चैतन्य लहरी Cं मार्च-अपरैलः 2007 चै त न्य ल हरी अंक : 3 -4, 2007 NIRMALA इस अंक में ईसामसीह पूजा-निर्मल नगरी, भुकम, पुणे- 24-26.12.2006 सहस्रार पूजा - रौवेन, फ्राँस (Rouen France) 5.5.1984 मावलंकर हॉल, नई दिल्ली 12 मूलाधार व नाभि चक्र 15.3.1984 28 नव वर्ष - दिल्ली आश्रअमे - 3.1.1984 40 महा शिवरात्रि - दिल्ली - 17.2.1985 पूजा DHARMA VISHWA UNIVERSA RELIGION चै त न्य लहरी प्रकाशक निर्मल ट्राँसफोर्मेशन प्रा लि. प्लाट नं. 8. चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड, कोथरुड पुणे कोनः 020-25285232 411 029 मुद्रक कृष्णा प्रिन्टर्ज एण्ड डिज़ाइनर्ज 292/23 ओंकार नगर बी त्रीनगर, दिल्ली-110035 मोबाइल : 9212238008 आप अपने सुझाव, सदस्यता एवं जानकारी के लिए निम्न पते पर लिखें : निर्मल ट्राँसफोर्मेशन प्रा. लि. प्लाट नं. 8. चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड, कोथरुड पुणे फोनः 020-25285232 411 029 अपने अनुभव, सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ.पी. चान्दना जी-11- ( 463) , ऋषि तगर, रानी बाग दिल्ली- 110034 फोन : 011- 65356811 ईसा मसीह पूजा निर्मल नगरी, भुकम, पुणे (24-26.12.2006) तीन दिनों का ये सेमिनार, हर तरह से एतिहासिक हैं। ईसामसीह पूजा यद्यपि सभी सहजयोगियों को गणपति पुले का स्मरण कराती है जहाँ स्वयं श्री आए 12-15 हजार सहजयोगियों का उल्लास और महागणेश हमारे हृदय में श्री जीसस को जागृत करके चैतन्य लहरियों का तीव्र प्रवाह निश्चित रूप से इसे परमेश्वरी माँ के चरणकमलों की पूजा की आकांक्षा करते हैं। जो भी हो गणपतिपुले के गुरुतत्व - अरबियन सागर के अतिरिक्त निर्मल नगरी किसी भी प्रकार से सेमिनार था। सेमिनार में सम्मिलित होने के लिए सहज इतिहास का एक हिस्सा बना देगा । 24 दिसम्बर 2006-की सन्ध्या सहजयोगियों के लिए स्मरणीय संगीत-सन्ध्या थी। धर्मशाला स्कूल के बच्चों द्वारा प्रस्तुत की गई ब्रह्माण्डसृजन विषय पर नृत्य नाटिका ने इस सन्ध्या के उल्लास को चार चाँद लगा दिए। आदिशक्ति के अपने ही शब्दों में एक पुराने ऑडियो कैसेट से स्वयं उनके द्वारा पृथ्वी पर अवतरित होने की घोषणा ने चैतन्य के स्तर को महान बुलन्दियों तक पहुँचा दिया। घोषणा के बाद सर्वत्रव्याप्त शान्ति स्वर्गीय थी। कम न थी। पौने छः बजे पूजा पण्डाल सहजयोगियों से लगभग आधा भरा हुआ था. मानो सुन्दर और सुरभित वेशभूषा में उपस्थित विशाल सामूहिकता को स्थान प्रदान करने के लिए शनैः शनै: अपने पंख फैला रहा हो। सुन्दर परिधानों में उछलते हुए गणेश अत्यन्त मोहक लग रहे थे और व्यस्क सहजयोगी या तो पूजा मंच के समीप पहुँचने का प्रयत्न कर रहे थे और या फिर पूजा मैदान में लगे चार विशाल चित्रपटों के समीप बैठने के लिए प्रयत्नशील थे मंच 1 नन्ें धर्मशाला स्कूल के बच्चों ने सहज सामूहिकता को निरन्तर तीन घण्टों तक आत्मविभोर किया। 26 दिसम्बर को विवाह सूत्र में बँधने वाले कुछ और जोड़ो की घोषणा के साथ, इस सन्ध्या का समापन हुआ। की आन्तरिक साज-सज्जा अत्यन्त अलकृत बहुमजिले भवन जैसी थी जिसका मध्याकर्षण श्रीमाताजी की प्रतीक्षा करता सुसज्जित विशाल सिंहासन था । तीन महामन्त्रों और भजनों के साथ साढ़े छः। बजे ध्यान का आरम्भ हुआ। कॅसी ये फुहार चली... 'एक गौरी के दुलारे, एक राधाजी के प्यारे... ... दो भजन पूर्ण सामूहिकता को ध्यान अवस्था में स्थापित करने के लिए पर्याप्त थे इसके बाद वर्ष 2001 में गणपतिपुले में हुई ईसामसीह पूजा के परम पूज्य श्रीमाताजी के प्रवचन का वीडियो चित्रपटों पर दिखाया गया। ऐसा प्रतीत हुआ मानो श्रीमाताजी साक्षात् वहाँ उपस्थित हो और पूरी सहज सामूहिकता उनका शक्तिशाली सन्देश सुन रही हो ईसामसीह का सारतत्व बताते हुए श्रीमाताजी ने बताया था कि "ईसामसीह परम चैतन्य का मूर्तरूप थे, वे ऑकार थे, श्री गणेश थे, तथा उन्हें मानने वाले लोगों को कुछ विशेष होना होगा। परन्तु होता सदैव ये है कि लोग अवतरणों के बिल्कुल विरुद्ध दिशा में चले जाते हैं। पूर्णतया विरुद्ध ।" ईसामसीह के विषय में बताते हुए अपने इस 25 दिसम्बर 2006- श्री जीसस मैरी रूप में श्रीमाताजी के चरण कमलों की पूजा को समर्पित था। पूजा का समय साढ़े छः बजे सायं घोषित किया गया परन्तु पूजा के समय किसी भी प्रकार की अवाछित हलचल से बचने के लिए सभी सहंजयोगियों को पौने छ: बजे तक अपने स्थान ग्रहण करने का अनुरोध किया गया 25 तारीख प्रातः ही पूजा में सम्मिलित होने के लिए आए 15-18 हजार सहजयोगियों ने पूजा मंच के सम्मुख बैठकर दिव्य भजनों का आनन्द लिया पर्वतीय पृष्ठभूमि पर सूर्यास्त की स्वर्णिम किरणों ने इस सन्ध्या को और अधिक मनमोहक बना दिया। आकाश साफ था और तापमान अत्यन्त सुखकर। हाल ही में महालक्ष्मी पूजा के लिए सहजयोगी इस पावन भूमि पर एकत्र हुए थे और एक बार फिर हम सब महाविष्णु रूप में श्री जीसस की पूजा करके उनकी शक्तियों का आह्वान करने के लिए एकत्र हुए अक : 3 & 4 - 2007 4. चैंतन्य लहरी श्रीमाताजी का निर्मल नगरी में स्वागत करने के लिए शहनाई बजाई जाए। श्रीमाताजी निर्मल नगरी पहुँच चुकी थीं। साढ़े आठ बजे 'स्वागत आगत स्वागतम प्रवचन में श्रीमाताजी ने वर्णन किया था कि ईसामसीह के जीवन का सारतत्व उनकी निर्लिप्तता और बलिदान है कि आपको .. वे सत्य के लिए खड़े हुए के सामूहिक गान के द्वारा सहजयोगियों ने खड़े होकर आत्मा बनना है। अपनी प्रिय परमेश्वरी माँ का स्वागत किया। मोहम्मद साहब के विषय में बताते हुए श्रीमाताजी ने मैराज (कुण्डलिनी जागृति) तथा जेहाद (षडरिषुओं पर विजय प्राप्ति) के विषय मे बताया। चैतन्य लहरियों का तीव्र प्रवाह सारे वातावरण में व्याप्त हो गया। पर्दा जब उठा तो सभी योगियों के सम्मुख वो दृश्य था जिसे देखने के लिए वे इतनी देर मर्यादाओं और आचरणों के बारे में बताते श्रीमाताजी ने कहा, "इन आधुनिक दिनों में जैसा से प्रतीक्षा कर रहे थे। एक सुन्दर, सुसज्जित सिंहासन पर आदिशक्ति उनके सम्मुख विराजमान थीं इस क्षण ऐसा प्रतीत हुआ मानो हृदय की धड़कने रुक गई हो और सभी कुछ जैसे एक दम शान्त हो गया हो! श्रीमाताजी इतनी प्रसन्न मुद्रा में थीं कि उपस्थित सभी योगियो को ऐसा लगा कि बीते वर्षों की तरह आज भी वे अपना दिव्य संदेश देकर अपने बच्चों को ज्यो तिर्मय करें गी। विशाल चित्रपट अत्यन्त हुए हम देखते हैं, लोगों ने सभी मर्यादाएं लाँघ ली हैं, धर्म का पूर्णतः उल्लंघन कर लिया है। अमेरिका जाने से पूर्व, मैं हैरान थी, किस प्रकार लोग नैतिकता को भूल गए हैं।."! ईसामसीह और आत्मसाक्षात्कार विषय पर बोलते हुए श्रीमाताजी ने कहा कि ईसामसीह केवल आत्म-साक्षात्कारी नहीं थे, वो साक्षात् 'आत्मसाक्षात्कार थे। भारत से लौटकर वे "निर्मलतत्वम्" लिए पश्चिम में गए । क्योंकि निर्मल तत्वम् के बिना सत्य के प्रकाश को नहीं देखा जा सकता। कुशलतापूर्वक श्रीमाताजी के तेजस्वी रूप को दर्शा रहे थे तेजमूर्ति होने के बावजूद भी श्रीमुख अत्यन्त सिखाने के करुणामय एवं अबोध था। वास्तव में उनका महागणेश रूप हमारे सम्मुख था। कहीं ये सब प्रम तो नहीं था... या कहीं ये उनका महामाय रूप तो नहीं था। ये सब वर्णन करने के लिए शब्द असमर्थ है। मानो ये दिव्य अनुभव हो...... करने का आनन्द हो। प्रवचन के अन्त में श्रीमाताजी ने कहा, मुझे आशा है कि आप सबलोग सहजयोग प्रचार प्रसार के महत्व को समझते हैं। इस महत्व को यदि आप नहीं समझते तो आप बेकार हैं। मेरे लिए सबसे महान चीज ये है कि जिस प्रकार यहाँ पर बहुत सी बत्तियाँ हैं वैसे ही विश्व भर में बहुत से और सहजयोगी होने चाहिएं। आप यदि विश्व को परिवर्तित करना चाहते हैं और जीवन के दुखों और तकलीफ़ों से बचना चाहते हैं तो आपको लोगों की रक्षा करनी होगी। आपको उनका उद्घार करना होगा। आपका यही कार्य है, सहजयोग का आपने यही ऋण चुकाना है.. परमात्मा से एकरूपता प्राप्त अचानक, यह मौन... माँ और बच्चों के बीच स्थापित सम्पर्क में बाधा पड़ी। मच से घोषणा की गई कि आठ से बारह साल की आयु के बच्चे श्रीमाताजी के चरणकमलों में पुष्पार्पण करेंगे और इसके साथ श्री गणेश का आह्वान किया जाएगा। पाण्डाल के सभी कोनों से दौड़ते हुए सैन्टाक्लॉज़ टोपियाँ पहने नन्हें गणेश मंच की ओर दौड़ते दिखाई दिए। 'विनती सुनिए' भजन के साथ पूजा करने की आज्ञा माँगते हुए, पूजा का आरम्भ हुआ। श्री गणेश अथर्वशीर्षम, जय जगदम्बे, जागो सवेरा, भजन गाए गए, तत्पश्चात् 'नमो नमो मारिया और जगी तारक जन्मा आला के साथ सात विवाहित महिलाओं ने कल्पना दीदी के पथ प्रदर्शन में देवी का शृंगार किया अपनी चिन्ता न करे...। आपको सहजयोग फैलाना है अब आपका यही कार्य है। आपकी नौकरी महत्वपूर्ण नहीं है, केवल यही कार्य महत्वपूर्ण है कि आपने कितने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया।" तत्पश्चात जब 'श्री जगदम्बे आई रे गाया जा रहा था तो मंच से घोषणा हुई कि परम पूज्य अंक : 3 & 4 -2007 5 चैतन्य लहरी कर रही थी उसे आगे बढ़ाने की बारी अब किसकी है? स्वतः ही पण्डाल से एक आवाज़ उठी- 'हमारी इस आवाज़ के साथ-साथ सभी के हाथ भी उठे हुए थे पापाजी ने पुनः कहा, "हाँ, निश्चित रूप से अब आपकी बारी है।" और श्री जीसस मेरी रूप में उन्हें मुकुट पहनाया। शृगार पूर्ण होते ही 'विश्व वन्दिता' के बाद, विश्व समन्वयक परिषद और भारतीय न्यास के सदस्यों को आरती करने के लिए बुलाया गया। आरती के बाद तीन महामन्त्रों के साथ पौने दस बजे पूजा सम्पन्न हुई। इसके बाद अन्तर्राष्ट्रीय उपहार श्री चरणों में नववर्ष के इस अवसर पर आपसे ये वचन लेने के भेंट करने का अवसर आया। परन्तु इससे पहले एक छः मज़िला सुन्दर सुसज्जित श्वेत क्रिसमस केक श्रीमाताजी के सम्मुख उनके सभी बच्चों के लिए पेश किया गया सर सी पी. ने केक काटने में श्रीमाताजी की सहायता की और खड़े होकर उन्हें केक का एक निवाला भेट किया। अन्तर्राष्ट्रीय उपहार विश्व के लगभग सभी देशों से प्रेम पुष्पों की तरह आए । ग्रटर सामूहिकता पर की थी। श्रीमाताजी, आपको कोटि नोयडा की एन जी ओ परियोजना, धर्मशाला स्कूल, पश्चिम बंगाल प्रदेश आदि ने भी श्री चरणों में अपने ा "क्या आप इसका वचन देते है?" "आज लिए ही मैं आपके सम्मुख खड़ा हुआ था।" पौने ग्यारह बजे मंच के पर्दे गिरे और चिलचिलाती ठण्ड के बीच सभी योगी अपने स्थानों पर खड़े हो गए। स्मभवतः यह ठण्ड शीतल चैतन्य-लहरियों के कारण हो जिनकी वर्षा कृपा श्रीमाताजी ने अपने श्री जीसस रूप में इस विश्व कोटि धन्यवाद कि आपने अपने चरणा कमलों में हमारी ये पूजा एवं प्रार्थना स्वीकार की। आपको कोटि-कोटि उपहार अर्पित किए। थोड़ी देर के बाद हमारे प्रिय पापाजी. सर सी पी. अपने शक्तिशाली और हृदयस्पर्शी शब्दों में पूर्ण सामूहिकता को सम्बोधित करने के लिए खड़े हुए। वास्तव में यह पूरी सहज सामूहिकता की परम पावनी माँ के सम्मुख वचन बद्धता के निर्णय की शपथ थी। सर सी पी. ने इस प्रकार आरम्भ किया:- 26 दिसम्बर 2006- विवाह दिवस और भी अधिक आनन्दमय था क्योंकि खिले हुए सहस्रार- दल कमल की सुगन्ध से पूरी निर्मल नगरी सुरभित हो चुकी थी। माँ मेरी के रूप में परम पावनी श्रीमाताजी ने पुण्य भूमि में अपने पुत्र ईसा को जागृत कर दिया था। प्रात:कालीन हल्दी-उत्सव से निर्मल नगरी जीवन्त हो उठी। मेंहदी उत्सव तो 25 दिसम्बर पूजा के पश्चात् ही मना लिया गया था। चैतन्यित हल्दी उबटन से रंगे हुए सहजियों के गाल और शरीर, एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे। मानों पूरी सामूहिकता इस अवसर पर नाचते और गाते हुए कुण्डलिनी नृत्य तथा भजनों से प्रसारित होने वाले चैतन्य में शराबोर हो रही हो। निर्मल नगरी ने पृथ्वी पर स्वर्ग का रूप धारण कर लिया था पुण्यभूमि हमे शंहशाह जहाँगीर कथित फारसी में कही पंक्तियों की याद दिला रही थी:- "मैं आप सबको क्रिसमस तथा नववर्ष की मंगलकामनाएं देता हूँ। जब भी नववर्ष आता है तो हम सब कुछ नए निश्चय करते हैं। लोगों में बहुत सी आकांक्षाएं होती हैं। अपनी विशुद्ध शैली में सर सी पी. ने कहा," मेरी इच्छा है कि वे (श्रीमाताजी) यहाँ पर इसी प्रकार अध्यक्षता करती रहे और हम उनके सम्मुख बैठे रहें । मेरी ये भी अभिलाषा है कि मानव मात्र के एक हो जाने के प्रेम के सन्देश को वे फैलाती रहे क्योंकि पुरे विश्व को इसकी आवश्यकता है, उन्होंने आगे कहा कि श्रीमाताजी द्वारा सृजित विश्व ही यदि एक मात्र विश्व बन जाए जिसमें हम रहे तो उन्हें अत्यन्त हर्ष होगा। एक पिता की तरह से विश्वस्त करते हुए उन्होंने कहा, कि अब हमें दृढ़ निश्चय करना चाहिए कि जिस कार्य को श्रीमाताजी इतने वर्षों से "गर फिरदौस, बरौ जमी अस्त, हमी अस्त, हमीं अस्त', हमीं अस्त।" अर्थात पृथ्वी पर यदि स्वर्ग कहीं है तो यहीं है, यही हैं, यही है। ये पंक्तियाँ शहंशाह जहाँगीर ने तब अक : 3 &+ -2007 चैतन्य लहरी 6. हिन्दी भाषा में बोलीं, "शादियाँ हो गई हैं. आप सबको बाई।... श्रीमाताजी के मुख से निकले इन शब्दों का श्रवण करना वास्तव में हम सबके लिए आनंददायी था। सब आनन्द विभोर हो उठे| लिखीं थीं जब उन्होंने कश्मीर देखा था सांय 5.20 बजे निर्मल नगरी, परम पावनी मों के गौरी रूप में सौ से भी ज्यादा जोड़ों को परिणय सूत्र में बाँधने के लिए प्रकट होने की प्रतीक्षा कर रही थी। गणों और देवी-देवताओं को इस स्वर्ग भूमि पर महसूस " इतने समय के पश्चात् किया जा सकता था। मानो इस उत्सव को देखने के लिए वे सब भी महकते हुए योगियों और योगिनियों के साथ एकत्र हुए हों। हर बक्त व्यक्ति को ऐसा महसूस हो रहा था मानो इस सन्ध्या को कुछ आश्चर्यजनक घटित होने वाला हो। ऐसा प्रतीत होता था मानों हृदय बिना बोले बोल रहा हो, बिना सुने सुन रहा हो और बिना गाए अन्दर ही अन्दर आनन्द गीतों का सृजन कर रहा हो। हिन्दी फिल्म संगीत की धुनों पर नाचते अपने पूर्व प्रवचन में परम पूज्य श्रीमाताजी ने एक बार कहा था कि साधक को, देवी. से तीन आशीर्वाद मांगने चाहिएं, 'सालोक्य', 'सामीप्य "सानिध्य' । परन्तु उन्होंने कहा कि मैने तो आपको "तादात्म्य' भी दे दिया है- परमात्मा से पूर्ण एकरूपता, जो इससे पूर्व जीवित रहते हुए साधकों को कभी नहीं मिली. यह वरदान केवल सहजयोगियों को ही प्राप्त हुआ है। इस तरह श्रीमाताजी ने हमें बताया कि हमें हुए दूल्हो के साथ-साथ बारात के रूप में सहज सामूहिकता के बहुत थे। तभी दुल्हनों को परम पूज्य श्री माताजी की निराकार रूप में गौरी पूजा करने के लिए कहा गया, इससे पूर्व श्रीमाताजी का एक सक्षिप्त प्रवचन सुनाया गया जिसमें उन्होंने दुल्हनों को वैवाहिक जीवन के विषय में बताया था। समय के साथ-साथ चैतन्य प्रवाह बढ़ता गया। संगीतकारों ने कुछ भजन गाए और इसी दौरान सौ से भी अधिक जोड़े पर्दे की ओट में एक दूसरे को जयमाला पहनाने के लिए लाइन में खड़े हो गए। अपनी महान्ता को समझना है और पूर्ण मानव जाति को परिवर्तित करने के कार्य में जी जान से जुट जाना है। से सहजी मच की ओर बढ़ रहे तत्पश्चात् घोषणा की गई कि जन्म-दिवस भी छिन्दवाड़ा के स्थान पर निर्मल नगरी में ही की जाएगी तथा परम पूज्य श्रीमाताजी की 60वीं विवाह वर्षगाँठ पर पूरी सामूहिकता को, सर सी पी. के निमन्त्रण का भी, सामूहिकता ने जोरदार स्वागत किया। पुणे के राजीवबागड़दे और साथियों ने 'मेरी माता का कर्म' कव्वाली गाई, आनन्दमग्न सर सी पी. इसकी धुने पर तालियाँ बजा रहे थे तथा श्री ग्रेगोर और दिनेश रॉय ने भी नाचते हुए जोड़ों का साथ दिया। ये अत्यन्त स्मरणीय क्षण था। सामूहिक कुण्डलिनी भी स्वतः ही सहजियों के साथ नृत्य कर रही थी। स्वतन्त्रता के स्वर्ग में विलय पूरी सामूहिकता श्री आदिशक्ति के चैतन्य से एकरूप हो गई थी। पूजा ठीक 9-00 बजे परम पूज्य श्रीमाताजी ने अपने बच्चों को दिव्य दर्शन प्रदान किए। सातों चक्रों के देवी-देवताओं का आह्वान करते हुए श्लोक उच्चारण के साथ दूल्हा. दुल्हनें सात कदम एक दूसरे की ओर के बढ़े। तत्पश्चात् सभी अपने अपने हवन कुण्ड गए, उनके साथ उनके मातापिता, उनके मामा, और दूल्हों के प्रिय मित्र भी थे, सभी विवाह सम्पन्न करने के लिए आदिशक्त के सम्मुख नतमस्तक थे। आदिशक्ति पूरे दृश्य को बहुत ही बैठ सम्मुख हे, आदिशक्ति इस ऐतिहासिक क्षण के आर्शीवाद के लिए हम आभारी है, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। श्रीमाताजी के प्रस्थान के बाद भी उत्सव में सम्मिलित देवी-देवतागण तथा सहजयोगी श्रीमाताजी द्वारा निर्मलनगरी में छोड़े गए चैतन्य सागर में गोते लगा रहे थे। ध्यानपूर्वक देख रही थीं। परमेश्वरी माँ के सभी जोड़ों को आशीर्वादित. करने का क्षण वास्तव में एतिहासिक क्षण था। इसे शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। सर सी पी. ने श्रीमाताजी के सम्मुख माइक पकड़ा और श्रीमाताजी जय श्रीमाताजी इन्टरनैट विवरण Sita India सहस्रार पूजा रौवेन, फ्राँस (Rouen France) 5.5.1984 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज सहस्रार के दिन इतनी बड़ी संख्या में एकत्र हुए सुन्दर सहजयोगियों को देखकर आपकी माँ प्रफुल्लित है। मेरे विचार से सहजयोग का प्रथम अपना चित्त यदि आपने सहस्रार पर डालना है तो प्रथम कार्य जो आपको करना होगा वह है अपने चित्त को हृदय पर डालना। सहस्रार में हृदय चक्र चरण अब समाप्त हो गया है और नया चरण आरम्भ और हृदय स्वयं, (आत्मा) एक समान (Coinside) हो जाते है। अर्थात जगदम्बा हृदय और आत्मा से एक रूप हो जाती हैं, अतः हम देखते है कि यहाँ योग घटित होता है । हुआ। सहजयोग के प्रथम चरण में सहस्र का खोला जाना आरम्भ बिन्दु था। और शनैः शनैः पूर्णता की ओर बढ़ते हुए, मैं देख रही हूँ कि आज बहुत से महान सहजयोगी है। उत्क्रान्ति की यह अत्यन्त स्वाभाविक प्रक्रिया है जिसमें से आप गुजरे हैं। हम कह सकते हैं कि प्रथम प्रक्रिया कुण्डलिनी की जागृति और इस समय, ये समझ लेना बहुत महत्वपूर्ण है कि हमें एक बहुत बड़ा कदम उठाना है। पूरा सहस्रार तालू अस्थि का भेदन थी। अपने सिर के ऊपर जिस प्रकार आप इन बन्धनों (स्पष्ट नहीं हैं) को देखते हैं, वैसे ही ये आपके सिर में भी विद्यमान हैं। आपके सहसार में हैं। तो सहजयोग के इस प्रकार चलता है, ये सभी चक्र इसी प्रकार से प्रकाश डालते हैं, घड़ी की सुई की तरह से (Clockwise) और हृदय इसकी धुरी है। अतः सभी धर्मों, सभी पैगम्बरों, सभी अवतरणों का सार करुणा (Compassion) है जिसे हृदय के इस चक्र में स्थापित किया गया है। इस प्रकार हम समझ पाते है कि इस द्वितीय चरण में अब भी इसी प्रकार से चक्र बने प्रथम चरण में हमने सुषुम्ना मार्ग तथा मस्तिष्क में बने आपके चक्रों में देवी-देवताओं को जागृत किया, हुए परन्तु अब समय आ गया है कि हम इसे क्षैतिज (Horizontal) स्तर पर फैलाएं, और क्षैतिज स्तर पर चलने के लिए हमें ये समझना होगा कि इस ओर कैसे चलें । हमारे अन्दर करुणा का होना आवश्यक है यह चरण करुणा की अभिव्यक्ति है। सर्वशक्तिमान परमात्मा में यदि करुणा न होती तो उसने इस महान ब्रह्माण्ड का सृजन न किया होता। वास्तव में परमात्मा की शक्ति, या आदिशक्ति ही उनकी करुणा का मूर्त रूप हैं, और यही करुणा ही सारी उत्क्रान्ति को मानवीय स्तर पर इन्द्रधनुष के सात रंगों की तरह से हमारे अन्दर इन केन्द्रों, इन चक्रों, के सात रंग हैं और जब हम पीछे से, मूलाधार से चलें और इसे आज्ञा तक लाएं, यदि आप स्पष्टतः इसे देखे तो यह भिन्न प्रकार से स्थापित है। कहने का मेरा अभिप्राय ये है कि लेकर आई है तथा सहजयोगियों के रूप में आपका उद्धार भी इसी करुणा की देन है, तथा करुणा सदैव क्षमा से पूर्णतः आच्छादित होती है। सहस्रार में, क्योंकि सहस्रार नतोदर (Concave) आकार में है, ये समझना आवश्यक है कि तालू अस्थि क्षेत्र के मध्य (Center) की समरूपता हमारे हृदय से है। अतः द्वितीय चरण में अब हृदय ही केन्द्रबिन्दु है। मुझे आशा है कि आप मेरे कहने का अभिप्राय समझ अतः आप देख सकते है कि इस बिन्दु पर त्रिमूर्ति (त्रिदेव) का मिलन होता है: परमात्मा के पुत्र क्षमा हैं, क्षमा के मूर्तरूप। अतः सर्वशक्तिमान परमात्मा, जो कि साक्षी हैं, माँ जो करुणा हैं और बालक जो क्षमा है, ये सब सहस्रार में हृदय चक्र पर मिलते हैं (एकरूप हो जाते हैं) गए होंगे। चैतन्य लहरी अंक : 3 & 4 -2007 ৪ अब व्यक्ति को ये सीखना आवश्यक है कि अस्वच्छताओं से मुक्ति पानी होगी। सहस्रार को किस प्रकार सुधारा जाए। सहस्रार के शासक देव को आप भली-भान्ति जानते है आप तो आरम्म में हम आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं परन्तु हमारे हृदय पूर्णतः स्वच्छ नहीं होते। उस समय हमारे अन्दर बहुत से मोह सोचते हैं कि सहस्रार का स्थान आपके सिर में है परन्तु यह पूरे ब्रह्माण्ड का केन्द्र है (मध्य बिन्दु)। इसे विकसित करने के लिए अपने तालूअस्थ क्षेत्र में विद्यमान हृदय चक्र पर आपको अपना चित्त डालना होगा तालूअस्थि क्षेत्र पर जब आप अपना चित्त डालेंगे, तो वहाँ देवता (शासक देव) को स्थापित करना थे, बहुत सी असत्य चीजों से हम जुड़े हुए थे तथा हम सोचते थे कि आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करके हम लोग बन जाऐं गे। अत्यन्त, शक्तिशाली आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् भी हम तुच्छ चीजों में फँसने लगे। हम अपने सम्बन्धियों मित्रों, माताओं, बहनों आदि के लिए अनुग्रह (Favour) की याचना करने लगे, और महिलाओं ने अपने पतियों भाइयों और बच्चों के बारे में सोचा। सभी लोगों ने उन लोगों के लिए कृपा दृष्टि की याचना की जो उनसे सम्बन्धित थे। परन्तु मै जानती हूँ कि आपका ये सारा मोह बहुत आवश्यक है। परन्तु इस देवता को पहले अपने हृदय में स्थापित करना होगा। आप लोग अत्यन्त भाग्यशाली है कि सहस्रार के शासक देव साकार रूप में आपके साथ हैं मेरे पृथ्वी पर अवतरित होने से पूर्व जिन लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ। उन लोगों को देवी देवताओं की कल्पना करनी पड़ती थी और उस कल्पना में वे कभी भी पूर्ण नहीं थे परन्तु. जैसे कहते हैं "सहसारे महामाया," आदिशक्ति का वर्णन इसी प्रकार किया गया है । आप यदि उन्हें मानव रूप में देखते हैं तो हो सकता है। कि आप भी उन्हें पूर्णतः न जानते हों, या पूर्णरूप से, पूरी तरह से उन्हें न जानते हो क्योंकि महामाया शक्ति आपकी कल्पना से कहीं शीघ्र ही समाप्त हो गया। किसी भी अवतार का कार्य ये है कि वह अपने भक्तों (अनुयायियों) की इच्छाओं को पूर्ण करे। उदाहरण के रूप में गोपियों ने भी कृष्ण से याचना की कि वे चाहती है कि श्री कृष्ण व्यक्तिगत रूप से उनमें से हर एक के साथ हों। अतः बहुत से कृष्ण रूप धारण करके वे उनमे से हर एक के साथ थे। परन्तु अधिक महान है। अतः व्यक्ति को समर्पण करना मेरे विचार से यह अत्यन्त दिव्य इच्छा थी, यह गोपियों की अत्यन्त दिव्य इच्छा थी। परन्तु जब आप लोगो ने मुझसे अपने भाईयों, बहनों, माताओं, पिताओं के लिए माँगा तो मैंने, जो भी सम्भव था, करने का प्रयत्न किया इसके अतिरिक्त जो क्षेम आपने माँगा, जो आश्रम आपने माँगे. वे सभी चीजें जिनकी आपको आवश्यकता थी, आपकी इच्छा को पूर्ण करने के लिए वह सब उपलब्ध कराया गया। अतः श्री कृष्ण के स्तर पर यह 'योगक्षेम वाहम्यम' था। अतः कृष्ण के स्तर पर क्षेम प्रदान किया गया क्योंकि इसका वचन दिया चाहिए। मस्तिष्क की सीमित कल्पनाशक्ति से देवी (आदि-शक्ति) को नहीं देखा जा सकता। ये भी कहा गया है कि वे " भक्तिगम्या " है? उन्हें आप भक्ति तथा श्रद्धा के माध्यम से ही जान सकते हैं। अतः श्रद्धा होनी आवश्यक है परन्तु श्रद्धा अत्यन्त स्वच्छ श्रद्धा होनी चाहिए. अर्थात हृदय में द्वेष बिल्कुल नहीं होना चाहिए हृदय बिल्कुल स्वच्छ होना चाहिए। हृदय को स्वच्छ रखना बहुत कठिन है। मनुष्य में हमेशा सच्चाई की प्रासंगिक (Relative) समझ होती है, परन्तु वास्तव में सच्चाई पूर्ण (Absolute) है। अतः इसे प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को हृदय में विद्यमान सभी प्रकार की गया था। परन्तु नवयुग में, इससे आगे क्या होना है? अक : 3 & 4 चैतन्य लहरी -2007 देखते हैं तो क्या आपको लगता है कि वह व्यक्ति अब क्योंकि आपके पास अच्छे परिवार हैं, अच्छे आश्रम हैं, अच्छी नौकरियाँ है, सभी लोग प्रसन्न हैं.. तो हमें आपके कब्जे में आ जाए, क्या आप उसकी ओर अवांछित रूप से आकर्षित हो जाते हैं, या उसे देखकर आपके मस्तिष्क में कोई पतित भावनाएं जागृत होती हैं? अबोध व्यक्ति जब किसी सुन्दर व्यक्ति को, किसी महिला को या किसी सुन्दर दृश्य को या किसी सुन्दर रचना को देखता है तो प्रथम प्रक्रिया स्वरूप वह अगले चरण के विषय में सोचना चाहिए। अगला चरण, जैसा मैंने आपकों बताया, करुणा का है, परन्तु अब भी यदि आपमें कोई चक्र दुर्बल है तो सात रंगों के कारण श्वेत हो जाने वाला प्रकाश या तो धुँघला पड़ जाएगा और या फिर दोषमय हो जाएगा। अतः हमारे अन्दर विद्यमान सभी चक्रों की देखभाल निर्विचार हो जाता है, उसमें कोई विचार नहीं होता। व्यक्ति में यदि विचार ही नहीं होगें तो उसके अन्दर स्वामित्व की भावना या किसी भी प्रकार की पतित होना आवश्यक है। हर चक्र पर चित्त डालना और इनमें करुणा - करुणा की भावना डालना आवश्यक है। आइए श्री गणेश के चक्र को लेते हैं। आप श्री गणेश पर चित्त डालें और अपने विचार के माध्यम से उन्हें अत्यन्त सम्मान पूर्वक मूलाधार चक्र पर स्थापित भावना का प्रश्न ही नहीं होता। परन्तु यदि आप श्री गणेश से प्रार्थना करते हैं, चाहे आप उसके पूर्णतः अधिकारी न हों, कि "कृपा करके मुझे अबोध बना दीजिए ताकि मुझे आपसे यह वरदान माँगने का अधिकार प्राप्त हो जाए. जहाँ भी मैं करें क्योंकि अब आपके विचार दिव्य हैं। यहाँ पर आपके लिए ये जानना आवश्यक है कि सहजयोग के प्रथम चरण में मैं आपसे इन चीजों के विषय में बात न कर पाती, इन चीजों के विषय में जाऊँ अबोधिता का माध्यम बनूं और अबोधिता मुझसे प्रसारित हो। लोग जब मुझे देखें तो उन्हें लगे कि मैं अबोध हूँ।" ये करुणा है। करुणा की शक्ति आपको यह अत्यन्त सूक्ष्म कार्य है, अत्यन्त सूक्ष्म कार्य। अब अपनी भावना उस चक्र पर डालें, चक्र प्रदेश है, देश है, और श्री गणेश वहाँ के शासक हैं, और यही देश है। प्रदान करने के लिए उनसे याचना करें। जैसे आप यहाँ इन सुन्दर चक्रों को देख रहे हैं मानो प्रकाश क्षैतिज (Horizontally) रूप में प्रवाहित हो रहा हो! यह प्रकाश अनुकम्पी नाड़ी तन्त्र (Sympathetic अब आरम्भ में जब आप इस चक्र पर चित्त डालेंगे, अपनी भावनाएं इस पर डालेंगे, अपने प्रेम और श्रद्धा की भावनाएं इस पर डालेंगे, अपने प्रेम और श्रद्धा की भावनाएं उन (श्री गणेश) पर डालेंगे और फिर करुणा की याचना जब आप उनसे करेंगे तो आपने कुछ और नहीं माँगना, केवल इतना ही माँगना है, "हे. अबोधिता के देव, विश्व के सभी लोगों को अबोधिता प्रदान Nervous System) पर प्रवाहित होने लगता है। इस प्रकार आप स्वयं शक्तिशाली अबोधिता बन जाते हैं, आप मूर्ख या बचकाने नहीं बनते, बाल- सुलभ हो जाते हैं। पूर्ण आचरण अत्यन्त गरिमामय एवं अबोध हो जाता है। प्रायः यदि आप किसी सम्मानित व्यक्ति को देखें, प्रायः, तो वह व्यक्ति अबोध नहीं होता। क्योंकि वह दिखावा करता है और गम्भीर बनने और दिखाने के लिए और अन्य लोगों को प्रभावित करने करों।" परन्तु यह माँगने से पूर्व आपको स्वयं अबोध बनना होगा। अन्यथा यह अनाधिकार याचना हो जाएगी, या आप कह सकते हैं कि बिना अबोध बने आपको यह माँगने का अधिकार नहीं । के लिए, स्वयं को सम्मानमय दर्शाने के लिए सावधानी बरतता है। परन्तु कोई भी बालक अबोधिता, गरिमा आदि गुणों का दिखावा नहीं करता क्योंकि बालक में तो अबोधिता को समझने के लिए आप स्वयं को समझने का प्रयत्न करें कि किस प्रकार आपका 1 मस्तिष्क कार्य कर रहा है। जैसे, जब आप किसी को वैतन्य लहरी अंक 3& 4 2007 10 बता रही हूँ और आज से आपने इस पर कार्य करना है। मैं आपके साथ हूं, ये बात आप जानते हैं, परन्तु जरूरी नहीं कि इस शरीर में (साक्षात) मैं आपके साथ होऊ, क्योंकि मैं तो ये भी नहीं जानती कि मैं इस शरीर में हूँ भी या नहीं। एक बार जब ये इच्छा कार्य करने लगेगी तो आप, आश्चर्य चकित, चमत्कार तो इन सावधानियों की समझ ही नहीं होती। परन्तु आपमें अबोध गरिमा का यह दुर्लभ संयोजन विकसित होता है। श्री गणेश का एक अन्य गुण क्षेैतिज स्तर पर अपनी अभिव्यक्ति करने लगता है तथा आप विवेकशील बन जाते हैं। परन्तु यह (विवेकशीलता) एक शक्ति है, मैं पुनः कह रही कि आपमें विवेक की देखेंगे। होते हुए हूँ शक्ति विकसित हो जाती है। व्यक्ति को विवेक और माँ जब बच्चे को जन्म देती है तो स्वतः ही विवेक-शक्ति में अन्तर समझना आवश्यक है। शक्ति उसमें दूध बन जाता है। तो प्रकृति इस प्रकार से हर चीज से जुड़ी हुई है। अपनी दिव्य इच्छा में भी यदि का अर्थ ये है कि यह कार्य करती है। उदाहरण के रूप में चाहे आप बिल्कुल न बोलें परन्तु यदि आप कहीं खड़े हैं तो उस अवस्था में विवेक-शक्ति स्वयं कार्य करेगी। जैसे एक सहजयोागी. मान लो. अच्छा सहजयोगी है और वह रेलगाड़ी में जा रहा है तथा रेलगाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है, प्रायः ऐसा नहीं होता. परन्तु यदि ऐसा हो जाता है तो किसी की मृत्यु नहीं होगी तो आपमें विवेक स्थापित हो जाता है जो स्वयं एक शक्ति है जो खुद कार्य करती है। आपको उसे कार्य करने के लिए नहीं कहना पड़ता, ये कार्य करती है, और आप मात्र इसके वाहन बन जाते हैं, आप जुड़े है तो प्रत्यक्ष झलकता है कि आप दिव्य व्यक्ति है। आप मुझे कहीं भी पा सकते हैं गली में चलते हुए. हो सकता है आप देखें कि श्रीमाताजी आपके साथ चल रही हैं! तो ये दूसरा चरण है जिसे हमने आरम्म किया है और यदि आप मुझे अपने बिस्तर पर बैठकर आपके सिर पर हाथ रखे हुए पाएं या ईसा-मसीह या श्री राम रूप में अपने कमरे के अन्दर प्रवेश करते हुए देखें तो आपको झटका नहीं लगना चाहिए। ऐसा घटित होने वाला है, इसके लिए आपको तैयार रहना चाहिए हुए उस विवेक के एक सुन्दर और स्वच्छ वाहन, तब आपके साथ बहुत से चमत्कार हो चुके हैं। आपको विश्वास करना चाहिए कि आप क्षैतिज दिशा में फैल रहे हैं। परन्तु ये सब स्थूल स्तर पर हैं। आपने मेरे सिर से प्रकाश निकलते हुए देखा है और कुृछ चित्रों ने भी आपको चमत्कार दिखाए हैं। परन्तु बहुत सी चाज घटित होंगी. आप ऐसी चीजें देखेंगे जिनकी आप रा कल्पना ही नहीं कर सकते। आपको विश्वस्त करने के लिए कि आप प्रज्ञालोक के नए क्षेत्र में अपनी उत्क्रान्ति सहजयोग के प्रथम चरण में आपको मुझसे व्यक्तिगत रूप से मिलने की आवश्यकता थी। सस्कृत भाषा में हम कहते हैं, "ध्येय", लक्ष्य, आपको जो कुछ भी प्राप्त करना होता था, आप चाहते थे कि वह लक्ष्य आपके सम्मुख आ जाए। और जब वह व्यक्ति आपके सम्मुख आ जाता जिसकी आप हर समय कामना करते थे तो आपको प्रसन्नता होती थी। आप स्वयं को सुरक्षित और आनन्दित पाते थे तब दूसरे चरण में आपमें इतनी अधिक इच्छा नहीं होगी कि माँ हमेशा हमारे सम्मुख हों। आप मुझसे जिम्मेदारी ले लेंगे। यह परमेश्वरी इच्छा है जिसके विषय में मैं आपको की विशेष ऊँचाई तक पहुँच गए हैं, ये चमत्कार घटित होंगे, क्योंकि यह एक नई अवस्था है, जिसमें क्षैतिज आधार पर अब आप प्रवेश करेंगे। इस क्षेत्र में आप स्थूल चीजों की माँग करना छोड़ देंगे तथा सूक्ष्म चीजों के लिए भी आपकी माँग समाप्त हो जाएगी और यह वह समय होगा जब आप अंक : 3 & 4 -2007 चैतन्य लहरी 11 बहुत शक्तिशाली हो जाएंगे जैसा आप जानते हैं मैं जो कहती हैं वह घटित होता है। मैं केवल आपको लिप्त होने की आज्ञा नहीं दे सकती। आपके अन्दर कर पाए तो समझ ले कि आप उन्नत हो रहे हैं। दूसरे लोगों में ज्यादा से ज्यादा भौतिक समृद्धि भी यदि आपके दुख का कारण नहीं बनती, आपको अप्रसन्न नहीं करती तब आपको समझना चाहिए कि आप ठीक कुण्डलिनी का कार्य कर दिया गया है, काफी सीमा प्रकार से उन्नत हो रहे हैं। सहजयोगी बनने के लिए अधिक से अधिक परिश्रम और तकलीफें भी पर्याप्त तक, अब करुणा का, इसे अन्य लोगों तक फैलाने का नया कार्य आपने करना है। प्रकाश ज्यों-ज्यों बढ़ता है में नहीं हैं। आप जो चाहे आजुमाएँ परन्तु सहजयोगी नहीं बन सकते. परन्तु आप लोगों को तो यह (सहजयोग) बिना किसी प्रयत्न के प्राप्त हो गया है। अंतः आप कुछ विशेष हैं। उसका क्षेत्र भी उसी अनुपात बढ़़ता है। अतः आप करुणा के दाता बन जाएं। अपने पिछले प्रवचन में जिसे आप सुन चुके हैं मैने आपसे अनुरोध किया था कि तप किस प्रकार करें। पूर्णतः समर्पित मस्तिष्क के साथ आपको इस किले की तीर्थ यात्रा करनी होगी यह उस तप की एक झलकी मात्र है, जो आपने करना है, क्योकि मुझे बताया गया है कि आपमें से कुछ लोगों को थोड़ी सी कठिनाई उठानी पड़ी और तीर्थ यात्रा के अपने मार्ग पर आपको कुछ कष्ट उठाने पड़े। परन्तु साहसपूर्वक उन स्थानों पर प्रवेश करना भी विनोदमय होता है जहाँ असुर भी नहीं जा सकते. और यदि आप इन तथाकथित कठिनाइयों में आनन्द लेना जानते हैं, तब आपको समझना चाहिए कि आप ठीक रास्ते पर है और स्वतः ही जैसे आप विवेकशील होने लगते है तब आपको समझ लेना चाहिए कि आप ठीक प्रकार से उन्नति कर रहे हैं। अंतः एक बार जब आप समझ जाएगे कि आप विशेष हैं तो आप इसके प्रति विनम्र हो जाएंगे। जब आपमें ये घटित हो जाता है और ये देखकर आप विनम्र हो जाते हैं कि आपने कुछ प्राप्त कर लिया है. कि आपमें कुछ शक्तियाँ है, कि आप अबोधिता प्रसारित कर रहे हैं, कि आप विवेकशील हैं, और उस विवेक के परिणामस्वरूप जब आप अधिक करुणामय, अधिक विनम्र व्यक्तित्व, मधुर व्यक्तित्व व्यक्ति बन जाते हैं तब आपको विश्वास करना चाहिए कि आप अपनी माँ (श्रीमाताजी) के हृदय में है। इस नए चरण में, यह उस नए सहजयोगी का लक्षण है जिसे नई शक्ति के साथ चलना है इसमें आप इतनी तेज़ी से उन्नत होंगे कि बिना ध्यान में गए आप ध्यानगम्य होगे, मेरी उपस्थिति में हुए बिना आप मेरे साक्षात् (उपस्थिति) में होंगे, अपने पिता (परमात्मा) से बिना कुछ माँगे आप आशीर्वादित हो जाएंगे इसी कार्य के लिए किसी व्यक्ति को अपने पर आक्रमण करते देखकर यदि आप अधिक शान्त हो जाते हैं और आपका क्रोध उड़नछू हो जाता है तब आपको समझना चाहिए कि आप ठीक प्रकार से उन्नत हो रहे हैं। आपके व्यक्तित्व पर अचानक यदि कोई विपत्ति या अग्निपरीक्षा आ पड़े फिर भी आपको उसकी चिन्ता आप यहाँ पर है। सहसार के इस महान दिवस पर माल मैं पुनः इस नए चरण में पुनः आपका स्वागत आज करती हूं। न सताए तब समझ लें कि आप उन्नत हो रहे हैं। ऊँचे से ऊँचे स्तर की बनावट भी यदि आपको प्रभावित न परमात्मा आपको धन्य करें। रूपान्तरित) मूलाधाट व नाभि चक्र मावलंकर हॉल; नई दिल्ली, दिनांक : 15.3.84 माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन पूज्य परम होते है कि वो जो कहते हैं कि "परमात्मा वगैरह सब ढकोसला है, यह झूठी चीज़ है। परमात्मा नाम की कोई चीज़ ही नहीं है।" परमात्मा को खोजने वाले सभी सत्य साधकों को हमारा प्रणाम! आज दो तरह के गाने आपने सुने हैं, पहले गाने में एक भक्त विरह में परमात्मा को बुलाता है। इसे अपराभक्ति कहते हैं और जब परमात्मा को पा लेता है, जैसे कबीर ने पाया था. तो उसे पराभक्ति कहते हैं। दोनों में ही भक्ति है। इसे कृष्ण ने अनन्य भक्ति कहा है- जहाँ दूसरा कोई नहीं होता, जहाँ साक्षात् परमेश्वर अपने सामने होते हैं, उस वक्त जो हम लोगों का भक्ति का स्वरूप होता है उसे उन्होंने पराभक्ति कहा-अनन्यभक्ति। सब तरह के विचार करने का अधिकार परमात्मा ने मनुष्य को दे दिया है। यह मनुष्य को दी हुई देन परमात्मा की ही है कि वो स्वतन्त्र है। जो चाहे वो सोच सकता है इस बुद्धि से । लेकिन हम लोगों को तीनों दशा में ये ही सोचना चाहिए कि आज तक हमने भी किया, चाहे परमात्मा में विश्वास किया, जो कुछ उनको भजा या उनके ऊपर लैक्चर दिये, या उन पर किताबें पढ़ी, जो भी मेहनत करी या हमने उन पर विश्वास नहीं किया, उनको कहा कि वे है नहीं, उनसे हमने मुठभेड़ की और कहा कि देखते हैं परमात्मा कहाँ है? इन सभी दशाओं में हमें यह सोचना चाहिए किन्तु जब हम परमात्मा को याद करते हैं उनको स्मरण करते हैं, तब उसकी आदत-सी हो जाती है। जब इन्सान को इस चीज की आदत-सी हो जाती है, तो उस आदत से छूटने में उसे बड़ा समय कि "इसने हमारा क्या भला किया? हमें क्या लाभ हुआ? हमारे अन्दर कौन सी ऐसी कोई नई प्रकृति आ गयी जिसके कारण हमने जो भी किया सो ठीक है। हमारे बाप दादे भी यही करते आए हैं । और उनके लग जाता है। वह मानने को तैयार ही नहीं होता कि उसकी यह जो साधना है, यह खत्म होने की बेला आई है। और इसी वजह से भक्तों ने भी दृष्टाओं को, सन्तों को, मुनियों को पहचाना नहीं। आप जानते हैं इतिहास में हमेशा सन्तों को इतनी परेशानियाँ उठानी पड़ीं। यह नहीं कि सबने उनको सताया, लेकिन जिन्होंने सताया उनको किसी ने रोका नहीं और उनको बाप दादा भी यही करते आए। और हजारों वर्षों से यही चीज़ चलती रही ।" सहजयोग में हम लोग ईड़ा और पिंगला दो नाड़ी पर ध्यान दे रहे थे। इसमें से जो ईड़ा नाड़ी है. समझाया नहीं कि ये सन्त हैं, साधु है। यह भक्ति-प्रबल है। ईड़ा नाड़ी पर लोग भक्ति में लीन हो जाते हैं, अपनी भावना में बह जाते हैं, और अब हमारे समाज में, खासकर के शहरों में, विविध विचारों के लोग रहते हैं। कुछ तो जो कि परमात्मा में विश्वास करते हैं। इस तरह विश्वास करते हैं, कि जैसे कि किसी मंदिर में गयें, नमस्कार कर दिया। कुछ लोग हैं जो कहते हैं "नहीं, परमात्मा की साधना करनी चाहिए और धर्म से रहना चाहिए, उनके मंगल गीत गाने चाहियें, हमेशा उनको भजना चाहिए, जिससे वो हमेशा याद रहें।" कुछ लोग ऐसे परमात्मा में लीन होकर के आनन्द से उनका गान गाते हैं। हमारे महाराष्ट्र में, जो कि मैं सोचती हूँ हिन्दुस्तान में एक बहुत बड़ा प्रदेश है. क्योंकि यहाँ पर पारम्परिक लोग धार्मिक हैं और यहाँ का आराध्य देव श्री कृष्ण विट्ठल है. लोग एक-एक महीना हाथ में झांझर लिए हुए गाते हुए जाते हैं विट्ठल, विट्ठल, विट्ठल", मुँह में तम्बाकू रखे। अब तम्बाकू जो है; ये अक : 3 4 -2007 13 चैतन्य लहरी कृष्ण के विरोध में है बिल्कुल विरोध में पड़ती हैं. क्योंकि विशुद्धि चक्र में श्री कृष्ण का स्थान है और उससे "विट्ठल विट्ठल" कह रहे हैं। श्री कृष्ण का नाम ले रहें हैं, और उनका जो विरोध है उसी को मुंह में रखे चले जा रहे हैं। ऐसे बहुत से लोग मैंने देखे जो मुझसे आकर कहते है कि "माँ, हम तो जिन्दगी भर विट्ठल ही की वारी करते रहे। हर बार वहाँ पैदल जाते रहे और एक-एक महीना हमने मेहनत करी। बहुत से पढ़े लिखे लोग भी ऐसा कार्य करते हैं- "लेकिन हमें तो परमात्मा मिले नहीं।" एक मुसलमान लेकिन जो नहीं हुआ, जिसने साक्षात्कार नहीं पाया उसके लिए उचित था कि वो परमात्मा को याद करे। लेकिन यह सब करने से गर परमात्मा को याद किया और परमात्मा ही नहीं मिले-जैसे आपने कहा कि यह आकुल-व्याकुल लोग ढूंढ रहे हैं परमात्मा को, और उनको अगर परमात्मा नहीं मिले-तो जरूरी है कि मनुष्य कहेगा कि, "हाँ, परमात्मा नाम की कोई चीज ही नहीं है ।" लेकिन क्योंकि हमें उसका अनुभव नहीं हुआ, प्रचीति नहीं हुई इसलिए उस चीज को पूरी तरह से मना करना, मेरे ख्याल से, अशास्त्रीय है। उसको जाने बगैर, उसकी प्रचीति पाए बगैर उसको कह देना कि वो नहीं है-कोई सी भी चीज़ हो-मेरे ख्याल से एक तरह से escapism (पलायनवाद) है। तिंदि साहब थे, जो कि बहुत परमात्मा को खोजते थे अन्त में वो हिन्दू हो गए। उनका कहना था कि परमात्मा मुसलमान होने से तो मिलता नहीं, चलो हिन्दू होकर मिल जाए, तो वो हिन्दू हो गये। हिन्दू होकर के वो इसी तरह से "विट्ठल विट्ठल" करते जाते थे तो उन्होंने कहा कि "पहले तो नमाज पढ़-पढ़ के मेरे तो घुटने छिल्व गए, फिर वारी कर कर के मेरे तलुए सब छिल गए, और यह सब होते हुए परमात्मा तो मिला नहीं। जो विट्ठल के सामने लोग खड़े हैं, वो भी परमात्मा के पास नहीं, और जो लोग वहाँ जाते है वो भी परमात्मा के पास नहीं।" हम लोग परमात्मा है, चाहे आप उसे माने या न मानें । मैंने आपको बताया था कि यह फूल इसको कौन बनाता है? इन फूलों से फल कौन बनाता है? हमें अपने माँ-बाप जैसे कौन बनाता है? कौन हमारे अन्दर मैने यह देखा कि हमारे हृदय को चलाता है? हमारे अन्दर अनेक ऐसे व्यवहार है जो medical science (चिकित्सा विज्ञान) कभी श्री समझा नहीं सकती कि कैसे होते हैं। इसीलिए ही मनुष्य भक्ति पर उतरता है और परमात्मा को याद इसी प्रकार हर समय कभी कोई अखण्ड पाठ कर रहे हैं, कभी कोई परमात्मा को याद कर रहे हैं। करता है। पिंगला नाड़ी पर जब हम आते हैं तो वहाँ पर मनुष्य ने यह सोचा कि परमात्मा ने जो यह सृष्टि रची इस प्रकार हम अपनी भक्ति में परमात्मा को याद करते रहते हैं उससे एक चीज़ जरूर है कि है इस सष्टि में जो पाँच. पंचमहाभूत हैं, जो परमात्मा की तरफ हमारा चित्त है। नामदेव ने कहा है elements है उसके बारे में जान लिया जाए, उन कि एक लड़का गुर पतंग उड़ा रहा है और पतंग आकाश में जा रही है, उधर सब बच्चे उसके साथ खेल रहे हैं। वो बातें भी कर कहा है, सबसे मज़ाक कर पर प्रभुत्व पाया जाए। तो उन्होंने यज्ञ-आदि वगैरह शुरु कर दिया, वेद वगैरह रचे गये। पर वेद में भी बिल्कुल शुरु में लिखा है कि वेद से अगर 'विद' नहीं हुआ, अगर उसकी प्रचीति नहीं आई. तो सारा वेद बेकार हो गया। है और यह करते वक्त भी उसका चित्त उसी रहा आकाश के ऊपर तनाया हुआ जो उसका पतंग है, उसकी ओर है। इस प्रकार एक साक्षात्कारी चित्त उसी इस भारतवर्ष की एक महिमा है, बहुत बड़ी महिमा है। कोई कितना भी बड़ा शास्त्री हो, पंडित हो, मनुष्य का हो जाता है कि उसका ओर होता है। पूरा अक : 3 & 4 - 2007 चैतन्य लहरी 14 मिलेगा यह बड़े-बड़े ऋषि- मुनियों ने इसका पता वेद व्यास हो, कुछ हो, लोग उसके सामने हाथ नहीं जोड़ते। पर अगर कोई सन्त, फकीर हो, हाथ में झोली लिये भी हो, और संत हो, माना हुआ संत, तो लोग उसके सामने जाते हैं, फिर वो राजा हो.. चाहे वो कुछ हो। यह अपने देश की बड़ी महिमा है। ऐसे आपको कहीं भी नहीं दिखाई देगा। यह इसी देश में होता है क्योंकि इस देश की अपनी एक बड़ी विशेष पुण्य हैं। धर्मात्मा संत-साधु हुए है। हमारी दृष्टि जो बाह्य की ओर लग गई है इससे सबसे बड़ा प्रश्न खड़ा हुआ है कि अब सबकी दृष्टि अन्तर्मुख है। लगाया और कुछ-कुछ इस पर किताबे भी हैं। लेकिन बड़े सकील तौर की हैं, और दूसरा यह भी है कि ये उपलब्ध भी नही। यह सात चक्र हमारे अन्दर ऐसे झुक बनाये हुये हैं, बढ़िया तरीके से. कि जैसे कि एक के बाद एक माने सीढ़ियाँ हमारे उत्क्रान्ति में बनाई गई। जब से हम कार्बन थे, तब से लेकर के धीरे-धीरे जैसे हम उठने लग गए वैसे-वैसे हर उत्क्ान्ति का जो एक यहाँ बड़े-बड़े पुण्यात्मा, एक टप्पा हमने हासिल किया, उसके अनुसार जैसे कि एक एक माईल-स्टोन (Milestone) बनाया गया कैसे करें? और सबसे पहले कि लोग जानें कि इसी देश में, इसी महान देश में ही यह सारा ज्ञान बसा सबसे पहले कार्बन का जो हमारे अन्दर प्रादुर्भावि हुआ; वो है पहला चक्र, जिसे कि 'मूलाधार-चक्र' कहते हैं। इस चक्र के बारे में भी बहुत से लोगों को बहुत गलत-फ़हमियाँ हैं। कुण्डलिनी के बारे में तो, जिसे देखिये वो ही लिखने लग जाता है। मैंने ऐसी भी किताबें पढ़ी हैं कि जिनको पढ़ने के बाद आदमी यह कहेगा, 'कुण्डलिनी के पास जाने की कोई हुआ है। अब जो भी बातें मैं आप से बता रही हूँ, इस को आप इस तरह से देखिए जैसे एक Scientist (वैज्ञानिक) के सामने कोई Hypothesis (धारणा) रखी जाये। अगर आप उसको इस दृष्टि से देखें तो आपको समझ में आ जायेगा कि जो मैं बातें कह रही हूँ वो आपको पहले देख लेनी चाहिये, जान लेनी चाहिये, फिर प्रचीति आने के बाद में उसको आपको जाँचना चाहिये कि यह बात सत्य है या नहीं; परमात्मा माद जरूरत नहीं। एक साहय ने लिखा है कि उसको कुण्डलिनी जागरण हो गया, उसके अन्दर बिजली चमकने लग गई। किसी ने लिखा कि मेरे अन्दर छाले आ गए। किसी ने कहा मैं मेढक जैसे कुदने लग पड़ा। हिन्दी में ही नहीं, अंग्रेजी में भी ऐसी किताबें है या नहीं। लेकिन पहले धारणा तो करनी पड़ती है। ये धारणा तो करनी पड़ती है कि ऐसी ऐसी बातें हैं, इसे चाहिये। उसी बात पर आप अगर उखड़े 1 बहुत छपी हैं। सुनना हुये हैं तो फिर आगे बढ़ ही नहीं सकते। पहले आप इसे धारिये, जो मैं बात कह रहीं हूँ. इसको आप वास्तविक कुण्डलिनी आपकी माँ है। हरेक इन्सान की माँ है। अपनी एक-एक व्यक्तिगत माँ है। और यह माँ आपको आपका दूसरा जन्म देती है। यह जो माँ है, यह माँ क्या आपको कोई तकलीफ देगी? समझने का प्रयत्न करें। मैंने आपसे इन तीनों नाड़ियों के बारे में संक्षिप्त में बताया हुआ था। आज मैं आपको अलग-अलग चक्रों के बारे में बताना चाहती हूँ। आपके अन्दर सात चक्र मुख्य हैं। यह नहीं कि सात ही चक्र हैं। सात मुख्य चक्र माने जाते हैं। यह सब ज्ञान हमारे देश के मूल का ज्ञान है। यह आपको किताबों में नहीं ज़ब आपका जन्म हुआ था तो आप की माँ ने आपको तकलीफ दी, या सब तकलीफ़ खुद उठाई? फिर यह जो माँ, जो विशेष एक देवी माँ है, तो क्या आपको तकलीफ़ देगी? या आपको परेशान करेगी? बुद्धि से भी काम लेना चाहिए। जो लोग इस तरह की बातें करते हैं या तो वो इस काबिल नहीं है कि कुण्डलिनी चैतन्य लहरी अक : 3 & 4 -2007 15 पर कोई भी हाथ चलाएं। हो सकता है वो धर्मपरायण न हों, अधर्मी हों। उनके चरित्र अच्छे न हों, वो रुपया पैसा बनाते हों, लोगों को ठगते हों। हर तरह की उनमें गड़बड़ हो सकती है। हो सकता है कि उनको इसके बारे में कुछ भी जानकारी न हो। हो सकता है कि उन पर किसी ने कुछ भूत-प्रेत विद्या करके उनको भस्मसात कर लिया हो। कुछ मी हो सकता है। लेकिन कुण्डलिनी जागरण से आज तक हजारों लोगों की कुण्डलिनी का जागरण हो गया है सहजयोग से लेकिन हमने कहीं नहीं देखा कि लोगों में ये परेशानी या तकलीफ होती है। का धन है, जिसे हम लोग innocence कहते हैं, वो मूलाधार चक्र पर स्थित है। ये कुण्डलिनी जो है ऊपर स्थित है, और चक्र नीचे में हैं। कुण्डलिनी स्वयं मूलाधार में बसी है। 