ं पव ब चैतन्य लहरी २ ार जनवरी फरवरी 2007 चै त न्य लहरी अंक : 1-2,2007 NIRMALA. IVERSAL PURE इस अंक में निर्मल नगरी पुणे में श्री महालक्ष्मी का पूनर्आगमन (22.10. 2006) परम पूज्य श्रीमाताजी के प्रेम का 1000 वॉ माह (28.7.2006) 6. क - सोमवार, 31 जुलाई, 2006 इज़राइल के शरणार्थी कैम्प में आत्मसाक्षात्कार परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी से प्रार्थना ৪ परम पूज्य श्रीमाताजी को इंग्लैण्ड से विदाई (2.8.2006) 9. 2 अगस्त, 2006 लन्दन में एक अद्भुत दिवस 11 श्रीमाताजी लॉसएंजलिस में - 3 अगस्त, 2006 12 10.5.1992 सहश्रार पूजा - कबैला 13 अबोधिता 24 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन- चेलशम रोड, लन्दन 25 (24 मई, 1981) कनाडा से एक पत्र (निर्मला योग) 34 सहजयोग में अगुआ -2 35 दिल्ली, 18 अगस्त, 1979 परम पूज्य श्री माताजी का प्रवचन 37 DHARMA VMRSIA HELICION 7. ल ह री चै त नय प्रकाशक निर्मल ट्राँसफोर्मेशन प्रा. लि. प्लाट नं. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड कोथरुड पुणे फोनः 020-25285232 411 029 मुद्रक कृष्णा प्रिन्टर्ज एण्ड डिज़ाइनर्ज़ 292/23 ओंकार नगर 'बी त्रीनगर दिल्ली-110035 मोबाइल : 9212238008 लि ततन आप अपने सुझाव, सदस्यता एवं जानकारी के लिए निम्न पते पर लिखें : निर्मल ट्राँसफोर्मेशन प्रा. लि. प्लाट नं. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी पॉड रोड, कोथरुड पुणे फोनः 020-25285232 411 029 अपने अनुभव, सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ.पी. चान्दना जी-11-(463), ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली-110 034 फोन : 011-65356811 हि. नगरी पुणे की पावन भूमि पर निर्मल श्री महालक्ष्मी का पुनअगमन रविवार, 22 अक्तूबर 2006 होगा-कृतयुग। यह वह समय है जब कार्य होगा (*परम पूज्य श्री माताजी चैलराम रोड लन्दन 2 अप्रैल 1982') । दिवाली के त्यौहार का सूक्ष्म महत्व यह भी है रविवार, 22 अक्तूबर 2006 का दिन मानव इतिहास में अत्यन्त महत्वपूर्ण है। हजारों वरषों के बाद एक बार फिर पुणे (भारत) के खाप्टेवाड़ी गाँव, भूकुम में बनाई गई निर्मल नगरी की पावन भूमि पर परम-पूज्य श्रीमाताजी के रूप में श्री महालक्ष्मी के चरण-कमल पड़े। कि यह श्री राम की रावण पर विजय और उनकी अयोध्या वापसी से सम्बन्धित है। उनके आगमन की खुशी में प्रकाश उत्सव मनाया गया था। आसुरी शक्तियों पर अच्छाई की विजय का आनन्द लेने के लिए हर व्यक्ति प्रेमदीप जलाना चाहता है ताकि उनके अन्दर राजलक्ष्मी तत्व ज्योतिर्मय हो सके। श्रीमाताजी कहती है :- हजारों वर्ष पूर्व त्रेतायुग में श्री विष्णु और श्री महालक्ष्मी के अवतरण श्री राम और सीताजी ने अपने चरण-कमलों से इस भूमि को चैतन्यित किया था । महाराष्ट्र ही केवल ऐसा प्रदेश था जहाँ श्री सीता-राम नंगे पाँव पैदल चले। मिथक इस प्रकार से है कि चौदह वर्षों के बनवास में श्री सीता-राम ने कुछ समय इस भूमि पर बिताया खाप्टेवाड़ी के ग्रामीण इस बात का दावा करते हैं कि जो बर्तन श्रीराम और सीता ने उस समय उपयोग किए थे उनके अवशेष साथ वाली पहाड़ी पर मौजूद हैं और उनके उस स्थान पर आने का प्रमाण है। इस भूमि पर प्रवाहित होने वाला हैं। "आपकी आत्मा के लिए जो कुछ भी अच्छा है, यह संयोजन होते ही वह स्वतः कार्यान्वित हो जाएगा, आज सहजयोग का यही कार्य है। इसीलिए मैंने कहा कि यह कृतयुग है और इसमें यह कार्य होना है। यह समन्वय हमें अपने अन्दर प्राप्त करना है, अतः कई बार आपको अपने शरीर उस स्तर के बनाने पड़ते चैतन्य भी इसके महत्व को बताता है। इसी पावन (परम पूज्य श्री माताजी चैलराम रोड, लन्दन 2 अप्रैल 1982) भूमि के लगभग ग्यारह एकड़ क्षेत्र में निर्मल नगरी बनाई गई है। श्री राम के अवतरण के बारे में बताते हुए एक बार श्रीमाताजी ने बताया था कि इस भूमि को चैतन्यित करने के लिए श्रीराम वहाँ पर नंगे पाँव चले और पृथ्वी तत्व के रूप में वहाँ श्री गणेश अपनी अभिव्यक्ति करते हैं। दिवाली पूजा का उत्सव मनाने के लिए आत्म-साक्षात्कारियों की सामूहिकता के रूप में विद्यमान यहाँ उपस्थित हम सब सहजयोगी कितने भाग्यशाली हैं! और इसी पावन भूमि पर दिसम्बर 2006 में हमें ईसा-मसीह के जन्म दिवस का उत्सव मनाने का भी सौभाग्य प्राप्त होगा! "क्योंकि पहली बारं जब मानव पृथ्वी पर आया तो वह सभी पशुओं और भयानक राक्षसों से भयभीत था। ऐसी स्थिति में मनुष्य को एक राजा, सारी भाग-दौड़ और दिन की तपन के बावजूद भी ये दिवस अत्यन्त आनन्ददायी था शाम के समय थोड़ी सी ठण्ड हो गई थी और आकाश में छिट-पुट बादल भी दिखाई दे रहे थे आज निर्मल नगरी बिल्कुल भिन्न नजर आ रही थी। सर्वत्र आनन्द एक शासक की आवश्यकता थी जो आदर्श राजा हो और धर्म-पूर्वक शासन करे। श्री राम उन्हीं शासकों में से एक थे वे त्रेता युग में अवतरित हुए और श्री में। कृष्ण द्वापर युग मैं जब अवतरित हुई तो कलियुग था परन्तु एवं उल्लहास का वातावरण था और सभी हृदय इसका पूर्ण आनन्द उठाना चाहते थे। आज कृतयुग का समय है-ऐसा युग जिसमें कार्य अंक : ।। & 12 -2006 चैतन्य लहरी दिवाली से पूर्व के दिनों में इन्टरनैट से प्राप्त हुई सूचनाओं से सभी योगियों के हृदय प्रफुल्लित थे क्योंकि हमें पता चला था कि श्रीमाताजी का स्वास्थ्य पावनी माँ का स्वागत करने के लिए स्थान ग्रहण करने को भागते हुए सहजयोगियों को देखना वास्तव में एक दृश्य था! मानों सभी हृदय उनकी स्तुति गान बहुत अच्छा है, वे बहुत प्रसन्न है। इग्लैण्ड में वे खरीददारीके लिए भी गईं और एक शाम सहजयोगियों के साथ उन्होंने अपने ही लिखे हुए भजन का एक पूरा कर रहे हों, "शुभ-मंगलमय दिवस है आया......आदि शक्ति हैं स्वयं पधारी " कुछ समय के लिए पूर्ण शान्ति छा गई। श्रीमाताजी, विशेष रूप से उनके लिए सजाए गए, मंच के साथ के कमरे में आ गईं थी। चैतन्य प्रवाह अन्तरा गाया-माँ तेरी जय हो, तेरी ही विजय हो। पूजा का समय शाम को साढ़े पाँच बजे घोषित किया गया था और अब सभी आँखें दिवाली में उनके पावन दर्शन करने की प्रतीक्षा कर रहीं थी। विश्व भर के देशों से महालक्ष्मी रूप में परम पूज्य श्रीमाताजी के चरण कमलों की पूजा करने के लिए निर्मल नगरी में एकत्र हुए चौदह-पन्द्रह हजार सहजयोगियों का | बता रहा था कि परम पावनी माँ वहाँ विराजमान हैं। और फिर अचानक "स्वागत आगत स्वागतम की पूजा धुन लहरा उठी। पौने छः बज चुके थे परन्तु मंच के पर्दे अभी तक गिरे हुए थे। प्दे जब हटे तो मंच पर स्वर्गीय दृश्य था। सभी लोग वहाँ लगे चार विशाल स्क्रीनों पर मद्धम नजर आने वाली तस्वीरों को देख रहे थे, क्योंकि अभी तक पर्याप्त अन्धेरा नहीं हुआ उल्लास देखते ही बनता था! आम सोच तथा पूर्वानुभवों के अनुसार अधिकतर लोगों ने यही सोचा कि पूजा के लिए घोषित समय, वास्तव में श्रीमाताजी के पहुँचने से बहुत अधिक पहले होता है यद्यपि पूजा का समय साढे पाँच बजे शाम घोषित किया गया था फिर भी पाँच था। तभी श्री आदि-शक्ति माताजी श्री निर्मला देवी का जयकारा गूंज उठा और उसके पश्चात् सर सी पी. प्रिय पापाजी, का जय घोष हुआ। तत्पश्चात् सर सी पी. ने माइक पर विश्व सामूहिकता के सम्मुख, अपनी विशेष शैली में, हिन्दी भाषा में परम पावनी माँ का पावन सन्देश सुनाया। बजे तक पूरी सामूहिकता ने इसे गम्भीरता से नहीं लिया था। वे नहीं जानते थे कि दिव्य-लीला क्या है। पूजा स्वीकार करने के लिए श्रीमाताजी समय से पूर्व ही तैयार हो गई थीं। क्या ये चैतन्यित- भूमि परम "उन्होंने कहा-"श्रीमाताजी ने आप सबके लिए सन्देश दिया है...हम सब एक है, परमात्मा केवल 13D एक है, कहने के लिए अब कुछ नहीं बचा है। इस लक्ष्य के लिए और मानव मात्र के हित के लिए उन्होंने पिछले पैंतीस वर्षों में विश्व भर में अथक प्रयास किए पावनी माँ का स्वागत करने के लिए बेचैन थी या पूजा स्वीकार करने के लिए स्वयं महालक्ष्मी की एक बार फिर वहाँ जाने की इच्छा थी? या श्रीमाताजी श्री गणेश की इस इच्छा को नकार नहीं पाई कि वे समय से पूर्व पहुँचकर अपने दर्शन दें? अत: श्रीमाताजी ने पूजा के घोषित समय से बहुत पहले प्रतिष्ठान से रवाना होने का फैसला किया। हैं और यात्राएं की हैं। अब हमें भूल जाना चाहिए कि हम भिन्न है। हमं सब एक है और उनके स्वप्न को साकार करने की तथा पूरे देश में उनके सन्देश को फैलाने की जिम्मेदारी हमें अपने कन्धों पर ले लेनी चाहिए। अचानक कारों का एक काफ़िला श्री माताजी की कार के पीछे-पीछे आता हुआ. पौने पाँच बजे निर्मल नगरी के द्वार के समीप दिखाई दिया। मार्गदर्शक कार (Pilot Car) श्रीमाताजी की गाड़ी के आगे आगे चल रही थी। इतने थोड़े समय में परम श्रीमाताजी गहनता पूर्वक सामूहिकता को देख रहीं थी और कभी-कभी वे अत्यन्त स्नेहपूर्वक हमारे प्रिय पापाजी को देख लेती थीं मानों स्वीकृति में सिर हिला रहीं हों। उनकी सुन्दर मुखाकृति हमें प्रसिद्ध चैतन्य लहरी अंक : ।। & 12 - 2006 भजन की याद दिला रही थी, "प्यार भरे ये दो निर्मल नैन।' मानों उनके पावन दर्शनों के आशीर्वाद से हमारे हृदय पिघल रहे हों! नि:सन्देह यही वह क्षण था जिसकी हज़ारों साधकों को प्रतीक्षा थी । लाइन लगा ली। भारत, फ्रांस आस्ट्रेलिया, स्विटजरलैण्ड, पुर्तगाल, इटली, बहरीन, हॉग-कॉग, आस्ट्रिया. मालता, आयर लैण्ड, बल्गारिया, रूस, यूनान, अर्जेन्टीना, रोमानिया, अमेरिका तथा अन्य बहुत से देशों ने अपने उपहार अर्पण किए। छिन्दवाड़ा योजना के विकास के लिए मिन्न देशों द्वारा उदारता-पूर्वक दी गई धनराशियाँ महालक्ष्मी तत्व की अभिव्यक्तियाँ कर रहीं थी। उपहार अर्पण समारोह की समाप्ति पर घोषणा की गई कि चौबीस, पच्चीस और छब्बीस दिसम्बर 2006 को निर्मल नगरी पुणे में अन्तराष्ट्रीय ईसामसीह जन्म दिवस पूजा का आयोजन किया जाएगा। तालियाँ बजाकर योगियों ने इस घोषणा का स्वागत किया। लगभग साढ़े सात या पौने आठ बजे मंच के पर्दे गिरा दिए गए और सारी सामूहिकता अपने हाथ फैलाकर खड़ी हो गई। तेज हवा का एक झोंका आया और उसी के साथ सामूहिकता पर बारिश की कुछ बूँदें गिरीं। सवा छः बजे बच्चों-नन्हे गणेशों-को परम पूज्य श्रीमांताजी के चरण कमलों की पूजा फूलों से करने के लिए मंच की ओर दौड़ते देखा गया। श्री गणेश अथर्वशीर्षम् पढ़ा जा रहा था, तत्पश्चात् 'विनती सुनिए आदिशक्ति और फिर श्रीमाताजी के 108 नामों वाला भजन 'जागो सर्वरा' गाया गया| इसके बाद सात विवाहित महिलाओं ने श्री महालक्ष्मी के श्यृंगार के लिए उनके सम्मुख पर्दा पकड़ा और 'महामाया महाकाली, तुझया पूजनी तथा महालक्ष्मी स्तोत्रम हुए गाए गए। ठीक सात बजे आरती और तीन महामन्त्रों के साथ श्री महालक्ष्मी रूप में श्रीमाताजी के चरण कमलों में दिवाली पूजा का समापन हुआ। हे परम पावनी माँ केवल आपकी कृपा से ही आज हम यहाँ उपस्थित हो पाए । विश्व भर के सहजयोगी भाई-बहनों की ओर से हम सब प्रार्थना करते हैं कि आपके चरण कमलों में हमारे कोटि-कोटि प्रणाम स्वीकार हों। पूजा को स्वीकार करने के लिए पूर्ण समर्पित हृदय से हम आपके प्रति -आभारी हैं। रंग-बिरगी आतिशबाजी का प्रदर्शन ऐसा प्रतीत हुआ मानो वरुण देवता और सभी गण इस पावन भूमि पर श्रीमहालक्ष्मी की पूजा से प्रसन्न होकर हल्की-हल्की बूंदों से अपने आनन्द की अभिव्यक्ति किए बिना न रह सके हों। नन्हीं-नन्हीं बूँदें शनै शनैः बड़ी बूँदों में परिवर्तित हो गईं और श्रीमाताजी के जाने के बाद आधा घण्टे तक बरसती रहीं बारिश की बूँदों से पावन मिट्टी की सुगन्ध सर्वत्र फैल गई। परन्तु बूँदें इतनी बड़ी भी न थीं कि योगीगण भीग सकें। वातावरण अत्यन्त आनन्दमय तत्पश्चात् अद्भुत हुआ जिसने निर्मल नगरी के पूरे आकाश को आच्छादित कर दिया। उल्लसित नन्हे गणेश (बच्चे) इधर-उधर उछलते हुए दिखाई दिए और स्वयं श्रीमाताजी भी अत्यन्त प्रसन्नता एवं प्रेम पूर्वक आकाश की ओर देखती हुई दिखाई दीं मानो अपने बच्चों के प्रेम-प्रदर्शन को कबूल रही हों। चैतन्य-लहरियों का प्रवाह आश्चर्यजनक था ! हो' गया था। साढ़े आठ हज़ार योगियों नेबाकी की शाम चैतन्य का आनन्द उठाया और लगभग पाँच से छः हजार लोग पूजा स्थल से श्री महालक्ष्मी पूजा में चैतन्य स्नान करके अपने घरों को लौट गए।। जय श्रीमाताजी आकाश में अभी आतिशबाजी चल ही रही थी कि मेजुबान देशों के प्रतिनिधियों, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय, ने श्रीमाताजी को उपहार देने के लिए रबि घोष (भारत) (इन्टरनैट विवरण) इटली से समाचार श्रीमाताजी के प्रेम का १०००वा माह परम-पूज्य तत्पश्चात् श्रीमाताजी ने कबेला में अपने पन्द्रह वर्ष तथा इटली में 25 वर्षों का एक डी.वी.डी. देखा । इसमें Ave Maria का पार्श्व संगीत था जिसने हमें स्वर्गीय अवस्था में पहुँचा दिया। 21 जुलाई रात्रि को पृथ्वी पर परमेश्वरी माँ की उपस्थिति के 1000वें माह के मंगलमय समारोह पर गुलाब की पंखुड़ियों से सजाया हुआ एक बहुत बड़ा केक श्रीमाताजी को भेट किया ग!। उसी दिन इटली के योगियों द्वारा लिखा गया विज्ञापन वहाँ के स्थानीय समाचार पत्र में छपा। इस विज्ञापन में पिछले पच्चीस वर्षों में श्रीमाताजी द्वारा इटली में किए गए कार्य तथा उनके द्वारा की गई आशीष वर्षा के लिए उनके प्रति आभार प्रकट किया गया यही विज्ञापन अगले दिन चार राष्ट्रीय समाचार पत्रों "La Republica" के स्थानीय अंकों में छापा गया। 22 जुलाई की शाम को इटली तथा आस-पास के देशों के सैंकड़ों सहजयोगी प्लाजोडोरिया में श्रीमाताजी के पृथ्वी पर अवतरण के 1000वें माह का समारोह मनाने के लिए तथा हम सब पर अथाह प्रेम की वर्षा करने के लिए, कबेला से प्रस्थान करने से पूर्व, उनके प्रति नतमस्तक आभार प्रकट करने के लिए एकत्र हुए। तत्पश्चात् एक हजार मोमबत्तियाँ जलाकर श्रीमाताजी के चरण कमलों में भेंट की गई, उसके बाद योगियों की शोभा-यात्रा आरम्भ हुई। सभी एकत्र योगियों-कुछ सौ, ने लम्बी लाइन बनाकर एक के बाद एक हॉल में प्रवेश किया और सभी ने श्रीमाताजी को प्रणाम करके उनके चरण कमलो में उपहार, पुष्प, चित्रित कार्ड आदि भेंट किए। To, the Modher all Guaus सर सन्ध्या का अन्त "सभी गुरुओं की माँ" को एक बहुत बड़ा केक भेट के साथ हुआ। इस केक के साथ दस अन्य केक भी थे जो दस आदिगुरुओं के । संध्या का आरम्भ कबेला की योगिनियों और युवा शक्ति द्वारा हृदय-स्पर्शी नृत्य से हुआ। तत्पश्चात् शक्ति को परमेश्वरी माँ के चरण कमलों में भजन गाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आस्ट्रिया और इटली के योगी-योगिनियों द्वारा गाए गए कुछ भजनों ने पूरे वातावरण को चैतन्य एवं शान्ति से परिपूर्ण कर दिया। तत्पश्चात् डैगलियो कैम्प के बच्चों ने अपने आनन्ददायी भजनों से उपस्थित योगियों को স্থাततি। पूरी युवा प्रतीक थे। जब यह सब हो रहा था तो साथ के कमरें में युवा-शक्ति परमेश्वरी माँ का गरिमागान करने के लिए भजन गाने में व्यस्त थी। जय श्रीमाताजी The Australian Sahaja Yoga News Letter, 28 July, 2006 मन्त्रमुग्ध कर दिया। ास एका इज़राइल के शरणार्थी कैम्प में आत्म-साक्षात्कार सोमवार 31 जुलाई 2006 वहाँ सबकुछ अत्यन्त सुन्दर था और वहाँ का वातावरण पूर्णतः आश्चर्य-जनक। लोग वास्तव में आन्तरिक शान्ति खोज रहे थे और आत्म साक्षात्कार प्राप्ति के लिए वास्तव में आभारी थे। बहुत से लोगों ने मुझे बताया कि दो सप्ताहों से जो चिन्ताएं और भय उन्हें सता रहे थे, आत्म-साक्षात्कार के बाद वे किस प्रकार समाप्त हो गए। बड़ी संख्या में बच्चे भी कल हम (मैं, गिरीश, शंकर, डेविड और बहुत से अन्य सहजी जिन्हें आप नहीं जानते) एक ऐसे स्थान पर गए जो भूमध्य-सागर के तट पर दक्षिणी इजराइल में एक प्रकार का शरणार्थी शिविर है। ( हिजबल प्रतिदिन उत्तरी में लगभग सौ बम फेंकता है जिसके कारण उत्तरी नागरिक बचाव के लिए दक्षिण की ओर चले गए हैं। इजराइल हमारे पास आए और बहुत लम्बे समय तक गहन ध्यान में बैठे रहे। इस शिविर में लगभग सात हजार शरणार्थी हैं जिनकी भली-भांति देखभाल की जा रही है और उन्हें निःशुल्क भोजन, पेयपदार्थ, आमोद-प्रमोद कार्यक्रम तथा अन्य बहुत सी मूल सुविधाए दी जा रही हैं। वायुमण्डल में इतना प्रेम और स्नेह था कि मुझे अत्यन्त सन्तोष हुआ। सर्वप्रथम तो उस शिविर ने हमें गणपतिपुले के सहज शिविरों की याद दिलाई। अन्जान भिन्न लोगों को परस्पर इतनी अच्छी तरह से समन्वित होते और परस्पर देखभाल करते देखना हम वहाँ श्रीमाताजी का प्रेम और चैतन्य लहरियाँ फैलाने के लिए गए। हमारा बहुत अच्छा अत्यन्त सहज उत्क्रान्ति प्रदायक अनुभव था। जब हम चलने लगे तो आयोजकों और अन्य सभी लोगों ने हमें पुनः आने के लिए कहा और यदि हो सके तो स्वागत किया गया, तुरन्त हमारे लिए एक अच्छे स्थान तथा आवश्यक चीजों की व्यवस्था की गई और तीन मिनट के बाद स्पीकरों पर घोषणा की गई कि योग प्रतिदिन। का अनुभव प्राप्त करने के इच्छुक लोगों का वहाँ स्वागत है। कुछ ही क्षणों के पश्चात् लगभग चालीस लोगों के सम्मुख प्रवचन आरम्भ हो चुका था और उसके बाद निरन्तर लोग आते रहे या लौट कर अपने सम्बन्धियों के साथ आते रहे। उन्होंने हमें देर रात तक वहाँ रोके रखा। वो हमसे पूछ रहे थे कि क्या हम कल या उससे अगले दिन भी आएंगे ? मैं कामना करता हूँ कि हमें वहाँ जाने के और भी अवसर प्राप्त हों तथा वहाँ पर कोई भी ऐसा व्यक्ति हो न शेष रहे जिसे आत्म-साक्षात्कार न प्राप्त हुआ । जय श्रीमाताजी (इंटरनैट विवरण) ****** परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी से प्रार्थना दीजिए-कृपा करके सहजयोग प्रचार-प्रसार करने के लिए हमें अपने समर्पित बच्चों के रूप में स्वीकार कर लीजिए ताकि अविलम्ब हे श्री आदिशक्ति कृपा करके मानव द्वारा किए %23 गए कुकृत्यों को निष्प भावित कर दीजिए-लेबनान फिलस्तीन और इज़्राइल के बीच घृणा और युद्ध। है श्री आदिशक्ति कृपा करके नव द्वारा किए गए कुकृत्यों को निष्प्रभावित कर दीजिए- अबोध बच्चों और परिवारों की क्रूरतापूर्वक अपने ही घरों में हत्या करने वाले अत्याधुनिक हथियार तथा गोलाबारी। हे श्री आदिशक्ति कृपा करके मानव द्वारा किए गए कुकृत्यों को निष्प्रभावित कर दीजिए भौतिक लाभ प्राप्त करने के लिए ईरान द्वारा लेबनान को बेचे जाने वाले विध्वंसकारी अस्त्र शस्त्र। हे श्री आदिशक्ति कृपा करके मानव द्वारा किए गए कुकृत्यों को निष्प्रभावित कर दीजिए पृथ्वी पर अपनी इच्छाएं पूर्ण करने के लिए हमें मार्ग दिखाएं और निर्देशित करें। है श्री आदिशक्ति कृपा करके मानव द्वारा किए गए कुकृत्यों को निष्प्रभावित कर दीजिए-मानव मात्र की आत्मा ज्योतिर्मय करने के लिए प्रेम और श्रद्धा के आयुधों के रूप में कृपा करके हमें अपना माध्यम बना लीजिए। हे श्री आदिशक्ति कृपा करके मानव द्वारा किए गए कुकृत्यों को निष्प्रभावित कर दीजिए-कृपा करके हमें शक्ति प्रदान कीजिए कि आपके प्रति अपनी श्रद्धा का पूर्ण विनम्रता लेबनान, इज्राइल, फिलस्तीन, ईरान, सीरिया और पूरे मध्यपूर्व में पूर्ण सकारात्मक सामूहिकता उन्नत हो सके। हे श्री आदिशक्ति कृपा करके मानव द्वारा किए गए कुकृत्यों को निष्प्रभावित कर दीजिए-कृपा करके हमारे हृदय खोल दीजिए तथा हमारी श्रद्धा को ज्योतिर्मय कीजिए ताकि हमारे चहूँ ओर व्याप्त अज्ञान प्रेम में परिवर्तित हो जाए, युद्ध शान्ति बन जाए, गोले बारूद आपके पावन चरण-कमलों की धूल बन जाए, क्रोध करुणा में, मिथ्याभिमान एवं अहंकार नैसर्गिक विनम्रता में, ईष्ष्या श्रद्धा में, लालच अपरिमित उदारता में तथा भौतिकता आध्यात्मिकता में परिवर्तित हो जाएं। हे श्री आदिशक्ति कृपा करके मानव द्वारा किए गए कुकृत्यों को निष्प्रभावित कर दीजिए-कृपा करके हमें वीतराग (मोहमुक्त) बना दीजिए और हमें सहजयोग स्थापित करना सिखलाइए ताकि आपके परमेश्वरी नियम तुरन्त सर्वत्र फैल जाए। हे प्रिय श्रीमाताजी हमसे यदि आत्मा के विरोध में कोई अपराध हुए हो तो कृपा करके हमें क्षमा कर दीजिए और हमारी तथाकथित स्वेच्छा के स्थान पर अपनी इच्छा, अपने निर्देश स्थापित कर दीजिए क्योंकि जब तक हमारी प्रिय श्रीमाताजी अधिकार प्रदान नहीं करतीं स्वतन्त्रता अर्थहीन होती है। श्रीमाताजी, हे चराचूर जीवजंगम की सृजनकर्ता। हमें अबोधिता, विवेक और सद्सद् विवेकबुद्धि प्रदान करें। ताकि आपके चरण कमलों में पृथ्वी और स्वर्ग के बीच पूर्ण तादात्म्य लाने के लिए सत्ययुग स्थापित हो सके %23 और राजनीतिक %2: %2: पूर्वक पालन कर सकें। हे श्री आदिशक्ति कृपा करके मानव द्वारा किए गए कुकृत्यों को निष्प्रभावित कर दीजिए कृपा करके पत्थर दिल और विकृत मस्तिष्क मानव को अपने माध्यमों तथा करुणा एवं विशुद्ध प्रेम के बम्बों में परिवर्तित कर दीजिए | हे श्री आदिशक्ति कृपा करके मानव द्वारा किए गए कुकृत्यों को निष्प्रभावित कर %2: 23 लेबनान, ईरान और इज़राइल के आपके बच्चे। परम पूज्य श्रीमाताजी की इंग्लैण्ड से विदाई सेंट जार्ज हाऊस' बुधवार रात्रि 2 अगस्त, 2006 सहजी भाइयों और बहनों, इस बुधवार को श्रीमाताजी के चिज़विक निवास पर घटित हुए अद्भुत अनुभव में मैं आप सबको सहभागी बनाना चाहता हूँ। बुधवार रात्रिः 10 बजे मुझे मैथ्यूकूपर (श्रीमाताजी का फोटोग्राफर) का टेलिफोन आया, हो हारमोनियम और तबले की संगति में वास्तव में सिया, एन्थनी और विमला ही गा रहे थे मुझे तो बहुत बड़ी भजन मण्डली में ही गाने की आदत है और यहाँ पर तो मुझे लगा कि दृष्टि मेरे ऊपर ही है। फिर भी भजनों का बहुत आनन्द आया। सकता है हमें तबलावादक की आवश्यकता पड़े, आप यदि जल्दी से आ जाओ तो बेहतर होगा।" काम के सिलसिले में मैं पहले से ही लन्दन में था और जानता था कि श्रीमाताजी की विदाई से सम्बन्धित कोई समारोह होने वाला है परन्तु मेरे मस्तिष्क में ये बात न आई थी कि मुझे भी इसमें भाग लेने का अवसर प्राप्त हो सकता है। कितने आश्चर्य की बात थी। मैं विमला पिछले एक दो सप्ताहों में चार या पाँच बच्चों का जन्म हुआ था, अचानक वे अपनी माताओं के साथ वहाँ श्रीमाताजी के चरण-कमलों में पहुँच गए। इसमें पॉल और दामिनी गौधड़ी भी थे जो शैफील्ड से ठीक समय पर पहुँच गए थे। सामने के दरवाजे से प्रवेश करके वे सीधे श्रीमाताजी के चरण कमलों में के साथ था जो भजन-मण्डली में थी। अत: हमने निकोला बेबी को वहीं छोड़ दिया और कूदकर कार में बैठ गए और आधे घण्टे के बाद हम श्रीमाताजी के हॉल के रास्ते पर बैठकर उनके निचली मंजिल से ऊपर आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। पहुँचे! पॉल ऐसा लग रहा था मानो उसके लिए सारे क्रिसमस एक ही बार आ गए हों! मारियो ने श्रीमाताजी को उन नन्हें बच्चों का एक एलबम पेश किया जिनका जन्म श्रीमाताजी की पिछली यात्रा के बाद हुआ था। फिर उसने श्रीमाताजी से अपनी बेटी का नाम पूछने महान अद्भुत आश्चर्य प्रकट करता हुआ लिफ्ट का दरवाजा खुला...श्रीमाताजी पैदल चल रही थी! आनन्द के इस क्षण में एक ही विचार आ रहा था कि आज की सन्ध्या अत्यन्त विशेष होगी । का साहस जुटाया। बच्ची की ओर एक या दो मिनट तक एकटक देखने के पश्चात् श्रीमाताजी ने उसे लीला नाम दिया। सबने इसका जोरदार स्वागत किया। सब लोग बहुत प्रसन्न थे कि एक बार फिर श्रीमाताजी श्रीमाताजी और सर सी पी. के स्थान ग्रहण कर लेने के पश्चात् हम सब लोग भी बैठक में बैठ गए। श्रीमाताजी को कुछ सुन्दर उपहार दिए जा रहे थे, हमने भजन गाने आरम्भ कर दिए। सिया हारमोनियम बजा रही थी परन्तु अभी तक मुख्य भजन मण्डली नहीं पहुँची थी, सम्भवतः उन्हें भी इन चीज़ों में रुचि ले रही हैं। तत्पश्चात् श्रीमाताजी उपहार देने लगीं जिनका आरम्म पुरुषों की टाईयों से हुआ। मैं गाने के लिए दूसरा भजन खोजने में लगा हुआ था, मुझे इस बहुत देर से सूचना मिली हो पिछले दो दिनों से मैं सिया और एन्थनी हैडलम के साथ कुछ भजनों बात का आभास भी न था कि क्या हो रहा है। तभी टाई लेने के लिए मुझे बुलाया गया। अचानक मैने स्वयं को श्रीमाताजी के चरण कमलों में, श्रीमाता जी और सर सी पी. से बातचीत करते हुए पाया!! सीधे श्रीमाताजी की दृष्टि में रहते हुए भजन गाना महान का अभ्यास कर रहा था। ये अत्यन्त सुन्दर और शान्ति प्रदायक भजन थे परन्तु ये अभी तक लोकप्रिय न थे, फिर भी हमने ये भजन गाएं। अक : । & 2 2007 10 चैतन्य लहरी चाहे एक या दो वाक्य ही बोले परन्तु दो या उससे भी अधिक वर्षों के बाद पहली बार श्रीमाताजी ने हमारी माँ और गुरु कहा, "हमें महसूस करना है कि हम बहुत समीप हैं, हम सब। हम बहुत समीप हैं ये बात यदि महसूस वरदान था क्योंकि सर सी पी. उत्साह-पूर्वक मेरे कि तबला वादन की प्रशंसा कर रहे थे। उन्होंने पूछा के रूप में हमें सम्बोधित किया। उन्होंने मैंने तबला बजाना कहाँ से सीखा?, मैंने बताया कि नागपुर में संदेश पोपटकर से तबला बजाना सीखा । श्रीमाताजी और सर सी पी. सन्देश पोपटकर को भली-भांति जानते हैं और ये सुनकर उन्हें हर्ष हुआ। श्रीमाताजी के एक वाक्य "मैं तुम्हें पहली बार मिल रही हूँ, का बाद में सोचने पर बहुत बड़ा महत्व प्रतीत हुआ। उन्होंने मुझसे पहली बार बात की थी। मुस्कराने और नमस्कार के अतिरिक्त मैं कुछ न कह सका। कर ली जाए तो समाप्त, फिर आषको किसी चीज़ की चिन्ता नहीं करनी पड़ती अर्थात.. हम माई बहन हैं....अब ये एक भिन्न विचार है, परन्तु सहजयोग यही है, आप..... आश्चर्य की बात नहीं है. श्रीमाताजी ने अपने दिव्य विवेक द्वारा एक या दो वाक्यों में ही हमें उन सभी चीजों का तोड़ (Antidote) दे दिया है जिन्होंने पिछले दो वर्षों में हमें चुनौतियाँ दी हैं। सहजी भाई-बहन होने के नाते हम अन्य सभी सांसारिक भाई-बहनों से परस्पर कहीं अधिक समीप हैं । श्रीमाताजी के कथन के अनुसार यदि हम चलते रहें. तुच्छ मानवीय मूर्खताओं को अपने पारस्परिक सामीप्य श्रीमाताजी के बहुत से उपहार देने तथा निरन्तर हल्की बातचीत करने के साथ सन्ध्या चलती रही। वे सबका नाम पूछ रही थीं. लोगों का हाल-चाल पूछ रहीं थी, छोटी-छोटी बातचीत करते हुए काफी हँस रही थीं हमेशा की तरह से इस वातावरण का वर्णन करने के लिए शब्द पर्याप्त नहीं हैं। हर सहजी क्योंकि श्रीमाताजी के एक-एक को दुर्बल न करने दें, तो ब्रह्माण्ड की कोई भी शक्ति परम पूज्य श्रीमाताजी के सहजयोग आन्दोलन को चरमोत्कर्ष तक पहुँचने से नहीं रोक सकतीं। शब्द को बहुत ध्यान से सुन रहा था अतः हमने और भजन नहीं गाए, परन्तु मार्सेलो अपने शास्त्रीय गिटार को लेकर जब पहुँचा तो हमने अत्यन्त शान्त वाद्य संगीत बजाया। प्रेम पूर्वक और अचानक शाम की सबसे अविश्वसनीय टॉम (इंटरनैट विवरण) घटना घटी, श्रीमाताजी ने हमें सम्बोधित किया! उन्होंने कति ****** दिवस लन्दन में एक अद्भुत 2 अगस्त, 2006 औपचारिक रूप से यह "विदाई समारोह (Farewell) था क्योंकि अगले दिन श्रीमाताजी ने अमेरिका के हमारे प्रिय भाई बहनों के पास जाना लन्दन में 2 अगस्त अत्यन्त मधुर दिवस था, या कहा जा सकता है कि अत्यन्त अद्भुत दिवस विशेष दिवस। पूरा दिन श्रीमाताजी बातचीत करती रहीं, हँसती रहीं, चुटकले सुनाती रहीं। उन्होंने कहा, "कि यह अत्यन्त मंगलमय दिन है। उनके लिए कुछ था-एक घर से दूसरे घर। उस रात इस विदाई समारोह में उदासी का पूर्ण अभाव था, केवल आनन्द विशेष बिस्कुट बनाए गए थे। चाय की ट्रे में जब ये बिस्कुट उनके पास भेजे गए तो उनके मुँह से निकला 'आह, ये बिस्कुट इतने अच्छे हैं, ये किसने बनाए हैं? मुझे इनकी सामग्री और बनाने की विधि चाहिए। उल्लसित और प्रसन्न पैटी (Patty) को बातें करने के का प्राचुर्य था। हमारी परमेश्वरी माँ की पहली झलक, मुस्कान बिखेरती हुई-ऐसी मुस्कान जो केवल उन्हीं की हो सकती है-तब देखने को मिली जब दो प्रफुल्लित सहायकों से नाम-मात्र की सहायता लेते हुए उन्होंने लिफ्ट से धीरे-धीरे पैदल चलकर. सुन्दर नीले कमरे में प्रवेश किया। सभी लोग अन्दर घुस आए। उन्होंने दिव्य गुलाबी एवं सुनहरी साड़ी पहनी हुई थी लोगों के अन्दर आ जाने के बाद श्रीमाताजी अपने सिंहासन की ओर झुकी। "आप सब आगे-आगे क्यों नहीं आ " लिए अन्दर लाया गया तथा राचेल (Rachael) द्वारा बनाया गया दार्जिलिंग चाय का एक प्याला भेंट किया गया। आह श्रीमाताजी कह उठी बहुत लम्बे समय के बाद मैं इतनी उत्तम चाय पी रही हूँ। शाम के समय चिजविक के बैठक-कक्ष में हम लोग खचाखच भर गए और बाकी के लोग, हॉल के मार्ग पर सीढ़ियों पर और सीढ़ियों के नीचे फैल गए..यदि हमारे पास कोई बड़ा स्थान होता तो दस गुने लोग वहाँ पर उपस्थित होते। आशा करनी चाहिए जाते?" बच्चे, बूढ़े और जवान, हम सभी, आगे को खिसक गए। झूमा देने वाले मधुर भजन गाए गए। प्रसन्नचित्त, योगियों योगिनियों, आंटियों, अंकलों और युवाशक्ति ने बहुत से उपहार दिए।..आरती की गई। सुन्दर माला, बहुत से पुष्प, मिठाईयाँ, मेवे, फल, केक, चूड़ियाँ, आभूषण, एक साड़ी, नारियल अत्यन्त माधुर्य एवं प्रेम-पूर्वक भेंट किए गए। कि एक दिन ऐसा ही होगा और हम सब लोग एक साथ वहाँ होंगे। जिन्हें उस रात वहाँ उपस्थित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ वे सब जानते थे कि वे पूरी विश्व सामूहिकता का प्रेम, आशाएं और स्वप्न अपने साथ लिए ए हैं जिसे वह अपने हृदय के माध्यम से बाँट हुए रहे हैं। (इंटरनैट रिपोर्ट) ****** श्रीमाताजी लॉसएंजलिस में 3 अगस्त 2006 प्रिय सहजीगण, जयश्रीमाताजी मिनट के पश्चात् सभी हवाई -अड्डे की इमारत से बाहर, मोड़ पर खड़े होकर श्रीमाताजी की कार के आने की प्रतीक्षा करने लगे। प्रतीक्षा करते हुए योगियों हमारी परम पावनी श्रीमाताजी के विशुद्धि की इस भूमि में पहुँचने के समाचार का आनन्द आपके साथ बॉटना चाहते हैं। श्रीमाताजी और सर सी पी मंगलवार शाम को (3 अगस्त) लैक्स हवाई अड्डे पर पहुँचे। लगभग साढ़े आठ बजे सायं योगीगण श्रीमाताजी तथा सर सी. पी. को लैक्स हवाई अड्डे के ने कुछ भजन गाए और उन्हें श्रीमाताजी के पन्द्रह मिनट के विस्तृत दर्शन प्राप्त हुए। पृथ्वी पर यदि कोई स्वर्ग है तो वह उनके हृदय में श्रीमाताजी और उनके परिवार के लिए 'प्रेम रूप' में है। टर्मिनल 'ई'. पर आगमन प्रतीक्षालय लेकर आए। हमारी परमेश्वरी माँ का साधना दीदी और उनके लन्दन से लैक्स की चौदह घण्टों की निरन्तर यात्रा के बाद भी श्रीमाताजी अत्यन्त तरोताजा प्रतीत हो रहीं थीं। किसी शक्तिशाली परिवार ने स्वागत किया। की तरह से अपने हवाई अड्डे पर श्रीमाताजी का स्वागत करने के लिए साठ-सत्तर योगी एकत्र हो गए थे। सेकरेमेन्टो साँ जोस, इरवाइन, लॉसएंजलिस आदि स्थानों से सहजयोगी लैक्स हवाई अड्डे पहुँचे हुए थे। हममें से सात को सैंडिगो से लैक्स हवाई अड्डे पर कार द्वारा 115 कि मी. दूर पहुँचने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पूजा दिव्य दर्शन द्वारा हमारे हृदयों और नाभियों को सन्तुष्ट करके रात को सवा नौ बजे उन्होंने हवाई अडडे से प्रस्थान किया। अधिकतर लोग जानते हैं कि पूरे देश में इस वर्ष कितनी भयानक गर्मी थी। उनके आगमन के दो-तीन दिन पूर्व परम चैतन्य ने वातावरण को बादलों एवं वर्षा से शीतल करके, क्षेत्र में सन्तुलन लाकर कुछ अन्य साधक भी अचानक हवाई अड्डे पहुँच गए थे और श्रीमाताजी के आगमन की खबर उनके स्वागत की तैयारी शुरु कर दी थी। को सुनकर अत्यन्त प्रसन्न थे। एक साधक को जब श्रीमाताजी के विषय में बताया गया तो वह बोला, श्रीमाताजी यहाँ पर आने और अपने प्रेम से उनके विषय में सुनने मात्र से ही उसकी रीढ़ में सिहरन होने लगी है। उसने वचन दिया कि ऐसे परमेश्वरी व्यक्तित्व के विषय में अधिक जानकारी के लिए वह हमें सुरक्षित रखने के लिए आपको कोटि-कोटि धन्यवाद। हम आपके दिव्य चरण कमलों में बने रहने के लिए हृदय से प्रार्थना करते हैं। वेबसाइट देखेगा। श्रीमाताजी और सर [सी. पी. के प्रतीक्षा कक्ष पहुँचने के पश्चात् शान्ति पूर्वक सभी योगी उनके इर्द-गिर्द एकत्र हो गए और सभी ने उन्हें प्रेम एवं सम्मान पूर्वक सैंडिगो के योगी नतमस्तक नमस्कार करते हुए पुष्पार्पण किए। दस सहस्रार पूजा कबेला -10.5.1992 "परमात्मा की इच्छा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन प्रणाली का हनन होता चला गया। वे आयोजित धर्म, एक राजनीति द्वारा आयोजित धर्म, सत्ता तथा धन प्राप्त करने की बातें करने लगे क्योंकि उन्होने सोचा कि लोगो को नियन्त्रित करने तथा उन्हें चलाने का यही एक मात्र उपाय है। बाइबल में क्या लिखा है. वह सब समझाने की उन्हें कोई चिन्ता न थी। निःसन्देह बाइबल को भी विकृत किया गया, इसमें बहुत से परिवर्तन किए गए और पॉल तथा पीटर जैसे लोगों ने मिलकर बाइबल के अधिकतर तथ्यों को विकृत कर दिया। यद्यपि कुरान को बहुत अधिक नहीं छेड़ा गया परन्तु कुरान में दाएं पक्ष के बारे में अधिक बताया गया है। सृजन प्रणाली तथा अन्य बहुत सी चीजें अस्पष्ट है। अब साथ-साथ दो चीजें घटित हुई हैं, मैं नही जानती कि आप इनके विषय में जानते हैं या नहीं । पहली चीज जो घटित हुई वह है सूक्ष्म जिस प्रकार से चीजों को पेश किया गया, वह सारी मूल्य प्रणाली को तथा सर्वशक्तिमान परमात्मा के सभी प्रमाणों को नष्ट करने के समीप था । इतिहास में यदि आप झाँककर देखें तो जब विज्ञान ने स्वय को स्थापित किया तो तथाकथित धर्माधिकारियों ने भिन्न धर्मों में, विज्ञान की खोजो के साथ समझौता करने का प्रयत्न किया। उन्होंने ये दर्शाने का प्रयत्न किया कि ठीक है, यदि बाइबल में कही हुई कुछ बातें गलत है तो हमे चाहिए कि उन्हें ठीक कर दें। विशेष रूप से अगस्टिन ने ऐसा किया और ऐसा प्रतीत होने लगा मानो ये सब मूर्खता है। ग्रन्थ साहित्य मात्र है। कम से कम कुरान में तो ऐसी बहुत सी चीजे नहीं है जो आज के जीव-विज्ञान का वर्णन करती हैं। वे इस बात को स्पष्ट नहीं कर पाए कि परमात्मा ने विशेष रूप से मानव का सृजन किया है। उन्होने सोचा, कि अवसर की बात है कि एक के बाद एक पशु विकसित होकर जीव-विज्ञान (Microbiology) का ज्ञान जिसमें हमें पता चला कि हर कोषाणु का डीएनए (DNA) टेप होता है। हर कोषाणु के अन्दर उसी प्रकार से एक कार्यक्रम होता है जैसे कम्प्यूटर के चिप में हर कोषाणु के अन्दर एक टेप होता है जिसमें कार्ययोजना (Programmed) होती है, और उसी कार्य योजना के अनुसार विकास घटित होता है। इसकी जटिलता की कल्पना करें! बहुत से कम्प्यूटर योजना बद्द किए जा चुके हैं और इनमें ये सारे कोषाणु हैं। इस प्रकार वैज्ञानिकों के सम्मुख एक अत्यन्त रहस्यमय चीज आ गई है. जिसकी वे व्याख्या नहीं कर पाते। वे बहुत सी चीजों की व्याख्या नहीं कर पाते और उनमें से एक मानव बन गए। इस प्रकार पूरा समय परमेश्वर को चुनौती मिलती गई। बाइबल, कुरान, गीता उपनिषदों या तोरा में जो भी लिखा है उसको प्रमाणित कुछ करने के लिए कोई प्रमाण न था। इनमें से कुछ भी प्रमाणित न किया जा सका क्योंकि अभी तक मूर्खता का साम्राज्य था, बहुत कम लोगों को आत्म-साक्षात्कार प्राप्त हुआ था और जब वे इसके विषय में बात करते थे तो कोई उन पर विश्वास न करता था। लोग सोचते कि अपने ही सिद्धान्तों को प्रस्तुत करने के लिए ये ऐसा कह रहे हैं। अतः सभी कुछ एक प्रकार से मृतविज्ञान बन गया। धर्म का कोई विज्ञान नहीं है । लोग सोचने लगे कि दस धर्मादेशों या जीवन के यह भी है। कठोर नियमों का पालन करने का क्या लाभ है। अब सहजयोग ने ये प्रमाणित कर दिया है इनका अनुसरण करके आपको कोई लाभ तो होता नहीं, जीवन का आमोद-प्रमोद भी समाप्त हो जाता है। इस प्रकार की जीवन शैली से पुण्य लाभ करने के विचार से भी बचें और इस प्रकार मानवीय मूल्य कि यह 'परमात्मा की इच्छा' (The will of God) है (The Desire of God) परमात्मा की इच्छा, जो सभी कार्य कर रही है और यह प्रमाणित हो चुकी है। ये चैतन्य लहरी अंक : 1& 2 2007 14 का श्रेय नहीं लेना चाहिए। मान लो ये गलीचा किसी ने बनाया है और हम यदि इसके रंगों को खोजना शुरु कर दें तो इसमें क्या महानता है? यह सब तो वहाँ है। आप सृजन नहीं कर सकते। तो सृजन कार्य इतना अधिक महत्वपूर्ण नहीं है जितना इसे आकार देने का कार्य और ये सारा कार्य परमात्मा की इच्छा ने सारा चैतन्य आदि-शक्ति, परमात्मा की इच्छा (The will of God) के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। परमात्मा की इच्छा ही अत्यन्त सद्भाव पूर्वक सभी कुछ कार्यान्वित कर रही है। मैं नहीं जानती कि आपमें से कितने लोगों ने मेरी वह पुस्तक पढ़ी है. पढ़ी भी या नही । जिसमें मैंने वर्णन किया था कि पृथ्वी का सृजन किस प्रकार किया। यदि परमात्मा की इच्छा इतनी महत्वपूर्ण हैं हुआ। एक तीव्र नाद (Bang) हुआ। परन्तु यह अत्यन्त सद्भावना पूर्ण था तथा परमात्मा की इच्छा के माध्यम से इसका विकास हुआ। अतः सभी कुछ वैसे ही घटित हुआ जैसे परमात्मा की इच्छा थी। तो यह प्रमाणित भी होनी चाहिए। अब सहजयोग के माध्यम से सहसार भेदन होने के आपने परमात्मा की इच्छा को महसूस किया-उस इच्छा को जो इतनी महत्वपूर्ण है । परन्तु हमें यह इतनी सहज में प्राप्त हो गई है कि हम इसके महत्व को समझते ही नहीं, बन्धन देते हैं और कार्य हो जाते हैं, हमें लगता है कि चीजे कार्यान्वित हो रही हैं, बन्धन ने कार्य कर दिया है! और ये सब हमारा प्रबन्ध कौशल पश्चात् पहली बार अब इसी परमात्मा की इच्छा को आप अपनी अंगुलियों के सिरों पर महसूस कर रहे है । आत्म-साक्षात्कार के पश्चात् आप लोगों ने इस पूर्ण-विज्ञान, जो परमात्मा की इच्छा मात्र है, को खोज लिया है। यह पूर्ण विज्ञान है (Absolute Science) आप लोग जानते हैं कि हमने सहजयोग के माध्यम से बहुत से लोगों को रोगमुक्त किया है । आप ये भी जानते हैं कि बन्धन आदि फलीभूत होते हैं। है। परन्तु बात ऐसी नहीं है। बात इससे बहुत बड़ी है। के अब हम परमात्मा की इच्छा के उस बड़े कम्प्यूटर अग-प्रत्यंग बन गए है। अब हम उस परमात्मा की इच्छा के माध्यम या ये कहे कि वाहिकाएं बन गए है। आत्म-साक्षात्कार के बाद इतना कुछ स्वतः