चैतन्य लहरी जुलाई - अंगस्त, 2006 रंर रे n. ा न िय ा HWA NIRMALA है IVERSAL PURE RELIGIO इस अंक में 1. छिन्दवाड़ा परियोजना - अनुरोध 2. श्री माताजी का 59 वाँ विवाह-वर्षगाँठ समारोह : आस्ट्रेलिया 7.4.2006 3. विलियम ब्लेक की कब्र की आश्चर्यजनक खोज 4. विलियम ब्लेक का जन्म-दिवस समारोह (परम पूज्य श्री माताजी का प्रवचन-लन्दन-28.11.1985 ) 5. सार्वजनिक कार्यक्रम, सिडनी, 6 फरवरी 2006 (सर. सी.पी. श्रीवास्तव का भाषण) 6. मुम्बई स्वास्थ्य केन्द्र की 10 वीं वर्षगाँठ 19.2.2006 7. एक रोगी का साक्ष्य (मुम्बई स्वास्थ्य केन्द्र 19.2.2006) 8. योगेश्वर पूजा (लन्दन) 15.8.1982 DHARMA NI चै त - य ल ह री प्रकाशक निर्मल इन्फोसिस्टम्जू एवं टैकनोलोजीज़ प्रा. लि. प्लाट न. 8. चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड कोठरुड पुणे फोन: 020- 25285232 े - 411 029 मुद्रक पार्थ सारथी प्रेस A-27, Meera Bagh ( मीरा बाग) मोबाइल : 9810452981, 25268673, 42334321 सदस्यता के लिए कृपया निम्न पते पर लिखे:- श्री जी.एल. अग्रवाल निर्मल इन्फोर्सिस्टम्जू एवं टैकनोलोजीज़ प्रा. लि. 222, देशवन्धु अपार्टमैंट, कालका जी नई दिल्ली-110 019 फोन : 26216654 आप अपने अनुभव, सुझाव, सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ. पी. चान्दना N463 ( जी-11), ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली 110 034 दूरभाष : 011-55356811 हि परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी सहजयोग-ट्रस्ट श्री माताजी का पावन जन्म-स्थल छिन्दवाड़ा परियोजना (सहयोग के लिए अनुरोध) 2. तीर्थ-स्थल के ऑगन में एक ध्यान-धारणा जय श्री माताजी , सभागार का निर्माण तथा आगन्तुकों के प्रवाह को जैसे पहले भी घोषणा की जा चुकी है. हमारी परमेश्वरी माँ की कृपा से छिन्दवाडा सम्भालने के लिए एक स्मारक स्टॉल (stall) एवं स्थित श्रीमाताजी का जन्म-स्थल, सहजयोगियों अन्य आवश्यक सुविधाओं का निर्माण करना। एवं योगिनियों के लिए पावनतम तीर्थ, का प. प. 3. तीर्थ-स्थल के समीप ही अन्तर्राष्ट्रीय आश्रम का श्री माताजी निर्मला देवी सहजयोग ट्रस्ट, निर्माण करने के लिए एक विशाल भू-स्थल (16000 भारत, ने 14 जुलाई 2005 को अभिग्रहण कर वर्ग मीटर क्षेत्र) का अभिग्रहण करना, और लिया था। जन्म स्थान के अभिग्रहण की सभी 4. विश्व भर से आने वाले सहजयोगियों / योगिनियों कानूनी औपचारिकताएं पूर्ण कर ली गई हैं। अब के लिए रिहायशी स्थान एंवं सुविधाओं से सुसज्जित यहाँ नियमित साप्ताहिक सामूहिक ध्यान किया जा अन्तर्राष्ट्रीय आश्रम की योजना एवं निर्माण की रहा है और हवन तथा पूजाओं का आयोजन भी रूप-रेखा बनाना। आश्रम में सांस्कृतिक कार्यक्रमों, किया जाता है। सहजयोगी और योगिनियाँ निरन्तर राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों के आयोजन की इस तीर्थ के दर्शन के लिए आ रहे हैं और आगामी सुविधा के अतिरिक्त आध्यात्मिक, दार्शनिक तथा महीनों और वर्षों में इनकी संख्या बढती ही चली भिन्न विचारधाराओं की पुस्तकों से सुसज्जित जाएगी। परियोजना के आगामी चरण का शुभारम्भ पुस्तकालय की सुविधा भी उपलब्ध होगी ये सभी अब किया जा रहा है। इसके मुख्यतः चार भाग सुविधाएं श्रेष्ठतम तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की होंगी। होंगे : कित अन्तर्राष्ट्रीय आश्रम सुन्दर प्राकृतिक परिदृश्य 1. जन्मस्थान के भवन को तीर्थ-स्थल के रूप में वाले स्थान पर बनाया जाएगा ताकि अत्यन्त शान्त-वातावरण प्राप्त हो सके। प. पु. श्रीमाताजी निरन्तर बनाए रखने के नज़रिए से इसकी मरम्मत ने इस आश्रम के नाम "प. पू. श्री माताजी निर्मला देवी सहजयोग विश्व आश्रम को एवं दृढ़ीकरण करना। जन्मस्थान के मूल आकार को बनाए रखते हुए इसके नवीकरण तथा, दृढ़ीकरण के लिए भारतीय स्वीकृति प्रदान की है। राष्ट्रीय ट्रस्ट ने संस्कृति एवं परम्परा (Culture and "प. पू. श्रीमाताजी निर्मला देवी सहजयोग Heritage) पारांगत संरक्षण वास्तुकार ट्रस्ट" के न्यासी श्री दिनेश रॉय के नेतृत्व में भारत (Conservation architect) की नियुक्ति की है। तथा अन्य देशों के सहजयोगियों/ योगिनियों की जुलाई चैतन्य लहरी - अगस्त, 2006 एक टीम. सर सी. पी. के पथप्रदर्शन में, इस करते हैं कि आर्थिक-योगदान देकर इस परियोजना को यथार्थ रूप प्रदान करने के लिए एतिहासिक परियोजना को सम्बल प्रदान करें। कार्यरत है। आवश्यक मरम्मत और देख-रेख के अपने सभी भाई-बहनों से हमारा ये भी अनुरोध है लिए कुछ प्रारम्भिक कार्य भी किया जा चुका कि किसी भी अन्य प्रकार से, किसी भी प्रकार के है। जन्म-स्थल के पुनरुद्धार एवं नवीकरण की कौशल से यदि वे इस एतिहासिक परियोजना में विस्तृत योजना बनाने के लिए वास्तुकारों एवं भवन सहयोग करना चाहते हैं तो हमें सूचित करें। सभी अभियन्ताओं की नियुक्तियाँ की गई है प्रस्तावित राज्य समन्वयक गणों से प्रार्थना है कि वे इस अन्तर्राष्ट्रीय आश्रम के लिए आवश्यक भूमि अभिग्रहण अनुरोध को नगर-केन्द्रों तक पहुॅचाएं और पूर्ण करने के लिए कुछ स्थान भी देखे गए हैं। जैसा हम सब जानते हैं. यह एतिहासिक के लिए प्रोत्साहित करें। उत्तरदायित्व है हमारी परम-पावनी माँ का शुरू 1. सामूहिकता को इस परमेश्वरी कार्य में योगदान देने भारतीय सहजयोगियों/ योगिनियों से इस जन्म-स्थल हम सबके लिए उत्कृष्ट एवं पावनतम परियोजना के लिए आर्थिक योगदान प्राप्त करने के स्थान है। पूर्ण होने पर, जन्म-स्थल मन्दिर हम लिए नई दिल्ली में केवल इसी कार्य को समर्पित सबके लिए तथा सहजयोगियों और योगिनियों की एक बैँक खाता खोल दिया गया है। अन्य देशों के सहजयोगियों / योगनियों से भावी पीढ़ी के लिए महानतम तीर्थ बन जाएगा। अतः इस मन्दिर का विकास करना, अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक योगदान (जो कि निश्चित रूप से विदेशी आश्रम के लिए भूमि अभिग्रहण करना और मुद्रा में होगा) लेने के लिए अनिवार्य है कि भारतीय शीघ्रातिशीघ्र इस कार्य को पूर्ण करने के लिए राष्ट्रीय ट्रस्ट भारत सरकार के सम्बन्धित विभाग से वचनबद्ध होना, हम सबका परम पावन कर्त्तव्य है। पूर्व स्वीकृति प्राप्त करे। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित पूर्ण श्रद्धा एवं प्रेम- पूर्वक, तथा हमारी माँ, गुरुओं प्रक्रिया का परामर्श दिया जाता है :- की गुरु, सदगुरु द्वारा सिखाए गए उच्चतम सहज पारम्परिक मूल्यों के अनुरुप इस कार्य को किया छिन्दवाड़ा परियोजना के लिए नया बैंक खाता जाना है। हमें ये स्वीकार करना होगा कि इस खोलें। पावन परियोजना को पूर्ण करना, हमें अपनी परम 2. सहजयोगियों और योगिनियों को राष्ट्रीय ट्रस्ट, पावनी माँ के 'एकब्रह्माण्डीय परिवार के स्वप्न को समिति या समन्वयक के पास योगदान भेजने के 1. हर देश में राष्ट्रीय ट्रस्ट, समिति या समन्वयक आमन्त्रित करें। साकार करने के लिए परस्पर और भी समीप ले लिए 3. योगदान के लिए आई सभी राशियों की रसीद दें और इस राशि को कथित बैंक खाते में जमा कराएं। एक ऐसे परिवार के स्वप्न को जिसने आएगा अपने जीवन में शाश्वत् चारित्रिक मूल्यों को स्वीकार किया है। 4. आवश्यक समय के पश्चात् राष्ट्रीय ट्रस्ट, समिति इस महत्वपूर्ण अवसर पर हम सभी या समन्वयक भारतीय राष्ट्रीय ट्रस्ट के कार्य-कारी सहजयोगियों और सहजयोगिनियों से अनुरोध सचिव को भारत भेजी जाने वाली इस राशि के बारे चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2006 योगदान देने वाले लोगों की सूची भी, योगदान में दी गई राशियों सहिस्त, भारतीय राष्ट्रीय ट्रस्ट के में सूचित करें। 5. कार्यकारी सचिव, तत्पश्चात इस प्रस्तावित राशि को भारत भेजें जाने के विषय में भारत कार्यकारी सचिव को भेजी जानी चाहिए । छिन्दवाड़ा सरकार से आवश्यक स्वीकृति लेंगे, और इसके मन्दिर में इस पावन परियोजना के लिए प्राप्त हुई चिषय में सम्बन्धित राष्ट्रीय ट्रस्ट / समिति/समन्वयक सभी धन राशियों का स्थायी लेखा रखे जाने का को सूचित करेंगे। 6. इसके बाद प्रस्तावित राशि निम्नलिखित बैंक खाते में भेजी जाएगी :- प्रस्ताव है। जय श्री माताजी हस्ताक्षर राजीव कुमार - H.H. Shri Mataji Nirmala Devi Sahaja Yoga Trust Chhindwara Account Name of the Bank Account कार्यकारी सचिव Name of the Bank UTI Bank Branch K-12 Green Park Main, New Delhi 110016, India -015010100265263 Account Number परम पूज्य श्री माताजी का 59 वाँ विवाह वर्षगाँठ समारोह आस्ट्रेलिया (7.4.2006) (सहज समाचार) ु प्रिय सहजी भाई-बहनों, 7 अप्रैल शुक्रवार के दिन श्रीमाताजी और सर सी. पी ने अपने विवाह की 59 वीं वर्षगाँठ मनाई। इस मंगलमय अवसर का कीर्तिगान करने के लिए विश्व सहज सामूहिकता से श्रीमाताजी और सर सी. पी को असंख्य ई-मेल प्राप्त हुए । बधाई के इन संदेशों के लिए श्रीमाताजी ने स्वयं आशीर्वाद देते हुए पत्र लिखकर आभार प्रकट किया। की चैलन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2006 यात व राम र] ार पूर ाप ह श्री माताजी के पत्र की पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं:- सात अप्रैल को आस्ट्रेलिया की सहज सामूहिकता ने अगाध प्रेम पूर्वक हमारे विवाह की 59 वीं वर्षगाँठ मनाई। यह अत्यन्त हृदयस्पर्शी एवं आनन्ददायी अवसर था। विश्व-भर के अंपने प्रिय सहजी बच्चों से मुझे गहन प्रेम तथा मंगलकामनाओं के संदेश प्राप्त हुए। उन सभी बच्चों के प्रति मैं अपना हार्दिक प्रेम एवं आशीर्वाद व्यक्त करना चाहती हूँ। गहन आड़ोलित हृदय से सर सी. पी. भी आप सबके प्रति अपना शाश्वत गहन आभार व्यक्त करते हैं। हस्ताक्षर निर्मला श्री वास्तव (श्री माताजी निर्मला देवी) 8 अप्रैल - 2006 रूपान्तरित इंटरनैट विवरण) विलियम ब्लेक की कब्र की आश्चर्यजनक खोज (विश्व भर के लिए उत्सव का अवसर) श्री माताजी की कृपा से सहजयोगी विलियम ब्लेक को श्री भैरव नाथ के अवतरण के रूप में पहचानते एक महादूत (Arch Angel) के रूप में , जो निरन्तर हमारे वामपक्ष (Left side) पर कार्यरत हैं। जैसा हम जानते हैं विलियम ब्लेक का जन्म वर्ष 1757 में इंग्लैण्ड में हुआ उन्होंने परमेश्वरी कला के चमत्कारिक ग्रन्थों का सृजन किया जो निरन्तर पूरे विश्व को आकर्षित प्रेरित एवं परिवर्तित कर बनहिल फील्ड में दिखाई देता स्मृति पत्थर। यथेच्छ स्थान पर लगाए गए रहे हैं। 1827 में जब उन्होंने पृथ्वी से प्रस्थान किया पत्थर पर खुदा है, 'विलियम ब्लेक के अवशेष समीप ही दबे हुए हैं। तो विलियम ब्लेक के शरीर को मध्य लन्दन स्थित बनहिल क्षेत्र (Bun Hill Fields) नामक स्थान में जब लुईस और केरौल पश्चिमी लन्दन का एक दफनाया गया। वर्ष 1965 में अज्ञानता के कारण सहजयोगी जोड़ा- पहली बार बनहिल फील्डज़ एक दुखद घटना घटी : जिसमें कक्र का स्थान गए तो उन्हें विलियम ब्लेक के विषय में उतना ही दर्शाने वाले तुच्छ पत्थर को क्षेत्र के अन्य पत्थरों के साथ हटा दिया गया। लन्दन के अधिकारियों ने ज्ञान था जितना अन्य सहजयोगियों को है। वे हैरान थे कि ब्लेक की कब्र का वास्तविक स्थान खो कब्रिस्तान के इस भाग को पार्क में परिवर्तित करने गया था और भुला दिया गया था और उसके स्थान की योजना बनाई थी जिसे शीध्र ही कार्यान्वित पर एक पत्थर लगा हुआ था जिस पर खुदा था: किया गया। इस प्रक्रिया के दौरान विलियम ब्लेक की कब्र भी खो गई। अब विलियम ब्लेक के अवशेष समीप ही दबे हुए हैं। ब्लेक विद्वान, लन्दन स्थित ब्लेक सोसायटी शक्तिशाली चैतन्य लहरियों की भावना से प्रेरित इस जोड़े ने दिव्य कवि की कब्र के वास्तविक स्थान सुप्रसिद्ध अन्तर्राष्ट्रीय (Blake society) सहित कोई भी न जानता था कि को खोजने का प्रयत्न करने का निश्चय किया तथा विलियम ब्लेक की कब्र का स्थान कौन सा है! जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2006। लन्दन के अधिकारियों, ब्लेक सोसायटी तथा ब्लेक पर सत्य को खोजने के लिए अन्वेषण एवं छान-बीन शोध करने वाले विद्वानों ने अपना आभार प्रकट किया करने का एक लम्बा और विस्तृत कार्यक्रम बनाया कब्र के सही स्थान को खोजने के लिए पुराने नक्शे है। कुछ लोगों ने तो उन्हें निमंत्रित करके उनके तथा चार्ट उपयोग किए गए। परिणाम स्वरूप, दैवी सम्मुख कृतज्ञता व्यक्त की है। वे विद्वान ये न जानते थे कि इस जोड़े की बैज्ञानिक खोज ने वास्तव में उसी सहायता से उन्होंने वास्तव में विलियम ब्लेक की कब्र खोज की पुष्टि की थी जो (लुईस-केरौल) वो पहले ही का सही स्थान, खोज लिया। उनकी अधिकारिक कर चुके थे पहली बार जब ये लोग वहाँ गए थे तो खोज वर्षों के वैज्ञानिक एवं विद्वतापूर्ण शोध का परिणाम कुछ ही मिनटों में चैतन्य उन्हें सीधा उस स्थान पर ले थी. जिसे उन्होंने तभी से शुरु कर दिया था जब वे पहली बार वहाँ गए थे उनके शोध परिणामों के लिएगया जहाँ से गुलाब की तीव्र सुगन्ध आ रही थी । এ ी विलियम ब्लेक की कब्र का सही स्थान जिसे सहज-योगियों ने वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित किया है । र जुलाई - अगस्त, 2006 चैतन्य लहरी 10 बनहिल फील्ड से सम्बन्धित निर्णय लेने के कब्रिस्तान के कार्य में रत लन्दन अधिकारियों इस सहजयोगी जोड़े को सरकारी वार्ताओं की लिए अगली महत्वपूर्ण सरकारी वार्ता जून 2006 में एक श्रृंखला में भाग लेने के लिए निर्मन्त्रित किया निश्चित की गई है यूके. के सहजयोगी एक वैबसाइट बना रहे हैं जिसके माध्यम से विश्व भर के ने इस दौरान लन्दन के पचास सहजयोगियों ने विलियम सहजयोगी विलियम ब्लेक मित्र समूह के सदस्य ब्लेक को दिए गए महत्व को दर्शाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। परिणाम स्वरूप विलियम ब्लेक की बन सकेंगे। इस स्मारक को बनाने में सहायक कब्र के सही स्थान पर एक उपयुक्त स्मारक बनाना होगे। वेबसाइट के तैयार होते ही FW. B. G उन सभी सहजयोगियों से अपील करेगी जो इस दिव्य भी सरकारी कार्य-सूची में है । वार्ता ज्यों-ज्यों आगे बढ़ी, अधिकारियों ने व्यक्ति के महत्व को समझते हैं श्रीमाताजी की कृपा से विलियम ब्लेक के प्रति अपने अगाध प्रेम एवं लुईस और केरौल को एक स्वतंत्र संस्था बनाने की राय दी ताकि वे विलियम ब्लेक की कब पर श्रद्धा का प्रदर्शन करने के लिए यह सुनहरा अवसर हैं। प्रभावशाली स्मारक बनाकर हम इस कार्य को उपयुक्त स्मारक बनाने के लिए सहायता प्राप्त कर । F.W.B.G लन्दन आधिकारियों के सरकें। इस प्रकार यू. के. कमेटी के प्रोत्साहन से कर सकते हैं सम्मुख इस कार्य के लिए सामूहिक प्रार्थना पत्र पेश "The Friends of William Blake Group" (विलियम ब्लेक मित्र समूह) की स्थापना की गई ताकि करेगी। इस विलियम ब्लेक कब्र की खोज के विषय में महत्वपूर्ण कार्य को आगे बढ़ाया जा सके अधिक जानकारी के लिए Luis and Carol Garrido को लिखें : luisgarrido 108 @ hotmail.com जय श्री माताजी (इन्टरनैट विवरण) रूपान्तरित विलियम ब्लेक की कब्र विलियम ब्लेक का जन्मदिवस समारोह हैमरस्मिथ टाऊन हाल, लन्दन 28.11.1985 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का सार्वजनिक प्रवचन विलियम ब्लेक जैसे महान कवि और पैगम्बर दिव्यता का बिल्कुल भी विवेक नहीं है. वे कितने को श्रद्धान्जलि अर्पित करना हम सबके लिए बहुत दुखी हुए होंगे! वे एकान्त में जा-जाकर रोए हॉंगे. बड़ा सम्मान है। पहली बार जब मैं इंग्लैण्ड आई वे अवश्य रोए होंगे, किसी ने उन्हें स्वीकार नहीं तो मुझे बताया गया कि इंग्लैण्ड विद्या का केन्द्र किया होगा यह असम्भव है। इतने निम्नमस्तिष्क है। यहाँ पर आप बहुत से संग्रहालय और प्रदर्शनियाँ किसी ऐसी चीज़ को स्वीकार नहीं कर सकते जो देख सकते हैं। अचानक एक दिन मैंने सहजयोगियों इतनी उत्कृष्ट हो. इतनी महान हो। और मेरा हृदय से कहा कि मैं विलियम ब्लेक की तस्वीरों की टेट दर्द से कराह उठा। हे परमात्मा! स्वयं को तड़पाने चित्रशाला (Tate Gallery ) देखना चाहूंगी सभी के लिए, कोई ऐसी चीज़ कहकर, जिसे लोग समझ हैरान थे क्योंकि मैं कभी इन स्थानों पर, विशेष ही नहीं सकते स्वयं को कष्ट देने के लिए उन्होंने रूप से पुस्तकालयों में और पुस्तकों के लिए नहीं इस स्थान पर जन्म ही क्यों लिया ? परन्तु बात जाती। वहाँ जाकर जब मैंने इस महान कवि, ऐसी नहीं है। मैंने जाना कि वे कौन थे, क्या कर महान व्यक्तित्व को देखा तो इंग्लैण्ड के लोगों के रहे थे, और वे यहाँ पर क्यों आए उनके विषय में लिए उनके हृदय से परमेश्वरी बोध एवं सूझ-बूझ हमारा ज्ञान बहुत सीमित है क्योंकि पुस्तकों से के साथ अत्यन्त प्रेम और इंमानदारी फूट पड़ रही आप ये नहीं समझ सकते कि वो क्या चीज़ थे! थी ताकि वहाँ के लोग दिव्यत्व की महान शक्ति वे भैवरनाथ के अवतरण थे जिन्हें हम सेन्ट को समझ सकें। पर जब मैंने कुछ अटपटे लोगों माइकल, या सेंट-जार्ज भी कहते है- इंग्लैण्ड के को देखा जो अपने साथ आवर्धन लैंस (magnifving glasses) लाए हुए थे जिनसे वे उन चित्रों को सन्त देव-दूत। इसीलिए उन्हें अवतार लेना पड़ा देख रहे थे और इन शीशों की सहायता से और क्षमा करनी पड़ी। उनकी यही भूमिका थी- तस्वीरों में लोगों के गुप्तांगों को देख रहे थे, तो परमात्मा के विषय में निर्भीकता पूर्वक खुल्लमखुल्ला मेरे आश्चर्य की कोई सीमा न रही! मैंने कहा , बात करना। उन्हें प्रतीकात्मक भाषा का उपयोग इन जाहिल, पूर्णतः नीच लोगों को देखो. इन्हें करना पड़ा। इसके लिए वे विवश थे। आप यदि उनके चित्रों में कुछ भी उत्कृष्ट, कुछ भी उत्तम आत्म साक्षात्कारी व्यक्ति हैं तो उन्हें समझना बिल्कुल नहीं दिखाई पड़ता। और वे उनके फोटो खींच रहे भी कठिन नहीं है। कभी हैँसते हुए. कभी रोते हुए थे! लोगों की प्रतिक्रिया को देखकर मैं उस नाटक का आनन्द लेते हुए, जिसकी व्याख्या आश्चर्यचकित थी! तब मैंने महसूस किया कि अपने जीवन में ऐसे लोगों के साथ रहकर जिन्हें उन्हें पढ़ते हुए उनके विनोद-विवेक को देखकर मैं करने का उन्होंने प्रयत्न किया आप उन्हें पढ़ेंगे. जुलाई - अगस्त, 2006 चैतन्य लहरी 12 आश्चर्यचकित रह जाती हैँ, किस तरह से करते, उनके प्रति बनावटी भद्रता दिखाते कृत्रिम खुल्लमखुल्ला वे टिप्पणियाँ करते हैं! मुझे लगता है व्यवहार करते परन्तु दीन-हीन लोगों के साथ कि वे भारत के मार्कण्डेय या कबीरदास की तरह उनका व्यवहार बहुत ही प्रेममय था। मछुआरों में से थे जिन्होंने अपनी तलवार (कलम) से पूरे समाज उन्हों ने दिव्यत्व का सृजन किया. उनमें की काट-छाँट की। निर्भयतापूर्वक, परन्तु अत्यन्त सर्व - साधारण लोग थे, अनपढ़ थे और जो समाज प्रेम से, उन्होंने समाज को उपयुक्त आकार में लाने के निम्नतम वर्ग से थे। ईसा-मसीह ने इन लोगों का प्रयत्न किया। उनका गीत यदि आप पढ़े तो को चुना और इन्हें दिव्य बना दिया। ईसा मसीह यह अत्यन्त कोमल है। जो भी लोग उन जैसे थे. कभी मन्त्रियों, प्रधानमंत्रियों राज्यपालों के पास नहीं उनकी शैली के थे, अत्यन्त खुले और सीधे, वे गए। उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया। धर्माधिकारी अत्यन्त मुखर होते हुए भी, अत्यन्त मधुर थे। कहलाने वाले महान लोगों को यदि आप देखें तो ईसा-मसीह का वर्णन जिस प्रकार उन्होंने किया आप जान पाएंगे कि ये सभी लोग राज्य पालों, है, उसे उन्होंने अपनी ज्योतित दृष्टि से देखा; राजाओं तथा रानियों के साथ ही व्यस्त होते हैं उन्होंने देखा कि लोगों ने ईसा का वर्णन अत्यन्त ताकि ये लोग आकर उन्हें प्रणाम करें ऐसे लोग विकृत रूप में किया है। ईसा मसीह जैसे थे उसके राजनीति प्रचालित होते हैं। मानवरचित राजकरण बिल्कुल उलट। मुझे भी ऐसा ही लगा। मेरा जन्म की दल दल में कोई दिव्य व्यक्ति कैसे फँस सकता एक प्रोटेस्टेंट ईसाई- परिवार में हुआ। इसाईयों है ? ये बात हम नहीं समझते क्योंकि हम तो हर की असलियत देखकर मुझे सदमा पहुँचा। मैंने चीज़ को तर्क संगत ठहराने का प्रयत्न करते हैं । परमात्मा का धन्यवाद है कि वे ऐसे व्यक्ति थे जो कहा, क्या यही ईसाई हैं ? जो वे कहना चाहते हैं अत्यन्त स्पष्ट है। आप समझ सकते हैं कि व्यवहार तार्किकता विरोधी थे, और ईसा मसीह को में यदि आप कोमल हैं, मुझे खेद है, मुझे भय है, सर्वसाधारण मानव के स्तर पर घसीटने वाले सभी मुझे संदेह है, इसकी ओर देखें, यह प्रायः उपयोग बौद्धिक विचारों के विरोधी थे, क्योंकि वे स्वयं दिव्य की गई भाषा है। विलियम ब्लेक कहते हैं कि ईसा व्यक्ति थे और वे ईसा मसीह को समझ पाए। मसीह ऐसे व्यक्ति न थे मैं भी कहती हूँ मैं चुनाव नहीं लड़ रही हूं, मैं यहाँ तुम्हें प्रसन्न करने के लिए नहीं आई हूँ मैं तो यहाँ इसलिए आई हूँ, कि आप समझाने की समस्या भी होती थी क्योंकि हर स्वय, स्वयं को प्रसन्न करें, स्वयं का आनन्द लें। आदमी उन्हें परेशान करने में ही लगा रहता था। आपकी सम्पदा की अभिव्यक्ति हो और उसका येरुशलम की बात करने के लिए ऐसी महान् आत्मा आनन्द लिया जा सके। इसी प्रकार से विलियम पृथ्वी पर अवतरित हुई। येरुशलम से उनका क्या कभी-कभी उन्हें निराशा हो जाया करती थी और उनके सम्मुख धन, अपने भाई-बहनों को ब्लेक ने भी ईसा-मसीह की एक इझलक आपके अभिप्राय था ? येरुशलम क्या है? क्या है ? हम सम्मुख रखी, कि वे इतने भद्र-पुरुष न थे जो लोगों तीर्थ यात्रा के लिए येरुशलम क्यों जाते हैं ? के पास जा-जाकर व्यर्थ में भद्रता का प्रदर्शन क्योंकि वहीं ईसा मसीह का जन्म हुआ था। इंग्लैण्ड चैतन्य लहरी जुलाई - अगरत, 2006 13 मोजिज में जब ईसा मसीह का जन्म होगा तो इंग्लैण्ड भी करो- ईसा मसीह पृथ्वी पर अवतरित हुए। के समय में ये सब ठीक था-नियमाचरण। वो इसे येरुशलम बन जाएगा। परन्तु आज कितने अंग्रेजों को आत्मा की नैतिक ईसाई धर्म कहते हैं, अर्थात् यह अवश्य ही चिन्ता है ? अंग्रेजी भाषा अपने आप में इतनी अनैतिक हो जाएगा क्योंकि आप यदि किसी को अटपटी है कि Spirit शब्द का उपयोग हम शराब किसी कार्य के लिए विवश करें और इस आधुनिक के लिए शराब पीने के लिए, अपने आस पास घूमती काल में मानव के लिए ऐसे नियम बन्धन बनाएं तो हुई मृत आत्माओं के लिए और 'आत्मा' के लिए भी लोगों का उन पर चल पाना सम्भव न होगा और वे करते हैं। पृथ्वी पर जब उनका जन्म हुआ तो किसी अन्य जाल में फँस जाएंगे जो लोग औद्योगिक क्रान्ति अभी शान्त नहीं हुई थी और आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं उन पर यदि कड़े नियम लोग अभी भी, जैसा वे कहते हैं, इन मिलों में प्रवेश थोपे जाएं तो वे उन्हें कुछ अन्य समस्याओं में कर रहे थे। उन्होंने यहूदी धर्मशास्त्रज्ञों को भी धकेल सकते हैं। वे अपराधी बन सकते हैं. प्रतिक्रिया देखा कि वे किस प्रकार आचरण कर रहे हैं। स्वरूप हिंसक हो सकते हैं । उनकी गतिविधियों की उन्होंने धर्म के मिथक को भी देखा। वे नहीं जानते प्रतिक्रिया तथा पूरी चीज़ के पाखण्ड का पर्दाफ़ाश थे कि विश्वभर के सभी धर्माधिकारी वही मूर्खताएं होते हुए हम देख सकते हैं। जैसे भारत या कहीं कर रहे हैं, केवल ईसाई मत में ही ऐसा नहीं हो अन्यत्र धर्माधिकारी कहेंगे, पैसे से लिप्त मत होओ, रहा। किसी भी देश में जाकर वहाँ के धर्म को आप चर्च, मन्दिर, मस्जिद तथा अन्य लोगों को पैसा दो देखें तो समझ पाएंगे कि सर्वत्र मूर्खता की एक ही ताकि वे इसका आनन्द ले सकें। परमात्मा के नाम शैली है. ऐसी शैली जो पैगम्बरों, अवतरणों और पर उस समय के लोग जैसा जीवन व्यतीत कर रहे महान सन्तों द्वारा बताई गई शैली से बिल्कुल थे वह किसी के लिए भी आदर्श न था और यही उलट है। केवल ईसाई मत में ही यह बात नहीं है। कारण है कि विलियम ब्लेक जैसे कवियों ने बार-बार फिर भी कोई इसे भूल नहीं पाता क्योंकि ईसाईयत जन्म लिया, लेबनान में खलील जिब्रान जैसा कवि का एक विशेष धर्मोत्साह है, एक विशेष भूमिका है. अवतरित हुआ और भारत में तो बहुत से ऐसे कवि इसका एक विशेष अर्थ है। वे इसी से लड़ रहे हैं, हुए हैं जिन्होंने समाज के तथा बुद्धिजीवियों की इन और ये भी कह रहे हैं कि मोजिज़ इस पृथ्वी पर धारणाओं की भर्त्सना की - धर्म की धारणाओं की नियमाचरण तथा नैतिकता के विषय में बताने के भत्त्सना क्योंकि उसमें न तो कोई प्रमाणिकता थी, न लिए आए। वे मिल्टन का वर्णन उस व्यक्ति के रूप ही सत्यनिष्ठा । आप यदि ईमानदार हैं, वास्तव में में करते हैं जो कहता है कि देवता ही सभी कुछ गम्भीर हैं तो आइए हम स्वयं देखें कि हमें क्या हैं. अति-नैतिक देवता। परन्तु वे दिव्य मानवता का प्राप्त करना है। वर्णन करते हैं। ईसा-मसीह का वर्णन करते हुए वे कहते हैं कि मानव का उद्धार करने के लिए उन्हें ये बताने के लिए नहीं कि ऐसा करो, ऐसा मत अपने शब्दों को छन्द-बद्ध करते हैं और जैसा 1 तो इस प्रकार से वे एक कवि रूप में आए, एक असाधारण कवि के रूप में, जिस प्रकार से वे चैतन्य लहरी अगस्त, 2006 14 जुलाई विनोद- विवेक उनमें है. जिस प्रकार शब्दों के के बाद अचानक ये भयानक हैमिंगवे वाले लोग बढ़ सौन्दर्य को वे अभिव्यक्त करते हैं वह सब एक रहे हैं और किस प्रकार लोग उनकी पुस्तकों को उत्कृष्ट कवि सम है। संस्कृत में कहा है, "सत्- न धड़ाधड़ खरीद रहे हैं (Like Hot Cakes)? हम काव्य, न काव्य । कविता सत् से परिपूर्ण है। सत् अपने सभी लंगर (Moorings) अपनी सभी जड़ें खो अर्थात् सार तत्व - शब्दों के माध्यम से सार तत्व चुके हैं। का विस्फोट । यदि ऐसा हो सके तो इसका जादू कविता कहलाता है और यही आपको विलियम एक चीज़ बहुत अच्छी भी हुई है। फ्रॉयड जैसे ब्लेक में मिलता है। वे इतने महान कवि थे काव्य व्यक्ति को ईसा मसीह मान लेने से लोग समस्याओं केवल तभी महान है जब यह परमात्मा (Divine) की में फँस गए हैं और अब उन्हें ये बात महसूस हो बात करे। काव्य में यदि घटिया चीजों के विषय में रही है अब लोगों को एहसास हो रहा है कि लिखा गया हो तो यह पाठक को घटिया चीजों की भविष्यवाणी क्यों की गई थी। इसी लिए वे पैगम्बर ओर धकेलता है। उस दिन आस्ट्रेलिया के कवि को थे भविष्य में होने वाली घटनाओं के लिए उन्होंने सुनकर मैं उसके भयानक स्नानागार संगीत पर लोगों को चेतावनी दी। परन्तु किसे चिन्ता है ? दंग रह गई। इसे आप काव्य कैसे कह सकते उनके साथ ऐसे व्यवहार किया गया मानो वे पागल हैं? वह जीवन की घटिया चीज़ों के गीत गाता है हों! आप यदि पागलखाने जाएं तो सभी समझेंगे जो आपको घटिया चीज़ों और घटिया आमोद-प्रमोद कि आप पागल हैं। पागल लोग किसी भी समझदार परन्तु इस प्रकार की पुस्तकों को पढ़ने से की ओर ले जाते हैं। परन्तु आप यदि उसे समझ व्यक्ति को पागल ही समझते हैं। उनके विवेक की सकें तो उसने स्पष्ट कहा है कि इन पुस्तकों का भत्त्सना की गई लोगों ने सोचा कि उन्हें मतिभ्रम लक्ष्य क्या है। ये लोगों की जेब से पैसे निकालने हो गया है; वे भ्रमित बुद्धि से कार्य कर रहे हैं (He के लिए हैं। अब किस प्रकार आप धन बटोरते हैं? is talking out of his head), क्योंकि लोगों में न तो लोगों की दुर्बलताओं का गुणगान करके. उनके समझने के लिए बुद्धि थी न ही वे प्रबुद्ध थे और न अहं को, उनके लालच को भड़काकर यह सब ही उनमें ज्ञान था। यही कारण है कि उन्होंने उनसे कार्य यदि आप कर सकते हैं तो आप बड़ी अच्छी ऐसा व्यवहार किया अब जब उनकी मृत्यु हो चुकी तरह से लोगों को बेवकूफ बना सकते हैं और लोग है तो लोग उनकी पुस्तकें बेच कर पैसा बना रहे हैं भी बड़े प्रसन्न होते हैं और उन्हें लगता है कि, और उनके द्वारा बनाई हुई चित्रकारियाँ बेच रहे हैं, "ओह! क्या पुस्तक है !" इस देश में भी बहुत से परन्तु जीतेजी किसी ने उनकी चिन्ता नहीं की । महान लेखक हुए हैं. मैं कहूँगी कि शेक्सपीयर और अब तो वो जैसे चाहे उनका उपयोग करें। इस 1. महान उन्नत व्यक्ति थे, परन्तु पतन का आरम्भ तो संदर्भ में मैं यहाँ बहुत से अटपटे लोगों से मिली। बाद में हैमिंगवे (Hemingway) जैसे व्यक्तियों के ये कहने में उन्होंने ब्लेक में बहुत दिलचस्पी दिखाई आने के बाद हुआ। मेरी समझ में नहीं आता कि कि उनके अनुसार वस्त्रहीन महिला ही सर्वोत्तम है। किस प्रकार सोमरसेट मॉम (Somerset Maughm) मैंने कहा, कहाँ उन्होंने ऐसा कहा ? किस प्रकार वे चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2005 15 ऐसी बात कर सकते थे, वे तो अबोध थे ? अब करो. स्वयं समझो कि आपने जाकर पादरी के पश्चिम में तो हम ये भी नहीं जानते कि अबोधिता सम्मुख अपना दोष स्वीकार करना है। और आपकी कहते किसे हैं! मार्कण्डेय की तरह से अपनी माँ स्वीकृति से पादरी भी पगला जाता है, आप तो का वर्णन करते हुए उनके स्तनों और हर चीज़ का एक भोले बच्चे की तरह-एक भोले बच्चे को नग्न पहले से पगलाए हुए होते ही हैं। करुणा के सागर में अपना दोष स्वीकार करने के लिए क्या है ? शरीर में यौन (Sex) नहीं नजर आता, वह यह नहीं देखता और फिर भी महिला के सौन्दर्य का बर्णन करता है! इसका अर्थ ये नहीं कि महिलाएं नंगी ही अन्य लोगों को तथा स्वयं को क्षमा करना हमारे घूमती फिरें। अब क्या आप लोगों की अबोधिता को हाथ में बहुत बड़ा हथियार है क्योंकि परमात्मा भी बढ़ावा दे रहे हैं या उनके वाहियातपने (Baser हमें क्षमा करते हैं। यही सन्देश हमने समझना है सागर में स्वतः ही इसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। ईसा-मसीह ने हमे क्या संदेश दिया था ? कि हमें स्वयं को क्षमा करना है। परन्तु इसकी qualities) को भड़का रहे हैं ? हमें नैसर्गिक होना होगा क्या आप नैसर्गिक अपेक्षा जो भी गलती हम करते हैं ? ये सारी विकृतियाँ और परिवर्तन इसलिए आए आत्माविरोधी कार्य करने का कोई भी प्रयत्न हम हैं क्योंकि मनुष्य के पास सहज मस्तिष्क नहीं है, वह कुटिल हो गया है। मस्तिष्क से इस कुटिलता उपदेश रसे हैं कि हर समय दोष भाव ग्रस्त रहो तो को जाना होगा। ये आवश्यक है, परन्तु यद्ि मैं हम हर समय स्वयं को दोषी मानते हैं और हमारा कहूँ कि मैं यहाँ अपना कार्य नहीं कर रही तो मैं यह चक्र (बाई विशुद्धि) पकड़ जाता है । यह चक्र निश्चित रूप से जानती हूँ कि यह कार्यान्वित नहीं पश्चिम में तो इतना अधिक पकड़ता है कि जहाँ भी होगा इसीलिए ईसामसीह ने कहा था., "क्षमा कर मैं जाती हूँ, उनसे कहती हूँ कि सर्वप्रथम तुम्हें एक दो, उन्हें क्षमा कर दो" नहीं तो परमात्मा किस मन्त्र कहना होगा, "श्री माताजी मैं निर्दोष हूँ ।" इस प्रकार मनुष्यों से मिल सकते ? इस कुटिलता सभी दोष भाव को अपने अन्दर से निकाल फेंकें। परमात्मा प्रकार की चालाकी से परिपूर्ण मनुष्य से बिना क्षमा जब आपसे प्रेम करते हैं तो आप स्वयं को दोषी किए परमात्मा किस प्रकार मिल पाते ? मोजिज की ठहराने वाले कौन होते हैं ? उन्होंने आपको उत्क्रान्ति बात को यदि वे सुनते तो मानव तक न पहुँच का प्रतीक बनाया है, आप सर्वोच्च बिन्दु पर हैं, क्यों या करते हैं तो हम स्वयं को दोषी मानते हैं। यदि आप अपने विषय में निर्णय करके स्वयं को दोषी सकते, क्या वे ऐसा कर सकते ? नहीं कर सकते। उन्हें यदि मानव तक आना है तो उन्हें माने ? क्या परमात्मा आपको क्षमा करने में सक्षम क्षमा करना होगा यही कारण है कि सहज-योग नहीं है ? क्या उनके प्रेम के सागर पर आपको में आरम्भ में ही आपको सभी को क्षमा करना होता विश्वास नहीं है ? परन्तु यह धारणा ईसा-मसीह है, आप स्वयं को भी क्षमा करते हैं. स्वयं को दोषी के नाम पर की जाने वाली गलतियों का मूल है। नहीं मानते। अब ईसाई धर्म में इससे बिल्कुल अब मैं यह बात पादरियों को बता रही हैं . उलट किया गया है कहते हैं कि इसका सामना यहाँ पादरी कौन हैं. जो धर्मविज्ञान विश्वविद्यालय পLC चैतन्य लहरी जुलाई 16 अगस्त, 2006 (Theological college) से आया हो ? क्या की आवश्यकता थी। उस समय उन्हें धर्मादेशों की धर्म- विज्ञान विश्वविद्यालय से आप परमात्मा के आवश्यकता थी और वे शरीअत के नियम लेकर बारे में कुछ सीख सकते हैं, क्या ईसा-मसीह धर्म आए। शरीअत मोज़िज ने आरम्भ की परन्तु मुसलमान विज्ञान विश्वविद्यालय गए थे? उन्हें किस प्रकार इसका अनुसरण कर रहे हैं । प्राप्त हुआ? किस प्रकार उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ? अब आज जब हम बीसवीं सदी में यहाँ बैठे आत्म-साक्षात्कार द्वारा। आत्म-साक्षात्कार होना हैं, तो हमें देखना चाहिए कि इस महान व्यक्ति आवश्यक है। जिस प्रकार से उन्होंने सब कुछ विलियम ब्लेक की भविष्यवाणी क्या हैं क्या आप स्पष्ट कह दिया, अपने स्वारथं के कारण किसी को कल्पना कर सकते हैं कि उनका जन्म भी इसी माह भी वे अच्छे न लगे। हर व्यक्ति का अपना ही स्वार्थ में हुआ! गुरुनानक का जन्म इसी माह में हुआ, हैं, कोई भी सत्यनिष्ठ और ईमानदार नहीं है। मोहम्मद साहब भी इसी माह में अवतरित हुए. ये धनार्जन के लिए वे दूसरों का शोषण करना चाहते सभी महान अवतरण इसी माह में जन्में इसी माह हैं। परमात्मा के नाम पर आप धन नहीं बटोर में हमने दिवाली भी मनाई है। ये इतना महान 1 सकते। ये पाप है। ऐसे लोग कभी परमात्मा के महीना है। इस माह में जन्म लेने वाले विलियम साम्राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते। इसी कारण ब्लेक को पूर्णतः समझने वाले महान बच्चे होने ईसा मसीह ने कहा था, "आप मुझे आवाज़ें लगाओगे, चाहिए। मुझे केवल एक अकेला व्यक्ति इस भूमि में ईसा, ईसा ! पर मैं तुम्हें नहीं पहचानूंगा।" ये सत्य विवेक के बीज़ बोता हुआ दिखाई पड़ता हैं, हमें तो है। अतः यदि आपको सच्चा व्यक्ति बनना है, केवल ये फसल काटनी है। उसने (विलियम ब्लेक) केवल सच्चा व्यक्ति, तो स्वयं में दोष भाव न आने बीजारोपण किया और आप कह सकते हैं कि ये न सोचें कि मैने अपराध किया है। भारत की शेक्सपीयर ने इस भूमि की सिंचाई के लिए जल एक कथा है :- एक धर्म प्रचारक भारत के एक तैयार किया। यहाँ पर बहुत से महान कवि हुए। गाँव में आया । भारत के ग्रामीण लोग अत्यन्त वर््जवर्थ (Wordsworth) एक अन्य कवि हैं जो सीधे हैं। वे अधिक चुस्त नहीं हैं। धर्मप्रचारक जाने लगा तो लोगों ने उसकी बहुत ने विलियम ब्लेक की नियति को देखकर सोचा प्रशंसा की और कहा, "श्रीमन, हम आपके आभारी होगा कि मानव को भूलकर प्रकृति का बर्णन करना हैं कि आपने हमें बताया कि पाप क्या है और ये भी ही बेहतर है। उन्होंने यह अवश्य सोचा होगा और अत्यन्त मोहक एवं सुन्दर हैं। मेरे विचार से वर्डजक्थ जब वह कि हम सब पापी हैं। " इससे पूर्व वे ये न जानते स्वीकार किया होगा कि इस भूमि के लोग कभी थे कि वे पाप कर रहे हैं यही चीज़ विलियम ब्लेक नहीं सुधर सकते और न ही इस भूमि में कुछ बोया ने भी हमारे सम्मुख स्पष्ट की, ये दर्शाने के लिए, जा सकता है। परन्तु जो भी हो विलियम ब्लेक ने कि ईसा मसीह वे व्यक्ति थे जो मोजिज के भी आपको एक नया स्वप्न, एक नई धारणा प्रदान धर्मादेशों के ऊपर एक नया संदेश लाए। यहूदियों की है क्योंकि पश्चिम में ईसा मसीह को एक को सुधारने के लिए. निःसन्देह, उस समय मोजिज सर्वसाधारण मानव के स्तर पर खींचकर ले आए जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2006 17 हैं। जिस प्रकार अब लोग उनका वर्णन करते हैं, है तथा उन्होंने मुद्रण के विषय में इतना कुछ क्यों मुझे आश्चर्य होता है! उन्हें ये सब कहाँ से पता लिखा ? आज की संचार- व्यवस्था (Media) को चला ? क्या उनकी आँखें हैं या अंधों की तरह से आप देखें, उन्होंने कहा कि संचार व्यवस्था बहुत उनके विषय में बात कर रहे हैं ? और मैं बिशप बड़ा असुर है। इसी ने मुझ पर विश्वास करें, और आपके आर्क बिशप को इस प्रकार बात करते आपको पूरी तरह बर्बाद कर दिया है। आपसे धन हुए सुनती हूँ! क्या उन्हें परमात्मा का बिल्कुल डर ऐंठने के लिए, आपकी दुर्बलताओं से खिलवाड़ नहीं है ? यदि आप ईसा मसीह के विषय में इस करने के लिए, आपको तथा आपके बच्चों को प्रकार बातें करते हैं तो इस देश का क्या होने वाला अधिक दुर्बल बनाने के लिए, समाज को आयोजित है। और अब आपको ऐसी तस्वीरें, ऐसी फिल्में रूप से नष्ट किया जा रहा है। वे इसी समाज मिलने वाली हैं जिनमें ईसा मसीह को अधर्मी व्यवस्था पर चोट करना चाहते हैं इसी कारण से व्यक्ति दर्शाया गया है, उनकी माँ को नंगा दिखाया विलियम ब्लेक ने जन्म लिया और गया है, उनके लिए कोई सम्मान नहीं है! मैं नहीं बने। वो कुछ और भी बन सकते थे। इंग्लैण्ड या जानती कि आपने इस बात पर ध्यान दिया है कि कही अन्यत्र कोई भी कवि मुद्रक नहीं था केवल नहीं कि विलियम ब्लेक चाहे वस्त्र हीन मनुष्यों की ब्लेक ही मुद्रक बने। कारण ये था कि वे तस्वीरें बनाते थे परन्तु देवताओं की नंगी तस्वीरें संचार-व्यवस्था (Media) की असलियत दिखाना उन्होंने कभी नहीं बनाई। ईसामसीह की तस्वीर चाहते थे तथा इसकी जड़ों को काटना चाहते थे। उन्होंने कभी नहीं बनाई। इस