'मूलाधार' किसे कहते हैं कि 'मूल का आधार। अगर मूल कुण्डलिनी है, तो उसका आधार माने उसका गृह, उसका घर जो है वो आपकी ये त्रिकोणाकार अस्थि है, और उसके नीचे गणेश तत्व जो बसा हुआ है वो आपके अन्दर बसी हुई अबोधिता है। आजकल तो चालाकी करना, होशियारी दिखाना, बदतमीज़ी करना, या ऐसे कहें कि अपने कुण्डलिनी खुद सूझ-बूझ रखती है। पूरी तरह की सूझ-बूझ कुण्डलिनी के अन्दर है। और जैसे कोई एक टेप-रिकार्ड होता है उसी प्रकार इस साढ़े तीन वलह में इसमें आपका पूरा इतिहास लिखा हुआ है। जब से आप कार्बन थे, तब से आज तक का पूरा चरित्र के साथ हर समय विडम्बना, यह एक तरह का लोगों को बड़ा शौक हो गया है। लोग सोचते है कि इसमें उन्होंने बहुत कुछ कमा लिया। अपनी पवित्रता के साथ छलना करना, अपने साथी के साथ हमेशा कोई न कोई उपाधि लगा लेना, इस पर हमारा बड़ा इतिहास इसमें है। यह जानती है कि आप ने क्या क्या गलतियां की, आप कौन से गलत रास्ते पर गए, आप ने क्या क्या अपने साथ दुर्व्यवहार किया है, दूसरों के साथ दुर्व्यवहार किया है, क्या आपने ऐसे काम किए हैं जो परमेश्वर के मार्ग में एक तरह से रुकावटें हो सकते हैं, बधिक हो सकते हैं। वो सब कुछ तो जानती है। उसके पास इसका हिसाब किताब पूरा है । विचार चलता है कि किस तरह से कैसे क्या किया जाए। यह चक्र जो है हमारे अन्दर बहुत महत्वपूर्ण है। हालांकि इस देश में यह चक्र बहुत बलवान है क्योंकि कुछ भी हो, इस देश में पवित्रता का अर्थ लोगों को मालूम है। लोग गलत काम करते हैं. लेकिन वो जानते हैं कि यह गलत है। इन परदेश में मैंने देखा कि वो गलत काम करते हैं, इस तरह से विचित्र बातें करते है कि समझ में नहीं आता कि यह इन्सान है या जानवर हैं और वो यह सोचते हैं कि उन्होंने बड़ी कमाई कर ली, वे तो एकदम freedom (स्वतन्त्रता) लेकिन वो आपकी माँ है। माँ ये नहीं सोचती कि मेरा बेटा कितना दोषी है। वो यह सोचती है किस तरह से इस बेटे को जो है, मैं उसका जो धन है उसे दे दूँ। किस तरह से उसे मैं बचा लूं। माँ को ये नहीं विचार आता- समझ लीजिए किसी का बच्चा डूब रहा हो, तो माँ यह नहीं सोचती है कि इसने मेरे साथ में आ गए। उन्होंने बहुत कुछ पा लिया कि इस तरह के गन्दे काम वो कर रहे हैं। क्या क्या दुष्टता की, कितना सताया । वो सोचती है जो भी हो सब माफ़। इस वक्त यह बच्चा बच जाए। इसी प्रकार से ये माँ आपकी यही सोचती है कि आप को किसी तरह से बचा लिया जाए। लेकिन इस माँ के लिए आप का जो बाल्यावस्था में पाया हुआ अबोधिता श्री गणेश विशेष करके जो बनाए गए हैं, उनका रूप ऐसा है कि उनके सिर पर हाथी का सिर है। वजह यह कि हाथी एक पशु है, और पशु कभी भी अहंकार एकत्रित नहीं करता। इसीलिए उसके अन्दर चैतन्य लहरी अंक : 3 & 4 - 2007 16 अहम् की भावना नहीं है; वो चिर का बालक होता है। और गणेश जी चिर के बालक हैं। लेकिन उनके अन्दर ले गए और पता यह हुआ कि ये जगह पर एक फुकीर ने आकर बताया कि "यह जगह माँ की है, इसे छोड़ दीजिए।" जब हम लोगों ने जाके देखा तो उसके अंदर से, चैतन्य की लहरियाँ- ठंडी ठंडी, लहर-सी वो आयुध है और जो विशेष तरह के उनके पास में जो व्यवस्थाएँ हैं, उन सब व्यवस्थाओं से वो मनुष्य के अन्दर जो pelvic plexus है उसको सम्मालते हैं। पर ये इतने शक्तिशाली हैं कि अगर आप किसी भी से चल रही थीं- साक्षात् सारा सहसार । लेकिन यह चीज सिर्फ एक फुकीर या कोई तरह कुण्डलिनी पर आघात करने का प्रयत्न करें, या जो आदमी धर्म-रहित है. जिसमें चरित्रहीनता है. ऐसा आदमी कोशिश करे कि कुण्डलिनी को चढ़ाए वो इस कुदर नाराज़ हो जाते हैं (गणेश सबसे नीचे बैठे हुए हैं लेकिन इसके साथ ही ईडा नाड़ी ऊपर जुड़ी हुई है) कि ईड़ा नाड़ी पर उनका क्रोध जब चढ़ता है तो आदमी के शरीर में यहाँ से लेकर यहाँ तक (बाएँ सन्त-साधु या कोई सहजयोगी ही बता सकता है। जिसको इसकी अनुभूति नहीं है वो नहीं बता सकता है कि यह चीज़ जागृत या यह झूठ है। या यह सच है या झूठ है। इसके लिए आपको तो ऊँची संवेदना, जिसे कि हम लोग सामूहिक संवेदना कहते हैं, उसमें जागृत होना पड़ता है। फिर मैं कहूँगी कि आपको जागृत होना पड़ता है। सिर्फ लेक्चरबाजी से नहीं होता है। आपको होना है। जब तक आप इसमें 'प्राप्त' न भाग में नीचे से ऊपर तक) blisters (फफोले) भी आ सकते हैं। ऐसा आदमी गर्मी में तड़प सकता है. उसको तकलीफ हो सकती है। यह गणेश का तत्व जो है, जितना सुखदाई है उतना ही क्षोभकारी है। अत्यन्त क्रोधवान है। होंगे, जब तक आपके अन्दर इसकी 'प्रचीति नहीं आएगी, जब तक यह आपको 'विद' नहीं होगा, तब तक आपमें और उन साक्षात्कारियों में हमेशा अन्तर रहेगा इस चक्र की विशेषता यह है कि जब कुण्डलिनी का जागरण होता है- जैसे आप मेरे ओर अपने हाथ खोल के बैठें, तो अच्छा रहेगा, भाषण करते ही काम हो सकता है, आप मेरे ओर इस तरह से हाथ करके बैठे हुए हैं. तब आपकी ये जो पाँच उंगलियों में, जो हम भारतवर्ष में गणेश आठ अष्ट विनायक' आप जानते हैं, ये जागृत है, पृथ्वी के तत्व से निकले हैं। अब हम लोग मानते तो हैं कि वैष्णों देवी, वहाँ जाना चाहिए। इस मंदिर में जाना है, उस मंदिर में जाना है। लेकिन यह जागृत तत्व क्या है? क्या हम जानते हैं ये जागृत तत्व क्या है? क्या ऐसी कोई सच्ची बात है कि वास्तविक कोई ऐसे जागृत तत्व का कोई स्थान है? ऐसा स्थान है। क्योंकि पृथ्वी तत्व जो है, यह स्वयं साक्षात् जागृत है। ends Sympathetic nervous system इस प्रकार सात चक्र left side में और सात चक्र right side में अब यह जो सात चक्र हमारे left और right में हैं, जैसे मैंने बताया था, आपस में मिल जाते हैं, और सुषुम्ना नाड़ी ऐसे उनके बीच में होती है । अब आप जब मेरी ओर हाथ करके बैठे हैं, तो धीरे-धीरे, धीरे-धीरे इसमें से चैतन्य बहना शुरु हो जाता है। जब चैतन्य बहना शुरु हो गया तो वो जाकर वहाँ (मूलाधार चक्र) पर श्री गणेश को खबर देता है कि अब कोई अधिकारी सामने खड़ा है। यह अधिकार आपको स्कूलों में, कालेजों में या किसी theosophical society 1 theology आपको आश्चर्य होगा, मैं एक छोटी-सी जगह मुसलवाड़ी में गई, वहां पर लोगों ने मुझे बताया कि यह जागृत स्थान है, और वहां पर कोई भी दीवार नहीं बना सके। एक अंग्रेज ने कहा कि यहाँ पर अजीब-सी जगह, यहाँ पर कोई आप दीवार नहीं बना सकते. कोई बन्ध नहीं बना सकते। तो बंध को ऐसे सीधे लेने के बजाए उसे गोल घुमा दिया. और फिर इस तरह से चैतन्य लहरी अंक : 3 & 4 2007 17 पठन आदि से किसी से भी नहीं मिलता। यह अधिकार जो, है यह साक्षात्कारी मनुष्य को ही अधिकार है। जब ऐसा व्यक्ति जो जानकार हो, उसके सामने आप देखें, छोटा सा दोष देख लें, कि जब राम का जन्म होता है, तब उपवास करेंगे, कृष्ण का जन्म होगा तब उपवास करेंगे। और नर्कचतुर्दशी, जिस दिन नर्क का द्वार खुलता है, उस दिन बैठकर सवेरे खाना खायेंगे। सब उल्टी बातें, बिल्कुल उल्टी बातें। यह पता नहीं किसने सिखाया । जिस दिन आपके घर में बेटा पैदा इस प्रकार हाथ फैलाते हैं, तो गणेशजी को पहले इसका न्यौता मिलता है कि आप कुण्डलिनी से अब कहें कि आपको निमन्त्रण है और आप चढ़ें। गणेश जी के बगैर यह काम नहीं हो सकता। अबु अगर किसी डाक्टर से कहा जाए कि गणेश जी हैं यह आपके prostate gland को देखते हैं, सम्भालते हैं, संवारते हैं तो कहेंगे कि "क्या बात कर रहे हैं माता जी होगा उस दिन आप क्या उपवास करेंगे? जिस दिन दत्तात्रेय पैदा हुए उस दिन उपवास है देख लीजिए जिस दिन जिसका जन्म हुआ उस दिन उपवास करते हैं उस दिन उपवास करने की क्या जरूरत है? मेरी गणेश जी का और medical का क्या सम्बन्ध?" समझ में नहीं आता। दूसरा यह कि परमात्मा के नाम पर क्यों उपवास करते हो? उसने कब कहा था कि Medical Science जो है, यह तो ऊपर में है। लेकिन उसके जड़ में अगर श्री गणेश बैठे है तो एक मिनट अपनी बुद्धि से यह पूछे कि "अगर इससे हमारे प्रश्न किसी तरह से सुलझ सकते हैं. तो क्यूँ न इस चीजू को हम समझे कि श्री गणेश क्या हैं और उनका हमारे अन्दर जागृत होना कितना जरूरी है? एक महाशय थे, वो हमारे पास आये, और कहने लगे कि "माँ मुझे prostate की तकलीफ हो गयी है, डाक्टर कहते हैं कि आपरेशन करवाओ। वो बड़े सहजयोगी थे, दूसरे गणेश भक्त। मैंने कहा आप इतने बड़े गणेश भक्त हैं, आपको कैसे prostate हो गया? मेरी समझ में नहीं आता। क्या गणेश आपसे नाराज हो गए हैं? कहने लगे "माँ, पता नहीं मैं तो बड़ी गणेश की भक्ति करता हूँ।" मैने कहा "अच्छा। तो भई चना खाओ। आप उपवास करिये? आपको करना है आप करिये। आपको शौकिया उपवास करना है, करिये। इस देश में तो हम इतनी गलतियाँ करते हैं और बिल्कुल नासमझी से, जिसने जैसे कह दिया। स्त्रियाचार, ब्राह्मणाचार की वजह से हमारे धर्म में भी इतने दोष । आ गए हैं। वही हाल मुसलमानों का है, वही हाल इसाईयों का है, यही सिक्खों का है। सब का एक ही है कि अपनी बुद्धि से हम उसको समझते नहीं हैं कि किस वंक्त क्या करना चाहिए। अब इनसे मैंने कहा कि खाइंये। आपको विश्वास नहीं होगा, उन्होंने दो खाया। मैने कहा "अब छोड़िये" आज से आप यह promise (प्रतिज्ञा) करिये कि संकष्टी के दिन मोदक आप बना कर खायेंगे। क्योंकि उनको मोदक प्रिय हैं, इसलिए आप मोदक बना के खायें। तो कहा कि "माँ आज हमारा प्रसाद चना है, तो चना खाइये।" तो इधर उधर देखने लग गये। मैने कहा "आनाकानी क्यू कर रहे हैं?" कहने लगे "आज संकष्टी है. और संकष्टी में मैं उपवास करता हूँ। मैंने कहा "यही तो में आपको promise (वचन) देता हूँ कि मैं मोदक खाऊंगा।" आपको आश्चर्य होगा कि उनका pros- tate -पूना वो पहुँचे और उन्होंने चिट्टी भेजी कि माँ मेरा prostate गायब - उसकी तकलीफ़ ही गायब। इसी प्रकार धर्म में हम अनेक, अनेक, अनेक गलतियाँ करते हैं। और इस लिए जब हम कहते हैं कि "हमने धर्म धारण किया है." हम यह करते हैं वो करते हैं, फिर हमें माँ क्यों हुआ?" इसका परमात्मा पर कोई दोष मत दीजिये दोष है जिसने आपको समझाया वजह है। जिस दिन गणेशजी का जन्म हुआ तो उस दिन आप उपवास कर रहे हैं? यह किसने आप को बताया है कि जिस दिन जन्म हो उस दिन आप उपवास करें?" अब धर्म में कितने दोष है देख लीजिये। से लोग कहते हैं कि "धर्म हम इतना करते है। बहुत हम इतने धार्मिक है माँ, तो भी हम बीमार हैं!" अब चैतन्य लहरी - 2007 अक : 3 & 4 18 me' पर ईसाई लोग ये जाकर पता नहीं लगायेंगे कि और कौन हैं। उन्होंने तो बता दिया कि ईसा के सिवाय और कोई नहीं। इस्लाम ने बना लिया कि मोहम्मद के सिवाय और कोई नहीं। इस तरह से उन्होंने सबको एक एक छाँट-छाँट के अलग कर दिया, जैसा कि एक आदमी लटका हुआ कहीं पड़ा हुआ था। सबकी रिश्तेदारी आपस में है। सिर्फ हम ही लोग उनके नाम और बताया। जैसे कि लोग बताते हैं कि जब कुण्डलिनी जागरण होता है तो बड़ी गर्मी होती है और ऐसा होता है, वैसा है। सब झूठ है। एकदम झूठ है। ऐसा कुछ भी नहीं। इस बात पर आप बिल्कुल मत विश्वास रखें । यह लोग सब पैसा बनाने वाले आपको डरा- डरा के ऐसा दिखाते है कि यह बड़े कहीं के पहुँचे हुए लोग है। और इस से आपको गलत रास्ते पर डाल देते हैं. और ले लेकर के झगड़ा करते हैं। इस चक्र के आस-पास आप देखिये कि ये जो यह पेट का हिस्सा है. इसमें आप फिर ये पूछने लग जाते हैं कि "भई हमारी कुण्डलिनी जागरण हुआ उससे तो हमारी हालत ही खराब हो गई। हम तो पागलखाने पहुँच गए।" होना ही है। क्योंकि वो कुण्डलिनी का जागरण नहीं वो a sympathetic nervous system overactivity हो जाती है जिससे आप पागल हो सकते हैं। दस गुरु के तत्व हैं। इसमें से आप सोच सकते हैं कि शुरु से, आदि नाथ' से लेकर के उनके गुरु हुए जैसे Socrates हैं, Lao-Tse, यह सब इसी में आते हैं। Moses हैं, Abraham। और अपने देश में राजा जनक, नानक, मोहम्मद साहब और Zoroster (जरथस) और अभी आखिरी वक्त जो हुए हैं, वो हैं श्री साईनाथ 'शिरडी' के। यह सब इनके दस मुख्य अब श्री गणेश के बाद स्वाधिष्ठान चक्र है । उससे ऊपर में जो चक्र है वास्तविक यही दूसरा चक्र है जिसे नाभि चक्र कहते हैं। क्योंकि इसी चक्र से स्वाधिष्ठान चक्र बाहर निकल कर के, कमल जैसे अवतरण हुए। वैसे अनेक गुरु हुए हैं, संसार में, लेकिन दस मुख्य अवतरण है। अब जो लोग गुरु को मानते है. कि "गुरु को मान लिया" देखिये को मान गुरु निकलता है, और चारों तरफ घूम-घूम करके- और यह जो बीच में जो जगह बनी हुई है जिसे कि भवसागर कहते हैं, अपने पेट की जो जगह है जिसे 'भवसागर' कहते हैं, अपने पेट की जो जगह है जिसे Viscera लेना भी एक बड़ी गलत फहमी की बात हैं। गुरु वही है जो साहिय से मिलाये । जो साहिब से मिलाए, जो परमात्मा से मिलाए, वही गुरु है। लेकिन हमारे यहाँ हर तरह के गुरु निकल आये है। और आप जानते हैं कि हम इतने विक्षिप्त हो गए है, इतने भ्रातमय हो गए हैं कि कोई भी आदमी जेल से छूट करके और बैठ जाये गेरुआ वस्त्र पहन के; लगे उसके चरण छूने। कहते हैं, इसके पूरी इसको. जितने भी उसमें organs है, इन्द्रियाँ है, सबको वो शक्ति देते हैं। इस चक्र में problem आने से diabetes वगैरह बीमारियाँ हो जाती हैं। लेकिन आज उस के जड़ में जो चक्र हैं, जिसे कि नाभि चक्र कहते हैं उसके बारे में मैं आपको बताऊँगी। पडली तो बात यह है कि गेरुए वस्त्र से हमारा क्या सम्बन्ध? हम तो गृहस्थ के लोग हैं। गृहस्थियों का गेरुए वस्त्र से कोई भी सम्बन्ध नहीं होना चाहिए। आप जानते है, अगर आपने पढ़ा हो कि वाल्मीकि रामायण में, सीता जी ने पूरा chapter (अध्याय) इन सन्यासियों के बारे में कहा है, कि जो सन्यासी हैं उनको शहर में तो आना ही नहीं चाहिए। किसी गाँव में नहीं आना चाहिये। उसकी बहुत सारी मर्यादायें बताई। उस में यह कहा कि गाँव के बाहर उन्हें झोपड़ी नाभि चक्र जो है, यह विष्णु का चक्र है, नारायण का चक्र है। अब कोई कहेगा कि 'माँ, आप तो सब हिन्दू धर्म में कह रहे हैं।" लेकिन और भी लोग बहुत सारे सब इसी से विघटित हैं। ईसा मसीह ने भी कहा है कि जो मेरे विरुद्ध नहीं है, वो मेरे साथ E. Those who are not against me are with अक : 3 & 4 -2007 19 चैतन्य लहरी अशान्ति जो है वो एकदम जम के पत्थर हो गई। अब आप हिल नहीं सकते ऐसी ही व्यवस्था हो गयी। क्योंकि यह लोग जो धन्धे करते हैं. जिस तरह से यह काम करते हैं, यह आप जानते हैं। हम तो काफी उमर वाले हैं और हम सब जानते थे इसके बारे में। अब तो आप में रहना चाहिए और किसी भी गृहस्थ की ड्योढी लॉँघनी नहीं चाहिए। हाँ, जो गृहस्थ है गृहस्थ है। लेकिन जिसने सन्यास ले लिया उसको यह सब करना मना है। लेकिन हमारे यहाँ तो देखिये कि हम लोग गृहस्थी के लोग यज्ञ करने में लगे हुए हैं. अपने बाल-बच्चों को सम्भालते हैं। कायदे से रहते हैं, और उन (सन्यासों) लोगों का पालन- पोषण हमारी खोपड़ी पर। एक तो हमारे बाल-बच्चे पलते नहीं और ऊपर लोग सब younger generation के लोग हैं, शायद आपने जाना ही नहीं होगा कि, श्मशान विद्या, प्रेत विद्या, ताँत्रिक विद्या अपने देश में बहुत है। इस समय कुछ मुझे लगता है कि दिल्ली के लोगों का मन तांत्रिकों से कुछ हटा हुआ है. नहीं तो जहाँ जिस गली में जाइये वहाँ एक ताँत्रिक बैठा हुआ था. इस आपकी राजधानी में। इन ताँत्रिको का शौक आपको भ्राँत हो गया है और इसमें आप फँस गए। ऐसे छोटी-छोटी चीजों के पीछे में भागने वाले लोग परमात्मा को.कैसे पायेंगे? से इन काशाय वस्त्र वालों को संवार कर बैठे रहिये सुबह से शाम तक। एक सीधी बात यह है कि कोई भी सन्यास लेने से परमात्मा के पास नही जा सकता। यह तो ऊपरी चीज है। सन्यास अन्दर का भाव होता है। बाहर का नहीं होता आप जानते हैं कि राजा जनक को विदेही कहा करते थे और उनकी लड़की को वैदेही क्योंकि विदेही से पैदा हुई थी। वो स्वयं राजा थे। राजा जैसे रहते थे, राजा जैसे करते थे और अगर माँगना है, तो कोई परम चीज़ माँगनी चाहिये । और परम में ही सब कुछ मिल जाता है- क्योंकि श्री कृष्ण ने कहा है कि 'योग क्षेम वहाम्यहम् ' पहले जब योग होगा, तो तुम्हारा पूरी तरह से क्षेम होगा कोई महाशय कहते है कि "माँ मेरी तन्दरुस्ती अच्छी करो।" मेरे पास बहुत से पहलवान आते हैं, कहते है "माँ हमें तो कोई शान्ति नहीं।" कोई आदमी कहता है माँ मेरे पास पैसा नहीं" दूसरा रईस आदमी आता है कहता है"मुझसे तो दुखी कोई दुनिया में है ही नहीं । " इसका मतलब यह है कि सब संसार दुखी है। और इस दुखी संसार में आप अगर किंसी को थे सोचे कि दूसरे के पास कोई चीज़ है तो उससे वो सुखी है. ये आप को गलतफुहमी है। आप इस पर विश्वास करें कि जिस मनुष्य को आप सुखी समझते हैं वो महादुखी हो सकता है। लेकिन आपको पता नहीं है। इसलिए जिस चीज़ को आप माँग रहे है उससे आपको होने वाला। आपने जिस चीज को माँगना है, उसे मांगे और वो है परम्। और वो परम् तत्व आपके ही अन्दर है, जिसको आपको पाना है इसके लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं, किसी को कुछ देने की जरूरत नहीं, कुछ उसमें आडम्बर नहीं, बहुत सीधी सरल चीज़ है । आभूषण उसके सामने बड़े-बड़े साधु सन्त, दृष्टा, नत मस्तक रहते थे क्योंकि उनकी दशा यही थी. क्योंकि वो स्वयं साक्षात दत्तात्रेय के अवतरण थे। आदिगुरु के अवतरण थे लेकिन आजकल हमारे देश में इसकी संवेदना जाती रही। लोग बहुत ही भ्रांत हो गए हैं और ऊपरी तरह से कोई ऊपर से कोई दिखाने वाला तमाशा वाला आदमी पहुँचा है, तो लोग उसके चरणों में पहले जाते हैं। कोई कोई तमाशा वो करना जानता हो, किसी भी तमाशे के पीछे में भागना हम लोगों में एक स्वभाव की एक बात होती है कि कोई तमाशाखोर पहुँच जाए तो उसके पीछे हम भागते है। फिर 'हजारों लोग उसके चरणों में जायेंगे अरे भाई और फिर झूठी झूठी बातें उसके बारे में फैलाना कि उसने इस आदमी को ठीक कर दिया, वो ठीक हो गया, उनको शान्ति मिल गई। इस तरह की गलत फहमियों। बहुत से लोग कहते हैं कि हम उस गुरु के पास गये थे, हमको शान्ति मिल गई। मैंने कहा कैसी शान्ति मिली आपको, श्मशान शान्ति मिली होगी। अब आप हिल ही नहीं सकते, आपको अशान्ति तो है ही, लेकिन वो सुख नहीं अंक : 3 & 4 -2007 20 चैतन्य लहरी लोग अब बहुत जबरदस्ती करेंगे। अगर किसी से कह दें कि भई पैर न छुएं तो उनको तो लगता है कि माँ ने तो जैसे कि उनको शाप ही दे दिया। मैं यह कहती हैँ. जैसे कि एक बीज को आप अॅकुर ला सकते है, यदि धरती माँ के उदर में डाल दें उसी प्रकार यह कार्य हो सकता है। लेकिन मनुष्य के लिए सीधा-साधा होना भी कठिन हो जाता है। क्योंकि वो सीधे तरह से बेटे, तुम क्यों छू रहे हो? तुमको मैंने क्या दिया? किसलिए मेरे पैर छू रहे हो ? जब तक तुमको कोई भी मैने आत्मा का परिचय दिया नही, तब तक आप मेरे पैर क्यों छू रहे है? मैं भी कोई ढोंगी हो सकती हूँ, मैं भी कोई खुद गलत हो सकती हूँ। क्या वजह है कि आप मेरे पैर छूये? आदत है। और इस आदत की खाना खाना अब जानता ही नहीं। उल्टा हाथ फिरा के ही वो खाना खाता है। कोई काम सीधे तरीके से करना उसकी बुद्धि के परे हो गया है, उसकी बुद्धि इतनी जटिल हो गई। सोच-सोच करके उसका दिमाग खराब हो गया है। इस गुरु के कारण कैन्सर जैसी बीमारी होती है। गलत गुरु के सामने अपनी पेशानी झुकाना। इसलिए किसी ने कहा है कि अपनी पेशानी सब के सामने मत झुकाओ। यहाँ तक कि मंदिरों में जब आप जाते हैं, कोई भी आदमी आपको टीका लगा वजह से हमारा एकादश जो है, हमारे माथे पर जो एक अड़ा भारी चक्र होता है। जिसमें 11 रुद्र बैठे हैं। रुद्र जो आप जानते है कि संहार-शक्ति हैं। अगर आप किसी और को इस तरह से गुरु मान लें, तो दायें तरफ में आपके रुद्र पकड़ जाते हैं। और जैसे ही पकड़ जाते हैं, ऐसे ही कैन्सर की बीमारी तो पहली चीज़ है। कोई आदमी भी समझो एक politician (राजनीतिज्ञ) है, समझो किसी के आगे बहुत झुकता है। वो भी हो सकता है। एक अगर economics (अर्थ-शास्त्र) वाला आदमी है, या Business (व्यवसाय) वाला आदमी है वो अगर किसी के आगे दे। हर एक आदमी से आप अपने माथे पर टीका लगवा लेते हैं, बहुत गलत दोष है। किसी का क्या अधिकार है कि वे आपके माथे को छुए? आप जानते हैं कि आपने तो कहा कि "9-10 साल मिलन को लागे मैं तो यही कहती हूँ कि हजारों वर्षों से आपको बना बना कर के आज परमात्मा ने मनुष्य बनाया है। और उसका आप किसी के सामने भी सर झुका देते है? किसी के सामने भी सर झुकाने को हमेशा लोगों ने मना किया है । सिर्फ साक्षात्कारी जो आदमी है वो ही जानता है कि किसके सामने सर झुकाना चाहिए। हम तो कहते हैं कि हमारे भी पैर छूने की आपको कोई जरूरत नहीं। और न छूओ तो अच्छा है। जब तक आप पार न हों, जब तक आप के हाथ में चैतन्य नहीं जरूरत से ज्यादा नतमस्तक हो ता है, अपने Business (व्यवसाय) के लिए. वो भी कोई भी आदमी जरूरत से ज्यादा अगर किसी के सामने सिर झुकाए, तो उसको कैन्सर की बीमारी हो सकती है। उसके की जो 5 रुद्र में से पांचों रुद्र पकड़ सकते है। इधर इसलिए सब के सामने नतमस्तक होना मनुष्य के लिए बिल्कुल वर्जित है लेकिन किसी से अकडूना भी वैसी बात है। कि "मैं ही गुरु हूँ" मैं ही भगवान हूँ, मैं ही सब कुछ हूँ, मैं ही सब कुछ करता हूँ, मुझे कौन बताने वाला है" ऐसे भी लोग हैं जो कहते हैं कि तुम ही गुरु हो, और तुम इसे खोजो, दूसरों को खोजने आया, हम आप के लिए वैसे ही, जैसे दूसरे है। जैसे कि आप मंदिरों में जाते हैं वैसे हम यहाँ बैठे हुए हमसे आपको छूने से क्या फायदा? चरणों में आने का तभी फायदा हो सकता है अगर आपके अन्दर वो connection (योग) शुरु हो गया। अगर हम माइक्रोफोन के सामने बात कर रहे हैं और यह connection (योग) ही नहीं है तो बात करने से फायदा क्या? इसलिए किसी को भी पैर पे जाना और पैर पे लेना दोनों ही दोष है, मैं समझती हूँ। क्योंकि मत दो। तुम ही हो सब कुछ। यह भी बात गलत है। क्योंकि आप मुक्त सा त्कारी नही हैं। जब तक एक दीप जला नहीं, तब तक वो अपने आप से जल नहीं सकता। एक जला हुआ दीप ही उसे जला सकता है। चैतन्य लहरी अक : 3 & 4 2007 21 पर उस में लेना-देना कोई नहीं बनता है। उसमें (आलीशान कर) दें तो मैं आऊ। अब सब लड़कों ने एक साल भर सिर्फ आलू खाया, पैसा बचाया और उनको Rolls Royce दी एक लामा साहब पहुँचे वहाँ-यह लोग आकर मुझे बताते है तो मुझे बड़ी हैरानी हुई। लामा साहब, जो कि बहुत साधु सन्यासी बनते हैं, वहाँ पहुँचे तो कहा कि हमें तो Marble के Floor (संगमरमर का फर्श) के सिवा और कुछ नहीं चाहिये। वहाँ Marble बड़ा महंगा मिलता है, स्वीडन में । तो स्वीडन के बिचारे लोगों ने भूखे रहकर उनके लिए Marble का Floor (फर्श) बनाया, तो वो पधारे वहाँ। और पधारने के बाद, यह चीज कि आप उनके सामने जाइये तो एक हज़ार एक बार आप उनके सामने झुको। मैं आपको इसलिए यह सब बातें बता रही हूँ कि सब चक्कर में आप लोग होते ही है। स्वरे दस आदमी मिलने आए। उसमें से नौ उस चक्कर में कि माँ हमें समझ नहीं आता हमने तो गलती नहीं करी। किसी तरह का स्वार्थ नहीं होता है। किसी भी तरह का उपकार नहीं होता। यह तो आपका दीप जला नहीं और जो दीप जला हुआ उसे छू गया, आप जल गए। उसमें किसी भी तरह की ऐसी बात नही आती कि : जिसमें आपको पूरी तरह से यह कहना है कि आपका कोई व्यक्तित्व ही न रह जाए, कि आप एकदम से पागल जैसे उनके पीछे लगे रहें। अभी ऐसे बहुत से लोग मैंने देखे। स्पेन में 50,000 लोग ऐसे हैं कि जो एक गुरु मृहाराज कोई है उनके पीछे में इतने नत-मस्तक है कि पागल है। स्पेन की महारानी हमें मिली थीं। वो कह रही थीं कि"अपने देश से ऐसे ऐसे आप गुरु घण्टाल यहाँ भेजते हैं कि उनका क्या करें? कुछ समझ नहीं आता। हमारे यहाँ पचास हज़ार युवा लोग एकदम पागल हो गये। इस तरह के न जाने कितने तरह-तरह के लोग आपने बाहर भेज दिये हैं । मैने कहा कि तुम खोजने क्या गये थे, यह बताओ। ज़िसने परम की बात की और जिसने परम दिया, आपको Export (निर्यात) के लिए और तो कुछ मिला नहीं इस देश में तो बढ़िया से उठा उठा कर ऐसे लोगों को बाहर भेज दिया है कि सबने नाक कटाकर रख दी उसी के चरण में जाना चाहिए और उसी के शरण में भी जाना चाहिये, बाकी सब बेकार है । ये बातें जो हैं- बातों से तो इन्सान का दिमाग खराब हो जाता है। आपने सुना होगा बहुत से लोग वेद पर बात करते हैं । वेद, वेदाचार्य, यह वो। एक महाशय बम्बई में हैं, बड़े भारी वेदाचार्य है पंडितों के पडित वो उमर में हमसे छोटे हैं लेकिन वो जब बात करते हैं तो ऐसा लगता है कि सठिया गए हैं जो बकते चले जाते हैं, ऐसे बकते चले जाते हैं कि कोई उनके पास पाँच मिनट खड़ा होना नहीं चाहता। अब उनको समझ नहीं आता कि लोग उनसे भागते क्यों हैं? इस कदर क्रोधी और तापमय इन्सान हैं, कि जो भी उनके पास बैठता है कहता है, "बाप रे बाप यह तो एकदम तूफान आ गया। और गुस्सा उनको इतना आता है कि अगर उनकी बात किसी को समझ नहीं आई तो कहते हैं कि तुम तो ऐसे दुष्ट हो, तुम तो ऐसे खराब हो, और लेकर मारना शुरू कर देते हैं अब बताइये इतने है। और उनके लिए अगर कुछ कहे तो लोग कहते हैं कि माँ आप तो बहुत intolerant (असहिष्णु) हैं। तो क्या ऐसे लोगों को हम हार पहनायें? उनकी आरती उतारें और उनको सिंहासन पर बिठायें? पहले जमाने में तो दैत्यों को मारा जाता था मार के उनकी पूर्णतया हत्या कर दी गई। लेकिन अब कम से कम उन को कहा तो जाए कि "ये दैत्य हैं और राक्षस है।" उसमें आप लोगों को क्यों इतनी परेशानी हो जाती है? क्या आप भी उन्ही के साथ मिले हुए है? दूसरे लोगों को लूटना, खसोटना, उनसे पैसा लेना, उनको दूसरे मार्ग में डालना, यह कहाँ का धर्म है? और वो भी भारतीय होकर के आपको क्या अधिकार है? यह एक तरह का अजीब-सा छिपा हुआ aggresion (अत्याचार) है। और यह इस तरह से छाया हुआ है कि आप आश्चर्यचकित होंगे कि एक साहब, लंदन आते है और उन्होंने कहा मेरे लिए अगर आप Rolls Royce अंक : 3 & 4 - 2007 22 चैतन्य लहरी उन्होंने कहा 4 दिन का उपवास। बस हम करके वेदाचार्य और फलाने ढिकाने होते हुए उनके यह सारा दिखायेंगे। यह सब चीजों से परमात्मा नहीं मिलता बाहर ही रह गया है कुछ उनके हृदय में कुछ नहीं गया। न उनमें दया, न अनुकम्पा, न कुछ, बस बड़्बड़ाते रहते हैं सुबह-शाम। ऐसे मैंने फ्रॉस में बहुत से देखे। वो तो बस में चढ़ते हुए बड़बड़ाते है। पूछा क्या, तो क्या कहने लगे कि ये बड़े भारी पादरी थे मैंने कहा वाह भाई. यह पादरियों का अन्त। एक बड़े भारी पादरी थे इसलिए हम उन को कुछ कहते नहीं बस बड़बड़ाते चलते हैं सुबह से शाम तक। ऐसे बहुत मिलते हैं फ़्राँस में मेरे ख्याल से वहाँ इस तरह के है। सहज-सरल। सहज समाधि लागे सहज। सहज होना चाहिए। जो चीज़ सहज नहीं है जिसमे असहज है, वो परमात्मा की चीज़ हो ही नहीं सकती। एक सीध ग] बात आप सोचिये कि आप इन्सान बने, आपने कौन सी मेहनत करी? आप क्या सिर के बल खड़े हुये, कि आपने क्या अपनी दुमें काटी थी? किस तरह से आप बन गए? आप इन्सान अपने आप सहज सरल बन गये। इसी प्रकार ऊंची स्थिति में जाने के लिए भी 'सहज' ही भाव होना चाहिए और जब तक प्रकार बहुत हो चुके हैं। लोगों ने बहुत अध्ययन, अध्ययन किए। तो इस तरह के गुरु हों कि जो सिर्फ बातचीत ही बातचीत करें। आपको कहेंगे पचास पारायण करो। सहज भाव नहीं आता है तब तक आप जो भी ऐसी ऊट-पटांग चीजें करते हैं उससे आपको नुकसान होगा, तकलीफें होगी, चक्र पकड़ेंगे, आपको परेशानी होगी- चाहे चो शारीरिक हो. मानसिक हो, या बौद्धिक हो, मगर आप परेशानी में फँस जायेंगे इसलिये मैंने पहले ही कहा सहज भाव में बैठे और कहा कबीर को गाओ क्योंकि कबीर सहज भाव में गाते थे। उनका दत्तात्रेय का आप पारायण करो। गुरु का आप पारायण करो। पचास पारायण करने के बाद में मिला क्या? एक महाशय हमारे पास आए, हमसे कहने लगे माँ हमने तो चौदह वर्षों की तपस्या की । मैैने कहा "अच्छा, और?" "उन्होंने सिर्फ पारायण करने को कहा और शिवजी का मन्दिर धोता रहा।", "और अब क्या हुआ।" कहने लगे "एक मिनट में कुण्डलिनी जागरण हुआ।" तो मैंने कहा, "भाई यह सोचना चाहिये, पारायण करने से परमात्मा मिलता है तो अपने देश में तो कितने लोग हैं जो पढ़ भी नहीं सकते। इसका मतलब कि उनको परमात्मा नहीं मिलेगा? सिर्फ पढ़े लिखे लोगों को मिलेगा? जो वेदाचार्य हैं, उनको मिलेगा? जो वेद पढ़ सकते हैं, संस्कृत जानने वाले कितने लोग हैं? मैं कहती हैँ, कुरान-शरीफ पढ़ने वाले कितने मिलन हो चुका था, इसलिए वो मिलन में गाते थे । अब यह जो नाभि चक्र है इसमें एक दफा तो यह हुआ कि जहाँ आपने किसी को भी गुरु मान लिया ऐरा-गैरा नत्थू-खैरा जिसे कहते हैं कि किसी को भी गुरु मान लें। गलत आदमी को गुरु मान लिया। गलत चीजों में सिर झुका लिया। दूसरे ऐसे होते है कि जो किसी को मानते ही नहीं। भगवान को भी नहीं मानते।"मैं ही सब का गुरु हूँ।" तो बायें ओर के पाँच रुद्र हैं वो पकड़ जाते हैं। | लोग हैं? या बाइबल पढ़ने वाले कितने लोग हैं मतलब जो पढ़ते नहीं वो काम से गए। ऐसे कैसे हो सकता है? जो परमात्मा है, सबका ही निर्माण करने वाला है, सबको ही प्रेम करने वाला है, वो कभी ऐसे काम करेंगे?" इसलिए जो गुरु-तत्व में खराबी आ जाती है उससे आप सब बचकर रहिए। और यह गुरु तत्व इस प्रकार के दो प्रकृति के आदमी होते हैं। अब जो किसी को नहीं मानते, जो बड़े भारी वेदाभ्यास करने वाले हैं, इनके बारे में मैंने आपको वर्णन कर ही दिया कि किस तरह के होते हैं। और उनके जो प्रभूति होती है इस कदर धनीभूत तरीके से, क्रोधी होती है कि इस आदमी के पास भगवान हो ही सकता है, ऐसा कोई भी विश्वास नहीं करता। भगवान इनके पास से हर तरह से आपके अन्दर एक हृद, एक तरह की सीमा बाँध देता है। "कि हम यह करके दिखायेंगे।" गुज़र अंक : 3 & 4 -2007 चैतन्य लहरी 23 पी रहे हैं? इतनी घृणा हो गई हमने तो कुछ नहीं किया हम तो वहीं लन्दन में बैठे हुये थे। सकते हैं, ऐसा भी कोई नहीं विश्वास कर सकता। परमात्मा जो है, वो प्रेम का, आनन्द का, लेकिन आप ही स्वयं धर्म हो जाने की वजह सौख्य का और अनुकम्पा का सागर है, क्षमा का सागर है। जिस आदमी में इस कदर क्रोध, इस कदर से क्योंकि यह आपके अन्दर दस गुरु जागृत हो जाते है साक्षात् धर्म है। इसकी वजह से अपने आप ही गन्दी आदतें छूट गई। फिर उसके बाद, छूटने के बाद में आप की दृष्टि वहाँ जाने लगी कि जिससे आपको लक्ष्मी का है। जै से एक महाशय-आपको विश्वास इस बात का भी होना जुरा कठिन है लेकिन आपसे बतायें- एक हमारे पहचान के थे उन्होंने हमें बताया कि "माँ जब से मैं सहजयोग सब के साथ ये तृष्णा है, वो आदमी कभी भी परमात्मा का आदमी हो नहीं सकता। गर्दी आदतें अब, भवसागर के बीच में जो विष्णु का तत्व है इसके बारे में मैं जरूर आपको बताना चाहूँगी। क्योंकि अपने देश में हर एक जगह जाइये तो लोग मुझसे ऐसे कहते हैं कि माँ हमारी गरीबी का क्या होगा? जैसे कि इन लोगों ने कुछ गरीबी का ठीक ही किया होगा जो मुझसे कहते हैं कि गरीबी का क्या करने लग गया हूँ बड़ा चमत्कार हुआ।" मैने कहा क्या हुआ? कहने लगे कि "जिस जमीन पर मैं ऐसे टहलता था, उसकी मिट्टी इतनी बढ़िया हो गयी कि एक होंगा। वही बात हुई "कृष्ण ने कहा कि 'योग क्षेम वाहम्यहम्'- पहले योग को प्राप्त हो, उसके बाद आपका मैं क्षेम करूंगा जिस जिस गाँव में सहजयोग हुआ जहाँ-जहाँ हम गये, जिन्होने योग पाया, उनके सब प्रश्न Solve (हल) हो गये। किस प्रकार? सबसे पहले तो सारी गन्दी आदत छूट जाती हैं. धर्म जागृत हो आदमी आकर मुझसे कहने लगा कि भई किसी फकीर , ने आकर हमसे बताया कि यहाँ की मिट्टी थोड़ी-सी लेकर के अगर तुम ईटे बनाओ तो पत्थर जैसी हो जायेंगी। तो वो हमारे यहाँ आया ओर हमसे तो बिल्कुल तोल कर मिट्टी ले जाता है।" लेकिन पहले जागृति होनी चाहिये, लक्ष्मी तत्व की। लक्ष्मी तत्व की जागृति किये बगैर, अगर आप चाहें आपके अन्दर लक्ष्मी आएगी तो नहीं। पैसा आ जायेगा। पैसा आ जाएगा. पर जाता है। मनुष्य के अन्दर की जितनी भी आदते हैं. जिससे मनुष्य जकड़ा हुआ है वो सारी ही एक साथ जाती हैं। आप जानते हैं कि बता रहे थे कि टूट 200 आदमी हमारे साथ परदेश से घूम लोगों में से न जाने कितने Drug (मादक द्रव्य) लेते थे, कितने alcoholics (शराबी) थे, कितने कैसे कैसे थे। हम तो कुछ देखते नहीं। जो आया उसे पहले पार करो। पार होने के बाद धर्म जागृत हो गया एक महाशय थे वो बहुत शराब पीते थे। फिर सहजयोग में आते ही दूसरे दिन से उनकी शराब छूट गई। एकदम रहे थे, इन लक्ष्मी जी नही आयेंगी । और लक्ष्मी जी कैसी होती है? एक हाथ से उनके दान है। एक हाथ से उनका आश्रय है, और हाथ में दो कमल के सुन्दर पुष्प है, जो कि उनके प्रेम के प्रतीक है, और इतना ही नहीं एक-भँवरा जिसके अन्दर इतने काँटे हैं, उसे तक वो अपने अन्दर समा लेती हैं। शराब छूट गई। तो एक बार जर्मनी गये थे, उन्होंने कहा कि देखें कैसा क्या है। उनको एक शराब बहुत पसन्द थी। पीने के साथ कहने लगे ऐसी उल्टियां हुई, और उसमें से ऐसी गन्दी बदबू आने लग गई कि ऐसे लक्ष्मी पति आप हो सकते हैं जो समाधान में, इतने सन्तुलन में खड़ी है। वो कमल पर ही खड़ी रहती है इतनी सादगी से, इतनी dignity (मर्यादा) से वो रहती है। मैं तो बहुत आजकल देखती हूैँ कि जो पैसे वाले हैं उनके अन्दर कोई dignity ही नहीं । उनके अन्दर दिखाई नहीं देता है हमने कहा कि यह क्या Molasses पी रहे हैं कि क्या कि इनके अदर "कार्क' पी रहे हैं, और समझ ही नहीं आ रहा कि क्या ता अंक : 3 & 4 -2007 चैतन्य लहरी 24 के लिये भी अब यह हो गया है कि पति से बढ़कर के पैसा उनकी बच्चों से बढ़कर के पैसा हो गया। हर चीज में पैसा जहाँ पैसा मुख्य हो जाता है और प्रेम कोई प्रतिष्ठा हो। बिल्कुल अप्रतिष्ठित तरीके से इस तरह से करते हैं कि समझ में नहीं आता कि इतनी चापलूसी करने की इनको क्या जरूरत है जब इनके नगण्य हो जाता है, वहाँ लक्ष्मी का स्वरूप खत्म हो पास लक्ष्मी का प्रसाद है? पर लक्ष्मी का प्रसाद नही, सिर्फ पैसा है। गधे के ऊपर आप अगर नोट लगा दीजिए तो क्या वो लक्ष्मीपति हो जाएगा? तो ऐसे पैसे वाले से वो लक्ष्मीपति, जो अपने 'शान में अपने गौरव' में खड़े रहते हैं। जो किसी के सामने हाथ नहीं फैलाते। जब है, तब बाँटते ही रहते हैं ऐसे हमने अपनी आँखों से लोग देखे हुये हैं। ऐसे हमने जाने है लोग जो होते है। स्वयं हमारे पिता इस तरह के थे उनकी इतनी दानी प्रवृत्ति थी कि वो सवेरे हर इतवार को चीजें बाँटा करते थे। किसी दिन कम्बल बाँट जाता है। वहां सब लक्ष्मी का स्वरूप खत्म हो जाता है। और उस जगह सिर्फ पैसे का एकदम 'रूखा जीवन आ जाता है जो आज आपको परदेश में दिखाई देता है। यहाँ से भी हिन्दुस्तानी परदेश में जाते हैं उनको पता नहीं क्या हो जाता है, सारी परम्परा टूट करके वो बेतहाशा पैसे के तरफ दौड़ते है। मैं तो उन लोगों को देखकर के हैरान होती हैं कि यह क्या मेरे देश के लोग हैं? इस तरह से जब हम अपने को गलत रास्ते दिया, किसी दिन कुछ। और उनकी आँख हमेशा नीचे रहती थी, और देते रहते थे देते रहते थे लोग दो-दो ले. जायें, तीन-तीन ले जायें तो कोई क्या उनसे कहे कि "क्या कर रहे हैं आप? और दो-दो तीन-तीन कम्बल आदमी लिये जा रहे है. आँख क्यों नीची की हैं?" कहते "भई मैं दे नहीं रहा हूँ, दे कोई और रहा है। इसलिये मुझे शर्म लगती है। सब लाग कहते हैं आप दे रहे हैं।" ऐसे तो बड़े स्वतन्त्र वीर थे, लेकिन वो इस मामले में उन्हें शर्म लगती थी कि लोग मुझसे कह रहे हैं, मुझे बड़ी लज्जा आती है, लोग मुझे कह रहे हैं कि दे रहे हो तुम और देते वक्त में कहने लगे "देने वाला जो वो जाने, मुझे क्या करने का है। मैं तो बीच में खड़ा हुआ हूँ। ऐसे लोग थे पहले इस भारत में अब तो पता नहीं कुछ दिखाई नहीं दे रहा इस तरह का तरीका । पैसे वाले का मतलब तो यही हो पर डाल देते है, तब उस पर बहुत जोर का मार आती है। ऐसे पैसे वालों को बहुत बुरे दिन भी देखने पड़ते हैं। उनके बच्चे, जो वाहियात निकल जाते हैं इधर-उधर दौड़ जाते हैं और गलत काम करते हैं । ऐसे पैसे वालों के लिए कोई भी आशीर्वाद नहीं होता। आप जाकर देखिये, रातरात भर सोते नहीं। उनको परेशानियाँ हैं। तो जो पैसा लक्ष्मी स्वरूप है, उस पैसे को आप प्राप्त करो। उस सम्पत्ति को, उस धन को आप प्राप्त करते हैं, जो लक्ष्मी की देन है जब आपके अन्दर कुण्डलिनी जागृत होती है और इसलिए इस देश का जो दारिद्र है, उसी दिन दूर होगा जब यहां पर लोग योग को प्राप्त हों। उससे पहले कभी नहीं हो सकता; आप कोशिश कर लीजिये। मैं गई थी. राहुरी में, मैंने देखा कि खूब और किसी की झोपड़ियोँ बनी हुई थीं कहने लगे. यह झोंपड़़ियाँ गया कि बहुत घमण्डी. बहुत क्रूर परवाह नहीं। अपने माँ-बाप की परवाह नहीं, अपने भाई बहनों की परवाह नहीं, अपने को बहुत सब कुछ समझना । यह पैसे वाले के लक्षण हैं। दुनिया में किसी की भी परवाह नहीं करना। यह जो हमारे यहां अब पैसे का भूत सवार हो गया है, इस भूत से हमारी जो समाज-व्यवस्था है पूरी तरह से टूट जायेगी औरतों बनाई। मैने कहा "अच्छा।" कोई नगर बनाया गया है। मैने कहा, यह नगर कैसा? पता नहीं। वहाँ से जा रहे थे तो सामने रास्ते पर लोग खूब शराब पी-पी करके आकर धड़ाधड़ गिर रहे थे। एक तो हमारे मोटर के सामने गिर गया और एक नहीं, दो नहीं काफी सारे लोग वहाँ से निकले जा रहे थे मैंने कहा, चैतन्य लहरी अंक 3& 4 2007 25 यह कौन सा नगर बनाया? यह कहे? यह झोंपड़़ियों का नगर बनाया, इसमें सिर्फ शराब ही चलती है? कहने लगे, हाँ "यह तो ऐसे ही नगर हैं।" उनको झोंपड़ी दी तो उसमें शराब शुरु कर दी, और 100 रुपये दे दिये तो उस ने शराब शुरु कर दी। यह कोई गरीबी हटाने का लक्षण नहीं दिखा। इस तरह से और इस तरह की चीज़ें जब तक आपके समाज से जायेंगी नहीं आपके समाज की गरीबी कभी हट नहीं सकती क्योंकि लक्ष्मी जी ऐसे स्थान में बसती नहीं । तीसरी चीज जिससे लक्ष्मी जी हमारे देश में नहीं है, उसका मुख्य कारण यह है कि "यत्र नार्या पूज्यंते तत्र रमते देवता" माने यह कि जो इन्सान स्त्री की पूजा करता है, स्त्री को मानता है. उसकी गरींबी नहीं हटेगी। यह तो शराब ऐसे पीछे पड़ गयी कि इस में से 50 फीसदी गरीब मर ही जायेंगे, तो गरीबी मिट ही जायेगी। इलाज तो ऐसा ही हो रहा है कि लोग जीने ही नहीं वाले। रास्ते पर ऐसे धड़-धड़ गिर रहे थे, उनमें कोई ताकत नहीं थी। क्षीण-हीन ऐसे हुए लोग। इनकी गरीबी आप क्या हटा सकते हैं? इज्जत करता है, वहाँ देवता का रमण होता है। लेकिन स्त्री भी पूजनीय होनी चाहिये। स्त्री भी ऐसी हो कि जिसकी पूजा न की जाए, तो ऐसी स्त्री से फायदा क्या? तो स्त्री ऐसी होनी चाहिये जो पूजी जाए। जो पूजनीय हो, जो पवित्र हो। जो उच्च विचार लेकर के संसार में आये। प्रेम से अपने घर और रिश्तेदार और सबको सम्भाल के रखे । ऐसी जो स्त्री हो. जो पूजी जाये, ऐसी स्त्री के पति जो हों उसकी इज्जत करें, घर वाले उनकी इज्जत करें। स्त्री की, बच्चों की, लड़कियों की, माँ की, जहाँ इज्जत होती है वहाँ देवता रमण करते हैं। नहीं तो भूतों का नाच शुरु हो जाता है। अब आप सुन रहे हैं कि अपने देश में स्त्री की क्या स्थिति है मैं तो तब भी कहूँगी कि हिन्दुस्तान की नारी एक विशेष स्वरूप की औरत है जिसने बहुत कुछ सहन किया। पुरुषों की ज्यादती जितनी हिन्दुस्तानी नारी सहन करती है और कोई नहीं सहन करता। और अपना समाज ही पूरा ऐसा बन गया है कि आज़ बिल्कुल हम लोग इस मामले में निर्लज्जता से बात करते हैं। कोई कहता है कि "साहब इतने लाखों रुपये dowry (दहेज) में दीजिए और नहीं तो आपको हमारे दरवाजे में प्रवेश नहीं । " बिल्कुल उन इनको तो पैसा वो सब देने से इन्होंने शराब पी-पी करके और धन्धे कर कर के और अपना . सर्व-सत्यानाश कर लेना है। अब गरीबी हटाने पर एक और प्रश्न है कि जब हम इस तरह की तांत्रिक विद्या और ऐसी मैली विद्या करते हैं तो लक्ष्मी जी दूसरे पैर से चली जाती हैं। जिस घर में तांत्रिक विद्या शुरु हो जायेगी, लक्ष्मी जी दूसरे पैर से चली जायेंगी। आज मैं विशेषकर धर्म पर बात कर रही हूँ क्योंकि यह जानना बहुत जरूरी है कि हम धर्म में कितनी गलतियाँ करते है। जो लोग अपने घर में दिवाली मनाते हैं, हर जगह दीप जलाते है रात को क्योंकि बाहर रात्रि थी। उस वक्त यह न हो कि लक्ष्मी कहीं लौट के चली जाये उनको अन्धेरा पसन्द नहीं। और जितनी मैंली विद्या., जितनी भूतविद्या. प्रेत विद्या. श्मशान विद्या और यह दुष्ट गुरुओं का जो चक्कर है चला, जो अगुरु लोग जो हैं, इन्होंने जो चक्कर चलाए हुये हैं, इन्ही सब चक्करों के वजह से अपने देश गें बिल्कुल कालिख पुत गई है, एकदम लोगों को इस मामले में शर्म भी नहीं आती, इरा तरह की ब्ात करने की और इस तरह की चीजें इतनी हमारे समाज़ में आज प्रचलित हो रही हैं जितनी जितनी ये बढ़ती जायेंगी उतनी उतनी आपके देश में गरीबी आयेगी । किसी लड़के को बेचकर के और लड़की काला अन्धकार हो गया है। और वो काला अन्धकार होने के वजह से अपना देश उठ नही पाता। जब तक इन लोगों की आप सगुद्र गें नहीं डाल दीजिएगा, जब इनको आप अपने हृदय में से निकाल नही दीजियेगा के नाम पर अगर आपने रुपया इक्कट्ठा किया, आप अक : 3 & 4 - 2007 26 चैतन्य लहरी को दे देंगे। जो भी घर में है, जो हो अपने हृदय से निकालकर। हमारे साथ लोग सफर कर रहे थे देहातों में हैरान थे, कि लोग झोपड़ियों में रहते हैं मगर उन का दिल है कि राजा जैसे और यह लोग महलों में रहते हैं और ये हैं बिल्कुल भिखारी। मैं तो रोज के देख लीजिए उसमें कभी भी आपको यश नहीं आयेगा | आप करके देख लीजिये कोई आदमी लाखों रुपया इस तरह से ले ले उसको कोई न कोई घाटा आएगा, कोई न कोई बड़ी बर्बादी होगी और वो ऐसी दशा में पहुँच जाएगा कि जहाँ से निकल नहीं पायेगा। या तो कोई ऐसी बीमारी में फँस जाएगा या ऐसे कोई बेकारी में फँस जायेगा कोई न कोई ऐसी चीज़ उसे मिल अनुभव लन्दन में देखती हूँ कि जितने भी विदेशी लोग हैं बड़ी-बड़ी position (पद) में हैं. बड़ी-बड़ी इस में है आप उनको कितने भी presents (उपहार) दे दीजिये कुछ भी कर दीजिये, उनसे एक पैसा नहीं निकलेगा हमारे साहब की सेक्रेट्री हैं. वो साहब से कहती हैं कि "आपके grand children (नाती) आ रहे हैं, तो आप परेशान नहीं? उन्होंने कहा क्यों? जाएगी कि जिससे वो पछताएगा। क्योकि किसी भी सती स्त्री, किसी भी स्त्री जाति का अपमान करना शक्ति का अपमान है। अगर वो स्त्री इसी तरह की है कि जो बेकार है और पूजनीय नहीं है, उसके बारे में मैं नहीं कह रही। पर अपने भारतवर्ष में आज मैं जरूर कहूंगी कि यहाँ की स्त्री बहुत बहुत पूजनीय है अब भी औरतें हमारे यहाँ glamour (चमक-दमक) वगैरह में विश्वास नहीं करती। अब हैं कुछ पागल उनको छोड़िये। लेकिन अधिकतर औरतें सादगी से, अपने चरित्र को सम्भालते हुए रहती हैं। जिस देश में पदमिनी जैसी लोगों ने जौहर किये-कोई विश्वास नहीं करता । आपका सारा घर गन्दा हो जाएगा।" उन्होंने कहा यह किसके लिए घर है, यह क्या मेरे लिए घर है? यह तो उनके लिए घर है जो मेरे बच्चे आये हैं। उनका यह था कि कहती हैं जो हमारी grand mother थीं जब तक दो पैसे हमसे नहीं लेती थीं हमको टेलीफोन नहीं करने देती थी। "और उसी लन्दन शहर में आप आश्चर्य करेंगे, कि दो बच्चे हर हफ्ते में मारे जाते हैं । तो ऐसे देश की affluence (धन-सम्पत्ति) से भगवान अगर परदेश में जाकर मैं कहूँ कि हमारे देश में तो chastity (पवित्रता) के पीछे औरतों ने जौहर कर दिया तो कहते हैं यह हो ही नहीं सकता है। मैंने कहा तुम क्या समझोगे, उस ऊँची चीज़ को तुमने जाना नही। उन आदर्शों को तुमने जाना नहीं । बचाये रखें आप लोग उस ओर जाने की कोशिश न करें। जो कुछ है उसमें समाधान से परमात्मा को दृष्टि देकर के अपने लक्ष्मी तत्व को आप जागृत करें। इस देश का लक्ष्मी तत्व बिल्कुल जागृत हो सकता है. पर सौष्ठव और उनका गौरव समझते हुए। अगर हम उसको न समझें और व्यर्थ की चेष्टाओं से. चाहें कि आज उन आदर्शों को सब को छोड़ के और हम इन पागलों के पीछे अगर भागना शुरु कर दे तो मैं आपसे बता रही हूँ कि गरीबी जो नहीं आनी थी वो आ जायेगी। और इन लोगों में क्या कम गरीबी है? आप इनको समझते हैं रईस हैं? मैं तो समझती हूँ इनसे गरीब कोई नहीं। इनके अगर घर जाइयेगा और लक्ष्मी इक्कट्ठा कर लें, तो कभी भी हमारे अन्दर लक्ष्मी तत्व जागृत नहीं हो सकता। यह ही अपने देश का कर्मोपाय है, कि अपने धर्म में जागृत हों यह हमारे देश के लिए एक ही तरीका है। एक कप चाय दिया तो उनका दिल बैठ जायेगा। अगर एक कप चाय उनके घर से खर्च हो गया तो उनका दिल बैठ जायेगा। और हम लोग दिलदार हैं । गरीब भी हैं तो भी हमारे घर में कोई आता है, तो उसे चाय पानी कुछ न कुछ, कुछ नहीं है तो गुड़ ही, खाने इतना ही नहीं. लेकिन जब ऐसा होगा- और होगा ही, क्यों नहीं होगा?