कार्यान्वित हो जाता है कि लोग इस पर विश्वास ही नहीं कर पाते। आरम्भ में जब लोगों को विश्वास ही नहीं हाता था तब वैज्ञानिकों ने उन्हें कुछ बता्या। परन्तु अब आप देख सकते हैं कि विज्ञान हमेशा परिवर्तन शील स्थिति में है. बदलता रहता है-आज एक सिद्धांत को चुनौती मिलती है. कल दूसरे को परन्तु सहजयोग ने आपके सम्मुख विज्ञान का वह महान सत्य स्पष्ट किया है, जिसे कभी चुनौती नहीं दी जा सकती। वह हमेशा विद्यमान रहता है। अतः कोई यदि परमात्मा को बदनाम करने के लिए या उसके अस्तित्व को नकारने के लिए कोई प्रस्ताव लेकर आता है तो हम प्रमाणित कर सकते हैं कि परमात्मा है, परन्तु इस पृथ्वी का, मानव परमात्मा की उस इच्छा से हम जुड़ गए हैं जिसने पूरे ब्रह्माण्ड का सृजन किया है। अतः हम सभी कुछ चला सकते हैं क्योंकि हमारे हाथों में पूर्ण विज्ञान आ गया है, वह पूर्ण विज्ञान जो पूरे विश्व का हित कार्यान्वित करता है। वैज्ञानिकों के सम्मुख हम ये प्रमाणित कर सकते हैं कि परमात्मा की इच्छा पूरा सृजन ने ही किया है विकास प्रक्रिया भी परमात्मा की इच्छा' ही है। उनकी इच्छा के बगैर कुछ भी घटित न होता। लोग प्रायः कहा करते थे कि परमात्मा की इच्छा के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता, यह बात बिल्कुल सत्य है। और अब आपने देखा है कि हमें परमात्मा की ये इच्छा प्राप्त हो गई है और अपनी शक्ति के रूप में हम इसका उपयोग कर सकते है। तो सहजयोगी होना कितना का तथा अन्य सभी चीजों का सृजन अत्यन्त सद्भावना महत्वपूर्ण है। सम्भवतः हमें इस बात का अहसास नहीं है कि सहजयोगी होना कितना महत्वपूर्ण है। सहजयोग केवल अन्य लोगों से ये कहने के लिए नहीं हैं कि मैं पूर्वक परमात्मा की इच्छा (The will of God) ने किया है। परमात्मा की इच्छा ने यदि सारा कार्य किया है तो मनुष्य को परमात्मा द्वारा बनाई गई चीजों को खोजने अंक :। & 2 -2007 15 चेतन्य लहरी पावन हो गया हूँ| सभी कुछ बहुत बढ़िया है। फिर सहजयोग किसलिए है? किसलिए आपको ये सारे आशीर्वाद प्राप्त हुए? किसलिए आपको स्वच्छ किया गया? ताकि परमात्मा की इच्छा का ये ज्ञान आपमें दिखाई दे। केवल इतना ही नहीं-यह आपका अंग प्रत्यंग बन जाए। अतः हमें अपने स्तर ऊँचे उठाने हैं. हमें उठना है। मध्यम दर्जे के और साधारण लोगों को सहजयोग देना बेकार है। क्योंकि ये बेकार लोग हैं। वे किसी भी प्रकार से हमारी सहायता नहीं कर सकते क्योंकि अब हमें ऐसे लोगों की आवश्यकता है जो (सहजयोग) धर्म परिवर्तन मात्र नहीं है. ये मात्र अन्तर्परिवर्तन भी नहीं है, यह तो एक ऐसे नए मानव को आकार देना है जो आगे आया है और जिसमें परमात्मा की इच्छा' को आगे बढ़ाने की योग्यता है। अतः अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके आपको क्या मिला है? पहली चीज़ जो घटित हुई है वह है आपकी भ्रान्तियों का समाप्त हो जाना। सर्वशक्तिमान परमात्मा और उसकी इच्छा के विषय में तथा इस विषय में कि परमात्मा सर्वशक्तिमान है, सर्वव्याप्त हैं और सर्वज्ञ हैं (Omnipotent, Omnipresent, omniscient) 3T4 कोई भ्रान्ति नहीं होनी चाहिए। उन्हीं की सर्वव्याप्त शक्ति ने सारा कार्य किया है। और सामूहिक चेतन व्यक्ति के रूप में आपको ये भी जान लेना चाहिए कि वास्तव में परमात्मा की इच्छा की अभिव्यक्ति कर सके, उसे प्रतिबिम्बित कर सकें। इस कार्य के लिए, आप जानते हैं कि हमें अत्यन्त दृढ लोगों की आवश्यकता होगी। परमात्मा की इस इच्छा ने पूरे ब्रह्माण्ड, सारे ग्रहों, पृथ्वी माँ तथा अन्य सभी चीजों आप भी सर्वशक्तिमान, सर्वव्याप्त और सर्वज्ञ हैं। सर्वज्ञ वह होता है जो सभी कुछ देखता है, सभी कुछ जानता है, सभी कुछ जानता है इसी शक्ति का एक अश आपके अन्दर भी है। तो परमात्मा की सर्वव्यापिता को प्रमाणित करने के लिए आपको का सृजन किया है। अब हम एक नए आयाम का सामना कर रहे हैं और वह आयाम यह है कि हम (सहजयोगी) परमात्मा की उस इच्छा की चुनौतियाँ हैं। तो हमारा कर्तव्य क्या है और इसके विषय में हमें क्या करना है? सहसार खुलने के परिणाम स्वरूप हमारी भ्रान्तियाँ ओझल हो गई हैं। भ्रान्तियाँ समाप्त हो गई हैं। परमात्मा के अस्तित्व के बारे में उसकी इच्छा की शक्ति के बारे में और सहजयोग की सच्चाई के बारे में हमारे अन्दर कोई भ्रान्तियाँ नहीं होनी चाहिएं। हमारे अन्दर कोई सन्देह नहीं होने चाहिएं। इतना तो कम से कम होना ही चाहिए। परन्तु इस शक्ति का उपयोग करते हुए हमें इस बात का अहसास होना चाहिए कि ये शक्ति आपको इसलिए दी गई है कि आपमें इसे सम्भालने की योग्यता है। आपका मस्तिष्क हर समय चेतन रहना होगा कि आप सहजयोगी हैं। जब मैं सहजयोगियों को अपनी पत्नियों अपने बच्चों, अपने घरों और अपनी नौकरियों के बारे में संघर्ष करते हुए उनका स्तर क्या है! वे कहाँ है! जो उन्हें प्राप्त हुआ है उस भूमिका की जिम्मेदारी वे कब उठाएंगे? पाती हूँ तो मुझे हैरानी होती है कि अब भी अतः सर्वशक्तिमान परमात्मा जो सर्वव्याप्त हैं जिन्होंने यह सब कार्य किया है, वह 'परमात्मा की इच्छा' जिसने यह सब कार्यान्वित किया है, उसने आपके माध्यम से यह कार्यान्वित करना है। और आपको अत्यन्त सुदृढ़, अत्यन्त सवेदनशील, अत्यन्त प्रभावशाली व्यक्ति भी बनना होगा, जितने अधिक प्रभावशाली आप होंगे उतनी ही अधिक शक्ति आपको इस महानतम शक्ति से आगे कुछ नहीं सोच सकता। किसी गवर्नर को लें, किसी मन्त्री को लें, कल उन्हें पद से हटाया जा सकता है, वे भ्रष्ट हो सकते हैं, उनमें अपनी शक्तियों का ज्ञान समाप्त हो सकता है। ऐसे प्राप्त होगी। परन्तु अब भी मुझे ऐसा लगता है कि सहजयोगी ये समझने की जिम्मेदारी नहीं ले रहे हैं कि उन्होंने उस सर्वशक्तिमान परमात्मा का प्रतिनिधित्व करना है जो सर्वव्याप्त है, सर्वज्ञ है, सभी कुछ जानता बहुत से लोग हैं जिन्हें अपने कर्तव्यों का भी ज्ञान नहीं होता फिर भी वौ चुनाव जीत लेते हैं। अतः यह चैतन्य लहरी अक : । & 2 -2007 16 है-परमात्मा या आपके अपने विषय में भ्रम नहीं-वह दूसरी चीज़ यह है कि आपने तादात्म्य को समझा है, कि विश्व में पूर्ण तादात्म्य का अस्तित्व है। है, सभी कुछ देखता है, और जो सशक्त है जो सर्वशक्तिमान है। आप यदि ये समझ लें कि सहस्ार भेदन के बाद यह सब घटित हुआ है, कि आपको वह शक्ति प्राप्त हो गई है जिसमें ये तीनों गुण हैं, जैसे यह विशाल ढांचा मजबूत खम्भों पर टिका मान लों कि ये खम्भे मजुबूत न हो तो यह सब गिर सामान्य रूप से यदि आप बच्चों को देखें तो उनमें अपनी स्वाभाविक अन्तर्जात सूझबूझ होती है । वो जानते हैं। आप यदि देखें तो प्रायः कोई भी अच्छा हुआ है परन्तु जाएगा। इसी प्रकार से ये महान शक्ति आपके पास आई है, इसके लिए हमें बहुत सफल लोगों की बहुत प्रसिद्ध या वैभव बच्चा अपनी चीजों को अन्य बच्चों से बाँटना चाहेगा और अन्य बच्चों को प्रेम करना चाहेगा । कोई छोटा बच्चा यदि वहाँ हो तो वह बच्चा उस छोटे बच्चे की रक्षा करना चाहेगा। स्वाभाविक रूप से वह ये नहीं सोचेगा कि इस बच्चे के बालों का रग काला है, है या नीला है। स्वाभाविक रूप से, अन्तर्जात रूप से आवश्यकता नही है और न ही सम्पन्न लोगों की आवश्यकता है। हमें चरित्रवान, सूझ-बूझ वाले, विवेकशील, शक्तिशाली ऐसे लोगों लाल की आवश्यकता है जो किसी भी हाल में इस उद्देश्य के लिए डटे रहें। मैं इसे अपनाऊंगा मै इसके साथ चलूंगा, मैं स्वयं को परिवर्तित करूगा. स्वयं को बच्चा वह प्रेम महसूस करता है। किसी अन्य बच्चे को यदि आप लें जो बहुत नन्हा हो. तो उन्हें इस बात का ज्ञान होता है कि शरीर की गोपनीयता (Privacy ) के विषय में सावधान रहना चाहिए। बच्चें नहीं चाहते कि उन्हें अन्य लोगों के सम्मुख निर्वस्त्र किया जाए। कोई सुधारूंगा। अतः अब भ्रान्तियाँ दूर हो चुकी हैं। मुझे आशा है कि आप सबने भ्रान्तियों से मुक्ति पा ली है। आपको अपने विषय में भी किसी प्रकार की कोई भ्रान्ति नहीं होनी चाहिए। आपको यदि किसी प्रकार का कोई भ्रम है तो आपको चाहिए कि सहजयोग छोड़ दें । परन्तु भी बच्चा ये बात पसन्द नहीं करता। अन्तर्जात रूप से। अतः ये सारे अन्तर्जात गुण हमारे अन्दर विद्यमान हैं। बच्चे चोरी करना पसन्द नहीं करते, वो ये भी नहीं जानते कि चोरी होती क्या है। उन्हें चोरी की समझ ही नहीं होती। मैंने देखा है कि बच्चे यदि किसी अत्यन्त सुन्दर स्थान पर जाएंगे, किसी के घर में तो आप ये बात समझलें कि परमात्मा की इच्छा ने आपको इस उद्देश्य के लिए चुना है-इसलिए आप यहाँ पर हैं। और आपको इस विज्ञान को समझने की जिम्मेदारी सम्भालनी होगी जो पूर्ण विज्ञान है, और इसे स्वयं कार्यान्वित करना होगा स्वयं के लिए तथा अन्य लोगों के लिए। आपने मेरा प्रेम महसूस किया है, परन्तु वे उस स्थान के सौन्दर्य को बनाए रखने का भरसक प्रयत्न करेंगे। परन्तु वह स्थान यदि पहले से ही अस्त-व्यस्त हैं तो फिर बच्चे उसकी चिन्ता नहीं करते। तो अन्तर्जात रूप से ये सभी गुण विद्यमान हैं। आपका प्रेम भी महसूस होना चाहिए क्योंकि परमात्मा तो मात्र प्रेम हैं। अतः अन्य लोगों को इस बात का मैं सोचती हूँ कि विकासशील कहलाने वाले देशों में ऐसे बहुत से गुण हैं जो उनमें अन्तर्जात हैं। अतः 'परमात्मा की इच्छा' ने सर्वप्रथम और सर्वोपरि अबोधिता एवं मंगलमयता का सृजन किया श्री गणेश का सृजन परमात्मा का पहला कार्य था, आदिशक्ति का क्योंकि 'आदिशक्ति ही परमात्मा की एहसास होना चाहिए कि आप करुणामय, प्रेममय और सूझ-बूझ वाले व्यक्ति हैं। हर समय यह 'परमात्मा की इच्छा' आपके अन्दर से प्रवाहित हो रही है। और आपको इसे इस प्रकार से कार्यान्वित करना है कि लोग जान पाएं कि आप सन्त हैं और यह शक्ति आपके अन्दर से प्रवाहित हो रही है। मैं कहूंगी इच्छा' है। विश्व को अत्यन्त सुन्दर बनाने के लिए एक दूसरी चीजू जो आपके साथ घटित हुई अंक :1 & 2 -2007 17 चैतन्य लहरी बहुत बड़ी उन्नति हुई-धन (पैसा) बहुत अधिक महत्वपूर्ण हो गया पैसा जब महत्वपूर्ण हो जाए तो आपके साथ उद्यमी भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि वे जानते है कि किस प्रकार लोगों को मूर्ख बनाकर पैसा बनाया जाए। आज आपने ये चीज़ खरीदी है कल वो खरीदेंगे, आज आपने ये चीजु बदली है, कल वो बदलेंगे। परन्तु आन्तरिक रूप से सशक्त लोग परिवर्तित नहीं होते। वे एक ही प्रकार के वस्त्र पहनते हैं बदलते नहीं । इसके विपरीत अपनी पारम्परिक उपलब्धियों को त्याग पाना उनके लिए कठिन होता है और वे स्वयं को परिवर्तित नहीं करना चाहते। यह सर्वप्रथम इन चीजों का सृजन किया गया. आपके अन्दर ये अन्तर्जात गुण भी स्थापित किए गए, सभी देवी-देवताओं की स्थापना आपके अन्दर की गई। हमारा सृजन विशेष रूप से किया गया, मानव रूप में ताकि वे सन्त बन सकें, ताकि, अन्तर्जात रूप में उनमें पावनता स्थापित हो जाए। परन्तु विकसित देशों में सभी प्रकार के दूरदर्शन और अन्य चीजों ने हमारे मस्तिष्क उलट दिए और हम सुभेद्य (Vulnerable) (आसानी से प्रभावित होने वाले लोग) हो गए। हम दूसरे लोगों के विचारों से प्रभावित होने लगे। कोई भी व्यक्ति हम पर रौब जमा सकता है, केवल निरंकुश हिटलर ने ही लोगों पर प्रभुत्व नहीं जमाया आप यदि वास्वत में स्वयं को विश्व से तटस्थ करके देखें तो आपको पता चलेगा कि आप इन चीजों से कितने प्रभावित हैं! उदाहरण के रूप में फैशन से ऐसी चीजें उभरकर आती हैं जिन्हें लोग किसी भी कीमत पर अपनाते हैं क्योंकि ये फैशन है किसी विवेकशील चीज़ को वे नहीं अपना पाते। जैसे आजकल छोटे स्कर्ट पहनने का फैशन है, कहीं से लम्बा स्कर्ट नहीं कहूंगी कि फ्रॉयड जैसे किसी पागल व्यक्ति की मिल सकता। सभी को वैसा ही छोटा स्कर्ट पहनना पड़ेगा अन्यथा आप फैशन में नहीं है (you are not in ), आप पागलखाने में नहीं है। सुबह से शाम तक हमें इन चीजों से प्रभावित किया जाता है। तो सर्वप्रथम हम इन उद्यमियों के गुलाम बन जाते हैं-वो जो भी कुछ हमें देते हैं-बेल्जियम में मुझे बताया गया कि यहाँ कुछ भी ताजा नहीं मिल सकता। सभी कुछ टिन बन्द सुपर मा्किट से लाना होगा। शनैः शनैः हमारे साथ क्या हो रहा है? हम पूरी तरह से बनावटी बनते चले जा रहे हैं । खाना बनावटी है. वस्त्र बनावटी हैं और लोग हम पर हावी हो जाते हैं । कोई भी व्यक्ति उठकर हमारा सम्पूर्ण दृष्टिकोण ही बनावटी हो गया है। क्योंकि हर समय विज्ञापन हमें प्रभावित कर रहे हैं। सभी प्रकार के बाहरी प्रभाव जिनमें खोकर हम अपने अन्तर्जात विवेक को भूल जाते हैं क्योंकि ये सभी कैसा है? स्वयं देखें तो सही कि वह कैसा व्यक्ति है! आधुनिक चीजें हमारे अन्तर्जात विवेक पर हावी हो रही हैं। देखना सहजयोगियों के लिए आवश्यक है कि कहीं वे इन आधुनिक उद्यमियों के दास तो नहीं बनते चले जा रहे। इसके बाद विचारः- हम बहुत सी पुस्तकें पढ़ते हैं जो हमारे अन्दर विचार उत्पन्न करती है। ये विचार भी बेसिर-पैर का पागलपन होता है. मैं अवश्य बेसिर-पैर की बातें। फ्रॉयड ने किस प्रकार पश्चिम को प्रभावित किया! क्योंकि आप अपना अन्तर्जात विवेक खोकर उसे स्वीकार करते हैं! आप उसे स्वीकार करते हैं! और इसी का का ईसा-मसीह बन गया। वह सबसे अधिक महत्वपूर्ण बन गया। स्वच्छंद यौन सम्बन्ध सर्वोपरि हो गए। कहने से अभिप्राय ये है कि ये अत्यन्त सामान्य बात है। थोड़े से व्यवहार विवेक से हम समझ सकते हैं कि हर क्षण इस प्रकार के विचारों वाले थोड़े से तानाशाह रण वह आपके लिए एक प्रकार एक नई विचारधारा चालू कर देता है। जैसे सात्रे या कोई और। और वह विचार लोकप्रिय होने लगते हैं। ओह! "उसने ऐसा कहा!" वह कौन है? उसका जीवन थोड़े से व्यवहार विवेक से, परन्तु जो 'इच्छा' अब आपके पास है-परमात्मा की इच्छा-जिसने पूरे विश्व की रूपरेखा बनाई है, जिसने आपको बनाया है-आपके विज्ञान के साथ-साथ एक अन्य दिशा में भी अंक : 1 & 2 -2007 चैतन्य लहरी 18 आपके जीवन में यदि अनुशासन नहीं है तो अन्दर की हर कोशिका की रूपरेखा सर्वशक्तिमान परमात्मा ने बनाई है। और आप लोग क्या कर रहे हैं? इन उद्यमियों के हाथों में खेल रहे हैं! उन्होंने ये बात समझ ली है कि वे दुर्बल लोग अनुयायी बनने के लिए बहुत अच्छे हैं, मैं कहना चाहूँगी बेवकूफ बनाने के लिए और उनसे धन ऐंठने के लिए । आप 'परमात्मा की इच्छा के संवाहक नहीं बन सकते-आप ऐसा नहीं कर सकते। ये नहीं बताने वाली हूँ कि ऐसा करो, वैसा करो । आपकी स्वतन्त्रता का मैं सम्मान करती हूँ। मैं चाहती हूँ कि आपकी अपनी कुण्डलिनी आपमें वह विवेक, वह महानता, वह गरिमा जागृत करे और आप अपने अन्तर्जात गुणों को देखने लगें। तब यह पावन कर देगी। और एक बार जब आप पूरी तरह से पावन हो परन्तु मैं आपको अब इस ओर आपके पास इतनी महान शक्ति है, इतने महान कार्य के लिए आपको चुना गया है और दूसरी ओर इस प्रकार का दासत्व है! अतः समझने का प्रयत्न करें कि आपके अन्तर्जात गुण खो गए थे। परन्तु सौभाग्य से कुण्डलिनी जागृति और सहस्रार भेदन द्वारा आपकी अबोधिता, सृजनात्मकता, अन्तर्धर्म, करुणा, मानव के प्रति प्रेम निर्णयात्मक शक्ति, विवेक आदि महान गुण, जो खो गए लगते थे. जाएगे, जैसे आपके पास यदि अपावन सोना हो तो आप उसे अग्नि में तपाते हैं और उसमें से खोट निकल जाता है, इसी प्रकार कुण्डलिनी की अग्नि भी आपको पूर्णतः शुद्ध कर देती है, एकदम स्वच्छ कर देती है और आप अपनी गरिमा, अपने स्वभाव और अपनी महानता को देखने लगते हैं। इस प्रकार आसानी से आपमें तादात्म्य स्थापित होने लगता है, आप समन्वित होने लगते हैं। परन्तु वास्तव में जो सुप्त-अवस्था में थे, वो सब एक-एक करके जागृत हो गए हैं। मुझे आपको ये नहीं बताना पड़ता ये मत पिओ, वो मत खाओ, ऐसा मत करो'। आप स्वयं सर्वप्रथम हमारे यहाँ कुछ सहजयोगी इंग्लैण्ड से होते थे, कुछ स्पेन से, और कुछ यहाँ से। हमेशा उनके अपने अपने झुण्ड होते। कभी वे सब मिलकर न बैठते। आसानी से देखा जा सकता था यहाँ अंग्रेज बैठे हैं वहाँ वो बैठे हैं और वहाँ कोई और सब अपनी-अपनी टोली बना लेते थे। परन्तु अब ऐसा नहीं है। अब मुझे लगता है कि सब एकरूप होने लगे हैं। मानव का समन्वित होना सहजयोग के लिए बहुत ही समझ जाते हैं कि यह गलत है। आप स्वयं जानते हैं कि आपके लिए क्या अच्छा है। परन्तु अब भी यदि आप गलत कार्य करना चाहते हैं तो आगे बढ़े! परन्तु अच्छा क्या है और बुरा क्या है, ये देखने के लिए आपमें प्रकाश आ चुका है। नए ज्ञान के इस नए आयाम के प्रति सहस्रार खुल जाने के कारण आपको यह प्रकाश प्राप्त हुआ है। यह कोई नई चीजू नहीं है। यह आपके अन्दर अन्तर्जात है। अब ये सारे अन्तर्जात महत्वपूर्ण है। यह सूझ बूझ से आता है, बुद्धिचातुर्य से नहीं, कि सभी मनुष्य परमात्मा द्वारा बनाए गए है उसकी इच्छा द्वारा तथा हमें किसी से घृणा का अधिकार नहीं है । गुण प्रकट हो रहे हैं और आप उनका आनन्द ले रहे हैं। अतः अब आपको अपने क्षुद्र विचारों तथा तुच्छ चीजों से मुक्त होना होगा लोग मुझे बहुत सी अटपटी चीजों के बारे में बता रहे हैं। मैं विश्वास ही नहीं कर पाती कि किस प्रकार सहजयोगी ऐसा कर सकते हैं। जो प्लेटे मैंने खरीदी है वे उन्हें लेकर चले जाते हैं-वो प्लेटें ही ले जाते हैं! इधर-उधर चीजों को फेंक देते हैं! दूसरा समन्वय जो हमारे अन्दर घटित हुआ, ये है कि सभी धर्म, सभी धर्मों ने एक ही आध्यात्मिक प्रकाश के वृक्ष पर जन्म लिया, कि सभी धर्मों की पूजा करनी है. सभी अवतरणों, सभी पैगम्बरों और सभी धर्मग्रन्थों की पूजा करनी है। इन धर्म -ग्रन्थों में कुछ खामियाँ हैं, कुछ समस्याएं हैं. जिन्हें ठीक किया हर जगह इधर-उधर वो चीजों को फेंक देते हैं! किस प्रकार आप ऐसा आचरण कर सकते हैं! कहने का अभिप्राय ये हैं कि ये सब मूर्खता पूर्ण है और नीरस। अंक : 1 & 2 -2007 19 चैतन्य लहरी उदाहरण न दें कि-श्रीमाताजी ने ऐसा कहा, या पुस्तक में ऐसा लिखा है, अतः यह झूठ है, या वह झूठ है। आप किसी असत्य से बँधे हुए नहीं है, मैं कहती हूँ किसी भी असत्य से। आपने स्वयं निर्णय करना है कि जा सकता है। अतः शनैः शनैः आप लोग दिव्यत्व के सूक्ष्म पक्ष में प्रवेश करना आरम्भ करें ताकि ये समझ सकें कि इन लोगों ने सहजयोग के लिए., ये वातावरण बनाने के लिए बहुत कठोर परिश्रम किया है। किसी धर्म का तिरस्कार नहीं करना है और न ही किसी धर्म आपने क्या कहना है। क्योंकि अब आपको अपनी इच्छा का उपयोग करना है, और इसके लिए आपको स्वयं को विकसित करना होगा ताकि 'शुद्ध इच्छा' को प्राप्त कर सकें, सर्व-शक्तिमान परमात्मा की 'शुद्ध पर आक्रमण करना है, ऐसा करना बिल्कुल गलत होगा ऐसा करके हम एक ऐसे सिद्धान्त पर कार्य करेंगे जिसका परमेश्वरी योजना में कोई स्थान ही नहीं है। तो इस प्रकार से हम सारे रूढ़िवाद को समाप्त करेंगे। इच्छा' को। समन्वय केवल बाहर नहीं, अन्दर भी। जैसे पहले हम जो भी कुछ करते थे हमारा मन कुछ कहता धर्मान्ध लोग वो हैं जो ये मानते हैं कि उस पुस्तक में वैसा लिखा हुआ है, इस पुस्तक में ऐसा लिखा हुआ है और क्योंकि हम इस पुस्तक को पढ़ते हैं हम कुछ बेहतर चीज हैं। कोई भी कोई पुस्तक पढ़ था, हृदय कुछ कहता था और मस्तिष्क और कहता था। परन्तु अब ये तीनों एक हो गए है तो अब आपका मस्तिष्क जो कहता है वह आपके हृदय को कुछ पूर्णतः स्वीकार्य है, आपके चित्त को पूर्णतः स्वीकार्य है अतः अब आप स्वयं समन्वित (Integrated) हो गए है। सकता है, इसमें इतना महान क्या है? अतः मैं कहंगी कि सहजयोग में लोगों को धर्मान्ध नहीं बनना चाहिए. बहुत से लोग लिखते है, "श्रीमाताजी मैं ऐसा करना चाहता हूँ परन्तु नहीं कर सकता ।" मेरी इच्छा यह कार्य करने की है परन्तु मैं ऐसा नहीं कर सकता अब नहीं! अब्र आप पूर्णतः समन्वित हैं आसानी से तथा बहुत अच्छी तरह से कर सकते हैं। आप यदि अपना परीक्षण करना चाहते हैं तो ये देखने बहुत सावधान रहें, क्योंकि आप सब इसी प्रकार से जन्में हैं, कहने से अभिप्राय है, मैं नहीं जानती, ये आपका अन्तर्जात गुण नहीं है परन्तु जिस प्रकार आपको बनाया गया है वैसे ही आपने स्वयं को ढाल लिया है, इसी प्रकार से कि कभी-कभी तो आप सहजयोग को भी रूढ़िवाद (धर्मान्धता) बनाने लगते हैं श्रीमाताजी ने ऐसा कहा है!" कहीं मेरे नाम का उपयोग न करें श्रीमाताजी ने ऐसा कहा है यह दूसरों पर प्रभुत्व जमाने का तरीका है। आप स्वयं कहें क्योंकि अब आपको अधिकार है, सहजयोग में आपका एक व्यक्तित्व है। जो भी कुछ आप कहना चाहते हैं आप कह सकते हैं परन्तु कोई भी व्यक्ति इस प्रकार आरम्भ कर सकता है कि ईसा-मसीह ने ऐसा कहा था, कोई पादरी, पोप अपने और सभी कुछ प प्रयत्न करें कि क्या मैं समन्वित हूँ या नहीं? मैं जो भी कार्य कर रहा हूँ, क्या मैं उसे पूरे दिल से कर रहा हूँ या नहीं? क्या मै कार्य को पूरे चित्त से कर रहा हूँ या और नहीं? मुझे लगता है कि आप कार्य को पूरे हृदय बुद्धिपूर्वक करते हैं परन्तु आपका पूरा चित्त इसमें नहीं होता। अभी तक सर्वप्रथम ज्योतिर्मय हुआ चित्त पूरी तरह से वहाँ नहीं है। अतः पूरा चित्त पूर्णतः वहाँ होना चाहिए कि मुझे ये कार्य पूरे चित्त से करना है.' अन्यथा समन्वय अधूरा है। समन्वय अपूर्ण है। अतः ये तीनों चीजें पूरी तरह से समन्वित होनी चाहिए। तब सभी चक्रों में समन्वय स्थापित होता है। जैसे जो भी आप करते हैं वह मंगलमय होना चाहिए, जो भी कुछ आप करते हैं वह पूरे चित्त से होना चाहिए, जो भी ये न कहें कि "श्रीमाताजी ने ऐसा कहा है। मंच पर खड़ा होकर कह सकता है कि "ईसा-मसीह ने ऐसा कहा है।" मनमाने ढंग से हम ये सभी चीज़ें इस्तेमाल कर सकते हैं। अतः मनमाने ढंग से मेरा नाम उपयोग करने का अधिकार किसी को भी नहीं है। आपको जो भी कहना हो स्वयं कहें, कभी मेरा कुछ 1. अंक :1 & 2 -2007 चैतन्य लहरी 20 यह डीएनए टेप की तरह से है। वे सब जानते हैं कि कुछ आप करते हैं वह पूर्णतः धार्मिक होना चाहिए। किस प्रकार ढलना है। देखिए आज धूप भरा दिन है. हर आदमी हैरान है कि ऐसा कैसे हो सकता है! बहुत सी चीजें इसी प्रकार घटित होती है। उस दिन हमने थे तो तो इस प्रकार से ये सभी चक्र पूर्णतः समन्वित हो रहे हैं, समन्वित शक्ति जो आपमें है तो पूरा जीवन समन्वित होना चाहिए। अब मान लो कि किसी का पति उस स्तर का नहीं है या किसी की पत्नी उस पूरा हवन किया था तो पूरी तरह से बादल छाए हुए ब्रह्माण्ड आपके लिए कार्य कर रहा है। अब आप यदि स्तर की नहीं है। आपको इसकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए। केवल अपनी चिन्ता करनी चाहिए। किसी मंच पर है और आपने इसे देखना है। आपको स्वयं पर ही विश्वास नहीं है, यदि आपको आत्मविश्वास नहीं है आप क्या है, तो आप किस परन्तु अन्य से कुछ भी आशा न करें। केवल आपका कर्तव्य ही महत्वपूर्ण है। आपने अपने कर्तव्य का पालन करना प्रकार सहायता कर सकते है? किस प्रकार आप स्वयं है और स्वयं इसे कार्यान्वित करना है। जब तक आप ये नहीं समझ जाते कि आपने स्वयं यह उपलब्धि प्राप्त की है, मैं कहूंगी कि व्यक्ति मात्र ने (Individual को कार्यान्वित कर सकते हैं और विश्व में मानवरचित समस्याओं का समाधान किस प्रकार कर सकते हैं? Being) यह महसूस करना है और व्यक्ति मात्र ने ही अन्य सभी के साथ समन्वित होना है। यदि आप चीज़ों को इस प्रकार से समझने लगे, बहुत बार मैंने देखा है कि मैं यदि कुछ कहती हैँ तो आप सोचने लगते हैं कि मैं वह बात किसी अन्य के लिए कह रही हूँ। लोग कभी भी नहीं मानते कि ये बात उन्हीं के लिए कही गई थी अत: हमें यह नहीं देखना है कि मुझे क्या लाभ हुए। "मुझे धन लाभ हुआ, मुझे शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त हुआ, मुझे मानसिक शान्ति मिली. मुझे आनन्द एवं प्रसन्नता प्राप्त हुई।" केवल इतना ही नहीं है। केवल यही मापदण्ड नहीं होना चाहिए। आपको अपने व्यक्तित्व की समझ होनी चाहिए जिसे कई जन्मों अतः हमें उन सभी चीजों को उखाड़ फेंकना होगा जिन्होंने हम पर प्रभुत्व बनाया हुआ है। सर्वप्रथम . विज्ञान। हम हर चीजू को प्रमाणित कर सकते हैं, सहजयोग में जो भी कुछ आप कहते हैं वह प्रमाणित हो चुका है। अतः हम विज्ञान के बन्धनों को तोड़ सकते हैं, क्योंकि विज्ञान तो हर समय परिवर्तन की स्थिति में बना रहता है. हर समय बदलता रहता है। इसके बाद ये तथाकथित धर्म-ये तथाकथित धर्म। क्योंकि जो लोग कैथोलिक हैं, प्रोटैस्टैंट हैं. हिन्दू हैं. मुसलमान है या किसी और धर्म के, वह सब बन्धन उनके सिर पर सवार हैं। इन्हें उतार फेंकना होगा हमें नव-व्यक्तित्व बनना होगा आत्म-साक्षात्कार के पश्चात्, जैसा मैंने कहा, आप कीचड़ में से निकले कमल की तरह से बन जाते हैं। तो अब आप कमल तक इस प्रकार से ढाला गया है कि आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के लिए, 'परमात्मा की इच्छा' के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए आप यह जीवन प्राप्त कर सकें। बन गए हैं और कमलों को अपने ऊपर चिपका हुआ ये कीचड़ उतार फेंकना होगा, अन्यथा सुगन्ध हर क्षण जब आप कोई चमत्कार घटित होते देखते हैं तो आपको महसूस होता है कि यह सब परम चैतन्य ने किया है। ये परम-चैतन्य क्या है? यह आदिशक्ति की इच्छा' है। और आदिशक्ति क्या हैं? मृत हुए नहीं फैलेगी। तो प्राप्त की जाने वाली उपलब्धि ये है कि आपको वो सभी बन्धन उतार फेंकने होंगे जो आपको नष्ट कर रहे हैं और आप पर बेकार का बोझ हैं। ये परमात्मा की इच्छा है। सुन्दर कमलों के रूप में जैसे आपको बनाया गया है आपको समझना होगा कि अत्यन्त सावधानी तो जो कुछ कार्य हुआ है वह सब निर्धारित तत्व (Fixed Entities) है, हम उन्हें. इन सारी चैतन्य-लहरियों को इस प्रकार से कह सकते हैं कि पूर्वक, माधुर्य एवं कोमलता से सभी कुछ बनाया गया है । अंक : 1 & 2 -2007 चैतन्य लहरी 21 का क्या है? आप उनसे चिपके रहते है। आपकी अपनी चीज़ों के बारे में क्या है, उनसे भी आप चिपके रहते हैं! अपनी छोटी-घछोटी चीज़ों के लिए मुझे परेशान करते हैं. परन्तु जब किसी चीज़ का सम्बन्ध मुझसे या सहजयोग से होता है, तो वे मस्त हो जाते हैं और जहाँ चाहे इसे फेंक देते हैं। अर्थात इतनी लापरवाही! उन्हें दिव्य कैसे कहा जा सकता है ? किस प्रकार वे सन्त अतः सर्वप्रथम हमारे मन में अपने लिए सम्मानभाव, अन्य लोगों के लिए स्नेह, प्रेम एवं सम्मान होना आवश्यक है, अर्थात, हममें अनुशासन आवश्यक है। हमारे अन्दर अनुशासन होना आवश्यक है क्योंकि यदि आप अपना सम्मान करते है तो निश्चित रूप से आप स्वयं को अनुशासित करेंगे और अनुशासन का उदाहरण ब्नेगे। लोग हो सकते हैं ? सन्त तो न केवल अपने लिए अपितु अन्य सभी के लिए भी जिम्मेदार होते हैं। मेरे जीवन से आप ये बात महसूस कर सकते हैं कि मैं बहुत इतनी अधिक कि आपमें से शायद ही कोई कर पाए । क्योंकि मुझमें इच्छा है कि मुझे इस विश्व को आनन्द, परिश्रम करती हूँ, बहुत यात्रा करती हूँ बहुत धीरे-धीरे अत्यन्त सहजता से माधुर्य एवं स्नेहपूर्वक मैं आपको इस स्तर तक लाई हूँ। मैने आपको हिमालय पर जाने के लिए या सिर के भार प्रसन्नता तथा दिव्यत्व की उस अवस्था तक लाना है जहाँ लोग अपनी गरिमा और अपने परमपिता (God) खड़े होने के लिए या अपनी सारी सम्पत्तियाँ मुझे दे के गौरव को महसूस कर सकें। अतः मैं कठोर परिश्रम देने के लिए नहीं कहा, ऐसा कुछ नहीं किया। अत्यन्त करती हैँ, कभी नहीं सोचती कि मुझे कुछ हो जाएगा. या मुझे ये हो जाएगा मैने आपको अपने पारिवारिक जीवन अपने बच्चों, अपनी किसी चीज के बारे में समझने होगे अपने परिवार अपने घर, अपनी सभी कोई कष्ट नही दिया। मेरे सम्मुख जो भी समस्याएं आई मैने स्वयं उनका सामना किया। परन्तु यहाँ पर मुझे सहजयोगियों के बड़े -बड़े पत्र मिलते हैं, जिनमे वे अपनी बेटियों, बेटों, ये, वो आदि के बारे में लिखते हैं! परिवार से मोह एक अन्य समस्या है। आपके थे, स्व.केन्द्रित थे। अब आपने स्वयं को थोड़ा सा सिर पर यह बहुत बड़ा बोझ है। हर समय आप अपने बच्चों के बारे में चिन्तित होते हैं। ये आपकी बच्चों से लिप्त हैं। ये भी स्वार्थीपन है- क्योंकि आप जिम्मेदारी नहीं है, कृपा करके समझने का प्रयत्न करें कि यह सर्वशक्तिमान परमात्मा की जिम्मेदारी लोगों में अपनी जिम्मेदारी समझने और इसे कार्यान्वित है। आप उनसे बेहतर कार्य नहीं कर सकते, क्या आप कर सकते है ? परन्तु जब आप यह जिम्मेदारी महत्वपूर्ण घटना घटित हुई है कि आपका सहस्रार ओढने का प्रयत्न करते हैं, तो परमात्मा कहते हैं, खुल गया है। अब आप पूरे विश्व के सम्मुख परमात्मा ठीक है, जिम्मेदारी निभाओ और समस्याएं आरम्भ होती हैं। सुन्दरता पूर्वक यह सारा कार्य किया। अब आगे जब आपको आगे बढ़ना है, तो आपको अपने कर्तव्य चीजों के प्रति आपके कर्तव्य हैं और सहजयोग के प्रति आपके कोई कर्तव्य नहीं। सहजयोग में आने से पूर्व आपको किसी से मोह न था, एक प्रकार से आप केवल स्वयं से लिप्त कसम विस्तृत कर लिया है, अब आप अपनी पत्नी, अपने सोचते हैं कि वे आपके बच्चे हैं। मुझे आशा है कि आप करने के लिए पर्याप्त विवेक है। आपके साथ एक के अस्तित्व, उसकी इच्छा को, हर चीज को प्रमाणित कर सकते हैं । सहजयोग को कोई चुनौती नहीं दे सकता। जो वैज्ञानिक सहजयोग को चुनौती देंगे. उनकी कलई खुल जाएगी आप चाहे वैज्ञानिक हों, अर्थशास्त्री या राजनीतिज्ञ- कुछ भी हों, सहजयोग के प्रकाश में हर चीज की व्याख्या की जा सकती है निर्लिप्तता शब्द को हमें ठीक प्रकार समझना चाहिए। मैने जब लोगों से पूछा, आप चीजों को इधर-उधर क्यों फेंकते हैं ?, तो उत्तर मिला "हम निर्लिप्त हैं। अद्भुत तरीका है। और आपके बच्चों अंक : 1& 2 -2007 चैतन्य लहरी 22 तीलियों को इकट्ठा किया जाए तो इन्हें तोड़ा नहीं जा और ये प्रमाणित किया जा सकता है कि केवल एक राजनीति है, वह है परमात्मा की राजनीति, केवल एक अर्थशास्त्र है और केवल एक धर्म है, वह है परमात्मा का धर्म- 'विश्वनिर्मलाधर्म' । ये बात साबित की जा सकता। अब भी ऐसे लोग है, मैं जानती हूँ, जो अब भी पूरी तरह से सामूहिकता में नहीं हैं उनका सामूहिक न होना ये दर्शाता है कि स्वयं को समझने में वे कितने निर्धन हैं। और वो मुझे कहते हैं कि श्रीमाताजी, अब सकती है। किसी चीज से डरने या किसी बात की चिन्ता करने को कुछ नहीं है। वैज्ञानिकों, बुद्धिवादियों तथा कुछ अन्य लोगों के सम्मुख, यदि वे हमें सुनना चाहें तो, यह सब प्रमाणित किया जा सकता है और यदि वे हमें सुनना ही नहीं चाहते तो उन्हें भूल जाएं। जब हम इतने शक्तिशाली हैं तो क्यों हम उनकी चिन्ता करें। परन्तु यदि वे हमें सुनने को तैयार हैं तो बेहतर होगा कि हम उन्हें बताएं कि अब हमने यह महान शक्ति खोज ली है, और यदि यह महान शक्ति कार्यान्वित हो जाती है, केवल तभी हम पूरे विश्व को हम आश्रम में नहीं रहना चाहते।" तो उन्हे सहजयोग से बाहर हो जाना चाहिए। सामूहिकता के बिना आप उन्नत नहीं हो सकते। सहजयोग के अनुशासन के बिना आप उन्नत नहीं हो सकते। बेकार के लोगों से अच्छे गुणों (Good Quality) वाले दो लोग बेहतर हैं। यही परमात्मा की इच्छा है। हज़ार जिस प्रकार से इतने सारे लोग यहाँ उपस्थित हैं, इतने सारे लोगों को देखकर मैं वास्तव मे आनन्दित हूँ कि हमने इतनी उन्नति की है और जिन व्यर्थ की चीजों के पीछे भाग रहे थे उनसे निकल आए हैं। नए साँचे में ढाल सकते हैं। परन्तु आज हमें शपथ लेनी होगी कि " अब मैं अपना जीवन परमात्मा की इच्छा के अनुरूप मुझे आप लोगों से बहुत आशाएं है। परन्तु जितनी गम्भीरता से आपको सहजयोग को लेना ढालूँगा-पूर्णतः-और इसी के प्रति स्वयं को समर्पित करूंगा। न कोई परिवार और न कोई और सोच-विचार, सभी कुछ भूल जाएं। कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है। "परमात्मा की इच्छा" हर चीज सम्भाल सकती है। चाहिए. उदाहरण के रूप में लोग ध्यान धारणा भी नहीं करते। ध्यान धारणा जैसी साधारण चीज़ भी आप लोग नहीं करते मेरी समझ में नहीं आता बिना 1. ध्यान धारणा किए आप लोग किस प्रकार चलेंगे? जब तक आप निर्विचार चेतना में स्थापित नहीं हो जाते, आप उन्नत नहीं हो सकते। अतः आपको ध्यान धारणा करनी होगी। कम से कम सुबह शाम ध्यान अतः यदि आप "परमात्मा की इच्छा का अनुसरण करते हैं तो आपके बच्चों की देखभाल होगी हर चीज़ की देखभाल होगी आपको किसी चीज की चिन्ता नहीं करनी और ये कार्य करता है। ये समझने का प्रयत्न करें कि आपको समस्याएं इसलिए हैं क्योंकि धारणा तो अवश्य करनी होगी। बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो स्वभाव से ही सामूहिक नहीं हैं। वे यदि आश्रम में रहते हैं तो सोचते हैं की आश्रम का जीवन अच्छा नहीं है। ऐसे लोगों को वास्तव में सहजयोग छोड़ देना चाहिए। क्योंकि उन्होनें ये भी नहीं समझा कि सहजयोग आप ये समस्याएं परमात्मा पर छोड़ना नहीं चाहते। आप स्वयं इनका समाधान करना चाहते हैं। इसी कारण से समस्याएं हैं। यदि आप निर्णय कर लें कि नहीं मैं ये सभी समस्याएं परमात्मा की इच्छा पर है क्या। सामूहिक हुए बिना आप किस प्रकार उन्नत होंगे, अपनी शक्तियों को किस प्रकार एकत्र करेंगे ? कोई भी यदि संघ में, सामूहिकता में रहते हुए कार्य हैं जो कहते हैं, श्रीमाताजी हम इतने योग्य नहीं हैं, हम नही करता- सामूहिक होकर ही आप शक्तिशाली बन सकते हैं। ये सत्य है कि आपके पास यदि एक तीली होगी तो आप उसे तोड़ सकते हैं, परन्तु बहुत सी छोडना चाहता हूँ तो सब समाप्त। कुछ ऐसे भी लोग ऐसा नहीं कर सकते" ऐसा कहना भी मूर्खता है। स्वयं को आजूमाएं, स्वयं देखें। तो सर्वप्रथम व्यक्ति को समझना होगा कि वैतन्य लहरी अंक :1 & 2 -2007 23 हम ऐसी बातें क्यों कहते हैं। सम्भवतः इसलिए कि निसन्देह, मैं सहमत हैँ, कि आप मेरी पूजा करते हैं आप बहुत धन-लोलुप हैं या आपको अपने लिए बहुत धन चाहिए या ऐसा ही कुछ और। सहजयोग में कुछ लोग व्यापार की बातें भी करते हैं। अवश्य कोई चीजें. आप लोग मुझे बताते हैं, इतनी महत्वपूर्ण नही धनलोलुपता होगी या कोई भौतिक लिप्तता होगी हैं मुख्य बात तो ये है कि आपको ऊँचा और ऊँचा जिसके कारण वे कहते है हम योग्य नहीं हैं, हम परिवर्तित नहीं हो सकते। दूसरे, ये ममत्व भी हो क्योंकि इससे आपको बहुत लाभ होता है, इसमें कोई शक नहीं है। परन्तु अन्य चीजें नहीं हैं. बहुत सी अन्य उठना चाहिए तथा अधिक उच्च स्थिति में स्थापित होने के लिए एक दूसरे का मुकाबला करना चाहिए। सकता है. जिसे आप मोह कहते हैं- परिवार के प्रति मोह बच्चों के प्रति मोह आदि-आदि। या ये मेरा है, मैं सोचती हूँ कि इतने थोड़े से समय में हमने बहुत कुछ पा लिया है, निःसन्देह! परन्तु अभी भी हमें अपनी गति बढ़ानी होगी और इसे कार्यान्वित करना होगा मुझे विश्वास है कि यह नव-विज्ञान, जिसे हम पूर्ण-विज्ञान कह सकते है. एक दिन सभी अन्य विज्ञानों पर छा जाएगा और लोग इसकी सच्चाई को जान जाएंगे। ये आपके हाथ में है, आप इसे कार्यान्वित करें। ये मेरा है, ये मेरा है। ये दूसरा कारण हो सकता है कि आप सोचते हैं कि आपमें सहजयोग करने के लिए पर्याप्त साहस और शक्ति नहीं है। तीसरा कारण यह भी हो सकता है कि अब भी आप अपनी पुरानी आदतों से चिपके हुए है और बिना सहजयोग के जीवन का आनन्द ले रहे है। ऐसा ही कोई कारण हो सकता है। खोजूने का प्रयत्न करें कि मैं इस प्रकार व्यवहार क्यों कर रहा हूँ? जिस प्रकार अन्य सभी लोग उत्थान के तो आज हम वह उत्सव मना रहे हैं जिसके द्वारा हमने एक पूर्णतः नव-आयाम खोला है-पूर्णतः परमेश्वरी सत्य का महान दिव्य क्षेत्र। और यह इतना सुन्दर पथ पर बढ़ रहे है, मैं क्यों नहीं बढ़ रहा? अन्तर्अवलोकन द्वारा हम इसका पता लगा सकते हैं मुझमें ही कोई कमी है जिसके कारण मैं सोचता हूँ मुझमें योग्यता नहीं है।" आपमें सभी कुछ करने की योग्यता है। ये बात आप आजमाएं और आनन्द लें। महान है कि हम वास्तव में उन सभी भ्रमों को समाप्त कर सकते है जो लोगों ने अपने विषय में और अपने युग के विषय में पाले हुए थे। हम यह कार्य कर सकते आप सबमें वही शक्ति है। अतः सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपने परमात्मा की इच्छा का उचित, शक्तिशाली और करुणामय माध्यम बनना है। सबसे महत्वपूर्ण क्या है? परमात्मा आपको धन्य करें। अबोधिता के दृढ संकल्प के अतिरिक्त किसी भी प्रकार से हम आपके प्रति अपना आभार प्रकट नहीं कर सकते अपने हृदय की गहराइयों में हमारे अन्दर एक अत्यन्त प्रेममय एवं शक्तिशाली अवस्था को प्राप्त करने की आकांक्षा होती है। अबोधिता ही बह अवस्था है जो स्वयं शक्ति है। अबोधिता समाप्त होते ही हमारे अन्दर विध्वंसक शक्तियाँ जागृत हो जाती हैं परन्तु दुख की बात है कि पश्चिमी जगत में अबोधिता पूर्णतः समाप्त हो गई है। सभी प्रकार की मूर्खता पूर्ण चीज़ों युद्ध के लिए भी, निसन्देह चतुराई आवश्यक है। जैसे हमारी माँ चतुरतापूर्वक बताती हैं :- नकारात्मकता से लड़ने में यदि आप समर्थ हैं तो लड़े. अन्यथा भाग खड़े हों अबोधिता हमें श्रेष्ठतम कौशल प्रदान करती है। अबोधिता सहजता है, सहजता विवेक है, जब ये विवेक हमारे अन्दर विकसित होता है तो आत्मा का प्रकाश और बढ़ जाता है। सहजयोग में आने से पूर्व मैं हमेशा उन मित्रों के साथ रहा करता था जिनमें अबोधिता, विवेक का पूर्णाभाव था। यद्यपि मुझे ये लगता था कि अबोधिता अत्यन्त सुन्दर एवं पावन गुण है फिर भी अपने वातावरण के विरुद्ध इस सूक्ष्म-भावना का साथ देने की सामर्थ्य मुझमें न थी। युद्ध की तरफ दृष्टि भटकती रहती है। मीडिया. टेलिविज़न और पत्रिकाओं द्वारा फैलाई गई व्यर्थ की बातें हमारा सारा चित्त बर्बाद कर देती हैं। ऐसा लगता है मानो लोगों को अब गन्दगी, हिंसा और अपराध ही अच्छा लगता है। सर्वसाधारण लोगों की बातों को जब हम सुनते हैं तो हमें क्रोध आता है-उस व्यक्ति पर नहीं, उस नकारात्मकता पर जो हमारी प्रजाति को नष्ट करने तथा उसे पशुओं से भी निम्न स्तर पर लाने का प्रयास कर रही है। सहजयोग से प्राप्त होने वाले आशीर्वादों में से एक