प्रकार से वे उनकी परन्तु जैसा आप जानते हैं, आप चाहें या ना चाहें तस्वीरें कभी नहीं बनाते, सम्मान पूर्वक बनाते हैं। बुराई तो पनपती ही है, और आज की संचार और आधुनिक युग के हम सब महान बुद्धि-जीवी व्यवस्था के विषय में तो हम समझ ही नहीं सकते परमात्मा का कोप पात्र बनने के लिए ये सब कि इसने हमें हमारी जड़ों को, हमारे विश्वास को चालाकियाँ करने का प्रयत्न कर रहे हैं! मुद्रक (Printer तथा हमारे उत्कृष्ट एवं धर्मपरायण दृष्टिकोण को विलियम ब्लेक के बारे में दूसरी बात ये है कितना नष्ट किया है! मैं जानती हूँ कि मुझे भी कि वे एक मुद्रक (Printer) थे हमें सोचना चाहिए आपके दूरदर्शन और मीडिया के लोगों ने कहा कि कि वे मुद्रक क्यों बने। वो छपाई का काम क्यों आकर उनसे बात करूं। जिस प्रकार लोगों ने मुझे करने लगे ? अपना वर्णन करते हुए उन्होंने स्वयं बताया कि एंग्लो-सेक्सन ( Anglo-Saxon) मस्तिष्क को वह नर्क (Hell) बताया जहाँ पुस्तकों की रचना कोई भी ऐसी बात नहीं समझ सकता जिसके लिए होती है। उन्होंने बताया कि किस प्रकार हर चक्र उससे पैसा न लिया गया हो, तो मुझे अत्यन्त पर हम एक राक्षस की रचना करते हैं और उन्हें आश्चर्य हुआ! परमात्मा जाने ऐसे मस्तिष्क की पुस्तकालय में डालते हैं यही कारण है कि मैं रचना किसने की जिसकी समझ में कोई ऐसी बात स्वयं भी (श्री माताजी) पुस्तकों के विरुद्ध हूँ। परन्तु नहीं आती जिसके लिए पैसा न खर्चना पड़ा हो। वे मुद्रक क्यों बने? ये बात जाननी अत्यन्त आवश्यक मैंने कहा, पहले आप आत्मसाक्षात्कार ले लें अन्यथा चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2006 18 न तो मैं आपके किसी कार्यक्रम में आऊंगी न 'येरूशलम' लिखने में चौदह वर्ष लगे और मेरे दूरदर्शन पर। ईसा-मसीह के क्रूसारोपण में भी विचार से चौदह वर्षों के बाद भी यदि वास्तव में मुझे आप उनके इसी विजय-गर्व को देख सकते हैं लगे कि विलियम ब्लेक के प्रति कुछ न्याय कर पाई उन्होंने बिल्कुल चिन्ता नहीं की। हमारे राजनीतिज्ञों की तरह से वे भी सुबह हूँ, इस येरुशलम' को जिसे वो बनाना चाहते थे, तो मैं आप सबके प्रति अत्यन्त आभारी हूँगी। परन्तु कुछ अल्यन्त निराशाजनक बात ऐसी नहीं है। सभी से शाम तक एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर लोगों के पैरों पर गिर सकते थे। लिपिकों है। वो किसी बात को सुनना नहीं चाहते, वे केवल (Scribes) तथा फरीसियों (Pharisee) के पास वही चीजें सुनना चाहते हैं जो उन्हें पसन्द हैं और जाकर वो भी कह सकते थे, "ओह, कृपा करके इसके लिए व्यक्ति को हर समय उनकी दुर्बलताओ मुझे क्षमा कर दीजिए, जीवन पर्यन्त मैं आपकी सेवा से खेलना पड़ता है. उन्हें बताना पड़ता है कि जो करुंगा, मैं सभी कुछ बेच दूँगा।" परन्तु उन्होंने ये भी गलत कार्य तुम कर रहे हो वे सब बहुत अच्छे स्वीकार नहीं किया। गर्व, विजय गर्व के साथ वे हैं, आगे बढ़ते चलो। ईसामसीह की करुणा एवं प्रेम चमत्कार कर सकते है। निःसन्देह ये कार्य कर क्रूस पर चढ़ गए। परन्तु इससे क्या पता चलता है, इससे क्या प्रकट होता है? हम मूर्खों ने उस महान व्यक्ति को सूली पर चढ़ा दिया परन्तु आज क्या पर आए थे। पूरे ब्रह्मাण्ड का सृजन हमारे लिए हम क्रूसारोपण के विरुद्ध नहीं हैं? इसी कारण से किया गया है हम ही लोगों ने परमात्मा के सकते हैं क्योंकि ईसा-मसीह हमारे लिए इस पृथ्वी मैं कहती हैँ कि विलियम ब्लेक एक महान पैगम्बर आशीर्वाद प्राप्त करने हैं हम ही ने आत्मा बनना है, जैसा उन्होंने कहा, "आपने द्विज बनना है" ("You थे, क्योंकि उन्होंने भविष्यवाणियाँ की कि यदि आप इन घटनाओं द्वारा दिखाए गए माग्ग पर चलकर are to be born again") परन्तु बन्धन या वातावरण उच्च साधना को नहीं अपनाते तो आपका तथा इतिहास के सूक्ष्म बन्धन इस प्रकार से हम पर क्या हथ होगा। अब हमें ये समझना है कि इसका हावी हैं कि हमें ये महसूस ही नहीं होता कि हमें सम्बन्ध हमसे है। हमारे, हमारे बच्चों, हमारे परिवार आगे बढ़ना है मुझे लगता है कि ईसा-मसीह का हमारे समाज, हमारे देश के साथ भी यही घृटित जीवन एक अन्य क्रूसारोपण था मैं जब उन्हें पढ़ती हो रहा है। हमें इसका सामना करना होगा और हूँ तो अश्रुधारा बह निकलती है। महान पिता का समझना होगा कि ऐसे भयंकर सुस्त हृदय, जिसे कितना महान बेटा! कौन कहता है कि ईसा मसीह 1 आत्मा की बिल्कुल समझ नहीं है, में परमात्मा की ने अपने माता पिता की चिन्ता नहीं की ? बारह वर्ष की आयु में वे अपने घर से भाग गए, क्या इसका सहजयोग बहुत समय पूर्व पृथ्वी पर आ अर्थ ये है कि आज के सभी बच्चे बारह वर्ष की गया था, मेरे आने से भी बहुत समय पूर्व, और आज आयु में अपने घरों से भाग खड़े हों और नशों के यह इंग्लैण्ड में आया है। हमें कहना चाहिए कि मैं शिकार हो जाएँ ? उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने का यहाँ बारह वर्ष पूर्व आई थी। विलियम ब्लेक को यह बहुत अच्छा तरीका है-घर से भाग खड़े होना, करुणा भी कार्य नहीं कर पाती। चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2006 19 नशों की आदतें लगा लेना, क्योंकि बारह वर्ष की बैठे हुए हैं, यह ब्रह्माण्ड का हृदय है, आपने विश्व आयु में ईसा-मसीह भी अपने घर से भाग गए थे! को क्या देना है ? और उन्होंने कहा कि यह मेरे पिता ( Father) का आपके हृदय में है और इसीलिए ब्लेक ने कहा था कार्य business है। उन्होंने माता-पिता की क्या चिन्ता है ? इसका अर्थ ये हृदय है अर्थात् आत्मा को ब्रह्माण्ड के चित्त में आत्मा आत्मा का निवास लिखा कि मुझे कि इंग्लैण्ड को येरुशलम' बनना होगा क्योंकि ये 1 नहीं है कि आप अपने माता-पिता का सम्मान ही आना होगा, अन्यथा कार्य नहीं होंगे। परन्तु ये कहाँ न करें, इसका अर्थ ये हैं कि मैं उच्च साधना कर से आने वाली है ? ये आत्मा, ये कहाँ रहा हूँ। उच्च साधना करने के लिए मुझे दूसरी वाली है ? ये मनुष्यों में जागृत होने वाली है और दिशा में जाना होगा आप इस दिशा में रह चुके वे मनुष्य कहाँ है ? हृदय में वो कहाँ रहते हैं ? हैं. ये जो भी हो, आप लोगों ने अपना जीवन जो लोग यहाँ रहते हैं वो तो पहले से ही आलसी होने जागृत सन्तुलित कर लिया है। परन्तु मुझे उत्क्रान्ति प्राप्त हैं। हृदय आलसी है यह अपने अन्दर से कुछ करनी है। यही संदेश उन्होंने आपके सम्मुख प्रवाहित नहीं कर सकता। पहले ये बहुत अधिक प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है. अत्यन्त स्पष्ट रूप प्रवाहित कर रहा था, पूरे विश्व को प्रभावित करने का से, ये अत्यन्त स्पष्ट हैं, बिल्कुल साफ है। जब भी प्रयत्न कर रहा था, और प्रभावित करने के बाद अब ये वो कहते हैं 'कि इसका मुकाबला करो' जब भी वो उदासी (Depression) की अवस्था में है पूरे विश्व करुणामय इतने भद्र, इतने विनम्र होते हैं, उनका को यदि आध्यात्मिक बनाना है तो हृदय को जागृत संदेश केवल यही होता है कि अपनी उत्क्रान्ति को होना होगा। क्या हम अपनी जिम्मेदारी का एहसास 1 प्राप्त करो, अपनी उच्चावस्था को प्राप्त करो, वही कर पाए ? क्या हम ये बात समझ पाए? बन जाओ । जैसा आप जानते हैं, इंग्लैण्ड में उन्होंने हमारे लिए भूमि तैयार की। जैसा मैं आपको बहुत भूमिका निभानी होगी अब आपको आध्यात्मिक बार बता चुकी हूँ इंग्लैण्ड ब्रह्माण्ड का एक अत्यन्त व्यक्ति की भूमिका निभानी है परन्तु हम ऐसा नहीं महत्वपूर्ण भाग है, मैं नहीं जानती कि कितने अंग्रेज कर रहे हैं । आत्मा के सिवाए हम सभी व्यर्थ की इस सत्य को जानते हैं। ये ब्रह्माण्ड का हृदय है, चीज़ों में व्यस्त हैं। जैसा मैंने कहा, मैंने बारह वर्ष छोटा होते हुए भी यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। परन्तु परिश्रम किया है और मैं सोचती हूँ कि मुझे दो वर्ष हृदय से हमें क्या प्राप्त होता है ? प्रजातीयता और यहाँ रुकना पड़ेगा। चौदह वर्ष, और तब हो (Racialism) ? ईसा मसीह यदि यहाँ आ जाएं तो सकता है, मैं ऐसी आशा करती हूँ, इस देश में आप लोग उन्हें भी निकाल फेंकोगे, क्योंकि वे अंग्रेज नहीं थे, या आपको ये विश्वास है कि वो कार्य को कर सकते हैं। केवल आप ही लोग ये अंग्रेज थे। हमें मिलता क्या है ? हम अपने बच्चों कार्य कर सकते हैं, कोई अन्य नहीं। आपको से प्रेम नहीं कर सकते, उनकी हत्या कर देते हैं, इसका अधिकार है । उनसे दुर्व्यवहार करते हैं! आप ब्रह्माण्ड के हृदय में आध्यात्मिक होने के नाते हमें कौन सी 1 येरूशलम बना हुआ दिखाई देने लगेगा। आप इस किसी उददेश्य को पूरा करने के लिए परमात्मा . जुलाई चैतन्य लहरी अंगस्त, 2008 20 ने आपको यहाँ जन्म लेने के लिए चुना है परन्तु नौकरी कर रहे हो, मैं भी नौकरी कर रहा हूँ ।" आप तो किसी से धर्म के बारे में बात ही नहीं कर वह अनीश्वरवादी है, परम-चैतन्य के विषय में कुछ सकते! वे धर्म की बात नहीं करते। क्या धर्म ? नहीं जानता। परम चैतन्य ( Holy Ghost) क्या है, धर्म जिसमें विश्व के सारे धर्म निहित हैं धर्म विलियम ब्लेक ने कहा है कि इसका निवास आपके जो आन्तरिक सन्तुलन है..आपकी आन्तरिक शान्ति अन्दर है। तो क्यों नहीं हम पता लगाते कि इसका है, जो आपको उत्क्रान्ति प्रदान करता है। परन्तु निवास कहाँ पर है ? इसका पता लगाने के लिए हम इसके बारे में बात ही नहीं करते। धर्म की बात हम हर सम्भव प्रयत्न क्यों नहीं करते ? बाईबल करना आपके शिष्टाचार के बाहर है। हम दुनिया ईसामसीह को अपने अन्दर सीमाबद्ध नहीं कर के सभी शराबियों की बात कर सकते हैं, दुनिया सकती। पूरा ब्रह्माण्ड भी उन्हें सीमाबद्ध नहीं कर भर के शराबखानों की बात कर सकते है परन्तु सकता। आइए अन्यत्र कहीं जाकर पता लगाएं कि धर्म जैसी भयानक चीज़ की बात नहीं कर सकते, अन्य लोग इसके विषय में क्या कहते हैं। परन्तु उस धर्म की जो हमारे अन्दर अन्तर्जात है! इसके हम तो अत्यन्त संकुचित विचारों के दुराग्रही महान, विषय में हम अखबार में कुछ भी नहीं छाप सकते, लोग हैं जो पूर्ण अकर्मण्यता के साथ यहाँ बैठे विलियम ब्लेक ने सभी कुगुरुओं और शैतान हैं हमारे पास समय नहीं हुए परन्तु है हम ये भी नहीं लोगों का वर्णन किया है उनका वर्णन अत्यन्त सोचते कि इस कार्य के लिए कोई अन्य अधिकारी सशक्त है, और आप लोग इन शैतानों से मिलते हैं और हजारों लोग इन भूतों का अनुसरण करते हैं. व्यक्ति हो सकता है जिसे हम जाकर मिलें । परम चैतन्य (Holy Ghost) क्या है, यह आप यदि वियेक बुद्धि, वे सच्चाई की ओर नहीं आना चाहते! क्यों ? ये तार्किकता नहीं, का उपयोग करें तो कुण्डलिनी ही उन्हें धन देते हैं, स्वयं भिखारी बन जाते हैं परन्तु अत्यन्त सहज बात है। - -प्रश्न में स्वयं से पूछती हूँ। ऐसा क्यों हो रहा है ? Holy Ghost है। विवेक-बुद्धि भिन्न है। आप यदि किसी भी अति तक जाने का कोई लाभ नहीं। यहाँ विवेक का उपयोग करें तो पाएंगे कि त्रिदेव, पावन एक ऐसा व्यक्ति है जिसने आपके सम्मुख विस्तृत त्रिदेव, हैं सर्वशक्तिमान परमात्मा हैं, ठीक है, हमारे (Holy Ghost) परम चैतन्य, वे कहते हैं, "और परमचैतन्य भी कभी आपने सुना है कि माता के बिना कभी एक रिक्ति है" (and Holy Ghost a vacuum")। पिता को पुत्र हुआ हो ? तो यह Holy Ghost कौन आप किसी से भी पूछे, मैं हैरान थी जब एक बहुत है? ये आदिशक्ति हैं। स्वतः ही आप निष्कर्ष तक बड़े पादरी से पूछा गया कि आप परम चैतन्य के पहुँच जाते हैं। परन्तु माँ का वर्णन नहीं होना मैं चाहिए? इसी कारण से ब्लेक ने अलबियन (Albion) अनीश्वरवादी (Agnostic) हूँ। अनीश्वरवादी ? तब की पुत्रियों के बारे में कहा है, क्योंकि वे जानते थे उन्होंने उससे पूछा, "तो आप यहाँ क्या कर रहे कि किस तथाकथित संस्कारित ढंग से महिलाओं हो ? उसने उत्तर दिया, "जिस तरह से तुम को दबाया जाता है। संस्कृत में हम कहते हैं, "यत्र रूप से व्याख्या की है। यहाँ पुत्र (Son) हैं और आदि-शक्ति बारे में क्या सोचते हैं ? वो कहने लगा, आह जुलाई चैतन्य लहरी 21 अगस्त, 2005 नार्या पूज्यन्ते, तत्र रमन्ते देवता ।" जहाँ महिलाओं आवश्यक है। क्षमा उन लोगों के लिए होती है जो का सम्मान होता है वहाँ देवता निवास करते हैं- महसूस करते हों कि उन्होंने पाप किए हैं विचार जहाँ महिलाओं की पूजा होती है। और महिलाओं करने पर ही पाप का अहसास होता है... को भी पूजनीय होना होगा वेश्याएं नहीं, और अपने नहीं किसी कुत्ते को देखें, चीते को देखें, इन सभी नंगेपन से पाशविकता भड़काने वाली वस्त्रहीन को देखें चीते को यदि गाय खानी है तो खानी है। महिलाएं और वेश्यालय नहीं, परन्तु पूजनीय क्या वह कोई पाप करता है ? उसे तो पाप का महिलाएं। ऐसी महिलाओं का जहाँ निवास होता है बोध ही नहीं है:- "मैं नहीं जानता कि पाप क्या वहाँ देवता निवास करते हैं। तो महिलाओं का होता है, वो कहेगा कि "मैं नहीं जानता था कि ये दमन किया जाता था, उस सीमा तक दमन किया पाप है, इसलिए मैंने इसे खा लिया"। परन्तु पाप है अन्यथा जाता था कि कहीं भी वे महिला के देवी होने की क्या ? हर समय किसी की भत्त्सना करते रहना "आप पापी हैं, आपने ये पाप किया है, आपने वो बात तक नहीं करना चाहते थे। अतः उनके अनुसार Holy Ghost (आदि-शक्ति) अमूर्त (निराकार) हैं, फाख्ता हैं ठीक है ये फाख्ता हैं, तो क्या ? फाख्ता :- पाप किया है !" मानव परमात्मा के मन्दिर हैं। कितनी प्रार्थना, प्रेम, स्नेह एवं कोमलता पूर्वक उनका सृजन किया गया है! किसलिए ? भ्रम की माया से इन कमलों से हम क्या करते हैं ? फाख्ता (Dove) से आशीर्वाद लेना इतना महत्वपूर्ण क्यों है, ये बात कोई नहीं बताता! ये रहस्य है! इसी रहस्य के साथ हमें को निकाला गया है, किसलिए? निन्दित होने के रहना होता है। हर चीज़ रहस्य है। यहाँ पर बैंको लिए, कुचले जाने के लिए. इस प्रकार से दुर्व्यवहार का कारोबार (Banking) भी रहस्य है, परन्तु पैसा सहने के लिए, और वह भी परमात्मा के नाम पर कहाँ जाता है, ये भी रहस्य है, इसका सम्बन्ध कमलो का सृजन परमात्मा को अर्पित करने के लिए माफिया से है, ये भी एक रहस्य है। फिर मैसोनिक किया जाता है ताकि अपनी सुगन्ध से कमल पूरे लोग स्विटज़रलैण्ड बैंक की व्यवस्था करते हैं, ये विश्व को सुरभित कर दे। वे परमात्मा की काव्यमयी भी एक रहस्य है। हर चीज़ रहस्यमय है. छुपी हुई प्रतिभा हैं, जैसा ब्लेक ने वर्णन किया है। परन्तु हम है और बताई नहीं जाती, "ओह ये नहीं कहना है, मानव को इस प्रकार देखते हैं कि किस प्रकार ये तो विदेशी बैंकिंग है, क्या बात है बहुत अच्छा उसका शोषण करें, उसे दबाएं और प्रताड़ित करें। नाम है!" ये विदेशी बैंकिंग है, ये यह है. ये वो है इसलिए वे कहते हैं कि दो तरह के लोग हैं. मानव का शोषण करने वालों को, उन्हें निगलने का प्रयत्न और इस प्रकार हम ये सारा पाखण्ड चलाए जा रहे करने वाले लोगों को, उन्होंने भयानक नाम भी दिए हैं। ब्लेक कहते हैं, इन सारी असत्य धारणाओं के साथ हम चले जा रहे हैं, ओह, ठीक है, ठीक है, ये इसी का एक भाग है।" ये क्षमा नहीं है,चालाक लोगों. धूर्तों और समझौता कराने वाली चीज़ बन गई है, जबकि हैं कि धर्म अब इन दोनों के बीच अबोध, सहज, अच्छे तथा साधक लोग कष्ट उठाते शैतानों के लिए क्षमा का क्या महत्चव है ? क्षमा की बात करते हुए हमारे अन्दर विवेक-बुद्धि होनी हैं ये सत्य है। हैं। ये सत्य है। चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2005 22 प्रसन्न करने का प्रयास करूं। क्या मुझे तुम्हारे मतों मिलकर अपने आइए अब सब आत्म-साक्षात्कार को पा लें, आत्मा बन जाएं। यह (Votes) की आवश्यकता है जो मैं तुम्हें प्रसन्न कार्य सुगमतम है क्योंकि आदिशक्ति (Holy Ghost), करने का प्रयत्न करुं ? मुझे तो आपको सत्य जो कि कुण्डलिनी हैं, आपके अन्दर हैं। उनका बताना है चाहे ये आपको अच्छा लगे या न लगे। निवास आपकी त्रिकोणाकार अस्थि में है और उन्हें मैं चाहती हूँ कि आप इसे स्वीकार करें क्योंकि इसी जागृत किया जा सकता है। लोग कह सकते हैं कार्य के लिए मैं यहाँ पर हूँ। मैं यहाँ इसी कार्य के कि उन्होंने कुण्डलिनी की बात क्यों नहीं की ? लिए हूँ कि आप सत्य को स्वीकार करें और इसे पा उन्होंने जो कुछ भी कहा, उसे किसने सुना ? जो लें। अपनी सामर्थ्य अनुसार मैं पूरा प्रयत्न करूंगी। भी उन्होंने कहा, उसको समझने का प्रयत्न किसने मैं आपके लिए खाना बना सकती हूँ, आपको खाना किया ? आज तक भी मुझे ऐसे अधिक लोग नहीं परोस सकती हूँ. आपको तोहफे दे सकती हूैं और मिले हैं जिन्होंने ब्लेक को समझा हो! जिन तथ्यों वो सभी कार्य कर सकती हैं जो कोई माँ अपने की उन्होंने अभिव्यक्ति की किसने उनके विषय में बच्चों के लिए कर सकती है। परन्तु माँ के प्रयत्न जानने की कोशिश की ? और यदि उन्होंने इससे यदि सफल न हों तो उसे चिल्लाना पड़ता है, 1 कुछ अधिक बताया होता तो यह बिल्कुल अस्पष्ट कभी-कभी बिल्कुल स्पष्ट कहना पड़ता है, क्योंकि आपने इसे प्राप्त करना है। लोगों पर इसे थोपा नहीं बिल्कुल चिन्ता नहीं है जो मेरी बातों को समझ जा सकता, ये बहुत बड़ी समस्या है। हो जाता। वो कहते हैं, "मुझे उन मूर्खों की नहीं सकते।" वे स्पष्ट कहते हैं। केवल तीन बार आत्म-साक्षात्कार लोगों पर थोपा नहीं जा सकता। है विवश करके किसी को आत्म साक्षात्कार नहीं उन्होंने 'मूर्ख (idiot) शब्द का उपयोग किया और जड़मति (Stupid) तथा बेवकूफ (Fool) शब्दों दिया जा सकता। मान लो रूसी लोग मुझे कहें, का प्रयोग बहुत बार किया है । परन्तु मेरे लिए वे उनकी सहजयोग में बहुत रुचि है उसमें कोई सब परमात्मा के बच्चे हैं। मैं जानती हूँ कि ब्लेक सन्देह नहीं, परन्तु वो यदि कहें कि हमारी सरकार कितने नाराज़ थे, क्यों नाराज़ थे, और मैं उसे में आकर आप उन्हें आत्म-साक्षात्कार दो तो मैं समझती भी हूँ। उसने सोचा कि यहाँ पर सहजयोग ऐसा नहीं कर सकती। मैं ऐसा नहीं कर सकती। आने से पहले मुझे इन लोगों पर प्रहार करना आपको स्वतन्त्र होना होगा! जब आप स्वतन्त्र होते चाहिए और झकझोर कर इन्हें चौंकाना चाहिए हैं तो भिखारी होते हैं । देखें कि हम स्वतंत्रता का ताकि ये तैयार (सहजयोग के लिए) हो जाएं। कितना मूल्य चुका रहे हैं ? कोई भी स्वतन्त्र नहीं परन्तु उनकी समीक्षा में आलोचकों ने यह लिखा है है! यूरोप में जाकर मुझे ये सारे गहने उतारने पडते कि उन्हें इसलिए स्वीकार नहीं किया गया क्योंकि हैं, पारिवारिक प्रतिष्ठा के कारण जिन्हें पहनने की वे सीमा से बहुत परे चले गए थे मेरे साथ भी ऐसा आशा मुझसे की जाती है। मुझे वहाँ बिना बटुए के ही है। मुझे भी लोग स्वीकार नहीं करते क्योंकि मैं जाना पड़ता है। अपना बटुआ मुझे यहाँ अन्दर 1. भी बहुत दूर चली जाती हूँ। मुझे चाहिए कि उनको बाँधना पड़ता है, किसी चीज़ से इसको बाँधना जुलाई - अगस्त, 2006 चैतन्य लहरी 23 पड़ता है अन्यथा लोग इसे भी छीन ले जाते हैं। परन्तु उससे पूर्व यदि मैं कहूँ कि ये मत लो. वो मत कुछ भी सुरक्षित नहीं है। तो इस प्रकार की सेवन करो,' तो आप ऐसा नहीं कर सकते आपमें स्वतंत्रता जो हमें हिंसा और हत्या तक पहुँचाती है. आत्मा की शक्ति नहीं है। ईसामसीह से पूर्व आने जिस प्रकार हमने अपने बच्चों और बुजुर्गों की वाले बहुत से अवतरणों ने यह नहीं समझा कि हत्या की है, जिस प्रकार हमने उन सबका अपमान मानव आत्मसाक्षात्कारी नहीं है, उनमें आत्मा की किया है, वह सब स्वतन्त्रता के साथ-साथ चलता शक्ति नहीं है। ईसामसीह ने इस बात का अहसास है। ये स्वतंन्त्रता नहीं है। ये तो हमारे अन्दर की किया और स्पष्ट कहा, "आपको पुनर्जन्म लेना पाशविकता के सम्मुख पूर्ण आत्म-समर्पण कर देना होगा " (Vou are to be born again )। केवल इतना है! ही नहीं, उन्होंने कहा, "सर्वप्रथम क्षमा करो।" तो आप चाहे रूस चले जाए या यूरोप, उन्होंने क्षमा की बात की, ताकि लोग शान्त हो सहजयोग कठिनाई में है। आप चाहे बाएं को जाएं जाएं. वे संविभ्रमी (विक्षिप्त-चित्त) तथा अशान्त न या दाएं को, मेरी समझ में नहीं आता कि कहाँ हों। शान्ति और करुणा में पहले वे स्थापित हो सहजयोग पनप पाएगा! केवल वहाँ पर जहाँ जाएं और फिर उनकी कुण्डलिनी जागृत की जाए स्वतन्त्रता का उपयोग विवेक एवं सम्मानपूर्वक और उन्हें आत्म-साक्षात्कार दिया जाए। तब आपमें किया जाता है । दूसरों की स्वतन्त्रता का यदि आप शक्ति होती है, आप प्रलोभनमुक्त होते हैं, ऐसा कुछ सम्मान नहीं कर सकते तो आप भी बिल्कुल नहीं होता। क्या आप ईसा-मसीह को कोई प्रलोभन स्वतन्त्र नहीं हैं, आपने स्वतन्त्रता को पहचाना ही दे सकते हैं ? नहीं दे सकते इसी प्रकार से आप 1 नहीं, आपने कभी स्वतन्त्रता का आनन्द उठाया ही भी किसी प्रलोभन के दास नहीं बनते। अपने सौन्दर्य, गरिमा, अपनी शक्ति एवं साहस से आप नहीं। अतः मानव की स्वतन्त्रता का सम्मान करना होगा, जब स्वतन्त्रता का सम्मान होगा केवल तभी उन्नत होते हैं। कोई चीज़ आपने समाप्त नहीं आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकेंगे, और केवल करनी होती यही आत्म-साक्षात्कार है। बारह वर्ष पूर्व जब मैं आई तो लन्दन में सहजयोग आया। आप लोगों की सूचना के लिए मैं बता दूं कि मैं आप्रवासी नहीं हूँ। संयोग से मैं यहाँ आई. या मुझे कहना चाहिए कि परमात्मा के विधान से मैं यहाँ आई । 134 राष्ट्रों में से मेरे पति इस पद के लिए चुने गए, उन्हें चुना चुने जाने के कारण, नियुक्त होने के कारण नहीं, तभी आप उच्च स्वतंत्रता में प्रवेश कर सकेंगे, ब्लेक वर्णित पूर्ण स्वतन्त्रता में यहाँ साधक है, इस देश में बहुत से साधक हैं और बहुत से साधक खो भी से खो गए हैं। नशों का सेवन करने गए हैं बहुत वाले बहुत से लोगों को सहजयोग ने बचा लिया है । रातोरात लोग इसे प्राप्त कर लेते हैं। रातोंरात कैसे ? ये तन्त्र (Mechanism) आपके अंदर है। परमात्मा ने 1 गया (Elected)। उनके इसकी रचना की है, आत्मा का वह प्रकाश जब चुने जाने के कारण, लगातार चार बार निर्विरोध आपको प्रकाशित करता है, तो यह इतना शक्तिशाली हो जाता है कि आप सभी बुराइयाँ त्याग देते हैं। हैं प्रवरतम मुख्य सचिव अंतः हमें यहाँ आना पड़ा, चुने जाने के कारण हम यहाँ आए। वे प्रवर ( Senior) 1. जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2005 24 और इस प्रकार मैं यहाँ आई। अन्यथा सहजयोग आपने हमें दिया है या सभी पूर्वी देशों को दिया है, सिखाने के लिए मैं इंग्लैण्ड में कभी न आई होती। वह सम्पूर्ण विश्व के लिए है । सभी लोग इसे ब्लेक के साथ, व्यक्ति विवश हो जाता है कि वह स्वीकार करते हैं। जो ज्ञान आपके हित के लिए है ि येरूशलम स्थापित करने का प्रयत्ल करता रहे, उस ज्ञान को स्वीकार करने में क्या हानि है ? करता रहे, करता रहे। चाहे जो हो, निराशा हो, चाहे जो कुण्ठा हो, कोई बात नहीं । ये इतना असुरक्षित मानते हैं! कार्य करना ही है इंग्लैण्ड की मिट्टी पर उनकी इतनी श्रद्धा थी कि हमें यहाँ येरुशलम बनाना चाहे जो क्योंकि यह पूर्व से आया है, इसलिए आप इसे ईसा-मसीह कहाँ से आए ? वे अमेरिका से है, आए थे मैं सोचती हैँ कि वे दौड़ गए होते! उसके परन्तु इससे पूर्व यहाँ उपस्थित आप सबको बावजूद भी में कहूंगी कि इन सब में से बर्तानिया के आत्म-साक्षात्कार लेना होगा औ र अपने लोग सबसे अधिक परिपक्व हैं परन्तु हम अमेरिका आत्म-साक्षात्कार के सम्मुख विनम्र होना होगा के, फ्रांस के लोगों के पीछे भागते हैं, ये जाने बिना कि हम क्या हैं, हम सबके पीछे दौड़ते हैं हम उसने कहा कि ईसा-मसीह मनुष्यों के प्रति विनम्र विवेक हैं, हम वो लोग हैं जो ब्रह्माण्ड के हृदय का इसके सम्मुख आपको उद्दण्ड नहीं होना होगा। न थे, परन्तु परमात्मा के सम्मुख, अपने पिता प्रतिनिधित्व करते हैं और उनके समय से लेकर अब (Father) के प्रति वे विनम्र थे। इसी प्रकार से तक के काल में हम अब परिपक्व हो गए हैं। मुझे आपको भी अपनी आत्मा के और आत्मसाक्षात्कार आशा है कि शुरुआत (Breakthrough) की के प्रति विनम्र होना होगा तथा उच्च अवस्था प्राप्त आवश्यकता को समझने के लिए हम काफी करनी होगी। आश्चर्य की बात है कि भारत में यह परिपक्व हो चुके हैं। जब इन्होंने मेरे इश्तहार ज्ञान हमेशा से था। परन्तु आशा की जाती थी कि छपवाए तो हुआ यह कि उनमें मेरे चेहरे का रंग हम मूर्तिपूजक (Heathens) बने रहें, दास बने रहें। काफी काला आया मैंने कहा, कि इन इश्तहारों इसके विषय में कोई कुछ भी न जानना चाहता को भूल जाओ क्योंकि इतना काला चेहरा यदि था। जड़ों का (मूल) ज्ञान उपलब्ध था, परन्तु हमारे आप लोगों को दिखाओगे तो कोई भी कार्यक्रम में बुद्धिजीवियों ने इसकी बिल्कुल चिन्ता न की और न आएगा .वो कहेंगे, "अफ्रीका का कोई व्यक्ति हमें हमेशा ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज की परंपराओं का ये सिखाने का प्रयत्न कर रहा है कि येरूशलम अनुसरण करते रहे। इस आकसाब्रिज परम्परा के क्या है।" तो ये दर्शाने के लिए, कि मैं काले रंग की कारण हमने लोगों के बीच जाकर अपने देश के नहीं हूँ, उन्हें ये इश्तहार दोबारा छपवाने पड़े। इस महान ज्ञान के विषय में कभी कुछ नहीं बताया चमड़ी के रंग से क्या फर्क पड़ता है ? रंग और और सभी निष्क्रिय हो गया ये ज्ञान केवल सौन्दर्य तो हृदय से आता है। हृदय का उल्लास भारत के लिए ही नहीं है, किसी स्थान-विशेष के आपके अस्तित्व के सौन्दर्य की अभिव्यक्ति करता लिए नहीं है ये पूरे विश्व के लिए है, वैसे ही जैसे है। और सत्य का सौन्दर्य ये है कि ये गतिशील है। कुछ 1. आपका विज्ञान का ज्ञान। वृक्ष का पूरा ज्ञान, जो होता है, कार्य करता है, सज्जा मात्र नहीं है। यह बैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2006 25 कूड़े में कैसे फेंके जा सकते हैं. ताकि कूड़ा उन्हें ढक ले और उनकी सुगन्ध दुर्गन्ध में परिवर्तित हो लोगों को लुभाने के तरीके अपनाने का प्रयत्न नहीं करता, ये कार्य करता है। चाहे आपको अच्छा लगे या न लगे, ये कार्य करता है। आइए हम इसे जाए। ये मेरी समझ से परे है। मानव की शक्तियाँ कार्यान्वित करें, ये बहुत सहज है। बुद्धिवादी करतब कभी कभी परमात्मा की शक्तियों पर हावी हो जाती और अपने मस्तिष्क के माध्यम से सीमित को हैं। आप देख सकते हैं कि किस प्रकार वे मूर्तियों समझने की दिशा में जाने-की अपेक्षा आइए, हम को परिवर्तित कर सकते हैं, सौन्दर्य को परिवर्तित कर सकते हैं, वह सभी कुछ परिवर्तित कर सकते हम अपनी आत्मा को प्राप्त कर लेंगे- आत्मा जो हैं जो सत्य है और उसे विवेकहीन तथा मूर्खतापूर्ण असीम है, अनन्त है, जो आपके अन्दर सामूहिक बना सकते हैं और इसी के साथ वे जिए चले जाते चेतना का सृजन करती है, मैं कहती हैं. सृजन हैं असलियत को वो नहीं जानना चाहते. उसी का असीम की ओर चलें यह तभी सम्भव होगा जब करती है, इसका अर्थ है ज्ञान। परन्तु ज्ञान का आनन्द लेते हैं।" हम अत्यन्त प्रसन्न लोग हैं, क्या अभिप्राय वो बिल्कुल नहीं है जो आप मस्तिष्क के बुराई है ?" इस सृष्टि का कितना दुरुपयोग है! माध्यम से जानते हैं, ज्ञान का अर्थ है- मध्य नाड़ी कितनी आकांक्षाओं तथा स्वप्नों को लेकर पृथ्वी पर तन्त्र द्वारा जाना गया ज्ञान, जिसे आप महसूस मानव का सृजन किया गया था ? उन्हें समझाने के करते हैं और जिसके माध्यम से अन्य सभी के चक्रों लिए, इन आकांक्षाओं के प्रति जागरूक करने के को आप अपने अंगुलियों के सिरों पर महसूस कर लिए और ये बताने के लिए कि वे परमात्मा का सकते हैं। मोहम्मद साहब ने कहा है, "कयामा दिव्यस्वप्न हैं. क्या किया जाए ? कभी-कभी तो मैं (Resurrection ) के समय आपके हाथ बोलेंगे "परन्तु भी पृथ्वी पर अवतरित इन कवियों के हृदय के दुख मुसलमानों को देखें, वे कभी पुनर्जन्म (Resurrection ) में भागीदारी करने के लिए अकेले में आँसू बहाती की बात ही नहीं करते जबकि कुरान का अधिकांश हूँ. उन सभी कवियों के लिए जो पृथ्वी पर आकर भाग पुनर्जन्म के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। वे दुख सहते रहे, सहते रहे, सहते रहे! मुझे आशा है प्रलय- दिवस की बात करते हैं क्योंकि लोगों को कि आज इस वेदना के साथ जो भी मैं आपको बता डराकर उनसे पैसा ऐंठना होता है:-" प्रलय-दिवस रही हूँ, आप ये देखने का प्रयत्न करेंगे कि से सावधान ! आप हमें धन दें हम आपकी रक्षा सत्य-निष्ठा ही स्वयं को समझने का एकमात्र करेंगे, आपको प्रमाणपत्र देंगे और प्रलय के दिन मार्ग है कोई पुस्तक, कुछ अन्य उस प्रमाणपत्र को लेकर खड़े हो जाएं तो आपकी बन्धन, कोई त्याग आपको विश्वस्त नहीं कर रक्षा हो जाएगी।" तो सर्वप्रथम वे प्रलय दिवस पर सकता, केवल आपके अन्तःस्थित आत्मा को पहुँच जाते हैं। ऐसा सभी धर्मों में है लोगों ने धर्म जानने की सत्यनिष्ठा ही इस कार्य को कर को अत्यन्त घटिया चीजों के लिए, धनार्जन के लिए सकती है और इसी सत्य- निष्ठा को मैं और राजनीतिक धारणाओं की रचना करने के लिए 'शुद्ध-इच्छा नाम देती हूँ आपमें यदि वह शुद्ध किया है मैं नहीं समझ पाती कि रत्न इस प्रकार इच्छा है. जो आपकी कुण्डलिनी की शक्ति है, तो कोई चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2006 26 अब, अभी, आपको आत्म-साक्षात्कार मिल जाएगा, कितना कुछ बता पाए ? उन्होंने आदिशक्ति (Holy मिल जाना चाहिए। इसी आवश्यकता है. आत्मा Ghost) की बात की परन्तु उसी से क्यों चिपके बनने की शुद्ध इच्छा की, उससे अधिक कुछ भी रहें ? अब मैं आपको बताने के लिए आई हूँ. बेहतर नहीं। परन्तु जब ये जागृत हो जाती है तो इसकी होगा कि आप आत्म-साक्षात्कार ले लें। जब वो आए देखभाल आवश्यक होती है ऐसा करना बहुत थे तो लोग मोज़िज़ की बात किया करते थे, जब आवश्यक है। इसकी देखभाल करनी होगी, इस मोज़िज़ अवतरित हुए तो लोग अब्राहम की बात करते दीप को जलते रखना होगा, इसे व्यवस्थित करके थे वर्तमान के विषय में क्या है ? मैं आपके साथ हूँ। एक बिन्दु पर रखना होगा ताकि आप निरन्तर क्यों नहीं आत्म-साक्षात्कार ले लेते ? सभी धर्म इसीलिए उन्नत होते चले जाएं। अभी आपको सहजयोग के विषय में सभी सन्तुलन प्रदान करने के लिए, आपको वह सम्पदा बनाए गए थे कि आप आत्म-साक्षात्कार पा लें, आपको कुछ बता देना मैं अनावश्यक समझती हूँ क्योंकि प्रदान करने के लिए जिसके माध्यम से आप उत्क्रान्ति इसे सहन कर पाना आपके लिए बहुत कठिन पा सकें। आपके पास यदि हवाई जहाज़ हो तो उसे होगा व्लेक ने जिस प्रकार हमारे लिए कार्य आप पहले साधते हैं इसी प्रकार से उन्होंने भी आपको किया, अन्य बहुत से कवियों ने भी इस कार्य को साधना चाहा परन्तु धर्म भ्रमित हो गए. इस प्रकार से किया, परन्तु हमें समाप्त करने के लिए, मीडिया उन्होंने चीजों को तोड़ा मरोड़ा कि लोग धूर्त बन गए को प्रसन्न करने के लिए. धनार्जन के लिए, हमें गलत स्थानों पर गलत कील ठोके गए, पूरे हवाईजहाज मूर्ख बनाने के लिए, चिकने-चुपड़े शब्दों और की दुर्दशा हो गई है, इससे यदि आप उड़ेंगे तो गिर वाक्यों का प्रयोग करके, सीधे हमें नर्क में ले जाने जाएंगे बेहतर होगा कि इन विचारों को त्याग दें। के लिए. अब ये नए महान कवि आ रहे हैं। इनसे परन्तु कुण्डलिनी इतनी महान शक्ति है कि ये आपको सावधान रहें। सावधान, अपने बच्चों को उनसे सुख देती है, रोग-मुक्त करती है, आपके सभी चक्रों बचाएं, पूरे समाज की उनसे रक्षा करें। पूरे इंग्लैण्ड को ठीक करती है और शनै शनै ऊपर को उठती है। की रक्षा करनी होगी क्योंकि यदि हृदय मर जाएगा जब आप आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करते हैं तो वापिस तो जाकर यह आपकी सभी समस्याओं को देखती है पूरा विश्व मर जाएगा। परमात्मा आप पर कृपा करें। कुछ प्रश्न-उत्तरों का सारः- बारह हजार वर्ष पूर्व भारत के मार्कण्डेय, विलियम (28 नवंबर 1985 को हमरस्मिथ टाऊन हॉल लन्दन में सहजयोगियों ब्लेक के रूप में अवतरित हुए। बारह हजार वर्ष पूर्व भी उन्होंने यही बात कही थी जो बारह हजार वर्ष बाद उन्होंने इंग्लैण्ड में कही, क्योंकि मैं नहीं जानती, उस द्वारा आयोजित किए गए विलियम ब्लेक के जन्मदिवस समारोह I में सहजयोग और विलियम ब्लेक की एक प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम की सी.