चैतन्य लहरी ही भ मं र ज 3० थी स] ्ि सितम्बर -अक्तूबर 2007 ह चै तन्य ल ह री प्रकाशक निर्मल ट्रॉसफोर्मेशन प्रा लि. प्लाट नं. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड, कोथरुड पुणे - 411029 फोनः 020-25285232 मुद्रक कृष्णा प्रिन्टर्ज़ एण्ड डिजाइनज 292/23 ओंकार नगर बी' त्रीनगर, दिल्ली 110035 मोबाइल 9212238008 आप अपने सुझाव, सदस्यता एवं जानकारी के लिए निम्न पते पर लिखें : निर्मल ट्राँसफोर्मेशन प्रा. लि. प्लाट नं. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड, कोथरुड पुणे फोन: 020-25285232 - 411 029 अपने अनुभव, सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ.पी. चान्दना जी-11-(463), ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली- 110034 फोन : 011-65356811 ा चै त न्य लह री शता अंक 9 - 10 , 2007 ा NIRMALA प दा NIVERSAL PUBE RELIGION प ि म ज इस अंक में ड म राम पत ा श्री आदिशक्ति पूजा- कबेला-24.6.07। 3 निर्मल गीतिका 8. न द श्री सरस्वती पूजा- धुलिया-14.1.1983 9 TV दिल्ली- 3.2.1983 16 आज्ञा चक्र- 29 ईसामसीह जन्मदिवस पूर्वसन्ध्या- प पुणे-24.12.1982 क 38 चैतन्य लहरियाँ क्या हैं-27.3.74 ा DHARMA श्री आदिशक्ति पूजा हुड कबेला, लीगरे, इटली- 24.6.2007 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन नहीं है। देखने के लिए मैं इधर-उधर जाया करती थी कि क्या यहाँ फूलों में सुगन्ध है? परन्तु ये लोग इनका आकार बड़ा बनाने में लगे हुए हैं। फूल बहुत बड़े हैं। किसी भी अन्य स्थान से बहुत बड़े, परन्तु उनमें सुगन्ध नहीं है। जबकि भारत जैसे गरीब देश में फूलों में अद्भुत सुगन्ध है। छोटे-छोटे फूलों में भी विस्मयकारी सुगन्ध है। पुनः आप सब लोगों को यहाँ देखना अत्यन्त सुखद है। मेरे विचार से यहाँ पर हम पहली पूजा कर रहे हैं, और मुझे आशा है कि आप सब सुखचैन से हैं और आपके लिए यहाँ आना सुविधाजनक है। वास्तव में आज महान दिन है। हमें आदिशक्ति का पूजन (समारोह) करना है, आदिशक्ति का। आदिशक्ति का स्रोत क्या है? इस बारे में मैंने कभी नहीं बताया। पहली बार मैं आपको बताऊंगी कि 'आदिशक्ति' 'आदि माँ' हैं। वे उस परमात्मा की शक्ति हैं जो इस विश्व का सृजन करना चाहते थे। और आदिशक्ति ने स्वयं इस महान विश्व सुगन्ध की ये विशेषता केवल भारत में है, है कहीं अन्य नहीं। कहीं और नहीं! हो सकता कुछ फूलों में थोड़ी सी सुगन्ध हो, परन्तु इतने प्रेम से देख-रेख पूर्वक उगाए गए इन सुन्दर फूलों में भी सुगन्ध नहीं है। परन्तु भारत में जंगली फूलों में भी सुगन्ध होती है। क्या कारण है? लोग कहते हैं कि भारत की मिट्टी में सुगन्ध है, मिट्टी में सुगन्ध किस प्रकार हो सकती है? परन्तु जो भी में कह रही हूँ वो सत्य है, कहानी मात्र नहीं है। भारत में जो भी फूल आप उगाते हैं, कोई भी पफूल जिसे आप उगाते हैं, प्राय: उनमें सुगन्ध होती है। जबकि यहाँ पर मामला ऐसा नहीं है। किसी अन्य देश में के सृजन का सारा कार्य किया। ( क्या आप बैठ जाएंगे?..........जहाँ तक सम्भव हो आराम से बैठें...........) तो आज मैं आपको आदिशक्ति के विषय में बताने वाली हूँ, यह बहुत प्राचीन विषय है। आदिशक्ति साक्षात परमात्मा की शक्ति हैं और पृथ्वी पर परमात्मा का साम्राज्य लाने के लिए उन्होंने इस विश्व का सृजन किया। आप कल्पना कर सकते हैं कि अन्धकार के अतिरिक्त कुछ भी न था और इस अन्धकार से उन्हें इन सब सुन्दर भी ऐसा नहीं है, चाहे आप नार्वे जाएं, जमर्नी या किसी अन्य देश में जाएं, वहाँ फूलों में सुगन्ध ही नहीं है। आश्चर्य की बात है कि फूलों में सुगन्ध ही नहीं है! जब इस विश्व का सृजन किया गया तो दृश्यों (तस्वीरों), वृक्षों और सभी प्रकार की वनस्पति का सृजन करना था, और ये सृजन उन्होंने किया। परन्तु जो चीजे बोलती नहीं है, समझती नहीं हैं उनके सृजन का क्या लाभ है? उनमें कोई अभिव्यक्ति है ही नहीं। नि:सन्देह कुछ वृक्ष और फूल बहुत सुन्दर चैतन्य लहरियाँ देते हैं और अत्यन्त भलीभांति बढ़ते हैं, परन्तु सभी ने, उनमे से केवल कुछ- उदाहरण के रूप में, मै आपको बताना चाहूँगी कि यहाँ फूलों में सुगन्ध नहीं है। सभी फूलों में, सुगन्ध सुगन्ध नहीं थी, परन्तु कुछ क्षेत्रों में, विशेष रूप से जिन क्षेत्रों को हम भारत या अन्य विश्व कहते हैं (............) विश्वास नहीं होता कि यहाँ या विदेशों में सुगन्ध वाले फूल नहीं है! तो आपका जन्म यहाँ हुआ है, आप सुगन्ध लेकर आए हैं। आप आत्मसाक्षात्कारी लोग हैं और आपके पास फैलाने के लिए सुगन्ध है। अत:, मैं सोचती हूँ, आपकी दोहरी जिम्मेदारी है कि आप अंक : 9 & 10 -2007 चैतन्य लहरी 4 यह प्रवृत्ति, मैं सोचती हूँ, मानव में शैतान से आई है। वे एक दूसरे का वध कर रहे हैं, पूरे विश्व को अवश्य सुगन्ध फैलाएं, सुगन्ध अत्यन्त अन्तर्जात गुण है। यहाँ तक कि इस सुगन्धविहीन मिट्टी में भी लोगों के चरित्र में, उनके आचरण में, सूझबूझ नष्ट कर रहे हैं! समाचार पत्र पढ़कर आपको लज्जा आती है कि मानव किस प्रकार चल रहा है। में सुगन्ध है और वे शान्ति की कामना कर रहे हैं। मैं नहीं कह रही कि वो शान्त हैं, परन्तु शान्ति प्राप्ति की आकांक्षा उन्हें है। ये आकांक्षा इस बात को दर्शाती है कि वे सुगन्धमय लोग हैं, कि वे अत्यन्त सुरभित हैं। अत: सभी सहजयोगियों को चाहिए कि किसी भी प्रकार से युद्ध को समर्थन न दें। वे यहाँ पर लोगों को सुगन्ध देने के लिए, उनके लिए खुशियाँ और आनन्द लाने के लिए हैं युद्ध करने के लिए नहीं। सहजयोगियों का ये परमकर्तव्य है कि वे किसी ऐसी चीज़ का साथ न दें जिसमें घृणा हो, मानव की प्रकृति और उसका स्वभाव ही उसकी सुगन्ध है। वह किस प्रकार रहता है, अन्य लोगों से किस प्रकार आचरण करता है। सर्वत्र, सभी देशों को अभी तक इस बात का ज्ञान युद्ध हो या जिससे समस्याएं खड़ी होती हों। इन लड़ाकी आत्माओं ने मिट्टी की सुगन्ध को नष्ट कर दिया है। लोग यदि प्रेम एवं स्नेहमय बन जाएं तो नहीं है कि उन्हें सुगन्धमय बनना है। उन्हें यदि इस बात का ज्ञान होता तो युद्धों का अन्त हो जाता. सभी गलत चीजें समाप्त हो जातीं और लोग कहते 'अब मिट्टो भी सुगन्धमय हो जाएगी। परस्पर प्रेम करना, किसी प्रकार से घृणा करना नहीं, सीखना हमारा प्रथम कार्य है। घृणा करने के बहुत से तरीके हैं। यह भी मानवीय गुण है। पशु अवश्य घृणा करते क्योंकि वो पशु हैं। मनुष्य पशु नहीं बन सकता। हम सब एक हैं।' हमारा सम्बन्ध भिन्न देशों से नहीं है या उन चीजों से जिन्हें हमने बनाया है। परमात्मा ने नहीं हमने बनाया है। ये तुम्हारा देश है, ये उनका देश है और देश के अनुसार हम युद्ध करेंगे। ये देश किसी का नहीं है, ये परमात्मा का है। परन्तु मुखों प्रम ऐव स्नेह होना चाहिए, किसी प्रकार की घृणा की तरह से लोग युद्ध करते हैं देशों को लेकर कि ये हमारा देश है, ये हमारा देश है। मैने पूरे विश्व की यात्रा की है, किसी भी देश को में उनका अपना देश नहीं कहूंगी क्योंकि यदि कोई देश आपका अपना है तो आपमें सुगन्ध होनी चाहिए थी। आपमें ऐसा स्वभाव होना चाहिए जिससे अन्य लोगों को लगे कि आप सुरभित देशों से आए हैं। वाद-विवाद की आवश्यकता नहीं पड़ती। परन्तु एक देश दूसरे लाएं? यह केवल तभी सम्भव है जब यहाँ रहने देश से युद्ध कर रहा है, सभी जगह ऐसा ही चल रहा है। आप अखबारों में पढ़ें, सभी में यही मूर्खता प्रेम होगा। यह महत्वपूर्णतम चीज़ है। भरी पड़ी है कि देश आपस में युद्ध कर रहे हैं और जितना अधिक विकसित है उतना ही इस मामले में आगे हैं। उनकी इस विकास प्रक्रिया में में आशा करती हूँ कि वे उन्नत होंगे और आध्यात्मिक बनेंगे और उनमें सुगन्ध विकसित होगी युद्ध करने की हम मानव हैं और मानव के रूप में हमारे अन्दर नहीं। और क्योंकि आप लोग सहजयोगी हैं, इसलिए मैं कहूंगी, आपको चाहिए कि प्रेम करने का क्षेम बढ़ाएं, युद्ध करने या दूसरे लोगों की आलोचना करने का नहीं। आलोचना करना बहुत आसान है। परन्तु समझने का प्रयत्न करें कि हमारी मिट्टी में ही सुगन्ध नहीं है। इस मिट्टी में सुगन्ध किस प्रकार वाले लोगों के हृदय में एक दूसरे के लिए स्नेह एवं जब सृजन घटित हुआ तो ऐसा स्नेह के माध्यम से हुआ, अन्यथा प्रकृति को इन सब चीजों का सृजन करने की क्या आवश्यकता थी? यह सब किसलिए है? इसलिए कि आपको सुन्दरता का एहसास हो। ये सब वृक्ष इसलिए सुन्दर बने हैं ho चैतन्य लहरी अंक : 9 & 2007 10 ताकि आपको अच्छा लगे और आप प्रकृति से अधिक सहजयोगी बनाने होंगे ताकि वो समझ एक-रूप हो सकें। परन्तु मानव ने इसे प्रकार योगदान नहीं दिया। मैं ये नहीं कह रही कि सहजयोगियों हैं प्रेम देश के! ने, वे दुर्लभ हैं, अद्भुत हैं और उन्होंने बहुत अच्छा कार्य किया है क्योंकि वो प्रेम को सर्वोच्च मानते हैं। सहजयोग कार्यान्वित हो गया है। परस्पर सहायता सकें कि हम सब एक ही देश के अंग-प्रत्यंग जब ऐसा घटित हो जाएगा तब हम कहंगे परन्तु आपको भी अन्य लोगों को दिखाना होगा कि आप उनसे प्रेम करते हैं और उन्हें भी परस्पर प्रेम करना, एक दूसरे को समझना- ये गुण होने चाहिएं। और मैं सोचती हैं कि सहजयोगी एक दूसरे को समझते हैं और एक दूसरे से प्रेम करते हैं। परन्तु अभी भी ये गुण और अधिक बढ़ने चाहिएं। बहुत से लोग ये नहीं समझ पाते कि सहजयोग केवल करना चाहिए। प्रेम के कारण ही पूरे विश्व का सृजन हुआ है अन्यथा इन सभी द्वीपों और भिन्न देशों पर शक्ति बरबाद करने की क्या आवश्यकता थी ? सृजन, युद्ध करने के लिए, परस्पर घृणा करने उन्हीं के लिए नहीं है, ये पूरे विश्व के लिए है। के लिए या स्वयं को अन्तहीन मानने के लिए नहीं हुआ। परस्पर प्रेम करने के लिए, अधिक से अधिक भाई-बहन बनाने के लिए ये कार्य हुआ । और सहजयोग में आप ये बात महसूस करते हें कि आपके भाई-बहन सर्वत्र मौजूद हैं। आपको अन्य लोगों को सहजयोग देना होगा और प्रेम की एकता लानी होगी। प्रेम में आप गलतियाँ नहीं देखते। केवल प्रेम का आनन्द लेते हैं। आज की पूजा में ये देखा जाना चाहिए है? क्या किसी देश के लिए हमारे मन में दुर्भावना आज जब मैं आ रही थी तो पूरे यूरोप और कि क्या हमारे हृदय में किसी के लिए घृणा भारत से आए हुए लोगों को देखकर मुझे अत्यन्त हर्ष हुआ। यह किस प्रकार सम्भव है? क्योंकि है? अपना अन्तर्निरीक्षण करने का प्रयत्न करें । आपने वह प्रेम विकसित किया है, क्योकि आपमें वह प्रेम है, वह अन्तर्जात प्रेम। अत: जहाँ भी आप जाते हैं, जहाँ भी लोगों से मिलते हैं, तो वो ये कहें सभी से प्रेम करेंगे, अपना मानकर प्रेम करेंगे। कि हम सहजयोगियों से मिले हैं, जो मात्र प्रेम हैं, इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं। उन्हें इस बात की चिन्ता नहीं है कि आप क्या हैं, आपका पद क्या है आप यदि सच्चे सहजयोगी हैं तो आप किसी से घृणा नहीं करेंगे, किसी से घृणा नहीं करेंगे। मानव को परमात्मा के दिए हुए उपहारों में से प्रेम सबसे बड़ा उपहार है और व्यक्ति को चाहिए कि प्रयत्न करके इसे विकसित करें। आदि-आदि। वो तो केवल इतना जानते हैं कि आप सहजयोगी हैं और एक सहजयोगी दुूसरे सहजयोगी से प्रेम करता है। ये बहुत बड़ी उपलब्धि है जो है बहुत प्रसन्न हूं कि इतनी आप यह प्रथम दिन मनाने के लिए आए हैं- सहजयोगियों के रूप में अपनी उन्नति का प्रथम दिन। अब यदि सर्वत्र सहजयोगी फैल जाएं और सहजयोगी ही सहजयोगी हो जाएं तो आपका कार्य समाप्त हो जाता है क्योंकि तब आप एकाकारिता के आनन्द का आनन्द लेने लगेंगे। अत: व्यक्ति को यह कार्य इस प्रकार से करना चाहिए कि हम सब एक हो जाएं। किसी की आलोचना करने या मैं दूर-दूर से पहले कभी न थी क्योंकि न तो मिट्टी में सुगन्ध न मनुष्यों में। अब वह सुगन्ध आ गई हैं। अब आप लोगों में परस्पर प्रेम करने की, सहायता करने की, एक दूसरे को समझने की- आलोचना, अपमान या बदनामी करने की नहीं, सामर्थ्य है। ये मैं इसलिए कह रही हूँ कि आप सब सहजयोगी दुर्लभ लोग हैं। कितने लोग सहजयोगी बन पाए हैं? बहुत कम हमें अंक 9 & 10 2007 चैतन्य लहरी 6. प्रकार की तकलीफें हैं। पूरे विश्व को परस्पर प्रेम परस्पर प्रेम ही मुख्य बात है, और मैं पाती हूँ कि करने के स्तर पर आना होगा। प्रेम के अतिरिक्त बहुत से सहजयोगियों ने ये स्तर प्राप्त कर लिया है कोई समाधान नहीं है। और इस प्रेम में स्वार्थ नहीं होता, आनन्द होता है और इसी आनन्द की उस स्तर पर नहीं पहुँचे हैं। कुछ लोग बहुत अधिक अनुभूति आपने करनी है तथा अन्य लोगों को भी देनी है मुझे विश्वास है कि आप सभी सहजयोगी ऐसा ही कर रहे हैं और अन्य लोगों की गलतियों को देख रहे हैं ताकि कोई भी कष्ट में न किसी से घृणा करने के लिए कुछ भी नहीं है। और बहुत से अभी तक संघर्ष कर रहे हैं। वे अभी तक र नहीं। सहजयोग का अर्थ है कि हम सब एक हैं। हम सब सहजयोगी हैं, अलग-अलग नहीं, एकत्र। इस सत्य को यदि आपने समझ लिया है, केवल तभी आपने आदिशक्ति का आज का ये महान फँसे । प्रेम' आदिशक्ति का सन्देश है। अब इसके विषय में सोचें। अकेली आदिशक्ति ने पूरे विश्व का सृजन किया! उन्होंने ये कार्य कैसे किया होगा? किस प्रकार इसकी योजना बनाई होगी। किस प्रकार दिवस मनाया है। आदिशक्ति ने इस विश्व का सृजन क्यों किया? ये सब क्यों घटित हुआ? हम ये क्यों नहीं सोचते कि इतना अधिक प्रेम और इतनी सम्पन्नता हमें क्यों दी गई है? हमें कभी महसूस नहीं होता कि हम कहाँ है और हमें कितना कुछ प्राप्त हो हैं। अत: उनसे एकाकारिता प्राप्त करने के लिए ये है! पैसा नहीं प्रेम। ये बात जब आप समझ इसका आयोजन किया होगा? ये आसान कार्य नहीं है। केवल इसलिए कि वे प्रेम करती थीं, उनके प्रेम की अभिव्यक्ति के फलस्वरूप ही आप सब यहाँ आवश्यक है कि व्यक्ति प्रेम करना सीखे। नि:सन्देह इसमें आपको जानना होगा कि आपको क्षमा करनी चाहिए। आप यदि क्षमा नहीं करते और दूसरे लोगों के दोष खोजते रहते हैं तो आप परमात्मा की चुका जाएंगे तब वास्तव में एक दूसरे से प्रेम करेंगे। तब न तो घृणा होगी और न ही प्रतिशोध, ऐसा कुछ नहीं होगा। सहायता नहीं कर सकते। अब आपका कार्य ये देखना है कि आप प्रेममय हैं। आपमें किसी के परन्तु केवल प्रेम, प्रेम, और प्रेम करें, आज का यही सन्देश है। लिए भी घृणा नहीं है। किसी से भी घृणा करने, या हमें परस्पर प्रेममय होना चाहिए। हमारे किसी को चोट पहुँचाने के बारे में आप नहीं सोचते। सभी कर्म हमारे प्रेम की अभिव्यक्ति मात्र होने ये कार्यान्वित होना है। मुझे विश्वास है कि ये चाहिएं। कर्मकाण्ड नहीं, केवल प्रेम। जब आपको कार्यान्वित हो जाएगा। सभी यूरोपीय और भारतीय माँ का प्रेम मिलता है तो किस प्रकार उसकी देशों के विकसित लोग युद्ध कर रहे हैं और अविकसित लोग भी सबके युद्ध करने की अपनी अभिव्यक्ति करते हैं? इसी प्रकार समझकर आज हमें वचन देना है कि हमारे लिए प्रेम ही महत्वपूर्ण शैली है- केवल यही अन्तर है। परन्तु प्रेम नहीं है। है। हमें प्रेम करना चाहिए। लोग तो अपने परिवारों यदि आप प्रेम करना चाहते हैं तो आपको दुख से भी प्रेम नहीं करते! मैं जानती हूँ कि मैं ऐसे लोगों महसूस होता है। मान लो मैं किसी देश को, 'क' से बात कर रही हूँ जो अपने परिवारों से, अपने गाँव देश को देखती हूँ। मेरे लिए उसकी आलोचना करना, कि ये देश बुरा है, यहाँ के लोग बुरे हैं, ये अभी भी विश्व में युद्ध, लड़ाई-झगड़े और सभी बुरा है, वो बुरा है यह कहना बहुत आसान है। से, अपने वातावरण से, सभी से प्रेम करते हैं । परन्तु अंक 9& 10 चैतन्य लहरी -2007 परन्तु में सोचती हूँ कि सम्भाव्य रूप से वो लोग बहुत अच्छे है, बहुत भले हैं। किसी न किसी प्रकार से मैं उन्हें समझाऊंगी कि प्रेम क्या है तथा ये कि आज भी लड़े जा रहे हैं क्योंकि वो प्रेम नहीं करते। अत: अब सहजयोगियों के लिए और भी महान कार्य है, अधिक महान जीवन, कि उन्हें ये दर्शाना है कि प्रेम अत्यन्त महान गुण है। कोई बात वे प्रेम का आनन्द लें। किसी भी प्रकार की समस्या न होगी। केवल मानव जानते हैं कि प्रेम किस प्रकार करना है, कोई अन्य नहीं। पशु भी प्रेम करते हैं नहीं चाहे आप हिन्दू हों, ईसाई हों या कोई और व्यर्थ की चीज़़। हम सब मानव हैं और हमें प्रेम करने का अधिकार है। किसी प्रकार यदि आप लोगों से प्रेम कर पाएं तो मैं सोचती हूँ कि सहजयोग स्थापित परन्तु उनका प्रेम सीमित है। परन्तु मानव का प्रेम अत्यन्त सुन्दर है, वे तभी सुन्दर लगते हैं जब प्रेम करते हैं । हो जाएगा। अत: मुझे आपसे बताना है कि घटिया प्रेम न करें, ऐसा प्रेम करें जिसका आप भी आनन्द लें और दूसरा व्यक्ति भी। ये बात समझी जानी चाहिए। लोग जिस प्रकार प्रेम का अर्थ समझते हैं, कभी-कभी सहजयोग एक वृक्ष की तरह से है जिसे पानी के रूप में प्रेम की आवश्यकता है। इसे आजमाएं, अपने जीवन में इसे आज़माएं, तब आपको पता चलेगा कि प्रेम किस प्रकार लाभ तो वह अत्यन्त हास्यास्पद होता है। अत: व्यक्ति को सर्वप्रथम यह समझना है कि प्रेम क्या है तथा ये भी पहुंचाता है। ये नहीं देखा जाना चाहिए कि आप कि क्या आप प्रेम करते हैं या नहीं। यदि आप वास्तव में विश्व को प्रेम करते हैं, परमात्मा के कितना खर्च करते हैं या आप क्या करते हैं। सारी चीजों की गिनती करना आपका कार्य नहीं है। यह तो सागर की तरह से है जो अपने आस-पास की सृजन को यदि वास्तव में आप प्रेम करते हैं तो न तो घृणा होनी चाहिए न युद्ध। केवल अच्छाईयाँ देखी जानी चाहिएं- जैसे एक माँ अपने बच्चे में देखती है। आपको चाहिए कि विश्व को परमात्मा द्वारा आपके लिए बनाई गई सुन्दर कृति के रूप में देखें। हर चीजू को भिगो देता है। आप भी वैसे ही बने। सहजयोग का एक विशेष व्यक्तित्व। अतः आज: सभी सहजयोगियों को निर्णय करना चाहिए कि हम उन सबको क्षमा करेंगे जिनसे हम घृणा करते हैं तथा उन सब से हम प्रेम करेंगे। ये विषय बहुत लम्बा है, मैं इसके विषय में घण्टों तक आपसे बात कर सकती हूँ परन्तु मुझे आइए देखें, क्या यह कार्यान्वित होता है? केवल इतना कहना है कि यदि आप थोड़ा सा भी मुझे विश्वास है कि यह कार्यान्वित होगा। क्योंकि समझ पाए हैं तो आपमें एक दूसरे के लिए प्रेम होना चाहिए, सूझ-बूझ होनी चाहिए। न्हें शिशुओं को देखें, किस प्रकार वे परस्पर प्रेम करते हैं! अभी तक वे घृणा नहीं सीख पाए। परन्तु बच्चों का लालन-पालन यदि ठीक से नहीं हुआ तो वो भी सर्वप्रथम तो आप आत्मसाक्षात्कारी हैं और दूसरे मानव के पास प्रेम सबसे बड़ा वरदान है। उसका उपयोग आप यदि करते हैं तो किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं होगी। आप सबका हार्दिक धन्यवाद रूपान्तरित परस्पर घृणा कर सकते हैं, अत्यन्त हास्यास्पद हो (Checked with Audio) सकते हैं। आज भी बहुत से देश ऐसे ही हैं। वो जा निर्मल- गीतिका 1 ॐँ, जय, जय, निर्मल माता, कितने पावन चरन तिहारे! बुद्धि-भवन हैं चरन तिहारे, ॐ, जय, जय, निर्मल माता, सिद्धि-सदन हैं चरन तिहारे, तुम, सारे जग की जननी हो, तुम, आदि-शक्ति, कुंडलिनी हो, तुम कल्कि हो, तुम काली हो, तुम, सबकी भाग्य-विधाता, कितने पावन चरन तिहारे! चरणों में आनंद समाया, Rर बड़े भाग से मिलती छाया, तुम, महालक्ष्मी लीला हो, तुम, सरस्वती समशीला हो. तुम, कर्ता हो तुम भर्ता हो, ।ं आत्म-रूप जिसमें दिख जाता, ऐसे दर्पन चरन तिहारे, प तुम, सहज-योग की दाता, तेरे आँचल में सुख सारे, तुम, सर्व मंगला रूपा हो, तुम, ब्रह्मानंद स्वरूपा हो, तुम, मोक्षदायिनी कल्यानी, हर लेते हैं दु:ख हमारे, ा रोम, रोम सुरभित हो जाता, तुम, आत्म तत्व की ज्ञाता, ऐसे चंदन चरन तिहारे, हम शरण तुम्हारी आए हैं, अपना आँचल फैलाए हैं, तुम अपनी या-दृष्टि देना, तन-मन निर्मल हो माता, बड़ा कठिन है, जग का मेला, आना जाना यहाँ अकेला, ॐँ, जय, जय, निर्मल माता, ॐँ, जय, जय, निर्मल माता। सहज की शीतल अग्नि जलाएं पा ऐसे निर्मल चरन तिहारे। प डा. सरोजनी अग्रवाल कितने पावन चरन तिहारे! (मुरादाबाद) TM पड क कमन ल श्री सरस्वती पूजा धुलिया- 14.1.83 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन जो नहीं सुहाते वे सब लुप्त हो जाते हैं। यद्यपि ऐसा होने में समय लगता है, नि:सन्देह इसमें समय प्रेम से सभी प्रकार की सृजनात्मक गतिविधि घटित होती है। आप देखिए कि किस प्रकार राऊल बाई मुझे प्रेम करती हैं और यहाँ आप सब लोगों को भी एक सुन्दर चीज़ के सृजन करने का नया विचार प्राप्त हुआ है! ज्यों-ज्यों प्रेम बढ़ेगा आपकी सृजनात्मकता विकसित होगी। तो प्रेम ही श्री सरस्वती लगता है- ज्यों ही आपको लगता है कि ये जनता को प्रभावित नहीं करते, तो तुरन्त ये पदार्थ लुप्त होने लगते हैं (नष्ट होने लगते हैं)। अब जिस प्रेम की हम बात करते हैं, हम परमात्मा के प्रेम की बात करते हैं, निश्चित रूप से इसे हम चैतन्य लहरियों के माध्यम से जानते हैं । लोगों में चैतन्य-लहरियाँ नहीं हैं, फिर भी वे अत्यन्त अचेतनंता में चैतन्य लहरियाँ महसूस कर सकते हैं। विश्व की सभी महान चित्रकृतियों में चैतन्य है। विश्व के सभी महान सृजनात्मक कारयों में चैतन्य है। जिन कृतियों में चैतन्य है केवल वहीं बनी रह पाईं, उनके अतिरिक्त बाकी सब नष्ट हो गईं। ऐसे की सृजनात्मकता का आधार है। यदि प्रेम न होता तो सृजनात्मकता न होती। इसका अर्थ और भी गहन है, आप देखिए वैज्ञानिक चीजों का सृजन करने वाले लोगों ने भी ये चीजें जनता से प्रेम के कारण बनाई हैं, केवल अपने लिए नहीं। किसी ने भी केवल अपने लिए किसी भी चीज़ की रचना नहीं की। अपने लिए भी यदि वे कोई चीज बनाते तो भी वह सबके उपयोग के लिए हो जाती अन्यथा इसका कोई अर्थ ही नहीं है। यदि आप ऐटॅम बम तथा विज्ञान द्वारा बनाई गई अन्य सभी चीजों की बात करें तो भी ये अत्यन्त सुरक्षात्मक है। यदि से स्मारक, भयानक मूर्तियाँ और चीजें बनी बहुत जिनकी रचना बहुत पहले की गई थी। परन्तु प्रकृति उन्होंने इन चीज़ों का सृजन न किया होता तो लोगों ने इन सबको नष्ट कर दिया क्योंकि ये काल के के मंस्तिष्क युद्ध से न हटते। अब कोई भी बड़े युद्ध के बारे में नहीं सोच सकता। निः सन्देह शीत हो रहे हैं, परन्तु जब लोग इनसे तंग आ जाएंगे प्रभाव को नहीं झेल पाई- यह काल की विनाश शक्ति है। अत: वह सभी कुछ जो दीर्घायु है, पोषक है और श्रेष्ठ है, वह इस प्रेम विवेक के परिणाम युद्ध तो शनै: शनै: ये भी समाप्त हो जाएंगे तो दाईं ओर की, सरस्वती की, सारी गतिविधि मूलतः प्रेम में स्वरूप है जो हमारे अन्दर अत्यन्त विकसिंत है परन्तु यह कुछ अन्य लोगों में भी है जो अभी तक आत्म-साक्षात्कारी नहीं है। अन्तत: पूरे विश्व को समाप्त होनी है। प्रेम से ही इसका आरम्भ होता है और प्रेम में ही समाप्ति। जिस भी चीजू का अन्त यह महसूस करना होगा कि व्यक्ति को परमात्मा के परमप्रेम तक पहुँचना है अन्यथा इसका (विश्व प्रेम में नहीं होता बह एकत्र होकर समाप्त हो जाती का) कोई अर्थ नहीं। है। बस लुप्त हो जाती है। आप देख सकते हैं कि कोई भी पदार्थ जो प्रेम के लिए उपयोग नहीं हुआ, आपने कलाकृतियों में देखा है कि कलाकारों ने लोगों को आकर्षित करने के लिए कितनी सस्ती और अभ्रद चीजों का उपयोग किया है ताकि लोग ये सोचें कि यह कला है। परन्तु यह सब लुप्त हो वह समाप्त हो जाता है। प्रेम ही आधार है। अन्यथा जो भी पदार्थ हम बनाते हैं, जिनमें कोणिकता है, जो आम जनता के उपयुक्त नहीं हैं, सामान्य लोगों को अंक : 9 & 10 -2007 10 चैतन्य लहरी जाएगी। जैसा मैंने आपको बताया, यह काल की इतने थोड़े समय में इनका वर्णन नहीं किया जा सकता और सूर्य ने हमें इतनी शक्तियाँ प्रदान की हैं कि इनके विषय में एक क्या दस प्रवचनों में भी मार सहन नहीं कर सकती, यह ऐसा नहीं कर सकती। क्योंकि समय ही इसे नष्ट कर देगा। ये बता पाना असम्भव है। परन्तु किस प्रकार हम सूर्य के विरोध में जाते हैं और किस प्रकार सरस्वती के विरोध में जाते हैं। सरस्वती की पूजा करते हुए सारी चीजें लुप्त हो जाएंगी। अब भी आप परिणाम देख सकते हैं कि सर्वत्र, पश्चिमी देशों में भी, किसा प्रकार चीजें परिवर्तित हो रही हैं। अतः पश्चिम से इतना निराश होने की और ये कहने की कोई अपने अन्दर यह बात हमने स्पष्ट देखनी है। उदाहरण के रूप में पश्चिमी लोग सूर्य को बहुत पसन्द करते हैं क्योंकि वहाँ पर सूर्य नहीं होता। जानते हैं इस दिशा में वे अपनी सीमाएं लाँघ जाते हैं और अपने साथ सूर्य की जटिलताएं उत्पन्न कर आवश्यकता नहीं है कि पाश्चात्य विश्व बंजर भूमि (Waste Land) है । ये सब ठीक हो जाएगा और ये कार्य करना होगा पश्चिम ने, मैं कहना चाहूंगी, विशेष रूप से सरस्वती की बहुत पूजा की है परन्तु जैसा आप उससे भी कहीं अधिक जितनी भारत में हुई है लेते हैं। मुख्य चीज़ जो व्यक्ति ने सूर्य के माध्यम क्योंकि वे सीखने के लिए गए और बहुत सी चीजें से प्राप्त करनी होती है, वह है प्रकाशविवेक- खोजने का प्रयत्न किया। परन्तु वे केवल इस बात अन्तर्प्रकाश। और यदि आज्ञा पर स्थित सूर्यचक्र पर भगवान ईसा-मसीह विराजमान हैं तो जीवन की को भूल गए कि वे देवी हैं, परमात्मा देने वाले (Giver) हैं। हर चीज़ देवी से आती है। ये बात वो भूल गए और इसी कारण से सभी समस्याएं खड़ी हो गईं। आपकी शिक्षा में यदि कोई आत्मा न हो, पावनता, जिसे आप 'नीति' कहते हैं, और भी अधिक आवश्यक है, यही जीवन की नैतिकता है। अब पश्चिम में तो नैतिकता भी बहस का बहुत बड़ा मुद्दा बन गई है। लोगों में पूर्ण नैतिकता का विवेक ही नहीं है। नि:सन्देह चैतन्य-लहरियों पर शिक्षा में यदि देवी का कोई स्रोत न हो तो शिक्षा पूर्णत: व्यर्थ है। उन्हें यदि इस बात का एहसास हो आप इस बात को जान सकते हैं परन्तु वे सब गया होता कि आत्मा कार्य कर रही है तो वे इतनी दूर न जाते। भारतीयों को भी मैं इसी चीज की इसके विरुद्ध चले गए। जो लोग भगवान ईसामसीह के पुजारी हैं, जो सूर्य के पुजारी हैं, सरस्वती के पुजारी हैं, वे सभी विरोध में चले गए। सूर्य की शवितयों के विरोध में, उसकी अवज्ञा करते हुए । क्योंकि आपमें यदि नैतिकता व पावनता का विवेक चेतावनी दे रही थी कि यद्यपि आप लोग भी अब औद्योगिक क्रान्ति को अपना लक्ष्य वना रहे हैं परन्तु आपने औद्योगिक क्रान्ति की जटिलताओं से बचना है। आत्मा को जानने का प्रयत्न अवश्य करें। नहीं है तो आप सूर्य नहीं बन सकते। सभी कुछ आत्मज्ञान प्राप्त किए बगैर आपको भी वही समस्याएं होंगी जो इन लोगों को हैं। क्योंकि वे भी मानव है स्पष्ट देखने के लिए सूर्य स्वयं प्रकाश प्रदान करते हैं। सर्य में बहुत से हैं। वे सभी गीली, गन्दी गुण और आप भी। आप भी उसी मार्ग पर और मैली चीज़ों को रुखाते हैं। परजीवी जन्तु उत्पन्न करने वाले स्थानों को वे सुखाते हैं। परन्तु पश्चिम में बहुत से परजीवी जन्म लेते हैं। केवल और समस्याएं चलेंगे। अचानक आप दौड़ पड़ंगे होंगी, बिल्कुल वैसी ही समस्याएं जैसी पश्चिमी लोगों को हैं। से भयानक पंथ और भयानक परजीवी ही नहीं बहुत सरस्यती जी के इतने आशीर्वाद हैं कि चीजें भी पश्चिम में आ गई हैं, उन देशों में जिन्हें चैतन्य लहरी अंक : 9 & 10 -2007 11 हैं तो वे हमें सुबुद्धि देती हैं, विवेक देती हैं। इसी कारण से सरस्वती पूजन के लिए, सूर्य पूजन के लिए हमारे अन्दर स्पष्ट दृष्टि होनी चाहिए कि हमें क्या बनना है, हम क्या कर रहे हैं, कैसी प्रकाश से परिपूर्ण होना चाहिए था परन्तु वे उसी हमारे अन्दर अन्धकार में बने हुए हैं। आत्मा के विषय में अन्धकार, अपने ज्ञान के विषय में अन्धकार और प्रेम के विषय में अन्धकार। जहाँ प्रेम का प्रकाश होना चाहिए था वहाँ इन तीनों चीज़ों का साम्राज्य है। प्रकाश का अर्थ वह नहीं है जो आप अपनी स्थूल दृष्टि से देखते हैं प्रकाश का अर्थ है- अन्तर्प्रकाश- गन्दगी में हम रह रहे हैं, हमारा मस्तिष्क कहाँ जा रहा है आखिरकार हम यहाँ पर मोक्ष प्राप्ति के लिए हैं, अपने अहं को बढ़ावा देने तथा अपने अन्तःस्थित गन्दगी के साथ जीवनयापन करने के प्रेम का प्रकाश। यह इतना सुखकर है, इतना मधुर लिए नहीं। इतना सुन्दर है, इतना आकर्षक है और इतना विपुल है कि जब तक आप इस प्रकाश को अपने तो ये प्रकाश हमारे अन्दर आया है और अन्दर महसूस नहीं कर लेते- वह प्रकाश जो पावन प्रेम है, पावनता है, पावन सम्बन्ध है, पावन सूझ-बूझ है, आपको चैन नहीं आ सकता है। इस प्रकार का हमें अपनी मानसिक गन्दगी, जो हमारे चहुँ ओर पनप रही है, से ऊपर उठने का प्रयत्न करना चाहिए। इसके अतिरिक्त गहनता में जाकर आपको समझना होगा कि हमारे अन्दर अहं नाम की भी प्रकाश यदि आप अपने अन्दर विकसित कर लें तो सभी कुछ स्वच्छ हो जाएगा। 'मुझे धो दो और मैं बर्फ से भी श्वेत हो जाऊंगा। VWash me and I एक संस्था है। यह अहम् मिथ्या हैं, बिल्कुल मिथ्या। आप कुछ नहीं करते। वास्तव में जब आप अपनी दष्टि इधर-उधर घूमाते हैं, जब आपका चित्त Shell be whiter then Snow I पूण्णत: स्वच्छः है जाने पर आपके साथ भी ऐसा ही होता है। इंधर-उधर जाता है, तब यह केवल आपका अहम् प्रकृति का पावनतम रूप हमारे अन्दर निहित होता है जो आप पर काबू पाने के लिए प्रयत्नशील है- प्रकृति का पावनतम रूप। प्रकृति के पावनतम रूप से ही हमारे चक्र बनाए गए हैं। मानसिक विचारों द्वारा हमीं लोग इसे बिगाड़ रहे हैं। उसी सरस्वती शक्ति के विरुद्ध, आप साक्षात सरस्वती के है। परन्तु वास्तव में अहम् पूर्णत: असत्य है क्योंकि अहम् तो केवल एक 'सर्वशक्तिमान परमात्मा'- 'महत् अहंकार'। इसके अतिरिक्त किसी अन्य अहम् का अस्तित्व नहीं है। है और वो है विरुद्ध जा रहे हैं। प्रकृति की सारी अशुद्धियों को सब मिथ्या है । बहुत बड़ा मिथक है क्योंकि यदि सरस्वती शुद्ध करती हैं, परन्तु अपनी मानसिक गतिविधियों से हम इसे बिगाड़ रहे हैं । हमारी सारी मानसिक गतिविधि पावन विवेक के विरुद्ध जाती है और यही बात व्यक्ति ने समझनी है कि अपने विचारों द्वारा हमने इस शुद्ध विवेक को नहीं बिगाड़ना। सभी दिशाओं में यह अपना प्रक्षेपण कर सकता है। हमारे विचार हमें इतना अहंकारी, डइतना अहंवादी इतना अस्वच्छ बना देते हैं कि हम वास्तव में तो अन्य लोगों को नियन्त्रित करता है। दूसरे विषपान करते हैं और कहते हैं, 'इसमें क्या बुराई है?' सरस्वती के विल्कुल विरुद्ध। सरस्वती यदि आप सोचने लगे कि आप ही सभी कुछ कर रहे हैं- आप ये कर रहे हैं, आप वो कर रहे हैं- जो आप नहीं कर रहे, तो यह धूर्त अहम् प्रवेश कर जाता है और आप इसे कार्यान्वित करने लगते हैं। आगे की ओर जब यह अपना प्रक्षेपण करता है लोगों पर रोब जमाने का, उनका वध करने का प्रयत्न करता है। हिटलर बन जाता है। जब গ चैतन्य लहरी अंक : 9& 12 10 -2007 प्राप्त होती है। परन्तु कितनी बार मैं ऐसा कहती हूँ? आप यदि कुछ कहते हैं तो अधिक से अधिक मैं यही कहती हैँ कि, "हाँ।" परन्तु मैं वो नहीं कहती। मैं यदि जोर से ऐसा कहूँ, तो मैं नहीं जानती, क्या ये दाई ओर को जाता है तो यह अतिचेतन ( Supra Conscious) बन जाता है। तब यह हास्यास्पद, मूर्खतापूर्ण और व्यर्थ की चीज़ों को देखने लगता है। जब यह बाई ओर को जाता है तो यह इस प्रकार से देखने लगता है, मानो हो जाए! सभी कुछ शायद नष्ट हो जाए! अत: हमें आप कोई बहुत बड़े आदमी हों, बहुत बड़े ईसामसीह, बहुत बड़ी देवी या आदिगुरुओं की है, वही कर्म करता है, वही सृजन करता है। तरह से कुछ और "मैं अति महान व्यक्तित्व कभी-कभी मैं आप पर चिल्लाती हूँ, तुरन्त सारे हूँ!" यह बायाँ पक्ष है। और जब यह पीछे की ओर जाता है तो अत्यन्त भयानक है। उस स्थिति समझना है कि केवल महत् अहंकार ही गतिशील भूत भाग खड़े होते हैं। मात्र मेरे एक बार चिल्लाने पर। कल आपने देखा, बातें करने वाले सभी भूत में लोग ऐसे गुरु बन बैठते हैं जो दूसरों को था। बरबाद कर रहे हैं। उनका अहं जब पीछे की ओर अत: आपको समझना है कि अब आप जाता है तब वे गुरु बन बैठते हैं। उनके अपने अन्दर अनगिनत दोष होते हैं और अन्य लोगों को हैं। स्वयं पर चिल्लाने के लिए आप दाई विशुद्धि भी वे इसी घोर न्क में खींचने का प्रयत्न करते हैं। का उपयोग करें, "क्या अब तुम डींगे मारनी बन्द आत्म साक्षात्कारी हैं, आप भी ऐसा ही कर सकते सभी ओर, अहंकार की गतिविधि ही नर्क है। करोगे, क्या तुम बेवकूफी भरी बातें करनी बन्द कुे लोग जब अपनी दाई विशुद्धि का उपयोग करोगे क्या तुम दिखावा करना बन्द करोगे?" तब करने लगते हैं, अपनी डींग मारने लगते हैं, तो ये यह रुक जाएगा। सबसे बुरी बात हैं। किसी भी प्रकार का अहं आपको हो, यदि आप इसकी शेखी बघारने लगते हैं, इसके बारे में बात करने लगते हैं, तब यह आपको चहूँ ओर से घेर लेता है अहं की दीवार को इतना मोटा कर देता है कि उसका भेदन ये स्थूलता उन लोगों द्वारा घटित होती है जो वास्तव में गतिशील हैं। वे इसके विषय में कुछ करना चाहते हैं, ऐसा नहीं हैं कि वो गतिशील नहीं है। वो करना चाहते हैं, परन्तु उन्हें केवल एक ही मार्ग का ज्ञान है कि लम्बी बातें करनी हैं। वो नहीं समझते कि कुछ आन्तरिक मार्ग भी हैं जिनके द्वारा असम्भव हो जाता है, क्योंकि, ऐसा व्यक्ति अपने आप से पूरी तरह सन्तुष्ट होता है, और मानता कि वह ऐसा ही है। एक बार जब उसका विश्वास आप कहीं अधिक नियन्त्रण कर सकते हैं। क्योंकि वे इन्हें अपनाना ही नहीं चाहते, बातों में हो उलझे इस प्रकार की मुर्खता में हो जाता है तो अहं की उस दीवार को तोड़ना बिल्कुल असम्भव हो जाता है। रहते हैं। एक बार जब उन्हें इसकी आदत हो जाती है तो वे इसके विषय में बात करते हैं और सारी अत: जब भी आप इन चीजों के बारे में शक्ति बाहर चली जाती है। यदि वे इसके बारे में डींग मारें, या लम्बी बातें करने लगे तो सावधान हो जाएं। आप जानते हैं कि मैं क्या हूँ, परन्तु मैं कितनी है। आप अपने अनुभवों के बारे में मुझे बता बार कहती हूँ कि "मैं वो हूँ।" मैं चाहे एक बार ऐसा कहूं तो आपको बहुत तेज़ चैतन्य लहरियाँ को ये अनुभव बताने लगेंगे, इसके बारे में बहुत बात न करें, इसे अपने अन्दर बनाए रखें तो ठीक सकते हैं, ठीक है, परन्तु यदि आप अन्य लोगों अंक : 9 & 10 2007 चैतन्य लहरी 13 सब'। परन्तु वह गर्व नहीं है। मैंने देखा है कि वह गर्व विद्यमान नहीं है। अब भी यह अत्यन्त व्यक्तिगत अधिक बातें करने लगेंगे तो जो शक्ति आपको प्राप्त हुई है वह धीरे-धीरे लुप्त होने लगेगी और आप पूर्णतया निम्नस्तर पर आ जाएंगे। अतः व्यक्ति को ये बातें बहुत अधिक नहीं करनी चाहिए कि मेरे पास ये शक्ति है, मेरे पास वो शक्ति है या मैं ऐसा सोचता हूँ, या मेैं ऐसा करता हूँ, ऐसा करना मउपे है। आप यदि ये सोचने लगे कि 'हम' 'सहजयोगी तो होता क्या है कि आप 'एक व्यक्तित्व,' एक संस्था बन जाते हैं। परन्तु व्यक्ति तो अन्य लोगों को हीन भावना से देखता है, वह देखता है कि फलां व्यक्ति नीचा है, फलाँ ऊँचा है, फलाँ ऐसा है। वो ये नहीं सोचेगा कि 'हम सहजयोगी' कितने सुन्दर हैं! अत: बिल्कुल गलत है मैं आपको चेतवनी देती हूँ कि दिखावा करने का प्रयत्न न करें, ( Do not try to show off)। हाँ, आप मेरी शक्तियों के बारे में बात कर सकते हैं, यह बिल्कुल ठीक हैं, परन्तु अपनी शक्ति के बारे में बात करने का प्रयत्न न करें। 'हम' शब्द से सोचें, इस प्रकार हमारा अहं कम, कम, और कम हो जाएगा। और कल, यही मूर्ख अगर कहना ही पड़े, नि:सन्देह जब आप किसी और हास्यास्पद लगने वाला अहं एकादश का शिकार नकारात्मक व्यक्ति से बात करें या बताएं तब हो जाएगा। आपको 'हम' कहना चाहिए "मैं नहीं। 'हमें'. हममें से कुछ को, यह शक्ति अपने अन्दर महसूस हुई है। 