आशीर्वाद इस अबोधिता की सूझ-बूझ तथा विश्वविद्यालय के मित्रों एवं विद्यार्थियों में अबोधिता कभी-कभी यह क्रोध, जो सहजयोगियों को आता है, काफी अच्छा होता है। हमारे अन्दर यह श्रीगणेश का क्रोध है। सहजयोग में आनन्द उन्नत होने का और क्रोध, नकारात्मकता से लड़ने का प्रोत्साहन है। आदिशक्ति के बच्चे होने के नाते हम जानते हैं कि हम हर लड़ाई जीतेंगे। इस बात के अहसास से हमारे हृदय में आत्मविश्वास और सुरक्षा भाव को प्रोत्साहन मिलता है। हम देवी की सन्ताने हैं। " हे, श्रीमाताजी, पृथ्वी पर परमात्मा का साम्राज्य स्थापित करने तथा खोए हुए स्वर्ग को वापिस लाने के महत्व को फैलाने की सम्भावना भी है। अतः मैं अपनी परम पावनी माँ से प्रार्थना करता हूँ कि हम सबको कुण्डलिनी जागृत करने के बहुत से अवसर प्रदान करें। कुण्डलिनी जागृत करना, जागृति है और अबोधिता का आनन्द उठाना भी। जय श्री निर्मल गणेश Engelbert Vienna निर्मला योग (1983) रूपान्तरित अवचेतन, अतिचेतन तथा हमारे उचित आधार एवं आदर्श परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (परामर्श) चैलशम रोड, लन्दन 24 मई 198। सारे काम करवाते हैं। यहाँ-वहाँ भेजते हैं और इनसे वशीकरण का काम करवाते हैं। अपनी चाट्ुकारिता से ये भूत बहुत प्रसन्न होते हैं। किसी को यदि मानसिक रोग है, उदाहरण के रूप में किसी प्रियजन की प्रश्न : अतिचेतन से कौन सी शक्तियाँ प्राप्त होती हैं, बहुत से लोग अतिचेतन की शक्ति से लोगों को रोगमुक्त करते हैं, तथा इस रोग निवारक शक्ति तथा कुण्डलिनी की रोग निवारक शक्ति में क्या मृत्यु के कारण मानसिक सदमे से कोई यदि सामूहिक अवचेतन में चला जाए तो वह भूत-बाधित हो सकता अन्तर है? श्रीमाताजी : रोग निवारक शक्तियां दो प्रकार की हो सकती हैं। एक वो हो सकती है जो सामूहिक अवचेतन से अपनी शक्ति प्राप्त करती हैं और दूसरी जो सामूहिक अतिचेतन से शक्ति प्राप्त करती हैं। दोनों का रोग निवारण इस चीज़ पर निर्भर है कि समस्या कहाँ है। उदाहरण के रूप में सामूहिक अवचेतन से शक्ति प्राप्त करने वाला व्यक्ति बाई ओर की समस्याओं (मनोदैहिक) है। ऐसे लोग मान्त्रिकों के पास जाते हैं और ये मान्त्रिक मृत आत्माओं से कहते है कि तुम इस व्यक्ति को इतने समय से सता रहे हो अब इसे छोड़ दो। एक मृत आत्मा को तो ये उस व्यक्ति से हटा देते हैं परन्तु कोई अन्य आत्मा उसमें बिठा देते हैं। पहली आत्मा से ये कहते हैं किसी अन्य शरीर में जाकर बैठ जाओ ये मान्त्रिक एक प्रकार से बिचौलिए या सम्पर्क aferaar (Mediators or Liaison Officer) Ba हैं। इन मृत-आत्माओं को वश में करके ये इन्हें एक व्यक्ति से निकालते हैं और अन्य में बिठा देते है। इस प्रकार पहला व्यक्ति रोग मुक्त हो जाता है। उदाहरण के रूप में एक महिला थी जिसका पति बहुत अधिक शराब पिया करता था। वह एक महिला मान्त्रिक के पास गई, जिसने उससे कहा कि वह उसके पति को ठीक कर देगी परन्तु इसके लिए उसे सौ रुपये देने होंगे। उस मान्त्रिक ने उसके पति पर एक ऐसे व्यक्ति की मृत आत्मा डाल दी जिसके कारण उसके अन्दर से शराबी भूत भाग गया। इस व्यक्ति ने शराब पीना तो छोड़ दिया परन्तु घोड़ा रेस में जाने लगा। बाद में उसने इस जुआरी भूत की समस्या का समाधान उसके का समाधान कर सकता है और एक अतिचेतन व्यक्ति दैहिक समस्याएं ठीक कर सकता है। भारत में, हमारे यहाँ दो प्रकार के लोग है, जो मान्त्रिक और 'तान्त्रिक' नामों से जाने जाते है । मान्त्रिक वो लोग हैं जो श्मशानों और कब्रिस्तानों में जाकर मृत आत्माओं को पकड़ने का प्रयत्न करते हैं । ये मृत-आत्माएं बहुत धूर्त होती है, एक प्रकार के सामाजिक कार्यकर्ता या दूसरों की सहायता में लगे व्यस्त व्यक्ति ये चतुर्वर्ण या विशूद्रों की श्रेणी में आते हैं-वो लोग जिन्हें सेवा करने में विश्वास है। वे अच्छे लोग प्रतीत होते हैं क्योंकि वे अन्य लोगों की सेवा करना चाहते है, उनकी सहायता करना चाहते है, इसी कारण से ये मरना नहीं चाहते, पृथ्वी के आस-पास बने रहना चाहते है। इन्हें 'नौकर-वर्ग' भी कहा जा सकता है। ये अत्यन्त चापलूस होते है। कोड़े खाना, पिटाई और दुर्व्यवहार इन्हें अच्छा लगता है ये एक अन्दर एक और आत्मा डालकर कर दिया जिसके कारण वह वेश्याओं के पास जाने लगा। अब ये महिला बहुत घबराई। हर बार उसे सौ रुपये देने पड़ते थे अन्य पराकाष्ठा है। ये वीभत्स जीवन का आनन्द लेते हैं। कामक्रूर (Masochist) होते है। ऐसे सब मृत-व्यक्ति हमारे आस-पास हैं और ये वामपक्षी भूत है जो अत्यन्त भीरु हैं और चिपके हुए हैं मान्त्रिक लोग ऐसी मृत-आत्माओं को पकड़ लेते हैं और इनसे अपने और इस प्रकार उसने बहुत सा पैसा लुटा दिया। बाद में उसने उस महिला मान्त्रिक से इसके बारे में शिकायत की। इसके बाद उसे पता चला कि उसका पति ये तीनों दुष्कर्म करने लगा। वह उस महिला अंक : 1& 2 26 चैतन्य लहरी -2007 है। परन्तु लड़का इस पर विश्वास ही न कर पाया। तो वह सिपाही बेहाशी (Treance) की स्थिति में चला गया और उसे बताया कि मैंने तुम्हारे लिए कुछ धन मान्त्रिक से लड़ने के लिए गई, उसने उसमें भी एक भूत बिठा दिया। तब से वह महिला अभी भी पागल है और मैं भी उसे ठीक न कर पाई। वह बहुत सुन्दर महिला है जिसका विवाह एक अत्यन्त धनी व्यक्ति से जिसकी अपनी फैक्टरी है परन्तु दोनों इस प्रकार एक गुप्त स्थान पर रखा हुआ है और इसका रहस्य भी उसने बताया तब बेटे को विश्वास हुआ और उसने अपने पिता के लिए एक चिकित्सालय आरम्भ हुआ का जीवन गुजार रहे है अर्थात दोनों तरफ से जल रहे हैं। तो ये अवचेतन में जाने वाले लोगों का उदाहरण किया सारा धन उसने उस क्लीनिक पर लगा दिया। है। जब भी उसे आवश्यकता होती कार्य करने के लिए सभी भूत डाक्टर उसकी सहायता करते और उसी स्तर पर उनमें परस्पर सम्पर्क स्थापित हो गया, थे। दूसरा मामला अतिचेतन प्रकार के लोगों का है, उदाहरण के रूप में डा. लेम्ब के अन्तर्राष्ट्रीय रोग निवारण केन्द्र का। उसके पास अन्तर्राष्ट्रीय भूत उसे लिखना पड़ता था कि आप फलाँ बीमारी से पीड़ित हैं। सभी अभिचेतन मृत लोग अत्यन्त महत्वाकांक्षी होते हैं। उदाहरण के रूप में सभी महान डाक्टर, वकील, वैज्ञानिक, इंजीनियर और वास्तुकार। हिटलर तथा उस जैसे अन्य योद्धा भी दाई ओर एकत्र हो जाते हैं। मृत्यु के पश्चात् डा. लेम्ब अपने इन सभी मित्रों से मिला और उनसे सम्पर्क स्थापित कर पाया कं्योंकि इनमें से कोई भी डाक्टर मरना न चाहता था क्योंकि वे सब किसी न किसी शोध में लगे हुए थे इन सबने डा. लेम्ब का चिकित्सालय आरम्भ किया ये डा लेम्ब जिनकी मृत्यु हो गई थी और जिनका एक पुत्र भी था, लन्दन में रहते थे। वियतनाम में डा. लेम्ब की आत्मा ने एक सर्वसाधारण सिपाही अर्थात सामूहिक अतिचेतन के स्तर पर । उच्च रक्तचाप, गुर्दे तथा मूत्राशय रोगों से पीड़ित एक महिला उनके पास गई। उन्होंने उसे कहा, कि लन्दन केन्द्र को पत्र लिखो और लन्दन केन्द्र ने उसे उत्तर दिया कि फला विशेष दिन. फला समय पर हम तुम्हारे अन्दर प्रवेश करेंगे और तुम्हारा रोग निवारण करेंगे. परन्तु तुम अवश्य अपने बिस्तर में लेट जाना। बताए हुए दिन और समय पर वह महिला काँपने लगी और एक मृत डाक्टर ने उसमें प्रवेश किया और वह महिला ठीक हो गई। एक वर्ष तक वह ठीक रही परन्तु बाद में उसे चक्कर आने लगे। वह जब मेरे पास आई तो उसकी दुर्दशा हो चुकी थी। बिल्कुल समाप्त हो गई थी। वह जानती थी कि जिस समय वह मुझसे मिलने आई उस समय एक आत्मा ने उसमें प्रवेश किया था। वह जानती थी और उसने बताया कि उसके अन्दर पर आक्रमण किया और उसे बताया कि वह लन्दन दस-ग्यारह भूत है और वह उन्हें झेल न पा रही थी। तो अतिचेतन से इस प्रकार का रोग निवारण भी हो सकता है। मान लो कोई वास्तुकार ऐसे लोगों के पास जाता है तो वह अपने अन्दर किसी मृतवास्तुकार को ले सकता है। चीर-फाड़़ (Ripper) करने वाले जैक का डा. लेम्ब था तथा उसे कहा, कि बेहतर होगा कि वह जाकर उसके पुत्र को बताए कि वह इस प्रकार का चिकित्सालय आरम्भ करना चाहता है। उसने अपने पुत्र पर आक्रमण नही किया। क्योंकि वह जानता था कि उसके पुत्र का स्वास्थ्य इतना अच्छा नहीं है कि वह उसे सहन कर सके। उसे एक अत्यन्त स्वस्थ एवं शक्तिशाली व्यक्ति की आवश्यकता थी जो उसे सहन के अन्दर भी किसी चीर-फाड़ करने वाले की आत्मा थी। व्यक्ति में इस प्रकार की चीजों में दिलचस्पी होनी चाहिए। ऐसे लोगों में दुर्बलता होती है इसीलिए वे आसानी से भूत-बाधित हो जाते हैं, अन्यथा ऐसा नहीं होता। यदि व्यक्ति का मस्तिष्क दुर्बल है और कर ले। और जिसमें वह प्रवेश कर जाए। अतः सिपाही उसके बेटे के पास गया और उससे कहा कि तुम्हारे पिता मेरे अन्दर हैं और वे क्लीनिक खोलना चाहते अक : 1 & 2 -2007 27 चैतन्य लहरी को बता सकते हैं कि यही वह वास्तविकता है जो आपको विवेकशील, शक्तिशाली और प्रेममय बनाती है। केवल तभी लोग इसके कायल होंगे। भौतिक उसके अन्दर ऐसी चीजों की दुर्बलता है तो मृत आत्माएं उस व्यक्ति को पकड़ सकती है। इसका सम्बन्ध यदि दैहिक (Physical) पक्ष से है तो अतिचेतन सहायक मानसिक, भावनात्मक और अन्ततः आध्यात्मिक स्तर हो सकता है। परन्तु यदि इसका सम्बन्ध आपकी मनोस्थिति (Mental Side) से है तो अवचेतन लोग आपकी सहायता कर सकते हैं। परन्तु ये सहायता अस्थायी होती है और बाद में कई गुनी बढ्कर वापिस आ जाती है। पर भी सहजयोग चमत्कार करता है। आप सबको इन उत्कृष्ट शक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त है और यदि आप चाहें तो आत्म-साक्षात्कार दे लैम्प सकते हैं। उदाहरण के रूप में ये जलता हुआ परन्तु सहजयोग आपको इतना शक्तिशाली और पावन बना देता है कि अपवित्रताएं एक प्रकार से अस्वच्छ हो सकता है। हो सकता है कि इसका प्रकाश अच्छा न हो, परन्तु एक बार प्रज्जवलित होने के उपरान्त यह अन्य दीप प्रज्जवलित कर सकता है। झड़ जाती है। यह पावनी शक्ति है ये एक भिन्न बात है जहाँ आपकी नीयत रोग-निवारण की नहीं होती। परन्तु उपफल के रूप में (By Product) लोग रोग मुक्त हो जाते है। अब बहुत सी प्रगल्भ घटनाएं घटित हो रही हैं। आस्ट्रेलिया में मैं एक आस्ट्रेलियन दम्पति से मिली जो पत्रकार थे और महिला आस्ट्रेलिया के पत्रकार संघ की अध्यक्षा थी। वह गर्भधारण न कर सकती थी। डाक्टरों ने उसे कहा कि उसे कभी सन्तान न इसी प्रकार से आपकी आत्मा भी पावन है। परन्तु हमें इन सब भूतों से लड़ना होगा। असीमित तत्वों (Unlimited) पर मैं कठोर परिश्रम कर रही हूँ। इनका इसी प्रकार पर्दाफाश होता है परन्तु सीमित तत्वों पर आपको परिश्रम करना होगा लड़ने के लिए, इन आसुरी शक्तियों से युद्ध करने के लिए आपको स्वयं को तैयार करना चाहिए क्योंकि यही शक्तियाँ आपके अस्तित्व को नष्ट करती हैं। बहुत बड़ा नैराश्य होगी फिर भी डाक्टर उसके परीक्षण किए चले जा रहे थे क्योंकि पति की सन्तान प्राप्ति की बहुत इच्छा थी। परन्तु सहजयोग आने के पश्चात् उस महिला ने गर्भ-धारण किया, विवाह होने के लगभग पन्द्रह साल (Depression) आने वाला है और लोग इसमें केवल रुकावट डालेंगे। वे आपको बहुत सताएंगे परन्तु आपने इससे लड़ना है और इस कार्य को करने के लिए आपका उत्क्रान्ति की अवस्था प्राप्त करना आवश्यक होगा। अजीब बात है कि सभी महान लोगों, परमात्मा के बच्चों, परमात्मा के बन्दों ने अधिकतर पूर्व की अपेक्षा पश्चिम में जन्म लिया है। उन्होंने ऐसे देशों में जन्म लिया है जहाँ काफी वैभव है और उन्हें अधिक गरीबी और कष्टों का सामना नही करना पड़ता। परन्तु यही लोग खो (भटक) गए हैं क्योंकि जीवन का आधुनिक दृष्टिकोण ऐसी चीजों का सृजन करना है जिन्हें आसानी से नष्ट किया जा सके। हमें समझना चाहिए कि इसका कारण ये है कि शैतानी शक्तियों ने हमारी नीवें बहुत कमज़ोर कर दी है, ये कार्य वे बहुत पहले कर चुके हैं। इसी कारण से हमारे, विचार बहुत दुर्बल है। यदि आप ध्यान से देखें तो पश्चिमी देशों पश्चात् । अय उसका जीवन का पूरा नजरिया ही बदल गया है पहले वह सभी प्रकार के उपाय करवाया करती थी। आरम्भ में वह कैथोलिक थी. फिर वह भिन्न गुरुओं के पास जाने लगी तथा भिन्न उपायों को आजमाया। सहजयोग में आने के बाद उसने सब कुछ छोड़ दिया। अब अपने ही अन्दर उसे सब उत्तर मिल जाते हैं क्योंकि मैंने उसके अन्दर के सारे भूतों को भगा दिया है। अब उसने कहा है के वह ऐसे सारे लोगों का पर्दाफ़ाश करेंगी मैंने उसे बताया कि यदि वह लिख सके कि किस प्रकार ये लोग कार्य कर रहे हैं तो यह उनके पागलपन का अनावरण कर सकेगी। एक बार इसके बारे में बात कर लेने के बाद आप सहजयोग के लिए आधार बना सकते हैं और लोगों अंक : 1& 2 2007 28 चैतन्य लहरी सांसारिक चीजों पर अपना समय बर्बाद कर सकते के राजाओं तथा रानियों तथा सामान्य लोगों का बे हैं। विवाह यदि हो तो बह बहुत अच्छा एवं जीवन अत्यन्त भ्रष्ट और भयावना है तथाकथित धार्मिक लोगों और कैथोलिक चर्च ने भी इतने भयानक कृत्य किए कि उन्होंने नीवें ही हिला दीं । अब आपने अपनी नीवों का पुनर्निर्माण करना है। धार्मिक जीवन की नई नीवें आपने डालनी है। आपने पूर्णतः धार्मिक जीवन को स्वीकार करना है। अपनी नीवों को पुनः सद्भावपूर्ण होना चाहिए और आपको चाहिए कि मिलकर पारस्परिक समस्याओं का समाधान खोजें। (सहजयोग) सुन्दर संस्था बनाना है । हमें इसे छोटी-छोटी, चीजों में न फॅसे अन्यथा हम इस कार्य को आगे न बढ़ा पाएंगे। क्योंकि जीवन में अभी हमें बहुत लम्बा रास्ता तय करना है। पश्चिमी देशों में ये शैतानी ताकतें बहुत अच्छी तरह से गठित हैं और तुच्छ सुदृढ़ करने का केवल यही उपाय है। भारत में, विशेष रूप से महाराष्ट्र. में नीवें बहुत अच्छी है, परन्तु वहाँ पर शुद्ध इच्छा का अभाव है। उदाहरण के रूप में, पूर्ण कुशलतापूर्वक बनाया सुदृढ्तापूर्वक बनी हैं। भारत की उन्हें कोई परवाह गया हवाई जहाज बिल्कुल न उड़ सके और उड़ते ही नष्ट हो जाने वाला जहाज उड़ता रहे! अतः व्यक्ति को है कि ये आपको उपयुक्त आधार बनाना सिखाता है महसूस करना होगा कि शैतानी शक्तियों ने जो हानि हमारी नीवों को पहुँचाई है वह बहुत गहन है और जितना आप समझते हैं उससे कहीं सूक्ष्म है । आपको इन नीवों से भी लड़ना होगा। ये दुष्ट सम्राट जो सात-सात पत्नियाँ रखा करते थे, आपके आदर्श नहीं हैं। आप स्वयं अपने आदर्श हैं। पश्चिमी देशों में नए आदर्श लाकर ही आप इन्हें परिवर्तित कर सकते है क्योंकि आप ही ऐसी गतिशील शक्ति है । आप सबको उठना होगा और इन आदर्शों के अनुरूप स्वयं को ढालना होगा और उन आदर्शों को अपने जैसी उपाधियाँ प्राप्त कर लेना बहुत आसान है। परन्तु नहीं क्योंकि भारत गरीब देश है। गरीबी का वरदान ये । निर्धन लोग भी वैसे ही हैं जैसे धनी। बहुत अमीर या बहुत निर्धन आपके आदर्श नहीं है। आप स्वयं अपने आदर्श हैं और आप ही ने नए आद्शों का सृजन करना है। आप ही अमरीका के नए राष्ट्रपति और इंग्लैण्ड के नए प्रधानमंत्री हैं। आप ही महान लोग हैं. अतः इस महानता के अनुरूप आपको बने रहना होगा अर्थात उच्च-चरित्र, उदार, परिश्रमी और विवेकशील व्यक्ति। इसके बिना आप ये कार्य नहीं कर सकते। अध्ययन करना और एम डी., एम.ए और पी.एच.डी. आदर्श बनने के लिए आपको परिपक्व होना होगा। अन्दर स्थापित करके उनके अनुसार जीवन बिताना होगा। इसके लिए आपको बलिदान करना पड़ेगा । निरन्तर स्वयं को बताना होगा कि उन्नत होकर आपने इस महान कार्य को करना है जो कठिन नहीं है। क्योंकि इसका स्रोत आपके नियंत्रण में हैं। हर चीज़ महानतम बलिदान आपके अहं का है जो आपको जिद्दी और कठोर हृदय बनाता है। अपना सामना करें। इस आदर्श का सृजन करना होगा व्यक्ति में करुणा, प्रेम एवं सूझ-बूझ का होना आवश्यक है। कभी दूसरों की बुराई न करें कभी नहीं । एक दूसरे की सहायता करने का प्रयत्न करें क्योंकि हमारी संख्या बहुत कम है और परस्पर लड़ने की क्षमता हममें नहीं है। हम एक महान उद्देश्य के प्रति समर्पित हैं। न तो हम गलत विचारों को अपने अन्दर स्थान दे सकते है और न ही विवाह जैसी सम्भव है। याचनामात्र से यह कार्य हो जाएगा। परन्तु इसको दृढ़ करें। अब भी यदि आप अपने व्यक्तित्व तथा नए आदर्शों को सुदृढ़ नहीं कर सकते तो फिर कब करेंगे? सही सलामत चक्रों के साथ मैं यहाँ विद्यमान हूँ। ये गलत है या ये ठीक है' कहकर स्वयं को न्यायोचित ठहराना आसान है। ये सब समाप्त कर दें। आपको वह बनना होगा। अतः पहली आवश्यकता ये हैं कि अपनी नीवों को बदलें शेक्सपीयर. टैनिसन. अंक : 1 & 2 चैतन्य लहरी 29 2007 मोजार्ट, युंग जैसे बहुत से महान लोग हमारे सम्मुख हैं लेंगे मैं केवल इतना चाहती हूँ कि आसुरी शक्तियों के शिकंजे में फंसे सभी मनुष्यों को हम मुक्त कर दे, परन्तु इस कार्य के लिए हमें स्वयं को समर्पित करना सिर उन्होंने उन देशों में अपने विचारों का सृजन होगा परन्तु हमारे चित्त तो बहुत सी व्यर्थ की चीजों पर है, भौतिक पदार्थों पर! इनका कोई अन्त नहीं है शक्तियों से लड़ पाए होंगे परन्तु इन लोगों को कौन थोड़े से सन्तुष्ट हो जाएं। भौतिकता के मामले में भी आपकी देखभाल होगी। अधिक समस्या न होगी। अतः भौतिक पदार्थों के पीछे न दौड़ें। इनमें रुचि न होगा। पोलैण्ड में एक सर्वसाधारण कारखाने के मजूदूर लें। यह सब व्यर्थ है आपको प्रेम एवं स्नेहमय होना चाहिए। एक बार जब आप वास्तविकता को त्यागने लगते है तो कठोर हृदय बन जाते है।'किसी चीज़ में मेरी रुचि नहीं है । तो आप जैसे पत्थर में किसकी और इस देश में भी बहुत से लोग हैं। उनका नाम लेने मात्र से चैतन्य लहरियाँ प्रवाहित होने लगती हैं। अकेले किया, कल्पना करें, कि किस पकार वहाँ वे इन शैतानी स्वीकार करता है? आपमें से हर एक में उन जैसा बनने की योग्यता है। आप सभी को अगुआ बनना ने यह कर दिखाया। परन्तु वह आत्म-साक्षात्कारी न था। वह परमात्मा से सम्पर्क न बना सका। पूर्ण को जानने का उसके पास कोई मार्ग न था। अतः स्वयं को ठीक प्रकार से संचालित करें, ठीक प्रकार से अपना शुद्धीकरण करें। स्वयं को समर्पित कर दें। समर्पित करने के लिए अपना अहं और प्रतिअहं त्यागने के अतिरिक्त आपने कुछ नहीं करना। ये वजून उतार फेंके और अपने हृदय में स्थान बनाएं और यह कार्यान्वित हो जाएगा। इन राक्षसों का वध करना आसान है। परन्तु क्या होगा? एक या दो वर्षों में सभी कुछ कार्यान्वित हो जाएगा। उसके बाद मैं उन पर ग्जूगी। इससे पूर्व आपको तैयार हो जाना चाहिए क्योंकि एक बार जब रुचि है? आप आधार हैं और आपके बच्चे आपकी बातें करेंगे, इन दुष्ट लोगों की नहीं। आपको प्रेम एवं स्नेह के आदर्श बनना होगा, प्रभुत्व एवं अन्य प्रकार की मूर्खताओं के नहीं। आप सब प्रथम सहजयोगी होंगे। आप लोग ही जीवन की पूर्णधारणा को परिवर्तित करेंगे। नए विचारों का सृजन करना होगा। क्या वास्तव में आप लोगों को अपनी जिम्मेदारियों का ज्ञान है। भटकी हुई (Lost) आत्माओ का कभी-कभी तो आप अपने विषय में चिन्तित होते हैं. "मैं कहाँ पकड़ रहा हूँ, मेरे साथ क्या हो रहा है?" यह तो बहुत अधिक आत्म-केन्द्रित (Self-Centered) होना है, या कभी आप अन्य लोगों के विषय में चिन्तित होते हैं-उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था-उसे वैसा नहीं करना चाहिए था, उसे श्रीमाताजी के साथ नहीं बैठना चाहिए था। किसी को भी यह नहीं सोचना चाहिए कि वे मुझे अन्य लोगों से अधिक प्रेम करते हैं। मैं उन पर गर्जूगी तो वे पलट कर आप पर वार करेंगे। अंतः आप लोगों को इतना दृढ़ होना है कि उनके पलट वार से आप समाप्त न हो जाए। उन्हें नष्ट कार्य करना, उन्हें समाप्त कर देना मेरे लिए है। परन्तु तब वे अवचेतन में चले जाएंगे और पुनः आप पर आक्रमण करेंगे। अतः मैं चाहती हूँ कि वे सुगमतम 1. पक्षाघात, शक्कर रोग तथा अन्य व्याधियों के साथ जीवित रहें। वो जिन्दा रहेंगे, मरेंगे नहीं। यह बहुत ही कठिन कार्य है मैं चौबीसों घण्टे कार्य कर रही हूँ और लोगों को कर्मकाण्डों का अधिक ज्ञान कुछ होता है और कुछ को मर्यादाओं का, परन्तु कोई बात नहीं। मैं जानती हूँ कौन मुझे प्रेम करता है। अन्य लोगों से प्रेम करने वाला व्यक्ति ही मुझे सबसे अधिक प्रेम करता है। मुझे आपके कर्मकाण्डों और मर्यादाओं की कोई परवाह नहीं है। मेरे लिए ये सब व्यर्थ हैं। मुझे इनकी क्या परवाह है? मेरे लिए आप जानते हैं कि मुझे न तो नींद आती है न ही आराम मिलता है। उन सुन्दर दिनों का स्पष्ट स्वप्न में अच्छी तरह से देख सकती हूँ जब हम मिलकर एक दूसरे का और परमात्मा के आशीर्वाद का आनन्द अंक : । & 2 2007 चैतन्य लहरी जाएं । इनका क्या महत्व है? अन्य लोगों से प्रेम करने वाला व्यक्ति ही वास्तव में मुझे प्रेम करता है। ये सारे कर्मकाण्ड और मर्यादाएं मैं काफ़ी देख चुकी हूँ। इनकी मुझे कोई परवाह नहीं। कोई अन्तर नहीं पड़ता कि आप मुझे सुप्रभात कहे या शुभसन्ध्या (Good Morning or Good Evening) । महत्वपूर्ण तो ये है कि आप अपने भाई बहनों से क्या कहते हैं। इस पक्ष को यदि आप नहीं देखेंगे तो कभी सहजयोग कार्यान्वित नहीं होगा-अर्थात् अपनी पत्नी. पति, भाइयों, बहनों से अपने आचरण को। ये महत्वपूर्णतम चीज है और कोई भी व्यक्ति यदि इसके विरुद्ध कार्य करता है तो वह सहजयोग से बाहर हो जाएगा। आप जानते हैं कि मैंने बहुत से तथाकथित महत्वपूर्ण कहलाने वाले लोगों को सहजयोग से बाहर फेंक दिया है, उन लोगों को, जिन्होंने ये कहकर अन्य साधकों पर प्रभुत्व जमाने का प्रयत्न किया था कि "ये अच्छा नहीं हैं। आपको अपना हाथ वहाँ नहीं डालना चाहिए। अपना पैर वहाँ मत सर्वप्रथम सच्चे और अच्छे नागरिक बने, चारित्रिक मूल्यों के महत्व को समझें क्योंकि यही आपकी नीवे हैं। स्वयं आँकलन करें। आप आत्म-साक्षात्कारी हैं। निर्णय मैं आप पर छोड़ती हूँ। आप अपनी चैतन्य-लहरियाँ खो देंगे। आप मौन भी हो सकते हैं। अन्य शक्तियाँ मौन का कारण बन सकती है। बाई आज्ञा की ओर की नकारात्मक शक्तियाँ विचार दे रही हैं। आपको स्वयं विचार करना होगा मैं नही कर सकती, मैं सोचती नही रह सकती। ये मुर्खता चलती रहती है। स्वयं से कहें कि बाई ओर की मूर्खता करने की हिम्मत तुम्हारी कैसे हुई? जिन्हें बाई ओर की समस्या है, बेहतर होगा कि वे निम्बू उपचार तथा जूता क्रिया करें। जो आक्रामक है वे 108 बार जूता मारे। ध्यान केन्द्र पर जाएं। वास्तव में स्वयं से प्रेम करें, स्वयं को स्वच्छ रखें और मध्य में रहें। अपने अहं पर कभी गर्वित न हों । 'ओ , मैं सोचता हूँ कि मेरे विचार से मैं ठीक हूँ। स्वयं को 108 जूते मारें। अत्यन्त सिरजोर होकर भी अपनी करनी पर आपको संकोच नहीं होगा। आप अत्यन्त निलर्लज्ज हो जाएंगे। डालें, आदि-आदि। परमेश्वरी माँ की संहिता (Protocol) को कौन जान सकता है? आप मुझे संहिताबद्ध नहीं कर सकते। किसी भी प्रकार से आप मुझे बाँध नही सकते। मैं असीम हूँ। मैं निर्लिप्त हूँ। ये सोचना कि अपनी मृत संहिता से आपने मुझे अपनी ओर आकर्षित कर लिया है, बिल्कुल अर्थहीन है। करुणा एवं उदारता के गुणों से परिपूर्ण जीवन्त संहिता होनी चाहिए। सुन्दर बनें, कुछ लोग आलसी हैं-जैसे पति चाहता है कि पत्नी हर समय कार्य करती रहे या पत्नी चाहती है कि पति हर समय काम करता रहे। हर आदमी दूसरे में दोष खोजता है वह सहजयोगी नहीं है। हर चीज़ को सहज में लेने वाले ही सहजयोगी हैं। कार्य न करने वाले परन्तु आप सहजयोगी हैं ऐसी चीजों पर आपको लज्जा आनी चाहिए। थोड़ा संकोच तो होना ही चाहिए। इस मामले में कुछ मर्यादाएं तो होनी ही चाहिएं। किसी से भी आप ऐसी बात किस प्रकार कह सकते हैं। किसी को भी किस प्रकार ठेस पहुँचा सकते है? आज्ञा और अधिक धुँधली होती चली जाती है। बहुत से लोग ऐसे हैं जब कोई दिखावा करता है, गुरु बनने का प्रयत्न करता है और अन्य लौगों को पीछे ढकेलने का प्रयत्न करता है, मैं जान जाती हैँ "ओ मैं. सहजयोग जानता हूँ। मैं महान सहजयोगी हूँ। तब मैं उनमें अह के सींग पैदा कर देती हूँ। अपने सिर से निकलते हुए सीगों को आप महसूस कर सकते हैं इन्हें नीचे दबा दें। यह अटकन (Sticking) बिन्दु है। गुख्बारा यद्यपि व्यक्ति का पतन हो जाएगा। मैं उसे सहजयोग से बाहर कर दूंगी। किसलिए आप सहजयोग में आए थे? आप साधक है। युग-युगान्तरों से आप खोज रहे है, क्या आप अपना जीवन बर्बाद कर देंगे? क्यों न अब इसे कार्यान्वित कर लें? हर प्रकार से चुस्त हो पतला हो जाता है फिर भी बना रहता है। आप लोग बौद्ध हैं। बौद्ध वो हैं जो आत्मसाक्षात्कारी हैं, जो ज्योतित अंक : 1& 2 -2007 3। चैतन्य लहरी ऐसा करना बहुत आवश्यक है। अपना ऑकलन इससे ने करें के आप स्वयं अपने बारे में क्या सोचते हैं। ये देखें कि माँ श्रीमाताजी आपके बारे में क्या सोचती हैं। अपनी माँ को आप कितना आनन्द दे रहे हैं। आप हैं, जिन्हें ज्ञान है। आप लोग ज्योतिर्मय है । आपमें अहंकार किस प्रकार हो सकता है? अहं और प्रतिअह नयानक शत्रु हैं। प्रतिअहं के शिकार लोगों को मैने देखा है। इसे यदि आप नीचे को दबाएगे तो यह अह यदि उन्हें नाराज करेंगे तो क्या लाभ होगा। की और चला जाएगा। इसी कारण से पश्चिम में हमने अह की बहुत बड़ी समस्या देखी है। अहं को जो भी अच्छा लगता है हम उसी ओर चल पडते हैं। यही कारण है कि ये गुरु इन लोगों को पागल बना देते हैं। कहते है कि तुम उड़ सकते हो, और आप उनके पीछे चले जाते हैं। कोई कहता है कि तुम बहुत शक्तिशाली बन सकते हो और आप उसके पीछे चल पड़ते है। आपने देखा होगा कि विश्व में, वास्तव में यहुत कम सच्चे साधक है। साधको को भी समझना होगा कि आत्मा के अतिरिक्त किसी अन्य चीज़ से वे खुश नहीं हो सकते साधक की ये परीक्षा है और जो साधक नहीं हैं वो साधकों को कभी नहीं समझ सकते। किसी भी ऐसे व्यक्ति के साथ रहना जो साधक नहीं है बहुत कठिन कार्य है क्योंकि आप उनकी बुराईयाँ ग्रहण कर लेते हैं और कष्ट उठाते है ऐसा व्यक्ति यदि अहंकारी है तो आपकी आज्ञा पकड़ जाती हैं। परन्तु उसे कुछ नहीं होता। वो बड़े मजे में रहता है। उसका अहं बरकरार है और आपको सता रहा है। परन्तु कोई यदि साधक है तो वह अच्छा व्यक्ति है क्योंकि ऐसे कोई कहता है कि आप महान गुरु बन जाएंगे और आप उस ओर चल पड़ते हैं। परन्तु ये कहता कि आत्मा बनो, पूर्ण से तादात्म्य पा लो। मैं जब कहती हूँ कि आप आत्म-साक्षात्कारी है, आप कोई नहीं महान है, आप सन्त हैं तो इससे भी आपके अहं का गुब्बारा अधिक फूलने लगता है। मैं तो आपके अन्दर वह चेतना जगाने के लिए ऐसा कहती हैँ । आपके सभी आदर्श अहं से परिपूर्ण हैं हाथ में छड़ी लिए हुए चर्चिल को वहाँ खड़े देखो, पूरा शरीर ही अहंसम प्रतीत होता है। हमें नए आदर्श बनाने होंगे। दूसरे अहंकारी-हिटलर से उसका मिलन (चर्चिल का) ठीक था, मिलकर अपने सिर फोड़ने के लिए उनका मिलन व्यक्ति को आप आत्म-साक्षात्कार दे सकते है और उसके साथ अपनी चैतन्य चेतना भी बाँट सकते हैं। परन्तु जो साधक नहीं है उसके साथ रहना दुष्कर कार्य है। फल को आप फूल नहीं बना सकते । जहाँ तक आपका सम्बन्ध है आप फल बन चुके है। फल बनाने के लिए तो आपके पास फूल का होना आवश्यक है। जो लोग, मेरे पिता, मेरी माँ, मेरा भाई, मेरा बेटा आदि समस्याओं में उलझे हुए है उन्हें सीख लेना चाहिए कि इन समस्याओं में उलझे नहीं रहना। जो नहीं हैं उनसे बचना चाहिए और उन्हें भूल जाना ठीक था । परन्तु अब हमें नए आदर्शों की आवश्यकता है। भूतकाल समाप्त हो गया है। बाढ़ की स्थिति में पार जाने के लिए आपको नावों की जरूरत पड़ती है परन्तु तट पर पहुँचने के पश्चात् आप नावें अपने साथ नहीं लिए घूमते इन्हें पीछे छोड़ देते हैं। ये नावें अब हमारे लिए किसी काम की नहीं। उनका काम हो फूल चाहिए। उन्हें सुधारने का जितना अधिक प्रयत्न आप करेंगे उतना ही उलझ जाएंगे। वो कभी नही सुधर सकते। मैं तुम्हें लम्बी रस्सी देती हूँ। वो यदि साधक नहीं हैं तो कभी बनेंगे भी नहीं, उनके अन्दर आप चुका है। अतः अहं को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए। हमें समझ लेना चाहिए कि किसी भी प्रकार से हम कुछ विशेष नहीं हैं, ऐसा समझकर आप केवल अपने अह को बढ़ावा देते हैं। आपको आदर्श होना होगा. मध्य में आना होगा और सहजयोगी बनना होगा। साधना उत्पन्न नहीं कर सकते। हो सकता है कि उनके पास भौतिक पदार्थों का प्राचुर्य हो जाए, परन्तु कभी वे साधक नहीं बन सकते। इसलिए आप उन्हें भूल जाएं। उनके कारण आपको कष्ट उठाना पड़ चैतन्य लहरी अंक : 1 & 2 -2007 32 सकता है। क्योंकि यदि उनके चक्र पकड़ेंगे तो आपको कष्ट होगा उनकी नाभि यदि पकड़ती है तो आपको कष्ट होता है। ऐसे व्यक्ति का परिवर्तन कठिन है। अपनी शक्ति बर्बाद न करें। ईसा मसीह ने कहा है, "कि अपने मोती सूअरों के आगे न डालें (Do not के कुछ करतरे पीछे रह जाते हैं! जो कतरे मक्खन के उस बड़े पेड़े से नहीं चिपकते उन्हें छाछ के साथ फेंक दिया जाता है। अतः जो लोग सहजयोग में नहीं आते या जिनमें इसकी योग्यता नहीं हैं, उन्हें बाहर फेंक दिया जाएगा। यह सत्य है, परन्तु आपमें निरपेक्षिता होनी चाहिए अर्थात् आपको ऐसे लोगों से लिप्त नहीं होना चाहिए। cast your pearls before swine) I foi a साधक बनने के लिए आप विवश नहीं कर सकते। विश्व में लाखों साधक हैं। अतः ऐसे सम्बन्धों को भूल जाए। वो चाहे आपको पागल, सनकी या कुछ और करें। परमात्मा आप पर कृपा श्रीमाताजी ने कहा :- एक अन्य प्रश्न का उत्तर देते हुए कहे, परन्तु एक चीज वो अवश्य समझ जाएंगे कि आप उनसे कहीं बेहतर जीवन गुजार रहे है। आप उनसे कहीं अधिक शान्त, आशीर्वादित, धार्मिक तथा विवेकशील हैं, परन्तु आपकी जीवन शैली वे स्वीकार नहीं करेंगे। ये मानते हुए उनसे व्यवहार करें कि वे कभी परिवर्तित नहीं हो सकते। मानसिक रूप से वे यदि परिवर्तित हो भी जाएं फिर भी उनमें वह गहन प्रश्न ये है कि मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि मस्तिष्क सीमित है अर्थात् मस्तिष्क द्वारा किया गया सभी कुछ सीमित है। जो भी कार्य हम करते हैं वह केवल मस्तिष्क के माध्यम से करते हैं और इस मस्तिष्क में सीमित ऊर्जा है। अतः ये आपको असीमित तक नहीं ले जा सकता। तो कुछ तो ऐसा होना चाहिए जो मस्तिष्क के नियंत्रण से परे हो, केवल वही नैसर्गिक (Spontaneous) चीज है। अब भ्रम को देखें। परन्तु उनके प्रश्नों का उत्तर मानसिक स्तर पर भी दिया जा इच्छा नहीं हो सकती क्योंकि साधक के लिए तो साधना से अधिक महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं है। प्रश्न :उन लोगों का क्या है जो भले हैं, साधक नहीं, सकता है। परमेश्वरी और मानवीय में मूल अन्तर क्या है? सर्व-साधारण मानव को सहजयोग एवं परमेश्वर के विषय में किस प्रकार कायल किया जाए? परन्तु जिन्होंने आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने के बाद भी सहजयोग के महत्व को नहीं समझा? श्रीमाताजी : ऐसे लोग परिसंचरण (Circulation) से बाहर हो जाएंगे। स्वीकार करने की अपेक्षा सहजयोग अस्वीकार अधिक करता है। निर्णय चल रहा है। ऐसे जिस प्रकार आप उन पर संदेह करते है वो भी आप पर सन्देह करते हैं। सहज उत्तर ये है कि जिस प्रकार अपने लोग साक्षात्कार से बाहर हो जाएंगे ऐसे लोगों से मस्तिष्क से आप उन पर चिल्लाते हैं, चीखते हैं, उन पर कूदते हैं आदि ये सब कार्य सीमित मस्तिष्क से किया जा सकता है। इन्हें करने वाला कोई मानव है, कोई मानव, परमात्मा नहीं। परन्तु अपने मस्तिष्क से आप कुण्डलिनी को धड़का नहीं सकते। परमात्मा ने, यदि उन्हें कोई कार्य करना हो तो यह असामान्य होना आप साक्षात्कार के विषय में बात नहीं कर सकते और न ही उन्हें बन्धन आदि दे सकते हैं। वे ऐसे लोग हैं, जिनमें हो सकता है, आपकी रुचि रही हो, परन्तु अन्यथा वे खो चुके हैं। उदाहरण के रूप में दही का मंथन करके मक्खन निकलता है और बाकी सब छाछ रह जाती है। इस मक्खन को अलग करने के लिए चाहिए जिसे मानव न कर सकें। कुण्डलिनी को केवल परमात्मा ही धड़का सकते हैं। यह जीवन्त शक्ति है। मानव केवल मृत चीजों की रचना कर सकता है। मृत कार्य कर सकता है। वह किसी जीवन्त शक्ति को छाछ में मक्खन का एक बड़ा सा पेड़ा डाला जाता है और फिर मंथन करने पर छाछ के अन्दर का सारा मक्खन डाले गए मक्खन के पेड़े से चिपककर उसका आकार बहुत बड़ा कर देता है। परन्तु फिर भी मक्खन अंक : 1& 2 -2007 चैतन्य लहरी 33 चैतन्य-लहरियों को महसूस नहीं कर सकते। आप उनसे चैतन्य चेतना की बात नहीं कर सकते। परन्तु स्वयं अपनी आँखों से इसे देख सकते हैं । आपके सिर से बो शीतल-लहरियाँ नहीं निकाल सकते। यह गतिशील नहीं कर सकता। गुरु लोग यदि मस्तिष्क के सीमित कार्य करते हैं तो उनके पास जाने की क्या बिना भी आप चीख सकते हैं. आवश्यकता है? चिल्ला सकते हैं, उछल-कूद कर सकते है। परन्तु कुण्डलिनी को नहीं धड़का सकते। परमात्मा जो कार्य करते हैं वो और नहीं कर सकते। अपने हाथों से आप शीतल लहरियाँ प्रवाहित नहीं कर सकते। तो यदि आप मस्तिष्क से परे जाते हैं तो ये कुछ विशेष बात हो जाती है, बिल्कुल भिन्न। सीमित और असीमित दो भिन्न आयाम हैं। ये आपकी माँ की माया का रहस्य है कि मैं असीमित में रहती हूँ और असीमित कार्य करती हूँ। इसी प्रकार से मैं माया का सृजन करती हूँ। केवल अपनी चैतन्य-चेतना का ज्ञान पाकर ही आप मुझे जान सकते हैं। किसी के सिर पर यदि आप अपना हाथ रखेंगे तो कोई आपको डावाडोल नहीं कर सकता। अतः परमेश्वरी शक्ति वो चीज़ है जिसे मानव अपने मस्तिष्क के माध्यम से नहीं कर सकता। मैं पुनः कह गुरु असाधारण कार्य है सीमित से भी मैं असीमित कार्य कर सकती हूँ। परमेश्वरी माँ का ये एक अन्य पक्ष है। इसी प्रकार से आप लोग सीमित हैं परन्तु अब आपने असीमित में छलांग लगा ली है। अतः अब आप ये सारे कार्य कर सकते हैं। इसी कारण से आप सन्त है। असीमित में अब जिस प्रकार आप कार्य कर सकते हैं वैसे आत्म-साक्षात्कार से पूर्व न कर पाते। आपने ऐसा कार्य करना आरम्भ कर दिया है जिसे आप पहले न कर सकते थे । अर्थात् आप कुण्डलिनी उठाने लगे हैं और ये लोग, ये गुरु, तथाकथित, चीख -चिल्ला और उछल-कूद कर सकते हैं, ये सभी कार्य कर सकते हैं परन्तु लोगों की कुण्डलिनी नहीं उठा सकते। शेष सभी चीजें, हम कह सकते हैं, मनमानी हैं तथा व्यक्तिपरंक (Subjective)? तब आप रोग-मुक्त हो जाएंगे और आपका मानसिक दृष्टिकोण परिवर्तित हो रही हूँ कि आप अपनी कुण्डलिनी को नहीं धड़का सकते। यह जीवन्त शक्ति है और मनुष्य जीवन का सृजन नहीं कर सकता। कुण्डलिनी जब ऊपर को जाती है तो मानव पुतलियों को फैला नहीं सकता। सर्व साधारण मनुष्य और तथा कथित गुरु जाएगा। (निर्मला योग-1983 ) ००० छ कनाडा से एक पत्र प्रिय भाइयों और बहनों, से आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य हमें प्राप्त है। वे इतनी अद्भुत हैं! कुछ वर्ष पूर्व एक ऐसा समय था जब मेरा और बहुत से अन्य लोगों का ये विश्वास था कि विश्व के वर्तमान सामाजिक आर्थि क और परमेश्वरी माँ के विषय में एक अल्यन्त राजनैतिक वातावरण में निश्चित रूप से हम नष्ट सुन्दर बात ये है कि उन्होंने हमें माया के जाल से ऊपर उठकर सत्य और वास्तविकता का अनुभव हो जाएंगे। बहुत थोड़े से लोग मानते थे कि इस परिस्थिति से उबर जाएंगे क्योंकि ऐसा प्रतीत होता था कि हम अपरिवर्तनीय विश्वव्यापी संकट के प्राप्त करने की योग्यता प्रदान की है, उस प्रेम एवं आशीर्वाद के अनुभव की योग्यता जो पृथ्वी पर स्वर्ग है। यद्यपि यह अपने-आप में आश्चर्यजनक है कि हमने अभी आरम्भ ही किया है फिर भी हमारे सामने इतनी सम्भावनाएं हैं कि उनके विषय में सोचा भी नहीं जा सकता। माध्यम हैं। ये वो दिन थे जब तक मैं ये न जान पाया था कि मैं एक साधक हूँ (गुरु खरीदने वाला नहीं, ज्ञान-साधक)। ये उदासी, निराशा तथा संशय से परिपूर्ण दिन थे, मुझे लगा मानो किसी शाश्वत अज्ञात शक्ति ने मुझे उद्यान पथ से धकेल दिया हो पु. आज हम पूर्ण आनन्द, श्रद्धा एवं अधिकार और, मैं ये भी न जानता था कि किस ओर जाऊ । पूर्वक कह सकते है कि हाँ, आशा है, अन्तिम छोर पर तीव्र प्रकाश है। स्थितियाँ परिवर्तित के सुरंग निरन्तर मैं सामूहिकता से प्रार्थना करता रहा कि मेरी सहायता करो और मुझे मार्ग दिखलाओ परन्तु एक विचार हमेशा मेरे मस्तिष्क में बना रहा। जो भी हो, मैं ये जानता था कि जीवन का अन्त होने से पूर्व मैं इस सारे रहस्य को जान लूँगा। होंगी और सुधरेंगी। हम सब पुनः एक हो जाएंगे तथा एक बार फिर पूर्ण शान्ति एवं प्रेम स्थापित हो जाएगा अपनी परमेश्वरी माँ की कृपा तथा उत्कृष्ट दीप्ति में शीघ्र ही हम लोग उन्नत होंगे । यह सब 1971/78 के बीच हुआ। अब मुझे फिर यह विश्व कभी पीछे मुड़कर नहीं समझ आता है कि मेरी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया देखेगा । जा रहा था। मैं ये भी जानता हूँ कि ये मेरे व्यक्तिगत विकास के वर्ष नहीं थे परन्तु ये सहजयोग के विकास के वर्ष थे तथा सारी अधार्मिकता के वापिसी की ओर मुड़ने का समय था। हममें से अधिकतर ने हमारी परम-पावनी माँ के इस रहस्यमय -प्रेम पूर्वक आपकी बहन Liallyn Musa Calgary Alberta, Canada (निर्मला योग) 1983 पथ-प्रदर्शन का अनुभव किया है और इस प्रकार ० सहजयोग में अगुआ -2 अपनी वर्तमान अवस्था में कभी-कभी सहजयोग बहुत बड़ी नर्सरी की तरह से प्रतीत होता है और ये दृश्य अत्यन्त सुखकर है। सहजयोगियों का 'परमेश्वरी बाल विहार' में लोगों के नेतृत्व करने का अधिकार. परमात्मा के प्रति आज्ञाकारिता की सूझ-बूझ प्राप्त करने के बाद प्राप्त होता है। संघ (Divine परमात्मा का आज्ञा पालन अर्थात् आपके आदेशों का पालन होगा। (Thy Will Be Done) Kindergarten) है जिसमें सर्वशक्तिमान प्रेम से सुरक्षित हम आध्यात्मिक परिपक्वता में उन्नत होते अर्थात हे श्रीमाताजी, केवल आप ही कर्ता हैं आप ही हैं। बच्चे जन्म लेते हैं, बड़े होते है और बड़े बच्चे अपने छोटे-भाई-बहनों की देखभाल करने में माँ की सहायता करने लगते हैं। परिपक्व होकर बच्चे, बचपन के गुणों सहजयोग के सच्चे अगुआ कौन हैं? को महसूस करते हैं, वो जानते हैं कि उन्होंने एक अन्य व्यस्क उबाऊ विश्व का सृजन नहीं करना, ऐसे विश्व का जो मूर्खता की सीमा तक गम्भीर है। पागलपन की सीमा तक तर्कसंगत है, एक ऐसा विश्व जिसमे 'व्यस्क शब्द गन्दगी की मोहर (Stamp) बन गया है :- व्यस्क चलचित्र. व्यस्क पुस्तकें...