डी. भी बन चुकी है समय यहाँ जंगल होंगे। उनका कहा हुआ सभी कुछ (रूपान्तरित) व्यर्थ हो गया है। कुण्डलिनी के विषय में ईसा-मसीह आस्ट्रेलिया में सहजयोग के 25 वर्ष सार्वजनिक कार्यक्रम सिडनी टाऊन हॉल सोमवार, 6 फरवरी 2006 सर सी. पी. श्रीवास्तव का सार्वजनिक भाषण (कौन कल्पना कर सकता था कि सिडनी टाऊन हॉल में 1500 से भी अधिक साधकों को सम्बोधित करते हुए सर सी. पी. सम्मुख बैठी हुई श्रीमाताजी का उल्लेख देवी शब्द से करेंगे।) अभिव्यकत कर पाना कठिन होता है और यह भी ऐसा ही क्षण है। सर्वप्रथम मैं कहना चाहूँगा कि यहाँ उपस्थित प्रतिष्ठावान सम्माननीय अतिथिगण, देवियों एवं सज्जनों, आस्ट्रेलिया सहजयोग के राष्ट्रीय समन्वयक आप सभी लोगों के प्रति मैं अत्यन्त-अत्यन्त आभारी हूँ। मैं जानता हूँ कि आप कितने व्यस्त हैं! इस श्री क्रिस क्रियाकौ (Mr. Chris Kriyacaou), सहजयोग प्रचार प्रसार राष्ट्रीय परिषद के सभी सदस्यगण- अवसर-सहजयोग की 25 वीं वर्ष गाँठ को मनाने के लिए समय निकालना इस बात को दर्शाता है कि देवियो एवं सज्जनों, आध्यात्मिकता, नैतिकता और अच्छे जीवन में आपकी कुछ ऐसे क्षण होते हैं जिनमें स्वयं को कित्तनी रुचि है। अतः पुनः मैं आपके सम्मुख नतमस्तक होता हूँ आज यहाँ आकर जो सम्मान आपने श्रीमाताजी निर्मला देवी और मुझे प्रदान किया है, उसके लिए में आप सबका अत्यन्त-अत्यन्त धन्यवाद करता हूँ। ও मेरे विषय में बहुत सी अच्छी-अच्छी बातें कही गई हैं। ये लोग अत्यन्त करु मिय हैं। कृपा करके जो कहा गया है , उस सब पर विश्वास न कर लें। परन्तु मेरी पत्नी के विषय में जो कुछ भी कहा गया, वह पूर्णतः सत्य है, थोडी देर में मैं उसके बारे में बात करूंगा। सर्वप्रथम मैं आपको बताना चाहूंगा कि आस्ट्रेलिया के सहजयोगी कितने अच्छे हैं। आप जानते हैं, केवल कुछ सप्ताह पूर्व इन्होंने हमें आमन्त्रित किया और उन्होंने (श्रीमाताजी ने) उनका चैतन्य लहरी 2৪। अगस्त, 2005 जुलाई निमन्त्रण स्वीकार कर लिया और लगभग छः दक्षिणी आस्ट्रेलिया के सदस्य, नीतिशास्त्र संचार सप्ताह के समय में सभी मिलकर एक घर को संस्थान की निदेशक सुश्री जुले दू वारेन्स (Ms. आश्रम में परिवर्तित करने के लिए जुट गए, और Jule du Varrens), N.S.W के विपक्ष के नेता श्री इन सब ने क्या कार्य किया है, इस पर विश्वास पीटर देबनम ( Mr. Peter Debnam), और सिडनी करने के लिए आपको वह स्थान देखना पड़ेगा! नगर के लार्ड मेयर क्लोवर मूर (Clover Moore). अपनी प्रिय देवी एवं माँ के लिए उन्होंने इस घर को के प्रति भी मैं अपना हार्दिक आभार प्रकट करता पृथ्वी पर एक छोटे से स्वर्ग का रूप दे दिया है। हूँ। जिन प्रेममय शब्दों से उन्होंने हमारा स्वागत वे इतने समर्पित हैं, इतने सच्चे हैं, इतने पावन हैं किया उनके प्रति हम अपना गहन आभार प्रकट कि मैं उनमें से हर एक के सम्मुख नतमस्तक हूँ करते हैं। देवियो और सज्जनों, अब मैं उस बात पर और यह शानदार कार्य करने के लिए, उनकी चमत्कारिक मेहमाननवाज़ी तथा उनकी गहन करुणा आता हूँ जो मुझे आपको बतानी है ये इतनी महत्वपूर्ण सभा है कि मैं इस अवसर को गँवा नहीं के लिए, मैं गहन आभार की भावनाएं व्यक्त करना चाहता हूँ। वे सब मुझे प्रिय हैं, प्रेम से मैं उन्हें फरिश्ते सकता था, और मैं अपने हृदय की बात कहना चाहता हूँ। परन्तु इससे पूर्व मैं ये बताना चाहता हूँ, कि यहाँ बैठी यह महिला, मेरी पत्नी, एक सन्देश, कहता हूँ। वास्तव में वे फरिश्ते हैं। देवियो और सज्जनों, मैं आस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमन्त्री श्री गौ व्हिट्लम (M. Gough Whitlam) प्रेम सन्देश, भाईचारे का सन्देश देने के लिए पैंतीस वर्षों तक विश्व- भर में दौड़ती रहीं। मुझ पर विश्वास के प्रति अपना गहन आभार प्रकट करना चाहूंगा। करें, उन्होंने हवाई जहाज, हैलिकॉपटर, कार, बस, उनके द्वारा स्वागत किए जाने का सम्मान मुझे बैलगाड़ी तथा पैदल यात्रा की। वे गाँवों तथा नगरों प्राप्त हुआ। मैं उन्हें अपने समय का महानतम में गई और पाँच महाद्वीपों में वे बहुत स्थानों पर कल्पनाशील नेता मानता हूँ, आज के विश्व को गई ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि उन्हें पूर्ण उनकी अत्यन्त आवश्यकता है। हमारे यहाँ आने विश्वास था कि विश्व को एक नए संदेश की के विषय में उनके प्रेममय शब्दों के लिए मैं उन्हें आवश्यकता है। विश्व को यदि जीवित रहना है, धन्यवाद देता हूँ। आस्ट्रेलिया के विपक्ष के नेता बने रहना है तो मानव को कुछ नया बताना होगा। माननीय श्री किम बीजले (M. Kim Beazlay ), और स्वयं पर पूर्ण विश्वास के साथ वर्षों तक माननीय मौरिस लेम्मा (Mr. Morris Lemma), एन. अकेली वे चहूँ ओर गई शनैः शनैः सहजयोगी एस. डब्लयू के प्रधान, माननीय एलन कारपेन्टर आए। उन्होंने क्या देखा, उनके (श्रीमाताजी) कथनों (M. Alan Carpenter), पश्चिमी आस्ट्रेलिया के प्रमुख के मूल्य को. और आज 80-90 देशों में उनके सम्माननीय केट एलिस (Mt. Kate Elis) एडिलेड, अनुयायी हैं। जहाँ भी मैं जाता हूँ वहाँ सहजयोगी चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2006 29 हैं, सहजयोगिनियाँ हैं, उनके प्रिय बच्चे हैं। उन्होंने क्यों माने ? ये विश्वास की बात है और उन्हें इस कितना अदभुत कार्य किया है, कितना अद्भुत पर विश्वास है। वे स्वयं इसाई परिवार में जन्मीं, सृजन उन्होंने किया है! ये क्या है ? उनका पति मेरा जन्म हिन्दू परिवार में हुआ, परन्तु हम दोनों होने के नाते मैं इसे किस प्रकार देखता हूँ ? जो एक ही सर्वशक्तिमान शक्ति, एक मानव परिवार में भी हो, मैं अवश्य कहूंगा कि इस कार्य को करने के विश्वास करते हैं और इस प्रकार हम साथ हैं। इसी लिए बहुत लम्बे-लम्बे समय तक वे मुझसे दूर रहीं, संदेश का उन्होंने संचार किया है, ये कहते हुए. परन्तु मैं जानता था कि वो विश्व के लिए कुछ उन्होंने इस संदेश का संचार अनगिनत श्रोताओं में अद्भुत कार्य कर रही हैं और ये बात सत्य थी। किया है कि 'आप उसी सर्वशक्तिमान परमात्मा की जैसा मैं देखता हूँ, उनका संदेश बिल्कुल रचना हो, आपको उन्हीं के रूप में बनाया गया है, सीधा सच्चा है:- विश्व के सभी पुरुष, महिलाएं और आपके अन्दर निहित एक शक्ति है जिसे और बच्चे सर्वशक्तिमान परमात्मा की रचना हैं। जागृत करने में सम्भवतः, वे सहायता कर सकती कुछ लोग कहते हैं, "मेरे परमात्मा सर्वशक्तिमान हैं", कुछ अन्य कहते हैं, " मेरे परमात्मा सर्वशक्तिमान जाती है तो आपका योग अपने सृजनकर्ता (परमात्मा) हैं। परिभाषा के अनुसार एक से अधिक से हो जाता है और तब आपको नैतिकता, 'सर्वशक्तिमान' नहीं हो सकता। क्योंकि यदि ऐसे उच्च-चरित्र और सभी सद्गुणों से परिपूर्ण सुन्दर दो होंगे तो उनमें से कोई भी सर्वशक्तिमान नहीं हो जीवन प्राप्त हो जाता है। यही बात है, यही 1. हैं। कुण्डलिनी नामक ये शक्ति जब जागृत हो सकता। यह बात इतनी सहज है परन्तु कभी-कभी लोग इतनी सी बात को भी नहीं समझ सकते! वे आपकी नियति है। आपमें यदि योग प्राप्त करने की इच्छा है तो आप योग प्राप्त कर सकते हैं। कहती हैं, "पहली चीज़ ये याद रखना है कि केवल एक सर्वशक्तिमान है, और वह है परमेश्वरी प्रेम की कहना चाहता हूँ वह मेरी अपनी बात है वो ये है सर्वशक्तिमान शक्ति।" और फिर वे कहती हैं, कि मैंने भारत के लिए असैनिक अधिकारी के रूप "पृथ्वी पर अवतरित सभी मानव उसी सर्वशक्तिमान की रचना हैं।" वे चाहे श्वेत हों, गेहुएं हं, नीले हों या पीले हों, वे चाहे अफ्रीका में रहते हों, आस्ट्रेलिया करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ देवियो और सज्जनों, में, भारत में या कहीं अन्यत्र, वे सब उनके बच्चे हैं, आप विश्वास करें कि संयुक्त राष्ट्र स्तर पर भी मैंने देवियो और सज्जनों, अब जो बात मैं आपसे में कार्य किया और मुझे संयुक्त राष्ट्र में भी अन्त्राष्ट्रीय समुद्रवर्ती संस्थान के मुख्य सचिव के रूप में कार्य उनके विचारों को अपने कार्य द्वारा लागू करने का उस सर्वशक्तिमान शक्ति के बच्चे हैं। परन्तु यदि ऐसा है तो मिलकर शान्ति एवं प्रयत्न किया। आप जानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र का प्रसन्नतापूर्वक क्यों न रहा जाए ? विभाजित क्यों अर्थ है - बहुत से, बहुत से देश, भिन्न स्तर तक महसूस करें ? स्वयं को एक-दूसरे के विरोध में विकसित देश, भिन्न सक्षमताओं वाले देश,. चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2008 30 था कि वे आगे आए. विकासशील देशों की सहायता आदि-आदि। बो सब मिल कर कार्य करने के लिए एकत्र होते हैं। ये कोई आसान काम नहीं है। मैं की ताकि इस संस्थान के सदस्य बनकर वे अपना समुद्रवर्ती विश्व में था और जब मुझे मुख्य सचिव समुद्रवर्ती कौशल विकसित कर सकें। शीघ्र ही वे चुना गया तो किसी भी विकासशील देश का मैं सभी आए और आज ये सर्वोत्तम संस्थान है क्योंकि पहला व्यक्ति था। मेरे सभी पूर्वाधिकारी यूरोपियन इसे विश्व के सभी सदस्य राष्ट्रों का, सभी देशों का थे। लोग हैरान थे कि विकासशील देश का कोई आश्रय प्राप्त है। अब इस आधार पर मैं आपके व्यक्ति इस पद पर आए! उस समय के समुद्रवर्ती सम्मुख एक अनुरोध करना चाहता हूँ. और वह परिदृश्य पर पाश्चात्य विश्व का प्रभुत्व था और इस अनुरोध इस प्रकार है : संस्थान को ' अमीर लोगों का क्लब' (Rich Man's यदि आप समाचार पत्र पढ़ते हैं, देखते हैं, समाचार सुनते हैं, तो आप जानते हैं कि ये विश्व club) कहा जाता था। एक मैं था : किस प्रकार मैं बेचारा, अमीर लोगों के क्लब का मुख्य सचिव बन कठिनाई में है। लोग एक दूसरे के लिए घृणा का प्रचार कर रहे हैं । विश्व में हिंसा का प्राचुर्य है । सकता था ? कितना बड़ा काम था! मैंने कहा, "ठीक है, मुझे चुना गया है तो किसलिए ? क्यों ? इससे किसको लाभ होगा ? मुझे कार्य करना ही होगा, क्यों न मैं उनका हम यदि एक ही सर्वशक्तिमान शक्ति के बच्चे हैं (श्री माताजी) संदेश लागू करुं ? उनका तो हम मिल-जुलकर क्यों नहीं रह सकते ? हमें (श्री माताजी) संदेश था : सभी समान हैं, एक से भेदभावों की बात क्यों करनी चाहिए ? हम भी उन्हीं हैं। इसलिए मैंने निश्चय किया कि सभी सदस्य (श्री माताजी) की तरह से अपने समन्वय की बात क्यों नहीं कर पाते। ये कोई असम्भव स्वप्न भी नहीं राष्ट्रों को मैं संस्थान का बराबर का सदस्य बनाऊंगा। उस समय तक सभी सदस्य समान न थे। है इसे प्राप्त किया जा सकता है। परन्तु विश्व को जहाजरानी वाले अमीर देशों का बोलबाला था यह संदेश मिलना आवश्यक है, उनका (श्रीमाताजी) क्योंकि उनके पास जहाजरानी का कौशल था, संदेश, प्रेम का संदेश मैं यहाँ आपसे इसलिए बात बहुत से विकासशील देश अभी तक सम्मिलित ही कर रहा हूँ क्योंकि मैं निष्ठा - पूर्वक अपने हृदय से न हुए थे और समस्या ये थी कि किस प्रकार इस विश्वास करता हूँ कि आस्ट्रेलिया में कुछ अद्वितीय संस्थान को ठीक प्रकार से विश्व संस्थान बनाया चीज हैं। ये बात मैं केवल आपकी बड़ाई करने के जाए। तो इस संदेश को अपने हृदय में धारण लिए या आपकी चापलूसी करने के लिए नहीं कह करके मैं चल पड़ा, चहूँ ओर गया। सर्वप्रथम रहा, नहीं। यदि मुझे इस पर विश्वास न होता तो विकसित देशों को बताया कि विकासशील देशों को मैं ऐसा कभी न कहता। परन्तु मैं इस पर विश्वास करता हूँ क्योंकि आस्ट्रेलिया में मैं सर्वोत्तम पाश्चात्य इस संस्थान का सदस्य बनाने में आप ही का हित । उन्होंने ये बात स्वीकार की। ये उनका बड़प्पन गुण एवं पाश्चात्य मूल्य देखता हूँ। पाश्चात्य मूल्यों প जुलाई - अगस्त, 2006 चैतन्य लहरी 31 का मैं महान प्रशंसक हूँ। भारतीय होने पर मुझे गर्व एक शाम उनके लगभग 25 अनुयायी उनके है, अपनी संस्कृति पर मुझे गर्व है, परन्तु बर्तानवी आस-पास बैठकर उनसे बातें कर रहे थे, और मैं लोगों का भी मैं महान प्रशंसक हूँ । वे भारत के उनके साथ बैठा हुआ सभी कुछ देख रहा था। मुझे शासक थे, ये एक अलग बात है। परन्तु जब आप आश्चर्य होने लगा! उस सामूहिकता में (देवियो यूके. में रहने के लिए जाते हैं तो आपको लगता है और सज्जनो आप विश्वास करें यह परमेश्वरी कि वे मूल्यों , नैतिकता, वैधानिक शासन और सत्य है) भिन्न देशों से, जीवन के भिन्न परिवेशों से शालीनता से परिपूर्ण हैं जिन मूल्यों का मैं प्रशंसक आए हुए, भिन्न रंगो के और भिन्न धर्मों के लोग थे। हूँ वे सब यहाँ आस्ट्रेलिया के लोगों में मुझे मिलते उनमें से एक कैथोलिक था, एक प्रोटेस्टेंट था, एक हैं, परन्तु इसके अतिरिक्त भी यहाँ कुछ है उसे यहूदी था, एक मुसलमान था, एक सिक्ख था, कुछ चाहे आप देखें या न देखें परन्तु एक आगन्तुक के हिन्दू थे, परन्तु क्या आप सोच सकते हैं, कि उन्हें नाते मैं अवश्य उसे देखता हूँ, और वह है कुछ याद भी था कि सहजयोग में आने से पूर्व वे क्या 1 सीमा तक पूर्वी भान मर्यादा, विनम्रता, करुणा, थे ? नहीं। वहाॅ पर वे सब सहजयोगियों के रूप में, शिष्टाचार, और ये सारे गुण मिलकर आस्ट्रेलिया विश्व के नागरिकों के रूप में तथा श्रीमाताजी के को अद्भुत राष्ट्र बनाते हैं। यहाँ पर लोग भिन्न प्रिय बच्चों के रूप में बैठे हुए थे। वे सब कुछ भूल देशों और भिन्न नस्लों से आते हैं। और आस्ट्रेलिया गई थीं, कोई भेदभाव न था सभी कुछ हृदय से के नागरिकों की तरह से मिलजुलकर प्रेम पूर्वक था। | रहते हैं। ये उनके यही आदर्श मैं आस्ट्रेलिया के राजनैतिक जीवन में अनुरोध करना चाहता हूँ, याचना करना चाहता हूँ ऐसी घटना घटित हो चुकी है और मैं आपसे (श्रीमाताजी) आदर्श है और देखता हूँ। इसीलिए मैंने कहा, "यदि मुझे उनका कि इस विश्व की सहायता करें। विश्वास करें कि संदेश बताने का अवसर प्राप्त हुआ है तो क्यों न मैं ये विश्व कठिनाई में है। हर शाम क्या आप नहीं वह संदेश यहाँ कहूं? अतः आप लोगों से मेरा ये अनुरोध है : वे चाहते हैं, आतंकवाद, ये वो आदि-आदि। इस सब अपना कार्य कर चुकी हैं। पैंतीस सालों तक वे एक पर विजय पानी होगी, परन्तु ताकत से नहीं। बल देखते कि क्या हो रहा है ? लोग हत्या करना स्थान से दूसरे स्थान तक भागती रहीं। उन्होंने कार्य नहीं करेगा। कुछ विशेष दिशाओं में बल का अपना कार्य पूर्ण कर दिया है, 80-90 देशों में उपयोग करना पड़ेगा, मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि सहज-योग का सृजन किया है तथा बहुत सी कभी भी बल का उपयोग नहीं किया जा सकता, किया है। मैं आपके विश्व के लोगों को एकजुट होने के लिए उन्हें दर्शन (Philosophy) के आधार पर एक जुट होना सुन्दर चीज़ों का सृजन सम्मुख परन्तु केवल एक घटना का वर्णन करूंगा । कुछ समय पूर्व हम लोग लन्दन में थे और पड़ेगा और ये दर्शन भी प्राचीन भारतीय दर्शन पर जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2006 32 कहानी सुनाना चाहूंगा कि मैं किस प्रकार परिवर्तित परिवार। चमड़ी के रंग, भाषाओं आदि के अन्तर के हुआ मैं असैनिक अधिकारी हूँ और जब तक आधारित है: एक सर्वशक्तिमान परमात्मा एक मानव बावजूद भी सबको एकत्र होना होगा अब यदि पूर्णतः विश्वस्त न हो जाऊं, किसी चीज़ पर विश्वास आप इस संदेश को स्वीकार करते हैं तो इसका नहीं करता। पैंतीस वर्ष पूर्व जब उन्होंने कहा था: "मैं एक आन्दोलन आरम्भ करने जा रही हूँ, लोगों प्रचार होना ही चाहिए। परन्तु यदि ये संदेश दिया ही नहीं जाता, यदि लोग इस परिणाम तक पहुँचते को परिवर्तित करने जा रही हूँ " तो मैंने कहा ही नहीं, वे यदि यही सोचते रहते हैं कि वे भिन्न "लोगों को परिवर्तित करने के लिए "और मैं हँस तो पड़ा! मैंने कहा, "क्या तुम्हें वास्तव में विश्वास है हैं- A के विरुद्ध B और B के विरुद्ध C समस्या को कोई अन्त है ही नहीं और विश्व में कि तुम लोगों को परिवर्तित कर सकती हो ?" इस हमारे पास विनाश के इतने साधन उपलब्ध हैं कि प्रकार से, एक संशयालु के रूप में मेरा आरम्भ पूरा विश्व खतरे में है आज पूरा विश्व खतरे में है. हुआ परन्तु कुछ ऐसा घटित हुआ जिसने मुझे पूरे विश्व का अस्तित्व खतरे में है इस बात को परिवर्तित कर दिया और यह कहानी बहुत सुन्दर हमने हल्के से नहीं लेना। स्थिति अत्यन्त-अत्यन्त है। लन्दन में मुख्य सचिव के रूप में जब मेरा चुनाव हुआ तो मैंने वहाँ जाकर एक घर लिया और वो भी मेरें साथ थीं । मैंने लन्दन से बाहर एक घर कठिन है। परन्तु इसके बारे में एक कहावत है : आओ हम सब एक हो जाएं। और यदि आस्ट्रेलिया के आप सभी लोग मेरी बात की सच्चाई को स्वीकार करते हैं और इसे अपने जीवन का लक्ष्य लिया था और वहाँ मैं रेलगाड़ी से आया-जाया बनाते हैं. जिस प्रकार से इन्होंने इसे अपने जीवन करता था। एक शाम दफ्तर से वापिस आकर मैंने का लक्ष्य बनाया है, तो हमारी यह यात्रा सफल हो घर की घण्टी दबाई, दरवाजा खुला, मैं अन्दर गया और अपने घर की बैठक या रहने का कमरा, जो भी जाएगी। मैं केवल यही बात आपको बताना चाहता कहें में गया, वहाँ मैंने एक युवा पुरुष को देखा- को वहाँ बैठकर समाचार पत्र एक युवा श्वेत था। मैं जानता हूँ कि आप सब बहुत देर से यहाँ पुरुष देखा। जब मैंने प्रवेश किया तो उस पर हैं, मैं आपका बहुत अधिक समय नहीं लेना पढ़ते हुए चाहता। मेरे विषय में जो भली-भली बातें कही गई व्यक्ति ने मेरी ओर ऐसे देखा मानो मैं कोई घुसपैठिया हैं, उनके लिए में धन्यवाद देना चाहता हूँ। मैं हूँ! मैंने कहा, " मैं नहीं जानता कि किसी ने यहाँ केवल इतना कह सकता हूँ कि जो कुछ उन्होंने मुझे दिया है ये सब उसके प्रतिबिम्ब से अधिक मैंने देखा कि वह व्यक्ति मेरा कुर्ता पायज़ामा पहने भी नहीं। उन्होंने मेरे हृदय को परिवर्तित कर हुआ था मैंने कहा, "मेरे मस्तिष्क को कुछ हो आना था।" मेरे आश्चर्य का पारावार न रहा जब कुछ दिया है, और समाप्त करने से पूर्व मैं आपको एक गया है।" मैं अपनी पत्नी के पास गया और कहा, जुलाई - अगस्त, 2006 चैतन्य लहरी 33 जो मैं देख रहा हूँ क्या वो सच है? एक युवा हो सकता है तो सबके साथ क्यों नहीं हो पुरुष वहाँ बैठा हुआ दिखाई दे रहा है ये क्या सकता ?" इस घटना ने मुझे परिवर्तित कर दिया है?" वह कहने लगीं "हाँ, हॉँ, हॉँ! इसमें कुछ घटित हुआ। और मैं सहजयोगी बन गया इस प्रकार ये सब देवियो और सज्जनों, अब मैं आपका और गलत नहीं है। मैं लन्दन गई थी, पिक्काडिली सर्कस, और वहाँ मैंने देखा कि एक पुरुष बीमार, समय नहीं लूंगा। आपका पुनः धन्यवाद करते हुए. उपेक्षित पड़ा हुआ है। कार से निकलकर मैं उसके जो समय आपने दिया है, अपना बहुमूल्य समय जो पूछा, "क्या बात है ?" उसने उत्तर आपने हमें दिया है, उसके लिए मैं अपनी गहन शाश्वत कृतज्ञता अभिव्यक्त करते हुए समापन पास गई। मैंने दिया, " पूर्णतः उपेक्षित, हम लन्दन में रह रहे हैं।" करुंगा। परन्तु मुझ पर विश्वास करें कि मेरा हृदय मैने कहा; क्या आप चाहते हैं कि आपकी देखभाल शाश्वत् कृतज्ञता से अभिभूत हो गया है, और यदि हो ?" उसने उत्तर दिया : "हाँ"। मैंने कहा, "ठीक कृपा करके आप मेरे सन्देश की ओर ध्यान देंगे- है, उठो और आकर मेरी कार में बैठो, घर चलो।" ये मेरा सन्देश नहीं है, ये इनका ( श्रीमाताजी का) वे उसे घर लाई और जब बह घर आया तो उसको नहलाना-धुलाना आवश्यक था। उसके सन्देश है, मैं तो इस संदेश का संवाहक मात्र हूँ- पास कपड़े न थे घर में केवल मेरे कपड़े थे। और तो हो सकता है कि सहजयोग का प्रचार प्रसार करने वाले लोगों के प्रयत्न आगे बढ़ सकें तथा हो वह व्यक्ति वहाँ पर इस प्रकार से बैठा हुआ था। सकता है कि आस्ट्रेलिया से एक अन्य संदेश विश्व इस कार्य के लिए मुझे अपनी पत्नी पर और अधिक प्रेम उमड़ा। मैंने उनकी प्रशंसा की। मैंने कहा, को जा पाए :- "तुमने बहुत अद्भुत काम किया है।" तब हम उसका सहज उपचार करने लगे वह युवा था और हर सप्ताह वह परिवर्तित होता चला गया एक साथ रहें, एक दूसरे से प्रेम करें, परस्पर हम सब एक ही सर्वशक्तिमान परमात्मा के बच्चे हैं, एक ही परमात्मा के। आइए मिलजुलकर वह फूल की तरह से खिल उठा। वह नशों का भाई-बहन बनें। लड़ाई-झगड़े किस बात के ? आदि हो गया था, उसके नशे छुट गए, शराब की क्यों न मिलजुल कर रहें ? यही एक मात्र मार्ग है आदत छुट गई, और वह एक सुन्दर फूल की तरह जिससे विश्व प्रसन्नता पूर्वक बना रह सकता है। देवियो और सज्जनों, आप सबका हार्दिक से खिल उठा. सुन्दर पुरुष, एक बिल्कुल नया व्यक्ति। मैंने कहा, "ऐसा यदि एक व्यक्ति के साथ धन्यवाद । इंटरनैट विवरण (रूपान्तरित) अन्तर्राष्ट्रीय सहजयोग शोध एवं स्वास्थ्य केन्द्र 10 वाँ वर्षगाँठ समारोह (मुम्बई- 19.2.2006) ि शोध एवं स्वास्थ्य केन्द्र को देवी-देवताओं से घिरा अन्तर्राष्ट्रीय सहजयोग, शोध एवं स्वास्थ्य केन्द्र (वाशी-अस्पताल) ने 19 फरवरी 2008 को अपनी हुआ दिखाया गया । श्री शिव और पार्वती इसकी दसवीं वर्षगाँठ मनाई। ठीक 10 वर्ष पूर्व 19 फरवरी छत पर थे और उनके समीप श्री गणेश नृत्य कर दिन, हमारी प्रिय माँ, परम पूज्य श्री रहे थे। श्री विष्णु केन्द्र के ऊपर गरुड़ पर उड़ते 1996 के शुभ माताजी, ने इस शोध-परियोजना का उद्धाटन हुए दिखाए गए और श्री माताजी सबसे आगे सभागार में लगी उस शिला को देखती हुई दिखाई करके, इसे आशीर्वादित किया और मानवता को उपहार के रूप में भेंट किया। ये स्वास्थ्य केन्द्र गई, जिस पर लिखा है ("A Gift of Love to 1. यद्यपि सी.बी.डी. बेलापुर नवी मुम्बई में है परन्तु Humanity") "मानवता को प्रेम-भेंट।" विश्व भर के योगियों में यह वाशी-अस्पताल' के शाम को छः बजे डा.सन्दीप राय के परिचय भाषण से कार्यक्रम आरम्भ हुआ। डा.राय ने 10 वर्ष नाम से प्रसिद्ध है। गहन-प्रे म एवं श्रद्धा पूर्वक समर्पित पूर्व 1996 के उस दिन को याद किया जब परम सहजयोगियों/सहजयोगिनियों के एक समूह ने पूज्य श्रीमाताजी ने अपने चरणकमलों से इस केन्द्र पूरे स्वास्थ्य केन्द्र को अत्यन्त सुन्दरता पूर्वक को आशीर्वादित किया था सूक्ष्म विनोद-शीलता सजाया। अपनी परम पूज्य परमेश्वरी माँ का निराकार से परिपूर्ण उनका भाषण अत्यन्त प्रेरणात्मक था। रूप में स्वागत करने के लिए सर्वत्र भारतीय अपने भाषण में उन्होंने इस परियोजना के पिछले पारम्परिक रंगोलियाँ सजाई गई। स्वास्थ्य केन्द्र के दस वर्षों के सभी उतार-चढ़ावों का वर्णन किया सभी न्यासियों, पूर्वाधिकारियों और 300-400 योगियों साक्षात् श्रीमाताजी की इच्छा थी कि मानवता को को समारोह के इस शुभावसर का आनन्द उठाने के एक ऐसा केन्द्र भेंट किया जाए जहाँ लोगों को लिए आमन्त्रित किया गया पं.डा. अरुण आप्टे, केवल सहजयोग तकनीक द्वारा रोगमुक्त किया जा श्रीमती सुरेखा आप्टे और प. सुब्रमण्यम ने माँ सके। परन्तु जब उन्होंने स्व. प्रो. यू.सी. रास को कुण्डलिनी का प्रिय परमेश्वरी संगीत-गान किया दिल्ली से बम्बई आकर ये केन्द्र खोलने के लिए कहा तो उन्हें लगा कि बम्बई आने के लिए डा. यू. एक बहुत बड़े पर्दे पर अन्तर्राष्ट्रीय सहजयोग जुलाई - अगस्त, 2005 चैतन्य लहरी 35 हुए एकदम से डा.सन्दीप ने स्पष्ट रूप से कहा कि सी. राय कुछ आना-कानी कर रहे हैं क्योंकि दिल्ली में वे भली -भांति स्थापित थे और उनके ये सम्मान जो आपने दिया है, बेहतर होगा कि शर मित्रों का दायरा भी काफी बड़ा था। बाद में उनके पिताजी को प्राप्त हो और वही इस कार्य को श्रीमाताजी ने डायू.सी.राय की अपेक्षा उनके बेटे करें श्रीमाताजी ने पूछा, "परन्तु क्या वे बम्बई संदीप राय को सलाह दी कि बे इस केन्द्र को आएंगे?" "हाँ श्रीमाताजी मैं उन्हें इसके लिए मना लूंगा। यकीनन, "निश्चित रूप से, श्रीमाताजी, हम खोलें और केवल सहज तकनीक का उपयोग करें। उस क्षण की याद करते हुए डा.संदीप ने कहा कि सब यहाँ आ सकते हैं, अपने माता-पिता को अत्यन्त विनम्रता पूर्वक उन्होंने श्री माताजी से दिल्ली छोड़कर मैं अकेला यहाँ वाशी नहीं आ प्रार्थना की कि अस्पताल खोलने और चलाने के सकता।" पम "बहुत बढ़िया तुम उन्हें लेकर आओ और लिए उन्हें कुछ उपकरणों की आवश्यकता होगी। वह केन्द्र को चलाएंगे., इस कार्य के लिए वही तब श्रीमाताजी ने कहाः हाँ, उपकरण पहले से ही मौजूद हैं। उपयुक्त व्यक्ति हैं।" (श्रोताओं की हँसी) आप मेरी तस्वीर ले लो, केवल इसी उपकरण तो इस प्रकार से अन्ततः प्रो.यू.सी.राय, श्रीमती की आपको आवश्यकता है।" आश्चर्य पूर्वक राय के साथ इस अन्तर्राष्ट्रीय सहजयोग शोध एवं डा. संदीप बोल उठे, "श्रीमाताजी मैं तो स्वास्थ्य केन्द्र को आरम्भ करने एवं चलाने के लिए चैतन्य-लहरियाँ भी ठीक से महसूस नहीं बम्बई आए और श्रीमाताजी की इच्छानुरूप मानवता कर पाता, किस प्रकार मैं लोगों को रोगमुक्त की सेवा के लिए यहीं बस गए। ये परमेश्वरी इच्छा इस प्रकार से कार्यान्वित हुई। कर पाऊंगा ?" अत्यन्त करुणापूर्वक श्रीमाताजी ने यह कहते हुए उसे ढाढ़स बंधायाः " रोगी को कुछ मुख्य कार्यकर्ताओं को कुछ शब्द कहने के बाद में डा. सन्दीप राय ने स्वास्थ्य केन्द्र के मेरे फोटो के सम्मुख बिठाकर आपने केवल लिए आमन्त्रित किया अपना भाषण समाप्त करने उसके पीछे बैठना है और मुझसे प्रार्थना करनी से पूर्व डा. सन्दीप ने अपनी माँ श्रीमती लिली रॉय है, "माताजी इस व्यक्ति को रोग-मुक्त कर को धन्यवाद दिया। अत्यन्त प्रेममयी गृहलक्ष्मी के दीजिए, रूप में पिछले दस वर्षों में स्वास्थ्य केन्द्र आने वाले यदि वह व्यक्ति रोग मुक्त होना सभी लोगों की वो प्रेमपूर्वक देखभाल करती रही हैं । चाहता है तो वह ठीक हो जाएगा!" श्रीमाताजी के इस कथन के प्रति प्रतिक्रिया करते साढ़े छ: बजे सायं पूजा आरम्भ होने से पूर्व सारी जुलाई 36 अगस्त, 2006 चैतन्य लहरी बाद में श्रीमाताजी के चमत्कारिक रोग निवारण सामूहिकता को एक अन्य आह्लादमय अवसर प्राप्त हुआ सभी उपस्थित योगियों को 19 फरवरी से लाभान्वित रोगियों ने निराकार श्रीमाताजी के 1996 को स्वास्थ्य केन्द्र के उद्घाटन समारोह के सम्मुख बहुत बड़ा केक भेंट किया, उन्होंने श्रीमती मधुर राय को स्वास्थ्य केन्द्र के लिए एक उपहार भी एतिहासिक क्षण का वीडियो देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ उद्घाटन समारोह का आरम्भ श्री दिया सारी सामूहिकतां ने उस शाम को हुई कृपा माताजी के मराठी प्रवचन से हुआ। इसमें श्रीमाताजी वर्षा, चमत्कारिक किस्सों तथा पूजा प्रसाद का ने बताया कि किस प्रकार यह स्थान, यह केन्द्र आनन्द लिया। बनाने के लिए उपयुक्त है उन्होंने ये भी बताया कि बाईं विशुद्धि की पकड़ को किस प्रकार अग्नि योगी उस शानदार पूजा के सुन्दर ध्यान और इस अवसर पर उपस्थित सभी सौभाग्यशाली हार्दिक आनन्द को याद किया करेंगे श्रीमाताजी तत्व (candling) से ठीक किया जा सकता है। इस शानदार पूजा का आनन्द जो आपने हमें प्रदान चैतन्य लहरियाँ अत्यन्त शक्तिशाली थीं मानो श्रीमाताजी इस पूजा में अपने बच्चों को आशीर्वादित किया है उसके लिए कृपा करके हमारे हार्दिक करने के लिए, और अपना प्रेम प्रवाहित करने के धन्यवाद स्वीकार कीजिए। अन्तर्राष्ट्रीय सहजयोग शोध एवं स्वास्थ्य केन्द्र सी. वी.डी. बेलापुर नवी लिए साकार रूप में मौजूद हों! सायंकाल का ध्यान इतना गहन था कि इससे कुछ रोगी तुरन्त ही मुम्बई भारत में प्राप्त हुई आपकी परमेश्वरी रोगमुक्त हो गए! देवी की आरती के पश्चात् चैतन्य-लहरियों को हम संजो कर अपने हृदय में रखेंगे। वातावरण इतना आनन्दमय और चैतन्य से परिपूर्ण जय श्रीमाताजी था कि "जागो हे जगदम्बा" भजन जब गाया Gauvin Didier गया तो सभी योगी श्रीमाताजी की वेदी (Altar) के तला (इन्टरनैट विवरण) (रूपान्तरित) सम्मुख झूम-झूम कर नाचने लगे । एक रोगी का साक्ष्य (मुम्बई- स्वास्थ्य केन्द्र 19.2.2006 19 फरवरी 2005 को बाशी स्वास्थ्य केन्द्र में पुरी ताकत से लौट आया। अपने जीवन में कभी व्यक्तिगत रूप से मेरे साथ घटित हुए एक अनुभव मैंने दर्द निवारक दवाएं नहीं ली थीं परन्तु उस शाम को मैं आपको सुनाना चाहूंगा। यह कोई अद्वितीय बर्दाश्त करना कठिन हो रहा था अतः मुझे एस्परीन कहानी नहीं है क्योंकि उस दिन रोग मुक्त होने तथा कुछ अन्य दर्द निवारक लेने पड़े। फिर भी सी चमत्कारिक घटनाओं के विषय में हम कोई लाभ नहीं हुआ। मुझे महसूस हुआ कि मुझे की बहुत सुन चुके हैं। यह मेरा व्यक्त्तिगत अनुभव है इसलिए कोई शारीरिक संक्रमण है, मेरी रीढ़ में कोई कमी यह सौ (और 8) प्रतिशत सत्य है। है। अतः मैं डाक्टर मधुर राय से मिला और उन्हें केन्द्र में दो सप्ताह के सामान्य शुद्धिकरण कहा कि मेरा एक्स-रे करवाया जाए उन्होंने मुझे के बाद पिछले वृहस्पतिवार (16.2.2006) को मैंने समीप के एम.जी.एम. अस्पताल परीक्षण के लिए केन्द्र से चले जाना था परन्तु उसी दौरान कुछ भेजा। परन्तु वहाँ पहुँचकर मुझे महसूस हुआ कि ये घटना घटी। उसी दिन मैं बीमार पड़ गया। मेरी आम डॉक्टर मेरी बीमारी के बारे में कुछ नहीं समझ कमर में और शरीर के पूरे बाएं भाग में तेज दर्द पाएंगे। केवल बीमारी का कारण ही पूछते रहेंगे। था एक सन्ध्या पूर्व मैं ठीक-ठाक था और चल मुझे लग रहा था कि किसी सूक्ष्म नकारात्मकता ने रहा था। इतना दर्द! मुझे लगा कि चैतन्य-लहरियों मेरे अन्दर शारीरिक दर्द का रूप धारण कर लिया की खराबी के कारण ऐसा हुआ. सारी नकारात्मकता है और ये लोग तो कुछ दर्दनिवारक देकर मुझे भेज ने शारीरिक दर्द का रूप धारण कर लिया था और देंगे। मुझे यहाँ आना ही नहीं चाहिए था शारीरिक मुझे झुकने, चलने और सीधा खड़ा होने के काबिल और मानसिक दर्द लिए हुए मैं वहाँ से वापिस आ भी न छोड़ा था । मेरा शरीर नव्बे वर्ष या इससे भी गया और सोचा कि केवल श्री धनवंतरी ही मुझे कुछ बूढ़ा था- ऐसा कहना अतिशयोव्ति न था। बिस्तर पर लेट पाना भी कठिन था। मेरे मुझे बेहतर ढंग से श्रीमाताजी की ओर चित्त लगाना आराम पहुँचा सकते हैं तथा ठीक कर सकते हैं। डाक्टर ने मेरा काफूर-उपचार किया जिससे मुझे चाहिए। थोड़ा सा लाभ हुआ परन्तु कुछ ही समय बाद दर्द शनिवार प्रातः भी मैं दर्द के साथ उठा। कुछ शैंतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2006 38 भारतीय भाइयों ने मेरी मालिश की, परन्तु दर्द ने गया था मैं विश्वास पूरी तरह से गायब मेरा पीछा न छोड़ा। क्या मैं अगले दिन की न कर पाया एक या दो घण्टे पहले मुझे स्वप्न में भाग ले पाऊँगा? रविवार 19 चिरप्रतीक्षित आया था या अभी भी मैं स्वप्न देख रहा हूँ। नहीं, पूजा कोई सन्देह न था। मैं हिल-डुल सकता था, फरवरी के दिन दोपहर पश्चात् मैंने भजनों का आनन्द लिया। परिदृश्य में ध्यान सभागार के पीछे नाच सकता था। दर्द का नामोनिशान न था! अपने की दीवार पर श्रीमाताजी की बहुत बड़ी तस्वीर हृदय में सम्मान-पूर्वक मैंने श्रीमाताजी के चरण लगाई हुई थी। तीव्र चैतन्य-लहरियों के प्रवाह ने कमलों में प्रणाम किया। सभी को बाँध लिया था। ऐसा लगा मानो पूजा से सर्वत्र प्रकाश था, सभी हृदय आनन्द से न पहले ही पूजा हो गई हो। इस आनन्द के बाद मैं परिपूर्ण थे और पूजा के बाद के लयबद्ध संगीत में अपने शरीर को घसीट कर पूजा के लिए बगीचे में ऐसा प्रतीत होता था, मानो आत्मा ने हम सबको पड़े बैंच पर ले गया और श्रीमाताजी से रोग मुक्ति एक सूत्र में बाँध दिया है मंच पर श्रीमाताजी के लिए प्रार्थना करने लगा डा.सन्दीप राय ने जब (निराकार) हम लोगों को आनन्द लेते देख मुस्करा अपने भाषण में श्रीमाताजी के शब्दों को दोहराते रहीं थीं। जैसा मैंने बताया रोग निवारण की केवल हुए कहा, " जो लोग ठीक होना चाहते हैं वो ठीक हो जाएंगे," तो ये बात मेरे जहन में चली गई। यही घटना घटित नहीं हुई थी। कई अन्य रोगियों क्या मैं ठीक होना चाहता हूँ। " निःसन्देह के रोग भी हाथों-हाथ दूर हो गए। श्रीमाताजी मैं ठीक होना चाहता हूँ. श्रीमाताजी अपने आशीर्वाद की चमत्कारिक वर्षा हम पर करने पूजा के दौरान चित्त की स्थिति बहुत अच्छी थी, हम सब के लिए आपका बारम्बार धन्यवाद । या देवी सर्वभूतेषु भ्रान्ति रूपेण संस्थिता, आसानी से सहस्रार तक पहुँच गए थे। पूजा में क्या हुआ मैं नहीं जानता, परन्तु नमस्तस्यै नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो-नमः । पूजा के अन्त में मैंने स्वयं को अन्य लोगों के साथ जय श्री आदि शक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नाचते हुए पाया, पूरी तरह से ये भूलकर कि मुझे नमः । Govind D (Africa) तो ठीक से चलना भी न था दर्द गायब हो (रूपान्तरित) योगेश्वर, श्री कृष्ण पूजा लन्दन 15.8.1982 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज का महान दिवस हम सबके लिए खुशियाँ लिए सभी कुछ एक खेल है - 'लीला है। मनाने का है क्योंकि आज ही के दिन साक्षात् आदि पुरुष (Primodial Being) पृथ्वी पर श्री कृष्ण के रूप लिए यह जीवन एक मंच था जिस पर उन्होंने ये में अवतरित हुए। अपने प्रवचनों में मैंने उनके बहुत दर्शाना था कि मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में अत्यन्त से पक्षों का वर्णन किया है। परन्तु इस आदि पुरुष धार्मिक जीवन किस प्रकार यापन करना है। परन्तु श्री का महानतम पक्ष ये है कि वे 'योगेश्वर' थे। वे "योग के ईश्वर" थे- योगेश्वर। परमात्मा से हमारे वह व्यक्ति जो लीला करता है। श्री राम के लिए यह सब लीला न थी। उनके ये दर्शाने के लिए आए थे कि वे लीलाधर हैं- कृष्ण योग के वे स्वामी थे। उनकी आज्ञा तथा आदेश के सभी कुछ एक लीला है। पूरा ब्रह्माण्ड लीला बिना हम सहजयोगी नहीं बन सकते। वे योगेश्वर मात्र है। आदि-शक्ति, तथा तीन गुणों द्वारा रचा थे और सच्चा योगी वह होता है जो अपने अन्दर तीला के अतिरिक्त गया सभी कुछ, तथा ये तीन गुण, योगेश्वर को जागृत कर ले । योग' शब्द, जैसा हम समझते हैं, हमारे चित्त का परमात्मा से जुड जाना है। इसी बात की अभिव्यक्ति की। फिर भी योगेश्वर' क्या परन्तु इसके 'निहितार्थ को हम अभी भी महसूस नहीं ह पूरा ब्रह्माण्ड करते कि इसका तात्पर्य क्या है हमारे साथ क्या लीला-मात्र है, जिसमें वे स्वयं धुरी पर हैं तथा पूरी घटित होना चाहिए था? निःसन्देह आपको शक्तियाँ प्राप्त हो जाती क्योंकि सभी कुछ असत्य है, आपकी आत्मा के हैं। ज्यों ही आप आत्मा बनते हैं, आपको शक्तियाँ अतिरिक्त सभी कुछ असत्य है। ये सब तो एक प्राप्त हो जाती हैं प्राप्त होने वाली शक्तियों में से मजाक चल रहा है. या आप कह सकते हैं कि एक एक है 'सामूहिक चेतना की शक्ति।' वह भी श्री नाटक चल रहा है. भी गम्भीर नहीं है। हमारे कृष्ण की कृपा है कि आपको सामूहिकता का अन्दर केवल आत्मा ही सत्य है बाकी सभी कुछ । और अपने इस अवतरण में उन्होंने कुछ भी नहीं हैं ? लीलाधर तो वे हैं जिनके लिए ये परिधि उनके लिए लीला के सिवाय कुछ नहीं 1 कुछ अहसास होने लगता है। आपके अह और प्रतिअह असत्य है। सत्य" कई प्रकार का नहीं हो सकता। अधोगति की ओर खिंच जाते हैं और आप अपने पूर्व संस्कृत भाषा में या तो 'सत्य' है या 'असत्य' है. कर्मों एवं बन्धनों से मुक्त हो जाते हैं और नए जीवन सत्य के लिए दस शब्द नहीं हैं। के नए युग का अंकुरण होता है परन्तु योगेश्वर की महानता क्या है, उनकी विशेषता क्या है ? वे जब ये आपके ईश्वर हैं, सभी योगियों के ईश्वर हैं, उनकी आप एकरूप हो जाते हैं तो आपको शक्तियाँ प्राप्त अतः जब ये घटित होता है, आपके अन्दर महान घटना घटित होती है, आत्मा से जब क्षमता क्या है, उनका स्वभाव क्या है कि उनके हो जाती हैं, यद्यपि आप अभी तक उस अवस्था तक चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2006 40 पतियों के कर्तव्य, फिर पत्नियों के पति-धर्म है, पहुँचने के लिए परिपक्व नहीं हुए होते कि आपकी सूझ-बूझ उस अवस्था तक पहुँच जाए और आपका कर्तव्य। हर व्यक्ति के कर्तव्य को धर्म कहा गया हृदय खुल जाए। ठीक है, आरम्भ में आपको क्योंकि ये कर्तव्य आपने करना है। इस कर्तव्य से शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं ताकि स्पष्ट सूझ बूझ के आप बँधे हुए हैं, ये सब आपके धर्म बन गए हैं। साथ आप श्रद्धा कर सकें। इसके अनुभव से यदि परन्तु उन्होंने कहा, "सभी धर्मों को त्याग दो, सभी तो इसी तरह इसका कर्तव्यों को त्याग दो, केवल मेरे प्रति पूर्णतः समर्पित "सर्व धर्माणां परित्यज्य मामेकं शरणं आपमें श्रद्धा आती है - आरम्भ होता है। जब आप अपनी शक्तियों का हो जाओ" उपयोग करने लगते हैं, उनकी अभिव्यक्ति होते व्रज | " हुए आप देखते हैं तो आप आश्चर्यचकित होते हैं कि किस प्रकार आप लोगों की कुण्डलिनी उठाते हैं, अब आप उससे (परमात्मा) एकरूप हो गए हैं. हैं, किस प्रकार उन्हें जोड़ते हैं, आत्म साक्षात्कार देते हैं और किस प्रकार लोगों के देखता है, उन पर नजर रखता है और उन्हें पावन रोग ठीक करते हैं ! आपको हैरानी होती है कि यह करता है। अतः आप स्वयं को मात्र उनके प्रति क्योंकि अब आप सामूहिक व्यक्ति बन गए अब वह आपके सभी धर्मों को देखता है, सम्बन्धों को किस प्रकार किस प्रकार हुआ! तो हम कह सकते हैं कि यह समर्पित कर दें। यह बात उन्होंने केवल अर्जुन से आपके अन्तररचित है, जिसकी अभिव्यक्ति होने कही थी, सभी से नहीं । ये बात उन्होंने सबसे नहीं लगी है। परन्तु अभी तो बहुत कुछ बाकी है कही थी क्योंकि सभी लोग तो इसके योग्य भी नहीं जिसकी अभिव्यक्ति होनी है, जिसे स्थापित होना है थे, या सबसे ये बात कहना उन्होंने उचित नहीं और जिसने आपको उन्नत करना है। योगेश्वर का एक अन्य महत्वपूर्ण पक्ष है। आप उपयुक्त लोग हैं। इसलिए मैं आपसे बता रही और वह पक्ष समझना हमारे लिए अत्यन्त आवश्यक हूँ कि अन्य सभी कर्तव्यों को भूल जाएं. हर चीज़ है कि जब तक हम योगेश्वर द्वारा बताए गए मार्ग को भूल जाएं, अपने सामूहिक अस्तित्व, अपनी पर नहीं चलते तब तक स्वयं को पूरी तरह से सामूहिकता के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाएं। स्थापित नहीं कर सकते। अतः श्रीकृष्ण ने कहा है कि "सर्व धर्माणां परित्यज्य, मामेकं शरणं व्रज' समझा। परन्तु मैं सोचती हूँ कि यह जानने के लिए परन्तु वे योगेश्वर हैं। ये मुख्य बात है। और । उनके प्रति कर्तव्य निभाने के लिए योगेश्वर की सभी सम्बन्धों को त्याग दें। धर्म सम्बन्ध हैं, जैसे पावनता को अपने अन्दर विकसित करना प्रथम आपकी बहन-आपका भाई, ये धर्म है, जैसे स्त्री आवश्यकता है। उनके लिए उत्कृष्टअवस्था आवश्यक धर्म- महिला का कार्य । ाम नहीं थी, वे तो उत्कृष्ट थे। वे उत्कृष्टता का स्रोत इसके बाद हम कह सकते हैं राष्ट्र धर्म'। थे मानव की निकृष्ट प्रवृत्तियों से उन्हें उत्कृष्टता ा आज भारत का स्वतंत्रता दिवस' है। अतः हमारा की आवश्यकता नहीं थी। उन्हें कुछ करने की राष्ट्र धर्म है, हम देश-भक्त लोग हैं। अपने देश के आवश्यकता नहीं थी, माया से स्वयं को ऊपर उठाने प्रति भक्ति राष्ट्र-धर्म है। फिर आपका समाज-धर्म है के लिए कुछ भी करने की आवश्यकता न थी। अर्थात् समाज के प्रति आपका कर्तव्य। फिर पश्चिम में विशेष रूप से, जैसा आप जानते हैं, हमने जुलाई चितन्य लहरी अगस्त, 2006 41 अपने लिए नर्क की सृष्टि कर ली है. एक वास्तविक महत्व ही न था. वे इनसे ऊपर थे अतः प्रलोभनों नर्क की। सभी प्रकार की विकृत धारणाएं हमारे और विकृतियों का तो प्रश्न ही नहीं उठता, इस बारे अन्दर हैं। योगेश्वर के लिए ये माया के अतिरिक्त में सन्देह का कोई स्थान ही नहीं है। कुछ भी नहीं, पूर्णतः गन्दगी, बो कभी सोच भी नहीं सकते कि ये चीजे भी सम्भव हैं ये सभी विकृतियाँ पाँच पत्नियों ने किसी महान सन्त के दर्शन और कहानी इस प्रकार है कि एक बार उनकी दुखद हैं। आज उनके जन्म-दिवस पर मैं ये कहूंगी पार रहता था, उन्होंने वहाँ जाकर उसकी पूजा कि आज यदि उनका जन्म-दिवस है, और आज करनी चाही और इसके लिए उपयुक्त समय निकाला। आराधना के लिए जाना था। वह सन्त नदी के उस यदि उनका जन्म वैसे ही हुआ होता जैसे उस जब वे नदी के पास गई तो पाया कि नदी में समय हुआ था, तो वे तुरन्त वापिस चले गए होते आई हुई थी और इसे पार न किया जा सकता था। उन्होंने कहा होता, 'नहीं, खेद है, मुझे कुछ नहीं उन्हें लगा कि इस शुभ मुहूर्त में यदि वे सन्त की लेना-देना, काफी हो चुका।" और यदि वे पाश्चात्य पूजा करने के लिए नहीं गईं तो यह अपशकुन संस्कृति से मिले होते तो उन्हें आघात पहुँचता, हे होगा। उसी समय जाकर वे इस गुरु की पूजा परमात्मा, नहीं, कुछ नहीं लेना देना। मैं यहाँ नहीं करना चाहती थीं। बाढ़ अतः वे श्री कृष्ण के पास गई और उनसे आ रहा। जिस समय उनका जन्म हुआ था उस समय चाहे जैसी परिस्थितियाँ रही हों, धर्म का पूछा : "इस बाढ़ ग्रस्त नदी को किस प्रकार पार अस्तित्व था, लोग ये जानते थे कि ठीक क्या है करें?" श्री कृष्ण बोले, "वास्तव में ? कोई बात नहीं। और गलत क्या है, आजकल की मूर्खतापूर्ण चीजज़ें न तुम जाओ और नदी से कहो- वह तापी नदी थी थी. और वे योगेश्वर, पावन रूप में आए। जिसे वे पार कर रही थीं- उन्होंने कहा, जाकर उनके विषय में एक कहानी है। एक दिन नदी से कहो कि यदि हमारे पति श्री कृष्ण 'योगेश्वर' उनकी पत्नियों ने जाना चाहा। उनके लिए पत्नियों हैं अर्थात् जो ब्रह्मचारी हैं- योगेश्वर वह व्यक्ति का क्या महत्व था ? कुछ नहीं, इस बात को देखें। होता है जो कभी यौन गतिविधियों में लिप्त नहीं उन्हें किसी पाप का दोष नहीं दिया जा सकता। हुआ हो। यह सम्भव नहीं है। इस चीज़ के बारे में विवाह उन्होंने इसलिए किया क्योंकि उन्हें अपने सोचा भी नहीं जा सकता। अर्थात् लिप्त होते हुए भी पाँच सिद्धान्तों या पंच तत्वों से विवाह करना था। अलिप्त, इसमें होते हुए भी इससे बाहर रहना, कमल तो स्त्री रूप देकर उन्होंने उनसे विवाह कर लिया। की तरह। वे यदि इस प्रकार की गतिविधि में कभी सोलह हजार महिलाओं से उन्हें विवाह करना पड़ा लिप्त नहीं हुए. केवल तभी। ऐसा श्री कृष्ण ही कर क्योंकि उन्हें सोलह हजार शक्तियों को अपनाना सकते हैं, कोई अन्य नहीं। इसीलिए वे अवतरण हैं 1 था और शरीरों के माध्यम से उन शव्तियों को साधारण मानव नहीं। केवल अवतरण ही ऐसा कर संचालित करना था ये शक्तियाँ स्त्री रूप में आईं। सकते हैं। कोई मनुष्य यदि ये कहे कि मैं श्री कृष्ण उनके लिए ये पति-पत्नी सम्बन्ध न था, एक पावन हूँ इसलिए मैं ऐसा कर रहा हूँ. मैं वैसा कर रहा सम्बन्ध था। यौन सम्बन्धों का उनके लिए कोई हूँ- आप जानते हैं बहुत से पाखण्डी लोग होते हैं, जुलाई - अगस्त, 2006 चैतन्य लहरी 42 आपने उनके बारे में अवश्य सुना होगा वे कभी आदर्श तक आपको पहुँचना है। आपकी दृष्टि और नहीं बन सकते। केवल अवतरण ही ऐसा कर गतिविधियाँ सभी इस ओर होनी चाहिए। इससे पूर्व सकते हैं। इसका अभिप्राय ये हुआ कि वे योगेश्वर यदि आप ऐसी चीज़ों इस प्रकार की विकृतियों या ही अवतरित हुए थे। तो उन्होंने जाकर नदी से कहा, "यदि वे तो आपको पता होना चाहिए कि आप बहुत तेजी से योगेश्वर हैं तो कृपया उतर जाइए (subside) । पतन की ओर जा रहे हैं । यह एक प्रकार की मूर्खतापूर्ण यौन गतिविधियों आदि में फँस जाते हैं प और नदी का जलस्तर कम हो गया। उन्होंने नदी भूत-बाधा है जो आप-पर कार्य कर रही है वे को पार किया, गुरु की पूजा की और वापिस नदी आदर्श है- वे अवतरण हैं। आप अवतरण नहीं हैं पर पहुँची। नदी फिर चढ़ी हुई थी. वे उसे पार न और न ही अवतरण बन सकते हैं। वे प्रकाश हैं जो कर सकीं। वे गुरु के पास वापिस गईं। केवल कोई आपका मार्ग प्रकाशित कर रहे हैं, उस मार्ग को अवतरण ही अच्छा और सच्चा गुरु हो सकता है। जिस पर आप चल रहे हैं। ये अवतरण आपको उस उन्होंने गुरु से कहा "नदी चढ़ी हुई है, हम इसे पार साम्राज्य में ले जा रहे हैं जहाँ वे सम्राट हैं, जहाँ वे नहीं कर सकतीं।" गुरु ने पूछा, "तो तुम आई कैसे प्रभु हैं । थीं ?" उन्होंने उत्तर दिया "श्री कृष्ण ने नदी' से पूछने के लिए कहा था कि यदि वे योगेश्वर हैं तो आप ईश्वर नहीं हैं। परन्तु आप कम से कम योगी वे ईश्वर हैं (श्री कृष्ण), वे आपके ईश्वर हैं, आप उतर जाइए। तब उस सन्त ने कहा, "ठीक तो हैं। पहले हमें योगी बनना होगा, तब वे हमारे है अब तुम जाकर नदी को बताओ कि यदि मैंने ईश्वर हैं, अन्यथा वे आप पर शासन भी नहीं करना आपका दिया हुआ खाना नहीं खाया तो नदी चाहते। अतः हमें करना ये है कि सर्वप्रथम हमें आपको रास्ता दे दे।" उन्होंने ऐसा ही किया योगी बनना है योगी की प्रथम पहचान ये है कि यद्यपि वे इस बात पर विश्वास न कर सकीं क्योंकि अपने यौन जीवन में वह अत्यन्त पावन होता है। उन्होंने स्वयं सन्त को काफी पकवान खिलाए थे। पूर्ण पावनता का होना आवश्यक है और कुछ समय "जो भी खाना हमने उनको भेंट किया, यदि पश्चात् व्यक्ति को इससे आगे बढ़ना चाहिए। अन्य उन्होंने कुछ नहीं खाया तो आप उतर जाइए।" लोगों से आपके सम्बन्ध चाहे ये आपकी बहन हो, और नदी का स्तर कम हो गया! भाई हो , कोई अन्य पुरुष हो या महिला हो, सारी बात का सार ये है कि इन मामलों में पूर्णतया पावन होने चाहिएं। ऐसा होना अत्यन्त श्री कृष्ण आपके आदर्श हैं। ये नहीं कि आप स्वयं आवश्यक है। अब भारत जैसे देशों में लोग अत्यन्त भ्रष्ट हैं, को सबका आदर्श मान बैठें, सहजयोगी ये बहुत बड़ी गलती करते हैं। एकदम से वे सोच लेते हैं कि अत्यन्त भ्रष्ट, अत्यन्त-अत्यन्त भ्रष्ट । पाँच रुपये में अब वे श्री कृष्ण बन गए हैं. या सोचते हैं कि कुछ आप किसी को भी खरीद सकते हैं। पैसे के मामले महान बन गए हैं या उन्होंने कुछ महान चीज़ में वास्तव में भ्रष्टता है। परन्तु लोग इतने अधिक आत्म-सात कर ली है! ऐसा नहीं है। एक बात व्यक्ति ने समझनी है कि इस है। वे जानते है कि चरित्रहीनता नैतिकता नहीं है। चरित्रहीन नहीं हैं, वे जानते हैं कि यह चरित्रहीनता चैतन्य लहरी जुलाई -अगस्त, 2006 43 पश्चिम में चरित्रहीनता आम बात है। उनके अनुसार नैतिकता' शब्द समाप्त हो जाना चाहिए। कहने से अभिप्राय ये है कि वहाँ पर नैतिकता जैसा भी नहीं है जो जी चाहे करो, लोग अनैतिकता कहते हैं एक माध्यम जो किसी व्यक्ति को पतन की ओर धकेलती है । एक सर्व - साधारण तस्वीर, जिसका इसमें कुछ कोई योगदान नहीं होता, कोई भी चीज़ , गन्दी के बारे में सोचते ही नहीं । इसके बारे में वो बात भावनाएं दे सकती हैं। आजकल, मैंने देखा है, बहुत नहीं करना चाहते, ऐसा करना विक्टोरिया काल से प्रतीक आरम्भ हो गए हैं, जो मेरी दृष्टि में (पुरानी) की बात मानी जाती है। कोई यदि, कह दे कि व्यक्ति को चरित्रवान होना चाहिए तो लोग कोई बुराई नहीं देखती क्योंकि मैं अत्यन्त पावन सोचते हैं वह पाखण्डी हैं। वो ये बात सोच ही नहीं सकते कि वास्तव में मानव और नैतिकता के बीच बुराई है। परन्तु इन चीजों में कुशल कोई व्यक्ति कोई सम्बन्ध हो सकता है! यहाँ ये समस्या है। तुरन्त कह उठेगा, ओह इसे देखो ! कहने से हमारे सम्मुख ये सबसे बड़ी समस्या है। भ्रष्टाचार की आप अनदेखी कर सकते हैं कि मानव मस्तिष्क ने अपने चहूँ ओर किस प्रकार क्योंकि आप यदि भ्रष्ट नहीं हैं तो ठीक है, परन्तु जाल बुन लिया है और स्वयं को तथा अन्य लोगों चरित्रहीनता ऐसी चीज़ है कि यदि आप चरित्रहीन को नष्ट करने के लिए ये सारे प्रतिमान क्यों बनाए संसार मैं रहते हैं तो इसका प्रभाव सभी पर पड़ता है ? बिल्कुल भी गलत नहीं हैं इनमें मेरी दृष्टि बिल्कुल हूँ, मेरी आँखे देख ही नहीं सकती कि उसमें कोई अभिप्राय है कि ये समझ पाना अत्यन्त असम्भव है है। उदाहरण के रूप में कोई चरित्रवान महिला सड़क पर चल रही है और कोई कामुक पुरुष उसे समझ लेना आवश्यक है कि विश्व के सभी लोगों से देख रहा है तो जैसे भी हो, वह अपनी पावनता खो हमारे सम्बन्ध पावन होने चाहिएं। अपने जीवन काल देती है। वह किसी को आकर्षित नहीं करना चाहती में उन्होंने बहुत सी लीलाएं की। जब वे अवतरित और न ही अपनी पावनता को खोना चाहती है, हुए थे तो पूरा देश धर्म की अटपटी धारणाओं में परन्तु जिस प्रकार से वह व्यक्ति उसकी ओर डूबा हुआ था। फ्रायड यदि वहाँ पर होते तो कहते. देखता है, यद्यपि महिला के बहुत सामान्य तरीके हैं. 'ये सब बेवकूफी है। इसमें क्या खराबी है ? करते फिर भी कुछ सीमा तक उस पुरुष के चरित्र और जाओ। श्री कृष्ण ने ऐसा कुछ नहीं किया। वे पावनता में पतन के लिए वह जिम्मेदार है एक मूर्खतापूर्ण परम्पराओं और झूठी कट्टरता की जंजीरों छोटा बच्चा भी, जो बहुत साधारण है, अबोध बच्चा को तोड़ना चाहते थे। परन्तु उन्होंने ये कार्य, सभी है, उसकी ओर कोई यदि अपवित्र दृष्टि से देखे, तो सम्बन्धों को पूर्णतः पावन रखते हुए अत्यन्त सुन्दर बच्चे के लिए भी अत्यन्त अपवित्र भावनाएं, उसके ढंग से किया । मन में आ सकती हैं। तो यद्यपि वह व्यक्ति स्वयं योगेश्वर की पूजा करने के लिए हमें ये लोग प्रश्न पूछते हैं, 'श्री माताजी, क्या राधा से उनका विवाह हुआ था ?' वो तो उनसे सदा-सर्वदा से विवाहित से विवाहित हैं. कोई बात नहीं। परन्तु जैसे आप वास्तव में उन्होंने यह विवाह उसी दिन कर लिया गन्दा है, तो भी हम यह नहीं कह सकते कि बच्चा प्रभावित नहीं हुआ। परन्तु एक प्रकार से वह पात्र (object) बन जाता है, एक प्रकार जुलाई - अगस्त, 2006 चैतन्य लहरी 44 था जिस दिन उनका जन्म हुआ। उनके पिता उन्हें होता है । नदी पर लाए और नदी के किनारे उन्हें लिटा दिया। तभी साक्षात् ब्रह्मदेव पृथ्वी पर प्रकट हुए। निःसन्देह आप अपने हाथ उठाकर लोगों को इसी कारण से श्री कृष्ण हमेशा पीतवस्त्र पहनते हैं। आत्म-साक्षात्कार दे सकते हैं, परन्तु आपको उन्हें ये वस्त्र उनके शरीर के निचले हिस्से को ढकने के माधुर्य के स्तर पर लाना होता है। बैठकर यदि आप लिए श्री ब्रह्मदेव का आशीर्वाद है। कटि-वस्त्र है। कहें कि ठीक है, आप खेलते रहो, तो ये सब समाप्त यह प्रतीकात्मक है और यही कारण है कि वे हमेशा हो जाएगा आपको बैठकर ध्यान करना होगा, इसका ( "रासलीला") होना आवश्यक है । आपको ऐसा करना होगा। अतः कोई यह नहीं कह पीत वस्त्र धारण किए रहते हैं। साक्षात् ब्रह्मदेव आए, श्री कृष्ण को पुरुष सकता कि हर समय यदि आप खेलते रहें,भजन बनाया और राधा से उनका विवाह किया एक बार गाते रहें या हर समय प्रसन्नचित्त, विनोद-शील पुनः वे बालक बन गए, बालक-सम दिखाई देने के अवस्था में बने रहें तो यह सहजयोग का अन्त है। लिए। कोई भी बाल सुलभ दिखाई दे सकता है। ऐसा नहीं है ये एक गम्भीर मामला है। आपमें से कुछ लोगों को मैं सोलह वर्ष की आयु की लडकी दिखाई पड़ती हूँ. परन्तु में हूँ नहीं । कुछ परन्तु उनके मस्तिष्क से इस तथाकथित धर्म के लोगों के लिए मैं साठ वर्ष की हूँ. परन्तु मैं वह भी तनावों और कट्टरता की जंजीरों को कम किया, नहीं हूँ। मेरी आयु शाश्वत है। मैं नहीं कह उन्हें ढीला किया। श्री कृष्ण चाहते थे कि लोग इस सकती कि मेरी आयु कितनी है। यह दो वर्ष बात को समझें कि धर्म दासत्व नहीं है। धर्मातीत भी हो सकती है या पूर्णतः आयु से परे भी हो होकर आपको स्वयं धर्म बन जाना है। परन्तु योगेश्वर सकती है, ये कुछ भी हो सकती है । अपने पूरे जीवन में उन्होंने जो भी किया उसे कि इस वातावरण में ऐसा कर पाना कठिन है । आप पूरी पावनता और सूझ-बूझ के साथ किया तो बाहर निकलते हैं और कोई भयानक चीज़ सामने पहले राधाजी से उनका विवाह हुआ बाद में जब होती हैं! किसी भी पत्रिका का कोई पृष्ठ खोलें, बालरूप में वे आए ,जब वे शिशु थे, तो उन्होंने सभी वहीं आपको कुछ न कुछ वीभत्स (Horrid) दिखाई दे प्रकार की लीलाएं की । इस प्रकार गम्भीरता पूर्वक जाएगा। किसी भी विज्ञापन में पृष्ठ पलटते ही मुझे बैठकर वे चीजों के बारे में नहीं बताते थे , परन्तु डिस्कोथैक जैसी मूर्खतापूर्ण चीजें दिखाई पड़ती हैं। छोटी-मोटी शरारतों द्वारा उन्होंने उनके चक्रों को आप क्या कर सकते हैं, उससे आप बच नहीं तो उन्होंने उन्हें आत्म-साक्षात्कार नहीं दिया, की पूजा शुद्ध हृदय से होनी चाहिए। मैं जानती हूँ सुधारने और उनकी कुण्डलिनियों को उठाने का सकते सभी कुछ ऐसा है, मेरा अभिप्राय ये है कि प्रयत्न किया। निःसन्देह, खेल में आत्म-साक्षात्कार आप यदि उसे देखें तो सभी कुछ कितना स्थूल, दे पाना सम्भव न था। ऐसा नहीं किया जा सकता। गन्दा और घिनौना है। समस्याओं को बढ़ावा देने के मान लो मैं भी आपसे खिलवाड़ करुं तो आप लिए मनोवैज्ञानिक आगे आ गए हैं । अपने ही आत्म-साक्षात्कार नहीं प्राप्त कर सकते क्योंकि तरीकों से और कार्यों से वे स्वयं प्रभावित हैं, वे सहस्रार के स्तर पर आपको पूर्णरूपेण मुझे पहचानना भूत-बाधित हैं और इसमें कोई सन्देह नहीं है कि चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2006 45 उनका नैतिकता-विवेक पूर्णतः भ्रमित है। धारणाएं आ जाती हैं कि आप बहुत शक्तिशाली हैं। क्या आप जानते हैं कि फ्रॉयड के साथ क्या परन्तु ये सत्य नहीं है। ? उसके अपनी माँ के साथ सम्बन्ध थे। वो ये जिस प्रकार मेरा नाम निर्मला है, जिस प्रकार हुआ भी न समझ सका, कहने से अभिप्राय है कि वो ये मेरा नाम पावनता है, आपको भी पावन योगी बनना भी कल्पना न कर सका कि वह कितना अधर्मी , होगा। कोई नहीं कहता कि आप विवाह न करें, भयानक और नीच है! उसमें तो माँ से सम्बन्धों को कोई नहीं कहता कि अपनी पत्नियों से आपके समझने की पावनता भी न थी। इसकी कल्पना उचित यौन-सम्बन्ध नहीं होने चाहिएं । ये बात करें! उस व्यक्ति की इतनी स्पष्ट पृष्ठभूमि है जो सत्य नहीं है परन्तु ये ऐसी चीज़ है जिससे दूर दर्शाती है कि वह कितना गलत था। उसके अन्दर रहकर लोग इसे बिगाड़ देंगे। परन्तु एक अन्य इतनी गन्दगी भरी हुई थी कि वह अपनी माँ को भी महत्वपूर्ण बात ये है कि आपका चित्त यौन-आकर्षणों ठीक से न देख सका! अवश्य उसकी आँखों में से पावन होना चाहिए। किसी भी प्रकार के। आपका कीचड़ या कुछ और पड़ा हुआ होगा कि उसने चित्त ऐसी किसी भी चीज़ पर नहीं जाना चाहिए । चीज़ों को इस प्रकार देखा। मेरी चैतन्य-लहरियों से आप लोग काप रहे ऐसी चीज़ नहीं देखती जो लोग प्रायः देखते हैं। ये हैं। योगेश्वर के रूप में जब हम श्री कृष्ण के बारे आश्चर्य की बात है । मैं किसी चीज़़ को देखती हूँ में सोचते हैं तो इसका अर्थ ये है कि हम योगी हैं परन्तु मेरी समझ में नहीं आता कि क्या हो रहा है! और वे हमारे ईश्वर हैं। ईश्वर की स्तुति होनी लोग आम-तौर पर मुझ पर हँसते हैं, घर में उनकी चाहिए देखिए, मेरे लिए. मैं अब वृद्ध महिला हूँ, मैं कोई आपको स्तुति करनी है. उनके (योगेश्वर) समझ में नहीं आता कि मैं उस बात को कैसे नहीं गुणों के कारण उनका गुणगान करना है, क्योंकि बे देख पाई! परन्तु मेरी समझ में ये मज़ाक नहीं आते आपके ईश्वर हैं अत: आपने उनकी स्तुति करनी क्योंकि चित्त इन गन्दी चीज़ों पर जाता ही नहीं है । है। हम उनकी क्या स्तुति कर सकते हैं ? आज जब तक कोई मुझे बताए नहीं मैं इसे समझ ही नहीं उनका जन्म दिवस है और ऐसे महान दिवस पर सकती। उन्हें दस बार इसकी व्याख्या करनी पड़ती हमें क्या करना चाहिए ? हमने ये निर्णय करना है है । कि वो हमारे ईश्वर हैं। वे ईश्वरी तत्व हैं और यदि वे हमारे ईश्वर हैं तो हमें यौन-सम्बन्धों तथा जीवन तरीके जो हमने एकत्र किए हैं, कृपा करके इनसे के प्रति स्थूल दृष्टिकोण, जो हमने विकसित किया छुटकारा पा लें। हर सहजयोगी से बताना मैं है, को स्वच्छ करना है। आप इसे त्याग दें और आवश्यक समझती हूँ कि ये एक ऐसी चीज है जिसे फेंक दें पूर्णतः । इस मामले में कोई समझौता नहीं हो सकता। अन्यथा आप योगी नहीं हो सकते, आप ऐसे ही रहते हैं तो यौनानन्द नहीं उठा सकते। आप योगी हो ही नहीं सकते। हो सकता है कुछ समय ऐसा नहीं कर सकते। इस देश में आप यौन के लिए आप शक्तिशाली हो जाएं. हो सकता है. सम्बन्धों का आनन्द नहीं उठाते । कोई भी नहीं । क्योंकि मैं आपसे खिलवाड़ करती रहती हैँ। आपमें तो मूर्खता और गन्दगी के ये सारे आधुनिक सहजयोग में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यदि आप केवल उस देश में, जिसमें लोग पावन हैं. जुलाई - अगस्त, 2006 चैतन्य लहरी 46 आनन्द उठाया जा सकता है। आप यदि इसका ही धर्मस्य- ग आनन्द उठा पाते तो एक महिला से दूसरी महिला ग्लानि होती है- पतन होता है। परन्तु धर्म का अर्थ की ओर, पुरुष से महिला की ओर, पुरुष से पुरुष केवल भ्रष्टाचार नहीं है केवल ईमानदारी और की ओर, और फिर सभी गधों की ओर न दौड़ते और न ही ये सब कार्य करते। इन घिनौने विचारों यह अंत का आरम्म है। ग्लानिर्भवति" जब-जब भी धर्म की बेईमानी नहीं है। मूलतः इसका अर्थ मूलाधार है। और वे संस्थापनार्थाय- पावन अवस्था में के साथ योगी बन पाना असम्भव है। और फिर आप परिपक्व नहीं हो सकते, कोई सर्वसामान्य व्यक्ति भी इसकी पुनर्स्थापना करने के लिए आते हैं। मानव को परिपक्व नहीं हो पाएगा। भारत में 40 वर्ष का इस स्तर तक उन्नत करने के लिए वे पुनः पृथ्वी पर व्यक्ति परिपक्व पिता बन जाता है। आप लड़कियों अवतरित होते हैं। उनका यही कार्य है। यदि हम को उसके साथ छोड़ दीजिए, किसी को भी उसके साथ छोड़ दीजिए, उसकी खोपड़ी में नहीं कि उनके बीच कुछ हो सकता है। एक बार को स्थापित करना है। परन्तु जिसके अन्दर धर्म ही विवाह होने के पश्चात ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए। नहीं है वह क्या धर्म स्थापना करेगा ? धर्म के पावन मेरा अभिप्राय ये है कि मैंने अपने दो दामादों को पक्ष को स्थापित करने के लिए वे पृथ्वी पर आए, देखा है, उनके दिमाग में कभी ऐसे विचार आते ही रोमन कैथोलिक चर्च या पेंटाकोस्टल चर्च या हिन्दू नहीं। अतः अच्छी चीज़ों में अपने चित्त को लगाएं धार्मिक गतिविधियों या इन हिन्दू मन्दिरों या क्योंकि आपके ईश्वर योगेश्वर हैं । श्री कृष्ण के दूसरे पक्ष का लोगों को ज्ञान ही उसकी पावन अवस्था में स्थापित करना है। परन्तु नहीं है। ये लीला है, ठीक है। परन्तु वे संहार हमारे अन्दर यदि धर्म है ही नहीं तो कैसे हम इसे शक्ति हैं। वे विनाशकारी शक्ति हैं। ये अच्छी बात स्थापित करने वाले हैं ? है कि अपने सारे आयुधों के साथ वे हमारी रक्षा के लिए आते हैं। परन्तु उनके पास सुदर्शन चक्र भी करने के लिए पृथ्वी पर अवतरित होते हैं, परन्तु है। सुदर्शन, सु अर्थात् शुभ 'दर्शन अर्थात् देखना। श्रीकृष्ण के स्तर पर वे योगेश्वर रूप में आते हैं। ये वे हमें शुभ-दर्शन देते हैं। आप उनके साथ चालाकियाँ बात बहुत से लोगों ने सोची ही नहीं है। विष्णु के करें तो वो सब आपकी गर्दन पर आती हैं और तब लिए योगेश्वर शब्द कभी नहीं कहा गया, कि वे आपको अपने शुभ-दर्शन होते हैं कि अब आप कहीं योगियों के ईश्वर हैं, जैसे गणेश गणों के ईश्वर हैं । सहजयोगी हैं तो उनके अस्तित्व के अंग - प्रत्यंग, हैं आएगा ही उनकी कार्यशैली के हम माध्यम हैं। अतः हमने धर्म इस्लामिक अवस्थाओं की तरह से नहीं। हमें धर्म को 1 विष्णु के स्तर पर वे हर बार धर्म की स्थापना आप जानते हैं गणपतिं गणों को सम्भालते हैं और हवा में लटक रहे हैं। अतः श्री कृष्ण का तरीका एक ओर तो ये है वो हमारे ईश्वर हैं। हमें उन्हें अपने आदर्श के रूप कि वे है इस सूझ-बूझ के साथ कि लीलामय हैं, करुणामय हैं अपने भक्तों की में स्वीकार करना रक्षा के लिए उद्यत हैं, धर्म की पुनर्स्थापना के लिए आज वो दिन है- रात को लगभग बारह बजे- पृथ्वी पर अवतरित हैं। धर्म का जब पतन होता है भारत में भी अब रात के बारह बज गए होंगे- रात तो उसकी पुनस्थापना के लिए वे आते हैं। यदा-यदा के इसी समय उनका जन्म हुआ था क्योंकि चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2006 47 प्रतीकात्मक रूप से यह सच्ची रात्रि थी, अत्यन्त ही, सहजयोगियों की परीक्षा उत्तीर्ण करने से पहले भयानक परिस्थितियों में उनका अवतरण हुआ । ही हमें ये शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं। विश्वविद्यालयों जिन डरावनी परिस्थितियों में उनका जन्म हुआ में जिस प्रकार होता है उसके बिल्कुल विपरीत । उनकी रक्षा हुई और फिर अपनी बाल्यावस्था में ही विश्वविद्यालय पहले आपको डिग्री देते हैं, प्रमाण उन्होंने राक्षसों का वध किया। ये सारा कार्य पत्र देते हैं. तब आपको नौकरी मिलती है, और हो उन्होंने इसलिए किया क्योंकि वे अवतरण थे। आप सकता है कि आपको नौकरी न भी मिले यहाँ पर लोगों से कोई नहीं कह रहा कि जाकर राक्षसों का सर्वप्रथम आपको नौकरी मिल जाती है, आपको सारी शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं- पारितोषिक मिल सहजयोग में क्या मैंने कभी आपसे कहा कि जाता है, परन्तु डिग्री का मिलना अभी भी पक्का किसी राक्षस को मारो ? इसके विपरीत मैं तो यही नहीं है। कोई भी सहजयोगी बनकर घूमने लगता कहती हैँ कि अपनी रक्षा करो। एक राक्षसी आई, हैं, अगले दिन मैं उसे किसी अन्य चीज़ के साथ घूमते देखती हैँ। मैंने देखा है, प्रमाणित सहजयोगी भी हैं। ये बाद में कुछ अन्य प्रमाणित चीज़ बन जाते हैं, परमात्मा जानते हैं कैसे ? तो यह सहजयोग की विशेषता है कि बिना सच्चा प्रमाण पत्र पाए आप सहज योगी बन जाते हैं। निश्चित रूप से ऐसा ही वध करो। उसका नाम पूतना था। अपने स्तनों पर विष लगाकर उसने बाल कृष्ण को अपनी गोदी में लिया और उन्हें स्तनपान कराने लगी। वो बहुत जब उन्होंने उसके स्तन से पीना शुरु किया तो वह राक्षसी अपने असली रूप में आ गई और मारी गई। छोटे बच्चे थे। दूध है। और जैसा आप जानते हैं ये प्रमाण पत्र भगवान निःसन्देह, आखिरकार वे अवतरण थे। क्या ईसा- मसीह स्वयं देते हैं वो बिल्कुल चिन्ता नहीं हममें से कोई ऐसा कर सकता है ? कहने का करते। आसानी से वे प्रमाण-पत्र नहीं देते वे हारने अभिप्राय है सहजयोगी। शैशवकाल में वे अत्यन्त वाले नहीं हैं। सहजयोग के मामले में तो वे बहुत ही नटखट थे। उन्होंने मिट्टी खा ली- न जाने खाई सख्त हैं, वे किसी को प्रमाण पत्र नहीं देनेवाले, भी कि नहीं- उनकी माँ को सन्देह हो गया था पहले वे आपका आँकलन करेंगे और उनका मूल बहुत नाराज़ होकर उसने कहा खोलो, मैं देखना चाहती हैँ कि तुमने मिट्टी खाई है अनुरूप वे आपका आँकलन करेंगे। आपमें यदि या नहीं।" उन्होंने अपना मुँह खोला और उनकी माँ प्रतिअहं है तो आप कह सकते हैं, " ओह मुझे भूत को उनके गले में पूरा ब्रह्माण्ड घूमता हुआ नज़र ने पकड़ लिया था, और भूत ने ही ये सबकुछ किया आया, क्योंकि यह विशुद्धि चक्र है! वह इसे देख है। तो वे कहेंगे, " ठीक है, 'प्रमाणपत्र लेने के लिए पाई क्योंकि उनमें यह देखने की शक्ति थी। हर आप भूत के पास जाओ, मेरे पास मत आओ .. आदमी इसे नहीं देख सकता। जिनमें शक्ति है केचल वही देख सकते हैं। हममें भी ब्रह्माण्ड देखने साक्षी भाव से देख रहे थे ? इन सारी चीज़ों के होते की वो शक्ति नहीं है जो उनमें थी । अतः हमें समझना है कि सहजयोगी बनते ठीक है, अब हम परस्पर झगड़ेंगे नहीं, अब कोई अपना मुँह स्वभाव क्या है ? अबोधिता । आपकी अबोधिता के और आप क्या कर रहे थे, श्री कृष्ण की तरह से .... हुए कभी- कभी लोग मुझे वचन देते हैं कि, "श्रीमाताजी जुलाई - अगस्त, 2006 चैतन्य लहरी 48 समस्या न होगी, विश्वास रखें हम अत्यन्त प्रेमपूर्वक आज वैसा ही है। निःसन्देह यह महान आनन्द एवं रहेंगे ।" और अचानक मैं पाती हूँ कि कोई स्नानागार खुशी की चीज़ है कि वे अवरतरित हुए और उन्होंने के लिए झगड़ रहा है, साबुन किसी और चीज़ के लिए । सहजयोगी का आचरण लिए ये जान लेना आवश्यक है कि हमारा जन्म एक ऐसा नहीं होना चाहिए। सर्वप्रथम आपको सन्तुष्ट व्यक्ति होना होगा, बहुत बार कह चुकी हूँ। आज केवल एक कंस नहीं महान गरिमाशील और धैर्यवान व्यक्ति अन्यथा आप है, बहुत से कंस हैं, बहुत बड़ा युद्ध चल रहा है और क्या सहन करेंगे ? "मैं उसे बहुत प्रेम करता हूँ यहाँ पर उस युद्ध के कार्यभारी आप हैं। परमात्मा परन्तु उसे मेरा तौलिया नहीं लेना चाहिए था । ने आपको इसके लिए नियुक्त किया है, आप ही छोटी-छोटी चीज़ों को ही यदि आप तूल दिए चले लोग हैं जिनके पास शक्तियाँ हैं और जिन्हें ये जा रहे हैं तो अभी तक आप,योगी नहीं हैं। वस्तुओं महान कार्य सौपा गया है। जन्म के पश्चात् श्री के लिए यदि आप लड़ रहे हैं तो आप बिल्कुल भी कृष्ण के पिता जब उन्हें टोकरी में डालकर और सहजयोगी नहीं हैं। इन चीजों का बिल्कुल कोई सिर पर उस टोकरी को उठाकर उफनती हुई नदी महत्व नहीं है, मैं किसी भी चीज़ के बारे में कुछ को पार कर रहे थे तो श्री कृष्ण का चरण-स्पर्श नहीं कहती, क्या मैं कभी कहती हैँ कि मेरे पास ये करते ही यमुना नदी उतर गई बाढ़ग्रस्त नदी उतर चीज़ होनी चाहिए, वो चीज़ होनी चाहिए. तुमने ये गई। कैसे बनाया, यद्यपि कभी-कभी वह वास्तव में गलत और संहिता-विरोधी होता है! मैं कभी नहीं कृष्ण ने ये सभी शक्तियाँ आपको दी हैं, यद्यपि कहती कि आप ये केले क्यों ले आए हैं ये अच्छे नहीं हैं, मैं इन्हें नहीं खाऊंगी। मैंने कभी ऐसा जब भगवान ईसा-मसीह आपको सहज-योगी के कहा ? कहने से अभिप्राय ये है कि जो फूल आप अर्पण करते हैं वो भी चाहे शुभ न हों, क्योंकि मैं क्योंकि आपको अबोध बनना होगा, अपने अन्दर जानती हूँ कि कुछ प्रकार के फूल पूजा में उपयोग पावनता लानी होगी। पिछली बार इस महान दिवस नहीं होने चाहिएं. परन्तु मैं अपना मुँह नहीं खोलती मैं यदि आपको बताती हैँ तो केवल इसलिए कि अधिकतर सफल हुए। सभी नहीं, अधिकतर सफल इसमें आपका हित है, मेरा नहीं । तो इस दिवस पर, जो पूरे विश्व के लिए जोड़े आए। यह अत्यन्त मंगलमय था । विवाह महान आनन्द एवं प्रसन्नता का दिन है, आपको एक आपको पावनता-विवेक प्रदान करता है। इसीलिए बात जान लेनी चाहिए, कि ईसा-मसीह का जब सहजयोग में विवाह महत्वपूर्ण है । परन्तु ये अन्तिम के लिए या ऐसी ही हमें अपनी विशुद्धि -शक्ति प्रदान की परन्तु हमारे अत्यन्त खतरनाक समय पर हुआ है। ये बात में इसी प्रकार से आपमें भी ये सभी शक्तियाँ हैं आपको इन शक्तियों की समझ केवल तभी आएगी रूप में स्वीकार कर लेंगे। और ये आवश्यक है । पर हमने यहाँ सोलह विवाह करवाए थे उनमें से हुए, और मुझे प्रसन्नता है कि उस दिन इतने अच्छे शब्द भी नहीं है क्योंकि यह सबके लिए शिकार का मैदान नहीं है कि मैं आपके लिए आज ये पति ढूँढ रही हूँ कल वो पति ढूँढ रही हूँ। ये चीज़ पूर्णतः जन्म हुआ था तब वे अत्यन्त तुच्छ स्थान पर जन्में थे, परन्तु जब श्री कृष्ण का जन्म हुआ तो परिस्थितियाँ अत्यन्त भयावह थीं सहजयोगियों के मामले में भी जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2005 49 समाप्त हो जानी चाहिए। इसे सहज पर छोड़ दें। नहीं है। खाना खाना और अपनी पत्नी के साथ सहजयोग में पत्नियाँ या पति बिल्कुल नहीं खोजने होना एक सा है- शरीर की आवश्यकता मात्र। हैं। ये कार्य छोड़ दें। आपने यदि ऐसा कुछ किया परन्तु आप सड़कों पर नहीं खाते, क्या आप ऐसा तो आपको हानि होगी। करते हैं ? आप गन्दी प्लेटों में नहीं खाते, क्या आप खोज आदि न करें। समय आने पर मैं खाते हैं ? आप स्वच्छ प्लेट लेना चाहते हैं। आप आपको बताऊंगी कि किस व्यक्ति से विवाह करना ऐसी प्लेट चाहते हैं जो स्वच्छ हो, और केवल आपने | लोग तो यहाँ पर प्रणय निवेदन शुरु कर देते उपयोग की हो। ये प्लेट स्वच्छ होनी चाहिए। यदि हैं! सहजयोग में इसकी आवश्यकता नहीं है. इसकी आप अधिक स्वच्छ प्लेट ले सकते हैं तो आप इसे बिल्कुल आवश्यकता नहीं है। हमारे सम्मुख बहुत लेना चाहेंगे। यदि आपको चाँदी की प्लेट मिल से उदाहरण हैं जिनमें इस प्रकार से विवाह तय हुए. सकती है तो आप इसे लेना चाहेंगे. सोने की प्लेट उन्होंने विवाह किया और उनका विवाह बहुत और भी बेहतर होगी। इसी प्रकार से हमारे अन्दर सफल रहा। ऐसे भी लोग थे जिन्होंने प्रणय निवेदन अत्यन्त पावन सूझ बूझ होनी चाहिए कि यह शरीर किए. चुनाव किए. अनुमोदन किए, सभी कुछ किए की आवश्यकता है. उस शरीर की जो बहुत ही और अन्त में पाया गया कि दो दिन के बाद वे सूक्ष्म बन सकता है। अतः हमें सर्वत्र इसका विपणन, तलाक के लिए खड़े हो गए थे सहजयोग में यह इसकी खोज आदि नहीं करते रहना चाहिए- ये स्वतः और तुरन्त होता है । आपको ये सब नहीं ऐसा है. ये वैसा है. और फिर छोड़ देना। ये आप के करना पड़ता, इन सारी चीजों से आपको क्या प्राप्त पास विशेष रूप से आना चाहिए। सारी महान हुआ है ? ये तो स्वतः है। आपको इसकी चिन्ता घटनाएं अचानक घटित होती हैं। जितना ज्यादा नहीं करनी, इसके बारे में नहीं सोचना, ये नहीं विचार-विमर्श करेंगे, परिणाम उतने ही बुरे होंगे । कहना कि ओह, श्री माताजी मुझे उसके लिए एक अतः धारणाएं न बनाएं, इसके विषय में योजनाएं न लड़की खोजनी है।" आपको ऐसा कुछ नहीं करना, बनाए ये घटित हो जाएगा, ये इतना अधिक महत्वपूर्ण ये सब मुझ पर छोड़ दो, ये मेरी सिरदर्दी है। परन्तु नहीं है। इस प्रकार आपको काफी पावनता प्राप्त in जब एक बार आपका विवाह सहजयोग में हो जाता होगी, आपका अहं ठीक हो जाएगा। है तो आपको इसका अर्थ पता होना चाहिए. और आप दोनों को चाहिए कि इसे भली-भान्ति कार्यान्वित विवाह न करना चाहता था और जब मैंने उस करें। यदि ये सबके हित के लिए है तो ये सबके व्यक्ति का सुझाव दिया, जिसे मैंने कठिनाई से हित के लिए होना चाहिए। ये ऐसा ही है । आज के दिन मैं कहूंगी कि आइए शपथ लें विवाह नहीं करना चाहती।" ये अजीब बात है! कि हम योगेश्वर की पूजा करने का निर्णय करेंगे जिस प्रकार हमारा अहंकार कार्य कर रहा है, यह आपको उनकी पूजा करनी होगी- अर्थात् इन बड़ा अजीब है, क्योंकि जब हम दूसरे व्यक्ति को चीज़ों के विषय में हमारे सम्बन्ध स्वच्छ होने चाहिएं। विवाह आदि के लिए देख रहे होते हैं, तो योगेश्वर इन चीज़ों से हम लिप्त नहीं होंगे, कुछ भी महत्वपूर्ण के बारे में नहीं सोचते । ये नहीं सोचते कि योगेश्वर मैं ऐसे व्यक्ति को जानती हूँ जिससे कोई मनाया था, तो उसने उत्तर दिया कि " मैं उससे जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2006 50 ने ही हमारे सब कार्य करने हैं। हम सोचे चले जाते हों, राजा हों या रानी। उन्हें तो केवल कोई योगी हैं कि हमने ये कार्य करना है इस प्रकार हम किए ही बुला सकता है, केवल योगी ही उनसे मदद मॉँग चले जाते हैं और अपने चित्त को पूरी तरह विक्षिप्त सकता है। उन्हें किसी और की कोई चिन्ता नहीं कर लेते हैं "सर्व धर्माणां परित्यज्य, मामेकं शरणं है कोई योगी यदि सिफारिश करे, केवल तभी वे ब्रज"। अपने इस निर्णय को यदि आप परमात्मा किसी अन्य पर कृपा करते हैं अन्यथा वे किसी की पर छोड़ सकें तो बेहतर होगा। मैं आपको बताती हूँ चिन्ता नहीं करते। वास्तव में वे आपके अपने राजा कि यदि आप ऐसा कर सकते हैं तो आपने अपने हैं, जो आपकी देखभाल करने के लिए हमेशा मौजूद अहं का दरिया आधा पार कर लिया है । इसमें कम हैं। जब-जब भी आप उन्हें बुलाते हैं तो वे आपकी से कम पचास प्रतिशत अहं का उपयोग तो होता ही रक्षा करने के लिए अपनी सारी शक्तियों के साथ है विशेष रूप से पश्चिम में भारत में ये प्रश्न दौड़े चले आते हैं। परन्तु आपको योगी होना होगा । अधिक नहीं होता। क्योंकि यहाँ पर माता - पिता आप यदि भगवान ईसा-मसीह द्वारा प्रमाणित योगी निर्णय नहीं कर सकते कोई अन्य निर्णय नहीं कर नहीं हैं तो श्री कृष्ण का आपसे कुछ लेना-देना नहीं । सकता आपको स्वयं निर्णय करना पड़ता है। आपके लिए यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी और बहुत बड़ी बात है। तो मैं आपको बताती हैँ कि यदि स्वयं दूल्हा या उन्होंने आपकी अबोधिता का ऑकलन नहीं करना, दुल्हन छाँटने की जिम्मेदारी आप छोड़ दें तो दरवाजे में भगवान ईसा-मसीह खड़े हैं आप जब आपकी अहं की समस्या पचास प्रतिशत समाप्त हो प्रवेश करते हैं तो ठीक है। परन्तु इस दरवाजे में जाएगी। मात्र, इसे भूल जाएं। शक्ति की इतनी बर्बादी जब मैं युवा लोगों आपको उठाकर बाहर फेंक रहे होते हैं। को ये सारे कार्य करते देखती हूँ तो सोचती ह कि अतः श्री कृष्ण तक पहुँचने से पहले, यद्यपि प्रवेश करना भी कठिन है क्योंकि ईसा-मसीह तो हूँ। श्री कृष्ण ने कहा है, श्री ईसा मसीह से काश, ये अपने जीवन का मूल्य, जीवन का सम्मान उन्होंने कहा कि 'आप आधार होंगे, पूरे ब्रह्माण्ड का समझ पाते! श्री कृष्ण उनके ईश्वर हैं। वे हर किसी आधार।" अर्थात् अबोधिता ही ये आधार है, ये के ईश्वर नहीं हैं, केवल योगियों के हैं। कोई अन्य अबोधिता यदि आपमें स्थापित नहीं हुई है तो श्री यदि हरे राम-हरे कृष्ण जपने का प्रयत्न करेगा कृष्ण आपकी सहायता नहीं कर सकते। तब वे तो उसे गले का कैंसर हो जाएगा। कोई भी ऐसा लाचार हैं। आप क्योंकि योगी नहीं बनते इसलिए वे व्यक्ति , जो योगी नहीं है, यदि उनका आहुवान अब आपके ईश्वर नहीं हैं जब हम कहते हैं, श्री करने का प्रयत्न करता है तो उसे गले की समस्या माताजी आज्ञा चक्र यहाँ है और वे यहाँ हैं, ठीक है। हो सकती है। तो श्री कृष्ण केवल आपको जब आप आज्ञा चक्र को पार करते हैं तों वे यहाँ उपलब्ध हैं, वे आपके ईश्वर हैं। केवल आपके लिए (आज्ञा) बैठे हुए हैं और विराट यहाँ (आज्ञा चक्र से वो प्रकट होते हैं। वे आपके अपने हैं। किसी ऊपर विराट का स्थान) बैठे हैं। अतः जब तक आप ऐरे-गैरे नत्थू-खैरे के लिए वे कार्य नहीं करते। अपने आज्ञा चक्र को ठीक से पार नहीं कर लेते उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता , चाहे आप प्रधानमन्त्री आप विराट तक नहीं पहुँच सकते। और योगेश्वर चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2006 51 तो विराट हैं। इसी तत्व की हमने पूजा करनी है, हमारी आँखों में स्थापित होगी। हम अबोध बन इसी तत्व की पूजा करनी है! पूजा कर अर्थ यह नहीं है कि आप वही आँखों का क्या लाभ है जो कभी टिकती ही नहीं ? व्यक्ति बन जाएं। आप मेरी पूजा करते हैं, परन्तु आप ये भी नहीं जानते कि वे कहाँ जा रही हैं, आप मैं नहीं बन जाते। जब आप पूजा करते हैं तो अस्थिर आँखें, आप इधर-उधर देखते रहते हैं! जाएंगे, हमारी आँखें अबोधिता को दर्शाएंगी। उन क्या होता है ? आप सारे अंधकार को अग्नि जल अपनी आँखों पर भी आप विश्वास नहीं कर सकते। तथा अन्य तत्वों में फेंककर समर्पित हो जाते हैं। परन्तु जो आँखें अबोध हैं बाहर से कुछ नहीं लेती, अपना हृदय आप मुझे सौंप देते हैं। यही पूजा है। वे केवल देती है, वे केवल देती हैं पावनता कहीं भी इसी प्रकार से आपने मेरे अन्दर के श्री कृष्ण, प्रवेश कर सकती है, अत्यन्त पावनी है. सुखद है योगेश्वर की पूजा करनी है। मैं योगेश्वर हूँ। चीजें और अत्यन्त सुन्दर है। हमें सुन्दर व्यक्ति बनना मेरे मस्तिष्क में बिल्कुल नहीं घुसतीं, इस प्रकार से होगा । मैं चीजों को नहीं देखती, मैं नहीं जानती कि ये प्रलोभन क्या है, ये आकर्षण क्या है? मुझे बिल्कुल जिस प्रकार लोगों को ये बात समझ नहीं आती कि समझ नहीं आता। इसके विपरीत ये चीजें मुझे दूर सहजयोग में यौन सम्बन्धों का पावित्र्य इतना महत्वपूर्ण करती हैं, इनसे मुझे घृणा आती है, उल्टी होती है। इन चीजों को सुनने के लिए मैं अपने कान खोलना परेशानी होती है । लोग समझते ही नहीं । भारतीय नहीं चाहती, मेरे कान बहरे हो जाते हैं । ये मैं सुन लोगों के लिए इस प्रवचन का कोई अर्थ नहीं। वो तो नहीं सकती, गन्दे मज़ाक मेरी समझ में नहीं आते। सोचेंगे कि क्यों श्रीमाताजी अपनी इतनी शक्ति नष्ट इसके लिए मेरे पास मस्तिष्क नहीं है। मेरा मस्तिष्क कर रही हैं! क्योंकि वो नहीं समझते। परन्तु समझने से इन्कार कर देता है। मैं गूँगी हो जाती लिए ये बहुत महत्वपूर्ण है । जो भी कुछ मैंने देखा हूँ, पूर्णतः गूँगी और बहरी। लोगों ने इन चीजों पर और सुना हैं, जो मैं चहूँ ओर देखती हूँ, उसीके पुस्तकों पर पुस्तकें लिख दी हैं. मेरी समझ में नहीं संदर्भ में । मैं सोचती हूँ कि आज का सन्देश आता कि उन्होंने क्या लिखा होगा! ऐसी चीजों में योगेश्वर का सन्देश होना चाहिए । आइए हृदय से लिखने के लिए क्या है ? आज मैंने ये सारीं बातें इसलिए कहीं क्योंकि है, विशेष रूप से पश्चिम में, तो कई बार मुझे मेरे योगेश्वर की पूजा करें। आज जब आप मेरी पूजा तो आज हमने ये समझना है कि हमारा करेंगे तो यह योगेश्वर की पूजा होगी, किसी अन्य व्यक्तिगत जीवन अत्यन्त स्वच्छ होना चाहिए। हर की नहीं । क्षण हमें अपना सामना करना है और अपने अन्दर देखना है कि क्या हम वास्तव में अपने अन्तःस्थित परमात्मा आप पर कृपा करें। योगेश्वर की पूजा कर रहे हैं ? आइए अपने अन्दर (रूपान्तरित) वह पावनता विकसित करें केवल तभी अबोधिता 1) 231 ---------------------- 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी जुलाई - अंगस्त, 2006 रंर रे n. ा न िय ा 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-2.txt HWA NIRMALA है IVERSAL PURE RELIGIO इस अंक में 1. छिन्दवाड़ा परियोजना - अनुरोध 2. श्री माताजी का 59 वाँ विवाह-वर्षगाँठ समारोह : आस्ट्रेलिया 7.4.2006 3. विलियम ब्लेक की कब्र की आश्चर्यजनक खोज 4. विलियम ब्लेक का जन्म-दिवस समारोह (परम पूज्य श्री माताजी का प्रवचन-लन्दन-28.11.1985 ) 5. सार्वजनिक कार्यक्रम, सिडनी, 6 फरवरी 2006 (सर. सी.पी. श्रीवास्तव का भाषण) 6. मुम्बई स्वास्थ्य केन्द्र की 10 वीं वर्षगाँठ 19.2.2006 7. एक रोगी का साक्ष्य (मुम्बई स्वास्थ्य केन्द्र 19.2.2006) 8. योगेश्वर पूजा (लन्दन) 15.8.1982 DHARMA NI 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-3.txt चै त - य ल ह री प्रकाशक निर्मल इन्फोसिस्टम्जू एवं टैकनोलोजीज़ प्रा. लि. प्लाट न. 8. चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड कोठरुड पुणे फोन: 020- 25285232 े - 411 029 मुद्रक पार्थ सारथी प्रेस A-27, Meera Bagh ( मीरा बाग) मोबाइल : 9810452981, 25268673, 42334321 सदस्यता के लिए कृपया निम्न पते पर लिखे:- श्री जी.एल. अग्रवाल निर्मल इन्फोर्सिस्टम्जू एवं टैकनोलोजीज़ प्रा. लि. 