मैं और खुद आश्चर्य में पड़ती हूँ कि मेरे जान को लग जाएँगे अगर किसी के इतनी-सी तकलीफ हो जाए-और बार-बार माफी मॉँगेंगे, 'माँ तुम माफ् कर दो। तुम तो माफ कर दो। उस पर तुम कुछ नाराज़ हो गई हो । नहीं तो...। मैंने कहा कि भई माँग रहे हो उसकी माँगना तो हम ही माँग रहें हैं, उसको माफ कर आता है तो वह यही भावना लेकर आता है कि अब हम इसमें आये हैं और ये देखिये, हमें बड़ी शान दिखा रहे हैं। तुम क्यों माफी । 'अब वो भूल रहा है माफी ये दूसरे हो गये इनकी श्रेणी बदल गयी है, ये दूसरे हैं। ये दिखने में आप जैसे ही हैं लेकिन ये दूसरे हो गये हैं। जैसे समझ लीजिये कि आपके college में लड़के पढ़ते हैं। कोई बी.ए. में है, कोई First Year (प्रथम वर्ष) है फिर कोई एम.ए. में है। दो। इतना प्रेम चढ़ता है सब देख-देखकर। इतना मोह लगता है कि 'कितनी मोहब्बत', 'कितना ख्याल । कितनी किसी पर कोई परेशानी आ जाए, पैसे की परेशानी आ जाए, कोई तकलीफ़ हो जाए, तो सबके सब secretly (चुपके से) उसको कर लेते मेरे को पता ही नहीं चलता है। एम.ए. का लड़का Pass (पास) होकर Professor (प्रोफेसर) होकर आ जाता है, तो हम यह थोड़े ही कहते हैं कि कल हमारे ही साथ में पढ़ता था और सब आपस में ऐसे खड़े हो जाते हैं, और सारी दुनिया की दुनिया ऐसे सहजयोगियों की जब खड़ी होगी तब सोचिये क्या होगा? अभी तो हम लोग वैमनस्य, द्वेष और हर तरह के competition आज आ गया बड़ा हमारे ऊपर उसी तरह की चीज़ है - इनकी श्रेणी बदल गयी आप की भी, श्रेणी बदल सकती है। (प्रतियोगिता) और पागल दौड़ Rat race के पीछे में दौड़ रहे हैं। ये सब खत्म हो जाएगा और इतनी कुछ-कुछ लोगों को मैंने देखा है कि सालों से रगड रहे हैं सहजयोग में। कुछ progress ऐ से ही चलते रहते हैं, डावाँडोल-डावॉडोल। कभी गुरुओं के चक्करों में पर जो लोग, सामूहिक नहीं होते वो निकलते घुसे। आज ही एक महाशय आये थे, आये होंगे अभी भी। पार हो गये थे, उसके बाद में वो गये; कोई शंकराचार्य के पास गये, कहीं किसी के पास गये, कहीं कुछ गये बिचारे बिल्कुल पागल हो गये-पागल। मुझे आकर बतलाने लगे कि माँ मेरे अन्दर पिशाच' भर दिये इन्होंने। सबने पिशाच sense of security (सुरक्षा की भावना) हमारे अन्दर आ जाएगी कि सब हमारे भाई बहन हैं। हो ता वो नहीं जाते है, सहजयोग से। ये तो ऐसा है, जैसे कि centrifugal force (अपकेन्द्रीय बल) है वो घूमता है. घूमता है और अगर उसने जरा-सा छोड़ा कि गया वो tangent (गुलेल) से बाहर। वो रहता नहीं, फिर ती ं 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-41.txt अंक : 1 & 2 -2006 चैतन्य लहरी 38 साड़ी पहन कर आयी है तो बदल के आ जाएगी। और वो साड़ी वाले भी इतने होशियार होते है बिचारे। वो जानते हैं उनको आदत पड़ी रहती है। पचासों साड़ियाँ दिखायेंगे। वो थकते नहीं बिचारे। मैं कहती हूँ कौन जीव हैं ये भी, पता नहीं। और कभी उनको पता हो गया कि ये साडी मेरे पड़ोस के उसके रिश्तेदार के उसके पास है तो लेंगी नहीं । भरे। आए अभी बिचारे; काफ़ी उनको साफ सूफ किया हमने। पर उससे progress (प्रगति) उनका कम हुआ। अगर उसी वक्त जम जाते तो आज कहाँ से कहाँ होते और बड़ी