एक ऐसा विश्व जिसमें अगुआगण इतने पापी हैं कि उनके कारण पूर हमारी आज्ञाकारिता की गहनता कितनी है। श्रीमाताजी देश अभिशप्त हैं। एस परिदृश्य में हम सहजयोगी बच्चे साक्षात् श्री गोपाल-कृष्ण की विशेष कृपा का आनन्द उठा रहे है। ये ऐसा युग हैं जिसमें सन्त (तथाकथित) अनिष्टकर हो गए हैं परमात्मा के दिव्याशीष को प्राप्त करके हम पृथ्वी पर विद्यमान इन हैं जो सभी जानती हैं। परन्तु वे महामाया है। तथाकथित अधिकारियों का हल्के से मजाक उड़ा सकते हैं। हँसने का अधिकार पा लेना बहुत अच्छी का पावन कार्य मेरे माध्यम से हो। आज्ञापालन अर्थात् महान बनना आखिरकार हमारे आदर्श कौन हैं, श्री गणेश जो आदिबन्धु हैं अर्थात् योगी के आदि मित्र, माँ की आज्ञा-पालन में जिनका सिर काट दिया गया क्योंकि उन्होंने साक्षातु भगवान शिव को भी घर के अन्दर प्रवेश करने से रोका। ईसा-मसीह भी कम आज्ञाकारी नहीं थे उन्हें भी क्रूसारोपित होना पड़ा। आइए अपने अन्दर देखें कि श्रीमाताजी के प्रति 1 के अतिरिक्त मैं कितने लोगों के विषय में सोचता हूँ, कितनों पर विश्वास करता हूँ? मेरे पास कितने स्पष्टीकरण, सफाईयाँ और तर्क हैं या मेरे पास कितने परामर्श हैं जो मैं, अपनी पूर्ण-मूर्खता में, उनको सुझाता कुछ वास्तव में मेरी इच्छा अपने कान खींचने की होती है । केवल इसलिए कि श्रीमाताजी क्योंकि महामाया रूप में हैं, हमारी रोजुमर्रा की अवहेलनाएं क्षम्य हैं क्योंकि वे दिव्य धैर्य की प्रतिमूर्ति हैं, क्या वे इसलिए हमें सुधारती चली जाएं और हमारा पथ प्रदर्शन करती चली जाएं? परन्तु हमें सीखना चाहिए. हमें तेज़़ी से सीखना चाहिए। इस दिशा में हमें एक संकेत शब्द हमेशा याद रखना चाहिए। बात हैं। फिर भी परिपक्व बच्चों को इस बात का ज्ञान होता है कि किस पर हँसा जाए और किसकी आज्ञा मानी जाए। खेलने के समय सहन में दौड़ना ठीक है। परन्तु कक्ष में वापिस आकर अध्यापक के आने पर पूरी कक्षा सीधी खड़ी हो जाती है । श्रीमाताजी की उपस्थिति को महसूस करके हमारी कुण्डलिनी भी ऐसा ही करती है। जिन लोगों ने सहजयोग में अल्डुअसहक्सले के उपन्यास (Island) टापू का प्रथम शब्द है 'चित्त' (Attention) और यही शब्द अगुआ बनना होता है उनका भी यहीं मूल गुण है उन्हें महावतार श्रीमाताजी निर्मला देवी के प्रति पूर्णतः एवं अटल रूप से आज्ञाकारी होना पड़ता है। इस पुस्तक को इसकी सर्वोत्तम पंक्ति प्रदान करता है। चित्त (Attention) का विशेष महत्व है। अन्दर प्रक्षेपित सत्तयुग अंक : 1 & 2 -2007 36 चैतन्य लहरी आज्ञाकारी होना होता है। ये बात वह समझ चुका है होने पर चित्त हमें ये देखने का सामर्थ्य प्रदान करता हैं कि अहं किस प्रकार की विद्रोही चालाकियाँ करता कि श्रीमाताजी ही उसका पथ प्रदर्शन कर रही हैं और सत्य की ओर जाने वाली सुरक्षित सड़क पर चला रही हैं और वह उन्हें ऐसा करने देता है। इसी कारण से, सम्भवतः, उसे जटिलतम प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा :- "मैं किस प्रकार श्रीमाताजी निर्मला देवी है और किस प्रकार प्रतिअहं हमारी चेतना को बन्धनों के जाल में फँसाकर परमात्मा की इच्छा से अलग करता है। पूर्ण-चित्त के बिना श्रीमाताजी के प्रति पूर्ण आज्ञाकारिता सम्भव नहीं है। आज्ञाकारिता की इतनी सम्मानमय संवेदना विकसित किए बिना हम अन्य लोगों से आज्ञाकारिता की आशा कैसे कर सकते हैं। को प्रसन्न कर सकता हूँ?" श्रीमाताजी के प्रति हमारी आज्ञाकारिता, श्री गणेश एवं ईसामसीह से हमारा भाईचारा स्थापित करती है। उनके प्रति आज्ञाकारी होना सर्वश्रेष्ठ पुण्य है। %2: बनने से पूर्व हमें शिष्य बनना होगा। इन स्पष्ट गुरु बातों के अतिरिक्त देवी-देवता और गण निरन्तर हमें देख रहे हैं कि श्रीमाताजी के प्रति हम कहाँ तक आज्ञाकारी हैं। यदि उन्हें सन्तुष्ट नहीं कर सकते या इन मानदण्डों के अनुरूप नहीं हैं तो हम आध्यात्मिक क्षेत्र में ऊँचाई पर नहीं पहुँच सकते और न ही वरिष्ठ सहजयोगी की बुलन्दियों तक उन्नत हो सकते हैं । दुर्भाग्य की बात है कि आज भी कभी-कभी तो पुराने सहजयोगी भी देवी के आदेशों को तुरन्त नहीं मान पाते और आदेशों के अनुरूप कार्य करने से पूर्व हिचकिचाते हैं। परिणाम स्वरूप उनके लिए बनाई गई पूरी दिव्य परियोजना डावाँडोल हो जाती है और निश्चित रूप से हानि उन्हीं की होती है। बच्चा होते हुए भी, बड़ा, विनम्र होते भी गरिमामय, साधारण होते हुए भी सूक्ष्म, सहजयोगी अगुआ को सर्वोपरि अपनी परमेश्वरी माँ के प्रति %23 उनके प्रति आज्ञाकारिता उत्क्रान्ति प्रक्रिया को बढ़ावा देना है। उनके प्रति आज्ञाकारिता समर्पण का %2: वास्तवीकरण है। उनके प्रति आज्ञाकारिता परमपिता परमात्मा %2: की ओर जाने का मार्ग है। उनके प्रति आज्ञाकारिता पावन विवेक का चिन्ह %2: है। उन परमेश्वरी, पावन सम्राज्ञी के सम्मुख हम %2: बारम्बार नतमस्तक है। हुए जय श्री माताजी एक शिष्य (निर्मला योग 1983) परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ता दिल्ली 18, अगस्त 1979 जल में सूर्य के प्रतिबिम्ब की तरह से है । यद्यपि सूर्य को जल में देखा जा सकता है। फिर भी सूर्य जल से बहुत दूर आकाश में है। इसी प्रकार आत्मा भी देखने वाले की दृष्टि के अनुरूप है। यह हर चीज से परे है। और कुछ भी इसे सीमाबद्ध नहीं कर सकता। परन्तु प्रतिबिम्ब को स्पष्ट दिखाने वाले दर्पण का भी स्वच्छ होना आवश्यक है। दर्पण यदि स्वच्छ न होगा या दर्पण के स्थान पर यदि कोई पत्थर हो तो इसमें सूर्य का प्रतिबिम्ब न देखा जा सकेगा। बिल्कुल ऐसे ही। व्यक्ति यदि दर्पण सम इतना स्वच्छ नही हुआ है कि अचानक आने के कई कारण हैं। सहजयोग में अचानक आ जाने का विशेष महत्व होता है अपने जीवन में अचानक घटित हुई बहुत सी घटनाएं हमने देखी होंगी। हमारे लिए इनका कोई महत्व नहीं है। बौद्धिक स्तर पर यदि हम देखने का प्रयास करें तो ये नहीं समझ सकते कि हमारे जीवन में कोई घटना विशेष क्यों घटित हुई। मानव का यही तरीका है कि वह हर चीज़ को तार्किकता की दृष्टि से देखना चाहता है। उसका ऐसा करना ठीक भी है क्योंकि अभी तक उसकी चेतना जागृत नहीं हुई है। सीमित चेतना से, अपनी बुद्धि के माध्यम से जब मानव हर चीज का प्रमाण खोज रहा है तो ऐसे में तर्कसंगति से बाहर जाकर कोई और विधि अपनाना उसके लिए कठिन वह अपने अन्दर परमात्मा का प्रतिबिम्ब देख सके तो ऐसा व्यक्ति परेशान दिखाई पड़ता है। बहते हुए पानी पर यद्यपि सूर्य भिन्न रूपों में प्रतिबिम्बित होता है परन्तु वास्तव में अपने स्थान पर वह अडोल है। केवल उसका प्रतिबिम्ब ही अपने आकार बदलता है। इसी हैं। आपने परमात्मा, आत्मा और आदिशक्ति आदि के विषय में बहुत कुछ सुना है। इनके विषय में आपने पुस्तकों में भी पढ़ा है। मानव प्रायः आत्मा और परमात्मा के बारे में बात करता है। बहुत से अवतरणों ने बताया कि आप पहले आत्मा का अनुभव कर लें क्योंकि आत्मा को जाने बिना आप परमात्मा तक नहीं प्रकार से पापी और धूर्त व्यक्ति में या उन लोगों में जिनके हृदय इच्छाओं और आकांक्षाओं से परिपूर्ण है उनमें या तो आत्मा प्रतिबिम्बित ही नहीं होती या क्षण भर के लिए प्रतिबिम्बित होकर लुप्त हो जाती है। अतः ये आवश्यक हो जाता है कि ये हमारे सब अवयव-शरीर, मन, बुद्धि, अहंकार आदि दर्पण सम बना दिए जाएं, इन्हें दर्पण की तरह से स्वच्छ कर दिया जाए। पहुँच सकते. जैसे आँखों के बिना आप किसी चीज़ का रंग नहीं पहचान सकते। इसी प्रकार से आत्मा से योग प्राप्त किए बिना परमात्मा को नहीं पा सकते। ऐसा किस प्रकार होगा। परमात्मा ने हमारे बुद्धि से परमात्मा को नहीं समझा जा सकता। केवल अन्दर इसकी पूर्ण व्यवस्था की हुई है । अमीबा से आत्मा के माध्यम से ही परमात्मा को समझा जा सकता है। अब तक के सभी सन्तों ने बताया है कि, "सावधानी पूर्वक धर्मपालन करें, अपनी आत्मा को खोजें और अपने अन्दर निवास करने वाली आत्मा को समझें मानव अवस्था तक हमें विकसित करने के लिए बहुत से अवतरणों ने कार्य किया है और हमें वर्तमान अवस्था तक पहुँचाया है। आज हम चुस्त मानव की तरह से घूम रहे हैं। हम लोग चुस्त तो हैं परन्तु ज्योतित नहीं हैं। चक्षुहीन व्यक्ति भी बहुत चुस्त होता है। परन्तु आँखों वाला व्यक्ति बड़ी आसानी से सब कुछ देख लेता है। चक्षुहीन व्यक्ति छोटी-छोटी चीज़ों को समझता है। वह हर स्थान की बारीकियों को जानता है। परन्तु आत्मा क्या है? हमारे अन्त स्थित होकर ये कौन सा कार्य करती है तथा परमात्मा से ये किस प्रकार सम्बन्धित है? कहा जाता है कि आत्मा हमारे हृदय में परमात्मा का प्रतिबिम्ब है। आत्मा का प्रतिबिम्ब मे अंक : 1 & 2 -2007 38 चैतन्य लहरी व्यक्ति सुगमता से अपने दोषों को स्वीकार कर लेता है क्योंकि सत्य प्रकाश में वह उन्हें देख पाता है। मान दृष्टिवान व्यक्ति केवल उन्हीं चीजों को देखता है जिनके बारे में वह जानना चाहता है और जो देखने के योग्य होती है । हमारे अन्तःस्थित कुण्डलिनी शक्ति को परमात्मा ने स्थापित किया है और 'उसकी (परमात्मा) इच्छा ने इसका सृजन किया है। कुण्डलिनी शक्ति हमारे दर्पण का सृजन करती है, इसे विकसित एवं लो इस साड़ी पर कोई दाग़ है, परन्तु अंधेरा है। कोई यदि इसके विषय में कहे भी सही तो हम उसकी बात से सहमत न होंगे। हो सकता है उससे नाराज़ भी हो जाएं। परन्तु इसी को यदि प्रकाश में देखेंगे तो हैरान हो जाएंगे कि इतना बड़ा दाग़ है और हमने इसे देखा तक नहीं! तब हमें बुरा नहीं लगेगा और तुरन्त ये दाग स्वच्छ करती है तथा आत्मा का प्रतिबिम्ब अपने अन्दर स्वीकार करने की क्षमता इसे प्रदान करती है। सहजयोग में, आप जानते हैं, कुण्डलिनी जागृति साफ करना चाहेंगे। मान लो किसी चक्र पर पकड़ है, कह सकते है आज्ञा पर, तो आप स्वयं इसके विषय में समझ जाएंगे। आपको दर्द हो जाएगा या ऐसा ही कोई अहसास/अन्तर्प्रकाश में आप समझ जाएंगे कि यहाँ पर आपको कुछ समस्या है जिसे आपने स्वच्छ करना है। परन्तु यदि आपमें संवेदना नहीं है और आप समस्या को नहीं महसूस कर सकते, तो हो सकता है कि पागल होकर आप पागलखाने पहुँच जाएं, बिना ये जाने कि आपका फलाँ-फलाँ चक्र पकड़ा हुआ था और इस प्रकार की गंदगी आपमें प्रवेश कर गई थी । इसी प्रकार से आप किसी रोग से संक्रमित हो जाएं तो भी आपको पता नहीं चलता क्योंकि आप तो अंधेरे में बैठे हुए हैं। अंधेरे में आपको पता नहीं चलता कि है या किसी बम्ब पर। अत्यन्त सहज एवं नैसर्गिक (Spontaneous) है । परन्तु सहजयोगियों को समझ लेना चाहिए कि वे सहजयोग में मुख्यतः अपने दर्पण को साफ करने के लिए, स्वच्छ करने के लिए, पूर्व कर्मों के पापों को धोने के लिए और युग युगान्तरों से उनके अन्दर जमी हुई मैल को साफ करके स्वच्छ होने के लिए आए हैं। वे यहाँ पाप और गन्दगी एकत्र करने के लिए नहीं आए, पावन होने के लिए आए हैं। बहुत से सहजयोगी ये बात जानते हैं कि कुण्डलिनी का चैतन्य जब चक्रों में से प्रवाहित होता है तो उनके चक्र जागृत है। चक्र प्रकाशित होने पर आप उनकी स्थिति को जान जाते हैं, अपनी अंगुलियों के सिरों पर ही आप इसे जान जाते हैं। केवल इसी को प्राप्त हैं आप किसी साँप पर बैठे हुए करना है। जो ज्ञान अब तक आपको प्राप्त था वह आपके अन्दर जब प्रकाश आता है तब आपको पता ज्योतिर्मय नहीं था, इसमें प्रकाश न था । अब प्रकाश के कारण आप जान सकते हैं कि कौन से चक्रों में समस्या है और उन चक्रों की समस्याओं को दूर करने के तरीके भी हैं यह कार्य किस प्रकार करना है, सहजयोग में ये भी सिखाया जाता है। चलता है कि आप कौन सी विपदाओं का सामना कर रहे हैं। अतः ज्ञान की पहली झलक आपको अपने बारे में जानकर होती है। आप अपनी समस्याओं को जान जाते हैं। सहजयोग में आत्म-साक्षात्कार पाने के तुरन्त प्रकाश के बिना आप गंदगी नहीं देख सकते। अंधेरे में ये दिखाई नहीं देती। आपके अन्दर जब प्रकाश होगा केवल तभी आप इसे देख पाएंगे। अत: पहला उद्देश्य यह प्रकाश प्राप्त करना है-जैसे कहा पश्चात् व्यक्ति को अपने दोष दिखाई देने लगते है और मानव स्वभाव के अनुरूप वह सहजयोग से दूर भागने लगता है। ज्योंही उसे अपने दोष दिखाई देने लगते हैं, वह घबरा जाता है। उसे विश्वास नहीं होता कि उसके अन्दर इतने दोष हैं। वह डर जाता है और संदेह करने लगता है। आपने देखा है कि हजारों लोग जाता है, सत्य का ज्ञान प्राप्त करना है। सत्य का ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् उस सत्य के प्रकाश में हम अपने अन्दर के गुणों को जान पाते हैं। सहजयोग में अंक :1 & 2 -2007 39 चैतन्य लहरी सहजयोग में ये आपको आत्म-साक्षात्कार देकर बहुत प्रसन्न होती है। तब केवल दो सम्भावनाएं रह जाती आत्म-साक्षात्कार लेते हैं परन्तु लौटकर कभी सहजयोग में नहीं आते। इसका क्या कारण है? सौ लोगों को यदि आत्म-साक्षात्कार मिलता है तो केवल दस लोग वापिस आते हैं। ऐसा हमेशा होता है इसी कारण से सहजयोग प्रसार की गति बहुत धीमी है। कोई बात नहीं। कारण ये है कि मनुष्य स्वयं को इस प्रकार स्वीकार कर चुका है कि वह अपने दोषों के विषय में जानना ही नहीं चाहत्ता और जब उसे दोष दिखाई देने लगते हैं तो वह दूर भागने लगता है। एक जीवन से दूसरे जीवन तक दोषों का भार ढोते रहने से बेहतर ये होगा कि अपने दोषों को समझे और उन्हें सुधार लें। लोग नहीं जानते कि कैसा समय आ गया है। ये अन्तिम अवसर है इसके बाद आपको कोई अवसर नहीं मिलेगा। बाइबल में इसे अन्तिम निर्णय कहा गया है। आपका अन्तिम निर्णय सहजयोग में है। अब आपने यह फैसला करना है कि इसे किस प्रकार करेंगे। आपके अन्दर जब प्रकाश आता है तो आप हैं। या तो आप अपने अन्दर के साक्षात्कार को पहचान लें, इसकी महानता में उन्नत हो और इसकी गहराई में चले जाएं और या इसे पूरी तरह से छोड़ दें। कोई तीसरा विकल्प नहींं हो सकता। जैसे किसी ने पूछा था, "लन्दन में कितने मोड़ हैं?' केवल दो, बायाँ और दायाँ। या तो आप पूरी तरह से इसे स्वीकार कर लें या छोड़ दें। यदि आपने पूरी तरह से इसे पाने का और स्वयं को स्वच्छ करने का निर्णय कर लिया है तो आत्मा का प्रतिबिम्ब आपमें चमक उठेगा इस हो कुण्डलिनी योग में, सामूहिक चेतना में आप जागृत जाते हैं, सामूहिक चेतना में आप जागृत हो जाते हैं और स्वयं को स्वच्छ करते हुए दूसरों को भी स्वच्छ करते हैं और लोगों के पाप भी धुल जाते हैं। यहाँ इसे शुभ माना जाता है। कुछ लोग बहुत शुभ होते है और कुछ अशुभ । दूसरी श्रेणी के लोग जिस घर या जिस देश में प्रवेश करते हैं वहाँ विपदाएं लेकर जाते हैं । जहाँ भी वे रहेंगे वहाँ कठिनाइयाँ आएंगी। एक सज्जन मेरे पास आए वे तेईस, चौबीस वर्ष के युवा थे। कहने लगे, "श्रीमाताजी मैं बिल्कुल अशुभ हूँ." "आप कैसे जानते है, मैंने पूछा? कहने लगा मैं बहुत ही अशुभ हूँ। बच्चे तक मेरे से डरते हैं। मैं जब भी घर जाता हूँ तो परिवार को किसी न किसी कठिनाई का सामना करना पड़ता है या कोई दुर्घटना हो जाती है, और अब तो लोगों को विश्वास स्वयं अपना आँकलन करते है। "देखो मेरा फलाँ-फलौं चक्र पकड़ा हुआ है। तब आप कहते है, "श्रीमाताजी मेरा यह चक्र पकड़ा हुआ है।" आप जानते हैं कि मैं आपके लिए सभी प्रयत्न करने के लिए तैयार हूँ। आप एक दूसरे पर भी कार्य कर सकते हैं और इस प्रकार अपने दोषों, समस्याओं तथा पापों से छुटकारा पा सकते हैं। क्यों यह बोझ लिए घूम रहे है? अपने बोझ को उतार फेंकने के स्थान पर लोग सहजयोग से दूर दौड़ रहे हैं! ये मानव मस्तिष्क है जो हमेशा विचारों में डूबकर चिन्तित रहता है। घबराने की कोई बात नहीं है। आप यदि थोड़े से स्थिर हो जाएँ तो आपको महसूस होगा कि ये शक्ति कितनी बड़ी है। यह आपको केवल आपके दोष दिखाती ही नहीं उन्हें दूर भी करती है, पूरी तरह से दूर कर देती है। हो गया है कि मेरे साथ कोई समस्या है और मैं अशुभ हूँ क्योंकि ऐसी घटनाएं बहुत बार हो चुकी हैं। ऐसे लोग अशुभ होते हैं क्योंकि उनके साथ पाप का अंधकार जुड़ा हुआ होता है जो इतना गहन है कि चक्षुविहीन लोगों की तरह से उन्हें भी भयंकर कठिनाइयों, दुखों, तकलीफों और बीमारियों का सामना करना पड़ता है और इसी में ही वे अन्ततः समाप्त हो जाते है। ऐसे व्यक्ति यदि किसी परिवार में जाते हैं तो, हो सकता है, उस परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाए। अतः सर्वप्रथम आपको ये समझ लेना होगा कि कुण्डलिनी शक्ति अत्यन्त पावन एवं अछूती है। ये पावन शक्ति हमें भी पावन और स्वच्छ करती है। अंक : 1& 2 चैतन्य लहरी 2007 40 को आपके पास आना है। अहवश होकर बहुत से लोग अपनी पीठ सहज की ओर कर लेते हैं, शायद ये सोचते हुए कि सहजयोग उनके पीछे-पीछे आएगा। युग-युगान्तरों से हमारे देश में शुभ-अशुभ शकुन प्रचलन में है। जो सन्त है, यद्यपि बहुत बेफिक्र तबीयत होते हैं, उनके पास अपना कोई स्थान के नहीं होता, अपने वस्त्रों की, भोजन की उन्हें कोई चिन्ता नहीं होती और चाहे वे जंगलों में रहते हैं, फिर भी जहाँ भी वो जाते हैं, अपने साथ सुख-समृद्धि अहं का प्रकोप जब तक आप पर है, आप आत्मा की झलक नहीं देख सकते। परन्तु अहं से लड़ने का कोई लाभ नहीं। सहजयोग में आपको अहं से लड़ना नही है, इसे मात्र देखना है, क्योंकि अब आपका चित्त ज्योतिर्मय लेकर जाते है। परमात्मा के विषय में भी यह बताया गया है। कि परमात्मा को यदि आप जानना चाहते हैं तो उनकी सबसे बड़ी पहचान ये है कि महानतम हो गया है और उसके प्रकाश में अहं के खेल को देखकर आप इस पर हँसे और उन विचारों पर भी हँसे जो अहं ने आपको दिए हैं। ज्योंही आप स्वयं को देखने लगते हैं, आपके गुब्बारे की हवा कम होने लगती है और जैसे-जैसे अहं कम होने मगलमयता उनके हाथ में है। वे सबका हित करते है और सबको प्रसन्न करते है । उनके चरण-कमलों के स्पर्श से सभी कुछ मंगलमय हो जाता है। परमात्मा के छः उपहार है जो धन-सम्पदा, सुख-शान्ति और खुशियाँ लाते हैं। लगता है अपने प्रकाश में आप उन्नत होते हैं। अवतरण जब-जब आए, महान और मगलमय सहजयोग अत्यन्त सूक्ष्म प्रक्रिया है। बहुत कम लोग ये बात जानते हैं कि यह अत्यन्त सूक्ष्म प्रक्रिया है। सुषुम्ना नाड़ी अत्यन्त छोटी है. अत्यन्त पतली, ब्रह्म नाड़ी के ठीक मध्य में। मनुष्य का कर्मो से हुए। परन्तु अब ऐसा समय आया है जिसमें वो कार्य होना है जो अभी तक हुए कार्यों में से सबसे अधिक मंगलमय है। इसके द्वारा आप लोग भी मंगलकार्य करने वाले बन जाएंगे और अपने कार्य लिप्त होना इसका कारण है। इसी कारण से यह करेंगे। यह अवतरणों अन्त स्थित आत्मा को और सहजयोग का महानतम कार्य है। यह पूरे समाज को प्रेरित करेगा, इस अनन्त जीवन में जबकि कलियुग की परछाई पूरे ब्रह्माण्ड को लील रही है। आपकी प्रकाश किरण बहुत ऊँची जानी चाहिए और उसी प्रकाश में आप मंगलमयता, आनन्द और समृद्धि प्राप्त करें। इसके लिए आवश्यक है कि आप अपने लैम्प स्वच्छ रखें और अपने पूर्व कर्मों तथा पापों से मुक्ति पा लें। अहं के साथ आपके पूर्व कर्म भी धुल जाएंगे, क्योंकि कर्म भी अहं के कारण होते हैं। आपने अवश्य अत्यन्त सूक्ष्म वाहिका-ब्रह्म नाड़ी-पापों एवं बुराइयों से लद जाती है और परिणाम स्वरूप इतनी संकीर्ण हो जाती है कि कुण्डलिनी का अत्यन्त पतला सूत्र ही इसमें से निकल सकता है। कुण्डलिनीं का बहुत ही महसूस पतला सूत्र ब्रह्मनाड़ी में से निकल सकता है। यह स्थिति है। आप सबने देखा है कि यह अत्यन्त सूक्ष्म और अत्यन्त गहन प्रक्रिया है। आपमें से अधिकतर लोगों ने कुण्डलिनी की हलचल और धड़कन को देखा है। मूल (Bottom) में यह किसी प्रकार से एक छोटा सा मार्ग बनाती है ताकि ब्रह्मनाड़ी के संकीर्ण मार्ग से कम से कम एक सूत्र के गुजरने को सम्मव बनाया जा सके और उसी सूक्ष्म सूत्र से वह ब्रह्म रध का भेदन करती है। आरम्भ में अधिकतर लोगों में बोझ महसूस किया होगा कि सहजयोग में आने के पश्चात आप अपने अहंकार तथा उसकी कार्यशैली को अत्यन्त सुगमता पूर्वक देख सकते हैं। सहजयोग में भी आपको बहुत से प्रलोभनों का सामना करना पड़ता है और इसमें जब आपका अहं हावी होता है तो आप भूल जाते हैं कि आपको सहजयोग में जाना है या सहजयोग यह घटना आसानी से घटित हो जाती है । परन्तु के दबाव से पुनः यह नीचे जाकर कुण्डल मारकर बैठ जाती है और व्यक्ति उस शान्ति, माधुर्य और शीतल चैतन्य लहरी अंक :। & 2 -2007 41 चैतन्य लहरियों आदि को भूल जाते है और यह सब मानव बुद्धि को समझना आसान नहीं है। यह संसार का सबसे कठिन कार्य है। परमात्मा को स्वीकार करना आसान है, परन्तु परमात्मा तो जो है वो हैं उनका दोहरा व्यवहार नहीं होता। मानव के केवल दो ही नहीं, कई रूप होते हैं । मनुष्य के अन्दर सभी पशु-सॉप से लेकर बिच्छु, हाथी. घोड़े, शेर सभी विद्यमान हैं। आप समझ ही न पाऐंगे कि उसका जिसे उन्होंने एक बार प्राप्त किया था अब उनके पास नहीं होता। अन्तर्प्रकाश में जब वो देखते है कि ये सभी चीजें उनमें अन्तर्निहित हैं तो उन्हें सदमा पहुँचता है। तब डरकर वे शंकालु हो जाते हैं। मनुष्य की बुद्धि बहुत सारे सन्देहों के साथ खड़ी हो जाती है। पहला और आम सन्देह है श्रीमाताजी कौन हैं? यह पहला प्रश्न है। मैं आपको बताना चाहती हूँ कि आप मुझे तब तक नहीं समझ सकते जब तक आपके आत्म-चक्षु खुल नहीं जाते, और मुझे समझने का प्रयत्न है, इस बात की कल्पना करें! क्या अब आप इसके करना भी नहीं चाहिए। पहले अपनी आत्मा की आँखें खोल लें। मस्तिष्क इस प्रकार क्यों कार्य कर रहा है? अब जब गंगा बह रही है तो आप उसमें से जल ले क्यों नहीं लेते? ये प्लग यहाँ जोड़ दिया गया स्थान पर कोई बिगड़ा हुआ प्लग लगाएगे? यह अत्यन्त व्यवहारिक बात है। मैं समझ नहीं पाती कि मानव बुद्धि में क्या भ्रम भरा हुआ है कि दिखाई दे रहे सत्य को वे स्वीकार नहीं करते और जो दिखाई नहीं पड़ता जब श्रीराम अवतरित हुए तो लोगों ने कहा कि वे परशुराम को मानते हैं, जब श्री कृष्ण आए तो लोग श्री राम को मानने लगे और श्री नानक के उसे स्वीकार करते हैं। बहुत समय पूर्व इसका कारण खोज लिया गया था। अहकार इसका कारण है। समय श्री कृष्ण को स्वीकार किया, ईसा-मसीह के समय में लोगों ने अब्राहम को स्वीकार किया। सभी मनुष्य के अन्दर बहुत अहं है। श्रीराम के दिनों में यदि आपने उन्हें स्वीकार किया होता तो उन्होंने आपको बताया होता कि आप अपनी कुण्डलिनी मानव रूप में आए थे। परन्तु ये सारा बुद्धि का खेल है, ये बात कितनी दिलचस्प है! अब मैं आई हूँ तो लोग श्री शिरडी साईनाथ को मानते है परन्तु जब जागृत करवा कर आत्म-साक्षात्कार पा लें और सहजयोग में स्थापित हो जाएं। आपने यदि श्री कृष्ण को पहचाना होता तो उन्होंने गोकुल में चाहे सहजयोग की लीला न की होती परन्तु आपको आत्म-साक्षात्कार देकर सहजयोग अभ्यास करने के लिए अवश्य कहा होता। श्री नानक को यदि स्वीकार किया गया होता तो भिन्न चीजों के विषय में बताने में अपना सिर फोड़ने की उन्हें आवश्यकता सहजयोग सिखाया होता। परन्तु उन दिनों में बहुत कम लोगों ने उन्हें पहचाना। आज जब वो यहाँ पृथ्वी पर नहीं हैं तो आप लोगों ने उनके नाम पर गुरुद्वारे बना दिए हैं। मोहम्मद साहब आज यहाँ नहीं हैं तो लोगों ने उनके नाम पर मस्जिदें बना दी है क्योंकि लोग सोचते हैं कि अब मोहम्मद साहब उनके हाथ में हैं। श्रीराम उनके हाथों में हैं। और वै उनके मन्दिर तक वे जीवित थे तो उन्हें खाने के लिए पर्याप्त भोजन न मिलता था। ऐसा क्यों था? वे भी तो मानव थे। जब तक वे जीवित रहें उन्हें बेकार माना गया और सताया गया। परन्तु मृत्यु के बाद उन्हें भगवान माना गया। इसका क्या कारण है? मानव ऐसा क्यों है? न होती। उन्होंने सीधे से गंगा जहाँ भी प्रवाहित होती है वहाँ आपको उसका जल प्राप्त होता है। यदि यह यहाँ बह रही हो तो क्या आप कहेंगे कि "हम इसे गंगा नहीं मानते।' जिस स्थान पर पहले गंगा बहती थी चाहे वहाँ कुछ भी न हो, चाहे आज वहाँ नाला हो। आप यदि इसे गंगा मानना चाहे तो मान ले। यहाँ पर यदि गंगा बह रही है, तो क्यों न इसे स्वीकार कर लें? अंक :। & 2 -2007 42 चैतन्य लहरी बनाकर कह सकते है, "ये हमारा मन्दिर है, श्रीराम हमारी जागीर हैं, उन पर हमारा अधिकार है, और जो यदि स्वीकार कर लिया तो वह अहं- मुक्त हो जाएगा। इसके बहुत से इलाज हैं। मान लो व्यक्ति को बहुत सा पैसा मिल जाता है और वह बहुत शक्तिशाली बन जाता है तो बहुत अधिक धन उसे गधा बना देता है ऐसा व्यक्ति विदूषक की तरह से व्यवहार करता है और सब लोग उस पर हँसते हैं क्योंकि बहुत अधिक शक्ति उसके सिर पर चढ़कर बोलती है। किसी बहुत सुन्दर महिला को यदि अपने सौन्दर्य का गुमान हो जाए कि वह अद्वितीय सुन्दरी है तो उसका अधोपतन हो जाता है। किसी चीज का बाहुल्य होने के कारण व्यक्ति गधा क्यों बन जाता है? इसका कारण ये है कि भी कुछ आप अपने साथ लाए हो सारा धन और वस्तुऐं-सभी कुछ इस मूर्ति पर चढ़ा दो। ऐसा आप इसलिए कहते हैं क्योंकि आप स्वयं को श्रीराम का मालिक मानते हैं अपने अहंकार के कारण मनुष्य सोचता है कि वह परमात्मा को अपने नियंत्रण में रख सकता है और इसी के लिए वह सारा दिखावा कर रहा है। हर बार यही दिखावा किया गया। आज भी से बड़े-बड़े मन्दिर हैं, वहाँ क्या हो रहा है? जहाँ बहुत स्वयम्भु. प्रतिमाएं हैं? उन मन्दिरों में क्या हो रहा है? अह, मनुष्य को गधा बना देता है। गधे में भी सम्मान भाव होता है, उसमें भी मर्यादाभाव हो सकता है, परन्तु अहंकारी व्यक्ति तो गधे से भी बदतर है। मनुष्य की तुलना यदि अहं से की जाए तो परिणाम गधा है। मैं हमेशा कहती हूँ, ये देखकर आप बहुत हैरान होंगे कि मनुष्य में अहं किस प्रकार बढ़ा हुआ है! वह इस शक्ति को सम्भाल नहीं सकता। वह यदि कोई महाराजा है तो उसके लिए लाखों रुपये भी तुच्छ हैं। परन्तु किसी दरिद्र व्यक्ति को थोड़ा सा पैसा यदि मिल जाए तो वह हक्का-बक्का हो जाता है। कोई वास्तविक राजा यदि सत्ता में आता है तो सत्ता का कुछ उस पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। विश्व में वह राजाओं की तरह से रहता है और तुच्छ चीजों की चिन्ता नहीं करता? परन्तु एक सर्वसामान्य व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता। क्योंकि उसके पास अचानक प्राप्त हुए वैभव को सम्भालने की योग्यता नहीं होती। सत्यसाधक को व्यक्ति को यदि जरूरत से ज्यादा पैसा मिल जाए तो वो पगला जाता है। लाखों में से कोई एक धनी व्यक्ति विवेकपूर्ण होता है। किसी को यदि धन मिल जाता है तो वह सोचता है कि कौन से शराबखाने में जाऊ या कौन सी गंदी औरत के पास । मनुष्य कभी नहीं सोचता कि जो धन उसे प्राप्त हुआ है उसे अपनी उत्क्रान्ति के लिए और बाहय जगत में उन कार्यों के लिए खर्च कर सकता है जो परमात्मा को स्वीकार्य हो और जिनको करने से परमात्मा के आशीर्वाद मिल सकें। परमात्मा के कार्य करने में भी वे अहं का प्रदर्शन करते हैं, यदि आत्मा का विपुल वैभव जब प्राप्त होता है तो उसके लिए बाकी सभी कुछ मूल्यहीन हो जाता है । इसके विपरीत सामान्य व्यक्ति को यदि कुछ प्राप्त हो जाए तो वह अहं के कारण दिन और रात भ्रम की स्थिति में बना रहता है और मूर्खों की तरह सोचता है कि उसकी प्रशंसा हो रही है। उसकी समझ में नहीं आता कि वह क्या कर रहा है और उसके लिए ठीक मार्ग कौन सा मन्दिर बनाएंगे तो उसके ऊपर भी शिलालेख लगाएंगे है। (फलां) ने बनवाया।' इसे आप पागलपन के अतिरिक्त क्या कहेंगे? उसके पिता ने यदि कोई नेक कार्य किया होता तो स्वतः ही वह प्रसिद्ध हो गया होता। अहंकार के इतने झूठे स्वप्न देखने में मनुष्य सत्य से दूर बना रहता है। यद्यपि वह सत्य को सामने देखता है. परन्तु अहं उसे सिखलाता है कि सत्य को स्वीकार नहीं करना क्योंकि सत्य को .. की 'स्मृति में श्रीमान अब रुककर देखने का समय आ गया है। यह जागृत होकर ज्ञान पाने का समय है। अहं-पर्वत की चोटी की जिस ऊँचाई पर आप पहुँच गए हैं, वहाँ पर रुककर पीछे देखने का यह समय है। अब तक आपने न तो कुछ प्राप्त किया है और न ही आप कुछ जानते हैं। ये बात विनम्रता पूर्वक अंक :1 & 2 - 2007 43 चैतन्य लहरी उसका अपना अह है इस असत्य में फॅसा रहने वाला तथा इसके प्रभाव में कार्य करने वाला व्यक्ति अपने विनाश को न्यौता देता है। स्वीकार करें और अपने अन्दर आत्मसात होने दें। अभी तक आपने अपनी आत्मा को नहीं समझा है। हर कदम पर आप भौतिक (मृत) चीजों के जाल में फँसते चले जा रहे हैं और ये पदार्थ आपको षड्रिपुओं के चंगुल में फँसाकर उनका दास बना रहे हैं। क्षण भर के लिए रुककर अपने अन्तः स्थित दर्पण में देखें, क्यों? ये बात मैं आपसे बार-बार पूछती हूँ-अपने इतने कष्टकर अन्त को क्यों आप न्यौता दे रहे हैं? किस कारण से आप स्वयं को नहीं जानना इसमें आप परमात्मा के प्रतिबिम्ब आत्मा को देख चाहतें? क्यों नहीं परमात्मा के सम्मुख समर्पित होना चाहते? क्यों गलत लोगों का अनुसरण कर रहे है? जो लोग आपको लूट रहें है, नष्ट कर रहे है, जिन्होंने सम्मोहन करके आपको इतनी हानि पहुँचाई है. उनके लिए आप अपना जीवन तक न्योछावर करने के लिए तैयार हैं! क्या आपमें सत्य को देखने की बिल्कुल भी योग्यता नहीं है? परमात्मा को तो केवल पूर्ण स्वतन्त्रता से ही जाना जा सकता है। सहजयोग में आरम्भिक अनुभवों से आपको जो थोड़ी बहुत स्वतन्त्रता प्राप्त हो रही हैं उससे घबरा कर आप अपनी पुरानी परतन्त्रता की ओर लौट जाना चाहते है! पाएंगे। इस कृपा का आनन्द लें और इसके प्रकाश से अपने अन्दर से सांसारिक अंधेरे को भगा दें यह महान कार्य है। परन्तु अधिकतर लोग इस पर टिक नहीं पा रहे हैं। ये कठिनाई है। मैं यदि सम्मोहन करने पर लगू तो हजारों लोग आ जाएंगे। ऐसा ही एक झूठ-मूठ का गुरु लन्दन पहुँचा। उसने नब्बे हजार लोगों की जेबें खाली करवाईं, हर व्यक्ति से उसने छः हज़ार डालर लिए उनमें से साठ लोग मेरे पास आए वे मिर्गी रोग से पीड़ित थे मैंने कि उस गुरु ने उन्हें क्या सिखाया, कौन उनसे पूछा से मन्त्र उन्हें बताए? छः हजार डालर की कीमत सहजयोग तो बहुत सहज है परन्तु आप लोग नहीं है। नगरों में बहुत सी जटिलताएं हैं । बहुत से तनावों और दबावों में से गुजरने के कारण आपको सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अतः चुंकाने पर इन गरीबों को इंगा, पिंगा, ठिंगा मन्त्र मिले। गुप्त रूप से ये मन्त्र उन्हें दिए गए और कहा गया कि इनका जप करने से उन्हें बहुत सी सिद्धियाँ प्राप्त होगी। आज वो लोग सड़क पर है, उनके घर बरबाद हो गए हैं और वे दयनीय स्थिति में हैं। यदि वे बुद्धिमान होते तो समझने का प्रयत्न करते और किसी ऐसे व्यक्ति के पास न जाते जो इनके अहं को बढ़ावा बहुत प्रथम आवश्यकता ये है कि सहज बने। आप जानते हैं कि मेरा कार्य गाँवो में बहुत तेजी से हो सकता है। नगरों में अहं का प्रकोप अधिक है। छोटी-छोटी चीजों के कारण लोग अहंकारी हो जाते हैं और इसी कारण से वे उन लोगों के प्रति समर्पित हो जाते हैं जो उनके अहं को बढ़ावा देते हैं और उनका धन ऐंठ कर दौड़ जाते हैं। आप बस उन्हें ताकते रहते हैं और उनसे रोग प्राप्त करते हैं। आपको आश्चर्य होगा कि कैंसर आदि भयानक बीमारियों के जिन रोगियों को मैंने ठीक किया वे सब इन्हीं कुगुरुओं और तान्त्रिकों के शिकार थे! मुझे एक भी ऐसा कैंसर रोगी नहीं मिला जिसका सम्बन्ध किसी कुगुरु से न हो। इसलिए कहा जाता है कि कैंसर लाइलाज है। अब आप समझ पाएंगे कि ये लोग कितने धूर्त, अशुभ और हानिकारक हैं इनके दे रहा था। वह उनसे यही कहता कि "तुम महान व्यक्ति हो, तुम पोंगानन्द हो ।" 'तिजोरियाँ भरने वाले सभी के अहं को ये कुगुरु बढ़ावा देते रहते हैं। बड़े-बड़े अखबारों में उनके विज्ञापन आते हैं और उनकी प्रशंसा होती है क्योंकि उन लोगों के पास पैसा है जो पैसे को आकर्षित करता है। बड़े-बड़े सुप्रसिद्ध व्यक्ति उनसे मिलने जाते हैं। परन्तु अन्दर सब ढकोसला है। क्या हम कह सकते है कि व्यक्ति असत्य की पूजा करता है? परन्तु मनुष्य तो बहुत बड़े असत्य में फँसा हुआ है और ये असत्य अंक : 1। & 12 -2006 44 चैतन्य लहरी चीज है! बहुत कठिन लगता था कि किस प्रकार एक व्यक्ति में घटित होकर यह आगे बढ़ेगा। ईसा-मसीह को अन्तिम व्यक्ति माना जा सकता है जिन्होंने इस दिशा में बहुत सा कार्य किया और उनके बाद गुरु-तत्व को लेकर गुरुनानक जी अवतरित हुए। परन्तु उनके समय पर भी अधिक लोग आत्मा को न जान पाए। लोगों को समझाने में ही वे अपना सिर फोड़ते रहे। वे मानव रूप में अवतरित हुए थे परन्तु उन्हें पहचाना नहीं गया। आस-पास का सारा वातावरण अत्यन्त खराब है। उनके पास जाने वाले सभी लोग भयानक कष्टों में फँस जाते हैं, यें बात जानकर आपको खेद होगा। मौर्वी में बहुत से लोग मृत्यु को प्राप्त हुए, उनमें से बहुत से अबोध थे। परन्तु वहाँ पर जाघन्य पाप किय जाते थे। आपने सुना होगा कि कच्छ में कुछ लोगों ने एक साधु के लिए बहुत बड़ी जमीन खरीदने का निर्णय किया! व्यक्ति को देखना चाहिए कि वह किसके हाथों में खेल रहा है और अपने विनाश को किस तरह निमंत्रण दे रहा है। मैं उनके साथ थी, वास्तव में उन सभी के माँ के रूप में मैं आपको बता रही हूँ और साथ। मुझे प्रसन्नता है कि इस देश के लगभग दस-हजार लोगों ने सहजयोग में आकर अपनी आत्मा समझा रही हूँ कि आपको ऐसे धू्तों के पास जाकर अपने विनाश को बुलावा नही देना को प्राप्त किया है । ये अन्तिम निर्णय है. देखते हैं क्या होता है। जो भी लोग आ जाएंगे मेरे लिए ठीक है और नहीं आएंगे तो भी ठीक है। याद रखें परमात्मा आपके सम्मुख झुकेंगे नहीं, अपनी स्वतन्त्रता में आपको उन्हें प्राप्त करना होगा। आप यदिे उन्हें प्राप्त नहीं । ऐसे लोगों के पास जाकर अपनी आत्मा का हनन न करें। अपनी आत्मा को समझे। प्रश्न और प्रतिप्रश्नों के चक्कर में सबकुछ बिगाड़ने की आवश्यकता नहीं है सर्वप्रथम आत्म-साक्षात्कार प्राप्त कर लें, अपनी आत्मा को कर पाए हैं तो यह न तो उनका दोष है न सहजयोग का, न मेरा और न ही आत्मा का। जान लें। बाकी का कार्य मेरा है। आत्मा को जान लेने से पूर्व किस प्रकार आप प्रश्न पूछेगे? सच्चे-झूठे का भेद जानने का कोई तरीका क्या आपके पास है? बेंबका आप लोग, जिनमें अहं है, उन्हें स्वयं को दोष देना होगा। यह आपकी अपनी सम्पदा है और आपको केवल इसलिए दी गई है कि आप इसे स्वीकार करें, सर्वप्रथम अपनी आत्मा को जान लें। आत्मा को जाने बिना बहस करना बेकार है, क्योंकि यह अत्यन्त सूक्ष्म विषय है, उथला विषय नहीं है कि किसी व्यक्ति का चेहरा देखकर आप कुछ कह दें और बस! ऐसे जाल में न फँसें जहाँ से वापिस ही न आया जाए। सहजयोग समझे, और इसका आनन्द लें। परमात्मा आपको धन्य करें। अत्यन्त उत्कृष्ट है। यह महानतम है। कभी-कभी तो मुझे भी इस पर हैरानी होती है! यह इतनी अजीब (निर्मला योग-1983) अंग्रेजी रूपान्तरण से रूपान्तरित +**+० है ० ४ हिं ४॥ Pratisthan-Gurgaon ा "ओ मेरे बच्चो, वास्तव में आप मेरे सहस्प्र से जन्में है। अपने हृदय में मैने आपका गर्भ धारण किया और ब्रह्मरन्ध्र से आपको पुनर्जन्म दिया। मेरे प्रेम की गंगा आपको समूहिक चेतना के साम्राज्य में लाई है। यह प्रेम मेरे मानवीय शरीर से कही महान है। यह आपका पोषण करता है, आपको शान्त करता है और सुरक्षा प्रदान करता है। शनैः शनैः यह आपकी चेतना को दिव्य आनन्द के योग्य बनाता है। परन्तु यह प्रेम आपको सुधारता भी है और आपमें काट-छाँट भी करता है। यह आपका पथ-प्रदर्शन करता है, दिशा-निर्देश देता है। सच्चे ज्ञान (True Knowledge) के रूप में यह प्रकट होता है। यह आपके सदमों (Shocks) को झेलता है और पथप्रदर्शन-पत्ते (Guiding Leaf) की तरह आपको सत्य की कठोर धरातल पर स्थापित करता है। आध्यात्मिक बुलंदियों पर पहुँचने की आपकी आकांक्षाओं को पूर्ण करने के लिए यह शक्ति प्रदान करता है।" परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवीं ---------------------- 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-0.txt ं पव ब चैतन्य लहरी २ ार जनवरी फरवरी 2007 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-2.txt चै त न्य लहरी अंक : 1-2,2007 NIRMALA. IVERSAL PURE इस अंक में निर्मल नगरी पुणे में श्री महालक्ष्मी का पूनर्आगमन (22.10. 2006) परम पूज्य श्रीमाताजी के प्रेम का 1000 वॉ माह (28.7.2006) 6. क - सोमवार, 31 जुलाई, 2006 इज़राइल के शरणार्थी कैम्प में आत्मसाक्षात्कार परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी से प्रार्थना ৪ परम पूज्य श्रीमाताजी को इंग्लैण्ड से विदाई (2.8.2006) 9. 2 अगस्त, 2006 लन्दन में एक अद्भुत दिवस 11 श्रीमाताजी लॉसएंजलिस में - 3 अगस्त, 2006 12 10.5.1992 सहश्रार पूजा - कबैला 13 अबोधिता 24 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन- चेलशम रोड, लन्दन 25 (24 मई, 1981) कनाडा से एक पत्र (निर्मला योग) 34 सहजयोग में अगुआ -2 35 दिल्ली, 18 अगस्त, 1979 परम पूज्य श्री माताजी का प्रवचन 37 DHARMA VMRSIA HELICION 7. 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-3.txt ल ह री चै त नय प्रकाशक निर्मल ट्राँसफोर्मेशन प्रा. लि. प्लाट नं. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड कोथरुड पुणे फोनः 020-25285232 411 029 मुद्रक कृष्णा प्रिन्टर्ज एण्ड डिज़ाइनर्ज़ 292/23 ओंकार नगर 'बी त्रीनगर दिल्ली-110035 मोबाइल : 9212238008 लि ततन आप अपने सुझाव, सदस्यता एवं जानकारी के लिए निम्न पते पर लिखें : निर्मल ट्राँसफोर्मेशन प्रा. लि. प्लाट नं. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी पॉड रोड, कोथरुड पुणे फोनः 020-25285232 411 029 अपने अनुभव, सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ.पी. चान्दना जी-11-(463), ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली-110 034 फोन : 011-65356811 हि. 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-4.txt नगरी पुणे की पावन भूमि पर निर्मल श्री महालक्ष्मी का पुनअगमन रविवार, 22 अक्तूबर 2006 होगा-कृतयुग। यह वह समय है जब कार्य होगा (*परम पूज्य श्री माताजी चैलराम रोड लन्दन 2 अप्रैल 1982') । दिवाली के त्यौहार का सूक्ष्म महत्व यह भी है रविवार, 22 अक्तूबर 2006 का दिन मानव इतिहास में अत्यन्त महत्वपूर्ण है। हजारों वरषों के बाद एक बार फिर पुणे (भारत) के खाप्टेवाड़ी गाँव, भूकुम में बनाई गई निर्मल नगरी की पावन भूमि पर परम-पूज्य श्रीमाताजी के रूप में श्री महालक्ष्मी के चरण-कमल पड़े। कि यह श्री राम की रावण पर विजय और उनकी अयोध्या वापसी से सम्बन्धित है। उनके आगमन की खुशी में प्रकाश उत्सव मनाया गया था। आसुरी शक्तियों पर अच्छाई की विजय का आनन्द लेने के लिए हर व्यक्ति प्रेमदीप जलाना चाहता है ताकि उनके अन्दर राजलक्ष्मी तत्व ज्योतिर्मय हो सके। श्रीमाताजी कहती है :- हजारों वर्ष पूर्व त्रेतायुग में श्री विष्णु और श्री महालक्ष्मी के अवतरण श्री राम और सीताजी ने अपने चरण-कमलों से इस भूमि को चैतन्यित किया था । महाराष्ट्र ही केवल ऐसा प्रदेश था जहाँ श्री सीता-राम नंगे पाँव पैदल चले। मिथक इस प्रकार से है कि चौदह वर्षों के बनवास में श्री सीता-राम ने कुछ समय इस भूमि पर बिताया खाप्टेवाड़ी के ग्रामीण इस बात का दावा करते हैं कि जो बर्तन श्रीराम और सीता ने उस समय उपयोग किए थे उनके अवशेष साथ वाली पहाड़ी पर मौजूद हैं और उनके उस स्थान पर आने का प्रमाण है। इस भूमि पर प्रवाहित होने वाला हैं। "आपकी आत्मा के लिए जो कुछ भी अच्छा है, यह संयोजन होते ही वह स्वतः कार्यान्वित हो जाएगा, आज सहजयोग का यही कार्य है। इसीलिए मैंने कहा कि यह कृतयुग है और इसमें यह कार्य होना है। यह समन्वय हमें अपने अन्दर प्राप्त करना है, अतः कई बार आपको अपने शरीर उस स्तर के बनाने पड़ते चैतन्य भी इसके महत्व को बताता है। इसी पावन (परम पूज्य श्री माताजी चैलराम रोड, लन्दन 2 अप्रैल 1982) भूमि के लगभग ग्यारह एकड़ क्षेत्र में निर्मल नगरी बनाई गई है। श्री राम के अवतरण के बारे में बताते हुए एक बार श्रीमाताजी ने बताया था कि इस भूमि को चैतन्यित करने के लिए श्रीराम वहाँ पर नंगे पाँव चले और पृथ्वी तत्व के रूप में वहाँ श्री गणेश अपनी अभिव्यक्ति करते हैं। दिवाली पूजा का उत्सव मनाने के लिए आत्म-साक्षात्कारियों की सामूहिकता के रूप में विद्यमान यहाँ उपस्थित हम सब सहजयोगी कितने भाग्यशाली हैं! और इसी पावन भूमि पर दिसम्बर 2006 में हमें ईसा-मसीह के जन्म दिवस का उत्सव मनाने का भी सौभाग्य प्राप्त होगा! "क्योंकि पहली बारं जब मानव पृथ्वी पर आया तो वह सभी पशुओं और भयानक राक्षसों से भयभीत था। ऐसी स्थिति में मनुष्य को एक राजा, सारी भाग-दौड़ और दिन की तपन के बावजूद भी ये दिवस अत्यन्त आनन्ददायी था शाम के समय थोड़ी सी ठण्ड हो गई थी और आकाश में छिट-पुट बादल भी दिखाई दे रहे थे आज निर्मल नगरी बिल्कुल भिन्न नजर आ रही थी। सर्वत्र आनन्द एक शासक की आवश्यकता थी जो आदर्श राजा हो और धर्म-पूर्वक शासन करे। श्री राम उन्हीं शासकों में से एक थे वे त्रेता युग में अवतरित हुए और श्री में। कृष्ण द्वापर युग मैं जब अवतरित हुई तो कलियुग था परन्तु एवं उल्लहास का वातावरण था और सभी हृदय इसका पूर्ण आनन्द उठाना चाहते थे। आज कृतयुग का समय है-ऐसा युग जिसमें कार्य 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-5.txt अंक : ।। & 12 -2006 चैतन्य लहरी दिवाली से पूर्व के दिनों में इन्टरनैट से प्राप्त हुई सूचनाओं से सभी योगियों के हृदय प्रफुल्लित थे क्योंकि हमें पता चला था कि श्रीमाताजी का स्वास्थ्य पावनी माँ का स्वागत करने के लिए स्थान ग्रहण करने को भागते हुए सहजयोगियों को देखना वास्तव में एक दृश्य था! मानों सभी हृदय उनकी स्तुति गान बहुत अच्छा है, वे बहुत प्रसन्न है। इग्लैण्ड में वे खरीददारीके लिए भी गईं और एक शाम सहजयोगियों के साथ उन्होंने अपने ही लिखे हुए भजन का एक पूरा कर रहे हों, "शुभ-मंगलमय दिवस है आया......आदि शक्ति हैं स्वयं पधारी " कुछ समय के लिए पूर्ण शान्ति छा गई। श्रीमाताजी, विशेष रूप से उनके लिए सजाए गए, मंच के साथ के कमरे में आ गईं थी। चैतन्य प्रवाह अन्तरा गाया-माँ तेरी जय हो, तेरी ही विजय हो। पूजा का समय शाम को साढ़े पाँच बजे घोषित किया गया था और अब सभी आँखें दिवाली में उनके पावन दर्शन करने की प्रतीक्षा कर रहीं थी। विश्व भर के देशों से महालक्ष्मी रूप में परम पूज्य श्रीमाताजी के चरण कमलों की पूजा करने के लिए निर्मल नगरी में एकत्र हुए चौदह-पन्द्रह हजार सहजयोगियों का | बता रहा था कि परम पावनी माँ वहाँ विराजमान हैं। और फिर अचानक "स्वागत आगत स्वागतम की पूजा धुन लहरा उठी। पौने छः बज चुके थे परन्तु मंच के पर्दे अभी तक गिरे हुए थे। प्दे जब हटे तो मंच पर स्वर्गीय दृश्य था। सभी लोग वहाँ लगे चार विशाल स्क्रीनों पर मद्धम नजर आने वाली तस्वीरों को देख रहे थे, क्योंकि अभी तक पर्याप्त अन्धेरा नहीं हुआ उल्लास देखते ही बनता था! आम सोच तथा पूर्वानुभवों के अनुसार अधिकतर लोगों ने यही सोचा कि पूजा के लिए घोषित समय, वास्तव में श्रीमाताजी के पहुँचने से बहुत अधिक पहले होता है यद्यपि पूजा का समय साढे पाँच बजे शाम घोषित किया गया था फिर भी पाँच था। तभी श्री आदि-शक्ति माताजी श्री निर्मला देवी का जयकारा गूंज उठा और उसके पश्चात् सर सी पी. प्रिय पापाजी, का जय घोष हुआ। तत्पश्चात् सर सी पी. ने माइक पर विश्व सामूहिकता के सम्मुख, अपनी विशेष शैली में, हिन्दी भाषा में परम पावनी माँ का पावन सन्देश सुनाया। बजे तक पूरी सामूहिकता ने इसे गम्भीरता से नहीं लिया था। वे नहीं जानते थे कि दिव्य-लीला क्या है। पूजा स्वीकार करने के लिए श्रीमाताजी समय से पूर्व ही तैयार हो गई थीं। क्या ये चैतन्यित- भूमि परम "उन्होंने कहा-"श्रीमाताजी ने आप सबके लिए सन्देश दिया है...हम सब एक है, परमात्मा केवल 13D एक है, कहने के लिए अब कुछ नहीं बचा है। इस लक्ष्य के लिए और मानव मात्र के हित के लिए उन्होंने पिछले पैंतीस वर्षों में विश्व भर में अथक प्रयास किए पावनी माँ का स्वागत करने के लिए बेचैन थी या पूजा स्वीकार करने के लिए स्वयं महालक्ष्मी की एक बार फिर वहाँ जाने की इच्छा थी? या श्रीमाताजी श्री गणेश की इस इच्छा को नकार नहीं पाई कि वे समय से पूर्व पहुँचकर अपने दर्शन दें? अत: श्रीमाताजी ने पूजा के घोषित समय से बहुत पहले प्रतिष्ठान से रवाना होने का फैसला किया। हैं और यात्राएं की हैं। अब हमें भूल जाना चाहिए कि हम भिन्न है। हमं सब एक है और उनके स्वप्न को साकार करने की तथा पूरे देश में उनके सन्देश को फैलाने की जिम्मेदारी हमें अपने कन्धों पर ले लेनी चाहिए। अचानक कारों का एक काफ़िला श्री माताजी की कार के पीछे-पीछे आता हुआ. पौने पाँच बजे निर्मल नगरी के द्वार के समीप दिखाई दिया। मार्गदर्शक कार (Pilot Car) श्रीमाताजी की गाड़ी के आगे आगे चल रही थी। इतने थोड़े समय में परम श्रीमाताजी गहनता पूर्वक सामूहिकता को देख रहीं थी और कभी-कभी वे अत्यन्त स्नेहपूर्वक हमारे प्रिय पापाजी को देख लेती थीं मानों स्वीकृति में सिर हिला रहीं हों। उनकी सुन्दर मुखाकृति हमें प्रसिद्ध 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-6.txt चैतन्य लहरी अंक : ।। & 12 - 2006 भजन की याद दिला रही थी, "प्यार भरे ये दो निर्मल नैन।' मानों उनके पावन दर्शनों के आशीर्वाद से हमारे हृदय पिघल रहे हों! नि:सन्देह यही वह क्षण था जिसकी हज़ारों साधकों को प्रतीक्षा थी । लाइन लगा ली। भारत, फ्रांस आस्ट्रेलिया, स्विटजरलैण्ड, पुर्तगाल, इटली, बहरीन, हॉग-कॉग, आस्ट्रिया. मालता, आयर लैण्ड, बल्गारिया, रूस, यूनान, अर्जेन्टीना, रोमानिया, अमेरिका तथा अन्य बहुत से देशों ने अपने उपहार अर्पण किए। छिन्दवाड़ा योजना के विकास के लिए मिन्न देशों द्वारा उदारता-पूर्वक दी गई धनराशियाँ महालक्ष्मी तत्व की अभिव्यक्तियाँ कर रहीं थी। उपहार अर्पण समारोह की समाप्ति पर घोषणा की गई कि चौबीस, पच्चीस और छब्बीस दिसम्बर 2006 को निर्मल नगरी पुणे में अन्तराष्ट्रीय ईसामसीह जन्म दिवस पूजा का आयोजन किया जाएगा। तालियाँ बजाकर योगियों ने इस घोषणा का स्वागत किया। लगभग साढ़े सात या पौने आठ बजे मंच के पर्दे गिरा दिए गए और सारी सामूहिकता अपने हाथ फैलाकर खड़ी हो गई। तेज हवा का एक झोंका आया और उसी के साथ सामूहिकता पर बारिश की कुछ बूँदें गिरीं। सवा छः बजे बच्चों-नन्हे गणेशों-को परम पूज्य श्रीमांताजी के चरण कमलों की पूजा फूलों से करने के लिए मंच की ओर दौड़ते देखा गया। श्री गणेश अथर्वशीर्षम् पढ़ा जा रहा था, तत्पश्चात् 'विनती सुनिए आदिशक्ति और फिर श्रीमाताजी के 108 नामों वाला भजन 'जागो सर्वरा' गाया गया| इसके बाद सात विवाहित महिलाओं ने श्री महालक्ष्मी के श्यृंगार के लिए उनके सम्मुख पर्दा पकड़ा और 'महामाया महाकाली, तुझया पूजनी तथा महालक्ष्मी स्तोत्रम हुए गाए गए। ठीक सात बजे आरती और तीन महामन्त्रों के साथ श्री महालक्ष्मी रूप में श्रीमाताजी के चरण कमलों में दिवाली पूजा का समापन हुआ। हे परम पावनी माँ केवल आपकी कृपा से ही आज हम यहाँ उपस्थित हो पाए । विश्व भर के सहजयोगी भाई-बहनों की ओर से हम सब प्रार्थना करते हैं कि आपके चरण कमलों में हमारे कोटि-कोटि प्रणाम स्वीकार हों। पूजा को स्वीकार करने के लिए पूर्ण समर्पित हृदय से हम आपके प्रति -आभारी हैं। रंग-बिरगी आतिशबाजी का प्रदर्शन ऐसा प्रतीत हुआ मानो वरुण देवता और सभी गण इस पावन भूमि पर श्रीमहालक्ष्मी की पूजा से प्रसन्न होकर हल्की-हल्की बूंदों से अपने आनन्द की अभिव्यक्ति किए बिना न रह सके हों। नन्हीं-नन्हीं बूँदें शनै शनैः बड़ी बूँदों में परिवर्तित हो गईं और श्रीमाताजी के जाने के बाद आधा घण्टे तक बरसती रहीं बारिश की बूँदों से पावन मिट्टी की सुगन्ध सर्वत्र फैल गई। परन्तु बूँदें इतनी बड़ी भी न थीं कि योगीगण भीग सकें। वातावरण अत्यन्त आनन्दमय तत्पश्चात् अद्भुत हुआ जिसने निर्मल नगरी के पूरे आकाश को आच्छादित कर दिया। उल्लसित नन्हे गणेश (बच्चे) इधर-उधर उछलते हुए दिखाई दिए और स्वयं श्रीमाताजी भी अत्यन्त प्रसन्नता एवं प्रेम पूर्वक आकाश की ओर देखती हुई दिखाई दीं मानो अपने बच्चों के प्रेम-प्रदर्शन को कबूल रही हों। चैतन्य-लहरियों का प्रवाह आश्चर्यजनक था ! हो' गया था। साढ़े आठ हज़ार योगियों नेबाकी की शाम चैतन्य का आनन्द उठाया और लगभग पाँच से छः हजार लोग पूजा स्थल से श्री महालक्ष्मी पूजा में चैतन्य स्नान करके अपने घरों को लौट गए।। जय श्रीमाताजी आकाश में अभी आतिशबाजी चल ही रही थी कि मेजुबान देशों के प्रतिनिधियों, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय, ने श्रीमाताजी को उपहार देने के लिए रबि घोष (भारत) (इन्टरनैट विवरण) 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-7.txt इटली से समाचार श्रीमाताजी के प्रेम का १०००वा माह परम-पूज्य तत्पश्चात् श्रीमाताजी ने कबेला में अपने पन्द्रह वर्ष तथा इटली में 25 वर्षों का एक डी.वी.डी. देखा । इसमें Ave Maria का पार्श्व संगीत था जिसने हमें स्वर्गीय अवस्था में पहुँचा दिया। 21 जुलाई रात्रि को पृथ्वी पर परमेश्वरी माँ की उपस्थिति के 1000वें माह के मंगलमय समारोह पर गुलाब की पंखुड़ियों से सजाया हुआ एक बहुत बड़ा केक श्रीमाताजी को भेट किया ग!। उसी दिन इटली के योगियों द्वारा लिखा गया विज्ञापन वहाँ के स्थानीय समाचार पत्र में छपा। इस विज्ञापन में पिछले पच्चीस वर्षों में श्रीमाताजी द्वारा इटली में किए गए कार्य तथा उनके द्वारा की गई आशीष वर्षा के लिए उनके प्रति आभार प्रकट किया गया यही विज्ञापन अगले दिन चार राष्ट्रीय समाचार पत्रों "La Republica" के स्थानीय अंकों में छापा गया। 22 जुलाई की शाम को इटली तथा आस-पास के देशों के सैंकड़ों सहजयोगी प्लाजोडोरिया में श्रीमाताजी के पृथ्वी पर अवतरण के 1000वें माह का समारोह मनाने के लिए तथा हम सब पर अथाह प्रेम की वर्षा करने के लिए, कबेला से प्रस्थान करने से पूर्व, उनके प्रति नतमस्तक आभार प्रकट करने के लिए एकत्र हुए। तत्पश्चात् एक हजार मोमबत्तियाँ जलाकर श्रीमाताजी के चरण कमलों में भेंट की गई, उसके बाद योगियों की शोभा-यात्रा आरम्भ हुई। सभी एकत्र योगियों-कुछ सौ, ने लम्बी लाइन बनाकर एक के बाद एक हॉल में प्रवेश किया और सभी ने श्रीमाताजी को प्रणाम करके उनके चरण कमलो में उपहार, पुष्प, चित्रित कार्ड आदि भेंट किए। To, the Modher all Guaus सर सन्ध्या का अन्त "सभी गुरुओं की माँ" को एक बहुत बड़ा केक भेट के साथ हुआ। इस केक के साथ दस अन्य केक भी थे जो दस आदिगुरुओं के । संध्या का आरम्भ कबेला की योगिनियों और युवा शक्ति द्वारा हृदय-स्पर्शी नृत्य से हुआ। तत्पश्चात् शक्ति को परमेश्वरी माँ के चरण कमलों में भजन गाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आस्ट्रिया और इटली के योगी-योगिनियों द्वारा गाए गए कुछ भजनों ने पूरे वातावरण को चैतन्य एवं शान्ति से परिपूर्ण कर दिया। तत्पश्चात् डैगलियो कैम्प के बच्चों ने अपने आनन्ददायी भजनों से उपस्थित योगियों को স্থাततি। पूरी युवा प्रतीक थे। जब यह सब हो रहा था तो साथ के कमरें में युवा-शक्ति परमेश्वरी माँ का गरिमागान करने के लिए भजन गाने में व्यस्त थी। जय श्रीमाताजी The Australian Sahaja Yoga News Letter, 28 July, 2006 मन्त्रमुग्ध कर दिया। ास एका 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-8.txt इज़राइल के शरणार्थी कैम्प में आत्म-साक्षात्कार सोमवार 31 जुलाई 2006 वहाँ सबकुछ अत्यन्त सुन्दर था और वहाँ का वातावरण पूर्णतः आश्चर्य-जनक। लोग वास्तव में आन्तरिक शान्ति खोज रहे थे और आत्म साक्षात्कार प्राप्ति के लिए वास्तव में आभारी थे। बहुत से लोगों ने मुझे बताया कि दो सप्ताहों से जो चिन्ताएं और भय उन्हें सता रहे थे, आत्म-साक्षात्कार के बाद वे किस प्रकार समाप्त हो गए। बड़ी संख्या में बच्चे भी कल हम (मैं, गिरीश, शंकर, डेविड और बहुत से अन्य सहजी जिन्हें आप नहीं जानते) एक ऐसे स्थान पर गए जो भूमध्य-सागर के तट पर दक्षिणी इजराइल में एक प्रकार का शरणार्थी शिविर है। ( हिजबल प्रतिदिन उत्तरी में लगभग सौ बम फेंकता है जिसके कारण उत्तरी नागरिक बचाव के लिए दक्षिण की ओर चले गए हैं। इजराइल हमारे पास आए और बहुत लम्बे समय तक गहन ध्यान में बैठे रहे। इस शिविर में लगभग सात हजार शरणार्थी हैं जिनकी भली-भांति देखभाल की जा रही है और उन्हें निःशुल्क भोजन, पेयपदार्थ, आमोद-प्रमोद कार्यक्रम तथा अन्य बहुत सी मूल सुविधाए दी जा रही हैं। वायुमण्डल में इतना प्रेम और स्नेह था कि मुझे अत्यन्त सन्तोष हुआ। सर्वप्रथम तो उस शिविर ने हमें गणपतिपुले के सहज शिविरों की याद दिलाई। अन्जान भिन्न लोगों को परस्पर इतनी अच्छी तरह से समन्वित होते और परस्पर देखभाल करते देखना हम वहाँ श्रीमाताजी का प्रेम और चैतन्य लहरियाँ फैलाने के लिए गए। हमारा बहुत अच्छा अत्यन्त सहज उत्क्रान्ति प्रदायक अनुभव था। जब हम चलने लगे तो आयोजकों और अन्य सभी लोगों ने हमें पुनः आने के लिए कहा और यदि हो सके तो स्वागत किया गया, तुरन्त हमारे लिए एक अच्छे स्थान तथा आवश्यक चीजों की व्यवस्था की गई और तीन मिनट के बाद स्पीकरों पर घोषणा की गई कि योग प्रतिदिन। का अनुभव प्राप्त करने के इच्छुक लोगों का वहाँ स्वागत है। कुछ ही क्षणों के पश्चात् लगभग चालीस लोगों के सम्मुख प्रवचन आरम्भ हो चुका था और उसके बाद निरन्तर लोग आते रहे या लौट कर अपने सम्बन्धियों के साथ आते रहे। उन्होंने हमें देर रात तक वहाँ रोके रखा। वो हमसे पूछ रहे थे कि क्या हम कल या उससे अगले दिन भी आएंगे ? मैं कामना करता हूँ कि हमें वहाँ जाने के और भी अवसर प्राप्त हों तथा वहाँ पर कोई भी ऐसा व्यक्ति हो न शेष रहे जिसे आत्म-साक्षात्कार न प्राप्त हुआ । जय श्रीमाताजी (इंटरनैट विवरण) ****** 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-9.txt परमपूज्य माताजी श्री निर्मला देवी से प्रार्थना दीजिए-कृपा करके सहजयोग प्रचार-प्रसार करने के लिए हमें अपने समर्पित बच्चों के रूप में स्वीकार कर लीजिए ताकि अविलम्ब हे श्री आदिशक्ति कृपा करके मानव द्वारा किए %23 गए कुकृत्यों को निष्प भावित कर दीजिए-लेबनान फिलस्तीन और इज़्राइल के बीच घृणा और युद्ध। है श्री आदिशक्ति कृपा करके नव द्वारा किए गए कुकृत्यों को निष्प्रभावित कर दीजिए- अबोध बच्चों और परिवारों की क्रूरतापूर्वक अपने ही घरों में हत्या करने वाले अत्याधुनिक हथियार तथा गोलाबारी। हे श्री आदिशक्ति कृपा करके मानव द्वारा किए गए कुकृत्यों को निष्प्रभावित कर दीजिए भौतिक लाभ प्राप्त करने के लिए ईरान द्वारा लेबनान को बेचे जाने वाले विध्वंसकारी अस्त्र शस्त्र। हे श्री आदिशक्ति कृपा करके मानव द्वारा किए गए कुकृत्यों को निष्प्रभावित कर दीजिए पृथ्वी पर अपनी इच्छाएं पूर्ण करने के लिए हमें मार्ग दिखाएं और निर्देशित करें। है श्री आदिशक्ति कृपा करके मानव द्वारा किए गए कुकृत्यों को निष्प्रभावित कर दीजिए-मानव मात्र की आत्मा ज्योतिर्मय करने के लिए प्रेम और श्रद्धा के आयुधों के रूप में कृपा करके हमें अपना माध्यम बना लीजिए। हे श्री आदिशक्ति कृपा करके मानव द्वारा किए गए कुकृत्यों को निष्प्रभावित कर दीजिए-कृपा करके हमें शक्ति प्रदान कीजिए कि आपके प्रति अपनी श्रद्धा का पूर्ण विनम्रता लेबनान, इज्राइल, फिलस्तीन, ईरान, सीरिया और पूरे मध्यपूर्व में पूर्ण सकारात्मक सामूहिकता उन्नत हो सके। हे श्री आदिशक्ति कृपा करके मानव द्वारा किए गए कुकृत्यों को निष्प्रभावित कर दीजिए-कृपा करके हमारे हृदय खोल दीजिए तथा हमारी श्रद्धा को ज्योतिर्मय कीजिए ताकि हमारे चहूँ ओर व्याप्त अज्ञान प्रेम में परिवर्तित हो जाए, युद्ध शान्ति बन जाए, गोले बारूद आपके पावन चरण-कमलों की धूल बन जाए, क्रोध करुणा में, मिथ्याभिमान एवं अहंकार नैसर्गिक विनम्रता में, ईष्ष्या श्रद्धा में, लालच अपरिमित उदारता में तथा भौतिकता आध्यात्मिकता में परिवर्तित हो जाएं। हे श्री आदिशक्ति कृपा करके मानव द्वारा किए गए कुकृत्यों को निष्प्रभावित कर दीजिए-कृपा करके हमें वीतराग (मोहमुक्त) बना दीजिए और हमें सहजयोग स्थापित करना सिखलाइए ताकि आपके परमेश्वरी नियम तुरन्त सर्वत्र फैल जाए। हे प्रिय श्रीमाताजी हमसे यदि आत्मा के विरोध में कोई अपराध हुए हो तो कृपा करके हमें क्षमा कर दीजिए और हमारी तथाकथित स्वेच्छा के स्थान पर अपनी इच्छा, अपने निर्देश स्थापित कर दीजिए क्योंकि जब तक हमारी प्रिय श्रीमाताजी अधिकार प्रदान नहीं करतीं स्वतन्त्रता अर्थहीन होती है। श्रीमाताजी, हे चराचूर जीवजंगम की सृजनकर्ता। हमें अबोधिता, विवेक और सद्सद् विवेकबुद्धि प्रदान करें। ताकि आपके चरण कमलों में पृथ्वी और स्वर्ग के बीच पूर्ण तादात्म्य लाने के लिए सत्ययुग स्थापित हो सके %23 और राजनीतिक %2: %2: पूर्वक पालन कर सकें। हे श्री आदिशक्ति कृपा करके मानव द्वारा किए गए कुकृत्यों को निष्प्रभावित कर दीजिए कृपा करके पत्थर दिल और विकृत मस्तिष्क मानव को अपने माध्यमों तथा करुणा एवं विशुद्ध प्रेम के बम्बों में परिवर्तित कर दीजिए | हे श्री आदिशक्ति कृपा करके मानव द्वारा किए गए कुकृत्यों को निष्प्रभावित कर %2: 23 लेबनान, ईरान और इज़राइल के आपके बच्चे। 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-10.txt परम पूज्य श्रीमाताजी की इंग्लैण्ड से विदाई सेंट जार्ज हाऊस' बुधवार रात्रि 2 अगस्त, 2006 सहजी भाइयों और बहनों, इस बुधवार को श्रीमाताजी के चिज़विक निवास पर घटित हुए अद्भुत अनुभव में मैं आप सबको सहभागी बनाना चाहता हूँ। बुधवार रात्रिः 10 बजे मुझे मैथ्यूकूपर (श्रीमाताजी का फोटोग्राफर) का टेलिफोन आया, हो हारमोनियम और तबले की संगति में वास्तव में सिया, एन्थनी और विमला ही गा रहे थे मुझे तो बहुत बड़ी भजन मण्डली में ही गाने की आदत है और यहाँ पर तो मुझे लगा कि दृष्टि मेरे ऊपर ही है। फिर भी भजनों का बहुत आनन्द आया। सकता है हमें तबलावादक की आवश्यकता पड़े, आप यदि जल्दी से आ जाओ तो बेहतर होगा।" काम के सिलसिले में मैं पहले से ही लन्दन में था और जानता था कि श्रीमाताजी की विदाई से सम्बन्धित कोई समारोह होने वाला है परन्तु मेरे मस्तिष्क में ये बात न आई थी कि मुझे भी इसमें भाग लेने का अवसर प्राप्त हो सकता है। कितने आश्चर्य की बात थी। मैं विमला पिछले एक दो सप्ताहों में चार या पाँच बच्चों का जन्म हुआ था, अचानक वे अपनी माताओं के साथ वहाँ श्रीमाताजी के चरण-कमलों में पहुँच गए। इसमें पॉल और दामिनी गौधड़ी भी थे जो शैफील्ड से ठीक समय पर पहुँच गए थे। सामने के दरवाजे से प्रवेश करके वे सीधे श्रीमाताजी के चरण कमलों में के साथ था जो भजन-मण्डली में थी। अत: हमने निकोला बेबी को वहीं छोड़ दिया और कूदकर कार में बैठ गए और आधे घण्टे के बाद हम श्रीमाताजी के हॉल के रास्ते पर बैठकर उनके निचली मंजिल से ऊपर आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। पहुँचे! पॉल ऐसा लग रहा था मानो उसके लिए सारे क्रिसमस एक ही बार आ गए हों! मारियो ने श्रीमाताजी को उन नन्हें बच्चों का एक एलबम पेश किया जिनका जन्म श्रीमाताजी की पिछली यात्रा के बाद हुआ था। फिर उसने श्रीमाताजी से अपनी बेटी का नाम पूछने महान अद्भुत आश्चर्य प्रकट करता हुआ लिफ्ट का दरवाजा खुला...श्रीमाताजी पैदल चल रही थी! आनन्द के इस क्षण में एक ही विचार आ रहा था कि आज की सन्ध्या अत्यन्त विशेष होगी । का साहस जुटाया। बच्ची की ओर एक या दो मिनट तक एकटक देखने के पश्चात् श्रीमाताजी ने उसे लीला नाम दिया। सबने इसका जोरदार स्वागत किया। सब लोग बहुत प्रसन्न थे कि एक बार फिर श्रीमाताजी श्रीमाताजी और सर सी पी. के स्थान ग्रहण कर लेने के पश्चात् हम सब लोग भी बैठक में बैठ गए। श्रीमाताजी को कुछ सुन्दर उपहार दिए जा रहे थे, हमने भजन गाने आरम्भ कर दिए। सिया हारमोनियम बजा रही थी परन्तु अभी तक मुख्य भजन मण्डली नहीं पहुँची थी, सम्भवतः उन्हें भी इन चीज़ों में रुचि ले रही हैं। तत्पश्चात् श्रीमाताजी उपहार देने लगीं जिनका आरम्म पुरुषों की टाईयों से हुआ। मैं गाने के लिए दूसरा भजन खोजने में लगा हुआ था, मुझे इस बहुत देर से सूचना मिली हो पिछले दो दिनों से मैं सिया और एन्थनी हैडलम के साथ कुछ भजनों बात का आभास भी न था कि क्या हो रहा है। तभी टाई लेने के लिए मुझे बुलाया गया। अचानक मैने स्वयं को श्रीमाताजी के चरण कमलों में, श्रीमाता जी और सर सी पी. से बातचीत करते हुए पाया!! सीधे श्रीमाताजी की दृष्टि में रहते हुए भजन गाना महान का अभ्यास कर रहा था। ये अत्यन्त सुन्दर और शान्ति प्रदायक भजन थे परन्तु ये अभी तक लोकप्रिय न थे, फिर भी हमने ये भजन गाएं। 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-11.txt अक : । & 2 2007 10 चैतन्य लहरी चाहे एक या दो वाक्य ही बोले परन्तु दो या उससे भी अधिक वर्षों के बाद पहली बार श्रीमाताजी ने हमारी माँ और गुरु कहा, "हमें महसूस करना है कि हम बहुत समीप हैं, हम सब। हम बहुत समीप हैं ये बात यदि महसूस वरदान था क्योंकि सर सी पी. उत्साह-पूर्वक मेरे कि तबला वादन की प्रशंसा कर रहे थे। उन्होंने पूछा के रूप में हमें सम्बोधित किया। उन्होंने मैंने तबला बजाना कहाँ से सीखा?, मैंने बताया कि नागपुर में संदेश पोपटकर से तबला बजाना सीखा । श्रीमाताजी और सर सी पी. सन्देश पोपटकर को भली-भांति जानते हैं और ये सुनकर उन्हें हर्ष हुआ। श्रीमाताजी के एक वाक्य "मैं तुम्हें पहली बार मिल रही हूँ, का बाद में सोचने पर बहुत बड़ा महत्व प्रतीत हुआ। उन्होंने मुझसे पहली बार बात की थी। मुस्कराने और नमस्कार के अतिरिक्त मैं कुछ न कह सका। कर ली जाए तो समाप्त, फिर आषको किसी चीज़ की चिन्ता नहीं करनी पड़ती अर्थात.. हम माई बहन हैं....अब ये एक भिन्न विचार है, परन्तु सहजयोग यही है, आप..... आश्चर्य की बात नहीं है. श्रीमाताजी ने अपने दिव्य विवेक द्वारा एक या दो वाक्यों में ही हमें उन सभी चीजों का तोड़ (Antidote) दे दिया है जिन्होंने पिछले दो वर्षों में हमें चुनौतियाँ दी हैं। सहजी भाई-बहन होने के नाते हम अन्य सभी सांसारिक भाई-बहनों से परस्पर कहीं अधिक समीप हैं । श्रीमाताजी के कथन के अनुसार यदि हम चलते रहें. तुच्छ मानवीय मूर्खताओं को अपने पारस्परिक सामीप्य श्रीमाताजी के बहुत से उपहार देने तथा निरन्तर हल्की बातचीत करने के साथ सन्ध्या चलती रही। वे सबका नाम पूछ रही थीं. लोगों का हाल-चाल पूछ रहीं थी, छोटी-छोटी बातचीत करते हुए काफी हँस रही थीं हमेशा की तरह से इस वातावरण का वर्णन करने के लिए शब्द पर्याप्त नहीं हैं। हर सहजी क्योंकि श्रीमाताजी के एक-एक को दुर्बल न करने दें, तो ब्रह्माण्ड की कोई भी शक्ति परम पूज्य श्रीमाताजी के सहजयोग आन्दोलन को चरमोत्कर्ष तक पहुँचने से नहीं रोक सकतीं। शब्द को बहुत ध्यान से सुन रहा था अतः हमने और भजन नहीं गाए, परन्तु मार्सेलो अपने शास्त्रीय गिटार को लेकर जब पहुँचा तो हमने अत्यन्त शान्त वाद्य संगीत बजाया। प्रेम पूर्वक और अचानक शाम की सबसे अविश्वसनीय टॉम (इंटरनैट विवरण) घटना घटी, श्रीमाताजी ने हमें सम्बोधित किया! उन्होंने कति ****** 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-12.txt दिवस लन्दन में एक अद्भुत 2 अगस्त, 2006 औपचारिक रूप से यह "विदाई समारोह (Farewell) था क्योंकि अगले दिन श्रीमाताजी ने अमेरिका के हमारे प्रिय भाई बहनों के पास जाना लन्दन में 2 अगस्त अत्यन्त मधुर दिवस था, या कहा जा सकता है कि अत्यन्त अद्भुत दिवस विशेष दिवस। पूरा दिन श्रीमाताजी बातचीत करती रहीं, हँसती रहीं, चुटकले सुनाती रहीं। उन्होंने कहा, "कि यह अत्यन्त मंगलमय दिन है। उनके लिए कुछ था-एक घर से दूसरे घर। उस रात इस विदाई समारोह में उदासी का पूर्ण अभाव था, केवल आनन्द विशेष बिस्कुट बनाए गए थे। चाय की ट्रे में जब ये बिस्कुट उनके पास भेजे गए तो उनके मुँह से निकला 'आह, ये बिस्कुट इतने अच्छे हैं, ये किसने बनाए हैं? मुझे इनकी सामग्री और बनाने की विधि चाहिए। उल्लसित और प्रसन्न पैटी (Patty) को बातें करने के का प्राचुर्य था। हमारी परमेश्वरी माँ की पहली झलक, मुस्कान बिखेरती हुई-ऐसी मुस्कान जो केवल उन्हीं की हो सकती है-तब देखने को मिली जब दो प्रफुल्लित सहायकों से नाम-मात्र की सहायता लेते हुए उन्होंने लिफ्ट से धीरे-धीरे पैदल चलकर. सुन्दर नीले कमरे में प्रवेश किया। सभी लोग अन्दर घुस आए। उन्होंने दिव्य गुलाबी एवं सुनहरी साड़ी पहनी हुई थी लोगों के अन्दर आ जाने के बाद श्रीमाताजी अपने सिंहासन की ओर झुकी। "आप सब आगे-आगे क्यों नहीं आ " लिए अन्दर लाया गया तथा राचेल (Rachael) द्वारा बनाया गया दार्जिलिंग चाय का एक प्याला भेंट किया गया। आह श्रीमाताजी कह उठी बहुत लम्बे समय के बाद मैं इतनी उत्तम चाय पी रही हूँ। शाम के समय चिजविक के बैठक-कक्ष में हम लोग खचाखच भर गए और बाकी के लोग, हॉल के मार्ग पर सीढ़ियों पर और सीढ़ियों के नीचे फैल गए..यदि हमारे पास कोई बड़ा स्थान होता तो दस गुने लोग वहाँ पर उपस्थित होते। आशा करनी चाहिए जाते?" बच्चे, बूढ़े और जवान, हम सभी, आगे को खिसक गए। झूमा देने वाले मधुर भजन गाए गए। प्रसन्नचित्त, योगियों योगिनियों, आंटियों, अंकलों और युवाशक्ति ने बहुत से उपहार दिए।..आरती की गई। सुन्दर माला, बहुत से पुष्प, मिठाईयाँ, मेवे, फल, केक, चूड़ियाँ, आभूषण, एक साड़ी, नारियल अत्यन्त माधुर्य एवं प्रेम-पूर्वक भेंट किए गए। कि एक दिन ऐसा ही होगा और हम सब लोग एक साथ वहाँ होंगे। जिन्हें उस रात वहाँ उपस्थित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ वे सब जानते थे कि वे पूरी विश्व सामूहिकता का प्रेम, आशाएं और स्वप्न अपने साथ लिए ए हैं जिसे वह अपने हृदय के माध्यम से बाँट हुए रहे हैं। (इंटरनैट रिपोर्ट) ****** 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-13.txt श्रीमाताजी लॉसएंजलिस में 3 अगस्त 2006 प्रिय सहजीगण, जयश्रीमाताजी मिनट के पश्चात् सभी हवाई -अड्डे की इमारत से बाहर, मोड़ पर खड़े होकर श्रीमाताजी की कार के आने की प्रतीक्षा करने लगे। प्रतीक्षा करते हुए योगियों हमारी परम पावनी श्रीमाताजी के विशुद्धि की इस भूमि में पहुँचने के समाचार का आनन्द आपके साथ बॉटना चाहते हैं। श्रीमाताजी और सर सी पी मंगलवार शाम को (3 अगस्त) लैक्स हवाई अड्डे पर पहुँचे। लगभग साढ़े आठ बजे सायं योगीगण श्रीमाताजी तथा सर सी. पी. को लैक्स हवाई अड्डे के ने कुछ भजन गाए और उन्हें श्रीमाताजी के पन्द्रह मिनट के विस्तृत दर्शन प्राप्त हुए। पृथ्वी पर यदि कोई स्वर्ग है तो वह उनके हृदय में श्रीमाताजी और उनके परिवार के लिए 'प्रेम रूप' में है। टर्मिनल 'ई'. पर आगमन प्रतीक्षालय लेकर आए। हमारी परमेश्वरी माँ का साधना दीदी और उनके लन्दन से लैक्स की चौदह घण्टों की निरन्तर यात्रा के बाद भी श्रीमाताजी अत्यन्त तरोताजा प्रतीत हो रहीं थीं। किसी शक्तिशाली परिवार ने स्वागत किया। की तरह से अपने हवाई अड्डे पर श्रीमाताजी का स्वागत करने के लिए साठ-सत्तर योगी एकत्र हो गए थे। सेकरेमेन्टो साँ जोस, इरवाइन, लॉसएंजलिस आदि स्थानों से सहजयोगी लैक्स हवाई अड्डे पहुँचे हुए थे। हममें से सात को सैंडिगो से लैक्स हवाई अड्डे पर कार द्वारा 115 कि मी. दूर पहुँचने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पूजा दिव्य दर्शन द्वारा हमारे हृदयों और नाभियों को सन्तुष्ट करके रात को सवा नौ बजे उन्होंने हवाई अडडे से प्रस्थान किया। अधिकतर लोग जानते हैं कि पूरे देश में इस वर्ष कितनी भयानक गर्मी थी। उनके आगमन के दो-तीन दिन पूर्व परम चैतन्य ने वातावरण को बादलों एवं वर्षा से शीतल करके, क्षेत्र में सन्तुलन लाकर कुछ अन्य साधक भी अचानक हवाई अड्डे पहुँच गए थे और श्रीमाताजी के आगमन की खबर उनके स्वागत की तैयारी शुरु कर दी थी। को सुनकर अत्यन्त प्रसन्न थे। एक साधक को जब श्रीमाताजी के विषय में बताया गया तो वह बोला, श्रीमाताजी यहाँ पर आने और अपने प्रेम से उनके विषय में सुनने मात्र से ही उसकी रीढ़ में सिहरन होने लगी है। उसने वचन दिया कि ऐसे परमेश्वरी व्यक्तित्व के विषय में अधिक जानकारी के लिए वह हमें सुरक्षित रखने के लिए आपको कोटि-कोटि धन्यवाद। हम आपके दिव्य चरण कमलों में बने रहने के लिए हृदय से प्रार्थना करते हैं। वेबसाइट देखेगा। श्रीमाताजी और सर [सी. पी. के प्रतीक्षा कक्ष पहुँचने के पश्चात् शान्ति पूर्वक सभी योगी उनके इर्द-गिर्द एकत्र हो गए और सभी ने उन्हें प्रेम एवं सम्मान पूर्वक सैंडिगो के योगी नतमस्तक नमस्कार करते हुए पुष्पार्पण किए। दस 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-14.txt सहस्रार पूजा कबेला -10.5.1992 "परमात्मा की इच्छा परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन प्रणाली का हनन होता चला गया। वे आयोजित धर्म, एक राजनीति द्वारा आयोजित धर्म, सत्ता तथा धन प्राप्त करने की बातें करने लगे क्योंकि उन्होने सोचा कि लोगो को नियन्त्रित करने तथा उन्हें चलाने का यही एक मात्र उपाय है। बाइबल में क्या लिखा है. वह सब समझाने की उन्हें कोई चिन्ता न थी। निःसन्देह बाइबल को भी विकृत किया गया, इसमें बहुत से परिवर्तन किए गए और पॉल तथा पीटर जैसे लोगों ने मिलकर बाइबल के अधिकतर तथ्यों को विकृत कर दिया। यद्यपि कुरान को बहुत अधिक नहीं छेड़ा गया परन्तु कुरान में दाएं पक्ष के बारे में अधिक बताया गया है। सृजन प्रणाली तथा अन्य बहुत सी चीजें अस्पष्ट है। अब साथ-साथ दो चीजें घटित हुई हैं, मैं नही जानती कि आप इनके विषय में जानते हैं या नहीं । पहली चीज जो घटित हुई वह है सूक्ष्म जिस प्रकार से चीजों को पेश किया गया, वह सारी मूल्य प्रणाली को तथा सर्वशक्तिमान परमात्मा के सभी प्रमाणों को नष्ट करने के समीप था । इतिहास में यदि आप झाँककर देखें तो जब विज्ञान ने स्वय को स्थापित किया तो तथाकथित धर्माधिकारियों ने भिन्न धर्मों में, विज्ञान की खोजो के साथ समझौता करने का प्रयत्न किया। उन्होंने ये दर्शाने का प्रयत्न किया कि ठीक है, यदि बाइबल में कही हुई कुछ बातें गलत है तो हमे चाहिए कि उन्हें ठीक कर दें। विशेष रूप से अगस्टिन ने ऐसा किया और ऐसा प्रतीत होने लगा मानो ये सब मूर्खता है। ग्रन्थ साहित्य मात्र है। कम से कम कुरान में तो ऐसी बहुत सी चीजे नहीं है जो आज के जीव-विज्ञान का वर्णन करती हैं। वे इस बात को स्पष्ट नहीं कर पाए कि परमात्मा ने विशेष रूप से मानव का सृजन किया है। उन्होने सोचा, कि अवसर की बात है कि एक के बाद एक पशु विकसित होकर जीव-विज्ञान (Microbiology) का ज्ञान जिसमें हमें पता चला कि हर कोषाणु का डीएनए (DNA) टेप होता है। हर कोषाणु के अन्दर उसी प्रकार से एक कार्यक्रम होता है जैसे कम्प्यूटर के चिप में हर कोषाणु के अन्दर एक टेप होता है जिसमें कार्ययोजना (Programmed) होती है, और उसी कार्य योजना के अनुसार विकास घटित होता है। इसकी जटिलता की कल्पना करें! बहुत से कम्प्यूटर योजना बद्द किए जा चुके हैं और इनमें ये सारे कोषाणु हैं। इस प्रकार वैज्ञानिकों के सम्मुख एक अत्यन्त रहस्यमय चीज आ गई है. जिसकी वे व्याख्या नहीं कर पाते। वे बहुत सी चीजों की व्याख्या नहीं कर पाते और उनमें से एक मानव बन गए। इस प्रकार पूरा समय परमेश्वर को चुनौती मिलती गई। बाइबल, कुरान, गीता उपनिषदों या तोरा में जो भी लिखा है उसको प्रमाणित कुछ करने के लिए कोई प्रमाण न था। इनमें से कुछ भी प्रमाणित न किया जा सका क्योंकि अभी तक मूर्खता का साम्राज्य था, बहुत कम लोगों को आत्म-साक्षात्कार प्राप्त हुआ था और जब वे इसके विषय में बात करते थे तो कोई उन पर विश्वास न करता था। लोग सोचते कि अपने ही सिद्धान्तों को प्रस्तुत करने के लिए ये ऐसा कह रहे हैं। अतः सभी कुछ एक प्रकार से मृतविज्ञान बन गया। धर्म का कोई विज्ञान नहीं है । लोग सोचने लगे कि दस धर्मादेशों या जीवन के यह भी है। कठोर नियमों का पालन करने का क्या लाभ है। अब सहजयोग ने ये प्रमाणित कर दिया है इनका अनुसरण करके आपको कोई लाभ तो होता नहीं, जीवन का आमोद-प्रमोद भी समाप्त हो जाता है। इस प्रकार की जीवन शैली से पुण्य लाभ करने के विचार से भी बचें और इस प्रकार मानवीय मूल्य कि यह 'परमात्मा की इच्छा' (The will of God) है (The Desire of God) परमात्मा की इच्छा, जो सभी कार्य कर रही है और यह प्रमाणित हो चुकी है। ये 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-15.txt चैतन्य लहरी अंक : 1& 2 2007 14 का श्रेय नहीं लेना चाहिए। मान लो ये गलीचा किसी ने बनाया है और हम यदि इसके रंगों को खोजना शुरु कर दें तो इसमें क्या महानता है? यह सब तो वहाँ है। आप सृजन नहीं कर सकते। तो सृजन कार्य इतना अधिक महत्वपूर्ण नहीं है जितना इसे आकार देने का कार्य और ये सारा कार्य परमात्मा की इच्छा ने सारा चैतन्य आदि-शक्ति, परमात्मा की इच्छा (The will of God) के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। परमात्मा की इच्छा ही अत्यन्त सद्भाव पूर्वक सभी कुछ कार्यान्वित कर रही है। मैं नहीं जानती कि आपमें से कितने लोगों ने मेरी वह पुस्तक पढ़ी है. पढ़ी भी या नही । जिसमें मैंने वर्णन किया था कि पृथ्वी का सृजन किस प्रकार किया। यदि परमात्मा की इच्छा इतनी महत्वपूर्ण हैं हुआ। एक तीव्र नाद (Bang) हुआ। परन्तु यह अत्यन्त सद्भावना पूर्ण था तथा परमात्मा की इच्छा के माध्यम से इसका विकास हुआ। अतः सभी कुछ वैसे ही घटित हुआ जैसे परमात्मा की इच्छा थी। तो यह प्रमाणित भी होनी चाहिए। अब सहजयोग के माध्यम से सहसार भेदन होने के आपने परमात्मा की इच्छा को महसूस किया-उस इच्छा को जो इतनी महत्वपूर्ण है । परन्तु हमें यह इतनी सहज में प्राप्त हो गई है कि हम इसके महत्व को समझते ही नहीं, बन्धन देते हैं और कार्य हो जाते हैं, हमें लगता है कि चीजे कार्यान्वित हो रही हैं, बन्धन ने कार्य कर दिया है! और ये सब हमारा प्रबन्ध कौशल पश्चात् पहली बार अब इसी परमात्मा की इच्छा को आप अपनी अंगुलियों के सिरों पर महसूस कर रहे है । आत्म-साक्षात्कार के पश्चात् आप लोगों ने इस पूर्ण-विज्ञान, जो परमात्मा की इच्छा मात्र है, को खोज लिया है। यह पूर्ण विज्ञान है (Absolute Science) आप लोग जानते हैं कि हमने सहजयोग के माध्यम से बहुत से लोगों को रोगमुक्त किया है । आप ये भी जानते हैं कि बन्धन आदि फलीभूत होते हैं। है। परन्तु बात ऐसी नहीं है। बात इससे बहुत बड़ी है। के अब हम परमात्मा की इच्छा के उस बड़े कम्प्यूटर अग-प्रत्यंग बन गए है। अब हम उस परमात्मा की इच्छा के माध्यम या ये कहे कि वाहिकाएं बन गए है। आत्म-साक्षात्कार के बाद इतना कुछ स्वतः कार्यान्वित हो जाता है कि लोग इस पर विश्वास ही नहीं कर पाते। आरम्भ में जब लोगों को विश्वास ही नहीं हाता था तब वैज्ञानिकों ने उन्हें कुछ बता्या। परन्तु अब आप देख सकते हैं कि विज्ञान हमेशा परिवर्तन शील स्थिति में है. बदलता रहता है-आज एक सिद्धांत को चुनौती मिलती है. कल दूसरे को परन्तु सहजयोग ने आपके सम्मुख विज्ञान का वह महान सत्य स्पष्ट किया है, जिसे कभी चुनौती नहीं दी जा सकती। वह हमेशा विद्यमान रहता है। अतः कोई यदि परमात्मा को बदनाम करने के लिए या उसके अस्तित्व को नकारने के लिए कोई प्रस्ताव