222, देशवन्धु अपार्टमैंट, कालका जी नई दिल्ली-110 019 फोन : 26216654 आप अपने अनुभव, सुझाव, सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ. पी. चान्दना N463 ( जी-11), ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली 110 034 दूरभाष : 011-55356811 हि 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-4.txt परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी सहजयोग-ट्रस्ट श्री माताजी का पावन जन्म-स्थल छिन्दवाड़ा परियोजना (सहयोग के लिए अनुरोध) 2. तीर्थ-स्थल के ऑगन में एक ध्यान-धारणा जय श्री माताजी , सभागार का निर्माण तथा आगन्तुकों के प्रवाह को जैसे पहले भी घोषणा की जा चुकी है. हमारी परमेश्वरी माँ की कृपा से छिन्दवाडा सम्भालने के लिए एक स्मारक स्टॉल (stall) एवं स्थित श्रीमाताजी का जन्म-स्थल, सहजयोगियों अन्य आवश्यक सुविधाओं का निर्माण करना। एवं योगिनियों के लिए पावनतम तीर्थ, का प. प. 3. तीर्थ-स्थल के समीप ही अन्तर्राष्ट्रीय आश्रम का श्री माताजी निर्मला देवी सहजयोग ट्रस्ट, निर्माण करने के लिए एक विशाल भू-स्थल (16000 भारत, ने 14 जुलाई 2005 को अभिग्रहण कर वर्ग मीटर क्षेत्र) का अभिग्रहण करना, और लिया था। जन्म स्थान के अभिग्रहण की सभी 4. विश्व भर से आने वाले सहजयोगियों / योगिनियों कानूनी औपचारिकताएं पूर्ण कर ली गई हैं। अब के लिए रिहायशी स्थान एंवं सुविधाओं से सुसज्जित यहाँ नियमित साप्ताहिक सामूहिक ध्यान किया जा अन्तर्राष्ट्रीय आश्रम की योजना एवं निर्माण की रहा है और हवन तथा पूजाओं का आयोजन भी रूप-रेखा बनाना। आश्रम में सांस्कृतिक कार्यक्रमों, किया जाता है। सहजयोगी और योगिनियाँ निरन्तर राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों के आयोजन की इस तीर्थ के दर्शन के लिए आ रहे हैं और आगामी सुविधा के अतिरिक्त आध्यात्मिक, दार्शनिक तथा महीनों और वर्षों में इनकी संख्या बढती ही चली भिन्न विचारधाराओं की पुस्तकों से सुसज्जित जाएगी। परियोजना के आगामी चरण का शुभारम्भ पुस्तकालय की सुविधा भी उपलब्ध होगी ये सभी अब किया जा रहा है। इसके मुख्यतः चार भाग सुविधाएं श्रेष्ठतम तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की होंगी। होंगे : कित अन्तर्राष्ट्रीय आश्रम सुन्दर प्राकृतिक परिदृश्य 1. जन्मस्थान के भवन को तीर्थ-स्थल के रूप में वाले स्थान पर बनाया जाएगा ताकि अत्यन्त शान्त-वातावरण प्राप्त हो सके। प. पु. श्रीमाताजी निरन्तर बनाए रखने के नज़रिए से इसकी मरम्मत ने इस आश्रम के नाम "प. पू. श्री माताजी निर्मला देवी सहजयोग विश्व आश्रम को एवं दृढ़ीकरण करना। जन्मस्थान के मूल आकार को बनाए रखते हुए इसके नवीकरण तथा, दृढ़ीकरण के लिए भारतीय स्वीकृति प्रदान की है। राष्ट्रीय ट्रस्ट ने संस्कृति एवं परम्परा (Culture and "प. पू. श्रीमाताजी निर्मला देवी सहजयोग Heritage) पारांगत संरक्षण वास्तुकार ट्रस्ट" के न्यासी श्री दिनेश रॉय के नेतृत्व में भारत (Conservation architect) की नियुक्ति की है। तथा अन्य देशों के सहजयोगियों/ योगिनियों की 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-5.txt जुलाई चैतन्य लहरी - अगस्त, 2006 एक टीम. सर सी. पी. के पथप्रदर्शन में, इस करते हैं कि आर्थिक-योगदान देकर इस परियोजना को यथार्थ रूप प्रदान करने के लिए एतिहासिक परियोजना को सम्बल प्रदान करें। कार्यरत है। आवश्यक मरम्मत और देख-रेख के अपने सभी भाई-बहनों से हमारा ये भी अनुरोध है लिए कुछ प्रारम्भिक कार्य भी किया जा चुका कि किसी भी अन्य प्रकार से, किसी भी प्रकार के है। जन्म-स्थल के पुनरुद्धार एवं नवीकरण की कौशल से यदि वे इस एतिहासिक परियोजना में विस्तृत योजना बनाने के लिए वास्तुकारों एवं भवन सहयोग करना चाहते हैं तो हमें सूचित करें। सभी अभियन्ताओं की नियुक्तियाँ की गई है प्रस्तावित राज्य समन्वयक गणों से प्रार्थना है कि वे इस अन्तर्राष्ट्रीय आश्रम के लिए आवश्यक भूमि अभिग्रहण अनुरोध को नगर-केन्द्रों तक पहुॅचाएं और पूर्ण करने के लिए कुछ स्थान भी देखे गए हैं। जैसा हम सब जानते हैं. यह एतिहासिक के लिए प्रोत्साहित करें। उत्तरदायित्व है हमारी परम-पावनी माँ का शुरू 1. सामूहिकता को इस परमेश्वरी कार्य में योगदान देने भारतीय सहजयोगियों/ योगिनियों से इस जन्म-स्थल हम सबके लिए उत्कृष्ट एवं पावनतम परियोजना के लिए आर्थिक योगदान प्राप्त करने के स्थान है। पूर्ण होने पर, जन्म-स्थल मन्दिर हम लिए नई दिल्ली में केवल इसी कार्य को समर्पित सबके लिए तथा सहजयोगियों और योगिनियों की एक बैँक खाता खोल दिया गया है। अन्य देशों के सहजयोगियों / योगनियों से भावी पीढ़ी के लिए महानतम तीर्थ बन जाएगा। अतः इस मन्दिर का विकास करना, अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक योगदान (जो कि निश्चित रूप से विदेशी आश्रम के लिए भूमि अभिग्रहण करना और मुद्रा में होगा) लेने के लिए अनिवार्य है कि भारतीय शीघ्रातिशीघ्र इस कार्य को पूर्ण करने के लिए राष्ट्रीय ट्रस्ट भारत सरकार के सम्बन्धित विभाग से वचनबद्ध होना, हम सबका परम पावन कर्त्तव्य है। पूर्व स्वीकृति प्राप्त करे। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित पूर्ण श्रद्धा एवं प्रेम- पूर्वक, तथा हमारी माँ, गुरुओं प्रक्रिया का परामर्श दिया जाता है :- की गुरु, सदगुरु द्वारा सिखाए गए उच्चतम सहज पारम्परिक मूल्यों के अनुरुप इस कार्य को किया छिन्दवाड़ा परियोजना के लिए नया बैंक खाता जाना है। हमें ये स्वीकार करना होगा कि इस खोलें। पावन परियोजना को पूर्ण करना, हमें अपनी परम 2. सहजयोगियों और योगिनियों को राष्ट्रीय ट्रस्ट, पावनी माँ के 'एकब्रह्माण्डीय परिवार के स्वप्न को समिति या समन्वयक के पास योगदान भेजने के 1. हर देश में राष्ट्रीय ट्रस्ट, समिति या समन्वयक आमन्त्रित करें। साकार करने के लिए परस्पर और भी समीप ले लिए 3. योगदान के लिए आई सभी राशियों की रसीद दें और इस राशि को कथित बैंक खाते में जमा कराएं। एक ऐसे परिवार के स्वप्न को जिसने आएगा अपने जीवन में शाश्वत् चारित्रिक मूल्यों को स्वीकार किया है। 4. आवश्यक समय के पश्चात् राष्ट्रीय ट्रस्ट, समिति इस महत्वपूर्ण अवसर पर हम सभी या समन्वयक भारतीय राष्ट्रीय ट्रस्ट के कार्य-कारी सहजयोगियों और सहजयोगिनियों से अनुरोध सचिव को भारत भेजी जाने वाली इस राशि के बारे 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-6.txt चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2006 योगदान देने वाले लोगों की सूची भी, योगदान में दी गई राशियों सहिस्त, भारतीय राष्ट्रीय ट्रस्ट के में सूचित करें। 5. कार्यकारी सचिव, तत्पश्चात इस प्रस्तावित राशि को भारत भेजें जाने के विषय में भारत कार्यकारी सचिव को भेजी जानी चाहिए । छिन्दवाड़ा सरकार से आवश्यक स्वीकृति लेंगे, और इसके मन्दिर में इस पावन परियोजना के लिए प्राप्त हुई चिषय में सम्बन्धित राष्ट्रीय ट्रस्ट / समिति/समन्वयक सभी धन राशियों का स्थायी लेखा रखे जाने का को सूचित करेंगे। 6. इसके बाद प्रस्तावित राशि निम्नलिखित बैंक खाते में भेजी जाएगी :- प्रस्ताव है। जय श्री माताजी हस्ताक्षर राजीव कुमार - H.H. Shri Mataji Nirmala Devi Sahaja Yoga Trust Chhindwara Account Name of the Bank Account कार्यकारी सचिव Name of the Bank UTI Bank Branch K-12 Green Park Main, New Delhi 110016, India -015010100265263 Account Number 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-7.txt परम पूज्य श्री माताजी का 59 वाँ विवाह वर्षगाँठ समारोह आस्ट्रेलिया (7.4.2006) (सहज समाचार) ु प्रिय सहजी भाई-बहनों, 7 अप्रैल शुक्रवार के दिन श्रीमाताजी और सर सी. पी ने अपने विवाह की 59 वीं वर्षगाँठ मनाई। इस मंगलमय अवसर का कीर्तिगान करने के लिए विश्व सहज सामूहिकता से श्रीमाताजी और सर सी. पी को असंख्य ई-मेल प्राप्त हुए । बधाई के इन संदेशों के लिए श्रीमाताजी ने स्वयं आशीर्वाद देते हुए पत्र लिखकर आभार प्रकट किया। 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-8.txt की चैलन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2006 यात व राम र] ार पूर ाप ह श्री माताजी के पत्र की पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं:- सात अप्रैल को आस्ट्रेलिया की सहज सामूहिकता ने अगाध प्रेम पूर्वक हमारे विवाह की 59 वीं वर्षगाँठ मनाई। यह अत्यन्त हृदयस्पर्शी एवं आनन्ददायी अवसर था। विश्व-भर के अंपने प्रिय सहजी बच्चों से मुझे गहन प्रेम तथा मंगलकामनाओं के संदेश प्राप्त हुए। उन सभी बच्चों के प्रति मैं अपना हार्दिक प्रेम एवं आशीर्वाद व्यक्त करना चाहती हूँ। गहन आड़ोलित हृदय से सर सी. पी. भी आप सबके प्रति अपना शाश्वत गहन आभार व्यक्त करते हैं। हस्ताक्षर निर्मला श्री वास्तव (श्री माताजी निर्मला देवी) 8 अप्रैल - 2006 रूपान्तरित इंटरनैट विवरण) 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-9.txt विलियम ब्लेक की कब्र की आश्चर्यजनक खोज (विश्व भर के लिए उत्सव का अवसर) श्री माताजी की कृपा से सहजयोगी विलियम ब्लेक को श्री भैरव नाथ के अवतरण के रूप में पहचानते एक महादूत (Arch Angel) के रूप में , जो निरन्तर हमारे वामपक्ष (Left side) पर कार्यरत हैं। जैसा हम जानते हैं विलियम ब्लेक का जन्म वर्ष 1757 में इंग्लैण्ड में हुआ उन्होंने परमेश्वरी कला के चमत्कारिक ग्रन्थों का सृजन किया जो निरन्तर पूरे विश्व को आकर्षित प्रेरित एवं परिवर्तित कर बनहिल फील्ड में दिखाई देता स्मृति पत्थर। यथेच्छ स्थान पर लगाए गए रहे हैं। 1827 में जब उन्होंने पृथ्वी से प्रस्थान किया पत्थर पर खुदा है, 'विलियम ब्लेक के अवशेष समीप ही दबे हुए हैं। तो विलियम ब्लेक के शरीर को मध्य लन्दन स्थित बनहिल क्षेत्र (Bun Hill Fields) नामक स्थान में जब लुईस और केरौल पश्चिमी लन्दन का एक दफनाया गया। वर्ष 1965 में अज्ञानता के कारण सहजयोगी जोड़ा- पहली बार बनहिल फील्डज़ एक दुखद घटना घटी : जिसमें कक्र का स्थान गए तो उन्हें विलियम ब्लेक के विषय में उतना ही दर्शाने वाले तुच्छ पत्थर को क्षेत्र के अन्य पत्थरों के साथ हटा दिया गया। लन्दन के अधिकारियों ने ज्ञान था जितना अन्य सहजयोगियों को है। वे हैरान थे कि ब्लेक की कब्र का वास्तविक स्थान खो कब्रिस्तान के इस भाग को पार्क में परिवर्तित करने गया था और भुला दिया गया था और उसके स्थान की योजना बनाई थी जिसे शीध्र ही कार्यान्वित पर एक पत्थर लगा हुआ था जिस पर खुदा था: किया गया। इस प्रक्रिया के दौरान विलियम ब्लेक की कब्र भी खो गई। अब विलियम ब्लेक के अवशेष समीप ही दबे हुए हैं। ब्लेक विद्वान, लन्दन स्थित ब्लेक सोसायटी शक्तिशाली चैतन्य लहरियों की भावना से प्रेरित इस जोड़े ने दिव्य कवि की कब्र के वास्तविक स्थान सुप्रसिद्ध अन्तर्राष्ट्रीय (Blake society) सहित कोई भी न जानता था कि को खोजने का प्रयत्न करने का निश्चय किया तथा विलियम ब्लेक की कब्र का स्थान कौन सा है! 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-10.txt जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2006। लन्दन के अधिकारियों, ब्लेक सोसायटी तथा ब्लेक पर सत्य को खोजने के लिए अन्वेषण एवं छान-बीन शोध करने वाले विद्वानों ने अपना आभार प्रकट किया करने का एक लम्बा और विस्तृत कार्यक्रम बनाया कब्र के सही स्थान को खोजने के लिए पुराने नक्शे है। कुछ लोगों ने तो उन्हें निमंत्रित करके उनके तथा चार्ट उपयोग किए गए। परिणाम स्वरूप, दैवी सम्मुख कृतज्ञता व्यक्त की है। वे विद्वान ये न जानते थे कि इस जोड़े की बैज्ञानिक खोज ने वास्तव में उसी सहायता से उन्होंने वास्तव में विलियम ब्लेक की कब्र खोज की पुष्टि की थी जो (लुईस-केरौल) वो पहले ही का सही स्थान, खोज लिया। उनकी अधिकारिक कर चुके थे पहली बार जब ये लोग वहाँ गए थे तो खोज वर्षों के वैज्ञानिक एवं विद्वतापूर्ण शोध का परिणाम कुछ ही मिनटों में चैतन्य उन्हें सीधा उस स्थान पर ले थी. जिसे उन्होंने तभी से शुरु कर दिया था जब वे पहली बार वहाँ गए थे उनके शोध परिणामों के लिएगया जहाँ से गुलाब की तीव्र सुगन्ध आ रही थी । এ ी विलियम ब्लेक की कब्र का सही स्थान जिसे सहज-योगियों ने वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित किया है । र 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-11.txt जुलाई - अगस्त, 2006 चैतन्य लहरी 10 बनहिल फील्ड से सम्बन्धित निर्णय लेने के कब्रिस्तान के कार्य में रत लन्दन अधिकारियों इस सहजयोगी जोड़े को सरकारी वार्ताओं की लिए अगली महत्वपूर्ण सरकारी वार्ता जून 2006 में एक श्रृंखला में भाग लेने के लिए निर्मन्त्रित किया निश्चित की गई है यूके. के सहजयोगी एक वैबसाइट बना रहे हैं जिसके माध्यम से विश्व भर के ने इस दौरान लन्दन के पचास सहजयोगियों ने विलियम सहजयोगी विलियम ब्लेक मित्र समूह के सदस्य ब्लेक को दिए गए महत्व को दर्शाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। परिणाम स्वरूप विलियम ब्लेक की बन सकेंगे। इस स्मारक को बनाने में सहायक कब्र के सही स्थान पर एक उपयुक्त स्मारक बनाना होगे। वेबसाइट के तैयार होते ही FW. B. G उन सभी सहजयोगियों से अपील करेगी जो इस दिव्य भी सरकारी कार्य-सूची में है । वार्ता ज्यों-ज्यों आगे बढ़ी, अधिकारियों ने व्यक्ति के महत्व को समझते हैं श्रीमाताजी की कृपा से विलियम ब्लेक के प्रति अपने अगाध प्रेम एवं लुईस और केरौल को एक स्वतंत्र संस्था बनाने की राय दी ताकि वे विलियम ब्लेक की कब पर श्रद्धा का प्रदर्शन करने के लिए यह सुनहरा अवसर हैं। प्रभावशाली स्मारक बनाकर हम इस कार्य को उपयुक्त स्मारक बनाने के लिए सहायता प्राप्त कर । F.W.B.G लन्दन आधिकारियों के सरकें। इस प्रकार यू. के. कमेटी के प्रोत्साहन से कर सकते हैं सम्मुख इस कार्य के लिए सामूहिक प्रार्थना पत्र पेश "The Friends of William Blake Group" (विलियम ब्लेक मित्र समूह) की स्थापना की गई ताकि करेगी। इस विलियम ब्लेक कब्र की खोज के विषय में महत्वपूर्ण कार्य को आगे बढ़ाया जा सके अधिक जानकारी के लिए Luis and Carol Garrido को लिखें : luisgarrido 108 @ hotmail.com जय श्री माताजी (इन्टरनैट विवरण) रूपान्तरित विलियम ब्लेक की कब्र 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-12.txt विलियम ब्लेक का जन्मदिवस समारोह हैमरस्मिथ टाऊन हाल, लन्दन 28.11.1985 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का सार्वजनिक प्रवचन विलियम ब्लेक जैसे महान कवि और पैगम्बर दिव्यता का बिल्कुल भी विवेक नहीं है. वे कितने को श्रद्धान्जलि अर्पित करना हम सबके लिए बहुत दुखी हुए होंगे! वे एकान्त में जा-जाकर रोए हॉंगे. बड़ा सम्मान है। पहली बार जब मैं इंग्लैण्ड आई वे अवश्य रोए होंगे, किसी ने उन्हें स्वीकार नहीं तो मुझे बताया गया कि इंग्लैण्ड विद्या का केन्द्र किया होगा यह असम्भव है। इतने निम्नमस्तिष्क है। यहाँ पर आप बहुत से संग्रहालय और प्रदर्शनियाँ किसी ऐसी चीज़ को स्वीकार नहीं कर सकते जो देख सकते हैं। अचानक एक दिन मैंने सहजयोगियों इतनी उत्कृष्ट हो. इतनी महान हो। और मेरा हृदय से कहा कि मैं विलियम ब्लेक की तस्वीरों की टेट दर्द से कराह उठा। हे परमात्मा! स्वयं को तड़पाने चित्रशाला (Tate Gallery ) देखना चाहूंगी सभी के लिए, कोई ऐसी चीज़ कहकर, जिसे लोग समझ हैरान थे क्योंकि मैं कभी इन स्थानों पर, विशेष ही नहीं सकते स्वयं को कष्ट देने के लिए उन्होंने रूप से पुस्तकालयों में और पुस्तकों के लिए नहीं इस स्थान पर जन्म ही क्यों लिया ? परन्तु बात जाती। वहाँ जाकर जब मैंने इस महान कवि, ऐसी नहीं है। मैंने जाना कि वे कौन थे, क्या कर महान व्यक्तित्व को देखा तो इंग्लैण्ड के लोगों के रहे थे, और वे यहाँ पर क्यों आए उनके विषय में लिए उनके हृदय से परमेश्वरी बोध एवं सूझ-बूझ हमारा ज्ञान बहुत सीमित है क्योंकि पुस्तकों से के साथ अत्यन्त प्रेम और इंमानदारी फूट पड़ रही आप ये नहीं समझ सकते कि वो क्या चीज़ थे! थी ताकि वहाँ के लोग दिव्यत्व की महान शक्ति वे भैवरनाथ के अवतरण थे जिन्हें हम सेन्ट को समझ सकें। पर जब मैंने कुछ अटपटे लोगों माइकल, या सेंट-जार्ज भी कहते है- इंग्लैण्ड के को देखा जो अपने साथ आवर्धन लैंस (magnifving glasses) लाए हुए थे जिनसे वे उन चित्रों को सन्त देव-दूत। इसीलिए उन्हें अवतार लेना पड़ा देख रहे थे और इन शीशों की सहायता से और क्षमा करनी पड़ी। उनकी यही भूमिका थी- तस्वीरों में लोगों के गुप्तांगों को देख रहे थे, तो परमात्मा के विषय में निर्भीकता पूर्वक खुल्लमखुल्ला मेरे आश्चर्य की कोई सीमा न रही! मैंने कहा , बात करना। उन्हें प्रतीकात्मक भाषा का उपयोग इन जाहिल, पूर्णतः नीच लोगों को देखो. इन्हें करना पड़ा। इसके लिए वे विवश थे। आप यदि उनके चित्रों में कुछ भी उत्कृष्ट, कुछ भी उत्तम आत्म साक्षात्कारी व्यक्ति हैं तो उन्हें समझना बिल्कुल नहीं दिखाई पड़ता। और वे उनके फोटो खींच रहे भी कठिन नहीं है। कभी हैँसते हुए. कभी रोते हुए थे! लोगों की प्रतिक्रिया को देखकर मैं उस नाटक का आनन्द लेते हुए, जिसकी व्याख्या आश्चर्यचकित थी! तब मैंने महसूस किया कि अपने जीवन में ऐसे लोगों के साथ रहकर जिन्हें उन्हें पढ़ते हुए उनके विनोद-विवेक को देखकर मैं करने का उन्होंने प्रयत्न किया आप उन्हें पढ़ेंगे. 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-13.txt जुलाई - अगस्त, 2006 चैतन्य लहरी 12 आश्चर्यचकित रह जाती हैँ, किस तरह से करते, उनके प्रति बनावटी भद्रता दिखाते कृत्रिम खुल्लमखुल्ला वे टिप्पणियाँ करते हैं! मुझे लगता है व्यवहार करते परन्तु दीन-हीन लोगों के साथ कि वे भारत के मार्कण्डेय या कबीरदास की तरह उनका व्यवहार बहुत ही प्रेममय था। मछुआरों में से थे जिन्होंने अपनी तलवार (कलम) से पूरे समाज उन्हों ने दिव्यत्व का सृजन किया. उनमें की काट-छाँट की। निर्भयतापूर्वक, परन्तु अत्यन्त सर्व - साधारण लोग थे, अनपढ़ थे और जो समाज प्रेम से, उन्होंने समाज को उपयुक्त आकार में लाने के निम्नतम वर्ग से थे। ईसा-मसीह ने इन लोगों का प्रयत्न किया। उनका गीत यदि आप पढ़े तो को चुना और इन्हें दिव्य बना दिया। ईसा मसीह यह अत्यन्त कोमल है। जो भी लोग उन जैसे थे. कभी मन्त्रियों, प्रधानमंत्रियों राज्यपालों के पास नहीं उनकी शैली के थे, अत्यन्त खुले और सीधे, वे गए। उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया। धर्माधिकारी अत्यन्त मुखर होते हुए भी, अत्यन्त मधुर थे। कहलाने वाले महान लोगों को यदि आप देखें तो ईसा-मसीह का वर्णन जिस प्रकार उन्होंने किया आप जान पाएंगे कि ये सभी लोग राज्य पालों, है, उसे उन्होंने अपनी ज्योतित दृष्टि से देखा; राजाओं तथा रानियों के साथ ही व्यस्त होते हैं उन्होंने देखा कि लोगों ने ईसा का वर्णन अत्यन्त ताकि ये लोग आकर उन्हें प्रणाम करें ऐसे लोग विकृत रूप में किया है। ईसा मसीह जैसे थे उसके राजनीति प्रचालित होते हैं। मानवरचित राजकरण बिल्कुल उलट। मुझे भी ऐसा ही लगा। मेरा जन्म की दल दल में कोई दिव्य व्यक्ति कैसे फँस सकता एक प्रोटेस्टेंट ईसाई- परिवार में हुआ। इसाईयों है ? ये बात हम नहीं समझते क्योंकि हम तो हर की असलियत देखकर मुझे सदमा पहुँचा। मैंने चीज़ को तर्क संगत ठहराने का प्रयत्न करते हैं । परमात्मा का धन्यवाद है कि वे ऐसे व्यक्ति थे जो कहा, क्या यही ईसाई हैं ? जो वे कहना चाहते हैं अत्यन्त स्पष्ट है। आप समझ सकते हैं कि व्यवहार तार्किकता विरोधी थे, और ईसा मसीह को में यदि आप कोमल हैं, मुझे खेद है, मुझे भय है, सर्वसाधारण मानव के स्तर पर घसीटने वाले सभी मुझे संदेह है, इसकी ओर देखें, यह प्रायः उपयोग बौद्धिक विचारों के विरोधी थे, क्योंकि वे स्वयं दिव्य की गई भाषा है। विलियम ब्लेक कहते हैं कि ईसा व्यक्ति थे और वे ईसा मसीह को समझ पाए। मसीह ऐसे व्यक्ति न थे मैं भी कहती हूँ मैं चुनाव नहीं लड़ रही हूं, मैं यहाँ तुम्हें प्रसन्न करने के लिए नहीं आई हूँ मैं तो यहाँ इसलिए आई हूँ, कि आप समझाने की समस्या भी होती थी क्योंकि हर स्वय, स्वयं को प्रसन्न करें, स्वयं का आनन्द लें। आदमी उन्हें परेशान करने में ही लगा रहता था। आपकी सम्पदा की अभिव्यक्ति हो और उसका येरुशलम की बात करने के लिए ऐसी महान् आत्मा आनन्द लिया जा सके। इसी प्रकार से विलियम पृथ्वी पर अवतरित हुई। येरुशलम से उनका क्या कभी-कभी उन्हें निराशा हो जाया करती थी और उनके सम्मुख धन, अपने भाई-बहनों को ब्लेक ने भी ईसा-मसीह की एक इझलक आपके अभिप्राय था ? येरुशलम क्या है? क्या है ? हम सम्मुख रखी, कि वे इतने भद्र-पुरुष न थे जो लोगों तीर्थ यात्रा के लिए येरुशलम क्यों जाते हैं ? के पास जा-जाकर व्यर्थ में भद्रता का प्रदर्शन क्योंकि वहीं ईसा मसीह का जन्म हुआ था। इंग्लैण्ड 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-14.txt चैतन्य लहरी जुलाई - अगरत, 2006 13 मोजिज में जब ईसा मसीह का जन्म होगा तो इंग्लैण्ड भी करो- ईसा मसीह पृथ्वी पर अवतरित हुए। के समय में ये सब ठीक था-नियमाचरण। वो इसे येरुशलम बन जाएगा। परन्तु आज कितने अंग्रेजों को आत्मा की नैतिक ईसाई धर्म कहते हैं, अर्थात् यह अवश्य ही चिन्ता है ? अंग्रेजी भाषा अपने आप में इतनी अनैतिक हो जाएगा क्योंकि आप यदि किसी को अटपटी है कि Spirit शब्द का उपयोग हम शराब किसी कार्य के लिए विवश करें और इस आधुनिक के लिए शराब पीने के लिए, अपने आस पास घूमती काल में मानव के लिए ऐसे नियम बन्धन बनाएं तो हुई मृत आत्माओं के लिए और 'आत्मा' के लिए भी लोगों का उन पर चल पाना सम्भव न होगा और वे करते हैं। पृथ्वी पर जब उनका जन्म हुआ तो किसी अन्य जाल में फँस जाएंगे जो लोग औद्योगिक क्रान्ति अभी शान्त नहीं हुई थी और आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं उन पर यदि कड़े नियम लोग अभी भी, जैसा वे कहते हैं, इन मिलों में प्रवेश थोपे जाएं तो वे उन्हें कुछ अन्य समस्याओं में कर रहे थे। उन्होंने यहूदी धर्मशास्त्रज्ञों को भी धकेल सकते हैं। वे अपराधी बन सकते हैं. प्रतिक्रिया देखा कि वे किस प्रकार आचरण कर रहे हैं। स्वरूप हिंसक हो सकते हैं । उनकी गतिविधियों की उन्होंने धर्म के मिथक को भी देखा। वे नहीं जानते प्रतिक्रिया तथा पूरी चीज़ के पाखण्ड का पर्दाफ़ाश थे कि विश्वभर के सभी धर्माधिकारी वही मूर्खताएं होते हुए हम देख सकते हैं। जैसे भारत या कहीं कर रहे हैं, केवल ईसाई मत में ही ऐसा नहीं हो अन्यत्र धर्माधिकारी कहेंगे, पैसे से लिप्त मत होओ, रहा। किसी भी देश में जाकर वहाँ के धर्म को आप चर्च, मन्दिर, मस्जिद तथा अन्य लोगों को पैसा दो देखें तो समझ पाएंगे कि सर्वत्र मूर्खता की एक ही ताकि वे इसका आनन्द ले सकें। परमात्मा के नाम शैली है. ऐसी शैली जो पैगम्बरों, अवतरणों और पर उस समय के लोग जैसा जीवन व्यतीत कर रहे महान सन्तों द्वारा बताई गई शैली से बिल्कुल थे वह किसी के लिए भी आदर्श न था और यही उलट है। केवल ईसाई मत में ही यह बात नहीं है। कारण है कि विलियम ब्लेक जैसे कवियों ने बार-बार फिर भी कोई इसे भूल नहीं पाता क्योंकि ईसाईयत जन्म लिया, लेबनान में खलील जिब्रान जैसा कवि का एक विशेष धर्मोत्साह है, एक विशेष भूमिका है. अवतरित हुआ और भारत में तो बहुत से ऐसे कवि इसका एक विशेष अर्थ है। वे इसी से लड़ रहे हैं, हुए हैं जिन्होंने समाज के तथा बुद्धिजीवियों की इन और ये भी कह रहे हैं कि मोजिज़ इस पृथ्वी पर धारणाओं की भर्त्सना की - धर्म की धारणाओं की नियमाचरण तथा नैतिकता के विषय में बताने के भत्त्सना क्योंकि उसमें न तो कोई प्रमाणिकता थी, न लिए आए। वे मिल्टन का वर्णन उस व्यक्ति के रूप ही सत्यनिष्ठा । आप यदि ईमानदार हैं, वास्तव में में करते हैं जो कहता है कि देवता ही सभी कुछ गम्भीर हैं तो आइए हम स्वयं देखें कि हमें क्या हैं. अति-नैतिक देवता। परन्तु वे दिव्य मानवता का प्राप्त करना है। वर्णन करते हैं। ईसा-मसीह का वर्णन करते हुए वे कहते हैं कि मानव का उद्धार करने के लिए उन्हें ये बताने के लिए नहीं कि ऐसा करो, ऐसा मत अपने शब्दों को छन्द-बद्ध करते हैं और जैसा 1 तो इस प्रकार से वे एक कवि रूप में आए, एक असाधारण कवि के रूप में, जिस प्रकार से वे 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-15.txt चैतन्य लहरी अगस्त, 2006 14 जुलाई विनोद- विवेक उनमें है. जिस प्रकार शब्दों के के बाद अचानक ये भयानक हैमिंगवे वाले लोग बढ़ सौन्दर्य को वे अभिव्यक्त करते हैं वह सब एक रहे हैं और किस प्रकार लोग उनकी पुस्तकों को उत्कृष्ट कवि सम है। संस्कृत में कहा है, "सत्- न धड़ाधड़ खरीद रहे हैं (Like Hot Cakes)? हम काव्य, न काव्य । कविता सत् से परिपूर्ण है। सत् अपने सभी लंगर (Moorings) अपनी सभी जड़ें खो अर्थात् सार तत्व - शब्दों के माध्यम से सार तत्व चुके हैं। का विस्फोट । यदि ऐसा हो सके तो इसका जादू कविता कहलाता है और यही आपको विलियम एक चीज़ बहुत अच्छी भी हुई है। फ्रॉयड जैसे ब्लेक में मिलता है। वे इतने महान कवि थे काव्य व्यक्ति को ईसा मसीह मान लेने से लोग समस्याओं केवल तभी महान है जब यह परमात्मा (Divine) की में फँस गए हैं और अब उन्हें ये बात महसूस हो बात करे। काव्य में यदि घटिया चीजों के विषय में रही है अब लोगों को एहसास हो रहा है कि लिखा गया हो तो यह पाठक को घटिया चीजों की भविष्यवाणी क्यों की गई थी। इसी लिए वे पैगम्बर ओर धकेलता है। उस दिन आस्ट्रेलिया के कवि को थे भविष्य में होने वाली घटनाओं के लिए उन्होंने सुनकर मैं उसके भयानक स्नानागार संगीत पर लोगों को चेतावनी दी। परन्तु किसे चिन्ता है ? दंग रह गई। इसे आप काव्य कैसे कह सकते उनके साथ ऐसे व्यवहार किया गया मानो वे पागल हैं? वह जीवन की घटिया चीज़ों के गीत गाता है हों! आप यदि पागलखाने जाएं तो सभी समझेंगे जो आपको घटिया चीज़ों और घटिया आमोद-प्रमोद कि आप पागल हैं। पागल लोग किसी भी समझदार परन्तु इस प्रकार की पुस्तकों को पढ़ने से की ओर ले जाते हैं। परन्तु आप यदि उसे समझ व्यक्ति को पागल ही समझते हैं। उनके विवेक की सकें तो उसने स्पष्ट कहा है कि इन पुस्तकों का भत्त्सना की गई लोगों ने सोचा कि उन्हें मतिभ्रम लक्ष्य क्या है। ये लोगों की जेब से पैसे निकालने हो गया है; वे भ्रमित बुद्धि से कार्य कर रहे हैं (He के लिए हैं। अब किस प्रकार आप धन बटोरते हैं? is talking out of his head), क्योंकि लोगों में न तो लोगों की दुर्बलताओं का गुणगान करके. उनके समझने के लिए बुद्धि थी न ही वे प्रबुद्ध थे और न अहं को, उनके लालच को भड़काकर यह सब ही उनमें ज्ञान था। यही कारण है कि उन्होंने उनसे कार्य यदि आप कर सकते हैं तो आप बड़ी अच्छी ऐसा व्यवहार किया अब जब उनकी मृत्यु हो चुकी तरह से लोगों को बेवकूफ बना सकते हैं और लोग है तो लोग उनकी पुस्तकें बेच कर पैसा बना रहे हैं भी बड़े प्रसन्न होते हैं और उन्हें लगता है कि, और उनके द्वारा बनाई हुई चित्रकारियाँ बेच रहे हैं, "ओह! क्या पुस्तक है !" इस देश में भी बहुत से परन्तु जीतेजी किसी ने उनकी चिन्ता नहीं की । महान लेखक हुए हैं. मैं कहूँगी कि शेक्सपीयर और अब तो वो जैसे चाहे उनका उपयोग करें। इस 1. महान उन्नत व्यक्ति थे, परन्तु पतन का आरम्भ तो संदर्भ में मैं यहाँ बहुत से अटपटे लोगों से मिली। बाद में हैमिंगवे (Hemingway) जैसे व्यक्तियों के ये कहने में उन्होंने ब्लेक में बहुत दिलचस्पी दिखाई आने के बाद हुआ। मेरी समझ में नहीं आता कि कि उनके अनुसार वस्त्रहीन महिला ही सर्वोत्तम है। किस प्रकार सोमरसेट मॉम (Somerset Maughm) मैंने कहा, कहाँ उन्होंने ऐसा कहा ? किस प्रकार वे 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-16.txt चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2005 15 ऐसी बात कर सकते थे, वे तो अबोध थे ? अब करो. स्वयं समझो कि आपने जाकर पादरी के पश्चिम में तो हम ये भी नहीं जानते कि अबोधिता सम्मुख अपना दोष स्वीकार करना है। और आपकी कहते किसे हैं! मार्कण्डेय की तरह से अपनी माँ स्वीकृति से पादरी भी पगला जाता है, आप तो का वर्णन करते हुए उनके स्तनों और हर चीज़ का एक भोले बच्चे की तरह-एक भोले बच्चे को नग्न पहले से पगलाए हुए होते ही हैं। करुणा के सागर में अपना दोष स्वीकार करने के लिए क्या है ? शरीर में यौन (Sex) नहीं नजर आता, वह यह नहीं देखता और फिर भी महिला के सौन्दर्य का बर्णन करता है! इसका अर्थ ये नहीं कि महिलाएं नंगी ही अन्य लोगों को तथा स्वयं को क्षमा करना हमारे घूमती फिरें। अब क्या आप लोगों की अबोधिता को हाथ में बहुत बड़ा हथियार है क्योंकि परमात्मा भी बढ़ावा दे रहे हैं या उनके वाहियातपने (Baser हमें क्षमा करते हैं। यही सन्देश हमने समझना है सागर में स्वतः ही इसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। ईसा-मसीह ने हमे क्या संदेश दिया था ? कि हमें स्वयं को क्षमा करना है। परन्तु इसकी qualities) को भड़का रहे हैं ? हमें नैसर्गिक होना होगा क्या आप नैसर्गिक अपेक्षा जो भी गलती हम करते हैं ? ये सारी विकृतियाँ और परिवर्तन इसलिए आए आत्माविरोधी कार्य करने का कोई भी प्रयत्न हम हैं क्योंकि मनुष्य के पास सहज मस्तिष्क नहीं है, वह कुटिल हो गया है। मस्तिष्क से इस कुटिलता उपदेश रसे हैं कि हर समय दोष भाव ग्रस्त रहो तो को जाना होगा। ये आवश्यक है, परन्तु यद्ि मैं हम हर समय स्वयं को दोषी मानते हैं और हमारा कहूँ कि मैं यहाँ अपना कार्य नहीं कर रही तो मैं यह चक्र (बाई विशुद्धि) पकड़ जाता है । यह चक्र निश्चित रूप से जानती हूँ कि यह कार्यान्वित नहीं पश्चिम में तो इतना अधिक पकड़ता है कि जहाँ भी होगा इसीलिए ईसामसीह ने कहा था., "क्षमा कर मैं जाती हूँ, उनसे कहती हूँ कि सर्वप्रथम तुम्हें एक दो, उन्हें क्षमा कर दो" नहीं तो परमात्मा किस मन्त्र कहना होगा, "श्री माताजी मैं निर्दोष हूँ ।" इस प्रकार मनुष्यों से मिल सकते ? इस कुटिलता सभी दोष भाव को अपने अन्दर से निकाल फेंकें। परमात्मा प्रकार की चालाकी से परिपूर्ण मनुष्य से बिना क्षमा जब आपसे प्रेम करते हैं तो आप स्वयं को दोषी किए परमात्मा किस प्रकार मिल पाते ? मोजिज की ठहराने वाले कौन होते हैं ? उन्होंने आपको उत्क्रान्ति बात को यदि वे सुनते तो मानव तक न पहुँच का प्रतीक बनाया है, आप सर्वोच्च बिन्दु पर हैं, क्यों या करते हैं तो हम स्वयं को दोषी मानते हैं। यदि आप अपने विषय में निर्णय करके स्वयं को दोषी सकते, क्या वे ऐसा कर सकते ? नहीं कर सकते। उन्हें यदि मानव तक आना है तो उन्हें माने ? क्या परमात्मा आपको क्षमा करने में सक्षम क्षमा करना होगा यही कारण है कि सहज-योग नहीं है ? क्या उनके प्रेम के सागर पर आपको में आरम्भ में ही आपको सभी को क्षमा करना होता विश्वास नहीं है ? परन्तु यह धारणा ईसा-मसीह है, आप स्वयं को भी क्षमा करते हैं. स्वयं को दोषी के नाम पर की जाने वाली गलतियों का मूल है। नहीं मानते। अब ईसाई धर्म में इससे बिल्कुल अब मैं यह बात पादरियों को बता रही हैं . उलट किया गया है कहते हैं कि इसका सामना यहाँ पादरी कौन हैं. जो धर्मविज्ञान विश्वविद्यालय পLC 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-17.txt चैतन्य लहरी जुलाई 16 अगस्त, 2006 (Theological college) से आया हो ? क्या की आवश्यकता थी। उस समय उन्हें धर्मादेशों की धर्म- विज्ञान विश्वविद्यालय से आप परमात्मा के आवश्यकता थी और वे शरीअत के नियम लेकर बारे में कुछ सीख सकते हैं, क्या ईसा-मसीह धर्म आए। शरीअत मोज़िज ने आरम्भ की परन्तु मुसलमान विज्ञान विश्वविद्यालय गए थे? उन्हें किस प्रकार इसका अनुसरण कर रहे हैं । प्राप्त हुआ? किस प्रकार उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ? अब आज जब हम बीसवीं सदी में यहाँ बैठे आत्म-साक्षात्कार द्वारा। आत्म-साक्षात्कार होना हैं, तो हमें देखना चाहिए कि इस महान व्यक्ति आवश्यक है। जिस प्रकार से उन्होंने सब कुछ विलियम ब्लेक की भविष्यवाणी क्या हैं क्या आप स्पष्ट कह दिया, अपने स्वारथं के कारण किसी को कल्पना कर सकते हैं कि उनका जन्म भी इसी माह भी वे अच्छे न लगे। हर व्यक्ति का अपना ही स्वार्थ में हुआ! गुरुनानक का जन्म इसी माह में हुआ, हैं, कोई भी सत्यनिष्ठ और ईमानदार नहीं है। मोहम्मद साहब भी इसी माह में अवतरित हुए. ये धनार्जन के लिए वे दूसरों का शोषण करना चाहते सभी महान अवतरण इसी माह में जन्में इसी माह हैं। परमात्मा के नाम पर आप धन नहीं बटोर में हमने दिवाली भी मनाई है। ये इतना महान 1 सकते। ये पाप है। ऐसे लोग कभी परमात्मा के महीना है। इस माह में जन्म लेने वाले विलियम साम्राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते। इसी कारण ब्लेक को पूर्णतः समझने वाले महान बच्चे होने ईसा मसीह ने कहा था, "आप मुझे आवाज़ें लगाओगे, चाहिए। मुझे केवल एक अकेला व्यक्ति इस भूमि में ईसा, ईसा ! पर मैं तुम्हें नहीं पहचानूंगा।" ये सत्य विवेक के बीज़ बोता हुआ दिखाई पड़ता हैं, हमें तो है। अतः यदि आपको सच्चा व्यक्ति बनना है, केवल ये फसल काटनी है। उसने (विलियम ब्लेक) केवल सच्चा व्यक्ति, तो स्वयं में दोष भाव न आने बीजारोपण किया और आप कह सकते हैं कि ये न सोचें कि मैने अपराध किया है। भारत की शेक्सपीयर ने इस भूमि की सिंचाई के लिए जल एक कथा है :- एक धर्म प्रचारक भारत के एक तैयार किया। यहाँ पर बहुत से महान कवि हुए। गाँव में आया । भारत के ग्रामीण लोग अत्यन्त वर््जवर्थ (Wordsworth) एक अन्य कवि हैं जो सीधे हैं। वे अधिक चुस्त नहीं हैं। धर्मप्रचारक जाने लगा तो लोगों ने उसकी बहुत ने विलियम ब्लेक की नियति को देखकर सोचा प्रशंसा की और कहा, "श्रीमन, हम आपके आभारी होगा कि मानव को भूलकर प्रकृति का बर्णन करना हैं कि आपने हमें बताया कि पाप क्या है और ये भी ही बेहतर है। उन्होंने यह अवश्य सोचा होगा और अत्यन्त मोहक एवं सुन्दर हैं। मेरे विचार से वर्डजक्थ जब वह कि हम सब पापी हैं। " इससे पूर्व वे ये न जानते स्वीकार किया होगा कि इस भूमि के लोग कभी थे कि वे पाप कर रहे हैं यही चीज़ विलियम ब्लेक नहीं सुधर सकते और न ही इस भूमि में कुछ बोया ने भी हमारे सम्मुख स्पष्ट की, ये दर्शाने के लिए, जा सकता है। परन्तु जो भी हो विलियम ब्लेक ने कि ईसा मसीह वे व्यक्ति थे जो मोजिज के भी आपको एक नया स्वप्न, एक नई धारणा प्रदान धर्मादेशों के ऊपर एक नया संदेश लाए। यहूदियों की है क्योंकि पश्चिम में ईसा मसीह को एक को सुधारने के लिए. निःसन्देह, उस समय मोजिज सर्वसाधारण मानव के स्तर पर खींचकर ले आए 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-18.txt जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2006 17 हैं। जिस प्रकार अब लोग उनका वर्णन करते हैं, है तथा उन्होंने मुद्रण के विषय में इतना कुछ क्यों मुझे आश्चर्य होता है! उन्हें ये सब कहाँ से पता लिखा ? आज की संचार- व्यवस्था (Media) को चला ? क्या उनकी आँखें हैं या अंधों की तरह से आप देखें, उन्होंने कहा कि संचार व्यवस्था बहुत उनके विषय में बात कर रहे हैं ? और मैं बिशप बड़ा असुर है। इसी ने मुझ पर विश्वास करें, और आपके आर्क बिशप को इस प्रकार बात करते आपको पूरी तरह बर्बाद कर दिया है। आपसे धन हुए सुनती हूँ! क्या उन्हें परमात्मा का बिल्कुल डर ऐंठने के लिए, आपकी दुर्बलताओं से खिलवाड़ नहीं है ? यदि आप ईसा मसीह के विषय में इस करने के लिए, आपको तथा आपके बच्चों को प्रकार बातें करते हैं तो इस देश का क्या होने वाला अधिक दुर्बल बनाने के लिए, समाज को आयोजित है। और अब आपको ऐसी तस्वीरें, ऐसी फिल्में रूप से नष्ट किया जा रहा है। वे इसी समाज मिलने वाली हैं जिनमें ईसा मसीह को अधर्मी व्यवस्था पर चोट करना चाहते हैं इसी कारण से व्यक्ति दर्शाया गया है, उनकी माँ को नंगा दिखाया विलियम ब्लेक ने जन्म लिया और गया है, उनके लिए कोई सम्मान नहीं है! मैं नहीं बने। वो कुछ और भी बन सकते थे। इंग्लैण्ड या जानती कि आपने इस बात पर ध्यान दिया है कि कही अन्यत्र कोई भी कवि मुद्रक नहीं था केवल नहीं कि विलियम ब्लेक चाहे वस्त्र हीन मनुष्यों की ब्लेक ही मुद्रक बने। कारण ये था कि वे तस्वीरें बनाते थे परन्तु देवताओं की नंगी तस्वीरें संचार-व्यवस्था (Media) की असलियत दिखाना उन्होंने कभी नहीं बनाई। ईसामसीह की तस्वीर चाहते थे तथा इसकी जड़ों को काटना चाहते थे। उन्होंने कभी नहीं बनाई। इस प्रकार से वे उनकी परन्तु जैसा आप जानते हैं, आप चाहें या ना चाहें तस्वीरें कभी नहीं बनाते, सम्मान पूर्वक बनाते हैं। बुराई तो पनपती ही है, और आज की संचार और आधुनिक युग के हम सब महान बुद्धि-जीवी व्यवस्था के विषय में तो हम समझ ही नहीं सकते परमात्मा का कोप पात्र बनने के लिए ये सब कि इसने हमें हमारी जड़ों को, हमारे विश्वास को चालाकियाँ करने का प्रयत्न कर रहे हैं! मुद्रक (Printer तथा हमारे उत्कृष्ट एवं धर्मपरायण दृष्टिकोण को विलियम ब्लेक के बारे में दूसरी बात ये है कितना नष्ट किया है! मैं जानती हूँ कि मुझे भी कि वे एक मुद्रक (Printer) थे हमें सोचना चाहिए आपके दूरदर्शन और मीडिया के लोगों ने कहा कि कि वे मुद्रक क्यों बने। वो छपाई का काम क्यों आकर उनसे बात करूं। जिस प्रकार लोगों ने मुझे करने लगे ? अपना वर्णन करते हुए उन्होंने स्वयं बताया कि एंग्लो-सेक्सन ( Anglo-Saxon) मस्तिष्क को वह नर्क (Hell) बताया जहाँ पुस्तकों की रचना कोई भी ऐसी बात नहीं समझ सकता जिसके लिए होती है। उन्होंने बताया कि किस प्रकार हर चक्र उससे पैसा न लिया गया हो, तो मुझे अत्यन्त पर हम एक राक्षस की रचना करते हैं और उन्हें आश्चर्य हुआ! परमात्मा जाने ऐसे मस्तिष्क की पुस्तकालय में डालते हैं यही कारण है कि मैं रचना किसने की जिसकी समझ में कोई ऐसी बात स्वयं भी (श्री माताजी) पुस्तकों के विरुद्ध हूँ। परन्तु नहीं आती जिसके लिए पैसा न खर्चना पड़ा हो। वे मुद्रक क्यों बने? ये बात जाननी अत्यन्त आवश्यक मैंने कहा, पहले आप आत्मसाक्षात्कार ले लें अन्यथा 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-19.txt चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2006 18 न तो मैं आपके किसी कार्यक्रम में आऊंगी न 'येरूशलम' लिखने में चौदह वर्ष लगे और मेरे दूरदर्शन पर। ईसा-मसीह के क्रूसारोपण में भी विचार से चौदह वर्षों के बाद भी यदि वास्तव में मुझे आप उनके इसी विजय-गर्व को देख सकते हैं लगे कि विलियम ब्लेक के प्रति कुछ न्याय कर पाई उन्होंने बिल्कुल चिन्ता नहीं की। हमारे राजनीतिज्ञों की तरह से वे भी सुबह हूँ, इस येरुशलम' को जिसे वो बनाना चाहते थे, तो मैं आप सबके प्रति अत्यन्त आभारी हूँगी। परन्तु कुछ अल्यन्त निराशाजनक बात ऐसी नहीं है। सभी से शाम तक एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर लोगों के पैरों पर गिर सकते थे। लिपिकों है। वो किसी बात को सुनना नहीं चाहते, वे केवल (Scribes) तथा फरीसियों (Pharisee) के पास वही चीजें सुनना चाहते हैं जो उन्हें पसन्द हैं और जाकर वो भी कह सकते थे, "ओह, कृपा करके इसके लिए व्यक्ति को हर समय उनकी दुर्बलताओ मुझे क्षमा कर दीजिए, जीवन पर्यन्त मैं आपकी सेवा से खेलना पड़ता है. उन्हें बताना पड़ता है कि जो करुंगा, मैं सभी कुछ बेच दूँगा।" परन्तु उन्होंने ये भी गलत कार्य तुम कर रहे हो वे सब बहुत अच्छे स्वीकार नहीं किया। गर्व, विजय गर्व के साथ वे हैं, आगे बढ़ते चलो। ईसामसीह की करुणा एवं प्रेम चमत्कार कर सकते है। निःसन्देह ये कार्य कर क्रूस पर चढ़ गए। परन्तु इससे क्या पता चलता है, इससे क्या प्रकट होता है? हम मूर्खों ने उस महान व्यक्ति को सूली पर चढ़ा दिया परन्तु आज क्या पर आए थे। पूरे ब्रह्मাण्ड का सृजन हमारे लिए हम क्रूसारोपण के विरुद्ध नहीं हैं? इसी कारण से किया गया है हम ही लोगों ने परमात्मा के सकते हैं क्योंकि ईसा-मसीह हमारे लिए इस पृथ्वी मैं कहती हैँ कि विलियम ब्लेक एक महान पैगम्बर आशीर्वाद प्राप्त करने हैं हम ही ने आत्मा बनना है, जैसा उन्होंने कहा, "आपने द्विज बनना है" ("You थे, क्योंकि उन्होंने भविष्यवाणियाँ की कि यदि आप इन घटनाओं द्वारा दिखाए गए माग्ग पर चलकर are to be born again") परन्तु बन्धन या वातावरण उच्च साधना को नहीं अपनाते तो आपका तथा इतिहास के सूक्ष्म बन्धन इस प्रकार से हम पर क्या हथ होगा। अब हमें ये समझना है कि इसका हावी हैं कि हमें ये महसूस ही नहीं होता कि हमें सम्बन्ध हमसे है। हमारे, हमारे बच्चों, हमारे परिवार आगे बढ़ना है मुझे लगता है कि ईसा-मसीह का हमारे समाज, हमारे देश के साथ भी यही घृटित जीवन एक अन्य क्रूसारोपण था मैं जब उन्हें पढ़ती हो रहा है। हमें इसका सामना करना होगा और हूँ तो अश्रुधारा बह निकलती है। महान पिता का समझना होगा कि ऐसे भयंकर सुस्त हृदय, जिसे कितना महान बेटा! कौन कहता है कि ईसा मसीह 1 आत्मा की बिल्कुल समझ नहीं है, में परमात्मा की ने अपने माता पिता की चिन्ता नहीं की ? बारह वर्ष की आयु में वे अपने घर से भाग गए, क्या इसका सहजयोग बहुत समय पूर्व पृथ्वी पर आ अर्थ ये है कि आज के सभी बच्चे बारह वर्ष की गया था, मेरे आने से भी बहुत समय पूर्व, और आज आयु में अपने घरों से भाग खड़े हों और नशों के यह इंग्लैण्ड में आया है। हमें कहना चाहिए कि मैं शिकार हो जाएँ ? उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने का यहाँ बारह वर्ष पूर्व आई थी। विलियम ब्लेक को यह बहुत अच्छा तरीका है-घर से भाग खड़े होना, करुणा भी कार्य नहीं कर पाती। 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-20.txt चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2006 19 नशों की आदतें लगा लेना, क्योंकि बारह वर्ष की बैठे हुए हैं, यह ब्रह्माण्ड का हृदय है, आपने विश्व आयु में ईसा-मसीह भी अपने घर से भाग गए थे! को क्या देना है ? और उन्होंने कहा कि यह मेरे पिता ( Father) का आपके हृदय में है और इसीलिए ब्लेक ने कहा था कार्य business है। उन्होंने माता-पिता की क्या चिन्ता है ? इसका अर्थ ये हृदय है अर्थात् आत्मा को ब्रह्माण्ड के चित्त में आत्मा आत्मा का निवास लिखा कि मुझे कि इंग्लैण्ड को येरुशलम' बनना होगा क्योंकि ये 1 नहीं है कि आप अपने माता-पिता का सम्मान ही आना होगा, अन्यथा कार्य नहीं होंगे। परन्तु ये कहाँ न करें, इसका अर्थ ये हैं कि मैं उच्च साधना कर से आने वाली है ? ये आत्मा, ये कहाँ रहा हूँ। उच्च साधना करने के लिए मुझे दूसरी वाली है ? ये मनुष्यों में जागृत होने वाली है और दिशा में जाना होगा आप इस दिशा में रह चुके वे मनुष्य कहाँ है ? हृदय में वो कहाँ रहते हैं ? हैं. ये जो भी हो, आप लोगों ने अपना जीवन जो लोग यहाँ रहते हैं वो तो पहले से ही आलसी होने जागृत सन्तुलित कर लिया है। परन्तु मुझे उत्क्रान्ति प्राप्त हैं। हृदय आलसी है यह अपने अन्दर से कुछ करनी है। यही संदेश उन्होंने आपके सम्मुख प्रवाहित नहीं कर सकता। पहले ये बहुत अधिक प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है. अत्यन्त स्पष्ट रूप प्रवाहित कर रहा था, पूरे विश्व को प्रभावित करने का से, ये अत्यन्त स्पष्ट हैं, बिल्कुल साफ है। जब भी प्रयत्न कर रहा था, और प्रभावित करने के बाद अब ये वो कहते हैं 'कि इसका मुकाबला करो' जब भी वो उदासी (Depression) की अवस्था में है पूरे विश्व करुणामय इतने भद्र, इतने विनम्र होते हैं, उनका को यदि आध्यात्मिक बनाना है तो हृदय को जागृत संदेश केवल यही होता है कि अपनी उत्क्रान्ति को होना होगा। क्या हम अपनी जिम्मेदारी का एहसास 1 प्राप्त करो, अपनी उच्चावस्था को प्राप्त करो, वही कर पाए ? क्या हम ये बात समझ पाए? बन जाओ । जैसा आप जानते हैं, इंग्लैण्ड में उन्होंने हमारे लिए भूमि तैयार की। जैसा मैं आपको बहुत भूमिका निभानी होगी अब आपको आध्यात्मिक बार बता चुकी हूँ इंग्लैण्ड ब्रह्माण्ड का एक अत्यन्त व्यक्ति की भूमिका निभानी है परन्तु हम ऐसा नहीं महत्वपूर्ण भाग है, मैं नहीं जानती कि कितने अंग्रेज कर रहे हैं । आत्मा के सिवाए हम सभी व्यर्थ की इस सत्य को जानते हैं। ये ब्रह्माण्ड का हृदय है, चीज़ों में व्यस्त हैं। जैसा मैंने कहा, मैंने बारह वर्ष छोटा होते हुए भी यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। परन्तु परिश्रम किया है और मैं सोचती हूँ कि मुझे दो वर्ष हृदय से हमें क्या प्राप्त होता है ? प्रजातीयता और यहाँ रुकना पड़ेगा। चौदह वर्ष, और तब हो (Racialism) ? ईसा मसीह यदि यहाँ आ जाएं तो सकता है, मैं ऐसी आशा करती हूँ, इस देश में आप लोग उन्हें भी निकाल फेंकोगे, क्योंकि वे अंग्रेज नहीं थे, या आपको ये विश्वास है कि वो कार्य को कर सकते हैं। केवल आप ही लोग ये अंग्रेज थे। हमें मिलता क्या है ? हम अपने बच्चों कार्य कर सकते हैं, कोई अन्य नहीं। आपको से प्रेम नहीं कर सकते, उनकी हत्या कर देते हैं, इसका अधिकार है । उनसे दुर्व्यवहार करते हैं! आप ब्रह्माण्ड के हृदय में आध्यात्मिक होने के नाते हमें कौन सी 1 येरूशलम बना हुआ दिखाई देने लगेगा। आप इस किसी उददेश्य को पूरा करने के लिए परमात्मा . 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-21.txt जुलाई चैतन्य लहरी अंगस्त, 2008 20 ने आपको यहाँ जन्म लेने के लिए चुना है परन्तु नौकरी कर रहे हो, मैं भी नौकरी कर रहा हूँ ।" आप तो किसी से धर्म के बारे में बात ही नहीं कर वह अनीश्वरवादी है, परम-चैतन्य के विषय में कुछ सकते! वे धर्म की बात नहीं करते। क्या धर्म ? नहीं जानता। परम चैतन्य ( Holy Ghost) क्या है, धर्म जिसमें विश्व के सारे धर्म निहित हैं धर्म विलियम ब्लेक ने कहा है कि इसका निवास आपके जो आन्तरिक सन्तुलन है..आपकी आन्तरिक शान्ति अन्दर है। तो क्यों नहीं हम पता लगाते कि इसका है, जो आपको उत्क्रान्ति प्रदान करता है। परन्तु निवास कहाँ पर है ? इसका पता लगाने के लिए हम इसके बारे में बात ही नहीं करते। धर्म की बात हम हर सम्भव प्रयत्न क्यों नहीं करते ? बाईबल करना आपके शिष्टाचार के बाहर है। हम दुनिया ईसामसीह को अपने अन्दर सीमाबद्ध नहीं कर के सभी शराबियों की बात कर सकते हैं, दुनिया सकती। पूरा ब्रह्माण्ड भी उन्हें सीमाबद्ध नहीं कर भर के शराबखानों की बात कर सकते है परन्तु सकता। आइए अन्यत्र कहीं जाकर पता लगाएं कि धर्म जैसी भयानक चीज़ की बात नहीं कर सकते, अन्य लोग इसके विषय में क्या कहते हैं। परन्तु उस धर्म की जो हमारे अन्दर अन्तर्जात है! इसके हम तो अत्यन्त संकुचित विचारों के दुराग्रही महान, विषय में हम अखबार में कुछ भी नहीं छाप सकते, लोग हैं जो पूर्ण अकर्मण्यता के साथ यहाँ बैठे विलियम ब्लेक ने सभी कुगुरुओं और शैतान हैं हमारे पास समय नहीं हुए परन्तु है हम ये भी नहीं लोगों का वर्णन किया है उनका वर्णन अत्यन्त सोचते कि इस कार्य के लिए कोई अन्य अधिकारी सशक्त है, और आप लोग इन शैतानों से मिलते हैं और हजारों लोग इन भूतों का अनुसरण करते हैं. व्यक्ति हो सकता है जिसे हम जाकर मिलें । परम चैतन्य (Holy Ghost) क्या है, यह आप यदि वियेक बुद्धि, वे सच्चाई की ओर नहीं आना चाहते! क्यों ? ये तार्किकता नहीं, का उपयोग करें तो कुण्डलिनी ही उन्हें धन देते हैं, स्वयं भिखारी बन जाते हैं परन्तु अत्यन्त सहज बात है। - -प्रश्न में स्वयं से पूछती हूँ। ऐसा क्यों हो रहा है ? Holy Ghost है। विवेक-बुद्धि भिन्न है। आप यदि किसी भी अति तक जाने का कोई लाभ नहीं। यहाँ विवेक का उपयोग करें तो पाएंगे कि त्रिदेव, पावन एक ऐसा व्यक्ति है जिसने आपके सम्मुख विस्तृत त्रिदेव, हैं सर्वशक्तिमान परमात्मा हैं, ठीक है, हमारे (Holy Ghost) परम चैतन्य, वे कहते हैं, "और परमचैतन्य भी कभी आपने सुना है कि माता के बिना कभी एक रिक्ति है" (and Holy Ghost a vacuum")। पिता को पुत्र हुआ हो ? तो यह Holy Ghost कौन आप किसी से भी पूछे, मैं हैरान थी जब एक बहुत है? ये आदिशक्ति हैं। स्वतः ही आप निष्कर्ष तक बड़े पादरी से पूछा गया कि आप परम चैतन्य के पहुँच जाते हैं। परन्तु माँ का वर्णन नहीं होना मैं चाहिए? इसी कारण से ब्लेक ने अलबियन (Albion) अनीश्वरवादी (Agnostic) हूँ। अनीश्वरवादी ? तब की पुत्रियों के बारे में कहा है, क्योंकि वे जानते थे उन्होंने उससे पूछा, "तो आप यहाँ क्या कर रहे कि किस तथाकथित संस्कारित ढंग से महिलाओं हो ? उसने उत्तर दिया, "जिस तरह से तुम को दबाया जाता है। संस्कृत में हम कहते हैं, "यत्र रूप से व्याख्या की है। यहाँ पुत्र (Son) हैं और आदि-शक्ति बारे में क्या सोचते हैं ? वो कहने लगा, आह 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-22.txt जुलाई चैतन्य लहरी 21 अगस्त, 2005 नार्या पूज्यन्ते, तत्र रमन्ते देवता ।" जहाँ महिलाओं आवश्यक है। क्षमा उन लोगों के लिए होती है जो का सम्मान होता है वहाँ देवता निवास करते हैं- महसूस करते हों कि उन्होंने पाप किए हैं विचार जहाँ महिलाओं की पूजा होती है। और महिलाओं करने पर ही पाप का अहसास होता है... को भी पूजनीय होना होगा वेश्याएं नहीं, और अपने नहीं किसी कुत्ते को देखें, चीते को देखें, इन सभी नंगेपन से पाशविकता भड़काने वाली वस्त्रहीन को देखें चीते को यदि गाय खानी है तो खानी है। महिलाएं और वेश्यालय नहीं, परन्तु पूजनीय क्या वह कोई पाप करता है ? उसे तो पाप का महिलाएं। ऐसी महिलाओं का जहाँ निवास होता है बोध ही नहीं है:- "मैं नहीं जानता कि पाप क्या वहाँ देवता निवास करते हैं। तो महिलाओं का होता है, वो कहेगा कि "मैं नहीं जानता था कि ये दमन किया जाता था, उस सीमा तक दमन किया पाप है, इसलिए मैंने इसे खा लिया"। परन्तु पाप है अन्यथा जाता था कि कहीं भी वे महिला के देवी होने की क्या ? हर समय किसी की भत्त्सना करते रहना "आप पापी हैं, आपने ये पाप किया है, आपने वो बात तक नहीं करना चाहते थे। अतः उनके अनुसार Holy Ghost (आदि-शक्ति) अमूर्त (निराकार) हैं, फाख्ता हैं ठीक है ये फाख्ता हैं, तो क्या ? फाख्ता :- पाप किया है !" मानव परमात्मा के मन्दिर हैं। कितनी प्रार्थना, प्रेम, स्नेह एवं कोमलता पूर्वक उनका सृजन किया गया है! किसलिए ? भ्रम की माया से इन कमलों से हम क्या करते हैं ? फाख्ता (Dove) से आशीर्वाद लेना इतना महत्वपूर्ण क्यों है, ये बात कोई नहीं बताता! ये रहस्य है! इसी रहस्य के साथ हमें को निकाला गया है, किसलिए? निन्दित होने के रहना होता है। हर चीज़ रहस्य है। यहाँ पर बैंको लिए, कुचले जाने के लिए. इस प्रकार से दुर्व्यवहार का कारोबार (Banking) भी रहस्य है, परन्तु पैसा सहने के लिए, और वह भी परमात्मा के नाम पर कहाँ जाता है, ये भी रहस्य है, इसका सम्बन्ध कमलो का सृजन परमात्मा को अर्पित करने के लिए माफिया से है, ये भी एक रहस्य है। फिर मैसोनिक किया जाता है ताकि अपनी सुगन्ध से कमल पूरे लोग स्विटज़रलैण्ड बैंक की व्यवस्था करते हैं, ये विश्व को सुरभित कर दे। वे परमात्मा की काव्यमयी भी एक रहस्य है। हर चीज़ रहस्यमय है. छुपी हुई प्रतिभा हैं, जैसा ब्लेक ने वर्णन किया है। परन्तु हम है और बताई नहीं जाती, "ओह ये नहीं कहना है, मानव को इस प्रकार देखते हैं कि किस प्रकार ये तो विदेशी बैंकिंग है, क्या बात है बहुत अच्छा उसका शोषण करें, उसे दबाएं और प्रताड़ित करें। नाम है!" ये विदेशी बैंकिंग है, ये यह है. ये वो है इसलिए वे कहते हैं कि दो तरह के लोग हैं. मानव का शोषण करने वालों को, उन्हें निगलने का प्रयत्न और इस प्रकार हम ये सारा पाखण्ड चलाए जा रहे करने वाले लोगों को, उन्होंने भयानक नाम भी दिए हैं। ब्लेक कहते हैं, इन सारी असत्य धारणाओं के साथ हम चले जा रहे हैं, ओह, ठीक है, ठीक है, ये इसी का एक भाग है।" ये क्षमा नहीं है,चालाक लोगों. धूर्तों और समझौता कराने वाली चीज़ बन गई है, जबकि हैं कि धर्म अब इन दोनों के बीच अबोध, सहज, अच्छे तथा साधक लोग कष्ट उठाते शैतानों के लिए क्षमा का क्या महत्चव है ? क्षमा की बात करते हुए हमारे अन्दर विवेक-बुद्धि होनी हैं ये सत्य है। हैं। ये सत्य है। 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-23.txt चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2005 22 प्रसन्न करने का प्रयास करूं। क्या मुझे तुम्हारे मतों मिलकर अपने आइए अब सब आत्म-साक्षात्कार को पा लें, आत्मा बन जाएं। यह (Votes) की आवश्यकता है जो मैं तुम्हें प्रसन्न कार्य सुगमतम है क्योंकि आदिशक्ति (Holy Ghost), करने का प्रयत्न करुं ? मुझे तो आपको सत्य जो कि कुण्डलिनी हैं, आपके अन्दर हैं। उनका बताना है चाहे ये आपको अच्छा लगे या न लगे। निवास आपकी त्रिकोणाकार अस्थि में है और उन्हें मैं चाहती हूँ कि आप इसे स्वीकार करें क्योंकि इसी जागृत किया जा सकता है। लोग कह सकते हैं कार्य के लिए मैं यहाँ पर हूँ। मैं यहाँ इसी कार्य के कि उन्होंने कुण्डलिनी की बात क्यों नहीं की ? लिए हूँ कि आप सत्य को स्वीकार करें और इसे पा उन्होंने जो कुछ भी कहा, उसे किसने सुना ? जो लें। अपनी सामर्थ्य अनुसार मैं पूरा प्रयत्न करूंगी। भी उन्होंने कहा, उसको समझने का प्रयत्न किसने मैं आपके लिए खाना बना सकती हूँ, आपको खाना किया ? आज तक भी मुझे ऐसे अधिक लोग नहीं परोस सकती हूँ. आपको तोहफे दे सकती हूैं और मिले हैं जिन्होंने ब्लेक को समझा हो! जिन तथ्यों वो सभी कार्य कर सकती हैं जो कोई माँ अपने की उन्होंने अभिव्यक्ति की किसने उनके विषय में बच्चों के लिए कर सकती है। परन्तु माँ के प्रयत्न जानने की कोशिश की ? और यदि उन्होंने इससे यदि सफल न हों तो उसे चिल्लाना पड़ता है, 1 कुछ अधिक बताया होता तो यह बिल्कुल अस्पष्ट कभी-कभी बिल्कुल स्पष्ट कहना पड़ता है, क्योंकि आपने इसे प्राप्त करना है। लोगों पर इसे थोपा नहीं बिल्कुल चिन्ता नहीं है जो मेरी बातों को समझ जा सकता, ये बहुत बड़ी समस्या है। हो जाता। वो कहते हैं, "मुझे उन मूर्खों की नहीं सकते।" वे स्पष्ट कहते हैं। केवल तीन बार आत्म-साक्षात्कार लोगों पर थोपा नहीं जा सकता। है विवश करके किसी को आत्म साक्षात्कार नहीं उन्होंने 'मूर्ख (idiot) शब्द का उपयोग किया और जड़मति (Stupid) तथा बेवकूफ (Fool) शब्दों दिया जा सकता। मान लो रूसी लोग मुझे कहें, का प्रयोग बहुत बार किया है । परन्तु मेरे लिए वे उनकी सहजयोग में बहुत रुचि है उसमें कोई सब परमात्मा के बच्चे हैं। मैं जानती हूँ कि ब्लेक सन्देह नहीं, परन्तु वो यदि कहें कि हमारी सरकार कितने नाराज़ थे, क्यों नाराज़ थे, और मैं उसे में आकर आप उन्हें आत्म-साक्षात्कार दो तो मैं समझती भी हूँ। उसने सोचा कि यहाँ पर सहजयोग ऐसा नहीं कर सकती। मैं ऐसा नहीं कर सकती। आने से पहले मुझे इन लोगों पर प्रहार करना आपको स्वतन्त्र होना होगा! जब आप स्वतन्त्र होते चाहिए और झकझोर कर इन्हें चौंकाना चाहिए हैं तो भिखारी होते हैं । देखें कि हम स्वतंत्रता का ताकि ये तैयार (सहजयोग के लिए) हो जाएं। कितना मूल्य चुका रहे हैं ? कोई भी स्वतन्त्र नहीं परन्तु उनकी समीक्षा में आलोचकों ने यह लिखा है है! यूरोप में जाकर मुझे ये सारे गहने उतारने पडते कि उन्हें इसलिए स्वीकार नहीं किया गया क्योंकि हैं, पारिवारिक प्रतिष्ठा के कारण जिन्हें पहनने की वे सीमा से बहुत परे चले गए थे मेरे साथ भी ऐसा आशा मुझसे की जाती है। मुझे वहाँ बिना बटुए के ही है। मुझे भी लोग स्वीकार नहीं करते क्योंकि मैं जाना पड़ता है। अपना बटुआ मुझे यहाँ अन्दर 1. भी बहुत दूर चली जाती हूँ। मुझे चाहिए कि उनको बाँधना पड़ता है, किसी चीज़ से इसको बाँधना 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-24.txt जुलाई - अगस्त, 2006 चैतन्य लहरी 23 पड़ता है अन्यथा लोग इसे भी छीन ले जाते हैं। परन्तु उससे पूर्व यदि मैं कहूँ कि ये मत लो. वो मत कुछ भी सुरक्षित नहीं है। तो इस प्रकार की सेवन करो,' तो आप ऐसा नहीं कर सकते आपमें स्वतंत्रता जो हमें हिंसा और हत्या तक पहुँचाती है. आत्मा की शक्ति नहीं है। ईसामसीह से पूर्व आने जिस प्रकार हमने अपने बच्चों और बुजुर्गों की वाले बहुत से अवतरणों ने यह नहीं समझा कि हत्या की है, जिस प्रकार हमने उन सबका अपमान मानव आत्मसाक्षात्कारी नहीं है, उनमें आत्मा की किया है, वह सब स्वतन्त्रता के साथ-साथ चलता शक्ति नहीं है। ईसामसीह ने इस बात का अहसास है। ये स्वतंन्त्रता नहीं है। ये तो हमारे अन्दर की किया और स्पष्ट कहा, "आपको पुनर्जन्म लेना पाशविकता के सम्मुख पूर्ण आत्म-समर्पण कर देना होगा " (Vou are to be born again )। केवल इतना है! ही नहीं, उन्होंने कहा, "सर्वप्रथम क्षमा करो।" तो आप चाहे रूस चले जाए या यूरोप, उन्होंने क्षमा की बात की, ताकि लोग शान्त हो सहजयोग कठिनाई में है। आप चाहे बाएं को जाएं जाएं. वे संविभ्रमी (विक्षिप्त-चित्त) तथा अशान्त न या दाएं को, मेरी समझ में नहीं आता कि कहाँ हों। शान्ति और करुणा में पहले वे स्थापित हो सहजयोग पनप पाएगा! केवल वहाँ पर जहाँ जाएं और फिर उनकी कुण्डलिनी जागृत की जाए स्वतन्त्रता का उपयोग विवेक एवं सम्मानपूर्वक और उन्हें आत्म-साक्षात्कार दिया जाए। तब आपमें किया जाता है । दूसरों की स्वतन्त्रता का यदि आप शक्ति होती है, आप प्रलोभनमुक्त होते हैं, ऐसा कुछ सम्मान नहीं कर सकते तो आप भी बिल्कुल नहीं होता। क्या आप ईसा-मसीह को कोई प्रलोभन स्वतन्त्र नहीं हैं, आपने स्वतन्त्रता को पहचाना ही दे सकते हैं ? नहीं दे सकते इसी प्रकार से आप 1 नहीं, आपने कभी स्वतन्त्रता का आनन्द उठाया ही भी किसी प्रलोभन के दास नहीं बनते। अपने सौन्दर्य, गरिमा, अपनी शक्ति एवं साहस से आप नहीं। अतः मानव की स्वतन्त्रता का सम्मान करना होगा, जब स्वतन्त्रता का सम्मान होगा केवल तभी उन्नत होते हैं। कोई चीज़ आपने समाप्त नहीं आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकेंगे, और केवल करनी होती यही आत्म-साक्षात्कार है। बारह वर्ष पूर्व जब मैं आई तो लन्दन में सहजयोग आया। आप लोगों की सूचना के लिए मैं बता दूं कि मैं आप्रवासी नहीं हूँ। संयोग से मैं यहाँ आई. या मुझे कहना चाहिए कि परमात्मा के विधान से मैं यहाँ आई । 134 राष्ट्रों में से मेरे पति इस पद के लिए चुने गए, उन्हें चुना चुने जाने के कारण, नियुक्त होने के कारण नहीं, तभी आप उच्च स्वतंत्रता में प्रवेश कर सकेंगे, ब्लेक वर्णित पूर्ण स्वतन्त्रता में यहाँ साधक है, इस देश में बहुत से साधक हैं और बहुत से साधक खो भी से खो गए हैं। नशों का सेवन करने गए हैं बहुत वाले बहुत से लोगों को सहजयोग ने बचा लिया है । रातोरात लोग इसे प्राप्त कर लेते हैं। रातोंरात कैसे ? ये तन्त्र (Mechanism) आपके अंदर है। परमात्मा ने 1 गया (Elected)। उनके इसकी रचना की है, आत्मा का वह प्रकाश जब चुने जाने के कारण, लगातार चार बार निर्विरोध आपको प्रकाशित करता है, तो यह इतना शक्तिशाली हो जाता है कि आप सभी बुराइयाँ त्याग देते हैं। हैं प्रवरतम मुख्य सचिव अंतः हमें यहाँ आना पड़ा, चुने जाने के कारण हम यहाँ आए। वे प्रवर ( Senior) 1. 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-25.txt जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2005 24 और इस प्रकार मैं यहाँ आई। अन्यथा सहजयोग आपने हमें दिया है या सभी पूर्वी देशों को दिया है, सिखाने के लिए मैं इंग्लैण्ड में कभी न आई होती। वह सम्पूर्ण विश्व के लिए है । सभी लोग इसे ब्लेक के साथ, व्यक्ति विवश हो जाता है कि वह स्वीकार करते हैं। जो ज्ञान आपके हित के लिए है ि येरूशलम स्थापित करने का प्रयत्ल करता रहे, उस ज्ञान को स्वीकार करने में क्या हानि है ? करता रहे, करता रहे। चाहे जो हो, निराशा हो, चाहे जो कुण्ठा हो, कोई बात नहीं । ये इतना असुरक्षित मानते हैं! कार्य करना ही है इंग्लैण्ड की मिट्टी पर उनकी इतनी श्रद्धा थी कि हमें यहाँ येरुशलम बनाना चाहे जो क्योंकि यह पूर्व से आया है, इसलिए आप इसे ईसा-मसीह कहाँ से आए ? वे अमेरिका से है, आए थे मैं सोचती हैँ कि वे दौड़ गए होते! उसके परन्तु इससे पूर्व यहाँ उपस्थित आप सबको बावजूद भी में कहूंगी कि इन सब में से बर्तानिया के आत्म-साक्षात्कार लेना होगा औ र अपने लोग सबसे अधिक परिपक्व हैं परन्तु हम अमेरिका आत्म-साक्षात्कार के सम्मुख विनम्र होना होगा के, फ्रांस के लोगों के पीछे भागते हैं, ये जाने बिना कि हम क्या हैं, हम सबके पीछे दौड़ते हैं हम उसने कहा कि ईसा-मसीह मनुष्यों के प्रति विनम्र विवेक हैं, हम वो लोग हैं जो ब्रह्माण्ड के हृदय का इसके सम्मुख आपको उद्दण्ड नहीं होना होगा। न थे, परन्तु परमात्मा के सम्मुख, अपने पिता प्रतिनिधित्व करते हैं और उनके समय से लेकर अब (Father) के प्रति वे विनम्र थे। इसी प्रकार से तक के काल में हम अब परिपक्व हो गए हैं। मुझे आपको भी अपनी आत्मा के और आत्मसाक्षात्कार आशा है कि शुरुआत (Breakthrough) की के प्रति विनम्र होना होगा तथा उच्च अवस्था प्राप्त आवश्यकता को समझने के लिए हम काफी करनी होगी। आश्चर्य की बात है कि भारत में यह परिपक्व हो चुके हैं। जब इन्होंने मेरे इश्तहार ज्ञान हमेशा से था। परन्तु आशा की जाती थी कि छपवाए तो हुआ यह कि उनमें मेरे चेहरे का रंग हम मूर्तिपूजक (Heathens) बने रहें, दास बने रहें। काफी काला आया मैंने कहा, कि इन इश्तहारों इसके विषय में कोई कुछ भी न जानना चाहता को भूल जाओ क्योंकि इतना काला चेहरा यदि था। जड़ों का (मूल) ज्ञान उपलब्ध था, परन्तु हमारे आप लोगों को दिखाओगे तो कोई भी कार्यक्रम में बुद्धिजीवियों ने इसकी बिल्कुल चिन्ता न की और न आएगा .वो कहेंगे, "अफ्रीका का कोई व्यक्ति हमें हमेशा ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज की परंपराओं का ये सिखाने का प्रयत्न कर रहा है कि येरूशलम अनुसरण करते रहे। इस आकसाब्रिज परम्परा के क्या है।" तो ये दर्शाने के लिए, कि मैं काले रंग की कारण हमने लोगों के बीच जाकर अपने देश के नहीं हूँ, उन्हें ये इश्तहार दोबारा छपवाने पड़े। इस महान ज्ञान के विषय में कभी कुछ नहीं बताया चमड़ी के रंग से क्या फर्क पड़ता है ? रंग और और सभी निष्क्रिय हो गया ये ज्ञान केवल सौन्दर्य तो हृदय से आता है। हृदय का उल्लास भारत के लिए ही नहीं है, किसी स्थान-विशेष के आपके अस्तित्व के सौन्दर्य की अभिव्यक्ति करता लिए नहीं है ये पूरे विश्व के लिए है, वैसे ही जैसे है। और सत्य का सौन्दर्य ये है कि ये गतिशील है। कुछ 1. आपका विज्ञान का ज्ञान। वृक्ष का पूरा ज्ञान, जो होता है, कार्य करता है, सज्जा मात्र नहीं है। यह 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-26.txt बैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2006 25 कूड़े में कैसे फेंके जा सकते हैं. ताकि कूड़ा उन्हें ढक ले और उनकी सुगन्ध दुर्गन्ध में परिवर्तित हो लोगों को लुभाने के तरीके अपनाने का प्रयत्न नहीं करता, ये कार्य करता है। चाहे आपको अच्छा लगे या न लगे, ये कार्य करता है। आइए हम इसे जाए। ये मेरी समझ से परे है। मानव की शक्तियाँ कार्यान्वित करें, ये बहुत सहज है। बुद्धिवादी करतब कभी कभी परमात्मा की शक्तियों पर हावी हो जाती और अपने मस्तिष्क के माध्यम से सीमित को हैं। आप देख सकते हैं कि किस प्रकार वे मूर्तियों समझने की दिशा में जाने-की अपेक्षा आइए, हम को परिवर्तित कर सकते हैं, सौन्दर्य को परिवर्तित कर सकते हैं, वह सभी कुछ परिवर्तित कर सकते हम अपनी आत्मा को प्राप्त कर लेंगे- आत्मा जो हैं जो सत्य है और उसे विवेकहीन तथा मूर्खतापूर्ण असीम है, अनन्त है, जो आपके अन्दर सामूहिक बना सकते हैं और इसी के साथ वे जिए चले जाते चेतना का सृजन करती है, मैं कहती हैं. सृजन हैं असलियत को वो नहीं जानना चाहते. उसी का असीम की ओर चलें यह तभी सम्भव होगा जब करती है, इसका अर्थ है ज्ञान। परन्तु ज्ञान का आनन्द लेते हैं।" हम अत्यन्त प्रसन्न लोग हैं, क्या अभिप्राय वो बिल्कुल नहीं है जो आप मस्तिष्क के बुराई है ?" इस सृष्टि का कितना दुरुपयोग है! माध्यम से जानते हैं, ज्ञान का अर्थ है- मध्य नाड़ी कितनी आकांक्षाओं तथा स्वप्नों को लेकर पृथ्वी पर तन्त्र द्वारा जाना गया ज्ञान, जिसे आप महसूस मानव का सृजन किया गया था ? उन्हें समझाने के करते हैं और जिसके माध्यम से अन्य सभी के चक्रों लिए, इन आकांक्षाओं के प्रति जागरूक करने के को आप अपने अंगुलियों के सिरों पर महसूस कर लिए और ये बताने के लिए कि वे परमात्मा का सकते हैं। मोहम्मद साहब ने कहा है, "कयामा दिव्यस्वप्न हैं. क्या किया जाए ? कभी-कभी तो मैं (Resurrection ) के समय आपके हाथ बोलेंगे "परन्तु भी पृथ्वी पर अवतरित इन कवियों के हृदय के दुख मुसलमानों को देखें, वे कभी पुनर्जन्म (Resurrection ) में भागीदारी करने के लिए अकेले में आँसू बहाती की बात ही नहीं करते जबकि कुरान का अधिकांश हूँ. उन सभी कवियों के लिए जो पृथ्वी पर आकर भाग पुनर्जन्म के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। वे दुख सहते रहे, सहते रहे, सहते रहे! मुझे आशा है प्रलय- दिवस की बात करते हैं क्योंकि लोगों को कि आज इस वेदना के साथ जो भी मैं आपको बता डराकर उनसे पैसा ऐंठना होता है:-" प्रलय-दिवस रही हूँ, आप ये देखने का प्रयत्न करेंगे कि से सावधान ! आप हमें धन दें हम आपकी रक्षा सत्य-निष्ठा ही स्वयं को समझने का एकमात्र करेंगे, आपको प्रमाणपत्र देंगे और प्रलय के दिन मार्ग है कोई पुस्तक, कुछ अन्य उस प्रमाणपत्र को लेकर खड़े हो जाएं तो आपकी बन्धन, कोई त्याग आपको विश्वस्त नहीं कर रक्षा हो जाएगी।" तो सर्वप्रथम वे प्रलय दिवस पर सकता, केवल आपके अन्तःस्थित आत्मा को पहुँच जाते हैं। ऐसा सभी धर्मों में है लोगों ने धर्म जानने की सत्यनिष्ठा ही इस कार्य को कर को अत्यन्त घटिया चीजों के लिए, धनार्जन के लिए सकती है और इसी सत्य- निष्ठा को मैं और राजनीतिक धारणाओं की रचना करने के लिए 'शुद्ध-इच्छा नाम देती हूँ आपमें यदि वह शुद्ध किया है मैं नहीं समझ पाती कि रत्न इस प्रकार इच्छा है. जो आपकी कुण्डलिनी की शक्ति है, तो कोई 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-27.txt चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2006 26 अब, अभी, आपको आत्म-साक्षात्कार मिल जाएगा, कितना कुछ बता पाए ? उन्होंने आदिशक्ति (Holy मिल जाना चाहिए। इसी आवश्यकता है. आत्मा Ghost) की बात की परन्तु उसी से क्यों चिपके बनने की शुद्ध इच्छा की, उससे अधिक कुछ भी रहें ? अब मैं आपको बताने के लिए आई हूँ. बेहतर नहीं। परन्तु जब ये जागृत हो जाती है तो इसकी होगा कि आप आत्म-साक्षात्कार ले लें। जब वो आए देखभाल आवश्यक होती है ऐसा करना बहुत थे तो लोग मोज़िज़ की बात किया करते थे, जब आवश्यक है। इसकी देखभाल करनी होगी, इस मोज़िज़ अवतरित हुए तो लोग अब्राहम की बात करते दीप को जलते रखना होगा, इसे व्यवस्थित करके थे वर्तमान के विषय में क्या है ? मैं आपके साथ हूँ। एक बिन्दु पर रखना होगा ताकि आप निरन्तर क्यों नहीं आत्म-साक्षात्कार ले लेते ? सभी धर्म इसीलिए उन्नत होते चले जाएं। अभी आपको सहजयोग के विषय में सभी सन्तुलन प्रदान करने के लिए, आपको वह सम्पदा बनाए गए थे कि आप आत्म-साक्षात्कार पा लें, आपको कुछ बता देना मैं अनावश्यक समझती हूँ क्योंकि प्रदान करने के लिए जिसके माध्यम से आप उत्क्रान्ति इसे सहन कर पाना आपके लिए बहुत कठिन पा सकें। आपके पास यदि हवाई जहाज़ हो तो उसे होगा व्लेक ने जिस प्रकार हमारे लिए कार्य आप पहले साधते हैं इसी प्रकार से उन्होंने भी आपको किया, अन्य बहुत से कवियों ने भी इस कार्य को साधना चाहा परन्तु धर्म भ्रमित हो गए. इस प्रकार से किया, परन्तु हमें समाप्त करने के लिए, मीडिया उन्होंने चीजों को तोड़ा मरोड़ा कि लोग धूर्त बन गए को प्रसन्न करने के लिए. धनार्जन के लिए, हमें गलत स्थानों पर गलत कील ठोके गए, पूरे हवाईजहाज मूर्ख बनाने के लिए, चिकने-चुपड़े शब्दों और की दुर्दशा हो गई है, इससे यदि आप उड़ेंगे तो गिर वाक्यों का प्रयोग करके, सीधे हमें नर्क में ले जाने जाएंगे बेहतर होगा कि इन विचारों को त्याग दें। के लिए. अब ये नए महान कवि आ रहे हैं। इनसे परन्तु कुण्डलिनी इतनी महान शक्ति है कि ये आपको सावधान रहें। सावधान, अपने बच्चों को उनसे सुख देती है, रोग-मुक्त करती है, आपके सभी चक्रों बचाएं, पूरे समाज की उनसे रक्षा करें। पूरे इंग्लैण्ड को ठीक करती है और शनै शनै ऊपर को उठती है। की रक्षा करनी होगी क्योंकि यदि हृदय मर जाएगा जब आप आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करते हैं तो वापिस तो जाकर यह आपकी सभी समस्याओं को देखती है पूरा विश्व मर जाएगा। परमात्मा आप पर कृपा करें। कुछ प्रश्न-उत्तरों का सारः- बारह हजार वर्ष पूर्व भारत के मार्कण्डेय, विलियम (28 नवंबर 1985 को हमरस्मिथ टाऊन हॉल लन्दन में सहजयोगियों ब्लेक के रूप में अवतरित हुए। बारह हजार वर्ष पूर्व भी उन्होंने यही बात कही थी जो बारह हजार वर्ष बाद उन्होंने इंग्लैण्ड में कही, क्योंकि मैं नहीं जानती, उस द्वारा आयोजित किए गए विलियम ब्लेक के जन्मदिवस समारोह I में सहजयोग और विलियम ब्लेक की एक प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम की सी.डी. भी बन चुकी है समय यहाँ जंगल होंगे। उनका कहा हुआ सभी कुछ (रूपान्तरित) व्यर्थ हो गया है। कुण्डलिनी के विषय में ईसा-मसीह 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-28.txt आस्ट्रेलिया में सहजयोग के 25 वर्ष सार्वजनिक कार्यक्रम सिडनी टाऊन हॉल सोमवार, 6 फरवरी 2006 सर सी. पी. श्रीवास्तव का सार्वजनिक भाषण (कौन कल्पना कर सकता था कि सिडनी टाऊन हॉल में 1500 से भी अधिक साधकों को सम्बोधित करते हुए सर सी. पी. सम्मुख बैठी हुई श्रीमाताजी का उल्लेख देवी शब्द से करेंगे।) अभिव्यकत कर पाना कठिन होता है और यह भी ऐसा ही क्षण है। सर्वप्रथम मैं कहना चाहूँगा कि यहाँ उपस्थित प्रतिष्ठावान सम्माननीय अतिथिगण, देवियों एवं सज्जनों, आस्ट्रेलिया सहजयोग के राष्ट्रीय समन्वयक आप सभी लोगों के प्रति मैं अत्यन्त-अत्यन्त आभारी हूँ। मैं जानता हूँ कि आप कितने व्यस्त हैं! इस श्री क्रिस क्रियाकौ (Mr. Chris Kriyacaou), सहजयोग प्रचार प्रसार राष्ट्रीय परिषद के सभी सदस्यगण- अवसर-सहजयोग की 25 वीं वर्ष गाँठ को मनाने के लिए समय निकालना इस बात को दर्शाता है कि देवियो एवं सज्जनों, आध्यात्मिकता, नैतिकता और अच्छे जीवन में आपकी कुछ ऐसे क्षण होते हैं जिनमें स्वयं को कित्तनी रुचि है। अतः पुनः मैं आपके सम्मुख नतमस्तक होता हूँ आज यहाँ आकर जो सम्मान आपने श्रीमाताजी निर्मला देवी और मुझे प्रदान किया है, उसके लिए में आप सबका अत्यन्त-अत्यन्त धन्यवाद करता हूँ। ও मेरे विषय में बहुत सी अच्छी-अच्छी बातें कही गई हैं। ये लोग अत्यन्त करु मिय हैं। कृपा करके जो कहा गया है , उस सब पर विश्वास न कर लें। परन्तु मेरी पत्नी के विषय में जो कुछ भी कहा गया, वह पूर्णतः सत्य है, थोडी देर में मैं उसके बारे में बात करूंगा। सर्वप्रथम मैं आपको बताना चाहूंगा कि आस्ट्रेलिया के सहजयोगी कितने अच्छे हैं। आप जानते हैं, केवल कुछ सप्ताह पूर्व इन्होंने हमें आमन्त्रित किया और उन्होंने (श्रीमाताजी ने) उनका 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-29.txt चैतन्य लहरी 2৪। अगस्त, 2005 जुलाई निमन्त्रण स्वीकार कर लिया और लगभग छः दक्षिणी आस्ट्रेलिया के सदस्य, नीतिशास्त्र संचार सप्ताह के समय में सभी मिलकर एक घर को संस्थान की निदेशक सुश्री जुले दू वारेन्स (Ms. आश्रम में परिवर्तित करने के लिए जुट गए, और Jule du Varrens), N.S.W के विपक्ष के नेता श्री इन सब ने क्या कार्य किया है, इस पर विश्वास पीटर देबनम ( Mr. Peter Debnam), और सिडनी करने के लिए आपको वह स्थान देखना पड़ेगा! नगर के लार्ड मेयर क्लोवर मूर (Clover Moore). अपनी प्रिय देवी एवं माँ के लिए उन्होंने इस घर को के प्रति भी मैं अपना हार्दिक आभार प्रकट करता पृथ्वी पर एक छोटे से स्वर्ग का रूप दे दिया है। हूँ। जिन प्रेममय शब्दों से उन्होंने हमारा स्वागत वे इतने समर्पित हैं, इतने सच्चे हैं, इतने पावन हैं किया उनके प्रति हम अपना गहन आभार प्रकट कि मैं उनमें से हर एक के सम्मुख नतमस्तक हूँ करते हैं। देवियो और सज्जनों, अब मैं उस बात पर और यह शानदार कार्य करने के लिए, उनकी चमत्कारिक मेहमाननवाज़ी तथा उनकी गहन करुणा आता हूँ जो मुझे आपको बतानी है ये इतनी महत्वपूर्ण सभा है कि मैं इस अवसर को गँवा नहीं के लिए, मैं गहन आभार की भावनाएं व्यक्त करना चाहता हूँ। वे सब मुझे प्रिय हैं, प्रेम से मैं उन्हें फरिश्ते सकता था, और मैं अपने हृदय की बात कहना चाहता हूँ। परन्तु इससे पूर्व मैं ये बताना चाहता हूँ, कि यहाँ बैठी यह महिला, मेरी पत्नी, एक सन्देश, कहता हूँ। वास्तव में वे फरिश्ते हैं। देवियो और सज्जनों, मैं आस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमन्त्री श्री गौ व्हिट्लम (M. Gough Whitlam) प्रेम सन्देश, भाईचारे का सन्देश देने के लिए पैंतीस वर्षों तक विश्व- भर में दौड़ती रहीं। मुझ पर विश्वास के प्रति अपना गहन आभार प्रकट करना चाहूंगा। करें, उन्होंने हवाई जहाज, हैलिकॉपटर, कार, बस, उनके द्वारा स्वागत किए जाने का सम्मान मुझे बैलगाड़ी तथा पैदल यात्रा की। वे गाँवों तथा नगरों प्राप्त हुआ। मैं उन्हें अपने समय का महानतम में गई और पाँच महाद्वीपों में वे बहुत स्थानों पर कल्पनाशील नेता मानता हूँ, आज के विश्व को गई ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि उन्हें पूर्ण उनकी अत्यन्त आवश्यकता है। हमारे यहाँ आने विश्वास था कि विश्व को एक नए संदेश की के विषय में उनके प्रेममय शब्दों के लिए मैं उन्हें आवश्यकता है। विश्व को यदि जीवित रहना है, धन्यवाद देता हूँ। आस्ट्रेलिया के विपक्ष के नेता बने रहना है तो मानव को कुछ नया बताना होगा। माननीय श्री किम बीजले (M. Kim Beazlay ), और स्वयं पर पूर्ण विश्वास के साथ वर्षों तक माननीय मौरिस लेम्मा (Mr. Morris Lemma), एन. अकेली वे चहूँ ओर गई शनैः शनैः सहजयोगी एस. डब्लयू के प्रधान, माननीय एलन कारपेन्टर आए। उन्होंने क्या देखा, उनके (श्रीमाताजी) कथनों (M. Alan Carpenter), पश्चिमी आस्ट्रेलिया के प्रमुख के मूल्य को. और आज 80-90 देशों में उनके सम्माननीय केट एलिस (Mt. Kate Elis) एडिलेड, अनुयायी हैं। जहाँ भी मैं जाता हूँ वहाँ सहजयोगी 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-30.txt चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2006 29 हैं, सहजयोगिनियाँ हैं, उनके प्रिय बच्चे हैं। उन्होंने क्यों माने ? ये विश्वास की बात है और उन्हें इस कितना अदभुत कार्य किया है, कितना अद्भुत पर विश्वास है। वे स्वयं इसाई परिवार में जन्मीं, सृजन उन्होंने किया है! ये क्या है ? उनका पति मेरा जन्म हिन्दू परिवार में हुआ, परन्तु हम दोनों होने के नाते मैं इसे किस प्रकार देखता हूँ ? जो एक ही सर्वशक्तिमान शक्ति, एक मानव परिवार में भी हो, मैं अवश्य कहूंगा कि इस कार्य को करने के विश्वास करते हैं और इस प्रकार हम साथ हैं। इसी लिए बहुत लम्बे-लम्बे समय तक वे मुझसे दूर रहीं, संदेश का उन्होंने संचार किया है, ये कहते हुए. परन्तु मैं जानता था कि वो विश्व के लिए कुछ उन्होंने इस संदेश का संचार अनगिनत श्रोताओं में अद्भुत कार्य कर रही हैं और ये बात सत्य थी। किया है कि 'आप उसी सर्वशक्तिमान परमात्मा की जैसा मैं देखता हूँ, उनका संदेश बिल्कुल रचना हो, आपको उन्हीं के रूप में बनाया गया है, सीधा सच्चा है:- विश्व के सभी पुरुष, महिलाएं और आपके अन्दर निहित एक शक्ति है जिसे और बच्चे सर्वशक्तिमान परमात्मा की रचना हैं। जागृत करने में सम्भवतः, वे सहायता कर सकती कुछ लोग कहते हैं, "मेरे परमात्मा सर्वशक्तिमान हैं", कुछ अन्य कहते हैं, " मेरे परमात्मा सर्वशक्तिमान जाती है तो आपका योग अपने सृजनकर्ता (परमात्मा) हैं। परिभाषा के अनुसार एक से अधिक से हो जाता है और तब आपको नैतिकता, 'सर्वशक्तिमान' नहीं हो सकता। क्योंकि यदि ऐसे उच्च-चरित्र और सभी सद्गुणों से परिपूर्ण सुन्दर दो होंगे तो उनमें से कोई भी सर्वशक्तिमान नहीं हो जीवन प्राप्त हो जाता है। यही बात है, यही 1. हैं। कुण्डलिनी नामक ये शक्ति जब जागृत हो सकता। यह बात इतनी सहज है परन्तु कभी-कभी लोग इतनी सी बात को भी नहीं समझ सकते! वे आपकी नियति है। आपमें यदि योग प्राप्त करने की इच्छा है तो आप योग प्राप्त कर सकते हैं। कहती हैं, "पहली चीज़ ये याद रखना है कि केवल एक सर्वशक्तिमान है, और वह है परमेश्वरी प्रेम की कहना चाहता हूँ वह मेरी अपनी बात है वो ये है सर्वशक्तिमान शक्ति।" और फिर वे कहती हैं, कि मैंने भारत के लिए असैनिक अधिकारी के रूप "पृथ्वी पर अवतरित सभी मानव उसी सर्वशक्तिमान की रचना हैं।" वे चाहे श्वेत हों, गेहुएं हं, नीले हों या पीले हों, वे चाहे अफ्रीका में रहते हों, आस्ट्रेलिया करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ देवियो और सज्जनों, में, भारत में या कहीं अन्यत्र, वे सब उनके बच्चे हैं, आप विश्वास करें कि संयुक्त राष्ट्र स्तर पर भी मैंने देवियो और सज्जनों, अब जो बात मैं आपसे में कार्य किया और मुझे संयुक्त राष्ट्र में भी अन्त्राष्ट्रीय समुद्रवर्ती संस्थान के मुख्य सचिव के रूप में कार्य उनके विचारों को अपने कार्य द्वारा लागू करने का उस सर्वशक्तिमान शक्ति के बच्चे हैं। परन्तु यदि ऐसा है तो मिलकर शान्ति एवं प्रयत्न किया। आप जानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र का प्रसन्नतापूर्वक क्यों न रहा जाए ? विभाजित क्यों अर्थ है - बहुत से, बहुत से देश, भिन्न स्तर तक महसूस करें ? स्वयं को एक-दूसरे के विरोध में विकसित देश, भिन्न सक्षमताओं वाले देश,. 