'हमने लोगों को देखा है। चाहे आप ही बोल आज, व्यक्तिगत अहं एकादश में विलीन हो जाएगा परन्तु हम सबको हर समय 'हम' कहना याद रखना होगा। आज का दिन हमारे लिए इसी कारण से महान है कि हमने परिवर्तित होना है, रहे हों, परन्तु आपको 'मेंने' कहने की आवश्यकता नहीं हैं। आपको कहना है, 'हम,' तब आप महत् क्योंकि सूर्य ने भी अब अपनी दिशा बदल दी है। अहंकार बन जाते हैं। जब आप कहते हैं, 'हम हममें' से कुछ,' 'हम करते हैं।' जैसे ग्रेगोर की पुस्तक में मैंने किया है कि वह बहुत अधिक 'में आस्टेलिया के लोगों के लिए ये कहना है कि यद्यपि शब्द न लिखे, इसके स्थान पर 'हम' अर्थात पूरी सुर्य चला गया है, फिर भी आइए सूर्य को स्थापित सामूहिकता, पूरा सामूहिक अवयव, सहजयोगियों का जीवन्त अवयव (Living Organism) । अतः यदि क्योंकि हमारे अन्दर सूर्य कभी लुप्त नहीं होता। आप कहते हैं, हाँ 'हममें से कुछ को प्राप्त हैं,' तो इसका अर्थ ये है कि आप अपने को निम्नस्तर पर रखते हैं और अन्य सभी को अपने से ऊपर। कहें, सोचें, 'हम सब मिलकर, हम सब मिलकर।' कोई 'हाँ' हममें से कुछ को प्राप्त है। मैं जानता हूँ कि कुछ लोगों के पास ये शक्तियाँ हैं।' करने की यही विधि है। क्योंकि यदि आपने अपने अहं पर काबू सूर्य इस ओर आ रहा है, तो आइए सूर्य का उत्तर की ओर, इस दिशा में, आने का स्वागत करें। करें, हमारे अपने अन्दर सूर्य के साम्राज्य को। अत: हमें इस प्रकार से ऐसा आदर्श अपनाना होगा जिसके माध्यम से हम 'एक व्यक्तित्व' के विषय में भी व्यक्ति जो कुछ अलग या भिन्न बनने का मैं उसे प्रयत्न करेगा वह बाहर चला जाएगा। निकाल दूंगी। चाहे जो हो, वह निकल जाएगा | पाना है तो आप इसे हर व्यक्ति में प्रसारित होने की आज्ञा दें। इस प्रकार से आप इसे पूर्णतया ठीक कर पाएंगे। इसे फैलने दें, हम सभी सहजयोगी, 'हम अत: जो भी विशेष बनते हैं वो अपना आकलन करें। पूर्ण (Whole) का पोषण करने के लिए, पूर्ण (Whole) की सहायता करने के लिए, पूर्ण का |tE শ अंक : 9 & 10 चैतन्य लहरी 2007 14 उद्धार करने के लिए, हर आदमी जो चाहे करे, मैंने एक अत्यन्त सुन्दर कविता लिखी थी- "धूल परन्तु कभी भी किसी को नीचे धकेलने के लिए नहीं। क्योंकि सहजयोग ऐसा नहीं है। सहजयोग "कि मुझे धूल कण होना चाहिए, ताकि मैं लोगों में केवल सामूहिकता में ही कार्य करता है और जिसने यह पारगामी आत्मा विकसित कर ली वही सच्चा सहजयोगी है, जिसने नहीं की, वो नहीं है। अपने हैं वह जीवन्त बन जाती है, जिस चीज़ को महसूस विषय में आप जो चाहे सोचते रहें, मुझे कुछ नहीं करते हें वो सुरभित हो उठती है, इस प्रकार बन कण बनना', मुझे स्पष्ट याद है, बहुत समय पूर्व, व्याप्त हो सकू" जो बहुत बड़ी चीज़ है- इस प्रकार का धूल कण बनना। आप भी जिस चीज़ को छूते जाना बहुत बड़ी बात है। मेरी यही इच्छा है, और यह पूर्ण हो जाएगी। उस छोटी आयु में भी मुझे धूल कहना, परन्तु यह पारंगामी व्यक्तित्व एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचता है चाहे आप कुछ बोलें या ने बोलें। जैसे आपकी माँ हैं। मैं आपसे मिलूं या कोई फर्क नहीं पड़ता, परन्तु मैं आप सबमें व्याप्त हूँ, छोटी-छोटी चीज़ों के द्वारा भी मैं आपके साथ हूँ। अत: इस प्रकार से एक दूसरे और का कण बनने का विचार था, और आज आपसे बात करते हुए मुझे याद आया कि में वही बनना चाहती थी, ये वही स्थान है । राऊल बाईं भी वैसी ही हैं। वे बहुत सहज महिला हैं, बहुत ही सादी ही सादे ढंग से वो रहती हैं, उनमें व्याप्त न मिलूं बहुत में व्याप्त होने का प्रयत्न करें और अपने अन्दर के सौन्दर्य को देखें। अपना भरपूर आनन्द उठाएं क्योंकि होने का विवेक है। अब बहुत से सहजयोगी हैं, कल जो लोग आए, और मुझे विश्वास है कि वे सहजयोग को ठीक प्रकार से अपना लेंगे, धुलिया यही सबसे बड़ी चीज़ है और यही सबसे बड़ी चीज़ प्राप्त करनी है। ये अहं आपको छिलके (Nutshell) की तरह से बना देता है जो व्याप्त होने के भी अब बहुत से सहजयोगी हैं और मुझे पूरा के सौन्दर्य के साथ तालमेल नहीं रख सकता। देखें विश्वास है कि और अधिक लोग आएंगे। आशा है आप सबसे मिलें होंगे, सबसे दोस्ती बनाएं, जानने कि स्वर किस प्रकार एक दूसरे में घुलमिल जाते हैं! का प्रयत्न करें कि वो कौन हैं, हो सकता है उन्हें आज के दिन ये महान धारणा बहुत उपयुक्त अंग्रेजी न आती हो, आप कोई अनुवादक ले सकते उनसे बातचीत करें और उनके प्रति अच्छे बने होगी। आज हम धुलिया में पूजा कर रहे हैं, ये बहुत महान बात है। धुलिया का अर्थ है-धूल। 'धूल'। उनसे दोस्ती करें। व्याप्त होने (Permeation) के बचपन में, मुझे याद है, मैंने एक कविता लिखी थी। ये बड़ी अच्छी कविता थी, मैं नहीं जानती कि ये मैंने इसमें लिखा था कि "धूल लिए मैं चाहती थी कि आप उनसे मिलें। आपको पता होना चाहिए कि ये लोग कौन हैं, और नासिक में कौन लोग हैं, क्योंकि वहाँ के सहजयोगियों से हम कभी नहीं मिलते। जब हम वापिस जाते हैं तो * हमारे पास केवल एक या दो पते होते हैं! ये अच्छी सोच नहीं है, देखने का प्रयत्न करें कि वहाँ कितने लोग हैं, उनसे उनके विषय में प्रश्न पूछे आदि आदि। अब कहाँ है। परन्तु के उस कण की तरह से छोटी बनना चाहती हूँ जो हवा के साथ उड़ता है, सर्वत्र जाता है, जाकर सम्राट के सिर पर बैठ सकता है या किसी के चरणों में गिर सकता है, या कहीं भी जाकर बैठ सकता है। परन्तु में ऐसा धूल का कण बनना चाहती हूँ जो सुरभित है, पोषक है और प्रकाशप्रदायी है।" इसी ये व्याप्तिकरण केवल तभी सम्भव है जब आपका अहं चहुँ ओर व्याप्त होने लगेगा और दाई प्रकार से मुझे याद है, जब में सात साल की थी तब अंक : 9 & 10 चैतन्य लहरी 2007 15 ओर की समस्याओं पर काबू पाने का भी यही उपाय है और सरस्वती की पूजा भी इसी प्रकार से करनी है। सरस्वती के हाथ में वीणा है और वीणा आदिवाद्ययन्त्र है जिसका संगीत वे बजाती हैं। वह संगीत हृदय में प्रवेश कर जाता है। आपको पता भी जल गंगा नदी बन जाता है! ये सब सूक्ष्म चीजें हैं। अतः पदार्थ सूक्ष्म बन जाते हैं क्योंकि इन्हें होना होता है- सर्वत्र प्रवेश करना होता है। अत: हर चीज़, चाहे जो हो- और वायु सर्वोत्तम है- वह वायु भी चैतऱ्य-लहरियों में परिवर्तित हो जाती है! नहीं चलता कि किस प्रकार आपके अन्दर ये संगीत अतः आप देख सकते हैं कि किस प्रकार प्रवेश करता है और किस प्रकार कार्य करता है! पदार्थ से बनी चीज़ें- इन पाँच तत्वों से बनी हुई चौजें- सूक्ष्म बन जाती हैं । नि:सन्देह बायाँ और इसी प्रकार से सहजयागी को भी व्याप्त हो जाना चाहिए- संगीत की तरह से। जैसे मैने दायाँ- दोनों पक्ष इसे कार्यान्वित करते हैं। क्योंकि आपको बताया, बहुत से गुण हैं जिनका वर्णन एक प्रवचन में नहीं किया जा सकता है, परन्तु सरस्वती जी का एक गुण ये है कि वे सूक्ष्म चीजों में प्रवेशहै। और इसी दृष्टि से व्यक्ति को अपने जीवन को कर जाती हैं। जैसे पृथ्वी माँ सुगन्ध में परिवर्तित हो जाती हैं, इसी प्रकार से संगीत लय में परिवर्तित हो संयोजन बनाने के लिए। 'प्रेम' ने इस पर कार्य करना होता है और प्रेम जब पदार्थ पर कार्य करता है तो पदार्थ भी प्रेम बन जाता भी देखना चाहिए- इसे प्रेम और पदार्थ का सुन्दर जाता है और जिस भी चीज़ का सृजन वे करती हैं वह और अधिक महान हो जाती हैं। जिस भी पदार्थ को वे उत्पन्न करती हैं वह सौन्दर्यसम्पन्न हो जाता है। सौन्दर्यविहीन पदार्थ तो स्थूल है और इसी प्रकार परमात्मा आपको धन्य करें। निर्मला योग-1983 रूपान्तरित) प सभी कुछ है। अब आप कहेंगे कि जल क्या है? ता पा तम ाम बि आज्ञा चक्र दिल्ली- 3.2.1983 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज हम आज्ञा चक्र के विषय में जानेंगे, के माध्यम से देखना होता है। जैसे एक खिड़की, आज्ञा चक्र के विषय में, जो दृकतन्त्रिका के पारक (Crossing) पर स्थित है । आँखों को पोषण प्रदान खिड़की के माध्यम से देखेंगे तब आपको खिड़की करने वाली नाड़ियाँ जहाँ एक दूसरे को पार करती दिखाई नहीं देगी। अतः जिन लोगों को ये भ्रम है हैं, वहाँ से उल्टी दिशा में चली जाती हैं और इसी कि क्योंकि हम तीसरी आँख को देख सकते हैं स्थान पर यह सूक्ष्म चक्र स्थित है । मेरुरज्जु (सुषुम्ना) इसलिए हमारी कुण्डलिनी जागृत हो गई है, वे के माध्यम से यह निरन्तर अन्य चक्रों से जुड़ा हुआ लोग बुरी तरह से गलती पर हैं। । इस चक्र में दो पंखुड़ियाँ हैं। यह सूक्ष्म केन्द्र दो तरफ से कार्य करता है- एक तो ऑँखों के माध्यम से और दूसरे सिर में पीछे की ओर उठे हुए भाग (पीछे की आज्ञा) के माध्यम से। इस चक्र को ये शारीरिक पक्ष है। जो लोग तीसरी आँख की बात करते हैं, ये तीसरी आँख है। हमारी दो आँखें हैं लिए कोई स्थान नहीं रहता। प्रतिअहं और अहं आप खिड़की को देख सकते हैं, परन्तु यदि आप यह अत्यन्त संकीर्ण मार्ग है जिसके अन्दर से प्राय: चित्त नहीं गुजर सकता, यह असम्भव कार्य है। ये संकीर्ण मार्ग है जिसके अन्दर अहं तथा प्रतिअहं स्थापित हैं और एक दूसरे को पार (cross) करते हैं। इनके बीच में कुण्डलिनी के गुज़रने के जिनके माध्यम से हम देखते हैं परन्तु एक तीसरी आँख भी है जो अत्यन्त सूक्ष्म है और इसके माध्यम से भी हम देख सकते हैं। ये आँख यदि दिखाई वापिस जाते हैं, नीचे की ओर जाते हैं और विशुद्धि चक्र पर आकर इसके चहुूँ ओर घूमकर उसी दिशा में चले जाते हैं। अत: आप देखते हैं कि ये इस पड़ती है तो इसका अर्थ ये है कि आप इस आँख से अपनी आँखों को देख सकते हैं तो इसका अर्थ ये स्थान तक आते हैं, यहाँ से चलते हैं और आज्ञा चक्र तक जाकर परस्पर एक दूसरे को पार करते हैं। हैं। उदाहरण के रूप में, यदि आप दूर परन्तु यहाँ पर ये एक ही दिशा में जाते अर आज्ञा चक्र पर एक-दूसरे को पार करके विपरीत द्रिशा में चले जाते हैं। अत: यदि आपको है कि आप अपना प्रतिबिम्ब देख रहे हैं वास्तविकता नहीं। किसी चीजू को यदि आप देखते हैं तो इसका अर्थ ये होता है कि आप इसकी ओर देख रहे हैं । अत: जो लोग ये कहते हैं कि उन्हें आँख दिखाई बाई ओर की समस्या है तो इसके परिणाम पड़ती हैं- उदाहरण के रूप में LSD तथा अन्य नशीले पदार्थ लेने वाले लोग, उन्हें यह आँख दिखाई देने लगती है। वो इस आँख को देखते हैं यहाँ पर आरम्भ होती है। परन्तु बाईं ओर वास्तव और सोचते हैं कि उनकी तीसरी आँख खुल गई है। में, दाएं, पक्ष पर कार्य करती है। वास्तव में आप उस आँख से बहुत दूर आप इसे देख पाते हैं। जब आप दाईओर को होगा या कुण्डलिनी जागृति के माध्यम से इसमें अतिचेतन स्तर (Supra-Conscious) पर और प्रवेश करना होगा। परन्तु तालूक्षेत्र, जो कि परमात्मा बाईओर को अवचेतन (Sub-Conscious) स्तर पर चले जाते हैं तब आप तीसरी आँख देख कोई भी व्यक्ति इस संकीर्ण द्वार से जब अपना सकते हैं। परन्तु सहजयोग में आपको इस आँख है आपको दाई ओर महसूस होंगे। परन्तु दाई ओर यहाँ से शुरु होती है, यहाँ तक और बाईं ओर दा हैं इसीलिए अत: इस तीसरी आँख का भेदन करना का साम्राज्य है, का द्वार इतना संकीर्ण है कि चित्त इसके अन्दर धकेलने का प्रयत् करता दह क चैतन्य लहरी अक : 9 & 10 17. 2007 भविष्य को देख सकते हैं। मान लो पृथ्वी पर तो वह या तो बाएं को चला जाता है या दाएं को। और जिन लोगों को इस बात का ज्ञान नहीं है रहते हुए आपके पास ऊँचाई तक पहुँचने और वहाँ कि जरूरी नहीं कि अज्ञात चीज़ परमात्मा हो या दिव्य हो, उन लोगों के लिए यह कष्ट की शुरुआत होती है। अत: जब वे दाईओर (Right side) को होने वाला है और जहाँ भी आप हैं आप वर्तमान में चले जाते हैं तो वे अतिचेतन (Supra-Conscious) क्षेत्र में पहुँच जाते हैं और मतिभ्रम (Halluination ) के शिकार हो जाते हैं। वास्तव में ये मतिभ्रम नहीं (Super-Conscious) के उस बिन्दु तक पहुँचता होता क्योंकि द्वाई ओर इन सभी चीजों का अस्तित्व जहाँ से वह अतिचेतन (Supra-Conscious) दाईओर है। तो वे दाई ओर की चीजें देखने लगते हैं। उन्हें को तथा अवचेतन (Sub-conscious) को देख रंग, और रंगों की बनावट दिखाई दे सकती है, वो ऐसे मृत लोगों को देख सकते हैं जो बहुत ही अहंकारी थे। वे गंधवों और किन्नरों को देख सकतें यही कुण्डलिनी की जागृति है। हैं क्योंकि वे दाईओर, गंधर्वलोक जाते हैं तथा अतिचेतन की अन्जानी चेतनता में वो चर्ज़ देखने कण्डलिनी की जागृति बहुत कठिन है और बहुत स्वयं को लटका लेने का काई साधन है तो वहाँ से आप देख सकते हैं कि क्या हो चुका है, आगे क्या हैं। इसी प्रकार उत्क्रान्ति होती है, वर्तमान में, तो वह पराचेतन से व्यक्ति की जब वास्तव में सकता है। परन्तु इनमें उसकी कोई रुचि नहीं होती। वह वर्तमान में उन्नत होना चाहता है और वास्तव में अत: वे सभी लोग जो ये कहते हैं कि लगते हैं। परन्तु यह गतिविधि अत्यन्त भयानक है, क्योंकि वहाँ पर यदि कोई आपको पकड़ ले तो हानिकारक है, ये वो लोग है जिन्हें कुण्डलिनी जागृत करने का कोई अधिकार नहीं है। ये लोग जब चालाकियाँ करने लगते हैं तो उनका अनुकम्पी नाड़ी एक अन्य व्यक्ति आपके सिर पर सवार हो जाएगा और आप अहं के वशीभूत होकर स्वयं अपनेआप, सांघातिक ( Malignant) हो जाएंगे| हिटलर ऐसा ही एक उदाहरण है। उसने तिब्बत के लामाओं से यह सीखा कि अतिचेतन में किस प्रकार जाना है। उनसे यह विधि सीखकर उसने इसका उपयोग किया और बहुत से लोगों को अतिचेतन अहंवादी बनाया। लामाओं की प्रणाली के बारे में आपने अवश्य सुना होगा, यह एक अन्य बहुत बड़़ा जो ये कहते हैं कि हम इस विधि से या उस विधि E(Sympathetic Nervous System) a I उत्तेजित हो जाता है तथा बाई और दाईं ओर ये अनुकम्पीप्रणाली, मध्यमार्ग (पराअनुकम्पी) से बहुत अधिक ऊर्जा खींचने लगती है। यह इतनी अधिक ऊर्जा खींचती है कि पराअनुकम्पी (Central Path ) की ऊर्जा समाप्त होने लगती है और ऐसा व्यक्ति वास्तव में विक्षिप्त हो जाता है। अत: बहुत से लोग समस्या थी। उन्हें भविष्य का ज्ञान था कि अगला से कुण्डलिनी जागृत कर रहे हैं, वे साधकों के जीवन नष्ट करते हैं। अन्ततः साधक बिना कुछ लामा कौन बनेगा, उसे कहाँ खोजा जा सकता है, कहाँ पाया जा सकता है। उन्हें भविष्य का ज्ञान था और लोगों ने ये सोचा कि वे दिव्य हैं। 'भविष्य ' का ज्ञान दिव्यत्व नहीं है, क्योंकि यह तो असन्तुलन है हम मानव हैं और हमें 'वर्तमान' को जानना है 'भविष्य' को नहीं। वर्तमान अवस्था से जब आप गुज़रते हैं तो उस ऊँचाई तक पहुँचते हैं जहाँ से आप भूत, वर्तमान और प्राप्त किए निस्सहाय छोड़ दिया जाता है। (साधक) नहीं जानते कि प्राप्त क्या करना है और पाना क्या है। इस प्रकार के पथ भ्रष्ट हो जाते परन्तु तर्कदृष्टि से व्यक्ति को समझना चाहिए कि कम से कम तुम्हारा स्वास्थ्य तो ठीक हो जाना चाहिए, मानसिक रूप से तो उसे ठीक हो बे अंक 9 & 10 चैतन्य लहरी 18 -2007 अधिक, नहीं लगभग बारह वर्ष पहले, अमरीका के कुछ लोग मुझे मिलने आए। उन्होंने मुझसे कहा कि, जञाना चाहिए, उसका स्वभाव तो सुधर जाना, चाहिए, कम से कम इतना तो होना चाहिए। परन्तु यदि आप अपना सारा धने गुरुओं की भेंट चढ़ाए चले जा रहे हैं, इन मूर्खतापूर्ण अनुभवों के लिए अपना स्वास्थ्य चौपट कर रहे हैं, स्वयं पर यदि आपको कोई नियंत्रण नहीं है, तो आपको समझ लेना चाहिए कि यह किसी भी प्रकार से सत्य नहीं है। वास्तविकता तो वह होती है जहाँ आपका नियन्त्रण हो। परन्तु हैं।" मैंने कहा, वे सब भूतबाधित होकर समाप्त हो यदि आप स्वयं किसी अन्य के नियन्त्रण में हैं तो जाएंगे। मैं वह सब कुछ नहीं करना चाहती जो रूसी आपका पतन हो चुका है। उदाहरण के रूप में कुछ लोग उछलने लगते हैं और कहते हैं, "श्रीमाताजी मैं उन्हें भी यही बताऊंगी तो उन्होंने कहा, "नहीं स्वतः ही उछलने लगता हूँ।" यह गम्भीर मामला नहीं, हमें तो सीखना ही है।" मैंने कहा, कि मैं यदि है। इसका अर्थ ये है कि आपको स्वयं पर नियन्त्रण तुम्हें कहूं कि स्वयं मृतआत्माओं के गुलाम बन नहीं है। आप इसलिए उछल रहे है कि कोई अन्य आपको उछाल रहा है। आप नहीं उछल रहे। इसका अर्थ ये है कि आपकी अपनी चेतना, अपना चित्त, ऐसा करेंगे।" उन्होंने जब मुझसे कहा कि हम ऐसा आपकी अपनी चेतना, किसी अन्य के नियन्त्रण में इसलिए करना चाहते हैं क्योंकि रूसी लोग ऐसा कर है। आप अपना नियन्त्रण नहीं कर सकते। अतः ये रहे हैं तो मैने पूछा, तुम्हें किसने भेजा है? तब मुझे सब अनुभव जिनमें लोग सोचते हैं कि वे हवा में उन्होंने एक व्यक्ति का नाम बताया जो बम्बई में उड़ रहे हैं या लौकिक गतिविधियों से ऊपर पहुँच पत्रकार है। मैंने कहा, यह व्यक्ति भी इसी रोग का गए हैं, हवा में जाकर चीज़ों को देख रहे हैं, तो ये सब बहुत ही भयानक चीजें हैं। ऐसा व्यक्ति अन्ततः पागल हो सकता है। पूर्णत: पागल, क्योंकि वह स्वयं पर नियन्त्रण पूरी तरह से खो देता है। इन अनुभवों को 'परामनोवैज्ञानिक' (Parapsychological ) आप हमें हवा में उड़ूना सिखाइए।" मैंने कहा "क्यों? क्या आप उड़ते नहीं हैं?'" कहने लगे. "नहीं, हम अंतरिक्ष में यात्रा करना चाहते हैं।" मैंने कहा, क्यों? "क्योंकि रूसी लोग परामनोविज्ञान में प्रयोग कर रहे हैं और हम भी वैसा ही करना चाहते लोग कर रहे हैं। बो भी यदि मेरे पास आएंगे तो मैं जाओ और हर समय अपना शरीर कंपाते रहो? तो सा। इसके बावजूद भी उन्होंने कहा, "हाँ हम अवश्य शिकार था। वह अपना शरीर छोड़कर दूसरे विश्व में चला जाता, वहाँ की चीज़़ों को देखता। उसने बहुत कष्ट उठाए और स्वयं पर उसका नियंत्रण समाप्त होने लगा पर मैंने उसे रोगमुक्त किया। क्या वह सोचता है कि मैं वही बीमारी तुम्हें लगा दूँ? मैंने उसको उस रोग से मुक्त किया था और अब आप क्यों इसमें फँसना चाहते है? परन्तु उन्हें पूरा विश्वास था कि उन्हें इसकी आवश्यकता है और बाद में मुझे पता चला कि अमरीका में वे परामनोवैज्ञानिक व्यापार अनुभव कहा जाता है, इसे और बड़ा नाम देने के लिए अमरीका में 'परामनोविज्ञान' (Parapsychology) कहा जाता है। नि:सन्देह यह 'परा' (Para) है क्योंकि यह व्यक्ति के मनस ( Psyche) से परें है, परन्तु यह बहुत भयानक है। आपको इन जंजालों में नहीं फॅसना जहाँ आत्माएं ( भूत) आपको पकड़ लें और नहीं, परन्तु आड़ोलित होना। बाईं या दाई ओर चला रहे हैं जो कि अत्यन्त भयानक कार्य है! तो यह आड़ोलन है, आज्ञा को पार करना आप इस प्रकार से आचरण करने लगे जिनका वर्णन भी नहीं किया जा सकता। एक बार मेरे में इसके प्रभाव भिन्न हो सकते हैं परन्तु सहजयोग विचार से पाँच या छः वर्ष पहले, या इससे भी में ये समान हैं। जो लोग अवचेतन क्षेत्र में चले लुढ़कना, चाहे व्यक्ति अवचेतन में जाए या अतिचेतन चैतन्य लहरी अंक : 9 & 10 2007 19 जाते हैं वो मुझे भिन्न रूपों में देखने लगते हैं, यदि मेरा सम्बन्ध इस माइक्रोफ़ोन से न हो तो मैं आपसे बात न कर पाती। तो बिना परमात्मा से योग प्राप्त किए वे परमात्मा की पूजा करने लगते हैं। वे भिन्न प्रकार की आरतियाँ करते हैं, उपवास करते क्षेत्र में जाते हैं वो इस प्रकार से चीजें और हैं, ये वो, और स्वयं को सताते हैं। ये बाई ओर के लोग हैं। परमात्मा की स्तुति गान करना आदि सभी कुछ, अति में जाना, चोबीसों घण्टे वो यही करते हैं । पूर्वकाल, हर चीज़ के भूतकाल को देख रहे कोई (तान्त्रिक) भी उन्हें बाईं ओर को खींच लेता होते हैं। अत: यह अतिचेतन में जाना बहुत ही है। कुछ लोग हर समय राम-राम-राम ही करते भयानक है, इसमें कोई सन्देह नहीं, परन्तु रहते हैं । आप कह सकते हैं कि वाल्मीकि को राम का नाम लेने के लिए कहा गया था। परन्तु उसे ? नारद ने। नारद एक अवतरण थे, नारद। आप नारद नहीं हैं, तो किस प्रकार आप स्वयं से या कोई और व्यक्ति आपसे, नाम लेने के लिए कह सकता है? चाहे कोई भी नाम आप लें, आप परमात्मा तक नहीं पहुँच सकते। तब आप कहाँ जाते हैं? कहीं तो आप जाते हैं। हो सकता है राम नाम का कोई नौकर (भूत) हो जो आपको पकड़ ले! और लोग इस प्रकार अटपटे ढंग से बर्ताव करने लगते हैं कि वो पागल और जड़्सम जैसे LSD का नशा करने वाले लोग मुझे नहीं देख पाते, वे केवल मेरे अन्दर से निकलने वाले प्रकाश को देख पाते हैं, और जो लोग अतिचेतन उनके रूप देखने लगते हैं कि वो सोचते है कि वो स्वर्ग में पहुँच गए हैं! परन्तु वे उत्क्रान्ति से अवचेतन भी अत्यन्त भयानक है क्योंकि सभी लाइलाज बीमारियाँ जैसे कैंसर और मेलाइटिस ( Malaitis) आदि चित्त के बाई ओर चले जाने से होती हैं। अत: व्यक्ति को इन तान्त्रिकों के किसने कहा प्रति बहुत ही सावधान रहना चाहिए और उन लोगों से भी बहुत सावधान रहना चाहिए जो आपको नियंत्रित करने या भूत और भविष्य की बातें बताने का प्रयत्न कर रहे हैं। भूत या भविष्य के बारे में जानने की कोई जरूरत नहीं है। क्या आवश्यकता है? इससे क्या लाभ होता है? मैं यदि आपको ये बताने लगू कि लगते हैं । अतिचेतन के बारे में भी ऐसा ही है। जो वहाँ से आते हुए मेंने सारा रास्ता किस प्रकार तय किया तो क्या आपको इसमें कोई रुचि होगी? किस लोग बहुत अधिक महत्वाकांक्षी होते हैं वो भी प्रकार आपको अपनी पूर्वगरिमा या बीते हुए जीवन, जिनका आज कोई मूल्य नहीं है, में रुचि हो सकती है? परन्तु ये मानव की दुर्बलता है कि वह अपने सोचते केवल अपने विषय में ही सोचने लगते व्यक्तित्व में कुछ अत्यन्त बनावटी, अस्तित्वहीन ह और मूल्यहीन चीजें जोड़ना चाहता है और फिर वह कहता है कि मैंने ऐसा किया, मैंने वैसा किया, मैं ऐसा कर पाया, मुझे ये कभी नहीं मिला। इस प्रकार की पागल अवस्था में जा सकते हैं जहाँ वे सामूहिकता (संघ) के बारे में नहीं हैं। और जब ऐसी स्थिति आ जाती है तो उन्हें ये समझाना असम्भव हो जाता है कि वो गलत हैं और अन्ततः वे अपने वाटरलू (Waterloo) के युद्ध में पहुँच कर समाप्त हो जाते हैं। अत: ये आज्ञा चक्र एक द्वार है, स्वर्ग का भारत में लोग इस 'आज्ञा' के कारण प्राय: बाएं को चले जाते हैं क्योंकि वो कहते हैं, 'परमात्मा पूजा करो।' परन्तु परमात्मा की पूजा करने के लिए उनका योग तो परमात्मा से होता नहीं। देखिए द्वार, जिसमें से सभी को गुज़रना है। इस चक्र पर महान अवतरण, भगवान ईसामसीह का निवास है। हमारे भारतीय शास्त्रों में उन्हें महाविष्णु कहा गया की अंक : 9 & 10 -2007 चैतन्य लहरी 20 जब यहाँ (आज्ञा) पर रुकती है तो आपको भगवान ईसामसीह की स्तुति (Lord's Prayer) है, राधा-पुत्र! और वे ग्यारह रुद्रों, ग्यारह संहारक शक्तियों के तत्वों से बने हैं। परन्तु शासक तत्व, मुख्य तत्व श्री गणेश हैं, अर्थात अबोधिता। अतः वे कहनी पड़ती है, इसके बिना कुण्डलिनी ऊपर अबोधिता की प्रतिमूर्ति हैं। अबोधिता अर्थात पूर्ण नहीं जाती। ऐसा हमें ईसामसीह को जागृत करने पावनता। उनके शरीर का सृजन पृथ्वी माँ (पृथ्वी के लिए करना पड़ता है, बिना उनके जागृत हुए तत्व ) से नहीं हुआ, अर्थात उनका शरीर नश्वर नहीं था। यह ओंकार है। अतः मृत्यु हो जाने के कि इस चक्र पर ईसामसीह का साम्राज्य है। बाद भी वे पुनर्जीवित हो उठे। ये सत्य है, वे महाविष्णु का नाम लेने पर भी आज्ञा चक्र खुल पुनर्जीवित हुए क्योंकि उनका सृजन ओंकार से हुआ था। क्योंकि वे राधाजी के पुत्र हैं इसलिए आप उनमें और अन्य देवी देवताओं में सम्बन्धों को आसानी से समझ सकते हैं। महाविष्णु के विषय में देवीभागवत् में लिखा हुआ है। आज्ञा चक्र का न खुलना ये प्रमाणित करता है जाता है। अत: महाविष्णु और ईसामसीह एक ही हैं। अत: आपको इसका प्रमाण देखना होगा। तथा क्योंकि इस विश्वास के बल पर कि ईसामसीह आपके अपने हैं, काफ़िरों (Heathens) की तरह बाकी सब अवतरणों को त्याग देना आपकी भयंकर गलती हैं। ऐसा करना आपकी भयानक गलती है। परन्तु देवीभागवत् को कौन पढ़ता है? इन ग्रन्थों को पढ़ने का समय किसी के पास नहीं है। अधिकतर लोग बेकार की पुस्तकें पढ़ते हैं जिनमें पृथ्वी पर अवतरित हुए अवतरणों के विषय में कोई विषय में बताया था कि इसमें भोजन के विषय स्पष्टीकरण नहीं होता अत: ईसामसीह को समझने के लिए देवीभागवत् पढ़ना आवश्यक है। ये वैज्ञानिक दृष्टि से सत्य नहीं हैं। ये कहना बात यदि आप ईसाइयों से कहेंगे तो वो आपको सुनना ही पसन्द नहीं करेंगे, क्योंकि उनके लिए तो बाइबल ही अन्तिम शब्द है। ऐसा कैसे हो सकता है? क्योंकि बाइबल में ईसामसीह के केवल चार वर्षों के जीवन का वर्णन है? उनके बारे में अन्य सभी धर्मग्रन्थों में लोग चुपके से प्रवेश कर गए, सभी धर्म ग्रन्थों में! मैंने आपको गीता के में बहुत सी गलत धारणाएं जोड़ दी गई हैं जो परन्तु असत्य है कि तमोगुणी लोग मांसाहारी होते हैं। अधिक मात्रा में प्रोटीन खाने वाले लोग तो स्वतः रज्केगुणी हो जाते हैं । तो उन्होंने इस बात को परिवर्तित करने का प्रयत्न कैसे किया? केवल इसलिए कि ऐसा कहना उनके अनुकूल था? परन्तु पुस्तकों में भी कुछ वर्णन तो होगा, इन पुस्तकों के गीता के आरम्भ में वो ऐसा न कर पाए क्योंकि प्रति भी हमें अपनी आँखें खोलकर स्वयं देखना उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, "कि होगा कि सच्चाई क्या है! हम यदि धर्म को आयोजित करना चाहते हैं तब आपको कहना पड़ता है कि यही चीज़ है। इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। क्योंकि कोई अन्य चीज़ यदि है तो आपकी संस्था पीछे की ओर धकेल दी जाती है। परन्तु ये बात सत्य नहीं है। इन लोगों का वध करो।" मैं पहले से ही इनका वध कर चुका हूँ, तुम किसका वध कर रहे हो? अत: केवल ब्राह्मणवाद की मोहर लगाने के लिए ही उन्होंने ऐसा किया बाइबल में गलतियाँ तब आईं जब सेंटपॉल, जिसे ईसामसीह के बारे में बिल्कुल कोई ज्ञान न था, ने इसमें प्रवेश किया। मैं नहीं समझ पाती कि वह बाइबल में कैसे घुसा? वो स्पष्ट वर्णन किया गया है, ये बात हम कुण्डलिनी तो आत्मसाक्षात्कारी भी न था, मात्र एक अतिचेतन में भी साबित कर सकते हैं कि उठते हुए कुण्डलिनी रोमन सिपाही था। अत्यन्त खराब रोमन सिपाही, क्योंकि देवीभागवत् में ईसामसीह का अत्यन्त अक : 9 & 10| चैतन्य लहरी -2007 21 ये देखकर हैरान हो जाएंगे कि सभी देवी-देवताओं को भिन्न चक्रों पर स्थापित किया गया है और उन्हें बहुत से ईसाइयों की हत्या किया करता था । अचानक उन्होंने इस श्रीमान सेंटपॉल को बाइबल में ले लिया और आज पूरा विश्व बाइबल के माध्यम से उसे जागृत करना होगा। भारत में कभी-कभी मुझे ये दोष स्वीकार करता है। परन्तु यदि आप उसे पढ़ंगे तो दिया जाता है कि क्योंकि मैं ईसामसीह के विषय में बताती हूँ तो मैं ईसाईधर्म का प्रचार कर रही हूं और जब मैं इंग्लैण्ड में जाती हूँ तो वो कहते हैं श्रीकृष्ण के बारे में बता कर हिन्दूधर्म का प्रचार कर रही का नहीं। बाइबल में जो अध्याय उसने लिखे हैं हूँ। अब मैं यदि आपको बताऊ कि राधाजी ने उनमें वह वर्णन करता है- बहुत से लोगों को तो ईसामसीह का सृजन किया और आप यदि ईसामसीह को देखें तो उनकी उंगलियाँ (पहली और दूसरी) इस प्रकार (ऊपर की ओर उठी हुई) हैं समझने का प्रयत्न करें, दो उंगलियों का इस प्रकार उठा होना- एक श्रीकृष्ण की और एक श्री विष्णु की। और वो कहते हैं'परमपिता' (The Father)। इसामसीह हैं? ये श्री विष्णु हैं, श्रीकृष्ण। महाविष्णु के वर्णन में लिखा गया है कि स्वयं कर सकते हैं ? परन्तु यदि आप ईसाई हैं तो आपको श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र का पूजन किया और कहा, ये सबकुछ गले से उतार कर निगलना होता है "तुम्हीं इस ब्रह्माण्ड के आधार बनोगे और जो कोई भी मेरा पूजन करेगा उसका फल (तुम्हें प्राप्त होगा।" उन्होंने (श्रीकृष्ण ने) उन्हें (ईसामसीह) को कि ये क्या बेवकूफी है? ये श्रीमान पॉल कौन है? अपने से भी ऊँचा स्थान दिया। आप देख सकते हैं ये कहाँ से टपक पड़े? क्योंकि ये तो ईसामसीह की कि महाविष्णु का स्थान विशुद्धि चक्र से ऊपर है| वे ( ईसामसीह) वह द्वार हैं जिसके बीच में से निकलकर सभी को गुजरना है। उन्होंने (श्रीकृष्ण ने) उन्हें (ईसामसीह) विशेष रूप से आशीर्वादित किया और कहा तुम ब्रह्माण्ड का आधार बनगे। अब आप देखें कि श्री गणेश मूलाधार चक्र पर विराजमान हैं। मूलाधार चक्र अर्थात मूल का आश्रय, जान जाएंगे कि वह बिल्कुल भी आत्मसाक्षात्कारी नहीं था। वह अतिचेतन ढंग से बात करता है, वह तो एक आयोजन करने वाली मशीन है, किसी काम मैं पता ही नहीं चलेगा कि बाइबल के ये अध्याय श्रीमान पॉल ने स्वयं लिखे हैं- और ये श्रीमान पॉल ईसामसीह के शिष्यों का वर्णन अतिचेतन भूतों के रूप में करते हैं, पूर्णतः अतिचेतन लोगों की तरह से उन्होंने इतने अटपटे ढंग से आचरण किया कि सबको लगा कि वे पागल हैं ईसामसीह के शिष्यों के पिता कौन से इस प्रकार के व्यवहार की कल्पना क्या आप क क्योंकि यह बाइबल में लिखा हुआ है व्यक्ति यदि आत्म-साक्षात्कारी है तो वह प्रश्न करने लगता है तरह से बात भी नहीं करते! अत: हम सबके लिए यह समझने का समय आ गया है कि सभी धर्म एक हैं। ये एक ही जीवनसरिता के अंगप्रत्यंग हैं तथा सभी अवतरण एक दूसरे को आश्रय देते हैं, परस्पर एक दूसरे का पोषण करते हैं और एक दूसरे से प्रेम करते हैं । उनमें परस्पर पूर्ण सामंजस्य है। आप देखेंगे कि जड़ी का आश्रय। परन्तु ईसामसीह को फल के किसी भी प्रकार से, कभी भी, वे एक-दूसरे का विरोध नहीं करते। अतः यह बात भी प्रमाणित की आश्रय के रूप में स्थापित किया गया। तो उस बिन्दु पर भी वही चीज़ घूमती है और आज्ञा चक्र खुलने के बाद ही आप ईसामसीह के बारे में जान सकते हैं। जानी चाहिए और इसे आप केवल तभी प्रमाणित कर सकते हैं जब आपको कुण्डलिनी जागृत करने का ज्ञान हो। आप यदि आत्म-साक्षात्कारी हैं और को खोलती है केवल तभी, आज्ञा चक्र खुलता है। यदि आप कुण्डलिनी जागृत कर सकते हैं तो आप कुण्डलिनी जब ऊपर उठकर आज्ञा चक्र परन्तु मान लो यदि आप बहुत अधिक अहंवादी अंक : 9 & 10 -2007 चैतन्य लहरी 22 ही ईसामसीह ने विशेष रूप से कहा था 'कि आप हूँ (Egoist) हैं, तो आप अपने आज्ञामार्ग को बहुत संकीर्ण कर देते हैं दो रस्सियाँ (अहं और प्रतिअहं) इस चक्र को इतना संकीर्ण कर देती हैं कि इसके परगमन (Adultry) नहीं करेंगे, मैं कहती आपकी दृष्टि भी अपवित्र नहीं होनी चाहिए।" कल्पना करें! उन्होंने दृष्टि की बात की क्योंकि इस स्थान पर वे ही आँखों का नियन्त्रण करते हैं परन्तु पश्चिम में एक भी ऐसे पुरुष या स्त्री को खोज पाना कठिन है जिसकी दृष्टि अपवित्र न हो। जो लोग ईसामसीह के पुष्प थे उनकी दृष्टि इतनी भयानक है कि समझ नहीं आती कि वो क्या कर रहे हैं। वो सब पागल हो जाएंगे। अपनी दृष्टि को सीधा नहीं रख सकते। हर समय उनकी आँखें इधर-उधर, अन्दर से कुछ भी नहीं गुजर सकता। आप यदि प्रतिअहंवादी (Superegoist), डरे हुए, किसी से दबे हुए व्यक्ति हैं तब भी ये चक्र इतना अधिक विकृत हो जाता है कि इसे खोला नहीं जा सकता। ऐसी स्थिति में इसे सन्तुलित करने के लिए हमें बाएं को उठाकर दाईं ओर डालना होता है, या दाएं को उठाकर बाईं ओर डालना होता है, आवश्यकतानुसार। और यह तकनीक आत्मसाक्षात्कार के पश्चात आप सहजयाग में समझ सकते हैं, अब नहीं। सन्तुलन स्थापित होने पर यह चक्र, 'आज्ञा चक्र' कुछ बेहतर हो जाता है क्योंकि अब इसमें देखते रहते हैं। परन्तु यह सब आनन्दविहीन है, ऐंठन (Twist) हुई कुण्डलिनी इस चक्र को पार कर पाती है। आप यदि सामान्य व्यक्ति है, अहं या प्रतिअहंवादी नहीं हैं, तब कुण्डलिनी को आज्ञा चक्र पार करने में कोई समस्या नहीं होती। परन्तु दिल्ली में, में जब से उधर-इधर मटकती रहती हैं। उनकी दृष्टि या तो वासनापूर्ण है या वे हमेशा किसी न किसी चीज़ को इसमें कोई आनन्द नहीं है। बिना किसी आनन्द के वे बस लोगों को देखे चले जाते हैं ! कम हो जाती है। केवल तभी उठती अत: ईसामसीह ने कहा, "आपकी दृष्टि भी अपवित्र नहीं होनी चाहिए।" ये बात ईसामसीह ने आदेश के रूप में कही, परन्तु किसी ने उनकी आज्ञा का पालन नहीं किया। इसके विपरीत, जैसे मैंने आपको बताया, मुसलमानों को शराब न पीने का आदेश दिया गया था, परन्तु मोहम्मद साहब को आई हूँ, सुबह से शाम तक में आज्ञा चक्र पर कार्य करने में लगी रहती हूँ। लोग अत्यन्त अहंवादी हैं। वो समझते हैं कि वही पूरे विश्व के शासक हैं। दिल्ली आज्ञा की समस्या से भरी पड़ी है। यहाँ पर इतने अहंकारी और दम्भी लोग हैं कि वो सोचते हैं चुनौती देने के लिए उन्होंने उमरखैय्याम से कविताएं कि पूरे विश्व का शासन उन्हीं के हाथों में है। यही लोग प्रशासनिक अधिकारी हैं और यही महान लोग लिखवानी शुरु कर दीं। ईसाईयों ने भी ऐसी गतिविधियों से ईसामसीह को चुनौती देनी आरम्भ कर दी जिनसे लोगों की अबोधिता नष्ट हो जाए, उनकी दृष्टि अपवित्र हो जाए और मस्तिष्क की सारी पवित्रता राजनीति तथा अन्य स्थानों में कर्ताधर्ता हैं। सभी अहंवादी हैं। ऐसे लोगों को आसानी से आत्मसाक्षात्कार समाप्त हो जाए। नहीं दिया जा सकता। पहले उनके अहंकार को नीचे लाना होगा। उन्हें परमात्मा के उच्चतम अस्तित्व को स्वीकार करना होगा, परमात्मा को भगवान तथा एक अन्य अतिशयता का भी आरम्भ हो गया जिसके बारे में ईसा ने बिल्कुल भी नहीं कहा था, में नहीं जानती किस प्रकार यह ईसाई धर्म में विश्व का वास्तविक शासक मानना होगा। केवल आ गई है। यह मठ (Nunnery) तथा ब्रह्मचारी और ब्रह्मचारिणियाँ बनाने की प्रथा है। आप किसी को भी ब्रह्मचारी और ब्रह्मचारिणी नहीं बना सकते। ये तो तभी यह कार्य हो पाएगा। लोग अपनी आँखों को इधर-उधर चलाकर, आँखों को मटकाकर, आज्ञाचक्र को बिगाड़ने का प्रयत्न करते हैं। कल्पना करें! अंक : 9 & 10 -2007 23 चैतन्य लहरी करेंगे। हमें तो कष्ट उठाने हैं क्योंकि परमात्मा के लिए कष्ट उठाने आवश्यक हैं। अब भी ईसाई लोग यही मानने की मुर्खता करते हैं कि हमें कष्ट उठाने चाहिए। भारत के लोगों का भी यही मानना है कि उन्हें कष्ट उठाने चाहिए, एक अवस्था है जिसमें व्यक्ति को योगेश्वर श्रीकृष्ण की तरह से उन्नत होना होता है। इस सबके बावजूद भी वे ब्रह्मचारी थे ये तो मस्तिष्क की एक अवस्था जिसमें आप लिप्त नहीं होते। ये एक भिन्न बात है कि आप किसी पर ये धारणा लाद दें कि तुम्हें पूर्णत: ब्रह्मचारी या ब्रह्मचारिणी बनना चाहिए या उन्हें अविवाहित जीवन विताने के लिए मजबूर आएंगे तो उनमें हमें कर्मफल से मुक्त करने की करना। ईसामसीह ने ऐसा कभी नहीं कहा। उन्होंने शक्ति होगी और तब हमें कष्ट नहीं उठाने पड़ेंगे | विवाह नहीं किया क्योंकि आज्ञा चक्र को खोलकर उत्क्रान्ति कार्य सम्भव बनाने के महान कार्य को करने के लिए वे इस पृथ्वी पर अवतरित हुए थे । लेते हैं आपके अहं और प्रतिअहं को सन्तुलित इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वे क्रूसारोपित हुए। ऐसा करके उन्होंने आज्ञा चक्र के मार्ग को खोलना मुक्त कर देते हैं और इस प्रकार से आप स्वतन्त्र हो था और अपने पिता (परमात्मा) और अपनी माँ के जाते हैं। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण बात हैं, जिसका आदेश से उन्होंने ये कार्य किया। यह कार्य उन्होंने किया। अत: जो लोग ब्रह्मचर्य की ये मूर्खता कर रहे कार्य उन्होंने किया- इन दो विकारों को दूर करने हैं, जो वास्तव में ब्रह्मचर्य है ही नहीं, क्योंकि के लिए स्वयं को आज्ञा चक्र पर स्थापित करना। मस्तिष्क से तो वे ब्रह्मचारी नहीं हैं। ब्रह्मचर्य तो कि महाबिष्णु अवतरित ्तु वो ये भी जानते वाले हैं और जब वो जब ईसामसीह आपके अन्दर जागृत होते हैं तो वास्तव में यही होता है। वे आपके कमों को सोख करके आपके कमों पापों और बन्धनों से आपको ज्ञान लोगों को होना आवश्यक है कि यही महान जब वे इन दोनों विकारों को दूर करते अपने कर्मों और पापों से ऊपर उठ जाते हैं। अत: हैं तब हम अन्दर से आना चाहिए, पावनता का उदय अन्दर होना आवश्यक है। इस प्रथा ने कैथोलिक मत में अपने पूर्व अपराधों और पापों की हमें चिन्ता नहीं समस्याएं उत्पन्न कीं। उन्होंने एक और प्रधा विकसित कर ली- पादरी के सम्मुख जाकर दोष स्वीकार करना। पादरी के सम्मुख जाकर दोष स्वीकार करना बिल्कुल ज्ञान न था और न ही उन्हें ईसामसीह की एक अन्य हास्यास्पद कार्य है। मैंने देखा है कि पादरी लोग आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं क्योंकि यदि वे आत्मसाक्षात्कारी होते तो .पादरीपन से भाग खड़े भारतीयों को भी अपनी संस्कृति का कोई ज्ञान न होते। तो लोग पादरी के पास जाकर दोष स्वीकार करते हैं, बिचारा पादरी पगला जाता है और दोषभाव नौकरियाँ दे देंगे इसलिए हमें ईसाई बन जाना के कारण स्वीकार करने वाले ब्यक्ति की बाई चाहिए। इस प्रकार नौकरियों के लालच में सभी विशुद्धि पकड़ जाती है। परमात्मा का ये बिल्कुल प्रकार के लोग ईसाई बन गए। वास्तव में उन्हें गलत पक्ष है- स्वयं को दोषी मानना, बिल्कुल भी करनी। परन्तु इन मिशनरी लोगों को, जो भारत में ईसाई धर्म सिखाने के लिए आए, महाविष्णु का समझ थी। अपने एक हाथ में बन्दूक और दूसरे हाथ में बाइबल पकड़कर वे आए और हम मूर्ख था, हमने भी कहा कि ठीक है, ये लोग हमें अच्छी बताया जाना चाहिए था कि महाविष्णु का जन्म हो चुका है। उन्होंने यदि देवीभागवत् पढ़ा होता और आवश्यक नहीं है। ईसामसीह के बाद कुछ ऐसे लोग भी थे उन्हें बताया गया होता कि महाविष्णु का जन्म हो जो ईसामसीह को मानते ही न थे, जैसे यहूदी। चुका है तो लोगों ने अपने करमों के फलस्वरूप कष्ट उन्होंने कहा कि हम ईसामसीह को स्वीकार नहीं उठाने का विचार त्याग दिया होता। तो भारतीय अभी अक & 10. 