तकलीफ़ उठाई बिचारों ने। बड़ी परेशानी उठाई। सामूहिकता को आप समझे कि बहुत महत्त्वपूर्ण है। सबसे बड़ा आशीर्वाद सामूहिकता में आता है। और जहाँ इस सामूहिकता को तोड़ने की कोशिश की, यानि लोगों की आदत है, क्लब करने की, कोई न कोई बहाना लेकर के। आप सफेद बाल वाले हैं तो मैं भी सफेद बाल वाला हूँ। चलो, हो गये एक। आप लम्बे आदमी हैं तो हम भी लम्बे आदमी हैं, हो गये क्लब। आप सरकारी नौकर हैं, मैं भी सरकारी नौकर हूँ, चलो हो गए एक। 1 ये variety की sense (विविधता की भावना) सौंदर्य का लक्षण है। इसलिए परमात्मा ने बनाया है उसने सारी सृष्टि सुन्दर से बनायी, कहीं पहाड़ बनाये, कहीं पर नदियाँ बनायी. कहीं इसलिए कि आप लोग उसमें मस्त रहें, मजे में रहें। लेकिन आपने तो इसको ये, बना लिया देश उसको वो देश बना लिया। उसने वो देश बना लिया । कुछ बनाया। और लड़ रहे हैं आपस में। अजीब हालत है। हमारे जैसे अजनबी को तो बड़ा ही आश्चर्य लगता है, सहजयोग में सब छूट जाता है। आप कौन देश के हैं? परमात्मा के देश के। आप भई इसमें लड़ने की कौन सी बात है? और फिर घुटते-घुटते हर एक देश में अपनी-अपनी समस्या, किसके साम्राज्य के हैं? परमात्मा के। परमात्मा ने थोड़ी ऐसा बनाया था कि आप यहाँ के, आप बहाँ के। भई परमात्मा तो हर एक जगह variety अपना-अपना ढंग बनता गया। ( विविधता बनाते ही हैं। ये त्रिगुण के permutation सहजयोग में ये चीज टूट जाती है। आपको देखना चाहिए था कि परदेश के आए हुए लोग and combinations (विविध मिश्रण) के साथ में उन्होंने ये सारा बनाया, और इस लिए कि जैसे variety से खूबसूरती आती है। आप सोचिए कि सबकी एक जैसी ही शक्ल हो जाती तो Bore (नीरस) नहीं हो जाते सब लोग? किस तरह से अपने देहातियों के साथ गले मिल-मिलकर के कूद रहे थे। और वहाँ पर नृत्य सीख रहे थे, कैसे अपने देहाती लोग नृत्य करते हैं। अगर ये पंजाब जाएँगे तो वहाँ जाकर भँगडा करेंगे उनके साथ कूद-कूदकर। देखने लायक चीज़ है। ये भूल गए कि हम किस देश के हैं। फिर कम से कम हिन्दुस्तानी औरतों को इतनी अक्ल है कि साड़ियाँ पहनती हैं अब भी और सब प्रेम-उसका मजा, प्रेम का मजा आता है। आदमी यह नहीं सोचता कि कपड़े क्या पहने हैं, ये अलग-अलग तरह की पहनती हैं। पर आदमी तो बौर करते हैं-उनके कपड़ों से। सब एक जैसे औरतें जो हैं अभी भी अपना maintain किए हैं। कहाँ रह रहा है कि क्या; बस मजे में। ये सब विचार ही नहीं आता है-कौन बड़ा, कौन छोटा, अगर एक औरत ने देखा कि दूसरी मेरे जैसी 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-42.txt अंक :। & 2 -2006 39 चैतन्य लहरी नहीं हमारे। और अभी तक हमें, कहीं भी हम लोग जमीन नहीं खरीद पाये, क्योंकि हमने यह कहा था कौन कितनी position में है। कुछ ख्याल नहीं आता। ये सब बाह्म की चीजें है, सनातन नहीं हैं। क्योंकि सनातन को पा लिया है । पर सबसे बड़ी बात आपको याद रखनी चाहिए, हर समय, कि हमें कि हम black-market (काला बाजार) का पैसा नहीं देंगे तो आज तक इस दिल्ली शहर में एक आदमी नहीं मिला जिसने कहा है कि, 'अच्छा माँ सामूहिक होना चाहिए और सामूहिकता में ही सहजयोग के आशीर्वाद हैं । हम आपको ऐसी ज़मीन देंगे जिसमें सीधा- सीधा पैसा हो। एक आदमी नहीं मिला इस दिल्ली शहर में और उस बड़े भारी बम्बई शहर में आपके! ये हालत है। Government (सरकार) से कहा तो वहाँ भी जो नीचे के लोग हैं वो bribe (रिश्वत) लेते हैं । उनको क्या मालूम ये सब चीज़, कि ऐसा ऐसा होता है। लेकिन होता है। और उसके बाद उन्होंने जमीन दी भी, मतलब किसी को bribe तो हमने दी अकेले-अकेले ।