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-31.txt चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2008 30 था कि वे आगे आए. विकासशील देशों की सहायता आदि-आदि। बो सब मिल कर कार्य करने के लिए एकत्र होते हैं। ये कोई आसान काम नहीं है। मैं की ताकि इस संस्थान के सदस्य बनकर वे अपना समुद्रवर्ती विश्व में था और जब मुझे मुख्य सचिव समुद्रवर्ती कौशल विकसित कर सकें। शीघ्र ही वे चुना गया तो किसी भी विकासशील देश का मैं सभी आए और आज ये सर्वोत्तम संस्थान है क्योंकि पहला व्यक्ति था। मेरे सभी पूर्वाधिकारी यूरोपियन इसे विश्व के सभी सदस्य राष्ट्रों का, सभी देशों का थे। लोग हैरान थे कि विकासशील देश का कोई आश्रय प्राप्त है। अब इस आधार पर मैं आपके व्यक्ति इस पद पर आए! उस समय के समुद्रवर्ती सम्मुख एक अनुरोध करना चाहता हूँ. और वह परिदृश्य पर पाश्चात्य विश्व का प्रभुत्व था और इस अनुरोध इस प्रकार है : संस्थान को ' अमीर लोगों का क्लब' (Rich Man's यदि आप समाचार पत्र पढ़ते हैं, देखते हैं, समाचार सुनते हैं, तो आप जानते हैं कि ये विश्व club) कहा जाता था। एक मैं था : किस प्रकार मैं बेचारा, अमीर लोगों के क्लब का मुख्य सचिव बन कठिनाई में है। लोग एक दूसरे के लिए घृणा का प्रचार कर रहे हैं । विश्व में हिंसा का प्राचुर्य है । सकता था ? कितना बड़ा काम था! मैंने कहा, "ठीक है, मुझे चुना गया है तो किसलिए ? क्यों ? इससे किसको लाभ होगा ? मुझे कार्य करना ही होगा, क्यों न मैं उनका हम यदि एक ही सर्वशक्तिमान शक्ति के बच्चे हैं (श्री माताजी) संदेश लागू करुं ? उनका तो हम मिल-जुलकर क्यों नहीं रह सकते ? हमें (श्री माताजी) संदेश था : सभी समान हैं, एक से भेदभावों की बात क्यों करनी चाहिए ? हम भी उन्हीं हैं। इसलिए मैंने निश्चय किया कि सभी सदस्य (श्री माताजी) की तरह से अपने समन्वय की बात क्यों नहीं कर पाते। ये कोई असम्भव स्वप्न भी नहीं राष्ट्रों को मैं संस्थान का बराबर का सदस्य बनाऊंगा। उस समय तक सभी सदस्य समान न थे। है इसे प्राप्त किया जा सकता है। परन्तु विश्व को जहाजरानी वाले अमीर देशों का बोलबाला था यह संदेश मिलना आवश्यक है, उनका (श्रीमाताजी) क्योंकि उनके पास जहाजरानी का कौशल था, संदेश, प्रेम का संदेश मैं यहाँ आपसे इसलिए बात बहुत से विकासशील देश अभी तक सम्मिलित ही कर रहा हूँ क्योंकि मैं निष्ठा - पूर्वक अपने हृदय से न हुए थे और समस्या ये थी कि किस प्रकार इस विश्वास करता हूँ कि आस्ट्रेलिया में कुछ अद्वितीय संस्थान को ठीक प्रकार से विश्व संस्थान बनाया चीज हैं। ये बात मैं केवल आपकी बड़ाई करने के जाए। तो इस संदेश को अपने हृदय में धारण लिए या आपकी चापलूसी करने के लिए नहीं कह करके मैं चल पड़ा, चहूँ ओर गया। सर्वप्रथम रहा, नहीं। यदि मुझे इस पर विश्वास न होता तो विकसित देशों को बताया कि विकासशील देशों को मैं ऐसा कभी न कहता। परन्तु मैं इस पर विश्वास करता हूँ क्योंकि आस्ट्रेलिया में मैं सर्वोत्तम पाश्चात्य इस संस्थान का सदस्य बनाने में आप ही का हित । उन्होंने ये बात स्वीकार की। ये उनका बड़प्पन गुण एवं पाश्चात्य मूल्य देखता हूँ। पाश्चात्य मूल्यों প 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-32.txt जुलाई - अगस्त, 2006 चैतन्य लहरी 31 का मैं महान प्रशंसक हूँ। भारतीय होने पर मुझे गर्व एक शाम उनके लगभग 25 अनुयायी उनके है, अपनी संस्कृति पर मुझे गर्व है, परन्तु बर्तानवी आस-पास बैठकर उनसे बातें कर रहे थे, और मैं लोगों का भी मैं महान प्रशंसक हूँ । वे भारत के उनके साथ बैठा हुआ सभी कुछ देख रहा था। मुझे शासक थे, ये एक अलग बात है। परन्तु जब आप आश्चर्य होने लगा! उस सामूहिकता में (देवियो यूके. में रहने के लिए जाते हैं तो आपको लगता है और सज्जनो आप विश्वास करें यह परमेश्वरी कि वे मूल्यों , नैतिकता, वैधानिक शासन और सत्य है) भिन्न देशों से, जीवन के भिन्न परिवेशों से शालीनता से परिपूर्ण हैं जिन मूल्यों का मैं प्रशंसक आए हुए, भिन्न रंगो के और भिन्न धर्मों के लोग थे। हूँ वे सब यहाँ आस्ट्रेलिया के लोगों में मुझे मिलते उनमें से एक कैथोलिक था, एक प्रोटेस्टेंट था, एक हैं, परन्तु इसके अतिरिक्त भी यहाँ कुछ है उसे यहूदी था, एक मुसलमान था, एक सिक्ख था, कुछ चाहे आप देखें या न देखें परन्तु एक आगन्तुक के हिन्दू थे, परन्तु क्या आप सोच सकते हैं, कि उन्हें नाते मैं अवश्य उसे देखता हूँ, और वह है कुछ याद भी था कि सहजयोग में आने से पूर्व वे क्या 1 सीमा तक पूर्वी भान मर्यादा, विनम्रता, करुणा, थे ? नहीं। वहाॅ पर वे सब सहजयोगियों के रूप में, शिष्टाचार, और ये सारे गुण मिलकर आस्ट्रेलिया विश्व के नागरिकों के रूप में तथा श्रीमाताजी के को अद्भुत राष्ट्र बनाते हैं। यहाँ पर लोग भिन्न प्रिय बच्चों के रूप में बैठे हुए थे। वे सब कुछ भूल देशों और भिन्न नस्लों से आते हैं। और आस्ट्रेलिया गई थीं, कोई भेदभाव न था सभी कुछ हृदय से के नागरिकों की तरह से मिलजुलकर प्रेम पूर्वक था। | रहते हैं। ये उनके यही आदर्श मैं आस्ट्रेलिया के राजनैतिक जीवन में अनुरोध करना चाहता हूँ, याचना करना चाहता हूँ ऐसी घटना घटित हो चुकी है और मैं आपसे (श्रीमाताजी) आदर्श है और देखता हूँ। इसीलिए मैंने कहा, "यदि मुझे उनका कि इस विश्व की सहायता करें। विश्वास करें कि संदेश बताने का अवसर प्राप्त हुआ है तो क्यों न मैं ये विश्व कठिनाई में है। हर शाम क्या आप नहीं वह संदेश यहाँ कहूं? अतः आप लोगों से मेरा ये अनुरोध है : वे चाहते हैं, आतंकवाद, ये वो आदि-आदि। इस सब अपना कार्य कर चुकी हैं। पैंतीस सालों तक वे एक पर विजय पानी होगी, परन्तु ताकत से नहीं। बल देखते कि क्या हो रहा है ? लोग हत्या करना स्थान से दूसरे स्थान तक भागती रहीं। उन्होंने कार्य नहीं करेगा। कुछ विशेष दिशाओं में बल का अपना कार्य पूर्ण कर दिया है, 80-90 देशों में उपयोग करना पड़ेगा, मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि सहज-योग का सृजन किया है तथा बहुत सी कभी भी बल का उपयोग नहीं किया जा सकता, किया है। मैं आपके विश्व के लोगों को एकजुट होने के लिए उन्हें दर्शन (Philosophy) के आधार पर एक जुट होना सुन्दर चीज़ों का सृजन सम्मुख परन्तु केवल एक घटना का वर्णन करूंगा । कुछ समय पूर्व हम लोग लन्दन में थे और पड़ेगा और ये दर्शन भी प्राचीन भारतीय दर्शन पर 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-33.txt जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2006 32 कहानी सुनाना चाहूंगा कि मैं किस प्रकार परिवर्तित परिवार। चमड़ी के रंग, भाषाओं आदि के अन्तर के हुआ मैं असैनिक अधिकारी हूँ और जब तक आधारित है: एक सर्वशक्तिमान परमात्मा एक मानव बावजूद भी सबको एकत्र होना होगा अब यदि पूर्णतः विश्वस्त न हो जाऊं, किसी चीज़ पर विश्वास आप इस संदेश को स्वीकार करते हैं तो इसका नहीं करता। पैंतीस वर्ष पूर्व जब उन्होंने कहा था: "मैं एक आन्दोलन आरम्भ करने जा रही हूँ, लोगों प्रचार होना ही चाहिए। परन्तु यदि ये संदेश दिया ही नहीं जाता, यदि लोग इस परिणाम तक पहुँचते को परिवर्तित करने जा रही हूँ " तो मैंने कहा ही नहीं, वे यदि यही सोचते रहते हैं कि वे भिन्न "लोगों को परिवर्तित करने के लिए "और मैं हँस तो पड़ा! मैंने कहा, "क्या तुम्हें वास्तव में विश्वास है हैं- A के विरुद्ध B और B के विरुद्ध C समस्या को कोई अन्त है ही नहीं और विश्व में कि तुम लोगों को परिवर्तित कर सकती हो ?" इस हमारे पास विनाश के इतने साधन उपलब्ध हैं कि प्रकार से, एक संशयालु के रूप में मेरा आरम्भ पूरा विश्व खतरे में है आज पूरा विश्व खतरे में है. हुआ परन्तु कुछ ऐसा घटित हुआ जिसने मुझे पूरे विश्व का अस्तित्व खतरे में है इस बात को परिवर्तित कर दिया और यह कहानी बहुत सुन्दर हमने हल्के से नहीं लेना। स्थिति अत्यन्त-अत्यन्त है। लन्दन में मुख्य सचिव के रूप में जब मेरा चुनाव हुआ तो मैंने वहाँ जाकर एक घर लिया और वो भी मेरें साथ थीं । मैंने लन्दन से बाहर एक घर कठिन है। परन्तु इसके बारे में एक कहावत है : आओ हम सब एक हो जाएं। और यदि आस्ट्रेलिया के आप सभी लोग मेरी बात की सच्चाई को स्वीकार करते हैं और इसे अपने जीवन का लक्ष्य लिया था और वहाँ मैं रेलगाड़ी से आया-जाया बनाते हैं. जिस प्रकार से इन्होंने इसे अपने जीवन करता था। एक शाम दफ्तर से वापिस आकर मैंने का लक्ष्य बनाया है, तो हमारी यह यात्रा सफल हो घर की घण्टी दबाई, दरवाजा खुला, मैं अन्दर गया और अपने घर की बैठक या रहने का कमरा, जो भी जाएगी। मैं केवल यही बात आपको बताना चाहता कहें में गया, वहाँ मैंने एक युवा पुरुष को देखा- को वहाँ बैठकर समाचार पत्र एक युवा श्वेत था। मैं जानता हूँ कि आप सब बहुत देर से यहाँ पुरुष देखा। जब मैंने प्रवेश किया तो उस पर हैं, मैं आपका बहुत अधिक समय नहीं लेना पढ़ते हुए चाहता। मेरे विषय में जो भली-भली बातें कही गई व्यक्ति ने मेरी ओर ऐसे देखा मानो मैं कोई घुसपैठिया हैं, उनके लिए में धन्यवाद देना चाहता हूँ। मैं हूँ! मैंने कहा, " मैं नहीं जानता कि किसी ने यहाँ केवल इतना कह सकता हूँ कि जो कुछ उन्होंने मुझे दिया है ये सब उसके प्रतिबिम्ब से अधिक मैंने देखा कि वह व्यक्ति मेरा कुर्ता पायज़ामा पहने भी नहीं। उन्होंने मेरे हृदय को परिवर्तित कर हुआ था मैंने कहा, "मेरे मस्तिष्क को कुछ हो आना था।" मेरे आश्चर्य का पारावार न रहा जब कुछ दिया है, और समाप्त करने से पूर्व मैं आपको एक गया है।" मैं अपनी पत्नी के पास गया और कहा, 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-34.txt जुलाई - अगस्त, 2006 चैतन्य लहरी 33 जो मैं देख रहा हूँ क्या वो सच है? एक युवा हो सकता है तो सबके साथ क्यों नहीं हो पुरुष वहाँ बैठा हुआ दिखाई दे रहा है ये क्या सकता ?" इस घटना ने मुझे परिवर्तित कर दिया है?" वह कहने लगीं "हाँ, हॉँ, हॉँ! इसमें कुछ घटित हुआ। और मैं सहजयोगी बन गया इस प्रकार ये सब देवियो और सज्जनों, अब मैं आपका और गलत नहीं है। मैं लन्दन गई थी, पिक्काडिली सर्कस, और वहाँ मैंने देखा कि एक पुरुष बीमार, समय नहीं लूंगा। आपका पुनः धन्यवाद करते हुए. उपेक्षित पड़ा हुआ है। कार से निकलकर मैं उसके जो समय आपने दिया है, अपना बहुमूल्य समय जो पूछा, "क्या बात है ?" उसने उत्तर आपने हमें दिया है, उसके लिए मैं अपनी गहन शाश्वत कृतज्ञता अभिव्यक्त करते हुए समापन पास गई। मैंने दिया, " पूर्णतः उपेक्षित, हम लन्दन में रह रहे हैं।" करुंगा। परन्तु मुझ पर विश्वास करें कि मेरा हृदय मैने कहा; क्या आप चाहते हैं कि आपकी देखभाल शाश्वत् कृतज्ञता से अभिभूत हो गया है, और यदि हो ?" उसने उत्तर दिया : "हाँ"। मैंने कहा, "ठीक कृपा करके आप मेरे सन्देश की ओर ध्यान देंगे- है, उठो और आकर मेरी कार में बैठो, घर चलो।" ये मेरा सन्देश नहीं है, ये इनका ( श्रीमाताजी का) वे उसे घर लाई और जब बह घर आया तो उसको नहलाना-धुलाना आवश्यक था। उसके सन्देश है, मैं तो इस संदेश का संवाहक मात्र हूँ- पास कपड़े न थे घर में केवल मेरे कपड़े थे। और तो हो सकता है कि सहजयोग का प्रचार प्रसार करने वाले लोगों के प्रयत्न आगे बढ़ सकें तथा हो वह व्यक्ति वहाँ पर इस प्रकार से बैठा हुआ था। सकता है कि आस्ट्रेलिया से एक अन्य संदेश विश्व इस कार्य के लिए मुझे अपनी पत्नी पर और अधिक प्रेम उमड़ा। मैंने उनकी प्रशंसा की। मैंने कहा, को जा पाए :- "तुमने बहुत अद्भुत काम किया है।" तब हम उसका सहज उपचार करने लगे वह युवा था और हर सप्ताह वह परिवर्तित होता चला गया एक साथ रहें, एक दूसरे से प्रेम करें, परस्पर हम सब एक ही सर्वशक्तिमान परमात्मा के बच्चे हैं, एक ही परमात्मा के। आइए मिलजुलकर वह फूल की तरह से खिल उठा। वह नशों का भाई-बहन बनें। लड़ाई-झगड़े किस बात के ? आदि हो गया था, उसके नशे छुट गए, शराब की क्यों न मिलजुल कर रहें ? यही एक मात्र मार्ग है आदत छुट गई, और वह एक सुन्दर फूल की तरह जिससे विश्व प्रसन्नता पूर्वक बना रह सकता है। देवियो और सज्जनों, आप सबका हार्दिक से खिल उठा. सुन्दर पुरुष, एक बिल्कुल नया व्यक्ति। मैंने कहा, "ऐसा यदि एक व्यक्ति के साथ धन्यवाद । इंटरनैट विवरण (रूपान्तरित) 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-35.txt अन्तर्राष्ट्रीय सहजयोग शोध एवं स्वास्थ्य केन्द्र 10 वाँ वर्षगाँठ समारोह (मुम्बई- 19.2.2006) ि शोध एवं स्वास्थ्य केन्द्र को देवी-देवताओं से घिरा अन्तर्राष्ट्रीय सहजयोग, शोध एवं स्वास्थ्य केन्द्र (वाशी-अस्पताल) ने 19 फरवरी 2008 को अपनी हुआ दिखाया गया । श्री शिव और पार्वती इसकी दसवीं वर्षगाँठ मनाई। ठीक 10 वर्ष पूर्व 19 फरवरी छत पर थे और उनके समीप श्री गणेश नृत्य कर दिन, हमारी प्रिय माँ, परम पूज्य श्री रहे थे। श्री विष्णु केन्द्र के ऊपर गरुड़ पर उड़ते 1996 के शुभ माताजी, ने इस शोध-परियोजना का उद्धाटन हुए दिखाए गए और श्री माताजी सबसे आगे सभागार में लगी उस शिला को देखती हुई दिखाई करके, इसे आशीर्वादित किया और मानवता को उपहार के रूप में भेंट किया। ये स्वास्थ्य केन्द्र गई, जिस पर लिखा है ("A Gift of Love to 1. यद्यपि सी.बी.डी. बेलापुर नवी मुम्बई में है परन्तु Humanity") "मानवता को प्रेम-भेंट।" विश्व भर के योगियों में यह वाशी-अस्पताल' के शाम को छः बजे डा.सन्दीप राय के परिचय भाषण से कार्यक्रम आरम्भ हुआ। डा.राय ने 10 वर्ष नाम से प्रसिद्ध है। गहन-प्रे म एवं श्रद्धा पूर्वक समर्पित पूर्व 1996 के उस दिन को याद किया जब परम सहजयोगियों/सहजयोगिनियों के एक समूह ने पूज्य श्रीमाताजी ने अपने चरणकमलों से इस केन्द्र पूरे स्वास्थ्य केन्द्र को अत्यन्त सुन्दरता पूर्वक को आशीर्वादित किया था सूक्ष्म विनोद-शीलता सजाया। अपनी परम पूज्य परमेश्वरी माँ का निराकार से परिपूर्ण उनका भाषण अत्यन्त प्रेरणात्मक था। रूप में स्वागत करने के लिए सर्वत्र भारतीय अपने भाषण में उन्होंने इस परियोजना के पिछले पारम्परिक रंगोलियाँ सजाई गई। स्वास्थ्य केन्द्र के दस वर्षों के सभी उतार-चढ़ावों का वर्णन किया सभी न्यासियों, पूर्वाधिकारियों और 300-400 योगियों साक्षात् श्रीमाताजी की इच्छा थी कि मानवता को को समारोह के इस शुभावसर का आनन्द उठाने के एक ऐसा केन्द्र भेंट किया जाए जहाँ लोगों को लिए आमन्त्रित किया गया पं.डा. अरुण आप्टे, केवल सहजयोग तकनीक द्वारा रोगमुक्त किया जा श्रीमती सुरेखा आप्टे और प. सुब्रमण्यम ने माँ सके। परन्तु जब उन्होंने स्व. प्रो. यू.सी. रास को कुण्डलिनी का प्रिय परमेश्वरी संगीत-गान किया दिल्ली से बम्बई आकर ये केन्द्र खोलने के लिए कहा तो उन्हें लगा कि बम्बई आने के लिए डा. यू. एक बहुत बड़े पर्दे पर अन्तर्राष्ट्रीय सहजयोग 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-36.txt जुलाई - अगस्त, 2005 चैतन्य लहरी 35 हुए एकदम से डा.सन्दीप ने स्पष्ट रूप से कहा कि सी. राय कुछ आना-कानी कर रहे हैं क्योंकि दिल्ली में वे भली -भांति स्थापित थे और उनके ये सम्मान जो आपने दिया है, बेहतर होगा कि शर मित्रों का दायरा भी काफी बड़ा था। बाद में उनके पिताजी को प्राप्त हो और वही इस कार्य को श्रीमाताजी ने डायू.सी.राय की अपेक्षा उनके बेटे करें श्रीमाताजी ने पूछा, "परन्तु क्या वे बम्बई संदीप राय को सलाह दी कि बे इस केन्द्र को आएंगे?" "हाँ श्रीमाताजी मैं उन्हें इसके लिए मना लूंगा। यकीनन, "निश्चित रूप से, श्रीमाताजी, हम खोलें और केवल सहज तकनीक का उपयोग करें। उस क्षण की याद करते हुए डा.संदीप ने कहा कि सब यहाँ आ सकते हैं, अपने माता-पिता को अत्यन्त विनम्रता पूर्वक उन्होंने श्री माताजी से दिल्ली छोड़कर मैं अकेला यहाँ वाशी नहीं आ प्रार्थना की कि अस्पताल खोलने और चलाने के सकता।" पम "बहुत बढ़िया तुम उन्हें लेकर आओ और लिए उन्हें कुछ उपकरणों की आवश्यकता होगी। वह केन्द्र को चलाएंगे., इस कार्य के लिए वही तब श्रीमाताजी ने कहाः हाँ, उपकरण पहले से ही मौजूद हैं। उपयुक्त व्यक्ति हैं।" (श्रोताओं की हँसी) आप मेरी तस्वीर ले लो, केवल इसी उपकरण तो इस प्रकार से अन्ततः प्रो.यू.सी.राय, श्रीमती की आपको आवश्यकता है।" आश्चर्य पूर्वक राय के साथ इस अन्तर्राष्ट्रीय सहजयोग शोध एवं डा. संदीप बोल उठे, "श्रीमाताजी मैं तो स्वास्थ्य केन्द्र को आरम्भ करने एवं चलाने के लिए चैतन्य-लहरियाँ भी ठीक से महसूस नहीं बम्बई आए और श्रीमाताजी की इच्छानुरूप मानवता कर पाता, किस प्रकार मैं लोगों को रोगमुक्त की सेवा के लिए यहीं बस गए। ये परमेश्वरी इच्छा इस प्रकार से कार्यान्वित हुई। कर पाऊंगा ?" अत्यन्त करुणापूर्वक श्रीमाताजी ने यह कहते हुए उसे ढाढ़स बंधायाः " रोगी को कुछ मुख्य कार्यकर्ताओं को कुछ शब्द कहने के बाद में डा. सन्दीप राय ने स्वास्थ्य केन्द्र के मेरे फोटो के सम्मुख बिठाकर आपने केवल लिए आमन्त्रित किया अपना भाषण समाप्त करने उसके पीछे बैठना है और मुझसे प्रार्थना करनी से पूर्व डा. सन्दीप ने अपनी माँ श्रीमती लिली रॉय है, "माताजी इस व्यक्ति को रोग-मुक्त कर को धन्यवाद दिया। अत्यन्त प्रेममयी गृहलक्ष्मी के दीजिए, रूप में पिछले दस वर्षों में स्वास्थ्य केन्द्र आने वाले यदि वह व्यक्ति रोग मुक्त होना सभी लोगों की वो प्रेमपूर्वक देखभाल करती रही हैं । चाहता है तो वह ठीक हो जाएगा!" श्रीमाताजी के इस कथन के प्रति प्रतिक्रिया करते साढ़े छ: बजे सायं पूजा आरम्भ होने से पूर्व सारी 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-37.txt जुलाई 36 अगस्त, 2006 चैतन्य लहरी बाद में श्रीमाताजी के चमत्कारिक रोग निवारण सामूहिकता को एक अन्य आह्लादमय अवसर प्राप्त हुआ सभी उपस्थित योगियों को 19 फरवरी से लाभान्वित रोगियों ने निराकार श्रीमाताजी के 1996 को स्वास्थ्य केन्द्र के उद्घाटन समारोह के सम्मुख बहुत बड़ा केक भेंट किया, उन्होंने श्रीमती मधुर राय को स्वास्थ्य केन्द्र के लिए एक उपहार भी एतिहासिक क्षण का वीडियो देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ उद्घाटन समारोह का आरम्भ श्री दिया सारी सामूहिकतां ने उस शाम को हुई कृपा माताजी के मराठी प्रवचन से हुआ। इसमें श्रीमाताजी वर्षा, चमत्कारिक किस्सों तथा पूजा प्रसाद का ने बताया कि किस प्रकार यह स्थान, यह केन्द्र आनन्द लिया। बनाने के लिए उपयुक्त है उन्होंने ये भी बताया कि बाईं विशुद्धि की पकड़ को किस प्रकार अग्नि योगी उस शानदार पूजा के सुन्दर ध्यान और इस अवसर पर उपस्थित सभी सौभाग्यशाली हार्दिक आनन्द को याद किया करेंगे श्रीमाताजी तत्व (candling) से ठीक किया जा सकता है। इस शानदार पूजा का आनन्द जो आपने हमें प्रदान चैतन्य लहरियाँ अत्यन्त शक्तिशाली थीं मानो श्रीमाताजी इस पूजा में अपने बच्चों को आशीर्वादित किया है उसके लिए कृपा करके हमारे हार्दिक करने के लिए, और अपना प्रेम प्रवाहित करने के धन्यवाद स्वीकार कीजिए। अन्तर्राष्ट्रीय सहजयोग शोध एवं स्वास्थ्य केन्द्र सी. वी.डी. बेलापुर नवी लिए साकार रूप में मौजूद हों! सायंकाल का ध्यान इतना गहन था कि इससे कुछ रोगी तुरन्त ही मुम्बई भारत में प्राप्त हुई आपकी परमेश्वरी रोगमुक्त हो गए! देवी की आरती के पश्चात् चैतन्य-लहरियों को हम संजो कर अपने हृदय में रखेंगे। वातावरण इतना आनन्दमय और चैतन्य से परिपूर्ण जय श्रीमाताजी था कि "जागो हे जगदम्बा" भजन जब गाया Gauvin Didier गया तो सभी योगी श्रीमाताजी की वेदी (Altar) के तला (इन्टरनैट विवरण) (रूपान्तरित) सम्मुख झूम-झूम कर नाचने लगे । 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-38.txt एक रोगी का साक्ष्य (मुम्बई- स्वास्थ्य केन्द्र 19.2.2006 19 फरवरी 2005 को बाशी स्वास्थ्य केन्द्र में पुरी ताकत से लौट आया। अपने जीवन में कभी व्यक्तिगत रूप से मेरे साथ घटित हुए एक अनुभव मैंने दर्द निवारक दवाएं नहीं ली थीं परन्तु उस शाम को मैं आपको सुनाना चाहूंगा। यह कोई अद्वितीय बर्दाश्त करना कठिन हो रहा था अतः मुझे एस्परीन कहानी नहीं है क्योंकि उस दिन रोग मुक्त होने तथा कुछ अन्य दर्द निवारक लेने पड़े। फिर भी सी चमत्कारिक घटनाओं के विषय में हम कोई लाभ नहीं हुआ। मुझे महसूस हुआ कि मुझे की बहुत सुन चुके हैं। यह मेरा व्यक्त्तिगत अनुभव है इसलिए कोई शारीरिक संक्रमण है, मेरी रीढ़ में कोई कमी यह सौ (और 8) प्रतिशत सत्य है। है। अतः मैं डाक्टर मधुर राय से मिला और उन्हें केन्द्र में दो सप्ताह के सामान्य शुद्धिकरण कहा कि मेरा एक्स-रे करवाया जाए उन्होंने मुझे के बाद पिछले वृहस्पतिवार (16.2.2006) को मैंने समीप के एम.जी.एम. अस्पताल परीक्षण के लिए केन्द्र से चले जाना था परन्तु उसी दौरान कुछ भेजा। परन्तु वहाँ पहुँचकर मुझे महसूस हुआ कि ये घटना घटी। उसी दिन मैं बीमार पड़ गया। मेरी आम डॉक्टर मेरी बीमारी के बारे में कुछ नहीं समझ कमर में और शरीर के पूरे बाएं भाग में तेज दर्द पाएंगे। केवल बीमारी का कारण ही पूछते रहेंगे। था एक सन्ध्या पूर्व मैं ठीक-ठाक था और चल मुझे लग रहा था कि किसी सूक्ष्म नकारात्मकता ने रहा था। इतना दर्द! मुझे लगा कि चैतन्य-लहरियों मेरे अन्दर शारीरिक दर्द का रूप धारण कर लिया की खराबी के कारण ऐसा हुआ. सारी नकारात्मकता है और ये लोग तो कुछ दर्दनिवारक देकर मुझे भेज ने शारीरिक दर्द का रूप धारण कर लिया था और देंगे। मुझे यहाँ आना ही नहीं चाहिए था शारीरिक मुझे झुकने, चलने और सीधा खड़ा होने के काबिल और मानसिक दर्द लिए हुए मैं वहाँ से वापिस आ भी न छोड़ा था । मेरा शरीर नव्बे वर्ष या इससे भी गया और सोचा कि केवल श्री धनवंतरी ही मुझे कुछ बूढ़ा था- ऐसा कहना अतिशयोव्ति न था। बिस्तर पर लेट पाना भी कठिन था। मेरे मुझे बेहतर ढंग से श्रीमाताजी की ओर चित्त लगाना आराम पहुँचा सकते हैं तथा ठीक कर सकते हैं। डाक्टर ने मेरा काफूर-उपचार किया जिससे मुझे चाहिए। थोड़ा सा लाभ हुआ परन्तु कुछ ही समय बाद दर्द शनिवार प्रातः भी मैं दर्द के साथ उठा। कुछ 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-39.txt शैंतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2006 38 भारतीय भाइयों ने मेरी मालिश की, परन्तु दर्द ने गया था मैं विश्वास पूरी तरह से गायब मेरा पीछा न छोड़ा। क्या मैं अगले दिन की न कर पाया एक या दो घण्टे पहले मुझे स्वप्न में भाग ले पाऊँगा? रविवार 19 चिरप्रतीक्षित आया था या अभी भी मैं स्वप्न देख रहा हूँ। नहीं, पूजा कोई सन्देह न था। मैं हिल-डुल सकता था, फरवरी के दिन दोपहर पश्चात् मैंने भजनों का आनन्द लिया। परिदृश्य में ध्यान सभागार के पीछे नाच सकता था। दर्द का नामोनिशान न था! अपने की दीवार पर श्रीमाताजी की बहुत बड़ी तस्वीर हृदय में सम्मान-पूर्वक मैंने श्रीमाताजी के चरण लगाई हुई थी। तीव्र चैतन्य-लहरियों के प्रवाह ने कमलों में प्रणाम किया। सभी को बाँध लिया था। ऐसा लगा मानो पूजा से सर्वत्र प्रकाश था, सभी हृदय आनन्द से न पहले ही पूजा हो गई हो। इस आनन्द के बाद मैं परिपूर्ण थे और पूजा के बाद के लयबद्ध संगीत में अपने शरीर को घसीट कर पूजा के लिए बगीचे में ऐसा प्रतीत होता था, मानो आत्मा ने हम सबको पड़े बैंच पर ले गया और श्रीमाताजी से रोग मुक्ति एक सूत्र में बाँध दिया है मंच पर श्रीमाताजी के लिए प्रार्थना करने लगा डा.सन्दीप राय ने जब (निराकार) हम लोगों को आनन्द लेते देख मुस्करा अपने भाषण में श्रीमाताजी के शब्दों को दोहराते रहीं थीं। जैसा मैंने बताया रोग निवारण की केवल हुए कहा, " जो लोग ठीक होना चाहते हैं वो ठीक हो जाएंगे," तो ये बात मेरे जहन में चली गई। यही घटना घटित नहीं हुई थी। कई अन्य रोगियों क्या मैं ठीक होना चाहता हूँ। " निःसन्देह के रोग भी हाथों-हाथ दूर हो गए। श्रीमाताजी मैं ठीक होना चाहता हूँ. श्रीमाताजी अपने आशीर्वाद की चमत्कारिक वर्षा हम पर करने पूजा के दौरान चित्त की स्थिति बहुत अच्छी थी, हम सब के लिए आपका बारम्बार धन्यवाद । या देवी सर्वभूतेषु भ्रान्ति रूपेण संस्थिता, आसानी से सहस्रार तक पहुँच गए थे। पूजा में क्या हुआ मैं नहीं जानता, परन्तु नमस्तस्यै नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो-नमः । पूजा के अन्त में मैंने स्वयं को अन्य लोगों के साथ जय श्री आदि शक्ति माताजी श्री निर्मला देव्यै नमो नाचते हुए पाया, पूरी तरह से ये भूलकर कि मुझे नमः । Govind D (Africa) तो ठीक से चलना भी न था दर्द गायब हो (रूपान्तरित) 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-40.txt योगेश्वर, श्री कृष्ण पूजा लन्दन 15.8.1982 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज का महान दिवस हम सबके लिए खुशियाँ लिए सभी कुछ एक खेल है - 'लीला है। मनाने का है क्योंकि आज ही के दिन साक्षात् आदि पुरुष (Primodial Being) पृथ्वी पर श्री कृष्ण के रूप लिए यह जीवन एक मंच था जिस पर उन्होंने ये में अवतरित हुए। अपने प्रवचनों में मैंने उनके बहुत दर्शाना था कि मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में अत्यन्त से पक्षों का वर्णन किया है। परन्तु इस आदि पुरुष धार्मिक जीवन किस प्रकार यापन करना है। परन्तु श्री का महानतम पक्ष ये है कि वे 'योगेश्वर' थे। वे "योग के ईश्वर" थे- योगेश्वर। परमात्मा से हमारे वह व्यक्ति जो लीला करता है। श्री राम के लिए यह सब लीला न थी। उनके ये दर्शाने के लिए आए थे कि वे लीलाधर हैं- कृष्ण योग के वे स्वामी थे। उनकी आज्ञा तथा आदेश के सभी कुछ एक लीला है। पूरा ब्रह्माण्ड लीला बिना हम सहजयोगी नहीं बन सकते। वे योगेश्वर मात्र है। आदि-शक्ति, तथा तीन गुणों द्वारा रचा थे और सच्चा योगी वह होता है जो अपने अन्दर तीला के अतिरिक्त गया सभी कुछ, तथा ये तीन गुण, योगेश्वर को जागृत कर ले । योग' शब्द, जैसा हम समझते हैं, हमारे चित्त का परमात्मा से जुड जाना है। इसी बात की अभिव्यक्ति की। फिर भी योगेश्वर' क्या परन्तु इसके 'निहितार्थ को हम अभी भी महसूस नहीं ह पूरा ब्रह्माण्ड करते कि इसका तात्पर्य क्या है हमारे साथ क्या लीला-मात्र है, जिसमें वे स्वयं धुरी पर हैं तथा पूरी घटित होना चाहिए था? निःसन्देह आपको शक्तियाँ प्राप्त हो जाती क्योंकि सभी कुछ असत्य है, आपकी आत्मा के हैं। ज्यों ही आप आत्मा बनते हैं, आपको शक्तियाँ अतिरिक्त सभी कुछ असत्य है। ये सब तो एक प्राप्त हो जाती हैं प्राप्त होने वाली शक्तियों में से मजाक चल रहा है. या आप कह सकते हैं कि एक एक है 'सामूहिक चेतना की शक्ति।' वह भी श्री नाटक चल रहा है. भी गम्भीर नहीं है। हमारे कृष्ण की कृपा है कि आपको सामूहिकता का अन्दर केवल आत्मा ही सत्य है बाकी सभी कुछ । और अपने इस अवतरण में उन्होंने कुछ भी नहीं हैं ? लीलाधर तो वे हैं जिनके लिए ये परिधि उनके लिए लीला के सिवाय कुछ नहीं 1 कुछ अहसास होने लगता है। आपके अह और प्रतिअह असत्य है। सत्य" कई प्रकार का नहीं हो सकता। अधोगति की ओर खिंच जाते हैं और आप अपने पूर्व संस्कृत भाषा में या तो 'सत्य' है या 'असत्य' है. कर्मों एवं बन्धनों से मुक्त हो जाते हैं और नए जीवन सत्य के लिए दस शब्द नहीं हैं। के नए युग का अंकुरण होता है परन्तु योगेश्वर की महानता क्या है, उनकी विशेषता क्या है ? वे जब ये आपके ईश्वर हैं, सभी योगियों के ईश्वर हैं, उनकी आप एकरूप हो जाते हैं तो आपको शक्तियाँ प्राप्त अतः जब ये घटित होता है, आपके अन्दर महान घटना घटित होती है, आत्मा से जब क्षमता क्या है, उनका स्वभाव क्या है कि उनके हो जाती हैं, यद्यपि आप अभी तक उस अवस्था तक 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-41.txt चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2006 40 पतियों के कर्तव्य, फिर पत्नियों के पति-धर्म है, पहुँचने के लिए परिपक्व नहीं हुए होते कि आपकी सूझ-बूझ उस अवस्था तक पहुँच जाए और आपका कर्तव्य। हर व्यक्ति के कर्तव्य को धर्म कहा गया हृदय खुल जाए। ठीक है, आरम्भ में आपको क्योंकि ये कर्तव्य आपने करना है। इस कर्तव्य से शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं ताकि स्पष्ट सूझ बूझ के आप बँधे हुए हैं, ये सब आपके धर्म बन गए हैं। साथ आप श्रद्धा कर सकें। इसके अनुभव से यदि परन्तु उन्होंने कहा, "सभी धर्मों को त्याग दो, सभी तो इसी तरह इसका कर्तव्यों को त्याग दो, केवल मेरे प्रति पूर्णतः समर्पित "सर्व धर्माणां परित्यज्य मामेकं शरणं आपमें श्रद्धा आती है - आरम्भ होता है। जब आप अपनी शक्तियों का हो जाओ" उपयोग करने लगते हैं, उनकी अभिव्यक्ति होते व्रज | " हुए आप देखते हैं तो आप आश्चर्यचकित होते हैं कि किस प्रकार आप लोगों की कुण्डलिनी उठाते हैं, अब आप उससे (परमात्मा) एकरूप हो गए हैं. हैं, किस प्रकार उन्हें जोड़ते हैं, आत्म साक्षात्कार देते हैं और किस प्रकार लोगों के देखता है, उन पर नजर रखता है और उन्हें पावन रोग ठीक करते हैं ! आपको हैरानी होती है कि यह करता है। अतः आप स्वयं को मात्र उनके प्रति क्योंकि अब आप सामूहिक व्यक्ति बन गए अब वह आपके सभी धर्मों को देखता है, सम्बन्धों को किस प्रकार किस प्रकार हुआ! तो हम कह सकते हैं कि यह समर्पित कर दें। यह बात उन्होंने केवल अर्जुन से आपके अन्तररचित है, जिसकी अभिव्यक्ति होने कही थी, सभी से नहीं । ये बात उन्होंने सबसे नहीं लगी है। परन्तु अभी तो बहुत कुछ बाकी है कही थी क्योंकि सभी लोग तो इसके योग्य भी नहीं जिसकी अभिव्यक्ति होनी है, जिसे स्थापित होना है थे, या सबसे ये बात कहना उन्होंने उचित नहीं और जिसने आपको उन्नत करना है। योगेश्वर का एक अन्य महत्वपूर्ण पक्ष है। आप उपयुक्त लोग हैं। इसलिए मैं आपसे बता रही और वह पक्ष समझना हमारे लिए अत्यन्त आवश्यक हूँ कि अन्य सभी कर्तव्यों को भूल जाएं. हर चीज़ है कि जब तक हम योगेश्वर द्वारा बताए गए मार्ग को भूल जाएं, अपने सामूहिक अस्तित्व, अपनी पर नहीं चलते तब तक स्वयं को पूरी तरह से सामूहिकता के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाएं। स्थापित नहीं कर सकते। अतः श्रीकृष्ण ने कहा है कि "सर्व धर्माणां परित्यज्य, मामेकं शरणं व्रज' समझा। परन्तु मैं सोचती हूँ कि यह जानने के लिए परन्तु वे योगेश्वर हैं। ये मुख्य बात है। और । उनके प्रति कर्तव्य निभाने के लिए योगेश्वर की सभी सम्बन्धों को त्याग दें। धर्म सम्बन्ध हैं, जैसे पावनता को अपने अन्दर विकसित करना प्रथम आपकी बहन-आपका भाई, ये धर्म है, जैसे स्त्री आवश्यकता है। उनके लिए उत्कृष्टअवस्था आवश्यक धर्म- महिला का कार्य । ाम नहीं थी, वे तो उत्कृष्ट थे। वे उत्कृष्टता का स्रोत इसके बाद हम कह सकते हैं राष्ट्र धर्म'। थे मानव की निकृष्ट प्रवृत्तियों से उन्हें उत्कृष्टता ा आज भारत का स्वतंत्रता दिवस' है। अतः हमारा की आवश्यकता नहीं थी। उन्हें कुछ करने की राष्ट्र धर्म है, हम देश-भक्त लोग हैं। अपने देश के आवश्यकता नहीं थी, माया से स्वयं को ऊपर उठाने प्रति भक्ति राष्ट्र-धर्म है। फिर आपका समाज-धर्म है के लिए कुछ भी करने की आवश्यकता न थी। अर्थात् समाज के प्रति आपका कर्तव्य। फिर पश्चिम में विशेष रूप से, जैसा आप जानते हैं, हमने 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-42.txt जुलाई चितन्य लहरी अगस्त, 2006 41 अपने लिए नर्क की सृष्टि कर ली है. एक वास्तविक महत्व ही न था. वे इनसे ऊपर थे अतः प्रलोभनों नर्क की। सभी प्रकार की विकृत धारणाएं हमारे और विकृतियों का तो प्रश्न ही नहीं उठता, इस बारे अन्दर हैं। योगेश्वर के लिए ये माया के अतिरिक्त में सन्देह का कोई स्थान ही नहीं है। कुछ भी नहीं, पूर्णतः गन्दगी, बो कभी सोच भी नहीं सकते कि ये चीजे भी सम्भव हैं ये सभी विकृतियाँ पाँच पत्नियों ने किसी महान सन्त के दर्शन और कहानी इस प्रकार है कि एक बार उनकी दुखद हैं। आज उनके जन्म-दिवस पर मैं ये कहूंगी पार रहता था, उन्होंने वहाँ जाकर उसकी पूजा कि आज यदि उनका जन्म-दिवस है, और आज करनी चाही और इसके लिए उपयुक्त समय निकाला। आराधना के लिए जाना था। वह सन्त नदी के उस यदि उनका जन्म वैसे ही हुआ होता जैसे उस जब वे नदी के पास गई तो पाया कि नदी में समय हुआ था, तो वे तुरन्त वापिस चले गए होते आई हुई थी और इसे पार न किया जा सकता था। उन्होंने कहा होता, 'नहीं, खेद है, मुझे कुछ नहीं उन्हें लगा कि इस शुभ मुहूर्त में यदि वे सन्त की लेना-देना, काफी हो चुका।" और यदि वे पाश्चात्य पूजा करने के लिए नहीं गईं तो यह अपशकुन संस्कृति से मिले होते तो उन्हें आघात पहुँचता, हे होगा। उसी समय जाकर वे इस गुरु की पूजा परमात्मा, नहीं, कुछ नहीं लेना देना। मैं यहाँ नहीं करना चाहती थीं। बाढ़ अतः वे श्री कृष्ण के पास गई और उनसे आ रहा। जिस समय उनका जन्म हुआ था उस समय चाहे जैसी परिस्थितियाँ रही हों, धर्म का पूछा : "इस बाढ़ ग्रस्त नदी को किस प्रकार पार अस्तित्व था, लोग ये जानते थे कि ठीक क्या है करें?" श्री कृष्ण बोले, "वास्तव में ? कोई बात नहीं। और गलत क्या है, आजकल की मूर्खतापूर्ण चीजज़ें न तुम जाओ और नदी से कहो- वह तापी नदी थी थी. और वे योगेश्वर, पावन रूप में आए। जिसे वे पार कर रही थीं- उन्होंने कहा, जाकर उनके विषय में एक कहानी है। एक दिन नदी से कहो कि यदि हमारे पति श्री कृष्ण 'योगेश्वर' उनकी पत्नियों ने जाना चाहा। उनके लिए पत्नियों हैं अर्थात् जो ब्रह्मचारी हैं- योगेश्वर वह व्यक्ति का क्या महत्व था ? कुछ नहीं, इस बात को देखें। होता है जो कभी यौन गतिविधियों में लिप्त नहीं उन्हें किसी पाप का दोष नहीं दिया जा सकता। हुआ हो। यह सम्भव नहीं है। इस चीज़ के बारे में विवाह उन्होंने इसलिए किया क्योंकि उन्हें अपने सोचा भी नहीं जा सकता। अर्थात् लिप्त होते हुए भी पाँच सिद्धान्तों या पंच तत्वों से विवाह करना था। अलिप्त, इसमें होते हुए भी इससे बाहर रहना, कमल तो स्त्री रूप देकर उन्होंने उनसे विवाह कर लिया। की तरह। वे यदि इस प्रकार की गतिविधि में कभी सोलह हजार महिलाओं से उन्हें विवाह करना पड़ा लिप्त नहीं हुए. केवल तभी। ऐसा श्री कृष्ण ही कर क्योंकि उन्हें सोलह हजार शक्तियों को अपनाना सकते हैं, कोई अन्य नहीं। इसीलिए वे अवतरण हैं 1 था और शरीरों के माध्यम से उन शव्तियों को साधारण मानव नहीं। केवल अवतरण ही ऐसा कर संचालित करना था ये शक्तियाँ स्त्री रूप में आईं। सकते हैं। कोई मनुष्य यदि ये कहे कि मैं श्री कृष्ण उनके लिए ये पति-पत्नी सम्बन्ध न था, एक पावन हूँ इसलिए मैं ऐसा कर रहा हूँ. मैं वैसा कर रहा सम्बन्ध था। यौन सम्बन्धों का उनके लिए कोई हूँ- आप जानते हैं बहुत से पाखण्डी लोग होते हैं, 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-43.txt जुलाई - अगस्त, 2006 चैतन्य लहरी 42 आपने उनके बारे में अवश्य सुना होगा वे कभी आदर्श तक आपको पहुँचना है। आपकी दृष्टि और नहीं बन सकते। केवल अवतरण ही ऐसा कर गतिविधियाँ सभी इस ओर होनी चाहिए। इससे पूर्व सकते हैं। इसका अभिप्राय ये हुआ कि वे योगेश्वर यदि आप ऐसी चीज़ों इस प्रकार की विकृतियों या ही अवतरित हुए थे। तो उन्होंने जाकर नदी से कहा, "यदि वे तो आपको पता होना चाहिए कि आप बहुत तेजी से योगेश्वर हैं तो कृपया उतर जाइए (subside) । पतन की ओर जा रहे हैं । यह एक प्रकार की मूर्खतापूर्ण यौन गतिविधियों आदि में फँस जाते हैं प और नदी का जलस्तर कम हो गया। उन्होंने नदी भूत-बाधा है जो आप-पर कार्य कर रही है वे को पार किया, गुरु की पूजा की और वापिस नदी आदर्श है- वे अवतरण हैं। आप अवतरण नहीं हैं पर पहुँची। नदी फिर चढ़ी हुई थी. वे उसे पार न और न ही अवतरण बन सकते हैं। वे प्रकाश हैं जो कर सकीं। वे गुरु के पास वापिस गईं। केवल कोई आपका मार्ग प्रकाशित कर रहे हैं, उस मार्ग को अवतरण ही अच्छा और सच्चा गुरु हो सकता है। जिस पर आप चल रहे हैं। ये अवतरण आपको उस उन्होंने गुरु से कहा "नदी चढ़ी हुई है, हम इसे पार साम्राज्य में ले जा रहे हैं जहाँ वे सम्राट हैं, जहाँ वे नहीं कर सकतीं।" गुरु ने पूछा, "तो तुम आई कैसे प्रभु हैं । थीं ?" उन्होंने उत्तर दिया "श्री कृष्ण ने नदी' से पूछने के लिए कहा था कि यदि वे योगेश्वर हैं तो आप ईश्वर नहीं हैं। परन्तु आप कम से कम योगी वे ईश्वर हैं (श्री कृष्ण), वे आपके ईश्वर हैं, आप उतर जाइए। तब उस सन्त ने कहा, "ठीक तो हैं। पहले हमें योगी बनना होगा, तब वे हमारे है अब तुम जाकर नदी को बताओ कि यदि मैंने ईश्वर हैं, अन्यथा वे आप पर शासन भी नहीं करना आपका दिया हुआ खाना नहीं खाया तो नदी चाहते। अतः हमें करना ये है कि सर्वप्रथम हमें आपको रास्ता दे दे।" उन्होंने ऐसा ही किया योगी बनना है योगी की प्रथम पहचान ये है कि यद्यपि वे इस बात पर विश्वास न कर सकीं क्योंकि अपने यौन जीवन में वह अत्यन्त पावन होता है। उन्होंने स्वयं सन्त को काफी पकवान खिलाए थे। पूर्ण पावनता का होना आवश्यक है और कुछ समय "जो भी खाना हमने उनको भेंट किया, यदि पश्चात् व्यक्ति को इससे आगे बढ़ना चाहिए। अन्य उन्होंने कुछ नहीं खाया तो आप उतर जाइए।" लोगों से आपके सम्बन्ध चाहे ये आपकी बहन हो, और नदी का स्तर कम हो गया! भाई हो , कोई अन्य पुरुष हो या महिला हो, सारी बात का सार ये है कि इन मामलों में पूर्णतया पावन होने चाहिएं। ऐसा होना अत्यन्त श्री कृष्ण आपके आदर्श हैं। ये नहीं कि आप स्वयं आवश्यक है। अब भारत जैसे देशों में लोग अत्यन्त भ्रष्ट हैं, को सबका आदर्श मान बैठें, सहजयोगी ये बहुत बड़ी गलती करते हैं। एकदम से वे सोच लेते हैं कि अत्यन्त भ्रष्ट, अत्यन्त-अत्यन्त भ्रष्ट । पाँच रुपये में अब वे श्री कृष्ण बन गए हैं. या सोचते हैं कि कुछ आप किसी को भी खरीद सकते हैं। पैसे के मामले महान बन गए हैं या उन्होंने कुछ महान चीज़ में वास्तव में भ्रष्टता है। परन्तु लोग इतने अधिक आत्म-सात कर ली है! ऐसा नहीं है। एक बात व्यक्ति ने समझनी है कि इस है। वे जानते है कि चरित्रहीनता नैतिकता नहीं है। चरित्रहीन नहीं हैं, वे जानते हैं कि यह चरित्रहीनता 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-44.txt चैतन्य लहरी जुलाई -अगस्त, 2006 43 पश्चिम में चरित्रहीनता आम बात है। उनके अनुसार नैतिकता' शब्द समाप्त हो जाना चाहिए। कहने से अभिप्राय ये है कि वहाँ पर नैतिकता जैसा भी नहीं है जो जी चाहे करो, लोग अनैतिकता कहते हैं एक माध्यम जो किसी व्यक्ति को पतन की ओर धकेलती है । एक सर्व - साधारण तस्वीर, जिसका इसमें कुछ कोई योगदान नहीं होता, कोई भी चीज़ , गन्दी के बारे में सोचते ही नहीं । इसके बारे में वो बात भावनाएं दे सकती हैं। आजकल, मैंने देखा है, बहुत नहीं करना चाहते, ऐसा करना विक्टोरिया काल से प्रतीक आरम्भ हो गए हैं, जो मेरी दृष्टि में (पुरानी) की बात मानी जाती है। कोई यदि, कह दे कि व्यक्ति को चरित्रवान होना चाहिए तो लोग कोई बुराई नहीं देखती क्योंकि मैं अत्यन्त पावन सोचते हैं वह पाखण्डी हैं। वो ये बात सोच ही नहीं सकते कि वास्तव में मानव और नैतिकता के बीच बुराई है। परन्तु इन चीजों में कुशल कोई व्यक्ति कोई सम्बन्ध हो सकता है! यहाँ ये समस्या है। तुरन्त कह उठेगा, ओह इसे देखो ! कहने से हमारे सम्मुख ये सबसे बड़ी समस्या है। भ्रष्टाचार की आप अनदेखी कर सकते हैं कि मानव मस्तिष्क ने अपने चहूँ ओर किस प्रकार क्योंकि आप यदि भ्रष्ट नहीं हैं तो ठीक है, परन्तु जाल बुन लिया है और स्वयं को तथा अन्य लोगों चरित्रहीनता ऐसी चीज़ है कि यदि आप चरित्रहीन को नष्ट करने के लिए ये सारे प्रतिमान क्यों बनाए संसार मैं रहते हैं तो इसका प्रभाव सभी पर पड़ता है ? बिल्कुल भी गलत नहीं हैं इनमें मेरी दृष्टि बिल्कुल हूँ, मेरी आँखे देख ही नहीं सकती कि उसमें कोई अभिप्राय है कि ये समझ पाना अत्यन्त असम्भव है है। उदाहरण के रूप में कोई चरित्रवान महिला सड़क पर चल रही है और कोई कामुक पुरुष उसे समझ लेना आवश्यक है कि विश्व के सभी लोगों से देख रहा है तो जैसे भी हो, वह अपनी पावनता खो हमारे सम्बन्ध पावन होने चाहिएं। अपने जीवन काल देती है। वह किसी को आकर्षित नहीं करना चाहती में उन्होंने बहुत सी लीलाएं की। जब वे अवतरित और न ही अपनी पावनता को खोना चाहती है, हुए थे तो पूरा देश धर्म की अटपटी धारणाओं में परन्तु जिस प्रकार से वह व्यक्ति उसकी ओर डूबा हुआ था। फ्रायड यदि वहाँ पर होते तो कहते. देखता है, यद्यपि महिला के बहुत सामान्य तरीके हैं. 'ये सब बेवकूफी है। इसमें क्या खराबी है ? करते फिर भी कुछ सीमा तक उस पुरुष के चरित्र और जाओ। श्री कृष्ण ने ऐसा कुछ नहीं किया। वे पावनता में पतन के लिए वह जिम्मेदार है एक मूर्खतापूर्ण परम्पराओं और झूठी कट्टरता की जंजीरों छोटा बच्चा भी, जो बहुत साधारण है, अबोध बच्चा को तोड़ना चाहते थे। परन्तु उन्होंने ये कार्य, सभी है, उसकी ओर कोई यदि अपवित्र दृष्टि से देखे, तो सम्बन्धों को पूर्णतः पावन रखते हुए अत्यन्त सुन्दर बच्चे के लिए भी अत्यन्त अपवित्र भावनाएं, उसके ढंग से किया । मन में आ सकती हैं। तो यद्यपि वह व्यक्ति स्वयं योगेश्वर की पूजा करने के लिए हमें ये लोग प्रश्न पूछते हैं, 'श्री माताजी, क्या राधा से उनका विवाह हुआ था ?' वो तो उनसे सदा-सर्वदा से विवाहित से विवाहित हैं. कोई बात नहीं। परन्तु जैसे आप वास्तव में उन्होंने यह विवाह उसी दिन कर लिया गन्दा है, तो भी हम यह नहीं कह सकते कि बच्चा प्रभावित नहीं हुआ। परन्तु एक प्रकार से वह पात्र (object) बन जाता है, एक प्रकार 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-45.txt जुलाई - अगस्त, 2006 चैतन्य लहरी 44 था जिस दिन उनका जन्म हुआ। उनके पिता उन्हें होता है । नदी पर लाए और नदी के किनारे उन्हें लिटा दिया। तभी साक्षात् ब्रह्मदेव पृथ्वी पर प्रकट हुए। निःसन्देह आप अपने हाथ उठाकर लोगों को इसी कारण से श्री कृष्ण हमेशा पीतवस्त्र पहनते हैं। आत्म-साक्षात्कार दे सकते हैं, परन्तु आपको उन्हें ये वस्त्र उनके शरीर के निचले हिस्से को ढकने के माधुर्य के स्तर पर लाना होता है। बैठकर यदि आप लिए श्री ब्रह्मदेव का आशीर्वाद है। कटि-वस्त्र है। कहें कि ठीक है, आप खेलते रहो, तो ये सब समाप्त यह प्रतीकात्मक है और यही कारण है कि वे हमेशा हो जाएगा आपको बैठकर ध्यान करना होगा, इसका ( "रासलीला") होना आवश्यक है । आपको ऐसा करना होगा। अतः कोई यह नहीं कह पीत वस्त्र धारण किए रहते हैं। साक्षात् ब्रह्मदेव आए, श्री कृष्ण को पुरुष सकता कि हर समय यदि आप खेलते रहें,भजन बनाया और राधा से उनका विवाह किया एक बार गाते रहें या हर समय प्रसन्नचित्त, विनोद-शील पुनः वे बालक बन गए, बालक-सम दिखाई देने के अवस्था में बने रहें तो यह सहजयोग का अन्त है। लिए। कोई भी बाल सुलभ दिखाई दे सकता है। ऐसा नहीं है ये एक गम्भीर मामला है। आपमें से कुछ लोगों को मैं सोलह वर्ष की आयु की लडकी दिखाई पड़ती हूँ. परन्तु में हूँ नहीं । कुछ परन्तु उनके मस्तिष्क से इस तथाकथित धर्म के लोगों के लिए मैं साठ वर्ष की हूँ. परन्तु मैं वह भी तनावों और कट्टरता की जंजीरों को कम किया, नहीं हूँ। मेरी आयु शाश्वत है। मैं नहीं कह उन्हें ढीला किया। श्री कृष्ण चाहते थे कि लोग इस सकती कि मेरी आयु कितनी है। यह दो वर्ष बात को समझें कि धर्म दासत्व नहीं है। धर्मातीत भी हो सकती है या पूर्णतः आयु से परे भी हो होकर आपको स्वयं धर्म बन जाना है। परन्तु योगेश्वर सकती है, ये कुछ भी हो सकती है । अपने पूरे जीवन में उन्होंने जो भी किया उसे कि इस वातावरण में ऐसा कर पाना कठिन है । आप पूरी पावनता और सूझ-बूझ के साथ किया तो बाहर निकलते हैं और कोई भयानक चीज़ सामने पहले राधाजी से उनका विवाह हुआ बाद में जब होती हैं! किसी भी पत्रिका का कोई पृष्ठ खोलें, बालरूप में वे आए ,जब वे शिशु थे, तो उन्होंने सभी वहीं आपको कुछ न कुछ वीभत्स (Horrid) दिखाई दे प्रकार की लीलाएं की । इस प्रकार गम्भीरता पूर्वक जाएगा। किसी भी विज्ञापन में पृष्ठ पलटते ही मुझे बैठकर वे चीजों के बारे में नहीं बताते थे , परन्तु डिस्कोथैक जैसी मूर्खतापूर्ण चीजें दिखाई पड़ती हैं। छोटी-मोटी शरारतों द्वारा उन्होंने उनके चक्रों को आप क्या कर सकते हैं, उससे आप बच नहीं तो उन्होंने उन्हें आत्म-साक्षात्कार नहीं दिया, की पूजा शुद्ध हृदय से होनी चाहिए। मैं जानती हूँ सुधारने और उनकी कुण्डलिनियों को उठाने का सकते सभी कुछ ऐसा है, मेरा अभिप्राय ये है कि प्रयत्न किया। निःसन्देह, खेल में आत्म-साक्षात्कार आप यदि उसे देखें तो सभी कुछ कितना स्थूल, दे पाना सम्भव न था। ऐसा नहीं किया जा सकता। गन्दा और घिनौना है। समस्याओं को बढ़ावा देने के मान लो मैं भी आपसे खिलवाड़ करुं तो आप लिए मनोवैज्ञानिक आगे आ गए हैं । अपने ही आत्म-साक्षात्कार नहीं प्राप्त कर सकते क्योंकि तरीकों से और कार्यों से वे स्वयं प्रभावित हैं, वे सहस्रार के स्तर पर आपको पूर्णरूपेण मुझे पहचानना भूत-बाधित हैं और इसमें कोई सन्देह नहीं है कि 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-46.txt चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2006 45 उनका नैतिकता-विवेक पूर्णतः भ्रमित है। धारणाएं आ जाती हैं कि आप बहुत शक्तिशाली हैं। क्या आप जानते हैं कि फ्रॉयड के साथ क्या परन्तु ये सत्य नहीं है। ? उसके अपनी माँ के साथ सम्बन्ध थे। वो ये जिस प्रकार मेरा नाम निर्मला है, जिस प्रकार हुआ भी न समझ सका, कहने से अभिप्राय है कि वो ये मेरा नाम पावनता है, आपको भी पावन योगी बनना भी कल्पना न कर सका कि वह कितना अधर्मी , होगा। कोई नहीं कहता कि आप विवाह न करें, भयानक और नीच है! उसमें तो माँ से सम्बन्धों को कोई नहीं कहता कि अपनी पत्नियों से आपके समझने की पावनता भी न थी। इसकी कल्पना उचित यौन-सम्बन्ध नहीं होने चाहिएं । ये बात करें! उस व्यक्ति की इतनी स्पष्ट पृष्ठभूमि है जो सत्य नहीं है परन्तु ये ऐसी चीज़ है जिससे दूर दर्शाती है कि वह कितना गलत था। उसके अन्दर रहकर लोग इसे बिगाड़ देंगे। परन्तु एक अन्य इतनी गन्दगी भरी हुई थी कि वह अपनी माँ को भी महत्वपूर्ण बात ये है कि आपका चित्त यौन-आकर्षणों ठीक से न देख सका! अवश्य उसकी आँखों में से पावन होना चाहिए। किसी भी प्रकार के। आपका कीचड़ या कुछ और पड़ा हुआ होगा कि उसने चित्त ऐसी किसी भी चीज़ पर नहीं जाना चाहिए । चीज़ों को इस प्रकार देखा। मेरी चैतन्य-लहरियों से आप लोग काप रहे ऐसी चीज़ नहीं देखती जो लोग प्रायः देखते हैं। ये हैं। योगेश्वर के रूप में जब हम श्री कृष्ण के बारे आश्चर्य की बात है । मैं किसी चीज़़ को देखती हूँ में सोचते हैं तो इसका अर्थ ये है कि हम योगी हैं परन्तु मेरी समझ में नहीं आता कि क्या हो रहा है! और वे हमारे ईश्वर हैं। ईश्वर की स्तुति होनी लोग आम-तौर पर मुझ पर हँसते हैं, घर में उनकी चाहिए देखिए, मेरे लिए. मैं अब वृद्ध महिला हूँ, मैं कोई आपको स्तुति करनी है. उनके (योगेश्वर) समझ में नहीं आता कि मैं उस बात को कैसे नहीं गुणों के कारण उनका गुणगान करना है, क्योंकि बे देख पाई! परन्तु मेरी समझ में ये मज़ाक नहीं आते आपके ईश्वर हैं अत: आपने उनकी स्तुति करनी क्योंकि चित्त इन गन्दी चीज़ों पर जाता ही नहीं है । है। हम उनकी क्या स्तुति कर सकते हैं ? आज जब तक कोई मुझे बताए नहीं मैं इसे समझ ही नहीं उनका जन्म दिवस है और ऐसे महान दिवस पर सकती। उन्हें दस बार इसकी व्याख्या करनी पड़ती हमें क्या करना चाहिए ? हमने ये निर्णय करना है है । कि वो हमारे ईश्वर हैं। वे ईश्वरी तत्व हैं और यदि वे हमारे ईश्वर हैं तो हमें यौन-सम्बन्धों तथा जीवन तरीके जो हमने एकत्र किए हैं, कृपा करके इनसे के प्रति स्थूल दृष्टिकोण, जो हमने विकसित किया छुटकारा पा लें। हर सहजयोगी से बताना मैं है, को स्वच्छ करना है। आप इसे त्याग दें और आवश्यक समझती हूँ कि ये एक ऐसी चीज है जिसे फेंक दें पूर्णतः । इस मामले में कोई समझौता नहीं हो सकता। अन्यथा आप योगी नहीं हो सकते, आप ऐसे ही रहते हैं तो यौनानन्द नहीं उठा सकते। आप योगी हो ही नहीं सकते। हो सकता है कुछ समय ऐसा नहीं कर सकते। इस देश में आप यौन के लिए आप शक्तिशाली हो जाएं. हो सकता है. सम्बन्धों का आनन्द नहीं उठाते । कोई भी नहीं । क्योंकि मैं आपसे खिलवाड़ करती रहती हैँ। आपमें तो मूर्खता और गन्दगी के ये सारे आधुनिक सहजयोग में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यदि आप केवल उस देश में, जिसमें लोग पावन हैं. 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-47.txt जुलाई - अगस्त, 2006 चैतन्य लहरी 46 आनन्द उठाया जा सकता है। आप यदि इसका ही धर्मस्य- ग आनन्द उठा पाते तो एक महिला से दूसरी महिला ग्लानि होती है- पतन होता है। परन्तु धर्म का अर्थ की ओर, पुरुष से महिला की ओर, पुरुष से पुरुष केवल भ्रष्टाचार नहीं है केवल ईमानदारी और की ओर, और फिर सभी गधों की ओर न दौड़ते और न ही ये सब कार्य करते। इन घिनौने विचारों यह अंत का आरम्म है। ग्लानिर्भवति" जब-जब भी धर्म की बेईमानी नहीं है। मूलतः इसका अर्थ मूलाधार है। और वे संस्थापनार्थाय- पावन अवस्था में के साथ योगी बन पाना असम्भव है। और फिर आप परिपक्व नहीं हो सकते, कोई सर्वसामान्य व्यक्ति भी इसकी पुनर्स्थापना करने के लिए आते हैं। मानव को परिपक्व नहीं हो पाएगा। भारत में 40 वर्ष का इस स्तर तक उन्नत करने के लिए वे पुनः पृथ्वी पर व्यक्ति परिपक्व पिता बन जाता है। आप लड़कियों अवतरित होते हैं। उनका यही कार्य है। यदि हम को उसके साथ छोड़ दीजिए, किसी को भी उसके साथ छोड़ दीजिए, उसकी खोपड़ी में नहीं कि उनके बीच कुछ हो सकता है। एक बार को स्थापित करना है। परन्तु जिसके अन्दर धर्म ही विवाह होने के पश्चात ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए। नहीं है वह क्या धर्म स्थापना करेगा ? धर्म के पावन मेरा अभिप्राय ये है कि मैंने अपने दो दामादों को पक्ष को स्थापित करने के लिए वे पृथ्वी पर आए, देखा है, उनके दिमाग में कभी ऐसे विचार आते ही रोमन कैथोलिक चर्च या पेंटाकोस्टल चर्च या हिन्दू नहीं। अतः अच्छी चीज़ों में अपने चित्त को लगाएं धार्मिक गतिविधियों या इन हिन्दू मन्दिरों या क्योंकि आपके ईश्वर योगेश्वर हैं । श्री कृष्ण के दूसरे पक्ष का लोगों को ज्ञान ही उसकी पावन अवस्था में स्थापित करना है। परन्तु नहीं है। ये लीला है, ठीक है। परन्तु वे संहार हमारे अन्दर यदि धर्म है ही नहीं तो कैसे हम इसे शक्ति हैं। वे विनाशकारी शक्ति हैं। ये अच्छी बात स्थापित करने वाले हैं ? है कि अपने सारे आयुधों के साथ वे हमारी रक्षा के लिए आते हैं। परन्तु उनके पास सुदर्शन चक्र भी करने के लिए पृथ्वी पर अवतरित होते हैं, परन्तु है। सुदर्शन, सु अर्थात् शुभ 'दर्शन अर्थात् देखना। श्रीकृष्ण के स्तर पर वे योगेश्वर रूप में आते हैं। ये वे हमें शुभ-दर्शन देते हैं। आप उनके साथ चालाकियाँ बात बहुत से लोगों ने सोची ही नहीं है। विष्णु के करें तो वो सब आपकी गर्दन पर आती हैं और तब लिए योगेश्वर शब्द कभी नहीं कहा गया, कि वे आपको अपने शुभ-दर्शन होते हैं कि अब आप कहीं योगियों के ईश्वर हैं, जैसे गणेश गणों के ईश्वर हैं । सहजयोगी हैं तो उनके अस्तित्व के अंग - प्रत्यंग, हैं आएगा ही उनकी कार्यशैली के हम माध्यम हैं। अतः हमने धर्म इस्लामिक अवस्थाओं की तरह से नहीं। हमें धर्म को 1 विष्णु के स्तर पर वे हर बार धर्म की स्थापना आप जानते हैं गणपतिं गणों को सम्भालते हैं और हवा में लटक रहे हैं। अतः श्री कृष्ण का तरीका एक ओर तो ये है वो हमारे ईश्वर हैं। हमें उन्हें अपने आदर्श के रूप कि वे है इस सूझ-बूझ के साथ कि लीलामय हैं, करुणामय हैं अपने भक्तों की में स्वीकार करना रक्षा के लिए उद्यत हैं, धर्म की पुनर्स्थापना के लिए आज वो दिन है- रात को लगभग बारह बजे- पृथ्वी पर अवतरित हैं। धर्म का जब पतन होता है भारत में भी अब रात के बारह बज गए होंगे- रात तो उसकी पुनस्थापना के लिए वे आते हैं। यदा-यदा के इसी समय उनका जन्म हुआ था क्योंकि 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-48.txt चैतन्य लहरी जुलाई - अगस्त, 2006 47 प्रतीकात्मक रूप से यह सच्ची रात्रि थी, अत्यन्त ही, सहजयोगियों की परीक्षा उत्तीर्ण करने से पहले भयानक परिस्थितियों में उनका अवतरण हुआ । ही हमें ये शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं। विश्वविद्यालयों जिन डरावनी परिस्थितियों में उनका जन्म हुआ में जिस प्रकार होता है उसके बिल्कुल विपरीत । उनकी रक्षा हुई और फिर अपनी बाल्यावस्था में ही विश्वविद्यालय पहले आपको डिग्री देते हैं, प्रमाण उन्होंने राक्षसों का वध किया। ये सारा कार्य पत्र देते हैं. तब आपको नौकरी मिलती है, और हो उन्होंने इसलिए किया क्योंकि वे अवतरण थे। आप सकता है कि आपको नौकरी न भी मिले यहाँ पर लोगों से कोई नहीं कह रहा कि जाकर राक्षसों का सर्वप्रथम आपको नौकरी मिल जाती है, आपको सारी शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं- पारितोषिक मिल सहजयोग में क्या मैंने कभी आपसे कहा कि जाता है, परन्तु डिग्री का मिलना अभी भी पक्का किसी राक्षस को मारो ? इसके विपरीत मैं तो यही नहीं है। कोई भी सहजयोगी बनकर घूमने लगता कहती हैँ कि अपनी रक्षा करो। एक राक्षसी आई, हैं, अगले दिन मैं उसे किसी अन्य चीज़ के साथ घूमते देखती हैँ। मैंने देखा है, प्रमाणित सहजयोगी भी हैं। ये बाद में कुछ अन्य प्रमाणित चीज़ बन जाते हैं, परमात्मा जानते हैं कैसे ? तो यह सहजयोग की विशेषता है कि बिना सच्चा प्रमाण पत्र पाए आप सहज योगी बन जाते हैं। निश्चित रूप से ऐसा ही वध करो। उसका नाम पूतना था। अपने स्तनों पर विष लगाकर उसने बाल कृष्ण को अपनी गोदी में लिया और उन्हें स्तनपान कराने लगी। वो बहुत जब उन्होंने उसके स्तन से पीना शुरु किया तो वह राक्षसी अपने असली रूप में आ गई और मारी गई। छोटे बच्चे थे। दूध है। और जैसा आप जानते हैं ये प्रमाण पत्र भगवान निःसन्देह, आखिरकार वे अवतरण थे। क्या ईसा- मसीह स्वयं देते हैं वो बिल्कुल चिन्ता नहीं हममें से कोई ऐसा कर सकता है ? कहने का करते। आसानी से वे प्रमाण-पत्र नहीं देते वे हारने अभिप्राय है सहजयोगी। शैशवकाल में वे अत्यन्त वाले नहीं हैं। सहजयोग के मामले में तो वे बहुत ही नटखट थे। उन्होंने मिट्टी खा ली- न जाने खाई सख्त हैं, वे किसी को प्रमाण पत्र नहीं देनेवाले, भी कि नहीं- उनकी माँ को सन्देह हो गया था पहले वे आपका आँकलन करेंगे और उनका मूल बहुत नाराज़ होकर उसने कहा खोलो, मैं देखना चाहती हैँ कि तुमने मिट्टी खाई है अनुरूप वे आपका आँकलन करेंगे। आपमें यदि या नहीं।" उन्होंने अपना मुँह खोला और उनकी माँ प्रतिअहं है तो आप कह सकते हैं, " ओह मुझे भूत को उनके गले में पूरा ब्रह्माण्ड घूमता हुआ नज़र ने पकड़ लिया था, और भूत ने ही ये सबकुछ किया आया, क्योंकि यह विशुद्धि चक्र है! वह इसे देख है। तो वे कहेंगे, " ठीक है, 'प्रमाणपत्र लेने के लिए पाई क्योंकि उनमें यह देखने की शक्ति थी। हर आप भूत के पास जाओ, मेरे पास मत आओ .. आदमी इसे नहीं देख सकता। जिनमें शक्ति है केचल वही देख सकते हैं। हममें भी ब्रह्माण्ड देखने साक्षी भाव से देख रहे थे ? इन सारी चीज़ों के होते की वो शक्ति नहीं है जो उनमें थी । अतः हमें समझना है कि सहजयोगी बनते ठीक है, अब हम परस्पर झगड़ेंगे नहीं, अब कोई अपना मुँह स्वभाव क्या है ? अबोधिता । आपकी अबोधिता के और आप क्या कर रहे थे, श्री कृष्ण की तरह से .... हुए कभी- कभी लोग मुझे वचन देते हैं कि, "श्रीमाताजी 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-49.txt जुलाई - अगस्त, 2006 चैतन्य लहरी 48 समस्या न होगी, विश्वास रखें हम अत्यन्त प्रेमपूर्वक आज वैसा ही है। निःसन्देह यह महान आनन्द एवं रहेंगे ।" और अचानक मैं पाती हूँ कि कोई स्नानागार खुशी की चीज़ है कि वे अवरतरित हुए और उन्होंने के लिए झगड़ रहा है, साबुन किसी और चीज़ के लिए । सहजयोगी का आचरण लिए ये जान लेना आवश्यक है कि हमारा जन्म एक ऐसा नहीं होना चाहिए। सर्वप्रथम आपको सन्तुष्ट व्यक्ति होना होगा, बहुत बार कह चुकी हूँ। आज केवल एक कंस नहीं महान गरिमाशील और धैर्यवान व्यक्ति अन्यथा आप है, बहुत से कंस हैं, बहुत बड़ा युद्ध चल रहा है और क्या सहन करेंगे ? "मैं उसे बहुत प्रेम करता हूँ यहाँ पर उस युद्ध के कार्यभारी आप हैं। परमात्मा परन्तु उसे मेरा तौलिया नहीं लेना चाहिए था । ने आपको इसके लिए नियुक्त किया है, आप ही छोटी-छोटी चीज़ों को ही यदि आप तूल दिए चले लोग हैं जिनके पास शक्तियाँ हैं और जिन्हें ये जा रहे हैं तो अभी तक आप,योगी नहीं हैं। वस्तुओं महान कार्य सौपा गया है। जन्म के पश्चात् श्री के लिए यदि आप लड़ रहे हैं तो आप बिल्कुल भी कृष्ण के पिता जब उन्हें टोकरी में डालकर और सहजयोगी नहीं हैं। इन चीजों का बिल्कुल कोई सिर पर उस टोकरी को उठाकर उफनती हुई नदी महत्व नहीं है, मैं किसी भी चीज़ के बारे में कुछ को पार कर रहे थे तो श्री कृष्ण का चरण-स्पर्श नहीं कहती, क्या मैं कभी कहती हैँ कि मेरे पास ये करते ही यमुना नदी उतर गई बाढ़ग्रस्त नदी उतर चीज़ होनी चाहिए, वो चीज़ होनी चाहिए. तुमने ये गई। कैसे बनाया, यद्यपि कभी-कभी वह वास्तव में गलत और संहिता-विरोधी होता है! मैं कभी नहीं कृष्ण ने ये सभी शक्तियाँ आपको दी हैं, यद्यपि कहती कि आप ये केले क्यों ले आए हैं ये अच्छे नहीं हैं, मैं इन्हें नहीं खाऊंगी। मैंने कभी ऐसा जब भगवान ईसा-मसीह आपको सहज-योगी के कहा ? कहने से अभिप्राय ये है कि जो फूल आप अर्पण करते हैं वो भी चाहे शुभ न हों, क्योंकि मैं क्योंकि आपको अबोध बनना होगा, अपने अन्दर जानती हूँ कि कुछ प्रकार के फूल पूजा में उपयोग पावनता लानी होगी। पिछली बार इस महान दिवस नहीं होने चाहिएं. परन्तु मैं अपना मुँह नहीं खोलती मैं यदि आपको बताती हैँ तो केवल इसलिए कि अधिकतर सफल हुए। सभी नहीं, अधिकतर सफल इसमें आपका हित है, मेरा नहीं । तो इस दिवस पर, जो पूरे विश्व के लिए जोड़े आए। यह अत्यन्त मंगलमय था । विवाह महान आनन्द एवं प्रसन्नता का दिन है, आपको एक आपको पावनता-विवेक प्रदान करता है। इसीलिए बात जान लेनी चाहिए, कि ईसा-मसीह का जब सहजयोग में विवाह महत्वपूर्ण है । परन्तु ये अन्तिम के लिए या ऐसी ही हमें अपनी विशुद्धि -शक्ति प्रदान की परन्तु हमारे अत्यन्त खतरनाक समय पर हुआ है। ये बात में इसी प्रकार से आपमें भी ये सभी शक्तियाँ हैं आपको इन शक्तियों की समझ केवल तभी आएगी रूप में स्वीकार कर लेंगे। और ये आवश्यक है । पर हमने यहाँ सोलह विवाह करवाए थे उनमें से हुए, और मुझे प्रसन्नता है कि उस दिन इतने अच्छे शब्द भी नहीं है क्योंकि यह सबके लिए शिकार का मैदान नहीं है कि मैं आपके लिए आज ये पति ढूँढ रही हूँ कल वो पति ढूँढ रही हूँ। ये चीज़ पूर्णतः जन्म हुआ था तब वे अत्यन्त तुच्छ स्थान पर जन्में थे, परन्तु जब श्री कृष्ण का जन्म हुआ तो परिस्थितियाँ अत्यन्त भयावह थीं सहजयोगियों के मामले में भी 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-50.txt जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2005 49 समाप्त हो जानी चाहिए। इसे सहज पर छोड़ दें। नहीं है। खाना खाना और अपनी पत्नी के साथ सहजयोग में पत्नियाँ या पति बिल्कुल नहीं खोजने होना एक सा है- शरीर की आवश्यकता मात्र। हैं। ये कार्य छोड़ दें। आपने यदि ऐसा कुछ किया परन्तु आप सड़कों पर नहीं खाते, क्या आप ऐसा तो आपको हानि होगी। करते हैं ? आप गन्दी प्लेटों में नहीं खाते, क्या आप खोज आदि न करें। समय आने पर मैं खाते हैं ? आप स्वच्छ प्लेट लेना चाहते हैं। आप आपको बताऊंगी कि किस व्यक्ति से विवाह करना ऐसी प्लेट चाहते हैं जो स्वच्छ हो, और केवल आपने | लोग तो यहाँ पर प्रणय निवेदन शुरु कर देते उपयोग की हो। ये प्लेट स्वच्छ होनी चाहिए। यदि हैं! सहजयोग में इसकी आवश्यकता नहीं है. इसकी आप अधिक स्वच्छ प्लेट ले सकते हैं तो आप इसे बिल्कुल आवश्यकता नहीं है। हमारे सम्मुख बहुत लेना चाहेंगे। यदि आपको चाँदी की प्लेट मिल से उदाहरण हैं जिनमें इस प्रकार से विवाह तय हुए. सकती है तो आप इसे लेना चाहेंगे. सोने की प्लेट उन्होंने विवाह किया और उनका विवाह बहुत और भी बेहतर होगी। इसी प्रकार से हमारे अन्दर सफल रहा। ऐसे भी लोग थे जिन्होंने प्रणय निवेदन अत्यन्त पावन सूझ बूझ होनी चाहिए कि यह शरीर किए. चुनाव किए. अनुमोदन किए, सभी कुछ किए की आवश्यकता है. उस शरीर की जो बहुत ही और अन्त में पाया गया कि दो दिन के बाद वे सूक्ष्म बन सकता है। अतः हमें सर्वत्र इसका विपणन, तलाक के लिए खड़े हो गए थे सहजयोग में यह इसकी खोज आदि नहीं करते रहना चाहिए- ये स्वतः और तुरन्त होता है । आपको ये सब नहीं ऐसा है. ये वैसा है. और फिर छोड़ देना। ये आप के करना पड़ता, इन सारी चीजों से आपको क्या प्राप्त पास विशेष रूप से आना चाहिए। सारी महान हुआ है ? ये तो स्वतः है। आपको इसकी चिन्ता घटनाएं अचानक घटित होती हैं। जितना ज्यादा नहीं करनी, इसके बारे में नहीं सोचना, ये नहीं विचार-विमर्श करेंगे, परिणाम उतने ही बुरे होंगे । कहना कि ओह, श्री माताजी मुझे उसके लिए एक अतः धारणाएं न बनाएं, इसके विषय में योजनाएं न लड़की खोजनी है।" आपको ऐसा कुछ नहीं करना, बनाए ये घटित हो जाएगा, ये इतना अधिक महत्वपूर्ण ये सब मुझ पर छोड़ दो, ये मेरी सिरदर्दी है। परन्तु नहीं है। इस प्रकार आपको काफी पावनता प्राप्त in जब एक बार आपका विवाह सहजयोग में हो जाता होगी, आपका अहं ठीक हो जाएगा। है तो आपको इसका अर्थ पता होना चाहिए. और आप दोनों को चाहिए कि इसे भली-भान्ति कार्यान्वित विवाह न करना चाहता था और जब मैंने उस करें। यदि ये सबके हित के लिए है तो ये सबके व्यक्ति का सुझाव दिया, जिसे मैंने कठिनाई से हित के लिए होना चाहिए। ये ऐसा ही है । आज के दिन मैं कहूंगी कि आइए शपथ लें विवाह नहीं करना चाहती।" ये अजीब बात है! कि हम योगेश्वर की पूजा करने का निर्णय करेंगे जिस प्रकार हमारा अहंकार कार्य कर रहा है, यह आपको उनकी पूजा करनी होगी- अर्थात् इन बड़ा अजीब है, क्योंकि जब हम दूसरे व्यक्ति को चीज़ों के विषय में हमारे सम्बन्ध स्वच्छ होने चाहिएं। विवाह आदि के लिए देख रहे होते हैं, तो योगेश्वर इन चीज़ों से हम लिप्त नहीं होंगे, कुछ भी महत्वपूर्ण के बारे में नहीं सोचते । ये नहीं सोचते कि योगेश्वर मैं ऐसे व्यक्ति को जानती हूँ जिससे कोई मनाया था, तो उसने उत्तर दिया कि " मैं उससे 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-51.txt जुलाई चैतन्य लहरी अगस्त, 2006 50 ने ही हमारे सब कार्य करने हैं। हम सोचे चले जाते हों, राजा हों या रानी। उन्हें तो केवल कोई योगी हैं कि हमने ये कार्य करना है इस प्रकार हम किए ही बुला सकता है, केवल योगी ही उनसे मदद मॉँग चले जाते हैं और अपने चित्त को पूरी तरह विक्षिप्त सकता है। उन्हें किसी और की कोई चिन्ता नहीं कर लेते हैं "सर्व धर्माणां परित्यज्य, मामेकं शरणं है कोई योगी यदि सिफारिश करे, केवल तभी वे ब्रज"। अपने इस निर्णय को यदि आप परमात्मा किसी अन्य पर कृपा करते हैं अन्यथा वे किसी की पर छोड़ सकें तो बेहतर होगा। मैं आपको बताती हूँ चिन्ता नहीं करते। वास्तव में वे आपके अपने राजा कि यदि आप ऐसा कर सकते हैं तो आपने अपने हैं, जो आपकी देखभाल करने के लिए हमेशा मौजूद अहं का दरिया आधा पार कर लिया है । इसमें कम हैं। जब-जब भी आप उन्हें बुलाते हैं तो वे आपकी से कम पचास प्रतिशत अहं का उपयोग तो होता ही रक्षा करने के लिए अपनी सारी शक्तियों के साथ है विशेष रूप से पश्चिम में भारत में ये प्रश्न दौड़े चले आते हैं। परन्तु आपको योगी होना होगा । अधिक नहीं होता। क्योंकि यहाँ पर माता - पिता आप यदि भगवान ईसा-मसीह द्वारा प्रमाणित योगी निर्णय नहीं कर सकते कोई अन्य निर्णय नहीं कर नहीं हैं तो श्री कृष्ण का आपसे कुछ लेना-देना नहीं । सकता आपको स्वयं निर्णय करना पड़ता है। आपके लिए यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी और बहुत बड़ी बात है। तो मैं आपको बताती हैँ कि यदि स्वयं दूल्हा या उन्होंने आपकी अबोधिता का ऑकलन नहीं करना, दुल्हन छाँटने की जिम्मेदारी आप छोड़ दें तो दरवाजे में भगवान ईसा-मसीह खड़े हैं आप जब आपकी अहं की समस्या पचास प्रतिशत समाप्त हो प्रवेश करते हैं तो ठीक है। परन्तु इस दरवाजे में जाएगी। मात्र, इसे भूल जाएं। शक्ति की इतनी बर्बादी जब मैं युवा लोगों आपको उठाकर बाहर फेंक रहे होते हैं। को ये सारे कार्य करते देखती हूँ तो सोचती ह कि अतः श्री कृष्ण तक पहुँचने से पहले, यद्यपि प्रवेश करना भी कठिन है क्योंकि ईसा-मसीह तो हूँ। श्री कृष्ण ने कहा है, श्री ईसा मसीह से काश, ये अपने जीवन का मूल्य, जीवन का सम्मान उन्होंने कहा कि 'आप आधार होंगे, पूरे ब्रह्माण्ड का समझ पाते! श्री कृष्ण उनके ईश्वर हैं। वे हर किसी आधार।" अर्थात् अबोधिता ही ये आधार है, ये के ईश्वर नहीं हैं, केवल योगियों के हैं। कोई अन्य अबोधिता यदि आपमें स्थापित नहीं हुई है तो श्री यदि हरे राम-हरे कृष्ण जपने का प्रयत्न करेगा कृष्ण आपकी सहायता नहीं कर सकते। तब वे तो उसे गले का कैंसर हो जाएगा। कोई भी ऐसा लाचार हैं। आप क्योंकि योगी नहीं बनते इसलिए वे व्यक्ति , जो योगी नहीं है, यदि उनका आहुवान अब आपके ईश्वर नहीं हैं जब हम कहते हैं, श्री करने का प्रयत्न करता है तो उसे गले की समस्या माताजी आज्ञा चक्र यहाँ है और वे यहाँ हैं, ठीक है। हो सकती है। तो श्री कृष्ण केवल आपको जब आप आज्ञा चक्र को पार करते हैं तों वे यहाँ उपलब्ध हैं, वे आपके ईश्वर हैं। केवल आपके लिए (आज्ञा) बैठे हुए हैं और विराट यहाँ (आज्ञा चक्र से वो प्रकट होते हैं। वे आपके अपने हैं। किसी ऊपर विराट का स्थान) बैठे हैं। अतः जब तक आप ऐरे-गैरे नत्थू-खैरे के लिए वे कार्य नहीं करते। अपने आज्ञा चक्र को ठीक से पार नहीं कर लेते उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता , चाहे आप प्रधानमन्त्री आप विराट तक नहीं पहुँच सकते। और योगेश्वर 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-52.txt चैतन्य लहरी जुलाई अगस्त, 2006 51 तो विराट हैं। इसी तत्व की हमने पूजा करनी है, हमारी आँखों में स्थापित होगी। हम अबोध बन इसी तत्व की पूजा करनी है! पूजा कर अर्थ यह नहीं है कि आप वही आँखों का क्या लाभ है जो कभी टिकती ही नहीं ? व्यक्ति बन जाएं। आप मेरी पूजा करते हैं, परन्तु आप ये भी नहीं जानते कि वे कहाँ जा रही हैं, आप मैं नहीं बन जाते। जब आप पूजा करते हैं तो अस्थिर आँखें, आप इधर-उधर देखते रहते हैं! जाएंगे, हमारी आँखें अबोधिता को दर्शाएंगी। उन क्या होता है ? आप सारे अंधकार को अग्नि जल अपनी आँखों पर भी आप विश्वास नहीं कर सकते। तथा अन्य तत्वों में फेंककर समर्पित हो जाते हैं। परन्तु जो आँखें अबोध हैं बाहर से कुछ नहीं लेती, अपना हृदय आप मुझे सौंप देते हैं। यही पूजा है। वे केवल देती है, वे केवल देती हैं पावनता कहीं भी इसी प्रकार से आपने मेरे अन्दर के श्री कृष्ण, प्रवेश कर सकती है, अत्यन्त पावनी है. सुखद है योगेश्वर की पूजा करनी है। मैं योगेश्वर हूँ। चीजें और अत्यन्त सुन्दर है। हमें सुन्दर व्यक्ति बनना मेरे मस्तिष्क में बिल्कुल नहीं घुसतीं, इस प्रकार से होगा । मैं चीजों को नहीं देखती, मैं नहीं जानती कि ये प्रलोभन क्या है, ये आकर्षण क्या है? मुझे बिल्कुल जिस प्रकार लोगों को ये बात समझ नहीं आती कि समझ नहीं आता। इसके विपरीत ये चीजें मुझे दूर सहजयोग में यौन सम्बन्धों का पावित्र्य इतना महत्वपूर्ण करती हैं, इनसे मुझे घृणा आती है, उल्टी होती है। इन चीजों को सुनने के लिए मैं अपने कान खोलना परेशानी होती है । लोग समझते ही नहीं । भारतीय नहीं चाहती, मेरे कान बहरे हो जाते हैं । ये मैं सुन लोगों के लिए इस प्रवचन का कोई अर्थ नहीं। वो तो नहीं सकती, गन्दे मज़ाक मेरी समझ में नहीं आते। सोचेंगे कि क्यों श्रीमाताजी अपनी इतनी शक्ति नष्ट इसके लिए मेरे पास मस्तिष्क नहीं है। मेरा मस्तिष्क कर रही हैं! क्योंकि वो नहीं समझते। परन्तु समझने से इन्कार कर देता है। मैं गूँगी हो जाती लिए ये बहुत महत्वपूर्ण है । जो भी कुछ मैंने देखा हूँ, पूर्णतः गूँगी और बहरी। लोगों ने इन चीजों पर और सुना हैं, जो मैं चहूँ ओर देखती हूँ, उसीके पुस्तकों पर पुस्तकें लिख दी हैं. मेरी समझ में नहीं संदर्भ में । मैं सोचती हूँ कि आज का सन्देश आता कि उन्होंने क्या लिखा होगा! ऐसी चीजों में योगेश्वर का सन्देश होना चाहिए । आइए हृदय से लिखने के लिए क्या है ? आज मैंने ये सारीं बातें इसलिए कहीं क्योंकि है, विशेष रूप से पश्चिम में, तो कई बार मुझे मेरे योगेश्वर की पूजा करें। आज जब आप मेरी पूजा तो आज हमने ये समझना है कि हमारा करेंगे तो यह योगेश्वर की पूजा होगी, किसी अन्य व्यक्तिगत जीवन अत्यन्त स्वच्छ होना चाहिए। हर की नहीं । क्षण हमें अपना सामना करना है और अपने अन्दर देखना है कि क्या हम वास्तव में अपने अन्तःस्थित परमात्मा आप पर कृपा करें। योगेश्वर की पूजा कर रहे हैं ? आइए अपने अन्दर (रूपान्तरित) वह पावनता विकसित करें केवल तभी अबोधिता 2006_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_IV.pdf-page-54.txt 1) 231