24 चैतन्य लहरी कहते हैं, वे जीवन की सभी बाधाएं दूर करते हैं । आशीर्वादित होने के पश्चात् आप वास्तव में जान से भी सोचते हैं कि हमें कष्ट उठाने चाहिएं, उपवास करने चाहिएं, पैदल चलना चाहिए और स्वयं को समीप के पेड़ पर फाँसी लगा लेनी चाहिए। इसकी कोई आवश्यकता नहीं हैं। आपको केवल उस क्षण की प्रतीक्षा करनी है जब आपका आज्ञा चक्र खुल पाते हैं कि परमात्मा के आशीर्वाद देने के बहुत तरीके हैं। ये चमत्कारिक हैं, पूर्णत: चमत्कार। बहुत से सहजयोगी ये कहते हैं कि सहजयोग में उनके लिए चमत्कार का अर्थ ही समाप्त हो गया है। ये जाए। मध्य में बने रहें, जैसे महात्मा बुद्ध ने कहा था मध्य में बने रहें।' जब कुण्डलिनी उठेगी तो सभी एकत्र दोष दूर हो जाएंगे और आप मोक्ष प्राप्त कर सकेंगे। यह साधारण सा कार्य किया जाना था। इसकी अपेक्षा हम भारतीय मानते हैं कि हमें अवश्य कष्ट उठाने चाहिएं, अवश्य उपवास करने चाहिए! बात सत्य है। अत: व्यक्ति को समझना चाहिए कि परमात्मा हैं। वे केवल विद्यमान ही नहीं हैं, कार्य भी करते हैं। परमात्मा प्रेम करते हैं और हमसे आशा की जाती है कि उन्हें जानें आपने जो चाहे किया हो, चाहे जो गलतियाँ की हों, आपको परमात्मा से सहजयोग में परमात्मा के नाम पर आपको उपवास करने की आज्ञा नहीं है। आप चाहे तोा वैसे उपवास कर सकते हैं। यदि आपके पास धन नहीं है तो उपवास कर सकते हैं, या किसी और वजह से भी आप उपवास कर सकते हैं, एकरूप होना है क्योंकि वे आपके प्रेममय पिता हैं । वे ऐसे पिता हैं जो करुणा के सागर हैं। आपको करना केवल ये है कि इसकी याचना करनी है और जब कुण्डलिनी उठती है और आपका परमात्मा से तादात्म्य हो जाता है तो वे अपने पूरे साम्राज्य और अपनी पूरी शक्तियों का वरदान अपने सृजित किए गए बच्चों पर करना चाहते हैं। तो धर्म के विषय' में। परन्तु परमात्मा या अपने कर्मों के नाम पर नहीं। दूसरे, यहूदियों ने ईसा-मसीह को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया। यहूदियों ने कहा कि हम ईसामसीह को स्वीकार नहीं करेंगे, हमें तो कष्ट उठाने हैं, और ये अटपटे विचार कि आपने कष्ट उठाने हैं, तपस्या कष्ट भोगते रहे, भोगते रहे, भोगते रहे। उन्हें ठीक करने के लिए, उनके कष्टों को श्रीमान हिटलर मिल गए। हिटलर के बाद अब वे स्वयं भी हिटलर पूर्णत: सामान्य और प्रसन्नचित्त व्यक्ति बनना बनने लगे हैं। अत: कल्पना कीजिए कि किस प्रकार गलत धारणाएं आपको अति की सीमा तक ले जाती हैं और ऐसी धारणाओं, कि "हमें कष्ट उठाने हैं," के परिणाम स्वरूप कष्ट उठाने की उनकी करनी है या आपको ब्रह्मचारी बनना चाहिए, ये सभी हास्यास्पद धारणाएं त्याग देनी चाहिए। आपको परमात्मा ने आपके लिए इतना कुछ किया है, इतना कुछ बनाया है, ईसके बावजूद भी यदि आप दयनीय बनना चाहते हैं तो कोई क्या कर सकता है? जहाँ तक माँ का सम्बन्ध है, कभी जब आप उसे दण्डित करना चाहते हैं या माँ को नाराज़ करना चाहते हैं तब आप कहते है नहीं, मैं तो खाना नहीं खाऊंगा।" तो सहजयाग में उपवास की आज्ञा नहीं है। कम खाने के लिए या किसी अन्य चीज़ के लिए आपने उपवास करना है तो ठीक है। इसके लिए एक दो दिन से अधिक उपवास करने की चाहत को बल देने के लिए हिटलर उत्पन्न हुए। अब किसी को कष्ट नहीं उठाने। आपको अपनी कुण्डलिनी जागृति कार्यान्वित करनी है तथा स्वयं को अच्छी तरह से सहजयोग में स्थापित करना है। आपके सभी कष्ट दूर कर दिए जाएंगे। देवी का एक नाम "पापविमोचनी" है। वे आपके पापों को हर लेती हैं। श्री गणेश को हम "संकट विमोचन" अंक : 9 & 10 चैतन्य लहरी 25 2007 को धड़कते हुए इस तालू पर हाथ रखने देना आपको जरूरत नहीं है। बहुत ही भयानक है। तालू ब्रह्मरन्ध्र है। यह मानव का महत्वपूर्णतम अवयव है । सभी को इस बारे में अत्यन्त सावधान रहना चाहिए कि कोई गलत व्यक्ति इसको न छुए। व्यक्ति को आत्मसाक्षात्कारी होना होता है, उसे जानना होता है कि उसे यह कार्य किस प्रकार करना है, अर्थात व्यक्ति को सहजयोगी इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि आज्ञा चक्र, जिसमें से सभी को गुजरना होता है, सबके लिए महत्वपूर्ण है और इसकी ठीक से पूजा होनी चाहिए और इसे स्वच्छ रखा जाना चाहिए। ऐसा करने के लिए आपको अपना चित्त स्वच्छ रखना आवश्यक है, आपका चित्त स्वच्छ होना चाहिए। बनना पड़ता है। जब आपके बच्चे जन्म लेते हैं तब भी आपको बहुत सावधान रहना होगा और बच्चे यदि आत्मसाक्षात्कारी हैं तो और अधिक सावधानी बरतनी होगी क्योंकि बच्चे यदि आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं तो उनकी प्रतिक्रिया इतनी तीव्र नहीं होती, परन्तु बच्चे यदि आत्मसाक्षात्कारी हैं तो वे गलत आदमी का हाथ रखना सहन नहीं कर पाते और चीखने-चिल्लाने लगते हैं । आपका चित्त यदि स्वच्छ नहीं है तो आज्ञा चक्र न होगा। तब आपको मतिभ्रम ठीक ( Hallucinations) हो जाएगा, आपमें गलत धारणाएं उत्पन्न होंगी और आप गलत बातें सोचेंगे। अत: यदि वास्तव में आप अपने जीवन का अर्थ समझना चाहते हैं, बास्तव में कुण्डलिनी जागृति चाहते हैं तो जान लें कि अभी तक जो भी कुछ आपने परमात्मा या अन्य चीजों के बारे में जाना है उसे सुधारना होगा, आपको स्वयं उसे पुन: देखना होगा कि यह कैसा है। बिना आज्ञा चक्र को पार किए अत: व्यक्ति को समझना चाहिए कि चाहे यह पारम्परिक प्रतीत होता हो फिर भी यह देखना चाहिए कि व्यक्ति को हानिकारक चौजें त्याग देनी आप बप्ताइज़ (आत्मसाक्षात्कारी) नहीं हो सकते। बपतिज्म की बातें करने वाले लोग जैसे चाहिए। अब वह समय आ गया है कि हम सबको वे सब चीजें त्याग देनी चाहिएं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए, हमारी आध्यात्मिक उत्क्रान्ति के लिए ठीक न हों। समय आ गया है। आप John The Baptist, वह बास्तव में आत्मसाक्षात्कारी थीं। उसने जब कुण्डलिनी उठाई और सिरपर पानी डाला तो वास्तव में लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया, यह बपतिज़्म (आत्मसाक्षात्कार) है। ईसाई अर्थात यदि इस बात को स्वीकार नहीं करते तो माँ आत्मसाक्षात्कारी। इसके विपरीत विलियम ब्लेक कहते हैं। "ए किया" आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के लिए यह सच होने के नाते मैं कह सकती हूँ कि मुझे तुम्हारी चिन्ता है। यह इससे भी अधिक है, आप अत्यन्त भयानक समय से गुजर रहे हैं। एक पादरी ने मुझे सिर पर अभिशष्त है। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के सिर पर यदि कोई ऐसा पादरी हाथ रखे जो साक्षात्कारी न हो और जिसे जाए तो इसका अर्थ ये है कि निश्चित रूप से यह कार्य करने का अधिकार न हो तो बच्चे समस्याओं में फँस जाते हैं। मैंने बहुत से होने पर व्यक्ति को आँखे खुली रहते हुए भी आत्मसाक्षात्कारी बच्चों को देखा है जिन्हें इस तरह से समस्याएं हुई। उनकी आँखें भेंगी हो गईं, वे है इसका कारण ये है कि देवी या परमात्मा के बारे अजीबोगरीब हो गए, उनके मस्तिष्क विकृत हो गए और हमें उन्हें ठीक करना पड़ा। अतः हर व्यक्ति शरीर में आ जाते हैं। ऐसा कैसे हो सकता है? ये भी यदि पीछे का आज्ञा चक्र खराब हो आप भूतबाधित हैं पीछे का आज्ञा चक्र खराब अंधापन हो सकता है। भारत में ये समस्या आम में हमारे अत्यन्त अटपटे विचार हैं कि ये मानव के अंक : 9 & 10 -2007 चैतन्य लहरी 26 'मैं क्षमा करता हूँ।' ईसामसीह ने हमें यह बहुत बड़ा हथियार प्रदान किया है। आप केवल इतना कहें कि "मैं क्षमा करता हूँ, मैं क्षमा करता हूँ, वही बात है- अतिचेतन होगा। (Supra Conscious Business)। हर समय अभद्र शब्दों का उपयोग करने वाली नौकरानी, जिसे न तो स्वच्छता का विवेक है और न ही पावनता का, वह एकदम से और आप अपने अहं की समस्या पर काबू पा उत्तेजित होकर "हो हो हो" करने लगती है और लेंगे। यह मन्त्र सामने के आज्ञा चक्र के लिए है, किए चली जाती है। और महाराष्ट्र में ये आम बात है कि सभी महिलाएं जाकर उस नौकरानी के पैर पड़ती हैं। "देवी आ गई है, देवी आ गई है!" और वे उसके पैरों में गिरते हैं तथा अन्तत: पकड़ जाते यहाँ आप कहते हैं, 'मैं क्षमा करता हूँ, मैं क्षमा करता हूँ,' और आप पाएंगे कि आपका आज्ञा चक्र खुल गया है तथा आपका अहं भी चला गया है। क्षमा मानव को प्राप्त हुआ सबसे बड़ा हथियार है परन्तु वे इतने मूर्ख हैं कि क्षमा करने के लिए भी उन्हें बार-बार कहना पड़ता है? क्षमा न करने की कौन सी बात हैं? मैं कहती हूँ इसमें क्या कठिनाई है, आप क्या कर रहे हैं? 'मैं क्षमा करता हूँ,' कहते हुए क्या आपको कुछ करना पड़ता है? क्या आप कुछ कहते हैं? कुछ नहीं। इसके विपरीत हैं, उस आत्मा की पकड़ में आ जाते हैं। हाल ही में मेरे पास एक बहुत बिगड़ा हुआ मामला आया, एक व्यक्ति मेरे पास आया और कहने लगा कि उसे मजबूरन अपनी भाभी के पैर पकड़ने पड़ते हैं क्योंकि वह देवी है। मैंने कहा, "क्यों?" क्योंकि उसे दौरा पड़ता है। मैंने कहा कि यदि तुम उसे देवी मानते हो और उसके पैर छूना चाहते तो पुनः मेरे जब आप क्षमा नहीं करते तब वह वास्तव में आपको सता रहा होता है, जबकि आप उस व्यक्ति पास मत आना। वह व्यक्ति पूरी तरह से अन्धा हो गया, पूरी तरह से! पूरी तरह अन्धा होकर वह मेरे को नहीं सता रहे होते। अत: सामने के आज्ञा चक्र का ये मन्त्र है और पीछे की आज्ञा को ठीक करने के लिए जैसा मैंने आपको बताया, आपको दीपक से आरती करनी होती है। अब कुछ लोग एक अब सहजयोग में आप कैसे करते हैं? दिन ऐसा करेंगे या दो दिन करेंगे परन्तु सहजयोग आपके पास फोटोग्राफ है, इसका उपयोग करें। कार्यान्वित करने का यह तरीका नहीं है। आपको पास आया और तब हमें उसका आज्ञा चक्र ठीक करना पड़ा। इसके सम्मुख दीपक जलाएं। दीपक (प्रकाश) के माध्यम से आप अपने आज्ञा चक्र ठीक कर सकते हैं। जी जान से इस पर जुट जाना होगा। मैंने ऐसे लोग देखे हैं जिनकी आँखें इस प्रकार से झुक गईं थीं कि वे अपनी आँखें ऊपर की ओर उठा भी न हमेशा प्रकाश, सूर्य, क्योंकि ईसामसीह का निवास सूर्य में है। अत: आपको करना ये है कि सकते थे, परन्तु ऐसा करने पर अब उनकी आँखें सामने के आज्ञा चक्र के सम्मुख दीपक रखें पूरी तरह से खुल गई हैं। यह विधि बहुत सहज है। और एक दीपक पीछे के आज्ञा चक्र के पीछे और पीछे के आज्ञा चक्र को उस दीपक से होती है, स्वाधिष्ठान चक्र जब खराब हो जाता है, आरती दें। यहाँ (पीछे की आज्ञा) महागणपति और इसकी अभिव्यक्ति भी यहाँ पीछे है- यह पीछे की महाभैरव का स्थान है। अतः पीछे के आज्ञा की हमारी आँखों में एक अन्य चीज भी घटित आज्ञा के चहूँ ओर है। व्यक्ति को जब शक्कर रोग या ऐसा ही कुछ और हो तो लोग अन्धे होने लगते आरती करें और आज्ञा चक्र खुल जाएगा। इस प्रकार आप इसे खोलें? अत्यन्त सहज तरीका ये है कि हैं क्योंकि पीछे की आज्ञा के चहूँ ओर विद्यमान जब भी कोई विचार आए तो आपको कहना चाहिए, स्वाधिष्ठान चक्र अपने आस-पास के आज्ञा क्षेत्र अंक : 9 & 10 -2007 27 चैतन्य लहरी कारण से हमारे यहाँ सहजयोग के लिए उपयुक्त लोगों की संख्या अन्य देशों से कहीं अधिक है। क्योंकि अन्य देशों के लोग बन्धनग्रस्त हैं। यह बहुत को दबाता चला जाता है, इस पर अत्याचार करता है और इस केन्द्र को अधिक गतिशील कर देता है तथा परिणामस्वरूप आँखें देख नहीं पातीं। इनमें प्रकाश नहीं रहता। लोगों की आँखें खुली होती हैं बड़ा वरदान है। उदाहरण के रूप में साईनाथ गुरु फिर भी उनके सम्मुख अन्धकार होता है। आपने सिद्धान्त के अन्तिम अवतरण थे। वे मुसलमान थे परन्तु उनके सभी शिष्य हिन्दू हें, वे मुसलमान नहीं हैं। मुसलमान तो उन्हें परमात्मा भी नहीं मानते। करके सर्वप्रथम अपना शक्कर रोग ठीक करें। पीछे केवल इतना ही नहीं, हाजीमलंग नाम का एक अन्य स्थान है। जहाँ एक मुसलमान सन्त की मृत्यु हुई थी। परन्तु वे कह कर गए थे कि केवल ब्राह्मण अर्थात आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति ही मेरी पूजा करेंगे। और उन्हें ब्राह्मण नियुक्त करने पड़े। परन्तु ब्राह्मण शब्द का अर्थ उन्होंने नहीं समझा। वे हिन्दू हैं जो मुसलमान पीर की पूजा कर रहे हैं! इसका कारण ये है कि एक बार पीर बनने के पश्चात्, बहुत से शक्कर रोगियों को इस प्रकार अन्धा होते हुए देखा है। अत: अपने स्वाधिष्टठान को ठीक की ओर अपने स्वाधिष्ठान के आस-पास आप बर्फ का प्रयोग भी कर सकते हैं। परन्तु सर्वप्रथम यदि आप अपना स्वाधिष्ठान ठीक कर लें तो आपको पहले से बेहतर लगेगा। अतः सामने की आज्ञा का इलाज प्रकाश (दीपक) है और पीछे आज्ञा का जल। पानी या प्रकाश को अपनी पसंद के अनुसार उपयोग करना बेहतर होगा। क्योंकि यदि स्वाधिष्ठान की समस्या है तो आपको जल का आत्मसाक्षात्कार पा लेने के पश्चात् व्यक्ति का उपयोग करना होगा परन्तु यदि केवल भूतबाधा है कोई धर्म नहीं रह जाता। वह धर्मातीत हो जाता तो, यदि शक्कर रोग नहीं है, तो भूतंबाधा ठीक करने है, वही धर्म बन जाता है। उसके लिए कोई बन्धन नहीं रह जाता क्योंकि बूँद समुद्र में मिल के लिए आपको कंवल प्रकाश का उपयोग करना होगा। गई है, अब वह समुद्र बन गयी है और सागर की कोई सीमा नहीं होती। ऐसे व्यक्ति ने भी इस प्रकार से हम आज्ञा चक्र को ठीक करते हैं। | ईसामसीह ने भी कहा है,"मैं प्रकाश हूँ" मैं ही मार्ग हूँ।" क्योंकि वे ओंकार हैं। वे मार्ग हैं क्योंकि सभी सीमाएं पार कर ली होती हैं इसलिए और द्वार भी वही हैं। वही वह द्वार हैं जिसमें से हर व्यक्ति को गुज़रना होगा। उन्होंने कभी झूठ नहीं बोला, फिर भी उन्हें क्रूसारोपित कर दिया गया। उन्हें क्रूसारोपित कर दिया गया। इस देश में, सौभाग्य से कोई आयोजित धर्म नहीं है, इसके लिए आप अपने सितारों को धन्यवाद दें। यदि यहाँ पर कोई तो मुझे बहुत तेज़ चैतन्य लहरियाँ महसूस हुईं। मैंने आयोजित धर्म होता तो आप सहजयोग न अपना पाते क्योंकि आयोजित धर्म के अनुरूप आपको एक हम इसी चीज़ में वह इनसे ऊपर उठ जाता है। विश्वास करते हैं कि व्यक्ति यदि पीर है, वह यदि आत्मसाक्षात्कारी है तो वह आत्मसाक्षात्कारी है। एक बार मैं एक छोटे से गाँव में गई इसका नाम था 'मियाँ की टेकड़ी।' ज्यों ही मैंने गाँव में कदम रखा पूछा, "यहाँ कौन सा महान सन्त रहता था?" उन्होंने बताया कि यहाँ एक मुसलमान पौर रहता था। मैंने कहा, "जो भी हो वह सन्त था।" वहाँ बैठकर जब में प्रवचन दे रही थी, आप फोटो देखेंगे, मेरे सिर के ऊपर सात बार प्रकाश आया, सातवीं ही व्यक्ति में विश्वास करना पड़ता है, मानों उसका किसी और से कोई सम्बन्ध ही न हो, मानो बही अकेला हवा में लटक रहा हो और इसका किसी अन्य से कोई लेना देना न हो। अतः परमात्मा के बार मेंने अपना हाथ ऐसे किया परन्तु किसी ने इसे देखा नहीं, केवल मैं जानती थी मैं जानती थी कि शुक्रगुज़ार हों कि इस देश में ऐसा नहीं हुआ! इसी अंक : 9 & 10 चैतन्य लहरी 28 2007 ये वहाँ पर है, मैं इसके साथ हँस रही थी। लोगों ने शिक्षा देने या सहजयोग के विषय में प्रवचन जब फोटो लिए तो इसकी तस्वीर ले पाए। तो ये देने का प्रयत्न करता है तो उसे बाहर फेंक दिया जाता है क्योंकि यहाँ केन्द्रापसारी रही हैं। ये किसी व्यक्ति में प्रवेश नहीं करते, ( centrifugal) और केन्द्राभिसारी (centripetal ), दोनों शक्तियाँ कार्यरत हैं। एक के द्वारा आप अन्दर को आते हैं और दूसरी शक्ति से गुलेल से निकले पत्थर की तरह से आपको बाहर करते हैं । कभी वे आपको बाधित करने, सम्मोहित फेंक दिया जाता है। यहाँ कोई भी बहुत बड़ा समूह बनाने के लिए उत्सुक नहीं है। समूह यदि बहुत बड़ा होगा तो अच्छी बात है, क्योंकि हम अधिक से अधिक लोगों की रक्षा करना चाहते हैं। आत्मसाक्षात्कारी आत्माएं सर्वत्र हैं और सहायता कर आपको परेशान नहीं करते, ठीक मार्ग पर आपका पथप्रदर्शन करते हैं । अपने देवदूत लाकर ठीक मार्ग तथा ठीक परिणामों तक आने में वे आपकी सहायता करने या जीवन के गलत रास्ते पर ले जाने का प्रयत्न नहीं करते। अब जब आप आत्मसाक्षात्कारी हैं तो आपको भलीभाँति समझना होगा कि सच्चाई क्या है। समझते चले जाएं, आत्मसात करने का प्रयत्न करें। क्योंकि आप किसी अन्य संस्था से जुड़े परन्तु कोई आपको मजबूर नहीं करंगा, कोई भी इसके लिए सस्ते ढंग का सर्कस नहीं बनाएगा। यहाँ लोगों की इच्छा है, जिन्हें आना है आएं, किसी को हुए हैं, इस आधार पर इसे त्यागने का प्रयत्न न करें। सहजयोग में कोई संस्था नहीं है। ये बात आप भली-भाँति जानते हैं। सहजयोग में कोई धड़े (Group) मजबूर नहीं किया जा सकता। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के लिए किसी को भी विवश नहीं किया जा नहीं हैं। कोई सदस्यता नहीं है। परन्तु यह एक जीवन्त संस्था है । यह जीवन्त संस्था है । यहाँ कुछ भी घटित होता है तो पूरे शरीर को इसका पता चलता है। इस शरीर के लिए आपको कोई लिखित सकता। तो आज आज्ञा चक्र के विषय में मेंने यह सब आपको बताया है। आज्ञा चक्र के विषय में मैंने इंग्लैण्ड और अमेरिका में भी बहुत बार बताया तथा आयोजन करने की आवश्यकता नहीं है। इसी प्रकार से सहजयोग भी कार्यान्वित होता है कुछ चर्चो आदि ने कई बार मेरा विरोध भी किया। परन्तु में सोचती हूँ कि यदि वे अधिक समय तक परन्तु फिर भी मैं कहूँगी कि जैसे हमारे बने रहना चाहते हैं तो बेहतर होगा 'सत्य' को अपना लें और जान लें कि अभी तक जो ज्ञान उन्होंने पाया है वह अधूरा है । उन्हें यह ज्ञान पूरी तरह से जानना होगा। ईसामसीह बहुत अधिक न बता पाए और जो कुछ भी उन्होंने बताया उसे उनके शिष्यों ने वैसे लिखा जैसे वे समझ पाए। ईसामसीह को समझने के लिए आपको आत्मसाक्षात्कार लेना शरीर में भिन्न प्रकार की संवेदन प्रणालियाँ हैं इसी प्रकार से सहजयोग में भी हैं। सहजयोग में नए-नए आए लोगों के सम्मुख उस सत्य की अभिव्यक्ति नहीं की जाती जिसे वे सहन नहीं कर सकते। सूझ-बूझ की एक निश्चित रेखा पार करने के ' कहते हैं. , जिसे हम 'निर्विचार समाधिस्थ पश्चात्, उन्हें नए आयामों और धारणाओं में प्रवेश करने की विशेष सुविधाएं दी जाती हैं परन्तु आन्तरिक वृत्त के लोग वो हैं जो निर्विकल्प हैं, ऐसे लोगों को सहजयोग सिखाने के लिए चुना जाता है। द्वितीय अवस्था का कोई व्यक्ति यदि सहजयोग की आवश्यक है। परमात्मा आपको धन्य करें। निर्मला योग- 1983 (रूपान्तरित) ईसा मसीह जन्मदिवस पूर्व स-्ध्या पुणे- 24-12-1982 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन केवल मूर्खता है। सभी प्रकार के मूर्ख लोगों की रचना की गई। पूर्णतया उन्हें ईसामसीह से कुछ नहीं लेना- देना, उन्हें परमात्मा से कुछ नहीं लेना-देना। परमेश्वरी जीवन (दिव्य जीवन) का उन्हें बिल्कुल ज्ञान नहीं है। उनकी दृष्टि में लोगों को कुछ कार्य करने से रोकना मात्र ही धर्म है। और इस सोच ने ईसा मसीह का जन्मोत्सव मनाना आरम्भ करने से पूर्व हमें थोड़ा सा पुनर्वलोकन करना होगा कि उनके जन्म के पश्चात् हमने ऐसा क्या किया कि हम इस बात को समझ सकें कि उनसे सम्बन्धित होकर हम किस स्तर पर खड़े हैं। क्योंकि वे एक कुँवारी के पुत्र थे, इस कारण से उनके नाम पर किसी भी प्रकार का दाग नहीं लगना चाहिए। पश्चिम को इतने अंधकार में फँसा दिया कि वहाँ क्योंकि उन्होंने हमारे लिए आज्ञा चक्र की चेतना का पर बहुत अधिक गति से और अत्यन्त विशाल स्तर पर सहजयोग को कार्यान्वित करना होगा अन्यथा महानतम कार्य करना था जिससे हमारे सारे पाप, हमारे सारे बन्धन और हमारा सारा अहं सोखा जा सके- उसका शोषण किया जा सके। हमारे अन्दर आप आर्कबिशप, बिशप और पोप की भयानक धारणाओं पर काबू नहीं पा सकेंगे। दूसरा पक्ष 'अहं है। श्रीमान फ्रॉयड जैसे लोग आए और उन्होंने लोगों में पूर्णतः परमात्मा विरोधी विचार भर दिए, पूर्णत: परमात्मा विरोधी। ये माँ के विरुद्ध है, बेटे के विरुद्ध है, 'पूर्णतः हास्यास्मद है। ये परमात्मा विरोधी आसुरी विचार घुस गए और लोग कहने लगे, "क्या बुराई है? ये सब बन्धन हैं, हमें सब बन्धन तोड़ फेंकने चाहिए।" अत: वे सब धारणाओं के कारण बहुत अधिक बन्धन हैं जिन्होंने अहंलोलुप बन गए। और यह दूसरा पक्ष है जिसे हमारे प्रतिअहं में ऐसे भयंकर बन्धनों का सृजन कर ईसामसीह को कार्यान्वित करना पड़ा। तो मेरे कहने का अभिप्राय ये है कि पश्चिम में ईसामसीह के स्थापित होने के पश्चात् भी उन्होंने भरसक प्रयत्न में अटके हैं। मेरे सामने बैठकर भी मैं देखती हूँ किया कि आज्ञा चक्र खोले जाने के मार्ग में हर सम्भव बाधा खड़ी की जाए। इसके बावजूद भी, में महान कार्य को करने के लिए इस महान व्यक्तित्व का सृजन किया गया परन्तु दुर्भाग्यवश हमने अपने अन्दर इन दोनों संस्थाओं (अहं और प्रतिअहं) को इस कदर बिगाड़ लिया है कि ईसाईयों को आत्म साक्षात्कार देना कठिनतम कार्य है। एक ओर तो हमारे अन्दर, जैसा आप जानते हैं, कैथोलिक मत और ईसाई धर्म की अन्य दिया है जो चट्टान की तरह से कठोर हैं तथा जो लोग कैथोलिक चर्चा से जुड़े हुए थे वे अब भी इसी हुए कि उनकी आँखें झपकती रहती हैं और उनकी आज्ञा सीधी नहीं है। यदि हमने वास्तव में सहजयोग देखती हूँ कि पश्चिमी सहजयोगी अब भी ईसाई को प्राप्त करना है तो आपको ये बन्धन पूर्णतः मत से जुड़े हुए हैं, ईसा से नहीं। अभी तक भी आपके अन्दर ईसाई धर्म लटक रहा है, और इसको त्यागने होंगे। हम उस सीमा तक गए कि हमने संस्थाएं बनाने का प्रयत्न किया- निःसन्देह हमने निकाल फेंकना होगा परन्तु भारतीय लोग सभी धन एकत्र किया, इसके बारे में कोई सन्देह नहीं है, मूर्खतापूर्ण विचारों को त्यागने में बहुत अच्छे हैं क्योंकि हमारे देश में सभी मामलों में बहुत सी बहुत सा धन- पादरी पद और आर्कबिशप पद आदि का सभी प्रकार का नाटक किया और ये सब चुनौतियों का सामना करना पड़ा। बन्धनों (प्रतिअहं) अंक : 9 & I0 -2007 30 चैतन्य लहरी के मामले में भी हमें चुनौतियाँ मिलीं और अहं के सर्वप्रथम तो वे पावनतम (Holiest of Holy) थे। मामले में भी चुनौतियाँ मिलीं। अत: लोग इस प्रकार के त्याग के आदि हो गए। परन्तु पश्चिम में अब भी हम ईसाइयत की मूर्खता से जुड़े हुए हैं। मुझ पर विश्वास रखें क्रि इसका ईसामसीह से कोई लेना-देना वर्णित मूर्खताएँ करते हैं, छठे दिन ईसाइयत की बातें नहीं है और ये धर्मान्धता, जो अब भी आपके मस्तिष्क में बनी हुई है, इसका त्याग आवश्यक है। उन्हें क्या अधिकार है? मेरा अभिप्राय ये है कि अन्यथा आप ईसामसीह के साथ न्याय नहीं करते। कैसे वे स्वयं को ईसाई कह सकते हैं- किस इसका अर्थ ये बिल्कुल भी नहीं है कि आप कोई अन्य धर्म जैसे हिन्दू धर्म या जैन धर्म आदि कोई जाने को कहा, क्योंकि वे असलियत को नहीं अन्य मूर्खता अपनाएं। ईसाईधर्म का सार, इसका तत्व ईसामसीह हैं। इन सारी मूर्खतापूर्ण चीज़ों ने इस मूर्खतापूर्ण धारणाओं के कारण हम पावनतम व्यक्तित्व सार को इतने जोर से आच्छादित कर लिया है कि आपको अपने शब्दकोश और अपने मस्तिष्क से ईसाइयत नाम का शब्द पूर्णतः निकाल फेंकना होगा। अन्यथा आप कभी भी सारतत्व तक नहीं पहुंच उदासीन बना दिया कि हमने दूसरा पक्ष अपना इस अवस्था को आप स्वीकार करें। फ्रॉयड की मूर्खता से इसका कोई लेना-देना नहीं है। स्वयं को ईसाई कहने वाले लोग सप्ताह में पाँच दिन फ्रॉयड करते हैं और सातवें दिन चर्च जाते हैं। वहाँ जाने का मापदण्ड से? भारतीय लोगों ने उन्हें वहाँ से चले समझते। इतना मूर्खतापूर्ण, इतना गन्दा! अपनी को इतने निम्न स्तर पर खींच लाए अत: व्यक्ति को समझना होगा कि कैथोलिक धर्म के इन बन्धनों ने हमें स्वयं के प्रति इतना सकेंगे। यह सत्य है, मेरी बात पर विश्वास करें। लिया जो इससे भी खराब है, बन्धनों से भी कहीं अधिक बुरा है। सुबह परन्तु आज भी लोगों का चित्त इसी बात पर है कि 'ईसामसीह' ने क्या कहा था या 'माँ मेरी' हैं से शाम तक आप इन्हीं लोगों से मिलते जुलते हैं, वे या तो फ्रॉयड के अनुयायी या फिर तथाकथित ईसाई, आत्म-साक्षात्कार के ने क्या कहा था, और यह सब इन धूर्त लोगों के पश्चात् भी! परन्तु आपको समझ लेना चाहिए कि आप विशेष लोग हैं आप उनसे ऊपर हैं, उनसे ऊपर उठ गए हैं। ईसामसीह जागृत हो उठे हैं। अत: उनके प्रति न्याय करने के लिए आरम्भ में आपको ईसाइयत के सभी बन्धनों से ऊपर उठना होगा यदि ये बन्धन अब भी आपमें बने हुए हैं, और यदि आप फ्रॉयड के अनुयायी रहे हों तो इस भयानक व्यक्ति से मुक्ति पा लें। वह पूर्णतः ईसाविरोधी था। रोगी, रोगी रोगी। मैं तो यहाँ तक कहूंगी कि हमारा फ्रॉयड के विचारों से कोई सरोकार नहीं है। मुझ पर विश्वास रखें। किसी भी कारण से, किसी भी बिन्दु पर, हमें उसे न्यायसंगत नहीं ठहराना। बन्धनों के कारण जो उदासीनता लोगों में विकसित हो गई थी, माध्यम से हम तक आया है। अत: अन्य देवी देवताओं और अवतरणों के बारे में जानने के लिए हम तटस्थ हो जाते हैं। देवी-देवताओं, जैसे श्री गणेश के बारे में जानकर हमें चित्त को बहुत अधिक तटस्थ (Neutralise) करने का प्रयत्न करना चाहिए। आप यदि श्री गणेश की बात करें तो वे ईसामसीह का सार हैं। आप इस बात को समझें| गणेश ईसामसीह का सार हैं श्री गणेश की शक्तियों की अभिव्यक्ति हैं चीजों के और ईसामसीह सारतत्व पर यदि आप जाएं तो बेहतर है। निःसन्देह ईसामसीह हैं परन्तु हम उन्हें वैसे देखें तो सही जैसे वो हैं! इस दृष्टि से उन्हें बहुत कम लोगों ने देखा है, परन्तु अब सहजयोग में आपको चाहिए कि उन्हें उनकी असलियत में देखें- वास्तव में जैसे वे थे। उसका उसने पूरा लाभ उठाया। तब उसने ये सारी चैतन्य लहरी अक : 9 & 10 -2007 31 फ्रॉयड आए और अपनी ही शैली आरम्भ कर दी। कहानियाँ घड़ीं क्योंकि वह स्वयं इतना अधम व्यक्ति था जिसे किसी भी मापदण्ड से 'मानव' नहीं माना जा सकता। ईसामसीह मानव के लिए अवतरित हुए, हैं क्योंकि हम जानते हैं कि उत्क्रान्ति का केवल ऐसे निकृष्टतम लोगों के लिए नहीं। मेरे विचार से यही एक मार्ग है। इसके लिए विवश नहीं किया तो कोढी भी उससे बेहतर हैं। 'भयानक ! उसकी सारी चीज़ों के बारे में सोचने मात्र से मुझे मतली होती है, ये इतनी अपवित्र हैं! अत: व्यवहारिक जीवन में हमें ये समझना होगा कि हमारा इन श्रीमान फ्रॉयड से कोई सरोकार नहीं है। वह कचरा है, घिनौनापन है। पूर्णतः निकृष्ट व्यक्ति है। हमें न तो बढ़ाते हैं। इसी कारण से आत्मसाक्षात्कार से आपको उससे कुछ सीखना है और न ही उसके विचारों से। हम सबके लिए परमेश्वरी नियम आवश्यक जाता। स्वेच्छा से स्वीकार करना कि हमें उत्क्रान्ति प्राप्त करनी है इसलिए हमें ठीक होना होगा। इसलिए सहजयोग में कोई बन्धन नहीं है तथा इस प्रकार से हम सुधरते हैं। इसी प्रकार से हम आगे बढ़ते हैं, स्थिति को स्वीकार करके इसके साथ आगे कदम वह शक्ति प्राप्त होनी चाहिए कि अपने मस्तिष्क में ईसाविरोधी गतिविधि से आप युद्ध कर सकें। 'आपको इसका दूसरा पक्ष चर्च के बन्धन हैं, अब भी बहुत से सहजयोगी इसके कारण भ्रमित हैं। यदि आपने ईसाईयों (तथाकथित) को बचाना है तो हूँ। आपको केवल अपना ही सामना नहीं करना निश्चित रूप से उन्हें इन बन्धनों से मुक्त करना अपना सामना करना होगा, में यही बात कह रही होगा अपने आस-पास के तथाकथित समाज का भी और स्वयं देखना होगा कि ये सामना करना होगा। सभी बन्धन और ईसाविरोंधी गतिविधियाँ, जिनमें आप लिप्त हैं, ये आपकी बढ़ोतरी और उत्क्रान्ति में होगा सौभाग्यवश हमारे यहाँ एक व्यक्ति इन चीज़ों के बारे में शोध प्रबन्ध लिख रहे हैं कि किस प्रकार से ऐसी चीजें समाज के लिए भयानक हैं। परन्तु अब भी कोई ये महसूस नहीं करता कि ये ईसाविरोधी पूर्णत: बाधक हैं। और क्योंकि आप विशिष्ट लोग हैं गतिविधि है- बन्धनों में फँसना। यह ईसाविरोधी जिन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है, आपको स्वयं गतिविधि है। ईसा इस पृथ्वी पर अवतरित हुए जहाँ मोज़िज़ ने धर्म की परिभाषाएं बताई और उनके बाद बहुत से लोगों ने ये कार्य किया। मोजिज ने सोचा कि लोग सन्तुलन में आएंगे और वो उन्हें ईसामसीह मौन हो जाते हैं, वो बातचीत नहीं करते परन्तु बन्धन के पुनर्जन्म और उत्थान का सन्देश देंगे। इस प्रकार से वे पृथ्वी पर अवतरित हुए परन्तु लोगों ने तो बहुत अधिक बोलते हैं, अपनी बातों से अन्य लोगों शैरियत से भी बदतर चीजें बना लीं। शैरियत के प्रति बहत आक्रामक होते हैं और उनमें अहंकार बाइबल में है, वो सभी नियम बाइबल में हैं जिनमें बहुत बढ़ता है। अत: व्यक्ति को साक्षी अवस्था में कहा गया है कि कोई अगर ऐसा करे तो उसकी होना चाहिए अर्थात जब आवश्यकता हो तो बोले हत्या कर दी जानी चाहिए, कोई यदि फलां कार्य से तर्क करके उचित परिणामों तक पहुँचना होगा। दूसरे लोगों से बहस करने का कोई लाभ नहीं है। जैसे आप जानते हैं, बन्धनों के कारण लोग उनके अन्दर बढ़ रहे होते हैं। अहम् के कारण लोग और जहाँ चुप रहना हो चुप रहे। यह विशुद्धि के स्तर पर है। आज्ञा के स्तर पर आपको भद्देपन, अपवित्रता और गन्दगी से घुणा करनी होगी। क्योंकि अब आपमें एक नई संवेदना बिकसित हो गई है- पावनता और मंगलमयता की संवेदना। अपने अन्दर करें तो उसका सिर काट दिया जाना चाहिए। बाइबल में ये सब है । मुसलमान लोग जो कुछ भी कर रहे हैं वह सब बाइबल में है। बाइबल में मिलता है। अत: इन सबको निष्प्रभावित करने के लिए श्रीमान अंक 9 & 10 2007 32 चैतन्य लहरी मिल सकती है तो विवाह कर लो, उनकी शादी हो गई, तब वह कहने लगा कि उसकी पत्नी को उसके साथ इंग्लैण्ड आना ही चाहिए। वह उसे ले आया। मैंने अनदेखा करने का प्रयत्न किया, उसे सावधान रहने के लिए कहा। फिर उनके पासपोर्ट गुम हो गए, उसका पासपोर्ट मिल गया परन्तु पत्नी का नहीं मिला। फिर भी वह मेरी जान के पीछे पड़ यह मंगलमयता बढ़ाने का प्रयत्न करें। मैं पाती हूँ कि लोग आसानी से नकारात्मक लोगों से जुड़ जाते हैं। उनका नकारात्मक लोगों से एकरूप हो जाना आम बात है और वो सोचते है कि वे हमदर्दी कर रहे हैं, सहानुभूति दर्शा रहे हैं! हो सकता है आपकी बहन हो, भाई हो, माँ हो, बीवी हो, या बच्चा। कोई भी हो सकता है। परन्तु ऐसे लोगों से लिप्त होकर आप वास्तव में उस व्यक्ति को हानि पहुँचाते हैं, वह व्यक्ति तो नर्क में जाएगा ही, उसके साथ आप भी नर्क में जाएंगे। अत: आप किसी का हित करना चाहते हैं तो सर्वोत्तम उपाय ये है कि उससे लिप्त न हों और उसे बता दें कि ये ईसाविरोधी गतिविधि याँ हैं। ऐसी सामूहिकता के साथ जुड़ें जो पावन कार्य कर रही हो और ये बात समझें कि ऐसे समूह के साथ जुड़ने में ही शक्ति निहित है, न कि किसी एक नकारात्मक व्यक्ति से जुड़ने में। गया और श्रीवास्तव साहब से कहकर किसी तरह से पासपोर्ट बनवाने के लिए विवश करने लगा। पासपोर्ट मिलना ही चाहिए। मैने कहा, ठीक है, उसका पासपोर्ट बनवाया। फिर वह महिला मेरे साथ आई। वह अब भी वैसे ही कर रही थी। मैंने उस व्यक्ति को कहा, "कि कृपा करके इस महिला को वहाँ से हटा दे, में नहीं चाहती कि वह मेरे साथ रहे। सिरदर्दी है, चौबीसों घण्टे वह मेरे साथ है ! मेरे पास कोई तो ऐसा समय होना चाहिए जब यह भूत मुझे घेरे वह बुरी है। परन्तु वह मेरी बात न समझ सका। अभी भी उस महिला का पक्ष ले रहा था। तब एक हुए न हो। कृपा करके इससे मुक्ति पा लो, आपमें से सभी को कुछ न कुछ अनुभव हुआ है। मैं आपको.... की पत्नी का उदाहरण देती हूँ, वो दोनों यहाँ पर विद्यमान नहीं हैं परन्तु पत्नी के साथ क्या हुआ ये समझना अच्छा होगा। दिन ऐसा हुआ कि इस महिला ने मेरे हृदय पर वह अपनी पत्नी से बहुत लिप्त था। उसने उससे शादी की तो मुझसे पूछा। वास्तव में मुझे खेद हुआ कि वह इतनी संवेदनहीन है, क्यों नहीं वह उस महिला को देख पाता, क्यों नहीं उसे समझ सकता? मेरी समझ में नहीं आया कि क्या कहूँ! यदि विवाह के लिए इन्कार करती हूँ तो वह सोचेगा कि माँ मुझे नीचे उतरने को कहो। जब वह नीचे उतरी तब विवश कर रही हैं। मैं नहीं जानती थी कि क्या कहूं, आक्रमण किया, हृदय मुट्ठी की तरह से भिंच गया। मेंने उस व्यक्ति से कहा कि मेरे हृदय पर हाथ रखकर देखे कि हृदय किस प्रकार धड़क रहा है। वह अपना हाथ न रख सका, मेरे हृदय के समीप भी अपना हाथ न ला सका। कृपा करके अब उसे हृदय की धड़कन धीमी हुई। तब उसे महसूस हुआ कि वास्तविकता क्या है। फिर भी उसने उसे छोड़ा नहीं, उसे छोड़ा नहीं। लॉस एंजलिस गए, सभी जगह वो मेरे पीछे आई। सहानुभूति के कारण, परन्तु वास्तव मुझे सदमा लगा और दो मिनट तक मैं कुछ भी नहीं बोली। मुझे विश्वास है कि उस महिला ने अच्छी तरह से अपना रंग जमा लिया था। में अन्यथा वो जा सकती थी। वह काफी शक्तिशाली महिला थी। लॉस एंजलिस में, शनै: शनै: उसने अपने दाँत दिखाने शुरु किए। अन्तत: वह कष्ट में मेंने कहा, ठीक है, तुम विवाह कर सकते हो । आपको 'खुशी' मिलेगी यदि आप सोचते हैं कि आपको 'खुशी' मिले। बस इतना ही, मैंने 'आनन्द' नहीं कहा। यदि आपको लगता है कि आपको खशी फँस गया, उसे दर्द होने लगा। परन्तु ज्योंही मैंने अक : 9 & 10- 2007 33 चैतन्य लहरी है? और आपके पास वे सभी तर्क होते हैं जो ईसा विरोधी कार्य करते हैं। आज्ञा चक्र जब विकृत हो जाता है तब आपको सभी असत्य और गलत चीजें भी पूर्णतः तर्कसंगत दिखाई देने लगती हैं। अत: हमें सावधान रहना होगा। हमें ईसामसीह के साथ बने रहना होगा। अब ये लोग चैतन्य-लहरियाँ प्राप्त करने के बारे में भी कहेंगे, " श्री माताजी ठीक है, है, हमने चैतन्य लहरियाँ देखी हैं।" कुछ नहीं, मुझे उलझन होती है। कभी-कभी तो मैं बताती ही नहीं, मुझे उलझन होती है। और लोग भी मेरे साथ चालाकियाँ करके लॉस एंजलिस छोड़ा उस महिला को मिर्गी हो गई। तब उसे महसूस हुआ कि हर समय उस महिला को मेरे साथ बनाए रखना कितना भयानक था! अब वह उसे भेज भी नहीं सकता क्योंकि उसे मिर्गी है। वह उसे वापिस नहीं ले गया| अपने दुख-दर्द की कहानियाँ बता-बताकर उस महिला ने पूरे आश्रम को अव्यवस्थित करने का प्रयत्न किया- ये कहकर कि ओह, मेरा पति मुझे छोड़ना चाहता है," मैं भी पूर्णतः वही हूँ। ये सच आदि-आदि। और सभी को उससे हमदर्दी हो गई, वह भूत है, भूत है, भूत है। और एक भूत ने दूसरे से हमदर्दी जताई। एक बार हमदरदी जताने पर एक और भूत जुड़ गया। इस चालबाज़ियाँ करने का प्रयत्न करते हैं । कभी-कभी प्रकार से वह समस्याएं उत्पन्न कर रही थी आप देखें यह ठीक नहीं है, वह ठीक नहीं है, वो मेरे क्योंकि मैंने देखा है कि अहंचालित लोग अत्यन्त विरुद्ध है, ये परिवार मेरे विरुद्ध है, वो मेरे खिलाफ संवेदनशील हैं एक बात तो है वे अक्खड़ नहीं हैं, है! फिर वहाँ किसी को हृदयाघात हो गया तब कहीं भूत बढने लगे। तो मुझे चिन्ता होती है कि उन्हें किस प्रकार बताएं| अत्यन्त संवेदनशील हैं और यदि उन्हें कुछ बताया जाए तो उसे स्वीकार नहीं करेंगें जैसे कल मैने पूना जाकर उस व्यक्ति ने उस महिला को. निकाला। के सभी लोगों को फटकारा तो उन्होंने कहा कि यह हमारे हित के लिए है। किसी कि "श्री माताजी आपने ऐसी बात क्यों कही?" नहीं, एक ने भी नहीं कहा, सभी ने यही कहा कि यह हमारे हित के लिए है। परन्तु पश्चिम में यदि आप किसी को फटकारेंगे तो वो भी आपको फटकार देंगे। इस प्रकार से कोई भी आपकी फटकार को नहीं लेंगे। अब आप लोग ये मुर्खता न दोहराएं। ने भी ये नहीं कहा नकारात्मकता को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। इसे अपने साथ नहीं रखना चाहिए। सद्-सद्-विवेक सन्तुलन का बेहतर भाग है। व्यक्ति को डरना नहीं चाहिए, परन्तु विवेक सन्तुलन का बेहतर भाग है। ठीक है? आपमें यदि नकारात्मकता हैं तो बेहतर होगा इससे मुक्ति पा लें। कोई यदि नकारात्मक है तो बेहतर होगा कि उससे सम्बन्ध न रखें, चाहे जो भी सम्बन्ध हों, उससे कोई सरोकार न रखें। पतन की ओर जाने का कोई लाभ नहीं। अआप यदि साधक हैं, जिम्मेदार साधक और सहजयोगी हैं तो आपको अत: मुझे आपसे एक चीज़ बतानी है कि अपने अहं की समस्याओं को सुलझा लें। सर्वप्रथम देखें कि आप अपने अहं के हाथों नहीं खेल रहे हैं, और अपने बन्धनों (प्रतिअहं) को भी देखें जो आपके अन्दर भूत बन चुके हैं। चर्च के सभी भूत आपकी खोपड़ी में घुस गए हैं वे सब यहाँ मौजूद हैं। अत: आपको निश्चित करना होगा कि ये भूत आपकी खोपड़ी में न बने रहें, क्योंकि हमें पावन होना है, हमें स्वच्छ होना है और पुनरुत्थान प्राप्त सावधान रहना होगा। यह सब मुझे ईसामसीह के जन्मदिवस पर कहना है क्योंकि केवल वहीं से युद्ध आरम्भ होता है- आज्ञा चक्र से। ज्योही आप ईसामसीह के सिद्धान्त से दूर हटते हैं तो नकारात्मकता के पक्ष में बहस करने लगते हैं, हमेशा उल्टी दिशा में ठीक ho अंक : 9 & 10 चैतन्य लहरी 2007 34 करना है हम द्विज हैं। ईसा मसीह ने हमें द्विज क्योंकि वे आपको पुनर्जन्म प्रदान करने के लिए बनाया है। परन्तु आपको सोचना होगा कि हमारे लिए उन्हें कितना कार्य करना पड़ा। जितना अधिक सोखने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी उन्होंने ली है। आप नकारात्मकता से जुड़ेंगे उतना ही अधिक हम उन्हें (ईसामसीह को) हानि पहुँचाएंगे, सताएंगे और लाद दें। जैसे कभी-कभी मैं पाती हूँ कि कुछ उतना ही अधिक उन्हें कष्ट देंगे, उन्हें जिनका जन्म पश्चिमी लोगों का प्रतिअहं इतना अधिक होता है नॉद (Manger) में हुआ था और जिन्हें जीवन के कि इस नन्हें शिशु पर पहाड़ का बोझ पड़ जाता आरम्भ से मृत्यु तक कठिनाइयों में रहना पड़ा। जबकि सभी लोगों को जीवन के सुख चाहिएं! आप देखें कि उनका जन्म ही गायों के बाड़े में हुआ! ईसाई लोग जब अपनी सुख-सुविधा के बारे में इतने सतर्क हैं तो आश्चर्य की बात है कि ईसामसीह ने आती है। सम्राटों के सम्राट जिनका जन्म आपके गायों के बाड़े में जन्म क्यों लिया! कड़कड़ाती ठण्डी रात में ईसामसीह का जन्म हुआ इतने सुन्दर कोई तरीका नहीं है। आपका इतना सम्मान किया शिशु को ढकने के लिए पर्याप्त वस्त्र भी न थे! अब हमें ईसामसीह को अपने अन्दर आराम से सम्भालकर रखना होगा। अब हम उन्हें अपने आज्ञा चक्र में वही नाँद नहीं देंगे। अपने विचारों का नाँद और ताज हम ईसामसीह को नहीं देंगे। सहानुभूति के रूप में उड़ने की कल्पना करें! अत: इस आज्ञा चक्र को नकारात्मकता को स्वीकार न करके हम उन्हें सुखी बनाएंगे। अपनी मंगलमयता और पावनता के प्रति पवित्र होना चाहिए। बाहर की ओर चित्त अभी भी आपको दयालु होना होगा ताकि ईसामसीह आपकी आज्ञा में अपने निवास का आनन्द ले सकें। अपने व्यर्थ के विचारों, कष्टकर आचरणों, अभद्र दिखावों और गलत धारणाओं की अपवित्र स्वीकृति से हम चाहिए ताकि आपकी आँखों को देखकर कोई उन्हें न सताएं। उनका सम्मान करने का प्रयल्न करें, भी व्यक्ति ये जान जाए कि इन आँखों से माधुर्य वे वहाँ खड़े हैं। उन्हें अत्यन्त सुखी करने का प्रयत्न करें। काश कि मैं ये कार्य कर सकती, परन्तु उनका निवास तो हर मनुष्य के आज्ञा चक्र में है । वे यदि केवल मेरी आज्ञा में होते तो मैं उन्हें अधिकतम वहाँ स्वीकार करें, उनका जन्म हो गया है परन्तु अवतरित हुए हैं। आपके सभी बन्धनों और अहं को परन्तु इसका अर्थ ये नहीं है कि आप उन पर पत्थर है। कभी- कभी मुझे श्वास की भयानक दुर्गन्ध आती है, अहं के भयानक श्वास की दुर्गन्ध, जो सड़ती हैं और तूफान की तरह से आज्ञा की ओर जाती है और इस भयानक अहम् में से सड़ी हुई दुर्गन्ध अन्दर हुआ, का स्वागत करने का यह बिल्कुल गया कि ईसामसीह ने आपकी आज्ञा में जन्म लिया, अब आप भी तो अपने आज्ञा चक्र का सम्मान करें। अपने चित्त को मध्य में रखें ताकि कोई अस्थिरता न हो- किसी बच्चे के पंख लगाकर अत्यन्त स्वच्छ, स्वस्थ और पावन रखना होगा। चित्त पावन नहीं है, चित्त निर्लिप्त होना चाहिए। आप यदि आज्ञी के माध्यम से देखना शुरु कर दें तो आपके अन्दर से पावनता की शक्ति का प्रक्षेपण होना प्रवाहित हो रहा है, वासना, लोभ और आक्रामकता नहीं। ये सभी कुछ हम प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि अपनी आज्ञा में ईसामसीह हमें प्राप्त हो गए हैं। उन्हें सुख प्रदान करती, परन्तु वे तो हर मनुष्य की आज्ञा में प्रकट होना चाहते हैं। अत: माँ के रूप में मुझे आपसे प्रार्थना करनी है कि उनकी देखभाल करें, उन्हें शानदार पालना दें और सुखद समय प्रदान करें अभी उन्हें बढ़ना है। मुझे विश्वास है कि सहजयोगी आज्ञा चक्र के महत्व को समझेंगे। पूर्व में कोई समस्या नहीं है क्योंकि वहाँ के लोगों के लिए वे केवल श्री गणेश हैं। श्री गणेश शिशु हैं और अंक : 9 & 10 चैतन्य लहरी 2007 35 मुझसे पूछते हैं- "यदि वे पावन हैं तो हम किस प्रकार उन्हें अपावन कर सकते हैं? मेरा कहने का अभिप्राय ये है कि यदि आप उनका सम्मान नहीं निश्चित रूप से लोग जानते हैं कि बचपन में किसी प्रकार की मलिनता, कोई समस्या आदि नहीं होती। तो जहाँ तक अपराधों का सम्बन्ध है वे लोग अब भी बच्चे हैं एक कथा है- एक पादरी, किसी गाँव करते तो वो क्यों यहाँ उपस्थित होंगे? वे गया और ग्रामीण लोगों को बहुत बड़ा भाषण दिया, जाएंगे। उन्हें पावनता पसन्द है। वो यहाँ से लुप्त हो गाँव के लोगों ने उसका धन्यवाद करना था। एक जाएंगे और यह आपके लिए हितकर नहीं है। ग्रामीण उठ़ा और कहने लगा, "हमें इसके विषय में बताने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, हम नहीं जानते थे कि पाप क्या होता है, परमात्मा का धन्यवाद आपने हमें बताया कि पाप भी होता है।" तो उनके मस्तिष्क में ये चेतना नहीं है। वो नहीं ईसामसीह के सौन्दर्य और उनकी मंगलमयता का समझते। आपको आश्चर्य होगा, भारतीय लोगों से पोषण करेंगे। लुप्त हो अत: बेहतर होगा कि प्रेम और ईमानदारी का एक पालना, एक सुन्दर पालना, जैसा उनकी माँ ने उनके लिए तैयार किया था, तैयार करें। पूर्ण माधुर्य, करुणा और विश्वास के साथ कि आप आप नहीं पूछ सकते, उनकी समझ में ही नहीं आएगा कि इसका अर्थ क्या है? वे कहते रहें. 