indi- vidualistic बिल्कुल नहीं। बिल्कुल भी नहीं । आप खो दीजियेगा सब कुछ। मैंने ऐसे बहुत-से लोग देखे हैं। लोग ज्यादातर जो बीमारी ठीक करने आते हैं, वो ज्यादातर इसी तरह से होते हैं। आये, बीमारी ठीक हो गई; उसके बाद बैठ गये एक साहब आए थे हमारे पास, बहुत चिल्ला-चिल्ला कर 'माँ मेरे ये जल रहा है, मुझे नहीं, तो उन्होंने हमें सब्ज़ी मण्डी के अन्दर हमें बचाओ, बचाओ, बचाओ।' मैंने कहा, 'बैठे रहो अभी थोड़ी देर। उसके बाद जब पहुँची तो पाँच मिनट में ठीक भी हो गए। उसके बाद एक दिन बाज़ार में मुझे मिले-तो मेरा फोटो वोटो रखा हुआ है उसने कभी देखा भी है कि बैलों के साथ क्या अपने मोटर में। कहने लगे मैंने घर में भी फोटो सहजयोगी वहाँ बैठने वाले हैं? बहरहाल अब तो रखा है, मेरे दिल में भी फोटो है । मैंने कहा बेटे क्या बात है, वाइब्रेशन तो हैं नहीं। कहने लगे हाँ नहीं हैं। और अब एक कोई नई बीमारी हो रही के बाद उन्होंने कहा, कि हम इस पर सोचेंगे है। मैंने कहा ये सब फोटो बेकार गए न तुम्हारे इसका अर्थ आप सरकारी नौकर जानते हैं। अभी लिए। तुम सहजयोग करने के लिए केन्द्र पर आओ ।' जगह दी। बताइये अब! सब्जी मण्डी के अन्दर जहाँ बैल बाँधते हैं, वहाँ उन्होंने सहजयोगियों के लिए जगह दी। हमने कहा, 'भई जिसने दी है उस बात को लोग समझ गए हमें बहुत दौड़ना पड़ा, सालों तक। अब दस वर्ष से कोशिश करने वो सोच ही रहे हैं। तो बहरहाल जब भी जगह होगी, जैसे भी जगह, आप उसको देखें वहाँ करें, जो भी अभी सुब्रमन्यम साहब ने अपना घर दिया हुआ है वहीं होता है। और कोई जगह अगर आपको मिल जाये तो ऐसी कोई जगह कर लीजिए । कोई जरूरत नहीं कि आप सोचिये दिल्ली शहर में हमारे पास कोई केन्द्र नहीं। हर तरह के चोरों के पास यहाँ इतने बड़े-बड़े आश्रम बन गये। हमारे पास अभी कोई जगह नहीं, किसी के घर में ही हम कर रहे हैं। कोई बात नहीं। हमारे पास जो धन है, वो सबसे बड़ी चीज़ है। उसके लिये कोई जरूरी नहीं कि अब महल खड़े हों, बड़े Air-conditioned बहुत बड़ी जगह हो । सर्व - साधारण लोग जहाँ आ सकें। इस तरह से सब अपना ही कार्य है। हमारे बच्चों के लिए हम कर रहे हैं। हमारे सारे मानव जाति के लिए हम कर रहे हैं । इसके (वातानुकूलित) आश्रम हों। वह तो कभी होंगे ही 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-43.txt अक : 1 & 2 -2006 40 चैतन्य लहरी घुसना पड़ेगा, उसमें रहना पड़ेगा, उन लोगों के साथ बात-चीत करनी पड़ेगी। क्योंकि ये ऐसी कला है कि ये बार-बार माँगने पर मिलती है। कोई-सी भी कला आप जानते हैं, गुरु लोग लिए बहुत बड़ा आडम्बर करने की जरूरत नहीं है। सादगी से ही, सरलता से ही सबको बैठकर करना चाहिए। सहजयोग इतनी आशीर्वाद देने वाली चीज है कि सहजयोग में