लेकर आता है तो हम प्रमाणित कर सकते हैं कि परमात्मा है, परन्तु इस पृथ्वी का, मानव परमात्मा की उस इच्छा से हम जुड़ गए हैं जिसने पूरे ब्रह्माण्ड का सृजन किया है। अतः हम सभी कुछ चला सकते हैं क्योंकि हमारे हाथों में पूर्ण विज्ञान आ गया है, वह पूर्ण विज्ञान जो पूरे विश्व का हित कार्यान्वित करता है। वैज्ञानिकों के सम्मुख हम ये प्रमाणित कर सकते हैं कि परमात्मा की इच्छा पूरा सृजन ने ही किया है विकास प्रक्रिया भी परमात्मा की इच्छा' ही है। उनकी इच्छा के बगैर कुछ भी घटित न होता। लोग प्रायः कहा करते थे कि परमात्मा की इच्छा के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता, यह बात बिल्कुल सत्य है। और अब आपने देखा है कि हमें परमात्मा की ये इच्छा प्राप्त हो गई है और अपनी शक्ति के रूप में हम इसका उपयोग कर सकते है। तो सहजयोगी होना कितना का तथा अन्य सभी चीजों का सृजन अत्यन्त सद्भावना महत्वपूर्ण है। सम्भवतः हमें इस बात का अहसास नहीं है कि सहजयोगी होना कितना महत्वपूर्ण है। सहजयोग केवल अन्य लोगों से ये कहने के लिए नहीं हैं कि मैं पूर्वक परमात्मा की इच्छा (The will of God) ने किया है। परमात्मा की इच्छा ने यदि सारा कार्य किया है तो मनुष्य को परमात्मा द्वारा बनाई गई चीजों को खोजने 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-16.txt अंक :। & 2 -2007 15 चेतन्य लहरी पावन हो गया हूँ| सभी कुछ बहुत बढ़िया है। फिर सहजयोग किसलिए है? किसलिए आपको ये सारे आशीर्वाद प्राप्त हुए? किसलिए आपको स्वच्छ किया गया? ताकि परमात्मा की इच्छा का ये ज्ञान आपमें दिखाई दे। केवल इतना ही नहीं-यह आपका अंग प्रत्यंग बन जाए। अतः हमें अपने स्तर ऊँचे उठाने हैं. हमें उठना है। मध्यम दर्जे के और साधारण लोगों को सहजयोग देना बेकार है। क्योंकि ये बेकार लोग हैं। वे किसी भी प्रकार से हमारी सहायता नहीं कर सकते क्योंकि अब हमें ऐसे लोगों की आवश्यकता है जो (सहजयोग) धर्म परिवर्तन मात्र नहीं है. ये मात्र अन्तर्परिवर्तन भी नहीं है, यह तो एक ऐसे नए मानव को आकार देना है जो आगे आया है और जिसमें परमात्मा की इच्छा' को आगे बढ़ाने की योग्यता है। अतः अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके आपको क्या मिला है? पहली चीज़ जो घटित हुई है वह है आपकी भ्रान्तियों का समाप्त हो जाना। सर्वशक्तिमान परमात्मा और उसकी इच्छा के विषय में तथा इस विषय में कि परमात्मा सर्वशक्तिमान है, सर्वव्याप्त हैं और सर्वज्ञ हैं (Omnipotent, Omnipresent, omniscient) 3T4 कोई भ्रान्ति नहीं होनी चाहिए। उन्हीं की सर्वव्याप्त शक्ति ने सारा कार्य किया है। और सामूहिक चेतन व्यक्ति के रूप में आपको ये भी जान लेना चाहिए कि वास्तव में परमात्मा की इच्छा की अभिव्यक्ति कर सके, उसे प्रतिबिम्बित कर सकें। इस कार्य के लिए, आप जानते हैं कि हमें अत्यन्त दृढ लोगों की आवश्यकता होगी। परमात्मा की इस इच्छा ने पूरे ब्रह्माण्ड, सारे ग्रहों, पृथ्वी माँ तथा अन्य सभी चीजों आप भी सर्वशक्तिमान, सर्वव्याप्त और सर्वज्ञ हैं। सर्वज्ञ वह होता है जो सभी कुछ देखता है, सभी कुछ जानता है, सभी कुछ जानता है इसी शक्ति का एक अश आपके अन्दर भी है। तो परमात्मा की सर्वव्यापिता को प्रमाणित करने के लिए आपको का सृजन किया है। अब हम एक नए आयाम का सामना कर रहे हैं और वह आयाम यह है कि हम (सहजयोगी) परमात्मा की उस इच्छा की चुनौतियाँ हैं। तो हमारा कर्तव्य क्या है और इसके विषय में हमें क्या करना है? सहसार खुलने के परिणाम स्वरूप हमारी भ्रान्तियाँ ओझल हो गई हैं। भ्रान्तियाँ समाप्त हो गई हैं। परमात्मा के अस्तित्व के बारे में उसकी इच्छा की शक्ति के बारे में और सहजयोग की सच्चाई के बारे में हमारे अन्दर कोई भ्रान्तियाँ नहीं होनी चाहिएं। हमारे अन्दर कोई सन्देह नहीं होने चाहिएं। इतना तो कम से कम होना ही चाहिए। परन्तु इस शक्ति का उपयोग करते हुए हमें इस बात का अहसास होना चाहिए कि ये शक्ति आपको इसलिए दी गई है कि आपमें इसे सम्भालने की योग्यता है। आपका मस्तिष्क हर समय चेतन रहना होगा कि आप सहजयोगी हैं। जब मैं सहजयोगियों को अपनी पत्नियों अपने बच्चों, अपने घरों और अपनी नौकरियों के बारे में संघर्ष करते हुए उनका स्तर क्या है! वे कहाँ है! जो उन्हें प्राप्त हुआ है उस भूमिका की जिम्मेदारी वे कब उठाएंगे? पाती हूँ तो मुझे हैरानी होती है कि अब भी अतः सर्वशक्तिमान परमात्मा जो सर्वव्याप्त हैं जिन्होंने यह सब कार्य किया है, वह 'परमात्मा की इच्छा' जिसने यह सब कार्यान्वित किया है, उसने आपके माध्यम से यह कार्यान्वित करना है। और आपको अत्यन्त सुदृढ़, अत्यन्त सवेदनशील, अत्यन्त प्रभावशाली व्यक्ति भी बनना होगा, जितने अधिक प्रभावशाली आप होंगे उतनी ही अधिक शक्ति आपको इस महानतम शक्ति से आगे कुछ नहीं सोच सकता। किसी गवर्नर को लें, किसी मन्त्री को लें, कल उन्हें पद से हटाया जा सकता है, वे भ्रष्ट हो सकते हैं, उनमें अपनी शक्तियों का ज्ञान समाप्त हो सकता है। ऐसे प्राप्त होगी। परन्तु अब भी मुझे ऐसा लगता है कि सहजयोगी ये समझने की जिम्मेदारी नहीं ले रहे हैं कि उन्होंने उस सर्वशक्तिमान परमात्मा का प्रतिनिधित्व करना है जो सर्वव्याप्त है, सर्वज्ञ है, सभी कुछ जानता बहुत से लोग हैं जिन्हें अपने कर्तव्यों का भी ज्ञान नहीं होता फिर भी वौ चुनाव जीत लेते हैं। अतः यह 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-17.txt चैतन्य लहरी अक : । & 2 -2007 16 है-परमात्मा या आपके अपने विषय में भ्रम नहीं-वह दूसरी चीज़ यह है कि आपने तादात्म्य को समझा है, कि विश्व में पूर्ण तादात्म्य का अस्तित्व है। है, सभी कुछ देखता है, और जो सशक्त है जो सर्वशक्तिमान है। आप यदि ये समझ लें कि सहस्ार भेदन के बाद यह सब घटित हुआ है, कि आपको वह शक्ति प्राप्त हो गई है जिसमें ये तीनों गुण हैं, जैसे यह विशाल ढांचा मजबूत खम्भों पर टिका मान लों कि ये खम्भे मजुबूत न हो तो यह सब गिर सामान्य रूप से यदि आप बच्चों को देखें तो उनमें अपनी स्वाभाविक अन्तर्जात सूझबूझ होती है । वो जानते हैं। आप यदि देखें तो प्रायः कोई भी अच्छा हुआ है परन्तु जाएगा। इसी प्रकार से ये महान शक्ति आपके पास आई है, इसके लिए हमें बहुत सफल लोगों की बहुत प्रसिद्ध या वैभव बच्चा अपनी चीजों को अन्य बच्चों से बाँटना चाहेगा और अन्य बच्चों को प्रेम करना चाहेगा । कोई छोटा बच्चा यदि वहाँ हो तो वह बच्चा उस छोटे बच्चे की रक्षा करना चाहेगा। स्वाभाविक रूप से वह ये नहीं सोचेगा कि इस बच्चे के बालों का रग काला है, है या नीला है। स्वाभाविक रूप से, अन्तर्जात रूप से आवश्यकता नही है और न ही सम्पन्न लोगों की आवश्यकता है। हमें चरित्रवान, सूझ-बूझ वाले, विवेकशील, शक्तिशाली ऐसे लोगों लाल की आवश्यकता है जो किसी भी हाल में इस उद्देश्य के लिए डटे रहें। मैं इसे अपनाऊंगा मै इसके साथ चलूंगा, मैं स्वयं को परिवर्तित करूगा. स्वयं को बच्चा वह प्रेम महसूस करता है। किसी अन्य बच्चे को यदि आप लें जो बहुत नन्हा हो. तो उन्हें इस बात का ज्ञान होता है कि शरीर की गोपनीयता (Privacy ) के विषय में सावधान रहना चाहिए। बच्चें नहीं चाहते कि उन्हें अन्य लोगों के सम्मुख निर्वस्त्र किया जाए। कोई सुधारूंगा। अतः अब भ्रान्तियाँ दूर हो चुकी हैं। मुझे आशा है कि आप सबने भ्रान्तियों से मुक्ति पा ली है। आपको अपने विषय में भी किसी प्रकार की कोई भ्रान्ति नहीं होनी चाहिए। आपको यदि किसी प्रकार का कोई भ्रम है तो आपको चाहिए कि सहजयोग छोड़ दें । परन्तु भी बच्चा ये बात पसन्द नहीं करता। अन्तर्जात रूप से। अतः ये सारे अन्तर्जात गुण हमारे अन्दर विद्यमान हैं। बच्चे चोरी करना पसन्द नहीं करते, वो ये भी नहीं जानते कि चोरी होती क्या है। उन्हें चोरी की समझ ही नहीं होती। मैंने देखा है कि बच्चे यदि किसी अत्यन्त सुन्दर स्थान पर जाएंगे, किसी के घर में तो आप ये बात समझलें कि परमात्मा की इच्छा ने आपको इस उद्देश्य के लिए चुना है-इसलिए आप यहाँ पर हैं। और आपको इस विज्ञान को समझने की जिम्मेदारी सम्भालनी होगी जो पूर्ण विज्ञान है, और इसे स्वयं कार्यान्वित करना होगा स्वयं के लिए तथा अन्य लोगों के लिए। आपने मेरा प्रेम महसूस किया है, परन्तु वे उस स्थान के सौन्दर्य को बनाए रखने का भरसक प्रयत्न करेंगे। परन्तु वह स्थान यदि पहले से ही अस्त-व्यस्त हैं तो फिर बच्चे उसकी चिन्ता नहीं करते। तो अन्तर्जात रूप से ये सभी गुण विद्यमान हैं। आपका प्रेम भी महसूस होना चाहिए क्योंकि परमात्मा तो मात्र प्रेम हैं। अतः अन्य लोगों को इस बात का मैं सोचती हूँ कि विकासशील कहलाने वाले देशों में ऐसे बहुत से गुण हैं जो उनमें अन्तर्जात हैं। अतः 'परमात्मा की इच्छा' ने सर्वप्रथम और सर्वोपरि अबोधिता एवं मंगलमयता का सृजन किया श्री गणेश का सृजन परमात्मा का पहला कार्य था, आदिशक्ति का क्योंकि 'आदिशक्ति ही परमात्मा की एहसास होना चाहिए कि आप करुणामय, प्रेममय और सूझ-बूझ वाले व्यक्ति हैं। हर समय यह 'परमात्मा की इच्छा' आपके अन्दर से प्रवाहित हो रही है। और आपको इसे इस प्रकार से कार्यान्वित करना है कि लोग जान पाएं कि आप सन्त हैं और यह शक्ति आपके अन्दर से प्रवाहित हो रही है। मैं कहूंगी इच्छा' है। विश्व को अत्यन्त सुन्दर बनाने के लिए एक दूसरी चीजू जो आपके साथ घटित हुई 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-18.txt अंक :1 & 2 -2007 17 चैतन्य लहरी बहुत बड़ी उन्नति हुई-धन (पैसा) बहुत अधिक महत्वपूर्ण हो गया पैसा जब महत्वपूर्ण हो जाए तो आपके साथ उद्यमी भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि वे जानते है कि किस प्रकार लोगों को मूर्ख बनाकर पैसा बनाया जाए। आज आपने ये चीज़ खरीदी है कल वो खरीदेंगे, आज आपने ये चीजु बदली है, कल वो बदलेंगे। परन्तु आन्तरिक रूप से सशक्त लोग परिवर्तित नहीं होते। वे एक ही प्रकार के वस्त्र पहनते हैं बदलते नहीं । इसके विपरीत अपनी पारम्परिक उपलब्धियों को त्याग पाना उनके लिए कठिन होता है और वे स्वयं को परिवर्तित नहीं करना चाहते। यह सर्वप्रथम इन चीजों का सृजन किया गया. आपके अन्दर ये अन्तर्जात गुण भी स्थापित किए गए, सभी देवी-देवताओं की स्थापना आपके अन्दर की गई। हमारा सृजन विशेष रूप से किया गया, मानव रूप में ताकि वे सन्त बन सकें, ताकि, अन्तर्जात रूप में उनमें पावनता स्थापित हो जाए। परन्तु विकसित देशों में सभी प्रकार के दूरदर्शन और अन्य चीजों ने हमारे मस्तिष्क उलट दिए और हम सुभेद्य (Vulnerable) (आसानी से प्रभावित होने वाले लोग) हो गए। हम दूसरे लोगों के विचारों से प्रभावित होने लगे। कोई भी व्यक्ति हम पर रौब जमा सकता है, केवल निरंकुश हिटलर ने ही लोगों पर प्रभुत्व नहीं जमाया आप यदि वास्वत में स्वयं को विश्व से तटस्थ करके देखें तो आपको पता चलेगा कि आप इन चीजों से कितने प्रभावित हैं! उदाहरण के रूप में फैशन से ऐसी चीजें उभरकर आती हैं जिन्हें लोग किसी भी कीमत पर अपनाते हैं क्योंकि ये फैशन है किसी विवेकशील चीज़ को वे नहीं अपना पाते। जैसे आजकल छोटे स्कर्ट पहनने का फैशन है, कहीं से लम्बा स्कर्ट नहीं कहूंगी कि फ्रॉयड जैसे किसी पागल व्यक्ति की मिल सकता। सभी को वैसा ही छोटा स्कर्ट पहनना पड़ेगा अन्यथा आप फैशन में नहीं है (you are not in ), आप पागलखाने में नहीं है। सुबह से शाम तक हमें इन चीजों से प्रभावित किया जाता है। तो सर्वप्रथम हम इन उद्यमियों के गुलाम बन जाते हैं-वो जो भी कुछ हमें देते हैं-बेल्जियम में मुझे बताया गया कि यहाँ कुछ भी ताजा नहीं मिल सकता। सभी कुछ टिन बन्द सुपर मा्किट से लाना होगा। शनैः शनैः हमारे साथ क्या हो रहा है? हम पूरी तरह से बनावटी बनते चले जा रहे हैं । खाना बनावटी है. वस्त्र बनावटी हैं और लोग हम पर हावी हो जाते हैं । कोई भी व्यक्ति उठकर हमारा सम्पूर्ण दृष्टिकोण ही बनावटी हो गया है। क्योंकि हर समय विज्ञापन हमें प्रभावित कर रहे हैं। सभी प्रकार के बाहरी प्रभाव जिनमें खोकर हम अपने अन्तर्जात विवेक को भूल जाते हैं क्योंकि ये सभी कैसा है? स्वयं देखें तो सही कि वह कैसा व्यक्ति है! आधुनिक चीजें हमारे अन्तर्जात विवेक पर हावी हो रही हैं। देखना सहजयोगियों के लिए आवश्यक है कि कहीं वे इन आधुनिक उद्यमियों के दास तो नहीं बनते चले जा रहे। इसके बाद विचारः- हम बहुत सी पुस्तकें पढ़ते हैं जो हमारे अन्दर विचार उत्पन्न करती है। ये विचार भी बेसिर-पैर का पागलपन होता है. मैं अवश्य बेसिर-पैर की बातें। फ्रॉयड ने किस प्रकार पश्चिम को प्रभावित किया! क्योंकि आप अपना अन्तर्जात विवेक खोकर उसे स्वीकार करते हैं! आप उसे स्वीकार करते हैं! और इसी का का ईसा-मसीह बन गया। वह सबसे अधिक महत्वपूर्ण बन गया। स्वच्छंद यौन सम्बन्ध सर्वोपरि हो गए। कहने से अभिप्राय ये है कि ये अत्यन्त सामान्य बात है। थोड़े से व्यवहार विवेक से हम समझ सकते हैं कि हर क्षण इस प्रकार के विचारों वाले थोड़े से तानाशाह रण वह आपके लिए एक प्रकार एक नई विचारधारा चालू कर देता है। जैसे सात्रे या कोई और। और वह विचार लोकप्रिय होने लगते हैं। ओह! "उसने ऐसा कहा!" वह कौन है? उसका जीवन थोड़े से व्यवहार विवेक से, परन्तु जो 'इच्छा' अब आपके पास है-परमात्मा की इच्छा-जिसने पूरे विश्व की रूपरेखा बनाई है, जिसने आपको बनाया है-आपके विज्ञान के साथ-साथ एक अन्य दिशा में भी 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-19.txt अंक : 1 & 2 -2007 चैतन्य लहरी 18 आपके जीवन में यदि अनुशासन नहीं है तो अन्दर की हर कोशिका की रूपरेखा सर्वशक्तिमान परमात्मा ने बनाई है। और आप लोग क्या कर रहे हैं? इन उद्यमियों के हाथों में खेल रहे हैं! उन्होंने ये बात समझ ली है कि वे दुर्बल लोग अनुयायी बनने के लिए बहुत अच्छे हैं, मैं कहना चाहूँगी बेवकूफ बनाने के लिए और उनसे धन ऐंठने के लिए । आप 'परमात्मा की इच्छा के संवाहक नहीं बन सकते-आप ऐसा नहीं कर सकते। ये नहीं बताने वाली हूँ कि ऐसा करो, वैसा करो । आपकी स्वतन्त्रता का मैं सम्मान करती हूँ। मैं चाहती हूँ कि आपकी अपनी कुण्डलिनी आपमें वह विवेक, वह महानता, वह गरिमा जागृत करे और आप अपने अन्तर्जात गुणों को देखने लगें। तब यह पावन कर देगी। और एक बार जब आप पूरी तरह से पावन हो परन्तु मैं आपको अब इस ओर आपके पास इतनी महान शक्ति है, इतने महान कार्य के लिए आपको चुना गया है और दूसरी ओर इस प्रकार का दासत्व है! अतः समझने का प्रयत्न करें कि आपके अन्तर्जात गुण खो गए थे। परन्तु सौभाग्य से कुण्डलिनी जागृति और सहस्रार भेदन द्वारा आपकी अबोधिता, सृजनात्मकता, अन्तर्धर्म, करुणा, मानव के प्रति प्रेम निर्णयात्मक शक्ति, विवेक आदि महान गुण, जो खो गए लगते थे. जाएगे, जैसे आपके पास यदि अपावन सोना हो तो आप उसे अग्नि में तपाते हैं और उसमें से खोट निकल जाता है, इसी प्रकार कुण्डलिनी की अग्नि भी आपको पूर्णतः शुद्ध कर देती है, एकदम स्वच्छ कर देती है और आप अपनी गरिमा, अपने स्वभाव और अपनी महानता को देखने लगते हैं। इस प्रकार आसानी से आपमें तादात्म्य स्थापित होने लगता है, आप समन्वित होने लगते हैं। परन्तु वास्तव में जो सुप्त-अवस्था में थे, वो सब एक-एक करके जागृत हो गए हैं। मुझे आपको ये नहीं बताना पड़ता ये मत पिओ, वो मत खाओ, ऐसा मत करो'। आप स्वयं सर्वप्रथम हमारे यहाँ कुछ सहजयोगी इंग्लैण्ड से होते थे, कुछ स्पेन से, और कुछ यहाँ से। हमेशा उनके अपने अपने झुण्ड होते। कभी वे सब मिलकर न बैठते। आसानी से देखा जा सकता था यहाँ अंग्रेज बैठे हैं वहाँ वो बैठे हैं और वहाँ कोई और सब अपनी-अपनी टोली बना लेते थे। परन्तु अब ऐसा नहीं है। अब मुझे लगता है कि सब एकरूप होने लगे हैं। मानव का समन्वित होना सहजयोग के लिए बहुत ही समझ जाते हैं कि यह गलत है। आप स्वयं जानते हैं कि आपके लिए क्या अच्छा है। परन्तु अब भी यदि आप गलत कार्य करना चाहते हैं तो आगे बढ़े! परन्तु अच्छा क्या है और बुरा क्या है, ये देखने के लिए आपमें प्रकाश आ चुका है। नए ज्ञान के इस नए आयाम के प्रति सहस्रार खुल जाने के कारण आपको यह प्रकाश प्राप्त हुआ है। यह कोई नई चीजू नहीं है। यह आपके अन्दर अन्तर्जात है। अब ये सारे अन्तर्जात महत्वपूर्ण है। यह सूझ बूझ से आता है, बुद्धिचातुर्य से नहीं, कि सभी मनुष्य परमात्मा द्वारा बनाए गए है उसकी इच्छा द्वारा तथा हमें किसी से घृणा का अधिकार नहीं है । गुण प्रकट हो रहे हैं और आप उनका आनन्द ले रहे हैं। अतः अब आपको अपने क्षुद्र विचारों तथा तुच्छ चीजों से मुक्त होना होगा लोग मुझे बहुत सी अटपटी चीजों के बारे में बता रहे हैं। मैं विश्वास ही नहीं कर पाती कि किस प्रकार सहजयोगी ऐसा कर सकते हैं। जो प्लेटे मैंने खरीदी है वे उन्हें लेकर चले जाते हैं-वो प्लेटें ही ले जाते हैं! इधर-उधर चीजों को फेंक देते हैं! दूसरा समन्वय जो हमारे अन्दर घटित हुआ, ये है कि सभी धर्म, सभी धर्मों ने एक ही आध्यात्मिक प्रकाश के वृक्ष पर जन्म लिया, कि सभी धर्मों की पूजा करनी है. सभी अवतरणों, सभी पैगम्बरों और सभी धर्मग्रन्थों की पूजा करनी है। इन धर्म -ग्रन्थों में कुछ खामियाँ हैं, कुछ समस्याएं हैं. जिन्हें ठीक किया हर जगह इधर-उधर वो चीजों को फेंक देते हैं! किस प्रकार आप ऐसा आचरण कर सकते हैं! कहने का अभिप्राय ये हैं कि ये सब मूर्खता पूर्ण है और नीरस। 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-20.txt अंक : 1 & 2 -2007 19 चैतन्य लहरी उदाहरण न दें कि-श्रीमाताजी ने ऐसा कहा, या पुस्तक में ऐसा लिखा है, अतः यह झूठ है, या वह झूठ है। आप किसी असत्य से बँधे हुए नहीं है, मैं कहती हूँ किसी भी असत्य से। आपने स्वयं निर्णय करना है कि जा सकता है। अतः शनैः शनैः आप लोग दिव्यत्व के सूक्ष्म पक्ष में प्रवेश करना आरम्भ करें ताकि ये समझ सकें कि इन लोगों ने सहजयोग के लिए., ये वातावरण बनाने के लिए बहुत कठोर परिश्रम किया है। किसी धर्म का तिरस्कार नहीं करना है और न ही किसी धर्म आपने क्या कहना है। क्योंकि अब आपको अपनी इच्छा का उपयोग करना है, और इसके लिए आपको स्वयं को विकसित करना होगा ताकि 'शुद्ध इच्छा' को प्राप्त कर सकें, सर्व-शक्तिमान परमात्मा की 'शुद्ध पर आक्रमण करना है, ऐसा करना बिल्कुल गलत होगा ऐसा करके हम एक ऐसे सिद्धान्त पर कार्य करेंगे जिसका परमेश्वरी योजना में कोई स्थान ही नहीं है। तो इस प्रकार से हम सारे रूढ़िवाद को समाप्त करेंगे। इच्छा' को। समन्वय केवल बाहर नहीं, अन्दर भी। जैसे पहले हम जो भी कुछ करते थे हमारा मन कुछ कहता धर्मान्ध लोग वो हैं जो ये मानते हैं कि उस पुस्तक में वैसा लिखा हुआ है, इस पुस्तक में ऐसा लिखा हुआ है और क्योंकि हम इस पुस्तक को पढ़ते हैं हम कुछ बेहतर चीज हैं। कोई भी कोई पुस्तक पढ़ था, हृदय कुछ कहता था और मस्तिष्क और कहता था। परन्तु अब ये तीनों एक हो गए है तो अब आपका मस्तिष्क जो कहता है वह आपके हृदय को कुछ पूर्णतः स्वीकार्य है, आपके चित्त को पूर्णतः स्वीकार्य है अतः अब आप स्वयं समन्वित (Integrated) हो गए है। सकता है, इसमें इतना महान क्या है? अतः मैं कहंगी कि सहजयोग में लोगों को धर्मान्ध नहीं बनना चाहिए. बहुत से लोग लिखते है, "श्रीमाताजी मैं ऐसा करना चाहता हूँ परन्तु नहीं कर सकता ।" मेरी इच्छा यह कार्य करने की है परन्तु मैं ऐसा नहीं कर सकता अब नहीं! अब्र आप पूर्णतः समन्वित हैं आसानी से तथा बहुत अच्छी तरह से कर सकते हैं। आप यदि अपना परीक्षण करना चाहते हैं तो ये देखने बहुत सावधान रहें, क्योंकि आप सब इसी प्रकार से जन्में हैं, कहने से अभिप्राय है, मैं नहीं जानती, ये आपका अन्तर्जात गुण नहीं है परन्तु जिस प्रकार आपको बनाया गया है वैसे ही आपने स्वयं को ढाल लिया है, इसी प्रकार से कि कभी-कभी तो आप सहजयोग को भी रूढ़िवाद (धर्मान्धता) बनाने लगते हैं श्रीमाताजी ने ऐसा कहा है!" कहीं मेरे नाम का उपयोग न करें श्रीमाताजी ने ऐसा कहा है यह दूसरों पर प्रभुत्व जमाने का तरीका है। आप स्वयं कहें क्योंकि अब आपको अधिकार है, सहजयोग में आपका एक व्यक्तित्व है। जो भी कुछ आप कहना चाहते हैं आप कह सकते हैं परन्तु कोई भी व्यक्ति इस प्रकार आरम्भ कर सकता है कि ईसा-मसीह ने ऐसा कहा था, कोई पादरी, पोप अपने और सभी कुछ प प्रयत्न करें कि क्या मैं समन्वित हूँ या नहीं? मैं जो भी कार्य कर रहा हूँ, क्या मैं उसे पूरे दिल से कर रहा हूँ या नहीं? क्या मै कार्य को पूरे चित्त से कर रहा हूँ या और नहीं? मुझे लगता है कि आप कार्य को पूरे हृदय बुद्धिपूर्वक करते हैं परन्तु आपका पूरा चित्त इसमें नहीं होता। अभी तक सर्वप्रथम ज्योतिर्मय हुआ चित्त पूरी तरह से वहाँ नहीं है। अतः पूरा चित्त पूर्णतः वहाँ होना चाहिए कि मुझे ये कार्य पूरे चित्त से करना है.' अन्यथा समन्वय अधूरा है। समन्वय अपूर्ण है। अतः ये तीनों चीजें पूरी तरह से समन्वित होनी चाहिए। तब सभी चक्रों में समन्वय स्थापित होता है। जैसे जो भी आप करते हैं वह मंगलमय होना चाहिए, जो भी कुछ आप करते हैं वह पूरे चित्त से होना चाहिए, जो भी ये न कहें कि "श्रीमाताजी ने ऐसा कहा है। मंच पर खड़ा होकर कह सकता है कि "ईसा-मसीह ने ऐसा कहा है।" मनमाने ढंग से हम ये सभी चीज़ें इस्तेमाल कर सकते हैं। अतः मनमाने ढंग से मेरा नाम उपयोग करने का अधिकार किसी को भी नहीं है। आपको जो भी कहना हो स्वयं कहें, कभी मेरा कुछ 1. 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-21.txt अंक :1 & 2 -2007 चैतन्य लहरी 20 यह डीएनए टेप की तरह से है। वे सब जानते हैं कि कुछ आप करते हैं वह पूर्णतः धार्मिक होना चाहिए। किस प्रकार ढलना है। देखिए आज धूप भरा दिन है. हर आदमी हैरान है कि ऐसा कैसे हो सकता है! बहुत सी चीजें इसी प्रकार घटित होती है। उस दिन हमने थे तो तो इस प्रकार से ये सभी चक्र पूर्णतः समन्वित हो रहे हैं, समन्वित शक्ति जो आपमें है तो पूरा जीवन समन्वित होना चाहिए। अब मान लो कि किसी का पति उस स्तर का नहीं है या किसी की पत्नी उस पूरा हवन किया था तो पूरी तरह से बादल छाए हुए ब्रह्माण्ड आपके लिए कार्य कर रहा है। अब आप यदि स्तर की नहीं है। आपको इसकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए। केवल अपनी चिन्ता करनी चाहिए। किसी मंच पर है और आपने इसे देखना है। आपको स्वयं पर ही विश्वास नहीं है, यदि आपको आत्मविश्वास नहीं है आप क्या है, तो आप किस परन्तु अन्य से कुछ भी आशा न करें। केवल आपका कर्तव्य ही महत्वपूर्ण है। आपने अपने कर्तव्य का पालन करना प्रकार सहायता कर सकते है? किस प्रकार आप स्वयं है और स्वयं इसे कार्यान्वित करना है। जब तक आप ये नहीं समझ जाते कि आपने स्वयं यह उपलब्धि प्राप्त की है, मैं कहूंगी कि व्यक्ति मात्र ने (Individual को कार्यान्वित कर सकते हैं और विश्व में मानवरचित समस्याओं का समाधान किस प्रकार कर सकते हैं? Being) यह महसूस करना है और व्यक्ति मात्र ने ही अन्य सभी के साथ समन्वित होना है। यदि आप चीज़ों को इस प्रकार से समझने लगे, बहुत बार मैंने देखा है कि मैं यदि कुछ कहती हैँ तो आप सोचने लगते हैं कि मैं वह बात किसी अन्य के लिए कह रही हूँ। लोग कभी भी नहीं मानते कि ये बात उन्हीं के लिए कही गई थी अत: हमें यह नहीं देखना है कि मुझे क्या लाभ हुए। "मुझे धन लाभ हुआ, मुझे शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त हुआ, मुझे मानसिक शान्ति मिली. मुझे आनन्द एवं प्रसन्नता प्राप्त हुई।" केवल इतना ही नहीं है। केवल यही मापदण्ड नहीं होना चाहिए। आपको अपने व्यक्तित्व की समझ होनी चाहिए जिसे कई जन्मों अतः हमें उन सभी चीजों को उखाड़ फेंकना होगा जिन्होंने हम पर प्रभुत्व बनाया हुआ है। सर्वप्रथम . विज्ञान। हम हर चीजू को प्रमाणित कर सकते हैं, सहजयोग में जो भी कुछ आप कहते हैं वह प्रमाणित हो चुका है। अतः हम विज्ञान के बन्धनों को तोड़ सकते हैं, क्योंकि विज्ञान तो हर समय परिवर्तन की स्थिति में बना रहता है. हर समय बदलता रहता है। इसके बाद ये तथाकथित धर्म-ये तथाकथित धर्म। क्योंकि जो लोग कैथोलिक हैं, प्रोटैस्टैंट हैं. हिन्दू हैं. मुसलमान है या किसी और धर्म के, वह सब बन्धन उनके सिर पर सवार हैं। इन्हें उतार फेंकना होगा हमें नव-व्यक्तित्व बनना होगा आत्म-साक्षात्कार के पश्चात्, जैसा मैंने कहा, आप कीचड़ में से निकले कमल की तरह से बन जाते हैं। तो अब आप कमल तक इस प्रकार से ढाला गया है कि आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के लिए, 'परमात्मा की इच्छा' के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए आप यह जीवन प्राप्त कर सकें। बन गए हैं और कमलों को अपने ऊपर चिपका हुआ ये कीचड़ उतार फेंकना होगा, अन्यथा सुगन्ध हर क्षण जब आप कोई चमत्कार घटित होते देखते हैं तो आपको महसूस होता है कि यह सब परम चैतन्य ने किया है। ये परम-चैतन्य क्या है? यह आदिशक्ति की इच्छा' है। और आदिशक्ति क्या हैं? मृत हुए नहीं फैलेगी। तो प्राप्त की जाने वाली उपलब्धि ये है कि आपको वो सभी बन्धन उतार फेंकने होंगे जो आपको नष्ट कर रहे हैं और आप पर बेकार का बोझ हैं। ये परमात्मा की इच्छा है। सुन्दर कमलों के रूप में जैसे आपको बनाया गया है आपको समझना होगा कि अत्यन्त सावधानी तो जो कुछ कार्य हुआ है वह सब निर्धारित तत्व (Fixed Entities) है, हम उन्हें. इन सारी चैतन्य-लहरियों को इस प्रकार से कह सकते हैं कि पूर्वक, माधुर्य एवं कोमलता से सभी कुछ बनाया गया है । 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-22.txt अंक : 1 & 2 -2007 चैतन्य लहरी 21 का क्या है? आप उनसे चिपके रहते है। आपकी अपनी चीज़ों के बारे में क्या है, उनसे भी आप चिपके रहते हैं! अपनी छोटी-घछोटी चीज़ों के लिए मुझे परेशान करते हैं. परन्तु जब किसी चीज़ का सम्बन्ध मुझसे या सहजयोग से होता है, तो वे मस्त हो जाते हैं और जहाँ चाहे इसे फेंक देते हैं। अर्थात इतनी लापरवाही! उन्हें दिव्य कैसे कहा जा सकता है ? किस प्रकार वे सन्त अतः सर्वप्रथम हमारे मन में अपने लिए सम्मानभाव, अन्य लोगों के लिए स्नेह, प्रेम एवं सम्मान होना आवश्यक है, अर्थात, हममें अनुशासन आवश्यक है। हमारे अन्दर अनुशासन होना आवश्यक है क्योंकि यदि आप अपना सम्मान करते है तो निश्चित रूप से आप स्वयं को अनुशासित करेंगे और अनुशासन का उदाहरण ब्नेगे। लोग हो सकते हैं ? सन्त तो न केवल अपने लिए अपितु अन्य सभी के लिए भी जिम्मेदार होते हैं। मेरे जीवन से आप ये बात महसूस कर सकते हैं कि मैं बहुत इतनी अधिक कि आपमें से शायद ही कोई कर पाए । क्योंकि मुझमें इच्छा है कि मुझे इस विश्व को आनन्द, परिश्रम करती हूँ, बहुत यात्रा करती हूँ बहुत धीरे-धीरे अत्यन्त सहजता से माधुर्य एवं स्नेहपूर्वक मैं आपको इस स्तर तक लाई हूँ। मैने आपको हिमालय पर जाने के लिए या सिर के भार प्रसन्नता तथा दिव्यत्व की उस अवस्था तक लाना है जहाँ लोग अपनी गरिमा और अपने परमपिता (God) खड़े होने के लिए या अपनी सारी सम्पत्तियाँ मुझे दे के गौरव को महसूस कर सकें। अतः मैं कठोर परिश्रम देने के लिए नहीं कहा, ऐसा कुछ नहीं किया। अत्यन्त करती हैँ, कभी नहीं सोचती कि मुझे कुछ हो जाएगा. या मुझे ये हो जाएगा मैने आपको अपने पारिवारिक जीवन अपने बच्चों, अपनी किसी चीज के बारे में समझने होगे अपने परिवार अपने घर, अपनी सभी कोई कष्ट नही दिया। मेरे सम्मुख जो भी समस्याएं आई मैने स्वयं उनका सामना किया। परन्तु यहाँ पर मुझे सहजयोगियों के बड़े -बड़े पत्र मिलते हैं, जिनमे वे अपनी बेटियों, बेटों, ये, वो आदि के बारे में लिखते हैं! परिवार से मोह एक अन्य समस्या है। आपके थे, स्व.केन्द्रित थे। अब आपने स्वयं को थोड़ा सा सिर पर यह बहुत बड़ा बोझ है। हर समय आप अपने बच्चों के बारे में चिन्तित होते हैं। ये आपकी बच्चों से लिप्त हैं। ये भी स्वार्थीपन है- क्योंकि आप जिम्मेदारी नहीं है, कृपा करके समझने का प्रयत्न करें कि यह सर्वशक्तिमान परमात्मा की जिम्मेदारी लोगों में अपनी जिम्मेदारी समझने और इसे कार्यान्वित है। आप उनसे बेहतर कार्य नहीं कर सकते, क्या आप कर सकते है ? परन्तु जब आप यह जिम्मेदारी महत्वपूर्ण घटना घटित हुई है कि आपका सहस्रार ओढने का प्रयत्न करते हैं, तो परमात्मा कहते हैं, खुल गया है। अब आप पूरे विश्व के सम्मुख परमात्मा ठीक है, जिम्मेदारी निभाओ और समस्याएं आरम्भ होती हैं। सुन्दरता पूर्वक यह सारा कार्य किया। अब आगे जब आपको आगे बढ़ना है, तो आपको अपने कर्तव्य चीजों के प्रति आपके कर्तव्य हैं और सहजयोग के प्रति आपके कोई कर्तव्य नहीं। सहजयोग में आने से पूर्व आपको किसी से मोह न था, एक प्रकार से आप केवल स्वयं से लिप्त कसम विस्तृत कर लिया है, अब आप अपनी पत्नी, अपने सोचते हैं कि वे आपके बच्चे हैं। मुझे आशा है कि आप करने के लिए पर्याप्त विवेक है। आपके साथ एक के अस्तित्व, उसकी इच्छा को, हर चीज को प्रमाणित कर सकते हैं । सहजयोग को कोई चुनौती नहीं दे सकता। जो वैज्ञानिक सहजयोग को चुनौती देंगे. उनकी कलई खुल जाएगी आप चाहे वैज्ञानिक हों, अर्थशास्त्री या राजनीतिज्ञ- कुछ भी हों, सहजयोग के प्रकाश में हर चीज की व्याख्या की जा सकती है निर्लिप्तता शब्द को हमें ठीक प्रकार समझना चाहिए। मैने जब लोगों से पूछा, आप चीजों को इधर-उधर क्यों फेंकते हैं ?, तो उत्तर मिला "हम निर्लिप्त हैं। अद्भुत तरीका है। और आपके बच्चों 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-23.txt अंक : 1& 2 -2007 चैतन्य लहरी 22 तीलियों को इकट्ठा किया जाए तो इन्हें तोड़ा नहीं जा और ये प्रमाणित किया जा सकता है कि केवल एक राजनीति है, वह है परमात्मा की राजनीति, केवल एक अर्थशास्त्र है और केवल एक धर्म है, वह है परमात्मा का धर्म- 'विश्वनिर्मलाधर्म' । ये बात साबित की जा सकता। अब भी ऐसे लोग है, मैं जानती हूँ, जो अब भी पूरी तरह से सामूहिकता में नहीं हैं उनका सामूहिक न होना ये दर्शाता है कि स्वयं को समझने में वे कितने निर्धन हैं। और वो मुझे कहते हैं कि श्रीमाताजी, अब सकती है। किसी चीज से डरने या किसी बात की चिन्ता करने को कुछ नहीं है। वैज्ञानिकों, बुद्धिवादियों तथा कुछ अन्य लोगों के सम्मुख, यदि वे हमें सुनना चाहें तो, यह सब प्रमाणित किया जा सकता है और यदि वे हमें सुनना ही नहीं चाहते तो उन्हें भूल जाएं। जब हम इतने शक्तिशाली हैं तो क्यों हम उनकी चिन्ता करें। परन्तु यदि वे हमें सुनने को तैयार हैं तो बेहतर होगा कि हम उन्हें बताएं कि अब हमने यह महान शक्ति खोज ली है, और यदि यह महान शक्ति कार्यान्वित हो जाती है, केवल तभी हम पूरे विश्व को हम आश्रम में नहीं रहना चाहते।" तो उन्हे सहजयोग से बाहर हो जाना चाहिए। सामूहिकता के बिना आप उन्नत नहीं हो सकते। सहजयोग के अनुशासन के बिना आप उन्नत नहीं हो सकते। बेकार के लोगों से अच्छे गुणों (Good Quality) वाले दो लोग बेहतर हैं। यही परमात्मा की इच्छा है। हज़ार जिस प्रकार से इतने सारे लोग यहाँ उपस्थित हैं, इतने सारे लोगों को देखकर मैं वास्तव मे आनन्दित हूँ कि हमने इतनी उन्नति की है और जिन व्यर्थ की चीजों के पीछे भाग रहे थे उनसे निकल आए हैं। नए साँचे में ढाल सकते हैं। परन्तु आज हमें शपथ लेनी होगी कि " अब मैं अपना जीवन परमात्मा की इच्छा के अनुरूप मुझे आप लोगों से बहुत आशाएं है। परन्तु जितनी गम्भीरता से आपको सहजयोग को लेना ढालूँगा-पूर्णतः-और इसी के प्रति स्वयं को समर्पित करूंगा। न कोई परिवार और न कोई और सोच-विचार, सभी कुछ भूल जाएं। कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है। "परमात्मा की इच्छा" हर चीज सम्भाल सकती है। चाहिए. उदाहरण के रूप में लोग ध्यान धारणा भी नहीं करते। ध्यान धारणा जैसी साधारण चीज़ भी आप लोग नहीं करते मेरी समझ में नहीं आता बिना 1. ध्यान धारणा किए आप लोग किस प्रकार चलेंगे? जब तक आप निर्विचार चेतना में स्थापित नहीं हो जाते, आप उन्नत नहीं हो सकते। अतः आपको ध्यान धारणा करनी होगी। कम से कम सुबह शाम ध्यान अतः यदि आप "परमात्मा की इच्छा का अनुसरण करते हैं तो आपके बच्चों की देखभाल होगी हर चीज़ की देखभाल होगी आपको किसी चीज की चिन्ता नहीं करनी और ये कार्य करता है। ये समझने का प्रयत्न करें कि आपको समस्याएं इसलिए हैं क्योंकि धारणा तो अवश्य करनी होगी। बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो स्वभाव से ही सामूहिक नहीं हैं। वे यदि आश्रम में रहते हैं तो सोचते हैं की आश्रम का जीवन अच्छा नहीं है। ऐसे लोगों को वास्तव में सहजयोग छोड़ देना चाहिए। क्योंकि उन्होनें ये भी नहीं समझा कि सहजयोग आप ये समस्याएं परमात्मा पर छोड़ना नहीं चाहते। आप स्वयं इनका समाधान करना चाहते हैं। इसी कारण से समस्याएं हैं। यदि आप निर्णय कर लें कि नहीं मैं ये सभी समस्याएं परमात्मा की इच्छा पर है क्या। सामूहिक हुए बिना आप किस प्रकार उन्नत होंगे, अपनी शक्तियों को किस प्रकार एकत्र करेंगे ? कोई भी यदि संघ में, सामूहिकता में रहते हुए कार्य हैं जो कहते हैं, श्रीमाताजी हम इतने योग्य नहीं हैं, हम नही करता- सामूहिक होकर ही आप शक्तिशाली बन सकते हैं। ये सत्य है कि आपके पास यदि एक तीली होगी तो आप उसे तोड़ सकते हैं, परन्तु बहुत सी छोडना चाहता हूँ तो सब समाप्त। कुछ ऐसे भी लोग ऐसा नहीं कर सकते" ऐसा कहना भी मूर्खता है। स्वयं को आजूमाएं, स्वयं देखें। तो सर्वप्रथम व्यक्ति को समझना होगा कि 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-24.txt वैतन्य लहरी अंक :1 & 2 -2007 23 हम ऐसी बातें क्यों कहते हैं। सम्भवतः इसलिए कि निसन्देह, मैं सहमत हैँ, कि आप मेरी पूजा करते हैं आप बहुत धन-लोलुप हैं या आपको अपने लिए बहुत धन चाहिए या ऐसा ही कुछ और। सहजयोग में कुछ लोग व्यापार की बातें भी करते हैं। अवश्य कोई चीजें. आप लोग मुझे बताते हैं, इतनी महत्वपूर्ण नही धनलोलुपता होगी या कोई भौतिक लिप्तता होगी हैं मुख्य बात तो ये है कि आपको ऊँचा और ऊँचा जिसके कारण वे कहते है हम योग्य नहीं हैं, हम परिवर्तित नहीं हो सकते। दूसरे, ये ममत्व भी हो क्योंकि इससे आपको बहुत लाभ होता है, इसमें कोई शक नहीं है। परन्तु अन्य चीजें नहीं हैं. बहुत सी अन्य उठना चाहिए तथा अधिक उच्च स्थिति में स्थापित होने के लिए एक दूसरे का मुकाबला करना चाहिए। सकता है. जिसे आप मोह कहते हैं- परिवार के प्रति मोह बच्चों के प्रति मोह आदि-आदि। या ये मेरा है, मैं सोचती हूँ कि इतने थोड़े से समय में हमने बहुत कुछ पा लिया है, निःसन्देह! परन्तु अभी भी हमें अपनी गति बढ़ानी होगी और इसे कार्यान्वित करना होगा मुझे विश्वास है कि यह नव-विज्ञान, जिसे हम पूर्ण-विज्ञान कह सकते है. एक दिन सभी अन्य विज्ञानों पर छा जाएगा और लोग इसकी सच्चाई को जान जाएंगे। ये आपके हाथ में है, आप इसे कार्यान्वित करें। ये मेरा है, ये मेरा है। ये दूसरा कारण हो सकता है कि आप सोचते हैं कि आपमें सहजयोग करने के लिए पर्याप्त साहस और शक्ति नहीं है। तीसरा कारण यह भी हो सकता है कि अब भी आप अपनी पुरानी आदतों से चिपके हुए है और बिना सहजयोग के जीवन का आनन्द ले रहे है। ऐसा ही कोई कारण हो सकता है। खोजूने का प्रयत्न करें कि मैं इस प्रकार व्यवहार क्यों कर रहा हूँ? जिस प्रकार अन्य सभी लोग उत्थान के तो आज हम वह उत्सव मना रहे हैं जिसके द्वारा हमने एक पूर्णतः नव-आयाम खोला है-पूर्णतः परमेश्वरी सत्य का महान दिव्य क्षेत्र। और यह इतना सुन्दर पथ पर बढ़ रहे है, मैं क्यों नहीं बढ़ रहा? अन्तर्अवलोकन द्वारा हम इसका पता लगा सकते हैं मुझमें ही कोई कमी है जिसके कारण मैं सोचता हूँ मुझमें योग्यता नहीं है।" आपमें सभी कुछ करने की योग्यता है। ये बात आप आजमाएं और आनन्द लें। महान है कि हम वास्तव में उन सभी भ्रमों को समाप्त कर सकते है जो लोगों ने अपने विषय में और अपने युग के विषय में पाले हुए थे। हम यह कार्य कर सकते आप सबमें वही शक्ति है। अतः सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपने परमात्मा की इच्छा का उचित, शक्तिशाली और करुणामय माध्यम बनना है। सबसे महत्वपूर्ण क्या है? परमात्मा आपको धन्य करें। 