- उस वक्त सारी दुनिया के देश आपके चरणों में लौटेंगे और जानेंगे कि असली अंक : 3& 4 चैतन्य लहरी 2007 27 लोगों की मदद हो सकती है, वो करना चाहिए और अच्छे मार्ग में, सन्मार्ग में रहना चाहिए। अच्छे काम करने चाहिए। सबसे बड़ी चीज़ है परमात्मा का आशीष । जब तक उसका आशीष नहीं मिलेगा, सब चीज़ व्यर्थ है। उसमें कोई शोभा ही नहीं हैं । ऐसे घर में जाओ तो आपकी टाँगे टूटने लग जाती हैं। आपको लगता है श्रीवन्ती जो है, असली रियासत जो है वो इस देश में हैं। अब भी लोग देखते हैं तो आँखे खुल जाती है कि कहते हैं कि "इतने गरीब लोग साफ लोटा माँजकर के उसमें लेकर के आ गये हमें देने के लिये।" यह लोग विश्वास नहीं कर सकते कि इतने बड़े हृदय के लोग इनके देहातों में कैसे रहते हैं। दूध "कब भागें इस घर से।" उनका खाना खाओ तो आपको उल्टी हो जायेगी। कोई न कोई तकलीफ हो जायेगी। ऐसे लोग जो बिल्कुल ही पैसे से जुटे हुए हैं मशीन बन जाते हैं। उनके अन्दर कोई हृदय नहीं है। वे लोग सोचते हैं हमारे घर में कुछ भी नहीं है, हम भूखे रह जायेंगे, ऐसे लोगों के घर का खाना न लीजिये । सौ उस चीजू को खोना नहीं है। और ये समय ऐसा आया है कि हम खो रहे हैं। हमारे बच्चे बिगड़ रहे हैं, और उस ओर हम जा रहे है। इस वक्त बहुत जरूरी है कि सहजयोग की स्थापना कर्के और अंपने बच्चों को रोक लीजिये उनके अन्दर लक्ष्मी तत्व जागृत करके उनके अन्दर यह गौरव भर दीजिये। मनुष्य को यह जान लेना चाहिए कि हमारे आज मैंने आपसे विशेष करके लक्ष्मी तत्व अन्दर परमात्मा ने स्वयं साक्षात लक्ष्मी का स्थान पर बात की है, क्योंकि ये बहुत जरूरी चीज़ है। आप लोग जाने कि हमारा देश गरीब क्यों है? और इसकी गरीबी, आप गरीबों को रुपये देने से नहीं होगा आप देकर देखिये। आप किसी भी गरीब आदमी को सौ रुपया दीजिये। न वो शराब के अड़डे पे गया तो कहाँ जाएगा। कोई भलाई नहीं। इसलिए आप जान लीजिये कि पैसे को झेलने के लिए भी लक्ष्मी तत्व जरूरी है। ऐसे ही रईस लोगों को भी सोचना चाहिए कि पैसा जो है वो परमात्मा ने हमारे लिए दान के लिए दिया है। हम बीच में एक माध्यम बने खड़े हुए हैं. और रखा है। वो हमारे अन्दर बसी हुई है। सिर्फ उनको जागृतमात्र करना है। और उस जागृति के लिए आपको बुद्धि के कोई घोड़े दौड़ाने की जरूरत नहीं, कोई विशेष सोचने की जरूरत नहीं सिर्फ कुण्डलिनी का जागरण होते ही यह कार्य हो सकता है। तो इसे क्यों न करें? और इसे करना नितान्त आवश्यक है। और यह होने का समय आ गया है। एक विशेष चीज है कि यह विशेष समय आ गया है और इस विशेष समय पर आप इस वक्त उपस्थित हैं। इसका आप पूरी तरह से उपयोग करें और अपने लक्ष्मी तत्व को पहले जागृत कुछ जो उसको दान के लिए दिया हुआ है। इसका कर लें। शुभ कर्म हो सकता है वो करना है और इससे जो भी (निर्मला योग-1983) नव् वर्ष दिल्ली आश्रम - 3.1.1984 पटम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन लेकिन माँ की व्यवस्था और है कि पहले हर साल नया साल आता है और पुराना साल खत्म हो जाता है। सहजयोगियों के लिए 'हर चैतन्य को पा लो, जान लो कि परमात्मा है, उस पर विश्वास करो जो अन्धविश्वास नहीं है, सत्य के रूप में। और अब 'थोड़ी सी मेहनत से भी बहुत बड़ा काम हो सकता है। जैसे कि किसी को पहले सिखाया जाये कि देखो पानी से डरना नहीं। लैक्चर दिया जाए। पहले तुम अपने को जमीन पर ही तैरा के देखो। वहीं पर हाथ मारो दो-चार। और काफी दिन से मेहनत की जाए और फिर धीरे-धीरे पानी में लाया जाए। जैसे पानी देखा फिर भाग गए। क्षण एक नया साल है, क्योंकि वो वर्तमान में रहते हैं। न तो वो भविष्य में रहते हैं, और न ही वो बीते हुए भूत काल में रहते हैं। हर क्षण उनके लिए एक नया साल है, एक नई उमंग है. एक नई लहर है। जैसे कि समुद्र पर तैरते हुए हर क्षण कोई समुद्र के प्यार से उछाला जाय, उसी प्रकार हरेक सहजयोगी को आनन्द प्रेम, शान्ति का आहलाद मिलते रहता है। बस बात ये है कि क्या हम तैरना और एक होता है पानी में ढकेल दो, फिर सिखाते रहेंगे। इसी तरह आप लोग आनन्द के सागर में धकेल दिए गये अब इसका मज़ा उठाना है तो सीख गये है या नहीं। सहजयोग में जिसने तैरना सीख लिया वो आनन्द में ही तैरता है. आनन्द के सागर में तैरता है। सहज योग में अगर कोई दोष है या त्रुटि है, तो इतना ही है कि पार होने के बाद बनना पड़ता है। बग़ैर बने सहजयोग हाथ नहीं लगता। माँ ने आपको पानी में उतार दिया लेकिन तैराक अन करके थोड़ा सा कष्ट उठाना पड़ेगा। और वो कष्ट ऐसा है आपको बनना होगा बने बगैर नहीं होता। सहजयोगी उसे कहना चाहिए जिसमें पूरा समाधान हो, जिसने पा लिया, जिसकी शुद्ध इच्छा पूरी हो गयी क्योंकि कुण्डलिनी शुद्ध इच्छाशक्ति है। जिसकी शुद्ध इच्छाशक्ति पूरी हो गयी, जिसकी शुद्ध इच्छा शक्ति ने पूरी तरह से अपना चमत्कार दिखा दिया, फिर कोई इच्छा ही नहीं रह गयी जो आदमी पूरी तरह से समाधानी ही हो गया, वो असल में सहज योगी है। कोई सा भी असमाधान बचा हुआ है, भी आपको सीखना होगा कि आप दूसरों को कैसे तैरा सकते हैं, दूसरों को कैसे बचा सकते हैं दूसरों को तैरना कैसे सिखा सकते हैं। आपको पूरी तरह से बनना पड़ता है। और यही अगर एक त्रुटि है, तो सहजयोग में है, लेकिन वो अनेक त्रुटियों को भरता है। जैसे पहले गुरु लोग आपकी शान्ति और इसका मतलब कुण्डलिनी का जागरण ठीक से नहीं हुआ। अभी तक आप पूरी तरह से सहजयोगी बने नहीं । आनन्द की व्यवस्था नहीं करते थे पहले तो वो आपसे मेहनत कराते थे "मेहनत करो" सफाई कराते थे, मन की शान्ति उससे पहले मन की शुद्धता करो। शारीरिक सुख से पहले शरीर को काफी तकलीफ दो। बहुत तपस्या के बाद लोग परमात्मा को पा सकते थे, और इस चैतन्य को, जो आपने सहज में पाया, उसे जान सकते थे। बड़े आश्चर्य की बात है, कि बगैर सहजयोगी बने हुए भी आशीर्वाद आते ही रहते हैं, चमत्कार होते ही रहते हैं, लाभ होते ही रहते हैं, आप जानते रहते हैं कि "हम चल रहे हैं, ठीक हो रहा है. मामला बन रहा है अक : 3 & 4 -2007 29 चैतन्य लहरी सहजयोग में ये तो अनायास ही हो जाना चाहिए। और हम अग्रेसर हो रहे हैं।" अनायास' ही सब घटित होता है अगर ये नहीं तो सहजयोग क्या बना? जब आप वृक्ष हो गये लेकिन सहजयोगी का सबसे बड़ा आशीर्वाद ये है कि उसमें देने की क्षमता आ जाती है, वो दैता है। हुआ तो वृक्ष की छाया आफत नहीं आ सकती न! वृक्ष सारी आफत उठा लेता है। आपकी छाया में जितने लोग हैं उनसे आपके सम्बन्ध बहुत ही प्रेममय और निकटतम होने चाहिए। में जो बैठे है उस पर तो कोई सी भी और देता ही नहीं है। उस देने का जो आनन्द है, जो कि बहुत ही अनूठा आनन्द है उसे वो भोगता है वो आनन्द आप किसी सांसारिक चीजों से कभी पा ही नहीं सकते। और सारे जितने blessings (वरदान) वगैरह हैं इसे किसी से आप पा नहीं सकते। सबसे बड़ी blessing है कि आपकी अपनी गुरु शाक्ति बढ़ जाए और आप में ये क्षमता आ जाए कि आप दूसरों को दे सकें। ये जिस दिन क्षमता आप में आ गई, बस अब मैं जो कह रही हूँ सब आपको अलग-अलग आप ही को, कह रही हूँ। किसी और के लिये नहीं कह रही, ये बात समझ के सुनिएगा। बहुत से लोग है जैसे मैं कहती हैं तो दूसरे का सोचते हैं कि माताजी उनके बारे में तो नहीं कह रहीं। तो अपनी ओर ये चित्त देना चाहिए कि माँ हम सब को फिर समझे लीजिए, कि माँ का काम तो पूरा हो गया और आपका काम शुरु हो गया। ऐसी जब तक दशा अलग-अलग प्यार करती है। हरेक के बारे में जानती नहीं आती तब तक मेहनत करनी होगी और बनना है अलग-अलग। इसी प्रकार हमको भी हरेक बारे में अलग-अलग जानना है। जब हम अपने घर वालों को होगा। यही एक सहजयोग की त्रुटि है जिसे एक माँ के हूँ । रूप में मैं कहती हूँ कि मैं पूरी कोशिश करती है कि ही प्यार नहीं कर पाएँगे तो हम बाहर वालों को नहीं अपनी तरफ से कोई ऐसी कमी न रह जाए बहुत कुछ करती हैँ, कि अपनी तरफ से कुछ न रह जाए, कि मेरी किसी बात की वजह से मेरे बच्चों में कमी रह कर सकते। घर वालों की जरूरते-मानते हैं बहुत से लोग पार भी नहीं होते। हो सकता है उनमें त्रुटियों होंगी। लेकिन उनकी जो जरूरत हैं, उसे करिये। पार की जाए। लेकिन आपकी भी तपस्या जरूरी है उसके बात तभी मानेगे जब आप में कोई अन्तर देखेंगे। अगर आप डंडा लेकर कहें "तुम पार क्यों नहीं होते हो, तुम सहजयोग में क्यों नहीं आते, तो कोई सहजयोग में नहीं आएगा। उल्टे यह तरीका सहजयोग का नहीं है। सहजयोग का तरीका है कि पहले अपने आदर्श से. अपने स्वयं के व्यक्तित्व से दूसरों को प्रभावित करना । बगैर काम नहीं होगा। पर जो तपस्या का स्वरूप उगर है या संतप्त है. ऐसा नहीं हैं। 'शान्त' तपस्या है। इसमें कोई कठिन तपस्या नहीं है। कोई मेहनत की तपस्या नहीं है। तो पहली तो चीज सहजयोगियों को प्रेम करना सीखना चाहिए। सबसे बड़ी चीज़ है। जैसे मैं किसी के लिये शिकायत सुनती हूँ, कि ये सहजयोगी. आप तो कहते हैं कि सहजयोग बड़ी अच्छी चीज है, अपनी माँ को ही ll-treat (दुव्व्यवहार) करते हैं उनकी बीबी की बात चलती है। वो अपनी बहन को पीटते है, अपनी बीवी को मारते हैं। कोई है, अपने पति का जब दूसरा प्रभावित हो जाएगा, तो धीरे-धीरे उसे सहज में लाओ। कोई ठेल-ठाल के आप ले भी आए, समझ लीजिए, ढकैलते हुए वहां से, ले आए किसी को आप, बिठा दिया। तो क्या वो पार हो जाएगा?- यह आप ही बताइये। पूर्ण स्वतन्त्रता में उसे आना होता है। आज नहीं, कल ठीक हो जाएगा| तो ये ख्याल रखना चाहिए कि जब हम बन रहे है तो हमारे साथ ध्यान नहीं रखते। बच्चों की तरफ ध्यान नहीं है। चैतन्य लहरी अंक : 3 & 4 2007 अनेक' बन रहे हैं। और वो जो अनेक है उनकी दृष्टि हमारे ऊपर है। हम कैसे बन रहे हैं, ये बहुत जरूरी चीज है। और इसमें ये बात है समझ लीजिए, आपके कोई गुरु अपनी ही मेहनत से जो कुछ करना है, करते हैं। आपसे नहीं कहेंगे कि आप भी कुछ बनिए। कहेंगे ये तो बेकार हैं ही, चलो बस हमको गुरु मान लिया इसी में धन्य समझो; अगले जन्म में देखा जाएगा लेकिन माँ ने जरा बड़ा काम निकाला है। वो चाहती है कि हरेक को गुरु बनाना है। जरा कठिन काम है। और नहीं भी है। आप जानते हैं कि आप लोगं सब बन रहे हैं धीरे-धीरे। सब घड़ते जा रहे हैं, बनते जा रहे हैं। इसलिए जिस वक्त आप बन रहे हैं, आप दूसरों का ख्याल बहुत करें। आपके अड़ोसी-पड़ोसी सब लोग, कि "माँ देखो मुझे ये तकलीफ थी और ये मेरी तकलीफ ठीक नहीं हुई" तो मैं भी कह सकती हूँ मुझे time नहीं चाहे मैं आपसे मिलूँ या न मिलँ आपके लिए मेरे पास हमेशा time रहता है। मेरा काम चौबीस घन्टे था। हों, realised soul भी हों, तो वो बिचारे चलते रहता है। आपको सिर्फ अपना ही काम करने का है। इसके लिए आपको time और discipline जरूर जोड़ना पड़ेगा। इस शरीर को discipline किए बगैर ये वैसी ही मोटर-कार हो जाएगी, जो सबको रौंदती चलेगी और न जाने किस गढ़ढे में जाकर गिर जाए। इसको discipline करने के लिए बहुत आसान तरीका है। पहले अपने ओर देखें कि इसके अन्दर दो शक्तियाँ जो चल रही हैं, एक तो इच्छा शक्ति और दूसरी कार्य शक्ति इच्छा शक्ति जो है उसमें से होना चाहिए एक ही इच्छा होनी चाहिए, सबको आप लोग क्या माफ कर कर देते हैं? क्या आपने सबको क्षमा कर दिया? क्षमा करना बहुत सीखना है। बहुत बारं कहा है कि ये क्षमा जो है, ये शुद्ध इच्छा । शुद्ध इच्छा क्या है? के आत्माकार हम हो जाएं। आत्मा से एकाकार हो जाए। ये शुद्ध इच्छा बड़ा साधन और सबसे बड़ा आयुध हमारे पास में है। है बाकी सब इच्छाएँ आप छोड़ दीजिए, अभी इस और इस जब बड़े आयुध को हम इस्तेमाल नहीं करेंगे, इसका उपयोग नहीं करेंगे, तो हमारे पास और कोई से माँगना, इस कलियुग में और साधन नहीं जुट का साधन करके, 'क्षमा की दृष्टि से लोगों की ओर देखना चाहिए। क्षमा नहीं आएगी उसे शान्ति नहीं मिल सकती। वक्त सिर्फ, ये अपने मन में विचार करें कि "एक शुद्ध पहले तो आप सब को क्षमा करें और फिर अपने को भी क्षमा करें। दोनों चीजें जब आप कर पायेंगे तभी आप देखियेगा कि आपके अन्दर स्वयं शान्ति आ वक्त । एक क्षण के लिए तो छोड़िए। और कुछ नहीं माँ बस, आत्मा से एकाकार हो जाएं। एक पायेंगे। क्षमा' ही शुद्ध इच्छा को माँरगे। बाकी सब छोड़ दीजिए कि ये होना है, ये चाहिए, वो चाहिए, घर चाहिए, मकान चाहिए, ये सब चीजू छोड़ दीजिए इस वक्त। इस क्षमा, से ही शान्ति आती है जिसमें इच्छा है, कि परमात्मा से एकाकार होना है, और हमें आत्मा से एकाकार होना है और हमें कोई इच्छा नहीं है।" देखिये कुण्डलिनी इसी वक्त सब आपकी चढ़ गई। जाएगी। आज्ञा चक्र खुल जाएगा तो शान्ति के द्वार खुल जाएंगे। और दूसरी, क्रिया शक्ति में ये होना चाहिए कि जो कुछ भी हो वो सहज हमसे हो। सहज का मतलब लोग सोचते हैं कि हम बैठे रहें और हमारे गोद में चीज आ जाए। ये बड़ी गलत भावना है। ये बड़ी गलत भावना हमारे अन्दर सहज के बारे में आयी कि हम बैठे रहें और हमें सब चीज मिल जाए। आपने अब दूसरी बात जो मेरे सामने हमेशा रहती है और मैं आपसे कहती भी हूँ, कि इस बनने में आप की मेहनत जो है उसमें एक तरह का discipline ( अनुशासन) आना पड़ेगा। बहुत से लोग-"माँ मुझे time (समय) नहीं मिलता।" और फिर आप कहिएगा अक : 3& 4 2007 चैतन्य लहरी 31 नहीं है। समझदारी से कहता है। बड़प्पन की निशानी है, maturity की निशानी है। सहजयोग में जो आदमी mature (परिपक्व) नहीं हो सकता वो सहजयोाग के लायक नहीं है. सहजयोग के लायक नहीं है। आपको mature होना पड़ता है और समझदार भी| देखा है कि एक बीज है, उसको जब हम माँ के इस पृथ्वी में छोड़ते हैं. उसके उदर में, तो दिखने को तो वो सहज ही से sprout (अंकुरित) होता है। लेकिन क्या वो सहज है? आपने उसकी मेहनत देखी, बिचारे एक छोटे से एक उसके अंकुर की, जो कि उस धरती को फोडकर निकल आता है। आपने उस छोटे से मूल की मेहनत देखी जिसका एक छोटा सा cell (कोष) किनारे में होता है, आख़िरी होता है. जो कितनी मेहनत से अपने को अन्दर गढ़ता है। अब उसकी शुद्ध इच्छा क्या है, कि इस पेड़ को मैं गढ़ देँ जैसा भी हो। उसकी और कोई इच्छा आपने देखी? उसमें सिर्फ एक ही विचार होता है किसी तरह से मैं जमीन के अन्दर ऐसी जगह पहुँच जाऊँ जहाँ से पानी खींचकर के मैं इस पेड़ को दे सकूँ। और वो कुछ नहीं सोचता । और कितनी' मेहनत, पत्थरों से लड़ता है, मिट्टी से लड़ता है, तो कोई उसे रौदता है कभी कुछ करता है। सब चीज से गुजरता हुआ धीरे-धीरे, बड़े wisdom (युद्धि) दिखने में चीज जितनी कठिन है उतनी नहीं है। हमने छोटे छोटे बच्चों को भी देखा है सहज योग में, बड़े समझदार, और हर चीज को बड़ी समझदारी से समझते हैं। उसी तरह से आप में ये समझदारी का तिलक लग गया है कि आप सहजयोगी हैं। और समझदार भी और इसमें आपके माँ की शान की बात है। जो नासमझ है उनके लिए लोग ये ही कहेंगे कि इनकी मां ने कोई इनको शिक्षा नहीं दी, बिल्कुल बेकार। कहने को तो आदिशक्ति है. और बच्चे कुछ देखो तो बिल्कुल बेकार हैं। इस समझदारी को लेते हुए आदमी को अपनी ओर देखना चाहिए "कि हमारे ऊपर इसका उत्तरदायित्व है। जिम्मेदारी है. कि हम के साथ अपना चलते जाता है। कोई पेड़ आया या कुछ आया बीच में तो उसके गोल घूम जायेगा, उसकी जड़ें आयेंगी तो उसके गोल घूम जाएगा और कहीं संसार के सामने एक समझदार इन्सान बने। आज नए साल के इस शुभ अवसर पर मैं आपसे एक बात कहना चाहती हूँ कि अब सहजयोग में हम लोगों को बहुत mature होना है। नये लोग आएं. बड़ी खुशी की बात है। उनके आगे जो पुराने सहजयोगी हैं, उनकी समझदारी आनी चाहिये । आए हैं, अभी पार नहीं हुए, कुछ हैं। किसी में थोड़े vibrations (चैतन्य-लहरियां) आ रहे हैं, किसी में नहीं आ रहे हैं। कुछ कमी है किसी में कुछ problem (बाधा) है। कोई एकदम से ही ज़्यादा पार हो गया है तो वो अपने को समझ बैठा कि मैं बहुत बड़ा आदमी हूँ। सब तरह की गलतियाँ होती है। आपने भी ये गलतियाँ करी हैं उसको भूलना नहीं, इसलिए उनके प्रति एक तरह का अगर कोई पत्थर-वत्थर होगा तो उसके भी गोल घूमकर और अपना मार्ग बना लेगा। उसी तरह, एक सहजयोगी को बहुत सूझ-बूझ के साथ चलना चाहिए और समझदारी अपने ऊपर जिम्मेदारी के तौर पर लेनी चाहिए, कि "हम समझदार हो गये हैं।" हमारे अन्दर समझदारी जो है ये हमारा एक प्रतीक है, हमारा एक ध्येय है। समझदारी जो है उसको हम अपने ऊपर जैसे कोई आदमी शान से तिलक लगाता है ऐसे समझदारी का हमने तिलक लगाया और हम समझदार है। समझदारी बड़प्पन-बडप्पन का मतलब नहीं कि नखरे करना या अपने को दिखाना कि हम कोई बड़े आदमी हैं। बड़प्पन का मतलब है कि एक तरह की paternal 'पिता जैसी feeling 'भावना' है, पितृत्व की feeling, का मतलब है जो आदमी समझदार होता है वो Tantrum (झुंझलाहट) में नहीं जाता बिगड़ता नहीं। छोटी-छोटी चीजों के लिए फिसलता नहीं है, और कहता नहीं है कि ये चीज ठीक नहीं है, वो चीज ठीक अंक :3& 4 चैतन्य लहरी -2007 32 मातृत्व की feeling । इससे उनकी ओर देखना, उनके प्रति प्रेम, जो कि माँ का आप पर प्रेम है, उसी तरह का आपको प्रेम होना चाहिए। अगर हम ये सोचते कि मर सकता। योग क्षेम वहाम्यहम्'। योगः क्षेम वहाम्यहम। फिर से कहेंगे, योगः क्षेम वहाम्यहम्। योग होने के बाद क्षेम की जिम्मेदारी हमारी है इसलिए कोई, भी गड़बड़ काम करने की जरूरत नहीं, बाकी सब हम देख लेंगे। कैसे कैसे हालात से आपको और वो बचायेंगे आपको। उसके दुनिया के लोग जो हैं वो बिल्कुल बेकार हैं. तो कुछ काम होता क्या सहजयोग में? या अगर हम अपने सी तौलते बैठे रहते. तो हम तो बिल्कुल अकेले हैं दुनिया में किस से तौलें अपने को? लेकिन वो सवाल ही नहीं परमात्मा ने बचाया है लिए आप निश्चिन्त रहिए। उठता यहाँ तो ये है किकितनों को अपने आंचल में 'भर लें। अभी हमारा वजन ही कम हो रहा है। इस आचल में किस-किस को भर लें, किसे-किसे रखें-यही फिक्र लगी रहती है। इसलिये किसी भी चक्कर में आने की जरूरत नहीं है। आजकल हजारों चक्कर चल पड़े हैं। हर तरह के चक्कर है जिनमें से सहजयोगियों को निकलना है। समझदारी क्या है? अब जैसे कि हमारे यहाँ भी dowry system (दहेज प्रथा) चल रहा है। सहजयोगियों को किसी को भी dowry देना शोभा नहीं देता, न लेना। इसी प्रकार आपकी भी दृष्टि में समझदारी का प्यार होना चाहिए। उसमें ये नहीं कि आप लोगों को कहें कि कोई आप बहुत बड़े अकडूखाँ हैं । लेकिन पहली बात ये है कि ऐसी ओछी बात नही एक अत्यन्त सरल, सहज प्रेम भाव अपने अन्दर रखना चाहिए। और उस सहज-सरल प्रेम भाव में करनी। दूसरी ये कि बहुत से लोगों में होता है कि हमारी ही जाति में हम विवाह करेंगे। ये भी मूर्खता का पितृत्व की धारणा, एक समझदारी की भावना रखनी चाहिए। मैं तो आप पर बहुत विश्वास रखती हूँ। किसी भी मामले में चाहे वो पैसे की बात हो चाहे, समझदारी की| मैं यही सोचती हूँ मेरे बच्चे कभी नासमझ नही ही लक्षण है। आपकी जाति कौन सी है? आपकी तो जाति नहीं है, आप तो योगी हो गये योगियों की कोई जाति नहीं होती सन्यासियों की भी कोई जाति होती है क्या? अभी हम एक दरगाह पर गये थे तो उन्होंने सकते। कभी-कभी होते हैं। लेकिन विश्वास मेरा है कि आप लोग सब समझदार, बहुत ऊँचे किस्म के आदमी हैं। पूरा कहा कि 'साहब ये तो औलिया चिश्ती, चिश्ती जो थे उनके nephew' (भरतीजे) ये भी औलिया थे । तो मैंने कहा औलिया की क्या जात होती है" कहने लगे औलिया की तो कोई जात नही होती। हम भी औलिया हैं हमारी तो कोई जात नहीं।" अब देखिये अपने देश में भी कितने हालात खराब है। यहाँ ढूढ़े से भी कायदे का एक आदमी नहीं मिलता। अब सहजयोग में आने के बाद अगर आप अपने हालात ठीक नहीं करेंगे तो जैसे करोड़ों इस देश में पड़े हैं वैसे ही आप होंगे, विशेष क्या होंगे? आपको एक विशेष रूप में होना है। जात का मतलब होता है aptitude जाति। जात-जो जन्म से पाया हो। जन्म से वो पाना नही होता कि ब्राह्मण कुल में पैदा हुए, कि वैश्य में, कि शूद्र में ये नहीं होता। आप जो पैदा हुए, आपका aptitude (क्षमता) क्या है? अब बहुत से लोग ये कहेंगे कि " माँ देखो भई आजकल अगर बेईमानी नहीं करो तो पेट नहीं मरता। ये बात सही नहीं है आप छोड़के देखिये। परमात्मा के साम्राज्य में कोई भूखा नहीं अपने देश की दूसरी बीमारी है, जाति। जिसको नानक साहब ने बहुत तोड़ा है। बहुत तौड़ा. नानक साहब ने, कबीर ने तोड़ा। लेकिन अब इन्होंने अंक : 3 & 4 -2007 चैतन्य लहरी दूसरी जाति बना ली। उसमें भी अब जाति बन गयी । सिक्खों में भी कोई कम जातियाँ है? वो भी जातिये हो क्यों बनाया? सोचना चाहिए। इसलिए कि मामा होते हुए भी उसका मर्दन करना है। गए। सिक्ख एक जात हो ही नहीं सकती। जो सिक्ख हैं वो तो जात हो ही नहीं सकती। वही तो बात है। जो कुछ जो तोड़ता है वही वो बन जाता है, पता नहीं कैसे? रिश्तेदारी जो है, जिसके पीछे में हम लोग देश बेच देते हैं- ये रिश्तेदार, मेरा भाई. ये मेरा बेटा , ये फलाना, ये सब हो जाए, ऐसी जो व्यर्थ की चीजों में हम जो इतना महत्व देते हैं। उन्होंने कहा कि "कंस अगर राक्षस है तो चाहे वो मेरा मामा हो, उसको मारेंगे।" इसलिए इस तरह की जो हमारे अन्दर, हिन्दुस्तानियों की खास चीज़ है। अंग्रेजों की बात हिन्दुओं में जो जातियां थीं वो भी सारी जितनी भी जाति थीं, वो सारी अपने कर्म के अनुसार थीं। नहीं तो आप ही बताइये कि मत्स्यगंधा, जो कि एक धीमरनी थी, उसका लड़का, जो कि उसका विवाहित रूप में बच्चा नहीं जन्मा था, इस तरह का और है, उनसे बात करते वक्त तो और बात करनी पड़ती है. आप लोग की बात और है। उन लोग के यहां तो बेटा क्या, वो तो किसी को नहीं मानते। माने तो और उससे नजदीक रिश्ता कोई नहीं होता । बेटा है बाप को मार डालेगा, बाप है बेटे को मार डालेगा। मानो सभी राक्षस हैं इस मामले में और हिन्दुस्तान के लोग ये हैं कि अगर बेटा, अगर वो murderer बच्चा व्यास हुआ जिसने गीता लिखी सोचिये कहाँ से कहाँ बात पहुँच गयी। क्यों? ऐसा क्यों ? क्यों नहीं किसी ब्राह्मण कुल का 'शुद्ध मनुष्य जिसे कहते हैं ये तो बड़ा भारी मज़ाक है! लेकिन, ऐसे आदमी ने क्यों नहीं गीता लिखी? सोचना चाहिए। कृष्ण ने व्यास से क्यों लिखवाई? क्या बात है? वो तो इसलिए कि यही धारणा तोड़ने के लिए कि मत्स्यगंधा से जो पुत्र हुआ है, उससे मैं गीता लिखवाऊ। विदुर के घर जाकर (खूनी) भी है तो भी माँ जो है कहेगी "बेटे कोई बात नहीं murder ही करके आया है न, हाथ धो लो खाना खा लो। कुछ बात नहीं है तुम तो मेरी जान हो, कुछ हर्जा नहीं। तुम ये खाना खा लो चाहे murder करके आए हो।" ये अपना देश है! ऐसी जो हमारी अंधी आंख है, उसको खोलने के लिए ही ये किया । इसी प्रकार जाति-पाति में फिर हमारा जो एक अंध-विश्वास मन्दिरों में, मस्जिदों में और इन सब चीजों में है, मैं तो कहूँ गुरुद्वारों में भी. उसकी तरफ ये सोचना चाहिए। जान बूझकर क्यों किए? क्योंकि दृष्टि उठाने के लिए भी लोगों ने बड़ी मेहनत की. बड़ी इस तरह की जो प्रथाएं अपने देश में व्यवस्थित हो मेहनत की नानक साहब ने खुद ग्रंथ साहब इसलिए बनाया कि उन्होंने कहा कि शास्त्रों में ये लोग तो interpretations (अर्थ) लगाते हैं, तो उन्होंने जो realised souls (सिद्ध आत्माएं) थे, ऐसे ही गुरुओं उन्होंने साग खाया, क्यों? इसी चीज को तोड़ने के लिये। भीलनी के झूठे बेर राम ने खाए। क्यों? क्यों कि ये इसी तरह की बेवकूफी की बातें तोड़ने के लिये| क्या बेर के बगैर जी नहीं सकते थे? और पर कोई खा भी ले क्योंकि रामचन्द्र जी ने खाए, तो फौरन जाकर मुँह धो लेंगे। ये सब काम उन्होंने क्यों किये? रही थीं-जाति-पाति सब फालतू की चीजें- उसको पूरी तरह से तोड़ने के लिए। अब सोचिए, हजारों वर्ष पहले ये काम हुआ। राक्षस के घर में प्रहलाद को पैदा किया। स्वयं कृष्ण के मामा राक्षस थे कहाँ से कहाँ देखिये उनकी छलाँग कहाँ मारी, देखिए । कृष्ण भी उतरे कहाँ, तो मामा राक्षस! अरे भई कोई और अच्छा नहीं मिला था तुमको! कंस ही को मामा बनाना था? का वो ग्रंथ साहब बनाया। अब वो ही ग्रन्थ साहब पढ़ रहे हैं अरे भई उसमें क्या लिखा है वो तो देखो। जो बात उन्होंने असल कही है उसका essence (निचोड़) तो पकड़ो, नहीं तो नानक साहब के साथ भी तो चैतन्य लहरी अंक : 3 & 4 2007 34 ज्यादती हो रही है इसलिए इस तरह का लीजिए एक योगी साहब हैं वो बन्दूक बना रहे हैं अभी मेरी तो कुछ समझ में ही नहीं आता कि योगी का और बन्दूक का क्या सम्बन्ध है (भई तुम बता दो. तुम्हारा नाम योगी है)। मुझसे बहुतों ने पूछा कि योग तो confusion (भ्रात स्थिति) अपने सभी धर्मों में इतनी बुरी तरह से हो गयी है। यहां तक लोग कहते हैं कि मुहम्मद गजनी स्वयं साक्षात् कृष्ण का अवतार था क्योंकि ब्राह्मणों ने लूट मचायी थी, इसलिए कृष्ण' ने मुहम्मद गजनी का अवतार लिया थी। कहानी ऐसी का आयुध है, न देवी का बन्दूक, बहरहाल ये कोई है। और जब उन्होंने सोमनाथ को लूटा तो वहां से शंकर जी भागे और भागते-भागते भैरों नाथ जी के विचित्र लोग आजकल के जमाने में संसार में आए मन्दिर में घुस गये और उनसे कहा "भईया तुम मुझे हुए हैं। इससे भी भगवान का नाम जो है, लोग सोचते बचाओ उससे, ये तो मेरे पीछे पड़ गये।" उन्होंने कहा कि "आप तो शिवजी हैं, आप किससे डरते है आपको क्या डरने की बात है, आप तो एक नेत्र खोल दीजिए पक्की बात 'जानते' माने सिर्फ बुद्धि से नहीं, लेकिन तो ठीक हो जाए।" उन्होंने कहा "भईया, तुम जाके vibration (चैतन्य लहरियों) से कि परमात्मा है और देखो ये कौन है। वो सो रहा है।" जाकर देखा इन्होंने उनकी विश्वव्यापी शक्ति जो है संचालित है। सिर्फ -कहते हैं, भैरों नाथ जी जो गए तो उन्होंने देखा कि वहां विराट साक्षात् सो रहे है। उन्होंने कहा, "बाबा रे बाबा इनको कौन मारेगा?" तो भैरोंनाथ जी ने कहा कि "एक चीज माँ ने मुझे दी है, वो शक्ति मैं इस्तेमाल करता हूँ।" तो भ्रामरी देवी ने भृंगों की शक्ति दी थी । तो उन्होंने भृंगों की शक्ति के इस्तेमाल करने से भ्रमर गए और उन्होंने गुनगुना के उनको सोने ही नहीं दिया। तो कृष्णा को सोना जरूरी है, बीच-बीच में, नहीं तो ही का बन्दूक का क्या सम्बन्ध है? मैने कहा न कृष्ण आयुध जोड़ रहे होंगे! तो इस प्रकार के विक्षिप्त और हैं कि ये तो कहने की बात है कि भगवान है, भगवान हो नहीं सकता। अब सहजयोगी ही सिर्फ जानते हैं सहजयोगी जानते हैं। अब जान तो बहुत कुछ लिया है आप लोगों ने मैं आपसे बताती हूँ कि आप लोग जितना जानते हैं बड़े-बड़े योगी भी नहीं जानते-माने असली योगी। असली योगी की बात कह रही हूँ मैं वो भी नहीं जानते होंगे लेकिन गया है जैसे रेडियो के अन्दर से music (संगीत) आता है और रेडियो पर असर नहीं होता। आर पार। जो कुछ जानना ऐसा हो कुछ भी जाना है, बहुत कुछ जान गयें आप लोग। और vibrations में भी जाना है। लेकिन वो कुछ बहुत उपद्रव हो जाय संसार भर में। क्योंकि उनकी हनन शक्ति बहुत जबरदस्त हैं। और वो परेशान होकर के चले गयें, ऐसा लोग कहते हैं, इसमें सही तथ्य हैं या नहीं इस मामले में मैं नहीं कहूँगी। लेकिन इतना जरूर कहूँगी कि जब इन्सान को किसी भी चीज़ के बारे में इस तरह से लोग तंग कर देते है तो वो उस vibrations अपने 'अन्दर' नहीं चल रहे। बाहर चल रहे हैं। उनको कुछ ' अन्दर" भी चलाना चाहिए। इसलिए मैं कहती हैं कि अपने को discipline करिए। अपना instrument (यंत्र) ठीक करके इन vibrations को अन्दर" ले लीजिए। तरह की कहानी भी बना सकता है। जब धर्म के नाम इसमें मैं कहती हूँ कि महाराष्ट्र में लोग मेहनत बहुत करते हैं बड़े मेहनती हैं। और इस लिए सहजयोग में उनकी प्रगति बड़ी गहन हो रही है। गहरी हो रही है। पर इतने अत्याचार, खून-खराबा, ये वो सब हो रहा तो भगवान को भी लोग कह सकते हैं कि भगवान कोई चीज़ नहीं है। भगवान में भी विश्वास करना इसलिए आपको ध्यान देना चाहिए कि रोजू सवैरे उठ करके-अब इंग्लैंड में जहाँ इतनी ठंड पड़ती है और अंग्रेज को सबसे बड़ा गुनाह है, चाहे आप मार डालिए. असम्भव सा हो जाता है। उसमें मैं उनका दोष नहीं समझती, क्योंकि जो भगवान का नाम लेकर के काम कर रहे हैं वो अगर इतने महादुष्ट हैं- अब समझ अंक : 3 & 4 -2007 चैतन्य लहरी उसका खून कर डालिए वो कुछ नहीं कहेगा, लेकिन लीजिये ये ego, superego का, ये टूट करके और अगर उस को सुबह आपने जगा दिया ता वो गया, खत्म। उसके बाद, इससे बढ़कर महान पाप है ही नहीं पक्षी अडे से भी कमजोर होता है। इसलिए इसे बहुत इंग्लैंड में अगर आपने किसी को सवेरे नौ बजे से पहले जगा दिया तो बस आपसे महापापी, दुष्ट, राक्षस कोई नहीं। ऐसे देश में लोग चार बजे उठकर नहाते हैं, प्रेम। इसकी भी भावना बहुत कम लोगों को है। चार बजे। उनकी मेहनत। क्योंकि वो जो पहले ही discipline थी अब उन्होने सहजयोग में लगा दी। है कि जिस में न तो कोई किसी प्रकार का greed हम लोग तो कभी disciplined ही नहीं रहे। हम लोग तो सब मुक्त लोग हैं। सब लोग ब्रह्म बने बैठे हैं उन लोगों ने इतनी मेहनत की तो क्या हम लोग नहीं कर सकते? " अब सवरे चार बजे माताजी उठने को आप अब पक्षी हो गये। लेकिन एक छोटा-सा बच्चा बढ़ावा देना चाहिए। सम्भालना चाहिए, संजोना चाहिए। और शुद्धता रखिये; प्रेम "शुद्ध' होना चाहिए। "शुद्ध' प्रेम क्या होता है? शुद्ध प्रेम वो होता ये शुद्ध (लालच) है और न ही किसी प्रकार की ust है, माने न कोई तरह की लालसा है, न लालच है और न ही उसमें कोई तरह की गंदगी है। वो बहते रहता है। इस शुद्ध प्रेम का अपने अन्दर से प्रकाश बहना चाहिए, ये शुद्ध इच्छा हमारे अन्दर होनी चाहिए। और जब ये होने लग जाता है तभी आप बन्दनीय मत बोलिए, बहुत ज्यादा हो जाएगा। मैं नहीं बोलती। पर आप खुद ही साचिए कि आपको time ही कब है? सवेरे उठकर के ध्यान में वो लोग बैठते हैं, लन्दन की ठंड में। और उस मेहनत से ही वो लोग पा गए वहां तो नर्क है। जब नर्क में उन्होने स्वर्ग खड़ा किया है तो स्वर्ग में थोड़े से दीप जलाना कोई मुश्किल नहीं है । ये तो स्वर्ग ही है। ऊपरी बातें छोड़ दीजिए। ये तो बड़ी चीज़ है। ये देश बहुत महान देश है। इसमें ये काम करना कोई मुश्किल काम नहीं है । सहजयोगी हो जाते हैं। उससे पहले नहीं। और ये एक जो बनने की विशेषता है, इसकी ओर जरूर ध्यान दिया जाए। आप आज कहेंगे कि देखिए माँ हमारा ये चीज ठीक कर दीजिए, माँ वो ठीक कर दीजिए। हाँ, भई चलो ठीक कर देगे। कर देंगे। लेकिन आपका कुछ बनेगा नहीं मामला। कोई बच्चा है कहंता है "माँ हमें ये दे दो।" चलो भई लो. तुमको चाहिए, लो। लेकिन आप कोई विशेष तो बने नहीं। आपने कुछ पाया तो नहीं। आप ऐसे ही माँ के आगे पीछे दौड़ते रहे। क्या फायदा? आपको जो कुछ तो इसलिए मैं बता रही हूँ कि कल के, भविष्य के जो नेता लोग हैं तो आप ही यहाँ बैठे हुए है। अब कोई राजकीय या सामाजिक और जितने भी तरह के "इक' है, वो सबमें आत्मा का ही प्रादुर्भाव होगा, नहीं माँ बनाना चाहती हैं वो अगर आप नहीं बनेंगे तो माँ की भी तो शुद्ध इच्छा पूरी नहीं होती। एक 'अजीब तरह की बात है, कि आपको बनाना चाहिए, ये मेरे अन्दर शुद्ध इच्छा है। और आपके अन्दर शुद्ध इच्छा है कि आपको कुछ बनना चाहिए। जब हमारा ऐसा मेल बैठा हुआ है तो सिर्फ शुद्ध इच्छा से रहे हम। तो काम नहीं चलने वाला। कल के नेता आप लोग हैं। आप ही में से, सहजयोग से ही तैयार होंगे और अब मुझे पूछना ये है कि आप में से इतने कौन लोग हैं जो इसके लिएह तैयार है कि अपना जीवन एक शुद्ध सुन्दर एवम् पूरी तरह से Dynamic (कार्यशील) बनाएं। नि्भय, पूरी तरह से निर्भय होकर के. हम विशेष रूप के इंसान बनने वाले हैं और 'हैं। आपको हो कहते हैं कि द्विज हो गये एक अंडा था, जैसे समझ और शुद्ध इच्छा पर रहने के लिए, 'शुद्ध प्रेम - पहली चीज। शुद्ध प्रेम। और शुद्धता लाने के लिए अपने चित्त को शुद्ध करना चाहिए। हम किसी के गया है। आप जैसे अंक : 3 & 4 चैतन्य लहरी 2007 36 यहाँ जाते हैं, तो क्या देखते हैं- 'अरे इनके यहाँ इतनी अच्छी चीज आयी हैं, ये कहाँ से आ गई? ये कैसे आ गई?" लगा दिमाग दौड़ने। ये नहीं देखते कितनी अच्छी चीज है, कैसी बनी है; वाह, वाह. वाह! देखिये इसका मजा उठाइये। अच्छा है, सरदर्द अपनी नहीं, दूसरे की है, बड़ा अच्छा है। आप देखेंगे कि गहन में तो भई कमाल है। ऊपर से चाहे जैसे भी हो, और ज्यादातर से जो ऊपर से चाहे जैसे भी हो, और ज्यादातर से जो ऊपर से बहुत होते हैं कभी-कभी बड़े गड़बड़ होते हैं, अन्दर से। इसलिए गहन में क्या है उधर दृष्टि है क्या? फिर देखिये प्रेम कितमा बढ़ता है। 'प्रेम गहन चीज है। किसी की ओर दृष्टि करने में उसकी गहनता को नापें । और आप खुद ही गहन उतरते चले जाएगे। एक है न. "दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ।" किसी के दिल में मैं राह किए जा रहा हूँ। रास्ता बनाते जा रहा हॅूँ । इसी प्रकार उसकी गहनता पर उतरिये: Superficialities (बाह्य बातीं पर) पर रहने से आदमी का चित्त गहन नहीं उतर सकता। और जब इस तरह से जब आप दूसरों की ओर देखेंगे appreciative temperament (खुश मिजाज) होना चाहिए लेकिन ज्यादातर दृष्टि दोषों पर जाती है मनुष्यों की। जैसे कोई कहेगा "साहब वो अच्छी तो है लड़की, लेकिन attractive (आकर्षक) नहीं है मतलब क्या? attractive माने क्या? आप एकदम जाके, एकदम क्या उससे 'चिपक जायेंगे क्या, attractive क्या होता है? मेरी आज तक समझ नहीं आया, कि तक चित्त गहन नहीं उतरेगा, तब तक आपकी गहनता नहीं बढ़ने वाली। attractive' के माने क्या होता है। खासकर तो चित्त को पहले गहन उतारिये । बाह्य की चीजों में बहुत है। जैसे हमारे ladies हैं- आदमियों का भी बताऊंगी, कि अब ब्लाऊज match हुआ attractive शब्द आज तक मेरे समझे में नहीं आया। कि "साहब वो attractive नहीं है।" मैंने कहा भई attractive के माने क्या होता है? क्या चीज़ आपको attract करती है? उसका नाक, मुँह, हाथ skin (चमड़ी, कपड़े, शपड़े क्या? कौनसी चीज? कि नहीं हुआ, उसके लिए सर फोड़ डालेंगी Blouse should be matching ।जब हम लोग यहाँ थे तो कोई matching ब्लाऊज ही नहीं पहनता था। नीले रंग की साड़ी तो पीले रंग का ब्लाऊज । सीधा हिसाब । और पीला नहीं हुआ तो लाल रंग चल जाएगा। मतलब ा Attract तो एक ही चीज करनी चाहिए दूसरे की आत्मा; वही तो आनन्द देने वाली चीज़ है दूसरे की। वाह्य की दृष्टि जो है इसमें चित्त हमारा बड़ा contrast border तो पहले होता नहीं था, वो con- trast कर लिया। नहीं हुआ तो नहीं, पहन लिया। अब पहले होती ही कितनी साड़ियाँ थी किसी के पास में । दो या तीन. चाहे कितने भी रईस हों। ज्यादा कपड़े कोई रखता ही नहीं था। अब साहब तो matching हो गया। औरतों का इतना problem हैं कि अगर कोई औरत matching पहन के नहीं आयी तो खलबली मच जाएगी सारे शहर में। "क्या कपड़े पहन के आयी थी बेवकूफ जैसे !" लेकिन वो अगर अजीब सा jean पहन के आए, दो सींग लगा के आए तो वो माडर्न है, वो modern (आधुनिक) हो गयी। उलझता है। चित्त को ' गहन ' उतारना पड़ता है। Penitrating, गहन । तब कैसे possible (सम्भव) है। अगर आप पहले ही देखते साथ, "साहब वो तो ठीक नहीं है, इनका ठीक नहीं है।" हो गया काम खत्म। वो आदमी खत्म, उसकी सब आत्मा खत्म। उसकी सब जो कुछ भगवान ने मेहनत की है वो सब खत्म। "वो तो ठीक नहीं है" -बस हो गया काम। आप उसके गहन उतरे क्या? देखा क्या? खोजा है क्या, क्या चीज है? गहन उतरके देखिए । और फिर चैतन्य लहरी अंक : 3 & 4 2007 37 कुछ होता है। और उसका ताँता आप जोड़ते जाएं तो कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है। ऐसी जो हम लोगों ने चीजें norms (असूल) बना ली है, अपनी उस norms में हम उलझे रहते हैं। अब आदमियों की दूसरी बीमारी होती है उनको इतना कपड़ों से मैचिंग वैचिंग का time कहां, वो तो घड़ी देखते रहते हैं। हरेक आदमी की घड़ी. "कितना बजा रही है?""कितना time हो रहा है?" जब निकलने का time होगा, तो बजाय इसके कि बाहर निकल जाएं, इत्मिनान करें, औरतों के पीछे में 'चलो भई दो मिनट बचे है; एक मिनट बचा है time keeper रहे होंगे! उतने में औरतें जो हैं पच्चीस चीज़ भूल गये. वो भूल गए और भागे बाहर। हड़बड़, हड़बड़।"इतना time हो गया।" घड़ी देखना, और बताना और जताना, एक बार में Geneva से जा रही थी। बहरहाल मेरा तो प्लेन miss नही हुआ अभी तक कभी भी - ये भी एक आश्चर्य की बात है। एक साहब का miss हो गया था तो वो तड़पड़ाते हुए पहुँचे प्लेन में। और उनको इत्तफाक से मेरे पास जगह भी मिली । बड़े nervous (परेशान), उनकी हालत खराब । महाराष्ट्रीयन थे। तो मैंने समझ लिया कि ये आ गए मेरे चक्कर में! मैंने कहा "करेला नीम चढा" इनको भी अब फॉसना चाहिए। तो मैंने मराठी में कहा"साहब आपको परेशानी क्या हो गयी।" तो उन्होंनें मराठी में ये भी modern चीज है, पहले जमाने में कोई ऐसा नहीं करता था। क्योंकि न ता पहले रेल गाडियां श्री. और रेलगाड़ी कौन आपके यहाँ time रखती हैं, जो आप इतनी जल्दी कर रहे हैं? न Plane (जहाज) कौन आपका Time रखते हैं? प्लेन में भागे जाओ, शुरु कर दिया, असली मराठी में। कहने लगे "ये प्लेन मैंने miss कर दिया। देखिये कितनी, ये हो का गया। मैंने कहा "कुछ नहीं miss किया आपने। आपके लिए कुछ अच्छी चीज ही होने वाली. है इस प्लेन में।" मेरी ओर देखा, उन्होंने कहा, क्या अच्छी चीज होगी? तो देखा "क्या आप माता जी निर्मला देवी हैं?" मैंने कहा "हाँ"। वो गए काम से! हो गए पार, प्लेन में ही! उनका नाम है डा. मुतालिक। और उन्होंने कहा, "साहब मैं तो इतना परेशान था और आपको पता है, yesterday (कल) सवेरे के गए हुए वहीं शाम तक बैठे रहे, plane ही नहीं आया। बैठे हुए हैं । लेकिन घर से निकलते हुए ऐसी हड़बड़, सड़बड़ उसमें ये रह गया रे, वो रह गया। तीन बार गाड़ी जाके लायी, तो भी प्लेन नहीं आया! आप कहोगे कि माँ ही ये सब कर रहीं है क्योंकि हम घड़ी के गुलाम हैं। हो सकता है। इतनी घड़ी की गुलामी करना आदमी को मुझे क्या मालूम था, कि आत्म-साक्षात्कार मिलने वाला है।" मैंने कहा "हाँ, इत्मिनान से चलो। और उसके बाद मालूम है कहाँ से कहाँ बात पहुँच गयी UN में वो ले आए, इसको ले आए, उसको ले आए। वो भी पागल बना देता है। बहुत बड़े आदमी हैं. WHO के वो डायरेक्टर हैं। लेकिन 'वैसे' वो ना आते शायद । और इत्तफाक-सहज, हो जब आप सहजयोग में आते हैं, आपको पता होना चाहिए कि plane खड़ा रहेगा आपके लिए । आइए आराम से राजा साहब जैसे! plane जाने वाला नहीं है, चाहे कुछ हो जाए। plane वहां खड़ा रहेगा; या देरी से आ रहा होगा। अगर आपको देर हो रही है तो कोई हर्ज नहीं, राजा साहब जैसे जाइये और अगर समझ लीजिए प्लेन miss (छूट) भी हो गया, दूसरे प्लेन से जाइये हो सकता है उसमें कोई चीज बनने वाली हो। कोई सहजयोग मिलने वाला है। ऐसा बहुत गए पार। तो ये सब मजे देखने के हैं। तो इतनी ज़्यादा घड़ी की गुलामी नहीं करनी चाहिए। आखिर ये सोचिए कि इतने दिन घड़ी बाँध के भी हमने क्या पाया? यूं ही-मतलब अपने बाप दादाओं ने भी घड़ी बाँधी ही थी, हालांकि उनकी ज्यादातर खराब ही रहती होगी। इतनी घड़ी से अपने को बाँध के सिवाय nervousness के हमने कुछ अंक : 3 & 4 - 2007 38 चैतन्य लहरी बच के चलना चाहिए। ये आपको पता होना चाहिए। ये हमारे आने से पहले से ही सब जमे बैठे हुए हैं। वो इधर भी बैठे हैं, उधर भी बैठे हैं, वहाँ भी बैठे हैं। इसलिए माँ के साथ liberty (स्वच्छन्दता) नहीं लेनी चाहिए इस तरह की। वहाँ पर समय से पहले पहुँचना चाहिए परमात्मा का काम है। परमात्मा के काम के लिए पहले से सुसज्ज होके आइये। जान लेना चाहिए। लेकिन ये disci- pline (अनुशासन) आप अपना लगाइये, मैं नहीं लगाने वाली दो चार चपट पड़ेगी फिर आप लोग फिर आ जायेंगे। नुकसान होगा। समय से पहले वहाँ पहुँचना चाहिए। अपने ऊपर जिम्मेदारी लेकर के आप जिम्मेदार लोग हैं। पहले से पहुँचना चाहिए। बच्चों को भी सिखाएं।"माँ का प्रोग्राम है।" कोई हर्ज नहीं एक कप चाय कम पी ली तो कोई हर्ज नहीं। चलो, आज माँ का प्रोग्राम है बहुत बड़ी बात है।" इसलिए समय से पहले पहुँचना चाहिए। लेकिन में नहीं कहूँगी। मैंने इनसे भी कहा दरवाजा खुला नहीं पाया, और इस घड़ी की गुलामी में जो आजकल modern चीज़ हमने जानी हैं और जो निकल आयी है वो है Leukaemia, (बीमारी जिसमें रक्त की कमी हो जाती है) इसलिए अगर आपको Leukaemia नहीं पाना है तो इस घड़ी को आप तिलांजलि दे दीजिए कभी इसको आगे रखिए कभी पीछे रखिए । मैं भी ऐसे ही करती हूँ। या एक ही काटा रख लीजिए । जैसे किसी ने पूछा "कितना बजा है?" तो कहना साढ़े"। या पौना"। ठीक है। किसी से भी जोड़़ लीजिए, कोई सा भी नम्बर समझ लीजिये। नहीं तो time ही नहीं रहेगा enjoy (मौज- मस्ती) करने का। अगर आप हर समय घड़ी की ही गुलामी करियेगा तो आपके पास time ही कहाँ है enjoy करने के लिए? भई अभी time नहीं enjoyment के लिए ।" पर कहाँ जा रहे हैं आप? इसको पकडूना है, उसको पकड़ना। ये जो भागा-दौड़ है इसे आप बंद कीजिए । सब पागल जैसे भाग रहे हैं। हुए यहीं पर इसी प्रकार स्त्री की बातें और होती है पूरुषों की बातें और होती हैं। लेकिन हमने अपने norms रखो। (नियम) बना लिए हैं। जैसे समय से जरूर जाना है। ये मैं नहीं कहती कि गलत बात है। अंग्रेजों ने ये बात बनायी कि अब समय से जाने से उन्होंने 'वाटरलू' की लड़ाई जीत ली। पर हार भी सकते थे वो। time से कोई फुर्क नहीं। जब time आ गया था तो जीत गये और हार गये। इसका मतलब नहीं है कि अगर माता जी का प्रोग्राम छ: बजे है तो आप नौ बजे आइये। जिसके लिए ये योगी परेशान हैं, और वर्मा साहब कि माँ जब भाषण देती है तब चले आते हैं बीबी-बच्चे सब लाइन से चले आ रहे हैं, माँ बोल रही हैं अपने चले आ रहे हैं। तो कहते हैं कि भई माँ के दरवाजे सबको बंद नहीं। लेकिन आप ही को समझना है, आप ही को जानना है, और आप ही को मानना है और अपने को सम्भालना है। किसी पर भी सहजयोग में जबरदस्ती, जुल्म, कोई चीज का restriction (गोक) नहीं है हमारी ओर से। लेकिन वो हो ही जाता है। automatically (स्वतः) आप जानते हैं। आप पर automatically इसका प्रतिबन्ध लग जाता है क्येंकि परमात्मा के साम्राज्य का जो आनन्द है वो तो आदी रहा है, लेकिन उनके Rules-regulations (नियम अधिनियम) भी चलते हैं और वो 'बड़े ही कमाल के Rules- regulations है। इसलिए अपने को ही सम्माल के रखना है। नतमस्तक होकर के ये सोचना है कि "आज दरबार में जाने का है।" समझ लीजिए आपको-दिल्ली लेकिन माँ का तो दरबार होता है। दरवाजे दरबार में पहले लोग जाते थे, आपको पता होगा। तो rlsBa ] y & u njck g$ वहाँ 'बहुत' से बैठे हैं। बहुत से ऐसे-वैसे बैठे हुए हैं जिनसे 'बहुत हुए दो महीने पहले से तैयारी होती थी। special (खास) अंक 3.& 4 2 चैतन्य लहरी 2007 39 मैं कोई restriction (बन्धन) नहीं डालती आप पर, आपको ही खुद grow (बढ़ना) होना है जो खुद grow होगा, जो खुद ही इसमें बढ़कर के ऊचा उठेगा, वो स्वयं को वैसे ही संवार लेगा। उसको कहने की जरूरत नहीं। कहने से जो काम होगा वो फिर क्या कपड़े पहनाये जाते थे और कैसे जाते हैं उसका rehearsal (पूर्वाभ्यास) होता था और अगर आप गये हैं, तो victory (जीत) के सामने आप पीठ नहीं दिखा सकते। झुक के और पीछे ऐसे सीधे चले आइये। अरे ये वायसराय होता किस बला का नाम सहज हुआ? आप "खुद' अपनी समझदारी से इसमें एक बड़प्पन, अपनी प्रतिष्ठा लेकर उठें। आप स्वयं प्रतिष्ठित हैं और उस 'स्वयं' को सामने रखकर के चलिये। आपसी बातचीत, आपसी का बोलना चालना | परमात्मा के पैर के धूल के बराबर भी नहीं है । उससे भी कम। उसका तो इतना महात्म्य है। फिर, वो हमारी माँ क्यो न हो, लेकिन दरबार भरा हुआ है। और जो बड़े-बड़े देवता लोग है वो कायदे से बैठे रहते सब चीज में 'स्वय चालित होना चाहिए। Own है, सब आयुध पहन के। पूरा इंतजाम रहता है पूरे खड़े रहते है। और सब तैयारी से पहुँचते हैं। देखिये vibrations भी आ गए। कितने जोर के vibration Driven को स्वयं चालित कहते हैं। पर स्व तो missing (गायब) होता है उसमें। आपका स्व जागृत है। उस 'स्व' के तंत्र में चलिए। वही स्वतन्त्र है। और उस तंत्र में चलते हुए जो एक "विशेष रूप" आप धारण करते हैं उसको देखकर ही लोग सोचेंगे "वाह. छूट रहे हैं वो सब सज्ज होते है इस वक्त। जब हम बोलते है तो देखिए कितने जोर के vibrations छूटते हैं। इसलिए आपका भी सतर्क होना चाहिए। वो देख रहे हैं आप सबको, कि कैसे आप चलते हैं। इसलिए वाह। ये क्या चीज सामने चली आ रही है।" सम्भल करके, बहुत नतमस्तक होकर के आना चाहिए। ये बात आपको धीरे-धीरे जान जाएगी कि आप कहाँ इस पागल दुनिया में बहुत जरूरत है इस वक्त। मुझे थोड़ी सी आपकी मदद की जरूरत है अगर हो जाए तो ये दुनिया पलटने वाली है, बहुत जल्दी पलट जाएगी। पहुँचे है, आपका स्थान क्या है. आप कौन सी ऊँची दशा में है। उस दशा के अनुसार आप चले। अभी लन्दन में शादी हुई थी वहाँ के युवराज आप लोग सब मिलकर के कोशिश करें। पूरी कोशिश करें, अपना महात्म्य समझें। माताजी का की। बहुत दूर-दूर से लोग आए थे, क्या उसका तमाशा था, पता नहीं। लेकिन उसके लिए अमेरिका से रीगन साहब की बीबी आयी और वो 15 मिनट देर से आयीं, दौड़ते-दौड़ते। और सारे लोगों की commentary (तानेबाजी) ये हुई कि "ये औरत क्या समझेगी, ये एक model थी। अभी हो गयी राष्ट्रपति की बीबी तो क्या हुआ? जो असली था वो तो सामने सामने नजुर आ गयी। ये क्या समझेगी कायदे?" महात्म्य है, जो तो बहुत लिख गए। अब आप अपना महात्मय लिखिये। और ये जानिये कि कहाँ से कहाँ आप लोग पहुँच गए हैं, और कहाँ से कहाँ आपने पहुँचना है। आज नव वर्ष के दिन विशेष रूप से ये कहने का है।"आनन्द से रहें, सुख से रहें, चैन से रहे. हॅँसते रहे।" पर अपनी प्रतिष्ठा में बंधे रहें, प्रतिष्ठा अपनी छोड़े न। और वो दिन दूर नहीं कि जब कि आप देखिएगा कि दुनिया सारी आप लोग रोशन कर देंगे। तो वो तो कोई चीज ही नहीं । वो तो कोई चीज ही नहीं । लेकिन ये जो चीज है उससे कितनी 'बड़ी' है, कितनी 'ऊंची हैं, कितनी 'महान' है, उसको समझें। और इस महानता को पहचानते ही आप स्वयं आप सबको मेरा अनन्त आशीर्वाद (निर्मला योग-1983) उस महानता का विशेष आदर करेंगे । श्री महाशिवरात्रि पूजा दिल्ली 17-2-85 परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन अपनी कुण्डलिनी को नीचे नहीं गिरने दें । आज शिवरात्रि के इस शुभ अवसर पे हम लोग एकत्रित हुए हैं और ये बड़ी भारी बात है कि हर बार जब भी शिवरात्रि होती है मैं तो दिल्ली में रहती हूँ। हमारे सारे शरीर, मन, बुद्धि अहंकार, सारे चीजों में सबसे महत्वपूर्ण चीज है आत्मा. और बाकी सब कुण्डलिनी इसलिए नीचे गिरती हैं क्योंकि हमारे अन्दर बहुत से पुराने विचार पुराने onditionings हैं और इसलिए भी गिरती है कि हम futuristic बहुत हैं। जैसे हम अपने दिल्ली का विचार करें तो दिल्ली में कुछ लोग तो बहुत पुराने विचार के, पुराने व्यवस्था के अनुसार रहते रहे हैं। उनके अन्दर ऐसी-ऐसी भावनाएँ बनी हुई हैं कि बाह्य के उसके अवलम्बन है। आत्मा में हम अपने पिता प्रभु का प्रतिबिम्ब देखते हैं। कल आपको आत्मा के बारे में मैंने बताया था। वही आत्मा शिव स्वरूप है। शिव माने जो बदलता नहीं, जो अवतरित नहीं होता, जिनको निकालना भी बहुत मुश्किल है क्योंकि वो जो अपने स्थान में पूरी तरह से जमा रहता है, जो अचल, अटूट, अनल, ऐसा वर्णित है उस शिव की धर्म के ही नाम पर ये सब चीजें करते हैं कि यही धर्म है, इसी में रहना चाहिए। यही सत्य है, यही सब कुछ हमें परमात्मा की ओर ले जाएगा। ऐसे जो लोग विश्वास लेकर चले हैं उनकी भी कुण्डलिनी बहुत देर ऊपर आज हम अपने अन्दर पूजा कर रहे है वो हमारे अन्दर प्रतिबिम्बित हैं कुण्डलिनी के जागरण से हमने उसे जाना है और उसका प्रकाश जितना-जितना नहीं ठहर पाती, वो खिंच खिंच जाती है Left की ओर। इसलिए सबसे पहले याद रखना चाहिए कि हमारी जो पुरानी धारणाएं हैं उन्हें हमें बहुत कुछ तोड़ना प्रज्जवलित होगा उतना हमारा चित्त भी प्रकाशमय होता जाएगा। लेकिन इस शिव की ओर ध्यान दने की बहुत जरूरत है। शिव के प्रति पूर्णतया उन्मुख पड़ेगा। जो गलत चीजें हैं, जो सही हैं उसे जरूर लेना होने के लिए, उस तरफ अपने को पूरी तरह से ले जाने के लिए. हमें जरूरी है कि ये समझ लेना चाहिए है लेकिन जो गलत हैं उसे तोड़ना पड़ेगा, गर हमने उसे तोड़ा नहीं तो कुण्डलिनी ऊपर ठहर नहीं सकती कि उसकी तैयारी क्या हो? जैसे एक कंदिल में आपने वो खिंच जाएगी। ज्योत बार दी लेकिन कंदिल इस योग्य न हुआ कि दूसरी बात जो दिल्ली में ज्यादा है, क्योंकि उस ज्योत को अपने अन्दर समा ले तो ये सब व्यर्थ यहाँ लोग सरकारी हैं, कार्य ज्यादा करते हैं है, ये सारा कार्य व्यर्थ हो जाएगा। बो चीज जो हम झेल ही नहीं सकेंगे गर हमारे अन्दर आकर गुजुर गई तो इसके दोषी हम हो जाएंगे। इसके बारे में हम लोग अभी बहुत अनभिज्ञ हैं कि इसका तेज़, इसका सौन्दर्य सारे संसार को प्रभावित करता है और सारे संसार में इसकी महिमा इतने जोरों में फैलती है कि उसके लिए कोई भी ऊपरी तरह बताने की जरूरत नहीं । अन्दर ही अन्दर इसकी लौ बढ़ती रहती है। बस उस लौ को जीवित रखने के लिए सबसे पहली चीजू है कि हम Industries है, सब कुछ Right Sidedness बहुत है। उनमें बहुत सी चीजें हमारे लिए बन्धनकारी हैं। एक तो हर चीज में हम जैसे कोई Millitary के तरीके से चलते हैं। जैसे समय की बात है। अब बहुत से लोगों ने मुझ से कहा कि माँ शिवरात्रि पाँच बजे नहीं हो सकती, किसी ने कहा कि चार बजे कर लो इससे बस हमको मिल जाएगी। अब मैंने कहा कि भई ये सब ठीक नहीं, ये कैसे किया जाए। आप शिवजी को अंक : 3 & 4 चैतन्य लहरी 2007 41 हूँ, दिल्ली में खासकर मैं ये चीज़ देखती हूँ कि लोगों modern तो नहीं बना सकते। शिवजी के हाथ में घड़ी तो बन्धी नहीं है। तो इस तरह से सबने हमसे में साधना बहुत कम है। ध्यान कैसे करना चाहिए, ध्यान में कैसे बैठना चाहिए होना चाहिए, ये सब जानने के प्रति बहुत कम लोग कहा कि माँ किसी तरह से आप जो है आप ऐसा करें कि हमारी जो समस्या है वो सुलझ जाए, तो मैने कहा , ध्यान का कार्य कैसा रहते हैं। ज्यादातर मेरी बीवी ठीक हो जाए, मेरा लड़का ठीक हो जाए, मेरी लड़की की शादी हो जाए, लड़के कि क्या समस्या है? कहने लगे- कि हमारी बस जो है वो Time से नहीं आएगी। तो आप ऐसा तो कर की शादी हो जाए और मेरा घर बन जाए। और अगर दीजिए कि बस Time से आ जाए, रात को बारह बजे आ जाए। इस तरह के अनेक अनिक प्रश्न इस तरह उथली आपने ज्यादा से ज्यादा कि एक आश्रम बन जाए। की बातें, ये बहुत उथली बातें हैं बहुत अभी तक किया ही क्या है धर्म के लिए? शिव को हम अपने अन्दर गर शिव को जागृत रखना चाहते हैं तो पहले हमें आश्रम बनना चाहिए। उसके प्राप्त करने के लिए पार्वती जी ने कितने वर्षों तक तप किया था, पार्वती जी ने जो स्वयं साक्षात् आदिशक्ति हैं। आपने कौन सा तप किया, कौन सी मेहनत उठाई, लिए तपस्या होती है, उसके लिए मेहनत होती है. बगैर मेहनत के कार्य नहीं होता, बगैर मेहनत के मैंने आपकी कुण्डलिनी नहीं जगाई है. ये समझ लेना चाहिए। कहने को तो ठीक है कि स्वभाव है। स्वभाव एक रात की चलो कहीं जागरण ही हो जाए शिवजी के नाम पर। आपने ऐसा कौन सा त्याग किया है तो हजारों वर्षों से रहा है लेकिन कुण्डलिनी जो जगाई है बड़ी मेहनत की, मैंने भी बड़ी तपस्या की है। उस शिवजी के नाम पर या कौन सी विशेष आपने कार्य प्रणाली की है जिससे आप चाहते हैं कि शिवरात्रि भी बदल जाएं? जो चीज अटूट है उसको दिन में कैसे मेहनत की वजह से ही आज आप हज़ारों के तादाद में पार हो रहे हैं। और उतना ही नहीं अब भी मैं बहुत मेहनत कर रही हूँ बहुत मेहनत करती हूँ, इतनी मेहनत करती हूँ कि कभी-कभी लोग घबड़ा आप लोगों को मैं देखती हैं कि साल में मै दो-तीन दिन के लिए आती हूँ तो उस दिन भी आप यही कहते हैं कि माँ चार बजे आप शिवरात्रि करिए। कुछ भी अपने अन्दर discipline नहीं होगी, हम अपने शरीर को जब तक इसमें जीतेंगे नहीं तबतक इसमें मन्दिर माना जाएगा ये मेरी समझ में नहीं आ रहा था तो मैंने कहा कि किसी तरह से सो जाएं तब तो कोई जगाएगा नहीं शिवजी को लेकिन समझने की बात है कि हम लोग इतने उथले, उथले ढंग से परमात्मा को जानने की कोशिश करते है, ये बड़ी गहन चीज है आपको पार तो करा दिया जैसे बड़े-बड़े कुछ पहुँचे हुए लोग हमसे मिले तो कहने लगे माँ आपने इनको क्यों पार कराया ? हमको तो हजारों वर्ष लगे मेहनत की, कितने जन्मों से हमने मेहनत की तब कहीं हमें Viberation फूटे और आपने इनको ऐसे ही पार करा दिया। ऐसा क्यों किया? हमने कहा भई समय आ गया है, ऐसा जाते हैं। लेकिन कैसे बनेगा? सहजयोग उथले लोगों के लिए नहीं है, गहनता इसमें चाहिए, और गहनता ऐसी चाहिए कि गम्भीरता से ठहरेपन से रोज़ आपको ध्यान करना चाहिए, रोज। हमें Time नहीं मिलता, किसी ने कहा कि माँ Sunday के दिन न करिए शिवरात्रि क्योंकि सिनेमा होता है तो बहुत कम लोग आएगे। मैंने कहा समय है इस वक्त बहुतों को पार करने काः इसका मतलब ये नहीं कि आप लोग उदासीन तरीके से इसकी ओर देखें और अपनी साधना ऐसी कर लें जो बिल्कुल ही निम्न स्तर की है। बहुत अच्छा है जो लोग सिनेमा की वजह से नहीं और इसी पर मैं आज आपसे कहना चाहती अक : 3 & 4 -2007 42 चैतन्य लहरी पड़ेगी पहले तम्बाकू खाने से दुनिया भर की चीजें करने से हमारी जीभ खराब हो गई है दूसरे आएंगे वो बड़ा अच्छा होगा हमारी बला टली। ये सब सुन-सुनकर के कभी कभी मुझे लगता है कि सहजयोग जो आज सबके सम्मुख खड़ा हुआ है उसकी कोई कीमत लोगों ने की है या नहीं। जब तक आप इसकी कीमत नहीं करेंगे तब तक ये कार्य निष्पन्न नहीं होने वाला और ये बात बनने ही नहीं वाली। हम लोग बहुत बड़ी-बड़ी बातें करते है कि हमने विश्व धर्म बना लिया और सारे विश्व का उत्थान होने वाला है। आप गुस्सा-वुस्सा करने से भी हमारी जीभ खुराब हो गई है और जीभ में खाने की भी बड़ी लालसा है। जीभ गर ठीक हो गई तो मैं सोचती हूँ कि पचास फीसदी काम हमारा हो जाएगा। जीभ का मतलब ये है कि हर समय खाने की लालसा करना, दूसरों से बुरी तरह से बात करना, दूसरों को झाड़ना, गन्दी बातें मुँह से निकालना, ज्यादा वाचालता करना। ये सब बाते सहजयोगियों को शोभा नहीं देती। और खाने के मामले में भी लोगों में मैं देखती हूैँ कि इतनी ज्यादा रुचि है खाने में कि रात दिन विचार यहीं कि क्या खाना है। लोग अपनी आदत्ते कम से कम बदल दीजिए आज बारह साल से मैं देख रही हैँ कि बहुत कम आदत हम लोग अपनी बदल पाए हैं। हम... गए थे वहाँ किसी सज्जन के बारे में किसी ने हमसे कहा कि वो तो मुझे तक खिला खिला कर आप लोग मुझे मार डालते हैं। मुझे तो अब कोई रुचि नहीं खाने में आप जानते हैं मुझे तो कोई चीज का कोई शौक ही नहीं कि ये चीज़, सहजयोगी हैं और अपनी माँ को बहुत सताते हैं। माँ का बिल्कुल ख्याल नहीं करते उनकी कोई इज्जत नहीं करते और माँ बिचारी बहुत सीधी सरल औरत बस चना मिल जाए काफी है, आप तो जानते हैं मुझे खाने की कोई रुचि नहीं। कुछ समझ नहीं आता है कि इतनी क्या रुचि खाने की? चाहे मैें खाना बहुत अच्छा बनाती हैँ लेकिन खाने की रुचि नहीं । तो आपके लिए मैं सामने बैठी हूँ। बोलते वक्त जो भी हो आप ऐसी बात करे दूसरों का हित हो। लेकिन नहीं है, ऐसा नहीं होता है। और एक उथलेपन में पहले तो अपनी जीभ को ही बिल्कुल ठीक करना चाहिए। अपनी जीभ जो है है। सुनकर मेरा एकदम जी बैठ गया कि कैसे हो सकता है? कितनी बदनामी की बात है कि माँ गुर सहज सरल है और लड़के की माँ है तो लड़के पर तो माँ का हक होता ही है, लड़की की मां हो तो दूसरी बात है पर लड़के की माँ है उसको तो सम्भालना ही पड़ेगा. उसको कहाँ फेंक दीजिएगा? और अब वो सहज सरल है तब । जब उसकी इतनी सी भी छोटी सी भी त्रुटि सहजयोगियों को होती है तो दुनिया उसे. देखती है सहजयोगियों को जरा सी भी गलती हो तो एक मधुर स्वरों में, मधुर शब्दों में बाँधनी चाहिए, उसका एक तरीका है कोशिश करे आप शीशे में बैठकर अपने से ही मीठी-मीठी बातें करें। क्या आप अपने तक से मीठी मीठी बातें कर सकते हैं या गाली दुनिया उसे देखती है और बहुत बार मैंने ये देखा है कि लोग कहते हैं आश्रम में जाओ तो ऐसे लगता है कि सहज योग नहीं करना चाहिए क्योंकि यहाँ के गलौज करते हैं । आप पहले अपने को प्यार करना सीखे। फिर Time व Time जो आप लोगों में बड़ी लोग बहुत उद्दाम है, बहुत बदतमीज़ी से बात करते हैं, बहुत अहंकारी लोग हैं, बड़े अभिमानी है और इस तरह से हमको Treat करते हैं कि हमको अच्छा नहीं लगता। उनमें कोई प्रेम ही नहीं है। क्योंकि आपसी की बात है मैं आपसे कह रही हैूँ कि अब इसको सुव्यवस्थित कर लीजिए। प्रथम तो हमें अपनी रसना जो होती है जो कि जीभ हमारी है उसको बहुत ही Training देनी बीमारी है कि टाइम यहाँ तक कि ये अब शिवरात्रि का भी टाइम अब बाँधना पड़ा! तो ये बहुत देर हो गई। शिवजी के ऊपर में आपकी Government नहीं चल सकती। और इसलिए हमको समझ लेना चाहिए कि हम कहाँ तक ऊपर पहुँचे कि हम भगवान पर भी बा चैतन्य लहरी अंक : 3 & 4 2007 43 किया तो काफी लोग सहज योगी हो गए. कोई नई चीज़ आती है तो आ गए उसमें, लेकिन उथले लोग थे वहाँ पर एक साहब हमारे Programme में आए Time लगा रहे है! जिन्होने टाइम बनाया उन्हीं पर हम Time लगा रहे हैं और सारा Time बचाके करते क्या हैं यही मेरी समझ में नहीं आता कितनी देर आप ध्यान करते हैं. कितनी देर आप प्रगति करते हैं? ये जो Right Sided Attitude है ये भी बहुत गन्दी चीज़ है। इससे भी आदमी इतना Aggressive हो जाता है कि उसकों ये भी नहीं अन्दाज रहता कि हम उनका नाम था माइकल वाइकल ऐसे ही बेकार आदमी माँ थे और आकर के बहुत ज्यादा बोलने लग गए, तुम ये हो और वो हो, तो हम समझ गए ये तो भूत आदमी है बैकार में आए हुए है। तो हमने कहा अच्छा-अच्छा आइए आप हमारे घर पर आइए हमें साक्षात परमात्मा से ही झगड़ा लिए हुए हैं। इसको भी मिलिए यहाँ नहीं। यहाँ शान्त रहिए| उसके बाद में वो आए नहीं घर वर पर कुंछ। उन्होंने सारे लोगों से जाकर बताया कि देखों माँ मुझे कितना मानती है मैं कितना शक्तिशाली हूँ कि माँ ने मुझे अपने घर पर आपको घटाना चाहिए। धीरे-धीरे इसको Discipline करना चाहिए. इससे आप अनेक काम कर लें अनेक काम आपके हाथ से हो जाएगे और अगर आप ाTime की पाबन्दी रखेंगे तो आपके काम होंगे ही नहीं, कभी नही हो सकते, और खासकर के इस देश में तो बिल्कुल ही नहीं हो सकते और जिन देशों में इतना Time बाँधा था वो सिर्फ युद्ध के लिए। कि वो यूद्ध में आ रहे हैं गर 11 बजे तो 1030 बजे जाकर हम बुलाया। और विशेष रूप से मुझे घर पर बुलाया है। सब लोग उससे अभिभूत हो गए और इस कदर अभिभूत हो गए कि वो दूसरी कोई बात सुनने को ही तैयार नहीं एक वहाँ पर साहब थे उन्होंने कहा कि नही भई ये तो कुछ अजीब ही आदमी लगता है, उनको कल्ल कर दें। सहजयोग में कोई युद्ध नहीं है ये तो प्रेम की बात है। प्रेम में Time किसको याद रहता तुम माँ से तो जाकर पूछ लो। बोले माँ तो अभी India में हैं जब माँ आएगी तब पूछेगे, वैसे ये है बहुत अच्छा। उसने कहा कि सबको आपस में प्यार करना चाहिए, है। आपको पता नहीं पहले शिवरात्रि की पूजा करीबन कुछ नहीं तो आठ-आठ घण्टे होती थी, और कभी-कभी हम नौ घण्टे एक जगह बैठे हैं नौ घण्टे। एक बार भी उठे नहीं ऐसा भी रिकार्ड आपकी दिल्ली में है । नौ दुलार करना चाहिए और खूब आपस में घण्टों बाते करें और इधर-उधर की औरतों से दोस्ती और सब शुरु हो गया और उसको लोग मोहब्बत कहने लगे। करते करते जब हम वापिस लौटे तो एक दम से मुझे घण्टे Continuous । र इसलिए आपसे मुझे कहना है कि पहले आप समर्थ हो जाइए। जब तक आप समर्थ नही होते हैं तब लगा कि ब्राइटन में हो क्या रहा है पता करें तो मैने खबर करी वहाँ पर एक थे उनको तो वो आए उन्होंने तक मुझे डर ये लगता है कि कोई भी गर बड़ा भूत है कहा माँ यहाँ क्या हो रहा है, एक आदमी आया हुआ यहाँ आजाए, या कोई भी तान्त्रिक यहाँ आ जाए या कोई ऐसा आदमी आ जाए जो कि ज़रा सा भी आपसे ज़ोरदार Negative हो तो आपको खा जाएगा सबको। मैं इसका आपको एक उदाहरण देती हूँ ब्राइटन एक जगह है, जहाँ पर कि समुद्र होते हुए भी लोग बहुत Trendy जिसे कहते है, उथले लोग होते हैं। और उसकी वजह से जब ब्राइटन में हमने Centre शुरु उसमे सब फँसे हुए है तो मैंने फौरन फोन करके वहाँ से एक जो Lady थी, जो संचालन करती थी उसको खबर करी कि तुम यहाँ आओ। उससे मैंने बताया ये आदमी एक दम झूठा है, गलत है और इसके चक्कर में नहीं आना नहीं नहीं माँ वो तो प्यार है, वो तो फलाना है, उसने तो हमसे कहा कि माँ का जीवन अब कुछ रहा नहीं है ज्यादा दिन, मैं ही उनकी जगह आया अंक : 3& 4 - 2007 चैतन्य लहरी 44 अपनी मेहनत नहीं की तो हम आपका सहारा कहाँ हूँ। सब बातों पर हमने विश्वास कर लिया। मैंने कहा अच्छा ऐसा कहता है। मैंने कहा बिल्कुल आप इसे छोड़ दीजिए, इसकी कोई जरूरत नहीं. अबं तो मैं जीवित हूँ आपके सामने, आप मेहरबानी से इसे छोड़ दीजिए और इसको आप पूरी तरह से कह दीजिए कि आप चले जाएं। लेकिन वो चक्कर ऐसा चल पड़ा कि वो उसको छोड़ न पाएँ। वो वापिस गई तो भी वही तक दे सकते हैं। मुझे कभी-कभी बड़ा डर लगता है कि एक साधारण सा मनुष्य जो कि क्षुद्र सा है. जो कि एक दम से आप समझ सकतें हैं कि कितना क्षुद्र है उसीको आप खोपड़ी पर बिठा लेते हैं और फिर मुझसे argue भी करते हैं कि नहीं ये आदमी ठीक है। कितनी दुखदायी बात है, मुझे आश्चर्य भी होता है और दुख भी लगता है कि कब ये लोग अपनी संवेदना को बढ़ाएंगे। | चक्कर चलता था। अन्त में फिर, तुम तो जानते हो कि तुम्हारी माँ योगमाया हैं, हमने अपना चक्कर चलाया तो वो एक रात एक औरत को लेकर उन लोगों का तो आज इस विशेष दिन पर हमें अपने शिवजी को साक्षी रखकर कहना है कि हम अपने अन्दर इस शक्ति को पूरी तरह से ऐसे सम्भालेंगे कि हम शक्तिशाली हो जाएं। रोज़ ध्यान करेंगे. रोज़ मेहनत करेंगे। गर ये वचन हो जाए तो मेरे ख्याल से किसी सबका सामान उठाकर भाग गया। तब उनकी खोपड़ी ठीक हुई। पर तब भी जो औरत थी जिसने सारा organize किया था, इतना महत्व किया था अब भी वो सहजयोग में जम नहीं पाई, अब भी, अब सहजयोग से निकल ही गई है। हमने कहा अब तुम आया न करो। की मजाल नहीं कि आपके ऊपर हाथ चलाए या..... हमारे अन्दर जो दोष है वो कोई इतने बड़े नहीं, लेकिन तो गर आप कमज़ोर हो जाएंगे तो सारे के सारे पकड़ में आ जाएंगे। और आपकी जब तक संवेदना बढ़ेगी नहीं तब तक कैसे होगा ? और दिल्ली वालों की संवेदना बड़ी कमजोर है। सबसे कमजोर, सबसे बड़ा जो हमारा दोष है वो है इच्छा। जब तक हमारे अन्दर शुद्ध इच्छा परमात्मा को पाने की तीव्र न हो जाए तब तक कोई भी नहीं काम कर सकते। हम भी बोलें और भी कहे सब बेकार जाएगा, कुछ कुछ सारे सहजयोगियों में सबसे कमजोर दिल्ली वालों की सब बेकार जाएगा। सिर्फ तीव्र इच्छा होनी चाहिए। और आदमी को इस तरह से कहना चाहिए कि ये मेरा कर्म नहीं है ये मेरा जीवन नहीं है, ये मेरा बीज नहीं है संवेदना है, उनको कुछ महसूस ही नहीं होता, वो कुछ है जान ही नहीं पाते कि कौन आदमी अच्छा है बुरा किसी की viberations ही नहीं जानते और कोई भी पर एकमेव लक्ष्य ही मेरा ये है और मेरे लिए कुछ नहीं। मैं एकमेव आत्मा के सिवाय और मैं कुछ नहीं हूँ। ऐसा अपने अन्दर आपको विचार लाने हैं। मैं जहाँ ऐसा आदमी आ जाए तो उसके चक्कर में आ जाते %23 है। और गलत धारणा को ही मानकर के उसके चक्कर में आकर के गर कोई यहाँ पक्का तान्त्रिक आ जाए तक समझा सकती हूँ मैंने आपको समझाया। आशा है तो आपको तो बेवकूफ बना जाएगा। इसलिए अपनी जो है सत्ता बनानी पड़ेगी अपनी सम्पदा बनानी पड़ेगी. इतना ही नहीं अपनी अवस्था अपनी ही जमानी पड़ेगी आप लोग इसको समझने की पूरी कोशिश करेंगे। अब हम लोग सबसे पहले श्री गणेश का पूजन बहुत करेंगे श्री गणेश का पूजन थोड़ी सी देर करने का है ज्यादा देर नहीं, उसके बाद देवी का नहीं तो काम नहीं होने वाला। इस चीज़ पर मैं आपसे इतना ही कहूँगी कि हमसे जितनी मेहनत बनी हमने कर दी है और अब आपके लिए उचित है कि आप इससे आगे की जो मेहनत है वो करें। गर आपने पूजन होगा और उसके बाद फिर हम पूजन करेंगे जिसको कि फिर कहना चाहिए कि शिवरात्रि का पूजन अंक : 3 & 4 2007 चैतन्य लहरी 45 उसमें आपका इलाज है आप गेरू बदन पर लगाएं या आप चाहे थोड़ा सा गेरु घिस कर लें। जिसको allergies होती हैं, उन सबको गेरु घिस कर लगाना है क्योंकि शिव ही हमारे गुरु हैं, आत्मा की हमारा शिव है। इसलिए उनकी आप पूजा आज कर रहे हैं और इसलिए वो दोनों ही पूजा एक तरह से एक ही हो जाती हैं क्योंकि ओंकार स्वरूप गणेश हैं, देवीं आत्मा की शक्ति है और आत्मा शिव हैं। इस तरह से तीनों चीज़ एकाकार हैं। आज का दिन बहुत ही शुभ है, चाहिए। गेरु घिस कर बदन पर लगा ले या उसको खा भी सकते हैं। सात मर्तबा उसको गर। घिसा जाए और घिसकर के चन्दन के जैसे उसको खाया जाए तो आपकी allergies ठीक हो जाती है। क्योंकि फिर वो गेरू गरम होता है, कैल्शियम है। यही भस्म है, बहुत शुभ महूरत पर शुरु हुआ है और आपके अन्दर भी सब कुछ शुभ करेगा। भस्म भी जो हैं वो गर व्यवस्थित रूप से बनाया गया शिवजी के पूजन में सभी चीज़ गरम इस्तेमाल होती हैं अधिकतर और उसके बाद ठण्डाई दी जाती हो किसी हवन में से निकाला गया हो तो उसको भी गर आप इस्तेमाल करें तो आपकी allergies ठीक हो जाएंगी। इस वक्त मॉँ को भी इसलिए चढ़ाया जाता है, शिवजी को, क्योंकि उनके अन्दर भी इतनी शीत है आपकी गर्मी से हो सकता है कि उनके ऊपर है वजह ये है कि शिव जो है वो हिम से भी ज्यादा ठण्डे हैं। और उनको गरम रखने के लिए उनको सब तरह की गरम चीजें दी जाती हैं। हम लोग गरम हैं इसलिए हमें ठण्डे करने की चीजें लेनी पड़ती हैं और जो आप allergies आ जाए और उनके बदन में उस तरह की चीजें न हो जाएं इसलिए उनको गरम रखा जाता है। Allergy तो नहीं होती लेकिन गर पूरी तरह से गेरू और भस्म नहीं रखा जाए तो हमारे तक हमने देखा है कि हमारे पैर में एकदम articaria सा हो जाता है एकदम कल बहुत लोग एकदम से ठण्डक बहुत आ गई बहुत लोगों को बहुत ठण्डक सी लगी लेकिन फिर गरम हो गए। फिर ठण्डे गर्म, ठण्डे गर्म चलते ही गए और जब ठण्डे हो जाएंगे मामले तब सोचना चाहिए कि शिव का तत्व हमारे अन्दर जागृत हो गया है। तो आपको गर्म लेने की जरूरत नहीं हैं अब कोई कहने लगा कि शिवजी जी तो भंग पीते थे तो हम भी भंग माने ये कि उसकी जरूरत होती है उस वक्त Temperature एकदम low होता है, इसलिए गेरू की जरूरत होती है, गेरू और भस्म की जरूरत होती पीएंगे। आप कोई शिवजी नहीं है। तो फिर आप है। धतूरा भी खाइए और वो नहीं होता तो जहर भी ये नए लोगों में होता है, पुराने लोग नहीं पीकर दिखाइए क्योंकि शिवजी ये काम करते थे तो हम भी करेंगे, ये जो लोग कहते हैं उनको पहले देखना चाहिए कि आप क्या शिवजी हैं? आप क्या करेंगे कभी। अब सब लोग आकर जम जाएंगे जैसे हम अब अन्दर गए सब लोग लाइन से खड़े हो गए। ये चीजू दिल्ली में ही होती है ये भी बताऊं, कहीं और नहीं, माने नहीं। क्योंकि जो चीज भी हम कहते हैं बड़ा हलाहल पी सकते हैं? नहीं पी सकते जब वो नहीं हो सकता है तो फिर उनके साथ में मुकाबला करने में क्या अर्थ है? इतना ही हो सकता है कि उनके चरणों में हम शरणागत हो सकते हैं और यही होना चाहिए। कोई चीज ठण्डी ले ली और फिर उसके बाद गर्म चीज ले ली तो बदन पे शीत हो सकता है। वो शीत जिसे articaria कहते हैं, या इस तरह की जितनी भी allergy है वो शिवजी के दोष से होती है। और गहरा अर्थ होता है उसका मै नहीं चाहती कि आप पर गणों का परिणाम आ जाए। एक बार हम अहमदाबाद गए तो वहाँ पर किसी के घर ठहरे। तो हमने उससे कहा कि ये देखो हम जा रहे हैं लेकिन हमारे पलंग पर तीन दिन तक किसी को सोने मत देना। उनको लगा ऐसे ही माँ ने कहा होगा तो उनकी अंक 3.& 4 2007 46 चैतन्य लहरी होना चाहिए। जो आगे लोग आ चुके हैं, वो किस तरह रह रहे हैं, किस तरह बैठ रहे हैं, कहाँ तक हैं। ये देखें। और फिर किसी को कहो- वर्मा साहब तो कहते हैं कि मैं किसी को कुछ कहना ही नहीं चाहता, लोग मुझही को दोष देते हैं। अरे भाई उनको क्या दोष दे रहे हैं, मैंने ही कहा है। ये तो समझने की बात है कि आपसे कितनी ज्यादा discipline है, कितना कायदा है। लड़की सोई, उसने कहा कि रातभर तो मुझे नींद नहीं आई, कोई मुझे गुदगुदी-गुदगुदी कर रहा था जैसे.. .....! दूसरे दिन उनकी नौकरानी सोई। तो उस नौकरानी को एक दम से ऐसे लगा जैसे कोई चीज ऊपर से आकर उस पर गिर गई। उसने 'उठकर देखा, कोई चीज थी नहीं, वो भी उठ कर भाग गई। तीसरे दिन फिर उन्होंने क्षमा माँगी कि माँ हमने गलती कर दी, हमको नहीं करना-चाहिए। गणों का हाथ बड़ा खराब होता है। ऐसा हाथ मारते है, झपट्टा मारते हैं, मैं ध्यान देती रहती हूँ हर समय । उनको सब हमारा ा कायदा होना चाहिए, परमात्मा का कायदा होना चाहिए। अब ऊपर गए वहाँ पच्चीस आदमी खड़े हुए थे। बाहर निकले तो दस। कायदे में जहाँ बैठे हैं वहाँ बैठे हैं। स्थान पे, स्थान पे। अपना तकिया नहीं छोड़ना चाहिए। जहाँ बैठे हैं, आराम से माँ के साथ ही सम्बन्धित बैठे हुए है। ये समझना चाहिए। प्रोटोकॉल मालूम है, कहाँ-कहाँ जाना है, कहाँ नहीं जाना। अब फट से बीच में आप पैर छू लेते हैं, फट से। फिर रास्ते में खड़े हो गए, 'माँ ये बात है।' ऐसे नहीं करना चाहिए। एक नियमबद्ध तरीकों से चलना है, देखिए अब आप विराट के शरीर में जा रहे हैं। अब विराट को ही परवांह है, वो आपको सब देगा। 'अपनी बात लेकर रोना नहीं 'माँ. देखो मेरे ऐसे हो रहा है, मेरे बाप का ऐसा हो रहा है, माँ का ऐसा अगर आपका सम्बन्ध पूरा बना हुआ है कोई जरूरत नहीं दौड़ने की, जिसका नहीं बना वही दौड़ता है। ये पहली.पहचान है । जहाँ भी बैठे हैं वहीं से माँ को पा रहे हैं आप| माँ से वहीं से बातचीत हो रही है। वहाँ सबकुछ है। आपको तो हो रहा है, भाई का ऐसा हो रहा है, मेरे घर- का ऐसा हो रहा है। जिसने ऐसी बातें शुरु कर दीं उसको तकलीफ ही होने वाली है। अब शान्ति में, कोई हिलने की जरूरत क्या है? सामने आने की जरूरत क्या है? वहीं बैठने की जरूरत क्या है, पैर छने की जरूरत क्या है? कोई जरूरत नहीं है जहाँ बैठे हैं वहीं माँ हैं। अपने दिल में ही हैं न तो ये जरा गहराई आनी चाहिए। उससे बड़ा सुशोभित लगता है। अब- तो हम देहात में भी जाते हैं तो वहाँ भी लोगों को इसकी समझ है, प्रोटोकॉल है। एक तो उत्तरी हिन्दुस्तान में धर्म के बारे में देवताओं के बारें में गणों के बारे में, गन्धर्वों के बारे में कुछ मालूमात ही नहीं है एकदम हम लोग तो एकदम इधर के रहे न उधर के रहे। मुसलमानों को भी उनके धर्म के बारे में कुछ मालूम होगा, तो हमको तो वो भी मालूम नहीं है करके कि हाँ मैंने माँ को कह दिया है, विश्वास पूरा ठीक हो जाएगा, ऐसे लोगों का भला होता है, मैं पहले बता रही हूँ। और जो लोग बहुत सामने सामने बैठ करके और आगे आगे दौड़ते हैं, उनका बड़ा बुराहाल होता है। मैं पहले बता दें । एक तो सहजयोग से ऐसे लोग निकल ही जाते हैं सहज में, आगे पीछे करने की कोई जरूरत नहीं, आप जब आ गए समुद्र में तो तैरते रहिए आराम से। आपको तैरना सिखा दिया है। अब उसमें क्या जबरदस्ती? अब् दिल्ली की खास चीज मैंने देखी है, अभी तक ठीक ही नहीं हो रही, पता नहीं क्यों? और जो लोग पहले के हैं उनको कोई देखते ही नहीं दिल्ली वाले, कुछ तो जानना चाहिए न कि क्या चीज है, गण क्या होते हैं? माँ एक फूल दे दो हमको अब ये जितने भी होते हैं ये सब एक रात मेरे सिराहने रखने पड़ते हैं क्योंकि गणों का अधिकार होता है, गर एक भी बात । फूल जो नए आते हैं वो घोड़े पे ही सवार आते हैं। ऐसा नहीं अंक : 3 & 4 -2007 चैतन्य लहरी 47 गुर आप शक्ति को स्वीकार्य ही नहीं करिएगा तो शक्ति कार्य कैसे करेगी? सीधा हिसाब । यहाँ पर बहुत से लोग ऐसे हैं जो पुराने है जो जानते हैं सहजयोग क्या है, आप उसको प्यार से समझिए बात क्या है ये तो एक नवीन अनुभव आया है, इसमे गर चलना है तो उस नवीनता को लेकर चलें। अपने ही मन से आपने इनमें से कोई फूल ले लिया तो गण आपको कुछ न कुछ चुहुल करेंगे, फिर मुझे मत कहना । इसलिए माँ मुझे बिन्दी लगा दीजिए मैं कोई पुजारी थोड़े ही बैठी हूँ, आपको सबको बिन्दी लगाती फिरूं । किसी का आज्ञा मैने घुमा दिया तो अपना भी माथा लेकर के सामने खड़े हैं। ये बचपना है। जहाँ बैठे हैं वंही पाने की एक अपनी सिद्धता अपनी एक ताकत, अपनी बहुत लोग चलते है। अपने ही मन से कोई साहब भाषण देने खड़े हो गए, अपने ही मन से। ऐसे नहीं एक समझ बना लेना चाहिए, कहीं भी आप रहे हमारा करना। फिर ये कि जो Verma साहब है समझ चित्त तो वहाँ लगा रहता है। आप रहे। लेकिन पहले लीजिए कि हम गर इन्हें यहाँ का लीडर मानते हैं समझ लीजिए तो हम सबसे तो सम्बन्धं नहीं रख सकते है, हम तो सिर्फ वर्मा साहब से कर सकते हैं या कोई एक आदमी होगा उसी से कंर सकते हैं अब उसी को हर बार परेशान करना ये कोई सहजयोग नहीं है सहजयोग में लीडर को बिल्कुल नहीं challenge किया जा सकता। और जो करते हैं वो गिर जाते हैं । क्योंकि हम लीडर को जानते हैं ये कितने गहरे पानी में है। हम हमारा उनसे सम्बन्ध है, हम जानते हैं, और हर आदमी यहाँ लीडर होने वाला नहीं है, सहजयोग में लीडर का मतलब ये नहीं कि वो ऊँचे हो गए या कुछ, पर वो जानते हैं जानकार हैं उनका हमारे से सम्बन्ध बना हुआ है, कोई बात हो तो वो Directly हमसे कहते हैं। इसका ये मतलब नहीं कि वो कोई आपकी खोपड़ी पर बैठे हुए हैं, ये बात नहीं है, लेकिन अगर वो गलती करेंगे तो मैं तो ऐसे पकडूंगी उनको कि बस। जो भी वो कोई करे, जैसे कोई हमारे हाथ हैं, ऐसे कर रहे हैं इसलिए कोई भी आदमी उनको challenge न करे। वो जो ठीक समझेंगे जो उचित समझेंगे वो करेंगे। और आप उनकी बात सुना हमसे connection ते पूरा जम जाए। कहीं भी, कोई हमें बताने की जरूरत नहीं, हमें सबके बारे में सबकुछ मालूम रहता है। लेकिन गर आपसे हमारा connection नहीं है तो बेकार है। पहले अपना connection जोड़िए., इसलिए जो नए लोग होते हैं वो ज्यादा दौड़ते है। पुरानों को देखिए ये कैसे जमे बैठे हैं। इनको ये नहीं माँ चली गई हैं ऊपर बैठे हैं जहाँ के तहाँ। अपना ध्यान कर रहे हैं, है ना? अब आज से समझना चाहिए जो भी बात कही जाती है उसको मानना चाहिए। अब गर Verma साहंब कोई बात कहें उसका बुरा मानना बिल्कुल ही पागलपन है मेरे विचार से। उनको तो मैं ही कहती हूैँ जो कुछ भी वो कहते हैं। वो कोई अपने मन से थोड़े ही बिचारे कहते हैं। सबकुछ अब आते ही साथ वहाँ तो कोई प्रेम ही नहीं है। आपको सिर पर बिठा लीजिए, यहाँ कोई वोटिंग थोड़े होने वाला है कि आपकी कोई चापलूसी करेगा आइए जी. बैठिए जी. कुर्सी पर बैठिए, आपके लिए तख्त लगाते हैं। ऐसा नहीं होगा आप गर कायदे से नहीं रहेंगे तो बताया जाएगा। यहाँ कोई बड़ा छोटा नहीं देखा जाता। कायदे से .रहना और न रहना ये चीजू देखी जाती है। कौन कायदे से है कौन कायदे से. करें। ये बात बहुत जरूरी है। फिर दूसरा ये भी है कि छोटे-छोटें उम्र के लड़के भी आ जाएं वो अपने को नहीं वो बताया जाता है। ये कारयदा। क्योंकि गर एकदम अफलातून समझने लगते हैं। ये बेकार की बात है। बड़ों का मान रखना अपने देश की संस्कृति परमात्मा के साम्राज्य में आए तो वहाँ कायदा भी समझना चाहिए। और सबसे ज्यादा उसी जगह मदद होती है जहाँ लोग नम्रता पूर्वक सर्व स्वीकार्य करते हैं । का एक लक्षण है। ये नहीं कि एक छोटे से कल खड़े चैतन्य लहरी अंक : 3 & 4 2007 48 बता रही हूँ। जैसे कि कोई बड़ी गुरु पूजा यहाँ निकालें, जन्माष्टमी वो नहीं हो सकती। मुझे मालूम है। क्योंकि अकेले चार आदमी इधर दौड़ेंगे, ऐसा और जगह नहीं है। हालांकि वहाँ मैने मेहनत ज्यादा करी है मैं मानती हो गए और बकना शुरु कर दिया। उससे सारा तहस- नहस हो जाता है। हो सकता है कि जो यहाँ के बड़े लोग है वो भी अपना confidence खो दें। आप गर अपने बड़ों पर हँसना शुरु कर दें उनका मजाक हूँ। आप लोग भी गर मेहनत करें तो उनसे भी आगे जा सकते हैं। आपस में एक दूसरे का आदर करना चाहिए, आप सब सन्त साधू बड़ा एक दूसरों का आदर करते है । सन्त को गर पता हो दूसरे सन्त आए है तो बहुत आदर से उनसे मिलते हैं आप वाकई में सन्त साधू हैं, आप पहुँचे शुरु कर दे तो बो कुछ भी नहीं कर सकते। उनको कुछ भी न समझे अपने मन से जो चाहें वो करने लग जाएं। और फिर ये सोचना है कि collective जो आदमी होता है उसका सम्बन्ध जो है एक पूरे से होना चाहिए। जैसे Brain है Brain से आपका सम्बन्ध है हैं। आपको उसी जरह से बीच में सब चीजों से जुड़ा है। अगर आपका Brain हुए रहना चाहिए, उसी शान से रहना चाहिए जैसे सन्त रहते हैं। वो बोलते ज्यादा नहीं हैं किसी पर आक्रमण नहीं करते हैं । जहाँ बैठे हैं वहीं आराम से, अपना तकिया तक तो वो छोड़ते नहीं हैं। अगर जंगल में कहीं बैठे हैं तो वहीं बैठे रहेंगे, और सेवा में तत्पर होना चाहिए से ही सम्बन्ध टूट गया तो हो नहीं सकता। Brain जिससे सम्बन्ध है उससे आपका फिर गर सम्बन्ध टूट गया तो हो नहीं सकता। इसका मतलब आप malignant हो गए, कैंसर हो गए। on your own नहीं हो सकते आप सहजयोग में, सब एक के साथ, एक सब जुड़े हुए हैं। इस तरह से। इसके लिए थोड़ा सा आपका थोड़ी नम्रता चाहिए। अभी कोई गर बड़ा काम यहाँ निकालें तो बनेगा नहीं सहजयोग का मैं परमात्मा आप पर कृपा करें (Checked Transcription) शाश्वत गणेश तत्व [को प्रतिबिम्बित करती मोनालीसा का कु और उसने उस बच्चे को देखा। इस बच्चे के लिए उसके चेहरे पर जो प्रेम भाव उमड़े उन भावों का चित्रण इस महान कलाकार ने किया है। अण्डों से बच्चे निकालने के लिए अण्डों को तोड़ते हुए मगरमच्छ की आँखें भी अत्यन्त कोमल एवं प्रेममय होती हैं। परन्तु आपके आधुनिक हो जाने पर आपके कार्यकलाप अत्यन्त अटपटे हो जाते हैं। अतः अपने बच्चे के लिए आपका प्रेम अत्यन्त महत्वपूर्ण है। परन्तु सहजयोगियों के रूप में आपमें केवल अपने बच्चे के लिए ही मोह नहीं होना चाहिए।" श्री गणेश आपके अन्दर श्रेष्ठतम व्यक्तित्व की स्थापना करते हैं। निकृष्ट व्यक्तित्व, जो जीवन की तुच्छ चीजों में आनन्द लेता है, को श्री गणेश या तो कम कर देते हैं या पूरी तरह समाप्त कर देते हैं। मोनालीसा को यदि आप देखें तो यह न तो अभिनेत्री हो सकती है और न ही कोई सौन्दर्य स्पर्धा जीत सकती है, परन्तु उसकी मुखाकृति अत्यन्त शान्त, मातृसम और पावन है। क्या कारण है कि हमेशा से उसकी इतनी प्रशसा की जा रही है। इसका कारण ये है कि उसमें गणेश तत्व है। इसका कारण ये है कि उसमें गणेश तत्व विद्यमान है। यह माँ है। कहानी इस श्री गणेश पूजा प्रकार से है कि इस महिला ने अपना बच्चा खो दिया था उसके बाद वह न तो कभी मुस्कराती और न कभी रोती। एक नन्हें बालक को उनके सम्मुख लाया गया Les Diablerets, Switzerland 10-8-1989 (इन्टरनैट विवरण) ि ५ #ह ा Pratisthan-Gurgaor "मुझे आशा है कि आप सबतोग सहजयोग प्रचार प्रसार के महत्व को समझते हैं। बेकार हैं । मेरे लिए सबसे महान चीज़ ये है इस महत्व को यदि आप नहीं समझते तो आप कि जिस प्रकार यहाँ पर बहुत सी बत्तियाँ हैं वैसे ही विश्व भर में बहुत से और सहजयोगी चाहते हैं और जीवन के दुखों और होने चाहिएं| आप यदि विश्व को परिवर्तित करना तकलीफों से बचना चाहते हैं तो आपको लोगों की रक्षा करनी होगी। आपको उनका उद्धाट कटना होगा। आपका यही कार्य है, सहजयोग का आपने यही ऋण चुकाना है...... अपनी चिन्ता न करें..! आपको सहजयोग फैलाना है अब आपका यही कार्य है। आपकी केवल यही कार्य महत्वपूर्ण है कि आपने कितने लोगों को नौकरी महत्वपूर्ण नहीं है, आत्मसाक्षात्कार दिया।" पटम पूज्य माताजी श्री निर्मता देवी ईसा मसीह पूजा गणपतिपुले 26-12-2001 ---------------------- 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी Cं मार्च-अपरैलः 2007 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-2.txt चै त न्य ल हरी अंक : 3 -4, 2007 NIRMALA इस अंक में ईसामसीह पूजा-निर्मल नगरी, भुकम, पुणे- 24-26.12.2006 सहस्रार पूजा - रौवेन, फ्राँस (Rouen France) 5.5.1984 मावलंकर हॉल, नई दिल्ली 12 मूलाधार व नाभि चक्र 15.3.1984 28 नव वर्ष - दिल्ली आश्रअमे - 3.1.1984 40 महा शिवरात्रि - दिल्ली - 17.2.1985 पूजा DHARMA VISHWA UNIVERSA RELIGION 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-3.txt चै त न्य लहरी प्रकाशक निर्मल ट्राँसफोर्मेशन प्रा लि. प्लाट नं. 8. चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड, कोथरुड पुणे कोनः 020-25285232 411 029 मुद्रक कृष्णा प्रिन्टर्ज एण्ड डिज़ाइनर्ज 292/23 ओंकार नगर बी त्रीनगर, दिल्ली-110035 मोबाइल : 9212238008 आप अपने सुझाव, सदस्यता एवं जानकारी के लिए निम्न पते पर लिखें : निर्मल ट्राँसफोर्मेशन प्रा. लि. प्लाट नं. 8. चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड, कोथरुड पुणे फोनः 020-25285232 411 029 अपने अनुभव, सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ.पी. चान्दना जी-11- ( 463) , ऋषि तगर, रानी बाग दिल्ली- 110034 फोन : 011- 65356811 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-4.txt ईसा मसीह पूजा निर्मल नगरी, भुकम, पुणे (24-26.12.2006) तीन दिनों का ये सेमिनार, हर तरह से एतिहासिक हैं। ईसामसीह पूजा यद्यपि सभी सहजयोगियों को गणपति पुले का स्मरण कराती है जहाँ स्वयं श्री आए 12-15 हजार सहजयोगियों का उल्लास और महागणेश हमारे हृदय में श्री जीसस को जागृत करके चैतन्य लहरियों का तीव्र प्रवाह निश्चित रूप से इसे परमेश्वरी माँ के चरणकमलों की पूजा की आकांक्षा करते हैं। जो भी हो गणपतिपुले के गुरुतत्व - अरबियन सागर के अतिरिक्त निर्मल नगरी किसी भी प्रकार से सेमिनार था। सेमिनार में सम्मिलित होने के लिए सहज इतिहास का एक हिस्सा बना देगा । 24 दिसम्बर 2006-की सन्ध्या सहजयोगियों के लिए स्मरणीय संगीत-सन्ध्या थी। धर्मशाला स्कूल के बच्चों द्वारा प्रस्तुत की गई ब्रह्माण्डसृजन विषय पर नृत्य नाटिका ने इस सन्ध्या के उल्लास को चार चाँद लगा दिए। आदिशक्ति के अपने ही शब्दों में एक पुराने ऑडियो कैसेट से स्वयं उनके द्वारा पृथ्वी पर अवतरित होने की घोषणा ने चैतन्य के स्तर को महान बुलन्दियों तक पहुँचा दिया। घोषणा के बाद सर्वत्रव्याप्त शान्ति स्वर्गीय थी। कम न थी। पौने छः बजे पूजा पण्डाल सहजयोगियों से लगभग आधा भरा हुआ था. मानो सुन्दर और सुरभित वेशभूषा में उपस्थित विशाल सामूहिकता को स्थान प्रदान करने के लिए शनैः शनै: अपने पंख फैला रहा हो। सुन्दर परिधानों में उछलते हुए गणेश अत्यन्त मोहक लग रहे थे और व्यस्क सहजयोगी या तो पूजा मंच के समीप पहुँचने का प्रयत्न कर रहे थे और या फिर पूजा मैदान में लगे चार विशाल चित्रपटों के समीप बैठने के लिए प्रयत्नशील थे मंच 1 नन्ें धर्मशाला स्कूल के बच्चों ने सहज सामूहिकता को निरन्तर तीन घण्टों तक आत्मविभोर किया। 26 दिसम्बर को विवाह सूत्र में बँधने वाले कुछ और जोड़ो की घोषणा के साथ, इस सन्ध्या का समापन हुआ। की आन्तरिक साज-सज्जा अत्यन्त अलकृत बहुमजिले भवन जैसी थी जिसका मध्याकर्षण श्रीमाताजी की प्रतीक्षा करता सुसज्जित विशाल सिंहासन था । तीन महामन्त्रों और भजनों के साथ साढ़े छः। बजे ध्यान का आरम्भ हुआ। कॅसी ये फुहार चली... 'एक गौरी के दुलारे, एक राधाजी के प्यारे... ... दो भजन पूर्ण सामूहिकता को ध्यान अवस्था में स्थापित करने के लिए पर्याप्त थे इसके बाद वर्ष 2001 में गणपतिपुले में हुई ईसामसीह पूजा के परम पूज्य श्रीमाताजी के प्रवचन का वीडियो चित्रपटों पर दिखाया गया। ऐसा प्रतीत हुआ मानो श्रीमाताजी साक्षात् वहाँ उपस्थित हो और पूरी सहज सामूहिकता उनका शक्तिशाली सन्देश सुन रही हो ईसामसीह का सारतत्व बताते हुए श्रीमाताजी ने बताया था कि "ईसामसीह परम चैतन्य का मूर्तरूप थे, वे ऑकार थे, श्री गणेश थे, तथा उन्हें मानने वाले लोगों को कुछ विशेष होना होगा। परन्तु होता सदैव ये है कि लोग अवतरणों के बिल्कुल विरुद्ध दिशा में चले जाते हैं। पूर्णतया विरुद्ध ।" ईसामसीह के विषय में बताते हुए अपने इस 25 दिसम्बर 2006- श्री जीसस मैरी रूप में श्रीमाताजी के चरण कमलों की पूजा को समर्पित था। पूजा का समय साढ़े छः बजे सायं घोषित किया गया परन्तु पूजा के समय किसी भी प्रकार की अवाछित हलचल से बचने के लिए सभी सहंजयोगियों को पौने छ: बजे तक अपने स्थान ग्रहण करने का अनुरोध किया गया 25 तारीख प्रातः ही पूजा में सम्मिलित होने के लिए आए 15-18 हजार सहजयोगियों ने पूजा मंच के सम्मुख बैठकर दिव्य भजनों का आनन्द लिया पर्वतीय पृष्ठभूमि पर सूर्यास्त की स्वर्णिम किरणों ने इस सन्ध्या को और अधिक मनमोहक बना दिया। आकाश साफ था और तापमान अत्यन्त सुखकर। हाल ही में महालक्ष्मी पूजा के लिए सहजयोगी इस पावन भूमि पर एकत्र हुए थे और एक बार फिर हम सब महाविष्णु रूप में श्री जीसस की पूजा करके उनकी शक्तियों का आह्वान करने के लिए एकत्र हुए 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-5.txt अक : 3 & 4 - 2007 4. चैंतन्य लहरी श्रीमाताजी का निर्मल नगरी में स्वागत करने के लिए शहनाई बजाई जाए। श्रीमाताजी निर्मल नगरी पहुँच चुकी थीं। साढ़े आठ बजे 'स्वागत आगत स्वागतम प्रवचन में श्रीमाताजी ने वर्णन किया था कि ईसामसीह के जीवन का सारतत्व उनकी निर्लिप्तता और बलिदान है कि आपको .. वे सत्य के लिए खड़े हुए के सामूहिक गान के द्वारा सहजयोगियों ने खड़े होकर आत्मा बनना है। अपनी प्रिय परमेश्वरी माँ का स्वागत किया। मोहम्मद साहब के विषय में बताते हुए श्रीमाताजी ने मैराज (कुण्डलिनी जागृति) तथा जेहाद (षडरिषुओं पर विजय प्राप्ति) के विषय मे बताया। चैतन्य लहरियों का तीव्र प्रवाह सारे वातावरण में व्याप्त हो गया। पर्दा जब उठा तो सभी योगियों के सम्मुख वो दृश्य था जिसे देखने के लिए वे इतनी देर मर्यादाओं और आचरणों के बारे में बताते श्रीमाताजी ने कहा, "इन आधुनिक दिनों में जैसा से प्रतीक्षा कर रहे थे। एक सुन्दर, सुसज्जित सिंहासन पर आदिशक्ति उनके सम्मुख विराजमान थीं इस क्षण ऐसा प्रतीत हुआ मानो हृदय की धड़कने रुक गई हो और सभी कुछ जैसे एक दम शान्त हो गया हो! श्रीमाताजी इतनी प्रसन्न मुद्रा में थीं कि उपस्थित सभी योगियो को ऐसा लगा कि बीते वर्षों की तरह आज भी वे अपना दिव्य संदेश देकर अपने बच्चों को ज्यो तिर्मय करें गी। विशाल चित्रपट अत्यन्त हुए हम देखते हैं, लोगों ने सभी मर्यादाएं लाँघ ली हैं, धर्म का पूर्णतः उल्लंघन कर लिया है। अमेरिका जाने से पूर्व, मैं हैरान थी, किस प्रकार लोग नैतिकता को भूल गए हैं।."! ईसामसीह और आत्मसाक्षात्कार विषय पर बोलते हुए श्रीमाताजी ने कहा कि ईसामसीह केवल आत्म-साक्षात्कारी नहीं थे, वो साक्षात् 'आत्मसाक्षात्कार थे। भारत से लौटकर वे "निर्मलतत्वम्" लिए पश्चिम में गए । क्योंकि निर्मल तत्वम् के बिना सत्य के प्रकाश को नहीं देखा जा सकता। कुशलतापूर्वक श्रीमाताजी के तेजस्वी रूप को दर्शा रहे थे तेजमूर्ति होने के बावजूद भी श्रीमुख अत्यन्त सिखाने के करुणामय एवं अबोध था। वास्तव में उनका महागणेश रूप हमारे सम्मुख था। कहीं ये सब प्रम तो नहीं था... या कहीं ये उनका महामाय रूप तो नहीं था। ये सब वर्णन करने के लिए शब्द असमर्थ है। मानो ये दिव्य अनुभव हो...... करने का आनन्द हो। प्रवचन के अन्त में श्रीमाताजी ने कहा, मुझे आशा है कि आप सबलोग सहजयोग प्रचार प्रसार के महत्व को समझते हैं। इस महत्व को यदि आप नहीं समझते तो आप बेकार हैं। मेरे लिए सबसे महान चीज ये है कि जिस प्रकार यहाँ पर बहुत सी बत्तियाँ हैं वैसे ही विश्व भर में बहुत से और सहजयोगी होने चाहिएं। आप यदि विश्व को परिवर्तित करना चाहते हैं और जीवन के दुखों और तकलीफ़ों से बचना चाहते हैं तो आपको लोगों की रक्षा करनी होगी। आपको उनका उद्घार करना होगा। आपका यही कार्य है, सहजयोग का आपने यही ऋण चुकाना है.. परमात्मा से एकरूपता प्राप्त अचानक, यह मौन... माँ और बच्चों के बीच स्थापित सम्पर्क में बाधा पड़ी। मच से घोषणा की गई कि आठ से बारह साल की आयु के बच्चे श्रीमाताजी के चरणकमलों में पुष्पार्पण करेंगे और इसके साथ श्री गणेश का आह्वान किया जाएगा। पाण्डाल के सभी कोनों से दौड़ते हुए सैन्टाक्लॉज़ टोपियाँ पहने नन्हें गणेश मंच की ओर दौड़ते दिखाई दिए। 'विनती सुनिए' भजन के साथ पूजा करने की आज्ञा माँगते हुए, पूजा का आरम्भ हुआ। श्री गणेश अथर्वशीर्षम, जय जगदम्बे, जागो सवेरा, भजन गाए गए, तत्पश्चात् 'नमो नमो मारिया और जगी तारक जन्मा आला के साथ सात विवाहित महिलाओं ने कल्पना दीदी के पथ प्रदर्शन में देवी का शृंगार किया अपनी चिन्ता न करे...। आपको सहजयोग फैलाना है अब आपका यही कार्य है। आपकी नौकरी महत्वपूर्ण नहीं है, केवल यही कार्य महत्वपूर्ण है कि आपने कितने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया।" तत्पश्चात जब 'श्री जगदम्बे आई रे गाया जा रहा था तो मंच से घोषणा हुई कि परम पूज्य 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-6.txt अंक : 3 & 4 -2007 5 चैतन्य लहरी कर रही थी उसे आगे बढ़ाने की बारी अब किसकी है? स्वतः ही पण्डाल से एक आवाज़ उठी- 'हमारी इस आवाज़ के साथ-साथ सभी के हाथ भी उठे हुए थे पापाजी ने पुनः कहा, "हाँ, निश्चित रूप से अब आपकी बारी है।" और श्री जीसस मेरी रूप में उन्हें मुकुट पहनाया। शृगार पूर्ण होते ही 'विश्व वन्दिता' के बाद, विश्व समन्वयक परिषद और भारतीय न्यास के सदस्यों को आरती करने के लिए बुलाया गया। आरती के बाद तीन महामन्त्रों के साथ पौने दस बजे पूजा सम्पन्न हुई। इसके बाद अन्तर्राष्ट्रीय उपहार श्री चरणों में नववर्ष के इस अवसर पर आपसे ये वचन लेने के भेंट करने का अवसर आया। परन्तु इससे पहले एक छः मज़िला सुन्दर सुसज्जित श्वेत क्रिसमस केक श्रीमाताजी के सम्मुख उनके सभी बच्चों के लिए पेश किया गया सर सी पी. ने केक काटने में श्रीमाताजी की सहायता की और खड़े होकर उन्हें केक का एक निवाला भेट किया। अन्तर्राष्ट्रीय उपहार विश्व के लगभग सभी देशों से प्रेम पुष्पों की तरह आए । ग्रटर सामूहिकता पर की थी। श्रीमाताजी, आपको कोटि नोयडा की एन जी ओ परियोजना, धर्मशाला स्कूल, पश्चिम बंगाल प्रदेश आदि ने भी श्री चरणों में अपने ा "क्या आप इसका वचन देते है?" "आज लिए ही मैं आपके सम्मुख खड़ा हुआ था।" पौने ग्यारह बजे मंच के पर्दे गिरे और चिलचिलाती ठण्ड के बीच सभी योगी अपने स्थानों पर खड़े हो गए। स्मभवतः यह ठण्ड शीतल चैतन्य-लहरियों के कारण हो जिनकी वर्षा कृपा श्रीमाताजी ने अपने श्री जीसस रूप में इस विश्व कोटि धन्यवाद कि आपने अपने चरणा कमलों में हमारी ये पूजा एवं प्रार्थना स्वीकार की। आपको कोटि-कोटि उपहार अर्पित किए। थोड़ी देर के बाद हमारे प्रिय पापाजी. सर सी पी. अपने शक्तिशाली और हृदयस्पर्शी शब्दों में पूर्ण सामूहिकता को सम्बोधित करने के लिए खड़े हुए। वास्तव में यह पूरी सहज सामूहिकता की परम पावनी माँ के सम्मुख वचन बद्धता के निर्णय की शपथ थी। सर सी पी. ने इस प्रकार आरम्भ किया:- 26 दिसम्बर 2006- विवाह दिवस और भी अधिक आनन्दमय था क्योंकि खिले हुए सहस्रार- दल कमल की सुगन्ध से पूरी निर्मल नगरी सुरभित हो चुकी थी। माँ मेरी के रूप में परम पावनी श्रीमाताजी ने पुण्य भूमि में अपने पुत्र ईसा को जागृत कर दिया था। प्रात:कालीन हल्दी-उत्सव से निर्मल नगरी जीवन्त हो उठी। मेंहदी उत्सव तो 25 दिसम्बर पूजा के पश्चात् ही मना लिया गया था। चैतन्यित हल्दी उबटन से रंगे हुए सहजियों के गाल और शरीर, एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे। मानों पूरी सामूहिकता इस अवसर पर नाचते और गाते हुए कुण्डलिनी नृत्य तथा भजनों से प्रसारित होने वाले चैतन्य में शराबोर हो रही हो। निर्मल नगरी ने पृथ्वी पर स्वर्ग का रूप धारण कर लिया था पुण्यभूमि हमे शंहशाह जहाँगीर कथित फारसी में कही पंक्तियों की याद दिला रही थी:- "मैं आप सबको क्रिसमस तथा नववर्ष की मंगलकामनाएं देता हूँ। जब भी नववर्ष आता है तो हम सब कुछ नए निश्चय करते हैं। लोगों में बहुत सी आकांक्षाएं होती हैं। अपनी विशुद्ध शैली में सर सी पी. ने कहा," मेरी इच्छा है कि वे (श्रीमाताजी) यहाँ पर इसी प्रकार अध्यक्षता करती रहे और हम उनके सम्मुख बैठे रहें । मेरी ये भी अभिलाषा है कि मानव मात्र के एक हो जाने के प्रेम के सन्देश को वे फैलाती रहे क्योंकि पुरे विश्व को इसकी आवश्यकता है, उन्होंने आगे कहा कि श्रीमाताजी द्वारा सृजित विश्व ही यदि एक मात्र विश्व बन जाए जिसमें हम रहे तो उन्हें अत्यन्त हर्ष होगा। एक पिता की तरह से विश्वस्त करते हुए उन्होंने कहा, कि अब हमें दृढ़ निश्चय करना चाहिए कि जिस कार्य को श्रीमाताजी इतने वर्षों से "गर फिरदौस, बरौ जमी अस्त, हमी अस्त, हमीं अस्त', हमीं अस्त।" अर्थात पृथ्वी पर यदि स्वर्ग कहीं है तो यहीं है, यही हैं, यही है। ये पंक्तियाँ शहंशाह जहाँगीर ने तब 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-7.txt अक : 3 &+ -2007 चैतन्य लहरी 6. हिन्दी भाषा में बोलीं, "शादियाँ हो गई हैं. आप सबको बाई।... श्रीमाताजी के मुख से निकले इन शब्दों का श्रवण करना वास्तव में हम सबके लिए आनंददायी था। सब आनन्द विभोर हो उठे| लिखीं थीं जब उन्होंने कश्मीर देखा था सांय 5.20 बजे निर्मल नगरी, परम पावनी मों के गौरी रूप में सौ से भी ज्यादा जोड़ों को परिणय सूत्र में बाँधने के लिए प्रकट होने की प्रतीक्षा कर रही थी। गणों और देवी-देवताओं को इस स्वर्ग भूमि पर महसूस " इतने समय के पश्चात् किया जा सकता था। मानो इस उत्सव को देखने के लिए वे सब भी महकते हुए योगियों और योगिनियों के साथ एकत्र हुए हों। हर बक्त व्यक्ति को ऐसा महसूस हो रहा था मानो इस सन्ध्या को कुछ आश्चर्यजनक घटित होने वाला हो। ऐसा प्रतीत होता था मानों हृदय बिना बोले बोल रहा हो, बिना सुने सुन रहा हो और बिना गाए अन्दर ही अन्दर आनन्द गीतों का सृजन कर रहा हो। हिन्दी फिल्म संगीत की धुनों पर नाचते अपने पूर्व प्रवचन में परम पूज्य श्रीमाताजी ने एक बार कहा था कि साधक को, देवी. से तीन आशीर्वाद मांगने चाहिएं, 'सालोक्य', 'सामीप्य "सानिध्य' । परन्तु उन्होंने कहा कि मैने तो आपको "तादात्म्य' भी दे दिया है- परमात्मा से पूर्ण एकरूपता, जो इससे पूर्व जीवित रहते हुए साधकों को कभी नहीं मिली. यह वरदान केवल सहजयोगियों को ही प्राप्त हुआ है। इस तरह श्रीमाताजी ने हमें बताया कि हमें हुए दूल्हो के साथ-साथ बारात के रूप में सहज सामूहिकता के बहुत थे। तभी दुल्हनों को परम पूज्य श्री माताजी की निराकार रूप में गौरी पूजा करने के लिए कहा गया, इससे पूर्व श्रीमाताजी का एक सक्षिप्त प्रवचन सुनाया गया जिसमें उन्होंने दुल्हनों को वैवाहिक जीवन के विषय में बताया था। समय के साथ-साथ चैतन्य प्रवाह बढ़ता गया। संगीतकारों ने कुछ भजन गाए और इसी दौरान सौ से भी अधिक जोड़े पर्दे की ओट में एक दूसरे को जयमाला पहनाने के लिए लाइन में खड़े हो गए। अपनी महान्ता को समझना है और पूर्ण मानव जाति को परिवर्तित करने के कार्य में जी जान से जुट जाना है। से सहजी मच की ओर बढ़ रहे तत्पश्चात् घोषणा की गई कि जन्म-दिवस भी छिन्दवाड़ा के स्थान पर निर्मल नगरी में ही की जाएगी तथा परम पूज्य श्रीमाताजी की 60वीं विवाह वर्षगाँठ पर पूरी सामूहिकता को, सर सी पी. के निमन्त्रण का भी, सामूहिकता ने जोरदार स्वागत किया। पुणे के राजीवबागड़दे और साथियों ने 'मेरी माता का कर्म' कव्वाली गाई, आनन्दमग्न सर सी पी. इसकी धुने पर तालियाँ बजा रहे थे तथा श्री ग्रेगोर और दिनेश रॉय ने भी नाचते हुए जोड़ों का साथ दिया। ये अत्यन्त स्मरणीय क्षण था। सामूहिक कुण्डलिनी भी स्वतः ही सहजियों के साथ नृत्य कर रही थी। स्वतन्त्रता के स्वर्ग में विलय पूरी सामूहिकता श्री आदिशक्ति के चैतन्य से एकरूप हो गई थी। पूजा ठीक 9-00 बजे परम पूज्य श्रीमाताजी ने अपने बच्चों को दिव्य दर्शन प्रदान किए। सातों चक्रों के देवी-देवताओं का आह्वान करते हुए श्लोक उच्चारण के साथ दूल्हा. दुल्हनें सात कदम एक दूसरे की ओर के बढ़े। तत्पश्चात् सभी अपने अपने हवन कुण्ड गए, उनके साथ उनके मातापिता, उनके मामा, और दूल्हों के प्रिय मित्र भी थे, सभी विवाह सम्पन्न करने के लिए आदिशक्त के सम्मुख नतमस्तक थे। आदिशक्ति पूरे दृश्य को बहुत ही बैठ सम्मुख हे, आदिशक्ति इस ऐतिहासिक क्षण के आर्शीवाद के लिए हम आभारी है, आपको कोटि-कोटि प्रणाम। श्रीमाताजी के प्रस्थान के बाद भी उत्सव में सम्मिलित देवी-देवतागण तथा सहजयोगी श्रीमाताजी द्वारा निर्मलनगरी में छोड़े गए चैतन्य सागर में गोते लगा रहे थे। ध्यानपूर्वक देख रही थीं। परमेश्वरी माँ के सभी जोड़ों को आशीर्वादित. करने का क्षण वास्तव में एतिहासिक क्षण था। इसे शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। सर सी पी. ने श्रीमाताजी के सम्मुख माइक पकड़ा और श्रीमाताजी जय श्रीमाताजी इन्टरनैट विवरण Sita India 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-8.txt सहस्रार पूजा रौवेन, फ्राँस (Rouen France) 5.5.1984 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज सहस्रार के दिन इतनी बड़ी संख्या में एकत्र हुए सुन्दर सहजयोगियों को देखकर आपकी माँ प्रफुल्लित है। मेरे विचार से सहजयोग का प्रथम अपना चित्त यदि आपने सहस्रार पर डालना है तो प्रथम कार्य जो आपको करना होगा वह है अपने चित्त को हृदय पर डालना। सहस्रार में हृदय चक्र चरण अब समाप्त हो गया है और नया चरण आरम्भ और हृदय स्वयं, (आत्मा) एक समान (Coinside) हो जाते है। अर्थात जगदम्बा हृदय और आत्मा से एक रूप हो जाती हैं, अतः हम देखते है कि यहाँ योग घटित होता है । हुआ। सहजयोग के प्रथम चरण में सहस्र का खोला जाना आरम्भ बिन्दु था। और शनैः शनैः पूर्णता की ओर बढ़ते हुए, मैं देख रही हूँ कि आज बहुत से महान सहजयोगी है। उत्क्रान्ति की यह अत्यन्त स्वाभाविक प्रक्रिया है जिसमें से आप गुजरे हैं। हम कह सकते हैं कि प्रथम प्रक्रिया कुण्डलिनी की जागृति और इस समय, ये समझ लेना बहुत महत्वपूर्ण है कि हमें एक बहुत बड़ा कदम उठाना है। पूरा सहस्रार तालू अस्थि का भेदन थी। अपने सिर के ऊपर जिस प्रकार आप इन बन्धनों (स्पष्ट नहीं हैं) को देखते हैं, वैसे ही ये आपके सिर में भी विद्यमान हैं। आपके सहसार में हैं। तो सहजयोग के इस प्रकार चलता है, ये सभी चक्र इसी प्रकार से प्रकाश डालते हैं, घड़ी की सुई की तरह से (Clockwise) और हृदय इसकी धुरी है। अतः सभी धर्मों, सभी पैगम्बरों, सभी अवतरणों का सार करुणा (Compassion) है जिसे हृदय के इस चक्र में स्थापित किया गया है। इस प्रकार हम समझ पाते है कि इस द्वितीय चरण में अब भी इसी प्रकार से चक्र बने प्रथम चरण में हमने सुषुम्ना मार्ग तथा मस्तिष्क में बने आपके चक्रों में देवी-देवताओं को जागृत किया, हुए परन्तु अब समय आ गया है कि हम इसे क्षैतिज (Horizontal) स्तर पर फैलाएं, और क्षैतिज स्तर पर चलने के लिए हमें ये समझना होगा कि इस ओर कैसे चलें । हमारे अन्दर करुणा का होना आवश्यक है यह चरण करुणा की अभिव्यक्ति है। सर्वशक्तिमान परमात्मा में यदि करुणा न होती तो उसने इस महान ब्रह्माण्ड का सृजन न किया होता। वास्तव में परमात्मा की शक्ति, या आदिशक्ति ही उनकी करुणा का मूर्त रूप हैं, और यही करुणा ही सारी उत्क्रान्ति को मानवीय स्तर पर इन्द्रधनुष के सात रंगों की तरह से हमारे अन्दर इन केन्द्रों, इन चक्रों, के सात रंग हैं और जब हम पीछे से, मूलाधार से चलें और इसे आज्ञा तक लाएं, यदि आप स्पष्टतः इसे देखे तो यह भिन्न प्रकार से स्थापित है। कहने का मेरा अभिप्राय ये है कि लेकर आई है तथा सहजयोगियों के रूप में आपका उद्धार भी इसी करुणा की देन है, तथा करुणा सदैव क्षमा से पूर्णतः आच्छादित होती है। सहस्रार में, क्योंकि सहस्रार नतोदर (Concave) आकार में है, ये समझना आवश्यक है कि तालू अस्थि क्षेत्र के मध्य (Center) की समरूपता हमारे हृदय से है। अतः द्वितीय चरण में अब हृदय ही केन्द्रबिन्दु है। मुझे आशा है कि आप मेरे कहने का अभिप्राय समझ अतः आप देख सकते है कि इस बिन्दु पर त्रिमूर्ति (त्रिदेव) का मिलन होता है: परमात्मा के पुत्र क्षमा हैं, क्षमा के मूर्तरूप। अतः सर्वशक्तिमान परमात्मा, जो कि साक्षी हैं, माँ जो करुणा हैं और बालक जो क्षमा है, ये सब सहस्रार में हृदय चक्र पर मिलते हैं (एकरूप हो जाते हैं) गए होंगे। 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-9.txt चैतन्य लहरी अंक : 3 & 4 -2007 ৪ अब व्यक्ति को ये सीखना आवश्यक है कि अस्वच्छताओं से मुक्ति पानी होगी। सहस्रार को किस प्रकार सुधारा जाए। सहस्रार के शासक देव को आप भली-भान्ति जानते है आप तो आरम्म में हम आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं परन्तु हमारे हृदय पूर्णतः स्वच्छ नहीं होते। उस समय हमारे अन्दर बहुत से मोह सोचते हैं कि सहस्रार का स्थान आपके सिर में है परन्तु यह पूरे ब्रह्माण्ड का केन्द्र है (मध्य बिन्दु)। इसे विकसित करने के लिए अपने तालूअस्थ क्षेत्र में विद्यमान हृदय चक्र पर आपको अपना चित्त डालना होगा तालूअस्थि क्षेत्र पर जब आप अपना चित्त डालेंगे, तो वहाँ देवता (शासक देव) को स्थापित करना थे, बहुत सी असत्य चीजों से हम जुड़े हुए थे तथा हम सोचते थे कि आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करके हम लोग बन जाऐं गे। अत्यन्त, शक्तिशाली आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् भी हम तुच्छ चीजों में फँसने लगे। हम अपने सम्बन्धियों मित्रों, माताओं, बहनों आदि के लिए अनुग्रह (Favour) की याचना करने लगे, और महिलाओं ने अपने पतियों भाइयों और बच्चों के बारे में सोचा। सभी लोगों ने उन लोगों के लिए कृपा दृष्टि की याचना की जो उनसे सम्बन्धित थे। परन्तु मै जानती हूँ कि आपका ये सारा मोह बहुत आवश्यक है। परन्तु इस देवता को पहले अपने हृदय में स्थापित करना होगा। आप लोग अत्यन्त भाग्यशाली है कि सहस्रार के शासक देव साकार रूप में आपके साथ हैं मेरे पृथ्वी पर अवतरित होने से पूर्व जिन लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ। उन लोगों को देवी देवताओं की कल्पना करनी पड़ती थी और उस कल्पना में वे कभी भी पूर्ण नहीं थे परन्तु. जैसे कहते हैं "सहसारे महामाया," आदिशक्ति का वर्णन इसी प्रकार किया गया है । आप यदि उन्हें मानव रूप में देखते हैं तो हो सकता है। कि आप भी उन्हें पूर्णतः न जानते हों, या पूर्णरूप से, पूरी तरह से उन्हें न जानते हो क्योंकि महामाया शक्ति आपकी कल्पना से कहीं शीघ्र ही समाप्त हो गया। किसी भी अवतार का कार्य ये है कि वह अपने भक्तों (अनुयायियों) की इच्छाओं को पूर्ण करे। उदाहरण के रूप में गोपियों ने भी कृष्ण से याचना की कि वे चाहती है कि श्री कृष्ण व्यक्तिगत रूप से उनमें से हर एक के साथ हों। अतः बहुत से कृष्ण रूप धारण करके वे उनमे से हर एक के साथ थे। परन्तु अधिक महान है। अतः व्यक्ति को समर्पण करना मेरे विचार से यह अत्यन्त दिव्य इच्छा थी, यह गोपियों की अत्यन्त दिव्य इच्छा थी। परन्तु जब आप लोगो ने मुझसे अपने भाईयों, बहनों, माताओं, पिताओं के लिए माँगा तो मैंने, जो भी सम्भव था, करने का प्रयत्न किया इसके अतिरिक्त जो क्षेम आपने माँगा, जो आश्रम आपने माँगे. वे सभी चीजें जिनकी आपको आवश्यकता थी, आपकी इच्छा को पूर्ण करने के लिए वह सब उपलब्ध कराया गया। अतः श्री कृष्ण के स्तर पर यह 'योगक्षेम वाहम्यम' था। अतः कृष्ण के स्तर पर क्षेम प्रदान किया गया क्योंकि इसका वचन दिया चाहिए। मस्तिष्क की सीमित कल्पनाशक्ति से देवी (आदि-शक्ति) को नहीं देखा जा सकता। ये भी कहा गया है कि वे " भक्तिगम्या " है? उन्हें आप भक्ति तथा श्रद्धा के माध्यम से ही जान सकते हैं। अतः श्रद्धा होनी आवश्यक है परन्तु श्रद्धा अत्यन्त स्वच्छ श्रद्धा होनी चाहिए. अर्थात हृदय में द्वेष बिल्कुल नहीं होना चाहिए हृदय बिल्कुल स्वच्छ होना चाहिए। हृदय को स्वच्छ रखना बहुत कठिन है। मनुष्य में हमेशा सच्चाई की प्रासंगिक (Relative) समझ होती है, परन्तु वास्तव में सच्चाई पूर्ण (Absolute) है। अतः इसे प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को हृदय में विद्यमान सभी प्रकार की गया था। परन्तु नवयुग में, इससे आगे क्या होना है? 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-10.txt अक : 3 & 4 चैतन्य लहरी -2007 देखते हैं तो क्या आपको लगता है कि वह व्यक्ति अब क्योंकि आपके पास अच्छे परिवार हैं, अच्छे आश्रम हैं, अच्छी नौकरियाँ है, सभी लोग प्रसन्न हैं.. तो हमें आपके कब्जे में आ जाए, क्या आप उसकी ओर अवांछित रूप से आकर्षित हो जाते हैं, या उसे देखकर आपके मस्तिष्क में कोई पतित भावनाएं जागृत होती हैं? अबोध व्यक्ति जब किसी सुन्दर व्यक्ति को, किसी महिला को या किसी सुन्दर दृश्य को या किसी सुन्दर रचना को देखता है तो प्रथम प्रक्रिया स्वरूप वह अगले चरण के विषय में सोचना चाहिए। अगला चरण, जैसा मैंने आपकों बताया, करुणा का है, परन्तु अब भी यदि आपमें कोई चक्र दुर्बल है तो सात रंगों के कारण श्वेत हो जाने वाला प्रकाश या तो धुँघला पड़ जाएगा और या फिर दोषमय हो जाएगा। अतः हमारे अन्दर विद्यमान सभी चक्रों की देखभाल निर्विचार हो जाता है, उसमें कोई विचार नहीं होता। व्यक्ति में यदि विचार ही नहीं होगें तो उसके अन्दर स्वामित्व की भावना या किसी भी प्रकार की पतित होना आवश्यक है। हर चक्र पर चित्त डालना और इनमें करुणा - करुणा की भावना डालना आवश्यक है। आइए श्री गणेश के चक्र को लेते हैं। आप श्री गणेश पर चित्त डालें और अपने विचार के माध्यम से उन्हें अत्यन्त सम्मान पूर्वक मूलाधार चक्र पर स्थापित भावना का प्रश्न ही नहीं होता। परन्तु यदि आप श्री गणेश से प्रार्थना करते हैं, चाहे आप उसके पूर्णतः अधिकारी न हों, कि "कृपा करके मुझे अबोध बना दीजिए ताकि मुझे आपसे यह वरदान माँगने का अधिकार प्राप्त हो जाए. जहाँ भी मैं करें क्योंकि अब आपके विचार दिव्य हैं। यहाँ पर आपके लिए ये जानना आवश्यक है कि सहजयोग के प्रथम चरण में मैं आपसे इन चीजों के विषय में बात न कर पाती, इन चीजों के विषय में जाऊँ अबोधिता का माध्यम बनूं और अबोधिता मुझसे प्रसारित हो। लोग जब मुझे देखें तो उन्हें लगे कि मैं अबोध हूँ।" ये करुणा है। करुणा की शक्ति आपको यह अत्यन्त सूक्ष्म कार्य है, अत्यन्त सूक्ष्म कार्य। अब अपनी भावना उस चक्र पर डालें, चक्र प्रदेश है, देश है, और श्री गणेश वहाँ के शासक हैं, और यही देश है। प्रदान करने के लिए उनसे याचना करें। जैसे आप यहाँ इन सुन्दर चक्रों को देख रहे हैं मानो प्रकाश क्षैतिज (Horizontally) रूप में प्रवाहित हो रहा हो! यह प्रकाश अनुकम्पी नाड़ी तन्त्र (Sympathetic अब आरम्भ में जब आप इस चक्र पर चित्त डालेंगे, अपनी भावनाएं इस पर डालेंगे, अपने प्रेम और श्रद्धा की भावनाएं इस पर डालेंगे, अपने प्रेम और श्रद्धा की भावनाएं उन (श्री गणेश) पर डालेंगे और फिर करुणा की याचना जब आप उनसे करेंगे तो आपने कुछ और नहीं माँगना, केवल इतना ही माँगना है, "हे. अबोधिता के देव, विश्व के सभी लोगों को अबोधिता प्रदान Nervous System) पर प्रवाहित होने लगता है। इस प्रकार आप स्वयं शक्तिशाली अबोधिता बन जाते हैं, आप मूर्ख या बचकाने नहीं बनते, बाल- सुलभ हो जाते हैं। पूर्ण आचरण अत्यन्त गरिमामय एवं अबोध हो जाता है। प्रायः यदि आप किसी सम्मानित व्यक्ति को देखें, प्रायः, तो वह व्यक्ति अबोध नहीं होता। क्योंकि वह दिखावा करता है और गम्भीर बनने और दिखाने के लिए और अन्य लोगों को प्रभावित करने करों।" परन्तु यह माँगने से पूर्व आपको स्वयं अबोध बनना होगा। अन्यथा यह अनाधिकार याचना हो जाएगी, या आप कह सकते हैं कि बिना अबोध बने आपको यह माँगने का अधिकार नहीं । के लिए, स्वयं को सम्मानमय दर्शाने के लिए सावधानी बरतता है। परन्तु कोई भी बालक अबोधिता, गरिमा आदि गुणों का दिखावा नहीं करता क्योंकि बालक में तो अबोधिता को समझने के लिए आप स्वयं को समझने का प्रयत्न करें कि किस प्रकार आपका 1 मस्तिष्क कार्य कर रहा है। जैसे, जब आप किसी को 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-11.txt वैतन्य लहरी अंक 3& 4 2007 10 बता रही हूँ और आज से आपने इस पर कार्य करना है। मैं आपके साथ हूं, ये बात आप जानते हैं, परन्तु जरूरी नहीं कि इस शरीर में (साक्षात) मैं आपके साथ होऊ, क्योंकि मैं तो ये भी नहीं जानती कि मैं इस शरीर में हूँ भी या नहीं। एक बार जब ये इच्छा कार्य करने लगेगी तो आप, आश्चर्य चकित, चमत्कार तो इन सावधानियों की समझ ही नहीं होती। परन्तु आपमें अबोध गरिमा का यह दुर्लभ संयोजन विकसित होता है। श्री गणेश का एक अन्य गुण क्षेैतिज स्तर पर अपनी अभिव्यक्ति करने लगता है तथा आप विवेकशील बन जाते हैं। परन्तु यह (विवेकशीलता) एक शक्ति है, मैं पुनः कह रही कि आपमें विवेक की देखेंगे। होते हुए हूँ शक्ति विकसित हो जाती है। व्यक्ति को विवेक और माँ जब बच्चे को जन्म देती है तो स्वतः ही विवेक-शक्ति में अन्तर समझना आवश्यक है। शक्ति उसमें दूध बन जाता है। तो प्रकृति इस प्रकार से हर चीज से जुड़ी हुई है। अपनी दिव्य इच्छा में भी यदि का अर्थ ये है कि यह कार्य करती है। उदाहरण के रूप में चाहे आप बिल्कुल न बोलें परन्तु यदि आप कहीं खड़े हैं तो उस अवस्था में विवेक-शक्ति स्वयं कार्य करेगी। जैसे एक सहजयोागी. मान लो. अच्छा सहजयोगी है और वह रेलगाड़ी में जा रहा है तथा रेलगाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है, प्रायः ऐसा नहीं होता. परन्तु यदि ऐसा हो जाता है तो किसी की मृत्यु नहीं होगी तो आपमें विवेक स्थापित हो जाता है जो स्वयं एक शक्ति है जो खुद कार्य करती है। आपको उसे कार्य करने के लिए नहीं कहना पड़ता, ये कार्य करती है, और आप मात्र इसके वाहन बन जाते हैं, आप जुड़े है तो प्रत्यक्ष झलकता है कि आप दिव्य व्यक्ति है। आप मुझे कहीं भी पा सकते हैं गली में चलते हुए. हो सकता है आप देखें कि श्रीमाताजी आपके साथ चल रही हैं! तो ये दूसरा चरण है जिसे हमने आरम्म किया है और यदि आप मुझे अपने बिस्तर पर बैठकर आपके सिर पर हाथ रखे हुए पाएं या ईसा-मसीह या श्री राम रूप में अपने कमरे के अन्दर प्रवेश करते हुए देखें तो आपको झटका नहीं लगना चाहिए। ऐसा घटित होने वाला है, इसके लिए आपको तैयार रहना चाहिए हुए उस विवेक के एक सुन्दर और स्वच्छ वाहन, तब आपके साथ बहुत से चमत्कार हो चुके हैं। आपको विश्वास करना चाहिए कि आप क्षैतिज दिशा में फैल रहे हैं। परन्तु ये सब स्थूल स्तर पर हैं। आपने मेरे सिर से प्रकाश निकलते हुए देखा है और कुृछ चित्रों ने भी आपको चमत्कार दिखाए हैं। परन्तु बहुत सी चाज घटित होंगी. आप ऐसी चीजें देखेंगे जिनकी आप रा कल्पना ही नहीं कर सकते। आपको विश्वस्त करने के लिए कि आप प्रज्ञालोक के नए क्षेत्र में अपनी उत्क्रान्ति सहजयोग के प्रथम चरण में आपको मुझसे व्यक्तिगत रूप से मिलने की आवश्यकता थी। सस्कृत भाषा में हम कहते हैं, "ध्येय", लक्ष्य, आपको जो कुछ भी प्राप्त करना होता था, आप चाहते थे कि वह लक्ष्य आपके सम्मुख आ जाए। और जब वह व्यक्ति आपके सम्मुख आ जाता जिसकी आप हर समय कामना करते थे तो आपको प्रसन्नता होती थी। आप स्वयं को सुरक्षित और आनन्दित पाते थे तब दूसरे चरण में आपमें इतनी अधिक इच्छा नहीं होगी कि माँ हमेशा हमारे सम्मुख हों। आप मुझसे जिम्मेदारी ले लेंगे। यह परमेश्वरी इच्छा है जिसके विषय में मैं आपको की विशेष ऊँचाई तक पहुँच गए हैं, ये चमत्कार घटित होंगे, क्योंकि यह एक नई अवस्था है, जिसमें क्षैतिज आधार पर अब आप प्रवेश करेंगे। इस क्षेत्र में आप स्थूल चीजों की माँग करना छोड़ देंगे तथा सूक्ष्म चीजों के लिए भी आपकी माँग समाप्त हो जाएगी और यह वह समय होगा जब आप 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-12.txt अंक : 3 & 4 -2007 चैतन्य लहरी 11 बहुत शक्तिशाली हो जाएंगे जैसा आप जानते हैं मैं जो कहती हैं वह घटित होता है। मैं केवल आपको लिप्त होने की आज्ञा नहीं दे सकती। आपके अन्दर कर पाए तो समझ ले कि आप उन्नत हो रहे हैं। दूसरे लोगों में ज्यादा से ज्यादा भौतिक समृद्धि भी यदि आपके दुख का कारण नहीं बनती, आपको अप्रसन्न नहीं करती तब आपको समझना चाहिए कि आप ठीक कुण्डलिनी का कार्य कर दिया गया है, काफी सीमा प्रकार से उन्नत हो रहे हैं। सहजयोगी बनने के लिए अधिक से अधिक परिश्रम और तकलीफें भी पर्याप्त तक, अब करुणा का, इसे अन्य लोगों तक फैलाने का नया कार्य आपने करना है। प्रकाश ज्यों-ज्यों बढ़ता है में नहीं हैं। आप जो चाहे आजुमाएँ परन्तु सहजयोगी नहीं बन सकते. परन्तु आप लोगों को तो यह (सहजयोग) बिना किसी प्रयत्न के प्राप्त हो गया है। अंतः आप कुछ विशेष हैं। उसका क्षेत्र भी उसी अनुपात बढ़़ता है। अतः आप करुणा के दाता बन जाएं। अपने पिछले प्रवचन में जिसे आप सुन चुके हैं मैने आपसे अनुरोध किया था कि तप किस प्रकार करें। पूर्णतः समर्पित मस्तिष्क के साथ आपको इस किले की तीर्थ यात्रा करनी होगी यह उस तप की एक झलकी मात्र है, जो आपने करना है, क्योकि मुझे बताया गया है कि आपमें से कुछ लोगों को थोड़ी सी कठिनाई उठानी पड़ी और तीर्थ यात्रा के अपने मार्ग पर आपको कुछ कष्ट उठाने पड़े। परन्तु साहसपूर्वक उन स्थानों पर प्रवेश करना भी विनोदमय होता है जहाँ असुर भी नहीं जा सकते. और यदि आप इन तथाकथित कठिनाइयों में आनन्द लेना जानते हैं, तब आपको समझना चाहिए कि आप ठीक रास्ते पर है और स्वतः ही जैसे आप विवेकशील होने लगते है तब आपको समझ लेना चाहिए कि आप ठीक प्रकार से उन्नति कर रहे हैं। अंतः एक बार जब आप समझ जाएगे कि आप विशेष हैं तो आप इसके प्रति विनम्र हो जाएंगे। जब आपमें ये घटित हो जाता है और ये देखकर आप विनम्र हो जाते हैं कि आपने कुछ प्राप्त कर लिया है. कि आपमें कुछ शक्तियाँ है, कि आप अबोधिता प्रसारित कर रहे हैं, कि आप विवेकशील हैं, और उस विवेक के परिणामस्वरूप जब आप अधिक करुणामय, अधिक विनम्र व्यक्तित्व, मधुर व्यक्तित्व व्यक्ति बन जाते हैं तब आपको विश्वास करना चाहिए कि आप अपनी माँ (श्रीमाताजी) के हृदय में है। इस नए चरण में, यह उस नए सहजयोगी का लक्षण है जिसे नई शक्ति के साथ चलना है इसमें आप इतनी तेज़ी से उन्नत होंगे कि बिना ध्यान में गए आप ध्यानगम्य होगे, मेरी उपस्थिति में हुए बिना आप मेरे साक्षात् (उपस्थिति) में होंगे, अपने पिता (परमात्मा) से बिना कुछ माँगे आप आशीर्वादित हो जाएंगे इसी कार्य के लिए किसी व्यक्ति को अपने पर आक्रमण करते देखकर यदि आप अधिक शान्त हो जाते हैं और आपका क्रोध उड़नछू हो जाता है तब आपको समझना चाहिए कि आप ठीक प्रकार से उन्नत हो रहे हैं। आपके व्यक्तित्व पर अचानक यदि कोई विपत्ति या अग्निपरीक्षा आ पड़े फिर भी आपको उसकी चिन्ता आप यहाँ पर है। सहसार के इस महान दिवस पर माल मैं पुनः इस नए चरण में पुनः आपका स्वागत आज करती हूं। न सताए तब समझ लें कि आप उन्नत हो रहे हैं। ऊँचे से ऊँचे स्तर की बनावट भी यदि आपको प्रभावित न परमात्मा आपको धन्य करें। रूपान्तरित) 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-13.txt मूलाधाट व नाभि चक्र मावलंकर हॉल; नई दिल्ली, दिनांक : 15.3.84 माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन पूज्य परम होते है कि वो जो कहते हैं कि "परमात्मा वगैरह सब ढकोसला है, यह झूठी चीज़ है। परमात्मा नाम की कोई चीज़ ही नहीं है।" परमात्मा को खोजने वाले सभी सत्य साधकों को हमारा प्रणाम! आज दो तरह के गाने आपने सुने हैं, पहले गाने में एक भक्त विरह में परमात्मा को बुलाता है। इसे अपराभक्ति कहते हैं और जब परमात्मा को पा लेता है, जैसे कबीर ने पाया था. तो उसे पराभक्ति कहते हैं। दोनों में ही भक्ति है। इसे कृष्ण ने अनन्य भक्ति कहा है- जहाँ दूसरा कोई नहीं होता, जहाँ साक्षात् परमेश्वर अपने सामने होते हैं, उस वक्त जो हम लोगों का भक्ति का स्वरूप होता है उसे उन्होंने पराभक्ति कहा-अनन्यभक्ति। सब तरह के विचार करने का अधिकार परमात्मा ने मनुष्य को दे दिया है। यह मनुष्य को दी हुई देन परमात्मा की ही है कि वो स्वतन्त्र है। जो चाहे वो सोच सकता है इस बुद्धि से । लेकिन हम लोगों को तीनों दशा में ये ही सोचना चाहिए कि आज तक हमने भी किया, चाहे परमात्मा में विश्वास किया, जो कुछ उनको भजा या उनके ऊपर लैक्चर दिये, या उन पर किताबें पढ़ी, जो भी मेहनत करी या हमने उन पर विश्वास नहीं किया, उनको कहा कि वे है नहीं, उनसे हमने मुठभेड़ की और कहा कि देखते हैं परमात्मा कहाँ है? इन सभी दशाओं में हमें यह सोचना चाहिए किन्तु जब हम परमात्मा को याद करते हैं उनको स्मरण करते हैं, तब उसकी आदत-सी हो जाती है। जब इन्सान को इस चीज की आदत-सी हो जाती है, तो उस आदत से छूटने में उसे बड़ा समय कि "इसने हमारा क्या भला किया? हमें क्या लाभ हुआ? हमारे अन्दर कौन सी ऐसी कोई नई प्रकृति आ गयी जिसके कारण हमने जो भी किया सो ठीक है। हमारे बाप दादे भी यही करते आए हैं । और उनके लग जाता है। वह मानने को तैयार ही नहीं होता कि उसकी यह जो साधना है, यह खत्म होने की बेला आई है। और इसी वजह से भक्तों ने भी दृष्टाओं को, सन्तों को, मुनियों को पहचाना नहीं। आप जानते हैं इतिहास में हमेशा सन्तों को इतनी परेशानियाँ उठानी पड़ीं। यह नहीं कि सबने उनको सताया, लेकिन जिन्होंने सताया उनको किसी ने रोका नहीं और उनको बाप दादा भी यही करते आए। और हजारों वर्षों से यही चीज़ चलती रही ।" सहजयोग में हम लोग ईड़ा और पिंगला दो नाड़ी पर ध्यान दे रहे थे। इसमें से जो ईड़ा नाड़ी है. समझाया नहीं कि ये सन्त हैं, साधु है। यह भक्ति-प्रबल है। ईड़ा नाड़ी पर लोग भक्ति में लीन हो जाते हैं, अपनी भावना में बह जाते हैं, और अब हमारे समाज में, खासकर के शहरों में, विविध विचारों के लोग रहते हैं। कुछ तो जो कि परमात्मा में विश्वास करते हैं। इस तरह विश्वास करते हैं, कि जैसे कि किसी मंदिर में गयें, नमस्कार कर दिया। कुछ लोग हैं जो कहते हैं "नहीं, परमात्मा की साधना करनी चाहिए और धर्म से रहना चाहिए, उनके मंगल गीत गाने चाहियें, हमेशा उनको भजना चाहिए, जिससे वो हमेशा याद रहें।" कुछ लोग ऐसे परमात्मा में लीन होकर के आनन्द से उनका गान गाते हैं। हमारे महाराष्ट्र में, जो कि मैं सोचती हूँ हिन्दुस्तान में एक बहुत बड़ा प्रदेश है. क्योंकि यहाँ पर पारम्परिक लोग धार्मिक हैं और यहाँ का आराध्य देव श्री कृष्ण विट्ठल है. लोग एक-एक महीना हाथ में झांझर लिए हुए गाते हुए जाते हैं विट्ठल, विट्ठल, विट्ठल", मुँह में तम्बाकू रखे। अब तम्बाकू जो है; ये 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-14.txt अक : 3 4 -2007 13 चैतन्य लहरी कृष्ण के विरोध में है बिल्कुल विरोध में पड़ती हैं. क्योंकि विशुद्धि चक्र में श्री कृष्ण का स्थान है और उससे "विट्ठल विट्ठल" कह रहे हैं। श्री कृष्ण का नाम ले रहें हैं, और उनका जो विरोध है उसी को मुंह में रखे चले जा रहे हैं। ऐसे बहुत से लोग मैंने देखे जो मुझसे आकर कहते है कि "माँ, हम तो जिन्दगी भर विट्ठल ही की वारी करते रहे। हर बार वहाँ पैदल जाते रहे और एक-एक महीना हमने मेहनत करी। बहुत से पढ़े लिखे लोग भी ऐसा कार्य करते हैं- "लेकिन हमें तो परमात्मा मिले नहीं।" एक मुसलमान लेकिन जो नहीं हुआ, जिसने साक्षात्कार नहीं पाया उसके लिए उचित था कि वो परमात्मा को याद करे। लेकिन यह सब करने से गर परमात्मा को याद किया और परमात्मा ही नहीं मिले-जैसे आपने कहा कि यह आकुल-व्याकुल लोग ढूंढ रहे हैं परमात्मा को, और उनको अगर परमात्मा नहीं मिले-तो जरूरी है कि मनुष्य कहेगा कि, "हाँ, परमात्मा नाम की कोई चीज ही नहीं है ।" लेकिन क्योंकि हमें उसका अनुभव नहीं हुआ, प्रचीति नहीं हुई इसलिए उस चीज को पूरी तरह से मना करना, मेरे ख्याल से, अशास्त्रीय है। उसको जाने बगैर, उसकी प्रचीति पाए बगैर उसको कह देना कि वो नहीं है-कोई सी भी चीज़ हो-मेरे ख्याल से एक तरह से escapism (पलायनवाद) है। तिंदि साहब थे, जो कि बहुत परमात्मा को खोजते थे अन्त में वो हिन्दू हो गए। उनका कहना था कि परमात्मा मुसलमान होने से तो मिलता नहीं, चलो हिन्दू होकर मिल जाए, तो वो हिन्दू हो गये। हिन्दू होकर के वो इसी तरह से "विट्ठल विट्ठल" करते जाते थे तो उन्होंने कहा कि "पहले तो नमाज पढ़-पढ़ के मेरे तो घुटने छिल्व गए, फिर वारी कर कर के मेरे तलुए सब छिल गए, और यह सब होते हुए परमात्मा तो मिला नहीं। जो विट्ठल के सामने लोग खड़े हैं, वो भी परमात्मा के पास नहीं, और जो लोग वहाँ जाते है वो भी परमात्मा के पास नहीं।" हम लोग परमात्मा है, चाहे आप उसे माने या न मानें । मैंने आपको बताया था कि यह फूल इसको कौन बनाता है? इन फूलों से फल कौन बनाता है? हमें अपने माँ-बाप जैसे कौन बनाता है? कौन हमारे अन्दर मैने यह देखा कि हमारे हृदय को चलाता है? हमारे अन्दर अनेक ऐसे व्यवहार है जो medical science (चिकित्सा विज्ञान) कभी श्री समझा नहीं सकती कि कैसे होते हैं। इसीलिए ही मनुष्य भक्ति पर उतरता है और परमात्मा को याद इसी प्रकार हर समय कभी कोई अखण्ड पाठ कर रहे हैं, कभी कोई परमात्मा को याद कर रहे हैं। करता है। पिंगला नाड़ी पर जब हम आते हैं तो वहाँ पर मनुष्य ने यह सोचा कि परमात्मा ने जो यह सृष्टि रची इस प्रकार हम अपनी भक्ति में परमात्मा को याद करते रहते हैं उससे एक चीज़ जरूर है कि है इस सष्टि में जो पाँच. पंचमहाभूत हैं, जो परमात्मा की तरफ हमारा चित्त है। नामदेव ने कहा है elements है उसके बारे में जान लिया जाए, उन कि एक लड़का गुर पतंग उड़ा रहा है और पतंग आकाश में जा रही है, उधर सब बच्चे उसके साथ खेल रहे हैं। वो बातें भी कर कहा है, सबसे मज़ाक कर पर प्रभुत्व पाया जाए। तो उन्होंने यज्ञ-आदि वगैरह शुरु कर दिया, वेद वगैरह रचे गये। पर वेद में भी बिल्कुल शुरु में लिखा है कि वेद से अगर 'विद' नहीं हुआ, अगर उसकी प्रचीति नहीं आई. तो सारा वेद बेकार हो गया। है और यह करते वक्त भी उसका चित्त उसी रहा आकाश के ऊपर तनाया हुआ जो उसका पतंग है, उसकी ओर है। इस प्रकार एक साक्षात्कारी चित्त उसी इस भारतवर्ष की एक महिमा है, बहुत बड़ी महिमा है। कोई कितना भी बड़ा शास्त्री हो, पंडित हो, मनुष्य का हो जाता है कि उसका ओर होता है। पूरा 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-15.txt अक : 3 & 4 - 2007 चैतन्य लहरी 14 मिलेगा यह बड़े-बड़े ऋषि- मुनियों ने इसका पता वेद व्यास हो, कुछ हो, लोग उसके सामने हाथ नहीं जोड़ते। पर अगर कोई सन्त, फकीर हो, हाथ में झोली लिये भी हो, और संत हो, माना हुआ संत, तो लोग उसके सामने जाते हैं, फिर वो राजा हो.. चाहे वो कुछ हो। यह अपने देश की बड़ी महिमा है। ऐसे आपको कहीं भी नहीं दिखाई देगा। यह इसी देश में होता है क्योंकि इस देश की अपनी एक बड़ी विशेष पुण्य हैं। धर्मात्मा संत-साधु हुए है। हमारी दृष्टि जो बाह्य की ओर लग गई है इससे सबसे बड़ा प्रश्न खड़ा हुआ है कि अब सबकी दृष्टि अन्तर्मुख है। लगाया और कुछ-कुछ इस पर किताबे भी हैं। लेकिन बड़े सकील तौर की हैं, और दूसरा यह भी है कि ये उपलब्ध भी नही। यह सात चक्र हमारे अन्दर ऐसे झुक बनाये हुये हैं, बढ़िया तरीके से. कि जैसे कि एक के बाद एक माने सीढ़ियाँ हमारे उत्क्रान्ति में बनाई गई। जब से हम कार्बन थे, तब से लेकर के धीरे-धीरे जैसे हम उठने लग गए वैसे-वैसे हर उत्क्ान्ति का जो एक यहाँ बड़े-बड़े पुण्यात्मा, एक टप्पा हमने हासिल किया, उसके अनुसार जैसे कि एक एक माईल-स्टोन (Milestone) बनाया गया कैसे करें? और सबसे पहले कि लोग जानें कि इसी देश में, इसी महान देश में ही यह सारा ज्ञान बसा सबसे पहले कार्बन का जो हमारे अन्दर प्रादुर्भावि हुआ; वो है पहला चक्र, जिसे कि 'मूलाधार-चक्र' कहते हैं। इस चक्र के बारे में भी बहुत से लोगों को बहुत गलत-फ़हमियाँ हैं। कुण्डलिनी के बारे में तो, जिसे देखिये वो ही लिखने लग जाता है। मैंने ऐसी भी किताबें पढ़ी हैं कि जिनको पढ़ने के बाद आदमी यह कहेगा, 'कुण्डलिनी के पास जाने की कोई हुआ है। अब जो भी बातें मैं आप से बता रही हूँ, इस को आप इस तरह से देखिए जैसे एक Scientist (वैज्ञानिक) के सामने कोई Hypothesis (धारणा) रखी जाये। अगर आप उसको इस दृष्टि से देखें तो आपको समझ में आ जायेगा कि जो मैं बातें कह रही हूँ वो आपको पहले देख लेनी चाहिये, जान लेनी चाहिये, फिर प्रचीति आने के बाद में उसको आपको जाँचना चाहिये कि यह बात सत्य है या नहीं; परमात्मा माद जरूरत नहीं। एक साहय ने लिखा है कि उसको कुण्डलिनी जागरण हो गया, उसके अन्दर बिजली चमकने लग गई। किसी ने लिखा कि मेरे अन्दर छाले आ गए। किसी ने कहा मैं मेढक जैसे कुदने लग पड़ा। हिन्दी में ही नहीं, अंग्रेजी में भी ऐसी किताबें है या नहीं। लेकिन पहले धारणा तो करनी पड़ती है। ये धारणा तो करनी पड़ती है कि ऐसी ऐसी बातें हैं, इसे चाहिये। उसी बात पर आप अगर उखड़े 1 बहुत छपी हैं। सुनना हुये हैं तो फिर आगे बढ़ ही नहीं सकते। पहले आप इसे धारिये, जो मैं बात कह रहीं हूँ. इसको आप वास्तविक कुण्डलिनी आपकी माँ है। हरेक इन्सान की माँ है। अपनी एक-एक व्यक्तिगत माँ है। और यह माँ आपको आपका दूसरा जन्म देती है। यह जो माँ है, यह माँ क्या आपको कोई तकलीफ देगी? समझने का प्रयत्न करें। मैंने आपसे इन तीनों नाड़ियों के बारे में संक्षिप्त में बताया हुआ था। आज मैं आपको अलग-अलग चक्रों के बारे में बताना चाहती हूँ। आपके अन्दर सात चक्र मुख्य हैं। यह नहीं कि सात ही चक्र हैं। सात मुख्य चक्र माने जाते हैं। यह सब ज्ञान हमारे देश के मूल का ज्ञान है। यह आपको किताबों में नहीं ज़ब आपका जन्म हुआ था तो आप की माँ ने आपको तकलीफ दी, या सब तकलीफ़ खुद उठाई? फिर यह जो माँ, जो विशेष एक देवी माँ है, तो क्या आपको तकलीफ़ देगी? या आपको परेशान करेगी? बुद्धि से भी काम लेना चाहिए। जो लोग इस तरह की बातें करते हैं या तो वो इस काबिल नहीं है कि कुण्डलिनी 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-16.txt चैतन्य लहरी अक : 3 & 4 -2007 15 पर कोई भी हाथ चलाएं। हो सकता है वो धर्मपरायण न हों, अधर्मी हों। उनके चरित्र अच्छे न हों, वो रुपया पैसा बनाते हों, लोगों को ठगते हों। हर तरह की उनमें गड़बड़ हो सकती है। हो सकता है कि उनको इसके बारे में कुछ भी जानकारी न हो। हो सकता है कि उन पर किसी ने कुछ भूत-प्रेत विद्या करके उनको भस्मसात कर लिया हो। कुछ मी हो सकता है। लेकिन कुण्डलिनी जागरण से आज तक हजारों लोगों की कुण्डलिनी का जागरण हो गया है सहजयोग से लेकिन हमने कहीं नहीं देखा कि लोगों में ये परेशानी या तकलीफ होती है। का धन है, जिसे हम लोग innocence कहते हैं, वो मूलाधार चक्र पर स्थित है। ये कुण्डलिनी जो है ऊपर स्थित है, और चक्र नीचे में हैं। कुण्डलिनी स्वयं मूलाधार में बसी है। 'मूलाधार' किसे कहते हैं कि 'मूल का आधार। अगर मूल कुण्डलिनी है, तो उसका आधार माने उसका गृह, उसका घर जो है वो आपकी ये त्रिकोणाकार अस्थि है, और उसके नीचे गणेश तत्व जो बसा हुआ है वो आपके अन्दर बसी हुई अबोधिता है। आजकल तो चालाकी करना, होशियारी दिखाना, बदतमीज़ी करना, या ऐसे कहें कि अपने कुण्डलिनी खुद सूझ-बूझ रखती है। पूरी तरह की सूझ-बूझ कुण्डलिनी के अन्दर है। और जैसे कोई एक टेप-रिकार्ड होता है उसी प्रकार इस साढ़े तीन वलह में इसमें आपका पूरा इतिहास लिखा हुआ है। जब से आप कार्बन थे, तब से आज तक का पूरा चरित्र के साथ हर समय विडम्बना, यह एक तरह का लोगों को बड़ा शौक हो गया है। लोग सोचते है कि इसमें उन्होंने बहुत कुछ कमा लिया। अपनी पवित्रता के साथ छलना करना, अपने साथी के साथ हमेशा कोई न कोई उपाधि लगा लेना, इस पर हमारा बड़ा इतिहास इसमें है। यह जानती है कि आप ने क्या क्या गलतियां की, आप कौन से गलत रास्ते पर गए, आप ने क्या क्या अपने साथ दुर्व्यवहार किया है, दूसरों के साथ दुर्व्यवहार किया है, क्या आपने ऐसे काम किए हैं जो परमेश्वर के मार्ग में एक तरह से रुकावटें हो सकते हैं, बधिक हो सकते हैं। वो सब कुछ तो जानती है। उसके पास इसका हिसाब किताब पूरा है । विचार चलता है कि किस तरह से कैसे क्या किया जाए। यह चक्र जो है हमारे अन्दर बहुत महत्वपूर्ण है। हालांकि इस देश में यह चक्र बहुत बलवान है क्योंकि कुछ भी हो, इस देश में पवित्रता का अर्थ लोगों को मालूम है। लोग गलत काम करते हैं. लेकिन वो जानते हैं कि यह गलत है। इन परदेश में मैंने देखा कि वो गलत काम करते हैं, इस तरह से विचित्र बातें करते है कि समझ में नहीं आता कि यह इन्सान है या जानवर हैं और वो यह सोचते हैं कि उन्होंने बड़ी कमाई कर ली, वे तो एकदम freedom (स्वतन्त्रता) लेकिन वो आपकी माँ है। माँ ये नहीं सोचती कि मेरा बेटा कितना दोषी है। वो यह सोचती है किस तरह से इस बेटे को जो है, मैं उसका जो धन है उसे दे दूँ। किस तरह से उसे मैं बचा लूं। माँ को ये नहीं विचार आता- समझ लीजिए किसी का बच्चा डूब रहा हो, तो माँ यह नहीं सोचती है कि इसने मेरे साथ में आ गए। उन्होंने बहुत कुछ पा लिया कि इस तरह के गन्दे काम वो कर रहे हैं। क्या क्या दुष्टता की, कितना सताया । वो सोचती है जो भी हो सब माफ़। इस वक्त यह बच्चा बच जाए। इसी प्रकार से ये माँ आपकी यही सोचती है कि आप को किसी तरह से बचा लिया जाए। लेकिन इस माँ के लिए आप का जो बाल्यावस्था में पाया हुआ अबोधिता श्री गणेश विशेष करके जो बनाए गए हैं, उनका रूप ऐसा है कि उनके सिर पर हाथी का सिर है। वजह यह कि हाथी एक पशु है, और पशु कभी भी अहंकार एकत्रित नहीं करता। इसीलिए उसके अन्दर 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-17.txt चैतन्य लहरी अंक : 3 & 4 - 2007 16 अहम् की भावना नहीं है; वो चिर का बालक होता है। और गणेश जी चिर के बालक हैं। लेकिन उनके अन्दर ले गए और पता यह हुआ कि ये जगह पर एक फुकीर ने आकर बताया कि "यह जगह माँ की है, इसे छोड़ दीजिए।" जब हम लोगों ने जाके देखा तो उसके अंदर से, चैतन्य की लहरियाँ- ठंडी ठंडी, लहर-सी वो आयुध है और जो विशेष तरह के उनके पास में जो व्यवस्थाएँ हैं, उन सब व्यवस्थाओं से वो मनुष्य के अन्दर जो pelvic plexus है उसको सम्मालते हैं। पर ये इतने शक्तिशाली हैं कि अगर आप किसी भी से चल रही थीं- साक्षात् सारा सहसार । लेकिन यह चीज सिर्फ एक फुकीर या कोई तरह कुण्डलिनी पर आघात करने का प्रयत्न करें, या जो आदमी धर्म-रहित है. जिसमें चरित्रहीनता है. ऐसा आदमी कोशिश करे कि कुण्डलिनी को चढ़ाए वो इस कुदर नाराज़ हो जाते हैं (गणेश सबसे नीचे बैठे हुए हैं लेकिन इसके साथ ही ईडा नाड़ी ऊपर जुड़ी हुई है) कि ईड़ा नाड़ी पर उनका क्रोध जब चढ़ता है तो आदमी के शरीर में यहाँ से लेकर यहाँ तक (बाएँ सन्त-साधु या कोई सहजयोगी ही बता सकता है। जिसको इसकी अनुभूति नहीं है वो नहीं बता सकता है कि यह चीज़ जागृत या यह झूठ है। या यह सच है या झूठ है। इसके लिए आपको तो ऊँची संवेदना, जिसे कि हम लोग सामूहिक संवेदना कहते हैं, उसमें जागृत होना पड़ता है। फिर मैं कहूँगी कि आपको जागृत होना पड़ता है। सिर्फ लेक्चरबाजी से नहीं होता है। आपको होना है। जब तक आप इसमें 'प्राप्त' न भाग में नीचे से ऊपर तक) blisters (फफोले) भी आ सकते हैं। ऐसा आदमी गर्मी में तड़प सकता है. उसको तकलीफ हो सकती है। यह गणेश का तत्व जो है, जितना सुखदाई है उतना ही क्षोभकारी है। अत्यन्त क्रोधवान है। होंगे, जब तक आपके अन्दर इसकी 'प्रचीति नहीं आएगी, जब तक यह आपको 'विद' नहीं होगा, तब तक आपमें और उन साक्षात्कारियों में हमेशा अन्तर रहेगा इस चक्र की विशेषता यह है कि जब कुण्डलिनी का जागरण होता है- जैसे आप मेरे ओर अपने हाथ खोल के बैठें, तो अच्छा रहेगा, भाषण करते ही काम हो सकता है, आप मेरे ओर इस तरह से हाथ करके बैठे हुए हैं. तब आपकी ये जो पाँच उंगलियों में, जो हम भारतवर्ष में गणेश आठ अष्ट विनायक' आप जानते हैं, ये जागृत है, पृथ्वी के तत्व से निकले हैं। अब हम लोग मानते तो हैं कि वैष्णों देवी, वहाँ जाना चाहिए। इस मंदिर में जाना है, उस मंदिर में जाना है। लेकिन यह जागृत तत्व क्या है? क्या हम जानते हैं ये जागृत तत्व क्या है? क्या ऐसी कोई सच्ची बात है कि वास्तविक कोई ऐसे जागृत तत्व का कोई स्थान है? ऐसा स्थान है। क्योंकि पृथ्वी तत्व जो है, यह स्वयं साक्षात् जागृत है। ends Sympathetic nervous system इस प्रकार सात चक्र left side में और सात चक्र right side में अब यह जो सात चक्र हमारे left और right में हैं, जैसे मैंने बताया था, आपस में मिल जाते हैं, और सुषुम्ना नाड़ी ऐसे उनके बीच में होती है । अब आप जब मेरी ओर हाथ करके बैठे हैं, तो धीरे-धीरे, धीरे-धीरे इसमें से चैतन्य बहना शुरु हो जाता है। जब चैतन्य बहना शुरु हो गया तो वो जाकर वहाँ (मूलाधार चक्र) पर श्री गणेश को खबर देता है कि अब कोई अधिकारी सामने खड़ा है। यह अधिकार आपको स्कूलों में, कालेजों में या किसी theosophical society 1 theology आपको आश्चर्य होगा, मैं एक छोटी-सी जगह मुसलवाड़ी में गई, वहां पर लोगों ने मुझे बताया कि यह जागृत स्थान है, और वहां पर कोई भी दीवार नहीं बना सके। एक अंग्रेज ने कहा कि यहाँ पर अजीब-सी जगह, यहाँ पर कोई आप दीवार नहीं बना सकते. कोई बन्ध नहीं बना सकते। तो बंध को ऐसे सीधे लेने के बजाए उसे गोल घुमा दिया. और फिर इस तरह से 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-18.txt चैतन्य लहरी अंक : 3 & 4 2007 17 पठन आदि से किसी से भी नहीं मिलता। यह अधिकार जो, है यह साक्षात्कारी मनुष्य को ही अधिकार है। जब ऐसा व्यक्ति जो जानकार हो, उसके सामने आप देखें, छोटा सा दोष देख लें, कि जब राम का जन्म होता है, तब उपवास करेंगे, कृष्ण का जन्म होगा तब उपवास करेंगे। और नर्कचतुर्दशी, जिस दिन नर्क का द्वार खुलता है, उस दिन बैठकर सवेरे खाना खायेंगे। सब उल्टी बातें, बिल्कुल उल्टी बातें। यह पता नहीं किसने सिखाया । जिस दिन आपके घर में बेटा पैदा इस प्रकार हाथ फैलाते हैं, तो गणेशजी को पहले इसका न्यौता मिलता है कि आप कुण्डलिनी से अब कहें कि आपको निमन्त्रण है और आप चढ़ें। गणेश जी के बगैर यह काम नहीं हो सकता। अबु अगर किसी डाक्टर से कहा जाए कि गणेश जी हैं यह आपके prostate gland को देखते हैं, सम्भालते हैं, संवारते हैं तो कहेंगे कि "क्या बात कर रहे हैं माता जी होगा उस दिन आप क्या उपवास करेंगे? जिस दिन दत्तात्रेय पैदा हुए उस दिन उपवास है देख लीजिए जिस दिन जिसका जन्म हुआ उस दिन उपवास करते हैं उस दिन उपवास करने की क्या जरूरत है? मेरी गणेश जी का और medical का क्या सम्बन्ध?" समझ में नहीं आता। दूसरा यह कि परमात्मा के नाम पर क्यों उपवास करते हो? उसने कब कहा था कि Medical Science जो है, यह तो ऊपर में है। लेकिन उसके जड़ में अगर श्री गणेश बैठे है तो एक मिनट अपनी बुद्धि से यह पूछे कि "अगर इससे हमारे प्रश्न किसी तरह से सुलझ सकते हैं. तो क्यूँ न इस चीजू को हम समझे कि श्री गणेश क्या हैं और उनका हमारे अन्दर जागृत होना कितना जरूरी है? एक महाशय थे, वो हमारे पास आये, और कहने लगे कि "माँ मुझे prostate की तकलीफ हो गयी है, डाक्टर कहते हैं कि आपरेशन करवाओ। वो बड़े सहजयोगी थे, दूसरे गणेश भक्त। मैंने कहा आप इतने बड़े गणेश भक्त हैं, आपको कैसे prostate हो गया? मेरी समझ में नहीं आता। क्या गणेश आपसे नाराज हो गए हैं? कहने लगे "माँ, पता नहीं मैं तो बड़ी गणेश की भक्ति करता हूँ।" मैने कहा "अच्छा। तो भई चना खाओ। आप उपवास करिये? आपको करना है आप करिये। आपको शौकिया उपवास करना है, करिये। इस देश में तो हम इतनी गलतियाँ करते हैं और बिल्कुल नासमझी से, जिसने जैसे कह दिया। स्त्रियाचार, ब्राह्मणाचार की वजह से हमारे धर्म में भी इतने दोष । आ गए हैं। वही हाल मुसलमानों का है, वही हाल इसाईयों का है, यही सिक्खों का है। सब का एक ही है कि अपनी बुद्धि से हम उसको समझते नहीं हैं कि किस वंक्त क्या करना चाहिए। अब इनसे मैंने कहा कि खाइंये। आपको विश्वास नहीं होगा, उन्होंने दो खाया। मैने कहा "अब छोड़िये" आज से आप यह promise (प्रतिज्ञा) करिये कि संकष्टी के दिन मोदक आप बना कर खायेंगे। क्योंकि उनको मोदक प्रिय हैं, इसलिए आप मोदक बना के खायें। तो कहा कि "माँ आज हमारा प्रसाद चना है, तो चना खाइये।" तो इधर उधर देखने लग गये। मैने कहा "आनाकानी क्यू कर रहे हैं?" कहने लगे "आज संकष्टी है. और संकष्टी में मैं उपवास करता हूँ। मैंने कहा "यही तो में आपको promise (वचन) देता हूँ कि मैं मोदक खाऊंगा।" आपको आश्चर्य होगा कि उनका pros- tate -पूना वो पहुँचे और उन्होंने चिट्टी भेजी कि माँ मेरा prostate गायब - उसकी तकलीफ़ ही गायब। इसी प्रकार धर्म में हम अनेक, अनेक, अनेक गलतियाँ करते हैं। और इस लिए जब हम कहते हैं कि "हमने धर्म धारण किया है." हम यह करते हैं वो करते हैं, फिर हमें माँ क्यों हुआ?" इसका परमात्मा पर कोई दोष मत दीजिये दोष है जिसने आपको समझाया वजह है। जिस दिन गणेशजी का जन्म हुआ तो उस दिन आप उपवास कर रहे हैं? यह किसने आप को बताया है कि जिस दिन जन्म हो उस दिन आप उपवास करें?" अब धर्म में कितने दोष है देख लीजिये। से लोग कहते हैं कि "धर्म हम इतना करते है। बहुत हम इतने धार्मिक है माँ, तो भी हम बीमार हैं!" अब 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-19.txt चैतन्य लहरी - 2007 अक : 3 & 4 18 me' पर ईसाई लोग ये जाकर पता नहीं लगायेंगे कि और कौन हैं। उन्होंने तो बता दिया कि ईसा के सिवाय और कोई नहीं। इस्लाम ने बना लिया कि मोहम्मद के सिवाय और कोई नहीं। इस तरह से उन्होंने सबको एक एक छाँट-छाँट के अलग कर दिया, जैसा कि एक आदमी लटका हुआ कहीं पड़ा हुआ था। सबकी रिश्तेदारी आपस में है। सिर्फ हम ही लोग उनके नाम और बताया। जैसे कि लोग बताते हैं कि जब कुण्डलिनी जागरण होता है तो बड़ी गर्मी होती है और ऐसा होता है, वैसा है। सब झूठ है। एकदम झूठ है। ऐसा कुछ भी नहीं। इस बात पर आप बिल्कुल मत विश्वास रखें । यह लोग सब पैसा बनाने वाले आपको डरा- डरा के ऐसा दिखाते है कि यह बड़े कहीं के पहुँचे हुए लोग है। और इस से आपको गलत रास्ते पर डाल देते हैं. और ले लेकर के झगड़ा करते हैं। इस चक्र के आस-पास आप देखिये कि ये जो यह पेट का हिस्सा है. इसमें आप फिर ये पूछने लग जाते हैं कि "भई हमारी कुण्डलिनी जागरण हुआ उससे तो हमारी हालत ही खराब हो गई। हम तो पागलखाने पहुँच गए।" होना ही है। क्योंकि वो कुण्डलिनी का जागरण नहीं वो a sympathetic nervous system overactivity हो जाती है जिससे आप पागल हो सकते हैं। दस गुरु के तत्व हैं। इसमें से आप सोच सकते हैं कि शुरु से, आदि नाथ' से लेकर के उनके गुरु हुए जैसे Socrates हैं, Lao-Tse, यह सब इसी में आते हैं। Moses हैं, Abraham। और अपने देश में राजा जनक, नानक, मोहम्मद साहब और Zoroster (जरथस) और अभी आखिरी वक्त जो हुए हैं, वो हैं श्री साईनाथ 'शिरडी' के। यह सब इनके दस मुख्य अब श्री गणेश के बाद स्वाधिष्ठान चक्र है । उससे ऊपर में जो चक्र है वास्तविक यही दूसरा चक्र है जिसे नाभि चक्र कहते हैं। क्योंकि इसी चक्र से स्वाधिष्ठान चक्र बाहर निकल कर के, कमल जैसे अवतरण हुए। वैसे अनेक गुरु हुए हैं, संसार में, लेकिन दस मुख्य अवतरण है। अब जो लोग गुरु को मानते है. कि "गुरु को मान लिया" देखिये को मान गुरु निकलता है, और चारों तरफ घूम-घूम करके- और यह जो बीच में जो जगह बनी हुई है जिसे कि भवसागर कहते हैं, अपने पेट की जो जगह है जिसे 'भवसागर' कहते हैं, अपने पेट की जो जगह है जिसे Viscera लेना भी एक बड़ी गलत फहमी की बात हैं। गुरु वही है जो साहिय से मिलाये । जो साहिब से मिलाए, जो परमात्मा से मिलाए, वही गुरु है। लेकिन हमारे यहाँ हर तरह के गुरु निकल आये है। और आप जानते हैं कि हम इतने विक्षिप्त हो गए है, इतने भ्रातमय हो गए हैं कि कोई भी आदमी जेल से छूट करके और बैठ जाये गेरुआ वस्त्र पहन के; लगे उसके चरण छूने। कहते हैं, इसके पूरी इसको. जितने भी उसमें organs है, इन्द्रियाँ है, सबको वो शक्ति देते हैं। इस चक्र में problem आने से diabetes वगैरह बीमारियाँ हो जाती हैं। लेकिन आज उस के जड़ में जो चक्र हैं, जिसे कि नाभि चक्र कहते हैं उसके बारे में मैं आपको बताऊँगी। पडली तो बात यह है कि गेरुए वस्त्र से हमारा क्या सम्बन्ध? हम तो गृहस्थ के लोग हैं। गृहस्थियों का गेरुए वस्त्र से कोई भी सम्बन्ध नहीं होना चाहिए। आप जानते है, अगर आपने पढ़ा हो कि वाल्मीकि रामायण में, सीता जी ने पूरा chapter (अध्याय) इन सन्यासियों के बारे में कहा है, कि जो सन्यासी हैं उनको शहर में तो आना ही नहीं चाहिए। किसी गाँव में नहीं आना चाहिये। उसकी बहुत सारी मर्यादायें बताई। उस में यह कहा कि गाँव के बाहर उन्हें झोपड़ी नाभि चक्र जो है, यह विष्णु का चक्र है, नारायण का चक्र है। अब कोई कहेगा कि 'माँ, आप तो सब हिन्दू धर्म में कह रहे हैं।" लेकिन और भी लोग बहुत सारे सब इसी से विघटित हैं। ईसा मसीह ने भी कहा है कि जो मेरे विरुद्ध नहीं है, वो मेरे साथ E. Those who are not against me are with 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-20.txt अक : 3 & 4 -2007 19 चैतन्य लहरी अशान्ति जो है वो एकदम जम के पत्थर हो गई। अब आप हिल नहीं सकते ऐसी ही व्यवस्था हो गयी। क्योंकि यह लोग जो धन्धे करते हैं. जिस तरह से यह काम करते हैं, यह आप जानते हैं। हम तो काफी उमर वाले हैं और हम सब जानते थे इसके बारे में। अब तो आप में रहना चाहिए और किसी भी गृहस्थ की ड्योढी लॉँघनी नहीं चाहिए। हाँ, जो गृहस्थ है गृहस्थ है। लेकिन जिसने सन्यास ले लिया उसको यह सब करना मना है। लेकिन हमारे यहाँ तो देखिये कि हम लोग गृहस्थी के लोग यज्ञ करने में लगे हुए हैं. अपने बाल-बच्चों को सम्भालते हैं। कायदे से रहते हैं, और उन (सन्यासों) लोगों का पालन- पोषण हमारी खोपड़ी पर। एक तो हमारे बाल-बच्चे पलते नहीं और ऊपर लोग सब younger generation के लोग हैं, शायद आपने जाना ही नहीं होगा कि, श्मशान विद्या, प्रेत विद्या, ताँत्रिक विद्या अपने देश में बहुत है। इस समय कुछ मुझे लगता है कि दिल्ली के लोगों का मन तांत्रिकों से कुछ हटा हुआ है. नहीं तो जहाँ जिस गली में जाइये वहाँ एक ताँत्रिक बैठा हुआ था. इस आपकी राजधानी में। इन ताँत्रिको का शौक आपको भ्राँत हो गया है और इसमें आप फँस गए। ऐसे छोटी-छोटी चीजों के पीछे में भागने वाले लोग परमात्मा को.कैसे पायेंगे? से इन काशाय वस्त्र वालों को संवार कर बैठे रहिये सुबह से शाम तक। एक सीधी बात यह है कि कोई भी सन्यास लेने से परमात्मा के पास नही जा सकता। यह तो ऊपरी चीज है। सन्यास अन्दर का भाव होता है। बाहर का नहीं होता आप जानते हैं कि राजा जनक को विदेही कहा करते थे और उनकी लड़की को वैदेही क्योंकि विदेही से पैदा हुई थी। वो स्वयं राजा थे। राजा जैसे रहते थे, राजा जैसे करते थे और अगर माँगना है, तो कोई परम चीज़ माँगनी चाहिये । और परम में ही सब कुछ मिल जाता है- क्योंकि श्री कृष्ण ने कहा है कि 'योग क्षेम वहाम्यहम् ' पहले जब योग होगा, तो तुम्हारा पूरी तरह से क्षेम होगा कोई महाशय कहते है कि "माँ मेरी तन्दरुस्ती अच्छी करो।" मेरे पास बहुत से पहलवान आते हैं, कहते है "माँ हमें तो कोई शान्ति नहीं।" कोई आदमी कहता है माँ मेरे पास पैसा नहीं" दूसरा रईस आदमी आता है कहता है"मुझसे तो दुखी कोई दुनिया में है ही नहीं । " इसका मतलब यह है कि सब संसार दुखी है। और इस दुखी संसार में आप अगर किंसी को थे सोचे कि दूसरे के पास कोई चीज़ है तो उससे वो सुखी है. ये आप को गलतफुहमी है। आप इस पर विश्वास करें कि जिस मनुष्य को आप सुखी समझते हैं वो महादुखी हो सकता है। लेकिन आपको पता नहीं है। इसलिए जिस चीज़ को आप माँग रहे है उससे आपको होने वाला। आपने जिस चीज को माँगना है, उसे मांगे और वो है परम्। और वो परम् तत्व आपके ही अन्दर है, जिसको आपको पाना है इसके लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं, किसी को कुछ देने की जरूरत नहीं, कुछ उसमें आडम्बर नहीं, बहुत सीधी सरल चीज़ है । आभूषण उसके सामने बड़े-बड़े साधु सन्त, दृष्टा, नत मस्तक रहते थे क्योंकि उनकी दशा यही थी. क्योंकि वो स्वयं साक्षात दत्तात्रेय के अवतरण थे। आदिगुरु के अवतरण थे लेकिन आजकल हमारे देश में इसकी संवेदना जाती रही। लोग बहुत ही भ्रांत हो गए हैं और ऊपरी तरह से कोई ऊपर से कोई दिखाने वाला तमाशा वाला आदमी पहुँचा है, तो लोग उसके चरणों में पहले जाते हैं। कोई कोई तमाशा वो करना जानता हो, किसी भी तमाशे के पीछे में भागना हम लोगों में एक स्वभाव की एक बात होती है कि कोई तमाशाखोर पहुँच जाए तो उसके पीछे हम भागते है। फिर 'हजारों लोग उसके चरणों में जायेंगे अरे भाई और फिर झूठी झूठी बातें उसके बारे में फैलाना कि उसने इस आदमी को ठीक कर दिया, वो ठीक हो गया, उनको शान्ति मिल गई। इस तरह की गलत फहमियों। बहुत से लोग कहते हैं कि हम उस गुरु के पास गये थे, हमको शान्ति मिल गई। मैंने कहा कैसी शान्ति मिली आपको, श्मशान शान्ति मिली होगी। अब आप हिल ही नहीं सकते, आपको अशान्ति तो है ही, लेकिन वो सुख नहीं 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-21.txt अंक : 3 & 4 -2007 20 चैतन्य लहरी लोग अब बहुत जबरदस्ती करेंगे। अगर किसी से कह दें कि भई पैर न छुएं तो उनको तो लगता है कि माँ ने तो जैसे कि उनको शाप ही दे दिया। मैं यह कहती हैँ. जैसे कि एक बीज को आप अॅकुर ला सकते है, यदि धरती माँ के उदर में डाल दें उसी प्रकार यह कार्य हो सकता है। लेकिन मनुष्य के लिए सीधा-साधा होना भी कठिन हो जाता है। क्योंकि वो सीधे तरह से बेटे, तुम क्यों छू रहे हो? तुमको मैंने क्या दिया? किसलिए मेरे पैर छू रहे हो ? जब तक तुमको कोई भी मैने आत्मा का परिचय दिया नही, तब तक आप मेरे पैर क्यों छू रहे है? मैं भी कोई ढोंगी हो सकती हूँ, मैं भी कोई खुद गलत हो सकती हूँ। क्या वजह है कि आप मेरे पैर छूये? आदत है। और इस आदत की खाना खाना अब जानता ही नहीं। उल्टा हाथ फिरा के ही वो खाना खाता है। कोई काम सीधे तरीके से करना उसकी बुद्धि के परे हो गया है, उसकी बुद्धि इतनी जटिल हो गई। सोच-सोच करके उसका दिमाग खराब हो गया है। इस गुरु के कारण कैन्सर जैसी बीमारी होती है। गलत गुरु के सामने अपनी पेशानी झुकाना। इसलिए किसी ने कहा है कि अपनी पेशानी सब के सामने मत झुकाओ। यहाँ तक कि मंदिरों में जब आप जाते हैं, कोई भी आदमी आपको टीका लगा वजह से हमारा एकादश जो है, हमारे माथे पर जो एक अड़ा भारी चक्र होता है। जिसमें 11 रुद्र बैठे हैं। रुद्र जो आप जानते है कि संहार-शक्ति हैं। अगर आप किसी और को इस तरह से गुरु मान लें, तो दायें तरफ में आपके रुद्र पकड़ जाते हैं। और जैसे ही पकड़ जाते हैं, ऐसे ही कैन्सर की बीमारी तो पहली चीज़ है। कोई आदमी भी समझो एक politician (राजनीतिज्ञ) है, समझो किसी के आगे बहुत झुकता है। वो भी हो सकता है। एक अगर economics (अर्थ-शास्त्र) वाला आदमी है, या Business (व्यवसाय) वाला आदमी है वो अगर किसी के आगे दे। हर एक आदमी से आप अपने माथे पर टीका लगवा लेते हैं, बहुत गलत दोष है। किसी का क्या अधिकार है कि वे आपके माथे को छुए? आप जानते हैं कि आपने तो कहा कि "9-10 साल मिलन को लागे मैं तो यही कहती हूँ कि हजारों वर्षों से आपको बना बना कर के आज परमात्मा ने मनुष्य बनाया है। और उसका आप किसी के सामने भी सर झुका देते है? किसी के सामने भी सर झुकाने को हमेशा लोगों ने मना किया है । सिर्फ साक्षात्कारी जो आदमी है वो ही जानता है कि किसके सामने सर झुकाना चाहिए। हम तो कहते हैं कि हमारे भी पैर छूने की आपको कोई जरूरत नहीं। और न छूओ तो अच्छा है। जब तक आप पार न हों, जब तक आप के हाथ में चैतन्य नहीं जरूरत से ज्यादा नतमस्तक हो ता है, अपने Business (व्यवसाय) के लिए. वो भी कोई भी आदमी जरूरत से ज्यादा अगर किसी के सामने सिर झुकाए, तो उसको कैन्सर की बीमारी हो सकती है। उसके की जो 5 रुद्र में से पांचों रुद्र पकड़ सकते है। इधर इसलिए सब के सामने नतमस्तक होना मनुष्य के लिए बिल्कुल वर्जित है लेकिन किसी से अकडूना भी वैसी बात है। कि "मैं ही गुरु हूँ" मैं ही भगवान हूँ, मैं ही सब कुछ हूँ, मैं ही सब कुछ करता हूँ, मुझे कौन बताने वाला है" ऐसे भी लोग हैं जो कहते हैं कि तुम ही गुरु हो, और तुम इसे खोजो, दूसरों को खोजने आया, हम आप के लिए वैसे ही, जैसे दूसरे है। जैसे कि आप मंदिरों में जाते हैं वैसे हम यहाँ बैठे हुए हमसे आपको छूने से क्या फायदा? चरणों में आने का तभी फायदा हो सकता है अगर आपके अन्दर वो connection (योग) शुरु हो गया। अगर हम माइक्रोफोन के सामने बात कर रहे हैं और यह connection (योग) ही नहीं है तो बात करने से फायदा क्या? इसलिए किसी को भी पैर पे जाना और पैर पे लेना दोनों ही दोष है, मैं समझती हूँ। क्योंकि मत दो। तुम ही हो सब कुछ। यह भी बात गलत है। क्योंकि आप मुक्त सा त्कारी नही हैं। जब तक एक दीप जला नहीं, तब तक वो अपने आप से जल नहीं सकता। एक जला हुआ दीप ही उसे जला सकता है। 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-22.txt चैतन्य लहरी अक : 3 & 4 2007 21 पर उस में लेना-देना कोई नहीं बनता है। उसमें (आलीशान कर) दें तो मैं आऊ। अब सब लड़कों ने एक साल भर सिर्फ आलू खाया, पैसा बचाया और उनको Rolls Royce दी एक लामा साहब पहुँचे वहाँ-यह लोग आकर मुझे बताते है तो मुझे बड़ी हैरानी हुई। लामा साहब, जो कि बहुत साधु सन्यासी बनते हैं, वहाँ पहुँचे तो कहा कि हमें तो Marble के Floor (संगमरमर का फर्श) के सिवा और कुछ नहीं चाहिये। वहाँ Marble बड़ा महंगा मिलता है, स्वीडन में । तो स्वीडन के बिचारे लोगों ने भूखे रहकर उनके लिए Marble का Floor (फर्श) बनाया, तो वो पधारे वहाँ। और पधारने के बाद, यह चीज कि आप उनके सामने जाइये तो एक हज़ार एक बार आप उनके सामने झुको। मैं आपको इसलिए यह सब बातें बता रही हूँ कि सब चक्कर में आप लोग होते ही है। स्वरे दस आदमी मिलने आए। उसमें से नौ उस चक्कर में कि माँ हमें समझ नहीं आता हमने तो गलती नहीं करी। किसी तरह का स्वार्थ नहीं होता है। किसी भी तरह का उपकार नहीं होता। यह तो आपका दीप जला नहीं और जो दीप जला हुआ उसे छू गया, आप जल गए। उसमें किसी भी तरह की ऐसी बात नही आती कि : जिसमें आपको पूरी तरह से यह कहना है कि आपका कोई व्यक्तित्व ही न रह जाए, कि आप एकदम से पागल जैसे उनके पीछे लगे रहें। अभी ऐसे बहुत से लोग मैंने देखे। स्पेन में 50,000 लोग ऐसे हैं कि जो एक गुरु मृहाराज कोई है उनके पीछे में इतने नत-मस्तक है कि पागल है। स्पेन की महारानी हमें मिली थीं। वो कह रही थीं कि"अपने देश से ऐसे ऐसे आप गुरु घण्टाल यहाँ भेजते हैं कि उनका क्या करें? कुछ समझ नहीं आता। हमारे यहाँ पचास हज़ार युवा लोग एकदम पागल हो गये। इस तरह के न जाने कितने तरह-तरह के लोग आपने बाहर भेज दिये हैं । मैने कहा कि तुम खोजने क्या गये थे, यह बताओ। ज़िसने परम की बात की और जिसने परम दिया, आपको Export (निर्यात) के लिए और तो कुछ मिला नहीं इस देश में तो बढ़िया से उठा उठा कर ऐसे लोगों को बाहर भेज दिया है कि सबने नाक कटाकर रख दी उसी के चरण में जाना चाहिए और उसी के शरण में भी जाना चाहिये, बाकी सब बेकार है । ये बातें जो हैं- बातों से तो इन्सान का दिमाग खराब हो जाता है। आपने सुना होगा बहुत से लोग वेद पर बात करते हैं । वेद, वेदाचार्य, यह वो। एक महाशय बम्बई में हैं, बड़े भारी वेदाचार्य है पंडितों के पडित वो उमर में हमसे छोटे हैं लेकिन वो जब बात करते हैं तो ऐसा लगता है कि सठिया गए हैं जो बकते चले जाते हैं, ऐसे बकते चले जाते हैं कि कोई उनके पास पाँच मिनट खड़ा होना नहीं चाहता। अब उनको समझ नहीं आता कि लोग उनसे भागते क्यों हैं? इस कदर क्रोधी और तापमय इन्सान हैं, कि जो भी उनके पास बैठता है कहता है, "बाप रे बाप यह तो एकदम तूफान आ गया। और गुस्सा उनको इतना आता है कि अगर उनकी बात किसी को समझ नहीं आई तो कहते हैं कि तुम तो ऐसे दुष्ट हो, तुम तो ऐसे खराब हो, और लेकर मारना शुरू कर देते हैं अब बताइये इतने है। और उनके लिए अगर कुछ कहे तो लोग कहते हैं कि माँ आप तो बहुत intolerant (असहिष्णु) हैं। तो क्या ऐसे लोगों को हम हार पहनायें? उनकी आरती उतारें और उनको सिंहासन पर बिठायें? पहले जमाने में तो दैत्यों को मारा जाता था मार के उनकी पूर्णतया हत्या कर दी गई। लेकिन अब कम से कम उन को कहा तो जाए कि "ये दैत्य हैं और राक्षस है।" उसमें आप लोगों को क्यों इतनी परेशानी हो जाती है? क्या आप भी उन्ही के साथ मिले हुए है? दूसरे लोगों को लूटना, खसोटना, उनसे पैसा लेना, उनको दूसरे मार्ग में डालना, यह कहाँ का धर्म है? और वो भी भारतीय होकर के आपको क्या अधिकार है? यह एक तरह का अजीब-सा छिपा हुआ aggresion (अत्याचार) है। और यह इस तरह से छाया हुआ है कि आप आश्चर्यचकित होंगे कि एक साहब, लंदन आते है और उन्होंने कहा मेरे लिए अगर आप Rolls Royce 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-23.txt अंक : 3 & 4 - 2007 22 चैतन्य लहरी उन्होंने कहा 4 दिन का उपवास। बस हम करके वेदाचार्य और फलाने ढिकाने होते हुए उनके यह सारा दिखायेंगे। यह सब चीजों से परमात्मा नहीं मिलता बाहर ही रह गया है कुछ उनके हृदय में कुछ नहीं गया। न उनमें दया, न अनुकम्पा, न कुछ, बस बड़्बड़ाते रहते हैं सुबह-शाम। ऐसे मैंने फ्रॉस में बहुत से देखे। वो तो बस में चढ़ते हुए बड़बड़ाते है। पूछा क्या, तो क्या कहने लगे कि ये बड़े भारी पादरी थे मैंने कहा वाह भाई. यह पादरियों का अन्त। एक बड़े भारी पादरी थे इसलिए हम उन को कुछ कहते नहीं बस बड़बड़ाते चलते हैं सुबह से शाम तक। ऐसे बहुत मिलते हैं फ़्राँस में मेरे ख्याल से वहाँ इस तरह के है। सहज-सरल। सहज समाधि लागे सहज। सहज होना चाहिए। जो चीज़ सहज नहीं है जिसमे असहज है, वो परमात्मा की चीज़ हो ही नहीं सकती। एक सीध ग] बात आप सोचिये कि आप इन्सान बने, आपने कौन सी मेहनत करी? आप क्या सिर के बल खड़े हुये, कि आपने क्या अपनी दुमें काटी थी? किस तरह से आप बन गए? आप इन्सान अपने आप सहज सरल बन गये। इसी प्रकार ऊंची स्थिति में जाने के लिए भी 'सहज' ही भाव होना चाहिए और जब तक प्रकार बहुत हो चुके हैं। लोगों ने बहुत अध्ययन, अध्ययन किए। तो इस तरह के गुरु हों कि जो सिर्फ बातचीत ही बातचीत करें। आपको कहेंगे पचास पारायण करो। सहज भाव नहीं आता है तब तक आप जो भी ऐसी ऊट-पटांग चीजें करते हैं उससे आपको नुकसान होगा, तकलीफें होगी, चक्र पकड़ेंगे, आपको परेशानी होगी- चाहे चो शारीरिक हो. मानसिक हो, या बौद्धिक हो, मगर आप परेशानी में फँस जायेंगे इसलिये मैंने पहले ही कहा सहज भाव में बैठे और कहा कबीर को गाओ क्योंकि कबीर सहज भाव में गाते थे। उनका दत्तात्रेय का आप पारायण करो। गुरु का आप पारायण करो। पचास पारायण करने के बाद में मिला क्या? एक महाशय हमारे पास आए, हमसे कहने लगे माँ हमने तो चौदह वर्षों की तपस्या की । मैैने कहा "अच्छा, और?" "उन्होंने सिर्फ पारायण करने को कहा और शिवजी का मन्दिर धोता रहा।", "और अब क्या हुआ।" कहने लगे "एक मिनट में कुण्डलिनी जागरण हुआ।" तो मैंने कहा, "भाई यह सोचना चाहिये, पारायण करने से परमात्मा मिलता है तो अपने देश में तो कितने लोग हैं जो पढ़ भी नहीं सकते। इसका मतलब कि उनको परमात्मा नहीं मिलेगा? सिर्फ पढ़े लिखे लोगों को मिलेगा? जो वेदाचार्य हैं, उनको मिलेगा? जो वेद पढ़ सकते हैं, संस्कृत जानने वाले कितने लोग हैं? मैं कहती हैँ, कुरान-शरीफ पढ़ने वाले कितने मिलन हो चुका था, इसलिए वो मिलन में गाते थे । अब यह जो नाभि चक्र है इसमें एक दफा तो यह हुआ कि जहाँ आपने किसी को भी गुरु मान लिया ऐरा-गैरा नत्थू-खैरा जिसे कहते हैं कि किसी को भी गुरु मान लें। गलत आदमी को गुरु मान लिया। गलत चीजों में सिर झुका लिया। दूसरे ऐसे होते है कि जो किसी को मानते ही नहीं। भगवान को भी नहीं मानते।"मैं ही सब का गुरु हूँ।" तो बायें ओर के पाँच रुद्र हैं वो पकड़ जाते हैं। | लोग हैं? या बाइबल पढ़ने वाले कितने लोग हैं मतलब जो पढ़ते नहीं वो काम से गए। ऐसे कैसे हो सकता है? जो परमात्मा है, सबका ही निर्माण करने वाला है, सबको ही प्रेम करने वाला है, वो कभी ऐसे काम करेंगे?" इसलिए जो गुरु-तत्व में खराबी आ जाती है उससे आप सब बचकर रहिए। और यह गुरु तत्व इस प्रकार के दो प्रकृति के आदमी होते हैं। अब जो किसी को नहीं मानते, जो बड़े भारी वेदाभ्यास करने वाले हैं, इनके बारे में मैंने आपको वर्णन कर ही दिया कि किस तरह के होते हैं। और उनके जो प्रभूति होती है इस कदर धनीभूत तरीके से, क्रोधी होती है कि इस आदमी के पास भगवान हो ही सकता है, ऐसा कोई भी विश्वास नहीं करता। भगवान इनके पास से हर तरह से आपके अन्दर एक हृद, एक तरह की सीमा बाँध देता है। "कि हम यह करके दिखायेंगे।" गुज़र 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-24.txt अंक : 3 & 4 -2007 चैतन्य लहरी 23 पी रहे हैं? इतनी घृणा हो गई हमने तो कुछ नहीं किया हम तो वहीं लन्दन में बैठे हुये थे। सकते हैं, ऐसा भी कोई नहीं विश्वास कर सकता। परमात्मा जो है, वो प्रेम का, आनन्द का, लेकिन आप ही स्वयं धर्म हो जाने की वजह सौख्य का और अनुकम्पा का सागर है, क्षमा का सागर है। जिस आदमी में इस कदर क्रोध, इस कदर से क्योंकि यह आपके अन्दर दस गुरु जागृत हो जाते है साक्षात् धर्म है। इसकी वजह से अपने आप ही गन्दी आदतें छूट गई। फिर उसके बाद, छूटने के बाद में आप की दृष्टि वहाँ जाने लगी कि जिससे आपको लक्ष्मी का है। जै से एक महाशय-आपको विश्वास इस बात का भी होना जुरा कठिन है लेकिन आपसे बतायें- एक हमारे पहचान के थे उन्होंने हमें बताया कि "माँ जब से मैं सहजयोग सब के साथ ये तृष्णा है, वो आदमी कभी भी परमात्मा का आदमी हो नहीं सकता। गर्दी आदतें अब, भवसागर के बीच में जो विष्णु का तत्व है इसके बारे में मैं जरूर आपको बताना चाहूँगी। क्योंकि अपने देश में हर एक जगह जाइये तो लोग मुझसे ऐसे कहते हैं कि माँ हमारी गरीबी का क्या होगा? जैसे कि इन लोगों ने कुछ गरीबी का ठीक ही किया होगा जो मुझसे कहते हैं कि गरीबी का क्या करने लग गया हूँ बड़ा चमत्कार हुआ।" मैने कहा क्या हुआ? कहने लगे कि "जिस जमीन पर मैं ऐसे टहलता था, उसकी मिट्टी इतनी बढ़िया हो गयी कि एक होंगा। वही बात हुई "कृष्ण ने कहा कि 'योग क्षेम वाहम्यहम्'- पहले योग को प्राप्त हो, उसके बाद आपका मैं क्षेम करूंगा जिस जिस गाँव में सहजयोग हुआ जहाँ-जहाँ हम गये, जिन्होने योग पाया, उनके सब प्रश्न Solve (हल) हो गये। किस प्रकार? सबसे पहले तो सारी गन्दी आदत छूट जाती हैं. धर्म जागृत हो आदमी आकर मुझसे कहने लगा कि भई किसी फकीर , ने आकर हमसे बताया कि यहाँ की मिट्टी थोड़ी-सी लेकर के अगर तुम ईटे बनाओ तो पत्थर जैसी हो जायेंगी। तो वो हमारे यहाँ आया ओर हमसे तो बिल्कुल तोल कर मिट्टी ले जाता है।" लेकिन पहले जागृति होनी चाहिये, लक्ष्मी तत्व की। लक्ष्मी तत्व की जागृति किये बगैर, अगर आप चाहें आपके अन्दर लक्ष्मी आएगी तो नहीं। पैसा आ जायेगा। पैसा आ जाएगा. पर जाता है। मनुष्य के अन्दर की जितनी भी आदते हैं. जिससे मनुष्य जकड़ा हुआ है वो सारी ही एक साथ जाती हैं। आप जानते हैं कि बता रहे थे कि टूट 200 आदमी हमारे साथ परदेश से घूम लोगों में से न जाने कितने Drug (मादक द्रव्य) लेते थे, कितने alcoholics (शराबी) थे, कितने कैसे कैसे थे। हम तो कुछ देखते नहीं। जो आया उसे पहले पार करो। पार होने के बाद धर्म जागृत हो गया एक महाशय थे वो बहुत शराब पीते थे। फिर सहजयोग में आते ही दूसरे दिन से उनकी शराब छूट गई। एकदम रहे थे, इन लक्ष्मी जी नही आयेंगी । और लक्ष्मी जी कैसी होती है? एक हाथ से उनके दान है। एक हाथ से उनका आश्रय है, और हाथ में दो कमल के सुन्दर पुष्प है, जो कि उनके प्रेम के प्रतीक है, और इतना ही नहीं एक-भँवरा जिसके अन्दर इतने काँटे हैं, उसे तक वो अपने अन्दर समा लेती हैं। शराब छूट गई। तो एक बार जर्मनी गये थे, उन्होंने कहा कि देखें कैसा क्या है। उनको एक शराब बहुत पसन्द थी। पीने के साथ कहने लगे ऐसी उल्टियां हुई, और उसमें से ऐसी गन्दी बदबू आने लग गई कि ऐसे लक्ष्मी पति आप हो सकते हैं जो समाधान में, इतने सन्तुलन में खड़ी है। वो कमल पर ही खड़ी रहती है इतनी सादगी से, इतनी dignity (मर्यादा) से वो रहती है। मैं तो बहुत आजकल देखती हूैँ कि जो पैसे वाले हैं उनके अन्दर कोई dignity ही नहीं । उनके अन्दर दिखाई नहीं देता है हमने कहा कि यह क्या Molasses पी रहे हैं कि क्या कि इनके अदर "कार्क' पी रहे हैं, और समझ ही नहीं आ रहा कि क्या ता 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-25.txt अंक : 3 & 4 -2007 चैतन्य लहरी 24 के लिये भी अब यह हो गया है कि पति से बढ़कर के पैसा उनकी बच्चों से बढ़कर के पैसा हो गया। हर चीज में पैसा जहाँ पैसा मुख्य हो जाता है और प्रेम कोई प्रतिष्ठा हो। बिल्कुल अप्रतिष्ठित तरीके से इस तरह से करते हैं कि समझ में नहीं आता कि इतनी चापलूसी करने की इनको क्या जरूरत है जब इनके नगण्य हो जाता है, वहाँ लक्ष्मी का स्वरूप खत्म हो पास लक्ष्मी का प्रसाद है? पर लक्ष्मी का प्रसाद नही, सिर्फ पैसा है। गधे के ऊपर आप अगर नोट लगा दीजिए तो क्या वो लक्ष्मीपति हो जाएगा? तो ऐसे पैसे वाले से वो लक्ष्मीपति, जो अपने 'शान में अपने गौरव' में खड़े रहते हैं। जो किसी के सामने हाथ नहीं फैलाते। जब है, तब बाँटते ही रहते हैं ऐसे हमने अपनी आँखों से लोग देखे हुये हैं। ऐसे हमने जाने है लोग जो होते है। स्वयं हमारे पिता इस तरह के थे उनकी इतनी दानी प्रवृत्ति थी कि वो सवेरे हर इतवार को चीजें बाँटा करते थे। किसी दिन कम्बल बाँट जाता है। वहां सब लक्ष्मी का स्वरूप खत्म हो जाता है। और उस जगह सिर्फ पैसे का एकदम 'रूखा जीवन आ जाता है जो आज आपको परदेश में दिखाई देता है। यहाँ से भी हिन्दुस्तानी परदेश में जाते हैं उनको पता नहीं क्या हो जाता है, सारी परम्परा टूट करके वो बेतहाशा पैसे के तरफ दौड़ते है। मैं तो उन लोगों को देखकर के हैरान होती हैं कि यह क्या मेरे देश के लोग हैं? इस तरह से जब हम अपने को गलत रास्ते दिया, किसी दिन कुछ। और उनकी आँख हमेशा नीचे रहती थी, और देते रहते थे देते रहते थे लोग दो-दो ले. जायें, तीन-तीन ले जायें तो कोई क्या उनसे कहे कि "क्या कर रहे हैं आप? और दो-दो तीन-तीन कम्बल आदमी लिये जा रहे है. आँख क्यों नीची की हैं?" कहते "भई मैं दे नहीं रहा हूँ, दे कोई और रहा है। इसलिये मुझे शर्म लगती है। सब लाग कहते हैं आप दे रहे हैं।" ऐसे तो बड़े स्वतन्त्र वीर थे, लेकिन वो इस मामले में उन्हें शर्म लगती थी कि लोग मुझसे कह रहे हैं, मुझे बड़ी लज्जा आती है, लोग मुझे कह रहे हैं कि दे रहे हो तुम और देते वक्त में कहने लगे "देने वाला जो वो जाने, मुझे क्या करने का है। मैं तो बीच में खड़ा हुआ हूँ। ऐसे लोग थे पहले इस भारत में अब तो पता नहीं कुछ दिखाई नहीं दे रहा इस तरह का तरीका । पैसे वाले का मतलब तो यही हो पर डाल देते है, तब उस पर बहुत जोर का मार आती है। ऐसे पैसे वालों को बहुत बुरे दिन भी देखने पड़ते हैं। उनके बच्चे, जो वाहियात निकल जाते हैं इधर-उधर दौड़ जाते हैं और गलत काम करते हैं । ऐसे पैसे वालों के लिए कोई भी आशीर्वाद नहीं होता। आप जाकर देखिये, रातरात भर सोते नहीं। उनको परेशानियाँ हैं। तो जो पैसा लक्ष्मी स्वरूप है, उस पैसे को आप प्राप्त करो। उस सम्पत्ति को, उस धन को आप प्राप्त करते हैं, जो लक्ष्मी की देन है जब आपके अन्दर कुण्डलिनी जागृत होती है और इसलिए इस देश का जो दारिद्र है, उसी दिन दूर होगा जब यहां पर लोग योग को प्राप्त हों। उससे पहले कभी नहीं हो सकता; आप कोशिश कर लीजिये। मैं गई थी. राहुरी में, मैंने देखा कि खूब और किसी की झोपड़ियोँ बनी हुई थीं कहने लगे. यह झोंपड़़ियाँ गया कि बहुत घमण्डी. बहुत क्रूर परवाह नहीं। अपने माँ-बाप की परवाह नहीं, अपने भाई बहनों की परवाह नहीं, अपने को बहुत सब कुछ समझना । यह पैसे वाले के लक्षण हैं। दुनिया में किसी की भी परवाह नहीं करना। यह जो हमारे यहां अब पैसे का भूत सवार हो गया है, इस भूत से हमारी जो समाज-व्यवस्था है पूरी तरह से टूट जायेगी औरतों बनाई। मैने कहा "अच्छा।" कोई नगर बनाया गया है। मैने कहा, यह नगर कैसा? पता नहीं। वहाँ से जा रहे थे तो सामने रास्ते पर लोग खूब शराब पी-पी करके आकर धड़ाधड़ गिर रहे थे। एक तो हमारे मोटर के सामने गिर गया और एक नहीं, दो नहीं काफी सारे लोग वहाँ से निकले जा रहे थे मैंने कहा, 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-26.txt चैतन्य लहरी अंक 3& 4 2007 25 यह कौन सा नगर बनाया? यह कहे? यह झोंपड़़ियों का नगर बनाया, इसमें सिर्फ शराब ही चलती है? कहने लगे, हाँ "यह तो ऐसे ही नगर हैं।" उनको झोंपड़ी दी तो उसमें शराब शुरु कर दी, और 100 रुपये दे दिये तो उस ने शराब शुरु कर दी। यह कोई गरीबी हटाने का लक्षण नहीं दिखा। इस तरह से और इस तरह की चीज़ें जब तक आपके समाज से जायेंगी नहीं आपके समाज की गरीबी कभी हट नहीं सकती क्योंकि लक्ष्मी जी ऐसे स्थान में बसती नहीं । तीसरी चीज जिससे लक्ष्मी जी हमारे देश में नहीं है, उसका मुख्य कारण यह है कि "यत्र नार्या पूज्यंते तत्र रमते देवता" माने यह कि जो इन्सान स्त्री की पूजा करता है, स्त्री को मानता है. उसकी गरींबी नहीं हटेगी। यह तो शराब ऐसे पीछे पड़ गयी कि इस में से 50 फीसदी गरीब मर ही जायेंगे, तो गरीबी मिट ही जायेगी। इलाज तो ऐसा ही हो रहा है कि लोग जीने ही नहीं वाले। रास्ते पर ऐसे धड़-धड़ गिर रहे थे, उनमें कोई ताकत नहीं थी। क्षीण-हीन ऐसे हुए लोग। इनकी गरीबी आप क्या हटा सकते हैं? इज्जत करता है, वहाँ देवता का रमण होता है। लेकिन स्त्री भी पूजनीय होनी चाहिये। स्त्री भी ऐसी हो कि जिसकी पूजा न की जाए, तो ऐसी स्त्री से फायदा क्या? तो स्त्री ऐसी होनी चाहिये जो पूजी जाए। जो पूजनीय हो, जो पवित्र हो। जो उच्च विचार लेकर के संसार में आये। प्रेम से अपने घर और रिश्तेदार और सबको सम्भाल के रखे । ऐसी जो स्त्री हो. जो पूजी जाये, ऐसी स्त्री के पति जो हों उसकी इज्जत करें, घर वाले उनकी इज्जत करें। स्त्री की, बच्चों की, लड़कियों की, माँ की, जहाँ इज्जत होती है वहाँ देवता रमण करते हैं। नहीं तो भूतों का नाच शुरु हो जाता है। अब आप सुन रहे हैं कि अपने देश में स्त्री की क्या स्थिति है मैं तो तब भी कहूँगी कि हिन्दुस्तान की नारी एक विशेष स्वरूप की औरत है जिसने बहुत कुछ सहन किया। पुरुषों की ज्यादती जितनी हिन्दुस्तानी नारी सहन करती है और कोई नहीं सहन करता। और अपना समाज ही पूरा ऐसा बन गया है कि आज़ बिल्कुल हम लोग इस मामले में निर्लज्जता से बात करते हैं। कोई कहता है कि "साहब इतने लाखों रुपये dowry (दहेज) में दीजिए और नहीं तो आपको हमारे दरवाजे में प्रवेश नहीं । " बिल्कुल उन इनको तो पैसा वो सब देने से इन्होंने शराब पी-पी करके और धन्धे कर कर के और अपना . सर्व-सत्यानाश कर लेना है। अब गरीबी हटाने पर एक और प्रश्न है कि जब हम इस तरह की तांत्रिक विद्या और ऐसी मैली विद्या करते हैं तो लक्ष्मी जी दूसरे पैर से चली जाती हैं। जिस घर में तांत्रिक विद्या शुरु हो जायेगी, लक्ष्मी जी दूसरे पैर से चली जायेंगी। आज मैं विशेषकर धर्म पर बात कर रही हूँ क्योंकि यह जानना बहुत जरूरी है कि हम धर्म में कितनी गलतियाँ करते है। जो लोग अपने घर में दिवाली मनाते हैं, हर जगह दीप जलाते है रात को क्योंकि बाहर रात्रि थी। उस वक्त यह न हो कि लक्ष्मी कहीं लौट के चली जाये उनको अन्धेरा पसन्द नहीं। और जितनी मैंली विद्या., जितनी भूतविद्या. प्रेत विद्या. श्मशान विद्या और यह दुष्ट गुरुओं का जो चक्कर है चला, जो अगुरु लोग जो हैं, इन्होंने जो चक्कर चलाए हुये हैं, इन्ही सब चक्करों के वजह से अपने देश गें बिल्कुल कालिख पुत गई है, एकदम लोगों को इस मामले में शर्म भी नहीं आती, इरा तरह की ब्ात करने की और इस तरह की चीजें इतनी हमारे समाज़ में आज प्रचलित हो रही हैं जितनी जितनी ये बढ़ती जायेंगी उतनी उतनी आपके देश में गरीबी आयेगी । किसी लड़के को बेचकर के और लड़की काला अन्धकार हो गया है। और वो काला अन्धकार होने के वजह से अपना देश उठ नही पाता। जब तक इन लोगों की आप सगुद्र गें नहीं डाल दीजिएगा, जब इनको आप अपने हृदय में से निकाल नही दीजियेगा के नाम पर अगर आपने रुपया इक्कट्ठा किया, आप 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-27.txt अक : 3 & 4 - 2007 26 चैतन्य लहरी को दे देंगे। जो भी घर में है, जो हो अपने हृदय से निकालकर। हमारे साथ लोग सफर कर रहे थे देहातों में हैरान थे, कि लोग झोपड़ियों में रहते हैं मगर उन का दिल है कि राजा जैसे और यह लोग महलों में रहते हैं और ये हैं बिल्कुल भिखारी। मैं तो रोज के देख लीजिए उसमें कभी भी आपको यश नहीं आयेगा | आप करके देख लीजिये कोई आदमी लाखों रुपया इस तरह से ले ले उसको कोई न कोई घाटा आएगा, कोई न कोई बड़ी बर्बादी होगी और वो ऐसी दशा में पहुँच जाएगा कि जहाँ से निकल नहीं पायेगा। या तो कोई ऐसी बीमारी में फँस जाएगा या ऐसे कोई बेकारी में फँस जायेगा कोई न कोई ऐसी चीज़ उसे मिल अनुभव लन्दन में देखती हूँ कि जितने भी विदेशी लोग हैं बड़ी-बड़ी position (पद) में हैं. बड़ी-बड़ी इस में है आप उनको कितने भी presents (उपहार) दे दीजिये कुछ भी कर दीजिये, उनसे एक पैसा नहीं निकलेगा हमारे साहब की सेक्रेट्री हैं. वो साहब से कहती हैं कि "आपके grand children (नाती) आ रहे हैं, तो आप परेशान नहीं? उन्होंने कहा क्यों? जाएगी कि जिससे वो पछताएगा। क्योकि किसी भी सती स्त्री, किसी भी स्त्री जाति का अपमान करना शक्ति का अपमान है। अगर वो स्त्री इसी तरह की है कि जो बेकार है और पूजनीय नहीं है, उसके बारे में मैं नहीं कह रही। पर अपने भारतवर्ष में आज मैं जरूर कहूंगी कि यहाँ की स्त्री बहुत बहुत पूजनीय है अब भी औरतें हमारे यहाँ glamour (चमक-दमक) वगैरह में विश्वास नहीं करती। अब हैं कुछ पागल उनको छोड़िये। लेकिन अधिकतर औरतें सादगी से, अपने चरित्र को सम्भालते हुए रहती हैं। जिस देश में पदमिनी जैसी लोगों ने जौहर किये-कोई विश्वास नहीं करता । आपका सारा घर गन्दा हो जाएगा।" उन्होंने कहा यह किसके लिए घर है, यह क्या मेरे लिए घर है? यह तो उनके लिए घर है जो मेरे बच्चे आये हैं। उनका यह था कि कहती हैं जो हमारी grand mother थीं जब तक दो पैसे हमसे नहीं लेती थीं हमको टेलीफोन नहीं करने देती थी। "और उसी लन्दन शहर में आप आश्चर्य करेंगे, कि दो बच्चे हर हफ्ते में मारे जाते हैं । तो ऐसे देश की affluence (धन-सम्पत्ति) से भगवान अगर परदेश में जाकर मैं कहूँ कि हमारे देश में तो chastity (पवित्रता) के पीछे औरतों ने जौहर कर दिया तो कहते हैं यह हो ही नहीं सकता है। मैंने कहा तुम क्या समझोगे, उस ऊँची चीज़ को तुमने जाना नही। उन आदर्शों को तुमने जाना नहीं । बचाये रखें आप लोग उस ओर जाने की कोशिश न करें। जो कुछ है उसमें समाधान से परमात्मा को दृष्टि देकर के अपने लक्ष्मी तत्व को आप जागृत करें। इस देश का लक्ष्मी तत्व बिल्कुल जागृत हो सकता है. पर सौष्ठव और उनका गौरव समझते हुए। अगर हम उसको न समझें और व्यर्थ की चेष्टाओं से. चाहें कि आज उन आदर्शों को सब को छोड़ के और हम इन पागलों के पीछे अगर भागना शुरु कर दे तो मैं आपसे बता रही हूँ कि गरीबी जो नहीं आनी थी वो आ जायेगी। और इन लोगों में क्या कम गरीबी है? आप इनको समझते हैं रईस हैं? मैं तो समझती हूँ इनसे गरीब कोई नहीं। इनके अगर घर जाइयेगा और लक्ष्मी इक्कट्ठा कर लें, तो कभी भी हमारे अन्दर लक्ष्मी तत्व जागृत नहीं हो सकता। यह ही अपने देश का कर्मोपाय है, कि अपने धर्म में जागृत हों यह हमारे देश के लिए एक ही तरीका है। एक कप चाय दिया तो उनका दिल बैठ जायेगा। अगर एक कप चाय उनके घर से खर्च हो गया तो उनका दिल बैठ जायेगा। और हम लोग दिलदार हैं । गरीब भी हैं तो भी हमारे घर में कोई आता है, तो उसे चाय पानी कुछ न कुछ, कुछ नहीं है तो गुड़ ही, खाने इतना ही नहीं. लेकिन जब ऐसा होगा- और होगा ही, क्यों नहीं होगा?- उस वक्त सारी दुनिया के देश आपके चरणों में लौटेंगे और जानेंगे कि असली 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-28.txt अंक : 3& 4 चैतन्य लहरी 2007 27 लोगों की मदद हो सकती है, वो करना चाहिए और अच्छे मार्ग में, सन्मार्ग में रहना चाहिए। अच्छे काम करने चाहिए। सबसे बड़ी चीज़ है परमात्मा का आशीष । जब तक उसका आशीष नहीं मिलेगा, सब चीज़ व्यर्थ है। उसमें कोई शोभा ही नहीं हैं । ऐसे घर में जाओ तो आपकी टाँगे टूटने लग जाती हैं। आपको लगता है श्रीवन्ती जो है, असली रियासत जो है वो इस देश में हैं। अब भी लोग देखते हैं तो आँखे खुल जाती है कि कहते हैं कि "इतने गरीब लोग साफ लोटा माँजकर के उसमें लेकर के आ गये हमें देने के लिये।" यह लोग विश्वास नहीं कर सकते कि इतने बड़े हृदय के लोग इनके देहातों में कैसे रहते हैं। दूध "कब भागें इस घर से।" उनका खाना खाओ तो आपको उल्टी हो जायेगी। कोई न कोई तकलीफ हो जायेगी। ऐसे लोग जो बिल्कुल ही पैसे से जुटे हुए हैं मशीन बन जाते हैं। उनके अन्दर कोई हृदय नहीं है। वे लोग सोचते हैं हमारे घर में कुछ भी नहीं है, हम भूखे रह जायेंगे, ऐसे लोगों के घर का खाना न लीजिये । सौ उस चीजू को खोना नहीं है। और ये समय ऐसा आया है कि हम खो रहे हैं। हमारे बच्चे बिगड़ रहे हैं, और उस ओर हम जा रहे है। इस वक्त बहुत जरूरी है कि सहजयोग की स्थापना कर्के और अंपने बच्चों को रोक लीजिये उनके अन्दर लक्ष्मी तत्व जागृत करके उनके अन्दर यह गौरव भर दीजिये। मनुष्य को यह जान लेना चाहिए कि हमारे आज मैंने आपसे विशेष करके लक्ष्मी तत्व अन्दर परमात्मा ने स्वयं साक्षात लक्ष्मी का स्थान पर बात की है, क्योंकि ये बहुत जरूरी चीज़ है। आप लोग जाने कि हमारा देश गरीब क्यों है? और इसकी गरीबी, आप गरीबों को रुपये देने से नहीं होगा आप देकर देखिये। आप किसी भी गरीब आदमी को सौ रुपया दीजिये। न वो शराब के अड़डे पे गया तो कहाँ जाएगा। कोई भलाई नहीं। इसलिए आप जान लीजिये कि पैसे को झेलने के लिए भी लक्ष्मी तत्व जरूरी है। ऐसे ही रईस लोगों को भी सोचना चाहिए कि पैसा जो है वो परमात्मा ने हमारे लिए दान के लिए दिया है। हम बीच में एक माध्यम बने खड़े हुए हैं. और रखा है। वो हमारे अन्दर बसी हुई है। सिर्फ उनको जागृतमात्र करना है। और उस जागृति के लिए आपको बुद्धि के कोई घोड़े दौड़ाने की जरूरत नहीं, कोई विशेष सोचने की जरूरत नहीं सिर्फ कुण्डलिनी का जागरण होते ही यह कार्य हो सकता है। तो इसे क्यों न करें? और इसे करना नितान्त आवश्यक है। और यह होने का समय आ गया है। एक विशेष चीज है कि यह विशेष समय आ गया है और इस विशेष समय पर आप इस वक्त उपस्थित हैं। इसका आप पूरी तरह से उपयोग करें और अपने लक्ष्मी तत्व को पहले जागृत कुछ जो उसको दान के लिए दिया हुआ है। इसका कर लें। शुभ कर्म हो सकता है वो करना है और इससे जो भी (निर्मला योग-1983) 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-29.txt नव् वर्ष दिल्ली आश्रम - 3.1.1984 पटम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन लेकिन माँ की व्यवस्था और है कि पहले हर साल नया साल आता है और पुराना साल खत्म हो जाता है। सहजयोगियों के लिए 'हर चैतन्य को पा लो, जान लो कि परमात्मा है, उस पर विश्वास करो जो अन्धविश्वास नहीं है, सत्य के रूप में। और अब 'थोड़ी सी मेहनत से भी बहुत बड़ा काम हो सकता है। जैसे कि किसी को पहले सिखाया जाये कि देखो पानी से डरना नहीं। लैक्चर दिया जाए। पहले तुम अपने को जमीन पर ही तैरा के देखो। वहीं पर हाथ मारो दो-चार। और काफी दिन से मेहनत की जाए और फिर धीरे-धीरे पानी में लाया जाए। जैसे पानी देखा फिर भाग गए। क्षण एक नया साल है, क्योंकि वो वर्तमान में रहते हैं। न तो वो भविष्य में रहते हैं, और न ही वो बीते हुए भूत काल में रहते हैं। हर क्षण उनके लिए एक नया साल है, एक नई उमंग है. एक नई लहर है। जैसे कि समुद्र पर तैरते हुए हर क्षण कोई समुद्र के प्यार से उछाला जाय, उसी प्रकार हरेक सहजयोगी को आनन्द प्रेम, शान्ति का आहलाद मिलते रहता है। बस बात ये है कि क्या हम तैरना और एक होता है पानी में ढकेल दो, फिर सिखाते रहेंगे। इसी तरह आप लोग आनन्द के सागर में धकेल दिए गये अब इसका मज़ा उठाना है तो सीख गये है या नहीं। सहजयोग में जिसने तैरना सीख लिया वो आनन्द में ही तैरता है. आनन्द के सागर में तैरता है। सहज योग में अगर कोई दोष है या त्रुटि है, तो इतना ही है कि पार होने के बाद बनना पड़ता है। बग़ैर बने सहजयोग हाथ नहीं लगता। माँ ने आपको पानी में उतार दिया लेकिन तैराक अन करके थोड़ा सा कष्ट उठाना पड़ेगा। और वो कष्ट ऐसा है आपको बनना होगा बने बगैर नहीं होता। सहजयोगी उसे कहना चाहिए जिसमें पूरा समाधान हो, जिसने पा लिया, जिसकी शुद्ध इच्छा पूरी हो गयी क्योंकि कुण्डलिनी शुद्ध इच्छाशक्ति है। जिसकी शुद्ध इच्छाशक्ति पूरी हो गयी, जिसकी शुद्ध इच्छा शक्ति ने पूरी तरह से अपना चमत्कार दिखा दिया, फिर कोई इच्छा ही नहीं रह गयी जो आदमी पूरी तरह से समाधानी ही हो गया, वो असल में सहज योगी है। कोई सा भी असमाधान बचा हुआ है, भी आपको सीखना होगा कि आप दूसरों को कैसे तैरा सकते हैं, दूसरों को कैसे बचा सकते हैं दूसरों को तैरना कैसे सिखा सकते हैं। आपको पूरी तरह से बनना पड़ता है। और यही अगर एक त्रुटि है, तो सहजयोग में है, लेकिन वो अनेक त्रुटियों को भरता है। जैसे पहले गुरु लोग आपकी शान्ति और इसका मतलब कुण्डलिनी का जागरण ठीक से नहीं हुआ। अभी तक आप पूरी तरह से सहजयोगी बने नहीं । आनन्द की व्यवस्था नहीं करते थे पहले तो वो आपसे मेहनत कराते थे "मेहनत करो" सफाई कराते थे, मन की शान्ति उससे पहले मन की शुद्धता करो। शारीरिक सुख से पहले शरीर को काफी तकलीफ दो। बहुत तपस्या के बाद लोग परमात्मा को पा सकते थे, और इस चैतन्य को, जो आपने सहज में पाया, उसे जान सकते थे। बड़े आश्चर्य की बात है, कि बगैर सहजयोगी बने हुए भी आशीर्वाद आते ही रहते हैं, चमत्कार होते ही रहते हैं, लाभ होते ही रहते हैं, आप जानते रहते हैं कि "हम चल रहे हैं, ठीक हो रहा है. मामला बन रहा है 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-30.txt अक : 3 & 4 -2007 29 चैतन्य लहरी सहजयोग में ये तो अनायास ही हो जाना चाहिए। और हम अग्रेसर हो रहे हैं।" अनायास' ही सब घटित होता है अगर ये नहीं तो सहजयोग क्या बना? जब आप वृक्ष हो गये लेकिन सहजयोगी का सबसे बड़ा आशीर्वाद ये है कि उसमें देने की क्षमता आ जाती है, वो दैता है। हुआ तो वृक्ष की छाया आफत नहीं आ सकती न! वृक्ष सारी आफत उठा लेता है। आपकी छाया में जितने लोग हैं उनसे आपके सम्बन्ध बहुत ही प्रेममय और निकटतम होने चाहिए। में जो बैठे है उस पर तो कोई सी भी और देता ही नहीं है। उस देने का जो आनन्द है, जो कि बहुत ही अनूठा आनन्द है उसे वो भोगता है वो आनन्द आप किसी सांसारिक चीजों से कभी पा ही नहीं सकते। और सारे जितने blessings (वरदान) वगैरह हैं इसे किसी से आप पा नहीं सकते। सबसे बड़ी blessing है कि आपकी अपनी गुरु शाक्ति बढ़ जाए और आप में ये क्षमता आ जाए कि आप दूसरों को दे सकें। ये जिस दिन क्षमता आप में आ गई, बस अब मैं जो कह रही हूँ सब आपको अलग-अलग आप ही को, कह रही हूँ। किसी और के लिये नहीं कह रही, ये बात समझ के सुनिएगा। बहुत से लोग है जैसे मैं कहती हैं तो दूसरे का सोचते हैं कि माताजी उनके बारे में तो नहीं कह रहीं। तो अपनी ओर ये चित्त देना चाहिए कि माँ हम सब को फिर समझे लीजिए, कि माँ का काम तो पूरा हो गया और आपका काम शुरु हो गया। ऐसी जब तक दशा अलग-अलग प्यार करती है। हरेक के बारे में जानती नहीं आती तब तक मेहनत करनी होगी और बनना है अलग-अलग। इसी प्रकार हमको भी हरेक बारे में अलग-अलग जानना है। जब हम अपने घर वालों को होगा। यही एक सहजयोग की त्रुटि है जिसे एक माँ के हूँ । रूप में मैं कहती हूँ कि मैं पूरी कोशिश करती है कि ही प्यार नहीं कर पाएँगे तो हम बाहर वालों को नहीं अपनी तरफ से कोई ऐसी कमी न रह जाए बहुत कुछ करती हैँ, कि अपनी तरफ से कुछ न रह जाए, कि मेरी किसी बात की वजह से मेरे बच्चों में कमी रह कर सकते। घर वालों की जरूरते-मानते हैं बहुत से लोग पार भी नहीं होते। हो सकता है उनमें त्रुटियों होंगी। लेकिन उनकी जो जरूरत हैं, उसे करिये। पार की जाए। लेकिन आपकी भी तपस्या जरूरी है उसके बात तभी मानेगे जब आप में कोई अन्तर देखेंगे। अगर आप डंडा लेकर कहें "तुम पार क्यों नहीं होते हो, तुम सहजयोग में क्यों नहीं आते, तो कोई सहजयोग में नहीं आएगा। उल्टे यह तरीका सहजयोग का नहीं है। सहजयोग का तरीका है कि पहले अपने आदर्श से. अपने स्वयं के व्यक्तित्व से दूसरों को प्रभावित करना । बगैर काम नहीं होगा। पर जो तपस्या का स्वरूप उगर है या संतप्त है. ऐसा नहीं हैं। 'शान्त' तपस्या है। इसमें कोई कठिन तपस्या नहीं है। कोई मेहनत की तपस्या नहीं है। तो पहली तो चीज सहजयोगियों को प्रेम करना सीखना चाहिए। सबसे बड़ी चीज़ है। जैसे मैं किसी के लिये शिकायत सुनती हूँ, कि ये सहजयोगी. आप तो कहते हैं कि सहजयोग बड़ी अच्छी चीज है, अपनी माँ को ही ll-treat (दुव्व्यवहार) करते हैं उनकी बीबी की बात चलती है। वो अपनी बहन को पीटते है, अपनी बीवी को मारते हैं। कोई है, अपने पति का जब दूसरा प्रभावित हो जाएगा, तो धीरे-धीरे उसे सहज में लाओ। कोई ठेल-ठाल के आप ले भी आए, समझ लीजिए, ढकैलते हुए वहां से, ले आए किसी को आप, बिठा दिया। तो क्या वो पार हो जाएगा?- यह आप ही बताइये। पूर्ण स्वतन्त्रता में उसे आना होता है। आज नहीं, कल ठीक हो जाएगा| तो ये ख्याल रखना चाहिए कि जब हम बन रहे है तो हमारे साथ ध्यान नहीं रखते। बच्चों की तरफ ध्यान नहीं है। 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-31.txt चैतन्य लहरी अंक : 3 & 4 2007 अनेक' बन रहे हैं। और वो जो अनेक है उनकी दृष्टि हमारे ऊपर है। हम कैसे बन रहे हैं, ये बहुत जरूरी चीज है। और इसमें ये बात है समझ लीजिए, आपके कोई गुरु अपनी ही मेहनत से जो कुछ करना है, करते हैं। आपसे नहीं कहेंगे कि आप भी कुछ बनिए। कहेंगे ये तो बेकार हैं ही, चलो बस हमको गुरु मान लिया इसी में धन्य समझो; अगले जन्म में देखा जाएगा लेकिन माँ ने जरा बड़ा काम निकाला है। वो चाहती है कि हरेक को गुरु बनाना है। जरा कठिन काम है। और नहीं भी है। आप जानते हैं कि आप लोगं सब बन रहे हैं धीरे-धीरे। सब घड़ते जा रहे हैं, बनते जा रहे हैं। इसलिए जिस वक्त आप बन रहे हैं, आप दूसरों का ख्याल बहुत करें। आपके अड़ोसी-पड़ोसी सब लोग, कि "माँ देखो मुझे ये तकलीफ थी और ये मेरी तकलीफ ठीक नहीं हुई" तो मैं भी कह सकती हूँ मुझे time नहीं चाहे मैं आपसे मिलूँ या न मिलँ आपके लिए मेरे पास हमेशा time रहता है। मेरा काम चौबीस घन्टे था। हों, realised soul भी हों, तो वो बिचारे चलते रहता है। आपको सिर्फ अपना ही काम करने का है। इसके लिए आपको time और discipline जरूर जोड़ना पड़ेगा। इस शरीर को discipline किए बगैर ये वैसी ही मोटर-कार हो जाएगी, जो सबको रौंदती चलेगी और न जाने किस गढ़ढे में जाकर गिर जाए। इसको discipline करने के लिए बहुत आसान तरीका है। पहले अपने ओर देखें कि इसके अन्दर दो शक्तियाँ जो चल रही हैं, एक तो इच्छा शक्ति और दूसरी कार्य शक्ति इच्छा शक्ति जो है उसमें से होना चाहिए एक ही इच्छा होनी चाहिए, सबको आप लोग क्या माफ कर कर देते हैं? क्या आपने सबको क्षमा कर दिया? क्षमा करना बहुत सीखना है। बहुत बारं कहा है कि ये क्षमा जो है, ये शुद्ध इच्छा । शुद्ध इच्छा क्या है? के आत्माकार हम हो जाएं। आत्मा से एकाकार हो जाए। ये शुद्ध इच्छा बड़ा साधन और सबसे बड़ा आयुध हमारे पास में है। है बाकी सब इच्छाएँ आप छोड़ दीजिए, अभी इस और इस जब बड़े आयुध को हम इस्तेमाल नहीं करेंगे, इसका उपयोग नहीं करेंगे, तो हमारे पास और कोई से माँगना, इस कलियुग में और साधन नहीं जुट का साधन करके, 'क्षमा की दृष्टि से लोगों की ओर देखना चाहिए। क्षमा नहीं आएगी उसे शान्ति नहीं मिल सकती। वक्त सिर्फ, ये अपने मन में विचार करें कि "एक शुद्ध पहले तो आप सब को क्षमा करें और फिर अपने को भी क्षमा करें। दोनों चीजें जब आप कर पायेंगे तभी आप देखियेगा कि आपके अन्दर स्वयं शान्ति आ वक्त । एक क्षण के लिए तो छोड़िए। और कुछ नहीं माँ बस, आत्मा से एकाकार हो जाएं। एक पायेंगे। क्षमा' ही शुद्ध इच्छा को माँरगे। बाकी सब छोड़ दीजिए कि ये होना है, ये चाहिए, वो चाहिए, घर चाहिए, मकान चाहिए, ये सब चीजू छोड़ दीजिए इस वक्त। इस क्षमा, से ही शान्ति आती है जिसमें इच्छा है, कि परमात्मा से एकाकार होना है, और हमें आत्मा से एकाकार होना है और हमें कोई इच्छा नहीं है।" देखिये कुण्डलिनी इसी वक्त सब आपकी चढ़ गई। जाएगी। आज्ञा चक्र खुल जाएगा तो शान्ति के द्वार खुल जाएंगे। और दूसरी, क्रिया शक्ति में ये होना चाहिए कि जो कुछ भी हो वो सहज हमसे हो। सहज का मतलब लोग सोचते हैं कि हम बैठे रहें और हमारे गोद में चीज आ जाए। ये बड़ी गलत भावना है। ये बड़ी गलत भावना हमारे अन्दर सहज के बारे में आयी कि हम बैठे रहें और हमें सब चीज मिल जाए। आपने अब दूसरी बात जो मेरे सामने हमेशा रहती है और मैं आपसे कहती भी हूँ, कि इस बनने में आप की मेहनत जो है उसमें एक तरह का discipline ( अनुशासन) आना पड़ेगा। बहुत से लोग-"माँ मुझे time (समय) नहीं मिलता।" और फिर आप कहिएगा 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-32.txt अक : 3& 4 2007 चैतन्य लहरी 31 नहीं है। समझदारी से कहता है। बड़प्पन की निशानी है, maturity की निशानी है। सहजयोग में जो आदमी mature (परिपक्व) नहीं हो सकता वो सहजयोाग के लायक नहीं है. सहजयोग के लायक नहीं है। आपको mature होना पड़ता है और समझदार भी| देखा है कि एक बीज है, उसको जब हम माँ के इस पृथ्वी में छोड़ते हैं. उसके उदर में, तो दिखने को तो वो सहज ही से sprout (अंकुरित) होता है। लेकिन क्या वो सहज है? आपने उसकी मेहनत देखी, बिचारे एक छोटे से एक उसके अंकुर की, जो कि उस धरती को फोडकर निकल आता है। आपने उस छोटे से मूल की मेहनत देखी जिसका एक छोटा सा cell (कोष) किनारे में होता है, आख़िरी होता है. जो कितनी मेहनत से अपने को अन्दर गढ़ता है। अब उसकी शुद्ध इच्छा क्या है, कि इस पेड़ को मैं गढ़ देँ जैसा भी हो। उसकी और कोई इच्छा आपने देखी? उसमें सिर्फ एक ही विचार होता है किसी तरह से मैं जमीन के अन्दर ऐसी जगह पहुँच जाऊँ जहाँ से पानी खींचकर के मैं इस पेड़ को दे सकूँ। और वो कुछ नहीं सोचता । और कितनी' मेहनत, पत्थरों से लड़ता है, मिट्टी से लड़ता है, तो कोई उसे रौदता है कभी कुछ करता है। सब चीज से गुजरता हुआ धीरे-धीरे, बड़े wisdom (युद्धि) दिखने में चीज जितनी कठिन है उतनी नहीं है। हमने छोटे छोटे बच्चों को भी देखा है सहज योग में, बड़े समझदार, और हर चीज को बड़ी समझदारी से समझते हैं। उसी तरह से आप में ये समझदारी का तिलक लग गया है कि आप सहजयोगी हैं। और समझदार भी और इसमें आपके माँ की शान की बात है। जो नासमझ है उनके लिए लोग ये ही कहेंगे कि इनकी मां ने कोई इनको शिक्षा नहीं दी, बिल्कुल बेकार। कहने को तो आदिशक्ति है. और बच्चे कुछ देखो तो बिल्कुल बेकार हैं। इस समझदारी को लेते हुए आदमी को अपनी ओर देखना चाहिए "कि हमारे ऊपर इसका उत्तरदायित्व है। जिम्मेदारी है. कि हम के साथ अपना चलते जाता है। कोई पेड़ आया या कुछ आया बीच में तो उसके गोल घूम जायेगा, उसकी जड़ें आयेंगी तो उसके गोल घूम जाएगा और कहीं संसार के सामने एक समझदार इन्सान बने। आज नए साल के इस शुभ अवसर पर मैं आपसे एक बात कहना चाहती हूँ कि अब सहजयोग में हम लोगों को बहुत mature होना है। नये लोग आएं. बड़ी खुशी की बात है। उनके आगे जो पुराने सहजयोगी हैं, उनकी समझदारी आनी चाहिये । आए हैं, अभी पार नहीं हुए, कुछ हैं। किसी में थोड़े vibrations (चैतन्य-लहरियां) आ रहे हैं, किसी में नहीं आ रहे हैं। कुछ कमी है किसी में कुछ problem (बाधा) है। कोई एकदम से ही ज़्यादा पार हो गया है तो वो अपने को समझ बैठा कि मैं बहुत बड़ा आदमी हूँ। सब तरह की गलतियाँ होती है। आपने भी ये गलतियाँ करी हैं उसको भूलना नहीं, इसलिए उनके प्रति एक तरह का अगर कोई पत्थर-वत्थर होगा तो उसके भी गोल घूमकर और अपना मार्ग बना लेगा। उसी तरह, एक सहजयोगी को बहुत सूझ-बूझ के साथ चलना चाहिए और समझदारी अपने ऊपर जिम्मेदारी के तौर पर लेनी चाहिए, कि "हम समझदार हो गये हैं।" हमारे अन्दर समझदारी जो है ये हमारा एक प्रतीक है, हमारा एक ध्येय है। समझदारी जो है उसको हम अपने ऊपर जैसे कोई आदमी शान से तिलक लगाता है ऐसे समझदारी का हमने तिलक लगाया और हम समझदार है। समझदारी बड़प्पन-बडप्पन का मतलब नहीं कि नखरे करना या अपने को दिखाना कि हम कोई बड़े आदमी हैं। बड़प्पन का मतलब है कि एक तरह की paternal 'पिता जैसी feeling 'भावना' है, पितृत्व की feeling, का मतलब है जो आदमी समझदार होता है वो Tantrum (झुंझलाहट) में नहीं जाता बिगड़ता नहीं। छोटी-छोटी चीजों के लिए फिसलता नहीं है, और कहता नहीं है कि ये चीज ठीक नहीं है, वो चीज ठीक 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-33.txt अंक :3& 4 चैतन्य लहरी -2007 32 मातृत्व की feeling । इससे उनकी ओर देखना, उनके प्रति प्रेम, जो कि माँ का आप पर प्रेम है, उसी तरह का आपको प्रेम होना चाहिए। अगर हम ये सोचते कि मर सकता। योग क्षेम वहाम्यहम्'। योगः क्षेम वहाम्यहम। फिर से कहेंगे, योगः क्षेम वहाम्यहम्। योग होने के बाद क्षेम की जिम्मेदारी हमारी है इसलिए कोई, भी गड़बड़ काम करने की जरूरत नहीं, बाकी सब हम देख लेंगे। कैसे कैसे हालात से आपको और वो बचायेंगे आपको। उसके दुनिया के लोग जो हैं वो बिल्कुल बेकार हैं. तो कुछ काम होता क्या सहजयोग में? या अगर हम अपने सी तौलते बैठे रहते. तो हम तो बिल्कुल अकेले हैं दुनिया में किस से तौलें अपने को? लेकिन वो सवाल ही नहीं परमात्मा ने बचाया है लिए आप निश्चिन्त रहिए। उठता यहाँ तो ये है किकितनों को अपने आंचल में 'भर लें। अभी हमारा वजन ही कम हो रहा है। इस आचल में किस-किस को भर लें, किसे-किसे रखें-यही फिक्र लगी रहती है। इसलिये किसी भी चक्कर में आने की जरूरत नहीं है। आजकल हजारों चक्कर चल पड़े हैं। हर तरह के चक्कर है जिनमें से सहजयोगियों को निकलना है। समझदारी क्या है? अब जैसे कि हमारे यहाँ भी dowry system (दहेज प्रथा) चल रहा है। सहजयोगियों को किसी को भी dowry देना शोभा नहीं देता, न लेना। इसी प्रकार आपकी भी दृष्टि में समझदारी का प्यार होना चाहिए। उसमें ये नहीं कि आप लोगों को कहें कि कोई आप बहुत बड़े अकडूखाँ हैं । लेकिन पहली बात ये है कि ऐसी ओछी बात नही एक अत्यन्त सरल, सहज प्रेम भाव अपने अन्दर रखना चाहिए। और उस सहज-सरल प्रेम भाव में करनी। दूसरी ये कि बहुत से लोगों में होता है कि हमारी ही जाति में हम विवाह करेंगे। ये भी मूर्खता का पितृत्व की धारणा, एक समझदारी की भावना रखनी चाहिए। मैं तो आप पर बहुत विश्वास रखती हूँ। किसी भी मामले में चाहे वो पैसे की बात हो चाहे, समझदारी की| मैं यही सोचती हूँ मेरे बच्चे कभी नासमझ नही ही लक्षण है। आपकी जाति कौन सी है? आपकी तो जाति नहीं है, आप तो योगी हो गये योगियों की कोई जाति नहीं होती सन्यासियों की भी कोई जाति होती है क्या? अभी हम एक दरगाह पर गये थे तो उन्होंने सकते। कभी-कभी होते हैं। लेकिन विश्वास मेरा है कि आप लोग सब समझदार, बहुत ऊँचे किस्म के आदमी हैं। पूरा कहा कि 'साहब ये तो औलिया चिश्ती, चिश्ती जो थे उनके nephew' (भरतीजे) ये भी औलिया थे । तो मैंने कहा औलिया की क्या जात होती है" कहने लगे औलिया की तो कोई जात नही होती। हम भी औलिया हैं हमारी तो कोई जात नहीं।" अब देखिये अपने देश में भी कितने हालात खराब है। यहाँ ढूढ़े से भी कायदे का एक आदमी नहीं मिलता। अब सहजयोग में आने के बाद अगर आप अपने हालात ठीक नहीं करेंगे तो जैसे करोड़ों इस देश में पड़े हैं वैसे ही आप होंगे, विशेष क्या होंगे? आपको एक विशेष रूप में होना है। जात का मतलब होता है aptitude जाति। जात-जो जन्म से पाया हो। जन्म से वो पाना नही होता कि ब्राह्मण कुल में पैदा हुए, कि वैश्य में, कि शूद्र में ये नहीं होता। आप जो पैदा हुए, आपका aptitude (क्षमता) क्या है? अब बहुत से लोग ये कहेंगे कि " माँ देखो भई आजकल अगर बेईमानी नहीं करो तो पेट नहीं मरता। ये बात सही नहीं है आप छोड़के देखिये। परमात्मा के साम्राज्य में कोई भूखा नहीं अपने देश की दूसरी बीमारी है, जाति। जिसको नानक साहब ने बहुत तोड़ा है। बहुत तौड़ा. नानक साहब ने, कबीर ने तोड़ा। लेकिन अब इन्होंने 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-34.txt अंक : 3 & 4 -2007 चैतन्य लहरी दूसरी जाति बना ली। उसमें भी अब जाति बन गयी । सिक्खों में भी कोई कम जातियाँ है? वो भी जातिये हो क्यों बनाया? सोचना चाहिए। इसलिए कि मामा होते हुए भी उसका मर्दन करना है। गए। सिक्ख एक जात हो ही नहीं सकती। जो सिक्ख हैं वो तो जात हो ही नहीं सकती। वही तो बात है। जो कुछ जो तोड़ता है वही वो बन जाता है, पता नहीं कैसे? रिश्तेदारी जो है, जिसके पीछे में हम लोग देश बेच देते हैं- ये रिश्तेदार, मेरा भाई. ये मेरा बेटा , ये फलाना, ये सब हो जाए, ऐसी जो व्यर्थ की चीजों में हम जो इतना महत्व देते हैं। उन्होंने कहा कि "कंस अगर राक्षस है तो चाहे वो मेरा मामा हो, उसको मारेंगे।" इसलिए इस तरह की जो हमारे अन्दर, हिन्दुस्तानियों की खास चीज़ है। अंग्रेजों की बात हिन्दुओं में जो जातियां थीं वो भी सारी जितनी भी जाति थीं, वो सारी अपने कर्म के अनुसार थीं। नहीं तो आप ही बताइये कि मत्स्यगंधा, जो कि एक धीमरनी थी, उसका लड़का, जो कि उसका विवाहित रूप में बच्चा नहीं जन्मा था, इस तरह का और है, उनसे बात करते वक्त तो और बात करनी पड़ती है. आप लोग की बात और है। उन लोग के यहां तो बेटा क्या, वो तो किसी को नहीं मानते। माने तो और उससे नजदीक रिश्ता कोई नहीं होता । बेटा है बाप को मार डालेगा, बाप है बेटे को मार डालेगा। मानो सभी राक्षस हैं इस मामले में और हिन्दुस्तान के लोग ये हैं कि अगर बेटा, अगर वो murderer बच्चा व्यास हुआ जिसने गीता लिखी सोचिये कहाँ से कहाँ बात पहुँच गयी। क्यों? ऐसा क्यों ? क्यों नहीं किसी ब्राह्मण कुल का 'शुद्ध मनुष्य जिसे कहते हैं ये तो बड़ा भारी मज़ाक है! लेकिन, ऐसे आदमी ने क्यों नहीं गीता लिखी? सोचना चाहिए। कृष्ण ने व्यास से क्यों लिखवाई? क्या बात है? वो तो इसलिए कि यही धारणा तोड़ने के लिए कि मत्स्यगंधा से जो पुत्र हुआ है, उससे मैं गीता लिखवाऊ। विदुर के घर जाकर (खूनी) भी है तो भी माँ जो है कहेगी "बेटे कोई बात नहीं murder ही करके आया है न, हाथ धो लो खाना खा लो। कुछ बात नहीं है तुम तो मेरी जान हो, कुछ हर्जा नहीं। तुम ये खाना खा लो चाहे murder करके आए हो।" ये अपना देश है! ऐसी जो हमारी अंधी आंख है, उसको खोलने के लिए ही ये किया । इसी प्रकार जाति-पाति में फिर हमारा जो एक अंध-विश्वास मन्दिरों में, मस्जिदों में और इन सब चीजों में है, मैं तो कहूँ गुरुद्वारों में भी. उसकी तरफ ये सोचना चाहिए। जान बूझकर क्यों किए? क्योंकि दृष्टि उठाने के लिए भी लोगों ने बड़ी मेहनत की. बड़ी इस तरह की जो प्रथाएं अपने देश में व्यवस्थित हो मेहनत की नानक साहब ने खुद ग्रंथ साहब इसलिए बनाया कि उन्होंने कहा कि शास्त्रों में ये लोग तो interpretations (अर्थ) लगाते हैं, तो उन्होंने जो realised souls (सिद्ध आत्माएं) थे, ऐसे ही गुरुओं उन्होंने साग खाया, क्यों? इसी चीज को तोड़ने के लिये। भीलनी के झूठे बेर राम ने खाए। क्यों? क्यों कि ये इसी तरह की बेवकूफी की बातें तोड़ने के लिये| क्या बेर के बगैर जी नहीं सकते थे? और पर कोई खा भी ले क्योंकि रामचन्द्र जी ने खाए, तो फौरन जाकर मुँह धो लेंगे। ये सब काम उन्होंने क्यों किये? रही थीं-जाति-पाति सब फालतू की चीजें- उसको पूरी तरह से तोड़ने के लिए। अब सोचिए, हजारों वर्ष पहले ये काम हुआ। राक्षस के घर में प्रहलाद को पैदा किया। स्वयं कृष्ण के मामा राक्षस थे कहाँ से कहाँ देखिये उनकी छलाँग कहाँ मारी, देखिए । कृष्ण भी उतरे कहाँ, तो मामा राक्षस! अरे भई कोई और अच्छा नहीं मिला था तुमको! कंस ही को मामा बनाना था? का वो ग्रंथ साहब बनाया। अब वो ही ग्रन्थ साहब पढ़ रहे हैं अरे भई उसमें क्या लिखा है वो तो देखो। जो बात उन्होंने असल कही है उसका essence (निचोड़) तो पकड़ो, नहीं तो नानक साहब के साथ भी तो 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-35.txt चैतन्य लहरी अंक : 3 & 4 2007 34 ज्यादती हो रही है इसलिए इस तरह का लीजिए एक योगी साहब हैं वो बन्दूक बना रहे हैं अभी मेरी तो कुछ समझ में ही नहीं आता कि योगी का और बन्दूक का क्या सम्बन्ध है (भई तुम बता दो. तुम्हारा नाम योगी है)। मुझसे बहुतों ने पूछा कि योग तो confusion (भ्रात स्थिति) अपने सभी धर्मों में इतनी बुरी तरह से हो गयी है। यहां तक लोग कहते हैं कि मुहम्मद गजनी स्वयं साक्षात् कृष्ण का अवतार था क्योंकि ब्राह्मणों ने लूट मचायी थी, इसलिए कृष्ण' ने मुहम्मद गजनी का अवतार लिया थी। कहानी ऐसी का आयुध है, न देवी का बन्दूक, बहरहाल ये कोई है। और जब उन्होंने सोमनाथ को लूटा तो वहां से शंकर जी भागे और भागते-भागते भैरों नाथ जी के विचित्र लोग आजकल के जमाने में संसार में आए मन्दिर में घुस गये और उनसे कहा "भईया तुम मुझे हुए हैं। इससे भी भगवान का नाम जो है, लोग सोचते बचाओ उससे, ये तो मेरे पीछे पड़ गये।" उन्होंने कहा कि "आप तो शिवजी हैं, आप किससे डरते है आपको क्या डरने की बात है, आप तो एक नेत्र खोल दीजिए पक्की बात 'जानते' माने सिर्फ बुद्धि से नहीं, लेकिन तो ठीक हो जाए।" उन्होंने कहा "भईया, तुम जाके vibration (चैतन्य लहरियों) से कि परमात्मा है और देखो ये कौन है। वो सो रहा है।" जाकर देखा इन्होंने उनकी विश्वव्यापी शक्ति जो है संचालित है। सिर्फ -कहते हैं, भैरों नाथ जी जो गए तो उन्होंने देखा कि वहां विराट साक्षात् सो रहे है। उन्होंने कहा, "बाबा रे बाबा इनको कौन मारेगा?" तो भैरोंनाथ जी ने कहा कि "एक चीज माँ ने मुझे दी है, वो शक्ति मैं इस्तेमाल करता हूँ।" तो भ्रामरी देवी ने भृंगों की शक्ति दी थी । तो उन्होंने भृंगों की शक्ति के इस्तेमाल करने से भ्रमर गए और उन्होंने गुनगुना के उनको सोने ही नहीं दिया। तो कृष्णा को सोना जरूरी है, बीच-बीच में, नहीं तो ही का बन्दूक का क्या सम्बन्ध है? मैने कहा न कृष्ण आयुध जोड़ रहे होंगे! तो इस प्रकार के विक्षिप्त और हैं कि ये तो कहने की बात है कि भगवान है, भगवान हो नहीं सकता। अब सहजयोगी ही सिर्फ जानते हैं सहजयोगी जानते हैं। अब जान तो बहुत कुछ लिया है आप लोगों ने मैं आपसे बताती हूँ कि आप लोग जितना जानते हैं बड़े-बड़े योगी भी नहीं जानते-माने असली योगी। असली योगी की बात कह रही हूँ मैं वो भी नहीं जानते होंगे लेकिन गया है जैसे रेडियो के अन्दर से music (संगीत) आता है और रेडियो पर असर नहीं होता। आर पार। जो कुछ जानना ऐसा हो कुछ भी जाना है, बहुत कुछ जान गयें आप लोग। और vibrations में भी जाना है। लेकिन वो कुछ बहुत उपद्रव हो जाय संसार भर में। क्योंकि उनकी हनन शक्ति बहुत जबरदस्त हैं। और वो परेशान होकर के चले गयें, ऐसा लोग कहते हैं, इसमें सही तथ्य हैं या नहीं इस मामले में मैं नहीं कहूँगी। लेकिन इतना जरूर कहूँगी कि जब इन्सान को किसी भी चीज़ के बारे में इस तरह से लोग तंग कर देते है तो वो उस vibrations अपने 'अन्दर' नहीं चल रहे। बाहर चल रहे हैं। उनको कुछ ' अन्दर" भी चलाना चाहिए। इसलिए मैं कहती हैं कि अपने को discipline करिए। अपना instrument (यंत्र) ठीक करके इन vibrations को अन्दर" ले लीजिए। तरह की कहानी भी बना सकता है। जब धर्म के नाम इसमें मैं कहती हूँ कि महाराष्ट्र में लोग मेहनत बहुत करते हैं बड़े मेहनती हैं। और इस लिए सहजयोग में उनकी प्रगति बड़ी गहन हो रही है। गहरी हो रही है। पर इतने अत्याचार, खून-खराबा, ये वो सब हो रहा तो भगवान को भी लोग कह सकते हैं कि भगवान कोई चीज़ नहीं है। भगवान में भी विश्वास करना इसलिए आपको ध्यान देना चाहिए कि रोजू सवैरे उठ करके-अब इंग्लैंड में जहाँ इतनी ठंड पड़ती है और अंग्रेज को सबसे बड़ा गुनाह है, चाहे आप मार डालिए. असम्भव सा हो जाता है। उसमें मैं उनका दोष नहीं समझती, क्योंकि जो भगवान का नाम लेकर के काम कर रहे हैं वो अगर इतने महादुष्ट हैं- अब समझ 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-36.txt अंक : 3 & 4 -2007 चैतन्य लहरी उसका खून कर डालिए वो कुछ नहीं कहेगा, लेकिन लीजिये ये ego, superego का, ये टूट करके और अगर उस को सुबह आपने जगा दिया ता वो गया, खत्म। उसके बाद, इससे बढ़कर महान पाप है ही नहीं पक्षी अडे से भी कमजोर होता है। इसलिए इसे बहुत इंग्लैंड में अगर आपने किसी को सवेरे नौ बजे से पहले जगा दिया तो बस आपसे महापापी, दुष्ट, राक्षस कोई नहीं। ऐसे देश में लोग चार बजे उठकर नहाते हैं, प्रेम। इसकी भी भावना बहुत कम लोगों को है। चार बजे। उनकी मेहनत। क्योंकि वो जो पहले ही discipline थी अब उन्होने सहजयोग में लगा दी। है कि जिस में न तो कोई किसी प्रकार का greed हम लोग तो कभी disciplined ही नहीं रहे। हम लोग तो सब मुक्त लोग हैं। सब लोग ब्रह्म बने बैठे हैं उन लोगों ने इतनी मेहनत की तो क्या हम लोग नहीं कर सकते? " अब सवरे चार बजे माताजी उठने को आप अब पक्षी हो गये। लेकिन एक छोटा-सा बच्चा बढ़ावा देना चाहिए। सम्भालना चाहिए, संजोना चाहिए। और शुद्धता रखिये; प्रेम "शुद्ध' होना चाहिए। "शुद्ध' प्रेम क्या होता है? शुद्ध प्रेम वो होता ये शुद्ध (लालच) है और न ही किसी प्रकार की ust है, माने न कोई तरह की लालसा है, न लालच है और न ही उसमें कोई तरह की गंदगी है। वो बहते रहता है। इस शुद्ध प्रेम का अपने अन्दर से प्रकाश बहना चाहिए, ये शुद्ध इच्छा हमारे अन्दर होनी चाहिए। और जब ये होने लग जाता है तभी आप बन्दनीय मत बोलिए, बहुत ज्यादा हो जाएगा। मैं नहीं बोलती। पर आप खुद ही साचिए कि आपको time ही कब है? सवेरे उठकर के ध्यान में वो लोग बैठते हैं, लन्दन की ठंड में। और उस मेहनत से ही वो लोग पा गए वहां तो नर्क है। जब नर्क में उन्होने स्वर्ग खड़ा किया है तो स्वर्ग में थोड़े से दीप जलाना कोई मुश्किल नहीं है । ये तो स्वर्ग ही है। ऊपरी बातें छोड़ दीजिए। ये तो बड़ी चीज़ है। ये देश बहुत महान देश है। इसमें ये काम करना कोई मुश्किल काम नहीं है । सहजयोगी हो जाते हैं। उससे पहले नहीं। और ये एक जो बनने की विशेषता है, इसकी ओर जरूर ध्यान दिया जाए। आप आज कहेंगे कि देखिए माँ हमारा ये चीज ठीक कर दीजिए, माँ वो ठीक कर दीजिए। हाँ, भई चलो ठीक कर देगे। कर देंगे। लेकिन आपका कुछ बनेगा नहीं मामला। कोई बच्चा है कहंता है "माँ हमें ये दे दो।" चलो भई लो. तुमको चाहिए, लो। लेकिन आप कोई विशेष तो बने नहीं। आपने कुछ पाया तो नहीं। आप ऐसे ही माँ के आगे पीछे दौड़ते रहे। क्या फायदा? आपको जो कुछ तो इसलिए मैं बता रही हूँ कि कल के, भविष्य के जो नेता लोग हैं तो आप ही यहाँ बैठे हुए है। अब कोई राजकीय या सामाजिक और जितने भी तरह के "इक' है, वो सबमें आत्मा का ही प्रादुर्भाव होगा, नहीं माँ बनाना चाहती हैं वो अगर आप नहीं बनेंगे तो माँ की भी तो शुद्ध इच्छा पूरी नहीं होती। एक 'अजीब तरह की बात है, कि आपको बनाना चाहिए, ये मेरे अन्दर शुद्ध इच्छा है। और आपके अन्दर शुद्ध इच्छा है कि आपको कुछ बनना चाहिए। जब हमारा ऐसा मेल बैठा हुआ है तो सिर्फ शुद्ध इच्छा से रहे हम। तो काम नहीं चलने वाला। कल के नेता आप लोग हैं। आप ही में से, सहजयोग से ही तैयार होंगे और अब मुझे पूछना ये है कि आप में से इतने कौन लोग हैं जो इसके लिएह तैयार है कि अपना जीवन एक शुद्ध सुन्दर एवम् पूरी तरह से Dynamic (कार्यशील) बनाएं। नि्भय, पूरी तरह से निर्भय होकर के. हम विशेष रूप के इंसान बनने वाले हैं और 'हैं। आपको हो कहते हैं कि द्विज हो गये एक अंडा था, जैसे समझ और शुद्ध इच्छा पर रहने के लिए, 'शुद्ध प्रेम - पहली चीज। शुद्ध प्रेम। और शुद्धता लाने के लिए अपने चित्त को शुद्ध करना चाहिए। हम किसी के गया है। आप जैसे 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-37.txt अंक : 3 & 4 चैतन्य लहरी 2007 36 यहाँ जाते हैं, तो क्या देखते हैं- 'अरे इनके यहाँ इतनी अच्छी चीज आयी हैं, ये कहाँ से आ गई? ये कैसे आ गई?" लगा दिमाग दौड़ने। ये नहीं देखते कितनी अच्छी चीज है, कैसी बनी है; वाह, वाह. वाह! देखिये इसका मजा उठाइये। अच्छा है, सरदर्द अपनी नहीं, दूसरे की है, बड़ा अच्छा है। आप देखेंगे कि गहन में तो भई कमाल है। ऊपर से चाहे जैसे भी हो, और ज्यादातर से जो ऊपर से चाहे जैसे भी हो, और ज्यादातर से जो ऊपर से बहुत होते हैं कभी-कभी बड़े गड़बड़ होते हैं, अन्दर से। इसलिए गहन में क्या है उधर दृष्टि है क्या? फिर देखिये प्रेम कितमा बढ़ता है। 'प्रेम गहन चीज है। किसी की ओर दृष्टि करने में उसकी गहनता को नापें । और आप खुद ही गहन उतरते चले जाएगे। एक है न. "दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ।" किसी के दिल में मैं राह किए जा रहा हूँ। रास्ता बनाते जा रहा हॅूँ । इसी प्रकार उसकी गहनता पर उतरिये: Superficialities (बाह्य बातीं पर) पर रहने से आदमी का चित्त गहन नहीं उतर सकता। और जब इस तरह से जब आप दूसरों की ओर देखेंगे appreciative temperament (खुश मिजाज) होना चाहिए लेकिन ज्यादातर दृष्टि दोषों पर जाती है मनुष्यों की। जैसे कोई कहेगा "साहब वो अच्छी तो है लड़की, लेकिन attractive (आकर्षक) नहीं है मतलब क्या? attractive माने क्या? आप एकदम जाके, एकदम क्या उससे 'चिपक जायेंगे क्या, attractive क्या होता है? मेरी आज तक समझ नहीं आया, कि तक चित्त गहन नहीं उतरेगा, तब तक आपकी गहनता नहीं बढ़ने वाली। attractive' के माने क्या होता है। खासकर तो चित्त को पहले गहन उतारिये । बाह्य की चीजों में बहुत है। जैसे हमारे ladies हैं- आदमियों का भी बताऊंगी, कि अब ब्लाऊज match हुआ attractive शब्द आज तक मेरे समझे में नहीं आया। कि "साहब वो attractive नहीं है।" मैंने कहा भई attractive के माने क्या होता है? क्या चीज़ आपको attract करती है? उसका नाक, मुँह, हाथ skin (चमड़ी, कपड़े, शपड़े क्या? कौनसी चीज? कि नहीं हुआ, उसके लिए सर फोड़ डालेंगी Blouse should be matching ।जब हम लोग यहाँ थे तो कोई matching ब्लाऊज ही नहीं पहनता था। नीले रंग की साड़ी तो पीले रंग का ब्लाऊज । सीधा हिसाब । और पीला नहीं हुआ तो लाल रंग चल जाएगा। मतलब ा Attract तो एक ही चीज करनी चाहिए दूसरे की आत्मा; वही तो आनन्द देने वाली चीज़ है दूसरे की। वाह्य की दृष्टि जो है इसमें चित्त हमारा बड़ा contrast border तो पहले होता नहीं था, वो con- trast कर लिया। नहीं हुआ तो नहीं, पहन लिया। अब पहले होती ही कितनी साड़ियाँ थी किसी के पास में । दो या तीन. चाहे कितने भी रईस हों। ज्यादा कपड़े कोई रखता ही नहीं था। अब साहब तो matching हो गया। औरतों का इतना problem हैं कि अगर कोई औरत matching पहन के नहीं आयी तो खलबली मच जाएगी सारे शहर में। "क्या कपड़े पहन के आयी थी बेवकूफ जैसे !" लेकिन वो अगर अजीब सा jean पहन के आए, दो सींग लगा के आए तो वो माडर्न है, वो modern (आधुनिक) हो गयी। उलझता है। चित्त को ' गहन ' उतारना पड़ता है। Penitrating, गहन । तब कैसे possible (सम्भव) है। अगर आप पहले ही देखते साथ, "साहब वो तो ठीक नहीं है, इनका ठीक नहीं है।" हो गया काम खत्म। वो आदमी खत्म, उसकी सब आत्मा खत्म। उसकी सब जो कुछ भगवान ने मेहनत की है वो सब खत्म। "वो तो ठीक नहीं है" -बस हो गया काम। आप उसके गहन उतरे क्या? देखा क्या? खोजा है क्या, क्या चीज है? गहन उतरके देखिए । और फिर 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-38.txt चैतन्य लहरी अंक : 3 & 4 2007 37 कुछ होता है। और उसका ताँता आप जोड़ते जाएं तो कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है। ऐसी जो हम लोगों ने चीजें norms (असूल) बना ली है, अपनी उस norms में हम उलझे रहते हैं। अब आदमियों की दूसरी बीमारी होती है उनको इतना कपड़ों से मैचिंग वैचिंग का time कहां, वो तो घड़ी देखते रहते हैं। हरेक आदमी की घड़ी. "कितना बजा रही है?""कितना time हो रहा है?" जब निकलने का time होगा, तो बजाय इसके कि बाहर निकल जाएं, इत्मिनान करें, औरतों के पीछे में 'चलो भई दो मिनट बचे है; एक मिनट बचा है time keeper रहे होंगे! उतने में औरतें जो हैं पच्चीस चीज़ भूल गये. वो भूल गए और भागे बाहर। हड़बड़, हड़बड़।"इतना time हो गया।" घड़ी देखना, और बताना और जताना, एक बार में Geneva से जा रही थी। बहरहाल मेरा तो प्लेन miss नही हुआ अभी तक कभी भी - ये भी एक आश्चर्य की बात है। एक साहब का miss हो गया था तो वो तड़पड़ाते हुए पहुँचे प्लेन में। और उनको इत्तफाक से मेरे पास जगह भी मिली । बड़े nervous (परेशान), उनकी हालत खराब । महाराष्ट्रीयन थे। तो मैंने समझ लिया कि ये आ गए मेरे चक्कर में! मैंने कहा "करेला नीम चढा" इनको भी अब फॉसना चाहिए। तो मैंने मराठी में कहा"साहब आपको परेशानी क्या हो गयी।" तो उन्होंनें मराठी में ये भी modern चीज है, पहले जमाने में कोई ऐसा नहीं करता था। क्योंकि न ता पहले रेल गाडियां श्री. और रेलगाड़ी कौन आपके यहाँ time रखती हैं, जो आप इतनी जल्दी कर रहे हैं? न Plane (जहाज) कौन आपका Time रखते हैं? प्लेन में भागे जाओ, शुरु कर दिया, असली मराठी में। कहने लगे "ये प्लेन मैंने miss कर दिया। देखिये कितनी, ये हो का गया। मैंने कहा "कुछ नहीं miss किया आपने। आपके लिए कुछ अच्छी चीज ही होने वाली. है इस प्लेन में।" मेरी ओर देखा, उन्होंने कहा, क्या अच्छी चीज होगी? तो देखा "क्या आप माता जी निर्मला देवी हैं?" मैंने कहा "हाँ"। वो गए काम से! हो गए पार, प्लेन में ही! उनका नाम है डा. मुतालिक। और उन्होंने कहा, "साहब मैं तो इतना परेशान था और आपको पता है, yesterday (कल) सवेरे के गए हुए वहीं शाम तक बैठे रहे, plane ही नहीं आया। बैठे हुए हैं । लेकिन घर से निकलते हुए ऐसी हड़बड़, सड़बड़ उसमें ये रह गया रे, वो रह गया। तीन बार गाड़ी जाके लायी, तो भी प्लेन नहीं आया! आप कहोगे कि माँ ही ये सब कर रहीं है क्योंकि हम घड़ी के गुलाम हैं। हो सकता है। इतनी घड़ी की गुलामी करना आदमी को मुझे क्या मालूम था, कि आत्म-साक्षात्कार मिलने वाला है।" मैंने कहा "हाँ, इत्मिनान से चलो। और उसके बाद मालूम है कहाँ से कहाँ बात पहुँच गयी UN में वो ले आए, इसको ले आए, उसको ले आए। वो भी पागल बना देता है। बहुत बड़े आदमी हैं. WHO के वो डायरेक्टर हैं। लेकिन 'वैसे' वो ना आते शायद । और इत्तफाक-सहज, हो जब आप सहजयोग में आते हैं, आपको पता होना चाहिए कि plane खड़ा रहेगा आपके लिए । आइए आराम से राजा साहब जैसे! plane जाने वाला नहीं है, चाहे कुछ हो जाए। plane वहां खड़ा रहेगा; या देरी से आ रहा होगा। अगर आपको देर हो रही है तो कोई हर्ज नहीं, राजा साहब जैसे जाइये और अगर समझ लीजिए प्लेन miss (छूट) भी हो गया, दूसरे प्लेन से जाइये हो सकता है उसमें कोई चीज बनने वाली हो। कोई सहजयोग मिलने वाला है। ऐसा बहुत गए पार। तो ये सब मजे देखने के हैं। तो इतनी ज़्यादा घड़ी की गुलामी नहीं करनी चाहिए। आखिर ये सोचिए कि इतने दिन घड़ी बाँध के भी हमने क्या पाया? यूं ही-मतलब अपने बाप दादाओं ने भी घड़ी बाँधी ही थी, हालांकि उनकी ज्यादातर खराब ही रहती होगी। इतनी घड़ी से अपने को बाँध के सिवाय nervousness के हमने कुछ 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-39.txt अंक : 3 & 4 - 2007 38 चैतन्य लहरी बच के चलना चाहिए। ये आपको पता होना चाहिए। ये हमारे आने से पहले से ही सब जमे बैठे हुए हैं। वो इधर भी बैठे हैं, उधर भी बैठे हैं, वहाँ भी बैठे हैं। इसलिए माँ के साथ liberty (स्वच्छन्दता) नहीं लेनी चाहिए इस तरह की। वहाँ पर समय से पहले पहुँचना चाहिए परमात्मा का काम है। परमात्मा के काम के लिए पहले से सुसज्ज होके आइये। जान लेना चाहिए। लेकिन ये disci- pline (अनुशासन) आप अपना लगाइये, मैं नहीं लगाने वाली दो चार चपट पड़ेगी फिर आप लोग फिर आ जायेंगे। नुकसान होगा। समय से पहले वहाँ पहुँचना चाहिए। अपने ऊपर जिम्मेदारी लेकर के आप जिम्मेदार लोग हैं। पहले से पहुँचना चाहिए। बच्चों को भी सिखाएं।"माँ का प्रोग्राम है।" कोई हर्ज नहीं एक कप चाय कम पी ली तो कोई हर्ज नहीं। चलो, आज माँ का प्रोग्राम है बहुत बड़ी बात है।" इसलिए समय से पहले पहुँचना चाहिए। लेकिन में नहीं कहूँगी। मैंने इनसे भी कहा दरवाजा खुला नहीं पाया, और इस घड़ी की गुलामी में जो आजकल modern चीज़ हमने जानी हैं और जो निकल आयी है वो है Leukaemia, (बीमारी जिसमें रक्त की कमी हो जाती है) इसलिए अगर आपको Leukaemia नहीं पाना है तो इस घड़ी को आप तिलांजलि दे दीजिए कभी इसको आगे रखिए कभी पीछे रखिए । मैं भी ऐसे ही करती हूँ। या एक ही काटा रख लीजिए । जैसे किसी ने पूछा "कितना बजा है?" तो कहना साढ़े"। या पौना"। ठीक है। किसी से भी जोड़़ लीजिए, कोई सा भी नम्बर समझ लीजिये। नहीं तो time ही नहीं रहेगा enjoy (मौज- मस्ती) करने का। अगर आप हर समय घड़ी की ही गुलामी करियेगा तो आपके पास time ही कहाँ है enjoy करने के लिए? भई अभी time नहीं enjoyment के लिए ।" पर कहाँ जा रहे हैं आप? इसको पकडूना है, उसको पकड़ना। ये जो भागा-दौड़ है इसे आप बंद कीजिए । सब पागल जैसे भाग रहे हैं। हुए यहीं पर इसी प्रकार स्त्री की बातें और होती है पूरुषों की बातें और होती हैं। लेकिन हमने अपने norms रखो। (नियम) बना लिए हैं। जैसे समय से जरूर जाना है। ये मैं नहीं कहती कि गलत बात है। अंग्रेजों ने ये बात बनायी कि अब समय से जाने से उन्होंने 'वाटरलू' की लड़ाई जीत ली। पर हार भी सकते थे वो। time से कोई फुर्क नहीं। जब time आ गया था तो जीत गये और हार गये। इसका मतलब नहीं है कि अगर माता जी का प्रोग्राम छ: बजे है तो आप नौ बजे आइये। जिसके लिए ये योगी परेशान हैं, और वर्मा साहब कि माँ जब भाषण देती है तब चले आते हैं बीबी-बच्चे सब लाइन से चले आ रहे हैं, माँ बोल रही हैं अपने चले आ रहे हैं। तो कहते हैं कि भई माँ के दरवाजे सबको बंद नहीं। लेकिन आप ही को समझना है, आप ही को जानना है, और आप ही को मानना है और अपने को सम्भालना है। किसी पर भी सहजयोग में जबरदस्ती, जुल्म, कोई चीज का restriction (गोक) नहीं है हमारी ओर से। लेकिन वो हो ही जाता है। automatically (स्वतः) आप जानते हैं। आप पर automatically इसका प्रतिबन्ध लग जाता है क्येंकि परमात्मा के साम्राज्य का जो आनन्द है वो तो आदी रहा है, लेकिन उनके Rules-regulations (नियम अधिनियम) भी चलते हैं और वो 'बड़े ही कमाल के Rules- regulations है। इसलिए अपने को ही सम्माल के रखना है। नतमस्तक होकर के ये सोचना है कि "आज दरबार में जाने का है।" समझ लीजिए आपको-दिल्ली लेकिन माँ का तो दरबार होता है। दरवाजे दरबार में पहले लोग जाते थे, आपको पता होगा। तो rlsBa ] y & u njck g$ वहाँ 'बहुत' से बैठे हैं। बहुत से ऐसे-वैसे बैठे हुए हैं जिनसे 'बहुत हुए दो महीने पहले से तैयारी होती थी। special (खास) 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-40.txt अंक 3.& 4 2 चैतन्य लहरी 2007 39 मैं कोई restriction (बन्धन) नहीं डालती आप पर, आपको ही खुद grow (बढ़ना) होना है जो खुद grow होगा, जो खुद ही इसमें बढ़कर के ऊचा उठेगा, वो स्वयं को वैसे ही संवार लेगा। उसको कहने की जरूरत नहीं। कहने से जो काम होगा वो फिर क्या कपड़े पहनाये जाते थे और कैसे जाते हैं उसका rehearsal (पूर्वाभ्यास) होता था और अगर आप गये हैं, तो victory (जीत) के सामने आप पीठ नहीं दिखा सकते। झुक के और पीछे ऐसे सीधे चले आइये। अरे ये वायसराय होता किस बला का नाम सहज हुआ? आप "खुद' अपनी समझदारी से इसमें एक बड़प्पन, अपनी प्रतिष्ठा लेकर उठें। आप स्वयं प्रतिष्ठित हैं और उस 'स्वयं' को सामने रखकर के चलिये। आपसी बातचीत, आपसी का बोलना चालना | परमात्मा के पैर के धूल के बराबर भी नहीं है । उससे भी कम। उसका तो इतना महात्म्य है। फिर, वो हमारी माँ क्यो न हो, लेकिन दरबार भरा हुआ है। और जो बड़े-बड़े देवता लोग है वो कायदे से बैठे रहते सब चीज में 'स्वय चालित होना चाहिए। Own है, सब आयुध पहन के। पूरा इंतजाम रहता है पूरे खड़े रहते है। और सब तैयारी से पहुँचते हैं। देखिये vibrations भी आ गए। कितने जोर के vibration Driven को स्वयं चालित कहते हैं। पर स्व तो missing (गायब) होता है उसमें। आपका स्व जागृत है। उस 'स्व' के तंत्र में चलिए। वही स्वतन्त्र है। और उस तंत्र में चलते हुए जो एक "विशेष रूप" आप धारण करते हैं उसको देखकर ही लोग सोचेंगे "वाह. छूट रहे हैं वो सब सज्ज होते है इस वक्त। जब हम बोलते है तो देखिए कितने जोर के vibrations छूटते हैं। इसलिए आपका भी सतर्क होना चाहिए। वो देख रहे हैं आप सबको, कि कैसे आप चलते हैं। इसलिए वाह। ये क्या चीज सामने चली आ रही है।" सम्भल करके, बहुत नतमस्तक होकर के आना चाहिए। ये बात आपको धीरे-धीरे जान जाएगी कि आप कहाँ इस पागल दुनिया में बहुत जरूरत है इस वक्त। मुझे थोड़ी सी आपकी मदद की जरूरत है अगर हो जाए तो ये दुनिया पलटने वाली है, बहुत जल्दी पलट जाएगी। पहुँचे है, आपका स्थान क्या है. आप कौन सी ऊँची दशा में है। उस दशा के अनुसार आप चले। अभी लन्दन में शादी हुई थी वहाँ के युवराज आप लोग सब मिलकर के कोशिश करें। पूरी कोशिश करें, अपना महात्म्य समझें। माताजी का की। बहुत दूर-दूर से लोग आए थे, क्या उसका तमाशा था, पता नहीं। लेकिन उसके लिए अमेरिका से रीगन साहब की बीबी आयी और वो 15 मिनट देर से आयीं, दौड़ते-दौड़ते। और सारे लोगों की commentary (तानेबाजी) ये हुई कि "ये औरत क्या समझेगी, ये एक model थी। अभी हो गयी राष्ट्रपति की बीबी तो क्या हुआ? जो असली था वो तो सामने सामने नजुर आ गयी। ये क्या समझेगी कायदे?" महात्म्य है, जो तो बहुत लिख गए। अब आप अपना महात्मय लिखिये। और ये जानिये कि कहाँ से कहाँ आप लोग पहुँच गए हैं, और कहाँ से कहाँ आपने पहुँचना है। आज नव वर्ष के दिन विशेष रूप से ये कहने का है।"आनन्द से रहें, सुख से रहें, चैन से रहे. हॅँसते रहे।" पर अपनी प्रतिष्ठा में बंधे रहें, प्रतिष्ठा अपनी छोड़े न। और वो दिन दूर नहीं कि जब कि आप देखिएगा कि दुनिया सारी आप लोग रोशन कर देंगे। तो वो तो कोई चीज ही नहीं । वो तो कोई चीज ही नहीं । लेकिन ये जो चीज है उससे कितनी 'बड़ी' है, कितनी 'ऊंची हैं, कितनी 'महान' है, उसको समझें। और इस महानता को पहचानते ही आप स्वयं आप सबको मेरा अनन्त आशीर्वाद (निर्मला योग-1983) उस महानता का विशेष आदर करेंगे । 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-41.txt श्री महाशिवरात्रि पूजा दिल्ली 17-2-85 परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी का प्रवचन अपनी कुण्डलिनी को नीचे नहीं गिरने दें । आज शिवरात्रि के इस शुभ अवसर पे हम लोग एकत्रित हुए हैं और ये बड़ी भारी बात है कि हर बार जब भी शिवरात्रि होती है मैं तो दिल्ली में रहती हूँ। हमारे सारे शरीर, मन, बुद्धि अहंकार, सारे चीजों में सबसे महत्वपूर्ण चीज है आत्मा. और बाकी सब कुण्डलिनी इसलिए नीचे गिरती हैं क्योंकि हमारे अन्दर बहुत से पुराने विचार पुराने onditionings हैं और इसलिए भी गिरती है कि हम futuristic बहुत हैं। जैसे हम अपने दिल्ली का विचार करें तो दिल्ली में कुछ लोग तो बहुत पुराने विचार के, पुराने व्यवस्था के अनुसार रहते रहे हैं। उनके अन्दर ऐसी-ऐसी भावनाएँ बनी हुई हैं कि बाह्य के उसके अवलम्बन है। आत्मा में हम अपने पिता प्रभु का प्रतिबिम्ब देखते हैं। कल आपको आत्मा के बारे में मैंने बताया था। वही आत्मा शिव स्वरूप है। शिव माने जो बदलता नहीं, जो अवतरित नहीं होता, जिनको निकालना भी बहुत मुश्किल है क्योंकि वो जो अपने स्थान में पूरी तरह से जमा रहता है, जो अचल, अटूट, अनल, ऐसा वर्णित है उस शिव की धर्म के ही नाम पर ये सब चीजें करते हैं कि यही धर्म है, इसी में रहना चाहिए। यही सत्य है, यही सब कुछ हमें परमात्मा की ओर ले जाएगा। ऐसे जो लोग विश्वास लेकर चले हैं उनकी भी कुण्डलिनी बहुत देर ऊपर आज हम अपने अन्दर पूजा कर रहे है वो हमारे अन्दर प्रतिबिम्बित हैं कुण्डलिनी के जागरण से हमने उसे जाना है और उसका प्रकाश जितना-जितना नहीं ठहर पाती, वो खिंच खिंच जाती है Left की ओर। इसलिए सबसे पहले याद रखना चाहिए कि हमारी जो पुरानी धारणाएं हैं उन्हें हमें बहुत कुछ तोड़ना प्रज्जवलित होगा उतना हमारा चित्त भी प्रकाशमय होता जाएगा। लेकिन इस शिव की ओर ध्यान दने की बहुत जरूरत है। शिव के प्रति पूर्णतया उन्मुख पड़ेगा। जो गलत चीजें हैं, जो सही हैं उसे जरूर लेना होने के लिए, उस तरफ अपने को पूरी तरह से ले जाने के लिए. हमें जरूरी है कि ये समझ लेना चाहिए है लेकिन जो गलत हैं उसे तोड़ना पड़ेगा, गर हमने उसे तोड़ा नहीं तो कुण्डलिनी ऊपर ठहर नहीं सकती कि उसकी तैयारी क्या हो? जैसे एक कंदिल में आपने वो खिंच जाएगी। ज्योत बार दी लेकिन कंदिल इस योग्य न हुआ कि दूसरी बात जो दिल्ली में ज्यादा है, क्योंकि उस ज्योत को अपने अन्दर समा ले तो ये सब व्यर्थ यहाँ लोग सरकारी हैं, कार्य ज्यादा करते हैं है, ये सारा कार्य व्यर्थ हो जाएगा। बो चीज जो हम झेल ही नहीं सकेंगे गर हमारे अन्दर आकर गुजुर गई तो इसके दोषी हम हो जाएंगे। इसके बारे में हम लोग अभी बहुत अनभिज्ञ हैं कि इसका तेज़, इसका सौन्दर्य सारे संसार को प्रभावित करता है और सारे संसार में इसकी महिमा इतने जोरों में फैलती है कि उसके लिए कोई भी ऊपरी तरह बताने की जरूरत नहीं । अन्दर ही अन्दर इसकी लौ बढ़ती रहती है। बस उस लौ को जीवित रखने के लिए सबसे पहली चीजू है कि हम Industries है, सब कुछ Right Sidedness बहुत है। उनमें बहुत सी चीजें हमारे लिए बन्धनकारी हैं। एक तो हर चीज में हम जैसे कोई Millitary के तरीके से चलते हैं। जैसे समय की बात है। अब बहुत से लोगों ने मुझ से कहा कि माँ शिवरात्रि पाँच बजे नहीं हो सकती, किसी ने कहा कि चार बजे कर लो इससे बस हमको मिल जाएगी। अब मैंने कहा कि भई ये सब ठीक नहीं, ये कैसे किया जाए। आप शिवजी को 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-42.txt अंक : 3 & 4 चैतन्य लहरी 2007 41 हूँ, दिल्ली में खासकर मैं ये चीज़ देखती हूँ कि लोगों modern तो नहीं बना सकते। शिवजी के हाथ में घड़ी तो बन्धी नहीं है। तो इस तरह से सबने हमसे में साधना बहुत कम है। ध्यान कैसे करना चाहिए, ध्यान में कैसे बैठना चाहिए होना चाहिए, ये सब जानने के प्रति बहुत कम लोग कहा कि माँ किसी तरह से आप जो है आप ऐसा करें कि हमारी जो समस्या है वो सुलझ जाए, तो मैने कहा , ध्यान का कार्य कैसा रहते हैं। ज्यादातर मेरी बीवी ठीक हो जाए, मेरा लड़का ठीक हो जाए, मेरी लड़की की शादी हो जाए, लड़के कि क्या समस्या है? कहने लगे- कि हमारी बस जो है वो Time से नहीं आएगी। तो आप ऐसा तो कर की शादी हो जाए और मेरा घर बन जाए। और अगर दीजिए कि बस Time से आ जाए, रात को बारह बजे आ जाए। इस तरह के अनेक अनिक प्रश्न इस तरह उथली आपने ज्यादा से ज्यादा कि एक आश्रम बन जाए। की बातें, ये बहुत उथली बातें हैं बहुत अभी तक किया ही क्या है धर्म के लिए? शिव को हम अपने अन्दर गर शिव को जागृत रखना चाहते हैं तो पहले हमें आश्रम बनना चाहिए। उसके प्राप्त करने के लिए पार्वती जी ने कितने वर्षों तक तप किया था, पार्वती जी ने जो स्वयं साक्षात् आदिशक्ति हैं। आपने कौन सा तप किया, कौन सी मेहनत उठाई, लिए तपस्या होती है, उसके लिए मेहनत होती है. बगैर मेहनत के कार्य नहीं होता, बगैर मेहनत के मैंने आपकी कुण्डलिनी नहीं जगाई है. ये समझ लेना चाहिए। कहने को तो ठीक है कि स्वभाव है। स्वभाव एक रात की चलो कहीं जागरण ही हो जाए शिवजी के नाम पर। आपने ऐसा कौन सा त्याग किया है तो हजारों वर्षों से रहा है लेकिन कुण्डलिनी जो जगाई है बड़ी मेहनत की, मैंने भी बड़ी तपस्या की है। उस शिवजी के नाम पर या कौन सी विशेष आपने कार्य प्रणाली की है जिससे आप चाहते हैं कि शिवरात्रि भी बदल जाएं? जो चीज अटूट है उसको दिन में कैसे मेहनत की वजह से ही आज आप हज़ारों के तादाद में पार हो रहे हैं। और उतना ही नहीं अब भी मैं बहुत मेहनत कर रही हूँ बहुत मेहनत करती हूँ, इतनी मेहनत करती हूँ कि कभी-कभी लोग घबड़ा आप लोगों को मैं देखती हैं कि साल में मै दो-तीन दिन के लिए आती हूँ तो उस दिन भी आप यही कहते हैं कि माँ चार बजे आप शिवरात्रि करिए। कुछ भी अपने अन्दर discipline नहीं होगी, हम अपने शरीर को जब तक इसमें जीतेंगे नहीं तबतक इसमें मन्दिर माना जाएगा ये मेरी समझ में नहीं आ रहा था तो मैंने कहा कि किसी तरह से सो जाएं तब तो कोई जगाएगा नहीं शिवजी को लेकिन समझने की बात है कि हम लोग इतने उथले, उथले ढंग से परमात्मा को जानने की कोशिश करते है, ये बड़ी गहन चीज है आपको पार तो करा दिया जैसे बड़े-बड़े कुछ पहुँचे हुए लोग हमसे मिले तो कहने लगे माँ आपने इनको क्यों पार कराया ? हमको तो हजारों वर्ष लगे मेहनत की, कितने जन्मों से हमने मेहनत की तब कहीं हमें Viberation फूटे और आपने इनको ऐसे ही पार करा दिया। ऐसा क्यों किया? हमने कहा भई समय आ गया है, ऐसा जाते हैं। लेकिन कैसे बनेगा? सहजयोग उथले लोगों के लिए नहीं है, गहनता इसमें चाहिए, और गहनता ऐसी चाहिए कि गम्भीरता से ठहरेपन से रोज़ आपको ध्यान करना चाहिए, रोज। हमें Time नहीं मिलता, किसी ने कहा कि माँ Sunday के दिन न करिए शिवरात्रि क्योंकि सिनेमा होता है तो बहुत कम लोग आएगे। मैंने कहा समय है इस वक्त बहुतों को पार करने काः इसका मतलब ये नहीं कि आप लोग उदासीन तरीके से इसकी ओर देखें और अपनी साधना ऐसी कर लें जो बिल्कुल ही निम्न स्तर की है। बहुत अच्छा है जो लोग सिनेमा की वजह से नहीं और इसी पर मैं आज आपसे कहना चाहती 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-43.txt अक : 3 & 4 -2007 42 चैतन्य लहरी पड़ेगी पहले तम्बाकू खाने से दुनिया भर की चीजें करने से हमारी जीभ खराब हो गई है दूसरे आएंगे वो बड़ा अच्छा होगा हमारी बला टली। ये सब सुन-सुनकर के कभी कभी मुझे लगता है कि सहजयोग जो आज सबके सम्मुख खड़ा हुआ है उसकी कोई कीमत लोगों ने की है या नहीं। जब तक आप इसकी कीमत नहीं करेंगे तब तक ये कार्य निष्पन्न नहीं होने वाला और ये बात बनने ही नहीं वाली। हम लोग बहुत बड़ी-बड़ी बातें करते है कि हमने विश्व धर्म बना लिया और सारे विश्व का उत्थान होने वाला है। आप गुस्सा-वुस्सा करने से भी हमारी जीभ खुराब हो गई है और जीभ में खाने की भी बड़ी लालसा है। जीभ गर ठीक हो गई तो मैं सोचती हूँ कि पचास फीसदी काम हमारा हो जाएगा। जीभ का मतलब ये है कि हर समय खाने की लालसा करना, दूसरों से बुरी तरह से बात करना, दूसरों को झाड़ना, गन्दी बातें मुँह से निकालना, ज्यादा वाचालता करना। ये सब बाते सहजयोगियों को शोभा नहीं देती। और खाने के मामले में भी लोगों में मैं देखती हूैँ कि इतनी ज्यादा रुचि है खाने में कि रात दिन विचार यहीं कि क्या खाना है। लोग अपनी आदत्ते कम से कम बदल दीजिए आज बारह साल से मैं देख रही हैँ कि बहुत कम आदत हम लोग अपनी बदल पाए हैं। हम... गए थे वहाँ किसी सज्जन के बारे में किसी ने हमसे कहा कि वो तो मुझे तक खिला खिला कर आप लोग मुझे मार डालते हैं। मुझे तो अब कोई रुचि नहीं खाने में आप जानते हैं मुझे तो कोई चीज का कोई शौक ही नहीं कि ये चीज़, सहजयोगी हैं और अपनी माँ को बहुत सताते हैं। माँ का बिल्कुल ख्याल नहीं करते उनकी कोई इज्जत नहीं करते और माँ बिचारी बहुत सीधी सरल औरत बस चना मिल जाए काफी है, आप तो जानते हैं मुझे खाने की कोई रुचि नहीं। कुछ समझ नहीं आता है कि इतनी क्या रुचि खाने की? चाहे मैें खाना बहुत अच्छा बनाती हैँ लेकिन खाने की रुचि नहीं । तो आपके लिए मैं सामने बैठी हूँ। बोलते वक्त जो भी हो आप ऐसी बात करे दूसरों का हित हो। लेकिन नहीं है, ऐसा नहीं होता है। और एक उथलेपन में पहले तो अपनी जीभ को ही बिल्कुल ठीक करना चाहिए। अपनी जीभ जो है है। सुनकर मेरा एकदम जी बैठ गया कि कैसे हो सकता है? कितनी बदनामी की बात है कि माँ गुर सहज सरल है और लड़के की माँ है तो लड़के पर तो माँ का हक होता ही है, लड़की की मां हो तो दूसरी बात है पर लड़के की माँ है उसको तो सम्भालना ही पड़ेगा. उसको कहाँ फेंक दीजिएगा? और अब वो सहज सरल है तब । जब उसकी इतनी सी भी छोटी सी भी त्रुटि सहजयोगियों को होती है तो दुनिया उसे. देखती है सहजयोगियों को जरा सी भी गलती हो तो एक मधुर स्वरों में, मधुर शब्दों में बाँधनी चाहिए, उसका एक तरीका है कोशिश करे आप शीशे में बैठकर अपने से ही मीठी-मीठी बातें करें। क्या आप अपने तक से मीठी मीठी बातें कर सकते हैं या गाली दुनिया उसे देखती है और बहुत बार मैंने ये देखा है कि लोग कहते हैं आश्रम में जाओ तो ऐसे लगता है कि सहज योग नहीं करना चाहिए क्योंकि यहाँ के गलौज करते हैं । आप पहले अपने को प्यार करना सीखे। फिर Time व Time जो आप लोगों में बड़ी लोग बहुत उद्दाम है, बहुत बदतमीज़ी से बात करते हैं, बहुत अहंकारी लोग हैं, बड़े अभिमानी है और इस तरह से हमको Treat करते हैं कि हमको अच्छा नहीं लगता। उनमें कोई प्रेम ही नहीं है। क्योंकि आपसी की बात है मैं आपसे कह रही हैूँ कि अब इसको सुव्यवस्थित कर लीजिए। प्रथम तो हमें अपनी रसना जो होती है जो कि जीभ हमारी है उसको बहुत ही Training देनी बीमारी है कि टाइम यहाँ तक कि ये अब शिवरात्रि का भी टाइम अब बाँधना पड़ा! तो ये बहुत देर हो गई। शिवजी के ऊपर में आपकी Government नहीं चल सकती। और इसलिए हमको समझ लेना चाहिए कि हम कहाँ तक ऊपर पहुँचे कि हम भगवान पर भी 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-44.txt बा चैतन्य लहरी अंक : 3 & 4 2007 43 किया तो काफी लोग सहज योगी हो गए. कोई नई चीज़ आती है तो आ गए उसमें, लेकिन उथले लोग थे वहाँ पर एक साहब हमारे Programme में आए Time लगा रहे है! जिन्होने टाइम बनाया उन्हीं पर हम Time लगा रहे हैं और सारा Time बचाके करते क्या हैं यही मेरी समझ में नहीं आता कितनी देर आप ध्यान करते हैं. कितनी देर आप प्रगति करते हैं? ये जो Right Sided Attitude है ये भी बहुत गन्दी चीज़ है। इससे भी आदमी इतना Aggressive हो जाता है कि उसकों ये भी नहीं अन्दाज रहता कि हम उनका नाम था माइकल वाइकल ऐसे ही बेकार आदमी माँ थे और आकर के बहुत ज्यादा बोलने लग गए, तुम ये हो और वो हो, तो हम समझ गए ये तो भूत आदमी है बैकार में आए हुए है। तो हमने कहा अच्छा-अच्छा आइए आप हमारे घर पर आइए हमें साक्षात परमात्मा से ही झगड़ा लिए हुए हैं। इसको भी मिलिए यहाँ नहीं। यहाँ शान्त रहिए| उसके बाद में वो आए नहीं घर वर पर कुंछ। उन्होंने सारे लोगों से जाकर बताया कि देखों माँ मुझे कितना मानती है मैं कितना शक्तिशाली हूँ कि माँ ने मुझे अपने घर पर आपको घटाना चाहिए। धीरे-धीरे इसको Discipline करना चाहिए. इससे आप अनेक काम कर लें अनेक काम आपके हाथ से हो जाएगे और अगर आप ाTime की पाबन्दी रखेंगे तो आपके काम होंगे ही नहीं, कभी नही हो सकते, और खासकर के इस देश में तो बिल्कुल ही नहीं हो सकते और जिन देशों में इतना Time बाँधा था वो सिर्फ युद्ध के लिए। कि वो यूद्ध में आ रहे हैं गर 11 बजे तो 1030 बजे जाकर हम बुलाया। और विशेष रूप से मुझे घर पर बुलाया है। सब लोग उससे अभिभूत हो गए और इस कदर अभिभूत हो गए कि वो दूसरी कोई बात सुनने को ही तैयार नहीं एक वहाँ पर साहब थे उन्होंने कहा कि नही भई ये तो कुछ अजीब ही आदमी लगता है, उनको कल्ल कर दें। सहजयोग में कोई युद्ध नहीं है ये तो प्रेम की बात है। प्रेम में Time किसको याद रहता तुम माँ से तो जाकर पूछ लो। बोले माँ तो अभी India में हैं जब माँ आएगी तब पूछेगे, वैसे ये है बहुत अच्छा। उसने कहा कि सबको आपस में प्यार करना चाहिए, है। आपको पता नहीं पहले शिवरात्रि की पूजा करीबन कुछ नहीं तो आठ-आठ घण्टे होती थी, और कभी-कभी हम नौ घण्टे एक जगह बैठे हैं नौ घण्टे। एक बार भी उठे नहीं ऐसा भी रिकार्ड आपकी दिल्ली में है । नौ दुलार करना चाहिए और खूब आपस में घण्टों बाते करें और इधर-उधर की औरतों से दोस्ती और सब शुरु हो गया और उसको लोग मोहब्बत कहने लगे। करते करते जब हम वापिस लौटे तो एक दम से मुझे घण्टे Continuous । र इसलिए आपसे मुझे कहना है कि पहले आप समर्थ हो जाइए। जब तक आप समर्थ नही होते हैं तब लगा कि ब्राइटन में हो क्या रहा है पता करें तो मैने खबर करी वहाँ पर एक थे उनको तो वो आए उन्होंने तक मुझे डर ये लगता है कि कोई भी गर बड़ा भूत है कहा माँ यहाँ क्या हो रहा है, एक आदमी आया हुआ यहाँ आजाए, या कोई भी तान्त्रिक यहाँ आ जाए या कोई ऐसा आदमी आ जाए जो कि ज़रा सा भी आपसे ज़ोरदार Negative हो तो आपको खा जाएगा सबको। मैं इसका आपको एक उदाहरण देती हूँ ब्राइटन एक जगह है, जहाँ पर कि समुद्र होते हुए भी लोग बहुत Trendy जिसे कहते है, उथले लोग होते हैं। और उसकी वजह से जब ब्राइटन में हमने Centre शुरु उसमे सब फँसे हुए है तो मैंने फौरन फोन करके वहाँ से एक जो Lady थी, जो संचालन करती थी उसको खबर करी कि तुम यहाँ आओ। उससे मैंने बताया ये आदमी एक दम झूठा है, गलत है और इसके चक्कर में नहीं आना नहीं नहीं माँ वो तो प्यार है, वो तो फलाना है, उसने तो हमसे कहा कि माँ का जीवन अब कुछ रहा नहीं है ज्यादा दिन, मैं ही उनकी जगह आया 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-45.txt अंक : 3& 4 - 2007 चैतन्य लहरी 44 अपनी मेहनत नहीं की तो हम आपका सहारा कहाँ हूँ। सब बातों पर हमने विश्वास कर लिया। मैंने कहा अच्छा ऐसा कहता है। मैंने कहा बिल्कुल आप इसे छोड़ दीजिए, इसकी कोई जरूरत नहीं. अबं तो मैं जीवित हूँ आपके सामने, आप मेहरबानी से इसे छोड़ दीजिए और इसको आप पूरी तरह से कह दीजिए कि आप चले जाएं। लेकिन वो चक्कर ऐसा चल पड़ा कि वो उसको छोड़ न पाएँ। वो वापिस गई तो भी वही तक दे सकते हैं। मुझे कभी-कभी बड़ा डर लगता है कि एक साधारण सा मनुष्य जो कि क्षुद्र सा है. जो कि एक दम से आप समझ सकतें हैं कि कितना क्षुद्र है उसीको आप खोपड़ी पर बिठा लेते हैं और फिर मुझसे argue भी करते हैं कि नहीं ये आदमी ठीक है। कितनी दुखदायी बात है, मुझे आश्चर्य भी होता है और दुख भी लगता है कि कब ये लोग अपनी संवेदना को बढ़ाएंगे। | चक्कर चलता था। अन्त में फिर, तुम तो जानते हो कि तुम्हारी माँ योगमाया हैं, हमने अपना चक्कर चलाया तो वो एक रात एक औरत को लेकर उन लोगों का तो आज इस विशेष दिन पर हमें अपने शिवजी को साक्षी रखकर कहना है कि हम अपने अन्दर इस शक्ति को पूरी तरह से ऐसे सम्भालेंगे कि हम शक्तिशाली हो जाएं। रोज़ ध्यान करेंगे. रोज़ मेहनत करेंगे। गर ये वचन हो जाए तो मेरे ख्याल से किसी सबका सामान उठाकर भाग गया। तब उनकी खोपड़ी ठीक हुई। पर तब भी जो औरत थी जिसने सारा organize किया था, इतना महत्व किया था अब भी वो सहजयोग में जम नहीं पाई, अब भी, अब सहजयोग से निकल ही गई है। हमने कहा अब तुम आया न करो। की मजाल नहीं कि आपके ऊपर हाथ चलाए या..... हमारे अन्दर जो दोष है वो कोई इतने बड़े नहीं, लेकिन तो गर आप कमज़ोर हो जाएंगे तो सारे के सारे पकड़ में आ जाएंगे। और आपकी जब तक संवेदना बढ़ेगी नहीं तब तक कैसे होगा ? और दिल्ली वालों की संवेदना बड़ी कमजोर है। सबसे कमजोर, सबसे बड़ा जो हमारा दोष है वो है इच्छा। जब तक हमारे अन्दर शुद्ध इच्छा परमात्मा को पाने की तीव्र न हो जाए तब तक कोई भी नहीं काम कर सकते। हम भी बोलें और भी कहे सब बेकार जाएगा, कुछ कुछ सारे सहजयोगियों में सबसे कमजोर दिल्ली वालों की सब बेकार जाएगा। सिर्फ तीव्र इच्छा होनी चाहिए। और आदमी को इस तरह से कहना चाहिए कि ये मेरा कर्म नहीं है ये मेरा जीवन नहीं है, ये मेरा बीज नहीं है संवेदना है, उनको कुछ महसूस ही नहीं होता, वो कुछ है जान ही नहीं पाते कि कौन आदमी अच्छा है बुरा किसी की viberations ही नहीं जानते और कोई भी पर एकमेव लक्ष्य ही मेरा ये है और मेरे लिए कुछ नहीं। मैं एकमेव आत्मा के सिवाय और मैं कुछ नहीं हूँ। ऐसा अपने अन्दर आपको विचार लाने हैं। मैं जहाँ ऐसा आदमी आ जाए तो उसके चक्कर में आ जाते %23 है। और गलत धारणा को ही मानकर के उसके चक्कर में आकर के गर कोई यहाँ पक्का तान्त्रिक आ जाए तक समझा सकती हूँ मैंने आपको समझाया। आशा है तो आपको तो बेवकूफ बना जाएगा। इसलिए अपनी जो है सत्ता बनानी पड़ेगी अपनी सम्पदा बनानी पड़ेगी. इतना ही नहीं अपनी अवस्था अपनी ही जमानी पड़ेगी आप लोग इसको समझने की पूरी कोशिश करेंगे। अब हम लोग सबसे पहले श्री गणेश का पूजन बहुत करेंगे श्री गणेश का पूजन थोड़ी सी देर करने का है ज्यादा देर नहीं, उसके बाद देवी का नहीं तो काम नहीं होने वाला। इस चीज़ पर मैं आपसे इतना ही कहूँगी कि हमसे जितनी मेहनत बनी हमने कर दी है और अब आपके लिए उचित है कि आप इससे आगे की जो मेहनत है वो करें। गर आपने पूजन होगा और उसके बाद फिर हम पूजन करेंगे जिसको कि फिर कहना चाहिए कि शिवरात्रि का पूजन 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-46.txt अंक : 3 & 4 2007 चैतन्य लहरी 45 उसमें आपका इलाज है आप गेरू बदन पर लगाएं या आप चाहे थोड़ा सा गेरु घिस कर लें। जिसको allergies होती हैं, उन सबको गेरु घिस कर लगाना है क्योंकि शिव ही हमारे गुरु हैं, आत्मा की हमारा शिव है। इसलिए उनकी आप पूजा आज कर रहे हैं और इसलिए वो दोनों ही पूजा एक तरह से एक ही हो जाती हैं क्योंकि ओंकार स्वरूप गणेश हैं, देवीं आत्मा की शक्ति है और आत्मा शिव हैं। इस तरह से तीनों चीज़ एकाकार हैं। आज का दिन बहुत ही शुभ है, चाहिए। गेरु घिस कर बदन पर लगा ले या उसको खा भी सकते हैं। सात मर्तबा उसको गर। घिसा जाए और घिसकर के चन्दन के जैसे उसको खाया जाए तो आपकी allergies ठीक हो जाती है। क्योंकि फिर वो गेरू गरम होता है, कैल्शियम है। यही भस्म है, बहुत शुभ महूरत पर शुरु हुआ है और आपके अन्दर भी सब कुछ शुभ करेगा। भस्म भी जो हैं वो गर व्यवस्थित रूप से बनाया गया शिवजी के पूजन में सभी चीज़ गरम इस्तेमाल होती हैं अधिकतर और उसके बाद ठण्डाई दी जाती हो किसी हवन में से निकाला गया हो तो उसको भी गर आप इस्तेमाल करें तो आपकी allergies ठीक हो जाएंगी। इस वक्त मॉँ को भी इसलिए चढ़ाया जाता है, शिवजी को, क्योंकि उनके अन्दर भी इतनी शीत है आपकी गर्मी से हो सकता है कि उनके ऊपर है वजह ये है कि शिव जो है वो हिम से भी ज्यादा ठण्डे हैं। और उनको गरम रखने के लिए उनको सब तरह की गरम चीजें दी जाती हैं। हम लोग गरम हैं इसलिए हमें ठण्डे करने की चीजें लेनी पड़ती हैं और जो आप allergies आ जाए और उनके बदन में उस तरह की चीजें न हो जाएं इसलिए उनको गरम रखा जाता है। Allergy तो नहीं होती लेकिन गर पूरी तरह से गेरू और भस्म नहीं रखा जाए तो हमारे तक हमने देखा है कि हमारे पैर में एकदम articaria सा हो जाता है एकदम कल बहुत लोग एकदम से ठण्डक बहुत आ गई बहुत लोगों को बहुत ठण्डक सी लगी लेकिन फिर गरम हो गए। फिर ठण्डे गर्म, ठण्डे गर्म चलते ही गए और जब ठण्डे हो जाएंगे मामले तब सोचना चाहिए कि शिव का तत्व हमारे अन्दर जागृत हो गया है। तो आपको गर्म लेने की जरूरत नहीं हैं अब कोई कहने लगा कि शिवजी जी तो भंग पीते थे तो हम भी भंग माने ये कि उसकी जरूरत होती है उस वक्त Temperature एकदम low होता है, इसलिए गेरू की जरूरत होती है, गेरू और भस्म की जरूरत होती पीएंगे। आप कोई शिवजी नहीं है। तो फिर आप है। धतूरा भी खाइए और वो नहीं होता तो जहर भी ये नए लोगों में होता है, पुराने लोग नहीं पीकर दिखाइए क्योंकि शिवजी ये काम करते थे तो हम भी करेंगे, ये जो लोग कहते हैं उनको पहले देखना चाहिए कि आप क्या शिवजी हैं? आप क्या करेंगे कभी। अब सब लोग आकर जम जाएंगे जैसे हम अब अन्दर गए सब लोग लाइन से खड़े हो गए। ये चीजू दिल्ली में ही होती है ये भी बताऊं, कहीं और नहीं, माने नहीं। क्योंकि जो चीज भी हम कहते हैं बड़ा हलाहल पी सकते हैं? नहीं पी सकते जब वो नहीं हो सकता है तो फिर उनके साथ में मुकाबला करने में क्या अर्थ है? इतना ही हो सकता है कि उनके चरणों में हम शरणागत हो सकते हैं और यही होना चाहिए। कोई चीज ठण्डी ले ली और फिर उसके बाद गर्म चीज ले ली तो बदन पे शीत हो सकता है। वो शीत जिसे articaria कहते हैं, या इस तरह की जितनी भी allergy है वो शिवजी के दोष से होती है। और गहरा अर्थ होता है उसका मै नहीं चाहती कि आप पर गणों का परिणाम आ जाए। एक बार हम अहमदाबाद गए तो वहाँ पर किसी के घर ठहरे। तो हमने उससे कहा कि ये देखो हम जा रहे हैं लेकिन हमारे पलंग पर तीन दिन तक किसी को सोने मत देना। उनको लगा ऐसे ही माँ ने कहा होगा तो उनकी 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-47.txt अंक 3.& 4 2007 46 चैतन्य लहरी होना चाहिए। जो आगे लोग आ चुके हैं, वो किस तरह रह रहे हैं, किस तरह बैठ रहे हैं, कहाँ तक हैं। ये देखें। और फिर किसी को कहो- वर्मा साहब तो कहते हैं कि मैं किसी को कुछ कहना ही नहीं चाहता, लोग मुझही को दोष देते हैं। अरे भाई उनको क्या दोष दे रहे हैं, मैंने ही कहा है। ये तो समझने की बात है कि आपसे कितनी ज्यादा discipline है, कितना कायदा है। लड़की सोई, उसने कहा कि रातभर तो मुझे नींद नहीं आई, कोई मुझे गुदगुदी-गुदगुदी कर रहा था जैसे.. .....! दूसरे दिन उनकी नौकरानी सोई। तो उस नौकरानी को एक दम से ऐसे लगा जैसे कोई चीज ऊपर से आकर उस पर गिर गई। उसने 'उठकर देखा, कोई चीज थी नहीं, वो भी उठ कर भाग गई। तीसरे दिन फिर उन्होंने क्षमा माँगी कि माँ हमने गलती कर दी, हमको नहीं करना-चाहिए। गणों का हाथ बड़ा खराब होता है। ऐसा हाथ मारते है, झपट्टा मारते हैं, मैं ध्यान देती रहती हूँ हर समय । उनको सब हमारा ा कायदा होना चाहिए, परमात्मा का कायदा होना चाहिए। अब ऊपर गए वहाँ पच्चीस आदमी खड़े हुए थे। बाहर निकले तो दस। कायदे में जहाँ बैठे हैं वहाँ बैठे हैं। स्थान पे, स्थान पे। अपना तकिया नहीं छोड़ना चाहिए। जहाँ बैठे हैं, आराम से माँ के साथ ही सम्बन्धित बैठे हुए है। ये समझना चाहिए। प्रोटोकॉल मालूम है, कहाँ-कहाँ जाना है, कहाँ नहीं जाना। अब फट से बीच में आप पैर छू लेते हैं, फट से। फिर रास्ते में खड़े हो गए, 'माँ ये बात है।' ऐसे नहीं करना चाहिए। एक नियमबद्ध तरीकों से चलना है, देखिए अब आप विराट के शरीर में जा रहे हैं। अब विराट को ही परवांह है, वो आपको सब देगा। 'अपनी बात लेकर रोना नहीं 'माँ. देखो मेरे ऐसे हो रहा है, मेरे बाप का ऐसा हो रहा है, माँ का ऐसा अगर आपका सम्बन्ध पूरा बना हुआ है कोई जरूरत नहीं दौड़ने की, जिसका नहीं बना वही दौड़ता है। ये पहली.पहचान है । जहाँ भी बैठे हैं वहीं से माँ को पा रहे हैं आप| माँ से वहीं से बातचीत हो रही है। वहाँ सबकुछ है। आपको तो हो रहा है, भाई का ऐसा हो रहा है, मेरे घर- का ऐसा हो रहा है। जिसने ऐसी बातें शुरु कर दीं उसको तकलीफ ही होने वाली है। अब शान्ति में, कोई हिलने की जरूरत क्या है? सामने आने की जरूरत क्या है? वहीं बैठने की जरूरत क्या है, पैर छने की जरूरत क्या है? कोई जरूरत नहीं है जहाँ बैठे हैं वहीं माँ हैं। अपने दिल में ही हैं न तो ये जरा गहराई आनी चाहिए। उससे बड़ा सुशोभित लगता है। अब- तो हम देहात में भी जाते हैं तो वहाँ भी लोगों को इसकी समझ है, प्रोटोकॉल है। एक तो उत्तरी हिन्दुस्तान में धर्म के बारे में देवताओं के बारें में गणों के बारे में, गन्धर्वों के बारे में कुछ मालूमात ही नहीं है एकदम हम लोग तो एकदम इधर के रहे न उधर के रहे। मुसलमानों को भी उनके धर्म के बारे में कुछ मालूम होगा, तो हमको तो वो भी मालूम नहीं है करके कि हाँ मैंने माँ को कह दिया है, विश्वास पूरा ठीक हो जाएगा, ऐसे लोगों का भला होता है, मैं पहले बता रही हूँ। और जो लोग बहुत सामने सामने बैठ करके और आगे आगे दौड़ते हैं, उनका बड़ा बुराहाल होता है। मैं पहले बता दें । एक तो सहजयोग से ऐसे लोग निकल ही जाते हैं सहज में, आगे पीछे करने की कोई जरूरत नहीं, आप जब आ गए समुद्र में तो तैरते रहिए आराम से। आपको तैरना सिखा दिया है। अब उसमें क्या जबरदस्ती? अब् दिल्ली की खास चीज मैंने देखी है, अभी तक ठीक ही नहीं हो रही, पता नहीं क्यों? और जो लोग पहले के हैं उनको कोई देखते ही नहीं दिल्ली वाले, कुछ तो जानना चाहिए न कि क्या चीज है, गण क्या होते हैं? माँ एक फूल दे दो हमको अब ये जितने भी होते हैं ये सब एक रात मेरे सिराहने रखने पड़ते हैं क्योंकि गणों का अधिकार होता है, गर एक भी बात । फूल जो नए आते हैं वो घोड़े पे ही सवार आते हैं। ऐसा नहीं 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-48.txt अंक : 3 & 4 -2007 चैतन्य लहरी 47 गुर आप शक्ति को स्वीकार्य ही नहीं करिएगा तो शक्ति कार्य कैसे करेगी? सीधा हिसाब । यहाँ पर बहुत से लोग ऐसे हैं जो पुराने है जो जानते हैं सहजयोग क्या है, आप उसको प्यार से समझिए बात क्या है ये तो एक नवीन अनुभव आया है, इसमे गर चलना है तो उस नवीनता को लेकर चलें। अपने ही मन से आपने इनमें से कोई फूल ले लिया तो गण आपको कुछ न कुछ चुहुल करेंगे, फिर मुझे मत कहना । इसलिए माँ मुझे बिन्दी लगा दीजिए मैं कोई पुजारी थोड़े ही बैठी हूँ, आपको सबको बिन्दी लगाती फिरूं । किसी का आज्ञा मैने घुमा दिया तो अपना भी माथा लेकर के सामने खड़े हैं। ये बचपना है। जहाँ बैठे हैं वंही पाने की एक अपनी सिद्धता अपनी एक ताकत, अपनी बहुत लोग चलते है। अपने ही मन से कोई साहब भाषण देने खड़े हो गए, अपने ही मन से। ऐसे नहीं एक समझ बना लेना चाहिए, कहीं भी आप रहे हमारा करना। फिर ये कि जो Verma साहब है समझ चित्त तो वहाँ लगा रहता है। आप रहे। लेकिन पहले लीजिए कि हम गर इन्हें यहाँ का लीडर मानते हैं समझ लीजिए तो हम सबसे तो सम्बन्धं नहीं रख सकते है, हम तो सिर्फ वर्मा साहब से कर सकते हैं या कोई एक आदमी होगा उसी से कंर सकते हैं अब उसी को हर बार परेशान करना ये कोई सहजयोग नहीं है सहजयोग में लीडर को बिल्कुल नहीं challenge किया जा सकता। और जो करते हैं वो गिर जाते हैं । क्योंकि हम लीडर को जानते हैं ये कितने गहरे पानी में है। हम हमारा उनसे सम्बन्ध है, हम जानते हैं, और हर आदमी यहाँ लीडर होने वाला नहीं है, सहजयोग में लीडर का मतलब ये नहीं कि वो ऊँचे हो गए या कुछ, पर वो जानते हैं जानकार हैं उनका हमारे से सम्बन्ध बना हुआ है, कोई बात हो तो वो Directly हमसे कहते हैं। इसका ये मतलब नहीं कि वो कोई आपकी खोपड़ी पर बैठे हुए हैं, ये बात नहीं है, लेकिन अगर वो गलती करेंगे तो मैं तो ऐसे पकडूंगी उनको कि बस। जो भी वो कोई करे, जैसे कोई हमारे हाथ हैं, ऐसे कर रहे हैं इसलिए कोई भी आदमी उनको challenge न करे। वो जो ठीक समझेंगे जो उचित समझेंगे वो करेंगे। और आप उनकी बात सुना हमसे connection ते पूरा जम जाए। कहीं भी, कोई हमें बताने की जरूरत नहीं, हमें सबके बारे में सबकुछ मालूम रहता है। लेकिन गर आपसे हमारा connection नहीं है तो बेकार है। पहले अपना connection जोड़िए., इसलिए जो नए लोग होते हैं वो ज्यादा दौड़ते है। पुरानों को देखिए ये कैसे जमे बैठे हैं। इनको ये नहीं माँ चली गई हैं ऊपर बैठे हैं जहाँ के तहाँ। अपना ध्यान कर रहे हैं, है ना? अब आज से समझना चाहिए जो भी बात कही जाती है उसको मानना चाहिए। अब गर Verma साहंब कोई बात कहें उसका बुरा मानना बिल्कुल ही पागलपन है मेरे विचार से। उनको तो मैं ही कहती हूैँ जो कुछ भी वो कहते हैं। वो कोई अपने मन से थोड़े ही बिचारे कहते हैं। सबकुछ अब आते ही साथ वहाँ तो कोई प्रेम ही नहीं है। आपको सिर पर बिठा लीजिए, यहाँ कोई वोटिंग थोड़े होने वाला है कि आपकी कोई चापलूसी करेगा आइए जी. बैठिए जी. कुर्सी पर बैठिए, आपके लिए तख्त लगाते हैं। ऐसा नहीं होगा आप गर कायदे से नहीं रहेंगे तो बताया जाएगा। यहाँ कोई बड़ा छोटा नहीं देखा जाता। कायदे से .रहना और न रहना ये चीजू देखी जाती है। कौन कायदे से है कौन कायदे से. करें। ये बात बहुत जरूरी है। फिर दूसरा ये भी है कि छोटे-छोटें उम्र के लड़के भी आ जाएं वो अपने को नहीं वो बताया जाता है। ये कारयदा। क्योंकि गर एकदम अफलातून समझने लगते हैं। ये बेकार की बात है। बड़ों का मान रखना अपने देश की संस्कृति परमात्मा के साम्राज्य में आए तो वहाँ कायदा भी समझना चाहिए। और सबसे ज्यादा उसी जगह मदद होती है जहाँ लोग नम्रता पूर्वक सर्व स्वीकार्य करते हैं । का एक लक्षण है। ये नहीं कि एक छोटे से कल खड़े 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-49.txt चैतन्य लहरी अंक : 3 & 4 2007 48 बता रही हूँ। जैसे कि कोई बड़ी गुरु पूजा यहाँ निकालें, जन्माष्टमी वो नहीं हो सकती। मुझे मालूम है। क्योंकि अकेले चार आदमी इधर दौड़ेंगे, ऐसा और जगह नहीं है। हालांकि वहाँ मैने मेहनत ज्यादा करी है मैं मानती हो गए और बकना शुरु कर दिया। उससे सारा तहस- नहस हो जाता है। हो सकता है कि जो यहाँ के बड़े लोग है वो भी अपना confidence खो दें। आप गर अपने बड़ों पर हँसना शुरु कर दें उनका मजाक हूँ। आप लोग भी गर मेहनत करें तो उनसे भी आगे जा सकते हैं। आपस में एक दूसरे का आदर करना चाहिए, आप सब सन्त साधू बड़ा एक दूसरों का आदर करते है । सन्त को गर पता हो दूसरे सन्त आए है तो बहुत आदर से उनसे मिलते हैं आप वाकई में सन्त साधू हैं, आप पहुँचे शुरु कर दे तो बो कुछ भी नहीं कर सकते। उनको कुछ भी न समझे अपने मन से जो चाहें वो करने लग जाएं। और फिर ये सोचना है कि collective जो आदमी होता है उसका सम्बन्ध जो है एक पूरे से होना चाहिए। जैसे Brain है Brain से आपका सम्बन्ध है हैं। आपको उसी जरह से बीच में सब चीजों से जुड़ा है। अगर आपका Brain हुए रहना चाहिए, उसी शान से रहना चाहिए जैसे सन्त रहते हैं। वो बोलते ज्यादा नहीं हैं किसी पर आक्रमण नहीं करते हैं । जहाँ बैठे हैं वहीं आराम से, अपना तकिया तक तो वो छोड़ते नहीं हैं। अगर जंगल में कहीं बैठे हैं तो वहीं बैठे रहेंगे, और सेवा में तत्पर होना चाहिए से ही सम्बन्ध टूट गया तो हो नहीं सकता। Brain जिससे सम्बन्ध है उससे आपका फिर गर सम्बन्ध टूट गया तो हो नहीं सकता। इसका मतलब आप malignant हो गए, कैंसर हो गए। on your own नहीं हो सकते आप सहजयोग में, सब एक के साथ, एक सब जुड़े हुए हैं। इस तरह से। इसके लिए थोड़ा सा आपका थोड़ी नम्रता चाहिए। अभी कोई गर बड़ा काम यहाँ निकालें तो बनेगा नहीं सहजयोग का मैं परमात्मा आप पर कृपा करें (Checked Transcription) 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-50.txt शाश्वत गणेश तत्व [को प्रतिबिम्बित करती मोनालीसा का कु और उसने उस बच्चे को देखा। इस बच्चे के लिए उसके चेहरे पर जो प्रेम भाव उमड़े उन भावों का चित्रण इस महान कलाकार ने किया है। अण्डों से बच्चे निकालने के लिए अण्डों को तोड़ते हुए मगरमच्छ की आँखें भी अत्यन्त कोमल एवं प्रेममय होती हैं। परन्तु आपके आधुनिक हो जाने पर आपके कार्यकलाप अत्यन्त अटपटे हो जाते हैं। अतः अपने बच्चे के लिए आपका प्रेम अत्यन्त महत्वपूर्ण है। परन्तु सहजयोगियों के रूप में आपमें केवल अपने बच्चे के लिए ही मोह नहीं होना चाहिए।" श्री गणेश आपके अन्दर श्रेष्ठतम व्यक्तित्व की स्थापना करते हैं। निकृष्ट व्यक्तित्व, जो जीवन की तुच्छ चीजों में आनन्द लेता है, को श्री गणेश या तो कम कर देते हैं या पूरी तरह समाप्त कर देते हैं। मोनालीसा को यदि आप देखें तो यह न तो अभिनेत्री हो सकती है और न ही कोई सौन्दर्य स्पर्धा जीत सकती है, परन्तु उसकी मुखाकृति अत्यन्त शान्त, मातृसम और पावन है। क्या कारण है कि हमेशा से उसकी इतनी प्रशसा की जा रही है। इसका कारण ये है कि उसमें गणेश तत्व है। इसका कारण ये है कि उसमें गणेश तत्व विद्यमान है। यह माँ है। कहानी इस श्री गणेश पूजा प्रकार से है कि इस महिला ने अपना बच्चा खो दिया था उसके बाद वह न तो कभी मुस्कराती और न कभी रोती। एक नन्हें बालक को उनके सम्मुख लाया गया Les Diablerets, Switzerland 10-8-1989 (इन्टरनैट विवरण) 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_II.pdf-page-51.txt ि ५ #ह ा Pratisthan-Gurgaor "मुझे आशा है कि आप सबतोग सहजयोग प्रचार प्रसार के महत्व को समझते हैं। बेकार हैं । मेरे लिए सबसे महान चीज़ ये है इस महत्व को यदि आप नहीं समझते तो आप कि जिस प्रकार यहाँ पर बहुत सी बत्तियाँ हैं वैसे ही विश्व भर में बहुत से और सहजयोगी चाहते हैं और जीवन के दुखों और होने चाहिएं| आप यदि विश्व को परिवर्तित करना तकलीफों से बचना चाहते हैं तो आपको लोगों की रक्षा करनी होगी। आपको उनका उद्धाट कटना होगा। आपका यही कार्य है, सहजयोग का आपने यही ऋण चुकाना है...... अपनी चिन्ता न करें..! आपको सहजयोग फैलाना है अब आपका यही कार्य है। आपकी केवल यही कार्य महत्वपूर्ण है कि आपने कितने लोगों को नौकरी महत्वपूर्ण नहीं है, आत्मसाक्षात्कार दिया।" पटम पूज्य माताजी श्री निर्मता देवी ईसा मसीह पूजा गणपतिपुले 26-12-2001