आए हुए लोग आज बड़े-बड़े मिनिस्टर हो गये हैं। ये भी बात देखिये कितनी आश्चर्य की है! लेकिन मिनिस्टर होने के आपकी हालत खराब कर देते हैं. तब देते हैं। तो आप का भी Testing ( परीक्षण) होता है कि आप कितने योग्य हैं। यह नहीं कि आप आए और आप छुई-मुई के बुधवा बनकर आपने कह दिया कि "साहब वो ऐसे-ऐसे थे। उन्होंनें हमसे बदतमीजी की तो हम भाग आए। कुछ नहीं। सहजयोग में जमना पड़ता है और उसमें आना पड़ता है। हालाँकि कोई आपका अपमान नहीं करता। लेकिन ते बाद वो भूल गए कि वो सहजयोगी हैं। जब मिनिस्ट्री छूटेगी फिर आएँगे जरूर आयेंगे। फिर आप पहचानियेगा कि ये फलाने मिनिस्टर थे. माताजी । अब उनको फुरसत नहीं। 1 फुरसत सहजयोग के लिए जरूर निकालनी पड़ेगी आपको। ये आपका परमकर्त्तव्य है । जो 1. आप बहुत ego (अहकार) होगा तो बात-बात में आपको ऐसा लगेगा जैसे एक साहब आए. मुझे कहने लगे, 'हम तो आए थे आपसे मिलने लेकिन में कहता है 'मेरे पास समय नहीं है कब करूँ, वो सहजयोग नहीं कर सकता। रोज शाम को और रोज सवेरे थोड़ा देर निकालना पडता है। सहजयोग वहाँ एक साहब थे बड़े बदमाश थे। हमने कहा में अनेक नियम हैं। अपने आचार-व्यवहार, बर्ताव, क्या हुआ? कहने लगे कि 'हम दिन में आए थे आपके पास।' मैंने कहा कि 'कितने बजे? ३-३० न रहन-सहन आसन आदि क्या-क्या करने के वरगैरह सबके नियम है । मैं सब नहीं बता सकती। एक बजे' । मैंने कहा उस वक्त तो मैं आराम करती हूँ। तो कहने लगे 'हम ने सोचा माँ का दरबार है, कभी भी आ जाओ। मैंने कहा 'ठीक है, आपके लिए तो माँ का दरबार है. लेकिन आपकी अक्ल साहब ने प्रश्न किया कि 'माताजी आपने कहा था उसके आसन बताओ। तो मैं सब चक्रों के आसन आज नहीं बता सकती। लेकिन इसके मामले में बहुत लोग जानते हैं। कौन-से आसन करने चाहिए. कौन से चक्र पर कौन-सी तकलीफ है। आपको कौन-सी तकलीफ है. वो बता सकते हैं, पता लगा सकते हैं। आपस में आप विचार विमर्श कर सकते का दरबार कहाँ रह गया? जो रात-दिन माँ मेहनत कर रही है क्या उसको थोड़ा आराम नहीं करना चाहिए? अगर उन्होंने कह दिया कि इस वक्त माँ आराम कर रही है, आप नहीं आएँ तो आपको खुद सोचना चाहिए कि बात सही है? लेकिन जब वो उस जगह खड़े होंगे तो क्या करेंगे? इस प्रकार लोग बहुत बार सहजयोग से बेकार में भागते हैं, और इसकी सबसे बड़ी बजह मैं तो ये ही सोचती हू कि अभी वह पात्र नहीं है। हैं और आप Progress (उन्नति) कर सकते हैं। लेकिन आपको एक दूसरे से बात-चीत करनी होगी और कहना होगा कि 'मुझे तकलीफ है। सबमें घुल-मिल जाना चाहिए। अधिकतर लोग क्या है, कि आए वहाँ देखा कि वो साहब थे। वह सब ऐसा कर रहे थे, तो हम वहाँ से भाग खड़े हुए, ऐसे लोगों के लिए सहजयोग नहीं है। आपको औ जो आदमी पात्र होता है घुसता चला हो रहे थोडे दिन नाराज हो रहे है, कुछ जाता है । 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-44.txt बैतन्य लहरी अक :। & 2 -2006 41 हैं। चलो घुसते चले जाओ। और गहन उतरता है। जो Soft-line है, वो हमेशा लेती है, जीवन्त चीज। जैसे एक बीज है, जब वो अंकुरित होता है, जब जो बस वो भाता जी उसको ठीक करें। एक साहब बहुत बड़े सहज योगी है और हमारे यहाँ Trustee (ट्रस्टी) रह चुके हैं सालों से Trustee हैं। उनकी बीवी भी। दोनों को बहुत बीमारी थी। ठीक हो गए काफी गहरे उतर चुके सब कुछ हुआ। उनके लड़के का लड़का ऊपर से गिरकर मर sprout करता है, तो उसका root-cap होता है. बड़ा छोटा-सा होता है, इतना-सा। लेकिन बड़ा समझदार, wise, होता है। वो जाकर चट्टानों से नहीं टकराता है। किसी पत्थरों से नहीं टकराता है. पर पत्थर के किनारे पर थोड़ी सी sof (नर्म) जगह मिल जाए. उसमें से घुसता चला जाता है। और जाकर जम जाता है उन पत्थरों पर, इस तरह से जकड़ जाता है कि सारा पेड़ का पेड़ उसी के सहारे खड़ा हो जाता है। यह अक्लमन्दी की बात गया। Normally (सामान्यतः) सहजयोग के लोग accident (दुर्घटना) से मरते नहीं। कभी अभी तक तो हमने सुना नहीं किसी को मरते हुए। और वो इस तरह से मर गया। जवान लड़का था। लेकिन उन्होंने कहा कि ठीक है, ये तो कुछ न कुछ होना था और हो गया। लेकिन accident से तो माँ ने मुझे बहुत बार बचाया है। मैंने इतनी बार अपने लड़के से कहा कि माँ के पास चलो । आया नहीं। है जब इतना-सा एक cell है, उसको इतनी अक्ल है, तो क्या सहजयोगियों को नहीं होनी चाहिए कि किस तरह से हम गहन उतरें चलें? तो मैं क्या उसकी जिम्मेदारी ले सकता हूँ? अंगर वो माँ के पास आता, अपने बच्चे को लेकर आता, तो कभी भी ऐसा नहीं होता उन्होंने यही बात मुझसे कही और इतना उस बच्चे को प्यार करते थे, सब कुछ, लेकिन उन्होंने कहा कि जब बाप ही नहीं आ रहा तो लड़का क्या आएगा? आपके जितने रिश्तेदार हैं, उनका ठेका हमने नहीं लिया कुछ न कुछ बहाना बनाकर सहजयोग से भागने से आपकी प्रगति नहीं होगी आपका ही loss (नुकसान) होगा ये आपको बन्द करनी चाहिए। ये आपके मन का खेल है। इसको आप छोड़िये। ये ego (अहंकार) हैं और कुछ नहीं है। ये बड़ा सूक्ष्म ego है कोई आपके पैर पर नहीं गिरने वाला। यह तो जरूरी है कि सबसे अच्छी तरह बात-चीत की जाए, कहा सब बहाने बाज़ियों हुआ। न आप लीजिए। आप उन से कहिए कि सहजयोग में आप उतरें। सहजयोग को आप पाएँ। और इसकी रिश्तेदारी आप अगर उठा लें तो सारी दुनिया ही आपकी रिश्तेदार है पर यह सोचना कि 'मेरी बहन बीमार रहती है और मेरे फलाने बीमार रहते हैं और इस तरह से जो लोग करते हैं उससे कोई लाभ नहीं होता। ही जाए। पर अगर कोई बिगड़ भी गया उस पर, तो सहजयोग से भागने की क्या जरूरत है अब? जब तक आप कैन्द्र पर नहीं आएँगे तब तक आपका कोई भी काम नहीं बन सकता है। पहले आपको पार हो जाना चाहिए पार हो जाने के बाद आपका अधिकार बनता है उस एक तो सब से बड़ी बात यह है कि बहुत-से लोग यह भी सोचते हैं कि अगर हम सहजयोगी हैं तो हमारे बाप-दादे के दादे के. बहन के बहन के, और भाई के भाई के भाई के, कोई न कोई रिश्तेदार, कहीं अगर उसको कुछ हो जाये तो अधिकार के स्वरूप आप चाहे जो भी माँरगे। आप का पूरा अधिकार है। सर आँखों पर है आप| अगर समझ लीजिए आप इंग्लैण्ड जाएँ और इंग्लैण्ड से 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-45.txt अंक : 1&2-2006 42 चैतन्य लहरी माँ के लिए? आपने अपने ही लिए क्या किया? पहले तो सवाल ये पूछना चाहिए कि हमने अपना ही क्या भला किया हुआ है? सहजयोग में हमने ही क्या पाया हुआ है? क्या हमने अपने Vibrations ठीक रखे हैं? या क्या हमने एक आदमी को भी आकर आप कहें कि 'हमें ये चीज चाहिए। अरे रहने दीजिए, उस लन्दन में आपके लोग पैर नहीं ठहरने देंगे, जब तक आपके पास सत्ता न हो, वहाँ जाने की। जब आपके पास सत्ता नहीं है. तब आपका सहजयोग से कोई भी आशीर्वाद माँगना पार कराया है? गलत है। महाराष्ट्र में आप आश्चर्य करेंगे, इतने लोग पार होते हैं कि हजारों की तादाद में। बीमार थे। इन जैसे एक साहब थे, बहुत लोगों ने टेलिफोन किया, ट्रंककॉल किया माँ उनको ठीक करो। वे पार नहीं थे, कुछ तो मैंने कहा 'अच्छा हम कोशिश करते हैं। उनके साहबजादे पार थे कोशिश की, मैंने कहा कि देखो इसको छोड़ दो। अहंकार इतना था कि वो ठीक ही नहीं हुए। तब आने पर वो ठीक हो गए। थोड़े दिन उनकी जिन्दगी चली। लेकिन जब महाराष्ट्र की महत्ता मैं इसलिए नहीं कहना चाहती हूँ कि आप जाकर खुद ही देखिये, मैं तो खुद ही आश्चर्य में हूँ कि इतने हजारों लोग कैसे पार हो जाते हैं? और फिर जमते भी बहुत हैं। यह भी बात उन लोगों में है और इस तरह की बात वहाँ नहीं होती है। अब वहाँ ये नियम बनाया था पहले हमने कि किसी ने अगर ग्यारह आदमियों को पार किया है वो ही मेरे पैर छू सकता है। चहाँ पैर छुने की लोगों को बीमारी है। अगर किसी से कहो कि पैर नहीं छूना, तो बस उसके लिए फिर आफत हो जाती है। छः हजार भी आदमी होंगे तो भी चाहेंगे कि माँ के पैर छुएं । यहाँ किसी से कहो कि पैर छुओ तो वो बिगड़ जाए कि 'क्यों पैर छूए साहब इनके हम? नहीं थे । मरना है तब तो आदमी मरता ही है, वो थोड़े ही न हम रोकने वाले हैं सिर्फ यह है कि सहजयोग से मनुष्य शान्ति को प्राप्त करता है, मरने से पहले और जो चीज़ बहुत आकस्मिक हो जाती है, उससे बच जाता है। इसलिए मैंने कहा कि accident से नहीं मरता है। Suddenly ( अचानक) कोई चीज वो होकर नहीं मरता है। वास्तविक जब मरना है तब मरता है। तो उनको जब मरना था वो मर ही गये बिचारे। वो पार भी नहीं हुए थे और बड़ी मुश्किल से उनको किसी तरह से ठीक किया था वो मर गये तो उनके सब रिश्तेदार कहने लगे कि 'माता जी. इनको बचाया नहीं। मैंने कहा 'उनसे एक सवाल पूछो कि आपने माताजी के लिए क्या किया? पहला सवाल। लेकिन उनको मैंने अगर कहा कि 'आपको पैर छूना है तो आप से कम से कम ग्यारह आदमी होने चाहियें वही लोग छु सकते हैं जिन्होंने ग्यारह आदमी पार किये। तो कुछ लोग खड़े हो गये, कहने लगे 'माँ हमने तो ग्यारह नहीं दस ही किये हैं छू लें पैर? देखिए भोलापन। अब उन्होंने कहा कि 'भई अब इक्कीस बनाओ। कम से कम इक्कीस पार किये हों तो माँ के पैर छू सकते हैं, नहीं तो अधिकार नहीं जमता। और ये काम बन लोग ऐसा हक सहजयोग से लगाने लगते हैं। क्योंकि ये सहज है। वो सोचते हैं कि माँ ने हमारे लिए क्या किया? अब भई आपने क्या किया गया, इक्कीस वाले बहुत निकल आए! इतने निकले. मृaue 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-46.txt चैतन्य लहरी अक :। & 2 - 2006 43 कठिनाई है। आप सोचिये। और जो आते भी हैं कि मुझे तो कहना पड़ा भाइयो अब जाने दो, अब नम्बर बढ़ाओ। 51 कर दीजिये, तो भी बहुत निकल आयेंगे वहाँ तो ऐसे-ऐसे लोग है 'दस-दस ज्यादातर दल-बदल और दल बांधने में नम्बर एक। यह शायद हो सकता है कि Politics (राजनीति) का असर हो। चाहे जो भी हो। इतना Politics करते हैं कि जिसकी कोई हद नहीं। हज़ार' पार किये हैं। इसीलिए शायद उसका नाम महाराष्ट्र' रखा है। दस-दस हजार लोग पार करने वाले वहाँ लोग हैं। इसमें Politics नहीं है कुछ नहीं है इसमें सिर्फ अपने को पाना और परमात्मा को पाना और सारे संसार को एक नई सुन्दर, प्रेमपूर्ण क्रान्ति में बदल देना ही एक काम है। बड़ा भारी काम है। बहुत महान् काम है। इसमें हजारों लोग चाहिएँ और अगर आप नहीं करियेगा तो ये भी आप जान और यहाँ खुद ही नहीं जमते हैं, दूसरों को क्या करेंगे। जिसको कहना चाहिए बिल्कुल Frive- lous Temperament (उथली प्रवृत्ति) है। अपने तरफ भी self esteem ( अपना आदर) नहीं है। अपने बारे में भी विचार नहीं है, न दूसरों के बारे। जानते नहीं हैं हम क्या है हम आत्मा स्वरूप हैं, कितनी बड़ी चीज़ हैं! हम कितने शक्तिशाली हैं! इस शक्ति को हमें बढ़ाना चाहिए। अपने बारे में कोई विचार ही नहीं है। एक रौनक लगा ली, बस हो गया। 1 लें कि ये Last Judgement है। Judgement कुण्डलिनी से ही होने वाला है और क्या भगवान आप को तराजू में डाल कर नहीं देखने वाला। कुण्डलिनी को जागृत करके ही आपका Judge- ment होना है। बो Last Judgement जो बताया गया है वह शुरु हो गया है। और जो इसमें से रुक जायेंगे उसके लिए 'कलकी" अवतरण में कि आप जानियेगा कि काट-छाँट होगी। कोई आपको Lecture (भाषण) नहीं देगा, कोई बात नहीं करेगा इससे काम नहीं होता। अपने अन्दर जो है रौनक करनी पड़ती है और सबके साथ में इसको बाँटना पड़ता है। मराठी में एक कवि हो गये हैं उन्होंने कहा है 'माला पाहिजे जातीचे, येरा गवाळयाचे काम नोहे। कहने लगे इसके लिए जिसमें जान हो वो आए। ऐसे-वैसे नन्दी-फन्दी लोगों का ये काम नहीं है येरा गबाळयाचे' माने बेवकूफों का बस एक टुकड़ा इधर, या एक टुकड़ा उधर। यह आप समझ लीजिए, और ये चीज अपने गाँठ में बाँध लें कि अब जितना भी सन्त- ये काम नहीं है । साधुओं ने यहाँ मेहनत की है, जो भी बड़े-बड़े अवतरण यहाँ हो गये, जो भी कार्य परमात्मा के इसलिये आप से मुझे request (अनुरोध) करना है, बताना है, बहुत-बहुत विनती करके, कि आपको जो भी दिया है उसका संजोना बहुत जरूरी है। इस को और बढ़ना बहुत जरूरी है । आप ही देहली के foundation (नीव) के पहले stones (पत्थर) हैं। और आज सात साल से मैं यहाँ मेहनत कर रही हैूँ। दिल्ली में और अभी इन गिन के दो सौ stones भी नहीं जोड़ पायी। ये दरबार के लिए हुआ है, वह सब पूरा हो गया है और आप अब stage (मच) पर है आप stage पर रहना चाहे तो stage पर रहें, या नीचे उतर जायें। यह आपकी जिम्मेदारी है, कि आप ही न रहें लेकिन सबको ऊपर खींचें आप लोग दूसरी तरह के हैं। आपकी श्रेणी और है। आप साधक हैं. और आपको समझ लेना चाहिए कि इसके लिये एकव्रत 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-47.txt अंक : । & 2 - 2006 चैतन्य लहरी 44 मंगलमय बनायें, यही मेरी इच्छा है। निश्चय होना चाहिए। Army (सेना) में इसको कहते हैं कि 'बाना' पहन लिया आपने। तभी ये चीज़ कम हो सकती है। और ऐसे वैसे, ऐरे-गैरे इसके बाद मैं मद्रास जा रही हूँ लेकिन उसके बाद आऊँगी। और उसके बाद भी मेरा प्रोग्राम दिल्ली में रहेगा तीन-चार दिन। आप लोग सब वहाँ आइये, जहाँ भी प्रोग्राम होता है। जहाँ-जहाँ सहजयोगी आते हैं वहाँ-वहाँ कार्य ज्यादा होता है। सब लोग वहाँ आइये। ये लोग तो आपकी भाषा भी नहीं समझते हैं और जहाँ-जहाँ मैं गई गांव वगैरा में वहाँ तो हिन्दी या मराठी भाषा बोलती रही। लेकिन ये लोग सब लोग वहाँ आते रहे और नत्थू खैरों से यह काम नहीं हो सकता। आप ऐरे-गैरे, नत्थू- अभी आपने अपने को पहचाना नहीं। उसे जान लेने पर आश्चर्य होगा कि क्या यह शक्ति, प्रचण्ड शक्ति, यह ब्रह्म शक्ति माँ ने हमें दी है। और जैसे ही शक्ति बहने लग जाती है, आदमी सोचता है कि "मैं भी इस काबिल हो जाऊँ। जब इस प्याले से ये चीज़ छलक रही है तो ये प्याला भी इस योग्य हो जायें कि इस महफिल में आ सके। इस तरह से आदमी अपने आप ही अपना व्यवहार अपना -खैरे नहीं हैं, मैं जानती हूँ। लेकिन 1. हर तरह की आफत, आप जानते हैं इन लोगों को तो गाँव में रहने की बिल्कुल आदत नहीं है। वहाँ पर रहकर के ये समझते हैं कि हमारे रहने से माँ के लिए बड़ा आसान हो जाता है। क्योंकि आप ही Channels (पथ) हैं आपके channels मैं इस्तेमाल करती हैं। अगर, समझ लीजिये, इतनी बड़ी ये जो आपको Power-house (बिजली-घर) है, इसमें अगर channels नहीं हुए, तो बिजली कैसे प्रवाहित होगी। तरीका 'सब कुछ बदलता जाता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि बड़े-बडे जीव इस संसारः में जन्म लेना चाहते हैं। अगर आपका दिल्ली में बातावरण ठीक नहीं हुआ, तो यहाँ सिर्फ राक्षस जन्म लेंगे। या तो बहुत ही पहुँचे हुए लोग जन्म लेंगे, जो डण्डे लेकर आपको मारेंगे और या तो राक्षस पैदा होंगे, और राक्षसों ही की यह नगरी हो जायेगी। इसलिये मुझे बड़ा डर लगता है। कभी कभी सोचती हूँ कि इनकी वह channels आप हैं इस लिये आपको चाहिए कि जहाँ भी मैं कार्य करूँ, जब तक मैं हूँ, इसको निश्चय से, धर्म समझ कर आप वहाँ आयें और इस कार्य को आप अपने लिए भी अपनाइये और दूसरों के लिए भी। समझ में अभी बात आ नहीं रही। आप लोगों की बड़ी जिम्मेदारी है, क्योंकि देहली जो है वह दहलीज़ है इस देश की और इस दहलीज़ को लॉध कर अगर राक्षस जा जाये तो आप लोग कहीं के नहीं रहेंगे आपको दहलीज पर उसी तरह से पहरा देना चाहिये जैसे कि बड़े-बडे देवदूत और बड़े-बड़े चिरञ्जीव खड़े हुये आपके जीवन को संभाल रहे हैं। अपनी आप रक्षा करें और औरों की भी रक्षा करें। अपना कल्याण करें, औरों का भी कल्याण करें, और सारे संसार को धन्यवाद! आशा है कि मैंने आपके अधिकतर प्रश्नों का जवाब दे दिया होगा। और अगर नहीं दिया गया हो तो आप जरूर centre (केन्द्र) पर चीजों का जवाब पा लेंगे। इसलिए मैं सब बात आज नहीं कर पाऊँगी, आप समझ रहे हैं, समय की कमी है। 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-48.txt Music bijd Programme Prathisthar On 20th Nov.2005. 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-49.txt MYSTIC ULURU