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-25.txt अबोधिता के दृढ संकल्प के अतिरिक्त किसी भी प्रकार से हम आपके प्रति अपना आभार प्रकट नहीं कर सकते अपने हृदय की गहराइयों में हमारे अन्दर एक अत्यन्त प्रेममय एवं शक्तिशाली अवस्था को प्राप्त करने की आकांक्षा होती है। अबोधिता ही बह अवस्था है जो स्वयं शक्ति है। अबोधिता समाप्त होते ही हमारे अन्दर विध्वंसक शक्तियाँ जागृत हो जाती हैं परन्तु दुख की बात है कि पश्चिमी जगत में अबोधिता पूर्णतः समाप्त हो गई है। सभी प्रकार की मूर्खता पूर्ण चीज़ों युद्ध के लिए भी, निसन्देह चतुराई आवश्यक है। जैसे हमारी माँ चतुरतापूर्वक बताती हैं :- नकारात्मकता से लड़ने में यदि आप समर्थ हैं तो लड़े. अन्यथा भाग खड़े हों अबोधिता हमें श्रेष्ठतम कौशल प्रदान करती है। अबोधिता सहजता है, सहजता विवेक है, जब ये विवेक हमारे अन्दर विकसित होता है तो आत्मा का प्रकाश और बढ़ जाता है। सहजयोग में आने से पूर्व मैं हमेशा उन मित्रों के साथ रहा करता था जिनमें अबोधिता, विवेक का पूर्णाभाव था। यद्यपि मुझे ये लगता था कि अबोधिता अत्यन्त सुन्दर एवं पावन गुण है फिर भी अपने वातावरण के विरुद्ध इस सूक्ष्म-भावना का साथ देने की सामर्थ्य मुझमें न थी। युद्ध की तरफ दृष्टि भटकती रहती है। मीडिया. टेलिविज़न और पत्रिकाओं द्वारा फैलाई गई व्यर्थ की बातें हमारा सारा चित्त बर्बाद कर देती हैं। ऐसा लगता है मानो लोगों को अब गन्दगी, हिंसा और अपराध ही अच्छा लगता है। सर्वसाधारण लोगों की बातों को जब हम सुनते हैं तो हमें क्रोध आता है-उस व्यक्ति पर नहीं, उस नकारात्मकता पर जो हमारी प्रजाति को नष्ट करने तथा उसे पशुओं से भी निम्न स्तर पर लाने का प्रयास कर रही है। सहजयोग से प्राप्त होने वाले आशीर्वादों में से एक आशीर्वाद इस अबोधिता की सूझ-बूझ तथा विश्वविद्यालय के मित्रों एवं विद्यार्थियों में अबोधिता कभी-कभी यह क्रोध, जो सहजयोगियों को आता है, काफी अच्छा होता है। हमारे अन्दर यह श्रीगणेश का क्रोध है। सहजयोग में आनन्द उन्नत होने का और क्रोध, नकारात्मकता से लड़ने का प्रोत्साहन है। आदिशक्ति के बच्चे होने के नाते हम जानते हैं कि हम हर लड़ाई जीतेंगे। इस बात के अहसास से हमारे हृदय में आत्मविश्वास और सुरक्षा भाव को प्रोत्साहन मिलता है। हम देवी की सन्ताने हैं। " हे, श्रीमाताजी, पृथ्वी पर परमात्मा का साम्राज्य स्थापित करने तथा खोए हुए स्वर्ग को वापिस लाने के महत्व को फैलाने की सम्भावना भी है। अतः मैं अपनी परम पावनी माँ से प्रार्थना करता हूँ कि हम सबको कुण्डलिनी जागृत करने के बहुत से अवसर प्रदान करें। कुण्डलिनी जागृत करना, जागृति है और अबोधिता का आनन्द उठाना भी। जय श्री निर्मल गणेश Engelbert Vienna निर्मला योग (1983) रूपान्तरित 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-26.txt अवचेतन, अतिचेतन तथा हमारे उचित आधार एवं आदर्श परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन (परामर्श) चैलशम रोड, लन्दन 24 मई 198। सारे काम करवाते हैं। यहाँ-वहाँ भेजते हैं और इनसे वशीकरण का काम करवाते हैं। अपनी चाट्ुकारिता से ये भूत बहुत प्रसन्न होते हैं। किसी को यदि मानसिक रोग है, उदाहरण के रूप में किसी प्रियजन की प्रश्न : अतिचेतन से कौन सी शक्तियाँ प्राप्त होती हैं, बहुत से लोग अतिचेतन की शक्ति से लोगों को रोगमुक्त करते हैं, तथा इस रोग निवारक शक्ति तथा कुण्डलिनी की रोग निवारक शक्ति में क्या मृत्यु के कारण मानसिक सदमे से कोई यदि सामूहिक अवचेतन में चला जाए तो वह भूत-बाधित हो सकता अन्तर है? श्रीमाताजी : रोग निवारक शक्तियां दो प्रकार की हो सकती हैं। एक वो हो सकती है जो सामूहिक अवचेतन से अपनी शक्ति प्राप्त करती हैं और दूसरी जो सामूहिक अतिचेतन से शक्ति प्राप्त करती हैं। दोनों का रोग निवारण इस चीज़ पर निर्भर है कि समस्या कहाँ है। उदाहरण के रूप में सामूहिक अवचेतन से शक्ति प्राप्त करने वाला व्यक्ति बाई ओर की समस्याओं (मनोदैहिक) है। ऐसे लोग मान्त्रिकों के पास जाते हैं और ये मान्त्रिक मृत आत्माओं से कहते है कि तुम इस व्यक्ति को इतने समय से सता रहे हो अब इसे छोड़ दो। एक मृत आत्मा को तो ये उस व्यक्ति से हटा देते हैं परन्तु कोई अन्य आत्मा उसमें बिठा देते हैं। पहली आत्मा से ये कहते हैं किसी अन्य शरीर में जाकर बैठ जाओ ये मान्त्रिक एक प्रकार से बिचौलिए या सम्पर्क aferaar (Mediators or Liaison Officer) Ba हैं। इन मृत-आत्माओं को वश में करके ये इन्हें एक व्यक्ति से निकालते हैं और अन्य में बिठा देते है। इस प्रकार पहला व्यक्ति रोग मुक्त हो जाता है। उदाहरण के रूप में एक महिला थी जिसका पति बहुत अधिक शराब पिया करता था। वह एक महिला मान्त्रिक के पास गई, जिसने उससे कहा कि वह उसके पति को ठीक कर देगी परन्तु इसके लिए उसे सौ रुपये देने होंगे। उस मान्त्रिक ने उसके पति पर एक ऐसे व्यक्ति की मृत आत्मा डाल दी जिसके कारण उसके अन्दर से शराबी भूत भाग गया। इस व्यक्ति ने शराब पीना तो छोड़ दिया परन्तु घोड़ा रेस में जाने लगा। बाद में उसने इस जुआरी भूत की समस्या का समाधान उसके का समाधान कर सकता है और एक अतिचेतन व्यक्ति दैहिक समस्याएं ठीक कर सकता है। भारत में, हमारे यहाँ दो प्रकार के लोग है, जो मान्त्रिक और 'तान्त्रिक' नामों से जाने जाते है । मान्त्रिक वो लोग हैं जो श्मशानों और कब्रिस्तानों में जाकर मृत आत्माओं को पकड़ने का प्रयत्न करते हैं । ये मृत-आत्माएं बहुत धूर्त होती है, एक प्रकार के सामाजिक कार्यकर्ता या दूसरों की सहायता में लगे व्यस्त व्यक्ति ये चतुर्वर्ण या विशूद्रों की श्रेणी में आते हैं-वो लोग जिन्हें सेवा करने में विश्वास है। वे अच्छे लोग प्रतीत होते हैं क्योंकि वे अन्य लोगों की सेवा करना चाहते है, उनकी सहायता करना चाहते है, इसी कारण से ये मरना नहीं चाहते, पृथ्वी के आस-पास बने रहना चाहते है। इन्हें 'नौकर-वर्ग' भी कहा जा सकता है। ये अत्यन्त चापलूस होते है। कोड़े खाना, पिटाई और दुर्व्यवहार इन्हें अच्छा लगता है ये एक अन्दर एक और आत्मा डालकर कर दिया जिसके कारण वह वेश्याओं के पास जाने लगा। अब ये महिला बहुत घबराई। हर बार उसे सौ रुपये देने पड़ते थे अन्य पराकाष्ठा है। ये वीभत्स जीवन का आनन्द लेते हैं। कामक्रूर (Masochist) होते है। ऐसे सब मृत-व्यक्ति हमारे आस-पास हैं और ये वामपक्षी भूत है जो अत्यन्त भीरु हैं और चिपके हुए हैं मान्त्रिक लोग ऐसी मृत-आत्माओं को पकड़ लेते हैं और इनसे अपने और इस प्रकार उसने बहुत सा पैसा लुटा दिया। बाद में उसने उस महिला मान्त्रिक से इसके बारे में शिकायत की। इसके बाद उसे पता चला कि उसका पति ये तीनों दुष्कर्म करने लगा। वह उस महिला 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-27.txt अंक : 1& 2 26 चैतन्य लहरी -2007 है। परन्तु लड़का इस पर विश्वास ही न कर पाया। तो वह सिपाही बेहाशी (Treance) की स्थिति में चला गया और उसे बताया कि मैंने तुम्हारे लिए कुछ धन मान्त्रिक से लड़ने के लिए गई, उसने उसमें भी एक भूत बिठा दिया। तब से वह महिला अभी भी पागल है और मैं भी उसे ठीक न कर पाई। वह बहुत सुन्दर महिला है जिसका विवाह एक अत्यन्त धनी व्यक्ति से जिसकी अपनी फैक्टरी है परन्तु दोनों इस प्रकार एक गुप्त स्थान पर रखा हुआ है और इसका रहस्य भी उसने बताया तब बेटे को विश्वास हुआ और उसने अपने पिता के लिए एक चिकित्सालय आरम्भ हुआ का जीवन गुजार रहे है अर्थात दोनों तरफ से जल रहे हैं। तो ये अवचेतन में जाने वाले लोगों का उदाहरण किया सारा धन उसने उस क्लीनिक पर लगा दिया। है। जब भी उसे आवश्यकता होती कार्य करने के लिए सभी भूत डाक्टर उसकी सहायता करते और उसी स्तर पर उनमें परस्पर सम्पर्क स्थापित हो गया, थे। दूसरा मामला अतिचेतन प्रकार के लोगों का है, उदाहरण के रूप में डा. लेम्ब के अन्तर्राष्ट्रीय रोग निवारण केन्द्र का। उसके पास अन्तर्राष्ट्रीय भूत उसे लिखना पड़ता था कि आप फलाँ बीमारी से पीड़ित हैं। सभी अभिचेतन मृत लोग अत्यन्त महत्वाकांक्षी होते हैं। उदाहरण के रूप में सभी महान डाक्टर, वकील, वैज्ञानिक, इंजीनियर और वास्तुकार। हिटलर तथा उस जैसे अन्य योद्धा भी दाई ओर एकत्र हो जाते हैं। मृत्यु के पश्चात् डा. लेम्ब अपने इन सभी मित्रों से मिला और उनसे सम्पर्क स्थापित कर पाया कं्योंकि इनमें से कोई भी डाक्टर मरना न चाहता था क्योंकि वे सब किसी न किसी शोध में लगे हुए थे इन सबने डा. लेम्ब का चिकित्सालय आरम्भ किया ये डा लेम्ब जिनकी मृत्यु हो गई थी और जिनका एक पुत्र भी था, लन्दन में रहते थे। वियतनाम में डा. लेम्ब की आत्मा ने एक सर्वसाधारण सिपाही अर्थात सामूहिक अतिचेतन के स्तर पर । उच्च रक्तचाप, गुर्दे तथा मूत्राशय रोगों से पीड़ित एक महिला उनके पास गई। उन्होंने उसे कहा, कि लन्दन केन्द्र को पत्र लिखो और लन्दन केन्द्र ने उसे उत्तर दिया कि फला विशेष दिन. फला समय पर हम तुम्हारे अन्दर प्रवेश करेंगे और तुम्हारा रोग निवारण करेंगे. परन्तु तुम अवश्य अपने बिस्तर में लेट जाना। बताए हुए दिन और समय पर वह महिला काँपने लगी और एक मृत डाक्टर ने उसमें प्रवेश किया और वह महिला ठीक हो गई। एक वर्ष तक वह ठीक रही परन्तु बाद में उसे चक्कर आने लगे। वह जब मेरे पास आई तो उसकी दुर्दशा हो चुकी थी। बिल्कुल समाप्त हो गई थी। वह जानती थी कि जिस समय वह मुझसे मिलने आई उस समय एक आत्मा ने उसमें प्रवेश किया था। वह जानती थी और उसने बताया कि उसके अन्दर पर आक्रमण किया और उसे बताया कि वह लन्दन दस-ग्यारह भूत है और वह उन्हें झेल न पा रही थी। तो अतिचेतन से इस प्रकार का रोग निवारण भी हो सकता है। मान लो कोई वास्तुकार ऐसे लोगों के पास जाता है तो वह अपने अन्दर किसी मृतवास्तुकार को ले सकता है। चीर-फाड़़ (Ripper) करने वाले जैक का डा. लेम्ब था तथा उसे कहा, कि बेहतर होगा कि वह जाकर उसके पुत्र को बताए कि वह इस प्रकार का चिकित्सालय आरम्भ करना चाहता है। उसने अपने पुत्र पर आक्रमण नही किया। क्योंकि वह जानता था कि उसके पुत्र का स्वास्थ्य इतना अच्छा नहीं है कि वह उसे सहन कर सके। उसे एक अत्यन्त स्वस्थ एवं शक्तिशाली व्यक्ति की आवश्यकता थी जो उसे सहन के अन्दर भी किसी चीर-फाड़ करने वाले की आत्मा थी। व्यक्ति में इस प्रकार की चीजों में दिलचस्पी होनी चाहिए। ऐसे लोगों में दुर्बलता होती है इसीलिए वे आसानी से भूत-बाधित हो जाते हैं, अन्यथा ऐसा नहीं होता। यदि व्यक्ति का मस्तिष्क दुर्बल है और कर ले। और जिसमें वह प्रवेश कर जाए। अतः सिपाही उसके बेटे के पास गया और उससे कहा कि तुम्हारे पिता मेरे अन्दर हैं और वे क्लीनिक खोलना चाहते 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-28.txt अक : 1 & 2 -2007 27 चैतन्य लहरी को बता सकते हैं कि यही वह वास्तविकता है जो आपको विवेकशील, शक्तिशाली और प्रेममय बनाती है। केवल तभी लोग इसके कायल होंगे। भौतिक उसके अन्दर ऐसी चीजों की दुर्बलता है तो मृत आत्माएं उस व्यक्ति को पकड़ सकती है। इसका सम्बन्ध यदि दैहिक (Physical) पक्ष से है तो अतिचेतन सहायक मानसिक, भावनात्मक और अन्ततः आध्यात्मिक स्तर हो सकता है। परन्तु यदि इसका सम्बन्ध आपकी मनोस्थिति (Mental Side) से है तो अवचेतन लोग आपकी सहायता कर सकते हैं। परन्तु ये सहायता अस्थायी होती है और बाद में कई गुनी बढ्कर वापिस आ जाती है। पर भी सहजयोग चमत्कार करता है। आप सबको इन उत्कृष्ट शक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त है और यदि आप चाहें तो आत्म-साक्षात्कार दे लैम्प सकते हैं। उदाहरण के रूप में ये जलता हुआ परन्तु सहजयोग आपको इतना शक्तिशाली और पावन बना देता है कि अपवित्रताएं एक प्रकार से अस्वच्छ हो सकता है। हो सकता है कि इसका प्रकाश अच्छा न हो, परन्तु एक बार प्रज्जवलित होने के उपरान्त यह अन्य दीप प्रज्जवलित कर सकता है। झड़ जाती है। यह पावनी शक्ति है ये एक भिन्न बात है जहाँ आपकी नीयत रोग-निवारण की नहीं होती। परन्तु उपफल के रूप में (By Product) लोग रोग मुक्त हो जाते है। अब बहुत सी प्रगल्भ घटनाएं घटित हो रही हैं। आस्ट्रेलिया में मैं एक आस्ट्रेलियन दम्पति से मिली जो पत्रकार थे और महिला आस्ट्रेलिया के पत्रकार संघ की अध्यक्षा थी। वह गर्भधारण न कर सकती थी। डाक्टरों ने उसे कहा कि उसे कभी सन्तान न इसी प्रकार से आपकी आत्मा भी पावन है। परन्तु हमें इन सब भूतों से लड़ना होगा। असीमित तत्वों (Unlimited) पर मैं कठोर परिश्रम कर रही हूँ। इनका इसी प्रकार पर्दाफाश होता है परन्तु सीमित तत्वों पर आपको परिश्रम करना होगा लड़ने के लिए, इन आसुरी शक्तियों से युद्ध करने के लिए आपको स्वयं को तैयार करना चाहिए क्योंकि यही शक्तियाँ आपके अस्तित्व को नष्ट करती हैं। बहुत बड़ा नैराश्य होगी फिर भी डाक्टर उसके परीक्षण किए चले जा रहे थे क्योंकि पति की सन्तान प्राप्ति की बहुत इच्छा थी। परन्तु सहजयोग आने के पश्चात् उस महिला ने गर्भ-धारण किया, विवाह होने के लगभग पन्द्रह साल (Depression) आने वाला है और लोग इसमें केवल रुकावट डालेंगे। वे आपको बहुत सताएंगे परन्तु आपने इससे लड़ना है और इस कार्य को करने के लिए आपका उत्क्रान्ति की अवस्था प्राप्त करना आवश्यक होगा। अजीब बात है कि सभी महान लोगों, परमात्मा के बच्चों, परमात्मा के बन्दों ने अधिकतर पूर्व की अपेक्षा पश्चिम में जन्म लिया है। उन्होंने ऐसे देशों में जन्म लिया है जहाँ काफी वैभव है और उन्हें अधिक गरीबी और कष्टों का सामना नही करना पड़ता। परन्तु यही लोग खो (भटक) गए हैं क्योंकि जीवन का आधुनिक दृष्टिकोण ऐसी चीजों का सृजन करना है जिन्हें आसानी से नष्ट किया जा सके। हमें समझना चाहिए कि इसका कारण ये है कि शैतानी शक्तियों ने हमारी नीवें बहुत कमज़ोर कर दी है, ये कार्य वे बहुत पहले कर चुके हैं। इसी कारण से हमारे, विचार बहुत दुर्बल है। यदि आप ध्यान से देखें तो पश्चिमी देशों पश्चात् । अय उसका जीवन का पूरा नजरिया ही बदल गया है पहले वह सभी प्रकार के उपाय करवाया करती थी। आरम्भ में वह कैथोलिक थी. फिर वह भिन्न गुरुओं के पास जाने लगी तथा भिन्न उपायों को आजमाया। सहजयोग में आने के बाद उसने सब कुछ छोड़ दिया। अब अपने ही अन्दर उसे सब उत्तर मिल जाते हैं क्योंकि मैंने उसके अन्दर के सारे भूतों को भगा दिया है। अब उसने कहा है के वह ऐसे सारे लोगों का पर्दाफ़ाश करेंगी मैंने उसे बताया कि यदि वह लिख सके कि किस प्रकार ये लोग कार्य कर रहे हैं तो यह उनके पागलपन का अनावरण कर सकेगी। एक बार इसके बारे में बात कर लेने के बाद आप सहजयोग के लिए आधार बना सकते हैं और लोगों 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-29.txt अंक : 1& 2 2007 28 चैतन्य लहरी सांसारिक चीजों पर अपना समय बर्बाद कर सकते के राजाओं तथा रानियों तथा सामान्य लोगों का बे हैं। विवाह यदि हो तो बह बहुत अच्छा एवं जीवन अत्यन्त भ्रष्ट और भयावना है तथाकथित धार्मिक लोगों और कैथोलिक चर्च ने भी इतने भयानक कृत्य किए कि उन्होंने नीवें ही हिला दीं । अब आपने अपनी नीवों का पुनर्निर्माण करना है। धार्मिक जीवन की नई नीवें आपने डालनी है। आपने पूर्णतः धार्मिक जीवन को स्वीकार करना है। अपनी नीवों को पुनः सद्भावपूर्ण होना चाहिए और आपको चाहिए कि मिलकर पारस्परिक समस्याओं का समाधान खोजें। (सहजयोग) सुन्दर संस्था बनाना है । हमें इसे छोटी-छोटी, चीजों में न फॅसे अन्यथा हम इस कार्य को आगे न बढ़ा पाएंगे। क्योंकि जीवन में अभी हमें बहुत लम्बा रास्ता तय करना है। पश्चिमी देशों में ये शैतानी ताकतें बहुत अच्छी तरह से गठित हैं और तुच्छ सुदृढ़ करने का केवल यही उपाय है। भारत में, विशेष रूप से महाराष्ट्र. में नीवें बहुत अच्छी है, परन्तु वहाँ पर शुद्ध इच्छा का अभाव है। उदाहरण के रूप में, पूर्ण कुशलतापूर्वक बनाया सुदृढ्तापूर्वक बनी हैं। भारत की उन्हें कोई परवाह गया हवाई जहाज बिल्कुल न उड़ सके और उड़ते ही नष्ट हो जाने वाला जहाज उड़ता रहे! अतः व्यक्ति को है कि ये आपको उपयुक्त आधार बनाना सिखाता है महसूस करना होगा कि शैतानी शक्तियों ने जो हानि हमारी नीवों को पहुँचाई है वह बहुत गहन है और जितना आप समझते हैं उससे कहीं सूक्ष्म है । आपको इन नीवों से भी लड़ना होगा। ये दुष्ट सम्राट जो सात-सात पत्नियाँ रखा करते थे, आपके आदर्श नहीं हैं। आप स्वयं अपने आदर्श हैं। पश्चिमी देशों में नए आदर्श लाकर ही आप इन्हें परिवर्तित कर सकते है क्योंकि आप ही ऐसी गतिशील शक्ति है । आप सबको उठना होगा और इन आदर्शों के अनुरूप स्वयं को ढालना होगा और उन आदर्शों को अपने जैसी उपाधियाँ प्राप्त कर लेना बहुत आसान है। परन्तु नहीं क्योंकि भारत गरीब देश है। गरीबी का वरदान ये । निर्धन लोग भी वैसे ही हैं जैसे धनी। बहुत अमीर या बहुत निर्धन आपके आदर्श नहीं है। आप स्वयं अपने आदर्श हैं और आप ही ने नए आद्शों का सृजन करना है। आप ही अमरीका के नए राष्ट्रपति और इंग्लैण्ड के नए प्रधानमंत्री हैं। आप ही महान लोग हैं. अतः इस महानता के अनुरूप आपको बने रहना होगा अर्थात उच्च-चरित्र, उदार, परिश्रमी और विवेकशील व्यक्ति। इसके बिना आप ये कार्य नहीं कर सकते। अध्ययन करना और एम डी., एम.ए और पी.एच.डी. आदर्श बनने के लिए आपको परिपक्व होना होगा। अन्दर स्थापित करके उनके अनुसार जीवन बिताना होगा। इसके लिए आपको बलिदान करना पड़ेगा । निरन्तर स्वयं को बताना होगा कि उन्नत होकर आपने इस महान कार्य को करना है जो कठिन नहीं है। क्योंकि इसका स्रोत आपके नियंत्रण में हैं। हर चीज़ महानतम बलिदान आपके अहं का है जो आपको जिद्दी और कठोर हृदय बनाता है। अपना सामना करें। इस आदर्श का सृजन करना होगा व्यक्ति में करुणा, प्रेम एवं सूझ-बूझ का होना आवश्यक है। कभी दूसरों की बुराई न करें कभी नहीं । एक दूसरे की सहायता करने का प्रयत्न करें क्योंकि हमारी संख्या बहुत कम है और परस्पर लड़ने की क्षमता हममें नहीं है। हम एक महान उद्देश्य के प्रति समर्पित हैं। न तो हम गलत विचारों को अपने अन्दर स्थान दे सकते है और न ही विवाह जैसी सम्भव है। याचनामात्र से यह कार्य हो जाएगा। परन्तु इसको दृढ़ करें। अब भी यदि आप अपने व्यक्तित्व तथा नए आदर्शों को सुदृढ़ नहीं कर सकते तो फिर कब करेंगे? सही सलामत चक्रों के साथ मैं यहाँ विद्यमान हूँ। ये गलत है या ये ठीक है' कहकर स्वयं को न्यायोचित ठहराना आसान है। ये सब समाप्त कर दें। आपको वह बनना होगा। अतः पहली आवश्यकता ये हैं कि अपनी नीवों को बदलें शेक्सपीयर. टैनिसन. 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-30.txt अंक : 1 & 2 चैतन्य लहरी 29 2007 मोजार्ट, युंग जैसे बहुत से महान लोग हमारे सम्मुख हैं लेंगे मैं केवल इतना चाहती हूँ कि आसुरी शक्तियों के शिकंजे में फंसे सभी मनुष्यों को हम मुक्त कर दे, परन्तु इस कार्य के लिए हमें स्वयं को समर्पित करना सिर उन्होंने उन देशों में अपने विचारों का सृजन होगा परन्तु हमारे चित्त तो बहुत सी व्यर्थ की चीजों पर है, भौतिक पदार्थों पर! इनका कोई अन्त नहीं है शक्तियों से लड़ पाए होंगे परन्तु इन लोगों को कौन थोड़े से सन्तुष्ट हो जाएं। भौतिकता के मामले में भी आपकी देखभाल होगी। अधिक समस्या न होगी। अतः भौतिक पदार्थों के पीछे न दौड़ें। इनमें रुचि न होगा। पोलैण्ड में एक सर्वसाधारण कारखाने के मजूदूर लें। यह सब व्यर्थ है आपको प्रेम एवं स्नेहमय होना चाहिए। एक बार जब आप वास्तविकता को त्यागने लगते है तो कठोर हृदय बन जाते है।'किसी चीज़ में मेरी रुचि नहीं है । तो आप जैसे पत्थर में किसकी और इस देश में भी बहुत से लोग हैं। उनका नाम लेने मात्र से चैतन्य लहरियाँ प्रवाहित होने लगती हैं। अकेले किया, कल्पना करें, कि किस पकार वहाँ वे इन शैतानी स्वीकार करता है? आपमें से हर एक में उन जैसा बनने की योग्यता है। आप सभी को अगुआ बनना ने यह कर दिखाया। परन्तु वह आत्म-साक्षात्कारी न था। वह परमात्मा से सम्पर्क न बना सका। पूर्ण को जानने का उसके पास कोई मार्ग न था। अतः स्वयं को ठीक प्रकार से संचालित करें, ठीक प्रकार से अपना शुद्धीकरण करें। स्वयं को समर्पित कर दें। समर्पित करने के लिए अपना अहं और प्रतिअहं त्यागने के अतिरिक्त आपने कुछ नहीं करना। ये वजून उतार फेंके और अपने हृदय में स्थान बनाएं और यह कार्यान्वित हो जाएगा। इन राक्षसों का वध करना आसान है। परन्तु क्या होगा? एक या दो वर्षों में सभी कुछ कार्यान्वित हो जाएगा। उसके बाद मैं उन पर ग्जूगी। इससे पूर्व आपको तैयार हो जाना चाहिए क्योंकि एक बार जब रुचि है? आप आधार हैं और आपके बच्चे आपकी बातें करेंगे, इन दुष्ट लोगों की नहीं। आपको प्रेम एवं स्नेह के आदर्श बनना होगा, प्रभुत्व एवं अन्य प्रकार की मूर्खताओं के नहीं। आप सब प्रथम सहजयोगी होंगे। आप लोग ही जीवन की पूर्णधारणा को परिवर्तित करेंगे। नए विचारों का सृजन करना होगा। क्या वास्तव में आप लोगों को अपनी जिम्मेदारियों का ज्ञान है। भटकी हुई (Lost) आत्माओ का कभी-कभी तो आप अपने विषय में चिन्तित होते हैं. "मैं कहाँ पकड़ रहा हूँ, मेरे साथ क्या हो रहा है?" यह तो बहुत अधिक आत्म-केन्द्रित (Self-Centered) होना है, या कभी आप अन्य लोगों के विषय में चिन्तित होते हैं-उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था-उसे वैसा नहीं करना चाहिए था, उसे श्रीमाताजी के साथ नहीं बैठना चाहिए था। किसी को भी यह नहीं सोचना चाहिए कि वे मुझे अन्य लोगों से अधिक प्रेम करते हैं। मैं उन पर गर्जूगी तो वे पलट कर आप पर वार करेंगे। अंतः आप लोगों को इतना दृढ़ होना है कि उनके पलट वार से आप समाप्त न हो जाए। उन्हें नष्ट कार्य करना, उन्हें समाप्त कर देना मेरे लिए है। परन्तु तब वे अवचेतन में चले जाएंगे और पुनः आप पर आक्रमण करेंगे। अतः मैं चाहती हूँ कि वे सुगमतम 1. पक्षाघात, शक्कर रोग तथा अन्य व्याधियों के साथ जीवित रहें। वो जिन्दा रहेंगे, मरेंगे नहीं। यह बहुत ही कठिन कार्य है मैं चौबीसों घण्टे कार्य कर रही हूँ और लोगों को कर्मकाण्डों का अधिक ज्ञान कुछ होता है और कुछ को मर्यादाओं का, परन्तु कोई बात नहीं। मैं जानती हूँ कौन मुझे प्रेम करता है। अन्य लोगों से प्रेम करने वाला व्यक्ति ही मुझे सबसे अधिक प्रेम करता है। मुझे आपके कर्मकाण्डों और मर्यादाओं की कोई परवाह नहीं है। मेरे लिए ये सब व्यर्थ हैं। मुझे इनकी क्या परवाह है? मेरे लिए आप जानते हैं कि मुझे न तो नींद आती है न ही आराम मिलता है। उन सुन्दर दिनों का स्पष्ट स्वप्न में अच्छी तरह से देख सकती हूँ जब हम मिलकर एक दूसरे का और परमात्मा के आशीर्वाद का आनन्द 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-31.txt अंक : । & 2 2007 चैतन्य लहरी जाएं । इनका क्या महत्व है? अन्य लोगों से प्रेम करने वाला व्यक्ति ही वास्तव में मुझे प्रेम करता है। ये सारे कर्मकाण्ड और मर्यादाएं मैं काफ़ी देख चुकी हूँ। इनकी मुझे कोई परवाह नहीं। कोई अन्तर नहीं पड़ता कि आप मुझे सुप्रभात कहे या शुभसन्ध्या (Good Morning or Good Evening) । महत्वपूर्ण तो ये है कि आप अपने भाई बहनों से क्या कहते हैं। इस पक्ष को यदि आप नहीं देखेंगे तो कभी सहजयोग कार्यान्वित नहीं होगा-अर्थात् अपनी पत्नी. पति, भाइयों, बहनों से अपने आचरण को। ये महत्वपूर्णतम चीज है और कोई भी व्यक्ति यदि इसके विरुद्ध कार्य करता है तो वह सहजयोग से बाहर हो जाएगा। आप जानते हैं कि मैंने बहुत से तथाकथित महत्वपूर्ण कहलाने वाले लोगों को सहजयोग से बाहर फेंक दिया है, उन लोगों को, जिन्होंने ये कहकर अन्य साधकों पर प्रभुत्व जमाने का प्रयत्न किया था कि "ये अच्छा नहीं हैं। आपको अपना हाथ वहाँ नहीं डालना चाहिए। अपना पैर वहाँ मत सर्वप्रथम सच्चे और अच्छे नागरिक बने, चारित्रिक मूल्यों के महत्व को समझें क्योंकि यही आपकी नीवे हैं। स्वयं आँकलन करें। आप आत्म-साक्षात्कारी हैं। निर्णय मैं आप पर छोड़ती हूँ। आप अपनी चैतन्य-लहरियाँ खो देंगे। आप मौन भी हो सकते हैं। अन्य शक्तियाँ मौन का कारण बन सकती है। बाई आज्ञा की ओर की नकारात्मक शक्तियाँ विचार दे रही हैं। आपको स्वयं विचार करना होगा मैं नही कर सकती, मैं सोचती नही रह सकती। ये मुर्खता चलती रहती है। स्वयं से कहें कि बाई ओर की मूर्खता करने की हिम्मत तुम्हारी कैसे हुई? जिन्हें बाई ओर की समस्या है, बेहतर होगा कि वे निम्बू उपचार तथा जूता क्रिया करें। जो आक्रामक है वे 108 बार जूता मारे। ध्यान केन्द्र पर जाएं। वास्तव में स्वयं से प्रेम करें, स्वयं को स्वच्छ रखें और मध्य में रहें। अपने अहं पर कभी गर्वित न हों । 'ओ , मैं सोचता हूँ कि मेरे विचार से मैं ठीक हूँ। स्वयं को 108 जूते मारें। अत्यन्त सिरजोर होकर भी अपनी करनी पर आपको संकोच नहीं होगा। आप अत्यन्त निलर्लज्ज हो जाएंगे। डालें, आदि-आदि। परमेश्वरी माँ की संहिता (Protocol) को कौन जान सकता है? आप मुझे संहिताबद्ध नहीं कर सकते। किसी भी प्रकार से आप मुझे बाँध नही सकते। मैं असीम हूँ। मैं निर्लिप्त हूँ। ये सोचना कि अपनी मृत संहिता से आपने मुझे अपनी ओर आकर्षित कर लिया है, बिल्कुल अर्थहीन है। करुणा एवं उदारता के गुणों से परिपूर्ण जीवन्त संहिता होनी चाहिए। सुन्दर बनें, कुछ लोग आलसी हैं-जैसे पति चाहता है कि पत्नी हर समय कार्य करती रहे या पत्नी चाहती है कि पति हर समय काम करता रहे। हर आदमी दूसरे में दोष खोजता है वह सहजयोगी नहीं है। हर चीज़ को सहज में लेने वाले ही सहजयोगी हैं। कार्य न करने वाले परन्तु आप सहजयोगी हैं ऐसी चीजों पर आपको लज्जा आनी चाहिए। थोड़ा संकोच तो होना ही चाहिए। इस मामले में कुछ मर्यादाएं तो होनी ही चाहिएं। किसी से भी आप ऐसी बात किस प्रकार कह सकते हैं। किसी को भी किस प्रकार ठेस पहुँचा सकते है? आज्ञा और अधिक धुँधली होती चली जाती है। बहुत से लोग ऐसे हैं जब कोई दिखावा करता है, गुरु बनने का प्रयत्न करता है और अन्य लौगों को पीछे ढकेलने का प्रयत्न करता है, मैं जान जाती हैँ "ओ मैं. सहजयोग जानता हूँ। मैं महान सहजयोगी हूँ। तब मैं उनमें अह के सींग पैदा कर देती हूँ। अपने सिर से निकलते हुए सीगों को आप महसूस कर सकते हैं इन्हें नीचे दबा दें। यह अटकन (Sticking) बिन्दु है। गुख्बारा यद्यपि व्यक्ति का पतन हो जाएगा। मैं उसे सहजयोग से बाहर कर दूंगी। किसलिए आप सहजयोग में आए थे? आप साधक है। युग-युगान्तरों से आप खोज रहे है, क्या आप अपना जीवन बर्बाद कर देंगे? क्यों न अब इसे कार्यान्वित कर लें? हर प्रकार से चुस्त हो पतला हो जाता है फिर भी बना रहता है। आप लोग बौद्ध हैं। बौद्ध वो हैं जो आत्मसाक्षात्कारी हैं, जो ज्योतित 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-32.txt अंक : 1& 2 -2007 3। चैतन्य लहरी ऐसा करना बहुत आवश्यक है। अपना ऑकलन इससे ने करें के आप स्वयं अपने बारे में क्या सोचते हैं। ये देखें कि माँ श्रीमाताजी आपके बारे में क्या सोचती हैं। अपनी माँ को आप कितना आनन्द दे रहे हैं। आप हैं, जिन्हें ज्ञान है। आप लोग ज्योतिर्मय है । आपमें अहंकार किस प्रकार हो सकता है? अहं और प्रतिअह नयानक शत्रु हैं। प्रतिअहं के शिकार लोगों को मैने देखा है। इसे यदि आप नीचे को दबाएगे तो यह अह यदि उन्हें नाराज करेंगे तो क्या लाभ होगा। की और चला जाएगा। इसी कारण से पश्चिम में हमने अह की बहुत बड़ी समस्या देखी है। अहं को जो भी अच्छा लगता है हम उसी ओर चल पडते हैं। यही कारण है कि ये गुरु इन लोगों को पागल बना देते हैं। कहते है कि तुम उड़ सकते हो, और आप उनके पीछे चले जाते हैं। कोई कहता है कि तुम बहुत शक्तिशाली बन सकते हो और आप उसके पीछे चल पड़ते है। आपने देखा होगा कि विश्व में, वास्तव में यहुत कम सच्चे साधक है। साधको को भी समझना होगा कि आत्मा के अतिरिक्त किसी अन्य चीज़ से वे खुश नहीं हो सकते साधक की ये परीक्षा है और जो साधक नहीं हैं वो साधकों को कभी नहीं समझ सकते। किसी भी ऐसे व्यक्ति के साथ रहना जो साधक नहीं है बहुत कठिन कार्य है क्योंकि आप उनकी बुराईयाँ ग्रहण कर लेते हैं और कष्ट उठाते है ऐसा व्यक्ति यदि अहंकारी है तो आपकी आज्ञा पकड़ जाती हैं। परन्तु उसे कुछ नहीं होता। वो बड़े मजे में रहता है। उसका अहं बरकरार है और आपको सता रहा है। परन्तु कोई यदि साधक है तो वह अच्छा व्यक्ति है क्योंकि ऐसे कोई कहता है कि आप महान गुरु बन जाएंगे और आप उस ओर चल पड़ते हैं। परन्तु ये कहता कि आत्मा बनो, पूर्ण से तादात्म्य पा लो। मैं जब कहती हूँ कि आप आत्म-साक्षात्कारी है, आप कोई नहीं महान है, आप सन्त हैं तो इससे भी आपके अहं का गुब्बारा अधिक फूलने लगता है। मैं तो आपके अन्दर वह चेतना जगाने के लिए ऐसा कहती हैँ । आपके सभी आदर्श अहं से परिपूर्ण हैं हाथ में छड़ी लिए हुए चर्चिल को वहाँ खड़े देखो, पूरा शरीर ही अहंसम प्रतीत होता है। हमें नए आदर्श बनाने होंगे। दूसरे अहंकारी-हिटलर से उसका मिलन (चर्चिल का) ठीक था, मिलकर अपने सिर फोड़ने के लिए उनका मिलन व्यक्ति को आप आत्म-साक्षात्कार दे सकते है और उसके साथ अपनी चैतन्य चेतना भी बाँट सकते हैं। परन्तु जो साधक नहीं है उसके साथ रहना दुष्कर कार्य है। फल को आप फूल नहीं बना सकते । जहाँ तक आपका सम्बन्ध है आप फल बन चुके है। फल बनाने के लिए तो आपके पास फूल का होना आवश्यक है। जो लोग, मेरे पिता, मेरी माँ, मेरा भाई, मेरा बेटा आदि समस्याओं में उलझे हुए है उन्हें सीख लेना चाहिए कि इन समस्याओं में उलझे नहीं रहना। जो नहीं हैं उनसे बचना चाहिए और उन्हें भूल जाना ठीक था । परन्तु अब हमें नए आदर्शों की आवश्यकता है। भूतकाल समाप्त हो गया है। बाढ़ की स्थिति में पार जाने के लिए आपको नावों की जरूरत पड़ती है परन्तु तट पर पहुँचने के पश्चात् आप नावें अपने साथ नहीं लिए घूमते इन्हें पीछे छोड़ देते हैं। ये नावें अब हमारे लिए किसी काम की नहीं। उनका काम हो फूल चाहिए। उन्हें सुधारने का जितना अधिक प्रयत्न आप करेंगे उतना ही उलझ जाएंगे। वो कभी नही सुधर सकते। मैं तुम्हें लम्बी रस्सी देती हूँ। वो यदि साधक नहीं हैं तो कभी बनेंगे भी नहीं, उनके अन्दर आप चुका है। अतः अहं को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए। हमें समझ लेना चाहिए कि किसी भी प्रकार से हम कुछ विशेष नहीं हैं, ऐसा समझकर आप केवल अपने अह को बढ़ावा देते हैं। आपको आदर्श होना होगा. मध्य में आना होगा और सहजयोगी बनना होगा। साधना उत्पन्न नहीं कर सकते। हो सकता है कि उनके पास भौतिक पदार्थों का प्राचुर्य हो जाए, परन्तु कभी वे साधक नहीं बन सकते। इसलिए आप उन्हें भूल जाएं। उनके कारण आपको कष्ट उठाना पड़ 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-33.txt चैतन्य लहरी अंक : 1 & 2 -2007 32 सकता है। क्योंकि यदि उनके चक्र पकड़ेंगे तो आपको कष्ट होगा उनकी नाभि यदि पकड़ती है तो आपको कष्ट होता है। ऐसे व्यक्ति का परिवर्तन कठिन है। अपनी शक्ति बर्बाद न करें। ईसा मसीह ने कहा है, "कि अपने मोती सूअरों के आगे न डालें (Do not के कुछ करतरे पीछे रह जाते हैं! जो कतरे मक्खन के उस बड़े पेड़े से नहीं चिपकते उन्हें छाछ के साथ फेंक दिया जाता है। अतः जो लोग सहजयोग में नहीं आते या जिनमें इसकी योग्यता नहीं हैं, उन्हें बाहर फेंक दिया जाएगा। यह सत्य है, परन्तु आपमें निरपेक्षिता होनी चाहिए अर्थात् आपको ऐसे लोगों से लिप्त नहीं होना चाहिए। cast your pearls before swine) I foi a साधक बनने के लिए आप विवश नहीं कर सकते। विश्व में लाखों साधक हैं। अतः ऐसे सम्बन्धों को भूल जाए। वो चाहे आपको पागल, सनकी या कुछ और करें। परमात्मा आप पर कृपा श्रीमाताजी ने कहा :- एक अन्य प्रश्न का उत्तर देते हुए कहे, परन्तु एक चीज वो अवश्य समझ जाएंगे कि आप उनसे कहीं बेहतर जीवन गुजार रहे है। आप उनसे कहीं अधिक शान्त, आशीर्वादित, धार्मिक तथा विवेकशील हैं, परन्तु आपकी जीवन शैली वे स्वीकार नहीं करेंगे। ये मानते हुए उनसे व्यवहार करें कि वे कभी परिवर्तित नहीं हो सकते। मानसिक रूप से वे यदि परिवर्तित हो भी जाएं फिर भी उनमें वह गहन प्रश्न ये है कि मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि मस्तिष्क सीमित है अर्थात् मस्तिष्क द्वारा किया गया सभी कुछ सीमित है। जो भी कार्य हम करते हैं वह केवल मस्तिष्क के माध्यम से करते हैं और इस मस्तिष्क में सीमित ऊर्जा है। अतः ये आपको असीमित तक नहीं ले जा सकता। तो कुछ तो ऐसा होना चाहिए जो मस्तिष्क के नियंत्रण से परे हो, केवल वही नैसर्गिक (Spontaneous) चीज है। अब भ्रम को देखें। परन्तु उनके प्रश्नों का उत्तर मानसिक स्तर पर भी दिया जा इच्छा नहीं हो सकती क्योंकि साधक के लिए तो साधना से अधिक महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं है। प्रश्न :उन लोगों का क्या है जो भले हैं, साधक नहीं, सकता है। परमेश्वरी और मानवीय में मूल अन्तर क्या है? सर्व-साधारण मानव को सहजयोग एवं परमेश्वर के विषय में किस प्रकार कायल किया जाए? परन्तु जिन्होंने आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने के बाद भी सहजयोग के महत्व को नहीं समझा? श्रीमाताजी : ऐसे लोग परिसंचरण (Circulation) से बाहर हो जाएंगे। स्वीकार करने की अपेक्षा सहजयोग अस्वीकार अधिक करता है। निर्णय चल रहा है। ऐसे जिस प्रकार आप उन पर संदेह करते है वो भी आप पर सन्देह करते हैं। सहज उत्तर ये है कि जिस प्रकार अपने लोग साक्षात्कार से बाहर हो जाएंगे ऐसे लोगों से मस्तिष्क से आप उन पर चिल्लाते हैं, चीखते हैं, उन पर कूदते हैं आदि ये सब कार्य सीमित मस्तिष्क से किया जा सकता है। इन्हें करने वाला कोई मानव है, कोई मानव, परमात्मा नहीं। परन्तु अपने मस्तिष्क से आप कुण्डलिनी को धड़का नहीं सकते। परमात्मा ने, यदि उन्हें कोई कार्य करना हो तो यह असामान्य होना आप साक्षात्कार के विषय में बात नहीं कर सकते और न ही उन्हें बन्धन आदि दे सकते हैं। वे ऐसे लोग हैं, जिनमें हो सकता है, आपकी रुचि रही हो, परन्तु अन्यथा वे खो चुके हैं। उदाहरण के रूप में दही का मंथन करके मक्खन निकलता है और बाकी सब छाछ रह जाती है। इस मक्खन को अलग करने के लिए चाहिए जिसे मानव न कर सकें। कुण्डलिनी को केवल परमात्मा ही धड़का सकते हैं। यह जीवन्त शक्ति है। मानव केवल मृत चीजों की रचना कर सकता है। मृत कार्य कर सकता है। वह किसी जीवन्त शक्ति को छाछ में मक्खन का एक बड़ा सा पेड़ा डाला जाता है और फिर मंथन करने पर छाछ के अन्दर का सारा मक्खन डाले गए मक्खन के पेड़े से चिपककर उसका आकार बहुत बड़ा कर देता है। परन्तु फिर भी मक्खन 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-34.txt अंक : 1& 2 -2007 चैतन्य लहरी 33 चैतन्य-लहरियों को महसूस नहीं कर सकते। आप उनसे चैतन्य चेतना की बात नहीं कर सकते। परन्तु स्वयं अपनी आँखों से इसे देख सकते हैं । आपके सिर से बो शीतल-लहरियाँ नहीं निकाल सकते। यह गतिशील नहीं कर सकता। गुरु लोग यदि मस्तिष्क के सीमित कार्य करते हैं तो उनके पास जाने की क्या बिना भी आप चीख सकते हैं. आवश्यकता है? चिल्ला सकते हैं, उछल-कूद कर सकते है। परन्तु कुण्डलिनी को नहीं धड़का सकते। परमात्मा जो कार्य करते हैं वो और नहीं कर सकते। अपने हाथों से आप शीतल लहरियाँ प्रवाहित नहीं कर सकते। तो यदि आप मस्तिष्क से परे जाते हैं तो ये कुछ विशेष बात हो जाती है, बिल्कुल भिन्न। सीमित और असीमित दो भिन्न आयाम हैं। ये आपकी माँ की माया का रहस्य है कि मैं असीमित में रहती हूँ और असीमित कार्य करती हूँ। इसी प्रकार से मैं माया का सृजन करती हूँ। केवल अपनी चैतन्य-चेतना का ज्ञान पाकर ही आप मुझे जान सकते हैं। किसी के सिर पर यदि आप अपना हाथ रखेंगे तो कोई आपको डावाडोल नहीं कर सकता। अतः परमेश्वरी शक्ति वो चीज़ है जिसे मानव अपने मस्तिष्क के माध्यम से नहीं कर सकता। मैं पुनः कह गुरु असाधारण कार्य है सीमित से भी मैं असीमित कार्य कर सकती हूँ। परमेश्वरी माँ का ये एक अन्य पक्ष है। इसी प्रकार से आप लोग सीमित हैं परन्तु अब आपने असीमित में छलांग लगा ली है। अतः अब आप ये सारे कार्य कर सकते हैं। इसी कारण से आप सन्त है। असीमित में अब जिस प्रकार आप कार्य कर सकते हैं वैसे आत्म-साक्षात्कार से पूर्व न कर पाते। आपने ऐसा कार्य करना आरम्भ कर दिया है जिसे आप पहले न कर सकते थे । अर्थात् आप कुण्डलिनी उठाने लगे हैं और ये लोग, ये गुरु, तथाकथित, चीख -चिल्ला और उछल-कूद कर सकते हैं, ये सभी कार्य कर सकते हैं परन्तु लोगों की कुण्डलिनी नहीं उठा सकते। शेष सभी चीजें, हम कह सकते हैं, मनमानी हैं तथा व्यक्तिपरंक (Subjective)? तब आप रोग-मुक्त हो जाएंगे और आपका मानसिक दृष्टिकोण परिवर्तित हो रही हूँ कि आप अपनी कुण्डलिनी को नहीं धड़का सकते। यह जीवन्त शक्ति है और मनुष्य जीवन का सृजन नहीं कर सकता। कुण्डलिनी जब ऊपर को जाती है तो मानव पुतलियों को फैला नहीं सकता। सर्व साधारण मनुष्य और तथा कथित गुरु जाएगा। (निर्मला योग-1983 ) ००० छ 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-35.txt कनाडा से एक पत्र प्रिय भाइयों और बहनों, से आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य हमें प्राप्त है। वे इतनी अद्भुत हैं! कुछ वर्ष पूर्व एक ऐसा समय था जब मेरा और बहुत से अन्य लोगों का ये विश्वास था कि विश्व के वर्तमान सामाजिक आर्थि क और परमेश्वरी माँ के विषय में एक अल्यन्त राजनैतिक वातावरण में निश्चित रूप से हम नष्ट सुन्दर बात ये है कि उन्होंने हमें माया के जाल से ऊपर उठकर सत्य और वास्तविकता का अनुभव हो जाएंगे। बहुत थोड़े से लोग मानते थे कि इस परिस्थिति से उबर जाएंगे क्योंकि ऐसा प्रतीत होता था कि हम अपरिवर्तनीय विश्वव्यापी संकट के प्राप्त करने की योग्यता प्रदान की है, उस प्रेम एवं आशीर्वाद के अनुभव की योग्यता जो पृथ्वी पर स्वर्ग है। यद्यपि यह अपने-आप में आश्चर्यजनक है कि हमने अभी आरम्भ ही किया है फिर भी हमारे सामने इतनी सम्भावनाएं हैं कि उनके विषय में सोचा भी नहीं जा सकता। माध्यम हैं। ये वो दिन थे जब तक मैं ये न जान पाया था कि मैं एक साधक हूँ (गुरु खरीदने वाला नहीं, ज्ञान-साधक)। ये उदासी, निराशा तथा संशय से परिपूर्ण दिन थे, मुझे लगा मानो किसी शाश्वत अज्ञात शक्ति ने मुझे उद्यान पथ से धकेल दिया हो पु. आज हम पूर्ण आनन्द, श्रद्धा एवं अधिकार और, मैं ये भी न जानता था कि किस ओर जाऊ । पूर्वक कह सकते है कि हाँ, आशा है, अन्तिम छोर पर तीव्र प्रकाश है। स्थितियाँ परिवर्तित के सुरंग निरन्तर मैं सामूहिकता से प्रार्थना करता रहा कि मेरी सहायता करो और मुझे मार्ग दिखलाओ परन्तु एक विचार हमेशा मेरे मस्तिष्क में बना रहा। जो भी हो, मैं ये जानता था कि जीवन का अन्त होने से पूर्व मैं इस सारे रहस्य को जान लूँगा। होंगी और सुधरेंगी। हम सब पुनः एक हो जाएंगे तथा एक बार फिर पूर्ण शान्ति एवं प्रेम स्थापित हो जाएगा अपनी परमेश्वरी माँ की कृपा तथा उत्कृष्ट दीप्ति में शीघ्र ही हम लोग उन्नत होंगे । यह सब 1971/78 के बीच हुआ। अब मुझे फिर यह विश्व कभी पीछे मुड़कर नहीं समझ आता है कि मेरी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया देखेगा । जा रहा था। मैं ये भी जानता हूँ कि ये मेरे व्यक्तिगत विकास के वर्ष नहीं थे परन्तु ये सहजयोग के विकास के वर्ष थे तथा सारी अधार्मिकता के वापिसी की ओर मुड़ने का समय था। हममें से अधिकतर ने हमारी परम-पावनी माँ के इस रहस्यमय -प्रेम पूर्वक आपकी बहन Liallyn Musa Calgary Alberta, Canada (निर्मला योग) 1983 पथ-प्रदर्शन का अनुभव किया है और इस प्रकार ० 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-36.txt सहजयोग में अगुआ -2 अपनी वर्तमान अवस्था में कभी-कभी सहजयोग बहुत बड़ी नर्सरी की तरह से प्रतीत होता है और ये दृश्य अत्यन्त सुखकर है। सहजयोगियों का 'परमेश्वरी बाल विहार' में लोगों के नेतृत्व करने का अधिकार. परमात्मा के प्रति आज्ञाकारिता की सूझ-बूझ प्राप्त करने के बाद प्राप्त होता है। संघ (Divine परमात्मा का आज्ञा पालन अर्थात् आपके आदेशों का पालन होगा। (Thy Will Be Done) Kindergarten) है जिसमें सर्वशक्तिमान प्रेम से सुरक्षित हम आध्यात्मिक परिपक्वता में उन्नत होते अर्थात हे श्रीमाताजी, केवल आप ही कर्ता हैं आप ही हैं। बच्चे जन्म लेते हैं, बड़े होते है और बड़े बच्चे अपने छोटे-भाई-बहनों की देखभाल करने में माँ की सहायता करने लगते हैं। परिपक्व होकर बच्चे, बचपन के गुणों सहजयोग के सच्चे अगुआ कौन हैं? को महसूस करते हैं, वो जानते हैं कि उन्होंने एक अन्य व्यस्क उबाऊ विश्व का सृजन नहीं करना, ऐसे विश्व का जो मूर्खता की सीमा तक गम्भीर है। पागलपन की सीमा तक तर्कसंगत है, एक ऐसा विश्व जिसमे 'व्यस्क शब्द गन्दगी की मोहर (Stamp) बन गया है :- व्यस्क चलचित्र. व्यस्क पुस्तकें...