'श्रीमान फ्रॉयड, ये, वो परन्तु वो कुछ नहीं समझ परमात्मा आपको धन्य करें। आपके कोई प्रश्न हों तो मुझसे पूछें। एक सहजयोगी:- जब मैं निर्विचार समाधि पाते। यह इतना परमात्मा-विरोधी है! वास्तव में कल तक मैं भी इसके बारे में नहीं जानती थी। जब रुस्तम ने अत्यन्त संकोचपूर्वक इसका वास्तविक अर्थ बताया कि यह इस प्रकार से है और हमें इसे में होता हूँ तो स्पष्ट नहीं देख पाता? मैं सोचती हूँ कि आपको श्री माताज़ी उससे अधिक देखना चाहिए जितना आप प्रायः देखते हैं। समझना है। वो ठीक है। जब आप निर्विचार समाधि में आज पावनता का महान दिवस है। आइए अपने आज्ञा चक्र में ईसामसीह का जन्मोत्सव मनाएं होते हैं तो आपकी आँखें (पुतलियाँ) फैलती हैं, ये और उनका स्तुतिगान करें ताकि अपने पावन सार में, अपने पावन शरीर में, वो स्वयं यहाँ विद्यमान को- थोड़ा सा और ऊपर, ऊपर को खींचे ठीक है? हों। ईसाइयत या फ्रॉयड की मूर्खता नहीं। ईसाइयत भी उतनी ही खराब है जितनी फ्रॉयड की बातें। हुई हो अर्थात पुतलियाँ अभी फैल रही हों तो आँखों बात ठीक है परन्तु इसे और ऊँचा उठाएं- कुण्डलिनी कुण्डलिनी यदि निर्विचार-चेतना पर रुकी इनमें कोई अन्तर नहीं है। बच्चे पर पहाड़ गिराकर चाहे आप उसकी हत्या कर दें या गन्दी बदबूदार होती। परन्तु कुण्डलिनी जब बाहर आती है तो का रंग काला हो सकता है, परन्तु उनमें चमक नहीं आँखों में चमक आ जाती है। आप यदि गौर से देखें तो आँखों में अन्तर नज़र आएगा। आँखें फैलती हैं हवा उस पर चलाकर, दोनों एक ही बात है। अत: कृपया दोनों धारणाओं से मुक्ति पा लें- पूर्णतया और पावन हृदय से उनका (ईसामसीह) पुतलियाँ फैलती हैं- जब आज्ञा चक्र का सिर्फ सम्मान करें। 'पूर्ण पावनता से क्योंकि वे पावनता हैं। अब आप कह सकते हैं कि श्री माताजी वे यदि होती है, तब आप स्पष्ट नहीं देख पाते। ठीक है? पावन पवित्रता हैं- कुछ ऐसे मुर्ख लोग भी हैं जो परन्तु निर्विचारसमाधि इसका एक हिस्सा है। अत: भेदन हो रहा होता है- अर्थात कुण्डलिनी अभी यहीं अंक : 9 & 10 चैतन्य लहरी 36 2007 अपना चित्त वहाँ डालें- और अब सर्वोत्तम ये कुण्डलिनी को यदि आप थोड़ा सा ऊपर को धकेलें- आप जानते हैं कि अपने चित्त से कुण्डलिनी होगा कि अपना चित्त मुझ पर बनाए रखें को किस प्रकार धकेला जाता है, या आप यहाँ क्योंकि मैं सहस्रार पर हूँ। (सहस्रार पर) देखें या मेरे विषय में सोचें तो कुण्डलिनी ऊपर को चली जाएगी। ठीक है? अपनी कुण्डलिनी को आज्ञा पर बने रहने की आज्ञा न दें। ये भयानक है। नि:सन्देह। आप सूक्ष्म हो गए हैं और यदि आप चाहें तो, प्रयत्न अत: निर्विचार समाधि मात्र शुरुआत कृष्ण के स्थान तक जहाँ आप साक्षी बनते करके बाएं या दाएं को जा सकते हैं। हैं, महान क्षेत्र है। जब आप 'साक्षी बिन्दु' बन जाते हैं तब आपकी आँखों में चमक आ जाती है। आपकी आँखें चमकती हैं। आँखों की चमक इस और श्री मैं आपको बताऊंगी कि यदि आप अपनी आँखें बन्द करने लगते हैं या आपको नींद आ रही होती है और उस अवस्था में यदि आप प्रतिबिम्ब देखने लगते हैं तो इसका अर्थ ये होता है कि आप बाईं ओर को जा रहे हैं- ये मृत शरीर हैं, आप उनके चेहरे देखने लगते हैं। ये, वो। आप बाएं को जा रहे हैं । यदि आप प्रकाश, सितारे, ये वो सभी प्रकार की चीज़ें देखने लगते हैं- अर्थात बहुत से रंग-तो समझ लेना चाहिए कि आप दाईं ओर को जा रहे हैं । इससे बचने का प्रयत्न करें। आपको कहना चाहिए, बात का चिन्ह है कि कुण्डलिनी ठीक प्रकार से चल रही है। उस समय आप उससे कहीं अधिक देख सकते हैं जितना आप प्रायः देखते हैं। आरम्भ में तो बड़ा-बड़ा नज़र आने लगता है, हर चीज़ कहीं अधिक साफ़ नजूर आने लगती है। ठीक है? पुतलियों का विस्तार घटित होता है। इस समय पर कुछ लोगों ने वास्तव में अपनी आँखें खोलीं और कह उठे, "ओह! हम तो अन्धे हो गए हैं।" ये सत्य है, ऐसा घटित होता है, ये बात ठीक है? " मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है।" आपको यदि लगे कि आज्ञा बाईं तरफ है तो इसे दाईं तरफ धकेलें और यदि दाई तरफ है तो बाईं तरफ धकेलें। बहुत अच्छा प्रश्न था। आज्ञा बहुत महत्वपूर्ण है और सर्वोत्तम तरीका ये है कि आप अपनी कुण्डलिनी को ऊपर परन्तु होता क्या है कि जब आप उच्च चेतना की एक खास अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं उठाएं, आज्ञा के आस-पास न घूमते रहें। ऐसा करना तब इच्छानुरूप आप इन क्षेत्रों में प्रवेश कर सकते हैं और ये सब चीजें देख सकते हैं परन्तु तब कुछ बहुत खतरनाक है। आपको 4, 4, 4 कदम पीछे फेंका जा सकता या 6, 6, 6, 6 कदम इस और जा सकते हैं। यह 6, 6, 6, 6 कदम इस ओर और 4, विशेष भिन्न प्रकार की चीजें भी आप देखते हैं। 4 4 कदम इस ओर कार्यान्वित होता है। भयानक! कभी मत जाएं। आपको बहुत सावधान रहना चाहिए। उदाहरण के रूप में आप मेरे सहस्रार से बहुत कुछ और निकलते हुए कभी भी आप आज्ञा पर घूमते न रहें, नहीं तो देख सकते हैं ये बिल्कुल अलग बात है कभी-कभी आप छोटी सी ज्योति (Flame) भी देख सकते हैं- ये अच्छा चिन्ह है, इसका अर्थ ये है कि कोई आपका पथ प्रदर्शन कर रहा परन्तु आपको बड़े-बड़े वलय या ऐसा ही आपको बाहर फेंक दिया जाएगा। चित्त को बाहर धकेला जाता है- प्रक्षेपित किया जाता है। आप विचार करने लगते हैं, सभी प्रकार की समस्याएं। है। सावधान रहना होगा। इन चीजों से लिप्त नहीं होना क्योंकि आपका पथप्रदर्शन हो रहा है और नि:सन्देह हर समय अपनी कुण्डलिनी को बाहर बनाएं रखें, देखें कि यह बाहर आ रही है। গt चैतन्य लहरी अंक : 9 & 10 - 2007 37 श्री माताजी:- इसकी आपको आवश्यकता महान देवी देवता आपके पीछे-पीछे चल रहे हैं । परन्तु आपको चाहिए कि इन चीजों से चिपके रहने का प्रयत्न न करें। वो यदि बहाँ हैं तो होने दें । आपकी आज्ञा बहुत महत्वपूर्ण है, अपनी आज्ञा को इन चीजों की ओर आकर्षित न होने दें इस प्रकार की ज्योति आपको दिखाई दे सकती हैं। कभी-कभी आपको एक छोटा सा बिन्दु, रुका हुआ बिन्दु दिखाई दे सकता है। वास्तव में ये देवदूत हैं जो आपके साथ हैं और आपको विश्वस्त करने का प्रयत्न करते हैं। परन्तु ये सब महत्वपूर्ण नहीं है। आपके मार्ग पर महत्वपूर्ण तो ये है कि आप आगे यही सर्वोत्तम है। बस आनन्द लें। मैं चाहती हूँ कि बढ़े, न इधर जाएं न उधर। परन्तु यदि आपको रोज़ इस प्रकार के प्रतिबिम्ब नज़र आते हैं तो इन्हें करें, बस, और आनन्द उठाएं। ठीक है? बस अपने पीछे या इधर-उधर धकेलने का प्रयत्नं करें, जैसा लिए समस्याएं न खड़ी करें। भी हो सके, और इन्हें समाप्त करने का प्रयत्न करें ताकि आप आगे बढ़ सकें। इसका अर्थ ये है कि या तो आप एक ही बिन्दु पर रुके हुए दिशा में, बाएं या दाएं को, जा रहे हैं। दिशा तो आगे-आगे और आगे होनी चाहिए (ऊपर, ऊपर और ऊपर)। नहीं है। मेरा अभिप्राय ये है कि आपको इसकी चिन्ता नहीं करनी। चेतन पर बने रहें, ठीक है? आप किसी चीज की रक्षा नहीं करते, वास्तव में आप कुछ नहीं करते। वास्तव में, यदि आप देखें तो आप क्या करते हैं? सहजयोगी:- में तो बस आनन्द उठाता हूँ। श्रीमाताजी:- हाँ, आप बस आनन्द लें। आप आनन्द उठाएं। अपने लिए समस्याएं मत खड़ी महत्वाकांक्षी न बनें। आक्रामक न हों और दूसरों के सम्मुख बहुत अधिक दब्बू (Submis- sive) न बनें। ये बहुत कम होता है परन्तु सहजयोग के प्रति विनम्र बनें और पूर्णतः समर्पित। हैं या दूसरी निर्मला योग- 1983 सहजयोगी:- अपने अवचेतन की हमें किस प्रकार रक्षा करनी चाहिए क्योंकि इसके विषय में तो हम चेतन भी नहीं हो सकते? (रूपान्तरित) चैतन्य लहरियाँ क्या हैं मुम्बई-27.3.74 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन कोई शंका नहीं कर सकते। जो विदित है जो दिखाई Viberations, that is love, that is है दे रहा है, ये viberations क्या है? एक Viberation, knowledge, that is joy । पहला शब्द जिसको कि आप लहरियाँ कह सकते हैं, परम कह सल्फरडायाक्साइड के रेणु में जो अनन्त अणु हैं वो किस चीज से Viberated हैं, इसमें Viberations सकते हैं। जब कोई तार छूती है, इसमें से जो संगीत के तरंग उठते हैं, इसे आप viberations कह सकते क्या चीज है? इसके बारे में Science ने एक शब्द viberations के सिवा और कुछ नहीं कहा। ऐसे मैंने पहले भी आपसे कहा था कि हमारे हृदय में जो हैं। भाषाओं का बड़ा चक्कर है। बहरहाल भाषा में उसे आप कुछ भी कहें, लेकिन साक्षात् में इसे आप देख सकते हैं। अभी हाल ही में मैं जब लन्दन में स्पन्दन हो रहा है, इसमें कौन सी शक्ति है, ये अगर डॉक्टरों से पूछा जाए तो सिवा इसके कि ये एक से थी तो वहाँ पर Electro Microscope कुछ अणु रेणुओं में, Molecules के फोटोग्राफ T.V. पर वो लोग दिखा रहे थे उसमें उन्होंने बताया एक Autonomous Nervous System है, स्वयंचालित एक संस्था के सिवाय कोई भी बात हमारे Doctor लोग sulpherdioxide का रेणु जिसमें कि एक Sulpher का अणु है और दो Oxygen के रेणु हैं, आपस में किसी बाँध से बंधे हुए हैं। आँखों से दिख रहा था, नहीं बता सकते। इसका मतलब ये नहीं कि उन्होंने जो खोजा वो ज्ञान नहीं, ज्ञान है लेकिन अधूरा ज्ञान है, बहुत ही अधूरा, छोटा सा, इसका एक अंश मात्र है जिसको कि न्यूटन ने एक बार कहा था । am इसका चित्र दिख रहा था। इसके बारे में कोई प्रश्न या भाषा या कोई शंका की बात नहीं है। आप आँखों से देख रहे हैं। इस तरह के तीन बिन्दुओं के बीचोंबीच एक शक्ति दौड़ रही थी मानो जैसे दोनों हाथों से झर-झर, झर-झर कोई चीज जा रही हो, जैसे की sulpher के दो हाथ हों और वो अपने हाथ से कुछ चीज़ Oxygen की ओर डाल रहे हैं और like the small child collecting pebbles on the shores of knowledgel न्यूटन जैसे महाज्ञानी तक को यह विचार आ गया था कि मैं अभी बहुत अज्ञानी हूँ, इसी जगह ज्ञान की शुरुआत हो जाती है जब मनुष्य सोचने लगता है कि 'सूरदास की सभी अविद्या करो नन्दलाल।' ये जो viberations दूर आपको उसमें दिखाई दे रहे हैं उसके बारे में आप Oxygen से कुछ चीज़ Sulpher की ओर आ रही है। आप अपनी आँख से देख सकते हैं। लग रहा था कुछ भी नहीं कह पा रहे हैं। क्या मनुष्य का ज्ञान हिल रहा है। इतना अधूरा है कि हर रेणुओं में, हर अणुओं के बीच में जो तरंग उठ रहे हैं उसके बारे में कुछ भी और उसके बारे में उन्होंने ये बताया कि तीन तरह के viberations होते हैं, तीन तरह के तरंग होते हैं, जो किसी भी matter में, किसी भी जल पदार्थ में भी दिखाई देते हैं, ये अब Science ने पता लगाया है और इसके बारे में आदिकाल से ही आप नहीं कह पाए? इसका मतलब ज्ञान तो हुआ ही नहीं। Viberations जो कि ज्ञान स्वयं हैं, वो ज्ञान है, सम्पूर्ण ज्ञान हर अणु-रेणु अन्दर में स्थित है जैसे मेरी सम्पूर्ण भाषा और ज्ञान जो मेरे मुख से जा रहा है इन दोनों में स्थित है लेकिन ये दोनों मूर्ख इतने अनभिज्ञ हैं कि कौन सा ज्ञान इसमें से गुजर रहा है। संसार में से लोगों ने बताया। ये जो viberations बहुत चल रहे हैं जो कि जड़वस्तु में आपके सामने साफ-साफ नज़र आते हैं, इसके बारे में क्या आप हमारे भी अन्दर वही ज्ञान तरंगित है लेकिन हम भी चैतन्य लहरी 2007 39 अक : 9 & 10 के रेणुओं जैसे अनभिज्ञ हैं कि हमारे अन्दर कौन सा ज्ञान प्लावित है और किस चीज़ को फिर आप सच मानकर बैठे हुए हैं। और जब कभी कोई भी आदमी उस सत्य की जरा खोज दूर ही से हों रही है। जैसे कि मैने आपसे और उसी Sulpher oxygen कहा कि Sulpherdioxide के एक रेणु के अन्दर उसके अणु के अन्दर से viberations हैं ये वही संगीत के तार हैं जिनकी मैं बात कर रही हूँ और वही viberations आपके अन्दर से भी बह सकते हैं और फूट कर के उस कार्य को पूरा कर सकते हैं जिसके लिए आप संसार में आप मनुष्य रूपेण आए और अहंकार आदि चीजों से सब अलंकृत सी भी पहचान कराने आता है, तो क्योंकि असत्य में खड़े हैं इसीलिए हम द्वेष में भी खड़े हैं। उस सत्य की झलक मात्र भी कोई आदमी कहने आता है तो उसे हम क्रॉस पर चढ़ा देते हैं या उसको हम murder कर देते हैं, उसको हम खत्म कर देते हैं किए गए। कि जो वो सत्य है हमारे ऊपर किसी तरह से भी और अन्त में उस संगीत के आप धुनी बने। बड़ा संगीत का सारा साज सजाया गया था, त खुल जाए। इससे भी बचकानापन क्या और हो सकता है? जिस सत्य के कारण स्वयं आनन्द सब बड़े सुन्दरता से जतन करके जमाया गया रंग, लेकिन तार को छेड़ने वाला गुर नहीं मिलेगा तो संगीत कैसे उत्पन्न हो सकता है? इसीलिए संसार में कहीं भी, जहां कि बड़ी अमीरी भी है, जहाँ पर अब दूसरी तरह से समझना चाहें तो मैं लोग बड़े बलिष्ठ हैं, जहाँ बड़े सत्तावान लोग बैठे आपको समझाऊं कि एक तानपूरा की बात है हैं, आनन्द मैने कहीं नहीं देखा। और न आप ही जिसमें कि उसकी लकड़ी भी है और उसका नीचे पाइयेगा कि किसी के अन्दर वो आनन्द की उपलब्धि है। कारण उसका एक ही है कि वो तार जिससे कि आनन्द, की उपलब्धि होती है आपके हाथ नहीं आपके अन्दर में खिलना चाहता है, आपके हृदय में है घुसना चाहता है, आपके हृदय में बसना चाहता उसी मार्ग को आप अज्ञान में बन्द किए हैं। का हिस्सा जिसमें कि आवाजू गूंजती है और ऊपर में उसके तार हैं। जब तक उंगलियोँ तार को नहीं छेड़ेंगी तब तक कोई भी संगीत तैयार होने वाला नहीं, उसमें से संगीत सुनाई देने वाला नहीं। लेकिन उंगलियाँ तार पे नहीं हैं, हमारा चित्त उस तार पे होता। इसका कोई भी स्वरूप नहीं है। ये एक नहीं है जिससे आनन्द की उपलब्धि होती है, हमारा लगा है और उसका कारण ये है क्योंकि वो किसी आकार प्रकार में या किसी विशेष स्वरूप में नहीं energy जैसा है, गर आप कल बिजली को पकड़ सकते हैं तो उसे भी पकड़ सकते हैं। अहंकार आदि है। उस तार पे जब तक आपकी लेकिन आप बिजली को नहीं पकड़ते, उसी तरह से आप उसे नहीं पकड़ सकते हालांकि आनन्द की उपलब्धि हो नहीं सकती। आप संसार वो आपके अन्दर है, आपके हृदय में स्पन्दित है, की कोई सी भी चीज़ ढूँढ डालिए, जो भी आपकी आपके जितने भी स्वयंचालित कार्य हैं- शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, सब वही करता है और वही कर डालिए, लेकिन आनन्द की उपलब्धि तभी आपको अपनी ओर खींच रहा है। उसे जानना हमारे होगी जब सहज में ही आप उन तारों को छेड़ देंगे लिए परम आवश्यक ही नहीं किन्तु परम जीवन का चित्त उस तानपूरे पर है जो ये शरीर, मन, बुद्धि, उंगली छिड़ेगी नहीं आपको किसी भी चीज से आजतक युगों से खोज है, वो सारी ही खोजें आप जिससे कि संगीत उत्पन्न होता है। उस तारों की लक्ष्य मात्र है। जब तक संसार इस चीज को सोचेगा ग चैतन्य लहरी अंक : 9& 10 2007 40 नहीं, जब तक इस ओर पूरी तरह से दृष्टि नहीं की किताब नहीं पढ़ता। कितनी विचित्र सी बात है! डालेगा तब तक संसार का कोई सा भी प्रश्न ठीक नहीं होगा। अभी लन्दन में भी मेरी कुछ लोगों से बातचीत हुई, अजीब-अजीब लोग बातें पूछते हैं । जब तक Sex लिखा न जाए तक तक वह धर्म की बात नहीं सुनता। Sex का और धर्म का कोई भी सम्बन्ध नहीं है। चाहे वो आज हो, चाहे अनादिकाल एक साहब पूछने लग गए कि वियतनाम में इतने लोग मर रहे हैं और आप अपना सहजयोग लेकर नहीं, उसके लिए कुछ भी कहे, Sex का और ध बैठे हैं! मैने कहा, बहरहाल आपके बड़बड़ाने से म्मं का कोई भी सम्बन्ध नहीं है। ये हम सिद्ध करके वियतनाम का वार नहीं ठहरने वाला। कहने लगा तक भी मनुष्य इस बात को न भी माने, समझे भी आपको दिखा सकते हैं, अगर आप किसी भी हमारे आपके ऊपर गुर कोई बन्दूक लेकर आए और आपको मार डाले तो आप क्या करिएगा? मैने कहा पहले आप बन्दूक तो लेकर आने दीजिए। इस प्रोग्राम में आएं। इस कुण्डलिनी की जागृति Sex से सम्बन्धित है ही नहीं। उल्टे Sex जब छोटे बच्चे जैसे हो जाता है, तभी कुण्डलिनी आपकी माँ जागृत होती हैं। इस तरह से कलयुग में एक विचित्र सा viberation की शक्ति अभी तक किसी ने आजूमाई नहीं। हमारे सामने तो ऐसे ही कोई जुरा सा भी कोई पिस्तौल लेकर आए तो थर-थर काँपकर के उसके हाथ मुँह दबदबाने लगते हैं। आपमें से बहुत सों ने देखा है। confusion है। उस वक्त में viberations का देखा जाना कम से कम इशारा तो इस ओर करता ही है कि मनुष्य चाहे कितनी भी डींग मारे वह बहुत कम ही जान पाया है। बहुत ही थोड़ा जान पाया है। बहुत ही थोड़ा। और जो नहीं जान पाया उसको सब उसने नाम दे दिए है बड़े बड़े! जैसे कि मैने आपसे कहा त प्रेम की शक्ति को किसी ने आजमाया ही नहीं, और गर प्रेम की बात करो तो लोग उसे हवाई बात समझते हैं हालांकि अणु-रेणु और हरेक मनुष्य कि viberations, कहीं इसे कहता है कि स्वयंचालित और कहीं वो कहता है कि universal संस्था, के हृदय के हरेक स्पन्दन में ही उसकी शक्ति कार्य करती है। प्रेम ही एक शक्ति है जो सारी सृष्टि की unconsciousl रचना, सृजन, सारा कार्य करती हैं। इसी फ्रेम की शक्ति को लोग Divine कहते हैं। नाम कुछ भी इसको समझने की बात है, हिन्दुस्तान में जाते हैं कि माताजी ने ऐसे कैसे कहा। लेकिन जो संसार के सारे ही प्रश्न सहजयोग से ही छूट सकते हैं। ये कहने पर भी लोग बहुत नाराज हो दीजिए, शंकराचार्य ने बहुत साफ-साफ इस बात की गर्जना करके और घोषणा करके कहा था, "'इन्हीं चैतन्य शक्ति सारे संसार को चलाती है, जो viberations हरेक अणु, रेणुओं में प्लावित है, उसको गुर आप लहरियों का आना ही परमात्मा का पाना है और जान लें, बो आपके हाथ में से बहने लग जाएं, उसी से मनुष्य उस परमात्मा के हाथ का साधन बनकर के संसार का कार्य उस तरह से करते रहता है जैसे कोई एक साक्षी हो Witness हो। लेकिन शंकराचार्य को कौन पढ़ते हैं? उसपे गुर आप mastery कर लें, तब आपके लिए क्या असम्भव कोई बात है? मनुष्य शक्ति का पूजारी है, वो चाहता है कि हाँ गर मेरे अन्दर शक्ति आ रही है तो मैं सहजयोग करुंगा, उसे कुछ बदला चाहिए। असल में आपके अन्दर तो शक्ति है ही, लेकिन वो कुण्ठत है। उसको स्वतन्त्रता Modern आदमी की बड़ी विचित्र दशा है! जब तक धर्म में अधर्म न लिखा जाए मनुष्य धर्म चैतन्य लहरी अंक : 9 & 10 2007 41 दे देना, उसको iberate करना, यही कार्य से Centres पकड़े हैं जो हमारे अन्दर हैं, जिन्हें हम सहजयोग करता है। यही iberation है, यही दिखा सकते हैं आपको, पर आप हमारे ध्यान में मुक्ति है, जिसके बारे में हजारों किताबें मनुष्य कभी आएं इतना समय गर आपको मिल जाए. आप बड़े busy लोग है तो आप जान सकते हैं कि अज्ञानियों की किताबें हैं। ज्ञान की किताबें तो वो हैं इन्हीं उगलियों के ऊपर आप दूसरों को परख सकते जोकि रोजमर्रा, हर जगह हमें जरूर देखने को मिलें हैं और जान सकते हैं कि कौन सन्त है, कौन असन्त है, कौन दुष्ट है कौन महादुष्ट है, कौन ने लिख दीं। ये बहुत अज्ञानी किताबें है, बहुत सारी और उसका proof मिले। अज्ञान ही संसार में भरा दिखाई देता है। राक्षस है। यही knowledge कोई साहव आए बड़े अच्छे कपड़े पहनकर के आ गए, साधु महात्मा जब मनुष्य को ज्ञान होता है, सिर्फ एक ही ज्ञान कि 'मैं कौन हूँ' मैं किस शक्ति से बना हुआ हूँ और किस शक्ति में मैं स्थित हूँ' तो एकदम से बनकर आ गए, आपसे मीठी बातें करी, 'भई मैं तो तुमसे प्रेम करता हूँ।' बाद में आपने पता देखा कि कितनी गटी कट गई ये तो समझ में आया नहीं, वैसे तो बड़े अच्छे लग रहे थे, बड़े साधु लग रहें उसका अन्तर्मन बदल जाएगा। उसकी स्थिति बदल जाती है, उसका तरीका बदल जाता है। और जिसे थे, मुँह से बड़े भोले भाले लग रहे थे लेकिन हमारी वो दुख समझता है, जिससे वो घबराकर भाग रहा है, वो असलियत में वास्तविकता तो गर्दन काट गए! मनुष्य के बारे में अपने ही मनुष्य और नहीं है। हालांकि अधिकतर मानव बहुत सुन्दर, उसके लिए बड़ी मनुष्य के बीच में कोई आपस में ज्ञान सुन्दर हो जाती है। सिर्फ ये viberations हमारे अन्दर से बह निकलें उसके बाद इन्हीं viberations अत्यन्त गौरवशाली, जैसे कि बाग में कलियाँ हों और अभी खिली नहीं हों और कोई समझता ही से आप जान सकते हैं, knowledge आ सकता है कि दूसरा आदमी क्या है। इसी से शुरु करें। दूसरा आदमी क्या है? आप कोई realized आदमी आता है, छोटे बच्चे आते हैं दो-दो साल के बच्चे जो पार हो जाते हैं, जिन्हें हम कहते हैं जिनके अन्दर से पड़ते हैं, और जब आप दूसरों पर हाथ रखकर viberations बहना शुरु हो जाते हैं। वो किसी भी देखते हैं तो मजा आता है आपको। आपको मजा नहीं कि इस बाग में कितनी बहार है जब ये viberations आपके अन्दर से छूट इन्सान की ओर जब हाथ करते हैं तो बताएंगे कि हमारे इस उंगली में जलन है। अब गुर उस आदमी से पूछिए हैं कि आपको Heart Trouble है, कहने आता है, आप देखते हैं, आ हा हा हा, आ हा हा हा। कितना! लोग बताते हैं ये तो ऐसा आदमी है किसी से बात ही नहीं करता, अजीब सा आदमी है! है! नहीं नहीं, इसके अन्दर देखो, कितना सुन्दर आपस में सुगंध, एक संगीत, देखने योग्य होता है, से कम पचास फीसदी आदमी दे सकते हैं। बिल्कुल मज़ा आता है इन्सान से। हालांकि हम इन्सान से सही बात है। आप उंगलियों से उन्हें जान सकते हैं, भागते रहते हैं सुबह से शाम तक, इन्सान-इन्सान से लगा हाँ भई हमें Heart Trouble हैं। यह हृदय चक्र हैं की निशानी है, इसकी गवाही यहाँ बैठे हुए हैं कम है छोटे बच्चे तक जान सकते हैं, कोई गर आदमी आ सुबह से शाम तक। क्या अरजीब भागता रहता हालत है! जो आदमी जानकार है, उसको तो कभी-कभी ऐसा भी लग सकता है कि अजीव जाए, आप फौरन बता सकते हैं कि ये आदमी किस दशा में है, इसके कौन से चक्र पकड़े हुए हैं, कौन अंक : 9 & 10 -2007 चैतन्य लहरी 42 तो परमात्मा को कोई धन्धा नहीं था जो इस तरह के अज्ञानी लोग को पैदा कर दिए? क्या उनको अक्ल नहीं थी जो इस तरह के महामूर्खो को पैदा कर दिया जो अपने ही वो थे? और जब ये ज्ञान हो जाता पागलखाने में आए हैं! सब एक अज्ञान ही से सारा मनुष्य इतना अन्जान है उस आनन्द से जिसे परमात्मा ने बनाया है। एक सहजयोग ऐसी चीज़ है, ऐसा एक तरीका है जो परमात्मा का अपना तरीका है, जिसके है, एक बात पता हो जाती है, एक बात जो बड़ी सच्ची बात है, परम सत्य की एक बात समझ में आ जाती है कि अरे जो हमारे अन्दर स्पन्दित है कारण आपके हाथ में से ये viberations बहने लग जाते हैं, पाँव में से बहने लग जाते हैं। सारे शरीर में से बहने लग जाते हैं, जैसे सूर्य का प्रकाश हो और दूसरों के अन्दर जाके, उसके प्रेम को भी जगा करके उसमें भी वो गति दे सकते हैं कि उसके भी ाम वही दूसरे के अन्दर स्पन्दित है, और जो हमारे अन्दर से viberations बह रहे हैं वही दूसरों के अन्दर अकुला रहे हें फूटने के लिए और बहने के लिए और ये जाना जाता है आपके हाथ पर, अंगुलियों पर और आपकी रीढ़ की हड्डी पर। फिर आप अन्दर से वो बहने लग जाएं और एक तरह की chain reaction सी बना दें। लेकिन हजारों दीप जलाने के लिए पहले दीप तो सच्चे हों। आप सिर्फ दीप मात्र हैं, आप ये खुलते हैं, आपके सर पे। जान लीजिए, और आप कुछ भी नहीं है, जिससे कि संसार में उजियारा हो और आपके अन्दर वो और उसकी व्यवस्था भी हो गई, लेकिन महज़ बात भी है जिससे कि दीप जलना है। लेकिन गर इसलिए कि मैं आपके सामने बम्बई में बोल रही हूँ आप मुँह मोड़ कर बैठे हुए हैं तो उसे कौन क्या कह सकता है? हमारा कितना भी द्वेष, इस देश की फिर मेरे दो सींग नहीं लगे हुए हैं जिससे मेरी बात न तो विशेषता है, इस देश की तो विशेषता ही विद्वेष सुनी जाए। सारे ही संसार का प्रश्न हठात से एक पल मनुष्य को एक नए आयाम में उतरना है और कोई मैं बहुत बड़ी भारी लीडराने वतन नहीं हूँ, या में ही पार हो सकता है गुर सारा संसार सहजयोग को मानने लगे, लेकिन वो तो बड़ी कठिन बात नजर आ रही है अभी फिलहाल। लेकिन कम से कम आप लोग जो यहाँ थोड़े जो भी लोग हैं, आप ही लोग पार हो लें। और कुछ करना नहीं है, सहज में, आपही के साथ पैदा हुए कुण्डलिनी योग के बारे में मैं कल बताने वाली हूँ। कुण्डलिनी क्या है, ये भी है। किसी का कुछ अच्छा भी अच्छा नहीं लगता, बहुत ही अजीब सी बात लगती है। किसी के घर में गुर फूल खिले हैं तो हमें अच्छा नहीं लगता है पर किसी के घर में आके कोई गोबर डाल दे तो हमें अच्छा लगता है! कैसा मनुष्य विचित्र है! आप ही बताइए, किसी के घर में गुर फूल खिले हैं तो आपको भी तो सुगन्ध आएगी, आपकी भी तो हवा सुगन्धित हो जाएगी। विद्वेष के कारण ही हम इस अज्ञान ही है जब तक उस स्पन्दन में देख के न समझें ये भी अज्ञान है। ज्ञान से अधूरे रहे हैं । | इस प्रेम की शक्ति को गुर अपनाना है, हमारे अन्दर के जो तरंग हैं, वो हमें प्यार सिखाने के लिए आए हैं प्यार देने के लिए आए हैं एक चीज जरूर होना चाहिए, जिसको अबोधिता और हमारा जो प्यार है उसे संसार में फैलाने के कहते हैं, innocencel आदमी गुर innocent नहीं हो लिए आए हैं। प्यार का ही साम्राज्य लाने के लिए तो कुण्डलिनी माताजी उठती नहीं। आप ऊपर से संसार में ये हृदय हम लोगों के धड़क रहे हैं, नहीं बड़े शरीफ आदमी होगें, दुनिया में आपका बड़ा कॉड अंक : 9 & 10-2007 चैतन्य लहरी 43 ठण्डा आ रहा है, इनको गर्म आ रहा है। हमारे यहाँ हमारी एक नातिन है दो साल की है। कोई भी ऐसा बैसा आता है तो घण्टी बजाने लग जाती है फौरन, नाम होगा, आपके बहुत फोटों छपे होएंगे, या आप बड़े भारी साधु महात्मा होएंगे, आपको लोग भगवान करके पूजते होंगे, लेकिन कुण्डलिनी माता जो हैं वो उठने वाली नहीं है। क्या करें हम? उसने तो द्वार एक घण्टी ले कर रखी हुई है। ये आ गई है। और हम जाने जाते थे कि इनको गर्मी लगती है, तकलीफ होती है। इसके बारे में आपको इन्होंने गाना सुनाया पर श्री गणेश को बिठाया हुआ है जो स्वयं innocence ही हैं। या में इतना भी कहूं कि ये जो viberations था, बहुत बड़ी चीज़ है वो, बहुत बड़ी चीज़ है। संसार में आए हो संसार का कल्याण करने के लिए, उनके बिचारों के जल-जल के हाथ अन्दर हैं, ये अगर प्यार है तो innocence है। आदमी को थोड़े innocence की जरूरत है। लोग मुझसे पूछते हैं कि माताजी क्या करना चाहिए? मैंने कहा कुछ नहीं, आपमें innocence कितना है उसको चले गए, पैर जल जलकर के अन्दर चले गए, ऐसे लोगों को तकलीफ कितनी है राक्षसों से, दुष्टों से । ज़रा तोल लीजिए कि उसकों ज़रा नाप लीजिए। आपके बदन में innocence कितना है और जो innocent लोग हैं, क्राइस्ट जैसे आदमी को crucify कर दिया, मोहम्मद साहब जैसे आदमी को Murder कर दिया, किसको नहीं सताया इन दुष्टों ने? आप उनके साथ हैं या अपने innocence के चालाकी कितनी है? इसका नाप-तोल थोड़ा सा हो जाए, और आप ही की भलाई के लिए आपका Bank Balance है। आप हमेशा अपना Bank Balance नाप लेते है कि कितना है, कितना नहीं है। और उसी के अनुसार आप कार्य प्रवीण होते हैं और उसी के अनुसार आपमें अहंकार वगैरा आदि आते सोचिए कि इनके लिए आप क्या देना चाहते हैं? हैं और सहजयोग में जितना innocence आपका साथ है। आप अपने बच्चों के लिए कम से कम कौन सी दुनिया उनके लिए आप बना करके जा रहे हैं, उनके लिए कौन सा विधान आपने सोचा हुआ है? या तो इतिहास में यही जाएगा कि आप ही के जीता होगा, जन्म जन्मान्तर का, वो cash हो जाएगा। खट से ऐसे-ऐसे लोग जो देखते ही साथ खट से पार समय में सहजयोग आया था और आप लोगों ने इसे अपनाया नहीं। जबकि आपको कुछ भी देना नहीं आप दे ही नहीं सकते हमें कुछ। आप लोग हो जाते हैं और चार-चार साल से भी लोग रगड़ रहे है। कुछ न कुछ, ऐसी बात नहीं है कि आप कोई बुरे आदमी हैं, बुरा तो कोई भी मैने देखा नहीं खास। जो यहाँ आते हैं कोई बुरे आदमी थोड़े ही न होंगे। लेकिन एक बात है, आप थोड़ी चालाकी खेल ये जान लीजिए कि आप हमें प्यार भी नहीं दे रहे हैं। चालाकी से परमात्मा नहीं जाना जाएगा, चालाकी मनुष्य की Policy है । अपने innocence receiving end पर बैठे हैं, आप हमें क्या दीजिएगा? सकते। वजह ये है कि आपका अभी प्यार ही कम है। पहले प्यार को जगा लीजिए अपने अन्दर तब आप और हममें अन्तर ही क्या रहेगा जो लेना- देना को नाप लें। अब इसका कोई नाप नहीं, इसका कोई बना रहेगा? देना कुछ भी नहीं, सिर्फ लेने की तैयारी चाहिए, जैसे गंगा कितनी भी जोर से क्यों न बह रही हो, आपके दरवाजे से ही क्यों न बह रही हो, और आप गुर उसमें पत्थर डाल दें तो पत्थर मापदण्ड नहीं। आप ही अपना जान सकते हैं कोई तो और जान नहीं सकते। इसीलिए छोटे बच्चे खट से पार हो जाते हैं और पार होने के बाद में खुद ही खडे होकर कहते हैं, हाँ माँ आ रहा है। इनको अंक 9 & 10 चैतन्य लहरी 44 2007 आदि कहते हैं और अंग्रेजी में इसे psycology, क्या उसमें से पानी लेगा? उसके लिए गागर तो चाहिए होगी न। और गागर भी बनेगी सिर्फ innocence subconscious I subconscious... से ही, एक ही चीज़ थोड़ा सा ठग लीजिए अपने को, कोई हर्ज नहीं। आप ठग गए तो कुछ नहीं जाने से लोगों को भरमाते हैं और इसकी कौनसी कौनसी वाला संसार की कोई सी भी चीज आपके साथ नहीं जाने वाली शिवाय आपके innocence के। लोग किस तरह से उपयोग करते हैं और किस तरह पहचाने हैं, इसके बारे में मैं आपको बताऊंगी। इस तरह से तीन दिन यहाँ पर इन लोगों का विचार है। जितना हमने इस जन्म में खोलकर कहा है पहले कभी भी नहीं कहा। उस समय तो समझदार ही अपने innocence को बनाए रखिए। जो लोग बड़े अपने को होशियार समझते हैं, सबसे ज्यादा ठगे गए हैं क्योंकि जो मूल्यवान है उसे खोकर के ये पत्थर मिट्टी इकट्ठे करलें। नहीं थे कि किसी से कहा जाए। फिर भी गोप से गोपनीय बात भी हम खोलकर कह रहे हैं, इसलिए कि मनुष्य बाद में ये न कहे कि हमें पता नहीं था आज भी थोड़ा सा प्रयोग करने का विचार था सबका ही। आप लोग भी आए हैं, कल सोच नहीं तो हम रुक जाते। मेरी पूरी बात को आप सिर्फ रहे हैं साढ़े आठ बजे भारतीय विद्या भवन में सुन रहे हैं, जानना तभी होगा जब आप पार होंगे। Meditation फिर से होगा, लेकिन थोडे लोग तो बैठे हैं, हम चाहते हैं कि बातचीत से कुछ होना नहीं है, कुछ प्रश्न हो तो पूछ लीजिए क्योंकि प्रश्न बहुत होते हैं, अजीब अजीब से और वो ध्यान के पा लीजिए। गर कुछ बनना हो तो बन जाएगा। लेकिन पाने के बाद भी हम देखते हैं कि बहुत से वक्त में सामने आते हैं। एक दो में आप ही को बता दूं जो हमेशा लोग पूछते हैं कि ऐसे कैसे कि इतनी जल्दी लोग पार हो जाएं? ऐसा प्रश्न बहुत लोगों ने लोग अपने घर में बैठ गए, मेरे पास इतनी इतना चिट्ठियां लंदन में आती हैं कि माताजी आपने तो किया। हर जगह होता है। ऐसे कैसे हो सकता है हमारा 'कल्याण कर दिया, हमें तो बड़ा आनन्द आ एक क्षण में? क्यों नहीं हो सकता है, ऐसा आप लोग क्यों नहीं सोचते? जैसे चन्द्रमा पे ऐसे कैसे कि गया, हमारा तो ऐसा हो गया, बस। इससे आगे? मनुष्य वहाँ पहुँच गया? हमारी दादी से जाकर बताओ तो अब भी विश्वास नहीं करेंगी कोई क्या दीप इसलिए जलाए जाते हैं कि वो टेबल के नीचे रख दीजिएं? पार होने के बाद आपको समझ लेना चाहिए कि आप चुने गए हैं। आप प्रतीक हैं उस प्रकाश के जो संसार को तो कोई पहुँच ही सकता है। कोई Discovery तो हो प्रकाशित करेगा। अपनी छोटी-छोटी मर्यादाएं छोड़कर ही सकती है संसार में । अगर कोई चीज़ का पता चन्द्रमा पर जब पहुँच सकता है तो चैतन्य पर भी के उसके आनन्द के क्षण जो आपको मिले हैं, ये छोड़कर के खुले में आइए और संसार के लिए चाहिए । आजमाने से पहले ही आप सवाल पूछने प्रकाश दीजिए। यही आप दे सकते हैं, सहजयोग का देना यही है और बाकी कुछ भी नहीं। परसों के दिन में उस विषय पर बात करने वाली हूँ जिसके बारे में बहुत सारी भ्रान्तियां संसार मे फैली हुई हैं ही छीन ली जाती है। इसके बारे में परसों बताउंगी, लेकिन महान अज्ञान है जिसे कि हम परलोक विद्या चला है तो उसको कमसकम आजमा तो लेना लग गए कि साहब ये कैसे हो सकता है। अधर्म के मामले में आदमी प्रश्न नहीं पूछता है जब अधर्म धर्म के नाम पर बिकता है क्योंकि उसकी स्वतन्त्रता इस बात को में कह रही हूँ कि जब आदमी पूरी चैतन्य लहरी अंक : 9 10 -2007 45 तरह से impulsement में आ जाता है तो वह हमें ठीक कीजिए)। लेकिन जड़ से ही मैं कहती हैँ सवाल ही पूछना भूल जाता है और सहजयोग सारी बीमारी छँट जाएगी। जड़ से ही सारा अज्ञान आपकी पूर्ण स्वतन्त्रता को स्वीकार ही नहीं उसका गौरव करती है, क्योंकि आपको स्वतन्त्रता देना ही सहजयोग का कर्तव्य है। गर आप परतंत्र पहले से उसको क्यों नहीं जलाते आप । अभी हम सब लोग ही हों तो आपको स्वतन्त्रता देने से फायदा? लेकिन थोड़ी देर जुरुर ध्यान में जाएंगे, कृपया एक आधे जिससे मिट जाए उसको क्यों नहीं अपनाते आप? जड़ से ही जो अन्धकार है वो कहीं खत्म हो जाए स्वच्छन्दता और स्वतन्त्रता में बहुत बड़ा अन्तर है, घण्टे के लिए आपके पास time हो तो आप बैठे इसको समझ लेना चाहिए। स्वतन्त्रता मनुष्य के रहिएगा, बीच में उठिएगा नहीं, जिनको जाना है wisdom, सुबुद्धि से आती हैं। बहकावे में न आएं पहले ही चले जाएं। आधा घण्टा कम से कम लगेगा अपना भला करना है न, अपना कल्याण करना है और जिसको जाना हो कृपया पहले चले जाएं न। बस हमको किसी से क्या मतलब, हमको किसी से क्या लेना-देना? किसी की बात से क्या करना, बड़े-बड़े काम करना है, किसी को बालरूम डान्स फलाने ने ऐसा लिखा था, ढिकाने ने ऐसा लिखा था, ढिकाने ने ऐसा कहा था। उससे क्या मतलब? क्योंकि किसी को सिनेमा जाना है, किसी को में जाना है, सहजयोग नहीं है। जिन लोगों को परमात्मा को पाना हो वो लोग बैठे और इसको पाएं लेकिन कम से सबलोग चले जाएं ऐसे लोंगों का हमको अपना मतलब है। हमको ठीक होना है, हमको ध्यान करना हैं। कम आधा घण्टा शान्तिपूर्वक आप अपना समय दें, बाकी आपके सारे कार्य होते ही रहेंगे। ध्यान में बैठो तो लोग कहते हैं (माताजी रु] शण ति त लाम ा क द. मानव को जो सबसे बड़ा भय है तो है उनका ये सोचना कि उन्होंने बहुत अपराध किए हैं और ये अपराध इतने अधिक हैं कि उन्हें कभी आत्मसाक्षात्कार नहीं मिल सकता, उनका सर्वनाश हो जाएगा और वे नर्क में जाएंगे। ये बात सत्य नहीं है, बिल्कुल सत्य नहीं है। यदि वे जर्क में नहीं जाना चाहते तो कोई भी न्क में नहीं जाएगा। आप यदि इससे बतना चाहते हैं तो बच सकते हैं। समय आ गया है। आप हमेशा हमेशा के लिए आशीवादित हो जाएंगे परगात्मा आपको धन्य करें। परम पूज्य श्रीगाताजी ---------------------- 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी ही भ मं र ज 3० थी स] ्ि सितम्बर -अक्तूबर 2007 ह 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-1.txt चै तन्य ल ह री प्रकाशक निर्मल ट्रॉसफोर्मेशन प्रा लि. प्लाट नं. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड, कोथरुड पुणे - 411029 फोनः 020-25285232 मुद्रक कृष्णा प्रिन्टर्ज़ एण्ड डिजाइनज 292/23 ओंकार नगर बी' त्रीनगर, दिल्ली 110035 मोबाइल 9212238008 आप अपने सुझाव, सदस्यता एवं जानकारी के लिए निम्न पते पर लिखें : निर्मल ट्राँसफोर्मेशन प्रा. लि. प्लाट नं. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड, कोथरुड पुणे फोन: 020-25285232 - 411 029 अपने अनुभव, सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ.पी. चान्दना जी-11-(463), ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली- 110034 फोन : 011-65356811 ा 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-2.txt चै त न्य लह री शता अंक 9 - 10 , 2007 ा NIRMALA प दा NIVERSAL PUBE RELIGION प ि म ज इस अंक में ड म राम पत ा श्री आदिशक्ति पूजा- कबेला-24.6.07। 3 निर्मल गीतिका 8. न द श्री सरस्वती पूजा- धुलिया-14.1.1983 9 TV दिल्ली- 3.2.1983 16 आज्ञा चक्र- 29 ईसामसीह जन्मदिवस पूर्वसन्ध्या- प पुणे-24.12.1982 क 38 चैतन्य लहरियाँ क्या हैं-27.3.74 ा DHARMA 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-3.txt श्री आदिशक्ति पूजा हुड कबेला, लीगरे, इटली- 24.6.2007 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन नहीं है। देखने के लिए मैं इधर-उधर जाया करती थी कि क्या यहाँ फूलों में सुगन्ध है? परन्तु ये लोग इनका आकार बड़ा बनाने में लगे हुए हैं। फूल बहुत बड़े हैं। किसी भी अन्य स्थान से बहुत बड़े, परन्तु उनमें सुगन्ध नहीं है। जबकि भारत जैसे गरीब देश में फूलों में अद्भुत सुगन्ध है। छोटे-छोटे फूलों में भी विस्मयकारी सुगन्ध है। पुनः आप सब लोगों को यहाँ देखना अत्यन्त सुखद है। मेरे विचार से यहाँ पर हम पहली पूजा कर रहे हैं, और मुझे आशा है कि आप सब सुखचैन से हैं और आपके लिए यहाँ आना सुविधाजनक है। वास्तव में आज महान दिन है। हमें आदिशक्ति का पूजन (समारोह) करना है, आदिशक्ति का। आदिशक्ति का स्रोत क्या है? इस बारे में मैंने कभी नहीं बताया। पहली बार मैं आपको बताऊंगी कि 'आदिशक्ति' 'आदि माँ' हैं। वे उस परमात्मा की शक्ति हैं जो इस विश्व का सृजन करना चाहते थे। और आदिशक्ति ने स्वयं इस महान विश्व सुगन्ध की ये विशेषता केवल भारत में है, है कहीं अन्य नहीं। कहीं और नहीं! हो सकता कुछ फूलों में थोड़ी सी सुगन्ध हो, परन्तु इतने प्रेम से देख-रेख पूर्वक उगाए गए इन सुन्दर फूलों में भी सुगन्ध नहीं है। परन्तु भारत में जंगली फूलों में भी सुगन्ध होती है। क्या कारण है? लोग कहते हैं कि भारत की मिट्टी में सुगन्ध है, मिट्टी में सुगन्ध किस प्रकार हो सकती है? परन्तु जो भी में कह रही हूँ वो सत्य है, कहानी मात्र नहीं है। भारत में जो भी फूल आप उगाते हैं, कोई भी पफूल जिसे आप उगाते हैं, प्राय: उनमें सुगन्ध होती है। जबकि यहाँ पर मामला ऐसा नहीं है। किसी अन्य देश में के सृजन का सारा कार्य किया। ( क्या आप बैठ जाएंगे?..........जहाँ तक सम्भव हो आराम से बैठें...........) तो आज मैं आपको आदिशक्ति के विषय में बताने वाली हूँ, यह बहुत प्राचीन विषय है। आदिशक्ति साक्षात परमात्मा की शक्ति हैं और पृथ्वी पर परमात्मा का साम्राज्य लाने के लिए उन्होंने इस विश्व का सृजन किया। आप कल्पना कर सकते हैं कि अन्धकार के अतिरिक्त कुछ भी न था और इस अन्धकार से उन्हें इन सब सुन्दर भी ऐसा नहीं है, चाहे आप नार्वे जाएं, जमर्नी या किसी अन्य देश में जाएं, वहाँ फूलों में सुगन्ध ही नहीं है। आश्चर्य की बात है कि फूलों में सुगन्ध ही नहीं है! जब इस विश्व का सृजन किया गया तो दृश्यों (तस्वीरों), वृक्षों और सभी प्रकार की वनस्पति का सृजन करना था, और ये सृजन उन्होंने किया। परन्तु जो चीजे बोलती नहीं है, समझती नहीं हैं उनके सृजन का क्या लाभ है? उनमें कोई अभिव्यक्ति है ही नहीं। नि:सन्देह कुछ वृक्ष और फूल बहुत सुन्दर चैतन्य लहरियाँ देते हैं और अत्यन्त भलीभांति बढ़ते हैं, परन्तु सभी ने, उनमे से केवल कुछ- उदाहरण के रूप में, मै आपको बताना चाहूँगी कि यहाँ फूलों में सुगन्ध नहीं है। सभी फूलों में, सुगन्ध सुगन्ध नहीं थी, परन्तु कुछ क्षेत्रों में, विशेष रूप से जिन क्षेत्रों को हम भारत या अन्य विश्व कहते हैं (............) विश्वास नहीं होता कि यहाँ या विदेशों में सुगन्ध वाले फूल नहीं है! तो आपका जन्म यहाँ हुआ है, आप सुगन्ध लेकर आए हैं। आप आत्मसाक्षात्कारी लोग हैं और आपके पास फैलाने के लिए सुगन्ध है। अत:, मैं सोचती हूँ, आपकी दोहरी जिम्मेदारी है कि आप 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-4.txt अंक : 9 & 10 -2007 चैतन्य लहरी 4 यह प्रवृत्ति, मैं सोचती हूँ, मानव में शैतान से आई है। वे एक दूसरे का वध कर रहे हैं, पूरे विश्व को अवश्य सुगन्ध फैलाएं, सुगन्ध अत्यन्त अन्तर्जात गुण है। यहाँ तक कि इस सुगन्धविहीन मिट्टी में भी लोगों के चरित्र में, उनके आचरण में, सूझबूझ नष्ट कर रहे हैं! समाचार पत्र पढ़कर आपको लज्जा आती है कि मानव किस प्रकार चल रहा है। में सुगन्ध है और वे शान्ति की कामना कर रहे हैं। मैं नहीं कह रही कि वो शान्त हैं, परन्तु शान्ति प्राप्ति की आकांक्षा उन्हें है। ये आकांक्षा इस बात को दर्शाती है कि वे सुगन्धमय लोग हैं, कि वे अत्यन्त सुरभित हैं। अत: सभी सहजयोगियों को चाहिए कि किसी भी प्रकार से युद्ध को समर्थन न दें। वे यहाँ पर लोगों को सुगन्ध देने के लिए, उनके लिए खुशियाँ और आनन्द लाने के लिए हैं युद्ध करने के लिए नहीं। सहजयोगियों का ये परमकर्तव्य है कि वे किसी ऐसी चीज़ का साथ न दें जिसमें घृणा हो, मानव की प्रकृति और उसका स्वभाव ही उसकी सुगन्ध है। वह किस प्रकार रहता है, अन्य लोगों से किस प्रकार आचरण करता है। सर्वत्र, सभी देशों को अभी तक इस बात का ज्ञान युद्ध हो या जिससे समस्याएं खड़ी होती हों। इन लड़ाकी आत्माओं ने मिट्टी की सुगन्ध को नष्ट कर दिया है। लोग यदि प्रेम एवं स्नेहमय बन जाएं तो नहीं है कि उन्हें सुगन्धमय बनना है। उन्हें यदि इस बात का ज्ञान होता तो युद्धों का अन्त हो जाता. सभी गलत चीजें समाप्त हो जातीं और लोग कहते 'अब मिट्टो भी सुगन्धमय हो जाएगी। परस्पर प्रेम करना, किसी प्रकार से घृणा करना नहीं, सीखना हमारा प्रथम कार्य है। घृणा करने के बहुत से तरीके हैं। यह भी मानवीय गुण है। पशु अवश्य घृणा करते क्योंकि वो पशु हैं। मनुष्य पशु नहीं बन सकता। हम सब एक हैं।' हमारा सम्बन्ध भिन्न देशों से नहीं है या उन चीजों से जिन्हें हमने बनाया है। परमात्मा ने नहीं हमने बनाया है। ये तुम्हारा देश है, ये उनका देश है और देश के अनुसार हम युद्ध करेंगे। ये देश किसी का नहीं है, ये परमात्मा का है। परन्तु मुखों प्रम ऐव स्नेह होना चाहिए, किसी प्रकार की घृणा की तरह से लोग युद्ध करते हैं देशों को लेकर कि ये हमारा देश है, ये हमारा देश है। मैने पूरे विश्व की यात्रा की है, किसी भी देश को में उनका अपना देश नहीं कहूंगी क्योंकि यदि कोई देश आपका अपना है तो आपमें सुगन्ध होनी चाहिए थी। आपमें ऐसा स्वभाव होना चाहिए जिससे अन्य लोगों को लगे कि आप सुरभित देशों से आए हैं। वाद-विवाद की आवश्यकता नहीं पड़ती। परन्तु एक देश दूसरे लाएं? यह केवल तभी सम्भव है जब यहाँ रहने देश से युद्ध कर रहा है, सभी जगह ऐसा ही चल रहा है। आप अखबारों में पढ़ें, सभी में यही मूर्खता प्रेम होगा। यह महत्वपूर्णतम चीज़ है। भरी पड़ी है कि देश आपस में युद्ध कर रहे हैं और जितना अधिक विकसित है उतना ही इस मामले में आगे हैं। उनकी इस विकास प्रक्रिया में में आशा करती हूँ कि वे उन्नत होंगे और आध्यात्मिक बनेंगे और उनमें सुगन्ध विकसित होगी युद्ध करने की हम मानव हैं और मानव के रूप में हमारे अन्दर नहीं। और क्योंकि आप लोग सहजयोगी हैं, इसलिए मैं कहूंगी, आपको चाहिए कि प्रेम करने का क्षेम बढ़ाएं, युद्ध करने या दूसरे लोगों की आलोचना करने का नहीं। आलोचना करना बहुत आसान है। परन्तु समझने का प्रयत्न करें कि हमारी मिट्टी में ही सुगन्ध नहीं है। इस मिट्टी में सुगन्ध किस प्रकार वाले लोगों के हृदय में एक दूसरे के लिए स्नेह एवं जब सृजन घटित हुआ तो ऐसा स्नेह के माध्यम से हुआ, अन्यथा प्रकृति को इन सब चीजों का सृजन करने की क्या आवश्यकता थी? यह सब किसलिए है? इसलिए कि आपको सुन्दरता का एहसास हो। ये सब वृक्ष इसलिए सुन्दर बने हैं ho 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-5.txt चैतन्य लहरी अंक : 9 & 2007 10 ताकि आपको अच्छा लगे और आप प्रकृति से अधिक सहजयोगी बनाने होंगे ताकि वो समझ एक-रूप हो सकें। परन्तु मानव ने इसे प्रकार योगदान नहीं दिया। मैं ये नहीं कह रही कि सहजयोगियों हैं प्रेम देश के! ने, वे दुर्लभ हैं, अद्भुत हैं और उन्होंने बहुत अच्छा कार्य किया है क्योंकि वो प्रेम को सर्वोच्च मानते हैं। सहजयोग कार्यान्वित हो गया है। परस्पर सहायता सकें कि हम सब एक ही देश के अंग-प्रत्यंग जब ऐसा घटित हो जाएगा तब हम कहंगे परन्तु आपको भी अन्य लोगों को दिखाना होगा कि आप उनसे प्रेम करते हैं और उन्हें भी परस्पर प्रेम करना, एक दूसरे को समझना- ये गुण होने चाहिएं। और मैं सोचती हैं कि सहजयोगी एक दूसरे को समझते हैं और एक दूसरे से प्रेम करते हैं। परन्तु अभी भी ये गुण और अधिक बढ़ने चाहिएं। बहुत से लोग ये नहीं समझ पाते कि सहजयोग केवल करना चाहिए। प्रेम के कारण ही पूरे विश्व का सृजन हुआ है अन्यथा इन सभी द्वीपों और भिन्न देशों पर शक्ति बरबाद करने की क्या आवश्यकता थी ? सृजन, युद्ध करने के लिए, परस्पर घृणा करने उन्हीं के लिए नहीं है, ये पूरे विश्व के लिए है। के लिए या स्वयं को अन्तहीन मानने के लिए नहीं हुआ। परस्पर प्रेम करने के लिए, अधिक से अधिक भाई-बहन बनाने के लिए ये कार्य हुआ । और सहजयोग में आप ये बात महसूस करते हें कि आपके भाई-बहन सर्वत्र मौजूद हैं। आपको अन्य लोगों को सहजयोग देना होगा और प्रेम की एकता लानी होगी। प्रेम में आप गलतियाँ नहीं देखते। केवल प्रेम का आनन्द लेते हैं। आज की पूजा में ये देखा जाना चाहिए है? क्या किसी देश के लिए हमारे मन में दुर्भावना आज जब मैं आ रही थी तो पूरे यूरोप और कि क्या हमारे हृदय में किसी के लिए घृणा भारत से आए हुए लोगों को देखकर मुझे अत्यन्त हर्ष हुआ। यह किस प्रकार सम्भव है? क्योंकि है? अपना अन्तर्निरीक्षण करने का प्रयत्न करें । आपने वह प्रेम विकसित किया है, क्योकि आपमें वह प्रेम है, वह अन्तर्जात प्रेम। अत: जहाँ भी आप जाते हैं, जहाँ भी लोगों से मिलते हैं, तो वो ये कहें सभी से प्रेम करेंगे, अपना मानकर प्रेम करेंगे। कि हम सहजयोगियों से मिले हैं, जो मात्र प्रेम हैं, इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं। उन्हें इस बात की चिन्ता नहीं है कि आप क्या हैं, आपका पद क्या है आप यदि सच्चे सहजयोगी हैं तो आप किसी से घृणा नहीं करेंगे, किसी से घृणा नहीं करेंगे। मानव को परमात्मा के दिए हुए उपहारों में से प्रेम सबसे बड़ा उपहार है और व्यक्ति को चाहिए कि प्रयत्न करके इसे विकसित करें। आदि-आदि। वो तो केवल इतना जानते हैं कि आप सहजयोगी हैं और एक सहजयोगी दुूसरे सहजयोगी से प्रेम करता है। ये बहुत बड़ी उपलब्धि है जो है बहुत प्रसन्न हूं कि इतनी आप यह प्रथम दिन मनाने के लिए आए हैं- सहजयोगियों के रूप में अपनी उन्नति का प्रथम दिन। अब यदि सर्वत्र सहजयोगी फैल जाएं और सहजयोगी ही सहजयोगी हो जाएं तो आपका कार्य समाप्त हो जाता है क्योंकि तब आप एकाकारिता के आनन्द का आनन्द लेने लगेंगे। अत: व्यक्ति को यह कार्य इस प्रकार से करना चाहिए कि हम सब एक हो जाएं। किसी की आलोचना करने या मैं दूर-दूर से पहले कभी न थी क्योंकि न तो मिट्टी में सुगन्ध न मनुष्यों में। अब वह सुगन्ध आ गई हैं। अब आप लोगों में परस्पर प्रेम करने की, सहायता करने की, एक दूसरे को समझने की- आलोचना, अपमान या बदनामी करने की नहीं, सामर्थ्य है। ये मैं इसलिए कह रही हूँ कि आप सब सहजयोगी दुर्लभ लोग हैं। कितने लोग सहजयोगी बन पाए हैं? बहुत कम हमें 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-6.txt अंक 9 & 10 2007 चैतन्य लहरी 6. प्रकार की तकलीफें हैं। पूरे विश्व को परस्पर प्रेम परस्पर प्रेम ही मुख्य बात है, और मैं पाती हूँ कि करने के स्तर पर आना होगा। प्रेम के अतिरिक्त बहुत से सहजयोगियों ने ये स्तर प्राप्त कर लिया है कोई समाधान नहीं है। और इस प्रेम में स्वार्थ नहीं होता, आनन्द होता है और इसी आनन्द की उस स्तर पर नहीं पहुँचे हैं। कुछ लोग बहुत अधिक अनुभूति आपने करनी है तथा अन्य लोगों को भी देनी है मुझे विश्वास है कि आप सभी सहजयोगी ऐसा ही कर रहे हैं और अन्य लोगों की गलतियों को देख रहे हैं ताकि कोई भी कष्ट में न किसी से घृणा करने के लिए कुछ भी नहीं है। और बहुत से अभी तक संघर्ष कर रहे हैं। वे अभी तक र नहीं। सहजयोग का अर्थ है कि हम सब एक हैं। हम सब सहजयोगी हैं, अलग-अलग नहीं, एकत्र। इस सत्य को यदि आपने समझ लिया है, केवल तभी आपने आदिशक्ति का आज का ये महान फँसे । प्रेम' आदिशक्ति का सन्देश है। अब इसके विषय में सोचें। अकेली आदिशक्ति ने पूरे विश्व का सृजन किया! उन्होंने ये कार्य कैसे किया होगा? किस प्रकार इसकी योजना बनाई होगी। किस प्रकार दिवस मनाया है। आदिशक्ति ने इस विश्व का सृजन क्यों किया? ये सब क्यों घटित हुआ? हम ये क्यों नहीं सोचते कि इतना अधिक प्रेम और इतनी सम्पन्नता हमें क्यों दी गई है? हमें कभी महसूस नहीं होता कि हम कहाँ है और हमें कितना कुछ प्राप्त हो हैं। अत: उनसे एकाकारिता प्राप्त करने के लिए ये है! पैसा नहीं प्रेम। ये बात जब आप समझ इसका आयोजन किया होगा? ये आसान कार्य नहीं है। केवल इसलिए कि वे प्रेम करती थीं, उनके प्रेम की अभिव्यक्ति के फलस्वरूप ही आप सब यहाँ आवश्यक है कि व्यक्ति प्रेम करना सीखे। नि:सन्देह इसमें आपको जानना होगा कि आपको क्षमा करनी चाहिए। आप यदि क्षमा नहीं करते और दूसरे लोगों के दोष खोजते रहते हैं तो आप परमात्मा की चुका जाएंगे तब वास्तव में एक दूसरे से प्रेम करेंगे। तब न तो घृणा होगी और न ही प्रतिशोध, ऐसा कुछ नहीं होगा। सहायता नहीं कर सकते। अब आपका कार्य ये देखना है कि आप प्रेममय हैं। आपमें किसी के परन्तु केवल प्रेम, प्रेम, और प्रेम करें, आज का यही सन्देश है। लिए भी घृणा नहीं है। किसी से भी घृणा करने, या हमें परस्पर प्रेममय होना चाहिए। हमारे किसी को चोट पहुँचाने के बारे में आप नहीं सोचते। सभी कर्म हमारे प्रेम की अभिव्यक्ति मात्र होने ये कार्यान्वित होना है। मुझे विश्वास है कि ये चाहिएं। कर्मकाण्ड नहीं, केवल प्रेम। जब आपको कार्यान्वित हो जाएगा। सभी यूरोपीय और भारतीय माँ का प्रेम मिलता है तो किस प्रकार उसकी देशों के विकसित लोग युद्ध कर रहे हैं और अविकसित लोग भी सबके युद्ध करने की अपनी अभिव्यक्ति करते हैं? इसी प्रकार समझकर आज हमें वचन देना है कि हमारे लिए प्रेम ही महत्वपूर्ण शैली है- केवल यही अन्तर है। परन्तु प्रेम नहीं है। है। हमें प्रेम करना चाहिए। लोग तो अपने परिवारों यदि आप प्रेम करना चाहते हैं तो आपको दुख से भी प्रेम नहीं करते! मैं जानती हूँ कि मैं ऐसे लोगों महसूस होता है। मान लो मैं किसी देश को, 'क' से बात कर रही हूँ जो अपने परिवारों से, अपने गाँव देश को देखती हूँ। मेरे लिए उसकी आलोचना करना, कि ये देश बुरा है, यहाँ के लोग बुरे हैं, ये अभी भी विश्व में युद्ध, लड़ाई-झगड़े और सभी बुरा है, वो बुरा है यह कहना बहुत आसान है। से, अपने वातावरण से, सभी से प्रेम करते हैं । परन्तु 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-7.txt अंक 9& 10 चैतन्य लहरी -2007 परन्तु में सोचती हूँ कि सम्भाव्य रूप से वो लोग बहुत अच्छे है, बहुत भले हैं। किसी न किसी प्रकार से मैं उन्हें समझाऊंगी कि प्रेम क्या है तथा ये कि आज भी लड़े जा रहे हैं क्योंकि वो प्रेम नहीं करते। अत: अब सहजयोगियों के लिए और भी महान कार्य है, अधिक महान जीवन, कि उन्हें ये दर्शाना है कि प्रेम अत्यन्त महान गुण है। कोई बात वे प्रेम का आनन्द लें। किसी भी प्रकार की समस्या न होगी। केवल मानव जानते हैं कि प्रेम किस प्रकार करना है, कोई अन्य नहीं। पशु भी प्रेम करते हैं नहीं चाहे आप हिन्दू हों, ईसाई हों या कोई और व्यर्थ की चीज़़। हम सब मानव हैं और हमें प्रेम करने का अधिकार है। किसी प्रकार यदि आप लोगों से प्रेम कर पाएं तो मैं सोचती हूँ कि सहजयोग स्थापित परन्तु उनका प्रेम सीमित है। परन्तु मानव का प्रेम अत्यन्त सुन्दर है, वे तभी सुन्दर लगते हैं जब प्रेम करते हैं । हो जाएगा। अत: मुझे आपसे बताना है कि घटिया प्रेम न करें, ऐसा प्रेम करें जिसका आप भी आनन्द लें और दूसरा व्यक्ति भी। ये बात समझी जानी चाहिए। लोग जिस प्रकार प्रेम का अर्थ समझते हैं, कभी-कभी सहजयोग एक वृक्ष की तरह से है जिसे पानी के रूप में प्रेम की आवश्यकता है। इसे आजमाएं, अपने जीवन में इसे आज़माएं, तब आपको पता चलेगा कि प्रेम किस प्रकार लाभ तो वह अत्यन्त हास्यास्पद होता है। अत: व्यक्ति को सर्वप्रथम यह समझना है कि प्रेम क्या है तथा ये भी पहुंचाता है। ये नहीं देखा जाना चाहिए कि आप कि क्या आप प्रेम करते हैं या नहीं। यदि आप वास्तव में विश्व को प्रेम करते हैं, परमात्मा के कितना खर्च करते हैं या आप क्या करते हैं। सारी चीजों की गिनती करना आपका कार्य नहीं है। यह तो सागर की तरह से है जो अपने आस-पास की सृजन को यदि वास्तव में आप प्रेम करते हैं तो न तो घृणा होनी चाहिए न युद्ध। केवल अच्छाईयाँ देखी जानी चाहिएं- जैसे एक माँ अपने बच्चे में देखती है। आपको चाहिए कि विश्व को परमात्मा द्वारा आपके लिए बनाई गई सुन्दर कृति के रूप में देखें। हर चीजू को भिगो देता है। आप भी वैसे ही बने। सहजयोग का एक विशेष व्यक्तित्व। अतः आज: सभी सहजयोगियों को निर्णय करना चाहिए कि हम उन सबको क्षमा करेंगे जिनसे हम घृणा करते हैं तथा उन सब से हम प्रेम करेंगे। ये विषय बहुत लम्बा है, मैं इसके विषय में घण्टों तक आपसे बात कर सकती हूँ परन्तु मुझे आइए देखें, क्या यह कार्यान्वित होता है? केवल इतना कहना है कि यदि आप थोड़ा सा भी मुझे विश्वास है कि यह कार्यान्वित होगा। क्योंकि समझ पाए हैं तो आपमें एक दूसरे के लिए प्रेम होना चाहिए, सूझ-बूझ होनी चाहिए। न्हें शिशुओं को देखें, किस प्रकार वे परस्पर प्रेम करते हैं! अभी तक वे घृणा नहीं सीख पाए। परन्तु बच्चों का लालन-पालन यदि ठीक से नहीं हुआ तो वो भी सर्वप्रथम तो आप आत्मसाक्षात्कारी हैं और दूसरे मानव के पास प्रेम सबसे बड़ा वरदान है। उसका उपयोग आप यदि करते हैं तो किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं होगी। आप सबका हार्दिक धन्यवाद रूपान्तरित परस्पर घृणा कर सकते हैं, अत्यन्त हास्यास्पद हो (Checked with Audio) सकते हैं। आज भी बहुत से देश ऐसे ही हैं। वो जा 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-8.txt निर्मल- गीतिका 1 ॐँ, जय, जय, निर्मल माता, कितने पावन चरन तिहारे! बुद्धि-भवन हैं चरन तिहारे, ॐ, जय, जय, निर्मल माता, सिद्धि-सदन हैं चरन तिहारे, तुम, सारे जग की जननी हो, तुम, आदि-शक्ति, कुंडलिनी हो, तुम कल्कि हो, तुम काली हो, तुम, सबकी भाग्य-विधाता, कितने पावन चरन तिहारे! चरणों में आनंद समाया, Rर बड़े भाग से मिलती छाया, तुम, महालक्ष्मी लीला हो, तुम, सरस्वती समशीला हो. तुम, कर्ता हो तुम भर्ता हो, ।ं आत्म-रूप जिसमें दिख जाता, ऐसे दर्पन चरन तिहारे, प तुम, सहज-योग की दाता, तेरे आँचल में सुख सारे, तुम, सर्व मंगला रूपा हो, तुम, ब्रह्मानंद स्वरूपा हो, तुम, मोक्षदायिनी कल्यानी, हर लेते हैं दु:ख हमारे, ा रोम, रोम सुरभित हो जाता, तुम, आत्म तत्व की ज्ञाता, ऐसे चंदन चरन तिहारे, हम शरण तुम्हारी आए हैं, अपना आँचल फैलाए हैं, तुम अपनी या-दृष्टि देना, तन-मन निर्मल हो माता, बड़ा कठिन है, जग का मेला, आना जाना यहाँ अकेला, ॐँ, जय, जय, निर्मल माता, ॐँ, जय, जय, निर्मल माता। सहज की शीतल अग्नि जलाएं पा ऐसे निर्मल चरन तिहारे। प डा. सरोजनी अग्रवाल कितने पावन चरन तिहारे! (मुरादाबाद) TM पड क कमन ल 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-9.txt श्री सरस्वती पूजा धुलिया- 14.1.83 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन जो नहीं सुहाते वे सब लुप्त हो जाते हैं। यद्यपि ऐसा होने में समय लगता है, नि:सन्देह इसमें समय प्रेम से सभी प्रकार की सृजनात्मक गतिविधि घटित होती है। आप देखिए कि किस प्रकार राऊल बाई मुझे प्रेम करती हैं और यहाँ आप सब लोगों को भी एक सुन्दर चीज़ के सृजन करने का नया विचार प्राप्त हुआ है! ज्यों-ज्यों प्रेम बढ़ेगा आपकी सृजनात्मकता विकसित होगी। तो प्रेम ही श्री सरस्वती लगता है- ज्यों ही आपको लगता है कि ये जनता को प्रभावित नहीं करते, तो तुरन्त ये पदार्थ लुप्त होने लगते हैं (नष्ट होने लगते हैं)। अब जिस प्रेम की हम बात करते हैं, हम परमात्मा के प्रेम की बात करते हैं, निश्चित रूप से इसे हम चैतन्य लहरियों के माध्यम से जानते हैं । लोगों में चैतन्य-लहरियाँ नहीं हैं, फिर भी वे अत्यन्त अचेतनंता में चैतन्य लहरियाँ महसूस कर सकते हैं। विश्व की सभी महान चित्रकृतियों में चैतन्य है। विश्व के सभी महान सृजनात्मक कारयों में चैतन्य है। जिन कृतियों में चैतन्य है केवल वहीं बनी रह पाईं, उनके अतिरिक्त बाकी सब नष्ट हो गईं। ऐसे की सृजनात्मकता का आधार है। यदि प्रेम न होता तो सृजनात्मकता न होती। इसका अर्थ और भी गहन है, आप देखिए वैज्ञानिक चीजों का सृजन करने वाले लोगों ने भी ये चीजें जनता से प्रेम के कारण बनाई हैं, केवल अपने लिए नहीं। किसी ने भी केवल अपने लिए किसी भी चीज़ की रचना नहीं की। अपने लिए भी यदि वे कोई चीज बनाते तो भी वह सबके उपयोग के लिए हो जाती अन्यथा इसका कोई अर्थ ही नहीं है। यदि आप ऐटॅम बम तथा विज्ञान द्वारा बनाई गई अन्य सभी चीजों की बात करें तो भी ये अत्यन्त सुरक्षात्मक है। यदि से स्मारक, भयानक मूर्तियाँ और चीजें बनी बहुत जिनकी रचना बहुत पहले की गई थी। परन्तु प्रकृति उन्होंने इन चीज़ों का सृजन न किया होता तो लोगों ने इन सबको नष्ट कर दिया क्योंकि ये काल के के मंस्तिष्क युद्ध से न हटते। अब कोई भी बड़े युद्ध के बारे में नहीं सोच सकता। निः सन्देह शीत हो रहे हैं, परन्तु जब लोग इनसे तंग आ जाएंगे प्रभाव को नहीं झेल पाई- यह काल की विनाश शक्ति है। अत: वह सभी कुछ जो दीर्घायु है, पोषक है और श्रेष्ठ है, वह इस प्रेम विवेक के परिणाम युद्ध तो शनै: शनै: ये भी समाप्त हो जाएंगे तो दाईं ओर की, सरस्वती की, सारी गतिविधि मूलतः प्रेम में स्वरूप है जो हमारे अन्दर अत्यन्त विकसिंत है परन्तु यह कुछ अन्य लोगों में भी है जो अभी तक आत्म-साक्षात्कारी नहीं है। अन्तत: पूरे विश्व को समाप्त होनी है। प्रेम से ही इसका आरम्भ होता है और प्रेम में ही समाप्ति। जिस भी चीजू का अन्त यह महसूस करना होगा कि व्यक्ति को परमात्मा के परमप्रेम तक पहुँचना है अन्यथा इसका (विश्व प्रेम में नहीं होता बह एकत्र होकर समाप्त हो जाती का) कोई अर्थ नहीं। है। बस लुप्त हो जाती है। आप देख सकते हैं कि कोई भी पदार्थ जो प्रेम के लिए उपयोग नहीं हुआ, आपने कलाकृतियों में देखा है कि कलाकारों ने लोगों को आकर्षित करने के लिए कितनी सस्ती और अभ्रद चीजों का उपयोग किया है ताकि लोग ये सोचें कि यह कला है। परन्तु यह सब लुप्त हो वह समाप्त हो जाता है। प्रेम ही आधार है। अन्यथा जो भी पदार्थ हम बनाते हैं, जिनमें कोणिकता है, जो आम जनता के उपयुक्त नहीं हैं, सामान्य लोगों को 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-10.txt अंक : 9 & 10 -2007 10 चैतन्य लहरी जाएगी। जैसा मैंने आपको बताया, यह काल की इतने थोड़े समय में इनका वर्णन नहीं किया जा सकता और सूर्य ने हमें इतनी शक्तियाँ प्रदान की हैं कि इनके विषय में एक क्या दस प्रवचनों में भी मार सहन नहीं कर सकती, यह ऐसा नहीं कर सकती। क्योंकि समय ही इसे नष्ट कर देगा। ये बता पाना असम्भव है। परन्तु किस प्रकार हम सूर्य के विरोध में जाते हैं और किस प्रकार सरस्वती के विरोध में जाते हैं। सरस्वती की पूजा करते हुए सारी चीजें लुप्त हो जाएंगी। अब भी आप परिणाम देख सकते हैं कि सर्वत्र, पश्चिमी देशों में भी, किसा प्रकार चीजें परिवर्तित हो रही हैं। अतः पश्चिम से इतना निराश होने की और ये कहने की कोई अपने अन्दर यह बात हमने स्पष्ट देखनी है। उदाहरण के रूप में पश्चिमी लोग सूर्य को बहुत पसन्द करते हैं क्योंकि वहाँ पर सूर्य नहीं होता। जानते हैं इस दिशा में वे अपनी सीमाएं लाँघ जाते हैं और अपने साथ सूर्य की जटिलताएं उत्पन्न कर आवश्यकता नहीं है कि पाश्चात्य विश्व बंजर भूमि (Waste Land) है । ये सब ठीक हो जाएगा और ये कार्य करना होगा पश्चिम ने, मैं कहना चाहूंगी, विशेष रूप से सरस्वती की बहुत पूजा की है परन्तु जैसा आप उससे भी कहीं अधिक जितनी भारत में हुई है लेते हैं। मुख्य चीज़ जो व्यक्ति ने सूर्य के माध्यम क्योंकि वे सीखने के लिए गए और बहुत सी चीजें से प्राप्त करनी होती है, वह है प्रकाशविवेक- खोजने का प्रयत्न किया। परन्तु वे केवल इस बात अन्तर्प्रकाश। और यदि आज्ञा पर स्थित सूर्यचक्र पर भगवान ईसा-मसीह विराजमान हैं तो जीवन की को भूल गए कि वे देवी हैं, परमात्मा देने वाले (Giver) हैं। हर चीज़ देवी से आती है। ये बात वो भूल गए और इसी कारण से सभी समस्याएं खड़ी हो गईं। आपकी शिक्षा में यदि कोई आत्मा न हो, पावनता, जिसे आप 'नीति' कहते हैं, और भी अधिक आवश्यक है, यही जीवन की नैतिकता है। अब पश्चिम में तो नैतिकता भी बहस का बहुत बड़ा मुद्दा बन गई है। लोगों में पूर्ण नैतिकता का विवेक ही नहीं है। नि:सन्देह चैतन्य-लहरियों पर शिक्षा में यदि देवी का कोई स्रोत न हो तो शिक्षा पूर्णत: व्यर्थ है। उन्हें यदि इस बात का एहसास हो आप इस बात को जान सकते हैं परन्तु वे सब गया होता कि आत्मा कार्य कर रही है तो वे इतनी दूर न जाते। भारतीयों को भी मैं इसी चीज की इसके विरुद्ध चले गए। जो लोग भगवान ईसामसीह के पुजारी हैं, जो सूर्य के पुजारी हैं, सरस्वती के पुजारी हैं, वे सभी विरोध में चले गए। सूर्य की शवितयों के विरोध में, उसकी अवज्ञा करते हुए । क्योंकि आपमें यदि नैतिकता व पावनता का विवेक चेतावनी दे रही थी कि यद्यपि आप लोग भी अब औद्योगिक क्रान्ति को अपना लक्ष्य वना रहे हैं परन्तु आपने औद्योगिक क्रान्ति की जटिलताओं से बचना है। आत्मा को जानने का प्रयत्न अवश्य करें। नहीं है तो आप सूर्य नहीं बन सकते। सभी कुछ आत्मज्ञान प्राप्त किए बगैर आपको भी वही समस्याएं होंगी जो इन लोगों को हैं। क्योंकि वे भी मानव है स्पष्ट देखने के लिए सूर्य स्वयं प्रकाश प्रदान करते हैं। सर्य में बहुत से हैं। वे सभी गीली, गन्दी गुण और आप भी। आप भी उसी मार्ग पर और मैली चीज़ों को रुखाते हैं। परजीवी जन्तु उत्पन्न करने वाले स्थानों को वे सुखाते हैं। परन्तु पश्चिम में बहुत से परजीवी जन्म लेते हैं। केवल और समस्याएं चलेंगे। अचानक आप दौड़ पड़ंगे होंगी, बिल्कुल वैसी ही समस्याएं जैसी पश्चिमी लोगों को हैं। से भयानक पंथ और भयानक परजीवी ही नहीं बहुत सरस्यती जी के इतने आशीर्वाद हैं कि चीजें भी पश्चिम में आ गई हैं, उन देशों में जिन्हें 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-11.txt चैतन्य लहरी अंक : 9 & 10 -2007 11 हैं तो वे हमें सुबुद्धि देती हैं, विवेक देती हैं। इसी कारण से सरस्वती पूजन के लिए, सूर्य पूजन के लिए हमारे अन्दर स्पष्ट दृष्टि होनी चाहिए कि हमें क्या बनना है, हम क्या कर रहे हैं, कैसी प्रकाश से परिपूर्ण होना चाहिए था परन्तु वे उसी हमारे अन्दर अन्धकार में बने हुए हैं। आत्मा के विषय में अन्धकार, अपने ज्ञान के विषय में अन्धकार और प्रेम के विषय में अन्धकार। जहाँ प्रेम का प्रकाश होना चाहिए था वहाँ इन तीनों चीज़ों का साम्राज्य है। प्रकाश का अर्थ वह नहीं है जो आप अपनी स्थूल दृष्टि से देखते हैं प्रकाश का अर्थ है- अन्तर्प्रकाश- गन्दगी में हम रह रहे हैं, हमारा मस्तिष्क कहाँ जा रहा है आखिरकार हम यहाँ पर मोक्ष प्राप्ति के लिए हैं, अपने अहं को बढ़ावा देने तथा अपने अन्तःस्थित गन्दगी के साथ जीवनयापन करने के प्रेम का प्रकाश। यह इतना सुखकर है, इतना मधुर लिए नहीं। इतना सुन्दर है, इतना आकर्षक है और इतना विपुल है कि जब तक आप इस प्रकाश को अपने तो ये प्रकाश हमारे अन्दर आया है और अन्दर महसूस नहीं कर लेते- वह प्रकाश जो पावन प्रेम है, पावनता है, पावन सम्बन्ध है, पावन सूझ-बूझ है, आपको चैन नहीं आ सकता है। इस प्रकार का हमें अपनी मानसिक गन्दगी, जो हमारे चहुँ ओर पनप रही है, से ऊपर उठने का प्रयत्न करना चाहिए। इसके अतिरिक्त गहनता में जाकर आपको समझना होगा कि हमारे अन्दर अहं नाम की भी प्रकाश यदि आप अपने अन्दर विकसित कर लें तो सभी कुछ स्वच्छ हो जाएगा। 'मुझे धो दो और मैं बर्फ से भी श्वेत हो जाऊंगा। VWash me and I एक संस्था है। यह अहम् मिथ्या हैं, बिल्कुल मिथ्या। आप कुछ नहीं करते। वास्तव में जब आप अपनी दष्टि इधर-उधर घूमाते हैं, जब आपका चित्त Shell be whiter then Snow I पूण्णत: स्वच्छः है जाने पर आपके साथ भी ऐसा ही होता है। इंधर-उधर जाता है, तब यह केवल आपका अहम् प्रकृति का पावनतम रूप हमारे अन्दर निहित होता है जो आप पर काबू पाने के लिए प्रयत्नशील है- प्रकृति का पावनतम रूप। प्रकृति के पावनतम रूप से ही हमारे चक्र बनाए गए हैं। मानसिक विचारों द्वारा हमीं लोग इसे बिगाड़ रहे हैं। उसी सरस्वती शक्ति के विरुद्ध, आप साक्षात सरस्वती के है। परन्तु वास्तव में अहम् पूर्णत: असत्य है क्योंकि अहम् तो केवल एक 'सर्वशक्तिमान परमात्मा'- 'महत् अहंकार'। इसके अतिरिक्त किसी अन्य अहम् का अस्तित्व नहीं है। है और वो है विरुद्ध जा रहे हैं। प्रकृति की सारी अशुद्धियों को सब मिथ्या है । बहुत बड़ा मिथक है क्योंकि यदि सरस्वती शुद्ध करती हैं, परन्तु अपनी मानसिक गतिविधियों से हम इसे बिगाड़ रहे हैं । हमारी सारी मानसिक गतिविधि पावन विवेक के विरुद्ध जाती है और यही बात व्यक्ति ने समझनी है कि अपने विचारों द्वारा हमने इस शुद्ध विवेक को नहीं बिगाड़ना। सभी दिशाओं में यह अपना प्रक्षेपण कर सकता है। हमारे विचार हमें इतना अहंकारी, डइतना अहंवादी इतना अस्वच्छ बना देते हैं कि हम वास्तव में तो अन्य लोगों को नियन्त्रित करता है। दूसरे विषपान करते हैं और कहते हैं, 'इसमें क्या बुराई है?' सरस्वती के विल्कुल विरुद्ध। सरस्वती यदि आप सोचने लगे कि आप ही सभी कुछ कर रहे हैं- आप ये कर रहे हैं, आप वो कर रहे हैं- जो आप नहीं कर रहे, तो यह धूर्त अहम् प्रवेश कर जाता है और आप इसे कार्यान्वित करने लगते हैं। आगे की ओर जब यह अपना प्रक्षेपण करता है लोगों पर रोब जमाने का, उनका वध करने का प्रयत्न करता है। हिटलर बन जाता है। जब গ 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-12.txt चैतन्य लहरी अंक : 9& 12 10 -2007 प्राप्त होती है। परन्तु कितनी बार मैं ऐसा कहती हूँ? आप यदि कुछ कहते हैं तो अधिक से अधिक मैं यही कहती हैँ कि, "हाँ।" परन्तु मैं वो नहीं कहती। मैं यदि जोर से ऐसा कहूँ, तो मैं नहीं जानती, क्या ये दाई ओर को जाता है तो यह अतिचेतन ( Supra Conscious) बन जाता है। तब यह हास्यास्पद, मूर्खतापूर्ण और व्यर्थ की चीज़ों को देखने लगता है। जब यह बाई ओर को जाता है तो यह इस प्रकार से देखने लगता है, मानो हो जाए! सभी कुछ शायद नष्ट हो जाए! अत: हमें आप कोई बहुत बड़े आदमी हों, बहुत बड़े ईसामसीह, बहुत बड़ी देवी या आदिगुरुओं की है, वही कर्म करता है, वही सृजन करता है। तरह से कुछ और "मैं अति महान व्यक्तित्व कभी-कभी मैं आप पर चिल्लाती हूँ, तुरन्त सारे हूँ!" यह बायाँ पक्ष है। और जब यह पीछे की ओर जाता है तो अत्यन्त भयानक है। उस स्थिति समझना है कि केवल महत् अहंकार ही गतिशील भूत भाग खड़े होते हैं। मात्र मेरे एक बार चिल्लाने पर। कल आपने देखा, बातें करने वाले सभी भूत में लोग ऐसे गुरु बन बैठते हैं जो दूसरों को था। बरबाद कर रहे हैं। उनका अहं जब पीछे की ओर अत: आपको समझना है कि अब आप जाता है तब वे गुरु बन बैठते हैं। उनके अपने अन्दर अनगिनत दोष होते हैं और अन्य लोगों को हैं। स्वयं पर चिल्लाने के लिए आप दाई विशुद्धि भी वे इसी घोर न्क में खींचने का प्रयत्न करते हैं। का उपयोग करें, "क्या अब तुम डींगे मारनी बन्द आत्म साक्षात्कारी हैं, आप भी ऐसा ही कर सकते सभी ओर, अहंकार की गतिविधि ही नर्क है। करोगे, क्या तुम बेवकूफी भरी बातें करनी बन्द कुे लोग जब अपनी दाई विशुद्धि का उपयोग करोगे क्या तुम दिखावा करना बन्द करोगे?" तब करने लगते हैं, अपनी डींग मारने लगते हैं, तो ये यह रुक जाएगा। सबसे बुरी बात हैं। किसी भी प्रकार का अहं आपको हो, यदि आप इसकी शेखी बघारने लगते हैं, इसके बारे में बात करने लगते हैं, तब यह आपको चहूँ ओर से घेर लेता है अहं की दीवार को इतना मोटा कर देता है कि उसका भेदन ये स्थूलता उन लोगों द्वारा घटित होती है जो वास्तव में गतिशील हैं। वे इसके विषय में कुछ करना चाहते हैं, ऐसा नहीं हैं कि वो गतिशील नहीं है। वो करना चाहते हैं, परन्तु उन्हें केवल एक ही मार्ग का ज्ञान है कि लम्बी बातें करनी हैं। वो नहीं समझते कि कुछ आन्तरिक मार्ग भी हैं जिनके द्वारा असम्भव हो जाता है, क्योंकि, ऐसा व्यक्ति अपने आप से पूरी तरह सन्तुष्ट होता है, और मानता कि वह ऐसा ही है। एक बार जब उसका विश्वास आप कहीं अधिक नियन्त्रण कर सकते हैं। क्योंकि वे इन्हें अपनाना ही नहीं चाहते, बातों में हो उलझे इस प्रकार की मुर्खता में हो जाता है तो अहं की उस दीवार को तोड़ना बिल्कुल असम्भव हो जाता है। रहते हैं। एक बार जब उन्हें इसकी आदत हो जाती है तो वे इसके विषय में बात करते हैं और सारी अत: जब भी आप इन चीजों के बारे में शक्ति बाहर चली जाती है। यदि वे इसके बारे में डींग मारें, या लम्बी बातें करने लगे तो सावधान हो जाएं। आप जानते हैं कि मैं क्या हूँ, परन्तु मैं कितनी है। आप अपने अनुभवों के बारे में मुझे बता बार कहती हूँ कि "मैं वो हूँ।" मैं चाहे एक बार ऐसा कहूं तो आपको बहुत तेज़ चैतन्य लहरियाँ को ये अनुभव बताने लगेंगे, इसके बारे में बहुत बात न करें, इसे अपने अन्दर बनाए रखें तो ठीक सकते हैं, ठीक है, परन्तु यदि आप अन्य लोगों 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-13.txt अंक : 9 & 10 2007 चैतन्य लहरी 13 सब'। परन्तु वह गर्व नहीं है। मैंने देखा है कि वह गर्व विद्यमान नहीं है। अब भी यह अत्यन्त व्यक्तिगत अधिक बातें करने लगेंगे तो जो शक्ति आपको प्राप्त हुई है वह धीरे-धीरे लुप्त होने लगेगी और आप पूर्णतया निम्नस्तर पर आ जाएंगे। अतः व्यक्ति को ये बातें बहुत अधिक नहीं करनी चाहिए कि मेरे पास ये शक्ति है, मेरे पास वो शक्ति है या मैं ऐसा सोचता हूँ, या मेैं ऐसा करता हूँ, ऐसा करना मउपे है। आप यदि ये सोचने लगे कि 'हम' 'सहजयोगी तो होता क्या है कि आप 'एक व्यक्तित्व,' एक संस्था बन जाते हैं। परन्तु व्यक्ति तो अन्य लोगों को हीन भावना से देखता है, वह देखता है कि फलां व्यक्ति नीचा है, फलाँ ऊँचा है, फलाँ ऐसा है। वो ये नहीं सोचेगा कि 'हम सहजयोगी' कितने सुन्दर हैं! अत: बिल्कुल गलत है मैं आपको चेतवनी देती हूँ कि दिखावा करने का प्रयत्न न करें, ( Do not try to show off)। हाँ, आप मेरी शक्तियों के बारे में बात कर सकते हैं, यह बिल्कुल ठीक हैं, परन्तु अपनी शक्ति के बारे में बात करने का प्रयत्न न करें। 'हम' शब्द से सोचें, इस प्रकार हमारा अहं कम, कम, और कम हो जाएगा। और कल, यही मूर्ख अगर कहना ही पड़े, नि:सन्देह जब आप किसी और हास्यास्पद लगने वाला अहं एकादश का शिकार नकारात्मक व्यक्ति से बात करें या बताएं तब हो जाएगा। आपको 'हम' कहना चाहिए "मैं नहीं। 'हमें'. हममें से कुछ को, यह शक्ति अपने अन्दर महसूस हुई है। 'हमने लोगों को देखा है। चाहे आप ही बोल आज, व्यक्तिगत अहं एकादश में विलीन हो जाएगा परन्तु हम सबको हर समय 'हम' कहना याद रखना होगा। आज का दिन हमारे लिए इसी कारण से महान है कि हमने परिवर्तित होना है, रहे हों, परन्तु आपको 'मेंने' कहने की आवश्यकता नहीं हैं। आपको कहना है, 'हम,' तब आप महत् क्योंकि सूर्य ने भी अब अपनी दिशा बदल दी है। अहंकार बन जाते हैं। जब आप कहते हैं, 'हम हममें' से कुछ,' 'हम करते हैं।' जैसे ग्रेगोर की पुस्तक में मैंने किया है कि वह बहुत अधिक 'में आस्टेलिया के लोगों के लिए ये कहना है कि यद्यपि शब्द न लिखे, इसके स्थान पर 'हम' अर्थात पूरी सुर्य चला गया है, फिर भी आइए सूर्य को स्थापित सामूहिकता, पूरा सामूहिक अवयव, सहजयोगियों का जीवन्त अवयव (Living Organism) । अतः यदि क्योंकि हमारे अन्दर सूर्य कभी लुप्त नहीं होता। आप कहते हैं, हाँ 'हममें से कुछ को प्राप्त हैं,' तो इसका अर्थ ये है कि आप अपने को निम्नस्तर पर रखते हैं और अन्य सभी को अपने से ऊपर। कहें, सोचें, 'हम सब मिलकर, हम सब मिलकर।' कोई 'हाँ' हममें से कुछ को प्राप्त है। मैं जानता हूँ कि कुछ लोगों के पास ये शक्तियाँ हैं।' करने की यही विधि है। क्योंकि यदि आपने अपने अहं पर काबू सूर्य इस ओर आ रहा है, तो आइए सूर्य का उत्तर की ओर, इस दिशा में, आने का स्वागत करें। करें, हमारे अपने अन्दर सूर्य के साम्राज्य को। अत: हमें इस प्रकार से ऐसा आदर्श अपनाना होगा जिसके माध्यम से हम 'एक व्यक्तित्व' के विषय में भी व्यक्ति जो कुछ अलग या भिन्न बनने का मैं उसे प्रयत्न करेगा वह बाहर चला जाएगा। निकाल दूंगी। चाहे जो हो, वह निकल जाएगा | पाना है तो आप इसे हर व्यक्ति में प्रसारित होने की आज्ञा दें। इस प्रकार से आप इसे पूर्णतया ठीक कर पाएंगे। इसे फैलने दें, हम सभी सहजयोगी, 'हम अत: जो भी विशेष बनते हैं वो अपना आकलन करें। पूर्ण (Whole) का पोषण करने के लिए, पूर्ण (Whole) की सहायता करने के लिए, पूर्ण का |tE শ 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-14.txt अंक : 9 & 10 चैतन्य लहरी 2007 14 उद्धार करने के लिए, हर आदमी जो चाहे करे, मैंने एक अत्यन्त सुन्दर कविता लिखी थी- "धूल परन्तु कभी भी किसी को नीचे धकेलने के लिए नहीं। क्योंकि सहजयोग ऐसा नहीं है। सहजयोग "कि मुझे धूल कण होना चाहिए, ताकि मैं लोगों में केवल सामूहिकता में ही कार्य करता है और जिसने यह पारगामी आत्मा विकसित कर ली वही सच्चा सहजयोगी है, जिसने नहीं की, वो नहीं है। अपने हैं वह जीवन्त बन जाती है, जिस चीज़ को महसूस विषय में आप जो चाहे सोचते रहें, मुझे कुछ नहीं करते हें वो सुरभित हो उठती है, इस प्रकार बन कण बनना', मुझे स्पष्ट याद है, बहुत समय पूर्व, व्याप्त हो सकू" जो बहुत बड़ी चीज़ है- इस प्रकार का धूल कण बनना। आप भी जिस चीज़ को छूते जाना बहुत बड़ी बात है। मेरी यही इच्छा है, और यह पूर्ण हो जाएगी। उस छोटी आयु में भी मुझे धूल कहना, परन्तु यह पारंगामी व्यक्तित्व एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचता है चाहे आप कुछ बोलें या ने बोलें। जैसे आपकी माँ हैं। मैं आपसे मिलूं या कोई फर्क नहीं पड़ता, परन्तु मैं आप सबमें व्याप्त हूँ, छोटी-छोटी चीज़ों के द्वारा भी मैं आपके साथ हूँ। अत: इस प्रकार से एक दूसरे और का कण बनने का विचार था, और आज आपसे बात करते हुए मुझे याद आया कि में वही बनना चाहती थी, ये वही स्थान है । राऊल बाईं भी वैसी ही हैं। वे बहुत सहज महिला हैं, बहुत ही सादी ही सादे ढंग से वो रहती हैं, उनमें व्याप्त न मिलूं बहुत में व्याप्त होने का प्रयत्न करें और अपने अन्दर के सौन्दर्य को देखें। अपना भरपूर आनन्द उठाएं क्योंकि होने का विवेक है। अब बहुत से सहजयोगी हैं, कल जो लोग आए, और मुझे विश्वास है कि वे सहजयोग को ठीक प्रकार से अपना लेंगे, धुलिया यही सबसे बड़ी चीज़ है और यही सबसे बड़ी चीज़ प्राप्त करनी है। ये अहं आपको छिलके (Nutshell) की तरह से बना देता है जो व्याप्त होने के भी अब बहुत से सहजयोगी हैं और मुझे पूरा के सौन्दर्य के साथ तालमेल नहीं रख सकता। देखें विश्वास है कि और अधिक लोग आएंगे। आशा है आप सबसे मिलें होंगे, सबसे दोस्ती बनाएं, जानने कि स्वर किस प्रकार एक दूसरे में घुलमिल जाते हैं! का प्रयत्न करें कि वो कौन हैं, हो सकता है उन्हें आज के दिन ये महान धारणा बहुत उपयुक्त अंग्रेजी न आती हो, आप कोई अनुवादक ले सकते उनसे बातचीत करें और उनके प्रति अच्छे बने होगी। आज हम धुलिया में पूजा कर रहे हैं, ये बहुत महान बात है। धुलिया का अर्थ है-धूल। 'धूल'। उनसे दोस्ती करें। व्याप्त होने (Permeation) के बचपन में, मुझे याद है, मैंने एक कविता लिखी थी। ये बड़ी अच्छी कविता थी, मैं नहीं जानती कि ये मैंने इसमें लिखा था कि "धूल लिए मैं चाहती थी कि आप उनसे मिलें। आपको पता होना चाहिए कि ये लोग कौन हैं, और नासिक में कौन लोग हैं, क्योंकि वहाँ के सहजयोगियों से हम कभी नहीं मिलते। जब हम वापिस जाते हैं तो * हमारे पास केवल एक या दो पते होते हैं! ये अच्छी सोच नहीं है, देखने का प्रयत्न करें कि वहाँ कितने लोग हैं, उनसे उनके विषय में प्रश्न पूछे आदि आदि। अब कहाँ है। परन्तु के उस कण की तरह से छोटी बनना चाहती हूँ जो हवा के साथ उड़ता है, सर्वत्र जाता है, जाकर सम्राट के सिर पर बैठ सकता है या किसी के चरणों में गिर सकता है, या कहीं भी जाकर बैठ सकता है। परन्तु में ऐसा धूल का कण बनना चाहती हूँ जो सुरभित है, पोषक है और प्रकाशप्रदायी है।" इसी ये व्याप्तिकरण केवल तभी सम्भव है जब आपका अहं चहुँ ओर व्याप्त होने लगेगा और दाई प्रकार से मुझे याद है, जब में सात साल की थी तब 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-15.txt अंक : 9 & 10 चैतन्य लहरी 2007 15 ओर की समस्याओं पर काबू पाने का भी यही उपाय है और सरस्वती की पूजा भी इसी प्रकार से करनी है। सरस्वती के हाथ में वीणा है और वीणा आदिवाद्ययन्त्र है जिसका संगीत वे बजाती हैं। वह संगीत हृदय में प्रवेश कर जाता है। आपको पता भी जल गंगा नदी बन जाता है! ये सब सूक्ष्म चीजें हैं। अतः पदार्थ सूक्ष्म बन जाते हैं क्योंकि इन्हें होना होता है- सर्वत्र प्रवेश करना होता है। अत: हर चीज़, चाहे जो हो- और वायु सर्वोत्तम है- वह वायु भी चैतऱ्य-लहरियों में परिवर्तित हो जाती है! नहीं चलता कि किस प्रकार आपके अन्दर ये संगीत अतः आप देख सकते हैं कि किस प्रकार प्रवेश करता है और किस प्रकार कार्य करता है! पदार्थ से बनी चीज़ें- इन पाँच तत्वों से बनी हुई चौजें- सूक्ष्म बन जाती हैं । नि:सन्देह बायाँ और इसी प्रकार से सहजयागी को भी व्याप्त हो जाना चाहिए- संगीत की तरह से। जैसे मैने दायाँ- दोनों पक्ष इसे कार्यान्वित करते हैं। क्योंकि आपको बताया, बहुत से गुण हैं जिनका वर्णन एक प्रवचन में नहीं किया जा सकता है, परन्तु सरस्वती जी का एक गुण ये है कि वे सूक्ष्म चीजों में प्रवेशहै। और इसी दृष्टि से व्यक्ति को अपने जीवन को कर जाती हैं। जैसे पृथ्वी माँ सुगन्ध में परिवर्तित हो जाती हैं, इसी प्रकार से संगीत लय में परिवर्तित हो संयोजन बनाने के लिए। 'प्रेम' ने इस पर कार्य करना होता है और प्रेम जब पदार्थ पर कार्य करता है तो पदार्थ भी प्रेम बन जाता भी देखना चाहिए- इसे प्रेम और पदार्थ का सुन्दर जाता है और जिस भी चीज़ का सृजन वे करती हैं वह और अधिक महान हो जाती हैं। जिस भी पदार्थ को वे उत्पन्न करती हैं वह सौन्दर्यसम्पन्न हो जाता है। सौन्दर्यविहीन पदार्थ तो स्थूल है और इसी प्रकार परमात्मा आपको धन्य करें। निर्मला योग-1983 रूपान्तरित) प सभी कुछ है। अब आप कहेंगे कि जल क्या है? ता पा तम ाम बि 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-16.txt आज्ञा चक्र दिल्ली- 3.2.1983 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन आज हम आज्ञा चक्र के विषय में जानेंगे, के माध्यम से देखना होता है। जैसे एक खिड़की, आज्ञा चक्र के विषय में, जो दृकतन्त्रिका के पारक (Crossing) पर स्थित है । आँखों को पोषण प्रदान खिड़की के माध्यम से देखेंगे तब आपको खिड़की करने वाली नाड़ियाँ जहाँ एक दूसरे को पार करती दिखाई नहीं देगी। अतः जिन लोगों को ये भ्रम है हैं, वहाँ से उल्टी दिशा में चली जाती हैं और इसी कि क्योंकि हम तीसरी आँख को देख सकते हैं स्थान पर यह सूक्ष्म चक्र स्थित है । मेरुरज्जु (सुषुम्ना) इसलिए हमारी कुण्डलिनी जागृत हो गई है, वे के माध्यम से यह निरन्तर अन्य चक्रों से जुड़ा हुआ लोग बुरी तरह से गलती पर हैं। । इस चक्र में दो पंखुड़ियाँ हैं। यह सूक्ष्म केन्द्र दो तरफ से कार्य करता है- एक तो ऑँखों के माध्यम से और दूसरे सिर में पीछे की ओर उठे हुए भाग (पीछे की आज्ञा) के माध्यम से। इस चक्र को ये शारीरिक पक्ष है। जो लोग तीसरी आँख की बात करते हैं, ये तीसरी आँख है। हमारी दो आँखें हैं लिए कोई स्थान नहीं रहता। प्रतिअहं और अहं आप खिड़की को देख सकते हैं, परन्तु यदि आप यह अत्यन्त संकीर्ण मार्ग है जिसके अन्दर से प्राय: चित्त नहीं गुजर सकता, यह असम्भव कार्य है। ये संकीर्ण मार्ग है जिसके अन्दर अहं तथा प्रतिअहं स्थापित हैं और एक दूसरे को पार (cross) करते हैं। इनके बीच में कुण्डलिनी के गुज़रने के जिनके माध्यम से हम देखते हैं परन्तु एक तीसरी आँख भी है जो अत्यन्त सूक्ष्म है और इसके माध्यम से भी हम देख सकते हैं। ये आँख यदि दिखाई वापिस जाते हैं, नीचे की ओर जाते हैं और विशुद्धि चक्र पर आकर इसके चहुूँ ओर घूमकर उसी दिशा में चले जाते हैं। अत: आप देखते हैं कि ये इस पड़ती है तो इसका अर्थ ये है कि आप इस आँख से अपनी आँखों को देख सकते हैं तो इसका अर्थ ये स्थान तक आते हैं, यहाँ से चलते हैं और आज्ञा चक्र तक जाकर परस्पर एक दूसरे को पार करते हैं। हैं। उदाहरण के रूप में, यदि आप दूर परन्तु यहाँ पर ये एक ही दिशा में जाते अर आज्ञा चक्र पर एक-दूसरे को पार करके विपरीत द्रिशा में चले जाते हैं। अत: यदि आपको है कि आप अपना प्रतिबिम्ब देख रहे हैं वास्तविकता नहीं। किसी चीजू को यदि आप देखते हैं तो इसका अर्थ ये होता है कि आप इसकी ओर देख रहे हैं । अत: जो लोग ये कहते हैं कि उन्हें आँख दिखाई बाई ओर की समस्या है तो इसके परिणाम पड़ती हैं- उदाहरण के रूप में LSD तथा अन्य नशीले पदार्थ लेने वाले लोग, उन्हें यह आँख दिखाई देने लगती है। वो इस आँख को देखते हैं यहाँ पर आरम्भ होती है। परन्तु बाईं ओर वास्तव और सोचते हैं कि उनकी तीसरी आँख खुल गई है। में, दाएं, पक्ष पर कार्य करती है। वास्तव में आप उस आँख से बहुत दूर आप इसे देख पाते हैं। जब आप दाईओर को होगा या कुण्डलिनी जागृति के माध्यम से इसमें अतिचेतन स्तर (Supra-Conscious) पर और प्रवेश करना होगा। परन्तु तालूक्षेत्र, जो कि परमात्मा बाईओर को अवचेतन (Sub-Conscious) स्तर पर चले जाते हैं तब आप तीसरी आँख देख कोई भी व्यक्ति इस संकीर्ण द्वार से जब अपना सकते हैं। परन्तु सहजयोग में आपको इस आँख है आपको दाई ओर महसूस होंगे। परन्तु दाई ओर यहाँ से शुरु होती है, यहाँ तक और बाईं ओर दा हैं इसीलिए अत: इस तीसरी आँख का भेदन करना का साम्राज्य है, का द्वार इतना संकीर्ण है कि चित्त इसके अन्दर धकेलने का प्रयत् करता 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-17.txt दह क चैतन्य लहरी अक : 9 & 10 17. 2007 भविष्य को देख सकते हैं। मान लो पृथ्वी पर तो वह या तो बाएं को चला जाता है या दाएं को। और जिन लोगों को इस बात का ज्ञान नहीं है रहते हुए आपके पास ऊँचाई तक पहुँचने और वहाँ कि जरूरी नहीं कि अज्ञात चीज़ परमात्मा हो या दिव्य हो, उन लोगों के लिए यह कष्ट की शुरुआत होती है। अत: जब वे दाईओर (Right side) को होने वाला है और जहाँ भी आप हैं आप वर्तमान में चले जाते हैं तो वे अतिचेतन (Supra-Conscious) क्षेत्र में पहुँच जाते हैं और मतिभ्रम (Halluination ) के शिकार हो जाते हैं। वास्तव में ये मतिभ्रम नहीं (Super-Conscious) के उस बिन्दु तक पहुँचता होता क्योंकि द्वाई ओर इन सभी चीजों का अस्तित्व जहाँ से वह अतिचेतन (Supra-Conscious) दाईओर है। तो वे दाई ओर की चीजें देखने लगते हैं। उन्हें को तथा अवचेतन (Sub-conscious) को देख रंग, और रंगों की बनावट दिखाई दे सकती है, वो ऐसे मृत लोगों को देख सकते हैं जो बहुत ही अहंकारी थे। वे गंधवों और किन्नरों को देख सकतें यही कुण्डलिनी की जागृति है। हैं क्योंकि वे दाईओर, गंधर्वलोक जाते हैं तथा अतिचेतन की अन्जानी चेतनता में वो चर्ज़ देखने कण्डलिनी की जागृति बहुत कठिन है और बहुत स्वयं को लटका लेने का काई साधन है तो वहाँ से आप देख सकते हैं कि क्या हो चुका है, आगे क्या हैं। इसी प्रकार उत्क्रान्ति होती है, वर्तमान में, तो वह पराचेतन से व्यक्ति की जब वास्तव में सकता है। परन्तु इनमें उसकी कोई रुचि नहीं होती। वह वर्तमान में उन्नत होना चाहता है और वास्तव में अत: वे सभी लोग जो ये कहते हैं कि लगते हैं। परन्तु यह गतिविधि अत्यन्त भयानक है, क्योंकि वहाँ पर यदि कोई आपको पकड़ ले तो हानिकारक है, ये वो लोग है जिन्हें कुण्डलिनी जागृत करने का कोई अधिकार नहीं है। ये लोग जब चालाकियाँ करने लगते हैं तो उनका अनुकम्पी नाड़ी एक अन्य व्यक्ति आपके सिर पर सवार हो जाएगा और आप अहं के वशीभूत होकर स्वयं अपनेआप, सांघातिक ( Malignant) हो जाएंगे| हिटलर ऐसा ही एक उदाहरण है। उसने तिब्बत के लामाओं से यह सीखा कि अतिचेतन में किस प्रकार जाना है। उनसे यह विधि सीखकर उसने इसका उपयोग किया और बहुत से लोगों को अतिचेतन अहंवादी बनाया। लामाओं की प्रणाली के बारे में आपने अवश्य सुना होगा, यह एक अन्य बहुत बड़़ा जो ये कहते हैं कि हम इस विधि से या उस विधि E(Sympathetic Nervous System) a I उत्तेजित हो जाता है तथा बाई और दाईं ओर ये अनुकम्पीप्रणाली, मध्यमार्ग (पराअनुकम्पी) से बहुत अधिक ऊर्जा खींचने लगती है। यह इतनी अधिक ऊर्जा खींचती है कि पराअनुकम्पी (Central Path ) की ऊर्जा समाप्त होने लगती है और ऐसा व्यक्ति वास्तव में विक्षिप्त हो जाता है। अत: बहुत से लोग समस्या थी। उन्हें भविष्य का ज्ञान था कि अगला से कुण्डलिनी जागृत कर रहे हैं, वे साधकों के जीवन नष्ट करते हैं। अन्ततः साधक बिना कुछ लामा कौन बनेगा, उसे कहाँ खोजा जा सकता है, कहाँ पाया जा सकता है। उन्हें भविष्य का ज्ञान था और लोगों ने ये सोचा कि वे दिव्य हैं। 'भविष्य ' का ज्ञान दिव्यत्व नहीं है, क्योंकि यह तो असन्तुलन है हम मानव हैं और हमें 'वर्तमान' को जानना है 'भविष्य' को नहीं। वर्तमान अवस्था से जब आप गुज़रते हैं तो उस ऊँचाई तक पहुँचते हैं जहाँ से आप भूत, वर्तमान और प्राप्त किए निस्सहाय छोड़ दिया जाता है। (साधक) नहीं जानते कि प्राप्त क्या करना है और पाना क्या है। इस प्रकार के पथ भ्रष्ट हो जाते परन्तु तर्कदृष्टि से व्यक्ति को समझना चाहिए कि कम से कम तुम्हारा स्वास्थ्य तो ठीक हो जाना चाहिए, मानसिक रूप से तो उसे ठीक हो बे 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-18.txt अंक 9 & 10 चैतन्य लहरी 18 -2007 अधिक, नहीं लगभग बारह वर्ष पहले, अमरीका के कुछ लोग मुझे मिलने आए। उन्होंने मुझसे कहा कि, जञाना चाहिए, उसका स्वभाव तो सुधर जाना, चाहिए, कम से कम इतना तो होना चाहिए। परन्तु यदि आप अपना सारा धने गुरुओं की भेंट चढ़ाए चले जा रहे हैं, इन मूर्खतापूर्ण अनुभवों के लिए अपना स्वास्थ्य चौपट कर रहे हैं, स्वयं पर यदि आपको कोई नियंत्रण नहीं है, तो आपको समझ लेना चाहिए कि यह किसी भी प्रकार से सत्य नहीं है। वास्तविकता तो वह होती है जहाँ आपका नियन्त्रण हो। परन्तु हैं।" मैंने कहा, वे सब भूतबाधित होकर समाप्त हो यदि आप स्वयं किसी अन्य के नियन्त्रण में हैं तो जाएंगे। मैं वह सब कुछ नहीं करना चाहती जो रूसी आपका पतन हो चुका है। उदाहरण के रूप में कुछ लोग उछलने लगते हैं और कहते हैं, "श्रीमाताजी मैं उन्हें भी यही बताऊंगी तो उन्होंने कहा, "नहीं स्वतः ही उछलने लगता हूँ।" यह गम्भीर मामला नहीं, हमें तो सीखना ही है।" मैंने कहा, कि मैं यदि है। इसका अर्थ ये है कि आपको स्वयं पर नियन्त्रण तुम्हें कहूं कि स्वयं मृतआत्माओं के गुलाम बन नहीं है। आप इसलिए उछल रहे है कि कोई अन्य आपको उछाल रहा है। आप नहीं उछल रहे। इसका अर्थ ये है कि आपकी अपनी चेतना, अपना चित्त, ऐसा करेंगे।" उन्होंने जब मुझसे कहा कि हम ऐसा आपकी अपनी चेतना, किसी अन्य के नियन्त्रण में इसलिए करना चाहते हैं क्योंकि रूसी लोग ऐसा कर है। आप अपना नियन्त्रण नहीं कर सकते। अतः ये रहे हैं तो मैने पूछा, तुम्हें किसने भेजा है? तब मुझे सब अनुभव जिनमें लोग सोचते हैं कि वे हवा में उन्होंने एक व्यक्ति का नाम बताया जो बम्बई में उड़ रहे हैं या लौकिक गतिविधियों से ऊपर पहुँच पत्रकार है। मैंने कहा, यह व्यक्ति भी इसी रोग का गए हैं, हवा में जाकर चीज़ों को देख रहे हैं, तो ये सब बहुत ही भयानक चीजें हैं। ऐसा व्यक्ति अन्ततः पागल हो सकता है। पूर्णत: पागल, क्योंकि वह स्वयं पर नियन्त्रण पूरी तरह से खो देता है। इन अनुभवों को 'परामनोवैज्ञानिक' (Parapsychological ) आप हमें हवा में उड़ूना सिखाइए।" मैंने कहा "क्यों? क्या आप उड़ते नहीं हैं?'" कहने लगे. "नहीं, हम अंतरिक्ष में यात्रा करना चाहते हैं।" मैंने कहा, क्यों? "क्योंकि रूसी लोग परामनोविज्ञान में प्रयोग कर रहे हैं और हम भी वैसा ही करना चाहते लोग कर रहे हैं। बो भी यदि मेरे पास आएंगे तो मैं जाओ और हर समय अपना शरीर कंपाते रहो? तो सा। इसके बावजूद भी उन्होंने कहा, "हाँ हम अवश्य शिकार था। वह अपना शरीर छोड़कर दूसरे विश्व में चला जाता, वहाँ की चीज़़ों को देखता। उसने बहुत कष्ट उठाए और स्वयं पर उसका नियंत्रण समाप्त होने लगा पर मैंने उसे रोगमुक्त किया। क्या वह सोचता है कि मैं वही बीमारी तुम्हें लगा दूँ? मैंने उसको उस रोग से मुक्त किया था और अब आप क्यों इसमें फँसना चाहते है? परन्तु उन्हें पूरा विश्वास था कि उन्हें इसकी आवश्यकता है और बाद में मुझे पता चला कि अमरीका में वे परामनोवैज्ञानिक व्यापार अनुभव कहा जाता है, इसे और बड़ा नाम देने के लिए अमरीका में 'परामनोविज्ञान' (Parapsychology) कहा जाता है। नि:सन्देह यह 'परा' (Para) है क्योंकि यह व्यक्ति के मनस ( Psyche) से परें है, परन्तु यह बहुत भयानक है। आपको इन जंजालों में नहीं फॅसना जहाँ आत्माएं ( भूत) आपको पकड़ लें और नहीं, परन्तु आड़ोलित होना। बाईं या दाई ओर चला रहे हैं जो कि अत्यन्त भयानक कार्य है! तो यह आड़ोलन है, आज्ञा को पार करना आप इस प्रकार से आचरण करने लगे जिनका वर्णन भी नहीं किया जा सकता। एक बार मेरे में इसके प्रभाव भिन्न हो सकते हैं परन्तु सहजयोग विचार से पाँच या छः वर्ष पहले, या इससे भी में ये समान हैं। जो लोग अवचेतन क्षेत्र में चले लुढ़कना, चाहे व्यक्ति अवचेतन में जाए या अतिचेतन 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-19.txt चैतन्य लहरी अंक : 9 & 10 2007 19 जाते हैं वो मुझे भिन्न रूपों में देखने लगते हैं, यदि मेरा सम्बन्ध इस माइक्रोफ़ोन से न हो तो मैं आपसे बात न कर पाती। तो बिना परमात्मा से योग प्राप्त किए वे परमात्मा की पूजा करने लगते हैं। वे भिन्न प्रकार की आरतियाँ करते हैं, उपवास करते क्षेत्र में जाते हैं वो इस प्रकार से चीजें और हैं, ये वो, और स्वयं को सताते हैं। ये बाई ओर के लोग हैं। परमात्मा की स्तुति गान करना आदि सभी कुछ, अति में जाना, चोबीसों घण्टे वो यही करते हैं । पूर्वकाल, हर चीज़ के भूतकाल को देख रहे कोई (तान्त्रिक) भी उन्हें बाईं ओर को खींच लेता होते हैं। अत: यह अतिचेतन में जाना बहुत ही है। कुछ लोग हर समय राम-राम-राम ही करते भयानक है, इसमें कोई सन्देह नहीं, परन्तु रहते हैं । आप कह सकते हैं कि वाल्मीकि को राम का नाम लेने के लिए कहा गया था। परन्तु उसे ? नारद ने। नारद एक अवतरण थे, नारद। आप नारद नहीं हैं, तो किस प्रकार आप स्वयं से या कोई और व्यक्ति आपसे, नाम लेने के लिए कह सकता है? चाहे कोई भी नाम आप लें, आप परमात्मा तक नहीं पहुँच सकते। तब आप कहाँ जाते हैं? कहीं तो आप जाते हैं। हो सकता है राम नाम का कोई नौकर (भूत) हो जो आपको पकड़ ले! और लोग इस प्रकार अटपटे ढंग से बर्ताव करने लगते हैं कि वो पागल और जड़्सम जैसे LSD का नशा करने वाले लोग मुझे नहीं देख पाते, वे केवल मेरे अन्दर से निकलने वाले प्रकाश को देख पाते हैं, और जो लोग अतिचेतन उनके रूप देखने लगते हैं कि वो सोचते है कि वो स्वर्ग में पहुँच गए हैं! परन्तु वे उत्क्रान्ति से अवचेतन भी अत्यन्त भयानक है क्योंकि सभी लाइलाज बीमारियाँ जैसे कैंसर और मेलाइटिस ( Malaitis) आदि चित्त के बाई ओर चले जाने से होती हैं। अत: व्यक्ति को इन तान्त्रिकों के किसने कहा प्रति बहुत ही सावधान रहना चाहिए और उन लोगों से भी बहुत सावधान रहना चाहिए जो आपको नियंत्रित करने या भूत और भविष्य की बातें बताने का प्रयत्न कर रहे हैं। भूत या भविष्य के बारे में जानने की कोई जरूरत नहीं है। क्या आवश्यकता है? इससे क्या लाभ होता है? मैं यदि आपको ये बताने लगू कि लगते हैं । अतिचेतन के बारे में भी ऐसा ही है। जो वहाँ से आते हुए मेंने सारा रास्ता किस प्रकार तय किया तो क्या आपको इसमें कोई रुचि होगी? किस लोग बहुत अधिक महत्वाकांक्षी होते हैं वो भी प्रकार आपको अपनी पूर्वगरिमा या बीते हुए जीवन, जिनका आज कोई मूल्य नहीं है, में रुचि हो सकती है? परन्तु ये मानव की दुर्बलता है कि वह अपने सोचते केवल अपने विषय में ही सोचने लगते व्यक्तित्व में कुछ अत्यन्त बनावटी, अस्तित्वहीन ह और मूल्यहीन चीजें जोड़ना चाहता है और फिर वह कहता है कि मैंने ऐसा किया, मैंने वैसा किया, मैं ऐसा कर पाया, मुझे ये कभी नहीं मिला। इस प्रकार की पागल अवस्था में जा सकते हैं जहाँ वे सामूहिकता (संघ) के बारे में नहीं हैं। और जब ऐसी स्थिति आ जाती है तो उन्हें ये समझाना असम्भव हो जाता है कि वो गलत हैं और अन्ततः वे अपने वाटरलू (Waterloo) के युद्ध में पहुँच कर समाप्त हो जाते हैं। अत: ये आज्ञा चक्र एक द्वार है, स्वर्ग का भारत में लोग इस 'आज्ञा' के कारण प्राय: बाएं को चले जाते हैं क्योंकि वो कहते हैं, 'परमात्मा पूजा करो।' परन्तु परमात्मा की पूजा करने के लिए उनका योग तो परमात्मा से होता नहीं। देखिए द्वार, जिसमें से सभी को गुज़रना है। इस चक्र पर महान अवतरण, भगवान ईसामसीह का निवास है। हमारे भारतीय शास्त्रों में उन्हें महाविष्णु कहा गया की 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-20.txt अंक : 9 & 10 -2007 चैतन्य लहरी 20 जब यहाँ (आज्ञा) पर रुकती है तो आपको भगवान ईसामसीह की स्तुति (Lord's Prayer) है, राधा-पुत्र! और वे ग्यारह रुद्रों, ग्यारह संहारक शक्तियों के तत्वों से बने हैं। परन्तु शासक तत्व, मुख्य तत्व श्री गणेश हैं, अर्थात अबोधिता। अतः वे कहनी पड़ती है, इसके बिना कुण्डलिनी ऊपर अबोधिता की प्रतिमूर्ति हैं। अबोधिता अर्थात पूर्ण नहीं जाती। ऐसा हमें ईसामसीह को जागृत करने पावनता। उनके शरीर का सृजन पृथ्वी माँ (पृथ्वी के लिए करना पड़ता है, बिना उनके जागृत हुए तत्व ) से नहीं हुआ, अर्थात उनका शरीर नश्वर नहीं था। यह ओंकार है। अतः मृत्यु हो जाने के कि इस चक्र पर ईसामसीह का साम्राज्य है। बाद भी वे पुनर्जीवित हो उठे। ये सत्य है, वे महाविष्णु का नाम लेने पर भी आज्ञा चक्र खुल पुनर्जीवित हुए क्योंकि उनका सृजन ओंकार से हुआ था। क्योंकि वे राधाजी के पुत्र हैं इसलिए आप उनमें और अन्य देवी देवताओं में सम्बन्धों को आसानी से समझ सकते हैं। महाविष्णु के विषय में देवीभागवत् में लिखा हुआ है। आज्ञा चक्र का न खुलना ये प्रमाणित करता है जाता है। अत: महाविष्णु और ईसामसीह एक ही हैं। अत: आपको इसका प्रमाण देखना होगा। तथा क्योंकि इस विश्वास के बल पर कि ईसामसीह आपके अपने हैं, काफ़िरों (Heathens) की तरह बाकी सब अवतरणों को त्याग देना आपकी भयंकर गलती हैं। ऐसा करना आपकी भयानक गलती है। परन्तु देवीभागवत् को कौन पढ़ता है? इन ग्रन्थों को पढ़ने का समय किसी के पास नहीं है। अधिकतर लोग बेकार की पुस्तकें पढ़ते हैं जिनमें पृथ्वी पर अवतरित हुए अवतरणों के विषय में कोई विषय में बताया था कि इसमें भोजन के विषय स्पष्टीकरण नहीं होता अत: ईसामसीह को समझने के लिए देवीभागवत् पढ़ना आवश्यक है। ये वैज्ञानिक दृष्टि से सत्य नहीं हैं। ये कहना बात यदि आप ईसाइयों से कहेंगे तो वो आपको सुनना ही पसन्द नहीं करेंगे, क्योंकि उनके लिए तो बाइबल ही अन्तिम शब्द है। ऐसा कैसे हो सकता है? क्योंकि बाइबल में ईसामसीह के केवल चार वर्षों के जीवन का वर्णन है? उनके बारे में अन्य सभी धर्मग्रन्थों में लोग चुपके से प्रवेश कर गए, सभी धर्म ग्रन्थों में! मैंने आपको गीता के में बहुत सी गलत धारणाएं जोड़ दी गई हैं जो परन्तु असत्य है कि तमोगुणी लोग मांसाहारी होते हैं। अधिक मात्रा में प्रोटीन खाने वाले लोग तो स्वतः रज्केगुणी हो जाते हैं । तो उन्होंने इस बात को परिवर्तित करने का प्रयत्न कैसे किया? केवल इसलिए कि ऐसा कहना उनके अनुकूल था? परन्तु पुस्तकों में भी कुछ वर्णन तो होगा, इन पुस्तकों के गीता के आरम्भ में वो ऐसा न कर पाए क्योंकि प्रति भी हमें अपनी आँखें खोलकर स्वयं देखना उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, "कि होगा कि सच्चाई क्या है! हम यदि धर्म को आयोजित करना चाहते हैं तब आपको कहना पड़ता है कि यही चीज़ है। इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। क्योंकि कोई अन्य चीज़ यदि है तो आपकी संस्था पीछे की ओर धकेल दी जाती है। परन्तु ये बात सत्य नहीं है। इन लोगों का वध करो।" मैं पहले से ही इनका वध कर चुका हूँ, तुम किसका वध कर रहे हो? अत: केवल ब्राह्मणवाद की मोहर लगाने के लिए ही उन्होंने ऐसा किया बाइबल में गलतियाँ तब आईं जब सेंटपॉल, जिसे ईसामसीह के बारे में बिल्कुल कोई ज्ञान न था, ने इसमें प्रवेश किया। मैं नहीं समझ पाती कि वह बाइबल में कैसे घुसा? वो स्पष्ट वर्णन किया गया है, ये बात हम कुण्डलिनी तो आत्मसाक्षात्कारी भी न था, मात्र एक अतिचेतन में भी साबित कर सकते हैं कि उठते हुए कुण्डलिनी रोमन सिपाही था। अत्यन्त खराब रोमन सिपाही, क्योंकि देवीभागवत् में ईसामसीह का अत्यन्त 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-21.txt अक : 9 & 10| चैतन्य लहरी -2007 21 ये देखकर हैरान हो जाएंगे कि सभी देवी-देवताओं को भिन्न चक्रों पर स्थापित किया गया है और उन्हें बहुत से ईसाइयों की हत्या किया करता था । अचानक उन्होंने इस श्रीमान सेंटपॉल को बाइबल में ले लिया और आज पूरा विश्व बाइबल के माध्यम से उसे जागृत करना होगा। भारत में कभी-कभी मुझे ये दोष स्वीकार करता है। परन्तु यदि आप उसे पढ़ंगे तो दिया जाता है कि क्योंकि मैं ईसामसीह के विषय में बताती हूँ तो मैं ईसाईधर्म का प्रचार कर रही हूं और जब मैं इंग्लैण्ड में जाती हूँ तो वो कहते हैं श्रीकृष्ण के बारे में बता कर हिन्दूधर्म का प्रचार कर रही का नहीं। बाइबल में जो अध्याय उसने लिखे हैं हूँ। अब मैं यदि आपको बताऊ कि राधाजी ने उनमें वह वर्णन करता है- बहुत से लोगों को तो ईसामसीह का सृजन किया और आप यदि ईसामसीह को देखें तो उनकी उंगलियाँ (पहली और दूसरी) इस प्रकार (ऊपर की ओर उठी हुई) हैं समझने का प्रयत्न करें, दो उंगलियों का इस प्रकार उठा होना- एक श्रीकृष्ण की और एक श्री विष्णु की। और वो कहते हैं'परमपिता' (The Father)। इसामसीह हैं? ये श्री विष्णु हैं, श्रीकृष्ण। महाविष्णु के वर्णन में लिखा गया है कि स्वयं कर सकते हैं ? परन्तु यदि आप ईसाई हैं तो आपको श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र का पूजन किया और कहा, ये सबकुछ गले से उतार कर निगलना होता है "तुम्हीं इस ब्रह्माण्ड के आधार बनोगे और जो कोई भी मेरा पूजन करेगा उसका फल (तुम्हें प्राप्त होगा।" उन्होंने (श्रीकृष्ण ने) उन्हें (ईसामसीह) को कि ये क्या बेवकूफी है? ये श्रीमान पॉल कौन है? अपने से भी ऊँचा स्थान दिया। आप देख सकते हैं ये कहाँ से टपक पड़े? क्योंकि ये तो ईसामसीह की कि महाविष्णु का स्थान विशुद्धि चक्र से ऊपर है| वे ( ईसामसीह) वह द्वार हैं जिसके बीच में से निकलकर सभी को गुजरना है। उन्होंने (श्रीकृष्ण ने) उन्हें (ईसामसीह) विशेष रूप से आशीर्वादित किया और कहा तुम ब्रह्माण्ड का आधार बनगे। अब आप देखें कि श्री गणेश मूलाधार चक्र पर विराजमान हैं। मूलाधार चक्र अर्थात मूल का आश्रय, जान जाएंगे कि वह बिल्कुल भी आत्मसाक्षात्कारी नहीं था। वह अतिचेतन ढंग से बात करता है, वह तो एक आयोजन करने वाली मशीन है, किसी काम मैं पता ही नहीं चलेगा कि बाइबल के ये अध्याय श्रीमान पॉल ने स्वयं लिखे हैं- और ये श्रीमान पॉल ईसामसीह के शिष्यों का वर्णन अतिचेतन भूतों के रूप में करते हैं, पूर्णतः अतिचेतन लोगों की तरह से उन्होंने इतने अटपटे ढंग से आचरण किया कि सबको लगा कि वे पागल हैं ईसामसीह के शिष्यों के पिता कौन से इस प्रकार के व्यवहार की कल्पना क्या आप क क्योंकि यह बाइबल में लिखा हुआ है व्यक्ति यदि आत्म-साक्षात्कारी है तो वह प्रश्न करने लगता है तरह से बात भी नहीं करते! अत: हम सबके लिए यह समझने का समय आ गया है कि सभी धर्म एक हैं। ये एक ही जीवनसरिता के अंगप्रत्यंग हैं तथा सभी अवतरण एक दूसरे को आश्रय देते हैं, परस्पर एक दूसरे का पोषण करते हैं और एक दूसरे से प्रेम करते हैं । उनमें परस्पर पूर्ण सामंजस्य है। आप देखेंगे कि जड़ी का आश्रय। परन्तु ईसामसीह को फल के किसी भी प्रकार से, कभी भी, वे एक-दूसरे का विरोध नहीं करते। अतः यह बात भी प्रमाणित की आश्रय के रूप में स्थापित किया गया। तो उस बिन्दु पर भी वही चीज़ घूमती है और आज्ञा चक्र खुलने के बाद ही आप ईसामसीह के बारे में जान सकते हैं। जानी चाहिए और इसे आप केवल तभी प्रमाणित कर सकते हैं जब आपको कुण्डलिनी जागृत करने का ज्ञान हो। आप यदि आत्म-साक्षात्कारी हैं और को खोलती है केवल तभी, आज्ञा चक्र खुलता है। यदि आप कुण्डलिनी जागृत कर सकते हैं तो आप कुण्डलिनी जब ऊपर उठकर आज्ञा चक्र परन्तु मान लो यदि आप बहुत अधिक अहंवादी 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-22.txt अंक : 9 & 10 -2007 चैतन्य लहरी 22 ही ईसामसीह ने विशेष रूप से कहा था 'कि आप हूँ (Egoist) हैं, तो आप अपने आज्ञामार्ग को बहुत संकीर्ण कर देते हैं दो रस्सियाँ (अहं और प्रतिअहं) इस चक्र को इतना संकीर्ण कर देती हैं कि इसके परगमन (Adultry) नहीं करेंगे, मैं कहती आपकी दृष्टि भी अपवित्र नहीं होनी चाहिए।" कल्पना करें! उन्होंने दृष्टि की बात की क्योंकि इस स्थान पर वे ही आँखों का नियन्त्रण करते हैं परन्तु पश्चिम में एक भी ऐसे पुरुष या स्त्री को खोज पाना कठिन है जिसकी दृष्टि अपवित्र न हो। जो लोग ईसामसीह के पुष्प थे उनकी दृष्टि इतनी भयानक है कि समझ नहीं आती कि वो क्या कर रहे हैं। वो सब पागल हो जाएंगे। अपनी दृष्टि को सीधा नहीं रख सकते। हर समय उनकी आँखें इधर-उधर, अन्दर से कुछ भी नहीं गुजर सकता। आप यदि प्रतिअहंवादी (Superegoist), डरे हुए, किसी से दबे हुए व्यक्ति हैं तब भी ये चक्र इतना अधिक विकृत हो जाता है कि इसे खोला नहीं जा सकता। ऐसी स्थिति में इसे सन्तुलित करने के लिए हमें बाएं को उठाकर दाईं ओर डालना होता है, या दाएं को उठाकर बाईं ओर डालना होता है, आवश्यकतानुसार। और यह तकनीक आत्मसाक्षात्कार के पश्चात आप सहजयाग में समझ सकते हैं, अब नहीं। सन्तुलन स्थापित होने पर यह चक्र, 'आज्ञा चक्र' कुछ बेहतर हो जाता है क्योंकि अब इसमें देखते रहते हैं। परन्तु यह सब आनन्दविहीन है, ऐंठन (Twist) हुई कुण्डलिनी इस चक्र को पार कर पाती है। आप यदि सामान्य व्यक्ति है, अहं या प्रतिअहंवादी नहीं हैं, तब कुण्डलिनी को आज्ञा चक्र पार करने में कोई समस्या नहीं होती। परन्तु दिल्ली में, में जब से उधर-इधर मटकती रहती हैं। उनकी दृष्टि या तो वासनापूर्ण है या वे हमेशा किसी न किसी चीज़ को इसमें कोई आनन्द नहीं है। बिना किसी आनन्द के वे बस लोगों को देखे चले जाते हैं ! कम हो जाती है। केवल तभी उठती अत: ईसामसीह ने कहा, "आपकी दृष्टि भी अपवित्र नहीं होनी चाहिए।" ये बात ईसामसीह ने आदेश के रूप में कही, परन्तु किसी ने उनकी आज्ञा का पालन नहीं किया। इसके विपरीत, जैसे मैंने आपको बताया, मुसलमानों को शराब न पीने का आदेश दिया गया था, परन्तु मोहम्मद साहब को आई हूँ, सुबह से शाम तक में आज्ञा चक्र पर कार्य करने में लगी रहती हूँ। लोग अत्यन्त अहंवादी हैं। वो समझते हैं कि वही पूरे विश्व के शासक हैं। दिल्ली आज्ञा की समस्या से भरी पड़ी है। यहाँ पर इतने अहंकारी और दम्भी लोग हैं कि वो सोचते हैं चुनौती देने के लिए उन्होंने उमरखैय्याम से कविताएं कि पूरे विश्व का शासन उन्हीं के हाथों में है। यही लोग प्रशासनिक अधिकारी हैं और यही महान लोग लिखवानी शुरु कर दीं। ईसाईयों ने भी ऐसी गतिविधियों से ईसामसीह को चुनौती देनी आरम्भ कर दी जिनसे लोगों की अबोधिता नष्ट हो जाए, उनकी दृष्टि अपवित्र हो जाए और मस्तिष्क की सारी पवित्रता राजनीति तथा अन्य स्थानों में कर्ताधर्ता हैं। सभी अहंवादी हैं। ऐसे लोगों को आसानी से आत्मसाक्षात्कार समाप्त हो जाए। नहीं दिया जा सकता। पहले उनके अहंकार को नीचे लाना होगा। उन्हें परमात्मा के उच्चतम अस्तित्व को स्वीकार करना होगा, परमात्मा को भगवान तथा एक अन्य अतिशयता का भी आरम्भ हो गया जिसके बारे में ईसा ने बिल्कुल भी नहीं कहा था, में नहीं जानती किस प्रकार यह ईसाई धर्म में विश्व का वास्तविक शासक मानना होगा। केवल आ गई है। यह मठ (Nunnery) तथा ब्रह्मचारी और ब्रह्मचारिणियाँ बनाने की प्रथा है। आप किसी को भी ब्रह्मचारी और ब्रह्मचारिणी नहीं बना सकते। ये तो तभी यह कार्य हो पाएगा। लोग अपनी आँखों को इधर-उधर चलाकर, आँखों को मटकाकर, आज्ञाचक्र को बिगाड़ने का प्रयत्न करते हैं। कल्पना करें! 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-23.txt अंक : 9 & 10 -2007 23 चैतन्य लहरी करेंगे। हमें तो कष्ट उठाने हैं क्योंकि परमात्मा के लिए कष्ट उठाने आवश्यक हैं। अब भी ईसाई लोग यही मानने की मुर्खता करते हैं कि हमें कष्ट उठाने चाहिए। भारत के लोगों का भी यही मानना है कि उन्हें कष्ट उठाने चाहिए, एक अवस्था है जिसमें व्यक्ति को योगेश्वर श्रीकृष्ण की तरह से उन्नत होना होता है। इस सबके बावजूद भी वे ब्रह्मचारी थे ये तो मस्तिष्क की एक अवस्था जिसमें आप लिप्त नहीं होते। ये एक भिन्न बात है कि आप किसी पर ये धारणा लाद दें कि तुम्हें पूर्णत: ब्रह्मचारी या ब्रह्मचारिणी बनना चाहिए या उन्हें अविवाहित जीवन विताने के लिए मजबूर आएंगे तो उनमें हमें कर्मफल से मुक्त करने की करना। ईसामसीह ने ऐसा कभी नहीं कहा। उन्होंने शक्ति होगी और तब हमें कष्ट नहीं उठाने पड़ेंगे | विवाह नहीं किया क्योंकि आज्ञा चक्र को खोलकर उत्क्रान्ति कार्य सम्भव बनाने के महान कार्य को करने के लिए वे इस पृथ्वी पर अवतरित हुए थे । लेते हैं आपके अहं और प्रतिअहं को सन्तुलित इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वे क्रूसारोपित हुए। ऐसा करके उन्होंने आज्ञा चक्र के मार्ग को खोलना मुक्त कर देते हैं और इस प्रकार से आप स्वतन्त्र हो था और अपने पिता (परमात्मा) और अपनी माँ के जाते हैं। यह अत्यन्त महत्वपूर्ण बात हैं, जिसका आदेश से उन्होंने ये कार्य किया। यह कार्य उन्होंने किया। अत: जो लोग ब्रह्मचर्य की ये मूर्खता कर रहे कार्य उन्होंने किया- इन दो विकारों को दूर करने हैं, जो वास्तव में ब्रह्मचर्य है ही नहीं, क्योंकि के लिए स्वयं को आज्ञा चक्र पर स्थापित करना। मस्तिष्क से तो वे ब्रह्मचारी नहीं हैं। ब्रह्मचर्य तो कि महाबिष्णु अवतरित ्तु वो ये भी जानते वाले हैं और जब वो जब ईसामसीह आपके अन्दर जागृत होते हैं तो वास्तव में यही होता है। वे आपके कमों को सोख करके आपके कमों पापों और बन्धनों से आपको ज्ञान लोगों को होना आवश्यक है कि यही महान जब वे इन दोनों विकारों को दूर करते अपने कर्मों और पापों से ऊपर उठ जाते हैं। अत: हैं तब हम अन्दर से आना चाहिए, पावनता का उदय अन्दर होना आवश्यक है। इस प्रथा ने कैथोलिक मत में अपने पूर्व अपराधों और पापों की हमें चिन्ता नहीं समस्याएं उत्पन्न कीं। उन्होंने एक और प्रधा विकसित कर ली- पादरी के सम्मुख जाकर दोष स्वीकार करना। पादरी के सम्मुख जाकर दोष स्वीकार करना बिल्कुल ज्ञान न था और न ही उन्हें ईसामसीह की एक अन्य हास्यास्पद कार्य है। मैंने देखा है कि पादरी लोग आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं क्योंकि यदि वे आत्मसाक्षात्कारी होते तो .पादरीपन से भाग खड़े भारतीयों को भी अपनी संस्कृति का कोई ज्ञान न होते। तो लोग पादरी के पास जाकर दोष स्वीकार करते हैं, बिचारा पादरी पगला जाता है और दोषभाव नौकरियाँ दे देंगे इसलिए हमें ईसाई बन जाना के कारण स्वीकार करने वाले ब्यक्ति की बाई चाहिए। इस प्रकार नौकरियों के लालच में सभी विशुद्धि पकड़ जाती है। परमात्मा का ये बिल्कुल प्रकार के लोग ईसाई बन गए। वास्तव में उन्हें गलत पक्ष है- स्वयं को दोषी मानना, बिल्कुल भी करनी। परन्तु इन मिशनरी लोगों को, जो भारत में ईसाई धर्म सिखाने के लिए आए, महाविष्णु का समझ थी। अपने एक हाथ में बन्दूक और दूसरे हाथ में बाइबल पकड़कर वे आए और हम मूर्ख था, हमने भी कहा कि ठीक है, ये लोग हमें अच्छी बताया जाना चाहिए था कि महाविष्णु का जन्म हो चुका है। उन्होंने यदि देवीभागवत् पढ़ा होता और आवश्यक नहीं है। ईसामसीह के बाद कुछ ऐसे लोग भी थे उन्हें बताया गया होता कि महाविष्णु का जन्म हो जो ईसामसीह को मानते ही न थे, जैसे यहूदी। चुका है तो लोगों ने अपने करमों के फलस्वरूप कष्ट उन्होंने कहा कि हम ईसामसीह को स्वीकार नहीं उठाने का विचार त्याग दिया होता। तो भारतीय अभी 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-24.txt अक & 10. 24 चैतन्य लहरी कहते हैं, वे जीवन की सभी बाधाएं दूर करते हैं । आशीर्वादित होने के पश्चात् आप वास्तव में जान से भी सोचते हैं कि हमें कष्ट उठाने चाहिएं, उपवास करने चाहिएं, पैदल चलना चाहिए और स्वयं को समीप के पेड़ पर फाँसी लगा लेनी चाहिए। इसकी कोई आवश्यकता नहीं हैं। आपको केवल उस क्षण की प्रतीक्षा करनी है जब आपका आज्ञा चक्र खुल पाते हैं कि परमात्मा के आशीर्वाद देने के बहुत तरीके हैं। ये चमत्कारिक हैं, पूर्णत: चमत्कार। बहुत से सहजयोगी ये कहते हैं कि सहजयोग में उनके लिए चमत्कार का अर्थ ही समाप्त हो गया है। ये जाए। मध्य में बने रहें, जैसे महात्मा बुद्ध ने कहा था मध्य में बने रहें।' जब कुण्डलिनी उठेगी तो सभी एकत्र दोष दूर हो जाएंगे और आप मोक्ष प्राप्त कर सकेंगे। यह साधारण सा कार्य किया जाना था। इसकी अपेक्षा हम भारतीय मानते हैं कि हमें अवश्य कष्ट उठाने चाहिएं, अवश्य उपवास करने चाहिए! बात सत्य है। अत: व्यक्ति को समझना चाहिए कि परमात्मा हैं। वे केवल विद्यमान ही नहीं हैं, कार्य भी करते हैं। परमात्मा प्रेम करते हैं और हमसे आशा की जाती है कि उन्हें जानें आपने जो चाहे किया हो, चाहे जो गलतियाँ की हों, आपको परमात्मा से सहजयोग में परमात्मा के नाम पर आपको उपवास करने की आज्ञा नहीं है। आप चाहे तोा वैसे उपवास कर सकते हैं। यदि आपके पास धन नहीं है तो उपवास कर सकते हैं, या किसी और वजह से भी आप उपवास कर सकते हैं, एकरूप होना है क्योंकि वे आपके प्रेममय पिता हैं । वे ऐसे पिता हैं जो करुणा के सागर हैं। आपको करना केवल ये है कि इसकी याचना करनी है और जब कुण्डलिनी उठती है और आपका परमात्मा से तादात्म्य हो जाता है तो वे अपने पूरे साम्राज्य और अपनी पूरी शक्तियों का वरदान अपने सृजित किए गए बच्चों पर करना चाहते हैं। तो धर्म के विषय' में। परन्तु परमात्मा या अपने कर्मों के नाम पर नहीं। दूसरे, यहूदियों ने ईसा-मसीह को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया। यहूदियों ने कहा कि हम ईसामसीह को स्वीकार नहीं करेंगे, हमें तो कष्ट उठाने हैं, और ये अटपटे विचार कि आपने कष्ट उठाने हैं, तपस्या कष्ट भोगते रहे, भोगते रहे, भोगते रहे। उन्हें ठीक करने के लिए, उनके कष्टों को श्रीमान हिटलर मिल गए। हिटलर के बाद अब वे स्वयं भी हिटलर पूर्णत: सामान्य और प्रसन्नचित्त व्यक्ति बनना बनने लगे हैं। अत: कल्पना कीजिए कि किस प्रकार गलत धारणाएं आपको अति की सीमा तक ले जाती हैं और ऐसी धारणाओं, कि "हमें कष्ट उठाने हैं," के परिणाम स्वरूप कष्ट उठाने की उनकी करनी है या आपको ब्रह्मचारी बनना चाहिए, ये सभी हास्यास्पद धारणाएं त्याग देनी चाहिए। आपको परमात्मा ने आपके लिए इतना कुछ किया है, इतना कुछ बनाया है, ईसके बावजूद भी यदि आप दयनीय बनना चाहते हैं तो कोई क्या कर सकता है? जहाँ तक माँ का सम्बन्ध है, कभी जब आप उसे दण्डित करना चाहते हैं या माँ को नाराज़ करना चाहते हैं तब आप कहते है नहीं, मैं तो खाना नहीं खाऊंगा।" तो सहजयाग में उपवास की आज्ञा नहीं है। कम खाने के लिए या किसी अन्य चीज़ के लिए आपने उपवास करना है तो ठीक है। इसके लिए एक दो दिन से अधिक उपवास करने की चाहत को बल देने के लिए हिटलर उत्पन्न हुए। अब किसी को कष्ट नहीं उठाने। आपको अपनी कुण्डलिनी जागृति कार्यान्वित करनी है तथा स्वयं को अच्छी तरह से सहजयोग में स्थापित करना है। आपके सभी कष्ट दूर कर दिए जाएंगे। देवी का एक नाम "पापविमोचनी" है। वे आपके पापों को हर लेती हैं। श्री गणेश को हम "संकट विमोचन" 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-25.txt अंक : 9 & 10 चैतन्य लहरी 25 2007 को धड़कते हुए इस तालू पर हाथ रखने देना आपको जरूरत नहीं है। बहुत ही भयानक है। तालू ब्रह्मरन्ध्र है। यह मानव का महत्वपूर्णतम अवयव है । सभी को इस बारे में अत्यन्त सावधान रहना चाहिए कि कोई गलत व्यक्ति इसको न छुए। व्यक्ति को आत्मसाक्षात्कारी होना होता है, उसे जानना होता है कि उसे यह कार्य किस प्रकार करना है, अर्थात व्यक्ति को सहजयोगी इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि आज्ञा चक्र, जिसमें से सभी को गुजरना होता है, सबके लिए महत्वपूर्ण है और इसकी ठीक से पूजा होनी चाहिए और इसे स्वच्छ रखा जाना चाहिए। ऐसा करने के लिए आपको अपना चित्त स्वच्छ रखना आवश्यक है, आपका चित्त स्वच्छ होना चाहिए। बनना पड़ता है। जब आपके बच्चे जन्म लेते हैं तब भी आपको बहुत सावधान रहना होगा और बच्चे यदि आत्मसाक्षात्कारी हैं तो और अधिक सावधानी बरतनी होगी क्योंकि बच्चे यदि आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं तो उनकी प्रतिक्रिया इतनी तीव्र नहीं होती, परन्तु बच्चे यदि आत्मसाक्षात्कारी हैं तो वे गलत आदमी का हाथ रखना सहन नहीं कर पाते और चीखने-चिल्लाने लगते हैं । आपका चित्त यदि स्वच्छ नहीं है तो आज्ञा चक्र न होगा। तब आपको मतिभ्रम ठीक ( Hallucinations) हो जाएगा, आपमें गलत धारणाएं उत्पन्न होंगी और आप गलत बातें सोचेंगे। अत: यदि वास्तव में आप अपने जीवन का अर्थ समझना चाहते हैं, बास्तव में कुण्डलिनी जागृति चाहते हैं तो जान लें कि अभी तक जो भी कुछ आपने परमात्मा या अन्य चीजों के बारे में जाना है उसे सुधारना होगा, आपको स्वयं उसे पुन: देखना होगा कि यह कैसा है। बिना आज्ञा चक्र को पार किए अत: व्यक्ति को समझना चाहिए कि चाहे यह पारम्परिक प्रतीत होता हो फिर भी यह देखना चाहिए कि व्यक्ति को हानिकारक चौजें त्याग देनी आप बप्ताइज़ (आत्मसाक्षात्कारी) नहीं हो सकते। बपतिज्म की बातें करने वाले लोग जैसे चाहिए। अब वह समय आ गया है कि हम सबको वे सब चीजें त्याग देनी चाहिएं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए, हमारी आध्यात्मिक उत्क्रान्ति के लिए ठीक न हों। समय आ गया है। आप John The Baptist, वह बास्तव में आत्मसाक्षात्कारी थीं। उसने जब कुण्डलिनी उठाई और सिरपर पानी डाला तो वास्तव में लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया, यह बपतिज़्म (आत्मसाक्षात्कार) है। ईसाई अर्थात यदि इस बात को स्वीकार नहीं करते तो माँ आत्मसाक्षात्कारी। इसके विपरीत विलियम ब्लेक कहते हैं। "ए किया" आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के लिए यह सच होने के नाते मैं कह सकती हूँ कि मुझे तुम्हारी चिन्ता है। यह इससे भी अधिक है, आप अत्यन्त भयानक समय से गुजर रहे हैं। एक पादरी ने मुझे सिर पर अभिशष्त है। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के सिर पर यदि कोई ऐसा पादरी हाथ रखे जो साक्षात्कारी न हो और जिसे जाए तो इसका अर्थ ये है कि निश्चित रूप से यह कार्य करने का अधिकार न हो तो बच्चे समस्याओं में फँस जाते हैं। मैंने बहुत से होने पर व्यक्ति को आँखे खुली रहते हुए भी आत्मसाक्षात्कारी बच्चों को देखा है जिन्हें इस तरह से समस्याएं हुई। उनकी आँखें भेंगी हो गईं, वे है इसका कारण ये है कि देवी या परमात्मा के बारे अजीबोगरीब हो गए, उनके मस्तिष्क विकृत हो गए और हमें उन्हें ठीक करना पड़ा। अतः हर व्यक्ति शरीर में आ जाते हैं। ऐसा कैसे हो सकता है? ये भी यदि पीछे का आज्ञा चक्र खराब हो आप भूतबाधित हैं पीछे का आज्ञा चक्र खराब अंधापन हो सकता है। भारत में ये समस्या आम में हमारे अत्यन्त अटपटे विचार हैं कि ये मानव के 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-26.txt अंक : 9 & 10 -2007 चैतन्य लहरी 26 'मैं क्षमा करता हूँ।' ईसामसीह ने हमें यह बहुत बड़ा हथियार प्रदान किया है। आप केवल इतना कहें कि "मैं क्षमा करता हूँ, मैं क्षमा करता हूँ, वही बात है- अतिचेतन होगा। (Supra Conscious Business)। हर समय अभद्र शब्दों का उपयोग करने वाली नौकरानी, जिसे न तो स्वच्छता का विवेक है और न ही पावनता का, वह एकदम से और आप अपने अहं की समस्या पर काबू पा उत्तेजित होकर "हो हो हो" करने लगती है और लेंगे। यह मन्त्र सामने के आज्ञा चक्र के लिए है, किए चली जाती है। और महाराष्ट्र में ये आम बात है कि सभी महिलाएं जाकर उस नौकरानी के पैर पड़ती हैं। "देवी आ गई है, देवी आ गई है!" और वे उसके पैरों में गिरते हैं तथा अन्तत: पकड़ जाते यहाँ आप कहते हैं, 'मैं क्षमा करता हूँ, मैं क्षमा करता हूँ,' और आप पाएंगे कि आपका आज्ञा चक्र खुल गया है तथा आपका अहं भी चला गया है। क्षमा मानव को प्राप्त हुआ सबसे बड़ा हथियार है परन्तु वे इतने मूर्ख हैं कि क्षमा करने के लिए भी उन्हें बार-बार कहना पड़ता है? क्षमा न करने की कौन सी बात हैं? मैं कहती हूँ इसमें क्या कठिनाई है, आप क्या कर रहे हैं? 'मैं क्षमा करता हूँ,' कहते हुए क्या आपको कुछ करना पड़ता है? क्या आप कुछ कहते हैं? कुछ नहीं। इसके विपरीत हैं, उस आत्मा की पकड़ में आ जाते हैं। हाल ही में मेरे पास एक बहुत बिगड़ा हुआ मामला आया, एक व्यक्ति मेरे पास आया और कहने लगा कि उसे मजबूरन अपनी भाभी के पैर पकड़ने पड़ते हैं क्योंकि वह देवी है। मैंने कहा, "क्यों?" क्योंकि उसे दौरा पड़ता है। मैंने कहा कि यदि तुम उसे देवी मानते हो और उसके पैर छूना चाहते तो पुनः मेरे जब आप क्षमा नहीं करते तब वह वास्तव में आपको सता रहा होता है, जबकि आप उस व्यक्ति पास मत आना। वह व्यक्ति पूरी तरह से अन्धा हो गया, पूरी तरह से! पूरी तरह अन्धा होकर वह मेरे को नहीं सता रहे होते। अत: सामने के आज्ञा चक्र का ये मन्त्र है और पीछे की आज्ञा को ठीक करने के लिए जैसा मैंने आपको बताया, आपको दीपक से आरती करनी होती है। अब कुछ लोग एक अब सहजयोग में आप कैसे करते हैं? दिन ऐसा करेंगे या दो दिन करेंगे परन्तु सहजयोग आपके पास फोटोग्राफ है, इसका उपयोग करें। कार्यान्वित करने का यह तरीका नहीं है। आपको पास आया और तब हमें उसका आज्ञा चक्र ठीक करना पड़ा। इसके सम्मुख दीपक जलाएं। दीपक (प्रकाश) के माध्यम से आप अपने आज्ञा चक्र ठीक कर सकते हैं। जी जान से इस पर जुट जाना होगा। मैंने ऐसे लोग देखे हैं जिनकी आँखें इस प्रकार से झुक गईं थीं कि वे अपनी आँखें ऊपर की ओर उठा भी न हमेशा प्रकाश, सूर्य, क्योंकि ईसामसीह का निवास सूर्य में है। अत: आपको करना ये है कि सकते थे, परन्तु ऐसा करने पर अब उनकी आँखें सामने के आज्ञा चक्र के सम्मुख दीपक रखें पूरी तरह से खुल गई हैं। यह विधि बहुत सहज है। और एक दीपक पीछे के आज्ञा चक्र के पीछे और पीछे के आज्ञा चक्र को उस दीपक से होती है, स्वाधिष्ठान चक्र जब खराब हो जाता है, आरती दें। यहाँ (पीछे की आज्ञा) महागणपति और इसकी अभिव्यक्ति भी यहाँ पीछे है- यह पीछे की महाभैरव का स्थान है। अतः पीछे के आज्ञा की हमारी आँखों में एक अन्य चीज भी घटित आज्ञा के चहूँ ओर है। व्यक्ति को जब शक्कर रोग या ऐसा ही कुछ और हो तो लोग अन्धे होने लगते आरती करें और आज्ञा चक्र खुल जाएगा। इस प्रकार आप इसे खोलें? अत्यन्त सहज तरीका ये है कि हैं क्योंकि पीछे की आज्ञा के चहूँ ओर विद्यमान जब भी कोई विचार आए तो आपको कहना चाहिए, स्वाधिष्ठान चक्र अपने आस-पास के आज्ञा क्षेत्र 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-27.txt अंक : 9 & 10 -2007 27 चैतन्य लहरी कारण से हमारे यहाँ सहजयोग के लिए उपयुक्त लोगों की संख्या अन्य देशों से कहीं अधिक है। क्योंकि अन्य देशों के लोग बन्धनग्रस्त हैं। यह बहुत को दबाता चला जाता है, इस पर अत्याचार करता है और इस केन्द्र को अधिक गतिशील कर देता है तथा परिणामस्वरूप आँखें देख नहीं पातीं। इनमें प्रकाश नहीं रहता। लोगों की आँखें खुली होती हैं बड़ा वरदान है। उदाहरण के रूप में साईनाथ गुरु फिर भी उनके सम्मुख अन्धकार होता है। आपने सिद्धान्त के अन्तिम अवतरण थे। वे मुसलमान थे परन्तु उनके सभी शिष्य हिन्दू हें, वे मुसलमान नहीं हैं। मुसलमान तो उन्हें परमात्मा भी नहीं मानते। करके सर्वप्रथम अपना शक्कर रोग ठीक करें। पीछे केवल इतना ही नहीं, हाजीमलंग नाम का एक अन्य स्थान है। जहाँ एक मुसलमान सन्त की मृत्यु हुई थी। परन्तु वे कह कर गए थे कि केवल ब्राह्मण अर्थात आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति ही मेरी पूजा करेंगे। और उन्हें ब्राह्मण नियुक्त करने पड़े। परन्तु ब्राह्मण शब्द का अर्थ उन्होंने नहीं समझा। वे हिन्दू हैं जो मुसलमान पीर की पूजा कर रहे हैं! इसका कारण ये है कि एक बार पीर बनने के पश्चात्, बहुत से शक्कर रोगियों को इस प्रकार अन्धा होते हुए देखा है। अत: अपने स्वाधिष्टठान को ठीक की ओर अपने स्वाधिष्ठान के आस-पास आप बर्फ का प्रयोग भी कर सकते हैं। परन्तु सर्वप्रथम यदि आप अपना स्वाधिष्ठान ठीक कर लें तो आपको पहले से बेहतर लगेगा। अतः सामने की आज्ञा का इलाज प्रकाश (दीपक) है और पीछे आज्ञा का जल। पानी या प्रकाश को अपनी पसंद के अनुसार उपयोग करना बेहतर होगा। क्योंकि यदि स्वाधिष्ठान की समस्या है तो आपको जल का आत्मसाक्षात्कार पा लेने के पश्चात् व्यक्ति का उपयोग करना होगा परन्तु यदि केवल भूतबाधा है कोई धर्म नहीं रह जाता। वह धर्मातीत हो जाता तो, यदि शक्कर रोग नहीं है, तो भूतंबाधा ठीक करने है, वही धर्म बन जाता है। उसके लिए कोई बन्धन नहीं रह जाता क्योंकि बूँद समुद्र में मिल के लिए आपको कंवल प्रकाश का उपयोग करना होगा। गई है, अब वह समुद्र बन गयी है और सागर की कोई सीमा नहीं होती। ऐसे व्यक्ति ने भी इस प्रकार से हम आज्ञा चक्र को ठीक करते हैं। | ईसामसीह ने भी कहा है,"मैं प्रकाश हूँ" मैं ही मार्ग हूँ।" क्योंकि वे ओंकार हैं। वे मार्ग हैं क्योंकि सभी सीमाएं पार कर ली होती हैं इसलिए और द्वार भी वही हैं। वही वह द्वार हैं जिसमें से हर व्यक्ति को गुज़रना होगा। उन्होंने कभी झूठ नहीं बोला, फिर भी उन्हें क्रूसारोपित कर दिया गया। उन्हें क्रूसारोपित कर दिया गया। इस देश में, सौभाग्य से कोई आयोजित धर्म नहीं है, इसके लिए आप अपने सितारों को धन्यवाद दें। यदि यहाँ पर कोई तो मुझे बहुत तेज़ चैतन्य लहरियाँ महसूस हुईं। मैंने आयोजित धर्म होता तो आप सहजयोग न अपना पाते क्योंकि आयोजित धर्म के अनुरूप आपको एक हम इसी चीज़ में वह इनसे ऊपर उठ जाता है। विश्वास करते हैं कि व्यक्ति यदि पीर है, वह यदि आत्मसाक्षात्कारी है तो वह आत्मसाक्षात्कारी है। एक बार मैं एक छोटे से गाँव में गई इसका नाम था 'मियाँ की टेकड़ी।' ज्यों ही मैंने गाँव में कदम रखा पूछा, "यहाँ कौन सा महान सन्त रहता था?" उन्होंने बताया कि यहाँ एक मुसलमान पौर रहता था। मैंने कहा, "जो भी हो वह सन्त था।" वहाँ बैठकर जब में प्रवचन दे रही थी, आप फोटो देखेंगे, मेरे सिर के ऊपर सात बार प्रकाश आया, सातवीं ही व्यक्ति में विश्वास करना पड़ता है, मानों उसका किसी और से कोई सम्बन्ध ही न हो, मानो बही अकेला हवा में लटक रहा हो और इसका किसी अन्य से कोई लेना देना न हो। अतः परमात्मा के बार मेंने अपना हाथ ऐसे किया परन्तु किसी ने इसे देखा नहीं, केवल मैं जानती थी मैं जानती थी कि शुक्रगुज़ार हों कि इस देश में ऐसा नहीं हुआ! इसी 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-28.txt अंक : 9 & 10 चैतन्य लहरी 28 2007 ये वहाँ पर है, मैं इसके साथ हँस रही थी। लोगों ने शिक्षा देने या सहजयोग के विषय में प्रवचन जब फोटो लिए तो इसकी तस्वीर ले पाए। तो ये देने का प्रयत्न करता है तो उसे बाहर फेंक दिया जाता है क्योंकि यहाँ केन्द्रापसारी रही हैं। ये किसी व्यक्ति में प्रवेश नहीं करते, ( centrifugal) और केन्द्राभिसारी (centripetal ), दोनों शक्तियाँ कार्यरत हैं। एक के द्वारा आप अन्दर को आते हैं और दूसरी शक्ति से गुलेल से निकले पत्थर की तरह से आपको बाहर करते हैं । कभी वे आपको बाधित करने, सम्मोहित फेंक दिया जाता है। यहाँ कोई भी बहुत बड़ा समूह बनाने के लिए उत्सुक नहीं है। समूह यदि बहुत बड़ा होगा तो अच्छी बात है, क्योंकि हम अधिक से अधिक लोगों की रक्षा करना चाहते हैं। आत्मसाक्षात्कारी आत्माएं सर्वत्र हैं और सहायता कर आपको परेशान नहीं करते, ठीक मार्ग पर आपका पथप्रदर्शन करते हैं । अपने देवदूत लाकर ठीक मार्ग तथा ठीक परिणामों तक आने में वे आपकी सहायता करने या जीवन के गलत रास्ते पर ले जाने का प्रयत्न नहीं करते। अब जब आप आत्मसाक्षात्कारी हैं तो आपको भलीभाँति समझना होगा कि सच्चाई क्या है। समझते चले जाएं, आत्मसात करने का प्रयत्न करें। क्योंकि आप किसी अन्य संस्था से जुड़े परन्तु कोई आपको मजबूर नहीं करंगा, कोई भी इसके लिए सस्ते ढंग का सर्कस नहीं बनाएगा। यहाँ लोगों की इच्छा है, जिन्हें आना है आएं, किसी को हुए हैं, इस आधार पर इसे त्यागने का प्रयत्न न करें। सहजयोग में कोई संस्था नहीं है। ये बात आप भली-भाँति जानते हैं। सहजयोग में कोई धड़े (Group) मजबूर नहीं किया जा सकता। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के लिए किसी को भी विवश नहीं किया जा नहीं हैं। कोई सदस्यता नहीं है। परन्तु यह एक जीवन्त संस्था है । यह जीवन्त संस्था है । यहाँ कुछ भी घटित होता है तो पूरे शरीर को इसका पता चलता है। इस शरीर के लिए आपको कोई लिखित सकता। तो आज आज्ञा चक्र के विषय में मेंने यह सब आपको बताया है। आज्ञा चक्र के विषय में मैंने इंग्लैण्ड और अमेरिका में भी बहुत बार बताया तथा आयोजन करने की आवश्यकता नहीं है। इसी प्रकार से सहजयोग भी कार्यान्वित होता है कुछ चर्चो आदि ने कई बार मेरा विरोध भी किया। परन्तु में सोचती हूँ कि यदि वे अधिक समय तक परन्तु फिर भी मैं कहूँगी कि जैसे हमारे बने रहना चाहते हैं तो बेहतर होगा 'सत्य' को अपना लें और जान लें कि अभी तक जो ज्ञान उन्होंने पाया है वह अधूरा है । उन्हें यह ज्ञान पूरी तरह से जानना होगा। ईसामसीह बहुत अधिक न बता पाए और जो कुछ भी उन्होंने बताया उसे उनके शिष्यों ने वैसे लिखा जैसे वे समझ पाए। ईसामसीह को समझने के लिए आपको आत्मसाक्षात्कार लेना शरीर में भिन्न प्रकार की संवेदन प्रणालियाँ हैं इसी प्रकार से सहजयोग में भी हैं। सहजयोग में नए-नए आए लोगों के सम्मुख उस सत्य की अभिव्यक्ति नहीं की जाती जिसे वे सहन नहीं कर सकते। सूझ-बूझ की एक निश्चित रेखा पार करने के ' कहते हैं. , जिसे हम 'निर्विचार समाधिस्थ पश्चात्, उन्हें नए आयामों और धारणाओं में प्रवेश करने की विशेष सुविधाएं दी जाती हैं परन्तु आन्तरिक वृत्त के लोग वो हैं जो निर्विकल्प हैं, ऐसे लोगों को सहजयोग सिखाने के लिए चुना जाता है। द्वितीय अवस्था का कोई व्यक्ति यदि सहजयोग की आवश्यक है। परमात्मा आपको धन्य करें। निर्मला योग- 1983 (रूपान्तरित) 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-29.txt ईसा मसीह जन्मदिवस पूर्व स-्ध्या पुणे- 24-12-1982 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन केवल मूर्खता है। सभी प्रकार के मूर्ख लोगों की रचना की गई। पूर्णतया उन्हें ईसामसीह से कुछ नहीं लेना- देना, उन्हें परमात्मा से कुछ नहीं लेना-देना। परमेश्वरी जीवन (दिव्य जीवन) का उन्हें बिल्कुल ज्ञान नहीं है। उनकी दृष्टि में लोगों को कुछ कार्य करने से रोकना मात्र ही धर्म है। और इस सोच ने ईसा मसीह का जन्मोत्सव मनाना आरम्भ करने से पूर्व हमें थोड़ा सा पुनर्वलोकन करना होगा कि उनके जन्म के पश्चात् हमने ऐसा क्या किया कि हम इस बात को समझ सकें कि उनसे सम्बन्धित होकर हम किस स्तर पर खड़े हैं। क्योंकि वे एक कुँवारी के पुत्र थे, इस कारण से उनके नाम पर किसी भी प्रकार का दाग नहीं लगना चाहिए। पश्चिम को इतने अंधकार में फँसा दिया कि वहाँ क्योंकि उन्होंने हमारे लिए आज्ञा चक्र की चेतना का पर बहुत अधिक गति से और अत्यन्त विशाल स्तर पर सहजयोग को कार्यान्वित करना होगा अन्यथा महानतम कार्य करना था जिससे हमारे सारे पाप, हमारे सारे बन्धन और हमारा सारा अहं सोखा जा सके- उसका शोषण किया जा सके। हमारे अन्दर आप आर्कबिशप, बिशप और पोप की भयानक धारणाओं पर काबू नहीं पा सकेंगे। दूसरा पक्ष 'अहं है। श्रीमान फ्रॉयड जैसे लोग आए और उन्होंने लोगों में पूर्णतः परमात्मा विरोधी विचार भर दिए, पूर्णत: परमात्मा विरोधी। ये माँ के विरुद्ध है, बेटे के विरुद्ध है, 'पूर्णतः हास्यास्मद है। ये परमात्मा विरोधी आसुरी विचार घुस गए और लोग कहने लगे, "क्या बुराई है? ये सब बन्धन हैं, हमें सब बन्धन तोड़ फेंकने चाहिए।" अत: वे सब धारणाओं के कारण बहुत अधिक बन्धन हैं जिन्होंने अहंलोलुप बन गए। और यह दूसरा पक्ष है जिसे हमारे प्रतिअहं में ऐसे भयंकर बन्धनों का सृजन कर ईसामसीह को कार्यान्वित करना पड़ा। तो मेरे कहने का अभिप्राय ये है कि पश्चिम में ईसामसीह के स्थापित होने के पश्चात् भी उन्होंने भरसक प्रयत्न में अटके हैं। मेरे सामने बैठकर भी मैं देखती हूँ किया कि आज्ञा चक्र खोले जाने के मार्ग में हर सम्भव बाधा खड़ी की जाए। इसके बावजूद भी, में महान कार्य को करने के लिए इस महान व्यक्तित्व का सृजन किया गया परन्तु दुर्भाग्यवश हमने अपने अन्दर इन दोनों संस्थाओं (अहं और प्रतिअहं) को इस कदर बिगाड़ लिया है कि ईसाईयों को आत्म साक्षात्कार देना कठिनतम कार्य है। एक ओर तो हमारे अन्दर, जैसा आप जानते हैं, कैथोलिक मत और ईसाई धर्म की अन्य दिया है जो चट्टान की तरह से कठोर हैं तथा जो लोग कैथोलिक चर्चा से जुड़े हुए थे वे अब भी इसी हुए कि उनकी आँखें झपकती रहती हैं और उनकी आज्ञा सीधी नहीं है। यदि हमने वास्तव में सहजयोग देखती हूँ कि पश्चिमी सहजयोगी अब भी ईसाई को प्राप्त करना है तो आपको ये बन्धन पूर्णतः मत से जुड़े हुए हैं, ईसा से नहीं। अभी तक भी आपके अन्दर ईसाई धर्म लटक रहा है, और इसको त्यागने होंगे। हम उस सीमा तक गए कि हमने संस्थाएं बनाने का प्रयत्न किया- निःसन्देह हमने निकाल फेंकना होगा परन्तु भारतीय लोग सभी धन एकत्र किया, इसके बारे में कोई सन्देह नहीं है, मूर्खतापूर्ण विचारों को त्यागने में बहुत अच्छे हैं क्योंकि हमारे देश में सभी मामलों में बहुत सी बहुत सा धन- पादरी पद और आर्कबिशप पद आदि का सभी प्रकार का नाटक किया और ये सब चुनौतियों का सामना करना पड़ा। बन्धनों (प्रतिअहं) 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-30.txt अंक : 9 & I0 -2007 30 चैतन्य लहरी के मामले में भी हमें चुनौतियाँ मिलीं और अहं के सर्वप्रथम तो वे पावनतम (Holiest of Holy) थे। मामले में भी चुनौतियाँ मिलीं। अत: लोग इस प्रकार के त्याग के आदि हो गए। परन्तु पश्चिम में अब भी हम ईसाइयत की मूर्खता से जुड़े हुए हैं। मुझ पर विश्वास रखें क्रि इसका ईसामसीह से कोई लेना-देना वर्णित मूर्खताएँ करते हैं, छठे दिन ईसाइयत की बातें नहीं है और ये धर्मान्धता, जो अब भी आपके मस्तिष्क में बनी हुई है, इसका त्याग आवश्यक है। उन्हें क्या अधिकार है? मेरा अभिप्राय ये है कि अन्यथा आप ईसामसीह के साथ न्याय नहीं करते। कैसे वे स्वयं को ईसाई कह सकते हैं- किस इसका अर्थ ये बिल्कुल भी नहीं है कि आप कोई अन्य धर्म जैसे हिन्दू धर्म या जैन धर्म आदि कोई जाने को कहा, क्योंकि वे असलियत को नहीं अन्य मूर्खता अपनाएं। ईसाईधर्म का सार, इसका तत्व ईसामसीह हैं। इन सारी मूर्खतापूर्ण चीज़ों ने इस मूर्खतापूर्ण धारणाओं के कारण हम पावनतम व्यक्तित्व सार को इतने जोर से आच्छादित कर लिया है कि आपको अपने शब्दकोश और अपने मस्तिष्क से ईसाइयत नाम का शब्द पूर्णतः निकाल फेंकना होगा। अन्यथा आप कभी भी सारतत्व तक नहीं पहुंच उदासीन बना दिया कि हमने दूसरा पक्ष अपना इस अवस्था को आप स्वीकार करें। फ्रॉयड की मूर्खता से इसका कोई लेना-देना नहीं है। स्वयं को ईसाई कहने वाले लोग सप्ताह में पाँच दिन फ्रॉयड करते हैं और सातवें दिन चर्च जाते हैं। वहाँ जाने का मापदण्ड से? भारतीय लोगों ने उन्हें वहाँ से चले समझते। इतना मूर्खतापूर्ण, इतना गन्दा! अपनी को इतने निम्न स्तर पर खींच लाए अत: व्यक्ति को समझना होगा कि कैथोलिक धर्म के इन बन्धनों ने हमें स्वयं के प्रति इतना सकेंगे। यह सत्य है, मेरी बात पर विश्वास करें। लिया जो इससे भी खराब है, बन्धनों से भी कहीं अधिक बुरा है। सुबह परन्तु आज भी लोगों का चित्त इसी बात पर है कि 'ईसामसीह' ने क्या कहा था या 'माँ मेरी' हैं से शाम तक आप इन्हीं लोगों से मिलते जुलते हैं, वे या तो फ्रॉयड के अनुयायी या फिर तथाकथित ईसाई, आत्म-साक्षात्कार के ने क्या कहा था, और यह सब इन धूर्त लोगों के पश्चात् भी! परन्तु आपको समझ लेना चाहिए कि आप विशेष लोग हैं आप उनसे ऊपर हैं, उनसे ऊपर उठ गए हैं। ईसामसीह जागृत हो उठे हैं। अत: उनके प्रति न्याय करने के लिए आरम्भ में आपको ईसाइयत के सभी बन्धनों से ऊपर उठना होगा यदि ये बन्धन अब भी आपमें बने हुए हैं, और यदि आप फ्रॉयड के अनुयायी रहे हों तो इस भयानक व्यक्ति से मुक्ति पा लें। वह पूर्णतः ईसाविरोधी था। रोगी, रोगी रोगी। मैं तो यहाँ तक कहूंगी कि हमारा फ्रॉयड के विचारों से कोई सरोकार नहीं है। मुझ पर विश्वास रखें। किसी भी कारण से, किसी भी बिन्दु पर, हमें उसे न्यायसंगत नहीं ठहराना। बन्धनों के कारण जो उदासीनता लोगों में विकसित हो गई थी, माध्यम से हम तक आया है। अत: अन्य देवी देवताओं और अवतरणों के बारे में जानने के लिए हम तटस्थ हो जाते हैं। देवी-देवताओं, जैसे श्री गणेश के बारे में जानकर हमें चित्त को बहुत अधिक तटस्थ (Neutralise) करने का प्रयत्न करना चाहिए। आप यदि श्री गणेश की बात करें तो वे ईसामसीह का सार हैं। आप इस बात को समझें| गणेश ईसामसीह का सार हैं श्री गणेश की शक्तियों की अभिव्यक्ति हैं चीजों के और ईसामसीह सारतत्व पर यदि आप जाएं तो बेहतर है। निःसन्देह ईसामसीह हैं परन्तु हम उन्हें वैसे देखें तो सही जैसे वो हैं! इस दृष्टि से उन्हें बहुत कम लोगों ने देखा है, परन्तु अब सहजयोग में आपको चाहिए कि उन्हें उनकी असलियत में देखें- वास्तव में जैसे वे थे। उसका उसने पूरा लाभ उठाया। तब उसने ये सारी 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-31.txt चैतन्य लहरी अक : 9 & 10 -2007 31 फ्रॉयड आए और अपनी ही शैली आरम्भ कर दी। कहानियाँ घड़ीं क्योंकि वह स्वयं इतना अधम व्यक्ति था जिसे किसी भी मापदण्ड से 'मानव' नहीं माना जा सकता। ईसामसीह मानव के लिए अवतरित हुए, हैं क्योंकि हम जानते हैं कि उत्क्रान्ति का केवल ऐसे निकृष्टतम लोगों के लिए नहीं। मेरे विचार से यही एक मार्ग है। इसके लिए विवश नहीं किया तो कोढी भी उससे बेहतर हैं। 'भयानक ! उसकी सारी चीज़ों के बारे में सोचने मात्र से मुझे मतली होती है, ये इतनी अपवित्र हैं! अत: व्यवहारिक जीवन में हमें ये समझना होगा कि हमारा इन श्रीमान फ्रॉयड से कोई सरोकार नहीं है। वह कचरा है, घिनौनापन है। पूर्णतः निकृष्ट व्यक्ति है। हमें न तो बढ़ाते हैं। इसी कारण से आत्मसाक्षात्कार से आपको उससे कुछ सीखना है और न ही उसके विचारों से। हम सबके लिए परमेश्वरी नियम आवश्यक जाता। स्वेच्छा से स्वीकार करना कि हमें उत्क्रान्ति प्राप्त करनी है इसलिए हमें ठीक होना होगा। इसलिए सहजयोग में कोई बन्धन नहीं है तथा इस प्रकार से हम सुधरते हैं। इसी प्रकार से हम आगे बढ़ते हैं, स्थिति को स्वीकार करके इसके साथ आगे कदम वह शक्ति प्राप्त होनी चाहिए कि अपने मस्तिष्क में ईसाविरोधी गतिविधि से आप युद्ध कर सकें। 'आपको इसका दूसरा पक्ष चर्च के बन्धन हैं, अब भी बहुत से सहजयोगी इसके कारण भ्रमित हैं। यदि आपने ईसाईयों (तथाकथित) को बचाना है तो हूँ। आपको केवल अपना ही सामना नहीं करना निश्चित रूप से उन्हें इन बन्धनों से मुक्त करना अपना सामना करना होगा, में यही बात कह रही होगा अपने आस-पास के तथाकथित समाज का भी और स्वयं देखना होगा कि ये सामना करना होगा। सभी बन्धन और ईसाविरोंधी गतिविधियाँ, जिनमें आप लिप्त हैं, ये आपकी बढ़ोतरी और उत्क्रान्ति में होगा सौभाग्यवश हमारे यहाँ एक व्यक्ति इन चीज़ों के बारे में शोध प्रबन्ध लिख रहे हैं कि किस प्रकार से ऐसी चीजें समाज के लिए भयानक हैं। परन्तु अब भी कोई ये महसूस नहीं करता कि ये ईसाविरोधी पूर्णत: बाधक हैं। और क्योंकि आप विशिष्ट लोग हैं गतिविधि है- बन्धनों में फँसना। यह ईसाविरोधी जिन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है, आपको स्वयं गतिविधि है। ईसा इस पृथ्वी पर अवतरित हुए जहाँ मोज़िज़ ने धर्म की परिभाषाएं बताई और उनके बाद बहुत से लोगों ने ये कार्य किया। मोजिज ने सोचा कि लोग सन्तुलन में आएंगे और वो उन्हें ईसामसीह मौन हो जाते हैं, वो बातचीत नहीं करते परन्तु बन्धन के पुनर्जन्म और उत्थान का सन्देश देंगे। इस प्रकार से वे पृथ्वी पर अवतरित हुए परन्तु लोगों ने तो बहुत अधिक बोलते हैं, अपनी बातों से अन्य लोगों शैरियत से भी बदतर चीजें बना लीं। शैरियत के प्रति बहत आक्रामक होते हैं और उनमें अहंकार बाइबल में है, वो सभी नियम बाइबल में हैं जिनमें बहुत बढ़ता है। अत: व्यक्ति को साक्षी अवस्था में कहा गया है कि कोई अगर ऐसा करे तो उसकी होना चाहिए अर्थात जब आवश्यकता हो तो बोले हत्या कर दी जानी चाहिए, कोई यदि फलां कार्य से तर्क करके उचित परिणामों तक पहुँचना होगा। दूसरे लोगों से बहस करने का कोई लाभ नहीं है। जैसे आप जानते हैं, बन्धनों के कारण लोग उनके अन्दर बढ़ रहे होते हैं। अहम् के कारण लोग और जहाँ चुप रहना हो चुप रहे। यह विशुद्धि के स्तर पर है। आज्ञा के स्तर पर आपको भद्देपन, अपवित्रता और गन्दगी से घुणा करनी होगी। क्योंकि अब आपमें एक नई संवेदना बिकसित हो गई है- पावनता और मंगलमयता की संवेदना। अपने अन्दर करें तो उसका सिर काट दिया जाना चाहिए। बाइबल में ये सब है । मुसलमान लोग जो कुछ भी कर रहे हैं वह सब बाइबल में है। बाइबल में मिलता है। अत: इन सबको निष्प्रभावित करने के लिए श्रीमान 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-32.txt अंक 9 & 10 2007 32 चैतन्य लहरी मिल सकती है तो विवाह कर लो, उनकी शादी हो गई, तब वह कहने लगा कि उसकी पत्नी को उसके साथ इंग्लैण्ड आना ही चाहिए। वह उसे ले आया। मैंने अनदेखा करने का प्रयत्न किया, उसे सावधान रहने के लिए कहा। फिर उनके पासपोर्ट गुम हो गए, उसका पासपोर्ट मिल गया परन्तु पत्नी का नहीं मिला। फिर भी वह मेरी जान के पीछे पड़ यह मंगलमयता बढ़ाने का प्रयत्न करें। मैं पाती हूँ कि लोग आसानी से नकारात्मक लोगों से जुड़ जाते हैं। उनका नकारात्मक लोगों से एकरूप हो जाना आम बात है और वो सोचते है कि वे हमदर्दी कर रहे हैं, सहानुभूति दर्शा रहे हैं! हो सकता है आपकी बहन हो, भाई हो, माँ हो, बीवी हो, या बच्चा। कोई भी हो सकता है। परन्तु ऐसे लोगों से लिप्त होकर आप वास्तव में उस व्यक्ति को हानि पहुँचाते हैं, वह व्यक्ति तो नर्क में जाएगा ही, उसके साथ आप भी नर्क में जाएंगे। अत: आप किसी का हित करना चाहते हैं तो सर्वोत्तम उपाय ये है कि उससे लिप्त न हों और उसे बता दें कि ये ईसाविरोधी गतिविधि याँ हैं। ऐसी सामूहिकता के साथ जुड़ें जो पावन कार्य कर रही हो और ये बात समझें कि ऐसे समूह के साथ जुड़ने में ही शक्ति निहित है, न कि किसी एक नकारात्मक व्यक्ति से जुड़ने में। गया और श्रीवास्तव साहब से कहकर किसी तरह से पासपोर्ट बनवाने के लिए विवश करने लगा। पासपोर्ट मिलना ही चाहिए। मैने कहा, ठीक है, उसका पासपोर्ट बनवाया। फिर वह महिला मेरे साथ आई। वह अब भी वैसे ही कर रही थी। मैंने उस व्यक्ति को कहा, "कि कृपा करके इस महिला को वहाँ से हटा दे, में नहीं चाहती कि वह मेरे साथ रहे। सिरदर्दी है, चौबीसों घण्टे वह मेरे साथ है ! मेरे पास कोई तो ऐसा समय होना चाहिए जब यह भूत मुझे घेरे वह बुरी है। परन्तु वह मेरी बात न समझ सका। अभी भी उस महिला का पक्ष ले रहा था। तब एक हुए न हो। कृपा करके इससे मुक्ति पा लो, आपमें से सभी को कुछ न कुछ अनुभव हुआ है। मैं आपको.... की पत्नी का उदाहरण देती हूँ, वो दोनों यहाँ पर विद्यमान नहीं हैं परन्तु पत्नी के साथ क्या हुआ ये समझना अच्छा होगा। दिन ऐसा हुआ कि इस महिला ने मेरे हृदय पर वह अपनी पत्नी से बहुत लिप्त था। उसने उससे शादी की तो मुझसे पूछा। वास्तव में मुझे खेद हुआ कि वह इतनी संवेदनहीन है, क्यों नहीं वह उस महिला को देख पाता, क्यों नहीं उसे समझ सकता? मेरी समझ में नहीं आया कि क्या कहूँ! यदि विवाह के लिए इन्कार करती हूँ तो वह सोचेगा कि माँ मुझे नीचे उतरने को कहो। जब वह नीचे उतरी तब विवश कर रही हैं। मैं नहीं जानती थी कि क्या कहूं, आक्रमण किया, हृदय मुट्ठी की तरह से भिंच गया। मेंने उस व्यक्ति से कहा कि मेरे हृदय पर हाथ रखकर देखे कि हृदय किस प्रकार धड़क रहा है। वह अपना हाथ न रख सका, मेरे हृदय के समीप भी अपना हाथ न ला सका। कृपा करके अब उसे हृदय की धड़कन धीमी हुई। तब उसे महसूस हुआ कि वास्तविकता क्या है। फिर भी उसने उसे छोड़ा नहीं, उसे छोड़ा नहीं। लॉस एंजलिस गए, सभी जगह वो मेरे पीछे आई। सहानुभूति के कारण, परन्तु वास्तव मुझे सदमा लगा और दो मिनट तक मैं कुछ भी नहीं बोली। मुझे विश्वास है कि उस महिला ने अच्छी तरह से अपना रंग जमा लिया था। में अन्यथा वो जा सकती थी। वह काफी शक्तिशाली महिला थी। लॉस एंजलिस में, शनै: शनै: उसने अपने दाँत दिखाने शुरु किए। अन्तत: वह कष्ट में मेंने कहा, ठीक है, तुम विवाह कर सकते हो । आपको 'खुशी' मिलेगी यदि आप सोचते हैं कि आपको 'खुशी' मिले। बस इतना ही, मैंने 'आनन्द' नहीं कहा। यदि आपको लगता है कि आपको खशी फँस गया, उसे दर्द होने लगा। परन्तु ज्योंही मैंने 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-33.txt अक : 9 & 10- 2007 33 चैतन्य लहरी है? और आपके पास वे सभी तर्क होते हैं जो ईसा विरोधी कार्य करते हैं। आज्ञा चक्र जब विकृत हो जाता है तब आपको सभी असत्य और गलत चीजें भी पूर्णतः तर्कसंगत दिखाई देने लगती हैं। अत: हमें सावधान रहना होगा। हमें ईसामसीह के साथ बने रहना होगा। अब ये लोग चैतन्य-लहरियाँ प्राप्त करने के बारे में भी कहेंगे, " श्री माताजी ठीक है, है, हमने चैतन्य लहरियाँ देखी हैं।" कुछ नहीं, मुझे उलझन होती है। कभी-कभी तो मैं बताती ही नहीं, मुझे उलझन होती है। और लोग भी मेरे साथ चालाकियाँ करके लॉस एंजलिस छोड़ा उस महिला को मिर्गी हो गई। तब उसे महसूस हुआ कि हर समय उस महिला को मेरे साथ बनाए रखना कितना भयानक था! अब वह उसे भेज भी नहीं सकता क्योंकि उसे मिर्गी है। वह उसे वापिस नहीं ले गया| अपने दुख-दर्द की कहानियाँ बता-बताकर उस महिला ने पूरे आश्रम को अव्यवस्थित करने का प्रयत्न किया- ये कहकर कि ओह, मेरा पति मुझे छोड़ना चाहता है," मैं भी पूर्णतः वही हूँ। ये सच आदि-आदि। और सभी को उससे हमदर्दी हो गई, वह भूत है, भूत है, भूत है। और एक भूत ने दूसरे से हमदर्दी जताई। एक बार हमदरदी जताने पर एक और भूत जुड़ गया। इस चालबाज़ियाँ करने का प्रयत्न करते हैं । कभी-कभी प्रकार से वह समस्याएं उत्पन्न कर रही थी आप देखें यह ठीक नहीं है, वह ठीक नहीं है, वो मेरे क्योंकि मैंने देखा है कि अहंचालित लोग अत्यन्त विरुद्ध है, ये परिवार मेरे विरुद्ध है, वो मेरे खिलाफ संवेदनशील हैं एक बात तो है वे अक्खड़ नहीं हैं, है! फिर वहाँ किसी को हृदयाघात हो गया तब कहीं भूत बढने लगे। तो मुझे चिन्ता होती है कि उन्हें किस प्रकार बताएं| अत्यन्त संवेदनशील हैं और यदि उन्हें कुछ बताया जाए तो उसे स्वीकार नहीं करेंगें जैसे कल मैने पूना जाकर उस व्यक्ति ने उस महिला को. निकाला। के सभी लोगों को फटकारा तो उन्होंने कहा कि यह हमारे हित के लिए है। किसी कि "श्री माताजी आपने ऐसी बात क्यों कही?" नहीं, एक ने भी नहीं कहा, सभी ने यही कहा कि यह हमारे हित के लिए है। परन्तु पश्चिम में यदि आप किसी को फटकारेंगे तो वो भी आपको फटकार देंगे। इस प्रकार से कोई भी आपकी फटकार को नहीं लेंगे। अब आप लोग ये मुर्खता न दोहराएं। ने भी ये नहीं कहा नकारात्मकता को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। इसे अपने साथ नहीं रखना चाहिए। सद्-सद्-विवेक सन्तुलन का बेहतर भाग है। व्यक्ति को डरना नहीं चाहिए, परन्तु विवेक सन्तुलन का बेहतर भाग है। ठीक है? आपमें यदि नकारात्मकता हैं तो बेहतर होगा इससे मुक्ति पा लें। कोई यदि नकारात्मक है तो बेहतर होगा कि उससे सम्बन्ध न रखें, चाहे जो भी सम्बन्ध हों, उससे कोई सरोकार न रखें। पतन की ओर जाने का कोई लाभ नहीं। अआप यदि साधक हैं, जिम्मेदार साधक और सहजयोगी हैं तो आपको अत: मुझे आपसे एक चीज़ बतानी है कि अपने अहं की समस्याओं को सुलझा लें। सर्वप्रथम देखें कि आप अपने अहं के हाथों नहीं खेल रहे हैं, और अपने बन्धनों (प्रतिअहं) को भी देखें जो आपके अन्दर भूत बन चुके हैं। चर्च के सभी भूत आपकी खोपड़ी में घुस गए हैं वे सब यहाँ मौजूद हैं। अत: आपको निश्चित करना होगा कि ये भूत आपकी खोपड़ी में न बने रहें, क्योंकि हमें पावन होना है, हमें स्वच्छ होना है और पुनरुत्थान प्राप्त सावधान रहना होगा। यह सब मुझे ईसामसीह के जन्मदिवस पर कहना है क्योंकि केवल वहीं से युद्ध आरम्भ होता है- आज्ञा चक्र से। ज्योही आप ईसामसीह के सिद्धान्त से दूर हटते हैं तो नकारात्मकता के पक्ष में बहस करने लगते हैं, हमेशा उल्टी दिशा में ठीक ho 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-34.txt अंक : 9 & 10 चैतन्य लहरी 2007 34 करना है हम द्विज हैं। ईसा मसीह ने हमें द्विज क्योंकि वे आपको पुनर्जन्म प्रदान करने के लिए बनाया है। परन्तु आपको सोचना होगा कि हमारे लिए उन्हें कितना कार्य करना पड़ा। जितना अधिक सोखने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी उन्होंने ली है। आप नकारात्मकता से जुड़ेंगे उतना ही अधिक हम उन्हें (ईसामसीह को) हानि पहुँचाएंगे, सताएंगे और लाद दें। जैसे कभी-कभी मैं पाती हूँ कि कुछ उतना ही अधिक उन्हें कष्ट देंगे, उन्हें जिनका जन्म पश्चिमी लोगों का प्रतिअहं इतना अधिक होता है नॉद (Manger) में हुआ था और जिन्हें जीवन के कि इस नन्हें शिशु पर पहाड़ का बोझ पड़ जाता आरम्भ से मृत्यु तक कठिनाइयों में रहना पड़ा। जबकि सभी लोगों को जीवन के सुख चाहिएं! आप देखें कि उनका जन्म ही गायों के बाड़े में हुआ! ईसाई लोग जब अपनी सुख-सुविधा के बारे में इतने सतर्क हैं तो आश्चर्य की बात है कि ईसामसीह ने आती है। सम्राटों के सम्राट जिनका जन्म आपके गायों के बाड़े में जन्म क्यों लिया! कड़कड़ाती ठण्डी रात में ईसामसीह का जन्म हुआ इतने सुन्दर कोई तरीका नहीं है। आपका इतना सम्मान किया शिशु को ढकने के लिए पर्याप्त वस्त्र भी न थे! अब हमें ईसामसीह को अपने अन्दर आराम से सम्भालकर रखना होगा। अब हम उन्हें अपने आज्ञा चक्र में वही नाँद नहीं देंगे। अपने विचारों का नाँद और ताज हम ईसामसीह को नहीं देंगे। सहानुभूति के रूप में उड़ने की कल्पना करें! अत: इस आज्ञा चक्र को नकारात्मकता को स्वीकार न करके हम उन्हें सुखी बनाएंगे। अपनी मंगलमयता और पावनता के प्रति पवित्र होना चाहिए। बाहर की ओर चित्त अभी भी आपको दयालु होना होगा ताकि ईसामसीह आपकी आज्ञा में अपने निवास का आनन्द ले सकें। अपने व्यर्थ के विचारों, कष्टकर आचरणों, अभद्र दिखावों और गलत धारणाओं की अपवित्र स्वीकृति से हम चाहिए ताकि आपकी आँखों को देखकर कोई उन्हें न सताएं। उनका सम्मान करने का प्रयल्न करें, भी व्यक्ति ये जान जाए कि इन आँखों से माधुर्य वे वहाँ खड़े हैं। उन्हें अत्यन्त सुखी करने का प्रयत्न करें। काश कि मैं ये कार्य कर सकती, परन्तु उनका निवास तो हर मनुष्य के आज्ञा चक्र में है । वे यदि केवल मेरी आज्ञा में होते तो मैं उन्हें अधिकतम वहाँ स्वीकार करें, उनका जन्म हो गया है परन्तु अवतरित हुए हैं। आपके सभी बन्धनों और अहं को परन्तु इसका अर्थ ये नहीं है कि आप उन पर पत्थर है। कभी- कभी मुझे श्वास की भयानक दुर्गन्ध आती है, अहं के भयानक श्वास की दुर्गन्ध, जो सड़ती हैं और तूफान की तरह से आज्ञा की ओर जाती है और इस भयानक अहम् में से सड़ी हुई दुर्गन्ध अन्दर हुआ, का स्वागत करने का यह बिल्कुल गया कि ईसामसीह ने आपकी आज्ञा में जन्म लिया, अब आप भी तो अपने आज्ञा चक्र का सम्मान करें। अपने चित्त को मध्य में रखें ताकि कोई अस्थिरता न हो- किसी बच्चे के पंख लगाकर अत्यन्त स्वच्छ, स्वस्थ और पावन रखना होगा। चित्त पावन नहीं है, चित्त निर्लिप्त होना चाहिए। आप यदि आज्ञी के माध्यम से देखना शुरु कर दें तो आपके अन्दर से पावनता की शक्ति का प्रक्षेपण होना प्रवाहित हो रहा है, वासना, लोभ और आक्रामकता नहीं। ये सभी कुछ हम प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि अपनी आज्ञा में ईसामसीह हमें प्राप्त हो गए हैं। उन्हें सुख प्रदान करती, परन्तु वे तो हर मनुष्य की आज्ञा में प्रकट होना चाहते हैं। अत: माँ के रूप में मुझे आपसे प्रार्थना करनी है कि उनकी देखभाल करें, उन्हें शानदार पालना दें और सुखद समय प्रदान करें अभी उन्हें बढ़ना है। मुझे विश्वास है कि सहजयोगी आज्ञा चक्र के महत्व को समझेंगे। पूर्व में कोई समस्या नहीं है क्योंकि वहाँ के लोगों के लिए वे केवल श्री गणेश हैं। श्री गणेश शिशु हैं और 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-35.txt अंक : 9 & 10 चैतन्य लहरी 2007 35 मुझसे पूछते हैं- "यदि वे पावन हैं तो हम किस प्रकार उन्हें अपावन कर सकते हैं? मेरा कहने का अभिप्राय ये है कि यदि आप उनका सम्मान नहीं निश्चित रूप से लोग जानते हैं कि बचपन में किसी प्रकार की मलिनता, कोई समस्या आदि नहीं होती। तो जहाँ तक अपराधों का सम्बन्ध है वे लोग अब भी बच्चे हैं एक कथा है- एक पादरी, किसी गाँव करते तो वो क्यों यहाँ उपस्थित होंगे? वे गया और ग्रामीण लोगों को बहुत बड़ा भाषण दिया, जाएंगे। उन्हें पावनता पसन्द है। वो यहाँ से लुप्त हो गाँव के लोगों ने उसका धन्यवाद करना था। एक जाएंगे और यह आपके लिए हितकर नहीं है। ग्रामीण उठ़ा और कहने लगा, "हमें इसके विषय में बताने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, हम नहीं जानते थे कि पाप क्या होता है, परमात्मा का धन्यवाद आपने हमें बताया कि पाप भी होता है।" तो उनके मस्तिष्क में ये चेतना नहीं है। वो नहीं ईसामसीह के सौन्दर्य और उनकी मंगलमयता का समझते। आपको आश्चर्य होगा, भारतीय लोगों से पोषण करेंगे। लुप्त हो अत: बेहतर होगा कि प्रेम और ईमानदारी का एक पालना, एक सुन्दर पालना, जैसा उनकी माँ ने उनके लिए तैयार किया था, तैयार करें। पूर्ण माधुर्य, करुणा और विश्वास के साथ कि आप आप नहीं पूछ सकते, उनकी समझ में ही नहीं आएगा कि इसका अर्थ क्या है? वे कहते रहें. 'श्रीमान फ्रॉयड, ये, वो परन्तु वो कुछ नहीं समझ परमात्मा आपको धन्य करें। आपके कोई प्रश्न हों तो मुझसे पूछें। एक सहजयोगी:- जब मैं निर्विचार समाधि पाते। यह इतना परमात्मा-विरोधी है! वास्तव में कल तक मैं भी इसके बारे में नहीं जानती थी। जब रुस्तम ने अत्यन्त संकोचपूर्वक इसका वास्तविक अर्थ बताया कि यह इस प्रकार से है और हमें इसे में होता हूँ तो स्पष्ट नहीं देख पाता? मैं सोचती हूँ कि आपको श्री माताज़ी उससे अधिक देखना चाहिए जितना आप प्रायः देखते हैं। समझना है। वो ठीक है। जब आप निर्विचार समाधि में आज पावनता का महान दिवस है। आइए अपने आज्ञा चक्र में ईसामसीह का जन्मोत्सव मनाएं होते हैं तो आपकी आँखें (पुतलियाँ) फैलती हैं, ये और उनका स्तुतिगान करें ताकि अपने पावन सार में, अपने पावन शरीर में, वो स्वयं यहाँ विद्यमान को- थोड़ा सा और ऊपर, ऊपर को खींचे ठीक है? हों। ईसाइयत या फ्रॉयड की मूर्खता नहीं। ईसाइयत भी उतनी ही खराब है जितनी फ्रॉयड की बातें। हुई हो अर्थात पुतलियाँ अभी फैल रही हों तो आँखों बात ठीक है परन्तु इसे और ऊँचा उठाएं- कुण्डलिनी कुण्डलिनी यदि निर्विचार-चेतना पर रुकी इनमें कोई अन्तर नहीं है। बच्चे पर पहाड़ गिराकर चाहे आप उसकी हत्या कर दें या गन्दी बदबूदार होती। परन्तु कुण्डलिनी जब बाहर आती है तो का रंग काला हो सकता है, परन्तु उनमें चमक नहीं आँखों में चमक आ जाती है। आप यदि गौर से देखें तो आँखों में अन्तर नज़र आएगा। आँखें फैलती हैं हवा उस पर चलाकर, दोनों एक ही बात है। अत: कृपया दोनों धारणाओं से मुक्ति पा लें- पूर्णतया और पावन हृदय से उनका (ईसामसीह) पुतलियाँ फैलती हैं- जब आज्ञा चक्र का सिर्फ सम्मान करें। 'पूर्ण पावनता से क्योंकि वे पावनता हैं। अब आप कह सकते हैं कि श्री माताजी वे यदि होती है, तब आप स्पष्ट नहीं देख पाते। ठीक है? पावन पवित्रता हैं- कुछ ऐसे मुर्ख लोग भी हैं जो परन्तु निर्विचारसमाधि इसका एक हिस्सा है। अत: भेदन हो रहा होता है- अर्थात कुण्डलिनी अभी यहीं 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-36.txt अंक : 9 & 10 चैतन्य लहरी 36 2007 अपना चित्त वहाँ डालें- और अब सर्वोत्तम ये कुण्डलिनी को यदि आप थोड़ा सा ऊपर को धकेलें- आप जानते हैं कि अपने चित्त से कुण्डलिनी होगा कि अपना चित्त मुझ पर बनाए रखें को किस प्रकार धकेला जाता है, या आप यहाँ क्योंकि मैं सहस्रार पर हूँ। (सहस्रार पर) देखें या मेरे विषय में सोचें तो कुण्डलिनी ऊपर को चली जाएगी। ठीक है? अपनी कुण्डलिनी को आज्ञा पर बने रहने की आज्ञा न दें। ये भयानक है। नि:सन्देह। आप सूक्ष्म हो गए हैं और यदि आप चाहें तो, प्रयत्न अत: निर्विचार समाधि मात्र शुरुआत कृष्ण के स्थान तक जहाँ आप साक्षी बनते करके बाएं या दाएं को जा सकते हैं। हैं, महान क्षेत्र है। जब आप 'साक्षी बिन्दु' बन जाते हैं तब आपकी आँखों में चमक आ जाती है। आपकी आँखें चमकती हैं। आँखों की चमक इस और श्री मैं आपको बताऊंगी कि यदि आप अपनी आँखें बन्द करने लगते हैं या आपको नींद आ रही होती है और उस अवस्था में यदि आप प्रतिबिम्ब देखने लगते हैं तो इसका अर्थ ये होता है कि आप बाईं ओर को जा रहे हैं- ये मृत शरीर हैं, आप उनके चेहरे देखने लगते हैं। ये, वो। आप बाएं को जा रहे हैं । यदि आप प्रकाश, सितारे, ये वो सभी प्रकार की चीज़ें देखने लगते हैं- अर्थात बहुत से रंग-तो समझ लेना चाहिए कि आप दाईं ओर को जा रहे हैं । इससे बचने का प्रयत्न करें। आपको कहना चाहिए, बात का चिन्ह है कि कुण्डलिनी ठीक प्रकार से चल रही है। उस समय आप उससे कहीं अधिक देख सकते हैं जितना आप प्रायः देखते हैं। आरम्भ में तो बड़ा-बड़ा नज़र आने लगता है, हर चीज़ कहीं अधिक साफ़ नजूर आने लगती है। ठीक है? पुतलियों का विस्तार घटित होता है। इस समय पर कुछ लोगों ने वास्तव में अपनी आँखें खोलीं और कह उठे, "ओह! हम तो अन्धे हो गए हैं।" ये सत्य है, ऐसा घटित होता है, ये बात ठीक है? " मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है।" आपको यदि लगे कि आज्ञा बाईं तरफ है तो इसे दाईं तरफ धकेलें और यदि दाई तरफ है तो बाईं तरफ धकेलें। बहुत अच्छा प्रश्न था। आज्ञा बहुत महत्वपूर्ण है और सर्वोत्तम तरीका ये है कि आप अपनी कुण्डलिनी को ऊपर परन्तु होता क्या है कि जब आप उच्च चेतना की एक खास अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं उठाएं, आज्ञा के आस-पास न घूमते रहें। ऐसा करना तब इच्छानुरूप आप इन क्षेत्रों में प्रवेश कर सकते हैं और ये सब चीजें देख सकते हैं परन्तु तब कुछ बहुत खतरनाक है। आपको 4, 4, 4 कदम पीछे फेंका जा सकता या 6, 6, 6, 6 कदम इस और जा सकते हैं। यह 6, 6, 6, 6 कदम इस ओर और 4, विशेष भिन्न प्रकार की चीजें भी आप देखते हैं। 4 4 कदम इस ओर कार्यान्वित होता है। भयानक! कभी मत जाएं। आपको बहुत सावधान रहना चाहिए। उदाहरण के रूप में आप मेरे सहस्रार से बहुत कुछ और निकलते हुए कभी भी आप आज्ञा पर घूमते न रहें, नहीं तो देख सकते हैं ये बिल्कुल अलग बात है कभी-कभी आप छोटी सी ज्योति (Flame) भी देख सकते हैं- ये अच्छा चिन्ह है, इसका अर्थ ये है कि कोई आपका पथ प्रदर्शन कर रहा परन्तु आपको बड़े-बड़े वलय या ऐसा ही आपको बाहर फेंक दिया जाएगा। चित्त को बाहर धकेला जाता है- प्रक्षेपित किया जाता है। आप विचार करने लगते हैं, सभी प्रकार की समस्याएं। है। सावधान रहना होगा। इन चीजों से लिप्त नहीं होना क्योंकि आपका पथप्रदर्शन हो रहा है और नि:सन्देह हर समय अपनी कुण्डलिनी को बाहर बनाएं रखें, देखें कि यह बाहर आ रही है। গt 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-37.txt चैतन्य लहरी अंक : 9 & 10 - 2007 37 श्री माताजी:- इसकी आपको आवश्यकता महान देवी देवता आपके पीछे-पीछे चल रहे हैं । परन्तु आपको चाहिए कि इन चीजों से चिपके रहने का प्रयत्न न करें। वो यदि बहाँ हैं तो होने दें । आपकी आज्ञा बहुत महत्वपूर्ण है, अपनी आज्ञा को इन चीजों की ओर आकर्षित न होने दें इस प्रकार की ज्योति आपको दिखाई दे सकती हैं। कभी-कभी आपको एक छोटा सा बिन्दु, रुका हुआ बिन्दु दिखाई दे सकता है। वास्तव में ये देवदूत हैं जो आपके साथ हैं और आपको विश्वस्त करने का प्रयत्न करते हैं। परन्तु ये सब महत्वपूर्ण नहीं है। आपके मार्ग पर महत्वपूर्ण तो ये है कि आप आगे यही सर्वोत्तम है। बस आनन्द लें। मैं चाहती हूँ कि बढ़े, न इधर जाएं न उधर। परन्तु यदि आपको रोज़ इस प्रकार के प्रतिबिम्ब नज़र आते हैं तो इन्हें करें, बस, और आनन्द उठाएं। ठीक है? बस अपने पीछे या इधर-उधर धकेलने का प्रयत्नं करें, जैसा लिए समस्याएं न खड़ी करें। भी हो सके, और इन्हें समाप्त करने का प्रयत्न करें ताकि आप आगे बढ़ सकें। इसका अर्थ ये है कि या तो आप एक ही बिन्दु पर रुके हुए दिशा में, बाएं या दाएं को, जा रहे हैं। दिशा तो आगे-आगे और आगे होनी चाहिए (ऊपर, ऊपर और ऊपर)। नहीं है। मेरा अभिप्राय ये है कि आपको इसकी चिन्ता नहीं करनी। चेतन पर बने रहें, ठीक है? आप किसी चीज की रक्षा नहीं करते, वास्तव में आप कुछ नहीं करते। वास्तव में, यदि आप देखें तो आप क्या करते हैं? सहजयोगी:- में तो बस आनन्द उठाता हूँ। श्रीमाताजी:- हाँ, आप बस आनन्द लें। आप आनन्द उठाएं। अपने लिए समस्याएं मत खड़ी महत्वाकांक्षी न बनें। आक्रामक न हों और दूसरों के सम्मुख बहुत अधिक दब्बू (Submis- sive) न बनें। ये बहुत कम होता है परन्तु सहजयोग के प्रति विनम्र बनें और पूर्णतः समर्पित। हैं या दूसरी निर्मला योग- 1983 सहजयोगी:- अपने अवचेतन की हमें किस प्रकार रक्षा करनी चाहिए क्योंकि इसके विषय में तो हम चेतन भी नहीं हो सकते? (रूपान्तरित) 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-38.txt चैतन्य लहरियाँ क्या हैं मुम्बई-27.3.74 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन कोई शंका नहीं कर सकते। जो विदित है जो दिखाई Viberations, that is love, that is है दे रहा है, ये viberations क्या है? एक Viberation, knowledge, that is joy । पहला शब्द जिसको कि आप लहरियाँ कह सकते हैं, परम कह सल्फरडायाक्साइड के रेणु में जो अनन्त अणु हैं वो किस चीज से Viberated हैं, इसमें Viberations सकते हैं। जब कोई तार छूती है, इसमें से जो संगीत के तरंग उठते हैं, इसे आप viberations कह सकते क्या चीज है? इसके बारे में Science ने एक शब्द viberations के सिवा और कुछ नहीं कहा। ऐसे मैंने पहले भी आपसे कहा था कि हमारे हृदय में जो हैं। भाषाओं का बड़ा चक्कर है। बहरहाल भाषा में उसे आप कुछ भी कहें, लेकिन साक्षात् में इसे आप देख सकते हैं। अभी हाल ही में मैं जब लन्दन में स्पन्दन हो रहा है, इसमें कौन सी शक्ति है, ये अगर डॉक्टरों से पूछा जाए तो सिवा इसके कि ये एक से थी तो वहाँ पर Electro Microscope कुछ अणु रेणुओं में, Molecules के फोटोग्राफ T.V. पर वो लोग दिखा रहे थे उसमें उन्होंने बताया एक Autonomous Nervous System है, स्वयंचालित एक संस्था के सिवाय कोई भी बात हमारे Doctor लोग sulpherdioxide का रेणु जिसमें कि एक Sulpher का अणु है और दो Oxygen के रेणु हैं, आपस में किसी बाँध से बंधे हुए हैं। आँखों से दिख रहा था, नहीं बता सकते। इसका मतलब ये नहीं कि उन्होंने जो खोजा वो ज्ञान नहीं, ज्ञान है लेकिन अधूरा ज्ञान है, बहुत ही अधूरा, छोटा सा, इसका एक अंश मात्र है जिसको कि न्यूटन ने एक बार कहा था । am इसका चित्र दिख रहा था। इसके बारे में कोई प्रश्न या भाषा या कोई शंका की बात नहीं है। आप आँखों से देख रहे हैं। इस तरह के तीन बिन्दुओं के बीचोंबीच एक शक्ति दौड़ रही थी मानो जैसे दोनों हाथों से झर-झर, झर-झर कोई चीज जा रही हो, जैसे की sulpher के दो हाथ हों और वो अपने हाथ से कुछ चीज़ Oxygen की ओर डाल रहे हैं और like the small child collecting pebbles on the shores of knowledgel न्यूटन जैसे महाज्ञानी तक को यह विचार आ गया था कि मैं अभी बहुत अज्ञानी हूँ, इसी जगह ज्ञान की शुरुआत हो जाती है जब मनुष्य सोचने लगता है कि 'सूरदास की सभी अविद्या करो नन्दलाल।' ये जो viberations दूर आपको उसमें दिखाई दे रहे हैं उसके बारे में आप Oxygen से कुछ चीज़ Sulpher की ओर आ रही है। आप अपनी आँख से देख सकते हैं। लग रहा था कुछ भी नहीं कह पा रहे हैं। क्या मनुष्य का ज्ञान हिल रहा है। इतना अधूरा है कि हर रेणुओं में, हर अणुओं के बीच में जो तरंग उठ रहे हैं उसके बारे में कुछ भी और उसके बारे में उन्होंने ये बताया कि तीन तरह के viberations होते हैं, तीन तरह के तरंग होते हैं, जो किसी भी matter में, किसी भी जल पदार्थ में भी दिखाई देते हैं, ये अब Science ने पता लगाया है और इसके बारे में आदिकाल से ही आप नहीं कह पाए? इसका मतलब ज्ञान तो हुआ ही नहीं। Viberations जो कि ज्ञान स्वयं हैं, वो ज्ञान है, सम्पूर्ण ज्ञान हर अणु-रेणु अन्दर में स्थित है जैसे मेरी सम्पूर्ण भाषा और ज्ञान जो मेरे मुख से जा रहा है इन दोनों में स्थित है लेकिन ये दोनों मूर्ख इतने अनभिज्ञ हैं कि कौन सा ज्ञान इसमें से गुजर रहा है। संसार में से लोगों ने बताया। ये जो viberations बहुत चल रहे हैं जो कि जड़वस्तु में आपके सामने साफ-साफ नज़र आते हैं, इसके बारे में क्या आप हमारे भी अन्दर वही ज्ञान तरंगित है लेकिन हम भी 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-39.txt चैतन्य लहरी 2007 39 अक : 9 & 10 के रेणुओं जैसे अनभिज्ञ हैं कि हमारे अन्दर कौन सा ज्ञान प्लावित है और किस चीज़ को फिर आप सच मानकर बैठे हुए हैं। और जब कभी कोई भी आदमी उस सत्य की जरा खोज दूर ही से हों रही है। जैसे कि मैने आपसे और उसी Sulpher oxygen कहा कि Sulpherdioxide के एक रेणु के अन्दर उसके अणु के अन्दर से viberations हैं ये वही संगीत के तार हैं जिनकी मैं बात कर रही हूँ और वही viberations आपके अन्दर से भी बह सकते हैं और फूट कर के उस कार्य को पूरा कर सकते हैं जिसके लिए आप संसार में आप मनुष्य रूपेण आए और अहंकार आदि चीजों से सब अलंकृत सी भी पहचान कराने आता है, तो क्योंकि असत्य में खड़े हैं इसीलिए हम द्वेष में भी खड़े हैं। उस सत्य की झलक मात्र भी कोई आदमी कहने आता है तो उसे हम क्रॉस पर चढ़ा देते हैं या उसको हम murder कर देते हैं, उसको हम खत्म कर देते हैं किए गए। कि जो वो सत्य है हमारे ऊपर किसी तरह से भी और अन्त में उस संगीत के आप धुनी बने। बड़ा संगीत का सारा साज सजाया गया था, त खुल जाए। इससे भी बचकानापन क्या और हो सकता है? जिस सत्य के कारण स्वयं आनन्द सब बड़े सुन्दरता से जतन करके जमाया गया रंग, लेकिन तार को छेड़ने वाला गुर नहीं मिलेगा तो संगीत कैसे उत्पन्न हो सकता है? इसीलिए संसार में कहीं भी, जहां कि बड़ी अमीरी भी है, जहाँ पर अब दूसरी तरह से समझना चाहें तो मैं लोग बड़े बलिष्ठ हैं, जहाँ बड़े सत्तावान लोग बैठे आपको समझाऊं कि एक तानपूरा की बात है हैं, आनन्द मैने कहीं नहीं देखा। और न आप ही जिसमें कि उसकी लकड़ी भी है और उसका नीचे पाइयेगा कि किसी के अन्दर वो आनन्द की उपलब्धि है। कारण उसका एक ही है कि वो तार जिससे कि आनन्द, की उपलब्धि होती है आपके हाथ नहीं आपके अन्दर में खिलना चाहता है, आपके हृदय में है घुसना चाहता है, आपके हृदय में बसना चाहता उसी मार्ग को आप अज्ञान में बन्द किए हैं। का हिस्सा जिसमें कि आवाजू गूंजती है और ऊपर में उसके तार हैं। जब तक उंगलियोँ तार को नहीं छेड़ेंगी तब तक कोई भी संगीत तैयार होने वाला नहीं, उसमें से संगीत सुनाई देने वाला नहीं। लेकिन उंगलियाँ तार पे नहीं हैं, हमारा चित्त उस तार पे होता। इसका कोई भी स्वरूप नहीं है। ये एक नहीं है जिससे आनन्द की उपलब्धि होती है, हमारा लगा है और उसका कारण ये है क्योंकि वो किसी आकार प्रकार में या किसी विशेष स्वरूप में नहीं energy जैसा है, गर आप कल बिजली को पकड़ सकते हैं तो उसे भी पकड़ सकते हैं। अहंकार आदि है। उस तार पे जब तक आपकी लेकिन आप बिजली को नहीं पकड़ते, उसी तरह से आप उसे नहीं पकड़ सकते हालांकि आनन्द की उपलब्धि हो नहीं सकती। आप संसार वो आपके अन्दर है, आपके हृदय में स्पन्दित है, की कोई सी भी चीज़ ढूँढ डालिए, जो भी आपकी आपके जितने भी स्वयंचालित कार्य हैं- शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, सब वही करता है और वही कर डालिए, लेकिन आनन्द की उपलब्धि तभी आपको अपनी ओर खींच रहा है। उसे जानना हमारे होगी जब सहज में ही आप उन तारों को छेड़ देंगे लिए परम आवश्यक ही नहीं किन्तु परम जीवन का चित्त उस तानपूरे पर है जो ये शरीर, मन, बुद्धि, उंगली छिड़ेगी नहीं आपको किसी भी चीज से आजतक युगों से खोज है, वो सारी ही खोजें आप जिससे कि संगीत उत्पन्न होता है। उस तारों की लक्ष्य मात्र है। जब तक संसार इस चीज को सोचेगा ग 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-40.txt चैतन्य लहरी अंक : 9& 10 2007 40 नहीं, जब तक इस ओर पूरी तरह से दृष्टि नहीं की किताब नहीं पढ़ता। कितनी विचित्र सी बात है! डालेगा तब तक संसार का कोई सा भी प्रश्न ठीक नहीं होगा। अभी लन्दन में भी मेरी कुछ लोगों से बातचीत हुई, अजीब-अजीब लोग बातें पूछते हैं । जब तक Sex लिखा न जाए तक तक वह धर्म की बात नहीं सुनता। Sex का और धर्म का कोई भी सम्बन्ध नहीं है। चाहे वो आज हो, चाहे अनादिकाल एक साहब पूछने लग गए कि वियतनाम में इतने लोग मर रहे हैं और आप अपना सहजयोग लेकर नहीं, उसके लिए कुछ भी कहे, Sex का और ध बैठे हैं! मैने कहा, बहरहाल आपके बड़बड़ाने से म्मं का कोई भी सम्बन्ध नहीं है। ये हम सिद्ध करके वियतनाम का वार नहीं ठहरने वाला। कहने लगा तक भी मनुष्य इस बात को न भी माने, समझे भी आपको दिखा सकते हैं, अगर आप किसी भी हमारे आपके ऊपर गुर कोई बन्दूक लेकर आए और आपको मार डाले तो आप क्या करिएगा? मैने कहा पहले आप बन्दूक तो लेकर आने दीजिए। इस प्रोग्राम में आएं। इस कुण्डलिनी की जागृति Sex से सम्बन्धित है ही नहीं। उल्टे Sex जब छोटे बच्चे जैसे हो जाता है, तभी कुण्डलिनी आपकी माँ जागृत होती हैं। इस तरह से कलयुग में एक विचित्र सा viberation की शक्ति अभी तक किसी ने आजूमाई नहीं। हमारे सामने तो ऐसे ही कोई जुरा सा भी कोई पिस्तौल लेकर आए तो थर-थर काँपकर के उसके हाथ मुँह दबदबाने लगते हैं। आपमें से बहुत सों ने देखा है। confusion है। उस वक्त में viberations का देखा जाना कम से कम इशारा तो इस ओर करता ही है कि मनुष्य चाहे कितनी भी डींग मारे वह बहुत कम ही जान पाया है। बहुत ही थोड़ा जान पाया है। बहुत ही थोड़ा। और जो नहीं जान पाया उसको सब उसने नाम दे दिए है बड़े बड़े! जैसे कि मैने आपसे कहा त प्रेम की शक्ति को किसी ने आजमाया ही नहीं, और गर प्रेम की बात करो तो लोग उसे हवाई बात समझते हैं हालांकि अणु-रेणु और हरेक मनुष्य कि viberations, कहीं इसे कहता है कि स्वयंचालित और कहीं वो कहता है कि universal संस्था, के हृदय के हरेक स्पन्दन में ही उसकी शक्ति कार्य करती है। प्रेम ही एक शक्ति है जो सारी सृष्टि की unconsciousl रचना, सृजन, सारा कार्य करती हैं। इसी फ्रेम की शक्ति को लोग Divine कहते हैं। नाम कुछ भी इसको समझने की बात है, हिन्दुस्तान में जाते हैं कि माताजी ने ऐसे कैसे कहा। लेकिन जो संसार के सारे ही प्रश्न सहजयोग से ही छूट सकते हैं। ये कहने पर भी लोग बहुत नाराज हो दीजिए, शंकराचार्य ने बहुत साफ-साफ इस बात की गर्जना करके और घोषणा करके कहा था, "'इन्हीं चैतन्य शक्ति सारे संसार को चलाती है, जो viberations हरेक अणु, रेणुओं में प्लावित है, उसको गुर आप लहरियों का आना ही परमात्मा का पाना है और जान लें, बो आपके हाथ में से बहने लग जाएं, उसी से मनुष्य उस परमात्मा के हाथ का साधन बनकर के संसार का कार्य उस तरह से करते रहता है जैसे कोई एक साक्षी हो Witness हो। लेकिन शंकराचार्य को कौन पढ़ते हैं? उसपे गुर आप mastery कर लें, तब आपके लिए क्या असम्भव कोई बात है? मनुष्य शक्ति का पूजारी है, वो चाहता है कि हाँ गर मेरे अन्दर शक्ति आ रही है तो मैं सहजयोग करुंगा, उसे कुछ बदला चाहिए। असल में आपके अन्दर तो शक्ति है ही, लेकिन वो कुण्ठत है। उसको स्वतन्त्रता Modern आदमी की बड़ी विचित्र दशा है! जब तक धर्म में अधर्म न लिखा जाए मनुष्य धर्म 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-41.txt चैतन्य लहरी अंक : 9 & 10 2007 41 दे देना, उसको iberate करना, यही कार्य से Centres पकड़े हैं जो हमारे अन्दर हैं, जिन्हें हम सहजयोग करता है। यही iberation है, यही दिखा सकते हैं आपको, पर आप हमारे ध्यान में मुक्ति है, जिसके बारे में हजारों किताबें मनुष्य कभी आएं इतना समय गर आपको मिल जाए. आप बड़े busy लोग है तो आप जान सकते हैं कि अज्ञानियों की किताबें हैं। ज्ञान की किताबें तो वो हैं इन्हीं उगलियों के ऊपर आप दूसरों को परख सकते जोकि रोजमर्रा, हर जगह हमें जरूर देखने को मिलें हैं और जान सकते हैं कि कौन सन्त है, कौन असन्त है, कौन दुष्ट है कौन महादुष्ट है, कौन ने लिख दीं। ये बहुत अज्ञानी किताबें है, बहुत सारी और उसका proof मिले। अज्ञान ही संसार में भरा दिखाई देता है। राक्षस है। यही knowledge कोई साहव आए बड़े अच्छे कपड़े पहनकर के आ गए, साधु महात्मा जब मनुष्य को ज्ञान होता है, सिर्फ एक ही ज्ञान कि 'मैं कौन हूँ' मैं किस शक्ति से बना हुआ हूँ और किस शक्ति में मैं स्थित हूँ' तो एकदम से बनकर आ गए, आपसे मीठी बातें करी, 'भई मैं तो तुमसे प्रेम करता हूँ।' बाद में आपने पता देखा कि कितनी गटी कट गई ये तो समझ में आया नहीं, वैसे तो बड़े अच्छे लग रहे थे, बड़े साधु लग रहें उसका अन्तर्मन बदल जाएगा। उसकी स्थिति बदल जाती है, उसका तरीका बदल जाता है। और जिसे थे, मुँह से बड़े भोले भाले लग रहे थे लेकिन हमारी वो दुख समझता है, जिससे वो घबराकर भाग रहा है, वो असलियत में वास्तविकता तो गर्दन काट गए! मनुष्य के बारे में अपने ही मनुष्य और नहीं है। हालांकि अधिकतर मानव बहुत सुन्दर, उसके लिए बड़ी मनुष्य के बीच में कोई आपस में ज्ञान सुन्दर हो जाती है। सिर्फ ये viberations हमारे अन्दर से बह निकलें उसके बाद इन्हीं viberations अत्यन्त गौरवशाली, जैसे कि बाग में कलियाँ हों और अभी खिली नहीं हों और कोई समझता ही से आप जान सकते हैं, knowledge आ सकता है कि दूसरा आदमी क्या है। इसी से शुरु करें। दूसरा आदमी क्या है? आप कोई realized आदमी आता है, छोटे बच्चे आते हैं दो-दो साल के बच्चे जो पार हो जाते हैं, जिन्हें हम कहते हैं जिनके अन्दर से पड़ते हैं, और जब आप दूसरों पर हाथ रखकर viberations बहना शुरु हो जाते हैं। वो किसी भी देखते हैं तो मजा आता है आपको। आपको मजा नहीं कि इस बाग में कितनी बहार है जब ये viberations आपके अन्दर से छूट इन्सान की ओर जब हाथ करते हैं तो बताएंगे कि हमारे इस उंगली में जलन है। अब गुर उस आदमी से पूछिए हैं कि आपको Heart Trouble है, कहने आता है, आप देखते हैं, आ हा हा हा, आ हा हा हा। कितना! लोग बताते हैं ये तो ऐसा आदमी है किसी से बात ही नहीं करता, अजीब सा आदमी है! है! नहीं नहीं, इसके अन्दर देखो, कितना सुन्दर आपस में सुगंध, एक संगीत, देखने योग्य होता है, से कम पचास फीसदी आदमी दे सकते हैं। बिल्कुल मज़ा आता है इन्सान से। हालांकि हम इन्सान से सही बात है। आप उंगलियों से उन्हें जान सकते हैं, भागते रहते हैं सुबह से शाम तक, इन्सान-इन्सान से लगा हाँ भई हमें Heart Trouble हैं। यह हृदय चक्र हैं की निशानी है, इसकी गवाही यहाँ बैठे हुए हैं कम है छोटे बच्चे तक जान सकते हैं, कोई गर आदमी आ सुबह से शाम तक। क्या अरजीब भागता रहता हालत है! जो आदमी जानकार है, उसको तो कभी-कभी ऐसा भी लग सकता है कि अजीव जाए, आप फौरन बता सकते हैं कि ये आदमी किस दशा में है, इसके कौन से चक्र पकड़े हुए हैं, कौन 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-42.txt अंक : 9 & 10 -2007 चैतन्य लहरी 42 तो परमात्मा को कोई धन्धा नहीं था जो इस तरह के अज्ञानी लोग को पैदा कर दिए? क्या उनको अक्ल नहीं थी जो इस तरह के महामूर्खो को पैदा कर दिया जो अपने ही वो थे? और जब ये ज्ञान हो जाता पागलखाने में आए हैं! सब एक अज्ञान ही से सारा मनुष्य इतना अन्जान है उस आनन्द से जिसे परमात्मा ने बनाया है। एक सहजयोग ऐसी चीज़ है, ऐसा एक तरीका है जो परमात्मा का अपना तरीका है, जिसके है, एक बात पता हो जाती है, एक बात जो बड़ी सच्ची बात है, परम सत्य की एक बात समझ में आ जाती है कि अरे जो हमारे अन्दर स्पन्दित है कारण आपके हाथ में से ये viberations बहने लग जाते हैं, पाँव में से बहने लग जाते हैं। सारे शरीर में से बहने लग जाते हैं, जैसे सूर्य का प्रकाश हो और दूसरों के अन्दर जाके, उसके प्रेम को भी जगा करके उसमें भी वो गति दे सकते हैं कि उसके भी ाम वही दूसरे के अन्दर स्पन्दित है, और जो हमारे अन्दर से viberations बह रहे हैं वही दूसरों के अन्दर अकुला रहे हें फूटने के लिए और बहने के लिए और ये जाना जाता है आपके हाथ पर, अंगुलियों पर और आपकी रीढ़ की हड्डी पर। फिर आप अन्दर से वो बहने लग जाएं और एक तरह की chain reaction सी बना दें। लेकिन हजारों दीप जलाने के लिए पहले दीप तो सच्चे हों। आप सिर्फ दीप मात्र हैं, आप ये खुलते हैं, आपके सर पे। जान लीजिए, और आप कुछ भी नहीं है, जिससे कि संसार में उजियारा हो और आपके अन्दर वो और उसकी व्यवस्था भी हो गई, लेकिन महज़ बात भी है जिससे कि दीप जलना है। लेकिन गर इसलिए कि मैं आपके सामने बम्बई में बोल रही हूँ आप मुँह मोड़ कर बैठे हुए हैं तो उसे कौन क्या कह सकता है? हमारा कितना भी द्वेष, इस देश की फिर मेरे दो सींग नहीं लगे हुए हैं जिससे मेरी बात न तो विशेषता है, इस देश की तो विशेषता ही विद्वेष सुनी जाए। सारे ही संसार का प्रश्न हठात से एक पल मनुष्य को एक नए आयाम में उतरना है और कोई मैं बहुत बड़ी भारी लीडराने वतन नहीं हूँ, या में ही पार हो सकता है गुर सारा संसार सहजयोग को मानने लगे, लेकिन वो तो बड़ी कठिन बात नजर आ रही है अभी फिलहाल। लेकिन कम से कम आप लोग जो यहाँ थोड़े जो भी लोग हैं, आप ही लोग पार हो लें। और कुछ करना नहीं है, सहज में, आपही के साथ पैदा हुए कुण्डलिनी योग के बारे में मैं कल बताने वाली हूँ। कुण्डलिनी क्या है, ये भी है। किसी का कुछ अच्छा भी अच्छा नहीं लगता, बहुत ही अजीब सी बात लगती है। किसी के घर में गुर फूल खिले हैं तो हमें अच्छा नहीं लगता है पर किसी के घर में आके कोई गोबर डाल दे तो हमें अच्छा लगता है! कैसा मनुष्य विचित्र है! आप ही बताइए, किसी के घर में गुर फूल खिले हैं तो आपको भी तो सुगन्ध आएगी, आपकी भी तो हवा सुगन्धित हो जाएगी। विद्वेष के कारण ही हम इस अज्ञान ही है जब तक उस स्पन्दन में देख के न समझें ये भी अज्ञान है। ज्ञान से अधूरे रहे हैं । | इस प्रेम की शक्ति को गुर अपनाना है, हमारे अन्दर के जो तरंग हैं, वो हमें प्यार सिखाने के लिए आए हैं प्यार देने के लिए आए हैं एक चीज जरूर होना चाहिए, जिसको अबोधिता और हमारा जो प्यार है उसे संसार में फैलाने के कहते हैं, innocencel आदमी गुर innocent नहीं हो लिए आए हैं। प्यार का ही साम्राज्य लाने के लिए तो कुण्डलिनी माताजी उठती नहीं। आप ऊपर से संसार में ये हृदय हम लोगों के धड़क रहे हैं, नहीं बड़े शरीफ आदमी होगें, दुनिया में आपका बड़ा 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-43.txt कॉड अंक : 9 & 10-2007 चैतन्य लहरी 43 ठण्डा आ रहा है, इनको गर्म आ रहा है। हमारे यहाँ हमारी एक नातिन है दो साल की है। कोई भी ऐसा बैसा आता है तो घण्टी बजाने लग जाती है फौरन, नाम होगा, आपके बहुत फोटों छपे होएंगे, या आप बड़े भारी साधु महात्मा होएंगे, आपको लोग भगवान करके पूजते होंगे, लेकिन कुण्डलिनी माता जो हैं वो उठने वाली नहीं है। क्या करें हम? उसने तो द्वार एक घण्टी ले कर रखी हुई है। ये आ गई है। और हम जाने जाते थे कि इनको गर्मी लगती है, तकलीफ होती है। इसके बारे में आपको इन्होंने गाना सुनाया पर श्री गणेश को बिठाया हुआ है जो स्वयं innocence ही हैं। या में इतना भी कहूं कि ये जो viberations था, बहुत बड़ी चीज़ है वो, बहुत बड़ी चीज़ है। संसार में आए हो संसार का कल्याण करने के लिए, उनके बिचारों के जल-जल के हाथ अन्दर हैं, ये अगर प्यार है तो innocence है। आदमी को थोड़े innocence की जरूरत है। लोग मुझसे पूछते हैं कि माताजी क्या करना चाहिए? मैंने कहा कुछ नहीं, आपमें innocence कितना है उसको चले गए, पैर जल जलकर के अन्दर चले गए, ऐसे लोगों को तकलीफ कितनी है राक्षसों से, दुष्टों से । ज़रा तोल लीजिए कि उसकों ज़रा नाप लीजिए। आपके बदन में innocence कितना है और जो innocent लोग हैं, क्राइस्ट जैसे आदमी को crucify कर दिया, मोहम्मद साहब जैसे आदमी को Murder कर दिया, किसको नहीं सताया इन दुष्टों ने? आप उनके साथ हैं या अपने innocence के चालाकी कितनी है? इसका नाप-तोल थोड़ा सा हो जाए, और आप ही की भलाई के लिए आपका Bank Balance है। आप हमेशा अपना Bank Balance नाप लेते है कि कितना है, कितना नहीं है। और उसी के अनुसार आप कार्य प्रवीण होते हैं और उसी के अनुसार आपमें अहंकार वगैरा आदि आते सोचिए कि इनके लिए आप क्या देना चाहते हैं? हैं और सहजयोग में जितना innocence आपका साथ है। आप अपने बच्चों के लिए कम से कम कौन सी दुनिया उनके लिए आप बना करके जा रहे हैं, उनके लिए कौन सा विधान आपने सोचा हुआ है? या तो इतिहास में यही जाएगा कि आप ही के जीता होगा, जन्म जन्मान्तर का, वो cash हो जाएगा। खट से ऐसे-ऐसे लोग जो देखते ही साथ खट से पार समय में सहजयोग आया था और आप लोगों ने इसे अपनाया नहीं। जबकि आपको कुछ भी देना नहीं आप दे ही नहीं सकते हमें कुछ। आप लोग हो जाते हैं और चार-चार साल से भी लोग रगड़ रहे है। कुछ न कुछ, ऐसी बात नहीं है कि आप कोई बुरे आदमी हैं, बुरा तो कोई भी मैने देखा नहीं खास। जो यहाँ आते हैं कोई बुरे आदमी थोड़े ही न होंगे। लेकिन एक बात है, आप थोड़ी चालाकी खेल ये जान लीजिए कि आप हमें प्यार भी नहीं दे रहे हैं। चालाकी से परमात्मा नहीं जाना जाएगा, चालाकी मनुष्य की Policy है । अपने innocence receiving end पर बैठे हैं, आप हमें क्या दीजिएगा? सकते। वजह ये है कि आपका अभी प्यार ही कम है। पहले प्यार को जगा लीजिए अपने अन्दर तब आप और हममें अन्तर ही क्या रहेगा जो लेना- देना को नाप लें। अब इसका कोई नाप नहीं, इसका कोई बना रहेगा? देना कुछ भी नहीं, सिर्फ लेने की तैयारी चाहिए, जैसे गंगा कितनी भी जोर से क्यों न बह रही हो, आपके दरवाजे से ही क्यों न बह रही हो, और आप गुर उसमें पत्थर डाल दें तो पत्थर मापदण्ड नहीं। आप ही अपना जान सकते हैं कोई तो और जान नहीं सकते। इसीलिए छोटे बच्चे खट से पार हो जाते हैं और पार होने के बाद में खुद ही खडे होकर कहते हैं, हाँ माँ आ रहा है। इनको 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-44.txt अंक 9 & 10 चैतन्य लहरी 44 2007 आदि कहते हैं और अंग्रेजी में इसे psycology, क्या उसमें से पानी लेगा? उसके लिए गागर तो चाहिए होगी न। और गागर भी बनेगी सिर्फ innocence subconscious I subconscious... से ही, एक ही चीज़ थोड़ा सा ठग लीजिए अपने को, कोई हर्ज नहीं। आप ठग गए तो कुछ नहीं जाने से लोगों को भरमाते हैं और इसकी कौनसी कौनसी वाला संसार की कोई सी भी चीज आपके साथ नहीं जाने वाली शिवाय आपके innocence के। लोग किस तरह से उपयोग करते हैं और किस तरह पहचाने हैं, इसके बारे में मैं आपको बताऊंगी। इस तरह से तीन दिन यहाँ पर इन लोगों का विचार है। जितना हमने इस जन्म में खोलकर कहा है पहले कभी भी नहीं कहा। उस समय तो समझदार ही अपने innocence को बनाए रखिए। जो लोग बड़े अपने को होशियार समझते हैं, सबसे ज्यादा ठगे गए हैं क्योंकि जो मूल्यवान है उसे खोकर के ये पत्थर मिट्टी इकट्ठे करलें। नहीं थे कि किसी से कहा जाए। फिर भी गोप से गोपनीय बात भी हम खोलकर कह रहे हैं, इसलिए कि मनुष्य बाद में ये न कहे कि हमें पता नहीं था आज भी थोड़ा सा प्रयोग करने का विचार था सबका ही। आप लोग भी आए हैं, कल सोच नहीं तो हम रुक जाते। मेरी पूरी बात को आप सिर्फ रहे हैं साढ़े आठ बजे भारतीय विद्या भवन में सुन रहे हैं, जानना तभी होगा जब आप पार होंगे। Meditation फिर से होगा, लेकिन थोडे लोग तो बैठे हैं, हम चाहते हैं कि बातचीत से कुछ होना नहीं है, कुछ प्रश्न हो तो पूछ लीजिए क्योंकि प्रश्न बहुत होते हैं, अजीब अजीब से और वो ध्यान के पा लीजिए। गर कुछ बनना हो तो बन जाएगा। लेकिन पाने के बाद भी हम देखते हैं कि बहुत से वक्त में सामने आते हैं। एक दो में आप ही को बता दूं जो हमेशा लोग पूछते हैं कि ऐसे कैसे कि इतनी जल्दी लोग पार हो जाएं? ऐसा प्रश्न बहुत लोगों ने लोग अपने घर में बैठ गए, मेरे पास इतनी इतना चिट्ठियां लंदन में आती हैं कि माताजी आपने तो किया। हर जगह होता है। ऐसे कैसे हो सकता है हमारा 'कल्याण कर दिया, हमें तो बड़ा आनन्द आ एक क्षण में? क्यों नहीं हो सकता है, ऐसा आप लोग क्यों नहीं सोचते? जैसे चन्द्रमा पे ऐसे कैसे कि गया, हमारा तो ऐसा हो गया, बस। इससे आगे? मनुष्य वहाँ पहुँच गया? हमारी दादी से जाकर बताओ तो अब भी विश्वास नहीं करेंगी कोई क्या दीप इसलिए जलाए जाते हैं कि वो टेबल के नीचे रख दीजिएं? पार होने के बाद आपको समझ लेना चाहिए कि आप चुने गए हैं। आप प्रतीक हैं उस प्रकाश के जो संसार को तो कोई पहुँच ही सकता है। कोई Discovery तो हो प्रकाशित करेगा। अपनी छोटी-छोटी मर्यादाएं छोड़कर ही सकती है संसार में । अगर कोई चीज़ का पता चन्द्रमा पर जब पहुँच सकता है तो चैतन्य पर भी के उसके आनन्द के क्षण जो आपको मिले हैं, ये छोड़कर के खुले में आइए और संसार के लिए चाहिए । आजमाने से पहले ही आप सवाल पूछने प्रकाश दीजिए। यही आप दे सकते हैं, सहजयोग का देना यही है और बाकी कुछ भी नहीं। परसों के दिन में उस विषय पर बात करने वाली हूँ जिसके बारे में बहुत सारी भ्रान्तियां संसार मे फैली हुई हैं ही छीन ली जाती है। इसके बारे में परसों बताउंगी, लेकिन महान अज्ञान है जिसे कि हम परलोक विद्या चला है तो उसको कमसकम आजमा तो लेना लग गए कि साहब ये कैसे हो सकता है। अधर्म के मामले में आदमी प्रश्न नहीं पूछता है जब अधर्म धर्म के नाम पर बिकता है क्योंकि उसकी स्वतन्त्रता इस बात को में कह रही हूँ कि जब आदमी पूरी 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-45.txt चैतन्य लहरी अंक : 9 10 -2007 45 तरह से impulsement में आ जाता है तो वह हमें ठीक कीजिए)। लेकिन जड़ से ही मैं कहती हैँ सवाल ही पूछना भूल जाता है और सहजयोग सारी बीमारी छँट जाएगी। जड़ से ही सारा अज्ञान आपकी पूर्ण स्वतन्त्रता को स्वीकार ही नहीं उसका गौरव करती है, क्योंकि आपको स्वतन्त्रता देना ही सहजयोग का कर्तव्य है। गर आप परतंत्र पहले से उसको क्यों नहीं जलाते आप । अभी हम सब लोग ही हों तो आपको स्वतन्त्रता देने से फायदा? लेकिन थोड़ी देर जुरुर ध्यान में जाएंगे, कृपया एक आधे जिससे मिट जाए उसको क्यों नहीं अपनाते आप? जड़ से ही जो अन्धकार है वो कहीं खत्म हो जाए स्वच्छन्दता और स्वतन्त्रता में बहुत बड़ा अन्तर है, घण्टे के लिए आपके पास time हो तो आप बैठे इसको समझ लेना चाहिए। स्वतन्त्रता मनुष्य के रहिएगा, बीच में उठिएगा नहीं, जिनको जाना है wisdom, सुबुद्धि से आती हैं। बहकावे में न आएं पहले ही चले जाएं। आधा घण्टा कम से कम लगेगा अपना भला करना है न, अपना कल्याण करना है और जिसको जाना हो कृपया पहले चले जाएं न। बस हमको किसी से क्या मतलब, हमको किसी से क्या लेना-देना? किसी की बात से क्या करना, बड़े-बड़े काम करना है, किसी को बालरूम डान्स फलाने ने ऐसा लिखा था, ढिकाने ने ऐसा लिखा था, ढिकाने ने ऐसा कहा था। उससे क्या मतलब? क्योंकि किसी को सिनेमा जाना है, किसी को में जाना है, सहजयोग नहीं है। जिन लोगों को परमात्मा को पाना हो वो लोग बैठे और इसको पाएं लेकिन कम से सबलोग चले जाएं ऐसे लोंगों का हमको अपना मतलब है। हमको ठीक होना है, हमको ध्यान करना हैं। कम आधा घण्टा शान्तिपूर्वक आप अपना समय दें, बाकी आपके सारे कार्य होते ही रहेंगे। ध्यान में बैठो तो लोग कहते हैं (माताजी रु] शण ति त लाम 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_V.pdf-page-47.txt ा क द. मानव को जो सबसे बड़ा भय है तो है उनका ये सोचना कि उन्होंने बहुत अपराध किए हैं और ये अपराध इतने अधिक हैं कि उन्हें कभी आत्मसाक्षात्कार नहीं मिल सकता, उनका सर्वनाश हो जाएगा और वे नर्क में जाएंगे। ये बात सत्य नहीं है, बिल्कुल सत्य नहीं है। यदि वे जर्क में नहीं जाना चाहते तो कोई भी न्क में नहीं जाएगा। आप यदि इससे बतना चाहते हैं तो बच सकते हैं। समय आ गया है। आप हमेशा हमेशा के लिए आशीवादित हो जाएंगे परगात्मा आपको धन्य करें। परम पूज्य श्रीगाताजी