एक ऐसा विश्व जिसमें अगुआगण इतने पापी हैं कि उनके कारण पूर हमारी आज्ञाकारिता की गहनता कितनी है। श्रीमाताजी देश अभिशप्त हैं। एस परिदृश्य में हम सहजयोगी बच्चे साक्षात् श्री गोपाल-कृष्ण की विशेष कृपा का आनन्द उठा रहे है। ये ऐसा युग हैं जिसमें सन्त (तथाकथित) अनिष्टकर हो गए हैं परमात्मा के दिव्याशीष को प्राप्त करके हम पृथ्वी पर विद्यमान इन हैं जो सभी जानती हैं। परन्तु वे महामाया है। तथाकथित अधिकारियों का हल्के से मजाक उड़ा सकते हैं। हँसने का अधिकार पा लेना बहुत अच्छी का पावन कार्य मेरे माध्यम से हो। आज्ञापालन अर्थात् महान बनना आखिरकार हमारे आदर्श कौन हैं, श्री गणेश जो आदिबन्धु हैं अर्थात् योगी के आदि मित्र, माँ की आज्ञा-पालन में जिनका सिर काट दिया गया क्योंकि उन्होंने साक्षातु भगवान शिव को भी घर के अन्दर प्रवेश करने से रोका। ईसा-मसीह भी कम आज्ञाकारी नहीं थे उन्हें भी क्रूसारोपित होना पड़ा। आइए अपने अन्दर देखें कि श्रीमाताजी के प्रति 1 के अतिरिक्त मैं कितने लोगों के विषय में सोचता हूँ, कितनों पर विश्वास करता हूँ? मेरे पास कितने स्पष्टीकरण, सफाईयाँ और तर्क हैं या मेरे पास कितने परामर्श हैं जो मैं, अपनी पूर्ण-मूर्खता में, उनको सुझाता कुछ वास्तव में मेरी इच्छा अपने कान खींचने की होती है । केवल इसलिए कि श्रीमाताजी क्योंकि महामाया रूप में हैं, हमारी रोजुमर्रा की अवहेलनाएं क्षम्य हैं क्योंकि वे दिव्य धैर्य की प्रतिमूर्ति हैं, क्या वे इसलिए हमें सुधारती चली जाएं और हमारा पथ प्रदर्शन करती चली जाएं? परन्तु हमें सीखना चाहिए. हमें तेज़़ी से सीखना चाहिए। इस दिशा में हमें एक संकेत शब्द हमेशा याद रखना चाहिए। बात हैं। फिर भी परिपक्व बच्चों को इस बात का ज्ञान होता है कि किस पर हँसा जाए और किसकी आज्ञा मानी जाए। खेलने के समय सहन में दौड़ना ठीक है। परन्तु कक्ष में वापिस आकर अध्यापक के आने पर पूरी कक्षा सीधी खड़ी हो जाती है । श्रीमाताजी की उपस्थिति को महसूस करके हमारी कुण्डलिनी भी ऐसा ही करती है। जिन लोगों ने सहजयोग में अल्डुअसहक्सले के उपन्यास (Island) टापू का प्रथम शब्द है 'चित्त' (Attention) और यही शब्द अगुआ बनना होता है उनका भी यहीं मूल गुण है उन्हें महावतार श्रीमाताजी निर्मला देवी के प्रति पूर्णतः एवं अटल रूप से आज्ञाकारी होना पड़ता है। इस पुस्तक को इसकी सर्वोत्तम पंक्ति प्रदान करता है। चित्त (Attention) का विशेष महत्व है। अन्दर प्रक्षेपित सत्तयुग 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-37.txt अंक : 1 & 2 -2007 36 चैतन्य लहरी आज्ञाकारी होना होता है। ये बात वह समझ चुका है होने पर चित्त हमें ये देखने का सामर्थ्य प्रदान करता हैं कि अहं किस प्रकार की विद्रोही चालाकियाँ करता कि श्रीमाताजी ही उसका पथ प्रदर्शन कर रही हैं और सत्य की ओर जाने वाली सुरक्षित सड़क पर चला रही हैं और वह उन्हें ऐसा करने देता है। इसी कारण से, सम्भवतः, उसे जटिलतम प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा :- "मैं किस प्रकार श्रीमाताजी निर्मला देवी है और किस प्रकार प्रतिअहं हमारी चेतना को बन्धनों के जाल में फँसाकर परमात्मा की इच्छा से अलग करता है। पूर्ण-चित्त के बिना श्रीमाताजी के प्रति पूर्ण आज्ञाकारिता सम्भव नहीं है। आज्ञाकारिता की इतनी सम्मानमय संवेदना विकसित किए बिना हम अन्य लोगों से आज्ञाकारिता की आशा कैसे कर सकते हैं। को प्रसन्न कर सकता हूँ?" श्रीमाताजी के प्रति हमारी आज्ञाकारिता, श्री गणेश एवं ईसामसीह से हमारा भाईचारा स्थापित करती है। उनके प्रति आज्ञाकारी होना सर्वश्रेष्ठ पुण्य है। %2: बनने से पूर्व हमें शिष्य बनना होगा। इन स्पष्ट गुरु बातों के अतिरिक्त देवी-देवता और गण निरन्तर हमें देख रहे हैं कि श्रीमाताजी के प्रति हम कहाँ तक आज्ञाकारी हैं। यदि उन्हें सन्तुष्ट नहीं कर सकते या इन मानदण्डों के अनुरूप नहीं हैं तो हम आध्यात्मिक क्षेत्र में ऊँचाई पर नहीं पहुँच सकते और न ही वरिष्ठ सहजयोगी की बुलन्दियों तक उन्नत हो सकते हैं । दुर्भाग्य की बात है कि आज भी कभी-कभी तो पुराने सहजयोगी भी देवी के आदेशों को तुरन्त नहीं मान पाते और आदेशों के अनुरूप कार्य करने से पूर्व हिचकिचाते हैं। परिणाम स्वरूप उनके लिए बनाई गई पूरी दिव्य परियोजना डावाँडोल हो जाती है और निश्चित रूप से हानि उन्हीं की होती है। बच्चा होते हुए भी, बड़ा, विनम्र होते भी गरिमामय, साधारण होते हुए भी सूक्ष्म, सहजयोगी अगुआ को सर्वोपरि अपनी परमेश्वरी माँ के प्रति %23 उनके प्रति आज्ञाकारिता उत्क्रान्ति प्रक्रिया को बढ़ावा देना है। उनके प्रति आज्ञाकारिता समर्पण का %2: वास्तवीकरण है। उनके प्रति आज्ञाकारिता परमपिता परमात्मा %2: की ओर जाने का मार्ग है। उनके प्रति आज्ञाकारिता पावन विवेक का चिन्ह %2: है। उन परमेश्वरी, पावन सम्राज्ञी के सम्मुख हम %2: बारम्बार नतमस्तक है। हुए जय श्री माताजी एक शिष्य (निर्मला योग 1983) 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-38.txt परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन ता दिल्ली 18, अगस्त 1979 जल में सूर्य के प्रतिबिम्ब की तरह से है । यद्यपि सूर्य को जल में देखा जा सकता है। फिर भी सूर्य जल से बहुत दूर आकाश में है। इसी प्रकार आत्मा भी देखने वाले की दृष्टि के अनुरूप है। यह हर चीज से परे है। और कुछ भी इसे सीमाबद्ध नहीं कर सकता। परन्तु प्रतिबिम्ब को स्पष्ट दिखाने वाले दर्पण का भी स्वच्छ होना आवश्यक है। दर्पण यदि स्वच्छ न होगा या दर्पण के स्थान पर यदि कोई पत्थर हो तो इसमें सूर्य का प्रतिबिम्ब न देखा जा सकेगा। बिल्कुल ऐसे ही। व्यक्ति यदि दर्पण सम इतना स्वच्छ नही हुआ है कि अचानक आने के कई कारण हैं। सहजयोग में अचानक आ जाने का विशेष महत्व होता है अपने जीवन में अचानक घटित हुई बहुत सी घटनाएं हमने देखी होंगी। हमारे लिए इनका कोई महत्व नहीं है। बौद्धिक स्तर पर यदि हम देखने का प्रयास करें तो ये नहीं समझ सकते कि हमारे जीवन में कोई घटना विशेष क्यों घटित हुई। मानव का यही तरीका है कि वह हर चीज़ को तार्किकता की दृष्टि से देखना चाहता है। उसका ऐसा करना ठीक भी है क्योंकि अभी तक उसकी चेतना जागृत नहीं हुई है। सीमित चेतना से, अपनी बुद्धि के माध्यम से जब मानव हर चीज का प्रमाण खोज रहा है तो ऐसे में तर्कसंगति से बाहर जाकर कोई और विधि अपनाना उसके लिए कठिन वह अपने अन्दर परमात्मा का प्रतिबिम्ब देख सके तो ऐसा व्यक्ति परेशान दिखाई पड़ता है। बहते हुए पानी पर यद्यपि सूर्य भिन्न रूपों में प्रतिबिम्बित होता है परन्तु वास्तव में अपने स्थान पर वह अडोल है। केवल उसका प्रतिबिम्ब ही अपने आकार बदलता है। इसी हैं। आपने परमात्मा, आत्मा और आदिशक्ति आदि के विषय में बहुत कुछ सुना है। इनके विषय में आपने पुस्तकों में भी पढ़ा है। मानव प्रायः आत्मा और परमात्मा के बारे में बात करता है। बहुत से अवतरणों ने बताया कि आप पहले आत्मा का अनुभव कर लें क्योंकि आत्मा को जाने बिना आप परमात्मा तक नहीं प्रकार से पापी और धूर्त व्यक्ति में या उन लोगों में जिनके हृदय इच्छाओं और आकांक्षाओं से परिपूर्ण है उनमें या तो आत्मा प्रतिबिम्बित ही नहीं होती या क्षण भर के लिए प्रतिबिम्बित होकर लुप्त हो जाती है। अतः ये आवश्यक हो जाता है कि ये हमारे सब अवयव-शरीर, मन, बुद्धि, अहंकार आदि दर्पण सम बना दिए जाएं, इन्हें दर्पण की तरह से स्वच्छ कर दिया जाए। पहुँच सकते. जैसे आँखों के बिना आप किसी चीज़ का रंग नहीं पहचान सकते। इसी प्रकार से आत्मा से योग प्राप्त किए बिना परमात्मा को नहीं पा सकते। ऐसा किस प्रकार होगा। परमात्मा ने हमारे बुद्धि से परमात्मा को नहीं समझा जा सकता। केवल अन्दर इसकी पूर्ण व्यवस्था की हुई है । अमीबा से आत्मा के माध्यम से ही परमात्मा को समझा जा सकता है। अब तक के सभी सन्तों ने बताया है कि, "सावधानी पूर्वक धर्मपालन करें, अपनी आत्मा को खोजें और अपने अन्दर निवास करने वाली आत्मा को समझें मानव अवस्था तक हमें विकसित करने के लिए बहुत से अवतरणों ने कार्य किया है और हमें वर्तमान अवस्था तक पहुँचाया है। आज हम चुस्त मानव की तरह से घूम रहे हैं। हम लोग चुस्त तो हैं परन्तु ज्योतित नहीं हैं। चक्षुहीन व्यक्ति भी बहुत चुस्त होता है। परन्तु आँखों वाला व्यक्ति बड़ी आसानी से सब कुछ देख लेता है। चक्षुहीन व्यक्ति छोटी-छोटी चीज़ों को समझता है। वह हर स्थान की बारीकियों को जानता है। परन्तु आत्मा क्या है? हमारे अन्त स्थित होकर ये कौन सा कार्य करती है तथा परमात्मा से ये किस प्रकार सम्बन्धित है? कहा जाता है कि आत्मा हमारे हृदय में परमात्मा का प्रतिबिम्ब है। आत्मा का प्रतिबिम्ब मे 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-39.txt अंक : 1 & 2 -2007 38 चैतन्य लहरी व्यक्ति सुगमता से अपने दोषों को स्वीकार कर लेता है क्योंकि सत्य प्रकाश में वह उन्हें देख पाता है। मान दृष्टिवान व्यक्ति केवल उन्हीं चीजों को देखता है जिनके बारे में वह जानना चाहता है और जो देखने के योग्य होती है । हमारे अन्तःस्थित कुण्डलिनी शक्ति को परमात्मा ने स्थापित किया है और 'उसकी (परमात्मा) इच्छा ने इसका सृजन किया है। कुण्डलिनी शक्ति हमारे दर्पण का सृजन करती है, इसे विकसित एवं लो इस साड़ी पर कोई दाग़ है, परन्तु अंधेरा है। कोई यदि इसके विषय में कहे भी सही तो हम उसकी बात से सहमत न होंगे। हो सकता है उससे नाराज़ भी हो जाएं। परन्तु इसी को यदि प्रकाश में देखेंगे तो हैरान हो जाएंगे कि इतना बड़ा दाग़ है और हमने इसे देखा तक नहीं! तब हमें बुरा नहीं लगेगा और तुरन्त ये दाग स्वच्छ करती है तथा आत्मा का प्रतिबिम्ब अपने अन्दर स्वीकार करने की क्षमता इसे प्रदान करती है। सहजयोग में, आप जानते हैं, कुण्डलिनी जागृति साफ करना चाहेंगे। मान लो किसी चक्र पर पकड़ है, कह सकते है आज्ञा पर, तो आप स्वयं इसके विषय में समझ जाएंगे। आपको दर्द हो जाएगा या ऐसा ही कोई अहसास/अन्तर्प्रकाश में आप समझ जाएंगे कि यहाँ पर आपको कुछ समस्या है जिसे आपने स्वच्छ करना है। परन्तु यदि आपमें संवेदना नहीं है और आप समस्या को नहीं महसूस कर सकते, तो हो सकता है कि पागल होकर आप पागलखाने पहुँच जाएं, बिना ये जाने कि आपका फलाँ-फलाँ चक्र पकड़ा हुआ था और इस प्रकार की गंदगी आपमें प्रवेश कर गई थी । इसी प्रकार से आप किसी रोग से संक्रमित हो जाएं तो भी आपको पता नहीं चलता क्योंकि आप तो अंधेरे में बैठे हुए हैं। अंधेरे में आपको पता नहीं चलता कि है या किसी बम्ब पर। अत्यन्त सहज एवं नैसर्गिक (Spontaneous) है । परन्तु सहजयोगियों को समझ लेना चाहिए कि वे सहजयोग में मुख्यतः अपने दर्पण को साफ करने के लिए, स्वच्छ करने के लिए, पूर्व कर्मों के पापों को धोने के लिए और युग युगान्तरों से उनके अन्दर जमी हुई मैल को साफ करके स्वच्छ होने के लिए आए हैं। वे यहाँ पाप और गन्दगी एकत्र करने के लिए नहीं आए, पावन होने के लिए आए हैं। बहुत से सहजयोगी ये बात जानते हैं कि कुण्डलिनी का चैतन्य जब चक्रों में से प्रवाहित होता है तो उनके चक्र जागृत है। चक्र प्रकाशित होने पर आप उनकी स्थिति को जान जाते हैं, अपनी अंगुलियों के सिरों पर ही आप इसे जान जाते हैं। केवल इसी को प्राप्त हैं आप किसी साँप पर बैठे हुए करना है। जो ज्ञान अब तक आपको प्राप्त था वह आपके अन्दर जब प्रकाश आता है तब आपको पता ज्योतिर्मय नहीं था, इसमें प्रकाश न था । अब प्रकाश के कारण आप जान सकते हैं कि कौन से चक्रों में समस्या है और उन चक्रों की समस्याओं को दूर करने के तरीके भी हैं यह कार्य किस प्रकार करना है, सहजयोग में ये भी सिखाया जाता है। चलता है कि आप कौन सी विपदाओं का सामना कर रहे हैं। अतः ज्ञान की पहली झलक आपको अपने बारे में जानकर होती है। आप अपनी समस्याओं को जान जाते हैं। सहजयोग में आत्म-साक्षात्कार पाने के तुरन्त प्रकाश के बिना आप गंदगी नहीं देख सकते। अंधेरे में ये दिखाई नहीं देती। आपके अन्दर जब प्रकाश होगा केवल तभी आप इसे देख पाएंगे। अत: पहला उद्देश्य यह प्रकाश प्राप्त करना है-जैसे कहा पश्चात् व्यक्ति को अपने दोष दिखाई देने लगते है और मानव स्वभाव के अनुरूप वह सहजयोग से दूर भागने लगता है। ज्योंही उसे अपने दोष दिखाई देने लगते हैं, वह घबरा जाता है। उसे विश्वास नहीं होता कि उसके अन्दर इतने दोष हैं। वह डर जाता है और संदेह करने लगता है। आपने देखा है कि हजारों लोग जाता है, सत्य का ज्ञान प्राप्त करना है। सत्य का ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् उस सत्य के प्रकाश में हम अपने अन्दर के गुणों को जान पाते हैं। सहजयोग में 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-40.txt अंक :1 & 2 -2007 39 चैतन्य लहरी सहजयोग में ये आपको आत्म-साक्षात्कार देकर बहुत प्रसन्न होती है। तब केवल दो सम्भावनाएं रह जाती आत्म-साक्षात्कार लेते हैं परन्तु लौटकर कभी सहजयोग में नहीं आते। इसका क्या कारण है? सौ लोगों को यदि आत्म-साक्षात्कार मिलता है तो केवल दस लोग वापिस आते हैं। ऐसा हमेशा होता है इसी कारण से सहजयोग प्रसार की गति बहुत धीमी है। कोई बात नहीं। कारण ये है कि मनुष्य स्वयं को इस प्रकार स्वीकार कर चुका है कि वह अपने दोषों के विषय में जानना ही नहीं चाहत्ता और जब उसे दोष दिखाई देने लगते हैं तो वह दूर भागने लगता है। एक जीवन से दूसरे जीवन तक दोषों का भार ढोते रहने से बेहतर ये होगा कि अपने दोषों को समझे और उन्हें सुधार लें। लोग नहीं जानते कि कैसा समय आ गया है। ये अन्तिम अवसर है इसके बाद आपको कोई अवसर नहीं मिलेगा। बाइबल में इसे अन्तिम निर्णय कहा गया है। आपका अन्तिम निर्णय सहजयोग में है। अब आपने यह फैसला करना है कि इसे किस प्रकार करेंगे। आपके अन्दर जब प्रकाश आता है तो आप हैं। या तो आप अपने अन्दर के साक्षात्कार को पहचान लें, इसकी महानता में उन्नत हो और इसकी गहराई में चले जाएं और या इसे पूरी तरह से छोड़ दें। कोई तीसरा विकल्प नहींं हो सकता। जैसे किसी ने पूछा था, "लन्दन में कितने मोड़ हैं?' केवल दो, बायाँ और दायाँ। या तो आप पूरी तरह से इसे स्वीकार कर लें या छोड़ दें। यदि आपने पूरी तरह से इसे पाने का और स्वयं को स्वच्छ करने का निर्णय कर लिया है तो आत्मा का प्रतिबिम्ब आपमें चमक उठेगा इस हो कुण्डलिनी योग में, सामूहिक चेतना में आप जागृत जाते हैं, सामूहिक चेतना में आप जागृत हो जाते हैं और स्वयं को स्वच्छ करते हुए दूसरों को भी स्वच्छ करते हैं और लोगों के पाप भी धुल जाते हैं। यहाँ इसे शुभ माना जाता है। कुछ लोग बहुत शुभ होते है और कुछ अशुभ । दूसरी श्रेणी के लोग जिस घर या जिस देश में प्रवेश करते हैं वहाँ विपदाएं लेकर जाते हैं । जहाँ भी वे रहेंगे वहाँ कठिनाइयाँ आएंगी। एक सज्जन मेरे पास आए वे तेईस, चौबीस वर्ष के युवा थे। कहने लगे, "श्रीमाताजी मैं बिल्कुल अशुभ हूँ." "आप कैसे जानते है, मैंने पूछा? कहने लगा मैं बहुत ही अशुभ हूँ। बच्चे तक मेरे से डरते हैं। मैं जब भी घर जाता हूँ तो परिवार को किसी न किसी कठिनाई का सामना करना पड़ता है या कोई दुर्घटना हो जाती है, और अब तो लोगों को विश्वास स्वयं अपना आँकलन करते है। "देखो मेरा फलाँ-फलौं चक्र पकड़ा हुआ है। तब आप कहते है, "श्रीमाताजी मेरा यह चक्र पकड़ा हुआ है।" आप जानते हैं कि मैं आपके लिए सभी प्रयत्न करने के लिए तैयार हूँ। आप एक दूसरे पर भी कार्य कर सकते हैं और इस प्रकार अपने दोषों, समस्याओं तथा पापों से छुटकारा पा सकते हैं। क्यों यह बोझ लिए घूम रहे है? अपने बोझ को उतार फेंकने के स्थान पर लोग सहजयोग से दूर दौड़ रहे हैं! ये मानव मस्तिष्क है जो हमेशा विचारों में डूबकर चिन्तित रहता है। घबराने की कोई बात नहीं है। आप यदि थोड़े से स्थिर हो जाएँ तो आपको महसूस होगा कि ये शक्ति कितनी बड़ी है। यह आपको केवल आपके दोष दिखाती ही नहीं उन्हें दूर भी करती है, पूरी तरह से दूर कर देती है। हो गया है कि मेरे साथ कोई समस्या है और मैं अशुभ हूँ क्योंकि ऐसी घटनाएं बहुत बार हो चुकी हैं। ऐसे लोग अशुभ होते हैं क्योंकि उनके साथ पाप का अंधकार जुड़ा हुआ होता है जो इतना गहन है कि चक्षुविहीन लोगों की तरह से उन्हें भी भयंकर कठिनाइयों, दुखों, तकलीफों और बीमारियों का सामना करना पड़ता है और इसी में ही वे अन्ततः समाप्त हो जाते है। ऐसे व्यक्ति यदि किसी परिवार में जाते हैं तो, हो सकता है, उस परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाए। अतः सर्वप्रथम आपको ये समझ लेना होगा कि कुण्डलिनी शक्ति अत्यन्त पावन एवं अछूती है। ये पावन शक्ति हमें भी पावन और स्वच्छ करती है। 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-41.txt अंक : 1& 2 चैतन्य लहरी 2007 40 को आपके पास आना है। अहवश होकर बहुत से लोग अपनी पीठ सहज की ओर कर लेते हैं, शायद ये सोचते हुए कि सहजयोग उनके पीछे-पीछे आएगा। युग-युगान्तरों से हमारे देश में शुभ-अशुभ शकुन प्रचलन में है। जो सन्त है, यद्यपि बहुत बेफिक्र तबीयत होते हैं, उनके पास अपना कोई स्थान के नहीं होता, अपने वस्त्रों की, भोजन की उन्हें कोई चिन्ता नहीं होती और चाहे वे जंगलों में रहते हैं, फिर भी जहाँ भी वो जाते हैं, अपने साथ सुख-समृद्धि अहं का प्रकोप जब तक आप पर है, आप आत्मा की झलक नहीं देख सकते। परन्तु अहं से लड़ने का कोई लाभ नहीं। सहजयोग में आपको अहं से लड़ना नही है, इसे मात्र देखना है, क्योंकि अब आपका चित्त ज्योतिर्मय लेकर जाते है। परमात्मा के विषय में भी यह बताया गया है। कि परमात्मा को यदि आप जानना चाहते हैं तो उनकी सबसे बड़ी पहचान ये है कि महानतम हो गया है और उसके प्रकाश में अहं के खेल को देखकर आप इस पर हँसे और उन विचारों पर भी हँसे जो अहं ने आपको दिए हैं। ज्योंही आप स्वयं को देखने लगते हैं, आपके गुब्बारे की हवा कम होने लगती है और जैसे-जैसे अहं कम होने मगलमयता उनके हाथ में है। वे सबका हित करते है और सबको प्रसन्न करते है । उनके चरण-कमलों के स्पर्श से सभी कुछ मंगलमय हो जाता है। परमात्मा के छः उपहार है जो धन-सम्पदा, सुख-शान्ति और खुशियाँ लाते हैं। लगता है अपने प्रकाश में आप उन्नत होते हैं। अवतरण जब-जब आए, महान और मगलमय सहजयोग अत्यन्त सूक्ष्म प्रक्रिया है। बहुत कम लोग ये बात जानते हैं कि यह अत्यन्त सूक्ष्म प्रक्रिया है। सुषुम्ना नाड़ी अत्यन्त छोटी है. अत्यन्त पतली, ब्रह्म नाड़ी के ठीक मध्य में। मनुष्य का कर्मो से हुए। परन्तु अब ऐसा समय आया है जिसमें वो कार्य होना है जो अभी तक हुए कार्यों में से सबसे अधिक मंगलमय है। इसके द्वारा आप लोग भी मंगलकार्य करने वाले बन जाएंगे और अपने कार्य लिप्त होना इसका कारण है। इसी कारण से यह करेंगे। यह अवतरणों अन्त स्थित आत्मा को और सहजयोग का महानतम कार्य है। यह पूरे समाज को प्रेरित करेगा, इस अनन्त जीवन में जबकि कलियुग की परछाई पूरे ब्रह्माण्ड को लील रही है। आपकी प्रकाश किरण बहुत ऊँची जानी चाहिए और उसी प्रकाश में आप मंगलमयता, आनन्द और समृद्धि प्राप्त करें। इसके लिए आवश्यक है कि आप अपने लैम्प स्वच्छ रखें और अपने पूर्व कर्मों तथा पापों से मुक्ति पा लें। अहं के साथ आपके पूर्व कर्म भी धुल जाएंगे, क्योंकि कर्म भी अहं के कारण होते हैं। आपने अवश्य अत्यन्त सूक्ष्म वाहिका-ब्रह्म नाड़ी-पापों एवं बुराइयों से लद जाती है और परिणाम स्वरूप इतनी संकीर्ण हो जाती है कि कुण्डलिनी का अत्यन्त पतला सूत्र ही इसमें से निकल सकता है। कुण्डलिनीं का बहुत ही महसूस पतला सूत्र ब्रह्मनाड़ी में से निकल सकता है। यह स्थिति है। आप सबने देखा है कि यह अत्यन्त सूक्ष्म और अत्यन्त गहन प्रक्रिया है। आपमें से अधिकतर लोगों ने कुण्डलिनी की हलचल और धड़कन को देखा है। मूल (Bottom) में यह किसी प्रकार से एक छोटा सा मार्ग बनाती है ताकि ब्रह्मनाड़ी के संकीर्ण मार्ग से कम से कम एक सूत्र के गुजरने को सम्मव बनाया जा सके और उसी सूक्ष्म सूत्र से वह ब्रह्म रध का भेदन करती है। आरम्भ में अधिकतर लोगों में बोझ महसूस किया होगा कि सहजयोग में आने के पश्चात आप अपने अहंकार तथा उसकी कार्यशैली को अत्यन्त सुगमता पूर्वक देख सकते हैं। सहजयोग में भी आपको बहुत से प्रलोभनों का सामना करना पड़ता है और इसमें जब आपका अहं हावी होता है तो आप भूल जाते हैं कि आपको सहजयोग में जाना है या सहजयोग यह घटना आसानी से घटित हो जाती है । परन्तु के दबाव से पुनः यह नीचे जाकर कुण्डल मारकर बैठ जाती है और व्यक्ति उस शान्ति, माधुर्य और शीतल 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-42.txt चैतन्य लहरी अंक :। & 2 -2007 41 चैतन्य लहरियों आदि को भूल जाते है और यह सब मानव बुद्धि को समझना आसान नहीं है। यह संसार का सबसे कठिन कार्य है। परमात्मा को स्वीकार करना आसान है, परन्तु परमात्मा तो जो है वो हैं उनका दोहरा व्यवहार नहीं होता। मानव के केवल दो ही नहीं, कई रूप होते हैं । मनुष्य के अन्दर सभी पशु-सॉप से लेकर बिच्छु, हाथी. घोड़े, शेर सभी विद्यमान हैं। आप समझ ही न पाऐंगे कि उसका जिसे उन्होंने एक बार प्राप्त किया था अब उनके पास नहीं होता। अन्तर्प्रकाश में जब वो देखते है कि ये सभी चीजें उनमें अन्तर्निहित हैं तो उन्हें सदमा पहुँचता है। तब डरकर वे शंकालु हो जाते हैं। मनुष्य की बुद्धि बहुत सारे सन्देहों के साथ खड़ी हो जाती है। पहला और आम सन्देह है श्रीमाताजी कौन हैं? यह पहला प्रश्न है। मैं आपको बताना चाहती हूँ कि आप मुझे तब तक नहीं समझ सकते जब तक आपके आत्म-चक्षु खुल नहीं जाते, और मुझे समझने का प्रयत्न है, इस बात की कल्पना करें! क्या अब आप इसके करना भी नहीं चाहिए। पहले अपनी आत्मा की आँखें खोल लें। मस्तिष्क इस प्रकार क्यों कार्य कर रहा है? अब जब गंगा बह रही है तो आप उसमें से जल ले क्यों नहीं लेते? ये प्लग यहाँ जोड़ दिया गया स्थान पर कोई बिगड़ा हुआ प्लग लगाएगे? यह अत्यन्त व्यवहारिक बात है। मैं समझ नहीं पाती कि मानव बुद्धि में क्या भ्रम भरा हुआ है कि दिखाई दे रहे सत्य को वे स्वीकार नहीं करते और जो दिखाई नहीं पड़ता जब श्रीराम अवतरित हुए तो लोगों ने कहा कि वे परशुराम को मानते हैं, जब श्री कृष्ण आए तो लोग श्री राम को मानने लगे और श्री नानक के उसे स्वीकार करते हैं। बहुत समय पूर्व इसका कारण खोज लिया गया था। अहकार इसका कारण है। समय श्री कृष्ण को स्वीकार किया, ईसा-मसीह के समय में लोगों ने अब्राहम को स्वीकार किया। सभी मनुष्य के अन्दर बहुत अहं है। श्रीराम के दिनों में यदि आपने उन्हें स्वीकार किया होता तो उन्होंने आपको बताया होता कि आप अपनी कुण्डलिनी मानव रूप में आए थे। परन्तु ये सारा बुद्धि का खेल है, ये बात कितनी दिलचस्प है! अब मैं आई हूँ तो लोग श्री शिरडी साईनाथ को मानते है परन्तु जब जागृत करवा कर आत्म-साक्षात्कार पा लें और सहजयोग में स्थापित हो जाएं। आपने यदि श्री कृष्ण को पहचाना होता तो उन्होंने गोकुल में चाहे सहजयोग की लीला न की होती परन्तु आपको आत्म-साक्षात्कार देकर सहजयोग अभ्यास करने के लिए अवश्य कहा होता। श्री नानक को यदि स्वीकार किया गया होता तो भिन्न चीजों के विषय में बताने में अपना सिर फोड़ने की उन्हें आवश्यकता सहजयोग सिखाया होता। परन्तु उन दिनों में बहुत कम लोगों ने उन्हें पहचाना। आज जब वो यहाँ पृथ्वी पर नहीं हैं तो आप लोगों ने उनके नाम पर गुरुद्वारे बना दिए हैं। मोहम्मद साहब आज यहाँ नहीं हैं तो लोगों ने उनके नाम पर मस्जिदें बना दी है क्योंकि लोग सोचते हैं कि अब मोहम्मद साहब उनके हाथ में हैं। श्रीराम उनके हाथों में हैं। और वै उनके मन्दिर तक वे जीवित थे तो उन्हें खाने के लिए पर्याप्त भोजन न मिलता था। ऐसा क्यों था? वे भी तो मानव थे। जब तक वे जीवित रहें उन्हें बेकार माना गया और सताया गया। परन्तु मृत्यु के बाद उन्हें भगवान माना गया। इसका क्या कारण है? मानव ऐसा क्यों है? न होती। उन्होंने सीधे से गंगा जहाँ भी प्रवाहित होती है वहाँ आपको उसका जल प्राप्त होता है। यदि यह यहाँ बह रही हो तो क्या आप कहेंगे कि "हम इसे गंगा नहीं मानते।' जिस स्थान पर पहले गंगा बहती थी चाहे वहाँ कुछ भी न हो, चाहे आज वहाँ नाला हो। आप यदि इसे गंगा मानना चाहे तो मान ले। यहाँ पर यदि गंगा बह रही है, तो क्यों न इसे स्वीकार कर लें? 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-43.txt अंक :। & 2 -2007 42 चैतन्य लहरी बनाकर कह सकते है, "ये हमारा मन्दिर है, श्रीराम हमारी जागीर हैं, उन पर हमारा अधिकार है, और जो यदि स्वीकार कर लिया तो वह अहं- मुक्त हो जाएगा। इसके बहुत से इलाज हैं। मान लो व्यक्ति को बहुत सा पैसा मिल जाता है और वह बहुत शक्तिशाली बन जाता है तो बहुत अधिक धन उसे गधा बना देता है ऐसा व्यक्ति विदूषक की तरह से व्यवहार करता है और सब लोग उस पर हँसते हैं क्योंकि बहुत अधिक शक्ति उसके सिर पर चढ़कर बोलती है। किसी बहुत सुन्दर महिला को यदि अपने सौन्दर्य का गुमान हो जाए कि वह अद्वितीय सुन्दरी है तो उसका अधोपतन हो जाता है। किसी चीज का बाहुल्य होने के कारण व्यक्ति गधा क्यों बन जाता है? इसका कारण ये है कि भी कुछ आप अपने साथ लाए हो सारा धन और वस्तुऐं-सभी कुछ इस मूर्ति पर चढ़ा दो। ऐसा आप इसलिए कहते हैं क्योंकि आप स्वयं को श्रीराम का मालिक मानते हैं अपने अहंकार के कारण मनुष्य सोचता है कि वह परमात्मा को अपने नियंत्रण में रख सकता है और इसी के लिए वह सारा दिखावा कर रहा है। हर बार यही दिखावा किया गया। आज भी से बड़े-बड़े मन्दिर हैं, वहाँ क्या हो रहा है? जहाँ बहुत स्वयम्भु. प्रतिमाएं हैं? उन मन्दिरों में क्या हो रहा है? अह, मनुष्य को गधा बना देता है। गधे में भी सम्मान भाव होता है, उसमें भी मर्यादाभाव हो सकता है, परन्तु अहंकारी व्यक्ति तो गधे से भी बदतर है। मनुष्य की तुलना यदि अहं से की जाए तो परिणाम गधा है। मैं हमेशा कहती हूँ, ये देखकर आप बहुत हैरान होंगे कि मनुष्य में अहं किस प्रकार बढ़ा हुआ है! वह इस शक्ति को सम्भाल नहीं सकता। वह यदि कोई महाराजा है तो उसके लिए लाखों रुपये भी तुच्छ हैं। परन्तु किसी दरिद्र व्यक्ति को थोड़ा सा पैसा यदि मिल जाए तो वह हक्का-बक्का हो जाता है। कोई वास्तविक राजा यदि सत्ता में आता है तो सत्ता का कुछ उस पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। विश्व में वह राजाओं की तरह से रहता है और तुच्छ चीजों की चिन्ता नहीं करता? परन्तु एक सर्वसामान्य व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता। क्योंकि उसके पास अचानक प्राप्त हुए वैभव को सम्भालने की योग्यता नहीं होती। सत्यसाधक को व्यक्ति को यदि जरूरत से ज्यादा पैसा मिल जाए तो वो पगला जाता है। लाखों में से कोई एक धनी व्यक्ति विवेकपूर्ण होता है। किसी को यदि धन मिल जाता है तो वह सोचता है कि कौन से शराबखाने में जाऊ या कौन सी गंदी औरत के पास । मनुष्य कभी नहीं सोचता कि जो धन उसे प्राप्त हुआ है उसे अपनी उत्क्रान्ति के लिए और बाहय जगत में उन कार्यों के लिए खर्च कर सकता है जो परमात्मा को स्वीकार्य हो और जिनको करने से परमात्मा के आशीर्वाद मिल सकें। परमात्मा के कार्य करने में भी वे अहं का प्रदर्शन करते हैं, यदि आत्मा का विपुल वैभव जब प्राप्त होता है तो उसके लिए बाकी सभी कुछ मूल्यहीन हो जाता है । इसके विपरीत सामान्य व्यक्ति को यदि कुछ प्राप्त हो जाए तो वह अहं के कारण दिन और रात भ्रम की स्थिति में बना रहता है और मूर्खों की तरह सोचता है कि उसकी प्रशंसा हो रही है। उसकी समझ में नहीं आता कि वह क्या कर रहा है और उसके लिए ठीक मार्ग कौन सा मन्दिर बनाएंगे तो उसके ऊपर भी शिलालेख लगाएंगे है। (फलां) ने बनवाया।' इसे आप पागलपन के अतिरिक्त क्या कहेंगे? उसके पिता ने यदि कोई नेक कार्य किया होता तो स्वतः ही वह प्रसिद्ध हो गया होता। अहंकार के इतने झूठे स्वप्न देखने में मनुष्य सत्य से दूर बना रहता है। यद्यपि वह सत्य को सामने देखता है. परन्तु अहं उसे सिखलाता है कि सत्य को स्वीकार नहीं करना क्योंकि सत्य को .. की 'स्मृति में श्रीमान अब रुककर देखने का समय आ गया है। यह जागृत होकर ज्ञान पाने का समय है। अहं-पर्वत की चोटी की जिस ऊँचाई पर आप पहुँच गए हैं, वहाँ पर रुककर पीछे देखने का यह समय है। अब तक आपने न तो कुछ प्राप्त किया है और न ही आप कुछ जानते हैं। ये बात विनम्रता पूर्वक 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-44.txt अंक :1 & 2 - 2007 43 चैतन्य लहरी उसका अपना अह है इस असत्य में फॅसा रहने वाला तथा इसके प्रभाव में कार्य करने वाला व्यक्ति अपने विनाश को न्यौता देता है। स्वीकार करें और अपने अन्दर आत्मसात होने दें। अभी तक आपने अपनी आत्मा को नहीं समझा है। हर कदम पर आप भौतिक (मृत) चीजों के जाल में फँसते चले जा रहे हैं और ये पदार्थ आपको षड्रिपुओं के चंगुल में फँसाकर उनका दास बना रहे हैं। क्षण भर के लिए रुककर अपने अन्तः स्थित दर्पण में देखें, क्यों? ये बात मैं आपसे बार-बार पूछती हूँ-अपने इतने कष्टकर अन्त को क्यों आप न्यौता दे रहे हैं? किस कारण से आप स्वयं को नहीं जानना इसमें आप परमात्मा के प्रतिबिम्ब आत्मा को देख चाहतें? क्यों नहीं परमात्मा के सम्मुख समर्पित होना चाहते? क्यों गलत लोगों का अनुसरण कर रहे है? जो लोग आपको लूट रहें है, नष्ट कर रहे है, जिन्होंने सम्मोहन करके आपको इतनी हानि पहुँचाई है. उनके लिए आप अपना जीवन तक न्योछावर करने के लिए तैयार हैं! क्या आपमें सत्य को देखने की बिल्कुल भी योग्यता नहीं है? परमात्मा को तो केवल पूर्ण स्वतन्त्रता से ही जाना जा सकता है। सहजयोग में आरम्भिक अनुभवों से आपको जो थोड़ी बहुत स्वतन्त्रता प्राप्त हो रही हैं उससे घबरा कर आप अपनी पुरानी परतन्त्रता की ओर लौट जाना चाहते है! पाएंगे। इस कृपा का आनन्द लें और इसके प्रकाश से अपने अन्दर से सांसारिक अंधेरे को भगा दें यह महान कार्य है। परन्तु अधिकतर लोग इस पर टिक नहीं पा रहे हैं। ये कठिनाई है। मैं यदि सम्मोहन करने पर लगू तो हजारों लोग आ जाएंगे। ऐसा ही एक झूठ-मूठ का गुरु लन्दन पहुँचा। उसने नब्बे हजार लोगों की जेबें खाली करवाईं, हर व्यक्ति से उसने छः हज़ार डालर लिए उनमें से साठ लोग मेरे पास आए वे मिर्गी रोग से पीड़ित थे मैंने कि उस गुरु ने उन्हें क्या सिखाया, कौन उनसे पूछा से मन्त्र उन्हें बताए? छः हजार डालर की कीमत सहजयोग तो बहुत सहज है परन्तु आप लोग नहीं है। नगरों में बहुत सी जटिलताएं हैं । बहुत से तनावों और दबावों में से गुजरने के कारण आपको सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अतः चुंकाने पर इन गरीबों को इंगा, पिंगा, ठिंगा मन्त्र मिले। गुप्त रूप से ये मन्त्र उन्हें दिए गए और कहा गया कि इनका जप करने से उन्हें बहुत सी सिद्धियाँ प्राप्त होगी। आज वो लोग सड़क पर है, उनके घर बरबाद हो गए हैं और वे दयनीय स्थिति में हैं। यदि वे बुद्धिमान होते तो समझने का प्रयत्न करते और किसी ऐसे व्यक्ति के पास न जाते जो इनके अहं को बढ़ावा बहुत प्रथम आवश्यकता ये है कि सहज बने। आप जानते हैं कि मेरा कार्य गाँवो में बहुत तेजी से हो सकता है। नगरों में अहं का प्रकोप अधिक है। छोटी-छोटी चीजों के कारण लोग अहंकारी हो जाते हैं और इसी कारण से वे उन लोगों के प्रति समर्पित हो जाते हैं जो उनके अहं को बढ़ावा देते हैं और उनका धन ऐंठ कर दौड़ जाते हैं। आप बस उन्हें ताकते रहते हैं और उनसे रोग प्राप्त करते हैं। आपको आश्चर्य होगा कि कैंसर आदि भयानक बीमारियों के जिन रोगियों को मैंने ठीक किया वे सब इन्हीं कुगुरुओं और तान्त्रिकों के शिकार थे! मुझे एक भी ऐसा कैंसर रोगी नहीं मिला जिसका सम्बन्ध किसी कुगुरु से न हो। इसलिए कहा जाता है कि कैंसर लाइलाज है। अब आप समझ पाएंगे कि ये लोग कितने धूर्त, अशुभ और हानिकारक हैं इनके दे रहा था। वह उनसे यही कहता कि "तुम महान व्यक्ति हो, तुम पोंगानन्द हो ।" 'तिजोरियाँ भरने वाले सभी के अहं को ये कुगुरु बढ़ावा देते रहते हैं। बड़े-बड़े अखबारों में उनके विज्ञापन आते हैं और उनकी प्रशंसा होती है क्योंकि उन लोगों के पास पैसा है जो पैसे को आकर्षित करता है। बड़े-बड़े सुप्रसिद्ध व्यक्ति उनसे मिलने जाते हैं। परन्तु अन्दर सब ढकोसला है। क्या हम कह सकते है कि व्यक्ति असत्य की पूजा करता है? परन्तु मनुष्य तो बहुत बड़े असत्य में फँसा हुआ है और ये असत्य 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-45.txt अंक : 1। & 12 -2006 44 चैतन्य लहरी चीज है! बहुत कठिन लगता था कि किस प्रकार एक व्यक्ति में घटित होकर यह आगे बढ़ेगा। ईसा-मसीह को अन्तिम व्यक्ति माना जा सकता है जिन्होंने इस दिशा में बहुत सा कार्य किया और उनके बाद गुरु-तत्व को लेकर गुरुनानक जी अवतरित हुए। परन्तु उनके समय पर भी अधिक लोग आत्मा को न जान पाए। लोगों को समझाने में ही वे अपना सिर फोड़ते रहे। वे मानव रूप में अवतरित हुए थे परन्तु उन्हें पहचाना नहीं गया। आस-पास का सारा वातावरण अत्यन्त खराब है। उनके पास जाने वाले सभी लोग भयानक कष्टों में फँस जाते हैं, यें बात जानकर आपको खेद होगा। मौर्वी में बहुत से लोग मृत्यु को प्राप्त हुए, उनमें से बहुत से अबोध थे। परन्तु वहाँ पर जाघन्य पाप किय जाते थे। आपने सुना होगा कि कच्छ में कुछ लोगों ने एक साधु के लिए बहुत बड़ी जमीन खरीदने का निर्णय किया! व्यक्ति को देखना चाहिए कि वह किसके हाथों में खेल रहा है और अपने विनाश को किस तरह निमंत्रण दे रहा है। मैं उनके साथ थी, वास्तव में उन सभी के माँ के रूप में मैं आपको बता रही हूँ और साथ। मुझे प्रसन्नता है कि इस देश के लगभग दस-हजार लोगों ने सहजयोग में आकर अपनी आत्मा समझा रही हूँ कि आपको ऐसे धू्तों के पास जाकर अपने विनाश को बुलावा नही देना को प्राप्त किया है । ये अन्तिम निर्णय है. देखते हैं क्या होता है। जो भी लोग आ जाएंगे मेरे लिए ठीक है और नहीं आएंगे तो भी ठीक है। याद रखें परमात्मा आपके सम्मुख झुकेंगे नहीं, अपनी स्वतन्त्रता में आपको उन्हें प्राप्त करना होगा। आप यदिे उन्हें प्राप्त नहीं । ऐसे लोगों के पास जाकर अपनी आत्मा का हनन न करें। अपनी आत्मा को समझे। प्रश्न और प्रतिप्रश्नों के चक्कर में सबकुछ बिगाड़ने की आवश्यकता नहीं है सर्वप्रथम आत्म-साक्षात्कार प्राप्त कर लें, अपनी आत्मा को कर पाए हैं तो यह न तो उनका दोष है न सहजयोग का, न मेरा और न ही आत्मा का। जान लें। बाकी का कार्य मेरा है। आत्मा को जान लेने से पूर्व किस प्रकार आप प्रश्न पूछेगे? सच्चे-झूठे का भेद जानने का कोई तरीका क्या आपके पास है? बेंबका आप लोग, जिनमें अहं है, उन्हें स्वयं को दोष देना होगा। यह आपकी अपनी सम्पदा है और आपको केवल इसलिए दी गई है कि आप इसे स्वीकार करें, सर्वप्रथम अपनी आत्मा को जान लें। आत्मा को जाने बिना बहस करना बेकार है, क्योंकि यह अत्यन्त सूक्ष्म विषय है, उथला विषय नहीं है कि किसी व्यक्ति का चेहरा देखकर आप कुछ कह दें और बस! ऐसे जाल में न फँसें जहाँ से वापिस ही न आया जाए। सहजयोग समझे, और इसका आनन्द लें। परमात्मा आपको धन्य करें। अत्यन्त उत्कृष्ट है। यह महानतम है। कभी-कभी तो मुझे भी इस पर हैरानी होती है! यह इतनी अजीब (निर्मला योग-1983) अंग्रेजी रूपान्तरण से रूपान्तरित +**+० 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-47.txt है ० ४ हिं ४॥ Pratisthan-Gurgaon ा "ओ मेरे बच्चो, वास्तव में आप मेरे सहस्प्र से जन्में है। अपने हृदय में मैने आपका गर्भ धारण किया और ब्रह्मरन्ध्र से आपको पुनर्जन्म दिया। मेरे प्रेम की गंगा आपको समूहिक चेतना के साम्राज्य में लाई है। यह प्रेम मेरे मानवीय शरीर से कही महान है। यह आपका पोषण करता है, आपको शान्त करता है और सुरक्षा प्रदान करता है। शनैः शनैः यह आपकी चेतना को दिव्य आनन्द के योग्य बनाता है। परन्तु यह प्रेम आपको सुधारता भी है और आपमें काट-छाँट भी करता है। यह आपका पथ-प्रदर्शन करता है, दिशा-निर्देश देता है। सच्चे ज्ञान (True Knowledge) के रूप में यह प्रकट होता है। यह आपके सदमों (Shocks) को झेलता है और पथप्रदर्शन-पत्ते (Guiding Leaf) की तरह आपको सत्य की कठोर धरातल पर स्थापित करता है। आध्यात्मिक बुलंदियों पर पहुँचने की आपकी आकांक्षाओं को पूर्ण करने के लिए यह शक्ति प्रदान करता है।" परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवीं